JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

Jharkhand Board Class 11 Political Science नागरिकता InText Questions and Answers.

पृष्ठ 79

प्रश्न 1.
सत्रहवीं से बीसवीं सदी के बीच यूरोप के गोरे लोगों ने दक्षिण अफ्रीका के लोगों पर अपना शासन कायम रखा। 1994 तक दक्षिण अफ्रीका में अपनाई गई नीतियों के बारे में आगे दिये गए ब्यौरे को पढ़िए।
श्वेत लोगों का मत देने, चुनाव लड़ने और सरकार को चुनने का अधिकार था। वे सम्पत्ति खरीदने और देश में कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र थे। काले लोगों को ऐसे अधिकार नहीं थे। काले और गोरे लोगों के लिए पृथक् मुहल्ले और कालोनियाँ बसाई गई थीं। काले लोगों को अपने पड़ौस के गोरे लोगों की बस्ती में काम करने के लिए ‘पास’ लेने पड़ते थे। उन्हें गोरों के इलाके में अपने परिवार रखने की अनुमति नहीं थी। अलग-अलग रंग के लोगों के लिए विद्यालय भी अलग-अलग थे।
(अ) क्या अश्वेत लोगों को दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण और समान सदस्यता मिली हुई थी ? कारण सहित बताइये।
(ब) ऊपर दिया गया ब्यौरा हमें दक्षिण अफ्रीका में विभिन्न समूहों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
(अ) नहीं, अश्वेत लोगों को दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण और समान सदस्यता नहीं मिली हुई थी क्योंकि पूर्ण और समान सदस्यता के लिए देश के सभी लोगों को कुछ राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं, जिनमें मत देने का अधिकार, चुनाव लड़ने और सरकार बनाने का अधिकार, देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता आदि प्रमुख हैं। दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत लोगों को ये अधिकार नहीं दिये गए थे। अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक है।

(ब) ऊपर दिया गया ब्यौरा हमें दक्षिण अफ्रीका में विभिन्न समूहों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में रंग के आधार पर भेद-भाव को दर्शाता है जिसमें श्वेत लोगों को जो अधिकार प्राप्त हैं और अश्वेत लोगों को वे अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

Jharkhand Board Class 11 Political Science नागरिकता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व हैं?
उत्तर:
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन विश्व में राष्ट्रों ने पने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान अर्थात् नागरिकता, के साथ- साथ कुछ अधिकार भी प्रदान किये हैं। नागरिक अपने राष्ट्र से कुछ बुनियादी अधिकारों के अलावा कहीं भी यात्रा में सहयोग और सुरक्षा की अपेक्षा करते हैं। लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों के अधिकार नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों की सुस्पष्ट प्रकृति विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन अधिकतर लोकतांत्रिक देशों ने आज उनमें से कुछ राजनीतिक नागरिक तथा सामाजिक-आर्थिक अधिकार शामिल किये हैं। ये हैं

1. मतदान का अधिकार: जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना की जाती है, उनमें वहाँ के वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान किया जाता है। इस अधिकार के अनुसार लोग समय-समय पर होने वाले चुनावों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं जो सरकार का निर्माण कर शासन का संचालन करते हैं।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को निर्वाचन में खड़ा होने का अधिकार है। निर्वाचित होने के बाद वे नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में सरकार का निर्माण करते हैं

3. सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार है।

4. अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता के बुनियादी अधिकार के उपभोग के लिए नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।

5. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार: अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

6. आस्था की स्वतंत्रता का अधिकार: अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों ने धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को अपनाते हुए नागरिकों को धर्म के प्रति आस्था की स्वतंत्रता प्रदान की है अर्थात् नागरिक किसी भी धर्म को अपना सकता है। राज्य व्यक्ति की आस्था के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

7. न्यूनतम मजदूरी पाने का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को न्यूनतम मजदूरी पाने का अधिकार प्रदान किया गया है।

8. गमनागमन की स्वतंत्रता का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों में एक है- गमनागमन की स्वतंत्रता। यह अधिकार कामगारों के लिए विशेष महत्त्व का है। गृह क्षेत्र में काम के अवसर उपलब्ध नहीं होने पर कामगार रोजगार की तलाश में आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं।

9.  शिक्षा सम्बन्धी अधिकार: अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। कोई भी नागरिक समूह अपनी भाषा तथा संस्कृति को बनाए रखने के लिए अपने शिक्षा संस्थान खोल सकता है। सरकारी स्कूलों में सबको प्रवेश पाने की समानता प्राप्त है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक अनेक राजनैतिक, नागरिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं।

नागरिकों के राज्य के प्रति कर्तव्य: नागरिकों के राज्य के प्रति निम्नलिखित दायित्व हैं।

1. राज्य के प्रति भक्ति:
प्रत्येक नागरिक से राज्य के प्रति निष्ठा व भक्ति की आशा की जाती है। प्रत्येक नागरिक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह देशद्रोह न करे और देश पर आए संकट के समय अपना तन-मन-धन न्यौछावर करने को तैयार रहे।

2. कानूनों का पालन करना:
नागरिकों में कानून पालन की भावना से ही राज्य में शांति व व्यवस्था स्थापित हो सकती है। जिस देश में नागरिकों की प्रकृति कानूनों का उल्लंघन करने की होती है, उस देश में शान्ति व व्यवस्था विद्यमान नहीं रहती । अतः कानूनों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

3. टैक्स देना:
सरकार को अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए धंन की आवश्यकता होती है। सरकार टैक्स लगाकर धन की प्राप्ति करती है। अत: नागरिकों का राज्य के प्रति यह कर्तव्य है कि वे अपने हिस्से के करों को ईमानदारी से चुकायें। करों को ईमानदारी से न चुकाने पर राज्य द्वारा दण्ड भी दिया जा सकता है।

4. सैनिक सेवा में भाग लेना: नागरिकों का राज्य के प्रति यह दायित्व भी है कि वे आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा हेतु सेना में भर्ती हों।

नागरिकों के अन्य नागरिकों के प्रति दायित्व: नागरिकों के अन्य नागरिकों के प्रति प्रमुख दायित्व निम्नलिखित हैं।

1. नागरिक अधिकारों का उचित प्रयोग:
लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को जो राजनैतिक, नागरिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, उन अधिकारों के साथ यह दायित्व भी जुड़ा होता है कि वह अन्य नागरिकों को प्राप्त इन अधिकारों के उपभोग के मार्ग में बाधायें नहीं डाले, अन्य नागरिकों के ऐसे ही अधिकारों का हनन न करे तथा इन अधिकारों का सदुपयोग करे न कि दुरुपयोग।

2. समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का दायित्व:
नागरिकता में नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति और समाज के प्रति निश्चित दायित्व शामिल हैं। इनमें सिर्फ राज्य द्वारा थोपी गई कानूनी बाध्यताएँ ही नहीं हैं, बल्कि समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल है।

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प्रश्न 2.
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें । इस कथन की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये तो जा सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। इस कथन का आशय यह है कि समाज के विभिन्न समूह के लोगों की जरूरत और समस्यायें अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं। यथा

1. शहरों में झोंपड़पट्टियों तथा फुटपाथों पर रहने वाले लोग:
यद्यपि हमारे देश में सभी वयस्क नागरिकों को मत देने का समान अधिकार दिया गया है, लेकिन मत देने के लिए मतदाता सूची में नाम दर्ज होना आवश्यक है और मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए स्थायी पते की जरूरत होती है। शहरों में अनधिकृत बस्तियों, झुग्गी-झोंपड़ियों तथा पटरी पर रहने वाले लोगों के लिए ऐसा स्थायी पता पेश करना कठिन होता है । इस प्रकार ये लोग मत देने के अधिकार का प्रयोग समानता के साथ नहीं कर पाते हैं।

2. रोजगार के लिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में गये अकुशल श्रमिक:
भारत में सभी नागरिकों को देश के भू- क्षेत्र में कहीं भी गमनागमन की स्वतंत्रता समान रूप से है तथा कोई भी व्यवसाय करने एवं बसने की स्वतंत्रता भी समान रूप से प्राप्त है। अपने गृहक्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध न होने से कामगार रोजगार की तलाश में आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में कुशल और अकुशल मजदूरों के लिए बाजार विकसित हुए हैं। इन बाजारों में अधिक संख्या में जब रोजगार बाहर से आने वाले नागरिकों के हाथ में आ जाता है तो उनके खिलाफ स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा होती है।

और कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों को देने की मांग उठती है। इस हेतु राजनीतिक दलों द्वारा आन्दोलन किये जाते हैं तथा वहाँ के आप्रवासियों को रोजगार में असुविधा पैदा की जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नागरिकों को राज्य के भू-भाग में कहीं भी गमनागमन, व्यवसाय करने तथा बसने की समान स्वतंत्रता का अधिकार तो प्राप्त है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में वे इस स्वतंत्रता का प्रयोग समानता से नहीं कर पाते हैं।

3. स्त्रियाँ: स्त्रियों को लगभग सभी समाजों में द्वितीय स्तर का नागरिक समझा जाता है और वे समान अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाती हैं।

4. शोषित व्यक्ति: सामाजिक असमानताओं के कारण कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण किया जाता है, जिसके चलते वे समान अधिकारों का प्रयोग समानता के साथ नहीं कर पाते।

प्रश्न 3.
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिये। इन संघर्षों में किन अधिकारों की मांग की गई थी?
उत्तर:
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए दो संघर्ष निम्नलिखित हैं।
1. बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने के लिए संघर्ष:
यदि आजीविका, चिकित्सा या शिक्षा जैसी सुविधाएँ और जल-जमीन जैसे प्राकृतिक साधन सीमित हों, तब बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने की मांग उठती है। यही कारण है कि मुम्बई में हाल के वर्षों में यह नारा दिया गया कि ‘मुम्बई मुंबईकर (मुम्बई वाले ) के लिए’। भारत के अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के संघर्ष होते आए हैं। भारत में गमनागमन की स्वतंत्रता, व्यवसाय की स्वतंत्रता तथा कहीं भी बसने की स्वतंत्रता के तहत अपने गृहक्षेत्र में काम के अवसर न होने पर कामगार रोजगार की तलाश में आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं।

रोजगार की तलाश में बिहार व अन्य राज्यों के बहुत से कामगार मुम्बई जाकर काम करने लग गए। इससे वहाँ के रोजगार बाहरी लोगों के हाथों में अधिक संख्या में आ गए। इससे स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हुई और कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की मांग उठी। क्षेत्रीय दलों ने इस मुद्दे को उठाया तथा इस प्रतिरोध ने ‘बाहरी’ के खिलाफ संगठित हिंसा व संघर्ष का रूप धारण कर लिया। इस संघर्ष में स्थानीय लोगों को ही स्थानीय नौकरियाँ या काम दिये जाने की मांग की गई थी।

2. शहरी झोंपड़पट्टियों में रहने वालों की आश्रय के अधिकार की मांग – भारत के हर शहर में बहुत बड़ी आबादी झोंपड़पट्टियों और अवैध कब्जे की जमीन पर बसे लोगों की है। झोंपड़पट्टियों के लोग हाल के वर्षों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और संगठित होकर संघर्षरत हुए हैं। उन्होंने कभी-कभी अदालतों में भी दस्तक दी है। स्थायी आश्रय न होने के कारण उनके लिए वोट देने जैसे बुनियादी राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करना भी कठिन हो जाता है क्योंकि मतदाता सूची में नाम दर्ज होने के लिए स्थायी पते की जरूरत होती है।

और अनधिकृत बस्तियों तथा पटरी पर रहने वालों के लिए ऐसा पता पेश करना कठिन होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने मुम्बई की झोंपड़पट्टियों में रहने वालों के अधिकारों के सम्बन्ध सन् 1985 में एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया। याचिका में कार्यस्थल के निकट रहने की वैकल्पिक जगह उपलब्ध न होने के कारण फुटपाथ या झोंपड़पट्टियों में रहने के अधिकार का दावा किया गया था। अगर यहाँ रहने वालों को हटाने के लिए मजबूर किया गया तो उन्हें आजीविका भी गंवानी पड़ेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संविधान की धारा 21 में जीने के अधिकार की गारंटी दी गई है जिसमें आजीविका का अधिकार शामिल है। इसलिए अगर फुटपाथियों को बेदखल करना हो, तो उन्हें आश्रय के अधिकार के तहत पहले वैकल्पिक जगह उपलब्ध करानी होगी।

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प्रश्न 4.
शरणार्थियों की समस्यायें क्या हैं? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है?
उत्तर:
शरणार्थी से आशय:
युद्ध, उत्पीड़न, अकाल या अन्य कारणों से लोग विस्थापित होते हैं। यदि कोई देश उन्हें स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होता और वे घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन या शरणार्थी कहे जाते हैं। वे शिविरों में या अवैध रूप में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं शरणार्थियों की प्रमुख समस्यायें ये हैं।

  1. शरणार्थी आम तौर पर असुरक्षित हालत में जीवनयापन करते हैं।
  2. ये शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने के लिए मजबूर किये जाते हैं।
  3. वे अक्सर कानूनी तौर पर काम नहीं कर सकते या अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं सकते या सम्पत्ति अर्जित नहीं कर सकते।
  4. ऐसी समस्यायें लोकतांत्रिक नागरिकता के उस वायदे को चुनौती देती हैं, जो यह कहता है कि समकालीन विश्व में सभी लोगों को नागरिक की पहचान और अधिकार उपलब्ध होने चाहिए। अनेक लोग अपने पसन्द के देश की नागरिकता हासिल नहीं कर सकते, उनके लिए अपनी पहचान का विकल्प भी नहीं होता।

वैश्विक नागरिकता शरणार्थियों की समस्या के रूप में:
शरणार्थियों या राज्यहीन लोगों का प्रश्न आज विश्व के लिए गंभीर समस्या बन गया है। राष्ट्रीय नागरिकता ऐसे लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रही है। वैश्विक नागरिकता ही इस समस्या का हल प्रस्तुत कर सकती है। यथा

  1. विश्व नागरिकता से राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का मुकाबला करना आसान हो सकता है जिसमें कई देशों की सरकारों और लोगों की संयुक्त कार्यवाही जरूरी होती है। उदाहरण के लिए इससे प्रवासी और राज्यहीन लोगों की समस्या का सर्वमान्य समाधान पाना आसान हो सकता है या कम से कम उनके बुनियादी अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, चाहे वे किसी भी देश में रहते हों।
  2. वैश्विक नागरिकता की अवधारणा हमें याद दिलाती है कि राष्ट्रीय नागरिकता को इस समझदारी से जोड़ने की आवश्यकता है कि हम आज अन्तर्सम्बद्ध विश्व में रहते हैं और हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करें और राष्ट्रीय सीमाओं के पार के लोगों और सरकारों के साथ ‘काम करने के लिए तैयार हों।

प्रश्न 5.
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के आप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
बाहरी के खिलाफ स्थानीय लोगों का प्रतिरोध:
अगर आजीविका, चिकित्सा या शिक्षा जैसी सुविधायें और जल-जमीन जैसे प्राकृतिक साधन सीमित हों, तो बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने की मांग उठने की संभावना रहती है। ‘मुम्बई मुंबईकर के लिए’ के नारे से ऐसी ही भावनाएँ प्रकट होती हैं। भारत और विश्व के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के अनेक संघर्ष होते आए हैं।

जब गृहक्षेत्र में कार्य के अवसर उपलब्ध नहीं होते तो कामगार रोजगार की तलाश में, गमनागमन, व्यवसाय तथा बसने की स्वतंत्रता के तहत आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं। शहरों में तेजी से पनपता भवन निर्माण उद्योग देश के विभिन्न हिस्सों के श्रमिकों को आकर्षितं करता है। लेकिन अधिक संख्या में रोजगार बाहर के लोगों के हाथ में जाने के खिलाफ स्थनीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हो जाती है। कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा को जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की माँग उठती है। राजनीतिक पार्टियाँ यह मुद्दा उठाती हैं। यह प्रतिरोध बाहरी के खिलाफ संगठित हिंसा का भी रूप ले लेता है। भारत के लगभग सभी क्षेत्र इस तरह के आंदोलनों से गुजर चुके हैं।

स्थानीय लोग निम्नलिखित आधारों पर आप्रवासन का विरोध कर सकते हैं:
1. यदि आप्रवासियों के निरन्तर आगमन के कारण नौकरियों में अवसर तथा व्यवसायों की स्थापना के अवसर घटते जा रहे हों और स्थानीय लोगों में यह भावना घर कर जाए कि इन बाहरी लोगों के कारण वे अपने अधिकारों और जीवनयापन के अवसरों से वंचित हो रहे हैं, तो स्थानीय लोग अपने क्षेत्र में आप्रवासन का विरोध करने लगते हैं।

2. जब क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है और लोगों को रहने के लिए निवास की कमी महसूस होने लगती है। कभी-कभी आप्रवासी लोग स्थानीय गरीब लोगों से अच्छी कीमत पर घर तथा अन्य सम्पत्तियाँ खरीद लेते हैं । लेकिन जल्दी ही स्थानीय लोग बाहरी लोगों द्वारा अपने घरों से वंचित किया जाना महसूस करने लगते हैं और वे बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

3. आप्रवासियों के तेजी से आगमन से दिन-प्रतिदिन के उपयोग की वस्तुओं की उपलब्धता पर भी दबाव पड़ता है और कभी-कभी उनकी अत्यधिक कमी आ जाती है या उनकी कीमत बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में स्थानीय लोग बाहरी लोगों के आगमन का विरोध करते हैं।

4. स्थानीय प्रशासन की आधारभूत संरचना नागरिक सुविधाओं, जैसे— पानी की आपूर्ति, विद्युत, गन्दे जल की निकासी तथा यातायात के साधनों आदि की अतिरिक्त आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती तो वे सुविधाएँ कीमती हो जाती हैं और स्थानीय लोग इन सुविधाओं के कम होने या अधिक कीमती होने के लिए बाहरी लोगों के आगमन पर उत्तरदायी ठहराते हैं।

5. जब बाहरी लोगों द्वारा अच्छी नौकरियों पर कब्जा कर लिया जाता है और स्थानीय प्रशासन पर भी उनका वर्चस्व हो जाता है तो स्थानीय लोग यह महसूस करने लगते हैं कि इन बाहरी लोगों द्वारा वे पीछे की ओर धकेल दिये गये हैं, तब स्थानीय लोग बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

6. गरीब, अप्रशिक्षित तथा अकुशल बाहरी श्रमिक व्यक्ति कम मजदूरी पर कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में बुरी दशाओं में रहने लगते हैं तो वे स्थानीय कामगारों पर बुरा प्रभाव डालते हैं तथा इस क्षेत्र में स्वास्थ्यकर वातावरण पर दुष्प्रभाव भी इन गंदी बस्तियों के कारण पड़ता है। फलतः स्थानीय लोग ऐसे अकुशल बाहरी कामगारों का विरोध करने लग जाते हैं।

प्रवासी लोगों का स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान: प्रवासी लोग अपने श्रम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।

  1. प्रवासी लोग अन्य पेशों के बीच फेरी वाले, छोटे व्यापारी, सफाईकर्मी या घरेलू नौकर, नल ठीक करने वाले या मिस्त्री होते हैं।
  2. ये लोग बेंत बुनाई या कपड़ा रंगाई – छपाई या सिलाई जैसे छोटे-छोटे कारोबार भी चलाते हैं।
  3. प्रवासी लोगों को सफाई या जलापूर्ति जैसी सुविधाएँ मुहैया करने पर कोई भी शहर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है।
  4. बाहर से आने वाले उद्योगपति या पूँजीपति उस क्षेत्र में कारखाने स्थापित कर आर्थिक विकास तथा व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि करते हैं, इससे उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का विकास होता है।
  5. एक नया कारखाना क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि करता है।
  6. इससे क्षेत्र में कुशल तथा अकुशल दोनों प्रकार के कामगारों की आपूर्ति होती है। वे कठिन परिश्रम कर स्थानीय लोगों में भी कठिन परिश्रम कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाते हैं।

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प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन् एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिये जो आजकल भारत में उठाये जा रहे हैं।
उत्तर:
भारत में लोकतांत्रिक नागरिकता एक परियोजना है- भारत स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र- राज्य कहता है। भारतीय संविधान ने बहुत ही विविधतापूर्ण समाज को समायोजित करने की कोशिश की है; जैसे इसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे भिन्न-भिन्न समुदायों, पूर्व में समान अधिकार से वंचित रही महिलाएँ, आधुनिक सभ्यता के साथ माकूल सम्पर्क रखने वाले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ सुदूरवर्ती समुदायों और कई अन्य समुदायों को पूर्ण और समान नागरिकता देने का प्रयास किया है। इसने देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न भाषाओं, धर्म और रिवाजों की पहचान बनाए रखने का प्रयास किया है। इसने संविधान के माध्यम से लोगों को

स्थानीय लोग निम्नलिखित आधारों पर आप्रवासन का विरोध कर सकते हैं:
1. यदि आप्रवासियों के निरन्तर आगमन के कारण नौकरियों में अवसर तथा व्यवसायों की स्थापना के अवसर घटते जा रहे हों और स्थानीय लोगों में यह भावना घर कर जाए कि इन बाहरी लोगों के कारण वे अपने अधिकारों और जीवनयापन के अवसरों से वंचित हो रहे हैं, तो स्थानीय लोग अपने क्षेत्र में आप्रवासन का विरोध करने लगते हैं।

2. जब क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है और लोगों को रहने के लिए निवास की कमी महसूस होने लगती है। कभी-कभी आप्रवासी लोग स्थानीय गरीब लोगों से अच्छी कीमत पर घर तथा अन्य सम्पत्तियाँ खरीद लेते हैं । लेकिन जल्दी ही स्थानीय लोग बाहरी लोगों द्वारा अपने घरों से वंचित किया जाना महसूस करने लगते हैं और वे बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

3. आप्रवासियों के तेजी से आगमन से दिन-प्रतिदिन के उपयोग की वस्तुओं की उपलब्धता पर भी दबाव पड़ता है और कभी-कभी उनकी अत्यधिक कमी आ जाती है या उनकी कीमत बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में स्थानीय लोग बाहरी लोगों के आगमन का विरोध करते हैं।

4. स्थानीय प्रशासन की आधारभूत संरचना नागरिक सुविधाओं, जैसे पानी की आपूर्ति, विद्युत, गन्दे जल की निकासी तथा यातायात के साधनों आदि की अतिरिक्त आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती तो वे सुविधाएँ कीमती हो जाती हैं और स्थानीय लोग इन सुविधाओं के कम होने या अधिक कीमती होने के लिए बाहरी लोगों के आगमन पर उत्तरदायी ठहराते हैं।

5. जब बाहरी लोगों द्वारा अच्छी नौकरियों पर कब्जा कर लिया जाता है और स्थानीय प्रशासन पर भी उनका वर्चस्व हो जाता है तो स्थानीय लोग यह महसूस करने लगते हैं कि इन बाहरी लोगों द्वारा वे पीछे की ओर धकेल दिये गये हैं, तब स्थानीय लोग बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

6. गरीब, अप्रशिक्षित तथा अकुशल बाहरी श्रमिक व्यक्ति कम मजदूरी पर कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में बुरी दशाओं में रहने लगते हैं तो वे स्थानीय कामगारों पर बुरा प्रभाव डालते हैं तथा इस क्षेत्र में स्वास्थ्यकर वातावरण पर दुष्प्रभाव भी इन गंदी बस्तियों के कारण पड़ता है। फलतः स्थानीय लोग ऐसे अकुशल बाहरी कामगारों का विरोध करने लग जाते हैं।

प्रवासी लोगों का स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान: प्रवासी लोग अपने श्रम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।

  1. प्रवासी लोग अन्य पेशों के बीच फेरी वाले, छोटे व्यापारी, सफाईकर्मी या घरेलू नौकर, नल ठीक करने वाले या मिस्त्री होते हैं।
  2. ये लोग बेंत बुनाई या कपड़ा रंगाई – छपाई या सिलाई जैसे छोटे-छोटे कारोबार भी चलाते हैं।
  3. प्रवासी लोगों को सफाई या जलापूर्ति जैसी सुविधाएँ मुहैया करने पर कोई भी शहर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है।
  4. बाहर से आने वाले उद्योगपति या पूँजीपति उस क्षेत्र में कारखाने स्थापित कर आर्थिक विकास तथा व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि करते हैं, इससे उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का विकास होता है।
  5. एक नया कारखाना क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि करता है।
  6. इससे क्षेत्र में कुशल तथा अकुशल दोनों प्रकार के कामगारों की आपूर्ति होती है । वे कठिन परिश्रम कर स्थानीय लोगों में भी कठिन परिश्रम कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन् एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिये जो आजकल भारत में उठाये जा रहे हैं।
उत्तर:
भारत में लोकतांत्रिक नागरिकता एक परियोजना है- भारत स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र- राज्य कहता है। भारतीय संविधान ने बहुत ही विविधतापूर्ण समाज को समायोजित करने की कोशिश की है; जैसे इसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे भिन्न-भिन्न समुदायों, पूर्व में समान अधिकार से वंचित रही महिलाएँ, आधुनिक सभ्यता के साथ माकूल सम्पर्क रखने वाले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ सुदूरवर्ती समुदायों और कई अन्य समुदायों को पूर्ण और समान नागरिकता देने का प्रयास किया है। इसने देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न भाषाओं, धर्म और रिवाजों की पहचान बनाए रखने का प्रयास किया है। इसने संविधान के माध्यम से लोगों को उनकी निजी आस्था, भाषा या सांस्कृतिक रिवाजों को छोड़ने के लिए बाध्य किए बिना सभी को समान अधिकार उपलब्ध कराना है।

संविधान में नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान:
नागरिकता से सम्बन्धित प्रावधानों का उल्लेख संविधान के दूसरे भाग और संसद द्वारा बाद में पारित कानूनों में हुआ है। संविधान ने लोकतांत्रिक और समावेंशी धारणा को अपनाया है। भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राजक्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता हासिल की जा सकती है। संविधान में नागरिकों के अधिकार और दायित्व दर्ज हैं। यह प्रावधान भी है कि राज्य केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। इसमें धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया गया है।

संविधान के प्रावधानों से संघर्ष और विवादों की उत्पत्ति:
संविधान में नागरिकता सम्बन्धी उक्त प्रावधानों ने भी संघर्ष और विवादों को जन्म दिया है। महिला आन्दोलन, दलित आन्दोलन या विकास योजनाओं से विस्थापित लोगों का संघर्ष ऐसे लोगों द्वारा चलाया जा रहा है, जो मानते हैं कि उनकी नागरिकता को पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। भारत के उक्त अनुभव से संकेत मिलते हैं कि किसी देश में लोकतांत्रिक नागरिकता एक परियोजना या लक्ष्य सिद्धि का एक आदर्श है। जैसे-जैसे समाज बदल रहे हैं, वैसे-वैसे नित नए मुद्दे उठाये जा रहे हैं और वे समूह नई मांगें पेश कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि वे हाशिये पर ठेले जा रहे हैं। जैसे शहरों में झोंपड़पट्टियों या फुटपाथ पर रहने वाले लोगों द्वारा आश्रय के अधिकार के तहत वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराने की मांग, देश के विकास को खतरे में डाले बिना आदिवासियों के रहवास की सुरक्षा की मांग आदि।

नागरिकता JAC Class 11 Political Science Notes

→ नागरिकता का अर्थ तथा परिभाषा: नागरिकता एक राजनैतिक समुदाय की सम्पूर्ण और समान सदस्यता है।
नागरिकता राज्यसत्ता और उसके सदस्यों के बीच सम्बन्धों के निरूपण के रूप में समकालीन विश्व में: राष्ट्रों ने अपने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान के साथ-साथ कुछ अधिकार भी प्रदान किये हैं। इसलिए हम संबद्ध राष्ट्र के आधार पर अपने को भारतीय, जापानी या जर्मन मानते हैं । नागरिक अपने राष्ट्र से कुछ बुनियादी अधिकारों के अलावा कहीं भी यात्रा करने में सहयोग और सुरक्षा की अपेक्षा रखते हैं।

नागरिकों को प्रदत्त अधिकार: नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों की सुस्पष्ट प्रकृति विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन अधिकतर लोकतांत्रिक देशों ने आज उनमें से कुछ राजनैतिक अधिकार शामिल किये हैं। यथा मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति या आस्था की स्वतंत्रता जैसे नागरिक अधिकार और न्यूनतम मजदूरी तथा शिक्षा पाने से जुड़े कुछ सामाजिक-आर्थिक अधिकार। अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक है। नागरिक आज जिन अधिकारों का प्रयोग करते हैं, उन सभी को संघर्ष के बाद हासिल किया गया है। पूर्ण सदस्यता और समान अधिकार पाने का संघर्ष विश्व के कई हिस्सों में आज भी जारी है।

→ नागरिकता नागरिकों के आपसी सम्बन्धों के निरूपण के रूप में: नागरिकता सिर्फ राज्य सत्ता और उसके सदस्यों के बीच के सम्बन्धों का निरूपण ही नहीं बल्कि यह नागरिकों के आपसी सम्बन्धों का निरूपण भी है। इसमें नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति और समाज के प्रति निश्चित दायित्व शामिल हैं। इनमें सिर्फ राष्ट्र द्वारा थोपी गई कानूनी बाध्यताएँ नहीं, बल्कि समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल होता है।

→ सम्पूर्ण और समान सदस्यता:
सम्पूर्ण और समान सदस्यता का असली अर्थ क्या है? ( अ ) क्या इसका अर्थ यह होता है कि नागरिकों को देश में जहाँ भी चाहें रहने, पढ़ने या काम करने का समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए? (ब) क्या इसका अर्थ यह है कि सभी अमीर-गरीब नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार और सुविधाएँ मिलनी चाहिए? यथा-

(अ) भारत में तथा अन्य देशों में नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों में एक है। गमनागमन की स्वतंत्रता यह अधिकार कामगारों के लिए विशेष महत्त्व का है। गृह क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होने पर कामगार रोजगार की तलाश में देश के दूसरे क्षेत्रों में जाते हैं। इससे अधिक संख्या में रोजगार बाहर के लोगों के हाथ में जाने के खिलाफ स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हो जाती है और कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा को जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की मांग उठती है। राजनीतिक दल यह मुद्दा उठाते हैं और यह प्रतिरोध ‘बाहरी लोगों के खिलाफ’ संगठित हिंसा का भी रूप ले लेता है। भारत के लगभग सभी क्षेत्र इस तरह के आन्दोलन से गुजर चुके हैं। तो क्या गमनागमन की स्वतंत्रता में देश के किसी भी हिस्से में काम करने या बसने का अधिकार शामिल है?

(ब) क्या सम्पूर्ण और समान सदस्यता का यह अर्थ है कि सभी गरीब और अमीर नागरिकों को कुछ बुनियादी और समान सुविधाएँ मिलनी चाहिए? कभी-कभी गरीब प्रवासी और कुशल प्रवासी को लेकर हमारी प्रतिक्रिया में अन्तर होता है। हम प्रायः गरीब और अकुशल प्रवासियों को उस तरह स्वागत योग्य नहीं मानते, जिस तरह कुशल और दौलतमंद कामगारों को मानते हैं। इससे लगता है कि गरीब कामगारों को देश में कहीं भी रहने और काम करने का समान अधिकार नहीं है।

इन्हीं दोनों मुद्दों पर आज हमारे देश में बहस जारी है। यद्यपि नागरिक समूह बनाकर, प्रदर्शन कर, मीडिया का उपयोग कर, राजनीतिक दलों से अपील कर या अदालत में जाकर जनमत और सरकारी नीतियों के परखने और प्रभावित करने के लिए स्वतंत्र हैं। अदालतें उस पर निर्णय दे सकती हैं या समाधान हेतु सरकार से आग्रह कर सकती हैं। यह धीमी प्रक्रिया है, लेकिन इससे कई बार न्यूनाधिक सफलताएँ संभव हैं। इसके समाधान हेतु हमें बल प्रयोग के स्थान पर वार्ता और विचार-विमर्श का रास्ता अपनाना चाहिए। यह नागरिकता के प्रमुख दायित्वों में से एक है।

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→ समान अधिकार: क्या पूर्ण और समान नागरिकता का अर्थ यह है कि राजसत्ता द्वारा सभी नागरिकों को, चाहे वे अमीर या गरीब हों, कुछ बुनियादी अधिकारों और न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी दी जानी चाहिए? भारत के हर शहर में गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की समस्याएँ शहर के अन्य लोगों से भिन्न हैं। इसी प्रकार हमारे यहाँ आदिवासियों की भी भिन्न समस्यायें हैं। उनकी जीवन-पद्धति और आजीविका खतरे में पड़ती जा रही है। इससे स्पष्ट होता है कि विभिन्न समूह के लोगों की जरूरत और समस्यायें अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं।

नागरिकों के लिए समान अधिकार का अर्थ यह नहीं होता कि सभी लोगों पर समान नीतियाँ लागू कर दी जाएँ क्योंकि विभिन्न समूह के लोगों की जरूरतें भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। यदि नागरिकता का प्रयोजन लोगों को अधिक बराबरी पर लाना है तो नीतियाँ तैयार करते समय लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं और दावों का ध्यान रखना आवश्यक है। अतः नागरिकता से सम्बन्धित औपचारिक कानून प्रस्थान बिन्दु भर होते हैं और कानूनों की व्याख्या निरंतर विकसित होती है। सामान्य रूप से समान नागरिकता की अवधारणा का अर्थ यही है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करना सरकारी नीतियों का मार्गदर्शन सिद्धान्त हो।

→ नागरिक और राष्ट्र:
राष्ट्र राज्य और नागरिकता: राष्ट्र राज्य की अवधारणा आधुनिक काल में विकसित हुई है। राष्ट्र-राज्यों का दावा है कि उनकी सीमाएँ सिर्फ राज्य क्षेत्र को नहीं, बल्कि एक अनोखी संस्कृति और साझा इतिहास को भी परिभाषित करती हैं। राष्ट्रीय पहचान को एक झंडा, राष्ट्रगान, राष्ट्रभाषा जैसे प्रतीकों से व्यक्त किया जा सकता है। एक लोकतांत्रिक राज्य की राष्ट्रीय पहचान में नागरिकों को ऐसी राजनीतिक पहचान देने की कल्पना होती है, जिसमें राज्य के सभी सदस्य भागीदार हो सकें। लेकिन व्यवहार में अधिकतर देश अपनी पहचान को इस तरह परिभाषित करने की ओर अग्रसर होते हैं, जो कुछ नागरिकों के लिए राष्ट्र के साथ अपनी पहचान कायम करना अन्यों की तुलना में आसान बनाता है।

यह राजसत्ता के लिए भी अन्यों की तुलना में कुछ लोगों को नागरिकता देना आसान कर देता है। उदाहरण के लिए फ्रांस, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी होने का दावा करता है लेकिन वह सार्वजनिक जीवन में फ्रांसीसी भाषा-संस्कृति से आत्मसात् होने में बल देता है। लेकिन अपनी पगड़ी पहनने के कारण सिक्ख छात्रों को और सिर पर दुपट्टा पहनने के कारण मुस्लिम लड़कियों को इसके साथ आत्मसात् होना कठिन हो जाता है, जबकि फ्रांसीसी राष्ट्रीय संस्कृति में शामिल होना दूसरे धर्मावलम्बियों के लिए अपेक्षाकृत आसान होता है। दूसरे, नागरिकता के लिए आवेदकों को अनुमति देने की कसौटी हर देश में भिन्न-भिन्न होती है। कुछ समूहों के लिए इनमें कुछ प्रतिषेध स्पष्टतः दिखाई देते हैं।
यथा

→ भारत में नागरिकता: भारत के संविधान ने नागरिकता की लोकतांत्रिक और समावेशी धारणा को अपनाया।

  • भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राज क्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता हासिल की जा सकती है।
  • संविधान में नागरिकों के अधिकार और दायित्व दर्ज हैं।
  • संविधान में यह भी दर्ज है कि राज्य को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  • संविधान में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया गया है।
  • इस तरह के समावेशी प्रावधानों ने भी संघर्ष और विवादों को जन्म दिया है। महिला आन्दोलन, दलित आन्दोलन या विकास योजनाओं से विस्थापित लोगों का संघर्ष ऐसे लोगों द्वारा चलाए जा रहे संघर्षों के कुछ नमूने हैं, जो यह मानते हैं कि उनकी नागरिकता को पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि किसी देश में लोकतांत्रिक नागरिकता लक्ष्य-सिद्धि का एक आदर्श है। सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ कुछ समूह नयी मांगें उठाते हैं जिन पर खुले मस्तिष्क से बातचीत करनी होती है।

→ सार्वभौमिक नागरिकता:
हम प्राय: यह मान लेते हैं कि किसी देश की पूर्ण सदस्यता उन सबको उपलब्ध होनी चाहिए, जो सामान्यतया उस देश में रहते और काम करते हैं या जो नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। यद्यपि अनेक देश वैश्विक और समावेशी नागरिकता का समर्थन करते हैं लेकिन नागरिकता देने की शर्त भी निर्धारित करते हैं। ये शर्तें आमतौर पर देश के संविधान और कानूनों में लिखी होती हैं। अवांछित आगंतुकों, जैसे- शरणार्थियों को नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्य सत्ताएँ ताकत का प्रयोग करती हैं।

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→ शरणार्थी समस्या: युद्ध, उत्पीड़न, अकाल या अन्य कारणों से लोग विस्थापित होते हैं। यदि कोई देश उन्हें स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होता और वे घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन या शरणार्थी कहे जाते हैं। वे शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने शरणार्थियों की जाँच करने और मदद करने के लिए उच्चायुक्त नियुक्त किया है।

अनेक देशों ने युद्ध या उत्पीड़न से पलायन करने वाले लोगों को अंगीकार करने की नीति अपना रखी है। लेकिन वे भी ऐसे लोगों की अनियंत्रित भीड़ को स्वीकार करने या सुरक्षा के संदर्भ में देश को जोखिम में डालना नहीं चाहेंगे। अतः इनमें से कुछ को ही नागरिकता प्राप्त होती है। ऐसी समस्याएँ लोकतांत्रिक नागरिकता के उस वायदे को चुनौती देती हैं जो यह कहता है कि समकालीन विश्व में सभी लोगों को नागरिक की पहचान और अधिकार उपलब्ध होने चाहिए।
राज्यहीन लोगों का सवाल आज विश्व के लिए गंभीर समस्या बन गया है। राष्ट्रों की सीमाएँ अभी भी युद्ध या राजनीतिक विवादों के जरिए पुनर्परिभाषित की जा रही हैं। राज्यहीन लोगों को आज किस तरह की राजनैतिक पहचान दी जा सकती है? क्या हमें राष्ट्रीय नागरिकता से अधिक सच्ची वैश्विक पहचान हेतु विश्व नागरिकता की धारणा विकसित की जानी चाहिए।

→ विश्व नागरिकता के समर्थन में तर्क:

→ वर्तमान काल में संचार के नए तरीकों ने विश्व के विभिन्न हिस्सों की हलचलों को हमारे तत्काल सम्पर्क के दायरे में ला दिया है। इसलिए चाहे विश्व – कुटुम्ब और वैश्विक समाज अभी विद्यमान नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आज परस्पर जुड़ा महसूस करते हैं। विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के पीड़ितों की सहायता के लिए विश्व के सभी हिस्सों से उमड़ा भावोद्गार विश्व-समाज के उभार के संकेत हैं। अतः इस भावना को और मजबूत करते हुए विश्व नागरिकता की अवधारणा की दिशा में सक्रिय होना चाहिए।

→ मानवाधिकार की अवधारणा के विकास के साथ-साथ विश्व: नागरिकता की अवधारणा की ओर बढ़ने का समय आ गया है।

→ विश्व: नागरिकता की अवधारणा से राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का मुकाबला करना आसान हो सकता है जिसमें कई देशों की सरकारें और लोगों की संयुक्त कार्यवाही जरूरी होती है।

→ विश्व: नागरिकता की अवधारणा राष्ट्रीय नागरिकता को इस समझदारी से जोड़ने का प्रयास करती है कि हम विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करें।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

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पृष्ठ 72

प्रश्न 1.
समूह या समुदाय विशेष को दिए गए निम्न अधिकारों में से कौन-से न्यायोचित हैं? चर्चा कीजिए
(अ) एक शहर में जैन समुदाय के लोगों ने अपना विद्यालय खोला और उसमें केवल अपने समुदाय के छात्र – छात्राओं को ही प्रवेश दिया।
(ब) हिमाचल प्रदेश में वहाँ के स्थायी निवासियों के अलावा बाकी लोग जमीन या अन्य अचल सम्पत्ति नहीं खरीद सकते।
(स) एक सह शिक्षा विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने एक सर्कुलर जारी किया कि कोई भी छात्रा किसी भी प्रकार का पश्चिमी परिधान नहीं पहनेगी।
(द) हरियाणा की एक पंचायत ने निर्णय दिया कि अलग-अलग जातियों के जिस लड़के और लड़की ने शादी कर ली थी, वे अब गांव में नहीं रहेंगे।
उत्तर:
समूह का समुदाय विशेष को दिए गए उपर्युक्त अधिकारों में से (ब) न्यायोचित है।

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प्रश्न 1.
अधिकार क्या हैं और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
अधिकार से आशय:
अधिकार व्यक्ति के वे दावे हैं, जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो तथा राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त हो। एक नागरिक, व्यक्ति और मनुष्य होने के नाते अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समाज के समक्ष कुछ मांगें (दावे) प्रस्तुत करते हैं और शेष समाज सामाजिक हित की दृष्टि से व्यक्ति की उन माँगों को मान्यता प्रदान कर देता है तो वे मांगें या दावे अधिकार कहलाते हैं। समाज में इन अधिकारों को कार्यान्वित करने के लिए कानूनी मान्यता की भी आवश्यकता होती है। अतः अधिकार राज्य के संरक्षण के बिना प्रभावहीन हैं। इसलिए वास्तविक अर्थों में अधिकार के लिए व्यक्ति की मांगों को समाज द्वारा मान्यता तथा राज्य का संरक्षण आवश्यक होता है।

प्रो. अर्नेस्ट बार्कर ने कहा है कि ” अधिकार राज्य द्वारा संरक्षित उस क्षमता का नाम है जिससे समाज में मुझे एक विशिष्ट स्थिति मिली होती है। अधिकार वे कानूनी परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्ति को कुछ कार्यों को करने की स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं। “वाइल्ड के अनुसार, “कुछ विशेष कार्यों को करने की स्वतंत्रता की विवेकपूर्ण माँग को अधिकार कहा जाता है।” इस प्रकार अधिकार ऐसी अनिवार्य परिस्थितियाँ हैं जो मानवीय विकास हेतु जरूरी हैं। वह व्यक्ति की माँग तथा उसका हक है, जिसे समाज, राज्य तथा कानून भौतिक मान्यता देते हुए उसकी रक्षा करते हैं।

अधिकार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं? अधिकार निम्नलिखित दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

  1. अधिकार लोगों के सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. अधिकार हमारी दक्षता और प्रतिभा के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  3. अधिकार सरकार को निरंकुश बनने से रोकते हैं
  4. अधिकार सामाजिक कल्याण का एक साधन हैं।

अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार; अधिकारों का दावा करने के लिए निम्नलिखित उपयुक्त आधार हो सकते हैं:
1. हमारे सम्मान और गरिमा का आधार:
अधिकारों की दावेदारी का पहला आधार यह है कि अधिकार उन बातों का द्योतक है, जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए आवश्यक समझते हैं। उदाहरण के लिए, आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है। लाभकर रोजगार में नियोजित होना व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता देता है, इसीलिए यह उसकी गरिमा के लिए प्रमुख है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है।

2. हमारी बेहतरी का आधार:
अधिकारों की दावेदारी का दूसरा आधार यह है कि वे हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं। ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा का अधिकार हमारी तर्क शक्ति विकसित करने में मदद करता है, हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ- बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति के कल्याण के लिए इस हद तक शिक्षा को अनिवार्य समझा जाता है कि उसे सार्वभौमिक अधिकार माना गया है।

अगर कोई मांग या दावा हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक है, तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए, चूंकि नशीली दवाएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तथा ये अन्यों के साथ हमारे सम्बन्धों पर बुरा प्रभाव डालती हैं, इसलिए हम यह दावा नहीं कर सकते कि हमें नशीले पदार्थों के सेवन करने का अधिकार होना चाहिए। नशीले पदार्थ न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि वे कभी-कभी हमारे आचरण के रंग-ढंग को बदल देते हैं और हमें अन्य लोगों के लिए खतरा करार देते हैं। अतः धूम्रपान करने या प्रतिबंधित दवाओं के सेवन को अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता।

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प्रश्न 2.
किन आधारों पर अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं?
उत्तर:
अधिकारों की सार्वभौमिक प्रकृति के आधार: निम्नलिखित दो आधारों पर अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं।
(अ) प्राकृतिक अधिकारों का विचार
(ब) मानवाधिकार

(अ) प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धान्त:
17वीं तथा 18वीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धान्तकार यह तर्क देते थे कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें जन्म से अधिकार प्राप्त हैं। अतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये  जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और सम्पत्ति का अधिकार अन्य सभी अधिकार इन मूलभूत अधिकारों से ही निकले हैं। ये अधिकार हमें व्यक्ति होने के नाते प्राप्त हैं, क्योंकि ये ईश्वर प्रदत्त हैं। इसलिए ये अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक प्राकृतिक अधिकारों के विचार का प्रयोग राज्यों अथवा सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्ति के प्रयोग का विरोध करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया जाता था।

(ब) मानवाधिकार:
वर्तमान में प्राकृतिक अधिकार शब्द से ज्यादा मानवाधिकार शब्द का प्रयोग हो रहा है, क्योंकि अधिकारों के प्राकृतिक या ईश्वर प्रदत्त होने का विचार आज अस्वीकार्य लग रहा है। आजकल अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं ही खोजा या पाया है। मानव अधिकारों के पीछे यह मान्यता है कि सभी लोग, मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में प्रत्येक मनुष्य समान महत्त्व का है अर्थात् एक आंतरिक दृष्टि से सभी मनुष्य समान हैं और कोई भी व्यक्ति दूसरों का नौकर होने के लिए पैदा नहीं हुआ है। इसलिए सभी मनुष्यों को स्वतंत्र रहने और अपनी पूरी संभावना को साकार करने का समान अवसर मिलना चाहिए।

अधिकारों की इसी समझदारी पर संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणा पत्र बना है। इस विचार का प्रयोग नस्ल, जाति, धर्म, लिंग पर आधारित विद्यमान असमानताओं को चुनौती देने के लिए किया जाता रहा है। पूरी दुनिया के उत्पीड़ित मनुष्य सार्वभौम मानवाधिकार की अवधारणा का इस्तेमाल उन कानूनों को चुनौती देने के लिए कर रहे हैं जो उन्हें पृथक करने वाले और समान अवसरों तथा अधिकारों से वंचित करते हैं। विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नये खतरे और चुनौतियाँ उभरती आई हैं, त्यों-त्यों उन मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है, जिनका लोगों ने दावा किया है।

जैसे पर्यावरण की सुरक्षा की आवश्यकता ने स्वच्छ हवा, शुद्ध पानी, टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की माँग पैदा की है। इसी प्रकार युद्ध या प्राकृतिक संकट के दौरान महिलाओं व बच्चों की समस्याओं ने आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार जैसे अधिकारों की मांग भी पैदा की है। ये दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक आक्रोश का भाव व्यक्त करते हैं और वे समस्त मानव समुदाय हेतु अधिकारों के प्रयोग और विस्तार के लिए लोगों से एकजुट होने का आह्वान करते हैं।

प्रश्न 3.
संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए जो हमारे देश के सामने रखे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आदिवासियों के अपने रहवास और जीने के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नये अधिकारों को लिया जा सकता है।
उत्तर:
भारत में संविधान द्वारा नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये मौलिक अधिकार बाकी सारे अधिकारों के स्रोत हैं। हमारा संविधान और हमारे कानून हमें और बहुत सारे अधिकार देते हैं और साल दर साल अधिकारों का दायरा बढ़ता गया है। यथा
1. समय-समय पर अदालतों ने ऐसे फैसले दिये हैं जिनसे अधिकारों का दायरा बढ़ा है। प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार, सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकारों के ही विस्तार हैं। अब स्कूली शिक्षा हर भारतीय का अधिकार बन चुकी है। 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाना सरकार की जिम्मेदारी है। संसद ने नागरिकों को सूचना का अधिकार देने वाला कानून भी पारित कर दिया है जो कि विचारों और . अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत ही है। हमें सरकारी दफ्तरों से सूचना मांगने और पाने का अधिकार है।

2. सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को नया विस्तार देते हुए उसमें भोजन के अधिकार को भी शामिल कर दिया है।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत बेगार प्रथा का निषेध किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने बेगार प्रथा के अन्तर्गत ही ‘बंधुआ मजदूरी प्रथा’ को भी अन्तर्निहित किया है और बंधुआ मजदूरी का भी निषेध किया है। इसके अन्तर्गत ही बच्चों की बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार निहित है तथा सभी प्रकार की बंधुआ मजदूरी को अवैध घोषित कर दिया गया है तथा उसके विरुद्ध अधिकार प्रदान किया गया है। लोकहित याचिकाओं के माध्यम से यह अधिकार प्रभावी बनाया गया है।

4. आदिवासियों को भी अपने रहने और जीने के तरीके संरक्षित रखने के अधिकार को संस्कृति के अधिकार के. तहत लिया जा सकता है। इस प्रकार हमारे देश के सामने अनेक नये अधिकार रखे जा रहे हैं। इन अधिकारों की मांग या तो वंचित समुदाय अपने संघर्ष के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं या न्यायपालिका अपने निर्णयों द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत अन्तर्निहित सिद्धान्त के द्वारा इनका विस्तार कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अंतर बताइये। हर प्रकार के अधिकार के उदाहरण भी दीजिये।
उत्तर:
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अन्तर
1. राजनीतिक अधिकार:
राजनीतिक अधिकार नागरिकों के कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं तथा ये नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं। इस प्रकार राजनीतिक अधिकार किसी सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियाद का निर्माण करते हैं। राजनीतिक अधिकार सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाकर, शासकों की अपेक्षा लोगों के सरोकार को अधिक महत्त्व देकर तथा सभी लोगों के लिए सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने का मौका सुनिश्चित करने में सहयोग करते हैं।

राजनीतिक अधिकारों के प्रमुख उदाहरण हैं। वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने का अधिकार; स्वतंत्रता व समानता का अधिकार, निष्पक्ष जांच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार तथा असहमति प्रकट करने तथा प्रतिवाद करने का अधिकार आदि।

2. आर्थिक अधिकार:
आर्थिक अधिकार वे होते हैं जो नागरिकों को बुनियादी जरूरतों – भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य आदि की जरूरतों की पूर्ति हेतु पर्याप्त मजदूरी और मेहनत की उचित परिस्थितियों जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं। राजनीतिक अधिकारों को पूरी तरह से व्यवहार में लाने के लिए बुनियादी जरूरतों की पूर्ति आवश्यक है। फुटपाथ पर रहने और बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करने वालों के लिए अपने-आप में राजनीतिक अधिकार का कोई मूल्य नहीं है।
इस प्रकार राजनीतिक अधिकार जहाँ लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव का निर्माण करते हैं, वहीं आर्थिक अधिकार उस नींव पर भव्य तथा रहने योग्य भवन का निर्माण करते हैं। प्रमुख आर्थिक अधिकार हैं। काम का अधिकार, न्यूनतम वेतन प्राप्त करने का अधिकार, समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, अवकाश का अधिकार, प्रसूति अवकाश, आर्थिक सुरक्षा का अधिकार आदि।

3. सांस्कृतिक अधिकार:
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आजकल राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के साथ नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों को भी मान्यता दे रही हैं। सांस्कृतिक अधिकार से आशय है। अपनी भाषा और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने से संबंधित स्वतंत्रताएँ व सुविधायें प्राप्त करना। प्रमुख सांस्कृतिक अधिकार हैं। अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए संस्थाएँ बनाने का अधिकार आदि। सांस्कृतिक अधिकार किसी समुदाय को बेहतर जिंदगी जीने के लिए आवश्यक माने जाते हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 5.
अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अधिकार और राज्य की सत्ता पर सीमाएँ: अधिकार राज्य से किये जाने वाले दावे हैं; इनके माध्यम से हम राज्य सत्ता से कुछ मांग करते हैं और राज्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह उन अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक उपायों का प्रवर्तन करे, जिससे हमारे अधिकारों की पूर्ति सुनिश्चित हो सके। लेकिन अधिकारों को लागू करने के सम्बन्ध में अधिकार राज्य की सत्ता पर अनेक सीमाएँ भी लगाते हैं। यथा।

1. प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य को क्या करना है।
अधिकार राज्य को कुछ खास तरीकों से काम करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं। प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य के लिए क्या करने योग्य है और क्या नहीं? उदाहरण के लिए, मेरा जीवन जीने का अधिकार राज्य को ऐसे कानून बनाने के लिए बाध्य करता है, जो दूसरों के द्वारा क्षति पहुँचाने से मुझे बचा सके। यह अधिकार राज्य से मांग करता है कि वह मुझे चोट या नुकसान पहुँचाने वालों को दंडित करे।

यदि कोई समाज महसूस करता है कि जीने के अधिकार का अर्थ अच्छे स्तर के जीवन का अधिकार है, तो वह राज्य सत्ता से ऐसी नीतियों के अनुपालन की अपेक्षा करता है, जो स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण और अन्य आवश्यक निर्धारकों का प्रावधान करे। इस प्रकार मेरा अधिकार यहाँ राजसत्ता पर यह सीमा लगाता है कि वह खास तरीके से काम करने के अपने वैधानिक दायित्व को पूरा करे।

2. अधिकार यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है।
अधिकार सिर्फ यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहता है कि राज्यसत्ता महज अपनी मर्जी से उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर वह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है, तो उसे इस कार्रवाई को जायज ठहराना पड़ेगा और उसे किसी न्यायालय के समक्ष इस व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करने का कारण बताना होगा। इसीलिए, मुझे पकड़ने से पहले गिरफ्तारी का वारंट दिखाना पुलिस के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार मेरे अधिकार राजसत्ता पर कुछ अंकुश भी लगाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता का उल्लंघन किये बगैर कार्य करे।

3. जनकल्याण की सीमा: हमारे अधिकार राज्य सत्ता पर जनकल्याण हेतु कार्य करने की सीमा भी लगाते हैं। राज्य संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न हो सकता है, उसके द्वारा निर्मित कानून बलपूर्वक लागू किये जा सकते हैं, लेकिन संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य का अस्तित्व अपने लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति के हित के लिए होता है। इसमें जनता का ही अधिक महत्त्व है। इसलिए सत्तारूढ़ सरकार को उसके ही कल्याण के लिए काम करना होता है। शासक अपनी समस्त कार्यवाहियों के लिए जनता के प्रति जवाबदेह है। इसलिए उसे लोगों के अधिकारों के उपभोग की उचित परिस्थितियाँ पैदा करते हुए लोगों की भलाई सुनिश्चित करनी आवश्यक है।

अधिकार JAC Class 11 Political Science Notes

→ अधिकार क्या हैं?
अधिकार मूल रूप से व्यक्ति का ऐसा दावा है जिसका औचित्य सिद्ध हो तथा जिसे शेष समाज ऐसे वैध दावे के रूप में स्वीकार करे जिसका अनुमोदन अनिवार्य हो । अधिकारों की दावेदारी के दो प्रमुख आधार हैं। इसका पहला आधार यह है कि ये वे बातें या वे दावे या मांगें हैं, जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्त्वपूर्ण और आवश्यक समझते हैं और इसका दूसरा आधार यह है कि ये हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं। ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते हैं।

→ अधिकार कहाँ से आते हैं?
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा: 17वीं और 18वीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धान्तकारों का मत था कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। ये जन्मजात हैं, कोई इन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये थे। ये थे

  • जीवन का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार और
  • संपत्ति का अधिकार अन्य तमाम अधिकार इन्हीं तीन अधिकारों से ही निकले हैं।

→ मानवाधिकार सम्बन्धी अवधारणा:
वर्तमान काल में मानवाधिकार शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके प्राकृतिक होने का विचार आज अस्वीकार्य लगता है। अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं ही खोजा या पाया है। मानव अधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने के नाते कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं, जैसे उन्हें स्वतंत्र रहने तथा समान अवसर दिये जाने का अधिकार है।

संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र में उन मानव-अधिकारों का उल्लेख किया गया है जिन्हें विश्व सामूहिक रूप से गरिमा और आत्मसम्मान से परिपूर्ण जिंदगी जीने के लिए आवश्यक मानता है। विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभर रही हैं, त्यों-त्यों इन मानवाधिकारों की सूची निरन्तर बढ़ रही है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार

→ कानूनी अधिकार और राज्य सत्ता मानवाधिकारों के दावों की नैतिक अपील चाहे जितनी हो, उनकी सफलता की डिग्री कुछ कारकों पर निर्भर है। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। सरकारों और कानून का समर्थन। यही कारण है कि अधिकारों की कानूनी मान्यता को इतना महत्त्व दिया जाता है। अनेक देशों में अधिकारों के विधेयक वहाँ के संविधान में प्रतिष्ठित रहते हैं। संविधान में उन अधिकारों का उल्लेख रहता है, जो बुनियादी महत्त्व के माने जाते हैं। अपने देश में इन्हें हम मौलिक अधिकार कहते हैं।

→ कानूनी और संवैधानिक मान्यता: अनेक सिद्धान्तकारों ने अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित किया है, जिन्हें राज्य मान्य किया हो। लेकिन कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता, कानूनी मान्यता से हमारे अधिकारों को समाज में एक खास दर्जा अवश्य मिलता है। अधिकतर मामलों में अधिकार राज्य से किए जाने वाले दावे हैं। अधिकारों के माध्यम से हम राज्यसत्ता से कुछ माँग करते हैं। राज्य जब उन मांगों को सामाजिक हित की दृष्टि से मान्यता दे देते हैं और समाज उन्हें स्वीकार कर लेता है, तो वे मांगें अधिकार बन जाते हैं

  • अधिकार राज्य से किये जाने वाले दावे हैं। अधिकारों के माध्यम से हम राज्य सत्ता से कुछ मांग करते हैं। राज्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अधिकारों को प्रवर्तन में लाने के लिए आवश्यक उपाय करे।
  • अधिकार राज्य को कुछ खास तरीकों से कार्य करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं कि राज्य को क्या कुछ करना है और क्या कुछ नहीं करना है। दूसरे शब्दों में, अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बिना काम करे अर्थात् उसके द्वारा निर्मित कानून जनता के हित के लिए हों और शासक अपनी कार्यवाहियों के लिए जवाबदेह हो।

→ अधिकारों के प्रकार अधिकारों के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।

  • राजनीतिक अधिकार: राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी और राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। इनमें मत देने, प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनैतिक दल बनाने या उनमें शामिल होने जैसे अधिकार शामिल हैं। राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं; जैसे- स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार।
  • आर्थिक अधिकार: भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा, बेरोजगारी भत्ता आदि सुविधाएँ अपनी बुनियादी करने के लिए दी जाती हैं।
  • सांस्कृतिक अधिकार: अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए संस्थाएँ बनाने का अधिकार।
  • बुनियादी अधिकार: ुछ अधिकार जैसे जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समान व्यवहार का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार बुनियादी (मूल) अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।

→ अधिकार और जिम्मेदारियाँ अधिकार न केवल राज्य पर जिम्मेदारी डालते हैं कि वह खास तरीके से काम करे बल्कि ये नागरिकों पर भी निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ डालते हैं।

→ अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए हितकर हैं; जैसे  वायु और जल प्रदूषण कम से कम करना, नए वृक्ष लगाना आदि।

→ अधिकार यह अपेक्षा करते हैं कि मैं अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करूँ। अर्थात् मेरे अधिकार सब के लिए बराबर और एक ही अधिकार के सिद्धान्त से सीमाबद्ध हैं। टकराव की स्थिति में हमें अपने अधिकारों को संतुलित करना होता है।

→ नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रण के बारे में चौकस रहना होगा। यह देखना आवश्यक है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रताओं पर थोपे गए प्रतिबन्ध अपने आप में लोगों के अधिकारों के लिए खतरा न बन जाएँ क्योंकि इनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। इसलिए हमें अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा में सतर्क व जागरूक रहना चाहिए क्योंकि ये लोकतांत्रिक समाज की नींव का निर्माण करते हैं।

→ मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की प्रस्तावना
10 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार किया और लागू किया। इसमें सभी सदस्य देशों से मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के पाठ को प्रचारित करने का आह्वान किया गया है। इस घोषणा में मानव की गरिमा और समानता पर बल देते हुए भाषण तथा विश्वास की स्वतंत्रता, विधि का शासन, राष्ट्रों के मध्य मित्रतापूर्ण संबंधों की स्थापना, पुरुषों तथा महिलाओं के प्रति समान अधिकारों के प्रति विश्वास तथा मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के विश्वस्तर पर सम्मान और अनुपालन को प्रोत्साहित किया गया है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

Jharkhand Board Class 11 Political Science सामाजिक न्याय InText Questions and Answers

पृष्ठ 56

प्रश्न 1.
नीचे दी गई स्थितियों की जांच करें और बताएँ कि क्या वे न्यायसंगत हैं। अपने तर्क के साथ यह भी बताएँ कि प्रत्येक स्थिति में न्याय का कौनसा सिद्धान्त काम कर रहा है।
(अ) एक दृष्टिहीन छात्र सुरेश को गणित का प्रश्नपत्र हल करने के लिए साढ़े तीन घंटे मिलते हैं, जबकि अन्य सभी छात्रों को केवल तीन घंटे।
(ब) गीता बैसाखी की सहायता से चलती है। अध्यापिका ने गणित का प्रश्नपत्र हल करने के लिए उसे साढ़े तीन घंटे का समय देने का निश्चय किया।
(स) एक अध्यापक कक्षा के कमजोर छात्रों के मनोबल को उठाने के लिए कुछ अतिरिक्त अंक देता है।
(द) एक प्रोफेसर अलग-अलग छात्राओं को उनकी क्षमताओं के मूल्यांकन के आधार पर अलग-अलग प्रश्न-पत्र बाँटता है।
(य) संसद में एक प्रस्ताव विचाराधीन है कि संसद की कुल सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी जाएं।
उत्तर:
(अ) ” एक दृष्टिहीन छात्र सुरेश को गणित का प्रश्नपत्र हल करने के लिए साढ़े तीन घंटे मिलते हैं, जबकि अन्य सभी छात्रों को केवल तीन घंटे।” हाँ, यह स्थिति न्यायसंगत है। इस स्थिति में न्याय का विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल का सिद्धान्त काम कर रहा है। लोगों की विशेष जरूरतों को ध्यान में रखने का सिद्धान्त समान बरताव के सिद्धान्त का विस्तार ही करता है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त में यह अन्तर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाये। प्रस्तुत स्थिति में दृष्टिहीन छात्र सुरेश दृष्टि वाले छात्रों के समान नहीं है, इसलिए उसे प्रश्नपत्र’ हल करने के लिए 3 घंटे के स्थान पर साढ़े तीन घंटे का समय दिया जाना न्यायसंगत है।

(ब) ” गीता बैसाखी की सहायता से चलती है। अध्यापिका ने गणित का प्रश्नपत्र हल करने के लिए उसे साढ़े तीन घंटे का समय देने का निश्चय किया। ” यह स्थिति न्यायसंगत नहीं है क्योंकि यह न्याय के समान लोगों के प्रति समान बरताव के सिद्धान्त का उल्लंघन है। गीता का बैसाखी से चलना, परीक्षा हाल में प्रश्नपत्र हल करने के प्रसंग में ‘विशेष जरूरत के विशेष ख्याल’ के सिद्धान्त की आवश्यकता पैदा नहीं करता है; बल्कि वह अन्य छात्रों की तरह ही समान स्थिति में है। ऐसी स्थिति में साढ़े तीन घंटे देना न्यायसंगत नहीं ठहरता।

(स) “एक अध्यापक कक्षा के कमजोर छात्रों के मनोबल को उठाने के लिए कुछ अतिरिक्त अंक देता है।” कमजोर छात्रों के मनोबल को उठाने की दृष्टि से कुछ अतिरिक्त अंक देना न्यायसंगत है। इसमें न्याय के विशेष जरूरतों के विशेष ख्याल का सिद्धान्त काम कर रहा है।

(द) “एक प्रोफेसर अलग-अलग छात्राओं को उनकी क्षमताओं के मूल्यांकन के आधार पर अलग-अलग प्रश्न- पत्र बाँटता है।” यह स्थिति न्यायसंगत नहीं है। इसमें न्याय के समान लोगों के साथ समान लोगों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त का उल्लंघन हुआ है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें काम और कार्यकलापों के आधार पर जांचा जाना चाहिए। छात्राओं को प्रतिफल उनकी क्षमता के अनुसार समान आधार पर ही किया जाना आवश्यक है।

(य) “संसद में,एक प्रस्ताव विचाराधीन है कि संसद की कुल सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी जाएँ।” यह स्थिति न्यायसंगत है तथा इसमें न्याय का विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल का सिद्धान्त काम कर रहा है।

Jharkhand Board Class 11 Political Science सामाजिक न्याय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला?
उत्तर:
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने से आशय:
न्याय में सभी लोगों की भलाई निहित रहती है। एक न्यायसंगत शासक या सरकार को भी न्याय हेतु जनता की भलाई की चिन्ता करनी होगी। जनता की भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा देना शामिल है। इस प्रकार न्याय में हर व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा देना शामिल है। इसी को कहा जाता है कि हर व्यक्ति को उसका प्राप्य दिया जाये, यही न्याय है। प्राचीन काल से लेकर आज तक यह न्याय हमारी समझ का महत्त्वपूर्ण अंग बना हुआ है।

लेकिन प्राचीन समय से लेकर अब तक इस धारणा में कुछ परिवर्तन आए हैं। उदाहरण के लिए प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ था – व्यक्ति के गलत कार्य पर उसे सजा दी जाये और उसके अच्छे कार्य के लिए उसे पुरस्कृत किया जाये। लेकिन आधुनिक समय में प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ यह लिया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो। न्याय के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी व्यक्तियों को समुचित और बराबर का महत्त्व दें।

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प्रश्न 2.
अध्याय में दिये गये न्याय के तीन सिद्धान्तों की संक्षेप में चर्चा करें। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइये।
उत्तर:
न्याय के सिद्धान्त अध्याय में न्याय के जो तीन सिद्धान्त दिये गये हैं वे निम्नलिखित हैं।
1. समान लोगों के प्रति समान व्यवहार:
न्याय का पहला सिद्धान्त यह है कि समकक्षों के साथ समान व्यवहार किया जाये। माना जाता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसलिए वे समान अधिकार और समान व्यवहार के अधिकारी हैं। उदाहरण के लिए, आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्रों में सभी नागरिकों को समान मूल अधिकार व राजनैतिक अधिकार, जैसे- स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, सम्पत्ति का अधिकार, मताधिकार, जीवन का अधिकार आदि दिये गये हैं। ये अधिकार सभी व्यक्तियों को राजनीतिक प्रक्रियाओं में भागीदार बनाते हैं।

समान अधिकारों के अतिरिक्त समकक्षों के साथ समान व्यवहार के सिद्धान्त के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाये। उन्हें उनके काम और कार्यकलापों के आधार पर जांचा जाना चाहिए, इस आधार पर नहीं कि वे किस समुदाय के सदस्य हैं। उदाहरण के लिए, अगर भिन्न जातियों के दो व्यक्ति एक ही काम करते हैं, जैसे- शिक्षक का कार्य, तो उन्हें समान पारिश्रमिक मिलना चाहिए। यदि किसी काम के लिए एक व्यक्ति को सौ रुपये और दूसरे व्यक्ति को पिचहत्तर रुपये सिर्फ इसलिए मिलते हैं, क्योंकि वे भिन्न जातियों के हैं, या भिन्न रंग के हैं, तो यह अनुचित और अन्यायपूर्ण है।

2. समानुपातिक न्याय:
‘समान कार्य के लिए समान व्यवहार’ के न्याय के सिद्धान्त के अतिरिक्त न्याय का दूसरा सिद्धान्त है। समानुपातिक न्याय ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिसमें हम महसूस करें कि हर एक के साथ समान बरताव करना अन्याय होगा। उदाहरण के लिए, अगर हमारे स्कूल में यह फैसला किया जाये कि परीक्षा में शामिल होने वाले सभी लोगों को बराबर अंक दिए जाएँगे, क्योंकि सब एक ही स्कूल के विद्यार्थी हैं और सबने एक ही दी है, तो ऐसा करना अन्यायपूर्ण रहेगा। यहाँ पर यह न्यायसंगत होगा कि छात्रों को उनकी उत्तर-पुस्तिकाओं की गुणवत्ता द्वारा किये गए प्रयास के अनुसार अंक दिए जाएँ।

इस प्रकार ऐसे सभी मामलों में न्याय का अर्थ होगा- लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत करना। किसी काम के लिए वांछित मेहनत, कौशल, संभावित खतरे आदि कारकों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग पारिश्रमिक निर्धारण करना उचित और न्यायसंगत होगा। अतः समाज में न्याय के लिए समान व्यवहार के सिद्धान्त का समानुपातिकता के सिद्धान्त के साथ संतुलन बिठाने की आवश्यकता है।

3. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल का सिद्धान्त-न्याय का तीसरा सिद्धान्त है। समाज में पारिश्रमिक या कर्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष आवश्यकताओं का भी ख्याल रखा जाये। इसे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है। समाज के सदस्यों के रूप में लोगों की बुनियादी हैसियत और अधिकारों के लिहाज से न्याय के लिए यह आवश्यक है कि समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाये। लेकिन समान व्यवहार के सिद्धान्त पर अमल कभी-कभी योग्यता को उचित प्रतिफल देने के खिलाफ खड़ा हो सकता है।

ऐसी स्थिति में योग्यता को पुरस्कृत करने के लिए समानुपातिक न्याय के सिद्धान्त को क्रियान्वित किया जाता है। लेकिन योग्यता को ही पुरस्कृत करने को न्याय का प्रमुख सिद्धान्त मानने पर जोर देने का अर्थ यह होगा कि हाशिये पर खड़े तबके कई क्षेत्रों में वंचित रह जायेंगे, क्योंकि अच्छे पोषाहार और अच्छी शिक्षा जैसी सुविधाओं तक उनकी पहुँच नहीं हो पाती है। इसलिए न्याय के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों की विशेष आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाये। उदाहरण के लिए, विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझना न्यायसंगत होता है। इसी प्रकार अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच न होना भी ऐसा कारक है, जिन्हें अनेक देशों में विशेष बरताव का आधार समझा जाता है।

हमारे देश में अच्छी सुविधा, स्वास्थ्य और ऐसी अन्य सुविधाओं तक पहुँच का अभाव जाति आधारित सामाजिक भेदभाव से जुड़ा है। इसीलिए संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थाओं में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। देश के विभिन्न समूह, भिन्न-भिन्न नीतियों की तरफदारी कर सकते हैं, जो इस पर निर्भर करता है कि वे न्याय के किस सिद्धान्त पर बल देते हैं । ऐसी स्थिति में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह एक न्यायपरक समाज को बढ़ावा देने के लिए न्याय के विभिन्न सिद्धान्तों के बीच सामञ्जस्य स्थापित करे।

प्रश्न 3.
क्या विशेष जरूरतों का सिद्धान्त सभी के साथ समान बरताव के सिद्धान्त के विरुद्ध है?
उत्तर:
नहीं, लोगों की विशेष जरूरतों का सिद्धान्त सभी के साथ समान बरताव के सिद्धान्त के विरुद्ध नहीं है, बल्कि उसका विस्तार है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त में यह अन्तर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों, जैसे विकलांगता या वंचितता आदि में अन्य के समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाये।

प्रश्न 4.
“निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है।” रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में ‘अज्ञानता के आवरण’ के विचार का उपयोग किस प्रकार किया?
उत्तर:
निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण:
समाज में सामाजिक न्याय पाने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियाँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू होने के साथ-साथ न्यायसंगत भी हों। इस सम्बन्ध में रॉल्स ने ‘अज्ञानता के आवरण का सिद्धान्त’ प्रतिपादित किया है। यथा अज्ञानता के आवरण का सिद्धान्त

1. अज्ञानता के आवरण से आशय:
जॉन रॉल्स ने कहा है कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यह है कि हम स्वयं को एक ‘अज्ञानता के आवरण’ की परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह
निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाये। रॉल्स के अनुसार, ” अज्ञानता के आवरण के अन्तर्गत समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपने संभावित स्थान और पद के बारे में सर्वथा अज्ञान रहेगा।”

2. अज्ञानता के आवरण में सोचना:
रॉल्स तर्क देते हैं कि यदि हमें यह नहीं मालूम हो कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौनसे विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे, वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा। रॉल्स ने इसे ‘अज्ञानता के आवरण’ में सोचना कहा है। वे आशा करते हैं कि समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में हर आदमी यह नहीं जानता कि वह कौन होगा और उसके लिए क्या लाभप्रद होगा, इसलिए हर कोई सबसे बुरी स्थिति के समाज की कल्पना करेगा।

3. कमजोर तबके के लोगों के लिए यथोचित अवसरों की सुनिश्चितता:
यद्यपि वह अपने स्वभाव के अनुसार स्वयं के हितों को ध्यान में रखकर निर्णय करेगा, लेकिन अज्ञानता के आवरण में वह संगठन के ऐसे नियमों के बारे में सोचेगा जो कमजोर तबकों के लिए यथोचित अवसर सुनिश्चित कर सकें। इस दृष्टि से वह यह चाहेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन सभी लोगों को प्राप्त हों।

4. सभी लोगों से विवेकशीलता की उम्मीद:
‘अज्ञानता के आवरण’ वाली स्थिति की विशेषता यह है कि इसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बंधती है क्योंकि अज्ञानता के आवरण में रहकर जब वे चुनते हैं तो वे पायेंगे कि सबसे बुरी स्थिति से ही सोचना उनके लिए हितकर होगा। इससे यह प्रकट होगा कि विवेकशील मनुष्य न केवल सबसे बुरे संदर्भ को ध्यान में रखते हुए चीजों को देखेंगे, बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि उनके द्वारा निर्मित नीतियाँ समग्र समाज के लिए लाभप्रद हों। दोनों चीजों को साथ-साथ लेकर चलना है।

इसीलिए सभी के हित में होगा कि निर्धारित नीतियों और नियमों से सम्पूर्ण समाज को लाभ हो, किसी एक खास हिस्से को नहीं। यहाँ निष्पक्षता विवेकसम्मत कार्रवाई का परिणाम है, न कि परोपकार या उदारता का इसीलिए रॉल्स तर्क देते हैं कि नैतिकता नहीं बल्कि विवेकशील चिंतन हमें समाज के लाभ और लाभों के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने की ओर प्रेरित करता है और अज्ञानता के आवरण वाली स्थिति लोगों को विवेकशील बनाए रखती है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

प्रश्न 5.
आमतौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें क्या मानी गई हैं? इस न्यूनतम को सुरक्षित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है?
उत्तर:
व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें – आमतौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की ‘न्यूनतम बुनियादी जरूरतें ये मानी गई हैं।

  1. स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की बुनियादी मात्रा अर्थात् भोजन,
  2. आवास,
  3. शुद्ध पेयजल की आपूर्ति,
  4. शिक्षा और
  5. न्यूनतम मजदूरी तथा
  6. तन ढकने के लिए आवश्यक कपड़ा।

न्यूनतम को सुरक्षित करने में सरकारी जिम्मेदारी
लोगों की न्यूनतम बुनियादी जरूरतों की पूर्ति लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी मानी जाती है। लेकिन इस लक्ष्य को पाने का सर्वोत्तम तरीका क्या होगा, इस पर विवाद चल रहा है। कुछ विद्वानों का मत है कि मुक्त बाजार के जरिए खुली प्रतियोगिता को बढ़ावा देना समाज के सुविधा प्राप्त सदस्यों को नुकसान पहुँचाए बगैर सुविधाहीनों की मदद करने का तरीका ही सर्वोत्तम तरीका है। दूसरे लोगों का मत है कि गरीबों को न्यूनतम बुनियादी सुविधायें मुहैया कराने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए । यहाँ पर हमारा प्रतिपाद्य इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की जिम्मेदारी की विवेचना करना है। यथा

  1. सभी लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी जीवन – मानक सुनिश्चित करने हेतु राज्य हस्तक्षेप करे, ताकि वे समान शर्तों पर प्रतिस्पर्द्धा करने में समर्थ हो ।
  2. यद्यपि स्वास्थ्य, सेवा, शिक्षा तथा ऐसी अन्य बुनियादी सेवाओं की आपूर्ति के लिए निजी एजेन्सियों को प्रोत्साहित किया जाये, तथापि राज्य की नीतियाँ इन सेवाओं को खरीदने के लिए लोगों को सशक्त बनाने की कोशिश करें।
  3. राज्य के लिए यह भी जरूरी हो सकता है कि वह उन वृद्धों और राोगियों को विशेष सहायता प्रदान करे, जो प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकते। लेकिन इससे आगे राज्य की भूमिका नियम कानून का ढाँचा बरकरार रखने तक ही सीमित रहनी चाहिए, जिससे व्यक्तियों के बीच बाधाओं से मुक्त प्रतिद्वन्द्विता सुनिश्चित हो।
  4. सरकार को यह देखना चाहिए कि अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ और सेवाएँ लोगों के खरीदने लायक कीमत पर उपलब्ध हों। यदि इन सेवाओं की कीमत अधिक होगी तो वे गरीबों की पहुँच से बाहर हो जाएँगी।
  5. गरीब वर्ग को न्यूनतम सुविधाएँ प्राप्त हों, इस हेतु सरकार छोटे-छोटे कुटीर उद्योग व अन्य छोटे उद्योगों को बढ़ावा देकर गरीब वर्ग को रोजगार उपलब्ध कराकर उनकी गरीबी दूर करने का प्रयास कर सकती है। वह बेरोजगारों को अपना व्यवसाय शुरू करने को प्रेरित करने हेतु बैंकों से सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध करा सकती है।

प्रश्न 6.
सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिये राज्य की कार्यवाही को निम्न में से कौन-से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है?
(क) गरीब और जरूरतमंदों को निःशुल्क सेवायें देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिये।
(घ) सभी के लिये बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।
उत्तर:
उपर्युक्त में से सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्रवाई को (ख) के तर्क, कि ” सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है, से वाजिब ठहराया जा सकता है।

सामाजिक न्याय JAC Class 11 Political Science Notes

→ न्याय का सरोकार समाज में हमारे जीवन और सार्वजनिक जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों और तरीकों से होता है, जिनके द्वारा समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच सामाजिक लाभ और सामाजिक कर्त्तव्यों का बंटवारा किया जाता है।

→ न्याय क्या है?
विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं में न्याय की अवधारणा की व्याख्या भिन्न-भिन्न तरीकों से की गई है। यथा

  • प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा था।
  • चीन के दार्शनिक कनफ्यूशियस के अनुसार गलत करने वालों को दंडित कर और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम रखना चाहिए।
  • प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में कहा कि न्याय में सभी लोगों का हित निहित रहता है। जैसे एक डाक्टर अपने सभी मरीजों की भलाई की चिन्ता करता है, उसी तरह एक न्यायसंगत शासक या सरकार को भी जनता की भलाई की चिंता करनी होगी। जनता की भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है।
  • आधुनिक काल में भी न्याय में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है। लेकिन आज न्याय की हमारी समझ इस समझ से जुड़ गई है कि मनुष्य होने के नाते हर मनुष्य का प्राप्य क्या है। कांट का इस सम्बन्ध में कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए समुचित और बराबर अवसर प्राप्त हों। न्याय के लिए जरूरी है कि हम सभी व्यक्तियों को समुचित और बराबरी की अहमियत दें।

→ न्याय के सिद्धान्त
‘हर व्यक्ति को उसका प्राप्य प्राप्त हो’ आधुनिक समाज में न्याय के सम्बन्ध में इस बात पर सहमति है। लेकिन हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाये, इस सम्बन्ध में निम्नलिखित सिद्धान्त सामने आये हैं।

→ समान लोगों के प्रति समान बरताव का सिद्धान्त: हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाय, इस सम्बन्ध में कई सिद्धान्त पेश किये गये हैं। उनमें से एक है। – समकक्षों के साथ समान बरताव का सिद्धान्त। मनुष्य होने के नाते सभी मनुष्य समान अधिकार और समान बरताव के अधिकारी हैं। आधुनिक काल में अधिकांश उदारवादी जनतंत्रों में सभी व्यक्तियों को जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा मताधिकार के अधिकार दिये गए हैं, साथ ही इन अधिकारों के उपयोग के लिए वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध भी किया गया है।

→ समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त: ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिसमें हम महसूस करें कि हर एक के साथ समान बरताव अन्याय होगा। ऐसे मामलों में न्याय का मतलब होगा, लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत करना अर्थात् किसी काम के लिए वांछित मेहनत, कौशल, संभावित खतरे आदि कारकों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग पारिश्रमिक का निर्धारण उचित और न्यायसंगत होगा । इसलिए समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धान्त का समानुपातिकता के सिद्धान्त के साथ संतुलन बैठाने की आवश्यकता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

→ विशेष जरूरतों के विशेष ख्याल का सिद्धान्त:
न्याय के जिस तीसरे सिद्धान्त को हम समाज के लिए मान्य करते हैं, वह है। पारिश्रमिक या कर्त्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखने का सिद्धान्त। यह सिद्धान्त ‘समान बरताव के सिद्धान्त’ का विस्तार है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त में यह अन्तर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाये। विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझा जा सकता है।

हमारे संविधान में इसी दृष्टि से ही अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में तथा शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह एक न्यायपरक समाज को बढ़ावा देने के लिए न्याय के उपर्युक्त तीनों सिद्धान्तों के बीच सामञ्जस्य स्थापित करे ।

→ न्यायपूर्ण बंटवारा
सामाजिक न्याय का सरोकार वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से भी है, चाहे यह राष्ट्रों के बीच वितरण का मामला हो या किसी समाज के अन्दर विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच का । यदि समाज में गंभीर सामाजिक या आर्थिक असमानताएँ हैं, तो यह जरूरी होगा कि समाज के कुछ प्रमुख संसाधनों का पुनर्वितरण हो, जिससे नागरिकों को जीने के लिए समतल धरातल मिल सके। इसी संदर्भ में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों ने जमीन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन के अधिक न्यायपूर्ण वितरण के लिए भूमि सुधार लागू करने जैसे कदम भी उठाए हैं।

→ रॉल्स का न्याय सिद्धान्त:
अज्ञानता का कल्पित आवरण में निर्णय हेतु सोचना: रॉल्स का न्याय सिद्धान्त इस प्रश्न से शुरू होता है कि हम ऐसे निर्णय पर कैसे पहुँचें जो निष्पक्ष और न्यायसंगत हो? रॉल्स का कहना है कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यह है कि हम ‘अज्ञानता के आवरण’ में निर्णय लें। अज्ञानता के आवरण वाली स्थिति की विशेषता यह है कि उसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बनती है क्योंकि इस आवरण में रहते हुए यदि हम निर्णय करते हैं तो सबसे बुरी स्थिति से ही हम सोचना हितकर समझते हैं क्योंकि हमें नहीं मालूम कि भविष्य में हम किस स्थिति में होंगे, हो सकता है कि वर्तमान में जो सबसे बुरी स्थिति हमें दिखाई दे रही है, भविष्य में, निर्णय लेने के बाद, हमें यही स्थिति मिले। इसलिए हम इस स्थिति से ही सोचना प्रारंभ करेंगे।

→ अज्ञानता के कल्पित आवरण में विवेकशील चिंतन संभव:
अज्ञानता का कल्पित आवरण ओढ़ना उचित कानूनों और नीतियों की प्रणाली तक पहुँचने का पहला कदम है। क्योंकि इस आवरण में विवेकशील मनुष्य यह सुनिश्चित करने की भी कोशिश करेंगे कि उनके द्वारा निर्मित नीतियाँ समग्र समाज के लिए लाभप्रद हों। अज्ञानता के इस आवरण में व्यक्ति ऐसे नियम चाहेगा जो सबसे बुरी स्थिति में जीने वालों की भी रक्षा कर सकें, क्योंकि कोई नहीं जानता कि आगामी समाज में वे कौनसी जगह लेंगे। इसके साथ ही वे यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि उनके द्वारा चुनी गई नीतियाँ बेहतर स्थिति वालों को कमजोर न बना दें, क्योंकि हो सकता है वे स्वयं भविष्य के उस समाज में सुविधासम्पन्न स्थिति में पैदा हों। इस प्रकार वे ऐसे नियम चाहेंगे जिनसे समाज के सभी प्रकार के लोगों को फायदा हो, न कि किसी एक खास हिस्से का।

→ वितरण हेतु निष्पक्षता विवेकसम्मत चिंतन व कार्यवाही का परिणाम – यहाँ पर निष्पक्षता विवेकसम्मत कार्यवाही का परिणाम है, न कि परोपकार या उदारता का । इस प्रकार रॉल्स का कहना है कि विवेकशील चिंतन हमें समाज में लाभ और साधनों के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार की ओर प्रेरित करता है।

→ सामाजिक न्याय का अनुसरण
न्यायपूर्ण समाज को लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ जरूर मुहैया करानी चाहिए, ताकि वे स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जीने में सक्षम हो सकें, समाज में अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें तथा समान अवसरों के माध्यम से 1. अपने चुने हुए लक्ष्य की ओर बढ़ सकें। आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी इन बुनियादी स्थितियों के महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं। लोगों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी समझी जाती है ।
अगर हम सब इस बात पर सहमत हो जाएँ कि राज्य को न्यूनतम बुनियादी स्थितियों को मुहैया करने के लिए सबसे वंचित सदस्यों की सहायता करनी चाहिए, तब इससे जुड़ा दूसरा प्रश्न यह मुखरित होता है कि इस हेतु राज्य सरकार क्या रास्ता अपनाये। क्या यह खुली प्रतियोगिता का रास्ता अपनाये या राज्य हस्तक्षेप करके गरीबों को न्यूनतम बुनियादी सुविधायें मुहैया कराये। यथा-

→ मुक्त. बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेप
मुक्त बाजार के पक्ष में तर्क- राज्य को समाज के सबसे वंचित सदस्यों की सहायता के लिए एक रास्ता तो यह अपनाना चाहिए कि वह मुक्त बाजार के जरिये खुली प्रतियोगिता को बढ़ावा दे। इसके समर्थकों ने इसके समर्थन में जो तर्क दिये हैं, वे निम्नलिखित हैं।

  • मुक्त बाजार के जरिये खुली प्रतियोगिता से योग्यता और प्रतिभा वाले व्यक्तियों को अधिक प्रतिफल मिलेगा जबकि अक्षम लोगों को कम प्रतिफल मिलेगा । इसका मुख्य आधार योग्यता, प्रतिभा और कौशल होगा।
  • मुक्त बाजारी वितरण हमें ज्यादा विकल्प प्रदान करता है।

→ मुक्त बाजार के विपक्ष तथा राज्य के हस्तक्षेप के पक्ष में तर्क

  • यद्यपि मुक्त बाजार और निजी उद्यम द्वारा प्रदत्त सेवाएँ सरकारी सेवाओं से बेहतर होती हैं, लेकिन अधिक कीमत के कारण वे गरीब लोगों की पहुँच से बाहर हो जाती हैं। इससे कमजोर सुविधाहीन लोग अवसरों से वंचित हो सकते हैं।
  • मुक्त बाजार प्रायः पहले से ही सुविधासम्पन्न लोगों के हक में काम करने का रुझान दिखलाते हैं। इसलिए राज्य को हस्तक्षेप करके समाज के सभी सदस्यों को बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराने की पहल करनी चाहिए।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

Jharkhand Board Class 11 Political Science समानता InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
मैं जिन लोगों को जानता हूँ, वे सभी किसी न किसी धर्म में विश्वास करते हैं। मैं जिन धर्मों के बारे जानता हूँ, वे सभी समानता का संदेश देते हैं। जब ऐसा है, तो दुनिया में असमानता क्यों है?
उत्तर:
यद्यपि समानता की बात सभी आस्थाओं और धर्मों में समाविष्ट है। हर धर्म ईश्वर की रचना के रूप में प्रत्येक मनुष्य के समान महत्त्व की घोषणा करता है। इसके बावजूद दुनिया में असमानता व्याप्त है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. बहुत सी सामाजिक संस्थाएँ और राजसत्ता लोगों में पद, धन, हैसियत या विशेषाधिकार की असमानता कायम रखती हैं।
  2. मनुष्यों के बीच नस्ल और रंग के आधार पर भेदभाव असमानता को बढ़ाते रहे हैं।
  3. लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण भी असमानताएँ पाई जाती हैं।
  4. जब लोगों के बरताव में कुछ असमानताएँ लंबे काल तक विद्यमान रहती हैं, तो वे हमें मनुष्य की प्राकृतिक विशेषताओं पर आधारित लगने लगती हैं। उदाहरण के लिए औरतें अनादि काल से ‘अबला’ कही जाती थीं।

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प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक असमानता दर्शाने वाले कुछ आंकड़े।
यहाँ भारत की 2011 की जनगणना से लिए गए घरेलू सम्पदा और सुविधाओं के बारे में कुछ आंकड़े प्रस्तुत हैं। इन आंकड़ों को गाँव और शहर के बीच की असमानता को समझने के लिए पढ़िये। आपका परिवार इन आंकड़ों में कहाँ आता है?

परिवार जिनके पास है…… ग्रामीण परिवार % शहरी परिवार % अपने परिवार के लिए (√) या × लगाएँ
बिजली का कनेक्शन 55 93
मकान में सरकारी नल का कनेक्शन 35 71
मकान में स्नान घर 45 87
टेलिविजन 33 77
स्कूटर/मोपेड/मोटर 14 35
साइकिल 2 10

उत्तर:
अपने परिवार के लिए (√) या (×) का चिन्ह यह देखते हुए लगाएं कि आपके परिवार में ये सुविधाएँ हैं या नहीं हैं। हैं तो (√) और नहीं तो (×)

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प्रश्न 3.
इन चित्रों पर नजर डालें
JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता 1
ये चित्र क्या संकेत करते हैं?
उत्तर:
ये चित्र मनुष्यों के बीच नस्ल और रंग के आधार पर भेदभाव की ओर संकेत करते हैं। ये हममें से अधिकांश को अस्वीकार्य हैं। वास्तव में इस तरह के भेदभाव समानता के हमारे आत्मबोध का उल्लंघन करता है। समानता का हमारा आत्म-बोध कहता है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान और परवाह के हकदार हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

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प्रश्न 4.
छात्र का कथन है कि “पुरुष स्त्रियों से बढ़कर हैं। यह एक प्राकृतिक असमानता है। आप इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कर सकते।” छात्रा का कथन है कि “मेरे हर विषय में तुमसे ज्यादा अंक आते हैं। मैं घर के काम में माँ का हाथ भी बंटाती हूँ। तुम मुझसे बढ़कर कैसे हो?” ये दोनों कथन प्राकृतिक असमानता के किस प्रकार के मिथ से संबंधित हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक असमानता और सामाजिक असमानताएँ अलग-अलग होती हैं लेकिन इन दोनों तरह की असमानताओं में अन्तर हमेशा साफ और अपने आप में स्पष्ट नहीं होता। जब लोगों के बरताव में कुछ असमानताएँ लंबे काल तक विद्यमान रहती हैं, तो वे हमें मनुष्य की प्राकृतिक विशेषताओं पर आधारित लगने लगती हैं। ऐसा लगने लगता है कि वे जन्मगत हों और आसानी से बदल नहीं सकतीं। उदाहरण के लिए, औरतें अनादिकाल से अबला कही जाती थीं।

उन्हें भीरु और पुरुषों से कम बुद्धि का माना जाता था, जिन्हें विशेष संरक्षण की जरूरत थी। इसलिए यह मान लिया गया था कि औरतों को समान अधिकार से वंचित करना न्यायसंगत है। छात्र का कथन इसी तथ्य की ओर इंगित करता है। लेकिन छात्रा का कथन व उसके द्वारा दिये गए तथ्य इस मिथक को तोड़ते हैं और इस ओर संकेत करते हैं कि यह असमानता प्राकृतिक नहीं सामाजिक है और न्याससंगत नहीं है।

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प्रश्न 5.
शिक्षा में असमानता:
नीचे दी गई तालिका में विभिन्न समुदायों की शैक्षिक स्थिति से जुड़े कुछ आंकड़े दिए गए हैं।
1. इन समुदायों की शैक्षिक स्थिति में जो अन्तर है, क्या वे महत्त्वपूर्ण हैं?
2. क्या इन अन्तरों का होना केवल एक संयोग है या ये अन्तर जाति व्यवस्था के असर की ओर संकेत करते हैं?
3. आज यहाँ जाति-व्यवस्था के अलावा और किन कारणों का प्रभाव देखते हैं?
शहरी भारत में उच्च शिक्षा में जातिगत समुदायों में असमानता

जाति/समुदाय प्रति हजार लोगों में स्नातकों की संख्या
अनुसूचित जाति 47
मुस्लिम 61
हिन्दू (पिछड़ी जातियाँ) 86
अनुसूचित जनजाति 109
ईसाई 237
सिक्ख 250
हिन्दू उच्च जातियाँ 253
अन्य धार्मिक समुदाय 315
अखिल भारतीय औसत 155

उत्तर:

  1. हाँ, इन समुदायों की शैक्षिक स्थिति में जो अन्तर है, वह महत्त्वपूर्ण है।
  2. ये अन्तर जाति-व्यवस्था के असर की ओर संकेत करते हैं। इसमें स्पष्ट दिखाई देता है कि हिन्दू समाज की पिछड़ी जातियाँ तथा अनुसूचित जातियाँ जहाँ शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक पिछड़ी हुई हैं, वे राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे हैं, वहाँ हिन्दू समाज की उच्च जातियों का शैक्षिक स्तर राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
  3. दी गई तालिका में दर्शाये गए आंकड़ों से शिक्षा की स्थिति पर प्रभाव डालने वाले प्रमुख कारक ये बताए जा सकते हैं।

(क) जाति व्यवस्था:
हिन्दू समाज में जाति व्यवस्था ने शिक्षा की स्थिति को प्रभावित किया है। दलित या पिछड़ी जातियों के लोगों को हिन्दू समाज में अध्ययन की सुविधाओं का अभाव था। जबकि उच्च जातियों को इन सुविधाओं से वंचित नहीं किया गया था। इस कारण शैक्षिक स्थितियों में काफी अन्तर देखा जा सकता है।

(ख) धर्म:
मुस्लिम समाज में जाति: पांति के न होने पर भी शिक्षा का स्तर अत्यधिक गिरा हुआ है, जबकि अन्य धर्मावलम्बियों का शिक्षा का स्तर अच्छा है।

(ग) आर्थिक असमानता:
भारत में आर्थिक असमानता ने भी शिक्षा पर प्रभाव डाला है। आर्थिक रूप विपन्न वर्ग, चाहे वह किसी भी जाति व धर्म का रहा हो, शिक्षा के क्षेत्र में, आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्ग की तुलना में और पिछड़ा रहा है; क्योंकि ऐसे परिवारों के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएँ मुहैया नहीं हो पाती हैं; उन्हें शीघ्र ही अपने जीवनयापन के लिए मजदूरी के लिए दौड़ना पड़ता है।

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प्रश्न 6.
नीचे दी गई स्थितियों पर विचार करें। क्या इनमें से किसी भी स्थिति में विशेष और विभेदकारी बरताव करना न्यायोचित होगा?
1. कामकाजी महिलाओं को मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए।
2. एक विद्यालय में दो छात्र दृष्टिहीन हैं। विद्यालय को उनके लिए कुछ विशेष उपकरण खरीदने के लिए धनराशि खर्च करनी चाहिए।
3. गीता बास्केटबाल बहुत अच्छा खेलती है। विद्यालय को उसके लिए बास्केटबाल कोर्ट बनाना चाहिए जिससे वह अपनी योग्यता का और भी विकास कर सके।
4. जीत के माता-पिता चाहते हैं कि वह पगड़ी पहने। इरफान चाहते हैं कि वह जुम्मे (शुक्रवार) को नमाज पढ़े, ऐसी बातों को ध्यान में रखते हुए स्कूल को जीत से यह आग्रह नहीं करना चाहिए कि वह क्रिकेट खेलते समय हेलमेट पहने और इरफान के अध्यापक को शुक्रवार को उससे दोपहर बाद की कक्षाओं के लिए रुकने को नहीं कहना चाहिए।
उत्तर:

  1. कामकाजी महिलाओं को मातृत्व अवकाश मिलना न्यायोचित होगा।
  2. दृष्टिहीन छात्रों के अध्यापन के लिए विद्यालय को उनके लिए कुछ विशेष उपकरण खरीदने हेतु धनराशि खर्च करना न्यायोचित होगा।
  3. केवल गीता के लिए बास्केटबाल कोर्ट बनाना न्यायोचित नहीं होगा; हाँ, यदि विद्यालय में बास्केटबाल के खेल को खिलाने के लिए सभी विद्यार्थियों या सभी खिलाड़ियों की दृष्टि से कोर्ट बनाना ही न्यायोचित होगा।
  4. हाँ, जीत को क्रिकेट खेलते समय हेलमेट पहनने तथा इरफान के अध्यापक को शुक्रवार को उससे दोपहर बाद की कक्षाओं के रुकने के लिए नहीं कहना चाहिए। दोनों ही स्थितियाँ न्यायोचित हैं।

Jharkhand Board Class 11 Political Science समानता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कुछ लोगों का तर्क है कि असमानता प्राकृतिक है जबकि कुछ अन्य का कहना है कि वास्तव में समानता प्राकृतिक है और जो असमानता हम चारों ओर देखते हैं उसे समाज ने पैदा किया है। आप किस मत का समर्थन करते हैं? कारण दीजिए।
उत्तर:
दोनों ही मतों में सत्यांश है और अलग-अलग दृष्टिकोण से दोनों ही सही हैं। यथा
1. समानता प्राकृतिक है:
जब हम यह कहते हैं कि समानता प्राकृतिक है, उसका आशय यह है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने के योग्य हैं। हर धर्म ईश्वर की रचना के रूप में मनुष्य के समान महत्त्व की घोषणा करता है। साझी मानवता की यह धारणा ही ‘सार्वभौमिक मानवाधिकार’ जैसी धारणाओं के पीछे हैं। इस प्रकार मानवता की दृष्टि से समानता प्राकृतिक है। लेकिन जन्मगत विशिष्टताओं और योग्यताओं की दृष्टि से समानता प्राकृतिक नहीं है।

2. असमानता प्राकृतिक भी है और सामाजिक भी: मैं इस मत का समर्थन करता हूँ कि असमानता प्राकृतिक भी है और सामाजिक भी। यथा

(i) प्राकृतिक असमानताएँ:
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, योग्यताओं, विशिष्टताओं और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं। प्राय: प्राकृतिक असमानताओं को बदला नहीं जा सकता।

(ii) सामाजिक असमानताएँ:
समाजजनित असमानताएँ वे होती हैं, जो समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह का दूसरे के द्वारा शोषण किये जाने से पैदा होती हैं। बहुत सी सामाजिक संस्थाएँ और राजसत्ता लोगों में पद, धन, हैसियत या विशेषाधिकार की असमानता कायम रखती हैं। ये सभी असमानताएँ सामाजिक हैं। हम समाज में दोनों प्रकार की असमानताएँ देखते हैं। प्राकृतिक असमानताएँ जहाँ न्यायोचित हैं, वहीं सामाजिक असमानताएँ न्यायोचित नहीं हैं। इसलिए ऐसी असमानताओं पर हमारा ध्यान अधिक जाता है। लोकतांत्रिक राज्यों में ऐसी असमानताओं को दूर करने का प्रयास भी किया जा रहा है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

प्रश्न 2.
एक मत है कि पूर्ण आर्थिक समानता न तो संभव है और न वांछनीय। एक समाज ज्यादा से ज्यादा बहुत अमीर और बहुत गरीब लोगों के बीच की खाई को कम करने का प्रयास कर सकता है। क्या आप इस तर्क से सहमत हैं? अपना तर्क दीजिये।
उत्तर:
हाँ, मैं इस तर्क से सहमत हूँ कि पूर्ण आर्थिक समानता न तो संभव है और न वांछनीय। एक समाज ज्यादा से ज्यादा बहुत अमीर और बहुत गरीब लोगों के बीच की खाई को कम करने का प्रयास कर सकता है। आर्थिक असमानता ऐसे समाज में विद्यमान होती है जिसमें व्यक्तियों और वर्गों के बीच धन, दौलत, आय में खासी भिन्नता हो। क्योंकि समाज में धन, दौलत या आय की पूरी समानता संभवत: कभी विद्यमान नहीं रही।

आज अधिकतर लोकतंत्र लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं। लेकिन समान अवसरों के साथ भी असमानता बनी रह सकती है, लेकिन इसमें यह संभावना हुई है कि आवश्यक प्रयासों द्वारा कोई भी समाज में अपनी स्थिति बेहतर बना सकता है। अतः स्पष्ट है कि चूंकि व्यक्तियों में प्राकृतिक रूप से प्रतिभा, क्षमता, योग्यता तथा जन्मगत विशिष्टताओं में भिन्नता होती है, इसी कारण उनमें पूर्ण आर्थिक समानता का होना संभव नहीं है।

लेकिन एक समाज बहुत अमीर और बहुत गरीब लोगों के बीच की खाई को कम करने का प्रयास कर सकता है क्योंकि अत्यधिक आर्थिक असमानता के जो सामाजिक कारण हैं, वे हैं- समाज में अवसरों की असमानता का होना या किसी समूह का दूसरे के द्वारा शोषण करना। इन कारणों का निवारण करके समाज आर्थिक असमानता की इस खाई को कम कर सकता है। इस हेतु वह औपचारिक (कानूनी तथा संवैधानिक) समान अवसरों की समानता प्रदान करके; असमानतामूलक सभी सामाजिक विशेषाधिकारों तथा निषेधों को समाप्त करके, अशक्तों और वंचितों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान करके इस खाई को कम कर सकता है।

प्रश्न 3.
नीचे दी गई अवधारणा और उसके उचित उदाहरणों में मेल बैठायें।

(क) सकारात्मक कार्यवाही (1) प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार है।
(ख) अवसर की समानता (2) बैंक वरिष्ठ नागरिकों को ब्याज की ऊँची दर देते हैं।
(ग) समान अधिकार (3) प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क शिक्षा मिलनी चाहिये।

उत्तर:

(क) सकारात्मक कार्यवाही का द्योतक है। बैंक वरिष्ठ नागरिकों को ब्याज की ऊँची दर देते हैं।
(ख) अवसर की समानता का द्योतक है। प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क शिक्षा मिलनी चाहिये।
(ग) समान अधिकार का द्योतक है। प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार है।

प्रश्न 4.
किसानों की समस्या से संबंधित एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार छोटे और सीमांत किसानों को बाजार से अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। रिपोर्ट में सलाह दी गई कि सरकार को बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिये हस्तक्षेप करना चाहिये। लेकिन यह प्रयास केवल लघु और सीमांत किसानों तक ही सीमित रहना चाहिये। क्या यह सलाह समानता के सिद्धान्त से संभव है?
उत्तर:
हाँ, यह सलाह समानता के सिद्धान्त से संभव है। समानता के सिद्धान्त को यथार्थ में बदलने के लिए औपचारिक या कानूनी समानता पर्याप्त नहीं है। कभी-कभी यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोग समान अधिकारों का उपभोग कर सकें; हमें प्रत्येक व्यक्ति को लगभग एक समान मानने तथा प्रत्येक को मूलतः समान मानने में अन्तर करना चाहिए। मूलत: समान व्यक्तियों को विशेष परिस्थितियों में अलग-अलग बरताव की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन ऐसे सभी मामलों में सर्वोपरि उद्देश्य समानता को बढ़ावा देना होना चाहिए।

छोटे और सीमान्त किसानों को अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण बाजार से अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। इन्हें उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार उन बाधाओं को दूर करने की नीतियाँ बनाकर समानता के सिद्धान्त व्यावहारिक बना सकती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किस में समानता के किस सिद्धान्त का उल्लंघन होता है और क्यों?
(क) कक्षा का हर बच्चा नाटक का पाठ अपना क्रम आने पर पढ़ेगा।
(ख) कनाडा सरकार ने दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से 1960 तक यूरोप के श्वेत नागरिकों को कनाडा में आने और बसने के लिये प्रोत्साहित किया।
(ग) वरिष्ठ नागरिकों के लिये अलग से रेलवे आरक्षण की एक खिड़की खोली गई।
(घ) कुछ वन क्षेत्रों को निश्चित आदिवासी समुदायों के लिये आरक्षित कर दिया गया है।
उत्तर:

  1. उपर्युक्त में (क) और (ग) कथन में समानता के किसी सिद्धान्त का उल्लंघन नहीं हुआ है।
  2. (ख) कथन में रंग के आधार पर समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन है। समानता का औपचारिक सिद्धान्त यह है कि कानून सब मनुष्यों के साथ समानता का बर्ताव करेगा; जाति, धर्म, रंग, लिंग के आधार पर कोई भेदभावपूर्ण कानून नहीं बनायेगा। लेकिन कनाडा की सरकार ने समानता के इस सिद्धान्त का उल्लंघन करते हुए रंग के आधार पर भेदभावपूर्ण कानून बनाया और द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति से 1960 तक यूरोप के श्वेत नागरिकों को ही कनाडा में आने और बसने के लिए प्रोत्साहित किया।
  3. (घ) कथन में प्राकृतिक समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि प्रकृति सभी के लिए है। कुछ वन क्षेत्र को केवल निश्चित आदिवासी समुदायों के लिए नहीं बल्कि सभी आदिवासी समुदायों, चाहे वे किसी धर्म, जाति, वंश या नस्ल के अन्तर्गत आते हों, के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए। ऐसा न होने पर असमानता का विकास होगा।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

प्रश्न 6.
यहाँ महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में कुछ तर्क दिये गये हैं। इनमें से कौनसे तर्क समानता के विचार से संगत हैं? कारण भी दीजिये।
(क) स्त्रियाँ हमारी माताएँ हैं। हम अपनी माताओं को मताधिकार से वंचित करके अपमानित नहीं करेंगे।
(ख) सरकार के निर्णय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी प्रभावित करते हैं इसलिये शासकों के चुनाव में उनका भी मत होना चाहिये ।
(ग) महिलाओं को मताधिकार न देने से परिवारों में मतभेद पैदा हो जायेंगे।
(घ) महिलाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है। मताधिकार से वंचित करके लंबे समय तक उन्हें दबाकर नहीं रखा जा सकता है।
उत्तर:
उपर्युक्त में (ख) “सरकार के निर्णय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी प्रभावित करते हैं। इसलिए शासकों के चुनाव में उनका भी मत होना चाहिए।” तथा (घ ) ” महिलाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है। मताधिकार से वंचित करके लम्बे समय तक उन्हें दबाकर नहीं रखा जा सकता है। ” के तर्क समानता के विचार से संगत हैं क्योंकि

  1. समानता की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि जाति, नस्ल, धर्म या लिंग पर ध्यान दिए बिना ‘सभी नागरिकों के साथ कानून एक समान बर्ताव करे’ इसलिए मताधिकार के अधिकार को लिंग के आधार पर न दिया जाना समानता के औपचारिक सिद्धान्त के अनुकूल है।
  2. समानता का दावा है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य (स्त्री और पुरुष दोनों) समान महत्त्व और सम्मान पाने के योग्य हैं। साझी मानवता की यह धारणा ही ‘सार्वभौमिक मताधिकार’ का सबल समर्थन करती है।
  3. स्त्री और पुरुष के बीच की असमानता: जैविक या लिंगभेद प्राकृतिक और जन्मजात है। इस आधार पर स्त्रियों को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
  4. लोकतंत्र में सरकार जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों से बनती है और उसके निर्णय सम्पूर्ण समाज (स्त्री और पुरुष दोनों) को प्रभावित करते हैं। ये निर्णय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी समान रूप से प्रभावित करते हैं। इसलिए शासकों के चुनाव में समाज के समस्त वयस्क नागरिकों को मत देने का अधिकार होना चाहिए। इस दृष्टि से शासकों के चुनाव में महिलाओं को भी मताधिकार मिलना चाहिए। चूंकि महिलाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है, अतः महिलाओं को मताधिकार से वंचित रखना समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन है।

समानता JAC Class 11 Political Science Notes

→ समानता महत्त्वपूर्ण क्यों है?
समानता एक शक्तिशाली नैतिक और राजनीतिक आदर्श के रूप में कई शताब्दियों से मानव समाज को प्रेरित और निर्देशित करता रहा है। यथा-

→ समानता की बात सभी आस्थाओं और धर्मों में समाविष्ट है।

→ समानता की अवधारणा एक राजनीतिक आदर्श के रूप में उन विशिष्टताओं पर बल देती है जिसमें सभी मनुष्य रंग, लिंग, वंश या राष्ट्रीयता के फर्क के बाद भी साझेदार होते हैं।

→ समानता का दावा है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने योग्य हैं। ‘सार्वभौमिक मताधिकार’ या ‘मानवता के प्रति अपराध’ जैसी धारणाओं के पीछे यही साझी मानवंता की धारणा रहती है। आधुनिक काल में ‘सभी मनुष्यों की समानता’ का राजसत्ता के खिलाफ संघर्षों में एकजुटता लाने वाले नारे के रूप में इस्तेमाल किया गया है।

→ आज समानता व्यापक रूप से स्वीकृत आदर्श है, जिसे अनेक देशों के संविधान और कानूनों में सम्मिलित किया गया है। फिर भी समाज में हमारे चारों ओर समानता की बजाय असमानता नजर आती है। इस संसार में धन- संपदा, अवसर, कार्य स्थिति और शक्ति की भारी असमानता है। इससे यह प्रश्न उठते हैं कि ये असमानताएँ सामाजिक जीवन के स्थायी और अपरिहार्य लक्षण हैं, जो मनुष्यों की प्रतिभा और योग्यता के साथ-साथ सामाजिक विकास और सम्पन्नता में उनके योगदान के अन्तर को भी प्रतिबिंबित करते हैं? क्या ये असमानताएँ हमारी सामाजिक स्थिति और नियमों के कारण पैदा होती हैं? इस तरह के प्रश्नों ने समानता को सामाजिक और राजनीतिक सिद्धान्त का केन्द्रीय विषय बना दिया है।

→ समानता क्या है?
समानता का हमारा आत्म-बोध कहता है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान और परवाह के हकदार हैं। लेकिन इसका आशय हमेशा एक जैसा व्यवहार करने से नहीं है क्योंकि कोई भी समाज अपने सभी सदस्यों के साथ सभी स्थितियों में पूर्णतया एक समान बरताव नहीं कर सकता है। समाज के सहज कार्य-व्यापार के लिए कार्य का विभाजन आवश्यक है। अलग-अलग काम से लोगों का अलग-अलग महत्त्व व लाभ होता है। कई बार इस बरताव में यह अन्तर न केवल स्वीकार्य हो सकता है, बल्कि आवश्यक भी लग सकता है। लेकिन कुछ अलग किस्म की असमानताएँ अन्यायपूर्ण लग सकती हैं। इसलिए यह प्रश्न उठता है कि कौन-सी विशिष्टताएँ और विभेद स्वीकार किये जाने योग्य हैं और कौन-से नहीं।

जन्म, धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर की जाने वाली असमानताओं को हम अस्वीकार करते हैं। लेकिन अपनी आकांक्षाओं, लक्ष्यों और क्षमताओं व प्रयासों के आधार पर स्थापित होने वाली असमानताओं को हम अस्वीकार नहीं कर सकते। निष्कर्ष यह है कि हमसे जो व्यवहार किया जाता है और हमें जो भी अवसर प्राप्त होते हैं, वे जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए। अवसरों की समानता समानता की अवधारणा में यह निहित है कि सभी मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकार और अवसरों के हकदार हैं।

→ प्राकृतिक और सामाजिक असमानताएँ:
राजनैतिक सिद्धान्त में प्राकृतिक असमानताओं और समाजजनित असमानताओं में अन्तर किया जाता है।

→ प्राकृतिक असमानताएँ: प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग- अलग चयन के कारण पैदा होती हैं, जबकि सामाजिक असमानताएँ समाज में अवसरों की असमानता होने या शोषण किये जाने से पैदा होती हैं।

→ प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मगत विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती हैं, जबकि सामाजिक असमानताएँ समाज द्वारा पैदा की गई होती हैं।

→ प्राकृतिक असमानताएँ अपरिवर्तनीय होती हैं, जबकि सामाजिक असमानताएँ अपरिवर्तनीय नहीं होतीं। प्राकृतिक और समाजजनित असमानताओं में अन्तर करना इसलिए उपयोगी है कि इससे स्वीकार की जा सकने लायक और अन्यायपूर्ण असमानताओं को अलग-अलग करने में मदद मिलती है। लेकिन (क) इनसे हमेशा अन्तर साफ और स्पष्ट नहीं होता, विशेषकर जब समाजजनित असमानताओं ने परम्पराओं और प्रथाओं का रूप ले लिया हो। (ख) प्राकृतिक मानी गई कुछ भिन्नताएँ अब अपरिवर्तनीय नहीं रहीं। विज्ञान और तकनीकी प्रगति से यह संभव बनाया है।

इसीलिए आज यदि विकलांग लोगों को उनकी विकलांगता से उबरने के लिए जरूरी मदद और उनके कामों के लिए उचित पारिश्रमिक देने से इस आधार पर इनकार कर दिया जाये कि प्राकृतिक रूप से वे कम सक्षम हैं, तो यह अधिकतर लोगों को अन्यायपूर्ण लगेगा। इसलिए प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं के अन्तर को किसी समाज के कानून और नीतियों का निर्धारण करने में मानदण्ड के रूप में उपयोग करना कठिन होता है। इसलिए बहुत से सिद्धान्तकार अपने चयन से पैदा हुई असमानता और व्यक्ति के विशेष परिवार या परिस्थितियों में जन्म लेने से पैदा हुई असमानता में अन्तर करते हैं। यह दूसरी तरह की असमानता ही समानता के पक्षधर लोगों के सरोकार का स्रोत है। वे चाहते हैं। कि परिवेश से जन्मी असमानता को न्यूनतम और समाप्त किया जाये।

→ समानता के तीन आयाम:
समाज में व्याप्त अलग-अलग तरह की असमानताओं को पहचानते समय विभिन्न विचारकों और विचारधाराओं ने समानता के तीन आयामों को रेखांकित किया है। ये हैं।

  • राजनीतिक,
  • सामाजिक और
  • आर्थिक। यथा।

→ राजनीतिक समानता:
लोकतांत्रिक समाजों में सभी सदस्यों को समान नागरिकता प्रदान करना राजनीतिक समानता में शामिल है। समान नागरिकता के साथ मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आने-जाने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता तथा धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। ये ऐसे अधिकार हैं जो नागरिकों को अपना विकास करने तथा राज्य के काम-काज में भाग लेने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक माने जाते हैं। ये केवल औपचारिक अधिकार हैं जिन्हें संविधान और कानूनों द्वारा सुनिश्चित किया गया है।

→ सामाजिक समानता:
सामाजिक समानता से आशय है-अवसरों की समानता तथा समाज में सभी सदस्यों के जीवन-यापन के लिए अन्य चीजों के अतिरिक्त पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, अच्छी शिक्षा पाने का अवसर, उचित पोषक आहार व न्यूनतम वेतन जैसी कुछ न्यूनतम चीजों की गारंटी। इनके अभाव में समाज में अवसरों की समानता व्यावहारिक नहीं हो सकती।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

→ आर्थिक समानता:
आर्थिक असमानता ऐसे समाज में विद्यमान होती है जिसमें व्यक्तियों और वर्गों के बीच धन, दौलत, आय में खासी भिन्नता हो। लोकतंत्र में लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है, जिसमें यह संभावना छुपी है कि आवश्यक प्रयासों द्वारा कोई भी समाज में अपनी स्थिति बेहतर कर सकता है। लेकिन पीढ़ीगत आर्थिक असमानताएँ समाज को वर्गों में बांट देती हैं। एक ओर अल्पसंख्यक साधन-सम्पन्न धनी वर्ग (पूँजीपति वर्ग) होता है तो दूसरी ओर साधनहीन बहुसंख्यक गरीब वर्ग होता है। अमीर वर्गों की शक्ति के कारण ऐसे समाज को खुला व समतावादी बनाने के लिए सुधारना ज्यादा कठिन साबित हो सकता है।

→ मार्क्सवादी विचारधारा
मार्क्स के अनुसार खाईनुमा असमानताओं का मूल कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर निजी स्वामित्व है। निजी स्वामित्व मालिकों के वर्ग को अमीर (धनी) बनाने के साथ-साथ राजनीतिक ताकत भी देता है जो उन्हें राज्य की नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने में सक्षम बनाता है और वे लोकतांत्रिक सरकार के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। मार्क्स के अनुसार आर्थिक असमानताएँ सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देती हैं, इसलिए समाज में असमानता से निबटने के लिए उत्पादन के साधनों व सम्पत्ति पर जनता का नियंत्रण होना आवश्यक है।

→ उदारवादी विचारधारा
उदारवादी समाज में संसाधनों और लाभांशों के वितरण के सर्वाधिक कारगर और उचित तरीके के रूप में प्रतिद्वन्द्विता के सिद्धान्त का समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि जब तक प्रतिस्पर्द्धा स्वतंत्र और खुली होगी,
असमानता की खाइयाँ नहीं बनेंगी और लोगों को अपनी प्रतिभा और प्रयासों का लाभ मिलता रहेगा। उदारवादियों के लिए नौकरियों में नियुक्ति और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए चयन के उपाय के रूप में प्रतिस्पर्द्धा का सिद्धान्त सर्वाधिक न्यायोचित और कारगर है। उदारवादियों का मानना है कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ परस्पर जुड़ी हुई नहीं हैं।

इनमें से हर क्षेत्र की असमानताओं का निराकरण ठोस ढंग से करना चाहिए। लोकतंत्र राजनैतिक समानता प्रदान करने का साधन है और आर्थिक तथा सामाजिक समानता की स्थापना के लिए विविध रणनीतियों की खोज करने की आवश्यकता है। हम समानता को बढ़ावा कैसे दे सकते हैं? समानता को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं।

→ औपचारिक समानता की स्थापना:
समानता लाने की दिशा में पहला कदम असमानता और विशेषाधिकार की औपचारिक व्यवस्था को समाप्त करना होगा। चूंकि ऐसी बहुत सी व्यवस्थाओं को कानून का समर्थन प्राप्त है, इसलिए सरकार और कानून को असमानता की व्यवस्थाओं को संरक्षण देना बन्द करना आवश्यक है। अधिकतर लोकतांत्रिक संविधान और सरकारें औपचारिक रूप से समानता के सिद्धान्त को स्वीकार कर चुकी हैं। इनमें सभी | नागरिकों को कानून का समान संरक्षण तथा कानून के समक्ष समानता को स्वीकार किया गया है।

→ विभेदक बरताव द्वारा समानता:
समानता के सिद्धान्त को यथार्थ में बदलने के लिए कानून के समक्ष समानता ( औपचारिक समानता) पर्याप्त नहीं है, इसलिए वंचित वर्गों को यथार्थ में समानता प्रदान करने के लिए कुछ विशेष सुविधाएँ देने की आवश्यकता होती है। इसे विभेदक बरताव द्वारा समानता की स्थापना कहा जाता है। कुछ देशों ने अवसरों की समानता बढ़ाने के लिए ‘सकारात्मक कार्यवाही’ की नीतियाँ अपनाई हैं। भारत में इस हेतु आरक्षण की नीति अपनाई है।

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→ सकारात्मक कार्यवाही:
सकारात्मक कार्यवाही इस विचार पर आधारित है कि कानून द्वारा औपचारिक समानता स्थापित कर देना पर्याप्त नहीं है। इस हेतु कुछ सकारात्मक कदम उठाये जाने आवश्यक हैं। सकारात्मक कार्यवाही की अधिकतर नीतियाँ अतीत की असमानताओं के संचयी दुष्प्रभावों को दुरुस्त करने के लिए बनाई जाती हैं। जैसे – वंचित समुदायों के लिए छात्रवृत्ति और होस्टल जैसी सुविधाओं, नौकरियों के लिए प्रवेश हेतु विशेष नीतियाँ बनाना । इन नीतियों के द्वारा वंचित समुदायों, जो अन्य लोगों से समानता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम नहीं हैं, को सहायता देना। आरक्षण का प्रावधान एक ऐसी ही सकारात्मक कार्यवाही का उदाहरण है। सकारात्मक कार्यवाही के रूप में विशेष सहायता को एक निश्चित अवधि तक चलने वाला तदर्थ उपाय माना गया है।

सकारात्मक कार्यवाही अर्थात् आरक्षण की नीतियों के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। समान अवसर के लक्ष्य से सभी सहमत हैं। विवाद उन नीतियों के बारे में है जो राज्य को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनानी चाहिए। क्या राज्य को वंचित समुदायों के लिए कुछ स्थान आरक्षित कर देने चाहिए या उन्हें कम उम्र से ही विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि इन बच्चों की योग्यता और प्रतिभा का विकास हो सके? इसी प्रकार वंचित कौन है? वंचित की पहचान आर्थिक आधार पर की जाये या सामाजिक आधार पर?

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि मूलतः समान व्यक्तियों को विशेष स्थितियों में अलग-अलग बरताव की जरूरत हो सकती है। लेकिन ऐसे सभी मामलों में सर्वोपरि उद्देश्य समानता को बढ़ावा देना ही होगा। विशेष बरताव के लिए औचित्य सिद्ध करना और सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है। हमें इस सम्बन्ध में यह सावधानी भी बरतनी चाहिए कि विशेष बरताव वर्चस्व या शोषण की नई संरचनाओं को जन्म न दे। विशेष बरताव का उद्देश्य और औचित्य एक न्यायपरक और समतामूलक समाज को बढ़ावा देना है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 स्वतंत्रता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 स्वतंत्रता Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 स्वतंत्रता

Jharkhand Board Class 11 Political Science स्वतंत्रता InText Questions and Answers

पृष्ठ 25

प्रश्न 1.
यदि अपने परिधान का चयन अपनी स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है तो नीचे दी गई उन स्थितियों को किस तरह देखेंगे जिनमें खास तरह के परिधान पर प्रतिबंध लगाया गया है?
1. माओ के शासनकाल में चीन में सभी लोगों को ‘माओ सूट’ पहनना पड़ता था। तर्क यह था कि यह समानता की अभिव्यक्ति है।
2. एक मौलवी द्वारा सानिया मिर्ज़ा के खिलाफ फतवा जारी किया गया; क्योंकि उसका पहनावा उस पहनावे के खिलाफ माना गया जो महिलाओं के लिए तय किया गया है।
3. क्रिकेट के टैस्ट मैचों में यह जरूरी है कि हर खिलाड़ी सफेद कपड़े पहने।
4. छात्र-छात्राओं को विद्यालय में एक निर्धारित वेशभूषा में रहना पड़ता है।
उत्तर:

  1. “माओ के शासन काल में चीन में सभी लोगों को ‘माओ सूट’ पहनना पड़ता था।” यह परिधान के चयन की चीनी लोगों की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध था। क्योंकि यह प्रतिबन्ध राज्यशक्ति के बल पर लगाए गए थे, जिनके खिलाफ लड़ना मुश्किल था।
  2. एक मौलवी द्वारा सानिया मिर्जा के पहनावे के खिलाफ फतवा जारी करना भी पहनावे के चयन की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध था । धार्मिक नेताओं को अपने धार्मिक क्षेत्र के बाहर समाज के अन्य कार्यस्थलों में पहनावे की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगाने का कोई अधिकार नहीं है।
  3. ‘क्रिकेट के टैस्ट मैचों में यह जरूरी है कि हर खिलाड़ी सफेद कपड़े पहने।’ यह अपने परिधान में चयन की अपनी स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध नहीं है; क्योंकि खेल के नियम के तहत खिलाड़ियों ने स्वेच्छापूर्वक इस नियम को स्वीकार किया है, जो खेल के नियमों की परम्परा के रूप में माना जा रहा है, इससे खिलाड़ियों की स्वतंत्रता सीमित नहीं होती है।
  4. ‘छात्र-छात्राओं को विद्यालय में एक निर्धारित वेश-भूषा में रहना पड़ता है।’ यह विद्यालय के विद्यार्थियों की पहचान हेतु विद्यालय प्रशासन के एक नियम के रूप में पालन किया जाता है। इससे परिधान पहनने की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता है; क्योंकि विद्यालय के बाहर छात्र को इसकी पूर्ण स्वतंत्रता है।

प्रश्न 2.
मनचाहे परिधान पर प्रतिबंध सभी मामलों में न्यायोचित है या केवल कुछ में? यह स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध का मामला कब बन जाता है?
उत्तर:
मनचाहे परिधान पर प्रतिबंध केवल कुछ मामलों में ही न्यायोचित है, सभी मामलों में नहीं। जब ये प्रतिबन्ध किसी संगठित सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता द्वारा या राज्य की शक्ति के बल पर लोगों की इच्छा के विरुद्ध जबरन लाद दिये जाते हैं, तो यह मनचाहे परिधान पहनने की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध का मामला बन जाते हैं। लेकिन जब ये प्रतिबन्ध किसी क्षेत्र विशेष में, विशेष कार्य के दौरान, विशिष्ट कार्य के लिए नियम के रूप में लगाए जाते हैं।

तो इन प्रतिबन्धों से परिधान चयन की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता है, जैसे टैस्ट क्रिकेट के खिलाड़ियों पर सफेद कपड़े पहनने का नियम, विद्यालय के छात्रों को निर्धारित गणवेश में आने का नियम । लेकिन जब ये प्रतिबन्ध किसी संगठित (सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक) सत्ता द्वारा सामान्य रूप से जबरन शक्ति के बल पर लादे जाते हैं, जैसे माओ काल में माओ सूट पहनने का प्रतिबन्ध या किसी मौलवी द्वारा किसी विशेष पहनावे को लादना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कटौती करते हैं।

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प्रश्न 3.
परिधान के चयन की हमारी स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धों को लगाने का अधिकार किसको है?
1. क्या धार्मिक नेताओं को परिधान के मामले में निर्णय देने का अधिकार होना चाहिए?
2. क्या यह राज्य को तय करना चाहिए कि कोई क्या पहने?
3. क्या क्रिकेट खेलते समय खिलाड़ियों के पहनावे के नियम तय करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड उपयुक्त संस्था है?
उत्तर:

  1. धार्मिक नेताओं को परिधान के मामले में निर्णय देने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
  2. नहीं, राज्य को यह तय नहीं करना चाहिए कि कोई क्या पहने।
  3. हाँ, क्रिकेट खेलते समय खिलाड़ियों के पहनावे के नियम तय करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड उपयुक्त’ संस्था है।

प्रश्न 4.
क्या प्रतिबंध आरोपित करना अन्यायपूर्ण होता है? क्या यह कई तरीके से व्यक्तियों की अभिव्यक्ति को कम करते हैं?
उत्तर:
परिधान चयन की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध आरोपित करना हमेशा अन्यायपूर्ण नहीं होता है। यदि ये प्रतिबन्ध किसी विशेष संस्था, जैसे: स्कूल, क्रिकेट संघ आदि ने उनके व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से संस्था के नियमों केतहत लगाये गए हों, तो वे अन्यायपूर्ण नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध अर्थात् यदि उन प्रतिबंधों के पीछे तार्किकता है कि वे जिन पर लगाये जा रहे हैं: औचित्यपूर्ण हैं। लेकिन जब ये प्रतिबंध किसी संगठित सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता या राज्य की शक्ति के बल पर आरोपित किये जाते हैं;

तब ये हमारी स्वतंत्रता की कटौती इस प्रकार करते हैं कि उनके खिलाफ लड़ना मुश्किल हो जाता है। अत: जब हमें किन्हीं स्थितियों को स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाता है, तब ये प्रतिबंध हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करते हैं। यह कई तरीके से व्यक्तियों की अभिव्यक्ति को कम करते हैं, जैसे।

  1. माओ के शासनकाल में चीन में सभी लोगों को माओ सूट पहनने के लिए बाध्य किया गया। इसने व्यक्ति की परिधान के चयन की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को कम किया।
  2. किसी मौलवी द्वारा स्त्रियों के किसी पहनावे के खिलाफ फतवा जारी करना भी परिधानों के चयन की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करता है।

Jharkhand Board Class 11 Political Science स्वतंत्रता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता से क्या आशय है? क्या व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में कोई सम्बन्ध है?
उत्तर:
स्वतंत्रता का अर्थ-स्वतंत्रता के दो पक्ष हैं।

  1. व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव और
  2. ऐसी स्थितियों का होना, जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें। राजनीतिक सिद्धान्त में इन्हें क्रमशः स्वतंत्रता के नकारात्मक और सकारात्मक पहलू कहा जाता है। यथा

1. स्वतंत्रता का नकारात्मक अर्थ:
नकारात्मक दृष्टि से ‘व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव ही स्वतंत्रता है।’ इस दृष्टिकोण से यदि किसी व्यक्ति पर बाहरी नियंत्रण या दबाव न हों और वह बिना किसी पर निर्भर हुए निर्णय ले सके तथा स्वायत्त तरीके से व्यवहार कर सके, तो वह व्यक्ति स्वतंत्र माना जा सकता है। लेकिन समाज में रहने वाला कोई भी व्यक्ति हर किस्म की सीमा और प्रतिबन्धों की पूर्ण अनुपस्थिति की उम्मीद नहीं कर सकता। अतः बाहरी प्रतिबन्धों के अभाव से आशय उन सामाजिक प्रतिबन्धों का कम से कम होना है, जो हमारी स्वतंत्रतापूर्वक चयन करने की क्षमता पर रोक-टोक लगाते हैं।

2. स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ – सकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति की आत्म-अभिव्यक्ति की योग्यता का विस्तार करना और उसके अन्दर की संभावनाओं को विकसित करना है। इस अर्थ में स्वतंत्रता वह स्थिति है, जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सकें। अतः सकारात्मक दृष्टि से स्वतंत्रता से आशय ऐसी स्थितियों के होने से है जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें।

अतः स्वतंत्रता वह सब कुछ करने की शक्ति है जिससे किसी दूसरे को आघात न पहुँचे। व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में सम्बन्ध व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता दोनों परस्पर पूरक हैं। राष्ट्र की स्वतंत्रता में ही व्यक्ति की स्वतंत्रता संभव है। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. यदि एक राष्ट्र किसी अन्य शक्तिशाली राष्ट्र के अधीन है तो वह राष्ट्र स्वतंत्र नहीं है। ऐसे राष्ट्र के सदस्य स्वतंत्रता की आशा नहीं कर सकते। साम्राज्यवादी राष्ट्र अपने अधीन राष्ट्र के लोगों की स्वतंत्रता पर अनेक प्रतिबंध लाद देता है। स्पष्ट है कि यदि राष्ट्र स्वतंत्र नहीं है तो उस राष्ट्र के व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर अनेक प्रतिबन्ध लगे होते हैं।
  2. एक गुलाम राष्ट्र के लोगों को अन्य राष्ट्रों में वही आदर व सम्मान नहीं मिलता है, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिकों को मिलता है।
  3. एक परतंत्र राष्ट्र अपने नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से अपने समस्त संसाधनों का उपयोग नहीं कर पाता है; क्योंकि विदेशी शासक उन संसाधनों का उपयोग अपने देश के हित की दृष्टि से करते हैं।
  4. एक परतंत्र राष्ट्र के लोगों का आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टि से शोषण किया जाता है।
  5. एक परतंत्र राष्ट्र के लोग अपनी पसंद की सरकार का चयन नहीं कर सकते। उन्हें स्वयं की सरकार चलाने की स्वतंत्रता नहीं मिलती।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि एक राष्ट्र की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की स्वतंत्रता परस्पर पूरक हैं। एक स्वतंत्र राष्ट्र में ही लोकतांत्रिक शासन की स्थापना हो सकती है, जिसमें व्यक्तियों की स्वतंत्रता संभव है।

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प्रश्न 2.
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में अन्तर स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा से आशय है। बाहरी प्रतिबन्धों के अभाव के रूप में स्वतंत्रता, जबकि स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा से आशय है- स्वयं को अभिव्यक्त करने के अवसरों के विस्तार के रूप में स्वतंत्रता। दूसरे शब्दों में, नकारात्मक स्वतंत्रता से आशय बंधनों के न होने से है, जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता से आशय अनुचित बंधनों के न होने से है।
  2. नकारात्मक स्वतंत्रता का सरोकार अहस्तक्षेप के अनुलंघनीय क्षेत्र से है। नकारात्मक स्वतंत्रता अहस्तक्षेप के क्षेत्र का अधिकाधिक विस्तार करना चाहती है। दूसरी तरफ, सकारात्मक स्वतंत्रता के पक्षधरों का मानना है कि व्यक्ति केवल समाज में ही स्वतंत्र हो सकता है, समाज से बाहर नहीं। इसीलिए वह समाज को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्ति के विकास का रास्ता साफ करे। इस प्रकार सकारात्मक स्वतंत्रता का सम्बन्ध समाज की सम्पूर्ण दशाओं से है, न कि केवल कुछ क्षेत्र से।
  3. नकारात्मक स्वतंत्रता का तर्क होता है कि वह कौन-सा क्षेत्र है, जिसका स्वामी मैं हूँ? नकारात्मक स्वतंत्रतां का तर्क यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति क्या करने में मुक्त (स्वतंत्र ) है। इसके उलट सकारात्मक स्वतंत्रता के तर्क ‘कुछ करने की स्वतंत्रता’ के विचार की व्याख्या से जुड़े हैं। ये तर्क इस सवाल के जवाब में आते हैं कि ‘मुझ पर शासन कौन करता है?’ और इसका आदर्श उत्तर होगा, “मैं स्वयं पर शासन करता हूँ ।” इसका सरोकार व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों को इस तरह सुधारने से है कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में कम से कम अवरोध रहे।
  4. नकारात्मक स्वतंत्रता में राज्य का व्यक्ति पर बहुत सीमित नियंत्रण होता है, इसके अनुसार राज्य स्वतंत्रताओं का शत्रु है जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता में राज्य व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विकास के लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकता है क्योंकि राज्य स्वतंत्रता का शत्रु न होकर स्वतंत्रता में सहायक है।
  5. नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार वह शासन सर्वोत्तम है, जो व्यक्ति के कम से कम क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है अर्थात् कम से कम शासन करता है, जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार राज्य को नागरिकों के कल्याण हेतु सभी क्षेत्रों में कानून बनाकर हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  6. नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा पहुँचाता है अर्थात् कानून और स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं; जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता में वृद्धि करता है; अर्थात् कानून व स्वतंत्रता परस्पर पूरक हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक प्रतिबन्धों से क्या आशय है? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं?
उत्तर:
सामाजिक प्रतिबन्धों से आशय: एक सामाजिक प्रतिबंध सम्पूर्ण समाज के हित तथा कल्याण के लिए व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाला प्रतिबन्ध है। समाज में रहते हुए कोई भी व्यक्ति सामाजिक प्रतिबन्धों से पूर्णत: मुक्त नहीं हो सकता। समाज में व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों का होना आवश्यक है। इसीलिए कहा जाता है कि स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है, बल्कि औचित्यपूर्ण प्रतिबंधों का होना है।एक व्यक्ति, जब जंगल में अकेला रहता है, वहाँ वह जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन एक समाज में रहते हुए वह मनचाहे कार्य करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र नहीं हो सकता।

समाज में रहते हुए एक व्यक्ति को अपने स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते समय समाज के अन्य लोगों की सुविधाओं और असुविधाओं को ध्यान में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए मुझे अपना वाहन चलाने की स्वतंत्रता है, लेकिन वाहन चलाते समय मुझे यह ध्यान रखना पड़ेगा कि वह वाहन चलाने की दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक न बने। इसलिए वाहन चलाने की मेरी स्वतंत्रता पर यह प्रतिबंध लगाया गया है कि मैं अपना वाहन सड़क के बायीं ओर ही चलाऊँ, न कि दोनों तरफ; ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने वाहन चलाने की स्वतंत्रता का बिना किसी व्यवधान के उपभोग कर सके।

अतः व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर सामाजिक प्रतिबन्ध इसलिए लादे जाते हैं, ताकि सभी व्यक्ति उस स्वतंत्रता का आनंद ले सकें। केवल औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध (Reasonable Constraints) ही स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं। समाज में समस्त प्रतिबंधों को स्वतंत्रता के लिए आवश्यक नहीं कहा जा सकता। जो प्रतिबंध औचित्यपूर्ण नहीं हैं, वे स्वतंत्रता के जो लिए आवश्यक नहीं है। केवल औचित्यपूर्ण प्रतिबंध ही स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं। औचित्यपूर्ण प्रतिबंध वे हैं, कि स्वतंत्रता को उपभोग्य योग्य बनाते हैं तथा व्यक्ति और समाज दोनों के लिए हितकारी होते हैं तथा वे स्वतंत्रता के कार्य-क्षेत्र का विस्तार करते हैं।

ऐसे प्रतिबन्धों के स्रोत हैं। लोगों की स्वेच्छा, प्रतिनिध्यात्मक तथा उत्तरदायी सरकार द्वारा निर्मित कानून, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायालय के निर्णय तथा लोकतांत्रिक राज्यों के संविधान औचित्यपूर्ण प्रतिबंध समाज के सदस्यों की स्वेच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। समाज में स्वतंत्रता पर औचित्यपूर्ण प्रतिबन्धों की आवश्यकता के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।
1. लोगों के कार्यों पर प्रतिबन्धों के बिना समाज में रहना संभव नहीं है- लोगों के कार्यों पर प्रतिबंधों के बिना समाज में अराजकता फैल जाएगी, यह अव्यवस्था के गर्त में पहुँच जायेगा।

2. समाज के संघर्षों व हिंसा पर नियंत्रण के लिए प्रतिबन्धों की आवश्यकता है। लोगों के बीच मत-मतांतर हो सकते हैं, उनकी महत्त्वाकांक्षाओं में टकराव हो सकते हैं, वे सीमित साधनों के लिए प्रतिस्पद्ध हो सकते हैं। प्रतिबन्धों के अभाव में ऐसे अन्यान्य कारणों से समाज के लोग परस्पर संघर्षरत हो सकते हैं। ये संघर्ष कई बार हिंसा और जन हानि तक ले जाते हैं। इसलिए हर समाज को हिंसा पर नियंत्रण और विवाद के निपटारे के लिए कोई न कोई तरीका अपनाना आवश्यक होता है। ऐसे किसी भी तरीके में व्यक्ति के कार्यों की निरपेक्ष स्वतंत्रता पर औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध ही होते हैं।

3. समाज के निर्माण के लिए भी कुछ प्रतिबन्धों की आवश्यकता होती है -कुछ ऐसे कानूनी और राजनैतिक प्रतिबन्ध होने चाहिए, जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि एक समूह के विचारों को दूसरे पर आरोपित किए बिना आपसी अंतरों पर चर्चा और वाद-विवाद हो सके। बदतर स्थिति में हमें किसी के विचारों से एकरूप हो जाने के लिए बाध्य किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए कानून के संरक्षण की और भी ज्यादा जरूरत होती है।

4. घृणा के प्रचार तथा गंभीर क्षति पहुंचाने वाले कार्यों पर प्रतिबन्ध आवश्यक – घृणा का प्रचार और गंभीर क्षति पहुँचाने वाले कार्यों पर प्रतिबंध लगाया जाना आवश्यक होता है, लेकिन ये प्रतिबन्ध इतने कड़े न हों कि स्वतंत्रता ही नष्ट हो जाये।

5. औचित्यपूर्ण प्रतिबंधों का स्वरूप – प्रतिबन्ध औचित्यपूर्ण होने चाहिए। समाज में स्वतंत्रता की रक्षा के लिए औचित्यपूर्ण प्रतिबन्धों का स्वरूप इस प्रकार होना चाहिए।

  1. प्रतिबन्ध समुचित होने चाहिए तथा उन्हें तर्क की कसौटी पर कसा जा सके।
  2. ऐसे प्रतिबन्धों में न तो अतिरेक हो और न ही असंतुलन, क्योंकि तब यह समाज में स्वतंत्रता की सामान्य दशा पर असर डालेगा।
  3. हमें प्रतिबंध लगाने की आदत को विकसित नहीं होने देना चाहिए; क्योंकि ऐसी आदत तो स्वतंत्रता को खतरे में डाल देगी।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 4.
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की भूमिका: एक व्यक्ति कानून और व्यवस्था के वातावरण तथा भली-भाँति परिभाषित तथा ठीक ढंग से लागू किये गये कानूनों की स्थिति वाले राज्य में ही स्वतंत्रता के उपभोग का आनंद ले सकता है। इसलिए राज्य कानून के माध्यम से नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यथा।

  1. राज्य कानूनों के माध्यम से नागरिकों की स्वतंत्रता को परिभाषित करता है।
  2. राज्य कानूनों के द्वारा उस वातावरण का निर्माण करता है जिसमें नागरिक स्वतंत्रता का व्यवहार में उपभोग कर पाते हैं ।
  3. राज्य किसी विशेष स्वतंत्रता के क्षेत्र को परिभाषित करता है कि उस स्वतंत्रता का उपभोग किन दशाओं में और किस सीमा तक किया जा सकता है।
  4. राज्य नागरिकों की उन स्वतंत्रताओं पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाता है, जो पर-संबंध कार्यों से संबंधित हैं ताकि वे किसी दूसरे को और दूसरे उसको हानि न पहुँचा सकें।
  5. राज्य कानून के संरक्षण द्वारा नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करता है; क्योंकि राज्य के कानूनों में उन नागरिकों को जो स्वतंत्रताओं के निरपेक्ष प्रयोग द्वारा दूसरों की स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं, दण्ड दिये जाने के प्रावधान होते
    हैं।
  6. लोकतंत्र में सरकार द्वारा नागरिकों की स्वतंत्रता के हनन करने पर भी स्वतंत्रता के संरक्षण के प्रावधान होते है।
  7. राज्य की न्यायपालिका नागरिकों की स्वतंत्रता के उल्लंघन से संबंधित विवादों का निपटारा करती है। इस प्रकार राज्य नागरिकों की स्वतंत्रता का निर्माण करता है, उसे परिभाषित करता है तथा उसकी रक्षा करता यह विदेशी आक्रमणों से नागरिकों की रक्षा कर उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करता है। लेकिन कई बार राज्य सरकार अपनी सत्ता का दुरुपयोग भी करती है, जैसे- किसी सरकारी नीति या कार्य के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति न देना। सरकार का यह कार्य नागरिकों की स्वतंत्रता को सीमित करता व हनन करता है।

प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है? आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबन्ध क्या होंगे? उदाहरण सहित बताइये।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है। एक व्यक्ति की अपने विचारों को दूसरों को अभिव्यक्ति करने की स्वतंत्रता । वह बिना किसी भय और बाधा के अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हो। इसमें लोगों के बीच भाषण देने की स्वतंत्रता तथा समाचार पत्र द्वारा अपने विचारों को दूसरों तक सम्प्रेषित करने की स्वतंत्रता निहित है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में नवीन आविष्कारों जैसे कम्प्यूटर एवं मोबाइल तथा इण्टरनेट इत्यादि द्वारा भी विचारों की अभिव्यक्ति की जाती है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी संगठित सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता या राज्य की शक्ति के बल पर, किसी समस्या के अल्पकालीन समाधान के रूप में लगाए जाते हैं, तो वे अनुचित होते हैं, उन्हें औचित्यपूर्ण नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए दीपा मेहता को काशी में विधवाओं पर फिल्म बनाने पर प्रतिबंध करना, ओब्रे मेनन की ‘रामायण रिटोल्ड’ और सलमान रुश्दी की ‘द सेटानिक वर्सेस’ समाज के कुछ हिस्सों में विरोध के बाद प्रतिबंधित कर दी गईं। इस तरह के प्रतिबन्ध आसान लेकिन अल्पकालीन समाधान हैं, क्योंकि यह तात्कालिक मांग को पूरा कर देते हैं लेकिन समाज में स्वतंत्रता की दूरगामी संभावनाओं की दृष्टि से बहुत खतरनाक हैं और ऐसे प्रतिबन्धों से प्रतिबंध लगाने की आदत विकसित हो जाती है।

लेकिन हमारी राय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबन्ध निम्न प्रकार होंगे

  1. यदि हम स्वेच्छापूर्वक या अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पाने के लिए कुछ प्रतिबन्धों को स्वीकार करते हैं, तो ऐसे प्रतिबन्धों से हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित नहीं होती।
  2. अगर हमें किन्हीं स्थितियों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है, तब भी हम नहीं कह सकते कि हमारी स्वतंत्रता की कटौती की जा रही है।
  3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर न्यायोचित सीमाएँ लगाई जा सकती हैं, जैसे-इससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति नहीं बिगड़ती हो, यह नैतिकता के विरुद्ध नहीं हो, यह समाज में विद्रोह पैदा नहीं करती हो, साम्प्रदायिकता को बढ़ावा नहीं देती हो, राष्ट्र की एकता व अखंडता के विरुद्ध न हो आदि। लेकिन इन सीमाओं को उचित प्रक्रिया के तहत ही लगाया जाना चाहिए तथा इसके पीछे नैतिक तर्कों का समर्थन होना चाहिए।

 स्वतंत्रता JAC Class 11 Political Science Notes

→ स्वतंत्रता का आदर्श:
मानव इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जब अधिक शक्तिशाली समूहों ने लोगों या समुदायों का शोषण किया, उन्हें गुलाम बनाया या उन्हें अपने आधिपत्य में ले लिया। लेकिन इतिहास हमें ऐसे वर्चस्व के खिलाफ शानदार संघर्षों के प्रेरणादायी उदाहरण भी देता है । ये स्वतंत्रता के लिए संघर्षों के उदाहरण हैं जो लोगों की इस आकांक्षा को दिखाते हैं कि वे अपने जीवन और नियति का नियंत्रण स्वयं करें तथा उनका अपनी इच्छाओं और गतिविधियों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अवसर बना रहे। न केवल व्यक्ति वरं समाज भी अपनी स्वतंत्रता को महत्त्व देते हैं और चाहते हैं कि उनकी संस्कृति और भविष्य की रक्षा हो।

स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का एक उदाहरण दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला और उसके साथियों का अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों और स्वतंत्रता के रास्ते की बाधाओं को दूर करने का संघर्ष था जिसे मंडेला ने अपनी आत्मकथा ‘लॉँग वाक टू फ्रीडम’ (स्वतंत्रता के लिए लम्बी यात्रा) में व्यक्त किया है। ऐसा ही एक अन्य उदाहरण म्यांमार के सैनिक शासन के विरुद्ध लोकतंत्र की स्थापना के लिए ऑग सान सू की का संघर्ष है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘फ्रीडम फ्रॉम फीयर’ में अपने स्वतंत्रता सम्बन्धी विचारों व संघर्ष को अभिव्यक्त किया है। स्वतंत्रता का यही आदर्श हमारे राष्ट्रीय संघर्ष और ब्रिटिश, फ्रांसीसी तथा पुर्तगाली उपनिवेशवाद के खिलाफ एशिया – अफ्रीका के लोगों के संघर्ष के केन्द्र में था । यह आदर्श है-

  • अन्यायपूर्ण प्रतिबन्धों और स्वतंत्रता के मार्ग की बाधाएँ दूर करना।
  • गरिमापूर्ण मानवीय जीवन जीने के लिए अपने भय पर विजय पाना।

→ स्वतंत्रता क्या है?
स्वतंत्रता की नकारात्मक परिभाषा: “व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव ही स्वतंत्रता है। इसके अनुसार स्वतंत्र होने का अर्थ उन सामाजिक प्रतिबन्धों को कम से कम करना है जो हमारी स्वतंत्रतापूर्वक चयन करने की क्षमता पर रोक-टोक लगाएं। लेकिन प्रतिबन्धों का न होना स्वतंत्रता का केवल एक पहलू है।

→ स्वतंत्रता की सकारात्मक परिभाषा: स्वतंत्रता का एक सकारात्मक पहलू भी है।
“स्वतंत्रता का सकारात्मक पहलू यह है कि ऐसी स्थितियों का होना जिनमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सकें।” इसका अभिप्राय यह है कि स्वतंत्र होने के लिए समाज को उन बातों को विस्तार देना चाहिए जिससे व्यक्ति, समूह, समुदाय या राष्ट्र अपने भाग्य की दशा और स्वरूप का निर्धारण करने में समर्थ हो सकें। इस अर्थ में स्वतंत्रता व्यक्ति की रचनाशीलता, संवेदनशीलता और क्षमताओं के भरपूर विकास को बढ़ावा देती है। इस प्रकार बाहरी प्रतिबंधों का अभाव और ऐसी स्थितियों का होना जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें, स्वतंत्रता के ये दोनों ही पहलू महत्त्वपूर्ण हैं। स्वतंत्र समाज-एक स्वतंत्र समाज वह है, जिसमें व्यक्ति अपने हित संवर्धन न्यूनतम प्रतिबन्धों के बीच करने में समर्थ हो।

→ प्रतिबन्धों के स्रोत: व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्धों के प्रमुख स्रोत हैं।

  • प्रभुत्व और बाहरी नियंत्रण ( जो बलपूर्वक या गैर-लोकतांत्रिक सरकार के द्वारा कानून की सहायता से लगाए जा सकते हैं),
  • सामाजिक असमानता,
  • अत्यधिक आर्थिक असमानता।

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→ हमें प्रतिबन्धों की आवश्यकता क्यों है?
हमें सामाजिक अव्यवस्था से बचने के लिए कुछ प्रतिबन्धों की आवश्यकता है। हर समाज को असहमतियों के कारण होने वाली हिंसा पर नियंत्रण और विवाद के निपटारे के लिए कोई न कोई ऐसा तरीका अपनाना आवश्यक होता
है। कि लोग एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करें और दूसरे पर अपने विचार थोपने का प्रयास न करें। ऐसे समाज के निर्माण के लिए कुछ प्रतिबन्धों की आवश्यकता होती है। समाज में कुछ ऐसे कानूनी और राजनैतिक प्रतिबन्ध होने चाहिए, जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि एक समूह के विचारों को दूसरे पर आरोपित किये बिना आपसी अन्तरों पर चर्चा और वाद-विवाद हो सके। बदतर स्थिति में हमें किसी के विचारों से एकरूप हो जाने के लिए बाध्य किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए कानून के संरक्षण की ओर ज्यादा आवश्यकता होती

→ हानि सिद्धांत:
जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने निबंध ‘ऑन लिबर्टी’ में बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से ‘हानि सिद्धान्त’ को स्वतंत्रता के संदर्भ में उठाया है। “सिद्धान्त यह है कि किसी के कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप | करने का इकलौता लक्ष्य आत्म-रक्षा है । सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण | प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।”

→ मिल ने व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में बाँटा है:

  • स्व-सम्बद्ध कार्य और
  • पर – सम्बद्ध कार्य। स्व-सम्बद्ध कार्य-स्व-सम्बद्ध कार्य वे हैं, जिनके प्रभाव केवल इन कार्यों को करने वाले व्यक्ति पर पड़ते हैं।

पर-सम्बद्ध कार्य – पर सम्बद्ध कार्य वे हैं, जो कर्ता के साथ-साथ बाकी लोगों पर भी प्रभाव डालते हैं। मिल का तर्क है कि स्व-सम्बद्ध कार्य और निर्णयों के मामले में राज्य या बाहरी सत्ता को कोई हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है; लेकिन पर सम्बद्ध कार्यों पर बाहरी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। पर सम्बद्ध कार्य वे हैं जिनके बारे में कहा जा सके कि अगर तुम्हारी गतिविधियों से मुझे कुछ नुकसान (हानि) होता है; तो स्वतंत्रता से जुड़े ऐसे मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने से रोक सकता है।

लेकिन स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए यह जरूरी है कि किसी को होने वाली ‘हानि’ गंभीर हो। छोटी- मोटी हानि के लिए मिल कानून की ताकत की जगह केवल सामाजिक रूप से अमान्य करने का सुझाव देता है। अतः किन्हीं पर सम्बद्ध कार्यों पर कानूनी शक्ति से प्रतिबन्ध तभी लगाना चाहिए जब वे निश्चित व्यक्तियों को गंभीर नुकसान पहुँचाए अन्यथा समाज को स्वतंत्रता की रक्षा के लिए थोड़ी असुविधा सहनी चाहिए। घृणा का प्रचार और गंभीर क्षति पहुँचाने वाले कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं, लेकिन प्रतिबन्ध इतने कड़े न हों कि स्वतंत्रता नष्ट हो जाए। भारत के संविधान में ‘ औचित्यपूर्ण प्रतिबंध’ पद का प्रयोग किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रतिबंध समुचित हों तथा उन्हें तर्क की कसौटी पर कसा जा सके। ऐसे प्रतिबंधों में न तो अतिरेक हो और न ही असंतुलन क्योंकि तब यह समाज में स्वतंत्रता की सामान्य दशा पर प्रभाव डालेगा। साथ ही हमें प्रतिबन्ध लगाने की आदत को विकसित नहीं होने देना चाहिए।

→ नकारात्मक स्वतंत्रता:
नकारात्मक स्वतंत्रता से आशय है। बाहरी प्रतिबंधों से अभाव के रूप में स्वतंत्रता। नकारात्मक स्वतंत्रता उस क्षेत्र को पहचानने और बचाने का प्रयास करती है, जिसमें व्यक्ति अनुलंघनीय हो। यह ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें किसी बाहरी सत्ता का हस्तक्षेप नहीं होगा। इस प्रकार नकारात्मक स्वतंत्रता का सरोकार अहस्तक्षेप के अनुलंघनीय क्षेत्र से है। यह क्षेत्र कितना बड़ा होना चाहिए और इसमें क्या – क्या शामिल होना चाहिए, यह वाद-विवाद का विषय है। लेकिन अहस्तक्षेप का यह क्षेत्र जितना बड़ा होगा, स्वतंत्रता उतनी ही अधिक होगी।

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→ सकारात्मक स्वतंत्रता:
सकारात्मक स्वतंत्रता से आशय है। स्वयं को अभिव्यक्त करने के अवसरों के विस्तार के रूप में स्वतंत्रता। सकारात्मक स्वतंत्रता के तर्क ‘कुछ करने की स्वतंत्रता’ के विचार की व्याख्या से जुड़े हैं। इसका आशय यह है कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में कम से कम अवरोध रहें। व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का विकास करने के लिए भौतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक जगत में समर्थकारी सकारात्मक स्थितियों का लाभ मिलना ही चाहिए । व्यक्ति केवल समाज में ही स्वतंत्र हो सकता है,

समाज से बाहर नहीं और इसीलिए वे इस समाज को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास का रास्ता साफ करे। आमतौर पर ये दोनों तरह की स्वतंत्रताएँ साथ – साथ चलती हैं और एक-दूसरे का समर्थन करती हैं। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि निरंकुश शासन सकारात्मक स्वतंत्रता के तर्कों का सहारा लेकर अपने शासन को न्यायोचित सिद्ध करने की कोशिश करे।

→ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का मुद्दा ‘अहस्तक्षेप के लघुत्तम क्षेत्र’ से जुड़ा हुआ माना जाता है। मिल ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित नहीं होनी चाहिए।
मिल ने अपनी पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत या भ्रामक लग रहे हैं। इस कथन के पक्ष में उन्होंने चार कारण प्रस्तुत किए हैं।

  • कोई भी विचार पूरी तरह से गलत नहीं होता, उसमें कुछ न कुछ सत्य का अंश भी छुपा होता है।
  • सत्य विरोधी विचारों के टकराव से पैदा होता है।
  • विचारों के संघर्ष का सतत महत्त्व है। जब हम इसे विरोधी विचार के सामने रखते हैं तभी इस विचार का विश्वसनीय होना सिद्ध होता है।
  • जिसे हम सत्य समझते हैं, जरूरी नहीं वही सत्य हो। कई बार जिन विचारों को किसी समय पूरे समाज ने गलत समझा और दबाया था, बाद में वे सत्य पाये गये।

अतः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बुनियादी मूल्य है और जो लोग इसको सीमित करना चाहते हैं, उनसे बचने के लिए समाज को कुछ असुविधाओं को सहन करने के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रतिबंध तात्कालिक समस्या का समाधान हो सकते हैं क्योंकि ये तात्कालिक माँग को पूरा कर देते हैं लेकिन ये प्रतिबंध लगाने की आदत का विकास करते हैं।

दीपा मेहता की काशी में विधवाओं पर बनायी जा रही फिल्म को काशी में न बनने देना; सलमान रुश्दी की ‘द सेटानिक वर्सेस’ पुस्तक को प्रतिबंधित किया जाना; ‘द लास्ट टेम्पटेशन ऑफ क्राइस्ट’ नामक फिल्म को प्रतिबंधित करना आदि आसान लेकिन अल्पकालीन समाधान हैं; क्योंकि ये तात्कालिक मांग को पूरा कर देते हैं; लेकिन समाज में स्वतंत्रता की दूरगामी संभावनाओं की दृष्टि से यह स्थिति बहुत खतरनाक है। क्योंकि प्रतिबंध लगाने से प्रतिबंध लगाने की आदत विकसित हो जाती है।

→ प्रतिबन्धों का औचित्य और अनौचित्य:

  • जब ये प्रतिबन्ध किसी संगठित सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता या राज्य की शक्ति के बल पर लगाए जाते हैं तो ये हमारी स्वतंत्रता की कटौती इस प्रकार करते हैं कि उनके खिलाफ लड़ना मुश्किल हो जाता है।
  • यदि हम स्वेच्छापूर्वक या अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पाने के लिए कुछ प्रतिबन्धों को स्वीकार करते हैं, तो हमारी स्वतंत्रता उस प्रकार से सीमित नहीं होती है।
  • स्वतंत्रता हमारे विकल्प चुनने के सामर्थ्य और क्षमताओं में छुपी होती है और जब हम विकल्प चुनते हैं तो हमें अपने कार्यों और उसके परिणामों की जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी होगी।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Jharkhand Board Class 11 Political Science राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय InText Questions and Answers

पृष्ठ 3

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 3 के कार्टून में एक स्त्री अपने राजनेता पति से अपने बच्चे के झूठ और धोखाधड़ी के सम्बन्ध में शिकायत करती हुई कहती है कि ” आपको तुरन्त राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए।
आपके काम-काज का इस पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है । वह सोचता है कि वह झूठ और धोखाधड़ी से काम चला सकता है।
उत्तर:
इस कार्टून में आर. के. लक्ष्मण ने स्वार्थपूर्ण और घोटालों से भरी राजनीति पर व्यंग्य करते हुए राजनीति के इस अर्थ को चित्रित किया है कि कई अन्य के लिए राजनीति वही है, जो राजनेता करते हैं। अगर वे राजनेताओं को दल- बदल करते, झूठे वायदे और बढ़े- चढ़े दावे करते, विभिन्न तबकों से जोड़-तोड़ करते, निजी या सामूहिक स्वार्थों में निष्ठुरता से रत और घृणित रूप में हिंसा पर उतारू होता देखते हैं तो वे राजनीति का सम्बन्ध ‘घोटालों’ से जोड़ते हैं।

इस तरह की सोच इतनी प्रचलित है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हम हर संभव तरीके से अपने स्वार्थ को साधनों में लग जाते हैं। इसी गंदी राजनीति के जनता में प्रभाव को इस कार्टून में दर्शाया जा रहा है और राजनेताओं पर यह व्यंग्य किया गया है कि इनके ऐसे कृत्यों से राजनीति का सम्बन्ध किसी भी तरीके से निजी स्वार्थ साधने के धन्धे से जुड़ गया है।

पृष्ठ 5

प्रश्न 2.
ऐसे किसी भी राजनीतिक चिंतक के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये, जिसका उल्लेख अध्याय में किया गया है।
उत्तर:
कार्ल मार्क्स – कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी में राइन नदी के तटवर्ती भाग के ट्रीब्ज नामक स्थान पर 1818 ई. में हुआ। मार्क्स के माता-पिता यहूदी वंश के थे लेकिन जब वे 6 वर्ष के थे तब उनके पिता और परिवार के सदस्यों ने ईसाई धर्म अपना लिया। प्रारंभिक शिक्षा के बाद मार्क्स ने बान विश्वविद्यालय में दर्शन और इतिहास का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने बर्लिन और जेना के विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया।

यहाँ उन्होंने यूनानी और हीगल के दर्शन का अध्ययन किया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह एक पत्र के सम्पादक बने, लेकिन वह पत्र जल्दी ही बंद हो गया। बाद में उन्होंने. साम्राज्यवादी साहित्य का अध्ययन किया तथा 1845 में वे इंग्लैंड चले गये, जहाँ उनकी मित्रता ऐंजिल्स से हुई। मार्क्स ने स्वयं और ऐंजिल्स के साथ मिलकर अनेक ग्रंथों की रचना की, जिसमें ‘साम्यवादी घोषणापत्र’, ‘दास कैपीटल’, ‘होली फैमिली’ आदि प्रमुख हैं। सन् 1883 में इंग्लैंड में ही उनकी मृत्यु हो गई।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

पृष्ठ 6

प्रश्न 3.
क्या आप पहचान सकते हैं कि नीचे दिए गये प्रत्येक कथन/स्थिति में कौन – सा राजनीतिक सिद्धांत/मूल्य प्रयोग में आया है?
(क) मुझे विद्यालय में कौन-सा विषय पढ़ना है, यह तय करना मेरा अधिकार होना चाहिए। (ख) छुआछूत की प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया है।
(ग) कानून के समक्ष सभी भारतीय समान हैं।
(घ) अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपनी पाठशालाएँ और विद्यालय स्थापित कर सकते हैं।
(ङ) भारत की यात्रा पर आये हुये विदेशी, भारतीय चुनाव में मतदान नहीं कर सकते।
(च) मीडिया या फिल्मों पर कोई भी सेंसरशिप नहीं होनी चाहिये।
(छ) विद्यालय के वार्षिकोत्सव की योजना बनाते समय छात्र – छात्राओं से सलाह ली जानी चाहिए।
(ज) गणतंत्र दिवस के समारोह में प्रत्येक को भाग लेना चाहिये।
उत्तर:
(क) स्वतंत्रता
(ख) समानता
(ग) समानता
(घ) धर्मनिरपेक्षता
(ङ) नागरिकता
(च) स्वतंत्रता
(छ) लोकतंत्र
(ज) लोकतंत्र।

Jharkhand Board Class 11 Political Science राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त के बारे में नीचे लिखे कौन-से कथन सही हैं और कौनसे गलत?
(क) राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों पर चर्चा करते हैं जिनके आधार पर राजनीतिक संस्थाएँ बनती हैं।
(ख) राजनीतिक सिद्धान्त विभिन्न धर्मों के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं।
(ग) ये स्वतंत्रता और समानता जैसी अवधारणाओं के अर्थ की व्याख्या करते हैं।
(घ) ये राजनैतिक दलों के प्रदर्शन की भविष्यवाणी करते हैं।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत।

प्रश्न 2.
“राजनीति उस सबसे बढ़कर है, जो राजनेता करते हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? उदाहरण भी दीजिये।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि राजनीति उस सबसे बढ़कर है, जो राजनेता करते हैं; क्योंकि राजनीति के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया जाता है
1. राजनेताओं के राजनैतिक व्यवहार: राजनेताओं का वह राजनैतिक व्यवहार जो जनता और समाज के हित से संबंधित लिये जाने वाले निर्णयों से संबंधित है।

2. सरकार के कार्यकलाप: राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय का वह ढांचा अर्थात् राजनैतिक संस्थाएँ जो हमें साथ रहने के उपाय खोजने और एक-दूसरे के प्रति अपने कर्त्तव्यों को कबूलने में मदद करती हैं, इन संस्थाओं के साथ सरकारें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सरकारें कैसे बनती हैं और कैसे कार्य करती हैं आदि।

3. सरकार को प्रभावित करने के लिए जनता की मांगें, विरोध प्रदर्शन व संघर्ष: राजनीति सरकार के कार्यकलापों तक ही सीमित नहीं होती। सरकारों के कार्यकलाप लोगों के जीवन को भिन्न-भिन्न तरीकों से प्रभावित करते हैं। ये कार्यकलाप जनता के जीवन को उन्नत करने में सहायक भी हो सकते हैं या उनके जीवन को संकट में डालने वाले हो सकते हैं। इसलिए हम सरकार पर जनहितकारी नीतियाँ बनाने के उद्देश्य से संस्थाएँ बनाते हैं, मांगों को स्वीकार कराने के लिए प्रचार अभियान चलाते हैं तथा सरकार की गलत नीतियों का विरोध करते हैं; सरकारी कृत्यों पर वाद-विवाद और विचार-विमर्श करते हुए राजनीतिक प्रक्रियाओं, राजनैतिक दलों, नेताओं के व्यवहार व निर्णयों के बारे में तर्कसंगत कारण तलाशते हैं। ये सभी कार्य भी राजनीति के अन्तर्गत आते हैं।

अत: यह कहा जा सकता है कि राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित है और क्या अनुचित । इस सम्बन्ध में समाज में चलने वाली विविध वार्ताओं के माध्यम से सामूहिक निर्णय लिए जाते हैं। इन वार्ताओं में एक तरफ तो सरकार के कार्य और उनका जनता पर होने वाले प्रभाव के तथ्य शामिल होते हैं तो दूसरी तरफ जनता का संघर्ष और उसके निर्णय लेने पर इस संघर्ष का प्रभाव शामिल होता है। इन समस्त क्रियाओं के सम्मिलित रूप को राजनीति कहा जाता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

प्रश्न 3.
” लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए नागरिकों का जागरूक होना जरूरी है।” टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए नागरिकों का जागरूक होना आवश्यक है। यथा
1. जागरूक नागरिक साझा हितों को गढ़ने तथा व्यक्त करने में अधिक समर्थ: लोकतंत्र में सभी को मत देने तथा अन्य मसलों पर फैसला करने का अधिकार नागरिकों को मिलता है। इन दायित्वपूर्ण कार्यों के निर्वहन के लिए उन राजनीतिक विचारों और संस्थाओं, जो हमारी दुनिया को आकार देते हैं, की जानकारी का होना नागरिकों के लिए सहायक होती है। यदि हम विचारशील और परिपक्व हैं, तो हम अपने साझा हितों को गढ़ने तथा व्यक्त करने के लिए नये माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं।

2. जागरूक नागरिक राजनेताओं को जनाभिमुखी बनाते हैं: नागरिक के रूप में, हम किसी संगीत कार्यक्रम के श्रोता जैसे होते हैं जो कार्यक्रम तय करते हैं, प्रस्तुति का रसास्वादन करते हैं और नये अनुरोध करते हैं। लेकिन संगीतकार, संगीत के जानकार और उसके कद्रदान श्रोताओं के समक्ष ही बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इसी तरह शिक्षित और सचेत नागरिक ही राजनीति करने वालों को जनाभिमुखी बनाते हैं।

3. राजनेताओं द्वारा की जा रही उपेक्षाओं का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। जागरूक नागरिक लिखकर बोलकर तथा प्रदर्शन करके देश की सरकार तथा राजनेताओं को उनके कार्यक्रम, घोषित योजनाओं, वायदों के प्रति उनकी की जा रही उपेक्षाओं के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकते हैं।

4. संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर जनमत का निर्माण: जागरूक नागरिक स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायक होते हैं क्योंकि वे मतदान व्यवहार में जाति, संप्रदाय, क्षेत्रवाद व भाषावाद जैसी संकीर्ण भावनाओं में न बहकर योग्यता को तरजीह देते हैं।

प्रश्न 4.
राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन हमारे लिए किन रूपों में उपयोगी है? ऐसे चार तरीकों की पहचान करें जिनमें राजनीतिक सिद्धान्त हमारे लिए उपयोगी हों।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की उपयोगिता
राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन हमारे लिए निम्न प्रकार से उपयोगी है:
1. एक छात्र के रूप में राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की उपयोगिता: राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन राजनेताओं, नीतिनिर्माताओं, राजनीति के अध्यापकों, संविधान और कानूनों की व्याख्या करने वाले वकीलों व जजों, शोषण का पर्दाफाश करने वाले और नये अधिकारों की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के लिए उपयोगी है। एक छात्र के लिए राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन इसलिए उपयोगी है; क्योंकि छात्र भविष्य में उपर्युक्त पेशों में किसी एक को चुन सकते हैं। इसलिए परोक्ष रूप से राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन हमारे लिए आवश्यक है।

2. एक नागरिक के रूप में राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की उपयोगिता:
लोकतंत्र में नागरिकों को मत देने और अन्य मामलों पर फैसला लेना होता है। इस दायित्वपूर्ण कार्य के निर्वहन के लिए राजनीतिक विचारों और राजनीतिक संस्थाओं की बुनियादी जानकारी हमारे लिए (एक नागरिक के लिए) सहायक होती है। यह जानकारी हमें तर्कशील बनाती है तथा निर्णय लेने में सहायक होती है। राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन कर हम विचारशील और परिपक्व होकर अपने साझा हितों को गढ़ने और व्यक्त करने के लिए नये माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं तथा राजनेताओं को जनाभिमुखी बना सकते हैं।

3. राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन से हम अपने विचारों और भावनाओं में उदार हो जाते हैं- राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचारों और भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है और हम अपने विचारों और भावनाओं के प्रति उदार होते जाते हैं।

4. न्याय और समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच का ज्ञानराजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय व समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं, ताकि हम अपने विचारों को परिष्कृत कर सकें और सार्वजनिक हित में सुविज्ञ तरीके से तर्क-वितर्क कर सकें।

प्रश्न 5.
क्या एक अच्छा प्रभावपूर्ण तर्क औरों को आपकी बात सुनने के लिए बाध्य कर सकता है?
उत्तर:
हाँ, एक अच्छा और प्रभावपूर्ण तर्क दूसरों को आपकी बात सुनने के लिए बाध्य कर सकता है; क्योंकि उसमें उदारता तथा सार्वजनिक हित का सामञ्जस्य होता है तथा यह सुव्यवस्थित होता है। ऐसी बात को गलत साबित करना अति कठिन होता है।

प्रश्न 6.
क्या राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ना, गणित पढ़ने के समान है? अपने उत्तर के पक्ष में कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, राजनीतिक सिद्धान्त का पढ़ना, गणित पढ़ने के समान है; क्योंकि।
1. राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन एक छात्र के लिए उतना ही उपयोगी है, जितना कि एक गणित का अध्ययन। जिस प्रकार एक छात्र का गणित का ज्ञान गणितज्ञ या इंजीनियर जैसे व्यक्तियों के लिए उपयोगी व आवश्यक है, उसी प्रकार राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन राजनेताओं, नीति-निर्माताओं, राजनीति पढ़ाने वाले अध्यापकों, संविधान की व्याख्या करने वाले जजों व वकीलों आदि के लिए उपयोगी व आवश्यक है।

2. जिस प्रकार गणित का ज्ञान, विशेषकर बुनियादी अंकगणित का ज्ञान, व्यक्ति के जीवन में उपयोगी होता है, उसी प्रकार राजनीतिक सिद्धान्त का बुनियादी ज्ञान, उचित तथा अनुचित निर्णयों में भेद करने का ज्ञान, एक नागरिक के लिए लोकतंत्र में उपयोगी होता है।

राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय JAC Class 11 Political Science Notes

→ राजनीतिक सिद्धान्त, हमें सरकार की जरूरत क्यों है? सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप कौन-सा है? क्या कानून हमारी स्वतंत्रता को सीमित करता है? राजसत्ता की अपने नागरिकों के प्रति क्या देनदारी होती है ? नागरिक के रूप में हमारे क्या दायित्व हैं? आदि प्रश्नों की पड़ताल करता है और राजनीतिक जीवन को अनुप्राणित करने वाले स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है।

→ राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य:
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्कसंगत ढंग से सोचने और सामयिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आँकने का प्रशिक्षण देना है। राजनीति क्या है?
लोग राजनीति के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं। यथा

→ राजनेता और चुनाव लड़ने वाले लोग अथवा राजनीतिक पदाधिकारी राजनीति को एक प्रकार की जनसेवा बताते हैं। राजनीति से जुड़े अन्य लोग राजनीति को दांव-पेच से जोड़ते हैं।

→ कई अन्य के लिए राजनीति वही है, जो राजनेता करते हैं और जब वे राजनेताओं को दल-बदल करते, झूठे वायदे करते, विभिन्न तबकों से जोड़-तोड़ करते और निजी या सामूहिक स्वार्थ साधने के रूप में देखते हैं, तो उनकी दृष्टि में राजनीति का सम्बन्ध किसी भी तरह से निजी स्वार्थ साधने के धंधे से जुड़ गया है। लेकिन राजनीति के ये अर्थ त्रुटिपरक हैं ।

→ निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि राजनीति किसी भी समाज का महत्त्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढांचे के बगैर कोई भी समाज जिन्दा नहीं रह सकता। राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं? इस बारे में हमारी दृष्टि अलग-अलग होती है। इसमें समाज में चलने वाली वार्ताओं के माध्यम से सामूहिक निर्णय किये जाते हैं। इन वार्ताओं में एक स्तर से सरकारों के कार्य और इन कार्यों से जनता का जुड़ा होना शामिल होता है तो दूसरे स्तर से जनता के संघर्ष और सरकारों के निर्णयों पर संघर्ष का प्रभाव शामिल होता है। इस प्रकार जब जनता सामाजिक विकास को बढ़ावा देने और सामान्य समस्याओं के समाधान हेतु परस्पर वार्ता करती है और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेती है, तो उसे राजनीति कहते हैं।

→ राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं?

  1. राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।
    करता
  2. यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है।
  3. यह कानून का राज, अधिकारों का बंटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जाँच है।
  4. विभिन्न तर्कों की जाँच-पड़ताल के साथ-साथ राजनीतिक सिद्धान्तकार हमारे वर्तमान राजनीतिक अनुभवों की छानबीन करते हैं और भावी रुझानों तथा संभावनाओं को चिन्हित करते हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

→ राजनीतिक सिद्धान्त की प्रासंगिकता:
स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र से संबंधित प्रश्न अभी भी उठ रहे हैं और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में ये अलग-अलग रफ्तार से बढ़ रहे हैं। जैसे- सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में समानता का प्राप्त न होना, कुछ लोगों का मूल आवश्यकताओं से वंचित होना आदि।

→ यद्यपि हमारे संविधान में स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, फिर भी हमें हरदम नई व्याख्याओं का सामना करना पड़ रहा है। नई परिस्थितियों के संदर्भ में मोलिक अधिकारों की नई व्याख्यायें की जा रही हैं। ये व्याख्यायें नई समस्याओं का समाधान कर रही हैं। जैसे आजीविका के अधिकार को जीवन के अधिकार में शामिल करने के लिए अदालतों द्वारा पुनर्व्याख्या की गई है।

→ जैसे-जैसे हमारी दुनिया बदल रही है, हम स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पर संभावित खतरों के नये-नये आयामों को खोज रहे हैं। जैसे वैश्विक संचार तकनीक से जंगल की सुरक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक नेटवर्क बन रहा है, वहीं आतंकवादियों का भी एक नेटवर्क बना है। राजनीतिक सिद्धान्त में ऐसे अनेक प्रश्नों के संभावित उत्तरों के सिलसिले में हमारे लिए सीखने के लिए बहुत कुछ हैं और इसीलिए यह प्रासंगिक है।

→ राजनीतिक सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारना
राजनीतिक अवधारणाओं के अर्थ को राजनीतिक सिद्धान्तकार यह देखते हुए स्पष्ट करते हैं कि आम भाषा में इसे कैसे समझा और बरता जाता है। वे विविध अर्थों और रायों पर विचार-विमर्श और उनकी जांच-पड़ताल भी सुव्यवस्थित तरीके से करते हैं। उदाहरण के लिए, अवसर की समानता कब पर्याप्त है? कब लोगों को विशेष बरताव की जरूरत होती है? ऐसा विशेष बरताव कब तक और किस हद तक किया जाना चाहिए? क्या गरीब बच्चों को स्कूल में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु दोपहर का भोजन दिया जाना चाहिए? ऐसे प्रश्नों की ओर वे मुखातिब होते हैं।

ये मसले पूर्णतः व्यावहारिक हैं। वे शिक्षा और रोजगार के बारे में सार्वजनिक नीतियाँ तय करने में मार्गदर्शन करते हैं। समानता की तरह ही अन्य अवधारणाओं के सम्बन्ध में राजनीतिक सिद्धान्तकारों को रोजमर्रा के विचारों के प्रसंग में संभावित अर्थों पर विचार-विमर्श करना पड़ता है और नीतिगत विकल्पों को सूत्रबद्ध करना पड़ता है।

→ हमें राजनीतिक सिद्धान्त क्यों पढ़ने चाहिए?
हमें राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ने चाहिए; क्योंकि।

  • राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन राजनेताओं, नीति निर्माता नौकरशाहों, राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ाने वाले अध्यापकों, वकीलों, जजों, शोषण का पर्दाफाश करने वाले कार्यकर्ताओं व पत्रकारों आदि ऐसे सभी समूहों के लिए प्रासंगिक है।
  • दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए उन राजनीतिक विचारों और संस्थाओं की बुनियादी जानकारी हमारे लिए सहायक होती है, जो हमारी दुनिया को आकार देते हैं। राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन नागरिकों के लिए आवश्यक है क्योंकि शिक्षित और सचेत नागरिक राजनीति करने वालों को जनाभिमुख बना देते हैं।
  • राजनीतिक सिद्धान्त हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचारों और भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है और थोड़ी अधिक सतर्कता से चीजों को देखने से हम अपने विचारों और भावनाओं में उदार हो जाते हैं।
  • राजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय या समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं, ताकि हम अपने विचारों को परिष्कृत कर सकें और सार्वजनिक हित में तर्क-वितर्क कर सकें।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Exercise 1.5

प्रश्न 1.
बताइए नीचे दी गई संख्याओं में कौन-कौन परिमेय हैं और कौन-कौन अपरिमेय हैं:
(i) 2 – \(\sqrt{5}\),
(ii) (3 + \(\sqrt{23}\)) – \(\sqrt{23}\),
(iii) \(\frac{2 \sqrt{7}}{7 \sqrt{7}}\)
(iv) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
(v) 2π.
हल:
(i) 2\(\sqrt{5}\), संख्या 2 परिमेय तथा \(\sqrt{5}\) अपरिमेय का अन्तर है। परिमेय तथा अपरिमेय संख्याओं का अन्तर अपरिमेय होता है।
∴ यह संख्या अपरिमेय होगी।
(ii) (3 + \(\sqrt{23}\)) – \(\sqrt{23}\) = 3 + \(\sqrt{23}\) – \(\sqrt{23}\) = 3, परिमेय संख्या है।
(iii) \(\frac{2 \sqrt{7}}{7 \sqrt{7}}=\frac{2}{7}\), एक परिमेय संख्या है।
(iv) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
∵ परिमेय और अपरिमेय का भागफल अपरिमेय होता है।
∴ यह संख्या अपरिमेय है।
(v) 2π
यहाँ संख्या 2 परिमेय और अपरिमेय संख्या का गुणनफल अपरिमेय आता है।
∴ 2π एक अपरिमेय संख्या है।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5

प्रश्न 2.
निम्नलिखित व्यंजकों में से प्रत्येक व्यंजक को सरल कीजिए:
(i) (3 + \(\sqrt{3}\)) (2 + \(\sqrt{2}\)),
(ii) (3 + \(\sqrt{3}\)) (3 – \(\sqrt{3}\)),
(iii) (\(\sqrt{5}\) + \(\sqrt{2}\))2,
(iv) (\(\sqrt{5}\) – \(\sqrt{2}\)) (\(\sqrt{5}\) + \(\sqrt{2}\)).
हल:
(i) (3 + \(\sqrt{3}\)) (2 + \(\sqrt{2}\))
= 3 × 2 + \(\sqrt{3}\) × 2 + 3 × \(\sqrt{2}\) + \(\sqrt{3}\) × \(\sqrt{2}\)
= 6 + 2\(\sqrt{3}\) + 3\(\sqrt{2}\) + \(\sqrt{6}\)

(ii) (3 + \(\sqrt{3}\)) (3 – \(\sqrt{3}\)) = (3)2 – (\(\sqrt{3}\))2
[(∵ a2 – b2 = (a + b) (a – b)]
= 9 – 3 = 6.

(iii) (\(\sqrt{5}\) + \(\sqrt{2}\))2
= (\(\sqrt{5}\))2 + 2 × \(\sqrt{5}\) × \(\sqrt{2}\) + (\(\sqrt{2}\))2
= 5 + 2\(\sqrt{10}\) + 2 = 7 + 2\(\sqrt{10}\)

(iv) (\(\sqrt{5}\) – \(\sqrt{2}\)) (\(\sqrt{5}\) + \(\sqrt{2}\))
= (\(\sqrt{5}\))2 – (\(\sqrt{2}\))2 = 5 – 2 = 3

प्रश्न 3.
आपको याद होगा कि को एक वृत्त की परिधि (मान लीजिए c) और उसके व्यास (मान लीजिए d) के अनुपात से परिभाषित किया जाता है अर्थात् π = \(\frac{c}{d}\) है। यह इस तथ्य का अंतर्विरोध करता हुआ प्रतीत होता है कि अपरिमेय है। इस अंतर्विरोध का निराकरण आप किस प्रकार करेंगे ?
हल:
हम जब कभी भी स्केल से या अन्य किसी युक्ति से लम्बाई नापते हैं, तब हमको केवल एक सन्निकट परिमेय मान प्राप्त होता है अतः हम यह अनुभव नहीं कर पाते कि c या d अपरिमेय हैं।
अतः π के अपरिमेय होने में कोई भी विरोधाभास नहीं है चाहे और d का मान कुछ भी हो।

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प्रश्न 4.
संख्या रेखा पर \(\sqrt{9.3}\) को निरूपित कीजिए।
हल:
(1) रेखाखण्ड AB = 9.3 सेमी खींचा।
(2) इसे किसी बिन्दु X तक आगे बढ़ाया और BX पर एक बिन्दु इस प्रकार लिया कि BC = 1 सेमी।
(3) AC का मध्यबिन्दु M ज्ञात किया और व्यास AC का अर्द्धवृत्त खींचा।
(4) AC के बिन्दु B से AC पर लम्ब BD खींचा जो अर्द्धवृत्त को D पर मिलता है।
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5 1
(5) केन्द्र B से BD त्रिज्या का चाप खींचा जो BX को बिन्दु पर काटता है।
(6) बिन्दु P. संख्या रेखा पर \(\sqrt{9.3}\) को निरूपित करता है।
⇒ \(\sqrt{9.3}\) = BP = 3.049 या लगभग 3.05.

प्रश्न 5.
निम्नलिखित के हरों का परिमेयकरण कीजिए:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5 2
हाल:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5 3
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.5 4

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

Jharkhand Board JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

JAC Class 9 English The Duck and the Kangaroo Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions

Question 1.
What did the Duck wish and why ?
बतख ने क्या इच्छा की और क्यों ?
Answer:
The Duck was fed up of living in a pond. She thought that her life was boring in that pond. So she wished to have a ride on the Kangaroo’s back and visit the whole world.

बतख तालाब में रहते हुए इसलिए उसने कंगारू की परेशान थी। उसने सोचा कि उसका जीवन उस तालाब में नीरस व उबाऊ था। पीठ की सवारी की तथा पूरे संसार की यात्रा की इच्छा की।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

Question 2.
What did the Duck plan to avoid giving trouble to the Kangaroo ?
बतख ने कंगारू को कष्ट देने से बचने के लिए क्या योजना बनाई ?
Answer:
The Duck bought four pairs of woollen socks which fitted her webbed feet perfectly. She also bought a cloak to keep out the cold. Besides, she planned to smoke a cigar everyday. She did all this for her dear Kangaroo.

बतख ने चार जोड़ी ऊनी जुराबें खरीदीं जो उसके जालीदार पैरों में सही आती थी। उसने ठण्ड को दूर रखने के लिए एक लबादा भी खरीदा। इसके अतिरिक्त उसने प्रतिदिन एक सिगार पीने की योजना बनाई । उसने ये सब अपने प्रिय कंगारू के लिए किया ।

Question 3.
Give the central idea of the poem ‘The Duck and the Kangaroo’?
कविता ‘The Duck and the Kangaroo’ का केन्द्रीय भाव बताइए ।
Answer:
The poem is in the form of a dialogue between the Duck and the Kangaroo. The Duck wishes to have a ride on the Kangaroo’s back. She promises not to give him any trouble. The Kangaroo agrees and they happily travel the whole world.

कविता बतख और कंगारू के मध्य एक वार्तालाप के रूप में है। बतख कंगारू के पीठ की सवारी की इच्छा करती है। वह (बतख ) उसे कोई भी परेशानी नहीं देने का वायदा करती है। कंगारू सहमत हो जाता है और वे खुशी-खुशी पूरे संसार की यात्रा करते हैं।

The Duck and the Kangaroo Summary and Translation in Hindi

About the Poem 

यह Edward Lear द्वारा रचित ‘Nonsense Verse’ के रूप में जानी जाने वाली एक हास्य कविता है ।

Read and Enjoy (इसे पढ़िए व आनन्द लीजिए)

Word-Meaninos And Mindi Translation

Stanza I Said ……… kangaroo (Lines 1-8)

Word-Meanings: duck (डक् = बत्तख । kangaroo ( कैंगरू )= कंगारू । gracious (ग्रेशस्) = kind, उदार, दयालु। hop (हॉप् ) = jump, फुदकना । bore (बॉर) = dull, नीरस, उबाऊ । nasty ( नास्टि) = dirty, गंदा, क्षोभ उत्पन्न करने वाला। long (लॉङ) = keenly want, तीव्र इच्छा करना, लालायित् रहना । beyond (बियॉन्ड्) = की दूसरी ओर, दूर।

हिन्दी अनुवाद – बत्तख ने कंगारू से कहा, “अहा ! आप तो बहुत अच्छा उछलते हैं ! आप मैदानों और पानी पर भी ऐसे उछलते हो, जैसे कि आप कभी रुकेंगे ही नहीं । मेरा जीवर्न तो इस गन्दे तालाब में नीरस व उबाऊ है और मेरी तीव्र इच्छा है कि मैं इससे दूर बाहर की दुनिया में जाऊँ। काश ! मैं भी आपके समान उछल सकती ।” बत्तख ने कंगारू से कहा ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

Stanza II Please. to the Kangaroo. (Lines 9-16)

Word-Meanings : ride (राइड्) = सवारी करना । still (स्टिल्) = without moving, बिना हिले-डुले, निस्तब्ध ।Quack ( क्वेक) = बत्तख की आवाज, काँ-काँ करना ।

हिन्दी अनुवाद – बत्तख ने कहा, “कृपया मुझे अपनी पीठ पर सवारी करवा दो । “मैं बिल्कुल बिना हिले-डुले बैढूँगी और ‘काँ-काँ’ के अलावा पूरे दिन कुछ नहीं बोलूँगी । और हम डी और ‘जैली बोली’ की सैर करेंगे, जमीन तथा समुद्र की यात्रा करेंगे । कृपया मुझे सवारी करवाइये ।” बत्तख ने कंगारू से कहा ।

Stanza III Said …………… Kangaroo. (Lines 17-24)

Word-Meanings : requires (रिक्वाइऑॅ:ज्) = needs, आवश्यकता है । reflection (रिफ्लेक्शंन) = careful thought, सावधानीपूर्वक किया गया विचार । perhaps (पॅँहैप्स) = probably, शायद, संभवतया । objection (अब्जेक्शन् ) = आपत्ति, ऐतराज़ । bold (बोल्ड) = निर्भीक, निडर । unpleasantly (अन्प्लेश्ज़्द्रि) = अप्रिय रूप से, बुरी तरह से । probably (प्रॅबब्लि) = सम्भवतया ।roo-matiz (रू-मटिज़) = rehumatism, ठण्ड से होने वाला गठिया या सन्धिवात का रोग ।

हिन्दी अनुवाद – कंगारू ने बंत्तख से कहा, “मुझे कुछ विचार करना पड़ेगा । शायद इससे मेरा भाग्य उदय हो जाए । किन्तु इसमें केवल एक आपत्ति नजर आती है । यदि आप मुझे निर्भीक होकर बोलने दें तो वह आपत्ति यह है कि आपके पैर बुरी तरह से गीले और ठण्डे हैं और शायद इससे मुझे गठिया हो जाए ।” कंगारू ने कहा ।

Stanza IV Said the Duck ………… a Kangaroo. (Lines 25-32)

Word-Meanings: rocks (रॉक्स) = चट्ट्रें । worsted socks (वस्टिड् सॉक्स्) = ऊनी जुराबें । webfeet ( वेब्-फीट् )= जालीदार पैर । neatly (नीट्लि) = in the right way, सही तरह से, पूरी तरह से । cloak (क्लोक्) = loose upper clothing, लबादा, ‘चोगा ।

हिन्दी अनुवाद – बत्तख ने कहा, जब मैं चट्टानों पर बैठी थी तो मैंने इस पर गम्भीरता से विचार किया था। और मैंने चार जोड़ी ऊनी जुराबें खरीदी हैं, जो मेरे जालीदार पैरों में सही आते हैं। और ठण्ड को दूर रखने के लिए मैंने एक

लबादा खरीद लिया है और मैं प्रतिदिन एक सिगार पीऊँगी । अपने प्रिय कंगारू के सच्चे प्यार का अनुसरण करने के लिए मैं यह सब करूँगी ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

StanzaV Said the Kangaroo…………….. the Kangaroo? (Lines 33-40)

Word-Meanings: ready (रेडि) = तैयार I moonlight ( मूनलाइट्) = चंद्रमा की रोशनी, चाँदनी । pale (पेल्) = मद्धिम, हल्की । balance (बैलेन्स्) = संतुलन । steady (स्टेडि) = स्थिर । quite (क्वाइट्) = पूरी तरह से। bound ( बाउण्ड )= छलाँग । three times ( थ्री टाइम्ज़ )= तीन बार । so (सो) = इतने ।

हिन्दी अनुवाद – कंगारू ने कहा, मैं चंद्रमा की मंद चाँदनी में सवारी कराने के लिए तैयार हूँ। परन्तु प्रिय बत्तख, मेरे संतुलन के लिए मेरी दुम के आखिर में मजबूती और शांति से बैठना । “इस प्रकार से वे उछल-कूद करते हुए गये और उन्होंने पूरे संसार के तीन चक्कर लगाये । और बत्तख और कंगारू के सिवाय कौन इतना प्रसन्न था अर्थात् वे बहुत प्रसन्न हुए ।

Explanation With Referenbe To Context & Comprenension Questions

Stanza 1.

Said the duck to the Kangaroo,
“Good gracious! how you hop!
Over the fields and the water too,
As if you never would stop!
My life is a bore in this nasty pond,
And I long to go out in the world beyond!
I wish I could hop like you!”
Said the Duck to the Kangaroo.

Reference : These lines have been taken from the poem ‘The Duck and the Kangaroo’ composed by Edward Lear.

Context: In these lines the Duck wants to go out in the world and hops like the Kangaroo.

Explanation : The Duck exclaimed with surprise that the Kangaroo hopped so strongly and easily. He hopped over the fields as well as over the water. His hopping never seemed to stop. The Duck said that she always lived in a pond and therefore her life was quite boring. She expressed her wish to go out in the world beyond her pond. She wished that she might be able to hop like the Kangaroo.

सन्दर्भ – ये पंक्तियाँ कवि Edward Lear द्वारा रचित कविता ‘The Duck and the Kangaroo’ से ली गई हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में बतख संसार में जाना तथा कंगारू की तरह फुदकना चाहती है।

व्याखव्या – बत्तख ने आश्चर्य से कहा कि कंगारू बहुत अच्छा फुदकता है। वह खेतों की ही तरह पानी के ऊपर भी फुदकता है। ऐसा लगता है कि उसका फुदकना कभी नहीं रुकेगा। बत्तख ने कहा कि वह तो हमेशा एक तालाब में ही रहती है और इसलिए उसका जीवन बहुत नीरस हो गया है। उसने अपनी इच्छा व्यक्त की कि वह अपने तालाब से बाहर के संसार में जाना चाहती है। उसने चाहा कि काश वह कंगारू की तरह फुदक सके।

Questions
1. What is the Duck’s desire?
2. How does the Duck look at the Kangaroo?
3. How does the Duck praise the Kangaroo?
4. What does the Duck say about her life ?
Answers
1. The Duck’s desire is to hop like the Kangaroo.
2. The Duck looks with awe at the way the Kangaroo jumps over the fields and water as if he would never stop.
3. The Duck praises the Kangaroo saying that the Kangaroo hops in an extraordinary way.
4. The Duck says that her life in the pond is boring.

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

Stanza 2.

“Please give me a ride on your back
Said the duck to the Kangaroo.
“I would sit quite still, and say nothing but Quack.”
The whole of the long day through!
And we’d go to the Dee, and the Jelly Bo Lee,
Over the land, and over the sea;
Please take me a ride! O do!”
Said the duck to the Kangaroo.

Reference : These lines have been taken from the poem ‘The Duck and the Kangaroo’ composed by Edward Lear.

Context : In these lines the Duck requests the Kangaroo to go over the land and the sea.

Explanation : The Duck requested the Kangaroo to give her a ride on his back. She promised that she would keep sitting still on his back. She would speak nothing except ‘quack-quack’ the whole day long. She said that they would go to the places named Dee and Jelly Bo Lee. She expressed her wish to go over the land and over the sea while riding the Kangaroo’s back.

सन्द्रर्भ – ये पंक्तियाँ कवि Edward Lear द्वारा रचित कविता ‘The Duck and the Kangaroo’ से ली गई हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में बतख कंगारू से धरती व पानी पर घूमने की प्रार्थना करती है।

व्याखव्या – बत्तख ने कंगारू से निवेदन किया कि वह उसे अपनी पीठ पर सवारी कराये। उसने वायदा किया कि वह उसकी पीठ पर शान्त व स्थिर बैठी रहेगी। वह पूरे दिन बस ‘क्वेक-क्वेक’ के सिवाय कुछ नहीं बोलेगी। उसने कहा कि वे ‘डी’ व ‘जेली बो ली’ नामक स्थानों पर जायेंगे। उसने कंगारू की पीठ पर सवार होकर धरती व पानी दोनों पर घूमने की इच्छा व्यक्त की ।

Questions
1. What does the Duck request the Kangaroo?
2. What does the Duck promise the Kangaroo?
3. Which places does she want to go with the Kangaroo?
4. Which poetic device has been used in the stanza?
Answers
1. The Duck requests the Kangaroo to give her a ride on his back.
2. The Duck promises the Kangaroo to sit quite still and says nothing but ‘quack’ while riding on his back.
3. She wants to go to the ‘Dee’ and the ‘Jelly Bo Lee’ with the Kangaroo.
4. It is Onomatopoeia.

Stanza 3.

Said the Kangaroo to the Duck,
“This requires some little reflection;
Perhaps on the whole it might bring me luck,
And there seems but one objection,
Which is, if you’ll let me speak so bold,
Your feet are unpleasantly wet and cold,
And would probably give me the roo-
Matiz!” said the Kangaroo.

Reference: These lines have been taken from the poem ‘The Duck and the Kangaroo’ composed by Edward Lear.

Context: In these lines Kangaroo had an objection that duck’s wet and cold feet could give him joint pain if he gave the duck a ride on his back.

Explanation: When the Duck requested the Kangaroo to give her a ride on his back, the Kangaroo said that he needed to think about it. He said that giving her a ride might be lucky for him but there seemed one problem. If the Duck did not mind, he wanted to say one thing. He told that her feet were very badly wet and cold. He was apprehensive of developing joint pain if he gave the Duck a ride on his back.

सन्दर्भ – ये पंक्तियाँ कवि Edward Lear द्वारा रचित कविता ‘The Duck and the Kangaroo’ से ली गई हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कंगारू ने आपत्ति की कि बतख के गीले और ठंडे पैर उसके जोड़ों में कहीं दर्द पैदा न कर दें यदि वह उसे अपनी पीठ पर सवारी कराये ।

व्याख्या- जब बत्तख ने कंगारू से निवेदन किया कि वह उसे अपनी पीठ पर सवारी कराये तो कंगारू ने कहा कि उसे इस विषय में सोचने की आवश्यकता है। उसने कहा कि उसे सवारी कराना उसके लिए भाग्यशाली सिद्ध हो सकता है लेकिन एक समस्या लगती है। उसने ( कंगारू ने) बत्तख से कहा कि यदि तुम्हें बुरा न लगे तो मैं एक बात कहना चाहता हूँ। उसने कहा कि उसके (बत्तख के) पैर बहुत बुरी तरह से गीले व ठण्डे थे। उसे आशंका थी कि यदि वह बत्तख को अपनी पीठ पर सवारी करायेगा तो कहीं उसे जोड़ों का दर्द न हो जाये ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

Questions
1. What may bring luck to the Kangaroo ?
2. What is ‘this’ in the second line?
3. How does the Kangaroo want to speak?
4. What is the Kangaroo worried about?
Answers
1. Taking the Duck on his back may bring luck to the Kangaroo.
2. ‘This’ means to give an assurance to the Duck to ride on the back of Kangaroo.
3. He wants to speak boldly.
4. The Kangaroo is worried about catching a cold due to the Duck’s cold and wet feet.

Stanza 4.

Said the Duck, “As I sat on the rocks,
I have thought over that completely,
And I bought four pairs of worsted socks,
Which fit my web-feet neatly.
And to keep out the cold I’ve bought a cloak,
And everyday a cigar I’ll smoke,
All to follow my own dear true
Love of a Kangaroo!”

Reference: These lines have been taken from the poem ‘The Duck and the Kangaroo’ composed by Edward Lear.

Context: In these lines the Duck has prepared herself to save the Kangaroo from any trouble.

Explanation: When the Kangaroo said that giving a ride to the duck on his back might give him joint pain, the duck said that while sitting on the rocks, she had already thought about it. She said that to tackle the problem, she had already bought four pairs of woollen socks. These fitted her web-feet very nicely. She said that she had bought a cloak to keep out the cold. Besides, she would smoke a cigar everyday to keep herself warm. She would do this all to avoid giving any trouble to her dear Kangaroo.

सन्दर्भ – ये पंक्तियाँ कवि Edward Lear द्वारा रचित कविता The Duck and the Kangaroo’ से ली गई हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में बतख ने कंगारू को किसी भी तरह की समस्या से बचाने के लिए खुद को तैयार कर लिया है।

व्याख्या – जब कंगारू ने कहा कि बत्तख को अपनी पीठ पर सवारी कराने से उसके जोड़ों में दर्द हो सकता है तो बत्तख ने कहा कि चट्टानों पर बैठे-बैठे उसने पहले ही इस विषय में सोच लिया है। उसने कहा कि इस समस्या से बचने के लिए उसने पहले ही चार जोड़े ऊनी जुराबें खरीद ली हैं। वे उसके जालीदार पैरों में बिल्कुल ठीक आ रही हैं। उसने कहा कि उसने ठण्ड से बचने के लिए एक ऊपरी लबादा भी खरीद लिया हैं। इसके अलावा, वह स्वयं को गर्म रखने के लिए प्रतिदिन एक सिगार पियेगी । उसके प्रिय कंगारू को परेशानी न हो, इसलिए वह यह सब करेगी ।

Questions
1. When the Kangaroo expressed his doubt, what did the Duck reply?
2.What did she purchase for her feet?
3. What other things did the duck purchase to keep herself warm?
4. What will she do everyday?
Answers
1. She said that she had thought over his apprechension when she was sitting on the rocks.
2. She purchased four pairs of woollen socks.
3. She purchased a clock to keep herself warm.
4. She will smoke a cigar everyday.

Stanza 5.

Said the Kangaroo, “I’m ready!
All in the moonlight pale;
But to balance me well, dear Duck, sit steady!
And quite at the end of my tail!”
So away they went with a hop and a bound,
And they hopped the whole world three times round;
And who so happy- O who,
As the Duck and the Kangaroo?

Reference: These lines have been taken from the poem ‘The Duck and the Kangaroo’ composed by Edward Lear.

Context: In these lines the Kangaroo cautioned the Duck not to move while sitting on his back and then both of them enjoyed their journey across the whole world.

Explanation: It was the time of night. Pale moonlight was spread all around. At that time, the Kangaroo said to the Duck that he was ready to give her a ride on his back. But he cautioned her not to move while sitting on his back to keep his balance. Then the Duck rode the Kangaroo’s back. They hopped and jumped across the whole world and enjoyed the journey very much. They were the happiest creatures on the earth at that time.

JAC Class 9 English Solutions Beehive Poem 7 The Duck and the Kangaroo

सन्दर्भ- ये पंक्तियाँ कवि Edward Lear द्वारा रचित कविता ‘The Duck and the Kangaroo’ से ली गई हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कंगारू ने बतख को सावधान किया वह उसकी पीठ पर बिना हिले डुले बैठी रहे और तब दोनों ने पूरे संसार की यात्रा करने का आनन्द लिया ।

व्याख्या – रात्रि का समय था । हल्की पीली चाँदनी सब ओर बिखरी थी। उस समय कंगारू ने बत्तख से कहा कि वह उसे अपनी पीठ पर सवारी कराने के लिए तैयार है। लेकिन उसने उसे सावधान किया कि वह उसकी पीठ पर बिना हिले बैठी| रहे जिससे उसका सन्तुलन बना रहे। फिर बत्तख कंगारू की पीठ पर सवार हो गई। वे पूरे संसार में फुदके और उछले व बहुत मज़े से घूमे। उस समय वे पृथ्वी के सबसे अधिक प्रसन्न प्राणी थे|

Questions
1. The Kangaroo said, “I am ready “. For what was he ready?
2. For what did the Kangaroo caution the Duck?
3. How was their visit?
4. Who were the happiest creatures at that time ?
Answers
1. He was ready to give the Duck a ride on his back.
2. The Kangaroo cautioned the Duck not to move while sitting on his back to keep his balance.
3. The Duck and the Kangaroo jumped and hopped throughout the journey and had a happy visit.
4. The Duck and the Kangaroo were the happiest creatures at that time.

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

Jharkhand Board JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

JAC Class 9 English Packing Textbook Questions and Answers

Thinking About the Text

I. Discuss in pairs and answer each question below in a short paragraph (30-40 words):

जोड़े बनाकर विचार-विमर्श कीजिये और नीचे दिये गये प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक छोटे अनुच्छेद ( 30 से 40 शब्दों) में दीजिये :

Question 1.
How many characters are there in the narrative ? Name them. ( Don’t forget the dog !)
इस वृत्तांत में कितने पात्र हैं ? उनके नाम बताइये । ( कुत्ते को न भूलें! )
Answer:
There are four characters in this narrative including the dog. They are the author Jerome K Jerome and his two friends – George and Harris. Besides, there is their dog Montmorency that plays an interesting role.

इस वृत्तान्त में कुत्ते को मिलाकर कुल चार पात्र हैं । वे हैं- लेखक Jerome K. Jerome और उसके दो मित्र George और Harris | इसके अतिरिक्त उनका कुत्ता Montmorency है जो रोचक भूमिका निभाता है ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

Question 2.
Why did the narrator (Jerome) volunteer to do the packing ?
वर्णनकर्त्ता (जेरोम) ने पैकिंग करने के लिए स्वयं को प्रस्तुत क्यों किया ?
Answer:
The narrator believed that he could do packing better than anyone else. He was proud of his packing skill. So he told his friends to leave the whole work of packing to him. Moreover, he would get an opportunity to boss the job.

वर्णनकर्त्ता को विश्वास था कि वह किसी अन्य से अच्छी पैकिंग कर सकता था । उसे अपनी पैकिंग कौशल पर गर्व था । अतः उसने अपने मित्रों को पैकिंग का पूरा काम उस पर छोड़ने को कहा । इसके अतिरिक्त उसको उनके (अपने मित्रों के) काम पर रौब दिखाने का एक अवसर मिलेगा।

Question 3.
How did George and Harris react to this ? Did Jerome like their reaction ?
जॉर्ज और हैरिस की इस पर क्या प्रतिक्रिया थी ? क्या जेरोम को उनकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी ?
Answer:
George and Harris readily agreed to the narrator’s suggestion. George spread himself over the easy chair and Harris cocked his legs on the table. The narrator didn’t like their reaction because he wanted to boss the job.

जॉर्ज और हैरिस वर्णनकर्ता के सुझाव पर तुरन्त सहमत हो गये । जार्ज आराम कुर्सी पर इत्मीनान से बैठ गया और हैरिस ने मेज पर अपने पैर रख लिए । वर्णनकर्त्ता को उनकी यह प्रतिक्रिया पसन्द नहीं आयी क्योंकि वह उनके काम पर रौब जमाना चाहता था ।

Question 4.
What was Jerome’s real intention when he offered to pack ?
जब जेरोम ने सामान बाँधने के लिए अपनी सेवा प्रस्तुत की तो उसका वास्तविक इरादा क्या था ?
Answer:
In fact, Jerome himself did not want to do the packing. He wanted George and Harris to do the packing under his supervision. He intended to boss their job and teach them how to do packing properly.

वास्तव में जेरोम स्वयं पैकिंग करना नहीं चाहता था । वह चाहता था कि जॉर्ज व हैरिस उसकी निगरानी में पैकिंग करें । उसका इरादा था कि वह उनके काम पर रौब जमाये और उन्हें ठीक तरह पैकिंग करना सिखाये।

Question 5.
What did Harris say after the bag was shut and strapped? Why do you think he waited till then to ask ?
बैग के बन्द हो जाने और फीते बाँधे जाने के पश्चात् हैरिस ने क्या कहा ? आपके विचार में उसने तब तक कहने के लिए प्रतीक्षा क्यों की ?
Answer:
Harris asked the author if he didn’t want to put the boots in the bag. He did this intentionally as he wanted to tease the author. So he didn’t say anything till the bag was shut and strapped.

हैरिस ने लेखक से पूछा कि क्या वह जूतों को बैग में नहीं रखेगा । उसने ऐसा जानबूझकर किया क्योंकि वह लेखक को चिढ़ाना चाहता था । इसलिए उसने बैग के बन्द हो जाने व फीते बँध जाने तक कुछ नहीं कहा।

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Question 6.
What ‘horrible idea’ occurred to Jerome a little later ?
कुछ समय पश्चात् जेरोम के मन में क्या ‘भयानक विचार’ आया ?
Answer:
A horrible idea occurred to Jerome a little later if he had packed his toothbrush or not. His toothbrush was a thing that always haunted him when he was going to travel.

कुछ समय पश्चात् जेरोम के मन में एक भयानक विचार आया कि उसने अपना टूथब्रश पैक किया है या . नहीं । उसका टूथब्रश ही एक ऐसी वस्तु थी जो उसे यात्रा पर जाते समय लगातार तंग करती रहती थी ।

Question 7.
Where did Jerome finally find the toothbrush ?
जेरोम को अन्ततः टूथब्रश कहाँ मिला ?
Answer:
Jerome unpacked the bag and shook everything to find his toothbrush. While he was putting them back one by one, he finally found it inside a boot. After this he again packed the bag.

जेरोम ने अपने टूथब्रश खोजने के लिए बैग को खोला और प्रत्येक वस्तु को हिलायी । जब वह उन वस्तुओं को एक-एक करके वापस रख रहा था तब अंत में उसे अपना टूथब्रश एक जूते में मिला। इसके बाद उसने बैग को दुबारा बाँधा ।

Question 8.
Why did Jerome have to reopen the packed bag ?
जेरोम को बन्द किया हुआ बैग फिर क्यों खोलना पड़ा ?
Answer:
Having found his toothbrush in the bag, Jerome packed the bag again. Soon he realized that he had packed his spectacles also in it. So once again he had to unpack the bag to get his spectacles.

टूथब्रश को बैग में पाने के बाद जेरोम ने बैग को पुनः पैक किया । शीघ्र ही उसने महसूस किया कि उसने अपना चश्मा इसमें (बैग में) पैक कर दिया था । चश्मे को निकालने के लिए उसे एक बार पुनः बैग को खोलना पड़ा।

Question 9.
What did George and Harris offer to pack and why ?
जॉर्ज और हैरिस ने क्या बाँधने के लिए पेशकश की और क्यों ?
Answer:
George and Harris offered to pack the hampers. They offered to do it because they had 145 to start in less than twelve hours’ time. They wanted to show that they could pack things more quickly and properly than the author.

जॉर्ज और हैरिस ने टोकरियों में सामान को पैक करने की पेशकश की। उन्होंने यह पेशकश इसलिए की क्योंकि उन्हें बारह घण्टे से कम समय में रवाना होना था । वे यह दिखाना चाहते थे कि वे लेखक से ज्यादा जल्दी एवं व्यवस्थित पैकिंग कर सकते थे ।

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Question 10.
While packing the hamper, George and Harris do a number of foolish and funny things. Tick all the true statements below.
टोकरी की पैकिंग करते समय जॉर्ज और हैरिस कई मूर्खतापूर्ण व हास्यप्रद कार्य करते हैं । सही कथन पर चिह्न लगाएँ ।
(i) They started with breaking a cup.
(ii) They also broke a plate.
(iii) They squashed a tomato.
(iv) They trod on the butter.
(v) They stepped on a banana.
(vi) They put things behind them, and couldn’t find them.
(vii) They stepped on things.
(viii) They packed the pictures at the bottom and put heavy things on top.
(ix) They upset almost everything.
(x). They were very good at packing.
Answer:
(i), (iii), (iv), (vi), (vii), (ix) are the true statements.

II. What does Jerome say was Montmorency’s ambition in life? What do you think of Montmorency and why?(60 words )

मोन्टमोरेन्सी की जीवन में क्या महत्वाकांक्षा थी, इस बारे में जेरोम क्या कहता है ?आप मोन्टमोरेन्सी के बारे में क्या सोचते हो और क्यों ?( 60 शब्दों में)
Answer:
Montmorency’s ambition in life was to get in the way of each and everyone and be cursed or abused. He was their pet dog. He went to such places where he was not particularly wanted and was happy when he was cursed. We think him to be a perfect nuisance. He makes people mad. When the things are thrown at his head, he feels his day has not been wasted. It is natural, original sin that is born in him that makes him do things like that.

मोन्टमोरेन्सी की जीवन में महत्त्वाकांक्षा थी कि वह प्रत्येक के काम में व्यवधान डाले और उसे कोसा जाए या बुरा भला कहा जाये । वह उनका पालतू कुत्ता था । वह ऐसे स्थानों पर जाता था जहाँ उसकी विशेषतः जरूरत नहीं होती थी तथा जब उसे कोसा जाता था तो वह प्रसन्न होता था । हम उसे पूर्ण उपद्रवी मानते हैं । वह लोगों को पागल बना देता है । जब चीजें उसके सिर पर फेंकी जाती हैं तब वह महसूस करता है कि उसका दिन बर्बाद नहीं हुआ है । उसकी स्वाभाविक मौलिक पाप की प्रकृति उसे इस प्रकार हरकतें करने के लिए मजबूर करती है।

III. Discuss in groups and answer the following in two or three paragraphs (in about 60 words)

समूहों में विचार-विमर्श कीजिये तथा निम्नलिखित के उत्तर दो या तीन अनुच्छेदों में (लगभग 60 शब्दों में) दीजिये :

Question 1.
Of the three, Jerome, George and Harris, who do you think is the best or worst packer? Support your answer with details from the text.
जेरोम, जॉर्ज और हैरिस, इन तीनों में आपके विचार में सबसे अच्छा या सबसे घटिया सामान बाँधने वाला कौन है ? अपने उत्तर की पुष्टि पाठ से विस्तारपूर्वक करें ।
Answer:
Out of the three, Harris is the worst packer in this world. But none of them is the perfect packer. While packing the bag, Jerome commits many mistakes. He forgets to pack boots. He gets confused about toothbrush and remembers about his packed spectacles. While packing hampers, Harris packs the strawberry jam on top of a tomato and squashes it. George treads on butter. George and Harris pack the pies at the bottom and put heavy things on top and smash the pies in.

तीनों व्यक्तियों में हॅरिस सबसे खराब पैकिंग करने वाला व्यक्ति है। लेकिन उनमें से कोई भी पैकिंग करने में कुशल व्यक्ति नहीं है। बैग को पैक करते समय जेरोम कई गलतियाँ करता है । वह जूते पैक करना भूल जाता है। वह टूथब्रश को लेकर उलझन में रहता है और फिर अपने पैक किए हुए चश्मे को याद करता है। टोकरियों को पैक करते समय हैरिस एक टमाटर पर स्ट्रॉबेरी जैम को रख देता है तथा उसे कुचल देता है। जार्ज मक्खन पर पैर रख देता है । वे कचौड़ियों को बैग में बिल्कुल नीचे पैक कर देते हैं और उनके ऊपर भारी वस्तुएँ रख देते हैं और इस प्रकार वे कचौड़ियों को अन्दर ही चकनाचूर कर देते हैं ।

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Question 2.
How did Montnorency ‘contribute’ to the packing ?
सामान बाँधने में मोन्टमोरेन्सी ने किस प्रकार ‘योगदान’ दिया ?
Answer:
Montmorency was their pet dog. He came and sat down on things just when Harris and George wanted to pack them. Whenever George and Harris reached for things, Mont- morency offered them his cold and wet nose. He put his leg into the jam. He scattered the teaspoons. He pretended lemons for rats and reached into the hamper to destroy them.

मोन्टमोरेन्सी उनका पालतू कुत्ता था । वह आया और उसी समय वस्तुओं पर बैठ गया जब जॉर्ज व हैरिस उनको पैक करना चाहते थे । जब भी जॉर्ज व हैरिस किसी चीज के लिए हाथ बढ़ाते, मोन्टमोरेन्सी उनकी ओर अपनी ठण्डी व गीली नाक को बढ़ा देता । उसने अपनी एक टाँग जैम (मुरब्बा) में डाल दी । उसने चम्मचों को बिखेर दिया । उसने नींबुओं को चूहे समझने का दिखावा किया और उन्हें खराब करने के लिए टोकरी में पहुँच गया।

Question 3.
Do you find this story funny ? What are the humorous elements in it ? (Pick out at least three, think about what happens, as well as how it is described.)
क्या आपको यह कहानी मनोरंजक लगती है ? इसमें हास्य के तत्व कौन-कौन से हैं ? (कम से कम तीन हास्यास्पद घटनाओं को लीजिए और उनके बारे में विचार कीजिए कि क्या घटित होता है और उसका वर्णन कैसे किया जाता है | )
Answer:
Yes, we find this story very funny. There are many humorous elements in it. Some of them are as follow:
(1) When the author packs the bag, he forgets to put the boots in it. Then he searches for his toothbrush and unpacks everything kept in the bag. Finally, he reopens the bag to take out his spectacles.

(2) George treads on the butter. Then he gets it off his slipper. George and Harris put the butter on a chair and Harris sits on it and the butter sticks to him. Now they look for the butter everywhere in the room.

(3) Montmorency, their pet dog, pretends lemons for the rats and attacks on them. He destroys three lemons out of them.

हाँ, हमें यह कहानी बहुत मनोरंजक लगती है । इस कहानी में कई हास्यप्रद तत्त्व हैं । उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं 3:3
(1) जब लेखक बैग को पैक करता है तो वह बैग में जूतों को रखना भूल जाता है । फिर वह अपनी टूथब्रश तलाश करता है और (उसे ढूँढ़ने के लिए) बैग में रखी हुयी हर चीज को निकालता है । अन्ततः वह अपना चश्मा निकालने के लिए फिर बैग को खोलता है ।

(2) जॉर्ज मक्खन पर पैर रख देता है । फिर वह अपनी चप्पल से उसे छुड़ाता है । जार्ज और हैरिस मक्खन को एक कुर्सी पर रख देते हैं तथा हैरिस उस पर बैठ जाता है और मक्खन उससे चिपक जाता है । अब वे कमरे में हर जगह मक्खन को तलाशते हैं ।

(3) मोन्टमोरेन्सी कुत्ता नींबुओं को चूहे समझने का दिखावा करता है तथा उन पर धावा बोल देता है। वह उनमें से तीन नींबुओं को नष्ट कर देता है।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

Thinking About Language

I. Match the words or phrases in Column ‘A’ with their meanings in Column ‘B’.

स्तम्भ A में दिये गये शब्दों / वाक्यांशों को स्तम्भ B में दिये गये उनके अर्थों से मिलाइये

 A B
1. slaving (i) a quarrel on an argument
2. chaos (ii) remove something from inside another thing using a sharp tool.
3. rummage (iii) strange, mysterious, difficult to explain
4. scrape out (iv) finish successfully, achieve.
5. stumble over, tumble into (v) search for something by moving things around hurriedly or carelessly.
6. accomplish (vi) complete confusion and disorder.
7. uncanny (vii) fall, or step awkwardly while walking.
8. (to have or get into) a row (viii) working hard.

Answer:
1. slaving: (viii) working hard
2. chaos: (vi) complete confusion and disorder
3. rummage : (v) search for something by moving things around hurriedly or carelessly
4. scrape out: (ii) remove something from inside another thing using a sharp tool
5. stumble over, tumble into: (vii) fall or step awkwardly while walking
6. accomplish : (iv) finish successfully, achieve
7. uncanny : (iii) strange, mysterious, difficult to explain
8. (to have or get into) a row: (i) a quarrel on an argument

II. Use suitable words or phrases from column A above to complete the paragraph given below :

ऊपर दिये गये स्तम्भ A से उचित शब्द या वाक्यांश चुनकर नीचे दिये गये अनुच्छेद को पूरा कीजिए:

During power cuts, when traffic lights go off, there is utter ____________ at cross roads.  Drivers add to the confusion by ____________ over their right of way, and nearly come to blows. Sometimes passers-by, seeing a few policemen ____________ at regulating traffic, step in to help. This gives them a feeling of having something.
Answer:
During power cuts, when traffic lights go off, there is utter chaos at cross roads. Drivers add to the confusion by getting into a row over their right of way, and nearly come to blows. Sometimes passers-by, seeing a few policemen slaving at regulating traffic, step in to help. This gives them a feeling of having accomplished something.

III. Look at the sentences below. Notice that the verbs (underlined) are all in their bare form.

निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से देखिये । ध्यान दीजिए कि रेखांकित क्रियाएँ अपने मूल रूप में हैं।

• Simple commands सामान्य आदेश – Stand up! – Put it here!

Direction: (to reach your home.) दिशा – (आपके घर पहुँचने के लिए)
Board Bus No. 121 and get down at Sagar Restaurant. From there turn right and walk till you reach a book shop. My home is just behind the shop.

• Dos and don’ts : करणीय व अकरणीय (करने वाली चीजें और न करने वाली )

  • Always get up for your elders.
  • Don’t shout in class.

• Instructions for making a fruit salad : फलों की सलाद बनाने के लिए निर्देश:Ingredients (संघटक)

Oranges – 2. Pine apple – one large piece, Cherries 250 grams, Bananas – 2, Any other fruit you like.
Wash the fruit. Cut them into small pieces. Mix them well. Add a few drops of lime juice. Add sugar to taste. Now add some cream (or ice cream if you wish to make fruit salad with ice cream.)

1. Now work in pairs. Give
(i) two commands to your partner.
(ii) two do’s and don’ts to a new student in your class.
(iii) directions to get to each other’s houses.
(iv) Instructions for moving the body in an exercise or a dance, or for cooking something.
Answer:
(i) Put your books in your bag. Write your name on your notebook.

(ii) Dos: (a) Always come to school in uniform. (b) Behave properly.
Don’ts: (a) Do not make a noise. (b) Never come late.

(iii) Get a taxi and get down at the post office. Walk in the by-lane till you reach a green building. My house is next to the green building.

(iv) Instructions for an exercise.
Stand erect. Join your heels. Open your toes apart. Raise your arms above your head. Bend your knees slowly. Pause till you count five. Rise again till your legs are straight. Lower your arms slowly to your sides. Repeat the exercise eight times.

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

2. The table below has some proverbs telling you what to do and what not to do. Fill in the blanks and add a few more such proverbs to the table.

नीचे कुछ लोकोक्तियाँ दी गई हैं जो आपको करणीय व अकरणीय (करने और न करने वाले) कार्यों को बताती हैं । रिक्त स्थानों को भरिये और कुछ लोकोक्तियाँ अपनी ओर से जोड़िये ।

Positive Negative
(i) Save for a rainy day.
(ii) Make hay while the sun shines.
(iii) ………. before you leap.
(iv) ………. and let live.
(i) Don’t cry over split milk.
(ii) Don’t put the cart before the horse.
(iii) ……. a mountain out of a mole hill.
(iv) ……… all your eggs in one basket.

Answer:

Positive Negative
Look before you leap.
Live and let live.
try, try again.
Think before you speak.
Mind your own business.
Don‘t make a mountain out of a mole hill.
Don‘t put all your eggs in one basket.
Never put off till tomorrow what you can do today.
Don’t build castles in the air.
Don‘t poke your nose Into others’ affairs.


Writing

You have seen how Jerome, George and Harris mess up their packing, especially of the hamper. From their mistakes you must have thought of some dos and don’ts for packing. Can you give some tips for packing by completing the paragraph below? First pack all the heavy items, especially the ones you don’t need right away. Then Here are some words and phrases you can use to begin your sentences with:
JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing 1
Answer:
First, pack all the heavy items, especially the ones you don’t need right away. Next pack lighter items that you might need. Don’t forget to pack things that are essential. Remember to pack butter, vegetables and jam at the top. Finally check that nothing has. been left out which is supposed to be packed. Then close the bag and strap it.

Speaking:

Look at this sentence. इस वाक्य को देखिये ।
“I told George and Harris that they had better leave the whole matter entirely to me”.
The words had better are used (had better का प्रयोग होता है )

in an advice or suggestion : सलाह या सुझाव देने में-
You had better take your umbrella. It looks like rain.

in an order : आदेश देने में
You had better complete your homework before you go out to play.

as a threat : धमकी के रूप में
You had better leave or I’ll have you arrested for trespass!
When we speak we say you’ d/I’ d/he’d better, instead of you had better, etc.

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

Work in pairs to give each other advice, orders or suggestions or even to threaten each other. Imagine situations like the following: Your partner

1. hasn’t returned a book to the library.
2. has forgotten to bring lunch.
3. hasn’t got enough change for the bus fare.
4. has found out a secret about you.
5. has misplaced your English textbook.
Answer:
1. You had better return the book to the library or they will fine you five rupees a day.
2. You had better bring your lunch, there is no canteen here.
3. You had better get enough change for the bus fare, the conductor will not give you a ticket.
4. You had better keep quiet or I’ll have you vacated my house.
5. You had better return the book to the library, someone might be in need of it.
Activity : छात्र स्वयं करें ।

JAC Class 9 English Packing Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions

Answer the following questions in about 30 words each:

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :

Question 1.
What did the author do to tease Harris and George ?
हैरिस और जार्ज को चिढ़ाने हेतु लेखक ने कौन – सा कदम उठाया ?
Answer:
Harris had started making mistakes while George trod on the butter which stuck to his slipper. To tease them on their mistakes, the author spoke nothing but he simply sat on the edge of a table watching them.

हैरिस ने गलतियाँ करना प्रारम्भ कर दिया था और जार्ज ने मक्खन को पैर से कुचल दिया था जो कि उसके पैरों के स्लिपर से चिपक गया। उनकी गलतियों पर उन्हें चिढ़ाने के लिए लेखक ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की अर्थात् वह कुछ नहीं बोला बल्कि वह सिर्फ मेज के एक किनारे बैठकर उन्हें देखता रहा ।

Question 2.
Why was the author irritated by George’s laugh ?
जार्ज की हँसी से लेखक को क्यों चिढ़ हुई ?
Answer:
The author committed a mistake. He had forgotten to keep the boots in the bag. He was upset when George laughed at his mistake. It was natural for the author to get irritated by George’s stupid loud laugh.

लेखक ने एक गलती कर दी थी । वह बैग में जूते रखना भूल गया था । वह परेशान था जब जार्ज उसकी गलती पर हँसा । जार्ज की मूर्खतापूर्ण जोर की हँसी से लेखक का चिढ़ जाना स्वाभाविक ही था।

Question 3.
What did both Harris and George do with the butter ?
हैरिस और जार्ज दोनों ने मक्खन के साथ कौन-सी हरकत की ?
Or
Describe the most interesting incident of the lesson.
इस पाठ की सबसे रोचक घटना का वर्णन करें।
Answer:
George first trod on the butter which stuck to his slipper. Then somehow he got it off and kept it on a chair. Harris unknowingly sat on the chair. The butter got stuck to him. It is the most interesting incident of this lesson.

पहले तो जार्ज ने स्लिपर पहनकर मक्खन को पैरों से कुचला जो उसके स्लिपर से चिपक गया । फिर किसी तरह खुरचकर उसने मक्खन को एक कुर्सी पर रखा । हैरिस अनजाने में ही आकर उस कुर्सी पर बैठ गया। और मक्खन उससे चिपक गया । यह इस पाठ की सबसे रोचक घटना है।

Question 4.
Who is Montmorency and how does it rouse your curiosity ?
मोन्टमोरेन्सी कौन है और किस प्रकार आपकी उत्सुकता जगाता है ?
Answer:
Montmorency is a dog. He appears in the story at the end of the packing. He disturbs the working way of others and damages many things.

मोन्टमोरेन्सी एक कुत्ता है । कहानी में पैकिंग के कार्य की समाप्ति पर इसका प्रवेश होता है। यह दूसरे लोगों के काम करने के तरीकों को बाधित करता है और अनेक चीजों को क्षति पहुँचाता है ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

Question 5.
Who packed the things in two baskets ? Enumerate the things that were put in them. दोनों टोकरियों में सामान किसने पैक किया ? इनमें कौन-कौन सी चीजें रखी गयीं ?
Answer:
George and Harris packed things in the baskets. They put items in the baskets like cups, plates, kettles, jars, stoves and frying pan besides jam, butter, cakes, tomatoes etc.

जार्ज और हैरिस ने टोकरियों में सामान पैक किया। उन्होंने टोकरियों में कप, प्लेट, केतलियाँ, मर्तबान, स्टोव, तवा या कड़ाही, जैम, मक्खन, केक, टमाटर आदि वस्तुऐं रखीं।

Question 6.
Why does the author pride himself on his packing ?
लेखक को अपने पैकिंग कार्य पर गर्व क्यों करता है ?
Answer:
The author prides himself on his packing skills because he thinks himself to be the best packer in the world. He says that packing is the thing that he knows more about than any other person living

लेखक अपने पैकिंग कार्य पर गर्व करता है क्योंकि वह स्वयं को संसार का सर्वश्रेष्ठ पैकर मानता है । वह कहता है कि पैकिंग एक ऐसा कार्य है जिसके बारे में वह किसी भी अन्य जीवित व्यक्ति से ज्यादा जानता है

Question 7.
How did George and Harris start packing ?
जॉर्ज और हैरिस ने पैकिंग का कार्य कैसे शुरू किया ?
Answer:
They started packing with breaking a cup. Then Harris packed the strawberry jam on the top of a tomato. The tomato was squashed completely due to it. George trod on the butter with his slippers on.

उन्होंने एक कप (प्याले ) को तोड़कर पैकिंग की शुरूआत की। फिर हैरिस ने टमाटर के ऊपर एक स्ट्राबेरी के मुरब्बे को रखा। इससे टमाटर बुरी तरह कुचल गया। जार्ज अपनी चप्पल पहनकर मक्खन पर चला या उसे कुचल

Question 8.
What did Montmorency do with lemons ?
मॉन्टमोरेन्सी ने नींबुओं का क्या किया ?
Answer:
Montmorency pretended that the lemons were rats. So he got into the hamper and killed three of them. It means he destroyed three lemons before Harris could land him with the frying pan.

मॉन्टमारेन्सी ने यह दिखावा किया (यह कल्पना की ) कि नींबू चूहे हैं। इसलिए वह टोकरी में घुस गया। इससे पहले कि हैरिस तवे या कड़ाही से पीटकर उसे जमीन पर पटके, उसने उनमें से तीन को मार दिया अर्थात् उसने तीन नींबूओं को नष्ट कर दिया।

Long Answer Type Questions

Answer the following questions in about 60 words each:

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीजिए :

Question 1.
Write a brief summary of the lesson.
इस पाठ का सारांश संक्षेप में लिखिए ।
Answer:
The narrator and his friends, George and Harris assembled for packing things which were to be taken on journey. Taking himself to be an expert in packing the items, the narrator started packing the things in the bag. He unpacked and repacked the bag thrice. Then his friends took up the work of packing by filling the baskets. They broke one cup and smashed the butter. Their packing was over after midnight.

कथाकार अपने दो मित्रों, जार्ज और हैरिस के साथ यात्रा पर साथ ले जाने वाले सामानों की पैकिंग के लिए एकत्र हुआ । वर्णनकर्त्ता ने स्वयं को पैकिंग का विशेषज्ञ मानकर बैग के अन्दर सामान भरना शुरू किया । उसने तीन बार बैग खोला और पुनः पैक किया । फिर उसके मित्रों ने पैकिंग का काम टोकरियाँ भरकर शुरू किया । उन्होंने एक कप तोड़ा और मक्खन को रौंदकर कुचल दिया । आधी रात के बाद उनकी पैकिंग पूरी हुई

Question 2.
According to the narrator he was an expert in packing. Do you agree with it ?
वर्णनकर्त्ता के अनुसार, वह पैकिंग का विशेषज्ञ था । क्या आप इससे सहमत हैं ?
Answer:
The narrator was not an expert in packing. It can be said after seeing his performance. He might have some superficial idea of this job. In the first instance, he forgot to put the boots in the bag and strapped it hastily. Secondly, he was much confused about his own toothbrush whether it was packed or not. Thirdly, he packed his spectacles in the bag wrongly. Thus he had to pack the items thrice.

वर्णनकर्त्ता को पैकिंग का कुछ विशेष ज्ञान अथवा अनुभव नहीं था । यह उसके कार्य को देखकर कहा जा सकता है । उसे इस कार्य का ऊपरी तौर पर कुछ ज्ञान भले हो । सबसे पहले तो वह बैग में जूते रखना ही भूल गया और उसने जल्दी से बैग को बाँध दिया । दूसरे, उसने टूथब्रश रखा कि नहीं – यह उलझन उसे बहुत परेशान करती रही। तीसरी बार उसने अपने चश्मे को ही बैग में भूल से बन्द कर दिया । इस तरह उसे तीन बार सामानों की पैकिंग करनी पड़ी ।

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Question 3.
What is peculiar about the narrator’s toothbrush ?
वर्णनकर्त्ता के टूथब्रश के बारे में कौन-सी बात विचित्र लगती है ?
Answer:
The toothbrush had always been a confusing item for the narrator on his journeys. He always remained in doubts whether he had placed his toothbrush in the bag or not at its proper place. Such an idea often disturbed his sleep. He had to wake up and search for it. On several occasions he could find it just at the last moment when the train was about to come. And then he wrapped it up in his handker- chief and carried to the railway station.

यात्राओं में वर्णनकर्त्ता के लिए टूथब्रश सदा ही उलझाने और परेशान करने का कारण बना रहता था । उसके मस्तिष्क में यह सन्देह सदैव बना रहता कि बैग में सही जगह पर टूथब्रश रखा या नहीं। यहाँ तक कि इस प्रकार का विचार अक्सर उसे नींद में परेशान करता । वह उठकर उसे खोजने लगता । बहुत बार तो ऐसा होता कि टूथब्रश को अन्तिम क्षण में ही ढूँढ पाता जब ट्रेन के आने का समय हो जाता। और तब वह उसे अपने रूमाल में ही लपेटकर स्टेशन भागता था ।

Question 4.
How did the author pack the bag ? Describe.
लेखक ने बैग किस प्रकार पैक किया ? वर्णन कीजिये ।
Answer:
The author’s description of the bag packing scene was quite humorous. In the begin- ning he had forgotten to keep his boots in it. So he unpacked and packed the bag. Now he thought that he had forgotten to put his toothbrush inside. So he unpacked the bag once again. After this, the author remembered that he had packed his spectacles in- side. So he unpacked and packed the bag once again.

लेखक के बैग को पैक करने का दृश्य बहुत हास्यास्पद था। शुरूआत में वह उसमें अपने जूते रखना भूल गया था । इसलिए उसने बैग को पुनः खोला और बंद किया । अब उसे लगा कि वह अपनी टूथब्रश अन्दर रखना भूल गया । इसलिए उसने एक बार फिर बैग खोला और बंद किया । इसके बाद लेखक को याद आया कि उसने अपना चश्मा अन्दर ही पैक कर दिया। अतः उसने एक बार फिर बैग खोला और बन्द किया ।

Seen Passages

Read the following passages carefully and answer the questions given below them :

निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उनके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये :

Passage – 1.

I rather pride myself on my packing. Packing is one of those many things that I feel I know more about than any other person living. (It surprises me myself, sometimes, how many such things there are.) I impressed the fact upon George and Harris and told them that they had better leave the whole matter entirely to me. They fell into the suggestion with a readiness that had something uncanny about it. George spread himself over the easy-chair, and Harris cocked his legs on the table.

This was hardly what I intended. What I had meant, of course, was, that I should boss the job, and that Harris and George should potter about under my directions, I pushing them aside every now and then with, “Oh, you!” “Here, let me do it”. “There you are, simple enough !” – really teaching them, as you might say. Their taking it in the way they did irritated me. There is nothing does irritate me more than seeing other people sitting about doing nothing when I’m working.

I lived with a man once who used to make me mad that way. He would loll on the sofa and watch me doing things by the hour together. He said it did him real good to look on at me, messing about. Now, I’m not like that. I can’t sit still and see another man slaving and working. I want to get up and superintend, and walk round with my hands in my pockets, and tell him what to do. It is my energetic nature. I can’t help it.

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1. What irritates the author more than anything?
लेखक को कौन-सी बात किसी अन्य बात से ज्यादा चिढ़ाती है ?

2. What kind of nature does the author possess?
लेखक का स्वभाव किस प्रकार का है ?

3. Why does the author pride himself on packing?
लेखक को अपने पैकिंग के काम पर गर्व क्यों है ?

4. What did the author tell George and Harris ?
लेखक ने जार्ज और हैरिस से क्या कहा ?

5. What did George and Harris do after the author’s suggestion?
लेखक के प्रस्ताव के पश्चात् जॉर्ज और हैरिस ने क्या किया ?

6. What did the author really mean when he said he would pack?
जब लेखक ने कहा कि वह पैकिंग करेगा तो उस समय उसके कहने का वास्तविक तात्पर्य क्या था ?

7. What was the habit of the man with whom the author lived once?
उस व्यक्ति का स्वभाव कैसा था जिसके साथ लेखक एक बार रहा था ?

8. What did the author want to do when somebody was working hard?
जब कोई कठोर परिश्रम कर रहा होता था तो लेखक क्या करना चाहता था ?

9. Pick out the word from the passage which is the antonym of ‘worse’.

10. Find from the passage the word which means: ‘strange’
Answer:
1. When the author sees other people sitting about doing nothing when he is working, it irritates him more than anything.
जब लेखक स्वयं काम कर रहा होता है तथा अन्य लोगों को कुछ भी करते हुए नहीं देखता है तो यह बात लेखक को अन्य किसी भी बात से ज्यादा चिढ़ाती है ।

2. The author possesses energetic nature.
लेखक का स्वभाव ऊर्जस्वी है ।

3. The author thinks that he knows more about packing than any other living person. So he prides himself on packing.
लेखक समझता है कि वह पैकिंग के बारे में किसी भी अन्य जीवित व्यक्ति से ज्यादा जानता है । इसलिए उसे अपने पैकिंग के काम पर गर्व है ।

4. The author told George and Harris that they should leave the packing entirely to him.
लेखक ने जॉर्ज और हैरिस से कहा कि वे पैकिंग का काम पूरी तरह से उस पर छोड़ दें ।

5. George spread himself over the easy-chair and Harris cocked his legs on the table.
ने आराम-कुर्सी पर पसर गया ( फैलकर लेट गया) तथा हैरिस ने अपनी टाँगें मेज पर रख लीं।

6. The author really meant that he would boss the job of packing and George and Harris would potter about under his directions.
लेखक के कहने का वास्तविक तात्पर्य यह था कि वह पैकिंग के कार्य का नियन्त्रण करेगा तथा जॉर्ज व हैरिस उसके निर्देशानुसार कार्य करते रहेंगे ।

7. That man would loll on the sofa and watch the author doing things by the hour together.
वह व्यक्ति सोफे पर लेट जाता था और लेखक को घण्टों तक कार्य करते हुए देखता रहता था ।

8. The author wanted to get up and superintend and walk round with his hands in his pockets, and tell them what to do.
लेखक खड़ा होकर पर्यवेक्षण करना चाहता था और वह अपनी जेबों में हाथ डालकर घूमता रहना तथा उनको बताते रहना चाहता था कि क्या करना था ।

9. better

10. uncanny

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Passage – 2.

When I had finished, George asked if the soap was in. I said I didn’t care a hang whether the soap was in or whether it wasn’t, and I slammed the bag shut and strapped it, and found that I had packed my spectacles in it, and had to re-open it. It got shut up finally at 10:05 p.m., and then there remained the hampers to do. Harris said that we should be wanting to start in less than twelve hours’ time and thought that he and George had better do the rest; and I agreed and sat down, and they had a go.

They began in a light-hearted spirit, evidently intending to show me how to do it. I made no comment; I only waited. With the exception of George, Harris is the worst packer in this world; and I looked at the piles of plates and cups, and kettles, and bottles, and jars, and pies, and stoves, and cakes, and tomatoes etc., and felt that the thing would soon become exciting. I did. They started with breaking a cup.

That was the first thing they did. They did that just to show you what they could do, and to get you interested. Then Harris packed the strawberry jam on top of a tomato and squashed it, and they had to pick out the tomato with a teaspoon. And then it was George’s turn, and he trod on the butter. I didn’t say anything, but I came over and sat on the edge of the table and watched them.

1. How did Harris squash a tomato ?
हैरिस ने एक टमाटर को किस प्रकार कुचल दिया ?

2. Who trod on the butter ?
मक्खन पर किसने पैर रख दिया ?

3. How did the author react to their funny and foolish acts?
उनके हास्यप्रद व मूर्खतापूर्ण कार्यों पर लेखक ने किस प्रकार प्रतिक्रिया की

4. When did the bag finally get shut up?
बैग अन्तिम तौर पर कब बन्द हुआ

5. Who started packing the hampers?
टोकरियों को पैक करने का काम किसने शुरू किया ?

6. How did George and Harris begin their work?
जॉर्ज और हैरिस ने अपना काम कैसे शुरू किया ?

7. Who, according to the author, is the worst packer in this world?
लेखक के अनुसार इस संसार में सबसे खराब तरीके से सामान को पैक करने वाला कौन है?

8. What was the first thing that George and Harris did while packing?
पैकिंग करते समय वह पहली चीज़ क्या थी जो जॉर्ज व हैरिस ने की ?

9. Pick out the word from the passage which is the antonym of – ‘best’

10. Find from the passage the word which means: ‘stepped on’
Answer:
1. Harris packed the strawberry jam on top of a tomato and squashed it.
हैरिस ने एक टमाटर के ऊपर स्ट्रॉबेरी जाम रख दिया और इसे कुचल दिया ।

2. George trod on the butter.
जॉर्ज ने मक्खन पर पैर रख दिया ।

3. The author did not say anything and sat on the edge of the table and watched them.
लेखक ने कुछ नहीं कहा और वह मेज के किनारे पर बैठ गया और उन पर नजर रखी।

4. The bag got shut up finally at 10:05p.m.
बैग अन्तिम तौर पर रात को 10 बजकर 5 मिनिट पर बन्द हुआ ।

5. George and Harris started packing the hampers.
जॉर्ज और हैरिस ने टोकरियों को पैक करने का काम शुरू किया ।

6. George and Harris began their work in a light-hearted spirit.
जॉर्ज और हैरिस ने प्रसन्नचित्त भाव से अपना काम शुरू किया ।

7. According to the author, with the exception of George, Harris is the worst packer in this world.
लेखक के अनुसार, जॉर्ज के अपवाद को छोड़कर, हैरिस इस संसार में सबसे खराब तरीके से सामान को पैक करने वाला व्यक्ति है ।

8. They started with the breaking of a cup.
उन्होंने एक कप तोड़ने से इसे शुरू किया।

9. worst

10. trod on.

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Passage – 3.

Montmorency was in it all, of course. Montmorency’s ambition in life is to get in the way and be sworn at. If he can squirm in anywhere where he particularly is not wanted, and be a perfect nuisance, and make people mad, and have things thrown at his head, then he feels his day has not been wasted.To get somebody to stumble over him, and curse him steadily for an hour, is his highest aim and object; and, when he has succeeded in accomplishing this, his conceit becomes quite unbearable.

He came and sat down on things, just when they were wanted to be packed; and he laboured under the fixed belief that, whenever Harris or George reached out their hand for anything, it was his cold damp nose that they wanted. He put his leg into the jam, and he worried the teaspoons, and he pretended that the lemons were rats, and got into the hamper and killed three of them before Harris could land him with the frying-pan. Harris said I encouraged him. I didn’t encourage him.

A dog like that doesn’t want any encouragement. It’s the natural, original sin that is born in him that makes him do things like that. The packing was done at 12:50, and Harris sat on the big hamper, and said he hoped nothing would be found broken. George said that if anything was broken it was broken, which reflection seemed to comfort him.

1. What is Montmorency’s ambition in life ?
मोन्टमोरेन्सी के जीवन की महत्त्वाकांक्षा क्या है ?

2. What is Montmorency’s highest aim and object ?
मोन्टमोरेन्सी का सर्वोच्च लक्ष्य व उद्देश्य क्या रहता है ?

3. Where did Montmorency sit down ?
मोन्टमोरेन्सी कहाँ बैठ गया ?

4. Who was Montmorency ?
मोन्टमोरेन्सी कौन था ?

5. Who came and sat down on the things ?
कौन आया व चीज़ों पर बैठ गया ?

6. How did the dog spoil the jam ?
कुत्ते ने मुरब्बे को किस प्रकार से खराब कर दिया ?

7. When was the packing finished ?
पैकिंग कब समाप्त हुई ?

8. When does Montmorency’s conceit become quite unbearable ?
मोन्टमोरेन्सी का अहंकार कब बिल्कुल असहनीय हो जाता है ?

9. Find from the passage the word which is the opposite of – ‘discourage’

10. Find from the passage the words which mean : ‘get scolded’
Answer:
1. Montmorency’s ambition in life is to get in the way and be cursed or scolded.
मोन्टमोरेन्सी के जीवन की महत्त्वाकांक्षा है कि वह काम में व्यवधान डाले और उसे कोसा जाये।

2. Montmorency’s highest aim and object is to get somebody to stumble over him and curse him steadily for an hour.
मोन्टमोरेन्सी का सर्वोच्च लक्ष्य यह रहता है कि कोई उससे ठोकर खाकर गिरे और लगातार एक घण्टे तक उसे कोसता रहे ।

3. Montmorency sat down on the things which were wanted to be packed.
मोन्टमोरेन्सी उन वस्तुओं पर बैठ गया जिन्हें पैक किया जाना था ।

4. Montmorency was a dog.
मोन्टमोरेन्सी एक कुत्ता था ।

5. The dog, Montmorency came and sat down on the things.
कुत्ता मोन्टमोरेन्सी आया व चीजों पर बैठ गया ।

6. By putting his leg into the jam, the dog spoiled it.
मुरब्बे में पैर रखकर कुत्ते ने इसे खराब कर दिया ।

7. The packing was finished at 12:50.
पैंकिंग 12:50 पर समाप्त हुई ।

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8. When Montmorency succeeds in accomplishing his aim, his conceit becomes quite unbearable.
जब मोन्टमोरेन्सी अपने लक्ष्य को पूरा करने में सफल हो जाता है तब उसका अहंकार बिल्कुल असहनीय हो जाता है ।

9. encourage

10. be sworn at

Packing Summary and Translation in Hindi

About The Lesson

यह हास्यास्पद कहानी उन तीन मित्रों की है जो यात्रा पर जाने से पूर्व सामान को पैक करते हैं । पहले वर्णनकर्ता सामान पैक करता है पैकिंग करने में वह कई बार आवश्यक वस्तुओं को पैक करना भूल जाता है तो कभी उन चीजों को पैक करता है जिन्हें पैक नहीं करना चाहिए । फिर उसके दो मित्र गलत तरीके से पैकिंग प्रारंभ करते हैं और इसी बीच उनका कुत्ता मोंटी उनके कार्य करने में दखल देता है । पूरी कहानी हास्य (विनोद) से भरी है|

Who is who in the lesson

1. Jerome K. Jerome : The narrator who considers himself to be the world’s best packer.
जेरोम के. जेरोम : यह वर्णनकर्ता का नाम है जो खुद को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ सामान पैक करने वाला मानता है।

2. Harris : A friend to Jerome He was extremely relaxed when Jerome offered him to do the packing.
हैरिस : जेरोम का मित्र करने का प्रस्ताव रखा।
वह जो पूर्ण रूप से आराम की स्थिति में था जब जेरोम ने उसके समक्ष सामान पैक

3. George : Another friend of Jerome- He also enjoyed seeing Jerome do all the work.
जॉर्ज : जेरोम का दूसरा मित्र – वह उसे काम करते देख आनन्दित होता था ।

4. Montmorency: Pet dog of Jerome.
मोंटमारेन्सी (उर्फ मोन्टी) : जेरोम का पालतू कुत्ता।

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Before You Read
(पढ़ने से पूर्व )

  • क्या आप यात्राओं पर जाना पसन्द करते हैं ? आप किस प्रकार की यात्राओं का सर्वाधिक आनन्द लेते हैं ?
  • यात्रा के लिए पैकिंग करते समय आप कैसा अनुभव करते हैं ?
  • क्या किसी यात्रा पर जाते समय आपको कभी ऐसा लगा है कि आप ऐसी कुछ चीजें भूल आये हैं जिनकी आपको बहुत अधिक आवश्यकता है या वे चीजें आपको आसानी से नहीं मिल पाती हैं ?
  • क्या इस बात पर आपकों गुस्सा आता है या यह बात आपको स्वयं पर हँसाती है ?
  • लेखक और उसके मित्र किस प्रकार सामान पैक करते हैं, यह जानने के लिए इस विवरण को पढ़िये।

Word-Meanings and Hindi Translation

1. I said I’d pack …………….. lit a cigar. (Page 82)

Word Meanings : rather (रादॅर) = quite, to some extent, काफी, किसी हद तक । pride myself on = am proud of myself, मुझे स्वयं पर गर्व है। packing (पैकिंग् ) = पैक करना, सामान बाँधना । living (लिविंग्) one who is alive, जीवित | surprises (सॅप्राइज़िज़) = wonders, चकित करता है । impressed (इम्प्रेस्ट) made someone feel, मन में बैठा दी । fact (फैक्ट्) = something that you know is true, तथ्य, वास्तविकता । had better leave = it would be better if they leave the work of packing to me, (मुझ पर ) छोड़ दें तो ज्यादा अच्छा है |whole (होल् ) = complete, सम्पूर्ण, सारा ।

matter ( मैटर्) = a subject or situation, मामला, बात entirely (इन्टाइअर्लि) = completely, पूर्णत:, पूरी तरह से | fell into (फैल् इन्दु) = accepted, स्वीकार कर लिया । suggestion ( सजेश्वन ) = an idea that somebody mentions, सुझाव | readiness (रेडिनस् ) state of being prepared, तत्परता, मुस्तैदी । uncanny (अन्कैनि) = strange, weird, विचित्र, रहस्यमय । spread (स्प्रैड्) = sat easily, (यहाँ) सहजता से बैठ गया easy-chair (ईज़ी-चेयर् ) = an easy chair with arms, आराम-कुर्सी । cocked (कॉक्ट) = raised the legs and kept, उठाकर ऊपर रख लीं ।

हिन्दी अनुवाद मैंने कहा कि ( सामान) मैं पैक कर लूँगा । किसी हद तक मैं अपनी पैकिंग अर्थात सामान पैक करने के ढंग पर गर्व का अनुभव करता हूँ । मेरे उन अनेक कार्यों में पैकिंग एक ऐसा काम है जिसमें मैं स्वयं को किसी भी अन्य जीवित व्यक्ति से अधिक कुशल मानता हूँ ( यह बात स्वयं मुझे कभी-कभी चकित करती है कि ऐसी कितनी चीजें हैं जिनके बारे मैं किसी अन्य से अधिक जानता हूँ ।) । मैंने जॉर्ज और हैरिस के मन में यह बात बैठा दी और उनसे कह दिया कि इस सारे काम को वे पूर्णतः मुझ पर छोड़ दें तो ज्यादा अच्छा है । उन्होंने इस सुझाव को इतनी तत्परता से मान लिया कि इससे ( मुझे) कुछ विचित्र – सा लगा । जार्ज स्वयं एक आराम कुर्सी पर सहजता से बैठ गया और हैरिस ने भी अपनी टाँगों को मेज पर रख लिया।

2. This was hardly ……… I’m working. (Pages 82-83)

Word Meanings: hardly (हाड्लि) = not really, बिल्कुल नहीं । intended (इन्टेण्डिड्) = had a plan, इरादा था । what I had meant = which was my plan, जो मेरा मतलब था । of course ( ऑव् कोर्स्) = naturally, ` वास्तव में । boss (बॉस्) = to give orders to someone, रौब जमाना, नियंत्रण करना । potter about (पॉटर् अबाउट्) = do some unimportant things, छोटे-मोटे काम करना । directions ( डिरेक्शन्ज़) = instructions निर्देशन । pushing (पुशिंग्) = dashing, धक्का देते हुए | aside (असाइड् ) = to one side, एक ओर, दूर। every now and then = again and again, बार-बार | enough (इनफॅ) = sufficient, पर्याप्त, काफी । their taking it in the way = their accepting my proposal in this way, मेरी बात को उनके द्वारा इस रूप में लेना । irritated (इरिटेटिड् ) = made angry, चिढ़ा दिया ।

हिन्दी अनुवाद – यह बिल्कुल वैसा नहीं था जैसा, मेरा इरादा था । वास्तव में मेरा आशय यह था कि मैं इस काम पर नियंत्रण रखूँ या रौब जमाऊँ तथा हैरिस एवं जॉर्ज मेरे निर्देशन में छोटे-मोटे काम क मैं उन्हें बार- बार एक ओर धक्का देते हुए और “अरे ! तुम !”, “यहाँ, इस काम को मुझे करने दो ।” “समझें, कितना आसान है !” आदि कहते हुए उन्हें वास्तव में सिखाता रहूँ जैसा कि आप कह सकते हैं। मेरी इस बात को उनके द्वारा इस रूप में लेने से अर्थात् जैसा उन्होंने किया उसने तो मुझे चिढ़ा दिया था । दूसरे लोगों को कुछ न करते हुए देखकर मुझे अपेक्षाकृत तब ज्यादा चिढ़ हो जाती है जब मैं काम कर रहा होता हूँ।

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3. I lived with a man…………… I can’t help it. (Page 83)

Meanings:mad ( मैड् ) = insane, पागल । loll (लॉल् ) = lie lazily, लेटे या पड़े रहना । watch (वॉच्) = to see, देखना | doing things = working, काम करते हुए । by the hour together = घंटों तक । it did him real good = he felt happy to see me like this, यह उसको बड़ा अच्छा लगता था । messing about (मैसिंग् अबाउट्) = to spend time doing things unuseful, समय गँवाना, इधर-उधर के काम करना । sit still (सिट् स्टिल् ) = sitting quietly, निश्चल बैठे रहना | slaving (स्लेविंग् ) = working hard like a slave, कठोर परिश्रम करते हुए, काम में पिसते हुए | superintend ( स्यूपरिन्टेण्ड् ) = supervise, देख-रेख करना, पर्यवेक्षण करना । energetic (एनॅजेटिक् ) = full of energy, ऊर्जस्वी, कर्मठ । nature (नेचर् ) = qualities or character of a person, स्वभाव। help (हेल्प्) = avoid, बचना, टालना ।

हिन्दी अनुवाद – एक बार मैं एक ऐसे आदमी के साथ रहता था जो मुझे काम में इसी तरह पागल बना दिया करता था। वह सोफा पर लेट जाता था और घंटों तक मुझे काम करते हुए देखा करता था । वह कहता था कि मुझे इधर-उधर के काम करते हुए देखकर उसको बड़ा अच्छा लगता था । अब मैं वैसा नहीं हूँ । मैं दूसरे व्यक्ति को कठिन परिश्रम करते हुए और काम करते हुए देखकर शांत नहीं बैठ सकता। मैं खड़ा होना चाहता हूँ और पर्यवेक्षण ( देख-रेख ) करना चाहता हूँ, मैं अपनी जेबों में हाथ डालकर घूमता रहूँ और उसको यह बताता रहूँ कि क्या करना है । यह मेरा कर्मठ स्वभाव है। ऐसा किये बिना मैं नहीं रह सकता ।

4. However, I did not ………… make me so wild. (Page 83)

Meanings : however (हाउएवर्) फिर भी । anything ( एनिथिंग् ) = कुछ भी । started (स्टाटिड्) = प्रारम्भ कर दिया । seemed ( सीम्ड् ) = प्रतीत हुआ | longer job = task which took a long time, ज्यादा बड़ा काम | ain’t (एन्ट् ) = are not strapped ( स्ट्रेप्ट्) फी बाँध दिये । round (राउण्ड) सभी ओर । had forgotten (हैड फ़रगॉटन) = भूल चुका था । irritating (इरिटेटिंग् ) = annoying, चिढ़ाने वाली । senseless (सेन्सलिस्) = having no purpose, निरर्थक, (यहाँ ) मूर्खतापूर्ण । laughs (लाफ्स्) = हँसी | wild (वाइल्ड्) = mad, पागल, क्रोधोन्मत्त ।

हिन्दी अनुवाद – फिर भी मैंने कुछ नहीं कहा, केवल सामान बाँधना प्रारम्भ कर दिया । मैंने इस कार्य को जितना किया जाना समझा था, मुझे यह कार्य उससे कहीं ज्यादा बड़ा प्रतीत हुआ; किन्तु आखिरकार मैंने बैग ( थैला) तैयार कर ही लिया और मैं इसके ऊपर बैठ गया और इसके फीते बाँध दिये । ‘क्या तुम इसमें जूते नहीं रखोगे ?” हैरिस ने कहा । और मैंने चारों ओर देखा और पाया कि मैं उन्हें भूल ही गया था । अर्थात् बिल्कुल हैरिस की तरह ही । (जिस तरह हैरिस बैग बाँधने से पहले बताना भूल गया था उसी तरह मैं जूते रखना भूल गया था ।) वह वास्तव में तब तक एक भी शब्द नहीं बोला था जब तक मैंने बैग ( थैला) को बन्द कर फीते नहीं बाँध दिये थे । और तभी जॉर्ज हँस पड़ा – उसकी हँसी चिढ़ाने वाली व मूर्खतापूर्ण थी । उसकी इस प्रकार की हँसी की क्रियाएँ तो मुझे इस तरह से पागल ही बना देती हैं ।

5. I opened the bag ………. pocket-handkerchief. (Page 83)

Meanings: opened (ओपन्ड् ) = खोला । was going to close = was about to close, लगभग बन्द करने वाला था । horrible (हॉरब्ल्) = terrible, भयंकर, भयानक । idea (आइडिया ) = thought, विचार | occurred (अकर्ड) = came into mind, मन में आया, सूझा । whether ( वेदर) = कि क्या । haunts (हॉन्ट्स) = repeatedly gives trouble, बार-बार तंग करता है, पीछे पड़ता है । travel (ट्रेवल् ) = यात्रा करना । misery (मिज़रि) = full of tension, दुःखद |

dream ( ड्रीम ) = स्वप्न देखना | wake ( वेक् अप) = जागता हूँ । perspiration (पॅ:स्पॅरेशन्) = sweating, पसीना । hunt ( हण्ट्) = search, खोज करना, ढूँढ़ना । unpack (अन्पैक्) = खोलना। turn out (टॅ:न आउट्) = बाहर निकालना । forget (फर्गेट् ) = not able to remember भूलना । rush (रश्) = to move with great speed, झपटना, वेगपूर्वक आगे बढ़ना । upstairs (अॅपस्टेअर्ज़) = upper storey, ऊपरी मंजिल । moment (मॉमण्ट्) = क्षण | carry (कैरि) = ले जाना | wrapped up (रैप्ट् अप्) = covered in, लपेटा हुआ । handkerchief ( हैकंर्ची) = रूमाल ।

हिन्दी अनुवाद मैंने बैग खोला और जूतों को अन्दर पैक कर दिया और तब जैसे ही मैं इसे बन्द करने वाला था, एक भयानक विचार मेरे मन में आया । क्या मैंने अपना टूथब्रश पैक कर दिया था ? मैं नहीं जानता कि यह कैसे हो जाता है किन्तु मैं तो कभी भी यह नहीं जान पाता हूँ कि क्या मैंने अपना टूथब्रश पैक कर दिया है या नहीं। मेरा टूथब्रश ही एक ऐसी वस्तु है जो मुझे तंग करती रहती है जब मैं यात्रा कर रहा होता हूँ, और यह मेरे जीवन को दुःखद बना देती है ।

मैं स्वप्न देखता हूँ कि मैंने इसे पैक नहीं किया है और मैं घबराहट के साथ पसीने-पसीने होकर जाग जाता हूँ, तथा बिस्तर से उठता हूँ और इसे ढूँढता हूँ । और प्रातः काल में, मैं इसका उपयोग करने से पूर्व ही इसको पैक कर देता हूँ । और मुझे इसे लेने के लिए बैग को पुनः खोलना पड़ता है और यह हमेशा अन्तिम वस्तु होती है जिसे मैं बैग से निकालता हूँ; और तब मैं बैग को पुनः पैक करता हूँ और इसे ( बैग में रखना) भूल जाता और बिल्कुल अन्तिम क्षणों में मुझे इसको लेने के लिए ऊपर की मंजिल पर भागना पड़ता है और इसे अपने रूमाल लपेटकर रेलवे स्टेशन ले जाना पड़ता है ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 7 Packing

6. Of course I had ………. repacked once more. (Pages 83-84)

Meanings : of course ( ऑव् कोर्स) = certainly, वास्तव में, निस्सन्देह । every mortal thing (एव्रि मॉर्टल थिंग् ) = every ordinary thing, प्रत्येक साधारण वस्तु । rummaged (रॅमिड्) = moved things and made them untidy while looking for something, कुछ ढूँढ़ते हुए चीजें इधर-उधर फैलाया । the world was created = here as things were kept so disordered as they were before packing, बैग में सभी वस्तुएँ उतनी ही अव्यवस्थित थीं जितनी पैकिंग से पूर्व थी । chaos (केऑस) = disorder, अव्यवस्था । reigned (रेन्ड् ) = ruled, आधिपत्य था, बोलबाला था । own (ओन् ) = something belongs to a person, स्वयं का | held up (हैल्ड् अप्) = raised upwards after catching them, पकड़कर उठाया । shook (शुक्) = moved with short quick movements, हिलाया । found (फाउण्ड्) = discovered unexpectedly, पाया । inside (इन्साइड्) = अन्दर |

हिन्दी अनुवाद – निस्सन्देह, अब मुझे प्रत्येक साधारण वस्तु को बाहर निकालना पड़ा और वास्तव में मुझे यह (मेरा टूथब्रश) नहीं मिल सका । मैंने टूथब्रश ढूँढ़ते समय वस्तुओं को इस तरह इधर-उधर फैलाया जैसे कि उनकी स्थिति दुनिया बनने से पहले और अराजकता के समय रही होगी अर्थात् मैंने वस्तुओं को बहुत बुरी तरह फैला लिया था । वास्तव में, मुझे जॉर्ज और हैरिस का टूथब्रश तो अठारह बार मिल गया अर्थात बार – बार मिल जाता किन्तु मुझे मेरा स्वयं का टूथब्रश नहीं मिल सका । मैंने एक-एक कर वस्तुओं को वापिस रखा, प्रत्येक वस्तु को उठाया और हिलाया । तब मुझे यह टूथब्रश एक जूते में मिला। मैंने एक बार और पैकिंग की ।

7. When I had finished …………. they had a go. (Page 84)

Meanings:had finished ( हेड फिनिश्ट ) = completed the work of packing the bag, बैग की पैकिंग का काम समाप्त कर चुका था। didn’t care a hang did not care a little, जरा भी चिन्ता नहीं थी, बिल्कुल भी परवाह नहीं थी । slammed ( स्लैम्ड् ) = banged quickly, जोर से बन्द किया, धम से बन्द किया । re-open (रि- ओपन) = पुनः खोलना | finally (फाइनॅलि) = अन्तत:। remained (रिमेन्ड् ) = left over, शेष रह गया, बाकी रह गया । hampers (हैम्पॅज़) = large baskets for carrying food, डलियाँ, टोकरियाँ | he and George had better do the rest = वह (हैरिस) और जॉर्ज शेष काम करेंगे | agreed ( एग्रीड् ) = had the same opinion, सहमत हो गया । they had a go = they had started packing other articles, उन्होंने दूसरी चीजों की पैकिंग का काम शुरू कर दिया।

हिन्दी अनुवाद – जब मैं पूरी पैकिंग समाप्त कर चुका था तो जॉर्ज ने पूछा कि क्या साबुन अन्दर रख दिया है । मैंने कहा कि मैं इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं करता कि साबुन अन्दर है या नहीं है; और मैंने धम से (जोर से) बैग बन्द कर दिया और इसके फीते बाँध दिये। फिर मुझे पता चला कि मैंने अपना चश्मा इसमें बाँध दिया था और मुझे बैग को पुनः खोलना पड़ा । अन्त में रात्रि को 10 बजकर 5 मिनट पर बैग बन्द हुआ और फिर टोकरियों को रखने का काम बाकी रह गया । हैरिस बोला कि हमें बारह घण्टे से भी कम समय में प्रस्थान करना चाहिए और इससे उसका विचार यह था कि वह और जॉर्ज शेष काम करेंगे; मैं सहमत हो गया। बैठ गया और उन्होंने (दूसरी चीजों की पैकिंग का) काम शुरू कर दिया ।

8. They began in …………. with a teaspoon. (Pages 84-85)

Meanings: began (बिगेन् ) = started, प्रारम्भ किया । light-hearted spirit (लाइट हाटिड् स्पिरिट ) = in a gay and easy way, सहज भाव से, आराम से। evidently (एविडॅण्ट्ल) = clearly, स्पष्ट रूप से । intending (इन्टेन्डिङ) = इरादा करते हुए | show (शो) = दर्शाना । comment (कमेण्ट् ) = remark, टिप्पणी । waited (वेटिड् ) = stayed in a particular place, इन्तजार किया । exception (इक्सेप्शन् ) = a person or a thing that is not included, अपवाद | worst ( वस्ट्) सबसे बुरा ।

piles (पाइल्ज़) = heaps, ढेर 1 pies (पाइज़) = some eatable things like, ‘Kachauri’, कचौड़ियाँ | stoves (स्टव्ज़ ) स्टोव | felt (फेल्ट्) experienced a particular emotion, महसूस किया । exciting ( इक्साइटिंग् ) = provoking, उत्तेजक । breaking (ब्रेकिंग्) making something separate into two or more pieces, तोड़कर । interested ( इन्ट्रिस्टिड् ) =sharing curiosity, आकृष्ट, दिलचस्पी लेने वाला | strawberry (स्ट्रॉबेरि) स्ट्राबेरी, हिसालू (बेर . जैसा फल ) । jam (जैम्) = a sweet substance, मुरब्बा, जाम | squashed ( स्क्वैश्ट) = crushed, कुचल दिया, भुरता बना दिया | pick out (पिक् आउट्) = बाहर निकालना । teaspoon ( टीस्पून् ) छोटी चम्मच |

हिन्दी अनुवाद उन्होंने सहज भाव से काम शुरू किया, स्पष्ट रूप से उनका इरादा मुझे यह दर्शाने का था कि यह काम कैसे किया जाता है । मैंने कोई टिप्पणी नहीं की; मैंने केवल इन्तजार किया । जॉर्ज के अपवाद के साथ हैरिस इस संसार में सबसे बुरा सामान पैक करने वाला पैकर है; और मैंने प्लेटों, प्यालों, केतलियों, बोतलों, जारों, कचौड़ियों, स्टोवों, केकों, टमाटरों आदि के ढेरों को देखा और महसूस किया कि शीघ्र ही यह काम उत्तेजक बन जायेगा । ऐसा ही हुआ । उन्होंने एक कप को तोड़ते हुए इसकी शुरुआत की । यह पहला काम था जो उन्होंने किया । उन्होंने यह काम बस तुम्हें यह दिखाने के लिए किया कि वे क्या कर सकते थे और तुम्हें किस प्रकार आकृष्ट कर सकते थे । फिर हैरिस ने स्ट्राबेरी के मुरब्बे को एक टमाटर के ऊपर रख दिया और इसे ( टमाटर को) कुचल दिया । और . उन्हें कुचले हुए टमाटर को एक छोटे चम्मच से बाहर निकालना पड़ा ।

9. And then it was George’s …………. the pies on. (Pages 85-86)

Meaning: turn (टॅन) = chance, number, बारी । trodon (ट्रोड् ऑन् ) = stepped on, पैर रख दिया अर्थात् कुचल दिया | butter (बटर) = मक्खन । anything ( एनिथिंग् ) = कुछ भी । edge (एज्) = कोर, किनारा । watched (वॉच्ट्) = kept an eye on, देखा | irritated ( इरिटेटिड् ) = annoyed चिढ़ाया । nervous (नॅ: वॅस) बेचैन, व्यग्र । excited. (इक्साइटिड् ) = stimulated, उत्तेजित कर दिया। they stepped on things = they put their steps on things, उन्होंने अपने पैर वस्तुओं पर रख दिए । smashed ( स्मैश्ट) = crushed, चकनाचूर कर दिया, कुचल दिया ।

हिन्दी अनुवाद – और अब जॉर्ज की बारी थी और उसने मक्खन पर पैर रख दिया अर्थात् मक्खन को पैरों से कुचल दिया । मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन मैं आया और टेबल के किनारे पर बैठ गया और उन पर नजर रखी । मेरे कुछ कहने से वे इतने नहीं चिढ़ते जितने कि मेरे इस तरह देखने से चिढ़ गये। मैंने ऐसा महसूस किया। इस बात ने उनको बेचैन व उत्तेजित कर दिया । उन्होंने वस्तुओं पर पैर रख दिए और वस्तुओं को अपने पीछे रख दिया और फिर जब उन्हें उनकी जरूरत पड़ी तो उन्हें वे वस्तुऐं नहीं मिल सकीं । और उन्होंने कचौड़ियों को सबसे नीचे पैक कर दिया और भारी वस्तुएँ ऊपर रख दीं और इस तरह कचौड़ियाँ को अन्दर ही चकनाचूर कर दिया ।

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10. They upset salt …………. over the room. (Page 86)

Meanings: upset (अपसेट् ) = scattered, गड़बड़ कर देना, उलट दिया । salt ( साल्ट्) = a common white substance, नमक । do more (डू मोर) = और अधिक करों । worth (वॅ: थ) = value, मूल्य 1 whole (होल्) = complete, सम्पूर्ण । got off (गॉट् ऑफ) = (here) removed, हटा लिया, छुड़ा लिया | slipper (स्लिपर) = चप्पल | tried (ट्राइड्) = प्रयास किया। kettle (केटॅल्) केतली | scrape (स्क्रेप्) = खुरचना | stuck (स्टक् ) = glued, चिपक गया । went looking for = remained searching, तलाशते रहे।

हिन्दी अनुवाद उन्होंने ( जार्ज व हैरिस ने) सारी चीजों पर नमक गिरा दिया और रही मक्खन की बात ! मैंने कभी भी अपने सम्पूर्ण जीवन में दो व्यक्तियों को एक या दो पेन्स मूल्य के मक्खन पर इतना अधिक काम करते हुए नहीं देखा जितना कि ये दोनों कर रहे थे । जॉर्ज ने अपनी चप्पल से मक्खन को हटाया उसके बाद उन्होंने ( जार्ज व . हैरिस ने) इसको केतली में रखने का प्रयास किया । यह केतली के अन्दर नहीं जा पाया और जितना अन्दर गया वह बाहर नहीं निकल सका ! आखिरकार उन्होंने तो इसे ( मक्खन को ) खुरच कर बाहर निकाला और एक कुर्सी पर रख दिया और हैरिस उस कुर्सी पर बैठ गया और इस प्रकार मक्खन उससे चिपक गया और वे इसे ( मक्खन के खुरचे हुए भाग को) पूरे कमरे में तलाशते रहे ।

11. “I’ll take my oath …………….. it in the teapot. (Page 86)

Meanings : I’ll take my oath = I swear, मैं सौगन्ध खाता हूँ । staring (स्टेअरिंग्) = looking fixedly, घूरते हुए | empty (एम्प्टि) = vacant, खाली, रिक्त | centre ( सेन्टर् ) the middle point, केन्द्र | extraordinary (इक्स्ट्रा ऑर्डिनॅरि) = असाधारण । ever (एवर्) = at any time, कभी । mysterious (मिस्टिॲरिॲस्) = impossible or difficult to understand, रहस्यमय | exclaimed (इक्स्क्लेम्ड्) cried, चिल्ला उठा । indignantly (इन्डिग्नॅट्लि) = angrily, क्रोधपूर्वक, रोषपूर्वक | spinning ( स्पिनिंग् ) = turning around, घूमते हुए, चक्कर खाते हुए । stand still (स्टैण्ड् स्टिल् ) = remain standing quietly, शान्त खड़े रहो । roared (रॉई) = shouted very loudly, दहाड़ा, चिल्लाया । flying after ( फ्लाइंग आफ्टर) running after पीछे भागते हुए। got off (गॉट ऑफ् ) (here) removed, छुड़ाया ।

हिन्दी अनुवाद – ” मैं अपनी सौगन्ध खाता हूँ कि मैंने इसे ( मक्खन को) उस कुर्सी पर रखा था, ” जॉर्ज खाली कुर्सी को घूरते हुए बोला ।
“ मुश्किल से एक मिनट पूर्व ही मैंने स्वयं तुम्हें इसे रखते हुए देखा था । ” हैरिस ने कहा । फिर उन्होंने इसे तलाशते हुए पुनः कमरे का चक्कर लगाना शुरू किया; और फिर वे पुनः कमरे के बीच में मिले और उन्होंने एक-दूसरे को घूरकर देखा ।
” मेरे द्वारा अब तक सुनी गई यह सर्वाधिक असाधारण बात हैं”, जॉर्ज ने कहा ।
” इतनी रहस्यमय !” हैरिस बोला ।
फिर जॉर्ज, हैरिस के पीछे गया और उसने मक्खन को उसके पीछे लगा देखा ।
“क्यों, यह पूरे समय से यहाँ लगा हुआ है”, वह क्रोधपूर्वक चिल्लाया ।
‘कहाँ ?” हैरिस घूमते हुए चिल्लाया ।
‘शान्त खड़े रहो, क्या तुम शान्त नहीं खड़े रह सकते ।” जार्ज उसके पीछे भागते हुए दहाड़ा । और उन्होंने इसे (मक्खन को) छुड़ाया और इसको चायदान में पैक कर दिया ।

12. Montmorency was …………….. quite unbearable. (Pages 86-87)

Meanings: Montmorency ( मोन्टमोरेंसी) = the name of a dog, कुत्ते का नाम I ambition (एम्बिशन् ) = a strong desire, महत्त्वाकांक्षा । be sworn at (बी सोर्न एट्) = (here) get scolded, कोसा जाये, गाली दी जाये। squirm (स्क्वॅ:म ) = moving discomfortly, तड़पना, छटपटाना। particularly (प्प้टक्युल ःलि) = specially, विशेष रूप से । perfect (पॅॅफेक्ट्) = complete, पूर्ण । nuisance (न्यूसॅॅ्स्) =a person causing inconvenience, उपद्रवी । thrown at (थ्रोन् एट् ) = caused to move swiftly through space, फेंका जाना ।

wasted (वेस्टिड्) = बर्बाद किया । stumble (स्टॅम्ब्ल्) = to walk in an unsteady way and fall down, ठोकर खाकर गिरना | curse (कॅ:स) कोसना । steadily (स्टेडिलि) = continuously, निरन्तर, लगातार | highest (हाइएस्ट्) = सर्वोच्च | aim (एम) = purpose, goal, लक्ष्य | object (ऑब्जिक्ट् ) = aim, उद्देश्य । succeeded ( सक्सीड्डि ) = सफल हुआ । accomplishing (अकम्प्लशिंग्) = completing, पूरा करना । conceit ( कॅन्सीट्) = too much pride in himself, अहंकार, घमण्ड | unbearable (ॲन्बेॲटॅब्ल्) intolerable, असहनीय |

हिन्दी अनुवाद – मोन्टमोरेंसी (एक कुत्ते का नाम ) निस्सन्देह इस सारी प्रक्रिया के बीच में उपस्थित था और वास्तव में, मोन्टमोरेंसी की जीवन में एक ही महत्त्वाकांक्षा रही है कि वह काम में व्यवधान डाले और उसे कोसा जाये । यदि वह कहीं ऐसी जगह छटपटाता हुआ पहुँच जाये जहाँ विशेष रूप से उसे नहीं चाहा जाता है तो वह पूरी तरह उपद्रवी बन जाता है और लोगों को पागल कर देता है और जब उसके सिर पर चीजें फेंकी जाती हैं तब वह महसूस करता है कि उसका दिन बर्बाद नहीं हुआ है। उसका सर्वोच्च लक्ष्य यही होता है कि कोई उससे ठोकर खाकर उसके ऊपर गिरे और लगातार एक घण्टे तक उसे कोसता रहे; और जब वह इस कार्य को पूरा करने में सफल हो जाता है तो उसका अहंकार बिल्कुल असहनीय हो जाता है ।

13. He came and sat ……….. the frying-pan. (Pages 87-88)

Meanings : laboured (लेबर्ड) = worked hard, मेहनत करता था । fixed (फिक्सड् ) = firm, already decided, नियत, पक्का | belief ( बिलीफ) = an acceptance, विश्वास | whenever ( व्हेनएवर ) = at any time, जब कभी । reached out (रीच्ट आउट् ) = (here) stretched out, आगे बढ़ाते थे । cold (कोल्ड् ) = ठण्डी । damp (डैम्प्) = slightly wet, नम, गीली । worried (वरीड् ) = disturbed, (यहाँ) अस्तव्यस्त कर दिया, बिखेर दिया | pretended ( प्रिटेन्डिड ) = made a false show, अभिनय करता, दिखावा करता । lemons ( लेमन्ज़ ) नींबू | hamper (हैम्पर) = basket with cover, ढक्कन वाली टोकरी | killed ( किल्ड् ) = (here) crushed or made them useless, (यहाँ ) खराब कर दिये । land = ( here ) hit, ( यहाँ) मारना या पीटना | frying-pan (फ्राइंग पान् ) = a shallow metal container with a long handle used for cooking food, कड़ाही, तवा

हिन्दी अनुवाद – जिस समय चीजों को पैंक किया जाना था ठीक उसी समय वह उन चीजों पर आकर बैठ गया; और वह इस पक्के विश्वास के साथ मेहनत करता रहा कि जब कभी हैरिस या जॉर्ज किसी वस्तु के लिए अपना हाथ बढ़ायें तो उनके हाथ में उसकी ठण्डी गीली नाक ही आये । उसने मुरब्बे में अपना पैर डाल दिया और उसने छोटी चम्मचों को बिखेर दिया फिर उसने इस प्रकार दिखावा किया मानो नींबू चूहे हों और इससे पहले कि हैरिस उसे तवे या कड़ाही से पीट सके, वह टोकरी में घुस गया और उसने उनमें से तीन नींबू खराब कर दिये ।

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14. Harris said …………. went upstairs. (Page 88)

Meanings: encouraged (इन्करिज्ड् ) = provoked, प्रोत्साहित किया | encouragement (इन्करिज्मन्ट्) inspiration, प्रोत्साहन | natural (नैचुरल् ) = स्वाभाविक । original (ऑरिजिनल) inborn, मौलिक। sin (सिन्) = दोष, पाप । makes him do (मेक्स हिम डू) = compels him, उसको मजबूर करती है। was done (वॉज़ डन्) = was completed, समाप्त हुई । hoped ( होप्ट) = expected, आशा की । reflection ( रिफ्लेक्शन् ) = thought, विचार | comfort (कॅमफॅट् ) = to try to make somebody feel less worried, सान्त्वना देना, दिलासा देना। upstairs (अप्स्टेॲर्ज़) = upper storey, ऊपर की मंजिल ।

हिन्दी अनुवाद – हैरिस बोला कि मैंने उसे ( कुत्ते को शरारत करने के लिए) प्रोत्साहित किया। मैंने उसे प्रोत्साहित नहीं किया । इस प्रकार के ( शरारती ) कुत्ते को प्रोत्साहन देने की जरूरत नहीं पड़ती । उसकी स्वाभाविक मौलिक पाप की प्रकृति उसे इस प्रकार की हरकतें करने के लिए मजबूर करती है । पैकिंग रात में 12:50 पर समाप्त हुई और हैरिस बड़ी टोकरी के ऊपर बैठ गया और बोला कि उसे आशा है कि कोई भी चीज नहीं टूटी होगी । जॉर्ज ने कहा कि यदि कोई चीज टूट गई हो तो टूटने दो, ऐसा विचार उसे सान्त्वना देता-सा प्रतीत हुआ । उसने यह भी कहा कि वह सोने के लिए तैयार है । हम सभी सोने के लिए तैयार थे । उस रात हैरिस को हमारे साथ सोना था और हम ऊपर की मंजिल पर चले गये ।

15. We tossed for ………… to bed ourselves. (Page – 88)

Meanings: tossed (टॉस्ट) = threw a coin into the air to make a decision, सिक्का उछालकर निर्णय किया । prefer (प्रिफॅर्) = अधिक पसन्द करना । generally (जेनरलि) = सामान्यतः | odd (ऑङ्) = strange, अनोखी, विचित्र | fellows (कैलोज़) = साथियों, मित्रों । wake (वेक्) = जगाना । a bit of a row (अ बिट् ऑव् अ रो) = a petty quarrel,. छोटा-सा झगड़ा | split the difference = this means that they agreed on 6.30 because it was halfway between six and seven, इसका अर्थ है कि वे 6.30 पर राजी हो गए क्योंकि यह 6 व 7 के मध्य का समय था । bath (बाथ्) स्नानटब, हमाम । tumble (टॅम्ब्ल्) = fall down suddenly, गिर पड़ना, धड़ाम से गिरना ।

हिन्दी अनुवाद हमने पलंगों के लिए सिक्का उछालकर निर्णय किया और हैरिस को मेरे साथ सोना था । वह बोला :
” जेरोम, तुम्हें पलंग के अन्दर की ओर सोना ज्यादा पसन्द है या बाहर की ओर ?” मैंने कहा कि मैं सामान्यतः पलंग के अन्दर की ओर सोना ज्यादा पसन्द करता हूँ । हैरिस ने कहा कि यह अनोखी बात है ।
जॉर्ज ने कहा : “साथियों ! मैं आपको किस समय जगाऊँ ?”
हैरिस ने कहा : ” सात बजे । ”
मैं बोला : “ नहीं – छ: बजे, ” क्योंकि मैं कुछ पत्र लिखना चाहता था । हैरिस और मुझमें इस बात पर थोड़ा-सा झगड़ा हुआ किन्तु अन्त में हमने अंतर को बाँट लिया अर्थात् 6.30 पर राजी हो गये क्योंकि यह 6 व 7 के बीच का समय था और कहा कि साढ़े छः बजे । हमने कहा, “जॉर्ज, हमें साढ़े छः बजे जगा देना ।” जार्ज ने कोई उत्तर नहीं दिया, और हमने वहाँ जाने पर देखा कि वह कुछ समय से सोया हुआ था इसलिए हमने बाथटब अर्थात नहाने के टब को ऐसी जगह रख दिया जहाँ वह प्रातः उठने पर धड़ाम से उसमें गिर पड़े। फिर हम सोने के लिए चले गये ।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 9 शांति

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Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 9 शांति Textbook Exercise Questions and Answers.

Jharkhand Board Class 11 Political Science शांति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
क्या आप जानते हैं कि एक शांतिपूर्ण दुनिया की ओर बदलाव के लिए लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव जरूरी है? क्या मस्तिष्क शांति को बढ़ावा दे सकता है? और क्या मानव मस्तिष्क पर केन्द्रित रहना शांति स्थापना के लिए पर्याप्त है?
उत्तर:
वर्तमान लोकतांत्रिक काल में यदि हम एक शांतिपूर्ण दुनिया चाहते हैं तो लोगों के सोचने के तरीकों में बदलाव लाना आवश्यक है क्योंकि लोगों के मस्तिष्क यदि शांति के बारे में सोचेंगे तो हिंसात्मक गतिविधियाँ अपने आप कम हो जायेंगी। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनिसेफ) के संविधान ने भी यह उचित टिप्पणी की है कि “चूंकि युद्ध का प्रारंभ लोगों के दिमाग में होता है, इसलिए शांति के बचाव भी लोगों के दिमाग में ही रचे जाने चाहिए ।” इस तरह के प्रयास के लिए करुणा जैसे पुराने आध्यात्मिक सिद्धान्त और ध्यान जैसे अभ्यास उपयुक्त हैं। यही कारण है कि आज शांति को बढ़ावा देने के लिए शांतिपूर्ण आन्दोलन जारी हैं। इस आन्दोलन को विभिन्न तबके के लोगों ने बढ़ावा दिया है जिनमें लेखक, वैज्ञानिक, शिक्षक, पत्रकार, पुजारी, राजनेता और मजदूर – सभी शामिल हैं। इस आन्दोलन ने शांति अध्ययन नामक ज्ञान की एक नई शाखा का भी सृजन किया है और इंटरनेट जैसे संप्रेषण के नए माध्यम का कारगर इस्तेमाल भी किया है।

लेकिन केवल मानव मस्तिष्क पर केन्द्रित रहकर शांति की स्थापना नहीं हो सकती। मस्तिष्क तो शांति स्थापना का एक उपाय दे सकता है। इस उपाय को कारगर व उचित ढंग से संरचनात्मक हिंसा को निर्मूल करके ही किया जा सकता है। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा के निर्मूल करने के लिए अनिवार्य है क्योंकि शांति संतुष्ट लोगों के समस्त सहअस्तित्व में ही संभव है। दूसरे, जिस प्रकार विश्व में छः क्षेत्र परमाणु हथियार मुक्त क्षेत्र बने हैं, उस दिशा में अन्य क्षेत्रों को भी पहल करनी होगी। जापान और कोस्टारिका देशों की तरह अन्य देशों को भी सैन्य बल न रखने की दिशा में पहल करनी होगी।

प्रश्न 2.
राज्य को अपने नागरिकों के जीवन और अधिकारों की रक्षा अवश्य ही करनी चाहिए। हालांकि कई बार राज्य के कार्य इसके कुछ नागरिकों के खिलाफ हिंसा के स्रोत होते हैं। कुछ उदाहरणों की मदद से इस पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर- राज्य का प्रथम अनिवार्य एवं आवश्यक दायित्व यह है कि यह सभी का जीवन व उनके अधिकार रखे। इस दायित्व को पूरा करने के लिए राज्य के पास पुलिस, अर्ध सैनिक बल तथा सेनाएँ होती हैं। राज्य कमजोर लोगों को सबलों से, निर्धनों को अमीरों के अन्यायों एवं मनमानी से, चोर, लुटेरों, डाकुओं तथा हत्यारों से सभी की रक्षा करता है।

राज्य नागरिकों को अनेक मौलिक तथा अन्य अधिकार प्रदान करता है। इनकी रक्षा के लिए राज्य पुलिस तथा न्यायपालिका की व्यवस्था करता है। उसी के प्रयासों से कानून के समक्ष समानता तथा कानून का राज्य बना रहता है। यद्यपि राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सेना या पुलिस का प्रयोग अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए करेगा लेकिन व्यवहार में वह इन शक्तियों का प्रयोग अपने ही नागरिकों के विरोध के स्वर को दबाने के लिए करता रहा है राज्य कई बार धारा 144 लागू करता है, कई बार वह कर्फ्यू लगा देता है।

जो लोग राज्य के कुछ निर्णयों, सिद्धान्तों  योजनाओं को अपने विरुद्ध समझकर भूख हड़ताल, प्रदर्शन, आंदोलन आदि करते हैं, तो राज्य कई बार मनमाने ढंग से पुलिस बल का इस्तेमाल करता है। कई बार राज्य अनधिकृत मकानों को गिराता है, सील करता है, तो लोग हिंसा पर उतारू हो जाते हैं और राज्य उनके विरुद्ध भी पुलिस बल का प्रयोग करता है। राज्य का हिंसा का व्यवहार निरंकुश शासन और म्यांमार जैसी सैनिक तानाशाही में सबसे अधिक स्पष्ट दिखता है। जबकि लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों में अपने नागरिकों के जीवन और अधिकारों की रक्षा के अधिक कारगर प्रयत्न किये गये हैं क्योंकि लोकतंत्र में राज्य सत्ता जनता के प्रति जबावदेह होती है।

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प्रश्न 3.
शांति को सर्वोत्तम रूप में तभी पाया जा सकता है जब स्वतंत्रता, समानता और न्याय कायम हो। क्या आप सहमत हैं?
उत्तर:
शांति सर्वोत्तम रूप में स्वतंत्रता, समानता व शांति के वातावरण में ही संभव है – यह विचार पूर्णतया सही है कि शांति को सर्वोत्तम रूप में तभी पाया जा सकता है जब स्वतंत्रता, समानता और न्याय कायम हो।
जहाँ समानता नहीं होगी, वहाँ स्वामी और नौकर के सम्बन्ध या शोषक तथा शोषित के सम्बन्ध हो सकते हैं। ऐसी दशा में भ्रातृत्व तथा पारस्परिक सहयोग की भावना का अभाव होगा। इसी प्रकार जहाँ स्वतंत्रता का वातावरण नहीं होगा, वहाँ कुछ लोग स्वतंत्रता से वंचित हो सकते हैं तथा वे अपने व्यक्तित्व के विकास के समान अवसरों की स्वतंत्रता से वंचित हो सकते हैं; वे अधिक शक्तिशाली लोगों द्वारा शोषित किये जायेंगे, ऐसी स्थिति में उनमें भ्रातृत्व की भावना नहीं हो सकती। इसी प्रकार जहाँ न्याय नहीं होगा, वहाँ कुछ लोग दूसरों के द्वारा शोषित तथा पीड़ित किये जायेंगे।

वे कुछ लोगों की सुविधाओं के लिए उत्पीड़ित किये जायेंगे। ऐसे लोगों में शांति की भावना कैसे पैदा हो सकती है। सन्त एक्विनास के शब्दों में ऐसा राज्य जहाँ न्याय नहीं है, वह राज्य न होकर लुटेरों का समूह है और कोई भी व्यक्ति लुटेरों के बीच में अपने को सुरक्षित और शांतिपूर्ण कैसे महसूस कर सकता है। दूसरे, यदि किसी राज्य में स्वतंत्रता, समानता और न्याय की स्थापना नहीं हुई है, तो वहाँ प्रायः इनकी प्राप्ति के लिए आंदोलन चलते रहते हैं, जिसके कारण वहाँ शांति नहीं हो पाती। अतः समानता तथा स्वतंत्रता के साथ-साथ न्याय भी सर्वोत्तम शांति के रूप की स्थापना के लिए जरूरी है। जिस समाज में समानता, स्वतंत्रता और न्याय विद्यमान होता है, उस समाज के लोग संतुष्ट रहते हैं, उनको अपने व्यक्तित्व के विकास के समान अवसर मिलते हैं तथा उनका शोषण नहीं होता है। वे स्वेच्छा से राज्य के आदर्श का पालन करते हैं तथा समाज में शांति रहती है।

प्रश्न 4.
हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायोचित उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
यह कथन सर्वथा उचित है कि हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायोचित उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता। अक्सर यह दावा किया जाता है कि कभी-कभी हिंसा शांति लाने की अपरिहार्य पूर्व शर्त जैसी होती है। यह तर्क दिया जाता है कि तानाशाहों और उत्पीड़कों को जबरन अर्थात् हिंसा के द्वारा शक्ति से हटाकर ही उनको, जनता का निरन्तर नुकसान पहुँचाने से रोका जा सकता है। या फिर, उत्पीड़ित लोगों के मुक्ति संघर्षों को हिंसा के कुछ इस्तेमाल के बावजूद न्यायपूर्ण ठहराया जा सकता है।

लेकिन अच्छे मकसद से भी हिंसा का सहारा लेना आत्मघाती हो सकता है क्योंकि हिंसा के एक बार शुरू हो जाने पर इसकी प्रवृत्ति नियंत्रण से बाहर हो जाने की होती है और इसके कारण यह अपने पीछे मौत और बर्बादी की एक श्रृंखला छोड़ जाती है। अतः स्पष्ट है कि हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायोचित उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता क्योंकि हिंसा का शिकार व्यक्ति जिन मनोवैज्ञानिक और भौतिक कठिनाइयों व हानियों से गुजरता है, वे उसके भीतर कुंठा पैदा कर देती हैं और ये कुंठाएँ व शिकायतें आने वाली पीढ़ियों में भी पाई जाती हैं जो कभी भी उग्र रूप धारण कर सकती हैं।

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प्रश्न 5.
विश्व में शांति स्थापना के जिन दृष्टिकोणों की अध्याय में चर्चा की गई है, उनके बीच क्या अन्तर है?
उत्तर:
शांति कायम करने के दृष्टिकोण – अध्याय में विश्व में शांति स्थापना के लिए निम्नलिखित तीन दृष्टिकोणों की चर्चा की गई है

1. राष्ट्रों को केन्द्रीय स्थान देना:
पहला दृष्टिकोण राष्ट्रों को केन्द्रीय स्थान देता है, उनकी संप्रभुता का आदर करता है और उनके बीच प्रतिद्वन्द्विता को जीवन्त सत्य मानता है। उसकी मुख्य चिन्ता प्रतिद्वन्द्विता के उपयुक्त प्रबन्धन तथा संघर्ष की आशंका का शमन सत्ता-सन्तुलन की पारस्परिक व्यवस्था के माध्यम से करने की होती है। वैसा एक संतुलन 19वीं सदी में प्रचलित था, जब प्रमुख यूरोपीय देशों ने संभावित आक्रमण को रोकने और बड़े पैमाने पर युद्ध से बचने के लिए अपने सत्ता-संघर्षों में गठबंधन बनाते हुए तालमेल किया।

2. राज्यों की अन्तर्निर्भरता तथा सहयोग:
दूसरा दृष्टिकोण राष्ट्रों की गहराई तक जमी आपसी प्रतिद्वन्द्विता की प्रकृति को स्वीकार करता है, लेकिन इसका जोर सकारात्मक उपस्थिति और परस्पर निर्भरता की संभावनाओं पर है। यह विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक-आर्थिक सहयोग को रेखांकित करता है क्योंकि ये सहयोग राष्ट्र की संप्रभुता को नरम करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय समझदारी को प्रोत्साहित करेंगे। पररणामस्वरूप वैश्विक संघर्ष कम होंगे, जिससे शांति की बेहतर संभावनाएँ बनेंगी। इसका उदाहरण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का यूरोप है जो आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकीकरण की ओर बढ़ता गया है।

3. वैश्वीकरण का दृष्टिकोण:
तीसरा दृष्टिकोण पहली दो पद्धतियों या दृष्टिकोणों से इस रूप में भिन्न है कि यह राष्ट्र आधारित व्यवस्था को मानव इतिहास की समाप्तप्राय अवस्था मानता है। यह अधिराष्ट्रीय व्यवस्था का मनोचित्र बनाता है और वैश्विक समुदाय के अभ्युदय को विश्व शांति की विश्वसनीय गारण्टी मानता है। वैसे समुदायों के बीच बहुराष्ट्रीय निगम और जन आंदोलन जैसे विविध गैर सरकारी कर्ताओं की क्रियाओं में देखे जा सकते हैं। वैश्वीकरण की प्रक्रिया राष्ट्रों की पहले से ही घट गई प्रधानता और संप्रभुता को अधिक क्षीण कर रही है, जिसके फलस्वरूप विश्व: शांति कायम होने की परिस्थिति तैयार हो रही है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि तीनों दृष्टिकोणों में निम्न महत्त्वपूर्ण अन्तर पाये जाते हैं। पहले दृष्टिकोण में संप्रभु राष्ट्र राज्यों को महत्त्वपूर्ण स्थान देकर उनके बीच विद्यमान पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को स्वीकार करते हुए शक्ति-संतुलन पर बल दिया गया है, तो दूसरे दृष्टिकोण में राष्ट्र-राज्यों की पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को स्वीकार तो किया गया है, लेकिन इससे आर्थिक-सामाजिक सहयोग द्वारा शांति स्थापना पर बल दिया गया है, जबकि तीसरा दृष्टिकोण संप्रभुं राष्ट्र राज्यों की व्यवस्था व उसकी प्रतिद्वन्द्विता को ही नकारता है और वैश्वीकरण व वैश्विक समुदाय के माध्यम से विश्व शांति चाहता है।

शांति JAC Class 11 Political Science Notes

→ भूमिका: शांति की वांछनीयता को लेकर ऊपरी आम सहमति अपेक्षाकृत हाल-फिलहाल की घटना है। अतीत के अनेक महत्त्वपूर्ण चिंतकों, जैसे जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे, इटली के समाज सिद्धान्तकार विल्फ्रेडो पैरेटये आदि ने शांति के बारे में नकारात्मक ढंग से लिखा है और इन्होंने संघर्ष तथा ताकत को सभ्यता की उन्नति का मार्ग बताया है। दूसरी तरफ लगभग सभी धार्मिक उपदेशों में शांति को महत्त्व दिया गया है। आधुनिक काल में महात्मा गाँधी व अन्य अनेक चिंतकों ने शांति का प्रबल पक्ष लिया है। शांति के प्रति समकालीन आग्रह के निशान 20वीं सदी के अत्याचारों फासीवाद, नाजीवाद का उदय, विश्वयुद्धों, भारत-पाक विभाजन, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चली प्रचंड हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा व सैनिक प्रतिद्वन्द्विता आदि-घटनाओं में देखे जा सकते हैं।

अगर लोग आज शांति का गुणगान करते हैं तो महज इसलिए नहीं कि वे इसे अच्छा विचार मानते हैं। शांति की अनुपस्थिति की भारी कीमत चुकाने के बाद मानवता ने इसका महत्व पहचाना है। त्रासद संघर्षों के प्रेत हमें लगातार कचोटते रहते हैं। आज जीवन अतीत के किसी भी समय से कहीं अधिक असुरक्षित है क्योंकि हर जगह के लोग आतंकवाद के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं। शांति लगातार बहुमूल्य इसलिए बनी हई है कि इस पर खतरे का सामान हमेशा मौजूद ह ।

→ शांति का अर्थ

  • शांति युद्ध की अनुपस्थिति के रूप में – शांति की परिभाषा अक्सर युद्ध की अनुपस्थिति के रूप में की जाती है। लेकिन यह परिभाषा भ्रामक है। यद्यपि प्रत्येक युद्ध शांति के अभाव की ओर जाता है, लेकिन शांति का हर अभाव युद्ध का रूप ले यह जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए रवांडा या बोस्निया में जो हुआ वह इस तरह का युद्ध नहीं था।
  • शांति सभी प्रकार के हिंसक संघर्षों के अभाव के रूप में शांति की दूसरी परिभाषा युद्ध, दंगा, नरसंहार, कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार समेत सभी प्रकार के हिंसक संघर्षों के अभाव के रूप में की जाती है। लेकिन जाति भेद, वर्ग भेद, पितृसत्ता, उपनिवेशवाद, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता भी हिंसक संघर्ष न होकर ‘संरचनात्मक हिंसा’ है जो अशांतिकारक है।

→ संरचनात्मक हिंसा के विभिन्न रूप-हिंसा प्रायः
समाज की मूल संरचना में ही रची-बसी है। संरचनात्मक हिंसा के बड़े पैमाने के दुष्परिणाम हैं- जातिभेद, वर्गभेद, पितृसत्ता, उपनिवेशवाद, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता। न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्ष के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये ही प्राप्त की जा सकती है।

→ हिंसा की समाप्ति:
करुणा, ध्यान, आधुनिक नीरोगकारी तकनीक, मनोविश्लेषण तथा न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना आदि संरचनात्मक हिंसा को निर्मूल करने के लिए अनिवार्य हैं। शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल नहीं की जा सकती। शांति कोई अंतिम स्थिति नहीं बल्कि ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यापकता अर्थों में मानव कल्याण की स्थापना के लिए जरूरी नैतिक और भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 9 शांति

→ क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है?
प्रायः यह दावा किया जाता है कि हिंसा एक बुराई है लेकिन कभी-कभी यह शांति लाने की अपरिहार्य पूर्व शर्त जैसी होती है। लेकिन अच्छे मकसद से भी हिंसा का सहारा लेना आत्मघाती हो सकता है क्योंकि इसकी प्रवृत्त्रण से बाहर हो जाने की होती है और इसके कारण यह अपने पीछे मौत और बर्बादी की एक श्रृंखला छोड़ जाती है।

शांतिवादी का मकसद प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप पर बल देना है, जैसे सविनय अवज्ञा। नागरिक अवज्ञा के दबाव में अन्यायपूर्ण संरचनाएँ भी रास्ता दे सकती हैं। जैसे गांधी और मार्टिन लूथर किंग ने किया। कभी-कभार वे अपनी विसंगतियों के बोझ से भी ध्वस्त हो सकती हैं, जैसे सोवियत व्यवस्था का विघटन।

→ शांति और राज्य सत्ता:

  • संप्रभु राज्य में हर हालत में अपने हितों को बचाने और बढ़ाने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
  • मानवाधिकार के नाम पर हर राज्य अपने नागरिकों के हितों के नाम पर बाकी लोगों को हानि पहुँचाने को तैयार रहता है।
  • प्रत्येक राज्य ने बल प्रयोग के अपने उपकरणों को मजबूत किया है।
  • विश्व अलग- अलग संप्रभु राष्ट्रों में विभाजित है। इससे शांति के रास्ते में अवरोध उत्पन्न होते हैं।

इन समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान सार्थक लोकतंत्रीकरण और अधिक नागरिक आजादी की एक कारगर पद्धति में है। इसके माध्यम से राज्य सत्ता को ज्यादा जवाबदेह बनाया जा सकता है। इस प्रकार लोकतंत्र एवं मानवाधिकारों के लिए संघर्ष और शांति के सुरक्षित बने रहने के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है।

→ शांति कायम करने के विभिन्न तरीके: शांति कायम करने के विभिन्न तरीके रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • सत्ता संतुलन
  • सामाजिक-आर्थिक सहयोग (आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकीकरण)
  • वैश्वीकरण संयुक्त राष्ट्र के अंग- सुरक्षा परिषद्, आर्थिक-सामाजिक परिषद् और मानवाधिकार आयोग उक्त तीनों ही पद्धतियों के प्रमुख तत्वों को साकार कर सकते हैं।

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→ समकालीन चुनौतियाँ:

  • यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ ने शांति की स्थापना में अनेक उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं, लेकिन वह शांति के खतरों को समाप्त करने में सफल नहीं हुआ है। इसके बजाय
  • दबंग राष्ट्रों जैसे अफगानिस्तान या महाशक्तियों का संप्रभुता का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन करते हुए सीधी सैनिक कार्यवाहियाँ करना, और इराक में अमेरिकी हस्तक्षेप
  • आक्रामक राष्ट्रों के स्वार्थपूर्ण आचरण से आतंकवाद का उदय व विस्तार
  • नस्ल संहार अर्थात् किसी समूचे जनसमूह का व्यवस्थित संहार आदि ने शांति के समक्ष चुनौतियाँ पैदा की हैं।

→ विश्व शांति के सिद्धान्त के पालन के रूप: शांति के समक्ष बढ़ती चुनौतियाँ होने का अर्थ यह नहीं है कि शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त है। शांति का सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है। यथा

  • जापान और कोस्टारिका देशों द्वारा सैन्य बल नहीं रखना।
  • विश्व के अनेक हिस्सों में परमाणविक हथियार के मुक्त क्षेत्र – दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र और मंगोलिया।
  • सोवियत संघ का विघटन और महाशक्तियों की सैनिक प्रतिद्वन्द्विता की समाप्ति।
  • अनेक विश्व शांति आन्दोलनों का जारी रहना तथा उसका विस्तार।
  • महिला सशक्तीकरण तथा पर्यावरण सुरक्षा जैसे आंदोलन|
  • शांति अध्ययन की शाखा का जन्म – इंटरनेट जैसे संप्रेषण के नए माध्यम का कारगर प्रयोग। ये तथ्य आज भी शांति के सिद्धान्त को रेखांकित करते हैं।

निष्कर्ष: शांति के क्रियाकलापों में सद्भावनापूर्ण सामाजिक सम्बन्ध के सृजन और संवर्द्धन के अविचल प्रयास शामिल होते हैं, जो मानव कल्याण और खुशहाली के लिए प्रेरित होते हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Textbook Exercise Questions and Answers.

Jharkhand Board Class 11 Political Science धर्मनिरपेक्षता InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
कुछ ऐसे तरीकों की सूची बनाओ जिनके माध्यम से साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उत्तर:
साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए निम्न तरीके अपनाये जा सकते हैं।
(1) हम आपसी जागरूकता के लिए एक साथ मिलकर काम करें।
(2) लोगों की सोच को बदलने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बल दें
(3) साझेदारी और पारस्परिक सहायता के व्यक्तिगत उदाहरण भी विभिन्न समुदायों के बीच पूर्वाग्रह और संदेहों को कम करने में योगदान दे सकते हैं।
(4) आधुनिक समाज में धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना करके हम साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

पृष्ठ 112

प्रश्न 2.
क्या आप ऐसी धर्म निरपेक्षता की कल्पना कर सकते हैं, जो आपको अपनी पहचान से जुड़ा नाम रखने और आपको पसंद के कपड़े पहनने की आजादी न दे और आपकी बोलचाल की भाषा ही बदल डाले ? आपके खयाल से अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता भारतीय धर्म निरपेक्षता से किन मायनों में भिन्न है?
उत्तर:
हाँ, हम ऐसी धर्म निरपेक्षता की कल्पना कर सकते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद तुर्की में अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता इसी प्रकार की धर्म निरपेक्षता थी। यथा- – 20वीं सदी के प्रारंभ में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की में धर्म में हस्तक्षेप के माध्यम से धर्म निरपेक्षता की हिमायत की। उसने इस तरह की धर्म निरपेक्षता न केवल प्रस्तुत की बल्कि उस पर अमल भी किया। उसकी धर्म निरपेक्षता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं

  1. मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने सर्वप्रथम अपना नाम मुस्तफा कमाल पाशा से बदलकर कमाल अतातुर्क कर लिया। अतातुर्क का अर्थ होता है। तुर्कों का पिता।
  2. हैट कानून के जरिए मुसलमानों द्वारा पहनी जाने वाली परंपरागत फैज टोपी को प्रतिबंधित कर दिया गया।
  3. स्त्री-पुरुषों के लिए पश्चिमी पोशाकों को बढ़ावा दिया गया।
  4. तुर्की पंचांग की जगह पश्चिमी (ग्रिगेरियन) पंचांग लाया गया।
  5. 1928 में नई तुर्की वर्णमाला को संशोधित लैटिन रूप में अपनाया गया।

वे तुर्की के सार्वजनिक जीवन में खिलाफत को समाप्त कर देने के लिए कटिबद्ध थे। वे मानते थे कि परम्परागत सोच-विचार और अभिव्यक्ति से नाता तोड़े बगैर तुर्की को उसकी दुःखद स्थिति से नहीं उबारा जा सकता। परिणामतः उसने तुर्की में उक्त किस्म की धर्म निरपेक्षता को लागू किया। अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता और भारतीय धर्म निरपेक्षता में अन्तर

  1. भारतीय धर्म निरपेक्षता न तो नाम बदलने से सम्बन्धित है। वह अपने पहचान से जुड़े नाम रखने की पूर्ण आजादी प्रदान करती है, जबकि अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता अपनी पहचान से जुड़े नाम बदलने पर बल देती है।
  2. भारतीय धर्म निरपेक्षता आपको अपने पसंद के कपड़े पहनने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करती है। यहाँ कोई भी धर्मावलम्बी अपनी पहचान से जुड़े तथा अपने पसंद के कपड़े पहन सकता है। लेकिन कमाल अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता आपको परम्परागत विचारों व सोचों से जुड़े कपड़ों को पहनने की आजादी को खत्म करती है। इसीलिए उसने मुसलमानों की परम्परागत फैज टोपी को पहनने को प्रतिबंधित कर दिया तथा पश्चिमी परिधानों को पहनने को बढ़ावा दिया।
  3. भारतीय धर्म निरपेक्षता आपको अपनी बोल-चाल की भाषाओं को बनाए रखनी की आजादी देती है जबकि अतातुर्क की धर्म निरपेक्षता ने तुर्की लोगों की बोलचाल की भाषा को ही बदल दिया।

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प्रश्न 3.
क्या धर्म निरपेक्षता नीचे लिखी बातों के संगत है।
1. अल्पसंख्यक समुदाय की तीर्थ यात्रा को आर्थिक अनुदान देना।
2. सरकारी कार्यालयों में धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करना।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता उक्त दोनों बातों के लिए संगत नहीं है क्योंकि धर्म निरपेक्षता धर्म और राज्य सत्ता के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर बल देती है। साथ ही राज्य को किसी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक गठजोड़ से परहेज करना भी आवश्यक है। उक्त दोनों बातों को राज्य द्वारा करने पर धर्म निरपेक्षता के इस सिद्धान्त का उल्लंघन होता है।

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प्रश्न 4.
राज्य धर्मों के साथ एक समान बरताव किस तरह कर सकता है। क्या हर धर्म के लिए बराबर संख्या में छुट्टी कर देने से ऐसा किया जा सकता है? या सार्वजनिक अवसरों पर किसी भी प्रकार के धार्मिक समारोह पर रोक लगाकर समान बरताव किया जा सकता है?
उत्तर:
राज्य धर्मों के साथ एक समान बरताव: सभी धर्मो को समान संरक्षण देकर, सभी धर्मों की हिफाजत कर, अन्य धर्मों की कीमत पर किसी एक धर्म की तरफदारी न करके तथा स्वयं किसी भी धर्म को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार न करके कर सकता है। राज्य द्वारा हर धर्म के लिए बराबर संख्या में छुट्टी देना तथा सार्वजनिक अवसरों पर किसी प्रकार के धार्मिक समारोह की रोक लगाना सभी धर्मों के साथ समान बर्ताव के व्यवहार के अन्तर्गत ही आते हैं।

Jharkhand Board Class 11 Political Science धर्मनिरपेक्षता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी बातें धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत हैं? कारण सहित बताइये
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ख) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(घ) विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक् शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति होना।
(च) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबंधन समितियों की नियुक्ति करना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।
उत्तर:
निम्नलिखित बातें धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत हैं
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक् शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति देना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।

(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना:
प्रत्येक प्रकार की धर्म निरपेक्षता के रूप में यह मूल सिद्धान्त निहित है कि धर्म निरपेक्षता अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। यह कथन कि किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व नहीं है, इस सिद्धान्त का पालन करता है। अतः यह धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत है।

(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना:
धर्मनिरपेक्ष होने के लिए राज्य सत्ता को किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से परहेज करना आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि राज्य का अपना कोई धर्म न हो बल्कि वह सभी धर्मों को समान संरक्षण व आश्रय प्रदान करे। इस दृष्टि से यह कथन कि ‘सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय है’ धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से संगत है।

(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक् शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति देना:
यदि हम यूरोपीय मॉडल की धर्म निरपेक्षता की दृष्टि से विचार करें तो यह कथन धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से असंगत है क्योंकि यूरोपीय संकल्पना में स्वतंत्रता और समानता का तात्पर्य है। व्यक्तियों की स्वतंत्रता व समुदाय को अपनी पसंद का आचरण करने की स्वतंत्रता रहे। समुदाय आधारित अधिकारों अथवा अल्पसंख्यक अधिकारों की वहाँ कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन यदि हम भारतीय मॉडल की धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की दृष्टि से विचार करें तो यह कथन धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से संगत है क्योंकि भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है। इसके अन्तर्गत धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी खुद की. संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम करने का अधिकार है।

(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप:
पश्चिमी धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की दृष्टि से यह कार्य धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त से असंगत है क्योंकि इस तरह की धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन भारतीय धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की दृष्टि से यह कार्य संगत है क्योंकि भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 2.
धर्म निरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की कुछ विशेषताओं का आपस में घालमेल हो गया है। उन्हें अलग करें और एक नई सूची बनाएँ।

पश्चिमी धर्म निरपेक्षता भारतीय धर्म निरपेक्षता
धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति
करने की अटल नीति एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना
विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना
अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण
व्यक्ति और उसके अधिकारों को केन्द्रीय महत्त्व देना भारतीय धर्म निरपेक्षता

उत्तर:
धर्म निरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की विशेषताओं को निम्न प्रकार सूचीबद्ध किया गया है।

पश्चिमी धर्म निरपेक्षता भारतीय धर्म निरपेक्षता
1. धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अंटल नीति 1. राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति
2. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना 2. एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना
3. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना 3. अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना।
4. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केन्द्रीय महत्त्व दिया जाना 4. व्यक्ति और धार्मिक समुदाय दोनों के अधिकारों का संरक्षण

प्रश्न 3.
धर्म निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता से आशय:
धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त का पहला पक्ष यह है कि यह अन्तर धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है और इसका दूसरा पक्ष यह है कि यह अन्तः धार्मिक वर्चस्व यानी धर्म के अन्दर छुपे हुए वर्चस्व का विरोध करता है। इस प्रकार यह अवधारणा संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों का विरोध करती है। यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देती है। धर्म निरपेक्षता और धार्मिक सहनशीलता में अन्तर

  1. धार्मिक सहनशीलता धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है, जबकि धर्म निरपेक्षता धार्मिक वर्चस्व की विरोधी है।
  2. धार्मिक सहनशीलता में धार्मिक स्वतंत्रता प्रायः सीमित होती है, जबकि धर्म निरपेक्षता में धार्मिक सहनशीलता अपेक्षाकृत अधिक होती है। हो सकता है कि धार्मिक सहनशीलता में हर किसी को धार्मिक स्वतंत्रता के अवसर मिल जाएँ लेकिन ऐसी स्वतंत्रता प्रायः सीमित होती है, जबकि धर्म निरपेक्षता में राज्य सत्ता धर्मसत्ता के मामले में हस्तक्षेप नहीं करती और किसी धर्म का धार्मिक वर्चस्व नहीं होता है, इसलिए इसमें धार्मिक स्वतंत्रता के सभी को समान अवसर प्राप्त हैं।
  3. धार्मिक सहनशीलता हममें उन लोगों को बर्दाश्त करने की क्षमता पैदा करती है, जिन्हें हम बिल्कुल नापसंद करते हैं; जबकि धर्म निपरेक्षता में ऐसे बर्दाश्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इससे स्पष्ट होता है कि सहिष्णुता या धार्मिक सहनशीलता तथा धर्म निरपेक्षता में काफी अन्तर है तथा धर्म निरपेक्षता की बराबरी धार्मिक सहनशीलता से नहीं की जा सकती।

प्रश्न 4.
क्या आप नीचे दिए गए कथनों से सहमत हैं? उनके समर्थन या विरोध के कारण भी दीजिए।
(क) धर्म निरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।
(ख) धर्म निरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अन्दर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है।
(ग) धर्म निरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है।
उत्तर:
(क) धर्म निरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है। हम इस कथन से सहमत नहीं हैं क्योंकि धर्म निरपेक्षता धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने तथा विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता और एक धर्म के विभिन्न पंथों के बीच समानता तथा किसी धर्म के वर्चस्व का विरोध करने की नीति है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। वह इस प्रकार उसे अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने की पूर्ण स्वतंत्रता देती है। इसलिए यह कहना गलत है कि धर्म निरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।

(ख) धर्म निरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अन्दर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि धर्म निरपेक्षता का विचार धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और
उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता है तथा असमानता का विरोध करता है। यह अन्तर: धार्मिक तथा अन्तः धार्मिक दोनों तरह के वर्चस्वों के खिलाफ है तथा दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है।

(ग) धर्म निरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है। हम इस विचार से सहमत नहीं हैं। यद्यपि भारतीय धर्म निरपेक्षता के सम्बन्ध में यह आलोचना की जाती है कि यह ईसाइयत से जुड़ी है, पश्चिमी चीज है और इसीलिए भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त है। लेकिन इस विचार से हम असहमत हैं क्योंकि।

  1. पतलून से लेकर इंटरनेट और संसदीय लोकतंत्र तक लाखों पश्चिमी चीजें भारत में प्रचलित हैं जिनकी जड़ें पश्चिम में हैं, क्या वे भारतीयों के लिए अनुपयुक्त हैं।
  2. धर्म निरपेक्ष होने के लिए प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वयं का लक्ष्य होता है। पश्चिमी धर्म निरपेक्षता का लक्ष्य ईसाइयत से राज्य का सम्बन्ध विच्छेद करना था। धर्म और राज्य का पारस्परिक निषेध पश्चिमी धर्म निरपेक्ष समाजों का आदर्श है; लेकिन भारत ने इस सिद्धान्त को उतनी कट्टरता के साथ नहीं अपनाया है।
  3. भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य सत्ता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी बनाए रखते हुए भी खास समुदायों की रक्षा के लिए उसमें हस्तक्षेप भी कर सकती है। यह भारतीय धर्म निरपेक्षता न तो ईसाइयत से पूरी तरह जुड़ी हुई है और न भारतीय जमीन पर सीधा-सीधा पश्चिमी आरोपण ही है।

प्रश्न 5.
भारतीय धर्म निरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् उससे अधिक किन्हीं बातों पर है। इस कथन को समझाइये
उत्तर:
भारतीय धर्म निरपेक्षता पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। भारतीय धर्म निरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर बल नहीं देती। अन्तर- धार्मिक समानता भारतीय धर्म निरपेक्षता की संकल्पना के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भारतीय धर्म निरपेक्षता की संकल्पना की विशिष्ट बातें निम्नलिखित हैं।
1. अन्तर-धार्मिक सहिष्णुता:
भारतीय धर्म निरपेक्षता का विचार गहरी धार्मिक विविधता के संदर्भ में उदित हुआ है। यह विविधता पश्चिमी आधुनिक विचारों और राष्ट्रवाद के आगमन से पहले की चीज है। भारत में पहले से ही अन्तर- धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति मौजूद थी। यह संस्कृति धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है तथा इसमें धार्मिक आजादी प्रायः सीमित होती है तथा यह लोगों में बर्दाश्त करने की क्षमता पैदा करती है।

2. अन्तर-सामुदायिक समानता:
पश्चिमी आधुनिकता के आगमन ने भारतीय चिंतन में समानता की अवधारणा को सतह पर ला दिया। उसने इस धारणा को धारदार बनाया और हमें समुदाय के अन्दर समानता पर बल देने की ओर अग्रसर किया। उसने हमारे समाज को मौजूद श्रेणीबद्धता को हटाने के लिए अन्तर-सामुदायिक समानता के विचार को भी उद्घाटित किया। इस तरह भारतीय समाज में पहले से विद्यमान धार्मिक विविधता और पश्चिम से आए विचारों के बीच अंतर्क्रिया शुरू हुई; जिसके फलस्वरूप भारतीय धर्म निरपेक्षता ने विशिष्ट रूप ग्रहण किया।

3. यह अंतः धार्मिक और अन्तर:
धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित करती है। भारतीय धर्म निरपेक्षता में अन्त:धार्मिक और अन्तर- धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया गया है। इसने हिन्दुओं के अन्दर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किये जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया । इस प्रकार यह पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से भिन्न हो गई।

4. व्यक्तियों और अल्पसंख्यक समुदायों दोनों प्रकार की धार्मिक स्वतंत्रता से सम्बद्ध:
पश्चिमी धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध केवल व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता से ही है जबकि भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है। इसके अन्तर्गत हर आदमी को अपने पसंद का धर्म मानने के अधिकार के साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी स्वयं की संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम करने का अधिकार है।

5. राज्य समर्थित धार्मिक सुधार:
भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी। इसीलिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है। भारतीय राज्य ने बाल विवाह के उन्मूलन और अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म के द्वारा लगाए गए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून बनाए हैं।

6. न धर्मतांत्रिक और न धर्म से विलग:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का चरित्र धर्मतांत्रिक नहीं है क्योंकि यह किसी धर्म को राजधर्म नहीं मानता है। यह पूर्णतः धर्म से विलग भी नहीं है। यह धर्म से विलग भी हो सकता है और जरूरत पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है।
इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति देने, अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देने, व्यक्ति और धार्मिक समुदाय दोनों के अधिकारों के संरक्षण देने पर अधिक है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 6.
‘सैद्धान्तिक दूरी’ क्या है ? उदाहरण सहित समझाइये
उत्तर:
सैद्धान्तिक दूरी से आशय:
धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त यह मांग करता है कि राज्य धर्म से दूरी बनाए रखे। इसका आशय यह है कि राज्य और धर्म में पृथकता होनी चाहिए। पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता के मॉडल में राज्य और धर्म के बीच अटल या पूर्ण पृथकता या पूर्ण दूरी पर बल दिया जाता है। लेकिन भारतीय धर्म निरपेक्षता के मॉडल में राज्य और धर्म की पूर्ण पृथकता को नहीं अपनाया गया है। इसमें सैद्धान्तिक दूरी के सिद्धान्त पर बल दिया गया है। सैद्धान्तिक दूरी से आशय यह है कि सामान्यतः राज्य धर्म से एक दूरी बनाए रखता है और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है। लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में राज्य धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप भी कर सकता है। ये विशिष्ट परिस्थितियाँ हैं—भेदभाव, शोषण और असमानता की।

उदाहरण के लिए भारत में राज्य ने हिन्दुओं में अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए संविधान में अस्पृश्यता को अपराध घोषित कर दिया है। इसी प्रकार राज्य ने हस्तक्षेप करके दलितों को मंदिरों में प्रवेश, सार्वजनिक स्थलों के उपयोग, कुओं, तालाबों तथा शैक्षिक संस्थाओं के प्रयोग के लिए अनुमति प्रदान की है। इसी प्रकार राज्य ईसाइयत और इस्लाम में भी हस्तक्षेप कर सकता है, जब वह देखता है कि धर्म व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, अन्याय या शोषण कर रहा है। दूसरे, भारतीय राज्य सुधारों को समर्थन करके धर्म का विकास भी कर सकता है अर्थात् वह धर्म सुधार हेतु हस्तक्षेप कर सकता है। इसी को सैद्धान्तिक दूरी कहा जाता है।

धर्मनिरपेक्षता JAC Class 11 Political Science Notes

→ धर्म निरपेक्षता क्या है?
धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त के दो पक्ष हैं। इसका पहला पक्ष यह है कि यह अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि यह अंतः धार्मिक वर्चस्व यानी धर्म के अंदर छुपे हुए वर्चस्व का विरोध करता है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों की विरोधी है। यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देती है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता की अवधारणा को नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही दृष्टि से स्पष्ट किया जाता है। यथा

  • नकारात्मक अर्थ में धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त संस्थागत धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों का विरोधी होने के नाते यह अन्तर- धार्मिक वर्चस्व तथा अन्तः धार्मिक वर्चस्व दोनों को नकारता है।
  • सकारात्मक अर्थ में धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त धर्मों के अन्दर की आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता ह।

→ धर्मों के बीच वर्चस्ववाद:
धर्मों के बीच वर्चस्ववाद से यह आशय है कि एक क्षेत्र में बहुसंख्यक धर्म वाला सम्प्रदाय अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है और फिर वह अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों का उत्पीड़न करता है। उदाहरण के लिए, इसी धार्मिक वर्चस्ववाद के चलते

  • 1984 में दिल्ली में हजारों सिखं मारे गए;
  • हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर विवश होकर छोड़ना पड़ा;
  • सन् 2002 में गुजरात में लगभग 2000 मुसलमान मारे गये आदि।

→ धर्म के अन्दर वर्चस्व:
कई धर्म संप्रदायों में विभाजित हो जाते हैं और निरन्तर आपसी हिंसा तथा भिन्न मत रखने वाले अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं। इस प्रकार यह धर्म के अन्दर वर्चस्व का रूप ग्रहण कर लेता है। धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त धर्म के अन्दर के वर्चस्व के रूप का भी विरोध करता है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त संस्थागत धार्मिक वर्चस्व के सभी रूपों का विरोध करता है। इस प्रकार धर्म निरपेक्षता ऐसा नियामक सिद्धान्त है जो धर्म निरपेक्ष समाज, उक्त दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है जिसमें धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा दिया जाता हों।

→ धर्म निरपेक्ष राज्य:
धार्मिक भेदभाव को रोकने के लिए आपसी जागरूकता, शिक्षा, साझेदारी, पारस्परिक सहायता, भलाई की भावना का विकास आदि रास्तों को अपनाया जा सकता है। लेकिन इनसे अधिक शक्तिशाली रास्ता धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना करना है। एक धर्म निरपेक्ष राज्य सत्ता में निम्न विशेषताएँ होनी आवश्यक हैं।

  • राज्य सत्ता किसी खास धर्म के प्रमुखों द्वारा संचालित नहीं हो। धार्मिक संस्थाओं और राज्यसत्ता की संस्थाओं के बीच सम्बन्ध नहीं होना चाहिए।
  • राज्य सत्ता को किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से परहेज करना होगा।
  • धर्म निरपेक्ष राज्य को ऐसे सिद्धान्तों और लक्ष्यों के लिए अवश्य प्रतिबद्ध होना चाहिए जो गैर धार्मिक स्रोतों से निकलते हों, जैसे शांति, धार्मिक स्वतंत्रता; धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी ; तथा अन्तर- – धार्मिक व अन्तः धार्मिक समानता। धर्म निरपेक्ष राज्य का कोई एक निश्चित मॉडल नहीं बताया जा सकता। राजनैतिक धर्म निरपेक्षता किसी भी रूप में स्थापित हो सकती हैं। यहाँ अग्रलिखित दो मॉडलों को स्पष्ट किया गया है।

→ धर्म निरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल:

  • यूरोपीय मॉडल के सभी धर्म निरपेक्ष राज्य न तो धर्मतांत्रिक हैं और न किसी खास धर्म की स्थापना करते हैं।
  • इसमें राज्य सत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है और न धर्मसत्ता राज्य के मामलों में दखल देती है। दोनों के अपने अलग-अलग क्षेत्र तथा सीमाएँ हैं।
  • राज्य न तो धर्म के आधार पर कोई नीति बनायेगा और न किसी धार्मिक संस्था को मदद देगा।
  • देश के कानून की सीमा के अन्दर संचालित धार्मिक समुदायों की गतिविधियों में राज्य व्यवधान पैदा नहीं कर सकता।
  • यह संकल्पना स्वतंत्रता और समानता की व्यक्तिवादी ढंग से व्याख्या करती है। इसमें समुदाय आधारित अधिकारों या अल्पसंख्यकों के अधिकारों की कोई गुंजाइश नहीं है। इस तरह की धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई जगह नहीं है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

→ धर्म निरपेक्षता का भारतीय मॉडल:
भारतीय धर्म निरपेक्षता में अंतः धार्मिक और अन्तर- धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया गया है। परिणामस्वरूप भारतीय धर्म निरपेक्षता पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से निम्न रूपों में भिन्न रूप में सामने आई हैं।

  • इसने पिछड़ों और अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किये जाने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया।
  • भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है।
  • भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी। इसीलिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है। राज्य ने बाल विवाह के उन्मूलन और अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म द्वारा लगाए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून बनाए हैं।

इस प्रकार भारतीय राज्य के धर्म निरपेक्ष चरित्र की प्रमुख विशेषता यह है कि वह न तो धर्मतांत्रिक है और न ही किसी धर्म को राजधर्म मानता है। लेकिन वह धार्मिक समानता हासिल करने के लिए अमेरिकी शैली में धर्म से विलग भी हो सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है। वह धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक सम्बन्ध भी बना सकता है और वह जुड़ाव की सकारात्मक विधि भी अपना सकता है। अस्पृश्यता का निषेध जहाँ निषेधात्मक जुड़ाव है, वहीं धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षा संस्थाएँ खोलने व चा का अधिकार देना सकारात्मक जुड़ाव को दर्शाता है। भारतीय धर्म निरपेक्षता तमाम धर्मों में राजसत्ता के सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति देती है।

→भारतीय धर्म निरपेक्षता की आलोचनाएँ:
धर्म विरोधी: कुछ लोग यह कहते हैं कि भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी है क्योंकि यह संस्थागत धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। लेकिन इसके आधार पर इसे धर्म विरोधी नहीं कहा जा सकता। कुछ लोग इस आधार पर इसे धर्म विरोधी कहते हैं कि यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा पैदा करती है। लेकिन यह विचार भी त्रुटिपरक है क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देती है। अतः यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा नहीं बल्कि उसकी हिफाजत करती है। हाँ, वह धार्मिक पहचान के मतांध, हिंसक, दुराग्रही, औरों का बहिष्कार करने वाले और अन्य धर्मों के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाले रूपों पर अवश्य चोट करती है।

→ पश्चिम से आयातित:
दूसरी आलोचना यह है कि यह पश्चिम से आयातित है। इसीलिए भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त है। लेकिन यह विचार त्रुटिपरक है क्योंकि यहाँ ऐसी धर्म निरपेक्षता विकसित हुई है जो न तो पूरी तरह ईसाइयत से जुड़ी है और न भारतीय जमीन से। तथ्य यह है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता में पश्चिमी और गैर-पश्चिमी दोनों मार्गों का अनुसरण किया गया है।

→ अल्पसंख्यकवाद:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की तीसरी आलोचना अल्पसंख्यकवाद सम्बन्धी है। इसके तहत कहा जाता है कि यह अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है। इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेष अधिकारों या विशेष सुविधाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके पीछे सिर्फ यह धारणा है कि अल्पसंख्यकों के सर्वाधिक मौलिक हितों की क्षति नहीं होनी चाहिए और संवैधानिक कानून द्वारा. उनकी हिफाजत की जानी चाहिए।

→ अतिशय अहस्तक्षेपकारी:
चौथी आलोचना यह की जाती है कि धर्म निरपेक्षता उत्पीड़नकारी है और समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता में अतिशय हस्तक्षेप करती है। लेकिन यह आलोचना भी त्रुटिपरक है क्योंकि भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी कायम रखने पर चलती है जो हस्तक्षेप की गुंजाइश भी बनाती है लेकिन यह हस्तक्षेप अपने आप में उत्पीड़नकारी हस्तक्षेप नहीं होता।

→ वोट बैंक की राजनीति:
पांचवीं आलोचना यह की जाती है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है। लेकिन लोकतंत्र में राजनेताओं के लिए वोट पाना जरूरी है। यह उनके काम का अंग है और लोकतांत्रिक राजनीति बड़ी हद तक ऐसी ही है। यह तथ्य कि धर्म निरपेक्ष दल वोट बैंक का इस्तेमाल करते हैं, कष्टकारक नहीं है। भारत में हर समुदाय के संदर्भ में सभी दल ऐसा करते हैं।

→ एक असंभव परियोजना:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की एक अन्य आलोचना यह की जाती है कि “यह धर्म निरपेक्षता नहीं चल सकती क्योंकि यह बहुत कुछ करना चाहती है, यह ऐसी समस्या का हल ढूँढ़ना चाहती है, जिसका समाधान है ही नहीं।” क्योंकि गहरे धार्मिक मतभेद वाले लोग कभी भी शांति से एक साथ नहीं रह सकते। लेकिन यह दावा गलत है। भारत में इस तरह साथ-साथ रहना बिल्कुल संभव रहा है। दूसरे, भारतीय धर्म निरपेक्षता एक असंभव परियोजना का अनुसरण नहीं है बल्कि यह भविष्य की दुनिया का प्रतिबिंब प्रस्तुत कर रही है।