JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संख्याज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

संख्या-ज्ञान – इस संसार में सभी लोगों के लिए संख्या (अंकों) का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि संख्या के ज्ञान के बिना हमारे जीवन में आदान-प्रदान का कोई भी कार्य सम्भव नहीं हो सकता है। अतः हम यहाँ संख्याओं (अंकों) का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

1. संख्यावाची शब्द

दस से अधिक की संख्या संस्कृत में लिखने के लिए एक, दो, तीन आदि का संस्कृत शब्द दश, विंशति, त्रिंशत्, चत्वारिंशत्, पञ्चाशत् आदि से पहले रख दिया जाता है। जैसे छियालीस-छ: की संस्कृत ‘षंट’ पहले लिखेंगे, उसके बाद चालीस की संस्कृत ‘चत्वारिंशत्’ लिखेंगे और मिलकर शब्द बनेगा ‘षट्चत्वारिंशत्’। इसी प्रकार से अन्य शब्दों को भी बनाया जा सकता है।

ध्यातव्य – 1.संस्कृत में संख्या उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-88 को लिखना है तो पहले इकाई के अंक 8 की संस्कृत ‘अष्ट’ लिखेंगे और बाद में 80 की संस्कृत ‘अशीतिः’, लिखेंगे, मिलाकर एक शब्द बनेगा ‘अष्टाशीतिः’। इसी प्रकार से 75 (पिचहत्तर) को लिखते समय पहले इकाई अंक पाँच को संस्कृत में लिखकर पुनः 70 को संस्कृत में लिखेंगे तो शब्द सामने आयेगा ‘पंचसप्ततिः’।
विद्यार्थी ध्यान रखें संख्या को पहले ऊपर बताये अनुसार बदलें अर्थात् इकाई अंक को पहले तथा दहाई अंक को बाद में लिखें। जैसे –
(i) 88 = उल्टा क्रम – आठ अस्सी = अष्ट + अशीतिः = अष्टाशीतिः।
(ii) 75 = उल्टा क्रम – पाँच सत्तर = पंच + सप्ततिः = पंचसप्ततिः।
(iii) 67 % = उल्टा क्रम – सात साठ = सप्त + षष्टिः = सप्तषष्टिः।
(iv) 31 = उल्टा क्रम – एक तीस = एकः + त्रिंशत् = एकत्रिंशत्।

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संस्कृत में संख्यावाचक शब्द 1 से 100 तक इस प्रकार हैं –

1. एकः (पु.), एका (स्त्री.), एकम् (नपुं.)
2. द्वौ (पु.), द्वे (स्त्री.), द्वे (नपुं.)
3. त्रयः (पु.), तिस्रः (स्त्री.), त्रीणि (नपुं.)
4. चत्वारः (पु.), चतस्त्रः (स्त्री.), चत्वारि (नपुं.)
5. पञ्च
6. षट्
7. सप्त
8. अष्ट/अष्टौ
9. नव
10. दश
11. एकादश
12. द्वादश
13. त्रयोदश
14. चतुर्दश
15. पञ्चदश
16. षोडश
17. सप्तदश
18. अष्टादश
19. नवदश/एकोनविंशतिः
20. विंशतिः
21. एकविंशतिः
22. द्वाविंशतिः
23. त्रयोविंशतिः
24. चतुर्विंशतिः
25. पञ्चविंशतिः
26. षड्विंशतिः
27. सप्तविंशतिः
28. अष्टाविंशतिः
29. नवविंशतिः/एकोनत्रिंशत्
30. त्रिंशत्
31. एकत्रिंशत्
32. द्वात्रिंशत्
33. त्रयस्त्रिंशत्
34. चतुस्त्रिंशत्
35. पञ्चत्रिंशत्
36. षट्त्रिंशत्
37. सप्तत्रिंशत्
38. अष्टत्रिंशत्
39. नवत्रिंशत/एकोनचत्वारिंशत्
40. चत्वारिंशत्
41. एकचत्वारिंशत्
42. द्विचत्वारिंशत्/द्वाचत्वारिंशत्
43. त्रिचत्वारिंशत्/त्रयश्चत्वारिंशत्
44. चतुश्चत्वारिंशत्
45. पञ्चचत्वारिंशत्
46. षट्चत्वारिंशत्
47. सप्तचत्वारिंशत्
48. अष्टचत्वारिंशत्/अष्टाचत्वारंशत्
49. नवचत्वारिंशत्/एकोनपञ्चाशत्
50 पञ्चाशत्
51. एकपञ्चाशत्
52. द्विपञ्चाशत्/द्वापञ्चाशत्
53. त्रिपञ्चाशत्/त्रयः पञ्चाशत्
54. चतुः पञ्चाशत्
55. पञ्चपञ्चाशत्
56. षट्पञ्चाशत्
57. सप्तपञ्चाशत्
58. अष्टपञ्चाशत्/अष्टापञ्चाशत्
59. नवपञ्चाशत्/एकोनषष्टिः
60. षष्टिः
61.एकषष्टिः
62. द्विषष्टिः/द्वाषष्टिः
63. त्रिषष्टिः/त्रयः षष्टिः
64. चतुःषष्टिः
65. पञ्चषष्टिः
66. षट्षष्टिः
67. सप्तषष्टिः
68. अष्टषष्टि:/अष्टाषष्टिः
69. नवषष्टिः/एकोनसप्ततिः
70. सप्ततिः
71.एकसप्ततिः
72. द्विसप्ततिः/द्वासप्ततिः
73. त्रिसप्ततिः/त्रयः सप्ततिः
74. चतुः सप्ततिः
75. पंचसप्ततिः.
76. षट्सप्ततिः
77. सप्तसप्ततिः
78. अष्टसप्ततिः/अष्टासप्ततिः
79. नवसप्तति:/एकोनाशीतिः
80. अशीतिः
81. एकाशीतिः
82. द्वयशीतिः
83. त्र्यशीतिः
84. चतुरशीतिः
85. पञ्चाशीतिः
86. षडाशीतिः
87. सप्ताशीतिः
88. अष्टाशीतिः
89. नवाशीति:/एकोननवतिः
90. नवतिः
91. एकनवतिः
92. द्विनवतिः/द्वानवतिः
93. त्रिनवतिः/त्रयोनवतिः
94. चतुर्नवतिः
95. पञ्चनवतिः
96. षष्णवतिः
97. सप्तनवृतिः
98. अष्टनवतिः/अष्टानवतिः
99. नवनवतिः/एकोनशतम्
100. शतम्

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हिन्दी अर्थ सहित संख्यावाची शब्द

पूर्व में संख्यावाची शब्दों का अर्थ उनके सामने अंकों में लिखा है। यहाँ कुछ पारिभाषिक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए दिया जा रहा है –

  1. शतम् – सौ
  2. सहस्रम् – हजार
  3. अयुतम् – दस हजार
  4. लक्षम् – लाख
  5. प्रयुतम्/नियुतम् – दस लाख
  6. कोटि: – करोड़
  7. दशकोटि: – दस करोड़
  8. अर्बुदम् – अरब
  9. दशार्बुदम् – दस अरब
  10. खर्वम् – खरब
  11. दशखर्वम् – दस खरब
  12. नीलम् – नील
  13. दशनीलम् – दस नील
  14. पद्मम् – पद्म
  15. दशपद्मम् – दस पद्म
  16. शंखम् – शंख
  17. दशशंखम् – दस शंख
  18. महाशंखम् – महाशंख

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संख्यावाची शब्द रूप

1. ‘एकः’ [एक के अर्थ में]
नोट – ‘एक’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में केवल एकवचन में ही चलते हैं। इसके रूप ‘सर्व’ (सब) शब्द के एकवचन के समान तीनों लिंगों में बनते हैं। संख्यावाची शब्दों में सम्बोधन विभक्ति नहीं होती है।

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2. ‘द्वि’ शब्द [दो के अर्थ में]

नोट – ‘द्वि’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में केवल द्विवचन में ही चलते हैं। इसके स्त्रीलिंग के एवं नपुंसकलिंग के सभी रूप एक जैसे चलते हैं।

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3. त्रि’ शब्द [तीन के अर्थ में]

नोट – 3 से 18 तक की संख्याओं के रूप केवल बहुवचन में ही चलते हैं। ‘त्रि’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में होते हैं।

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4. ‘चतुर्’ शब्द [चार के अर्थ में]

नोट – ‘चतुर्’ शब्द के रूप भी तीनों लिंगों में केवल बहुवचन में ही चलते हैं।

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5. पञ्चन् [पाँच], 6. षट् [छः], 7. सप्तन् [सात]

नोट – पंचम् से अष्टादशन् तक के समस्त संख्यावाची शब्दों का प्रयोग नित्य बहुवचन में होता है, इनके रूप तीनों लिंगों में समान रहते हैं।

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8. अष्टन् [आठ], 9. नवन् [नौ], 10. दशन् [दस]

नोट – ये सभी रूप केवल बहुवचन में चलते हैं। ये सभी तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।

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नोट – एकादशन् (11) से अष्टादशन् (18) तक के रूप दशन् (10) के रूपों की तरह ही बनते हैं। एकोनविंशति (19) से नवनवति (99) तक के सभी शब्दों के रूप स्त्रीलिंग एकवचन में ही बनते हैं। इन इकारान्त शब्दों के रूप ‘मति’ इकरान्त स्त्रीलिंग एकवचन की तरह तथा इन तकारान्त शब्दों त्रिंशत् (30) चत्वारिंशत् (40) एवं पञ्चाशत् (50) के रूप ‘सरित्’ तकरान्त स्त्रीलिंग,एकवचन की तरह बनते हैं।
ये निम्न प्रकार से हैं –

नित्य एकवचनान्त

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नोट – (i) चत्वारिंशत् तथा पंचाशत् के रूप ‘त्रिंशत्’ के समान ही चलेंगे। सप्तति, अशीति और नवति के रूप ‘विंशति’ के समान ही चलेंगे।

(ii) शतम् सहस्रम्, अयुतम्, लक्षम् इत्यादि शब्द नित्य एकवचनान्त ही प्रयुक्त होते हैं।
उपर्युक्त संख्यावाची शब्दों के रूप नपुंसकलिंग में होते हैं तथा सातों विभक्तियों में ‘फल’ शब्द के एकवचन की तरह ही चलते हैं।

(iii) कोटि तथा दशकोटि शब्द के रूप स्त्रीलिंग में ‘मति’ शब्द के समान बनेंगे। जैसे –
‘शत’ सहस्र’, ‘लक्ष’, ‘कोटि’ और ‘दशकोटि संख्यावाची शब्द

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संख्या जानने के लिए ‘कति’ (कितने) शब्द से प्रश्न बनाया जाता है। अतः विद्यार्थियों की सुविधा के लिए ‘कति’ शब्द के रूप दिये जा रहे हैं।

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विभक्ति – कति (कितने)

  • प्रथमा – कति
  • द्वितीया – कति
  • तृतीया – कतिभिः
  • चतुर्थी – कतिभ्यः
  • पंचमी – कतिभ्यः
  • षष्ठी – कतीनाम्
  • सप्तमी – कतिषु

(i) ‘कति’ के रूप तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।
(ii) कति शब्द के रूप नित्य बहुवचनान्त बनते हैं।

क्रमवाचक शब्द (प्रथम से शतम् तक)

क्रमवाची शब्द तीनों लिंगों में इस प्रकार प्रयुक्त होते हैं –

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शतम् (100) स ऊपर क सख्यावाचक शब्द

शतम् (100) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द बनाना

नियम – (i) ‘शत’ (100) आदि संख्यावाचक शब्दों के साथ लघु (छोटी) संख्या के मिलाने के लिए लघु (छोटी) संख्या के साथ ‘अधिक’ या ‘उत्तर’ शब्द वृहत्तर (बड़ी) संख्या के पहले लगा दिया जाता है। यथा- ‘एक सौ तेरह’; यहाँ लघु संख्या तेरह है, इसकी संस्कृत है-‘त्रयोदश’। इसके आगे अधिक लगाकर इसके बाद वृहत्तर (बड़ी) संख्या ‘शतम्’ लगाने से ‘एक सौ तेरह’ की संस्कृत हुई- “त्रयोदशाधिकशतम्”।

(ii) शत् (100) सहस्र (1000) इत्यादि संख्याओं के साथ यदि उनका आधा (50. 500 आदि) हो तो सार्द्ध (आधा सहित), चौथाई साथ हो (25, 250 आदि) तो ‘सपादम्’ (चौथाई साथ) और चौथाई ‘कम हो तो’ पादोन (चौथाई कम) शब्द का उनके साथ प्रयोग किया जाता है। यथा-450 ‘सार्द्ध-शत-चतुष्टयम्’ (आधे सहित सौ चार) इसी प्रकार 125 को ‘सपादशतम्’ (चौथाई सहित सौ) लिखते हैं। 1750 को ‘पादोनसहस्रद्वयम्’ (चौथाई कम दो हजार) लिखा जायेगा।

विशेष – शत, सहस्र इत्यादि के पहले द्वि, त्रि आदि के आने पर, समाहार द्विगु हो जाने से वे विशेषण नहीं रहते, क्योंकि समाहार द्विगु हो जाने पर वे विशेष्य पद हो जाते हैं। यथा-द्विशती (200), त्रिशती (300) आदि।

(iii) अवयव दिखाने के लिए द्वय, त्रय, चतुष्टय, पञ्चक, षट्क, सप्तक, अष्टक इत्यादि ‘क’ प्रत्ययान्त एकवचनान्त नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(iv) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग करने में यदि संशय हो तो संख्यावाचक शब्द के साथ ‘संख्यक’ शब्द लगाकर अकारान्त पद की तरह रूप चलाकर सरलता से अनुवाद किया जा सकता है।

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ध्यातव्य – संस्कृत में संख्या को उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-101 में, पहले एक को फिर सौ को लिखेंगे। बीच में ज्यादा का शब्द ‘अधिक’ लिखेंगे। याद करें हमारे पुराने बुजुर्ग लोग कैसे गिनती बताते थे। 130 को = तीस ज्यादा सौ, 19 को = एक कम बीस, 540 को = चालीस ज्यादा पाँच सौ, यही तरीका संस्कृत का है। जैसे –

  1. 101 = उल्टाक्रम = एक अधिक सौ = एक + अधिकशतम् = एकाधिकशतम्।
  2. 140 = उल्टाक्रम = चालीस अधिक सौ = चत्वारिंशत् + अधिकशतम् = चत्वारिंशदधिकशतम्।
  3. 165 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक सौ = पंच षष्टि + अधिक शतम् = पंचषष्ट्यिधिकशतम्।
  4. 300 = तीन सौ = त्रिशतम्।
  5. 1965 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक एक कम बीस सौ = पंचषष्टि + अधिक + एकोनविंशतिशतम् = पंचषष्ट्य धिकैकोनविंशतिशतम्
  6. 2000 = दो हजार = द्विसहस्रम्

उपर्युक्त नियम के अनुसार 100 (शतम्) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द –

101. एकाधिकशतम्
102. यधिकशतम्
103. व्यधिकशतम्
104. चतुरधिकशतम्
105. पञ्चाधिकशतम्
106. षडधिकशतम्
107. सप्ताधिकशतम्
108. अष्टाधिकशतम्
109. नवाधिकशतम्
110. दशाधिकशतम्
111. एकादशाधिकशतम्
112. द्वादशाधिकशतम्
113. त्रयोदशाधिकशतम्
114. चतुर्दशाधिकशतम्
115. पञ्चदशाधिकशतम्
116. षोडशाधिकशतम्
117. सप्तदशाधिकशतम्
118. अष्टादशाधिकशतम्
119. नवदशाधिकशतम्
120. विंशत्यधिकशतम्
121. एकविंशत्यधिकशतम्
122. द्वारिंशत्यधिकशतम्
123. त्र्योविंशत्यधिकशतम्
124. चतुर्विंशत्यधिकशतम्
125. पञ्चविंशत्यधिकशतम्
126. षड्विंशत्यधिकशतम्
127. सप्तविंशत्यधिकशतम्
128. अष्टाविंशत्यधिक शतम्
129. नवविंशत्यधिकशतम्
130. त्रिंशदधिकशतम्
131. एकत्रिंशदधिकशतम्
132. द्वात्रिंशदधिकशतम्
133. त्रयस्त्रिंशदधिकशतम्
134. चतुस्त्रिंशदधिकशतम्
135. पञ्चत्रिंशदधिकशतम्
136. षट्त्रिंशदधिकशतम्
137. सप्तत्रिंशदधिकशतम्
138. अष्टत्रिंशदधिकशतम्
139. नवत्रिंशदधिकशतम्
140. चत्वारिंशदधिकशतम्
141. एकचत्वारिंशदधिकशतम्
142. द्विचत्वारिंशदधिकशतम्
143. त्रिचत्वारिंशदधिकशतम्
144. चतुश्चत्वारिंशदधिकशतम्
145 पञ्चचत्वारिंशदधिकशतम्
146. षट्चत्वारिंशदधिकशतम्
147. नत्वारिंशदधिकशतम्
148. अष्टचत्वारिंशदधिकशतम्
149. नवचत्वारिंशदधिकशतम्
150. पञ्चाशदधिकशतम्
151. एकपञ्चाशदधिकशतम्
152. द्विपञ्चाशदधिकशतम्
153. त्रिपञ्चाशदधिकशतम्
154. चतुःपञ्चाशदधिकशतम्
155. पञ्चपञ्चाशदधिकशतम्
156. षट्पञ्चाशदधिकशतम्
157. सप्तपञ्चाशदधिकशतम्
158. अष्टपञ्चाशदधिकशतम्
159. नवपञ्चाशदधिकशतम्
160. षष्ट्यधिकशतम्
161. एकषष्ट्यधिकशतम्
162. द्विषष्ट्यधिकशतम्
163. त्रिषष्ट्यधिकशतम्
164. चतुःषष्ट्यधिकशतम्
165. पञ्चषष्ट्यधिकशतम्
166. षट्षष्ट्यधिकशतम्
167. सप्तषधिकशतम्
168. अष्टप-धिकशतम्
169. नवषष्ट्यधिकशतम्
170. सप्तत्यधिकशतम्
171. एकसप्तत्यधिकशतम्
172. द्विसप्तन्यधिकशतम्
173. त्रिसप्तत्यधिकशतम्
174. चतुःसप्तलाधिकशतम्
175. पञ्चसप्तत्यधिकशतम्
176. षष्टसप्तत्यधिकशतम्
177. सप्तसप्तत्यधिकशतम्
178. अष्टसप्तत्यधिकशतम्
179. नवसप्तत्यधिकशतम्
180. अशीत्यधिकशतम्
181. एकाशीत्यधिकशतम्
182. द्वयशीत्यधिकशतम्
183. त्र्यशीत्यधिक शतम्
184. चतुरशीत्यधिकशतम्
185. पञ्चाशीत्यधिकशतम्
186. षडशीत्यधिकशतम्
187. सप्ताशीत्यधिकशतम्
188. अष्टाशीत्यधिकशतम्
189. नवाशीत्यधिकशतम्
190. नवत्यधिकशतम्
191. एकनवत्यधिकशतम्
192. द्विनवत्यधिकशत्
193. त्रिनवत्यधिकशतम्
194. चतुर्नवत्यधिकशतम्
195. पञ्चनवत्यधिकशतम्
196. षण्णवत्यधिकशतम्
197. सप्तनवत्यधिकशतम्
198. अष्टनवत्यधिकशतम्
199. नवनवत्यधिकशतम्।
200. द्विशती द्विशतम्/द्विशतकम् शतद्वयम्। इसी प्रकार
201. (एकाधिकद्विशती) आदि संख्याएँ लिखी जायेंगी।

उपर्युक्त नियम के अनुसार के ऊपर संख्यावाचक शब्द –

201. एकाधिकद्विशतम्।
301. एकाधिकत्रिशतम्।
401. एकाधिकचतुःशतम्/एकोत्तरचतु:शतम्/एकाधिकं चतु:शतम्/एकोत्तरं चतु:शतम्।
500. पञ्चशतम्/शतपञ्चकम्/पञ्चशतकम्।
501 एकाधिकपञ्चशतम्/एकोत्तरपञ्चशतम्/एकाधिकं पञ्चशतम्/एकोत्तरं पञ्चशतम्।
502. द्वयधिकपञ्चशतम्/द्वयुत्तरपञ्चशतम्/द्वयधिकं पञ्चशतम्/द्वयुत्तरं पञ्चशतम्।
503 त्र्यधिकपञ्चशतम्/व्युत्तरपञ्चशतम्/त्र्यधिकं पञ्चशतम्/युत्तरं पञ्चशतम्।
504 चतुरधिकपञ्चशतम्/चतुरुत्तरपञ्चशतम्/चतुरधिकं पञ्चशतम्/चतुरुत्तरं पञ्चशतम्।
505 पञ्चाधिकपञ्चशतम्/पञ्चोत्तरपञ्चशतम्/पञ्चाधिकं पञ्चशतम्/पञ्चोत्तरं पञ्चशतम्।
506 षडधिकपञ्चशतम्/षडुत्तरपञ्चशतम्/षडधिकं पञ्चशतम्/षडुत्तरं पञ्चशतम्।
507 सप्ताधिकपञ्चशतम्/सप्तोत्तरपञ्चशतम्/सप्ताधिकं पञ्चशतम्/सप्तोत्तरं पञ्चशतम्।
508 अष्टाधिकपञ्चशतम्/अष्टोत्तरपञ्चशतम्/अष्टाधिकं पञ्चशतम्/अष्टोत्तरं पञ्चशतम्।
509 नवाधिकपञ्चशतम्/नवोत्तरपञ्चशतम्/नवाधिकं पञ्चशतम्/नवोत्तरं पञ्चशतम्।
510 दशाधिकपञ्चशतम्/दशोत्तरपञ्चशतम्/दशाधिकं पञ्चशतम्/दशोत्तरं पञ्चशतम्।
517 सप्तदशाधिकपञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरपञ्चशतम्।
सप्तदशाधिकं पञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरं पञ्चशतम्।
600 षट्शतम्/शतषट्कम्/षट्शतकम्।
625 पञ्चविंशत्यधिकषट्शतम्/पञ्चविंशत्यधिक षट्शतम्/
पञ्चविंशत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरं षट्शतम्।
637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्/
सप्तत्रिंशदुत्तरषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिक षट्शतम्।
646 षट्चत्वारिंशदधिकषट्शतम् षट्चत्वारिशदधिकं षट्शतम्/
षट्चत्वारिंशदुत्तरषट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरं षट्शतम्।
655 पञ्चपञ्चाशदधिकषट्शत ‘चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्/
पञ्चपञ्चाशदुत्तरषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्।
666 षट्षष्ट्यधिकषट्शतम्/षट्पष्ट्यधिकं षट्शतम्/
षषष्ट्युत्तरषट्शतम् षट्पट्युत्तरं षट्शतम्।
673 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्/त्रिसप्तत्यधिक षट्शतम्/
त्रिसप्तत्युत्तरषट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरं षट्शतम्।
684 चतुरशीत्यधिकषट्शतम्/चतुरशीत्यधिकं षट्शतम्/
चतुरशीत्युत्तरषट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरं घट्शतम्।।
695 पञ्चनवत्यधिकषट्शतम्/पञ्चनवत्यधिक षट्शतम्/
पञ्चनवत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरं षट्शतम्।
700 सप्तशतम्/शतसप्तकम्/सप्तशतकम्।
704 चतुरधिकसप्तशतम्/चतुरुत्तरसप्तशतम्/चतुरधिकं सप्तशतम्/चतुरुत्तरं सप्तशतम्।
795 पञ्चनवत्यधिकसप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरसप्तशतम्/
पञ्चनवत्यधिकं सप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरं सप्तशतम्।
800 अष्टशतम्/शताष्टकम्/अष्टशतकम्।
805 पञ्चाधिकाष्टशतम्/पञ्चोत्तराष्टशतम्/पञ्चाधिकमष्टशतम्/पञ्चोत्तरमष्टशतम्।
900 नवशतम्/शतनवकम्/नवशतकम्।
1000 सहस्रम् (एक हज़ार)।
1324 चतुविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/चतुविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ चौबीस/एक हजार तीन सौ चौबीस)।
1325 पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/पञ्चविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम्
(तेरह सौ पच्चीस/एक हजार तीन सौ पच्चीस)।
1928 अष्टाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशतम्/अष्टाविंशत्यधिकनवशताधिकसहस्रम्
(उन्नीस सौ अट्ठाइस/एक हजार नौ सौ अट्ठाईस)।
1939 एकोनचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशतम्/एकोनचत्वारिंशदधिकनवशताधिकसहस्रम्
(उन्नीस सौ उन्तालीस/एक हजार नौ सौ उन्तालीस)।
10,000 अयुतम् (दस हजार)।
59637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शताधिकनवसहस्राधिकपञ्चायुतम् (उनसठ हजार, छ: सौ सैंतीस)।

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अभ्यास

1. कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम्।
(कोष्ठक से उचित विभक्ति युक्त पद (शब्द) को चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)

  1. अहं प्रतिदिनं प्रात:काले ………………. वादने उतिष्ठामि। (पञ्चभिः, पञ्च, पञ्चसु)।
  2. तस्याः ……………… दुहिता आसीत्। (एकः, एका, एकम्)
  3. काकः कक्षाभ्यन्तरात् …………. मञ्जूषाः निस्सार्य तां प्रत्यवदत्। (तिस्त्रः, त्रयः, त्रीणि)
  4. …………………. वेदाः सन्ति। (चतुरः, चत्वारि, चत्वारः)
  5. यथेच्छं गृहाण मञ्जूषाम् ………….. । (एका, एकः, एकाम्)
  6. …………….. वर्षदेशीया बालिका सोमप्रभा। (पञ्च, पञ्चमम्, पञ्चानाम्)
  7. ‘जटायोः शौर्यम्’ नामकस्य पाठस्य क्रमः ………………. वर्तते। (दश, दशर्मा, दशमः)
  8. पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः, आकाशश्च …………… तत्त्वानि। (पञ्च, पञ्चभिः, पञ्चसु)
  9. ……………. ग्रहाः सन्ति। (नव, नवानाम्, नवमी)
  10. ……………. पस्तकानि (चत्वारः, चतस्रः, चत्वारि)
  11. ईश्वरः ……………… लोकेषु विद्यमानमस्ति। (त्रिषु, त्रिभ्यः, त्रीन्)
  12. रामः लक्ष्मणश्च ………………. भ्रातरौ आस्ताम् । (द्वौ, द्वयोः, द्वाभ्याम्)
  13. ………….. पदातयः। (षट्सु, षड्भिः, षट)
  14. योगस्य ………………. अंगानि सन्ति। (अष्ट, अप्टाभिः, अष्टानाम्)
  15. ………… पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । (अष्टादश, अष्टादशानाम्, अष्टदशाभिः)

उत्तरम् :

  1. पञ्च
  2. एका
  3. त्रिम्रः
  4. चत्वारः
  5. एकाम्
  6. पञ्च
  7. दशमः
  8. पञ्च
  9. नव
  10. चत्वारि
  11. त्रिषु
  12. द्वौ
  13. षट्
  14. अष्ट
  15. अष्टादश।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् सन्धिकार्यम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

सन्धिशब्दय व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् डुधाञ् (धा) धातोः ‘उपसर्गे धोः किः’ इति सूत्रेण ‘किः’ प्रत्यये कृते सन्धिरिति शब्दो निष्पद्यते। (सम् उपसर्गपूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से “उपसर्गे धोः किः” इस सूत्र से ‘किः’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ यह शब्द बनता है।)

सन्धिशब्दस्य परिभाषा – ‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् द्वयोः वर्णयोः परस्परं यत् सन्धानं मेलनं वा भवति तत्सन्धिरिति कथ्यते। (‘वर्णसन्धानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णों का परस्पर जो सन्धान या मेल होता है वह सन्धि कहा जाता है।)

पाणिनीयपरिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णानाम् अत्यन्तनिकटता संहिता इति कथ्यते। यथा-सुधी + उपास्यः इत्यत्र ईकार-उकारवर्णयोः अत्यन्तनिकटता अस्ति। एतादृशी वर्णनिकटता एव संस्कृतव्याकरणे संहिता इति कथ्यते। संहितायाः विषये एव सन्धिकार्ये सति ‘सुध्युपास्यः’ इति शब्दसिद्धिर्जायते। (‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णों की अत्यधिक निकटता संहिता कही जाती है। जैसे- ‘सुधी+उपास्यः’ यहाँ पर ‘ईकार’ तथा ‘उकार’ वर्गों की अत्यधिक निकटता है। इस प्रकार की वर्णों की निकटता ही संस्कृत व्याकरण में संहिता कही जाती है। संहिता के विषय में ही सन्धि कार्य होने पर ‘सुध्युपास्य’ इस शब्द की सिद्धि होती है।)

सन्धिभेदाः – संस्कृतव्याकरणे सन्धेः त्रयो भेदाः सन्ति। ते इत्थं सन्ति (1) अचसन्धिः (स्वरसन्धिः)। (2) हलसन्धिः (व्यंजनसन्धिः)। (3) विसर्गसन्धिः। नोट-यहाँ व्यंजन संधि एवं विसर्ग सन्धि का ज्ञान अपेक्षित है। अतः इन्हें यहाँ विस्तार से समझाया गया है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

हल्सन्धिः (व्यंजन सन्धिः)

परिभाषा – यदा व्यञ्जनात् परे व्यञ्जनम् अथवा स्वरः आयाति तदा हल्सन्धिः भवति। (जब व्यञ्जन से परे (आगे) व्यञ्जन अथवा स्वर आता है तब हल् सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) होती है।)

अर्थात् – व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन या स्वर के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन (विकार) होता है उसे हल् सन्धि कहते हैं। हल् सन्धि का दूसरा नाम व्यञ्जन सन्धि भी है।

1. श्चुत्व सन्धिः- सूत्र- “स्तोः श्चुना श्चुः”। अर्थः – सकारतवर्गयोः शकारचवर्गाभ्यां योगे शकारचवर्गों स्तः।

व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वम् पश्चात् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा- (श्चुत्व सन्धि – “स्तोः श्चुना श्चुः” यदि ‘स्’ या ‘त्’ वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में ‘श्’ या ‘च’ वर्ग (च्, छ, ज, झ, ञ्) हो तो ‘स्’ का ‘श्’ और त वर्ग का चवर्ग अर्थात ‘त् का च’, ‘थ् का छ्’, ‘द् का ज्’, ‘ध् का झ्’, ‘न’ का ज्’ हो जाता है जैसे- सत् + चरितम् में ‘सत्’ के अन्त में ‘त’ है और ‘चरितम’ के आदि में च है, इन ‘त’ तथा ‘च’ दोनों वर्गों की सन्धि होने पर ‘त’ जो कि त का प्रथम अक्षर (वर्ण) है, के स्थान पर चवर्ग का प्रथम वर्ण अर्थात् ‘च’ हो जाएगा। इस प्रकार सत् + चरितम् की सन्धि हो पर ‘सच्चरितम्’ रूप होगा।)

उदाहरण –

सत् + चित् = सच्चित्
रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति
हरिस् + शेते. = हरिश्शेते
शाङ्गिन् + जय = शाङ्गिञ्जय
रामस् + च = रामश्च।
कस् + चित् = कश्चित्
उद् + ज्वलः = उज्ज्वल:

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. ष्टुत्व सन्धिः – सूत्र – ष्टुना ष्टुः। अर्थः – स्तोः ष्टुना योगे ष्टुः स्यात्।
व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वं पश्चाद् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येते वर्णाः भवन्ति। यथा –
अर्थात् ‘स्’ तथा तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के पहले या बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट्, ठ्, ड्, द, ण) में से कोई वर्ण हो तो ‘स्’ को ‘ए’ तथा तवर्ग को क्रमशः टवर्ग त् का ट्, थ् का ठ्, द् का ड्, ध् का द, न् का ण हो जाता है। जैसे- इष् + त: में ‘इष्’ का अन्तिम वर्ण ‘ए’ है और उसके परे ‘तः’ है। अतः सन्धि कार्य होने पर तवर्ग टवर्ग में बदल जाएगा। अर्थात् ‘त:’ के स्थान पर ‘ट:’ होने पर इष् + तः = इष्टः रूप होगा।

उदाहरण –

तत् + टीका = तट्टीका
रामस् + षष्ठः रामष्षष्ठी:
रामस् + टीकते = रामष्टीकते
पेष् + ता = पेष्टा
चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्ढौकसे
उद् + डयनम् = उड्डयनम्
राष् + त्रम् = राष्ट्रम्
इष् + तः = इष्टः

3. जश्त्व सन्धिः -सूत्र – झलां जशोऽन्ते। अर्थः- पदान्ते झलां जशः स्युः। (“झलां जशोऽन्ते” अर्थात् पद के अन्त में ‘झूल’ ‘जश्’ हो जाता है।)
व्याख्या – पदान्ते झल् प्रत्याहारान्तर्गतवर्णानां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 वर्णानां श् ष स ह वर्णानां च) स्थाने जश्प्रत्याहारस्य (ज् ब् ग् ड् द्) वर्णाः भवन्ति। यथा
(पद के अन्त में ‘झल्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्णों (झ्, भ, ध्, द, ध्, ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, त्, थ्, च्, ट्, त्, क्, प, श, ष, स, ह) के स्थान पर ‘जश्’ प्रत्याहार, (ज, ब, ग, ड्, द्) के वर्ण हो जाते हैं।)
इस संधि के दो भाग हैं – प्रथम भाग व द्वितीय भाग। प्रथम भाग पद के अन्त में होने वाली जश्त्व सन्धि है और द्वितीय भाग पद के मध्य में होने वाली जश्त्व सन्धि है।)

प्रथम भाग – जब पद (सुबन्त और तिङन्त अर्थात् शब्दरूप, धातु रूप-युक्त शब्द) के अन्त में होने वाले किसी भी वर्ग के प्रथम वर्ण अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् में से किसी भी एक वर्ग के ठीक बाद कोई भी घोष वर्ण अर्थात् ङ्, ञ, ण, न्, म्, य, र, ल, व् और ह को छोड़कर कोई भी व्यञ्जन अथवा स्वर वर्ण आता है तो पूर्वोक्त प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त् और प्) अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (‘क्’ के स्थान पर ‘ग्’, ‘च’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ट्’ के स्थान पर ‘ड्’, ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ . तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘ब’ में बदल जाते हैं।) जैसे –

वाक् + ईशः = वागीशः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग्’ होने पर)
जगत + ईश = जगदीशः (यहाँ ‘त्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘द्’ होने पर)
षट् + आननः = षडाननः (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ग ‘ग्’ होने पर)
अच् + अन्तः अजन्तः (यहाँ ‘च’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ज्’ होने पर)
अन्तः सुबन्तः (यहाँ ‘प्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ब्’ होने पर)
षट् + दर्शनम् = षड्दर्शनम् (यहाँ ‘ट्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ड्’ होने पर)
दिक् + गजः = दिग्गजः (यहाँ ‘क्’ को अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण ‘ग’ होने पर)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि :

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 1

4. चवं सन्धिः – सूत्र-खरि च। अर्थः – खरि परे झलां चरः स्युः। (“खरि च” अर्थ- खर् परे हो तो झलों के स्थान में चर आदेश हो।)।
व्याख्या – खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे झलां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 श् ष् स् ह) स्थाने चर् (क् च् ट् त् प् श् स्) प्रत्याहारस्य वर्णाः भवन्ति। यथा –
खरि (वर्ग के क्, ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्, प, फ्, श्, ष, स्) परे हों तो झल् (वर्ग के क्, ख, ग, घ, च्, छ, ज, झ्, ट्, ठ्, ड्, द, त्, थ्, द्, ध्, प, फ, ब्, भ्, श, ष, स्, ह्) के स्थान पर चर् (क्, च्, ट्, त्, प् श् स्) प्रत्याहार के वर्ण होते हैं। जैसे –
सद् + कारः = सत्कारः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
विपद् + कालः = विपत्कालः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्प्रान्तः (यहाँ ‘भ्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘प्’ होने पर)
उद् + पन्नः = उत्पन्नः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. अनुस्वार-सन्धिः – सूत्र – मोऽनुस्वारः अर्थः – मान्तस्य पदस्यानुस्वारः स्याद् हलि। (‘मोऽनुस्वारः’ अर्थ मान्त पद के स्थान में अनुस्वार आदेश हो हल् परे होने पर।)
व्याख्या – पदान्तस्य मकारस्य स्थाने अनुस्वारः आदेशो भवति हलि (व्यञ्जने) परे। यथा –
(पदान्त मकार के स्थान पर अनुस्वार आदेश होता है हल् (व्यञ्जन) परे होने पर। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 2

ध्यातव्य – यदि शब्द के अन्त में ‘म्’ आये और उसके पश्चात् कोई हल् (व्यञ्जन) वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार (-) हो जाता है। पदान्त ‘म्’ के पश्चात् कोई स्वर वर्ण आये तो ‘म्’ को अनुस्वार नहीं होता। जैसे: –
अहम् + अपि = अहमपि (यहाँ पर अहम् के स्थान पर अहं नहीं होगा।)

विसर्गसन्धिः

यदा विसर्गस्य स्थाने किमपि परिवर्तनं भवति तदा सः विसर्गसन्धिः इति कथ्यते। (जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब उसे विसर्ग सन्धि कहा जाता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

1. विसर्गस्य लोपः

1.1 आतोऽशि विसर्गस्य लोपः – आकारात् परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदुव्यञ्जने च) परे लोपो भवति। उदाहरणानि- आकार से परे विसर्ग का अशि (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे होने का लोप हो जाता है। (अर्थात् विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और उसके (विसर्ग के) पश्चात् कोई भी स्वर हो या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य व र ‘ल ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 3

1.2 “अतोऽनत्यचि विसर्ग लोपः” – अकारात् परस्य विसर्गस्य अकारं वर्जयित्वा स्वरे परे लोपो भवति।
उदाहरणानि –
(विसर्ग से पहले अकार हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 8

1.3 “एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनञ्समासे हलि” अककारयोः एतत्तदोः यः ‘सुः’ (स-विसर्गः) तस्य लोपः स्याद् हलि न तु नसमासे। (ककार रहित एतद् और तद् शब्द का जो ‘सु’ (प्रथमा विभक्ति का एकवचन) (स – विसर्गः) उसका लोप हो हल् परे होने पर परन्तु नबसमास में न हो।)

अयं भावः – नसमासं विहाय ‘एषः’ ‘सः’ इत्यनयो पदयोः विसर्गस्य अकारं विहाय यत्किञ्चवर्णे परे लोपो भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – नबसमास को छोड़कर ‘एषः”सः’ इन पदों में विसर्ग के अकार को छोड़कर अर्थात् ‘सः’ ‘एषः’ के पश्चात् ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या व्यञ्जन हो, वहाँ विसर्ग का लोप होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 4

1.4 ‘रो रि” रेफस्य रेफे परे लोप: स्यात्।
अयं भावः – स्वरात्परस्य विसर्गस्य रेफे परे लोपो भवति। लोपे कृते पूर्वस्वरः दीर्घश्च भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – विसर्ग से बने ‘र’ के पश्चात् यदि ‘र’ आये तो पूर्व के ‘र’ का लोप हो जाता है तथा लोप होने वाले ‘र’ से पूर्व के अ, ई, उ का दीर्घ हो जाता है जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 5

2. उत्वसन्धिः – अतो रोरप्लुतादप्लुते।
अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्यादप्लुतेऽति। (अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो अप्लुत अकार परे होने पर।)
व्याख्या- हस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति ह्रस्वे अकारे परे। (हस्व अकार से पर (बाद में) रोः (रेफ के स्थान पर) का उकार आदेश होता है ह्रस्व अकार परे होने पर।)
विशेषः – अः + अ इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति, अन्तिमस्य अकारस्य च स्थाने अवग्रहः (s) भवति। अर्थात् उत्सवसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः पररूपसन्धिः च भवतः। यथा –
(अः + अ इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है और अन्तिम अकार के स्थान पर (s) अवग्रह होता है। अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुणसन्धि और पररूप सन्धि होती हैं। जैसे-)

कः + अपि . = कोऽपि।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्
रामः + अयम् = रामोऽयम्
शिवः + अर्चः = शिवोऽर्थ्य:
सः + अपि = सोऽपि
छात्रः + अयम् = छात्रोऽयम्
नृपः + अस्ति = नृपोऽस्ति

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि

कुतः + अत्र = कुतोऽत्र
नामधेयः + असि = नामधेयोऽसि
भीतः + अस्मि = भीतोऽस्मि
कोऽत्र कुमारः + अयम् = कुमारोऽयम्
अस्य = कोऽस्य भणितः असि = भणितोऽसि
कः + अभूत् = कोऽभूत्
पथिकः + अपि = पथिकोऽपि
इतः + अपि = इतोऽपि
एकल: + अपि = एकलोऽपि
प्रवेशितः + अयं = प्रवेशितोऽयं
विलक्षणः + अयम् = विलक्षणोऽयम्
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं
वाक्यांशः + अपि = वाक्यांशोऽपि
मुक्तः + अथवा = मुक्तोऽथवा
शिखरस्थः + अपि = शिखरस्थोऽपि
विवेकः + अस्ति विवेकोऽस्ति
धन्यः + असि = धन्योऽसि
शुष्कः + अपि = शुष्कोऽपि कोऽपि
अरयः + अपि = अरण्योऽपि शासकः
रहितः + अपि = रहितोऽपि
एकः + अपि = एकोऽपि
श्रेयः + अन्यत् = श्रेयोऽन्यत्
संग्रहः + अस्ति संग्रहोऽस्ति
प्रस्तुतः + अयं = प्रस्तुतोऽयं”
कः + अयम् = कोऽयम्
प्राप्तः + अहं = प्राप्तोऽहं
सः + अपि = सोऽपि

उत्वसन्धिः – हशि च।

अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्याद्धशि। (अर्थ – हश् (ह य व र ल ब म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द) परे रहने पर भी अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो।)

व्याख्या – ह्रस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति हशि (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य् व् र ल्)
(ह्रस्व अकार से बाद का रोः (रेफ के स्थान पर) उकार आदेश होता है हशि (वर्ग का 3, 4, 5, ह य व् र ल्) परे होने पर भी।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

विशेषः – अः + हश् (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य व र ल) इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति। अर्थात् उत्वसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः भवति। यथा – (अः + हश् (वर्ग का 3, 4, 5, वर्ण या ह् य् व् र् ल्) इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है। अर्थात्, उत्व सन्धि के बाद गुण सन्धि होती है। जैसे-)

शिवः + वन्द्यः = शिवो वन्द्यः
रामः + हसति = रामो हसति
बालः + याति = बालो याति
बुधः + लिखति = बुधो लिखति
बालः + रौति = बालो रौति
नमः + नमः = नमो नमः
रामः + जयति = रामो जयति
क्षीणः + भवति = क्षीणो भवति
मनः + हरः = मनोहरः
यशः + दा = यशोदा

3. रुत्व सन्धिः – “इचोऽशि विसर्गस्य रेफः” – इचः (अ, आ इत्येतौ वर्जयित्वा स्वरात्) परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदु-व्यञ्जने च) परे रेफादेशो भवति। उदाहरणानि –
(अ आ इन दोनों वर्जित स्वर से) पर विसर्ग हो (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे रेफ आदेश होता है। अर्थात्
(यदि प्रथम पद के विसर्ग से पूर्व ‘अ’ अथवा ‘आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा विसर्ग के बाद कोई स्वर, वर्गों का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण या य व र ल ह में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है।)
जैसे – हरिः + अयम् = हरिरयम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 6

अव्ययसम्बन्धिनः – ऋकारान्तशब्दस्य सम्बोधनसम्बन्धिनश्च विसर्गस्य अकारात् आकारात् च परस्यापि रेफादेशो भवति। उदाहरणानि- (ऋकारान्त और सम्बोधन सम्बन्धी शब्दों के विसर्ग का अकार और अकार से परे का भी.रेफ आदेश होता है।) उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् 7

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. सत्वसन्धिः – विसर्जनीयस्य सः
अर्थः – खरि परे विसर्जनीयस्य सः स्यात्। (“विसर्जनीयस्य सः’ विसर्ग के स्थान में सकार आदेश हो ‘खर्’ परे होने पर। ‘खर्’ = ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स)

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने सकारो भवति खरि (वर्गस्य 1, 2, श् ष् स्) परे। यथा- (विसर्ग के स्थान पर सकार होता है खर (वर्ग के 1, 2, श, ष, स्) परे होने पर।)

अर्थात् विसर्ग के परे (क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स) इनमें से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है। जैसे- ‘नमः + ते’ यहाँ विसर्ग से परे ‘त’ वर्ण है जो खर् प्रत्याहार के अन्तर्गत है अतः विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ होकर ‘नम स + ते = ‘नमस्ते’ सिद्ध होता है। उदाहरण –

विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता
रामः + च = रामश्च
धनुः + टङ्कार = धनुष्टङ्कारः
निः + छलः = निश्छलः
विसर्गसन्धिः – वा शरि

अर्थः – शरि विसर्गस्य विसर्गो वा स्यात्।

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने विकल्पेन विसर्गादेशो भवति शरिश (श् ‘स्) परे। यथा –

हरिः + शेते – हरिः शेते/हरिश्शेते
निः + सन्देहः = निःसन्देह/निस्सन्देह
नृपः + षष्ठः = नृपः षष्ठः/नृपष्षष्ठ

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

अन्य उदाहरणानि –

पुनः + च = पुनश्च (विसर्ग का श् होकर)
व्याकुलः + चलितः = व्याकुलश्चलितः (विसर्ग का श् होकर)
कपोताः + तत्रोपविष्टाः = कपोतास्तत्रोपविष्टाः (विसर्ग का स् होकर)
अवलम्बिताः + तं = अवलम्बितास्त (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
प्रतीकारः + चिन्त्यताम् = प्रतीकारश्चिन्त्यताम् (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
ततः + तेषु ततस्तेषु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
भ्रान्ताः + सन्ति भ्रान्तास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
चिन्तकैः च = चिन्तकैश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
हिमाद्रेः + चैव = हिमाद्रेश्चैव (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
धन्याः + तु = धन्यास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
जन्मभूमिः + च = जन्मभूमिश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
भवतः + सर्वदा = भवतस्सर्वदा (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
शिक्षणीयाः + तु = शिक्षणीयास्तु (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
देवगुरोः + तपोवने = देवगुरोस्तपोवने (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
क्रः + तस्य = क्रस्तस्य (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
धीरनायकः + च = धीरनायकश्च (विसर्ग का ‘श्’ होकर)
मातुः + च = मातुश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
मधुर + च = मधुरश्च (विसर्ग का ‘श’ होकर)
शब्दाः + सन्ति = शब्दास्सन्ति (विसर्ग का ‘स्’ होकर)
मनः + तोषः = मनस्तोषः (विसर्ग का ‘स्’ होकर)

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उचित विकल्पं चित्वा लिखत –
1. “हिमादेश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदो भविष्यति –
(अ) हिमाद्रिः + च
(ब) हिमाद्रे + च
(स) हिमाद्रेः + च
(द) हिमाद्रेश + च
उत्तरम् :
(अ) हिमाद्रिः + च

2. ‘धन्यास्तु’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) धन्याः + तु
(ब) धन्या + अस्तु
(स) धन्य + अस्तु
(द) धन्य + आस्तु
उत्तरम् :
(अ) धन्याः + तु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. ‘जन्मभूमिश्च’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) जन्मभूमि + श्च
(ब) जन्मभूमिः + च
(स) जन्मभू + मिश्च
(द) जन्म + भूमिश्च।
उत्तरम् :
(ब) जन्मभूमिः + च

4. ‘भवतस्सर्वदा’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) भवतस + सर्वदा
(ब) भवतस् + सर्वदा
(स) भवतः + सर्वदा
(द) भवत् + सर्वदा
उत्तरम् :
(स) भवतः + सर्वदा

5. ‘गत एव’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति –
(अ) गतः + एव
(ब) गत + एव
(स) गते + एव
(द) गतम् + एव
उत्तरम् :
(अ) गतः + एव

6. अभूमिः + इयम् इत्यनयोः पदयोः सन्धिः अस्ति।
(अ) अभूमिरियम्
(ब) अभूमीयम्
(स) अभूमि इयम्
(द) अभूमिसियम्।
उत्तरम् :
(अ) अभूमिरियम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. ‘अतः एव’ इति पदयोः सन्धि भवति –
(अ) अतदेव
(ब) अत एव
(स) अतैव
(द) अतसेव।
उत्तरम् :
(ब) अत एव

8. कः + अयम् पदयोः सन्धि अस्ति –
(अ) कअयम
(ब) करयम्
(स) कसमयम्
(द) कोऽयम्
उत्तरम् :
(द) कोऽयम्

9. ‘एषः + उपदेशः’ इत्यत्र सन्धिः स्यात् –
(अ) एषोपदेशः
(ब) एषउपदेश
(स) एषरूपदेशः
(द) एषसुपदेश
उत्तरम् :
(ब) एषउपदेश

10. ‘काकः + न’ इत्यनयोः सन्धिः भवति
(अ) काकन
(ब) काकरन
(स) काको न
(द) काकसन
उत्तरम् :
(स) काको न

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 2.
प्रकोष्ठात् चितं विकल्पं चित्वा रिक्त स्थान पुरयत –
1. ‘मातुराम …………………. केसरम्। (मातुः + आमद/मातु + आमद)
2. तस्य ‘पितुः + नाम’ ……………… ठाकुरसी ढाका आसीत्। (पितुरनाम्/पितुनमि)
3. ‘शुष्कोऽपि नित्यं सरसः ‘स देश’ ………… (सः + देश/सो. + देश:)
4. ‘गृहीत इव’ ……………………. केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्। (गृहीतः + इव/गृहीतो इव)
5. ‘को नु’ खल्वेष ………….. निषिध्यते। (क + उनु/कः + नु)
उत्तरम् :
1. मातुः + आमर्द,
2. पितुर्नाम,
3. स: + देश,
4. गृहीतः + इव,
5. कः + नु।

प्रश्न 3.
अधोलिखित पदेष सन्धिं/सन्धि विच्छेदं वा कुरुत सन्धि-नाम अपि लिखत (निम्न पदों में सन्धि/संधि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. दिग्गजाः चत्वारः भवन्ति।
उत्तरम् :
दिक् + गजाः (हल – जश्त्व)

2. सत् + चरित्रः जनः पूज्यते।
उत्तरम् :
सच्चरित्रः (हल् – श्चुत्व)

3. चलदनिशम्
उत्तरम् :
चलत् + अनिशम् (हल्-जश्त्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. स्यान्नैव
उत्तरम् :
स्यात् + न + एव (हल् – अनुनासिक)

5. प्राकृतिरेव
उत्तरम् :
प्रकृतिः + एव (विसर्ग रुत्व)

6. अस्मात् + नगरात्
उत्तरम् :
अस्मान्नगरात् (हल् – अनुनासिक)

7. आकृतिः + न
उत्तरम् :
आकृतिर्न (विसर्ग सन्धि रुत्व)

8. ततस्तया
उत्तरम् :
ततः + तया (विसर्ग सत्व)

9. मनोहरः
उत्तरम् :
मनः + हरः (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

10. यशोदा
उत्तरम् :
यशः + दा (विसर्ग सन्धि, उत्व विधान)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

11. वागीशः
उत्तरम् :
वाक् + ईशः (जश्त्व विधान)

12. नमस्ते
उत्तरम् :
नमः + ते (विसर्गे, सत्व विधान)

13. कथं तच्छत्रुः ?
उत्तरम् :
तत् + शत्रुः (हल् – छत्व)

14. कोलोऽयं विद्यते तव भारती।
उत्तरम् :
कोषः + अयम् (विसर्ग-पूर्वरूप)

15. पदच्छेदं कृत्वा पठेत्।
उत्तरम् :
पद + छेदम् (हल् – तुक् आगम)

16. जगत् + ईशः सर्वान् रक्षति।
उत्तरम् :
जगदीशः (हल् – जश्त्व)

प्रश्न 4.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तरपुस्तिका में लिखिए)
1. (i) मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।
(ii) जय जगदीश हरे !
(ii) नीरोगः जनः सुखी भवति।
(iv) षट् + आनन: गणेशः।
उत्तरम् :
(i) मृगाः + चरन्ति
(ii) जगत् + ईश
(ii) निर् + रोगः
(iv) षडाननः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

2. (i) पश्य एतच्चित्रम्।
(i) तच्छ्लोकं श्रुत्वा राजा प्रसन्नोऽभवत्।
(iii) एतच्छ्रुत्वा जनाः तत्र आगताः।
(iv) सूतः उवाच।
उत्तरम् :
(i) एतत् + चित्रम्।
(i) तत् + श्लोकम्।
(iii) एतत् + श्रुत्वा
(iv) सूत उवाच

3. (ii) पापिनाञ्च विनाशः भवति।
(ii) उद् + शिष्टम् उपसार्येत्।
(iii) एतत् + शोभनं चित्रम्।
(iv) अत्र अजाश्चरन्ति।
उत्तरम् :
(i) पापिनाम् + च।
(i) उच्छिष्टम्
(iii) एतच्छोभनम्।
(iv) अजाः + चरन्ति।

4. (i) श्रीमच्छरच्चन्द्रः।
(ii) चञ्चलः एष बालकः।
(iii) त्वं धन्योऽसि।
(iv) द्वयोः + अपि
उत्तरम् :
(i) श्रीमत् + शरत् + चन्द्रः
(ii) चम् + चलः।
(iii) धन्यः + असि
(iv) द्वयोरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 5.
स्थूलपदेषु सन्धिच्छेदं अथवा सन्धि कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों में सन्धि-विच्छेद या सन्धि करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) कपिः इतस्ततः भ्रमति।
(ii) केचन जनाः विद्याम् इच्छन्ति, केचन धनम् + च।
(iii) तच्छ्लोकं श्रुत्वा कः प्रसन्नः न भविष्यति ?
(iv) एतच्छ्रुत्वा जनाः ततो गताः।
उत्तरम् :
(i) इतः + ततः
(ii) धनञ्च
(iii) तत्+श्लोकम्
(iv) एतत् + श्रुत्वा

2. (i) रामः + च लक्ष्मणश्च वनं गतौ।
(ii) सन्तोषः एव सत् + निधानम्।
(iii) मेघः + गर्जति।
(iv) कामात् क्रोधोऽभिजायते।
उत्तरम् :
(i) रामश्च
(ii) सन्निधानम्
(iii) मेघो गर्जति
(iv) क्रोधः + अभिजायते

3. (i) अनिच्छन् + अपि वार्ष्णेय ! बलादिव नियोजितः।
(ii) तत् + श्रुत्वा यूथपतिः सगद्गदम् उक्तवान्।
(iii) अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति।
(iv) मन्ये वायोः + इव सुदुष्करम्।
उत्तरम् :
(i) अनिच्छन्नपि
(ii) तच्छ्रुत्वा
(iii) कोशः + अयम्
(iv) वायोरेव

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) दहन्निव प्रचण्डज्वालः अग्निः प्रचलति।
(ii) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
(iii) सर्वदा विद्यमानोऽस्य कार्यकलापं पश्यामि।
(iv) पश्य एतच्चित्रम्।
उत्तरम् :
(i) दहन् + इव
(ii) पापिनाञ्च
(iii) विद्यमानः + अस्य
(iv) एतत् + चित्रम्

5. (i) सा एव कीर्ति धनं च प्राप्नोति।
(ii) जय जगदीश हरे।
(iii) वने मृगाः + चरन्ति।
(iv) तच्छ्रुत्वा तेषु एकः बालकः उवाच – ‘अपि भोः।’
उत्तरम् :
(i) धनञ्च
(ii) जगत् + ईशः
(iii) मृगाश्चरन्ति
(iv) तत् + श्रुत्वा

6. (i) अपि इदं श्रेयः + करम्।
(ii) कोऽनर्थफल मानः।
(iii) कस्मिन् + चित् नगरे चन्द्रो नाम भूपतिः अवसत्।
(iv) पाण्डवास्त्वं च राष्ट्र च सदा संरक्ष्यमेव हि।
उत्तरम् :
(i) श्रेयस्करम्
(ii) कः + अनर्थफलः
(iii) कस्मिंश्चित्
(iv) पाण्डवाः + तम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

7. (i) मृण्मयं भाजनं, तेन तम् आशु ताडयन्ति स्म।
(ii) न कुर्यात् + अहितं कर्म।
(iii) राजा सुधीभ्यः धनं मानम् + च यच्छति।
(iv) पापिनाम् + च सदा दुःखम्।
उत्तरम् :
(i) मृद् + मयम्
(i) कुर्यादहितम्
(iii) मानञ्च।
(iv) पापिनाञ्च

प्रश्न 6.
अधोलिखित पदेषु सन्धिं / सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धि-नाम अपि लिखत।
(निम्न पदों में सन्धि/सन्धि विच्छेद कीजिए और सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) अधोमुखी
(i) मुहुर्मुहुः
(iii) अत एव
उत्तरम् :
(i) अधः + मुखी (विसर्ग-उत्व)
(ii) मुहुः + मुहुः (विसर्ग-रुत्व)
(iii) अतः + एवः (विसर्ग-लोप)

2. (i) केतकच्छदत्वम्
(ii) कश्चित्
(iii) उत्खाता
उत्तरम् :
(i) केतक + छदत्वम् (तुकागम)
(ii) कः + चित् (विसर्ग श्चुत्व)
(iii) उद् + खाता (हल् – चव)

3. (i) कान्तिः + गात्राणाम्
(ii) वयोरूप
(iii) व्यायामो हि
उत्तरम् :
(i) कान्तिर्गात्राणाम् (विसर्ग-रुत्व)
(ii) वयः + रूप (विसर्ग)
(iii) व्यायामः + हि (विसर्ग-उत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) वायुर्यदा
(ii) एकः + तावत्
(iii) तावद्विभज्य
उत्तरम् :
(i) वायुः + यदा (विसर्ग-रुत्व)
(ii) एकस्तावत (विसर्ग सत्व)
(iii) तावत् + विभज्य (हल्-जश्त्व)

5. (i) महतोभयात्
(ii) यन्मानुषात्
(iii) पुनः + आयान्तम्
उत्तरम् :
(i) महतः + भयात् (विसर्ग-उत्व)
(ii) यत् + मानुषात् (हल्-अनु)
(iii) पुनरायान्तम् (विसर्ग रुत्व)

6. (i) हसन्नाह
(ii) बुद्धिर्बलवती
(iii) पुनरपि
उत्तरम् :
(i) हसन् + आह (हल् – द्वित्व)
(ii) बुद्धिः+बलवती (विसर्ग-रुत्व)
(iii) पुनः + अपि (विसर्ग-रुत्व)

7. (i) मनस्तु
(ii) क्रोधो हि
(iii) अश्वः + चेत्
उत्तरम् :
(i) मनः + तु (विसर्ग-रुत्व)
(ii) क्रोधः + हि (विसर्ग-उत्व)
(iii) अश्वश्चेत् (विसर्ग-सत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 7.
स्थूलपदेषु सन्धिं
सन्धि विच्छेदंवा कृत्वा उत्तर पुस्तिकायां लिखत – (मोटे अक्षर वाले पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए।)
1. (i) कस्मिन्नपि कर्मणि वा
(ii) अथ राजानं मुनिरुवाच
(iii) उपचारेण स्वस्थो जातः।
(iv) अस्मद् + जन आदिष्यते।
उत्तरम् :
(i) कस्मिन् + अपि (हल्)
(ii) मुनिः + उवाच (विसर्ग)
(iii) स्वस्थः + जातः (विसर्ग-उत्व)
(iv) अस्मज्जन (हल् – श्चुत्व)

2. (i) वराको जनः क्षन्तव्योऽयम्।
(ii) एष एव ते निश्चयः ?
(iii) किं पुनः + असन्तम्।।
(iv) रिक्तोऽसि यज्जलद।
उत्तरम् :
(i) वराकः + जनः (विसर्ग-उत्व)
(ii) एषः + एव (विसर्ग लोप)
(iii) पुनरसन्तम् (विसर्ग रुत्व)
(iv) यत् + जलद (हल् – श्चुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) चौरः + एव उच्चे क्रोशितुमारभत।
(ii) पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ।
(iii) यदुक्तं तद् वर्णयामि।
(iv) कश्चिज्जनः केनापि हतः।
उत्तरम् :
(i) चौर एव (विसर्ग लोप)
(ii) पुनः + तौ (विसर्ग)
(iii) यत् + उक्त (हल)
(iv) कश्चित् + जनः (हल्-श्चुत्व)

4. (i) एक एव खगोमानी।
(ii) सरः + त्वयि सङ्कोचमञ्चति
(iii) तरोरस्य पुष्टिः।
उत्तरम् :
(i) खगः + मानी (विसर्ग-उत्व)
(ii) सरस्त्वयि (विसर्ग-सत्व)
(iii) तरोः + अस्य (विसर्ग)

5. (i) श्वोवा कथं नु भवितेति। .
(ii) रात्रौ जानुर्दिवाभानुः।
(iii) प्र + छादनं दोषमुत्पादयति।
(iv) परैर्न परिभूयते।
उत्तरम् :
(i) श्वः + वा (विसर्ग-उत्व)
(ii) जानुः + दिवा (विसर्ग रुत्व)
(iii) प्रच्छादनम् (तुकागम्)
(iv) परैः + न (विसर्ग-रुत्व)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 8.
रेखाङ्कितपदेषु सन्धिविच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं उत्तरपुस्तिकायां लिखत – (रेखांकित पदों में सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि कर उत्तर उत्तरपुस्तिका में लिखिए-)
1. (i) ब्रह्ममयि जय वागीश्वरी
(ii) बाला: + अत्र
(iii) मतिरास्ताम् नः तव पद कमले
(iv) साधुः + भव
उत्तरम् :
(i) वाक् + ईश्वरी
(ii) बाला अत्र
(iii) मतिः + आस्ताम्
(iv) साधुर्भव

2. (i) लताः + एधन्ते
(ii) पुन: + च
(iii) नानादिक् + देशात्
(iv) मनीषा
उत्तरम् :
(i) लता एधन्ते
(ii) पुनश्च
(iii) नानादिग्देशात्
(iv) मनस् + ईषा

3. (i) अद्य प्रातरेव अनिष्ट दर्शनं जातम्
(ii) तस्मिन्नेव काले
(iii) कुतोऽत्र निर्जने वने तण्डुलकणान्
(iv) पुनः + अपि
उत्तरम् :
(i) प्रातः + एव
(ii) तस्मिन् + एव
(iii) कुतः + अत्र
(iv) पुनरपि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

4. (i) पतञ्जलि
(ii) धन्याः + तु
(iii) वाग् + मूलम्
(iv) भीतोऽस्मि
उत्तरम् :
(i) पतत् + अञ्जलि
(ii) धन्यास्तु
(iii) वाङ्मूलम्/वाग्मूलम्
(iv) भीतः + अस्मि

5. (i) एतत् + मुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ताः + गच्छन्ति
(iv) कः + अत्र
उत्तरम् :
(i) एतन्मुरारि/एतमुरारि
(ii) हरिम् वन्दे
(iii) ता गच्छन्ति
(iv) कोऽत्र

6. (i) विभ्रत् + न
(ii) व्याकुलश्चलितः
(iii) जगदीश्वरान्
(iv) ततः + तेषु
उत्तरम् :
(i) विभ्रन्न।
(ii) व्याकुलः + चलितः
(iii) जगत् + ईश्वरान्
(iv) ततस्तेषु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

प्रश्न 9.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत।
(निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि विच्छेद करके सन्धि का नाम भी लिखिए।)
1. (i) भूमिरस्ति
(ii) वृद्धाः यान्ति
(iii) सवैरेकचित्तीयभूय
उत्तरम् :
(i) भूमिः + अस्ति (सत्व विसर्ग)
(ii) वृद्ध यान्ति (विसर्ग लोप)
(iii) सर्वैः + एकचित्तीयभूय (रुत्व विसर्ग)

2. (i) बालाः + हसन्ति
(ii) भ्रान्तासन्ति
(iii) दिक् + अम्बरः
उत्तरम् :
(i) बाला हसन्ति (विसर्ग लोपः)
(ii) भ्रान्तः + सन्ति (सत्व विसर्ग)
(iii) दिगम्बरः (जश्त्व सन्धि)

3. (i) भणितो + असि
(ii) उज्ज्वलः
(ii) विपत्काल:
उत्तरम् :
(i) भणितः + असि (उत्व विसर्ग)
(ii) उद् + ज्वलः (श्चुत्व सन्धिः)
(iii) विपद् + कालः (चर्व सन्धिः)

4. (i) बालः + याति
(ii) कः + अपि
(iii) नमः + ते
उत्तरम् :
(i) बालो याति (उत्व सन्धिः)
(ii) कोऽपि (उत्व सन्धिः)
(iii) नमस्ते (सत्व सन्धिः)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

5. (i) सत्यं वद
(ii) कालादेव
(iii) सद् + काल:
उत्तरम् :
(i) सत्यम् + वद् (अनुस्वार सन्धिः)
(ii) कालांत् + एव (जश्त्व सन्धिः)
(iii) सत्कारः (चर्व सन्धिः)

6. (i) दिक् + गजः
(ii) गृहं गच्छति
उत्तरम् :
(i) दिग्गजः (जश्त्व सन्धिः)
(ii) कं + पते (परसवर्ण)
(iii) गृहम् + गच्छति (मोऽनुस्वार)।

7. (i) रामः + आगच्छति
(ii) चित्तकैः + च
(iii) दुखं प्राप्नोति
उत्तरम् :
(i) राम आगच्छति (विसर्ग लोप)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) दुखम् प्राप्नोति (मोऽनुस्वार)

8. (i) सच्चित्
(ii) इष्टः
(iii) जगत् + ईशः
उत्तरम् :
(i) सत् + चित् (श्चुत्व सन्धिः)
(ii) इष् + त्: (ष्टुत्व सन्धिः)
(iii) जगदीशः (जश्त्व सन्धिः)

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं व कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत (निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम भी लिखिए-)
1. (i) सम्पद् + समयः
(ii) त्वं पठसि
(iii) सत् + उपदेश
उत्तरम् :
(i) सम्पत्समयः (चर्व सन्धिः)
(ii) त्वम् + पठसि (मोऽनुस्वार)
(iii) सदुपदेश (जश्त्व सन्धिः)

2. (i) एकल: + अपि
(ii) चित्तकैः + च
(iii) कृषेः + भयम्
उत्तरम् :
(i) एकलोऽपि (उत्व विसर्ग)
(ii) चित्तकैश्च (सत्व विसर्ग)
(iii) कृषेर्भयम् (रुत्व विसर्ग)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

3. (i) अजन्तः
(ii) विपद् + काल
(iii) सुबन्त
उत्तरम् :
(i) अच + अन्त (जश्त्व सन्धिः)
(ii) विपत्काल (चर्व सन्धिः)
(iii) सुप् + अन्त (जश्त्व)

4. (i) अरयोऽपि
(ii) भवतः + सर्वद
(iii) वाक् + ईशः
उत्तरम् :
(i) अरयः + अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) भवतस्सर्वदा (सत्व विसर्ग)
(iii) वागीश (जश्त्व सन्धिः)

5. (i) कोऽभूत्
(ii) विलक्षण: + अयम्
(iii) अहम् + धावामि
उत्तरम् :
(i) कः + अभूत (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) विलक्षणोऽयम् (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) अहं धावामि (मोऽनुस्वार)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम्

6. (i) शुष्कोऽपि
(ii) जन्मभूमिश्चः
(iii) देवैः + अनिशं
उत्तरम् :
(i) शुष्कः अपि (उत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) जन्मभूमिः + च (सत्व विसर्ग सन्धिः)
(iii) देवैरनिशं (रुत्व विसर्ग सन्धिः)

7. (i) कृष्ण एति
(ii) मनः + तोषः
(iii) प्रागेव
उत्तरम् :
(i) कृष्णः एति (विसर्ग लोप)
(ii) मन स्तोषः (सत्व विसर्ग)
(iii) प्राक् + एव (जश्त्व)

8. (i) भूमिः + इयम्
(ii) बाल: + इच्छति
(iii) कस्तस्य
उत्तरम् :
(i) भूमिरियम् (रुत्व विसर्ग सन्धिः)
(ii) बाल इच्छति (विसर्ग लोप)
(iii) कः + तस्य (सत्व विसर्ग सन्धिः)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

JAC Class 9th Sanskrit पर्यावरणम् Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक शब्द में उत्तर लखिए-)
(क) मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति? (मनुष्य कहाँ सुरक्षित है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणकुक्षौ (पर्यावरण की कोख में)।

(ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते? (सुरक्षित पर्यावरण कहाँ प्राप्त होता था?)
उत्तरम् :
वने। (वन में)।

(ग) आर्षवचनं किमस्ति? (प्रामाणिक वचन क्या है?)
उत्तरम् :
धर्मो रक्षति रक्षितः। (रक्षित ही धर्म की रक्षा करता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गम् इति? (पर्यावरण भी किसका अंग है?)
उत्तरम् :
धर्मस्य (धर्म का)।

(ङ) लोकरक्षा कया संभवति? (लोक रक्षा किससे हो सकती है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणेन। (पर्यावरण से।)

(च) प्रकृति केषां संरक्षणाय यतते? (प्रकृति किनके संरक्षण का यत्न करती है?)
उत्तरम् :
समेषां प्राणीनाम्। (सभी प्राणियों की।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत – (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति? (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व क्या हैं?).
उत्तरम् :
पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः आकाशश्च प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि सन्ति। (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश प्रकृति के प्रमुख तत्त्व हैं।)

(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति? (स्वार्थ में अन्धा मानव क्या करता है?)
उत्तरम् :
स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति। (स्वार्थ में अन्धा हुआ मानव पर्यावरण को नष्ट करता है।)

(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति? (पर्यावरण के विकृत होने पर क्या होता है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च जायन्ते। (पर्यावरण के विकृत होने पर विविध रोग तथा भीषण समस्याएँ पैदा हो जाते है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया? (हमें पर्यावरण की रक्षा कैसे करनी चाहिए?)
उत्तरम् :
प्रकृतेः तत्त्वानि संरक्ष्य अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा करणीया। (हमें प्रकृति के तत्त्वों की रक्षा करके पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।)

(ङ) लोकरक्षा कथं सम्भवति? (लोकरक्षा कैसे सम्भव होती है?)
उत्तरम् :
लोकरक्षा प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति। (लोक-रक्षा प्रकृति-रक्षा से ही सम्भव है।)

(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति? (शुद्ध पर्यावरण हमें क्या-क्या देता है)
उत्तरम् :
परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकजीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसंकल्पं माङ्गलिकसामग्री च प्रददाति।
(शुद्ध पर्यावरण हमारे लिए सांसारिक जीवनसुख, अच्छे विचार, सत्यसंकल्प और मांगलिक सामग्री प्रदान करता है।)

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- (मोटे छपे पदों को आधार मानकर प्रश्न-रचना कीजिए-)
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (वन-वृक्ष बिना सोचे काट दिये जाते हैं।)
उत्तरम् :
के निर्विवेकं छिद्यन्ते? (विवेकरहित होकर क्या काट दिये जाते हैं?)

(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते। (वृक्ष काटने से शुद्ध वायु नहीं मिलती।)
उत्तरम् :
कस्मात् (केषां) कर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते? (क्या काटने से शुद्ध वायु प्राप्त नहीं होती?)

(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति। (प्रकृति जीवन-सुख देती है।)
उत्तरम् :
प्रकृतिः किं प्रददाति? (प्रकृति क्या देती है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

(घ) अजातशिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति। (अजन्मा बालक माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है।)
उत्तरम् :
अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति? (अजन्मा बालक कहाँ सुरक्षित रहता है?)

(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति। (पर्यावरणरक्षण धर्म का अंग है।)
उत्तरम् :
पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति? (पर्यावरणरक्षण किसका अङ्ग है?)

4. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत – (उदाहरण का अनुसरण करके पद-रचना कीजिए-)
(क) यथा-जले चरन्ति इति

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम् 1

(ख) यथा-न पेयम् इति

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम् 2

5. उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत – (उदाहरण के अनुसार पद-निर्माण कीजिए-)
यथा – वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः
उत्तराणि :
(क) प्र + गम् + क्तिन् = प्रगतिः
(ख) दृश् + क्तिन् + ……….. = दृष्टिः
(ग) गम् + क्तिन् + ……….. =  गतिः
(घ) मन् क्तिन् + ……… = मतिः
(ङ) शम् + क्तिन् + ………. = शान्तिः
(च) भी + क्तिन् + ………… = भीतिः
(छ) जन् + क्तिन् + ………. = गतिः
(ज) भज् + तिन् + ……….. = भक्तिः
(झ) नी + क्तिन् + ………… = नीतिः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

6. निर्देशानुसारं परिवर्तयत-(निर्देश के अनुसार परिवर्तित कीजिए-)
यथा-स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति। (बहुवचने)
स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति।

(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने) (सन्तप्त मानव का कल्याण कहाँ से है?)
उत्तरम् :
सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः? (सन्तप्त मानवों का कल्याण कहाँ से है?)

(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने) (मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित हैं।)
उत्तरम् :
मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति। (मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित है।)

(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने) (वनवृक्ष विवेकहीन होकर काटे जाते हैं।)
उत्तरम् :
वनवृक्षः निर्विवेक छिद्यते। (वनवृक्ष विवेकहीन होकर काटा जाता है।)

(घ) गिरिनिर्झरा: निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने) (पहाड़ी झरने निर्मल जल प्रदान करते हैं।)
उत्तरम् :
गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः। (दो पहाड़ी झरने निर्मल जल प्रदान करते हैं।)

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(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने) (नदी निर्मल जल प्रदान करती है।)
उत्तरम् :
सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (नदियाँ निर्मल जल प्रदान करती हैं।) पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्चवाक्यानि लिखत। (पर्यावरण की सुरक्षा हेतु आप क्या करेंगे, इस विषय पर पाँच वाक्य लिखिए।). यथा-अहं विषाक्तम् अवकरं नदीषु न पातयिष्यामि। (मैं जहरीले कूड़े को नदियों में नहीं डालूँगा।)
उत्तरम् :
(क) वयं वक्षारोपणं करिष्यामः। (हम पेड लगायेंगे)
(ख) वयं प्रकृति रक्षिष्यामः। (हम प्रकृति की रक्षा करेंगे।)
(ग) वयं वृक्षान् न कर्तयिष्यामः। (हम वृक्षों को नहीं काटेंगे।)
(घ) वयं वन्यपशून् न व्यापादयिष्यामः। (हम वन्यपशुओं को नहीं मारेंगे।)
(ङ) वयं वापीकूपतडागानां निर्माणं करिष्यामः। (हम बावड़ियों, कुओं और तालाबों का निर्माण करेंगे।)

8. (क) उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक् कृत्वा लिखत – (उदाहरण के अनुसार उपसर्गों को अलग करके लिखिए-)
यथा-संरक्षणाय = सम्
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(ख) उदाहरणमनुसत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत –
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित समस्त पदों के विग्रह लिखिये-)
यथा – तेजोवायुः = तेजः वायुः च
गिरिनिर्झराः = गिरयः निर्झरा: च
(i) पत्रपुष्पे = …………..
(ii) लतावृक्षौ = ……………
(iii) पशुपक्षी = ………….
(iv) कीटपतङ्गौ = …………
उत्तराणि :
(i) पत्रं पुष्पं च
(ii) लता वृक्षः च
(iii) पशुः पक्षी च
(iv) कीट: पतङ्गः च

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

परियोजनाकार्यम्

(क) विद्यालयप्राङ्गणे स्थितस्य उद्यानस्य वृक्षाः पादपाश्च कथं सुरक्षिताः स्युः तदर्थं प्रयत्नः करणीयः इति सप्तवाक्येषु लिखत- (विद्यालय प्रांगण में स्थित बाग के पेड़-पौधे कैसे सुरक्षित हों, इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, इस पर सात वाक्य लिखिए-)
उत्तरम् :
(i) वृक्षान् परितः सुरक्षा-कवचं स्थापनीयम्। (वृक्षों के चारों ओर सुरक्षा कवच (बाड़) लगाना चाहिए।)
(ii) अस्माभिः ते क्षतात् रक्षणीयाः। (हमें उनकी क्षति से रक्षा करनी चाहिए।)
(iii) वृक्षाणां, पादपानां लतानां च पुष्पाणि-पत्राणि न त्रोटनीयानि। (वृक्षों, पौधों और लताओं के फूल-पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।)
(iv) यथासमयं ते जलेन सिंचनीयाः। (यथासमय उन्हें जल से सींचना चाहिए।)
(v) यथाकालं जीर्णानि पत्राणि शाखाः च कर्तनीयानि। (यथासमय पुराने पत्ते और शाखाएँ काट देनी चाहिए।)
(vi) वर्षाकाले वृक्षारोपणमपि करणीयम्। (वर्षाकाल में वृक्षारोपण भी करना चाहिए।)
(vii) वयं वृक्षाणां पादपानां च रक्षणार्थम् अन्यान् छात्रान् अपि प्रेरयेम।
(हमें वृक्षों और पौधों की रक्षा के लिए अन्य छात्रों को भी प्रेरित करना चाहिए।)

(ख) अभिभावकस्य शिक्षकस्य वा सहयोगेन एकस्य वृक्षस्य आरोपणं करणीयम्, यदि स्थानम् अस्ति तर्हि विद्यालय प्राङ्गणे, नास्ति चेत् स्वस्मिन् प्रतिवेशे गृहे वा कृतं सर्वं दैनन्दिन्यां लिखित्वा शिक्षकं दर्शय।
(अभिभावक अथवा शिक्षक के सहयोग से एक वृक्ष लगाइये, यदि स्थान है तो विद्यालय प्राङ्गण में, नहीं है तो अपने पड़ोस में या घर में) किए हुए को सबको डायरी में लिखकर शिक्षक को दिखाइये।
उत्तरम् :
छात्र स्वयं करें।

JAC Class 9th Sanskrit पर्यावरणम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
प्रकृतिः केषां संरक्षणाय प्रयतते? (प्रकृति किनके संरक्षण का प्रयत्न करती है?)
उत्तरम् :
प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय प्रयतते। (प्रकृति सभी प्राणियों के संरक्षण का प्रयत्न करती है।):

प्रश्न: 2.
प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि मिलित्वा किं रचयन्ति? (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व मिलकर किसकी रचना करते हैं?)
उत्तरम् :
प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व मिलकर हमारे पर्यावरण की रचना करते हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रश्न: 3.
मानवः किमिव पर्यावरणकुक्षौ वसति? (मानव किसकी तरह पर्यावरण के गर्भ में रहता है?)
उत्तरम् :
यथा अजातः शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। (जैसे अजन्मा बालक माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है वैसे ही मानव पर्यावरण के गर्भ में।)

प्रश्न: 4.
मानवमङ्गलं कथम् असम्भवम् अस्ति? (मानव का कल्याण क्यों असम्भव है?)
उत्तरम् :
जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्र: उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलम् असम्भवम् अस्ति।
(बाढ़, अग्निभय, भूकम्प, तूफान, उल्कापात आदि से पीड़ित मानव का कल्याण असम्भव है।)

प्रश्न: 5.
विहगाः कलकूजितैः किं ददति? (पक्षी कलरव से क्या देते हैं?)
उत्तरम् :
विहगा: कलकजितैः श्रोतरसायनं ददति। (पक्षी कलरव से कर्णामत (कानों में अमत घोल) देते हैं।)

प्रश्न: 6.
प्राचीनकाले ऋषयः कुत्र निवसन्ति स्म? (प्राचीनकाल में ऋषि कहाँ रहते थे?)
उत्तरम् :
प्राचीनकाले ऋषयः वने निवसन्ति स्म। (प्राचीनकाल में ऋषि वन में रहते थे।)

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प्रश्न: 7.
ऋषयः वने किमर्थं निवसन्ति स्म? (ऋषिजन वन में क्यों रहते थे?)
उत्तरम् :
यतः वने एव सरक्षितं पर्यावरणं प्राप्नोति स्म।
(क्योंकि वन में ही सरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था।)

प्रश्नः 8.
नद्यः गिरिनिर्झराश्च किं प्रयच्छन्ति? (नदियाँ और पहाड़ी झरने क्या देते हैं ?)
उत्तरम् :
नद्यः गिरिनिर्झराः च मानवाय अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
(नदियाँ और पहाड़ी झरने मानव के लिए अमृत के स्वाद वाला स्वच्छ जल प्रदान करते हैं।)

प्रश्न: 9.
वृक्षाः लताश्च कानि अधिकं यच्छन्ति? (पेड़ और लताएँ क्या अधिक देते हैं?)
उत्तरम् :
वृक्षाः लताश्च फलानि, पुष्पाणि ईंधनकाष्ठानि च अधिकं यच्छन्ति।
(वृक्ष और लताएँ फल, फूल और ईंधन की लकड़ी अधिक देते हैं।)

प्रश्न: 10.
कीदृशः मानवः पर्यावरणं नाशयति?
(कैसा मानव पर्यावरण को नष्ट कर देता है?)
उत्तरम् :
स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति।
(स्वार्थ में अन्धा हुआ मानव पर्यावरण को नष्ट कर देता है।)

प्रश्न: 11.
वनेषु छिन्नेषु किं भवति?
(जंगलों के नष्ट होने पर क्या होता है?)
उत्तरम् :
वनेषु छिन्नेषु अवृष्टिः भवति। (जंगलों के नष्ट होने पर वर्षा नहीं होती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रश्न: 12.
वनवृक्षाणां कर्तनेन किं भवति? (वनवृक्षों के काटने से क्या होता है?)
उत्तरम् :
वनवृक्षाणां कर्तनेन अवृष्टिः भवति, शरणरहिताः वनपशवः ग्रामेषु उपद्रवं कुर्वन्ति। (वनवृक्षों के काटने से वर्षा नहीं होती है, शरणरहित जंगली पशु गाँवों में उपद्रव करते हैं।)

प्रश्न: 13.
विविधाः रोगाः कथं जायन्ते? (अनेक प्रकार के रोग कैसे पैदा होते हैं?)
उत्तरम् :
पर्यावरणे विकृतिम् उपगते विविधाः रोगाः जायन्ते। (पर्यावरण के विकृत होने पर अनेक प्रकार के रोग पैदा होते हैं।)

प्रश्न: 14.
आर्षवचनं किम्? (ऋषियों का वचन (कथन) क्या है?)
उत्तरम् :
‘धर्मोरक्षति रक्षितः’ इत्यार्षवचनम्। (सुरक्षित धर्म रक्षा करता है, यह ऋषियों का कथन है।)

रेखांकित पदान्याश्रित्य प्रश्न निर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
प्रकृतिः समेषां प्राणिनां रक्षणाय यतते। (प्रकृति सभी प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है।)
उत्तरम् :
प्रकृति केषां रक्षणाय यतते? (प्रकृति किनकी रक्षा के लिए प्रयत्न करती है?)

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प्रश्न: 2.
इयं सुखसाधनैः तर्पयति। (यह सुख-साधनों से पुष्ट करती है।)
उत्तरम् :
इयं कैः तर्पयति? (यह किससे तृप्त करती है?)

प्रश्न: 3.
अजातः शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति। (अजन्मा बच्चा माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है।)
उत्तरम् :
अजातशिशु कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति? (अजन्मा शिशु कहाँ सुरक्षित रहता है?)

प्रश्न: 4.
परिष्कृतं पर्यावरणम् मांगलिक सामग्री प्रददाति। (शुद्ध पर्यावरण मांगलिक सामग्री देता है।)
उत्तरम् :
परिष्कृत पर्यावरणम् किं प्रददाति ? (शुद्ध पर्यावरण क्या देता है?)

प्रश्नः 5.
प्रकृति-प्रकोपैः आतङ्कितो जनः किमपि कर्तुं न प्रभवति? (प्रकृति के प्रकोप से आतङ्कित मनुष्य कुछ नहीं कर सकता?)
उत्तरम् :
कैः आतङ्कितः जनः किमपि कर्तुं न प्रभवति? (किनसे आतंकित मानव कुछ नहीं कर सकता?)

प्रश्न: 6.
अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। (हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए।)
उत्तरम् :
अस्माभि का रक्षणीया? (हमें किसकी रक्षा करनी चाहिए?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रश्नः 7.
सरितः अमृतस्वाद जलं प्रयच्छन्ति। (नदियाँ अमृत के समान स्वादिष्ट जल प्रदान करती हैं।)
उत्तरम् :
सरितः कीदृशं जलं प्रयच्छन्ति? (नदियाँ कैसा जल प्रदान करती हैं?)

प्रश्न: 8.
स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। (थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं।) .
उत्तरम् :
जनाः कस्मै बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति ? (लोग किसलिए बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं?)

प्रश्न: 9.
यन्त्राणां विषाक्तं जलं नद्यां पतति। (यंत्रों का जहरीला जल नदी में गिरता है।) उत्तरम-केषां विषाक्तं जलं नद्यां पतति? (किनका जहरीला जल नदी में गिरता है?)

प्रश्न: 10.
नदीजलमपि अपेयं जायते। (नदी का जल भी अपेय हो जाता है।)
उत्तरम् :
नदीजलमपि कीदृशं भवति? (नदी का जल कैसा हो जाता है?)

कथाक्रम-संयोजनम्।

अधोलिखितानि वाक्यानि क्रमशः लिखित्वा कथाक्रम-संयोजनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों को क्रम से लिखकर कथाक्रम-संयोजन कीजिए-)

1. प्रकृतिः अस्मभ्यं निर्मलं जलं, शुद्धवायुं, फलानि, पुष्पाणि, काष्ठानि भोज्यानि च ददाति।
2. अतः नदीजलमपेयं वायुः च प्रदूषितः जातः, अवृष्टिः भवति, वनाभावे पशवः ग्रामेषु उपद्रवं विदधति।
3. यतः स्थलचराः पृथिव्याः जलचराः च जलस्य मलापनोदनं कुर्वन्ति।
4. अस्माभिः वापीकूपतडागादिनिर्माणं करणीयं जन्तवश्च रक्षणीयाः।
5. अतः प्रकृतिरस्माभिः रक्षणीया यतः तेनैव पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति।
6. स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणमद्य नाशयति वृक्षान् कर्तयति च।
7. पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च एतानि पञ्चतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति ।
8. प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति न संशयः। ..
उत्तरम् :
1. पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च एतानि पञ्चतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति।
2. अतः प्रकृतिरस्माभिः रक्षणीया यतः तेनैव पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति।
3. प्रकृतिः अस्मभ्यं निर्मलं जलं, शुद्धवायुं, फलानि, पुष्पाणि, काष्ठानि भोज्यानि च ददाति ।
4. स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणमद्य नाशयति वृक्षान् कर्तयति च।
5. अत: नदीजलमपेयं वायुः च प्रदूषितः जातः, अवृष्टिः भवति, वनाभावे पशवः ग्रामेषु उपद्रवं विदधति।
6. अस्माभिः वापीकूपतडागादिनिर्माणं करणीयं जन्तवश्च रक्षणीयाः।
7. यतः स्थलचराः पृथिव्याः जलचराः च जलस्य मलापनोदनं कुर्वन्ति।
8. प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति न संशयः।

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योग्यताविस्तारः

(क) निम्नलिखित शब्दयुग्मों के भेद देखने योग्य हैं –
सङ्कल्पः – सत्सङ्कल्पः
आचारः – सदाचारः
जनः – सज्जनः
सङ्गतिः – सत्सङ्गतिः
मतिः – सन्मतिः

(ख) आर्षवचन-ऋषि के द्वारा कहा गया वचन (कथन) ‘आर्षवचन’ कहलाता है।
(ग) पञ्चतत्त्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन पाँच तत्त्वों से ही यह शरीर बनता है।

योग्यता-विस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

निम्न प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में एक वाक्य में लिखिए –

प्रश्न 1.
निम्न शब्दों में ‘च्चि’ प्रत्यय जोड़कर सार्थक शब्द बनाइये –
स्व, ऊर, प्रमाण, अङ्ग, संघ।
उत्तर :
स्व + च्चि + कृ + ल्यप् = स्वीकृत्य (स्वीकार करके)
ऊर + च्चि + कृ + ल्यप् = ऊरीकृत्य (कहकर)
प्रमाण + च्वि प्रमाणीकृतः (प्रमाणित किया हुआ).
अङ्ग + च्चि + कृ + ल्यप् = अङ्गीकृत्य (स्वीकार करके)
संघ + च्वि + भू + क्त = संघीभूतः (इकट्ठे हुए)

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प्रश्न 2.
निम्न शब्दों से पूर्व सद्’ लगाकर पद-रचना कीजिए सङ्कल्पः, सङ्गतिः आचरणम्, मतिः, जनः।
उत्तर :
सद् + सङ्कल्पः = सत्सङ्कल्पः,
सद् + संगतिः = सत्संगतिः, सद् + आचरणम् = सदाचरणम्,
सद् + मतिः = सन्मतिः, सद् + जनः = सज्जनः।

प्रश्न 3.
आर्षवचन किसे कहते हैं?
उत्तर :
ऋषि के द्वारा कहा गया वचन (कथन) ‘आर्षवचन’ कहलाता है।

प्रश्न 4.
मानव शरीर किन पञ्चतत्त्वों से मिलकर बना है?
उत्तर :
मानव शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश, इन पाँच तत्त्वों से मिलकर बना है।
समानान्तर श्लोक व सूक्तियाँ। पर्यावरण से सम्बन्धित निम्न उक्तियाँ एवं श्लोक पढ़ने योग्य तथा याद करने योग्य हैं
चान्य ह-

हमारी संस्कृति में वृक्ष वन्दनीय हैं, इसलिए वृक्षों को काटना, उखाड़ना वर्जित है।

दशकूपसमा वापी दशवापीसमो ह्रदः।
दशहदसमः पुत्रो दशपुत्रसमो द्रुमः॥
(मत्स्य पुराणम्)

अर्थात् दस कुओं के समान एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के समान एक तालाब है। दस तालाबों के समान एक पुत्र – है। दस पुत्रों के समान एक वृक्ष होता है।
तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। न केवल धार्मिक अपितु चिकित्सा की दृष्टि से भी यह रक्षा करने योग्य है। इसीलिए घर के आँगन में इसके रोपण का महत्त्व है। पुराण और वैद्यक ग्रन्थों के अनुसार तुलसी का पौधा वायु-प्रदूषण को दूर करता है। कहा गया है –

‘तुलसी’ कानने चैव गृहे यस्यावतिष्ठते।
तद्गृहं तीर्थमित्याहुः नायान्ति यमकिङ्कराः॥
तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः।
दिशो दश पुनात्याशु भूतग्रामांश्चतुर्विधान्॥ (पद्मोत्तरखण्डम्)

अर्थात् ‘तुलसी’ (का पौधा) जंगल में और जिसके घर में भी रहता है, उस घर को तीर्थ कहते हैं, (वहाँ) यमराज के दूत नहीं आते हैं। जहाँ वायु ‘तुलसी’ (के पौधे) की गन्ध को लेकर जाती है, शीघ्र ही दसों दिशाओं, प्राणियों
और गाँवों को चारों तरफ पवित्र करती है।।
तुलसी का रस तीव्रज्वर को नष्ट करता है। कहा गया है-

पीतो मरीचिचूर्णेन तुलसीपत्रजो रसः।
द्रोणपुष्परसोप्येवं निहन्ति विषम ज्वरम्॥ (शाळ्धर)

अर्थात् कालीमिर्च के चूर्ण के साथ ‘तुलसी के पत्ते के रस का पिया जाना, इसी प्रकार ‘द्रोण पुष्प’ का रस भी विषम ज्वर को नष्ट करता है।।

वृक्षारोपण का महत्त्व –

तारयेद् वृक्षरोपी तु तस्माद् वृक्षान् प्ररोपयेत्।
तस्य पुत्रा भवन्त्येव पादपा नात्र संशयः॥

अर्थात् वृक्ष को लगाने वाला तो (वृक्ष के लगाने से) वर जाता है (मुक्ति पा जाता है।) इसलिए वृक्षों को उगाना (लगाना) चाहिए। इसमें सन्देह नहीं कि वृक्ष ही उस वृक्ष लगाने वाले) के पुत्र होते हैं।।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

समानान्तर श्लोक व सूक्तियों पर प्रश्नोत्तर

प्रश्नाः 1.
एकः वृक्षः कति कूपैः समः भवति?
(एक वृक्ष कितने कुओं के समान होता है?)
उत्तरम् :
एकः वृक्षः दशसहस्रकूपसमः भवति।
(एक वृक्ष दस हजार कुओं के बराबर होता है।)

प्रश्नाः 2.
यस्मिन् गृहे तुलसीपादपः भवति, तद्गृहं किमिव भवति?
(जिस घर में तुलसी का पौधा हो, वह घर किसकी तरह होता है?)
उत्तरम् :
यस्मिन् गृहे तुलसीपादपः भवति, तद्गृहं तीर्थवत् भवति।
(जिस घर में तुलसी का पौधा हो, वह घर तीर्थ के समान होता है।)

प्रश्नाः 3.
यमकिङ्कराः कुत्र नायान्ति?
(यम के दूत कहाँ नहीं आते?)
उत्तरम् :
यस्मिन् गृहे तुलसीपादपः भवति, तत्र यमकिङ्कराः नायान्ति।
(जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहाँ यमदूत नहीं आते।)

प्रश्नाः 4.
तुलसीगन्धः किं करोति? (तुलसी की गन्ध क्या करती है?)
उत्तरम् :
तुलसीगन्धः दशदिशः पुनाति।
(तुलसी की गन्ध दसों दिशाओं को पवित्र कर देती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रश्नाः 5.
शार्ङ्गधरानुसारेण तुलसीदलस्य किमुपयोगः?
(शाङ्गधर के अनुसार तुलसीदल का क्या उपयोग है?)
उत्तरम् :
मरीचिचूर्णेन सह पीत: तुलसीपत्रजः रस: विषम ज्वरं निहन्ति।
(कालीमिर्च के चूर्ण के साथ पिया हुआ तुलसी के पत्ते का रस विषम ज्वर को नष्ट करता है।)

पर्यावरणम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – पर्यावरण-प्रदूषण विश्व की भयङ्कर एवं ज्वलन्त समस्या है। प्रस्तुत पाठ्यांश पर्यावरण को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबन्ध है। वर्तमान युग में प्रदूषित वातावरण मानव-जीवन के लिए भयङ्कर अभिशाप बन गया है। नदियों का जल कलुषित हो रहा है, वन वृक्ष-विहीन हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्या बढ़ती जा रही है। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य-प्राणियों की जातियाँ भी दिन पर दिन नष्ट हो रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असम्भव प्रतीत होता है।

पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पादपों एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पूर्वापेक्षया अधिक है। ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के संरक्षणार्थ उपाय करें। वृक्षारोपण, नदी-जल की स्वच्छता, ऊर्जा के संरक्षण, वापी, कूप, तड़ाग, उद्यान आदि के निर्माण और उनको स्वच्छ रखने में प्रयत्नशील हों, ताकि जीवन सुखमय एवं उपद्रवरहित हो सके।

मूलपाठः,शब्दार्याः,सप्रसंगहिन्दी अनुवादः,सप्रसंगसंस्कृत-व्यारव्याःअवबोधनकार्यम् च

1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति। पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

शब्दार्थाः – प्रकृतिः = सृष्टेः पञ्चतत्त्वानि (प्रकृति), समेषाम् = सर्वेषाम् (सभी), प्राणिनाम्= जीवानां/सत्त्वानाम् (जीवधारियों की), संरक्षणाय = सम्यक् रक्षितुम् (भली-भाँति रक्षा करने के लिए), यतते = प्रयत्न/प्रयासं करोति (प्रयत्न करती है), इयम् = एषा प्रकृतिः (यह प्रकृति), सर्वान् = समेषान् (सभी को), पुष्णाति = पोषणं करोति (पोषण करती है/पुष्ट करती है), विविधैः = अनेकैः (अनेक), प्रकारैः = विधैः (प्रकार से), सुखसाधनैः = सुखस्योपकरणैः/सुखोपायैः (सुख के साधनों से), तर्पयति = तृप्तं करोति, तोषयति (तृप्त करती है), च = और, पृथिवी = भूमिः (पृथ्वी),

जलम् = तोयम् (जल), तेजः = तेजोः (तेज/अग्नि), वायुः = पवनः (वायु/हवा), आकाशः = अम्बर:/शून्यः (आकाश), च = और, अस्याः (प्रकृतेः) = एतस्याः (प्रकृतेः) (इस प्रकृति के), प्रमुखानि = मुख्यानि (मुख्य), तत्त्वानि = मूलभूतानि (तत्त्व), तान्येव = अमून्येव (वे ही तत्त्व), मिलित्वा = संघीभूतानि (मिलकर), पृथक्तया = पृथक्-पृथक् रूपेण/एकैकम् (अलग-अलग), वा = अथवा (या), अस्माकम् = अस्माकं प्राणिनाम् (हम प्राणियों का), पर्यावरणम् = वातावरणम् (वातावरण), रचयन्ति = सृजन्ति (बनाते हैं), आवियते = आवृणोति (घेरे रहता है), परितः = समन्तात् (चारों ओर से), समन्तात् = सर्वतः (सभी ओर से), लोकः अनेन = संसारः एतेन (संसार इससे), इति = एवं (इस प्रकार से),

पर्यावरणम् = वातावरणं (वातावरण है), यथा = येन प्रकारेण (जैसे/जिस प्रकार), अजातश्शिशुः = अनुत्पन्नः जातकः (अजन्मा शिशु/जिसका जन्म नहीं हुआ हो), मातृगर्भे = मातुः कुक्षौ (माँ के गर्भ में), सुरक्षितः = सम्यक् रक्षितः (सुरक्षित), तिष्ठति = विद्यते/स्थिरायति (ठहरता है), तथैव = तेनैव प्रकारेण (उसी प्रकार/वैसे ही), मानवः = मनुष्यः (मनुष्य), पर्यावरणकुक्षौ = वातावरणस्य गर्भे (पर्यावरण के गर्भ में), परिष्कृतम् = परिमार्जितम्/शुद्धीकृतम् (शुद्ध किया हुआ), प्रदूषणरहितम् = दोषरहितम् (प्रदूषण रहित), च पर्यावरणम् = च वातावरणम् (और वातावरण), अस्मभ्यम् = नः (हमारे लिए), सांसारिकम् = संसारविषयक/जगत्सम्बन्धिनम् (संसार सम्बन्धी), जीवनसुखम् = जीवितस्यानन्दम् (जीवन का सुख या आनन्द),

सद्विचारम् = उत्तमचिन्तनम् (अच्छे विचार), सत्यसङ्कल्पम् = ऋतस्य संकल्पम् (सत्य का संकल्प), माङ्गलिकसामग्री च = कल्याणकारकवस्तूनि च (और मांगलिक सामग्री), प्रददाति = प्रयच्छति/प्रदानं करोति (प्रदान करता है। देता है), प्रकृतिकोपैः = प्रकृतेः कोपैः/क्रोधैः (प्रकृति के कोपों से/नाराजी से), आतङ्कितोः = भयभीतः (डरा हुआ), जनः = मानवः (व्यक्ति), किं कर्तुं प्रभवति = किं विधातुं समर्थ:/शक्नोति (क्या कर सकता है), जलप्लावनैः = जलौघैः (बाढ़ से), अग्निभयैः = अनलप्रसारस्य प्रज्ज्वलनस्य भीतिभिः (आग लगने के डर से), भूकम्पैः = धराविचलनैः (धरती हिलने से/भूकम्पों से), वात्याचक्रः = वायुचक्रैः (आँधी/बवंडर से), उल्कापातादिभिः = तारकपतनादिभिः (उल्का गिरने आदि से), सन्तप्तस्य = सन्तापयुतस्य/पीडितस्य (तपे हुए पीड़ित), मानवस्य = मनुष्यमात्रस्य (मानव का), क्व = कुतः (कहाँ), मङ्गलम् = कल्याणं सम्भवति (भला कल्याण कैसे सम्भव है)।

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हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक पर्यावरण का अर्थ, महत्त्व तथा प्रदूषित पर्यावरण के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहता है-

अनुवाद – प्रकृति सभी जीवधारियों की भली-भाँति रक्षा करने के लिए प्रयत्न करती है। यह सभी का पोषण करती है तथा अनेक प्रकार के सुख के साधनों से तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इस प्रकृति के प्रमुख तत्त्व हैं। वे ही तत्त्व मिलकर अथवा अलग – अलग हम प्राणियों के पर्यावरण को बनाते हैं। जिससे चारों और या सभी ओर से यह लोक घिरा हुआ है, वह पर्यावरण है। जैसे अजन्मा शिशु माँ के गर्भ में सुरक्षित ठहरता (रहता) है वैसे ही मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में (सुरक्षित) रहता है।

शुद्ध और प्रदूषण रहित वातावरण हमारे लिए संसार सम्बन्धी जीवन का सुख या आनन्द, अच्छे विचार, सत्य संकल्प और मांगलिक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के कोप से भयभीत (डरा हुआ) व्यक्ति क्या कर सकता है? बाढ़ों से, आग लगने के डर से, धरती हिलने से, आँधी-तूफान से तथा उल्कापात आदि से सन्तप्त हुए मानक का कल्याण कहाँ सम्भव है?

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।)

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प्रसङ्गः – गद्यांशेऽस्मिन् लेखक: पर्यावरणस्य अर्थ, महत्त्वं प्रदूषितपर्यावरणस्य च मानवजीवने प्रभावं वर्णयन् कथयति
(इस गद्यांश में लेखक पर्यावरण का अर्थ, महत्व तथा प्रदूषित पर्यावरण का मानव-जीवन पर प्रभाव वर्णन करते हुए कहता है।)

व्याख्या: – प्रकृतिः सर्वान् जीवान् सम्यग् रक्षितुं प्रयासं करोति। एषा प्रकृतिः समेषां पोषणं करोति अनेकविधैः सुखोपायैः च तृप्तं करोति। भूमिः, तोयं, तेजः, पवनः आकाशः च एतस्याः प्रकृते: मुख्यानि तत्त्वानि सन्ति। अमूनि एव संघीभूतानि पृथक्-पृथक् रूपेण वा अस्माकं प्राणिनां वातावरणं सृजन्ति। आवृणोति समन्तात् सर्वतः च संसारं यत् तत् पर्यावरणम्। येन प्रकारेण अनुत्पन्न: जातक: मातुः कुक्षौ सम्यग् रक्षितः विद्यते स्थिरः वा भवति तेनैव प्रकारेण मनुष्यः वातावरणस्य गर्भे तिष्ठति। परिमार्जितं दोषरहितं च वातावरणं नः जगत्सम्बन्धिनं जीवनस्य आनन्दम्, उत्तम-चिन्तनम्, ऋतस्य संकल्पम्, कल्याणकारकाणिः वस्तूनि च प्रयच्छति।

प्रकृतेः कोपात् भयभीत: मानवः किं विधातुं समर्थः? जलौघैः, प्रज्ज्वलनस्य भीतिभिः, धराविचलनैः, वायुचक्रैः तारकपतनादिभिः सन्तापयुक्तस्य पीडितस्य मनुष्यमात्रस्य कल्याणं कुतः सम्भवति? (प्रकृति सभी प्राणियों की भलीभाँति रक्षा करने का प्रयास करती है। यह प्रकृति सभी का पोषण करती है और अनेक सुख के उपायों से सन्तुष्ट करती है। भूमि, जल, तेज (अग्नि) वायु और आकाश (रिक्त स्थान) इस प्रकृति के प्रमुख अंग हैं। ये ही इकट्ठे होकर अथवा अलग-अलग रूप में हमारे प्राणियों का वातावरण सृजित करते हैं अर्थात् बनाते हैं। जो सभी ओर से संसार को आवृत करता है अर्थात् ढकता है वह पर्यावरण है।

जिस प्रकार से अजन्मा अर्थात् जन्म से पूर्व प्राणी माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है अथवा स्थिर रहता है, इसी प्रकार मनुष्य वातावरण के गर्भ में रहता है। शुद्धीकृत और दोष रहित वातावरण हमें संसार सम्बन्धी जीवन का आनन्द, श्रेष्ठ चिन्तन, सत्य-संकल्प और कल्याणकारी वस्तुएँ प्रदान करता है। प्रकृति के कोप (नाराजी) से भयभीत मानव क्या करने से समर्थ है। बाढ़ों से, आग लगने के भय, भूकम्पों, आँधी-तूफानों, उल्कापातों (तारे टूटने) से समाप्त हुआ मानव मात्र का कल्याण कहाँ सम्भव है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) प्राणिनां संरक्षणाय का यतते? (प्राणियों के संरक्षण के लिए कौन यत्न करती है?)
(ख) प्रकृत्याः कति तत्वानि? (प्रकृति के कितने तत्व हैं?)

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प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति? (क्या मिलकर हमारा पर्यावरण बनाते हैं ?)
(ख) किमिदं पर्यावरणम् ? (यह पर्यावरण क्या है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘इयं सर्वान् पुष्णाति’ वाक्ये इयं सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(इयं सर्वान् पुष्णाति’ वाक्ये इयं सर्वनाम पद किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
(ख) ‘रचयन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘रचयन्ति’ क्रियापद का कर्तृपद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) प्रकृतिः।
(ख) पञ्च (पाँच)।

(2) (क) पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः आकाशः च प्रकृत्याः पञ्चतत्वानि मिलित्वा पृथक्तया वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति।
(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये प्रकृति के पाँच तत्व मिलकर या पृथक्-पृथक् पर्यावरण की रचना करते हैं।)
(ख) आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। (चारों ओर से यह संसार जिनसे ढका हुआ है वह पर्यावरण है।)

(3) (क) प्रकृतिः।
(ख) प्रकृत्याः तत्वानि (प्रकृति के तत्व)।

2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति।
सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।

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शब्दार्था: – अत एव = अतः (इसलिए), अस्माभिः = अस्माभिः मानवैः (हम मनुष्यों द्वारा), प्रकृतिः = प्रकृति, रक्षणीया = रक्षितव्या (रक्षा करने योग्य है/रक्षा की जानी चाहिए), तेन च = अमुना प्रकृतिरक्षणेन च (और इस प्रकृति-संरक्षण से), पर्यावरणम् = वातावरणम् (पर्यावरण), रक्षितम् = सुरक्षितं (सुरक्षित), भविष्यति = (हो जायेगा), प्राचीनकाले = पुरा/ अतीतकाले (पुराने समय में), लोकमङ्गलाशसिनः = समाजकल्याणकामाः (जनता के कल्याण को चाहने वाले), ऋषयो = मन्त्रद्रष्टारः (ऋषिजन), वने = अरण्ये/कानने (वन में),

निवसन्ति स्म = निवासम् अकुर्वन् (निवास करते थे), यतो हि = क्योंकि, वने = अरण्ये (जंगल में), सुरक्षितम् = संरक्षितम् (भली-भाँति रक्षा किया हुआ), पर्यावरणम् = वातावरणम् (पर्यावरण), उपलभ्यते स्म = प्राप्यते स्म (प्राप्त किया जाता था), तत्र = वहाँ। विविधाः = अनेकविधाः (अनेक प्रकार के), विहगाः = खगाः (पक्षी), कलकूजितै = कलरवैः कूजितैः (कलरव से), श्रोत्ररसायनम् = कर्णामृतम् (कानों को अच्छ लगने वाला रसायन), ददति = यच्छन्ति (देते हैं), सरितोः = नद्यः (नदियाँ),

गिरिनिर्झराश्च = पर्वतीयाः जलप्रपाताश्च (और पर्वतीय झरने), अमृतस्वादुः = सुधावत् स्वादिष्टम् (अमृत के समान स्वादिष्ट),निर्मलम् = विमलं/स्वच्छं (स्वच्छ), जलम् = तोयम् (जल को), प्रयच्छन्ति = ददति (देते हैं), वृक्षाः = तरवः (पेड़), लताश्च = वल्लर्यश्च (और बेलें), फलानि = स्वादूनि फलानि (स्वादिष्ट फल), पुष्पाणि = कुसमानि/सुमनानि (फूल), इन्धनकाष्ठानि च = ज्वलनदारुश्च (जलाने की लकड़ी), बाहुल्येन = प्रभूतायां मात्रायाम् (बहुत अधिक मात्रा में), समुपहरन्ति = सम्यग्रूपेण उपहारस्वरूपं यच्छन्ति (भली-भाँति भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं),

शीतलमन्दसुगन्धवनपवनाः = शीतलाः, मन्दाः सुरभिताः च अरण्यस्य वायवः (ठंडी-ठंडी, मन्द-मन्द चलने वाली और सुगन्धित वन की वायु), औषधकल्पम् = औषधिसदृशम् (औषधि के समान), प्राणवायुः = श्वसनाय पवनम् (साँस लेने के लिए प्राणवायु), वितरन्ति = वितरणं कुर्वन्ति (वितरण करती हैं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रसंग – इस गद्यांश में लेखक प्राचीनकाल की स्थिति को प्रस्तुत कर मानव के लिए वनों अथवा प्रकृति के योगदान का वर्णन करता है क्योंकि प्रकृति ही हमारे लिए दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ प्रदान करती है।

अनुवाद-इसलिए हम मनुष्यों को प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उस (प्रकृति-रक्षण) से पर्यावरण सुरक्षित होगा। प्राचीनकाल में (पुराने समय में) जनता के कल्याण को चाहने वाले ऋषिजन वन में निवास करते थे। क्योंकि जंगल में ही भली-भाँति रक्षा किया हुआ पर्यावरण प्राप्त किया जाता था। अनेक प्रकार के पक्षी कलरव व कूजन से वहाँ अमृत के समान कानों को अच्छा लगने वाला रसायन प्रदान करते हैं।

नदियाँ और पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट स्वच्छ जल देते हैं। पेड़ और बेलें फल, फूल और ईंधन की लकड़ी बहुत अधिक मात्रा में भली-भाँति भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं। वन का शीतल, मन्द और सुगन्धित पवन (साँस लेने के लिए) प्राणवायु वितरित करता है।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।)

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प्रसङ्गः – अस्मिन् गद्यांशे लेखकः प्राचीनकालस्य स्थितिं प्रस्तुत्य मानवाय वनानां प्रकृतेः वा योगदानं वर्णयति यतः प्रकृतिः एव अस्मभ्यं सर्वाणि दैनिकप्रयोगस्य वस्तूनि प्रददाति। (इस गद्यपांश में लेखक प्राचीन काल की स्थिति प्रस्तुत करके मानव के लिए वनों अथवा प्रकृति के योगदान का वर्णन करता है क्योंकि प्रकृति ही हमें सभी दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ प्रदान करती है।)

व्याख्या – अतः प्राकृतिकतत्त्वानि अस्माभिः मानवैः सुरक्षितव्यानि सन्ति। अमुना प्रकृतिरक्षणेन च वातावरणं सुरक्षितं भविष्यति। अतीतेकाले समाजकल्याणकामाः मन्त्रद्रष्टारः ऋषयः अरण्ये एव निवासम् अकुर्वन्। यतः अरण्ये एव संरक्षितं शुद्धं वातावरणं प्राप्यते स्म। अनेकविधाः खगाः कलरवै: कूजितैश्च तस्मिन् स्थाने कर्णामृतं यच्छन्ति। नद्यः पर्वतीयाः जलप्रपाताः च सुधावत् स्वादिष्टं स्वच्छं तोयं ददति। तरवः वल्लर्यः च फलानि कुसुमानि ज्वलन दारुः च प्रभूतायां मात्रायां सम्यग्रूपेण उपहारस्वरूपं यच्छन्ति। शीतलाः, मन्दाः सुरभिताः च अरण्यस्य वायवः ओषधिसदृशं श्वसनाय पवनम् यच्छन्ति।

(अतः प्रकृतिक तत्वों की हम मनुष्यों द्वारा सुरक्षा की जानी चाहिए। इस प्रकृति की सुरक्षा से वातावरण सुरक्षित होगा। प्राचीन काल में समाज कल्याण की भावना रखने के इच्छुक मन्त्र दृष्टा ऋषियों ने वन में ही निवास किया था। क्योंकि वन में ही सुरक्षित शुद्ध वातावरण प्राप्त किया जाता है। अनेक प्रकार के पक्षी कलरवों और कूजने से जहाँ कानों के लिए अमृत प्रदान करते है। नदियाँ, पर्वत, और झरने अमृत के समान स्वादिष्ट जल प्रदान करते हैं। पेड़ और बेले फल, फूल और जलाने की लकड़ी पर्याप्त मात्रा में अच्छी तरह उपहार के रूप में (बिना मूल्य के) देती है। शीतल, मन्द और सुगन्धित वन की हवा औषधि के समान साँस लेने के लिए हवा देती हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) अस्माभिः का रक्षणीया? (हमें किसकी रक्षा करनी चाहिए?)
(ख) ऋषयः कुत्र निवसन्ति स्म? (ऋषि लोग कहाँ रहते थे?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) ऋषयः वने कस्मात् निवसन्ति स्म? (ऋषि वन में क्यों रहते थे?)
(ख) प्राणवायुं के वितरन्ति? (प्राणवायु का वितरण कौन करते हैं?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘औषधकल्पं प्राणवायुम्’ अत्र विशेषणपदं किम्?
(‘औषधकल्पं प्राणवायुम्’ यहाँ विशेषण पद क्या है?)
(ख) “वितरन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘वितरन्ति’ क्रियापद का कर्तृपद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) प्रकृतिः।
(ख) वने।

(2) (क) यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। (क्योंकि वन में सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था।)
(ख) शीतलमन्द सुगन्धपवनाः औषध कल्पं प्राणवायुं वितरन्ति। (शीतल-मन्द-सुगन्धित पवन औषध के समान प्राणवायु का वितरण करती है।)

(3) (क) औषधकल्पम् (औषधि के समान)।
(ख) पवनाः (हवायें)।

3. परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवाः व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशकी भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति। तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

शब्दार्थाः – परन्तु = परञ्च (लेकिन), स्वार्थान्धोः = स्वार्थेन दृष्टिहीनः (मतलब में अन्धा हुआ), मानवः तदेव = मनुष्यः तत् एव (मनुष्य उसी), पर्यावरणम् अद्य = वातावरणम् अधुना (पर्यावरण को आज), नाशयति = विनष्टं करोति (नष्ट कर रहा है), स्वल्पलाभाय = अत्यल्पमात्रायां हिताय (बहुत थोड़ी मात्रा में लाभ के लिए), जनाः = लोकाः/मनुष्याः (मनुष्य), बहुमूल्यानि = महार्हाणि (अत्यधिक कीमती), वस्तूनि = उपकरणानि (चीजों को), नाशयन्ति = नष्टं कुर्वन्ति (नष्ट कर देते हैं),

जनाः = लोग, यन्त्रागाराणाम् = यन्त्रालयानां/कलालयानाम् (कारखानों का), विषाक्तं जलम् = विषयुक्त/सविषं वारि (जहरीला जल), नद्याम् = सरिति (नदी में), निपातयन्ति = क्षिप्यन्ति (डाल दिए जाते हैं), तेन = जिससे, मत्स्यादीनाम् = मीनादीनाम् (मछली आदि का), जलचराणाम् = जल-जन्तूनाम् (जल में रहने वाले जीवों का), च = ओर, क्षणेनैव = क्षणमात्रेण एव (एक क्षण में ही), नाशो भवति = विनाशः जायते (नाश हो जाता है), नदीजलमपि = अपि (नदी का जल भी), तत्सर्वथा = पूर्णरूपेण (पूरी तरह), अपेयम् = पातुम् अयोग्यम् (न पीने योग्य), जायते = भवति (हो जाता है), मानवाः = मनुष्य,

व्यापारवर्धनाय = वाणिज्यवृद्ध्यर्थम् (व्यापार वृद्धि के लिए/व्यापार बढ़ाने के लिए), वनवृक्षान्ः = अरण्यस्य तरवः (जंगल के पेड़), निर्विवेकम् = विवेकं विस्मृत्य (विवेकरहित होकर/बिना विचारे), छिन्दन्ति = उच्छेद्यन्ति (काट दिये जाते हैं), तस्मात् = तस्मात (जिसकी वजह से), अवृष्टिः = अनावृष्टिः (वर्षा का न होना), प्रवर्धते = वृद्धि याति (बढ़ता है), वनपशवश्च = वनवासिनः पशवः च (और जगली पशु), शरणरहिताः अशरणाः (बिना शरण के),

ग्रामेषु = वासेषु/वस्तिषु (गाँवों में), उपद्रवम् = विघ्नं/विप्लवं (उपद्रव), विदधति = कुर्वन्ति (करते हैं), शुद्धवायुरपि = स्वच्छः पवनः अपि (स्वच्छ हवा भी), वृक्षकर्तनात् = वृक्षाणाम् उच्छेदनात् (पेड़ों के काटने से), सङ्कटापन्नो जायतेः = आपद्ग्रस्तः भूतः (संकट में पड़ जाती है/आपत्तिग्रस्त हो जाती है), एवम् हि = अनेन प्रकारेण एव (इस प्रकार से ही), स्वार्थान्धमानवैः = स्वार्थेन अन्धीभूतैः मनुष्यैः (मतलब में अन्धे हुए मनुष्यों द्वारा), विकृतिम् = विकारं (विकार को), उपगता = प्राप्ता (प्राप्त हुई), प्रकृतिः एव = प्रकृतिव (प्रकृति ही), सर्वेषाम् = अमीषाम् (उनकी),

विनाशकी = विनाशिका (विनाश करने वाली), भवति = सञ्जात (हो गई), विकृतिमुपगते = विकारे प्राप्ते (विकृत होने पर), पर्यावरणे = वातावरणे (पर्यावरण के), विविधाः = अनेके (अनेक), रोगाः = पीडाः/कायक्लेशाः (बीमारियाँ), भीषणसमस्याश्च = भयंकर समस्याः च (और भयंकर समस्याएँ), सम्भवन्ति = भवन्ति/प्रादुर्भवन्ति (पैदा हो जाती हैं), तत्सर्वम् = अदः सर्वम् (वह सभी), इदानीम् = अधुना (अब), चिन्तनीयम् = चिन्तायाः विषयः (चिन्ता का विषय), प्रतिभाति = ज्ञायते (लगता है)।

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हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ-यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है। – प्रसंग-इस गद्यांश में लेखक मानव की स्वार्थपरता को प्रस्तुत करके प्रदूषण के दुष्परिणाम का वर्णन करते हुए विकृत प्रकृति के विषय में कहता है।

अनुवाद – लेकिन मतलब में अन्धा हुआ मनुष्य आज उसी पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। बहुत थोड़े लाभ के लिए मनुष्य अत्यधिक कीमती चीजों को नष्ट कर देते हैं। कारखानों का जहरीला पानी नदी में डाल (फेंक) दिया जाता है जिससे जल में रहने वाले मछली आदि जीवों का एक क्षण में ही नाश हो जाता है। नदी का जल भी पूरी तरह से न पीने योग्य हो जाता है।

जंगल के पेड़ बिना बिचारे (अविवेकपूर्ण) व्यापार बढ़ाने के लिए काट दिये जाते हैं। जिसकी वजह से वर्षा का न होना बढ़ता है। शरणहीन जंगली पशु गाँवों में उपद्रव करते हैं। स्वच्छ वायु भी वृक्षों के काटने से आपत्तिग्रस्त हो जाती है। इस प्रकार मतलब में अन्धे हुए मनुष्यों द्वारा विकृति को प्राप्त हुई यह प्रकृति उनकी विनाशिका (विनाश करने वाली) हो गई है। पर्यावरण के विकृत हो जाने पर विविध रोग, विकार और भयंकर समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अब यह सब चिन्ता का विषय ज्ञात होता है।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भः – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग: – गद्यांशेऽस्मिन् लेखकः मानवस्य स्वार्थपरतां प्रस्तूय प्रदूषणस. दुष्परिणामं वर्णयन् विकृतप्रकृतिविषये कथयति। (इस गद्यांश में लेखक मनुष्य की स्वार्थपरता को प्रस्तुत करके प्रदूषण के दुष्परिणाम का वर्णन करता हुआ विकृत प्रकृति के विषय में कहता है।)

व्याख्या: – परञ्च स्वार्थेन दृष्टिहीनः मनुष्यः तदेव वातावरणं (प्रकृतेः सन्तुलनं) विनष्टं करोति। अल्पमात्राय स्वहिताय मनुष्याः महार्हाणि वस्तूनि नष्टं कुर्वन्ति। कलालयानां सविषं वारि सरिति क्षिप्यते यस्मात् कारणात् मीनादीनां जलजन्तूनां क्षणमात्रेणैव विनाशो भवति। सरितः वारि अपि पूर्णरूपेण पातुमयोग्यम् भवति। अरण्यतरवः विवेकं विस्मृत्य वाणिज्यवृद्धये उच्छेद्यन्ते यस्मात् अनावृष्टिः वृद्धिं याति, अशरणाः वनवासिनः पशवः वस्तिषु विघ्नं विप्लवं वा कुर्वन्ति। स्वच्छः पवनोऽपि वृक्षाणाम् उच्छेदनात् आपद्ग्रस्तो भूतः। अनेन प्रकारेण स्वार्थेऽन्धीभूतैः जनैर्विकारमुपगता प्रकृतिरेव अमीषां विनाशिका अभवत्।

वातावरणे विकारे प्राप्ते अनेके कायक्लेशाः भयङ्करसमस्याः च प्रादुर्भवन्ति। सर्वमदः अधुना चिन्तायाः विषयः ज्ञायते। (परन्तु स्वार्थ से अन्धा हुआ मनुष्य उसी वातावरण (प्राकृतिक सन्तुलन) को नष्ट करता है। थोड़े से अपने मतलब के लिए मनुष्य मूल्यवान् वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं? कारखानों का जहरीला पानी नदियों में डाला जाता है, जिसके कारण मछली आदि जल के जीवों का क्षण मात्र में विनाश हो जाता है। नदियों में पानी भी पूरी तरह से पीने के अयोग्य हो जाता है।

जंगल के पेड़ विवेक को भूलकर अर्थात् बिना विचारे व्यापार बढ़ाने के लिए काट दिये जाते हैं, जिससे वर्षा नहीं होती है। शरण के अभाव में जंगली पशु बस्तियों में विघ्न या उपद्रव करते हैं। स्वच्छ हवा भी वृक्षों के काटने से आपद् ग्रस्त हो जाती है। इस प्रकार से स्वार्थ में अन्धे हुए लोगों के द्वारा विकार को प्राप्त हुई प्रकृति ही इनकी विनाशक हो गई। वातावरण में विकार (दोष) होने पर अनेक शारीरिक कष्ट और भयंकर समस्यायें पैदा हो जाती हैं। यह सब चिन्ता का विषय हो जाता है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कीदृशः मानवः पर्यावरणं नाशयति? (कैसा मानव पर्यावरण का नाश करता है?)
(ख) विकृतिम् उपगता प्रकृतिः कीदृशी भवति? (विकृत हुई प्रकृति कैसी हो जाती है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) विकृतिमुपगते पर्यावरणे किं भवति? (पर्यावरण विकृत होने पर क्या होता है?)
(ख) जलचराणां नाशः कथं भवति? (जलचरों का नाश कैसे होता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अमृतमयम्’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘अमृतमयम्’ पद का विलोम गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते’ अत्र ‘तस्मात्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम् ?
(तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते’ यहाँ ‘तस्मात्’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) स्वार्थान्धः (स्वार्थ में अन्धा)।
(ख) विनाशकी (विनाशकारी)।

(2) (क) विकृतिम् उपगते पर्यावरणे विविधारोगाः भीषण समस्याः च सम्भवन्ति। (पर्यावरण के विकृत हो जाने पर विविध रोग तथा भीषण समस्या सम्भव होती हैं।)
(ख) यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेन एव नाशः भवन्ति। (कारखानों के विषैले जल कोनदियों में गिराने से उससे मछली आदि जलचर क्षणभर में नष्ट (मर) जाते हैं।)

(3) (क) विषाक्तम् (जहरीला)।
(ख) वृक्षकर्तनात्/वृक्षच्छेदनात् (वृक्ष काटने से)।

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि स्थलचराः, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यतः ते स्थलमलानाम अपनोदिनः जलमलानाम् अपहारिणश्च। प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः।

शब्दार्थाः – धर्मः = शास्त्रोक्तः निर्देशः (शास्त्रों द्वारा निर्दिष्ट कर्त्तव्य), रक्षति = रक्षां करोति (रक्षा करता है), रक्षितः । = सुरक्षितः (रक्षा किया हुआ/सुरक्षित), इत्यार्षवचनम् = इति आर्षवचनम् = इति ऋषीणां प्रामाणिक वाक्यम् (यह ऋषियों … द्वारा कहा हुआ प्रामाणिक वचन है), पर्यावरणरक्षणमपि = पर्यावरणस्य संरक्षा अपि (पर्यावरण की रक्षा करना भी), धर्मस्यैवाङमस्ति = धर्मस्य एव भागम् अस्ति (धर्म का ही एक अंग है), इति = एवं (इस प्रकार),

ऋषयः = मन्त्रद्रष्टारः (मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने), प्रतिपादितवन्तः = प्रतिष्ठापितवन्तः (प्रतिपादित किया है), अत एव = अस्मात् कारणाद् एव (इसीलिए), वापीकूपतडागादिनिर्माणम् = ससोपानलघुजलाशयानां, कूपानां सरोवराणां च निर्माणकार्यम् (सीढ़ियों समेत छोटे जलाशय/बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि का निर्माण-कार्य), देवायतनम् = देवालयःमन्दिरम् (देवालय/मन्दिर), विश्रामगृह = विश्रान्तिस्थलम् (विश्रामघर), आदि = आदीनाम् (आदि का), स्थापनञ्च = निर्माणं च (स्थापित करना या बनाना),

धर्मसिद्धेः = धर्मस्य साधनरूपेण (धर्म की सिद्धि के), स्रोतोरूपेणः = आगमस्थलरूपेण (स्रोत के रूप में), अङ्गीकृतम् = स्वीकृतम् (स्वीकार किये गये), कुक्कुरः = सारमेयः (कुत्ता), सूकरः = वराहः (सूअर), सर्पः = अहिः (साँप), नकुलः = (नेवला), आदि = आदयः (आदि), स्थलचराः = धरायां चरन्तः (थलचर), मत्स्यः = मीनः (मछली), कच्छपः = कूर्मः (कछुआ), मकरः = ग्राहः (मगरमच्छ), प्रभृतयः = आदयः (आदि), जलचराश्च असि = जल-जन्तवः च अपि (और जल के जीव भी), रक्षणीयाः = रक्षितव्याः (रक्षा करने योग्य हैं/रक्षा की जानी चाहिए), यतः ते = यतोऽमी (क्योंकि वे),

स्थलमलानाम् अपनो दिनः = भूमिमलानाम् अपसारिणः (धरती की गन्दगी को दूर करने वाले), जलमलापनाम् अपहारिणश्च = उदकमलापसारिणः च (और पानी की गन्दगी को दूर करने वाले होते हैं), प्रकृतिरक्षया = प्रकृति रक्षणेन एव प्रकृति की रक्षा करने से ही), लोकरक्षा = लोकानां सुरक्षा (लोगों की सुरक्षा), सम्भवति = शक्या भवति (सम्भव होती है), इत्यत्र = यहाँ इसमें। न संशयः = न सन्देहः (सन्देह नहीं)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस गद्यांश में लेखक पर्यावरण-रक्षण को धर्म के अंग के रूप में ही वर्णन करते हुए थलचरों और जलचरों के रक्षण को भी धर्म के ही रूप में प्रतिपादित करता है।

अनुवाद – रक्षा किया हुआ धर्म (लोक की) रक्षा करता है, यह ऋषियों का प्रामाणिक वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही एक अंग है। ऐसा मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है। इसलिए बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि का निर्माण, देवालय (मन्दिर) विश्राम घर आदि को स्थापित करना या बनाना धर्म की सिद्धि के स्रोत के रूप में स्वीकार किये गये हैं। कुत्ता, सूअर, साँप, नेवला आदि थलचर, मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि जल के जीव भी रक्षा करने योग्य हैं। . क्योंकि वे धरती की गन्दगी को दूर करने वाले और पानी की गन्दगी को दूर करने वाले होते हैं। धरती की रक्षा करने से ही लोगों की रक्षा सम्भव है, इसमें सन्देह नहीं।

संस्कत-व्याख्याः

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। (यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘पर्यावरणम्’ पाठ से उद्धृत है।)

प्रसंग:-गद्यांशेऽस्मिन् लेखकः पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गरूपेण वर्णयन् थलचराणां जलचराणां च रक्षणमपि धर्मस्यैव अङ्गरूपेण प्रतिपादयति। (इस गद्यांश में लेखक पर्यावरण संरक्षण को धर्म का अंग बताते हुए थलचर और जलचरों के संरक्षण को भी धर्म का अंग प्रतिपादित करता है।)

व्याख्या: – सुरक्षितः धर्म: लोकान् रक्षति, इति ऋषीणां प्रामाणिकं वचनम्। पर्यावरणस्य रक्षा अपि धर्मस्य एव अङ्गम् अस्ति। इति मन्त्रद्रष्टारः ऋषिजनाः प्रतिष्ठापितवन्तः। तस्मात् एव कारणात् ससोपानलघुजलाशयानां, कूपानां सरोवराणां च निर्माणकार्य, देवालयानां, विश्रामस्थालानाम् इत्यादीनां निर्माणं धर्मसाधनस्य आगमस्थलरूपेण अङ्गीकृतम्। सारमेयशूकर सर्पनकुलादयः धरायामचरन्तः मीन-कूर्म-ग्राह-आदयः जलजन्तवश्चापि रक्षितव्याः यतोऽमी भूमिमलापसारिण: उदकमला पसारिणश्च (सन्ति)। भूमेः रक्षणेन एव लोकानां सुरक्षा शक्या भवति इति, नात्र सन्देहः।

(‘सुरक्षित धर्म लोकों की रक्षा करता है, यह ऋषियों का प्रमाणित वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी एक धर्म का ही अंग है। ऐसा मन्त्रदृष्टा ऋषिजनों ने प्रतिपादित किया है। इसी कारण से बावड़ी, कुआँ और तालाबों का निर्माण-कार्य देवालयों (मन्दिरों), धर्मशाला आदि का निर्माण धर्म की सिद्धि के स्रोत स्वीकार किये गये हैं। कत्ता, शकर, साँप, नेवला आदि धरती पर विचरण करते हुए, मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि जल-जन्तु आदि की भी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये भूमि के मल (गंदगी) को हटाकर गंदगी को दूर करने वाले होते है। भूमि के संरक्षण से ही लोगों की सुरक्षा सम्भव हो सकती है, इसमें कोई सन्देह नहीं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ इति कीदृशं वचनम्? (‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ यह कैसा वचन है?) .
(ख) धर्मस्यैक अंगं किं प्रोक्तम् ? (धर्म का एक अंग क्या कहा गया है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) धर्मसिद्धेः स्रोतोरूपेण किं स्वीकृतम् ? (धर्म-स्रोत के रूप में किसे स्वीकार किया गया है?)
(ख) प्रकृति रक्षया किं सम्भवति? (प्रकृति की रक्षा से क्या सम्भव है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-).
(क) ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ इत्येन पदेषु किं क्रियापदम्?
(‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ इनमें से क्रिया पद क्या है?)
(ख) ‘जलचराश्चापि रक्षणीया’ वाक्ये किं पदं अव्ययपदम्?
(‘जलचराश्चापि रक्षणीया’ वाक्य में कौनसा पद अव्यय है?)
उत्तराणि
(1) (क) आर्षवचनम् (ऋषि प्रयुक्त)।
(ख) पर्यावरणरक्षणम् (पर्यावरण का संरक्षण)।

(2) (क) वापी-कूप-तडागादि निर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनाञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतोरूपेण अङ्गीकृतम्।
(बाबड़ी, कुआ, तालाब आदि का निर्माण, मन्दिर, धर्मशाला आदि की स्थापना धर्म-सिद्धि के स्रोत के रूप में स्वीकार किये गये हैं।)
(ख) प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति। (प्रकृति की रक्षा से ही लोकरक्षा सम्भव है।)

(3) (क) रक्षति (रक्षा करता है)।
(ख) अपि (भी)।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संख्याज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

संख्या-ज्ञान – इस संसार में सभी लोगों के लिए संख्या (अंकों) का ज्ञान परम आवश्यक है क्योंकि संख्या के ज्ञान के बिना हमारे जीवन में आदान-प्रदान का कोई भी कार्य सम्भव नहीं हो सकता है। अतः हम यहाँ 100 से आगे की संख्याओं (अंकों) का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

हिन्दी अर्थ सहित संख्यावाची शब्द :

यहाँ कुछ पारिभाषिक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए दिया जा रहा है –

(i) शतम् – सौ
(ii) सहस्रम् – हजार
(iii) अयुतम् – दस हजार
(iv) लक्षम् – लाख
(v) प्रयुतम्/नियुतम् – दस लाख
(vi) कोटि: – करोड़
(vii) दशकोटि: – दस करोड़
(viii) अर्बुदम् – अरब
(ix) दशार्बुदम् – दस अरब
(x) खर्वम् – खरब
(xi) दशखर्वम् – दस खरब
(xii) नीलम् – नील
(xiii) दशनीलम् – दस नील
(xiv) पद्मम् – पद्म
(xv) दशपद्मम् – दस पद्म
(xvi) शंखम् – शंख
(xvii) दशशंखम्-दस शंख
(xviii) महाशंखम्-महाशंख

शतम् (100) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द बनाना

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

नियम – (i) ‘शत’ (100) आदि संख्यावाचक शब्दों के साथ लघु (छोटी) संख्या के मिलाने के लिए लघु (छोटी) संख्या के साथ ‘अधिक’ या ‘उत्तर’ शब्द वृहत्तर (बड़ी) संख्या के पहले लगा दिया जाता है। यथा-‘एक सौ तेरह’; यहाँ लघु संख्या तेरह है, इसकी संस्कृत है-‘त्रयोदश’। इसके आगे अधिक लगाकर इसके बाद वृहत्तर (बड़ी) संख्या ‘शतम्’ लगाने से ‘एक सौ तेरह’ की संस्कृत हुई- “त्रयोदशाधिकशतम्”।

(ii) शत् (100) सहस्र (1000) इत्यादि संख्याओं के साथ यदि उनका आधा (50, 500 आदि) हो तो सार्धं (आधा सहित), चौथाई साथ हो (25, 250 आदि) तो ‘सपादम्’ (चौथाई साथ) और चौथाई ‘कम हो तो’ पादोन (चौथाई कम) शब्द का उनके साथ प्रयोग किया जाता है। यथा-450 ‘सार्द्ध-शत-चतुष्टयम्” (आधे सहित सौ चार) इसी प्रकार 125 को ‘सपादशतम्’ (चौथाई सहित सौ) लिखते हैं। 1750 को ‘पादोनसहस्रद्वयम्’ (चौथाई कम दो हजार) लिखा जायेगा।

विशेष-शत, सहस्र इत्यादि के पहले द्वि, त्रि आदि के आने पर, समाहार द्विगु हो जाने से वे विशेषण नहीं रहते, क्योंकि समाहार द्विगु हो जाने पर वे विशेष्य पद हो जाते हैं। यथा-द्विशती (200), त्रिशती (300) आदि।

(iii) अवयव दिखाने के लिए द्वय, त्रय, चतुष्टय, पञ्चक, षट्क, सप्तक, अष्टक इत्यादि ‘क’ प्रत्ययान्त एकवचनान्त नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(iv) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग करने में यदि संशय हो तो संख्यावाचक शब्द के साथ ‘संख्यक’ शब्द लगाकर अकारान्त पद की तरह रूप चलाकर सरलता से अनुवाद किया जा सकता है।

ध्यातव्य – संस्कृत में संख्या को उल्टे क्रम से लिखना शुरू करते हैं जैसे-101 में, पहले एक को फिर सौ को लिखेंगे। बीच में ज्यादा का शब्द ‘अधिक’ लिखेंगे। याद करें हमारे पुराने बुजुर्ग लोग कैसे गिनती बताते थे। 130 को = तीस ज्यादा सौ, 19 को = एक कम बीस, 540 को = चालीस ज्यादा पाँच सौ, यही तरीका संस्कृत का है। जैसे –

1. 101 = उल्टाक्रम = एक अधिक सौ = एक + अधिकशतम् = एकाधिकशतम्।
2. 140 = उल्टाक्रम = चालीस अधिक सौ = चत्वारिंशत् + अधिकशतम् = चत्वारिंशदधिकशतम्।
3. 165 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक सौ = पंच षष्टि + अधिक शतम् = पंचषष्ट्यिधिकशतम्।
4. 300 = तीन सौ = त्रिशतम्।
5. 1965 = उल्टाक्रम = पाँच साठ अधिक एक कम बीस सौ = पंचषष्टि + अधिक + एकोनविंशतिशतम् = पंचषष्ट्य धिकैकोनविंशतिशतम्
6. 2000 = दो हजार = द्विसहस्रम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

उपर्युक्त नियम के अनुसार 100 (शतम्) से ऊपर के संख्यावाचक शब्द –

101. एकाधिकशतम्
102. यधिकशतम्
103. त्र्यधिकशतम्
104. चतुरधिकशतम्
105. पञ्चाधिकशतम्
106. षडधिकशतम्
107. सप्ताधिकशतम्
108. अष्टाधिकशतम्
109. नवाधिकशतम्
110. दशाधिकशतम्
111. एकादशाधिकशतम्
112. द्वादशाधिकशतम्
113. त्रयोदशाधिकशतम्
114. चतुर्दशाधिकशतम्
115. पञ्चदशाधिकशतम्
116. षोडशाधिकशतम्
117. सप्तदशाधिकशतम्
118. अष्टादशाधिकशतम्
119. नवदशाधिकशतम्
120. विंशत्यधिकशतम्
121. एकविंशत्यधिकशतम्
122. द्वारिंशत्यधिकशतम्
123. ज्योविंशत्यधिकशतम्
124. चतुर्विंशत्यधिकशतम्
125. पञ्चविंशत्यधिकशतम्
126. षड्विंशत्यधिकशतम्
127. सप्तविंशत्यधिकशतम्
128. अष्टाविंशत्यधिक शतम्
129. नवविंशत्यधिकशतम्
130. त्रिंशदधिकशतम्
131. एकत्रिंशदधिकशतम्
132. द्वात्रिंशदधिकशतम्।
133. त्रयस्त्रिंशदधिकशतम्
134. चतुत्रिंशदधिकशतम्
135. पञ्चत्रिंशदधिकशतम्
136. षट्त्रिंशदधिकशतम्
137. सप्तत्रिंशदधिकशतम्
138. अष्टत्रिंशदधिकशतम्
139. नवत्रिंशदधिकशतम्
140. चत्वारिंशदधिकशतम्
141. एकचत्वारिंशदधिकशतम्
142. द्विचत्वारिंशदधिकशतम्
143. त्रिचत्वारिंशदधिकशतम्
144. चतुश्चत्वारिंशदधिकशतम्
145. पञ्चचत्वारिंशदधिकशतम्
146. षट्चत्वारिंशदधिकशतम्
147. सप्तचत्वारिंशदधिकशतम
148. अष्टचत्वारिंशदधिकशतम्
149. नवचत्वारिंशदधिकशंतम्
150. पञ्चाशदधिकशतम्
151. एकपञ्चाशदधिकशतम्
152. द्विपञ्चाशदधिकशतम्
153. त्रिपञ्चाशदधिकशतम्
154. चतुःपञ्चाशदधिकशतम्
155. पञ्चपञ्चाशदधिकशतम्
156. षट्पञ्चाशदधिकशतम्
157. सप्तपञ्चाशदधिकशतम्
158. अष्टपञ्चाशदधिकशतम्
159. नवपञ्चाशदधिकशतम्
160. षष्ट्यधिकशतम्
161. एकषष्ट्यधिकशतम्
162. द्विषष्ट्यधिकशतम्
163. त्रिषष्ट्यधिकशतम्
164. चतुःषष्ट्यधिकशतम्
165. पञ्चषष्ट्यधिकशतम्
166. षट्षष्ट्यधिकशतम्
167. सप्तषधिकशतम्
168. अष्टषष्ट्यधिकशतम्
169. नवषष्ट्यधिकशतम्
170. सप्तत्यधिकशतम्
171. एकसप्तत्यधिकशतम्
172. द्विसप्तत्यधिकशतम्
173. त्रिसप्तत्यधिकशतम्
174. चतुःसप्तत्यधिकशतम्
175. पञ्चसप्तत्यधिकशतम्
176. षष्टसप्तत्यधिकशतम्
177. सप्तसप्तत्यधिकशतम्
178. अष्टसप्तत्यधिकशतम्
179. नवसप्तत्यधिकशतम्
180. अशीत्यधिकशतम्।
181. एकाशीत्यधिकशतम्
182. द्वयशीत्यधिकशतम्
183. व्यशीत्यधिक शतम्
184. चतुरशीत्यधिकशतम्
185. पञ्चाशीत्यधिकशतम्
186. षडशीत्यधिकशतम्
187. सप्ताशीत्यधिकशतम्
188. अष्टाशीत्यधिकशतम्
189. नवाशीत्यधिकशतम्
190. नवत्यधिकशतम्
191. एकनवत्यधिकशतम्
192. द्विनवत्यधिकशत्
193. त्रिनवत्यधिकशतम्
194. चतुर्नवत्यधिकशतम्
195. पञ्चनवत्यधिकशतम्
196. षण्णवत्यधिकशतम्
197. सप्तनवत्यधिकशतम्
198. अष्टनवत्यधिकशतम्
199. नवनवत्यधिकशतम्
200. द्विशती द्विशतम्/द्विशतकम् शतद्वयम् इसी प्रकार
201 (एकाधिकद्विशती) आदि संख्याएँ लिखी जायेंगी। उपर्युक्त नियम के अनुसार
200 के ऊपर संख्यावाचक शब्द
201 एकाधिकद्विशतम्।
301 एकाधिकत्रिशतम्।
401 एकाधिकचतुःशतम्/एकोत्तरचतुःशतम्/एकाधिकं चतुःशतम्/एकोत्तरं चतुःशतम्।
500 पञ्चशतम्/शतपञ्चकम्/पञ्चशतकम्।
501 एकाधिकपञ्चशतम्/एकोत्तरपञ्चशतम्/एकाधिकं पञ्चशतम्/एकोत्तरं पञ्चशतम्।
502 यधिकपञ्चशतम्/द्वयुत्तरपञ्चशतम्/यधिकं पञ्चशतम्/द्युत्तरं पञ्चशतम्।
503 व्यधिकपञ्चशतम्/व्युत्तरपञ्चशतम्/त्र्यधिकं पञ्चशतम्/युत्तरं पञ्चशतम्।
504 चतुरधिकपञ्चशतम्/चतुरुत्तरपञ्चशतम्/चतुरधिकं पञ्चशतम्/चतुरुत्तरं पञ्चशतम्।
505 पञ्चाधिकपञ्चशतम्/पञ्चोत्तरपञ्चशतम्/पञ्चाधिकं पञ्चशतम्/पञ्चोत्तरं पञ्चशतम्।
506 षडधिकपञ्चशतम्/षडुत्तरपञ्चशतम्/षडधिकं पञ्चशतम्/षडुत्तरं पञ्चशतम्।
507 सप्ताधिकपञ्चशतम्/सप्तोत्तरपञ्चशतम्/सप्ताधिकं पञ्चशतम्/सप्तोत्तरं पञ्चशतम्।
508 अष्टाधिकपञ्चशतम्/अष्टोत्तरपञ्चशतम्/अष्टाधिकं पञ्चशतम्/अष्टोत्तरं पञ्चशतम्।
509 नवाधिकपञ्चशतम्/नवोत्तरपञ्चशतम्/नवाधिकं पञ्चशतम्/नवोत्तरं पञ्चशतम्।
510 दशाधिकपञ्चशतम्/दशोत्तरपञ्चशतम्/दशाधिकं पञ्चशतम्/दशोत्तरं पञ्चशतम्।
517 सप्तदशाधिकपञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरपञ्चशतम्।सप्तदशाधिकं पञ्चशतम्/सप्तदशोत्तरं पञ्चशतम्।
600 षट्शतम्/शतषट्कम्/षट्शतकम्।
625 पञ्चविंशत्यधिकषट्शतम्/पञ्चविंशत्यधिकं षट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चविंशत्युत्तरं षट्शतम्।
637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्/सप्तत्रिंशदुत्तरषट्शतम्, सप्तत्रिंशदधिकं षट्शतम्।
646 षट्चत्वारिंशदधिकषट्शतम् षट्चत्वारिशदधिकं षट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरषट्शतम्/षट्चत्वारिंशदुत्तरं षट्शतम्।
655 पञ्चपञ्चाशदधिकषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरषट्शतम्/पञ्चपञ्चाशदुत्तरं षट्शतम्।
666 षट्षष्ट्यधिकषट्शतम्/षट्षष्ट्यधिकं षट्शतम्/षट्षष्ट्युत्तरषट्शतम् षट्षष्ट्युत्तरं षट्शतम्।
673 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्/त्रिसप्तत्यधिकं षट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरषट्शतम्/त्रिसप्तत्युत्तरं षट्शतम्।
684 चतुरशीत्यधिकषट्शतम्/चतुरशीत्यधिक षट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरषट्शतम्/चतुरशीत्युत्तरं षट्शतम्।
695 पञ्चनवत्यधिकषट्शतम्/पञ्चनवत्यधिक षट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरषट्शतम्/पञ्चनवत्युत्तरं षट्शतम्।
700 सप्तशतम्/शतसप्तकम्/सप्तशतकम्।
704 चतुरधिकसप्तशतम्/चतुरुत्तरसप्तशतम्/चतुरधिकं सप्तशतम्/चतुरुत्तरं सप्तशतम्।
795 पञ्चनवत्यधिकसप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरसप्तशतम्/पञ्चनवत्यधिकं सप्तशतम्/पञ्चनवत्युत्तरं सप्तशतम्।
800 अष्टशतम्/शताष्टकम्/अष्टशतकम्।
805 पञ्चाधिकाष्टशतम्/पञ्चोत्तराष्टशतम्/पञ्चाधिकमष्टशतम्/पञ्चोत्तरमष्टशतम्।
900 नवशतम्/शतनवकम्/नवशतकम्।
1000 सहस्रम् (एक हजार)।
1324 चतुविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/चतुविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ चौबीस/एक हजार तीन सौ चौबीस)।
1325 पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्/पञ्चविंशत्यधिकत्रिशताधिकसहस्रम् (तेरह सौ पच्चीस/एक हजार तीन सौ पच्चीस)।
1928 अष्टाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशतम्/अष्टाविंशत्यधिकनवशताधिकसहस्रम् (उन्नीस सौ अट्ठाइस/एक हजार नौ सौ अट्ठाईस)।
1939 एकोनचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशतम्/एकोनचत्वारिंशदधिकनवशताधिकसहस्रम् (उन्नीस सौ उन्तालीस/एक हजार नौ सौ उन्तालीस)।
10,000 अयुतम् (दस हजार)।
59637 सप्तत्रिंशदधिकषट्शताधिकनवसहस्राधिकपञ्चायुतम् (उनसठ हजार, छ: सौ सैंतीस)।
(i) शतम् सहस्रम्, अयुतम्, लक्षम् इत्यादि शब्द नित्य एकवचनान्त ही प्रयुक्त होते हैं।
(ii) कोटि तथा दशकोटि शब्द के रूप स्त्रीलिंग में ‘मति’ शब्द के समान बनेंगे। जैसे –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

‘शत’ ‘सहस्र’, ‘लक्ष’, ‘कोटि’ और ‘दशकोटि संख्यावाची शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम् 1

संख्या जानने के लिए ‘कति’ (कितने) शब्द से प्रश्न बनाया जाता है। अतः विद्यार्थियों की सुविधा के लिए ‘कति’ शब्द के रूप दिये जा रहे हैं।

विभक्ति – कति (कितने)

प्रथमा – कति
द्वितीया – कति
तृतीया – कतिभिः
चतुर्थी – कतिभ्यः
पंचमी – कतिभ्यः
षष्ठी – कतीनाम्
सप्तमी – कतिषु

नोट – (i) ‘कति’ के रूप तीनों लिंगों में एक समान चलते हैं।
(ii) कति शब्द के रूप नित्य बहुवचनान्त बनते हैं।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानां उत्तरस्य उचित विकल्प चित्वा लिखत –
(i) ‘2021’ इत्यस्य संस्कृतभाषायां रूप भवति
(क) एकविंशत्यधिकैकशतम्
(ख) एकविंशतिद्विशतम्
(ग) एकविंशतिशतम्
(घ) एकविंशत्यधिकद्विशतम्
उत्तरम् :
(ख) एकविंशतिद्विशतम्

(ii) लता समीपे ……………… (110) रूप्यकाणि सन्ति।
(क) दशीनशतम्
(ख) एकादशशतम्
(ग) दशाधिकशतानि
(घ) दशशतम्
उत्तरम् :
(ग) दशाधिकशतानि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

(iii) अस्माकं ग्रामे …………….. (3000) जनाः सन्ति ।
(क) त्रिसहस्र
(ख) त्रिसहस्राणि
(ग) त्रिसहस्रनं
(घ) त्रिसहस्रस्य
उत्तरम् :
(ख) त्रिसहस्राणि

(iv) विद्यालये …………….. (500) छात्राः सन्ति।
(क) पञ्चदशशतम्
(ख) पञ्चाशत्
(ग) पञ्चाधिकशतं
(घ) पञ्चशतम्
उत्तरम् :
(घ) पञ्चशतम्

(v) सीता तस्मै ……………… (175) रूप्यकाणि ददाति।
(क) पञ्चसप्तत्यधिकशतानि
(ख) पञ्चदशशतानि
(ग) पञ्चसप्ततिशतानि
(घ) पञ्चसप्तदशशतानि
उत्तरम् :
(क) पञ्चसप्तत्यधिकशतानि

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 103,
(ख) 180
उत्तरम् :
(क) व्यधिकशतम्,
(ख) अशीत्यधिकैकशतम्।

प्रश्न 3.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 117
(ख) 180
उत्तरम् :
(क) सप्तदशाधिकैकशतम्,
(ख) अशीत्यधिकैकशतम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 4.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 401
(ख) 183
उत्तरम् :
(क) एकाधिकचतुः शतम्,
(ख) त्र्यशीत्यधिकैकशतम्।

प्रश्न 5.
निम्नलिखितौ अंकी संस्कृते लिखत –
(क) 115
(ख) 231
उत्तरम् :
(क) पञ्चदशाधिकशतम्,
(ख) एकत्रिंशदधिकद्विशतम्।

प्रश्न 6.
अधोलिखितसंख्याः संस्कृतभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
188 – अष्टाशीत्यधिकशतम्।
159 – एकोनषट्यधिकशतम्।
300 – त्रिशतम्।
1965 – पञ्चषष्ट्यधिकैकोनविंशतिशतम्।
2000 – द्विसहस्रम्।
101 – एकाधिकशतम्।
140 – चत्वारिंशदधिकशतम्।
165 – पञ्चषष्ट्यधिकशतम्।
177 – सप्तसप्तत्यधिकशतम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 7.
अधोलिखित संख्याशब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
एकपञ्चाशदधिकशतम् – 151
एकाधिकद्विशतम् – 201
एकत्रिंशदधिकत्रिशतम् – 331
पञ्चचत्वारिंशदधिकचतुः शतम् – 445
दशाधिकपञ्चशतम् – 510

प्रश्न 8.
अधोलिखितसंख्याशब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
पञ्चविंशत्यधिकत्रयोदशशतम्
1325 चतुःशतम् एकसप्तत्यधिकशतम्
171 नवाधिकशतम्
109 द्विशतम्
सप्तदशाधिकपञ्चशतम्
517 त्रिसप्तत्यधिकषट्शतम्

प्रश्न 9.
अधोलिखित संख्याशब्दान् संस्कृत भाषायां लिखत।
उत्तरम् :
620 – विंशत्यधिकषट्शतम्
751 – एकपञ्चाशदधिकसप्तशतम्
1021 – एकविंशत्यधिकसहस्रम्
1513 – त्रयोदशाधिकपञ्चदशशतम्
1966 – षट्पष्ट्यधिकैकोनविंशतिशतम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 10.
अधोलिखित संख्याशब्दान् संस्कृत भाषायां लिखत।
उत्तरम् :
2000 – द्विसहस्रम्
2020 – विंशत्यधिकद्विसहस्त्रम्
5200 – द्विशताधिकपञ्चसहस्त्रम्
10000 – दशसहस्रम्
1500000 – पञ्चदशलक्षम्

प्रश्न 11.
निम्नलिखितसंख्याः संस्कृतभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
111 – एकादशाधिकशतम्
125 – पञ्चविंशत्यधिकशतम्
131 – एकत्रिंशदधिकशतम्
501 – एकाधिकपञ्चशतम्
650 – पञ्चाशदधिकष्टशतम्

प्रश्न 12.
अधोलिखित संख्या शब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
पञ्चसप्तत्यधिकसप्तशतम् – 775
चत्वरिंशदधिकाष्टशतम् – 840
त्रिंशदधिकनवशतम् – 930
पञ्चषष्ट्यधिकनवशतम् – 965
एकाधिकसहस्रम् – 1001
अष्टाधिकसहस्रम् – 1008

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् संख्याज्ञानम्

प्रश्न 13.
अधोलिखित संख्या शब्दान् अङ्केषु लिखत।
उत्तरम् :
शताधिकसहस्रम् – 1100
एकादशाधिकैकादशशतम् – 1111
पंचविंशदधिकचतुर्दशशतम् – 1425
पंचाशित्यधिकपञ्चदशशतम् – 1585
चतुरशित्यधिकाष्टादशशतम् – 1884
एकोनद्विसहस्रम् – 1999

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions रचना पत्र-लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

आवश्यक निर्देश – कक्षा IX की परीक्षा में संस्कृत के प्रश्न-पत्र में संस्कृत भाषा में सरल प्रार्थना-पत्र लिखने को कहा जाता है। यहाँ संस्कृत में कुछ प्रार्थना-पत्र दिये जा रहे हैं।

लेखन-विधि – जिन्हें हिन्दी में पत्र-लिखने का अभ्यास है, उन्हें संस्कृत में पत्र लिखने में विशेष असुविधा नहीं होगी। पत्र लिखते समय निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दें –
1. पत्र में सरल भाषा और छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
2. जिस उद्देश्य से आप पत्र लिख रहे हैं, उसका स्पष्ट उल्लेख करें।
3. आवेदन-पत्र में बायीं ओर सम्मानसूचक शब्दों के साथ अधिकारी (प्रधानाचार्य आदि) का पद-नाम लिखें। इसमें सम्बोधन कारक का प्रयोग करना चाहिए। सम्मान व्यक्त करने के लिए आप बहुवचन का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसके नीचे अधिकारी के कार्यालय (विद्यालय आदि) का पता लिखें।
4. अगली पंक्ति में पुनः महोदयाः/श्रीमन्तः/श्रीमत्यः आदि लिखकर अधिकारी को सम्बोधित करें। उसकी अगली पंक्ति में अपना निवेदन लिखना प्रारम्भ करें।
5. अन्त में बायीं ओर आवेदन का दिनांक लिखें। दाहिनी ओर अपना नाम व पता निम्नवत् लिखें –

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम् 1

6. निमन्त्रण आदि से सम्बन्धित व्यावहारिक पत्रों में पहले ऊपर दाहिनी ओर प्रेषण-स्थान का नाम ‘त:’ लगाकर … (जयपुरतः, भरतपुरतः आदि) लिखें।
7. आजकल निमन्त्रण-पत्र प्रायः छपवाये जाते हैं, जिनमें प्राप्तकर्ता का नाम-पता बाद में आप लिखें।
8. पत्र की समाप्ति के बाद बायीं ओर दिनांक तथा दाहिनी ओर ‘भवताम् अनुचरः’, ‘निवेदकः’, ‘विनीतः’ आदि लिखकर नाम लिखें। उसके नीचे बायीं ओर प्राप्तकर्ता का नाम तथा पता लिखें।
9. जहाँ संख्या की आवश्यकता हो वहाँ शब्दों (एकः, द्वौ आदि) की अपेक्षा अंकों (1, 2 आदि) का प्रयोग करें। हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले अंक मूलत: संस्कृत के ही हैं, अतः इनका प्रयोग निःसंकोच कर सकते हैं। उदाहरणार्थ-आपको . लिखना है-‘दो दिन का अवकाश।’ इसे संस्कृत में अनेक प्रकार से लिख सकते हैं; जैसे –
(क) दिनद्वयावधिकः अवकाशः
(ग) दिनद्वयात्मकः अवकाशः
(ख) 2 दिनावधिः अवकाशः
(घ) 2 दिनात्मकः अवकाशः

10. साधारण-पत्रों में हिन्दी में प्रचलित विधि का ही अनुकरण करें। प्रारम्भ में दाहिने कोने पर अपने स्थान (ग्राम, नगर आदि) का नाम तथा उसके नीचे दिनांक लिखें। उचित सम्बोधन तथा अभिवादन के साथ पत्र प्रारम्भ करें। अन्त में पत्र को समाप्त करते हुए, पुनः दाहिने कोने पर अपना नाम तथा पूरा पता लिख दें।

विशेष – प्रार्थना-पत्र संकेताधारित होंगे। संकेताधारित प्रार्थना-पत्रों को निम्न चार प्रकार से लिखा जा सकता है। सांकेतिक शब्द तथा सांकेतिक पंक्तियाँ सहायतार्थ होती हैं न कि पूर्ण विषयवस्तु। अतः विद्यार्थी इस बात का विशेष ध्यान रखें।

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

1. प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार से पूछा जा सकता है –
प्रश्न : स्वकीयं मनोजं मत्वा रा.उ. मा. वि. अलवरस्य प्रधानाचार्यमहोदयं शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं अधोलिखित शब्दानाम् अवलम्बनं कृत्वा लिखत-(स्वयं को मनोज मानकर रा.उ.मा. वि. अलवर के प्रधानाचार्य महोदय को शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र निम्नलिखित शब्दों की सहायता लेकर लिखिए-)

[संकेतसूची/मञ्जूषा – प्रधानाचार्यमहोदयाः, भवतां, नम्रनिवेदनमस्ति, कृषकपुत्रः, आर्थिकदशा, शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि, प्रदातुं शक्नोमि, प्रदातव्या, चरणचञ्चरीकः, मनोजकुमारः।]

शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:
रा. उ. मा. वि.
अलवरम्।
विषय: – शिक्षण-शुल्क-मुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
भवतां चरणकमलेषु सविनयं नम्रनिवेदनमस्ति यदहमेक: ग्रामीण: कृषकपुत्रः अस्मि। मम आर्थिकदशा न अस्ति ईदृशी यदहं विद्यालयस्य शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि प्रदेयानि शुल्कानि प्रदातुं शक्नोमि। अतः कृपया शुल्कमुक्तिम् प्रदाय अनुगृह्णन्तु माम् भवन्तः।

भवताम् चरणचञ्चरीकः
मनोजकुमारः
कक्षा IX

दिनांक : 11-7-20_ _

हिन्दी-अनुवाद

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
रा. उ. मा. वि.
अलवर।

विषय – शिक्षण-शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
आपके चरण-कमलों में सविनय नम्र निवेदन है कि मैं ग्रामीण किसान का पुत्र हूँ। मेरी आर्थिक दशा ऐसी नहीं है कि मैं विद्यालय का शिक्षण शुल्क एवं अन्य दिये जाने योग्य शुल्क देने में समर्थ हो सकूँ। अतः कृपा करके शुल्क से मुक्ति प्रदान कर अनुगृहीत करें।

आपके चरणों का सेवक
मनोज कुमार
कक्षा IX

दिनांक : 11-7-20_ _

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

2. ऊपर लिखे प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार से भी पूछा जा सकता है –
प्रश्नः स्वकीयं मनोजं मत्वा रा.उ.मा.वि. अलवरस्य प्रधानाचार्यमहोदयम् अधोलिखितानां सङ्केतानाम् आधारेण प्रार्थना-पत्रं लिखत-(स्वयं को मनोज मानकर रा. उ. मा. वि. अलवर के प्रधानाचार्य महोदय को निम्नलिखित सङ्केतों के आधार पर प्रार्थना-पत्र लिखिए-)
ध्यातव्य-(प्रार्थना-पत्र संख्या 2 में प्रार्थना-पत्र लिखने का कारण अर्थात् प्रार्थना-पत्र किसलिए लिखना है, वह हेतु नहीं बताया गया है। अत: छात्रों को सांकेतिक पंक्तियों से प्रार्थना-पत्र के हेतु का चुनाव स्वयं करना है तथा उसी विषय पर प्रार्थना-पत्र लिखना है।)

सेवायाम्
श्रीमन्तः ………..
रा. उ. मा. वि.
अलवरम्
महोदयाः,
भवतां …………. नम्रनिवेदनमस्ति ……………. कृषकपुत्रः ……………. आर्थिकदशा …………… शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि प्रदेयानि.. प्रदातुं शक्नोमि. शुल्कमुक्तिम् स्वीकृत्य अगृह्णन्तु माम् भवन्तः।

चरणचञ्चरीकः
………….
कक्षा IX

दिनांक: ………….

नोट – उपर्युक्त सङ्केत पंक्तियों को पढ़कर पता चलता है कि प्रार्थना-पत्र शुल्क-मुक्ति के लिए लिखना है।
उत्तरम् :
प्रार्थना-पत्र संख्या 1 के उत्तर की तरह लिखें।

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

3. ऊपर लिखे प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार से भी पूछा जा सकता है –
प्रश्नः स्वकीयं मनोज मत्वा रा. उ. मा. वि. अलवरस्य प्रधानाचार्यमहोदयम् अधोलिखितानां शब्दसंकेतानाम् अवलम्बनं कृत्वा प्रार्थना-पत्रं लिखत-(स्वयं को मनोज मानकर रा. उ. मा. वि. अलवर के प्रधानाचार्य महोदय को निम्नलिखित शब्द संकेतों की सहायता लेकर प्रार्थना-पत्र लिखिए-)

[सङ्केतसूची-भवतां, निवेदनमस्ति, कृषकपुत्रः आर्थिकदशा, प्रदातुं, प्रदातव्या।]

श्रीमन्तः ………….
महोदयाः,
…………….. चरणकमलेषु …………….. अहम् एकः ग्रामीण: ……………… न अस्ति ईदशी यदहं.. .”प्रदेयानि शुल्कानि ……………….. शुल्कमुक्तिः ………………

भवताम् …………….
मनोज कुमारः
कक्षा IX

दिनांकः ……….

नोट – इस प्रार्थना-पत्र में भी प्रार्थना-पत्र का हेतु (विषय) नहीं दिया गया है। अतः छात्रों को स्वयं संकेत पंक्तियों को पढ़कर पता लगाना है कि प्रार्थना-पत्र किस विषय पर लिखना है।
अत: सांकेतिक पंक्तियाँ पढ़कर पता चलता है कि प्रार्थना-पत्र शुल्क-मुक्ति के लिए लिखना है।
उत्तरम् :
प्रार्थना-पत्र संख्या 1 के उत्तर की तरह लिखें ।

4. ऊपर लिखे प्रार्थना-पत्र को इस प्रकार भी पूछा जा सकता है –
प्रश्न: – शुल्कमुक्तिप्रदानार्थं प्रधानाचार्य प्रति प्रार्थना-पत्रं सङ्केतसूच्याः उचितपदैः पूरयत-(शुल्कमुक्ति के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र सङ्केत सूची के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए-)
[संकेत सूची/मञ्जूषा-कृषकपुत्रः, प्रदातुं शक्नोमि, भवतां, मनोजकुमारः, नम्रनिवेदनमस्ति, प्रदाय, आर्थिकदशाः चरणचञ्चरीकः, शिक्षणशुल्कम् एवम् अन्यानि, प्रधानाचार्यमहोदया:।]

सेवायाम्,
श्रीमन्त: …………
रा. उ. मा. वि.
अलवरम्।

महोदया:,
………………. चरण कमलेषु सविनयं ………….. यदहमेकः ग्रामीण: …………. अस्मि। मम ………. नास्तीदृशी यदहं विद्यालयस्य …………… प्रदेयानि शुल्कानि ……………. । अत: कृपया शुल्कमुक्तिम् …………….. अनुगृह्णन्तु मां भवन्तः।

भवताम् ………….
…………….
कक्षा IX

दिनांक: ……….
उत्तरम् :
प्रार्थना-पत्र संख्या 1 के उत्तर की तरह लिखें।
नोट – चौथे प्रकार के प्रार्थना-पत्र-लेखन को इस पासबुक में लिखा गया है। लेकिन विद्यार्थी उपर्युक्त प्रार्थना-पत्र-लेखन के तरीकों को भी ध्यान में रखें एवं प्रार्थना-पत्रों को भली-भाँति स्मरण करें ताकि प्रश्नानुसार उत्तर दिया जा सके।
प्रार्थना – पत्र में रिक्त स्थान होंगे जिन्हें मञ्जूषा (तालिका) में दिए गए शब्दों से भरकर पूर्ण करना होगा। परीक्षा का यही पूर्ण प्रार्थना-पत्र का उत्तर होगा। अतः यहाँ कुछ प्रार्थना-पत्रों को प्रस्तुत किया जा रहा है।

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 1.
अस्वस्थतायाः कारणात् दिवसत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(बीमारी के कारण तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से.पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
…………………… प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि. ……………………
भरतपुरम्।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं ………………. यत् अद्य अहंशीतज्वरेण ……………… अस्मात् कारणात ……………. यावत् विद्यालये ………….. न शक्नोमि। अतः …………… यत् दि. 11-5-20_ _ तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं …………… मामनुगृहीष्यन्ति …………….।

भवदाज्ञाकारी …………
सुदर्शनः
कक्षा 9 (जी)

दिनांक 11-5-20_ _

[संकेत सूची/मजपा-निवेदयामि, भवन्तः, श्रीमन्तः, स्वीकृत्य, विद्यालयः, प्रार्थये, दिनत्रयस्य, शिष्यः, पीडितोऽस्मि, । उपस्थातुम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि.,
भरतपुरम्।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामि यत् अद्य अहं शीतज्वरेण पीडितोऽस्मि। अस्मात् कारणात् अहं दिनत्रयं यावत् विद्यालये उपस्थातुं न शक्नोमि। अतः प्रार्थये यत् दि. 11-5-20_ _तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य मामनुगृहीष्यन्ति भवन्तः।
दिनांक : 11-5-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुदर्शनः
कक्षा 9 (जी)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,

राज. उ. माध्य. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि आज मैं शीतज्वर से पीड़ित हैं। इस कारण से मैं तीन दिन तक विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ। इसलिए प्रार्थना करता हूँ कि दिनांक 11-5-20_ _ से 13-5-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझ पर अनुग्रह करेंगे।
दिनांक : 11-5-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुदर्शन
कक्षा 9 (जी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न 2.
शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये ……………….. छत्रोत्रोऽस्मि। मम …………… आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता …………. प्रतिदिवसं कार्ये केवलं पञ्चाशद् रूप्यकाणाम् …………….. भवति। तेन …………… पालन-पोषणञ्च कथमपि भवितुं न शक्नोति। अतः अहं …………… शिक्षणशुल्क… असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्तिः ………….. । अष्टमकक्षायाः ……………. अहं प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

दिनांक : 11-8-20_ _

………. शिष्यः।
सुरेशचन्द्रः
कक्षा 9 (स)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – आसीत्, भक्दाज्ञाकारी, विद्यालयस्य, पितुः, अर्जनमेव, नवमकक्षायाः, वृद्धोऽस्ति, परिवारस्य, परीक्षायाम, प्रदातुम्।]
उत्तरम् :

शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्;
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थनापत्रम्।

महोदयाः,
संविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये नवमकक्षायाः छात्रोऽस्मि। मम पितुः आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता वद्धोऽस्ति, प्रतिदिवसं केवलं पञ्चाशद रूप्यकाणाम अर्जनमेव भवति। तेन परिवारस्य पालन-पोषणञ्च शक्नोति। अतः अहं विद्यालयस्य शिक्षणशुल्कं प्रदातुम् असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्तिः स्वीकृता आसीत्। अष्टम-कक्षायाः परीक्षायाम् अहं प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

दिनांक : 11-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुरेशचन्द्रः
कक्षा 9 (स)

हिन्दी-अनुवाद
शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – शिक्षण-शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं श्रीमानजी के विद्यालय में नौवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता की आर्थिक स्थिति शोचनीय है। कार्य में केवल पचास रुपये कमा पाते हैं। उससे परिवार का पालन-पोषण किसी प्रकार भी नहीं हो सकता है। इसलिए मैं विद्यालय का शिक्षण शुल्क देने में असमर्थ हूँ। गतवर्ष मेरी शिक्षण-शुल्क-मुक्ति स्वीकार हुई थी। आठवीं कक्षा की परीक्षा में मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था।
इसलिए पुनः निवेदन है कि आप अध्ययन में मेरी रुचि को देखकर मुझे शिक्षण-शुल्क से मुक्ति प्रदान कर अनुगृहीत करेंगे।

दिनांकः 11-8–20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुरेशचन्द्र
कक्षा 9 (स)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 3.
ज्येष्ठभ्रातुः विवाहकारणात् दिनद्वयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(बड़े भाई के विवाह के कारण से दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्त: प्रधानाचार्यमहोदया:
राजकीयः उच्चः ……………… विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य …………. प्रार्थना-पत्रम्।

……………..
सविनयं निवेदनम् …………. यत् मम ज्येष्ठभ्रातुः ……….. 16-5-20_ _ दिनाङ्के. …………..। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न………………।
अत: …………. यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं …………… अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति ……….।

सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारतः शर्मा
(कक्षा-9)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, श्रीमन्तः, निवेदनमस्ति, निश्चितः, शक्नोमि, माध्यमिकः, महोदयाः, पाणिग्रहणसंस्कारः, अस्ति, अवकाशार्थम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदया:,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम ज्येष्ठभ्रातुः पाणिग्रहणसंस्कारः 16-5-20_ _ दिनाङ्के निश्चितः। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।
अतः निवेदनमस्ति यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारत: शर्मा
(कक्षा-9)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय – दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे बड़े भाई की शादी दिनांक 16-5-20_ _ को निश्चित हुई है। इस कारण से दो दिन तक मैं अपनी कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ।
अतः निवेदन है कि दिनांक 16-5-20_ _ से 17-5-20_ _ तक दो दिन का अवकाश स्वीकृत कर श्रीमान् मुझ पर अनुग्रह करेंगे।
सधन्यवाद।
दिनांक 16-5-20_

आपका शिष्य
भारत शर्मा
(कक्षा-9)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 4.
चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
………………
श्रीमन्तः …………
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं ………… अस्ति यत् अहं आंग्ल ………… वाद-विवाद …………. भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् …………. चरित्र-प्रमाण ………….. आवश्यकता………………
अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं ……. अनुग्रहीष्यन्ति …………….. ।

सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(नवम् कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-प्रदाय, भाषया, पत्रस्य, भवन्तः, प्रधानाचार्य महोदयाः, निवेदनम्, सेवायाम्, कारणात्, वर्तते, । प्रतियोगितायाम्।]

चरित्र-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना–पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् अहम् आंग्लभाषया वाद-विवादप्रतियोगितायां भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् कारणात् चरित्र-प्रमाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते।
अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः। सधन्यवादम्।

दिनांक : 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
चरित्र-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जयपुर।

विषय – चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं अंग्रेजी भाषा की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ। इस कारण से चरित्र-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है।
अतः प्रार्थना है कि आप चरित्र-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुग्रहीत करेंगे।

दिनांक : 7-9-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
अनूप
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 5.
मातुः सेवार्थं दिनत्रयस्य अवकाशाय प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(माता की सेवा के लिए तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
………….
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
………………. उच्च माध्यमिक-विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य ……. प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
………….. निवेदनम् अस्ति यत् …………… गतदिवसात् शीतज्वरेण ………… अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयं …………….. न शक्नोमि। अतः कृपया 7-7-20_ _ दिनांकतः 9-7-20_ _दिनांक ………… दिनत्रयस्य अवकाशं……………. अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनांकः 7-7-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्य
रमनः
(नवम् कक्षा)

[संकेतसूची/मजूषा-मम, माम् पर्यन्तम्, माता, अवकाशार्थम्, राजकीय, आगन्तुम, पीडिता, स्वीकृत्य, सविनयम्, सेवायाम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः
प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम माता गतदिवसात् शीतज्वरेण पीडिता अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयम् आगन्तुं न शक्नोमि। अतः कृपया 7-7-20_ _ दिनांकत: 9-7-20_ _ दिनांकपर्यन्तं दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-7-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रमनः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
अजमेर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र ।

महोदय,

सविनय निवेदन है कि मेरी माताजी कल से बुखार से पीड़ित हैं। इस कारण मैं विद्यालय नहीं आ सकता हूँ। कृपया
दिनांक 7-7-20_ _ से दिनांक 9-7-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझे अनुगृहीत करेंगे।
सधन्यवाद।

दिनांक 7-7-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रमन
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 6.
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः चितपदैः पूरयत।
(स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
…………….।

विषयः – ………… प्रमाण-पत्रं प्राप्तं प्रार्थना-पत्रम।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र ……………. अस्ति। …………… तस्य स्थानान्तरणं ……………. अभवत्। मम ………………… मम पित्रा सह भरतपुरम् गमिष्यति। अहम् अस्मात् ………………. अष्टमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, नवमकक्षायाम् अहं भरतपुरे ………………..। अतः मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं…………….. अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति।

सधन्यवादम्।
दिनांक 6 – 4 – 20_ _

…………….. शिष्यः
रामकुमारः
(नवम् कक्षा)

[सकत सची/मञ्जूषा-स्थानान्तरणम्, लिपिकः, पठिष्यामि, अधुना, दौसानगरम, भरतपुरम, परिवारः,प्रदाय, विद्यालयात, भवदाज्ञाकारी]

उत्तरम् :

स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
दौसानगरम्।

विषय – स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र लिपिकः अस्ति। अधुना तस्य स्थानान्तरणं भरतपुरम् अभवत्। मम परिवारः मम पित्रा सह भरतपुरं गमिष्यति। अहम् अस्मात् विद्यालयात् अष्टमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, नवमकक्षायाम् अहं भरतपुरे पठिष्यामि। अतः मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति ।
सधन्यवादम्।
दिनांक 6-4-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रामकुमारः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
दौसानगर।

विषय – स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी यहाँ लिपिक हैं। अब उनका स्थानान्तरण भरतपुर हो गया है। मेरा परिवार मेरे पिताजी के साथ भरतपुर जाएगा। मैंने इस विद्यालय से कक्षा आठ उत्तीर्ण की है, कक्षा नवमीं में मैं भरतपुर में पढूंगा। अतः आप स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।
सधन्यवाद।
दिनांक 6-4-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रामकुमार
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 7.
क्रीडायाः सम्यंग व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(खेलकूद की उचित व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः …………….. महोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः
जोधपुरम्।

विषयः – ………… सम्यग् व्यवस्था प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं………….”क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न……………….। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि…………… रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां…………..”अस्मान् अनुग्रहणन्तु ……………..।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(नवम् कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-श्रीमन्तः, अस्मभ्यम्, प्रधानाचार्यमहोदयाः, विद्यालये, विधाय, वर्तते, क्रीडायाः।]
उत्तरम् :

क्रीडाव्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक-विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं विद्यालये क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न वर्तते। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि अस्मभ्यं रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां विधाय अस्मान् अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः। .

सधन्यवादम्।
दिनांक 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(नवम् कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
खेलकूद-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय – खेलकूद की उचित व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में खेल की व्यवस्था ठीक नहीं है। अध्ययन के साथ ही खेलना भी हमको अच्छा लगता है। अतः खेल की समुचित व्यवस्था कराकर आदरणीय आप हमारे ऊपर अनुग्रह करें।

सधन्यवाद।
दिनांक 15-8-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
हरीश
(कक्षा नवमी)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 8.
विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(विद्यालय में स्वच्छता की व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
…………
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये………. व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् …………. विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छताया: ………… वर्तते। अस्मिन् ………….. छात्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता: जायन्ते। ………………… अस्माकं मनांसि न ……………….. । अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित व्यवस्थायै प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।

दिनांक: 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्तः ………..
……………..

[संकेत सूची/मञ्जूषा-छात्रवृन्दः, कर्मकरान्, अध्ययने, वातावरणे, रमन्ते, साम्राज्यम, सेवायाम्, अस्माकम्, स्वच्छतायाः]
उत्तरम् :

स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् अस्माकं विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छतायाः साम्राज्यं वर्तते। अस्मिन् वातावरणे छत्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता जायन्ते। अध्ययने अस्माकं मनांसि न रमन्ते। अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित व्यवस्थायै कर्मकरान् प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।
दिनांकः 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्तः छात्रवृन्दः
कक्षा नवम्

हिन्दी-अनुवाद
स्वच्छता-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राज. सीनि. सै. विद्यालय, श्रीकरनपुर।

विषय – विद्यालय में स्वच्छता-व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि हमारे विद्यालय में इस समय अस्वच्छता का साम्राज्य है। इस वातावरण में छात्र और शिक्षक रोगग्रस्त हो जाते हैं। अध्ययन में हमारा मन नहीं लगता है। अतः कृपया स्वच्छता की समुचित व्यवस्था हेतु श्रीमान् जी कर्मचारियों को प्रेरित करें।

दिनांक 10-8-20_ _

आपके आज्ञाकारी
समस्त छात्रगण
कक्षा नवमी

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 9.
शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(शैक्षिक शिविर के आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्चमाध्यमिक ……………..,
बीकानेरम्।

विषयः – शैक्षिक ………’आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनय …………….. यद् अस्मविद्यालये ……….. पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि ……….. तृप्ति न एति। अतःप्रार्थयामो ………….. यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

दिनांक 16-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणः…………
नवमीकक्षास्थाः छात्राः

[संकेत सूची/मज्जूषा-निवेद्यते, वयम्, शिक्षण व्यवस्था, विद्यालयः, शिविरस्य, शिष्याः, अस्माकं, आयोज्य, ज्ञान-पिपासा।]
उत्तरम् :

शैक्षिक शिविर आयोजनार्थ प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः
राजकीय-उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
बीकानेरम्

विषयः – शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यद् अस्मविद्यालये शिक्षण-व्यवस्था पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि अस्माकं ज्ञान-पिपासा तृप्ति न एति। अतः प्रार्थयामो वयं यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् आयोज्य अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

दिनांकः 11-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणः शिष्याः
नवमी कक्षास्थाः छात्राः

हिन्दी-अनुवाद
शैक्षिक शिविर-आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बीकानेर।

विषय – शैक्षिक शिविर के आयोजन हेतु प्रार्थना-पत्र ।

महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण व्यवस्था पूर्ण सन्तोषजनक है। फिर भी हमारी ज्ञान-पिपासा तृप्त नहीं हो पाती है। अतः हम सभी प्रार्थना करते हैं कि हमारे लिए 15 दिन का एक शैक्षिक शिविर श्रीमान् आप आयोजित कर अनुगृहीत करें।
दिनांक: 16-7-20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा 9 के छात्र

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 10.
नगरपालिकाप्रशासकाय प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पुरयत।
(नगरपालिका प्रशासक के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

दिनाङ्कः 11-9-20_ _

प्रेषक:,
प्रह्लाद चावला, …………….
सुभाषवसतिः, झालावाड़म्।
प्राप्तकर्ता –
श्रीमन्तः ………………. प्रशासकमहोदयाः,
नगरपालिका, झालावाड़म्।

विषयः – सुभाषवसत्याः स्वच्छता ………….।

महोदयाः,
निवेदनमस्ति यद् अस्माकं ‘सुभाषवसतिः’ नाम्नि…………….. स्वच्छताकार्यं नैव क्रियते। अनेन”……………”यत्र-तत्र अस्वच्छवस्तूनाम् अनियतप्रसरणं…………..। अनेन विविध…………”प्रसारस्य आशंका अस्ति।
अतएव प्रार्थ्यते स्वच्छताकार्ये ………………… कर्मकरान् स्वच्छतासम्पादनार्थम् आदिशतु। ……………. भवान् समुचितां व्यवस्था करिष्यति।

…………….
(प्रह्लाद चावला)
…………….

[संकेत सूची/मञ्जूषा – पार्षदः, पार्षदः नगरपालिका, कारणेन, उपनगरे, सम्पादनार्थम्, भवति, रोगाणाम्, निवेदक:, नियुक्तान, आशासे]
उत्तरम् :

स्वच्छतासम्पादनाय प्रार्थना-पत्रम्

दिनांक : 11-9-20_ _.

प्रेषकः,
प्रहलाद चावला, पार्षदः,
सुभाषवसतिः, झालावाड़म्।,
प्राप्तकर्ता
श्रीमन्तः नगरपालिकाप्रशासकमहोदयाः,
नगरपालिका, झालावाड़म्।

विषयः – सुभाषवसत्याः स्वच्छता-सम्पादनार्थम्।

महोदयाः,
निवेदनमस्ति यद् अस्माकं ‘सुभाषवसति:’ नाम्नि उपनगरे स्वच्छताकार्यं नैव क्रियते। अनेन कारणेन यत्र-तत्र अस्वच्छवस्तुनाम अनियतप्रसरणं भवति। अनेन विविध रोगाणां प्रसारस्य आशंका अस्ति।
अतएव प्रार्थ्यते स्वच्छताकार्ये नियुक्तान् कर्मकरान् स्वच्छतासम्पादनार्थम् आदिशतु। आशासे, भवान् समुचितां व्यवस्थां करिष्यति।

निवेदकः
(प्रह्लाद चावला)
पार्षदः

हिन्दी-अनुवाद
स्वच्छता-सम्पादन के लिए प्रार्थना-पत्र

दिनाङ्कः 11-9-20

प्रेषक –
प्रहलाद चावला, पार्षद,
सुभाष कॉलोनी, झालावाड़।
प्राप्तकर्ता –
श्रीमान् नगरपालिका प्रशासक महोदय,
नगरपालिका, झालावाड़।

विषय – सुभाष बस्ती में सफाई कराने के क्रम में।

महोदय,
निवेदन है कि हमारी सुभाष बस्ती नाम की कॉलोनी में सफाई का कार्य नहीं किया जाता है। इस कारण से इधर-उधर गन्दी वस्तुओं का फैलाव होता है जिससे विभिन्न रोगों के फैलने की आशंका है।
इसलिए प्रार्थना है कि सफाई कार्य में नियुक्त कर्मचारियों को सफाई करने के लिए आदेश दें। आशा है आप उचित व्यवस्था करेंगे।

निवेदक
(प्रहलाद चावला)
पार्षद

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 11.
अध्ययने परिश्रमं हेतु अनुजाय पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(अध्ययन में परिश्रम हेतु छोटे भाई के लिए पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

दौसातः
दिनांक : 9-10-20_ _

प्रिय अशोकः।
……………
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
आवयोः माता ……………. सूचयति यत् तव मनः………… पूर्ववत् न रमते। प्रायेण ………… एव संलग्नः तिष्ठसि त्वम्। इदं तु महत् ………………… अस्ति। अयं ते ……………… निर्माणकालः, अतः कथञ्चिदपि …………… लक्ष्यात् न विरन्तव्यम्। अध्ययनमेव तव ………………. उन्नतं करिष्यति।

चि. अशोकः उपाध्यायः
……………. (अजयमेरु:)

………………………….
पद्माकरः उपाध्यायः

[संकेत सूची/मजूषा – शुभेच्छुः, जीवनम्, अशोभनम्, अध्ययने, जीवनस्य, क्रीडने, चिरंजीव, स्वपत्रेण, आत्मनः, किशनगढ़ः]
उत्तरम् :

अध्ययने परिश्रमार्थं अनुजाय पत्रम्

दौसातः
दिनांकः 9-10-20_ _

प्रिय अशोक!
चिरंजीव।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
आवयोः माता स्वपत्रेण सूचयति यत् तव मनः अध्ययने पूर्ववत् न रमते । प्रायेण क्रीडने एव संलग्नः तिष्ठसि त्वम्। इदं तु महत् अशोभनम् अस्ति। अयं ते जीवनस्य निर्माणकालः, अतः कथञ्चिदपि आत्मनः लक्ष्यात् न विरन्तव्यम्। अध ययनमेव तव जीवनम् उन्नतं करिष्यति।

चि. अशोकः उपाध्यायः
किशनगढ़ः (अजयमेरुः)

शुभेच्छुः
पद्माकरः उपाध्यायः

हिन्दी-अनुवाद
अध्ययन में परिश्रम के लिए छोटे भाई के लिए पत्र

दौसा
दिनांक : 9-10-20_ _

प्रिय अशोक,
चिरंजीवी
बनो।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।
हमारी (दोनों की) माताजी अपने पत्र में सूचित करती हैं कि तुम्हारा मन अध्ययन में पूर्व की भाँति नहीं लग रहा है। तुम प्रायः खेलने में ही संलग्न रहते हो। यह तो बहुत बुरी बात है। यह तुम्हारे जीवन के बनाने का समय है, अतः किसी भी प्रकार अपने लक्ष्य से नहीं भटकना है। अध्ययन ही तुम्हारे जीवन को उन्नत करेगा।
चि. अशोक उपाध्याय
किशनगढ़ (अजमेर)

शुभेच्छु
पद्माकर उपाध्याय

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 12.
सदाचारपालनाय अनुजं प्रति पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(सदाचार का पालन करने के लिए छोटे भाई के प्रति पत्र को मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

ब्यावरतः (अजयमेरुतः)
दिनांकः 3-9-20_ _

प्रिय अनुज !
चिरंजीव।
अत्र ……………. तत्रास्तु।
तव एकेन मित्रेण……………… यत् स्वशिक्षकैः सह तव ………….. शिष्टः न अस्ति। ……………… अपि त्वम् असाधुः संवृत्तः………………। इदं ………………. सदाचारस्तु …………… मूलमन्त्रोऽस्ति। कथितं च ……………. परमो धर्मः इति। आशासे यत् त्वं मम …………….. अनुसरिष्यसि।

………….
राजेन्द्रनाथः

चि. सुरेन्द्रनाथः, कक्षा 9 (स)
राजकीय, सी., सै., स्कूल, बाड़मेरः।

[संकेत सूची/मजूषा-सूचितम्, असि, कुशलम्, परामर्शम, नौचितम्, जीवनस्य, सहपाठिषु, व्यवहारः, आचारः, तवाग्रजः]
उत्तरम् :

सदाचारपालनार्थ अनुजाय पत्रम्

ब्यावरतः (अजयमेरुतः)
दिनांक: 3-9-20_ _

प्रिय अनुज !
चिरंजीव।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।

तव एकेन मित्रेण सूचितं यत् स्वशिक्षकैः सह तव व्यवहारः शिष्टः न अस्ति। सहपाठिषु अपि त्वम् असाधुः संवृत्तः असि। इदं नोचितम्। सदाचारस्तु जीवनस्य मूलमन्त्रोऽस्ति। कथितं च ‘आचारः परमो धर्मः’ इति। आशासे यत् त्वं मम परामर्शम् अनुसरिष्यसि।

तवाग्रजः
राजेन्द्रनाथ:

चि. सुरेन्द्रनाथः, कक्षा 9 (स)
राजकीय, सी., सै., स्कूल, बाड़मेरः।

हिन्दी-अनुवाद
सदाचार का पालन करने हेतु छोटे भाई को पत्र

ब्यावर (अजमेर)
दिनांक: 3-9-20_ _

प्रिय अनुज,
चिरंजीवी बनो।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।
तुम्हारे एक मित्र ने सूचित किया है कि अपने शिक्षकों के साथ तुम्हारा व्यवहार शोभनीय नहीं है। सहपाठियों के प्रति भी तुम बुरे बने हुए हो। यह ठीक नहीं है। सदाचार तो जीवन का मूल मन्त्र है और ‘ ही परम धर्म’ कहा गया है। आशा करता हूँ कि तुम मेरे परामर्श का अनुसरण करोगे।

चि. सुरेन्द्रनाथ कक्षा 9 (स)
रा., सी., सै., स्कूल, बाड़मेर।

तुम्हारा बड़ा भाई
राजेन्द्रनाथ

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 13.
मित्रं प्रति वर्धापनपत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(मित्र के प्रति बधाई पत्र को मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

……………
दिनांक: 17-10-20_ _

प्रिय सुहन्महेन्द्रनाथ !
सप्रेम हरिस्मरणम्।
अत्र…………….तत्रास्तु।
तव स्नेह-पत्रं मया ………… अधिगतम्। तव उत्साहवर्धकैः …………….. अहम् अनुगृहीतोऽस्मि। त्वादृशानां …………. प्रेरणैव मम ……………. कारणम्। स्वाध्याये ……………. एकचित्ततया संलग्नोऽहं ……………… श्रेष्ठ ……….. प्रति आश्वस्तोऽस्मि। तव प्रगतिम् …………….. च कामयन्।

प्रतिष्ठायाम्,
श्रीमहेन्द्रनाथः,
माउण्ट आबू।

तव मित्रम्
जगन्नाथः

[संकेतसूची/मञ्जूषा-पुनरपि, अनामयम्, सिरोहीतः, स्वाध्याये, वचनैः, अद्यैव, कुशलम्, मित्राणाम्, सफलतायाः]

मित्रं प्रति वर्धापनपत्रम्

सिरोहीतः
दिनांक: 17-10-20_

उत्तरम् :
प्रिय सुहृन्महेन्द्रनाथ!
सप्रेम हरिस्मरणम्।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
तव स्नेह-पत्रं मया अद्यैव अधिगतम्। तव उत्साहवर्धकैः वचनैः अहम् अनुगृहीतोऽस्मि। त्वादृशानां मित्राणां प्रेरणैव मम सफलतायाः कारणम्। स्वाध्याये एकचित्ततया संलग्नोऽहं पुनरपि श्रेष्ठां सफलता प्रति आश्वस्तोऽस्मि। तव प्रगतिम् अनामयं च कामयन्।

प्रतिष्ठायाम्
श्री महेन्द्रनाथः,
माउण्ट आबू।

तव मित्रम्
जगन्नाथः

हिन्दी-अनुवाद
मित्र को बधाई का पत्र

सिरोही
दिनांक: 17-10-20_ _

प्रिय मित्र महेन्द्रनाथ !
सप्रेम हरिस्मरण।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।
तुम्हारा स्नेहपूर्ण पत्र मुझे आज ही प्राप्त हुआ। तुम्हारे उत्साह बढ़ाने वाले वचनों से मैं अनुगृहीत हूँ। तुम जैसे मित्रों की प्रेरणा ही मेरी सफलता का कारण है “माध्याय में एकचित्त होकर मैं पुनः भी श्रेष्ठ सफलता के प्रति आश्वस्त हूँ। तुम्हारी प्रगति और स्वास्थ्य की कामना करता हुआ।
प्रतिष्ठा में,
श्री महेन्द्रनाथ,
माउण्ट आबू।

तुम्हारा मित्र
जगन्नाथ

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 14.
मित्रं प्रति वर्धापनपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(मित्र के बधाई पत्र को मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए)।

नीमस्य थाना …………
दिनांक: 4-7-20_ _

अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य।
…………. नमस्कारः!

अत्र सर्वं कुशलम्।
……………. तव कुशल-पत्रं प्राप्तम्। त्वं प्रथम-श्रेण्या ……….. उत्तीर्णां कृत्वा स्वजनपदे प्रथम ………. अधिगतवान् इति ……………. विषयः। तव ……….. सर्वथा साधुवादार्हः। स्वपितृभ्यां मम ……………. निवेदय।

तव स्निग्धं …….
हेनरी

श्री डेविड विल्सन,
आर. के. कॉलोनी, भीलवाड़ा।

[संकेतसूची/मञ्जूषा-मित्रम्, स्थानम्, सीकरतः, प्रणामम्, प्रयासः, परीक्षाम, हर्षस्य, सप्रेम, अद्यैव, प्रतिष्ठायाम्।]
उत्तरम् :

मित्रं प्रति वर्धापनपत्रम्

नीमस्य थाना (सीकरतः)
दिनांक: 4-7-20_ _

अभिन्नहृदय सुहद्वर्य।
सप्रेम नमस्कारः !
अत्र सर्वं कुशलम्।
अद्यैव तव कुशल-पत्रं प्राप्तम्। त्वं प्रथम-श्रेण्यां परीक्षाम् उत्तीर्णां कृत्वा स्वजनपदे प्रथमं स्थानम् अधिगतवान् इति हर्षस्य विषयः। तव प्रयासः सर्वथा साधुवादाहः। स्वपितृभ्यां मम प्रणामं निवेदय।

प्रतिष्ठायाम्,
श्री डेविड विल्सन,
आर. के. कालोनी, भीलवाड़ा।

तव स्निग्धं मित्रम्
हेनरी

हिन्दी-अनुवाद
मित्र को बधाई का पत्र

नीम का थाना (सीकर)
दिनांक:4-7-20_ _

अभिन्न-हृदय मित्रवर !
सप्रेम नमस्ते।
यहाँ सब कुशल है।
आज ही तुम्हारा कुशलपत्र प्राप्त हुआ। तुमने प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण करके अपने जनपद (जिला) में प्रथम स्थान प्राप्त किया, यह हर्ष की बात है। तुम्हारा प्रयास पूर्णरूप से साधुवाद (शाबाशी) दिये जाने योग्य है। अपने माता-पिता के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करना।

प्रतिष्ठा में,
श्री डेविड विल्सन,
आर. के. कॉलोनी, भीलवाड़ा।

तुम्हारा प्रिय मित्र
हेनरी

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 15.
मित्रं प्रति अभिनन्दनपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(मित्र के प्रति अभिनन्दन पत्र को मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
अभिन्नहदय सुहृद्वर्य!
……………… नमस्कारः।

जयपुरतः
दिनांक: 1-1-20_ _

अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।
…………. तव अभिनन्दनपत्रं प्राप्तम्। अहमपि ………. मंगलमयी कामना ……………. इदं नववर्ष ……….. भूयातं। स्वपितृभ्या ………… निवेदय।
……………
श्री रमेशचन्द्रः पाराशरः,
रणजीत नगर कॉलोनी, भरतपुरम्।

प्रेषकः
तव स्निग्धं मित्रम्
मनोज:

[संकेतसूची/मञ्जूषा-सप्रेम, तुभ्यं, मम, अभिनन्दनपत्रं, अद्यैव, नववर्षस्य, मंगलमयं, सुखदं, सौभाग्यकरं, प्रत्यर्पिता, । करोमि, तुभ्यं, च, मम, प्रणाम्, प्रतिष्ठायाम्, भूयात्, मनोजः]
मित्राय नववर्षस्य अभिनन्दनपत्रम्
उत्तरम् :

जयपुरतः
दिनांकः 1-1-20_ _

अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य!
सप्रेम नमस्कारः।

अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।
अद्यैव तव अभिनन्दनपत्रं प्राप्तम्। अहमपि तुभ्यं नववर्षस्य मम मंगलमयी कामनां प्रत्यर्पितां करोमि। इदं नववर्ष . तुभ्यं मंगलमयं, सुखदं सौभाग्यकरं च भूयात्। स्वपितृभ्यां मम प्रणामं निवेदय।

प्रेषकः
तव स्निग्धं मित्रम्
मनोजः

प्रतिष्ठायाम्,
श्री रमेशचन्द्रः पाराशरः,
रणजीत नगर कॉलोनी, भरतपुरम्।

हिन्दी-अनुवाद
मित्र के लिए नववर्ष का अभिनन्दन-पत्र

जयपुर
दिनांक : 1-1-20_ _

अभिन्न-हृदय मित्रवर!
सप्रेम नमस्ते।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।

आज ही तुम्हारा अभिनन्दन पत्र प्राप्त हुआ। मैं भी तुम्हारे लिए नववर्ष की मेरी मंगलमयी कामना प्रेषित कर रहा हूँ। यह नववर्ष तुम्हारे लिए मंगलमय, सुख देने वाला और सौभाग्यदायक होवे। अपने माता-पिता के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करना।

प्रतिष्ठा में,
श्री रमेशचन्द्र पाराशर,
रणजीत नगर कॉलोनी, भरतपुर।

प्रेषक
तुम्हारा प्रिय मित्र
मनोज

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 16.
अग्रज प्रति वर्धापनपत्रम् मञ्जूषायां प्रदत्तपददैः पूरयत।
(बड़े भाई को बधाई का पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)

रतनगढ़तः
दिनांक : 27-3-20_ _

……………..
सम्मान्य बन्धुवर्य!
सादरं वन्दे।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।

प्राप्तं भवतः ………………. अद्यैव। ह्य::……………. अस्माकं परीक्षा-फलं……………….. । भवतः आशीर्वादात इयं ………………… मया प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णा। अंक-पत्रे प्राप्ते सति सविस्तारं ………….।

…………..
रामेश्वरदासः

[संकेतसूची/मजूषा-कृपापत्रम्, परिषदा, घोषितम्, लेखिष्यामि, भवतः अनुजः, सेवायाम्, परीक्षा]
उत्तरम् :

अग्रज प्रति वर्धापनपत्रम्

रतनगढ़तः
दिनांक 27-3-20_ _

सेवायाम्,
सम्मान्य बन्धुवर्य!
सादरं वन्दे।
अत्र कुशलं तत्रास्तु!
प्राप्तं भवतः कृपापत्रम् अद्यैव। ह्यः परिषदा अस्माकं परीक्षाफलं घोषितम्। भवतः आशीर्वादात् इयं परीक्षा मया प्रथमश्रेण्या उत्तीर्णा। अंक-पत्रे प्राप्ते सति सविस्तारं लेखिष्यामि।

भवतः अनुजः
रामेश्वरदासः

हिन्दी-अनुवाद
बड़े भाई को बधाई का पत्र

रतनगढ़
दिनांक : 27-3-20_ _

सेवा में,
मान्य बन्धुवर!
सादर नमस्ते।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।

आज ही आपका कृपापत्र प्राप्त हुआ। कल परिषद् ने हमारा परीक्षाफल घोषित किया है। आपके आशीर्वाद से यह परीक्षा मैंने प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली है। अंक-सूची प्राप्त होने पर विस्तारपूर्वक लिखेंगा।

आपका छोटा भाई
रामेश्वर दास

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 17.
मित्रं प्रति अभिनन्दनपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(मित्र को अभिनन्दन पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य!
………………. नमस्कारः।
अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।

रामगढ़ः (अलवरतः)
दिनांक: 7-7-20_ _

अहम् अद्य अति ….. अनुभवामि। इदं मम ………. अभिनन्दनपत्रम् अस्ति। अयं पर्वः ………. सौभाग्यदायकः, समृद्धिकरः मंगलकारकःच ……………। स्वपितृभ्यां…………निवेदय।
प्रतिष्ठायाम्
श्री राधाकृष्णः श्रोत्रियः,
आदर्शनगर कॉलोनी, जयपुरम्।

प्रेषक:
तव स्निग्धं …………
…………….. वशिष्ठः

[संकेतसूची/मञ्जूषा-मधुरमोहनः, सप्रेम, प्रसन्नतां, दीपमालिका, भूयात्, पर्वः तुभ्यं, मम प्रणामं, मित्रम्]
उत्तरम् :

मित्राय दीपमालिका अभिनन्दनपत्रम्

रामगढ़ः (अलवरतः)
दिनांक: 7-7-20_ _

अभिन्नहृदय सुहृद्वर्य!
सप्रेम नमस्कारः।
अत्र कुशलं तत्राऽस्तु।
अहम् अद्य अति प्रसन्नताम् अनुभवामि। इदं मम दीपमालिका अभिनन्दनपत्रम् अस्ति। अयं पर्वः तुभ्यं सौभाग्यदायकः, समृद्धिकरः मंगलकारकः च भूयात्। स्वपितृभ्यां मम प्रणामं निवेदय।

प्रतिष्ठायाम्,
श्री राधाकृष्णः श्रोत्रियः,
आदर्शनगर कालोनी, जयपुरम्।

प्रेषकः
तव स्निग्ध मित्रम्
मधुरमोहनः वशिष्ठः

हिन्दी-अनुवाद
मित्र के लिए दीपमालिका अभिनन्दन पत्र

अभिन्न-हृदय मित्रवर!
सप्रेम नमस्ते।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशलता हो।

मैं आज अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। यह मेरा दीपमालिका अभिनन्दनपत्र है। यह उत्सव तुम्हारे लिए सौभाग्य देने वाला, समृद्धि कराने वाला और मंगलकारी होवे। अपने माता-पिता के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करना।

प्रतिष्ठा में,
श्री राधाकृष्ण श्रोत्रिय,
आदर्श नगर कॉलोनी, जयपुर।

प्रेषक
तुम्हारा प्रिय मित्र
मधुरमोहन वशिष्ठ

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्नः 18.
प्रधानाध्यापिकां प्रति अवकाशहेतोः प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(प्रधानाध्यापिका को अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
…………….”माध्यमिकविद्यालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनय ………….. मम ज्येष्ठभगिन्या: …………. दिनद्वयं पश्चात् …………….. । एतत्कारणात् दिनद्वयं ……………… अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न ……………..
अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ तः 17-7-20_ _ पर्यन्तं …………… अवकाशं ……………… माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-नवमी (अ)

[संकेतसूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, भविष्यति, पाणिग्रहणसंस्कारः, शक्नोमि, निवेदनमस्ति, यावद, राजकीयः बालिका, स्वीकृत्य]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
राजकीयः बालिका माध्यमिकविद्यालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेदनमस्ति यत् मम ज्येष्ठभगिन्याः पाणिग्रहणसंस्कारः दिनद्वयं पश्चात् भविष्यति। एतत्कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।
अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ तः 17-7-20_ _ पर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-नवमी (अ)

हिन्दी अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमती प्रधानाध्यापिका महोदया,
राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।
महोदया,
सविनय निवेदन है कि मेरी बड़ी बहिन का विवाह-संस्कार दो दिन बाद होगा। इस कारण दो दिन तक मैं अपनी कक्षा में उपस्थित होने में असमर्थ हूँ।
इसलिए निवेदन है कि दिनांक 16-7-20_ _ से 17-7-20_ _ तक दो दिनों का अवकाश स्वीकृत करके श्रीमती मुझे अनुगृहीत करेंगी।

सधन्यवाद
दिनांक : 14-7-20_ _ ।

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-9 (अ)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न 19.
भवान् दिवाकरः नवम कक्षायाः छात्रः। आदर्श माध्यमिक विद्यालये पठन्ति। आधारकार्ड प्राप्तुं अध्ययन प्रमाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते। अतः प्रधानाध्यापकाय अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना पत्रम् लिखत।
(आप दिवाकर नौवीं कक्षा के छात्र हैं। आदर्श माध्यमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए अध्ययन-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है। अतः प्रधानाध्यापक से अध्ययन प्रमाणपत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।)
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदया:
आदर्श माध्यमिक विद्यालयः
…………….।

विषयः – अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहं ई-मित्रात्……………प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य……………प्रमाण-पत्रम् अपेक्षते। अहं……………कक्षायाः छात्रः अस्मि। अत:………….निरन्तराध्ययनस्य………….प्रदाय………..माम्………. ।

…………..
दिनांक : 6.3.20_ _

भवताम्………….शिष्यः
दिवाकरः
(नवमी कक्षा)

[सङ्केत-सूची/मञ्जूषा-आधारकार्डम्, आज्ञाकारी, धौलपुरम्, अध्ययन, नवम अनुगृह्णन्तु, मह्यम्, सधन्यवादम्, श्रीमन्तः प्रमाण-पत्रम्]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
धौलपुरम्।

विषय – अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम् ।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहम् ई-मित्रात् आधारकार्ड प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य अध्ययन-प्रमाण पत्रम् अपेक्षते। अहं नवम कक्षायाः छात्रः अस्मि। अत: मह्यम् निरन्तराध्ययनस्य प्रमाण-पत्रम् प्रदाय अनुगृह्णन्तु माम् श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्
दिनाङ्कः 6.3.20 –

भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः
दिवाकर
(नवमी कक्षा)

हिन्दी अनुवाद

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाध्यापक महोदय,
धौलपुर

विषय-अध्ययन प्रमाण-पत्र प्राप्ति हेतु प्रार्थना-पत्र

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं ई-मित्र से आधार कार्ड प्राप्त करना चाहता हूँ। इसके लिए विद्यालय से अध्ययन प्रमाण-पत्र की अपेक्षा है। मैं नौवीं कक्षा का छात्र हूँ। अतः अध्ययनरत होने का प्रमाण-पत्र देकर श्रीमान मुझे अनुग्रहीत करें।

धन्यवाद सहित
दिनांक : 06-03-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
दिवाकर
(कक्षा नौ)

JAC Class 9 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

प्रश्न: 20.
यूयं राजकीय-माध्यमिक विद्यालय लखनपुरस्य नवम्-कक्षायाः छात्राः। स्वकीयं प्रधानाध्यापकं प्रति एकं प्रार्थना पत्रं शैक्षणिक भ्रमणार्थम् अनुमति हेतुः लिखत। (तुम राजकीय माध्यमिक विद्यालय लखनपुर के नौवीं कक्षा के छात्र है। अपने प्रधानाध्यापक के लिए एक प्रार्थना-पत्र शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति के लिए लिखिए।)
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापकाः महोदया:
राजकीयः माध्यमिकः विद्यालयः
लखनपुरम्

विषय – शैक्षिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।

महोदयाः,
सविनय………..यद् अस्माकं………शिक्षणस्तु………..प्रवर्तते। वयं सर्वे…………स्मः। तथापि अस्माकं……….तृप्तिः न भवति। अतः निवेदयामः………यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं……………आयोजानीयम् कक्षायाः सर्वे………. एवमेव इच्छन्ति। वयमास्वस्थाः स्मः यत्………..प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्त।

दिनाङ्क : 18.11.20_ _

भवदाज्ञाकारिणः………
नवम-कक्षास्थाः

[मञ्जूषा – छात्राः, वयम्, शिष्या, अनुमति, शैक्षिक-भ्रमणम्, सन्तुष्टाः, निवेदनम्, विद्यालये, सम्यक्, ज्ञान-पिपासायाः।]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
राजकीयः माध्यमिक: विद्यालयः
लखनपुरम्।

विषय – शैक्षणिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयम् निवेदनम् यद् अस्माकं विद्यालये शिक्षणस्तु सम्यक् प्रवर्तते। वयं सर्वे सन्तुष्टाः स्मः। तथापि अस्माकं ज्ञान पिपासायाः तृप्तिः न भवति। अतः निवेदयामः वयं यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं शैक्षिक-भ्रमणम् आयोजनीयम्।
कक्षायाः सर्वे छात्रा: एवमेव इच्छन्ति। वयम् आस्वस्थाः स्मः यतु अनुमति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः।

दिनांक : 18.12.20

भवदाज्ञाकारिण: शिष्याः
नवम-कक्षास्थाः

हिन्दी अनुवाद

सेवा में
श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय
राजकीय माध्यमिक विद्यालय,
लखनपुर।

विषय – शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण तो अच्छी तरह चल रहा है। फिर भी हमारे ज्ञान की प्यास तृप्ति को प्राप्त नहीं हो रही है। अत: हम निवेदन करते हैं कि इस तृप्ति के लिए एक. सप्ताह का एक शैक्षणिक-भ्रमण आयोजित किया जाय। कक्षा के सभी छात्र ऐसा ही चाहते हैं। हमें विश्वास है कि आप अनुमति देकर हमें अनुग्रहीत करेंगे।

दिनांक : 18.11.20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा नौ

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् समास प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

समासशब्दस्य अर्थः – “समासशब्दस्य अर्थः संक्षिप्तीकरणमिति अस्ति।” (समास शब्द का अर्थ संक्षेप करना है।)

समासस्य परिभाषा – समसनं समासः अथवा अनेकपदानाम् एक पदीभवनं समासः। अर्थात् यदा अनेकपदानि मिलित्वा एक पदं जायन्ते तदा सः समासः इति कथ्यते। (संयुक्त करने को समास कहते हैं अथवा अनेक पदों का मिलकर एक पद होना समास है। अर्थात् जब अनेक पदों को मिलकर एक पद बना दिया जाता है तब वह समास कहा जाता है।)

पूर्वोत्तरविभक्तिलोपः – सीतायाः पतिः = सीतापतिः। अस्मिन् विग्रहे सीतायाः इत्यत्र षष्ठीविभक्तिः पति इत्यत्र प्रथमा विभक्तिश्च श्रूयेते। समासे कृते अनयोः द्वयोरपि विभक्त्योः लोपो भवति। तत्पश्चात् सीतापति इति समस्तशब्दात् पुनरपि प्रथमाविभक्तिः क्रियते इत्येव सर्वत्र अवगन्तव्यम्। (सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में ‘सीतायाः’ पद में षष्ठी और ‘पतिः’ इसमें प्रथमा विभक्ति सनी जाती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। इसके बाद ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से फिर प्रथमा विभक्ति की जाती है। इसी प्रकार सभी जगह समझना चाहिए।)
समासयुक्तः समस्तपदं कथ्यते (समासयुक्त शब्द समस्तपद कहा जाता है।) यथा – सीतापतिः।

समस्तशब्दस्य अर्थ बोधितुं यद् वाक्यम् उच्यते तद्वाक्यं विग्रहः इति कथ्यते। (समस्त शब्द का अर्थ जानने के लिए जो वाक्य कहा जाता है वह वाक्य ‘विग्रह’ कहा जाता है।) यथा रमायाः पतिः इति वाक्यं ‘रमापतिः’ शब्दस्य विग्रहः अस्ति ।

समास के होने पर अर्थ में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। जो अर्थ ‘सीता के पति’ (सीतायाः पतिः) इस विग्रह वाक्य का है वही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।

समास का पहला पद ‘पूर्वपद’ तथा दूसरा पद ‘उत्तरपद’ कहलाता है। जब दो या दो से अधिक पदों का मेल करके और बीच की कारक सम्बन्धी विभक्ति को हटाकर एक नवीन पद बनाया जाता है तो उसे समास करना कहते हैं। यथा रामम् आश्रितः = रामाश्रितः।

जब समासयुक्त पद में कारक सम्बन्धी चिह्नों अर्थात् विभक्तियों का निर्देश कर दिया जाता है तो उसे समास का विग्रह करना कहा जाता है। समास के शब्दों में कभी पूर्व पद (पहला शब्द) प्रधान रहता है और कभी उत्तरपद (बाद का शब्द) या अन्य पद प्रधान रहता है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

समासस्यभेदा: – संस्कृतभाषायां समासस्य मुख्यरूपेण चत्वारः भेदा सन्ति। समासे प्रायशः द्वे पदे भवतः – पूर्वपदम् उत्तरपदं च। पदस्य अर्थः पदार्थः भवति। यस्य पदार्थस्य प्रधानता भवति तदनुरूपेण एव समासस्य संज्ञा अपि भवति। यथा प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानः अव्ययीभावः भवति उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः च भवति। तत्पुरुषस्य भेदः कर्मधारयः भवति। कर्मधारयस्य भेदः द्विगुः भवति। प्रायेण अन्यपदार्थप्रधान: बहुव्रीहिः भवति उभयपदार्थ प्रधानः द्वन्द्वः च भवति। एव समासस्य सामान्यरूपेण षड्भेदाः भवन्ति।

(संस्कृत भाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं। समास में प्रायः दो पद होते हैं-पूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ ‘पदार्थ’ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है, उसी के अनुरूप ही समास की संज्ञा भी होती है। जैसे साधारण नियम के अनुसार पूर्व पदार्थ प्रधान अव्ययीभाव होता है और उत्तरपदार्थ प्रधान तत्पुरुष होता है। तत्पुरुष का भेद ‘कर्मधारय’ होता है। कर्मधारय का भेद ‘द्विगु’ होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान बहुव्रीहि होता है और उभय पदार्थ प्रधान ‘द्वन्द्व’ होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छ: भेद होते हैं।

1. अव्ययीभाव समासः

अव्ययीभावस्य परिभाषा -यदा विभक्ति इत्यादिषु अर्थेषु वर्तमानम् अव्ययं पदं सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते असौ. अव्ययीभाव समासो भवति। अथवा इदमत्र अवगन्तव्यम् –

1. अस्य समास्य प्रथमशब्दः अव्ययं द्वितीयश्च संज्ञाशब्दो भवति।
2. अव्ययशब्दार्थस्य अर्था पूर्व पदार्थस्य प्रधानता भवति।
3. समासस्य पद द्वयं मिलित्वा अव्ययं भवति।
4. अव्ययीभावसमासः नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने भवति।

(जब विभक्ति इत्यादि अर्थों में उपस्थिति अव्यय पद सुबन्त के साथ मिलकर नित्य समास होता है, यही अव्ययीभाव समास होता है।

1. समास का प्रथम शब्द अव्यय और दूसरा संज्ञा शब्द होता है।
2. अव्यय पदार्थ अर्थात् पूर्वपदार्थ की प्रधानता होती है।
3. समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं।
4. अव्ययीभाव समास नपुंसकलिंग के एकवचन में होता है। यथा –

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JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

2. तत्पुरुष समासः

तत्पुरुषस्य परिभाषा: – उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः भवति।
तत्पुरुषसमासे प्रायेण उत्तरपदार्थस्य प्रधानता भवति। यथा – राज्ञः पुरुष = राजपुरुषः। अत्र उत्तरपदं पुरुषः अस्ति तस्य एव प्रधानता अस्ति। ‘राजपुरुषम् आनय’ इति उक्ते सति पुरुषः एव आनीयते न तु राजा। तत्पुरुषसमासे पूर्वपदे या विभक्तिः भवति प्रायेण तस्याः नाम्ना एव समासस्य अपि नाम भवति। (तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तरपदार्थ की प्रधानता होती है। यथा-राजः पुरुष = राजपुरुषः। यहाँ पर उत्तर पद पुरुष है उसी की प्रधानता है। राजपुरुषम् आनय यदि यह कहा जाय तो पुरुष को ही लाया जाय न कि ‘राजा’ तत्पुरुष समास के पूर्वपद में जो विभक्ति होती है। प्रायः उसी के नाम से ही समास का नाम भी होता है।) यथा –

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अर्थात् जिस समास में उत्तर पद (बाद में आने वाले वाले पद) की प्रधानता होती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक छह विभक्तियों के आधार पर समास के छह भेद माने गये हैं।
तत्पुरुष समास के प्रमुख तीन भेद हैं –

(क) व्यधिकरण तत्पुरुष – इसके 6 भेद होते हैं –
1. द्वितीया, 2. तृतीया, 3. चतुर्थी, 4. पंचमी, 5. षष्ठी, 6. सप्तमी।

(ख) समानाधिकरण-इसके दो भेद होते हैं –

1. कर्मधारय, 2. द्विगु।

(ग) अन्य भेद-इसके चार भेद होते हैं –
1. अलुक् समास, 2. नब् समास, 3. उपपद् समास, 4. प्रादि समास।

उदाहरणानि –
(i) द्वितीया तत्पुरुष – जिसमें प्रथम पद द्वितीया विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे –

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(ii) तृतीया तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद तृतीया विभक्ति एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे –

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(iii) चतुर्थी तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद चतुर्थी विभक्ति का हो। जैसे –

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(iv) पञ्चमी तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद पञ्चमी विभक्ति का हो। जैसे –

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(v) षष्ठी तत्पुरुष – जिस समास में प्रथम पद षष्ठी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, तो वह षष्ठी तत्पुरुष कहलाता है। जैसे –

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(vi) सप्तमी तत्पुरुष – जहाँ प्रथम पद सप्तमी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, उसे सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे –

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JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

3. कर्मधारयः

कर्मधारयस्य परिभाषा – तत्पुरुषः समानाधिकरण कर्मधारयः।
यदा तत्पुरुषसमासस्य द्वयोः पदयोः एकविभक्तिः अर्थात् समानविभक्तिः भवति तदा सः समानाधिकरणः तत्पुरुषसमासः कथ्यते। अयमेव समासः कर्मधारयः इति नाम्ना ज्ञायते। अस्मिन् समासे साधारणतया पूर्वपदं विशेषणम् उत्तरपदञ्च विशेष्यं भवति। (जब तत्पुरुष समास के दोनों पदों में एक विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। यह ही समास कर्मधारय नाम से जाना जाता है। इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है।)

यथा – नीलम् कमलम् = नीलकमलम्

1. अस्मिन् उदाहरणे नीलम् कमलम् इति द्वयोः पादयोः समानविभक्तिः अर्थात् प्रथमा विभक्तिः अस्ति।
2. अत्र नीलम् इति पदं विशेषणम् कमलम् इति पदञ्च विशेष्यम्। अत एव अयं कर्मधारयः समासः अस्ति।

1. इस उदाहरण में ‘नील कमलम्’ इन दोनों पदों में समान विभक्ति अर्थात् प्रथमा विभक्ति है।
2. यहाँ ‘नीलम्’ यह विशेषण पद और कमलम्’ यह विशेष्य पद है। इसीलिए यह कर्मधारय समास है।
अस्य उदाहरणानि अधोलिखितानि सन्ति – (इसके उदाहरण अधोलिखित हैं-)

(i) विशेषण-विशेष्यकर्मधारयः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 9

(ii) उपमानोपमेय कर्मधारयः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 10

(iii) उपमानोत्तरपदकर्मधारयः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 11

(iv) अवधारणापूर्वपदकर्मधारयः

विशेषणं विशेष्येण समस्यते। अत्र अवधारणार्थं द्योतयितुं विग्रवाक्ये विशेषणात् परम् एव शब्दः प्रयुज्यते। (विशेषण को विशेष्य से परे होने पर। यहाँ अवधारणा के अर्थ में विग्रह वाक्य में विशेषण के बाद एवं शब्द रखते हैं।) यथा –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 12

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

4. द्विगुसमासः

द्विगुसमासस्य परिभाषा – ‘संख्यापूर्वो द्विगु’

‘संख्यापूर्वो द्विगु’ इति पाणिनीयसूत्रानुसारं यदा कर्मधारयसमासस्य पूर्वपदं संख्यावाची उत्तरपदञ्च संज्ञावाची भवति तदा सः ‘द्विगुसमासः’ कथ्यते।
1. अयं समासः प्रायः समूहार्थे भवति।
2. समस्तपदं सामान्यतया नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने अथवा स्त्रीलिङ्गस्य एकवचने भवति।
3. अस्य विग्रहे षष्ठीविभक्तेः प्रयोगः क्रियते।
(‘संख्यापूर्वो द्विगु’ इस पाणिनीय सूत्र के असार जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाची और उत्तर पद संज्ञावाची होता है तब वह द्विगु समास कहा जाता है।
1. यह समास समूह अर्थ में होता है।
2. समस्त पद सामान्यतया नपुंसकलिंग एकवचन में अथवा स्त्रीलिंग एकवचन में होता है।
3. इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 13

5. बहुव्रीहि समासः

बहुव्रीहिसमासस्य परिभाषा-‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहि’

‘यस्मिन् समासे यदा अन्यपदार्थस्य प्रधानता भवति तदा सः बहुव्रीहिसमासः कथ्यते। अर्थात् अस्मिन् समासे न तु पूर्वपदार्थस्य प्रधानता भवति न हि उत्तरपदार्थस्य प्रत्युत द्वौ अपि पदार्थो मिलित्वा अन्यपदार्थस्य बोधं कारयतः। समस्तपदस्य प्रयोगः अन्यपदार्थस्य विशेषरूपेण भवति। (जिस समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् जिस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है न ही उत्तर पदार्थ की प्रधानता है अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण रूप में होता है। यथा-पीतम् अम्बरं. यस्य सः = पीताम्बरः (विष्णुः)

यहाँ ‘पीतम्’ तथा ‘अम्बरम्’ इन दोनों पदों में अर्थ की प्रधानता नहीं है अर्थात् ‘पीलावस्त्र’ इस अर्थ का ग्रहण नहीं होता है, अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का अर्थात् ‘विष्णु’ का बोध कराते हैं। अर्थात् ‘पीताम्बरः’ यह समस्तपदार्थ “विष्णु’ है। इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है। इसके अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं –

(i) समानाधिकार-बहतीहिः यदा समासस्य पर्वोत्तरपदयोः समानविभक्तिः (प्रथमा विभक्तिः) भवति तदा सः समानाधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा –

विग्रहः समस्त पदम्

1. प्राप्तम् उदकं यं सः = प्राप्तोदकः (ग्राम:) [जिसको जल प्राप्त हो गया है ऐसा (गाँव)]
2. हताः शत्रवः येन सः = हतशत्रुः (राजा) [मार दिये हैं शत्रु जिसने, वह (राजा)]
3. दत्तं भोजनं यस्मै सः = दत्तभोजन (भिक्षुकः) दिया गया है भोजन जिसे, वह (भिक्षुक)]
4. पतितं पण यस्मात् सः = पतितपर्णः (वृक्षः) [गिर गये हैं पत्ते जिससे, वह (वृक्ष)]
5. दश आननानि यस्य सः = दशाननः (रावण:) [दस हैं मुख जिसके, वह (रावण)।
6. वीराः पुरुषाः यस्मिन् (ग्राम) सः = वीरपुरुषः (ग्रामः) (वीर पुरुष है जिसमें, वह (गाँव)]
7. चत्वारि मुखानि यस्य सः = चतुर्मुखः (ब्रह्मा) [चार मुख हैं जिसके, वह (ब्रह्मा)]

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहिः – यदा समासस्य पूर्वोत्तरपदयोः भिन्न-विभक्ति भवतः तदा सः व्यधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में अलग-अलग विभक्तियाँ होती हैं तब वह व्याधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 14

(iii) तुल्ययोगे बहुव्रीहिः – अत्र सहशब्दस्य तृतीयान्तपदेन सह समासो भवति।
(यहाँ सह शब्द का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है।) यथा –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 15

(iv) उपमानवाचकबहुव्रीहिः – (उपमानवाचक बहुव्रीहि)। यथा –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 16

6. द्वन्द्वसमासः

द्वन्द्वः समासस्य परिभाषा – ‘चार्थे द्वन्द्वः’
द्वन्द्वसमासे परस्परं साकांक्षयोः पदयोः मध्ये ‘च’ आगच्छति, अतएव द्वन्द्वसमासः उभयपदार्थप्रधानः भवति। यथा-धर्मः च अर्थ: च-धर्मायौँ। अत्र पूर्वपदं धर्म: उत्तरपदम् अर्थ: अनयोः द्वयोः अपि प्रधानता अस्ति । द्वन्द्वसमासे समस्तपदं प्रायशः द्विवचने भवति। [द्वन्द्व समास में परस्पर आकांक्षायुक्त दो पदों के मध्य में ‘च’ आता है, इसलिए द्वन्द्व समास उभय पदार्थ प्रधान होता है। जैसे….धर्मः च अर्थ: च = धर्मार्थौ । यहाँ पूर्व पद धर्मः और उत्तर पद अर्थः इन दोनों की ही प्रधानता है। द्वन्द्व समास में समस्त पद प्रायः द्विवचन में होता है।]

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 17

समाहार (समूहः) अर्थे द्वन्द्वसमासस्य प्रायेण नपुंसकलिङ्ग एकवचने प्रयोगः भवति। यथा –

पाणी च पादौ च एषां समाहारः – पाणिपादम् (हाथ और पैर का समूह)
शिरश्च ग्रीवा च अनयोः समाहारः – शिरोग्रीवम् (सिर और गर्दन का समूह)
रथिकाश्च अश्वारोहाश्च एषां समाहारः – रथिकाश्वरोहम् (रथकार और घुड़सवार का समूह)
वाक् च त्वक् च अनयोः समाहारः – वाक्त्वचम् (वाणी और त्वचा का समूह)
छत्रं च उपानह च अनयोः समाहारः – छत्रोपानहम् (छतरी और जूतों का समूह)

अन्य उदाहरणानि –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 18

अब समस्त पदों का समास विग्रह भी समझें –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 19

अभ्यास 1

वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः

प्रश्न 1.
अव्ययीभाव समासस्य अस्ति-(अव्ययीभाव समास का उदाहरण है-)
(अ) पीताम्बरः
(ब) नीलकमलम्
(स) यथाशक्ति
(द) त्रिलोकी
उत्तरम् :
(स) यथाशक्ति

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

प्रश्न 2.
बहुव्रीहि समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(बहुव्रीहि समास का उदाहरण है-)
(अ) महापुरुषः
(ब) चतुर्युगम्
(स) उपकृष्णम्
(द) प्राप्तोदकः
उत्तरम् :
(द) प्राप्तोदकः

प्रश्न 3.
चन्द्रशेखरः इति पदे समासः अस्ति-(चन्द्रशेखरः इस पद में समास है.)
(अ) बहुव्रीहि
(ब) कर्मधारय
(स) अव्ययीभावः
(द) द्विगुः
उत्तरम् :
(अ) बहुव्रीहि

प्रश्न 4.
कर्मधारय समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(कर्मधारय समास का उदाहरण है-)
(अ) पीताम्बरम्
(ब) पीताम्बरः
(स) निक्षिकम्
(द) पञ्चपात्रम्
उत्तरम् :
(अ) पीताम्बरम्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

प्रश्न 5.
द्विगु समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(द्विगु समास का उदाहरण है-)
(अ) दशाननः
(ब) दशपात्रम्
(स) अनुरथम्
(द) महापुरुषः
उत्तरम् :
(ब) दशपात्रम्

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः

निम्नलिखित पदानां समास विग्रहः कर्त्तव्यः (निम्नलिखित पदों का समास-विग्रह करें-)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 20

लघूत्तरात्मक प्रश्नाः

निम्नलिखित पदानां समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नामापि लेख्यः
(निम्नलिखित पदों का समास विग्रह करके समास नाम भी लिखो-)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 21

प्रश्न: 1.
निम्नलिखित विग्रह वाक्यानां समासः करणीयः –
(निम्नलिखित विग्रह वाक्यों का समास करें…)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 22

प्रश्न: 2.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह योजयत् – (क खण्ड को ख खण्ड के साथ जोड़िये) –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 23

अभ्यास 2

निम्नलिखितयोः सामासिक पदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समास्य नाम लिखत –

1. (i) यथाशक्ति (ii) पञ्चपात्रम्।
उत्तरम् :
(i) शक्तिम् अनतिक्रम्यः = अव्ययीभाव समास। (शक्ति के अनुसार)
(ii) पञ्चानां पात्राणां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच पात्रों का समूह)।

2. (i) घनश्यामः (ii) निर्धनः।
उत्तरम् :
(i) घन इव श्यामः = कर्मधारय समास। (मेघ के समान श्यामल-कृष्ण)
(ii) निर्गतं धनं यस्मात् = बहुव्रीहि समास। (नष्ट हो गया है धन जिससे)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

3. (i) चतुर्युगम् (ii) सहरि।
उत्तरम् :
(i) चतुर्णाम् युगानां समाहारः = द्विगु समास। (चार युगों का समूह)
(ii) हरेः सादृश्यम् = अव्ययीभाव समास। (हरि के सदृश)

4. (i) महामुनिः (ii) शान्तिप्रियः।
उत्तरम् :
(i) महांश्चासौ मुनिः = कर्मधारय समास। (महान् मुनि)
(ii) शान्तिः प्रिया यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (शान्ति है प्रिय जिसको)

5. (i) पञ्चवटी (ii) निर्मक्षिकम्।
उत्तरम् :
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच वटों को समूह)
(ii) मक्षिकाणाम् अभावः = अव्ययीभाव समास। (मक्खियों से रहित)

6. (i) शताब्दी (ii) प्रत्येकम्।
उत्तरम् :
(i) शतानाम् अब्दानां समाहारः = द्विगु समास। (सौ वर्षों का समूह)
(ii) एकम् एकं प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर एक)

7. (i) महर्षिः (ii) निर्लज्जः
उत्तरम् :
(i) महांश्च असौ ऋषिः = कर्मधारय समास। (महान् ऋषि)
(ii) निर्गता लज्जा यस्मात् सः = बहुव्रीहि समास। (निकल गई है लज्जा जिससे)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

8. (i) द्वियमुनम् (ii) प्रतिदिनम्।
उत्तरम् :
(i) द्वयोः यमुनयोः समाहारः = द्विगु समास। (दो यमुनाओं का समूह)
(ii) दिनं दिन प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर दिन)

9. (i) मुखचन्द्रः (ii) यशोधनः।
उत्तरम् :
(i) चन्द्रः इव मुखम् = कर्मधारय समास। (चन्द्रमा के समान मुख)
(ii) यशः एव धनं यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (यश ही है धन जिसका)

10. (i) भूतबलि (ii) रघुकुलजन्मा।
उत्तरम् :
(i) भूतेभ्यः बलि = चतुर्थी तत्पुरुषः समास। (भूतों के लिए बलि)
(ii) रघुकुले जन्म यस्य सः = बहुव्रीहिः समास। (रघुकुल में हुआ है जन्म जिसका वह रामचन्द्र)

अभ्यास 3

निम्नलिखित समस्तपदानि कृत्वा समासनामोल्लेखं क्रियताम् –

1. (i) विविधाः प्रयोगाः (विविध प्रयोग।)
(ii) मनुष्येषु देवः यः सः (मनुष्यों में देव है, जो वह (राजा)।
उत्तर :
(i) विविध प्रयोगाः, कर्मधारय समास
(ii) मनुष्य देवः, बहुव्रीहि समास।।

2. (i) महान् च असौ राष्ट्रः (महान् राष्ट्र।)
(ii) ऊढ़ः रथः येन सः (वहन किया है रथ जिसने, वह (घोड़ा))।
उत्तर :
(i) महाराष्ट्रः, कर्मधारय समास
(ii) ऊढरथः, बहुव्रीहि समास।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

3. (i) त्रयाणां लोकानां समाहारः (तीन लोकों का समूह।)
(ii) कामम् अनतिक्रम्य इति (जितनी इच्छा हो उतना।)
उत्तर :
(i) त्रिलोक, द्विगु समास
(ii) यथाकामम्, अव्ययीभाव समास।

4. (i) अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः (आठ अध्यायों का समूह।)
(ii) रूपस्य योग्यम् (रूप के योग्य।)
उत्तर :
(i) अष्टाध्यायी, द्विगु समास
(ii) अनुरूपम्, अव्ययीभाव समास।

5. (i) दश आननानि यस्य सः (रावण:) (दस हैं मुख जिसके, वह (रावण))।
(ii) महान् अर्णवः (महान् समुद्र।)
उत्तर :
(i) दशाननः, बहुव्रीहि समास
(ii) महार्णवः, कर्मधारय समास।

6. (i) पञ्चानां गवां समाहारः (पाँच गायों या बैलों का समूह)।
(ii) जनानाम् अभावः (सुनसान ।)
उत्तर :
(i) पञ्चगवम्, द्विगु समास
(ii) निर्जनम्, अव्ययीभाव समास।

7. (i) पुरुषः व्याघ्रः इव (शूरः) (पुरुष व्याघ्र के समान बहादुर।)
(ii) चन्द्रः इव मुखं यस्य सः (चन्द्रमा के समान है मुख जिसका।)
उत्तर :
(i) पुरुषव्याघ्रः, कर्मधारय समास
(ii) चन्द्रमुखः, बहुव्रीहि समास।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

8. (i) पञ्चानां गंगानां समाहारः (पाँच गंगाओं का समूह।)
(ii) गुरोः समीपम् (गुरु के समीप।)
उत्तर :
(i) पञ्चगंगम्, द्विगु समास
(ii) उपगुरु, अव्ययीभाव समास।

9. (i) चतुरः चौरः (चतुर चोर।)
(ii) दीघौं बाहु यस्य सः (दीर्घ हैं बाहु जिसकी।)
उत्तर :
(i) चतुर चौरः, कर्मधारय समास
(ii) दीर्घबाहुः, बहुव्रीहि समास।

10. (i) क्षणं क्षणं प्रति (प्रत्येक क्षण।)
(ii) त्रयाणां भुवनानां समाहारः (तीन भवनों का समूह।)
उत्तर :
(i) प्रतिक्षणम्, अव्ययीभाव समास
(ii) त्रिभुवनम्, द्विगु समास।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

1. भू(होना) धातु (वर्तमान काल) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 1

2. हस् (हँसना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 2

3. पठ्(पढ़ना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 3

4. नम् (झुकना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 4

5. गम् (गच्छ) (जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 5

6. अस् (होना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 6

7. इष् (इच्छ) (इच्छा करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 7

8. प्रच्छ (पृच्छ्) (पूछना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 8

9. हन् (मारना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 9

10. नृत् (नाचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 10

11. कृ (कर) (करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 11

12. चिन्त् (चिन्तय) (सोचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 12

13. क्रुध् (क्रुध्य्) (क्रोध करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 13

14. नश् (नश्य) (नष्ट होना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 14

15. ज्ञा (जान्) (जानना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 15

16. भक्ष (भक्षय) (खाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 16

आत्मनेपदी धातुएँ – 

1. सेव (सेवा करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 18

2. लभ् (पाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 19

3. रुच (रोच्) (चमकना और रुचना, अच्छा लगना)
धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 20

4. मुद् (मोद्) (प्रसन्न होना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 21

उभयपदी धातुएँ

1. याच् (याचना करना, माँगना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 22

2. याच् (याचना करना, माँगना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 23

3. नी (नय) (ले जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 24

4. नी (नय) (ले जाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 25

5. ह (हर) (हरण करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 26

6. हृ (ह) (हरण करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 27

7. भज् (सेवा करना,भजन करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 28

8. भज् (सेवा करना, भजन करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 29

9. पच् (पकाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 30

10. पच् (पकाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 31

अन्य महत्त्वपूर्ण धातुएँ

1. वद् (बोलना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 32

2. रक्ष (रक्षा करना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 33

3. दृश् (पश्य) (देखना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 34

4. स्था (तिष्ठ) (ठहरना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 35

5. वस् (रहना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 36

6. जि (जय) (जीतना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 37

7. तृ (तर) (तैरना) धातु परस्मैपदी लोट् लकार (आज्ञार्थक)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 38

8. चर् (चलना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 39

9. दा (देना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 40

10. यच्छ (देना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 41

11. खाद् (खाना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 42

12. चुर् (चोरय्) (चोरी करना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 43

13. कथ् (कथय)(कहना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 44

14. शक् (सकना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 45

15. लिख (लिखना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 46

16. जीव् (जीना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 47

17. पत् (गिरना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 48

18. क्रीड् (खेलना) परस्मैपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 49

19. त्यज् (छोड़ना) परस्मैपदी धातुलट् लकार (वर्तमान काल)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 50

20. तुद् (दुःख देना) परस्मैपदी लोट् लकार (आज्ञार्थक)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 51

21. शुभ् (शोभ) (शोभित होना) आत्मनेपद

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 52

22. भाष् (बोलना) आत्मनेपदी

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 53

अभ्यास

प्रश्न: 1.
तिङ्न्त पद किसे कहते हैं?
उत्तरम् :
धातुओं के अन्त में तिङ् प्रत्यय जोड़े जाते हैं अतः तिङ् जुड़ने के कारण ही इन्हें (धातुओं को) ‘तिङ्न्त पद’ कहा जाता है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 2.
तिङ् प्रत्यय कितने होते हैं? उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तरम् :
तिङ् प्रत्यय कुल 18 हैं। 9 का प्रयोग परस्मैपदी धातुओं में तथा शेष 9 का प्रयोग आत्मनेपदी धातुओं में होता है। तिप्, तस्, झ्,ि सिप्, थस्, थ्, मिप्, वस्, मस् का प्रयोग परस्मैपदी में तथा त, आताम्, झ, थास्, आथाम्, ध्वम्, इट, वहि, महिङ् का प्रयोग आत्मनेपदी में किया जाता है।

प्रश्न: 3.
धातु और क्रिया-पद का अन्तर समझाइए।
उत्तरम् :
प्रत्यय जुड़ने से पूर्व क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं, प्रत्यय जुड़ने के बाद ही धातु ‘क्रिया-पद’ बनती है, जो कि कार्य का होना दर्शाती है। बिना प्रत्यय के ‘धातु का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न: 4.
धातुओं के गण से आप क्या समझते हैं? सभी गणों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तरम् :
संस्कृत में 10 गण (धातुओं के विभाग) होते हैं। प्रत्येक धातु किसी एक गण के अन्तर्गत आती है। गण इस प्रकार हैं-

  1. भ्वादिगण
  2. अदादिगण
  3. जुहोत्यादिगण
  4. दिवादिगण
  5. स्वादिगण
  6. तुदादिगण
  7. रुधादिगण
  8. तनादिगण
  9. यादिगण
  10. चुरादिगण।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 5.
क्रिया के मुख्य भेद कितने हैं?
उत्तरम् :
संस्कृत में क्रिया के मुख्य रूप से तीन भेद हैं –

  1. परस्मैपद
  2. आत्मनेपद
  3. उभयपद ।

प्रश्न: 6.
धातुओं के गणों के विभाजन का क्या आधार है?
उत्तरम् :
संस्कृत में प्रत्येक गण की धातुओं के रूप प्रायः एक समान चलते हैं। प्रत्येक गण का नाम उसमें आने वाली सबसे पहली धातु के आधार पर रखा गया है। ये गण दस हैं।

प्रश्न: 7.
दसों धातु-गणों के विकरण प्रत्यय तथा उनसे क्रिया-पद-निर्माण की प्रक्रिया को संक्षेप में लिखिए।
उत्तरम् :

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 54

प्रश्न: 8.
लकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तरम् :
संस्कृत में लकार 10 होते हैं –

  1. लट् लकार (वर्तमान काल)
  2. लोट् लकार (आज्ञार्थक)
  3. लृट् लकार (भविष्यत् काल)
  4. लङ् लकार (अनद्यतन भूत)
  5. विधिलिङ् लकार (प्रेरणार्थक या ‘चाहिए’ के अर्थ में)
  6. लिट् लकार (अनद्यतन परोक्ष भूत)
  7. लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत्)
  8. आशीर्लिङ् (आशीर्वाद) यह लिङ्लकार का ही भेद है।
  9. लुङ् लकार (सामान्य भूत)
  10. लुङ् लकार (हेतुहेतुमद् भूत या भविष्यत्)
  11. लोट्लकार।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 9.
परस्मैपदी धातुओं के पाँचों लकारों के संक्षिप्त धातु रूप लिखिए।
उत्तरम् :
परस्मैपदी धातुओं के संक्षिप्त धातु रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 55

प्रश्न: 10.
आत्मनेपदी धातुओं के पाँचों लकारों के संक्षिप्त धातु-रूप लिखिए –
उत्तरम् :
आत्मनेपदी धातुओं के संक्षिप्त धातु-रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 56

प्रश्न: 11.
निम्नलिखित-धातुओं के सभी पुरुषों और वचनों में निर्देशानुसार रूप लिखिए – (1) ‘दृश्’ धातु-लट् अथवा लृट् लकार (2) ‘सेव्’ धातु-लोट् अथवा लङ् लकार (3) ‘लभ्’ धातु-लट् अथवा लोट् लकार (4) ‘नी’ धातु-परस्मैपदी विधिलिङ् अथवा लङ् लकार (5) ‘अस्’ धातु- लट् अथवा लृट् लकार (6) आशक्’ धातु-लोट् अथवा विधिलिङ् लकार (7) ‘इष्’ धातु-विधिलिङ् अथवा लृट् लकार (8) ‘प्रच्छ’ धातु-लोट् अथवा लङ् लकार (9) ‘कृ’ धातु-लट् अथवा लोट् लकार (10) ‘चिन्त्’ धातु-आत्मेनपद में लोट् अथवा विधिलिङ् लकार।
उत्तरम् :
धातु रूपों को देखकर विद्यार्थी स्वयं हल करें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 12.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत –
(उचित धातु रूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए-)

  1. सः भोजनं …………… (पच्-लुट् लकारे)
  2. विद्यार्थी ज्ञानं ……… (लभ-लट्लकारे, आत्मनेपदी)
  3. अहं शीघ्रं परिणाम …………….. (ज्ञा-लट्लकारे)
  4. सेवकाः स्वामिने …………… (नम्-लट् लकारे)
  5. श्याम मोहनः च जलं …………… (पा-लट्लकारे)
  6. श्वः मम मित्रं ………….. (गम्-लुटलकारे)
  7. शिक्षक: विद्यालये किं ………….. (कृ-लुट्लकारे)
  8. तौ पुस्तकान् ……………. (पठ्-लुट्लकारे)
  9. आवां संस्कृतम् …………… (वद्-लङ्लकारे)
  10. यूयं पुस्तकानि …………… (नी-लुट्लकारे)
  11. छात्रा: नित्यम् ईश्वरं …………. (भज-विधिलिङ् लकारे)
  12. शिष्यः गुरून् …………….. (सेव-लोट्लकारे)
  13. वेदाः चत्वारः …………… (अस्-लट्लकारे)
  14. श्वः भौमवासरः …………… (भू लट्लकारे)
  15. त्वं पुस्तकं …………… (पठ्-लोट्लकारे)
  16. स: संगीतमाध्यमेन निर्माणम् …………… (कृ-लङ्लकारे)
  17. सर्वे भद्राणि ……………. (दृश्-लोट्लकारे)
  18. मन्द-मन्दम् पवनः मधुरं संगीतं …………… (जन् लट्लकारे)
  19. सुरेशः पिपासया पीडितः …………… (अस्-लङ् लकारे)
  20. आयुष्मान् ……………… (भू-लोट्लकारे)
  21. शिक्षक: छात्राय …………. (क्रुध्-लट्लकारे)
  22. रीना शीघ्रम् उन्नतिं ………….. (कृ-लट्लकारे)
  23. तौ गुरुम् ……………… (सेव्-लट्लकारे)
  24. वयं विद्यालयं …………….. (गम्- लुट्लकारे)

उत्तरम् :

  1. पक्ष्यति
  2. लभते
  3. जानामि
  4. नमन्ति
  5. पास्यतः
  6. गमिष्यति
  7. करोति
  8. पठिष्यतः
  9. अवदाव
  10. नेष्यथ
  11. भजेयुः
  12. सेवताम्
  13. सन्ति
  14. भविष्यति
  15. पठ
  16. अकरोत्
  17. पश्यन्तु
  18. जनयति
  19. आसीत्
  20. भव
  21. क्रुध्यति
  22. करोति
  23. सेवेते
  24. गमिष्यामः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न: 13.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत-(उचित धातुरूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए)

  1. रमा सीता च श्वः तत्र ………….. (गम्)
  2. वयं श्वः फलानि …………… (भक्ष्)
  3. सः प्रात: व्यायाम ……….. (कृ)
  4. मह्यम् आम्रफलं …………… (रुच्)
  5. त्वं मम मित्रम् …………… (अस्)
  6. ह्यः अहं विद्यालयम् ………….. (गम्)
  7. मोहनः सदा प्रात: पञ्चवादने ………….. (उत्तिष्ठ)
  8. अहं गुरून् ……………. (नम्)
  9. सीता ह्यः मातुः पत्रम् …………….. (लभ्)
  10. भारते कोऽपि शिक्षाविहीनः न ……………. (अस्)

उत्तरम् :

  1. गमिष्यतः
  2. भक्षयिष्यामः
  3. करोति
  4. रोचते
  5. असि
  6. अगच्छम्
  7. उत्तिष्ठति
  8. नमामि
  9. अलभत
  10. स्यात्।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Meaning of Food Security

  • Food is as essential for living as air is for breathing.
  • Food security means availability, accessibility and affordability of food to all people at all times.
  • Food security depends on the Public Distribution System and government vigilance ana action at times when this security is threatened.
  • Food security is ensured in a country only if: (i) enough food is available for all the persons (ii) All persons have the capacity to buy food of acceptable quality and (iii) These is no barrier on access to food.

→ Why Food security

  • The poorest section of the society might be food insecure most of the times while persons above the poverty line might also be food insecure when the country faces a national disaster.
  • The most devastating famine that occurred in Independent India was the ’Famine of Bengal’ in 1943.
  • Nothing like the Bengal Famine has happened in India again but there are places like Ralahandi and Kashipur in Odisha where famine-like conditions have been eyisting for many years.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Who are Food Insecure

  • The worst-affected groups suffering from food and nutrition insecurity in Inuia are landless people, traditional artisans, providers of traditional servicer, petty self -employed workers and beggars.
  • The people affected by natural disasters who have to migrate to other areas in search of work are also among the most food-insecure people.
  • The food-insecure people are disproportionately large in the states of Uttar Pradesh (eastern mid southeastern parts), Bihar, Jharkhand, Odisha, West Bengal, Chattisgarh, parts of Madhya Pradesh and Maharashtra.
  • The attainment of food security involves eliminating current hunger and reducing the risks of future hunger.
  • There are two aspects of hunger: (i) Chronic, hunger, (ii) Seasoned hunger.
  • After independence Indian policy makers adopted all measures to achieve self-sufficiency in food grains
  • India adopted a new strategy in agriclture which resulted in the Green Revolstion

→ Feed Security in India

  • The Government has designed a food- security system. This system has two components: (a) Buffer Stock, (b) Public Distribution System.
  • The Food Corporation of India purchaser wheat and rice from the farmers in stetaf where there is surplus production, and stores it in warehouses. It is known as Buffer Stock.
  • The food procured by the Food Corporation of India (FCI) is distributed through government regulated ration shops among the poorer sections of the society. This is called the Public Distribution System.
  • The introduction of Rationing in India dates back to the 1940s against the backdrop of the Bengal Famine.
  • In the wake of the high incidence of poverty levels, three important food intervention programmes were introduced: (i) Public Distribution System, (ii) Integrated Child Development Services, (iii) Food for Work Programme.

→ Current Status of Public Distribution System

  • In the beginning, the coverage of PDS was universal with no discrimination between the poor and non-poor.
  • Over the years, the policy related to PDS has been revised to make it more efficient and targetted.
  • In 1992, a Revamped Public Distribution System (RPDS) was started in 1700 blocks of the country to provide the benefits of PDS in remote and backward areas.
  • In 1997, a Targetted Public Distribution System (TPDS) was introduced to target the poor in all areas’, with a lower issue price for foodgrains for them compared to the price paid by non-poor people.
  • Further in year 2000, two special Schemes—Antyodaya Anna Yojana (AAY) and Annapurna Scheme (APS) were launched.
  • In 2014, the stock of wheat and rice with FCI was 65.3 million tonnes which was much more than the minimum buffer aorms.
  • The rising minimum support prices have raised the cost of procuring food grains by the government.
  • PDS dealers are sometimes found resorting to malpractices like diverting the grains to open market to get better margin, selling poor quality grains at ration shops, irregular opening of the shops, etc.

→ Role of Cooperatives in food security

  • The role played by cooperatives in food security of India is important especially in the southern and western parts of the country.
  • The cooperative societies set up shops to sell low—priced goods to poor people.
  • In Delhi, Mother Dairy is making good progress in providing milk and vegetables to the consumers at controlled rates decided by government of Delhi.
  • Amul is another success story of cooperatives in milk and milk products from Gujarat. It has brought about the white revolution in the country.
  • In Maharashtra, Academy of Development Science (ADS) has facilitated a network of NGOs for setting up grain banks in different regions.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Food Security: Food security means availability, accessibility and affordability of food to all people at all times.

→ Availability of Food: It means food production within the country, food in ports and the previous years’ stock stored in government granaries.

→ Accessibility of food: It means food is within reach of every person

→ Availability of Food: It means food production within the country, food in ports and the previous years’ stock stored in government granaries.

→ Accessibility of food: It means food is within reach of every person

→ Calamity: An event causing great and often sudden damage or distress, e.g. flood, drought, famine, etc.

→ Drought A prolonged period of abnormally low rainfall, leading to a shortage of water.

→ Famine: It is a situation in which large number of people have little or no food and many of them die.

→ Malnutrition is a condition that results from eating a diet in which certain nutrients are lacking or in wrong proportions.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 Food Security in India

→ Buffer stock: It is the stock of food grains (wheat and rice) procured by government (through FCI) from surplus producing states for distribution (through PDS) to deficit states and the poorest section of society.

→ Food Corporation of India (FCI) lt is an organization created and run by the Government of India. Its function is to maintain sufficient buffer stock in the country and affect price stabilisation.

→ Minimum Support Price (MSP): Tt is declared by the government every year before the sowing season to provide incentives to the farmers for raising the production of these crops.

→ Public Distribution System (PDS) The system of distribution of food procured by the FCI among the poorer section of society is called the public distribution system (PDS).

→ Ration Shops: Ration shops keep stock of food grains, sugar and kerosene oil to be sold to people at a price lower than the market price.

→ Subsidy: Subsidy is a payment that a government makes to a producer to supplement the market price of commodity.

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge 

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Introduction

  • Poverty is one of the most difficult challenges faced by independent India.
  • Poverty trends in India and the world are illustrated through the concept of the poverty line.
  • The poor could be landless labourers in villages or people living in overcrowded slums in cities. They could be daily wage workers at construction sites or child workers in roadside eateries. They could also be beggars with children in tatters.
  • Every fourth person in India is poor. This means roughly 270 million (Or 27 Crore) people in India live in poverty (2011-12).
  • India is the largest single country of the poor in the world.
  • Mahatma Gandhi always insisted that India would be truly independent only when the poorest of its people become free from human suffering.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Poverty as seen by social scientists

  • Social scientists analyse poverty from many aspects besides levels of income and consumption. These aspects are: (i) Poor level of literacy (ii) lack of general resistance due to malnutrition, (iii) Lack of faccess to healthcare, (iv) Lack of job opportunities (v) Lack of access to safe drinking water, sanitation, etc.

→ Indicators for poverty

  • The most commonly used indicators for poverty analysis are social exclusion and vulnerability.

→ Social exclusion

  • Social exclusion means living in a poor surrounding with poor people, excluded from enjoying social equality with better-off people in better surroundings.
  • In India, caste system is based on social exclusion. People belonging to certain castes were prevented from enjoying equal opportunities. This caused more poverty than that caused by lower income.

→ Vulnerability

  • Vulnerability to poverty is a measure, which describes the greater probability of certain communities of becoming or remaining poor in the coming time, e.g. members of a backward caste or individual like widow or a physically handicapped person.
  • Vulnerability is determined by various options available to different communities in terms of assets, education, job, health, etc and analyses their ability to face various risks like natural disasters.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Poverty line

  • Poverty line is an imaginary line used by any country to determine its poverty. It varies from time to time, place to place and country to country.
  • The most common method of determining poverty is income or consumption levels.
  • A person is considered poor if his or her income or consumption level falls belong a given minimum level necessary to fulfil their basic needs.
  • In India, the present formula for food requirement while estimating the poverty line is based on the desired calorie requirement.
  • The calorie needs vary depending on age, sex and the type of work that a person does.
  • The accepted average of calorie requirement in India is 2400 calories per person per day in rural areas and 2100 calories per person per day in urban areas.
  • The poverty line is estimated periodically (normally every five years) by conducting sample surveys. These surveys are carried out by the National Sample Survey Organisation (NSSO).

→ Poverty Estimates

  • There is decline in poverty ratios in India from about 45% in 1993-94 to 37.2% in 2004-05.
  • The percentage of people living under poverty line declined in the earlier two decades (1973-1993). The number of poor declined from 407 million in 2004-05 to 270 million in 2011-12.

→ Vulnerable Groups

  • The proportion of people below poverty line is also not same for all social groups and economic categories in India.
  • Social groups which are most vulnerable to poverty are scheduled caste and scheduled tribe households.
  • The most vulnerable economic groups are the rural agricultural labourer households and the urban casual labourer households.
  • There is also inequality of incomes within a family.
  • In poor families all suffer but women, elderly people and female infants suffer more than others.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Inter-state Disparities

  • The proportion of poor people is not the same in every state.
  • In 2011-12 estimates, all India Head Count Ratio (HCR) was 21.9%.
  • The states like Madhya Pradesh. Assam, Uttar Pradesh, Bihar and Odisha had a higher poverty level than the all-India average.
  • Bihar and Odisha continue to be the two poorest states with poverty ratios of 33.7% and 32.6% respectively.
  • Along with rural poverty, urban poverty is also high in Odisha, Madhya Pradesh, Bihar and Uttar Pradesh.
  • Punjab and Haryana have succeeded in reducing poverty with the help of high agricultural growth rates.
  • Kerala has focussed more on human resource development.
  • In West Bengal, land reform measures have helped in reducing poverty.
  • In Andhra Pradesh and Tamil Nadu public distribution of foodgrains could have been responsible for the improvement.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Global Poverty Scenario

  • Although, extreme economic poverty has reduced in the world from 36% in 1990 to 10% in 2015 (as per the World Bank), still there are vast regional differences.
  • Poverty declined substantially in China and South East Asian countries as a result of economic growth and massive investments in human resource development.
  • In the countries of South Asia the decline in poverty levels has not been as rapid.
  • Poverty has also resurfaced in some of the former socialist countries like Russia where officially it was non-existent earlier.
  • One historical reason for the widespread poverty in India is the low level of economic development under the British colonial administration.
  • The failure at both the fronts : promotion of economic growth and population control has perpetuated the cycle of poverty in India.
  • With the extension of irrigation and the Green Revolution, many job opportunities were created in the agricultural sector.
  • The industries did provide some jobs but these were not enough to absorb all the job seekers.
  • The huge income inequalities has been another feature of high poverty rates.
  • The major cause of poverty in India has been lack of land resources.
  • In order to fulfil social obligations and observe religious ceremonies, people in India, including the very poor, spend a lot of money.
  • The high level of indebtedness is both the cause and effect of poverty.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Anti-Poverty Measures

  • Removal of poverty has been one of the major objectives of Indian development strategy.
  • The current anti-poverty strategy of the government is based on two measures: (i) promotion of economic growth, (ii) targetted anti-poverty programmes.
  • Since the eighties, India’s economic growth has been one of the fastest in the world.
  • There is a strong link between economic growth and poverty reduction
  • Economic growth increases opportunities and provides the resources needed to invest in human development. However, the poor may not be able to take direct advantage of the opportunities created by economic growth.
  • Growth in the agricultural sector is much below expectations.
  • Many schemes were formulated to reduce poverty directly and indirectly. Some of them are as mentioned below:
    • Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act, 2005 (MNREGA): Aims to provide 100 days of wage employment to every household to ensure livelihood security in rural areas.
    • Prime Minister Rozgar Yojana (PMRY), 1993: The aim of the programme is to create self-employment opportunities for educated unemployed youth in rural areas and small towns.
    • Rural Employment Generation Programme (REGP), 1995: The aim of the programme is to create self-employment opportunities in rural areas and small towns.
    • Swaranajayanti Gram Swarozgar Yojana, 1999 (SGSY): The programme aims at bringing the assisted poor families above the poverty line by organising them into self-help groups through a mix of bank credit and government subsidy.
    • Pardhanmantri Gramodaya Yojana (PMGY), 2000: Under this, additional central assistance is given to states for basic services such as primary health, primary education, rural shelter, rural drinking water and rural electrification.
    • Antyodya Anna Yojana (AAY), 2000: Under this scheme one crore of the poorest among the BPL families covered under the targetted public distribution system were identified.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ The Challenges Ahead

  • Poverty reduction is still a major challenge in India, due to the wide differences in poverty levels between various regions as well as rural and urban areas.
  • Certain social and economic groups are more vulnerable to poverty.
  • Poverty levels are expected to be lower in the next 10-15 years.
  • In addition to anti-Poverty measures governments should focus on the following to reduce poverty, (i) Higher economic growth (ii) Universal free elementary education (iii) Decrease in population growth (iv) Empowerment of women and the weaker sections.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 Poverty as a Challenge

→ Poverty: It is a situation where a person fails to satisfy minimum human needs concerning food, clothing, housing, education and health.

→ Caloric requirement: The quantity of food that is capable of producing the required amount of energy needed by a normal person to live and work. In urban areas, this is 2100 calories and in rural areas, it is 2400 calories per person, per day.

→ NSSO: National Sample Survey Organisation. It is the largest organisation in India conducting regular socio-economic surveys.

→ World Bank: It is an international organisation dedicated to providing finance, advice and research to developing nations to aid their economic advancement.

→ HCR: Head Count Ratio. It is the proportion of a population that lives below the poverty line.

→ South-Asia: Comprises of India, Pakistan, Sri Lanka, Nepal, Bangladesh and Bhutan.

→ Economic Growth: It is a term which defines an increase in real output of a country.

→ Sustainable development: It has been defined in many ways, but the most frequently quoted definition is from Our Common Future, also known as the Brundtland report: “Sustainable development is development that meets the needs of the present without compromising the ability of future generations to meet their own needs”.

→ Minimum Subsistence level of living: Is when a person’s bare necessities of food, shelter and clothing are taken care of.

→ Reasonable level of living: Is when these and more are taken care of and he can indulge in making certain selective lifestyle choices.

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

→ Introduction

  • Population as an asset for the economy rather than liability.
  • Population becomes human capital when the investment is made in the form of education, training and medical care.
  • Working population of a country, their existing productive skills and abilities are known as ‘People as Resource’.
  • This productive nature of population helps to develop the Gross National Product (GNP) of a country through its abilities. So, it is also known as ‘Human Resource.
  • When the existing human resource is further developed by making it more educated and healthy, we call it human capital formation.
  • Investment in human capital (through eduction, training and medical care) yields a return in the same way as investment in physical capital.
  • Human capital is, in one way,superior to other resources, like land and physical capital.
  • In the case of Sakai, eduction added to the quality of his labour. This enhanced his total productivity in the form of salary and further added to the growth of the nation’s economy.
  • In the case of Vilas, there was no education or healthcare in the early part of his life. He spent his life selling fish like his mother: hence, he earns the same amount as an unskilled labourer.
  • Investment in human resources through education and medical care can give high rates of return in the future.
  • Educated parents invest more heavily on the education of their child.
  • Developed countries invest heavily on their people, especially in the field of education and health.

→ Economic Activities by Men and Women

  • Economic activities have been classified into three sectors: (i) Primary sector, (ii) Secondary sector, (iii) Tertiary sector.
  • Primary sector includes agriculture, forestry, animal husbandry, fishing, poultry farming, mining and quarrying.
  • Manufacturing is included in the secondary sector.
  • Trade, transport, communication, banking, health, tourism, services, insurance etc. come under tertiary sector.
  • Economic activities is of two types: (i) market activities (ii) non-market activities.
  • Market activities involve remuneration to the person who performs an activity for pay or profit, e.g. Production of goods or services including government services.
  • Non-market activities involve production for self-consumption.
  • The household work done by women is not included in the National Income.
  • Education helps individuals to make better use of the economic opportunities available before them.
  • Education and skill are the major determinants of the earning of any individual in the market.
  • Women are paid less as compared to men.

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

→ Quality of population

  • The quality of population depends upon the literacy rate, health of a person indicated by life expectancy and skill formation acquired by the people of the country.
  • Education provides new aspirations and develops higher values of life and new horizons for individuals.
  • There is a provision made for providing universal access, retention and quality in elemen-tary education with special emphasis on girls.
  • Sarva Shiksha Abhiyan, Bridge courses, Back-to-school campaign, Mid-day meal scheme are such programmes which have been initiated to increase the enrolment in elementary education.

→ Health

  • The health of a person helps him to realise his potential and his ability to fight illness.
  • Our National Policy aims at improving the accessibility of healthcare, family welfare and nutritional service with special focus on the under-privileged segment of population.
  • During the last 50 years, India has built up a vast health care manpower and infrastructure base.

→ The results are:

  • Life expectancy has increased to over 68.3 years in the year 2014.
  • Infant Mortality Rate (IMR) has come down from 147 in the year 1951 to 34 in the year 2016.
  • Crude Birth rate (CBR) has dropped to 20.4 and Crude Death Rate (CDR) to 6.4 his the same duration of time.

→ Unemployment

  • Unemployment exists when people who are willing to work at the going wages cannot find jobs.
  • The work force includes all people from the age of 15 years to 59 years.
  • In the case of India, there is unemployment in both rural and urban areas.
  • In rural areas, there is seasonal and disguised unemployment; urban areas have mostly educated unemployment.
  • Seasonal unemployment happens when people are not able to find jobs during some months of the year, people dependent upon agriculture usually face such kind of problem,
  • When all the people appear to be employed, but the work requires less number of persons, the unemployment is disguised. For example, a small farmer’s entire family is working on his plot, although all may not be required to do so.
  • In urban areas, many young people with matriculation, graduation and post-graduation degrees are not able to find jobs.
  • Unemployment has a harmful impact on the overall growth of an economy.
  • Increase in unemployment is an indicator of a depressed economy. It also wastes the human resource ™hich could have been gainfully employed.
  • In case of India, statistically, the unemployment rate is low.
  • Agriculture is the most-labour absorbing sector of the economy but employment in this sector has declined because of disguised unemployment. The surplus people have moved to work in the secondary and tertiary sectors.
  • Small-scale manufacturing absorbs most of the labour in the secondary sector.
  • New employment opportunities are emerging in the tertiary sector in information technology

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 People as Resource

→ Resource: The collective wealth of a country or its means of producing wealth.

→ Gross National Product: The total value of goods produced and services provided by a country during one year, equal to the gross domestic product plus the net income from foreign investments.

→ Virtuous cycle: A condition in which a favourable circumstance or result gives rise to another that subsequently supports the first condition. Economic growth is one such cycle.

→ Vicious cycle: A condition in which an unfavourable circumstance or result gives rise to another that subsequently supports the first infavourable condition. A spiral of inflation is one such cycle.

→ Economic Activities: Those activities which are done for earning money are known as economic activities.

→ Non-economic Activities: Those activities which are done to meet the emotional and psychological requirements are called non-economic activities.

→ Literacy rate: This is the percentage of people above the age of 7 years with the ability to read and write with understanding.

→ National income: The national in income is the total amount of income accruing to a country from economic activities in a year’s time. It includes payments made to all resources, either in the form of wages, interest, rent and profits. The progress of a country can be determined by the growth of the national income of the country.

→ Infant Mortality Rate: Infant Mortality Rate is the number death of deaths of children under one year of age per 1000 live births.

→ Crude Birth Rate: Crude birth rate is the number of babies bom there for every 1,000 people during a particular period of time.

→ Death Rate: Death Rate is the number of people per 1,000 who die during a particular period of time.

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JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

धातु – क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे – पठ् (पढ़ना), गम् (जाना), हस् (हँसना), क्रीड् (खेलना) आदि। धातु दो प्रकार की होती हैं –
1. सकर्मक – जिन धातुओं के साथ अपना कर्म रहता है वे सकर्मक धातुएँ होती हैं, जैसे- पठ्, गम आदि।
2. अकर्मक – जिन धातुओं के साथ अपना कर्म नहीं रहता, वे अकर्मक धातुएँ होती हैं, जैसे- वृद्धि, नर्तन, निद्रा आदि।

पद – संस्कृत भाषा में तीन पद होते हैं –

  1. परस्मैपद – जिन क्रियाओं का फल कर्ता को प्राप्त न होकर किसी अन्य व्यक्ति को मिलता है वह परस्मैपद धातु कहलाती है।
  2. आत्मनेपद – जिन क्रियाओं का फल कर्ता स्वयं प्राप्त करता है वे आत्मनेपदी धातु होती हैं।।।
  3. उभयपद – जो धातुएँ परस्मैपद तथा आत्मनेपद दोनों में प्रयोग की जाती हैं उन्हें उभयपदी धातु कहते हैं। पाठ्यक्रम में निर्धारित धातु रूप इस प्रकार हैं –

परस्मैपद धातव –
(i) भू, पठ्, हस्, वच्, लिख्, अस्, हन्, पा, नृत्, आप्, शक्, कृ, ज्ञा, चिन्त् तथा इनकी समानार्थक धातुएँ।
(ii) आत्मनेपद- सेव, लभ्, रुच्, मुद्, याच्।
(ii) उभयपद – नी, हृ, भज, पच्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

गण-क्रिया को संस्कृत में ‘धातु’ कहते हैं। संस्कृत की समस्त धातुओं को 10 गणों में बाँटा गया है। इन गणों के नाम इनकी प्रथम धातु के आधार पर रखे गये हैं। गण तथा उनकी कुछ मुख्य धातुएँ इस प्रकार हैं –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 1

लकार: – 1. लट् लकार-वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। जिस काल में क्रिया का प्रारम्भ होना तथा चालू रहना सूचित होता हो और क्रिया की समाप्ति न पाई जाये, उसे वर्तमान काल कहते हैं ; जैसे – ‘रामः पुस्तकं पठति’-राम पुस्तक पढ़ता है, यहाँ पर पठन क्रिया प्रचलित है तथा समाप्ति का बोध नहीं होता। अतः वर्तमान काल है। इसी प्रकार ‘सः लिखति’ (वह लिखता है), ‘ते गच्छन्ति’ (वे जाते हैं) आदि वाक्यों में भी वर्तमान काल समझना चाहिए।

2. लृट् लकार – लृट् लकार का प्रयोग भविष्यत् काल में होता है अर्थात् क्रिया का वह काल जिसमें क्रिया का प्रारम्भ होना तो न पाया जाये किन्तु उसका आगे होना पाया जाये, उसे भविष्यत् काल कहते हैं; जैसे –

‘स: वाराणसीं गमिष्यति’ (वह वाराणसी जायेगा)। इस वाक्य में गमन क्रिया का आगे होना पाया जाता है। अतः यह भविष्यत् काल है। इसके लिए लट् लकार का प्रयोग किया जाता है।

3. लङ् लकार – अनद्यतन भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग होता है। अनद्यतन भूत वह काल है जो आज का न हो, अर्थात् आज बारह बजे रात से पूर्व का काल अथवा आज प्रातः से पूर्व का समय; जैसे . देवदत्तः विद्यालयम् अगच्छत्। (देवदत्त विद्यालय गया।)

4. लोट् लकार – लोट् लकार का प्रयोग आज्ञा देने के अर्थ में होता है। अतः सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे ‘आज्ञा काल’ कहते हैं। यथा-‘देवदत्तः गृहं गच्छतु। (देवदत्त घर जाये)। यहाँ देवदत्त को घर जाने की आज्ञा दी गई है। अतः लोट् लकार का प्रयोग हुआ है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

5. विधिलिङ् – इस लकार का प्रयोग विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अभीष्ट, सलाह और प्रार्थना आदि अर्थों में किया जाता है। सामान्यतः यह ‘चाहिए’ वाले वाक्य में प्रयुक्त होता है। जैसे – ‘देवदत्तः इदं कार्य कुर्यात्।’ (देवदत्त को यह कार्य करना चाहिए), ‘स: गृहं गच्छेत्’ (उसे घर जाना चाहिए)।

धातु-रूप 

1. भू(होना) धातु (वर्तमान काल) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 2

2. गम् (गच्छ्) (जाना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 3

3. इष (इच्छ) (इच्छा करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 4

4. प्रच्छ (पृच्छ) (पूछना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 5

5. लिख (लिखना) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 6

6. हन् (मारना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 7

7. भी (डरना) धातु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 8

8. दा (देना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 9

9. नृत् (नाचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 10

10. जन् (पैदा होना) धातुः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 11

11. कृ (कर) (करना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 12

12. की (द्रव्यविनिमये) धातु

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 13

13. क्रीड् (खेलना) परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 14

14. चिन्त् (चिन्तय) (सोचना) धातु परस्मैपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 15

15. त्यज् (हानौ) धातुः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 16

16. सेव् (सेवा करना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 17

17. लभ् (पाना) धातु आत्मनेपदी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 18

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित वाक्येषु सम्यक् विकल्प चिनुत् –
1. ‘भाष्’ धातोः लङ्लकारः उत्तम पुरुष, द्विवचने रूपं भवति –
(क) अभाषत
(ख) अभाषध्वम्
(ग) अभाषावहि
(घ) अभाषथाः
उत्तरम् :
(ग) अभाषावहि

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

2. ‘वद्’ धातोः लङ्लकार उत्तमपुरुष एकवचने रूपं भवति –
(क) अवदम्
(ख) वदति
(ग) वदथः
(घ) वदिष्यथः।
उत्तरम् :
(क) अवदम्

3. इष् धातोः लट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) इच्छसि
(ख) इच्छामः
(ग) एषिष्यामि
(घ) इच्छामि।
उत्तरम् :
(घ) इच्छामि।

4. प्रच्छ धातोः लुट्लकारस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) प्रक्ष्यन्ति
(ख) प्रक्ष्यसि
(ग) प्रक्ष्यतः
(घ) प्रक्ष्यामः
उत्तरम् :
(क) प्रक्ष्यन्ति

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

5. हन् धातोः लोट्लकारस्य मध्यमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) हनतु
(ख) जहि
(ग) हत
(घ) हतम्
उत्तरम् :
(ख) जहि

6. भी धातोः लङलकारस्य प्रथमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क), अबिभेत्
(ख) अबिभेः
(ग) अबिभीत
(घ) अबिभयुः
उत्तरम् :
(घ) अबिभयुः

7. दा धातोः विधिलिङ्लकारे मध्यमपुरुषैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) दद्युः
(ख) दद्यात्
(ग) दद्याः
(घ) दद्याव
उत्तरम् :
(ग) दद्याः

8. नृत् धातोः लुट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) नृत्यन्ति
(ख) नृत्यथ
(ग) नर्तिष्यामः
(घ) नृत्येमः
उत्तरम् :
(ग) नर्तिष्यामः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

9. जन् धातोः लङलकारस्य मध्यमपुरुषैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) जाये
(ख) जायै
(ग) अजाये
(घ) जायेम
उत्तरम् :
(ग) अजाये

10. क्री धातोः लट्लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचने रूपं भविष्यति –
(क) क्रीणीमः
(ख) क्रेष्यामः।
(ग) क्रीणाम
(घ) अक्रीणीम
उत्तरम् :
(क) क्रीणीमः

11. चिन्त् धातोः विधिलिङलकारस्य उत्तमपुरुषस्यैकवचने रूपं भविष्यति –
(क) चिन्तयेत्
(ख) चिन्तयेयम्
(ग) चिन्तयानि
(घ) चिन्तयेः
उत्तरम् :
(ख) चिन्तयेयम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

12. त्यज़ धातोः लट्लकारस्य मध्यमपुरुषस्य बहवचने रूपं भविष्यति –
(क) त्यजथ
(ख) त्यजत
(ग) त्यक्ष्यथ
(घ) त्यजेत
उत्तरम् :
(ग) त्यक्ष्यथ

प्रश्न 2.
निर्देशानुसारं धातुरूपं लिखित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(निर्देशानुसार धातुरूप लिखकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
1. महान्तं विकार …………………. (कृ, लट् लकार)
2. अयं योगी परिव्राजकः ……………. (क्रीड्, लुट लकार)
3. त्वं मां खादितुम् ………………. (इच्छ, लृट् लकार)
4. जनाः मयि स्नानं ……………….. (कृ, लट् लकार)
उत्तराणि-
1. करिष्यति
2. क्रीडिष्यति
3. एषिष्यसि
4. करिष्यन्ति।

प्रश्न 3.
अधोलिखितेषु वाक्यानां रिक्तस्थानेषु निर्देशानुसारं धातु-रूपं लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों के रिक्तस्थानों में निर्देशानुसार धातुरूप लिखिए)
1. सिंहः एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा …………… । (चिन्त, लङ्लकार)
2. सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानम् ……………… (कृ, लङ् लकार)
4. अन्येऽपि पशवः भयभीताः ……………… (भू, लङ्लकार)
5. चञ्चलः नदी जलम्………….. (पृच्छ, लङ्लकार)
6. नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम्…………….. (त्यज, लङ् लकार)
उत्तराणि :
1. अचिन्तयत्
2. अकरोत्
3. अभवन्
4. अपृच्छत्
5. अत्यजन्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 4.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत –
(उचित धातु रूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए-)
(i) विद्यार्थी ज्ञानं …………………………… (लभ-लट्लकारे, आत्मनेपदी)
(ii) श्वः मम मित्रं …………………………….. (गम्-लुटलकारे)
(iii) शिक्षकः विद्यालये किं …………. (कृ-लुट्लकारे)
(iv) शिष्यः गुरून् …………………….. (सेव्-लोट्लकारे)
(v) श्व: भौमवासरः ………. (भू लुट्लकारे)
(vi) सः संगीतमाध्यमेन निर्माणम् ………… (कृ-लङ्लकारे)
(vii) मन्द-मन्दम् पवनः मधुरं संगीतं ………….. (जन् लट्लकारे)
(viii) आयुष्मान् …………………… (भू-लोट्लकारे)
(ix) रीना शीघ्रम् उन्नति ……………….. (कृ-लट्लकारे)
(x) तौ गुरुम् ………………… (सेव्-लट्लकारे)
(xi) वयं विद्यालयं ………………. (गम्- लट्लकारे)
उत्तरम् :
(i) लभते
(ii) गमिष्यति
(iii) करोति
(iv) सेवताम्
(v) भविष्यति
(vi) अकरोत्
(vii) जनयति
(viii) भव
(ix) करोति
(x) सेवेते
(xi) गमिष्यामः

प्रश्न 5.
उचितधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत – (उचित धातुरूपों से वाक्यों को पूर्ण कीजिए)
(i) रमा सीता च श्वः तत्र …………… (गम्)
(ii) सः प्रातः व्यायामं ……… (कृ)
(iii) ह्यः अहं विद्यालयम् …………….. (गम्)
(iv) सीता ह्यः मातुः पत्रम् …………… (लभ)
उत्तरम् :
(i) गमिष्यतः
(ii) करोति
(iii) अगच्छम्
(iv) अलभत।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 6.
निर्देशानुसारं धातु-रूपं लिखत –
(निर्देशानुसार धातुरूप लिखिए-)
1. भू (लोट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
2. दृश् (लट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन)
3. गम् (विधिलिङ् लकार उत्तम पुरुष द्विवचन)
4. चिन्त् (लट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
5. गम् (लट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
6. सेव् (लट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
7. कृ (विधिलिङ् लकार उत्तम पुरुष एकवचन)
8. जन् (लङ् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन)
9. क्रीड् (लोट् लकार मध्यम पुरुष द्विवचन)
10. लिख (लट् लकार उत्तम पुरुष एकवचन)
11. इष् (इच्छ्) (लुट् लकार मध्यम पुरुष बहुवचन)
उत्तराणि :
1. भवत
2. पश्यसि
3. गच्छेव
4. चिन्तयथः
5. गमिष्यथ:
6. सेवध्वे
7. कुर्याम्
8. अजायन्त
9. क्रीडतम्
10. लेखिष्यामि
11. एषिष्यथ।

प्रश्न 7.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) क्रीडति
(ii) करोमि
(iii) जनिष्ये
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 19

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम्

प्रश्न 8.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) भवथ
(ii) गच्छामः
(iii) इच्छसि
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 20

प्रश्न 9.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) पृच्छन्ति
(ii) अपृच्छत्
(iii) लिखन्ति
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 21

प्रश्न 10.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) लिखेम
(ii) हनिष्यामः
(iii) हन्याः
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 22

प्रश्न 11.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत
(i) बिभ्यन्ति
(ii) भेस्यथ
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 23

प्रश्न 12.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) ददति
(ii) अदत्ताम्
(iii) नर्तिस्यथः
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 24

प्रश्न 13.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) जायसे
(ii) कुरुथः
(iii) कुर्याम्
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 25

प्रश्न 14.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) क्रेष्यथ:
(ii) क्रीडानि
(iii) क्रीडेयम्
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 26

प्रश्न 15.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष वचनानां निर्देशं कुरुत –
(i) चिन्तयिष्यथ:
(ii) त्यजताम्
(iii) सेवते
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूप-प्रकरणम् 27