JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. सामान्य वायुदाब कितना होता है?
(A) 34 मिलीबार
(B) 300 मिलीबार
(C) 1013 मिलीबार
(D) 900 मिलीबार।
उत्तर:
(C) 1013 मिलीबार।

2. भूमध्य रेखीय खण्ड में निम्न वायुदाब पेटी का मुख्य कारण क्या है?
(A) दैनिक गति
(B) चक्रवात
(C) समुद्री धाराएं
(D) संवाहिक धाराएं।
उत्तर:
(D) संवाहिक धाराएं।

3. उपध्रुवीय क्षेत्र में निम्न वायु दाब का मुख्य कारण क्या है?
(A) दैनिक गति
(B) उच्च तापमान
(C) संवाहिक धाराएं
(D) चक्रवात।
उत्तर:
(A) दैनिक गति।

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4. डोलड्रमज़ किस क्षेत्र को कहा जाता है?
(A) भू-मध्य रेखीय क्षेत्र
(B) ध्रुवीय क्षेत्र
(C) शीत ऊष्ण कटिबन्ध क्षेत्र
(D) शीत कटिबन्ध क्षेत्र।
उत्तर:
(C) भू-मध्य रेखीय क्षेत्र।

5. उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा क्या होती है?
(A) उत्तर-पूर्वी
(B) दक्षिण-पूर्वी
(C) पश्चिमी
(D) दक्षिणी।
उत्तर:
(A) उत्तर-पूर्वी।

6. वायुदाब निम्नतम होता है जब वायु
(A) उष्ण तथा आर्द्र होती है
(B) ठण्डी तथा शुष्क होती है
(C) उष्ण तथा शुष्क होती है
(D) ठण्डी तथा आर्द्र होती है।
उत्तर:
(A) उष्ण और आर्द्र होती है।

7. वायुमण्डलीय दाब के मापन के लिए इकाई होती है:
(A) वार
(B) मिलीबार
(C) कैलोरी
(D) मीटर।
उत्तर:
(B) मिलीबार।

8. ऊंचाई के बढ़ने के साथ वायुदाब तथा तापमान में क्या अन्तर आता है?
(A) दोनों कम होते जाते हैं
(B) दोनों बढ़ते जाते हैं
(C) दोनों स्थाई रहते हैं।
(D) वायुदाब कम और तापमान बढ़ने लगता है।
उत्तर:
(A) दोनों कम होते जाते हैं।

9. पवन का वेग मापने के लिए उपयोग किया जाता है:
(A) हाइग्रोमीटर
(B) एनिमोमीटर
(C) बैरोमीटर
(D) थर्मामीटर।
उत्तर:
(B) एनिमोमीटर।

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10. घोड़ों के अक्षांश भूगोलिक नाम है-
(A) उत्तरी उपोष्णीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध का
(B) विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध का
(C) विषुवतरेखीय शान्त मण्डल का
(D) ध्रुवीय क्षेत्रों का ।
उत्तर:
(A) उत्तरी उपोष्णीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध का।

11. चिनूक पवनें किन पर्वतों के पूर्वी ढलानों से उतरती हैं?
(A) हिमालय
(B) एंडीज
(C) रॉकीज
(D) आल्पस।
उत्तर:
(C) रॉकीज।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता का क्या कारण है?
उत्तर:
वायु गर्म होने पर फैलती है और ठण्डा होने पर सिकुड़ती है। इससे वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता आती है। परिणामस्वरूप वायु गतिमान होकर अधिक दाब वाले क्षेत्रों से न्यून दाब वाले क्षेत्रों में प्रवाहित होती है। क्षैतिज गतिमान वायु ही पवन है।

प्रश्न 2.
वायुमण्डलीय दाब के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब यह निर्धारित करता है कि कब वायु ऊपर उठेगी व कब नीचे बैठेगी। पवनें पृथ्वी पर तापमान व आर्द्रता का पुनर्वितरण करती हैं जिससे पूरी पृथ्वी का तापमान स्थिर बना रहता है। ऊपर उठती हुई वायु का तापमान कम होता जाता है। बादल बनते हैं और वर्षा होती है जैसे हम ऊपर ऊंचाई पर चढ़ते हैं, वायु विरल होती जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण: भूमण्डलीय पवनों का प्रारूप मुख्यतः निम्न बातों पर निर्भर है

  1. वायुमण्डलीय ताप में अक्षांशीय भिन्नता,
  2. वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति,
  3. वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन,
  4. महासागरों व महाद्वीपों का वितरण तथां
  5. पृथ्वी का घूर्णन। वायुमण्डलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण भी कहा जाता है। यह वायुमण्डलीय परिसंचरण महासागरीय जल को भी गतिमान करता है, जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure ):
वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 . औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहां की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार।

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प्रश्न 2.
‘वाताग्र’ कैसे बनते हैं?
उत्तर:
जहां दो भिन्न वायुराशियां (शीत व उष्ण) वायुराशियां परस्पर टकराती हैं, तो उसे वायुराशि का वाताग्र कहते हैं। वाताग्र न तो धरातलीय सतह के सामान्तर होता है और न ही उस पर लम्बवत् होता है बल्कि कुछ कोण पर झुका होता है।

प्रश्न 2.
सामान्य वायु दाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामान्य वायु दाब (Normal Atmosphere Pressure ): समुद्र तल पर प्रति वर्ग इंच पर वायुमण्डल का दबाव 6.68 किलोग्राम या 1.03 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। वायुमण्डल का औसत या सामान्य दाब 45° अक्षांश पर समुद्र तल पर 29.92 इंच या 76 सेंटीमीटर या 1013.2 मिलीबार होता है।

प्रश्न 3.
एक मिलीबार से क्या अभिप्राय है? वायुदाब की माप इकाइयों में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
एक वर्ग से०मी० पर एक ग्राम भार के बल को एक मिलीबार कहते हैं। दूसरे शब्दों में 1000 डाइन (Dynes) प्रति वर्ग से०मी० के वायु भार को एक मिलीबार कहते हैं। 1000 मिली बार के वायुभार को एक बार (Bar) कहते हैं। विभिन्न माप इकाइयों में सम्बन्ध:
30 इंच वायुदाब = 76 से०मी० = 1013.2 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार
1 से०मी० वायु दाब = 13.3 मिलीबार

प्रश्न 4.
दाब प्रवणता (Pressure Gradient) को परिभाषित करें
उत्तर:
वायुदाब का वितरण समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समदाब रेखाओं के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। यह दो समदाब रेखाओं पर समकोण बनाती हुई होती है। यह दाब प्रवणता वायु दिशा तथा वायु वेग को प्रदर्शित करती है। यदि समदाब रेखाएं एक-दूसरे के निकट हों तो दाब प्रवणता तीव्र होती है तथा तेज़ पवनें चलती हैं। यदि समदाब रेखाएं दूर-दूर हों तो वायु की गति मन्द होती है।

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प्रश्न 5.
ऊँचाई के साथ वायु दाब में कमी क्यों होती है?
उत्तर:
ऊँचाई के साथ साथ 34 मिलीबार प्रति 300 मीटर की दर से वायुदाब कम होता है। इस कमी का मुख्य कारण वायु का घनत्व तथा सम्पीड़न क्रिया है। वायुमण्डल की ऊपरी परतें हल्की होती हैं। ऊपरी परतों के बोझ तथा दबाव के कारण नीचे की परतों पर सम्पीड़न क्रिया होती है इसलिए धरातल के निकट की परतों में वायुदाब अधिक होता है।

निश्चित ऊँचाई पर मानक तापमान व वायुदाब

स्तर वायुदाब (mle) समुद्रतल
समुद्रतल 1013.25 15.2
1 कि०मी० 898.76 8.7
5 कि०मी० 540.48 – 17.3
10 कि०मी० 265.00 -49.7

प्रश्न 6.
कॉरिऑलिस प्रभाव किस प्रकार पवन की दिशा प्रभावित करता है?
उत्तर:
व्यापारिक पवनों की दिशा पर कॉरिऑलिस शक्ति का प्रभाव पड़ता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-दक्षिण की अपेक्षा उत्तर-पूर्व हो जाती है। दैनिक गति के कारण उत्पन्न कॉरिऑलिस प्रभाव से इन पवनों की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती है।

प्रश्न 7.
वाताग्र के विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
वाताग्र (Fronts ): जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन (Frontogenesis) कहते हैं। वाताग्र चार प्रकार के होते हैं:

  1. शीत वाताग्र
  2. उष्ण वाताग्र
  3. अचर वाताग्र
  4. अधिविष्ट वाताग्र।

जब वाताग्र स्थिर हो जाए तो इन्हें अचर वाताग्र कहा जाता है (अर्थात् ऐसे वाताग्र जब कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती)। जब शीतल व भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण वायुराशियों को ऊपर धकेलती है, इस सम्पर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं। यदि गर्म वायुराशियाँ आक्रामक रूप में ठण्डी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस सम्पर्क क्षेत्र को उष्ण वाताग्र कहते हैं। यदि एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाए तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं। वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं और तीव्र वायुदाब प्रवणता व तापमान इनकी विशेषता है। ये तापमान में अचानक बदलाव लाते हैं तथा इसी कारण वायु ऊपर ऊठती है, बादल बनते हैं तथा वर्षा होती है।

प्रश्न 8.
फ़ैरल का नियम क्या है? चित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर:
फ़ैरल का नियम (Ferral’s Law):
धरातल पर पवनें कभी सीधे उत्तर से दक्षिण को नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फ़ैरल का नियम कहते हैं। ” All moving bodies are deflected to the right in the northern hemisphere and to left in the southern hemisphere.”
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वायु की दिशा में परिर्वतन का कारण पृथ्वी की दैनिक गति है। जब हवाएं कम चाल वाले भागों से अधिक चाल वाले भागों की ओर आती हैं तो पीछे रह जाती हैं। इस विक्षेप शक्ति (Deffective Force) को कोरोलिस बल भी कहा जाता है।

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प्रश्न 9.
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण महासागरीय धाराओं की गति को कैसे प्रभावित करता है तथा ENSO घटना का वर्णन करें।
उत्तर:
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण और उसका महासागरों पर प्रभाव- वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण के सन्दर्भ में प्रशान्त महासागर का गर्म या ठण्डा होना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मध्य प्रशान्त महासागर की गर्म जलधाराएं दक्षिणी अमेरिका के तट की ओर प्रवाहित होती हैं और पीरू की ठण्डी धाराओं का स्थान ले लेती हैं। पीरू के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति एल-निनो कहलाता है। एल-निनो घटना का मध्य प्रशान्त महासागर और ऑस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा सम्बन्ध है। प्रशान्त महासागर पर बायुदाब में यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन कहलाता है।

इन दोनों (दक्षिणी दोलन बदलाव व एल निनो) की संयुक्त घटना को ईएनएसओ (ENSO) के नाम से जाना जाता है। जिन वर्षों में ईएनएसओ (ENSO) शक्तिशाली होता है, विश्व में वृहत् मौसम सम्बन्धी भिन्नताएँ देखी जाती हैं। दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी शुष्क तट पर भारी वर्षा होती है, ऑस्ट्रेलिया और कभी-कभी भारत अकालग्रस्त होते हैं तथा चीन में बाढ़ आती है। इन घटनाओं के ध्यानपूर्वक आकलन से संसार के अन्य भागों की मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
वायु राशि क्या होती है? पवन से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
वायु राशि वायुमण्डल का एक मोटा तथा विस्तृत भाग है जिसमें तापमान और आर्द्रता के लक्षण एक समान होते हैं। इस प्रकार वायुराशियों में एकरूपता का पाया जाना इसका मुख्य लक्षण है। एक वायु राशि में एक-दूसरे के ऊपर वायु की विभिन्न परतें होती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल में पर्याप्त ऊँचाई तक एक विशाल वायु राशि में एकरूपता पाई जाती है। वायु राशि तथा वायु में कई प्रकार से भिन्नता पाई जाती है। वायु धरातल के समानान्तर चलती है तथा इसकी विभिन्न पर्तों में ताप एवं आर्द्रता में विभिन्नता पाई जाती है। वायु राशि में वायु धाराएं ऊपर उठती हैं तथा एक विशाल क्षेत्र में तापमान एवं आर्द्रता में समानता पाई जाती है।

प्रश्न 11.
स्रोत प्रदेश किसे कहते हैं? ध्रुवीय महाद्वीपीय स्रोत प्रदेशों का वर्णन करो
उत्तर:
धरातल के ऐसे समान क्षेत्र जहां वायु राशियों की उत्पत्ति होती है, स्रोत प्रदेश (Source Region) कहलाते हैं। यह प्रदेश पृथ्वी के धरातल पर विस्तृत क्षेत्र हैं जहां एक सम लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे प्रदेश में एक सम धरातल तथा प्रति चक्रवातीय वायु व्यवस्था पाई जाती है। इस अवस्था में अपसारी वायु संचरण (Divergent) होता है। प्रायः स्रोत प्रदेश ध्रुवीय तथा उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। शीतकाल में उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया के ध्रुवीय प्रदेश बर्फ से ढके रहते हैं। यहां प्रति चक्रवात चलते हैं। वायु स्थिर तथा शुष्क होती है। तापमान तथा आर्द्रता में एकरूपता पाई जाती है।

प्रश्न 12.
विभिन्न प्रकार की वायु राशियों की उत्पत्ति, स्रोत के आधार पर वर्गीकरण करो
उत्तर:
संसार की विभिन्न राशियों के सुविधापूर्वक अध्ययन के लिए इनका वर्गीकरण आवश्यक है। उत्पत्ति, स्रोत के आधार पर वायु राशियां दो प्रकार की हैं-

  1. ध्रुवीय वायु राशियां (Polar Air Masses): वे वायु राशियां उच्च अक्षांशों में जन्म लेती हैं। ये ठण्डी तथा कम आर्द्र होती हैं ।
  2. उष्ण कटिबन्धीय वायु राशियां (Tropical Air Masses): ये वायु राशियां निम्न अक्षांशों में जन्म लेती हैं तथा इनमें तापक्रम व आर्द्रता अधिक होती है।

वायुराशियों को उत्पत्ति के आधार पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है:

  1. समुद्री वायु राशियां (Maritime Air Masses): जो अधिक आर्द्र होती हैं।
  2. महाद्वीपीय वायु राशियां (Continental Air Masses ): जो प्रायः शुष्क होती हैं।

इस प्रकार वायु राशियों के चार प्रकार माने जाते हैं:

  1. समुद्री ध्रुवीय वायु राशियां।
  2. महाद्वीपीय ध्रुवीय वायु राशियां।
  3. समुद्री उष्ण कटिबन्धीय वायु राशियां|
  4. महाद्वीपीय उष्ण कटिबन्धीय वायु राशियां।

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प्रश्न 13.
उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा उत्तरी पूर्वी क्यों है? व्याख्या करें।
उत्तर:
व्यापारिक पवनें उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी से भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी की ओर चलती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी होती है। यदि पृथ्वी स्थिर होती तो ये पवनें उत्तर-दक्षिण दिशा में चलतीं, परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें लम्बवत् दिशा से हट कर एक ओर चली जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में विक्षेप शक्ति (Deflective force) दाईं ओर कार्य करती है। इसलिए ये पवनें दाईं ओर मुड़ जाती हैं। इस शक्ति को कोरोलिस बल भी कहा जाता है। इसी बल पर फैरल का सिद्धान्त आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर मुड़ जाती हैं तथा इनकी दिशा उत्तरी-पूर्वी हो जाती है।

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प्रश्न 14.
चक्रवात किसे कहते हैं?
उत्तर:
चक्रवात न्यून वायुदाब की ऐसी व्यवस्था है जिसमें पवनें चारों ओर से केन्द्र की ओर चलती हैं। इस प्रकार चक्रवात न्यून वायुदाब के केन्द्र होते हैं जिनमें समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में पवनों की दिशा घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुसार (Clock-wise) होती है । चक्रवात उत्पत्ति क्षेत्र की दृष्टि से उष्ण कटिबन्धीय तथा शीत उष्ण कटिबन्धीय होते हैं।

प्रश्न 15.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के प्रमुख गुणों का वर्णन करो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones):

  1. ये चक्रवात 5° से 30° अक्षांशों के बीच व्यापारिक पवनों के साथ – साथ पूर्व से पश्चिम में चलते हैं।
  2. इनके केन्द्र में अत्यधिक निम्न दाब होता है तथा समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती हैं।
  3. साधारणतः इनका आकार तथा विस्तार छोटा होता है। इसका व्यास 150 से 500 किलोमीटर तक होता है।
  4. चक्रवात के केन्द्रीय भाग को ‘आंधी की आंख’ (Eye of the Storm) कहते हैं। यह प्रदेश शान्त तथा वर्षाहीन होता है। यह गर्म वायु की धाराओं के रूप में ऊपर उठने से बनता है तथा इनकी ऊर्जा
  5. के स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा है।
  6. शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में इनका अधिक विकास होता है।
  7. इन चक्रवातों में हरीकेन तथा टाइफून बहुत विनाशकारी होते हैं।
  8. इन चक्रवातों द्वारा भारी वर्षा होती है।

प्रश्न 16.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात इतने वृत्ताकार क्यों होते हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती हैं। केन्द्र में अत्यधिक निम्न दाब होता है। इनकी उत्पत्ति दो विभिन्न गुणों वाली वायु राशियों के मिलने के कारण होती है। परन्तु तीव्र हवाओं के कारण इन वायु राशियों के सीमान्त प्रदेश समाप्त हो जाते हैं। एक चक्रधार वायु व्यवस्था उत्पन्न हो जाती है जिसके चारों ओर अधिक वायुदाब होता है। यह वायुदाब समान रूप से बढ़ता है इसलिए ये चक्रवात वृत्ताकार होते हैं।

प्रश्न 17.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में भारी वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
चक्रवात के केन्द्रीय भाग में पवनें नीचे उतरती हैं। इसलिए यह भाग शान्त तथा वर्षाहीन होता है। अन्य भागों दाब प्रवणता काफ़ी तीव्र होती है तथा तेज़ हवाएं चलती हैं। चारों ओर से ऊपर उठती हुई पवनों में संघनन की क्रिया से घनघोर वर्षा होती है। ये चक्रवात महासागर में उत्पन्न होते हैं इसलिए नमी से भरपूर होने के कारण अधिक वर्षा करते हैं।

प्रश्न 18.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का प्रभाव विनाशकारी क्यों होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात निम्न दाब के केन्द्र होते हैं। अतः बाहर से तीव्र हवाएं भीतर आती हैं। इनकी गति लगभग 200 कि० मी० प्रति घण्टा होती है। ये चक्रवात महासागरों पर बिना रोक-टोक के चलते हैं। समुद्र में ऊंची- ऊंची लहरें होती हैं जिससे समुद्री जहाज़ों को हानि होती है। समुद्री तटों पर छोटे-छोटे द्वीपों पर भयंकर लहरें अपार धन-जन की हानि करती हैं हज़ारों लोग समुद्र में डूब जाते हैं। समुद्री यातायात ठप्प हो जाता है। डैल्टा क्षेत्रों में ऊंची लहरों से भारी हानि होती है। सन् 1970 में बांग्ला देश में ऐसे ही चक्रवात से धन-जन की भारी हानि हुई थी।

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प्रश्न 19.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
ये चक्रवात भिन्न-भिन्न सागरों में विभिन्न नामों से प्रसिद्ध हैं। खाड़ी बंगाल में इन्हें चक्रवात (Depression), पश्चिमी द्वीप समूह में हरीकेन (Huricane), चीन सागर में टाइफून (Typhoon) तथा अन्ध महासागर में टारनेडोज़. (Tornadoes) कहते हैं। ऑस्ट्रेलिया में विली – विली ( Willy-Willy) कहते हैं।

प्रश्न 20.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
1. स्थिति-यह चक्रवात उष्ण कटिबन्ध में 5° से 3°अक्षांश तक चलते हैं। 1. यह चक्रवात शीतोष्ण कटिबन्ध में 35° से 65° अक्षांश तक चलते हैं।
2. दिशा-यह व्यापारिक पवनों के साथ-साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 2. यह पश्चिमी पवनों के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।
3. विस्तार-इनका व्यास 150 से 500 कि० मी० तक होता है। 3. इनका व्यास 1000 कि० मी० से अधिक होता है।
4. आकार-यह वृत्ताकार होते हैं। 4. यह प्राय: V आकार के होते हैं।
5. उत्पत्ति-यह संवाहिक धाराओं के कारण जन्म लेते हैं। 5. यह उष्ण तथा शीत वायु के मिलने से जन्म लेते हैं।
6. गति-इनमें वायु गति 100-200 कि० मी० प्रति घण्टा होती है। 6. इनमें वायु गति 30-40 कि० मी० प्रति घण्टा होती है।
7. रचना-यह प्राय: ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं। इसके केन्द्रीय भाग को आंधी की आंख कहा जाता है। 7. यह प्राय: शीतकाल में उत्पन्न होते हैं। इसमें दो भाग उष्ण वाताग्र तथा शीत वाताग्र होते हैं।
8. मौसम-इसमें थोड़े समय के लिए तेज़ हवाएं चलती हैं तथा भारी वर्षा होती है। 8. इसमें शीत लहर चलती है तथा कई दिनों तक थोड़ीथोड़ी वर्षा होती रहती है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब से क्या अभिप्राय है? वायुदाब किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure ):
वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहां की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार।

सामान्य वायुदाब (Normal Atmosphere Pressure ):
समुद्र तल पर प्रति वर्ग इंच पर वायुमण्डल का दबाव 6.68 किलोग्राम या 1.03 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। वायुमण्डल का औसत या सामान्य दाब 45° अक्षांश पर समुद्र तल पर 29.92 इंच या 76 सेंटीमीटर या 1013.2 मिली बार होता है।

मिलीबार (Millibar):
एक वर्ग सें० मी० पर एक ग्राम भार के बल को एक मिलीबार कहते हैं। दूसरे शब्दों में 1000 डाइन (Dynes) प्रति वर्ग से० मी० के वायु भार को एक मिलीबार कहते हैं। वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार तथा पास्कल है। व्यापक रूप से प्रयोग किए जाने वाली इकाई किलो पास्कल है जिसे hpa लिखते हैं। 1000 मिलीबार के वायुभार को एक बार (Bar) कहते हैं।

विभिन्न माप इकाइयों में सम्बन्ध:
30 इंच वायुदाब = 76 से० मी० = 1013.2 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार
1 सें०मी० वायुदाब = 13.3 मिलीबार

वायुदाब को प्रभावित करने वाले तत्त्व:
1. तापमान (Temperature ):
गर्म होने पर वायु फैल कर हल्की हो जाती है। ठण्डी वायु सिकुड़ कर भारी हो जाती है। इसलिए यदि तापमान अधिक होगा तो वायु दबाव कम होगा। यदि तापमान कम होगा तो वायु दबाव अधिक होगा जैसे कहा जाता है कि ” A rising thermometer shows a falling barometer.” यही कारण है कि दिन को कम तथा रात को अधिक वायु दबाव होता है।

2. ऊँचाई (Altitude):
वायु की ऊपरी सतहों का भार निचली सतह पर पड़ता है। नीचे की हवा भारी तथा घनी हो जाती है। ऊपर जाने पर प्रत्येक 300 मीटर की ऊँचाई पर वायु दबाव 1 इंच या 34 मिलीबार गिर जाता है। प्रत्येक दस मीटर की ऊंचाई पर 1 hpa (किलो पास्कल) वायुदाब घटता है। अनुमान है कि वायुमण्डल का आधा दबाव केवल 5000 मी० की ऊँचाई तक सीमित है।

3. जलवाष्प (Water Vapour ):
जलवाष्प वायु की अपेक्षा हल्का होता है, इसलिए शुष्क वायु नम वायु की अपेक्षा भारी होती है। यही कारण है कि स्थलीय पवनें (Land Winds) शुष्क होने के कारण समुद्री पवनों (Sea Winds) की अपेक्षा भारी होती हैं।

4. दैनिक गति (Rotation ):
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण कई स्थानों पर वायु इकट्ठी होती है तथा दूसरे स्थानों पर वायु दबाव कम हो जाता है। 60° अक्षांश पर कम वायु दबाव पृथ्वी की दैनिक गति के ही कारण है।

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प्रश्न 2.
समदाब रेखाएं क्या होती हैं? इनकी विशेषताएं बताओ।
अथवा
मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर:
समदाब रेखाएं (Isobars) – Iso शब्द का अर्थ है:
समान और Bar का अर्थ है – दाब । इसलिए Isobars का अर्थ है – समदाब रेखाएं (Lines of Equal Pressure) “Isobars are lines joining the places of same pressure reduced to sea level.” (धरातल पर समान वायु दबाव वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाओं को समदाब रेखाएं कहते हैं।) इस वायु दबाव को समुद्र – तल पर घटा कर दिखाया जाता है। ऊँचाई के प्रभाव को वायु दबाव में से घटा लेते हैं। यह कल्पना की जाती है कि सभी स्थान समुद्र – तल पर स्थित हैं। यदि कोई स्थान 300 मीटर ऊँचा है और उसका वास्तविक वायु दबाव 900 मिलीबार है तो उसका समुद्र तल पर वायु दबाव = 900 + 34 = 934 मिलीबार होगा क्योंकि प्रति 300 मीटर पर 34 मिलीबार वायु दबाव कम हो जाता है।

विशेषताएं (Characteristics):

  1. ये रेखाएं पूर्व – पश्चिम दिशा में फैली हुई होती हैं।
  2. ये दक्षिणी गोलार्द्ध में अक्षांश रेखाओं के लगभग समानान्तर हैं।
  3. ये रेखाएं अधिक दबाव से कम दबाव की ओर खींची जाती हैं।
  4. ये रेखाएं समुद्र पर स्थल की अपेक्षा अधिक नियमित (Regular) होती हैं।
  5. जलवायु मानचित्रों में वायुभार समदाब रेखाओं से दिखाया जाता है।
  6. इससे पवन की दिशा व गति का पता चलता है।

प्रश्न 3.
व्यापारिक तथा पश्चिमी पवनें क्या होती हैं? इनके विस्तार तथा दिशा का वर्णन करो। ये कैसे उत्पन्न होती हैं तथा अपनी दिशा क्यों बदलती हैं? इनके प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
स्थायी पवनें (Planetary Winds):
धरातल पर उच्च वायु दबाव तथा कम वायु दबाव की विभिन्न स्थायी पेटियां (Belts) मिलती हैं। उच्च वायु भार पेटियों की ओर से कम वायु भार की ओर निरन्तर पवनें चलती हैं। इन्हें स्थायी पवनें कहते हैं। ये सदा एक ही दिशा में चलती हैं। स्थायी पवनें तीन प्रकार की हैं

  1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds)
  2. प्रतिकूल व्यापारिक या पश्चिमी पवनें (Westerlies)
  3. ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)

1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds):
विस्तार (Extent): व्यापारिक पवनें वे स्थायी पवनें हैं जो उष्ण कटिबन्ध (Tropics) के बीच भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं। ये पवनें अश्व अक्षांशों (Horse Latitudes) या उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दबाव (Sub- Tropical High Pressure) के क्षेत्र से डोलड्रमस् (Doldrums) भूमध्य रेखा की कम वायु दबाव पेटी की ओर चलती हैं। इनका विस्तार प्रायः 5°—35° उत्तर तथा दक्षिण तक चला जाता है।
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दिशा (Direction): ये पवनें दोनों गोलाद्ध में पूर्व से आती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए इन्हें पूर्वी पवनें (Easterlies) भी कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तरी-पूर्वी (North-East) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण- पूर्वी (South-East) होती है।

नाम का कारण (Why so called?): इन पवनों को Trade Winds अर्थात् व्यापारिक पवनें कहने के दो कारण

  1. प्राचीन काल में यूरोप तथा अमेरिका के बीच बादबानी जहाज़ों को इन पवनों से बहुत सहायता मिलती थी ये पवनें Backing winds के रूप में जहाज़ों की गति बढ़ा देती थीं, इसलिए व्यापार में सहायक होने के कारण इन्हें व्यापारिक पवनें कहा जाता है।
  2. अंग्रेज़ी के मुहावरे ‘To blow trade’ का अर्थ है निरन्तर चलना ये पवनें लगातार एक ही दिशा में चलती हैं इसलिए इन्हें Trade winds या Track winds कहते हैं।

उत्पत्ति का कारण (Why caused):
भूमध्य रेखा पर अधिक गर्मी के कारण कम वायु दबाव पेटी मिलती है। भूमध्य रेखा से ऊपर उठने वाली गर्म तथा हल्की वायु 30° उत्तर तथा दक्षिण के पास ठण्डी तथा भारी होकर नीचे उतरती रहती है। ध्रुवों से खिसक कर आने वाली वायु भी अक्षांशों में नीचे उतरती है । इन उतरती हुई पवनों के कारण कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट उच्च वायु दबाव पेटी बन जाती है। इसलिए भूमध्य रेखा के न्यून वायु दबाव (Low Pressure) का स्थान ग्रहण करने के लिए 30° उत्तर तथा दक्षिण के उच्च वायुदाब से भूमध्य रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं।

दिशा परिवर्तन का कारण (Change in Direction):
यदि पृथ्वी स्थिर होती तो ये पवनें उत्तर दिशा में चलतीं परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें इस लम्बवत् दिशा से हट कर एक ओर झुक जाती हैं अर्थात् परे (Deflect) हो जाती हैं। फैरल के नियम (Ferral’s Law) तथा कोरोलिस बल के कारण ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रभाव (Effects):

  1. गर्म प्रदेशों की ओर चलने के कारण ये पवनें प्रायः शुष्क होती हैं।
  2. ये पवनें महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं तथा पश्चिमी भागों तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। यही कारण है कि पश्चिमी भागों में 20° – 30° में उष्ण मरुस्थल (Hot Deserts) मिलते हैं।
  3. ये पवनें उत्तरी भाग में उच्च दबाव (High Pressure) के निकट होने के कारण ठण्डी (Cool) तथा शुष्क (Dry) होती हैं। परन्तु भूमध्य रेखा के निकट दक्षिणी भागों में गर्म (Hot) तथा आर्द्र (Wet) होती हैं।
  4. ये पवनें समुद्रों पर निरन्तर तथा धीमी गति से चलती हैं। परन्तु महाद्वीपों पर इनकी दिशा व गति में अन्तर पड़ जाता है।

2. पश्चिमी पवनें (Westerlies):
विस्तार (Extent): ये पवनें वे स्थायी पवनें हैं जो शीतोष्ण (Temperate) खण्ड में 35° के उच्च वायु दबाव से 60° के उपध्रुवीय न्यून वायु दबाव (Subpolar Low Pressure) की ओर चलती हैं। इनका विस्तार प्राय: 35° से 65° तक पहुंच जाता है। इन पवनों की उत्तरी सीमा ध्रुवीय सीमान्त ( Polar Fronts) तथा चक्रवातों (Cyclones) के कारण सदा बदलती रहती है।

दिशा (Direction):
उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिमी ( South-West) होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-पश्चिमी (North-West) होती है।

नाम का कारण (Why so called ):
दोनों गोलाद्धों में ये पवनें पश्चिम से आती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए इन्हें पश्चिमी पवनें कहते हैं। इनकी दिशा व्यापारिक पवनों के विपरीत होती है। इसलिए उन्हें प्रतिकूल व्यापारिक पवनें (Anti-Trade Winds) भी कहते हैं।

उत्पत्ति का कारण (Why caused?):
कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट नीचे उतरती हुई पवनों (Descending Winds) के कारण उच्च वायु दबाव हो जाता है। भूमध्य रेखा से गर्म तथा हल्की वायु इन अक्षांशों से नीचे उतरती रहती है। इस प्रकार ध्रुवों से खिसक कर आने वाली वायु भी यहां उतरती है। परन्तु 60° अक्षांश के निकट Arctic circle तथा Antarctic circle पर पृथ्वी की दैनिक गति के कारण कम वायु दबाव हो जाता है। इसलिए 30° के उच्च वायु दबाव की ओर से 60° के कम वायु दबाव की ओर पश्चिमी पवनें चलती हैं।

दिशा परिवर्तन (Change in Direction ):
साधारणतया पवनों की दिशा उत्तर-दक्षिण होनी चाहिए, परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें लम्बवत् दिशा से हटकर एक ओर झुक जाती हैं। फैरल के नियम (Ferral’s law) के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रभाव (Effects):
1. समुद्रों की नमी से लदी होने के कारण ये पवनें अधिक वर्षा करती हैं।

2. ये पवनें पश्चिमी प्रदेशों में बहुत वर्षा करती हैं, परन्तु पूर्वी भाग शुष्क रह जाते हैं।

3. ये पवनें बहुत अस्थिर होती हैं । इनकी दिशा तथा शक्ति बदलती रहती है।चक्रवात (Cyclones) तथा प्रति- चक्रवात (Anti-Cyclones) इनके मार्ग में अनिश्चित मौसम ले आते हैं । वर्षा, बादल, कोहरा, बर्फ़ तथा तेज़ आंधियों के कारण मौसम लगातार बदलता रहता है।

4. यह दक्षिणी गोलार्द्ध में समुद्रों पर निरन्तर तथा तीव्र गति से चलती हैं। 40° – 50° दक्षिण के अक्षांशों में इन्हें गर्जता चलीसा (Roaring Forties) भी कहा जाता है। 50° – 60° दक्षिण में इन्हें प्रचण्ड पछुआ Furious Fifties तथा Shrieking Sixties कहते हैं। इन प्रदेशों में ये इतनी तेज़ी से चलती हैं कि दक्षिणी अमेरिका के सिरे (Cape Horn) पर समुद्री यातायात बन्द हो जाता है।

5. व्यापारिक पवनों की अपेक्षा इनका प्रवाह क्षेत्र बड़ा होता है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित स्थानीय पवनों का विस्तार – पूर्वक वर्णन करो-
1. स्थल तथा जल समीर।
2. पर्वतीय तथा घाटी पवनें।
3. चिनूक तथा फोएन पवनें।
उत्तर:
1. स्थल तथा जल समीर (Land and Sea Breezes):
धरातल पर स्थानीय पवनों का क्रम है। परन्तु जल तथा स्थल में तापमान की विभिन्नता के कारण कुछ स्थानीय पवनें जन्म लेती हैं। जल – समीर व स्थल – समीर वे अस्थायी पवनें हैं जो समुद्र तटीय प्रदेशों में अनुभव की जाती हैं। ये जल तथा स्थल की असमान गर्मी के कारण उत्पन्न होती हैं। इसलिए इन्हें छोटे पैमाने पर मानसून पवनें (Monsoons on a small scale) भी कहते हैं।

तीव्र गर्मी से स्थल भाग समुद्र की अपेक्
(क) जल समीर (Sea Breeze):
ये वे पवनें हैं जो दिन के समय समुद्र की ओर चलती हैं। उत्पत्ति के कारण (Origin) दिन के समय सूर्य की तीव्र गर्मी से स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक तथा जल्दी गर्म हो जाता है। स्थल पर वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा कम वायु दबाव हो जाता है, समुद्र पर स्थल की अंपेक्षा अधिक वायु दबाव रहता है। इस प्रकार स्थल के कम दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठण्डी पवनें चलती हैं। स्थल की गर्म वायु ऊपर उठकर समुद्र की ओर चली जाती है। इस प्रकार वायु के चलने का संवहन चक्र बन जाता है।
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प्रभाव (Effects):

  1. जल – समीर ठण्डी तथा सुहावनी (Cool and Fresh) होती ह।
  2. गर्मियों में तटीय भागों के तापक्रम को कम करती है, परन्तु सर्दियों में तटीय भागों के तापक्रम को ऊंचा करती है। इस प्रकार मौसम सुहावना तथा समान हो जाता है।
  3. इनका प्रभाव समुद्र तट से 33 कि० मी० की दूरी तक सीमित रहता है।

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(ख) स्थल समीर (Land Breeze ): ये वे पवनें हैं जो रात के समय स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
उत्पत्ति का कारण (Origin):
रात की स्थिति दिन विपरीत होती है। स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक तथा जल्दी ठण्डे हो जाते हैं। समुद्र पर वायु दबाव कम हो जाता है। परन्तु स्थल पर अधिक वायु दबाव होता है। इस प्रकार स्थल की ओर से समुद्र की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र की गर्म वायु ऊपर उठकर स्थल पर उतरती है जिससे वायु चलने का क्रम पूरा हो जाता है।

प्रभाव (Effects):

  1. इनका स्थल भागों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होता।
  2. इन पवनों का लाभ उठाकर मछली पकड़ने वाले प्रात: काल स्थल समीर (Land Breeze) की सहायता से समुद्र की ओर बढ़ जाते हैं तथा सायंकाल को जल- समीर (Sea Breeze) के साथ-साथ तट की ओर वापस आ जाते हैं।
  3.  इनका प्रभाव तभी अनुभव होता है जबकि आकाश साफ हो, दैनिक तापान्तर अधिक हो तथा तेज़ पवनों का अभाव हों।

2. पर्वतीय तथा घाटीय पवनें (Mountain and Valley Winds): ये पवनें साधारणतया दैनिक पवनें हैं जो दैनिक तापान्तर के फलस्वरूप वायु दबाव की विभिन्नता के कारण चलती हैं।
(क) पर्वतीय पवनें (Mountain Winds0): पर्वतीय प्रदेश में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर ठण्डी और भारी वायु बहती है जिसे पर्वतीय पवनें (Mountain Winds) कहते हैं।
उत्पत्ति ( Origin):
रात के समय तीव्र विकिरण (Rapid radiation) के कारण वायु ठण्डी तथा भारी हो जाती है। यह वायु गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती है। इसे वायु प्रवाह (Air Drainage) भी कहते हैं। इन्हें अवरोही पवनें (Katabatic Winds) भी कहते हैं।
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प्रभाव (Effects): इन पवनों के कारण घाटियां (Valleys ) ठण्डी वायु से भर जाती हैं जिससे घाटी के निचले भाग पर पाला पड़ता है। इसलिए कैलीफोर्निया (California) में फलों के बाग तथा ब्राज़ील में कहवा के बाग ढलानों पर लगाए जाते हैं।

(ख) घाटीय पवनें (Valley Winds ): दिन के समय घाटी की गर्म वायु ढाल से होकर शिखर की ओर ऊपर चढ़ती है। इसे घाटीय पवनें (Valley Winds) कहते हैं।
उत्पत्ति (Origin):
दिन के समय पर्वत के शिखर पर तीव्र गर्मी तथा विकिरण के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा वायु दबाव कम हो जाता है। उसका स्थान लेने के लिए घाटी से हवाएं ऊपर चढ़ती हैं। ज्यों-ज्यों पवनें ऊपर चढ़ती हैं, ठण्डी होती जाती हैं। इन्हें आरोही पवनें (Anabatic winds) भी कहते हैं।

प्रभाव (Effects):

  1. ऊपर चढ़ने के कारण ये पवनें ठण्डी होकर घनघोर वर्षा करती हैं।
  2. ये ठण्डी पवनें गहरी घाटियों में गर्मी की तीव्रता को कम करती हैं।

3. चिनूक तथा फोएन पवनें (Chinook and Foehn Winds):
उत्पत्ति (Origin):
ये गर्म तथा शुष्क पवनें हैं। ये पवनें पर्वतों के सम्मुख ढाल पर टकराकर ऊपर चढ़ती हैं। इस क्रिया के कारण ये ठण्डी होकर पवन के सामने वाले ढाल (Windward slope ) पर काफ़ी वर्षा करती हैं। फिर ये पवनें पर्वत के विपरीत ढाल पर नीचे उतरती हैं। ये नीचे उतरती हुई पवनें (Descending Winds) दबाव से गर्म तथा शुष्क हो जाती हैं तथा वर्षा नहीं करतीं। मैदानी भागों में उतर कर उनका तापमान बढ़ा देती हैं।

(क) चिनूक पवनें ( Chinook Winds):
अमेरिका में रॉकीज (Rockies) पर्वतों को पार करके प्रेयरी के मैदान में चलने वाली ऐसी पवनों को चिनूक (Chinook) पवनें कहते हैं। चिनूक का अर्थ है – बर्फ खाऊ (Snow Eater) क्योंकि ये पवनें अधिक तापक्रम के कारण बर्फ को पिघला देती हैं । कई बार 24 घण्टों के समय में 50°F (10° C ) तापमान बढ़ जाता है

(ख) फोएन पवनें (Foehn Winds ):
यूरोप में एल्पस (Alps) को पार करके स्विट्ज़रलैण्ड में उतरने वाली पवनों को फोएन (Foehn) पवनें कहते हैं।
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प्रभाव (Effects):

  1. ये पवनें तापमान बढ़ा देती हैं जिससे बर्फ पिघल जाती है और फसलों के पकने में सहायता मिलती है।
  2. ये पवनें शीतकाल की कठोरता को कम करती हैं।
  3. बर्फ के पिघल जाने से पहाड़ी चरागाह सारा साल खुले रहते हैं तथा पशु-पालन की सुविधा रहती है।

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प्रश्न 5.
शीतोष्ण चक्रवात कैसे निर्मित होते हैं ? इनकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
शीतोष्ण चक्रवात ( Temperate Cyclones): ये चक्रवात पश्चिमी पवनों के क्षेत्र में 350 से 650 अक्षांशों के बीच तरंगों की तरह जन्म लेते हैं तथा पश्चिम से पूर्व दिशा में आगे बढ़ते हैं।
शीतोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति दो प्रकार से होती है

  1. धरातलीय अग्र ( Surface Front ) की अस्थिर पवनों से।
  2. उच्च-वायु (Upper Air) द्रोणी के नीचे की ओर प्रसार से।

इन चक्रवातों की उत्पत्ति के विषय में ध्रुवीय सीमान्त सिद्धान्त (Polar Front Theory ) प्रस्तुत किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार चक्रवात की उत्पत्ति दो भिन्न तापमान वाली वायु राशियों के मिलने से होती है। इस सिद्धान्त के अनुसार चक्रवात के जीवन के इतिहास में अवस्थाओं का एक क्रम देखा जा सकता है:

  1. पहली अवस्था: इस अवस्था में दो वायु राशियां एक-दूसरे के निकट आती हैं तथा अग्र (front ) की रचना होती है। ध्रुवों की तरफ से शीतल वायु राशि तथा भू-मध्य रेखा की ओर से गर्म वायु विपरीत दिशाओं में आती है।
  2. दूसरी अवस्था: इस अवस्था में उष्ण वायु राशि में एक उभार उत्पन्न हो जाता है तथा अग्र एक तरंग का रूप धारण कर लेता है। अग्र के दो भाग हो जाते हैं- उष्ण अग्र तथा शीतल अग्र । गर्म वायु राशि उष्ण उग्र (Warm
    front) की शीतल वायु से टकराती है।
  3. तीसरी अवस्था: इस अवस्था में शीतल अग्र तेज़ी से आगे बढ़ता है। तरंगों की ऊँचाई तथा वेग में वृद्धि हो जाती है। गर्म वायु राशि का भाग छोटा हो जाता है।
  4. चौथी अवस्था: इस अवस्था में तरंगों की ऊँचाई अधिकतम हो जाती है। दोनों वायु राशियों में धाराएं वृत्ताकार गति प्राप्त कर लेती हैं तथा चक्रवात का विकास होता है।
  5. पांचवीं अवस्था: इस अवस्था में शीतल अग्र उष्ण अग्र को पकड़ लेता है। शीतल वायु उष्ण वायु को धरातल पर दबा देती है।
  6. अन्तिम अवस्था: इस अवस्था में उष्ण वायु अपने स्रोत से हट कर ऊपर उठ जाती है धरातल पर एक शीतल वायु का विशाल भंवर (whirl) चक्रवात का निर्माण करता है

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शीतोष्ण चक्रवात की मुख्य विशेषताएं:

  1. ये चक्रवात पश्चिमी पवनों के क्षेत्र में 35° से 65° के अक्षांश के बीच पश्चिम पूर्व दिशा में चलते हैं।
  2. साधारणतः ये वृत्ताकार होते हैं परन्तु कुछ चक्रवात ‘V’ आकार के होते हैं।
  3. इनकी लम्बवत् मोटाई 9 से 11 किलोमीटर तथा व्यास 1000 किलोमीटर चौड़ा होता है।
  4. चक्रवात में अभिसारी पवनें केन्द्र में वायु को ऊपर उठा देती हैं। इसके परिणामस्वरूप मेघों का निर्माण तथा वर्षा होती है।
  5. साधारणतः इनकी गति 50 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीतकाल में इनकी गति अधिक होती है।
  6. इसकी संरचना में दो अग्र (Fronts ), दो खण्ड (Sectors) तथा चार वृत्तपाद (Quadrants) होते हैं। उष्ण अग्र दक्षिणी-पूर्वी वृत्तपाद में होता है जबकि शीतल अग्र दक्षिणी-पश्चिमी वृत्तपाद में होता है।

JAC Class 10 Hindi रचना संदेश लेखन

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अपने मनोभावों और विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम संदेश-लेखन कहलाता है। इस माध्यम के द्वारा हम अपने प्रियजन, सहपाठियों, मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या संबंधियों को किसी शुभ अवसर, त्योहार या फिर परीक्षा अथवा नौकरी में सफलता प्राप्त करने आदि अवसरों में अपने मन के भावों को संदेश लिखकर आत्मीयता से प्रकट करते हैं। इस प्रकार संदेश लेखन के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजने के साथ-साथ नि:संदेह उनका मनोबल बढ़ाना होता है।

संदेश लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य प्रमुख बिंदु – 

  1. संदेश को बॉक्स के अंदर लिखना चाहिए।
  2. संदेश लिखते समय शब्द, शब्द-सीमा 30 से 40 शब्द ही होनी चाहिए।
  3. संदेश हृदयस्पर्शी तथा संक्षिप्त होने चाहिए।
  4. बॉक्स के बाएँ शीर्ष में दिनांक और उसके नीचे स्थान अवश्य लिखें।
  5. संदेश के आखिर में नीचे प्रेषक का नाम लिखना न भूलें।
  6. संदेश लिखते समय केवल महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करें।
  7. मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
  8. संदेश लेखन में तुकबंदी वाली प्रभावशाली पंक्तियाँ भी लिखी जाती हैं।
  9. संदेश दो प्रकार के अनौपचारिक व औपचारिक हो सकते हैं।

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उदाहरण स्वरनप कुछ संदेश दिए गए हैं –

1. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने सहेली को 30 से 40 शब्दों में एक शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

15 अगस्त, 20XX
चेन्नई
प्रिय सहेली।
स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है, विजयी-विश्व का गान अमर है। देश-हित सबसे पहले है, बाकी सबका राग अलग है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ। रोशनी

2. अपने मित्र को वसंत पंचमी के अवसर पर शब्बों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संवेश

10 फ़रवरी, 20
नई दिल्ली
मित्रवर,
गेंदा गमके महक बिखेरे।
उपवन को आभास दिलाए।
बहे बयरिया मधुरम-मधुरम।
प्यारी कोयल गीत जो गाए।
ऐसी बेला में उत्सव होता जब।
वाग्देवी भी तान लगाए।
आपको वसंत पंचमी के अवसर पर ढेर सारी बधाई और उम्मीद है कि आप हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक वसंतोत्सव में वाग्देवी की सेवा में सहभागिता देंगे।
आर्यन

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3. आप अमेरिका में रहते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने भारतीय सहेली को 30 से 40 शब्बों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

26 जनवरी, 20
नवी मुंबई
प्रिय मान्यता।
भारत देश हमारा है यह हमको जान से प्यारा है
दुनिया में सबसे न्यारा यह सबकी आँखों का तारा है
मोती हैं इसके कण-कण में बूँद-बूँद में सागर है
प्रहरी बना हिमालय बैठ धरा सोने की गागर है।
इस गणतंत्र दिवस की आप और आपके परिवार को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत देश ऐसे ही कामयाबी की बुलंदियों को छूता रहे। अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में अपना योगदान देना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
कविता

4. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शिष्य द्वारा विज्ञान शिक्षक को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

28 फ़रवरी, 20XX
नई दिल्ली
आदरणीय गुरुदेव,
28 फ़रवरी, 1928 को सर सी०आर० रमन ने 1930 में अपनी खोज की घोषणा कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया था। जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान को जीवन के अनुभव के साथ जोड़कर शिक्षा देता है और उस शिक्षा से शिक्षार्थी का जीवन सार्थक बनता है, वही विषय विज्ञान कहलाता है। हर दिन आपके द्वारा पढ़ाए गए विज्ञान विषय से मेरी रुचि में अद्भुत परिवर्तन आया। आपके अनुभव ने मेरा और मुझ जैसे अनेक शिष्यों का मार्गदर्शन कर आदर्श विज्ञान शिक्षक की भूमिका का निर्वाह किया। आपका उद्देश्य सर्वदा विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना रहा है। ऐसे विशिष्ट गुरु को मेरा शत-शत प्रणाम। विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अभिनव

5. विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन पर अध्यक्ष द्वारा विद्यार्थियों को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

5 अप्रैल, 20
कोलकाता
प्रिय विद्यार्थियो,
सत्र 20-20 की वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उत्कृष्ट लेख, नाटक, प्रहसन, चुट्कुले, निबंध आदि के प्रकाशन हेतु प्रवेश नियम विद्यार्थियों को विद्यालय के सूचना बोर्ड पर शर्तों के साथ सूचित कर दिया गया है। इस साहित्यिक पत्रिका में विद्यार्थियों का चहुमुखी साहित्यिक विकास होगा और आप कवि या लेखक के रूप में लेखन द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करेंगे, मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
अध्यक्ष
शिखर त्रिवेदी

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6. अपने मित्र की नौकरी में पदोन्नति होने पर बधाई देते हुए शुभकामना संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

संदेश

8 जून, 20
नई दिल्ली
मित्रवर,
फूल बनके मुसकराना ज़िंदगी है
मुसकरा कर गम भुलाना भी ज़िंदगी है
जीत कर खुश हो तो अच्छा है पर,
हार कर खुशियाँ मनाना भी ज़िंदगी है
आपने अपनी योग्यता और कुशलता का अद्भुत परिचय तो परीक्षा का अंतिम पड़ाव पारकर सभी का दिल जीत लिया था। आज फिर वह अवसर आ गया है कि आपको योग्यता और परिश्रम के बल पर पदोन्नति मिली है, आप इस पदोन्नति के सच्चे हकदार हैं। भविष्य में भी आप अपने सहकर्मियों के लिए एक आदर्श बने रहेंगे। आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जयंत शुक्ल

7. अपनी पूजनीया माता जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

14 अप्रैल, 20
नई दिल्ली
खुद से पहले तुम मुझे खिलाती थी,
रोने पर तुम भी बच्चा बन जाती थी,
खुद जाग-जागकर मुझे सुलाती थी,
शिक्षक बनकर तुम मुझे पढ़ाती थी,
कभी बहन कभी सहेली बन जाती थी।
आपने-अपने प्रेम, परम त्याग और आदर्शों से पूरे परिवार को प्रेम के धागे में बाँधे रखा। हमेशा अपने मश्दु अनुभवों से हमारा मार्गदर्शन किया। मैंने माँ के रूप में सच्ची सहेली और शिक्षिका पाया। आपके चरणों में शत-शत नमन। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
अनन्या

JAC Class 10 Hindi रचना संदेश लेखन

8. मोबाइल फोन को कम उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

22 जुलाई, 20
नई दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियो
खोजा बहुत ही उसको, नहीं मुलाकात हुई उससे।
घर-घर में खिलता था वह बचपन बिना मोबाइल जो।
जो करता दुरुपयोग इसका नर्वस सिस्टम होता खराब।
बीमारियों का आमंत्रण, डिप्रैशन, अनेक विकार।
स्मरण शक्ति का निश्चय होता है ह्रास।
रवि

9. अपनी छोटी बहन के जन्मदिवस पर उसे एक बधाई संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
शुभकामना संवेश
दिनांक : 6 नवंबर, 20
समय : प्रातः 6 : 00 बजे
प्रिय आयुषि
जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।
खुशियाँ व सफलता तुम्हारे कदम चूमें। मेरी ईश्वर से यही दुआ है कि तुम दीर्घायु हो, स्वस्थ रहो और प्रगति के मार्ग प्रशस्त करती रहो। तुम्हारी बड़ी बहन
कामिनी

JAC Class 10 Hindi रचना संदेश लेखन

10. ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर अपने हिंदी शिक्षक के लिए एक भावपूर्ण संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
दिनांक : 5 सितंबर, 20 संदेश
समय : प्रातः 8: 00 बजे
आदरणीय गीता मैडम
शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
“मातृभाषा (हिंदी) का हमें ज्ञान कराया
अपने अथक प्रयासों से हमारे भविष्य को चमकाया।
आप जैसे शिक्षक से हमने अपना जीवन धन्य पाया।”
“शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ”
आपका शिष्य
क० ख० ग०

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है ? इससे संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका की क्या इच्छा होती है ?
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है ? अपने शब्दों में लिखिए।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या ? स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) तट पर एक गुलाब सोचता है, “देते स्वर यदि मुझे विधाता, अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता। ”

(ख) जब शुक गाता है तो उसका स्वर सारे जंगल में गूँज उठता है, परंतु शुकी चुपचाप रहती है और अपने पंख फुलाकर भविष्य में मिलने वाले मातृत्व के सुखद भावों में डूबी रहती है।

(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका उसका गीत सुनने घर से बाहर उस स्थान तक आ जाती है जहाँ प्रेमी गीत गा रहा होता है। वह एक नीम के पेड़ के नीचे छिपकर उसका गीत सुनती रहती है और मन-ही-मन सोचती है कि वह अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई ? प्रेमी गीत गाता रहता है और प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जाता है।

(घ) नदी पहाड़ से उतरकर कल-कल ध्वनि करती हुई निरंतर बहते हुए सागर की ओर तेजी से बढ़ती जाती है। नदी अपने रास्ते में पड़े हुए पत्थरों से टकराकर आगे बढ़ती जाती है। नदी के किनारे गुलाब के फूल उगे हुए हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है जो किसी सामान्य मानव की तरह अपने भावों को व्यक्त करती है। वह अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए तेज़ वेग से बहती हुई अपने हृदय में छिपी प्रेमकथा अपने तल में पड़े पत्थरों को सुनाती जाती है और नदी किनारे उगा गुलाब सोचता है कि यदि उसके पास वाणी होती तो वह भी पतझड़ के सपनों का गीत सुनाता।

(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों का संबंध तो मणि- कंचन योग की तरह है। पशु-पक्षी अपने सुंदर रंगों, तरह-तरह के रूप- आकारों, आवाज़ों और चहचहाहट से प्रकृति को जीवंतता प्रदान करते हैं। हरे-भरे पेड़ जब तक पक्षियों के कलरव से गुंजायमान नहीं होते; झाड़ियों के झुरमुट तरह-तरह के कीड़े-मकोड़ों की ध्वनियों से नहीं गूँजते और जंगल छोटे-बड़े जीवों की आवाज़ों से नहीं थर्राते तब तक प्रकृति सूनी-सी लगती है। भागते-दौड़ते पशु, उड़ते – मंडराते पक्षी, रेंगते – सरकते कीड़े और सरीसृप, तालाब में तैरती मछलियाँ और टर-टर्राते मेंढक और बादलों में उड़ती सारसों की पंक्तियाँ ही प्रकृति को जीवन देती हैं। प्रकृति और पशु-पक्षी एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं।

(च) मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। मनुष्य प्रकृति का हिस्सा ही तो है। प्रकृति उसे सदा आंदोलित करती रहती है तथा उसकी विभिन्न प्रेरणाओं की आधार बनती है। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल, उड़ते रंग-बिरंगे पक्षी तथा तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े मानव को सदा आंदोलित करते हैं कि वह भी उनकी तरह आकाश में उड़ान भरे और मनुष्य हवा में उड़ान भरने के लिए साधन बना लिए। पानी में मछली की तरह तैरना सीख लिया; सागर की गहराइयों में गोते खाना सीख लिया। ऊँचे पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों को देख ऊँचे-ऊँचे भवनों में रहना सीख लिया। प्रकृति सदा मनुष्य को प्रेरणा देती है, दिशा दिखाती है। तभी तो वह तितली के रंगों से प्रेरित रंग-बिरंगे कपड़े पहनना सीख गया।

(छ) यदि मन के कोमल भावों को गाकर मधुर स्वर में प्रकट करना गीत है तो मन के वे कोमल भाव अगीत हैं जो मन में छिपे रहते हैं। वे मुखर नहीं होते, मौन रह जाते हैं। यदि गीत हैं तो वे अगीत के कारण से हैं। मन में छिपे सभी कोमल-कठोर भाव अगीत ही तो हैं जो शब्दों का रूप नहीं ले पाते। यदि अगीत न हों तो गीत बन नहीं सकते। गीत तो अगीत के ही शाब्दिक रूप हैं। इस संसार के हर मानव में हर समय तरह-तरह के भाव उत्पन्न होते रहते हैं। वे भाव, प्रेम, घृणा, वीरता, भक्ति, साहस, करुणा आदि के हो सकते हैं, पर हर भाव तब तक गीत नहीं बनता जब तक उसे शब्द प्राप्त नहीं हो जाते। वास्तव में भावों के रूप में अगीत पहले बनते हैं और गीतों की सर्जना बाद में होती है।

(ज) ‘गीत-अगीत’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम की पहचान प्रदर्शन में नहीं अपितु मौन-भाव से प्रेम की पीड़ा को पी जाने में है। नदी विरह गीत गाते हुए तीव्र गति से सागर से मिलने चली जाती है। वह अपनी विरह व्यथा अपने मार्ग में आने वाले पत्थरों को सुनाती है, परंतु नदी किनारे उगा हुआ गुलाब मौन-भाव से सोचता रहता है तथा अपने प्रेम-भावों को व्यक्त नहीं करता है। तोता दिन निकलने पर मुखरित हो उठता है परंतु तोती स्नेहभाव में डूबी मौन रहती है। प्रेमी उच्च स्वर में आल्हा गाकर अपना प्रेम व्यक्त करता है परंतु प्रेमिका छिपकर उसका गीत सुनकर भी मौन रहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

प्रश्न 2.
संदर्भ – सहित व्याख्या कीजिए –
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
(ख) गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
(ग) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?
यों मन में गुनती है।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के लिए पद क्रमांक 1, 2, 3 की व्याख्या देखिए।

भाषा-अध्ययन –

निम्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य- विचलन’ को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य – विन्यास लिखिए –
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता- एक गुलाब तट पर सोचता है।
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
(ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
(ङ) शुकी बैठी अंडे है सेती।
उत्तर :
(क) यदि विधाता मुझे स्वर देते।
(ख) उस घनी डाल पर शुक बैठा है।
(ग) वन में शुक का स्वर गूँज रहा है।
(घ) मैं गीत की कड़ी क्यों न हुई ?
(ङ) शुकी बैठकर अंडे सेती है।

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘गीत-अगीत’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु मौन भाव में है।
उत्तर :
‘गीत-अगीत’ कविता में कविवर श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने प्रेम के साहित्यिक पक्ष को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि का मानना है कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु प्रेम की पीड़ा को मौन भाव से पी जाने में है। इसे कवि ने नदी और गुलाब, शुक और शुकी तथा प्रेमी और प्रेमिका की निम्नलिखित तीन स्थितियों के माध्यम से स्पष्ट किया है –

(क) नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेजी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है। लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझड़ में मिलने वाली हताशा और दुख प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गाकर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है।

(ख) एक तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रहा है जिस पर उसका घोंसला है घोंसले में तोती पंख फुला कर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छनकर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में मग्न है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुला कर मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है।

(ग) शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने यह सोचकर नहीं जाती कि कहीं उसका प्रेमी गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई? प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय मूक प्रसन्नता से भरता जा रहा है।

इन तीनों स्थितियों में नदी, शुक और प्रेम मुखरित हैं किंतु गुलाब, शुकी और प्रेमिका अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करते हैं किंतु मन-ही-मन प्रेम का आस्वादन करते हैं। इनका प्रेम भी नदी, शुक और प्रेमी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इनका यह मौन भाव ही इनके सात्विक प्रेम की पहचान है। इसलिए स्पष्ट है कि सच्चा प्रेम मुखरता में नहीं बल्कि मौन भाव में होता है।

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प्रश्न 2.
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कैसे कम करती है और उसके विरह के गीत कौन सुनता है ?
उत्तर :
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कम करने के लिए पहाड़ से नीचे उतरते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते हुए विरह के गीत गाती है। अपनी विरह – पीड़ा की कथा कल-कल ध्वनि से सुनाती है। उसकी विरह कथा किनारे या मध्य पड़े पत्थर सुनते हैं। इस तरह नदी अपनी बात कह कर अपना मन हल्का कर लेती है।

प्रश्न 3.
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब का फूल क्या सोच रहा है ?
उत्तर :
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब सोचता है कि यदि भगवान ने उसे भी वाणी दी होती तो वह भी की कहानी सुनाता। वह भी संसार को बताता कि पतझड़ आने पर वह कैसे निराश और दुखी हो जाता है

प्रश्न 4.
शुक अपना प्यार कैसे व्यक्त करता है ?
उत्तर :
शुक अपने परिवार के साथ पेड़ की शाखा पर बने घोंसले में रहता है। शुकी घोंसले में अंडों को सेने का काम करती है। वह मातृत्व के स्नेह में डूबी हुई है। शुक सूर्य निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छनकर उसकी ओर आती हैं तो वह प्रसन्नता से भर जाता है और मधुर गीत गाने लगता है। इस प्रकार वह अपना प्रेम प्रकट करता है।

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प्रश्न 5.
शुकी, शुक के प्रेम-भरे गीत सुनकर भी बाहर क्यों नहीं आती है ?
उत्तर :
शुकी घोंसले में अपने पंख फैलाकर अपने अंडे सेने का काम कर रही है। वह मातृत्व स्नेह से भरी हुई है। उसे शुक के प्रेम-भरे गीत सुनाई दे रहे हैं। परंतु उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। शुकी अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। वह शुक का प्रेम-गीत सुन रही है, परंतु उसका प्रेम मौन रूप धारण किए हुए है। वह अपना प्रेम प्रकट नहीं करती है क्योंकि वह मातृत्व के सुखद भावों में डूबी हुई है।

प्रश्न 6.
प्रेमी आल्हा गीत क्यों गाता है ?
उत्तर :
कवि एक प्रेमी जोड़े का वर्णन करता है। प्रेमी संध्या होते ही आल्हा की कथा रसमय ढंग से गाने लगता है। से अपनी प्रेमिका को अपने पास बुलाना चाहता है। वह चाहता है कि उसके गीत सुनकर, उसकी प्रेमिका उसके वह अपने प्रेम को गीतों के माध्यम से व्यक्त करता है।

प्रश्न 7.
प्रेमिका का प्रेम मौन क्यों है ?
उत्तर :
प्रेमिका प्रेमी की आल्हा की कथा सुनकर अपने को रोक नहीं पाती है। वह घर से प्रेम में डूबी हुई निकल पड़ती है। वह घर से प्रेमी से मिलने निकलती है, परंतु वह उसके सामने न जाकर एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ी हो जाती है। वहीं खड़े-खड़े वह अपने प्रेमी द्वारा गाए जा रहे गीत सुनती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि ईश्वर उसे प्रेमी के गीत की एक कड़ी बना दे। वह मौन रहकर अपने प्रेम को प्रकट करती है। वह अपने प्रेम को शब्दों में व्यक्त नहीं करती है।

व्याख्या :

1. गाकर गीत विरह के तटिनी वेगवती बहती जाती है।
दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता, “देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता।”
गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : तटिनी नदी वेगवती तेज़ी से बहने वाली। उपलों – पत्थरों। विधाता – ईश्वर। जग – संसार। निर्झरी नदी। पाटल – गुलाब, रंग के जैसा। मूक – चुपचाप।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने प्रेम और शृंगार के भावों को व्यंजित किया है। उसने माना है कि प्रेम-भावों में मौन रहने वालों का महत्व किसी प्रकार से भी कम नही है। तीन चित्रों में से प्रस्तुत पहले चित्र में नदी और गुलाब के रूपक से कवि ने अपने कथन की सार्थकता को प्रमाणित करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए कहता है कि गीत के स्वर प्रकट करना अच्छा है या मौन रहना ? वह प्रश्न का उत्तर देने की अपेक्षा चित्र प्रस्तुत करता है। नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेज़ी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती जाती है। कल-कल की ध्वनि करती हुई नदी निरंतर बहती रहती है, अपनी विरह – पीड़ा की कथा कहती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है।

लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझर में मिलने वाली हताशा और दुख को प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गा कर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है। पता नहीं, व्यक्त किया गया गीत अच्छा है या मौन भाव से प्रकट किया गया भाव श्रेष्ठ है ?

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2. बैठा शुक उस घनी डाल पर जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर रह जाते स्नेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : शुक – तोता। खोंते – घोंसले, नीड़। शुकी – तोती। पर्ण – पत्ते। स्नेह – प्यार। सनकर – युक्त होकर। फूला – प्रसन्नता से भरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि प्रेम के मौन और मुखर रूपों में से किसी एक को श्रेष्ठ घोषित करना चाहता है पर वह ऐसा शब्दों में न कर शब्द-चित्रों के द्वारा प्रकट करता है।

व्याख्या : तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रही है। उस पर उसका घोंसला है। घोंसले में तोती पंख फुलाकर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छन कर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुलाकर भावी मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है। कवि प्रश्न करता है कि पता नहीं गीत सुंदर है या अगीत ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

3. दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब पड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?’ यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : बिधना – ब्रह्म, भाग्य। आल्हा – पृथ्वीराज चौहान के समय का एक योद्धा, वीर रस का गीत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गीत-अगीत में अंतर स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चित्र अंकित किए हैं जिनके माध्यम से मौन प्रेम को महत्वपूर्ण बताया है। नदी – गुलाब तथा शुक शुकी के चित्रों के माध्यम से उसने प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम-भाव को प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यहाँ दो प्रेमी हैं। शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने भी एकदम से नहीं जाती शायद यह सोचकर कि उसका प्रेमी कहीं गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई। प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जा रहा है। पता नहीं, प्रेमी के द्वारा गाकर प्रकट किया गया प्रेम-भाव महत्वपूर्ण है या प्रेमिका के द्वारा छिपकर प्रकट किया मौन प्रेम ?

गीत – अगीत Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय चेतना का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। मोकामाघाट के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्होंने सन् 1932 में पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया।

सन् 1950 में बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे सन् 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। इसके बाद वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। कुछ वर्षों तक आप भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1959 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनका निधन सन् 1974 में हुआ।

रचनाएँ – कविवर दिनकर ने अपनी रचनाएँ काव्य, निबंध आलोचना, बाल-साहित्य आदि के रूप में प्रस्तुत की हैं। ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘उर्वशी’, ‘हुंकार’, ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘द्वंद्वगीत’, ‘धूप-छाँह ‘, सीपी और शंख’, ‘धूप और धुआँ’ आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।

‘संस्कृति के चार अध्याय’ आपका संस्कृति संबंधी एक विशाल ग्रंथ है। ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘मिट्टी की ओर’ तथा ‘अर्द्ध- नारीश्वर’, उनकी प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ हैं। ‘चित्तौड़ का साका’ तथा ‘ मिर्च का मज़ा इनके बाल-साहित्य के अंतर्गत लिखी गई पुस्तकें हैं।

काव्य की विशेषताएँ – कविवर दिनकर सर्वोन्मुखी प्रतिभा के कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध पक्षों को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की अनेक समस्याओं को अपने काव्य में संजोया है। उनके काव्य का मुख्य स्वर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय उत्थान की भावना है। उन्होंने विश्व में व्याप्त वर्ग संघर्ष व पूँजीवादी व्यवस्था का भी विरोध किया है। प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से भी इनके काव्य में ग्राम्य-जीवन सजीव हो उठता है।

कवि के हृदय में समाज के दलित वर्ग के प्रति सहानुभूति का स्वर दिखाई देता है। कवि की भाषा सहज, सरल, मधुर एवं तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। लाक्षणिकता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने मुख्य रूप से गीति – शैली को अपनाया है। इन्होंने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों ही शैलियों में काव्य-रचनाएँ की हैं। छंद और अलंकारों की विविधता इनके काव्य की विशेषता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

कविता का सार :

श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ शृंगारिक चेतना से परिपूर्ण रचना है जिसमें जीवन में प्रेम और कोमलता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। कवि मानता है कि प्रेम की महानता उसकी पहचान करने में नहीं है बल्कि मौन भाव में सारी पीड़ा को पी जाने में है। कवि ने तीन रूपकों के माध्यम से अपने भाव कहने चाहे हैं। वे रूपक हैं-सरिता और गुलाब, मुखर शुक और मौन शुकी तथा आल्हा गाने वाला प्रेमी और चोरी-चोरी उसका गीत सुनने वाली उसकी प्रेमिका।

नदी विरह के गीत गाती हुई तीव्र वेग से बहती हुई आगे निकल जाती है। वह किनारे पड़े पत्थरों से कुछ-कुछ कहकर अपना हृदय हल्का कर लेती है पर नदी के किनारे उगा हुआ एक गुलाब मौन भाव से सोच में डूबा रहता है। वह अपने प्रेम-भावों को प्रकट नहीं कर पाता। एक डाली पर तोता बैठा है और उसके कुछ नीचे घोंसले में पड़े अंडों को तोती से रही है। धूप की सुनहरी किरणों को पाकर तोता तो गाता है पर तोती स्नेह भाव में डूबी मौन है, वह कुछ नहीं बोलती।

प्रेमी संध्या समय आल्हा गाता है। वह अपने प्रेम को गीत के माध्यम से व्यक्त करता है पर उसकी प्रेमिका नीम की छाया में चुपचाप गीत सुनती है, कुछ बोलती नहीं, पर सोचती अवश्य है कि भाग्य ने उसे गीत की कड़ी क्यों नहीं बना दिया। इस कविता में जो नहीं कहा गया, वह कहे गए से अधिक महत्वपूर्ण है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति

प्राकृत संख्याएँ वस्तुओं की गिनती करने के लिए हम 1, 2, 3, 4,… आदि संख्याओं का प्रयोग करते हैं। इन संख्याओं को प्राकृत संख्याएँ कहते हैं। इनकी संख्या अनन्त होती है। प्राकृत संख्याओं के समूह को N द्वारा व्यक्त करते हैं।
जैसे N = {1, 2, 3, 4, 5,…..}

पूर्ण संख्याएं: यदि प्राकृत संख्याओं में 0 (शून्य) को सम्मिलित कर लिया जाए, तो प्राप्त संख्याओं के समूह को पूर्ण संख्याएँ कहा जाता है। इस समूह को W से व्यक्त किया जाता है।
जैसे W = {0, 1, 2, 3, 4….}

प्राकृत संख्याओं और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय में अन्तर :
प्राकृत संख्याओं का समुच्चय N = {1, 2, 3…} है और पूर्ण संख्याओं का समुच्चय W = {0, 1, 2, 3….} है।
प्राकृत और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय की तुलना करने पर, हम देखते हैं कि

  • समस्त प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्याएँ हैं।
  • 0 के अतिरिक्त समस्त पूर्ण संख्याएँ प्राकृत संख्याएँ हैं।
  • 1 सबसे छोटी प्राकृत संख्या है जबकि 0 सबसे छोटी पूर्ण संख्या है।
  • प्राकृत तथा पूर्ण संख्याएँ अनन्त होती हैं।

पूर्णांक संख्याएँ : यदि प्राकृत संख्याओं में ऋण संख्याओं को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो प्राप्त संख्याओं के संग्रह को पूर्णांक संख्याएँ कहा जाता है, और इन्हें Z or I प्रतीक से व्यक्त किया जाता हैं। ये दो प्रकार की होती हैं:
(i) धन पूर्णांक,
(ii) ऋण पूर्णांक
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति 1
(i) संख्या रेखा पर शून्य के दार्यों और के पूर्णांक, धन पूर्णांक तथा शून्य के बायीं ओर के पूर्णांक, ऋण पूर्णांक कहलाते हैं।
(ii) शून्य, प्रत्येक धन पूर्णांक से छोटा तथा सभी ऋण पूर्णांकों से बड़ा होता है।

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परिमेय संख्याएँ : ऐसी संख्याएँ जो \(\frac{p}{q}\) के रूप में व्यक्त की जा सकती हों तथा जहाँ p और पूर्णांक हों, परन्तु q ≠ 0, परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}, \frac{2}{3}, \frac{-4}{5}, \frac{7}{3}, \frac{-6}{7}, \ldots\) इत्यादि।

  • प्रत्येक प्राकृत संख्या परिमेय संख्या है।
  • 0 एक परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक पूर्णांक परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक भिन्न परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक परिमेय संख्या का दशमलव भिन्न के रूप में प्रसार किया जा सकता है।

परिमेय संख्याओं का दशमलव प्रसार दो प्रकार का होता है:
(i) सांत,
(ii) असांत (अनवसानी आवर्ती)।

सांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्याएँ, जो कि सदा \(\frac{p}{q}\) के रूप में होती है, p में q का भाग देने पर अन्त में शेषफल शुन्य प्राप्त होता है, तो वे दशमलव संख्याएँ सांत दशमलव प्रसार वाली परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}\) = 0.5, \(\frac{3}{2}\) = 1.5, \(\frac{1}{8}\) = 0.125 आदि।

असांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्या को दशमलव संख्या में बदलते समय भाग की क्रिया निरन्तर चलती रहती है और शेषफल की निरंतरता बनी रहती है अर्थात् भागफल में अंकों की पुनरावृत्ति होती रहती है इस प्रकार की दशमलव संख्याओं को असांत आवर्ती दशमलव संख्या कहते हैं असांत दशमलव संख्या को संक्षिप्त रूप में लिखने के लिए पुनरावृत्ति वाले अंकों के ऊपर (-) रेखा खींचते हैं।
जैसे : \(\frac{3}{11}\) = 0.272727…….. = \(0 . \overline{27}\)
\(\frac{1}{3}\) = 0.333……. = \(0 . \overline{3}\) इत्यादि।
इन्हें असांत आवर्ती (Non-terminating Repeating) परिमेय संख्याएँ भी कहते हैं।

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परिमेय संख्याओं के महत्त्वपूर्ण बिन्दु :

  1. प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक व भिन्नें सभी परिमेय संख्याएँ होती हैं।
  2. भिन्न के अंश और हर प्राकृत संख्याएँ होती हैं, जबकि परिमेय संख्या के अंश और हर पूर्णांक होते हैं। परन्तु परिमेय संख्या का हर शून्य नहीं होता।
  3. संख्या रेखा पर परिमेय संख्याएँ प्रदर्शित की जा सकती हैं।
  4. किसी परिमेय संख्या के अंश और हर को समान अशून्य पूर्णांक से गुणा करने अथवा भाग देने पर समतुल्य परिमेय संख्याएँ प्राप्त होती हैं।
  5. दो परिमेय संख्याओं के बीच में अनन्त परिमेय संख्याएँ निहित होती हैं।
  6. प्रत्येक परिमेय संख्या को सांत अथवा असांत आवर्ती दशमलव संख्या के रूप में लिखा जा सकता है।
  7. सांत परिमेय संख्या का हर सदैव 2m × 5n के रूप में होता है।
  8. यदि परिमेय संख्या का हर 2m × 5n के रूप में नहीं है तो वह असांत आवृत्ति होती है।
  9. यदि परिमेय संख्या के अंश तथा हर में एक के अतिरिक्त अन्य कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड नहीं है तो वह परिमेय संख्या का मानक रूप (Standard form) कहलाता है।
  10. परिमेय संख्या ऋणात्मक हो सकती है किन्तु उसका हर सदैव धनात्मक ही लिया जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है –
सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
(ख) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
(ग) पुजारी से प्रसाद। फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
(घ) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप
उत्तर :
(क) बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भाँति इस बार उसे।
(ख) ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण – कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप – धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर-बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।
(ग) मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

(घ) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय ! फूल – सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी !
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 2.
बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की थी ?
उत्तर :
बीमार बच्ची ने देवी के प्रसाद के एक फूल को लाकर देने की इच्छा प्रकट की थी।

प्रश्न 3.
सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया ?
उत्तर :
सुखिया के पिता पर यह आरोप लगाया गया कि उसने मंदिर में घुसकर मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है।

प्रश्न 4.
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया ?
उत्तर :
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने देखा कि उसकी बच्ची उसके जेल जाने के बाद मर गई थी। उसे उसके परिचितों ने जला दिया था। वह उसके सामने बुझी हुई चिता की राख के ढेर के समान पड़ी हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 5.
इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘एक फूल की चाह’ कविता के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता से पूर्व हमारे देश में जाति-भेद की समस्या बहुत उग्र थी। जाति विशेष के लोगों को मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता था। सुखिया महामारी से पीड़ित थी। उसने अपने पिता से देवी के मंदिर से देवी के प्रसाद के रूप में एक फूल लाने के लिए कहा। उसका पिता मंदिर गया और उसे देवी का प्रसाद भी मिल गया परंतु कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया और पीटते हुए न्यायालय ले गए। वहाँ उसे सात दिन का दंड मिला। जब वह लौटकर आया तो उसकी बच्ची मर गई थी। उसका दाह-संस्कार भी उसके पड़ोसियों ने कर दिया था। वह बेटी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका था।

प्रश्न 6.
इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों / बिंबों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण – अंधकार की छाया।
उत्तर :
(क) स्वर्ण – धन
(ग) हृदय – चिताएँ
(ख) पुण्य- पुष्प
(घ) चिरकालिक शुचिता
(ङ) उत्सव की धारा

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ- सौंदर्य बताइए-
(क) अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।
(ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी।
(ग) हाय ! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(घ) पापी ने मंदिर में घुसकर, किया अनर्थ बड़ा भारी।
उत्तर :
(क) सुखिया का पिता जेल में बंद निरंतर रोता रहा। वह अपनी बेटी की इच्छा पूरी न कर पाने के कारण मन-ही-मन तड़पता रहा। लगातार रोने पर भी उसकी आँखों से आँसू कम नहीं हुए। मन की पीड़ा आँखों के रास्ते बहती ही रही।
(ख) श्मशान में सुखिया की बेटी की चिता बुझी पड़ी थी। सगे-संबंधी उसे जलाकर जा चुके थे। पिता का हृदय बेटी की चिता को देखकर धधक उठा था।
(ग) बेटी महामारी की चपेट में आ गई थी। हर समय चंचल रहने वाली अटल शांत-सी चुपचाप पड़ी हुई थी। वह कोई गति नहीं कर रही थी: अचंचल थी।
(घ) लोगों ने सुखिया के पिता को इस अपराध में पकड़ लिया था कि वह बीमार बेटी के लिए देवी माँ के चरणों का एक फूल प्रसाद रूप में प्राप्त करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया था। भक्तों को लगा था कि उसने बहुत अनर्थ कर दिया था। उसने देवी का अपमान किया था।

योग्यता- विस्तार –

प्रश्न 1.
‘एक फूल की चाह’ एक कथात्मक कविता है। इसकी कहानी को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
‘बेटी’ पर आधारित निराला की रचना ‘सरोज- स्मृति’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
तत्कालीन समाज में व्याप्त स्पृश्य और अस्पृश्य भावना में आज आए परिवर्तनों पर एक चर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से क्या कहा ?
उत्तर :
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से कहा- क्या मेरा पाप माँ की महिमा से भी बड़ा है। क्या वह किसी बात में माँ की महिमा से भी आगे है। तुम लोग माँ के कैसे अजीब भक्त हो जो माँ के सामने ही माँ के गौरव को छोटा बना रहे हो।

प्रश्न 2.
सुखिया के पिता को अंत में किस बात का पछतावा रहा?
उत्तर :
सुखिया के पिता को अंत में इस बात का पछतावा था कि वह अंत समय में अपनी बेटी की देवी के प्रसाद की फूल-प्राप्ति की इच्छा भी पूरी नहीं कर सका। फूल का प्रसाद पहुँचाने में असमर्थ होने के कारण उसे पश्चात्ताप तथा दुख का अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 3.
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद क्यों नहीं ले पाया ?
उत्तर :
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद लेना इसलिए भूल गया क्योंकि वह जल्दी-से-जल्दी देवी के मंदिर से पुण्य-पुष्प लाकर अपनी बेटी को देना चाहता था।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(ख) माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
उत्तर :
इन प्रश्नों के उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या का अंश देखें।

प्रश्न 5.
स्वर्ण कलश-सरसिज विहाँसित थे
पाकर समुदित रवि कर – जाल।
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि स्वर्ण कलश के सौंदर्य की तुलना कवि ने किससे की है ?
उत्तर :
स्वर्ण कलश की तुलना कवि ने कमल के फूलों से की है। जिस प्रकार सूर्य की किरणों से कमल खिल उठते हैं, उसी प्रकार सूर्य की किरणों के प्रकाश से स्वर्ण कलश चमक उठे थे। यहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग है। मंदिर के स्वर्ण कलश की उपमा स्वर्ण कमल से दी गई है।

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प्रश्न 6.
जान सका न प्रभात सजग से,
हुई अलस कब दोपहरी।
आपके विचार में प्रभात के लिए ‘सजग’ और दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषणों का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर :
प्रभात के लिए कवि ने ‘सजग’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि प्रभात का समय जागरण का समय है। दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि यह समय आलस्य का भाव उत्पन्न करता है।

प्रश्न 7.
भीतर, “जो डर रहा छिपाए, हाय वही बाहर आया” कौन – सा डर था जो बाहर आया? कैसे?
उत्तर :
महामारी का भयंकर प्रकोप इधर-उधर फैल रहा था। सुखिया के पिता को यह डर था कि कहीं उसकी बेटी को यह रोग न घेर ले। एक दिन सुखिया को बुखार आ गया। यह देखकर पिता के मन में छिपा डर बाहर आ गया। उसे जिसका डर था, वही हुआ।

प्रश्न 8.
‘एक फूल की चाह’ कविता में बालिका के पिता के मन में भय क्यों था ?
उत्तर :
चारों ओर भयंकर महामारी फैली हुई थी। बहुत से बच्चे उस महामारी के प्रकोप से काल का ग्रास हो चुके थे। बालिका सुखिया पिता के बार-बार रोकने पर भी खेलने के लिए घर से बाहर चली जाती थी। इसी कारण पिता के मन में भय था कि कहीं उसकी बेटी महामारी की चपेट में न आ जाए।

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प्रश्न 9.
‘एक फूल की चाह’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इस कविता में कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर की दृष्टि में सब बराबर हैं। जात-पात का भाव व्यर्थ है। कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। दूसरों पर अत्याचार करने वाले प्रभुभक्त नहीं हो सकते।

प्रश्न 10.
“छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !” भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यहाँ तिमिर मौत का सूचक है। छोटी-सी और कोमल बच्ची भयंकर महामारी से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी। उस फूल- सी बच्ची की दयनीय दशा देखकर ऐसा लग रहा था मानो प्रचंड महामारी मौत का रूप धारण कर उसे ग्रसने आई हो।

प्रश्न 11.
लोगों की मृत्यु का क्या कारण था ? मृतकों के सगे-संबंधियों का रोना किस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर रहा था ?
उत्तर :
लोगों की मृत्यु का कारण उस क्षेत्र में फैली महामारी थी। महामारी से मरने वालों के सगे-संबंधियों का रोना निरंतर वातावरण में दुख फैला रहा था। उनके हृदय रूपी चिताएँ जल रही थीं, धधक रही थीं व माताओं का रोना सभी दिशाओं को चीरता हुआ फैल रहा था। वे किसी भी प्रकार अपने हृदय को सांत्वना नहीं दे पा रहे थे।

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प्रश्न 12.
सुखिया किस प्रकार लेटी हुई थी और उसका पिता उसे क्यों उकसा रहा था ?
उत्तर :
सुखिया महामारी का शिकार बन तेज़ बुखार में तपती हुई स्थिर व शांत लेटी हुई थी। उसका पिता उसे इस प्रकार लेटे देखकर डर रहा था। सुखिया तो कभी शांत होकर नहीं बैठती थी। पिता उसे पहले की तरह चंचल देखना चाहता था, इसलिए उसे देवी के प्रसाद की प्राप्ति के लिए उकसा रहा था ताकि वह कुछ तो बोले।

प्रश्न 13.
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा क्यों की ?
उत्तर :
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा इसलिए की क्योंकि उन लोगों का मंदिर में आना मना था, परंतु वह अपनी बेटी के लिए देवी माँ का प्रसाद लेने आया था। लोगों के अनुसार उसने मंदिर में आकर मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी थी। उसने ऐसा अपराध किया था जो क्षमा के योग्य नहीं था।

व्याख्या :

1. उद्वेलित कर अश्रु – राशियाँ, हृदय – चिताएँ धधकाकर,
महा महामारी प्रचंड हो फैल रही थी इधर-उधर।
क्षीण- कंठ मृतवत्साओं का करुण रुदन दुर्दात नितांत,
भरे हुए था निज कृश रव में हाहाकार अपार अशांत।

शब्दार्थ : उद्वेलित – भाव-विभोर। अश्रु – राशियाँ – आँसुओं की झड़ी। प्रचंड तीव्र। क्षीण कंठ – दबी आवाज़। मृतवत्साओं – जिन माताओं की संतानें मर गई हैं। रुदन रोना। दुर्दात जिसे वश में करना कठिन हो, हृदय को दहलाने वाला। नितांत – बिलकुल। निज – अपना। कृश – कमज़ोर। रव – शोर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने महामारी से ग्रस्त कन्या की व्यथा को चित्रित किया है जो देवी के चरणों में अर्पित एक फूल की कामना करती है परंतु समाज में व्याप्त छुआछूत की समस्या उसकी इस इच्छापूर्ति में बाधक बन जाती है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि महामारी के फैलने का वर्णन करते हुए लिखता है कि लोग महामारी से मर रहे थे। मृतकों के सगे-संबंधी परेशान और पीड़ित हो निरंतर आँसू बहाते थे। उनके हृदय रूपी चिताएँ धधक – धधक कर पीड़ा को व्यक्त करती थीं। भीषण महामारी प्रचंड होकर इधर-उधर फैल रही थी। जिन ममतामयी माताओं की संतानें मौत को प्राप्त हो गई थीं वे अपने कमज़ोर गले से चीख – चिल्ला रही थीं। उनकी करुणा से भरी चीख-पुकार सब दिशाओं में फैल रही थी। अपने कमज़ोर और दीन-हीन हाहाकार के शोर में उनकी अशांत कर देनेवाली अपार मानसिक पीड़ा छिपी हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

2. बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भांति इस बार उसे।

शब्दार्थ : निहार – देखकर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘स्पर्श’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। इसमें उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की दयनीय दशा का चित्रण किया है। महामारी का भयंकर रोग फैल जाता है। एक व्यक्ति अपनी बेटी सुखिया को छूत के इस रोग से बचाने की कोशिश करता है पर अंततः उसकी बेटी इस रोग से प्रभावित हो ही जाती है। इस पद्यांश में पिता की मनःस्थिति का चित्रण हुआ है।

व्याख्या : छूत की बीमारी फैलने पर सुखिया के पिता का हृदय भय से भर गया था कि कहीं उसकी बेटी को भी महामारी का रोग न घेर ले। अतः वह अपनी बेटी को बहुत रोकता था कि वह खेलने के लिए घर से बाहर न जाए। लेकिन स्वभाव से चंचल होने के कारण सुखिया का खेल नहीं रुकता था। वह पलभर के लिए भी घर में न टिकती थी। उसे बाहर गया देखकर पिता का हृदय काँप उठता था। वह यही मनौती मनाता था कि किसी तरह इस बार उसे बचा ले।

3. भीतर जो डर रहा छिपाए, हाय! वही बाहर आया।
एक दिवस सुखिया के तनु को, ताप तप्त मैंने पाया।
ज्वर में विह्वल हो बोली वह, क्या जानूँ किस डर से डर,
मुझको देवी के प्रसाद का, एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : दिवस – दिन। तनु – शरीर। ताप-तप्त – ज्वर, बुखार से पीड़ित। विह्वल – दुखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता, ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इस कविता में कवि ने एक व्यक्ति की दयनीय दशा का चित्रण किया है। उसका हृदय हमेशा डरता रहता था कि कहीं महामारी का रोग उसकी बेटी को ग्रस्त न कर ले।

व्याख्या : वह कहता है कि – मेरे भीतर जो डर का भाव था, वही एक दिन प्रकट रूप में सामने आ गया। मैंने अपनी बेटी सुखिया के शरीर को ज्वर से पीड़ित पाया। ज्वर की पीड़ा से पीड़ित होकर तथा न जाने किस डर से डरकर वह कहने लगी- मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो। सुखिया का एक फूल के प्रसाद की कामना करना उसपर दैवी प्रकोप के प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

4. क्रमशः कंठ क्षीण हो आया, शिथिल हुए अवयव सारे,
बैठा था नव-नव उपाय की, चिंता में मैं मन मारे।
जान सका न प्रभात सजग से, हुई अलस कब दोपहरी,
स्वर्ण- घनों में कब रवि डूबा, कब आई संध्या गहरी।

शब्दार्थ : क्रमशः – क्रम से, सिलसिलेवार। शिथिल – ढीले। अवयव अंग। नव नए। प्रभात – नए। प्रभात – सवेरा। स्वर्ण घने – सोने के रंग जैसे बादल। रवि सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। सुखिया का पिता हमेशा इस बात से डरता था कि कहीं उसकी बेटी भी महामारी का शिकार न बन जाए। आखिर वही हुआ जिसका डर था। सुखिया को भी महामारी ने आ घेरा। सुखिया की दशा का वर्णन करते हुए उसका पिता कहता है।

व्याख्या : धीरे-धीरे सुखिया के गले की आवाज़ कमज़ोर हो गई। सारे अंग ढीले पड़ गए। मैं मन को मारे हुए अर्थात उदास हुए नए-नए तरीके सोचने में लीन था। सोचता था इसके लिए फूल कैसे लाया जाए। सवेरे सजग होकर, जागकर मैं यह जान न सका कि कब दोपहर हो गई। यह भी न समझ सका कि कब सुनहरे बादलों में सूर्य डूबा और कब गहरी घनी, अंधकारपूर्ण संध्या आ गई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

5. सभी ओर दिखलाई दी बस, अंधकार की ही छाया,
छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !
ऊपर विस्तृत महाकाश में, जलते से अंगारों से,
झुलसी-सी जाती थीं आँखें, जगमग जगते तारों से।

शब्दार्थ : ग्रसने – डसने। तिमिर – अंधकार। महाकाश – विशाल आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित है। करुण रस से ओत-प्रोत इस कविता में कवि ने समाज के एक वर्ग की दयनीय दशा का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। यहाँ सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा का वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा के कारण उसका निराश पिता कहता है कि यद्यपि मैंने अपनी बेटी का हठ पूरा करने के अनेक उपायों पर विचार किया, किंतु केवल निराशा ही मेरे हाथ लगी। मेरी इतनी सुकुमार और छोटी-सी बालिका को ग्रसने के लिए इतनी प्रचंड महामारी का प्रकोप छाया हुआ था। सुखिया की आँखों से आग निकल रही थी, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो विस्तृत आकाश में अंगारों की तरह अगणित तारे चमक रहे हों। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार तारों से आकाश के विस्तार का अनुमान नहीं लग पाता, उसी प्रकार सुखिया की झुलसती आँखों से उसके शरीर के ताप का सही अनुमान नहीं लग सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

6. देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
सुनना वही चाहता था मैं, उसे स्वयं ही उकसाकर
मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : सुस्थिर एक स्थान पर टिका हुआ, अडिग। अटल – स्थिर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। सुखिया रोग ग्रस्त हो जाने के कारण स्थिर अवस्था में पड़ी रहती थी।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है- जो बेटी स्वभाव से चंचल होने के कारण पल-भर के लिए भी एक स्थान पर टिककर नहीं बैठती थी, वही अब स्थिर शांति धारण किए एक ही स्थान पर पड़ी रहती थी। अब वह दुर्बल तथा क्षीण कंठ होने के कारण बोल भी नहीं सकती थी। उसका पिता अपनी मानसिक शांति के लिए स्वयं उसको उकसाकर एक बार उससे यही सुनना चाहता था – ‘मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो।’

7. ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप- धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर – बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।

शब्दार्थ : शैल शिखिर पर्वत की चोटी। विस्तीर्ण – विस्तृत। विशाल – बहुत बड़े आकारवाला। स्वर्ण कलश – सोने के कलश। सरसिज – कमल। विहसित – हँसते हुए। रवि-कर- जाल सूर्य की किरणों का समूह। आमोदित प्रसन्न।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। कवि मंदिर के बाहरी सौंदर्य तथा भीतरी वातावरण पर प्रकाश डालता हुआ कहता है।

व्याख्या : पर्वत की चोटी पर एक बहुत बड़ा मंदिर था। सूर्य की किरणों के समूह को पाकर सोने का कलश कमल के समान हँसता हुआ दिखाई देता था। भाव यह है कि सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल खिलते हैं। मंदिर का स्वर्णिम कलश भी सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल के समान खिला हुआ दिखाई दे रहा था। दीपकों और सुगंधित धूप से मंदिर का सारा आँगन प्रसन्नता को व्यक्त कर रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर उत्सव की धारा प्रकट हो रही थी। भाव यह है कि मंदिर के भीतर जो भजन आदि गाए जा रहे थे, उनकी आवाज़ भी गूँज रही थी।

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8. भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से, गाते थे सभक्ति मुद-मय-
‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी’ माता तेरी जय-जय।’
‘पतित-तारिणी’ तेरी जय जय, मेरे मुख से भी निकला,
बिना बढ़े ही मैं आगे को, जाने किस बल से ढिकला।

शब्दार्थ : भक्त वृंद – भक्तों का समूह। मुद-मय प्रसन्नतापूर्वक। पतित-तारिणी पापियों को तारने वाली। पाप हारिणी- पापों को हरनेवाली। ढिकला – ढकेला गया; ठेला गया।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। मंदिर में भक्तों का समूह देवी माँ की वंदना कर रहा था।

व्याख्या : भक्तों का समूह भक्ति भाव से भरकर कोमल, मधुर तथा प्रसन्नचित्त मन से यही गा रहा था – हे माता ! तू पतितों को तारनेवाली तथा उनके पापों को हरनेवाली है। हे माता ! तुम्हारी जय-जयकार हो। सुखिया का पिता कहता है कि उन भक्तों के अनुकरण पर मेरे मुख से भी यही निकला – हे पापियों को तारनेवाली तेरी जय हो। वह बिना बढ़े ही भीड़ द्वारा आगे ठेल दिया गया।

9. मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये, पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं,

शब्दार्थ : अंबा – माँ, देवी माँ। अर्पित – भेंट। अंजलि – मुट्ठी। पुण्य-पुष्प – पवित्र फूल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। सुखिया का पिता अपनी बीमार बेटी के लिए देवी के मंदिर में प्रसाद लेने जा पहुँचता है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मेरे दीप और फूल को लेकर पुजारी ने देवी माँ के चरणों में अर्पित कर दिए। पुजारी ने जब अपना हाथ आगे बढ़ाकर मुझे प्रसाद दिया तो मैं उसको लेना ही भूल गया। मैंने परम लाभ पाकर यही सोचा कि मैं अपनी बेटी को शीघ्र अति शीघ्र जाकर माँ के पवित्र फूल दूँ।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

10. सिंह पौर तक भी आँगन से, नहीं पहुँचने मैं पाया,
सहसा यह सुन पड़ा कि – “कैसे यह अछूत भीतर आया ?
पकड़ो, देखो भाग न जावे, बना धूर्त यह धूर्त यह है कैसा;
साफ-स्वच्छ परिधान किए है, भले मानुषों के जैसा !”

शब्दार्थ : सिंह पौर – मंदिर का मुख्य द्वार। सहसा – प्रसंग। अचानक। धूर्त – दुष्ट। परिधान – वस्त्र। मानुषों – मनुष्यों।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। यहाँ सुखिया के पिता के मंदिर में जाने के दुष्परिणाम परिणाम पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है – मैं माँ के मंदिर से पवित्र फूल लेकर अभी मंदिर के मुख्य द्वार पर भी नहीं पहुँचा था कि अचानक यह आवाज़ सुनाई दी कि यह मंदिर के भीतर कैसे घुस आया। सबने कहा कि उसे पकड़ लो, कहीं भाग न जाए। साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर यह दुष्ट भले मानुष का सा रूप धारण करके आ गया है।

11. पापी ने मंदिर में घुसकर किया अनर्थ बड़ा भारी,
कलुषित कर दी है मंदिर की, चिरकालिक शुचिता सारी।
ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है, देवी की गरिमा से भी;
किसी बात में हूँ मैं आगे, माता की महिमा के भी ?

शब्दार्थ : अनर्थ – अविष्ट। कलुषित – अपवित्र। चिरकालिक – बहुत पुराने समय से चली आ रही। शुचिता – पवित्रता। कलुष – पाप। गरिमा – महानता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। जब मंदिर में उपस्थित लोगों को यह पता लगा कि सुखिया का पिता देवी के मंदिर में घुस आया है तो सभी ने उसकी कठोर भर्त्सना एवं निंदा की।

व्याख्या : मंदिर में उपस्थित लोग कहने लगे कि – देखो तो सही, इस पापी ने मंदिर में घुसकर कितना बड़ा अनर्थ कर डाला है। इसने मंदिर की पुरानी पवित्रता को नष्ट कर दिया है। निश्चय ही इसका कृत्य अक्षम्य है। जब सुखिया के पिता ने यह सब सुना तो वह सहज भाव से बोला, हे भाई, क्या मेरा पाप इतना बड़ा है कि देवी की महानता उसे क्षमा नहीं कर सकती ? अभिप्राय यह है कि देवी के समक्ष तो सभी एकसमान हैं- फिर मेरा ही पाप तो इतना बड़ा नहीं है कि मुझे क्षमादान नहीं मिल सकता। मेरी तरह तुम सब भी तो किसी-न-किसी रूप में पापी हो। तात्पर्य यह है कि देवी की गरिमा और महानता को मुझसे और मेरे कृत्यों से कोई क्षति नहीं पहुँच सकती। देवी के सर्वशक्तिशाली रूप के समक्ष मेरा अकिंचन अस्तित्व कोई महत्व नहीं रखता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

12. माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
कुछ न सुना भक्तों ने, झट से मुझे घेर कर पकड़ लिया;
मार मार कर मुक्के घूँसे, धम-से नीचे गिरा दिया !

शब्दार्थ : सम्मुख – सामने। गौरव – सम्मान।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता के उद्गारों का मार्मिक वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया का पिता देवी के भक्तों को संबोधित कर कहता है कि इतना तुच्छ विचार रखकर तुम माँ के कैसे विचित्र भक्त हो। तुम माँ के सम्मुख ही माँ की महिमा को छोटा कर रहे हो। अभिप्राय यह है कि माँ का मंदिर इतना पवित्र है कि वह किसी भी पापी के प्रवेश से अपवित्र बन ही नहीं सकता। मंदिर को अपवित्र कहना माँ के गौरव का हनन करना है। लेकिन देवी के भक्तों ने उसकी बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उसे पकड़ लिया तथा मुक्के और घूँसे मार-मारकर उसे धरती पर गिरा दिया।

13. मेरे हाथों से प्रसाद भी, बिखर गया हा ! सबका सब
हाय ! अभागी बेटी तुझ तक कैसे पहुँच सके यह अब !
न्यायालय ले गए मुझे वे सात दिवस का दंड विधान
मुझको हुआ; हुआ था मुझसे देवी का महान अपमान!

शब्दार्थ : न्यायालय – अदालत। दंड – सज़ा। विधान – नियम।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता की व्यथा का मार्मिक चित्रण है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मंदिर में उपस्थित भक्तों ने उसे खूब पीटा, क्योंकि उसने मंदिर में घुसकर घोर अपराध किया था। मार-पीट के दौरान उसके हाथों का प्रसाद भी नीचे गिर गया था। वह सोचता है कि उसकी अभागी बेटी के पास अब प्रसाद कैसे पहुँचे। सुखिया तक उस प्रसाद के पहुँचने की कोई संभावना न थी। अदालत ने उसे इस अपराध के लिए सात दिन की सज़ा सुनाई। लोगों के अनुसार उसके कारण देवी का घोर अपमान हुआ था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

14. मैंने स्वीकृत किया दंड वह शीश झुकाकर चुप ही रह;
उस असीम अभियोग, दोष का क्या उत्तर देता, क्या कह ?
सात रोज़ ही रहा जेल में या कि वहाँ सदियां बीतीं,
अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। शीश – सिर। असीम – सीमा से रहित, अत्यधिक। अविश्रांत – लगातार, बिना रुके हुए। तनिक – ज़रा भी। रीतीं – खाली हुईं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श- भाग एक’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। कवि ने समाज में व्याप्त धर्म पर आधारित रूढ़ियों का सजीव चित्रण किया है। सुखिया के पिता को मंदिर से प्रसाद लेने के अपराध में जेल में भेज दिया गया था जबकि उसकी बेटी घर में पड़ी मौत से लड़ रही थी।

व्याख्या : सुखिया के पिता का कहना है कि उसने न्यायालय के सामने सिर झुकाकर दिए गए दंड को स्वीकार किया। उस पर लगाए गए इतने बड़े आरोप का भला वह क्या कह कर उत्तर देता। उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। वह सात दिन तक जेल में बंद रहा। उसे ऐसा लगता कि वह सदियों से वहाँ बंद था। निरंतर उसकी आँखें आँसू बहाती रहतीं पर फिर भी वे ज़रा भी खाली न हुईं। आँसू तो उनमें ज्यों- के त्यों भरे ही रहे और बेटी की याद और अपने साथ हुए अन्याय के कारण बरसते रहे।

15. दंड भोगकर जब मैं छूटा, पैर न उठते थे घर को ;
पीछे ठेल रहा था कोई भय जर्जर तनु पंजर को।
पहले की-सी लेने मुझको नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा ! अबकी दी न दिखाई वह।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। ठेल – धकेल। तनु – शरीर।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पर्श (भाग – एक) में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। बेटी के लिए प्रसाद लेने के लिए पिता मंदिर गया था, पर जाति-भेद के कारण उसे मार-पीट कर सात दिन के लिए जेल में भेज दिया गया था।

व्याख्या : सुखिया के पिता जेल में सजा भोगने के बाद जब घर को लौट रहा था तो ग्लानि के कारण उसके पाँव नहीं उठ रहे थे। डर और कमज़ोरी के कारण उसके लड़खड़ाते शरीर को जैसे कोई पीछे धकेल रहा था। वह आगे बढ़ ही नहीं पा रहा था। आज उसे पहले की तरह लेने के लिए उसकी बेटी सुखिया भागकर आगे से नहीं आई थी और न ही किसी खेल – कूद में ही उलझी हुई दिखाई दी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

16. उसे देखने मरघट को ही गया दौड़ता हुआ वहाँ,
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही, फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

शब्दार्थ : मरघट मरघट – श्मशान। बंधु मित्र, रिश्तेदार। फूँक चुके – जला चुके।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पर्श (भाग – एक) ‘ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। महामारी के कारण बेटी चल बसी थी पर पिता उसे देवी माँ के प्रसाद रूप में एक फूल तक न लाकर दे सका।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि वह अपनी मृतक बेटी को देखने के लिए श्मशान की ओर दौड़ता हुआ पहुँचा लेकिन उसके सगे-संबंधी पहले ही उसके मृतक शरीर को जला चुके थे। उसकी बुझी हुई चिता ही थी। पिता का हृदय धधक पड़ा, वह कराह उठा। हाय ! उसकी फूल – सी कोमल बेटी राख की ढेरी बन चुकी थी। पिता अपनी बेटी को अंतिम बार गोद में भी नहीं ले सका। बेटी ने एक ही तो चीज़ माँगी थी और वह देवी माँ का प्रसाद रूप में एक फूल भी उसे नहीं दे सका था। वह अपनी इच्छा को साथ लेकर ही यहाँ से चली गई।

एक फूल की चाह Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – परिचय – सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उनका जन्म सन् 1895 ई० में चिरगाँव, जिला झाँसी में हुआ था। श्वास रोग, पत्नी की असामयिक मृत्यु तथा राष्ट्रीय आंदोलन की असफलता ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था। यही कारण है कि उनके काव्य में करुणा, पीड़ा एवं विषाद का स्वर प्रधान हो गया है। सन् 1963 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – गुप्त जी ने काव्य-रचना के साथ-साथ कहानी, उपन्यास, निबंध एवं नाटक के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। वे कवि रूप में ही अधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं – मौर्य विजय, दूर्वादल, आर्द्रा, पाथेय, आत्मोत्सर्ग, मृण्मयी, बापू, उन्मुक्त, गोपिका, नकुल, दूर्वादल तथा नोआखली आदि। ‘गीता-संवाद’ में श्रीमद्भगवद गीता का काव्यानुवाद है।

काव्य की विशेषताएँ – सियारामशरण गुप्त की कविताओं में मानवतावाद तथा राष्ट्रवाद की प्रधानता है। अतीत के प्रति अनुराग तथा नवीनता के प्रति आस्था उनके काव्य की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। आख्यानक गीति रचने में वे सिद्धहस्त रहे हैं। गाँधी एवं विनोबा के जीवन-दर्शन के प्रभावस्वरूप उन्होंने दया, सहानुभूति, सत्य, अहिंसा एवं परोपकार आदि भावनाओं को विशेष महत्त्व दिया है। गुप्त जी की काव्यभाषा खड़ी बोली है जिसके ऊपर संस्कृत के तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रभाव है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

कविता का सार :

‘एक फूल की चाह’ कविता श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित है। इस कविता में एक ओर पुत्री के प्रति पिता के असीम स्नेह का चित्रण है, तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त छुआछूत एवं ऊँच-नीच की समस्या पर प्रकाश डाला है। कवि ने इस रचना के माध्यम से यह भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि किसी के स्पर्श से देवी की पवित्रता और गरिमा नष्ट नहीं होती, बल्कि देवी की शरण में जाने पर सभी पवित्र हो जाते हैं। देवी की महिमा अपरंपार है और उसकी गरिमा पतितों का उद्धार करने में ही है।

किसी स्थान पर भीषण महामारी फैल गई। इस महामारी के भय से बालिका सुखिया का पिता उसे घर से बाहर नहीं जाने देता। फिर भी सुखिया उस महामारी की चपेट में आ ही गई। महामारी से ग्रस्त सुखिया पिता से देवी के प्रसाद में मिलनेवाले फूल को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करती है। अपनी जाति के कारण पिता मंदिर में जाकर फूल लाने से डरता है किंतु पुत्री के मोह ने उसे देवी के मंदिर से फूल लाने के लिए विवश कर दिया।

प्रसाद रूप में फूल लेकर जैसे ही वह लौटने लगा, कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया तथा पकड़कर बुरी तरह पीटा। फिर उसपर मंदिर की पवित्रता भंग करने का आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया। सात दिन का कारावास का दंड भोगकर जब वह घर लौटा तो उसकी प्यारी बेटी सुखिया की मृत्यु हो चुकी थी। अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी न कर सकने के कारण उसका हृदय चीत्कार कर उठा।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana नारा लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana नारा लेखन

किसी सुंदर विचार अथवा उद्देश्य को बार-बार अभिव्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला आदर्श वाक्य नारा कहलाता है। नारों में प्रभावशाली वाक्य पिरोए जाते हैं। जिनसे ये सहज लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इनमें विस्तृत विवरण तो प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती। नारे सामाजिक दायरे में रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नारा लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए –

  • नारों में आदर्शवादिता का भाव होना आवश्यक है।
  • नारे अनेक क्षेत्रों जैसे – राजनीतिक, धार्मिक, समाज से संबंधित हो सकते हैं।
  • नारों में विवादास्पद शब्दावली का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।
  • नारों के प्रकटन का उद्देश्य सार्वभौमिक होना चाहिए।
  • नारों की शब्दावली सर्वस्वीकार्य होनी चाहिए।
  • नारों की गूँज से ऊर्जा का संचार होता है। रोमांचक होने का अहसास होता है। उदाहरण के तौर पर देश प्रेम के नारे जनमानस में देश –
  • भक्ति का संचार करते हैं।
  • नारों में तुकबंदी अथवा लयात्मक योजना का विशेष महत्व होता है।
  • नारों की विषय सामग्री में आपसी सम्बद्धता व मौलिकता का होना ज़रूरी है।

नारों के महत्वपूर्ण उदाहरण :

प्रश्न 1.
लॉकडाउन के दौरान आप अपने घर पर हैं। जागरूक नागरिक होने के नाते जनमानस के बीच सामाजिक सचेतता फैलाने वाले सुझावों पर 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक दूरी है वायरस से लड़ने का औजार।
पैदल हो या फिर कार पर हो सवार।।
बिना मास्क के घर से मत निकलो यार।
आफत को मत गले लगाओ, बन जाओ समझदार।।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 2.
शिक्षा प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है। शिक्षा के बिना हमारे जीवन का कोई महत्व नहीं है। अशिक्षितों को शिक्षित करने के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
लड़का हो या लड़की, सब बने साक्षर।
शिक्षा से ही फलता-फूलता यह देश निरंतर।।
बच्चे-बच्चे का सपना हो साकार।
शिक्षा पर हम सबका अधिकार ।।

प्रश्न 3.
स्वच्छता अपनाना सभी की जवाबदारी है। हर हाल में सफाई का ध्यान रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
स्वच्छता से है बढ़ते देशों की पहचान।
आओ मिलकर रखें इनका ध्यान ।।
स्वच्छता से बढ़ेगी धरती की शान।
तभी गांधीजी के सपनों का होगा मान।।

प्रश्न 4.
सड़क सुरक्षा अनुशासित जीवन का अंग है। सुरक्षा नियमों का पालन करना मजबूरी नहीं हो सकती। ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूक करने के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
चलो सड़क पर रखो आँखें चार।
पैदल हो, बाईक हो या फिर कार।।
ट्रैफिक सिगनल देख करो सड़क को पार।
रहो सुरक्षित पड़ेगी न दंड की मार ||

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 5.
वृक्षारोपण बहुत ज़रूरी है। इसे पुण्य का काम समझा जाता है। वृक्ष की उपयोगिता का ध्यान रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
वृक्ष ही हैं सबके जीवन का अधिकार।
उदर पूर्ति का होते हैं ये अद्भुत भंडार।।
हरे-भरे वृक्ष जीवन में हरियाली लाते।
अपने कर्तव्यों से हम क्यों मुकर जाते।।

प्रश्न 6.
15 अगस्त को बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इतिहास के इस स्वर्णिम दिन का महत्व बताते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
आज किरन किरन थिरक रही, ले प्रभा नवीन।
आज श्वास है नवीन आज की पवन नवीन।।
मिलती नहीं आजादी खुद, यह ली जाती है मीत।
तलवारों के साये के नीचे गाने पड़ते हैं गीत।।

प्रश्न 7.
विज्ञान को मानव की तीसरी आँख माना गया है। विज्ञान के कारण मानव जीवन में अनेक परिवर्तन आए हैं। विज्ञान के वरदान या अभिशाप को ध्यान में रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
फैल रहा विज्ञान का घर – घर प्रकाश।
करता दोनों काम- नव निर्माण विकास।।
यह विष्णु जैसा पालक है, शंकर जैसा संहारक।
पूजा उसकी शुद्ध भाव से करो तुम यहाँ आराधक।।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 8.
हम कभी न बुझने वाला आशा का दीपक अपने हाथ में लेकर मंजिल की ओर बढ़ते हैं। लक्ष्य प्राप्ति के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
जिस युग में जन्मे उसे बड़ा बनाएँगे।
चाहे कितना हो विस्तीर्ण – कर्म क्षेत्र बनाएँगे।
जीवन में कुछ करना है तो – मन मारकर न बैठेंगे।
यदि आगे-आगे बढ़ना है – हिम्मत हारकर न बैठेंगे।।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

JAC Class 9 Hindi आदमी नामा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) पहले छंद में कवि की दृष्टि आदमी के किन-किन रूपों का बखान करती है? क्रम से लिखिए।
(ख) चारों छंदों में कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों को परस्पर किन-किन रूपों में रखा है ? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘आदमी नामा’ शीर्षक कविता के इन अंशों को पढ़कर आपके मन में मनुष्य के प्रति क्या धारणा बनती है ?
(घ) इस कविता का कौन-सा भाग आपको अच्छा लगा और क्यों ?
(ङ) आदमी की प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
(लघु उत्तरीय प्रश्न) (लघु उत्तरीय प्रश्न)
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर :
(क) पहले छंद में कवि ने आदमी को बादशाह, गरीब, भिखारी, दौलतमंद, कमजोर, स्वादिष्ट भोजन खाने वाले तथा सूखे टुकड़े चबाने वाले के रूप में चित्रित किया है।

(ख) इस कविता में कवि ने आदमी के सकारात्मक रूप को एक बादशाह, दौलतमंद, स्वादिष्ट भोजन खाने वाले, मसजिद बनाने वाले, धर्मगुरु बनने वाले, कुरान शरीफ़ और नमाज़ पढ़ने वाले, दूसरों के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले, शासन करने वाले, सज्जन, राजा, मंत्री, सबके दिलों को लुभाने वाले कार्य करने वाले, शिष्य, गुरु और अच्छे कार्य करने वाले के रूप में चित्रित किया है। कवि ने आदमी के नकारात्मक रूप को गरीब, भिखारी, कमजोर, सूखे टुकड़े चबाने वाले, मसजिद से जूते चुराने वाले, लोगों को तलवार से मारने वाले, दूसरों का अपमान करने वाले, सेवक के कार्य करने वाले, नीच और बुरे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।

(ग) ‘आदमी नामा’ कविता पढ़कर हमें यह ज्ञात होता है कि इस संसार में मनुष्य से अच्छा और मनुष्य से बुरा दूसरा कोई नहीं है। मनुष्य ही राजा के समान महान और मनुष्य ही दीन-हीन भिखारी है। शक्तिशाली भी मनुष्य है और कमजोर भी वही है। मनुष्य धार्मिक और चोर है, तो मनुष्य ही किसी को बचाता और मारता भी है। शासक भी वही है और शासित भी वही है। सज्जन से लेकर नीच और राजा से लेकर मंत्री तक मनुष्य ही होता है। इसलिए मनुष्य को अच्छे कार्य करते हुए इस संसार को सुंदर बनाना चाहिए।

(घ) इस कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगी हैं –

‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी।’

ये पंक्तियाँ मुझे इसलिए अच्छी लगी, क्योंकि इन पंक्तियों से हमें सद्गुणों को अपनाकर अच्छा आदमी बनने की प्रेरणा मिलती है। हमें दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए। दुर्गुणी व्यक्ति बुरा आदमी बन जाता है। समाज में अच्छे आदमी का आदर होता है, बुरे का नहीं।

(ङ) आदमी स्वभाव से अच्छा भी और बुरा भी है। वह दूसरों के दुखों का कारण है, तो वही उन दुखों का निवारण करने वाला भी है। आदमी ही आदमी पर शासन करता है: आदेश देता है और मनचाहे ढंग से परेशान करता है। आदमी दीन-हीन है और आदमी ही संपन्न है। आदमी धर्म-कर्म में विश्वास करता है और आदमी ही उस धर्म-कर्म के ढंग को बनाता है। आदमी के जूते आदमी चुराता है, तो आदमी ही उनकी देख-रेख करता है। आदमी ही आदमी की रक्षा करता है और आदमी ही आदमी का वध करता है। आदमी अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को अपमानित करता है। अपनी रक्षा के लिए आदमी पुकारता है और सहायता के लिए आदमी ही दौड़कर आता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंशों की व्याख्या कीजिए – (निबंधात्मक प्रश्न)
(क) दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी

(ख) अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
उत्तर :
(क) और (ख) की व्याख्या के लिए इस कविता के व्याख्या भाग क्रमांक 1 और 4 को देखिए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में अभिव्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए –
(क) पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
(ख) पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
उत्तर :
(क) कवि ने व्यंग्य किया है मसजिद में आदमी कुरान शरीफ़ पढ़ने और नमाज़ अदा करने जाते हैं परंतु उनमें कुछ ऐसे आदमी भी होते हैं, जो वहाँ आने वालों की जूतियाँ चुराते हैं। उन जूता चोरों पर नज़र रखने वाले भी आदमी ही होते हैं। जूता चोरों और उन पर नज़र रखने वालों का ध्यान परमात्मा की ओर नहीं बल्कि अपने – अपने लक्ष्य पर होता है।

(ख) कवि ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा है कि आदमी ही आदमी का अपमान करता है। सहायता प्राप्ति के लिए आदमी ही आदमी को पुकारता है और सहायता देने के लिए भी आदमी ही दौड़कर आता है। अपमान करने वाला आदमी और सहायता करने वाला भी आदमी ही है। कवि के अनुसार अलग-अलग प्रवृत्तियाँ आदमी से अलग-अलग काम करवाती हैं।

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प्रश्न 4.
नीचे लिखे शब्दों का उच्चारण कीजिए और समझिए कि किस प्रकार नुक्ते के कारण उनमें अर्थ परिवर्तन आ गया है।
(क)                  (ख)
राज (रहस्य) – फ्रन (कौशल)
राज (राज्य) – फन (साँप का मुँह)
ज्रा (थोड़ा) – फलक (आकाश)
जरा (बुढ़ापा) – फलक (लकड़ी का तखा)
जफ़ से युक्त दो-दो शब्दों को और लिखिए।
उत्तर :
ज़ – जमीन, ज़मीर। फ़ – फ़ना, फ़रक।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित मुहावरों का प्रयोग वाक्यों में कीजिए –
(क) टुकड़े चबाना (ख) पगड़ी उतारना (ग) मुरीद होना (घ) जान वारना (ङ) तेग मारना
उत्तर :
(क) टुकड़े चबाना – गरीब को सूखे टुकड़े चबाकर अपना पेट भरना पड़ता है।
(ख) पगड़ी उतारना – भरी सभा में मंत्री ने सेठ करोड़ीमल की कंजूसी का वर्णन करके उनकी पगड़ी उतार दी।
(ग) मुरीद होना – इन दिनों क्रिकेट के दीवाने धोनी के मुरीद हो गए हैं।
(घ) जान वारना – माँ अपने लाडले पर अपनी जान वारती है।
(ङ) तेग मारना – कृष्णन ने तेग मारकर भागते हुए डकैत को घायल कर दिया।

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योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
अगर ‘बंदर नामा’ लिखना हो तो आप किन-किन सकारात्मक और नकारात्मक बातों का उल्लेख करेंगे ?
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi आदमी नामा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
नज़ीर अकबराबादी की कविता ‘आदमी नामा’ के आधार पर आदमी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
नज़ीर अकबराबादी की कविता ‘आदमी नामा’ के आधार पर आदमी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) धार्मिक – आदमी ईश्वर में विश्वास करता है। वह मसजिदें बनाता है; नमाज अदा करता है; कुरान शरीफ़ पढ़ता-सुनता
है और स्वयं को सौभाग्यशाली मानता है।
(ii) चोर – आदमी मौका मिलने पर दूसरों का सामान चुराने में तनिक नहीं झिझकता। वह तो यह भी नहीं सोचता कि उसे कहाँ चोरी करनी चाहिए और कहाँ नहीं।
(iii) अत्याचारी और अनाचारी – आदमी दूसरे आदमियों का शोषण करता है; उन्हें गरीब बनाता है। उनके मुँह का कोर छीनने को सदा तैयार रहता है। वह दूसरों की हत्या करने में भी नहीं झिझकता। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी का भी अपमान करने को तैयार रहता है।
(iv) दयाभाव से संपन्न – आदमी के हृदय में दया के भाव पैदा होते हैं। वह दूसरों को रोटी देता है। कष्ट की घड़ी में उनकी सहायता करता है। आदमी ही गुरु बनता है और आदमी को शिक्षा देता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 2.
संसार में आकर व्यक्ति क्या-क्या बनता है ?
उत्तर :
संसार में आकर आदमी ही राजा बनता है और आदमी ही दीन-हीन गरीब है। अमीर भी आदमी है और गरीब भी आदमी है। रूखा- सूखा चबाने वाला आदमी है, तो स्वादिष्ट भोजन खाने वाला भी आदमी है।

प्रश्न 3.
संसार में आकर मनुष्य क्या-क्या काम करता है ?
उत्तर :
संसार में आकर मनुष्य कई तरह के काम करता है। वह मस्जिद बनाता है; मस्जिद में नमाज पढ़ने वाला भी आदमी होता है। कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला धर्मगुरु भी आदमी ही है। आदमी ही मस्जिद में आकर जूते चुराने का काम करते हैं तथा जूतों को चुराने वाले आदमियों पर नज़र रखने वाला भी आदमी होता है

प्रश्न 4.
‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो हैं वो भी आदमी’
उपरोक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने आदमी के अच्छे-बुरे रूपों को प्रकट किया है और कहा है कि आदमी ही प्रत्येक अच्छाई और बुराई के पीछे होता है। कवि की भाषा में उर्दू शब्दावली की अधिकता है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है। तुकांत छंद लयात्मकता का आधार बना है।

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प्रश्न 5.
‘आदमी नामा’ किस प्रकार की रचना है ?
उत्तर :
‘आदमी नामा’ कवि नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। कवि ने अपनी इस रचना में आदमी को संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना माना है। कविता में कवि ने आदमी की कमियों का व्याख्यान करते हुए उसे जीवन में सद्गुणों को अपनाने की बात कही है।

प्रश्न 6.
‘आदमी नामा’ कविता आम आदमी से जुड़ी हुई कविता कैसे है ?
उत्तर :
‘आदमी नामा’ नज़ीर अकबराबादी की एक सर्वश्रेष्ठ रचना है। यह आम आदमी से जुड़ी हुई कविता है। इसे गाकर फेरीवाले, नाचने-गाने वाले नर-नारियाँ अपना जीवन निर्वाह करते थे। कवि ने अपनी इस रचना में तत्कालीन जनजीवन का यथार्थ चित्रण किया है। कवि ने अपनी इस काव्य-कृति में आम आदमी की कमियों से मानव को अवगत करवाना चाहा है। कवि के अनुसार संसार में अच्छा-बुरा, छोटा-बड़ा- हर तरह का काम करने वाला आदमी ही होता है। आदमी के अंतरिक गुण-अवगुण ही समाज में उसकी पहचान निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 7.
कवि के अनुसार संसार में आकर आदमी क्या बनता है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार संसार में आकर जो व्यक्ति राजा बनता है, वह आदमी होता है। संसार में व्याप्त गरीब भी आदमी हैं। ऊँचे-ऊँचे महलों में निवास करने वाले सेठ और बादशाह भी आदमी हैं। बलशाली भी आदमी है और एक दीनहीन भी आदमी है।

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प्रश्न 8.
कवि नज़ीर अकबराबादी के काव्य की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि नज़ीर अकबराबादी का काव्य आम आदमी से जुड़ा हुआ काव्य है। इस कविता में उन्होंने आदमी के अलग-अलग रूपों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार हर अच्छे बुरे कार्य के पीछे आदमी ही निहित होता है। इन्होंने अपने काव्य में उर्दू-फारसी के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग किया है। इनके काव्य की भाषा को उर्दू मिश्रित खड़ी बोली कहा जा सकता है, जिसमें कहीं-कहीं देशज शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। इनके काव्य में सरल, सहज एवं संक्षिप्त वाक्यों का प्रयोग हुआ है।

आदमी नामा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – नज़ीर अकबराबादी का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में सन 1735 ई० में हुआ था। इन्होंने आगरा के सुप्रसिद्ध शिक्षाविदों से अरबी – फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हें हर प्रकार के तीज-त्योहारों में बहुत दिलचस्पी थी। इन्हें किसी भी विषय पर कविता करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी। इनके प्रशंसक इन्हें रास्ते में रोककर इनसे अपनी मनपसंद कविता सुनते थे। इनका निधन सन 1830 ई० में हुआ।

रचनाएँ -नज़ीर अकबराबादी ने विभिन्न विषयों पर कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविता उर्दू की ‘नज़्म’ शैली में आती है। इन्होंने ‘सब ठाठ पड़ा जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा’ जैसी नीति से संबंधित नज़्मों के अतिरिक्त भिश्ती, ककड़ी बेचने वालों, बिसाती, गाना गाकर जीवनयापन करने वालों आदि के काम में सहायता देने वाली नज़्में भी लिखी हैं। ‘आदमी नामा’ इनकी एक उद्बोधनात्मक कविता है।

काव्य की विशेषताएँ – नज़ीर अकबराबादी की कविता आम आदमी से जुड़ी हुई कविता है। इसे गा-गाकर फेरीवाले, गानेवालियाँ आदि अपना जीवन-यापन करते थे। इन्होंने अपनी कविताओं में तत्कालीन जनजीवन का यथार्थ अंकन किया है। इन नज़्मों में मानव-जीवन के सुख-दुख, हँसी-मज़ाक, मेले- त्योहारों आदि का सहज भाव से चित्रण किया गया है। इनके काव्य की भाषा उर्दू मिश्रित खड़ी बोली है, जिसमें कहीं-कहीं देशज शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है।

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कविता का सार :

आदमी नामा’ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। इसमें कवि ने आदमी को संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना मानते हुए उसे उसकी कमियों से परिचित करवाया है और उसे अपने जीवन में सद्गुणों को अपनाकर संसार को और भी अधिक सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है। कवि के अनुसार इस दुनिया में आदमी ही सबकुछ करता प्रतीत होता है। वही दुनिया का बादशाह है और वही प्रजा है।

मालदार भी वही है और गरीब भी वही है। रोटी देने वाला भी वही है और रोटी खाने वाला भी वही है। मसजिद बनाने वाला, नमाज़ पढ़ने वाला, वहाँ से जूते चुराने वाला यदि आदमी है तो इमाम और खुतबाख्वां भी आदमी ही है। आदमी का अपमान करने वाला आदमी है; हत्यारा भी आदमी है; अपमान करने वाला आदमी है, तो रक्षक भी आदमी है। शरीफ़ भी आदमी है और कमीना भी आदमी है। आदमी ही गुरु है और चेला भी आदमी है। अच्छा भी आदमी है और बुरा भी वही है।

व्याख्या :

1. दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : बादशाह – राजा। मुफ़लिस – गरीब। ओ – और। गदा – भिखारी, फ़कीर। ज़रदार – अमीर, दौलतवाला। बेनवा – कमज़ोर। निअमत – स्वादिष्ट भोजन, बहुत अच्छा पदार्थ।

प्रस्तुत : पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का चित्रण करते हुए उसे सद्गुण अपनाकर, संसार को और भी अच्छा बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में आकर जो राजा बनता है, वह आदमी ही है तथा इस संसार में दीन-हीन, गरीब और भिखारी भी आदमी ही होता है। दौलतवाला आदमी है और कमज़ोर भी आदमी ही है। जो प्रतिदिन स्वादिष्ट भोजन खाता है, वह आदमी है; रूखे टुकड़े चबाने वाला भी आदमी ही है।

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2. मसजिद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी।

शब्दार्थ : यां – यहाँ। मियाँ श्रीमान। इमाम- नमाज़ पढ़ाने वाले धर्मगुरु। खुतबाख्वाँ – कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला। ताड़ता – भाँप लेना, डाँटना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे एक अच्छा आदमी बनकर संसार का कल्याण करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में मसजिद भी आदमी ने बनाई है और आदमी ही मसजिद में नमाज़ पढ़ाने वाले व कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाले धर्मगुरु बनते हैं। आदमी ही कुरान शरीफ़ पढ़ते हैं और नमाज़ अदा करते हैं। आदमी ही मसजिद में आने वालों के जूते चुराते हैं और उन जूतों को चुराने वालों पर नज़र रखने वाला भी आदमी ही होता है।

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3. यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे हैं आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : जान को वारे – प्राण न्योछावर करना। तेग – तलवार। पगड़ी उतारना – अपमान करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे अच्छा आदमी बनकर संसार को सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में मनुष्य ही मनुष्य के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देता है और आदमी ही आदमी को तलवार से मार देता है। आदमी ही दूसरे आदमी का अपमान करता है। आदमी ही आदमी के ऊपर अधिकार जमाते हुए उसे चिल्लाकर पुकारता है, तो उसकी सेवा करने वाला आदमी उसकी पुकार सुनकर दौड़ता चला जाता है।

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4. अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : अशराफ़ – सज्जन, शरीफ़। कमीना ओछा, नीच। शाह – राजा, सम्राट। वज़ीर मंत्री। ता तक। कारे काम। दिलपज़ीर दिल को अच्छा लगने वाला। मुरीद – शिष्य। पीर – गुरु।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे सद्गुणों से युक्त होकर संसार को सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि आदमी ही सज्जन और आदमी ही नीच होता है। राजा से मंत्री तक भी कोई आदमी ही होता है। आदमी ही ऐसे कार्य करता है, जो सबके दिल को लुभाने वाले होते हैं। इस संसार में आदमी ही शिष्य होता है, तो दूसरा आदमी उसका गुरु होता है। कवि कहता है कि संसार में अच्छा आदमी भी होता है और संसार में जो सबसे बुरा है, वह भी आदमी ही होता है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Jharkhand Board Class 12 Political Science भारत के विदेश संबंध InText Questions and Answers

पृष्ठ 66

प्रश्न 1.
चौथे अध्याय में एक बार फिर से जवाहरलाल नेहरू ! क्या वे कोई सुपरमैन थे, या उनकी भूमिका महिमा मंडित कर दी गई है?
उत्तर:
जवाहर लाल नेहरू वास्तव में एक सुपरमैन की भूमिका में ही थे। उन्होंने न केवल भारत के स्वाधीनता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी बल्कि स्वतंत्रता के पश्चात् भी उन्होंने राष्ट्रीय एजेण्डा तय करने में निर्णायक भूमिका निभायी। नेहरूजी प्रधानमन्त्री के साथ – साथ विदेश मन्त्री भी थे। उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे-

  1. कठिन संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बचाए रखना,
  2. क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना और
  3. तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे।

इसके अतिरिक्त पण्डित नेहरू द्वारा अपनायी गई राष्ट्रवाद, अन्तर्राष्ट्रीयवाद व पंचशील की अवधारणा आज भी भारतीय विदेश नीति के आधार स्तम्भ माने जाते हैं।

पृष्ठ 68

प्रश्न 2.
हम लोग आज की बनिस्बत जब ज्यादा गरीब, कमजोर और नए थे तो शायद दुनिया में हमारी पहचान कहीं ज्यादा थी। हैं ना विचित्र बात?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो खेमों – पूँजीवादी और साम्यवादी – में विभाजित हो गई थी। लेकिन भारत ने अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को बनाये रखने के लिए किसी भी खेमे में सम्मिलित न होने का निर्णय किया और स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन करते हुए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी। इसी कारण से भारत की दुनिया में एक विशेष पहचान थी और दुनिया के अल्पविकसित और विकासशील देशों ने भारत की इस नीति का अनुसरण भी किया। लेकिन शीतयुद्ध के अन्त, बदलती विश्व व्यवस्था तथा वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की प्रासंगिकता पर एक प्रश्न चिह्न लग गया है तथा उसका झुकाव भी अमेरिका की ओर किसी- न-किसी रूप में दिखाई दे रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि आज की बनिस्बत हम लोग जब ज्यादा गरीब, कमजोर और नए थे तो शायद दुनिया में हमारी पहचान ज्यादा थी।

पृष्ठ 72

प्रश्न 3.
“मैंने सुना है कि 1962 के युद्ध के बाद जब लता मंगेशकर ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगो..’ गाया तो नेहरू भरी सभा में रो पड़े थे। बड़ा अजीब लगता है यह सोचकर कि इतने बड़े लोग भी किसी भावुक लम्हे में रो पड़ते हैं!”
उत्तर:
यह बिल्कुल सत्य है कि जिन लोगों में राष्ट्रवाद व देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई हो और उनके सामने राष्ट्र का गुणगान किया जाए तो ऐसे लोगों का भावुक होना स्वाभाविक है। जहाँ तक पण्डित नेहरू का सवाल है, वे महान राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने जीवन पर्यन्त राष्ट्र की सेवा की। इस गीत को सुनकर उनके आँसू इसलिए छलक पड़े क्योंकि इस गीत में देश के उन शहीदों की कुर्बानी की बात कही गयी थी जिन्होंने हँसते-हँसते अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। उन्हीं की कुर्बानी ने देश को स्वतंत्रता दिलवायी थी।

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पृष्ठ 74

प्रश्न 4.
“हम ऐसा क्यों कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ? नेता झगड़े और सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। ज्यादातर आम नागरिकों को इनसे कुछ लेना-देना न था।”
उत्तर:
भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में सेनाओं ने एक-दूसरी सेनाओं से संघर्ष किया तथा राजनेताओं ने इस संघर्ष की अनुमति दी। परन्तु युद्ध का प्रभाव आम जन-जीवन पर भी पड़ता है क्योंकि युद्ध के पीछे की परिस्थितियाँ आम नागरिकों पर भी प्रभाव डालती हैं। दूसरे, सैनिक भी आम नागरिकों में से ही होते हैं। शहीद सैनिकों के परिवारों को आंसुओं के घूँट पीने पड़ते हैं। जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि युद्ध चाहे नेताओं के वैचारिक स्तर पर हो अथवा सेनाओं के बीच हो, आम जन-जीवन इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।

पृष्ठ 76

प्रश्न 5.
इस बात से तो ऐसा जान पड़ता है कि भारत सोवियत खेमे में शामिल हो गया था। क्या सोवियत संघ के साथ इस 20 वर्षीय सन्धि पर हस्ताक्षर करने के बावजूद हम कह सकते हैं कि भारत गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल कर रहा था?
उत्तर:
1971 में हुई भारत – सोवियत मैत्री सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि इस सन्धि के पश्चात् भी भारत गुटनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धान्तों पर कायम रहा। वह वारसा गुट में शामिल नहीं हुआ था। उसने अपनी प्रतिरक्षा के लिए बढ़ रहे खतरे, अमेरिका तथा पाकिस्तान में बढ़ रही घनिष्ठता व सहायता के कारण रूस से 20 वर्षीय संधि की थी। उसने संधि के बावजूद गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल किया। यही कारण है कि जब सोवियत संघ की सेनाएँ अफगानिस्तान में पहुँचीं तो भारत ने इसकी आलोचना की। इसलिए यह कहना कि सोवियत मैत्री संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल नहीं किया, गलत है।

पृष्ठ 78

प्रश्न 6.
बड़ा घनचक्कर है! क्या यहाँ सारा मामला परमाणु बम बनाने का नहीं है? हम ऐसा सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते?
उत्तर:
भारत ने सन् 1974 में परमाणु परीक्षण किया तो इसे उसने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत ने मई, 1998 में परमाणु परीक्षण किए तथा यह जताया कि उसके पास सैन्य उद्देश्यों के लिए अणु शक्ति को प्रयोग में लाने की क्षमता है। इस दृष्टि से यह मामला यद्यपि परमाणु बम बनाने का ही था तथापि भारत की परमाणु नीति में सैद्धान्तिक तौर पर यह बात स्वीकार की गई है किं भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन इन हथियारों का प्रयोग ‘पहले नहीं’ करेगा।

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प्रश्न 1.
इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ-
(क) गुनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शुरूआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक सम्बन्धों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शान्ति और मैत्री की सन्धि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएँ:

(क) 1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।
(ख) पंचशील (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और सम्प्रभुता की रक्षा तथा अर्थिक विकास।
(ग) बांडुंग सम्मेलन (iii) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्त।
(घ) दलाई
लामा
(iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई।

उत्तर:

(क) 1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और सम्प्रभुता की रक्षा तथा अर्थिक विकास।
(ख) पंचशील (iii) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्त।
(ग) बांडुंग सम्मेलन (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई।
(घ) दलाई लामा (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।

प्रश्न 3.
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर:
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेत इसलिए मानते थे क्योंकि स्वतन्त्रता किसी भी देश की विदेश नीति के संचालन की प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है। स्वतंत्रता से तात्पर्य है। राष्ट्र के पास प्रभुसत्ता का होना तथा प्रभुसत्ता के दो पक्ष हैं।

  1. आंतरिक संप्रभुता और
  2. बाह्य संप्रभुता। इसमें बाह्य संप्रभुता का सम्बन्ध विदेश नीति का स्वतन्त्रतापूर्वक बिना किसी दूसरे राष्ट्र के दबाव के संचालित करना है।

दो कारण और उदाहरण:

  1. जो देश किसी दबाव में आकर अपनी विदेश नीति का निर्धारण करता है तो उसकी स्वतंत्रता निरर्थक होती है तथा एक प्रकार से दूसरे देश के अधीन हो जाता है व उसे अनेक बार अपने राष्ट्रीय हितों की भी अनदेखी करनी पड़ती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए नेहरू ने शीत युद्ध काल में किसी भी गुट में शामिल न होने और असंलग्नता की नीति को अपनाकर दोनों गुटों के दबाव को नहीं माना।
  2. भारत स्वतन्त्र नीति को इसलिए अनिवार्य मानता था ताकि यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपनिवेशवाद, जातीय भेदभाव, रंग-भेदभाव का मुकाबला डटकर कर सके। भारत ने 1949 में साम्यवादी चीन को मान्यता प्रदान की तथा सुरक्षा परिषद् में उसकी सदस्यता का समर्थन किया और सोवियत संघ ने हंगरी पर जब आक्रमण किया तो उसकी निंदा की।

प्रश्न 4.
“ विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर:
किसी देश की विदेश नीति पर घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है। विकासशील देशों के पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने के लिए जरूरी संसाधनों का अभाव होता है। ऐसे देशों का जोर इस बात पर होता है कि उनके पड़ोस में अमन-चैन कायम रहे और विकास होता रहे। 1960 के दशक में भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाना भी इसका उदाहरण माना जा सकता है। उदाहरणार्थ – तत्कालीन समय में भारत की आर्थिक स्थिति अत्यधिक दयनीय थी, इसलिए उसने शीत युद्ध के काल में किसी भी गुट का समर्थन नहीं किया और दोनों ही गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करता रहा।

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प्रश्न 5.
अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन बातों को बदलना चाहेंगे? ठीक तरह यह भी बताएँ कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए
उत्तर:

  • भारतीय विदेश नीति में निम्न दो बदलाव लाना चाहूँगा-
    1. मैं वर्तमान एकध्रुवीय विश्व में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति में बदलाव लाना चाहूँगा क्योंकि वर्तमान वैश्वीकरण और उदारीकरण के युग में गुट निरपेक्षता की नीति अप्रासंगिक हो गयी है।
    2. मैं भारत की विदेश नीति में चीन एवं पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है उसमें बदलाव लाना चाहूँगा, क्योंकि इसके वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त मैं भारतीय विदेश नीति के निम्नलिखित दो पहलुओं को बरकरार रखना चाहूँगा
    1. सी. टी.बी. टी. के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को जारी रखूँगा।
    2. मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से सहयोग जारी रखूँगा।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) भारत की परमाणु नीति।
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व सहमति
उत्तर:
(क) भारत की परमाणु नीति- भारत ने मई, 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण करते हुए अपनी परमाणु नीति को नई दिशा प्रदान की। इसके प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं-

  1. आत्मरक्षार्थ – भारत ने आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का निर्माण किया, ताकि कोई अन्य देश भारत पर परमाणु हमला न कर सक।
  2. प्रथम प्रयोग नहीं – भारत ने परमाणु हथियारों का युद्ध में पहले प्रयोग न करने की घोषणा कर रखी है।
  3. भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है तथा विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है।
  4. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की भेदभावपूर्ण नीति का विरोध करना।

(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व सहमति – विदेश नीति के मामलों पर सर्वसहमति आवश्यक है, क्योंकि यदि एक देश की विदेश नीति के मामलों में सर्वसहमति नहीं होगी, तो वह देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष प्रभावशाली ढंग से नहीं रख पायेगा। भारत की विदेश नीति के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं जैसे गुटनिरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, दूसरे देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना इत्यादि पर सदैव सर्वसहमति रही है।

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प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों को आधार मानकर हुआ। लेकिन, 1962-1971 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आजादी के समय भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों के आधार पर किया। परन्तु 1962 से लेकर 1971 तक भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े तो इसके पीछे कुछ हद तक भारत की विदेश नीति की असफलता भी मानी जाती है तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम भी। यथा-
1. चीन का आक्रमण ( 1962 ):
चीन और भारत के दोस्ताना रिश्ते में गंभीर विवाद तब पैदा हुआ जब 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया। क्योंकि इस वजह से भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक रूप से जो मध्यवर्ती राज्य बना चला आ रहा था, वह खत्म हो गया। शुरू में भारत (सरकार) ने इसका खुलकर विरोध नहीं किया था । भारत की बेचैनी तब बढ़ी जब चीन ने तिब्बत की संस्कृति को दबाना शुरू किया। भारत और चीन के बीच एक सीमा विवाद भी उठ खड़ा हुआ था। यह विवाद चीन से लगी लंबी सीमा रेखा के पश्चिमी और पूर्वी छोर के बारे में था। चीन ने भारतीय भू-क्षेत्र में पड़ने वाले अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना दावा किया। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच लंबी चर्चा और वार्तालाप के बावजूद इस मतभेद को सुलझाया नहीं जा सका। इसलिए भारत को संघर्ष में शामिल होना पड़ा।

2. पाकिस्तान के साथ युद्ध-कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान के साथ बँटवारे के तुरंत बाद ही संघर्ष छिड़ गया था। 1947 में ही कश्मीर में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच छाया-युद्ध छिड़ गया था। 1965 में इस छाया-युद्ध ने गंभीर किस्म के सैन्य संघर्ष का रूप ले लिया। बाद में, भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और संजीव पास बुक्स पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच 1966 में ताशकंद – समझौता हुआ। 1965 की लड़ाई ने भारत की कठिन आर्थिक स्थिति को और गंभीर बना दिया था।

3. बांग्लादेश युद्ध, 1971-1970 में पाकिस्तान के सामने एक गहरा अंदरूनी संकट आ खड़ा हुआ। जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी पश्चिमी पाकिस्तान में विजयी रही जबकि मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने पूर्वी पाकिस्तान में कामयाबी हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली आबादी ने पश्चिमी पाकिस्तान के भेदभावपूर्ण रवैये के विरोध में मतदान किया था, परंतु यह जनादेश पाकिस्तान के शासक स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।

1971 में पाकिस्तानी सेना ने शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप पर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने इलाके को पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया। 1971 में भारत को 80 लाख शरणार्थियों का भार पठाना पड़ा। ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए थे। उपर्युक्त कारणों की वजह से भारत ने बांग्लादेश के ‘मुक्ति संग्राम’ को नैतिक समर्थन और भौतिक सहायता दी।

महीनों राजनयिक तनाव और सैन्य तैनाती के बाद 1971 के दिसंबर में भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण पैमाने पर युद्ध छिड़ गया। पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने पंजाब और राजस्थान पर हमला किया और उसकी सेना ने जम्मू- कश्मीर पर हमला किया। भारत ने अपनी जल, थल और वायु सेना द्वारा इस हमले का जवाब दिया। दस दिनों के भीतर भारतीय सेना ने ढाका को तीन तरफ से घेर लिया और पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। तत्पश्चात् बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय के साथ भारतीय सेना ने अपनी तरफ से एकतरफा युद्ध-विराम घोषित कर दिया। बाद में 3 जुलाई, 1972 को इंदिरा गाँधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ। अधिकांश भारतीयों ने इसे गौरव की घड़ी के रूप में देखा और माना कि भारत का सैन्य-पराक्रम प्रबल हुआ है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 8.
क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के सन्दर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति से यह बिल्कुल नहीं झलकता कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है। 1971 के बांग्लादेश युद्ध के सन्दर्भ में देखें तो भी ऐसा प्रतीत नहीं होता। बांग्लादेश के निर्माण के लिए स्वयं पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापूर्ण नीतियाँ, बंगालियों की अपनी भाषा, संस्कृति के प्रति अटूट प्यार व गहरी आस्था को माना जा सकता है। दूसरे, भारत ने कभी भी अपने छोटे-छोटे पड़ौसी देशों को अमेरिका की तरह अपने गुट में सम्मिलित करने का प्रयास नहीं किया बल्कि 1965 तथा 1971 में जीते गये क्षेत्रों को भी वापस कर दिया। इस प्रकार भारत बलपूर्वक किसी देश पर बात मनवाना नहीं चाहता।

प्रश्न 9.
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
उत्तर:
किसी भी देश की विदेश नीति के निर्धारण में उस देश के राजनीतिक नेतृत्व की विशेष भूमिका होती है उदाहरण के लिए, पण्डित नेहरू के विचारों से भारत की विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे । वह मैत्री, सहयोग व सहअस्तित्व के प्रबल समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा भारत की विदेश नीति के ढाँचे को ढाला।

इसी प्रकार श्रीमती इन्दिरा गाँधी, राजीव गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व व व्यक्तित्व की भी भारत की विदेश नीति पर स्पष्ट छाप दिखाई देती है। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, गरीबी हटाओ का नारा दिया और रूस के साथ दीर्घ अनाक्रमण सन्धि की। इसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति में देश में परमाणु शक्ति का विकास हुआ। उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’ का नारा दिया। इस प्रकार देश का राजनीतिक नेतृत्व उस राष्ट्र की विदेश नीति पर प्रभाव डालता है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए : गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल नहीं करना… इसका अर्थ होता है चीजों को यथासम्भव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना और इसकी कभी जरूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतन्त्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना…..
(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे? – जवाहरलाल नेहरू
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत – सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य – गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?
उत्तर:
(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि वे किसी भी सैनिक गुट में शामिल न होकर एक स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन करना चाहते थे।

(ख) भारत – सोवियत मैत्री सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि इस सन्धि के पश्चात् भी भारत गुटनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धान्तों पर कायम रहा तथा जब सोवियत संघ की सेनाएँ अफगानिस्तान में पहुँचीं तो भारत ने इसकी आलोचना की ।

(ग) यदि विश्व में सैनिक गुट नहीं होते तो भी गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी रहती, क्योंकि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना शान्ति एवं विकास के लिए की गई थी तथा शान्ति एवं विकास के लिए चलाया गया कोई भी आन्दोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।

भारत के विदेश संबंध JAC Class 12 Political Science Notes

→ अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ:
भारत बड़ी विकट और चुनौतीपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आजाद हुआ था, जैसे महायुद्ध की तबाही, पुनर्निर्माण की समस्या, उपनिवेशवाद की समाप्ति, लोकतन्त्र को कायम करना तथा एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का निर्माण करना आदि की चुनौतियाँ विश्व के समक्ष थीं। इसके अतिरिक्त भारत के समक्ष अनेक विषम घरेलू परिस्थितियाँ भी थीं, जैसे बंटवारे का दबाव, गरीबी तथा अशिक्षा आदि। ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की सम्प्रभुता का सम्मान करने और शान्ति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा।

→ संवैधानिक सिद्धान्त:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों के हवाले से कहा गया है कि राज्य को विदेशों से सम्बन्ध बनाये रखने हेतु निम्न निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है-

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि करना।
  • राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाये रखना।
  • संगठित लोगों के एक-दूसरे से व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधि – बाध्यताओं के प्रति आदर की भावना रखना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करना।

→ गुटनिरपेक्षता की नीति:
द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद दुनिया दो खेमों (सैनिक गुटों) में विभाजित हो गई । एक खेमे का अगुआ संयुक्त राज्य अमेरिका और दूसरे का सोवियत संघ। दोनों खेमों के बीच विश्व स्तर पर आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य टकराव जारी रहा। इसी दौर में संयुक्त राष्ट्रसंघ भी अस्तित्व में आया; परमाणु हथियारों का निर्माण शुरू हुआ; चीन में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना हुई । अनौपनिवेशीकरण की प्रक्रिया भी इसी दौर में आरंभ हुई थी। नेहरू की भूमिका – पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के प्रधानमन्त्री व विदेश मन्त्री के रूप में भारत की विदेश नीति की रचना की और इसके क्रियान्वयन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे

  • कठिन संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बचाये रखना,
  • क्षेत्रीय अखण्डता को बनाये रखना, और
  • तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे।

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→ दोनों खेमों से दूरी:
आजाद भारत की विदेश नीति में शान्तिपूर्ण विश्व का सपना था और इसके लिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया। इसके लिए भारत ने शीतयुद्ध से उपजे तनाव को कम करने की कोशिश की और संयुक्त राष्ट्र संघ के शान्ति अभियानों में अपनी सेना भेजी। भारत शीतयुद्ध के दौरान किसी भी खेमे में शामिल नहीं हुआ।

→ एफ्रो-एशियाई एकता:
भारत के आकार, अवस्थिति और शक्ति सम्भावनाओं को देखते हुए नेहरू ने विश्व के मामलों, विशेषकर एशियाई मामलों में भारत के लिए बड़ी भूमिका निभाने का स्वप्न देखा। नेहरू के दौर में भारत ने एशिया और अफ्रीका के नव- स्वतन्त्र देशों के साथ सम्पर्क बनाए। 1940 और 1950 के दशकों में नेहरू ने बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता की पेशकश की। नेहरू की अगुआई में भारत में मार्च, 1947 में एशियाई सम्बन्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया। भारत ने इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन किया।

भारत अनौपनिवेशीकरण की प्रक्रिया का प्रबल समर्थक था और उसने पूरी दृढ़ता से नस्लवाद का, खासकर दक्षिण अफ्रीका में हो रहे रंगभेद का विरोध किया । इण्डोनेशिया के शहर बांडुंग में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन 1955 में हुआ। इसी सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन 1961 के सितंबर में बेलग्रेड में हुआ।

→ चीन के साथ शान्ति और संघर्ष:
आजाद भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरूआत बड़े मैत्रीपूर्ण ढंग से की। चीनी क्रान्ति 1949 में हुई थी। इस क्रान्ति के बाद भारत, चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाला पहला देश था। इसके अतिरिक्त शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों यानी पंचशील की घोषणा भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू और चीन के प्रमुख नेता चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 को की। दोनों देशों के बीच मजबूत सम्बन्ध की दिशा में यह एक अगला कदम था। भारत और चीन के नेता एक-दूसरे के देश का दौरा करते थे और उनके स्वागत के लिए भारी भीड़ जुटती थी।

→ चीन का आक्रमण, 1962:
चीन के साथ भारत के दोस्ताना रिश्ते में दो कारणों से खटास आई। चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। तिब्बत की संस्कृति को कुचलने की खबर आने पर भारत की बेचैनी भी बढ़ी। तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत से राजनीतिक शरण माँगी और 1959 में भारत ने उन्हें शरण दे दी। इससे कुछ दिनों पहले भारत और चीन के बीच सीमा विवाद भी उठा था। मुख्य विवाद चीन से लगी लंबी सीमा-रेखा के पश्चिमी और पूर्वी छोर के बारे में था। चीन ने भारतीय भू-क्षेत्र में पड़ने वाले दो इलाकों जम्मू-कश्मीर के लद्दाख वाले हिस्से के अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार जताया। 1957. से 1959 के बीच चीन ने अक्साई चीन इलाके पर कब्जा कर लिया और इस इलाके में उसने रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए एक सड़क बनाई।

जिस समय पूरे विश्व का ध्यान दो महाशक्तियों की तनातनी से पैदा इस संकट की तरफ लगा हुआ था, उसी समय चीन ने 1962 के अक्टूबर में दोनों विवादित क्षेत्रों पर बड़ी तेजी तथा व्यापक स्तर पर हमला किया। पहले हमले में चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ महत्त्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा कर लिया। दूसरे हमले में लद्दाख से लगे पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना ने चीनी सेना को रोक लिया था परंतु पूर्व में चीनी सेना आगे बढ़ते हुए असम के मैदानी हिस्से तक पहुँच गई। आखिरकार, चीन ने एकतरफा युद्ध विराम घोषित किया और चीन की सेना अपने पुराने जगह पर वापस चली गई। चीन-युद्ध से भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। इस युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुँची परंतु इसके साथ-साथ राष्ट्र – भावना भी बलवती हुई।

इस संघर्ष का असर विपक्षी दलों पर भी हुआ। चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डाँवाडोल स्थिति के प्रति संचेत किया। यह इलाका अत्यंत पिछड़ी दशा में था और अलग-थलग पड़ गया था। राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिहाज से भी यह इलाका चुनौतीपूर्ण था। चीन – युद्ध के तुरंत बाद इस इलाके को नयी तरतीब में ढालने की कोशिशें शुरू की गईं। नागालैंड को प्रांत का दर्जा दिया गया। मणिपुर और त्रिपुरा केन्द्र शासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार मिला।

→ पाकिस्तान के साथ युद्ध और शान्ति:
पाकिस्तान की स्थापना सन् 1947 में भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप हुई। आरम्भ से ही भारत तथा पाकिस्तान के आपसी सम्बन्ध तनावपूर्ण रहे। सन् 1947 में कश्मीर मुद्दे को लेकर दोनों देशों की सेनाओं के मध्य छाया- युद्ध हुआ । बहरहाल यह संघर्ष पूर्णव्यापी युद्ध का रूप न ले सका। यह मसला संयुक्त राष्ट्र संघ के हवाले कर दिया गया। सन् 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर फिर आक्रमण किया परन्तु भारत ने इसका मुँहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित किया। अन्त में संयुक्त राष्ट्रसंघ के माध्यम से दोनों देशों के बीच ताशकन्द समझौता हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने पाकिस्तान के जीते हुए क्षेत्र वापस लौटा दिए।

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→ बांग्लादेश युद्ध, 1971:
सन् 1971 में बांग्लादेश की समस्या को लेकर भारत तथा पाकिस्तान के बीच पुनः युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में पाकिस्तान पुनः पराजित हुआ और पाकिस्तान का एक बहुत बड़ा भाग उसके हाथ से छिन गया अर्थात् बांग्लादेश नामक एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना हुई।

→ करगिल संघर्ष:
1999 – सन् 1999 में पाकिस्तान ने भारत के नियन्त्रण रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, मश्कोह, काकसर और बतालिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने जवाबी कार्यवाही की इससे दोनों देशों के मध्य संघर्ष छिड़ गया। इसे करगिल की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। 26 जुलाई, 1999 तक भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए पुनः अपने क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया । पाकिस्तान के इस आक्रमण की अन्तर्राष्ट्रीय जगत में तीव्र आलोचना की गई। भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तनावपूर्ण सम्बन्धों को सुधारने हेतु अनेक प्रयास किये गये जिसमें रेल व बस यात्राएँ शुरू करना, द्विपक्षीय वार्ताएँ की गईं लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।

→ भारत की परमाणु नीति:
भारत मई, 1974 में पहला परमाणु परीक्षण कर परमाणु आयुध सम्पन्न राष्ट्रों की श्रेणी में आया लेकिन इसकी शुरूआत 1940 के दशक के अन्तिम सालों में होमी जहाँगीर भाभा के निर्देशन में हो चुकी थी। भारत शान्तिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल के लिए अणु ऊर्जा का उपयोग करने के पक्ष में है। भारत ने परमाणु अप्रसार के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की गई सन्धियों का विरोध किया क्योंकि ये सन्धियाँ उन्हीं देशों पर लागू होती थीं जो परमाणु शक्तिहीन राष्ट्र थे। मई, 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किए और दुनिया को यह जताया कि उसके पास भी सैन्य उद्देश्यों के लिए अणु-शक्ति के इस्तेमाल की क्षमता है। भारत की परमाणु नीति में सैद्धान्तिक तौर पर यह बात स्वीकार की गई है कि भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन वह हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा। इसके साथ ही भारत वैश्विक स्तर पर लागू और भेदभावहीन परमाणु निःशस्त्रीकरण के प्रति वचनबद्ध है ताकि परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व की रचना हो।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

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पृष्ठ 49

प्रश्न 1.
क्या आप यह कह रहे हैं कि ‘आधुनिक’ बनने के लिए ‘पश्चिमी’ होना जरूरी नहीं है? क्या यह सम्भव है?
उत्तर:
आधुनिक बनने के लिए पश्चिमी होना जरूरी नहीं है। प्रायः आधुनिकीकरण का सम्बन्ध पाश्चात्यीकरण से माना जाता है लेकिन यह सही नहीं है, क्योंकि आधुनिक होने का अर्थ मूल्यों एवं विचारों में समस्त परिवर्तन से लगाया जाता है और यह परिवर्तन समाज को आगे की ओर ले जाने वाले होने चाहिए। आधुनिकीकरण में परिवर्तन केवल विवेक पर ही नहीं बल्कि सामाजिक मूल्यों पर भी आधारित होते हैं। इसमें वस्तुतः समाज के मूल्य साध्य और लक्ष्य भी निर्धारित करते हैं कि कौनसा परिवर्तन अच्छा है और कौनसा बुरा है; कौनसा परिवर्तन आगे की ओर ले जाने वाला है और कौनसा अधोगति में पहुँचाने वाला है। जबकि पाश्चात्यीकरण मूल्यमुक्तता पर बल देता है, इसका न कोई क्रम होता है और न कोई दिशा इस प्रकार आधुनिक बनने के लिए पश्चिमी होना जरूरी नहीं है।

पृष्ठ 58

प्रश्न 2.
अरे! मैं तो भूमि सुधारों को मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने की तकनीक समझता था।
उत्तर:
भूमि सुधार का तात्पर्य मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने की तकनीक तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत अनेक तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है-

  1. जमींदारी एवं जागीरदारी व्यवस्था को समाप्त करना।
  2. जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करके कृषिगत कार्य को अधिक सुविधाजनक बनाना।
  3. बेकार एवं बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने हेतु व्यवस्था करना।
  4. कृषिगत भू- जोतों की उचित व्यवस्था करना।
  5. सिंचाई के साधनों का विकास करना।
  6. अच्छे खाद व उन्नत बीजों की व्यवस्था करना।
  7. किसानों द्वारा उत्पन्न खाद्यान्नों की उचित कीमत दिलाने का प्रयास करना।
  8. किसानों को समय-समय पर विभिन्न प्रकार के ऋण व विशेष अनुदानों की व्यवस्था करना आदि।

Jharkhand Board Class 12 Political Science नियोजित विकास की राजनीति TextBook Questions and Answers

प्रश्न 1
‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौनसा बयान सही नहीं है?
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।
उत्तर:
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।

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प्रश्न 2.
भारत ने शुरूआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौनसा विचार शामिल नहीं था?
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्मनिर्भरता ।
उत्तर:
(ख) उदारीकरण।

प्रश्न 3.
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार ग्रहण किया गया था:
(क) बॉम्बे प्लान से
(ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से
(ग) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से
(घ) किसान संगठनों की मांगों से

(क) सिर्फ ख और घ
(ग) सिर्फ घ और ग
(ख) सिर्फ क और ख
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित का मेल करें:

(क) चरणसिंह (i) औद्योगीकरण
(ख) पी.सी. महालनोबिस (ii) जोनिंग
(ख) सिर्फ क और ख (iii) किसान
(घ) उपर्युक्त सभी (iv) सहकारी डेयरी

उत्तर:

(क) चरणसिंह (iii) किसान
(ख) पी.सी. महालनोबिस (i) औद्योगीकरण
(ग) बिहार का अकाल (ii) जोनिंग
(घ) वर्गीज कुरियन (iv) सहकारी डेयरी

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प्रश्न 5.
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?
उत्तर:
आजादी के समय विकास के सवाल पर मतभेद -आजादी के समय विकास के सवाल पर विभिन्न मतभेद थे। यथा

  1. आर्थिक संवृद्धि के साथ सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन- सी भूमिका निभाये ? इस सवाल पर मतभेद था।
  2. विकास के दो मॉडलों – उदारवादी – पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल में से किस मॉडल को अपनाया जाये ? इस बात पर मतभेद था।
  3. कुछ लोग औद्योगीकरण को उचित रास्ता मानते थे तो कुछ की नजर में कृषि का विकास करना और ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर करना सर्वाधिक जरूरी था।
  4. कुछ अर्थशास्त्री केन्द्रीय नियोजन के पक्ष में थे जबकि अन्य कुछ विकेन्द्रित नियोजन को विकास के लिए आवश्यक मानते थे।

मतभेदों को सुलझाना – उपर्युक्त में से कुछ मतभेदों को सुलझा लिया गया है परन्तु कुछ को सुलझाना अभी भी शेष है, जैसे

  1. सभी में इस बात पर सहमति बनी कि देश के व्यापार उद्योगों और कृषि को क्रमशः व्यापारियों, उद्योगपतियों और किसानों के भरोसे पूर्णत: नहीं छोड़ा जा सकता है।
  2. लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक-आर्थिक न्याय दोनों ही है।
  3. इस बात पर भी सहमति हो गई कि गरीबी मिटाने और सामाजिक-आर्थिक पुनर्वितरण के काम की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
  4. विकास के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने पर सहमति बनी।

प्रश्न 6.
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था ? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में देश में लोगों को गरीबी के जाल से निकालने का प्रयास किया गया और इस योजना में ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर दिया गया। इसी योजना के अन्तर्गत बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। भाखड़ा नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आवंटित की गई। इस योजना में भूमि सुधार पर जोर दिया गया और इसे देश के विकास की बुनियादी चीज माना गया।

दोनों में अन्तर:

  1. प्रथम पंचवर्षीय एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहाँ प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक बल दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया।
  2. पहली पंचवर्षीय योजना का मूलमंत्र था – -धीरज, जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना तेज संरचनात्मक परिवर्तन पर बल देती थी।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • हरित क्रान्ति का अर्थ – “हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषिगत उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है।” इसके तीन तत्व थे
    1. कृषि का निरन्तर विस्तार
    2. दोहरी फसल लेना
    3. अच्छे बीजों का प्रयोग इस प्रकार हरित क्रांति का अर्थ है – सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर उत्पादन बढ़ाना।
  • हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक परिणाम- हरित क्रांति के निम्न सकारात्मक परिणाम निकले-
    1. हरित क्रान्ति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ ( ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बढ़ी) और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई।
    2. हरित क्रांति के कारण कृषि में मँझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ।
  • हरित क्रान्ति के नकारात्मक परिणाम – हरित क्रान्ति के दो नकारात्मक परिणाम निम्न हैं-
    1. इस क्रान्ति से गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर बढ़ गया।
    2. इससे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे इलाके कृषि की दृष्टि से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़े रहे।

प्रश्न 8.
“नियोजन के शुरुआती दौर में ‘कृषि बनाम उद्योग’ का विवाद रहा।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास और कृषि विकास में किस क्षेत्र के विकास पर जोर दिया जाय, का विवाद चला। इस विवाद के सम्बन्ध में विभिन्न तर्क दिये गये। यथा

  1. कृषि क्षेत्र का विकास करने वाले विद्वानों का यह तर्क था कि इससे देश आत्मनिर्भर बनेगा तथा किसानों की दशा में सुधार होगा, जबकि औद्योगिक विकास का समर्थन करने वालों का यह तर्क था कि औद्योगिक विकास से देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा देश में बुनियादी सुविधाएँ बढ़ेंगी।
  2. अनेक लोगों का मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँचेगी।
  3. कई अन्य लोगों का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकड़जाल से मुक्ति नहीं मिल सकती । कृषि विकास हेतु तो अनेक कानून बनाये जा चुके हैं, लेकिन औद्योगिक विकास की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं हुए हैं।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 9.
” अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरूआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता ।” इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त विचार के पक्ष व विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं- पक्ष में तर्क-

  1. भारत ने 1990 के दशक से ही नई आर्थिक नीति अपनायी है। तब से यह तेजी से उदारीकरण और वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। यदि यह नीति प्रारम्भ से ही अपना ली गई होती तो भारत का विकास अधिक बेहतर होता।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी उन्हीं देशों को अधिक ऋण व निवेश के संसाधन प्रदान करती हैं जहाँ निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती है। जिन बड़े कार्यों के लिए सरकार पूँजी जुटाने में असमर्थ होती है उन कार्यों में अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और देशी बड़े-बड़े पूँजीपति लोग पूँजी लगा सकते हैं।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भारत तभी ठहर सकता था जब निजी क्षेत्र को छूट दे दी गई होती।

विपक्ष में तर्क- निजी क्षेत्र के विपक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं

  1. भारत में कृषिगत और औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार सरकारी वर्ग की प्रभावशाली नीतियों व कार्यक्रमों से हुआ। यदि ऐसा नहीं होता तो भारत पिछड़ जाता।
  2. भारत में विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या ज्यादा है। यहाँ बेरोजगारी है, गरीबी है। यदि पश्चिमी देशों की होड़ में भारत सरकारी हिस्से को अर्थव्यवस्था में कम कर दिया जाएगा तो बेरोजगारी बढ़ेगी, गरीबी फैलेगी, धन और पूँजी कुछ ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में केन्द्रित हो जाएगी जिससे आर्थिक विषमता और बढ़ जाएगी।
  3. भारत कृषि-प्रधान देश है। वह विकसित देशों के कृषि उत्पादन से मुकाबला नहीं कर सकता। कृषि क्षेत्र में सरकारी सहयोग राशि के बिना कृषि का विकास रुक जायेगा।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें- आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपीं। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धांत अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ- साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया। – फ्रैंकिन फ्रैंकल
(क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और इसके प्रांतीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त अवतरण में लेखक कांग्रेस पार्टी के अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है जो क्रमशः वामपंथी विचारधारा से और दूसरा खेमा दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित था अर्थात् जहाँ कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समाजवादी सिद्धान्तों में विश्वास रखती थी, वहीं राष्ट्रीय कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार निजी निवेश को बढ़ावा दे रही थी। इस प्रकार के अन्तर्विरोध से देश में राजनीतिक अस्थिरता फैलने की सम्भावना रहती है।

(ख) कांग्रेस इस नीति पर इसलिए चल रही थी, कि कांग्रेस में सभी विचारधाराओं के लोग शामिल थे तथा सभी लोगों के विचारों को ध्यान में रखकर ही कांग्रेस पार्टी इस प्रकार का कार्य कर रही थी। इसके साथ-साथ कांग्रेस पार्टी ने इस प्रकार की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि विपक्षी दलों के पास आलोचना का कोई मुद्दा न रहे।

(ग) कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व एवं प्रान्तीय नेताओं में कुछ हद तक अन्तर्विरोध पाया जाता था। जहाँ केन्द्रीय नेतृत्व राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को महत्त्व देता था, वहीं प्रान्तीय नेता प्रान्तीय एवं स्थानीय मुद्दों को महत्त्व देते थे। परिणामस्वरूप कांग्रेस के प्रभावशाली क्षेत्रीय नेताओं ने आगे चलकर अपने अलग-अलग राजनीतिक दल बनाए, जैसे- चौधरी चरण सिंह ने क्रांति दल या भारतीय लोकदल बनाया तो उड़ीसा में बीजू पटनायक ने उत्कल कांग्रेस का गठन किया।

नियोजित विकास की राजनीति JAC Class 12 Political Science Notes

→ नियोजित विकास का सम्बन्ध उचित रीति से सोच-विचार कर कदम उठाने से है। प्रत्येक क्रिया नियोजित विकास की क्रिया कहलाती है जो विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने हेतु दूरदर्शिता, विचार-विमर्श तथा उद्देश्यों एवं उनकी प्राप्ति हेतु प्रयुक्त होने वाले साधनों की स्पष्टता पर आधारित हो।

→ राजनीतिक फैसले और विकास-

  • भारत में नियोजित विकास की राजनीति आरम्भ करने से पहले विभिन्न तरह से विचार-विमर्श किये गये तथा तत्कालीन बाजार शक्तियों, लोगों की आकांक्षाओं एवं पर्यावरण पर विकास के पड़ने वाले तथ्यों को ध्यान में रखा गया।
  • अच्छे नियोजन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु नियोजन के लक्ष्य एवं उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिए इसके साथ ही साधनों की व्यवस्था, लचीलापन, समन्वय, व्यावहारिकता, पद- सोपान तथा निरन्तरता जैसे विषयों पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
  • भारत में उड़ीसा राज्य की सरकार ने राज्य में इस्पात की बहुतायत को देखते हुए इन क्षेत्रों में उद्योग विकसित करने का मानस बनाया। लेकिन इस क्षेत्र में आदिवासियों के विस्थापन व पर्यावरण जैसी समस्या उभरकर सामने आई जिसको हल करना सरकार की पहली प्राथमिकता थी। इस प्रकार विकास योजनाओं को लागू करने से पहले पर्याप्त सोच-विचार की आवश्यकता है।

→ राजनीतिक टकराव:
विकास से जुड़े निर्णयों से प्रायः सामाजिक – समूह के हितों को दूसरे सामाजिक – समूह के हितों की तुलना में तौला जाता है। साथ ही मौजूदा पीढ़ी के हितों और आने वाली पीढ़ी के हितों को भी लाभ-हानि की तुला पर मापना पड़ता है। किसी भी लोकतन्त्र में ऐसे फैसले जनता द्वारा लिए जाने चाहिए या कम से कम इन फैसलों पर विशेषज्ञों की स्वीकृति की मुहर होनी चाहिए। आजादी के बाद आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक न्याय की स्थापना हो इसके लिए सरकार कौन – सी भूमिका निभाए? इस सवाल को लेकर पर्याप्त मतभेद था।

क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजनाएँ बनाये ? क्या सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा ? इनमें से प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी हैं

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

→ विकास की धारणाएँ:
भारत ने तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मिश्रित मॉडल को अपनाया स्वतन्त्रता के समय भारत के सामने विकास के दो मॉडल थे। पहला उदारवादी – पूँजीवादी मॉडल था। यूरोप के अधिकतर हिस्सों और संयुक्त राज्य अमरीका में यही मॉडल अपनाया गया था। दूसरा समाजवादी मॉडल था, इसे सोवियत संघ ने अपनाया था। भारत ने इन दोनों मॉडलों के तत्त्वों को सम्मिलित करते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाया। आजादी के आंदोलन के दौरान ही एक सहमति बन गई थी और नेताओं की इस पसंद में यही सहमति प्रतिबिंबित हो रही थी।

राष्ट्रवादी नेताओं के मन में यह बात बिल्कुल साफ थी कि आजाद भारत की सरकार के आर्थिक सरोकार अंग्रेजी हुकूमत के आर्थिक सरोकारों से एकदम अलग होंगे। आजाद भारत की सरकार अंग्रेजी हुकूमत की तरह संकुचित व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए काम नहीं करेगी। आजादी के आन्दोलन के दौरान ही यह बात भी साफ हो गई थी कि गरीबी मिटाने और सामाजिक-आर्थिक पुनर्वितरण के काम का मुख्य जिम्मा सरकार का होगा।

→ नियोजन:
नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था। यूरोप महामंदी का शिकार होकर सबक सीख चुका था; जापान और चीन ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था फिर खड़ी कर ली थी और सोवियत संघ ने 1930 तथा 1940 के दशक में भारी कठिनाइयों के बीच शानदार आर्थिक प्रगति की थी। इन सभी बातों के कारण नियोजन के पक्ष में दुनियाभर में हवा बह रही थी।

→ योजना आयोग:
योजना आयोग की स्थापना मार्च, 1950 में भारत – सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिये की। यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मन्त्रिमण्डल उन्हें मंजूर करे।

→ शुरुआती कदम:
सोवियत संघ की तरह भारत ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। योजना के अनुसार केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया। एक हिस्सा गैर योजना- व्यय का था। इसके अंतर्गत सालाना आधार पर दैनंदिन मदों पर खर्च करना था। दूसरा हिस्सा योजना-व्यय का था।

→ प्रथम पंचवर्षीय योजना:
1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ इस योजना की कोशिश देश को गरीबी के मकड़जाल से निकालने की थी। पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर जोर दिया गया था। इसी योजना के अंतर्गत बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया । भाखड़ा नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आबंटित की गई।

→ औद्योगीकरण की तेज रफ्तार:
दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों के एक समूह ने यह योजना तैयार की थी। हरा योजना के अंतर्गत सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली। औद्योगीकरण पर दिए गए इस जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया। तीसरी पंचवर्षीय योजना दूसरी योजना से कुछ खास अलग नहीं थी। आलोचकों के अनुसार दूसरी पंचवर्षीय योजना से इनकी रणनीतियों में शहरों की तरफदारी नजर आने लगी थी।

→ विकेन्द्रित नियोजन:
जरूरी नहीं है कि नियोजन केन्द्रीकृत ही हो, केरल में विकेन्द्रित नियोजन अपनाया गया जिसे ‘केरल मॉडल’ कहा जाता है। इसमें इस बात के प्रयास किये गए कि लोग पंचायत, प्रखण्ड और जिला स्तर की योजनाओं को तैयार करने में शामिल हों। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया गया।

→ मुख्य विवाद: विकास से जुड़े दो मुख्य विवाद या प्रश्न निम्न उठे

  • कृषि बनाम उद्योग
  • निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र

भारत जैसी पिछड़ी अर्थव्यवस्था में सरकार देश के ज्यादा संसाधन किस क्षेत्र अर्थात् कृषि में लगाये या उद्योग में तथा विकास के जो दो नये मॉडल थे, भारत ने उनमें से किसी को नहीं अपनाया। पूँजीवादी मॉडल में विकास का काम पूर्णतया निजी क्षेत्र के भरोसे होता है। भारत ने यह रास्ता नहीं अपनाया। भारत ने विकास का समाजवादी मॉडल भी नहीं अपनाया जिसमें निजी सम्पत्ति को समाप्त कर दिया जाता है और हर तरह के उत्पादन पर राज्य का नियन्त्रण होता है। इन दोनों ही मॉडलों की कुछ बातों को ले लिया गया और अपने-अपने देश में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया गया। इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। इस मॉडल की आलोचना दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों खेमों से हुई।

→ मुख्य परिणाम: नियोजित विकास की शुरुआती कोशिशों को देश के आर्थिक विकास और सभी नागरिकों की भलाई के लक्ष्य में आंशिक सफलता मिली। नियोजित आर्थिक विकास के निम्न प्रमुख परिणाम निकले

  • बुनियाद: इस दौर में भारत के आगामी विकास की बुनियाद पड़ी। इस काल में भारत की बड़ी विकास- परियोजनाएँ, सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग, परिवहन तथा संचार का आधारभूत ढाँचा आदि की स्थापना हुई।
  • भूमि सुधार: इस अवधि में भूमि सुधार के गम्भीर प्रयत्न हुए। जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया, . छोटी जोतों को एक-साथ किया गया तथा भूमि की अधिकतम सीमा तय की गई।
  • खाद्य संकट: इस काल में सूखे, युद्ध, विदेशी मुद्रा संकट तथा खाद्यान्न की भारी कमी की समस्या का सामना करना पड़ा। खाद्य संकट के कारण सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा।

→ हरित क्रान्ति: भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत 1960 के दशक में हुई। हरित क्रान्ति के तीन तत्त्व थे-

  • कृषि का निरन्तर विस्तार
  • दोहरी फसल का उद्देश्य तथा
  • अच्छे बीजों का प्रयोग

हरित क्रान्ति से उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि हुई, विशेषकर कृषिगत क्षेत्र में वृद्धि हुई तथा औद्योगिक विकास एवं बुनियादी ढाँचे में भी विकास हुआ। हरित क्रान्ति की कुछ कमियाँ भी रही हैं, जैसे- खाद्यान्न संकट बने रहना तथा केवल उत्तरी राज्यों को ही लाभ मिलना तथा धनी किसानों को ही लाभ मिलना इत्यादि।

→ बाद के बदलाव:
1960 के दशक में श्रीमती गाँधी के नेतृत्व में सरकार ने यह फैसला किया कि अर्थव्यवस्था के नियंत्रण और निर्देशन में राज्य बड़ी भूमिका निभायेगा। 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया लेकिन सरकारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था के पक्ष में बनी सहमति अधिक दिनों तक कायम नहीं रही क्योंकि

  • भारत की आर्थिक प्रगति दर 3-3.5 प्रतिशत ही रही।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में भ्रष्टाचार, अकुशलता का जोर बढ़ा।
  • नौकरशाही के प्रति लोगों का विश्वास टूट गया।

फलतः 1980 के दशक के बाद से अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम कर दिया गया।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रत्ययस्य परिभाषा – धातोः प्रातिपादिकस्य वा पश्चात् यस्य प्रयोगः क्रियते सः प्रत्ययः इति कथ्यते। (धातु अथवा प्रातिपदिक (शब्द) के पश्चात् जिसका प्रयोग किया जाता है वह प्रत्यय कहा जाता है।)

प्रत्यानां भेदाः – प्रत्ययानां मुख्यरूपेण त्रयो भेदाः सन्ति। ते क्रमशः इमे सन्ति- (प्रत्ययों के मुख्य रूप से तीन भेद हैं। जो क्रमश: ये हैं-)

  1. कृत् प्रत्ययाः
  2. तद्धितप्रत्ययाः
  3. स्त्रीप्रत्ययाः

1. कृत-प्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः धातोः (क्रियायाः) पश्चात् क्रियते ते कृत् प्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा- (जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के पश्चात् किया जाता है वे कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे -)

कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम् = करना चाहिए।
पठ् + अनीयर् = पठनयीम् = पढ़ना चाहिए।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

2. तद्धितप्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः संज्ञासर्वनामादिशब्दानां पश्चात् क्रियते ते तद्धितप्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा (जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के पश्चात् किया जाता है वे तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)

शिव + अण् = शैवः।
उपगु + अण् = औपगवः
दशरथ + इञ् = दाशरथिः
धन + मतुप् = धनवान्

3. स्त्रीप्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः पुंल्लिङ्गशब्दान् स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयितुं क्रियते ते स्त्रीप्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा (जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुँल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करने के लिये किया जाता है वे स्त्री प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)

कुमार + ङीप् = कुमारी
अज + टाप् = अजा

कृत-प्रत्ययाः

शतृप्रत्ययः
वर्तमानकालार्थे अर्थात् गच्छन् (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) इत्यस्मिन् अर्थे परस्मैपदिधातुभ्यः शतृप्रत्ययः भवति। अस्य ‘अत्’ भागः अवशिष्यतेः शकारस्य ऋकारस्य च लोपः भवति। शतप्रत्ययान्तस्य शब्दस्य प्रयोगः विशेषणवत् भवति। अस्य पल्लिङ्गे पठत-वत, स्त्रीलिङ्गगे नदी-वत, नपंसकलिङ्गे च जगत-वत चलन्ति। (वर्तमान काल के अर्थ में ‘गच्छन्’ (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) अर्थात् ‘हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ इस अर्थ में (इस अर्थ का बोध कराने के लिए) परस्मैपदी धातुओं में ‘शत’ प्रत्यय होता है। जिसका (शतृ का) ‘अत्’ भाग शेष रहता है, शकार और ऋकार का लोप होता है। ‘शतृ’ प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुंल्लिङ्ग में पठत्-वत्, स्त्रीलिङ्ग में नदी-वत् और नपुसंकलिङ्ग में जगत-वत् चलते हैं।)

शतप्रत्ययान्त-शब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 1

शतृ प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि पुँल्लिते (शतृ प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुँल्लिङ्ग में)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 2

शानच् प्रत्ययः

वर्तमानकालार्थे आत्मनेपदिधातुभ्यः शानच् प्रत्ययः भवति। अस्य शकारस्य चकारस्य च लोपः भवति, ‘आन’ इति अवशिष्यते। शानच् प्रत्ययान्तरस्य शब्दस्य प्रयोगः विशेषणवत् भवति। अस्य रूपाणि पुंल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति ! (वर्तमानकाल के अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं में शानच प्रत्यय होता है। इसके (शानच् के) शकार और चकार का लोप होता है। ‘अ’ यह शेष रहता है। शानच् प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुल्लिङ्ग में राम-वत् स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत्, और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

शानच् प्रत्ययान्त-शब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 3

शानच् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि (पुल्लिड़े) (अन्य उदाहरण केवल पुल्लिङ्ग में दिये जा रहे हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 4

तव्यत्-प्रत्ययः

तव्यत् प्रत्ययस्य प्रयोग: हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यस्मिन् अर्थे भवति। अस्य ‘तव्य’ भागः अवशिष्यते, तकारस्य च लोपः भवति। अयं प्रत्ययः भाववाच्ये अथवा कर्मवाच्ये एव भवति। तव्यत्-प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि पुँल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (तव्यत् का) ‘तव्य’ शेष रहता है और तकार का लोप होता है। यह प्रत्यय भाववाच्य में अथवा कर्मवाच्य में ही होता है। तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)

तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 5

तव्यत् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि केवल पुल्लिङ्गे (तव्यत् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुंल्लिङ्ग में)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 6

अनीयर्-प्रत्ययः

अनीयर् प्रत्ययः तव्यत् प्रत्ययस्य समानार्थकः अस्ति। अस्य प्रयोगः हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यर्थे भवति। अस्य ‘अनीय’ भागः अवशिष्यते, रेफस्य च लोपः भवति। अयं प्रत्ययः कर्मवाच्ये अथवा भाववाच्ये एव भवति। अनीयर्-प्रत्ययान्त-शब्दानां रूपाणि पुंल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (‘अनीयर्’ प्रत्यय ‘तव्यत्’ प्रत्यय का समानार्थक है। इसका प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (अनीयर का) ‘अनीय’ भाग शेष रहता है और रेफ का लोप होता है। यह प्रत्यय कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य में ही होता है। अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

अनीयर्-प्रत्ययान्तशब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 7

अनीयर् ग्रहणीयम् अनीयर प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि केवल पुंल्लिने (अनीयर् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुंल्लिङ्ग में)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 8

क्तिन प्रत्यय-स्त्रियां क्तिन:

भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ‘क्तिन’ प्रत्यय होता है। इसका ‘ति’ भाग शेष रहता है, ‘कृ’ और “न्’ का लोप हो जाता है। ‘क्तिन’ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंग में ही होते हैं। इनके रूप ‘मति’ के समान चलते हैं।
उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 9

ल्युट्-प्रत्ययः

भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसका ‘यु’ भाग शेष रहता है तथा ‘ल’ और ‘ट्’ का लोप हो जाता है। ‘यु’ के स्थान पर ‘अन’ हो जाता है। ‘अन’ ही धातुओं के साथ जुड़ता है। ल्युट्-प्रत्ययान्त शब्द प्रायः नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। इनके रूप ‘फल’ शब्द के समान चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

ल्युट्-प्रत्ययान्तशब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 10

तृच् प्रत्ययः

कर्ता अर्थ में अर्थात् हिन्दी भाषा में ‘करने वाला’ इस अर्थ में धातु के साथ तृच् प्रत्यय होता है। इसका ‘तृ’ भाग शेष रहता है और ‘च्’ का लोप हो जाता है। तृच्-प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।

कृ + तृच् = कर्तृ (कर्ता)
पा + तृच् = पातृ (पिता)
गम् + तृच् = गन्तृ (गन्ता)
हृ + तृच् = हर्तृ (हर्ता)
भृ + तृच् = भर्तृ (भर्ता)

अन्य उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 11

2. तद्धित-प्रत्ययाः

मतुप् प्रत्ययः
‘तदस्य अस्ति’ (वह इसका है अथवा वाला) अथवा ‘अस्मिन्’ (इसमें) इत्यर्थे तद्धितस्य मतुप् प्रत्ययः भवति। अस्य ‘मत्’ भागः अवशिष्यते, उकारस्य पकारस्य च लोपो भवति। ‘मत्’ इत्यस्य स्थाने क्वचित् ‘वत्’ इति भवति। मतुप् प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि पुंल्लिङ्गे भगवत्-वत्, स्त्रीलिङ्गे ई (ङीप्) प्रत्ययं संयोज्य नदीवत्, नपुंसकलिङ्गे च जगत्-वत् चलन्ति। (‘वह इसका है’ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें’ इन अर्थों में तद्धित का ‘मतुप्’ प्रत्यय होता है। इसका (मतुप् का) ‘मत्’ शेष रहता है, और उकार तथा पकार का लोप होता है। ‘मत्’ के स्थान पर कहीं ‘वत्’ भी होता है। मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में ‘भगवत्-वत्’, स्त्रीलिङ्ग में ‘ई’ (ङीप्) प्रत्यय जोड़कर ‘नदीवत्’ और नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्-वत्’ चलते हैं।)
इदमत्र अवगन्तव्यम् (यहाँ इसको जान लेना चाहिए।)
“वत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः इयन्तशब्देभ्यः अथवा झकारान्तशब्देभ्यः भवति। यथा- (‘वत्’ इसका प्रयोग प्रायः झकारान्त शब्दों अथवा अकारान्त शब्दों में होता है जैसे-)
झयन्तेभ्यः – विद्युत् + मतुप् = विद्युत्वत्
अकारान्तेभ्य – धन + मतुप् = धनवत्
विद्या + मतुप् = विद्यावत्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

‘मत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः झकारान्तशब्देभ्यः भवति। यथा- (‘मत्’ इसका प्रयोग प्रायः इकारान्त शब्दों के साथ होता है। जैसे-)
श्री + मतुप् – श्रीमत्
बुद्धि + मतुप् + बुद्धिमत्

मतुप् प्रत्ययान्तशब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 12

2. इन्-ठन् प्रत्ययौ

‘अत इनिठनौ’ अकारान्ताद् प्रातिपदिकाद् ‘तदस्य अस्ति’ (वह इसका है) अथवा ‘अस्मिन्’ (इसमें) इत्यर्थे इनिठनौ प्रत्ययौ भवतः। (‘वह इसका है’ अथवा ‘इसमें’ इस अर्थ में अकारान्त प्रातिपदिक (संज्ञा शब्दों) से ‘इन्’-‘ठन्’ प्रत्यय होते हैं।)

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इनि – प्रयोगकाले ‘इनि’ प्रत्ययस्य ‘इन्’ अवशिष्यते, स च प्रथमाविभक्त्यर्थके ‘सु’ प्रत्यये ‘इ’ रूपे परिवर्तते। यथा-दण्डम् अस्य अस्तीति = दण्ड + इन् = दण्डिन् सु = दण्डी। ठन्- प्रयोगकाले ‘ठन्’ प्रत्ययस्य ‘ठ’ इति शिष्यते। ठस्य स्थाने च ‘इक’ आदेश: “ठस्येकः” सूत्रेण जायते। (‘इनि’ के प्रयोग में ‘इनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है और वह प्रथमा विभक्ति के अर्थ में ‘स’ प्रत्यय ‘ई’ रूप में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है दण्ड + इन = दण्डिन् प्रथमा विभक्ति में ‘सु’ प्रत्यय लगने पर- ‘दण्डिन् + सु’ ‘सु’ ‘ई’ रूप में परिवर्तित होकर दण्डी यह रूप बना। ‘ठन्’ का प्रयोग करने में ‘ठन्’ प्रत्यय का ‘ठ’ शेष रहता है। ‘ठ’ के स्थान पर ‘इक’ आदेश ‘ठस्येक’ सूत्र से होता है।)
यथा- दण्डम् अस्य अस्तीति- दण्ड + ठन् (ठ) दण्ड + इक = दण्डिकाः। उदाहरणानि
(जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है – दण्ड + ठन् (ठ) = दण्ड + इक = दण्डिकः। उदाहरण-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 13

3. स्व-तल प्रत्ययो- ‘तस्य भावस्त्वतली’- षष्ठीसमर्थात् प्रातिपदिकात् भाव इत्येतस्मिन्नर्थे त्व-तली प्रत्ययो भवतः। प्रयोगस्थलेषु त्व प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणि फलवत् नपुंसकलिङ्गमनुसरन्ति। तथैव तल् प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणि लतावत् स्त्रीलिङ्गे चलन्ति। यथा- (‘तस्य भावस्त्वतलौ’ षष्ठी से समर्थित प्रातिपदिक (संज्ञा शब्द) से भावाचक के अर्थ में त्व-तलौ प्रत्यय होते हैं।) अर्थात् भाववाचक संज्ञा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल् (ता) प्रत्यय लगाते हैं।) प्रयोग स्थलों में ‘तव’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप फल-वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल’ प्रत्यन्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिङ्ग में चलते हैं। जैसे-)

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3. स्त्री-प्रत्ययाः

टाप प्रत्ययः- ‘अजाद्यतष्टाप’- अजादिभ्यः अकारान्तेभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां टाप टाप्प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि आकारान्ताः स्त्रीलिङ्गे रमा-वत् चलन्ति। यथा- (‘अजाद्यतष्टाप्’- अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके आगे ताप् (आ) प्रत्यय होता है। अर्थात् भाववाचक एंत्रा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल (ता) प्रत्यय लगाते हैं। प्रयोग स्थलों में ‘त्व’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप में फल. -वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिंग में चलते हैं। जैसे-)

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टाप-प्रत्ययान्तशब्देषु क्वचित् अकारस्य इकारः भवति। यथा – (टाप् प्रत्ययान्त शब्दों में कहीं अकार का इकार होता है। जैसे-)

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2. गीप् प्रत्ययः – (1) ‘न्नेभ्यो गीप्’ – ऋन्त्रेभ्यो डीप् – नकारान्तेभ्यश्च प्रातिपादिकेभ्यः (शब्देभ्यः) स्त्रियाम् (स्त्रीलिओं) छीप् प्रत्ययो भवति। जीप् प्रत्ययस्य ‘ई’ अवशिष्यते। सामान्य-प्रयोगस्थले छात्रैः जीवन्ताः शब्दाः ईकारान्त-रूपेण स्मर्यन्ते। (‘अत्रेभ्यो जीप’ – प्रकारान्त और नकारान्त (पल्लिा ) शब्दों में स्त्रीलिज बनाने के लिए जीप (1) प्रत्यय होता है। डीप् प्रत्यय का ‘ए’ शेष रहता है। सामान्य प्रयोग स्थल में छात्रों द्वारा सीबत इकारान्त शब्दों के रूप में स्मरण किये जाते है।)

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(ii) ‘उगितश्च’ – उगिदन्तात् प्रातिपादिकात् स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। येषु प्रत्येषु ‘उ, ऋ लु’ इत्येतेषां वर्णानाम् इत्संज्ञकत्वे लोपः ज्ञातः ते उगित् प्रत्ययाः। तैः प्रत्ययैः ये शब्दाः निर्मिताः ते उगिदन्ताः शब्दाः प्रातिपादिकाः वा, तेभ्यः उगिदन्तेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्यय: स्यात्। (ऐसे प्रातिपादिकों से जिनमें उकार और ऋकार का लोप होता है (मतुप, वतुप, इयसु, तवतु, शत से बने हुए शब्दों से) स्त्रीलिङ्ग बनाने में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। जिन प्रत्ययों में ‘उ, ऋ, लु’ इन वर्गों की इत्संज्ञा होकर लोप हो जाता है वे ‘उगित’ प्रत्यय हैं। उन प्रत्ययों से जो शब्द निर्मित होते हैं वे उगिदन्त शब्द अथवा प्रातिपदिक होते हैं, उन उगिदन्तों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होवे।)

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(iii) ‘टिड्ढाणद्वयसज्दनज्मात्रच्तयप्टक्ठकञ्क्वरपः’ – टित्, ढ, अण, अब, द्वयसच्, दनच, मात्रच्, तयप्, ठक, ठ, कम्, क्वरप्, इत्येवमन्तेभ्यः अनुपसर्जनेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। उदाहरणानि- (टित्, ढ, अण, अञ् द्वयसच्, दनच, मात्र, तयप्, ठक्, ठञ्, कञ्, क्वरप् इनसे अन्त होने वाले शब्दों के अनन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 19

(iv) ‘वयसि प्रथमे’ – प्रथमे वयसि वर्तमानेभ्यः उपसर्जनरहितेभ्यः अदन्तेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। उदाहरणानि- (प्रथम वयस् (अन्तिम अवस्था को छोड़कर) का ज्ञान कराने वाले अदन्त शब्दों के अन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 20

(v) षिद्गौरादिभ्यश्च – (पा. सू.)- जहाँ ‘ष’ का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
गौरी, नर्तकी, नटी, द्रोणी, पुष्करी, हरिणी, सुन्दरी, मातामही, पितामही, रजकी, महती आदि।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

(vi) द्विगो:- द्विगुसंज्ञाकाद् अनुपसर्जनाद् अदन्तात् प्रातिपदिकात स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति।
अयमर्थः – अदन्ताः ये द्विगुसंज्ञकाः शब्दः तेभ्यः स्त्रीलिङ्गे ङीप् प्रत्ययः स्यात्। उदाहरणानि
(अदन्त जो द्विगुसंज्ञक शब्द हैं उनसे स्त्रीलिङ्ग में (स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए) ङीप् प्रत्यय होता है। जैसे-)

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(vii) पुंयोगादाख्यायाम-पुरुषवाचक अकारान्त शब्द प्रयोग से स्त्रीलिंग हो तो उससे ङीष् (ई) हो जाता है। यथा गोपस्य स्त्री – गोप + ई = गोपी, शूद्रस्य स्त्री – शूद्र + ई = शूद्री।

(viii) जातेश्रस्त्रीविषयादयोपधात्-जो नित्य स्त्रीलिंग और योपध नहीं है, ऐसे जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग में ङीष् होता है। ङीष् का भी ‘ई’ शेष रहता है। यथा –
ब्राह्मण + ई = ब्राह्मणी, मृग – मृगी, महिषी, हंसी, मानुषी, घटी, वृषली आदि।

(ix) इन्द्रवरुणभवशर्व० – इन्द्र आदि शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने पर अनुक् (आन्) और ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
इन्द्र की स्त्री-इन्द्र + आन् + ई = इन्द्राणी, वरुण-वरुणानी, भाव-भवानी, शर्व-शर्वाणी, मातुल-मातुलानी, रुद्र-रुद्राणी, आचार्य-आचार्यानी आदि।

(x) यव’ शब्द से दोष अर्थ में, यवन शब्द से लिपि अर्थ में तथा अर्य एवं क्षत्रिय शब्द से स्वार्थ में आनुक् (आन्) और ङीष् (ई) होता है। जैसे –
यव + आन् + ई = यवानी, यवन + आन् + ई = यवनानी।
मातुलानी, उपाध्यायानी, आर्याणी, क्षत्रियाणी-इनमें भी स्त्री अर्थ में ङीष् होता है।

(xi) हिमारण्ययोर्महत्त्वे – महत्त्व अर्थ में हिम और अरण्य शब्द से ङीष् और आनुक् होता है। यथा महद् हिम-हिम + आन् + ई = हिमानी। (हिम की राशि) महद् अरण्यम् अरण्यानी (विशाल अरण्य)

(xii) वोतो गुणवचनात् – गुणवाचक उकारान्त शब्दसे स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा
मृदु से मृद्वी, पटु से पट्वी, साधु से साध्वी।

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(xiii) इतो मनुष्यजाते: – इदन्त मनुष्य जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग बनाने पर ङीष् (ई) होता हैं जैसे दाक्षि + ई = दाक्षी (दक्ष के पुत्र की स्त्री)

(xiv) बहु आदि शब्दों से, शोण तथा कृत्प्रत्ययान्त इकारान्त शब्दों से तथा नासिका-उत्तरपद वाले शब्दों से विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है। यथा –

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अभ्यासः

प्रश्न 1.
प्रदत्तेषु उत्तरेषु प्रत्ययानुसार यत् उत्तरम् शुद्धम् अस्ति, तत् चित्वा लिखत –
(दिए गये उत्तरों में प्रत्यय के अनुसार जो उत्तर शुद्ध हो, उसे चुनकर लिखिए)
1. गुरवः ……………. (वन्द् + अनीयर)
(अ) वन्दनीयः
(ब) वन्दनीयम्
(स) वन्दनीयाः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) वन्दनीयः

2. मानवसेवां ……………. (कृ + शानच्) वृक्षाः केषां न हितकराः।
(अ) कुर्वाणः
(ब) कुर्वाणाः
(स) कुर्वाणा
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) कुर्वाणः

3. ……………. (छाया + मतुप्) वृक्षाः आश्रयं यच्छन्ति।।
(अ) छायावान्
(ब) छायावन्तौ
(स) छायावन्तः
(द) न कोऽपि (कोकिल + टाप्)
उत्तरम् :
(स) छायावन्तः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

4. ……………. आम्रवृक्षे मधुरं गायति।
(अ) कोकिला
(ब) कोकिले
(स) कोकिला:
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) कोकिला

5. ……………. (बल + इन) निर्बलान् रक्षन्ति।
(अ) बलिन्
(ब) बलिनी
(स) बलिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) बलिनः

6. अस्माभिः परस्परं स्नेहेन ……………. (वस् + तव्यत्)।
(अ) वसितव्यः
(ब) वसितव्या
(स) वसितव्यम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) वसितव्यम्

7. उद्यमस्य ……………. (महत् + त्व) सर्वविदितम् एव।
(अ) महत्त्वः
(ब) महत्त्वम्
(स) महत्त्वा
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) महत्त्वम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

8. ……………. (वर्ष + ठक् + ङीप) परीक्षा समीपम् एव।
(अ) वार्षिकी
(ब) वार्षिकी
(स) वार्षिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) वार्षिकी

9. त्वं कर्त्तव्यनिष्ठः ……………. (अधिकार + इन्) असि।
(अ) अधिकारी
(ब) अधिकारिन्
(स) अधिकारिणी
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) अधिकारी

10. छात्रैः अनुशासनम् ……………. (पाल् + अनीयर)।
(अ) पालनीयः
(ब) पालनीया
(स) पालनीयम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) पालनीयम्

11. मानवः ……………. (समाज + ठक्) प्राणी अस्ति।
(अ) सामाजिकः
(ब) सामाजिकी
(स) सामाजिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) सामाजिकः

12. ……………. (लौकिक + ङीप्) उन्नतिः यश: वर्धयति।
(अ) लौकिकः
(ब) लौकिकी
(स) लौकिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) लौकिकी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

13. (शिष्य + टाप) ……………. जलेन लताः सिञ्चति।
(अ) शिष्या
(ब) शिष्ये
(स) शिष्या
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) शिष्या

14. गुरोः (गुरु + त्व) वर्णयितुं न शक्यते।
(अ) गुरुत्वम्
(ब) गुरुत्वः
(स) गुरुत्वम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) गुरुत्वम्

15. मा भव …………….. (मान + णिनि)।
(अ) मानी
(ब) मानिनौ
(स) मानिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) मानी

16. (उदार + तल्) ……………. गुणः न सुलभः।
(अ) उदारतम्
(ब) उदारता
(स) उदारतः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) उदारता

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

17. ……………. (राजन् + ङीप) प्रासादं गच्छति।
(अ) राजनी
(ब) राजिनी
(स) राज्ञी
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) राज्ञी

18. गता रेल …………… (गन्तु + ङीप्)।
(अ) गन्त्री
(ब) गन्त्री
(स) गन्त्र्यः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) गन्त्री

19. एकं …………… (सप्ताह + ठक्) पत्रम् आनय।।
(अ) साप्ताहिकः
(ब) साप्ताहिकी
(स) साप्ताहिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) साप्ताहिकम्।

20. …………… (योग + इनि) ईश्वरं भजन्ते।
(अ) योगी
(ब) योगिनो
(स) योगिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) योगिनः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 2.
रिक्तस्थानानि यथानिर्दिष्ट पदेन पूरयत – (रिक्त-स्थानों की पूर्ति निर्देशानुसार कीजिए-)
(क) रूपं यथा ………….” महार्णवस्य। (शम् + क्त)
(ख) ” ” नृत्यन्ति। (शिखा + इनि)
(ग) सलिलतीरं ……………. पक्षिण: वायसगणाः च। (वस् + णिनि)
(घ) अपयानक्रमो नास्ति …………”” अप्यन्यत्र को भवेत्। (नी + तृच)
(ङ) तत्किमत्र प्राप्तकालं स्यादिति
समहात्मास्वकीय सत्यतपोबलमेव तेषां रक्षणोपायम् अमन्यत्। (वि + मृश् + शतृ)
(च) स्मरामि न प्राणिवधं यथाहं ………. कृच्छ्रे परमेऽपि कर्तुम्। (सम् + चिन्त् + ल्यप्)
(छ) अतः शील विशद्धौ ……..” …..” (प्र + यत् + तव्यत्)
(ज) …………” राज संसत्सु श्रुतवाक्या बहुश्रुता ! (वि + श्रु + क्त + टाप्)
(झ) स लोके लोके लभते कीर्तिं परत्र च शुभां (गम् + क्तिन्)
(ब) ततः प्रविशति दारकं ………” रदनिका। (ग्रह + क्तवा)
(ट) उष्णं हि ………….. स्वदते। (भुज् + कर्म + शानच)
(ठ) कालोऽपि नो ……………” यमो वा। (नश् + णिच् + तुमुन्)
(ड) अस्ति कालिन्दीतीरे …… पुरं नाम नगरम् (योग + इनि + ङीप)
(ढ) हम्मीरदेवेन साकं युद्धं ……… “। (कृ + क्तवतु)
(ण) सः पराक्रमं …”दुर्गान्निः सृत्य सङ्ग्रामभूमौ निपपात्। (कृ + शानच्)
उत्तराणि –
(क) शान्तम्
(ख) शिखिनः
(ग) वासिनः
(घ) नेता
(ङ) विमृशन्
(च) सञ्चिन्त्य
(ज) विश्रुता
(झ) गीतम्
(ञ) गृहीत्वा
(ट) भुज्यमान
(ठ) नाशायतुम्
(ड) यागिना
(ढ) कृतवान्
(ण) कुर्वाणः।

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प्रश्न 3.
रिक्तस्थानं प्रकोष्ठात् पदं चित्वा लिखत – (रिक्तस्थान को कोष्ठक से पद चुनकर भरो-)
(क) इति दारकमादाय …………….. रदनिका। (निष्क्रान्तः/निष्क्रान्ता)
(ख) मम हृदये नित्य …………….. स्तः। (सन्निहितो/सन्निहितः)
(ग) किन्तु अनुज्ञां गन्तु शक्येत्। .. (प्राप्त्वा/प्राप्य)
(घ) वार्तालापं …………….. भृत्यौ रत्ना च बहिरायान्ति। (श्रुतौ/श्रुत्वा)
(ङ) दारकस्य कर्णमेव ……………” प्रवृत्तोऽसि। (भङ्क्तुम्/भञ्जयितुम्)
(च) ……………..” अस्मि तव न्यायालये। (पराजित:/पराजितम्)
(छ) रामदत्तहरणौ …………….” आगच्छतः। (धावन्ता/धावन्तौ)
(ज) देवस्य शत्रु ………….” प्रभोर्मनोरथं साधयिष्यामः। . (हनित्वा/हत्वा)
(झ) रे रे “” …………. ! अहं यवनराजेन समं योत्स्यामि। (योद्धाः/योद्धार:!)
(ब) रक्ष स्व ………….. परहा भवार्यः। (जातिम्/जात्याः)
(ट) नशक्तो कालोपि नो ……………..। (नष्टुम्/नाशयितुम्)
(ठ) अतिविलम्बितं हि ………….. न तृप्तिमधिगच्छति। (भुञ्जन्/भुञ्जानो)
(ड) …………” चाग्निमौदर्यमुदीयति। (भुक्तम्/भुक्त:)
(ढ) स्वबाहुबलम् … योऽभ्युज्जीवति सः मानवः। (आश्रित्य/आश्रित्वा)
(ण) निर्जितं सिन्धुराजेन …………..” दीनचेतसम्। (शयमानम्/शयानम्)
उत्तराणि –
(क) निष्क्रान्ता
(ख) सन्निहितौ
(ग) प्राप्य
(घ) श्रुत्वा
(ङ) भञ्जयितुम्
(च) पराजितः
(छ) धावन्तौ
(ज) हत्वा
(झ) योद्धारः !
(ब) जातिम्
(ट) नाशयितुम्
(ठ) भुञ्जानो
(ड) भुक्तम्
(ढ) आश्रित्य
(ण) शयानम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 4.
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत – (प्रकृति-प्रत्यय को जोड़कर पदरचना कीजिये।)
(क) (सम् + उद् + बह + शतृ) सलिलाऽतिभारं बलाकिनो वारिधराः नदन्तः।
(ख) शालिवनं (वि + पच् + क्त)
(ग) तान् मत्स्यान् (भक्ष् + तुमुन्) चिन्तयन्ति।
(घ) (मुह + क्त) मुखेन अति करुणं मन्त्रयसि।
(ङ) जीवितार्थं कुलं (त्यज् + क्तवा) यो जनोऽतिदूरं व्रजेत् किं तस्य जीवितेन ?
(च) तेन (रक्ष + अनीयर) रक्षा भविष्यन्ति।
(छ) भृत्यौ (हस् + शत) गृहाभ्यन्तरं पलायेते।
(ज) भो किं (कृ + क्तवतु) सिन्धु।
(झ) स्वपुस्तकालये (नि + सद् + क्त) दूरभाषयन्त्रं बहुषः प्रवर्तयति।
(ब) वत्स सोमधर ! मित्रगृहान्नैव (गम् + तव्यत्)
(ट) देवागारे (अपि + धा + क्त) द्वारे भजसे किम् ?
(ठ) ध्यानं (हा + क्त्वा) बहिरेहित्वम्।
(ड) शाकफल (वि + क्री + तृच्) दारकः कथं त्वामतिशेते।
(ढ) स लोके लभते (क + क्तिन्)
(ण) तद् ग्रहाण एतम् (अलम् + कृ + ण्वुल्)।
उत्तराणि :
(क) समुद्वहन्तः
(ख) विपक्वम्
(ग) भक्षितुम्
(घ) मुग्धेन
(ङ) त्यक्त्वा
(च) रक्षणीय
(छ) हसन्तौ
(ज) कृतवान्
(झ) निषण्णः
(ब) गन्तव्यम्
(ट) पिहित
(ठ) हित्वा
(ड) विक्रेतुः
(ढ) कीर्तिम
(ण) अलङ्कारकम्।।

प्रश्न 5.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृति-प्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया। (कोष्ठकों में दिए गए शब्दों से प्रकृति-प्रत्यय के अनुसार रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।)
1. (i) पाठः तु सदैव ध्यानेन एव ………………। (पठ् + अनीयर)
(ii) छात्रैः समये विद्यालयः ………………। (गम् + तव्यत्)
(iii) ……………. पुरुषः सफलतां लभते। (यत् + शानच्)
(iv) ……………. बालकः हसति। (गम् + शतृ)
(v) वाराणस्याम्……………. पुरुषाः निवसन्ति। (धर्म + ठक्)
उत्तराणि :
(i) पठनीयः
(ii) गन्तव्यः
(iii) यतमानः
(iv) गच्छन्
(v) धार्मिकाः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

2. (i) (विद्या + मतुप्) ……………… सर्वत्र सम्मान्यते।
(ii) पुत्रेण अनुशासनम् (पाल् + अनीयर) ……………।
(iii) सदा (सुख + इन्) …………… भव।
(iv) शस्त्रहीनः न (हन् + तव्यत्) ………………।
(v) जीवने (महत् + त्व) ……………… लभस्व।
उत्तराणि :
(i) विद्यावान्
(ii) पालनीयम्
(iii) सुखी
(iv) हन्तव्यः
(v) महत्त्वम्।

3. (i) बालिकाभिः राष्ट्रगीतं ……………… (गै + तव्यत्)।
(ii) छात्रैः ……………… (उपदेश) पालनीयाः।
(iii) ……………… (युष्मद्) शुद्धं जलं पातव्यम्।
(iv) मुनिभिः ……………… (तपस्) करणीयम्।
(v) न्यायाधीशेन न्यायः ……………..(कृ + अनीयर्)।
उत्तराणि :
(i) गातव्यम्
(ii) उपदेशाः
(iii) युष्माभिः
(iv) तपः
(v) करणीयः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

4. (i) ……………… (भवति) पाठः लेखनीयः।
(ii) विद्वद्भिः कविताः ……………… (रच् + अनीयर)।
(iii) अस्माभिः लताः ……………… आरोपयितव्याः।
(iv) पत्रवाहकेन पत्राणि ………………। (आ + नी + तव्यत्)
(v) ……………… (राजन्) प्रजाः पालनीयाः।
उत्तराणि :
(i) भवत्या
(ii) रचनीयाः
(iii) लताः
(iv) आरोपयितव्याः
(v) राज्ञा।

5. (i) त्वया सन्तुलित आहारः (कृ + तव्यत्) ………………
(ii) तव (कृश + तल्) ……………… मां भृशं तुदति।
(iii) विद्यायाः महत्त्वमपि ……………… (स्मृ + तव्यत्)।
(iv) सद्ग्रन्थाः सदैव ……………… (पठ् + अनीयर्)।
(v) अध्ययनेन मनुष्यः (गुण + मतुप्) ……………… भवति।
उत्तराणि :
(i) कर्त्तव्यः
(ii) कृशता
(iii) स्मर्तव्यम्
(iv) पठनीयाः
(v) गुणवान्।

6. (i) अस्याः ……………… (अनुज + टाप्) दीपिका अस्ति।
(ii) दीपिका क्रीडायाम् ……………… (कुशल + टाप्) अस्ति।।
(iii) प्रभादीपिकयो: माता ……………… (चिकित्सक + टाप्) अस्ति।
(iv) सा समाजस्य ……………… (सेवक + टाप्) अस्ति।
(v) सा तु स्वभावेन अतीव ……………… (सरल + आप्) अस्ति।
उत्तराणि :
(i) अनुजा
(ii) कुशला
(iii) चिकित्सिका
(iv) सेविका
(v) सरला।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

7. (i) छात्रैः समये विद्यालयः (गम् + तव्यत्) ………………।
(ii) अद्य अस्माकं (वर्ष + ठक् + ङीप्) ……………… परीक्षा आरभते।
(iii) पर्यावरणस्य (महत् + त्व) ……………… सर्वे जानन्ति।
(iv) (बुद्धि + मतुप्) ……………… नरः सर्वत्र मानं लभते।
(v) जनकं (सेव् + शानच्) ……………… पुत्रः प्रसन्नः अस्ति।
उत्तराणि :
(i) गन्तव्यः
(ii) वार्षिकी
(iii) महत्त्वम्
(iv) बुद्धिमान्
(v) सेवमानः।

8. (i) मम ……………… (कीदृश + ङीप्) इयं क्लेशपरम्परा।
(ii) मारयितुम् ……………. (इष् + शतृ) स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य ……………… (क्रूर + तल्) भक्षयसि।
(iv) अधुना ……………… (रमणीय + टाप्) हि सृष्टिरेव।
(v) अनेकानि अन्यानि ……………… (दृश् + अनीयर) स्थलानि अपि सन्त।
उत्तराणि :
(i) कीदृशी
(ii) इच्छन्
(iii) क्रूरतया
(iv) रमणीया
(v) रमणीयता।

9. (i) नृपेण प्रजा (पाल् + अनीयर) ………………।
(ii) आचार्यस्य (गुरु + त्व) ……………… वर्णयितुं न शक्यते।
(iii) पुरस्कार (लभ् + शानच्) ……………… छात्रः प्रसन्नः भवति।
(iv) मनुष्यः (समाज + ठक्) ……………… प्राणी अस्ति।
(v) प्रकृते (रमणीय + तल) ……………… दर्शनीया अस्ति।
उत्तराणि :
(i) पालनीया
(ii) गुरुत्वम्
(iii) लभमानः
(iv) सामाजिकः
(v) रमणीयता।

प्रश्न 6.
कोष्ठके दत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः उत्तर-पुस्तिकायां लिखत –
(कोष्ठक में दिए हुए प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद को पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. पर्यावरणस्य (महत् + त्व) (i) ……………… कः न जानाति ? परं निरन्तरं (वृध् + शानच्) (ii) ……….. प्रदूषणेन मानव जातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति। अस्माभिः (ज्ञा + तव्यत्) (iii) …………… यत् पर्यावरणस्व रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। एतदर्थम् (जन + तल) (iv) …………… जागरूका कर्तव्या। स्थाने स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् (कृ + अनीयर) (v) ……………। यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति।
उत्तरम् :
पर्यावरणस्य महत्त्वं कः न जानाति ? परं निरन्तरं वर्धमानेन प्रदूषणेन मानवजातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ना अस्ति। अस्माभिः ज्ञातव्यम् यत् पर्यावरणस्य रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। एतदर्थम् जनता जागरूका कर्त्तव्याः। स्थान-स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् करणीयम्। यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

2. ओदनं पचन्ती (i) ……………… (पुत्र + ङीप) कथितवती – किं त्वं जानासि कालस्य (ii) ……….. (महत् + त्व) ? काल: तु सततं चक्रवत् (ii) ……………… (परिवृत् + शानच्) वर्तते। ये जनाः अस्य अस्थिरता अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव (iv) ……………… (बुद्धि + मतुप)। ते जनाः (v) ……. (बन्द अनीयर्) भवन्ति।
उत्तरम् :
ओदनं पचन्ती पुत्री कथितवती-किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? कालः तु सततं चक्रवत् परिवर्तमान वर्तते। ये जनाः अस्य अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव बुद्धिमन्तः। ते जनाः वन्दनीया: भाः

3. जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि (कृ + तव्यत्) (i) ……………… ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं (पान + अनीयर) (ii) ………………। सर्वैः सहपाठिभिः सह (मित्र + तल) (iii) ……………… आचरणीया। छात्रजीवने परिश्रमस्य (महत् + तल्) (iv) ……………… वर्तते। सत्यम् एव उक्तम् (सुखार्थ + इन्) (v) ……………… कुतो विद्या?
उत्तरम् :
जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि कर्त्तव्यानि ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं पालनीयम्। सबै सहपाठिभिः सह मित्रता आचरणीया। छात्रजीवने परिश्रमस्य महत्ता वर्तते। सत्यम् एव उक्तम् – सुखार्थिनः मन विद्या ?

4. कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव (i) ……………… (कृ + अनीयर)। (ii)……………… (फल + इन्) वृक्षाः एन सदैव नमन्ति। शिक्षायाः (iii) ……………… (महत् + त्व) तु अद्वितीयम् एव। (iv)……………… (वृध् + शानच बालाः नृत्यन्ति। (v) ……………… (अज + टाप्) शनैः शनैः चलति।
उत्तरम् :
कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम्। फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति। शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति। अजा शनैः शनैः चलति।।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

5. एकदा पितरं (सेव् + शानच्) (i) ……………… पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पितः! संसारे कः पूज्यते ? ‘ पिता अवदत् – (गुण + मतुप्) (ii) ……………… सर्वत्र पूज्यते। यः सेवायाः (महत् + त्व) (iii) ……………… सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा (वन्द् + अनीयर्) (iv) ……………… भवति। अतः सर्वैः (मानव + तल्) (v) ………… सेवितव्या।’
उत्तरम् :
एकदा पितरं सेवमानः पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पितः, संसारे कः पूज्यते ?’ पिता अवदत् – ‘ गुणवान् सर्वत्र पूज्यते। यः सेवायाः महत्त्वं सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा वन्दनीयः भवति। अतः सर्वैः मानवता सेवितव्या।’

6. त्वं (गुण + मतुप्) (i) ……………… असि। तव प्रकृतिः (शोभन + टाप) (ii) ……………… अस्ति। अतः (विनय + इन्) (iii) ……………… अपि भव। सदैव (समाज + ठक्) (iv) ……………… कार्यमपि (कृ + शतृ) (v) ……………… त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि।
उत्तरम् :
त्वं गुणवान् असि। तव प्रकृतिः शोभना अस्ति। अतः विनयी अपि भव। सदैव सामाजिक कार्यमपि कुर्वन् त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि।

7. छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः (i) …………………. (कृ + तव्यत्)। ये छात्राः अध्ययनस्य (ii) ……………… (महत् + त्व) न जानन्ति तेषां कृते (iii) ……………… (सफल + तल) सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते (iv) ……………… (वर्ष + ठक् + ङीप्) परीक्षा भयं न जनयति। (v) ……………… (बुद्धि + मतुप्) छात्राः पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये। अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये (vi) ……………… (कृ + अनीयर)।
उत्तरम् :
छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः कर्त्तव्यम्। ये छात्राः अध्ययनस्य महत्त्वं न जानन्ति तेषां कृते सफलता सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते वार्षिकी परीक्षा भयं न जनयति। बुद्धिमन्तः छात्राः पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये। अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये करणीयानि।।

8. पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः (i) ……………… (त्यज् + तव्यत्) (ii) ……………… (प्र + यत् + शानच्) जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति। यः नरः सत्यवादी (iii) ……………… (निष्ठा + मतुप्) च सः एव श्रेष्ठः। वृक्षारोपणम् अस्माकं (iv) ……………… (नीति + ठक्) कर्त्तव्यम्। मातृभूमिः सदैव (v)……………… (वन्दनीय + टाप्) भवति।
उत्तरम् :
पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः त्यक्तव्यः प्रयतमानाः जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति। यः नरः सत्यवादी निष्ठावान् च सः एव श्रेष्ठः। वृक्षारोपणम् अस्माकं नैतिकं कर्त्तव्यम्। मातृभूमिः सदैव वन्दनीया भवति।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

9. एक: कैयट: नाम विद्वान् आसीत्। सः प्रातः (i) ……………… (काल + इ) शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म। एकदा राजा तं (ii) ……………… (बुद्धि + मतुप्) द्रष्टुं तस्य कुटीरं (iii) ……………… (गम् + तव्यत्) इति निश्चितवान्। तत्र गत्वा तस्य (iv) ……………… (दरिद्र + तल्) दूरीकर्तुं सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत्। कैयटः अवदत्- “धनस्य (v) ……………… (लोभ + इन्) जनाः आसक्ताः भूत्वा दुःखिनः भवन्ति। अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति।”
उत्तरम् :
एक: कैयटः नाम विद्वान् आसीत्। सः प्रात:काले शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म। एकदा राजा तं बुद्धिमन्तं द्रष्टुं तस्य कुटीरं गन्तव्यम् इति निश्चितवान्। तत्र गत्वा तस्य दरिद्रतां दूरीका सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत्। कैयटः अवदत् – “धनस्य लोभिनः जनाः आसक्ताः भूत्वा दुःखिनः भवन्ति। अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति।”
धानस्य शोभा खलु (i)……………… (दृश् + अनीयर)। शीघ्र-शीघ्रं (ii) ……………… (चल + शतृ) जनाः प्रसन्नाः भवन्ति। ते वायोः (iii) ……………… (शीतल + तल) अनुभवन्ति। (iv) ……………… (पक्ष + इन्) मधुर स्वरेण गायन्ति। बालकाः (v) ……………… (बालक + टाप्) च कन्दुकेन क्रीडन्ति।
उत्तरम् :
प्रात:काले उद्यानस्य शोभा खलु दर्शनीया। शीघ्रं-शीघ्रं चलन्तः जनाः प्रसन्नाः भवन्ति। ते वायोः शीतलताम् अनुभवन्ति। पक्षिणः मधुरस्वरेण गायन्ति। बालकाः बालिकाः च कन्दुकेन क्रीडन्ति।।

11. जीवने शिक्षायाः सर्वाधिकं (i) ……………… (महत् + त्व) वर्तते। बालः भवेत् (ii) ……………… (बालक + टाप्) वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः (iii) ……………… (कृ + तव्यत्)। शिक्षिताः (iv) …….. (प्राण + इन्) परोपकारं (v) ………. …. (कृ + शानच) देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति।
उत्तरम् :
जीवने शिक्षायाः सर्वाधिक महत्त्वं वर्तते। बालः भवेत् बालिका वा भवेत्, ज्ञानं प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः कर्तव्यः। शिक्षिताः प्राणिनः परोपकारं कुर्वाणा: देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग कीजिए –
अधीतः, जग्धवान्, गृहीत्वा, उपगम्य, पातुम्।।
उत्तरम् :
अधि + इ + क्त; अद् + क्तवतु ग्रह + क्त्वा, उपगम् + ल्यप्, पा + तुमुन्।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय का मेल कीजिए –
कर्ता + ङीप, एडक + टाप, भाग् + इनि, बहु + तमप, निम्न + तरप्, रक्ष् + तव्यत्, युध् + शानच्, वस् + शतृ, स्तु + क्तवतु।
उत्तरम् :
की, एडका, भागी, बहुतमः, निम्नतरः, रक्षितव्यः, युध्यमानः, वसन् स्तुतवान्।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रत्ययान्त शब्दों को ‘कृत्”तद्धित’ और ‘स्त्री’ प्रत्ययान्त के रूप में अलग-अलग छाँटिये कोकिला, हन्त्री, शूद्रता, पीत्वा, नीति, भूता, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः, भगवती, लघुता, शिशुत्वम्।
उत्तरम् :
कृत्-पीत्वा, नीति, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः। तद्धित्-शूद्रता, लघुता, शिशुत्वम्। स्त्री-कोकिला, हन्त्री, भूता, भगवती।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 10.
प्रत्येक धातु में कोई पाँच प्रत्यय जोड़कर उनका एक-एक उदाहरण लिखिए –
पठ्, नम्, पच्, दा, लभ्, दृश्, गम्, हस्, इष्, लभ्।
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 23

प्रश्न 11.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभाग प्रत्ययान्तपदं वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों में प्रकृति-प्रत्यय अलग कीजिये अथवा प्रत्ययान्त शब्द लिखिए-)
(1) अहं शयनं परित्यज्य भ्रमणं गच्छामि।
(2) श्यामः पुस्तकं क्रेतुं गमिष्यति।
(3) मया रामायणं श्रुतम्।
(4) फलं खादन् बालकः हसति।
(5) सुरेशः ग्रामं गत्वा धावति।
(6) सर्वान् विचिन्त्य ब्रू (वच्) + तव्यत्।
(7) मुकेशः भोजनं खाद + शत पुस्तकं पठति।
(8) स: गृहकार्यं कृ + क्त्वा क्रीडति।
(9) सीता ग्रामात् आ + गम् + ल्यप् नृत्यति।
(10) भारत: पठ्+तुमुन् इच्छति।
उत्तर :
(1) परि + त्यज् + ल्यप्,
(2) क्री + तुमुन्,
(3) श्रु+ क्त,
(4) खाद् + शत,
(5) गम् + क्त्वा,
(6) वक्तव्यम्,
(7) खादन्,
(8) कृत्वा,
(9) आगत्य,
(10) पठितुम्।।

प्रश्न 12.
निर्देशम् अनुसृज्य उदाहरणानुसारं संयोज्य वाक्यसंयोजनं क्रियताम्।
(निर्देश का अनुसरण करके उदाहरणानुसार जोड़कर वाक्यों को जोड़िए।)
(क) पूर्ववाक्ये ‘क्त्वा’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं संयोजयत
(पहले वाक्य में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए) महेशः खेलति। महेशः धावति।
उत्तरम् :
महेशः खेलित्वा धावति।

(ख) ‘तुमुन्’ प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा वाक्यसंयोजनं क्रियताम्-(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए –
रामः वनं गच्छति। रामः अश्वम् आरोहति।
उत्तरम् :
रामः वनं गन्तुम् अश्वम् आरोहति।

(ग) पूर्ववाक्ये शतृप्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(पूर्व वाक्य में ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-)
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशति। छात्राः गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशन्तः गृहं गच्छन्ति।

(घ) ‘तुमुन्’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-)
त्वं जलं पिबसि। त्वं कूपं गच्छसि।
उत्तरम् :
त्वं जलं पातुं कूपं गच्छसि।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 13.
स्थूलपदानाम् ‘प्रकृतिप्रत्ययः’ पृथक् संयोगं कृत्वा उत्तर-पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय अलग करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) अद्य मानवः सेवाया महत्त्वं न जानाति। (आज मनुष्य सेवा का महत्त्व नहीं जानता है।)
(ii) समाजसेवा करणीया। (समाज सेवा की जानी चाहिए।)
(iii) बालकोऽयं गुणवान् अस्ति। (यह बालक गुणवान् है।)
(iv) लोभी न भवेत्। (लोभी नहीं होना चाहिए।)
(v) सा बुद्धिमती अचिन्तयत्। (वह बुद्धिमती सोचने लगी।)
उत्तराणि :
(i) महत् + त्व
(ii) कृ + अनीयर् + टाप्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) लोभ + इनि
(v) बुद्धि + मतुप् + ङीप।

2. (i) गुरुः वन्दनीयः। (गुरु वन्दना के योग्य होता है।)
(ii) ज्ञानवान् एव गुरुत्वं प्राप्नोति। (ज्ञानवान् ही गुरुत्व को प्राप्त करता है।)
(iii) देशे अनेकानि दर्शनीयानि स्थानानि सन्ति। (देश में अनेक दर्शनीय स्थान हैं।)
(iv) गुणी एव सर्वत्र पूज्यः। (गुणी ही सब जगह पूज्य होता है।)
(v) शिक्षिका गणितं पाठयति। (शिक्षिका गणित पढ़ाती है।)
उत्तराणि :
(i) वन्द् + अनीयर्
(ii) गुरु + त्व
(iii) दृश् + अनीयर्
(iv) गुण + इन्
(v) शिक्षक + टाप्।

3. (i) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति ? (पुस्तकों की महत्ता को कौन नहीं जानता ?)
(ii) गायिका मधुरं गायति। (गायिका मधुर गाती है।)।
(iii) कार्यं कुर्वाणाः छात्राः अङ्कान् लभन्ते। (कार्य करते हुए छात्र अंक प्राप्त करते हैं।)
(iv) बालकैः गुरवः नन्तव्याः। (बालकों द्वारा गुरु को नमस्कार किया जाना चाहिए।)
(v) अश्वा धावति। (घोड़ी दौड़ती है।)
उत्तराणि :
(i) महत् + तल्
(ii) गायक + टाप्
(iii) कृ + शानच्
(iv) नम् + तव्यत्
(v) अश्व + टाप।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

4. (i) सः वेत्रासने आसीनः। (वह कुर्सी पर बैठा है।)
(ii) राज्ञी राजानम् अपृच्छत्। (रानी ने राजा से पूछा।)
(iii) इन्द्राणी इन्द्रं पृच्छति। (इन्द्राणी इन्द्र से पूछती है।)
(iv) मन्त्रिणः संसदि भाषन्ते। (मन्त्री संसद में बोलते हैं।)
(v) अजाः क्षेत्रे चरन्ति। (बकरियाँ खेत में चरती हैं।)
उत्तराणि :
(i) आस् + शानच्
(ii) राजन् + ङीप्
(iii) इन्द्र + ङीप्
(iv) मन्त्र + इन्
(v) अज + टाप्।

5. (i) मासिकं पत्रम् आनय। (मासिक पत्र लाइए।)
(ii) सुखार्थिनः कुतो विद्या। (सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ ?)
(iii) वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।(रेलगाड़ी शोर बाँटती हुई दौड़ रही है।)
(iv) जगति शुद्धिकरणं करणीयम्। (संसार में शुद्धिकरण करना चाहिए।)
(v) ललितलतानां माला रमणीया। (सुन्दर लताओं की माला रमणीय है।)
उत्तराणि :
(i) मास + ठक्
(ii) सुख + अर्थ + इन्
(iii) वितरत् + ङीप्
(iv) कृ + अनीयर्
(v) रमू + अनीयर् + टाप्।

6. (i) लक्षणवती कन्यां विलोक्य सः पृच्छति (लक्षणवाली कन्या को देखकर वह पूछता है।)
(ii) अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात्।। (और भी बुद्धिमान् लोक के महान् भय से मुक्त हो जाते हैं।)
(iii) शृगालः हसन् आह। (शृगाल ने हँसते हुए कहा।)
(iv) मया सा चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा। (मैंने उसे थप्पड़ से प्रहार करती हुई देखा है।)
(v) तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः। (तो तुम मुझे मार देना।)
उत्तराणि :
(i) लक्षणवत् + ङीप्
(ii) बुद्धि + मतुप्
(iii) हस् + शतृ
(iv) प्रहरत् + ङीप
(v) हन् + तव्यत्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

7. (i) शुनी सर्वम् इन्द्राय निवेदयति। (कुतिया सब कुछ इन्द्र से निवेदन कर देती है।)
(ii) आचार्य सेवमानः शिष्यः विद्यां लभते। (आचार्य की सेवा करता हुआ शिष्य विद्या प्राप्त करता है।)
(iii) श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।। (श्रद्धावान् ज्ञान प्राप्त करता है।)
(iv) अद्य अस्माकं वार्षिकी परीक्षा आरभते। (आज हमारी वार्षिक परीक्षा आरम्भ है।)
(v) सः कार्यं कुर्वन् पठति अपि। (वह कार्य करता हुआ भी पढ़ता है।)
उत्तराणि :
(i) श्वन् + ङीप्
(ii) सेव + शानच्
(iii) श्रद्धा + मतुप् (वत्)
(iv) वर्ष + ठक् + ङीप्।
(v) कृ + शतृ।

8. (i) जीवने विद्यायाः अपि महत्त्वं वर्तते। (जीवन में विद्या का भी महत्त्व है।)
(ii) तर्हि त्वया सद्ग्रन्थाः अपि पठनीयाः। (तो तुम्हें सद्ग्रन्थ भी पढ़ने चाहिए।)
(iii) पठनेन नरः गुणवान् भवति। (पढ़ने से मनुष्य गुणवान् होता है।)
(iv) किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? (क्या तुम समय का महत्त्व जानते हो ?)
(v) कालः तु सततम् चक्रवत् परिवर्तमानः वर्तते। (समय तो निरन्तर चक्र की तरह बदलता रहता है।)
उत्तराणि :
(i) महत् + त्व
(ii) पत् + अनीयर्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) महत् + त्व
(v) परिवृत् + शानच्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

9. (i) ये जनाः अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति ते एव बुद्धिमन्तः।
(जो लोग अस्थिरता का अनुभव करके अपने कार्य समय पर करते हैं, वे ही बुद्धिमान् हैं।)
(ii) ते जनाः वन्दनीयाः भवन्ति। (वे लोग वन्दना करने योग्य होते हैं।)
(iii) जनाः तीव्र धावन्तः गच्छन्ति। (लोग तीव्र दौड़ते हुए जाते हैं।)
(iv) गृहं गच्छन्त्यः छात्राः प्रसीदन्ति। (घर जाती हुई छात्राएँ प्रसन्न होती हैं।)
(v) कालः परिवर्तमानः वर्तते। (समय बदलता रहता है।)
उत्तराणि :
(i) अस्थिर + तल, बुद्धि + मतुप्
(ii) वन्द् + अनीयर् + टाप्
(iii) धाव् + शतृ
(iv) गच्छत् + ङीप्
(v) परिवृत् + शानच्।

10. (i) कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम्। (कार्य सदैव ध्यान से ही करना चाहिए।)
(ii) फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति। (फल वाले वृक्ष ही सदा झुकते हैं।)
(iii) शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। (शिक्षा का महत्त्व तो अद्वितीय है।)
(iv) वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति। (बढ़ती हुई बालाएँ नाचती हैं।)
(v) अजाः शनैः शनैः चलति।
(बकरी धीरे-धीरे चलती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + अनीयर्
(ii) फल + इन्
(iii) महत् + त्व
(iv) वृध् + शानच्
(v) अज + टाप्।

11. (i) कार्यं सदैव शीघ्रं परन्तु धैर्येण कर्त्तव्यम्। (कार्य सदैव शीघ्र परन्तु धैर्यपूर्वक करना चाहिए।)
(ii) वर्धमाना बालिका शीघ्रं शीघ्रं धावति। (बढ़ती बालिका जल्दी-जल्दी दौड़ती है। )
(iii) गुणिनः जनाः सदा वन्दनीयाः। (गुणी लोग सदैव वन्दना करने योग्य हैं।)
(iv) वृक्षाणां महत्त्वं कः न जानाति ? (वृक्षों का महत्त्व कौन नहीं जानता ?)
(v) कोकिला मधुर स्वरेण गायति। (कोयल मधुर स्वर से गाती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + तव्यत्
(ii) वृध् + शानच् + ङीप
(iii) गुण + इन्
(iv) महत् + त्व
(v) कोकिल + टाप।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

12. (i) पुस्तकानाम् अध्ययनं करणीयम्। (पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।)
(ii) मन्त्रिणः सदसि भाषन्ते। (मन्त्री सभा में भाषण करते हैं।)
(iii) वर्तमाना शिक्षापद्धतिः सुकरा। (वर्तमान शिक्षा पद्धति सरल है।)
(iv) त्वं स्व अज्ञानतां मा दर्शय। (तुम अपनी अज्ञानता को मत दिखाओ।)
(v) नर्तकी शोभनं नृत्यति। (नर्तकी सुन्दर नाचती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + अनीयर्
(ii) मन्त्र + इन्
(iii) वृत् + शानच् + टाप्
(iv) अज्ञान + तल्
(v) नर्तक+ङीप्।

13. (i) अस्माभिः सेवकाः पोषणीयाः। (हमें सेवकों का पोषण करना चाहिए।)
(ii) पक्षिणः वृक्षेषु तिष्ठन्ति। (पक्षी वृक्ष पर बैठते हैं।)
(iii) पृथिव्याः गुरुत्वं सर्वे जानन्ति। (पृथ्वी की गुरुता को सभी जानते हैं।)
(iv) सेवमाना: सेवकाः धनं लभन्ते। (सेवा करते हुए सेवक धन पाते हैं।)
(v) अश्वा वरं धारयति। (घोड़ी वर को धारण करती है।)
उत्तराणि :
(i) पुष् + अनीयर्
(ii) पक्ष + इन्
(iii) गुरु + त्व
(iv) सेव् + शानच्।
(v) अश्व + टाप्।

14. (i) बालकैः गुरवः नन्तव्याः।
(बालकों को गुरुजनों का नमन करना चाहिए।)
(ii) कार्यं कुर्वाणा: छात्राः अङ्कान् लभन्ते। (कार्य करते छत्र अंक प्राप्त करते हैं।)
(iii) भाग्यशालिनः जनाः विश्रामं कुर्वन्ति। (भाग्यशाली लोग आराम करते हैं।)
(iv) गायिका मधुरं गायति। (गायिका मधुर गाती है।)
(v) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति। (पुस्तकों की महत्ता कौन नहीं जानता।)
उत्तराणि :
(i) नम् + तव्यत्
(ii) कृ + शानच्
(iii) भाग्यशाल + इन्
(iv) गायक + टाप्।
(v) महत् + तल्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 14.
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत।
(प्रकृति प्रत्यय को मिलाकर पदरचना कीजिये।)
(क) जन् + क्त
(ख) क्रीड् + शतृ
(ग) त्यज् + क्तवा
(घ) वि + श्रम् + ल्यप्
(ङ) भक्ष् + तुमुन्
(च) नि + वृत् + क्तिन्
(छ) प्र + यत् + तव्यत्
(ज) भुज् + शानच
(झ) गुह् + क्त + टाप्
(ब) जि + अच्
(ट) ग्रह् + ण्वुल्
(ठ) लभ् + क्तवतु
(ड) अधि + वच् + तृच्
(द) कृ + क्तवतु + ङीप्
(ण) कृ + अनीयर्
उत्तरम् :
(क) जातः
(ख) क्रीडन्
(ग) त्यक्तवा
(घ) विश्रम्य
(ङ) भक्षितुम्
(च) निवृत्तिः
(छ) प्रयतितव्यम्
(ज) भुञ्जानः
(झ) गूढ
(ब) जयः
(ट) ग्राहकः
(ठ) लब्धवान्
(ड) अधिवक्ता
(ढ) कृतती
(ण) करणीयः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 15.
अधोलिखित पदेषु प्रकृतिप्रत्यय विभागः क्रियताम्।
(निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजिये)
(क) प्रयुक्तम्
(ख) भवितव्यम्
(ग) गन्तुम्
(घ) पर्यटन्तः
(ङ) वहमानस्य
(च) क्रीत्वा
(छ) दृष्टिः
(ज) कर्ता
(झ) अतितराम्
(ब) प्रतीक्षमाणः
(ट) करणीया
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय
(ड) कारकः
(ढ) कृतवती
(ण) विक्रेता।
उत्तरम् :
(क) प्रयुक्तम् = प्र + युज् + क्त
(ख) भवितव्यम् = भू + तव्यत्
(ग) गन्तुम् = गम् + तुमुन्
(घ) पर्यटन्तः = परि + अट् + शत् (प्र.ब.व.)
(ङ) वहमानस्य = वह् + शानच् (ब.ए.व.)
(च) क्रीत्वा = क्री + क्तवा
(छ) दृष्टिः = दृश् + क्तिन्
(ज) कर्ता = कृ + तृच्
(झ) अतितराम् = अति + तरप् + टाप् (द्वि.ए.व.)
(ब) प्रतीक्षमाणः = प्रति + ईक्ष् + शानच
(ट) करणीया = कृ + अनीयर् + टाप
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय = प्रति + अभि + ज्ञा + ल्यप्
(ड) कारकः = कृ + ण्वुल्
(ढ) कृतवती = क + क्तवतु + ङीप्
(ण) विक्रेता = वि + क्री + तृच

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

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JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

संस्कृत भाषा में प्रयोग करने के लिए इन शब्दों को ‘पद’ बनाया जाता है। संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों को पद बनाने हेतु इनमें प्रथमा, द्वितीया आदि विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। इन शब्दरूपों (पदों) का प्रयोग (पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग तथा एकवचन, द्विवचन और बहुवचन में भिन्न-भिन्न रूपों में) होता है। इन्हें सामान्यतया शब्दरूप कहा जाता हैं।

संज्ञा आदि शब्दों में जुड़ने वाली विभक्तियाँ सात होती हैं। इन विभक्तियों के तीनों वचनों (एक, द्वि, बहु) में बनने वाले रूपों के लिए जिन विभक्ति-प्रत्ययों की पाणिनि द्वारा कल्पना की गई है, वे ‘सुप्’ कहलाते हैं। इनका परिचय इस प्रकार है –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 1

संज्ञा शब्दरूप-प्रकरणम्

1. अकारान्त पुल्लिंग छात्र’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 2

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व ‘अ’ पर समाप्त होने वाले पुल्लिंग संज्ञा शब्द- मोहन, शिव, नृप (राजा), राम, सुत (बेटा), गज (हाथी), पुत्र, कृष्ण, जनक (पिता), पाठ, ग्राम, विद्यालय, अश्व (घोड़ा), ईश्वर (ईश या स्वामी), बुद्ध, मेघ (बादल), नर (मनुष्य), युवक (जवान), जन (मनुष्य), पुरुष, वृक्ष, सूर्य, चन्द्र (चन्द्रमा), सज्जन, विप्र (ब्राह्मण), क्षत्रिय, दुर्जन (दुष्ट पुरुष), प्राज्ञ (विद्वान्), लोक (संसार), उपाध्याय (गुरु), वृद्ध (बूढा), शिष्य, प्रश्न, सिंह (शेर), वेद, क्रोश (कोस), भर्प ,सागर (समुद्र), कृषक (किसान), छात्र (बालक), मानव, भ्रमर, सेवक, समीर (हवा), सरोवर और यज्ञ आदि के रूप चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

विशेष – जिस शब्द में र्, ऋ अथवा ष् होता है, उसके तृतीया एकवचन के तथा षष्ठी बहुवचन के रूप में ‘न्’ के स्था- ‘ण’ हो जाता है। जैसे-‘राम’ शब्द में ‘र’ है। अतः तृतीया एकवचन में रामेण और षष्ठी बहुवचन में ‘रामाणाम्’ रूप बने हैं, किन्तु ‘बालक’ शब्द में र, ऋ अथवा ष् न होने से ‘बालकेन’ व ‘बालकानाम्’ रूप बनते

2. इकारान्त पुल्लिंग ‘हरि’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 3

नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘इ’ पर समाप्त होने वाले सभी पुल्लिंग संज्ञा शब्द-‘कवि’, बह्नि (आग), यति, (संन्यासी), नृपति (राजा), भूपति (राजा), गणपति (गणेश), प्रजापति (ब्रह्मा), रवि (सूर्य), कपि (बन्दर), अग्नि (आग), मुनि, जलधि (समुद्र), ऋषि, गिरि (पहाड़), विधि (ब्रह्मा), मरीचि (किरण), सेनापति, धनपति (सेठ), विद्यापति (विद्वान्), असि (तलवार), शिवि (शिवि नाम का राजा), ययाति (ययाति नाम का राजा) और अरि (शत्रु) आदि के रूप चलते हैं।

विशेष – जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ष् होता है, उनमें तृतीया एकवचन में व षष्ठी बहुवचन में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे-हरि शब्द (रि में र होने के कारण)तृतीया एकवचन में हरिणा’ होगा तथा षष्ठी बहुवचन में ‘हरीणाम्’ होगा किन्तु ‘कवि’ में र, ऋ अथवा ए नहीं होने के कारण ‘कविना’ तथा कवीनाम्’ ही हुए हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

3. ऋकारान्त पुंल्लिग ‘पितृ’ (पिता) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 4

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व (छेटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिग शब्दों-भ्रातृ (भाई) और जामातृ (जमाई, दामाद) आदि के रूप चलेंगे।

4. गो (धेनुः) (ओकारान्तः पुल्लिंगः स्त्रीलिङ्गश्च) शब्दः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 5

5. उकारान्त पुल्लिग’गुरु’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 6

नोट – इसी प्रकार भानु, साधु, शिशु, इन्दु, रिपु, शत्रु, शम्भु, विष्णु आदि शब्दों के रूप चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

6. ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘नदी’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 7

नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़ी) ‘ई’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-देवी, भगवती, सरस्वती, श्रीमती, कुमारी (अविवाहिता), गौरी (पार्वती), मही (पृथ्वी), पुत्री (बेटी), पत्नी, राज्ञी (रानी), सखी (सहेली), दासी (सेविका), रजनी (रात्रि), महिषी (रानी, भैंस), सती, वाणी, नगरी, पुरी, जानकी और पार्वती आदि शब्दों के रूप चलते हैं।

7. वधू (बहू) शब्द (ऊकारान्त) स्त्रीलिंग

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 8

8. मातृ (माता) ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 9

इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य सभी स्त्रीलिंग शब्दों-दुहितु (पुत्री) और यातृ (देवरानी) आदि के रूप चलेंगे।

नोट – ‘मातृ’ शब्द के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के ‘मातः’ इस रूप को छोड़कर शेष सभी रूप ‘पितृ’ शब्द के समान ही चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

9. उकारान्त स्त्रीलिंग’धेनु’ (गाय) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 10

नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘उ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-तनु (शरीर), रेणु (धूल), रज्जु (रस्सी), कामधेनु, चञ्चु (चोंच) और हनु (ठोड़ी) आदि के रूप चलते हैं।

विशेष-धेनु शब्द के चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी और सप्तमी विभक्ति के एकवचन के दो-दो रूप बनते हैं। इनमें से प्रथम रूप नदी शब्द के समान बनता है तथा द्वितीय रूप भान शब्द के समान बनता है। इन दो रूपों में से किसी भी एक रूप को प्रयोग में लाया जा सकता है।

सर्वनाम शब्दरूप-प्रकरणम्

10. अस्मद् (मैं) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 11

नोट – ‘अस्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

11. युष्मद् (तुम) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 12

नोट – ‘युष्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

12. सर्व (सब) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 13

13. सर्व (सब) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 14

14. सर्व (सब) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 15

नोट – शेष विभक्तियों के रूप पुल्लिंग ‘सर्व’ की तरह चलेंगे।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

15. तत्/तद् (वह) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 16

नोट – प्रथमा विभक्ति एकवचन को छोड़कर सभी रूपों का आधार ‘त’ अक्षर है तथा ‘सर्व’ शब्द के समान रूप हैं।

16. तत् / तद् (वह) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 17

17. तत् / तद (वह) नपुंसकलिंग

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 18

नोट – ‘तद्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के ये सभी रूप तद्’ पुल्लिंग के समान चलते

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

18. यत् (जो) पुंल्लिग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 19

नोट – इस ‘यत्’ शब्द का सभी लिंगों में, सभी विभक्तियों के रूप में ‘य’ आधार रहेगा तथा इसके ‘सर्व’ के समान ही रूप चलेंगे।

19. यत् (जो) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 20

20. यत् (जो) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 21

नोट – ‘यत्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सम्पूर्ण रूप ‘यत्’ पुंल्लिंग के समान ही चलेंगे।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

21. किम् (कौन) पुंल्लिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 22

नोट – ‘किम्’ शब्द के रूपों का मूल आधार सभी लिंगों एवं विभक्तियों में ‘क’ होता है तथा इसके रूप ‘सर्व’ शब्द के समान ही चलते हैं।

22. किम् (कौन) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 23

23. किम् (कौन) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 24

नोट – ‘किम्’ शब्द के नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सभी रूप ‘किम्’ पुल्लिंग के समान ही चलते हैं।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नेषु सम्यक् विकल्प चिनुत –
1. ‘बालक’ तृतीया विभक्ति एकवचन –
(अ) बालक
(ब) बालकेन
(स) बालकस्य
(द) बालकः
उत्तरम् :
(ब) बालकेन

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

2. ‘पति’ (स्वामी) षष्ठी द्विवचन –
(अ) पती
(ब) पत्युः
(स) पत्यौ
(द) पतिभ्यः
उत्तरम् :
(स) पत्यौ

3. ‘गुरु’ चतुर्थी विभक्ति बहुवचन –
(अ) गुरूणा
(ब) गुरौ
(स) गुरुभिः
(द) गुरुभ्यः
उत्तरम् :
(द) गुरुभ्यः

4. ‘सखि’ द्वितीया विभक्ति एकवचन –
(अ) सख्यौ
(ब) सखीनाम्
(स) सखायम्
(द) सख्युः
उत्तरम् :
(स) सखायम्

5. ‘स्त्री’ प्रथमा विभक्ति बहुवचन –
(अ) स्त्रियः
(ब) स्त्रीभ्यः
(स) स्त्रीभ्याम्
(द) स्त्रयाः
उत्तरम् :
(अ) स्त्रियः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

6. ‘विभा’ सप्तमी विभक्ति एकवचन –
(अ) विभासु
(ब) विभाभ्यः
(स) विभायाम्
(द) हे विभाः
उत्तरम् :
(स) विभायाम्

7. ‘पुस्तक’ पञ्चमी विभक्ति द्विवचन –
(अ) पुस्तकम्
(ब) पुस्तकाभ्याम्
(स) पुस्तकाय
(द) पुस्तकयोः
उत्तरम् :
(ब) पुस्तकाभ्याम्

8. ‘आत्मन्’ सप्तमी द्विवचन –
(अ) आत्मनः
(ब) आत्मभ्याम्
(स) आत्मानौ
(द) आत्मनोः
उत्तरम् :
(द) आत्मनोः

9. ‘पितृ’ प्रथमा बहुवचन –
(अ) पितरि
(ब) पित्रोः
(स) पितरः
(द) पित्रा
उत्तरम् :
(स) पितरः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

10. ‘भगवत्’ तृतीया विभक्ति बहुवचन –
(अ) भगवद्भिः
(ब) भगवत्सु
(स) भगवन्तः
(द) भगवते
उत्तरम् :
(अ) भगवद्भिः

11. ‘सर्व’ पुल्लिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन –
(अ) सर्वेषु
(ब) सर्वयोः
(स) सर्वस्मिन्
(द) सर्वैः
उत्तरम् :
(स) सर्वस्मिन्

12. अस्मद् (मैं) तृतीया विभक्ति बहुवचन –
(अ) मह्यम्
(ब) अस्माकम्
(स) आवयोः
(द) अस्माभिः
उत्तरम् :
(द) अस्माभिः

13. किम् (कौन) स्त्रीलिंग,पंचमी विभक्ति, द्विवचन –
(अ) कयोः
(ब) काभ्याम्
(स) कासाम्
(द) के
उत्तरम् :
(ब) काभ्याम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

14. अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदं किम्? ‘सा विद्यालये संस्कृत पठति।’
(अ) विद्यालये
(ब) पठति
(स) सा
(द) संस्कृतं
उत्तरम् :
(स) सा

15. इदम् मनीषस्य पुस्तकं अस्ति। अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदं किम्?
(अ) पुस्तकं
(ब) अस्ति
(स) इदम्
(द) मनीषस्य
उत्तरम् :
(स) इदम्

16. भवत्याः गृहं अति शोभनं अस्ति। अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदं किम् –
(अ) गृहं
(ब) अति
(स) शोभनं
(द) भवत्याः
उत्तरम् :
(द) भवत्याः

17. …………… प्रभावेन सिंहः सजीवः अभवत? रिक्त स्थाने उचितं सर्वनाम पदं किम् –
(अ) केन
(ब) कस्मात्
(स) के
(द) कस्य
उत्तरम् :
(अ) केन

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

18. अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदः नास्ति-अहं तव तस्य च मित्र।
(अ) तव
(ब) तस्य
(स) अहं
(द) मित्रं
उत्तरम् :
(ब) तस्य

19. अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदः अस्ति-तस्य भ्राता ग्रामं गच्छति।
(अ) तस्य
(ब) ग्रामं
(स) भ्राता
(द) गच्छति
उत्तरम् :
(अ) तस्य

20. युष्मद् (तुम) शब्दस्य पंचमी बहुवचने रूपं भवति –
(अ) युष्माकम्
(ब) युष्मत्
(स) युष्मानम्
(द) युष्मासु
उत्तरम् :
(स) युष्मानम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 2.
कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचित विभक्तिपदेन रिक्तस्थानानि पूर्ति कुरुत –
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(i) ……………. पत्रं पतति।’ (वृक्ष-पञ्चमी)
(ii) ……………… हरीशः विनम्रः।(छात्र-सप्तमी)
(iii) भो ………………. पत्रं पठ। (महेश-सम्बोधन)
(iv) ………………. किं हसन्ति ? (भवान्-प्रथम)
(v) ………………. शनैः शनैः लिखति (केशव-प्रथमा)
(vi) गोपालः जलेन…………………. प्रक्षालयति। (मुख-द्वितीया)
(vii) सेवकः स्कन्धेन………………. वहति। (भार-द्वितीया)
(viii) सः ………………. कोमलः। (स्वभाव-तृतीया)
(ix) कोऽर्थः ………………. यो न विद्वान् न धार्मिकः। (पुत्र-तृतीया)
(x) भक्तः ………………. हरि भजति। (मुक्ति-चतुर्थी)
(xi) क्रीडनकं रोचते। …………….(शिशु-चतुर्थी)
(xii) ज्ञानं गुरुतरम्। (धन-पंचमी)
(xiii) ……………… गङ्गा प्रभवति। (हिमालय-पंचमी)
(xiv) …………….. हेतोः वाराणस्यां तिष्ठति। (अध्ययन-षष्ठी)
(xv) ………………. ओदनं पचति।। (स्थाली-सप्तमी)
उत्तरम्:
(i) वृक्षात्
(ii) छात्रेषु
(iii) महेश !
(iv) भवन्तः
(v) केशवः
(vi) मुखं
(vii) भारं
(viii) स्वभावेन
(ix) पुत्रेण
(x) मुक्तये
(xi) शिशवे
(xii) धनात्
(xili) हिमालयात्
(xiv) अध्ययनस्य
(xv) स्थाल्याम्।

प्रश्न 3.
कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम् –
(कोष्ठक से उचित विभक्तियुक्त पद को चुनकर वाक्य-पूर्ति कीजिए-)
(i) ………………. पुरोहितः अकथयत्। (शुद्धोदनाय, शुद्धोदनस्य, शुद्धोदने)
(ii) मम ………………. स्वां दुहितरं यच्छ। (पिता, पित्रा, पित्रे)
(iii) शान्तनुः ……………….. वरम् अयच्छत्। (भीष्माय, भीष्मे, भीष्मात्)
(iv) अयि ………………. मम मित्रं भविष्यति।(चटकपोत!, चटकपोतं, चटकपोतैः)
(v) अस्मिन् ………………. प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। (जगत. जगता, जगति)
(vi) कस्मिंश्चिद् ………………. एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। (ग्रामेन, ग्रामे, ग्रामस्य)
(vii) सा ………………. बहिः आगन्तव्यम्। (ग्रामात्, ग्रामे, ग्रामान्)
(vii) लुब्धया ………………. लोभस्य फलं प्राप्तम्। (बालिका, बालिकया, बालिकाया:)
(ix) इन्दुः ……………… प्रकाशं लभते। (भानुना, भानोः, भानवे)
(x) ……………. गङ्गा सर्वश्रेष्ठा। (नद्याम्, नद्याः नदीषु)
(xi) भो भगवन् ! ………………… दयस्व।(मयि, माम्, अहं)
(xii) ………………. सर्वत्र पूज्यते। (विद्वान्, विद्वांसः विद्वांसी)
(xiii) रविः प्रतिदिनं ………………. नमति। (ईश्वराय, ईश्वरे, ईश्वरम्)
(xiv) सः ……………… पश्यति। (राजानम्, राज्ञाम्, राज्ञा)
(xv) रामः ………………. पटुतरः। (मोहनेन, मोहनस्य, मोहनात्)
उत्तरम्-
(i) शुद्धोदनस्य
(ii) पित्रे
(iii) भीष्माय
(iv) चटकपोत!
(v) जगति
(vi) ग्रामे
(vil) ग्रामात्
(viii) बालिकया
(ix) भानुना
(x) नदीषु
(xi) मयि
(xii) विद्वान्
(xiii) ईश्वरम्
(xiv) राजानम्
(xv) मोहनात्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 4.
समुचितं विभक्तिप्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(उचित विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
1. …………….. कुत्र गच्छति? (भवत्)
2. ……………. मोदकं रोचते। (बालक)
3. …………… अभितः वनं अस्ति। (ग्राम)
4. कर्णः ………………. सह नगरं गच्छति। (पिता)
5. गङ्गा ……………. उद्भवति। (हिमालय)
6. ………………. कक्षायां बालकाः पठन्ति। (इदम्)
7. सः………………. अधितिष्ठति। (आसन)
8. मुनिः ………………. लोकं जयति। (सत्य)
9. नृपः ………………. क्रुध्यति। (दुर्जन)
10. बालकः…………….. बिभेति। (चोर)
उत्तरम् :
(1) भवान्
(ii) बालकाय
(iii) ग्रामम्
(iv) पित्रा
(v) हिमालयात्
(vi) अस्याम्
(vii) आसनम्
(viii) सत्येन
(ix) दुर्जनेभ्यः
(x) चोरात्।

प्रश्न 5.
कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचितविभक्तिपदेन रिक्तस्थानानां पूर्ति कुरुत –
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(i) …………… च एका दुहिता आसीत्। (तत्-स्त्रीलिंग षष्ठी)
(ii) …………….. विस्मयं गता। (तत्-स्त्रीलिंग प्रथमा)
(iii) ………………….. मम श्वश्रूः सदैव मर्मघातिभिः कटुवचनैराक्षिपति माम्। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथम)
(iv) …………………… काकिणी अपि न दत्ता। (यत्-पुल्लिग तृतीया)
(v) …………… तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता। (तत्-पुल्लिंग पंचमी)
(vi) ………………. मरालैः सह विप्रयोगः। (यत्-पुंल्लिग षष्ठी)
(vii) ………………. अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्। (इदम्-ऍल्लिंग सप्तमी)
(viii) तत् ……………. अस्मात् मनोरथमभीष्टं साधयामि। (अस्मद्-प्रथमा)
(ix) किन्तु …………………. सह केलिभिः कोऽपि न उपलभ्यमानः आसीत्।। (तत्-पुंल्लिंग तृतीया)
(x) अयि चटकपोत ! ……….. मित्रं भविष्यसि। (अस्मद्-षष्ठी)
(xi) अपूर्वः इव ते हर्षो ब्रूहि ……….. असि विस्मितः। (किम्-पुंल्लिंग तृतीया)
(xii) …………………. कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। (अस्मद्-षष्ठी)
(xiii) तां च …………… चित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (किम्-पुल्लिंग षष्ठी)
(xiv) वत्स! पितृव्योऽयं ………….. (युष्मद्-षष्ठी)
(xv) ……………….. अस्मि तपोदत्तः। (अस्मद्-प्रथमा)
(xvi) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो ……………. करणीयः। (अस्मद्-तृतीया)
(xvii) …………………. शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे। (तत्-पुल्लिंग द्वितीया)
(xviii) वृद्धोऽहं ………………. युवा धन्वी सरथः कवची शरी। (युष्मद्-प्रथमा)
(xix) यतः ……………….. स्थलमलापनोदिनी जलमलापहारिणश्च। (तत्-पुल्लिंग प्रथमा)
(xx) ………………. सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथमा)
उत्तरम् :
(i) तस्याः
(ii) सा
(iii) इयम्
(iv) येन
(v) तस्मात्
(vi) येषाम्
(vii) अस्मिन्
(viii) अहम्
(ix) तेन
(x) मम
(i) केन
(xii) अस्माकं
(xiii) कस्य
(xiv) तव
(xv) अहम्
(xvi) मया
(xvii) तम्
(xviii) त्वम्
(xix) स:
(xx) इयम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 6.
कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम् –
(कोष्ठक से उचित विभक्ति युक्त पद को चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)
(i) नाऽहं जाने ……………… कोऽस्ति भवान्। (यत्, याभ्याम्, याः)
(ii) सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति ……………….? (किम्, कानि, काषु)
(ii) त्वया ………………. पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः। (आवाभ्याम्, अस्मत्, अहम्)
(iv) प्रकृतिरेव ………………. विनाशकी सजाता। (तस्य, तयोः, तेषां)
(v) ………………. सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति। (तत्, ते, तानि)
(vi) भगवन्। प्रष्टुमिच्छामि किम् …………………. मनः ? (इयं, अयं, इदम्)
(vii) अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः ………………. मनः। (तत्, तम्, तासाम्)
(viii) बालिका ………………. निवारयन्ती। (तस्मै, ताभ्याम्, तम्)
(ix) परं ………………. माता एकाकिनी वर्तते। (तव, तयोः, तेषु)
(x) ………………. अपि चायपेयस्य नास्ति। (इदम्, इदानीम्, अयम्)
(xi) यत् …………….. अपि कथनीयं यां प्रत्येव कथय। (किम्, कौ, कानि)
(xii) ……………….. नृशंसाः। (मह्यम्, अस्मत्, वयम्)
(xiii) ………………. इदानी कुत्र गताः ? (ते, ताभ्याम्, तेभ्यः)
(xiv) कल्पतरु: ……………….. उद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्य:। (तव, तेभ्यः, तस्मै)
(xv) विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते ………………. मत्स्यादीनां जलचराणां च नाशो जायते। (येन, याभ्यां, याषु)
उत्तरम् :
(i) यत्
(ii) किम्
(iii) अस्मत्
(iv) तेषां
(v) तत्
(vi) इदम्
(vii) तत्
(viii) तम्
(ix) तव
(x) इदानीम्
(xi) किम्
(xii) वयम्
(xiii) ते
(xiv) तव
(xv) येन।

प्रश्न 7.
अधोलिखितानां शब्दरूपाणां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत-
(निम्नलिखित शब्दरूपों का वाक्यों में प्रयोग करो-)
पूर्वस्या, द्वितीयम्, सखा, रमायै, पूर्वे, हरिः, पितृभ्यः, सखिषु, स्वसुः, राज्ञाम्, भवान्, भवती, विद्वांसः, अमूः, दिक्षु, सरितः, कर्मणा, नव, वाक्, पञ्च।
उत्तराणि :
1. सूर्यः पूर्वस्याम् दिशि उदेति।
2. कक्षायां मम द्वितीय स्थानमस्ति।
3. रमेशः मम सखा अस्ति।
4. फलानि रमायै सन्ति।
5. मोहनः पूर्वे कर्णपुरनगरे निवसति स्म।
6. हरिः विद्यालयं गच्छति।
7. राकेशः पितृभ्यः जलं समर्पयति।
8. सखिषु रमा सुन्दरतमा अस्ति।
9. रामः श्वः स्वसुः गृहं गमिष्यति।
10. राज्ञाम् आचारः शोभनः भवति।
11. भवान् कुत्र निवसति ?
12. भवती किं पठति ?
13. स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वांसः सर्वत्र पूज्यन्ते।
14. अमूः कुत्र वसन्ति ?
15. दिक्षु कृष्णाः वारिदाः सन्ति।
16. सरितः जलं शीतलं भवति।
17. कर्मणा विना जीवनं न अस्ति।
18. तत्र विद्यालये नव छात्राः सन्ति।
19. जनस्य वाक् मधुरं भवेत।
20. पञ्च पाण्डवाः विज्ञाः आसन्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 8.
निर्देशानुसार सर्वनाम शब्दानां रूपं लिखत –
(निर्देशानुसार सर्वनाम शब्दों के रूप लिखिए-)
1. (i) सर्व – (पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) तत् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन)
2. (i) भवती – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
(ii) यत् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
3. (i) इदम् – (स्त्रीलिंग द्वितीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) एतत् – (पुल्लिंग पंचमी विभक्ति एकवचन)
4. (i) भवत् – (तृतीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) किम् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति एकवचन)
5. (i) सर्व – (स्त्रीलिंग चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) किम् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
6. (i) युष्मद् – (द्वितीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) एतत् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति द्विवचन)
7. (i) सर्व – (नपुंसकलिंग चतुर्थी विभक्ति द्विवचन)
(ii) किम् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति बहुवचन)
8. (i) इदम् – (पुल्लिग प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) यत् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति बहुवचन)
9. (i) इदम् – (नपुंसकलिंग तृतीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) तत् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति एकवचन)
10. (i) अस्मद् – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) एतत् – (स्त्रीलिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
11. (i) सर्व – (पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति एकवचन)
(ii) तत् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
12. (i) भवती – (प्रथमा विभक्ति द्विवचन)
(ii) यत् – (पुल्लिग सप्तमी विभक्ति एकवचन)
13. (i) इदम् – (स्त्रीलिंग प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(i) एतत् – (पुल्लिंग सप्तमी विभक्ति द्विवचन)
14. (i) भवत् – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
(ii) किम् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
15. (i) सर्व – (स्त्रीलिंग द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) किम् – (नपुंसकलिंग षष्ठी विभक्ति एकवचन)
16. (i) युष्मद् – (द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) एतत् – (नपुंसकलिंग षष्ठी विभक्ति द्विवचन)
17. (i) सर्व – (नपुंसकलिंग तृतीया विभक्ति एकवचन)
(ii) किम् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति एकवचन)
18. (i) इदम् – (पुल्लिंग तृतीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) यत् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति एकवचन)
19. (i) इदम् – (नपुंसकलिंग तृतीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) तत् – (पुल्लिंग पंचमी विभक्ति द्विवचन)
20. (i) अस्मद् – (चतुर्थी विभक्ति बहुवचन)
(ii) एतत् – (स्त्रीलिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन)
उत्तराणि :
1. (i) सर्वे (ii) तस्मिन्
2. (i) भवत्या (i) येषाम्
3. (i) इमाः (ii) एतस्मात्
4. (i) भवद्भ्याम् (ii) कस्य
5. (i) सर्वस्यैः (ii) केषु
6. (i) युष्मान् (ii) एतयोः
7. (i) सर्वाभ्याम् (ii) काभ्यः
8. (i) इमे (ii) याभ्यः
9. (i) एभिः (ii) तस्य
10. (i) मह्यम् (ii) एतासु
11. (i) सर्वः (ii) तेषु
12. (i) भवत्यौ (ii) यस्मिन्
13. (i) इमाः (ii) एतयोः
14. (i) भवन्तम् (ii) केषाम्
15. (i) सर्वे (ii) कस्य
16. (i) युवाम् (ii) एतयोः
17. (i) सर्वेण (ii) कस्याः
18. (i) आभ्याम् (ii) यस्याः
19. (i) एभिः (ii) ताभ्याम्
20.(i) अस्मभ्यम् (ii) एतस्याम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 9.
निर्देशानुसारं शब्द-रूपं लिखत – (निर्देशानुसार शब्द-रूप लिखिए-)
1. (i) धेनु – (तृतीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) प्रासाद – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
2. (i) स्वसृ – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) विधातृ – (पुल्लिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
3. (i) पितृ – (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
(ii) तनु – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
4. (i) फलम् – (सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
(ii) रमा – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
5. (i) जगत् – (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
(ii) धेनु – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
6. (i) नदी – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) मातृ – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
7. (i) भ्रातृ – (पंचमी विभक्ति द्विवचन)
(ii) आशु – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
8. (i) प्रासाद – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
(ii) पितृ – (तृतीया विभक्ति बहुवचन)
9. (i) वेदना – (पंचमी विभक्ति एकवचन)
(ii) धातृ – (द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
10. (i) शान्तनु – (षष्ठी विभक्ति एकवचन)
(ii) दातृ – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
11. (i) गंगा – (पंचमी विभक्ति बहुवचन)
(ii) कर्तृ – (तृतीया विभक्ति बहुवचन)
12. (i) धीवर – (षष्ठी विभक्ति द्विवचन)
(ii) हर्तृ – (सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
13. (i) कन्या – (सप्तमी विभक्ति द्विवचन)
(ii) भ्रातृ – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
14. (i) गृहम् – (द्वितीया विभक्ति बहुवचन)।
(ii) दुहितृ – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
15. (i) सेवा – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) स्वसू – (षष्ठी विभक्ति एकवचन)
16. (i) भानु – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) ननान्दृ – (पंचमी विभक्ति बहुवचन)
17. (i) रज्जु – (द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) भ्रातृ – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
18. (i) पशु – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) विधातृ – (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
19. (i) धेनु – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
(ii) भगवत् – (पंचमी विभक्ति एकवचन)
20. (i) तनु – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
(ii) जगत् – (सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
उत्तराणि :
1. (i) धेनुभिः (ii) प्रासादे
2. (i) स्वस्रे (ii) विधातृषु
3. (i) पितृणाम् (i) तनवः
4. (i) फलेषु (ii) रमया
5. (i) जगताम् (ii) धेनवः
6. (i) नद्यः (ii) मात्रा
7. (i) भ्रातुः (ii) आशौ
8. (i) प्रासादम् (ii) पितृभिः
9. (i) वेदनायाः (ii) धातरौ
10. (i) शान्तनो: (ii) दात्रे
11. (i) गंगाभ्यः (ii) कर्तृभि
12. (i) धीवरयोः (ii) हर्तृषु,
13. (i) कन्ययोः (ii) भ्रातरम्
14. (i) गृहाणि (ii) दुहितरि
15. (i) सेवाः (ii) स्वसुः
16. (i) भानवे (ii) ननान्दृभ्यः
17. (i) रज्जू (ii) भ्रातरि
18. (i) पशव: (ii) विधातृणाम्
19. (i) धेनुम् (ii) भगवतः
20. (i) तन्वा (ii) जगत्सु।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु शब्देषु विभक्तिः वचनं च निर्देशनं कुरुत-
(निम्नलिखित शब्दों में विभक्ति और वचन को निर्देशित कीजिए-)
(i) गुरुणा
(ii) विद्यालयेषु
(iii) देवानाम्
(iv) लतायाम्
(v) मुनीन्
(vi) वारिणि
(vii) त्वाम्
(viii) कैः
(ix) यस्मै
(x) एतस्मात्।
उत्तरम् :
(i) तृतीया विभक्तिः एकवचनम्
(ii) सप्तमी विभक्तिः बहुवचनम्
(iv) षष्ठी विभक्तिः बहुवचनम्
(iv) सप्तमी विभक्तिः एकवचनम्
(v) द्वितीया विभक्तिः बहुवचनम्
(vi) द्वितीया विभक्तिः बहुवचनम्
(vii) द्वितीया विभक्तिः एकवचनम्
(viii) तृतीया विभक्ति: बहुवचनम्
(ix) चतुर्थी विभक्तिः एकवचनम्
(x) पञ्चमी विभक्तिः एकवचनम्।