JAC Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. साँची का स्तूप किस राज्य में स्थित है –
(अ) उत्तर प्रदेश
(स) मध्य प्रदेश
(ब) बिहार
(द) गुजरात
उत्तर:
(स) मध्य प्रदेश

2. ऋग्वेद का संकलन कब किया गया?
(अ) 2500-2000 ई. पूर्व
(ब) 2000-1500 ई. पूर्व
(स) 1000-500 ई. पूर्व
(द) 1500 से 1000 ई. पूर्व
उत्तर:
(द) 1500 से 1000 ई. पूर्व

3. महावीर स्वामी से पहले कितने शिक्षक (तीर्थंकर) हो चुके थे?
(अ) 24
(स) 14
(ब) 20
(द) 23
उत्तर:
(द) 23

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4. बौद्धसंघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी –
(अ) महामाया
(ब) पुन्ना
(स) महाप्रजापति गोतमी
(द) सुलक्षणी
उत्तर:
(स) महाप्रजापति गोतमी

5. जिन ग्रन्थों में बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन किया गया है, उन्हें कहा जाता है –
(अ) बौद्धग्रन्थ
(स) महावंश
(ब) दीपवंश
(द) त्रिपिटक
उत्तर:
(द) त्रिपिटक

6. किस ग्रन्थ में बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम संकलित किए गए हैं?
(अ) अभिधम्मपिटक
(ब) विनयपिटक
(स) सुत्तपिटक
(द) बुद्धचरित
उत्तर:
(ब) विनयपिटक

7. अमरावती के स्तूप की खोज सर्वप्रथम कब हुई ?
(अ) 1896
(ब) 1796
(स) 1717
(द) 1817
उत्तर:
(ब) 1796

8. साँची की खोज कब हुई?
(अ) 1818 ई.
(ब) 1718 ई.
(स) 1918 ई.
(द) 1878 ई.
उत्तर:
(अ) 1818 ई.

9. किस अंग्रेज लेखक ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तान जहाँ बेगम को समर्पित किया?
(अ) जेम्स टॉड
(ब) जॉर्ज थॉमस
(स) जॉन मार्शल
(द) जरथुस्व
उत्तर:
(स) जॉन मार्शल

10. किस दार्शनिक का सम्बन्ध चूनान से है?
(अ) सुकरात
(ख) खुंगत्सी
(स) बुद्ध
(द) कनिंघम
उत्तर:
(अ) सुकरात

11. समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें कितने सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं की जानकारी मिलती है?
(अ) 10
(स) 94
(ब) 24
(द) 64
उत्तर:
(द) 64

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12. किस देश से दीपवंश एवं महावंश जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास का सम्बन्ध है-
(अ) भारत
(स) चीन
(ब) नेपाल
(द) श्रीलंका
उत्तर:
(द) श्रीलंका

13. त्रिपिटक की रचना कब हुई थी?
(अ) बुद्ध के जन्म से पूर्व
(ब) बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्
(स) बुद्ध के जीवन काल में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्

14. महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन निम्नलिखित में से किसमें है?
(अ) सुत्तपिटक
(ब) विनय पिटक
(स) जातक
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सुत्तपिटक

15. महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था –
(अ) कपिलवस्तु
(ब) लुम्बिनी
(स) सारनाथ
(द) बोधगया
उत्तर:
(ब) लुम्बिनी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. भोपाल की नवाब शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ………….. है।
2. शाहजहाँ बेगम की उत्तराधिकारी ……………. थीं।
3. ………… और …………… जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे।
4. महात्मा बुद्ध के दर्शन से जुड़े विषय …………. पिटक में आए।
5. ज्यादातर पुराने बौद्ध ग्रन्थ …………… भाषा में हैं।
6. बौद्ध धर्म के पूर्व एशिया में फैलने के पश्चात् …………. और ………… जैसे तीर्थयात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए।
7. वे महापुरुष जो पुरुषों और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचाते हैं उन्हें …………….. कहते हैं।
उत्तर:
1. ताज-उल- इकबाल
2. सुल्तान जहाँ बेगम
3. राजसूय, अश्वमेध
4. अभिधम्म
5. पालि
6. फा- शिएन, श्वैन त्सांग
7. तीर्थंकर

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया।

प्रश्न 2.
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन के अनुसार सम्पूर्ण संसार प्राणवान है

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प्रश्न 3.
मन्दिर स्थापत्य कला में गर्भगृह एवं शिखर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
(1) गर्भगृह- मन्दिर का चौकोर कमरा
(2) शिखर- गर्भगृह के ऊपर ढाँचा।

प्रश्न 4.
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। लोग बातचीत के द्वारा एकमत होते थे।

प्रश्न 5.
बुद्ध के जीवन से जुड़े बोधगया एवं सारनाथ नामक स्थानों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
(1) बोधगया में. बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।
(2) सारनाथ में बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था।

प्रश्न 6.
यदि आप भोपाल की यात्रा करेंगे, तो वहाँ किस बौद्धकालीन स्तूप को देखना चाहेंगे?
उत्तर:
साँची के स्तूप को।

प्रश्न 7.
महात्मा बुद्ध का बचपन का नाम क्या था?
उत्तर:
सिद्धार्थ

प्रश्न 8.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है?
उत्तर:
साँची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।

प्रश्न 9.
थेरीगाथा बौद्ध ग्रन्थ किस पिटक का हिस्सा है?
उत्तर:
सुत्तपिटक।

प्रश्न 10.
कैलाशनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
महाराष्ट्र में।

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प्रश्न 11.
महावीर स्वामी का बचपन का नाम क्या
उत्तर:
वर्धमान।

प्रश्न 12.
ऐसे तीन स्थानों का उल्लेख कीजिये, जहाँ स्तूप बनाए गए थे।
उत्तर:
(1) भरहुत
(2) साँची
(3) अमरावती।

प्रश्न 13.
साँची के स्तूप को आर्थिक अनुदान देने वाले दो शासकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) शाहजहाँ बेगम
(2) सुल्तानजहाँ बेगम।

प्रश्न 14.
बुद्ध की शिक्षाएँ किन ग्रन्थों में संकलित हैं?
उत्तर:
त्रिपिटक में

प्रश्न 15.
साँची के स्तूप को किसने संरक्षण प्रदान किया?
उत्तर:
साँची के स्तूप को भोपाल के शासकों ने संरक्षण प्रदान किया जिनमें शाहजहाँ बेगम एवं सुल्तानजहाँ बेगम प्रमुख हैं।

प्रश्न 16.
“इस देश की प्राचीन कलाकृतियों की लूट होने देना मुझे आत्मघाती और असमर्थनीय नीति लगती है।” यह कथन किस पुरातत्त्ववेत्ता का है?
उत्तर:
एच. एच. कोल।

प्रश्न 17.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी का काल विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
क्योंकि इस काल में ईरान में जरस्थुस्व, चीन में खुंगस्ती, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू एवं भारत में महावीर व बुद्ध जैसे चिन्तकों का उदय हुआ।

प्रश्न 18.
अजन्ता की गुफाएँ कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
महाराष्ट्र में

प्रश्न 19.
पौराणिक हिन्दू धर्म में किन दो प्रमुख देवताओं की पूजा प्रचलित थी?
उत्तर:
(1) विष्णु
(2) शिव।

प्रश्न 20.
सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाओं का निर्माण किस शासक ने करवाया था ?
उत्तर:
अशोक ने आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों हेतु निर्माण करवाया था।

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प्रश्न 21.
धेरी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
थेरी का अर्थ है ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।

प्रश्न 22.
बौद्ध धर्म की दो शिक्षाएँ बताइये।
उत्तर:
(1) विश्व अनित्य है।
(2) यह संसार दुःखों का घर है।

प्रश्न 23.
जैन धर्म की दो शिक्षाएँ बताइये।
उत्तर:
(1) जीवों के प्रति अहिंसा
(2) कर्मवाद और पुनर्जन्म में विश्वास।

प्रश्न 24.
बौद्ध संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम महिला कौन थी?
उत्तर:
बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी।

प्रश्न 25.
जैन धर्म के महापुरुष क्या कहलाते थे?
उत्तर:
तीर्थंकर।

प्रश्न 26.
जैन धर्म के 23वें तीर्थकर कौन थे?
उत्तर:
पार्श्वनाथ

प्रश्न 27.
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है।

प्रश्न 28.
राजसूय एवं अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किनके द्वारा कराया जाता था ?
उत्तर:
ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा

प्रश्न 29.
समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में कितने सम्प्रदायों एवं चिन्तन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है?
उत्तर:
64 सम्प्रदाय या चिन्तन परम्पराओं का।

प्रश्न 30.
कुटागारशालाओं का शाब्दिक अर्थ बताइये।
उत्तर:
नुकीली छत वाली झोंपड़ी।

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प्रश्न 31.
शिक्षक अपने दार्शनिक विचारों की चर्चा कहाँ करते थे?
उत्तर:
कुटागारशालाओं या उपवनों में।

प्रश्न 32.
महावीर स्वामी तथा बुद्ध ने किसका विरोध किया?
उत्तर:
वेदों के प्रभुत्व का।

प्रश्न 33.
चीनी यात्री फा-शिएन तथा श्वैन-त्सांग ने भारत की यात्रा क्यों की?
उत्तर:
बौद्ध ग्रन्थों की खोज के लिए।

प्रश्न 34.
प्रमुख नियतिवादी बौद्ध भिक्षु कौन थे?
उत्तर:
मक्खलि गोसाल।

प्रश्न 35.
प्रमुख भौतिकवादी बौद्ध दार्शनिक कौन थे?
उत्तर:
अजीत केसकम्बलिन।

प्रश्न 36.
महावीर स्वामी से पहले कितने तीर्थकर हो चुके थे?
उत्तर:
231

प्रश्न 37.
अमरावती के स्तूप की खोज कब हुई ?
उत्तर:
1796 ई. में

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प्रश्न 38.
विष्णु के कितने अवतारों की कल्पना की गई ?
उत्तर:
दस अवतारों की।

प्रश्न 39.
बराबर (बिहार) की गुफाओं का निर्माण किसने करवाया था ?
उत्तर:
अशोक ने।

प्रश्न 40.
अशोक ने किस सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बराबर की गुफाओं का निर्माण करवाया था?
उत्तर:
आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए।

प्रश्न 41.
कैलाशनाथ के मन्दिर कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
एलोरा (महाराष्ट्र) में।

प्रश्न 42.
कैलाशनाथ के मन्दिर का निर्माण कब करवाया गया था?
उत्तर:
आठवीं शताब्दी में।

प्रश्न 43.
यूनानी शैली से प्रभावित मूर्तियाँ किन क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
तक्षशिला और पेशावर से।

प्रश्न 44.
प्रतीकों द्वारा बुद्ध की स्थिति किस प्रकार दिखाई जाती है? दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
बुद्ध के ‘अध्यान की दशा’ को ‘रिक्त स्थान’ तथा ‘महापरिनिर्वाण’ को ‘स्तूप’ के द्वारा दिखाया जाता है।

प्रश्न 45.
ऐसे चार सामाजिक समूहों के नाम बताइये जिनमें से बुद्ध के अनुयायी आए।
उत्तर:
(1) राजा
(2) धनवान
(3) गृहपति तथा
(4) सामान्य जन

प्रश्न 46.
बुद्ध द्वारा गृह त्याग के क्या कारण थे?
उत्तर:
नगर का भ्रमण करते समय एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक लाश और संन्यासी को देख कर बुद्ध ने घर त्याग दिया।

प्रश्न 47.
लुम्बिनी एवं कुशीनगर नामक स्थानों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
लुम्बिनी में बुद्ध का जन्म हुआ। कुशीनगर में बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। ये बौद्ध धर्म के पवित्र स्थान हैं।

प्रश्न 48.
जैन धर्म के अनुसार कर्मफल से मुक्ति कैसे पाई जा सकती है ?
उत्तर:
त्याग और तपस्या के द्वारा।

प्रश्न 49.
आपकी दृष्टि में बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार के क्या कारण थे? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे।
(2) बौद्ध धर्म ने जाति प्रथा का विरोध किया, सामाजिक समानता पर बल दिया।

प्रश्न 50.
हीनयान और महायान बौद्ध सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
महायानी बुद्ध को देवता मान कर उनकी पूजा करते थे, परन्तु हीनयानी बुद्ध को अवतार नहीं मानते थे।

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प्रश्न 51.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है?
उत्तर:
साँची का स्तूप भोपाल से बीस मील दूर उत्तर- पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।

प्रश्न 52.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी में विश्व में किन प्रसिद्ध चिन्तकों का उद्भव हुआ?
उत्तर:
ईरान में जरथुस्व, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू तथा भारत में महावीर और बुद्ध का उद्भव हुआ।

प्रश्न 53.
ऋग्वेद का संकलन कब किया गया?
उत्तर:
ग्वेद का संकलन 1500 से 1000 ई. पूर्व में किया गया।

प्रश्न 54.
नियतिवादियों और भौतिकवादियों में क्या अन्तर था?
उत्तर:
नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है परन्तु भौतिकवादियों के अनुसार दान, यज्ञ या चढ़ावा निरर्थक हैं।

प्रश्न 55.
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए क्या किया जाना आवश्यक है?
उत्तर:
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 56.
जैन धर्म के पाँच व्रतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) हत्या न करना
(2) चोरी न करना
(3) झूठ न बोलना
(4) ब्रह्मचर्य
(5) धन संग्रह न करना।

प्रश्न 57.
बुद्ध के संदेश भारत के बाहर किन-किन देशों में फैले ? नाम लिखिए।
अथवा
बौद्ध धर्म का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म का प्रसार सम्पूर्ण उपमहाद्वीप मध्य एशिया, चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, थाइलैंड तथा इंडोनेशिया में हुआ।

प्रश्न 58.
नगर का भ्रमण करते समय किन को देखकर सिद्धार्थ ने घर त्यागने का निश्चय कर लिया?
उत्तर:
एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक लाश और एक संन्यासी को देखकर सिद्धार्थ ने घर त्यागने का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 59.
बौद्ध धर्म के अनुसार ‘संघ’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
युद्ध द्वारा स्थापित संघ भिक्षुओं की एक संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए।

प्रश्न 60.
संघ के भिक्षुओं की दैनिक चर्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भिक्षु सादा जीवन बिताते थे।
(2) वे उपासकों से भोजन दान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे।

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प्रश्न 61.
बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे
(2) बौद्ध धर्म सामाजिक समानता पर बल देता था।

प्रश्न 62.
‘चैत्य’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। ये टीले चैत्य कहे जाने लगे।

प्रश्न 63.
बुद्ध के जीवन से जुड़े चार स्थानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) लुम्बिनी ( बुद्ध का जन्म स्थान)
(2) बोधगया (ज्ञान प्राप्त होना)
(3) सारनाथ (प्रथम उपदेश देना)
(4) कुशीनगर (निर्वाण प्राप्त करना)।

प्रश्न 64.
स्तूप’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
कुछ पवित्र स्थानों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ गाड़ दी गई थीं। ये टीले स्तूप कहलाये।

प्रश्न 65.
किन लोगों के द्वारा स्तूपों को दान दिया जाता था?
उत्तर:
(1) राजाओं के द्वारा (जैसे सातवाहन वंश के राजा)
(2) शिल्पकारों तथा व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा
(3) महिलाओं और पुरुषों के द्वारा।

प्रश्न 66.
स्तूप की संरचना के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मिट्टी का टीला (अंड)
(2) हर्मिका (उन्जे जैसा ढाँचा)
(3) यष्टि (हर्मिका से निकला मस्तूल)
(4) वेदिका (टीले के चारों ओर बनी वेदिका)।

प्रश्न 67.
महायान मत में बोधिसत्तों की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बोधिसता परम करुणामय जीव थे जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे और इससे दूसरों की सहायता करते थे।

प्रश्न 68.
महायान मत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
महायान मत में बुद्ध और बोधिसत्तों की मूर्तियों की पूजा की जाती थी।

प्रश्न 69.
हीनयान या थेरवाद’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरानी बौद्ध परम्परा के अनुवायी स्वयं को धेरवादी कहते थे। वे पुराने, प्रतिष्ठित शिक्षकों के बताए रास्ते पर चलते थे।

प्रश्न 70.
कैलाशनाथ मन्दिर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कैलाशनाथ मन्दिर एलोरा (महाराष्ट्र) में स्थित है यह सारा ढाँचा एक चट्टान को काट कर तैयार किया गया है।

प्रश्न 71.
जैन धर्म के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए
उत्तर:
(1) जीवों के प्रति अहिंसा
(2) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होना।

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प्रश्न 72.
जैन विद्वानों ने किन भाषाओं में अपने ग्रन्थों की रचना की?
उत्तर:
जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल आदि भाषाओं में अपने ग्रन्थों की रचना की।

प्रश्न 73.
बौद्ध धर्म के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) विश्व अनित्य है और निरन्तर बदल रहा है।
(2) विश्व आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।

प्रश्न 74.
स्तूप क्या हैं?
उत्तर:
स्तूप बुद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले हैं। इनमें बुद्ध के शरीर के अवशेष अथवा उनके द्वारा प्रयोग की गई किसी वस्तु को गाड़ा गया था।

प्रश्न 75.
चैत्य क्या थे?
उत्तर:
शवदाह के पश्चात् बौद्धों के शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े इन टीलों को चैत्य कहा जाता था।

प्रश्न 76.
ऋग्वेद में किन सूक्तियों का संग्रह है?
उत्तर:
ऋग्वेद में इन्द्र, अग्नि, सोम आदि देवताओं की स्तुति से सम्बन्धित सूक्तियों का संग्रह है।

प्रश्न 77.
नियतिवादी कौन थे?
उत्तर:
नियतिवादी वे लोग थे जो विश्वास करते थे कि सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं।

प्रश्न 78.
भौतिकवादी कौन थे?
उत्तर:
भौतिकवादी लोग यह मानते थे कि दान, यज्ञ या चढ़ावा निरर्थक हैं। इस दुनिया या दूसरी दुनिया का अस्तित्व नहीं होता।

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प्रश्न 79.
‘सन्तचरित्र’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतचरित्र किसी संत या धार्मिक महापुरुष की जीवनी है। संतचरित्र संत की उपलब्धियों का गुणगान करते हैं।

प्रश्न 80.
विनयपिटक तथा सुत्तपिटक में किन शिक्षाओं का संग्रह था ?
उत्तर:
(1) विनयपिटक में बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था।
(2) सुत्तपिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह था।

प्रश्न 81.
अभिधम्मपिटक’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अभिधम्मपिटक’ नामक ग्रन्थ में बौद्ध दर्शन से सम्बन्धित सिद्धान्तों का संग्रह था।

प्रश्न 82.
श्रीलंका के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले बौद्ध ग्रन्थों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
‘दीपवंश’ (द्वीप का इतिहास) तथा ‘महावंश’ (महान इतिहास) से श्रीलंका के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

प्रश्न 83.
स्तूप को संस्कृत में क्या कहा जाता है?
उत्तर:
स्तूप को संस्कृत में टीला कहा जाता है।

प्रश्न 84.
कौनसा अनूठा ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा
उत्तर:
थेरीगाथा ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा है।

प्रश्न 85.
बिना अलंकरण वाले प्रारम्भिक स्तूप कौन- कौनसे हैं?
उत्तर:
साँची और भरहुत स्तूप बिना अलंकरण वाले प्रारम्भिक स्तूप हैं।

प्रश्न 86.
जैन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन धर्म के अनुसार सम्पूर्ण संसार प्राणवान है; पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है। प्रश्न 87. अमरावती का स्तूप किस राज्य में है? उत्तर- अमरावती का स्तूप गुंटूर (आन्ध्र प्रदेश) में स्थित है।

प्रश्न 88.
जेम्स फर्ग्युसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र किसे माना ?
उत्तर:
जेम्स फर्ग्युसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र साँची को माना।

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प्रश्न 89.
वराह ने किसकी रक्षा की थी?
उत्तर:
वराह ने पृथ्वी की रक्षा की थी।

प्रश्न 90.
बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप कौनसा था ?
उत्तर:
बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप अमरावती का स्तूप है।

प्रश्न 91.
भक्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
भक्ति एक प्रकार की आराधना है। इसमें उपासक एवं ईश्वर के मध्य के रिश्ते को प्रेम तथा समर्पण का रिश्ता माना जाता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध धर्म के व्यावहारिक पक्ष के बारे में सुत्तपिटक के उद्धरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) मालिक को अपने नौकरों और कर्मचारियों की पाँच प्रकार से देखभाल करनी चाहिए उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देकर उन्हें भोजन और मजदूरी देकर, बीमार पड़ने पर उनकी परिचर्या करने, उनके साथ स्वादिष्ट भोजन बाँट कर और समय-समय पर उन्हें छुट्टी देकर।
(2) कुल के लोगों को पाँच तरह से श्रमणों और ब्राह्मणों की देखभाल करनी चाहिए अनुराग द्वारा, सदैव पुस् घर खुले रखकर तथा उनकी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं दिन की पूर्ति करके।

प्रश्न 2.
बौद्ध एवं जैन धर्म में कितनी समानता थी?
उत्तर:

  1. दोनों धर्म कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद में विश्वास करते हैं।
  2. दोनों धर्म अहिंसा के सिद्धान्त में विश्वास करते की में हैं।
  3. दोनों धर्म अनीश्वरवादी हैं।
  4. दोनों धर्मों ने यज्ञों, बहुदेववाद और कर्मकाण्डों गी का विरोध किया।
  5. दोनों धर्म निर्वाण प्राप्त करने पर बल देते हैं।
  6. दोनों धर्म निवृत्तिमार्गी हैं और संसार त्याग पर बल देते हैं।

प्रश्न 3.
साँची का स्तूप यूरोप के लोगों को विशेषकर में रुचिकर क्यों लगता है?
उत्तर:
भोपाल से बीस मील उत्तर पूर्वी की ओर एक पहाड़ी की तलहटी में साँची का स्तूप स्थित है। इस स्तूप की पत्थर की वस्तुएँ, बुद्ध की मूर्तियाँ तथा प्राचीन तोरणद्वार आदि यूरोप के लोगों को विशेषकर रुचिकर लगते हैं जिनमें मेजर अलेक्जैंडर कनिंघम एक हैं। मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थान के चित्र बनाए। उन्होंने यहाँ के अभिलेखों को पढ़ा और गुम्बदनुमा ढाँचे के बीचों-बीच खुदाई की। उन्होंने इस खोज के निष्कर्षो को एक अंग्रेजी पुस्तक में लिखा।

प्रश्न 4.
साँची का पूर्वी तोरणद्वार भोपाल राज्य से बाहर जाने से कैसे बचा रहा?
उत्तर:
साँची के स्तूप का पूर्वी तोरणद्वार सबसे अच्छी दशा में था अतः फ्रांसीसियों ने सांची के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए शाहजहाँ बेगम से इसे फ्रांस ले जाने की अनुमति माँगी। अंग्रेजों ने भी इसे इंग्लैण्ड ले जाने का प्रयास किया। सौभाग्वश फ्रांसीसी और अंग्रेज दोनों ही इसकी प्रतिकृतियों से सन्तुष्ट हो गए, जो बड़ी सावधानीपूर्वक प्लास्टर से बनाई गई थीं। इस प्रकार मूल कृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही बनी रही।

प्रश्न 5.
भोपाल के शासकों ने साँची स्तूप के संरक्षण के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:

  1. भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम तथा उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची के स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान किया।
  2. सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया।
  3. जान मार्शल द्वारा साँची के स्तूप पर लिखी गई पुस्तक के प्रकाशन में भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया।
  4. साँची के स्तूप को भोपाल राज्य में बनाए रखने में शाहजहाँ बेगम ने योगदान दिया।

प्रश्न 6.
” ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी का काल विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस काल में ईरान में जरथुस्त्र, चीन में खंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू तथा भारत में महावीर, गौतम बुद्ध एवं कई अन्य चिन्तकों का उदय हुआ। उन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयास किया। उन्होंने मानव तथा विश्व व्यवस्था के बीच सम्बन्ध को भी समझने का प्रयास किया। इसी काल में गंगा घाटी में नये राज्य और शहर उभर रहे थे और सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन हो रहे थे जिन्हें ये चिन्तक समझने का प्रयास कर रहे थे।

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प्रश्न 7.
प्राचीन युग में प्रचलित यज्ञों की परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पूर्व वैदिक काल में यज्ञों की परम्परा प्रचलित थी यज्ञों के समय ऋग्वैदिक देवताओं की स्तुति सूतों का न उच्चारण किया जाता था और लोग पशु, पुत्र, स्वास्थ्य, दीर्घ आयु आदि के लिए प्रार्थना करते थे आरम्भिक यह सामूहिक नेरूप से किए जाते थे। बाद में (लगभग 1000 ई. पूर्व से 500 ई. पूर्व) कुछ यज्ञ घरों के स्वामियों द्वारा किए जाते थे राजसूष और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा ही किया करते थे।

प्रश्न 8.
वैदिक परम्परा के अन्तर्गत तथा वैदिक र परम्परा के बाहर छठी शताब्दी ई. पूर्व में उठे प्रश्नों और विवादों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के पश्चात् जीवन की सम्भावना और पुनर्जन्म के बारे ट में जानने के लिए उत्सुक थे क्या पुनर्जन्म अतीत के कर्मों । के कारण होता था? इस प्रकार के प्रश्नों पर खूब बाद- ही विवाद होता था। चिन्तक परम यथार्थ की प्रकृति को समझने और प्रकट करने में संलग्न थे। वैदिक परम्परा से बाहर के पण कुछ दार्शनिक यह प्रश्न उठा रहे थे कि सत्य एक होता है या अनेक। कुछ लोग यज्ञों के महत्त्व के बारे में विचार कर था रहे थे।

प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में चिन्तकों में होने वाले वाद-विवादों तथा चर्चाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई.पूर्व में विभिन्न सम्प्रदाय के शिक्षक एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूमकर अपने दर्शन या विश्व के विषय में अपने दृष्टिकोण को लेकर एक-दूसरे से तथा सामान्य लोगों से तर्क-वितर्क करते थे। इस प्रकार की चर्चाएँ कुटागारशालाओं या ऐसे उपवनों में होती थीं जहाँ घुमक्कड़ चिन्तक ठहरा करते थे। यदि एक शिक्षक अपने प्रतिद्वन्द्वी को अपने तर्कों से सहमत कर लेता था, तो वह अपने अनुयायियों के साथ उसका शिष्य बन जाता था।

प्रश्न 10.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में शिक्षक वैदिक धर्म के किन सिद्धान्तों पर प्रश्न उठाते थे?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में अनेक शिक्षक वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाते थे इन शिक्षकों में महावीर स्वामी तथा बुद्ध भी सम्मिलित थे। उन्होंने यह विचार भी प्रकट किया कि जीवन के दुःखों से मुक्ति का प्रयास प्रत्येक व्यक्ति स्वयं कर सकता था। यह बात ब्राह्मणवाद से बिल्कुल भिन्न थी क्योंकि ब्राह्मणवाद की यह मान्यता थी कि किसी व्यक्ति का अस्तित्व उसकी जाति और लिंग से निर्धारित होता था।

प्रश्न 11.
आत्मा की प्रकृति और सच्चे यज्ञ के बारे में उपनिषदों में क्या कहा गया है?
उत्तर:
(1) आत्मा की प्रकृति छान्दोग्य उपनिषद में आत्मा की प्रकृति के आरे में कहा गया है कि “यह आत्मा धान या यव या सरसों या बाजरे के बीज की गिरी से भी छोटी है मन के अन्दर छुपी यह आत्मा पृथ्वी से भी विशाल, क्षितिज से भी विस्तृत, स्वर्ग से भी बड़ी है। और इन सभी लोकों से भी बड़ी है।”

(2) सच्चा यज्ञ ही एक यज्ञ है। बहते यह (पवन) जो बह रहा है, निश्चय बहते यह सबको पवित्र करता है। इसलिए यह वास्तव में यज्ञ है।

प्रश्न 12.
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रसार में चीनी और भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जब बौद्ध धर्म पूर्वी एशिया में फैल गया तब फा-शिएन और श्वेन त्सांग जैसे चीनी यात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में भारत आए ये पुस्तकें वे अपने देश ले गए, जहाँ विद्वानों ने इनका अनुवाद किया। भारत के बौद्ध शिक्षक भी अनेक देशों में गए बुद्ध की शिक्षाओं का प्रसार करने हेतु वे कई ग्रन्थ अपने साथ ले गए। कई सदियों तक ये पाण्डुलिपियाँ एशिया के विभिन्न देशों में स्थित बौद्ध- विहारों में संरक्षित थीं।

प्रश्न 13.
त्रिपिटकों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बौद्धों के धार्मिक सिद्धान्त त्रिपिटकों में संकलित –

  1. विनयपिटक – इसमें संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचरण सम्बन्धी नियमों का वर्णन है।
  2. सुत्तपिटक – इसमें महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है।
  3. अभिधम्मपिटक – इसमें बौद्ध दर्शन से जुड़े विषय संकलित हैं।

प्रश्न 14.
नियतिवादियों के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। इन्हें संसार में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता।
(2) बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि वे सद्गुणों तथा तपस्या द्वारा अपने कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। मूर्ख लोग उन्हीं कार्यों को करके मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं नहीं है।

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प्रश्न 15.
भौतिकवादियों के सिद्धान्तों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं है।
(2) मनुष्य चार तत्वों से बना है जब वह मरता है, तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में जल वाला अंश जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा साँस का अंश वायु में वापिस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अंतरिक्ष का हिस्सा बन जाती हैं।
(3) दान देने का सिद्धान्त मूर्खों का सिद्धान्त है, यह खोखला झूठ है। मूर्ख हो या विद्वान् दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता।

प्रश्न 16.
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। पत्थर चट्टान, जल आदि में भी जीवन है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा का पालन करना चाहिए। मनुष्यों, जानवरों, पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़ों को नहीं मारना चाहिए।
(3) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
(4) पाँच व्रतों का पालन करना चाहिए –

  • हत्या न करना
  • चोरी नहीं करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचार्य
  • धन संग्रह न करना।

प्रश्न 17.
गौतम बुद्ध की जीवनी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
गीतम बुद्ध पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के जीवन का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वह शाक्य कबीले के सरदार के पुत्र थे। एक दिन नगर का भ्रमण करते समय सिद्धार्थ को एक रोगी, वृद्ध, मृतक तथा संन्यासी के दर्शन हुए जिससे उनका संसार के प्रति वैराग्य और बढ़ गया। अतः सिद्धार्थ महल त्याग कर सत्य की खोज में निकल गए। प्रारम्भ में उन्होंने 6 वर्ष तक कठोर तपस्या की। अन्त में उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बैठकर चिन्तन करना शुरू किया और सच्चा ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद वह अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने लगे।

प्रश्न 18.
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के उपदेशों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और निरन्तर बदल रहा है। यह आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी अथवा शाश्वत नहीं है।
(2) इस क्षणभंगुर संसार में दुःख मनुष्य के जीवन का अन्तर्निहित तत्त्व है।
(3) घोर तपस्या और विषयासक्ति के बीच मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए मनुष्य दुनिया के दुःखों से मुक्ति पा सकता है।
(4) बुद्ध की मान्यता थी कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने

प्रश्न 19.
‘बौद्ध संघ’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए ‘संघ’ की स्थापना की संघ बौद्ध भिक्षुओं की एक ऐसी संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये भिक्षु एक सादा जीवन बिताते थे। प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे, बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई। कई स्वियों जो संघ में आईं, वे धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। संघ में सभी को समान दर्जा प्राप्त था। संघ की संचालन पद्धति गणों और संघ की परम्परा पर आधारित थी।

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प्रश्न 20.
संघ में रहने वाले भिक्षुओं का जीवन कैसा था?
उत्तर:
संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षु सादा जीवन बिताते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ नहीं होता था। वे दिन में केवल एक बार उपासकों से भोजनदान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे। वे दान पर निर्भर थे, इसलिए उन्हें भिक्खु कहा जाता था। संघ में रहते हुए वे बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करते थे।

प्रश्न 21.
महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति क्यों दी?
उत्तर:
प्रारम्भ में केवल पुरुष ही बौद्ध संघ में सम्मिलित हो सकते थे परन्तु कालान्तर में अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध पर महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली पहली भिक्षुणी थी। संघ में आने वाली कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। आगे चलकर वे घेरी बनीं, जिसका अर्थ है- निर्वाण प्राप्त करने वाली महिलाएँ।

प्रश्न 22.
बुद्ध के अनुयायी किन सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थे?
उत्तर:
बुद्ध के अनुयायियों में कई सामाजिक वर्गों के लोग सम्मिलित थे। इनमें राजा, धनवान, गृहपति, व्यापारी, सामान्यजन कर्मकार, दास, शिल्पी आदि शामिल थे। इनमें स्त्री और पुरुष दोनों सम्मिलित थे। एक बार बौद्ध संघ में आ जाने पर सभी को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्षु और भिक्षुणी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्यागना पड़ता था।

प्रश्न 23.
भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए निर्धारित नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) जब कोई भिक्षु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा, तो उसे इसका प्रयोग कम से कम छः वर्षों तक करना पड़ेगा।
(2) यदि कोई भिक्षु किसी गृहस्थ के घर जाता है और उसे भोजन दिया जाता है, तो वह दो से तीन कटोरा भर ही स्वीकार कर सकता है।
(3) यदि बिहार में ठहरा हुआ भिक्षु प्रस्थान के पहले अपने बिस्तर को नहीं समेटता है, तो उसे अपराध स्वीकार करना होगा।

प्रश्न 24.
बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे।
(2) बौद्ध धर्म ने जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल दिया।
(3) बौद्ध धर्म में अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्त्व दिया गया। इससे स्त्री और पुरुष इस धर्म की ओर आकर्षित हुए।
(4) बौद्ध धर्म ने निर्बल लोगों के प्रति दयापूर्ण और मित्रतापूर्ण व्यवहार को महत्त्व दिया।

प्रश्न 25.
चैत्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अत्यन्त प्राचीनकाल से ही लोग कुछ स्थानों को पवित्र मानते थे ऐसे स्थानों पर जहाँ प्रायः विशेष वनस्पति होती थी, अनूठी चट्टानें थीं या आश्चर्यजनक प्राकृतिक सौन्दर्य था वहाँ पवित्र स्थल बन जाते थे ऐसे कुछ स्थलों पर एक छोटी-सी वेदी भी बनी रहती थी, जिन्हें कभी-कभी चैत्य कहा जाता था शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े टीले चैत्य के रूप में जाने गए।

प्रश्न 26.
बौद्ध साहित्य में वर्णित कुछ चैत्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
बौद्ध साहित्य में कई चैत्यों का उल्लेख मिलता है। इसमें बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित स्थानों का भी उल्लेख है, जैसे लुम्बिनी (जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ), बोधगया (जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया), सारनाथ (जहाँ उन्होंने उपदेश दिया) और कुशीनगर (जहाँ बुद्ध ने निब्बान प्राप्त किया। धीरे-धीरे ये समस्त स्थान पवित्र स्थल बन गए और यहाँ अनेक चैत्य बनाए गए।

प्रश्न 27.
स्तूपों का निर्माण क्यों किया जाता था?
उत्तर:
स्तूप बनाने की परम्परा बुद्ध से पहले की रही होगी। परन्तु वह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूंकि स्तूपों में ऐसे अवशेष रहते थे, जिन्हें पवित्र समझा जाता था। इसलिए समूचा स्तूप ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। अशोक ने बुद्ध को अवशेषों के हिस्से प्रत्येक महत्त्वपूर्ण नगर में बाँट कर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया था।

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प्रश्न 28.
स्तूपों की संरचना का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) स्तूप का जन्म एक गोलाई लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में अंड कहा गया।
(2) अंड के ऊपर एक ‘हर्मिका’ होती थी। वह छज्जे जैसा ढांचा होता था।
(3) हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था, जिसे ‘वष्टि’ कहते थे, जिस पर प्रायः एक छत्री लगी होती थी।
(4) टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से अलग करती थी।

प्रश्न 29.
साँची और भरहुत के स्तूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साँची और भरहुत के स्तूप बिना अलंकरण के हैं, उनमें केवल पत्थर की वेदिकाएँ तथा तोरणद्वार हैं। ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी। उपासक पूर्वी तोरणद्वार से प्रवेश करके टीले को दाई ओर देखते हुए दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे, मानो वे आकाश में सूर्य के पथ का अनुकरण कर रहे हों। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी।

प्रश्न 30.
स्तूप किन लोगों के दान से बनाए गए ?
उत्तर:
(1) स्तूपों के निर्माण के लिए कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए।
(2) कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए।
(3) साँची के एक तोरण द्वार का भाग हाथीदांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था
(4) स्तूपों के निर्माण के लिए बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।
(5) स्तूपों के निर्माण के लिए सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों के द्वारा दान दिए गए।

प्रश्न 31.
अमरावती स्तूप की खोज किस प्रकार की गई ?
उत्तर:
1796 में एक स्थानीय राजा को अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गये। उन्होंने उसके पत्थरों से एक मन्दिर बनवाने का निश्चय किया। कुछ वर्षों बाद कालिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी इस क्षेत्र से गुजरे। उन्हें वहाँ नई मूर्तियाँ मिलीं और उन्होंने उनका चित्रांकन किया। 1854 ई. में गुन्टूर के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। वे वहाँ से कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर मद्रास ले गए। उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी खोज निकाला।

प्रश्न 32.
साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
सम्भवतः अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी। 1818 में जब साँची की खोज हुई, इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे। चौथा तोरणद्वार वहीं पर गिरा हुआ था। उस समय भी यह सुझाव आया कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। दूसरी ओर अमरावती का महाचैत्व अब केवल एक छोटा- सा टीला है जिसका सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो चुका है।

प्रश्न 33.
इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत चित्र पहली बार देखने पर तो इस मूर्तिकला के अंश में फूस की झोंपड़ी तथा पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य का चित्रण दिखाई देता है परन्तु कला इतिहासकार इसे ‘वेसान्तर जातक’ से लिया गया एक दृश्य बताते हैं यह कहानी एक ऐसे दानी राजकुमार के बारे में है जो अपना सर्वस्व एक ब्राह्मण को सौंप कर स्वयं अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ वन में रहने के लिए चला गया। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्राय: इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। (पाठ्यपुस्तक का चित्र 4.13, पेज 100)

प्रश्न 34.
“कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए ‘रिक्त स्थान’ बुद्ध के ध्यान की दशा तथा ‘स्तूप’ ‘महापरिनिब्बान’ के प्रतीक बन गए। चक्र बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था। पेड़ बुद्ध के जीवन की एक पटना का प्रतीक था ऐसे प्रतीकों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि इतिहासकार इन कलाकृतियों के निर्माताओं की परम्पराओं से परिचित हो ।

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प्रश्न 35.
साँची स्तूप के तोरणद्वार के किनारे पर एक वृक्ष पकड़कर झूलती हुई महिला की मूर्ति से किस लोक परम्परा का बोध होता है?
उत्तर:
प्रारम्भ में विद्वानों को इस मूर्ति के महत्त्व के बारे में कुछ असमंजस था। इस मूर्ति से त्याग और तपस्या के भाव प्रकट नहीं होते थे। परन्तु लोक साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन के द्वारा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परा के अनुसार लोग यह मानते थे कि इस स्वी द्वारा हुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल होने लगते थे। यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इसी कारण स्तूप के अलंकरण में यह प्रयुक्त हुआ ।

प्रश्न 36.
“साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न लोक परम्पराओं से उभरे थे।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न लोक परम्पराओं से उभरे थे। उदाहरण के लिए, साँची में जानवरों के कुछ सुन्दर उत्कीर्णन पाए गए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय-बैल सम्मिलित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। इसके अतिरिक्त जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था। उदाहरणार्थ, हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

प्रश्न 37.
चित्र 4.19 पृष्ठ 102 पर चित्रित कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति से किस लोक परम्परा के बारे में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इस चित्र में हाथी महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं, जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हो कुछ इतिहासकार इस महिला को बुद्ध की माँ माया मानते हैं तो दूसरे इतिहासकार इसे एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी थी, जिन्हें प्राय: हाथियों से सम्बन्धित किया जाता है। यह भी सम्भव है कि इन उत्कीर्णित मूर्तियों को देखने वाले उपासक इसे माया और गजलक्ष्मी दोनों से ही जोड़ते थे।

प्रश्न 38.
अजन्ता की चित्रकारी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में चित्रकारी जैसे सम्प्रेषण के अन्य माध्यमों का भी प्रयोग किया जाता था। इन चित्रों में जो सबसे अच्छी दशा में बचे हुए हैं, वे गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र हैं। इनमें अजन्ता (महाराष्ट्र) की चित्रकारी अत्यन्त प्रसिद्ध है। अजन्ता के चित्रों में जातकों की कथाएँ चित्रित हैं। इनमें राजदरबार का जीवन, शोभायात्राएँ, काम करते हुए स्वी- पुरुष और त्यौहार मनाने के चित्र दिखाए गए हैं अजन्ता के कुछ चित्र अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव लगते हैं।

प्रश्न 39.
बौद्धमत में महायान के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
महायान बौद्ध धर्म के विकास का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
ईसा की प्रथम शताब्दी के पश्चात् यह विश्वास किया जाने लगा कि बुद्ध लोगों को मुक्ति दिलवा सकते थे। साथ-साथ बोधिसत्त की अवधारणा भी विकसित होने लगी। बोधिसत्तों को परम दयालु जीव माना गया जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे परन्तु वे इस पुण्य का प्रयोग दूसरों का कल्याण करने में करते थे। इस प्रकार बौद्धमत में बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों की पूजा इस परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। इस नई परम्परा को ‘महायान’ कहा गया।

प्रश्न 40.
पौराणिक हिन्दू धर्म के उदय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिन्दू धर्म में वैष्णव एवं शैव परम्पराएँ सम्मिलित हैं। वैष्णव परम्परा में विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाता है और शैव परम्परा में शैव को परमेश्वर माना जाता है। इनके अन्तर्गत एक विशेष देवता की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता था। इस प्रकार की आराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का सम्बन्ध प्रेम और समर्पण का सम्बन्ध माना जाता था। इसे भक्ति कहते हैं।

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प्रश्न 4.
‘अवतारवाद की अवधारणा’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वैष्णववाद में दस अवतारों की कल्पना की गई है यह माना जाता था कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अराजकता, अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती थी, तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे। सम्भवतः पृथक् पृथक् अवतार देश के भिन्न-भिन्न भागों में लोकप्रिय थे। इन समस्त स्थानीय देवताओं को विष्णु का रूप मान लेना एकीकृत धार्मिक परम्परा के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था।

प्रश्न 42.
“वैष्णववाद में अनेक अवतारों के इर्द- गिर्द पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई।” व्याख्या कीजिये।
अथवा
वैष्णववाद में अनेक अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा – पद्धतियाँ किस प्रकार विकसित हुई? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
वैष्णववाद में कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। ये समस्त चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनकी विशेषताओं और प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्र, आभूषणों, आयुषों (हथियार और हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से दर्शाया जाता था।

प्रश्न 43.
प्रारम्भिक मन्दिरों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) शुरू के मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाजे से उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो
सकता था।
(2) धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।
(3) मन्दिर की दीवारों पर प्रायः भित्तिचित्र उत्कीर्ण किए जाते थे।
(4) बाद में मन्दिरों में विशाल सभा स्थल, ऊंची दीवारों और तोरणों का भी निर्माण किया जाने लगा।
(5) कुछ पहाड़ियों को काट कर कुछ गुफा मन्दिर भी बनाये गये।

प्रश्न 44.
उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय विद्वान यूनानी शैली से प्रभावित भारतीय मूर्तियों से क्यों प्रभावित हुए?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय विद्वानों ने मूर्तियों की तुलना प्राचीन यूनान की कला परम्परा से की। वे बुद्ध और बोधिसतों की मूर्तियों की खोज से काफी उत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तिकला से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती- जुलती थीं। चूँकि वे विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन्हें भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।

प्रश्न 45.
कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काट कर खोखला कर कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा काफी प्राचीन थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ई. पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से बराबर ( बिहार ) की पहाड़ियों में आजीविक सम्प्रदाय के संतों के लिए बनाई गई थीं कृत्रिम गुफा बनाने का सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है। इसे पूरी पहाड़ी काटकर बनाया गया था।

प्रश्न 46.
पुरातत्त्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों के बारे में क्या सोच रखते थे?
उत्तर:
पुरातत्त्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों को उठा ले जाने के विरुद्ध थे। वे इस लूट को आत्मघाती मानते थे। उनका मानना था कि संग्रहालयों में मूर्तियों की प्लास्टर कलाकृतियाँ रखी जानी चाहिए जबकि असली कृतियाँ खोज के स्थान पर ही रखी जानी चाहिए।

प्रश्न 47.
जैन धर्म के अहिंसावादी स्वरूप के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हॉपकिन्स नामक विद्वान ने कहा था कि जैन धर्म कीट-पतंगों का भी पोषण करता है, पूर्णतया सत्य है। क्योंकि जैन धर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल दिया गया है। विश्व के अस्तित्व के लिए प्रत्येक अणु महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए जैन दार्शनिकों ने मत दिए कि व्यक्ति को मन, कर्म तथा वचन से पूर्ण अहिंसावादी होना चाहिए। मनुष्य को जाने-अनजाने में भी प्राणियों के प्रति किसी भी हिंसावादी गतिविधि का सम्पादन नहीं करना चाहिए। इसी के फलस्वरूप अनेक जैन सन्त मुँह पर पट्टी बाँधते हैं; जिससे उनके श्वास लेते समय कोई कीटाणु उनके मुँह में न चला जाए।

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प्रश्न 48.
गौतम बुद्ध एक महान् समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म का उद्भव एक क्रान्तिकारी धर्म के रूप में हुआ था। इस धर्म के प्रवर्तक मध्यमार्गी बुद्ध थे। गौतम बुद्ध की विचारधारा, उपदेश तथा कार्यप्रणाली अत्यन्त सरल थी। गौतम बुद्ध ने जातिवाद विशेषकर जन्म पर आधारित जातिवाद का घोर विरोध किया तथा जन्म के स्थान पर कर्म को व्यक्ति की पहचान बताया।

एक स्थान पर गौतम बुद्ध अपने शिष्य आनन्द से कहते हैं कि साधक की जाति क्या पूछता है कर्म पूछ गौतम बुद्ध की यह विचारधारा तत्कालीन अतिवादी तथा ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध जनसामान्य की सबसे बड़ी आवश्यकता थी। बुद्ध ने जनता की इस आवश्यकता को समझा और ऐसी कर्मकाण्डीय ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध किया; जिसमें जनसामान्य का कोई स्थान नहीं था।

प्रश्न 49.
बौद्ध संघों की स्थापना क्यों की गयी?
उत्तर:
बौद्ध धर्म की व्यापक लोकप्रियता के कारण शिष्यों की संख्या तीव्रता से बढ़ने लगी। शिष्यों में ही कुछ ऐसे शिष्य जिनका आत्मिक विकास उच्च था; वे धम्म के शिक्षक बन गये। संघ की स्थापना धम्म के शिक्षकों के की गयी संघ में सदाचरण और नैतिकता पर बल दिया जाता था। हेतु प्रारम्भ में महिलाओं का संघ में प्रवेश वर्जित था परन्तु बाद में महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी। महाप्रजापति गौतमी जो कि बुद्ध की उपमाता थीं, संघ में प्रवेश करने वाली पहली महिला थीं।

प्रश्न 50.
जैन तथा बौद्ध धर्म में क्या भिन्नताएँ हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जैन तथा बौद्ध धर्म में अनेक समानताएँ थीं परन्तु कुछ असमानताएँ भी थीं। प्रमुख भिन्नताओं का विवरण निम्नलिखित है –

  1.  जैन धर्म आत्मवादी है परन्तु बौद्ध धर्म अनात्मवादी
  2. जैनों के साहित्य को आगम कहा जाता है; बौद्धों के साहित्य को त्रिपिटक कहा जाता है।
  3. जैन धर्म अत्यधिक अहिंसावादी है बौद्ध धर्म मध्यमार्गी है।
  4. जैन धर्म के अनुसार मोक्ष मृत्यु के पश्चात् ही सम्भव है वहीं बौद्ध धर्म के अनुसार इसी जन्म में निर्वाण सम्भव है।
  5. जैन धर्म में तीर्थंकरों की उपासना होती है परन्तु बौद्ध धर्म में बुद्ध और बोधिसत्वों की आराधना की जाती है।

प्रश्न 51.
बौद्ध मूर्तिकला की प्रतीकात्मक पद्धति क्या थी? इन प्रतीकों को समझ पाना एक दुष्कर कार्य क्यों था?
उत्तर:
बौद्ध मूर्तिकला की मूर्तियों को स्पष्ट रूप से समझ पाना एक दुष्कर कार्य इसलिए है कि इतिहासकार केवल इस बात का अनुमान ही लगा सकते हैं कि मूर्ति बनाते समय मूर्तिकार का दृष्टिकोण क्या था इतिहासकारों के ‘अनुमान के अनुसार आरम्भिक मूर्तिकारों ने महात्मा बुद्ध को मनुष्य के रूप में न दिखाकर उन्हें प्रतीकों के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है। चित्र में दिखाए गए रिक्त स्थान को इतिहासकार बुद्ध की ध्यान अवस्था के रूप में बताते हैं; क्योंकि ध्यान की महादशा में अन्तर में रिक्तता की अनुभूति होती है स्तूप को महानिर्वाण की दशा के रूप में व्याख्यायित किया है।

महानिर्वाण का अर्थ है- विराट में समा जाना चक्र को बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले प्रवचन का प्रतीक माना गया है; इसके अनुसार यहीं से बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का चक्र घूमा पेड़ का अर्थ मात्र पेड़ के रूप में नहीं बल्कि वह बीज की पूर्ण परिपक्वता का प्रतीक है एक बीज जिसकी सम्भावना वृक्ष बनने की है वह अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ इसी प्रकार बुद्ध अपने जीवन में सम्पूर्णता को प्राप्त हुए।

प्रश्न 52.
साँची के प्रतीक लोक-परम्पराओं से जुड़े थे; संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में प्राप्त उत्कीर्णन में लोक परम्परा से जुड़े हुए बहुत से प्रतीकों का चिशंकन है। मूर्तियों को आकर्षक और सुन्दर दर्शाने हेतु विविध प्रतीकों जैसे हाथी, घोड़ा, बन्दर, गाय, बैल आदि जानवरों का उत्कीर्णन जीवन्त रूप से किया गया है। हाथी को शक्ति तथा ज्ञान का प्रतीक कहा गया है। इसी प्रकार एक स्वी तोरणद्वार के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही है। यह शालभंजिका की मूर्ति है, लोक परम्परा में शाल भंजिका को शुभ प्रतीक माना जाता है। वामदल और हाथियों के बीच एक महिला को एक अन्य मूर्ति में दिखाया गया है।

हाथी उस महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं; जैसे उसका अभिषेक कर रहे हैं। इस महिला को बुद्ध की माँ माना जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह महिला सौभाग्य की देवी गजलक्ष्मी है। इतिहासकारों का इस सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण है। सर्पों का उत्कीर्णन भी कई स्तम्भों पर पाया जाता है। इस प्रतीक को भी लोक परम्परा से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्रारम्भिक इतिहासकार जेम्स फर्गुसन के अनुसार साँची में वृक्षों और सर्पों की पूजा की जाती थी। वे बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञ थे, उन्होंने उत्कीर्णित मूर्तियों का अध्ययन करके अपना यह निष्कर्ष निकाला था।

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प्रश्न 53.
अतीत से प्राप्त चित्रों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बने भित्ति चित्र सम्पूर्ण विश्व के आकर्षण का केन्द्र है। चित्रकारी भी मूर्तिकला की भाँति सम्प्रेषण का एक माध्यम है। जातक की कथाओं का चित्रण बहुत ही सुन्दर ढंग से अजन्ता के चित्रों में दिखाया गया है। इन कथाओं में राजदरबार का चित्रण, शोभा यात्राएं, त्यौहारों का उत्सव और कार्य करते हुए पुरुषों और महिलाओं का चित्रांकन है। यह चित्र अत्यन्त ही सुन्दर और सजीव है हर्षोल्लास, उमंग, प्रसन्नता, प्रेम की भावनाओं की अभिव्यक्ति इतनी कुशलता से और जीवन्तता से की गई है कि यह लगता है कि चित्र बोल पड़ेंगे। कलाकारों ने इन्हें त्रिविम रूप से चित्रित किया गया है; इसके लिए आभा भेद तकनीक का प्रयोग करके इन्हें सजीवता प्रदान की है।

प्रश्न 54.
हीनयान तथा महायान में मुख्य अन्तरों को समझाइए।
उत्तर:
हीनयान तथा महायान में अनेक मूलभूत अन्तर हैं। इनमें से प्रमुख अन्तरों का विवरण निम्नलिखित है –

  1. हीनयान प्राचीन, रूढ़िवादी तथा मूल मत है जबकि महायान बौद्ध मत का संशोधित तथा सरल रूप है जो चतुर्थ बौद्ध संगीति में प्रकाश में आया।
  2. हीनयानी बुद्ध की स्तुति प्रतीकों के माध्यम से करते हैं वहीं महायानी मूर्ति पूजा में विश्वास करते हैं।
  3. हीनयान मत रूढ़िवादी है जबकि महायान अत्यधिक सरल मत है।
  4. हीनयान में बुद्ध की स्तुति की जाती है; वहीं महायान में बुद्ध के साथ-साथ बोधिसत्वों की आराधना भी की जाती है।
  5. हीनयान ज्ञान को महत्त्व देता है जबकि महायान करुणा को।

प्रश्न 55.
प्राचीन भारतीय कला की पृष्ठभूमि और महत्त्व को 19वीं सदी के यूरोपीय विद्वान प्रारम्भ में क्यों नहीं समझ सके ? उनकी समस्या का निराकरण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की धार्मिक आस्थाओं, धारणाओं, परम्पराओं आदि में अन्तर होते हैं उनके सोचने और समझने के ढंग और प्रतिमान अलग-अलग होते हैं। इसलिए यूरोपीय विद्वानों ने जब प्राचीन भारतीय मूर्तिकला की यह मूर्तियाँ जो कई हाथों, कई सिरों या अर्द्ध मानव के रूप में निर्मित थीं देखीं तो उन्हें यह विचित्र प्रतीत हुई। आराध्य देवों के यह रूप उनकी कल्पना से परे थे। फिर भी इन आरम्भिक यूरोपीय विद्वानों ने इन विभिन्न रूपों वाली आराध्य देवों की मूर्तियों को समझने हेतु प्रयास किए।

यूरोपीय विद्वानों ने प्राचीन यूनानी कला परम्परा की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर इन मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना की तथा उन्हें समझने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्होंने बौद्ध धर्म की कला परम्परा, बौद्ध धर्म की बुद्ध और बोधसत्व की मूर्तियाँ देखीं तो वे बहुत प्रोत्साहित हुए। इन मूर्तियों की उत्कृष्टता को देखकर हैरान रह गए, उन्हें लगा ये मूर्तियाँ यूनानी प्रतिमानों के अनुरूप हैं। इस प्रकार इस मूर्तिकला की अनजानी व अपरिचित पृष्ठभूमि और इसके अपरिचित महत्त्व को उन्होंने परिचित यूनानी मूर्तिकला के आधार पर समझने का प्रयास किया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं का योगदान साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं के योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) साँधी के स्तूप के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान देना- भोपाल की शासिकाओं- शाहजहाँ बेगम तथा उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम की पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण में बड़ी रुचि थी। उन्होंने साँची के विश्व प्रसिद्ध स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया।

(2) जान मार्शल द्वारा रचित पुस्तक के प्रकाशन के लिए अनुदान देना जान मार्शल ने साँची स्तूप पर एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने सुल्तानजहाँ की पुरातात्विक स्थलों के प्रति रुचि को देखते हुए अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ सुल्तानजहाँ बेगम को समर्पित किया। सुल्तानजहाँ बेगम ने इस ग्रन्थ के विभिन्न खण्डों के प्रकाशन हेतु धन का अनुदान दिया।

(3) संग्रहालय और अतिथिशाला का निर्माण करवाया सुल्तानजहाँ बेगम ने स्तूप स्थल पर एक संग्रहालय तथा अतिथिशाला के निर्माण के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया।

(4) साँची के स्तूप को भोपाल राज्य में सुरक्षित रखना – उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय लोगों में साँची के स्तूप को लेकर बड़ी रुचि थी। प्रारम्भ में फ्रांसीसियों ने सबसे अच्छी दशा में बचे साँची के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने हेतु शाहजहाँ बेगम से फ्रांस ले जाने की अनुमति माँगी।

इसके बाद अंग्रेजों ने भी साँची के पूर्वी तोरणद्वार को इंग्लैण्ड ले जाने की अनुमति माँगी। परन्तु शाहजहाँ बेगम ने उन्हें साँची के स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियाँ देकर सन्तुष्ट कर दिया। इस प्रकार शाहजहाँ बेगम के प्रयासों के परिणामस्वरूप साँची के स्तूप की मूलकृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही सुरक्षित रही। इस प्रकार यह स्तूप समूह बना रहा है तो इसके पीछे भोपाल की बेगमों के विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका रही है।

प्रश्न 2.
बौद्ध ग्रन्थ किस प्रकार तैयार और संरक्षित किए जाते थे?
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथों को तैयार एवं संरक्षित करना बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध अन्य शिक्षकों की भाँति चर्चा और वार्तालाप करते हुए मौखिक शिक्षा देते थे। स्त्री, पुरुष और बच्चे इन प्रवचनों को सुनते थे और इन पर चर्चा करते थे। बुद्ध की शिक्षाओं को उनके जीवनकाल में लिखा नहीं गया। उनकी मृत्यु के बाद पांचवीं चौथी सदी ई. पूर्व में उनके शिष्यों ने वरिष्ठ श्रमणों की एक सभा वैशाली में आयोजित की। वहाँ पर ही उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया। इन संग्रहों को ‘त्रिपिटक’ कहा जाता था।

(1) त्रिपिटक त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है-भिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने के लिए ‘तीन टोकरियाँ’ त्रिपिटक तीन हैं-

  • विनयपिटक – इसमें संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए आचरण सम्बन्धी नियमों का संग्रह है।
  • सुत्तपिटक – इसमें बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है।
  • अभिधम्मपिटक इसमें बौद्धधर्म के दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन है।

प्रत्येक पिटक के अन्दर कई ग्रन्थ होते थे-बाद के युगों में बौद्ध विद्वानों ने इन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखीं।

(2) दीपवंश तथा महावंश-जब बौद्ध धर्म का श्रीलंका जैसे नए क्षेत्रों में प्रसार हुआ, तब दीपवंश ( द्वीप का इतिहास) तथा महावंश (महान इतिहास) जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास को लिखा गया। इनमें से कई रचनाओं में बुद्ध की जीवनी लिखी गई है। अधिकांश पुराने ग्रन्थ पालि में हैं। कालान्तर में संस्कृत में भी ग्रन्थों की रचना की गई।

(3) बौद्ध ग्रन्थों का संरक्षण जब बौद्ध धर्म का पूर्वी एशिया में प्रसार हुआ, तब फा-शिएन और श्वैन-त्सांग जैसे तीर्थयात्री बौद्धग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए थे। वे अनेक बौद्ध ग्रन्थ अपने देश ले गए जहाँ विद्वानों ने इनका अनुवाद किया। भारत के बौद्ध शिक्षक भी दूर-दराज के देशों में गए। बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए वे अनेक ग्रन्थ भी अपने साथ ले गए। कई शताब्दियों तक ये पांडुलिपियाँ एशिया के भिन्न-भिन्न देशों में स्थित बौद्ध- विहारों में संरक्षित थीं। पालि, संस्कृत, चीनी और तिब्बती भाषाओं में लिखे इन ग्रन्थों से आधुनिक अनुवाद तैयार किए गए हैं।

प्रश्न 3.
नियतिवादियों एवं भौतिकवादियों के विचारों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
नियतिवादियों के विचार मक्खलिगोसाल नामक व्यक्ति नियतिवादियों के प्रमुख दार्शनिक थे। नियतिवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित थे
(1) सब कुछ पूर्व निर्धारित है नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। स्न्नों संका में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता। जैसे धागे का गोला फेंक देने पर लुढ़कते लुढ़कते अपनी पूरी लम्बाई तक खुलता जाता है, उसी प्रकार मूर्ख और विद्वान दोनों ही पूर्व निर्धारित मार्ग से होते हुए दुःखों का निदान करेंगे।

(2) कर्म – मुक्ति की निरर्थक आशा करना- नियतिवादियों का कहना है कि बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि वे अपने सद्गुणों एवं तपस्या के बल पर कर्म मुक्ति प्राप्त करेंगे। इसी प्रकार मूर्ख लोग उन्हीं कार्यों को सम्पन्न करके शनैः-शनैः कर्म मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं। परन्तु उनका यह सोचना गलत है तथा दोनों में से कोई भी कुछ नहीं कर सकता। इसलिए लोगों के भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे उन्हें भोगना ही पड़ेगा।

भौतिकवादियों के विचार अजीत केसकंबलिन नामक व्यक्ति भौतिकवादियों के प्रमुख दार्शनिक थे भौतिकवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित है-
(1) संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई वस्तु नहीं होती। इस दुनिया या दूसरी दुनिया जैसी किसी वस्तु का कोई अस्तित्व नहीं होता।
(2) मनुष्य चार तत्त्वों से बना होता है जब उसकी मृत्यु होती है, तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में, जल वाला अंश जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा साँस का अंश वायु में वापस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अन्तरिक्ष का भाग बन जाती हैं।
(3) दान देने की बात मूर्खों का सिद्धान्त है, यह सिद्धान्त असत्य है। कुछ मूर्ख एवं विद्वान दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कोई नहीं बचता।

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प्रश्न 4.
महात्मा बुद्ध की जीवनी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की जीवनी महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक और प्रवर्तक थे। बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक वन में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य गणराज्य के प्रधान थे। इनकी माता का नाम महामाया (मायादेवी) था। बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नामक एक सुन्दर कन्या से किया गया। कुछ समय बाद उनके यहाँ पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम राहुल रखा गया। परन्तु सिद्धार्थ की संसार से विरक्ति बढ़ती गई। महाभिनिष्क्रमण-नगर-दर्शन हेतु विभिन्न अवसरों पर बाहर जाते हुए सिद्धार्थ ने एक वृद्ध व्यक्ति, रोगी, मृतक एवं संन्यासी को देखा जिन्हें देखकर उन्हें संसार से विरक्ति हो गई। अन्त में 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपनी पत्नी, अपने पुत्र तथा राजकीय वैभव को छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

यह घटना ‘महाभिनिष्क्रमण’ के नाम से प्रसिद्ध है। ज्ञान की प्राप्ति प्रारम्भ में सिद्धार्थ ने वैशाली के ब्राह्मण विद्वान आलारकालाम तथा राजगृह के विद्वान् उद्रक रामपुत्त से ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया, परन्तु उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई। इसके बाद वे उरुवेल के जंगल में अपने पाँच ब्राह्मण साथियों के साथ कठोर तपस्या करने लगे, परन्तु यहाँ भी उनके हृदय को शान्ति नहीं मिली। उनका शरीर सूख सूख कर काँटा हो गया, परन्तु उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अतः उन्होंने भोजन आदि ग्रहण करना शुरू कर दिया जिससे नाराज होकर उनके पाँचों साथी सिद्धार्थ का साथ छोड़कर वहाँ से चले गए।

अन्त में सिद्धार्थ एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठ गए। सात दिन अखण्ड समाधि में लीन रहने के बाद वैशाखी पूर्णिमा की रात को उन्हें ‘ज्ञान’ प्राप्त हुआ, उन्हें सत्य के दर्शन हुए और वे ‘बुद्ध’ कहलाने लगे। इस घटना को ‘सम्बोधि’ कहा जाता है। जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ, उसे ‘बोधिवृक्ष’ कहा जाने लगा और गया ‘बोधगया’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धर्म का प्रचार ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् बुद्ध ने सारनाथ पहुँचकर उन पाँच ब्राह्मणों को उपदेश दिया, जो उन्हें छोड़कर चले आए थे। ये पाँचों ब्राह्मण बुद्ध के अनुयायी बन गए। इस घटना को ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहते हैं। इसके बाद बुद्ध ने काशी, कोशल, मगध, वज्जि प्रदेश, मल्ल, वत्स आदि में अपने धर्म की शिक्षाओं का प्रचार किया।

उनके अनुयायियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके अनुयायियों में अनेक राजा, व्यापारी, ब्राह्मण, विद्वान, सामान्यजन कर्मकार, दास, शिल्पी आदि सम्मिलित थे। महापरिनिर्वाण लगभग 45 वर्ष तक बुद्ध अपने धर्म का प्रचार करते रहे। अन्त में 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में बुद्ध का देहान्त हो गया। बौद्ध परम्परा के अनुसार यह घटना ‘महापरिनिर्वाण’ कहलाती है।

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प्रश्न 5.
बुद्ध की शिक्षाओं का विवेचन कीजिए। अथवा
उत्तर:
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। बुद्ध की शिक्षाएँ (बौद्ध धर्म के सिद्धान्त ) बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं –
(1) विश्व अनित्य है – बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और निरन्तर परिवर्तित हो रहा है। यह आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।
(2) मध्यम मार्ग – बुद्ध का कहना था कि न तो मनुष्य को घोर तपस्या करनी चाहिए, न ही अधिक भोग- विलास में लिप्त रहना चाहिए।
(3) भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक- बौद्ध धर्म की प्रारम्भिक परम्पराओं में भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक था।
(4) समाज का निर्माण मनुष्यों द्वारा किया जाना- बुद्ध मानते थे कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने
(5) व्यक्तिगत प्रवास पर बल बुद्ध के अनुसार व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था।
(6) व्यक्ति केन्द्रित हस्तक्षेप तथा सम्यक् कर्म पर बल बुद्ध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म-ज्ञान और निर्वाण के लिए आत्मकेन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक् कर्म पर बल दिया।
(7) निर्वाण बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण का अर्थ था अहं और इच्छा का समाप्त हो जाना जिससे गृह त्याग करने वालों के दुःख के चक्र का अन्त हो सकता था।
(8) चार आर्य सत्य बौद्ध धर्म के अनुसार चार था। आर्य सत्य निम्नलिखित हैं –

  • दुःख – यह संसार दुःखमय है। संसार में सर्वत्र दुःख ही दुःख है।
  • दुःख समुदय-दुःख और कष्टों का कारण तृष्णा है।
  • दु:ख निरोध- तृष्णा नष्ट कर देने से दुःखों से. मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
  • दु:ख निरोध का मार्ग-तृष्णा के विनाश के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।

(9) अष्टांगिक मार्ग-अष्टांगिक मार्ग की मुख्य आठ बातें निम्नलिखित हैं –

  • सम्यक् दृष्टि (सत्य, विश्वास या दृष्टिकोण)
  • सम्यक् संकल्प (सत्य संकल्प या विचार)
  • सम्यक् वाणी (मधुर एवं सत्य वचन बोलना )
  • सम्यक् कर्मान्त (सदाचारपूर्ण आचरण करना)
  • सम्यक् आजीव (सदाचारपूर्ण साधनों से जीविका का निर्वाह करना)
  • सम्यक् व्यायाम ( निरन्तर सद्प्रयास )
  • सम्यक् स्मृति (दुर्बलताओं की निरन्तर स्मृति)
  • सम्यक् समाधि (चित्त की एकाग्रता)।

(10) स्वावलम्बन पर बल बुद्ध का कहना था कि मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।

प्रश्न 6.
बौद्ध संघ पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
बुद्ध के अनुयायियों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बौद्ध संघ (बुद्ध के अनुयायी ) महात्मा बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई। धीरे-धीरे उनके शिष्यों का दल तैयार हो गया। उन्होंने अपने शिष्यों के लिए बौद्ध संघ की स्थापना की संघ ऐसे बौद्ध भिक्षुओं की एक संस्था थी, जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये बौद्ध भिक्षु एक सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं होता था। वे दिन में एक बार भोजन करते थे। इसके लिए वे उपासकों से भोजन दान प्राप्त करने के लिए एक कटोरा रखते थे। चूंकि वे दान पर निर्भर थे, इसलिए उन्हें भिक्षु कहा जाता था।

(1) महिलाओं को संघ में सम्मिलित करना प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे परन्तु बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई। बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी। संघ में सम्मिलित होने वाली कई स्त्रिय धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। कालान्तर में ये धेरी बनीं, जिसका अर्थ है-ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।

(2) बुद्ध के अनुयायियों का विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित होना बुद्ध के अनुयायी विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थे। इनमें राजा, धनवान, गृहपति और सामान्य जन कर्मकार, दास, शिल्पी सभी सम्मिलित थे। संघ में सम्मिलित होने वाले सभी भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्षु बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।

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(3) संघ की संचालन पद्धति संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। इसके अन्तर्गत लोग वार्तालाप के द्वारा एकमत होने का प्रयास करते थे एकमत न होने पर मतदान द्वारा निर्णय लिया जाता था।

प्रश्न 7.
स्तूपों की खोज किस प्रकार हुई ? अमरावती तथा साँची की नियति बताइये।
अथवा
स्तूपों की खोज किस प्रकार हुई ? साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
स्तूपों की खोज बौद्ध कला में स्तूपों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साँची और अमरावती के स्तूप तत्कालीन वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
(1) साँची के स्तूप की खोज-साँची का स्तूप एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है जो मुकुट जैसा दिखाई देता है 1818 ई. में साँची की खोज हुई।

(2) अमरावती के स्तूप की खोज- 1796 ई. में स्थानीय राजा एक मन्दिर का निर्माण करना चाहते थे। उन्हें अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। उन्होंने इसके पत्थरों का प्रयोग करने का निश्चय किया। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी को इस क्षेत्र से गुजरने का अवसर मिला। यद्यपि उन्होंने यहाँ कई मूर्तियाँ प्राप्त की और उनका विस्तृत चिशंकन भी किया, परन्तु उनकी रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हुई।

(3) गुन्टूर के कमिश्नर द्वारा अमरावती की यात्रा करना- 1854 ई. में गुन्टूर (आन्ध्र प्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। उन्होंने कई मूर्तियों तथा उत्कीर्ण पत्थरों को एकत्रित किया और वे उन्हें मद्रास ले गए।

(4) अमरावती के स्तूप के उत्कीर्ण पत्थरों को विभिन्न स्थानों पर ले जाना-1850 के दशक में अमरावती के स्तूप के उत्कीर्ण पत्थरों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर ले जाया गया। कुछ उत्कीर्ण पत्थर कोलकाता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल पहुंचे, तो कुछ पत्थर मद्रास के इण्डिया ऑफिस पहुँचे। कुछ पत्थर तो लन्दन तक पहुँच गए। कई अंग्रेज अधिकारियों ने अपने बागों में अमरावती की मूर्तियाँ स्थापित कीं।

(5) साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया – सम्भवतः अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी तब तक विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज की जगह पर ही संरक्षित करना बड़ा महत्त्वपूर्ण था। 1818 में सांची की खोज हुई उस समय तक भी इस स्तूप के तीन तोरणद्वार खड़े थे।

चौथा तोरण द्वार वहीं पर गिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त टीला भी अच्छी दशा में था। उस समय कुछ विदेशियों ने यह सुझाव दिन था कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। दूसरी ओर अमरावती का महाचैत्य अब केवल एक छोटा सा टीला है, जिसका सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो चुका है।

प्रश्न 8.
पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताएँ पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताओं का वर्णन अग्रानुसार
(1) पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय पौराणिक हिन्दू धर्म में भी मुक्तिदाता की कल्पना विकसित हो रही थी। इस पौराणिक हिन्दू धर्म में दो परम्पराएँ प्रमुख थीं –

  • वैष्णववाद तथा
  • शैववाद वैष्णववाद में विष्णु को सबसे प्रमुख देवता माना जाता है और शैववाद में शिव परमेश्वर माने गए हैं।

(2) अवतारवाद – वैष्णववाद में कई अवतारों के चारों ओर पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई इस परम्परा के अन्दर दस अवतारों की कल्पना की गई है। लोगों में यह मान्यता प्रचलित थी कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अराजकता, अव्यवस्था और विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी, तब संसार की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे।

(3) अवतारों को मूर्तियों में दिखाना- कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दर्शाया गया है।

(4) पुराणों की कहानियाँ – इन मूर्तियों के उत्कीर्णन का अर्थ समझने के लिए इतिहासकारों को इनसे जुड़ी हुई कहानियों से परिचित होना पड़ता है। कई कहानियाँ प्रथम सहस्राब्दी के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों में पाई जाती हैं। इनमें देवी-देवताओं की भी कहानियाँ हैं। प्रायः इन्हें संस्कृत श्लोकों में लिखा गया था। इन्हें ऊंची आवाज में पढ़ा जाता था जिसे कोई भी सुन सकता था।

यद्यपि महिलाओं और शूद्रों (हरिजनों) को वैदिक साहित्य पढ़ने – सुनने की अनुमति नहीं थी. परन्तु वे पुराणों को सुन सकते थे। पुराणों की अधिकांश कहानियाँ लोगों के आपसी मेल- मिलाप से विकसित हुई। पुजारी, व्यापारी और सामान्य स्त्री-पुरुष एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते हुए, अपने विश्वासों और विचारों का आदान-प्रदान करते थे। उदाहरण के लिए, वासुदेव कृष्ण मथुरा क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण देवता थे। कई शताब्दियों के दौरान उनकी पूजा देश के दूसरे प्रदेशों में भी प्रचलित हो गई।

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प्रश्न 9.
अतीत की समृद्ध दृश्य परम्पराओं को समझने के लिए यूरोपीय विद्वानों द्वारा किये गये प्रयासों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अतीत की समृद्ध दृश्य-परम्पराओं को समझने के प्रयास अतीत की समृद्ध दृश्य पराम्पराएँ ईंट और पत्थर से निर्मित स्थापत्य कला, मूर्तिकला और चित्रकला के रूप में हमारे सामने आई हैं। इनमें से कुछ कलाकृतियाँ नष्ट हो गई हैं। परन्तु जो बची हैं, और संरक्षित हैं वे हमें इन सुन्दर कलाकृतियों के निर्माताओं – कलाकारों, मूर्तिकारों, राजगीरों और वास्तुकारों के दृष्टिकोण से परिचित कराती हैं। परन्तु उनके दृष्टिकोण को समझना सरल नहीं है। हम कभी भी यह बात पूर्ण रूप से नहीं समझ सकते कि इन प्रतिकृतियों को देखने और पूजने वाले लोगों के लिए इनका क्या महत्त्व था।

यूरोपीय विद्वानों के प्रयास – उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वानों ने जब देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखीं तो वे उनकी पृष्ठभूमि और महत्त्व को नहीं समझ पाए। कई सिरों, हाथों वाली या मनुष्य और जानवर के रूपों को मिलाकर बनाई गई मूर्तियाँ उन्हें खराब लगती थीं और कई बार उन्हें इन मूर्तियों से घृणा होने लगती थी। प्राचीन यूनान की कला परम्परा से तुलना करना- इन प्रारम्भिक यूरोपीय विद्वानों ने ऐसी विचित्र मूर्तियों का अभिप्राय समझने के लिए उनकी तुलना प्राचीन यूनान की कला परम्परा से की। ये विद्वान् यूनानी परम्परा से परिचित थे।

यद्यपि वे प्रारम्भिक भारतीय मूर्तिकला को यूनान की कला से निम्न स्तर का मानते थे, फिर भी वे बुद्ध और बोधिसत्त की मूर्तियों की खोज से काफी प्रोत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी आदर्शों से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ अधिकतर उत्तर-पश्चिम के नगरों तक्षशिला और पेशावर में मिली थीं। इन प्रदेशों में ईसा से दो सौ वर्ष पहले भारतीय यूनानी शासकों ने अपने राज्य स्थापित किए थे। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती- जुलती थीं। चूंकि ये विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन्हें भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।

कलाकृतियों के महत्त्व को समझने के लिए लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करना मूर्तियों के महत्त्व और संदर्भ को समझने के लिए कला के इतिहासकार प्राय: लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करते हैं भारतीय मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना कर निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा यह तरीका अधिक अच्छा है। परन्तु यह बहुत सरल तरीका नहीं है।

कला – इतिहासकारों व पुराणों में इस कथा को पहचानने के लिए काफी खोजबीन की है। परन्तु उनमें काफी मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस कथा में गंगा नदी के स्वर्ग से अवतरण का चित्रण है। उनका कहना है कि चट्टान की सतह के बीच प्राकृतिक दरार शायद नदी को दर्शा रही है। यह कथा महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित है। परन्तु अन्य विद्वानों की मान्यता है कि यहाँ पर दिव्यास्य प्राप्त करने के लिए महाभारत में वर्णित अर्जुन की तपस्या का चित्रण है। उनका कहना है कि मूर्तियों के बीच एक साधु की मूर्ति केन्द्र में रखी गई है।

प्रश्न 10.
लौकिक सुखों से आगे, वर्धमान महावीर की शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्धमान महावीर की शिक्षाएँ –
(1) सारा संसार संजीव है-सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यह जैन धर्म की सबसे प्रमुख अवधारणा है। वर्धमान महावीर के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में कुछ भी निर्जीव नहीं है। यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान, जल में भी जीवन होता है। यह भगवान महावीर की गहन अन्तर्दृष्टि थी।

(2) अहिंसा-अहिंसा का सिद्धान्त जैन दर्शन का केन्द्रबिन्दु है। जीवों के प्रति दयाभाव रखना चाहिए, हमें किसी भी जानवर, मनुष्य, पेड़-पौधे, यहाँ तक कि कीट- पतंगों को भी नहीं मारना चाहिए। महावीर के अनुसार आत्मा केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि पशुओं, कीड़ों, पेड़-पौधों आदि में भी होती हैं।

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(3) जीवन चक्र और कर्मवाद जैन दर्शन के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्मानुसार निर्धारित होता है। ‘कर्मों के अनुरूप ही पुनर्जन्म होता है।

(4) तप आवागमन के बन्धन से छुटकारा पाने का एक ही मार्ग त्याग और तपस्या है। मुक्ति का प्रयास संसार को त्याग कर विहारों में निवास कर तपस्या द्वारा ही फलीभूत होगा।

(5) पंच महाव्रत- जैन धर्म में पंचमहाव्रतों का सिद्धान्त दिया गया है; जैसे कि अहिंसा, अमृषा, अस्तेय, अपरिग्रह, इन्द्रिय निग्रह।

(6) त्रि-रत्न-पंचमहाव्रत के अतिरिक्त वर्धमान महावीर ने निर्वाण प्राप्ति हेतु त्रिरत्न नामक तीन सिद्धान्तों- सत्य, विश्वास, सत्यज्ञान और सत्यकार्य को अपनाने की शिक्षा भी दी है।

(7) ईश्वर की अवधारणा से मुक्ति वर्धमान महावीर ईश्वर के अस्तित्व में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे। वह यह नहीं मानते थे कि ईश्वर ने संसार की रचना की है। जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखता है।

(8) वेदों में विश्वास जैन धर्म को मानने वाले वेदों को ईश्वरी ज्ञान नहीं मानते वे वेदों में मुक्ति हेतु दिए साधनों यह जप, तप, हवन आदि को व्यर्थ समझते हैं।

(9) जाति पाँति में अविश्वास जैन धर्म के अनुयायी जाति पाँति में विश्वास नहीं करते हैं।

(10) स्याद्वाद – जैन धर्म में स्याद्वाद प्रमुख है; कोई भी मनुष्य सम्पूर्ण सत्य के ज्ञान का दावा नहीं कर सकता। सत्यं बहुत व्यापक है, इसके अनेक पक्ष हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार मनुष्य को सत्य का आंशिक ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 11.
बौद्ध कैसे की जाती थी? महात्मा धर्म का लेखन और इनकी सुरक्षा
उत्तर:
बुद्ध तथा उनके अनुयायी लोगों में वार्तालाप व वाद-विवाद द्वारा मौखिक रूप से अपनी शिक्षाओं का प्रसार करते थे। महात्मा बुद्ध के जीवन काल में वक्तव्यों का लेखन नहीं किया गया। महात्मा बुद्ध के देह त्याग के उपरान्त पाँचवीं चौथी सदी ईसा पूर्व में उनके शिष्यों ने वैशाली में एक सभा का आयोजन किया। शिक्षाओं का संकलन पुस्तकों के रूप में किया गया; जिन्हें त्रिपिटक, जिसका अर्थ है विभिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने की तीन टोकरियाँ कहा गया। तदुपरान्त बौद्ध धर्म के विद्वानों द्वारा इन पर टिप्पणियाँ लिखी गयीं।
त्रिपिटक त्रिपिटक में तीन पिटक सम्मिलित हैं –

(1) विनयपिटक विनयपिटक में भिक्षु और भिक्षुणी जो कि बौद्ध मठों या संघों में रहते थे उनके लिए आचार संहिता थी। उन्हें किस प्रकार का आचरण करना चाहिए। इस सम्बन्ध में विनयपिटक में व्यापक नियम दिये गये हैं।

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(2) सुत्तपिटक – सुतपिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ दी गई हैं, जो उन्होंने समाज के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखते हुए दी हैं।

(3) अभिधम्मपिटक अभिधम्मपिटक में दर्शनशास्त्र से सम्बन्धित विषयों की गहन व्याख्याएँ सम्मिलित हैं।
(i) नए ग्रन्थ धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का विस्तार श्रीलंका तक फैल गया तो नए ग्रन्थों जैसे दीपवंश और महावंश नामक ग्रन्थों की रचना की गई। इन ग्रन्थों में क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित बौद्ध साहित्य प्राप्त होता है। कई रचनाओं में महात्मा बुद्ध की जीवनी का भी समावेश है।
(ii) ग्रन्थों की सुरक्षा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार जब पूर्व एशिया तक फैल गया तो इससे आकर्षित होकर फा-शिएन और श्वेन त्सांग नामक चीनी तीर्थयात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए।

वे इनमें से कई ग्रन्थों को अपने साथ चीन ले गए और वहाँ इसका अनुवाद चीन की भाषा में किया। भारतीय बौद्ध धर्म के प्रचारक भी देश-विदेश में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए कई ग्रन्थों को साथ ले गए। एशिया में फैले विभिन्न बौद्ध विहारों में यह पाण्डुलिपियाँ वर्षों तक संरक्षित रहीं। बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र तिब्बत के ल्हासा मठ में बौद्ध धर्म की पालि संस्कृत, चीनी, तिब्बती भाषा की तमाम पाण्डुलिपियाँ आज भी संरक्षित हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Important Questions and Answers.

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बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. कौरव और पांडव किस वंश से सम्बन्धित थे –
(अ) पांचाल
(ब) हर्यंक
(स) लिच्छवि
(द) कुरु
उत्तर:
(द) कुरु

2. वर्तमान महाभारत में श्लोक हैं –
(अ) दस हजार से अधिक
(ब) एक लाख से अधिक
(स) दो लाख से अधिक
(द) पचास हजार से अधिक
उत्तर:
(ब) एक लाख से अधिक

3. ‘धर्म सूत्र’ और ‘धर्मशास्त्र’ विवाह के कितने प्रकारों को अपनी स्वीकृति देते हैं-
(अ) चार
(स) आठ
(ब) दो
(द) सात
उत्तर:
(स) आठ

4. पितृवंशिकता में पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया था –
(अ) कन्या को शिक्षा दिलाना
(ब) कन्यादान
(द) पुत्र का विवाह
(स) पुत्र की देखभाल
उत्तर:
(ब) कन्यादान

5. किस उपनिषद् में कई लोगों को उनके मातृनामों से निर्दिष्ट किया गया था?
(अ) बृहदारण्यक
(स) कठ
(ख) प्रश्न
(द) छान्दोग्य
उत्तर:
(अ) बृहदारण्यक

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6. किन शासकों को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था?
(अ) कुषाण
(स) मौर्य
(ब) शुंग
(द) सातवाहन
उत्तर:
(द) सातवाहन

7. किस सातवाहन शासक ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण एवं क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला बताया था?
(अ) शातकर्णी प्रथम
(ब) गौतमीपुत्र शातकर्णी
(स) वसिष्ठीपुत्र शातकर्णी
(द) पुलुमावि शातकर्णी
उत्तर:
(ब) गौतमीपुत्र शातकर्णी

8. एकलव्य किस वर्ग से जुड़ा हुआ था ?
(अ) कृषक
(ब) पशुपालक
(स) व्यवसायी वर्ग
(द) निषाद वर्ग
उत्तर:
(द) निषाद वर्ग

9. महाभारत की मूल भाषा है-
(अ) प्राकृत
(ब) पालि
(स) तमिल
(द) संस्कृत
उत्तर:
(द) संस्कृत

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10. प्रसिद्ध इतिहासकार वी.एस. सुकथांकर एक प्रसिद्ध विद्वान् थे-
(अ) संस्कृत के
(ब) मराठी के
(स) हिन्दी के
(द) अंग्रेजी के
उत्तर:
(अ) संस्कृत के

11. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण से सम्बन्धित एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना किस वर्ष आरम्भ हुई?
(अ) 1905 ई. में
(ब) 1911 ई. में
(द) 1942 ई. में
(स) 1919 ई. में
उत्तर:
(स) 1919 ई. में

12. महाभारत एक है-
(अ) खण्डकाव्य
(स) उपन्यास
(ब) महाकाव्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) महाकाव्य

13. धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य था –
(अ) वेदों की शिक्षा देना
(ब) व्यापार करना
(स) न्याय करना
(द) सेवा करना
उत्तर:
(अ) वेदों की शिक्षा देना

14. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का कार्य किसके नेतृत्व में प्रारम्भ किया गया था?
(अ) रोमिला थापर
(ब) वी.एस. सुकथांकर
(स) उमा चक्रवर्ती
(द) आर.एस. शर्मा
उत्तर:
(ब) वी.एस. सुकथांकर

15. महाभारत के रचयिता किसे माना जाता है?
(अ) विशाखदत्त
(ब) बाणभट्ट
(स) कालिदास
(द) वेदव्यास
उत्तर:
(द) वेदव्यास

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. कुंती ओ निषादी नामक लघु कथा की रचना…….ने की है।
2. …………… महाभारत का उपदेशात्मक अंश है।
3. संस्कृत ग्रन्थों में, …………. शब्द का प्रयोग परिवार के लिए और ………….. का बाँधयों के बड़े समूह के लिए होता है।
4. छठी शताब्दी ई.पू. से राजवंश …………… प्रणाली का अनुसरण करते थे।
5. जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है वहाँ ………… शब्द का इस्तेमाल होता है।
6. गोत्र से बाहर विवाह करने को …………… कहते है।
7. ……………. में चाण्डालों के कर्त्तव्यों की सूची मिलती है।
8. मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के …………… तरीके हैं।
उत्तर:
1. महाश्वेता देवी
2. भगवद्गीता
3. कुल, जाति
4. पितृवंशिकता
5. मातृवंशिकता
6. बहिर्विवाह
7. मनुस्मृति
8. सात

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस राजवंश के राजाओं को उनके मातृ नाम से चिन्हित किया जाता था?
उत्तर:
सातवाहन राजवंश।

प्रश्न 2.
किस राजवंश में राजाओं के नाम से पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था।
उत्तर:
सातवाहन राजवंश।

प्रश्न 3.
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का कार्य कब व किसके नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
(1) 1919 ई. में
(2) बी. एस. सुकथांकर के नेतृत्व में

प्रश्न 4.
बहिर्विवाह पद्धति किसे कहते हैं? यह अन्तर्विवाह पद्धति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं। परन्तु अन्तर्विवाह समूह ( गोत्र, कुल, जाति) के बीच होते हैं।

प्रश्न 5.
किस राज्य में राजाओं के नाम के पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था ?
उत्तर:
सातवाहन राज्य में करना।

प्रश्न 6.
धर्मशास्त्रों के अनुसार क्षत्रियों के किन्हीं दो आदर्श कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • युद्ध करना
  • लोगों को सुरक्षा प्रदान

प्रश्न 7.
‘कुल’ और ‘जात’ में क्या भिन्नता है?
उत्तर:
कुल परिवार को तथा जात बांधवों के बड़े समूह को कहते हैं।

प्रश्न 8.
महाश्वेता देवी ने किस लघु कथा की रचना
उत्तर:
कुंती ओ निषादी।

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प्रश्न 9.
पितृवेशिकता का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र से चलती है।

प्रश्न 10.
कुल और जाति में क्या अन्तर है?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों में कुल शब्द का प्रयोग परिवार के लिए तथा जाति का प्रयोग बांधवों के बड़े समूह के लिए होता है।

प्रश्न 11.
‘अन्तर्विवाह’ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अन्तर्विवाह समूह (गोत्र, कुल या जाति) के बीच होते हैं।

प्रश्न 12.
वंश से क्या आशय है?
उत्तर:
पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज सम्मिलित रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं।

प्रश्न 13.
महाभारत का युद्ध किन दो दलों के मध्य और क्यों हुआ था?
उत्तर:
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य सत्ता पर नियन्त्रण स्थापित करने हेतु हुआ था।

प्रश्न 14.
ब्राह्मणों के अनुसार वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है। इसे सिद्ध करने के लिए वे किस मन्त्र को ‘उद्धृत करते थे?
उत्तर:
ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र को।

प्रश्न 15.
चाण्डाल कौन थे?
उत्तर:
चाण्डाल शवों की अन्त्येष्टि करते थे, मृत-पशुओं को उठाते थे।

प्रश्न 16.
‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डाल के दो कर्तव्य बताइये।
उत्तर:

  • गाँव के बाहर रहना
  • मरे हुए लोगों के वस्त्र पहनना।

प्रश्न 17.
महाभारत किस भाषा में रचित है?
उत्तर:
संस्कृत भाषा में।

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प्रश्न 18.
कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध किस वंश से था?
उत्तर:
कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध कुरुवंश से

प्रश्न 19.
इतिहास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इतिहास का अर्थ है ऐसा ही था।

प्रश्न 20.
चार वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख किस वैदिक ग्रन्थ में मिलता है?
उत्तर:
ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ में।

प्रश्न 21.
गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या की शिक्षा देने से क्यों इनकार कर दिया था?
उत्तर:
क्योंकि एकलव्य निषाद (शिकारी समुदाय)

प्रश्न 22.
आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को किस श्रेणी में रखा गया है?
उत्तर:
इतिहास की श्रेणी में

प्रश्न 23.
किस सातवाहन शासक ने अपने को ‘अनूठा ब्राह्मण’ तथा क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला बतलाया था?
उत्तर:
गौतमीपुत्र शातकर्णी।

प्रश्न 24.
दो राजवंशों के नाम लिखिए जिनके राजा ब्राह्मण थे।
उत्तर:
शुंग और कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे।

प्रश्न 25.
भीम ने किस राक्षस कन्या से विवाह किया
उत्तर:
हिडिम्बा से

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प्रश्न 26.
धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
धर्मसूत्र व धर्मशास्य नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है।

प्रश्न 27.
अधिकतर राजवंश पितृवेशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे या मातृवंशिकता प्रणाली का ?
उत्तर:
पितृवंशिकता प्रणाली का।

प्रश्न 28.
धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के सिंहासन पर क्यों आसीन नहीं हुए?
उत्तर:
क्योंकि यह नेत्रहीन थे।

प्रश्न 29.
महाभारत के अनुसार किस माता ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह दी थी?
उत्तर:
गान्धारी ने।

प्रश्न 30.
सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम किन गोत्रों से उद्भूत थे?
उत्तर:
गौतम तथा वशिष्ठ गोत्रों से।

प्रश्न 31.
हस्तिनापुर नामक गाँव में उत्खनन कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब?
उत्तर:
(1) बी.बी. लाल के नेतृत्व में
(2) 1951

प्रश्न 32.
‘सूत’ कौन थे?
उत्तर:
महाभारत की मूलकथा के रचयिता भाट सारथी ‘सूत’ कहलाते थे।

प्रश्न 33.
महाभारत की विषय-वस्तु को किन दो मुख्य भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक।

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प्रश्न 34.
किस क्षेत्र में दानशील व्यक्ति का सम्मान किया जाता था तथा कृपण व्यक्ति को घृणा का पात्र समझा जाता था?
उत्तर:
प्राचीन तमिलकम में।

प्रश्न 35.
उन दो चीनी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने लिखा है कि चाण्डालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।
उत्तर:

  • फा-शिक्षन
  • श्वैन-त्सांग।

प्रश्न 36.
मनुस्मृति के अनुसार समाज का कौनसा वर्ग पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकता था?
उत्तर:
स्त्री वर्ग।

प्रश्न 37.
प्रारम्भ में महाभारत में कितने श्लोक थे?
उत्तर:
लगभग 10,000

प्रश्न 38.
वर्तमान में महाभारत में कितने श्लोक हैं ?
उत्तर:
लगभग एक लाख श्लोक।

प्रश्न 39.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति व्यवस्था किस पर आधारित थी?
उत्तर:
जन्म पर।

प्रश्न 40.
किस शक शासक ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ?
उत्तर:
रुद्रदामन

प्रश्न 41.
लोगों को गोशों में वर्गीकृत करने की ब्राह्मणीय पद्धति कब प्रचलन में आई ?
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से।

प्रश्न 42.
मनुस्मृति के आधार पर पुरुषों के लिए सम्पत्ति अर्जन के कोई चार तरीके बताइये।
उत्तर:

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजित करके।

प्रश्न 43.
महाभारतकालीन स्वियों की विभिन्न समस्याएँ लिखिए।
उत्तर:

  • पैतृक संसाधनों में स्थियों की हिस्सेदारी न होना
  • बहुपति प्रथा का प्रचलन
  • जुएँ में स्वियों को दाँव पर लगाना।

प्रश्न 44.
वर्ग शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर्ग शब्द एक विशिष्ट सामाजिक श्रेणी का प्रतीक है।

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प्रश्न 45.
बहुपत्नी प्रथा एवं बहुपति प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की परिपाटी है, बहुपति प्रथा एक स्वी होने की पद्धति है।

प्रश्न 46.
‘धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ ग्रन्थों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत जो आचार संहिताएं तैयार कीं, वे धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ कहलाते हैं।

प्रश्न 47.
मनुस्मृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मनुस्मृति प्राचीन भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि- ग्रन्थ है। यह धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 48.
धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में विवाह के कितने प्रकारों को स्वीकृति दी गई है? इनमें कौन से विवाह ‘उत्तम’ तथा कौनसे विवाह ‘निन्दित’ माने गए हैं?
उत्तर:

  • विवाह के आठ प्रकारों को स्वीकृति दी गई है।
  • पहले चार विवाह ‘उत्तम’ तथा शेष को ‘निन्दित’ माना गया है।

प्रश्न 49.
बहिर्विवाह पद्धति की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  • अपने गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह कहते हैं।
  • इसमें ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्वियों का जीवन सावधानी से नियन्त्रित किया जाता था।

प्रश्न 50.
गोत्रों का प्रचलन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे।

प्रश्न 51.
गोत्र प्रणाली के दो नियमों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
गोत्रों के दो महत्त्वपूर्ण नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • विवाह के पश्चात् स्वियों को पति के गोत्र का माना जाता था।
  • एक ही गोत्र के सदस्यों में विवाह वर्जित था।

प्रश्न 52.
‘वर्ण’ और ‘जाति’ के कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर:

  • वर्ण मात्र चार थे, परन्तु जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
  • वर्ण व्यवस्था में अन्तर्विवाह आवश्यक नहीं है, परन्तु जाति व्यवस्था में अन्तर्विवाह अनिवार्य होता है।

प्रश्न 53.
सातवाहन शासकों का देश के किन भागों पर शासन था ?
उत्तर:
सातवाहन शासकों का पश्चिमी भारत तथा दक्यान के कुछ भागों पर शासन था।

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प्रश्न 54.
सातवाहनों में अन्तर्विवाह पद्धति प्रचलित थी। इसका उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ सातवाहन रानियाँ एक ही गोत्र से थीं। यह उदाहरण सातवाहनों में अन्तर्विवाह पद्धति को दर्शाता है।

प्रश्न 55.
कुछ रानियों ने सातवाहन राजाओं से विवाह करने के बाद भी अपने पिता के गोत्र नाम को ही कायम रखा था। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे, जो उनके पिता के गोत्र थे।

प्रश्न 56.
सातवाहन काल में माताएँ क्यों महत्त्वपूर्ण थीं?
उत्तर:
सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम ( माता के नाम से उद्भूत) से चिह्नित किया जाता था।

प्रश्न 57.
ब्राह्मणीय सामाजिक व्यवस्था में पहला दर्जा तथा सबसे निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
इस सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों को पहला दर्जा तथा शूद्रों को सबसे निम्न दर्जा प्राप्त था।

प्रश्न 58.
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त’ के अनुसार चार वर्णों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर:
ब्राह्मण की उत्पत्ति परमात्मा के मुख से क्षत्रिय की भुजाओं से वैश्य की जंघा से शूद्र की पैरों से हुई।

प्रश्न 59.
‘स्त्री धन’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे ‘स्वी धन’ कहा जाता था।

प्रश्न 60.
मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के कौनसे तरीके हैं?
उत्तर:

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजित करके
  • निवेश
  • कार्य द्वारा तथा
  • सज्जनों द्वारा दी गई भेंट को स्वीकार करके।

प्रश्न 61.
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार के कौनसे आधार थे?
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार के दो आधार थे –

  • लिंग का आधार
  • वर्ण का आधार।

प्रश्न 62.
महाकाव्य काल में सबसे धनी व्यक्ति किन वर्णों के लोग होते थे?
उत्तर:
महाकाव्य काल में ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे धनी व्यक्ति होते थे।

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प्रश्न 63.
तमिलकम के सरदारों की दानशीलता का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
तमिलकम के सरदार अपनी प्रशंसा गाने वाले चारणों एवं कवियों के आश्रयदाता थे। वे उन्हें उदारतापूर्वक दान दिया करते थे।

प्रश्न 64.
महाभारत को व्यापक स्तर पर लोगों द्वारा क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
क्योंकि महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।

प्रश्न 65.
महाभारत की विषयवस्तु को किन दो मुख्य शीर्षकों में रखा जाता है?
उत्तर:

  • आख्यान – इसमें कहानियों का संग्रह है।
  • उपदेशात्मक – इसमें सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है।

प्रश्न 66.
‘भगवद्गीता’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘भगवद्गीता’ महाभारत का सबसे महत्त्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है। इसमें कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं।

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प्रश्न 67.
सातवाहन शासकों की शासनावधि क्या थी?
उत्तर:
सातवाहन शासकों ने लगभग दूसरी शताब्दी ई. पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसवी तक शासन किया।

प्रश्न 68.
मनुस्मृति का संकलन (रचना) कब किया गया?
उत्तर:
मनुस्मृति का संकलन (रचना) लगभग 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी के बीच हुआ।

प्रश्न 69.
पितृवंशिकता के आदर्श को किसने सुदृढ़ किया?
उत्तर:
महाभारत ने पितृवंशिकता के आदर्श को सुदृद किया।

प्रश्न 70.
अधिकांश राजवंश किस प्रणाली का अनुसरण करते थे?
उत्तर:
अधिकांश राजवंश पितृवशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे।

प्रश्न 71.
सातवाहन काल में माताएँ क्यों महत्वपूर्ण थीं?
उत्तर:
सातवाहन काल में राजाओं को उनके मातृनाम से जाना जाता था।

प्रश्न 72.
‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख किन ग्रन्थों में मिलता है?
उत्तर:
धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में चारों वर्णों के लिए ‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 73.
ब्राह्मणों द्वारा ‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का पालन करवाने के लिए अपनाई गई दो नीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति को एक दैवीय व्यवस्था बतलाया।
  • वे शासकों को इन नियमों का अनुसरण करने का उपदेश देते थे।

प्रश्न 74.
अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य को कौनसा प्रण याद दिलाया ?
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने अर्जुन को वचन दिया था कि वह उनके सभी शिष्यों में अद्वितीय तीरन्दाज बनेगा।

प्रश्न 75.
किस तथ्य से यह ज्ञात होता है कि शक्तिशाली मलेच्छ राजा भी संस्कृतीय परिपाटी से परिचित थे?
उत्तर:
प्रसिद्ध शक राजा रुद्रदामन ने सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।

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प्रश्न 76.
ब्राह्मणों द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था में पहला दर्जा एवं सबसे निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
पहला दर्जा ब्राह्मणों को तथा निम्न दर्जा शूद्रों को प्राप्त था।

प्रश्न 77.
किस अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है? यह अभिलेख कब का है ?
उत्तर:

  • मन्दसौर (मध्यप्रदेश) से प्राप्त अभिलेख में।
  • यह अभिलेख लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसवी का है।

प्रश्न 78.
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत किन नये समुदायों का जाति में वर्गीकरण कर दिया गया ?
उत्तर:
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत निषाद (शिकारी समुदाय) तथा सुवर्णकार जैसे व्यावसायिक वर्ग का जातियों में वर्गीकरण कर दिया गया।

प्रश्न 79.
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों के लिए धन अर्जित करने के कोई दो तरीके बताइए।
उत्तर:

  • स्नेह के प्रतीक के रूप में।
  • माता-पिता द्वारा दिए गए उपहार के रूप में।

प्रश्न 80.
महाकाव्य काल में सबसे धनी व्यक्ति किस वर्ग के लोग होते थे?
उत्तर:
ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग के लोग सबसे धनी होते थे।

प्रश्न 81.
महाभारत में दुर्योधन के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर:
धृतराष्ट्र तथा गान्धारी।

प्रश्न 82.
मज्झिमनिकाय किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
मज्झिमनिकाय पालि भाषा में लिखा गया बौद्ध ग्रन्थ है।

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प्रश्न 83.
बौद्ध भिक्षु फा शिएन चीन से भारत कब आया था?
उत्तर:
लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसवी

प्रश्न 84.
चीनी तीर्थयात्री श्वेन त्सांग भारत कब आया
उत्तर:
लगभग सातवीं शताब्दी ईसवी।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
600 ई. पूर्व से 600 ई. तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के समकालीन समाज पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
600 ई. पूर्व से 600 ई. तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के समकालीन समाज पर निम्नलिखित प्रभाव हुए-

  • वन क्षेत्रों में कृषि का विस्तार हुआ, जिससे वहाँ रहने वाले लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन हुआ।
  • शिल्प-विशेषज्ञों के एक विशिष्ट सामाजिक समूह का उदय हुआ।
  • सम्पत्ति के असंगत वितरण से सामाजिक विषमताओं में वृद्धि हुई।

प्रश्न 2.
आरम्भिक समाज में प्रचलित आचार- व्यवहार और रिवाजों का इतिहास लिखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
(1) प्रत्येक ग्रन्थ किसी समुदाय विशेष के दृष्टिकोण से लिखा जाता था अतः यह याद रखना आवश्यक. था कि ये ग्रन्थ किसने लिखे इन ग्रन्थों में क्या लिखा गया, किनके लिए इन ग्रन्थों की रचना हुई।
(2) यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इन ग्रन्थों की रचना में किस भाषा का प्रयोग हुआ तथा इनका प्रचार- प्रसार किस प्रकार हुआ। इन ग्रन्थों का सावधानीपूर्वक प्रयोग करने से आचार व्यवहार और रिवाजों का इतिहास लिखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
परिवार के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या सभी परिवार एक जैसे होते हैं?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों में ‘कुल’ शब्द का प्रयोग परिवार के लिए होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज इकट्ठे रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं परन्तु सभी परिवार एक जैसे नहीं होते। पारिवारिक जनों की गिनती, एक-दूसरे से उनका रिश्ता और उनके क्रियाकलापों में भी भिन्नता होती है। कई बार एक ही परिवार के लोग भोजन और अन्य संसाधनों का आपस में
करते हैं। एक साथ रहते और काम मिल बाँट कर प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
परिवार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होता है जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं। तकनीकी भाषा में हम सम्बन्धियों को जातिसमूह कह सकते हैं। पारिवारिक रिश्ते ‘नैसर्गिक’ और ‘रक्त सम्बद्ध’ माने जाते हैं। कुछ समाजों में भाई-बहिन (चचेरे मौसेरे से रक्त का रिश्ता माना जाता है परन्तु अन्य समाज ऐसा नहीं मानते।

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प्रश्न 5.
नये नगरों के उद्भव से आई सामाजिक जटिलता की चुनौती का किस प्रकार समाधान किया हैं?
उत्तर:
नये नगरों में रहने वाले लोग एक-दूसरे से विचार-विमर्श करने लगे और आरम्भिक विश्वासों तथा व्यवहारों पर प्रश्न चिह्न लगाने लगे। इस चुनौती के उत्तर में ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचारसंहिताएं तैयार कीं। ब्राह्मणों तथा अन्य लोगों को इनका अनुसरण करना पड़ता था। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में किया गया। इनमें मनुस्मृति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।

प्रश्न 6.
धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के ब्राह्मण लेखकों का मानना था कि उनका दृष्टिकोण सार्वभौमिक है और उनके बनाए नियमों का सब लोगों के द्वारा पालन होना चाहिए। क्या यह सम्भव था?
उत्तर:
यह सम्भव नहीं था क्योंकि उपमहाद्वीप में फैली क्षेत्रीय विभिन्नता तथा संचार की बाधाओं के कारण से ब्राह्मणों का प्रभाव सार्वभौमिक नहीं हो सकता था। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों ने विवाह की आठ प्रणालियों को स्वीकृति दी है। इनमें से पहले चार विवाह उत्तम तथा शेष विवाह निंदित माने गए। सम्भव है कि ये विवाह प्रणालियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं, जो ब्राह्मणीय नियमों को अस्वीकार करते थे।

प्रश्न 7.
पितृवंशिकता के आदर्श को स्पष्ट कीजिए। महाभारत ने इस आदर्श को कैसे सुदृढ़ किया?
उत्तर:
पितृवशकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है। महाभारत पिता के पुत्र, में बान्धवों के दो दलों – कौरवों तथा पांडवों के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए युद्ध का वर्णन है, जिसमें पांडव विजयी हुए। इसके बाद पितृवंशिक उत्तराधिकार की उद्घोषणा की गई। महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने पितृवंशिकता के आदर्श को और सुदृढ़ किया।

प्रश्न 8.
पितृवंशिकता प्रणाली में पाई जाने वाली विभिन्नता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे, परन्तु इस प्रथा में निम्नलिखित भिन्नताएँ थीं-

  • कभी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था।
  • कभी-कभी बन्धु बान्धव सिंहासन पर अपना अधिकार जमा लेते थे।
  • कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्विर्ण जैसे प्रभावती गुप्त सिंहासन पर अधिकार कर लेती थीं।

प्रश्न 9.
ब्राह्मणीय पद्धति में लोगों को गोत्रों में किस प्रकार वर्गीकृत किया गया? क्या इन नियमों का सामान्यतः अनुसरण होता था?
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से प्रचलन में आई एक ब्राह्मणीय पद्धति ने लोगों को विशेष रूप से ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे। गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –

  • विवाह के पश्चात् स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
  • एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।

प्रश्न 10.
क्या ब्राह्मणीय पद्धति के गोत्र सम्बन्धी नियमों का सम्पूर्ण भारत में पालन किया जाता था?
उत्तर:
इन नियमों का सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में पालन नहीं होता था कुछ सातवाहन राजाओं की एक से अधिक पलियाँ थीं। सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से लिए गए थे जो उनके पिता के गोत्र थे। इससे ज्ञात होता है कि विवाह के बाद भी अपने पति कुल के गोत्र को ग्रहण करने की अपेक्षा, उन्होंने पिता का गोत्र नाम ही बनाए रखा। यह ब्राह्मणीय व्यवस्था के विपरीत था। कुछ सातवाहन रानियाँ एक ही गोत्र से थीं यह बात बहिर्विवाह पद्धति के विरुद्ध थी।

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प्रश्न 11.
अन्तर्विवाह, बहिर्विवाह, बहुपत्नी प्रथा तथा बहुपति प्रथा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्विवाह अन्तर्विवाह में वैवाहिक सम्बन्ध समूह के बीच ही होते हैं यह समूह एक गोत्र कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है।
  • बहिर्विवाह अहिर्विवाह गोत्र से बाहर विवाह करने को कहते हैं।
  • बहुपत्नी प्रथा बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी है।
  • बहुपति प्रथा बहुपति प्रथा एक स्त्री के अनेक पति होने की पद्धति है।

प्रश्न 12.
विभिन्न वर्णों के लिए धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में वर्णित आदर्श जीविका लिखिए। क्या वह जीविका आज भी विद्यमान है?
अथवा
सूत्रों तथा धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए ‘आदर्श जीविका’ से जुड़े कई नियम मिलते हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  • ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना और करवाना, दान देना तथा दान लेना था।
  • क्षत्रियों का कार्य युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना, वेदों का अध्ययन करना, यज्ञ करवाना तथा दान-दक्षिणा देना था।
  • वैश्यों का कार्य कृषि, गोपालन तथा व्यापार का कार्य करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना तथा दान-दक्षिणा देना था।
  • शूद्रों का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। यह जीविका आज विद्यमान नहीं है।

प्रश्न 13.
ब्राह्मणों ने धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में वर्णित आदर्श जीविका सम्बन्धी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
ब्राह्मणों ने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाई –

  • ब्राह्मणों ने लोगों को बताया कि वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है।
  • वे शासकों को यह उपदेश देते थे कि वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में पालन करें।
  • उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि उनको प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है।

प्रश्न 14.
महाभारत में गान्धारी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को पाण्डवों के विरुद्ध युद्ध न करने की क्या सलाह दी थी? क्या दुर्योधन ने अपनी माता की सलाह मानी थी?
उत्तर:
गान्धारी ने दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह देते हुए कहा कि युद्ध में कुछ भी शुभ नहीं होता, न धर्म और अर्थ की प्राप्ति होती है और न ही प्रसन्नता की यह भी आवश्यक नहीं कि युद्ध के अन्त में तुम्हें सफलता मिले। अतः मैं तुम्हें सलाह देती हूँ कि तुम बुद्ध करने का विचार त्याग दो। परन्तु दुर्योधन ने अपनी माता गान्धारी की सलाह नहीं मानी।

प्रश्न 15.
ब्राह्मणों द्वारा वर्ण व्यवस्था को दैवीय व्यवस्था क्यों बताया गया ?
उत्तर:
ब्राह्मणों की मान्यता थी कि वर्ण-व्यवस्था में उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है। अतः समाज में अपनी सर्वोच्च स्थिति को बनाये रखने के लिए उन्होंने वर्ण व्यवस्था को एक दैवीय व्यवस्था बताया। इसे प्रमाणित करने के लिए वे ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र को उद्धृत करते हैं। पुरुषसूक्त के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से क्षत्रिय भुजाओं से वैश्य जंघाओं से तथा शूद्र चरणों से उत्पन्न हुए।

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प्रश्न 16.
क्या सभी राजवंशों की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से ही हुई थी?
उत्तर:
शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे परन्तु अनेक महत्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थ मौर्य सम्राटों को क्षत्रिय बताते हैं, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र उन्हें ‘निम्न’ कुल का मानते हैं मौचों के उत्तराधिकारी शुंग और कण्व ब्राह्मण थे सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमीपुत्र ‘शातकर्णी ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण और क्षत्रियों के दर्प को कुचलने वाला बताया है।

प्रश्न 17.
“जाति प्रथा के भीतर आत्मसात् होना एक जटिल सामाजिक प्रक्रिया थी।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सातवाहन वंश के शासक स्वयं को ब्राह्मण वर्ग का बताते थे, जबकि ब्राह्मणीय शास्त्र के अनुसार राजा को क्षत्रिय होना चाहिए। यद्यपि सातवाहन चतुर्वर्णी व्यवस्था की मर्यादा को बनाए रखना चाहते थे, परन्तु साथ ही वे उन लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित करते थे जो इस वर्ण व्यवस्था से ही बाहर थे। इस प्रकार वे अन्तर्विवाह प्रणाली का पालन करते थे, न कि बहिर्विवाह प्रणाली का जो ब्राह्मणीय ग्रन्थों में प्रस्तावित है।

प्रश्न 18.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
ब्राह्मणीय सिद्धान्त में वर्ण की भाँति जाति भी जन्म पर आधारित थी। परन्तु वर्ण जहाँ केवल चार थे, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी। वास्तव में जिन नये समुदायों का जैसे निषादों, स्वर्णकारों आदि को चार वर्णों वाली ब्राह्मणीय व्यवस्था में शामिल करना सम्भव नहीं था, उनका जाति में वर्गीकरण कर दिया गया। कुछ जातियाँ एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से सम्बन्धित थीं। उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था।

प्रश्न 19.
मन्दसौर के अभिलेख से जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की जानकारी मिलती है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मन्दसौर के अभिलेख से ज्ञात होता है कि रेशम के बुनकरों की एक अलग श्रेणी थी। इस अभिलेख से तत्कालीन जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं पर प्रकाश पड़ता है। इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि श्रेणी के सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और कई चीजों में भी सहभागी होते थे। सामूहिक रूप से उन्होंने अपने शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य मन्दिर के निर्माण में खर्च किया।

प्रश्न 20.
मनुस्मृति में उल्लिखित विवाह के आठ प्रकारों में से किन्हीं चार प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुस्मृति में उल्लिखित विवाह के चार प्रकार –

  • इसमें पिता द्वारा कन्या का दान वेदज्ञ वर को दिया जाता था।
  • इसके अन्तर्गत पिता वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता था।
  • इसके अन्तर्गत वर कन्या के बान्धवों को यथेष्ट धन प्रदान करता था।
  • इस पद्धति में लड़का तथा लड़की काम से उत्पन्न हुई अपनी इच्छा से प्रेम विवाह कर लेते थे।

प्रश्न 21.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में चार वर्णों के अतिरिक्त अन्य समुदायों की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रन्थों ने जिस ब्राह्मणीय व्यवस्था को स्थापित किया था उसका सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में पालन नहीं किया जाता था। उस महाद्वीप में पाई जाने वाली विविधताओं के कारण यहाँ सदा से ऐसे समुदाय रहे हैं जिन पर ब्राह्मणीय व्यवस्था का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। निषाद वर्ग इसी का उदाहरण हैं। ब्राह्मणीय व्यवस्था में यायावर पशुपालकों के समुदाय को भी सन्देह की दृष्टि से देखा जाता था क्योंकि उन्हें स्थायी कृषकों के समुदाय में आसानी से समाहित नहीं किया जा सकता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 22.
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ किन आधारों पर माना जाता था?
उत्तर:
ब्राह्मण समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ मानते थे। उनके अनुसार अनुष्ठानों के सम्पादन से जुड़े कुछ कार्य पवित्र थे। अपने को पवित्र मानने वाले लोग ‘अस्पृश्यों’ से भोजन स्वीकार नहीं करते थे कुछ कार्य ऐसे भी थे जिन्हें ‘दूषित’ माना जाता था जैसे शवों की अन्त्येष्टि करने का कार्य शवों की अन्त्येष्टि तथा मृत पशुओं को छूने वाले रा लोगों को चाण्डाल कहा जाता था। उच्च वर्ण के लोग इन  चाण्डालों का स्पर्श अथवा देखना भी अपवित्रकारी मानते इन् थे।

प्रश्न 23.
चाण्डालों के कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मनुस्मृति में चाण्डालों के कर्तव्यों का उल्लेख मिलता है। चाण्डालों को गाँव से बाहर रहना पड़ता था। वे के फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे। मृतक लोगों के अस्व तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में वे गाँवों और नगरों में ना भ्रमण नहीं कर सकते थे। उन्हें कुछ मृतकों की अन्त्येष्टि क करनी पड़ती थी तथा वधिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था। फाहियान के अनुसार उन्हें सड़कों पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी, जिससे अन्य लोग उनके दर्शन न कर सकें।

प्रश्न 24.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘मनुस्मृति’ के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए, परन्तु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था स्विय इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्वीधन’ अर्थात् ‘स्वी का धन’ कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थीं और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था।

प्रश्न 25.
‘मनुस्मृति’ के अनुसार पुरुषों और स्त्रियों के धन अर्जित करने के तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:’
‘मनुस्मृति’ के अनुसार पुरुष सात तरीकों से धन अर्जित कर सकते हैं –

  1. विरासत
  2. खोज
  3. खरीद
  4. विजय प्राप्त करके
  5. निवेश
  6. कार्य द्वारा तथा
  7. सज्जनों द्वारा दी

गई भेंट को स्वीकार करके स्त्रियाँ 6 तरीकों से धन अर्जित कर सकती हैं –

  1. वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट
  2. वधू गमन के साथ मिली भेंट
  3. स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट
  4. भ्राता, माता तथा पिता द्वारा दिए गए उपहार
  5. परवर्ती काल में मिली भेंट
  6. पति से प्राप्त भेंट।

प्रश्न 26.
“ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार का एक आधार वर्ण भी था।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार का एक आधार वर्ण भी था शूद्रों के लिए एकमात्र ‘जीविका’ तीनों उच्चवर्णों की सेवा थी परन्तु इसमें उनकी इच्छा शामिल नहीं थी। दूसरी ओर तीनों उच्चवणों के पुरुषों के लिए विभिन्न जीविकाओं की सम्भावनाएँ रहती थीं। यदि इन नियमों को वास्तव में कार्यान्वित किया जाता, तो ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे अधिक धनी व्यक्ति होते यह बात कुछ अंशों तक सामाजिक व्यवस्था से मेल खाती थी।

प्रश्न 27.
बौद्धों द्वारा ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण- व्यवस्था की आलोचनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुछ परम्पराओं में इस वर्ण व्यवस्था की आलोचना की जा रही थी। लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में बौद्ध ग्रन्थों में ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था की आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई। यद्यपि बौद्धों ने इस बात को स्वीकार किया कि समाज में विषमता विद्यमान थी, परन्तु यह भेद प्राकृतिक और स्थायी नहीं थे। उन्होंने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को मानने से इनकार कर दिया। इस प्रकार बौद्ध लोग जन्म पर आधारित वर्णीय व्यवस्था को स्वीकृति प्रदान नहीं करते।

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प्रश्न 28.
“प्राचीन तमिलकम में दानशील व्यक्ति का सम्मान किया जाता था। कृपण व्यक्ति घृणा का पात्र होता था।’ विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन तमिलकम में दानशील व्यक्ति का समाज में सम्मान किया जाता था तथा कृपण व्यक्ति घृणा का पात्र होता था। इस क्षेत्र में 2000 वर्ष पहले अनेक सरदारियाँ थीं ये सरदार अपनी प्रशंसा में गाने वाले चारणों और कवियों के आश्रयदाता होते थे। तमिल भाषा के संगम साहित्य से पता चलता है कि यद्यपि धनी और निर्धन के बीच विषमताएँ थीं, फिर भी धनी लोगों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपनी धन-सम्पत्ति का मिल बांट कर उपयोग करेंगे।

प्रश्न 29.
समाज में फैली हुई सामाजिक विषमताओं के संदर्भ में बौद्धों द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘सुत्तपिटक’ नामक बौद्ध ग्रन्थ में एक मिथक का वर्णन है जो यह बताता है कि प्रारम्भ में सभी जीव शान्तिपूर्वक रहते थे और प्रकृति से उतना ही ग्रहण करते थे, जितनी एक समय के भोजन की आवश्यकता होती थी। परन्तु कालान्तर में लोग अधिकाधिक लालची और प्रतिहिंसक हो गए। इस स्थिति में उन्होंने समाज का नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति को सौंपने का निर्णय लिया जो जिसकी प्रताड़ना की जानी चाहिए उसे प्रताड़ित कर सके और जिसे निष्कासित किया जाना चाहिए, उसे निष्कासित कर सके।

प्रश्न 30.
साहित्यकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय किन पहलुओं पर विचार करते हैं?
अथवा
साहित्यिक स्रोतों का प्रयोग करते समय इतिहासकार को किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. ग्रन्थों की भाषा क्या है? क्या यह आम लोगों की भाषा थी जैसे पालि, प्राकृत, तमिल अथवा पुरोहितों और किसी विशिष्ट वर्ग की भाषा थी जैसे संस्कृत।
  2. क्या ये ग्रन्थ ‘मन्त्र’ थे जो अनुष्ठानकर्त्ताओं द्वारा पढ़े जाते थे अथवा ‘कथाग्रन्थ’ थे जिन्हें लोग पढ़ और सुन सकते थे?’
  3. ग्रन्थों के लेखकों के बारे में जानकारी प्राप्त करना जिनके दृष्टिकोण और विचारों के आधार पर ग्रन्थ लिखे गए थे।
  4. श्रोताओं की अभिरुचि का ध्यान रखना।

प्रश्न 31.
महाभारत की भाषा का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत की भाषा- यद्यपि महाभारत की रचना अनेक भाषाओं में की गई है, परन्तु इसकी मूल भाषा संस्कृत है। परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है अतः यह सम्भव है कि महाभारत को व्यापक स्तर पर समझा जाता था।

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प्रश्न 32.
महाभारत की विषय-वस्तु का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
इतिहासकार महाभारत की विषय वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक।

‘आख्यान’ में कहानियों का संग्रह है जबकि उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदण्डों का वर्णन है। परन्तु उपदेशात्मक अंशों में भी कहानियाँ होती हैं और प्रायः आख्यानों में समाज के लिए उपदेश निहित रहता है। वास्तव में महाभारत एक भाग में नाटकीय कथानक था जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े
गए।

प्रश्न 33.
भगवद्गीता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भगवद्गीता महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है, जहाँ कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। इस ग्रन्थ में 18 अध्याय हैं। भगवद्गीता में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का समन्वय स्थापित किया गया है। अन्त में श्रीकृष्ण का उपदेश सुनकर अर्जुन अपने बान्धवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। इस युद्ध में पाण्डवों की विजय हुई।

प्रश्न 34.
“महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ है।” ‘व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शताब्दियों से इस महाकाव्य के अनेक पाठान्तर अनेक भाषाओं में लिखे गए अनेक कहानियाँ जिनका उद्भव एक क्षेत्र विशेष में हुआ और जिनका विशेष लोगों में प्रसार हुआ, वे सब इस महाकाव्य में सम्मिलित कर ली गई। इस महाकाव्य के मुख्य कथानक की अनेक पुनर्व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई। महाभारत के विभिन्न प्रसंगों को मूर्तियों तथा चित्रों में भी दर्शाया गया। इस महाकाव्य ने नाटकों एवं नृत्य कलाओं के लिए भी विषय-वस्तु प्रदान की।

प्रश्न 35.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?
उत्तर:
पूर्व वैदिक समाज के विशिष्ट परिवारों के विषय में इतिहासकारों को सुगमता के साथ सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। इतिहासकार परिवार तथा बन्धुता सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण करते हैं, यहाँ उनका अध्ययन इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इससे वैदिककालीन लोगों की विचारधारा का ज्ञान प्राप्त होता है। यहाँ महाभारत की कथा महत्त्वपूर्ण है। जिसमें बान्धवों के दो दलों, कौरव तथा पाण्डवों के मध्य भूमि तथा सत्ता को लेकर संघर्ष होता है।

दोनों एक ही कुरु वंश से सम्बन्धित थे। इनमें भीषण बुद्ध के उपरान्त पाण्डव विजयी होते हैं। इसके उपरान्त पितृवंशिक उत्तराधिकारी को उद्घोषित किया गया। लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में अधिकांश राजवंश पितृवंशीय व्यवस्था का अनुगमन करते थे। यद्यपि इस प्रणाली में कभी-कभी भिन्नता भी देखने को मिलती है। पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता है। कभी बन्धु बान्धव सिंहासन पर अपना बलात् अधिकार जमा लेते थे।

प्रश्न 36.
ब्राह्मणों द्वारा लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत करने की पद्धति कैसे प्रारम्भ हुई, इसे किस प्रकार लागू किया गया, क्या सातवाहन राजा इसके अपवाद हैं?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत करने की पद्धति लगभग 1000 ई. पू. के पश्चात् प्रारम्भ हुई। ब्राह्मणों ने लोगों का वर्गीकरण वैदिक ऋषियों के नाम पर आधारित गोत्रों के आधार पर करना प्रारम्भ कर दिया। एक ही गोत्र से सम्बन्धित सभी लोगों को उस ऋषि का वंशज समझा जाता था। गोत्र के सम्बन्ध में दो मुख्य नियम प्रचलित थे –

  • स्वियों को विवाह के पश्चात् अपने पिता का गोत्र त्यागकर अपने पति का गोत्र अपनाना पड़ता था।
  • सगोत्रीय, अर्थात् एक ही गोत्र में विवाह वर्जित था, एक गोत्र के सभी सदस्य रक्त सम्बन्धी समझे जाते थे।

सातवाहन राजाओं की रानियाँ अपने नाम के आगे अपने पिता का गोत्र लिखती थी जैसे कि गौतम और वशिष्ठ कई बार रक्त सम्बन्धियों में भी विवाह हो जाते थे। दक्षिण भारत में कहीं कहीं यह प्रथा आज भी पाई जाती है।

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प्रश्न 37.
चारों वर्णों से परे वर्णहीन ब्राह्मणीय व्यवस्था से अलग समुदायों की स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप की विशालता तथा विविधता और सामाजिक जटिलताओं के कारण कुछ ऐसे समुदाय भी अस्तित्व में थे, जिनका ब्राह्मणों द्वारा निश्चित किये गये वर्णों में कोई स्थान नहीं था। ऐसे समुदाय के लोगों को वर्णहीन कहा जाता था। इन वर्णहीन समुदायों पर ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित सामाजिक नियमों का कोई प्रभाव नहीं था। संस्कृत साहित्य में जब ऐसे समुदायों का उल्लेख होता था तो इन्हें असभ्य, बेढंगे और पशु समान कहा जाता था। जंगलों में रहने वाली एक जाति निषाद की गणना इसी वर्ग में होती थी।

शिकार करना, कन्दमूल, फल – फूल एकत्र करना आदि वनों पर आधारित उत्पाद इनके जीवन निर्वाह के साधन थे। वह समाज से पूर्ण रूप से बहिष्कृत नहीं थे। समाज के अन्य वर्गों के साथ उनका संवाद होता था। उनके बीच- विचारों और मतों का आदान-प्रदान होता था महाभारत की कई कथाओं में इसका उल्लेख है।

प्रश्न 38.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीनकाल में स्त्री और पुरुषों के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व विशेषकर पैतृक सम्पत्ति के सन्दर्भ में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। मनुस्मृति के अनुसार पैतृक सम्पत्ति का माता- पिता की मृत्यु के पश्चात् सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए, लेकिन ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी होता है। स्त्रियाँ पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकतीं। किन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्रीधन की संज्ञा दी जाती थी।

इस सम्पत्ति को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है। अधिकतर साक्ष्य भी इंगित करते हैं कि उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पहुंच रखती थीं फिर भी भूमि और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि स्वी और पुरुष के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई।

प्रश्न 39.
12वीं से 17वीं शताब्दी ई.पू. के मिलने वाले घरों के बारे में डॉ. बी.बी. लाल के किन्हीं एक अवलोकन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1951-52 में पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल ने मेरठ जिले (उ.प्र.) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। सम्भवतः यह महाभारत में उल्लेखित पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर थी। बी. बी. लाल को यहाँ आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले थे जिनमें से दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है। दूसरे स्तर (लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई.पू.) पर मिलने वाले घरों के बारे में लाल कहते हैं: “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवास गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती किन्तु मिट्टी की बनी दीवारें और कच्ची मिट्टी की ईटें अवश्य मिलती हैं। सरकण्डे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर इशारा करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकण्डों की बनी थीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।”

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प्रश्न 40.
बी. बी. लाल को उत्खनन से महाभारत काल के किस पुरास्थल के साक्ष्य मिले हैं? ये साक्ष्य कितने स्तरों तक प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:

  1. पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल ने 1951-52 में उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया।
  2. गंगा नदी के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में इस पुरास्थल का होना जहाँ कुरू राज्य था, इस ओर इंगित करता है। यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर हो सकती थी जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।
  3. बी. बी. लाल को यहाँ की आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले हैं जिनमें दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  4. दूसरे स्तर पर मिलने वाले घरों के बारे में लाल कहते हैं कि जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवासीय गृह की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती है।
  5. तीसरे स्तर पर लगभग छठी से तीसरी शताब्दी ई.पू. के साक्ष्य मिले हैं। लाल के अनुसार तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटों के बने हुए थे।

प्रश्न 41.
मंदसौर के अभिलेख से पाँचवीं शताब्दी ई. के रेशम के बुनकरों की स्थिति के विषय में क्या पता चलता है?
उत्तर:
(1) लगभग पाँचवीं शताब्दी ई. का अभिलेख मध्य प्रदेश के मंदसौर क्षेत्र से प्राप्त हुआ है। इसमें रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है जो मूलत: लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे।

(2) बाद में वे मंदसौर चले गये थे, जिसे उस समय दशपुर के नाम से जाना जाता था। यह कठिन यात्रा उन्होंने अपने बच्चों और बाँधयों के साथ सम्पन्न की।

(3) इन बुनकरों ने वहाँ के राजा की महानता के बारे में सुना था अतः वे उसके राज्य में बसना चाहते थे।

(4) यह अभिलेख जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की झलक देता है ये श्रेणियों के स्वरूप के विषय में अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। हालांकि श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी। कुछ सदस्य अन्य जीविका भी अपना लेते थे।

(5) इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और चीजों में भी सहभागी थे। सामूहिक रूप से उन्होंने शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य देवता के सम्मान में मन्दिर बनवाने पर खर्च किया।

प्रश्न 42.
मनुस्मृति के अनुसार चाण्डालों की क्या विशेषताएँ और कार्य थे? कुछ चीनी यात्रियों ने उनके बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार चाण्डालों को गाँव के बाहर रहना पड़ता था। वे फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में गाँव और नगरों में चल-फिर नहीं सकते थे। सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की उन्हें अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी तथा अधिक के रूप में भी कार्य करना होता था। चीन से आए बौद्ध भिक्षु फा शिएन का कहना है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ एक और चीनी तीर्थयात्री हवन-त्सांग के अनुसार अधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।

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प्रश्न 43.
1919 में संस्कृत विद्वान् वी.एस. शुकथांकर के नेतृत्व में किस महत्त्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान् वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का जिम्मा उठाया। आरम्भ में देश के विभिन्न भागों से विभिन्न लिपियों में लिखी गई महाभारत की संस्कृत पाण्डुलिपियों को एकत्रित किया गया। परियोजना पर काम करने वाले विद्वानों ने सभी पाण्डुलिपियों में पाए जाने वाले श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढूँढ़ा। अंततः उन्होंने उन श्लोकों का चयन किया जो लगभग सभी पाण्डुलिपियों में पाए गए थे और उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में फैले अनेक ग्रन्थ खण्डों में किया। इस परियोजना को पूरा करने में सैंतालीस वर्ष लगे।

प्रश्न 44.
महाभारत ग्रन्थ के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रक्रिया में कौनसी दो विशेष बातें उभर कर आई ?
उत्तर:
महाभारत ग्रन्थ के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रक्रिया में निम्न दो बातें उभर कर आई –
(1) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता थी। यह इस बात से ही स्पष्ट होता है कि समूचे उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पाण्डुलिपियों में यह समानता देखने में आई।

(2) कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभर कर सामने आए। इन प्रभेदों का संकलन मुख्य पाठ की पादटिप्पणियों और परिशिष्टों के रूप में किया गया। 13,000 पृष्ठों में से आधे से भी अधिक इन प्रभेदों का ब्यौरा देते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण को तैयार करने की परियोजना का वर्णन कीजिए।
अथवा
बीसवीं शताब्दी में किये गए महाभारत के संकलन के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण –
(1) बी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में एक परियोजना का आरम्भ – 1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना का आरम्भ हुआ। अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्कार तैयार करने का निश्चय किया।

(2) श्लोकों का चयन – परियोजना पर काम करने वाले विद्वानों ने उन श्लोकों का चयन किया जो लगभग सभी पांडुलिपियों में पाए गए थे। उन्होंने उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में फैले अनेक ग्रन्थ-खंडों में किया। इस परियोजना को पूरा करने में सैंतालीस वर्ष लगे।

(3) दो तथ्यों का उभर कर आना –
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में दो तथ्य विशेष रूप से उभर कर सामने आए –

(i) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता – पहला, संस्कृत के कई पाठों में अनेक अंशों में समानता थी। यह इस बात से ही स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पांडुलिपियों में यह समानता दिखाई दी।

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(ii) क्षेत्रीय प्रभेदों का उभरकर सामने आना- दूसरा तथ्य यह था कि कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभरकर सामने आएं इन प्रभेदों का संकलन मुख्य पाठ की पाद टिप्पणियों और परिशिष्टों के रूप में किया गया।

(4) प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी इन सभी प्रक्रियाओं के बारे में हमारी जानकारी मुख्यतः उन ग्रन्थों पर आधारित है जो संस्कृत में ब्राह्मणों द्वारा उन्हीं के लिए लिखे गए। उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी में इतिहासकारों ने पहली बार सामाजिक इतिहास के मुद्दों का अध्ययन करते हुए इन ग्रन्थों को ऊपरी तौर पर समझा।

उनका विश्वास था कि इन ग्रन्थों में जो कुछ भी लिखा गया है, वास्तव में उसी प्रकार से उसे व्यवहार में लाया जाता होगा। कालान्तर में विद्वानों ने पालि, प्राकृत और तमिल ग्रन्थों के माध्यम से अन्य परम्पराओं का अध्ययन किया। इन अध्ययनों से वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदर्शमूलक संस्कृत ग्रन्थ सामान्यतः आधिकारिक माने जाते थे। परन्तु इन आदर्शों पर प्रश्न भी उठाए जाते थे और कभी-कभी इनकी अवहेलना भी की जाती थी।

प्रश्न 2.
मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचवीं तथा छठी विवाह पद्धति के उद्धरण को प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
विवाह पद्धतियों के उद्धरण प्राचीन भारत में विवाह की आठ प्रकार की पद्धतियाँ प्रचलित थीं। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों ने विवाह की आठ प्रकार की पद्धतियों को मान्यता प्रदान की है। मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचव तथा छठी विवाह पद्धति के उद्धरण प्रस्तुत हैं –
(1) विवाह की पहली पद्धति इस विवाह पद्धति के अन्तर्गत कन्या का दान बहुमूल्य वस्त्रों तथा अलंकारों से विभूषित कर उसे वेदश वर को दान दिया जाए जिसे पिता ने स्वयं आमन्त्रित किया हो।

(2) विवाह की चौथी पद्धति इस विवाह पद्धति के अन्तर्गत वर की विधिपूर्वक पूजा करके कन्या का दान किया जाता था पिता वर-वधू युगल को यह कह कर सम्बोधित करता है कि “तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो। गृहस्थ जीवन में दोनों मिलकर जीवनपर्यन्त धर्माचरण करो।” इसके बाद वह वर का सम्मान कर उसे
कन्या का दान करता था।

(3) विवाह की पाँचवीं पद्धति वर को वधू की प्राप्ति तब होती है, जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बांधों को और स्वयं वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है। मनु के अनुसार इस विवाह में बान्धवों (कन्या के पिता, चाचा आदि) को कन्या के लिए यथेष्ट धन देकर स्वेच्छा से कन्या स्वीकार की जाती है।

(4) विवाह की छठी पद्धति इस पद्धति में लड़का तथा लड़की काम से उत्पन्न हुई इच्छा से प्रेम विवाह कर लेते थे। इसे गान्धर्व विवाह भी कहा जाता है। मनु ने कन्या और वर के इच्छानुसार कामुकतावश संयुक्त होने को ‘गान्धर्व विवाह’ की संज्ञा दी है। यह प्रथा प्रेम विवाह या प्रणय विवाह का सूचक है जो हिन्दू समाज में अत्यन्त प्राचीन काल से विद्यमान है।

प्रश्न 3.
क्या प्राचीन काल के भारत में केवल क्षत्रीय शासक ही शासन कर सकते थे? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
प्राचीन भारत में क्षत्रियों एवं अक्षत्रियों द्वारा शासन करना धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय वर्ग के लोग ही शासन कर सकते थे। वैदिककाल के प्रायः सभी शासक क्षत्रिय वर्ग से सम्बन्धित थे परन्तु सभी शासक क्षत्रिय नहीं होते थे। प्राचीन काल में अनेक अक्षत्रिय राजाओं ने भी शासन किया।
(1) मौर्य वंश मौर्यों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद है। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थों में मौर्यों को क्षत्रिय बताया गया है, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र मौर्यो को ‘निम्न’ कुल का मानते हैं।

(2) शुंग और कण्व वंश मौर्य वंश के बाद शुंग तथा कण्व वंश के राजाओं ने शासन किया। शुंग वंश तथा कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे। वास्तव में योग्य, शक्तिशाली तथा साधन-सम्पन्न व्यक्ति राजनीतिक सत्ता का उपयोग कर सकता था। राजत्व क्षत्रिय कुल में जन्म लेने पर शायद ही निर्भर करता था। दूसरे शब्दों में यह आवश्यक नहीं था कि केवल क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही गद्दी पर बैठ सकता था।

(3) शक वंश ब्राह्मण मध्य एशिया से आने वाले शकों को म्लेच्छ, बर्बर अथवा विदेशी मानते थे परन्तु कुछ शक राजा भी भारतीय रीति-रिवाज और परिपाटियों का अनुसरण करते थे। संस्कृत में लिखे हुए ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि लगभग दूसरी शताब्दी ईसवी में शक- शासक रुद्रदामन ने सुदर्शन झील की मरम्मत करवाई थी जिससे लोगों को बड़ी राहत मिली थी। इससे पता चलता है कि शक्तिशाली म्लेच्छ भी भारतीय राजाओं की भाँति प्रजावत्सल थे और संस्कृतीय परिपाटी से परिचित थे।

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(4) सातवाहन वंश अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार सातवाहन वंश के शासक ब्राह्मण थे। सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी ने स्वयं को ‘अनूठा ब्राह्मण’ एवं ‘क्षत्रियों के दर्प को चकनाचूर करने वाला’ बताया था। उनकी वर्ण व्यवस्था में पूर्ण आस्था थी। इसलिए उन्होंने चार वर्णों की व्यवस्था की मर्यादा को बनाये रखने का प्रयास किया।

प्रश्न 4.
ब्राह्मण किन लोगों को वर्णव्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर सामाजिक विषमता को और तीव्र कर दिया?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा अस्पृश्य लोगों को वर्ण- व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानना
(1) समाज के कुछ वर्गों को अस्पृश्य घोषित करना – ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे। उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर दिया और इस प्रकार सामाजिक विषमता को और अधिक तीव्र कर दिया।

(2) ‘अस्पृश्य’ घोषित करने के आधार ब्राह्मणों की यह मान्यता थी कि कुछ कर्म, विशेष रूप से अनुष्ठानों के सम्पादन से जुड़े हुए कर्म, पुनीत और पवित्र थे अतः अपने को पवित्र मानने वाले लोग अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे। इसके विपरीत कुछ कार्य ऐसे थे, जिन्हें विशेष रूप से ‘दूषित’ माना जाता था। शव की अन्त्येष्टि करने वालों और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा जाता था उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था। वे लोग, जो स्वयं को सामाजिक क्रम में सबसे ऊपर मानते थे, इन चाण्डालों का स्पर्श, यहाँ तक कि उन्हें देखना भी अपवित्रकारी मानते थे।

(3) चाण्डालों के कर्तव्य ‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डालों के निम्नलिखित कार्य थे –

  • चाण्डालों को गाँवों से बाहर रहना होता था।
  • वे फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे तथा मृतक लोगों के वस्त्र और लोहे के आभूषण पहनते थे।
  • रात्रि में वे गाँव और नगरों में घूम नहीं सकते थे।
  • उन्हें सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी।
  • उन्हें जल्लाद के रूप में भी कार्य करना पड़ता

(4) चीनी यात्रियों द्वारा चाण्डालों का वर्णन करना पाँचवीं शताब्दी ई. में फा-शिएन ने लिखा है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते समय करताल बजाकर अपने चाण्डाल होने की सूचना देने पड़ती थी जिससे अन्य लोग उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ इसी प्रकार लगभग सातवीं शताब्दी ई. में आने वाले चीनी यात्री श्वैन-त्सांग ने लिखा है कि जल्लाद और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था। इस प्रकार समाज में अस्पृश्यों की स्थिति शोचनीय थी। उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे।

प्रश्न 5.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर का हारना- कौरवों और पाण्डवों के बीच लम्बे समय से चली आ रही प्रतिस्पर्द्धा के फलस्वरूप दुर्योधन ने युधिष्ठिर को द्यूत क्रीड़ा के लिए आमन्त्रित किया। युधिष्ठिर अपने प्रतिद्वन्द्वी द्वारा धोखा दिए जाने के कारण इस द्यूत क्रीड़ा में सोना, हाथी, रथ, दास, सेना, कोष, राज्य तथा अपनी प्रजा की सम्पत्ति, अनुजों और फिर स्वयं को भी दाँव पर लगा कर गंवा बैठा। इसके बाद उन्होंने पांडवों की सहपत्नी द्रौपदी को भी दाँव पर लगाया और उसे भी हार गए। इससे यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल मैं पुरुष लोग अपनी पत्नियों को निजी सम्पति मानते थे।

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(2) प्राचीन काल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार- मनुस्मृति के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। परन्तु इसमें ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था। स्त्रियाँ इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की मांग नहीं कर सकती थीं।

(3) स्त्रीधन यद्यपि पैतृक संसाधन में स्त्रियाँ हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं, परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्त्रीधन’ अर्थात् ‘स्वी का धन’ कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थीं और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति’ स्त्रियों को पति की अनुमति के बिना पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को गुप्त रूप से एकत्रित करने से रोकती है।

(4) सामान्यतः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का नियन्त्रण होना- चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक कुल में हुआ था। वह एक धनाढ्य महिला थी। उसने दंगुन गाँव को एक ब्राह्मण आचार्य चनालस्वामी को दान किया था परन्तु अधिकांश साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यद्यपि उच्चवर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पैठ रखती थीं, फिर भी प्रायः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में, स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण से अधिक प्रबल हुई।

प्रश्न 6.
बी. बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर में किए गए उत्खनन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बी.बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर में उत्खनन कार्य महाभारत में अन्य प्रमुख महाकाव्यों की भाँति युद्धों, वनों राजमहलों और बस्तियों का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण है। 1951-52 ई. में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल ने मेरठ जिले (उत्तरप्रदेश) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि यह गाँव महाभारत में वर्णित हस्तिनापुर ही था। फिर भी नामों की समानता केवल एक संयोग हो सकता है, परन्तु गंगा के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में इस पुरास्थल का होना जहाँ कुरु राज्य भी था, इस ओर संकेत करता है कि शायद यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर ही था, जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।

(1) आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य-बी. बी. लाल को उत्खनन के दौरान यहाँ आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले थे जिनमें से दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(2) दूसरे स्तर के साक्ष्य दूसरे स्तर (लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई. पूर्व) पर मिलने वाले घरों के सम्बन्ध में बी.बी. लाल लिखते हैं कि “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ, वहाँ से आवास गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती परन्तु मिट्टी की बनी दीवार और कच्ची मिट्टी की ईंटें अवश्य मिलती हैं। सरकंडे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर संकेत करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकंडों की बनी धीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।”

(3) तीसरे स्तर के साक्ष्य तीसरे स्तर (लगभग छठी से तीसरी शताब्दी ई. पूर्व) के घरों के बारे में बी.बी. लाल लिखते हैं कि “तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटों के बने हुए थे। इनमें शोषकघट और ईंटों के नाले गंदे पानी के निकास के लिए प्रयुक्त किए जाते थे। वलय कूपों का प्रयोग, कुओं और मल की निकासी वाले गत दोनों ही रूपों में किया जाता था।

” महाभारत के आदिपर्वन में हस्तिनापुर के चित्रण से लाल द्वारा खोजे गए हस्तिनापुर के चित्रण से भिन्नता- महाभारत के आदिपर्वन में हस्तिनापुर का जो चित्रण किया गया है वह बी. बी. लाल के द्वारा खोजे गए हस्तिनापुर के चित्रण से बिल्कुल भिन्न है ऐसा प्रतीत होता है कि हस्तिनापुर नगर का यह चित्रण महाभारत के मुख्य कथानक में बाद में सम्भवतः ई. पूर्व छठी शताब्दी के बाद जोड़ा गया प्रतीत होता है, जब इस क्षेत्र में नगरों का विकास हुआ यह भी सम्भव है कि यह मात्र कवियों की कल्पना की उड़ान थी जिसकी पुष्टि किसी भी अन्य साक्ष्य से नहीं होती।

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प्रश्न 7.
“महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पांडवों के विवाह की है।” स्पष्ट कीजिए तथा द्रौपदी के विवाह के बारे में विभिन्न इतिहासकारों के मतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
द्रौपदी से पांडवों के विवाह की उपकथा का चुनौतीपूर्ण होना महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पांडवों के विवाह की है। यह बहुपति विवाह का उदाहरण है जो महाभारत की कथा का अभिन्न अंग है। द्रौपदी से पांडवों के विवाह के बारे में विभिन्न इतिहासकारों ने निम्नलिखित मत प्रकट किए हैं –

(1) बहुपति विवाह की प्रथा का शासकों के विशिष्ट वर्ग में विद्यमान होना वर्तमान इतिहासकारों ने यह मत प्रकट किया है कि महाभारत के लेखक (लेखकों) द्वारा बहुपति विवाह सम्बन्ध का वर्णन इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि सम्भवतः यह प्रथा शासकों के विशिष्ट वर्ग में किसी काल में विद्यमान थी किन्तु साथ ही इस प्रकरण के विभिन्न स्पष्टीकरण इस बात को भी व्यक्त करते हैं कि समय के साथ बहुपति प्रथा उन ब्राह्मणों में अमान्य हो गई, जिन्होंने कई शताब्दियों के दौरान इस ग्रन्थ का पुनर्निर्माण किया।

(2) बहुपति प्रथा का हिमालय क्षेत्र में प्रचलित होना- कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यद्यपि ब्राह्मणों की दृष्टि में बहुपति प्रथा अमान्य और अवांछित थी, फिर भी यह प्रथा हिमालय क्षेत्र में प्रचलित थी और आज भी प्रचलित है। यह भी तर्क दिया जाता है कि युद्ध के समय स्त्रियों की कमी के कारण बहुपति प्रथा को अपनाया गया था। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि बहुपति प्रथा को संकट की स्थिति में अपनाया गया था।

(3) सृजनात्मक साहित्य की अपनी कथा सम्बन्धी आवश्यकताएँ होना आरम्भिक स्रोतों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि बहुपति प्रथा न तो एकमात्र विवाह पद्धति थी और न ही यह सबसे अधिक प्रचलित थी। फिर भी महाभारत के लेखक (लेखकों) ने इस प्रथा को ग्रन्थ के प्रमुख पात्रों के साथ अभिन्न रूप से जोड़ कर क्यों देखा ? इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि सृजनात्मक साहित्य की अपनी कथा सम्बन्धी आवश्यकताएँ होती हैं जो सदैव समाज में विद्यमान वास्तविकताओं को उजागर नहीं करतीं।

प्रश्न 8.
महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी द्वारा खोजे गए विकल्पों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए महाश्वेता देवी द्वारा खोजे गए विकल्प प्रसिद्ध बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए अन्य विकल्पों की खोज की है और उन प्रश्नों की ओर ध्यान खींचा है जिन पर संस्कृत पाठ चुप है।

(1) दुर्योधन द्वारा पांडवों को छल से ‘लाक्षागृह’ मैं जलाकर मार देना- संस्कृत पाठ में दुर्योधन द्वारा पांडवों को छल से लाक्षागृह में जलाकर मार देने का उल्लेख आता है किन्तु पहले से मिली चेतावनी के कारण पांडव उस गृह में सुरंग खोदकर भाग निकलते हैं उस समय कुंती एक भोज का आयोजन करती है जिसमें ब्राह्मण आमन्त्रित होते हैं। किन्तु एक निषादी भी अपने पाँच पुत्रों के साथ उसमें आती है। भोजन करके वे गहरी नींद में सो जाते हैं और पांडवों द्वारा लगाई गई आग में वे उसी लाक्षागृह में जल कर मर जाते हैं। जब उस निषादी और उसके पुत्रों के जले हुए शव मिलते हैं तो कि पांडवों की मृत्यु हो गई है।

(2) महाश्वेता देवी की लघु कथा ‘कुंती ओ निषादी’ महाश्वेता देवी ने अपनी लघुकथा, जिसका शीर्षक ‘कुंती ओ निषादी’ है, के कथानक का प्रारम्भ वहीं से किया है, जहाँ महाभारत के इस प्रसंग का अंत होता है। उन्होंने अपनी कहानी की रचना एक वन्य प्रदेश में की है जहाँ महाभारत के युद्ध के बाद कुंती रहने लगती है। कुंती अपने अतीत के बारे में विचार करती है। वह पृथ्वी से बातें करते हुए अपनी त्रुटियों को स्वीकार करती है। प्रतिदिन वह निषादों को देखती है, जो जंगल में लकड़ी, शहद, कंदमूल आदि इकट्ठा करने आते हैं। एक निषादी प्रायः कुंती को पृथ्वी से बातें करते हुए सुनती है।

(3) निषादी द्वारा कुंती से लाक्षागृह की घटना के बारे में प्रश्न करना एक दिन आग लगने के कारण जानवर जंगल छोड़कर भाग रहे थे। कुंती ने देखा कि नियादी उन्हें घूर घूर कर देख रही थी जब निषादी ने कुंती से पूछा कि क्या उन्हें लाक्षागृह की याद है तो कुंती झेंप गई। उन्हें याद था कि उन्होंने वृद्धा निषादी तथा उसके पाँच पुत्रों को इतनी शराब पिलाई थी कि वे सब बेसुध हो गए थे जबकि वह स्वयं अपने पुत्रों के साथ बचकर लाक्षागृह से निकल गई थी।

जब कुंती ने उससे पूछा कि क्या तुम वही निषादी हो? तो उसने उत्तर दिया कि मरी हुई निषादी उसकी सास थी। साथ ही उसने यह भी कहा कि अपने अतीत पर विचार करते समय तुम्हें एक बार भी उन छ निर्दोष लोगों की याद नहीं आई जिन्हें मौत के मुंह में जाना पड़ा था, क्योंकि तुम तो अपने और अपने पुत्रों के प्राण बचाना लोग यह अनुमान लगा लेते हैं। चाहती थीं। आग की लपटें निकट आने के कारण निषादी तो अपने प्राण बचाकर निकल गई, परन्तु कुंती जहाँ खड़ी थी, वहीं रह गई।

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प्रश्न 9.
महाभारतकालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) महाभारतकालीन सामाजिक स्थिति- महाभारत काल में वर्ण व्यवस्था सुदृढ़ हो चुकी थी। समाज चार प्रमुख वर्णों में विभाजित था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चारों वर्णों में ब्राह्मणों को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता था। इस युग में पुत्री की अपेक्षा पुत्र का अधिक महत्त्व था। इस युग में सजातीय विवाहों का अधिक प्रचलन था, परन्तु अन्तर्जातीय विवाहों का भी उल्लेख मिलता है बहुपति प्रथा भी प्रचलित थी। द्रौपदी का विवाह पाँच पांडवों से हुआ था। स्वयंवर प्रथा प्रचलित थी। कुल मिलाकर स्वियों की स्थिति सन्तोषजनक थी।

(2) आर्थिक स्थिति इस युग के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि था। गेहूं, जौ, चावल, चना दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। राज्य की ओर से सिंचाई की व्यवस्था की जाती थी। पशुपालन भी आजीविका का एक अन्य मुख्य साधन था। इस युग में अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। स्वर्णकार, लुहार, कुम्हार, बढ़ई, जुलाहे, रंगरेज, चर्मकार, रथकार आदि अनेक शिल्पकार थे। वस्त्र उद्योग काफी उन्नत अवस्था में था। इस युग में वाणिज्य तथा व्यापार भी उन्नत अवस्था में था ।

(3) धार्मिक स्थिति इस युग में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। इस युग में अवतारवाद की अवधारणा प्रचलित थी। विष्णु के अवतार के रूप में राम, श्रीकृष्ण आदि की उपासना की जाती थी यज्ञों का महत्त्व भी बना हुआ था। परन्तु पशुबलि धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी।

(4) राजनीतिक स्थिति राज का पद बड़ा प्रतिष्ठित माना जाता था उसे अग्नि, सूर्य, यम, कुबेर आदि विभिन्न रूपों में प्रतिष्ठित किया गया है। लोक कल्याण और धर्मानुसार शासन करना उसके प्रमुख कर्त्तव्य थे। राजा का पद वंशानुगत था परन्तु शारीरिक दोष होने पर बड़े पुत्र को उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित किया जा सकता था। नेत्रहीन होने के कारण धृतराष्ट्र को गद्दी से वंचित रहना पड़ा था। राजा को सहयोग और सलाह देने के लिए मन्त्रिपरिषद् का गठन किया गया था। राजा के अन्य पदाधिकारियों में युवराज, सेनापति, द्वारपाल, दुर्गपाल आदि प्रमुख थे। सेना के चार प्रमुख अंग थे –

  • पैदल
  • अश्वारोही
  • गजारोही
  • रथारोही

महाभारत में कुछ गणराज्यों का भी उल्लेख मिलता है। गणराज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अपना संघ बना रखा था।

प्रश्न 10.
ब्राह्मणों ने धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों की रचना क्यों की? इसमें चार वर्गों के लिए जीविका- सम्बन्धी कौनसे नियम निर्धारित किए गए थे?
उत्तर:
(i) धर्मसूत्र में वेद विद्या के सिद्धान्त का वर्णन किया गया है। इसमें उच्च विचारों और भावों का समावेश है। धर्मसूत्र में सामाजिक नियमों का वर्णन मिलता है। धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सबसे प्राचीन है। इसमें प्राचीन विचारों के हिन्दुओं के जीवन के सभी पहलुओं के विषय में लिखा गया है। वर्तमान में भारतीय न्याय व्यवस्था में हिन्दुओं से सम्बन्धी कानून मनुस्मृति पर काफी हद तक आधारित हैं।

(ii) धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। ब्राह्मणों का यह मानना था कि यह व्यवस्था जिसमें ब्राह्मणों को पहला स्थान प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है। शूद्रों और अस्पृश्यों को सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था।

(iii) धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए आदर्श ‘जीविका’ से जुड़े कई नियम मिलते हैं। ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यह करना और करवाना था तथा उनका काम दान देना और लेना था।

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(iv) क्षत्रियों का कर्म युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना और दान-दक्षिणा देना था। अन्तिम तीन कार्य वैश्यों के लिए भी थे साथ ही उनसे कृषि, गौ पालन और व्यापार का कर्म भी अपेक्षित था शूद्रों के लिए मात्र एक ही जीविका थी – तीनों ‘उच्च’ वर्णों की सेवा करना।

(v) इन नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने दो-तीन नीतियाँ अपनाई। पहली नीति में यह बताया गया हैं कि वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति देवीय व्यवस्था है। दूसरा, वे शासकों को यह उपदेश देते थे कि वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में अनुसरण करें। तीसरे, उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है। किन्तु ऐसा करना आसान बात नहीं थी। अतः इन मानदण्डों को बहुधा महाभारत जैसे अनेक ग्रन्थों में वर्णित कहानियों के द्वारा बल प्रदान किया जाता था।

प्रश्न 11.
ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था में अस्पृश्य वर्ग की क्या स्थिति थी? मनुस्मृति में वर्णित चाण्डालों के कर्त्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर:

  1. वर्ण-व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली में ब्राह्मणों ने कुछ लोगों को अस्पृश्य घोषित किया था। ब्राह्मणों का मानना था कि कुछ कर्म, जिसमें विशेष रूप से ब्राह्मणों द्वारा सम्पन्न अनुष्ठान थे पुनीत और पवित्र होते थे। इन पवित्र कार्यों को करने वाले पवित्र लोग अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे।
  2. पवित्रता के इस पहलू के ठीक विपरीत कुछ कार्य ऐसे थे जिन्हें खासतौर से ‘दृषित’ माना जाता था। शवों की अन्त्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा जाता था। उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था।
  3. ब्राह्मण स्वयं को सामाजिक क्रम में सबसे ऊपर मानते थे, वे चाण्डालों का स्पर्श, यहाँ तक कि उन्हें देखना भी, अपवित्रकारी मानते थे।
  4. मनुस्मृति में चाण्डालों के ‘कर्तव्यों’ की सूची मिलती है। उन्हें गाँव के बाहर रहना होता था। वे फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में वे गाँव और नगरों में चल-फिर नहीं सकते थे।
  5. सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की उन्हें अंत्येष्टि करनी पड़ती थी तथा वधिक के रूप में भी कार्य करना होता था।
  6. लगभग पांचवीं शताब्दी ईसवी में चीन से आए बौद्ध भिक्षु फा शिएन का कहना है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ।
  7. लगभग सातवीं शताब्दी ईस्वी में भारत आए चीनी तीर्थयात्री श्वैन-त्सांग का कहना है कि वधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।

प्रश्न 12.
ऋग्वैदिक काल में सामाजिक जीवन, पारिवारिक जीवन, विवाह, मनोरंजन के साधन आदि की क्या विशेषताएँ थीं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऋग्वैदिक काल में भारतीय आर्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नति की वे एक सभ्य और सुसंस्कृत जीवन पद्धति का विकास कर चुके थे और दूसरी ओर संसार की अन्य जातियाँ अपनी आदिम अवस्था में ही विद्यमान थीं।

इस काल की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं –

(1) सामाजिक जीवन ऋग्वैदिककालीन आर्यों का जीवन पूर्णत: विकसित था, किन्तु ये लोग बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। सम्पूर्ण समाज चार भागों में विभाजित था। ये वर्ण कहलाते थे। ब्राह्मण धर्म-दर्शन और विचारों के अधिष्ठाता थे विद्या का पठन-पाठन इनका मुख्य कार्य था क्षत्रिय लोगों पर समाज की रक्षा का भार था। वैश्य कृषि का कार्य करते थे तथा व्यापार व कला-कौशल में दक्षता प्राप्त करके समाज की समृद्धि की चिन्ता करते थे। शूद्रों का कार्य अन्य वर्णों की सेवा करना था। ये चारों वर्ण कर्मप्रधान थे एक ही परिवार में विभिन्न वर्गों के लोग रहते थे एक वर्ण से दूसरे में परिवर्तन सम्भव था। इन वर्णों में पारस्परिक विवाह सम्पन्न होते थे।

(2) पारिवारिक जीवन परिवार पितृप्रधान हुआ करते थे। इस काल में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। पिता परिवार का मुखिया होता था। वह परिवार के सदस्यों में कार्य विभाजन करता था। पत्नी का स्थान भी महत्वपूर्ण होता था।

(3) विवाह वैदिक सभ्यता में विवाह एक धार्मिक संस्कार था। साधारणतः एक पत्नी की प्रथा प्रचलित थी। हालांकि कुलीन परिवारों में बहुपत्नी व बहुपति प्रथा के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। निकट सम्बन्धियों में विवाह नहीं होते थे। कन्याओं को स्वयंवर विवाह की अनुमति थी। साधारण परिवार की कन्याएँ भी स्वयंवर द्वारा स्वयं पति चुनती थीं।

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(4) वेश-भूषा तथा प्रसाधन-महाकाव्यकालीन लोग साधारण पोशाक ही धारण करते थे शरीर के ऊपरी भाग पर पहनने वाले वस्त्र को ऊर्ध्ववस्व तथा शरीर के निचले भाग पर धारण किए वस्त्र को अधोवस्य कहते थे। आभूषण स्वी और पुरुष दोनों ही पहनते थे। आभूषण सोने और चाँदी के होते थे जिनमें नग व मोती जड़े होते थे।

(5) मनोरंजन के साधन महाकाव्यकाल में मनोरंजन के प्रमुख साधन शिकार, नृत्य, संगीत, मल्लयुद्ध और गदायुद्ध आदि थे। जुआ भी खेला जाता था।

प्रश्न 13.
जाति प्रथा का विकास कैसा हुआ? सामाजिक विषमताओं के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही भारत में किसी न किसी रूप में जाति प्रथा प्रचलित रही है। प्रारम्भ में वर्णों के आधार पर कुल चार जातियाँ थीं— ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

जाति प्रथा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं परन्तु निम्न दो मत तर्कसंगत हैं –
(1) धर्मसूत्रों और धर्म-ग्रन्थों के आधार पर ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार, जैसेकि पुरुषसूक्त में वर्णन है कि जाति जन्म पर आधारित है, यह एक दैवीय व्यवस्था है। ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।

(2) श्रम विभाजन के आधार पर आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि जाति प्रथा का आरम्भ श्रम- विभाजन के कारण हुआ। शक्तिशाली तथा सामर्थ्यवान लोगों को देश की रक्षा का भार सौंपा गया; अतः योद्धाओं की एक विशेष जाति क्षत्रिय की उत्पत्ति हुई। आनुष्ठानिक धार्मिक कार्य और वेदाध्ययन करने वाले लोगों को ब्राह्मण कहा गया। व्यापारिक कार्यों तथा कृषि और पशुपालन जैसे कार्यों को करने वालों को वैश्य का दर्जा दिया गया। जो लोग इन सब कार्यों को करने का सामर्थ्य नहीं रखते थे उन्हें तीनों जातियों की सेवा का कार्य दिया गया और वे शूद्र कहलाए।

जाति प्रथा का सामाजिक विषमताओं में योगदान- आरम्भिक चरणों में जाति प्रथा इतनी कठोर नहीं थी क्योंकि यह जातीय भेद व्यवसायों पर आधारित था परन्तु बाद में जन्म आधारित मान्यता मिल जाने पर जाति प्रथा कठोर होती चली गई और इसके द्वारा समाज में बहुत-सी विषमताएँ उत्पन्न हुई –

  1. समाज में छुआछूत की भावना फैली। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीनों वर्ण शूद्रों को स्वयं से हीन समझने लगे, यहाँ तक कि कुछ लोगों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर दिया गया।
  2. ब्राह्मण अपने-आपको तथा क्षत्रिय स्वयं को सभी जातियों से उच्च समझते थे, इस कारण समाज में विद्वेष की भावना सम्पन्न हुई।
  3. शिक्षा का अधिकार केवल ब्राह्मणों के पास ही था, सैनिक शिक्षा क्षत्रियों तक ही सीमित रही।
  4. विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड, सामाजिक कुरीतियाँ समाज में प्रचलित हो गयीं।
  5. लोगों की राष्ट्रीय भावना में कमी आई एवं लोग अपने जातिगत स्वार्थी को पूरा करने में लग गये। इन सब कारणों से समाज की एकजुटता में कमी आई जिसका लाभ विदेशी शासकों ने उठाया।

प्रश्न 14.
महाभारत काल में लैंगिक असमानता के आधार पर सम्पत्ति के अधिकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महाभारत काल में स्वी की स्थिति तथा लैंगिक असमानता के कारण स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त युक्त नहीं थे। सम्पत्ति के अधिकारों की क्रमबद्ध व्याख्या निम्न है –

(1) वस्तु की भाँति पत्नी को निजी सम्पत्ति मानना इसका उदाहरण द्यूतक्रीड़ा के प्रकरण में मिलता है पाण्डव अपनी सारी सम्पत्ति कौरवों के साथ घृत- क्रीड़ा में चौसर के खेल में हार गए। अन्त में पाण्डवों ने अपनी साझी पत्नी द्रौपदी को भी निजी सम्पत्ति मानकर दाँव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। स्त्री को सम्पत्ति मात्र समझने के कई उदाहरण धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में प्राप्त होते हैं।

(2) मनुस्मृति के अनुसार सम्पत्ति का बँटवारा- मनुस्मृति में सम्पत्ति के बँटवारे के सम्बन्ध में वर्णित है कि माता-पिता की सम्पत्ति में उनकी मृत्यु के पश्चात् पुत्रों का समान अधिकार होता है इसलिए पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान बँटवारा करना चाहिए। माता-पिता की सम्पत्ति में पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं था।

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(3) स्त्री धन स्वियों हेतु धन की व्यवस्था स्वी धन के रूप में की गई थी। स्वी को विवाह के समय जो उपहार उसे परिवार और कुटुम्बजनों से प्राप्त होते थे; उन पर उनका अधिकार होता था उस पर पति का अधिकार भी नहीं होता था।

(4) सम्पत्ति अर्जन के पुरुषों के अधिकार – मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिये धन अर्जन के सात तरीके हैं; जैसे— विरासत, खोज, खरीद, विजित करके, निवेश, काम द्वारा तथा सज्जनों से प्राप्त भेंट

(5) उच्च वर्ग की महिलाओं की विशेष स्थिति- उच्च वर्ग की महिलाओं की स्थिति बेहतर थी। उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभुत्व रखती थीं। दक्षिण भारत में महिलाओं की स्थिति रस सम्बन्ध में और भी अच्छी थी। वाकाटक वंश की रानी चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त अत्यन्त प्रभावशाली महिला थी; उनके सम्पत्ति के अधिकारों के स्वामित्व का प्रमाण इस बात से मिलता है कि उन्होंने अपने अधिकार से एक ब्राह्मण को भूमिदान किया था।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

बहु-विकल्पी प्रश्न(Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए-
1. महाराष्ट्र राज्य में किस मृदा का अधिक विस्तार है?
(A) काली मृदा
(B) लाल मृदा
(C) जलोढ़ मृदा
(D) लेटराइट मृदा।
उत्तर:
(A) काली मृदा।

2. रेगड़ मृदा किसे कहते हैं?
(A) लाल मृदा
(B) लेटराइट मृदा
(C) काली मृदा
(D) जलोढ़ मृदा
उत्तर:
(C) काली मृदा।

3. मृदा निर्माण का प्रमुख साधन है।
(A) नदी
(B) वायु
(C) जनक सामग्री
(D) लहरें
उत्तर:
(C) जनक सामग्री।

4. मृदा की किस परत में जैव पदार्थ अधिक होते हैं?
(A) ‘क’ परत
(B) ‘ख’ परत
(C) ‘ग’ परत
(D) चट्टान
उत्तर:
(A) ‘क’ परत।

5. भारत में प्रथम मृदा सर्वेक्षण कब हुआ?
(A) 1936 में
(B) 1946 में
(C) 1956 में
(D) 1966 में।
उत्तर:
(C) 1956 में।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

6. जलोढ़ मृदा का देश के क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत पर विस्तार है?
(A) 30%
(B) 35%
(C) 40%
(D) 45%.
उत्तर:
(C) 40%.

7. नए जलोढ़क मृदा को कहते हैं
(A) तराई
(B) भाबर
(C) खादर
(D) बांगर
उत्तर;
(C) खादर।

8. ‘स्वयं जुताई मृदा’ किसे कहते हैं?
(A) जलोढ़
(B) काला
(C) लेटराइट
(D) लाल।
उत्तर:
(B) काली।

9. लेटराइट शब्द का अर्थ है।
(A) चीका
(B) ईंट
(C) तलछट
(D) पोटाश
उत्तर:
(B) ईंट

10. लवण मृदाएं अधिकतर किस राज्य में हैं?
(A) पंजाब
(B) महाराष्ट्र
(C) गुजरात
(D) केरल।
उत्तर:
(A) पंजाब।

11. किस घाटी में बीहड़ अधिक है?
(A) गंगा घाटी
(B) चम्बल घाटी
(C) उष्ण घाटी
(D) नर्मदा घाटी
उत्तर:
(B) चम्बल घाटी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

12. शिवालिक में मृदा अपरदन का मुख्य कारण है।
(A) वर्षा
(B) अति-चराई
(C) वनोन्मूलन
(D) नदी बांध|
उत्तर:
(C) वनोन्मूलन।

13. कृषि के लिए पहाड़ी क्षेत्र की ढलान कितनी है?
(A) 5-10% से कम
(B) 10–15% से कम
(C) 15-20% से कम
(D) 20-25% से कम
उत्तर:
(D) 20–25% से कम।

14. शुष्क प्रदेशों में बालू के टीलों का विस्तार कैसे रोका जा सकता है?
(A) वृक्षों की रक्षक मेखला
(B) वृक्षों की कटाई
(C) जल सिंचाई
(D) नदी बांध।
उत्तर:
(A) वृक्षों की रक्षक मेखला।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
यह सभी जीवित वस्तुओं के लिये भोजन उत्पादन करती है।

प्रश्न 2.
मिट्टी में पाये जाने वाले मुख्य आवश्यक तत्त्व लिखो।
उत्तर:
सिलीका, चीका तथा ह्यूमस।

प्रश्न 3.
मिट्टी में चीका का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह जल को सोख लेती है।

प्रश्न 4.
मृदा की तीन परतों के नाम लिखो।
उत्तर:
A स्तर, B स्तर, C स्तर

प्रश्न 5.
मृदा की परिभाषा दें।
उत्तर:
यह असंगठित पदार्थों की पतली परत होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 6.
उन तत्त्वों के नाम बतायें जिन पर मृदा की बनावट निर्भर करती है?
उत्तर:
मूल पदार्थ, धरातल, जलवायु

प्रश्न 7.
भारत में मृदा के तीन व्यापक प्रादेशिक भागों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. प्रायद्वीप की मिट्टियां।
  2. त्तरी मैदान की मिट्टियां।
  3.  हिमालय की मिट्टियां।

प्रश्न 8.
बनावट के आधार पर मृदा की तीन किस्में लिखो।
उत्तर:

  1. रेतीली मिट्टियां
  2. चीका मिट्टी
  3. दोमट मिट्टी

प्रश्न 9.
भारत में पाई जाने वाली अधिकतर व्यापक मिट्टी का नाम लिखो।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी

प्रश्न 10.
उत्तरी भारत में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी की दो मुख्य किस्में लिखो।
उत्तर:
खाद्दर तथा बांगर मिट्टी।

प्रश्न 11.
भारतीय मैदानों में विशाल क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टी का नाम लिखो।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 12.
खाद्दर तथा बांगर मिट्टी के दो स्थानीय नाम लिखें।
उत्तर:
खाद्दर मिट्टी – बैठ, बांगर मिट्टी – धाया।

प्रश्न 13.
तीन क्षेत्रों के नाम बतायें जहां पर खाद्दर मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
सतलुज बेसिन, गंगा का मैदान, यमुना बेसिन।

प्रश्न 14.
जलोढ़ मिट्टी में उत्पादित होने वाले दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर:
गेहूँ, चावल।

प्रश्न 15.
पश्चिम बंगाल के जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक किस फसल के लिये उपयोगी है?
उत्तर:
पटसन के लिये।

प्रश्न 16.
दक्कन पठार के छोर पर कौन-सी मिट्टी मिलती है?
उत्तर:
लाल मिट्टी।

प्रश्न 17.
कौन-सी मृदा प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती है?
उत्तर:
लाल मिट्टी

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 18.
उन दो राज्यों के नाम बतायें जहां पर लाल मिट्टी अधिकतर पाई जाती है।
उत्तर:
तमिलनाडु तथा छत्तीसगढ़।

प्रश्न 19.
उन तीन रंगों के नाम बतायें जिनसे लाल मिट्टी का निर्माण होता है।
उत्तर:
भूरा, चाकलेट तथा पीला।

प्रश्न 20.
रेगड़ मिट्टी का रंग बताओ।
उत्तर:
काला।

प्रश्न 21.
उन दो राज्यों के नाम लिखो जहां पर काली मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश

प्रश्न 22.
काली मिट्टी के दो अन्य नाम लिखो।
उत्तर:
कपास मिट्टी तथा रेगड़ मिट्टी

प्रश्न 23.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
दक्कन ट्रैप के ज्वालामुखी चट्टानों के लावा द्वारा।

प्रश्न 24.
एक फसल का नाम लिखें जिसके लिये काली मिट्टी बहुत उपयोगी है।
उत्तर:
कपास।

प्रश्न 25.
क्रिस प्रकार के जलवायु में लेटराइट मिट्टी का निर्माण होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 26.
लेटराइट मिट्टी की दो किस्में लिखो।
उत्तर:
उच्च मैदान लेटराइट मिट्टी तथा निम्न मैदान लेटराइट मिट्टी

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प्रश्न 27.
उन तीन राज्यों के नाम लिखो जहां पर लेटराइट मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा उड़ीसा

प्रश्न 28.
लेटराइट मिट्टी किस फसल के लिए सबसे अधिक उपयोगी है?
उत्तर:
बागानी फसल लगाने के लिये।

प्रश्न 29.
मरुस्थलीय मिट्टी किस प्रदेश में पाई जाती है?
उत्तर:
शुष्क मरुस्थल।

प्रश्न 30.
भारत के किस क्षेत्र में मरुस्थलीय मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
थार मरुस्थल ( राजस्थान तथा सिंध )।

प्रश्न 31.
मरुस्थलीय मिट्टी में उपज का क्या कारण है?
उत्तर:
सिंचाई

प्रश्न 32.
रेतीले मरुस्थल में पाई जाने वाली मिट्टी के दो प्रकार लिखो।
उत्तर:
तेज़ाबी तथा नमकीन।

प्रश्न 33.
उस क्षेत्र का नाम बतायें जहां पर्वतीय मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
हिमालय पर्वत।

प्रश्न 34.
पर्वतीय मिट्टी किस फसल के लिये उपयोगी है?
उत्तर:
चाय।

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प्रश्न 35.
पर्वतीय मिट्टी चाय के लिये उपयोगी क्यों है?
उत्तर:
पर्वतीय मिट्टियां तेज़ाबी होती हैं जो चाय को विशेष स्वाद देती हैं।

प्रश्न 36.
भारत के किस भाग में मृदा अपरदन के कारण अस्त-व्यस्त धरातल का निर्माण होता है?
उत्तर:
चम्बल घाटी।

प्रश्न 37.
परत अपरदन का क्या कार्य है?
उत्तर:
पहाड़ी ढलानों पर कृषि

प्रश्न 38.
चो से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चो शिवालिक की तलछटी में मौसमी नालों को कहा जाता है

प्रश्न 39.
जलोढ़ मृदाएँ कहां पाई जाती हैं? ये देश के कुल क्षेत्रफल के कितने भाग पर विस्तृत हैं?
उत्तर:
जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

प्रश्न 40.
भारत में जलोढ़ मृदाओं के क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
भारत में जलोढ़ मृदाएँ राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई गुजरात के मैदान तक फैली हुई हैं।

प्रश्न 41.
भारत में काली मृदाएँ कहां पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में काली मृदाएँ दक्कन के पठार के अधिकतर भाग पर पाई जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं।

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प्रश्न 42.
काली मृदाओं में मिलने वाले रासायनिक तत्त्व बताइये।
उत्तर:
रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूने, लौह, मैग्नीशिया और ऐलुमिना के तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 43.
भारत में लाल और काली मृदाएँ कहां पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्र की एक लम्बी पट्टी में लाल दुमट मृदा पाई जाती है। पीली और लाल मृदाएँ उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 44.
लैटेराइट का अर्थ बताइये लैटेराइट मृदाएँ किन क्षेत्रों में विकसित होती हैं?
उत्तर:
लैटेराइट लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं।

प्रश्न 45.
शुष्क मृदाओं में नमी और ह्यूमस की मात्रा कम क्यों होती है?
उत्तर:
शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और भी तीव्र गति से होने वाले वाष्पीकरण के फलस्वरूप शुष्क मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होती है।

प्रश्न 46.
लेटेराइट मिट्टी का सबसे अधिक उपयोग किस काम में होता है?
उत्तर:
भवन निर्माण।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी पर्त को मृदा कहते हैं। इस पर्त की मोटाई कुछ सें० मी० से लेकर कई मीटर तक हो सकती है। इसमें कई तत्त्व जैसे मिट्टी के बारीक कण, ह्यूमस, खनिज तथा जीवाणु मिले होते हैं। इन तत्त्वों के कारण इसमें कई परतें होती हैं। मृदा का निर्माण आधार चट्टानों के मूल पदार्थों तथा वनस्पति के सहयोग से होता है। किसी प्रदेश में यान्त्रिक तथा रासायनिक ऋतु अपक्षय द्वारा मूल चट्टानों के टूटने पर मिट्टी का निर्माण आरम्भ होता है । इसमें वनस्पति के गले – सड़े अंश के मिलने से कई भौतिक तथा रासायनिक कारकों के सहयोग से मृदा का पूर्ण विकास होता है। इस प्रकार मृदा की परिभाषा है, “Soil is the end product of the physical, chemical, biological and cultural factors which act and react together.”

प्रश्न 2.
मृदा जनन की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
मृदा जनन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा का निर्माण होता है। वातावरण के भौतिक, रासायनिक तथा जैविका तत्त्वों के योग से इस प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु चट्टानों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के क्षेत्र से प्राप्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मृदा का निर्माण होता है

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प्रश्न 3.
मृदा का मूल पदार्थ क्या है?
उत्तर:
आधार चट्टानों के रासायनिक तथा यान्त्रिक अपक्षरण से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मृदा का मूल पदार्थ कहा जाता है। इन सभी पदार्थों से मृदा का निर्माण होता है। मृदा का रंग, उपजाऊपन आदि मूल पदार्थों पर निर्भर करता है। लावा चट्टानों से बनने वाली मृदा का रंग काला होता है।

प्रश्न 4.
पर्यावरण के छः तत्त्वों के नाम बताइए जो मृदा जनन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:
मृदा जनन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा का निर्माण होता है। वातावरण के भौतिक, रासायनिक तथा जैविका तत्त्वों के योग से इस प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु, चट्टानों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के क्षेत्र से प्राप्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मृदा का निर्माण होता है। धरातल तथा भूमि की ढाल भी मृदा जनन पर प्रभाव डालते हैं।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मृदा की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर:
जलोढ़ मृदा की विशेषताएं-

  1. इसका निक्षेपण मुख्यतः नदी द्वारा होता है।
  2. इसका विस्तार नदी बेसिन तथा मैदानों तक सीमित होता है।
  3. यह अत्यधिक उपजाऊ मृदा होती है।
  4. इसमें बारीक कणों वाली मृदा पाई जाती है।
  5. इसमें काफ़ी मात्रा में पोटाश पाया जाता है, परन्तु फॉस्फोरस की कमी होती है।
  6. यह मृदा बहुत गहरी होती है।

प्रश्न 6.
भारत में उपलब्ध मिट्टी के प्रकारों में प्रादेशिक विभिन्नता के क्या कारण है?
उत्तर:
भारत की मिट्टियों में पाई जाने वाली प्रादेशिक विभिन्नता निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करती है

  1. शैल – समूह
  2. उच्चावच के धरातलीय लक्षण
  3. ढाल का रूप
  4. जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति
  5. पशु तथा कीड़े-मकौड़े।

प्रश्न 7.
पठारों तथा मैदानों की मिट्टी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पठारों तथा मैदानों की मिट्टी में मुख्य अन्तर मूल पदार्थों में पाया जाता है। पठारों में आधार चट्टानें कठोर होती हैं। इसकी मिट्टी में मूल पदार्थों की प्राप्ति इन चट्टानों से होती है। यह मिट्टी मोटे कणों वाली तथा कम उपजाऊ होती है। मैदानों में मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण कार्य से होता है। मैदानों में प्रायः जलोढ़ मिट्टी मिलती है। नदी में प्रत्येक बाढ़ के कारण महीन सिल्ट (Silt) तथा मृतिका (Clay) का निक्षेप होता रहता है।

प्रश्न 8.
चट्टानों में जंग लगने से कौन-सी मिट्टी का निर्माण होता है ? भारत में इस मिट्टी के तीन प्रमुख लक्षण बताओ।
उत्तर:
इस क्रिया से लाल मिट्टी का निर्माण होता है।

(i) विस्तार (Extent ):
भारत की सब मिट्टियों में से लाल मिट्टी विस्तार सबसे अधिक है। यह मिट्टी लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है। दक्षिणी में तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, छोटा नागपुर पठार तथा प्रायद्वीप पठार के बाहरी भागों में लाल मिट्टी का विस्तार मिलता है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics):
इस मिट्टी का निर्माण प्रायद्वीप की आधारभूत आग्नेय चट्टानों, ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों की टूट-फूट से हुआ है। इस मिट्टी का रंग लौहयुक्त चट्टानों में ऑक्सीकरण (oxidation) की क्रिया से लाल हो जाता है। वर्षा के कारण ह्यूमस नष्ट हो जाता है तथा आयरन ऑक्साइड ऊपरी सतह पर आ जाता है। इस मिट्टी में लोहा और एल्यूमीनियम की अधिकता होती है, परन्तु नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी होती है। यह मिट्टी कम गहरी तथा कम उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में ज्वार, बाजरा, कपास, दालें, तम्बाकू की कृषि होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 9.
समोच्च रेखा बन्धन किसे कहते हैं? मृदा को विनाश से बचाने के लिए इसका किस प्रकार प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखा बन्धन (Contour Bunding) – पर्वतीय ढलानों पर सम ऊंचाई की रेखा के साथ-साथ सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं ताकि मिट्टी के कटाव को रोका जा सके। ऐसे प्रदेश में खड़ी ढाल वाले खेतों में समान ऊंचाई की रेखा के साथ बांध या ढाल बनाई जाती है। ऐसे बांध को समोच्च रेखा बन्धन कहते हैं। इससे वर्षा के जल को रोक कर मृदा अपरदन से बचाया जा सकता है। इससे वर्षा के जल को नियन्त्रित करके बहते हुए पानी द्वारा मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
मृदा की उर्वरा शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिएं?
उत्तर:
मृदा की उर्वरा शक्ति का विकास करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं।

  1. मृदा अपरदन को रोकने के उपाय होने चाहिएं।
  2. मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए उर्वरकों और खादों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. फसलों के हेर-फेर की प्रणाली का प्रयोग करना चाहिए।
  4. कृषि की वैज्ञानिक विधियों को अपनाना चाहिए।
  5. मिट्टी के उपजाऊ तत्त्वों का संरक्षण करके रासायनिक तत्त्वों को मिलाना चाहिए।

प्रश्न 11.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषता किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
मृदा मानव के लिए बहुत मूल्यवान् प्राकृतिक सम्पदा है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएं आधारित हैं। मिट्टी पर कृषि, पशु पालन तथा वनस्पति जीवन निर्भर करता है। किसी प्रदेश का आर्थिक विकास मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करता है। कई देशों की कृषि अर्थव्यवस्था मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। संसार के प्रत्येक भाग में जनसंख्या का एक बड़ा भाग भोजन की पूर्ति के लिए मिट्टी पर निर्भर करता है।

अनुपजाऊ क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व तथा लोगों का जीवन स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई प्रदेश तथा केरल तट जलोढ़ मिट्टी से बने उपजाऊ क्षेत्र हैं। यहां उन्नत कृषि का विकास हुआ है । यह प्रदेश भारत में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला प्रदेश है। दूसरी ओर तेलंगाना में मोटे कणों वाली मिट्टी मिलती है तथा राजस्थान के शुष्क प्रदेश में रेतीली मिट्टी कृषि के अनुकूल नहीं है। इन प्रदेशों में विरल जनसंख्या पाई जाती है।

प्रश्न 12.
मृदा की उर्वरता समाप्ति के तीन कारण बताइए।
उत्तर:
मृदा एक मूल्यवान् प्राकृतिक संसाधन है। अधिक गहरी तथा उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेशों में कृषि का अधिक विकास होता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति के ह्रास के निम्नलिखित कारण हैं।

  1. कृषि भूमि पर निरन्तर कृषि करते रहने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। मृदा को उर्वरा शक्ति प्राप्त करने का पूरा समय नहीं मिलता।
  2. दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मृदा की उर्वरा शक्ति समाप्त होने लगती ह । स्थानान्तरी कृषि के कारण मृदा के उपजाऊ तत्त्वों का नाश होने लगता है। प्रतिवर्ष एक ही फसल बोने से मृदा के
  3. विशिष्ट प्रकार के खनिज कम होने लगते है।
  4. मृदा अपरदन से, वायु तथा जल द्वारा अपरदन से मृदा की उर्वरता समाप्त होती रहती है।

प्रश्न 13.
दक्षिणी पठार में पाई जाने वाली मृदा का लाल रंग क्यों है?
उत्तर:
दक्षिणी पठार के बाह्य प्रदेशों में लाल मिट्टी का अधिकतर विस्तार है। इस मिट्टी के मूल पदार्थ पठारी प्रदेश के पुराने क्रिस्टलीय तथा रूपान्तरित चट्टानों से प्राप्त होता है। इनमें ग्रेनाइट, नाईस तथा शिष्ट की चट्टानों का विस्तार है। इन चट्टानों में लोहा तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। उष्ण कटिबन्धीय जलवायु जलीकरण की क्रिया के कारण आयरन-ऑक्साइड द्वारा इस मिट्टी का रंग लाल हो जाता है।

तुलनात्मक प्रश्न ( Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
वनस्पति जाति और वनस्पति में क्या अन्तर है?
उत्तर:

वनस्पति जाति (Flora) वनस्पति (Vegetation)
(1) विभिन्न समय में किसी प्रदेश में उगने वाले पेड़पौधों के विभिन्न वर्गों को वनस्पति जाति कहा जाता है। (1) किसी प्रदेश में उगने वाले पेड़-पौधों की जातियों के समुच्चय को वनस्पति कहा जाता है।
(2) वनस्पति जातियां वातावरण के अनुसार पनपती हैं। (2) पेड़-पौधों की विभिन्न जातियां एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं।
(3) वनस्पति जातियों को एक वर्ग में रखकर उसे वनस्पति जाति का नाम दिया जाता है। जैसे-चीन तथा तिब्बत से प्राप्त होने वाले पेड़-पौधों को बोरियल कहा जाता है। (3) किसी पारिस्थितिक ढांचे में वन, पेड़-पौधे, घास एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं इसलिए इन्हें वनस्पति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
वनस्पति और वन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

वनस्पति (Vegetation) वन (Forest)
(1) किसी प्रदेश में उगने वाले पेड़-पौधों की जातियों के समूह को वनस्पति कहा जाता है। (1) पेड़-पौधों तथा झाड़ियों से घिरे हुए एक बड़े क्षेत्र को वन कहा जाता है।
(2) वनस्पति में एक वातावरण में उगने वाले पेड़पौधे और, झाड़ियों को शामिल किया जाता है। ऐसे भूदृश्य को wood land, grassland आदि नाम दिए जाते हैं। (2) घने तथा एक-दूसरे के निकट उगने वाले वृक्षों के क्षेत्र को वन कहा जाता है। वन शब्द का प्रयोग भूगोलवेत्ता तथा वन रक्षक करते हैं ताकि इनका आर्थिक मूल्यांकन किया जा सके।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 3.
संरचना, संकेन्द्रण क्षेत्र तथा रासायनिक रचना के संदर्भ में भारत की जलोढ़ तथा काली मिट्टी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

जलोढ़ मिट्टी काली मिट्टी
(1) क्षेत्र-इस मिट्टी का विस्तार उत्तरी मैदान की नदी घाटियों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों में है। (1) इस मिट्टी का विस्तार दक्षिणी भारत में लावा क्षेत्र में है जो कि गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तथा तमिलनाडु राज्यों में है।
(2) गठन-यह मिट्टी रेतीली, दोमट और चिकनी होती है। (2) यह मिट्टी गहरी तथा दानेदार, चिकनी तथा अप्रवेशी है।
(3) रचना-इस मिट्टी में पोटाश अधिक होती है पर फॉस्फोरस कम होती है। (3) इस मिट्टी में चूना, लोहा, एल्यूमीनियम और पोटाश अधिक होते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा निर्माण के मुख्य घटकों के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
मृदा निर्माण कई भौतिक तथा रासायनिक तत्त्वों पर निर्भर करता है। इन तत्त्वों के कारण मृदा प्रकारों के वितरण भिन्नता पाई जाती है। ये तत्त्व स्वतन्त्र रूप से या अलग से नहीं बल्कि एक-दूसरे के सहयोग से काम करते हैं।

1. मूल पदार्थ:
मृदा निर्माण करने वाले पदार्थों की प्राप्ति आधार चट्टानों से होती है। इन चट्टानों के अपक्षरण से मूल पदार्थ प्राप्त होते हैं। प्रायः पठारों की मिट्टी का सम्बन्ध आधार चट्टानों से होता है। मैदानी भागों में मृदा निर्माण का मूल पदार्थ नदियों द्वारा जमा किए जाते हैं। नदियों में बाढ़ के कारण प्रत्येक वर्ष मिट्टी की नई परत बिछ जाती है।

2. उच्चावच:
किसी प्रदेश का उच्चावच तथा ढाल मृदा निर्माण पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है। मैदानी भागों में गहरी मिट्टी मिलती है जबकि खड़ी ढाल वाले प्रदेशों में कम गहरी मिट्टी का आवरण होता है। पठारों पर भी मिट्टी की परत कम गहरी होती है। तेज़ ढाल वाले क्षेत्रों में अपरदन के कारण मिट्टी की ऊपरी परत बह जाती है। इस प्रकार किसी प्रदेश के धरातल तथा ढाल के अनुसार जल प्रवाह की मात्रा मृदा निर्माण को प्रभावित करती है।

3. जलवायु:
वर्षा, तापमान तथा पवनें किसी प्रदेश में मृदा निर्माण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। जलवायु के अनुसार सूक्ष्म जीव तथा प्राकृतिक वनस्पति भी मृदा पर प्रभाव डालते हैं। शुष्क प्रदेशों में वायु मिट्टी के ऊपरी परत को उड़ा ले जाती है। अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में मिट्टी कटाव अधिक होता ह।

4. प्राकृतिक वनस्पति:
किसी प्रदेश में मिट्टी का विकास प्राकृतिक वनस्पति की वृद्धि के साथ ही आरम्भ होता है। वनस्पति के गले – सड़े अंश के कारण मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। इसी कारण घास के मैदानों में उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में मृदा तथा वनस्पति के प्रकारों में गहरा सम्बन्ध पाया जाता है।

प्रश्न 2.
मिट्टी की परिभाषा दो भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण कर इन मिट्टियों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
मिट्टी (Soil) मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी पर्त को मृदा या मिट्टी कहते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि की सफलता मिट्टी के उपजाऊपन पर निर्भर है। भारत की मिट्टियों को तीन परम्परागत वर्गों में बांटा जाता है।
(A) प्रायद्वीप की मिट्टिया।
(B) उत्तरी मैदान की मिट्टियां।
(C) हिमालय प्रदेश की मिट्टियां।

(A) प्रायद्वीप की मिट्टियां (Soils of the Peninsular India):
भारतीय प्रायद्वीप की रब्बेदार चट्टानों से बनने वाली मिट्टियां निम्नलिखित प्रकार की हैं।

1. काली मिट्टी (Black Soil):
(i) विस्तार (Extent ): इस मिट्टी का विस्तार प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। यह गुजरात, महाराष्ट्र के अधिकांश भाग, मध्य प्रदेश, दक्षिणी उड़ीसा, उत्तरी कर्नाटक, दक्षिणी आंध्र प्रदेश में मिलती है। यह मिट्टी नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी तथा कृष्णा नदी की घाटियों में पाई जाती है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics):
इस मिट्टी का निर्माण लावा प्रवाह से बनी आग्नेय चट्टानों के टूटने-फूटने से हुआ है। यह अधिकतर दक्कन लावा (Deccan Trap) के क्षेत्र में मिलता है। इसलिए इसे लावा मिट्टी भी कहते हैं । इस मिट्टी का रंग काला होता है इसलिए इसे काली मिट्टी (Black Soil) भी कहते हैं । इसे रेगड़ मिट्टी (Regur Soil) भी कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है, परन्तु फॉस्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की शक्ति अधिक है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। इस मिट्टी की तुलना में इसकी ‘शर्नीज़म’ तथा अमेरिका की ‘प्रेयरी’ मिट्टी से की जाती है ।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ):
यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है। इसलिए इसे ‘कपास की मिट्टी’ (Cotton Soil) भी कहते हैं। पठारों की उच्च भूमि में कम उपजाऊ होने के कारण यहां ज्वार – बाजरा, दालों आदि की कृषि होती है। मैदानी भाग में गेहूं, कपास, तम्बाकू, मूंगफली तथा तिलहन की कृषि की जाती है।

2. लाल मिट्टी (Red Soil)
(i) विस्तार (Extent ): भारत की सब मिट्टियों में से लाल मिट्टी का विस्तार सबसे अधिक है। यह मिट्टी लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है। दक्षिणी भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, छोटानागपुर पठार तथा प्रायद्वीप पठार के बाहरी भागों में लाल मिट्टी का विस्तार मिलता है.

(ii) विशेषताएं (Characteristics): इस मिट्टी का निर्माण प्रायद्वीप की आधारभूत आग्नेय चट्टानों ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों की टूट-फूट से हुआ है। इस मिट्टी का रंग लौहयुक्त चट्टानों में ऑक्सीकरण (oxidation) की क्रिया से लाल हो जाता है। वर्षा के कारण ह्यूमस नष्ट हो जाता है तथा आयरन ऑक्साइड ऊपरी सतह पर आ जाता है। इस मिट्टी में लोहा और एल्यूमीनियम की अधिकता होती है परन्तु नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी होती है । यह मिट्टी कम गहरी तथा कम उपजाऊ होती है।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ): उच्च प्रदेशों में यह मिट्टी कम गहरी तथा अनुपजाऊ होती है। यहां केवल ज्वार – बाजरा की फसलें उगाई जाती हैं। नदी घाटियों में अधिक उपजाऊ मिट्टी में कपास, गेहूं, दालें अलसी, मोटे अनाज, तम्बाकू की कृषि की जाती है।

3. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil):
(i) विस्तार (Extent ): लैटेराइट मिट्टी का विस्तार एक विशाल क्षेत्र में लगभग 2.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर है। इस मिट्टी का विस्तार असम, राजमहल की पहाड़ियों, पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट, मध्य प्रदेश में विन्ध्याचल और सतपुड़ा पहाड़ियों के बसाल्ट क्षेत्र में है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics): इस मिट्टी का रंग ईंट (Brick) के समान लाल होता है। इस मिट्टी में लोहा, एल्यूमीनियम आदि तत्त्वों की अधिकता होती है। परन्तु नाइट्रोजन तथा वनस्पति अंश की कमी होती है। उष्ण-आर्द्र जलवायु में अपक्षालन क्रिया (Leaching of Soil) के कारण इस मिट्टी में से सिलिका की मात्रा कम रह जाती है तथा लौह पदार्थों की अधिकता हो जाती है। यह मिट्टी तुरन्त जल सोख लेती है। कणों के आधार पर यह मिट्टी दो प्रकार की है।
(क) उच्च प्रदेशों की लैटेराइट (Upland Laterite ): यह मिट्टी कम गहरी तथा कंकरीली होती है। यह कृषि के लिए उपजाऊ नहीं होती।
(ख) निचले प्रदेशों की लैटेराइट (Lowland Laterite ): यह मिट्टी बारीक कणों तथा दोमट के कारण अधिक उपजाऊ है।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ): मैदानी भागों में चाय, रबड़, कहवा, सिनकोना तथा मोरे- अनाज की कृषि की जाती है।

4. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
(i) विस्तार (Extent):
यह प्रवाहित मिट्टी है जो नदियों द्वारा डेल्टाई क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मिट्टी का विस्तार महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदी घाटियों में तथा डेल्टाई प्रदेशों में मिलता है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics):
यह मिट्टी उत्तरी मैदान की मिट्टियों की भान्ति उपजाऊ है। इसमें पोटाश तथा चूने की अधिकता है परन्तु नाइट्रोजन की कमी है। इस मिट्टी में पटसन, चावल, गन्ना आदि फसलों की कृषि की जाती है।

(B) उत्तरी मैदान की मिट्टियां (Soils of the Northern Plain): उत्तरी मैदान की अधिकांश मिट्टियां जलोढ़ तथा नवीन हैं। यह मिट्टियां नदियों द्वारा पर्वतीय भागों से लाए गए तलछट के जमाव से बनी हैं।1. जलोढ़ मिट्टियां (Aluvial Soils):
(i) विस्तार (Extent ): इन मिट्टियों का विस्तार पश्चिम में पंजाब से लेकर असम तक मिलता है। यह मिट्टियां पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल असम तथा राजस्थान के लगभग 7.7 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में पाई जाती हैं। भारत के 43.7% क्षेत्र पर जलोढ़ मिट्टियों का विस्तार है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा 1

(ii) विशेषताएं (Characteristics): यह गहरी तथा उपजाऊ मिट्टी है। गंगा – सतलुज का मैदान इसी मिट्टी से बना हुआ है। यह मिट्टी लगभग 400 मीटर गहरी है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और जीवांश की कमी होती है परन्तु पोटॉश तथा चूना पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। उपजाऊपन तथा रचना के आधार पर जलोढ़ मिट्टियों को तीन उपविभागों में बांटा जाता है।

(क) बांगर मिट्टी (Banger Soil): यह पुरातन जलोढ़ मिट्टियां हैं। पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊंचे प्रदेश को बांगर कहते हैं, जहां बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता इसे धाया भी कहते हैं।
(ख) खादर मिट्टियां (Khadar Soils ): नदी के समीप नवीन मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं। नदियों बाढ़ कारण प्रति वर्ष जलोढ़ की नई पर्त बिछ जाने से यह अधिक उपजाऊ मिट्टी है। इसे बेट भी कहा जाता है।
(ग) नूतनतम जलोढ़ मिट्टियां (Newest Alluvial Soils): नदी डेल्टाई प्रदेशों में बारीक कणों के निक्षेप से इन मिट्टियों का विस्तार मिलता है।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ): इन मिट्टियों को कांप की मिट्टी तथा दोमट मिट्टी भी कहा जाता है। इसकी तुलना संसार के उपजाऊ मैदानों से की जाती है। यह वास्तव में भारत का अन्न भण्डार है। इन मिट्टियों में गेहूं, चावल, पटसन की कृषि भी की जाती है। जल सिंचाई की सहायता से गन्ना, कपास, तम्बाकू तथा तिलहन की कृषि की जाती है।

2. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil):
इस मिट्टी का विस्तार शुष्क प्रदेशों में राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा में मिलता है। इसका क्षेत्रफल लगभग 2 लाख वर्ग कि०मी० है। यह मोटे कणों वाली बलुआही मिट्टी होती है। इसमें जल सिंचाई की सहायता से ज्वार, बाजरा, कपास की कृषि की जाती है। राजस्थान प्रदेश में इन्दिरा नहर के निर्माण से इस मिट्टी में जल सिंचाई की सहायता से अधिक उत्पादन हो सकेगा।

3. नमकीन एवं क्षारीय मिट्टियां (Saline and Alkaline Soils):
यह शुष्क प्रदेशों तथा दलदली भागों में पाई जाती है। इनका विस्तार लगभग 1 लाख वर्ग कि० मी० में है। इन्हें प्रायः थूर, ऊसर, कल्लर, रेह आदि नामों से पुकारा जाता है। इस मिट्टी में लवणों की मात्रा अधिक जमा हो जाती है जिससे यह अनुपजाऊ बन जाती है।

(C) हिमालय प्रदेश की मिट्टियां (Soils of the Himalayas ) इन मिट्टियों की पर्याप्त खोज अभी नहीं हो पाई है। अधिकांश मिट्टियां पतली, अनुपजाऊ तथा कम गहरी हैं। हिमालय प्रदेश की मिट्टियों को तीन उपविभागों में बांटा जाता है।

  1. पथरीली मिट्टी (Stony Soil): दक्षिणी स्थानों पर मोटे कणों वाली पथरीली मिट्टी मिलती है जो अनुपजाऊ है।
  2. चाय की मिट्टी (Soil of Tea): पर्वतीय ढलानों पर तथा दून घाटियों में उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिसमें चूना तथा लोहे का अंश अधिक होता है। इसमें चाय की कृषि अधिक की जाती है।
  3. लावा मिट्टी (Volcanic Soil): पर्वतीय ढलानों पर लावा से बनी मिट्टी मिलती है।

(D) पीटमय तथा जैव मृदाएँ
वनस्पति की अच्छी बढ़वार वाले तथा भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त क्षेत्रों में ये मृदाएँ पाई जाती हैं। वनस्पति की तीव्र वृद्धि के कारण इन क्षेत्रों में जैव पदार्थ भारी मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं। इससे मृदाओं में पर्याप्त मात्रा में जैव तत्त्व और ह्यूमस होता है। इसीलिए ये पीटमय और जैव मृदाएँ हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थों की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत तक हो सकती है। ये मृदाएँ सामान्यतः भारी और काले रंग की होती है। अनेक स्थानों पर ये क्षारीय भी हैं। बिहार के उत्तरी भाग, उत्तराखंड के दक्षिणी भाग, बंगाल के तटीय क्षेत्रों, उड़ीसा और तमिलनाडु में ये मृदाएँ अधिकतर पाई जाती हैं। ये मृदाएँ हल्की और कम उर्वरता का उपभोग करने वाली फसलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।

(E) वन मृदाएँ
नाम के अनुरूप ये मृदाएँ पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षत्रो में ही बनती हैं। इन मृदाओं का निर्माण पर्वतीय पर्यावरण में होता है। इस पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार इन मृदाओं का गठन और संरचना बदलती रहती है। घाटियों में ये दुमटी और गादयुक्त होती है तथा ऊपरी ढालों पर ये मोटे कणों वाली होती है। हिमालय के हिम से ढके क्षेत्रों में इन मृदाओं में अनाच्छादन होता रहता है तथा ये अम्लीय और कम ह्यूमस वाली होती हैं। निचली घाटियों में पाई जाने वाली मृदाएँ उपजाऊ होती हैं और इनमें चावल तथा गेहूँ की खेती की जाती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 3.
मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? भारत बीहड़ों की रचना तथा विवरण बताओ
उत्तर:
मृदा अपरदन जब तक मृदा निर्माण की प्रक्रियाओं और मृदा अपरदन में सन्तुलन बना रहता है, तब तक कोई समस्या नहीं पैदा होती। इस सन्तुलन के बिगड़ते ही, मृदा अपरदन एक खतरा बन जाता है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, चरागाहों में बेफिक्री से अति चराई, अवैज्ञानिक अपवाह प्रक्रियाएं तथा भूमि का अनुचित उपयोग इस सन्तुलन को बिगाड़ने के महत्त्वपूर्ण कारणों में से कुछ हैं। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक,
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा 2
दिल्ली, राजस्थान और देश के अन्य अनेक भागों में मृदा अपरदन एक समस्या रही है। पहाड़ी ढालों पर गो- पशुओं द्वारा अति चराई से मृदा अपरदन की गति तेज़ हो जाती है। मेघालय और नीलगिरि की पहाड़ियों पर आलू की खेती और हिमालय और पश्चिमी घाट पर वनों के विनाश तथा देश के विभिन्न भागों में जन- जातीय लोगों द्वारा की जाने वाली झूम कृषि के कारण मृदाओं का उल्लेखनीय क्षरण हुआ है।

बीहड़ (Ravines)

  1. चम्बल नदी की द्रोणी में बीहड़ (Ravines) बहुत विस्तृत हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर, मोरैना और भिंड ज़िलों में तथा उत्तर प्रदेश के आगरा, इटावा और जालौन जिलों में बीहड़ 6 लाख हेक्टेयर भूमि में फैले हैं।
  2. तमिलनाडु के दक्षिणी व उत्तरी अर्काट, कन्याकुमारी, तिरूचिरापल्ली, चिंगलीपुत, सेलम और कोयंबटूर जिलों में भी बीहड़ खूब हैं।
  3. पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया जिले की कंगसाबती नदी के ऊपर जलग्रहण क्षेत्रों में अनेक अवनालिकाएँ (gullies) और बीहड़ हैं। देश की लगभग 8,000 हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष बीहड़ बन जाती है।

मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव:

  1. भारत की कृषि भूमि में से 80,000 हेक्टेयर भूमि अब तक बेकार हो गई है तथा इससे भी बड़ा क्षेत्र प्रतिवर्ष मृदा अपरदन के कारण कम उत्पादक हो जाता है।
  2. मृदा अपरदन भारतीय कृषि के लिए एक राष्ट्रीय संकट बन गया है। इसके दुष्प्रभाव अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई पड़ते हैं।
  3. नदी की घाटियों में अपरदित पदार्थों के जमा होने से उनकी जल-प्रवाह क्षमता घट जाती है, इससे प्रायः बाढ़ें आती हैं तथा कृषि भूमि को क्षति पहुंचती है।
  4. उदाहरण के लिए तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली में कावेरी नदी का तल क्रमशः ऊपर उठ गया है। इसके परिणामस्वरूप सिंचाई के पुराने जल कपाट और अपवाह धाराएँ अवरुद्ध हो गई हैं।
  5. ब्रह्मपुत्र नदी के उथले होने से प्रतिवर्ष बाढ़ें आती हैं।
  6. तालाबों में गाद जमा होना, मृदा अपरदन का अन्य गंभीर परिणाम हैं। देश के विभिन्न भागों में अनेक तालाबों में प्रतिवर्ष गाद जमा हो जाती है।

मृदा अपरदन के प्रकार:
भारत में मृदा अपरदन के दो सबसे अधिक सक्रिय कारक हैं- पवन और प्रवाहित जल पवन द्वारा अपरदन गुजरात, राजस्थान और हरियाणा के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में सामान्य रूप से होता है। भारी मृदाओं की तुलना में हल्की मृदाओं पर पवन – अपरदन का अधिक प्रभाव पड़ता है। पवन द्वारा उड़ाकर लाया गया बालू समीप की कृषि भूमि पर फैलकर जमा हो जाता है और उसकी उर्वरता को नष्ट कर देता है। जल- अपरदन अपेक्षाकृत अधिक गम्भीर है।

इससे भारत के विभिन्न भाग विस्तृत रूप से प्रभावित हैं। जल अपरदन के मुख्यतः दो रूप हैं- परतदार अपरदन और अवनालिका अपरदन। समतल भूमि पर मूसलाधार वर्षा के बाद परतदार अपरदन होता है। इसमें मृदा के हटने का आसानी से पता ही नहीं चलता है। तीव्र ढालों पर सामान्यतः अवनालिका अपरदन होता है। वर्षा के द्वारा अवनालिकाएं गहरी होती जाती हैं। ये कृषि भूमि को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट देती है। इससे भूमि खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाती है।

मृदा अपरदन के कारक:
मृदा के गुण ह्रास में अनेक कारकों का योगदान रहता है। उदाहरणार्थ, जब जंगल काट दिए जाते हैं, तब मृदा में ह्यूमस की आपूर्ति ठप्प हो जाती है। यही नहीं, मृदा की ऊपरी परत को हटाने में प्रवाहित जल की क्षमता बढ़ जाती है। यदि अपवाह तन्त्र गड़बड़ा जाता है, तो जल भराव या मृदा की नमी का ह्रास होने लगता है। मृदा के अत्यधिक उपयोग से इसकी उर्वरता समाप्त हो जाती है। आर्द्र क्षेत्रों में प्रवाहित जल और शुष्क क्षेत्रों में पवन द्वारा मृदा के हटाए जाने को मृदा अपरदन कहते हैं। इसके विपरीत इसके जैव और खनिज तत्त्वों के हटाए जाने को मृदाक्षय कहते हैं। मृदा के दुरुपयोग से इसका अपक्षरण होता है।

मृदा अपरदन, क्षय और अपक्षरण में लिप्त कारक हैं- प्रवाहित जल, पवन, हिम, जीव-जन्तु और मानव । मानव वनोन्मूलन अति चराई और कृषि के अवैज्ञानिक तरीकों से मृदा के पारितन्त्र को अस्त-व्यस्त कर देता है । विरल वनस्पति वाले क्षेत्रों और तीव्र ढालों पर विशेष रूप से ऊबड़-खाबड़ भूमि पर तथा नदी भागों के साथ-साथ प्रायः बीहड़ दिखाई पड़ जाते हैं। कोसी नदी के द्वारा किया गया अपरदन कुख्यात हो गया है। राजस्थान के शुष्क प्रदेश पवन – अपरदन की चपेट में हैं। गहन कृषि और अतिचराई अपरदन और मरुस्थलीकरण की प्रक्रियाओं को तेज़ कर देते हैं

वनोन्मूलन तथा मृदा अपरदन।
वनोन्मूलन मृदा अपरदन के प्रमुख कारकों में से एक है। पौधों की जड़ें मृदा को बांधे रखकर अपरदन को रोकती हैं। पत्तियां और टहनियां गिरा कर वे मृदा में ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि करते हैं। वास्तव में सम्पूर्ण भारत में वनों का विनाश हुआ है। लेकिन देश के पहाड़ी भागों, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी घाट पर मृदा अपरदन में इसका बड़ा हाथ है।

राज्य & क्षेत्रफल 12.30
उत्तर प्रदेश 6.83
मध्य प्रदेश 4.52
राजस्थान 4.00
गुजरात 0.20
महाराष्ट्र 1.20
पंजाब 6.00
बिहार 0.60
तमिलनाडु  1.04
पश्चिम बंगाल 12.30

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 4.
मृदा अपरदन किसे कहते हैं? इसके क्या कारण हैं ? मानव ने मृदा अपरदन से बचाव के कौन- कौन से तरीके अपनाए हैं?
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion ):
भूतल की ऊपरी सतह से उपजाऊ मिट्टी का उड़ जाना या बह जाना मृदा अपरदन कहलाता है। भूतल की मिट्टी धीरे-धीरे अपना स्थान छोड़ती रहती है जिससे कृषि के अयोग्य हो जाती है। मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion) – मृदा अपरदन तीन प्रकार से होता है।

  1. धरातलीय कटाव (Sheet Erosion)
  2. नालीदार कटाव ( Guly Erosion)
  3. वायु द्वारा कटाव (Wind Erosion )

मृदा अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion):

  1. मूसलाधार वर्षा (Torrential Rain): पर्वतीय प्रदेशों की तीव्र ढलानों पर मूसलाधार वर्षा का जल मिट्टी की परत बहा कर ले जाता है। इससे यमुना घाटी में उत्खात भूमि की रचना हुई है।
  2. वनों की कटाई (Deforestation ): वनों के अन्धाधुन्ध कटाव से मृदा अपरदन बढ़ जाता है; जैसे – पंजाब में शिवालिक पहाड़ियों पर तथा मैदानी भाग में चो (Chos) द्वारा मृदा अपरदन एक गम्भीर समस्या है।
  3. स्थानान्तरी कृषि (Shifting Agriculture ): वनों को जला कर कृषि के लिए प्राप्त करने की प्रथा से झुमिंग (Jhumming) से उत्तर पूर्वी भारत में मृदा अपरदन होता है।
  4. नर्म मिट्टी (Soft Soils): कई प्रदेशों में नर्म मिट्टी के कारण मिट्टी की परत बह जाती है।
  5. अनियन्त्रित पशु चारण (Uncontrolled Cattle Grazing ): पर्वतीय ढलानों पर चरागाहों में अनियन्त्रित पशुचारण से मिट्टी के कण ढीले होकर बह जाते हैं।
  6. धूल भरी आन्धियां (Dust Storms ): मरुस्थलों के निकटवर्ती प्रदेशों में तेज़ धूल भरी आन्धियों के कारण मिट्टी का परत अपरदन होता है।

मृदा अपरदन रोकने के उपाय (Methods to Check Soil Erosion) मिट्टी के उपजाऊपन को कायम रखने के लिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। मृदा अपरदन रोकने के लिए कई प्रकार के उपाय प्रयोग किए जाते हैं।
(i) वृक्षारोपण (Afforestation ):
पर्वतीय ढलानों पर मिट्टी को संगठित रखने के लिए वृक्ष लगाए जाते हैं नदियों के ऊपरी भागों में वन क्षेत्रों का विस्तार करके मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इसी प्रकार राजस्थान मरुस्थल की सीमाओं पर वन लगाकर वायु द्वारा अपरदन रोकने के लिए उपाय किए गए हैं।

(ii) नियन्त्रित पशु चारण (Controlled Grazing ):
ढलानों पर चरागाहों में बे-रोक-टोक पशु चारण को रोका जाए ताकि घास को फिर से उगने और बढ़ने का समय मिल सके।

(iii) सीढ़ीनुमा कृषि (Terraced Agricuture ):
पर्वतीय ढलानों पर सम ऊंचाई की रेखा के साथ सीढ़ीदार खेत बनाकर वर्षा के जल को रोक कर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(iv) बांध बनाना (River Dams):
नदियों के ऊपरी भागों पर बांध बनाकर बाढ़ नियन्त्रण द्वारा मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(v) अन्य उपाय:
भूमि को पवन दिशा के समकोण पर जोतना चाहिए जिससे पवन द्वारा मिट्टी कटाव कम हो सके स्थानान्तरी कृषि को रोका जाए। वायु की गति को कम करने के लिए वृक्ष लगा कर वायु रोक (wind break) क्षेत्र बनाना चाहिए। फसलों के हेर-फेर तथा भूमि को परती छोड़ देने से मृदा अपरदन कम किया जा सकता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(A) लौह व निकल
(B) सिलिका एवं एल्यूमीनियम
(C) लौह व चांदी
(D) लौह ऑक्साइड एवं पोटाशियम।
उत्तर:
सिलिका एवं एल्यमीनियम।

2. निम्न में से कौन-सी कायान्तरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(A) परिवर्तनीय
(B) क्रिस्टलीय
(C) शान्त
(D) पल्लवन।
उत्तर:
परिवर्तनीय।

3. निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(A) स्वर्ण
(B) माइका
(C) चांदी
(D) ग्रेफाइट।
उत्तर:
माइका।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

4. निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?
(A) टोपाज़
(B) क्वार्ट्ज़
(C) हीरा
(D) फेल्डस्पार।
उत्तर:
फेल्डस्पार।

5. निम्न में से कौन-सी शैल अवसादी नहीं है?
(A) टायलाइट
(B) ब्रेशिया
(C) बोरैक्स
(D) संगमरमर।
उत्तर:
संगमरमर।

6. स्थलमण्डल के लगभग तीन-चौथाई हिस्से में कौन-सी चट्टानें पाई जाती हैं?
(A) आग्नेय
(B) अवसादी
(C) कायांतरित
(D) सभी बराबर-बराबर
उत्तर:
अवसादी।

7. निम्नलिखित में से कौन-सी अवसादी शैल है?
(A) बलुआ पत्थर
(B) अभ्रक
(C) ग्रेनाइट
(D) नीस।
उत्तर:
बलुआ पत्थर।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं ? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएं।
उत्तर:
भूपृष्ठ का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस, जैव और अजैव पदार्थों को शैल करते हैं। इनके तीन प्रमुख वर्ग हैं

  1. आग्नेय शैल
  2. अवसादी शैल
  3. कायांतरित शैल।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अन्तर कैसे स्थापित करेंगे?
उत्तर:
भूपृष्ठीय शैलों के प्रमुख तीन प्रकार हैं। इनको निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया जाता है

  1. आग्नेय शैल-मैगमा तथा लावा से धनीभूत
  2. अवसादी शैल-बहि स्रोत प्रक्रियाओं से निक्षेपण।
  3. कायांतरित शैल-उपस्थित शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण।

प्रश्न 3.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या सम्बन्ध होता है।
उत्तर:
एक वर्ग की चट्टानों का दूसरे वर्ग की चट्टानों में बदलने की क्रिया को चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। इस चक्र में दो प्रकार की शक्तियां कार्य करती हैं
1. पृथ्वी की भू-गर्भ में गर्मी।

2. बाह्य शक्तियों से अपरदन। पृथ्वी पर सबसे पहले आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। विभिन्न कारकों द्वारा अपरदन से तलछट प्राप्त होने पर तथा जमाव से तलछटी चट्टानें बनती हैं! ये चट्टानें ताप, दाब तथा रासायनिक क्रिया से रूपांतरित चट्टानें बन जाती हैं। रूपांतरित चट्टानें फिर पिघल कर आग्नेय चट्टानें बन जाती हैं। अपक्षय तथा अपरदन से ये फिर तलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इस प्रकार चट्टानों के एक वर्ग से दूसरे वर्ग में परिवर्तन की क्रिया एक चक्र (Cycle) में चलती है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आग्नेय शैलें क्या हैं? आग्नेय शैलों की निर्माण पद्धति एवं लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निर्माणकारी शैलों में आग्नेय शैल सबसे प्रमुख है। आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks):
आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थों के ठण्डा व ठोस हो जाने से बनी हैं। (Igneous rocks have been formed by cooling of molten matter of the earth.) ये पृथ्वी पर सर्वप्रथम बनीं, इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं।

इग्नियस (Igneous) शब्द लैटिन शब्द इग्निस (Ignis) से बना है जिसका अर्थ अग्नि (Fire) है। पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा (Magma) है जिसका औसत तापमान 600 से 1200°C होता है। इस मैग्मा के ठोस होने तथा ग्रेनाइटीकरण की क्रिया से आग्नेय शैलें बनती हैं।आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks): उत्पत्ति के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं

  1. बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर बाहर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks) बनती हैं।
  2. भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है तो भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks) बनती हैं।

इस प्रकार लावा के ठोस होने की क्रिया तथा स्थान के आधार पर ये चट्टानें तीन प्रकार की हैं
1. ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks):
ये चट्टानें ज्वालामुखी के लावा प्रवाह (Lava flow) के कारण ज्वालामुखी चट्टानें ज्वालामुखी बनती हैं। यह पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा वायुमण्डल के सम्पर्क
बाह्य चट्टानें में आकर ठण्डा हो जाता है। गैस रहित मैग्मा को लावा कहते हैं। धरातल पर लावा शीघ्र ठण्डा हो जाता है तथा पूर्ण रूप से – डाइक – सिल – रवे (crystals) नहीं बनते। इन शैलों के रवों का आकार छोटा होता है। ये चट्टानें शीशे (glass) की भांति होती हैं। इन शैलों में रवों का विकास नहीं होता, जैसे-ऐन्डेसाइट, प्यूमिस तथा आन्तरिक चट्टानें – पातालीय चट्टानें ऑबसीडियन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल 1

उदाहरण: बसॉल्ट (Basalt) तथा गैब्रो (Gabbro) इसके अच्छे उदाहरण हैं। भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में बसॉल्ट चट्टानों के बने एक विशाल क्षेत्र को दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) कहते हैं जो 5 लाख वर्ग कि० मी० में फैला हुआ है।

2. मध्यवर्ती चट्टानें (Intermediate Rocks):
ये भीतरी चट्टानें धरातल से नीचे कुछ गहराई पर छिद्रों तथा दरारों में लावा जम जाने से बनती हैं। बाह्य तथा भीतरी चट्टानों के मध्य स्थित होने के कारण मध्यवर्ती चट्टानें कहते हैं। धरातल के समानान्तर (Horizontal) बनने वाली चट्टानों को सिल (Sill) तथा धरातल पर लम्बाकार (Vertical) बनने वाली चट्टानों को डाइक (Dyke) कहते हैं। ये भीतरी चट्टानें हैं। मैग्मा धीरे-धीरे ठण्डा होता है। इनमें छोटे-छोटे रवे बनते हैं। उदाहरण: डोलेराइट (Dolerite) चट्टान तथा माइका पेग्मेटाइट इसके उदाहरण हैं। ।

3. पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks):
ये चट्टानें अधिक गहराई पर बनती हैं। जब मैग्मा बाहर आने में असमर्थ होता है। तब लावा स्रोत में ही जम जाता है। अधिक गहराई पर लावा धीरे-धीरे ठण्डा तथा कठोर होता है तथा बड़े आकार के मोटे रवे बनते हैं। इन चट्टानों का नाम “प्लूटो” (Pluto) के नाम पर रखा गया है जिसका अर्थ “पाताल देवता” है। पृथ्वी तल पर अपरदन के पश्चात् ये चट्टानें ऊपर प्रकट होती हैं। कई प्रकार के गुम्बद (Domes) तथा बैथोलिथ (Batholith) बनते हैं।

उदाहरण: (i) ग्रेनाइट (Granite) नाम को कठोर चट्टान इसका विशेष उदाहरण है।
(ii) भारत में रांची का पठार तथा सिंहभूम प्रदेश (बिहार) में दक्कन पठार तथा राजस्थान में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

अम्ल तथा क्षारीय चट्टानें (Acid and Basic Rocks):
संरचना की दृष्टि से जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 66% से अधिक होती है, उन्हें अम्ल चट्टानें (Acid Rocks) कहते हैं, जैसे-क्वार्ट्ज तथा ग्रेनाइट। जिन शैलों में सिलिका की मात्रा कम होती है, उन्हें क्षारीय चट्टानें (Basic Rocks) कहते हैं, जैसे बसॉल्ट व गैब्रो। जिन शैलों में सिलिका अनुपस्थित होता है, उन्हें अत्यल्पसिलिक (Ultra Basic) शैल कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल की निर्माण पद्धति बताओ।
उत्तर:
अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks):
अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद (Sediments) जमाव से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते (Sedimentary Rocks are those rocks which have been formed by deposition of Sediments.) तलछट में छोटे व बड़े आकार के कण पत्थर बादल – जैविक निक्षेप होते हैं। इन कणों के एकत्र होकर नीचे बैठ जाने (settle down) से अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल 2

तलछट के साधन (Sources of Sediments): पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थ को जल, वायु, हिम नदी जमा करते रहते हैं।

तलछट जमा होने का स्थान (Places of Deposition): ये तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं या मरुस्थलों के धरातल आदि क्षेत्रों में जमा होते हैं।

रचना (Formation): इन चट्टानों की रचना कई पदों (stages) में पूर्ण होती है। तलछट की परतों के संवहन (compaction) तथा संयोजन (cementation) से अवसादी शैलों का निर्माण होता है।

  1. तलछट का निक्षेप (Deposition): यह पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण तथा उसके बाद छोटे कण (During the deposition the material is sorted out according to size.)
  2. परतों का निर्माण (Layers): लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में जमा होते हैं।
  3. ठोस होना (Solidification): ऊपरी परतों के भार के कारण परतें संगठित होने लगती हैं। सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक (Cementing agent) चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं । इस प्रकार इन दोनों क्रियाओं के सम्मिलित रूप’को शिला भवन (Lithification) कहते हैं।

अवसादी चट्टानों के प्रकार (Types of Sedimentary Rocks): तलछटी चट्टानें तीन प्रकार से बनती हैं

  1. यान्त्रिक क्रिया द्वारा (Mechanically Formed Rocks)
  2. जैविक पदार्थों द्वारा (Organically Formed Rocks)
  3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा (Chemically Formed Rocks)

अवसादी चट्टानें निर्माण के साधनों तथा जमाव के स्थान के अनुसार निम्नलिखित प्रकार की हैं
(i) यान्त्रिक क्रिया द्वारा (Mechanically Formed Rocks):
इन चट्टानों का निर्माण अपरदन व परिवहन करने वाली शक्तियों द्वारा होता है, जैसे-नदी, पवन, हिम नदी आदि। इन चट्टानों के पदार्थ यान्त्रिक रूप से प्राप्त होते हैं।

(क) बालुकामय चट्टानें (Arenaceous Rocks):
इन शैलों में बालू (Sand) व बजरी की अधिकता होती है। क्वार्टज (Quartz) इसका मुख्य निर्माणकारी खनिज है। बालू पत्थर (Sandstone) इसका मुख्य उदाहरण है। बजरी तथा कई गोल पत्थरों के परस्पर मिलने से कांग्लोमरेट का निर्माण होता है।

(ख) मृणमय चट्टानें (Argillaceous Rocks):
इन चट्टानों में चिकनी मिट्टी (Clay) के बारीक कणों की अधिकता होती है। ये चट्टानें प्रायः कीचड़ के ठोस होने से बनती हैं। शैल (Shale) इस वर्ग की सब से महत्त्वपूर्ण तथा प्रचुर मात्रा में मिलने वाली चट्टान है। यह मूलतः सिल्ट एवं मृतिका का जमाव है। यह मिट्टी के बर्तन तथा ईंटें बनाने के काम आती है। गंगा के मैदान में चिकनी तथा दोमट मिट्टी मिलती है।

(ii) जैविक अवसादी चट्टानें (Organically Formed Rocks):
इन चट्टानों का निर्माण जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के अवशेषों के दब जाने से होता है। . ये चट्टानें मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं

1. कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks):
भूमि के उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु तथा वनस्पति भूमि के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव तथा गर्मी के कारण दलदली क्षेत्रों में, वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। कार्बन की मात्रा के अनुसार पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), बिटुमिनस (Bituminous) तथा एंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण इसी प्रकार होता है। भारत में कोयला दामोदर घाटी में मिलता है।

2. चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks):
समुद्र के जीव-जन्तु समुद्र के जल से चूना ग्रहण करके अपने पिंजर (Skeleton) का निर्माण करते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं तो यह कवच तथा अस्थि पिंजर परतों के रूप में संगठित होकर । चट्टान बन जाते हैं, जैसे चूने का पत्थर (Lime Stone), खड़िया मिट्टी (Chalk), डोलोमाइट (Dolomite)। इनमें मुख्यत: कैलसाइट खनिज पाया जाता है। प्रवाल भित्तियों (Coral reefs) का निर्माण भी इसी प्रकार होता है।

3. रासायनिक चट्टानें (Chemically Formed Rocks):
जल में कई रासायनिक तत्त्व घुले होते हैं। जब जल भाप बन कर उड़ जाता है तो रासायनिक पदार्थ तहों के रूप में रहते हैं तथा कठोर चट्टानें बन जाते हैं, जैसे नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum)। इन चट्टानों के निर्माण में अधिक समय लगता है। इनका संघटन कैल्शियम सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड से होता है।

अवसादी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics):

  1. इन चट्टानों में विभिन्न परतें पाई जाती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानान्तर मिलती हैं। दो परतों के तल को अलग करने वाले तल को संस्तरण तल कहते हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जन्तु तथा वनस्पति के अवशेष (Fossils) पाए जाते हैं।
  4. जल में निर्माण के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम तथा प्रवेशीय होती हैं तथा इनका अपरदन शीघ्र होता है। अधिकतर चट्टानें क्षैतिज स्थिति में पाई जाती हैं।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग पर फैली हुई हैं, परन्तु पृथ्वी की गहराई में इनका विस्तार केवल 5% है। (The Sedimentary Rocks are important for extent, not for depth.)

अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance): परतदार चट्टानें मानव जीवन के लिए मूल्यवान् हैं।

  1. कोयला तथा पेट्रोलियम शक्ति के मुख्य साधन हैं।
  2. इन चट्टानों में सोना, टिन तथा तांबा आदि खनिज पाए जाते हैं।
  3. चिकनी मिट्टी से ईंटें, चूने से सीमेंट, बालू से कांच बनता है।
  4. चूने का पत्थर भवन निर्माण में प्रयोग होता है।
  5. कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं।
  6. तलछटी चट्टानों से बने मैदान कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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प्रश्न 3.
रूपांतरित शैल क्या है? इसके प्रकार व निर्माण पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
रूपांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks):
Metamorphose शब्द का अर्थ है “रूप में परिवर्तन” (Change in form)। ये वे चट्टानें हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, गुण, आकार तथा खनिज बदल देती हैं। आग्नेय तथा तलछटी चट्टानों के मूल रूप में इतना परिवर्तन हो जाता है कि नवीन चट्टानों को पहचानना कठिन होता है। परिवर्तन की इस क्रिया को रूपान्तरण कहते हैं जो धरातल से हज़ारों मीटर की गहराई पर होता है। ये परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं
(1) भौतिक परिवर्तन
(2) रासायनिक परिवर्तन।

इन परिवर्तनों के होते हुए भी चट्टानों में विघटन या तोड़-फोड़ नहीं होता। यह परिवर्तन दो कारकों से होता हैपरिवर्तन के कारक (Agents of Change) : ताप,  दबाव।

(a) सम्पर्क रूपान्तरण (Contact Metamorphism): गर्म लावा के स्पर्श से आस-पास के प्रदेश की चट्टानें जब झुलस जाती हैं तब उनके रवे पूर्णतः बदल जाते हैं। जैसे-गर्म लावा के स्पर्श से चूने का पत्थर (Lime Stone), संगमरमर (Marble) बन जाता है। इसे स्थानीय रूपान्तरण (Local Metamorphism) भी कहते हैं। इसे तापीय रूपांतरण भी कहते हैं। एवरेस्ट शिखर पर ये चट्टानें पाई जाती हैं।

(b) क्षेत्रीय रूपान्तरण (Regional Metamorphism): पृथ्वी की उथल-पुथल, भूकम्प, पर्वत-निर्माण के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है। ऊपरी परतों के दबाव से निचली चट्टानों के गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर विशाल प्रदेशों में होता है। रूपान्तरण की तीव्रता जैसे-जैसे बढ़ती है, शैल स्लेट में, स्लेट शिस्ट में तथा शिस्ट नीस में रूपान्तरित हो जाती है। इसे गतिक रूपान्तरण भी कहते हैं। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

मूल चट्टान रूपान्तरित चट्टान
(1) शैल (Shale) (1) स्लेट (Slate)
(2) अभ्रक (Mica) (2) शिस्ट (Schist)
(3) ग्रेनाइट (Granite) (3) नीस (Gneiss)
(4) रेत का पत्थर (Sand stone) (4) क्वार्टजाइट (Quartzite)
(5) कोयला (Coal) (5) ग्रेफाइट (Graphite)

विशेषताएं (Characteristics):

  1. इन चट्टानों की कठोरता बढ़ जाती है।
  2. चट्टानों के खनिज पिघल कर इकट्ठे हो जाते हैं।
  3. ठोस होने के कारण अपरदन कम होता है।
  4. इन चट्टानों में रत्न, मणिक, नीलम जैसे बहुमूल्य जवाहरात मिलते हैं।
  5. इनमें खनिज मिश्रित जल के स्रोत मिलते हैं जिससे त्वचा के रोग मिट जाते हैं।
  6. गृह-निर्माण के कई पदार्थ संगमरमर, स्लेट, क्वार्टजाइट मिलते हैं।

खनिज एवं शैल JAC Class 11 Geography Notes

→ पृथ्वी की संरचना (Structure of Earth): हमारी जानकारी पृथ्वी की संरचना के बारे में सीमित है। पृथ्वी की रचना तीन परतों से हुई है-भूपर्पटी, मैंटल तथा क्रोड। सबसे बाहरी परत को भूपृष्ठ कहते हैं। ।
इसे सियाल या स्थल मण्डल भी कहते हैं। इससे निचली पर्त सीमा है, पृथ्वी के आन्तरिक भाग को क्रोड या नाइफ या बैरी स्फीयर कहते हैं।

→ शैल (Rocks): शैल आमतौर पर खनिजों के इकट्ठे होने से बनती है। एक साधारण मनुष्य के लिए शैल एक कठोर पदार्थ है। भू-पृष्ठ का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं।

→ चट्टानों की किस्में (Types of Rocks): रचना के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया गया है

  • आग्नेय चट्टानें
  • तलछटी चट्टानें
  • रूपान्तरित चट्टानें।

→ आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks): आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थों के ठण्डा व ठोस हो जाने से बनी हैं।

→ आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Ingneous Rocks): उत्पत्ति स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं

(क) बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर बाहर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks) बनती है।
(ख) भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है तो भीतरी चट्टानें बनती हैं। लावा के ठोस होने की क्रिया तथा स्थान के आधार पर आग्नेय चट्टानें तीन प्रकार की हैं

→ ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks): जब लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से ठण्डा होता है तथा धरातल पर ही ठण्डा हो जाता है तब ज्वालामुखी चट्टानें बनती हैं। उदाहरण: बेसॉल्ट।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

→ मध्यवर्ती चट्टानें (Hypabyssal Rocks): जब लावा पृथ्वी के भीतर दरारों में जम कर ठोस हो जाता है तो मध्यवर्ती चट्टानें बनती हैं, जैसे सिल तथा डाइक।

→ पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks): जब मैग्मा गहराई में धीरे-धीरे जम जाता है तो पातालीय चट्टानें बनती हैं। उदाहरण-बैथोलिथ आदि।

→ आग्नेय चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Igneous Rocks): ये चट्टानें ढेरों पर पाई जाती ! हैं। इनमें रवे होते हैं। ये ठोस तथा पिण्ड अवस्था में मिलती हैं ।

→ अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks): अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद के जमाव से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। ये तलछट नदियों, समुद्रों, झीलों में वायु, हिमनदी तथा नदियों द्वारा निक्षेप की जाती हैं।

→ तलछटी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Sedimentary Rocks): ये चट्टानें परतों में पाई जाती हैं। इन चट्टानों में जीव-जन्तु तथा वनस्पति के अवशेष पाए जाते हैं। ये चट्टानें नरम होती हैं, इन्हें आसानी से अपरदित किया जा सकता है।

→ रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks): रूपान्तरित शब्द का अर्थ है-रूप में परिवर्तन। इसलिए रूपान्तरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, आकार तथा खनिज बदल लेती हैं। उच्च तापमान के प्रभाव के कारण चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। अधिक दबाव के कारण शैल, स्लेट में बदल जाती है। ये कठोर चट्टानें हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की सम्भावना व्यक्त की थी?
(A) अल्फ्रेड वेगनर
(B) अब्राह्म आरटेलियस
(C) एनटोनियो पेलग्रिनी
(D) एडमंड हैस।
उत्तर:
अब्राह्म आरटेलियस।

2. पोलर फ्लींग बल (Polar fleeing force) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?
(A) पृथ्वी का परिक्रमण
(B) पृथ्वी का घूर्णन
(C) गुरुत्वाकर्षण
(D) ज्वारीय बल।
उत्तर:
पृथ्वी का घूर्णन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

3. इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?
(A) नाजका
(B) फिलिप्पिन
(C) अरब
(D) अंटार्कटिक।
उत्तर:
अंटार्कटिक।

4. सागरीय तल विस्तार सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न से किस अवधारणा को नहीं विचारा?
(A) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएं
(B) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(D) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु।
उत्तर:
विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण।

5. हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(A) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(B) अपसारी सीमा
(C) रूपान्तर सीमा
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण।
उत्तर:
महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण।

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6. निम्न में से कौन-सी मुख्य प्लेट नहीं है?
(A) अफ्रीकी
(B) अंटार्कटिका
(C) यूरेशियाई
(D) अरेबियन।
उत्तर:
अरेबियन।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वैगनर ने किन-किन बलों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
प्रवाह सम्बन्धी बल (Force for drifting): वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के दो कारण थे

  1. पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल (Polar fleeing force)
  2. ज्वारीय बल (Tidal force)। ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से सम्बन्धित है। ज्वारीय बल सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से सम्बद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।

प्रश्न 2.
मैंटल में संवहन धाराओं के आरम्भ होने तथा बने रहने के क्या कारण थे?
उत्तर:
संवहन-धारा सिद्धान्त (Convectional current theory):
1930 के दशक में आर्थर होम्स (Arthur Holmes) ने मैंटल (Mantle) भाग में संवहन-धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की। ये धाराएँ रेडियो एक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है। यह उन प्रवाह बलों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास था, जिसके आधार पर समकालीन वैज्ञानिकों ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त को नकार दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त व प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त में मूलभूत अन्तर बताइए।
उत्तर:
वैगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के अनुसार प्राचीन काल में एक सुपर महाद्वीप पेंजिया के रूप में विद्यमान था। इस के विभिन्न भाग महाद्वीप गतिमान हैं। महाद्वीप विभिन्न कालों में विस्थापन के कारण विभिन्न स्थितियों में थे। परन्तु प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीपों के ठोस पिण्ड प्लेटों पर स्थित थे। पेंजिया अलग-अलग प्लेटों के ऊपर स्थित महाद्वीपों के खण्डों से बना था। महाद्वीपीय खण्ड एक या दूसरी प्लेट के भाग थे। ये प्लेटें लगातार विचरण कर रही हैं। ये भूतकाल में गतिमान थी और भविष्य में भी गतिमान रहेंगी।

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प्रश्न 2.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त की प्रमुख खोज क्या है जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:
प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त कई वैज्ञानिक खोजें हुईं। मोरगन तथा मैकेन्ज़ी द्वारा प्लेट विवर्तनिकी अवधारणा का विकास किया। ये प्लेटें दुर्बलता मण्डल पर एक इकाई के रूप में चलायमान हैं। चट्टानों के पुरा चुम्बकीय अध्ययन तथा महासागरीय तल के मानचित्रण ने कई नए तथ्यों को उजागर किया। महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार से लावा बाहर निकलता है। इस विभेदन से लावा दरारों को भर कर पर्पटी को दोनों तरफ धकेलता है जिससे महासागरीय अधस्तल का विस्तार होता है।

प्रश्न 3.
प्लेट की रूपान्तर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:
(क) रूपान्तर सीमा-इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।
(ख) अभिसरण सीमा-इस सीमा पर एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है।
(ग) अपसारी सीमा-इस सीमा पर दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं।

प्रश्न 4.
दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थल खण्ड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। उस समय भारतीय स्थल खण्ड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। उस समय भारतीय प्लेट ने एशियाई प्लेट की ओर प्रवाह किया।

प्रश्न 5.
प्लेट किसे कहते हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ठोस स्थलखण्ड के विभाजित भागों को प्लेट कहा जाता है। प्लेट बड़ी या छोटी हो सकती है। ‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूजो विल्सन ने किया था।

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प्रश्न 6.
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त प्लेटों के स्वभाव एवं प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1960 के दशक में किया गया। हैरी हेस, विल्सन, मॉर्गन, मैकन्जी तथा पार्कट आदि विद्वानों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का भू-पटल सात बड़ी प्लेटों में बंटा हुआ है तथा ये प्लेटें लगातार गति कर रही हैं। ये प्लेटें एक दूसरे के सन्दर्भ में तथा पृथ्वी की घूर्णन-अक्ष के सन्दर्भ में निरंतर गति कर रही हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
अथवा
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वैगनर का महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त (Wegner’s Continental Drift Theory)-सन् 1912 में जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायु ज्ञाता वैगनर ने यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया। वैगनर ने महाद्वीप बहाव का सिद्धान्त प्रस्तुत किया कि प्राचीन काल में महाद्वीप एक-दूसरे से अलग खिसक गए। सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण (Proofs): वैगनर के महाद्वीपीय बहाव सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं

1. महाद्वीपों में साम्य:
अन्ध महासागरों के दोनों तटों की समानता एक आरी के दांतों (Jig-saw-fit) की तरह है। इन तटों को यदि आपस में मिला दिया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह महाद्वीप कभी एक इकाई थे। सन् 1964 में बुलर्ड (Bullard) ने कम्प्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया।

2. भू-गर्भिक प्रमाण (Geological Proofs):
मध्य अफ्रीका, मैडागास्कर, दक्षिणी भारत, ब्राज़ील तथा ऑस्ट्रेलिया के तटों पर पाई जाने वाली चट्टानों में समानता पाई जाती है। 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की पट्टी सिद्ध करता है कि यह महाद्वीप कभी गौंडवानालैंड के भाग थे। भू-वैज्ञानिक क्रियाओं के फलस्वरूप 47 करोड़ वर्ष पुरानी पर्वत पट्टी का निर्माण एक निरन्तर कटिबन्ध के रूप में हुआ था। यह रेडियो मीट्रिक काल निर्धारण विधि (Radiomitric dating) से ज्ञात हुआ।

3. जीवाश्मों का वितरण (Distribution of LAURASIA fossils):
अर्जेन्टीना, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका में पाए जाने वाले जीवाश्मों में समानता भी इस सिद्धान्त की पुष्टि करती है। उदाहरण के लिए मैसोसोरस नामक जन्तुओं के जीवाश्म गौंडवानालैंड के सभी महाद्वीपों में मिलते हैं जबकि आज के महाद्वीप एक-दूसरे से काफ़ी दूर हैं। लैमूर भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। कुछ वैज्ञानिक इन तीनों स्थल खण्डों को जोड़कर एक सतत् स्थल खण्ड लैमूरिया (Lemuria) की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं।

4. टिलाइट (Tillite):
टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं जो हिमानी निक्षेप में बनती हैं। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के निक्षेप दक्षिणी गोलार्द्ध के 6 विभिन्न स्थल खण्डों में मिलते हैं। इसी क्रम के निक्षेप भारत, अफ्रीका, फ़ॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया में मिलते हैं। टिलाइट की समानता महाद्वीपों के विस्थापन को स्पष्ट करती हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण 1

5. ग्लेशियरी प्रभावों के प्रमाण (Glacial Proofs):
महान् हिम युग के प्रभाव ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं जो सिद्ध करते हैं कि ये महाद्वीप उस समय इकटे थे।

6. पुरा जलवायवी एकरूपता:
जलवायविक प्रमाणों से पता चलता है कि दक्षिणी महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े हुए थे। यहां एक जैसी जलवायविक दशाएं थीं। आज ये महाद्वीप विभिन्न कटिबन्धों में स्थित है।

7. प्लेसर निक्षेप (Placer Deposits):
घाना तट व ब्राज़ील तट पर सोने के बड़े निक्षेप मिलते हैं। यह स्पष्ट करता है कि दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े थे।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

महासागरों और महाद्वीपों का वितरण JAC Class 11 Geography Notes

→ महाद्वीपीय संचलन सिद्धान्त: सन् 1912 में अल्फ्रेड वैगनर ने महाद्वीपीय संचालन का सिद्धान्त प्रचलित किया।

→ पेंजियायह एक महा: महाद्वीप था जो दो भागों में विभक्त हो गया-अंगारालैंड तथा गोंडवानालैंड यह घटना। एक सौ पचास (150) मिलियन वर्ष पूर्व हुई।

→ गोंडवानालैंड: पेंजिया के दक्षिणी भू-खण्ड को गोंडवानालैंड कहते हैं जिसमें दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका के महाद्वीप शामिल थे।

→ महाद्वीपीय संचलन के प्रमाण:

  • Jig-Saw-Fit
  • भू-गर्भिक संरचना
  • जीव-जन्तुओं के जीवाश्म
  • ध्रुवों का घूमना
  • प्लेट सिद्धान्त।

→ प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त: इसके अनुसार भू-मण्डल सात दृढ़ प्लेटों में विभक्त है।

→ प्रशान्त महासागरीय प्लेट: यह सबसे बड़ी प्लेट है जो भू-पृष्ठ के 20% भाग पर विस्तृत है।।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(A) भूकम्पीय तरंगें
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) ज्वालामुखी
(D) पृथ्वी का चुम्बकत्व।
उत्तर:
ज्वालामुखी।

2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(A) शील्ड
(B) मिश्र
(C) प्रवाह
(D) कुण्ड।
उत्तर:
प्रवाह।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमण्डल को वर्णित करता है?
(A) ऊपरी व निचले मैंटल
(B) भूपटल व क्रोड
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(D) मैंटल व क्रोड।
उत्तर:
भूपटल व ऊपरी मैंटल।

4. निम्न में भूकम्प तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(A) ‘P’ तरंगें
(B) ‘S’ तरंगें
(C) रेले तरंगें।
(D) ‘L’ तरंगें।
उत्तर:
‘P’ तरंगें।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूकम्प का अर्थ है पृथ्वी का कम्पन। भूकम्प के कारण ऊर्जा निकलने से तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर प्रभाव डालती हैं। इन्हें भूकम्पीय तरंगें कहते हैं।

प्रश्न 2.
भूकम्प की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
खनन, प्रवेधन, ज्वालामुखी।

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प्रश्न 3.
भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भू-गर्भ की जानकारी सम्बन्धी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:

  1. तापमान, दबाव व घनत्व में परिवर्तन दर
  2. उल्काएं
  3. गुरुत्वाकर्षण
  4. चुम्बकीय क्षेत्र
  5. भूकम्प। प्रश्न

प्रश्न 4. भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएं जिनसे होकर यह तरंगें गुज़रती हैं।
उत्तर:
इन तरंगों के संचरण से शैलों में कम्पन होती है। तरंगों से कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के समान्तर होती है तथा शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया होती है। अन्य तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कम्पन पैदा करती हैं। इनसे शैलों में उभार व गर्त बनते हैं।

प्रश्न 5.
रिक्टर स्केल से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
भूकम्प के वेग की तीव्रता को मापने के लिए चार्ल्स एफ रिक्टर द्वारा निर्मित उपकरण को रिक्टर स्केल कहते हैं। चार्ल्स एफ रिक्टर एक अमेरिकी वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 1935 में इस पैमाने को विकसित किया था। इसमें 1 से 10 तक अंक लिखे होते हैं जो भूकम्प की तीव्रता को दर्शाते हैं। 1 का अंक न्यूनतम वेग और 10 अधिकतम वेग को दर्शाता है। रिक्टर स्केल सामान्य रूप में लॉगरिथम के अनुसार काम करता है।

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प्रश्न 6.
भूकम्प विज्ञान क्या होता है?
उत्तर:
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूकम्प का अध्ययन किया जाता है, भूकंप विज्ञान (Seismology) कहलाता है और भूकम्प विज्ञान का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को भूकंप विज्ञानी कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्वेधी आकृतियाँ:
ज्वालामुखी उद्गार से लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती हैं। लावा का यह जमाव या तो धरातल पर पहुंच कर होता है या धरातल तक पहुंचने से पहले ही भूपटल के नीचे शैल परतों में ही हो जाता है। लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है

1. ज्वालामुखी शैलों (जब लावा धरातल पर पहुंच कर ठंडा होता है) और
2. पातालीय (Plutonic): शैल (जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है।) जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियां बनती हैं। ये आकृतियां अंतर्वेधी आकृतियां (Intrusive forms) कहलाती हैं।

1. बैथोलिथ (Batholiths):
यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हट जाने पर ही यह धरातल पर प्रकट होते हैं। ये विशाल क्षेत्र में फैले होते हैं और कभी-कभी इनकी गहराई भी कई कि० मीट तक होती है। ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं। इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 1

2. लैकोलिथ (Lacoliths):
ये गुंबदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व क पानरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मि तती है। अंतर केवल यह होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है। कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों की बनी ऐसी ही गुंबदनुमा पहाड़ियां हैं। इनमें से अधिकतर अब अपपत्रित (Exfoliated) हो चुकी हैं व धरातल पर देखी जा सकती हैं। ये लैकोलिथ व बैथोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं।

3. लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल (Lapolith, phacolith and sills):
ऊपर उठते लावे का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाये जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहां यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी (Saucer) के आकार में जम जाए तो यह लैपोलिथ कहलाता है। कई बार अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति (Anticline) के ऊपर व अभिनति (Syncline) के तल में लावा का जमाव पाया जाता है।

ये परतनुमा/लहरदार चट्टानें एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं। (जो क्रमशः बैथोलिथ में विकसित होते हैं) यह ही फैकोलिथ कहलाते हैं। अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है-कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घने मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।

4. डाइक (Dyke):
जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भांति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है। पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में यह आकृति बहुतायत में पाई जाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप के विकास में डाइक उद्गार की वाहक समझी जाती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 2.
भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
छाया क्षेत्र का उद्भव: भूकम्पलेखी यन्त्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र (Shadow zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकम्पीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकम्प का छाया क्षेत्र दूसरे भूकम्प के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है। यह देखा जाता है कि भूकम्पलेखी
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 2
भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° के भीतर किसी भी दूरी पर ‘P’ व ‘S’ दोनों ही तरंगों का अभिलेखन करते हैं। भूकम्पलेखी, अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल ‘P’ तरंगों के पहुंचने को ही दर्ज करते हैं और ‘S’ तरंगों को अभिलेखित नहीं करते। अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र (जहां कोई भी भूकम्पीय तरंग

अभिलेखित नहीं होती) दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र (Shadow zone) हैं। 105° के परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुंचतीं। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकम्प अधिकेन्द्र के 105° से 145° तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है। अगर आपको भूकम्प अधिकेन्द्र का पता हो तो आप किसी भी भूकम्प का छाया क्षेत्र रेखांकित कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है। क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए मनुष्य के पास कोई प्रत्यक्ष (Direct) साधन नहीं है। इस संरचना के बारे में मनुष्य का ज्ञान बहुत कम गहराई तक ही सीमित है। पृथ्वी की संरचना का प्रत्यक्ष ज्ञान कुओं, खदानों तथा संछिद्रों द्वारा केवल 4 किलोमीटर की गहराई तक ही प्राप्त होता है। पृथ्वी के अन्दर वर्तमान अत्यधिक तापमान के कारण प्रत्यक्ष निरीक्षण लगभग असम्भव है। खनिज तेल की खोज के लिए मनुष्य ने लगभग 6 कि० मी० गहरी छेद (Bore hole) बनाई है।

पृथ्वी के केन्द्र की गहराई (लगभग 6400 कि० मी०) की तुलना में यह बहुत ही कम है। इसी कारण से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए अप्रत्यक्ष स्त्रोत (Indirect methods) प्रयोग किए जाते हैं। पृथ्वी की संरचना के आंकड़े केवल अनुमान से प्राप्त किए जाते हैं तथा इनके पश्चात् इन आंकड़ों की पुष्टि भूकम्प विज्ञान के कई प्रमाणों द्वारा की जाती है।

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प्रश्न 4.
भूकम्पीय तरंगें कौन-कौन सी हैं ? इनकी विशेषताओं का वर्णन करो।ये पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की विभिन्नताओं की जानकारी कैसे देती हैं?
उत्तर:
1. अनुदैर्ध्य तरंगें(Longitudinal Waves):
ये तरंगें ध्वनि तरंगों (Sound Waves) की भान्ति होती हैं। ये तरल, गैस तथा ठोस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती। ये तरंगें आगे-पीछे एक-समान गति से चलती हैं। इन्हें अभिकेन्द्र प्राथमिक तरंगें (Primary waves) या केवल P-waves भी कहा जाता है।

2. अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves):
ये तरंगें दोलन की दिशा पर समकोण बनाती हुई चलती हैं। इनकी गति धीमी होती है। ये तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं। इन्हें साधारणत: माध्यमिक तरंगें (Secondary waves) या (S-waves) भी कहा उद्गम जाता है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 3

3. धरातलीय तरंगें (Surface Waves):
ये तरंगें धरातल पर अधिक प्रभावकारी होती हैं। गहराई के साथ-साथ इनकी तीव्रता कम हो जाती है। ये एक लम्बे समय में पृथ्वी के भीतरी भागों तक पहुंच पाती हैं। ये तरंगें ठोस, तरल एवं गैसीय माध्यमों की सीमाओं से गुज़रती हैं। इन्हें रैले तरंगें (Rayliegh waves) या (R-waves) भी कहा जाता है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना JAC Class 11 Geography Notes

→ भू-गर्भ का ज्ञान: पृथ्वी के भू-गर्भ की जानकारी सीमित है। भू-गर्भ का ज्ञान परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है।

→ भू-गर्भ ज्ञान के विभिन्न स्रोत: पृथ्वी का तापमान दबाव, विभिन्न परतों का घनत्व, भूकम्प तथा उल्कायें भू-गर्भ की जानकारी प्रदान करती हैं।

→ तापमान तथा दबाव: गहराई के साथ-साथ औसत रूप से तापमान प्रति 32 मीटर पर °C बढ़ जाता है। ऊपरी। चट्टानों के कारण दबाव भी बढ़ता है।

→ पृथ्वी की संरचना: पृथ्वी की संरचना तहदार है। बाहरी परत को सियाल, मध्यवर्ती परत को सीमा तथा। आन्तरिक परत को नाइफ कहा जाता है। इन परतों को भू-पृष्ठ, मैंटल, क्रोड या स्थलमण्डल, मैसोस्फीयर तथा। बैरीस्फीयर भी कहते हैं।

→ ज्वालामुखी (A Volcano): ज्वालामुखी धरातल पर एक गहरा छिद्र है जिससे भू-गर्भ से गर्म गैसें, लावा, तरल व ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं।

→ ज्वालामुखी के भाग: (i) छिद्र (ii) ज्वालामुखी नली (ii) ज्वालामुखी क्रेटर।

→ भूकम्प (An Earthquake): भू-पृष्ठ के किसी भी भाग के अचानक हिल जाने को भूकम्प कहते हैं। यह ! भू-पृष्ठ के अचानक हिलने के कारण होता है जिसके फलस्वरूप झटके अनुभव होते हैं। भूकम्प के मुख्य कारण हैं

  • ज्वालामुखीय विस्फोट
  • विवर्तनिक कारण
  • लचक शक्ति
  • स्थानीय कारण।

→ भूकम्पीय तरंगें (Earthquake Waves): ये तरंगें पृथ्वी के भीतर जिस स्थान से उत्पन्न होती हैं, उसे उद्गम केन्द्र (Focus) कहते हैं। इस केन्द्र के ऊपर धरातल पर स्थित स्थान को अभिकेन्द्र (Epicenter) कहते ! हैं। भूकम्पीय तरंगों का भूकम्प मापी यन्त्र (Sesimograph) द्वारा आलेखन किया जाता है। भूकम्पीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं

  • अनुदैर्ध्य तरंगें या प्राथमिक तरंगें (P-waves)
  • अनुप्रस्थ तरंगें या माध्यमिक तरंगें (S-waves)
  • धरातलीय तरंगें (L-waves)

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

(क) बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है?
(A) 46 लाख वर्ष
(B) 4600 मिलियन वर्ष
(C),13.7 अरब वर्ष
(D) 13.7 खरब वर्ष।
उत्तर:
4600 मिलियन वर्ष।

2. निम्न में कौन-सी अवधि सबसे लम्बी है?
(A) 531197 (Eons)
(B) महाकल्प (Era)
(C) कल्प (Period)
(D) युग (Epoch)
उत्तर:
इओन (Eons)

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

3. निम्न में कौन-सा तत्त्व वर्तमान वायुमण्डल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है?
(A) सौर पवन
(B) गैस उत्सर्जन
(C) विभेदन
(D) प्रकाश संश्लेषण।
उत्तर:
विभेदन।

4. निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन-से हैं?
(A) पृथ्वी व सूर्य के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(B) सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(C) वे ग्रह जो गैसीय हैं।
(D) बिना उपग्रह वाले ग्रह।
उत्तर:
सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह।

5. पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरम्भ हुआ?
(A) 1 अरब 37 करोड़ वर्ष पहले
(B) 460 करोड़ वर्ष पहले
(C) 38 लाख वर्ष पहले
(C) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले।
उत्तर”:
460 करोड़ वर्ष पहले।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

6. निम्न में से कौन-सा सौर परिवार का सदस्य नहीं है?
(A) सूर्य
(B) उपग्रह
(C) ग्रह
(C) तारे।
उत्तर:
तारे।

(स्व) लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों हैं?
उत्तर: पार्थिव ग्रह आरम्भ में चट्टानी ग्रह थे। ये ग्रह जनक तारे के निकट थे। यहां अधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हुईं। ये ग्रह आकार में छोटे थे। इनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम थी तथा यह चट्टानी रूप में थे।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी दिए गए तर्कों में निम्न वैज्ञानिकों के मूलभूत अन्तर बताइए।
(क) कान्त व लाप्लेस
(ख) चैम्बरलेन व मोल्टन।
उत्तर:
कान्त व लाप्लेस के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल (नीहारिका) से हुई परन्तु चैम्बरलेन व मोल्टन के अनुसार द्वैतारक सिद्धान्त के अनुसार एक भ्रमणशील तारे के सूर्य से टकराने से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 3.
विभेदन प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उल्काओं के अध्ययन से हमें इस बात का पता चलता है। बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से ग्रह बनें। पृथ्वी की रचना भी इसी प्रक्रम के अनुरूप हुई है। भारी पदार्थ (जैसे लोहा), पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन (Differentiation) कहा जाता है। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक पर्तों में अलग हो गया जैसे पर्पटी, प्रावार, क्रोड़ आदि।

प्रश्न 4.
प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था?
उत्तर:
क्या आप जानते हैं कि प्रारम्भ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमण्डल विरल था जो हाइड्रोजन व हीलियम से बना था। यह आज की पृथ्वी के वायुमण्डल से बहुत अलग था। अत: कुछ ऐसी घटनाएँ एवं क्रियाएँ अवश्य हुई होंगी जिनके कारण चट्टानी, वीरान और गर्म पृथ्वी एक ऐसे सुन्दर ग्रह में परिवर्तित हुई जहाँ बहुत-सा पानी तथा जीवन के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध हुआ।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 5.
पृथ्वी के वायुमण्डल को निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें कौन-सी थीं?
उत्तर:
पृथ्वी के ठण्डा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत-सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमण्डल का उद्भव हुआ। आरम्भ में वायुमण्डल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में और स्वतन्त्र ऑक्सीजन बहुत कम थी। वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आईं, इसे गैस उर्ल्सजन (Degassing) कहा जाता है।

(ग) निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1. बिग
बैंग सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा करते हुए वर्णन करो।
अथवा
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति सम्बन्धी बिग बैंग सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धान्त (Big Bang Theory):
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ही नहीं वरन् पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी समस्याओं को समझने का प्रयास किया। आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी सर्वमान्य सिद्धान्त बिग बैंग सिद्धान्त (Big bang theory) है। इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expending universe hypothesis) भी कहा जाता है। 1920 ई० में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएं एक-दूसरे से दूर हो रही हैं।

प्रयोग: आप प्रयोग कर जान सकते हैं कि ब्रह्मांड विस्तार का क्या अर्थ है। एक गुब्बारा लें और उस पर कुछ निशान लगाएँ जिनको आकाशगंगाएं मान लें। जब आप इस गुब्बारे को फुलाएँगे, गुब्बारे पर लगे ये निशान गुब्बारे के फैलने के साथ-साथ एक-दूसरे से दूर जाते प्रतीत होंगे। इसी प्रकार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी भी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है।

यद्यपि आप यह पाएँगे कि गुब्बारे पर लगे चिह्नों के बीच की दूरी के अतिरिक्त चिह्न स्वयं भी बढ़ रहे हैं। जबकि यह तथ्य के अनुरूप नहीं है। वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है, परन्तु प्रेक्षण आकाशगंगाओं के विस्तार को नहीं सिद्ध करते। अत: गुब्बारे का उदाहरण आंशिक रूप से ही मान्य है। बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ है।

  1. आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनन्त था।
  2. बिग बैंग की प्रक्रिया में इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार की विस्फोट प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ।
  3. वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है।
  4. विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट (Bang) के बाद एक सैकेंड के अल्पांश के अन्तर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरम्भिक तीन (3) मिनट के अन्तर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।
  5. बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 केल्विन तक गिर गया और आण्विक पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में  3
आलोचना: ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हॉयल (Hoyle) ने इसका विकल्प ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ (Steady state concept) के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार सम्बन्धी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धान्त के ही पक्षधर हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 2.
पृथ्वी के विकास सम्बन्धी अवस्थाओं को बताते हुए हर अवस्था का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर:
पृथ्वी के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएं मानी जाती हैं
1. तश्तरी का निर्माण:
तारे नीहारिका के अन्दर गैस के गुन्थित झुण्ड हैं। इस गुन्थित झुण्डों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating disc) विकसित हुई।

2. ग्रहाणुओं का निर्माण:
अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरम्भ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए।

3. संघट्टन की क्रिया:
संघट्टन की क्रिया द्वारा बड़े पिण्ड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिण्डों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।

4. ग्रहों का निर्माण: अन्तिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिण्ड ग्रहों के रूप में बने।

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास JAC Class 11 Geography Notes

→ सौर मण्डल (Solar System): सौर मण्डल में ग्रह, उपग्रह, अवान्तर ग्रह, धूमकेतु, उल्का पिण्ड आदि शामिल हैं।

→ आन्तरिक ग्रह (Inner Planets): पृथ्वी, बुध, शुक्र तथा मंगल आन्तरिक ग्रह हैं तथा सूर्य के निकट

→ नीहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis): 1755 में एमैनुल कांत नामक जर्मन दार्शनिक ने यह परिकल्पना की कि सौर मण्डल की उत्पत्ति एक घूमते गैस के बादल, नीहारिका से हुई है।
फ्रांसीसी गणितज्ञ लाप्लास ने भी इस सिद्धान्त का प्रस्ताव किया।

→ संघट्ट (टक्कर) परिकल्पना (Collision Hypothesis): इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान् सर जेम्स जींस तथा हैरोल्ड जैफ्रोज़ ने सूर्य तथा एक गुज़रते तारे की टक्कर का सिद्धान्त पेश किया। टूटे हुए ग्रहाणुओं से ।
मिलकर ग्रहों की रचना हुई।

→ चन्द्रमा (Moon) एक उपग्रह: पृथ्वी का एक ही उपग्रह चन्द्रमा है। इसका जन्म पृथ्वी के साथ ही हुआ था। यह चन्द्रमा से प्राप्त शैलों के विकिरणमितिक काल निर्धारण से पता चलता है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाला प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ था –
(अ) अकबरनामा
(स) बादशाहनामा
(ब) आइन-ए-अकबरी
(द) बाबरनामा
उत्तर:
(ब) आइन-ए-अकबरी

2. बाबरनामा’ का रचयिता था –
(अ) हुमायूँ
(स) बाबर
(ब) अकबर
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(स) बाबर

3. पंजाब में शाह नहर की मरम्मत किसके शासनकाल में करवाई गई –
(अ) बाबर
(ब) हुमायूँ
(स) अकबर
(द) शाहजहाँ
उत्तर:
(द) शाहजहाँ

4. तम्बाकू का प्रसार सर्वप्रथम भारत के किस भाग में हुआ?
(अ) उत्तर भारत
(ब) दक्षिण भारत
(स) पूर्वी भारत
(द) पूर्वोत्तर भारत
उत्तर:
(ब) दक्षिण भारत

5. किस मुगल सम्राट ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था?
(अ) अकबर
(स) जहाँगीर
(ब) बाबर
(द) शाहजहाँ
उत्तर:
(स) जहाँगीर

6. कौनसी फसल नकदी फसल ( जिन्स-ए-कामिल) कहलाती थी –
(अ) कपास
(ब) गेहूँ
(स) जौ
(द) चना
उत्तर:
(अ) कपास

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7. अफ्रीका और स्पेन से किसकी फसल भारत पहुँची ?
(अ) गेहूँ
(ब) बाजरा
(स) मक्का
(द) चना
उत्तर:
(स) मक्का

8. सत्रहवीं शताब्दी में लिखी गई एक पुस्तक मारवाड़ में में किसकी चर्चा किसानों के रूप में की गई है?
(अ) वैश्यों
(ब) राजपूतों
(स) ब्राह्मणों
(द) योद्धाओं
उत्तर:
(ब) राजपूतों

9. गांव की पंचायत का मुखिया कहलाता था –
(अ) फौजदार
(ब) ग्राम-प्रधान
(स) चौकीदार
(द) मुकद्दम (मंडल)
उत्तर:
(द) मुकद्दम (मंडल)

10. खुदकाश्त तथा पाहिकारत कौन थे?
(अ) किसान
(ब) सैनिक
(स) जमींदार
(द) अधिकारी
उत्तर:
(अ) किसान

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11. मिरासदार कौन थे?
(अ) महाराष्ट्र प्रांत के धनी अथवा सम्पन्न कृषक
(ब) राजस्थान के धनी व्यापारी तथा कृषक
(स) राजस्थान में अधिकारियों का एक समूह
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) महाराष्ट्र प्रांत के धनी अथवा सम्पन्न कृषक

12. वह भूमि जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था, कहलाती थी –
(अ) परौती
(ब) चचर
(स) उत्तम
(द) पोलज
उत्तर:
(द) पोलज

13. मनसबदार कौन थे?
(अ) मुगल अधिकारी
(ब) मुगल जमींदार
(स) मुगल दरबारी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मुगल अधिकारी

14. इटली का यात्री जोवनी कारेरी कब भारत आया ?
(अ) 1560 ई.
(ब) 1690 ई.
(स) 1590 ई.
(द) 1670 ई.
उत्तर:
(ब) 1690 ई.

15. आइन-ए-अकबरी में कुल कितने भाग हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(द) पाँच

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1526 ई. में ……………. को पानीपत के युद्ध में हराकर बाबर पहला मुगल बादशाह बना।
2. मुगल काल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए रैयत या …………… शब्द का उपयोग करते थे।
3. सामूहिक ग्रामीण समुदाय के तीन घटक …………… और …………….. थे।
4. पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे ………………. या मण्डल कहते थे।
5. मुद्रा की फेरबदल करने वालों को …………….. कहा जाता था।
6. जोवान्नी कारेरी ………………. का मुसाफिर था जो लगभग ……………. ई. में भारत से होकर गुजरा था।
उत्तर:
1. इब्राहिम लोदी
2. मुजरियान
3. खेतिहर किसान, पंचायत, गाँव का मुखिया
4. मुकद्दम
5. सर्राफ
6. इटली, 1690

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जिन्स-ए-कामिल’ फसल के बारे में बताइये।
उत्तर:
‘जिन्स-ए-कामिल’ सर्वोत्तम फसलें थीं जैसे कपास और गन्ने की फसलें।

प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी किसके द्वारा लिखी गई ?
उत्तर:
अबुल फ़सल।

प्रश्न 3.
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में राज्य द्वारा जंगलों में घुसपैठ के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) सेना के लिए सभी प्राप्त करना
(2) शिकार अभियान द्वारा न्याय करना।

प्रश्न 4.
सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत भारत में कितने प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के किसानों की –
(1) खुद काश्त
(2) पाहि काश्त

प्रश्न 5.
अबुल फ़सल द्वारा रचित पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’।

प्रश्न 6.
मुगलकाल में गाँव की पंचायत के मुखिया को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।

प्रश्न 7.
मुगलकाल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए किन शब्दों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
(1) रैयत
(2) मुजरियान
(3) किसान
(4) आसामी

प्रश्न 8.
खुद काश्त किसान कौन थे?
उत्तर:
खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे, जिनमें उनकी जमीनें थीं।

प्रश्न 9.
लगभग सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि के निरन्तर विस्तार होने के तीन कारक लिखिए।
उत्तर:

  • जमीन की प्रचुरता
  • मजदूरों की उपलब्धता
  • किसानों की गतिशीलता.

प्रश्न 10.
इस काल में सबसे अधिक उगाई जाने वाली तीन प्रमुख फसलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) चावल
(2) गेहूँ
(3) ज्यार

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प्रश्न 11.
चावल, गेहूँ तथा ज्वार की फसलें सबसे अधिक उगाई जाने का क्या कारण था?
उत्तर:
इस काल में खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था।

प्रश्न 12.
मौसम के किन दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी?
उत्तर;
(1) खरीफ (पतझड़ में) तथा
(2) रबी (बसन्त में)।

प्रश्न 13.
16वीं – 17वीं शताब्दी के दौरान भारत में कितने प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे?
उत्तर:
85 प्रतिशत।

प्रश्न 14.
भारत में कपास का उत्पादन कहाँ होता था?
उत्तर:
मध्य भारत तथा दक्कनी पठार में।

प्रश्न 15.
दो नकदी फसलों के नाम बताइये।
उत्तर:
(1) तिलहन (जैसे-सरसों) तथा
(2) दलहन

प्रश्न 16.
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के विभिन्न भागों से भारत में पहुंचने वाली चार फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • मक्का
  • टमाटर
  • आलू
  • मिर्च

प्रश्न 17.
सामूहिक ग्रामीण समुदाय के तीन घटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) खेतिहर किसान
(2) पंचायत
(3) गाँव का मुखिया (मुकद्दम या मंडल)।

प्रश्न 18.
1600 से 1700 के बीच भारत की जनसंख्या में कितनी वृद्धि हुई?
उत्तर:
लगभग 5 करोड़ की।

प्रश्न 19.
ग्राम की पंचायत में कौन लोग होते थे?
उत्तर:
ग्राम के बुजुर्ग।

प्रश्न 20.
ग्राम की पंचायत का मुखिया कौन होता
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।

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प्रश्न 21.
पंचायत के मुखिया का प्रमुख कार्य क्या
उत्तर:
गांव की आमदनी एवं खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना

प्रश्न 22.
इस कार्य में मुकद्दम की कौन राजकीय कर्मचारी सहायता करता था ?
उत्तर:
पटवारी

प्रश्न 23.
पंचायतों के दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जुर्माना लगाना
(2) दोषी व्यक्ति को समुदाय से निष्कासित करना।

प्रश्न 24.
पंचायत के निर्णय के विरुद्ध किसान विरोध का कौनसा अधिक उम्र रास्ता अपनाते थे? उत्तर- गाँव छोड़कर भाग जाना।

प्रश्न 25
उन दो प्रान्तों के नाम लिखिए जहाँ महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी जिसे बेचने व गिरवी रखने के लिए वे स्वतंत्र थीं।
उत्तर:
(1) पंजाब
(2) बंगाल

प्रश्न 26.
जंगल के तीन उत्पादों का उल्लेख कीजिए, जिनकी बहुत माँग थी।
उत्तर:
(1) शहद
(2) मधुमोम
(3) लाख

प्रश्न 27.
‘मिल्कियत’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जमींदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन ‘मिल्कियत’ कहलाती थी।

प्रश्न 28.
जमींदारों की समृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
जमींदारों की समृद्धि का कारण था उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन।

प्रश्न 29.
जमींदारों की शक्ति के दो स्रोत बताइये।
उत्तर:
(1) जमींदारों द्वारा राज्य की ओर से कर वसूल करना
(2) सैनिक संसाधन।

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प्रश्न 30.
भू-राजस्व के प्रबन्ध के दो चरण कौन- कौन से थे?
उत्तर:
(1) कर निर्धारण
(2) वास्तविक वसूली।

प्रश्न 31.
अमील गुजार कौन था?
उत्तर:
अमील गुजार राजस्व वसूली करने वाला अधिकारी था।

प्रश्न 32.
अकबर ने भूमि का किन चार भागों में वर्गीकरण किया?
उत्तर:

  • पोलज
  • परौती
  • चचर
  • अंजर

प्रश्न 33.
मध्यकालीन भारत में कौन-कौनसी फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं?
उत्तर:
गेहूं, चावल, ज्वार इत्यादि।

प्रश्न 34.
भारत के किस भाग में सबसे पहले तम्बाकू की खेती की जाती थी?
उत्तर:
दक्षिण भारत में।

प्रश्न 35.
मुगलकाल में खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई क्या थी?
उत्तर:
गाँव

प्रश्न 36.
मुगल राज्य किसने को ‘जिन्स-ए-कामिल’ फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन क्यों देते थे?
उत्तर:
क्योंकि इन फसलों से राज्य को अधिक कर मिलता था।

प्रश्न 37.
चीनी के उत्पादन के लिए कौनसा प्रान्त प्रसिद्ध था?
उत्तर:
बंगाल।

प्रश्न 38.
19वीं शताब्दी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने गाँवों को किसकी संज्ञा दी थी?
उत्तर:
‘छोटे गणराज्य’।

प्रश्न 39.
आइन-ए-दहसाला किसने जारी किया?
उत्तर:
अकबरअकबर ने

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प्रश्न 40.
मुगल साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देख-रेख करने वाला कौनसा दफ्तर था?
उत्तर;
दीवान का दफ्तर।

प्रश्न 41.
अकबर के समय में वह जमीन क्या कहलाती थी, जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था?
उत्तर:
पोलज

प्रश्न 42.
अकबर के शासन काल में वह जमीन क्या कहलाती थी, जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी?
उत्तर:
परौती।

प्रश्न 43.
आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार भू-राजस्व वसूल करने के लिए कौनसी प्रणालियाँ अपनाई जाती थीं?
उत्तर:
(1) कणाकृत
(2) बटाई
(3) खेत बटाई।

प्रश्न 44.
आइन-ए-अकबरी’ को कब पूरा किया गया?
उत्तर:
1598 ई. में

प्रश्न 45.
अकबरनामा’ की कितनी जिल्दों में रचना
की गई?
उत्तर:
तीन जिल्दों में।

प्रश्न 46.
‘अकबरनामा’ का रचयिता कौन था?
उत्तर:
अबुल फजल।

प्रश्न 47
रैयत कौन थे?
उत्तर:
मुगल काल के भारतीय फारसी खोत किसान के लिए आमतौर पर रैयत या मुजरियान शब्द का इस्तेमाल करते थे। था।

प्रश्न 48.
‘परगना’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
परगना मुगल प्रान्तों में एक प्रशासनिक प्रमंडल

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प्रश्न 49.
ग्राम पंचायत (मुगलकाल) के मुखिया के दो कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) गाँव के आय-व्यय का हिसाब-किताब तैयार करवाना
(2) जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आवरण पर नजर रखना।

प्रश्न 50.
पाहि काश्त किसान कौन थे?
उत्तर:
पाहि कारण किसान के खेतिहर थे, जो दूसरे गाँव से ठेके पर खेती करने आते थे।

प्रश्न 51.
बाबरनामा’ के अनुसार खेतों की सिंचाई साधन कौनसे थे?
गई ?
उत्तर:
(1) रहट के द्वारा
(2) बाल्टियों से।

प्रश्न 52.
भारत में नई दुनिया से कौनसी फसलें लाई
उत्तर:
टमाटर, आलू, मिर्च, अनानास, पपीता

प्रश्न 53.
पंचायत का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर:
गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोगों को अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रखना।

प्रश्न 54.
राजस्थान की जाति पंचायतों के दो अधिकारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • दीवानी के झगड़ों का निपटारा करना
  • जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाना।

प्रश्न 55.
पंचायत के मुखिया का चुनाव किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
(1) गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से और
(2) उसे इसकी स्वीकृति जमींदार से लेनी होती थी।

प्रश्न 56.
खेतिहर किन ग्रामीण दस्तकारियों में संलग्न रहते थे?
उत्तर:
रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजार बनाना।

प्रश्न 57.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ में कृषि इतिहास को जानने के दो स्त्रोतों का उल्लेख करो।
उत्तर:
(1) आइन-ए-अकबरी
(2) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत सारे दस्तावेज

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प्रश्न 58.
गाँव के प्रमुख दस्तकारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुम्हार, लुहार, बढ़ई, नाई, सुनार

प्रश्न 59.
कौनसी दस्तकारियों के काम उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे?
उत्तर:
सूत कातना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी साफ करना और गूंधना, कपड़ों पर कढ़ाई करना।

प्रश्न 60.
‘पेशकश का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पेशकरा’ मुगल राज्य के द्वारा ली जाने वाली एक प्रकार की भेंट थी। था?

प्रश्न 61.
मुगल राज्य के लिए जंगल कैसा भू-भाग
उत्तर;
मुगल राज्य के अनुसार जंगल बदमाशों, विद्रोहियों आदि को शरण देने वाला अड्डा था।

प्रश्न 62.
जमींदार कौन थे?
उत्तर;
जमींदार अपनी जमीन के स्वामी होते थे उन्हें ग्रामीण समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त थी।

प्रश्न 63.
जमींदारों की उच्च स्थिति के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) उनकी जाति
(2) जमींदारों के द्वारा राज्य को दी जाने वाली कुछ विशिष्ट सेवाएँ।

प्रश्न 64.
‘जमा’ और ‘हासिल’ में भेद कीजिये।
उत्तर:
‘जमा निर्धारित रकम थी, जबकि ‘हासिल’ वास्तव में वसूल की गई रकम थी।

प्रश्न 65.
जमींदारी पुख्ता करने के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) नयी जमीनों को बसाकर
(2) अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा।

प्रश्न 66.
अमीन कौन था?
उत्तर:
अमीन एक मुगल अधिकारी था, जिसका काम यह सुनिश्चित करना था कि राजकीय कानूनों का पालन हो रहा है।

प्रश्न 67.
मनसबदारी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
मनसबदारी मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तत्व था, जिसे मनसबदारी व्यवस्था कहते हैं।

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प्रश्न 68.
अकबर के समय का प्रसिद्ध इतिहासकार कौन था? उसके द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) अकबर के समय का प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फजल था।
(2) अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ तथा आइन-ए-अकबरी’ की रचना की।

प्रश्न 69.
चंडीमंगल नामक बंगाली कविता के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर:
सोलहवीं सदी में मुकुंदराम चक्रवर्ती ने चंडीमंगल नामक कविता लिखी थी।

प्रश्न 70.
पेशकश क्या होती थी?
उत्तर:
पेशकश मुगल राज्य के द्वारा की जाने वाली एक तरह की भेंट थी।

प्रश्न 71.
गाँवों में कौनसी पंचायतें होती थीं?
उत्तर:
(1) ग्राम पंचायत
(2) जाति पंचायत ।

प्रश्न 72.
किस प्रांत में चावल की 50 किस्में पैदा की
जाती थीं?
उत्तर:
बंगाल में।

प्रश्न 73
गाँवों में पाई जाने वाली दो सामाजिक असमानताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) सम्पति की व्यक्तिगत मिल्कियत होती थी।
(2) जाति और सामाजिक लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं।

प्रश्न 74.
शाह नहर कहाँ है?
उत्तर:
पंजाब में।

प्रश्न 75.
अकबर द्वारा अमील गुजार को क्या आदेश दिए गए थे?
उत्तर:
इस बात की व्यवस्था करना कि खेतिहर नकद भुगतान करे और वहीं फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे।

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प्रश्न 76
जमींदारी को पुख्ता करने के क्या तरीके थे?
उत्तर:
(1) नई जमीनों को बतकर
(2) अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
(3) राज्य के आदेश से
(4) जमीनों को खरीद कर

प्रश्न 77.
वाणिज्यिक खेती का प्रभाव जंगलवासियाँ के जीवन पर कैसे पढ़ता था?
उत्तर:
(1) शहद, मधु, मोम, लाक की अत्यधिक माँग होना
(2) हाथियों को पकड़ना और बेचना
(3) व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली।

प्रश्न 78.
जंगली (जंगलवासी) कौन थे?
उत्तर:
जिन लोगों का गुजारा जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरित खेती से होता था, वे जंगली (जंगलवासी) कहलाते थे।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
खेतिहर समाज के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी जिसमें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमें में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर उसे काटना आदि सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल थे जो कृषि आधारित थीं, जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि ।

प्रश्न 2.
सत्रहवीं शताब्दी के खोत किन दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं?
उत्तर- सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत निम्नलिखित दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं- (1) खुद काश्त तथा (2) पाहि कार खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी। पाहि काश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे। कुछ लोग अपनी इच्छा से भी पाहि-कारत बनते थे, जैसे दूसरे गाँव में करों की शर्तें उत्तम मिलने पर कुछ लोग अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी से बाध्य होकर भी पाहि कार किसान बनते थे।

प्रश्न 3.
मुगल काल में कृषि की समृद्धि से भारत में आबादी में किस प्रकार बढ़ोतरी हुई?
उत्तर:
कृषि उत्पादन में अपनाए गए विविध और लचीले तरीकों के परिणामस्वरूप भारत में आवादी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। आर्थिक इतिहासकारों की गणना के अनुसार समय- समय पर होने वाली भुखमरी और महामारी के बावजूद 1600 से 1700 के बीच भारत की आबादी लगभग 5 करोड़ बढ़ गई। 200 वर्षों में यह लगभग 33 प्रतिशत बढ़ोतरी थी।

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प्रश्न 4.
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज किन-किन रिश्तों के आधार पर निर्मित था ?
उत्तर:
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज छोटे किसानों एवं धनिक जमींदारों दोनों से निर्मित था। ये दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े थे और फसल में हिस्सों के दावेदार थे। इससे उनके मध्य सहयोग, प्रतियोगिता एवं संघर्ष के रिश्ते निर्मित हुए कृषि से जुड़े इन समस्त रिश्तों से ग्रामीण समाज बनता था।

प्रश्न 5.
मुगल साम्राज्य के अधिकारी ग्रामीण समाज को नियन्त्रण में रखने का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य अपनी आय का एक बड़ा भाग कृषि उत्पादन से प्राप्त करता था इसलिए राजस्व निर्धारित करने वाले, राजस्व की वसूली करने वाले एवं राजस्व का विवरण रखने वाले अधिकारी ग्रामीण समाज को नियन्त्रण में रखने का पूरा प्रयास करते थे। वे चाहते थे कि खेती की नियमित जुताई हो एवं राज्य को उपज से अपने हिस्से का कर समय पर मिल जाए।

प्रश्न 6.
ग्रामीण भारत के खेतिहर समाज पर संक्षेप में तीन पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर;
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी; जिमसें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमों में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना एवं फसल पकने पर उसकी कटाई करना आदि कार्य सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित थे जो कृषि आधारित थीं जैसे कि शक्कर, तेल आदि ।

प्रश्न 7.
” सत्रहवीं सदी में दुनिया के अलग-अलग भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में दुनिया के विभिन्न भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं। उदाहरणार्थ, मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन से पहुँचा और सत्रहवीं सदी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई। इसी प्रकार अनानास तथा पपीता जैसे फल भी नई दुनिया से आए।

प्रश्न 8.
मुगल काल में गाँव की पंचायत का गठन किस प्रकार होता था?
उत्तर:
गाँव की पंचायत बुजुर्गों की सभा होती थी। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ प्रायः पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी यह एक ऐसा अल्पतंत्र था, जिसमें गाँव के अलग-अलग सम्प्रदायों एवं जातियों का प्रतिनिधित्व होता था। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था।

प्रश्न 9.
गाँव की पंचायत का जाति सम्बन्धी प्रमुख काम क्या था?
उत्तर:
गांव की पंचायत का जाति सम्बन्धी प्रमुख काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग सम्प्रदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। पूर्वी भारत में सभी विवाह मंडल की उपस्थिति में होते थे। दूसरे शब्दों में ” जाति की अवहेलना के लिए” लोगों के आचरण पर नजर रखनां गाँव की पंचायत के मुखिया की एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी थी।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 10.
गाँव की पंचायतों को कौनसे न्याय सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे?
उत्तर:
गाँव की पंचायतों को दोषियों पर जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे दंड देने के अधिकार प्राप्त थे। समुदाय से निष्कासित करना एक कड़ा कदम था, जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इसके अन्तर्गत दण्डित व्यक्ति को (निर्धारित समय के लिए) गाँव छोड़ना पड़ता था। इस अवधि में वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था। इन नीतियों का उद्देश्य जातिगत परम्पराओं की अवहेलना को रोकना था।

प्रश्न 11.
सत्रहवीं सदी में गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के बारे में फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने क्या लिखा है?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के बारे में लिखा है कि, “भारत में वे गाँव बहुत ही छोटे कहे जायेंगे, जिनमें मुद्रा की फेरबदल करने वाले हाँ ये लोग सराफ कहलाते थे। एक बैंकर की भाँति सराफ हवाला भुगतान करते थे और अपनी इच्छा के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत तथा कौड़ियों के मुकाबले पैसों की कीमत बढ़ा देते थे।”

प्रश्न 12.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत द में जंगलों के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जमीन के विशाल भाग जंगल या शादियों से घिरे हुए थे। के ऐसे प्रदेश झारखंड सहित सम्पूर्ण पूर्वी भारत, मध्य भारत, उत्तरी क्षेत्र (जिसमें भारत-नेपाल की सीमावर्ती क्षेत्र की ि तराई शामिल है), दक्षिण भारत का पश्चिमी घाट और प दक्कन के पठारों में फैले हुए थे। समसामयिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भारत में जंगलों के फैलाव का औसत लगभग 40 प्रतिशत था।

प्रश्न 13.
जंगलवासियों पर कौनसे नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलवासियों पर नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े। कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता है कि नए बसे इलाकों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार से धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों (पीर) ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार जंगली प्रदेशों में नए सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार से शुरूआत हुई। प्रश्न 14. जमींदार कौन थे?
उत्तर- जमींदारों की आय तो खेती से आती थी, परन्तु ये कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे। वे अपनी जमीन के मालिक होते थे। उन्हें ग्रामीण समाज में ऊँची स्थिति के कारण कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त थीं। जमींदारों की ऊँची स्थिति के दो कारण थे-
(1) उनकी जाति तथा
(2) उनके द्वारा राज्य को कुछ विशेष प्रकार की सेवाएं देना।

प्रश्न 15.
जमींदारों की समृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
जमींदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन उनकी समृद्धि का कारण था उनकी व्यक्तिगत जमीन मिल्कियत कहलाती थी अर्थात् सम्पत्ति मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी प्रयोग के लिए खेती होती थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी मजदूर या पराधीन मजदूर कार्य करते थे जमींदार अपनी इच्छानुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या उन्हें गिरवी रख सकते थे।

प्रश्न 16.
जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी। इसके निम्नलिखित तरीके थे—

  • नयी जमीनों को बसा कर
  • अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
  • राज्य के आदेश से
  • या फिर खरीदकर इन प्रक्रियाओं के द्वारा अपेक्षाकृत ‘निचली जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में शामिल हो सकते थे, क्योंकि इस काल में जमींदारी धड़ल्ले से खरीदी और बेची जाती थी।

प्रश्न 17.
1665 में औरंगजेब ने जमा निर्धारित करने के लिए अपने राजस्व अधिकारियों को क्या आदेश दिया?
उत्तर:
1665 में औरंगजेब ने जमा निर्धारित करने के लिए अपने राजस्व अधिकारियों को वह आदेश दिया कि वे परगनाओं के अमीनों को निर्देश दें कि वे प्रत्येक गाँव, प्रत्येक किसान (आसामीवार) के बारे में खेती की वर्तमान स्थितियों का पता करें बारीकी से उनकी जाँच करने के बाद सरकार के वित्तीय हितों व किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए जमा निर्धारित करें।

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प्रश्न 18.
मुगल काल में कृषि की समृद्धि और भारत की आबादी की बढ़ोत्तरी में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
मुगलकाल में शासकों की दूरदर्शिता द्वारा किसानों के हितों एवं कृषि उत्पादन के लिए विविध तकनीकों के प्रयोग के कारण कृषि आधारित समृद्धि में व्यापक वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप आबादी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। आर्थिक इतिहासकारों की गणना के अनुसार 1600 से 1700 के बीच समय-समय पर होने वाली भुखमरी और महावारी के उपरान्त भी भारत की आबादी लगभग 5 करोड़ बढ़ गई। 200 वर्षों में आबादी की यह बढ़ोत्तरी करीब 33 प्रतिशत थी।

प्रश्न 19
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग- अलग हिस्सों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँची।” कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नई फसलों जैसे मक्का, ज्वार, आलू आदि का भारत में प्रवेश कैसे हुआ?
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारिक आवागमन में वृद्धि के कारण कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँचीं। उदाहरण के रूप में मक्का भारत में अफ्रीका व स्पेन से पहुँची और सत्रहवीं शताब्दी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई। इसी प्रकार अनन्नास एवं पपीता भी नई दुनिया से आए।

प्रश्न 20.
जजमानी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में बंगाल में जमींदार लोहारों, बढ़ई व सुनारों जैसे ग्रामीण दस्तकारों को उनकी सेवाओं के बदले दैनिक भत्ता तथा खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को जजमानी व्यवस्था कहा जाता था। यद्यपि यह प्रथा सोलहवीं व सत्रहवीं शताब्दी में अधिक प्रचलित नहीं थी।

प्रश्न 21.
मुगलकाल में गाँवों और शहरों के मध्य व्यापार से गाँवों में नकदी लेन-देन होना प्रारम्भ हुआ, सोदाहरण कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में गाँवों और शहरों के मध्य व्यापार के कारण गाँवों में भी नकदी लेन-देन होने लगा। मुगलों के केन्द्रीय प्रदेशों से भी कर की गणना और वसूली नकद में दी जाती थी जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी अथवा पूर्ण भुगतान नकद में ही किया जाता था। इसी प्रकार कपास, रेशम या नील जैसी व्यापारिक फसलें उत्पन्न करने वाले किसानों का भुगतान भी नकदी में ही होता है।

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प्रश्न 22.
आइन-ए-अकबरी’ में किन मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई है?
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी’ में अनेक मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई है; जैसे दरबार, प्रशासन और सेना का गठन, राजस्व के स्रोत और अकबरी साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल, लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक रिवाज अकबर की सरकार के समस्त विभागों और प्रान्तों (सूखों) के बारे में जानकारी दी गई है। ‘आइन’ में इन सूबों के बारे में जटिल और आँकड़ेबद्ध सूचनाएँ बड़ी बारीकी से दी गई हैं।

प्रश्न 23.
‘आइन’ कितने भागों (दफ्तरों) में विभक्त है? उनका सक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर- ‘आइन’ पाँच भागों (दफ्तरों में विभक्त है-
(1) मंजिल आबादी, शाही घर-परिवार और उसके रख- रखाव से सम्बन्ध रखती है
(2) सिपह- आबादी- सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है।
(3) मुल्क आबादी में साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आँकड़े वर्णित हैं तथा बारह प्रान्तों का वर्णन है। चौथे और पाँचवें भाग भारत के लोगों के धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखते हैं।

प्रश्न 24.
अकबर के समय भूमि का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया था?
अथवा
चाचर और बंजर भूमि की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:

  • पोलज पोलज भूमि में एक के बाद एक हर फसल की वार्षिक खेती होती थी जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था।
  • परीती परौती जमीन पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी ताकि वह अपनी खोई हुई उर्वरा शक्ति वापस पा सके।
  • चचर पचर जमीन तीन या चार वर्षों तक खाली रहती थी।
  • बंजर – बंजर जमीन वह थी जिस पर पाँच या उससे अधिक वर्षों से खेती नहीं की जाती थी।

प्रश्न 25.
कणकुत प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
अकबर के समय कनकृत प्रणाली राजस्व निर्धारण की एक प्रणाली थी। हिन्दी में ‘कण’ का अर्थ है ‘अनाज’ और कुंत का अर्थ है अनुमान’। इसके अनुसार फसल को अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था-
(1) अच्छा
(2) मध्यम
(3) खराब इस प्रकार सन्देह दूर किया जाना चाहिए। प्रायः अनुमान से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था।

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प्रश्न 26.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के ग्रामीण समाज की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में लगभग 85 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे छोटे खेतिहर तथा भूमिहर जमींदार दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े हुए थे और दोनों ही फसल के हिस्सों के दावेदार थे। इससे उनके बीच सहयोग, प्रतियोगिता तथा संघर्ष के सम्बन्ध बने खेती से जुड़े इन समस्त सम्बन्धों के ताने-बाने से गाँव का समाज बनता था। मुगल-राज्य अपनी आय का बहुत बड़ा भाग कृषि उत्पादन से वसूल करता था राजस्व अधिकारी ग्रामीण समाज पर नियन्त्रण रखते थे

प्रश्न 27.
खेतिहर समाज का परिचय दीजिए। कृषि समाज की भौगोलिक विविधताओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी, जिसमें किसान रहते थे किसान वर्ष भर फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर उसे काटना आदि सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल थे, जो कृषि आधारित थीं जैसे शक्कर, तेल इत्यादि । परन्तु सूखी भूमि के विशाल हिस्सों से लेकर पहाड़ियों वाले क्षेत्र में उस प्रकार की खेती नहीं हो सकती थी जैसी कि अधिक उपजाऊ जमीनों पर।

प्रश्न 28.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी का कृषि- इतिहास लिखने के लिए ‘आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य स्रोत के रूप में विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी का कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन-ए-अकबरी’ एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरवारी इतिहासकार अबुल फतल ने की थी खेतों की नियमित जुलाई सुनिश्चित करने के लिए राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा करों की वसूली करने के लिए तथा राज्य व जमींदारों के बीच के सम्बन्धों के नियमन के लिए राज्य द्वारा किये गए प्रबन्धों का लेखा-जोखा ‘आइन’ में प्रस्तुत किया गया है।

प्रश्न 29.
आइन-ए-अकबरी’ के लेखन का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूप-रेखा प्रस्तुत करना था, जहाँ एक सुदृढ़ सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। अबुल फजल के अनुसार मुगल साम्राज्य के विरुद्ध कोई भी विद्रोह या किसी भी प्रकार की स्वायत्त सत्ता की दावेदारी का असफल होना निश्चित था अतः ‘आइन’ से किसानों के बारे में जो कुछ पता चलता है, वह मुगल शासक वर्ग का ही दृष्टिकोण है।

प्रश्न 30.
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी के कृषि- इतिहास की जानकारी के लिए ‘आइन’ के अतिरिक्त अन्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) ‘आइन’ के अतिरिक्त सत्रहवीं व अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से उपलब्ध होने वाले वे दस्तावेज भी हैं जो सरकार की आय की विस्तृत जानकारी देते हैं।
(2) इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भी बहुत से दस्तावेज हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। इन सभी स्रोतों में किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले झगड़ों के विवरण मिलते हैं। इनसे किसानों के राज्य के प्रति दृष्टिकोण की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 31.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसान की समृद्धि का मापदंड क्या था ?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास शायद ही कभी एक जोड़ी बैल तथा दो हलों से अधिक कुछ होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी कम था। गुजरात के वे किसान समृद्ध माने जाते थे जिनके पास 6 एकड़ के लगभग जमीन थी दूसरी ओर, बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ थी वहाँ 10 एकड़ जमीन वाले किसान को धनी माना जाता था। खेती व्यक्तिगत स्वामित्व के सिद्धान्त पर आधारित थी।

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प्रश्न 32.
‘बाबरनामा’ में बाबर ने कृषि-समाज की विशेषताओं का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
‘बाबरनामा’ के अनुसार भारत में बस्तियाँ और गाँव, वस्तुत: शहर के शहर, एक क्षण में ही बीरान भी हो जाते थे और बस भी जाते थे। दूसरी ओर, यदि वे किसी पर बसना चाहते थे तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि उनकी समस्त फसलें वर्षा के पानी में उगती थीं भारत की अनगिनत आबादी होने के कारण लोग उमड़ते चले आते थे । यहाँ झोंपड़ियाँ बनाई जाती थीं और अकस्मात एक गाँव या शहर तैयार हो जाता था।

प्रश्न 33.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में कृषि क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जमीन की प्रचुरता, मजदूरों की उपलब्धता तथा किसानों की गतिशीलता के कारण कृषि का निरन्तर विकास हुआ। चूँकि खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था, इसलिए दैनिक भोजन में काम आने वाले खाद्य पदार्थों जैसे चावल, गेहूं, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं। जिन प्रदेशों में प्रतिवर्ष 40 इंच या उससे अधिक वर्षा होती थी, वहाँ न्यूनाधिक चावल की खेती होती थी कम वर्षा वाले प्रदेशों में गेहूँ तथा ज्वार बाजरे की खेती होती थी।

प्रश्न 34.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में सिंचाई के साधनों में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आज की भाँति सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में भी मानसून को भारतीय कृषि की रीढ़ माना जाता था। परन्तु कुछ फसलों के लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। इसके लिए सिंचाई के कृत्रिम साधनों का सहारा लेना पड़ा। राज्य की ओर से सिंचाई कार्यों में सहायता दी जाती थी उदाहरणार्थ, उत्तर भारत में राज्य ने कई नई नहरें व नाले खुदवाये तथा कई पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई। शाहजहाँ के शासन काल में पंजाब में ‘शाह नहर’ इसका उदाहरण है।

प्रश्न 35.
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाओं की स्थिति बताइए।
उत्तर:
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाएँ व पुरुष मिलजुलकर खेती का कार्य करते थे। पुरुष खेत जोतते थे तथा हल चलाते थे जबकि महिलाएँ बुआई, निराई व कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल से दाना निकालने का कार्य करती थीं। सूत कातना, वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना व गूंथना तथा कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्य भी महिलाएँ ही करती थीं महिलाओं पर परिवार और समुदाय के पुरुषों का नियन्त्रण बना रहता था।

प्रश्न 36.
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में किस प्रकार परिवर्तन आया?
उत्तर:
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में परिवर्तन आया। ग्रामीण समुदाय के बड़े आदमियों की तरह जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई कबीलों के सरदार धीरे-धीरे जमींदार बन गए। कुछ तो राजा भी बन गए। 16वीं- 17वीं शताब्दी में कुछ राजाओं ने पड़ोसी कवीलों के साथ एक के बाद एक युद्ध किया और उन पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

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प्रश्न 37.
जंगलवासियों पर कौनसे नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलवासियों पर नए-नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता है कि नए बसे क्षेत्रों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार से धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

प्रश्न 38.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में खेती के विकास के लिए किसानों द्वारा अपनायी गई तकनीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) किसान लकड़ी के ऐसे हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगा कर सरलता से बनाया जा सकता था।
(2) बैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था परन्तु बीजों को हाथ से छिड़क कर बोने की पद्धति अधिक प्रचलित थी।
(3) मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार प्रयुक्त किए जाते थे।

प्रश्न 39.
भारत में तम्बाकू का प्रसार किस प्रकार हुआ? जहाँगीर ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध क्यों लगा दिया?
उत्तर:
तम्बाकू का पौधा सबसे पहले दक्षिण भारत पहुँचा और वहाँ से सरहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में इसे उत्तर भारत लाया गया। अकबर और उसके अमीरों ने 1604 ई. में पहली बार तम्बाकू देखा सम्भवत: इसी समय से भारत में तम्बाकू का धूम्रपान (हुक्के या चिलम में) करने के व्यसन ने जोर पकड़ा। परन्तु जहाँगीर ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस प्रतिबन्ध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि इसका सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक सम्पूर्ण भारत में प्रचलन था।

प्रश्न 40.
मुगलकाल में मौसम के चक्रों में उगाई जाने वाली विविध फसलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में भारत में मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी एक खरीफ (पतझड़ में) तथा दूसरी रवी (बसन्त में) अधिकतर स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें उगाई जाती थीं जहाँ वर्षा अथवा सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ यो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं ‘आइन-ए- अकबरी’ के अनुसार दोनों मौसमों को मिलाकर मुगल- प्रान्त आगरा में 39 तथा दिल्ली प्रान्त में 43 फसलों की उगाई की जाती थी।

प्रश्न 41.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत ‘में ‘जिन्स-ए-कामिल’ नामक फसलें क्यों उगाई जाती थीं?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में ‘जिन्स-ए-कामिल’ (सर्वोत्तम फसलें) नामक फसलें भी उगाई जाती थीं मुगल राज्य भी किसानों को ‘जिन्स-ए- कामिल’ नामक फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन देता था क्योंकि इनसे राज्य को अधिक कर मिलता था। कपास और गने जैसी फसलें श्रेष्ठ ‘जिन्स-ए-कामिल’ श्रीं तिलहन (जैसे सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलों में सम्मिलित थीं।

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प्रश्न 42.
जाति और अन्य जाति जैसे भेदभावों के कारण खेतिहर किसान किन समूहों में बँटे हुए थे?
उत्तर:
खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो निकृष्ट समझे जाने वाले कामों में लगे थे अथवा फिर खेतों में मजदूरी करते थे कुछ जातियों के लोगों को केवल निकृष्ट समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इस प्रकार वे गरीबी का जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। गाँव की आबादी का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही समूहों का था। इनके पास संसाधन सबसे कम थे तथा ये जाति व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बंधे हुए थे इनकी स्थिति न्यूनाधिक आधुनिक भारत के दलितों जैसी थी।

प्रश्न 43.
“समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी तथा सामाजिक हैसियत के बीच सीधा सम्बन्ध था। परन्तु ऐसा बीच के समूहों में नहीं था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- सत्रहवीं सदी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक में राजपूतों का उल्लेख किसानों के रूप में किया गया है। इस पुस्तक के अनुसार जाट भी किसान थे परन्तु जाति व्यवस्था में उनका स्थान राजपूतों की तुलना में नीचा था सत्रहवीं सदी में वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र में रहने वाले गौरव समुदाय ने भी राजपूत होने का दावा किया, यद्यपि वे जमीन की जुताई के काम में लगे थे। अहीर, गुज्जर तथा माली जैसी जातियों के सामाजिक स्तर में भी वृद्धि हुई।

प्रश्न 44.
पंचायत का मुखिया कौन होता था? उसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था, जिसे ‘मुकदम’ चा ‘मंडल’ कहते थे। मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था। इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी स्वीकृति जमींदार से लेनी पड़ती थी। मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रह सकता था, जब तक गाँव के बुजुगों को उस पर भरोसा था। गाँव की आप व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख कार्य था। इस कार्य में पंचायत का पटवारी उसको सहायता करता था।

प्रश्न 45.
मुगल काल में गाँव के ‘आम खजाने’ से पंचायत के कौनसे खर्चे बलते थे?
उत्तर:
(1) मुगल काल में पंचायत का खर्चा के आम खजाने से चलता था इस खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था, जो समय-समय पर गाँव का दौरा किया करते थे।
(2) इस आम खजाने का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी किया जाता था।
(3) इस कोष का प्रयोग ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी किया जाता था जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे छोटे-मोटे बांध बनाना या नहर खोदना

प्रश्न 46.
मुगलकालीन जाति पंचायतों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • राजस्थान में जाति पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं।
  • वे जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाती
  • वे यह निश्चित करती थीं कि विवाह जातिगत मानदंडों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं।
  • वे यह निश्चित करती थीं कि गाँव के आयोजन में किसको किसके ऊपर प्राथमिकता दी जाएगी। कर्मकाण्डीय वर्चस्व किस क्रम में होगा।

प्रश्न 47
पंचायतों में ग्रामीण समुदाय के निम्न वर्ग के लोग उच्च जातियों तथा राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध कौनसी शिकायतें प्रस्तुत करते थे?
उत्तर:
पश्चिमी भारत, विशेषकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे कई प्रार्थना-पत्र हैं, जिनमें पंचायत से ‘सी’ जातियों अथवा राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध जबरन कर वसूली अथवा बेगार वसूली की शिकायत की गई है। इनमें किसी जाति या सम्प्रदाय विशेष के लोग अभिजात वर्ग के समूहों की उन माँगों के विरुद्ध अपना विरोध दर्शाते थे जिन्हें वे नैतिक दृष्टि से अवैध मानते थे। उनमें एक मांग बहुत अधिक कर की माँग थी।

प्रश्न 48
पंचायतों द्वारा इन शिकायतों का निपटारा किस प्रकार किया जाता था ?
उत्तर:
निचली जाति के किसानों और राज्य के अधिकारियों या स्थानीय जमींदारों के बीच झगड़ों में पंचायत के निर्णय अलग-अलग मामलों में अलग-अलग हो सकते थे। अत्यधिक कर की मांगों में पंचायत प्रायः समझौते का सुझाव देती थीं जहाँ समझौते नहीं हो पाते थे, वहाँ किसान विरोध के अधिक उम्र साधन अपनाते थे, जैसे कि गाँव छोड़ कर भाग जाना।

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प्रश्न 49.
खेतिहर लोग किन ग्रामीण दस्तकारियों में संलग्न रहते थे?
उत्तर:
खेतिहर और उसके परिवार के सदस्य विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न रहते थे जैसे-रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजारों को बनाना अथवा उनकी मरम्मत करना। जब किसानों को खेती के काम से अवकाश मिलता था, जैसे-बुआई और सुड़ाई के बीच या सुहाई और कटाई के बीच, उस अवधि में ये खेतिहर दस्तकारी के काम में संलग्न रहते थे।

प्रश्न 50.
ग्रामीण दस्तकार किस रूप में अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे? इसके बदले गाँव के लोग उन सेवाओं की अदायगी किन तरीकों से करते थे?
उत्तर:
कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई, यहाँ तक कि सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे, जिसके बदले गाँव वाले उन्हें विभिन्न तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग दे देते थे या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा अदायगी का तरीका सम्भवतः पंचायत ही तय करती थी कुछ स्थानों पर दस्तकार तथा प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी बातचीत करके अदायगी का तरीका तय कर लेते थे।

प्रश्न 51.
कुछ अंग्रेज अफसरों द्वारा भारतीय गाँवों को ‘छोटे गणराज्य’ क्यों कहा गया?
अथवा
ग्रामीण समुदाय के महत्त्व का विवेचन कीजिए।
अथवा
‘छोटे गणराज्य’ के रूप में भारतीय गाँवों का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय गाँवों को एक ऐसे ‘छोटे गणराज्य’ की संज्ञा दी, जहाँ लोग सामूहिक स्तर पर भाई चारे के साथ संसाधनों तथा श्रम का विभाजन करते थे परन्तु ऐसा नहीं लगता कि गाँव में सामाजिक समानता थी सम्पत्ति पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता था। इसके साथ ही जाति और लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं कुछ शक्तिशाली लोग गाँव की समस्याओं पर निर्णय लेते थे और कमजोर वर्गों के लोगों का शोषण करते थे।

प्रश्न 52.
भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को प्राप्त पैतृक सम्पत्ति के अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था। पंजाब में महिलाएँ (विधवा महिलाएँ भी) पैतृक सम्पत्ति के विक्रेता के रूप में ग्रामीण जमीन के क्रय-विक्रय में सक्रिय भागीदारी रखती थीं हिन्दू और मुसलमान महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी, जिसे बेचने अथवा गिरवी रखने के लिए वे स्वतंत्र थीं। बंगाल में भी महिला जमींदार थीं। वहाँ राजशाही की जमींदारी की कर्ता-धर्ता एक स्वी थी।

प्रश्न 53.
‘जंगली’ कौन थे? मुगलकाल में जंगली शब्द का प्रयोग किन लोगों के लिए किया जाता था?
उत्तर:
समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती हैं। परन्तु जंगली होने का अर्थ यह नहीं था कि वे असभ्य थे। मुगलकाल में जंगली शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरीच खेती से होता था। ये काम मौसम के अनुसार होते थे। उदाहरण के लिए, भील बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठा करते थे, गर्मियों में मछली पकड़ते थे तथा मानसून के महीनों में खेती करते थे।

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प्रश्न 54.
राज्य की दृष्टि में जंगल किस प्रकार का क्षेत्र था?
उत्तर:
राज्य की दृष्टि में जंगल राज्य की दृष्टि में जंगल उलटफेर वाला इलाका था अपराधियों को शरण देने वाला अड्डा राज्य के अनुसार अपराधी और विद्रोही जंगल में शरण लेते थे अपराध करने के बाद ये लोग जंगल में छिप जाते थे। बाबर के अनुसार जंगल एक ऐसा रक्षाकवच था जिसके पीछे परगना के लोग कड़े विद्रोही हो जाते थे और कर चुकाने से मुकर जाते थे।”

प्रश्न 55.
मुगल काल में बाहरी शक्तियाँ जंगलों में किसलिए प्रवेश करती थीं?
उत्तर:
(1) मुगलकाल में बाहरी शक्तियाँ जंगलों में कई तरह से प्रवेश करती थीं। उदाहरणार्थ, राज्य को सेना के लिए हाथियों को आवश्यकता होती थी इसलिए जंगलवासियों से ली जाने वाली भेंट में प्रायः हाथी भी सम्मिलित होते थे।
(2) शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों का दौरा करते थे और लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर उचित ध्यान देते थे।

प्रश्न 56.
मुगल-राजनीतिक विचारधारा में शिकार अभियान का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मुगल राजनीतिक विचारधारा में गरीबों और अमीरों सहित सबको न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से ‘शिकार अभियान’ प्रारम्भ किया गया। शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करता था। इस प्रकार वह अलग-अलग प्रदेशों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देता था और न्याय प्रदान करता था।

प्रश्न 57.
जंगलवासियों के जीवन पर बाहरी कारक के रूप में वाणिज्यिक खेती का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जंगलवासियों के जीवन पर वाणिज्यिक खेती का काफी प्रभाव पड़ता था। शहद, मधुमोम तथा लाक जैसे जंगल के उत्पादों की बहुत माँग थी। लाक जैसी कुछ वस्तुएँ तो सत्रहवीं सदी में भारत से समुद्र पार होने वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएँ थीं। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली भी होती थी। कुछ कवीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले स्थलीय व्यापार में लगे हुए थे वे पंजाब के गाँवों और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में भी भाग लेते थे।

प्रश्न 58.
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई जंगली कबीलों के सरदार जमींदार बन गए। कुछ तो राजा भी बन गए। ऐसे में उन्हें सेना का गठन करने की आवश्यकता हुई। अतः उन्होंने अपने ही वंश के लोगों को सेना में भर्ती किया अथवा फिर उन्होंने अपने ही भाई- बन्धुओं से सैन्य-सेच की मांग की। सिन्ध प्रदेश की कमीलाई सेनाओं में 6000 घुड़सवार और 7000 पैदल सैनिक होते थे।

प्रश्न 59.
मुगलकालीन भारत में जमींदारों की शक्ति के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जमींदारों को शक्ति इस बात से मिलती धी कि वे प्रायः राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था।
(2) सैनिक संसाधन उनकी शक्ति का एक और स्रोत था अधिकतर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी, जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने तथा पैदल सैनिकों के जत्थे होते थे।

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प्रश्न 60.
जमींदारों की उत्पत्ति का स्रोत क्या था?
उत्तर:
समसामयिक दस्तावेजों से प्रतीत होता है कि युद्ध में विजय जमींदारों की उत्पत्ति का सम्भावित लोत रहा होगा। प्रायः जमींदारी के प्रसार का एक तरीका था शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना। परन्तु इसकी सम्भावना कम ही दिखाई देती है कि राज्य किसी जमींदार को इतने आक्रामक रुख अपनाने की अनुमति देता हो, जब तक कि एक राज्यादेश के द्वारा इसकी पुष्टि पहले ही नहीं कर दी गई हो।

प्रश्न 61.
कृषि के विकास में जमींदारों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • जमींदारों ने कृषि योग्य जमीनों को बसने में नेतृत्व प्रदान किया और खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता की।
  • जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई।
  • जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।
  • कुछ साक्ष्य दर्शाते हैं कि जमींदार प्रायः बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

प्रश्न 62.
“किसानों से जमींदारों के सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था। भक्ति सन्तों ने बड़ी निर्भीकतापूर्वक जातिगत तथा अन्य प्रकार के अत्याचारों की कटु निन्दा की, परन्तु उन्होंने जमींदारों को किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दर्शाया। सत्रहवीं सदी में हुए कृषि विद्रोहों में राज्य के विरुद्ध जमींदारों को प्राय: किसानों का समर्थन मिला।

प्रश्न 63.
मुगलकालीन भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
अकबर के शासन में भूमि के वर्गीकरण किये जाने के बारे में अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन’ में क्या वर्णन किया है?
अथवा
अकबर के समय में प्रचलित भू-राजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिये ।
अथवा
अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अकबर ने जमीनों का वर्गीकरण किया और प्रत्येक वर्ग की जमीन के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया। भूमि को चार वर्गों में बाँटा गया-
(i) पोलज
(ii) पोलज और परौती की तीन मध्यम
(iii) चचर
(iv) बंजर। और प्रत्येक वर्ग की तीन किस्में थीं-
(1) अच्छी
(2) किस्म
(3) खराब प्रत्येक की जमीन की उपज को जोड़ा जाता था और उसका तीसरा हिस्सा औसत उपज माना जाता था इसका एक- तिहाई भाग राजकीय शुल्क माना जाता था।

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प्रश्न 64.
अकबर के शासन काल में राजस्व की वसूली के लिए अपनाई गई प्रणालियों का ‘आइन’ में किस प्रकार वर्णन किया गया है?
उत्तर:
अकबर के शासन काल में फसल के रूप में राजस्व वसूली की पहली प्रणाली कुणकुत प्रणाली थी। इसमें फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था दूसरी प्रणाली बटाई या भाओली थी, जिसमें फसल काट कर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की सहमति से बंटवारा किया जाता था। खेत बटाई तीसरी प्रणाली थी जिसमें बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते थे। लाँग बटाई चौथी प्रणाली थी जिसमें फसल काटने के बाद उसे आपस में बाँट लेते थे।

प्रश्न 65.
मनसबदारी व्यवस्था’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मनसबदारी व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मनसबदारी मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तन्त्र था। इस पर राज्य के सैनिक व नागरिक मामलों की जिम्मेदारी थी कुछ मनसबदारों को नकदी भुगतान किया जाता था परन्तु अधिकांश मनसबदारों को साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में राजस्व के आवंटन के द्वारा भुगतान किया जाता था। सम्राट द्वारा समय-समय पर उनका स्थानान्तरण किया जाता था। प्रायः योग्य और अनुभवी व्यक्ति को ही मनसबदार के पद पर नियुक्त किया जाता था।

प्रश्न 66.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में चाँदी का बहाव क्यों और किस प्रकार हुआ? उत्तर- सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में भारत के व्यापार में अत्यधिक उन्नति हुई। इस कारण भारत के समुद्र पार व्यापार में एक ओर भौगोलिक विविधता आई, तो दूसरी ओर अनेक नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हुआ। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत पहुँचा। यह भारत के लिए लाभप्रद था; क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।

प्रश्न 67.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत में चाँदी के बहाव के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
(1) सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की प्राप्ति में अच्छी स्थिरता बनी रही।
(2) अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की तलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई।
(3) इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी के अनुसार चाँदी समस्त विश्व से होकर भारत पहुँचती थी तथा सत्रहवी शताब्दी में भारत में अत्यधिक मात्रा में नकदी और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था।

प्रश्न 68
आइन-ए-अकबरी’ की त्रुटियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) जोड़ करने में कई गलतियाँ पाई गई हैं।
(2) ‘आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं।
(3) जहाँ सूबों से लिए गए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से कीमतों और मजदूरी से सम्बन्धित आँकड़े इतने विस्तार के साथ नहीं दिए गए हैं।
(4) मूल्यों और मजदूरी की दरों की सूची मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के प्रदेशों से ली गई है।

प्रश्न 69.
“कुछ त्रुटियों के होते हुए भी ‘आइन- ए-अकबरी’ अपने समय के लिए एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’ अपने समय के लिए एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज हैं। मुगल साम्राज्य के गठन और उसकी संरचना की अत्यन्त आकर्षक झलकियाँ दर्शाकर और उसके निवासियों व उत्पादों के सम्बन्ध में सांख्यिकीय आँकड़े प्रस्तुत कर, अबुल फजल मध्यकालीन इतिहासकारों से कहीं आगे निकल गए। ‘आइन’ में भारत के लोगों और मुगल साम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ दी गई हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ सत्रहवीं शताब्दी के भारत के अध्ययन के लिए संदर्भ-बिन्दु बन गया है।

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प्रश्न 70.
बटाई प्रणाली तथा लाँग बढाई पद्धतियों | का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) कटाई प्रणाली में फसल काटकर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति तथा सहमति से बँटवारा कर लेते थे।
(2) लॉंग बटाई – इस प्रणाली में फसल काटने के बाद उसके ढेर बना लिए जाते थे तथा फिर उन्हें आपस में बाँट लेते थे। इसमें हर पक्ष अपना हिस्सा घर ले जाता था।

प्रश्न 71.
मुगल सम्राट शिकार अभियानों का क्यों आयोजन करते थे?
उत्तर:
मुगल सम्राट गरीबों और अमीरों सहित सबके साथ न्याय करना अपना प्रमुख कर्त्तव्य मानते थे। इसलिए ये शिकार अभियानों का आयोजन करते थे। वे शिकार आयोजन के नाम पर अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करते थे और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों को सुनकर उनका निराकरण करते थे।

प्रश्न 72.
कृषि के अतिरिक्त महिलाएँ दस्तकारी के किन कार्यों में संलग्न रहती थीं?
उत्तर:
कृषि के अतिरिक्त महिलाएं सूत कातने वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंधने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्यों में संलग्न रहती थीं किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की उतनी ही माँग होती थी। इस प्रकार महिलाएँ न केवल खेतों में कार्य करतीं थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं।

प्रश्न 73.
मुगलकाल में कृषि में प्रयोग होने वाली मुख्य तकनीकी कौनसी थी? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
मुगलकाल में कृषि अपनी उच्च अवस्था में थी क्योंकि उस समय अनेक तकनीकों का प्रयोग किया जाता था। वस्तुत: उस समय प्रमुख कृषि तकनीकी पशु बल पर आधारित थी। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) लकड़ी का हल एक प्रमुख कृषि उपकरण था। इसे एक छोर पर लोहे की नुकीली धार अथवा फाल लगाकर बनाया जाता था ऐसे हल मिट्टी को अधिक गहरा नहीं खोदते थे। जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहती थी जो उपज अथवा फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती थी
(2) मिट्टी की निराई तथा गुड़ाई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार वाले उपकरण प्रयोग होते थे।
(3) बैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था, किन्तु बीजों को अधिकतर हाथ से छिड़ककर ही बोया जाता था
(4) रहट, जो उस समय सिंचाई का मुख्य साधन था, में भी बैलों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 74.
फ्रांसीसी यात्री ज्यां बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत में आए फ्रांसीसी यात्री ज्यां बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने भारत के गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में उल्लेख किया है कि “भारत के गाँव बहुत ही छोटे कहे जाएँगे, जिसमें मुद्रा के फेर-बदल करने वालों को ‘सर्राफ’ कहा जाता है। सर्राफ का कार्य बैंकरों की भाँति होता था, एक बैंक की भाँति सर्राफ हवाला भुगतान करते हैं और अपनी मर्जी के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत और कौड़ियों के मुकाबले पैसे की कीमत बढ़ा देते हैं।”

प्रश्न 75
ग्राम पंचायतों के कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आचरण पर नजर रखना। (2) दोषियों पर जुर्माना लगाना और समुदाय से निष्कासित करना। इसके अन्तर्गत दण्डित व्यक्ति को निर्धारित समय के लिए गाँव छोड़ना पड़ता था। इस दौरान वह अपनी जाति और व्यवसाय से बचित हो जाता था।

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प्रश्न 76.
मध्यकालीन भारत में सिंचाई के कौनसे साधन प्रचलित थे?
उत्तर:
मानसून भारतीय कृषि का रीढ़ था। खेती कृषि पर निर्भर करती थी परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त जल की आवश्यकता थी। अतः कुआँ, नहरों, नदियों, जलाशयों आदि से भी खेती की सिंचाई की जाती थी। बाबर के अनुसार रहट या बाल्टियों से सिंचाई की जाती थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आप कृषि का इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ का स्रोत के रूप में किस प्रकार उपयोग करेंगे? समझाइये
अथवा
कृषि-इतिहास के स्रोत के रूप में ‘आइन-ए- अकबरी’ का वर्णन कीजिये।
अथवा
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि – इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का विवेचन निम्नलखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए ऐतिहासिक ग्रन्थ व दस्तावेज-किसान अपने बारे में स्वयं नहीं लिखा करते थे इसलिए खेतों में काम करने वाले ग्रामीण समाज के क्रिया-कलापों की जानकारी हमें उन लोगों से प्राप्त नहीं होती। परिणामस्वरूप सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाले हमारे मुख्य स्रोत वे ऐतिहासिक ग्रन्थ एवं दस्तावेज हैं, जो मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए थे।

(2) ‘आइन-ए-अकबरी’- सोलहवीं या सत्रहवीं शताब्दियों का कृषि इतिहास लिखने के लिए, ‘आइन- ए-अकबरी’ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है ‘ आइन-ए- अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फसल ने की थी। ‘आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूप- रेखा प्रस्तुत करना था, जहाँ एक शक्तिशाली सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बना कर रखता था। ‘आइन’ के तीसरे भाग ‘मुल्क आबादी में उत्तर भारत के कृषि-समाज के बारे में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा | राजस्व की दरों के आंकड़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें प्रत्येक प्रान्त तथा उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन और निर्धारित राजस्व का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है।

(3) अन्य स्रोत- सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी के लिए हम निम्नलिखित स्रोतों का भी प्रयोग कर सकते हैं-
(i) मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए ग्रन्थ व दस्तावेज’ आइन’ की जानकारी के साथ- साथ हम उन लोगों का भी प्रयोग कर सकते हैं, जो मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए थे। इनमें सत्रहवीं व अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से उपलब्ध होने वाले वे दस्तावेज सम्मिलित हैं. जो सरकार की आय की विस्तृत जानकारी देते हैं।

(ii) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दस्तावेज इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत से दस्तावेज भी हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी जानकारी देते हैं। इन सभी स्रोतों में किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले झगड़ों के विवरण मिलते हैं। इन स्रोतों से हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि किसानों का राज्य के प्रति क्या दृष्टिकोण था तथा राज्य से उन्हें कैसे न्याय की आशा थी।

प्रश्न 2.
खुद काश्त व पाहि काश्त से आप क्या समझते हैं? मुगलकाल में किसानों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसानों को मुगलकाल में रैयत या मुजरिवान कहा जाता था। किसानों के लिए सत्रहवीं सदी के भारतीय- फारसी स्रोत में इसी शब्द का प्रयोग किया गया है। किसानों के लिए आसामी शब्द का प्रयोग भी किया जाता था। यह शब्द गाँवों में अब भी प्रचलित है। सत्रहवीं शताब्दी के ग्रामीण समाज से सम्बन्धित स्रोतों में दो प्रकार के किसानों का उल्लेख किया गया है; जो इस प्रकार है – खुद काश्त किसन जो उन्हीं गाँवों में निकास करते थे जिनमें उनकी जमीन होती थी अपनी जमीन पर खेती करने वाले किसानों को खुद काश्त किसान कहा जाता था। पाहि काश्त पाहि काश्त उन किसानों को कहा जाता था जो दूसरे गाँवों से आकर ठेके पर खेती लेकर कृषि कार्य करते थे। कभी-कभी लोग दूसरे गाँवों में खेती की अच्छी सम्भावनाओं, जैसेकि ठेके आदि की कम दरें और अच्छी उपज के लालच में पाहि काश्तकारी करते थे।

आर्थिक परेशानी, अकाल या भुखमरी तथा खुद की जमीन न होने पर भी लोग पाहि काश्तकारी करते थे। किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि उनकी समृद्धि का मापदण्ड थी। सामान्य तौर पर उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास अधिक भूमि न होने के कारण एक जोड़ी बैल और दो हल से अधिक कुछ नहीं होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी न्यून साधन होते थे किसानों के पास उपलब्ध साधनों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भूमि की उपलब्धता कम थी। गुजरात में 6 एकड़ जमीन का स्वामित्व रखने वाले किसान समृद्ध कहे जाते थे। बंगाल में औसत किसान के पास अधिक से अधिक 5 एकड़ जमीन होती थी।

10 एकड़ जमीन रखने वाले किसान अमीर समझे जाते थे। कृषि भूमि की मिल्कियत जिस प्रकार अन्य सम्पत्तियाँ खरीदी और बेची जाती थीं, उसी प्रकार कृषि भूमि भी व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी। व्यक्तिगत मिल्कियत होने के नाते किसान कृषि भूमि तथा क्रय-विक्रय अन्य सम्पत्तियों की भाँति कर सकते हैं। किसानों की मिल्कियत के बारे में एक विवरण उन्नीसवीं सदी के दिल्ली-आगरा प्रदेश के किसानों के सम्बन्ध में प्राप्त होता है। उपर्युक्त विवरण सत्रहवीं सदी के किसानों पर भी इसी भाँति लागू होता है। किसानों की दशा तत्कालीन समय के इतिहासकारों में किसानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में मतभेद है।

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प्रश्न 3.
मुगलकाल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में उपयोगिता को समझाइये।
अथवा
‘बाबरनामा’ में वर्णित भारत में सिंचाई के साधनों एवं उपकरणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगलकाल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में उपयोगिता आज की भाँति मानसून मुगलकाल में भी भारतीय कृषि को रोड़ थी परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। अतः मुगल काल में वर्षा के अतिरिक्त सिंचाई तालाबों, कुओं, नहरों एवं बांधों के द्वारा होती थी। मुगल काल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में काफी उपयोगिता है। आज भी देश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है। यद्यपि आज धनी लोगों द्वारा ट्यूबवैल आदि आधुनिक साधनों का उपयोग किया जाता है, परन्तु अधिकांशतः खेतों की सिंचाई वर्षा, कुओं, तालाबों, नहरों, बांधों के द्वारा ही की जाती है।

(2) ‘बाबरनामा में वर्णित भारत में सिंचाई के साधन-
(i) बहते पानी के प्रबन्ध का अभाव- भारत का -अधिकतर भाग मैदानी जमीन पर बसा हुआ है। यद्यपि यहाँ शहर और खेती योग्य जमीन की प्रचुरता थी, परन्तु कहीं भी बहते पानी का प्रबन्ध नहीं किया जाता था। इसलिए फसलें उगाने या बागानों के लिए पानी की बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी। शरद ऋतु की फसलें वर्षा के पानी से ही पैदा हो जाती थीं यह बड़े आश्चर्य की बात है कि बसन्त ऋतु की फसलें तो वर्षा के अभाव में भी पैदा हो जती थीं।

(ii) रहट द्वारा सिंचाई ‘बाबरनामा’ के अनुसार छोटे पेड़ों तक रहट या बाल्टियों के द्वारा पानी पहुंचाया जाता था लाहौर, दीपालपुर (वर्तमान में पाकिस्तान में) और ऐसे दूसरे स्थानों पर लोग रहट के द्वारा सिंचाई करते थे लोग रस्सी के दो गोलाकार फंदे बनाते थे, जो कुएँ की गहराई के अनुसार लम्बे होते थे। इन फन्दों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लकड़ी के गुटके लगाए जाते थे और इन गुटकों पर पड़े बांध दिए जाते थे।

लकड़ी के गुटकों और घड़ों से बंधी इन रस्सियों को कुएँ के ऊपर पहियों से लटकाया जाता था। पहिये की धुरी पर एक ओर पहिया होता था। इस अन्तिम पहिए को बैल के द्वारा घुमाया जाता था इस पहिये के दाँत पास के दूसरे पहिए के दांतों को जकड़ लेते थे और इस प्रकार घड़ों वाला पहिया घूमने लगता था। घड़ों से जहाँ पानी गिरता था, वहाँ एक संकरा नाला खोद दिया जाता था और इस विधि से प्रत्येक स्थान पर पानी पहुँचाया जाता था।

(iii) बाल्टियों से सिंचाई ‘बाबरनामा’ के अनुसार वर्तमान उत्तर प्रदेश में स्थित आगरा, चांदवर तथा बवाना में और ऐसे अन्य प्रदेशों में भी लोग बाग बाल्टियों से सिंचाई करते थे। वे कुएँ के किनारे पर लकड़ी के कन्ने गाड़ देते थे। वे इन फन्नों के मध्य बेलन टिकाते थे, एक बड़ी बाल्टी में रस्सी बांधते थे रस्सी को बेलन पर लपेटते थे और इसके दूसरे छोर को बैल से बाँध देते थे। एक व्यक्ति बैल हाँकता था तथा दूसरा बाल्टी से पानी निकालता था।

प्रश्न 4.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति पर प्रकाश डालिए। उत्तर भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति –
(1) गाँवों में बड़ी संख्या में दस्तकारों की उपलब्धता-अंग्रेजी शासन के प्रारम्भिक वर्षों में किए गए गाँवों के सर्वेक्षण तथा मराठाओं के दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि गाँवों में दस्तकार काफी बड़ी संख्या में रहते थे। कुछ गाँवों में तो कुल घरों के 25 प्रतिशत घर दस्तकारों के थे।

(2) किसानों और दस्तकारों के बीच सम्बन्ध- कभी-कभी किसानों और दस्तकारों के बीच अन्तर करना कठिन होता था क्योंकि कई ऐसे समूह से जो दोनों प्रकार के काम करते थे। खेतिहर और उसके परिवार के सदस्य अनेक प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेते थे। उदाहरणार्थ, वे रंगरेजी, कपड़ों पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाने, खेती के औजार बनाने या उनकी मरम्मत का काम करते थे। बुआई और सुहाई के बीच या सुहाई और के बीच की अवधि में किसानों के पास खेती का काम नहीं होता था, इसलिए इस अवधि में ये खेतिहर दस्तकारी का काम करते थे।

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(3) ग्रामीण दस्तकारों द्वारा गाँव के लोगों को सेवाएँ देना कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई और सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएं गाँव के लोगों को देते थे। इसके बदले गाँव के लोग उन्हें अलग-अलग तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग दे दिया करते थे या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा यह जमीन का टुकड़ा ऐसा था जो खेती योग्य होने के बावजूद बेकार पड़ा रहता था भुगतान का तरीका सम्भवतः पंचायत ही निश्चित करती थी। महाराष्ट्र में ऐसी जमीन दस्तकारों की ‘मीरास’ या ‘वतन’ बन गई जिस पर दस्तकारों का पैतृक अधिकार होता था।

यही व्यवस्था कभी-कभी थोड़े परिवर्तित रूप में भी पाई जाती थी। इसमें दस्तकार और प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी बातचीत द्वारा सेवाओं के भुगतान की कोई एक व्यवस्था तय कर लेते थे। इस स्थिति में प्रायः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता था उदाहरणार्थ, अठारहवीं सदी के स्त्रोतों से ज्ञात होता है कि बंगाल में जमींदार उनकी सेवाओं के बदले लोहारों, बढ़ई और सुनारों तक को “दैनिक भत्ता और खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को ‘जजमानी’ कहते थे। इन तथ्यों से पता चलता है कि गाँव के छोटे स्तर पर विनिमय के सम्बन्ध काफी जटिल थे। परन्तु ऐसा नहीं है कि नकद अदायगी का प्रचलन बिल्कुल ही नहीं था।

प्रश्न 5.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका का विवेचन कीजिए। समाज में उनकी स्थिति पर प्रकाश डालिए । उत्तर- भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका-
(1) उत्पादन की प्रक्रिया में पुरुष और महिलाओं की भूमिका उत्पादन की प्रक्रिया में पुरुष और महिलाएँ विशेष प्रकार की भूमिकाएं निभाते हैं। भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भी महिलाएँ और पुरुष कन्धे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करते थे।

पुरुष हल जोतते थे तथा हल चलाते थे और महिलाएँ बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल से दाना निकालने का काम करती थीं। फिर भी महिलाओं की जैव वैज्ञानिक क्रियाओं को लेकर लोगों के मन में पूर्वाग्रह बने रहे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी भारत में मासिक धर्म वाली महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की अनुमति नहीं थी। इसी प्रकार बंगाल में अपने मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बागान में प्रवेश नहीं कर सकती थीं।

(2) दस्तकारी के कामों में महिलाओं का योगदान- सूत कातने वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंथने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्य महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे।

(3) महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में महिलाएं श्रम प्रधान समाज में बच्चे उत्पन्न करने की अपनी योग्यता के कारण महिलाओं को महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा
जाता था।

समाज में महिलाओं की स्थिति-
(1) विवाहित महिलाओं की कमी तत्कालीन युग में विवाहित महिलाओं की कमी थी क्योंकि कुपोषण, बार-बार माँ बनने और प्रसव के समय मृत्यु हो जाने के कारण महिलाओं में मृत्यु दर बहुत अधिक थी इससे किसान और दस्तकार समाज में ऐसे सामाजिक रीति- रिवाज उत्पन्न हुए, जो अभिजात वर्ग के लोगों से बहुत अलग थे। कई ग्रामीण सम्प्रदायों में विवाह के लिए ‘दुल्हन की कीमत अदा करनी पड़ती थी, न कि दहेज की। तलाकशुदा महिलाएँ और विधवाएँ दोनों ही कानूनी रूप से विवाह कर सकती थीं।

(2) महिलाओं पर नियन्त्रण रखना प्रचलित रिवाज के अनुसार घर का मुखिया पुरुष होता था। इस प्रकार महिला पर परिवार और समुदाय के पुरुषों का पूर्ण नियन्त्रण बना रहता था दूसरे पुरुषों के साथ अवैध सम्बन्ध रखने के शक पर ही महिलाओं को भयानक दंड दिए जाते थे।

(3) महिलाओं द्वारा अपने पतियों की बेवफाई का विरोध-राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि पश्चिमी भारत के प्रदेशों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे प्रार्थना-पत्र मिले हैं, जो महिलाओं ने न्याय और मुआवजे की आशा से ग्राम पंचायतों को भेजे थे। इनमें पत्नियाँ अपने पतियों की बेवफाई का विरोध करती हुई दिखाई देती हैं या फिर गृहस्थी के पुरुष पर पत्नी और बच्चों की अवहेलना करने का आरोप लगाती हुई नजर आती हैं।

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(4) महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार- भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 6.
मुगलकाल में सिंचाई, कृषि तकनीक व फसलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिंचाई- भारत के किसानों की पारिश्रमिक प्रवृत्ति और कृषि से प्राप्त उनकी गतिशीलता, कृषि योग्य भूमि व श्रम की उपलब्धता के कारण कृषि का निरन्तर विस्तार हुआ खाद्यान्न फसलों, जैसे गेहूं, चावल, ज्वार आदि की खेती प्रचुरता के साथ की जाती थी। कृषि मुख्य रूप से मानसून पर आधारित थी: अधिक वर्षा वाले इलाकों में धान की खेती एवं कम वर्षा वाले इलाकों में गेहूं व बाजरे आदि की खेती की जाती थी कुछ फसलें ऐसी थीं, जिनके लिए अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती थी।

ऐसी फसलों के लिए सिंचाई के कृत्रिम साधन विकसित करने पड़े। सिंचाई के कृत्रिम उपायों के विकास में युगल शासकों ने व्यापक रुचि ली। किसानों को व्यक्तिगत रूप से कुएँ तालाब, बाँध आदि बनाने के लिए राज्य से सहायता दी गई। कई-कई नहरों व नालों का निर्माण राज्य द्वारा करवाया गया।

शाहजहाँ के शासन काल में पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई गई, जैसेकि पंजाब की शाह नहर कृषि तकनीकें खेती में मानवीय श्रम को कम करने के लिए किसानों ने पशुबल पर आधारित तकनीकों में नए सुधार किए। पहले जुताई के लिए लकड़ी के फाल वाले हल्के हल का प्रयोग किया जाता था।

लकड़ी के फाल वाले हल जमीन की गहरी जुताई कर सकने में सक्षम नहीं थे इसलिए किसानों ने नुकीली धार वाले लोहे के फाल का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया लोहे की फाल लगा हल आसानी से गहरी जुताई कर सकता था और हल खींचने वाले पशुओं पर जोर भी कम पड़ता था। मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लोहे के पतले धार वाले यन्त्र का प्रयोग किया जाने लगा। बीजों की बुआई के लिए बरमे का प्रयोग किया जाता था, जो बैलों द्वारा खींचा जाता था। हाथ से छिड़क कर भी बीज बोए जाते थे।

भरपूर फसलें मौसम के चक्रों पर आधारित स्त्री और खरीफ की फसलें मुख्य थीं खरीफ की फसल पतझड़ में और रबी की फसल वसंत में ली जाती थी। जहाँ पर सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती थी, उन क्षेत्रों में तीन फसलें ली जाती थीं। मुख्यतया खाद्यान्न फसलों की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था परन्तु कुछ नकदी फसलें भी उगाई जाती थी, जिन्हें ‘जिन्स-ए-कामिल’ म्यानि सर्वोत्तम फसलें कहा जाता था, जैसे- गन्ना, कपास, सरसों, नील आदि ।

प्रश्न 7.
आइन-ए-अकबरी’ मुगलकालीन
शासन व्यवस्था की जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है।” विवेचना कीजिए।
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ के ऐतिहासिक महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल की ‘आइन-ए-अकबरी’
(1) आइन-ए-अकबरी’ का संक्षिप्त परिचय- मुगल सम्राट अकबर के आदेश पर उसके दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना की थी। 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद, इस ग्रन्थ को पूरा किया गया। ‘आइन’ इतिहास लेखन की एक ऐसी विशाल परियोजना का भाग थी, जिसकी पहल अकबर ने की थी। ‘आइन” अक्रबरनामा’ की तीसरी जिल्द थी।

(2) ‘आइन’ की विषय-वस्तु’ आइन’ में निम्नलिखित विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है-

  • दरबार, प्रशासन और सेना का संगठन
  • राजस्व के स्रोत और अकबर के साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल ।
  • लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक रिवाज।
  • अकबर की सरकार के समस्त विभागों एवं प्रान्तों (सूर्वो) के बारे में विस्तार से जानकारी देने के अतिरिक्त, ‘आइन’ इन सूबों के बारे में जटिल और आँकड़ेबद्ध सूचनाएँ बड़ी बारीकी से देती है।

(3) महत्त्व इन सूचनाओं को इकट्ठा करके, उन्हें ‘क्रमबद्ध तरीके से संकलित करना एक महत्त्वपूर्ण शाही प्रक्रिया थी। इसने सम्राट को साम्राज्य के समस्त प्रदेशों में प्रचलित रिवाजें और व्यवसायों की जानकारी दी। इस प्रकार हमारे लिए’ आइन’ अकबर के शासनकाल से सम्बन्धित मुगल साम्राज्य के बारे में सूचनाओं की खान है।

(4) आइन’ के दफ्तर (भाग) आइन पांच भागों (दफ्तरों) का संकलन है। इसके पहले तीन भाग प्रशासन का विवरण देते हैं।
(i) मंजिल आबादी ‘मंजिल आबादी’ के नाम से पहला ग्रन्थ शाही घर-परिवार और उसके रख-रखाव से सम्बन्ध रखता है।

(ii) सिपह- आबादी- दूसरा भाग ‘सिपह आबादी’ सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है। इस भाग में शाही अधिकारियों (मनसबदारों), विद्वानों, कवियों और कलाकारों की संक्षिप्त जीवनियाँ सम्मिलित हैं।

(iii) मुल्क आबादी- तीसरे भाग ‘मुल्क- आबादी’ में साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आँकड़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसके बाद ‘बारह प्रान्तों का वर्णन’ दिया गया है। इस खण्ड में सांख्यिकी सूचनाएँ विस्तार से दी गई हैं। इसमें सूबों (प्रान्तों) और उनकी समस्त प्रशासनिक तथा वित्तीय इकाइयों (सरकार, परगना और महल) के भौगोलिक, स्थलाकृतिक और आर्थिक रेखाचित्र भी सम्मिलित हैं। इसी खण्ड में प्रत्येक प्रान्त और उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन और निर्धारित राजस्व (जमा) की जानकारी भी दी गई है।

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‘सरकार’ सम्बन्धी जानकारी-
सूबा स्तर की विस्तृत जानकारी देने के बाद, ‘आइन’ हमें सूबों के नीचे की इकाई ‘सरकारों’ के बारे में विस्तृत जानकारी देती है। ये सूचनाएँ तालिकाबद्ध तरीके से दी गई हैं। हर तालिका में आठ खाने हैं जो हमें निम्नलिखित सूचनाएं देते हैं-

परगनात / महल
(ii) किला
(iii) अराजी और जमीन-ए- पाईंमूद (मापे गए इलाके)
(iv) नकदी (नकद निर्धारित राजस्व)
(v) सुयूगल (दान में दिया गया राजस्व अनुदान)
(vi) जमींदार
सातवें तथा आठवें खानों में जमींदारों की जातियों और उनके घुड़सवार, पैदल सैनिक (प्यादा) व हाथी (फ्री) सहित उनकी सेना की जानकारी दी गई है। ‘मुल्क- आबादी’ नामक खण्ड उत्तर भारत के कृषि-समाज का विस्तृत, आकर्षक और जटिल चित्र प्रस्तुत करता है।
(iv) और
(v) भाग-ये भाग भारतवासियों के धार्मिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखते हैं।

प्रश्न 8.
आइन-ए-अकबरी के महत्त्व एवं सीमाओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
महत्व की विवेचना ‘आइन-ए-अकबरी’ के कीजिए और इसकी त्रुटियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’ का महत्त्व एवं त्रुटियाँ (सीमाएँ ) यद्यपि ‘आइन-ए-अकबरी’ को मुगल सम्राट अकबर के शासन की सुविधा के लिए आधिकारिक तौर पर विस्तृत सूचनाएँ संकलित करने के लिए प्रायोजित किया गया था, मा फिर भी यह ग्रन्थ आधिकारिक दस्तावेजों की नकल नहीं है। अबुलफजल की ग्रन्थ लेखन में बड़ी रुचि थी इसी कारण उसने इसकी पांडुलिपि को पाँच बार संशोधित किया था।

त्रुटियाँ इतिहासकारों के अनुसार ‘आइन’ की प्रमुख त्रुटियाँ (सीमाएँ ) निम्नलिखित हैं-
(1) जोड़ करने में गलतियाँ जोड़ करने में कई गलतियाँ पाई गई हैं। ऐसा माना जाता है कि या तो ये अंकगणित की छोटी-मोटी चूक है अथवा फिर नकल उतारने के दौरान अबुल फजल के सहयोगियों की भूल।
(2) संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं सभी सूबों (प्रान्तों) से आँकड़े एक ही रूप में एकत्रित नहीं किए गए हैं।
(3) कीमतों और मजदूरी से सम्बन्धित आँकड़ों का विस्तार से वर्णन नहीं करना इसी प्रकार जहाँ सूर्यो से लिए गए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से कीमतों और मजदूरी जैसे इतने ही महत्वपूर्ण आँकड़े इतने विस्तार से साथ नहीं दिए गए हैं।
(4) मूल्यों और मजदूरों की दरों की अपर्याप्त सूची- मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची ‘आइन’ में दी भी गई है, वह मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के प्रदेशों से ली गई है।

निष्कर्ष –
(1) असामान्य एवं अनूठा ग्रन्थ- कुछ त्रुटियों के होते हुए भी, ‘आइन’ अपने समय के लिए एक असामान्य एवं अनूठा दस्तावेज है। मुगल साम्राज्य के गठन और उसकी संरचना की अत्यन्त आकर्षक झलकियाँ दर्शा कर और उसके निवासियों व उत्पादों के सम्बन्ध में सांख्यिकीय आँकड़े देकर, अबुल फसल मध्यकालीन इतिहासकारों से कहीं आगे निकल गए।

(2) भारत के लोगों और उनके व्यवसायों के बारे में विस्तृत जानकारी देना मध्यकालीन भारत में अबुल फसल से पहले के इतिहासकार अधिकतर राजनीतिक घटनाओं के बारे में ही लिखते थे युद्ध-विजय, राजनीतिक प या वंशीय उथल-पुथल से सम्बन्धित विवरण ग्रन्थों में रहते थे। भारत के लोगों और मुगल साम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ देकर ‘आइन’ ने स्थापित परम्पराओं को पीछे छोड़ दिया और इस प्रकार सत्रहवीं सदी के भारत के अध्ययन के लिए एक संदर्भ बिन्दु बन गया। जहाँ तक कृषि सम्बन्धों का प्रश्न है, ‘आइन’ के सांख्यिकी प्रमाणों के महत्व को चुनौती नहीं दी जा सकती।

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प्रश्न 9.
मुगलों की भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मुगलों अथवा अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था मुगलों अथवा अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(1) भू-राजस्व – मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन-भू-राजस्व मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन था अतः कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए सम्पूर्ण साम्राज्य में राजस्व आकलन तथा वसूली के लिए एक प्रशासनिक तन्त्र की स्थापना की गई।
(2) भू-राजस्व के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करना भू-राजस्व प्रबन्ध के अन्तर्गत दो चरण थे-
(1) कर निर्धारण तथा
(2) वास्तविक वसूली जमा निर्धारित रकम थी तथा हासिल वास्तविक वसूली गई रकम राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था, परन्तु कभी-कभी वास्तव में इतनी वसूली कर पाना सम्भव नहीं हो पाता था।
(3) भूमि की पैमाइश अकबर ने जुती हुई जमीन तथा खेती योग्य भूमि दोनों की पैमाइश करवाई।
(4) भूमि का वर्गीकरण- कृषि योग्य भूमि को निम्नलिखित चार वर्गों में बांटा गया-

  • पोलज पोलज भूमि सबसे उत्तम भूमि थी जिस पर प्रत्येक वर्ष खेती होती थी।
  • परीती इस भूमि पर भी वर्ष भर खेती होती थी, परन्तु उसे पुनः उर्वरा शक्ति प्रदान करने के लिए एक अथवा दो वर्ष के लिए खाली छोड़ दिया जाता था।
  • चचर ऐसी भूमि जिस पर तीन वर्ष या चार वर्ष खेती नहीं की जाती थी, चचर भूमि कहलाती थी।
  • बंजर इस भूमि पर पाँच अथवा इससे भी अधिक वर्षों तक खेती नहीं की जाती थी।

(5) भूमि कर निर्धारण पोलज तथा परौती भूमि को तीन श्रेणियों में बाँटा गया था
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब प्रत्येक भूमि की औसत पैदावार का पता लगाया जाता था और इसका तीसरा भाग औसत पैदावार माना जाता था। इस औसत पैदावार का एक तिहाई हिस्सा भूमि-कर के रूप में लिया जाता था।

(6) भूमि कर व्यवस्था की अन्य प्रणालियाँ- अकबर ने आदेश दिया कि भूमि कर केवल नकदी के रूप में नहीं, बल्कि फसलों के रूप में भी वसूल किया जाए। इसके लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई गई

  • कणकुत प्रणाली- इसके अनुसार खड़ी फसल के अनुमान के आधार पर सरकारी लगान निश्चित किया जात था और फसल कटने पर सरकार अपना भाग ले लेती थी।
  • बटाई (भाओली) प्रणाली- इसमें फसल काट कर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति में व सहमति से बंटवारा करते थे।
  • खेत बटाई- इसमें बीज बोने के बाद खेत बाँट लिए जाते थे।
  • लाँग बटाई- इसमें फसल काटने के बाद उसके ढेर बना लिए जाते थे और फिर उसे आपस में बाँट लेते थे।

(7) अकबर के बाद मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था-अकबर के बाद के मुगल सम्राटों के शासन- काल में भी भूमि की नपाई के प्रयास जारी रहे। 1665 में औरंगजेब ने अपने राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया कि प्रत्येक गाँव में खेतिहरों की संख्या का वार्षिक हिसाब रखा जाए। परन्तु इसके बावजूद सभी प्रदेशों की नपाई सफलतापूर्वक नहीं हुई।

प्रश्न 10.
मुगलकाल में भू-राजस्व निर्धारण की कौनसी प्रणालियाँ प्रचलित थीं?
उत्तर:
मुगलकाल के भू-राजस्व निर्धारण की प्रणालियाँ अकबर ने राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया था कि वे लगान नकदी में लेने की आदत न डालें, बल्कि फसल भी लेने के लिए तैयार रहें। अतः अकबर के शासनकाल में भूमि कर निर्धारण के लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई गई-
(1) कणकुत प्रणाली हिन्दी भाषा में ‘कण’ का अर्थ है-‘ अनाज’ और ‘कुल’ का अर्थ है-‘ अनुमान’ इसके अन्तर्गत फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था

  • अच्छा
  • मध्यम
  • खराब इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसल के अनुमान के आधार पर सरकारी लगान निश्चित किया जाता था और फसल कटने पर सरकार अपना भाग लेती थी। प्रायः अनुमान से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था।

(2) बटाई या भाओली इस प्रणाली के अन्तर्गत फसल काटकर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति में व आपसी सहमति से बँटवारा कर लेते थे। इसमें फसल का कुछ भाग सरकार द्वारा से लिया जाता था। परन्तु इसमें कई बुद्धिमान निरीक्षकों की आवश्यकता पढ़ती थी वरना दुष्ट बुद्धि मक्कार और धोखेबाज लोग बेइमानी करते थे तथा किसानों को धोखा देते थे।

(3) खेत बढाई इसमें खेत में बीज बो दिए जाते थे और बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते थे। जिस प्रकार की फसल बोई जाती थी, उसी के अनुसार लगान निर्धारित होता था।

(4) लॉंग बटाई इसमें फसल काटने के बाद उसके देर बना लिए जाते थे और फिर उन्हें आपस में बाँट लेते थे प्रत्येक पक्ष फसल का अपना भाग लेकर घर ले जाता था और उससे मुनाफा कमाता था।

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प्रश्न 11.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में चाँदी के प्रवाह का वर्णन कीजिए। भारत में चाँदी के प्रवाह के बारे में इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में चाँदी का प्रवाह सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में व्यापार की बहुत अधिक उन्नति हुई खोजी यात्राओं से और ‘नई दुनिया’ की खोज से यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारत के समुद्र पार व्यापार की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई तथा कई नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी का आगमन हुआ। इस चाँदी का एक बड़ा हिस्सा भारत पहुँचा। यह स्थिति भारत के लिए लाभप्रद थी क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। परिणामस्वरूप, सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा – विशेषकर चांदी के रुपयों की प्राप्ति में अच्छी स्थिरता बनी रही। इसके दो लाभ हुए-
(1) अर्थव्यवस्था में मुद्रा- संचार तथा सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा –
(2) मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई।

इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी का वृत्तांत-
लगभग 1690 ई. में इटली का यात्री जोवान्नी कारेरी भारत से होकर गुजरा था वह यहाँ चाँदी की प्रचुरता देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा कि मुगल साम्राज्य में चाँदी भारी मात्रा में समस्त विश्व में से होकर भारत पहुँचती थी। उसने लिखा है कि समस्त है संसार में विचरण करने वाला समस्त सोना-चाँदी अन्ततः भारत पहुँच जाता है। इसका बहुत बड़ा भाग अमेरिका से आता है और यूरोप के कई राज्यों से होते हुए, इसका कुछ भाग कई प्रकार की वस्तुओं के लिए तुर्की में जाता है और थोड़ा-सा भाग रेशम के लिए फारस पहुँचता है। तुर्की लोग कॉफी से अलग नहीं रह सकते और न ही फारस अरविया तथा तुर्की के लोग भारत की वस्तुओं के बिना रह सकते हैं।

चे मुद्रा की विशाल मात्रा मोचा भेजते हैं। इसी प्रकार वे ये वस्तुएँ बसरा भेजते हैं। बाद में यह समस्त सम्पत्ति जहाजों से भारत भेज दी जाती है भारतीय जहाजों के अतिरिक्त जो डच, अंग्रेजी और पुर्तगाली जहाज प्रतिवर्ष भारत की वस्तुएँ लेकर पेगू, स्याम, श्रीलंका, मालद्वीप, मोजाम्बीक और अन्य स्थानों पर ले जाते हैं, इन्हीं जहाजों को निश्चित तौर पर विपुल सोना-चाँदी इन देशों से लेकर भारत पहुँचना पड़ता है। वह सब कुछ, जो डच लोग जापान की खानों से प्राप्त करते हैं अन्ततः भारत चला जाता है। यहाँ से यूरोप को जाने वाली समस्त वस्तुएँ चाहे वे फ्रांस जाएँ या इंग्लैण्ड या पुर्तगाल, सभी नकद में खरीदी जाती हैं, जो नकद भारत में रह जाता है।

प्रश्न 12.
उन स्त्रोतों का उल्लेख कीजिए जिनका प्रयोग अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ को पूरा करने के लिए किया।
उत्तर:
अबुल फजल द्वारा ‘अकबरनामा’ को पूरा करने के लिए प्रयुक्त किए गए स्त्रोत
(1) दस्तावेजों तथा प्रमाणों को एकत्रित करना- मुगल सम्राट अकबर ने अबुल फसल को आदेश दिया था कि वह साम्राज्य की शानदार घटनाओं और राज्य क्षेत्र अधीन करने वाली उनकी विजयों का ईमानदारी से वर्णन करे। अबुल फसल ने सम्राट के आदेश का पालन करते हुए अनेक दस्तावेज तथा प्रमाण इकट्ठे किये और राज्य के कर्मचारियों तथा शाही परिवार के सदस्यों से सूचनाएँ माँगीं।

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(2) लोगों के विवरणों को नोट करना अबुल फसल ने सच बोलने वाले बुद्धिमान बुजुर्गों और तीव्र बुद्धिवाले, सत्यकर्मी जवानों दोनों की जाँच-पड़ताल की और उनके विवरणों को लिखित रूप में नोट किया।

(3) पुराने कर्मचारियों द्वारा लिखित संस्मरणों का अवलोकन करना- सूबों (प्रान्तों) को शाही आदेश जारी किया गया कि पुराने कर्मचारी अपने संस्मरण लिखें और उसे दरबार भेज दें। इसके बाद एक और शाही आदेश जारी किया गया कि जो सामग्री जमा की जाए, उसे सम्राट की उपस्थिति में पड़कर सुनाया जाए और बाद में जो कुछ भी

लिखा जाना हो, उसे उस महान ग्रन्थ में परिशिष्ट के रूप में जोड़ दिया जाए। अबुल फजल को आदेश दिया गया कि वह ऐसे विवरण जो उसी समय परिणति तक न लाए जा सकें, को बाद में नोट करे –

(4) घटनाओं का इतिहासवृत्त प्राप्त करना इस शाही आदेश के बाद अबुल फजल ने ऐसे कच्चे प्रारूप लिखने शुरू किये जिसमें शैली या विन्यास का सौन्दर्य नहीं था। उन्होंने इलाही संवत के उन्नीसवें वर्ष से जब बादशाह ने दस्तावेज कार्यालय स्थापित किया था, घटनाओं का इतिहासवृत्त प्राप्त किया और उसके पृष्ठों से कई मामलों का वृत्तान्त प्राप्त किया। उन सभी आदेशों की मूल प्रति वा नकल प्राप्त की गई, जो राज्याभिषेक से लेकर आज तक सूबों को जारी किए गए थे। अबुल फसल ने उनमें से कई रिपोर्टों को भी शामिल किया, जो साम्राज्य के विभिन्न मामलों या दूसरे देशों में घटी घटनाओं के बारे में थीं और जिन्हें उच्च अधिकारियों और मन्त्रियों ने भेजा था।

(5) कच्चे मसौदे तथा ज्ञानपत्र प्राप्त करना अबुल | फसल ने वे कच्चे मसौदे तथा ज्ञानपत्र भी प्राप्त किये जिन्हें जानकार और दूरदर्शी लोगों ने लिखा था।

प्रश्न 13.
मुगल काल में कृषि कीजिए।
की दशा का वर्णन
उत्तर:
मुगल काल में कृषि की दशा मुगल काल में कृषि की दशा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) फसलें मुगलकाल में भी कृषि भारतीयों के जीवन निर्वाह करने का प्रमुख साधन था किसान फसल की पैदावार से सम्बन्धित विविध प्रकार के कार्य करते थे, जैसे कि जमीन की जुताई, बीज बोना तथा फसल पकने पर उसकी कटाई वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित होते थे जो कृषि आधारित थीं, जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि।

(2) फसलों की भरमार मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी एक खरीफ (पतझड़ में) तथा दूसरी रबी (बसन्त में)। अधिकांश स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं। दैनिक आहार की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था। कपास और गन्ना जैसी फसलें श्रेष्ठ ‘जिन्स- ए-कामिल थीं। मध्यभारत तथा दक्कनी पठार में कपास उगाई जाती थी। बंगाल गन्ने के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। तिलहन (सरसों) और दलहन भी नकदी फसलों में गिनी जाती थीं। मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन से पहुँचा टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई।

(3) सिंचाई के साधन आज की भाँति मानसून मुगल काल में भी भारतीय कृषि की रीढ़ था परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। ‘बाबरनामा’ से ज्ञात होता है कि छोटे पेड़ों तक रहट एवं बाल्टियों के द्वारा पानी पहुँचाया जाता था। इसके अतिरिक्त सिंचाई तालाबों, कुओं, नहरों एवं बाँधों के द्वारा भी होती थी। सिंचाई कार्यों को राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया जाता था।

(4) किसानों द्वारा तकनीकों का प्रयोग किसान प्राय: पशुबल पर आधारित तकनीकों का प्रयोग करते थे। वे लकड़ी के उस हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर आसानी से बनाया जा सकता था। ऐसे हल मिट्टी को बहुत गहरे नहीं खोदते थे जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में नमी बची रहती थी। बैलों के जोड़ों के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था। मिट्टी की गुड़ाई और साथ-साथ निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार काम में लाए जाते थे।

(5) फलों के बाग मुगल सम्राटों ने फलों के अनेक बाग लगवाये।

(6) कृषि की दशा को सुधारने के लिए मुगल- सम्राटों के प्रयास मुगल सम्राटों ने किसानों को अच्छी फसलें गन्ना, कपास, तिलहन, दलहन आदि का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 14.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) किसानों के प्रकार-सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारतीय फारसी लोत ‘किसान’ के लिए चार शब्दों का प्रयोग करते थे-
(1) रैयत
(2) मुजरियान
(3) किसान और
(4) आसामी सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत निम्नलिखित दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं-
(i) खुद काश्त एवं
(ii) पाहि काश्त

(i) खुद काश्तखुद काश्त किसान वे थे जो उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी।
(ii) पाहि काश्त पाहि कारण वे खेतिहर थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे लोग अपनी इच्छा से भी पाहि-कारत बनते थे। उदाहरणार्थ-
(1) यदि करों की शर्तें किसी दूसरे गाँव में अधिक अच्छी मिलती थीं तथा
(2) अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी के कारण।

(2) किसानों की समृद्धि का मापदंड उत्तर भारत में एक औसत किसान के पास सम्भवतः एक जोड़ी बैल तथा दो हल से अधिक कुछ नहीं होता था अधिकतर किसानों के पास इससे भी कम था। गुजरात में जिन किसानों के पास 6 एकड़ के लगभग जमीन थी, वे समृद्ध माने जाते थे। दूसरी ओर बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ भी वहीं 10 एकड़ जमीन वाले आसामी को धनी समझा जाता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

(3) व्यक्तिगत मिल्कियत खखेती व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी। किसानों की जमीन अन्य सम्पति मालिकों की भाँति खरीदी और बेची जाती थी। उन्नीसवीं सदी के दिल्ली-आगरा के प्रदेश में किसानों की मिल्कियत का यह विवरण सत्रहवीं सदी पर भी उतना ही लागू होता है- “हल जोतने वाले खेतिहर किसान हर जमीन की सीमाओं पर मिट्टी, ईंट और काँटों से पहचान के लिए निशान लगाते हैं और जमीन के ऐसे हजारों टुकड़े किसी भी गाँव में देखे जा सकते हैं।”

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

आज के वैज्ञानिक युग में चाहे दूरभाष, वायरलेस, ई-मेल, स्काइप आदि के प्रयोग से दूर स्थित सगे-संबंधियों, सरकारी-गैर-सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों से पल भर में बात की जा सकती है पर फिर भी पत्र – लेखन का अभी भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। पत्र – लेखन विचारों के आपसी आदान-प्रदान का सशक्त, सुगम और सस्ता साधन है। पत्र – लेखन केवल विचारों का आदान- प्रदान ही नहीं है बल्कि इससे पत्र – लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, चरित्र, संस्कार, मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान हो जाता है। पत्र लिखते समय अनेक सावधानियाँ अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं –

  • सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
  • स्नेह, शिष्टता और भद्रता का निर्वाह।
  • पत्र प्राप्त करने वाले का पद, योग्यता, संबंध, सामर्थ्य, स्तर, आयु आदि।
  • अनावश्यक विस्तार से बचाव।
  • विषय-वस्तु की पूर्णता।
  • कड़वे, अशिष्ट और अनर्गल भावों तथा शब्दों का निषेध।

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पत्रों के भेद :

प्रमुख रूप से पत्रों को दो प्रकार का माना जाता है, जिनके आगे अनेक भेद – विभेद हो सकते हैं। वे हैं-
(क) औपचारिक पत्र (Formal Letters)
(ख) अनौपचारिक पत्र ( Informal Letters)

(क) औपचारिक पत्र (Formal Letters) :

जिन लोगों के साथ औपचारिक संबंध होते हैं, उन्हें औपचारिक पत्र लिखे जाते हैं। इन पत्रों में व्यक्तिगत और आत्मीय विचार प्रकट नहीं किए जाते। इनमें अपनेपन का भाव पूरी तरह गायब रहता है। इनमें अपने विचारों को भली-भाँति सोच-विचारकर प्रकट किया जाता है। प्रायः औपचारिक – पत्र सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों, निजी संस्थानों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अध्यापकों, प्रधानाचार्यों, व्यापारियों आदि को लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. पत्र का क्रमांक
2. विभाग / कार्यालय / मंत्रालय का नाम
3. दिनांक
4. प्रेषक का नाम तथा पद
5. प्राप्तकर्ता का नाम तथा पद
6. विषय का संक्षिप्त उल्लेख
7. संबोधन
8. विषय-वस्तु
9. समापन शिष्टता
10. प्रेषक के हस्ताक्षर
11. प्रेषित का पद / नाम / पता

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औपचारिक पत्र का प्रारूप –

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव की ओर से मुख्य सचिव, पंजाब राज्य को एक सरकारी- पत्र लिखें, जिसमें राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई हो।

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औपचारिक-पत्र के आरंभ और समापन की विधि –

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(ख) अनौपचारिक पत्र (Informal Letters) :

जिन लोगों के आपसी संबंध आत्मीय होते हैं, उनके द्वारा एक-दूसरे को लिखे जाने वाले पत्र अनौपचारिक पत्र कहलाते हैं। ऐसे पत्र प्रायः रिश्तेदारों, मित्रों, स्नेही संबंधियों आदि के द्वारा लिखे जाते हैं। इन पत्रों में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, लगाव, गुस्से, उलाहने, आदर आदि के भाव अपनत्व के आधार पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इन पत्रों में बनावटीपन की मात्रा कम होती है। वाक्य संरचना बातचीत के स्तर पर आ जाती है।

मन के भाव और विचार बिना किसी संकोच के प्रकट किए जा सकते हैं। इनमें औपचारिकता का समावेश नहीं किया जाता। प्रायः सभी प्रकार के सामाजिक पत्रों को इसी श्रेणी में सम्मिलित कर लिया जाता है। विवाह, जन्म-दिन, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, शोक सूचनाओं आदि को इन्हीं के अंतर्गत ग्रहण किया जाता है। अनौपचारिक पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. पत्र के बाईं ओर भेजने वाले का पता
2. दिनांक
3. पत्र प्राप्त करने के प्रति संबोधन
4. पत्र प्राप्त करने वाले से संबंधानुसार अभिवादन
5. पत्र में अनुच्छेदानुसार पत्र लिखने का कारण, विषय का विस्तार तथा परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति अभिवादन
6. समापन
7. बाईं ओर पत्र – लेखक का पत्र प्राप्त करनेवाले से संबंध
8. पत्र लिखनेवाले का नाम

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अनौपचारिक पत्र का प्रारूप –

अपने मित्र को अपने विद्यालय में हुए वार्षिकोत्सव के विषय में पत्र लिखिए।

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अनौपचारिक पत्र के आरंभ और समापन की विधि

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I. औपचारिक पत्र

(क) कार्यालयी – पत्र :

1. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से महाराष्ट्र सरकार को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पत्र लिखिए।

रजत शर्मा
सचिव, भारत सरकार
शिक्षा मंत्रालय
दिनांक : 12 मार्च, 20XX
सेवा में
सचिव
शिक्षा विभाग
महाराष्ट्र राज्य मुंबई
विषय – नई शिक्षा नीति लागू करने हेतु पत्र।
महोदय

मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि भारत सरकार के निश्चयानुसार शिक्षा सत्र 20…. से संपूर्ण देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाए। महाराष्ट्र में भी इस नीति को क्रियान्वित किया जाए तथा इस योजना को लागू करने के लिए किए गए प्रयासों से मंत्रालय को भी परिचित कराया जाए।
आपका विश्वासपात्र
ह० रजत शर्मा
(रजत शर्मा)
सचिव, शिक्षा मंत्रालय

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2. उपायुक्त, सिरसा की ओर से मुख्य सचिव हरियाणा सरकार को एक पत्र लिखकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अनुरोध कीजिए।

बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा
दिनांक : 16 अगस्त, 20XX
सेवा में
मुख्य सचिव
हरियाणा राज्य
चंडीगढ़
विषय – बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु पत्र।
महोदय
1. मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन दिनों हुई भयंकर वर्षा के परिणामस्वरूप सिरसा के आसपास के गाँवों में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं तथा जन-धन और संपत्ति की भी बहुत हानि हुई है। मैंने अन्य जिला अधिकारियों के साथ स्थिति का निरीक्षण भी किया है।
2. ज़िला – स्तर पर बाढ़ पीड़ितों की यथासंभव सहायता की जा रही है, जो अपर्याप्त है। आपसे प्रार्थना है कि बाढ़ पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे वे अपने टूटे-फूटे मकान बना सकें तथा नष्ट हुई फ़सल के स्थान पर अगली फसल की तैयारी कर सकें।
3. बाढ़ के कारण बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इन बीमारियों पर नियंत्रण करने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हैं। अतः विशेष चिकित्सकों के दल को भी भेजने का प्रबंध करें।
भवदीय
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा

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3. भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग सचिव को राज्य में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पत्र लिखिए।

भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
नई दिल्ली
दिनांक : 22 सितंबर, 20XX
श्री पी० एस० यादव
सचिव, उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश
विषय – उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने हेतु पत्र।
प्रिय श्री यादव जी
विगत दिनों हिमाचल प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने इस मंत्रालय को राज्य में उद्योग-धंधों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया। मुझे बहुत दुख हुआ कि उद्योग-धंधों की उपेक्षा के कारण जहाँ हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को आघात पहुँचा है, वहीं देश की प्रगति भी अवरुद्ध हो रही है। इस संबंध में आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लें तथा प्रदेश में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाएँ। इस संदर्भ में विस्तृत योजनाएँ आपको अलग से भेजी जा रही हैं।
इन योजनाओं को लागू करने में यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित
आपकी सद्भावी
पूनम शर्मा
शिमला

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4. शारदा विद्या मंदिर, लखनऊ के प्राचार्य की ओर से महर्षि दयानंद विद्यालय के प्राचार्य को वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि पद को स्वीकार करने हेतु एक पत्र लिखिए।

शारदा विद्या मंदिर
लखनऊ
दिनांक : 18 अक्तूबर, 20XX
सेवा में
डॉ० नरेश चंद्र मिश्र
प्राचार्य
महर्षि दयानंद विद्यालय
लखनऊ
विषय – मुख्य अतिथि पद के निमंत्रण हेतु पत्र।
प्रिय डॉ० मिश्र जी
हमारे विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 18 जनवरी, 20…. को आयोजित करने का निश्चय किया गया है। इसमें
मुख्य अतिथि
पद को सुशोभित करने हेतु आपसे निवेदन है कि आप अपने अति व्यस्त समय में से कुछ अमूल्य क्षण प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। इस समारोह में विद्यार्थियों को शैक्षणिक तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आप इस विषय में अपनी सुविधानुसार समय दे सकें तो मैं आपका विशेष रूप से आभारी होऊँगा।
शुभकामनाओं सहित
शुभाकांक्षी
डॉ० के० के० मेनन

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5. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

14 / 131, सुभाष नगर
सेलम
दिनांक : 17 मई, 20XX
स्वास्थ्य अधिकारी
नगर-निगम
सेलम
विषय – मलेरिया की रोकथाम हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
इस पत्र के द्वारा मैं अपने क्षेत्र ‘सुभाष नगर’ की सफ़ाई व्यवस्था की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि यह क्षेत्र पर्याप्त ढलान पर बसा हुआ है। बरसात में यहाँ स्थान-स्थान पर पानी रुक जाता है। यही नहीं सड़कों के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। सफाई कर्मचारी कोई ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप यहाँ मक्खियों और मच्छरों का जमघट बना रहता है। रुका हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। अतः इस तरफ़ ध्यान न दिया गया तो इस क्षेत्र में मलेरिया फैलने की पूरी संभावना है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र की तुरंत सफ़ाई करवाने का आदेश दें और मलेरिया की रोकथाम के लिए समुचित व्यवस्था करें। यही नहीं यहाँ के निवासियों को आवश्यक दवाइयाँ भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएँ।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान देंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे। भवदीय
अनुराग छाबड़ा

6. अपने नगर के जलापूर्ति अधिकारी को पर्याप्त और नियमित रूप से पानी न मिलने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।

512, शास्त्री नगर
रोहतक
दिनांक : 14 मार्च, 20XX
जलापूर्ति अधिकारी
नगरपालिका
रोहतक
विषय – पेयजल की कठिनाई हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर
बड़े खेद की बात है कि पिछले एक मास से ‘शास्त्री नगर’ क्षेत्र में पेयजल की कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। नगरपालिका की ओर से पेयजल की सप्लाई बहुत कम होती जा रही है। कभी-कभी तो पूरा-पूरा दिन पानी नलों में नहीं आता। मकानों की पहली दूसरी मंजिल तक तो पानी चढ़ता ही नहीं। आप पानी की आवश्यकता के विषय में जानते हैं।
पानी की कमी के कारण यहाँ के लोगों का जीवन कष्टमय बन गया है। आप से प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेयजल की समस्या का समाधान करें।
आशा है कि आप इस विषय पर ध्यान देंगे और शीघ्र ही उचित कार्रवाई करेंगे।
भवदीय
रामसिंह

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7. अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुए जल भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखिए।

4/307, जगाधरी गेट
अंबाला
दिनांक : 18 सितंबर, 20XX
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
अंबाला
विषय – जल भराव की समस्या हेतु शिकायती पत्र
महोदय
निवेदन यह है कि मैं जगाधरी गेट का निवासी हूँ। यह क्षेत्र सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। वर्षा के दिनों में तो इसकी और बुरी हालत हो जाती है। इन दिनों प्रायः सभी गलियों में वर्षा का जल भरा हुआ है। नगरपालिका इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। इस जल- भराव के कारण आवागमन में ही कठिनाई नहीं होती बल्कि बीमारी फैलने का भी खतरा है।
आपसे नम्र निवेदन है कि आप स्वयं एक बार आकर इस जल भराव को देखें। तभी आप हमारी कठिनाई को समझ पाएँगे। कृपया इस क्षेत्र से जल निकास का शीघ्र प्रबंध करें।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की तरफ़ ध्यान देंगे।
भवदीय
महेश बजाज

8. चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता घर, विद्यालयों और मार्गदर्शक आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगा जाते हैं। इससे लोगों को होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘दैनिक लोक वाणी’ समाचार-पत्र के ‘जनमत’ कॉलम के लिए पत्र लिखिए।

480, नई बस्ती
चंबा
दिनांक : 22 जनवरी, 20XX
संपादक
दैनिक लोकवाणी
चेन्नई
विषय – जगह-जगह राजनीतिक पोस्टर लगाने हेतु शिकायती पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं आपके लोकप्रिय पत्र के ‘जनमत कॉलम’ के लिए एक पत्र लिख रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने की कृपा करें। आप जानते हैं कि चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता बिना सोचे-समझे, विद्यालयों, घरों तथा मार्गदर्शन चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगा जाते हैं। घर अथवा विद्यालय कोई राजनीतिक संस्थाएँ नहीं। उन पर लगे पोस्टरों से यह भ्रम हो जाता है कि घर तथा विद्यालय भी किसी राजनीतिक दल से संबद्ध है। इन पोस्टरों से मार्गदर्शन चित्र इस तरह ढक जाते हैं कि अजनबी को रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इन पोस्टरों को लगानेवालों की भीड़ के कारण आम लोगों को तथा छात्रों को असुविधा होती है। अतः मैं सरकार तथा राजनीतिक दलों का ध्यान इस तरफ़ दिलाना चाहता हूँ।
आशा है कि आप लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मेरे इस पत्र को प्रकाशित करने का आदेश देंगे।
भवदीय
मोहन मेहता

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(ख) आवेदन-पत्र

9. दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष को एक आवेदन-पत्र लिखिए जिसमें लिपिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।

4/19, अशोक नगर
नई दिल्ली
दिनांक : 15 दिसंबर, 20XX
अध्यक्ष
नगर-निगम
दिल्ली
विषय – लिपिक के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं –
(i) बी० ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव – एक वर्ष
(iv) आयु – 24वें वर्ष में प्रवेश
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित
भवदीय
सुखदेव गोयल
संलग्न : उपर्युक्त

10. ‘जनसंख्या विभाग’ को घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने वाले ऐसे सर्वेक्षकों की आवश्यकता है, जो हिंदी और अंग्रेजी में भली-भाँति बात कर सकते हों और सूचनाओं को सही-सही दर्ज कर सकते हों। इसके साथ ही आवेदकों में विनम्रतापूर्वक बात करने की योग्यता होनी चाहिए। इस काम में अपनी रुचि प्रदर्शित करते हुए जनसंख्या विभाग के सचिव को आवेदन-पत्र लिखिए।

7, रामलीला मार्ग
हमीरपुर
दिनांक : 14 दिसंबर, 20XX
प्रशासनिक अधिकारी
जनसंख्या विभाग
कोयंबटूर
विषय – सर्वेक्षक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय
मुझे आज के दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपको घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षकों की आवश्यकता है। मैं आपके कार्यालय द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूर्ण करता हूँ।
मैंने इसी वर्ष बारहवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। कुछ समय तक मैंने स्थानीय कार्यालय में कार्य भी किया है। मैं हिंदी तथा अंग्रेज़ी बोलने तथा इन दोनों भाषाओं में वार्तालाप करने में दक्ष हूँ।
मैं अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अवसर प्रदान करेंगे। आवश्यक प्रमाण-पत्र मैं भेंटवार्ता के अवसर पर साथ लेकर आऊँगा।
भवदीय
महेश महाजन

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11. ‘प्रचंड भारत’ दैनिक समाचार-पत्र को खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। पद के लिए खेलों का ज्ञान और रुचि के साथ-साथ हिंदी भाषा में अच्छी गति से लिखने का अभ्यास अनिवार्य है। इस पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।

14, पश्चिम विहार,
कोटा
दिनांक : 15 सितंबर, 20XX
संपादक
दैनिक ‘प्रचंड भारत’
कोटा
विषय – खेल संवाददाता के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आपको खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। इस पद के लिए मैं अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी योग्यताओं का विवरण इस प्रकार है –
शैक्षिक योग्यता बी० ए० प्रथम श्रेणी – 2012, पत्रकारिता में डिप्लोमा – 2013
विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान – अवधि 2 वर्ष
मुझे खेलों की सामग्री का पर्याप्त अनुभव है। मुझे हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। विद्यालय तथा महाविद्यालय की पत्रिका में मेरे लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
आवश्यक प्रमाण-पत्र इस आवेदन पत्र के साथ संलग्न हैं
आशा है कि आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
भवदीय
प्रतीक राय

(ग) व्यावसायिक पत्र :

12. रिक्तियों के लिए समाचार-पत्र में विज्ञापन के प्रकाशन हेतु पत्र लिखिए।
रेलवे रोड
जालंधर
दिनांक : 29 सितंबर, 20XX
विज्ञापन व्यवस्थापक
दैनिक ट्रिब्यून
चंडीगढ़
विषय – विज्ञापन प्रकाशन हेतु पत्र।
महोदय
इस पत्र के साथ एक विज्ञापन का प्रारूप भेज रहा हूँ जिसे कृपया 7 अक्तूबर तथा 14 अक्तूबर के अंकों में प्रकाशित कर दें। आपका बिल प्राप्त होते ही उसका भुगतान कर दिया जाएगा।

विज्ञापन का प्रारूप

आवश्यकता है एक ऐसे अनुभवी सेल्स मैनेजर की जो स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठान के बिक्री काउंटर को सँभाल सके। वेतन ₹15000-20000 तथा निःशुल्क आवास की व्यवस्था। बहुत योग्य तथा अनुभवी अभ्यार्थी को योग्यतानुसार उच्च वेतन भी दिया जा सकता है। निम्नलिखित पते पर
15 नवंबर, 20XX तक लिखें या मिलें –
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड, जालंधर शहर।
धन्यवाद
भवदीय
एस० के० सिक्का
प्रबंधक
संलग्न : विज्ञापन

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

13. आपको दिल्ली के किसी पुस्तक-विक्रेता से कुछ पुस्तकें मँगवानी हैं। वी० पी० पी० द्वारा मँगवाने के लिए पत्र लिखिए।

5/714, तिलक नगर
कटक
दिनांक : 17 नवंबर, 20XX
प्रबंधक
मल्होत्रा बुक डिपो
गुलाब भवन
6, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली- 110002
विषय – पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
महोदय
निम्नलिखित पुस्तकें स्थानीय पुस्तक – विक्रेता से नहीं मिल रहीं अतः ये पुस्तकें वी० पी० पी० द्वारा शीघ्र भेजने का कष्ट करें। यदि अग्रिम भेजने की आवश्यकता हो तो सूचित करें। पुस्तकों पर उचित कमीशन काटना न भूलें। पुस्तकें नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए।
1. हिंदी गाइड (कक्षा नौ) …… एक प्रति
2. इंगलिश गाइड (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
3. नागरिक शास्त्र के सिद्धांत (कक्षा नौ) …… एक प्रति
4. भूगोल (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
5. विज्ञान (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
भवदीय
निशा सिंह

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(घ) प्रार्थना-पत्र :

14. अपने प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें कई महीने से अंग्रेज़ी की पढ़ाई न होने के कारण उत्पन्न कठिनाई का वर्णन किया गया हो।

प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
पुड्डूचेरी
विषय – अंग्रेज़ी की पढ़ाई न हो पाने हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
आप भली-भाँति जानते हैं कि हमारे अंग्रेज़ी के अध्यापक श्री ज्ञानचंद जी पिछले तीन सप्ताह से बीमार हैं। अभी भी उनके स्वास्थ्य में विशेष सुधार नहीं हो रहा। डॉक्टर का कहना है कि अभी श्री ज्ञानचंद जी को स्वस्थ होने में कम-से-कम दो सप्ताह और लगेंगे। पिछले तीन सप्ताह से हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो रही। आपने जो प्रबंध किया है, वह संतोषजनक नहीं है। उधर परीक्षा सिर पर आ रही हैं। अभी पाठ्यक्रम भी समाप्त नहीं हुआ है। पुनरावृत्ति के लिए भी समय नहीं बचेगा। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई का उचित एवं संतोषजनक प्रबंध करें। यदि कुछ कालांश बढ़ा दिए जाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।
आशा है कि हमारी कठिनाई को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
नवनीत (नौ ‘क’)

15. अपने प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें पुस्तकालय के लिए नई पुस्तकों और बाल-पत्रिकाओं को मँगाने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाचार्य
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जम्मू
विषय – पुस्तकालय में पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
गत सप्ताह आपने प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विद्यालय के पुस्तकालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला था। आपने छात्रों को पुस्तकालय से अच्छी-अच्छी पुस्तकें निकलवाकर उनका अध्ययन करने की भी प्रेरणा दी थी। लेकिन पुस्तकालय में छात्रों ने जिन पुस्तकों तथा बाल – पत्रिकाओं की माँग की, वे प्रायः विद्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।
आपसे नम्र निवेदन है कि कुछ नई पुस्तकें तथा बालोपयोगी पत्रिकाओं को मँगवाने की व्यवस्था करें। पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के अध्ययन से जहाँ छात्र वर्ग के ज्ञान में वृद्धि होती है, वहाँ उनका पर्याप्त मनोरंजन भी होता है।
आशा है कि आप हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान देंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मनोज कुमार
तिथि : 7.11.20XX

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16. विद्यालय के प्राचार्य को संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्राचार्य
नवयुग विद्यालय
वर्धमान
विषय – संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध हेतु पत्र।
महोदय
निवेदन यह है कि आप ने प्रातःकालीन सभा में खेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला था। हम विद्यालय परिसर में संध्या के समय खेलना चाहते हैं, परंतु हमारे विद्यालय के परिसर का खेल का मैदान साफ़ नहीं है तथा हमें खेल की उचित सामग्री भी प्राप्त नहीं होती।
आपसे अनुरोध है कि खेल के मैदान को साफ़ करवाने की तथा खेलों की सामग्री दिलवाने की कृपा करें।
धन्यवाद
भवदीय
देबाशीष डे
तथा कक्षा नौवीं के अन्य विद्यार्थी
दिनांक : 24 अप्रैल, 20XX

17. अध्यक्ष परिवहन निगम को अपने गाँव तक बस सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

अध्यक्ष
परिवहन निगम
दिल्ली
विषय – बस सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं गाँव ‘सोनपुरा’ का एक निवासी हूँ। वह गाँव दिल्ली से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। खेद की बात है कि परिवहन निगम की ओर से इस गाँव तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है। यहाँ के किसानों को नगर से कृषि के लिए आवश्यक सामान लाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। छात्र – छात्राओं को अपने-अपने विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहुँचने के लिए भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस गाँव तक बस सेवा उपलब्ध करवाने की कृपा करें।
आशा है कि हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान दिया जाएगा।
धन्यवाद सहित।
भवदीय
रमेश ‘बाल रत्न’
निवासी ‘सोनपुरा गाँव’
तिथि : 18 मार्च, 20XX

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18. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
पणजी
विषय – खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने हेतु पत्र।
मान्यवर
आपने एक छात्र – सभा में भाषण देते हुए इस बात पर बल दिया था कि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ खेलों का महत्व भी समझना चाहिए। खेल शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। खेद की बात यह है कि आप खेलों की आवश्यकता तो खूब समझते हैं पर खेल सामग्री के अभाव की ओर कभी आपका ध्यान नहीं गया। खेलों के अनेक लाभ हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी हैं। ये अनुशासन, समयपालन, सहयोग तथा सद्भावना का भी पाठ पढ़ाते हैं।
अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप खेलों का सामान उपलब्ध करवाने की कृपा करें। इससे छात्रों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ेगी। वे अपनी खेल प्रतिभा का विकास कर सकेंगे।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर उचित ध्यान देंगे और आवश्यक आदेश जारी करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
रजत शर्मा
कक्षा : नौवीं ‘ब’
दिनांक : 17 अप्रैल, 20XX

19. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को भाई के विवाह के कारण चार दिन का अवकाश प्रदान करने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
एस० एम० उच्च विद्यालय
अहमदाबाद
विषय – भाई के विवाह के कारण अवकाश हेतु पत्र।
महोदय
सविनय प्रार्थना है कि मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। मेरा इसमें सम्मिलित होना अति आवश्यक है। इसलिए इन दिनों मैं विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपया मुझे 11 से 14 अक्तूबर तक चार दिन की छुट्टी देकर अनुगृहित करें। अति धन्यवाद सहित।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
जयदीप
कक्षा : नौवीं ‘बी’
दिनांक : 10 अक्तूबर, 20XX

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20. शिक्षा-शुल्क क्षमा करवाने के लिए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय
अकोला
विषय – शिक्षा शुल्क क्षमा करवाने के लिए पत्र।
महोदय
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा नौवीं ‘ए’ में पढ़ता हूँ। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरे पिताजी एक स्थानीय कार्यालय में केवल पाँच हज़ार रुपये मासिक पर कार्य करते हैं। हम परिवार में छह सदस्य हैं। इस महँगाई के समय में इतने कम वेतन में निर्वाह होना अति कठिन है। ऐसी स्थिति में मेरे पिताजी मेरा शुल्क अदा करने में असमर्थ हैं।
मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं सदा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। मैं स्कूल की हॉकी टीम का कप्तान भी हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझसे सर्वथा संतुष्ट हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप मेरा शिक्षा शुल्क माफ़ कर मुझे आगे पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें।
मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रमोद कुमार
कक्षा नौवीं ‘ए’
दिनांक : 15 मई, 20XX

21. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए जिसमें स्कूल फंड से पुस्तकें लेकर देने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
मदुरै
विषय – स्कूल फंड से पुस्तकें लेकर देने हेतु पत्र।
महोदय
निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा नौवीं ‘ए’ का अत्यंत निर्धन विद्यार्थी हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि पिछले वर्ष मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी। मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं है। खेती-बाड़ी या आय का अन्य कोई साधन नहीं है। मेरे अलावा मेरे दो छोटे भाई हैं, जिनमें से एक छठी कक्षा में पढ़ता है। माँ हम सब का मेहनत-मज़दूरी करके पालन-पोषण कर रही है और पढ़ा-लिखा रही है। नवंबर का महीना बीत रहा है और अभी तक मेरे पास एक भी पाठ्य पुस्तक नहीं है। अभी तक मैं साथियों से पुस्तकें माँग कर काम चला रहा हूँ। परंतु परीक्षा के समय मेरे साथी चाहकर भी अपनी पाठ्य-पुस्तकें नहीं दे पाएँगे। यह बात स्मरण करके अपनी बेबसी का बेहद एहसास होता है। वार्षिक परीक्षा दो-तीन महीने बाद शुरू होने वाली है।
अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे निर्धन छात्र- कोष या पुस्तकालय से सभी आवश्यक पाठ्य-पुस्तकें दिलाने की कृपा करें। आपके इस उपकार का मैं जीवन-भर आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
कमल मोहन
कक्षा नौवीं ‘ए’
दिनांक : 11 मई, 20XX

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22. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को विद्यालय-त्याग का प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
शारदा उच्च विद्यालय
धर्मशाला
विषय – विद्यालय – त्याग प्रमाण पत्र प्रदान करने हेतु।
मान्यवर
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी का स्थानांतरण शिमला हो गया है। वे कल यहाँ से जा रहे हैं और साथ में परिवार भी जा रहा है। इस अवस्था में मेरा यहाँ अकेला रहना कठिन है। कृपा करके मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण- पत्र दीजिए ताकि मैं वहाँ जाकर स्कूल में प्रविष्ट हो सकूँ।
कृपा के लिए धन्यवाद।
आपका विनीत शिष्य
सुनील कुमार
कक्षा : नौवीं ‘बी’
दिनांक : 11 फरवरी, 20XX

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

JAC Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से अभिप्राय उत्पादों का भोगकर उनसे सुख प्राप्त करना है। इस प्रकार वर्तमान जीवन में आधुनिक उपभोगों का भोग करना ही आज सुख है।

प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर :
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित कर रही है। लोग प्रत्येक वस्तु विज्ञापनों से प्रभावित होकर खरीदते हैं। वे वस्तु के गुण-अवगुण का विचार किए बिना ही उस वस्तु के प्रचार से प्रभावित हो जाते हैं। वे बहुविज्ञापित वस्तु खरीदने में ही अपनी विशिष्टता अनुभव करते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि वे चाहते थे कि हम अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहें तथा नवीन सांस्कृतिक मूल्यों को अच्छी प्रकार से जाँच-परखकर ही स्वीकार करें। हमें बिना सोचे-समझे किसी का भी अंधानुकरण नहीं करना चाहिए अन्यथा हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा।

आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
उत्तर :
उपभोग भोग को ही सुख मानने के कारण आज का मनुष्य अधिक-से-अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में लगा हुआ है। इस प्रकार आज के इस उपभोक्तावादी वातावरण में न चाहते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र भी बदल रहा है और न चाहने पर भी हम सभी उत्पाद को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं और उसके भोग को ही सुख मान बैठे हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि लोग प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। उनके कुछ कार्य तो इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण हरकतों से युक्त होते हैं कि उन्हें देखकर ही हँसी आ जाती है। इससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि नहीं होती बल्कि उनका मजाक ही बन जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी० वी० पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों ?
उत्तर :
टी० वी० पर किसी भी वस्तु का विज्ञापन इतने आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उस विज्ञापन को देखकर हम उस विज्ञापन से इतने अधिक प्रभावित हो जाते हैं कि आवश्यकता न होने पर भी हम उस वस्तु को खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं। विज्ञापन का प्रस्तुतीकरण हमें उस अनावश्यक वस्तु को खरीदने के लिए बाध्य कर देता है।

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प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन। तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर :
मेरे विचार में किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता पर विचार करना चाहिए। इसके साथ ही उस वस्तु की उपयोगिता के संबंध में भी सोचना चाहिए। केवल विज्ञापन से प्रभावित होकर कुछ नहीं खरीदना चाहिए। क्योंकि विज्ञापन में तो उत्पादक अपनी वस्तु को इस प्रकार के लुभावने रूप में प्रस्तुत करता है कि उपभोक्ता उसकी चमक-दमक देखकर ही उसे खरीदने के लिए लालायित हो उठता है। वह उस वस्तु की उपयोगिता तथा गुणों पर विचार नहीं करता है। यदि वह वस्तु हमारे लिए उपयोगी नहीं है तथा उसकी गुणवत्ता से हम संतुष्ट नहीं हैं तो वह वस्तु हमें खरीदनी नहीं चाहिए।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आज के इस उपभोक्तावादी युग में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से होड़ लगाने में लगा हुआ है। वह अपनी छोटी गाड़ी के सुख से सुखी नहीं है बल्कि दूसरे की बड़ी गाड़ी देखकर दुखी होता रहता है। एक ने विवाह में जितना खर्च किया तथा शान दिखाई दूसरा उससे दुगुनी शान दिखाना चाहता है चाहे इसके लिए उसे ऋण ही क्यों न लेना पड़े। इस प्रकार आज के इस उपभोक्तावादी युग में दिखावे की संस्कृति पनप रही है।

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प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाज और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
कुछ दिन पहले मुझे श्री संतोष कुमार के पुत्र के मुंडन का निमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ। यह निमंत्रण पत्र सुनहरे अक्षरों में छपा हुआ तथा बहुमूल्य मखमल के बने लिफ़ाफ़े में था। जब मैं आयोजन – स्थल पाँच सितारा क्लब में पहुँचा तो वहाँ की सजावट देखकर दंग रह गया। मुंडन से पूर्व शहनाई वादन, संगीत – नृत्य तथा अन्य कार्यक्रम होते रहे। बाद में भव्य पंडाल के नीचे मंत्रोच्चारण में मुंडन संस्कार हुआ।

बच्चे के ननिहाल वालों ने सोने हीरे के उपहारों के अतिरिक्त लाखों के अन्य उपहार दिए। अन्य लोगों ने छोटे साइकिल से लेकर बच्चे के वस्त्रों सहित अनेक उपहार दिए। इसके पश्चात भोजन की अनेक प्रकार की व्यवस्था थी। भारतीय से लेकर चाइनीज़ तक। मैं उपभोक्ता संस्कृति में पनपते दिखावे की प्रवृत्ति को देखता ही रह गया। मुंडन पर ही लाखों खर्च कर दिए गए, जबकि पहले किसी तीर्थ स्थान पर जाकर अथवा घर में ही पूजा करके परिवार जनों के बीच सादगी से मुंडन संस्कार संपन्न हो जाता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
उत्तर :
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रियाविशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रियाविशेषण कहलाता है।

(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए। उत्तर :
1. साबुन आपको दिनभर तरोताजा रखता है।
2. पेरिस से परफ्यूम मँगवाइए, इतना ही खर्च हो जाएगा।
3. विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं।
4. अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है
5. जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति बढ़ेगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

(ख) धीरे-धीरे, ज़ोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज़्यादा, यहाँ, उधर, बाहर – इन क्रियाविशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर :

  • धीरे-धीरे – धीरे-धीरे चलो, नहीं तो गिर जाओगे।
  • ज़ोर से – कल ज़ोर से बारिश हुई थी।
  • लगातार – सोहन लगातार तीन घंटे साइकिल चलाता रहा।
  • हमेशा – सुषमा हमेशा कक्षा में देर से आती है।
  • आजकल – आजकल महँगाई बढ़ गई है।
  • कम – लाला रामलाल कम तोलता है।
  • ज़्यादा – रमेश को ज्यादा बुखार नहीं था।
  • उधर – उधर बरफ़ पड़ रही है।
  • यहाँ – यहाँ सरदी अधिक नहीं है।
  • बाहर – तुम्हें कोई बाहर बुला रहा है।

(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रियाविशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए –

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति 1

पाठेतर सक्रियता – 

‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद – शैली में लिखिए।
उत्तर :
अध्यापक – अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरी सब्ज़ियाँ अवश्य खानी चाहिए। इनसे पेट ही नहीं भरता बल्कि विटामिन भी मिलते हैं।
अनुज – सर, मैगी खाने में क्या बुराई है ? उसमें भी तो कार्बोहाइड्रेट्स हैं।
अध्यापक – इससे शरीर को उतने लाभ नहीं मिलते जितने तुम्हें चाहिए। तुम्हें लंबा कद भी तो चाहिए।
अनुज – उसके लिए तो हार्लिक्स ले लेंगे। टी०वी० रोज़ यही तो कहता है कि लटकने से कद नहीं बढ़ेगा। बल्कि हार्लिक्स से कद बढ़ेगा।

इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें।
क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

आप प्रतिदिन टी० वी० पर ढेरों विज्ञापन देखते – सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

यह भी जानें –

सांस्कृतिक अस्मिता – अस्मिता से तात्पर्य है पहचान। हम भारतीयों की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है। यह सांस्कृतिक पहचान भारत की विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इस मिली-जुली सांस्कृतिक पहचान को ही हम सांस्कृतिक अस्मिता कहते हैं।

सांस्कृतिक उपनिवेश – विजेता देश जिन देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है, वे देश उसके उपनिवेश कहलाते हैं। सामान्यतः विजेता देश की संस्कृति विजित देशों पर लादी जाती है, दूसरी तरफ़ हीनता ग्रंथिवश विजित देश विजेता देश की संस्कृति को अपनाने भी लगते हैं। लंबे समय तक विजेता देश की संस्कृति को अपनाए रखना सांस्कृतिक उपनिवेश बनना है।

बौद्धिक दासता – अन्य को श्रेष्ठ समझकर उसकी बौद्धिकता के प्रति बिना आलोचनात्मक दृष्टि अपनाए उसे स्वीकार कर लेना बौद्धिक दासता है।

छद्म आधुनिकता – आधुनिकता का सरोकार विचार और व्यवहार दोनों से है। तर्कशील, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक दृष्टि के साथ नवीनता का स्वीकार आधुनिकता है। जब हम आधुकिता को वैचारिक आग्रह के साथ स्वीकार न कर उसे फ़ैशन के रूप में अपना लेते हैं तो वह छद्म आधुनिकता कहलाती है।

JAC Class 9 Hindi उपभोक्तावाद की संस्कृति Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ निबंध का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ निबंध में श्यामाचरण दुबे ने विज्ञापन की चकाचौंध में भ्रमित समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। लेखक का विचार है कि आज हम विज्ञापनों से प्रभावित होकर वस्तुओं को खरीदने में लगे हैं, उन वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते हैं। समाज का उच्चवर्ग प्रदर्शनपूर्ण जीवनशैली अपना रहा है जिस कारण उच्च और निम्नवर्ग में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। इससे जो संपन्न नहीं हैं वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए गलत मार्ग अपना लेंगे। इससे समाज में सामाजिक अशांति और विषमता बढ़ेगी। इसलिए लेखक गांधी जी के द्वारा दिखाए गए स्वस्थ सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है जिससे हमारे समाज की नींव सुदृढ़ हो सके।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 2.
उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव से आपस में दिखावे की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा। जीवन बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदने में लगा रहेगा। वस्तुओं की गुणवत्ता पर हमारा ध्यान नहीं रहेगा। इससे धन का अपव्यय होगा। डिब्बा बंद खाद्य-पदार्थों को खाने से हमारे स्वास्थ्य की हानि होगी। एक-दूसरे से अधिक दिखावा करने की होड़ से सामाजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा। व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ेगी। स्वार्थ के लिए सब कुछ किया जाएगा। मर्यादाएँ टूटेंगी तथा नैतिक मानदंड ढीले पड़ जाएँगे। सर्वत्र भोग की प्रधानता हो जाएगी। इससे हमारी सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट हो जाएगी।

प्रश्न 3.
उपभोक्तावाद क्या है? यह हमारी जीवन-शैली को कैसे प्रभावित कर रहा है ?
उत्तर :
उपभोक्तावाद से अभिप्राय यह है कि जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति उत्पादित की गई वस्तु के उपभोग से आनंद तथा सुख की प्राप्ति का अनुभव करने लगता है और व्यक्ति को जीवन में केवल भोग के द्वारा ही संतोष मिलता है। वह सदा भोग-विलास में डूबा रहता है। उपभोक्तावाद ने हमारी जीवन शैली को प्रभावित किया है। हम अधिक-से-अधिक उत्पादों का आनंद लेने में सुख अनुभव करने लगे हैं। इसके कारण चारों ओर उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। जिससे हम अधिक-से-अधिक उपभोग कर सकें। हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हमारा जीवन उत्पाद को ही समर्पित हो गया है।

प्रश्न 4.
‘अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी हो सकता है’। लेखक किस बात की संभावना व्यक्त कर रहा है ?
उत्तर :
लेखक इस बात की संभावना व्यक्त कर रहा है कि भारत में भी अमेरिका की तरह मरने से पहले ही अपनी कब्र के लिए स्थान और अनंत विश्राम का प्रबंध एक निश्चित कीमत पर कर सकते हैं। साथ में आपकी कब्र और भी कई सुविधाओं में उपलब्ध हो सकती है। लेखक यह इसलिए भी कह रहा है क्योंकि आज का युग दिखावे का युग है। हम लोगों की आदत भी दूसरों की आदतों का अनुसरण करना है।

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प्रश्न 5.
आज समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का मानदंड क्या है ?
उत्तर :
आज समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का चिह्न उसका मान, शान या सम्मान नहीं है। आज के समय में उसी व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा होती है जिसके पास दिखावे का अधिक-से-अधिक सामान हो। जो एक रुपए का सामान सौ में खरीद सकता हो। जिसकी पसंद फैशन के अनुसार बदलती रहती है। यही आज के समाज में प्रतिष्ठा के चिह्न माने जाते हैं और सामान्य लोगों में सम्मान प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 6.
‘यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई आँखों से देखता है।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर :
‘यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई आँखों से देखता है।’ लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है कि आज साधारण मानव भी उच्च लोगों की तरह दिखावे की संस्कृति में दौड़ पड़ा है। उसे भी पाँच सितारा होटलों में जाना अच्छा लगता है। विदेशी सामान का पिटारा उसे भी लुभाता है। वह भी उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित होकर नित नए उत्पादों का प्रयोग करने के लिए लालायित है। वह भी अपना जीवन सुख से व्यतीत करना चाहता है, इसलिए सामान्य व्यक्ति भी विशिष्ट जन के समाज को जीने के लिए ललचाई आँखों से देखते हैं।

प्रश्न 7.
सांस्कृतिक अस्मिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘अस्मिता’ का शाब्दिक अर्थ है पहचान। सांस्कृतिक अस्मिता से अभिप्राय अपनी संस्कृति की पहचान। भारतवासियों की अपनी एक पहचान है। यह पहचान विभिन्न भारतीय संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इसी मिली-जुली संस्कृति का नाम सांस्कृतिक अस्मिता है। इस पर कभी भी दूसरे लोगों की दृष्टि ने क्षीण अवश्य किया है परंतु समाप्त नहीं किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 8.
हम बौद्धिक दासता के शिकार किस प्रकार हो रहे हैं ?
उत्तर :
बौद्धिक दासता से अभिप्राय यह है कि दूसरे व्यक्ति को अपने से बुद्धिमान समझकर उसके तर्क या आलोचना को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लेना तथा बाद में उसी प्रकार का आचरण करना आरंभ कर देना है। हम लोग दूसरे देशों के उत्पादों का उपयोग, उनके कहे अनुसार कि यह बहुत अच्छा है, करने लग जाते हैं। इस स्थिति में हम अपनी बुद्धि का बिलकुल प्रयोग नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
हम पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश कैसे बन रहे हैं ?
उत्तर :
सांस्कृतिक उपनिवेश से अभिप्राय है कि किसी देश द्वारा अपनी संस्कृति को दूसरे देश पर लाद देना है। ऐसा उन देशों में पाया जाता है जो देश किसी अन्य देश के गुलाम रहे हों या उनकी संस्कृति से प्रभावित हों। भारत लगभग 200 सालों से अंग्रेज़ों का गुलाम रहा है इसलिए यहाँ के लोगों पर पश्चिम की संस्कृति का बहुत अधिक प्रभाव रहा है। देश के आज़ाद होने पर भी हम अपनी मानसिकता को नहीं बदल पाए हैं। आज भी हम पश्चिमी सभ्यता का दिखावा करते हुए अपने देश की संस्कृति को भूल रहे हैं। आधुनिकता की दौड़ में कहीं हम अन्य देशों से पिछड़ न जाएँ इसलिए पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं।

प्रश्न 10.
जीवन-स्तर के अंतर के बढ़ने से समाज की स्थिति कैसी हो गई ?
उत्तर :
जीवन-स्तर के अंतर के बढ़ने से समाज के वर्गों से दूरी बढ़ रही है जिससे चारों ओर आक्रोश और अशांति फैल रही है। वर्तमान समाज में जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, वैसे-वैसे सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। इसका कारण एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति का बढ़ना है। ईर्ष्या की भावना भी समाज में अशांति बन रही है।

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प्रश्न 11.
“स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है।” कैसे ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज मनुष्य का स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। मनुष्य समाज के सुख को न सोचकर केवल अपने ही सुख- सुविधाओं को जुटाने में लगा रहता है। वह समाज कल्याण के स्थान पर केवल अपने ही कल्याण के विषय में सोचने लगता है। उसे दूसरों से कोई भी मतलब नहीं रहता है वह केवल अपने अच्छे-बुरे के विषय में सोचता है उसकी इसी स्वार्थी सोच ने परमार्थ की भावना को समाप्त कर दिया है।

प्रश्न 12.
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति के विषय में क्या कहा था ?
उत्तर :
गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति के विषय में कहा था कि हमें अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातें ग्रहण करने में संकोच नहीं करना चाहिए तथा अपनी परंपराओं का भी हाथ नहीं छोड़ना चाहिए। उपभोक्ता संस्कृति को संपूर्ण रूप से जीवन में समाहित करने से हम अपने परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को भूल जाएँगे। इसके लिए हमें खुले मन से किसी की बात सुननी चाहिए या उसके प्रभाव से प्रभावित होकर उसकी बात ग्रहण करनी चाहिए। यह सच हम लोगों की सोच पर निर्भर करता है, इसीलिए गाँधी जी ने इस उपभोक्ता संस्कृति के लिए पहले से ही सचेत कर दिया था।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। एक नई जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन-दर्शन उपभोक्तावाद का दर्शन। उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर। यह उत्पादन आपके लिए है, आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोग भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नयी स्थिति में। उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कौन धीरे-धीरे अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी ?
(ख) जीवन-शैली के साथ किसका पदार्पण हो रहा है ?
(ग) समाज में क्या बढ़ाने की होड़ है ?
(घ) सुख की परिभाषा बदल गई है। कैसे ?
(ङ) उपभोक्तावादी दर्शन के परिणामस्वरूप मानव का क्या परिवर्तित हो रहा है ?
उत्तर :
(क) नवीन जीवन शैली धीर-धीरे अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी।
(ख) नवीन जीवन शैली के साथ उपभोक्तावादी दर्शन का पदार्पण हो रहा था।
(ग) समान में उत्पादन बढ़ाने की होड़ है।
(घ) सुख की परिभाषा बदल गई है। अब माना जाने लगा है कि उत्पादन का उपभोग ही सुख है।
(ङ) उपभोक्तावादी दर्शन के परिणामस्वरूप जाने-अनजाने मानव का चरित्र भी परिवर्तित हो रहा है और हम उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

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2. कल भारत में भी यह संभव हो। अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं। चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों। यह है एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज की। यह विशिष्ट जन का समाज है पर सामान्य जन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) विशिष्ट जन का समाज कौन-सा है ?
(ख) जनसामान्य किसे ललचाई आँखों से देखता है और क्यों ?
(ग) भारत में क्या संभव है ?
उत्तर :
(क) विशिष्ट जन का समाज उपभोक्तावादी समाज है।
(ख) अमेरिका में आज जो हो रहा है, वह कल भारत में भी संभव है।
(ग) सामान्य जन विशिष्ट जन के समाज को ललचाई आँखों से देखता है क्योंकि वह उसे आकर्षक लगता है। वह समाज उपभोक्तावाद की झलक दिखलाता है।

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3. हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें, परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं। पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं। हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) लेखक के अनुसार भारतीय किस दासता को स्वीकार रहे हैं ?
(ख) भारतीय नवीन संस्कृति कैसी है ?
(ग) हम किसे गँवाकर छद्म आधुनिकता की ओर प्रवेश कर रहे हैं ?
(घ) उपभोक्तावादी दर्शन का क्या प्रभाव हुआ है ?
उत्तर :
(क) लेखक के अनुसार भारतीय बौद्धिक दासता को स्वीकार कर रहे हैं।
(ख) नवीन भारतीय संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं।
(ग) हम जो कुछ भी अपना है, उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा रहे हैं।
(घ) उपभोक्तावादी दर्शन से हमारी परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है साथ ही आस्थाओं का भी क्षरण हुआ है। हम बौद्धिक दास बनने के साथ-साथ पश्चिम का सांस्कृतिक उपनिवेश बनते जा रहे हैं।

4. जीवन-स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास तो हो ही रहा है, हम लक्ष्य-भ्रम से भी पीड़ित हैं। विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं, हम झूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं। मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं। व्यक्ति-केंद्रिकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। भोग की आकांक्षाएँ आसमान को छू रही हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) जीवन स्तर में उत्पन्न अंतर से क्या हानियाँ हैं ?
(ख) ‘लक्ष्य-भ्रम’ से क्या तात्पर्य है ? इससे क्या होगा ?
(ग) झूठी तुष्टि क्या है ? इसका क्या परिणाम होता है ?
(घ) व्यक्ति केंद्रिकता का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) जीवन-स्तर में बढ़नेवाले अंतर से चारों ओर आक्रोश और अशांति फैल रही है। वर्तमान जीवन स्तर दिखावे की होड़ में आगे दे बढ़ रहा है। इस कारण एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ईर्ष्या की भावना समाज में अशांति को बढ़ावा रही है।

(ख) ‘लक्ष्य-भ्रम’ का अर्थ अपने लक्ष्य को ठीक से न पहचानकर इधर-उधर भटकते रहना है। इस भ्रम के कारण मनुष्य अपने उद्देश्य से भटक गया है और केवल भोग-विलास को ही अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य मान रहा है। इस कारण समाज का नैतिक पतन हो रहा है।

(ग) झूठी तुष्टि से तात्पर्य क्षणिक सुख अथवा अस्थाई सुख की अनुभूति से है। मनुष्य जब झूठे सुख को सच्चा मान बैठता है तो उसे वास्तविक सुख अथवा आनंद का अनुभव कभी नहीं होता है। वह सदा भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने में और उन्हीं में सुख ढूँढ़ता रहता है।

(घ) जब मनुष्य समाज के सुख की न सोचकर केवल अपने ही सुख-सुविधाओं को जुटाने तथा उन सुख-सुविधाओं का उपभोग करने में लगा रहता है और समाज कल्याण के स्थान पर केवल अपना ही कल्याण सोचता रहता है तब मनुष्य आत्म- केंद्रित हो जाता है। अपने स्वार्थ में लिप्त रहने के कारण ही आज समाज में व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है।

(ङ) दो तत्सम शब्द हैं-मर्यादाएँ, आकांक्षाएँ।

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5. गांधी जी ने कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजे-खिड़की खुले रखें पर अपनी बुनियाद पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। यह एक बड़ा खतरा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गांधी जी ने क्या कहा था ?
(ख) उपभोक्ता संस्कृति से किसे और क्या खतरा है ?
(ग) भविष्य के लिए क्या चुनौती है ?
(घ) ‘दरवाज़े – खिड़की खुले रखने से क्या तात्पर्य है ?
(ङ) बुनियाद से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) गांधी जी ने कहा था कि हमें अन्य संस्कृतियों की अच्छी बातें ग्रहण करते हुए संकोच नहीं करना चाहिए तथा अपनी परंपराओं को भी नहीं छोड़ना चाहिए।
(ख) उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारे सामाजिक जीवन को यह खतरा है कि हम अपने परंपरागत सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को भूल जाएँगे।
(ग) उपभोक्तावादी संस्कृति से हम भोगवादी बन जाएँगे तथा भविष्य में अपनी परंपराओं को भूलकर अपनी सांस्कृतिक विरासत खो देंगे।
(घ) दरवाज़े-खिड़की खुले रखने से तात्पर्य यह है कि हमें खुले मन से किसी की बात सुननी चाहिए अथवा किसी प्रभाव से प्रभावित होकर उसे ग्रहण करना चाहिए।
(ङ) इन पंक्तियों में ‘बुनियाद’ का तात्पर्य हमारे जीवन-मूल्यों से है जिन पर टिककर हम जीवन में आगे बढ़ते आए हैं।

उपभोक्तावाद की संस्कृति Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन – सुप्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक श्यामाचरण दुबे का जन्म सन 1922 ई० में मध्य प्रदेश में हुआ था। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पी एच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। इन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया था। इनका अनेक संस्थानों से भी संबंध रहा है। सन् 1996 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – डॉ॰ श्यामाचरण दुबे ने भारत की जनजातियों तथा ग्रामीण समाज का गहन अध्ययन किया है। इनसे संबंधित इनकी रचनाओं ने समाज का ध्यान इनकी समस्याओं की ओर आकर्षित किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ – मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय ग्राम विकास का समाजशास्त्र, संक्रमण की पीड़ा और समय और संस्कृति हैं।

भाषा-शैली – डॉ० श्यामाचरण दुबे का अपने विषय और भाषा पर पूर्ण अधिकार है। ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ में लेखक ने विज्ञापन की चमक-दमक के पीछे भागते हुए लोगों को सावधान किया है कि इस प्रकार से अंधाधुंध विज्ञापनों से प्रभावित होकर कुछ खरीदना समाज में दिखाने की प्रवृत्तियों को बढ़ावा देगा तथा सर्वत्र सामाजिक अशांति और विषमता फैल जाएगी। लेखक ने मुख्य रूप से तत्सम प्रधान शब्दों का प्रयोग किया है, जैसे- उपभोक्ता, संस्कृति, समर्पित, चमत्कृत, प्रसाधन, परिधान, अवमूल्यन, अस्मिता, दिग्भ्रमित संसाधन, उपनिवेश आदि।

कहीं-कहीं लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का प्रयोग भी प्राप्त होता है, जैसे- माहौल, टूथ पेस्ट, ब्रांड, माउथवाश, सिने स्टार्स, परफ्यूम, म्यूजिक सिस्टम आदि। लेखक ने अत्यंत रोचक एवं प्रभावपूर्ण शैली में अपनी बात कही है। कहीं-कहीं तो चुटीले कटाक्ष भी किए गए हैं, जैसे- ‘संगीत की समझ हो या नहीं, कीमती म्यूजिक सिस्टम ज़रूरी है। कोई बात नहीं यदि आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें। कंप्यूटर काम के लिए तो खरीदे जाते हैं, महज़ दिखावे के लिए उन्हें खरीदनेवालों की संख्या भी कम नहीं है।’ इस प्रकार लेखक ने सहज एवं रोचक भाषा-शैली का प्रयोग किया है।

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पाठ का सार :

‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के लेखक डॉ० श्यामाचरण दुबे हैं। इस पाठ में लेखक ने विज्ञापनों की चमक-दमक से प्रभावित होकर खरीदारी करनेवालों को सचेत किया है कि इस प्रकार गुणों पर ध्यान न देकर बाहरी दिखावे से प्रभावित होकर कुछ खरीदने की प्रवृत्ति से समाज में दिखावे को बढ़ावा मिलेगा तथा सर्वत्र अशांति और विषमता फैल जाएगी। लेखक का मानना है कि आज चारों ओर बदलाव नज़र आ रहा है। जीवन जीने का नया ढंग अपनाया जा रहा है। सभी सुख प्राप्त करने के लिए उपभोग की वस्तुओं को खरीद रहे हैं। बाज़ार में विलासिता की सामग्रियों की खूब बिक्री हो रही है।

विज्ञापनों के द्वारा इन वस्तुओं का प्रचार हो रहा है, जैसे-टूथ-पेस्ट के ‘दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाता है’, ‘मुँह की दुर्गंध हटाता है’, ‘मसूड़े मज़बूत बनाता है’, ‘बबूल या नीम के गुणों से युक्त है’ आदि विज्ञापन उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार से टूथ ब्रश, माउथवाश तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापन भी देखे जा सकते हैं। साबुन, परफ्यूम, तेल, आफ़्टर शेव लोशन, कोलोन आदि अनेक सौंदर्य प्रसाधन की सामग्रियों के लुभावने विज्ञापन उपभोक्ता को इन्हें खरीदने के लिए आकर्षित करते रहते हैं। उच्च वर्ग की महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल तीस-तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की सौंदर्य सामग्री से भरी रहती है।

इसी प्रकार से परिधान के क्षेत्र में जगह-जगह खुल रहे बुटीक महँगे और नवीनतम फ़ैशन के वस्त्र तैयार कर देते हैं। डिज़ाइनर घड़ियाँ लाख- डेढ़ लाख की मिलती हैं। घर में म्यूजिक सिस्टम और कंप्यूटर रखना फ़ैशन हो गया है। विवाह पाँच सितारा होटलों में होते हैं तो बीमारों के लिए पाँच सितारा अस्पताल भी हैं। पढ़ाई के लिए पाँच सितारा विद्यालय तो हैं ही शायद कॉलेज और विश्वविद्यालय भी पाँच सितारा बन जाएँगे।

अमेरिका और यूरोप में तो मरने से पहले ही अंतिम संस्कार का प्रबंध भी विशेष मूल्य पर हो जाता है। लेखक इस बात से चिंतित है कि भारत में उपभोक्ता संस्कृति का इतना विकास क्यों हो रहा है? उसे लगता है कि उपभोक्तावाद सामंती संस्कृति से ही उत्पन्न हुआ है। इससे हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को खोते जा रहे हैं। हम पश्चिम की नकल करते हुए बौद्धिक रूप से उनके गुलाम बन रहे हैं। हम आधुनिकता के झूठे मानदंड अपनाकर मान-सम्मान प्राप्त करने की अंधी होड़ में अपनी परंपरा को खोकर दिखावटी आधुनिकता के मोह बंधन में जकड़े जा रहे हैं।

परिणामस्वरूप दिशाहीन हो गए हैं और हमारा समाज भी भटक गया है। इससे हमारे सीमित संसाधन भी व्यर्थ ही नष्ट हो रहे हैं। लेखक का मानना है कि जीवन में उन्नति आलू के चिप्स खाने अथवा बहुविज्ञापित शीतल पेयों को पीने से नहीं हो सकती। पीजा, बर्गर को लेखक कूड़ा खाद्य मानता है। समाज में परस्पर प्रेमभाव समाप्त हो रहा है। जीवनस्तर में उन्नति होने से समाज के विभिन्न वर्गों में जो अंतर बढ़ रहा है उससे समाज में विषमता और अशांति फैल रही है। हमारी सांस्कृतिक पहचान में गिरावट आ रही है।

मर्यादाएँ समाप्त हो रही हैं तथा नैतिक पतन हो रहा है। स्वार्थ ने परमार्थ पर विजय प्राप्त कर ली है और भोग प्रधान हो गया है। गांधी जी ने कहा था कि हम सब ओर से स्वस्थ सांस्कृतिक मूल्य ग्रहण करें परंतु अपनी पहचान बनाए रखें। यह उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। इसलिए हमें इस बड़े खतरे से बचना होगा क्योंकि भविष्य में यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • उपभोक्ता – उपभोग करनेवाला
  • वर्चस्व – श्रेष्ठता, प्रधानता
  • माहौल – वातावरण
  • बहुविज्ञापित – बहुत अधिक प्रचारित
  • चमत्कृत – हैरान, चकित, विस्मित
  • परिधान – वस्त्र
  • हास्यास्पद – हँसी उत्पन्न करने वाला
  • सामंत – ज़मींदार, योद्धा
  • अवमूल्यन – गिरावट
  • क्षरण – क्षीण होना, धीरे-धीरे नष्ट होना
  • अनुकरण – नकल
  • प्रतिस्पर्धा – होड़, मुकाबला
  • गिरफ़्त – पकड़
  • सम्मोहन – मुग्ध करना
  • ह्रास – गिरावट
  • अपव्यय – फ़िजूलखर्ची
  • स्वार्थ – अपना भला
  • उपभोग – किसी वस्तु के व्यवहार का सुख या आनंद लेना, काम में लाना
  • सूक्ष्म – बहुत कम, बहुत छोटा दुर्गध – बदबू
  • सौंदर्य-प्रसाधन – सुंदरता बढ़ानेवाली वस्तुएँ
  • माह – महीना
  • हैसियत – आर्थिक योग्यता
  • विशिष्टजन – खास लोग
  • अस्मिता – अस्तित्व, पहचान
  • आस्था – श्रद्धा, विश्वास
  • उपनिवेश – एक देश के लोगों की दूसरे देश में आबादी
  • प्रतिमान – मानदंड
  • छद्म – नकली, बनावटी
  • दिग्भ्रमित – दिशाहीन, मार्ग से भटका हुआ
  • वशीकरण – वश में करना
  • तुष्टि – संतुष्टि
  • तात्कालिक – तुरंत का, उसी समय का
  • परमार्थ – दूसरे का भला, परोपकार

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. इजराइल ने लेबनान पर हमला किया।
(अ) फरवरी, 2006
(स) अक्टूबर, 2006
(ब) जून, 2006
(द) जनवरी, 2006
उत्तर:
(ब) जून, 2006

2. संयुक्त राष्ट्रसंघ के दूसरे महासचिव थे
(अ) एंटोनियो गुटेरेस
(ब) यू थांट
(स) बान की मून
(द) डेग हैमरशोल्ड
उत्तर:
(द) डेग हैमरशोल्ड

3. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में कितने सदस्य हैं?
(अ) 193
(ब) 191
(स) 190
(द) 189
उत्तर:
(द) 189

4. अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और ब्रितानी प्रधानमंत्री चर्चिल ने अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए-
(अ) फरवरी, 1945
(स) अक्टूबर, 1945
(ब) जून, 1941
(द) अगस्त, 1941
उत्तर:
(द) अगस्त, 1941

5. संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान सदस्य संख्या कितनी है
(अ) 193
(ब) 190
(स) 189
(द) 191
उत्तर:
(अ) 193

6. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब की गई-
(अ) 24 अक्टूबर, 1945
(ब) 1 जनवरी, 1945
(स) 1 जून, 1945
(द) 31 दिसम्बर, 1945
उत्तर:
(अ) 24 अक्टूबर, 1945

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7. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय कहाँ है-
(अ) वाशिंगटन में
(ब) न्यूयार्क में
(स) हेग में
(द) जिनेवा में
उत्तर:
(स) हेग में

8. भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ में कब शामिल हुआ?
(अ) 24 अक्टूबर, 1995
(ब) 30 अक्टूबर, 1945
(स) 26 जून, 1945
(द) 15 अक्टूबर, 1945
उत्तर:
(ब) 30 अक्टूबर, 1945

9. संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है
(अ) 24 अक्टूबर को
(स) 15 अगस्त को
(ब) 20 जनवरी को
(द) 26 जनवरी को
उत्तर:
(अ) 24 अक्टूबर को

10. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या है।
अ) 11
(ब) 9
(स) 15
(द) 16
उत्तर:
(स) 15

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतीक चिह्न में ……………………….. की पत्तियाँ हैं, जो कि ……………………. का संकेत करती हैं।
उत्तर:
जैतून, विश्व शांति

2. ………………………. का सबसे प्रभावकारी समाधान वैश्विक तापवृद्धि को रोकना है।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग

3. अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष में समूह -7 के सदस्यों के पास …………………….. प्रतिशत मत है।
उत्तर:
41.29

4. IMF में अमरीका का मताधिकार ……………………. प्रतिशत है।
उत्तर:
16.52

5. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों का चुनाव ………………………. तथा ………………………… में पूर्ण बहुमत द्वारा होता है।
उत्तर:
आम सभा, सुरक्षा परिषद्

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दूसरा विश्व युद्ध कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
दूसरा विश्व युद्ध 1945 में समाप्त हुआ।

प्रश्न 2.
विश्व बैंक की औपचारिक स्थापना कब हुई?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन् 1944 में विश्व बैंक की औपचारिक स्थापना हुई।

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प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्रसंघ का प्रतीक चिह्न क्या है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतीक चिह्न में दुनिया का नक्शा बना हुआ है और इसके चारों तरफ जैतून की पत्तियाँ हैं।

प्रश्न 4.
समूह -7 के सदस्य देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
समूह – 7 के सदस्य देशों के नाम- अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और कनाडा है।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा पर हस्ताक्षर कब हुआ?
उत्तर:
धुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ रहे 26 मित्र राष्ट्र अटलांटिक चार्टर के समर्थन में वाशिंग्टन में मिले ओर दिसंबर, 1943 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा पर हस्ताक्षर हुए।

प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् की सिफारिश के आधार पर महासभा महासचिव को नियुक्त करती है।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय कुल कितने सदस्य थे?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय कुल 51 सदस्य थे

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के नौवें महासचिव कौन हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के नौवें महासचिव एंटोनियो गुटेरेस हैं। इन्होंने महासचिव का पद 1 जनवरी, 2017 को संभाला।

प्रश्न 9.
विश्व की एकमात्र सुपर पॉवर ( महाशक्ति) का नाम बताइये।
उत्तर:
विश्व की एकमात्र महाशक्ति ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ है।

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प्रश्न 10.
आई. एम. एफ. का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund)

प्रश्न 11.
डब्ल्यू. एच. ओ. (W.H.O.) का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization )

प्रश्न 12.
यूनेस्को (UNESCO) का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific Cultural Organization)

प्रश्न 13.
इजरायल ने लेबनान पर कब हमला किया? उसने अपने आक्रमण को क्यों जरूरी बताया?
उत्तर:
इजरायल ने लेबनान पर 2006 में हमला किया। उसने उग्रवादी गुट हिजबुल्लाह पर अंकुश लगाने हेतु आक्रमण को आवश्यक बताया।

प्रश्न 14.
इजरायल के लेबनान पर आक्रमण के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ का क्या दृष्टिकोण रहा?
उत्तर:
इजरायल के लेबनान पर 2006 के आक्रमण के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ का यह दृष्टिकोण रहा कि इजरायली सैन्य बल इस क्षेत्र से वापस जाये।

प्रश्न 15.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मांगे जाने पर सदस्य देशों को वित्तीय एवं तकनीकी मदद उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 16.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
1 जनवरी, 1995 को।

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प्रश्न 17.
विश्व व्यापार संगठन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन की मुख्य भूमिका विश्व के देशों में समान आर्थिक नियमों को लागू करना एवं मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है।

प्रश्न 18.
विश्व व्यापार संगठन की सदस्य संख्या क्या है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन की सदस्य संख्या 150 है।

प्रश्न 19.
विश्व व्यापार संगठन में फैसले कैसे लिये जाते हैं?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन में फैसले आम सहमति से लिये जाते हैं।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस संगठन का मुख्य उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना तथा सैन्य उद्देश्यों में इसके प्रयोग को रोकना है।

प्रश्न 21.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी (आई.ए.ई.ए.) का स्थापना वर्ष लिखिये
उत्तर:
सन् 1957 ई.

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प्रश्न 22.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी क्या प्रयास करता है?
उत्तर:
यह संगठन परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने का कार्य करता है।

प्रश्न 23.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य शांति और सुरक्षा कायम करना है।

प्रश्न 24.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क में स्थित है।

प्रश्न 25.
अमरीका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन को संयुक्त राष्ट्रसंघ का स्थायी सदस्य क्यों चुना गया?
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध के तुरंत बाद के समय में ये देश सबसे ज्यादा ताकतवर थे और इस महायुद्ध के विजेता भी रहे, इसलिए इन्हें स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया।

प्रश्न 26.
संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग कौनसा है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग ‘सुरक्षा परिषद्’ है।

प्रश्न 27.
संयुक्त राष्ट्र संघ का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग कौनसा है, जिसके सभी सदस्य राष्ट्र सदस्य हैं?
उत्तर:
आम सभा या महासभा।

प्रश्न 28.
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंग कितने हैं? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंग हैं। ये हैं।

  1. महासभा
  2. सुरक्षा परिषद्
  3. आर्थिक और सामाजिक परिषद्
  4. न्यास परिषद्
  5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय और
  6. सचिवालय।

प्रश्न 29.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 वर्ष का होता है । प्रश्न 30. संयुक्त राष्ट्र संघ के किन्हीं दो विशिष्ट अभिकरणों के नाम लिखिये।
उत्तर:
कृषि एवं खाद्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन

प्रश्न 31.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या कितनी है और उनका कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या 10 है तथा उनका कार्यकाल 4 वर्ष का है।

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प्रश्न 32.
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य ये हैं।

  1. सामूहिक व्यवस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा कायम रखना और आक्रामक प्रवृत्तियों को नियंत्रण में रखना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना।

प्रश्न 33.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के दो कार्य बताइये।
उत्तर:

  1. साधारण सभा की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना
  2. सुरक्षा सम्बन्धी विवादों को महासभा के समक्ष प्रस्तुत करना।

प्रश्न 34.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे किन्हीं दो गैर-सरकारी संगठनों के नाम लिखें।
अथवा
मानवाधिकारों की रक्षा में संलग्न दो गैर सरकारी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन कौन से हैं?
उत्तर:

  1. एमनेस्टी इन्टरनेशनल
  2. ह्यमन राइट्स वॉच।

प्रश्न 35.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कोई दो कार्य बताइये।
उत्तर:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा बनाये रखना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय कानून सम्बन्धी व्याख्या करना।

प्रश्न 36.
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1950 में ‘शांति के लिए एकता’ प्रस्ताव की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. महासभा का आपातकालीन अधिवेशन बुलाना
  2. शांति निरीक्षण आयोग की स्थापना करना।

प्रश्न 37.
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के दो कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ का बजट पारित करना।
  2. सुरक्षा परिषद् तथा अन्य संस्थाओं व संगठनों की रिपोर्ट पर विचार करना।

प्रश्न 38.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के नाम लिखिये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्य हैं। ये हैं।

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2.  ब्रिटेन
  3. फ्रांस
  4. रूस व
  5. चीन।

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प्रश्न 39.
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों को कौन निर्वाचित करता है? अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों को महासभा निर्वाचित करती है तथा अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष का होता है।

प्रश्न 40.
वर्तमान में सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या कितनी है?
उत्तर:
वर्तमान में सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या 15 है। इनमें 5 सदस्य स्थायी हैं और 10 अस्थायी हैं । प्रश्न 41. संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रतिष्ठा में वृद्धि के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:

  1. महासभा में प्रायः सभी देशों को प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
  2. शांति के लिये एकता प्रस्ताव के कारण।

प्रश्न 42.
जी 8 के सदस्य देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:
जी 8 के सदस्य देश हैं।

  1. अमरीका
  2. जापान
  3. जर्मनी
  4. फ्रांस
  5. ब्रिटेन
  6. इटली
  7. कनाडा और
  8. रूस।

प्रश्न 43.
संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक बजट में सर्वाधिक योगदान किस देश का है और कितना है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका का लगभग 22 प्रतिशत।

प्रश्न 44.
एमनेस्टी इण्टरनेशनल का क्या उत्तरदायित्व है?
उत्तर:
इसका उत्तरदायित्व है। मानवाधिकारों से सम्बद्ध रिपोर्ट तैयार करना तथा उन्हें प्रकाशित करना।

प्रश्न 45.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रथम महासचिव कौन थे?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रथम महासचिव ट्राइग्व ली थे।

प्रश्न 46.
संयुक्त राष्ट्रसंघ में अस्थायी सदस्य कितने वर्षों के लिए चुने जाते हैं?
उत्तर:
दो वर्षों के लिए।

प्रश्न 47.
मानवाधिकार परिषद् कब से सक्रिय है?
उत्तर:
मानवाधिकार परिषद् 19 जून, 2006 से सक्रिय है।

प्रश्न 48.
विश्व व्यापार संगठन किसके उत्तराधिकारी के रूप में कार्य करता है?
उत्तर:
जनरल एग्रींट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ

प्रश्न 49.
विश्व बैंक के मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर:
कृषि, ग्रामीण, विकास, पर्यावरण सुरक्षा, सुशासन तथा आधारभूत ढाँचे के लिए काम करता है।

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प्रश्न 50.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कार्य लिखिए।
उत्तर:
विश्व स्तर पर वित्त व्यवस्था की देखरेख तथा वित्तीय व तकनीकी सहायता देना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरक्षा परिषद् के अस्थाई सदस्यों का भौगोलिक वितरण किस प्रकार किया गया है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का भौगोलिक वितरण इस प्रकार है। अफ्रीका और एशिया के पाँच सदस्य, पूर्वी यूरोप का एक सदस्य, लातीन अमेरिका के दो सदस्य, पश्चिमी यूरोप तथा अन्य राज्यों के दो सदस्य।

प्रश्न 2.
वीटो किसे कहते हैं?
उत्तर:
वीटो का शब्दार्थ है, “मैं मना करता हूँ।” सुरक्षा परिषद् का कोई स्थायी सदस्य यदि किसी महत्त्वपूर्ण या सारवान प्रश्न पर असहमति प्रकट करता है तो उसे अस्वीकृत कर दिया जाता है। उसके इस अधिकार/ शक्ति को ही वीटो शक्ति कहा जाता है।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन या लोकतंत्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन या लोकतन्त्रीकरण से अभिप्राय है— सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों में विस्तार करना तथा उसमें विकासशील देशों को समुचित प्रतिनिधित्व देना।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता हेतु भारत की दावेदारी के समर्थन में दो तर्क लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्रीय देश है।
  2. भारत सैनिक, आर्थिक तथा प्रौद्योगिक दृष्टि से एक सशक्त राष्ट्र- है

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन एवं प्रक्रिया में सुधार के लिये कोई दो सुझाव दें।
उत्तर:

  1. वीटो की समाप्ति-सुरक्षा परिषद् की कार्यप्रणाली को व्यवस्थित एवं लोकतांत्रिक बनाने के लिए वीटो की शक्ति को समाप्त कर देना चाहिए।
  2. समान सदस्यता- सुरक्षा परिषद् में अस्थाई सदस्यों की धारणा को समाप्त करके सबको समान स्तर की. सदस्यता प्रदान करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ की समस्या को स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘ग्लोबल वार्मिंग’ से आशय है। वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने से तापमान में वृद्धि इससे समुद्रतल की ऊँचाई बढ़ने का खतरा है। ऐसा होने पर विश्व के समुद्रतटीय इलाके जलमग्न हो सकते हैं। इस समस्या का सबसे प्रभावकारी समाधान वैश्विक तापवृद्धि को रोकना है।

प्रश्न 7.
‘लीग ऑव नेशंस’ की उत्पत्ति क्यों हुई?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व को एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन की जरूरत का आभास हुआ जो अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निपटारा बातचीत द्वारा कर सके जिससे युद्ध जैसे विनाशकारी स्थिति को टाला जा सके। इसके परिणामस्वरूप ‘लीग ऑव नेशंस’ का जन्म हुआ।

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प्रश्न 8.
एंटोनियो गुटेरेस के बारे में संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
एंटोनियो गुटेरेस संयुक्त राष्ट्रसंघ के नौवें महासचिव हैं। उन्होंने महासचिव का पद 1 जनवरी, 2017 को ग्रहण किया। ये 1995 से 2002 तक पुर्तगाल के प्रधानमंत्री और 2005 से 2015 तक यूनाइटेड नेशंस हाई कमीशनर फॉर रिफ्यूजीज रहे। 1999-2005 तक ये सोशलिस्ट
इंटरनेशनल के अध्यक्ष भी रहे।

प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र संघ की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम लिखो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम इस प्रकार हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.)
  2. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO)
  3. विश्व स्वास्थ्य संगठन., (W.H.O.)
  4. खाद्य एवं कृषि संगठन।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कोई तीन सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ सदस्यों की संप्रभु समानता पर आधारित है।
  2. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य ईमानदारी से घोषणा-पत्र के अन्तर्गत निर्धारित दायित्वों का पालन करेंगे।
  3. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य अपने विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटायेंगे ।0

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वितीय महासचिव कौन थे? उनके द्वारा किए गए कार्यों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वितीय महासचिव डेग हैमरशोल्ड थे। ये स्वीडन से थे तथा अर्थशास्त्री और वकील थे इन्होंने स्वेज नहर से जुड़े विवादों को सुलझाने तथा अफ्रीका के अनौपनिवेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांगो- संकट को सुलझाने की दिशा में किए गए प्रयासों के लिए मरणोपरांत इन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। हालाँकि सोवियत संघ और फ्रांस ने अफ्रीका में इनकी भूमिका की आलोचना की थी।

प्रश्न 12.
सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों को प्राप्त निषेधाधिकार (Veto) शक्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों को प्राप्त निषेधाधिकार की शक्ति का अर्थ है कि यदि पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी एक सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में रखे गये प्रस्ताव के विरोध में वोट डाल दे तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा।

प्रश्न 13.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक्ष कौन से दो बुनियादी सुधारों का मसला है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक्ष निम्न दो बुनियादी सुधारों का मसला है।

  1. एक तो इस संगठन की बनावट और इसकी प्रक्रियाओं में सुधार किया जाए।
  2. दूसरा, इस संगठन के न्यायाधिकार में आने वाले मुद्दों की समीक्षा की जाए।

प्रश्न 14.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब हुई ? आजकल इसके कितने सदस्य हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की विधिवत् स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई. को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयार्क अमेरिका में है। आजकल संसार के छोटे-बड़े लगभग 193 देश इसके सदस्य हैं। करना।

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प्रश्न 15.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
उद्देश्य-संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखना।
  2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना।
  3. आपसी सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल

प्रश्न 16.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा के संगठन को संक्षिप्त में बताइये।
उत्तर:
हासभा-महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा अंग है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य इसके सदस्य होते हैं और प्रत्येक सदस्य राष्ट्र इसमें पाँच प्रतिनिधि भेजता है परन्तु उनका मत एक ही होता है। प्राय: वर्ष में इसका एक बार अधिवेशन होता है। वर्तमान में इसके सदस्यों की कुल संख्या 193 है।

प्रश्न 17.
सुरक्षा परिषद् के संगठन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। इसके 15 सदस्य होते हैं। जिनमें पाँच स्थाई सदस्य हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन और रूस । इसके अलावा 10 अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिये महासभा द्वारा चुने जाते हैं। सुरक्षा परिषद् के पाँच स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 18.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी क्या है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी परमाणविक ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और सैन्य उद्देश्यों में इसके प्रयोग को रोकने की कोशिश करता है। इसके अधिकारी विश्व की परमाणविक सुविधाओं की जाँच करते हैं ताकि नागरिक परमाणु संयंत्रों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए न हो।

प्रश्न 19.
एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है?
उत्तर:
एमनेस्टी इन्टरनेशनल
एमनेस्टी इंटरनेशनल एक स्वयंसेवी संगठन है। यह पूरे विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अभियान चलाता है। यह संगठन मानवाधिकारों से जुड़ी रिपोर्ट तैयार और प्रकाशित करता है। ये रिपोर्टें मानवाधिकारों से संबंधित अनुसंधान और तरफदारी में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 20.
ह्यूमन राइट वाच क्या है?
उत्तर:
ह्यूमन राइट वाच (Human Right Watch):
ह्यमन राइट वाच मानवाधिकारों की वकालत और उनसे संबंधित अनुसंधान करने वाला एक अन्तर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन है। यह अमरीका का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है। यह विश्व की मीडिया का ध्यान मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर खींचता है।

प्रश्न 21.
विश्व व्यापार संगठन क्या है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (WTO):
‘विश्व व्यापार संगठन’ (World Trade Organization) एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। यह वैश्विक व्यापार के नियमों को तय करता है। इसकी स्थापना सन् 1995 में हुई। इसके सदस्यों की संख्या 164 है।

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प्रश्न 22.
सन् 2018 तक स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो पॉवर का इस्तेमाल कितनी-कितनी बार किया गया है? उत्तर-सन् 2018 तक स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो पॉवर का इस्तेमाल इस प्रकार किया गया है।

  1. सोवियत संघ / रूस द्वारा 135 बार
  2. अमरीका द्वारा 84 बार
  3. ब्रिटेन द्वारा 32 बार
  4. फ्रांस द्वारा 18 बार
  5. चीन द्वारा 11 बार।

प्रश्न 23.
सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की आमसभा में किन तीन शिकायतों का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था?
उत्तर:
सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की आम सभा में निम्न तीन शिकायतों का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था।

  1. सुरक्षा परिषद् राजनीतिक वास्तविकताओं की नुमाइंदगी नहीं करती।
  2. इनके फैसलों पर पश्चिमी देशों के मूल्यों और हितों की छाप होती है और इन फैसलों पर चंद देशों का दबदबा होता है।
  3. सुरक्षा परिषद् में बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं है।

प्रश्न 24.
सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार क्यों दिया गया?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार इसलिये दिया गया क्योंकि-

  1. ये देश द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता थे।
  2. राजनीतिक मामलों में इनकी सहमति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।
  3. वीटो का अधिकार न देने पर संभवतः ये समस्याओं में अधिक रुचि नहीं लेते।

प्रश्न 25.
मानवाधिकार परिषद् के संस्थापक कौन थे? इनके कुछ प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानवाधिकार परिषद् के आयोग की स्थापना कोफी ए. अन्नान ने की। इनकी कुछ उपलब्धियाँ निम्नलिखित

  1. ये (1997 से 2006 तक) संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव रहे।
  2. इन्होंने एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए एक वैश्विक कोष बनाया।
  3. इन्होंने शान्ति संस्थापक आयोग की स्थापना 2005 में की।
  4. महासचिव के रूप में किए गए कार्यों के कारण 2001 में इनको नोबेल शान्ति पुरस्कार दिया गया।

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प्रश्न 26.
” सोवियत संघ की गैर मौजूदगी में अमरीका एक भाग महाशक्ति है।” इस कथन का सत्यापन
कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ की गैर मौजूदगी में अमरीका एकमात्र महाशक्ति है। क्योंकि

  1. अमरीका की ताकत पर आसानी से अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
  2. अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत के सहारे अमरीका संयुक्त राष्ट्रसंघ या किसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन की अनदेखी कर सकता है।
  3. संयुक्त राष्ट्रसंघ के भीतर अमरीका का खास प्रभाव है क्योंकि वह संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में सबसे ज्यादा योगदान करता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ अमरीकी भू-क्षेत्र में स्थित है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के कई नौकरशाह अमरीका के नागरिक हैं।

प्रश्न 27.
“अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के हर सदस्य की राय का वजन बराबर नहीं है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष में 189 सदस्य हैं लेकिन हर सदस्य की राय का वजन बराबर नहीं है। क्योंकि

  1. समूह – 7 के सदस्य ( अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और कनाडा) के पास 41.29% मत हैं। अकेले अमरीका के पास 16.52% मताधिकार है।
  2. अन्य अग्रणी सदस्यों में चीन ( 6.09%), भारत (2.64%), रूस (2.59% ), ब्राजील (2.22%) और सऊदी अरब (0.02%) है।

प्रश्न 28.
अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता निम्न कारणों की वजह से है-

  1. समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान हेतु।
  2. ये संगठन सहयोग के उपाय जुटाने मेंसहायक होते हैं।
  3. ये संगठन नियमों तथा नौकरशाही की रूपरेखा तैयार करते हैं।
  4. ये शांति और प्रगति के प्रति मानवता की आशा का प्रतीक़ होते हैं

प्रश्न 29.
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्त-संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये निम्नलिखित सिद्धान्तों के. अनुसार कार्य करता है।

  1. संयुक्त राष्ट्र · सभी सदस्यों की प्रभुसत्ता और समानता के सिद्धान्त में विश्वास रखता है।
  2. सभी राष्ट्रों की अखण्डता और राजनीतिक स्वाधीनता का आदर करें।
  3. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार कोई कार्यवाही करें तो सभी सदस्य राष्ट्रों को उसकी सहायता करनी चाहिये।
  4. सभी राष्ट्र अपने विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से निपटायें।
  5. संयुक्त राष्ट्र उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जो अनिवार्य रूप से किसी राज्य के आंतरिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

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प्रश्न 30.
क्या संयुक्त राष्ट्र अमरीकी प्रभुत्व के खिलाफ संतुलन के रूप में कार्य कर सकता है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ का अमरीकी प्रभुत्व के खिलाफ संतुलन के रूप में कार्य न कर पाने की निम्न वजहें हैं।

  1. अमरीका अपने वीटो पावर के द्वारा ऐसे किसी भी कदम को रोक सकती है जिससे उसका हित ना सधता हो।
  2. 1991 के बाद से अमरीका एकमात्र महाशक्ति बन कर उभरा है जो अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत से किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की अनदेखी कर सकता है।
  3. अपनी ताकत और निषेधाधिकार के कारण संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के चयन में भी अमरीका की बात बहुत वजन रखती है।

प्रश्न 31.
” भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनना चाहता है।” क्या इस कथन से आप सहमत हैं? तर्कों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनना चाहता है। इस कथन से मैं सहमत हूँ। निम्न कथनों के द्वारा इस कथन को स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. भारत विश्व में आबादी वाला दूसरा बड़ा देश है।
  2. भारत में विश्व की कुछ जनसंख्या का 1/5 वाँ हिस्सा निवास करता है।
  3. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
  4. भारत ने संयुक्त राष्ट्र की लगभग सभी पहलकदमियों में भाग लिया है।
  5. संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति बहाल करने के प्रयासों में भारत लंबे समय से ठोस भूमिका निभाता आ रहा है।
  6. भारत तेजी से अंतर्राष्ट्रीय फलक पर आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है।
  7. भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में नियमित रूप से अपना योगदान दिया है कभी भी यह अपने भुगतान से चुका नहीं है।

प्रश्न 32.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों के नाम बताइये तथा इसकी कार्यप्रणाली की कमियाँ बताइये।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्य हैं।
    1. अमेरिका
    2. फ्रांस
    3. ब्रिटेन
    4. रूस
    5. चीन।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की कार्यप्रणाली की कमियाँ ये हैं।
    1. सुरक्षा परिषद् अब राजनीतिक वास्तविकताओं की नुमाइंदगी नहीं करती।
    2. इसके फैसलों पर पश्चिमी मूल्यों और हितों की छाप तथा चंद देशों का दबदबा होता है।
    3. इसमें बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं है।

प्रश्न 33.
एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्रसंघ की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्रसंघ क्षेत्रीय या विश्वव्यापी विवाद के मुद्दों पर सभी देशों का बातचीत करके हल निकालने का मंच देता है।
  2. अमरीकी सरकार यह जानती है कि झगड़ों और सामाजिक आर्थिक विकास के मसलों पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के माध्यम से 193 राष्ट्रों को एकत्रित किया जा सकता है।
  3. शेष विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ एक ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी रवैये और नीतियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

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प्रश्न 34.
एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिये।
अथवा
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन पूरे विश्व के लिए अपरिहार्य है? अपने उत्तर के पक्ष में कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए। एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन पूरे विश्व के लिए अपरिहार्य है। एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता या अपरिहार्यता को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका और शेष विश्व के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत कायम कर सकता है।
  2. झगड़ों और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये 193 देशों को एक साथ किया जा सकता है।
  3. शेष विश्व संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच के माध्यम से अमरीकी रवैये और नीतियों पर कुछ न कुछ अंकुश लगा सकता है।
  4. आज विभिन्न समाजों और मुद्दों के बीच आपसी तार जुड़ते जा रहे हैं। आने वाले दिनों में पारस्परिक निर्भरता बढ़ती जायेगी । इसलिये संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्त्व भी निरन्तर बढ़ेगा ।

प्रश्न 35.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष क्या है? कितने देश इसके सदस्य हैं?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष: यह संगठन वैश्विक स्तर की वित्त व्यवस्था की देखरेख करता है और मांगे जाने. पर वित्तीय तथा तकनीकी सहायता मुहैया करता है। वैश्विक स्तर की वित्त व्यवस्था का आशय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली वित्तीय संस्थाओं और लागू होने वाले नियमों से है। वर्तमान में 189 देश अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य हैं लेकिन हर सदस्य की राय का वजन बराबर नहीं है। समूह -7 के सदस्य (अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और कनाडा) के पास 41.29 प्रतिशत मत है। अन्य अग्रणी सदस्यों में चीन ( 6.09%), भारत (2.64%), रूस (2.59%), ब्राजील. (2.22%) और सऊदी अरब (2.02%) है। अकेले अमरीका के पास 16.52% मताधिकार है।

प्रश्न 36.
विश्व बैंक की स्थापना कब हुई? इसके प्रमुख कार्यों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
विश्व बैंक – दूसरे विश्व युद्ध के तुरन्त बाद सन् 1945 में विश्व बैंक की औपचारिक स्थापना हुई। विश्व बैंक के कार्य-विश्व बैंक की गतिविधियाँ प्रमुख रूप से विकासशील देशों से संबंधित हैं। यथा

  1. यह बैंक मानवीय विकास ( शिक्षा, स्वास्थ्य), कृषि और ग्रामीण विकास (सिंचाई, ग्रामीण सेवाएँ), पर्यावरण सुरक्षा (प्रदूषण में कमी, नियमों का निर्माण और उन्हें लागू करना), आधारभूत ढाँचा (सड़क, शहरी विकास, बिजली) तथा सुशासन ( कदाचार का विरोध, विधिक संस्थाओं का विकास) के लिए काम करता है ।
  2. यह अपने सदस्य देशों को आसान ऋण और अनुदान देता है । ज्यादा गरीब देशों को ये अनुदान वापिस नहीं चुकाने पड़ते। इस अर्थ में यह संस्था समकालीन वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है।

प्रश्न 37.
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता के कोई दो बिन्दु बताइये।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता – अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए आवश्यक – बातचीत के माध्यम से दो या अधिक देशों के मध्य के झगड़ों और विभेदों को बिना युद्ध के हल करने की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सदस्य देशों की मदद करते हैं।
  2. चुनौतीपूर्ण समस्याओं को निपटाने में विभिन्न देशों को मिलकर कार्य करने में सहायता करना- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ऐसी चुनौतीपूर्ण समस्याओं को निपटाने के लिए आवश्यक है, जिनसे निपटने के लिए विभिन्न देशों को मिलाकर सहयोग करना आवश्यक होता है।

प्रश्न 38.
1991 के बाद वैश्विक – व्यवस्था में क्या प्रमुख परिवर्तन आये हैं?’
उत्तर:
1991 के बाद विश्व की राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों में निम्नलिखित परिवर्तन आए हैं।

  1. 1991 के बाद शीत युद्ध काल की दो महाशक्तियों – सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में से एक महाशक्ति सोवियत संघ का पतन हो गया है तथा वह बिखर गया है।
  2. सोवियत संघ के उत्तराधिकारी राज्य रूस और अमरीका के बीच अब संबंध कहीं ज्यादा सहयोगात्मक हैं।
  3. चीन बड़ी तेजी से एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।
  4. सोवियत संघ से स्वतंत्र हुए अनेक नये देश संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल हुए हैं।
  5. वर्तमान में विश्व के सामने नयी चुनौतियों की एक पूरी कड़ी विद्यमान है। ये चुनौतियाँ हैं। जनसंहार, गृहयुद्ध, जातीय संघर्ष, आतंकवाद, परंमाणविक प्रसार, जलवायु में बदलाव, पर्यावरण की हानि, महामारी आदि।

प्रश्न 39.
संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए हाल ही में क्या कदम उठाये गये हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए हाल ही में निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं।

  1. शांति संस्थापक आयोग का गठन किया गया है।
  2. यदि कोई राष्ट्र अपने नागरिकों को अत्याचारों से बचाने में असफल हो जाए तो विश्व बिरादरी इसका उत्तरदायित्व ले- इस बात की स्वीकृति।
  3. मानवाधिकार परिषद की स्थापना
  4. सहस्राब्दि विकास लक्ष्य को प्राप्त करने पर सहमति
  5. हर रूप रीति के आतंकवाद की निंदा करना
  6. एक लोकतंत्र कोष का गठन।

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प्रश्न 40.
सुरक्षा परिषद् के स्थायी व अस्थायी सदस्यों के लिए सुझाये गये कोई चार मानदण्ड बताइये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के स्थायी व अस्थायी सदस्यों के लिए चार आवश्यक मानदण्ड ये होने चाहिए:

  1. वह देश क्षेत्र तथा जनसंख्या की दृष्टि से बड़ा देश हो।
  2. वह एक लोकतांत्रिक देश हो।
  3. वह आर्थिक तथा सैनिक शक्ति के रूप में उभर रहा हो तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में अपना नियमित योगदान देता आ रहा हो।
  4. वह संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति बहाल करने के प्रयासों में निरन्तर अपनी प्रभावी भूमिका निभाता आ रहा हो।

प्रश्न 41.
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य: संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना।
  2. सभी राष्ट्रों के बीच लोगों के समान अधिकार एवं स्वतंत्रता के सिद्धान्तों पर आधारित मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों पर विकास करना और विश्व शान्ति को सुदृढ़ बनाने के लिए उचित उपाय करना।
  3. सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मानवीय क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित व मजबूत करना तथा सबके लिए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के सम्मान को बढ़ाना और प्रोत्साहन देना।
  4. उपर्युक्त सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति में राष्ट्रों के कार्यों में समन्वय बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को केन्द्र बनाना।

प्रश्न 42.
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्रसंघ की असफलताओं पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्रसंघ की असफलताएँ निम्न हैं-

  1. कुछ मसलों पर जैसे निःशस्त्रीकरण, विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असन्तुलन कम करने में आंशिक सफलता ही मिली।
  2. संयुक्त राष्ट्रसंघ अनेक विवादों को सुलझाने तथा महाशक्तियों की मनमानी को रोकने में असफल रहा है।

प्रश्न 43.
‘पारस्परिक निर्भरता’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पारस्परिक निर्भरता – हालाँकि संयुक्त राष्ट्रसंघ में थोड़ी कमियाँ हैं लेकिन इसका अस्तित्व आवश्यक है क्योंकि इसके बिना दुनिया और बदहाल हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व के सात अरब लोगों को एक साथ रहने के लिए मददगार है। आज विभिन्न समाजों और मसलों के बीच तार जुड़ते जा रहे हैं, इसे ही ‘पारस्परिक निर्भरता’ का नाम दिया गया है।

प्रश्न 44.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक ओर सामाजिक परिषद् के ऊपर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक और सामाजिक परिषद् में कुल 54 सदस्य होते हैं जिनका चुनाव महासभा 2/3 बहुमत से तीन वर्ष के लिए करती है। इसके 1/3 सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करते हैं । इस प्रकार यह परिषद् एक स्थायी संस्था है।

प्रश्न 45.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की सफलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ की सफलताओं को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. आतंकवाद का विरोध करने में।
  2. निःशस्त्रीकरण।
  3. शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करने में।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास करने में।
  5. मानवाधिकारों का संरक्षण करने में।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन क्यों चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता हमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान हेतु: अन्तर्राष्ट्रीय संगठन देशों की समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सदस्य देशों की सहायता करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का निर्माण विभिन्न राज्य ही करते हैं और यह उनके मामलों के लिए जवाबदेह होता है। एक बार इसका निर्माण हो जाने के बाद ये सदस्य देशों की समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सहायता करते हैं।
  2. सहयोग के उपाय जुटाने में सहायक: एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन सहयोग करने के उपाय तथा सूचनाएँ एकत्रित करने में मदद कर सकता है।
  3. नियमों तथा नौकरशाही की रूपरेखा: एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन नियमों और नौकरशाही की एक रूपरेखा दे सकता है ताकि सदस्यों को यह विश्वास हो कि आने वाली लागत में सबकी समुचित साझेदारी होगी, लाभ का बँटवारा न्यायोचित होगा और यदि कोई सदस्य उस समझौते में शामिल हो जाता है तो वह इस समझौते के नियम और शर्तों का पालन करेगा।
  4. शांति और प्रगति के प्रति मानवता की आशा का प्रतीक: एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन शांति और प्रगति प्रति मानवता की आशा का प्रतीक होता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ इसका प्रतीक है। इस संगठन को विश्व भर के अधिकांश लोग एक अनिवार्य संगठन मानते हैं।

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प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास क्रम एवं उसकी स्थापना का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का विकास क्रम एवं स्थापना: संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास क्रम को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. अटलांटिक चार्टर ( अगस्त, 1941 ): 14 अगस्त, 1941 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल और अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने विश्व शांति की स्थापना के आधारभूत सिद्धान्तों की व्यवस्था की। इस पर दोनों देशों के अध्यक्षों ने हस्ताक्षर किये। इसे अटलांटिक चार्टर के नाम से जाना जाता है।
  2. संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र: धुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ रहे 26 मित्र राष्ट्र अटलांटिक चार्टर के समर्थन में वाशिंगटन में मिले और दिसम्बर 1943 में संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये।
  3. याल्टा सम्मेलन ( फरवरी, 1945 ): तीन बड़े नेताओं ( रूजवेल्ट, स्टालिन और चर्चिल) ने याल्टा सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन, उसकी सदस्यता एवं प्रकृति पर विचार किया तथा एक सम्मेलन करने का निर्णय किया।
  4. सेनफ्रांसिस्को सम्मेलन (अप्रेल-मई 1945): सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 50 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर तैयार किया गया । 26 जून, 1945 को इस घोषणा पत्र (चार्टर) पर 50 देशों के प्रतिनिधियों ने तथा पोलैंड ने 15 अक्टूबर, 1945 को हस्ताक्षर किये। इस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ में 51 मूल संस्थापक सदस्य हैं।
  5. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना: 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई । इसीलिए 24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है। 10 फरवरी, 1946 को संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न पदाधिकारियों के चुनाव हुए।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन: संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता: वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों की संख्या 193 है।
  • अधिकारिक भाषाएँ तथा मुख्यालय: सामान्य तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यवाही की दो भाषाएँ हैं- अंग्रेजी व फ्रेंच। इनके अतिरिक्त चीनी, अरबी, स्पेनिश तथा रशियन भाषाओं को भी मान्यता प्राप्त है। इसका मुख्यालय न्यूयार्क शहर के मैनहट्टन द्वीप में है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंग ( निकाय ) संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंग हैं। यथा
    1. महासभा (आमसभा ) महासभा संयुक्त राष्ट्र का मुख्य विचार-विनिमय निकाय है। इसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं।
    2. सुरक्षा परिषद् सुरक्षा परिषद् में कुल 15 सदस्य होते हैं। इसमें 5 स्थायी तथा 10 अस्थायी होते हैं। 5 स्थायी सदस्य देश हैं। अमरीका, चीन, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस पाँचों स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’ की शक्ति दी गई है।
    3. आर्थिक व सामाजिक परिषद्: आर्थिक-सामाजिक परिषद् के 54 सदस्य हैं, जिनका चुनाव महासभा 2/3 बहुमत से तीन वर्ष के लिए करती है। इसके 1/3 सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करते हैं। इस प्रकार यह परिषद् एक स्थायी संस्था है।
    4. ट्रस्टीशिप परिषद्: इस परिषद् का उद्देश्य 11 ट्रस्ट क्षेत्रों के प्रशासन की देखभाल करना था। 1994 तक ये . सभी ट्रस्ट स्वतंत्र हो चुके हैं।
    5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय: अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिनका चयन महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा एक साथ ही किया जाता है। न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 वर्ष का होता है। इसका मुख्यालय हेग में है।
    6. सचिवालय: सचिवालय में महासचिव तथा संघ की आवश्यकता के अनुसार कर्मचारी रहते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधारों में भारत की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधारों में भारत की भूमिका: भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे में सुधार के मुद्दे को निम्नलिखित आधारों पर समर्थन दिया है।

  • (1) संयुक्त राष्ट्र संघ की मजबूती पर बल: बदलते हुए विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की मजबूती और दृढ़ता जरूरी है।
  • (2) विकास के मुद्दे पर बल: संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और विकास को बढ़ावा देने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाए ।
  • (3) सुरक्षा परिषद् की संरचना में सुधार किया जाये:  इस संदर्भ में भारत के प्रमुख तर्क अग्रलिखित हैं।
    1. सुरक्षा परिषद् की संरचना प्रतिनिधित्वमूलक हो:  भारत का तर्क है कि सुरक्षा परिषद् का विस्तार करने पर वह ज्यादा प्रतिनिधिमूलक होगी तथा उसे विश्व – बिरादरी का अधिक समर्थन मिलेगा।
    2. सुरक्षा परिषद् में विकासशील देशों की संख्या बढ़ायी जाये – संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में ज्यादातर विकासशील सदस्य देश हैं। इसलिए सुरक्षा परिषद् में उनका यथोचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
    3. सुरक्षा परिषद् की गतिविधियों का दायरा बढ़ा है: सुरक्षा परिषद् के काम-काज की सफलता विश्व- बिरादरी के समर्थन पर निर्भर है। इस कारण सुरक्षा परिषद् के पुनर्गठन की कोई योजना व्यापक धरातल पर बननी चाहिए।
    4. भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनाया जाये:  भारत स्वयं भी पुनर्गठित सुरक्षा परिषद् में एक स्थायी सदस्य बनना चाहता है।

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प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर बैठने वाले दो एशियाई व्यक्तियों के नाम लिखिए। उनके कार्यकाल के दौरान उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर बैठने वाले दो एशियाई व्यक्ति हैं।
1. यू थांट-यू थांट 1961 से 1971 तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर बने रहे। ये बर्मा (म्यांमार) से थे। पेशे से ये शिक्षक और राजनयिक थे। अपने महासचिव के कार्यकाल के दौरान इन्होंने क्यूबा के मिसाइल – संकट के समाधान और कांगो के संकट की समाप्ति के लिए प्रयास किए। साइप्रस में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेना बहाल की। वियतनाम युद्ध के दौरान अमरीका की आलोचना की।

2. बान की मून-बान की मून कोरिया गणराज्य से थे और 2007 से 2016 तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव रहे। ये संयुक्त राष्ट्रसंघ के आठवें महासचिव थे। महासचिव के पद पर बैठने वाले ये दूसरे एशियाई हैं। अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने जलवायु परिवर्तन पर विश्व का ध्यान खींचा। इनका ध्यान सहस्राब्दि विकास लक्ष्य और सतत विकास लक्ष्य की तरफ रहा। इन्होंने यूएन वीमेन के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । युद्ध वियोजन और परमाणु निरस्त्रीकरण पर जोर दिया।

प्रश्न 6.
1997 के बाद के सालों में सुरक्षा परिषद् की स्थायी और अस्थायी सदस्यता हेतु नए मानदंड सुझाए · गए, इनकी संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1997 के बाद के सालों में सुरक्षा परिषद् की स्थायी और अस्थायी सदस्यता हेतु नये मानदंड सुझाए गए। इस सुझावों के अनुसार नए सदस्य को-

  1. बड़ी आर्थिक ताकत होना चाहिए।
  2. बड़ी सैन्य ताकत होना चाहिए।
  3. संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में ऐसे देशों का योगदान ज्यादा होना चाहिए।
  4. आबादी के लिहाज से वह राष्ट्र बड़ा होना चाहिए।
  5. वह देश लोकतंत्र और मानवाधिकार का सम्मान करता हो।
  6. वह देश ऐसा हो जो अपने भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिहाज से विश्व की विविधता में नुमाइंदगी करता हो।

प्रश्न 7.
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलताओं और असफलताओं पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रमुख सफलताएँ व असफलताएँ निम्नलिखित हैं- संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलताएँ

  1. शांति एवं सुरक्षा की स्थापना: संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विवादों, मतभेदों व तनावों को अनेक बार युद्ध में परिणत होने से बचाया है।
  2. आतंकवाद का विरोध: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सब प्रकार के आतंकवाद के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित कर विश्व – -समुदाय से आतंकवाद की चुनौती को मिलकर सामना करने का आग्रह किया है।
  3. निःशस्त्रीकरण: संयुक्त राष्ट्र संघ ने निःशस्त्रीकरण के लिए अनेक प्रयास किये हैं।
  4. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध: संयुक्त राष्ट्र संघ ने साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को समाप्त करने में बहुत सहायता दी है।
  5. आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में सफलताएँ – आर्थिक व सामाजिक असन्तोष, भूख, दरिद्रता, निरक्षरता आदि को दूर करने में संयुक्त राष्ट्र संघ ने निरन्तर प्रयत्न किये हैं।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास-संयुक्त राष्ट्र संघ निरन्तर अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग, सद्भावना और सहअस्तित्व की भावना का विकास कर रहा है।
  7. मानवाधिकारों का संरक्षक: मानवाधिकार आयोग के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में मानवाधिकारों के संरक्षक की भूमिका निभा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की असफलताएँ

  1. आंशिक सफलताएँ: संयुक्त राष्ट्र संघ को निःशस्त्रीकरण, हिन्द महासागर को शांति क्षेत्र बनाने, विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असन्तुलन को कम करने, समुद्री सम्पदा के उचित दोहन आदि मामलों में आंशिक सफलता ही मिली है।
  2. पूर्णतः असफलताएँ: संयुक्त राष्ट्र संघ अनेक विवादों को सुलझाने तथा महाशक्तियों की मनमानी रोकने में असफल रहा है।

प्रश्न 8.
एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ क्या अमरीका की मनमानी को रोक सकता है? यदि नहीं तो क्यों? एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
एक – ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ एक-ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र अमरीका की मनमानी को नहीं रोक सकता क्योंकि

  1. अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत के बल पर अमरीका संयुक्त राष्ट्र संघ या किसी अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की अनदेखी कर सकता है।
  2. संयुक्त राष्ट्र संघ के भीतर उसके बजट, अमरीकी भू क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति आदि के कारण अमरीका का अत्यधिक प्रभाव है।
  3. सुरक्षा परिषद् का वह स्थायी सदस्य है तथा उसके पास वीटो की शक्ति है।
  4. अमरीका अपनी ताकत और निषेधाधिकार के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के चयन में भी दखल रखता है।
  5. अमरीका अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर विश्व बिरादरी में फूट डाल सकता है।

एक – ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता: एक – ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को निम्न प्रकार बताया जा सकता है।

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ क्षेत्रीय या विश्वव्यापी विवाद के मुद्दों पर सभी देशों के बीच बातचीत का एक मंच प्रस्तुत करता है।
  2. अमरीकी नेता समझते हैं कि झगड़ों और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये 193 राष्ट्रों को एक साथ किया जा सकता है।
  3. शेष विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी रवैये और नीतियों पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है।

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प्रश्न 9.
‘विश्व व्यापार संगठन’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (WTO):
यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो कि वैश्विक व्यापार के नियमों को तय करता है। इस संगठन की स्थापना 1995 में हुई थी। यह संगठन ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ के उत्तराधिकारी के रूप में काम करता है जो कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अस्तित्व में आया था । 29 जुलाई, 2016 तक इसके सदस्यों की संख्या 164 थी।

इस संगठन में हर फैसला सभी सदस्यों की सहमति से किया जाता है लेकिन अमरीका, यूरोपीय संघ तथा जापान जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियाँ विश्व व्यापार संगठन में व्यापार के नियमों को इस तरह बना दिया है जिससे उनका हित सधता हो। विकासशील देशों की अक्सर शिकायत रहती है इस संगठन की कार्यविधि पारदर्शी नहीं है और बड़ी आर्थिक ताकतें इन देशों को पीछे ढकेलती है।’

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुरक्षा परिषद् की संरचना का वर्णन कीजिए। इसके स्थायी और अस्थायी सदस्यों को दिए गए विशेषाधिकारों में क्या अंतर है।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् में पाँच स्थायी और दस अस्थायी सदस्य हैं।

  1. स्थायी सदस्य: दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में स्थिरता कायम करने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र में पाँच स्थायी सदस्यों को विशेष हैसियत दी गई। पाँच स्थायी सदस्यों की सदस्यता स्थायी होगी और उन्हें ‘वीटो ‘ का अधिकार होगा।
  2. अस्थायी सदस्य: अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिए चुने जाते हैं और इस अवधि के बाद उनकी जगह नए सदस्यों का चयन होता है। दो साल की अवधि तक अस्थायी सदस्य रहने के तत्काल बाद किसी देश को फिर से इस पद के लिए नहीं चुना जा सकता अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन इस प्रकार होता है कि विश्व के सभी महादेशों का प्रतिनिधित्व हो सके अस्थायी देशों को वीटो का अधिकार नहीं है।

प्रश्न 11.
कुछ देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य के रूप में भारत को शामिल करने के मुद्दे पर सवाल क्यों उठाते हैं? व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत या किसी और देश के लिए भविष्य में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बन पाना मुश्किल लगता है। क्यों?
उत्तर:
यद्यपि भारत चाहता है कि वह संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बने तथा उसे भी निषेधाधिकार प्राप्त हो लेकिन कुछ देश सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करते हैं। यथा।

  1. सिर्फ पड़ोसी पाकिस्तान ही नहीं, जिनके साथ भारत के संबंध दिक्कततलब रहे हैं, बल्कि कुछ और देश भी चाहते हैं कि भारत को सुरक्षा परिषद् में वीटोधारी सदस्य के रूप में ना शामिल किया जाए।
  2. कुछ देश भारत के परमाणु हथियारों को लेकर चिंतित हैं।
  3. कुछ देशों का मानना है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में कठिनाई के कारण भारत स्थायी सदस्य के रूप में प्रभावी नहीं रहेगा।
  4. कुछ अन्य देशों की राय है कि उभरती हुई ताकत के रूप में अन्य देशों जैसे कि -ब्राजील, जर्मनी, जापान और शायद दक्षिण अफ्रीका को भी शामिल करना पड़ेगा जिसका ये देश विरोध करते हैं।
  5. कुछ देशों का मत है कि यदि सुरक्षा परिषद् में किसी तरह का विस्तार होता है तो अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका को जरूर प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए क्योंकि मौजूदा सुरक्षा परिषद् में इन्हीं महादेशों की नुमाइंदगी नहीं है। उपर्युक्त वजहों को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत या किसी और देश के लिए निकट भविष्य में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बन पाना मुश्किल है।

प्रश्न 12.
“संयुक्त राष्ट्रसंघ एक अपरिहार्य संगठन है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ एक अपरिहार्य संगठन है। इस कथन को निम्न तर्कों से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. संयुक्त राष्ट्रसंघ ही वो माध्यम है जिसके द्वारा अमरीका जो महाशक्ति है और बाकी विभिन्न देशों को विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एकत्रित किया जा सकता है।
  2. संयुक्त राष्ट्रसंघ ने संघर्ष और आर्थिक विकास से निपटने के लिए 190 से अधिक देशों को एक साथ लाने का कार्य किया है।
  3. संयुक्त राष्ट्रसंघ अमरीका के अलावा बाकी देशों को बातचीत करने का मंच प्रदान करवाता है जहाँ अमरीकी दृष्टिकोण और नीतियों को संशोधित करना संभव हो। हालाँकि अमरीका के खिलाफ देशों को शायद ही एकजुट किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी दृष्टिकोण तथा नीतियों के खिलाफ बहस सुनी जाती है और उसके अनुरूप बदलाव किया जा सकता है।
  4. वैश्वीकरण को इस आधुनिक दुनिया में संयुक्त राष्ट्रसंघ में कमियों के बावजूद इसका अस्तित्व आवश्यक है। आज़ विभिन्न समाजों और मसलों के बीच तार जुड़ते जा रहे हैं। इसे ‘पारस्परिक निर्भरता’ का नाम दिया गया है। प्रौद्योगिकी यह सिद्ध कर रही है कि आने वाले समय में विश्व में पारस्परिक निर्भरता बढ़ती जाएगी। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्रसंघ उन तरीकों को खोजने में मददगार होगा जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हितों के अनुरूप होगा।