JAC Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. साँची का स्तूप किस राज्य में स्थित है –
(अ) उत्तर प्रदेश
(स) मध्य प्रदेश
(ब) बिहार
(द) गुजरात
उत्तर:
(स) मध्य प्रदेश

2. ऋग्वेद का संकलन कब किया गया?
(अ) 2500-2000 ई. पूर्व
(ब) 2000-1500 ई. पूर्व
(स) 1000-500 ई. पूर्व
(द) 1500 से 1000 ई. पूर्व
उत्तर:
(द) 1500 से 1000 ई. पूर्व

3. महावीर स्वामी से पहले कितने शिक्षक (तीर्थंकर) हो चुके थे?
(अ) 24
(स) 14
(ब) 20
(द) 23
उत्तर:
(द) 23

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4. बौद्धसंघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी –
(अ) महामाया
(ब) पुन्ना
(स) महाप्रजापति गोतमी
(द) सुलक्षणी
उत्तर:
(स) महाप्रजापति गोतमी

5. जिन ग्रन्थों में बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन किया गया है, उन्हें कहा जाता है –
(अ) बौद्धग्रन्थ
(स) महावंश
(ब) दीपवंश
(द) त्रिपिटक
उत्तर:
(द) त्रिपिटक

6. किस ग्रन्थ में बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम संकलित किए गए हैं?
(अ) अभिधम्मपिटक
(ब) विनयपिटक
(स) सुत्तपिटक
(द) बुद्धचरित
उत्तर:
(ब) विनयपिटक

7. अमरावती के स्तूप की खोज सर्वप्रथम कब हुई ?
(अ) 1896
(ब) 1796
(स) 1717
(द) 1817
उत्तर:
(ब) 1796

8. साँची की खोज कब हुई?
(अ) 1818 ई.
(ब) 1718 ई.
(स) 1918 ई.
(द) 1878 ई.
उत्तर:
(अ) 1818 ई.

9. किस अंग्रेज लेखक ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तान जहाँ बेगम को समर्पित किया?
(अ) जेम्स टॉड
(ब) जॉर्ज थॉमस
(स) जॉन मार्शल
(द) जरथुस्व
उत्तर:
(स) जॉन मार्शल

10. किस दार्शनिक का सम्बन्ध चूनान से है?
(अ) सुकरात
(ख) खुंगत्सी
(स) बुद्ध
(द) कनिंघम
उत्तर:
(अ) सुकरात

11. समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें कितने सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं की जानकारी मिलती है?
(अ) 10
(स) 94
(ब) 24
(द) 64
उत्तर:
(द) 64

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12. किस देश से दीपवंश एवं महावंश जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास का सम्बन्ध है-
(अ) भारत
(स) चीन
(ब) नेपाल
(द) श्रीलंका
उत्तर:
(द) श्रीलंका

13. त्रिपिटक की रचना कब हुई थी?
(अ) बुद्ध के जन्म से पूर्व
(ब) बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्
(स) बुद्ध के जीवन काल में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्

14. महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन निम्नलिखित में से किसमें है?
(अ) सुत्तपिटक
(ब) विनय पिटक
(स) जातक
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सुत्तपिटक

15. महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था –
(अ) कपिलवस्तु
(ब) लुम्बिनी
(स) सारनाथ
(द) बोधगया
उत्तर:
(ब) लुम्बिनी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. भोपाल की नवाब शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ………….. है।
2. शाहजहाँ बेगम की उत्तराधिकारी ……………. थीं।
3. ………… और …………… जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे।
4. महात्मा बुद्ध के दर्शन से जुड़े विषय …………. पिटक में आए।
5. ज्यादातर पुराने बौद्ध ग्रन्थ …………… भाषा में हैं।
6. बौद्ध धर्म के पूर्व एशिया में फैलने के पश्चात् …………. और ………… जैसे तीर्थयात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए।
7. वे महापुरुष जो पुरुषों और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचाते हैं उन्हें …………….. कहते हैं।
उत्तर:
1. ताज-उल- इकबाल
2. सुल्तान जहाँ बेगम
3. राजसूय, अश्वमेध
4. अभिधम्म
5. पालि
6. फा- शिएन, श्वैन त्सांग
7. तीर्थंकर

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया।

प्रश्न 2.
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन के अनुसार सम्पूर्ण संसार प्राणवान है

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प्रश्न 3.
मन्दिर स्थापत्य कला में गर्भगृह एवं शिखर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
(1) गर्भगृह- मन्दिर का चौकोर कमरा
(2) शिखर- गर्भगृह के ऊपर ढाँचा।

प्रश्न 4.
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। लोग बातचीत के द्वारा एकमत होते थे।

प्रश्न 5.
बुद्ध के जीवन से जुड़े बोधगया एवं सारनाथ नामक स्थानों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
(1) बोधगया में. बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।
(2) सारनाथ में बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था।

प्रश्न 6.
यदि आप भोपाल की यात्रा करेंगे, तो वहाँ किस बौद्धकालीन स्तूप को देखना चाहेंगे?
उत्तर:
साँची के स्तूप को।

प्रश्न 7.
महात्मा बुद्ध का बचपन का नाम क्या था?
उत्तर:
सिद्धार्थ

प्रश्न 8.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है?
उत्तर:
साँची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।

प्रश्न 9.
थेरीगाथा बौद्ध ग्रन्थ किस पिटक का हिस्सा है?
उत्तर:
सुत्तपिटक।

प्रश्न 10.
कैलाशनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
महाराष्ट्र में।

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प्रश्न 11.
महावीर स्वामी का बचपन का नाम क्या
उत्तर:
वर्धमान।

प्रश्न 12.
ऐसे तीन स्थानों का उल्लेख कीजिये, जहाँ स्तूप बनाए गए थे।
उत्तर:
(1) भरहुत
(2) साँची
(3) अमरावती।

प्रश्न 13.
साँची के स्तूप को आर्थिक अनुदान देने वाले दो शासकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) शाहजहाँ बेगम
(2) सुल्तानजहाँ बेगम।

प्रश्न 14.
बुद्ध की शिक्षाएँ किन ग्रन्थों में संकलित हैं?
उत्तर:
त्रिपिटक में

प्रश्न 15.
साँची के स्तूप को किसने संरक्षण प्रदान किया?
उत्तर:
साँची के स्तूप को भोपाल के शासकों ने संरक्षण प्रदान किया जिनमें शाहजहाँ बेगम एवं सुल्तानजहाँ बेगम प्रमुख हैं।

प्रश्न 16.
“इस देश की प्राचीन कलाकृतियों की लूट होने देना मुझे आत्मघाती और असमर्थनीय नीति लगती है।” यह कथन किस पुरातत्त्ववेत्ता का है?
उत्तर:
एच. एच. कोल।

प्रश्न 17.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी का काल विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
क्योंकि इस काल में ईरान में जरस्थुस्व, चीन में खुंगस्ती, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू एवं भारत में महावीर व बुद्ध जैसे चिन्तकों का उदय हुआ।

प्रश्न 18.
अजन्ता की गुफाएँ कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
महाराष्ट्र में

प्रश्न 19.
पौराणिक हिन्दू धर्म में किन दो प्रमुख देवताओं की पूजा प्रचलित थी?
उत्तर:
(1) विष्णु
(2) शिव।

प्रश्न 20.
सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाओं का निर्माण किस शासक ने करवाया था ?
उत्तर:
अशोक ने आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों हेतु निर्माण करवाया था।

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प्रश्न 21.
धेरी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
थेरी का अर्थ है ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।

प्रश्न 22.
बौद्ध धर्म की दो शिक्षाएँ बताइये।
उत्तर:
(1) विश्व अनित्य है।
(2) यह संसार दुःखों का घर है।

प्रश्न 23.
जैन धर्म की दो शिक्षाएँ बताइये।
उत्तर:
(1) जीवों के प्रति अहिंसा
(2) कर्मवाद और पुनर्जन्म में विश्वास।

प्रश्न 24.
बौद्ध संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम महिला कौन थी?
उत्तर:
बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी।

प्रश्न 25.
जैन धर्म के महापुरुष क्या कहलाते थे?
उत्तर:
तीर्थंकर।

प्रश्न 26.
जैन धर्म के 23वें तीर्थकर कौन थे?
उत्तर:
पार्श्वनाथ

प्रश्न 27.
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है।

प्रश्न 28.
राजसूय एवं अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किनके द्वारा कराया जाता था ?
उत्तर:
ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा

प्रश्न 29.
समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में कितने सम्प्रदायों एवं चिन्तन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है?
उत्तर:
64 सम्प्रदाय या चिन्तन परम्पराओं का।

प्रश्न 30.
कुटागारशालाओं का शाब्दिक अर्थ बताइये।
उत्तर:
नुकीली छत वाली झोंपड़ी।

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प्रश्न 31.
शिक्षक अपने दार्शनिक विचारों की चर्चा कहाँ करते थे?
उत्तर:
कुटागारशालाओं या उपवनों में।

प्रश्न 32.
महावीर स्वामी तथा बुद्ध ने किसका विरोध किया?
उत्तर:
वेदों के प्रभुत्व का।

प्रश्न 33.
चीनी यात्री फा-शिएन तथा श्वैन-त्सांग ने भारत की यात्रा क्यों की?
उत्तर:
बौद्ध ग्रन्थों की खोज के लिए।

प्रश्न 34.
प्रमुख नियतिवादी बौद्ध भिक्षु कौन थे?
उत्तर:
मक्खलि गोसाल।

प्रश्न 35.
प्रमुख भौतिकवादी बौद्ध दार्शनिक कौन थे?
उत्तर:
अजीत केसकम्बलिन।

प्रश्न 36.
महावीर स्वामी से पहले कितने तीर्थकर हो चुके थे?
उत्तर:
231

प्रश्न 37.
अमरावती के स्तूप की खोज कब हुई ?
उत्तर:
1796 ई. में

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प्रश्न 38.
विष्णु के कितने अवतारों की कल्पना की गई ?
उत्तर:
दस अवतारों की।

प्रश्न 39.
बराबर (बिहार) की गुफाओं का निर्माण किसने करवाया था ?
उत्तर:
अशोक ने।

प्रश्न 40.
अशोक ने किस सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बराबर की गुफाओं का निर्माण करवाया था?
उत्तर:
आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए।

प्रश्न 41.
कैलाशनाथ के मन्दिर कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
एलोरा (महाराष्ट्र) में।

प्रश्न 42.
कैलाशनाथ के मन्दिर का निर्माण कब करवाया गया था?
उत्तर:
आठवीं शताब्दी में।

प्रश्न 43.
यूनानी शैली से प्रभावित मूर्तियाँ किन क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
तक्षशिला और पेशावर से।

प्रश्न 44.
प्रतीकों द्वारा बुद्ध की स्थिति किस प्रकार दिखाई जाती है? दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
बुद्ध के ‘अध्यान की दशा’ को ‘रिक्त स्थान’ तथा ‘महापरिनिर्वाण’ को ‘स्तूप’ के द्वारा दिखाया जाता है।

प्रश्न 45.
ऐसे चार सामाजिक समूहों के नाम बताइये जिनमें से बुद्ध के अनुयायी आए।
उत्तर:
(1) राजा
(2) धनवान
(3) गृहपति तथा
(4) सामान्य जन

प्रश्न 46.
बुद्ध द्वारा गृह त्याग के क्या कारण थे?
उत्तर:
नगर का भ्रमण करते समय एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक लाश और संन्यासी को देख कर बुद्ध ने घर त्याग दिया।

प्रश्न 47.
लुम्बिनी एवं कुशीनगर नामक स्थानों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
लुम्बिनी में बुद्ध का जन्म हुआ। कुशीनगर में बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। ये बौद्ध धर्म के पवित्र स्थान हैं।

प्रश्न 48.
जैन धर्म के अनुसार कर्मफल से मुक्ति कैसे पाई जा सकती है ?
उत्तर:
त्याग और तपस्या के द्वारा।

प्रश्न 49.
आपकी दृष्टि में बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार के क्या कारण थे? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे।
(2) बौद्ध धर्म ने जाति प्रथा का विरोध किया, सामाजिक समानता पर बल दिया।

प्रश्न 50.
हीनयान और महायान बौद्ध सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
महायानी बुद्ध को देवता मान कर उनकी पूजा करते थे, परन्तु हीनयानी बुद्ध को अवतार नहीं मानते थे।

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प्रश्न 51.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है?
उत्तर:
साँची का स्तूप भोपाल से बीस मील दूर उत्तर- पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।

प्रश्न 52.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी में विश्व में किन प्रसिद्ध चिन्तकों का उद्भव हुआ?
उत्तर:
ईरान में जरथुस्व, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू तथा भारत में महावीर और बुद्ध का उद्भव हुआ।

प्रश्न 53.
ऋग्वेद का संकलन कब किया गया?
उत्तर:
ग्वेद का संकलन 1500 से 1000 ई. पूर्व में किया गया।

प्रश्न 54.
नियतिवादियों और भौतिकवादियों में क्या अन्तर था?
उत्तर:
नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है परन्तु भौतिकवादियों के अनुसार दान, यज्ञ या चढ़ावा निरर्थक हैं।

प्रश्न 55.
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए क्या किया जाना आवश्यक है?
उत्तर:
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 56.
जैन धर्म के पाँच व्रतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) हत्या न करना
(2) चोरी न करना
(3) झूठ न बोलना
(4) ब्रह्मचर्य
(5) धन संग्रह न करना।

प्रश्न 57.
बुद्ध के संदेश भारत के बाहर किन-किन देशों में फैले ? नाम लिखिए।
अथवा
बौद्ध धर्म का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म का प्रसार सम्पूर्ण उपमहाद्वीप मध्य एशिया, चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, थाइलैंड तथा इंडोनेशिया में हुआ।

प्रश्न 58.
नगर का भ्रमण करते समय किन को देखकर सिद्धार्थ ने घर त्यागने का निश्चय कर लिया?
उत्तर:
एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक लाश और एक संन्यासी को देखकर सिद्धार्थ ने घर त्यागने का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 59.
बौद्ध धर्म के अनुसार ‘संघ’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
युद्ध द्वारा स्थापित संघ भिक्षुओं की एक संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए।

प्रश्न 60.
संघ के भिक्षुओं की दैनिक चर्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भिक्षु सादा जीवन बिताते थे।
(2) वे उपासकों से भोजन दान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे।

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प्रश्न 61.
बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे
(2) बौद्ध धर्म सामाजिक समानता पर बल देता था।

प्रश्न 62.
‘चैत्य’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। ये टीले चैत्य कहे जाने लगे।

प्रश्न 63.
बुद्ध के जीवन से जुड़े चार स्थानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) लुम्बिनी ( बुद्ध का जन्म स्थान)
(2) बोधगया (ज्ञान प्राप्त होना)
(3) सारनाथ (प्रथम उपदेश देना)
(4) कुशीनगर (निर्वाण प्राप्त करना)।

प्रश्न 64.
स्तूप’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
कुछ पवित्र स्थानों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ गाड़ दी गई थीं। ये टीले स्तूप कहलाये।

प्रश्न 65.
किन लोगों के द्वारा स्तूपों को दान दिया जाता था?
उत्तर:
(1) राजाओं के द्वारा (जैसे सातवाहन वंश के राजा)
(2) शिल्पकारों तथा व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा
(3) महिलाओं और पुरुषों के द्वारा।

प्रश्न 66.
स्तूप की संरचना के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मिट्टी का टीला (अंड)
(2) हर्मिका (उन्जे जैसा ढाँचा)
(3) यष्टि (हर्मिका से निकला मस्तूल)
(4) वेदिका (टीले के चारों ओर बनी वेदिका)।

प्रश्न 67.
महायान मत में बोधिसत्तों की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बोधिसता परम करुणामय जीव थे जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे और इससे दूसरों की सहायता करते थे।

प्रश्न 68.
महायान मत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
महायान मत में बुद्ध और बोधिसत्तों की मूर्तियों की पूजा की जाती थी।

प्रश्न 69.
हीनयान या थेरवाद’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरानी बौद्ध परम्परा के अनुवायी स्वयं को धेरवादी कहते थे। वे पुराने, प्रतिष्ठित शिक्षकों के बताए रास्ते पर चलते थे।

प्रश्न 70.
कैलाशनाथ मन्दिर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कैलाशनाथ मन्दिर एलोरा (महाराष्ट्र) में स्थित है यह सारा ढाँचा एक चट्टान को काट कर तैयार किया गया है।

प्रश्न 71.
जैन धर्म के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए
उत्तर:
(1) जीवों के प्रति अहिंसा
(2) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होना।

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प्रश्न 72.
जैन विद्वानों ने किन भाषाओं में अपने ग्रन्थों की रचना की?
उत्तर:
जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल आदि भाषाओं में अपने ग्रन्थों की रचना की।

प्रश्न 73.
बौद्ध धर्म के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) विश्व अनित्य है और निरन्तर बदल रहा है।
(2) विश्व आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।

प्रश्न 74.
स्तूप क्या हैं?
उत्तर:
स्तूप बुद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले हैं। इनमें बुद्ध के शरीर के अवशेष अथवा उनके द्वारा प्रयोग की गई किसी वस्तु को गाड़ा गया था।

प्रश्न 75.
चैत्य क्या थे?
उत्तर:
शवदाह के पश्चात् बौद्धों के शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े इन टीलों को चैत्य कहा जाता था।

प्रश्न 76.
ऋग्वेद में किन सूक्तियों का संग्रह है?
उत्तर:
ऋग्वेद में इन्द्र, अग्नि, सोम आदि देवताओं की स्तुति से सम्बन्धित सूक्तियों का संग्रह है।

प्रश्न 77.
नियतिवादी कौन थे?
उत्तर:
नियतिवादी वे लोग थे जो विश्वास करते थे कि सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं।

प्रश्न 78.
भौतिकवादी कौन थे?
उत्तर:
भौतिकवादी लोग यह मानते थे कि दान, यज्ञ या चढ़ावा निरर्थक हैं। इस दुनिया या दूसरी दुनिया का अस्तित्व नहीं होता।

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प्रश्न 79.
‘सन्तचरित्र’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतचरित्र किसी संत या धार्मिक महापुरुष की जीवनी है। संतचरित्र संत की उपलब्धियों का गुणगान करते हैं।

प्रश्न 80.
विनयपिटक तथा सुत्तपिटक में किन शिक्षाओं का संग्रह था ?
उत्तर:
(1) विनयपिटक में बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था।
(2) सुत्तपिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह था।

प्रश्न 81.
अभिधम्मपिटक’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अभिधम्मपिटक’ नामक ग्रन्थ में बौद्ध दर्शन से सम्बन्धित सिद्धान्तों का संग्रह था।

प्रश्न 82.
श्रीलंका के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले बौद्ध ग्रन्थों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
‘दीपवंश’ (द्वीप का इतिहास) तथा ‘महावंश’ (महान इतिहास) से श्रीलंका के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

प्रश्न 83.
स्तूप को संस्कृत में क्या कहा जाता है?
उत्तर:
स्तूप को संस्कृत में टीला कहा जाता है।

प्रश्न 84.
कौनसा अनूठा ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा
उत्तर:
थेरीगाथा ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा है।

प्रश्न 85.
बिना अलंकरण वाले प्रारम्भिक स्तूप कौन- कौनसे हैं?
उत्तर:
साँची और भरहुत स्तूप बिना अलंकरण वाले प्रारम्भिक स्तूप हैं।

प्रश्न 86.
जैन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन धर्म के अनुसार सम्पूर्ण संसार प्राणवान है; पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है। प्रश्न 87. अमरावती का स्तूप किस राज्य में है? उत्तर- अमरावती का स्तूप गुंटूर (आन्ध्र प्रदेश) में स्थित है।

प्रश्न 88.
जेम्स फर्ग्युसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र किसे माना ?
उत्तर:
जेम्स फर्ग्युसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र साँची को माना।

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प्रश्न 89.
वराह ने किसकी रक्षा की थी?
उत्तर:
वराह ने पृथ्वी की रक्षा की थी।

प्रश्न 90.
बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप कौनसा था ?
उत्तर:
बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप अमरावती का स्तूप है।

प्रश्न 91.
भक्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
भक्ति एक प्रकार की आराधना है। इसमें उपासक एवं ईश्वर के मध्य के रिश्ते को प्रेम तथा समर्पण का रिश्ता माना जाता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध धर्म के व्यावहारिक पक्ष के बारे में सुत्तपिटक के उद्धरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) मालिक को अपने नौकरों और कर्मचारियों की पाँच प्रकार से देखभाल करनी चाहिए उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देकर उन्हें भोजन और मजदूरी देकर, बीमार पड़ने पर उनकी परिचर्या करने, उनके साथ स्वादिष्ट भोजन बाँट कर और समय-समय पर उन्हें छुट्टी देकर।
(2) कुल के लोगों को पाँच तरह से श्रमणों और ब्राह्मणों की देखभाल करनी चाहिए अनुराग द्वारा, सदैव पुस् घर खुले रखकर तथा उनकी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं दिन की पूर्ति करके।

प्रश्न 2.
बौद्ध एवं जैन धर्म में कितनी समानता थी?
उत्तर:

  1. दोनों धर्म कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद में विश्वास करते हैं।
  2. दोनों धर्म अहिंसा के सिद्धान्त में विश्वास करते की में हैं।
  3. दोनों धर्म अनीश्वरवादी हैं।
  4. दोनों धर्मों ने यज्ञों, बहुदेववाद और कर्मकाण्डों गी का विरोध किया।
  5. दोनों धर्म निर्वाण प्राप्त करने पर बल देते हैं।
  6. दोनों धर्म निवृत्तिमार्गी हैं और संसार त्याग पर बल देते हैं।

प्रश्न 3.
साँची का स्तूप यूरोप के लोगों को विशेषकर में रुचिकर क्यों लगता है?
उत्तर:
भोपाल से बीस मील उत्तर पूर्वी की ओर एक पहाड़ी की तलहटी में साँची का स्तूप स्थित है। इस स्तूप की पत्थर की वस्तुएँ, बुद्ध की मूर्तियाँ तथा प्राचीन तोरणद्वार आदि यूरोप के लोगों को विशेषकर रुचिकर लगते हैं जिनमें मेजर अलेक्जैंडर कनिंघम एक हैं। मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थान के चित्र बनाए। उन्होंने यहाँ के अभिलेखों को पढ़ा और गुम्बदनुमा ढाँचे के बीचों-बीच खुदाई की। उन्होंने इस खोज के निष्कर्षो को एक अंग्रेजी पुस्तक में लिखा।

प्रश्न 4.
साँची का पूर्वी तोरणद्वार भोपाल राज्य से बाहर जाने से कैसे बचा रहा?
उत्तर:
साँची के स्तूप का पूर्वी तोरणद्वार सबसे अच्छी दशा में था अतः फ्रांसीसियों ने सांची के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए शाहजहाँ बेगम से इसे फ्रांस ले जाने की अनुमति माँगी। अंग्रेजों ने भी इसे इंग्लैण्ड ले जाने का प्रयास किया। सौभाग्वश फ्रांसीसी और अंग्रेज दोनों ही इसकी प्रतिकृतियों से सन्तुष्ट हो गए, जो बड़ी सावधानीपूर्वक प्लास्टर से बनाई गई थीं। इस प्रकार मूल कृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही बनी रही।

प्रश्न 5.
भोपाल के शासकों ने साँची स्तूप के संरक्षण के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:

  1. भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम तथा उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची के स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान किया।
  2. सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया।
  3. जान मार्शल द्वारा साँची के स्तूप पर लिखी गई पुस्तक के प्रकाशन में भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया।
  4. साँची के स्तूप को भोपाल राज्य में बनाए रखने में शाहजहाँ बेगम ने योगदान दिया।

प्रश्न 6.
” ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी का काल विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस काल में ईरान में जरथुस्त्र, चीन में खंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू तथा भारत में महावीर, गौतम बुद्ध एवं कई अन्य चिन्तकों का उदय हुआ। उन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयास किया। उन्होंने मानव तथा विश्व व्यवस्था के बीच सम्बन्ध को भी समझने का प्रयास किया। इसी काल में गंगा घाटी में नये राज्य और शहर उभर रहे थे और सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन हो रहे थे जिन्हें ये चिन्तक समझने का प्रयास कर रहे थे।

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प्रश्न 7.
प्राचीन युग में प्रचलित यज्ञों की परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पूर्व वैदिक काल में यज्ञों की परम्परा प्रचलित थी यज्ञों के समय ऋग्वैदिक देवताओं की स्तुति सूतों का न उच्चारण किया जाता था और लोग पशु, पुत्र, स्वास्थ्य, दीर्घ आयु आदि के लिए प्रार्थना करते थे आरम्भिक यह सामूहिक नेरूप से किए जाते थे। बाद में (लगभग 1000 ई. पूर्व से 500 ई. पूर्व) कुछ यज्ञ घरों के स्वामियों द्वारा किए जाते थे राजसूष और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा ही किया करते थे।

प्रश्न 8.
वैदिक परम्परा के अन्तर्गत तथा वैदिक र परम्परा के बाहर छठी शताब्दी ई. पूर्व में उठे प्रश्नों और विवादों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के पश्चात् जीवन की सम्भावना और पुनर्जन्म के बारे ट में जानने के लिए उत्सुक थे क्या पुनर्जन्म अतीत के कर्मों । के कारण होता था? इस प्रकार के प्रश्नों पर खूब बाद- ही विवाद होता था। चिन्तक परम यथार्थ की प्रकृति को समझने और प्रकट करने में संलग्न थे। वैदिक परम्परा से बाहर के पण कुछ दार्शनिक यह प्रश्न उठा रहे थे कि सत्य एक होता है या अनेक। कुछ लोग यज्ञों के महत्त्व के बारे में विचार कर था रहे थे।

प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में चिन्तकों में होने वाले वाद-विवादों तथा चर्चाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई.पूर्व में विभिन्न सम्प्रदाय के शिक्षक एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूमकर अपने दर्शन या विश्व के विषय में अपने दृष्टिकोण को लेकर एक-दूसरे से तथा सामान्य लोगों से तर्क-वितर्क करते थे। इस प्रकार की चर्चाएँ कुटागारशालाओं या ऐसे उपवनों में होती थीं जहाँ घुमक्कड़ चिन्तक ठहरा करते थे। यदि एक शिक्षक अपने प्रतिद्वन्द्वी को अपने तर्कों से सहमत कर लेता था, तो वह अपने अनुयायियों के साथ उसका शिष्य बन जाता था।

प्रश्न 10.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में शिक्षक वैदिक धर्म के किन सिद्धान्तों पर प्रश्न उठाते थे?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में अनेक शिक्षक वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाते थे इन शिक्षकों में महावीर स्वामी तथा बुद्ध भी सम्मिलित थे। उन्होंने यह विचार भी प्रकट किया कि जीवन के दुःखों से मुक्ति का प्रयास प्रत्येक व्यक्ति स्वयं कर सकता था। यह बात ब्राह्मणवाद से बिल्कुल भिन्न थी क्योंकि ब्राह्मणवाद की यह मान्यता थी कि किसी व्यक्ति का अस्तित्व उसकी जाति और लिंग से निर्धारित होता था।

प्रश्न 11.
आत्मा की प्रकृति और सच्चे यज्ञ के बारे में उपनिषदों में क्या कहा गया है?
उत्तर:
(1) आत्मा की प्रकृति छान्दोग्य उपनिषद में आत्मा की प्रकृति के आरे में कहा गया है कि “यह आत्मा धान या यव या सरसों या बाजरे के बीज की गिरी से भी छोटी है मन के अन्दर छुपी यह आत्मा पृथ्वी से भी विशाल, क्षितिज से भी विस्तृत, स्वर्ग से भी बड़ी है। और इन सभी लोकों से भी बड़ी है।”

(2) सच्चा यज्ञ ही एक यज्ञ है। बहते यह (पवन) जो बह रहा है, निश्चय बहते यह सबको पवित्र करता है। इसलिए यह वास्तव में यज्ञ है।

प्रश्न 12.
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रसार में चीनी और भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जब बौद्ध धर्म पूर्वी एशिया में फैल गया तब फा-शिएन और श्वेन त्सांग जैसे चीनी यात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में भारत आए ये पुस्तकें वे अपने देश ले गए, जहाँ विद्वानों ने इनका अनुवाद किया। भारत के बौद्ध शिक्षक भी अनेक देशों में गए बुद्ध की शिक्षाओं का प्रसार करने हेतु वे कई ग्रन्थ अपने साथ ले गए। कई सदियों तक ये पाण्डुलिपियाँ एशिया के विभिन्न देशों में स्थित बौद्ध- विहारों में संरक्षित थीं।

प्रश्न 13.
त्रिपिटकों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बौद्धों के धार्मिक सिद्धान्त त्रिपिटकों में संकलित –

  1. विनयपिटक – इसमें संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचरण सम्बन्धी नियमों का वर्णन है।
  2. सुत्तपिटक – इसमें महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है।
  3. अभिधम्मपिटक – इसमें बौद्ध दर्शन से जुड़े विषय संकलित हैं।

प्रश्न 14.
नियतिवादियों के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। इन्हें संसार में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता।
(2) बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि वे सद्गुणों तथा तपस्या द्वारा अपने कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। मूर्ख लोग उन्हीं कार्यों को करके मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं नहीं है।

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प्रश्न 15.
भौतिकवादियों के सिद्धान्तों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं है।
(2) मनुष्य चार तत्वों से बना है जब वह मरता है, तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में जल वाला अंश जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा साँस का अंश वायु में वापिस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अंतरिक्ष का हिस्सा बन जाती हैं।
(3) दान देने का सिद्धान्त मूर्खों का सिद्धान्त है, यह खोखला झूठ है। मूर्ख हो या विद्वान् दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता।

प्रश्न 16.
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। पत्थर चट्टान, जल आदि में भी जीवन है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा का पालन करना चाहिए। मनुष्यों, जानवरों, पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़ों को नहीं मारना चाहिए।
(3) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
(4) पाँच व्रतों का पालन करना चाहिए –

  • हत्या न करना
  • चोरी नहीं करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचार्य
  • धन संग्रह न करना।

प्रश्न 17.
गौतम बुद्ध की जीवनी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
गीतम बुद्ध पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के जीवन का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वह शाक्य कबीले के सरदार के पुत्र थे। एक दिन नगर का भ्रमण करते समय सिद्धार्थ को एक रोगी, वृद्ध, मृतक तथा संन्यासी के दर्शन हुए जिससे उनका संसार के प्रति वैराग्य और बढ़ गया। अतः सिद्धार्थ महल त्याग कर सत्य की खोज में निकल गए। प्रारम्भ में उन्होंने 6 वर्ष तक कठोर तपस्या की। अन्त में उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बैठकर चिन्तन करना शुरू किया और सच्चा ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद वह अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने लगे।

प्रश्न 18.
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के उपदेशों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और निरन्तर बदल रहा है। यह आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी अथवा शाश्वत नहीं है।
(2) इस क्षणभंगुर संसार में दुःख मनुष्य के जीवन का अन्तर्निहित तत्त्व है।
(3) घोर तपस्या और विषयासक्ति के बीच मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए मनुष्य दुनिया के दुःखों से मुक्ति पा सकता है।
(4) बुद्ध की मान्यता थी कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने

प्रश्न 19.
‘बौद्ध संघ’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए ‘संघ’ की स्थापना की संघ बौद्ध भिक्षुओं की एक ऐसी संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये भिक्षु एक सादा जीवन बिताते थे। प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे, बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई। कई स्वियों जो संघ में आईं, वे धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। संघ में सभी को समान दर्जा प्राप्त था। संघ की संचालन पद्धति गणों और संघ की परम्परा पर आधारित थी।

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प्रश्न 20.
संघ में रहने वाले भिक्षुओं का जीवन कैसा था?
उत्तर:
संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षु सादा जीवन बिताते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ नहीं होता था। वे दिन में केवल एक बार उपासकों से भोजनदान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे। वे दान पर निर्भर थे, इसलिए उन्हें भिक्खु कहा जाता था। संघ में रहते हुए वे बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करते थे।

प्रश्न 21.
महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति क्यों दी?
उत्तर:
प्रारम्भ में केवल पुरुष ही बौद्ध संघ में सम्मिलित हो सकते थे परन्तु कालान्तर में अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध पर महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली पहली भिक्षुणी थी। संघ में आने वाली कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। आगे चलकर वे घेरी बनीं, जिसका अर्थ है- निर्वाण प्राप्त करने वाली महिलाएँ।

प्रश्न 22.
बुद्ध के अनुयायी किन सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थे?
उत्तर:
बुद्ध के अनुयायियों में कई सामाजिक वर्गों के लोग सम्मिलित थे। इनमें राजा, धनवान, गृहपति, व्यापारी, सामान्यजन कर्मकार, दास, शिल्पी आदि शामिल थे। इनमें स्त्री और पुरुष दोनों सम्मिलित थे। एक बार बौद्ध संघ में आ जाने पर सभी को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्षु और भिक्षुणी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्यागना पड़ता था।

प्रश्न 23.
भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए निर्धारित नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) जब कोई भिक्षु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा, तो उसे इसका प्रयोग कम से कम छः वर्षों तक करना पड़ेगा।
(2) यदि कोई भिक्षु किसी गृहस्थ के घर जाता है और उसे भोजन दिया जाता है, तो वह दो से तीन कटोरा भर ही स्वीकार कर सकता है।
(3) यदि बिहार में ठहरा हुआ भिक्षु प्रस्थान के पहले अपने बिस्तर को नहीं समेटता है, तो उसे अपराध स्वीकार करना होगा।

प्रश्न 24.
बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे।
(2) बौद्ध धर्म ने जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल दिया।
(3) बौद्ध धर्म में अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्त्व दिया गया। इससे स्त्री और पुरुष इस धर्म की ओर आकर्षित हुए।
(4) बौद्ध धर्म ने निर्बल लोगों के प्रति दयापूर्ण और मित्रतापूर्ण व्यवहार को महत्त्व दिया।

प्रश्न 25.
चैत्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अत्यन्त प्राचीनकाल से ही लोग कुछ स्थानों को पवित्र मानते थे ऐसे स्थानों पर जहाँ प्रायः विशेष वनस्पति होती थी, अनूठी चट्टानें थीं या आश्चर्यजनक प्राकृतिक सौन्दर्य था वहाँ पवित्र स्थल बन जाते थे ऐसे कुछ स्थलों पर एक छोटी-सी वेदी भी बनी रहती थी, जिन्हें कभी-कभी चैत्य कहा जाता था शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े टीले चैत्य के रूप में जाने गए।

प्रश्न 26.
बौद्ध साहित्य में वर्णित कुछ चैत्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
बौद्ध साहित्य में कई चैत्यों का उल्लेख मिलता है। इसमें बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित स्थानों का भी उल्लेख है, जैसे लुम्बिनी (जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ), बोधगया (जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया), सारनाथ (जहाँ उन्होंने उपदेश दिया) और कुशीनगर (जहाँ बुद्ध ने निब्बान प्राप्त किया। धीरे-धीरे ये समस्त स्थान पवित्र स्थल बन गए और यहाँ अनेक चैत्य बनाए गए।

प्रश्न 27.
स्तूपों का निर्माण क्यों किया जाता था?
उत्तर:
स्तूप बनाने की परम्परा बुद्ध से पहले की रही होगी। परन्तु वह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूंकि स्तूपों में ऐसे अवशेष रहते थे, जिन्हें पवित्र समझा जाता था। इसलिए समूचा स्तूप ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। अशोक ने बुद्ध को अवशेषों के हिस्से प्रत्येक महत्त्वपूर्ण नगर में बाँट कर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया था।

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प्रश्न 28.
स्तूपों की संरचना का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) स्तूप का जन्म एक गोलाई लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में अंड कहा गया।
(2) अंड के ऊपर एक ‘हर्मिका’ होती थी। वह छज्जे जैसा ढांचा होता था।
(3) हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था, जिसे ‘वष्टि’ कहते थे, जिस पर प्रायः एक छत्री लगी होती थी।
(4) टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से अलग करती थी।

प्रश्न 29.
साँची और भरहुत के स्तूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साँची और भरहुत के स्तूप बिना अलंकरण के हैं, उनमें केवल पत्थर की वेदिकाएँ तथा तोरणद्वार हैं। ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी। उपासक पूर्वी तोरणद्वार से प्रवेश करके टीले को दाई ओर देखते हुए दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे, मानो वे आकाश में सूर्य के पथ का अनुकरण कर रहे हों। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी।

प्रश्न 30.
स्तूप किन लोगों के दान से बनाए गए ?
उत्तर:
(1) स्तूपों के निर्माण के लिए कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए।
(2) कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए।
(3) साँची के एक तोरण द्वार का भाग हाथीदांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था
(4) स्तूपों के निर्माण के लिए बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।
(5) स्तूपों के निर्माण के लिए सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों के द्वारा दान दिए गए।

प्रश्न 31.
अमरावती स्तूप की खोज किस प्रकार की गई ?
उत्तर:
1796 में एक स्थानीय राजा को अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गये। उन्होंने उसके पत्थरों से एक मन्दिर बनवाने का निश्चय किया। कुछ वर्षों बाद कालिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी इस क्षेत्र से गुजरे। उन्हें वहाँ नई मूर्तियाँ मिलीं और उन्होंने उनका चित्रांकन किया। 1854 ई. में गुन्टूर के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। वे वहाँ से कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर मद्रास ले गए। उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी खोज निकाला।

प्रश्न 32.
साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
सम्भवतः अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी। 1818 में जब साँची की खोज हुई, इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे। चौथा तोरणद्वार वहीं पर गिरा हुआ था। उस समय भी यह सुझाव आया कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। दूसरी ओर अमरावती का महाचैत्व अब केवल एक छोटा- सा टीला है जिसका सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो चुका है।

प्रश्न 33.
इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत चित्र पहली बार देखने पर तो इस मूर्तिकला के अंश में फूस की झोंपड़ी तथा पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य का चित्रण दिखाई देता है परन्तु कला इतिहासकार इसे ‘वेसान्तर जातक’ से लिया गया एक दृश्य बताते हैं यह कहानी एक ऐसे दानी राजकुमार के बारे में है जो अपना सर्वस्व एक ब्राह्मण को सौंप कर स्वयं अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ वन में रहने के लिए चला गया। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्राय: इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। (पाठ्यपुस्तक का चित्र 4.13, पेज 100)

प्रश्न 34.
“कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए ‘रिक्त स्थान’ बुद्ध के ध्यान की दशा तथा ‘स्तूप’ ‘महापरिनिब्बान’ के प्रतीक बन गए। चक्र बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था। पेड़ बुद्ध के जीवन की एक पटना का प्रतीक था ऐसे प्रतीकों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि इतिहासकार इन कलाकृतियों के निर्माताओं की परम्पराओं से परिचित हो ।

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प्रश्न 35.
साँची स्तूप के तोरणद्वार के किनारे पर एक वृक्ष पकड़कर झूलती हुई महिला की मूर्ति से किस लोक परम्परा का बोध होता है?
उत्तर:
प्रारम्भ में विद्वानों को इस मूर्ति के महत्त्व के बारे में कुछ असमंजस था। इस मूर्ति से त्याग और तपस्या के भाव प्रकट नहीं होते थे। परन्तु लोक साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन के द्वारा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परा के अनुसार लोग यह मानते थे कि इस स्वी द्वारा हुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल होने लगते थे। यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इसी कारण स्तूप के अलंकरण में यह प्रयुक्त हुआ ।

प्रश्न 36.
“साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न लोक परम्पराओं से उभरे थे।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न लोक परम्पराओं से उभरे थे। उदाहरण के लिए, साँची में जानवरों के कुछ सुन्दर उत्कीर्णन पाए गए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय-बैल सम्मिलित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। इसके अतिरिक्त जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था। उदाहरणार्थ, हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

प्रश्न 37.
चित्र 4.19 पृष्ठ 102 पर चित्रित कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति से किस लोक परम्परा के बारे में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इस चित्र में हाथी महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं, जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हो कुछ इतिहासकार इस महिला को बुद्ध की माँ माया मानते हैं तो दूसरे इतिहासकार इसे एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी थी, जिन्हें प्राय: हाथियों से सम्बन्धित किया जाता है। यह भी सम्भव है कि इन उत्कीर्णित मूर्तियों को देखने वाले उपासक इसे माया और गजलक्ष्मी दोनों से ही जोड़ते थे।

प्रश्न 38.
अजन्ता की चित्रकारी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में चित्रकारी जैसे सम्प्रेषण के अन्य माध्यमों का भी प्रयोग किया जाता था। इन चित्रों में जो सबसे अच्छी दशा में बचे हुए हैं, वे गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र हैं। इनमें अजन्ता (महाराष्ट्र) की चित्रकारी अत्यन्त प्रसिद्ध है। अजन्ता के चित्रों में जातकों की कथाएँ चित्रित हैं। इनमें राजदरबार का जीवन, शोभायात्राएँ, काम करते हुए स्वी- पुरुष और त्यौहार मनाने के चित्र दिखाए गए हैं अजन्ता के कुछ चित्र अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव लगते हैं।

प्रश्न 39.
बौद्धमत में महायान के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
महायान बौद्ध धर्म के विकास का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
ईसा की प्रथम शताब्दी के पश्चात् यह विश्वास किया जाने लगा कि बुद्ध लोगों को मुक्ति दिलवा सकते थे। साथ-साथ बोधिसत्त की अवधारणा भी विकसित होने लगी। बोधिसत्तों को परम दयालु जीव माना गया जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे परन्तु वे इस पुण्य का प्रयोग दूसरों का कल्याण करने में करते थे। इस प्रकार बौद्धमत में बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों की पूजा इस परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। इस नई परम्परा को ‘महायान’ कहा गया।

प्रश्न 40.
पौराणिक हिन्दू धर्म के उदय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिन्दू धर्म में वैष्णव एवं शैव परम्पराएँ सम्मिलित हैं। वैष्णव परम्परा में विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाता है और शैव परम्परा में शैव को परमेश्वर माना जाता है। इनके अन्तर्गत एक विशेष देवता की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता था। इस प्रकार की आराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का सम्बन्ध प्रेम और समर्पण का सम्बन्ध माना जाता था। इसे भक्ति कहते हैं।

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प्रश्न 4.
‘अवतारवाद की अवधारणा’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वैष्णववाद में दस अवतारों की कल्पना की गई है यह माना जाता था कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अराजकता, अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती थी, तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे। सम्भवतः पृथक् पृथक् अवतार देश के भिन्न-भिन्न भागों में लोकप्रिय थे। इन समस्त स्थानीय देवताओं को विष्णु का रूप मान लेना एकीकृत धार्मिक परम्परा के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था।

प्रश्न 42.
“वैष्णववाद में अनेक अवतारों के इर्द- गिर्द पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई।” व्याख्या कीजिये।
अथवा
वैष्णववाद में अनेक अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा – पद्धतियाँ किस प्रकार विकसित हुई? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
वैष्णववाद में कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। ये समस्त चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनकी विशेषताओं और प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्र, आभूषणों, आयुषों (हथियार और हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से दर्शाया जाता था।

प्रश्न 43.
प्रारम्भिक मन्दिरों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) शुरू के मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाजे से उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो
सकता था।
(2) धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।
(3) मन्दिर की दीवारों पर प्रायः भित्तिचित्र उत्कीर्ण किए जाते थे।
(4) बाद में मन्दिरों में विशाल सभा स्थल, ऊंची दीवारों और तोरणों का भी निर्माण किया जाने लगा।
(5) कुछ पहाड़ियों को काट कर कुछ गुफा मन्दिर भी बनाये गये।

प्रश्न 44.
उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय विद्वान यूनानी शैली से प्रभावित भारतीय मूर्तियों से क्यों प्रभावित हुए?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय विद्वानों ने मूर्तियों की तुलना प्राचीन यूनान की कला परम्परा से की। वे बुद्ध और बोधिसतों की मूर्तियों की खोज से काफी उत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तिकला से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती- जुलती थीं। चूँकि वे विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन्हें भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।

प्रश्न 45.
कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काट कर खोखला कर कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा काफी प्राचीन थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ई. पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से बराबर ( बिहार ) की पहाड़ियों में आजीविक सम्प्रदाय के संतों के लिए बनाई गई थीं कृत्रिम गुफा बनाने का सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है। इसे पूरी पहाड़ी काटकर बनाया गया था।

प्रश्न 46.
पुरातत्त्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों के बारे में क्या सोच रखते थे?
उत्तर:
पुरातत्त्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों को उठा ले जाने के विरुद्ध थे। वे इस लूट को आत्मघाती मानते थे। उनका मानना था कि संग्रहालयों में मूर्तियों की प्लास्टर कलाकृतियाँ रखी जानी चाहिए जबकि असली कृतियाँ खोज के स्थान पर ही रखी जानी चाहिए।

प्रश्न 47.
जैन धर्म के अहिंसावादी स्वरूप के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हॉपकिन्स नामक विद्वान ने कहा था कि जैन धर्म कीट-पतंगों का भी पोषण करता है, पूर्णतया सत्य है। क्योंकि जैन धर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल दिया गया है। विश्व के अस्तित्व के लिए प्रत्येक अणु महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए जैन दार्शनिकों ने मत दिए कि व्यक्ति को मन, कर्म तथा वचन से पूर्ण अहिंसावादी होना चाहिए। मनुष्य को जाने-अनजाने में भी प्राणियों के प्रति किसी भी हिंसावादी गतिविधि का सम्पादन नहीं करना चाहिए। इसी के फलस्वरूप अनेक जैन सन्त मुँह पर पट्टी बाँधते हैं; जिससे उनके श्वास लेते समय कोई कीटाणु उनके मुँह में न चला जाए।

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प्रश्न 48.
गौतम बुद्ध एक महान् समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म का उद्भव एक क्रान्तिकारी धर्म के रूप में हुआ था। इस धर्म के प्रवर्तक मध्यमार्गी बुद्ध थे। गौतम बुद्ध की विचारधारा, उपदेश तथा कार्यप्रणाली अत्यन्त सरल थी। गौतम बुद्ध ने जातिवाद विशेषकर जन्म पर आधारित जातिवाद का घोर विरोध किया तथा जन्म के स्थान पर कर्म को व्यक्ति की पहचान बताया।

एक स्थान पर गौतम बुद्ध अपने शिष्य आनन्द से कहते हैं कि साधक की जाति क्या पूछता है कर्म पूछ गौतम बुद्ध की यह विचारधारा तत्कालीन अतिवादी तथा ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध जनसामान्य की सबसे बड़ी आवश्यकता थी। बुद्ध ने जनता की इस आवश्यकता को समझा और ऐसी कर्मकाण्डीय ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध किया; जिसमें जनसामान्य का कोई स्थान नहीं था।

प्रश्न 49.
बौद्ध संघों की स्थापना क्यों की गयी?
उत्तर:
बौद्ध धर्म की व्यापक लोकप्रियता के कारण शिष्यों की संख्या तीव्रता से बढ़ने लगी। शिष्यों में ही कुछ ऐसे शिष्य जिनका आत्मिक विकास उच्च था; वे धम्म के शिक्षक बन गये। संघ की स्थापना धम्म के शिक्षकों के की गयी संघ में सदाचरण और नैतिकता पर बल दिया जाता था। हेतु प्रारम्भ में महिलाओं का संघ में प्रवेश वर्जित था परन्तु बाद में महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी। महाप्रजापति गौतमी जो कि बुद्ध की उपमाता थीं, संघ में प्रवेश करने वाली पहली महिला थीं।

प्रश्न 50.
जैन तथा बौद्ध धर्म में क्या भिन्नताएँ हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जैन तथा बौद्ध धर्म में अनेक समानताएँ थीं परन्तु कुछ असमानताएँ भी थीं। प्रमुख भिन्नताओं का विवरण निम्नलिखित है –

  1.  जैन धर्म आत्मवादी है परन्तु बौद्ध धर्म अनात्मवादी
  2. जैनों के साहित्य को आगम कहा जाता है; बौद्धों के साहित्य को त्रिपिटक कहा जाता है।
  3. जैन धर्म अत्यधिक अहिंसावादी है बौद्ध धर्म मध्यमार्गी है।
  4. जैन धर्म के अनुसार मोक्ष मृत्यु के पश्चात् ही सम्भव है वहीं बौद्ध धर्म के अनुसार इसी जन्म में निर्वाण सम्भव है।
  5. जैन धर्म में तीर्थंकरों की उपासना होती है परन्तु बौद्ध धर्म में बुद्ध और बोधिसत्वों की आराधना की जाती है।

प्रश्न 51.
बौद्ध मूर्तिकला की प्रतीकात्मक पद्धति क्या थी? इन प्रतीकों को समझ पाना एक दुष्कर कार्य क्यों था?
उत्तर:
बौद्ध मूर्तिकला की मूर्तियों को स्पष्ट रूप से समझ पाना एक दुष्कर कार्य इसलिए है कि इतिहासकार केवल इस बात का अनुमान ही लगा सकते हैं कि मूर्ति बनाते समय मूर्तिकार का दृष्टिकोण क्या था इतिहासकारों के ‘अनुमान के अनुसार आरम्भिक मूर्तिकारों ने महात्मा बुद्ध को मनुष्य के रूप में न दिखाकर उन्हें प्रतीकों के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है। चित्र में दिखाए गए रिक्त स्थान को इतिहासकार बुद्ध की ध्यान अवस्था के रूप में बताते हैं; क्योंकि ध्यान की महादशा में अन्तर में रिक्तता की अनुभूति होती है स्तूप को महानिर्वाण की दशा के रूप में व्याख्यायित किया है।

महानिर्वाण का अर्थ है- विराट में समा जाना चक्र को बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले प्रवचन का प्रतीक माना गया है; इसके अनुसार यहीं से बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का चक्र घूमा पेड़ का अर्थ मात्र पेड़ के रूप में नहीं बल्कि वह बीज की पूर्ण परिपक्वता का प्रतीक है एक बीज जिसकी सम्भावना वृक्ष बनने की है वह अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ इसी प्रकार बुद्ध अपने जीवन में सम्पूर्णता को प्राप्त हुए।

प्रश्न 52.
साँची के प्रतीक लोक-परम्पराओं से जुड़े थे; संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में प्राप्त उत्कीर्णन में लोक परम्परा से जुड़े हुए बहुत से प्रतीकों का चिशंकन है। मूर्तियों को आकर्षक और सुन्दर दर्शाने हेतु विविध प्रतीकों जैसे हाथी, घोड़ा, बन्दर, गाय, बैल आदि जानवरों का उत्कीर्णन जीवन्त रूप से किया गया है। हाथी को शक्ति तथा ज्ञान का प्रतीक कहा गया है। इसी प्रकार एक स्वी तोरणद्वार के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही है। यह शालभंजिका की मूर्ति है, लोक परम्परा में शाल भंजिका को शुभ प्रतीक माना जाता है। वामदल और हाथियों के बीच एक महिला को एक अन्य मूर्ति में दिखाया गया है।

हाथी उस महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं; जैसे उसका अभिषेक कर रहे हैं। इस महिला को बुद्ध की माँ माना जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह महिला सौभाग्य की देवी गजलक्ष्मी है। इतिहासकारों का इस सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण है। सर्पों का उत्कीर्णन भी कई स्तम्भों पर पाया जाता है। इस प्रतीक को भी लोक परम्परा से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्रारम्भिक इतिहासकार जेम्स फर्गुसन के अनुसार साँची में वृक्षों और सर्पों की पूजा की जाती थी। वे बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञ थे, उन्होंने उत्कीर्णित मूर्तियों का अध्ययन करके अपना यह निष्कर्ष निकाला था।

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प्रश्न 53.
अतीत से प्राप्त चित्रों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बने भित्ति चित्र सम्पूर्ण विश्व के आकर्षण का केन्द्र है। चित्रकारी भी मूर्तिकला की भाँति सम्प्रेषण का एक माध्यम है। जातक की कथाओं का चित्रण बहुत ही सुन्दर ढंग से अजन्ता के चित्रों में दिखाया गया है। इन कथाओं में राजदरबार का चित्रण, शोभा यात्राएं, त्यौहारों का उत्सव और कार्य करते हुए पुरुषों और महिलाओं का चित्रांकन है। यह चित्र अत्यन्त ही सुन्दर और सजीव है हर्षोल्लास, उमंग, प्रसन्नता, प्रेम की भावनाओं की अभिव्यक्ति इतनी कुशलता से और जीवन्तता से की गई है कि यह लगता है कि चित्र बोल पड़ेंगे। कलाकारों ने इन्हें त्रिविम रूप से चित्रित किया गया है; इसके लिए आभा भेद तकनीक का प्रयोग करके इन्हें सजीवता प्रदान की है।

प्रश्न 54.
हीनयान तथा महायान में मुख्य अन्तरों को समझाइए।
उत्तर:
हीनयान तथा महायान में अनेक मूलभूत अन्तर हैं। इनमें से प्रमुख अन्तरों का विवरण निम्नलिखित है –

  1. हीनयान प्राचीन, रूढ़िवादी तथा मूल मत है जबकि महायान बौद्ध मत का संशोधित तथा सरल रूप है जो चतुर्थ बौद्ध संगीति में प्रकाश में आया।
  2. हीनयानी बुद्ध की स्तुति प्रतीकों के माध्यम से करते हैं वहीं महायानी मूर्ति पूजा में विश्वास करते हैं।
  3. हीनयान मत रूढ़िवादी है जबकि महायान अत्यधिक सरल मत है।
  4. हीनयान में बुद्ध की स्तुति की जाती है; वहीं महायान में बुद्ध के साथ-साथ बोधिसत्वों की आराधना भी की जाती है।
  5. हीनयान ज्ञान को महत्त्व देता है जबकि महायान करुणा को।

प्रश्न 55.
प्राचीन भारतीय कला की पृष्ठभूमि और महत्त्व को 19वीं सदी के यूरोपीय विद्वान प्रारम्भ में क्यों नहीं समझ सके ? उनकी समस्या का निराकरण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की धार्मिक आस्थाओं, धारणाओं, परम्पराओं आदि में अन्तर होते हैं उनके सोचने और समझने के ढंग और प्रतिमान अलग-अलग होते हैं। इसलिए यूरोपीय विद्वानों ने जब प्राचीन भारतीय मूर्तिकला की यह मूर्तियाँ जो कई हाथों, कई सिरों या अर्द्ध मानव के रूप में निर्मित थीं देखीं तो उन्हें यह विचित्र प्रतीत हुई। आराध्य देवों के यह रूप उनकी कल्पना से परे थे। फिर भी इन आरम्भिक यूरोपीय विद्वानों ने इन विभिन्न रूपों वाली आराध्य देवों की मूर्तियों को समझने हेतु प्रयास किए।

यूरोपीय विद्वानों ने प्राचीन यूनानी कला परम्परा की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर इन मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना की तथा उन्हें समझने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्होंने बौद्ध धर्म की कला परम्परा, बौद्ध धर्म की बुद्ध और बोधसत्व की मूर्तियाँ देखीं तो वे बहुत प्रोत्साहित हुए। इन मूर्तियों की उत्कृष्टता को देखकर हैरान रह गए, उन्हें लगा ये मूर्तियाँ यूनानी प्रतिमानों के अनुरूप हैं। इस प्रकार इस मूर्तिकला की अनजानी व अपरिचित पृष्ठभूमि और इसके अपरिचित महत्त्व को उन्होंने परिचित यूनानी मूर्तिकला के आधार पर समझने का प्रयास किया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं का योगदान साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं के योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) साँधी के स्तूप के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान देना- भोपाल की शासिकाओं- शाहजहाँ बेगम तथा उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम की पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण में बड़ी रुचि थी। उन्होंने साँची के विश्व प्रसिद्ध स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया।

(2) जान मार्शल द्वारा रचित पुस्तक के प्रकाशन के लिए अनुदान देना जान मार्शल ने साँची स्तूप पर एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने सुल्तानजहाँ की पुरातात्विक स्थलों के प्रति रुचि को देखते हुए अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ सुल्तानजहाँ बेगम को समर्पित किया। सुल्तानजहाँ बेगम ने इस ग्रन्थ के विभिन्न खण्डों के प्रकाशन हेतु धन का अनुदान दिया।

(3) संग्रहालय और अतिथिशाला का निर्माण करवाया सुल्तानजहाँ बेगम ने स्तूप स्थल पर एक संग्रहालय तथा अतिथिशाला के निर्माण के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया।

(4) साँची के स्तूप को भोपाल राज्य में सुरक्षित रखना – उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय लोगों में साँची के स्तूप को लेकर बड़ी रुचि थी। प्रारम्भ में फ्रांसीसियों ने सबसे अच्छी दशा में बचे साँची के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने हेतु शाहजहाँ बेगम से फ्रांस ले जाने की अनुमति माँगी।

इसके बाद अंग्रेजों ने भी साँची के पूर्वी तोरणद्वार को इंग्लैण्ड ले जाने की अनुमति माँगी। परन्तु शाहजहाँ बेगम ने उन्हें साँची के स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियाँ देकर सन्तुष्ट कर दिया। इस प्रकार शाहजहाँ बेगम के प्रयासों के परिणामस्वरूप साँची के स्तूप की मूलकृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही सुरक्षित रही। इस प्रकार यह स्तूप समूह बना रहा है तो इसके पीछे भोपाल की बेगमों के विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका रही है।

प्रश्न 2.
बौद्ध ग्रन्थ किस प्रकार तैयार और संरक्षित किए जाते थे?
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथों को तैयार एवं संरक्षित करना बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध अन्य शिक्षकों की भाँति चर्चा और वार्तालाप करते हुए मौखिक शिक्षा देते थे। स्त्री, पुरुष और बच्चे इन प्रवचनों को सुनते थे और इन पर चर्चा करते थे। बुद्ध की शिक्षाओं को उनके जीवनकाल में लिखा नहीं गया। उनकी मृत्यु के बाद पांचवीं चौथी सदी ई. पूर्व में उनके शिष्यों ने वरिष्ठ श्रमणों की एक सभा वैशाली में आयोजित की। वहाँ पर ही उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया। इन संग्रहों को ‘त्रिपिटक’ कहा जाता था।

(1) त्रिपिटक त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है-भिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने के लिए ‘तीन टोकरियाँ’ त्रिपिटक तीन हैं-

  • विनयपिटक – इसमें संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए आचरण सम्बन्धी नियमों का संग्रह है।
  • सुत्तपिटक – इसमें बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है।
  • अभिधम्मपिटक इसमें बौद्धधर्म के दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन है।

प्रत्येक पिटक के अन्दर कई ग्रन्थ होते थे-बाद के युगों में बौद्ध विद्वानों ने इन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखीं।

(2) दीपवंश तथा महावंश-जब बौद्ध धर्म का श्रीलंका जैसे नए क्षेत्रों में प्रसार हुआ, तब दीपवंश ( द्वीप का इतिहास) तथा महावंश (महान इतिहास) जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास को लिखा गया। इनमें से कई रचनाओं में बुद्ध की जीवनी लिखी गई है। अधिकांश पुराने ग्रन्थ पालि में हैं। कालान्तर में संस्कृत में भी ग्रन्थों की रचना की गई।

(3) बौद्ध ग्रन्थों का संरक्षण जब बौद्ध धर्म का पूर्वी एशिया में प्रसार हुआ, तब फा-शिएन और श्वैन-त्सांग जैसे तीर्थयात्री बौद्धग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए थे। वे अनेक बौद्ध ग्रन्थ अपने देश ले गए जहाँ विद्वानों ने इनका अनुवाद किया। भारत के बौद्ध शिक्षक भी दूर-दराज के देशों में गए। बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए वे अनेक ग्रन्थ भी अपने साथ ले गए। कई शताब्दियों तक ये पांडुलिपियाँ एशिया के भिन्न-भिन्न देशों में स्थित बौद्ध- विहारों में संरक्षित थीं। पालि, संस्कृत, चीनी और तिब्बती भाषाओं में लिखे इन ग्रन्थों से आधुनिक अनुवाद तैयार किए गए हैं।

प्रश्न 3.
नियतिवादियों एवं भौतिकवादियों के विचारों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
नियतिवादियों के विचार मक्खलिगोसाल नामक व्यक्ति नियतिवादियों के प्रमुख दार्शनिक थे। नियतिवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित थे
(1) सब कुछ पूर्व निर्धारित है नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। स्न्नों संका में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता। जैसे धागे का गोला फेंक देने पर लुढ़कते लुढ़कते अपनी पूरी लम्बाई तक खुलता जाता है, उसी प्रकार मूर्ख और विद्वान दोनों ही पूर्व निर्धारित मार्ग से होते हुए दुःखों का निदान करेंगे।

(2) कर्म – मुक्ति की निरर्थक आशा करना- नियतिवादियों का कहना है कि बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि वे अपने सद्गुणों एवं तपस्या के बल पर कर्म मुक्ति प्राप्त करेंगे। इसी प्रकार मूर्ख लोग उन्हीं कार्यों को सम्पन्न करके शनैः-शनैः कर्म मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं। परन्तु उनका यह सोचना गलत है तथा दोनों में से कोई भी कुछ नहीं कर सकता। इसलिए लोगों के भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे उन्हें भोगना ही पड़ेगा।

भौतिकवादियों के विचार अजीत केसकंबलिन नामक व्यक्ति भौतिकवादियों के प्रमुख दार्शनिक थे भौतिकवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित है-
(1) संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई वस्तु नहीं होती। इस दुनिया या दूसरी दुनिया जैसी किसी वस्तु का कोई अस्तित्व नहीं होता।
(2) मनुष्य चार तत्त्वों से बना होता है जब उसकी मृत्यु होती है, तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में, जल वाला अंश जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा साँस का अंश वायु में वापस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अन्तरिक्ष का भाग बन जाती हैं।
(3) दान देने की बात मूर्खों का सिद्धान्त है, यह सिद्धान्त असत्य है। कुछ मूर्ख एवं विद्वान दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कोई नहीं बचता।

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प्रश्न 4.
महात्मा बुद्ध की जीवनी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की जीवनी महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक और प्रवर्तक थे। बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक वन में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य गणराज्य के प्रधान थे। इनकी माता का नाम महामाया (मायादेवी) था। बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नामक एक सुन्दर कन्या से किया गया। कुछ समय बाद उनके यहाँ पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम राहुल रखा गया। परन्तु सिद्धार्थ की संसार से विरक्ति बढ़ती गई। महाभिनिष्क्रमण-नगर-दर्शन हेतु विभिन्न अवसरों पर बाहर जाते हुए सिद्धार्थ ने एक वृद्ध व्यक्ति, रोगी, मृतक एवं संन्यासी को देखा जिन्हें देखकर उन्हें संसार से विरक्ति हो गई। अन्त में 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपनी पत्नी, अपने पुत्र तथा राजकीय वैभव को छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

यह घटना ‘महाभिनिष्क्रमण’ के नाम से प्रसिद्ध है। ज्ञान की प्राप्ति प्रारम्भ में सिद्धार्थ ने वैशाली के ब्राह्मण विद्वान आलारकालाम तथा राजगृह के विद्वान् उद्रक रामपुत्त से ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया, परन्तु उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई। इसके बाद वे उरुवेल के जंगल में अपने पाँच ब्राह्मण साथियों के साथ कठोर तपस्या करने लगे, परन्तु यहाँ भी उनके हृदय को शान्ति नहीं मिली। उनका शरीर सूख सूख कर काँटा हो गया, परन्तु उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अतः उन्होंने भोजन आदि ग्रहण करना शुरू कर दिया जिससे नाराज होकर उनके पाँचों साथी सिद्धार्थ का साथ छोड़कर वहाँ से चले गए।

अन्त में सिद्धार्थ एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठ गए। सात दिन अखण्ड समाधि में लीन रहने के बाद वैशाखी पूर्णिमा की रात को उन्हें ‘ज्ञान’ प्राप्त हुआ, उन्हें सत्य के दर्शन हुए और वे ‘बुद्ध’ कहलाने लगे। इस घटना को ‘सम्बोधि’ कहा जाता है। जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ, उसे ‘बोधिवृक्ष’ कहा जाने लगा और गया ‘बोधगया’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धर्म का प्रचार ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् बुद्ध ने सारनाथ पहुँचकर उन पाँच ब्राह्मणों को उपदेश दिया, जो उन्हें छोड़कर चले आए थे। ये पाँचों ब्राह्मण बुद्ध के अनुयायी बन गए। इस घटना को ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहते हैं। इसके बाद बुद्ध ने काशी, कोशल, मगध, वज्जि प्रदेश, मल्ल, वत्स आदि में अपने धर्म की शिक्षाओं का प्रचार किया।

उनके अनुयायियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके अनुयायियों में अनेक राजा, व्यापारी, ब्राह्मण, विद्वान, सामान्यजन कर्मकार, दास, शिल्पी आदि सम्मिलित थे। महापरिनिर्वाण लगभग 45 वर्ष तक बुद्ध अपने धर्म का प्रचार करते रहे। अन्त में 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में बुद्ध का देहान्त हो गया। बौद्ध परम्परा के अनुसार यह घटना ‘महापरिनिर्वाण’ कहलाती है।

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प्रश्न 5.
बुद्ध की शिक्षाओं का विवेचन कीजिए। अथवा
उत्तर:
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। बुद्ध की शिक्षाएँ (बौद्ध धर्म के सिद्धान्त ) बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं –
(1) विश्व अनित्य है – बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और निरन्तर परिवर्तित हो रहा है। यह आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।
(2) मध्यम मार्ग – बुद्ध का कहना था कि न तो मनुष्य को घोर तपस्या करनी चाहिए, न ही अधिक भोग- विलास में लिप्त रहना चाहिए।
(3) भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक- बौद्ध धर्म की प्रारम्भिक परम्पराओं में भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक था।
(4) समाज का निर्माण मनुष्यों द्वारा किया जाना- बुद्ध मानते थे कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने
(5) व्यक्तिगत प्रवास पर बल बुद्ध के अनुसार व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था।
(6) व्यक्ति केन्द्रित हस्तक्षेप तथा सम्यक् कर्म पर बल बुद्ध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म-ज्ञान और निर्वाण के लिए आत्मकेन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक् कर्म पर बल दिया।
(7) निर्वाण बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण का अर्थ था अहं और इच्छा का समाप्त हो जाना जिससे गृह त्याग करने वालों के दुःख के चक्र का अन्त हो सकता था।
(8) चार आर्य सत्य बौद्ध धर्म के अनुसार चार था। आर्य सत्य निम्नलिखित हैं –

  • दुःख – यह संसार दुःखमय है। संसार में सर्वत्र दुःख ही दुःख है।
  • दुःख समुदय-दुःख और कष्टों का कारण तृष्णा है।
  • दु:ख निरोध- तृष्णा नष्ट कर देने से दुःखों से. मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
  • दु:ख निरोध का मार्ग-तृष्णा के विनाश के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।

(9) अष्टांगिक मार्ग-अष्टांगिक मार्ग की मुख्य आठ बातें निम्नलिखित हैं –

  • सम्यक् दृष्टि (सत्य, विश्वास या दृष्टिकोण)
  • सम्यक् संकल्प (सत्य संकल्प या विचार)
  • सम्यक् वाणी (मधुर एवं सत्य वचन बोलना )
  • सम्यक् कर्मान्त (सदाचारपूर्ण आचरण करना)
  • सम्यक् आजीव (सदाचारपूर्ण साधनों से जीविका का निर्वाह करना)
  • सम्यक् व्यायाम ( निरन्तर सद्प्रयास )
  • सम्यक् स्मृति (दुर्बलताओं की निरन्तर स्मृति)
  • सम्यक् समाधि (चित्त की एकाग्रता)।

(10) स्वावलम्बन पर बल बुद्ध का कहना था कि मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।

प्रश्न 6.
बौद्ध संघ पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
बुद्ध के अनुयायियों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बौद्ध संघ (बुद्ध के अनुयायी ) महात्मा बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई। धीरे-धीरे उनके शिष्यों का दल तैयार हो गया। उन्होंने अपने शिष्यों के लिए बौद्ध संघ की स्थापना की संघ ऐसे बौद्ध भिक्षुओं की एक संस्था थी, जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये बौद्ध भिक्षु एक सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं होता था। वे दिन में एक बार भोजन करते थे। इसके लिए वे उपासकों से भोजन दान प्राप्त करने के लिए एक कटोरा रखते थे। चूंकि वे दान पर निर्भर थे, इसलिए उन्हें भिक्षु कहा जाता था।

(1) महिलाओं को संघ में सम्मिलित करना प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे परन्तु बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई। बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी। संघ में सम्मिलित होने वाली कई स्त्रिय धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। कालान्तर में ये धेरी बनीं, जिसका अर्थ है-ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।

(2) बुद्ध के अनुयायियों का विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित होना बुद्ध के अनुयायी विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थे। इनमें राजा, धनवान, गृहपति और सामान्य जन कर्मकार, दास, शिल्पी सभी सम्मिलित थे। संघ में सम्मिलित होने वाले सभी भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्षु बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।

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(3) संघ की संचालन पद्धति संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। इसके अन्तर्गत लोग वार्तालाप के द्वारा एकमत होने का प्रयास करते थे एकमत न होने पर मतदान द्वारा निर्णय लिया जाता था।

प्रश्न 7.
स्तूपों की खोज किस प्रकार हुई ? अमरावती तथा साँची की नियति बताइये।
अथवा
स्तूपों की खोज किस प्रकार हुई ? साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
स्तूपों की खोज बौद्ध कला में स्तूपों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साँची और अमरावती के स्तूप तत्कालीन वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
(1) साँची के स्तूप की खोज-साँची का स्तूप एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है जो मुकुट जैसा दिखाई देता है 1818 ई. में साँची की खोज हुई।

(2) अमरावती के स्तूप की खोज- 1796 ई. में स्थानीय राजा एक मन्दिर का निर्माण करना चाहते थे। उन्हें अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। उन्होंने इसके पत्थरों का प्रयोग करने का निश्चय किया। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी को इस क्षेत्र से गुजरने का अवसर मिला। यद्यपि उन्होंने यहाँ कई मूर्तियाँ प्राप्त की और उनका विस्तृत चिशंकन भी किया, परन्तु उनकी रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हुई।

(3) गुन्टूर के कमिश्नर द्वारा अमरावती की यात्रा करना- 1854 ई. में गुन्टूर (आन्ध्र प्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। उन्होंने कई मूर्तियों तथा उत्कीर्ण पत्थरों को एकत्रित किया और वे उन्हें मद्रास ले गए।

(4) अमरावती के स्तूप के उत्कीर्ण पत्थरों को विभिन्न स्थानों पर ले जाना-1850 के दशक में अमरावती के स्तूप के उत्कीर्ण पत्थरों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर ले जाया गया। कुछ उत्कीर्ण पत्थर कोलकाता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल पहुंचे, तो कुछ पत्थर मद्रास के इण्डिया ऑफिस पहुँचे। कुछ पत्थर तो लन्दन तक पहुँच गए। कई अंग्रेज अधिकारियों ने अपने बागों में अमरावती की मूर्तियाँ स्थापित कीं।

(5) साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया – सम्भवतः अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी तब तक विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज की जगह पर ही संरक्षित करना बड़ा महत्त्वपूर्ण था। 1818 में सांची की खोज हुई उस समय तक भी इस स्तूप के तीन तोरणद्वार खड़े थे।

चौथा तोरण द्वार वहीं पर गिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त टीला भी अच्छी दशा में था। उस समय कुछ विदेशियों ने यह सुझाव दिन था कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। दूसरी ओर अमरावती का महाचैत्य अब केवल एक छोटा सा टीला है, जिसका सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो चुका है।

प्रश्न 8.
पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताएँ पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताओं का वर्णन अग्रानुसार
(1) पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय पौराणिक हिन्दू धर्म में भी मुक्तिदाता की कल्पना विकसित हो रही थी। इस पौराणिक हिन्दू धर्म में दो परम्पराएँ प्रमुख थीं –

  • वैष्णववाद तथा
  • शैववाद वैष्णववाद में विष्णु को सबसे प्रमुख देवता माना जाता है और शैववाद में शिव परमेश्वर माने गए हैं।

(2) अवतारवाद – वैष्णववाद में कई अवतारों के चारों ओर पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई इस परम्परा के अन्दर दस अवतारों की कल्पना की गई है। लोगों में यह मान्यता प्रचलित थी कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अराजकता, अव्यवस्था और विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी, तब संसार की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे।

(3) अवतारों को मूर्तियों में दिखाना- कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दर्शाया गया है।

(4) पुराणों की कहानियाँ – इन मूर्तियों के उत्कीर्णन का अर्थ समझने के लिए इतिहासकारों को इनसे जुड़ी हुई कहानियों से परिचित होना पड़ता है। कई कहानियाँ प्रथम सहस्राब्दी के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों में पाई जाती हैं। इनमें देवी-देवताओं की भी कहानियाँ हैं। प्रायः इन्हें संस्कृत श्लोकों में लिखा गया था। इन्हें ऊंची आवाज में पढ़ा जाता था जिसे कोई भी सुन सकता था।

यद्यपि महिलाओं और शूद्रों (हरिजनों) को वैदिक साहित्य पढ़ने – सुनने की अनुमति नहीं थी. परन्तु वे पुराणों को सुन सकते थे। पुराणों की अधिकांश कहानियाँ लोगों के आपसी मेल- मिलाप से विकसित हुई। पुजारी, व्यापारी और सामान्य स्त्री-पुरुष एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते हुए, अपने विश्वासों और विचारों का आदान-प्रदान करते थे। उदाहरण के लिए, वासुदेव कृष्ण मथुरा क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण देवता थे। कई शताब्दियों के दौरान उनकी पूजा देश के दूसरे प्रदेशों में भी प्रचलित हो गई।

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प्रश्न 9.
अतीत की समृद्ध दृश्य परम्पराओं को समझने के लिए यूरोपीय विद्वानों द्वारा किये गये प्रयासों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अतीत की समृद्ध दृश्य-परम्पराओं को समझने के प्रयास अतीत की समृद्ध दृश्य पराम्पराएँ ईंट और पत्थर से निर्मित स्थापत्य कला, मूर्तिकला और चित्रकला के रूप में हमारे सामने आई हैं। इनमें से कुछ कलाकृतियाँ नष्ट हो गई हैं। परन्तु जो बची हैं, और संरक्षित हैं वे हमें इन सुन्दर कलाकृतियों के निर्माताओं – कलाकारों, मूर्तिकारों, राजगीरों और वास्तुकारों के दृष्टिकोण से परिचित कराती हैं। परन्तु उनके दृष्टिकोण को समझना सरल नहीं है। हम कभी भी यह बात पूर्ण रूप से नहीं समझ सकते कि इन प्रतिकृतियों को देखने और पूजने वाले लोगों के लिए इनका क्या महत्त्व था।

यूरोपीय विद्वानों के प्रयास – उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वानों ने जब देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखीं तो वे उनकी पृष्ठभूमि और महत्त्व को नहीं समझ पाए। कई सिरों, हाथों वाली या मनुष्य और जानवर के रूपों को मिलाकर बनाई गई मूर्तियाँ उन्हें खराब लगती थीं और कई बार उन्हें इन मूर्तियों से घृणा होने लगती थी। प्राचीन यूनान की कला परम्परा से तुलना करना- इन प्रारम्भिक यूरोपीय विद्वानों ने ऐसी विचित्र मूर्तियों का अभिप्राय समझने के लिए उनकी तुलना प्राचीन यूनान की कला परम्परा से की। ये विद्वान् यूनानी परम्परा से परिचित थे।

यद्यपि वे प्रारम्भिक भारतीय मूर्तिकला को यूनान की कला से निम्न स्तर का मानते थे, फिर भी वे बुद्ध और बोधिसत्त की मूर्तियों की खोज से काफी प्रोत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी आदर्शों से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ अधिकतर उत्तर-पश्चिम के नगरों तक्षशिला और पेशावर में मिली थीं। इन प्रदेशों में ईसा से दो सौ वर्ष पहले भारतीय यूनानी शासकों ने अपने राज्य स्थापित किए थे। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती- जुलती थीं। चूंकि ये विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन्हें भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।

कलाकृतियों के महत्त्व को समझने के लिए लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करना मूर्तियों के महत्त्व और संदर्भ को समझने के लिए कला के इतिहासकार प्राय: लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करते हैं भारतीय मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना कर निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा यह तरीका अधिक अच्छा है। परन्तु यह बहुत सरल तरीका नहीं है।

कला – इतिहासकारों व पुराणों में इस कथा को पहचानने के लिए काफी खोजबीन की है। परन्तु उनमें काफी मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस कथा में गंगा नदी के स्वर्ग से अवतरण का चित्रण है। उनका कहना है कि चट्टान की सतह के बीच प्राकृतिक दरार शायद नदी को दर्शा रही है। यह कथा महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित है। परन्तु अन्य विद्वानों की मान्यता है कि यहाँ पर दिव्यास्य प्राप्त करने के लिए महाभारत में वर्णित अर्जुन की तपस्या का चित्रण है। उनका कहना है कि मूर्तियों के बीच एक साधु की मूर्ति केन्द्र में रखी गई है।

प्रश्न 10.
लौकिक सुखों से आगे, वर्धमान महावीर की शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्धमान महावीर की शिक्षाएँ –
(1) सारा संसार संजीव है-सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यह जैन धर्म की सबसे प्रमुख अवधारणा है। वर्धमान महावीर के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में कुछ भी निर्जीव नहीं है। यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान, जल में भी जीवन होता है। यह भगवान महावीर की गहन अन्तर्दृष्टि थी।

(2) अहिंसा-अहिंसा का सिद्धान्त जैन दर्शन का केन्द्रबिन्दु है। जीवों के प्रति दयाभाव रखना चाहिए, हमें किसी भी जानवर, मनुष्य, पेड़-पौधे, यहाँ तक कि कीट- पतंगों को भी नहीं मारना चाहिए। महावीर के अनुसार आत्मा केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि पशुओं, कीड़ों, पेड़-पौधों आदि में भी होती हैं।

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(3) जीवन चक्र और कर्मवाद जैन दर्शन के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्मानुसार निर्धारित होता है। ‘कर्मों के अनुरूप ही पुनर्जन्म होता है।

(4) तप आवागमन के बन्धन से छुटकारा पाने का एक ही मार्ग त्याग और तपस्या है। मुक्ति का प्रयास संसार को त्याग कर विहारों में निवास कर तपस्या द्वारा ही फलीभूत होगा।

(5) पंच महाव्रत- जैन धर्म में पंचमहाव्रतों का सिद्धान्त दिया गया है; जैसे कि अहिंसा, अमृषा, अस्तेय, अपरिग्रह, इन्द्रिय निग्रह।

(6) त्रि-रत्न-पंचमहाव्रत के अतिरिक्त वर्धमान महावीर ने निर्वाण प्राप्ति हेतु त्रिरत्न नामक तीन सिद्धान्तों- सत्य, विश्वास, सत्यज्ञान और सत्यकार्य को अपनाने की शिक्षा भी दी है।

(7) ईश्वर की अवधारणा से मुक्ति वर्धमान महावीर ईश्वर के अस्तित्व में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे। वह यह नहीं मानते थे कि ईश्वर ने संसार की रचना की है। जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखता है।

(8) वेदों में विश्वास जैन धर्म को मानने वाले वेदों को ईश्वरी ज्ञान नहीं मानते वे वेदों में मुक्ति हेतु दिए साधनों यह जप, तप, हवन आदि को व्यर्थ समझते हैं।

(9) जाति पाँति में अविश्वास जैन धर्म के अनुयायी जाति पाँति में विश्वास नहीं करते हैं।

(10) स्याद्वाद – जैन धर्म में स्याद्वाद प्रमुख है; कोई भी मनुष्य सम्पूर्ण सत्य के ज्ञान का दावा नहीं कर सकता। सत्यं बहुत व्यापक है, इसके अनेक पक्ष हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार मनुष्य को सत्य का आंशिक ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 11.
बौद्ध कैसे की जाती थी? महात्मा धर्म का लेखन और इनकी सुरक्षा
उत्तर:
बुद्ध तथा उनके अनुयायी लोगों में वार्तालाप व वाद-विवाद द्वारा मौखिक रूप से अपनी शिक्षाओं का प्रसार करते थे। महात्मा बुद्ध के जीवन काल में वक्तव्यों का लेखन नहीं किया गया। महात्मा बुद्ध के देह त्याग के उपरान्त पाँचवीं चौथी सदी ईसा पूर्व में उनके शिष्यों ने वैशाली में एक सभा का आयोजन किया। शिक्षाओं का संकलन पुस्तकों के रूप में किया गया; जिन्हें त्रिपिटक, जिसका अर्थ है विभिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने की तीन टोकरियाँ कहा गया। तदुपरान्त बौद्ध धर्म के विद्वानों द्वारा इन पर टिप्पणियाँ लिखी गयीं।
त्रिपिटक त्रिपिटक में तीन पिटक सम्मिलित हैं –

(1) विनयपिटक विनयपिटक में भिक्षु और भिक्षुणी जो कि बौद्ध मठों या संघों में रहते थे उनके लिए आचार संहिता थी। उन्हें किस प्रकार का आचरण करना चाहिए। इस सम्बन्ध में विनयपिटक में व्यापक नियम दिये गये हैं।

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(2) सुत्तपिटक – सुतपिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ दी गई हैं, जो उन्होंने समाज के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखते हुए दी हैं।

(3) अभिधम्मपिटक अभिधम्मपिटक में दर्शनशास्त्र से सम्बन्धित विषयों की गहन व्याख्याएँ सम्मिलित हैं।
(i) नए ग्रन्थ धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का विस्तार श्रीलंका तक फैल गया तो नए ग्रन्थों जैसे दीपवंश और महावंश नामक ग्रन्थों की रचना की गई। इन ग्रन्थों में क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित बौद्ध साहित्य प्राप्त होता है। कई रचनाओं में महात्मा बुद्ध की जीवनी का भी समावेश है।
(ii) ग्रन्थों की सुरक्षा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार जब पूर्व एशिया तक फैल गया तो इससे आकर्षित होकर फा-शिएन और श्वेन त्सांग नामक चीनी तीर्थयात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए।

वे इनमें से कई ग्रन्थों को अपने साथ चीन ले गए और वहाँ इसका अनुवाद चीन की भाषा में किया। भारतीय बौद्ध धर्म के प्रचारक भी देश-विदेश में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए कई ग्रन्थों को साथ ले गए। एशिया में फैले विभिन्न बौद्ध विहारों में यह पाण्डुलिपियाँ वर्षों तक संरक्षित रहीं। बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र तिब्बत के ल्हासा मठ में बौद्ध धर्म की पालि संस्कृत, चीनी, तिब्बती भाषा की तमाम पाण्डुलिपियाँ आज भी संरक्षित हैं।

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