Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर
Jharkhand Board Class 12 Political Science एक दल के प्रभुत्व का दौर InText Questions and Answers
पृष्ठ 27
प्रश्न 1.
हमारे लोकतन्त्र में ही ऐसी कौन-सी खूबी है? आखिर देर-सवेर हर देश ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपना ही लिया है न?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रवाद की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए दुनिया के अन्य राष्ट्रों (जो उपनिवेशवाद के चंगुल से आजाद हुए) ने भी देर-सवेर लोकतान्त्रिक ढाँचे को अपनाया। लेकिन हमारे लोकतन्त्र की खूबी यह थी कि हमारे स्वतन्त्रता संग्राम की गहरी प्रतिबद्धता लोकतन्त्र के साथ थी। हमारे नेता लोकतन्त्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे। भारत में सन् 1951-52 के आम चुनाव लोकतंत्र के लिए परीक्षा की घड़ी थी। इस समय तक लोकतंत्र केवल धनी देशों में ही कायम था। लेकिन भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतन्त्र के सबसे बड़े प्रयोग को जन्म दिया। इससे यह सिद्ध हो गया कि विश्व में कहीं भी लोकतन्त्र पर अमल किया जा सकता है।
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प्रश्न 2.
क्या आप पृष्ठ 31 में दिए गए मानचित्र में उन जगहों को पहचान सकते हैं जहाँ काँग्रेस बहुत मजबूत थी? किन प्रान्तों में दूसरी पार्टियों को ज्यादातर सीटें मिलीं?
उत्तर:
- मानचित्र के अनुसार 1952 से 1967 के दौरान काँग्रेस शासित राज्य थे- पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम, मणिपुर, त्रिपुरा, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, मैसूर, पाण्डिचेरी, मद्रास आदि।
- जिन राज्यों में अन्य दलों को अधिकांश सीटें प्राप्त हुईं, वे थे – केरल में केरल डेमोक्रेटिक लेफ्ट फ्रंट (1957- 1959) तथा जम्मू और कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस पार्टी।
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प्रश्न 3.
पहले हमने एक ही पार्टी के भीतर गठबंधन देखा और अब पार्टियों के बीच गठबन्धन होता देख रहे हैं। क्या इसका मतलब यह हुआ कि गठबन्धन सरकार 1952 से ही चल रही है?
उत्तर:
भारत में ‘पार्टी में गठबन्धन’ और ‘पार्टियों का गठबन्धन’ का सिलसिला 1952 से ही चला आ रहा है लेकिन इस गठबन्धन के स्वरूप एवं प्रकृति में व्यापक अन्तर है। आजादी के समय एक पार्टी अर्थात् कांग्रेस के अन्दर गठबन्धन था। कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर प्रकार की विचारधाराओं के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह हित और राजनीतिक दल आ जुटते थे और राजनीतिक कार्यों में भाग लेते थे। कांग्रेस पार्टी ने इन विभिन्न वर्गों, समुदायों एवं विचारधारा के लोगों में आम सहमति बनाये रखी। लेकिन 1967 के पश्चात् अनेक राजनीतिक दलों का विकास हुआ और गठबन्धन की राजनीति शुरू हुई जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के समर्थन के आधार पर सरकारों का गठन किया जाने लगा। लेकिन यह गठबन्धन निजी स्वार्थी व शर्तों पर आधारित होने के कारण परस्पर सहमति बनाए नहीं रख पा रहे हैं।
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प्रश्न 1.
सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें:
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ ……………………. के लिए भी चुनाव कराए गए थे ( भारत के राष्ट्रपति पद / राज्य विधानसभा / राज्य सभा / प्रधानमंत्री )
उत्तर:
राज्य विधानसभा
(ख) ……………………… “लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही। (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी / भारतीय जनता पार्टी)
उत्तर:
भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ग) ………………………. स्वतन्त्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धान्त था। बैठाएँ (कामगार तबके का हित/ रियासतों का बचाव / राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था / संघ के भीतर राज्यों की स्वायत्तता )
उत्तर:
राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था।
प्रश्न 2.
यहाँ दो सूचियाँ दी गई हैं। पहले में नेताओं के नाम दर्ज हैं और दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल
(क) एस. ए. डांगे | (i) भारतीय जनसंघ |
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी | (ii) स्वतन्त्र पार्टी |
(ग) मीनू मसानी | (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
(घ) अशोक मेहता | (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
उत्तर:
(क) एस. ए. डांगे | (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी | (i) भारतीय जनसंघ |
(ग) मीनू मसानी | (ii) स्वतन्त्र पार्टी |
(घ) अशोक मेहता | (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
प्रश्न 3.
एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहाँ चार बयान लिखे गए हैं। प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ-
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी प्रभुत्व का कारण था।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पार्टी प्रभुत्व का सम्बन्ध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पार्टी – प्रभुत्व से देश में लोकतान्त्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत।
प्रश्न 4.
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती ? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर:
यदि पहले आम चुनावों के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी या जनसंघ की सरकार बनती तो विदेश नीति के मामलों में इस सरकार से अलग नीति अपनायी गयी होती। दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों में तीन प्रमुख अन्तर निम्नलिखित होते:
भारतीय जनसंघ | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
(1) जनसंघ संभवतः असंलग्नता की विदेश नीति को न अपनाकर अमरीकी गुट के साथ मिलकर चलती। | (1) कम्युनिस्ट पार्टी असंलग्नता की नीति को अपनाते हुए सोवियत गुट के साथ मिलकर विदेश नीति का संचालन करती। |
(2) जनसंघ अंग्रेजी भाषा को हटाकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने में महती भूमिका निभाती। | (2) कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रभाषा के संदर्भ में कांग्रेस की नीति का ही समर्थन करती। |
(3) जनसंघ कश्मीर में 370 का प्रयोग नहीं करती। इस तरह कश्मीर को भारत में अन्य राज्यों की तरह विलय करती। | (3) कम्युनिस्ट पार्टी इस प्रकार का कोई प्रयास नहीं करती। |
प्रश्न 5.
कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी ? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
आजादी के पूर्व से ही कांग्रेस ने परस्पर विरोधी हितों के कई समूहों को एक साथ जोड़ने का कार्य किया और आजादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल अख्तियार कर चुकी थी। यथा
- इसमें विभिन्न वर्ग, जाति, भाषा तथा अन्य हितों से जुड़े हुए व्यक्ति इस गठबन्धन से जुड़ चुके थे।
- कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी । क्योंकि इसने अपने अंदर क्रान्तिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर विचारधारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया।
- सन् 1924 से 1942 तक भारतीय साम्यवादी दल कांग्रेस के एक गुट के रूप में रहकर ही कार्य करता था।
- कांग्रेस एक ऐसा मंच था जिस पर अनेक हित समूह, दबाव समूह और राजनीतिक दल आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। स्वतंत्रता से पहले अनेक संगठन और राजनीतिक दलों को कांग्रेस में रहने की अनुमति थी।
- कांग्रेस ने सोशलिस्ट पार्टी, जिसका अलग संविधान व संगठन था, को भी कांग्रेस के एक गुट के रूप में बनाए रखा। इस प्रकार कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी।
प्रश्न 6.
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?
उत्तर:
यह कथन सत्य है, क्योंकि एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतान्त्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ। क्योंकि
- इस कारण कोई भी अन्य विचारधारात्मक गठबन्धन या पार्टी उभर कर सामने नहीं आ पाई।
- मतदाताओं के पास भी कांग्रेस को समर्थन देने के अतिरिक्त और विकल्प नहीं था।
- दल प्रभुत्व की प्रणाली में राजनीतिक तानाशाही को भी बल मिला और लोकतान्त्रिक मूल्यों का ह्रास भी हुआ। बार-बार अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग हुआ और देश ने 1975 से 1977 तक
आपातकाल की स्थिति को जिया जिसमें नागरिकों के मूल अधिकारों का निलम्बन हुआ, संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग हुआ तथा जनता को अनेक अत्याचारों का सामना करना पड़ा।
अथवा
एकल पार्टी प्रभुत्व- – प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र का अच्छा प्रभाव हुआ। यथा
- इसने भारतीय लोकतंत्र तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
- तत्कालीन भारत में लोकतंत्र और संसदीय शासन अपनी शैशवावस्था में था। यदि इस समय एकल पार्टी प्रभुत्व न होता तो सत्ता के लिए प्रतिस्पर्द्धा होती इससे जनता का विश्वास लोकतंत्र से उठ जाता।.
- तत्कालीन मतदाता राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं था तथा मात्र 15% लोग ही शिक्षित थे। मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति विश्वास था। इसी विश्वास ने यहाँ लोकतंत्र को सुदृढ़ किया।
- प्रभुत्व प्राप्त स्थिति होने पर भी विपक्षी दलों को सरकार की आलोचना का अधिकार था। इससे जनता राजनीतिक रूप से जागरूक होती रही।
प्रश्न 7.
समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बताएँ। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतन्त्र पार्टी के बीच के तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर:
समाजवादी दल समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टी में अन्तर
समाजवादी दल | कम्युनिस्ट पार्टी |
(1) समाजवादी दल लोकतान्त्रिक विचार-धारा में विश्वास करते हैं। | (1) कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधि-नायकवादी लोकतन्त्र में विश्वास करती है। |
(2) समाजवादी दल पूँजीपतियों को और पूँजी को पूर्णतया अनावश्यक और समाज-विरोधी नहीं मानते। | (2) कम्युनिस्ट पार्टी निजी पूँजी और पूँजी-पतियों को पूर्णतया अनावश्यक और राजद्रोही मानती है। |
(3) समाजवादी दल मजदूरों और किसानों के पक्षधर तो हैं लेकिन वे सामाजिक नियन्त्रण, लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक उपायों के पक्षधर हैं। | (3) कम्युनिस्ट पार्टी हर हाल में पूँजीपतियों के बजाय मजदूरों, जमींदारों की बजाय किसानों के हितों की की पक्षधर है चाहे वह हिंसात्मक तरीकों या सरकार के जबरदस्ती उत्पादन के साधनों और भूमि का राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर क्यों न हो। |
भारतीय जनसंघ और स्वतन्त्र पार्टी में अन्तर
भारतीय जनसंघ | स्वतन्त्र पार्टी |
(1) जनसंघ एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र के पक्ष में थी। | (1) स्वतन्त्र पार्टी इस प्रकार के विचार के पक्ष में नहीं थी। |
(2) जनसंघ भारत और पाकिस्तान को मिलाकर अखण्ड भारत बनाने के पक्ष में थी। | (2) स्वतन्त्र पार्टी इस प्रकार के. अखण्ड भारत को व्यावहारिक नहीं मानती थी। |
(3) जनसंघ आण्विक हथियार बनाने के पक्ष में थी। | (3) स्वतन्त्र पार्टी आण्विक हथियारों की अपेक्षा विकास पर पर अधिक जोर दे रही थी। |
प्रश्न 8.
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएं कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
उत्तर:
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय में एक ही दल का प्रभुत्व था। परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था
- भारत में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व मुख्यतः 1977 तक अर्थात् 27 वर्ष तक रहा जबकि मैक्सिको में आर.पी.आई का प्रभुत्व 60 वर्ष तक रहा। हुआ।
- मैक्सिको में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतन्त्र की कीमत पर कायम हुआ जबकि भारत में ऐसा कभी नहीं
- भारत में एक पार्टी (कांग्रेस) के प्रभुत्व के साथ-साथ शुरू से ही अनेक पार्टियाँ चुनाव में राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय स्तर पर विद्यमान थीं जबकि मैक्सिको में ऐसा नहीं हुआ। वहाँ एक दल की तानाशाही थी तथा लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था।
- भारत में प्रजातांत्रिक संस्कृति व प्रजातांत्रिक प्रणाली के अन्तर्गत कांग्रेस का प्रभुत्व रहा जबकि मैक्सिको में शासक दल की तानाशाही के कारण इसका प्रभुत्व रहा।
प्रश्न 9.
भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और उसमें निम्नलिखित को चिह्नित कीजिए-
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) ऐसे दो राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
उत्तर:
(क) (i) जम्मू और कश्मीर (ii) केरल
(ख) (i) पंजाब (ii) उत्तर प्रदेश।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सुगुंफित पार्टी के रूप में उभरे। ‘यथार्थवादी’ होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे।
अगर ” आंदोलन को चलाते चले जाने के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था। – रजनी कोठारी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए? (ख) शुरुआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(क) लेखक का यह विचार है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासन पार्टी नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक अनुशासित पार्टी में किसी विवादित विषय पर स्वस्थ विचार-विमर्श सम्भव नहीं हो पाता, जो कि देश एवं लोकतन्त्र के लिए अच्छा होता है। लेखक का यह विचार है कि कांग्रेस पार्टी में सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं एवं विचारधाराओं के नेता शामिल हैं, उन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक है तभी देश का वास्तविक लोकतन्त्र उभर कर सामने आयेगा इसलिए लेखक कहता है कि कांग्रेस पार्टी को सर्वांगसम एवं अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए ।
(ख) कांग्रेस ने अपनी स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कई विषयों में समन्वयकारी भूमिका निभाई, इसने देश के नागरिकों एवं ब्रिटिश सरकार के मध्य एक कड़ी का कार्य किया। कांग्रेस ने अपने अंदर क्रान्तिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेते थे। इसी प्रकार कांग्रेस समाज के प्रत्येक वर्ग कृषक, मजदूर, व्यापारी, वकील, उद्योगपति, सभी को साथ लेकर चली इसे सिख, मुस्लिम जैसे अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों, ब्राह्मण, राजपूत व पिछड़ा वर्ग सभी का समर्थन प्राप्त हुआ।
एक दल के प्रभुत्व का दौर JAC Class 12 Political Science Notes
→ लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती:
भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के साथ ही एक और गम्भीर चुनौती लोकतन्त्र की स्थापना करना थी। भारतीय नेताओं ने लोकतन्त्र की स्थापना हेतु विभिन्न धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों में पारस्परिक एकता की भावना को विकसित करने का प्रयास किया। इसके साथ ही राजनीतिक गतिविधियों का उद्देश्य जनहित में फैसला करना निर्धारित किया गया। भारत के विस्तृत आकार को देखते हुए निष्पक्ष चुनावों की व्यवस्था करना भी एक गम्भीर चुनौती थी। चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन जरूरी था। फिर मतदाता सूची अर्थात् मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की सूची बनाना भी आवश्यक था। इन दोनों कार्यों में बहुत सारा समय लगा। इस समय देश में 17 करोड़ मतदाता थे। इन्हें 3200 विधायक और लोकसभा के लिए 489 सांसद चुनने थे।
इन मतदाताओं में केवल 15 प्रतिशत ही साक्षर थे। चुनाव आयोग को मतदान की एक विशेष पद्धति के बारे में सोचना पड़ा तथा चुनाव कराने के लिए 3 लाख से ज्यादा अधिकारियों और चुनाव कर्मियों को प्रशिक्षित किया। अधिकांश अप्रशिक्षित जनता को मतदान के विषय में जानकारी देना एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी। अन्ततः 1952 में आम चुनाव हुए। कुल मतदाताओं के आधे से अधिक ने मतदान में अपना वोट डाला। चुनाव निष्पक्ष हुए। ये चुनाव पूरी दुनिया में लोकतन्त्र के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए।
→ पहले तीन चुनावों में कांग्रेस का प्रभुत्व-
→ पहले आम चुनावों में कांग्रेस को आश्चर्यचकित सफलता प्राप्त हुई। कांग्रेस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत प्राप्त थी, यही एकमात्र पार्टी थी जिसका संगठन पूरे देश में था। इस पार्टी के लोकप्रिय नेता पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई नेता थे। प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस को 489 में से . 364 स्थानों पर विजय प्राप्त हुई।
→ दूसरे आम चुनावों (1957) में भी कांग्रेस ने अपनी स्थिति को बरकरार रखते हुए 371 स्थानों पर सफलता प्राप्त की। दूसरे राजनीतिक दल लोकसभा में विपक्षी पार्टी का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाए।
→ तीसरे आम चुनावों (1962) में भी कांग्रेस ने 2/3 बहुमत प्राप्त करके 361 स्थानों पर विजय प्राप्त की। केन्द्र और अधिकतर राज्यों में एक बार फिर एक – दलीय प्रभुत्व की व्यवस्था स्थापित हो गई। दूसरे राजनीतिक दल लोकसभा में बौने साबित हुए। किसी राजनीतिक दल को लोकसभा में विपक्षी दल की स्थिति प्राप्त नहीं हुई। कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति – भारत में कांग्रेस पार्टी की असाधारण सफलता की जड़ें स्वाधीनता संग्राम की विरासत में हैं। कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय आंदोलन के वारिस के रूप में देखा गया। आजादी के आंदोलन में अग्रणी रहे उनके नेता अब कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस पहले से ही एक सुसंगठित पार्टी थी। बाक़ी दल कांग्रेस के सामने बौने साबित हो रहे थे। 1952 से 1967 तक भारत कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा। भारत का एक पार्टी प्रभुत्व दूसरे
→ देशों के एक पार्टी प्रभुत्व से भिन्न था क्योंकि:
- अन्य देशों में एक पार्टी प्रभुत्व लोकतन्त्र की कीमत पर कायम हुआ जबकि भारत में एक पार्टी प्रभुत्व लोकतान्त्रिक स्थितियों में कायम हुआ।
- अन्य देशों में एक पार्टी प्रभुत्व संविधान में एक पार्टी को ही शासन की अनुमति देने या कानूनी व सैन्य उपायों के चलते कायम हुआ जबकि भारत में एक पार्टी प्रभुत्व विभिन्न पार्टियों के बीच मुक्त और निष्पक्ष चुनाव के तहत हुआ।
→ केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार:
1957 में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार बनी। यहाँ विधान सभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बहुमत नहीं मिला। विधानसभा चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 126 में से 60 सीटें हासिल हुईं। विश्व में यह पहला अवसर था जब एक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनावों के जरिए बनी। चुनाव प्रणाली – भारत की चुनाव प्रणाली में ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ के तरीके को अपनाया गया। यह प्रणाली कांग्रेस पार्टी के पक्ष में सिद्ध हुई।
→ कांग्रेस एक सामाजिक और विचारधारात्मक गठबंधन के रूप में:
- कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था। इस समय यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित – समूह भर थी लेकिन 20वीं सदी में इसने जन-आंदोलन का रूप ले लिया। इस कारण से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया और राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ। आजादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल ग्रहण कर चुकी थी।
- कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, क्रान्तिकारी वामपंथी और हर· धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे।
- अपने गठबन्धनी स्वभाव के कारण कांग्रेस विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी। कांग्रेस के विभिन्न गुटों में कुछ विचारधारात्मक सरोकारों की वजह से तथा अन्य गुटों के पीछे व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा तथा प्रतिस्पर्द्धा की भावना भी थी। कांग्रेस की अधिकतर प्रांतीय इकाइयाँ भी विभिन्न गुटों से मिलकर बनी थीं। गुटों की मौजूदगी की यह प्रणाली शासक दल के भीतर सन्तुलन साधने के एक औजार की तरह काम करती थी।
- चुनावी प्रतिस्पर्द्धा के पहले दशक में कांग्रेस ने शासक दल की भूमिका निभाई और विपक्ष की भी । इसी कारण भारतीय राजनीति के इस काल खण्ड को ‘कांग्रेस प्रणाली’ कहा जाता है।
→ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया:
→ 1920 के दशक के शुरुआती सालों में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी समूह (कम्युनिस्ट – ग्रुप) उभरे। ये रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे और देश की समस्याओं के समाधान के लिए साम्यवाद की राह अपनाने की तरफदारी कर रहे थे। 1935 से साम्यवादियों ने मुख्यतया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दायरे में रहकर काम किया। कांग्रेस से साम्यवादी 1941 के दिसम्बर से अलग हुए।
→ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेताओं में ए. के. गोपालन, एस. ए. डांगे, ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद, पी. सी. जोशी, अजय घोष और पी. सुंदरैया के नाम प्रमुख हैं। चीन और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक अन्तर आने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में एक बड़ी टूट का शिकार हुई। सोवियत संघ की विचारधारा को ठीक मानने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे जबकि इसके विरोध में राय रखने वालों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सी. पी.आई. (एम.) नाम से अलग दल बनाया। ये दोनों दल आज तक कायम हैं।
→ भारतीय जनसंघ:
भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था। श्यामाप्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक अध्यक्ष थे। इस दल की जड़ें आजादी से पहले सक्रिय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) और हिन्दू महासभा में खोजी जा सकती हैं। जनसंघ अपनी विचारधारा और कार्यक्रमों की दृष्टि से बाकी दलों से भिन्न है। जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति, एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया।
→ विपक्षी पार्टियों का उद्भव:
- पहले तीन आम चुनावों में विपक्षी पार्टियों का अस्तित्व नगण्य था। कई पार्टियाँ 1952 के आम चुनावों से पहले बन चुकी थीं। इनमें से कुछ ने साठ और सत्तर के दशक में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 1950 के दशक में इन सभी विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में कहने भर को प्रतिनिधित्व मिल पाया।
- प्रारम्भिक वर्षों में काँग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच पारस्परिक सम्मान का गहरा भाव था।