JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

Jharkhand Board Class 12 Political Science राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ InText Questions and Answers

पृष्ठ 8

प्रश्न 1.
अच्छा! तो मुझे अब पता चला कि पहले जिसे पूर्वी बंगाल कहा जाता था वही आज का बांग्लादेश है तो क्या यही कारण है कि हमारे वाले बंगाल को पश्चिमी बंगाल कहा जाता है?
उत्तर;
देश के विभाजन से पूर्व बंगाल प्रान्त को दो भागों में विभाजित किया गया जिसका एक भाग पूर्वी बंगाल जो 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। 1971 में जिया उर रहमान के नेतृत्व में यह स्वतन्त्र बांग्लादेश बन गया तथा बंगाल का दूसरा भाग जो भारत में आ गया उसे पश्चिमी बंगाल के नाम से जाना जाता है।

पृष्ठ 15

प्रश्न 2.
क्या जर्मनी की तरह हम लोग भारत और पाकिस्तान के बँटवारे को समाप्त नहीं कर सकते ? मैं तो अमृतसर में नाश्ता और लाहौर में लंच करना चाहता हूँ।
उत्तर:
जर्मनी की तरह भारत एवं पाकिस्तान के बँटवारे को समाप्त करना सम्भव नहीं है क्योंकि जर्मनी के विभाजन व भारत के विभाजन की परिस्थितियों में व्यापक अन्तर है। जर्मनी के विभाजन का मूल कारण विचारधारा और आर्थिक कारण थे जबकि भारत के विभाजन में पाकिस्तान की धार्मिक कट्टरपंथिता की भावना विशेष स्थान रखती है

प्रश्न 3.
क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर रहना और सम्मान करना सीख जाएँ?
उत्तर:
राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों में सुधार हेतु यह आवश्यक है कि वे एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर रहें तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा का सम्मान करें। प्रायः यह देखा गया है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव का मुख्य कारण दोनों देशों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का न होना तथा पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ करना व आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना है। पाकिस्तान भारत विरोधी नीति को त्यागे तभी दोनों देशों के मध्य सम्मान का भाव पैदा हो सकता है।

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पृष्ठ 18

प्रश्न 4.
मैं सोचता हूँ कि आखिर उन सैकड़ों राजा-रानी राजकुमार और राजकुमारियों का क्या हुआ होगा? आखिर आम नागरिक बनने के बाद उनका जीवन कैसा रहा होगा?
उत्तर:
भारत में देशी रियासतों के एकीकरण के पश्चात् इन रियासतों के राजा, महाराजाओं के जीवन बसर के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष सहायता देने का प्रावधान किया गया जिसमें इनको प्रतिवर्ष विशेष सहायता राशि ‘प्रिवीपर्स’ के रूप में देने की व्यवस्था की गई। यह व्यवस्था 1970 तक रही। इसके पश्चात् ये व्यक्ति आम नागरिक की भाँति जीवन बसर कर रहे हैं। इनको भी संविधान द्वारा वही अधिकार प्रदान किये गये हैं जो एक आम नागरिक को प्राप्त हैं। आम नागरिक बनने के बाद वैभव-विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर उन्हें सामान्य जीवन अपनाने में अत्यन्त कष्ट का अनुभव हुआ होगा तथा अपना राजपाट छिनने का दुःख भी हुआ होगा।

पृष्ठ 20

प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तक में पृष्ठ 20 पर दिये मानचित्र को ध्यान से देखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
1. स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले निम्नलिखित राज्य किन मूल राज्यों के अंग थे?
(क) गुजरात
(ग) मेघालय
(ख) हरियाणा
(घ) छत्तीसगढ़।
उत्तर:
(क) गुजरात मूलतः मुम्बई राज्य (महाराष्ट्र) का अंग था।
(ख) हरियाणा पंजाब राज्य का अंग था।
(ग) मेघालय असम राज्य का अंग था।
(घ) छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश राज्य का अंग था।

2. देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:
पंजाब, बंगाल, देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले दो राज्य थे।

3. दो ऐसे राज्यों के नाम बताएँ जो पहले संघ – शासित राज्य थे
उत्तर:
(अ) गोवा (ब) अरुणाचल प्रदेश।

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पृष्ठ 23

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका की जनसंख्या अपने देश के मुकाबले एक-चौथाई है लेकिन वहाँ 50 राज्य हैं। भारत में 100 से भी ज्यादा राज्य क्यों नहीं हो सकते?
उत्तर:
राज्यों की संख्या में वृद्धि का आधार केवल जनसंख्या नहीं हो सकता। राज्यों की संख्या के निर्धारण में अनेक तत्त्वों का ध्यान रखना पड़ता है जिनमें जनसंख्या के साथ-साथ देश का क्षेत्रफल, आर्थिक संसाधन, उस क्षेत्र के लोगों की भाषा, देश की सभ्यता एवं संस्कृति, लोगों का जीवन व शैक्षणिक स्तर आदि तत्त्व प्रमुख हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का क्षेत्रफल भारत की तुलना में बहुत अधिक है तथा वह एक विकसित देश है और संसाधनों की तुलना में भी वह भारत से समृद्ध है। इस आधार पर संयुक्त राज्य में राज्यों की संख्या 50 है। भारत के क्षेत्रफल का कम होना, उसका विकासशील देश होना तथा संसाधनों की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका से कम समृद्ध होना आदि ऐसे तत्त्व हैं जिनके कारण भारत में 100 से भी अधिक राज्य नहीं बनाए जा सकते।

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प्रश्न 1.
भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?
(क) भारत विभाजन ‘द्वि राष्ट्र सिद्धान्त’ का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रांतों – पंजाब और बंगाल का बँटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर:
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सिद्धान्तों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 2. भारत और पाकिस्तान
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन 3. झारखण्ड और छत्तीसगढ़
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन 4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड

उत्तर:

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 2. भारत और पाकिस्तान
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन 4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन 3. झारखण्ड और छत्तीसगढ़

प्रश्न 3.
भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों ) और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए-
(क) जूनागढ़
(ख) मणिपुर
(ग) मैसूर
(घ) ग्वालियर।
उत्तर:
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प्रश्न 4.
नीचे दो तरह की राय लिखी गई हैं: विस्मय : रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ। इन्द्रप्रीत : यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बलप्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतन्त्र में आम सहमति से काम लिया जाता है। देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?
उत्तर:
1. विस्मय की राय के सम्बन्ध में विचार:
देशी रियासतों के विलय से पूर्व अधिकांश रियासतों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया जाता था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे। इन रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ समान रूप से चुनावी प्रक्रिया क्रियान्वित हुई। अतः विस्मय का यह विचार सही है कि भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ जनता तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ।

2. इन्द्रप्रीत की राय के सम्बन्ध में विचार:
565 देशी रियासतों में केवल चार-पाँच को छोड़कर सभी स्वेच्छा से भारतीय संघ में शामिल हुईं। लेकिन दो रियासतों (हैदराबाद एवं जूनागढ़) को भारत में मिलाने के लिए बल प्रयोग किया गया, क्योंकि इनकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की थी कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को हमेशा खतरा बना रहता था। दूसरे, बल प्रयोग इन रियासतों की जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि शासन ( शासक वर्ग) के विरुद्ध किया गया क्योंकि इन दोनों राज्यों की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या भारत में विलय चाह रही थी और जब से ये रियासतें भारत में सम्मिलित हो गईं, तब से इन रियासतों के लोगों को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार दे दिए गए।

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प्रश्न 5.
नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यंत भिन्न हैं: आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा …………………… आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा …………………… अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी। – मोहनदास करमचंद गाँधी

………………… भारत आजादी की जिंदगी के लिए जागेगा …………………. हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएँगे …………………… आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिंदुस्तान अपने को फिर से पा लेगा ……………………… आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं…………………….. – जवाहरलाल नेहरू
इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा जँच रहा है और क्यों ?
उत्तर:
गाँधीजी ने देश की जनता से कहा है कि देश में स्वतंत्रता के बाद स्थापित लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राजनीतिक दलों में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष होगा। ऐसी स्थिति में नागरिकों को अधिक विनम्र और धैर्यवान रहते हुए चुनावों में निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश हित को प्राथमिकता देनी होगी। जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिये गये बयान में कहा गया है कि स्वतन्त्र भारत में राजनीतिक स्वतन्त्रता, समानता तथा एक हद तक न्याय की स्थापना हुई है; उपनिवेशवाद समाप्त हो गया है; लेकिन इससे आगे अब आने वाली समस्याओं को दूर कर गरीब से गरीब भारतीयों के लिए नये अवसरों के द्वार खोलना है। राष्ट्र को आत्मनिर्भर तथा स्वाभिमानी बनाना है।

उपर्युक्त दोनों कथनों में महात्मा गाँधी का कथन अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह भविष्य में लोकतांत्रिक शासन के समक्ष आने वाली समस्याओं के प्रति नागरिकों को आगाह करता है कि राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के मोह, विभिन्न प्रकार के लोभ-लालच, भ्रष्टाचार, धर्म, जाति, वंश, लिंग के आधार पर जनता में फूट डाल सकते हैं तथा हिंसा हो सकती है । ऐसी परिस्थितियों में जनता को विनम्र और धैर्यवान रहते हुए देशहित में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया? क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी हैं?
उत्तर:

  1. नेहरूजी के अनुसार भारत ऐतिहासिक और स्वाभाविक रूप में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। वे धर्म को राजनीति से दूर रखना चाहते थे। उनका विचार था कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होना चाहिए, न ही उसे किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित करना चाहिए और न ही उसका विरोध करना चाहिए। राज्य को सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करना चाहिए और सभी धर्मों को उनके क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए।
  2. नेहरूजी ने सदा इस बात पर बल दिया कि भारत की एकता और अखण्डता तभी चिरस्थायी रह सकती है जबकि अल्पसंख्यकों को समान नागरिक अधिकार, धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतन्त्रता तथा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का वातावरण प्राप्त हो।
  3. नेहरू ने अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिमों के सम्बन्ध में यह तर्क दिया था कि भारत में मुस्लिमों की संख्या इतनी अधिक है कि चाहे तो भी वे दूसरे देशों में नहीं जा सकते। अतः उन्होंने मुस्लिमों के साथ समानता का व्यवहार करने पर बल दिया, तभी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलायेगा। निष्कर्ष रूप में, यह कहा जा सकता है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए प्रस्तुत किये गये नेहरूजी के तर्क केवल भावनात्मक व नैतिक ही नहीं बल्कि युक्तिपरक भी हैं।

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प्रश्न 7.
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या थे?
उत्तर:
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर निम्नलिखित थीं।

  1. पूर्वी क्षेत्रों में भाषायी समस्या अधिक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्र में धार्मिक एवं जातिवादी समस्याएँ अधिक
  2. पूर्वी क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में विकास की चुनौती

प्रश्न 8.
राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी?
उत्तर:
1953 में स्थापित राज्य पुनर्गठन आयोग का मुख्य कार्य राज्यों के सीमांकन के विषय में कार्यवाही करना था। इस आयोग की सिफारिशों में राज्यों की सीमाओं के निर्धारण हेतु उस राज्य में बोली जाने वाली भाषा को प्रमुख आधार बनाया गया। इस आयोग की प्रमुख सिफारिश यह थी कि भारत की एकता व सुरक्षा, भाषायी और सांस्कृतिक सजातीयता तथा वित्तीय और प्रशासनिक विषयों पर उचित ध्यान रखते हुए राज्यों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर किया जाये।

प्रश्न 9.
कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में ‘कल्पित समुदाय’ होता है और सर्वसामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बँधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।
उत्तर:
भारत की एक राष्ट्र के रूप में विशेषताएँ: भारत की एक राष्ट्र के रूप में प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मातृभूमि के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम:
मातृभूमि से प्रेम प्रत्येक व्यक्ति का स्वाभाविक लक्षण एवं विशेषता माना जाता है। भारत में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं तथा अपने आपको भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते हैं।

2. भौगोलिक एकता: भौगोलिक एकता भी राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करती है। भारत सीमाओं की दृष्टि से कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एक स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई से घिरा है।

3. सांस्कृतिक एकरूपता:
भारतीय संस्कृति इस देश को एक राष्ट्र बनाती है। यह विभिन्नता में एकता लिए हुए है। इस संस्कृति की अपनी पहचान है। वैवाहिक बंधन, जाति प्रथाएँ, साम्प्रदायिक सद्भाव, सहनशीलता, त्याग, , पारस्परिक प्रेम, ग्रामीण जीवन का आकर्षक वातावरण इस राष्ट्र की एकता को बनाने में अधिक सहायक रहा है।

4. सामान्य इतिहास:
भारत का एक अपना राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास रहा है। इस इतिहास का अध्ययन सभी करते हैं।

5. सामान्य हित:
भारत राष्ट्र के लिए सामान्य हित भी महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके अन्तर्गत एक संविधान, धर्मनिरपेक्षता, इकहरी नागरिकता, सरकारी का संघीय ढाँचा, मौलिक अधिकारों व कर्त्तव्यों की व्यवस्था लागू की गई है।

6. संचार के साधनों की विशिष्ट भूमिका:
भारत एक राष्ट्र है। इसकी भावना को सुदृढ़ करने के लिए साहित्यकार, लेखक, फिल्म निर्माता-निर्देशक, जनसंचार माध्यम, इलैक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया, यातायात के साधन, दूरभाष तथा मोबाइल टेलीफोन आदि भी भारत को एक राष्ट्र बनाने में योगदान दे रहे हैं।

7. जन इच्छा:
भारतीय राष्ट्र में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में राष्ट्रवादी बनने की इच्छा भी है।

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प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। – रामचंद्र गुहा

(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।

(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों?
उत्तर:
(क) सोवियत संघ के समान ही भारत में भी अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषायी समुदाय और सामाजिक वर्गों में एकता का भाव पाया जाता है। यथा – भारत में अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं, उनकी भाषा और वेश भूषा, संस्कृति भी भिन्न-भिन्न हैं, तथापि सभी प्रान्तों के लोग एक-दूसरे के धर्म, भाषा तथा संस्कृति का सम्मान करते हैं।

(ख) (i) सोवियत संघ ने राष्ट्र निर्माण के लिए आत्म-निर्भरता का सहारा लिया था जबकि भारत ने कई तरह से बाहरी मदद से राष्ट्र निर्माण के कार्य को पूरा किया।
(ii) सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र निर्माण हुआ जबकि भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र निर्माण हुआ।

(ग) यदि पीछे मुड़कर देखें तो हम पायेंगे कि भारत के लिए राष्ट्र निर्माण के प्रयोग बेहतर रहे, क्योंकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन ने उसके राष्ट्र निर्माण के प्रयोगों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया।

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ JAC Class 12 Political Science Notes

→ नए राष्ट्र की चुनौतियाँ: भारत सन् 1947 में आजाद हुआ लेकिन स्वतन्त्रता के साथ ही भारत को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जहाँ एक ओर स्वतन्त्रता के साथ भारत का विभाजन हुआ वहीं दूसरी ओर हिंसा और विस्थापन की त्रासदी की मार भी झेलनी पड़ी।
→ तीन चुनौतियाँ: स्वतन्त्र भारत के समक्ष तत्कालीन समय में तीन चुनौतियाँ प्रमुख थीं-

  • विविधता में एकता की स्थापना: भारत अपने आकार और विविधता में किसी भी महादेश से कम नहीं था । यहाँ अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग थे, उनकी संस्कृति अलग थी और वे विभिन्न धर्मों को मानने वाले थे । इन सभी में एकता स्थापित करना तत्कालीन समय की महान चुनौती थी।
  • लोकतन्त्र को कायम रखना: लोकतान्त्रिक सरकार की स्थापना करने के साथ ही संविधान के अनुकूल लोकतान्त्रिक व्यवहार एवं बरताव की व्यवस्था करना तत्कालीन समय की आवश्यकता थी।
  • सभी वर्गों का समान विकास-तीसरी चुनौती सम्पूर्ण समाज का भलां व विकास करने की थी। इस संदर्भ में संविधान में इस बात का उल्लेख किया गया कि सामाजिक रूप से वंचित वर्गों तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा दी जाए।

→ विभाजन: विस्थापन और पुनर्वास – 14-15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश भारत दो राष्ट्रों ‘भारत’ और ‘पाकिस्तान’ में विभाजित हुआ । विभाजन में मुस्लिम लीग की ‘द्विराष्ट्र सिद्धान्त’ की नीति की भी भूमिका रही। इस सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नाम की दो कौमों का देश था । इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए पाकिस्तान की माँग की और अन्ततः भारत का विभाजन हुआ।

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→ विभाजन की प्रक्रिया:
इस प्रक्रिया में धार्मिक बहुसंख्या को विभाजन का आधार बनाया गया। इसके मायने यह थे कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे और शेष हिस्सा भारत कहलायेगा। विभाजन की इस प्रक्रिया में भी अनेक समस्याएँ थीं। ‘ब्रिटिश इण्डिया’ में ऐसे दो इलाके थे जहाँ मुसलमान बहुसंख्या में थे। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। इस आधार पर पाकिस्तान दो इलाकों में विभाजित हुआ-पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान दूसरे, मुस्लिम बहुल हर इलाका, पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था। पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के नेता खान अब्दुल गफ्फार खाँ द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे।

उनकी आवाज को अनदेखा करके पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत को पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया। तीसरे, ब्रिटिश इण्डिया के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक और गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। फलतः दोनों प्रान्तों का बंटवारा किया गया। यह बंटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी साबित हुआ। चौथे, सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। जैसे ही यह निश्चित हुआ कि देश का बंटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे।

→ विभाजन के परिणाम: सन् 1947 में भारत विभाजन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिनमें प्रमुख थीं-

  • विभाजन के कारण दोनों सम्प्रदायों के मध्य अचानक साम्प्रदायिक दंगे हुए। मानव इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानांतरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मारा। लाहौर, अमृतसर और कलकत्ता जैसे शहर साम्प्रदायिक अखाड़े में तब्दील हो गए।
  • बँटवारे के कारण शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हुई। लाखों लोग घर से बेघर हो गये तथा लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आये जिनके पुनर्वास की समस्या का सामना करना पड़ा।
  • परिसम्पत्तियों के बँटवारे को लेकर भी दोनों देशों के मध्य अनेक मतभेद उत्पन्न हुए।
  • विभाजन के साथ ही दोनों देशों के मध्य सीमा निर्धारण को लेकर अनेक विवाद उत्पन्न हुए। कश्मीर समस्या इसी का परिणाम मानी जाती है।
  • एक समस्या यह उत्पन्न हुई कि भारत अपने मुसलमान नागरिकों तथा दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ क्या बरताव करे ? भारतीय नेताओं ने धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श को अपनाकर इसका निराकरण किया।
  • रजवाड़ों का विलय – भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप विरासत के रूप में जो दूसरी बड़ी समस्या मिली, वह थी, देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था – ब्रिटिश भारत और देशी राज्य। ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देशी राज्यों का शासन देशी राजाओं के हाथों में था। रजवाड़ों अथवा रियासतों की संख्या 565 थी। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के मार्ग में देशी रियासतें सदैव बाधा बनी रहीं। स्वतन्त्रता के पश्चात् भी ये रियासतें एकीकरण के मार्ग में सिरदर्द बनी रहीं।

→ विलय की समस्याएँ: आजादी के तुरन्त पहले अँग्रेजी प्रशासन ने घोषणा की कि रजवाड़े ब्रिटिश राज की समाप्ति के पश्चात् अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो जायें तथा यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया। यह अपने आप में गम्भीर समस्या थी। इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा।

→ सरकार का नजरिया: यद्यपि देशी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी परन्तु सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया।
देशी रजवाड़ों के विलय के सम्बन्ध में तीन बातें अधिक महत्त्वपूर्ण थीं-

  1. पहली बात यह थी कि अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे।
  2. दूसरा, भारत सरकार का रुख लचीला था । वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी। जैसा जम्मू-कश्मीर में हुआ।
  3. तीसरी बात, विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखण्डता – एकता का सवाल सबसे ज्यादा अहम हो उठा था।

शांतिपूर्ण बातचीत के द्वारा लगभग सभी रजवाड़ों जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गईं। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय अन्य की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ। सितम्बर, 1948 में हैदराबाद के निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा हैदराबाद का भारत में विलय हो गया। मणिपुर के महाराजा बोधचन्द्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये और जून, 1948 में चुनावों के फलस्वरूप वहाँ संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ।

→ राज्यों का पुनर्गठन: बँटवारे और देशी रियासतों के बाद राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भी महत्त्वपूर्ण थी। राष्ट्र के समक्ष प्रांतों की सीमाओं को इस तरह तय करने की चुनौती थी कि देश की भाषायी और सांस्कृतिक बहुलता की झलक भी मिले, साथ ही राष्ट्रीय एकता भी खण्डित न हो राज्यों का पुनर्गठन करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का कार्य राज्यों के सीमांकन के मामले में गौर करना था। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ।

इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाये गये। इस अधिनियम में राज्यों के पुनर्गठन का आधार भाषा को बनाया गया। भाषा के आधार पर राज्यों का संगठन करने से भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हुईं। कई राज्यों के लोग इस भाषागत पुनर्गठन से सन्तुष्ट नहीं थे, क्योंकि कई राज्यों में रहने से लोग, अपनी भाषा के आधार पर अलग राज्यों की स्थापना चाहते थे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गम्भीर आन्दोलन आरम्भ कर दिए गए और भारत सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े।

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