JAC Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 10 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Jharkhand Board Class 12 History विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 290

प्रश्न 1.
इन दोनों रिपोर्टों तथा उस दौरान दिल्ली के हालात के बारे में इस अध्याय में दिए गए विवरणों को पढ़ें याद रखें कि अखबारों में छपी खबरें अक्सर पत्रकार के पूर्वाग्रह या सोच से प्रभावित होती हैं। इस आधार पर बताएँ कि दिल्ली उर्दू अखबार लोगों की गतिविधियों को किस नजर से देखता था?
उत्तर:
दोनों रिपोर्टों को पढ़ने से हमें पता चलता है कि उस समय दिल्ली शहर का सामान्य जनजीवन अस्त- व्यस्त हो गया था। आम लोगों को सब्जियाँ भी नहीं मिल पा रही थीं। गरीब कुलीन लोगों को स्वयं घड़ों में पानी भरकर लाना पड़ता था। निर्धन एवं मध्यम वर्ग के लोगों को भी कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। शहर में गन्दगी और बीमारियाँ फैली हुई थीं। हमारे विचर से दिल्ली उर्दू अखवार ने दिल्ली की तत्कालीन स्थिति का सटीक वर्णन किया है, इसमें पत्रकार की पूर्वाग्रहता नहीं दिखाई पड़ती है।

पृष्ठ संख्या 291

प्रश्न 2.
विद्रोही अपनी योजनाओं को किस तरह एक-दूसरे तक पहुँचाते थे, इस बारे में इस बातचीत से क्या पता चलता है? तहसीलदार ने सिस्टन को सम्भावित विद्रोही क्यों मान लिया था?
उत्तर:
विद्रोही अपनी योजनाओं को आपसी संवाद के द्वारा एक दूसरे तक पहुँचाते थे। यह हमें सिस्टन और तहसीलदार के वार्तालाप से पता चलता है विद्रोह के समय बहुत से सरकारी कर्मचारी भी विद्रोहियों से मिले हुए थे। सिस्टन के देशी पहनावे तथा बैठने के ढंग के आधार पर बिजनौर के तहसीलदार ने उसे सम्भावित विद्रोही मानकर वार्तालाप किया था, क्योंकि वह अवध में नियुक्त था।

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पृष्ठ संख्या 295 चर्चा कीजिए

प्रश्न 3.
इस भाग को एक बार और पढ़िए तथा विद्रोह के दौरान नेता कैसे उभरते थे, इस बारे में समानताओं और भिन्नताओं की व्याख्या कीजिए किन्हीं दो नेताओं के बारे में बताइए कि आम लोग उनकी तरफ क्यों आकर्षित हो जाते थे।
उत्तर:
नेता जनसामान्य का समर्थन पाकर उभरते थे।
(i) रानी लक्ष्मीबाई यह झाँसी की रानी थी। लोग उसके प्रति अंग्रेजों द्वारा अन्याय तथा रानी की वीरता के कारण आकर्षित हुए।
(ii) बहादुरशाह द्वितीय- यह अन्तिम मुगल शासक था मुगलों के प्रति सामान्य जनता में अभी भी श्रद्धा का भाव था।

पृष्ठ संख्या 297

प्रश्न 4.
इस पूरे भाग को पढ़ें और चर्चा करें कि लोग वाजिद अली शाह की विदाई पर इतने दुःखी क्यों थे?
उत्तर:
वाजिद अली शाह अवध (लखनऊ) के लोकप्रिय नवाब थे। उनको गद्दी से हटाने पर तमाम लोग अभिजात, किसान और जन सामान्य सभी लोग रो रहे थे। वे अपने प्रिय नवाब के अपमान से दुःखी थे। इसके अतिरिक्त जो उन पर आश्रित थे, वे बेरोजगार हो गये; उन लोगों की रोजी-रोटी चली गई थी। इन्हीं कारणों से लखनऊ की जनता उनके वियोग से दुःखी थी और सब रो चिल्ला रहे थे कि “हाय! जान-ए-आलम देस से विद्य लेकर परदेस चले गए हैं।”

पृष्ठ संख्या 299

प्रश्न 5.
इस अंश से आपको ताल्लुकदारों के रवैये के बारे में क्या पता चल रहा है? ‘यहाँ के लोगों’ से हनवन्तसिंह का क्या आशय था? उन्होंने लोगों के गुस्से की क्या वजह बताई ?
उत्तर:
इस अंश से हमें ताल्लुकदारों की शरणागत- वत्सलता और देश-प्रेम दोनों भावनाओं का पता चलता है। संकट में शरणागत की रक्षा करना भारतीय संस्कृति का आदर्श रहा है, जिसका राजा हनवन्तसिंह ने पालन किया। दूसरी ओर, देश-प्रेम की खातिर वे अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए बुद्ध करने जाते हैं। ‘यहाँ के लोगों’ से हनवन्तसिंह का आशय भारत के विद्रोही ताल्लुकदारों, किसानों, सैनिकों से था। उन्होंने लोगों के गुस्से की वजह बतायी अंग्रेजी शासन द्वारा भारत के लोगों का शोषण करना तथा ताल्लुकदारों की जमीनें छीनना

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पृष्ठ संख्या 301-302

प्रश्न 6.
इस घोषणा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कौनसे मुद्दे उठाए गए हैं? प्रत्येक तबके के बारे में दिए गए भाग को ध्यान से पढ़िए घोषणा की भाषा पर ध्यान दीजिए और देखिए कि उसमें कौनसी भावनाओं पर जोर दिया जा रहा है?
उत्तर:
यह घोषणा 25 अगस्त, 1857 को मुगल सम्राट द्वारा जारी की गई थी। इस घोषणा में निम्नलिखित मुद्दे उठाए गए हैं –

  • जमींदारों को अपमानित एवं बर्बाद करना
  • व्यापारियों को मुनाफे से वंचित करना एवं उन्हें अपमानित करना
  • भारतीय सरकारी कर्मचारियों को उच्च पदों से वंचित करना
  • कारीगरों में व्याप्त बेरोजगारी और गरीबी
  • पण्डितों और फकीरों का सम्मान न करना।

इस घोषणा में जमींदारों, व्यापारियों, सरकारी कर्मचारियों, कारीगरों तथा पण्डित-फकीरों, मौलवियों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ इस पवित्र युद्ध में भाग लेने हेतु | प्रोत्साहित किया गया था, क्योंकि ये सभी वर्ग ब्रिटिश शासन की निरंकुशता और उत्पीड़न से त्रस्त थे। इसमें इस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया गया, जो सम्बन्धित लोगों के दिलोदिमाग पर असर करे इस घोषणा की भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित है, जिसे हिन्दुस्तानी कहा जा सकता है।

पृष्ठ संख्या 303

प्रश्न 7.
इस अर्जी में सैनिक विद्रोह के जो कारण बताए गए हैं, उनकी तुलना ताल्लुकदार द्वारा बताए गए कारणों (स्रोत-4) के साथ कीजिए।
उत्तर:
इस अर्जी में बताया गया है कि ताल्लुकदारों तथा सैनिकों दोनों में अंग्रेजों का साथ देने में समानता है तथा जब दोनों को ही उत्पीड़ित किया गया तो दोनों ने ही अंग्रेजी शासन के प्रति बगावत कर दी। इसे हम निम्न तालिका के माध्यम से समझ सकते हैं-

ताल्लुकचार
1. ताल्लुकदारों द्वारा अंग्रेजों की रक्षा की गई।
2. ताल्लुकदारों की जागीरें छीन लेने तथा उनकी -सेवाओं को भंग कर देने के कारण उन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु युद्ध किया।
3. ताल्लुकदारों द्वारा अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए प्रयास करना।

सैनिक
1. सैनिकों और उनके पुरखों द्वारा शासन स्थापित करने में अंग्रेजों की मदद करना।
2. चर्बी लगे कारतूसों के कारण रक्षा हेतु युद्ध करना। धर्म की
3. आस्था और धर्म की रक्षा के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध दो वर्ष तक युद्ध करना।

पृष्ठ संख्या 304 चर्चा कीजिए

प्रश्न 8.
आपकी राय में विद्रोहियों के नजरिए को पुनः निर्मित करने में इतिहासकारों के सामने कौनसी मुख्य समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
विद्रोहियों के नजरिए को पुनः निर्मित करने में इतिहासकारों के सामने निम्न समस्याएँ आती हैं-
(1) उचित तथा सटीक स्रोतों का अभाव
(2) भाषा की समस्या
(3) उपलब्ध स्रोतों में विभिन्न विद्वानों की पृथक्

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पृष्ठ संख्या 305

प्रश्न 9.
इस विवरण के अनुसार गाँव वालों से निपटने में अंग्रेजों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
इस विवरण के अनुसार गाँव के लोगों से निपटने में अंग्रेजों के सामने निम्नलिखित मुश्किलें आई –

  • अवध के गाँव के लोगों ने अपनी संचार व्यवस्था मजबूत कर रखी थी। उन्हें अंग्रेजों के आने की खबर तुरन्त मिल जाती थी।
  • वे स्थान छोड़कर तितर-बितर हो जाते थे, जिससे अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पाते थे।
  • गाँव वाले पल में एकजुट हो जाते थे तथा पल में बिखर जाते थे।
  • गाँव वाले बहुत बड़ी संख्या में थे तथा उनके पास बन्दूकें भी थीं।

पृष्ठ संख्या 311

प्रश्न 10.
तस्वीर से क्या सोच निकलती है? शेर और चीते की तस्वीरों के माध्यम से क्या कहने का प्रयास किया गया है? औरत और बच्चे की तस्वीर क्या दर्शाती है?
उत्तर:
इस तस्वीर से ब्रिटिश शासन द्वारा विद्रोहियों से बदला लेने की सोच का पता लगता है। शेर ब्रिटिश बंगाल टाइगर भारतीय विद्रोही शासन का प्रतीक है और का प्रतीक है। इस चित्र के माध्यम से अंग्रेजों को भारतीयों पर आक्रमण करते हुए और उनका दमन करते गया है। स्त्री तथा बच्चे चीते के नीचे दबे -हैं, जो यह बताते हैं कि स्त्री और बच्चे अत्याचारों के शिकार हुए थे।

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उत्तर दीजिए ( लगभग 100 से 150 शब्दों में ) –

प्रश्न 1.
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
1857 के विद्रोह में अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए विद्रोहियों के पास न कोई सर्वमान्य नेता था और न ही कोई संगठन था। 1857 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में नेतृत्व तथा संगठन की अति आवश्यकता थी। इसलिए विद्रोहियों ने ऐसे लोगों का नेतृत्व प्राप्त किया, जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे और जनता में बहुत लोकप्रिय थे।

1. दिल्ली में विद्रोहियों ने बड़े हो चुके मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से अपना नेतृत्व करने की दरख्वास्त की, जिसे बहादुरशाह ने ना-नुकर के बाद मजबूरी में स्वीकार किया। परन्तु बहादुरशाह ने नाममात्र के लिए ही विद्रोहियों का नेता बनना स्वीकार किया था।

2. कानपुर में विद्रोहियों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब से नेतृत्व करने का आग्रह किया। विद्रोहियों के दबाव में नाना साहिब ने नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया।

3. झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई को आम जनता के दबाव के कारण बगावत की बागडोर सम्भालनी पड़ी।

4. बिहार में आरा के स्थानीय जमींदार कुँवरसिंह ने विद्रोह की बागडोर सम्भाली।

5. अवध (लखनऊ) में लोगों ने पदच्युत नवाव वाजिद अली शाह के युवा बेटे बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित किया।

6. कुछ स्थानों पर स्थानीय नेताओं ने भी विद्रोहियों का नेतृत्व किया।

प्रश्न 2.
उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और संगठित ढंग से काम कर रहे थे।
उत्तर:
विद्रोही योजनाबद्ध ढंग से काम कर रहे थे। कुछ स्थानों पर शाम के समय तोप का गोला दागा गया तो कहीं बिगुल बजाकर विद्रोह का संकेत दिया गया। हिन्दुओं और मुसलमानों को एकजुट होने और अंग्रेजों का सफाया करने के लिए हिन्दी, उर्दू तथा फारसी में अपीलें जारी की गई। विभिन्न छावनियों के सिपाहियों के बीच अच्छा संचार बना हुआ था। विद्रोह के दौरान अवध मिलिट्री पुलिस के कैप्टेन हियसें की सुरक्षा का दायित्व भारतीय सैनिकों पर था जहाँ कैप्टेन हिवर्से तैनात था, वहीं 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री भी तैनात थी।

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इन्फेन्ट्री का कहना था कि चूंकि वे अपने समस्त गोरे अफसरों को समाप्त कर चुके हैं, इसलिए अवध मिलिट्टी को या तो हियर्स का वध कर देना चाहिए या उसे बन्दी बनाकर 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री को सौंप देना चाहिए। जब मिलिट्री पुलिस ने इन दोनों बातों को अस्वीकार कर दिया, तो इस मामले के समाधान के लिए हर रेजीमेन्ट के देशी अफसरों की एक पंचायत बुलाए जाने का निश्चय किया गया। ये पंचायतें रात को कानपुर सिपाही लाइन में जुटती थीं इसका अर्थ यह है कि सामूहिक रूप से निर्णय होते थे।

प्रश्न 3.
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
अथवा
1857 के विद्रोह को भड़काने में धार्मिक अवस्थाओं की भूमिका पर टिप्पणी कीजिये।
उत्तर:
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।
(1) चर्बी वाले कारतूस – सैनिकों को एनफील्ड राइफलें चलाने के लिए दी गयीं, जिनके कारतूसों में चिकनाई लगी होती थी और चलाने से पहले उन्हें दाँतों द्वारा काटना पड़ता था। इस चिकनाई के बारे में कहा गया कि वह गाय और सुअर की चर्बी थी। इस बात से हिन्दू और मुसलमान दोनों सैनिकों ने स्वयं को अंग्रेजों द्वारा धर्मभ्रष्ट करने का षड्यन्त्र समझा और कारतूसों को चलाने से मना कर दिया।

(2) आटे में हड्डियों का चूरा मिला होना बाजार में जो आटा बिक रहा था, उसके बारे में भी यह कहा गया कि इसमें गाय और सुअर की हडियों को पीसकर मिलाया गया है, जो अंग्रेजों द्वारा धर्मभ्रष्ट करने की साजिश थी। शहरों और छावनियों में सिपाहियों और आम लोगों लॉ लागू कर दिया गया। अपितु फौजी अफसरों तथा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने तथा उनको दण्ड देने का अधिकार दे दिया गया। मार्शल लॉ के अन्तर्गत कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी तथा यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विद्रोह की केवल एक ही सजा है— मृत्यु दण्ड

(3) वहशत फैलाना जनता में दहशत फैलाने के लिए विद्रोहियों को सरेआम फाँसी पर लटकाया गया और तोपों के मुँह से बांधकर उड़ा दिया गया।

(4) आम अंग्रेजों को सजा का अधिकार देना- फौजी अफसरों के अतिरिक्त आम अंग्रेजों को भी विद्रोहियों को सजा देने का अधिकार दे दिया गया। विद्रोह की एक ही सजा भी सजा-ए-मौत।

(5) सैन्य शक्ति का प्रयोग 1857 के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने अत्यन्त ही बर्बरतापूर्ण सैनिक कार्य किए। अंग्रेज अधिकारियों ने दिल्ली में बहादुरशाह के उत्तराधिकारियों का बेरहमी से सर कलम कर दिया जबकि बनारस तथा इलाहाबाद में कर्नल नील ने अत्यधिक बर्बरतापूर्ण विद्रोह का दमन किया। अंग्रेजों ने सैन्य शक्ति का प्रयोग करते हुए दिल्ली और अवध पर अधिकार कर लिया।

(6) जागीरें जब्त करना विद्रोही जागीरदारों तथा ताल्लुकदारों की जागीरें जब्त कर ली गई तथा अपने समर्थक जमींदारों को उनकी जागीरें लौटाने का आश्वासन दिया। स्वामिभक्त जमींदारों को पुरस्कार दिए गए। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) –

प्रश्न 6.
अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों शामिल हुए?
उत्तर:
अवध का विलय – 1856 में अंग्रेजों ने अवध का अधिग्रहण कर लिया और वहाँ के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन एवं अलोकप्रियता का आरोप लगाकर उन्हें गद्दी से हटाकर कलकत्ता भेज दिया। अवध में विद्रोह की व्यापकता – अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाये जाने से अवध की जनता में आक्रोश व्याप्त था अवध का नाय जनता में अत्यधिक लोकप्रिय था और लोग उन्हें दिल से चाहते थे नवाब को हटाए जाने से दरबार और उसकी संस्कृति भी समाप्त हो गई।

इसके अतिरिक कई संगीतकारों, कवियों, नर्तकों, कारीगरों, सरकारी कर्मचारियों आदि की रोजी-रोटी भी जाती रही। 1857 के विद्रोह में तमाम भावनाएँ और मुद्दे, परम्पराएं और निष्ठाएँ अभिव्यक्त हो रही थीं। इसलिए बाकी स्थानों के मुकाबले अवध में यह विद्रोह एक विदेशी शासन के खिलाफ लोक-प्रतिरोध की अभिव्यक्ति बन गया था। यही कारण है कि अवध का विद्रोह भारत में सबसे अधिक लम्बे समय तक चला तथा इसका रूप बहुत ही व्यापक था इसमें राजकुमार, ताल्लुकदार, किसान, जमींदार तथा सैनिक सभी वर्ग शामिल थे।

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(1) ताल्लुकदारों का विद्रोह-अवध में ताल्लुकदार बहुत ताकतवर थे तथा नवाब के द्वारा भी उन्हें व्यापक अधिकार प्राप्त थे अंग्रेजों ने नवाब को पदच्युत करने के साथ ताल्लुकदारों को भी बेदखल करना शुरू कर दिया था। उनकी सेनाएँ भंग कर दी थीं, किले ध्वंस कर दिये थे तथा उनकी जमीनों को छीन लिया था।

अंग्रेज ताल्लुकदारों को विचौलिया मानते थे कि उन्होंने बल और धोखाधड़ी के जरिए अपना प्रभुत्व स्थापित कर रखा था इसलिए अंग्रेजों ने अधिग्रहण के बाद 1856 में एकमुस्त बन्दोबस्त के नाम से ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू कर ताल्लुकदारों को जमीनों से बेदखल करना शुरू कर दिया था। इस प्रकार इस व्यवस्था ने ताल्लुकदारों की हैसियत और सत्ता को चोट पहुँचाई थी और ताल्लुकदारों की सत्ता नष्ट होने के कारण उन्होंने विद्रोह किया।

(2) जमींदारों का विद्रोह – जमींदारों की दशा भी दयनीय थी। राजस्व कर बहुत अधिक था तथा निर्धारित लगान की राशि न चुकाने पर उनकी जागीरें नीलाम कर दी जाती थीं। रैयत द्वारा शिकायत करने पर उन पर मुकदमा चलाया जाता था तथा उन्हें गिरफ्तार करके कारावास में डाल दिया जाता था। इससे जमींदारों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचा और वे भी 1857 के विद्रोह में सम्मिलित हो गए।

(3) किसानों का विद्रोह-अवध में ताल्लुकदारों की सत्ता समाप्त करने के लिए भू-राजस्व की एकमुश्त व्यवस्था लागू की गई। इसके बारे में अंग्रेजों की सोच भी कि इससे किसान को मालिकाना हक मिल जायेगा तथा कम्पनी के भू-राजस्व में भी बढ़ोतरी हो जायेगी। कम्पनी के राजस्व में तो इजाफा हुआ, लेकिन किसान की हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गई।

अंग्रेजों के राज में किसान मनमाने राजस्व आकलन तथा गैर लचीली राजस्व व्यवस्था के कारण बुरी तरह से पिसने लगे थे। किसान सोचने लगा कि बुरे वक्त में जहाँ ताल्लुकदार उसकी मदद करते थे, अब अंग्रेजों के राज में यह नहीं हो पायेगा। अब इस बात की कोई गारण्टी नहीं थी कि कठिन समय में अथवा फसल खराब हो जाने पर सरकार राजस्व की माँग में कोई कमी करेगी या वसूली को कुछ समय के लिए स्थगित कर देगी। फलतः बढ़ते राजस्व और गरीबी के कारण किसानों ने 1857 के विद्रोह में सक्रिय भाग लिया।

प्रश्न 7.
विद्रोही क्या चाहते थे? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था?
अथवा
1857 में विद्रोहियों की घोषणाओं का परीक्षण कीजिये। विद्रोही भारत में अंग्रेजी राज से सम्बन्धित प्रत्येक चीज का परित्याग क्यों करते थे? व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह के बारे में हमारे पास विद्रोहियों के कुछ इश्तहार व घोषणाएँ और नेताओं के पत्र हैं, जिनसे उनके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी मिल पाती है। उनके आधार पर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि विद्रोही क्या चाहते थे? यथा –

(1) विद्रोही सामाजिक एकता को स्थापित कर जनविद्रोह चाहते थे 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में, जाति और धर्म का भेद किए बिना, समाज के सभी वर्गों का आह्वान किया जाता था। इस विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था, जिसमें हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों का नफा- नुकसान बराबर था इश्तहारों में अंग्रेजों से पहले के हिन्दू- मुस्लिम अतीत की ओर संकेत किया जाता था और मुगल साम्राज्य के तहत विभिन्न समुदायों के सहअस्तित्व का गौरवगान किया जाता था।

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(2) ब्रिटिश शासन की नीतियों की कटु आलोचना- इन घोषणाओं में ब्रिटिश राज से सम्बन्धित हर चीज को पूरी तरह खारिज किया जा रहा था। देशी रियासतों पर कब्जे और समझौतों का उल्लंघन करने के लिए अंग्रेजों की निन्दा की जाती थी विद्रोही नेताओं का कहना था कि अंग्रेजों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था, विदेशी व्यापार आदि ब्रिटिश शासन के हर पहलू पर निशाना साधा जाता था। विद्रोही अपनी स्थापित और सुन्दर जीवनशैली को दुबारा बहाल करना चाहते थे। वे चाहते थे कि सभी लोग मिलकर अपने रोजगार, धर्म, इज्जत और अस्मिता के लिए लड़ें।

(3) उत्पीड़न के प्रतीकों के खिलाफ बहुत सारे स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह उन तमाम ताकतों के विरुद्ध हमले की शक्ल ले लेता था जो अंग्रेजों के समर्थक या जनता के उत्पीड़क समझे जाते थे। इन शक्तियाँ में शहर के सम्भ्रान्त लोग, सूदखोर आदि शामिल थे। स्पष्ट है कि विद्रोही तमाम उत्पीड़कों के खिलाफ थे और ऊँच- नीच के भेद-भावों को खत्म करना चाहते थे।

(4) ब्रिटिश पूर्व दुनिया की पुनर्स्थापना – विद्रोही नेता 18वीं सदी की पूर्व ब्रिटिश दुनिया को पुनर्स्थापित करना चाहते थे। इन नेताओं ने पुरानी दरबारी संस्कृति का सहारा लिया। आजमगढ़ घोषणा तथा विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में गुणात्मक अन्तर की नगण्यता- 25 अगस्त, 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह के द्वारा जारी की गई आजमगढ़ घोषणा में विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि का अन्तर देखने को मिलता है।

यथा –

  • जमींदार वर्ग-जमींदार वर्ग राजस्व कर में कमी, अपने हितों की रक्षा और सम्मानपूर्ण व्यवहार की आकांक्षा रखता था।
  • व्यापारी वर्ग-व्यापारी वर्ग बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापार पर अंग्रेजों के एकाधिकार की समाप्ति, अनुचित करों की समाप्ति और सम्मानपूर्ण व्यवहार की इच्छा रखता था।
  • सरकारी कर्मचारी – सरकारी कर्मचारी उच्च प्रशासनिक एवं सैनिक पदों पर नियुक्ति चाहते थे। वे चाहते थे कि उन्हें अच्छे वेतन दिए जाएँ।
  • कारीगरों के बारे में कारीगर चाहते थे कि घरेलू उद्योग-धन्धों को नष्ट न किया जाए तथा कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए।
  • धर्मरक्षकों के बारे में पण्डित और फकीर चाहते थे कि ईसाई धर्म प्रचारक हिन्दु धर्म एवं इस्लाम धर्म का उपहास न करें और इन धर्मों का सम्मान करें।
  • सिपाहियों की सोच सैनिक चाहते थे कि उनकी आस्था एवं धर्म पर कुठाराघात न किया जाए। यदि एक हिन्दू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया, तो दुनियाँ में कुछ नहीं बचेगा।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि समाज के सभी वर्गों का यह मानना था कि अंग्रेज उत्पीड़क थे व उनके धर्म को नष्ट करना चाहते थे अतः उनको देश से बाहर निकाल देना चाहिए। सभी वर्गों की सोच में कोई विशेष अन्तर देखने को नहीं मिलता है।

प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह विश्लेषण करते हैं?
उत्तर:
अंग्रेजों और भारतीयों द्वारा तैयार की गई तस्वीरें सैनिक विद्रोह का एक महत्त्वपूर्ण रिकार्ड रही हैं। इन चित्रों के द्वारा हमें 1857 के विद्रोह की घटनाओं की जानकारी मिलती है।

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1. रक्षकों का अभिनन्दन – अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कुछ चित्रों में अंग्रेजों की रक्षा करने वाले तथा विद्रोह को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों की प्रशंसा की गई है। 1859 में विद्रोह के 2 साल बाद टॉमस जोन्स बार्कर के द्वारा बनाया गया चित्र ‘द रिलीफ आफ लखनऊ इसी प्रकार का चित्र है। बार्कर की इस पेन्टिंग में अंग्रेजों को विजय का जश्न मनाते हुए दिखाया गया है। अगले यह चित्र विद्रोहियों द्वारा लखनऊ रेजीडेन्सी के घेरे जाने से सम्बन्धित है। इसके भाग में शव और घायल इस घेरेबंदी के दौरान हुई मारकाट की गवाही देते हैं। मध्य भाग में घोड़ों की विजयी तस्वीरें हैं। इन चित्रों के द्वारा अंग्रेज जनता का अपनी सरकार में विश्वास पैदा होता था।

2. अंग्रेज औरतें तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा भारत में अंग्रेज औरतों और बच्चों के साथ हुई हिंसा की घटनाओं को पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और पाठ सिखाने की माँग करने लगती थी। वहाँ के चित्रकारों ने सदमे और पीड़ा को चिरात्मक अभिव्यक्तियों के द्वारा प्रकट किया। ऐसा ही एक चित्र जोजफ नोएल पेटन ने विद्रोह के दो साल बाद ‘इन मेमोरियम’ बनाया। इसमें विद्रोहियों को हिंसक तथा बर्बर बताया गया है।

3. बहादुर औरतें – चित्र संख्या 11.12 पृष्ठ 310 में कानपुर में मिस व्हीलर को विद्रोहियों से स्वयं की रक्षा करते हुए दिखाया गया है जिसमें वह अकेले ही विद्रोहियों को पिस्तौल से मारकर अपने सम्मान की रक्षा करती है। यहाँ पर अंग्रेज महिला को वीरता की मूर्ति के रूप में दिखाया गया है। चित्र में जमीन पर पड़ी हुई किताब बाइबल है।

4. प्रतिशोध और सबक ऐसे कई चित्र ब्रिटिश प्रेस ने प्रकाशित किए जो निर्मम दमन और हिंसक प्रतिशोध की जरूरत पर जोर दे रहे थे। ‘जस्टिस’ (‘न्याय’) नामक चित्र में हमें ऐसी ही झलक दिखाई देती है, जिसमें एक अंग्रेज औरत हाथ में तलवार और ढाल लिए हुए विद्रोहियों को अपने पैरों से कुचल रही है, उसके चेहरे पर भयानक गुस्सा और प्रतिशोध की तड़प दिखाई पड़ती है। दूसरी और, इसमें भारतीय औरतों और बच्चों की भीड़ डर से काँप रही है। चित्र ‘बंगाल टाइगर से ब्रिटिश शेर का प्रतिशोध’ में अंग्रेजों के भारतीयों पर दमनात्मक कार्य की झलक मिलती है।

5. दहशत का प्रदर्शन – जनता को भयभीत करने के लिए तथा विद्रोही सैनिकों को सबक सिखाने हेतु उन्हें खुले मैदान में तोपों से उड़ाते हुए तथा फाँसी देते हुए चित्रित किया गया है।

6. उदारवादी दृष्टिकोण की आलोचना करना – एक चित्र में लार्ड कैनिंग को ब्रिटिश पत्रिका पंच के एक उदार बुजुर्ग के रूप में दर्शाया गया है। इस चित्र में ब्रिटिश चित्रकार के द्वारा केनिंग के दया भाव की आलोचना की गई है।

7. राष्ट्रवादी दृश्य भारतीय चित्रकारों द्वारा विद्रोह के नेताओं के जो चित्र बनाए गए हैं, उनमें ब्रिटिश शासन के अन्याय को दृढ़ता के साथ प्रदर्शित किया गया है।

8. इतिहासकारों का विश्लेषण – इन चित्रों के माध्यम से उस समय की भावनाओं का पता चलता है। ब्रिटेन में छप रहे चित्रों से उत्तेजित वहाँ की जनता विद्रोहियों को भयानक बर्बरता से कुचलने की आवाज उठा रही थी। दूसरी तरफ, भारतीय राष्ट्रवादी चित्र हमारी राष्ट्रवादी कल्पना को निर्धारित करने में मदद कर रहे थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

प्रश्न 9.
एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्त्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए कि उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल के लिए हम पृष्ठ संख्या 308 पर चित्र संख्या 11.10 पर बने चित्र द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ (लखनऊ की राहत को ले रहे हैं, जिसको चित्रकार टॉमस जोन्स बार्कर ने 1859 में बनाया था। इस चित्र में बार्कर ने ब्रिटिश कमाण्डर कैम्पबेल के आगमन के समय का चित्रण किया है। चित्र के मध्य में कैम्पबेल, ऑट्रम और हेवलॉक तीन नायकों को विजय का जश्न मनाते दिखाया गया है। नायकों के पीछे की ओर टूटी-फूटी लखनऊ रेजीडेंसी को दिखाया गया है।

अगले भाग में पड़े शव और घायल इस पेरेबन्दी के दौरान हुई मारकाट को दिखाते हैं। चित्र के मध्य भाग में खड़े थोड़े इस तथ्य को प्रदर्शित करते हैं कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियन्त्रण पुनः बहाल हो गया है। इन चित्रों से अंग्रेज जनता में अपनी सरकार के प्रति विश्वास पैदा होता था। इन चित्रों के द्वारा उन्हें लगता था कि अब संकट का समय जा चुका है और वे जीत चुके हैं।

इसी तरह के चित्रों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने अपनी दृढ़ता और अपराजयता को प्रदर्शित किया तथा अपनी जनता में विश्वास जगाया। विद्रोह की छवि ब्रिटिश और भारतीय जनता दोनों ने विद्रोह को अपनी-अपनी नजर से देखा। विजेताओं की दृष्टि विद्रोहियों ने विद्रोह करके ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी, जिसे कुचलना शासन का फर्ज बनता था और शासन ने पुनः शान्ति स्थापित करने की जो भी कार्यवाही की, वह उचित है। भारतीयों की दृष्टि इस चित्र के द्वारा विद्रोहियों ने यह दर्शाया कि वे ब्रिटिश सरकार के अत्याचारपूर्ण शासन का अन्त करने के लिए कटिबद्ध थे। उन्होंने अपने सीमित साधनों के बल पर भी शक्तिशाली अंग्रेजों को पराजित कर लखनऊ रेजीडेन्सी पर अधिकार कर लिया। इससे विद्रोहियों के पराक्रमपूर्ण कार्यों, देश-प्रेम, त्याग और बलिदान की भावना प्रकट होती है इसने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया।

विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान JAC Class 12 History Notes

→ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में दोपहर बाद पैदल सेना ने विद्रोह कर दिया। उसके बाद घुड़सवार सेना ने बगावत की। 11 मई को घुड़सवार सेना ने दिल्ली पहुँचकर मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से विद्रोह का नेतृत्व करने की गुजारिश की, जिसे बादशाह ने और कोई विकल्प न पाकर स्वीकार कर लिया। इस प्रकार विद्रोह ने मुगल बादशाह के नाम के साथ वैधता हासिल कर ली।

→ विद्रोह का ढर्रा – हर छावनी में विद्रोह का घटनाक्रम एक समान ही था। जैसे-जैसे खबर फैलती गई, सिपाही विद्रोह करते गये।

I सैन्य विद्रोह की शुरुआत सिपाहियों ने किसी न किसी विशेष संकेत के साथ अपनी कार्रवाई शुरू की। कहीं बिगुल बजाया गया और कहीं तोप का गोला छोड़ा गया। सबसे पहले शस्त्रागारों को लूटा गया और सरकारी खजानों पर कब्जा किया गया; सरकारी दफ्तर, जेल, टेलीग्राफ दफ्तर, रिकार्ड रूम और बंगलों पर हमला किया गया। विद्रोह में आम लोगों के भी शामिल हो जाने से बड़े शहरों में साहूकारों तथा अमीरों पर भी हमले हुए क्योंकि आम जनता उन्हें अंग्रेजी शासन का वफादार और पिट्टू मानती थी।

II संचार के माध्यम अलग-अलग जगह पर विद्रोह के ढर्रे में समानता की वजह आंशिक रूप से उसकी योजना और समन्वय में निहित थी। यथा –

  • एक छावनी से दूसरी छावनी में सिपाहियों के बीच अच्छा संचार बना हुआ था।
  • विद्रोहों में एक योजना और समन्वय था।
  • रात में सिपाहियों की पंचायतें जुड़ती थीं और उनमें सामूहिक रूप से फैसले लिये जाते थे।
  • सिपाही अपने विद्रोह के कर्ता-धर्ता स्वयं ही थे जब वे एकत्र होते थे, तो अपने भविष्य के बारे में फैसले लेते थे।

III. नेता और अनुयायी-अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए नेता और संगठन का होना अतिआवश्यक था।

  • विद्रोहियों ने कई बार ऐसे लोगों की शरण ली, जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे। जैसे- दिल्ली में मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर, कानपुर में नाना साहिब, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई, बिहार में जमींदार कुँवरसिंह, लखनऊ में नवाब के बेटे बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित किया। इन लोगों ने दबाव में अन्य विकल्प न होने पर नेतृत्व स्वीकार किया।
  • आम जनता द्वारा भी नेतृत्व किया गया। जैसे – बहुत सारे धार्मिक नेता तथा स्वयं भू पैगम्बर- प्रचारक भी ब्रिटिश राज्य को खत्म करने की अलख जगा रहे थे।
  • कई स्थानीय नेताओं, जैसे – उत्तरप्रदेश के बड़ौत परगने में शाहमल ने तथा छोटा नागपुर में आदिवासी कोल जाति का नेतृत्व गोनू नामक व्यक्ति ने किया।

IV. अफवाहें और भविष्यवाणियाँ – विद्रोह के समय में तरह-तरह की अफवाहों और भविष्यवाणियों ने जनता को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उठ खड़े होने को उकसाया। जैसे –
(क) कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगे होने की बात से सिपाहियों को भड़काना।
(ख) बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिला होना।
(ग) इस भविष्यवाणी ने भी लोगों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया कि प्लासी के युद्ध के 100 साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज खत्म हो जायेगा।
(घ) गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटी गई। रात में एक आदमी गाँव के चौकीदार को एक चपाती देकर पाँच और चपातियाँ बनाकर अगले गाँवों में पहुँचाने का निर्देश दे जाता था। लोग इसे किसी आने वाली उथल-पुथल का संकेत मान रहे थे।
V. लोगों द्वारा अफवाहों में विश्वास- अफवाहें तभी फैलती हैं, जब उनमें लोगों के दिमाग और मन के अन्दर छिपे हुए डर की आवाज सुनाई देती है।

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1857 की अफवाहों के विश्वास के पीछे 1820 के दशक से अंग्रेजों द्वारा किए गए अनेक कार्य थे यथा –

  • सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करना एवं विधवा विवाह को कानूनी जामा पहनाना।
  • अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय खोलना।
  • शासकीय कमजोरी और दत्तकता को अवैध घोषित करके अंग्रेजों द्वारा अवध, झाँसी, सतारा तथा अन्य रियासतों को कब्जे में लेना तथा अंग्रेजी ढंग की शासन व्यवस्था लागू करना।
  • सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाजों में दखल देना।
  • नई भू-राजस्व व्यवस्था लागू करना।
  • ईसाई प्रचारकों द्वारा हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के विरुद्ध अनर्गल प्रचार करना। इन कार्यों व नीतियों से लोगों में यह भय व्याप्त हो गया कि अंग्रेज भारत में ईसाई धर्म फैलाना चाह रहे हैं। इसलिए उन्होंने अफवाहों तथा भविष्यवाणियों को ज्यादा महत्त्व दिया।

→ अवध में विद्रोह सन् 1801 से अवध में सहायक संधि थोपी गई, जिसके कारण नवाब की शक्ति कमजोर होती गई। ताल्लुकदार और विद्रोही मुखिया नवाब के नियंत्रण में नहीं रहे। 1850 के दशक की शुरुआत तक भारत के अधिकांश हिस्सों पर अंग्रेजों को जीत हासिल हो गई थी। मराठा भूमि, दोआय, पंजाब, बंगाल सब अंग्रेजों के कब्जे में थे। 1856 में अवध को भी औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित कर दिया।

I “देह से जान जा चुकी थी डलहौजी द्वारा अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन और अलोकप्रियता का आरोप लगाकर उन्हें गद्दी से हटाकर कलकता भेज दिया गया। लेकिन बजिद अली शाह अलोकप्रिय नहीं थे बल्कि लोकप्रिय थे इसीलिए जब नवाब को लखनऊ से कानपुर ले जाया जा रहा था, तो बहुत सारे लोग उनके पीछे विलाप करते हुए कानपुर तक गये प्रथमतः, नवाब के निष्कासन से दुःख और अपमान का एहसास हुआ। दूसरे, नवाब के हटाये जाने से दरबार और उसकी संस्कृति खत्म हो गयी। तीसरे, संगीतकारों, नर्तकों, कवियों, कारीगरों, बावर्चियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों और बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी चली गई।

II फिरंगी राज का आना तथा एक दुनिया की समाप्ति अवध में विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं से राजकुमार, ताल्लुकदार, किसान एवं सिपाही एक-दूसरे से जुड़ गये थे वे सभी फिरंगी राज के आगमन को विभिन्न अर्थों में एक दुनिया की समाप्ति के रूप में देखने लगे थे अंग्रेजी सत्ता की स्थापना से सभी के सामने संकट पैदा हो गया था। यथा –

  • ताल्लुकदारों की शक्ति को नष्ट करने के लिए उन्हें जमीन से बेदखल किया गया। उनकी सेना व किले नष्ट कर दिए गए।
  • किसानों पर कर का बोझ बहुत ज्यादा लाद दिया गया।
  • दस्तकारों और कारीगरों के सामने जीवनयापन का संकट पैदा हो गया क्योंकि अंग्रेजी माल के आने से उनकी रोजी-रोटी छिन गई।
  • ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से एक पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग हो गई।
  • सिपाहियों को कम वेतन मिलता था तथा समय पर छुट्टियाँ भी नहीं मिलती थीं। इन कारणों से सिपाही भी असन्तुष्ट थे विद्रोह से पूर्व सैनिकों और गोरे अफसरों के बीच मैत्रीपूर्ण व्यवहार था लेकिन 1840 के दशक में यह व्यवहार बदलने लगा। अफसर सैनिकों के साथ बदसलूकी करने लगे थे। दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ने लगी थीं।
  • उत्तर भारत में सिपाहियों और ग्रामीणों के बीच गहरे सम्बन्ध थे। इन सम्बन्धों से जन-विद्रोह के रूप-रंग पर गहरा असर पड़ा।

3. विद्रोही क्या चाहते थे?
विद्रोहियों के कुछ इश्तहारों व घोषणाओं से हमें विद्रोहियों के बारे में जो थोड़ी जानकारी ही प्राप्त हो पाती है, वह इस प्रकार है-
(i) एकता की कल्पना – 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में जाति या धर्म का भेद किए बिना आम आदमी का आह्वान किया जाता था। बहादुरशाह जफर के नाम से जारी घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई देते हुए आम जनता को विद्रोह में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया। 25 अगस्त, 1857 को जारी की गई आजमगढ़ घोषणा इसका उदाहरण है।

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(ii) उत्पीड़न के प्रतीकों के खिलाफ विद्रोहियों द्वारा की गई घोषणाओं में उन सब चीजों की खिलाफत की जा रही थी, जो ब्रिटिश राज से सम्बन्धित थीं। विद्रोही नेताओं का मानना था कि अंग्रेजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे एकत्र होकर अपने रोजगार, धर्म, इज्जत और अस्मिता के लिए लड़ें। यह ‘व्यापक सार्वजनिक भलाई’ की लड़ाई होगी। बहुत जगहों पर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह उन तमाम ताकतों के खिलाफ हमले का रूप धारण कर लेता था, जिन्हें अंग्रेजों का हिमायती या जनता का उत्पीड़क माना जाता था। गाँवों में सूदखोरों के बहीखाते जला दिए गए, उनके घरों में तोड़-फोड़ की गई। इससे स्पष्ट होता है कि विद्रोही तमाम उत्पीड़कों के खिलाफ थे और ऊँच-नीच के परम्परागत सोपानों को खत्म करना चाहते थे।

(iii) वैकल्पिक सत्ता की तलाश- ब्रिटिश शासन ध्वस्त हो जाने के बाद दिल्ली, लखनऊ और कानपुर में विद्रोहियों द्वारा एक प्रकार की सत्ता और शासन संरचना को स्थापित करने का प्रयास किया गया। उनकी इन कोशिशों से हमें ज्ञात होता है कि वे 18वीं शताब्दी से पूर्व की सत्ता स्थापित करना चाहते थे विद्रोही अठारहवीं सदी के मुगल जगत् से ही प्रेरणा ले रहे थे। यह जगत् उन तमाम चीजों का प्रतीक बन गया, जो उनसे छिन चुकी थीं। विद्रोहियों द्वारा स्थापित शासन संरचना का प्राथमिक उद्देश्य युद्ध की आवश्यकताओं को पूरा करना था लेकिन अधिकांश मामलों में ये अंग्रेजों का मुकाबला करने में असफल सिद्ध हुई अंग्रेजों के खिलाफ अवध में विद्रोह सबसे अधिक समय तक चला।

→ दमन-अंग्रेजों को इस विद्रोह को दबाने में बहुत ताकत का प्रयोग करना पड़ा। यथा –

  • मई-जून, 1857 में कई कानून पारित किए गए, जिनके आधार पर सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू किया गया। फौजी अफसरों के अलावा आम अंग्रेजों को भी हिन्दुस्तानियों को सजा देने का हक दे दिया गया। कानून और मुकदमे की साधारण प्रक्रिया बन्द कर दी गई और यह स्पष्ट कर दिया गया कि विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है – सजा-ए-मौत।
  • नये कानूनों और ब्रिटेन से मँगाई गई नयी सैनिक टुकड़ियों की मदद से विद्रोह को कुचलने का काम शुरू किया गया।
  • अंग्रेजों ने सैनिक ताकत के प्रयोग के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के भू-स्वामियों की ताकत को कुचलने के लिए कूटनीति अपनाई। उन्होंने बड़े जमींदारों को आश्वासन दिया कि अंग्रेजों का साथ देने पर उन्हें उनकी जागीरें लौटा दी जायेंगी। अंग्रेजों के प्रति बफादारी दिखाने वालों को पुरस्कृत किया गया तथा विद्रोह करने वाले जमींदारों से उनकी जमीनें छीन ली गई।

→ विद्रोह की छवियाँ – ब्रिटिश अखबारों और पत्रिकाओं में इस विद्रोह की जो कहानियाँ छपी हैं, उनमें सैनिक विद्रोहियों द्वारा की गई हिंसा को बड़े लोमहर्षक शब्दों में छापा जाता था ये कहानियाँ ब्रिटेन की जनता की भावनाओं को भड़काती थीं तथा प्रतिशोध और सबक सिखाने की माँगों को हवा देती थीं। समस्त उपलब्ध तथ्यों के आधार पर विद्रोहियों की निम्नलिखित छवियाँ उभरती हैं –

(i) रक्षकों का अभिनन्दन- अंग्रेजों ने विद्रोह के जो चित्र बनाए हैं, वे दो प्रकार के हैं – कुछ में अंग्रेजों को बचाने और विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों का गुणगान किया गया है। कुछ चित्रों में यह दिखाया गया है कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियंत्रण बहाल हो चुका है। इनसे यह लगता है कि विद्रोह खत्म हो चुका हैं और अंग्रेज जीत चुके हैं।

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(ii) अंग्रेज औरतें तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा – भारत में औरतों और बच्चों के साथ हुई हिंसा की कहानियों को पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग करने लगी। कलाकारों ने सदमे और पीड़ा की अपनी विशत्मक अभिव्यक्तियों के द्वारा इन भावनाओं को रूप दिया। इन चित्रों में भी विद्रोहियों को हिंसक और बर्बर बताया गया है और ब्रिटिश टुकड़ियों को रक्षक के तौर पर बढ़ते हुए तथा अंग्रेज औरतों को विद्रोहियों के हमले से बचाव करने वाली वीरता की मूर्ति के रूप में दिखाया गया है।

(iii) प्रतिशोध और सबक – जैसे-जैसे ब्रिटेन में गुस्से और शोक का माहौल बनता गया, वैसे-वैसे लोगों में प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग जोर पकड़ने लगी। ब्रिटिश प्रेस में असंख्य दूसरी तस्वीरें और कार्टून थे, जो निर्मम दमन और हिंसक प्रतिशोध की जरूरत पर जोर दे रहे थे।

(iv) दहशत का प्रदर्शन – प्रतिशोध और सबक सिखाने के लिए विद्रोहियों को खुले में फांसी पर लटकाया गया तथा तोपों के मुहाने पर बाँध कर उड़ाया गया, जिससे लोगों में दहशत फैले। इन सजाओं की तस्वीरें आम पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा दूर-दूर तक पहुँचाई गई, जिससे ब्रिटिश शासन की अपराजेयता में लोगों का विश्वास पैदा हो सके।

(v) दया के लिए कोई जगह नहीं-गवर्नर जनरल लॉर्ड केलिंग द्वारा नरमी के सुझाव पर उसका मजाक उड़ाया गया। ब्रिटिश पत्रिका ‘पन्च’ में उसका कार्टून छापा गया, जिसमें केनिंग को एक भव्य बुजुर्ग के रूप में दिखाया गया है, जो एक विद्रोही सैनिक के सिर पर हाथ रखे है।

(vi) राष्ट्रवादी दृश्य कल्पना – बीसवीं सदी में राष्ट्रवादी आन्दोलन को इस 1857 के घटनाक्रम से काफी प्रेरणा मिली। इसको प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के रूप में याद किया जाता है, जिसमें देश के हर तबके के लोगों ने साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी इतिहास लेखन की भांति कला और साहित्य ने भी 1857 की याद को जीवित रखा। विद्रोह के नायक-नायिकाओं पर कविताएँ लिखी गई। उन्हें वीर योद्धा के रूप में चित्रित किया गया। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता ‘खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ आज भी हममें जोश भर देती है। इसके अतिरिक्त भारतीय राष्ट्रवादी चित्रों ने हमारी राष्ट्रवादी कल्पना को साकार रूप दिया।

काल-रेखा
1801 अवध में वेलेजली द्वारा सहायक संधि लागू की गई।
1856 नवाब वाजिद् अली शाह को गद्दी से हटाया गया, अवध का अधिग्रहण।
1856-57 अंग्रेजों द्वारा अवध में एकमुश्त लगान बन्दोबस्त लागू।
1857,10 मई मेरठ में सैनिक विद्रोह।
1857 दिल्ली रक्षक सेना में विद्रोह : बहादुरशाह सांकेतिक नेतृत्व स्वीकार करते हैं।
11-12 मई अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, एटा में सिपाही विद्रोह। लखनक में विद्रोह।
20-27 मई सैनिक विद्रोह एक व्यापक जनविद्रोह में बदल जाता है।
30 मई चिनहट के युद्ध में अंग्रेजों की हार होती है।
मई-जून हेवलॉक और ऑट्रम के नेतृत्व में अंग्रेजों की टुकड़ियाँ लखनऊ रेजीडेन्सी में दाखिल होती हैं।
30 जून युद्ध में रानी झाँसी की मृत्यु।
25 सितम्बर युद्ध में शाहमल की मृत्यु।
1858 अवध में वेलेजली द्वारा सहायक संधि लागू की गई।
जून नवाब वाजिद् अली शाह को गद्दी से हटाया गया, अवध का अधिग्रहण।
जुलाई अंग्रेजों द्वारा अवध में एकमुश्त लगान बन्दोबस्त लागू।

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