JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

JAC Class 10 Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर :
मनुष्य का जीवन कल्पनाओं के आधार पर नहीं टिकता। वह जीवन के कठोर धरातल पर स्थित होकर आगे गति करता है। पुरानी सुख भरी यादों से वर्तमान दुखी हो जाता है; मन में पलायनवाद के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। उसे कठिन यथार्थ से आमना-सामना करके ही आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। इसलिए कवि ने जीवन की कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने की बात कही है।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए –
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर :
कवि ने माना है कि हर मनुष्य अपने जीवन में धन-दौलत और सुखों की प्राप्ति करना चाहता है, पर सबके लिए ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। वह उसके लिए मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होकर रह जाता है। उसे केवल सुखों के प्राप्त हो जाने का झूठा आभास होता है। वह उसे प्राप्त नहीं कर पाता। इस कारण उसका हृदय पीड़ा से भर जाता है। हर चाँदनी रात के पीछे जिस तरह अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है, उसी प्रकार हर सुख के बाद दुख का भाव भी निश्चित रूप से छिपा रहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर :
‘छाया’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है, जो भ्रम और दुविधा की स्थिति को प्रकट करता है। यह सुखों के भावों को प्रकट करता है, जो मनुष्य के जीवन में सदा नहीं रहते। सुख-दुख मानव-जीवन के अंग हैं। जब दुख का भाव जीवन में आता है, तब मनुष्य बार-बार उन सुखों को याद करता है जिन्हें उसने कभी प्राप्त किया था। दुख की घड़ियों में सुखद समय की स्मृतियों में डूबने से उसके दुख दोगुने हो जाते हैं। इसलिए कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर :
कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशेष प्रयोग किया है, जैसे
(i) सुरंग सुधियाँ – यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता।
(ii) छवियों की चित्र-गंध – सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता।
(iii) तन-सुगंध – सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता।
(iv) जीवित-क्षण – समय की सकारात्मकता की विशिष्टता।
(v) शरण-बिंब – जीवन में आधार बनने की विशिष्टता।
(vi) यथार्थ कठिन – जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता।
(vii) दुविधा-हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता।
(viii) शरद्-रात – रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(ix) रस-बसंत – बसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं ? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
अथवा
प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है? ‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘धोखा’ या ‘भ्रम’। जो न होकर भी होने को प्रकट करता है, वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख-संपदाओं की प्राप्ति से होने वाले मानसिक सुख के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो, पर उनसे मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति होना संभव नहीं होता; भले ही उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहे।

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प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ – यह भाव कविता की किस पंक्ति से झलकता है?
उत्तर :
कवि ने ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ के लिए अपनी कविता में जिस पंक्ति का प्रयोग किया है, वह है
‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हर व्यक्ति का जीवन सुख और दुखों के मेल से बना है। सुख के बाद दुख आते हैं, तो दुखों के बाद सुख। हमें सुख आनंद का अहसास करवाते हैं, तो दुख पीड़ा देते हैं। हम पीड़ा से मुक्ति पाने की चेष्टा करते हैं और सुख की घड़ियों को बार-बार याद करने लगते हैं, जिससे पीड़ा कम होने की अपेक्षा बढ़ जाती है; वह दोगुनी हो जाती है। हम धन-दौलत प्राप्त कर अपना जीवन सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं, पर धन की प्राप्ति से सभी सुख प्राप्त नहीं होते। सुख का आधार मन की शांति है। हमें मन की शांति के लिए : प्रयत्नशील होना चाहिए। जो बातें बीत चुकी हों, उन्हें भुला देना चाहिए और सुखद भविष्य के लिए प्रयासरत हो जाना चाहिए। दुख के कारण पुरानी सुखद बातों को मन-ही-मन दोहराते नहीं रहना चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ सँजो रखी हैं?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति के मन में अनेक मधुर स्मृतियाँ छिपी रहती हैं, जो समय-समय पर प्रकट होती हैं। जब वे याद आती हैं, तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था, तब मेरी बुआ जी मेरे जन्मदिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि वे एक साथ इतने उपहार क्यों ले आई हैं? उन्होंने मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थीं और मेरे जन्मदिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षों के दस उपहार मुझे एक साथ दे रही हैं।

उपहार भी एक से बढ़कर एक थे। मैं खुशी से झूम उठा। आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है, जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता। एक बार मैं पैदल स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया, तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा दिया।

छुट्टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला, वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी चला। इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहाँ चला गया। मैंने उसे ढूँढ़ने की कोशिश की, पर फिर वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं, पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।

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प्रश्न 9.
“क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं ? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर
समय का विशेष महत्व है। इसके बीत जाने पर हमें प्रायः दुख ही उठाना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह लगातार आगे भागता जाता है। यदि हम इसके एक-एक क्षण को व्यर्थ गँवा देते हैं, तो हमारा कल्याण संभव नहीं हो सकता। कहा भी तो जाता है –

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’

प्राय: माना जाता है कि धन सबसे कीमती वस्तु है, पर यदि ध्यान से सोचा जाए तो समय धन से भी अधिक उपयोगी और मूल्यवान है। धन से हर वस्तु खरीदी जा सकती है, पर समय नहीं खरीदा जा सकता। यह घड़ी की टिक-टिक के साथ भागता जाता है। यदि किसी बीमार व्यक्ति को समय पर उपचार न मिले, तो उसका जीवन नहीं बचाया जा सकता। यदि समय पर विद्यार्थी पढ़ाई न करें, तो वे परीक्षा में पास नहीं हो सकते। यदि किसान समय पर अपने खेत की सिंचाई न करे, तो उसे उपज प्राप्त नहीं हो सकती।

रेलगाड़ी, बस, वायुयान आदि किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समय चूक जाने पर वे अपने गंतव्य की ओर चले जाते हैं। यदि किसी उपलब्धि की हमें समय के बाद प्राप्ति हो भी जाती है, तो उसका कोई उपयोग नहीं रहता। फ़सल के सूख जाने के बाद वर्षा हो भी जाए तो उसका क्या लाभ? हमें चाहिए कि हम हर कार्य उचित समय पर ही करें, ताकि इससे समय की उपलब्धि की उपादेयता बनी रहे।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर :
48, दुग्गल कॉलोनी,
कानपुर
15 सितंबर, 20……
प्रिय अंकुश,
मुझे तुम्हारा पत्र बहुत पहले प्राप्त हो गया था, पर मैं समय पर उसका उत्तर नहीं दे पाया। मुझे इस बात का खेद है। वास्तव में पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसा घटित हुआ, जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी।

तुम्हें याद होगा कि मैंने अपने एक मित्र से तुम्हारा परिचय करवाया था, जब तुम पिछली छुट्टियों में घर आए थे। उसका नाम कपिल था। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ता था और प्रायः मेरे घर आया करता था। वह होस्टल में रहता था। उसके माता-पिता किसी दूर के गाँव मम्मी-पापा उसे अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे। यदि मेरे लिए वे बाजार से कुछ लाते थे, तो उसके लिए लाना नहीं भूलते थे।

कहते थे कि कितना होनहार बच्चा है! होशियार है, मीठा बोलता है, भोला-भाला है। पिछले सप्ताह उसने अपने गाँव के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमारे घर में चोरी कर ली। हमारा लगभग पाँच लाख रुपये का नुकसान हो गया है। उसे हमारे घर की एक-एक चीज़ पता थी। लगभग हर रोज़ वह हमारे घर आता था। अगले महीने रीमा दीदी की शादी है, इसलिए घर में उसके दहेज का नया सामान था; नकदी थी।

वह सब चोरी चला गया। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ, जब पुलिस ने उसे उसके गाँव से पकड़कर हमारे सामने खड़ा कर दिया। उसने अपना अपराध कबूल कर लिया है, पर न तो उसके साथी पुलिस की पकड़ में आए हैं और न ही हमारा सामान बरामद हुआ। शायद हमारा सामान हमें वापस मिल जाए। उसकी शक्ल कितनी भोली थी, पर वह मन का कितना काला निकला! सच है कि हम लोगों के बारे में सोचते कुछ हैं, वे निकलते कुछ हैं। अच्छा, बाकी बातें अगली बार।
अंकल-आंटी को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
तुम्हारा मित्र
अनुज

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प्रश्न 2.
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

यह भी जानें –

प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome’ का हिंदी अनुवाद ‘हम होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली सनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

शब्दार्थ : छाया – भ्रम, दुविधा, पुरानी सुखद बातें। दूना – दोगुना। सुरंग – रंग-बिरंगी। सुधियाँ – यादें। सुहावनी – सुंदर। छवियों की चित्रगंध – चित्र की स्मृति के साथ उसके आस-पास की गंध का अनुभव। मनभावनी – मन को अच्छी लगने वाली। तन-सुगंध – शरीर की सुगंध। शेष – बाकी, पीछे। यामिनी – तारों भरी चाँदनी रात। कुंतल – लंबे बाल। छुअन – स्पर्श।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य–पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता छाया मत छूना से लिया गया है, जिसके रचयिता गिरिजाकुमार माथुर हैं। कवि ने पुरानी सुखद बातों को बार-बार याद करने को उचित नहीं माना, क्योंकि ऐसा करने से जीवन में आए दुख दोगुने हो जाते हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन! तू पुरानी सुख भरी यादों को बार-बार अपने मन में मत ला; उन्हें याद मत कर। ऐसा करने से मन में छिपा दुख बढ़कर दोगुना हो जाएगा। हम मनुष्यों के जीवन में न जाने कितनी सुख भरी यादें होती हैं। वे सुखद रंग-बिरंगी छवियों की झलक और उनके आस-पास मधुर यादों की गंध सदा मन को मोहती हैं। वे सदा अच्छी लगती हैं।

जब सुखद समय बीत जाता है, तब केवल शरीर की मादक-मोहक सुगंध ही यादों में शेष रह जाती है। जब तारों से भरी सुखद चाँदनी रात बीत जाती है, तब यादें शेष रह जाती हैं। लंबे सुंदर बालों में लगे फूलों की याद ही चाँदनी के समान मन में छाई रहती हैं। सुख भरे समय में भूल से किया गया एक स्पर्श भी जीवित क्षण के समान सुंदर और मादक प्रतीत होता है। उसे भुलाने की बात मन में कभी नहीं आती। वही सुखद पल जीवन के लिए सुखदायी बनकर मन में छिपा रहता है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
2. ‘छाया मत छूना’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
3. जीवन में किसकी पोहक यादें फैली थी?
4. ‘चित्र-गंध’ क्या है?
5. यामिनी बीतने का क्या अर्थ है ?
6. ‘कुंतल के फूल’ क्या हैं ?
7. ‘चाँदनी’ किसकी प्रतीक है?
8. ‘हर जीवित क्षण’ क्या है?
9. ‘शेष रही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख और दुख को जीवन का आवश्यक हिस्सा माना है। मनुष्य को जीवन में दुख आने की स्थिति में सुखों को याद नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे दुख कम नहीं होते बल्कि दोगुने हो जाते हैं।
2. ‘छाया मत छूना’ से तात्पर्य पुरानी सुखद बातों को याद न करने से है।
3. जीवन में सुखों की मोहक यादें फैली थीं।
4. मधुर यादों के साथ उसके आस-पास फैली गंध का अनुभव।
5. सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना।
6. ‘कुंतल के फूल’ प्रतीकात्मक शब्द हैं; जो सुखद घड़ियों को प्रकट करते हैं।
7. ‘चाँदनी’ प्रेम भरे क्षणों को व्यक्त करने वाला प्रतीकात्मक शब्द है। यह सुख की घड़ियों को प्रकट करता है।
8. ‘हर जीवित क्षण’ सख का अहसास करवाने वाला मधुर पल है।
9. प्रेमरूपी सुगंध का बना रहना ही ‘शेष रही’ को प्रकट करता है।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्नोत्तर –

(क) ‘छाया मत छूना’-कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(ख) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का क्या तात्पर्य है?
(ग) ‘कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी’ में कवि को कौन सी यादें कचोटती हैं?
उत्तर :
(क) ‘छाया मत छूना’ से कवि का तात्पर्य पुरानी सुखद यादों और बातों को याद न करने से है।
(ख) जीवन में सुखों की मोहक यादें फैली थी, जिसकी मधुर यादों के साथ उसके आस-पास फैली गंध अत्यंत मनभावनी लगती है।
(ग) ‘कुंतल के फूल’ प्रतीकात्मक शब्द है; जो सुखद घड़ियों को प्रकट करता है। यहाँ कवि को सुख का अहसास करवाने वाले मधुर पलों की यादें कचौटती हैं।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि के भावों को गहनता-गंभीरता किसने प्रदान की है?
3. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
5. किस बिंब का प्रयोग है?
6. कौन-सा काव्य-रस विदयमान है?
7. किस छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है?
8. किस काव्य-गुण का प्रयोग हुआ है ?
9. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
10. दो तत्सम शब्द लिखिए।
11. दो तद्भव शब्द लिखिए।
12. यह कविता किस काव्य-धारा से संबंधित है?
13. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख की घड़ियों में मन पर पड़ने वाले आनंद के भावों का प्रभाव प्रस्तुत किया है। उसका मानना है कि सुख के भावों को दुख की घड़ियों में याद करने से दुख बढ़ता है; घटता नहीं है।
2. प्रतीकात्मकता के प्रयोग ने कवि के भावों को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
3. खड़ी बोली का प्रयोग है।
4. तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है।
5. मानस बिंब का प्रयोग है।
6. वियोग श्रृंगार रस है।
7. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. प्रसाद गुण विद्यमान है।
9. लक्षणा शब्द-शक्ति है।
10. कुंतल, चित्रगंध।
11. फूल, मन।
12. छायावाद
13. अनुप्रास –
दुख दूना, सुरंग सुधियां सुहावनी

उपमा –
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण।

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2. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ : वैभव – संपदा, धन-दौलत, संपत्ति। सरमाया – पूँजी। प्रभुता का शरणे बिंब – बड़प्पन का अहसास। भरमाया – भ्रम में पड़ना। मृगतृष्णा – भ्रम, धोखा। चंद्रिका – चाँदनी। कृष्णा – काली, अमावस्या। यथार्थ – वास्तविक। कठिन – मुश्किल। पूजन – पूजा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुख और सुख तो आते रहते हैं, पर दुख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन! जीवन में आने वाले दुखों के समय छायारूपी सुख को मत छूना, क्योंकि इससे दुख कम नहीं होता बल्कि वह दोगुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान-शौकत है और न ही धन-दौलत; न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूँजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है, उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चाँदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन! जो अति कठिन सच्चाई है; वास्तविकता है, तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. दुख क्यों दोगुना लगने लगता है?
3. कवि ने किन अभावों को प्रकट किया है?
4. ‘भरमाया’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
5. ‘मृगतृष्णा’ क्या है?
6. ‘चंद्रिका’ में छिपा प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. ‘कृष्णा’ शब्द से कवि किसकी ओर संकेत करता है?
8. ‘यथार्थ कठिन’ क्या है?
9. ‘पूजन’ में निहित अर्थ को प्रकट कीजिए।
10. छाया से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि ने कहा है कि दुख की घड़ियों में बीते समय के सुखों को याद करने से दुख कम नहीं होते बल्कि बढ़ जाते हैं। हर व्यक्ति सुख पाना चाहता है; धन-दौलत प्राप्त करना चाहता है। पर जितना हम सुखों के पीछे भागते हैं, वे उतने ही मृगतृष्णा सिद्ध होते हैं। हमें उनकी प्राप्ति सरलता से नहीं होती। हर सुख के पीछे दुख दो अवश्य छिपा रहता है। हमें जीवन की कठोर सच्चाइयों को ही मन में रखना चाहिए।
2. जब जीवन में दुख की घड़ियाँ आने पर हम पिछले सुखों के बारे में सोचने लगते हैं, तब दुख दोगुना लगने लगता है।
3. कवि ने मान-सम्मान, धन-दौलत और सुखों की पूँजी के अभाव को प्रकट किया है।
4. ‘भरमाया’ का अर्थ है-‘भ्रम में पड़ना’। सुखों को प्राप्त करने के लिए हम जितनी अधिक भाग-दौड़ करते हैं, ये उतना ही अधिक हमें भ्रम में डालते जाते हैं। इससे हमारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।
5. ‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है-‘भ्रम’ या ‘धोखा’। जो न होकर भी होने का आभास करवाता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता को पाने की इच्छा के लिए कवि ने इस शब्द का प्रयोग किया है।
6. ‘चंद्रिका’ का शाब्दिक अर्थ चाँदनी है, पर कवि ने इसे सुखों के रूप में प्रयुक्त किया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में सुखरूपी चाँदनी को प्राप्त करना चाहता है।
7. ‘कृष्णा’ शब्द से कवि ने दुखरूपी अमावस्या का बोध करवाया है। कवि कहता है कि हर व्यक्ति के जीवन में दुखों का आना-जाना लगा रहता है।
8. ‘यथार्थ कठिन’ जीवन की वह सच्चाई है, जिसे हर व्यक्ति को झेलनी पडती है। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सखी बनाने की चेष्टा इससे ही संबंधित है।
9. ‘पूजन’ प्रतीक शब्द है, जो कठोर परिश्रम में स्वयं को लगा देने के लिए प्रयुक्त किया है। यह निष्ठा और लगन का भी प्रतीक है। इसके पीछे आस्था का भाव छिपा हुआ है।
10. छाया से तात्पर्य पुरानी सुखद यादों को स्मरण करना है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव व्यक्त कीजिए।
2. किस बोली से भावों को अभिव्यक्त किया गया है?
3. किस प्रकार की शब्द-योजना की प्रधानता है?
4. भावों की गहनता का आधार क्या है?
5. किसने कथन को गंभीरता प्रदान की है?
6. किस छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है?
7. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
8. दो तत्सम और दो तद्भव शब्द चुनकर लिखिए।
9. इसमें कौन-सी शैली प्रयुक्त की गई है?
10. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
11. प्रतीक छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने स्वीकार किया है कि जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। किसी के भी जीवन में केवल सुख नहीं रहते, बल्कि हर सुख के पीछे दुख निश्चित रूप से लगा रहता है।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
4. प्रतीकात्मकता।
5. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है, जिससे कथन में गंभीरता उत्पन्न हुई है।
6. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. तत्सम –
प्रभुता, मृगतृष्णा

तद्भव –
छाया, दुख

9. छायावादी।

10. अनुप्रास –
होगा दुख दूना
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन

11. (i) रात कृष्णा –
दुख-दीनता

(ii) छाया –
पुरानी यादें और भविष्य की कामनाएँ

(ii) चंद्रिका –
सुख-वैभव

(iv) मृगतृष्णा –
धोखा/मन का भटकाव

(v) दौड़ना –
सांसारिक तृष्णाएँ

(vi) कृष्णा –
निराशा/पीड़ा

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3. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत महीं।
दुख है न चांद खिला शरद-गा आने पर,
क्या हुआ जो खिल पूल रस-बसंत्त जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भखिष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ : दुविधा-हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधा-ग्रस्त रहना। पंथ – रास्ता। शरद-रात – सर्दियों की रात। भविष्य वरण – आने वाले समय के सुखों का चुनाव।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार, माथुर हैं। कवि ने प्रेरणा दी है कि पुराने सुखों की याद में हर पल डूबे रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुखों की छाया बढ़ती है। परिश्रम करते हुए भविष्य को सँवारने की चेष्टा करना ही सदा अच्छा होता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन ! दुख और निराशा की घड़ियों में बीते हुए सुखों को याद मत कर। ऐसा करने से वर्तमान के दुख बढ़ जाते हैं। हम अपने जीवन में अकारण ही निराशा के भावों से भरे रहते हैं। साहस होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं। हमें अपने जीवन की राह दिखाई नहीं देती। भौतिक धन-दौलत से हम शारीरिक सुख-उपभोग तो प्राप्त कर लेते हैं, पर हमारे मन में व्याप्त दुखों का अंत नहीं होता। हमारे मन में दुख के भाव इतने अधिक हैं कि सुखों के आने का पता ही नहीं चलता।

शरद् ऋतु के साफ़-स्वच्छ आकाश में रात के समय चाँदरूपी सुख की चाँदनी दिखाई ही नहीं देती। मन की निराशा उसे प्रकट नहीं होने देती। बसंत ऋतु बीत जाने पर यदि फूल खिला भी, तो उसका क्या लाभ। भाव है कि किसी सुख के बीत जाने पर यदि उसका आभास हुआ भी, तो उसका कोई लाभ नहीं है। हे मन! तुम्हें जो जीवन में अभी तक नहीं मिला उसे भविष्य में प्राप्त कर; परिश्रम कर और सुख-दुख से दूर होकर मनचाहा प्राप्त कर। तू दुख की घड़ियों में सुख के क्षणों को याद मत कर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. ‘दुविधा हत साहस’ क्या है?
3. ‘पंथ’ में निहित अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
4. सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी हमें किसके अंत का पता नहीं होता?
5. ‘न चाँद खिला’ से क्या तात्पर्य है?
6. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
7. ‘भविष्य वरण’ का क्या अर्थ है ?
8. देह का सुख किससे प्राप्त करने की ओर संकेत किया गया है?
9. ‘फूल का खिलना’ किस बात का बोध कराता है ?
उत्तर :
1. कवि ने स्पष्ट किया है कि जब मन में उत्साह की कमी हो; वह दुख और पीड़ा के भावों से भरा हुआ हो, तब उसे अपने जीवन की राह साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देती। मन के कष्टों को भुलाकर मनुष्य को भविष्य के सुखों की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
2. ‘दुविधा हत साहस’ से तात्पर्य है-‘साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना’।
3. ‘पंथ’ से तात्पर्य हमारे जीवन के उन उद्देश्यों से है, जिन्हें दुविधाग्रस्त होने के कारण हम प्राप्त कर सकने में सक्षम नहीं हो पाते।
4. सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी हमें मन में व्याप्त दुखों के अंत का पता नहीं होता।
5. ‘न चाँद खिला’ प्रतीकात्मक प्रयोग है, जिसका तात्पर्य सुखों के प्राप्त न होने से है; जिस कारण मन में सुख का भाव उत्पन्न नहीं होता।
6. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर’ से कवि का तात्पर्य है कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फूल कब खिला। फिर भले ही रंग-बसंत’ अर्थात समय बीत गया हो।
7. ‘भविष्य वरण’ का अर्थ आने वाले समय की ओर बढ़कर नए उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति करना है; उनका चुनाव करना है।
8. देह का सुख मन के सुख से प्राप्त करने की ओर संकेत किया गया है। धन-वैभव से देह के लिए बाहरी सुख बटोरे जा सकते हैं, पर वास्तविक सुख तभी प्राप्त होते हैं जब मन पूर्ण रूप से संतुष्ट हो; उसमें सुख का भाव छिपा हो।
9. ‘फूल का खिलना’ सुखों की प्राप्ति को प्रकट करता है। इससे जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का बोध होता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. भावों की गंभीरता का आधार क्या है?
3. कवि ने अपने कथन को गहनता किस प्रकार दी है?
4. किस बोली का प्रयोग है?
5. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग अधिकता से किया गया है?
6. किस काव्य गुण का प्रयोग है?
7. कौन-सा छंद लयात्मकता का आधार बना है?
8. प्रश्न-शैली ने कथन को क्या प्रदान किया है?
9. दो तत्सम और दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. प्रतीक छाँटकर लिखिए।
11. हिंदी की किस काव्यधारा से संबंधित है?
12. प्रयुक्त अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख भरे भविष्य के लिए परिश्रम करने की प्रेरणा दी है तथा दुख की घड़ियों में सुखद पलों को याद न करने का परामर्श दिया है।
2. प्रतीकात्मकता।
3. लाक्षणिकता का प्रयोग भावों में गहनता का आधार बना है।
4. खड़ी बोली का प्रयोग है।
5. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. प्रश्न-शैली ने भावों को सामर्थ्य प्रदान किया है।
9. तत्सम –
दुविधा, वरण

तद्भव –
मन, फूल

10. चाँद, शरद-रात, फूल, बसंत, छाया।
11. छायावाद
12. अनुप्रास –
दुख दूना, खिला फूल, मिला धूल।

प्रश्न –
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

JAC Class 10 Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर गिरिजाकुमार माथुर की मानसिक सबलता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्यधारा से प्रभावित थे और उनकी कविता में प्रेम-सौंदर्य और कल्पना की अधिकता है, पर कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कल्पना की उड़ान से बहुत दूर होकर अपनी मानसिक सबलता का परिचय दिया है। उनके अनुसार कोरी कल्पनाएँ जीवन में किसी काम की नहीं होती। इनसे सुखों की अनुभूति होती है, लेकिन जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता।

जीवन में सुख दुख आते हैं, लेकिन दुख की घड़ियों में हम सुखों को याद करके अपनी पीड़ा को बढ़ा लेते हैं। जीवन में केवल मधुर सपने नहीं हैं, इसमें कठोरता भी बसती है। हमें पुरानी बातों को भुलाकर मज़बूत कदमों से भविष्य की ओर बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने लक्ष्य की ओर दृष्टि जमाए रखें और आगे बढ़ते जाएँ, न कि पिछले सुखों को याद कर आँसू बहाते रहे।

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प्रश्न 2.
‘छाया मत छूना’ में कवि ‘छाया’ किसे कहता है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने अतीत के सुखों को छाया कहा है। अतीत में प्राप्त सुख हमारे वर्तमान को सुखमय नहीं बना सकते। वर्तमान जीवन में उनका कोई अस्तित्व नहीं। अतीत की छाया वर्तमान से मेल नहीं खाती, न ही यथार्थ में बदल सकती है। अतीत का सुख हमें असमंजस में लाकर खड़ा कर देता है। अत: अतीत की सुखरूपी छाया से दूर रहना ही उचित है।

प्रश्न 3.
‘तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी’ पंक्ति को स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी’ पंक्ति का संबंध कवि के जीवन की उन सुखद रातों से है, जो अब अतीत बन गई हैं। अब बस उनकी याद (सुगंध) ही शेष रह गई है। यह कैसी त्रासदी है कि पहले की सुखद रातें अब उसके लिए दुखद प्रतीत होती हैं, क्योंकि वर्तमान में प्रिया उसके साथ नहीं है।

प्रश्न 4.
कवि ने यश, वैभव, मान आदि को किसके समान बताया है ?
उत्तर :
मानव उसी तरह जीवनभर यश, वैभव, मान के पीछे भागता है, जैसे रेगिस्तान में हिरण जल के आभास में चमकती रेत के पीछे दौड़ता है। जीवन में यश, वैभव को कवि ने मृगतृष्णा के समान कहा है। जैसे हिरण की प्यास नहीं बुझती, उसी तरह मनुष्य भी अर्जित यश, वैभव, मान से संतुष्ट नहीं होता। उसकी लालसा कभी नहीं मिटती।

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प्रश्न 5.
कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों की है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार अतीत की सुखद स्मृति हमारे वर्तमान को दुखद बनाती है। यह सच्चाई है कि जीवन में सुख-दुख आते-जाते हैं। कठिन परिस्थितियों का सामना करना व उनको स्वीकार करना यथार्थ को अपनाना है। सच्चाई से बचा नहीं जा सकता, इसलिए उसका पूजन करना ही मनुष्य के लिए लाभप्रद है। विचलित हुए बिना कष्टों का सामना करना या कठिनाइयों से सामंजस्य स्थापित करना ही यथार्थ पूजन है। कठिनाइयों का सामना करें, पलायन नहीं।

प्रश्न 6.
कैसे व्यक्ति को पंथ दिखाई नहीं देता?
उत्तर :
ऐसा व्यक्ति जो उचित-अनुचित या सही-गलत में अंतर नहीं कर सकता; जिसका मन दुविधाग्रस्त रहता है, उसे लक्ष्य की ओर जाने वाला मार्ग नहीं दिखता। उसे सफलता-असफलता की आशंका घेरे रहती है। ऐसा व्यक्ति न तो शारीरिक रूप से सुखी होता है, न ही मानसिक रूप से। ऐसा व्यक्ति उन क्षणों को भी सुखपूर्वक नहीं भोग सकता, जो उसे वर्तमान में प्राप्त हैं।

प्रश्न 7.
कवि हमें क्या भूल जाने की सलाह दे रहा है?
उत्तर :
कवि हमें समझाना चाहता है कि जो जीवन में हमें प्राप्त न हो सका, उसका शोक करने के स्थान पर उसे भूल जाना ही हितकर है। उसके चिंतन में घुलना अनुचित है। ऐसा करने वाला स्वयं को दुख ही देता है। अपने वर्तमान तथा भविष्य को व्यर्थ चिंता कर खराब न करें। जो नहीं मिला न सही, जो है उसे महत्व प्रदान करें; कम-से-कम उसे तो हाथों से न जाने दें।

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प्रश्न 8.
‘छाया मत छूना’ कविता का संदेश क्या है?
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है?
अथवा
कवि अपने मन को ‘छाया मत छूना’ कहकर क्या समझाना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने अपनी इस कविता द्वारा संदेश दिया है कि अतीत के सुखों की याद को अपने वर्तमान पर हावी न होने दें। जीवन में यथार्थ का सामना करें। अतीत के आधार पर जीवन संचालित नहीं हो सकता। वर्तमान को ही सुखद भविष्य का आधार माने। दुख के समय निराश हुए बिना उत्साह बनाए रखना चाहिए। संघर्ष ही जीवन का यथार्थ पक्ष है। सुखद स्मृतियों को याद कर वर्तमान को और अधिक दुखद न बनाएँ।

प्रश्न 9.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा’ के माध्यम से कवि हमें क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार जीवन में उसी प्रकार सुख और दुख आते-जाते हैं, जिस तरह से चाँदनी रात के बाद अमावस्या और फिर अमावस्या के बाद चाँदनी रात आती है। इसी तरह दुख-सुख का पहिया हम सबके जीवन में निरंतर चलता रहता है। जीवन की इस सच्चाई को जानकर हमें उसी परिस्थिति के अनुरूप जीवन व्यतीत करना चाहिए और हताश हुए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।

प्रश्न 10.
कवि ने “छाया मत छूना’ कविता में किस ऋतु का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करना चाहा है –
उत्तर :
कवि गिरिजाकुमार माथुर ने ‘छाया मत छूना’ कविता में बसंत ऋतु तथा शरद ऋतु का वर्णन किया है। कवि ने बसंत ऋतु के समय में फूल का तथा शरद ऋतु के समय में चंद्रमा का अभाव दिखाया है। कवि द्वारा दोनों उदाहरण देने का एक ही अभिप्राय है कि यदि सुख की प्राप्ति ठीक समय पर नहीं होती, तो व्यक्ति को बहुत दुख होता है।

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प्रश्न 11.
कविता में ‘सुरंग सुधियाँ’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
कवि ने सुरंग सुधियों को अति सुंदर तथा मन को आकर्षक लगने वाली बताया है। ये मनभावन होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मन में न जाने कितनी यादें एवं सुख के क्षण छिपे रहते हैं। उनकी याद एक सुखद गंध की तरह महकती रहती है। मानव को ये यादें किसी जीवित क्षण के समान ही प्रतीत होती हैं।

पिठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस हे, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चांद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर,
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

(क) दुख के समय में किन यादों से मन और दुखी हो जाता है?
(i) बुरी यादों से
(ii) सुखभरी यादों से
(iii) कड़वी यादों से
(iv) बचपन की यादों से
उत्तर :
(ii) सुखभरी यादों से

(ख) कवि का जीवन कैसा है?
(i) शान-शौकत से भरा
(ii) सुखमय
(iii) धन से परिपूर्ण
(iv) मान-सम्मान से हीन
उत्तर :
(iv) मान-सम्मान से हीन

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(ग) प्रभुता की इच्छा क्या है?
(i) लक्ष्य को प्राप्त करना
(ii) मृगतृष्णा
(iii) वास्तविकता को जानना
(iv) धोखे में रहना
उत्तर :
(ii) मृगतृष्णा

(घ) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है।
(ii) दुख के बाद सुख आता है।
(iii) निराशा में आशा का होना।
(iv) बचपन के बाद यौवन का आना
उत्तर :
(i) हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है।

(ङ) कवि किसकी पूजा के लिए प्रेरित करता है?
(i) मन की
(ii) तन की
(iii) वास्तविकता की
(iv) सुख की
उत्तर :
(iii) वास्तविकता की

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न – 

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) परछाईं
(ii) भविष्य
(iii) आशा
(iv) सुखद यादें
उत्तर :
(iv) सुखद यादें

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(ख) ‘चाँदनी’ किसका प्रतीक है?
(i) प्रेम भरे क्षणों का
(ii) घृणा का
(iii) प्रकाश का
(iv) अंधकार का
उत्तर :
(i) प्रेम भरे क्षणों का

(ग) ‘यामिनी बीतने’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) दुख का समय व्यतीत हो जाना
(ii) सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना
(iii) अंधकार का मिट जाना
(iv) सुबह होना
उत्तर :
(ii) सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना

(घ) कवि को क्या नहीं दिखाई देता?
(i) साहस
(ii) दुविधा
(iii) पंथ
(iv) चाँदनी
उत्तर :
(iii) पंथ

छाया मत छूना Summary in Hindi

कवि-परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर आधुनिक युग के प्रतिभा-संपन्न रचनाकार थे। ये प्रमुख रूप से प्रयोगवादी कवि माने जाते हैं, लेकिन इनकी कविताएँ मात्र प्रयोग के लिए न होकर जीवन की यथार्थ अनुभूति के चित्रण के लिए हैं। कोमलता एवं मधुरता के प्रति आकर्षक होने के कारण माथुर जी की कविता में छायावादी शैली का सौंदर्य भी प्राप्त होता है। माथुर जी का जन्म मध्यप्रदेश राज्य के गुना नामक स्थान पर सन 1918 ई० में हुआ था। इनके पिता ब्रज भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। परिवार का स्तर साधारण था।

यही कारण है कि इनकी कविताओं एवं नाटकों में प्रायः सामान्य स्तर के जीवन का ही चित्रण रहता है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। इन्होंने एम०ए०, एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की। माथुर जी ने झाँसी में रहकर आकाशवाणी में भी कार्य किया। वे दूरदर्शन से भी संबंधित रहे। सन 1994 ई० में इनका निधन हो गया। माथुर जी में कविता लिखने की प्रतिभा जन्मजात थी।

पहले यह प्रतिभा कविता पढ़ने की अत्यधिक रुचि के रूप में प्रकट हुई। बाद में इन्होंने केवल 13 वर्ष की आयु में ही कविता लिखनी आरंभ कर दी। इनकी प्रमुख रचनाएँ मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के दान, भीतरी नदी की यात्रा, शिलापंख चमकीले हैं। ‘पृथ्वी-कल्प’ इनका प्रतीकात्मक नाट्य-काव्य, जन्म कैद नाटक तथा नई कविता सीमाएँ और संभावनाएँ इनके द्वारा लिखित आलोचनात्मक रचनाएँ हैं।

माथुर जी ने रेडियो फ़ीचर, गीति नाट्य और प्रतीकात्मक नाटकों की भी रचना की है। माथुर जी एक भावुक कलाकार हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्तिगत अनुभूतियों की बहुलता है। सरसता, मधुरता, सौंदर्य और प्रेम के प्रति आकर्षण इनकी कविताओं की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं। इनकी कुछ कविताओं में यथार्थपरक दृष्टि का भी उन्मेष है। जीवन के कटु और मधुर रूप का भी चित्रण है।

इनकी कविता पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव है। इन्होंने रोमांस और संताप के भावों को अपनी कविता में स्थान दिया है। इन्होंने संवेदना और पीड़ा के भावों को महत्वपूर्ण माना है। इनमें प्रकृति के प्रति विशेष लगाव-सा है। मानवीकरण करते हुए इन्होंने प्रकृति से संबंधित अनेक चित्र बनाए हैं कंटकित बेरी करौंदे, महकते हैं झाब झोरे। सुन्न हैं, सागौन वन के, कान जैसे पात चौड़े॥

दूह, टीले टौरियों पर, धूप-सूखी घास भूरी। हाड़ टूटे देह कुबड़ी, चुप पड़ी है गैल बूढ़ी॥ कवि ने अपनी कविता में स्थान-स्थान पर आँचलिक शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन्होंने विषय की मौलिकता को बनाए रखने के लिए विशेष वातावरण की सृष्टि की है। इन्होंने मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता को उत्पन्न किया है।

उनकी कविताओं में भाषा के दो रंग विद्यमान हैं। जहाँ रोमानी कविताओं में ये छोटी-छोटी ध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहाँ क्लासिक स्वभाव वाली कविताओं में लंबी और गंभीर ध्वनि वाले शब्दों को महत्व देते हैं। इनकी भाषा प्रयोगवादी कविता के लिए अनुकूल है। इन्होंने नए प्रतीकों, बिंबों और उपमानों का प्रयोग किया है। इन्होंने देशी-विदेशी शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है हाँडियाँ, मचिया, कठौते, लट्ठ, गूदड़, बैल, बक्खर।

राख, गोबर, चरी, औंगन, लेज, रस्सी, हल, कुल्हाड़ी। सूत की मोटी फताई, चका, हंसिया और गाड़ी। कवि की भाषा सहज और सरल है। उसमें सरसता विद्यमान है। कवि ने जहाँ भी अलंकारों का प्रयोग किया है, वे अति स्वाभाविक है। वर्णनात्मक शैली से इन्हें विशेष लगाव है।

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कविता का सार :

छाया मत छूना कविता मानव-जीवन के संदर्भो से जुड़ी हुई है। हमारे जीवन में सुख आते हैं, तो दुख भी अपने रंग दिखाते हैं। मनुष्य को सुख अच्छे लगते हैं, तो दुख परेशान करने वाले। व्यक्ति पुराने सुखों को याद करके वर्तमान के दुखों को और अधिक बढ़ा लेते हैं। कवि की दृष्टि में ऐसा करना उचित नहीं है। इससे दुखों की मात्रा बढ़ जाती है। सुख हमें सदा अच्छे लगते हैं। उनके द्वारा मिली प्रसन्नताएँ मन पर देर तक छायी रहती हैं।

प्रेम भरे क्षण भुलाने की कोशिश करने पर भी भूलते नहीं हैं। लेकिन मनुष्य सुखों के पीछे जितना अधिक भागता है, उतना ही अधिक भ्रम के जाल में उलझता जाता है। हर सुख के बाद दुख अवश्य आता है। हर चाँदनी के बाद अमावस्या भी छिपी होती है। मनुष्य को जीवन की वास्तविकता को समझना चाहिए; उसे स्वीकार करना चाहिए। मनुष्य के मन में छिपा साहस का भाव जब छिप जाता है, तो उसे जीवन की राह दिखाई नहीं देती। मानव मन में छिपे दुखों की सीमा का तो पता ही नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में सबकुछ नहीं मिलता।

जो हमें वर्तमान में प्राप्त हो गया है, हमें इसी में संतुष्ट होना चाहिए। जो अभी प्राप्त नहीं हुआ, उसे भविष्य में प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन पुरानी यादों से स्वयं को चिपकाए रखने का कोई लाभ नहीं है। उनसे दुख बढ़ते हैं, घटते नहीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

JAC Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers

1. यह दंतुरित मुसकान

प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह उसके सुंदर और मोहक मुख पर छाई मनोहारी मुसकान देखकर प्रसन्नता से भर उठा। उसे ऐसा लगा कि धूल-धूसरित वह चेहरा किसी तालाब में खिले सुंदर कमल के फूल के समान है, जो उसकी झोंपड़ी में आ गया है। कवि उसे एकटक देखता रह गया। उसकी मुसकान ने उसे अपनी पत्नी के प्रति कृतज्ञात प्रकट कर देने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर :
बच्चे की मुसकान में बनावटीपन नहीं होता; वह सहज और स्वाभाविक होती है। लेकिन किसी बड़े व्यक्ति की मुसकान बनावटी हो सकती है। वह समय और स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। बच्चे की मुसकान में निश्छलता रहती है, पर बड़े व्यक्ति की मुसकान में हर समय स्वाभाविकता नहीं होती।

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प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने बच्चे की मुसकान से चाक्षुक और मानस बिंबों की सुंदर सृष्टि की है। छोटे-छोटे दाँतों से युक्त उसकी मुसकान किसी मृतक को पुन: जीवन देने की क्षमता रखती है। उसके धूल-धूसरित शरीर के अंग कमल के सुंदर फूल के समान प्रतीत होते हैं। पत्थर भी मानो उसके स्पर्श को पाकर जल का रूप पा गए होंगे। चाहे कोई कितना भी कठोर क्यों न रहा हो; बाँस या बबूल के समान ही उसका रूप क्यों न हो, पर वे सब उसे छूकर शेफालिका के फूलों के समान कोमल हो गए होंगे।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर :
(क) कवि को ऐसा लगा कि उस छोटे बच्चे की अपार सुंदरता ईश्वरीय वरदान के समान है। धूल-धूसरित अंग-प्रत्यंगों वाला वह बालक जैसे तालाब में खिले कमल के समान मोहक और मनोरम था, जो उसकी झोंपड़ी में आकर बस गया था।
(ख) उस छोटे दंतुरित बच्चे का ऐसा मनोरम रूप है कि चाहे कोई कितना भी कठोर क्यों न रहा हो, पर उसे देख मन-ही-मन प्रसन्नता से भर उठता है। चाहे वह बाँस के समान हो या काँटों भरे कीकर के समान; उसकी सुदंरता से प्रभावित होकर वह मुसकराने के लिए विवश हो जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
मुसकान और क्रोध दोनों मानव-मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं। मुसकान एक सुखद मनोभाव है, तो क्रोध एक मनोविकार है। मुसकान में व्यक्ति अपने हृदय के सुखद भावों को प्रकट करता है; क्रोध में वह अतृप्ति, क्लेश और पीड़ा के भावों को प्रकट करता है। मुसकान सदा सुखदायी होती है, जबकि क्रोध दुखदायी। क्रोध उन सभी को दुख देता है, जो-जो उसकी समीपता को प्राप्त करते हैं। मुसकान से किसी के भी हृदय को जीता जा सकता है, पर क्रोध से अपनों को भी पलभर में दुश्मन बनाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
‘दंतुरित मुसकान’ से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
बच्चे की उम्र लगभग आठ-नौ महीने से लेकर एक वर्ष के बीच होनी चाहिए। उसके मुँह में छोटे-छोटे दाँत हैं, जो सामान्यतः इसी आयु में निकलते हैं। वह कवि को पहचानता नहीं, पर उसके हृदय में उत्सुकता का भाव है। वह उसे बुलाना चाहता है, पर अनजान होने के कारण बुलाता नहीं बल्कि कनखियों से उसकी ओर देखता है। प्रायः ऐसी क्रियाएँ इस उम्र के बच्चे ही करते हैं।

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प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
वह बच्चा अत्यंत सुंदर है। वह छोटा-सा है; एक साल से भी छोटा होगा। उसका चेहरा कमल के फूल के समान मोहक है। वह मिट्टी में खेलता है; कच्चे आँगन में इधर-उधर रेंगता है। उसके सारे शरीर पर धूल लगी हुई है। कवि लंबे समय के बाद घर लौटा है। बच्चे के बारे में उसे अपनी पत्नी से पता लगा है। वह भाव-विभोर है और एकटक उस बच्चे की ओर निहार रहा है।

वह उसकी मोहक ‘दंतुरित मुसकान’ पर मंत्र-मुग्ध है। बच्चा उसे पहचानना चाहता है, पर पहचान नहीं पाता। उसने कवि को पहली बार देखा है, इसलिए वह कनखियों से अतिथि को देखकर मुस्कराता है। कवि को लगता है कि इस बच्चे की मुसकान पत्थर को भी पिघला देने की क्षमता रखती है। कठोर-से-कठोर व्यक्ति भी इसकी मोहक मुसकान पर स्वयं को न्योछावर कर सकता है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर :
कल मैं अपनी सहेली के घर गई थी। वह मेरी कक्षा में ही पढ़ती है। जब मैं उसके साथ उसके घर के आँगन में बैठी थी, तो मैंने देखा कि लगभग डेढ़-दो वर्ष की एक छोटी-सी लड़की दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर एकटक मुझे देख रही थी। उसने अपने एक हाथ की उँगली मुँह में डाल रखी थी और दूसरे हाथ से दरवाज़ा थाम रखा था। मैंने इशारे से उसे बुलाया, पर वह वहीं खड़ी रही। मेरी सहेली ने बताया कि वह उसकी भतीजी है, जो दो दिन पहले ही दिल्ली से आई है। उसका नाम सलोनी था। मैंने उसे नाम से पुकारा।

वह मुस्कराई अवश्य, पर वहाँ से आगे नहीं बढ़ी। मैं अपनी जगह से उठकर जैसे ही उसकी तरफ़ बढ़ी, वह झट से भीतर भाग गई। मैं वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। कुछ देर बाद मैंने फिर उधर देखा, तो वह वहीं खड़ी थी। मेरी सहेली ने उसे बुलाया, तो वह हमारे पास आ गई। मैंने उसे पुचकारा; उसका नाम पूछा। वह चुप रही; बस धीरे-धीरे मुस्काती रही।

मैंने उससे पूछा कि क्या उसे गाना आता है, तो उसने हाँ में सिर हिलाया और फिर धीरे से पूछा कि क्या वह गाना सुनाए? मेरे हाँ कहने के बाद उसने गाना शुरू किया और एक के बाद एक न जाने कितनी देर तक वह आधे-अधूरे गाने गाती रही; ठुमकती रही। उसकी झिझक दूर हो गई थी। जब मैं चलने लगी, तो वह मेरी उँगली थाम कर मेरे साथ चलने को तैयार थी। कुछ देर पहले मुझसे शर्माने और झिझकने वाली सलोनी अब मेरे साथ थी। उसके चेहरे पर झिझक के भाव नहीं थे; उसके व्यवहार में भय नहीं था। वह बहुत मीठा और अच्छा बोलती थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 2.
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फ़िल्में देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता लें।

2. फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल मनुष्य की लगन और शारीरिक परिश्रम के साथ-साथ प्रकृति के जादुई सहयोग का परिणाम है। जब मनुष्य और प्रकृति मिलकर कार्य करते हैं, तभी फसल होती है। यह लाखों करोड़ों हाथों के स्पर्श की महिमा और गरिमा है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
कविता में फसल उपजाने के लिए जिन आवश्यक तत्वों की बात कही है, वे हैं-‘नदियों के पानी का जादू, करोड़ों हाथों का परिश्रम, मिट्टी के अद्भुत गुण, सूर्य की किरणें और हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने लाखों-करोड़ों लोगों के द्वारा किए जाने वाले परिश्रम और उनकी एकनिष्ठ लगन को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा और ‘महिमा’ कहा है। कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है; न जाने कितने दिन-रात मेहनत करके वे इसे उगाने का गौरव प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर :
कवि कहता है कि फसल केवल मनुष्य के परिश्रम का परिणाम नहीं है। प्रकृति भी इसमें सम्मिलित है। सूर्य की किरणें इसे प्रकाश देती हैं; अपनी ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे फसलें उत्पन्न होती हैं। फसल प्रकृति से अपना भोजन प्राप्त करती हैं और बढ़ती हैं। हवा उन्हें थिरकन प्रदान करती है, तभी उसमें बीज बनता है और दानों के रूप में हमें प्राप्त होता है।

रचमा और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है –
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है? (घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
(क) मिट्टी का गुण-धर्म इसकी उपजाऊ-शक्ति है, जो इसमें मिले अनेक तत्वों के कारण होती है। उन तत्वों की उपस्थिति के कारण ही मिट्टी भिन्न-भिन्न रंगों को प्राप्त करती है; हल्की-हल्की गंध प्राप्त करती है। वे तत्व ही फसल को बढ़ने में सहायता देते हैं।

(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी को प्रदूषित कर रही है। जाने-अनजाने तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ इसमें मिलाए जाते हैं, जिस कारण इसके गुण बदल जाते हैं। उद्योग-धंधे और प्रदूषित जल इसे बिगाड़ रहे हैं । तरह-तरह के कीटनाशक इसे खराब कर रहे हैं। इनके प्रयोग से भले ही हमें फसल कुछ अधिक प्राप्त हो जाती है, पर इससे मिट्टी की प्रकृति बदल रही है।

(ग) मिट्टी के अपने स्वाभाविक गुण-धर्म को छोड़ देने से जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि मिट्टी फसल उगाने का गुण-धर्म त्याग दे, तो हमारा जीवन असंभव-सा हो जाएगा क्योंकि सभी प्राणियों का जीवन फसल पर ही निर्भर करता है।

(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी भूमिका अति महत्वपूर्ण हो सकती है। हम इसे प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। इसमें मिलाए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवार नाशियों के स्थान पर हम प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें मिलने वाले औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों की रोकथाम कर सकते हैं।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यमों द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में,
प्रमुख संपादक,
दैनिक भास्कर,
लखनऊ।

विषय : सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु सुझाव

मान्यवर,
मैं आपके समाचार-पत्र के माध्यम से सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु कुछ सुझाव देना चाहता हूँ, जो किसानों के लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। हमारा देश कृषि-प्रधान देश है। इसकी लगभग 80% जनता गाँवों में रहती है और पूरी तरह से कृषि पर आश्रित है।

सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए खेती योग्य अधिकतर भूमि पर हमें फसल उगाने की योजनाएँ बनानी चाहिए। परंपरागत पद्धति को त्यागकर वैज्ञानिक आधार पर खेती करनी चाहिए। हमें समझना होगा कि हर खेत की मिट्टी एक-सी फसल उगाने योग्य नहीं होती। इसलिए कृषि-संस्थानों से मिट्टी की परख करवाकर हमें जान लेना चाहिए कि वह किस प्रकार की फसल के लिए अधिक उपयोगी है।

यदि उसमें किसी विशेष तत्व की कमी है, तो उसे रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से पूरा करना चाहिए। हमें फसल के लिए उन्नत और संकरण से प्राप्त बीज ही बोने चाहिए, जो कृषि-संस्थानों से प्राप्त हो जाते हैं। समय-समय पर मान्यता प्राप्त खरपतवार नाशियों और कीटनाशियों का प्रयोग करना चाहिए। सिंचाई के लिए परंपरागत तरीके छोड़कर स्पिंरकरज़ का प्रयोग करना चाहिए। इससे सारे खेत की सिंचाई एक समान होती है। उर्वरकों के साथ-साथ कंपोस्ट और वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इससे फसल की प्राप्ति अच्छी होती है।

सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के अंतर्गत फूलों की खेती की ओर भी ध्यान देना चाहिए। वर्षभर में केवल दो फसलों पर निर्भर न रहकर तीन-चार अंतराफसलें प्राप्त करनी चाहिए। कीटनाशियों के उचित प्रयोग से भी हम अपनी फसलों को नष्ट होने से बचा सकते हैं। आशा है कि आप अपने प्रतिष्ठित समाचार-पत्र में इन सुझावों को अवश्य स्थान देंगे।
भवदीय,
राकेश भारद्वाज

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प्रश्न 2.
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्व क्यों नहीं दिया जाता है ? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अध्यापक-अध्यापिका की सहायता से करें।

JAC Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने स्वयं को प्रवासी क्यों कहा है ?
उत्तर :
नागार्जुन प्रायः घूमते रहते थे। वे फक्कड़ और घुमक्कड़ थे। राजनीति और घुमक्कड़ी के शौक के कारण प्रायः अपने घर से दूर रहते थे इसलिए उन्होंने स्वयं को प्रवासी कहा है। साहित्य जगत में भी उन्हें ‘यात्री’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
‘दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती थी ?
उत्तर :
‘दंतुरित मुसकान’ किसी कठोर-से-कठोर व्यक्ति के हृदय को भी कोमलता से भर सकती थी। वह किसी मृतक को जीवित कर सकती थी। उसकी सुंदरता से प्रभावित होकर पत्थर भी पिघलकर पानी बन सकता था।

प्रश्न 3.
कवि ने फसल के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
कवि ने फसल के द्वारा मनुष्य के शारीरिक बल, परिश्रम तथा प्रकृति में छिपी अथाह ऊर्जा के आपसी सहयोंग का भाव व्यक्त किया है। जब ममुष्य की मेहन्त और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं, तो फसल उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 4.
कवि ने मुसकान के लिए दंतुरित विशेषण का प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर :
मुसकान अपने-आप में ही सभी को आकर्षित कर लेती है, परंतु एक नन्हे से बालक के छोटे-छोटे दाँतों से युक्त मुसकान उसे और भी विशिष्ट बना देती है।

प्रश्न 5.
‘छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात’ का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर :
धूल-मिट्टी से सने बालक के शरीर को देखकर कवि को लगता है कि जैसे कोई कमल सरोवर को छोड़कर उसके घर में आकर खिल गया है। अपने नन्हें से बच्चे को देख कवि अति प्रसन्न है।

प्रश्न 6.
पाषाण का पिघलना और जल बनना से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
पत्थर या पाषाण पिघलने का अर्थ है-‘ऐसा व्यक्ति जो कोमल भावनाओं से दूर है, इस सुंदर बालक का कोमल स्पर्श पाकर भावुक बन जाता है।’ कवि के अनुसार बालक की मुसकान से कठोर हृदय भी पिघलकर जल बन जाता है।

प्रश्न 7.
‘दंतुरित मुसकान’ कविता में किस भाव की अभिव्यक्ति है?
उत्तर :
इस कविता में एक ऐसे पिता के मन के भावों की अभिव्यक्ति है, जिसने काफ़ी समय के बाद अपने पुत्र को देखा है। ये भाव अपने शिशु को देखकर पिता के हृदय में स्नेह से परिपूर्ण होकर जागते हैं। शिशु की छोटी-से-छोटी भाव-भंगिमा भी पिता को अभिभूत कर देती है। वात्सल्स तथा स्नेहमयी अभिव्यक्ति इस कविता का मुख्य भाव है।

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प्रश्न 8.
कवि और शिशु के बीच माध्यम कौन है?
उत्तर :
कवि तथा शिशु के बीच माध्यम है-‘शिशु की माँ’। जो दोनों के बीच एक कड़ी का काम करती है। दोनों को एक-दूसरे के साथ
पिता-पुत्र के संबंध में बाँधती है।

प्रश्न 9.
कवि शिशु की माँ तथा शिशु को धन्य क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि जब अपने शिशु को काफी समय के बाद देखता है, तो उसे बड़ी प्रसन्नता होती है। कवि की अनुपस्थिति में शिशु की माँ ने ही उसका पालन-पोषण किया। उसके कारण ही शिशु की दंतुरित मुसकान को देखने का कवि को सौभाग्य मिला। यदि माँ न होती, तो शिशु का अस्तित्व ही न होता और यदि ये दोनों न होते, तो कवि को यह खुशी देखने को न मिलती। इसी कारण कवि ने माँ तथा शिशु दोनों को धन्य कहा है।

प्रश्न 10.
‘उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क’ में मधुपर्क से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
नन्हें शिशु के समुचित विकास के लिए माँ पाँच पौष्टिक पदार्थों को मिलाकर अपनी उँगलियों से उसे चटाती है। मधुपर्क जिन पाँच वस्तुओं के मिश्रण से बनता है, वे हैं-दूध, दही, शहद, घी और जल। मधुपर्क की पौष्टिकता के साथ-साथ माँ की उँगलियों में जो स्नेहरूपी अमृत है, वह भी महत्वपूर्ण है।

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प्रश्न 11.
कवि ने ‘फसल’ के निर्माण में किसान के परिश्रम को अधिक महत्वपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर :
फसल के निर्माण में प्रकृति और किसान दोनों का ही योगदान होता है। मनुष्य को प्रकृति के अनुसार चलकर अधिक उत्पादन मिल सकता है। फिर भी कृषक का अथक परिश्रम अधिक महत्वपूर्ण है। किसान बीज बोता है; जुताई-सिंचाई करता है; धैर्य के साथ फसल की सेवा करता है। समय के अनुसार उसमें खाद डालता है। जानवरों से उसकी रक्षा करता है। इसी कारण किसान फसल निर्माण की प्रक्रिया में अधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 12
हजार-हजार खेतों की मिट्टी के गुण-धर्म से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
फसल मिट्टी में ही उगती है। तरह-तरह की फसल के लिए मिट्टी के मुण भी अलग-अलग होते हैं। हर तरह की फसल एक 4 ही खेत में नहीं उगाई जा सकती। मिट्टी के खनिज तत्व अलग-अलग होते हैं। मिट्टी या खेत की उपजाऊ-शक्ति भी एक-सी नहीं होती। खेतों की उर्वरा शक्ति के अनुसार ही उनमें बीज बोए जाते हैं और तरह-तरह की फसल उगाई जाती है।

प्रश्न 13.
फसल कविता दवारा कवि हमें क्या संदेश देना च –
उत्तर :
कवि का मानना है कि फसल मानव और प्रकृति के सहयोग से लहलहाती है। प्रकृति के अनेक तत्वों का सहयोग ही किसान के परिश्रम को फसल के रूप में उत्पन्न करता है। एक-दूसरे के अभाव में फसल कदापि तैयार नहीं हो सकती। मानव तथा प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं।

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प्रश्न 14.
प्रकृति के कौन-कौन से तत्व फसल के लिए अपना योगदान देते हैं?
उत्तर :
खेतों की मिट्टी, उसमें समाहित खनिज तत्व, पानी, सूरज की किरणें, हवाएँ तथा प्रकृति के सहयोग से प्राप्त विभिन्न प्रकार के बीज ये सभी तत्व प्रकृति हमें प्रदान करती हैं, ताकि हमें तरह-तरह की फसल मिल सके।

प्रश्न 15.
कवि ने फसल को जादू क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल एक जादू है। एक बीज में से जो अंकुर फूटकर बाहर निकलता है; जिसे मिट्टी, नदियों का पानी, सूर्य की ऊर्जा, हवा तथा किसान का सहयोग प्राप्त है, वह ईश्वर का जादू है। हर बीज अलग-अलग तरह का तथा अलग तरह की फसल पैदा करने में सक्षम है। यह एक चमत्कार से कम नहीं है।

पठित धनाश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?

(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसे संबोधित कर रहा है?
(i) बालक को
(ii) वृद्ध को
(iii) स्त्री को
(iv) युवक को
उत्तर :
(i) बालक को

(ख) बच्चे का अंग-प्रत्यंग कैसा है?
(i) स्वच्छ
(ii) कठोर
(iii) धूल-मिट्टी से सना
(iv) काला
उत्तर :
(iii) धूल-मिट्टी से सना

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(ग) बच्चे की मुसकान किसका संदेश देती है?
(i) मृत्यु का
(ii) जीवन का
(iii) दुख का
(iv) चिंताओं का
उत्तर :
(ii) जीवन का

(घ) कवि के अनुसार कठिन पाषाण किस प्रकार पिघला होगा?
(i) तप कर
(ii) बच्चे के स्पर्श से
(ii) बच्चे के प्राणों का स्पर्श पाकर
(iv) जल कर
उत्तर :
(iii) बच्चे के प्राणों का स्पर्श पाकर

(ङ) बच्चे के स्पर्श से कौन-से फूल झड़ने लगेंगे?
(i) बबूल के
(ii) गुलाब के
(iii) गुलमोहर के
(iv) शेफालिका के
उत्तर :
(iv) शेफालिका के

2. हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह नदियों के पानी का जादू है वह हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!
(क) फसल में कितने खेतों की मिट्टियों के गुण-धर्म मौजूद हैं?
(i) दो खेतों की
(ii) सैकड़ों खेतों की
(iii) हज़ारों खेतों की
(iv) लाखों खेतों की
उत्तर :
(iii) हज़ारों खेतों की

(ख) फसल किसका जादू है?
(i) अनाज का
(ii) झरनों के पानी का
(iii) झीलों के पानी का
(iv) नदियों के पानी का
उत्तर :
(iv) नदियों के पानी का

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(ग) फसल किसके स्पर्श की महिमा है?
(i) परिश्रमी हाथों के स्पर्श की
(ii) पानी के स्पर्श की
(iii) बच्चे के स्पर्श की
(iv) मिट्टी के स्पर्श की
उत्तर :
(i) परिश्रमी हाथों के स्पर्श की

(घ) कवि ने मिट्टी की किन विशेषताओं को प्रकट किया है?
(i) खुशबू की
(ii) काले, भूरे और संदले रंगों की
(iii) उपजाऊपन की
(iv) नमी की
उत्तर :
(ii) काले, भूरे और संदले रंगों की

(ङ) फसल किसका रूपांतर है?
(i) परिश्रम का
(ii) पानी का
(iii) सूर्य की किरणों का
(iv) अनाज का
उत्तर :
(iii) सूर्य की किरणों का

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काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) कवि और बच्चे के बीच का माध्यम कौन है?
(i) कवि की माँ
(ii) बच्चे की माँ
(iii) मुसकान
(iv) बच्चे का भोलापन
उत्तर :
(ii) बच्चे की माँ

(ख) ‘मधुपर्क’ किसका प्रतीक है?
(i) बच्चे की मुसकान का
(ii) माँ के प्यार का
(iii) कमल की सुंदरता का
(iv) पालन-पोषण का
उत्तर :
(ii) माँ के प्यार का

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(ग) कवि के अनुसार फसल क्या है?
(i) परिश्रम का फल
(ii) अनाज का ढेर
(iii) जादू
(iv) खेत-खलिहान
उत्तर :
(iii) जादू

(घ) फसल को थिरकना कौन सिखाता है?
(i) हवा
(ii) किसान
(iii) मिट्टी
(iv) पानी
उत्तर :
(i) हवा

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi

कवि-परिचय : वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ जो ‘नागार्जुन’ के नाम से विख्यात हुए, हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कवि एवं कथाकार हैं। आधनिक कबीर के रूप में विख्यात नागार्जन घुमंत व्यक्ति थे। इनका जन्म 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई थी। बाद में ये संस्कृत अध्ययन के लिए बनारस और कोलकाता भी गए। सन 1936 में नागार्जुन अध्ययन के लिए श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए। वर्ष 1938 में वे स्वदेश वापस आ गए।

नागार्जुन अपने घुमक्कड़पन और फक्कड़पन के लिए प्रसिद्ध रहे। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान उनकी भेंट मैथिली के प्रकांड पंडित सीताराम झा से हुई और उन्होंने उनसे भाषा, छंद, अलंकार आदि का विशेष ज्ञान प्राप्त किया। बनारस में रहते हुए नागार्जुन संस्कृत के साथ-साथ मैथिली में भी साहित्य-रचना करने लगे। बीस वर्ष की अवस्था में नागार्जुन का विवाह हुआ। लेकिन अध्ययन, घुमक्कड़ी और राजनीति में रुचि होने के कारण ये परिवार की देख-रेख नहीं कर सके। नागार्जुन के चार पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं।

मैथिल समाज में उन्हें समुचित आदर नहीं मिला; क्योंकि एक तो वे समुद्र पार की यात्रा कर आए थे, दूसरे संन्यास भ्रष्ट थे और तीसरे बौद्ध होने के कारण उनकी खान-पान की पवित्रता नष्ट हो गई थी। वर्ष 1941 में नागार्जुन पुनः घर लौटे। लगभग पाँच दशक तक इन्होंने अनेक हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के बाद 5 नवंबर, 1998 को नागार्जुन का देहांत हुआ। साहित्य-रचना-नागार्जुन ने वर्ष 1935 में हिंदी मासिक ‘दीपक’ में काम किया तथा वर्ष 1942-43 में ‘विश्व बंधु’ साप्ताहिक का संपादन किया।

ये अपनी मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचना करते थे। इनके कविता-संग्रह ‘चित्रा’ से मैथिली में नवीन भाव बौद्ध का प्रारंभ माना जाता है। संस्कृत में चाणक्य उपनाम से इन्होंने अनेक कविताएँ लिखीं। वर्ष 1930 से विधिवत लेखन करते हुए नागार्जुन ने हिंदी को महत्वपूर्ण रचनाएँ दीं…’ सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘युगधारा’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘हज़ार-हजार बाहों वाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘रत्नगर्भा’, ‘ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या’, ‘पका है कटहल’, ‘मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा’ तथा ‘भस्मांकुर’।

नागार्जुन के उपन्यासों में ‘बलचनमा’, ‘रतिनाथ की चाची’, ‘कुंभीपाक’, ‘उग्रतारा’, ‘जमनिया का बाबा’ तथा ‘उग्रतारा’ प्रमुख है। नागार्जुन का संपूर्ण साहित्य सात खंडों में प्रकाशित हो चुका है। सन 1956 में प्रकाशित ‘युगधारा’ में कवि ने अपना परिचय निम्न शब्दों में दिया है –

‘पैदा हुआ था मैं दीन-हीन अपठित किसी कृषक-कुल में
आ रहा हूँ पीता अभाव का आसव ठेठ बचपन से।’

काव्य-सौंदर्य – नागार्जुन की कविता राष्ट्रीय-चेतना की कविता है, जिसमें राष्ट्रीय आंदोलनों की धड़कन सुनाई पड़ती है। व्यंग्यात्मकता उनकी कविता का अभिन्न अंग है। ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘हिम कसमों का चंचरीक’ तथा ‘फाहियान के वंशधर’ आदि कविताएँ राष्ट्रीय भावों से ओत-प्रोत हैं। मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त हुआ – है

‘भारत माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है।
राम राज्य में अब की रावन नंगा होकर नाचा है।’
तथा
‘खेत हमारे, भूमि हमारी, सारा देश हमारा है।
इसीलिए तो हमको इसका, चप्पा-चप्पा प्यारा है।’

नागार्जुन अपनी कविता में वामपंथी विचारधारा को लेकर आए। वे प्रगतिशील जनवादी कवि थे। उन्होंने जनता के सुख-दुख; उसके संघर्ष और कष्ट; उसकी आस्था और जिजीविषा को अपने काव्य में व्यक्त किया है। सामाजिक अन्याय, शोषण, जड़ता, अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड आदि के विरोध में नागार्जुन ने बहुत लिखा। नागार्जुन ने ‘पोस्टर कविता’ के रूप में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कविताएँ वर्ष 1965 के आपातकाल में लिखीं। राजनीतिक आंदोलनों के कारण ये अनेक बार जेल भी गए। नागार्जुन की कविताओं में गहन राजनीतिक समझ दिखाई देती है।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर इन्होंने अनेक रचनाएँ लिखी हैं। मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े होने पर भी इनके काव्य में वैचारिक कट्टरता नहीं है। कवि का ग्रामीण संस्कार भी इनकी कविताओं में व्यक्त हुआ है। नागार्जुन घुमक्कड़ थे, इसलिए देश-विदेश के अनेक सुंदर स्थानों के शब्द-चित्र इनकी कविताओं में हैं। प्रकृति से जुड़ी इनकी कविताएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। ‘बादल को घिरते देखा है’ तथा ‘घन कुरंग’ जैसी कविताएँ बहुत सुंदर हैं। नागार्जुन के काव्य-विषय जीवन से लिए गए हैं, इसलिए रिक्शा खींचते गरीब के पाँवों में फटी बिवाइयाँ भी वहाँ हैं; फटी बनियान और टपकता कटहल भी उनका काव्य विषय बना है।

काव्य-भाषा – नागार्जुन की काव्य-भाषा भावों का अनुसरण करती है। तत्सम शब्दावली के साथ तद्भव और देशी-विदेशी शब्द आवश्यकतानुसार प्रयुक्त हुए हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग इनके काव्य की विशेषता है; यथा –

वतन बेचकर पंडित नेहरू फूले नहीं समाते हैं।
बापू के भी ताऊ निकले, तीनों बंदर ताऊ के।
गिरगट के अंडे सेता हूँ, मैं देख रहा।
सत्तर चूहे खाकर रीझा वृद्ध बिलौटा अब जन मन पर।

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नागार्जुन की कविता बिंबात्मक है। हिरण की तरह उछलते-कूदते बादल का बिंब देखिए –

‘नभ में चौकड़ियाँ भरे भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन कुरंग।’

नागार्जुन ने मधुर गीत भी लिखे हैं और मुक्त छंद में काव्य-रचना भी की है। इन्होंने प्रणय, प्रकृति, राजनीति और देश-प्रेम पर कविताएँ लिखी। हैं। इनकी कविताओं का स्वर मानवतावादी है। प्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा के शब्दों में-“इनकी कविताएँ दिल पर चोट करने वाली हैं; कर्तव्य की याद दिलाने वाली हैं और राह दिखाने वाली भी हैं।” नागार्जुन मित्रों के लिए नागा बाबा थे। समाज, राजनीति, धर्म तथा साहित्य में एक साथ संघर्ष करने वाला हिंदी का यह कवि अद्भुत था, क्योंकि कवि के विवेक पर यह किसी तरह का बंधन स्वीकार नहीं करता था।

नागार्जुन मानते थे कि पार्टी देश और समाज से बड़ी नहीं होती, इसलिए वामपंथियों ने इन्हें अंततः ठुकरा दिया। वर्ष 1962 में इन्होंने ० चीन विरोधी कविताएँ लिखीं और वर्ष 1965 में आपातकाल विरोधी कविताएँ लिखीं। इन्होंने जय प्रकाश आंदोलन का भी खुलकर साथ दिया था। नागार्जुन कोमल भावनाओं के कवि भी थे। जब संन्यासी जीवन काटकर बरसों बाद गृहस्थ बने, पत्नी की उम्र ढल चुकी थी। उसकी पीड़ा पर कविता लिखी ‘प्रत्यावर्तन’ अर्थात लौटना। इसमें पत्नी की दशा पर लिखा –

‘हृदय में पीड़ा दृगों में लिए पानी।
देखते पथ काट दी सारी जवानी।’

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

1. यह दंतुरित मुसकान

कविता का सार :

कवि किसी ऐसे छोटे बच्चे की मुसकान को देखकर अपार प्रसन्न है, जिसके मुंह में अभी छोटे-छोटे दाँत निकले हैं। कवि को उसकी मुसकान जीवन का संदेश प्रतीत होती है। उस मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर मन भी पिघल सकता है। उसकी मुसकान तो किसी मृतक में भी नई जान फूंक सकती है। धूल-मिट्टी से सना हुआ नन्हा-सा बच्चा ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कमल का सुंदर-कोमल फूल तालाब छोड़कर झोंपड़ी में खिल उठा हो। उसे छूकर पत्थर भी जल बन जाता है; उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। नन्हा-सा बच्चा कवि को नहीं पहचान पाया, इसलिए एकटक उसकी तरफ देखता रहा। कवि मानता है कि उस बच्चे की मोहिनी छवि और उसके संदर दांतों को वह उसकी मां के कारण देख पाया था। वह मां धन्य है और बच्चे की मुसकान भी धन्य है। वह स्वयं इधर-उधर जाने वाला प्रवासी । था, इसलिए उसकी पहचान नन्हे बच्चे के साथ नहीं हो सकी। जब उसकी माँ कहती, तब वह कनखियों से कवि की ओर देखता और उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मसकान कवि के मन को मोह लेती।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

जात
1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

शब्दार्थ : दंतुरित – बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक – मरा हुआ। धूलि-धूसर – धूल-मिट्टी। गात – शरीर के अंग-प्रत्यंग। जलजात – कमल का फूल। परस – स्पर्श। पाषाण – चट्टान, पत्थर। अनिमेष – बिना पलक झपकाए लगातार देखना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गई हैं। इसके रचयिता कवि नागार्जुन हैं ! घुमक्कड़ स्वभाव का होने के कारण कवि जगह-जगह घूमता रहता था। उसने जब अपने छोटे-से बच्चे के मुँह में छोटे-छोटे दाँत देखे तो उसे अपार प्रसन्नता हुई। उसने अपने भावों को अनेक बिंबों के माध्यम से प्रकट किया।

व्याख्या : कवि छोटे-से बच्चे को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम्हारे छोटे-छोटे दाँतों से सजे मुँह की मुसकान इतनी आकर्षक है कि वह मृतकों में भी जान डालने की क्षमता रखती है। वह जीवन का संदेश देती है। तुम्हारे शरीर का अंग-प्रत्यंग धूल-मिट्टी से सना हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि तुम तालाब को छोड़कर मेरी निर्धन की झोपड़ी में खिलने वाले कमल हो।

वह तालाब भी पहले पत्थर होगा, पर तुम्हारे प्राणों का स्पर्श पाकर वह पिघल गया होगा और जल बन गया होगा। चाहे वह बाँस हो या बबूल, पर तुम से छूकर उससे भी शेफालिका के कोमल फूल झड़ने लगते हैं। कवि उस बच्चे से पूछता है कि क्या उसने उसे पहचाना है या नहीं। क्या तुम बिना पलकें झपकाए हैरानी से लगातार मेरी ओर देखते ही रहोगे? क्या तुम थक गए हो? कवि कहता है कि यदि वह उसे पहले पहचान नहीं पाया तो भी कोई बात नहीं। भाव है कि वह अभी बहुत छोटा है, पर वह बहुत भोला-भाला और सुंदर है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. ‘दंतुरित मुसकान’ किसकी है?
3. बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है ?
4. कवि की झोंपड़ी में बच्चा किसे प्रतिबिंबित कर रहा है?
5. बच्चे के शरीर के स्पर्श मात्र से कौन-से फूल झड़ने लगे थे?
6. कवि की दृष्टि में जीवन का संदेश कौन देता है?
7. बच्चा कवि की ओर किस प्रकार देख रहा था?
8. ‘बाँस था कि बबूल’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
9. कवि को कौन नहीं पहचान पाया था?
उत्तर :
1. कवि अपने बच्चे को काफ़ी लंबे समय के बाद मिला और उसके छोटे-छोटे दाँतों को देखकर अति प्रसन्न हो उठा है। उसे यह प्रतीत हुआ कि उसकी मुसकान में अपार सुंदरता छिपी हुई है।
2. ‘दंतुरित मुसकान’ कवि के नन्हे-से बच्चे की है।
3. बच्चे का सारा शरीर धूल-मिट्टी से सना हुआ है।
4. कवि की झोपड़ी में नन्हा-सा बच्चा कमल के फूल को प्रतिबिंबित कर रहा है।
5. बच्चे के शरीर के स्पर्श मात्र से शेफालिका के फूल झड़ने लगे थे।
6. कवि की दृष्टि में जीवन का संदेश बच्चे का सौंदर्य देता है।
7. बच्चा कवि की ओर बिना पलकें झपकाए लगातार देखता रहा था।
8. ‘बाँस था कि बबूल’ में कठोर और विपरीत स्थितियों का भाव छिपा है। कठिनाइयों की स्थिति में भी वह अपनी सुंदरता और भोलेपन से सबके मन को हर रहा था।
9. कवि को नन्हा-सा बच्चा नहीं पहचान पाया था।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके दाँतों की सराहना की और उसे भोला-भाला माना है?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
3. किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. छंद कौन-सा है?
5. किस शैली ने नाटकीयता उत्पन्न की है?
6. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
7. काव्य-रस का नाम लिखिए।
8. किस शब्द-शक्ति के प्रयोग से कथन को सरलता-सरसता प्राप्त हुई है ?
9. ‘जलजात’ शब्द की विशिष्टता क्या है?
10. पंक्तियों में आए ‘दो तत्सम और दो तद्भव’ शब्द छाँटकर लिखिए।
11. ‘दंतुरित मुसकान’ में कौन-सा बिंब है?
12. पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने छोटे-से बच्चे के दाँतों की सुंदरता की सराहना करते हुए उसे भोला और सीधा माना है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग किया गया है।
4. अतुकांत छंद है।
5. प्रश्न-शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. वात्सल्य रस।
8. अभिधात्मकता ने कवि के कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है।
9. प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
10. तत्सम –

  • मृतक, पाषाण तद्भव
  • तालाब, फूल

11. चाक्षुक बिंब।
12. अतिशयोक्ति –

  • तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
  • मृतक में भी डाल देगी जान उत्प्रेक्षा
  • छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल उठे जलजात।
  • पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण।
  • छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल। अनुप्रास
  • ‘परस पाकर’, ‘धूलि-धूसर’

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2. यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियों माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगली बड़ी ही छविमान!

शब्दार्थ : चिर प्रवासी – लंबे समय तक बाहर रहने वाला। इतर – दूसरा ! मधुपर्क – दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। इसे पंचामृत भी कहते हैं। बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ का प्यार। कनखी – तिरछी निगाह से देखना। अतिथि – मेहमान। संपर्क – संबंध: छविमान – सुंदर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) से ली गई हैं। ये पंक्तियाँ नागार्जुन के द्वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ में निहित हैं। कवि लंबे समय तक कहीं बाहर रहने के पश्चात वापस अपने घर लौटा था और उसने अपने बच्चे के छोटे-छोटे दाँतों की सुंदर चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे अपार प्रसन्नता हुई थी।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले बच्चे ! यदि तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच माध्यम न बनी होती, तो मैं कभी भी तुम्हें और तुम्हारी सुंदर मुसकान को देख न पाता और न ही तुम्हें जान पाता। तुम धन्य हो और तुम्हारो माँ भी धन्य है। मैं तुम दोनों का आभारी हूँ। मैं लंबे समय से बाहर था, इसलिए मैं तुम्हारे लिए कोई दूसरा हूँ। मेरे प्यारे बच्चे ! मैं तुम्हारे लिए मेहमान की तरह हूँ, इसलिए तुम्हारा मेरे साथ कोई संबंध नहीं रहा; तुम्हारे लिए मैं अनजाना-सा हूँ।

मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्वक तुम्हारा पालन-पोषण करती रही। तुम्हें अपना प्यार प्रदान करती रही। वही तुम्हारा पंचामृत से पालन-पोषण करती रही। तुम मुझे देखकर हैरान से थे और मेरी ओर कनखियों से देख रहे थे। जब कभी अचानक तुम्हारी और मेरी दृष्टि मिल जाती थी, तो मुझे तुम्हारे मुँह में तुम्हारे चमकते हुए सुंदर दाँतों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। सच ही मुझे तुम्हारी दूधिया दाँतों से सजी मुसकान बहुत सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी मुसकान पर मुग्ध हूँ।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बच्चे की दंतुरित मुसकान और कवि के बीच कौन माध्यम बना था?
3. किस अवस्था में कवि अपने बच्चे को नहीं देख पाता?
4. कवि ने किसे-किसे धन्य माना है और क्यों?
5. कवि ने स्वयं को क्या माना है?
6. माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण क्या खिलाकर करती रही थी?
7. ‘मधुपर्क’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
8. कवि को छविमान क्या लगती है?
9. नन्हा बच्चा बाहर से आए कवि की ओर किस प्रकार देख रहा था ?
उत्तर :
1. कवि ने अपने बच्चे की सुंदर दाँतों को देखा था और उसकी मुसकान पर मुग्ध हो उठा था। वह अपनी पत्नी के प्रति आभारी था कि उसकी अनुपस्थिति में उसने बहुत अच्छे तरीके से बच्चे का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण किया था।
2. बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ और कवि के बीच कवि की पत्नी माध्यम थी, जिसने कवि को बच्चे की मधुर मुसकान से परिचित करवाया था।
3. यदि कवि की पत्नी बच्चे की मधुर मुसकान से उसका परिचय न करवाती तो वह उसके विषय में न जान पाता और उसे न देख सकता, क्योंकि वह बहुत लंबे समय के बाद वापस अपने घर लौटा था।
4. कवि ने अपने बच्चे और अपनी पत्नी को धन्य माना है, क्योंकि उनके कारण ही उसे अपार प्रसन्नता की प्राप्ति हुई थी। वह स्वयं को उनसे मिलकर धन्य मानता है।
5. कवि ने स्वयं को ‘चिर प्रवासी’ माना है। वह लंबे समय के बाद वापस घर लौटा था।
6. माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण दही, घी, शहद और दूध के मिश्रण से बने पंचामृत से करती रही थी।
7. मधुपर्क में प्रतीकात्मकता छिपी हुई है। इसमें बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ का प्यार छिपा हुआ है।
8. कवि को बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ बहुत छविमान लगती है।
9. नन्हा बच्चा बाहर से आए कवि की ओर आश्चर्य और उत्सुकता के कारण कनखियों से देखता है। वह उसकी ओर सीधा नहीं देखता।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. किस शब्द-शक्ति के प्रयोग से सरलता-सरसता प्रकट हुई है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग हुआ है?
4. काव्य-रस का नाम लिखिए।
5. किस बोली का प्रयोग किया है?
6. किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है?
7. छंद का नाम लिखिए।
8. किन मुहावरों का सहज प्रयोग है?
9. दो तद्भव और दो तत्सम शब्द लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
11. कौन-सा बिंब प्रधान है?
उत्तर :
1. कवि ने अपने नन्हें से बच्चे की मधुर मुसकान के आकर्षण का सहज सुंदर वर्णन किया है और अपनी पत्नी की कर्तव्यनिष्ठा का उल्लेख किया है, जिसने उसकी अनुपस्थिति में अपने पुत्र का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण किया था।
2. अमिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है, जिससे कवि का कथन सरलता-सरसता से प्रकट हुआ है।
3. प्रसाद गुण विद्यमान है।
4. वात्सल्य रस।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. तत्सम तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग किया गया है।
7. अतुकांत छंद है।
8. आँखें चार होना, कनखी मारना जैसे मुहावरों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
9. तद्भव
– माँ, मुसकान तत्सम
– प्रवासी, संपर्क
10. अनुप्रास-माँ न माध्यम; माँ को कराती रही मधुपर्क
11. चाक्षुक बिंब।

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2. फसल

किविता का सार :

फसलें हमारे जीवन की आधार हैं। ‘फसल’ शब्द सुनते ही हमारी आँखों के सामने खेतीं में लहलहाती फसलें आ जाती हैं। फसल को पैदा करने के लिए न जाने कितने तत्व और कितने हाथों का परिश्रम लगता है। फसल प्रकृति और मनुष्य के आपसी सहयोग से ही संभव होती है। न जाने कितनी नदियों का पानी और लाखों-करोड़ों हाथों का परिश्रम इसे उत्पन्न करता है। खेतों की उपजाऊ मिट्टी इसे शक्ति देती है; सूर्य की किरणें इसे जीवन देती हैं और हवा इसे धिरकना सिखाती है। फसल अनेक दुश्य-अदृश्य शक्तियों के मिले-जुले बल के कारण उत्पन्न होती है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य सराहना से बंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

शब्दार्थ : ढेर – बहुत-सी। कोटि – करोड़ों। स्पर्श – छूना। गरिमा – गौरव। गुण धर्म – विशेषताएँ। संदली – चंदन की। रूपांतर – परिवर्तन।
सिमटा – इकट्ठा। प्रसंग प्रस्तुत कविता ‘फसल’ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता नागार्जुन हैं। कवि ने स्पष्ट किया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य और प्रकृति मिलकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि फसल को उत्पन्न करने के लिए एक-दो नहीं बल्कि अनेक नदियों से प्राप्त होने वाला पानी अपना जादुई प्रभाव दिखाता है। उसी पानी के कारण यह पनपती है; बढ़ती है। इसे उगाने के लिए किसी एक या दो व्यक्ति के नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों हाथों के द्वारा छूने की गरिमा छिपी हुई है। यह लाखों-करोड़ों इनसानों के परिश्रम का परिणाम है। इसमें एक-दो खेतों की मिट्टी नहीं प्रयुक्त हुई। इसमें हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी की विशेषताएँ छिपी हुई हैं। मिट्टी का गुण-धर्म इसमें छिपा हुआ है।

फसल क्या है ? यह तो नदियों के द्वारा लाए गए पानी का जादू है, जिसने इसे उपजाने में सहायता दी। इसमें न जाने कितने लोगों के हाथों का परिश्रम छिपा है। यह उन हाथों की महिमा का परिणाम है। भूरी-काली-संदली मिट्टी की विशेषताएँ इसमें विद्यमान हैं। यह सूर्य की किरणों का फसल के रूप में पनी किरणों से उसे बढ़ाया है। जीवन दिया है। हवा ने इसे थिरकने और इधर-उधर डोलने का गुण प्रदान किया है। भाव यह है कि फसल प्रकृति और मनुष्य के सामूहिक प्रयत्नों का परिणाम है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कविता में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. नदियों का पानी फसल के लिए क्या करता है?
3. फसल किनके स्पर्श की गरिमा है?
4. किसकी मिट्टी का गुण-धर्म फसल में विद्यमान है?
5. मिट्टी की किन विशेषताओं को कवि फसल के माध्यम से प्रकट किया है ?
6. मिट्टी के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है?
7. हवा फसल को क्या सिखाती है?
8. फसल किसका रूपांतर है?
9. कवि ने कौन-सा काव्य लिखकर नाटकीयता की सृष्टि की है?
उत्तर :
1. कविता का भावार्थ है कि फसल केवल मनुष्य उत्पन्न नहीं करता। यह प्रकृति और मनुष्य के द्वारा मिल-जुलकर किए जाने वाले सहयोग का परिणाम है।
2. नदियों का पानी फसल के लिए जादू का काम करता है, वही इसे बढ़ाता है, जीवन देता है।
3. फसल लाखों-करोड़ों मनुष्यों के स्पर्श की गरिमा है।
4. हज़ारों खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म फसल में विद्यमान है।
5. मिट्टी के काले-भूरे और चंदन जैसे रंग की विशेषताओं को कवि ने फ़सल के माध्यम से प्रकट किया है।
6. ‘संदल’ का अर्थ है-‘चंदन’। मिट्टी में सदा सोंधी-सोंधी सी गंध होती है। मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए कवि ने ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किया है।
7. हवा फसल को थिरकना सिखाती है।
8. फसल अनाज के रूप में सूर्य के प्रकाश का रूपांतरण है।
9. कवि ने ‘फसल क्या है?’ लिखकर नाटकीयता की सृष्टि की है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है ?
3. किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है ?
4. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है ?
5. छंद का नाम लिखिए।
6. किस शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है?
7. काव्य-गुण का नाम लिखिए।
8. कौन-सा रस विद्यमान है?
9. पंक्तियों में प्रयुक्त दो तत्सम और दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. लाक्षणिक भाषा का एक प्रयोग लिखिए।
11. कविता में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने फसलों के उत्पन्न होने का आधार केवल मनुष्य को न मानकर मनुष्य और प्रकृति के मिले-जुले सहयोग को माना है।
2. खड़ी बोली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
4. अभिधा शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है।
5. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
6. प्रश्न शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण।
8. शांत रस विद्यमान है।
9. तत्सम –
स्पर्श, गरिमा

तद्भव –
हाथ, मिट्टी

10. नदियों के पानी का जादू है वह।
11. पुनरुक्ति प्रकाश –

  • लाख-लाख,
  • कोटि-कोटि,
  • हज़ार-हज़ार

प्रश्न –
फसल क्या है?

अनुप्रास –

  • सूरज की किरणों का
  • सिमटा हुआ संकोच है

JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

JAC Class 10 Hindi हरिहर काका Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं ?
अथवा
हरिहर काका के प्रति लेखक की आसक्ति के क्या कारण थे?
उत्तर :
कथावाचक और हरिहर काका के मध्य स्नेह का संबंध है। यद्यपि हरिहर काका के प्रति स्नेह के कई वैचारिक और व्यावहारिक कारण हैं, लेकिन उनमें से दो कारण प्रमुख हैं। पहला कारण यह था कि हरिहर काका कथावाचक के पड़ोसी थे। दूसरा कारण यह था कि हरिहर काका ने कथावाचक को बहुत प्यार-दुलार दिया था। हरिहर काका उसे बचपन में अपने कंधे पर बैठाकर गाँव भर में घुमाया करते थे। हरिहर काका नि:संतान थे, इसलिए वे एक पिता की तरह कथावाचक की देखभाल करते थे। जब लेखक बड़ा हुआ, तो उसकी पहली मित्रता हरिहर काका के साथ हुई थी। हरिहर काका ने उसकी मित्रता स्वीकार करते हुए, उससे अपने मन की सारी बात की थी। वे उससे कुछ नहीं छिपाते थे। यही कारण था कि हरिहर काका और कथावाचक में उम्र का अंतर होते हुए भी बहुत गहरा संबंध था।

प्रश्न 2.
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगते हैं?
उत्तर :
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के लगते हैं, क्योंकि दोनों में ही स्वार्थ और हिंसावृत्ति की भावना विद्यमान थी। हरिहर काका के पास पंद्रह बीघे जमीन थी। उनके कोई संतान नहीं थी, इसलिए महंत और हरिहर काका के भाई उनके खेत अपने नाम लिखवाना चाहते थे। हरिहर काका अपने जीवित रहते ऐसा नहीं करना चाहते थे, इसलिए महंत और उनके भाई अपने-अपने ढंग से खेत हथियाने के लिए उन पर अत्याचार करने लगे।

दूसरों को मोह-माया से दूर रहने तथा अपना अगला जन्म सुधारने का उपदेश देने वाला महंत हरिहर काका के खेतों को अपने नाम करवाने के लिए उन्हें मारने के लिए तैयार हो जाता है। दूसरी ओर खून के रिश्ते अर्थात उनके सगे भाई भी खेतों को लेकर उनके खून के प्यासे हो जाते हैं। यही कारण था कि हरिहर काका को दोनों गुट एक ही श्रेणी के लगते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

प्रश्न 3.
ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव हैं उनसे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है?
उत्तर :
कथावाचक के गाँव में तीन स्थान प्रमुख थे-तालाब, पुराना बरगद का वृक्ष और ठाकुरबारी। ठाकुरबारी में सुबह-शाम ठाकुर जी की पूजा होती थी। गाँव के लोगों में ठाकुर जी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे लोग अपने हर कार्य की छोटी-बड़ी सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देते थे। जिसको जैसी सफलता मिलती थी, वह ठाकुर जी को वैसा ही चढ़ावा चढ़ाता था। यह चढ़ावा रुपये, जेवर और अनाज के रूप में होता था। यदि किसी को अपने कार्य में बहुत अधिक सफलता मिलती थी, तो वह अपनी जमीन का छोटा-सा भाग ठाकुर जी के नाम लिख देता था। इस प्रकार ठाकुर जी के प्रति लोगों के अंधविश्वास का पता चलता है। लोगों के इस विश्वास के कारण ही गाँव के विकास की अपेक्षा ठाकुर जी का विकास हज़ार गुणा हो गया था।

प्रश्न 4.
अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं ? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“हरिहर काका एक सीधे सादे और भोले किसान की अपेक्षा चतुर हो चले थे’ कथन के संदर्भ में 60-70 शब्दों में विचार व्यक्त करें।
उत्तर :
हरिहर काका कथावाचक के पड़ोस में रहते थे। वे बहुत समझदार व्यक्ति थे। उनके तीन भाई थे। तीनों भाइयों का अपना परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, लेकिन दोनों पत्नियों से उनकी एक भी संतान नहीं थी। दोनों पलियाँ भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। लोगों ने उन्हें तीसरी शादी के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण इनकार कर दिया था। इस प्रकार तीनों भाइयों का उनके हिस्से के खेतों पर अधिकार था। आरंभ में हरिहर काका की घर में उचित देखभा ने भी काका की देखभाल की जिम्मेदारी अपनी पत्नियों पर डाल दी थी। बाद में उनकी पत्नियों ने हरिहर काका की देखभाल में अनदेखी आरंभ कर दी।

हरिहर काका को बहुत दुख हुआ। उनके दुखी और कोमल हृदय का लाभ ठाकुरबारी के महंत ने उठाना आरंभ कर दिया। उन्होंने काका को अपना अगला जन्म सुधारने के लिए अपने खेत ठाकुरबारी के नाम लिखने के लिए कहा। उधर भाइयों को जब इस बात की भनक लगी, तो उन्होंने भी काका पर दबाव डालना आरंभ कर दिया। हरिहर काका स्वभाव से सीधे व्यक्ति थे, परंतु उन्हें दुनिया का बहुत ज्ञान था। वे जानते थे कि भाइयों व महंत द्वारा उसकी आवभगत करना केवल स्वार्थ और लालच पर आधारित है।

वे अपने जीवित रहते हुए अपने खेत किसी के भी नाम नहीं करना चाहते थे। उन्होंने ऐसे बहुत-से लोगों को देखा था, जिन्होंने जीवित रहते अपना सबकुछ अपने उत्तराधिकारियों के नाम लिख दिया और बाद में उन्हें पछताना पड़ा। इसलिए वे जीवित रहते अपने खेत किसी के भी नाम नहीं लिखना चाहते थे। इससे लगता है कि अनपढ़ होते हुए भी उन्हें दुनिया का बेहतर ज्ञान था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

प्रश्न 5.
अथवा
महंत ने हरिहर काका से ज़मीन नसीयत होते न देख क्या उपाय सोचा?
उत्तर :
हरिहर को ज़बरदस्ती उठाकर ले जाने वाले ठाकुरबारी के महंत के आदमी थे। महंत हरिहर काका के खेत अपने नाम लिखवाना चाहते थे। जब उन्होंने देखा कि हरिहर काका सीधे ढंग से उनके नाम खेत नहीं लिखना चाहते, तो उन्होंने हरिहर काका को घर से उठवा लिया। महंत ने हरिहर काका को ठाकुरबारी के एक कमरे में बंद कर दिया था और उन्हें मारा-पीटा गया। उनसे कोरे कागज़ों पर ज़बरदस्ती अंगूठे का निशान लगवा लिया गया। बाद में उनके हाथों-पैरों को कपड़े से बाँध दिया और मुँह में कपड़ा लूंसकर कमरे में बंद कर दिया।

प्रश्न 6.
हरिहर काका के मामले में गाँव वालों की क्या राय थी और उसके क्या कारण थे?
उत्तर :
हरिहर काका को लेकर गाँव वाले दो गुटों में बँट गए थे। एक गुट महंत के पक्ष में था और दूसरा गुट उनके भाइयों के पक्ष में था। महंत के पक्ष के लोग धार्मिक संस्कारों के लोग थे। उनकी राय थी कि हरिहर काका को अपनी ज़मीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनकी कीर्ति अचल बनी रहेगी। यह वे लोग थे, जिनका पेट ठाकुर जी को लगाए भोग अर्थात हलवा-पूड़ी से भरता था; उन्हें सारा दिन कुछ करने की ज़रूरत नहीं थी। दूसरे गुट में गाँव के सामाजिक विचारों वाले लोग अर्थात किसान थे। ऐसे लोगों की स्थिति हरिहर काका जैसी थी। वे खून के रिश्तों में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार व्यक्ति का गुजारा अपने परिवार से ही होता है। इस प्रकार हरिहर काका के मामले को लेकर गाँव वाले अपनी-अपनी राय दे रहे थे।

प्रश्न 7.
कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने यह क्यों कहा, “अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार हो जाता है।”
उत्तर :
हरिहर काका के तीन भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की, लेकिन उनके संतान नहीं हुई। दोनों पत्नियों के मरने के बाद हरिहर काका ने अपना सारा समय भजन-कीर्तन और भाइयों के परिवार में बिताना आरंभ कर दिया। शुरू-शुरू में उनका बहुत आदर-सत्कार होता था। लेकिन बाद में उन्हें रूखा-सूखा खाने को देते थे या फिर वह भी देना भूल जाते थे। जिस दिन हरिहर काका ने अपने खेतों पर अधिकार जमाया, उसी दिन से तीनों भाई और महंत उनका भरपूर ख्याल रखने लगे।

हरिहर काका अनपढ़ होते हुए भी समझ गए थे कि यह सारा आदर-सत्कार उनके खेतों के कारण है। इसलिए उन्होंने अपने जीवित रहते अपने खेत किसी एक के नाम करने से मना कर दिया। उसी दिन से भाई और महंत उनके दुश्मन हो गए। हरिहर काका उन लोगों से भयमुक्त हो गए थे, क्योंकि वे अपनी कीमत जान चुके थे। इसलिए वे अपने खेतों का उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाना चाहते थे। जब तक खेत उनके पास हैं, तब तक सभी उनके इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, बाद में उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है-इस सत्य को उन्होंने जान लिया था। इसलिए वे अपने भाइयों द्वारा मारने की धमकी देने से भी नहीं डरे अर्थात उन्होंने जीवित रहते मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी।

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प्रश्न 8.
समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है ? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
आज का समाज भौतिकवाद की ओर अग्रसर हो रहा है जिससे मानवीय रिश्तों का महत्व कम होता जा रहा है। सभी रिश्तों में स्वार्थ दिखाई देता है। आजकल घरों में बड़े आदमी को कोई नहीं पूछता; वे घर में सजावटी वस्तु बनकर रह गए हैं। सभी लोग आज की भागती-दौडती जिंदगी के साथ कदम मिलाने के लिए भाग रहे हैं, जिससे किसी के पास भी एक-दूसरे का सुख-दुख जानने का समय नहीं रहा है। भौतिकवादी और दिखावापसंद जीवन ने घर के बुजुर्गों और बच्चों को एक-दूसरे से दूर कर दिया है। इससे आज की पीढ़ी मानवीय रिश्तों को समझने में नाकाम हो गई है। समाज में रिश्तों की अहमियत में कमी आने से मनुष्य ने अपना स्वाभाविक स्वरूप खो दिया है।

प्रश्न 9.
यदि आपके आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो आप उसकी किस प्रकार मदद करेंगे?
उत्तर :
यदि हमारे घर के आस-पास हरिहर काका जैसी स्थिति वाले बुजुर्ग होंगे, तो हम उनकी पूरी मदद करेंगे। पहले उनके इस फैसले का समर्थन करेंगे कि जीवित रहते अपने खेतों को किसी और के नाम नहीं लिखेंगे। आज के भौतिकवाद की ओर बढ़ते समाज में बुजुर्गों की स्थिति घर में पहले जैसी नहीं रह गई है, इसलिए सरकार और कई अन्य सामाजिक संस्थाओं ने ऐसे वृद्धाश्रम खोल दिए हैं, जहाँ घर में उपेक्षित लोग वहाँ आराम से रह सकें। ऐसे ही वृद्धाश्रम में हम उनके रहने का उचित प्रबंध करेंगे, जहाँ वे अपनी उम्र के दूसरे
लोगों के बीच अपने को सुरक्षित अनुभव करेंगे।

प्रश्न 10.
हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
हरिहर काका का जिस प्रकार से धर्म और खून के रिश्तों से विश्वास उठ चुका था, उससे वे मानसिक रूप से बीमार हो गए थे। वे बिलकुल चुप रहते थे। किसी की भी बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। यदि हरिहर काका के गाँव में मीडिया की पहुँच होती, तो उनकी स्थिति भिन्न होती। मीडिया उनकी स्थिति तथा उनके साथ हुए दुर्व्यवहार की बात को दुनिया के सामने लाती। धर्म के नाम पर संपत्ति इकट्ठा करने वाले महंत का असली चेहरा लोगों के सामने आता।

खून के रिश्ते किस प्रकार निजी स्वार्थ के कारण अपने घर के सदस्य की जान के प्यासे हो जाते हैं-इस बात से दुनिया को अवगत करवाती। हरिहर काका को मीडिया उचित न्याय दिलवाती। उन्हें स्वतंत्र रूप से जीने की व्यवस्था उपलब्ध करवाने में मदद करती। जिस प्रकार के दबाव में वे जी रहे थे, वैसी स्थिति मीडिया की सहायता मिलने के बाद नहीं होती।

JAC Class 10 Hindi हरिहर काका Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘हरिहर काका’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हरिहर काका’ कहानी के कथाकार मिथिलेश्वर हैं। हरिहर काका कथाकार के पड़ोस में रहते थे। कथाकार ने हरिहर काका के माध्यम से हमारे पारिवारिक जीवन तथा हमारे आस्था के प्रतीक धर्मस्थालों पर व्याप्त होती जा रही स्वार्थ लिप्सा को उजागर किया है। हरिहर काका संयुक्त परिवार में रहते थे। वे चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। उनके कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनकी जायदाद के हकदार उनके परिवार के सदस्य थे।

परंतु घर में कुछ इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं, जिसका लाभ ठाकुरबारी के महंत उठाना चाहता है। महंत हरिहर काका को लोक-परलोक सुधारने के लिए अपनी जमीन ठाकुर जी के नाम लिखने के लिए कहता है। यह बात भाइयों को पता चलती है। वे भी हरिहर खून के रिश्तों का दिखावा करके काका से जायदाद उनके नाम करने को कहते हैं। इस खींचतान में हरिहर काका के सामने धर्म और परिवार दोनों का असली चेहरा आता है। उन्हें धर्म का नाम लेकर लोगों को फँसाने वाले महंत और अपने परिवार से घृणा हो जाती है।

यह नफ़रत उन्हें कभी न खत्म होने वाली चुप्पी साध लेने को मजबूर कर देती है। इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने घर और धर्म का असली चेहरा लोगों के सामने रखा है। घर एक ऐसा स्थान होता है, जहाँ लोग अपने सुख-दुख, खुशी-गम आपस में बाँटते हैं। धर्मस्थल वे स्थान होते हैं, लोगों में अपनेपन और सहृदयता के संस्कार देते हैं। परंतु स्वार्थलिप्सा और हिंसावृत्ति के चलते घर और धर्मस्थल दोनों ही अराजकता, अनाचार और अन्याय पथ पर अग्रसर हैं। इसी उद्देश्य को कथाकार ने हरिहर काका के माध्यम से स्पष्ट किया है।

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प्रश्न 2.
कहानी के आधार पर ‘हरिहर काका’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘हरिहर काका’ कहानी के लेखक मिथिलेश्वर हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र हरिहर काका हैं। हरिहर काका का चित्रांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है –
1. परिचय – ‘हरिहर काका’ लेखक के पड़ोस में रहते थे। वे एक संयुक्त परिवार के सदस्य थे। उनके तीन भाई थे। तीनों भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, परंतु उनकी एक भी संतान नहीं हुई। उनके परिवार के पास साठ बीघे खेत थे।

2. धार्मिक विचारों वाले – हरिहर काका धार्मिक विचारों वाले थे। वे अपना कृषि से बचा समय गाँव की ठाकुरबारी में व्यतीत करते थे। वहाँ वे भजन-कीर्तन में ध्यान लगाते थे।

3. संस्कारशील – हरिहर काका संस्कारों को मानने वाले व्यक्ति थे। दोनों पत्नियों के मरने के बाद लोगों ने उन्हें तीसरी शादी करने के लिए कहा परंतु उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र तथा धार्मिक संस्कारों के कारण शादी से इनकार कर दिया।

4. सहनशील – हरिहर काका सहनशील व्यक्ति थे। उनको अपने परिवार में उचित सम्मान नहीं मिलता था। लेकिन वे अपने परिवार की बेरुखी चुपचाप सहन करते हैं।

5. ममतालु – हरिहर काका का स्वभाव दूसरों पर प्यार लुटाने वाला था। उन्होंने लेखक को बचपन में एक पिता की तरह दुलार दिया था। वे अपने भाइयों और उनके परिवार से भी बहुत प्यार करते थे, इसलिए उन सबकी बेरुखी चुपचाप सहन कर लेते थे।

6. जागरूक विचारों वाले – हरिहर काका अनपढ़ व्यक्ति थे, परंतु अपने अधिकारों के प्रति सचेत थे। जब उन्हें घर में उचित सम्मान मिलना बंद हो गया, तब उन्होंने अपने खेतों पर अधिकार जमाना आरंभ कर दिया। वे अपने जीवित रहते किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते थे। उन्होंने बहुत दुनिया देखी थी। उनके अनुसार यदि जीवित रहते अपनी जायदाद दूसरों के नाम लिख दो, तो बाद में उन्हें कोई नहीं पूछता। इससे पता चलता है कि हरिहर काका जागरूक विचारों वाले थे। हरिहर काका अनपढ़ थे, परंतु उन्हें दुनियादारी का पूरा ज्ञान था। वे सहनशील, ममतालु और धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे।

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प्रश्न 3.
ठाकुरबारी का गाँव में मुख्य काम क्या था?
उत्तर
ठाकुरबारी का मुख्य काम गाँव के लोगों में ठाकुर जी के प्रति भक्ति-भावना पैदा करना था। जो लोग धर्म के मार्ग से विमुख हो गए थे, उन्हें सही मार्ग पर लाना भी ठाकुरबारी का प्रमुख कार्य था। गाँव में जब भी बाढ़ या सूखा पड़ता था, उस समय ठाकुरबारी के आँगन में तंबू लगाकर सुबह-शाम ज़ोर-ज़ोर से भजन-कीर्तन शुरू हो जाता था। घरों में सभी शुभ कार्य ठाकुरबारी के महंत द्वारा आरंभ किए जाते थे।

प्रश्न 4.
ठाकुरबारी के महंत और पुजारी की नियुक्ति कौन करता था?
उत्तर
ठाकुरबारी के स्वरूप का विकास होने पर धार्मिक लोगों ने मिलकर समिति बना ली थी। यह समिति हर तीन साल बाद महंत और पुजारी की नियुक्ति करती थी।

प्रश्न 5.
हरिहर काका के परिवार में कौन-कौन थे? उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर
हरिहर काका का परिवार संयुक्त परिवार था। वे चार भाई थे। हरिहर काका ने दो शादियाँ की, परंतु उनकी संतान नहीं थी। दोनों पत्नियों के मरने के उपरांत वे अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। तीनों भाइयों के भरे-पूरे परिवार थे। दो भाइयों ने अपने लड़कों की शादियाँ भी कर दी थीं। उन लड़कों में से एक लड़का शहर में क्लर्की का काम करता था। हरिहर काका के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उनके परिवार के पास साठ बीघे जमीन थी। सभी भाइयों के हिस्से में पंद्रह बीघे खेत थे।

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प्रश्न 6.
किस घटना ने हरिहर काका को क्रोधित किया?
उत्तर
हरिहर काका अपनी दोनों पत्नियों के मरने के उपरांत भाइयों के पास रहने लगे थे। भाइयों ने भी अपने परिवार की औरतों को हरिहर काका की उचित देखभाल करने के लिए कह दिया था। कुछ दिन तक उनकी उचित देखभाल हुई, लेकिन बाद में घर में उनको अनदेखा किया जाने लगा। खाने में भी रूखा-सूखा भोजन दिया जाता था। बीमार पड़ने पर कोई उन्हें पूछने भी नहीं आता था।

एक दिन उनके शहर में रहने वाले भतीजे के साथ उसका मित्र आया। उस मित्र की मेहमानबाजी में घर में अच्छा खाना बना था। उस दिन हरिहर काका अच्छा खाना खाने की सोच रहे थे। लेकिन उन्हें देर तक कोई पूछने भी नहीं आया। हरिहर काका स्वयं रसोई में जाकर खाना माँगने लगे। उनके खाना माँगने पर घर की बहू ने उन्हें प्रतिदिन की तरह थाली में रूखा-सूखा खाना रखकर दे दिया। यह देखकर हरिहर काका को क्रोध आ गया और उन्होंने खाने की थाली घर के आँगन में फेंक दी।

प्रश्न 7.
हरिहर काका की अपने परिवार के साथ हुई लड़ाई का लाभ कौन उठाना चाहता था और उसने हरिहर काका को क्या समझाया?
उत्तर
हरिहर काका की अपने परिवार के साथ हुई लड़ाई का लाभ महंत उठाना चाहते थे। हरिहर काका के पास पंद्रह बीघे ज़मीन थी। उस जमीन को महंत ठाकुरबारी की ज़मीन के साथ मिलाना चाहते थे। इसलिए वे हरिहर काका को बहला-फुसलाकर ठाकुरबारी में ले गए। उन्होंने हरिहर काका को मोह-माया के बंधन से दूर रहने का उपदेश दिया। वे हरिहर काका को अपने खेत ठाकुर जी के नाम लिखने की सलाह दी और कहा कि ऐसा करने से हरिहर काका के लोक-परलोक दोनों सुधर जाएँगे। इस जन्म में उन्हें संतान सुख नहीं मिला, परंतु वे अपना खेत ईश्वर के नाम लिख देंगे तो अगले जन्म में उन्हें ईश्वर सभी प्रकार के सुखों से भर देगा। इस प्रकार की बातें करके महंत हरिहर काका को अपने जाल में फँसाने में लगे थे।

प्रश्न 8.
“जिनका धन वह रहे उपास, खाने वाले करें विलास।” कथावाचक ने यह शब्द किसके लिए और क्यों कहे हैं?
उत्तर :
कथावाचक ने यह शब्द हरिहर काका तथा उनकी सुरक्षा के लिए आए पुलिसकर्मियों के लिए कहे थे। हरिहर काका के खेतों को लेकर गाँव में चर्चाओं का वातावरण गर्म था। महंत और उनके तीनों भाई खेतों को अपने नाम करवाना चाहते थे। इसलिए दोनों ही उन पर अत्याचार करने लगे थे। काका को उन लोगों से बचाने के लिए पुलिस वालों ने उनकी सुरक्षा का प्रबंध कर दिया था। हरिहर काका अपने भाइयों और महंत का बिनौना रूप देखकर सकते में थे। उन्होंने चुष्पी धारण कर ली थी।

वे किसी से कुछ नहीं कहते थे। अब वे भाइयों से अलग हो चुके थे। उन्होंने अपने कार्यों के लिए एक नौकर रख लिया था। अब उन्हें खाने की इच्छा नहीं रह गई थी। जब वे खाना चाहते थे, तब उन्हें खाने के लिए मिलता ही नहीं था। खाने के नाम पर ही सब झगड़ा हुआ था। अब उनके खर्चे पर पुलिस वाले, नौकर आदि खाकर आनंद मना रहे हैं। इसलिए कथाकार ने ये शब्द हरिहर काका के न खा सकने तथा अन्य लोगों द्वारा उनके पैसे पर मौज़ उड़ाने को लेकर कहे हैं।

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प्रश्न 9.
हरिहर काका के साथ उनके सगे भाइयों का व्यवहार क्यों बदल गया?
उत्तर :
हरिहर काका के परिवार के पास साठ बीघे खेत थे। वे चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका निःसंतान थे। इसलिए उनके खेतों की देखभाल और उसका लाभ उनके भाइयों को मिलता था। इसके बदले में उनकी उचित देखभाल होती थी, परंतु थोड़े दिनों बाद वे परिवार में फालतू वस्तु बनकर रह गए थे। इस पर उन्होंने अपने हिस्से के खेतों पर अधिकार जमाना आरंभ कर दिया। उनके तीनों भाइयों का व्यवहार बदल गया। पहले तो प्यार और आदर का दिखावा करके उन्हें अपने खेत उन लोगों के नाम लिखने के लिए कहा।

हरिहर काका ने दुनिया देखी थी; वे समझ गए थे कि यदि जीवित रहते खेत उन लोगों के नाम लिख दिए तो वे लोग उन्हें पूछने तक नहीं आएँगे। उनकी इस सोच ने उनके भाइयों को क्रूर और अत्याचारी बना दिया। वे तीनों उन्हें सताने लगे। वे उनसे मारपीट करते थे तथा उन्हें जान से मार देने की धमकी देते थे। खेतों के लिए भाइयों का बदला व्यवहार देखकर समाज के हर रिश्ते से हरिहर काका का विश्वास उठ गया था।

प्रश्न 10.
आपके विचार में हरिहर काका के न रहने पर उनकी जमीन पर किसके अधिकार की संभावना है? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हरिहर काका के खेतों पर अधिकार जमाने के लिए महंत और उनके भाइयों ने उनसे मारपीट करके कोरे कागजों पर उनके अंगूठे के निशान ले लिए थे। दोनों ही गुट उनकी जमीन के उत्तराधिकारी बन गए थे। परंतु हरिहर काका के न रहने पर उनकी जमीन पर अधिकार करने की संभावना महंत की अधिक है, क्योंकि उनके साथ धर्म का नाम है और वे जानते हैं कि धर्म के नाम पर लोगों को कैसे उकसाया जाता है; कैसे दंगा-फसाद खड़ा किया जा सकता है? उनके साथ गाँव के अंधविश्वासी लोग अधिक हैं।

वे लोग, जो अपने हर छोटे बड़े कार्य की सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देकर चढ़ावा चढ़ाते हैं, तो उन लोगों का समर्थन लेकर खेतों को अपने अधिकार में करना महंत के लिए आसान कार्य था। इसमें हरिहर काका के भाई कुछ भी नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 11.
ठाकुर जी के नाम जमीन वसीयत करने की बात कहने में महंत ने हरिहर काका को क्या-क्या लालच दिए?
उत्तर :
ठाकुर जी के नाम ज़मीन वसीयत करने की बात कहते हुए महंत ने हरिहर काका से कहा कि ऐसा करने से वे समस्त मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाएँगे; वे धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, उन्हें ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए। इससे उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होगी तथा तीनों लोकों में उनकी कीर्ति जगमगा उठेगी। लोग उन्हें सदा स्मरण करते रहेंगे। तुम आराम से ठाकुरबारी में अपना शेष जीवन व्यतीत करना, जहा तुम्ह सबकुछ मिलता रहेगा।

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प्रश्न 12.
भाइयों की किन बातों से हरिहर काका का दिल पसीजा और वे घर लौट आए?
उत्तर :
हरिहर काका ठाकुरबारी से घर नहीं आना चाहते थे, क्योंकि वहाँ उन्हें सब प्रकार का आराम मिल रहा था। लेकिन जब उनके तीनों भाई उन्हें मनाने बार-बार ठाकुरबारी आने लगे; उनके पाँव पकड़कर रोने लगे; अपनी पत्नियों की गलतियों के लिए माफ़ी माँगने लगे, तो उनका दिल पसीज गया। उनके भाइयों ने अपनी पलियों को दंड देने की बात कही तथा खून के रिश्ते की दुहाई दी, तो वे पुन: वापस घर लौट आए।

प्रश्न 13.
ठाकुरबारी में हरिहर काका की सेवा के लिए क्या-क्या व्यवस्था की गई ?
उत्तर :
ठाकुरबारी में हरिहर काका की सेवा के लिए दो सेवकों ने एक साफ़-सुथरे कमरे में पलंग पर बिस्तर लगाकर उन्हें वहाँ लिटा दिया। उनके लिए विशेष प्रकार के भोजन की व्यवस्था की गई। उन्हें घी टपकते मालपुए, रस बुनिया, लड्डू, छेने की तरकारी, दही, खीर आदि खाने के लिए दी गई।

प्रश्न 14.
ठाकुरबारी की देखभाल की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर :
ठाकुरबारी की देखभाल के लिए धार्मिक लोगों की एक समिति थी, जो ठाकुरबारी के संचालन के लिए प्रत्येक तीन वर्ष पर एक महंत और एक पुजारी की नियुक्ति करती थी। ठाकुरबारी का खर्चा चंदे, दान, चढ़ावे तथा बीस बीघे खेतों की फ़सल की आय से चलता था।

प्रश्न 15.
तीसरी शादी करने से हरिहर काका ने क्यों मनाकर दिया?
उत्तर :
हरिहर काका ने अपनी ढलती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण तीसरी शादी करने से इनकार कर दिया था। औलाद के लिए उन्होंने दो शादियाँ की थीं, परंतु जब दोनों ही बिना संतान को जन्म दिए स्वर्ग सिधार गईं, तो वे विरक्त हो गए। इसके बाद तीसरी शादी का विचार छोड़कर ‘प्रभु में लीन’ हो गए।

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प्रश्न 16.
हरिहर काका ने खाने की थाली बीच आँगन में क्यों फेंक दी?
उत्तर :
एक दिन हरिहर काका के शहर में रहने वाले भतीजे के साथ उसका मित्र आया। उस मित्र की मेहमानबाजी में अच्छा खाना बना था। उस दिन हरिहर काका को अच्छा खाना मिलने की उम्मीद थी। लेकिन उन्हें देर तक कोई भी पूछने नहीं आया। हरिहर काका स्वयं रसोई में जाकर खाना माँगने लगे। उनके खाना माँगने पर घर की बहू ने उन्हें प्रतिदिन की तरह रूखा-सूखा खाना थाली में रखकर दे दिया। यह देखकर हरिहर काका को क्रोध आ गया और उन्होंने खाने की थाली घर के आँगन में फेंक दी।

प्रश्न 17.
‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर बताइए कि एक महंत से समाज की क्या अपेक्षा होती है। उक्त कहानी में महंतों की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए। उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
उत्तर :
‘हरिहर काका’ पाठ में ठाकुर बारी के महंत किसी न किसी प्रकार से हरिहर काका की संपत्ति हड़पना चाहते हैं। वे एक धर्माधि कारी होते हुए भी धर्म की उचित शिक्षा नहीं दे रहे हैं। वे मात्र अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। वास्तव में एक धर्माधिकारी महंत का सर्वप्रथम कर्तव्य यह है कि वह समाज को धर्मानुसार आचरण करने की शिक्षा दे। जो लोग अधर्म के मार्ग पर चल रहे हैं, उन्हें सही मार्ग पर लाए। इसके लिए उन्हें समाज में नैतिक मूल्यों के विकास का प्रयत्न करते हुए उनमें परंपरागत भारतीय संस्कार जागृत करने होंगे।

इस कार्य को सफल बनाने के लिए उन्हें अपने आचरण के द्वारा लोगों को शिक्षित करना होगा। उदाहरण के लिए एक माँ ने गुरू नानकदेव जी से प्रार्थना की कि उसका बेटा गुड़ बहुत खाता है, उसे गुड़ खाने से मना करें। गुरूजी ने उसे एक सप्ताह बाद आने के लिए कहा। वह एक सप्ताह बाद बेटे के साथ आई तो गुरूजी ने बालक के सिर पर हाथ रख कर कहा कि बेटा गुड़ मत खाना।

इस पर माँ ने गुरूजी को कहा कि इतनी सी बात के लिए उसे दुबारा क्यों बुलाया, उसी दिन कह देते। गुरूजी ने उत्तर दिया कि तब मैं स्वयं गुड़ खाता था, इसलिए गुड़ नहीं खाने का उपदेश नहीं दे सकता था। अब मैं गुड़ नहीं खाता इसलिए बालक को गुड़ नहीं खाने के लिए कह सका हूँ। धर्मानुसार आचरण करने के लिए समाज को प्रेरित करना ही महंतों का मुख्य कार्य है न कि अपना स्वार्थ सिद्ध करना।

हरिहर काका Summary in Hindi

पाठ का सार :

हरिहर काका’ कहानी के कथाकार ‘मिथिलेश्वर’ हैं। इस कहानी के माध्यम से कथाकार ने ग्रामीण पारिवारिक जीवन तथा हमारी आस्था के प्रतीक धर्मस्थलों में पाँव फैला रही स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है। कहानी में ‘हरिहर काका’ को इसी स्वार्थलिप्सा के कारण पारिवारिक संबंधों से बेदखल किया गया। लेखक का हरिहर काका से परिचय बचपन का है। हरिहर काका उसके पड़ोस में रहते थे। उन्होंने उसे अपने बच्चे की तरह प्यार और दुलार दिया था। वे उससे अपनी कोई भी बात नहीं छिपाते थे।

परंतु पिछले कुछ दिनों की घटी घटनाओं के कारण हरिहर काका ने चुप्पी साध ली थी। वे किसी से बात नहीं करते थे। वे हर समय चुपचाप बैठे हुए कुछ-न-कुछ सोचते रहते थे। ऐसा लगता था कि उनकी यह चुप्पी उनके साथ ही खत्म होगी। लेखक का गाँव आरा शहर से चालीस किलोमीटर की दूरी पर था। गाँव में तीन स्थान प्रमुख हैं। एक तालाब, दूसरा पुराना बरगद का वृक्ष और तीसरा ठाकुर जी का विशाल मंदिर जिसे लोग ठाकुरबारी भी कहते हैं। ठाकुरबारी की स्थापना कब हुई, इसका किसी को विशेष ज्ञान नहीं था।

इस संबंध में प्रचलित है कि जब गाँव बसा था, तो उस समय एक संत इस स्थान पर झोंपड़ी बनाकर रहने लगे थे। उस संत ने इस स्थान पर ठाकुर जी की पूजा आरंभ कर दी। लोगों ने धर्म और सेवा-भावना से प्रेरित होकर चंदा इकट्ठा करके ठाकुर जी का मंदिर बनवा दिया। ग्रामीण लोगों के विश्वास ने ठाकुर जी के मंदिर और संपत्ति में विशेष योगदान दिया। वहाँ के लोग अपने प्रत्येक कार्य की सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देते थे और अपनी जमीन का एक छोटा टुकड़ा ठाकुर जी के नाम लिख देते थे।

लोगों के इस विश्वास के कारण ठाकुर जी के नाम बीस बीघे जमीन हो गई थी। ठाकुरबारी की देखभाल महंत और एक पुजारी करते थे। इनकी नियुक्ति धार्मिक लोगों की समिति द्वारा तीन साल के लिए की जाती थी। ठाकुरबारी का काम लोगों में धर्मभावना और सेवाभावना उत्पन्न करना था। वहाँ के लोगों के सभी काम ठाकुरबारी से शुरू होते थे। लोग अपना कृषि से बचा समय ठाकुरबारी में व्यतीत करते थे। लेखक कभी-कभी ठाकुरबारी में जाता था। उसे वहाँ बैठे साधु-संत अच्छे नहीं लगते थे। लेखक को लगता था कि ये साधु-संत खाली बातें बनाकर हलवा-पूड़ी खाने का कार्य करते हैं। हरिहर काका चार भाई थे।

सबकी शादियाँ हो गई थी और सभी के पास बच्चे थे। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, परंतु उन्हें बच्चे नहीं हुए थे। उनकी दोनों पत्नियाँ भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। हरिहर काका ने तीसरी शादी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण नहीं की थी। वे अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। उनके परिवार के पास साठ बीघे जमीन थी। सभी भाइयों के हिस्से में पंद्रह-पंद्रह बीघे जमीन आई थी। तीनों भाइयों ने अपनी पत्नियों से कह रखा था कि हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करें; उन्हें किसी तरह का कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। कुछ समय तक सबकुछ ठीक प्रकार से चलता रहा।

थोड़े दिनों बाद सब अपने-अपने परिवार और बच्चों में मग्न हो गए। हरिहर काका का ध्यान रखने वाला कोई नहीं रहा। कभी-कभी उन्हें बचा-खुचा खाना दिया जाता था। बीमार पड़ने पर उन्हें पानी देने वाला कोई नहीं था। उनका अपने भाइयों के परिवार से मोहभंग हो गया। एक दिन उनके भतीजे का मित्र शहर से आया। उसके लिए तरह-तरह के व्यंजन बने। हरिहर काका को विश्वास था कि आज उन्हें अच्छा खाना मिलेगा। परंतु उन्हें किसी ने कुछ नहीं दिया। माँगने पर उन्हें वही रूखा-सूखा भोजन थाली में रखकर दे दिया गया।

हरिहर काका को गुस्सा आ गया। उन्होंने वह थाली आँगन में फेंक दी और कहने लगे कि उनके हिस्से के धन पर घर के सभी लोग मज़े कर रहे हैं। जिस समय हरिहर काका बोल रहे थे, उस समय ठाकुरबारी का पुजारी उनके घर के दालान में बैठा हुआ था। उसने ठाकुरबारी के महंत को सारी बात कह सुनाई। महंत ने इस घटना का लाभ उठाते हुए

हरिहर काका को अपने जाल में फंसा लिया। महंत हरिहर काका को एकांत में ले जाकर लोक-परलोक की बातें समझाने लगे कि यदि वह अपने हिस्से की ज़मीन ठाकुरबारी को दान कर दे, तो चारों ओर उनका गुणगान होगा, ईश्वर की भी उसके ऊपर कृपा बनी रहेगी। हरिहर काका ने पिछले जन्म में कोई पाप किया होगा, जिस कारण उसे पत्नी और संतान सुख नहीं मिला।

यदि अब वह अपना तन, मन, धन ईश्वर के नाम कर देगा, तो उसे अगले जन्म में पूर्ण सुख की प्राप्ति होगी। हरिहर काका देर तक महंत की बातों पर विचार करते रहे। महंत ने उन्हें खूब अच्छा खाने को दिया और सोने के लिए एक आरामदायक कमरा दे दिया। हरिहर काका के भाइयों को जब घर में घटी घटना का पता चला, तो उन्होंने अपनी पत्नियों को बहुत फटकारा। वे तीनों काका को लेने ठाकुरबारी पहुँच गए। महंत ने हरिहर काका को एक रात के लिए अपने यहाँ रोक लिया।

इससे भाइयों को हरिहर काका की पंद्रह बीघे जमीन हाथ से निकलती दिखाई देने लगी। सुबह होते ही तीनों फिर से ठाकुरबारी पहुँच गए। हरिहर काका के पैर पकड़कर रोने लगे। हरिहर काका का दिल पसीज गया और वे उनके साथ घर आ गए। घर में सभी लोगों ने उन्हें हाथों पर लिया। उनकी बहत आवभगत हुई। अब उनकी सभी इच्छाओं का ध्यान रखा जाने लगा। हरिहर काका इस परिवर्तन का श्रेय महंत को दे रहे थे। गाँव के लोगों बताया था, परंतु फिर भी उन लोगों को सारी घटना का पता चल गया था।

हरिहर काका को लेकर गाँव में दो गुट बन गए। एक गुट का मानना था कि हरिहर काका को अपना अगला जन्म सुधारने के लिए जमीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए और दूसरे गुट के लोगों का कहना था कि भाइयों के साथ खून का रिश्ता है, इसलिए ज़मीन उनको देनी चाहिए। हरिहर काका को लेकर गाँव का वातावरण तनावपूर्ण हो गया था। सभी लोग अपनी बात को ठीक बताने में लगे थे। हरिहर काका के भाइयों को भी यही आशंका होने लगी थी कि कहीं लोगों और महंत के दबाव के कारण वे अपनी जमीन ठाकुरबारी के नाम न लिख दें। हरिहर काका जीते-जी किसी को भी अपनी जमीन का स्वामी नहीं बनाना चाहते थे।

उन्हें अपने गाँव के कई बुजुर्ग याद थे, जिन्होंने अपने जीवित रहते अपनी जमीन दूसरों के नाम लिख दी और फिर उनका जीवन एक कुत्ते के जीवन के समान हो गया। हरिहर काका ने न तो महंत को इंकार किया और न ही अपने भाइयों को। वे भी इस बदलाव का असली कारण समझ गए थे। हरिहर काका को लेकर महंत चिंता में पड़ गए। उन्हें लगता था कि कहीं हाथ आई चिड़िया उड़ न जाए, इसलिए उन्होंने हरिहर काका का अपहरण करवाने का निश्चय किया। बाहर से कुछ साधु बुलाकर हरिहर काका को आधी रात के समय घर से उठवा लिया गया। उनके भाई उन्हें ढूँढ़ने लगे। उन्हें लग रहा था कि यह काम महंत का है।

वे लोग ठाकुरबारी गए। वहाँ शांति और खामोशी थी, फिर उन्हें लगा कि कहीं रुपये-पैसे के लालच में डाकू न उठाकर ले गए हों। वे यह सोच ही रहे थे कि उन्हें ठाकुरबारी में से बातचीत करने की आवाजें – आने लगीं। उन्होंने ठाकुरबारी के दरवाजे को पीटना आरंभ कर दिया। ठाकुरबारी की छत से पथराव और फायरिंग होने लगी। हरिहर काका के भाइयों ने पुलिस की सहायता लेकर ठाकुरबारी से काका को बाहर निकाला। काका की हालत बिगड़ी हुई थी। उनके अनुसार महंत उनसे जबरदस्ती जमीन के कागजों पर अंगूठा लगवाना चाहते थे। हरिहर काका के मन में महंत, पुजारी और ठाकुरबारी के प्रति नफ़रत। भर गई थी। हरिहर काका के भाई काका की रक्षा इस प्रकार करते थे, जैसे कोई अनमोल वस्तु हो। काका को यह अनुभव हो गया था।

कि भाइयों द्वारा स्नेह और आदर उनकी जायदाद के कारण है। ठाकुरबारी की घटना के पश्चात भाइयों का दबाव बढ़ने लगा था कि जायदाद उनके नाम कर दें, परंतु काका अपनी बात पर अड़े हुए थे। काका की टालने वाली बातें सुनकर तीनों भाइयों ने महंत वाला रास्ता अपनाया। हरिहर काका से मारपीट आरंभ कर दी। मार पड़ने पर हरिहर काका ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे, जिस कारण उनकी आवाजें घर से बाहर निकल गईं। लोगों ने हरिहर काका के साथ हो रही जोर-ज़बरदस्ती की बात महंत को बताई।

महंत ने पुलिस कार्यवाही करने। में तत्परता दिखाई। पुलिस ने हरिहर को भाइयों के कब्जे से बड़ी बुरी हालत में बरामद किया। हरिहर काका का धर्म से तो पहले ही मोहभंग हो गया था, लेकिन भाइयों के व्यवहार को देखकर खून के रिश्ते से भी उनका मन उचट गया था। हरिहर काका को लेकर महंत और तीनों भाइयों में खींचतान आरंभ हो गई। दोनों गुटों को एक-दूसरे से डर लगा रहता था कि हरिहर काका को कोई भी गुट अपने पक्ष में न कर ले। इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस का पहरा लगा दिया गया।

महंत और तीनों भाई हरिहर काका का विश्वास फिर से जीतने में लगे हुए थे। इस बीच गाँव के एक नेताजी का भी ध्यान हरिहर काका और उनकी जायदाद पर जाता है। वे हरिहर काका से स्कूल बनाने के बहाने से ज़मीन हथियाना चाहते थे, लेकिन हरिहर काका अब किसी की भी बातों में नहीं आते थे। नेताजी को खाली हाथ लौटना पड़ा। गाँववालों के पास अब उठते-बैठते एक ही चर्चा थी कि हरिहर काका अपनी जमीन किसके नाम लिखेंगे।

गाँव में खबरों का बाजार गर्म था कि हरिहर काका के मरने के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी दोनों गुटों में झगड़ा होगा, क्योंकि दोनों के पास हरिहर काका के अंगूठा लगे कागज़ थे। हरिहर काका ने तो सबकी बातें सुननी बंद कर दी थीं। वह किसी की भी बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। हरिहर काका ने अपने कामों के लिए एक नौकर रख लिया था। उन्हें तो धर्म के अधर्म स्वरूप ने और खून के रिश्तों की स्वार्थता ने गूंगा बना दिया था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

कठिन शब्दों के अर्थ :

यंत्रणाओं – यातनाओं, मनःस्थिति – मानसिक दशा, आसक्ति – लगाव, सयाना – बड़ा होना, मझदार – बीच में, विलीन – लुप्त होना, विकल्प – दूसरा उपाय, मन्नौती – मन्नत, ठाकुरबारी – देवस्थान, संचालन – चलाना, अखरना – बुरा लगना, नियुक्ति – लगाया गया, दवनी – अन्न निकालने की प्रक्रिया, अगउम – देवता के लिए निकाला गया अंश, घनिष्ठ – गहरा, हाज़िर – उपस्थित, प्रवचन – उपदेश, मशगूल – व्यस्त, चटोर – खाने-पीने वाले, हमाध – हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री, तत्क्षण – उसी पल, अकारथ – बेकार, विलंब – देर, मुस्तैद – तैयार, निष्कर्ष – परिणाम, जून – समय, बय – उम्र, अप्रत्याशित – आकस्मिक, महटिया – टाल जाना, छल, बल, कल – वंचना, शक्ति, बुद्धि, आच्छादित – ढका हुआ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे। वे समाज में क्रांति के माध्यम से परिवर्तन लाना चाहते थे। वे क्रांति चेतना का आह्वान करने में विश्वास रखते थे, जो ओज और जोश पर निर्भर करती है। ओज और जोश के लिए ही कवि बादलों को गरजने के लिए कहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा भया है।
उत्तर :
यह एक आहवान गीत है, जिसमें कवि ने मत्साहपूर्ण उग में अपने प्रगतिवादी स्वर को प्रकट किया है। वह बादलों को गरज-गरजकर सारे संसार को नया जीवन प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है, जिनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। वे संसार को नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए कवि ने बादलों के विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक उत्साह रखा है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
कविता में बादल ललित कल्पना और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है। एक तरफ़ यह पीड़ित-प्यासे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है, वहीं दूसरी तरफ़ वह नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर :

  1. घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ।
  2. ललित ललित, काले धुंघराले।
  3. विद्युत-छवि उर में, कवि नवजीवन वाले।
  4. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही कभी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है-अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है ? लिखिए।
उत्तर :
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माला पाट-पाट शोभा-श्री पट नहीं कही है। कवि कहता है कि हरे पत्तों और लाल कोंपलों से भरी डालियों के बीच खिले सुगंधित फूलों की शोभा बिखरी है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कंठों में सुगंधित फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम वन की शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हैं पर अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा न सकने के कारण वह चारों ओर बिखर रही है। कवि ने अपने मन के भावों को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन में किस तरह प्रभावित करता है?
उत्तर :
कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम प्रभु फागुन की सुंदरता के कण-कण में व्याप्त हैं। उनके श्वास के द्वारा प्रकृति का कोना-कोना सुगंध से आपूरित था। वही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ भरते थे। उनमें विशेष आकर्षण था, जिससे कवि अपनी आँख नहीं हटाना चाहता। उसकी दृष्टि हट ही नहीं रही है।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर :
कवि ने प्रकृति की व्यापकता को फागुन की सुंदरता के रूप में प्रकट किया है। प्रकृति की सुंदरता और व्यापकता फागुन में समा नहीं पाती, इसलिए वह सब तरफ़ फूटी पड़ती दिखाई देती है। प्रकृति के माध्यम से परमात्मा की सर्वव्या किया है। वह परम सत्ता अपनी श्वासों से प्रकृति के कोने-कोने में सुगंध के रूप में व्याप्त है।

प्रकृति ही कवि को कल्पना की ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती है और उसकी रचनाओं में सर्वत्र दिखाई देती है। प्रकृति की व्यापकता ही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देती है। वन का प्रत्येक पेड़-पौधा इसी सुंदरता से भरकर शोभा देता है। प्रकृति की व्यापकता नैसर्गिक सौंदर्य का मूल आधार है।

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प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर :
फागुन का महीना मस्ती से भरा होता है, जो प्रकृति को नया रंग प्रदान कर देता है। पेड़-पौधों की शाखाएँ हरे-हरे पत्तों से लद जाती हैं। लाल-लाल कोंपलें अपार सुंदर लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी छा जाती है। इससे वन की शोभा का वैभव पूरी तरह से प्रकट हो जाता है। प्रकृति ईश्वरीय शोभा को लेकर प्रकट हो जाती है, जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होती है। इस ऋतु में न गरमी का प्रकोप होता है और न ही सरदी की ठिठुरन। इसमें न तो हर समय की वर्षा होती है और न ही पतझड़ से ,ठ बने वृक्ष। यह महीना अपार सुखदायी बनकर सबके मन को मोह लेता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशिष्टताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे, इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे, इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी। उनकी कविताओं के शिल्प में विद्यमान प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं –

1. भाषागत कोमलता – उनकी भाषा में एकरसता की कमी है। उन्होंने सरल, व्यावहारिक, सुबोध, सौष्ठव प्रधान और अलंकृत भाषा का प्रयोग :
किया है। उनकी भाषा पर संस्कृत का विशेष प्रभाव है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर

शीतल कर दो –

2. कोमलता-निराला की कविताओं में कोमलता है। उन्होंने विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से कोमलता को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है –

घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विदयुत-छबि उर में, कवि नवजीवन वाले!

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3. शब्दों की मधुर योजना – निराला ने अन्य छायावादी कवियों की तरह भाषा को भाषानुसारिणी बनाने के लिए शब्दों की मधुर योजना की है। यथा –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्ष-स्थल पर भूला गान,
माताएँ भी पातीं शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

4. लाक्षणिक प्रयोग – निराला की भाषा में लाक्षणिक प्रयोग भरे पड़े हैं। उन्होंने परंपरा के प्रति अपने विरोध-भाव को प्रकट करते समय भी लाक्षणिकता का प्रयोग किया था –

कठिन श्रंखला बज-बजाकर
गाता हूँ अतीत के गान
मुझ भूले पर उस अतीत का
क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

5. संगीतात्मकता – छायावादी कवियों की तरह निराला ने भी प्रायः तुक के संगीत का प्रयोग नहीं किया था और उसके स्थान पर लय-संगीत को अपनाया था। उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। कविता में उनकी यह विशेषता स्थान-स्थान पर दिखाई देती है –

कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध पुष्प-माल
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

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6. चित्रात्मकता – निराला ने शब्दों के बल पर भाव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बादलों का ऐसा शब्द चित्र खींचा है कि वे काले घुघराले बालों के समान आँखों के सामने झूमते-गरजते-चमकते से प्रतीत होने लगते हैं।

7. लोकगीतों जैसी भाषा – निराला ने अनेक गीतों की भाषा लोकगीतों के समान प्रयुक्त की है। कहीं-कहीं उन्होंने कजली और गज़ल भी लिखी हैं। इसमें कवि ने देशज शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।

8. मुक्त छंद – निराला ने मुख्य रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त छंद में प्रकट किया है। उन्होंने छंद से मुक्त रहकर अपने काव्य की रचना की है। इनके मुक्त छंद को अनेक लोगों ने खंड छंद, केंचुआ छंद, रबड़ छंद, कंगारू छंद आदि नाम दिए हैं।

9. अलंकार योजना – कवि ने समान रूप से शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग किया है। इससे इनके काव्य में सुंदरता की वृद्धि हुई है।
(i) पुनरुक्ति प्रकाश-घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ममा ललित ललित, काले घुघराले।
(ii) उपमा-बाल कल्पना के-से पाले।
(iii) वीप्सा-विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
(iv) प्रश्न-क्या ऐसा ही होगा ध्यान?
(v) अनुप्रास-कहीं हरी, कहीं लाल
(vi) यमक-पर-पर कर देते हो।

वास्तव में निराला ने मौलिक-शिल्प योजना को महत्व दिया है, जिस कारण साहित्य में उनकी अपनी ही पहचान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
होली के आसपास मौसम में एकदम परिवर्तन आता है। सरदी समाप्त होने लगती है और सूर्य की तपन बढ़ने लगती है। सरदियों में जिस गर्म धूप की इच्छा होती है, वह इच्छा कम हो जाती है। पेड़-पौधों पर हरियाली छाने लगती है। वनस्पतियों पर नई-नई कोंपलें दिखाई देने लगती हैं। घास पर सुबह-सुबह दिखाई देने वाली ओस की बूंदें गायब हो जाती हैं। पक्षियों के जो झुंड सरदियों में न जाने कहाँ चले जाते हैं, वे वापस पेड़ों पर लौटकर चहचहाने लगते हैं। होली के आसपास प्रकृति की शोभा नया-सा रूप प्राप्त कर लेती है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए। इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।

फूटे हैं आमों में बौर – भर गये मोती के झाग,
भौर वन-वन टूटे हैं। – जनों के मन लूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर, – माथे अबीर से लाल,
सभी बंधन छूटे हैं। – गाल सेंदुर के देखे,
फागुन के रंग राग, – आँखें हुए हैं गुलाल,
बाग-वन फाग मचा है, – गेरू के ढेले कूटे हैं।

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला की कविताओं में विद्रोह का स्वर प्रधान है। कवि ने परंपराओं का विरोध करते हुए हिंदी काव्य को मुक्त छंद का प्रयोग प्रदान किया था। उसे लगा था कि ऐसा करना आवश्यक है, क्योंकि नई काव्य परंपराएँ साहित्य का विस्तार करती हैं –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्षःस्थल पर भूला गान
माताएँ भी पाती शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

कवि ने बादलों के माध्यम से विद्रोह के स्वर को ऊँचा उठाया है। वे समझते थे कि इसी रास्ते पर चलकर समाज का कल्याण किया जा सकता है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन,
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –

वास्तव में निराला जीवनपर्यंत कविता के माध्यम से विद्रोह और संघर्ष के स्वर को प्रकट करते रहे थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 2.
‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बसंत में प्रकृति की शोभा का सुंदर उल्लेख किया है। ऐसा लगता है, जैसे इस ऋतु में प्रकृति के कण-कण में सुंदरता समा-सी जाती है। प्रकृति के कोने-कोने में अनूठी-सी सुगंध भर जाती है, जिससे कवियों की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाहकर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सुंदरता के प्रति मन बँधकर रह जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों की शोभा दिखाई देने लगती है।

प्रश्न 3.
‘अट नहीं रही’ कविता में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी को प्रकृति के कण-कण में परमात्मा की अज्ञात सत्ता दिखाई देती है। वे उसका रहस्य जानना चाहते हैं; पर जान नहीं पाते। उन्हें यह तो प्रतीत होता है कि प्रकृति के परिवर्तन के पीछे कुछ-न-कुछ अवश्य है। वह ईश्वर ही हो सकता है, जो परिवर्तन का कारण बनता है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।

कवि निराला को प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की छवि के दर्शन होते हैं। उन्हें प्रकृति के आँचल में छिपे उसी परमात्मा का रूप दिखाई देता है।

प्रश्न 4.
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए क्या उपमान चुना है?
उत्तर :
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए उन्हें सुंदर काले धुंघराले बालों के समान माना है, जो बालकों की अबोध कल्पना के समान पाले गए हैं। बादलों के अंतर में छिपी बिजली चमक-चमककर उनकी शोभा को और भी अधिक आकर्षक बना देती है।

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प्रश्न 5.
बादल से मानव जीवन को क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
कवि ने बादलों को मानव जीवन को हरा-भरा बनाने वाला मानते हुए मनुष्य को सामाजिक क्रांति के लिए प्रेरित किया है। जैसे बादल सबको समान रूप से वर्षा का जल देकर उनकी प्यास बुझाते हैं तथा धरती को अन्न उपजाने योग्य बनाकर मानव-मात्र को सुख प्रदान करते हैं, वैसे ही वह मानव को भी सामाजिक जीवन में विषमताएँ दूर कर सुख व समृद्धिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 6.
उत्साह किस प्रकार की कविता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उत्साह एक आह्वान गीत है। इस गीत में कवि ने बादलों को संबोधित किया है और उनके माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। कवि ने बादलों को जीवनदाता तथा प्रेरणादायक माना है। कवि ने बादलों को बालकों की अबोध कल्पना के समान माना है।

प्रश्न 7.
निराला के काव्य में वेदना एवं करुणा की अनुभूति होती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वेदना, दुख एवं करुणा की अभिव्यक्ति छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। निराला जी ने वेदना एवं दुख को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है।

तप्त धरा, जब से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो!

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उसके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

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प्रश्न 8.
कवि निराला ने ‘उत्साह’ कविता में प्रकृति पर चेतना का आरोप किया है, सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
निराला ने ‘उत्साह’ कविता में सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। उनकी दृष्टि में बादल चेतना है। वे बादल से कहते हैं कि –

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर
ओ!
ललित ललित, काले धुंधराले
बाल कल्पना के-से पाले।

प्रश्न 9.
निराला ने अपने भावों को कैसे और किस माध्यम से प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने नवजीवन और नई कविता के संदर्भो में विचार करते हुए बादलों के माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। वे नई चेतना एवं जागृति लाना चाहते हैं; प्रकृति का सहारा लेकर जनजागरण करना चाहते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों का कैसा रूप-सौंदर्य दिखाया है?
उत्तर :
कवि ने ‘उत्साह’ त्रित करते हुए उन्हें घना तथा प को काले बादल ऐसे लगते हैं, जैसे किसी बच्चे के काले धुंघराले बाल हों। कवि को बादलों का रूप-रंग भी बच्चों के बालों के समान दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य के मन पर फागुन की मस्ती का क्या प्रभाव दिखाई देता है?
उत्तर :
फागुन अपने आप में अत्यंत रंगीन तथा आकर्षक दिखाई देता है। उसकी मस्ती अनूठी है, जिससे मनुष्य का मन हर्षित
तथा प्रसन्नचित्त रहता है। इसके कारण उसके मन में खुशी का संचार होता है। उसका मन दूर नील मान में उड़ने को छ का रहता है। फागुन की सुंदरता उसे अपनी ओर इतना अधिक आकर्षित करती है कि वह चाहकर भी अपना ध्यान दूसरी ओर नहीं कर पता।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(i) लोगों का
(ii) विश्व का
(iii) बादलों का
(iv) दिशाओं का
उत्तर :
(iii) बादलों का

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

(ख) विकल और उन्मन कौन थे?
(i) बादल-नभ
(ii) प्रकाश-तारा
(iii) धरा-जल
(iv) विश्व-जन
उत्तर :
(iv) विश्व-जन

(ग) बादल किसका प्रतीक हैं?
(i) क्रांति और नवचेतना के
(ii) भीषण गरमी के
(iii) दुखीं धरा के
(iv) शीतल नभ के
उत्तर :
(i) क्रांति के नवचेतना के

(घ) प्रस्तुत काव्यांश किस कविता से लिया गया है?
(i) फ़सल
(ii) अट नहीं रही है
(iii) बादल
(iv) उत्साह
उत्तर :
(iv) उत्साह

(ङ) कवि ने ‘निदाघ’ से किस ओर संकेत किया है?
(i) तप्त धरा
(ii) सांसारिक सुखों
(iii) सांसारिक दुखों
(iv) भीषण गरमी
उत्तर :
(iii) सांसारिक दुखों

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2. कहीं साँस लेते हो,
पत्तों से लदी डाल
घर-घर भर देते हो,
कहीं हरी, कहीं लाल,
उड़ने को नभ में तुम
कहीं पड़ी है उर में
पर-पर कर देते हो,
मंद-गंध-पुष्प-माल
आँख हटाता हूँ तो
पाट-पाट शोभा-श्री
हट नहीं रही है।
पट नहीं रही है।

(क) कविता में किस माह के सौंदर्य का चित्रण है?
(i) पौष
(ii) फागुन
(iii) चैत्र
(iv) वैशाख
उत्तर :
(ii) फागुन

(ख) पत्तों से लदी डाल पर किन रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(i) लाल-पीली
(ii) लाल-हरी
(iii) हरी-पीली
(iv) लाल-नीली
उत्तर :
(ii) लाल-हरी

(ग) कवि का साँस लेने से क्या तात्पर्य है?
(i) जीवित होना
(ii) सुगंध फैलाना
(iii) सुगंधित पवन का चलना
(iv) पत्तों का हिलना
उत्तर :
(iii) सुगंधित पवन का चलना

(घ) कवि की आँख कहाँ से हट नहीं रही?
(i) फागुन का सुंदरता से
(ii) नीले आसमान से
(iii) तेज़ सूरज से
(iv) शीतल चाँद से
उत्तर :
(i) फागुन का सुंदरता से

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(ङ) प्रस्तुत कविता के कवि कौन हैं?
(i) प्रसाद
(ii) दिनकर
(iii) निराला
(iv) जायसी
उत्तर :
(iii) निराला

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) बादलों को किसके समान सुंदर कहा गया है?
(i) सफ़ेद बालों के समान
(ii) भूरे बालों के समान
(iii) काले-घुघराले बालों के समान
(iv) बच्चों के समान
उत्तर :
(iii) काले-धुंघराले बालों के समान

(ख) कवि ने बादलों के माध्यम से किसका आह्वान किया है?
(i) समृद्धि का
(ii) आपदा का
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का
(iv) वर्षा का
उत्तर :
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का

(ग) ‘अट नहीं रही है’ कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरा है?
(i) कण
(ii) ओस
(iii) बादल
(iv) शोभा-श्री
उत्तर :
(iv) शोभा-श्री

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(घ) कवि ने बादल को क्या कहा है?
(i) विद्युतमय
(ii) वज्रमय
(iii) कल्पनामय
(iv) (i) और (ii) दोनों
उत्तर :
(iii) कल्पनामय

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. उत्साह

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल, गरजो! विकल विकल, उन्मन
थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

शब्दार्थ : गगन – आकाश। धाराधर – मूसलाधार, लगातार। ललित – सुंदर। विद्युत-छवि – बिजली की चमक (शोभा)। उर – हृदय, भीतर। कवि – स्रष्टा। विकल – व्याकुल। उन्मन – अनमना, उदास। निदाघ – गरमी का ताप। तप्त – गर्म। धरा – पृथ्वी! अनंत – आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित की गई है, जिसके रचयिता सप्रसिदध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने अपनी कविता में बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उन्होंने बादलों को नए अंकुर के लिए विध्वंस और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी माना है।

व्याख्या : कवि बादलों से गरज-बरस कर सारे संसार को नया जीवन देने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि बादलो! तुम गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर मूसलाधार वर्षा करो; घनघोर बरसो। हे बादलो! तुम अत्यंत सुंदर हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुघराले बालों के समान है तथा तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले गए हो। तुम हृदय में बिजली की शोभा धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो।

तुम जलरूपी नया जीवन देने वाले हो और तुम्हारे भीतर वज्रपात करने की अपार शक्ति छिपी हुई है। तुम इस संसार को नवीन प्रेरणा और जीवन प्रदान कर दो। बादलो! तुम गरजो और सबमें नया जीवन भर दो। गरमी के तेज ताप के कारण धरती के सारे लोग बहुत ल्याकुल और बेचैन हैं, वे उदास हो रहे हैं। अरे बादलो! तुम सीमाहीन आकाश में पता नहीं किस ओर से आकर सब तरफ़ फैल गए हो। तुम इस गरमी के ताप से तपी हुई धरती को बरसकर शीतलता प्रदान करो। हे बादलो! तुम गरज-गरज कर बरसो और फिर धरती को शीतल करो!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कविता में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों?
3. बादलों को किसके समान संदर माना गया है ?
4. बादल किसकी कल्पना के समान पाले गाए हैं ?
5. बादलों के हृदय में किस प्रकार की शोभा छिपी हुई है?
6. बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं ?
7. धरती के लोग किस कारण व्याकुल और बेचैन थे?
8. बादल कहाँ छा जाते हैं ?
9. कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है ?
उत्तर :
1. कवि ने प्यास और पीड़ित लोगों के कष्टों को दूर कर उनकी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बादलों का आग्रह भा आहवान किया है ! साथ-ही-साथ उसने बादलों को नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना को संपन्न करने वाला माना है। बादल ही धरती को हरा-भरा बनाते हैं और कवि को कविता लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
2. कवि ने बादलों का आह्वान किया है, ताकि वे अपने जल से धरती तथा सारे संसार को नया जीवन प्रदान करें।
3. बादलों को काले धुंघराले बालों के समान सुंदर माना गया है।
4. बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं।
5. बादलों के हृदय में बिजली की शोभा छिपी हुई है, जो समय-समय पर जगमगाकर प्रकट हो जाती है।
6. बादल मानव-जीवन और कवि को नवीन प्रेरणा व जीवन प्रदान करते हैं।
7. धरती के लोग गरमी के ताप के कारण व्याकुल और बेचैन थे।
8. बादल न जाने सीमाहीन आकाश के किस कोने से आकर सब ओर छा गए थे।
9. कवि बादलों से बरसकर गरमी के ताप से तपी धरती को शीतलता प्रदान करने को कहता है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से किस प्रकार प्रतीकात्मकता को प्रस्तुत किया है ?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है।
3. किस प्रकार की शब्दावली का अधिक से प्रयोग किया गया है?
4. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
5. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
6. प्रयुक्त काव्य-गुण का नाम लिखिए।
7. प्रयुक्त बिंब कौन-सा है?
8. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को लिखिए।
9. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. कविता हिंदी साहित्य की किस काव्यधारा से संबंधित है?
11. शैली का नाम लिखिए।
12. कविता में प्रयुक्त अलंकारों का निरूपण कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से सामाजिक क्रांति का आहवान किया है। बादल सृजन और संहार दोनों कर सकते हैं।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग किया है, पर फिर भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।
5. लाक्षणिकता की विशेषता विद्यमान है।
6. ओज गुण विद्यमान है।
7. गतिशील चाक्षुक बिंब का प्रयोग है।
8. बादल, काले।
9. विधुत, ललित।
10. छायावाद।
11. आहवान शैली/संबोधन शैली।
12. अनुप्रास –

  • घेर घेर घोर गगन
  • ललित ललित
  • बाल कल्पना के-से पाले

मानवीकरण –

  • बादल गरजो!
  • घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

पुनरुक्ति प्रकाश –
घेर घेर, ललित ललित, विकल-विकला

उपमा –
बाल कल्पना के-से पाले

2. अट नहीं रही है।

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

शब्दार्थ : अट – समाना, प्रविष्ट। आभा – चमक, सौंदर्य। नभ – आकाश। उर – हृदय। मंद – धीमी। पुष्प-माल – फूलों की माला। पाट-पाट -जगह-जगह। शोभा-श्री – सौंदर्य से भरपूर। पट – समा नहीं रही है।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसे मूल रूप से उनकी काव्य-रचना ‘राग-विराग’ में संकलित किया गया है। कवि ने इसमें फागुन की मादकता को प्रकट किया है, जिसकी सुंदरता और उल्लास सभी दिशाओं में फैला हुआ है।

व्याख्या : कवि कहता है कि फागुन की यह सुंदरता शरीर में किसी भी से प्रकार समा नहीं पा रही है। वह प्रकृति के कण-कण से फूट रही है। अपने रहस्यवादी भावों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि हे प्रिय! पता नहीं तुम कहाँ बैठकर अपनी साँस के द्वारा प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से भर रहे हो। तुम कल्पना के आकाश में ऊँचा उड़ने तुम्हारी के लिए मन को पंख प्रदान करते हो। तुम मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देते हो। सब तरफ़ तुम्हारी सुंदरता ही व्याप्त है।

वह अत्यधिक आकर्षक और सुंदर है। कवि कहता है कि मैं उसकी ओर से अपनी आँख हटाना चाहता हूँ, पर वह वहाँ से हट नहीं पा रही। इस सुंदरता में मन बँधकर रह गया है। पेड़ों की सभी डालियाँ पत्तों से पूरी तरह से लद गई हैं। कहीं तो पत्ते हरे हैं और कहीं कोंपलों में लाली छाई है। उनके बीच सुंदर-सुगंधित फूल खिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके कंठों में सुगंध से भरे फूलों की मालाएँ पड़ी हैं। हे प्रिय! तुम जगह-जगह शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हो पर वह अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा नहीं पा रही और चारों ओर बिखरी पड़ी है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपनी कविता में किसे अपनी बात कहनी चाही है?
3. कवि ने किस महीने की सुंदरता का वर्णन किया है?
4. कवि के प्रिय किसे और किसके द्वारा सुगंध से आपूरित कर देते हैं ?
5. कवि को मन के पंख क्यों प्रदान किए गए हैं ?
6. चारों ओर किसका सौंदर्य व्याप्त है ?
7. कवि किसकी ओर से अपनी आँख नहीं हटा पाता और क्यों ?
8. पेड़-पौधों की डालियाँ किस प्रकार के पत्तों से लद गई हैं ?
9. वन के वैभव में कूट-कूटकर क्या भरा हुआ है ?
10. कविता के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने फागुन महीने की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है, जिसे देखकर कवि के हृदय में अनेक कल्पनाओं का जन्म होता है। कवि के अनुसार ईश्वर की रहस्यमयी शोभा सब तरफ़ व्याप्त है।
2. कवि ने कविता में रहस्यवादी भाव प्रकट करते हुए अपने प्रियतम से अपनी बात कहनी चाही है।
3. कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
4. कवि के प्रिय अपनी श्वास से प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से आपूरित कर देते हैं।
5. कवि के मन को उसके प्रियतम द्वारा पंख इसलिए प्रदान किए गए, ताकि वह कल्पना के आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक ऊँचा उड़ सके।
6. चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य व्याप्त है।
7. कवि अपने चारों ओर फैले परमात्मा के सौंदर्य से आँख नहीं हटा पाता। उसका मन नैसर्गिक सौंदर्य में बँधकर रह गया है।
8. पेड़-पौधों की डालियाँ हरे-भरे पत्तों और नई-नई लाल कोंपलों से लद गई हैं।
9. वन के वैभव में शोभा और सौंदर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है।
10. खड़ी बोली में रचित इस कविता में तत्सम और तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंट है। विशेषोक्ति, असंगति, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, पदमैत्री और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है।

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सिौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस प्रकार की भावना को व्यक्त किया है?
2. कविता में किस सुंदर छटा को मुखरित किया गया है?
3. भाषा में कौन-सा गुण विद्यमान है?
4. किस छंद का प्रयोग किया है ?
5. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
6. काव्य-गुण लिखिए।
7. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
8. किस प्रकार के शब्दों का अधिक प्रयोग है?
9. दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. एक मुहावरे का उल्लेख कीजिए।
11. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। उसे सब दिशाओं में फागुन की सुंदरता और उल्लास समान रूप से फैला हुआ प्रतीत होता है।
2. प्रकृति की सुंदर छटा मुखरित हुई है।
3. भाषा में गेयता का गुण विद्यमान है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
5. लाक्षणिकता के प्रयोग ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. खड़ी बोली।
8. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
9. माँस, आँख।
10. पट जाना, अट जाना।
11. अनुप्रास –

  • नहीं रही है
  • घर-घर भर
  • पर-पर कर
  • पाट-पाट
  • शोभा-श्री

विशेषोक्ति –

  • आँख हटाता हूँ तो
  • हट नहीं रही है।

पुनरुक्ति प्रकाश –
घर-घर, पर-पर, पाट-पाट

मानवीकरण –

  • कहीं साँस लेते हो
  • घर-घर भर देते हो
  • उड़ने को नभ में तुम
  • पर-पर कर देते हो।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी साहित्य जगत में ‘महाप्राण निराला’ नाम से प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के गाँव गढ़ाकोला के निवासी थे। वे तत्कालीन महिषादल रियासत में कोषाध्यक्ष थे। जब निराला जी तीन वर्ष के थे, तो इनकी माता का देहावसान हो गया था।

इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने बाँग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी आदि में रचित साहित्य का गहन अध्ययन किया था। पारिवारिक उत्तरदायित्वों को वहन करने के लिए इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी प्रारंभ की, किंतु कुछ कारणों से त्याग-पत्र देकर वहाँ से चले आए। कुछ समय तक वे रामकृष्ण मिशन कलकत्ता (कोलकाता) के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन करते रहे।

बाद में इन्होंने ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन भी किया। 15 अगस्त 1961 ई० को इनका देहावसान हो गया। निराला जी अत्यंत उदार, स्वाभिमानी, अध्ययनशील, प्रकृति-प्रेमी तथा त्यागी व्यक्ति थे। वे स्वयं संगीत-प्रेमी थे। अतिथि-सत्कार करने में वे अत्यंत संतोष का अनुभव करते थे। वे विद्रोही प्रवृत्ति तथा पुरातन में नवीनता का समावेश करने वाले साहित्यकार थे।

रचनाएँ – निराला जी बहमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में लिखा। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएँ-अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नए पत्ते, अपरा, अराधना, अर्चना, तुलसीदास, सरोज स्मृति, राम की शक्ति-पूजा, राग-विराग, वर्षा गीत आदि।
उपन्यास – अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि।
कहानी संग्रह – लिली, सखी, चतुरी चमार तथा सुकुल की बीबी।
रेखाचित्र-कुल्ली भाट और बकरिहा।
निबंध संग्रह – प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवींद्र कविता कानन।
जीवनियाँ – ध्रुव, भीष्म तथा राणा प्रताप।

अनुवाद – आनंदपाठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेश नंदिगी, कृष्णकांत का विल, युगलांगुलीय, रजनी, देवी चौधरानी, राधा रानी, विष वृक्ष, राजसिंह, महाभारत आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-निराला जी हिंदी की छायावादी कविता के आधार-स्तंभ माने जाते हैं, किंतु इनकी कविता में छायावाद के अतिरिक्त प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. वैयक्तिकता – छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में भी वैयक्तिकता की अभिव्यक्ति है। जूही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति-पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज-स्मृति आदि अनेक कविताओं में हमें निराला की वैयक्तिक भावना की सफल अभिव्यक्ति मिलती है।

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2. निराशा, वेदना, दुखवाद एवं करुणा की विवृत्ति-छायावादी कवि वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व मानते हैं। निराला जी ने वेदना एवं दुखवाद को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है –

“दिए हैं मैंने जगत को फूल फल, किया है अपनी प्रभा से चकित-चल,
यह अनश्वर था सफल पल्लवित तल, ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।”

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उनके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

3. प्रकृति-चित्रण-निराला ने प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उनकी दृष्टि में बादल, प्रपात, यमुना-सभी कुछ चेतना है। वे यमुना से पूछते हैं –

“तू किस विस्मृत की वीणा से, उठ उठ कर कातर झंकार।
उत्सुकता से उकता-उकता, खोल रही स्मृति के दृढ़ द्वार?”

4. मानवतावादी जीवन-दर्शन – निराला के काव्य में मानवतावादी जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है। बादल राग’ में कवि समाज की विषमता से पीड़ित होकर कहता है –

“विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे, आतंक भवन।”

‘तोड़ती पत्थर’ तथा ‘भिक्षुक’ जैसी कविताओं में निराला जी ने मानव में छिपे हुए देवता का दर्शन किया है। यथा –

“ठहरो अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम।”

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5. नारी का विविध एवं नवीन रूपों में चित्रण – नारी के प्रति उनके हृदय में गहरी सहानुभूति है। कहीं वह जीवन की सहचरी एवं प्रेयसी है और कहीं उन्हें वह प्रकृति में व्याप्त होकर अलौकिक भावों से अभिभूत करती हुई दिखाई देती है। कहीं वे उसके दिव्यदर्शन की झलक पाते हैं और कहीं नारी को लक्ष्य करके वे कवि प्रेमोन्माद की अस्फुट मनोवृत्ति का चित्रण करते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ कविता में ‘मज़दूरिनी’ के प्रति गहरी सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए निराला यह लिखना नहीं भूलते हैं कि –

“श्याम तन, भर बंधा यौवन…,
देख मुख उस दृष्टि से…,
ढुलक माथे से गिरे सीकर।”

6. सामाजिक चेतना – निराला जी चाहते हैं कि समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी हो। निराला ने अपने प्रसिद्ध वंदना गीत ‘वीणा वादिनी वर दे’ में प्रार्थना की है कि मानव-समाज में नवीन शक्तियों का आविर्भाव हो, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन कर सके। निराला ने अपनी पैनी दृष्टि से समाज के सच्चे रूप को देखा था और अपने गरीब जीवन को सहा था।

7. देश-प्रेम की अभिव्यक्ति – देश के सांस्कृतिक पतन की ओर निराला जी ने बड़ी ओजस्विनी भाषा में इंगित किए हैं। इनका कहना है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी शासक के राहू ने ग्रस रखा है। वे चाहते हैं कि किस प्रकार देश का भाग्योदय हो और भारतीय जन-मन आनंद-विभोर हो उठे। भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी का पत्र आदि कविताओं में निराला जी ने देश-भक्ति के भाव प्रकट किए हैं।

8. विद्रोह का स्वर एवं स्वच्छंदता – अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा निराला जी कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता के प्रेमी थे। वस्तुतः वे जीवनपर्यंत विद्रोह एवं संघर्ष ही करते रहे। अपनी संस्कृति का दंभ भरने वालों को ललकारते हुए निराला जी ने लिखा है-‘हज़ार वर्ष से सलाम ठोकते-ठोकते नाक में दम हो गया, अपनी संस्कृति लिए फिरते हैं। ऐसे लोग संसार की तरफ़ से आँखें बंदकर अपने ही विवर में व्याघ्र बन बैठे रहते हैं। अपनी ही दिशा में ऊँट बनकर चलते हैं।’

9. कला पक्ष-निराला जी ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए जिस छंद को चुना है, उसे मुक्त छंद कहा जाता है। काव्य के कला पक्ष के अंतर्गत हम मुक्तक छंद को निराला की सबसे बड़ी देन कह सकते हैं। निराला की भाषा की प्रमुख विशेषताएँ कोमलता, शब्दों की मधुर योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, प्रकृतिजन्य प्रतीकों की प्रचुरता आदि हैं। निराला को संगीत शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। वे स्वयं भी अच्छे गायक थे। उनकी कविता में संगीतात्मकता का सुंदर निर्वाह मिलता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

कविता का सार :

करते हुए निराला जी ने बादलों के माध्यम से अपने भावों को प्रकट किया है। कविता में बादल एक ओर भूखे-प्यासे और पीड़ित लोगों की इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करते दिखाए गए हैं, तो दूसरी ओर उसे नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति की चेतना को वाले तत्व के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि ने जीवन को व्यापक और समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति चेतना की ओर ध्यान दिया है। साहित्य की सामाजिक परिवर्तन में सदा ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

कवि बादलों से गरज-गरजकर : बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे बरसकर गरमी के ताप से तपी हुई धरती को शीतलता प्रदान करें। अट नहीं रही है-निराला जी ने अपनी इस रहस्यवादी कविता में फागुन मास की मादकता का सुंदर चित्रण किया है। जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो, तो हर तरफ़ फागुन की सुंदरता और उल्लास भरा रूप ही दिखाई देता है।

कवि को सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती-सी प्रतीत होतो है; उसके कोने-कोने में सुगंध प्रतीत होती है। इससे मन में तरह-तरह की लेती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद गए हैं। वे पत्ते कहीं हरे हैं, तो कहीं केवल कोंपलों के रूप में लाल हैं। उनके बीच में सुगंधित फूल खिल रहे हैं। सारे वन का वैभव अति आकर्षक और मधुर है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

JAC Class 10 Hindi कारतूस Textbook Questions and Answers

मौखिक निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?
उत्तर :
कर्नल कालिंज ने वज़ीर अली को पकड़ने के लिए जंगल में खेमा लगाया हुआ था।

प्रश्न 2.
वज़ीर अली से सिपाही क्यों तंग आ चुके थे?
उत्तर :
वज़ीर अली की तलाश में जंगल में खेमा लगाए हुए कई दिन बीत चुके थे, किंतु वजीर अली पकड़ में नहीं आ रहा था। इसी कारण सिपाही वज़ीर अली से तंग आ गए थे।

प्रश्न 3.
कर्नल ने सवार पर नज़र रखने के लिए क्यों कहा?
उत्तर :
कर्नल को सवार पर शक था। इसी कारण उसने सिपाहियों से सवार पर नज़र रखने के लिए कहा।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

प्रश्न 4.
सवार ने क्यों कहा कि वज़ीर अली की गिरफ्तारी बहुत मुश्किल है?
उत्तर :
सवार वास्तव में वज़ीर अली था। वह एक जाँबाज सिपाही था और वह जानता था कि उसे गिरफ्तार करना आसान नहीं है। इसी
कारण उसने कहा कि वज़ीर अली को गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
वज़ीर अली के अफ़साने सुनकर कर्नल को राँबिनहुड की याद क्यों आ जाती थी ?
उत्तर :
वज़ीर अली और रॉबिनहुड में काफ़ी समानता थी। वज्तीर अली भी रॉंबिनहुड के समान दिलेर और निडर था। रॉबिनहुड अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बाँटा करता था और वज़ीर अली अपने देशवासियों को आज़ाद करवाने के लिए प्रयास कर रहा था। रॉबिनहुड की वीरता और साहस के समान वज़ीर अली की वीरता और साहस भी प्रसिद्ध था। इसी कारण वज़ीर अली के कारनामे सुनकर कर्नल को रॉंबिनहुड की याद आ जाती थी।

प्रश्न 2.
सआदत अला का सआदत अली कौन था? उसने वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत क्यों समझा ?
उत्तर :
सआदत अली अवध के नवाब आसिफ़उद्दौला का भाई था। वज़ीर अली आसिफ़उद्दौला का पुत्र था। सआदत अली अपने भाई के साथ गद्दारी करके अंग्रेजों के साथ मिल गया था। जब वज़ीर अली का जन्म हुआ था, उसे आभास हो गया कि वह अवश्य उसे मार डालेगा। इसलिए वह वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत समझता था।

प्रश्न 3.
सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाने के पीछे कर्नल का क्या मकसद था?
उत्तर :
सआदत अली अंग्रेजों का मित्र बन गया था। वह ऐशो-आराम से जीवन जीने वाला व्यक्ति था। कर्नल चाहता था कि वह अवध के तख्त पर ऐसे व्यक्ति को बिठाए, जो ब्रिटिश सरकार को अच्छा-खासा पैसा दे। सआदत अली ऐसा ही व्यक्ति था। उसने अपनी आधी जायदाद और दस लाख रुपये नकद ब्रिटिश सरकार को दे दिए थे। इसी कारण कर्नल ने सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाया था।

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प्रश्न 4.
कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वजीर अली ने अपनी हिफाजत कैसे की?
उत्तर :
बनारस में कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वज़ीर अली आजमगढ़ की हिफाजत चला गया। इसके बाद आजमगढ़ के शासक की मदद से वह घागरा तक पहुँच गया। वह अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ के जंगलों में छिप गया। उन जंगलों में उसे ढूँढ़ना सरल नहीं था। इस प्रकार उसने अपनी हिफाज़त की।

प्रश्न 5.
सवार के जाने के बाद कर्नल क्यों हक्का-बक्का रह गया?
उत्तर :
सवार वास्तव में वज़ीर अली था। जब उसने ब्रिटिश सेना के खेमे में जाकर कर्नल को मूर्ख बनाया और उससे दस कारतूस भी ले गया, तो कर्नल उसकी दिलेरी को देखकर हैरान रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई व्यक्ति इतना जाँबाज़ भी हो सकता है। कर्नल – वजीर अली के इस साहस और वीरता को देखकर हक्का-बक्का रह गया था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
लेफ़्टीनेंट को ऐसा क्यों लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है?
उत्तर :
लेफ़्टीनेंट ने सुना था कि वज़ीर अली अफ़गानिस्तान के शासक शाहे- ज़मा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दे रहा है, ताकि वह अंग्रेज़ी शासन की जड़ें हिला सके। कर्नल ने उसे बताया कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वज़ीर अली अफ़गानिस्तान के शासक को दिल्ली भी बुला चुका है। साथ ही बंगाल के नवाब का भाई शमसुद्दौला भी हिंदुस्तान के अंग्रेज़ी शासन पर आक्रमण करवाना चाहता है। इस प्रकार अवध से बंगाल तक सभी अंग्रेज़ी शासन को नष्ट करने का मन बना चुके हैं। इसी कारण लेफ़्टीनेंट को लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है।

प्रश्न 2.
वज़़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया ?
उत्तर :
यहाँ कंपनी से तात्पर्य ईस्ट इंडिया कंपनी से है। कंपनी ने अवध के नवाब वज़ीर अली को उसके पद से हटाकर बनारस पहुँचा दिया। कुछ समय बाद ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल ने वज़ीर अली को कलकत्ता (कोलकाता) बुलवाया। वज़ीर अली को इस प्रकार बुलवाया जाना उचित नहीं लगा। उसने कंपनी के वकील से इसकी शिकायत की। लेकिन वकील ने शिकायत पर ध्यान न देकर उसी को भला-बुरा कह दिया। वज़ीर अली अंग्रेज़ों से नफ़रत करता था। अतः जब वकील ने ऐसा दुर्व्यवहार किया, तो गुस्से में आकर वज़ीर अली ने उसका कत्ल कर दिया।

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प्रश्न 3.
सवार ने कर्नल से कारतूस कैसे हासिल किए ?
उत्तर :
कर्नल कालिंज वज़ीर अली को पकड़ने के लिए एक लेफ़्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में खेमा लगाए हुए था। एक दिन उसे एक सवार खेमेमे की ओर आता दिखाई दिया। उस सवार ने उससे अकेले में बातचीत करने के लिए कहा। कर्नल ने इसे स्वीकार कर लिया। तब सवार ने कहा कि वह वज़ीर अली को गिरफ़्तार कर सकता है और उसके लिए उसे कुछ कारतूस चाहिए। कर्नल ने तुरंत उसे दस कारतूस दे दिए। वास्तव में वह सवार वज़ीर अली था। इस प्रकार उसने बड़ी चालाकी से कर्नल से कारतूस हासिल किए।

प्रश्न 4.
वज़ीर अली एक जाँबाज सिपाही था, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वज़ीर अली ने कर्नल को कैसे मात दी ?
उत्तर :
वज़ीर अली का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालना था। उसकी वीरता और साहस के कारण अंग्रेज़ भी उससे डरते थे। उसने दिलेरी दिखाते हुए अंग्रेज़ बटालियन के खेमे में पहुँचकर वहाँ से कारतूस प्राप्त किए। उसकी निडरता को देखकर कर्नल कालिंज भी हक्का-बक्का रह गया। वज़ीर अली ने शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी से सीधे टक्कर लेने का साहस दिखाया था। कर्नल कालिंज पर उसकी बहादुरी का इतना प्रभाव पड़ा कि उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। वह अपनी जान पर खेलकर साहसिक कारनामे करता था। इससे सिद्ध होता है कि वज़ीर अली एक जाँबाज सिपाही था।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
मुठ्ठी भर आदमी और ये दमखम।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन कर्नल कालिंज का है। वह वज़ीर अली की बहादुरी और साहस के विषय में कहता है कि उसके पास मुट्ठी भर लोग हैं, किंतु वह शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी से टक्कर ले रहा है। वह कंपनी के वकील को मार चुका है और अंग्रेज़ों को हिंदुस्तान से बाहर निकालने की कोशिश में लगा हुआ है। यद्यपि उसके साथ अधिक लोग नहीं हैं, फिर भी उसका साहस कम नहीं है। वह थोड़-से लोगों के साथ ही ब्रिटिश सरकार का मुकाबला करने को तैयार है।

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प्रश्न 2.
गर्द तो ऐसे उड़ रही है जैसे कि पूरा एक काफ़िला चला आ रहा हो मगर मुझे तो एक ही सवार नज़र आता है।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन में कर्नल कालिंज घोड़े पर सवार वज़ीर अली को अपनी ओर आता देखकर कहता है कि उड़ती हुई धूल से ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो अनेक लोगों का समूह उनकी ओर बढ़ रहा है। धूल अधिक उड़ रही है, किंतु घुड़सवार केवल एक दिखाई दे रहा है। वास्तव में वह धूल वज़ीर अली के घोड़े के अधिक तेज़ दौड़ने के कारण उड़ रही थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का एक-एक पर्याय लिखिए –
खिलाफ़, पाक, उम्मीद, हासिल, कामयाब, वजीफ़ा, नफ़रत, हमला, इंतज़ार, मुमकिन
उत्तर :

  • खिलाफ़ = विरुद्ध
  • पाक = पवित्र
  • उम्मीद = आशा
  • हासिल = प्राप्त
  • कामयाब = सफल
  • वजीफ़ा = छात्रवृत्ति
  • नफ़रत = घृणा
  • हमला = आक्रमण
  • इंतज़ार = प्रतीक्षा
  • मुमकिन = संभव

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
आँखों में धूल झोंकना, कूट-कूट कर भरना, काम तमाम कर देना, जान बखा देना, हक्का-बक्का रह जाना।
उत्तर :
आँखों में धूल झोंकना – पुलिस की आँखों में धूल झोंककर चोर भाग गया।
कूट-कूट कर भरना – भगतसिंह में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।
काम तमाम कर देना – भारतीय सैनिकों ने अनेक शत्रु सैनिकों का काम तमाम कर दिया।
जान बखा देना – डाकू ने राहगीरों से रुपये तो लूट लिए, लेकिन उनकी जान बखा दी।
हक्का-बक्का रह जाना – रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को देखकर अंग्रेज़ हक्के-बक्के रह गए।

प्रश्न 3.
कारक वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ संबंध बताता है। निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम लिखिए –
(क) जंगल की जिंदगी बड़ी खतरनाक होती है।
(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई।
(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया।
(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी।
(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था।
उत्तर :
(क) जंगल की जिंदगी बडी खतरनाक होती है। – संबंध कारक
(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई। – संबंध कारक, अधिकरण कारक
(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया। – कर्म कारक, संबंध कारक, अपादान कारक
(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी। – संप्रदान कारक, कर्म कारक
(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था। – अधिकरण कारक

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प्रश्न 4.
क्रिया का लिंग और वचन सामान्यतः कर्ता और कर्म के लिंग और वचन के अनुसार निर्धारित होता है। वाक्य में कर्ता और कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार जब क्रिया के लिंग, वचन आदि में परिवर्तन होता है तो उसे अन्विति कहते हैं।
क्रिया के लिंग, वचन में परिवर्तन तभी होता है जब कर्ता या कर्म परसर्ग रहित हों;
जैसे-स सवार कारतूस माँग रहा था। (कर्ता के कारण)
सवार ने कारतुस माँगे। (कर्म के कारण)
कर्नल ने वज़ीर अली को नहीं पहचाना। (यहाँ क्रिया कर्ता और कर्म किसी के भी कारण प्रभावित नहीं है)
अतः कर्ता और कर्म के परसर्ग सहित होने पर क्रिया कर्ता और कर्म में से किसी के भी लिंग और वचन से प्रभावित नहीं होती वह एकवचन पुल्लिंग में ही प्रयुक्त होती है। नीचे दिए गए वाक्यों में ‘ने’ लगाकर उन्हें दुबारा लिखिए –
(क) घोड़ा पानी पी रहा था।
(ख) बच्चे दशहरे का मेला देखने गए।
(ग) रॉंबिनहुड गरीबों की मदद करता था।
(घ) देशभर के लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
उत्तर :
(क) घोड़े ने पानी पीया।
(ख) बच्चों ने दशहरे का मेला देखा।
(ग) रॉबिनहुड ने गरीबों की मदद की।
(घ) देशभर के लोगों ने उसकी प्रशंसा की।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम-चिह्न लगाइए –
(क) कर्नल ने कहा सिपाहियो इस पर नज़र रखो ये किस तरफ़ जा रहा है
(ख) सवार ने पूछा आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है
(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे एक व्यक्ति कह रहा था दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है
उत्तर :
(क) कर्नल ने कहा, “सिपाहियो! इस पर नज़र रखो, ये किस तरफ़ जा रहा है?”
(ख) सवार ने पूछा, “आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है? इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है?”
(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे। चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे। एक व्यक्ति कह रहा था, “दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है।”

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
पुस्तकालय से रॉबिनहुड के साहसिक कारनामों के बारे में जानकारी हासिल कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
वृंदावनलाल वर्मा की कहानी इब्राहिम गार्दी पढ़िए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना-कार्य –

प्रश्न 1.
‘कारतूस’ एकांकी का मंचन अपने विद्यालय में कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘एकांकी’ और ‘नाटक’ में क्या अंतर है? कुछ नाटकों और एकांकियों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कारतूस Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
जंगल में किसने खेमा लगाया हुआ था और क्यों?
उत्तर :
जंगल में कर्नल कालिंज ने खेमा लगाया हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे वज़ीर अली को पकड़ने का आदेश दिया था। इस आदेश को पूरा करने के लिए ही वह एक लेफ़्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में खेमा लगाए हुए था। वह काफी समय से जंगलों में भटक रहा है, किंतु वज़ीर अली को पकड़ने में सफल नहीं हो सका।

प्रश्न 2.
शमसुद्दौला कौन था? एकांकी में उसका नाम किस संदर्भ में आया है?
उत्तर :
शमसुद्दौला बंगाल के नवाब का रिश्ते में भाई लगता था। वह अंग्रेजों से बहुत नफ़रत करता था। वह बहुत वीर एवं साहसी व्यक्ति था। उसने अफ़गानिस्तान के शासक शाहे-ज़मा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया था। वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजी हुकूमत को हिंदुस्तान से बाहर निकालना चाहता था। एकांकी में अफ़गानिस्तान के शासक को वज़ीर अली द्वारा निमंत्रण देने के संदर्भ में शमसुददौला का नाम आया है। कर्नल कालिंज लेफ्टीनेंट को बताता है कि शमसुद्दौला भी अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत खतरनाक है।

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प्रश्न 3.
वज़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया? इसके बाद वह कहाँ भाग गया?
उत्तर :
कंपनी के वकील से वज़ीर अली ने शिकायत की थी कि उसे बार-बार कलकत्ता न बुलाया जाए। किंतु वकील ने उसे ही भला-बुरा कहा। इससे क्रोधित होकर वज़ीर अली ने उसका कत्ल कर दिया। उसके बाद वह अपने कुछ साथियों के साथ आजमगढ़ की ओर भाग गया। आजमगढ़ के शासक ने मदद करते हुए उसे आगरा तक पहुँचा । दिया। तभी से वज़ीर अली अपने साथियों के साथ वहीं के जंगलों में ही रहने लगा था।

प्रश्न 4.
वज़ीर अली के चरित्र की किन्हीं तीन चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
वज़ीर अली कौन था? उसके चरित्र की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर :
वजीर अली की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) देशभक्त-वज़ीर अली एक सच्चा देशभक्त है। वह हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से नफ़रत करता है। वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकालकर बाहर कर देना चाहता है।
(ii) वीर एवं साहसी-वज़ीर अली अत्यंत वीर एवं साहसी है। दुश्मन भी उसकी वीरता का लोहा मानते हैं। वह सीधे दुश्मन के खेमे में जाकर उसे ललकारने में विश्वास रखता है। वह कर्नल कालिंज के खेमे में जाकर उससे कारतूस लेकर आता है।
(iii) अच्छा शासक-वज़ीर अली एक अच्छा शासक है। उसने केवल पाँच महीने अवध की बागडोर संभाली, किंतु इस दौरान उसने अपनी रियासत को अंग्रेज़ी प्रभाव से लगभग मुक्त करके उसे स्वतंत्र जीवन प्रदान किया।

प्रश्न 5.
‘कारतूस’ एकांकी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘कारतूस’ हबीब तनवीर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ एकांकी है। इसकी भाषा उर्दू-फ़ारसी मिश्रित हिंदी है। इसमें तत्सम, तद्भव एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के शब्दों का भी समन्वय हुआ है। इसमें संवादात्मक एवं चित्रात्मक शैली है, जो पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। इनकी शैली में नाटकीयता, रोचकता एवं प्रभावोत्कता के गुण विद्यमान हैं। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से सजीवता एवं रोचकता का समावेश हुआ है।

प्रश्न 6.
‘कारतूस’ एकांकी का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हबीब तनवीर द्वारा लिखित एकांकी ‘कारतूस’ में उन्होंने 1799 ई० में घटित ऐतिहासिक घटना को सजीवता प्रदान की है। आरंभ में अंग्रेज़ भारतवर्ष में व्यापारी के रूप में आए, किंतु धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने हिंदुस्तान की रियासतों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया। इसे देखते हुए भारत के देशभक्त अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने के प्रयास करने लगे। अनेक हिंदुस्तानी नौजवानों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान दिया। इस एकांकी में वज़ीर अली नामक पात्र के माध्यम से तत्कालीन हिंदुस्तानी जाँबाजों की वीरता का सुंदर चित्रण किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सआदत अली का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘कारतूस’ पाठ में सआदत अली को किस प्रकार का व्यक्ति बताया गया है?
उत्तर :
सआदत अली ऐशो-आराम चाहने वाला व्यक्ति था। वह अंग्रेजी सरकार का पिट्ठू था, इसलिए उसने अंग्रेजी सरकार की अधीनता स्वीकार कर ली। वह एक देशद्रोही था।

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प्रश्न 2.
कर्नल लेफ्टीनेंट को वज़ीर अली के बारे में क्या बताता है?
उत्तर :
कर्नल लेफ्टीनेंट को वजीर अली के बारे में बताता है कि वह रॉबिनहुड के समान वीर एवं साहसी है। अंग्रेजों से उसे घृणा है। वह भारत को अंग्रेजों से मुक्त करना चाहता है और अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए निरंतर योजनाएँ बनाता रहता है।

प्रश्न 3.
सआदत अली ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के साथ उन्हें और क्या दिया?
उत्तर :
सआदत अली ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के साथ उन्हें अपनी आधी जायदाद तथा दस लाख रुपये दे दिए। सआदत अली का यह काम उसकी चाटुकारिता को दर्शाता है।

प्रश्न 4.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने वज़ीर अली के साथ क्या किया?
उत्तर :
ईस्ट इंडिया कंपनी ने वज़ीर अली को अवध के नवाब पद से हटा दिया और उसके स्थान पर सआदत अली को अवध का नवाब बना दिया।

कारतूस Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-हबीब तनवीर का जन्म सन 1923 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में हुआ था। इन्होंने सन 1944 में नागपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इनकी नाट्य-क्षेत्र में विशेष रुचि थी। ये नाट्य लेखन का अध्ययन करने ब्रिटेन भी गए। बाद में दिल्ली लौटकर इन्होंने नाट्यमंच की स्थापना की। हबीब तनवीर एक नाटककार, कवि, पत्रकार, नाट्य निर्देशक तथा अभिनेता के रूप में काफ़ी प्रसिद्ध रहे। लोकनाट्य के क्षेत्र में इनका कार्य महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय रहा है। हबीब तनवीर को अनेक पुरस्कारों, फेलोशिप तथा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। रचनाएँ-हबीब तनवीर मुख्य रूप से नाटककार हैं।

इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में आगरा बाजार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन तथा हिरमा की अमर कहानी हैं। इन्होंने कई रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। इसके साथ-साथ हबीब तनवीर ने बसंत ऋतु का सपना, शाजापुर की शांति बाई, मिट्टी की गाड़ी तथा मुद्राराक्षस जैसे नाटकों का आधुनिक रूपांतर भी किया। भाषा-शैली-हबीब तनवीर की भाषा उर्दू-फ़ारसी मिश्रित हिंदी है। इनकी भाषा में सरलता, सरसता और सहजता सर्वत्र विद्यमान है। चित्रात्मकता, प्रभावोत्यादकता तथा रोचकता इनकी भाषा-शैली के अन्य गुण हैं।

प्रस्तुत एकांकी ‘कारतूस’ में भी इनकी उर्दू फ़ारसी मिश्रित हिंदी के दर्शन होते हैं। कहीं-कहीं तो पूरे वाक्य ही उर्दू-फ़ारसी में आ गए हैं। ऐसे स्थानों पर साधारण पाठक को थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई है; जैसे वज़ीर अली का यह कथन-‘दीवार हमगोश दारद तन्हाई। इसके अतिरिक्त एकांकी की भाषा में सामान्य बोलचाल के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।

उदाहरणस्वरूप-‘वजीर अली कंपनी के वकील के पास गया जो बनारस में रहता था और उससे शिकायत की कि गवर्नर-जनरल उसे कलकत्ता (कोलकाता) में क्यूँ तलब करता है। वकील ने शिकायत की परवाह नहीं की उल्टा उसे बुरा-भला सुना दिया।’ हबीब तनवीर की शैली संवादात्मक है, जो पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। इनकी शैली में नाटकीयता, चित्रात्मकता तथा स्पष्टता साफ़ दिखाई देती है।

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पाठ का सार :

‘कारतूस’ हबीब तनवीर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ एकांकी है। इस एकांकी में उन्होंने हिंदुस्तान के सन 1799 के वातावरण को सजीव कर दिया है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस समय तक हिंदुस्तान पर अपना काफ़ी अधिकार जमा लिया था। इस एकांकी में वज़ीर अली नामक पात्र के माध्यम से लेखक ने तत्कालीन हिंदुस्तानी वीरों की वीरता का सुंदर चित्रण किया है।

एकांकी का आरंभ ईस्ट इंडिया कंपनी की एक बटालियन के कर्नल कालिंज और उसके लेफ्टीनेंट की बातचीत से होता है। कर्नल एक लेफ्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ वजीर अली नामक एक वीर हिंदुस्तानी को गिरफ्तार करने के लिए गोरखपुर के जंगल में खेमा लगाए हुए है। कर्नल लेफ्टीनेंट को बताता है कि वज़ीर अली रॉबिनहुड के समान वीर एवं साहसी है।

वह अंग्रेजों से घृणा करता है और उन्हें हिंदुस्तान से बाहर निकालना चाहता है। ईस्ट इंडिया कंपनी वज़ीर अली को अवध के नवाब पद से हटाकर उसके स्थान पर सआदत अली को अवध का नवाब बना देती है। सआदत अली ऐशो-आराम पसंद करने वाला व्यक्ति है। वह अंग्रेज़ी सरकार की अंधीनता स्वीकार कर लेता है और अपनी आधी जायदाद व दस लाख रुपये ब्रिटिश सरकार को दे देता है।

कर्नल लेफ़्टीनेंट को बताता है कि वज़ीर अली बहुत खतरनाक आदमी है। वह अफ़गानिस्तान के शासक से मिलकर अंग्रेज़ी सरकार की जड़ें हिलाना चाहता है। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के वकील को भी मार डाला था। वह बहुत ही निडर और साहसी है। अंग्रेज़ी सरकार उसे गिरफ्तार करना चाहती है, किंतु किसी भी तरह से वह उसे पकड़ नहीं पा रही।

कर्नल बताता है कि वज़ीर अली की योजना हिंदुस्तान पर अफ़गानी हमला करवाकर अंग्रेजों की शक्ति कमज़ोर करना, अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाकर अवध का नवाब पद हासिल करना और अंग्रेजों को हिंदुस्तान से बाहर निकालना है। कर्नल कालिंज और लेफ़्टीनेंट इस प्रकार की बातें कर ही रहे थे कि तभी उन्हें दूर से किसी घुड़सवार के आने की आवाज़ सुनाई देती है। कर्नल अपने सिपाहियों को उस सवार पर नज़र रखने का आदेश देता है। थोड़ी ही देर में वह घुड़सवार कर्नल और लेफ्टीनेंट के समीप आकर खड़ा हो जाता है।

घुड़सवार कर्नल कालिंज से मिलने की इच्छा प्रकट करता है। उसे कर्नल तक पहुँचाया जाता है। घुड़सवार कर्नल से कहता है कि वह उससे अकेले में कुछ बात करना चाहता है। कर्नल सिपाही और लेफ़्टीनेंट को बाहर भेज देता है। घुड़सवार कर्नल से पूछता है कि उसने जंगल में खेमा क्यों लगाया हुआ है और वह क्या चाहता है ? कर्नल उसे बताता है कि वह वज़ीर अली को पकड़ना चाहता है। घुड़सवार कर्नल से कुछ कारतूस माँगता है और कहता है कि उसे ये कारतूस वज़ीर अली को पकड़ने के लिए चाहिए।

कर्नल उसे दस कारतूस दे देता है। कर्नल जब उससे उसका नाम पूछता है, तो वह अपना नाम वज्तीर अली बताता है। कर्नल उसका नाम सुनते ही हक्काबक्का रह जाता है। वह उसकी दिलेरी देखकर सन्नाटे में आ जाता है। वज़ीर अली कारतूस लेकर घोड़े पर सवार होकर चला जाता है। उसके जाने के बाद लेप़्टीनेंट अंदर आकर कर्नल से पूछता है कि वह कौन था, तो कर्नल के मुख से यही निकलता है-‘ एक जाँबाज़ सिपाही’।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

कठिन शब्दों के अर्थ :

खेमा – डेरा/अस्थायी पड़ाव, अंदरूनी – भीतरी, खतरनाक – भयंकर, अफ़साने (अफ़साना) – कहानियाँ, कारनामे (कारनामा) – ऐसे काम जो याद रहें, खिलाफ़ – विरुद्ध, नफ़रत – घृणा, असर – प्रभाव, हकमत – शासन, तकरीबन – लगभग, कामयाब में, उम्मीद – आशा, पैदाइश – जन्म, तख्त – सिंहासन, मसलेहत – रहस्य, ऐश-पसंद – भोग-विलास पसंद करने वाला, मुसीबत – धन-दौलत, जायदाद, हमला – आक्रमण, जाँबाज – जान की बाजी लगाने वाला, दमखम – शक्ति और दृढ़ता, जाती तौर से – व्यक्तिगत रूप से, सलाना – वार्षिक, वजीफ़ा – परवरिश के लिए दी जाने वाली राशि, मुकर्रर – तय करना,

तलब किया – याद किया, परवाह – चिंता, काम तमाम करना – मार देना, हुकमराँ – शासक, हिफाज़त – सुरक्षा, स्कीम – योजना, मुमकिन – संभव, गर्द – धूल, मसरूफ – व्यस्त, काफ़िला – एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में। जाने वाले यात्रियों का समूह, शुब्हा – संदेह, गुंजाइश – संभावना, करीब – समीप, खामोश – चुप, तन्हाई – एकांत, राजेदिल – दिल की बात, दीवार हमगोश दारद तनहाई – दीवारों के भी कान होते हैं, राज की बात तनहाई में कही जाती है, मकाम – पड़ाव, हुक्म – आदेश, लावलश्कर – सेना का बड़ा समूह और युद्ध-सामग्री, कारतूस = पीतल आदि की एक नली जिसमें बारूद भरा रहता है, हक्का-बक्का रह जाना = हैरान होना

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर :
कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसका जीवन साधारण-सा है। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिससे लोगों को किसी प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सके। उसका जीवन अभावों से भरा हुआ है, जिन्हें वह औरों के साथ बाटना नहीं चाहता उसके जीवन में किसी के प्रति कोमल भाव अवश्य था, जो उसके निजी सुखद क्षण हैं इसे किसी को बताना नहीं चाहता।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर :
कवि को लगता है कि अभी उसके जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं, जिन्हें दूसरों के सामने प्रकट किया जा सके। वह अपने अभावग्रस्त जीवन के कष्टों को अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहता है। इसलिए वह कहता है- अभी समय भी नहीं ।

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘पाथेय’ का शाब्दिक अर्थ है-‘सबल’ या ‘रास्ते का सहारा’। कवि के हृदय में किसी अति रूपवान के लिए गहरा प्रेमभाव था। उसके प्रति मधुर यादें थीं और वे यादें ही उसके जीवन की आधार थीं, जिन्हें वह न तो औरों के सामने प्रकट करना चाहता था और न ही ‘स्मृति रूपी सहारे’ को अपने से दूर करना चाहता था। कवि के मन में छिपी मधुर स्मृतियाँ उसके सुखों का आधार थीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट करें –
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर :
(क) कवि का कहना है कि उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। हर व्यक्ति की तरह वह भी अपने जीवन में सुख चाहता था। अवचेतन में छिपे सुख के भावों के कारण कवि ने भी सुख भरा सपना देखा था, पर वह सुख कभी उसे वास्तव में प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख उसके बिलकुल पास आते-आते मुस्कुराकर दूर भाग गया।

(ख) कवि का प्रियतम अति सुंदर था। उसकी गालों पर मस्ती भरी लाली छाई हुई थी। उसकी सुंदर छाया में प्रेमभरी भोर भी अपने सुहाग की मधुरिमा प्राप्त करती थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? उत्तर
अभाव
थे: दख थे: पीडा थी. पर फिर भी उसे कोई प्रेम करने वाला था। लेकिन कवि उस प्रेम-भाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह उसे नितांत अपना मानता है, इसलिए वह मधुर चाँदनी की उस उज्ज्वल कहानी को दूसरों के लिए नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर :
जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ पर छायावादी काव्य-शिल्प की सीधी छाप दिखाई देती है, जिसे निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. भाषा की कोमलता-प्रसाद ने अपनी कविता में भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया है। खड़ी बोली में रचित ‘आत्मकथ्य’ में कोमल शब्दों के प्रयोग की अधिकता है। ये शब्द मधुर और कर्णप्रिय हैं –

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

कवि ने तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है, जिससे शब्दों पर उनकी पकड़ का पता चलता है।

2. भाषा की लाक्षणिकता-लाक्षणिकता प्रसाद जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके द्वारा कवि ने अपने सूक्ष्म भावों को सहजता से प्रकट किया है –

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

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3. भाषा की प्रतीकात्मकता-कवि ने अपनी कविता में प्रतीकात्मकता का भी अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने प्रकृति-जगत से अपने अधिकांश प्रतीकों का प्रयोग किया है –

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

‘मधुप’ मनरूपी भँवरा है, जो ‘गुनगुना’ कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती ‘पत्तियाँ’ नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में ‘अनंत-नीलिमा’, ‘गागर रीति’, ‘उज्ज्वल गाथा’, ‘चाँदनी रातों की’, ‘अनुरागिनी उषा’, ‘स्मृति पाथेय’, ‘थके पथिक’, ‘सीवन को उधेड़’, ‘कंथा’ आदि प्रतीकात्मक शब्दों का सहज-सुंदर प्रयोग किया है। -भाषा की चित्रमयता-प्रसाद की इस कविता की एक अनुपम विशेषता है-‘चित्रमयता’। कवि ने इसके द्वारा पाठक के सामने एक चित्र-सा प्रस्तुत किया है। इससे कविता में बिंब उपस्थित करने में सफलता मिली है।

5. भाषा की संगीतात्मकता – इस कविता में संगीतात्मकता का तत्व निश्चित रूप से विद्यमान है। इसका कारण यह है कि कवि को नाद, लय और छंद तीनों का अच्छा ज्ञान था। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की है –

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

6. भाषा की आलंकारिकता – भाषा को सजाने और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रसाद ने अपनी कविता में जगह-जगह अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है –
(i) मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी-अनुप्रास
(ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया-पुनरुक्ति प्रकाश
(iii) सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?-प्रश्न
(iv) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में-मानवीकरण

7. मधुर-शब्द योजना – कवि को शब्दों की अंतरात्मा की सूक्ष्म पहचान है। जो शब्द जहाँ ठीक लगता है, कवि ने इसका वहीं प्रयोग किया है –

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

इन पंक्तियों में ‘पाथेय’, ‘पथिक’, ‘पंथा’, ‘सीवन’, ‘कंथा’ आदि अत्यंत सटीक और सार्थक शब्द हैं, जो विशेष भावों को व्यक्त करते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने सुख के जिस स्वप्न को देखा था उसे वह प्राप्त नहीं कर पाया। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया, पर कवि के मन में उसकी याद गहराई से जमी हुई थी। कवि के हृदय में अपने प्रिय की सुखद छवि विद्यमान थी। उसका प्रिय भोला-भाला था, जिसके लिए कवि ने ‘सरलते’ शब्द का प्रयोग किया है। उसके लिए रस से भीगे अतीत के उन दिनों को भुला पाना कभी संभव नहीं हो पाया। वे प्यार-भरी मधुर चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे उसे अलौकिक आनंद प्रदान करती थीं।

प्रिय की हँसी का स्रोत उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था, पर वह कल्पना मात्र था। जब तक सपना आँखों के सामने छाया रहा, तब तक वह प्रसन्नता से भरा रहा; पर स्वप्न के समाप्त होते ही जीवन की वास्तविकता उसके सामने आ गई। उसकी आनंद-कल्पना अधूरी रह गई। उसका प्रिय अपार सौंदर्य का स्वामी था। उसके गालों की सौंदर्य-लालिमा के सामने उषा की लालिमा भी फीकी थी, पर अब वह दृश्य ही बदल गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी काव्य के प्रवर्तक हैं। उन्होंने इस कविता में अपने व्यक्तित्व की हल्की-सी झलक दी है। वे अभावग्रस्त थे; वे धन-संपन्न नहीं थे; वे सामान्य जीवन जीते हुए यथार्थ को स्वीकार करते थे। वे अति विनम्र थे। उन्हें लगता था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दूसरों को सुख दे सके इसलिए वे अपनी जीवन-कहानी औरों को नहीं सुनाना चाहते थे –

तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति।

वे प्रेमी-हृदय थे। उन्हें किसी से प्रेम था, पर वे उसके प्रेम को पा नहीं सके। वे स्वभाव से ऐसे थे कि न तो अपनी पीड़ा दूसरों के सामने प्रकट करना चाहते थे और न ही किसी की हँसी उड़ाना चाहते थे। वे दूसरों को अपने छोटे-से जीवन की कहानियाँ नहीं सुनाना चाहते थे। वे अपनी पीड़ा को अपने हृदय में समेटकर रखना चाहते थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :
महान व्यक्तियों के द्वारा लिखित आत्मकथाएँ प्रेरणा की स्रोत होती हैं। ये पाठकों का मार्गदर्शन करती हैं। इनमें लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और दशाओं का वर्णन करते हैं। वे अपने जीवन पर पड़े विभिन्न प्रभावों का उल्लेख भी करते हैं। मैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन के द्वारा रचित आत्मकथा ‘मेरी जीवन यात्रा’ पढ़ना चाहूँगा।

इसे पढ़ने से देश-विदेश में घूमने और स्थान-स्थान के ज्ञान को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलेगी, विभिन्न क्षेत्रों के जीवन और रीति-रिवाजों को समझने की क्षमता मिलेगी। इसके अतिरिक्त मैं हरिवंशराय बच्चन की ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ और ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पढ़ना चाहूँगा। इनसे एक महान लेखक और कवि के जीवन को निकट से जानने का अवसर मिलेगा।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर :
मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो; प्रतिष्ठा हो और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचाने। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं; पशु भी जीवित रहते हैं, पर उनका जीवन भी क्या जीवन है ? अनजाने-से इस दुनिया में। आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो, जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहे।

मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आईं और चली गईं। उनका धरती पर आना तो सामान्य था, पर यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उन्हें हमारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उनके कारण उनके पैतृक शहर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि अपने जीवन में मैं इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

प्रश्न 2.
बिना ईमानदारी और साहस की आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन 1956 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।

बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है। आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें –

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ;
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

– कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

शब्दार्थ : मधुप – भँवरा, मनरूपी भँवरा। घनी – अत्यधिक। अनंत नीलिमा – अंतहीन विस्तार। असंख्य – अनगिनत; जिसकी गणना न की जा सके। मलिन – मैला। उपहास – मज़ाक। दुर्बलता – कमज़ोरी। गागर रीति – खाली घड़ा, ऐसा मन जिसमें कोई भाव नहीं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इसके माध्यम से कवि ने कहा है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है जो औरों को कुछ सरस दे पाए।

व्याख्या : कवि कहता है कि जीवनरूपी उपवन में उसका मनरूपी भँवरा गुनगुना कर न जाने अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुख, वह नहीं जानता। लेकिन इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझाकर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा है। उसे केवल दुख और पीड़ारूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ पूरी हुए बिना ही मन में घुटकर रह गईं।

उचित परिस्थितियों और वातावरण को न पाकर वे समय से पहले ही पीले-सूखे पत्तों की तरह मुरझाकर मिट गईं। जीवन के अंतहीन गंभीर विस्तार में जीवन के असंख्य इतिहास रचे जाते हैं। वे बीती हुई निराशा भरी बातें कवि की स्थिति और पीड़ा पर व्यंग्य करती हैं; उसका उपहास उड़ाती हैं और कवि चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता। वह अपने जीवन की विवशताओं के सामने असहाय है; हताश है।

उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के बारे में जानने की इच्छा रखने वालों से वह दुख भरे स्वर में पूछता है कि उसकी पीड़ा और विवशता को देखकर भी क्या वे चाहते हैं कि कवि अपनी पीड़ा, दुर्बलता और अपने पर बीती दुखभरी कहानी को फिर से सुनाए; फिर से दोहराए ? क्या उसकी पीड़ा देखकर नहीं समझी जा सकती? जब तुम उसकी जीवनरूपी खाली गागर को देखोगे, तो क्या तुम्हें उसे देख-सुनकर सुख प्राप्त होगा? मेरे हताश और निराशा से भरे अभावपूर्ण मन में कोई ऐसा भाव नहीं है, जिसे दूसरों को सुनाया जा सके।

अर्धग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें।
2. ‘मधुप’ में विद्यमान प्रतीकात्मकता लिखिए।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ किसे स्पष्ट करता है?
4. ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ क्या है?
5. कवि किससे कहता है-‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’?
6. ‘रीति गागर’ क्या है?
7. व्यंग्य-उपहास कौन करते हैं ?
8. ‘तुम सुनकर सुख पाओगे’ में छिपे अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
9. कवि का जीवन कैसा था?
10. कवि अपनी कथा क्यों नहीं सुनाना चाहता था?
उत्तर :
1. कवि का जीवन दुखों और अभावों से भरा हुआ है, जिसकी व्यथा भरी कहानी वह औरों को नहीं सुनाना चाहता। किसी व्यक्ति की पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं होती।
2. ‘मधुप’ एक प्रतीकात्मक शब्द है। यह ‘मन’ को प्रकट करता है, जो भँवरे के समान जहाँ-तहाँ उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के अभावों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते थे।
4. ‘अनंत-नीलिमा’ जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में हर समय न जाने कौन-कौन से विचार अनुभव करता है। यदि वे सुखद होते हैं, तो दुखद भी होते हैं। ‘अनंत-नीलिमा’ लाक्षणिक शब्द है, जो अपने भीतर व्यापकता के भावों को छिपाए हुए है। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न वे विभिन्न विचार हैं, जो तरह-तरह की घटनाओं के घटित होने के आधार बने।
5. ‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’-कवि उन लोगों से कहता है, जो उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के विषय में जानना चाहते हैं।
6. ‘रीति सागर’ में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता है, जो कवि के अभावग्रस्त जीवन की ओर संकेत करती है जिसमें कोई सुख-सुविधा नहीं है।
7. कवि के अपने ही मन की निराशा भरी बातें उस पर व्यंग्य-उपहास करती हैं।
8. कवि व्यंग्यार्थ का प्रयोग करते हुए कहता है कि क्या उसके जीवन को जानने की इच्छा रखने वाले लोग उसकी पीड़ा और व्यथा को सुनकर प्रसन्नता प्राप्त कर सकेंगे। निश्चित रूप से उन्हें उसकी पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी आनंद की प्राप्ति कदापि नहीं होगी।
9. कवि का जीवन दुख और निराशा से भरा हुआ था।
10. कवि के जीवन में केवल असफलता, पीड़ा, दुख और निराशा के भाव ही थे; इसलिए वह अपनी कथा नहीं सुनाना चाहता था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तरी –

प्रश्न :
1. कवि ने किस काव्य-शैली का प्रयोग किया है?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग दिखाई देता है ?
3. कवि ने किन प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग किया है?
4. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है ?
5. पंक्तियों में किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. गेयात्मकता की सृष्टि किससे हुई है?
7. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
8. किस काव्य-रस का समावेशन हुआ है?
9. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. कविता का संबंध हिंदी के किस वाद से है?
11. अवतरण से अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने हृदय की पीड़ा और असहायता को आत्मकथात्मक शैली में प्रकट किया है और कहा है कि उसकी दुख भरी कहानी सुनने-सुनाने के योग्य नहीं है।
2. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है।
3. मधुप, पत्तियाँ, अनंत-नीलिमा, जीवन-इतिहास, रीति गागर आदि में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
4. खड़ी बोली।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. स्वरमैत्री ने गयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. करुण रस का प्रयोग है।
9. मधुप, अनंत।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
कर कह जाता कौन कहानी

रूपकातिशयोक्ति –
‘मधुप गुन-गुना कर कह जाता है’ में ‘मधुप’ मनरूपी भँवरे के लिए प्रयुक्त हुआ है।
‘गागर रीती’, ‘जीवनरूपी खाली गागर’ के लिए प्रयुक्त हुआ है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

2. किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
रह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

शब्दार्थ : विडंबना – निराश करना, उपहास का विषय। प्रवंचना – धोखा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था, लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि वे अति साधारण हैं और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे पढ़-सुनकर लोग वाह-वाह कर उठे। कवि ने यथार्थ के साथ-साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।

व्याख्या : जो लोग कवि की दुखपूर्ण कथा को सुनना चाहते हैं, कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा सुनकर कहीं वे यह न समझने लगे कि वही उसकी जीवनरूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आपको समझें; स्वयं को पहचानें। वे उसके भावों के रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का विषय है कि मैं तुम्हारी हँसी उड़ाऊँ। मैं अपने दवारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करूँ ? आत्मकथा के नाम से मुझे अपनी या औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करनी।

कवि कहता है कि उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा नहीं है; उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं, पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता, क्योंकि वे उसकी निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। वह कभी अपनों के साथ खिलखिलाकर हँसा था; मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका रस लेने की बात कही है ?
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ किसे कहा है?
4. ‘अरी सरलते’ में विद्यमान विशिष्टता क्या है?
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा क्या बताना चाहता है ?
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ में निहित प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. कवि औरों के समक्ष किस गाथा को नहीं गाना चाहता?
8. ‘उन बातों में छिपा भाव स्पष्ट कीजिए।
9. ‘विडंबना’ में छिपा अर्थ व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपने सुख-दुख की गाथा को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह कहता था कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं है, जो औरों को प्रसन्नता दे सके। कवि न तो अपनी सुख भरी बातें प्रकट करना चाहता है और न ही दूसरों की भूलें व्यक्त करना चाहता है।
2. कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है।
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ उन्हें कहा है, जो उसकी दुखभरी कहानी सुनने की इच्छा करते हैं।
4. ‘अरी सरलते’ में प्रेमपूर्ण संबोधन विद्यमान है, जिससे कवि ने अपनत्व का भाव प्रकट किया है।
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा बताना चाहता है कि वह न तो औरों की आलोचना करना चाहता है और न ही सबको अपनी व्यक्तिगत बातें सुनाना चाहता है।
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता से परिपूर्ण है, जिसमें कवि हृदय में छिपा प्रेम और अपनत्व का भाव प्रकट होता है। कवि को इससे सुख की अनुभूति हुई थी।
7. कवि उस गाथा को औरों के समक्ष नहीं गाना चाहता, जो उसकी पूर्ण रूप से व्यक्तिगत है; जिसमें उसकी प्रेमानुभूति छिपी हुई है।
8. ‘उन बातों में गूढार्थ विद्यमान है। इनसे कवि को जीवन में सुख प्राप्त हुआ था।
9. ‘विडंबना’ का अर्थ है-‘उपहास का विषय’ या ‘निराश करना’। कवि किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहता। वह अपनी बात से किसी की हँसी उड़ाकर उसे व्यथित करने के बारे में सोच भी नहीं सकता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सौदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसे व्यक्तिगत माना है?
2. पंक्तियों में किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण का प्रयोग दिखाई देता है?
6. नाटकीयता की सृष्टि का आधार क्या है?
7. लयात्मकता का आधार क्या है?
8. कवि ने किस शैली का प्रयोग किया है ?
9. दो तत्सम शब्दों को चुनकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने सुख-दुख को व्यक्तिगत माना है और वह उन्हें सबके साथ नहीं बाँटना चाहता।
2. लाक्षणिकता का सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. संबोधन शैली के प्रयोग ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. प्रवंचना, उज्ज्वल।
10. मानवीकरण –
अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों में।

अनुप्रास –
किंतु कहीं ऐसा न हो।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ।

3. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

शब्दार्थ : स्वप्न – सपना। मुसक्या कर – मुस्कुराकर। अरुण-कपोलों – लाल गालों। मतवाली – मस्ती भरी। अनुरागिनी उषा – प्रेमभरी भोर । निज – अपना। स्मृति पाथेय – स्मृति रूपी सहारा। पथिक – मुसाफ़िर; यात्री। पंथा – रास्ता, राह। सीवन – सिलाई। कंथा – गुदड़ी, अंतर्मन।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि ने अपने जीवन की कहानी किसी को न सुनाने के बारे में सोचा था, क्योंकि उसे लगता था कि उसके जीवन में कुछ भी ऐसा सुखद नहीं था, जो किसी को सुख दे सके। उसके पास केवल सुखद यादें अवश्य थीं।

व्याख्या : कवि कहता है कि उसे अपने जीवन में कभी किसी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। सपने में जिस सुख को अनुभव कर वह नींद से जाग गया था, वह भी उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख देने वाला उसके आलिंगन में आते-आते धीरे से मुस्कुराकर उससे दूर हो गया; उसे प्राप्त नहीं हुआ। जो सपने में सुख और प्रेम का आधार बना था, वह अपार सुंदर और मोहक था। उसके लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हो गई थी।

भाव यह है कि उसके गालों में प्रात:कालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी राह पर थककर चूर हुए कविरूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही एक सहारा थी। उसकी यादें ही उसकी थकान को कुछ कम करती थीं। कवि नहीं चाहता कि उसकी मधुर यादों के आधार को कोई जाने। वह पूछता है कि क्या उसके अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उस छिपे रहस्य को आप देखना चाहेंगे? भाव यह है कि कवि उस रहस्य को अपने भीतर सँभालकर रखना चाहता है; उसे व्यक्त नहीं करना चाहता।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि नींद से क्यों जाग गया था?
3. कवि किसे आलिंगन में लेने को आतुर था?
4. कवि के प्रिय का रूप कैसा था?
5. कवि ने भोर को कैसा माना है?
6. कवि को किसका सहारा प्राप्त हुआ था ?
7. कवि अपना रास्ता कैसा मानता है ?
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ क्या है?
9. ‘कंथा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि को जीवन में किसी से प्रेम हुआ था, पर उसे अपने प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई। कवि को लगता है कि उसके प्रिय की अपार सुंदरता ही उसके जीवन की प्रेरणा है और उसके स्मृतिरूपी सहारे से वह अपने जीवन की थकान को कम करने में सफल हुआ है। कवि के जीवन से परिचित होने की इच्छा रखने वालों को उसके प्रेम के विषय में जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह विषय उसका पूर्णरूप से निजी था।
2. कवि उस स्वप्न को देखकर नींद से जाग गया था, जिसके सुख को उसने पाया ही नहीं था।
3. कवि स्वप्न में देखे अपने प्रिय को आलिंगन में लेने को आतुर था।
4. कवि का प्रिय अपार सुंदर था। उसके मतवाले लाल गाल ऐसे थे, जैसे प्रातः के समय पूर्व दिशा की लाली उसी से प्राप्त की गई हो।
5. कवि ने भोर को प्रेम और लाली से युक्त माना है।
6. कवि को स्वप्न में देखे अपने प्रिय की स्मृतियों का सहारा प्राप्त हुआ था।
7. कवि को अपना रास्ता कठिन प्रतीत होता है, जिस पर उसके थके हुए कदम आसानी से आगे नहीं बढ़ते।
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ से अभिप्राय कवि के मन में छिपी पुरानी यादों को फिर से ताज़ा करना है, जिन्हें वह अपने हृदय में छिपा चुका है।
9. ‘कंथा’ का शाब्दिक अर्थ ‘गुदड़ी’ है, जिसे कवि ने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने पंक्तियों में किसका आभास दिया है ?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
3. किस बोली का प्रयोग है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
5. काव्य-गुण कौन-सा विद्यमान है?
6. किस शैली का प्रयोग है?
7. दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
8. पंक्तियों में से निराशा के भाव का एक उदाहरण दीजिए।
9. कविता का संबंध हिंदी-साहित्य की किस काव्यधारा से है ?
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने जीवन में किसी के प्रेम को प्राप्त करने का आभास दिया है, जिसका परिचय वह किसी को नहीं देना चाहता।
2. लाक्षणिकता विद्यमान है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. आत्मकथात्मक शैली।
7. आलिंगन, अनुरागिनी।
8. मिला कहाँ वह सुख।
9. छायावाद।
10. व्यतिरेक –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी ऊषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

पुनरुक्ति प्रकाश –

आलिंगन में आते-आते अनुप्रास
थके पथिक की पंथा की
क्यों मेरी कंथा की।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

4. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

शब्दार्थ : कथाएँ – कहानियाँ। मौन – चुप। आत्मकथा – अपनी कहानी। व्यथा – पीड़ा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि से कहा गया था कि वह अपनी आत्मकथा लिखे, ताकि सभी उससे परिचित हो सकें। लेकिन कवि को लगता है कि उसकी जीवनी में कुछ भी ऐसा विशेष नहीं है, जिससे दूसरों को सुख प्राप्त हो सके।

व्याख्या : कवि कहता है कि उसका जीवन छोटा-सा है; सुखों से रहित है, इसलिए वह उससे संबंधित बड़ी-बड़ी कहानियाँ किस प्रकार सुनाए? वह अपनी कहानी सुनाने की अपेक्षा चुप रहकर औरों की कहानियों को सुनना अधिक अच्छा मानता है। वह उनकी कहानियों से कुछ पाना चाहता है। वह पूछता है कि लोग उसकी कहानी को सुनकर क्या करेंगे? उसकी जीवन कहानी सीधी-सादी और भोली-भाली थी, जिसमें कोई भी विशेष आकर्षण नहीं था। उसे लगता है कि अभी अपनी कहानी सुनाने का अवसर भी अनुकूल नहीं है। उसकी मौन पीड़ा अभी थकी-हारी सो रही है; उसके मन में छिपी हुई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
3. कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं ?
4. कवि मौन रहकर क्या सुनना चाहता है?
5. कवि ने अपनी कथा को कैसा माना है?
6. कवि की मौन व्यथा हृदय में क्या कर रही है?
7. कवि ने क्यों लिखा कि ‘अभी समय भी नहीं।
8. कवि ने प्रश्न-चिहनों के प्रयोग से शिल्प में किस विशिष्टता को प्रकट किया है ?
9. ‘मौन व्यथा’ में निहित गूढार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी कथा को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। उसे लगता है कि उसकी पीड़ा भरी कहानी किसी को सुख नहीं दे पाएगी। इसलिए उसके लिए यही अच्छा है कि वह दूसरों की कहानी को सुने और अपनी कथा को अपने मन में ही छिपाकर रखे।
2. कवि ने अपने जीवन को छोटा-सा माना है।
3. कवि स्वभाव से विनम्र है। इसलिए हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान होने पर भी वह मानता है कि उसके जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ नहीं थीं।
4. कवि मौन रहकर दूसरों की कथाएँ सुनना चाहता है।
5. कवि ने अपनी कथा को भोली और सीधी-सादी माना है।
6. कवि की मौन व्यथा उसके हृदय में थककर सो रही है। वह उसकी वाणी द्वारा औरों के सामने व्यक्त नहीं होना चाहती।
7. कवि को लगता है कि उसकी आत्मकथा को सुनने से किसी को कोई सुख प्राप्त नहीं होगा। साथ ही वह अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने उजागर करने का यह उचित अवसर नहीं मानता।
8. कवि ने प्रश्न-चिह्नों के प्रयोग से अपनी विनम्रता को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। साथ ही कवि ने इनसे अपने पाठकों या श्रोताओं की जिज्ञासा में वृद्धि की है। कवि ने अपनी नकारात्मकता को प्रकट न कर प्रश्न-चिह्नों से कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
9. ‘मौन व्यथा’ में गूढार्थ विद्यमान है। जब व्यक्ति अपने दुख-दर्द को सबके सामने बार-बार कहता है, तो कोई भी उसे बाँटना नहीं चाहता बल्कि बाद में उस पर कटाक्ष व व्यंग्य करता है। दुख-सुख सभी के जीवन के आवश्यक हिस्से हैं। यह जीवन का यथार्थ है। इसलिए कवि उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। वह उसे अपने भीतर ही छिपाकर रखना चाहता है। कई बार पूछे जाने पर व्यथित व्यक्ति अपने दुख को प्रकट कर देता है, पर कवि अपनी पीड़ा को ‘मौन व्यथा’ कहकर चुप हो जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि किसका परिचय औरों को नहीं देना चाहता?
2. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
4. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
5. कवि के शब्दों में उसकी कौन-सी विशेषता साफ़ रूप से झलकती है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
7. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
8. अवतरण किस शैली से संबंधित है ?
9. प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. यह किस युग की कविता है ?
11. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी पीड़ा भरी आत्मकथा का परिचय औरों को नहीं देना चाहता।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
4. प्रसाद गुण विद्यमान है।
5. कवि की विनम्रता साफ़ रूप से दिखाई देती है।
6. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. मौन, व्यथा।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
मैं मौन, मेरी मौन व्यथा
मानवीकरण –
मेरी भोली आत्मकथा, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा

JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
आप अपना आत्मकथ्य पद्य या गद्य में लिखिए।
उत्तर :
मेरा आत्मकथ्य अभी किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। न तो अभी मैंने यथार्थ जीवन की राह में कदम बढ़ाए हैं और न ही मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया हूँ। अभी मेरी केवल पंद्रह वर्ष की आयु है। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ है, वह मध्यवर्गीय है। पिताजी की नौकरी से प्राप्त होने वाली आय कठिनाई से परिवार को जीवन गुजारने योग्य सुविधाएँ प्रदान करती है। मेरे माता-पिता अपना पेट काटकर हम तीन भाई-बहनों का पेट भरते हैं; हमें पढ़ाते-लिखाते हैं।

स्वयं पुराना और घिसा-पिटा कपड़ा पहनकर भी हमें नए कपड़े लेकर देने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने हमें अच्छे संस्कार दिए हैं और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की शिक्षा दी है। पढ़ाई-लिखाई के साथ मुझे व्यायाम करने और कुश्ती लड़ने का शौक है। मैं अपने स्कूल की ओर से कई बार कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका हूँ और मैंने स्कूल के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। पढ़ाई में भी मैं अच्छा हूँ। कक्षा में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त कर लेता हूँ, जिस कारण माता-पिता के साथ-साथ अपने अध्यापकों की आँखों का भी तारा हूँ। मेरे सहपाठियों और मेरे मोहल्ले के लड़कों को मेरे साथ खेलना और बातें करना अच्छा लगता है। ईश्वर के प्रति मेरी अटूट आस्था है।

प्रश्न 2.
श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?
उत्तर
नामक पत्रिका का प्रकाशन करते थे। वे उसके संपादक थे। सन 1932 में उन्होंने पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रसाद जी से आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें। लेकिन प्रसाद जी को ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे विनम्र थे और उन्हें लगता था कि उन्होंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया, जिससे उन्हें लोगों की वाहवाही मिलती। उनकी आत्मकथा न लिखने की इच्छा के कारण ‘आत्मकथ्य’ की रचना हुई, जिसे ‘हंस’ पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में छापा गया था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 3.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था और क्यों?
उत्तर :
कवि किसी के प्रति अपने प्रेमभाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया नहीं और जिसका केवल सपना-भर देखा, उसे दूसरों के सामने प्रकट करे। वह प्रेम उसकी स्मृतियों का सहारा था, जो उसे जीने की प्रेरणा देता था।

प्रश्न 4.
कवि ने अपनी कथा को भोली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि का जीवन सीधा-सादा और विनम्रता से भरा हुआ था। उसे नहीं लगता था कि उसकी कथा में किसी को कुछ विशेष देने की क्षमता है। उससे किसी प्रकार की वाहवाही भी प्राप्त नहीं की जा सकती। इसलिए कवि ने अपनी कथा को भोली कहा है।

प्रश्न 5.
प्रसाद के काव्य में प्रकृति-प्रेम झलकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि जयशंकर प्रसाद छायावाद के आधार स्तम्भ माने जाते हैं। प्रकृति छायावादी कवियों का मन चाहा शरण स्थल रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना इनके काव्य का प्रमुख गुण है। प्रसाद जी ने प्रकृति को अपने काव्य की सहचरी माना है। इसी कारण उसका सजीव चित्रण भी किया है।

प्रश्न 6.
कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
उत्तर :
कवि ने अपने जीवन को छोटा और सरल माना है। उसका जीवन सुखों से रहित है; उसमें सर्वत्र दुखों का वास है। प्रेम और सुख की कल्पना करना भी उसे पीड़ादायक लगता है। उसका जीवन पीड़ा की एक कहानी है। उसकी यह कहानी किसी को भी सुख प्रदान नहीं कर सकती। वह अपने जीवन को स्वयं तक सीमित रखना चाहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 7.
कवि ने कविता में अपना रास्ता कैसा और किस प्रकार का माना है?
उत्तर :
कवि ने अपना रास्ता अत्यंत कठिन तथा पीड़ादायक माना है। उसका रास्ता हृदय को द्रवित करने वाला है। उसे अपना रास्ता इतना अधिक कठिन प्रतीत होता है कि उस पर उसके थके कदम आसानी से नहीं बढ़ते। उसे पग-पग पर समस्याओं से जूझना पड़ता है। न चाहते हुए भी कष्टों को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 8.
कविता में कवि ने अपने प्रिय के विषय में क्या कहा है?
उत्तर :
कवि ने बताया है कि अतीत में उसने कभी किसी से प्रेम किया था लेकिन जिससे उसने प्रेम किया था, वह उसे प्राप्त नहीं हो सका। उसके प्रिय का अगाध सौंदर्य ही उसके जीवन की प्रेरणा थी। कवि अपने जीवन को पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मानता है। वह अपने दुख भरे जीवन से किसी को परिचित नहीं करवाना चाहता।

प्रश्न 9.
कवि ने कविता में जीवन एवं मन को किस रूप में तथा कैसे प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता में जीवन को एक उपवन के रूप में प्रस्तुत किया है। इसी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुनाता रहता है। किंतु वह चाहे कितनी भी गुंजार करे, उसके आस-पास अनेक पत्तियाँ मुरझाती रहती हैं।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रतिभावान कवि माने जाते हैं। ये छायावाद के प्रवर्तक थे। इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना आदि हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। इनका जन्म सन 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे। जब उनका देहांत हुआ, तब प्रसाद की आयु केवल आठ वर्ष की थी। परिवारजन की मृत्यु, आत्म-संकट, पत्नी वियोग आदि कष्टों को झेलते हुए भी ये काव्य-साधना में लीन रहे। तपेदिक के कारण इनका देहांत 15 नवंबर 1937 में हुआ।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्नलिखित हैं –
काव्य – ‘चित्राधार’, ‘कानन-कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’ आदि।
नाटक – ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’, ‘कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’, ‘एक घुट’ आदि।
कहानी – ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ आदि। उपन्यास कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
साहित्यिक विशेषताएँ – जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उसकी प्रत्येक विधा को समृद्ध किया। प्रसाद विरचित साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. स्वदेश-प्रेम – प्रसाद का स्वदेश-प्रेम सौंदर्य के अछूते चित्रों के रूप में व्यक्त हुआ है। संपूर्ण भारत उनके लिए सौंदर्य का भंडार है।
भारत के प्राकृतिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर कवि ने उसका चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का अमर गीत है
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।’

2. प्रकृति-चित्रण छायावादी कवियों का मनचाहा शरणस्थल प्रकृति ही रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना उनके काव्य में मुख्य रूप से अंकित है। प्रकृति को प्रसाद ने अपने काव्य की पृष्ठभूमि न मानकर सहचरी माना है और उसका सजीव चित्रण किया है। कोलाहल में भरी इस दुनिया से भागकर कवि प्रकृति की गोद में शरण लेना चाहता है, इसलिए वह लिखता है –

‘ले चल मुझे भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे।
तज कोलाहल की अवनि रे।’

3. रहस्यवाद – छायावादी कवि रहस्यवादी हैं और प्रकृति में प्रभु के दर्शन करते हैं। प्रसाद के काव्य में रहस्यवादी तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। जिज्ञासा, प्रेम, विरह तथा मिलन की सीढ़ियों से गुजरने वाली ईश्वर-प्रेम की भावना का कवि ने वर्णन किया है। ईश्वर के अस्तित्व के विषय में जिज्ञासा व्यक्त करता हुआ कवि कहता है –

‘हे अनंत रमणीय! कौन तुम?
यह मैं कैसे कह सकता।
कैसे हो? क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता।’

प्रेम के सौंदर्य के साथ-साथ प्रसाद के काव्य में विश्व-बंधुत्व, सर्व जन हिताय तथा व्यापक मानवतावाद से ओत-प्रोत रचनाएँ भी हैं ! प्रसाद मूलत: आंतरिक अनुभूतियों के कवि हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उनका काव्य समकालीन हलचलों को अनदेखा करता है। प्रसाद की कविता मानव में ईश्वर और ईश्वर में मानव को देखती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

4. भाषा-शैली – प्रसाद की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस है। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना प्रसाद की शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। देश-प्रेम की रचनाओं में ओज गुण प्रधान शब्दावली, शृंगार रस प्रधान रचनाओं में माधुर्य-गुण से युक्त शब्दावली तथा सामान्यतः प्रसाद गुणयुक्त शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

शब्द-चित्रों की सुंदर योजना प्रसाद की रचनाओं में रहती है। इनकी रचनाओं में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। प्रसाद की कविताओं में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रामाणिक रूप मिलता है। इनकी काव्य-भाषा कहीं पर सरल तथा कहीं पर क्लिष्ट एवं तत्सम शब्दावली प्रधान है। स्वाभाविकता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है। भाषा भावानुकल है, इसलिए तत्सम शब्द भी स्वाभाविक लगते हैं। उनकी रचनाओं में मुहावरे बहुत कम हैं।

5. संगीतात्मकता – संगीतात्मकता उनके काव्य का प्रमुख स्वर है ! संगीत की स्वर-लहरी पद-पद पर झलकती है। ‘कामायनी’, ‘आँस’, ‘लहर’, ‘झरना’ सभी कविताएँ गेय हैं।
वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।

कविता का सार :

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्रिका ‘हंस’ में छापने के लिए श्री जयशंकर प्रसाद से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, पर उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने आत्मकथा न लिखकर ‘आत्मकथ्य’ कविता लिखी थी, जो सन 1932 में ‘हंस’ में छपी। कवि ने इस कविता में जीवन के यथार्थ को प्रकट करने के साथ-साथ उन अनेक अभावों को भी लिखा था, जिन्हें उन्होंने झेला था। उनका कहना था कि उनका जीवन किसी भी सामान्य व्यक्ति के जीवन की तरह सरल और सीधा था जिसमें कुछ भी विशेष नहीं था, वह लोगों की वाहवाही लूटने और उन्हें रोचक लगने वाला नहीं था।

जीवनरूपी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुना कर चाहे अपनी कहानी कहता हो, पर उसके आसपास पेड़-पौधों की न जाने कितनी पत्तियाँ मुरझाकर बिखरती रहती हैं। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवन-इतिहास रचे जाते हैं, पर ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर सुख पाया जा सकता है? मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ है, अभावग्रस्त है। इस संसार में व्यक्ति स्वार्थ भरा जीवन जीते हैं। वे दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी होना चाहते हैं। यह जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी नहीं सुनाना चाहता। वह नहीं समझता कि उसके पास दूसरों को सुनाने के लिए मीठी बातें हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मीठी-अच्छी बातें दिखाई नहीं देतीं। उसे प्राप्त होने वाले सुख आधे रास्ते से ही दूर हो जाते हैं। उसकी यादें थके हुए यात्री के समान हैं, जिसमें कहीं सुखद यादें नहीं हैं। कोई भी उसके मन में छिपी दुखभरी बातों को क्यों जानना चाहेगा! उसके छोटे-से जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं।

इसलिए कवि अपनी कहानियाँ न सुनाकर केवल दूसरों की बातें सुनना चाहता है। वह चुप रहना चाहता है। कवि को अपनी आत्मकथा भोली-भाली और सीधी-सादी प्रतीत होती है। उसके हृदय में छिपी हुई पीड़ाएँ मौन-भाव से थककर सो गई थीं, जिन्हें कवि जगाना उचित नहीं समझता। वह नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए

1. निम्नलिखित में से सर्वाधिक प्रदूषित नदी कौन-सी है?

(क) ब्रह्मपुत्र
(ख) सतलुज
(ग) यमुना
(घ) गोदावरी।
उत्तर:
(ग) यमुना।

2. निम्नलिखित में से कौन-सा रोग जल जन्य है?
(क) नेत्रश्लेष्मला शोध
(ख) अतिसार
(ग) श्वसन संक्रमण
(घ) श्वासनली शोथ।
उत्तर:
(ख) अतिसार।

3. निम्नलिखित में से कौन-सा अम्ल वर्षा का एक कारण है?
(क) जल प्रदूषण
(ख) भूमि प्रदूषण
(ग) शोर प्रदूषण
(घ) वायु प्रदूषण।
उत्तर:
(घ) वायु प्रदूषण।

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

4. प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक उत्तरदायी है
(क) प्रवास के लिए
(ख) भू-निम्नीकरण के लिए
(ग) गंदी बस्तियां
(घ) वायु प्रदूषण।
उत्तर:
(क) प्रवास के लिए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दोप्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषण और प्रदूषक में क्या भेद है?
उत्तर:
प्रदूषण से अभिप्राय वायु, भूमि तथा जल साधनों का अवनयन तथा हानिकारक बनना है। प्रदूषक उन पदार्थों को कहते हैं जो वातावरण में प्रदूषण फैलाते हैं।

प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं:
(क) प्राकृतिक स्त्रोत जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि।
(ख) मानवकृत स्रोत-जैसे कारखाने, नगर-केन्द्र, मोटर वाहन, वायुयान, उर्वरक, पीड़क जीवनाशी, ताप बिजली घर।

प्रश्न 3.
भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख करो।
उत्तर:
नगरीय अपशिष्ट (ठोस पदार्थ) पर्यावरण प्रदूषण के हानिकारक स्रोत, नगरों में प्लास्टिक, कांच, पोलीथीन, रद्दी कागज़, राख व धातुओं कचरा की मात्रा में वृद्धि हो रही है। यह अपशिष्ट घरेलू, प्रतिष्ठानों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से प्राप्त हो रहा है। इससे बदबू, मक्खियां, बीमारियां तथा भौम जल पर प्रभाव पड़ता है। इससे टाइफाइड, गलघोंटू, दस्त, हैज़ा, बीमारियां फैलती हैं।

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प्रश्न 4.
मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
वायु प्रदूषण से फेफड़ों, स्नायु तन्त्र, हृदय और परिसंचरण तन्त्रों के रोग उत्पन्न होते हैं। खांसी और श्वास नली से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ती है। पर्यावरण में विषाक्त धुएं वाली गैसों की उत्सर्जन से मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
भारत में जल प्रदूषण की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलीय प्रदूषण (Water Pollution):
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा जलाशयों के जल में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जाएं जिनसे जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे जलीय प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण की समस्या ने दिल्ली, कोलकाता तथा मुम्बई जैसे बड़े एवं औद्योगिक नगरों में बहुत विकट रूप धारण कर लिया है। जलीय प्रदूषण केवल नदियों, तालाबों तथा झीलों के धरातलीय जल तक ही सीमित नहीं होता, अपितु यह समुद्री जल तथा भूमिगत जल में भी पाया जाता है। जलीय प्रदूषण के लिए निम्नलिखित मानवीय क्रियाएं उत्तरदायी होती हैं

  1. घरेलू मल (Domestic Sewage)
  2. औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ (Industrial Wastes)
  3. कृषि की प्रक्रियाएं (Agricultural Activities)
  4. तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution)

JAC Class 12 Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 2.
भारत में गन्दी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नगरों में जनसंख्या की अधिकता के कारण अनेक समस्याओं का विकास हो गया है जिनमें गन्दी बस्तियों तथा नगरीय कूड़ा-कर्कट की अधिकता और निपटान (disposal) सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

गन्दी बस्तियां (Slums): नगरों में जनसंख्या अधिक और स्थान कम होने के कारण आवासीय समस्या होती है। नगरीय क्षेत्रों में बहुमंज़िलें भवनों का निर्माण इसी समस्या का प्रतिफल है। प्रायः जब निर्धन लोग रोज़गार की तलाश में अपने गांवों को छोड़कर नगरों में आकर बसने लगते हैं तो नगरों में आवास बहुत महंगा तथा कम होने के कारण वे नगर के बाहर पड़ी भूमि पर झुग्गी-झोंपड़ियां बनाकर रहना आरम्भ कर देते हैं जिससे वहां गन्दी बस्तियों का विकास होने लगता है।

इन गन्दी बस्तियों में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक होता है और वहां जल तथा घरेलू मल के निकास के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती।  इन बस्तियों में रहने वाले लोग अत्यन्त ही निम्न स्तर का जीवन व्यतीत करते हैं। यद्यपि इन गन्दी बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए प्रशासन अनेक सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास करता है, तथापि ये आवासीय बस्तियां बहुत ही निम्न स्तर की होती हैं और प्रायः ये गन्दगी तथा बीमारियों के क्षेत्र ही होती हैं। भारत के लगभग सभी बड़े नगरों में ऐसी गन्दी बस्तियां (Slums) पाई जाती हैं।

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प्रश्न 3.
भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।
अथवा
‘भू-निम्नीकरण’ पर एक नोट लिखिए।
उत्तर:
भू-निम्नीकरण प्राकृतिक और मानवीय दोनों प्रकार के कारकों से होता है। वन विनाश, अतिचराई और भूमि का अनुचित उपयोग भी अपरदन की गति को तेज़ कर देते हैं। एक अनुमान के अनुसार देश की 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन की समस्याओं से पीड़ित है। केवल स्थानांतरी कृषि के कारण ही तीन करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन से प्रभावित है। अपरदन के अतिरिक्त, मृदा के लवणीकरण और जल भराव के निम्नलिखित कारण हैं- भूविज्ञान की दृष्टि से अनुपयुक्त क्षेत्रों में बांधों, जलाशयों, नहरों और तालाबों का निर्माण, नहरी सिंचाई का अत्यधिक उपयोग और अप्रवेश्य चट्टानों वाले क्षेत्रों में बाढ़ के पानी का रुख मोड़ना। इनके द्वारा भूमि की संभावित क्षमता घटती है।

अति सिंचाई के कारण देश के उत्तरी मैदानों में लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। सिंचाई मृदा की संरचना को भी बदल देती है। इनके अलावा रासायनिक उर्वरक, पीड़कनाशी, कीट-नाशी और शाक-नाशी मृदा के प्राकृतिक, भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों को नष्ट करके, मृदा को बेकार कर देते हैं। भू-निम्नीकरण को रोकने के लिए अपरदन को रोकने के उपाय किए जाएं। पहाड़ी ढलानों पर वनारोपण करके अति चराई को कम किया जाए। सिंचाई का उचित प्रयोग किया जाए। उर्वरक तथा कीटनाशकों का प्रयोग कम किया जाए।

भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ  JAC Class 12 Geography Notes

→ प्रदूषण के प्रकार (Types of Pollution):

  1. वायु प्रदूषण
  2. जल प्रदूषण
  3. भू-प्रदूषण
  4. ध्वनि प्रदूषण।

→ जल प्रदूषण (Water Pollution): जल प्रदूषण के दो स्रोत हैं प्राकृतिक, मानव जनित।

→ प्रदूषित नदियां (Polluted Rivers): गंगा तथा यमुना एवं अन्य।

→ ध्वनि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Noise Pollution): उद्योग, मशीनें, मोटर वाहन, वायुयान।

→ गन्दी बस्तियां (Slums): मुम्बई के निकट धारावी-एशिया की सबसे बड़ी गन्दी बस्ती है।

→ भू-निम्नीकरण (Land degradation): भू-निम्नीकरण के मुख्य कारण अपरदन, लवणता, भू-क्षारता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण के लिए ‘श्रीब्रजदूलह’ का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण ब्रह्म स्वरूप हैं और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला, प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
उत्तर :
(क) अनुप्रास –
(i) कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई
(ii) साँवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(v) जै जग – मंदिर-दीपक सुंदर।

(ख) रूपक –
(i) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके पाँव में पाजेब शोभा देती है, जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी मधुर धुन पैदा कर रही है। उनके साँवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते हैं। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभायान है। ब्रजभाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। वे रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हरियाली, नायिकाओं के झूले, परंपरागत रागों, राग-रंग आदि का बखान करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न होने वाले प्रेम और काम-भावों का वर्णन करते हैं। लेकिन इस कवित्त में कवि ने बसंत का बाल-रूप में चित्रण किया है, जो कामदेव का बालक है। सारी प्रकृति उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती दिखाई गई है, जैसा सामान्य जीवन में नवजात बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की कल्पनाशीलता और सुकुमार भाव प्रवणता का परिचय मिलता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’–इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
काव्य-रूढ़ि है कि सुबह-सवेरे जब कलियाँ फूलों के रूप में खिलती हैं, तो ‘चट्’ की ध्वनि करती हुई खिलती हैं। कवि ने इसी काव्य-रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालकरूपी बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह गुलाब के खिलते ही चटकने की ध्वनि उत्पन्न होती है। कवि ने इससे स्पष्ट किया है कि वे चुटकियाँ बजाकर बाल-बसंत को प्यार से जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों से देखा है?
उत्तर :
कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को स्फटिक की शिलाओं से बने सुधा मंदिर में प्रकट किया है, जो दही के समुद्र में उत्पन्न तरंगों के रूप में दिखाई देती है। वह दूध की झाग के समान सर्वत्र फैलकर अपनी सुंदरता को व्यक्त करती है। सारा आकाश उसकी आभा से जगमगाता है। चाँदनी रात में चाँदनी की तरह दमकती हुई राधा के प्रतिबिंब से ही चाँद सुंदर लगता है।

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प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
राधा का रूप अति सुंदर है; चाँदनी में नहाया हुआ उसका रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक उसकी अपनी नहीं है, बल्कि वह राधा के रूप को बिंबित कर रहा है। इसलिए वह इतना सुंदर है। इस पंक्ति में उपमा अलंकार है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर :
फटिक सिलानि, उदधि दधि, दूध को सो फेन, मोतिन की जोति, तारासी मल्लिका को मकरंद, आरसी से अंबर।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिनके काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई देती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती हैं –
1. शृंगारिकता – देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी शृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीतिकालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है –

तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

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2. भक्ति-भाव – देव चाहे शृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बँधने के कारण वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है –

माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

3. प्रकृति-चित्रण – देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति-चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है, बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहाँ सराहना करनी पड़ती है, जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है, जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है –

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छवि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावै, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी है।

4. कला-पक्ष-देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद

इन्होंने उपमा का भी अच्छा प्रयोग किया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक है।

रचना और अभिव्यक्ति – 

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर :
मेरा घर यमुना-किनारे से कुछ ही दूरी पर है। इसके आसपास का क्षेत्र हरे-भरे पेड़ों, सरकंडों और झाड़ियों से भरा हुआ है। पूर्णिमा की रात को सारा आकाश तो चाँदनी से जगमगाता ही है, पर यमुना नदी का पानी भी उससे जगमगाता-सा प्रतीत होता है। जब पानी की लहरें तेजी से आगे बढ़ती हैं, तो चाँद के चमकीले टुकड़े उन पर सवार उछलते-कूदते-से प्रतीत होते हैं। अँधेरी रातों में प्राय: न दिखाई देने वाले पेड़ चाँदनी में अपना काला रूप लिए दिखाई देते हैं। वे सुंदर नहीं लगते। वे कुछ-कुछ डरावने से प्रतीत होते हैं। चाँदनी रात में यमुना में तैरती कोई-कोई नौका बहुत सुंदर लगती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

पाठेतर सक्रियता – 

प्रश्न 1.
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
गरमी, सरदी, वर्षा, बसंत, हेमंत, शिशिर।

प्रश्न 2.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं ? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
विश्व भर में बड़ी तेज़ी से उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकालकर दिन-रात जलाया जा रहा है। इससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं, पर साथ-ही-साथ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।

इस तापमान वृद्धि का परिणाम ही है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ अर्थात ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है, जो हमारे भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र तटों पर बसे नगर डूबने लगेंगे।

द्वीप पूरी तरह समुद्र में समा जाएँगे। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियाँ बनाकर कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिकसे-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बढ़ें।

वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्युत का प्रयोग किया जाए। इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना-बद्ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें, जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे : इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

यह भी जानें –

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव साम्य के लिए पढ़ें –

सीस मुकुट कटि काछनि, कर मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल॥
– बिहारी

रीतिकालीन कविता की वसंत ऋतु का एक चित्रण यह भी देखिए –

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्ववारे में दिसान में दुनी में देस देसन में
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है।
– पदमाकर

JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
देव की कविता में शब्द भंडार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव शब्दों के कुशल शिल्पी हैं, जिन्होंने एक-एक शब्द को बड़ी कुशलता से तराशकर अपने शब्द भंडार को समृद्ध किया है। उनकी वर्ण-योजना में संगीतात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। भाव और वर्ण-विन्यास में संगति है। उनका एक-एक शब्द मोतियों की तरह कवित्त-सवैयों की जमीन पर सजाया गया है –

पाँयनि नूपुर मंजु बज, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई॥

कवि के पास अक्षय शब्द-भंडार है। भिन्न-भिन्न पर्याय और विशेषणों द्वारा देव ने भावों की विभिन्न छवियों को उतारा है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है –

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

कवि के शब्दों में तत्सम की अधिकता है। तद्भव शब्दावली का उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।

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प्रश्न 2.
पठित पदों के आधार पर देव के चाक्षुक बिंब विधान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देव के काव्य में सुंदर ढंग से बिंब योजनाएँ की गई हैं। इससे श्रृंगारपरक अंश खिल उठे हैं। चाक्षुक बिंब योजना ऐसी है कि श्रोता या पाठक की आँखों के सामने कवि के मन में उभरी रूप-छवि स्पष्ट उभर आती है –

(i) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
(ii) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

देव के बिंब विधान में संवेदनात्मक, अलंकरण और क्रमबद्धता के अतिरिक्त भावात्मक संबंध स्थापित करने की शक्ति है।

प्रश्न 3.
देव के कवित्त और सवैया की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
छंद में लयमान होना कविता की विशेषता है। इससे कविता की सुंदरता की रक्षा होती है। विभिन्न छंदों के प्रयोग से काव्य के भावों को गति दी जा सकती है। देव ने कवित्त और सवैया के प्रयोग से लय की उत्पत्ति की है। कवि ने श्रृंगारिक लय बनाने के लिए कवित्त छंद का अधिक प्रयोग किया है। सवैया से प्रसाद, गुण और ओज तीनों गुणों को सरलता से प्रस्तुत करने में उन्होंने सफलता पाई है।

प्रश्न 4.
पठित कविताओं को आधार बनाकर देव के सौंदर्य-निरूपण पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने अपने अधिकतर साहित्य की रचना सौंदर्य और श्रृंगार के आधार पर की है। उनकी कविता में सौंदर्य और श्रृंगार का पुराना रूप दिखाई देता है। उन्होंने इस क्षेत्र में नई कल्पनाएँ नहीं की थीं। उन्होंने परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया था।

उन्होंने श्रीकृष्ण की सुंदरता सामंती प्रवृत्ति के आधार पर की है।

पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

राधा अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके सौंदर्य के सामने सारे नर-नारी पानी भरते हैं। चाँद भी उसकी सुंदरता का बिंब मात्र है –

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

चाँदनी के रंग वाली वह स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

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प्रश्न 5.
चाँदनी रात के उस रूप का वर्णन कीजिए, जिसे कवि ने अपने कवित्त में वर्णित किया है।
उत्तर :
चाँदनी रात सुंदरता की पर्याय है, जिसकी आभा ने सारे संसार को सुंदरता प्रदान की है। स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन जगमगा उठता है और दही रूपी सागर की तरंगें अपार मात्रा में उमड़ जाती हैं। दूध की झाग-सी चाँदनी इस प्रकार सब ओर फैल जाती है कि बाहर-भीतर की दीवारें तक दिखाई नहीं देतीं। आँगन और फ़र्श चाँदनी-से नहा उठते हैं। तारे-सी सुंदर राधा चाँदनी में झिलमिलाती हुई ऐसी प्रतीत होती है, जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हो। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में चाँदनी फैल जाती है। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप है।

प्रश्न 6.
देव ने मदन महीप बालक किसे और क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि देव ने मदन महीप बालक वसंत ऋतु को कहा है। वह वसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में देखता है, क्योंकि वसंत के आगमन पर ही सारी प्रकृति हरियाली से युक्त हो जाती है। रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं। मंद-मंद सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं। पंक्षी चहचहाने लगते हैं। यही कारण है कि कवि देव ने वसंत को मदन महीप बालक कहा है।

प्रश्न 7.
कवि ने किस कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है और कैसे?
उत्तर :
कवि ने दूसरे कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है। प्रकृति की मनोरम छटा का सहारा लेकर कवि ने रासलीला का सुंदर शब्द-चित्र सजाया है। उन्होंने महारास की कल्पना करते हुए चाँदनी रात को देखा है। वह कल्पना करते हैं, मानो दूर आकाश में स्फटिक शिलाओं से एक सुधा-मंदिर बना हुआ है। उस आकाश का फर्श एक दम पारदर्शी है। वह दूध के झाग के समान उज्ज्वल है। तारों के समान राधा की सखियों का झिलमिलाना रास है। चंद्रमा का प्रकाश भी राधा की परछाईं के समान ही प्रतीत होता है।

प्रश्न 8.
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर :
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय शृंगार है। उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। उन्होंने शृगार रस के दोनों पक्षों का भली-भाँति प्रयोग किया है। संयोग शृंगार को रचने में उनका मन अधिक रमता हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने वैराग्य तथा भक्ति-भाव का भी सफल चित्रण किया है।

प्रश्न 9.
देव की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
देव रीतिकाल के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके जीवन में भक्ति का प्रवेश शीघ्र हो गया था। उन्होंने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर सहज वर्णन किया है। उन्होंने शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन माना है। उनके काव्य में भक्ति के साथ-साथ दार्शनिकता के दर्शन भी बार-बार होते हैं।

प्रश्न 10.
देव के काव्यशिल्प पर विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
देव का काव्यशिल्प उनके भावपक्ष के अनुसार ही अत्यंत समृद्ध है। उनकी भाषा में सहजता तथा सरलता है। उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-धारा प्रवाहित की है। उनकी ब्रजभाषा में सर्वत्र स्वच्छता, एकरूपता विद्यमान है। इसी कारण इनकी भाषा में भावों के अनुकूल चलने की अद्भुत क्षमता है। उन्होंने प्रायः ठेठ ब्रजभाषा के शब्दों का ही अधिक प्रयोग किया है। उनकी भाण की प्रकृति साफ-सुथरी और अत्यंत निखरी है। देव का भाषा पर इतना अधिकार दिखाई पड़ता है कि वह कवि के इशारे पर नाचती है।

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प्रश्न 11.
कवि देव ने पठित छंदों में प्रकृति का मानवीकरण किस प्रकार किया है?
उत्तर :
कवि देव ने प्रकृति को एक बालक के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने ऋतुराज वसंत को कामदेव के पुत्र के समान माना है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक स्थानों पर कवि ने बड़ी सहजता के साथ प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे हवा बालक वसंत का पालना झुलाती है; तोते बालक से बातें करते हैं; वसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई आदि।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

सवैया –

1. पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सुहाई॥

शब्दार्थ : पाँयनि – पाँवों में। नूपुर – पायल, पाजेब। मंजु – सुंदर। कटि – कमर। किंकिनि – करधनि। लसै – शोभा देता है। पट – वस्त्र। पीत – पीला। हिये – छाती, हृदय। हुलसै – आनंदित होना। बनमाल – फूलों की माला। सुहाई – शोभा देती है। किरीट – मुकुट। दृग – आँखें। मंद – धीमी। मुखचंद – चंद्र के समान मुख। जुन्हाई – चाँदनी।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित किया गया है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के बालरूप की अद्भुत सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि श्रीकृष्ण के पाँव में पाजेब है, जो उनके चलने पर अत्यंत सुंदर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी है, जो मीठी धुन पैदा करती है। उनके साँवले-सलोने अंगों पर पीले रंग के वस्त्र शोभा दे रहे हैं। उनकी छाती पर फूलों की माला शोभा देती हुई मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। उनके माथे पर मुकुट है और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें हैं, जो चंचलता से भरी हैं। उनकी मंद-मंद हँसी उनके चाँद जैसे सुंदर चेहरे पर चाँदनी की तरह फैली हुई है। संसाररूपी इस मंदिर में दीपक के समान जगमगाते हुए अति सुंदर श्रीकृष्ण की जय-जयकार हो। कवि कहता है कि जीवन में सदा श्रीकृष्ण सहायता करते रहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में क्या है?
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी किस वस्तु के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है?
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र किस रंग के हैं?
5. उनके गले की शोभा को किसने बढ़ाया है?
6. श्रीकृष्ण की आँखों की सुंदरता को स्पष्ट कीजिए।
7. कवि को बालक कृष्ण के चेहरे पर मुस्कान कैसी प्रतीत हो रही है?
8. कवि ने किसकी जय-जयकार की है?
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा किससे बढ़ी है?
उत्तर :
1. कवि ने पद में श्रीकृष्ण के बालरूप की सुंदरता को प्रस्तुत किया है। साँवले रंग के श्रीकृष्ण पीले रंग के वस्त्रों में सजे हुए अति सुंदर लगते हैं। उनके गले में माला है; पाँव में पाजेब है और कमर में करधनी शोभा दे रही है। उनके माथे पर मुकुट है और चेहरे पर चाँदनी के समान मुस्कान फैली हुई है।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में पायल है।
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी करधनी के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है।
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र पीले रंग के हैं।
5. उनके गले की शोभा को ‘बनमाल’ अर्थात फूलों की माला ने बढ़ाया है।
6. श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी और चंचलता से भरी हुई हैं।
7. कवि को श्रीकृष्ण के चेहरे पर फैली मुस्कान चाँदनी के समान प्रतीत हो रही है।
8. कवि ने श्रीकृष्ण की जय-जयकार की है।
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा मुकुट के कारण बढ़ी है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस रूपक के माध्यम से श्रीकृष्ण से अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर किसका सौंदर्य चित्रण किया है?
5. किस शब्द में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया है ?
6. सवैया में बिंब किस प्रकार है?
7. किस छंद का प्रयोग किया है ?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस प्रकार हुई है?
9. किस शब्दशक्ति के प्रयोग से कवि ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है?
10. किस शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. कवि ने किस काव्य गुण का प्रयोग किया है?
12. पद में निहित अलंकार-योजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने श्रीकृष्ण की सुंदरता का चित्रण किया है और संसाररूपी इस मंदिर में सदा अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है।
2. ब्रजभाषा का सहज व सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया है।
5. ‘जग-मंदिर-दीपक’ में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
6. चाक्षुक बिंब।
7. सवैया छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
10. ‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. माधुर्य गुण।
12. रूपक –

  • मुखचंद
  • मंद हँसी जुन्हाई
  • जग-मंदिर-दीपक

अनुप्रास –

  • हिये हुलसै
  • कटि किंकिनि
  • पट पीत
  • मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
  • जै जग-मंदिर
  • कवित्त

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2. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

शब्दार्थ : डार – डाली, टहनी, डालकर। द्रुम – पेड़। पलना – बच्चों का झूला। नव पल्लव – नए पत्ते। सुमन – फूल। झिंगूला – झबला, ढीला-ढाला – वस्त्र। तन – शरीर। छबि – शोभा। पवन – हवा। केकी – मोर। कीर – तोता। कोकिल – कोयल। हलावे – हिलाती है। हुलसावै – खुश करती है। कर – हाथ। तारी – ताली। उतारो करै राई नोन – जिस बच्चे को नज़र लगी हो उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने का टोटका। कंजकली – कमल की कली। लतान – बेलें। सारी – साड़ी। मदन – कामदेव। महीप – राजा। प्रातहि – सुबह-सुबह। चटकारी – चुटकी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है, जिसके रचयिता रीतिकालीन कवि देव हैं। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि बसंत एक नन्हे बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पत्तों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उसके शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धजकर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाज़ों में उससे बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है।

कमल की कलीरूपी नायिका सिर पर लतारूपी साड़ी से सिर ढाँपकर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नज़र उतार रही है। बालक बसंत को दूसरों की बुरी नज़र से बचाने के लिए वह वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है, जिसे प्रातः होते ही गुलाब चुटकियाँ बजाकर जगाते हैं। गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है, तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवित्त में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बालक बसंत का बिछौना किससे बना है?
3. बसंत कैसे वस्त्र पहने हुए है?
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य कौन कर रहा है?
5. कोयल क्या कर रही है?
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने अपना सिर किससे ढाँपा और उसने क्या किया?
7. बसंत किसकी संतान है?
8. प्रातः होते ही बसंत को गुलाब किस प्रकार जगाते हैं ?
9. बसंत की नज़र किससे उतारी गई ?
उत्तर :
1. देव द्वारा रचित कवित्त में प्रकृति के मानवीकरण रूप को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कवि के अनुसार बसंत का बालक के रूप में जन्म हुआ है, जिसकी सेवा-सुश्रुषा में सारी प्रकृति जी-जान से जुट गई है। पत्तों के बिछौने पर हवा उसे झुलाती है और फूलों ने उसे वस्त्र प्रदान किए हैं। मोर और तोते उससे बातें करते हैं, तो कोयल तालियाँ बजा-बजाकर प्रसन्न होती है। कमल की कली उसे लगी नज़र को दूर करने के लिए टोटका करती है और गुलाब के फूल चटक-चटककर उसे सुबह जगाने का कार्य करते हैं। कामदेव के बालक की सेवा में सारी प्रकृति पूरी तरह से लगी हुई है।
2. बसंतरूपी बालक का बिछौना पेड़-पौधों के नए-नए कोमल पत्तों से बना हुआ है।
3. बसंत ने फूलों से बना ढीला-ढाला झबला पहना हुआ है।
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य हवा कर रही है।
5. कोयल झूले को हिलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता को प्रकट करती है।
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने बेल से अपने सिर को ढाँपा और पराग-कणों से बसंत को लगी नज़र का टोटका पूरा किया।
7. बसंत कामदेव की संतान है।
8. प्रातः होते ही गुलाब चटक-चटककर बसंत को जगाते हैं।
9. बसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके जन्म के अवसर पर प्रकृति में परिवर्तन चित्रित किए हैं।
2. प्रकृति का चित्रण किस रूप में किया गया है?
3. किस भाषा की योजना की गई है?
4. पद में किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. किस प्रकार की शब्द-योजना की गई है?
6. बिंब योजना किस प्रकार की है?
7. पद में किस छंद का प्रयोग है?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
9. भाषा को कोमल बनाने के लिए किन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है?
10. पद में कौन-सा काव्य गुण विद्यमान है?
11. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने कामदेव के बालक बसंत के जन्म के अवसर पर सारी प्रकृति में दिखाई देने वाले परिवर्तनों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
2. प्रकृति का मानवीकरण रूप में चित्रण किया गया है।
3. ब्रजभाषा के कोमल कांत शब्द अति स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त किए हैं।
4. वात्सल्य रस।
5. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
6. चाक्षुक बिंब है। गतिशील बिंब योजना की गई है।
7. कवित्त छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. डार, तारी।
10. माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
11. अनुप्रास – हलावै-हुलसावै, सिर सारी, मदन महीप, केकी कीर, बालक बसंत, पुरित पराग
रूपक – मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि, प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।

3. फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

शब्दार्थ : फटिक – स्फटिक। सिलानि – शिलाएँ, चट्टानें। सुधा – अमृत। उदधि – समुद्र। दधि – दही। अमंद – जो कम न हो, बहुत अधिक। उमगे – उमड़ना। फेन – झाग। आँगन – अहाता। फरस बंद – फ़र्श के रूप में बना हुआ ऊँचा स्थान। तरुनि – युवती। तामें – उसमें। ठाढ़ी – खड़ी। भीति – दीवार। मल्लिका – बेले की जाति का एक सफ़ेद फूल। मकरंद – पराग, फूलों का रस। आरसी – दर्पण, आईना। अंबर – आकाश। प्रतिबिंब – परछाईं। लगत – लगता है।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है। इसमें कवि ने चाँदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उसमें दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रहीं। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे आँगन और फ़र्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है, जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना किससे की गई है?
3. भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
4. भवन में बाहर से भीतर तक दीवारें क्यों नहीं दिखाई देतीं?
5. आँगन और फ़र्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई है?
6. युवती कैसी प्रतीत हो रही है ?
7. राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई है?
8. आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
9. चंद्रमा कैसा प्रतीत होता है?
उत्तर :
1. महाकवि देव ने चाँदनी रात की आभा के माध्यम से राधा की अपार सुंदरता को प्रस्तुत किया है। उसकी सुंदरता से ही चाँद ने सुंदरता प्राप्त की है। चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है, जिसने सारे भवन को उज्ज्वलता प्रदान कर दी है।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना स्फटिक की शिलाओं से की गई है।
3. भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।
4. भवन स्फटिक का बना है और चाँदनी की उज्ज्वलता का प्रसार ऐसा है कि बाहर से भीतर तक की दीवारें दिखाई नहीं देती।
5. आँगन और फ़र्श पर दूध की झाग-सी उज्ज्वलता चाँदनी के रूप में फैली हुई है।
6. युवती तारे-सी दिखाई दे रही है।
7. राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुंगध मिली हुई है।
8. चाँदनी रात में आकाश आईने के समान साफ़-स्वच्छ और उज्ज्वलता से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
9. चंद्रमा राधा की उज्ज्वलता और सुंदरता से प्रतिबिंबित होता हुआ दिखाई दे रहा है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके माध्यम से राधा की सुंदरता की प्रशंसा की है?
2. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
3. कौन-सा काव्य-गुण प्रयोग किया गया है?
4. कवि ने किस भाषा में अपने भाव व्यक्त किए हैं ?
5. किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. कौन-सा काव्य-रस प्रधान है?
7. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने चाँदनी के माध्यम से राधा की सुंदरता का अद्भुत वर्णन किया है।
2. कवित्त छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
3. माधुर्य गुण विद्यमान है।
4. ब्रजभाषा।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. शृंगार रस विद्यमान है।
7. रूपक –
उदधि दहि

अनुप्रास –

  • सिलानि सौं सुधार्यो सुधा
  • फेन फैल्यो
  • तारा सी तरुनि तामें
  • मिल्यो मल्लिका को मकरंद

उत्प्रेक्षा –
फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर

व्यतिरेक –
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद

उपमा –

  • दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद,
  • तारा-सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
  • आरसी से अंबर में
  • आभा सी उजारी लगै

सवैया और कवित्त Summary in Hindi

कवि-परिचय :

देव रीतिकाल के कवि थे। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में सन 1673 में हुआ था। यह देवसरिया ब्राह्मण थे। इन्होंने स्वयं अपने बारे में लिखा है-‘योसरिया कवि देव को, नगर इटावौ वास’। इन्हें अपने जीवनकाल में आश्रय के लिए अनेक आश्रयदाताओं के पास भटकना पड़ा। ये कुछ समय के लिए औरंगज़ेब के पुत्र आजमशाह के दरबार में भी रहे थे, पर इन्हें जितना संतोष और सुख भोगीलाल नामक आश्रयदाता से प्राप्त हुआ, उतना किसी और से नहीं मिल सका। इनका देहांत सन 1767 में हुआ था।

रचनाएँ-देव के द्वारा रचित ग्रंथों की निश्चित संख्या अभी तक ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वानों ने इनके ग्रंथों की संख्या 52 मानी है, तो किसी ने 72 तक स्वीकार की है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनकी संख्या 25 मानी है। इनके ग्रंथों की संख्या की अनिश्चितता का कारण यह है कि ये अपनी पुरानी रचनाओं में ही थोड़ा-बहुत हेर-फेर करके नया ग्रंथ तैयार कर देते थे।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-भावविलास, रसविलास, काव्यरसायन, भवानीविलास, अष्टयाम, प्रेम तरंग, सुखसागर-तरंग, देव चरित्र, देव माया प्रपंच, शिवाष्टक, शब्द रसायन, देव शतक, प्रेम चंद्रिका आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-देव की कविता का प्रमुख विषय शृंगार था। इन्होंने प्रायः राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने संयोग श्रृंगार की रचना अधिक की है। वियोग श्रृंगार में इन्होंने विभिन्न भाव दशाओं का वर्णन किया है। देव ने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर वर्णन किया है।

ये शरीर और शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन मानते थे। इस संसार में कोई भी मौत से बच नहीं सकता, इसलिए इसकी क्षणभंगुरता देखकर इनके हृदय में इसके प्रति ग्लानि उत्पन्न होती है। देव ने आचार्य-कर्म को पूरा किया था और ‘शब्द रसायन’ के द्वारा काव्य की विभिन्न विशेषताओं का चित्रण किया था। इनके काव्य में दार्शनिकता के बार-बार दर्शन होते हैं।

ये ब्रह्म को एक और सर्वव्यापक मानते हैं। उसका न तो आरंभ है और न ही अंत; वह निर्गुण भी है और सगुण भी; वह अनंत, नित्य, सत्य और शाश्वत है। उसका वर्णन वेद भी नहीं कर सकते –

पै अपने ही गुन बंधे, माया को उपजाइ।
ज्यों मकरी अपने गुननि, उरझि-उरझि मुरझाई॥

देव के काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण है। इनकी कविता में दरबारी संस्कृति का अधिक चित्रण हुआ है। इनकी कविता में दरबारों, आश्रयदाताओं की प्रशंसा भी की गई है। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य के सहज चित्र खींचे हैं। देव ने अपनी कविता ब्रजभाषा में रची थी। इन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह था। इन्होंने शब्द-शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। छंद-योजना में लय और तुक का उन्होंने विशेष ध्यान रखा है। इनकी कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। देव वास्तव में बहुत अच्छे भाषा शिल्पी थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

कवित्त-सवैयों का सार :

देव के द्वारा रचित कवित्त-सवैयों में जहाँ एक ओर रूप-सुंदरता का अलंकारिक चित्रण किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रेम और प्रकृति के प्रति मनोरम भाव अभिव्यक्त किए गए हैं। पहले सवैये में श्रीकृष्ण के सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इसमें उनका लौकिक रूप नहीं, बल्कि सामंती वैभव दिखाया गया है। उनके पाँवों में नूपुर मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं और कमर में बँधी करधनी मीठी धुन-सी पैदा करती है। उनके साँवले रंग पर पीले वस्त्र और गले में फूलों की माला शोभा देती है।

उनके माथे पर सुंदर मुकुट है और चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान चाँदनी के समान बिखरी हुई है। इस संसाररूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है। दूसरे कवित्त में बसंत को बालक के रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा गया है। बालकरूपी बसंत पेड़ों के नए-नए पत्तों के पलने पर झूलता है और तरह- : तरह के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढाले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झुलाती है, तो मोर और तोते उससे बातें करते हैं। कोयल उसे बहलाती है।

कमल की कलीरूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव के बालक बसंत को सुबह-सवेरे गुलाब चुटकी दे-देकर जगाते है। तीसरे कवित्त में पूर्णिमा की रात में चाँद तारों से भरे आकाश की शोभा का वर्णन किया गया है। चाँदनी रात की शोभा को दर्शाने के लिए कवि ने दूध में फेन जैसे पारदर्शी बिंबों का प्रयोग किया है। चाँदनी बाहर से भीतर तक सर्वत्र फैली है। तारे की तरह झिलमिलाती । राधा अनूठी दिखाई देती है। उसके शरीर का अंग-प्रत्यंग अद्भुत छटा से युक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। तब लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने का कारण बताते हुए कहा था कि वह धनुष नहीं, बल्कि धनुही थी। यह बहुत पुराना था और राम के द्वारा हते ही टूट गया था। इसमें राम का कोई दोष नहीं है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
राम और लक्ष्मण दोनों एक ही पिता की संतान थे। उन्होंने एक ही गुरु से शिक्षा पाई थी और एक-से वातावरण में रहे थे लेकिन फिर भी दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। राम स्वभाव से शांत थे, पर लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। धनुष टूट जाने पर राम ने शांत भाव से परशुराम से कहा था कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया, तो लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी से उन्हें उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परशुराम के क्रोध करने पर राम शांत भाव से बैठे थे, पर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें उकसाते रहे। राम ऋषि-मुनियों का आदर-सम्मान करने वाले थे, पर लक्ष्मण का स्वभाव ऐसा नहीं था। लक्ष्मण की वाणी परशुरामरूपी यज्ञ की अग्नि में आहुति के समान थी, तो राम की वाणी शीतल जल के समान उस अग्नि को शांत करने वाली थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर :
लक्ष्मण (मुसकराते हुए) – मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! क्या आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? बार-बार मुझे अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं ? क्यों आप अपनी फॅक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं?
परशुराम (गुस्से में भरकर) – लक्ष्मण! अपने शब्दों को रोक लो। अन्यथा यह फरसा रक्त चखने के लिए व्यग्र है।
लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से) – मुनिवर ! मैं कुम्हड़े का फूल नाहीं हूँ, जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा।
मैंने तो आपके फरसे और धनुष – बाण को देखकर समझा था कि आप कोई क्षत्रिय है। इसलिए अभिमानपूर्वक मैंने आपसे कुछ कह दिया था।
परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए) – हे दुःसाहसी। मैंने कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया है।
लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए) – अरे ! आप तो ब्राह्मण हैं। आपके गले में यज्ञोपवीत भी है। मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा करें। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) – मूर्ख! मेरे फरसे को धार तुम्हारा मस्तक काटने के लिए व्याकुल है। संभल जा, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रह।

लक्ष्मण-ब्राहमण देवता! यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके पैरों में ही पड़ेगा। मुनिवर! आपकी बात ही अनूठी है।
आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वनों के समान है। बताइए कि फिर आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और फरसा क्यों धारण कर रखा है? आपको इन सबकी क्या जरूरत है? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है, कृपया उसके लिए मुझे क्षमा करें।

परशराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए? बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥ भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं; स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

उन्होंने अपने फरसे से लक्ष्मण को डराने के लिए कहा कि अरे राजा के बालक ! तू मेरे द्वारा मारा जाएगा। क्यों अपने माता-पिता को चिंता में डालता है? वे मानते थे कि उनका फ़रसा बड़ा भयानक है, जो गर्भ में ही बच्चों का नाश कर देने वाला है। गुस्सा आने पर वे छोटे-बड़े में कोई अंतर नहीं करते; वे किसी का भी वध कर देते हैं।

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
अथवा
लक्ष्मण ने शूरवीरों के क्या गुण बताए हैं?
उत्तर :
लक्ष्मण ने बीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा कि वे व्यर्थं अपनी वीरता की डोंमें नहीं हाँकते बल्कि युद्ध-भूमि में युद्ध करते हैं; अपने अस्त्र-शस्त्रों से वीरता के जौहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं, वे कायर होते हैं।

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प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
विनम्रता सदा साहसियों और शक्तिशालियों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्न होना उसका गुण नहीं होता बल्कि उसकी मजबूरी होती है। वह किसी का क्या बिगाड़ सकता है? लेकिन कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके जब दोन-दुखियों के प्रति विनम्नता का भाव प्रकट करता है, तो सारे समाज में सम्मान प्राप्त करता है। तुलसीदास ने कहा भी है-‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ तथा ‘पर पीड़ा सम नहि अधमाई’। साहस और धैर्य मन में उत्पन्न होने वाले वे भाव हैं, जो शक्ति को पाकर विपरीत स्थितियों में मानव को विचलित होने से रोक लेते हैं।

साहस और धैर्य ‘असमय के सखा’ हैं, जिन्हें शक्ति की सहायता से बनाकर रखा जाना चाहिए पर उसके साथ विनम्रता का बना रहना आवश्यक है। बिनम्न व्यक्ति ही किसी के साथ होने : वाले अन्याय के विरोध में खड़ा हो सकने का साहस करता है। भगवान विष्णु को जब भृगु ने ठोकर मारी थी और उन्होंने साहस व शक्ति होने के बावजूद विनम्नता का प्रदर्शन किया था, तभी उन्हें देवों में से सबसे बड़ा मान लिया गया था।

समाज में सदा से माना गया है कि अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुण दृष्टि से जिसका हृदय नहीं पसीजा, भूखे व्यक्ति को अपने खाली पेट पर हाथ फिराते देखकर जिसने अपने सामने रखा भोजन उसे नहीं दे दिया, अपने पड़ोसी के घर में लगी आग को देखकर उसे बुझाने के लिए वह उसमें कूद नहीं पड़ा-बह मनुष्य न होकर पशु है, क्योंकि साहस और शक्ति होते हुए अन्याय का प्रतिकार न करना कायरता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता मानव का सदा हित करती है। गुरु नानक देव ने कहा भी है –

जो प्राणी ममता तजे, लोभ, मोह, अहंकार
कह नानक आपन तरे, औरन लेत उबार।

साहस और शक्ति अनेक प्राणियों में होती है, पर विनम्रता के अभाव के कारण वे कभी भी समाज में प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते। जब हमारे हृदय में विनम्रता का भाव होता है, तभी हम स्वयं को भुलाकर दूसरों के कष्टों को कम करने की बात सोचते हैं। सच्ची मनुष्यता इसी बात में छिपी हुई है कि मनुष्य साहस और शक्ति होने के साथ विनम्रता को हमेशा महत्त्व दें।

भगवान शिव इसलिए पूजनीय है कि उन्होंने साहस और शक्ति से संपन्न होते हुए विनम्रता का परिचय दिया था। उन्होंने विषपान कर देवताओं और दानवों की रक्षा की थी। भर्तृहरि ने राक्षस और मनुष्य का अंतर विनम्रता के आधार पर ही किया है। जो विनम्र है, वही महापुरुष है और जो अपने साहस व शक्ति को स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है, वहीं राक्षस है। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है –

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे।
मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

वास्तव में साहस और शक्ति के साथ विनम्नता ही मानव को मानव बनाती है।

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प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोड नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
(ग) गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न जखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
उत्तर :
(क) इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं कि वीर वह होता है, जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हाँके। जब परशुराम ने यह कहा कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटाकर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था, तब लक्ष्मण ने मुसकराकर कहा कि मुनीश्वर !

आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं और बार-बार कुल्हाड़ी दिखाकर डराना चाहते हैं। आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते हैं। भाब है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय बीर नहीं थे, जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।

(ख) कवि ने यहाँ परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूनि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी उक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की ओर तर्जनी का संकेत करने से बह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे, जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शास्त्र और फरसे को देखकर कहा था।

विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट कहीं जाने वाली उनकी वीरता संबंधी बातों को सुनकर मन-ही-मन कहा था कि मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे सामान्य क्षत्रियों को युद्ध में हराते रहे हैं, इसलिए उन्हें लगने लगा है कि वे राम-लक्ष्मण को भी युद्ध में आसानी से हरा देंगे। पर वे यह नहीं समझ पा रहे, कि ये दोनों साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने से बनी खाँड के समान नहीं, बल्कि फौलाद के बने खाँडे के समान हैं। मुनि व्यर्थ में बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को नहीं समझ पा रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर :
“तुलसीदास ने अवधी भाषा के लोकप्रिय और परिनिष्ठित रूप को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्याकरण के नियमों का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है। उनकी भाषा में कहीं भी शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनको वाक्य-रचना पूर्ण रूप से निर्दोष है। उन्होंने शब्द प्रयोग में उदार नीति का परिचय दिया है, जिसमें तत्सम तद्भव शब्दावली के साथ देशी शब्दों का भी प्रयोग दिखाई देता है। लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण उनकी भाषा सजीव, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली बन गई है।

गोस्वामी जी ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। रस की अनुकूलता के अतिरिक्त उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किस स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया जाए। उनकी भाषा सर्वत्र भावों और विचारों की सफल अभिव्यक्ति में समर्थ दिखाई देती है। गुण के सहारे रस की अभिव्यक्ति करने में उन्होंने सफलता पाई है। उनकी भाषा की वर्ण मैत्री दर्शनीय है। उन्होंने नाद सौंदर्य का पूरा ध्यान रखा है। बास्तब में भाषा पर जैसा अधिकार तुलसीदास का है, वैसा किसी और हिंदी कवि का नहीं है।

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प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
तुलसीदास हिंदी के श्रेष्ठतम भक्त कवियों में से एक हैं, जिन्होंने गंभीरतम दार्शनिक काव्य लिखने के साथ-साथ व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में उन्होंने लक्ष्मण के माध्यम से मुनि परशुराम की करनी और कथनी पर कटाक्ष करते हुए व्यंग्य को सहज सुंदर अभिव्यक्ति की है। लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहकर परशुराम के अहं को चुनौती दी थी। उन्होंने व्यंग्य भरी वाणी में कहा –

(i) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू॥

(ii) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥

लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए परशुराम से कहा कि वे जो चाहते हैं, वह कह देना चाहिए। उन्हें क्रोध रोककर असह्य दुख नहीं सहना : चाहिए। परशुराम तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार बुलाते थे। भला इस संसार में ऐसा कौन था, जो उनके शील को नहीं जानता था। वे संसार में प्रसिद्ध थे। लक्ष्मण कहते हैं कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके थे; अब उन्हें अपने गुरु के ऋण से : भी मुक्त हो जाना चाहिए।

सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।

वास्तव में तुलसीदास ने परशुराम के स्वभाव और उनके कश्चन के ढंग पर व्यंग्य कर अनूठे सौंदर्य की प्रस्तुति की है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए –
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा। बार-बार मोहि लागि बोलाया।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा, अनुप्रास
(ग) उत्प्रेक्षा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास
(घ) उपमा, रूपक

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रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दुसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
पक्ष में – वास्तव में हमारे सामाजिक जीवन में क्रोध की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे. तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर न कर पाए और सदा के लिए घुट-घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुखों-दुखों से मिलकर बनता है। हमें प्राय: दुख अपनों से ही नहीं बल्कि बाहर वालों से मिलते हैं। उस पीड़ा को तभी दूर किया जा सकता है, जब हम अपने मन में छिपे भावों को क्रोध प्रकट करके निकालते हैं।

जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता और जीवन में सकारात्मकता हूँढना चाहता है, लोग उसे कमजोर और कायर मानने लगते हैं। छोटे बच्चे भी क्रोध को रोकर या दुख प्रकर कर व्यक्त करते हैं। बिना दुखा के क्रोध उत्पन्न हो नहीं होता। क्रोध में सदा बदले की भावना छिपी हुई नहीं होती, बल्कि इसमें स्वरक्षा की भावना भी मिली होती है। यदि कोई हमें दो-चार टेढ़ी बातें कह जाए, तो उस दुख से बचने के लिए आवश्यक है कि क्रोध करके उसे बतला दिया जाए कि उसका स्थान कौन-सा है और कहाँ है? क्रोध दूसरों में भय को उत्पन्न करता है। जिस पर क्रोध प्रकट किया जाता है, यदि वह डर जाता है तो नम्र होकर पश्चात्ताप करने लगता है। इससे क्षमा का अवसर सामने आता है।

विपक्ष में – क्रोध एक मनोविकार है, जो दुख के कारण उत्पन्न होता है। प्रायः लोग अपनों पर अधिक क्रोध करते हैं। एक शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने के बाद जान जाता है कि उसे भोजन उसी से प्राप्त होगा। तब भूखा होने पर वह उसे देखते ही रोने लगता है और अपने क्रोध का आभास दे देता है। क्रोध चिड़चिड़ाहट को उत्पन्न करता है।

प्रायः क्रोध करने वाला उस तरफ़ देखता है, जिधर वह क्रोध करता है। क्रोध से क्रोध ही उत्पन्न होता है। क्रोध न करने वाला व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक पर नियंत्रण रखता है, जिस कारण वह अनेक अनर्थों से बच जाता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी आदि जैसे महापुरुषों ने अपने क्रोध पर विजय पाकर संसार भर में अपना नाम अमर कर लिया। क्रोध से बचकर हम अपना आत्मिक बल बढ़ा सकते हैं और आंतरिक शक्तियों को अनुकूल कार्यों की ओर लगा सकते हैं।

बाल्मीकि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर आदिकवि होने का यश प्राप्त कर लिया था। क्रोध पर नियंत्रण पाकर वैर से बचा जा सकता है। अतः जहाँ तक संभव हो सके, मनुष्य को क्रोध से बचकर जीवन जीना चाहिए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?
उत्तर :
परशुराम के समान किए जाने वाले क्रोध से तो सामने वाले के हृदय में भी क्रोध का भाव ही भरेगा, जिससे क्लेश-भाव बढ़ेगा और समस्या बढ़ जाएगी। लक्ष्मण के समान व्यंग्य-बाणों का लगातार उपयोग भी सामने वाले व्यक्ति को भड़काएगा, जिससे उसका गुस्सा बढ़ेगा। विनय का भाव और संयत व्यवहार किसी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शांत कर देने की क्षमता रखता है। इसलिए ऐसी परिस्थिति में श्रीराम के समान विनयपूर्वक और संयत व्यवहार करूँगा।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
मेरे एक परिचित हैं-डॉ. सिंगला। उनका नर्सिंग होम मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। उनका घर भी नर्सिंग होम का ही एक हिस्सा है, जो उनके रोगियों के लिए बहुत उपयुक्त है। किसी भी आपातकाल में वे उनके पास मिनट में पहुँच सकते हैं। मेरे परिचित बहुत साफ-सुधरे रहते हैं। साफ़-सफाई उनके हर काम में दिखाई देती है।

चमचमाते फर्श, साफ-सुथरी दीवारें चुस्त कर्मचारी उनके नर्सिंग होम की पहचान है, जिसमें डॉ. सिंगला के स्वभाव की पहचान साफ़ झलकती है। वे मृदुभाषी हैं। उनके रोगियों का आधा रोग तो उनसे बातचीत करके ही दूर हो जाता है। उन्हें पेड़-पौधे लगाने का शौक है। रंग-बिरंगे फूल, झाड़ियाँ और बेलें उनके घर में महकती रहती हैं। अपने व्यस्त समय में से वे कुछ घड़ियाँ इनके लिए निकाल लेते हैं।

वे बहुत मिलनसार हैं। नगर के बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे, जो उन्हें जानते-पहचानते न हों। वे अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर समाज-सेवा के कार्यों में सहयोग दे रहे हैं। वे सभी के सुख-दुख में सहायता करने के लिए सदा तैयार रहते हैं। उनका व्यक्तित्व उन्हें जानने-पहचानने वाले सभी लोगों को एक उत्साह-सा प्रदान करता है।

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प्रश्न 14.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर :
घने जंगल में एक खरगोश उछलता-कूदता भागा जा रहा था। वह बड़ा प्रसन्न था और मन-ही-मन सोच रहा था कि उस से तेज़ कोई भी नहीं भाग सकता।
बिना ध्यान भागते हुए वह धीरे-धीरे चलते एक कछुए से टकरा गया। उसके पाँव पर हल्की-सी चोट लगी और वह रुक गया। वह कछुए से बोला-“अरे, तुम्हें चलना तो आता नहीं, पर फिर भी मेरे रास्ते में रुकावट बनते हो।”
कछुआ बोला – “भगवान ने चलने की जितनी क्षमता मुझे दी है, मेरे लिए बही काफी है। मेरा इतनी गति से ही काम चल जाता है।”
खरगोश ने व्यंग्य से कहा – ‘नहीं, नहीं! तुम तो बहुत तेज भागते हो; यहाँ तक कि मुझे भी दौड़ में हरा सकते हो। दौड़ लगाओगे मेरे साथ?
कछुए ने कहा-“नहीं भाई। मैं तुम्हारे सामने क्या हूँ? तुमसे दौड़ कैसे लगा सकता है?”
खरगोश ने उसे उकसाते हुए कहा – “अरे, हिम्मत तो कर। हम दोनों एक ही रास्ते पर जा रहे हैं। चल देखते हैं कि बड़े पीपल के पास वाले तालाब तक पहले कौन पहुँचता है। यदि तू जीत गया तो मैं कभी तुम्हें ‘सुस्त’ नहीं कहूँगा।”
कछुए ने धीमे स्वर में कहा – “अच्छा, मैं कोशिश करता हूँ।”
यह सुनते ही खरगोश तेजी से तालाब की दिशा में भागा। बिना पीछे देखे वह लगातार भागता हो गया। कछुए का कहीं कोई अता-पता नहीं था। खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि कछुआ शाम से पहले उस तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वह छाया में कुछ देर सुस्ता ले, तो फिर और तेज़ भाग सकेगा। बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली, तो हल्का-हल्का अंधेरा होने वाला था। वह तेज गति से तालाब की ओर भागा। पर जब वह तालाब के किनारे पहुँचा, तो कछुआ वहाँ पहले से ही पहुँचकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कछुआ धीरे से मुस्कराया। खरगोश खिसियाकर बोला – “अरे, तुम पहुँच गए! मेरी जरा आँख लग गई थी।”
कछुआ बोला – “कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है, पर याद रखना कि तुम्हें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। ईश्वर ने सबको अलग-अलग गुण दिए हैं।”

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर :
पहली घटना – पिछले वर्ष से मैं अपने स्कूल की हॉकी टीम में खेल रहा था। परसों जब शाम को मैं अभ्यास के लिए खेल के मैदान में पहुँचा, तो खेल-कूद के इंचार्ज के निकट एक अनजान लड़का हॉकी लिए खड़ा था। मुझे देखते ही उन्होंने कहा कि तुम्हारी जगह टीम में आज से यह लड़का खेलेगा। यह मेरा भतीजा है और इसने आज ही इस स्कूल में दाखिला लिया है। मैंने कहा कि एक साल से मैं इस टीम का नियमित सदस्य हूँ और मेरा खेल भी अच्छा है। उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और कहा कि निर्णय का अधिकार उनका है कि कौन खेलेगा और कौन नहीं।

मैं चुपचाप वहाँ से चला आया। मैं स्कूल के प्राचार्य के पर गाया और उनसे बात की। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि वे स्कूल में इंचार्ज से बात करके मुझे बताएँगे। मैं नहीं जानता कि प्राचार्य महोदय की सर से क्या बात हुई, पर सातवें पीरियड में स्कूल का चपरासी एक नोटिस लाया कि शाम को मुझे खेलने के लिए पहले की तरह ही पहुँचना है। दुसरी घटना- मेरे घर के बाहर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।

मैं उन्हें खेलता हुआ देख रहा था। जैसे ही एक लड़के ने बॉल को हिट किया, तो वह उछलकर खिड़की से टकराई और शीशा टूट गया। बच्चों ने शीशा टूटता देखा और वहाँ से भागे। एक छोटा लड़का वहाँ खड़ा था। वह खेल नहीं रहा था, बस खेल देख रहा था। मेरा बड़ा भाई साइकिल पर कहीं बाहर से आ रहा था। उसने लड़कों को भागते और खिड़को के टूटे शीशे को देखा। उसने झपटकर उस छोटे लड़के को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह उस पर हाथ उठा पाता, मैंने उसे ऐसा करने से रोका क्योंकि शीशा तोड़ने में लड़के का कोई हाथ नहीं था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर :
पूर्वी हिंदी की अवधी भाषा जिन-जिन क्षेत्रों में बोली जाती है, वे हैं-उन्नाव, लखनऊ, राय बरेली, फतेहपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच, बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, जौनापुर, मिर्जापुर आदि।

पाठेतर सक्रियता –

1. तुलसी की रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
2. दोहा और चौपाई के वाचन का एक पारंपरिक ढंग है। लय सहित इनके वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा। उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
4. इस प्रसंग की नाट्य प्रस्तुति करें।
5. कोही, कुलिस, खोरि, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए। उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

दोहा : दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती है और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।

चौपाई : मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
तुलसी से पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई-छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा

पाठ में ‘सहसबाहु सम सो रिपु मोरा’ का उल्लेख आया है। परशुराम और सहसबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है –
परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहसबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जो विशेष गाय थी। कहते हैं कि वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहसबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय को प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहसबाहु ने कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया।

इस पर क्रोधित होकर परशुराम ने सहसबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि जमदग्नि ने घोर निंदा की थी और परशुराम को प्रायश्चित करने के लिए कहा था। क्रोध में भर कर सहसबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय बिहीन करने की प्रतिज्ञा की।

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीराम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए क्या किया था?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम ने उनसे विनम्र स्वर में कहा था कि ‘हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो मुझे दीजिए।’ उनकी वाणी में सहजता और मिठास थी। वे किसी भी प्रकार से परशुराम के गुस्से को बढ़ाने वाले शब्द नहीं बोले थे।

प्रश्न 2.
परशुराम ने राम को क्या उत्तर दिया था ?
उत्तर :
परशुराम ने राम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करे, न कि शत्रुता की राह पर चले। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। उसे राज समाज से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर राज सभा में उपस्थित सभी राजा उनके द्वारा मार दिए जाएंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 3.
परशुराम को लक्ष्मण की किस बात पर अधिक गुस्सा आया?
अथवा
यम लक्ष्मण के किन तकों ने परशुराम के क्रोध की आग को भड़काया?
उत्तर :
लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहा था। लक्ष्मण के अनुसार शिव-धनुष इतना कमजोर था कि उस जैसे अनुहियों को वे अपने बचपन में खेल-खेल में ही तोड़ दिया करते थे। वैसे भी पुराने और जर्जर धनुषों को तोड़ देने से न कोई लाभ होता है और न हानि। : शिवजी के धनुष के इस अपमान से परशुराम का क्रोध बढ़ गया था।

प्रश्न 4.
लक्ष्मण ने परशुराम से यह क्यों कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता?
उत्तर :
गाली असभ्य, मूर्ख और शक्तिहीन लोग दिया करते हैं। परशुराम वीर, धैर्यवान और क्षोभरहित थे। यदि उन्हें क्रोध आया था, तो वे अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग से उसे प्रकट कर सकते थे न कि गाली देकर; क्योंकि शुरवीर युद्ध-भूमि में अपनी बीरता दिखाते हैं। इसलिए लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता।

प्रश्न 5.
परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने और क्या संबोधित किया था?
उत्तर :
परशुराम को श्रीराम ने ‘नाथ’ कहकर संबोधित किया था। उन्होंने बड़े ही विनयशीलता के साथ कहा था कि शिव-धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। आपका क्या आदेश है, आप मुझसे कह सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 6.
सेवक धर्म के बारे में परशुराम ने श्रीराम से क्या कहा था?
उत्तर :
जब श्रीराम ने परशुराम से कहा कि शिव-धनुष तोड़ने वाला उनका कोई सेवक अथवा दास ही होगा, तो परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे। लड़ाई अथवा उदंडता करने वाला सेवक नहीं कहलाता। ऐसे व्यक्ति से शत्रुता करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
शिव धनुष तोड़ने वाले के विषय में परशराम ने क्या-क्या कहा?
अथवा
स्वयंवर स्थल पर शिवधनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किस प्रकार धमकाया ?
उत्तर :
परशुराम भरी सभा में श्रीराम के सम्मुख घोषणा करते हुए कहते हैं कि जिस किसी ने भी उनके आराध्य भगवान शिव का धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। वह जो कोई भी हो स्वयं मेरे सामने आ जाए। यदि वह सामने नहीं आएगा, तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 8.
भरी सभा में लक्षण के सम्मुख परशुराम अपनी वीरता का बखान किस प्रकार करते हैं?
अथवा
कि परशुराम ने अपनी किन विशेषताओं के उल्लेख के द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?
उत्तर :
लक्ष्मण द्वारा भड़काने पर परशुराम अत्यंत क्रोध में आ गए। क्रोधावेश में वे अपने बाहुबल एवं बीरता का परिचय देते हुए कहते हैं कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं। उनका स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। वे विश्वभर में क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी वीरता एवं बाहुबल से कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया और बार-बार ब्राहमणों को जीता राज्य दान में दे दिया। सहसबाहु की भुजाओं को भी उन्होंने अपने फरसे से ही काटा था।

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प्रश्न 9.
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने फरसे का किस प्रकार डर दिखाया?
उत्तर :
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने क्रोध तथा फरसे से डराते हुए कहा कि राजा के बेटे! तू अपने माता-पिता को चिंता में क्यों डाल रहा है। मेरे हाथ में जो फरसा है, वह बड़ा ही भयानक है। यह छोटे-बड़े किसी में भेद नहीं करता। यह इतना भयानक है कि गर्भ में पलने वाले बच्चों का भी नाश कर देता है।

प्रश्न 10.
लक्ष्मण के अनुसार रषकुल के लोग किन-किन पर दया करते थे?
उत्तर :
उल्लर लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि रघुकुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ पर सदा दया की जाती है। इन पर कभी कोई अत्याचार अथवा बार नहीं करता। इन्हें मारने से उन्हें पाप लगता है तथा उनके कुल की अपकीर्ति होती है। यदि कोई गलती से उन्हें मार दे, तो क्षमा मांगनी पड़ती है।

प्रश्न 11.
‘गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियो सूझ’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उक्त पंक्ति में मुनि विश्वामित्र मन-ही-मन हँसते हुए कहते हैं कि परशुराम को चारों ओर हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण शन्निय समझ रहे है।

प्रश्न 12.
परशुराम की स्वभावगत विशेषताएँ क्या हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल-ब्रह्मचारी हैं। वे स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 13.
‘गाधिसूनु’ किसे कहा गया है? वे मुनि की किस बात पर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे?
उत्तर :
‘गाधिसूनु’ विश्वामित्र जी के लिए कहा गया है। वे मुनि परशुराम की बातों पर मन ही मन हंसते हैं कि परशुराम जी को चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे हैं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करें सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।

(क) श्रीराम ने परशुराम के लिए किस शब्द का संबोधन किया?
(i) नाथ
(ii) भजनहारी
(iii) दास
(iv) समु
उत्तर :
(i) नाथ

(ख) भंजनिहारा का अर्थ है –
(i) सेवक
(ii) मित्र
(iii) शत्रु
(iv) टुकड़े करने वाला
उत्तर :
(iv) टुकड़े करने वाला

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(ग) धनुष था
(i) शिव-धनुष
(ii) ब्रह्म-धनुष
(iii) राम-धनुष
(iv) विष्णु परशु
उत्तर :
(i) शिव-धनुष

(घ) परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु मानते हैं?
(i) सहस्राबाहु के समान
(ii) दसानन के समान
(iii) दशरथ के समान
(iv) बाणासुर के समान
उत्तर :
(i) सहस्राबाहु के समान

(ङ) किसने शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई?
(i) रावण
(ii) लक्ष्मण
(ii) राम
(iv) परशुराम
उत्तर :
(ii) गम

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारूरू। चहत उड़ावन कि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाही।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥

(क) लखनु कौन है?
(i) लक्ष्मण
(iii) परशुराम
(iv) विश्वामित्र
उत्तर :
(i) लक्ष्मण

(ख) परशुराम किस प्रकार लक्ष्मण को डरा रहे हैं?
(i) हाल दिखाकर
(ii) अजगव दिखाकर
(iii) फरसा दिखाकर
(iv) धनुष-बाण दिखाकर
उत्तर :
(iii) फरसा दिखाकर

(ग) ‘कुम्हड़ बतिया’ का यहाँ क्या भाव है?
(i) बहुत वीर
(ii) बहुत नाजुक
(iii) बहुत कठोर
(iv) बहुत शंकालु
उत्तर :
(ii) बहुत नाजुक

(घ) कुम्हड़ बतिया किसको देखकर मर जाती है?
(i) फरसा
(ii) धूप
(iii) अँगूठा
(iv) तरजनी
उत्तर :
(iv) तरजनी

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(ङ) लक्ष्मण की मृदु वाणी सुनकर परशुराम कैसी प्रतिक्रिया कर रहे हैं?
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।
(ii) परशुराम के क्रोध को शांत कर रही है।
(iii) (i) और (ii) दोनों विकल्प
(iv) कोई नहीं
उत्तर :
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘राम-लक्ष्मण’ का संवाद किससे हुआ?
(i) अयोध्यावासियों से
(ii) बालकों से
(iii) परशुराम से
(iv) लंकावासियों से
उत्तर :
(iii) परशुराम से

(ख) राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
(i) ब्रजभाषा
(ii) मैथिली भाषा
(iii) अवधी भाषा
(iv) मगही भाषा
उत्तर :
(ii) अवधी भाषा

(ग) तुलसीदास जी ने प्रस्तुत पद में किन छंदों का प्रयोग किया है?
(a) दोहा-चौपाई
(ii) रोला
(ii) सोरठा
(iv) हरिगीतिका
उत्तर :
(i) दोहा-चौपाई

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(घ) तुलसीदास ने ‘भृगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है।
(i) विश्वामित्र
(ii) लक्ष्मण
(ii) परशुराम
(iv) वशिष्ठ
उत्तर :
(iii) परशुराम

(अ) ‘अपमय खाँड न अखमय’ में अपमय’ का क्या अर्थ है?
(d) गन्ना
(ii) कुठार
(iii) लोहे से बना
(iv) खाँड से बना
उत्तर :
(iii) लोहे से बना

सप्रसंग व्याख्या, अर्थगता संबंधो एवं सौंयँ-सरहुना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
सुनि मुनिबचन लखन मुसकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार।
धनही सम तिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।

शब्दार्थ : नाथ – स्वामी। संभुधनु – शिवजी का धनुष। भंजनिहारा – तोड़ने वाला। आयेसु – आज्ञा। रिसाइ – क्रोध करना। कोही – क्रोधी। सो – वह। सेवकाई – सेवा। अरि – शत्रु। जेहि – जिसने। रिपु – शत्रु। बिलगाउ – अलग होना। लरिकाई – बचपन में। अवमाने – अपमान करना। रिस – गुस्सा करना। भृगुकुलकेतू – ब्राह्मण कुल के केतु, परशुराम। सम – समान। तिपुरारि – भगवान, शिव।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ से लिया गया है। मूल रूप से यह गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण सीता स्वयंवर के अवसर पर राजा जनक की सभा में गए थे। राम ने वहाँ शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था। परशुराम ने क्रोध में भरकर इसका विरोध किया था। तब राम ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया था।

व्याख्या : श्रीराम ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे नाथ! भगवान शिव के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। क्या आज्ञा है, आप मुझसे क्यों नहीं कहते?’ यह सुनकर क्रोधी मुनि गुस्से में भरकर बोले-“सेवक वह होता है, जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! जिसने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नहीं तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे।”

मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले-‘हे स्वामी! अपने बचपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डाली थी। किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। आपको इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है?” यह सुनकर भृगु वंश की ध्वजा के रूप में परशुराम गुस्से में भरकर कहने लगे-“अरे राजपुत्र! अमराज के वश में होने के कारण तुझे बोलने में कुछ होश नहीं है। सारे संसार में प्रसिद्ध भगवान शिव का धनुष क्या धनुही के समान है? तुम्हारे द्वारा शिवजी के धनुष को धनुही कहना तुम्हारा दुस्साहस है।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर :

1. पद में निहित भावों को स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने अपनी बात कही थी?
3. परशुराम का स्वभाव कैसा था?
4. शिव धनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किसके समान शत्रु माना था?
5. परशुराम ने क्या चेतावनी दी थी?
6. परशुराम के वचनों को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर कैसे भाव प्रकट हुए?
7. लक्ष्मण ने शिव धनुष को क्या कहा था?
8. लक्ष्मण की किस बात को सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया था?
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण किसके बस में होकर बोल रहा था?
10. परशुराम ने राम के वचनों का उत्तर कैसे दिया?
उत्तर :
1. रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए इस पद के अनुसार राम ने सौता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे। राम ने उन्हें मीठे शब्दों से शांत करना चाहा, लेकिन लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे शब्दों से उनके क्रोध को भड़का दिया और उनसे जानना चाहा कि यह साधारण-सा धनुष उन्हें क्यों प्रिय है।
2. परशुराम को राम ने ‘नाथ’ कहकर अपनी बात कही थी।
3. परशुराम का स्वभाव अभिमान और क्रोध से भरा हुआ था।
4. परशुराम ने शिव धनुष तोड़ने वाले को सहस्त्रबाहु के समान अपना शत्रु माना था।
5. परशुराम ने चेतावनी दी थी कि यदि शिव का धनुष तोड़ने वाले को सभा से अलग नहीं किया गया, तो वे सभा में उपस्थित सभी राजाओं का वध कर देंगे।
6. परशुराम द्वारा सभी राजाओं का वध कर देने की बात सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर व्यंग्यपूर्ण मुसकराहट का भाव प्रकट हो गया।
7. लक्ष्मण ने शिवधनुष को धनुही कहा था।
8. जब लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने अपने लड़कपन में बैसी अनेक धनुहियाँ खेल-खेल में तोड़ दी थी, तो यह सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया।
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण काल अर्थात मृत्यु के बस में होकर बिना सोचे-समझे बोल रहा था।
10. परशुराम ने राम के विनयपूर्वक कहे गए शाब्दों का उत्तर क्रोध में भरकर दिया। उन्होंने कहा कि तुम कैसे सेवक हो ? सेवक तो वह होता है, जो सेवा करता है। जो शत्रु जैसा व्यवहार करता है, उससे लड़ाई ही की जानी चाहिए।

सौदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किस प्रकार पद में नाटकीयता उत्पन्न की है?
2. किस तत्त्व ने पद को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है?
3. पद में किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
4. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
5. कथन को संगीतात्मकता का गुण कैसे प्राप्त हुआ है?
6. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
7. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
8. पद में से शिव और परशुराम के दो-दो पर्यायवाची छाँटिए।
9. पद में प्रयुक्त अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने परशुराम के क्रोधपूर्ण स्वभाव और लक्ष्मण की निर्भयता को आधार बनाकर पद में नाटकीयता उत्पन्न की है।
2. संवादात्मकता ने कथन को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है।
3. ओज गुण प्रधान है।
4. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
5. स्वरमैत्री ने कवि को संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है।
6. अवधी भाषा।
7. वीर रस का प्रयोग है।
8. शिव – संभु, त्रिपुरारि।
परशुराम – परसुधरहि, भृगुकुलकेतू।
9. अनुप्रास –
आयेसु काह कहिअ किन,
सेवकु सो जो करै सेवकाई.
अरिकरनी करि करिअ,
सहसबाहु सम सो, सकल संसार
जिलगाउ विहाइ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
गर्भह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

शब्दार्थं : छति – हानि। लाभु – लाभ। नयन – नया। भोरे – धोखे। दोसू – दोष। रोसू – क्रोध। सठ – दुष्ट। सुभाउ – स्वभाव। जड़ – मूर्ख। मोही – मुझे। बिस्व – संसार, विश्व। विदित – विख्यात। महिदेव – ब्राह्मण। बिलोकु – देखकर। महीपकुमार – राजकुमार। अर्भक – बच्चा। दलन – नाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। ‘सीता स्वयंवर’ के समय श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया, पर उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हंसकर कहा कि ‘हे देव ! सुनिए ! हमारे लिए तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ और क्या हानि! श्री रामचंद्र ने इसे नया समझ कर धोखे से देखा था। फिर यह छुते ही टूट गया। इसमें रघुकुल के स्वामी श्रीराम का कोई दोष नहीं है। हे मुनि! आप बिना किसी कारण के क्रोध क्यों करते हैं?’ परशुराम ने अपने फ़रसे की ओर देखकर कहा-“अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना? मैं तुम्हें बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख ! क्या तू मुझे निरा मुनि हो समझता है।

मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का शत्रु विश्व भर में प्रसिद्ध हूँ। आपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और कई बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काट देने वाले मेरे इस फरसे को देख ! अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को चिंता के वश में न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। यह छोटे-बड़े किसी की भी परवाह नहीं करता।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते थे?
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने धनुष को किस धोखे से छू लिया था?
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष तोड़ने में राम का कोई दोष क्यों नहीं था?
5. परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
6. परशुराम विश्व भर में अपने किन गुणों के कारण विख्यात थे?
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से क्या किया था?
8. परशुराम ने क्रोध में लक्ष्मण को कौन-सा अस्त्र दिखाया था?
9. परशुराम का फ़रसा क्या कर सकने की योग्यता रखता था?
10. पद के अनुसार परशुराम के परिचय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. गोस्वामी तुलसीदास ने लक्ष्मण के व्यंग्य-भावों तथा परशुराम के गुस्से को प्रकट करते हुए स्पष्ट किया है कि परशुराम को अपने बल-पराक्रम पर घमंड था, पर लक्ष्मण उनके बल से कदापि प्रभावित नहीं थे। वे उनसे डरते नहीं थे।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को एक-सा मानते थे। उनकी दृष्टि में उनमें कोई अंतर नहीं था।
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने शिवजी के धनुष को नया धनुष समझकर छू लिया था।
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का कोई दोष नहीं था। धनुष पुराना था और राम के छूते ही वह टूट गया था।
5. परशुराम लक्ष्मण पर अत्यंत क्रोधित थे, पर वे उसे बालक समझकर उसका बध नहीं कर रहे थे।
6. विश्व भर में परशुराम अपने क्रोध और ब्रह्मचर्य के कारण प्रसिद्ध थे। वे क्षत्रिय वंश को अपना शत्रु मानते थे और उसे कई बार नष्ट करने के कारण विख्यात थे।
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को अनेक बार क्षत्रियों से रहित करके उनका राज्य ब्राह्मणों को दान में दे दिया था।
8. परशुराम ने क्रोध में भरकर लक्ष्मण को अपना फरसा दिखाया था, जिसने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया था।
9. परशुराम का फ़रसा माँ के गर्भ में विद्यमान बच्चों को भी नष्ट कर देने की योग्यता रखता था।
10. परशुराम बाल ब्रह्मचारी, महाक्रोधी, क्षत्रियों के दुश्मन और अपार बलशाली ब्राह्मण थे। उन्होंने क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद की भाषा कौन-सी है?
2. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
3. गेयता के गुण का आधार क्या है?
4. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. इस पद को किस मूल ग्रंथ से लिया गया है?
6. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
7. पद से दो तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की शब्दावली में किन भावों की प्रमुखता है?
9. पद से दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. पद की भाषा अवधी है।
2. दोहा-चौपाई छंद।
3. स्वरमैत्री।
4. बीर रस।
5. रामचरितमानस (बालकांड)।
6. ओज गुण।
7. धनुष, केवल
8. व्यंग्य, क्रोध
10. अनुप्रास –

  • हसि हमरे
  • नहि तोही
  • जून धनु, मुनि बिनु
  • काज करिअ कता
  • सठ सुनहि सुभाउ
  • बालकु बोलि बधौं
  • बाल ब्रह्मचारी
  • बिपुल बार
  • जड़ जानहि
  • भुजबल भूमि भूप

अतिशयोक्ति –

  • छुअत टूट

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

3. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहा ॥
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सही रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
जो बिलोकि अनुचित कहे. छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।।

शब्दार्थ : बिहसि – हँस कर। मृदु बानी – कोमल वाणी। महाभट – महायोद्धा। मानी – समझते हैं। कुठारु – कुल्हाड़ी। कुम्हड़बतिआ – बहुत कमजोर, निर्बल व्यक्ति, काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा फल। तरजनी – अँगूठे के पास की उँगली। सरासन – धनुष। जनेउ – यज्ञोपवीत। बिलोकी – देखकर। रिस – गुस्सा। सुर – देवता। महिसुर – ब्राह्मण। हरिजन – भागवान के भक्त। अपकीरति – अपयश। मारतहू — आप मारें तो भी। पा – पैर। कोटि – करोड़ों। कुलिस – बज। बिलोकि – देखकर। गिरा – वाणी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीना-स्वयंबर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोधित हो गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिससे परशुराम का गुस्सा भड़क उठा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हँस कर कोमल वाणी में कहा-“अहो ! मुनीश्वर तो अपने आप को बड़ा वीर योद्धा समझते हैं। मुझे देखकर ये बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ये तो फैंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कोई काशीफल या कुम्हड़े के फूल से बना छोटा-सा फल नहीं है, जो आपके अंगूठे के साथ वाली उँगली को देखकर ही मर जाए। मैंने जो कुछ कहा है, वह आपके कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान सहित कहा है। भृगुवंशी समझकर और आपका यज्ञोपवीत देखकर आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं अपना गुस्सा रोककर सह लेता हूँ।

देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मारे, तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वजों के समान है। धनुष-बाण और कुल्हाड़ा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। आपके इस धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने कुछ अनुचिता कहा हो, तो हे धौर महामुनि। आप क्षमा कीजिए।” यह सुनकर भृगु वंशमणि परशुराम क्रोध के साथ गंभीर वाणी में बोले।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर।

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम बार-बार अपना कुल्हाड़ा किसे दिखा रहे थे?
3. कवि के द्वारा प्रयुक्त काव्य रूढ़ि और समाज में चली आने वाली मान्यता को स्पष्ट कीजिए।
4. लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्वक बात क्यों की थी?
5. लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात क्यों की थी?
6. रघुकुल के लोग किन-किन पर वीरता का प्रदर्शन नहीं करते थे?
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें क्यों नहीं मारना चाहते थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्या माँगा?
10. लक्ष्मण के क्रोध-भाव को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए शब्दों पर व्यंग्य किया और उन्हें बताया कि उनके वंश में ब्राह्मणों पर शस्त्र नहीं उठाया जाता: भले ही वे बुरा व्यवहार क्यों न करें।
2. परशुराम लक्ष्मण को डराने के लिए उन्हें बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे थे।
3. युगों से समाज में एक मान्यता चली आ रही है कि काशीफल की बेल पर खिलने वाले फूल या छोटे फल की ओर तर्जनी से इशारा किया जाए, तो वह सूख कर गिर जाता है। छोटी आयु के लक्ष्मण की ओर परशुराम बार-बार ऊँगली उठाकर उन्हें डराने का प्रयत्न कर रहे थे। इसलिए लक्ष्मण ने उनसे कहा था कि वे काशीफल की बेल पर लगे फूल या फल की तरह कमजोर नहीं हैं, जो उनकी उठी उँगली से नष्ट हो जाएंगे।
4. लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण देखकर उन्हें क्षत्रिय समझ लिया था और इसी कारण से उनसे अभिमानपूर्वक बात की थी।
5. लक्ष्मण जान गए थे कि परशुराम भृगुवंशी हैं। उनके गले में यज्ञोपवीत भी था। इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात की थी।
6. रघुकुल के लोग देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय पर बोरता का प्रदर्शन नहीं करते थे।
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें कभी मारना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें मारने से पाप लगता था और उनसे हार जाने पर अपयश मिलता था।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्षमा माँगी थी।
10. लक्ष्मण अति क्रोधी स्वभाव का था। वह परशुराम के बड़बोलेपन को झेलने वाला नहीं था। वह निर्भीक, साहसी और वीर था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि के द्वारा किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
2. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. किन छंदों का प्रयोग किया गया है?
5. किस प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
7. काव्यांश में प्रयुक्त दो तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की भाषा में किसकी प्रधानता है?
9. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. वीर रस का प्रयोग है।
3. ओज गुण विद्यमान है।
4. दोहा-चौपाई छंद।
5. स्वरमैत्री के प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है।
6. व्यंजना शब्द-शक्ति विद्यमान है।
7. मृद. कुल
8. व्यंग्य, बाक्वीरता।
9. अनुप्रास
मुनीस् महाभट मानी,
कछु कहा; कछु कहहु, कोटि कुलिस,
सुर, महिसुर: सुनि सरोष,
धरहु धनु
गिरा गंभीर पुनरुक्ति-प्रकाश
पुनि-पुनि उपमा
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

4. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल्ल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहाँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बस्नै पारा।।
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भांति बहु बरनी।।
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
सूर समर करनी करहि कहि न जनावहिं आए।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथाहिं प्रतापु॥

शब्दार्थ : कौसिक – विश्वामित्र। भानु बंस – सूर्यवंशी। राकेस – चंद्र। निपट – बिलकुल। निरंकुसु – उदंड। अवधु – मूर्ख। कालकवलु – काल का ग्रास। खोरि – दोष। मोहि – मेरा। हटकहु – मना करो, रोको। उबारा – बचाना। रोषु – क्रोध। बरनी – वर्णन। दुसह – असह्य। सूर – शूरवीर। समर = बुद्ध। रन – युद्ध। रिपु – शत्रु।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ से लिया गया है. मूल रूप से यह तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। सीता स्वयंवर के समय राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिस कारण उनका क्रोध और अधिक बढ़ गया था।

व्याख्या : परशुराम ने राम और लक्ष्मण के गुरु विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे विश्वामित्र! सुनो! यह बालक बड़ा कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक है। यह बिलकुल उदंड, मूर्ख और निडर है। अभी क्षण भर बाद यह मौत के देवता काल का ग्रास बन जाएगा। मैं पुकार कर कहे देता हूँ कि इसके मर जाने के बाद फिर मुझे दोष नहीं देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो इसे हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर ऐसा करने से रोक दो?’ लक्ष्मण ने तब कहा-‘हे मुनि! आपका सुयश आपके रहते और कौन वर्णन कर सकता है ? आपने पहले ही अनेक बार अपने मुँह से अपनी करनी का कई तरह से वर्णन किया है।

यदि इतने पर भी आपको संतोष न हुआ हो, तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुख मत सहो। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और ओभ रहित हैं। गाली देते हुए आप शोभा नहीं देते। शूरवीर तो युद्ध में अपनी शूरवीरता का कार्य करते हैं। वे बातें कहकर अपनी वीरता को प्रकट नहीं करते। शत्रु को युद्ध में पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें हाँका करते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए किसे संबोधित किया ?
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण की विशेषताएँ कौन-कौन सी थी ?
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने कौन-कौन से गुण लक्ष्मण को बताने के लिए कहा था?
5. लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया?
6. परशुराम राजसभा में क्या बता चुके थे ?
7. परशुराम क्या रोककर अधिक दख सह रहे थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को किन-किन विशेषताओं का स्वामी माना था?
9. शूरवीर अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार देता है?
10. लक्ष्मण की किस बात पर परशुराम नाराज थे?
उत्तर :
1. परशुराम ने विश्वामित्र को सुझाव दिया था कि वे लक्ष्मण को उनके गुण बताकर व्यर्थ बोलने और उकसाने से रोके, ताकि परशुराम उसका वध न करे। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें वीरता का पालन करने की शिक्षा दे दी थी।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए ऋषि विश्वामित्र को संबोधित किया।
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण मूर्ख, कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल था। वह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक था। यह उदंड, मुर्ख और निडर था।
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने बारे में लक्ष्मण को यह बताने के लिए कहा था कि वे बड़े प्रतापी, अति बलशाली और अत्यंत क्रोधी हैं।
5. लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया कि उन्हें अपना सुयश अपने मुँह से स्वयं प्रकट करना चाहिए, क्योंकि उनके स्वयं वहाँ रहते हुए उनके सुयश को ठीक-ठीक ढंग से कोई और नहीं प्रकट कर सकता।
6. राजसभा में परशुराम अनेक बार अपनी विशेषताएँ बता चुके थे।
7. परशुराम अपने क्रोध को रोककर अधिक दुख सह रहे थे।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को वीरता का व्रत धारण करने वाला, धैर्यवान और क्षोभरहित माना था।
9. शूरवीर युद्ध में लड़कर अपनी शूरवीरता को प्रदर्शित करता है, न कि अपनी वीरता की डींगें हाँककर।
10. लक्ष्मण को स्पष्टवादिता, स्वभाव और उग्रता के कारण परशुराम नाराज थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव के किन गुणों/ अवगुणों को प्रकट किया है?
2. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. किस शब्द-शक्ति का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
7. संवादों से कथन को कौन-सा गुण प्राप्त हुआ है?
8. ‘बीरबती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?
9. परशुराम की वाणी में कौन-सा भाव प्रमुख है ?
10. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण की स्पष्टवादिता और साहस तथा परशुराम को डींगें हाँकने के स्वभाव को प्रकट किया है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई का प्रयोग है।
4. वीर रस।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. लक्षणा शब्द-शक्ति का अधिक प्रयोग किया गया है।
7. नाटकीयता का गुण
8. व्यंग्यात्मकता
9. प्रचंड क्रोध
10. अनुप्रास –
पुकारि खोर, बहु बरनी,
दुसह दुख, कुटिल कालबस, कछु कहहू,
करनी करहिं कहि, कायर कथाहिं।

मानवीकरण –
कालकवतु होइहि छन माही

रूपक –
भानु बंस राकेस कलंकू

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

5. तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि परेड कर बोरा ॥
अब जनि दे दोसु मोहि लोमू। कटुबादी बालक बाजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिल अपराधू। बाल दोष गुन गहन साधू
खार कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही
उतर देत छोड़ों बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोर।।
गाधि सून कह हृदय हसि मुनिहि हरियो सझा
अयमय खाँड़ न ऊखमय अबाई न बूझ अबूम।

शब्दार्थ : मोहि लागि- मेरे लिए। परसु – फ़रसा। कर – हाथ। बधजोगू – वध के योग्य। कटुबादी – कड़वा बोलने वाला। बिलोकि – देखकर। बाँचा – बचाया। मरनिहार – मरने को। साँचा – सचमुच। कौसिक – विश्वामित्र। खर कुठार – तीखी धार का कुठार। गाधिसून – विश्वामित्र। हरियो – हरा ही हरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सौता-स्वयंवर के अवसर पर परशुराम और लक्ष्मण के बीच शिव-धनुष के भंग होने के कारण विवाद हुआ था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा कि ‘हे मुनिवर परशुराम ! आप तो मानो काल को बार-बार हाँक लगाकर उसे मेरे लिए बुलाते हैं लक्ष्मण के कठोर वचन सुनते ही परशुराम ने अपने फ़रसे को सुधार कर हाथ में ले लिया और कहा कि “अब लोग मुझे दोष न दें। यह कड़वा बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। बालक समझकर मैंने इसे बहुत देर तक बचाया, लेकिन अब यह सचमुच मरने को आ गया है। तब गुरु विश्वामित्र ने कहा-“अपराध क्षमा कीजिए मुनिवर ! बालकों के दोष और गुण को साधु लोग नहीं गिनते।”

परशुराम बोले-“मेरा तीखी धार का फरसा, मैं दयारहित और क्रोधी हूँ। मेरे सामने यह गुरुद्रोही और अपराधी उत्तर दे रहा है। इतने पर ही मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ। हे ऋषिवर! मैं इसे केवल आपके शोल और प्रेम के कारण बिना मारे छोड़ रहा हूँ। नहीं तो इसे इस कठोर फरसे से काटकर थोड़े से परिश्रम से ही गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता।” विश्वामित्र ने मन-ही-मन हैसकर कहा-“मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अन्य सभी जगह पर विजयी होने के कारण ये राम और लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। पर वे लोहे से बनी हुई खाँड (खाँडा-खड्ग) हैं; गन्ने की खाँड नहीं, जो मुँह में डालते ही गल जाती है। मुनि अब भी बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण के किस कथन से उनकी निडरता का परिचय मिलता है?
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने क्या किया?
4. परशुराम ने सभा से किस कार्य का दोष उन्हें न देने के लिए कहा?
5. विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर समझाया ?
6. परशुराम ने लक्ष्मण को गुरु-द्रोही क्यों कहा था?
7. परशुराम ने अपने किन गुणों का उल्लेख किया ?
8. विश्वामित्र के किस गुण के कारण परशुराम लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहे थे?
9. विश्वामित्र ने अपने आप से क्या कहा था?
10. परशुराम क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर :
1. लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर परशुराम ने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया, पर गुरु विश्वामित्र के समझाने पर वे मान गए। लेकिन परशुराम ने अपनी बीरता की डींग हाँकने की आदत का फिर से परिचय दे दिया, जिसे सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुसकरा सोचने लगे कि ये नहीं समझते कि राम-लक्ष्मण सामान्य क्षत्रिय नहीं हैं।
2. ‘तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा, बार-बार मोहि लागि बोलाबा’- इन पंक्तियों से लक्ष्मण की निडरता का परिचय मिलता है।
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने अपने भयानक फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया।
4. क्रोधित परशुराम ने सभा से बालक लक्ष्मण के वध का दोष न देने के लिए कहा।
5. विश्वामिन ने परशुराम को यह कहकर समझाया कि साधु बालकों के गुण और दोष को नहीं गिनते।
6. परशुराम को भगवान शिव ने बह धनुष संभाल कर रखने के लिए दिया था, जिसे सीता स्वयंवर के समय राम ने भंग कर दिया था। परशुराम ने इसे अपना और भगवान शिव का अपमान मानकर राजसभा में उपस्थित क्षत्रियों को बुरा-भला कहा। लक्ष्मण ने क्रोधभरी और व्यंग्यात्मक बातों से इसका विरोध किया था, जिस कारण परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा।
7. परशुराम ने अपने गुणों को बताते हुए कहा था कि वे दया से रहित और क्रोधी स्वभाव के हैं।
8. विश्वामित्र के शील और प्रेमपूर्ण स्वभाव के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहा था।
9. विश्वामित्र ने अपने आप से कहा था कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अब तक वे साधारण क्षत्रियों पर बिना हारे विजय प्राप्त करते आए थे और अब उन्हें ऐसा लगने लगा था कि वे सभी क्षत्रियों को युद्ध में हरा सकते हैं। ये राम-लक्ष्मण गन्ने से बनी खाँड नहीं हैं, बल्कि फ़ौलाद के खाँडे हैं। जिन्हें हराना इनके लिए संभव नहीं। मुनि इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।
10. लक्ष्मण द्वारा बार बार भड़काए जाने व व्यंग्य भरे वाक्य बोलने के कारण परशुराम क्रोधित हो गए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने किस-किसके स्वभाव का सटीक वर्णन किया है?
2. नाटकीयता की सृष्टि किस कारण हुई है?
3. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-गुण की अधिकता दिखाई देती है?
5. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
6. अवतरण में लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
7. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
8. दो तत्सम शब्द लिखिए।
9. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण के तेज स्वभाव, विश्वामित्र के विवेक और परशुराम के अहंकार का सटीक वर्णन किया है।
2. संवादात्मकता ने कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
3. अवधी भाषा का प्रयोग है।
4. ओज गुण विद्यमान है।
5. बीर रस।
6. स्वरमैत्री और छंद युक्त होने के कारण रचना में लयात्मकता विद्यमान है।
7. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है।
8. दोष, श्रम
9. हरा-ही-हरा सूझना।

उत्प्रेक्षा –
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा

पुनरुक्तिप्रकाश –
बार-बार

रूपकातिशयोक्ति –
अयमय जाँड़ न ऊखमय

अनुप्रास –

  • कौसिक कहा, केवल कौसिक, काटि कुठार कठोरें,
  • गुन गनहि,
  • हृदय हसि मुनिहि हरियरे,
  • परसु
  • सुधारि बरेउ कर घोरा-
  • देई दोसू,
  • कटुबादी बालकु बधजोग, बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

6. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिन बिचारि बचौं नृपद्रोही।
मिले ने कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता बरहि के बाड़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सबनहि लखनु नेवारे।
लखन उतर आहुति सरिस भृगबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।

शब्दार्थ : कहेउ – कहा। विदित – जानता। उरिन – ऋण से मुक्त। व्यवहारिआ – हिसाब करने वाला। कटु – कड़वा। मोही – मुझे। बिन – ब्राह्मण। नृपद्रोही – राजाओं के शत्रु। सुभट – अच्छे बलवान वीर। रन – युद्ध। द्विज – ब्राह्मण। सयनहि – संकेत से; इशारे से। नेवारे – रोक दिया। सरिस – समान। कोपु – क्रोध। कृसानु – आग। रघुकुलभानु – रघुकुल के सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘ रामचरितमानस’ के ‘बालकांड” से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष टूट जाने पर लक्ष्मण और परशुराम में विवाद हुआ था, जिसे राम ने अधिक बढ़ने से पहले ही रोक दिया था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा-‘हे मुनि! आपके शोल को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता के ऋण से तो भली-भाँति मुक्त हो चुके हैं। अब आप पर गुरु का ऋण रह गया है, जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है। आपको उसकी चिंता सता रही है।

वह ऋण मानो हमारे ही माथे निकाला था। बहुत दिन बीत गए। इसमें व्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर उधार चुका हूँ।” लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फ़रसा संभाला। सारी सभा हाय ! हाय ! करके पुकार उठी। लक्ष्मण ने कहा-‘”हे भृगु श्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु! मैं आपको ब्राह्मण समझकर अब तक बचा रहा है।

लगता है कि आपको कभी रणधीर, बलवान वोर नहीं मिले। हे ब्राह्मण देवता! आप घर ही में बड़े हैं।” यह सुनते ही सभी लोग पुकार उठे कि ‘यह अनुचित है ! अनुचित है!’ तब रघुकुलपति श्रीराम ने संकेत से लक्ष्मण को रोक दिया। आहुति के समान लक्ष्मण के उत्तर से परशुराम को क्रोधरूपी आग को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या व्यंग्य किया?
2. लक्ष्मण ने परशुराम के शील के संबंध में क्या कहा?
3. ‘माता पितहि उरिन भये नीके’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
4. परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?
5. यहाँ किस गुरु-ऋण की बात हो रही है? उसे चुकाने के लिए लक्ष्मण ने परशुराम को क्या उपाय सुझाया?
6. लक्ष्मण के व्यवहार का राजसभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
7. लक्ष्मण परशुराम को क्यों बना रहे थे?
8. राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?
10. इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
11. इस अवतरणा के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
12. नृपदोही किसे कहा गया है और क्यों?
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम से व्याय शैली में बात करते हुए कहा कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके हैं, अब गुरु-ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। वे व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए हैं? आज तक उन्हें शक्तिशाली रणवीर मिले ही नहीं थे और इसलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे हैं।
2. लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि सारा संसार उनके शील को भली-भाँति जानता है।
3. इस पंक्ति का आशय है कि परशुराम अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके हैं।
4. परशुराम की चिंता अभी यह सोचकर शेष थी कि वे अपने गुरु के ऋण को किस प्रकार चुकाएँगे।
5. यहाँ लक्ष्मण ने परशुराम को अपने गुरु का ऋण चुकाने के लिए कहा है। लक्ष्मण के अनुसार परशुराम ने अपने गुरु से जो शस्त्र विद्या सौखी है, वे उस ऋण को उतार दें। इसके बाद लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए ब्याज गणना हेतु किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाने के लिए कहा।
6. लक्ष्मण के व्यवहार से सारी राजसभा हाय! हाय! करने लगी और कहने लगी कि लक्ष्मण का परशुराम के प्रति व्यवहार अनुचित है।
7. लक्ष्मण परशुराम को अब तक इसलिए बचा रहे थे, क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और सूर्यवंशी ब्राह्मणों पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाते थे। राम ने संकत के द्वारा नबमण को बोलने से रोका था।
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए क्रोधरूपी आग में आहुति के समान थे, जिस कारण उनका गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था।
10. राम शांत, नम, विनयी, कोमल, मर्यादित और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपने कोमल शब्दों से बिगड़ी हुई स्थिति को नियंत्रित करने में समर्थ थे।
11. लक्ष्मण उग्र, क्रोधी और व्यंग्य करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे बोलते समय विवेकपूर्ण व्यवहार नहीं करते थे।
12. परशुराम को नपदोही कहा गया है, क्योंकि उन्होंने अनेक बार पृथ्वी से क्षत्रियों को समाप्त कर दिया था।
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण को कहार और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर अपना रोष और विरोध प्रकट किया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किम भाषा का प्रयोग किया है?
2. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. कवि ने लयायकना की सृष्टि कैसे की है?
7. लक्ष्मणा के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है?
8. कोई दो नद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
9. संवादों के कारण कौन-सी भाव विशेषता आ गई है?
10. ‘द्विजदेवता’ में कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?
11. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
12. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का स्वाभाविक-समन्वित प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
4. बौर रस का प्रयोग है।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है, जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
8. थैली, दिन
9. नाटकीयता।
10. व्यंग्य, वक्रोक्ति।
11. आहुति, कटु।
12. बीप्सा –
हाय-हाय वक्रोक्ति
कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदिन संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नौकें …………… थैली खोली।

उपमा –
लखन उत्तर आहुति सरिस
जल-सम बचन
भगुबरकोपु कृसानु

अनुप्रास –

व्याज बड़ बाढ़ा, बिन बिचारि बचौं
सब सभा
थैली खोली
कुठार सुधारा

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

तुलसीदास राममार्गीं शाखा के प्रतिनिधि कवि, हिंदी सहित्य के गौरव तथा भारतीय संस्कृति के रक्षक माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ भारतीय धर्म एवं आस्था की प्रतीक बन गई हैं। तुलसीदास का जन्म सन 1532 ई० में उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्मस्थान सोरों (ज़िला एटा) भी मानते हैं। वे जाति से सरयूपारी ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था।

तुलसीदास का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। इनके पिता ने इन्हें मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण त्याग दिया था। बाद में नरहरि बाबा ने इनका पालन-पोषण किया। उनकी कृपा से तुलसीदास ने पुराण, वेद, इतिहास एवं दर्शन का खूब अध्ययन किया।

कहते हैं कि तुलसीदास यौवनकाल में अपनी पली पर विशेष अनुरक्त थे। लेकिन पल्नी की फटकार ने इनकी जीवन-दिशा को बदल दिया। इन्होंने अपना जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया। भगवान राम के प्रति इनके मन में अगाध श्रद्धा थी। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा राम-काव्य को उत्कर्ष प्रदान किया।

सन 1623 ई० में काशी में इनका देहांत हो गया। इनके निधन के विषय में निम्नलिखित दोहा प्रचलित है-

संबत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तग्यो शरीर॥

तुलसीदास ने अपना सारा जीवन राम की आराधना में लगा दिया। इनके द्वारा रचित बारह रचनाएँ हैं, जिनमें रामचरितमानस तथा विनय-पत्रिका
विशेष उल्लेखनीय हैं। रामचरितमानस प्रबंधकाव्य का आदर्श प्रस्तुत करता है, तो विनय-पत्रिका मुक्तक-शौली में रचा गया उत्कृष्ट गीति-काव्य है।

इसके अतिरिक्त तुलसीदास ने हनुमान-चालीसा, दोहावली, कवितावली, गीतावली आदि की रचना भी की। तुलसीदास के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। इनके काव्य को समन्वय की विराट चेष्टा कहा गया हैं। अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण के कारण ही तुलसीदास लोकनायक के आसन पर आसीन हुए। लोकसंग्रह का भाव तुलसी की भक्ति का अभिन्न अंग था। इसलिए इनकी भक्ति कृष्णभक्त कवियों के समान एकांगी न होकर सवांगपूर्ण हैं।

तुलसीदास का भाव-जगत पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी रचनाओं में; विशेषकर ‘मानस’ में; मार्मिक स्थलों के चयन में विशेष सफल रहे हैं। तुलसीदास ने श्रृंगार-रस का चित्रण मर्यदा के भीतर रहकर किया है। वात्सल्य-रस के चित्रण में भी इन्हें पूर्ण सफलता मिली है।तुलसी-काव्य में शांत-रस एवं करुण-रस की प्रधानता रही है। अन्य रसों का भी प्रसंगानुकूल वर्णन मिलता है। तुलसीदास ने धर्म का स्वस्थ रूप सामने रखकर अपने काव्य की रचना की हैं।

विनय-पत्रिका में तुलसीदास की दास्य भाव की भक्ति का आदर्श निहित है। भाषा, अर्थ-गौरव एवं पांडित्य तीनों दृष्टियों से विनय-पत्रिका अपना विशिष्ट स्थान रखती है। तुलसी की विनय की अभिव्यक्ति उनके भक्त-हृदय की परिचायक है –

ऐसो को उदार जग माहीं।
बिना सेवा जो द्रबै-दीन पर, राम सरस कोऊ नाहीं।

तुलसीदास ने अपने पात्रों में आदर्श को प्रतिष्ठा दिखाकर उनके चरित्र को अनुकरण का विषय बना दिया है। इन्होंने पात्रों के माध्यम से अनेक आदर्श हमारे सामने रखे। सामाजिक मर्यादाओं के प्रकाश में इन्होंने धर्म को नवीन रूप प्रदान किया। इन्होंने मानस में व्यक्ति-धर्म, समाज-धर्म तथा साष्ट्र-धर्म की स्थापना की। राम के चरित में विविध आदर्शो की स्थापना की। रमम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श शत्रु तथा आदर्श राजा के रूप में हमारे सामने आते हैं।

तुलसीदास ने तस्कालीन समय में प्रचलित अवधी तथा ब्रज-दोनों भाषाओं को अपनाया है। रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग हैं, जबकि कवितावली तथा विनय-पत्रिका में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास ने सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है जिनमें छप्पय, कवित्त, सवैया पद्धति विशेष उल्लेखनीय हैं। तुलसीदास ने अलंकारों का भी समुचित प्रयोग किया है। उनके काव्य में रूपक, निदर्शना, उपमा, व्यतिरेक, अप्रस्तुत प्रशंसा आदि अनेक अलंकारों का प्रयोग है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

काविता का सार :

रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ में सोता-स्वयंवर के समय राम के द्वारा शिव कें धनुष-भंग करने के बाद मुने पष्युराम के क्रोध और राम-लक्मूण से उनके संवादों का वर्णन किया गया है। परशुराम को जब यह समाचार मिला कि शिब-धनुष खंडंडित कर दिया गया है, तो वे बहुत क्रोधित हुए। उनके क्रोध को देख्रकर राम ने विनयपूर्वक मुनि से कहा कि शिवजी के धनुष को तोड़ने बाला कोई उनका दास ही होगा। मुनि ने गुस्से में भरकर कहा कि सेवक वह होता है, जो सेवा का कान करे।

जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, बह सहसजाहु की तरह उनका शत्तु है। यदि उसने स्वयं को यहाँ उपस्थित राज समाज से अलग नहीं किया, तो सभी राजा मारे आाएंग। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्हौंने लड़कपन में अनेक धनुहियाँ सोड़ दी थीं, पर तब तो उन्होंने ऐसा गुस्सा नहीं किया था। यह सुलकर युनि ने क्रोध में लक्षण को दुलकारते हुए पूला कि क्या उन्हें शिव-धनुष एक धनुहि के समान प्रतीत होता है ? लक्षण ने हैंपते हुए कहा कि धनुष तो सरे एक-से ही होते हैं।

पुराने धनुष को तोड़ने से क्या लाभ और क्या ह्नानि ? त्रीराम ने तो उस युराने धनुप को बह छुआ ही था कि वह टूट गया। गुस्से में भरकर परशुणाम ने कहा कि वे उसे बालक समझकर नहीं मार रहे। वे केबल भुनि ही नहीं है, बलिक बाल-ब्रहमचारी और अल्यंत क्रोधी हैं। से क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका फ़रसा बड़ा भयातक है। लक्षण ने हाँसते हुए युनि का मज़ाक उड़ाया और कहा कि कमजोर तो वे भी नहीं हैं। वे उन्हें व्राहमण समझकर व अज्ञोपवीत देखकर अपने क्रांध को रोक उन्हें सहारते हैं, क्योंकि उनके कुल सें ब्राहुमण, भक्त और गो पर बीरता नहीं दिखाई जाती। इन्हें मारने से पाप लगता है और इससे हार जाने पर अपयश मिलता है।

वैसे आपका एक-एक शन्द ही करोड़ों वज्रों के समान है। आपको किसी अस्न-शख्र को धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुन परखुराम ने गुरु चिरबमित्र से कहा कि लधमण बड़ा कुदुद्धि और दुए हैं। यह सूर्यंश का कलंक है, जिसे वे क्षणभर बाद अपने कुल्हाड़े से काट डालेंगे। यदि वे उसे इचाना चहते है, तो उसे समझा-बुझा कर ऐसा बोलने से रोकें। बिश्वाभित्र तो नहीं सोले, पर लक्ष्मण ने कहा कि यदि परगुराम को अपने यारे में और कुछ भी कहना है, तो वे कह लें 1 वैसे वे अपना यश पहले ही काफ़ी बसान कर चुके हैं।

क्रोध को रोकार व्यर्थ दुख नहीं उठाना चाहिए। वैसे गाली देना उन्हें शोभा नहीं देता। शूरखीर तो अपना वल युद्ध-भुम में दिखाते हैं, वे ब्यर्ध में डींग चर्ति हैंका करते। यह सुन परशुराम ने गुस्से से भरकर अपना परशु सुधार कर हाथ में ले लिया। सब विश्वामित्र ने उनसे कहा कि वे उसके प्रपराध को क्षमा कर दें। बालकों के दोष और गुण को साधु नहीं गिनते।

तब परशुराम ने अहसान जताते हुए कहा कि वे विखायित्र के शील के कारण लक्क्रण को बिना मारे छोड़ रहे हैं, नहीं तो अपने फ़रसे से उसे काटकर अपने गुरु के और जो गुरु का ऋण शेष बचा है, उसे भी पूरी कर लें। यह सुनते ही परशुरान ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार संच गया। लक्ष्सण की वाणी ने परशुरम की क्रोधरूपी अरिन में आहुति का काम किया। तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले झा्द कहे।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

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Question 1.
In the figure, A, B and C are three points on a circle with centre O such that ∠BOC = 30° and ∠AOB = 60°. If D is a point on the circle other than the arc ABC, find ∠ADC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 1
Answer:
Here, ∠AOC = ∠AOB + ∠BOC
∠AOC = 60° + 30°
⇒ ∠AOC = 90°
We know that angle subtended by an arc at centre is double the angle subtended by it at any point on the remaining part of the circle.
∠ADC = \(\frac{1}{2}\) ∠AOC = \(\frac{1}{2}\) × 90° = 45°

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Question 2.
A chord of a circle is equal to the radius of the circle. Find the angle subtended by the chord at a point on the minor arc and also at a point on the nugor arc.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 2
Answer:
Given: Chord AB is equal to the radius of the circle.
In ∆OAB, OA = OB = AB = radius of the circle.
Thus, AOAB is an equilateral triangle.
∠AOB = 60°
also, ∠ACB = \(\frac{1}{2}\) ∠AOB = \(\frac{1}{2}\) × 60° = 30°
ACBD is a cyclic quadrilateral,
∠ACB + ∠ADB = 180° (Opposite angles of cyclic quadrilateral)
⇒ ∠ADB = 180° – 30° = 150°
Thus, angle subtend by the chord at a point on the minor arc and also at a point on the major arc are 150° and 30° respectively.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Question 3.
In Fig, ∠PQR = 100°, where P, Q and R are points on a circle with centre O. Find ∠OPR.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 3
Answer:
Reflex ∠POR = 2 × ∠PQR = 2 × 100° = 200°
∴ ∠POR = 360° – 200° = 160°
In ∆OPR,
OP = OR (radii of the circle)
∠OPR = ∠ORP
(Angles opposite to equal sides)
Now,
∠OPR + ∠ORP +∠POR = 180°
(Sum of the angles in a triangle)
⇒ ∠OPR + ∠OPR + 160° = 180°
⇒ 2∠OPR= 180°- 160°
⇒ ∠OPR =10°

Question 4.
In Fig, ∠ABC = 69°, ∠ ACB = 31°, find ∠BDC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 14
Answer:
∠BAC = ∠BDC (Angles in the same segment of the circle)
In ∆ABC,
∠BAC + ∠ABC+ ∠ACB =180° (Sum of the angles of a triangle)
⇒ ∠BAC + 69°+ 31° = 180°
⇒ ∠BAC = 180°- 100°
⇒ ∠BAC = 80°
Thus, ∠BDC = 80°

Question 5.
In Fig, A, B, C and D are four points on a circle. AC and BD intersect at a point E such that ∠BEC = 130° and ∠ECD = 20°. Find ∠ BAC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 5
Answer:
∠BAC = ∠CDE
(Angles in the segment of the circle)
In ∆CDE,
∠CEB = ∠CDE + ∠DCE (Exterior angles of the triangle)
=> 130° = ∠CDE + 20°
⇒ ∠CDE =110°
Thus, ∠BAC = 110°

Question 6.
ABCD is a cyclic quadrilateral whose diagonals intersect at a point E. If ∠DBC = 70°, ∠BAC is 30°, find ∠BCD. Further, if AB = BC, find ∠ECD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 6
Answer:
For chord CD,
∠CBD = ∠CAD (Angles in same segment)
∴ ∠CAD = 70°
∠BAD = ∠BAC + ∠CAD
= 30° + 70° = 100°
∠BCD + ∠BAD = 180° (Opposite angles of a cyclic quadrilateral)
⇒ ∠BCD + 100° = 180°
⇒ ∠BCD = 80°
In ∆ABC, AB = BC (given)
∠BCA = ∠CAB (Angles opposite to equal sides of a triangle)
∴ ∠BCA = 30°
Also, ∠BCD = 80°
∴ ∠BCA + ∠ACD = 80°
⇒ 30° + ∠ACD = 80°
∠ACD = 50°
i.e. ∠ECD = 50°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Question 7.
If diagonals of a cyclic quadrilateral are diameters of the circle through the vertices of the quadrilateral, prove that it is a rectangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 7
Answer:
Given: ABCD is a cyclic quadrilateral, whose diagonals AC and BD are diameters of the circle passing through A, B, C and D.
To prove: ABCD is a rectangle
Proof: In AAOD and ACOB AO = CO (Radii of a circle)
OD = OB (Radii of a circle)
∠AOD = ∠COB (Vertically opposite angles)
∴ ∆AOD ≅ ∆COB (By SAS axiom)
∴ ∠AOD S ∠OCB (By CPCT )
∴ AD || BC Similarly AB || CD Hence quadrilateral ABCD is a parallelogram.
∠ABC = ∠BCD = ∠CDA = ∠DAB = 90°
(Angles in the semi-circle)
Thus, ABCD is a parallelogram with each internal angle as 90°. So, ABCD is a rectangle.

Question 8.
If the non-parallel sides of a trapezium are equal, prove that it is cyclic.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 8
Answer:
Given: ABCD is a trapezium where non-parallel sides AD and BC are equal.
Construction: DM and CN are perpendiculars drawn on AB from D and C respectively.
To prove: ABCD is cyclic trapezium.
Proof: In ∆DAM and ∆CBN,
AD = BC (Given)
∠AMD = ∠BNC = 90° (By construction) DM = CN (Distance between the parallel lines)
∆DAM ≅ ∆CBN by RHS congruence criterion.
Now, ∠A = ∠B by CPCT
Also, ∠B + ∠C = 180° (sum of the co-interior angles)
⇒ ∠A + ∠C = 180°

In trapezium ABCD,
∠A + ∠B + ∠C + ∠D = 360°
=> 180° + ∠B + ∠D = 360°
⇒ ∠B + ∠D = 360° – 180°
= 180°
Thus, ABCD is a cyclic trapezium as sum of the pair of opposite angles is 180°.

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Question 9.
Two circles intersect at two points B and C. Through B, two line segments ABD and PBQ are drawn to intersect the circles at A, D and P, Q respectively (see Fig). Prove that ∠ACP = ∠QCD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 9
Answer:
Chords AP and DQ are joined.
For chord AP,
∠PBA = ∠ACP
(Angles in the same segment) …(i)
For chord DQ,
∠DBQ = ∠QCD
(Angles in same segment) …(ii)
ABD and PBQ are line segments intersecting at B.
∠PBA = ∠DBQ
(Vertically opposite angles) …(iii)
By the equations (i), (ii) and (iii),
∠ACP = ∠QCD

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Question 10.
If circles are drawn taking two sides of a triangle as diameters, prove that the point of intersection of these circles lie on the third side.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 10
Answer:
Given: Two circles are drawn on the sides AB and AC of the triangle ΔABC as diameters. The circles intersected at D.
Construction: AD is joined.
To prove: D lies on BC. We have to prove that BDC is a straight line.
Proof: ∠ADB = ∠ADC = 90° (Angle in the semi circle)
Now, ∠ADB + ∠ADC = 90° + 90° = 180°
⇒ BDC is straight line.
Thus, D lies on the side BC.

Question 11.
ABC and ADC are two right triangles with common hypotenuse AC. Prove that ∠CAD = ∠CBD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 11
Answer:
Given: AC is the common hypotenuse.
∠ABC = ∠ADC = 90°.
To prove: ∠CAD = ∠CBD
Proof: Since, ∠ABC and ∠ADC are 90°.
These angles are in the semi circle. Thus, both the triangles are lying in the semi circle and AC is the diameter of the circle.
⇒ Points A, B, C and D are concyclic.
Thus, CD is the chord.
⇒ ∠CAD = ∠CBD (Angles in the same segment of the circle)

Question 12.
Prove that a cyclic parallelogram is a rectangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 12
Answer:
Given: ABCD is a cyclic parallelogram.
To prove: ABCD is rectangle.
Proof: ∠1 + ∠2 = 180° (Opposite angles of a cyclic parallelogram)
also, opposite angles of a parallelogram are equal.
Thus,
∠1 = ∠2
⇒ ∠1 + ∠1 = 180°
⇒ ∠1 = 90°
One of the interior angles of the parallelogram is right angle. Thus, ABCD is a rectangle.

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

JAC Class 9th Sanskrit गोदोहनम् Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत – (एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) मल्लिका पूजार्थ सखीभिः सह कुत्र गच्छति स्म? (मल्लिका पूजा के लिए सखियों के साथ कहाँ गई थी?)
उत्तरम् :
काशीविश्वनाथमन्दिरम्। (काशी विश्वनाथ मंदिर में)

(ख) उमायाः पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म? (उमा के दादाजी द्वारा कितने लीटर दूध की अपेक्षा की गई थी?) उत्तरम् :
त्रिंशत-सेटकमितम्। (तीसलीटर)

(ग) कुम्भकारः घटान् किमर्थं रचयति? (कुम्हार घड़े किसलिए बनाता है?)
उत्तरम् :
जीविकाहेतोः (आजीविका के लिए)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(घ) कानि चन्दनस्य जिह्वालोलुपतां वर्धन्ते स्म? (चन्दन के रसना लोभ को कौन बढ़ा रहे थे?)
उत्तरम् :
मोदकानि (लड्)।

(ङ) नन्दिन्याः पादप्रहारैः कः रक्तरञ्जितः अभवत्? (नन्दिनी की लातों से कौन खून से लथपथ हो गया?)
उत्तरम् :
चन्दनः (चन्दन)।

2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत-(पूरे वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्त धेनो कथम् अकुरुताम्? (मल्लिका और चन्दन ने गाय का क्या किया?)
उत्तरम् :
तौ दुग्धदोहनं विहाय मासपर्यन्तं धेनोः सेवाम् एव अकुरुताम्। (उन दोनों ने दूध दोहना त्यागकर महीने भर तक गाय की सेवा की।

(ख) कालः कस्य रसं पिबति? (समय किसका रस पीता है?)
उत्तरम् :
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कर्मणः, आदानस्य, प्रदानस्य च रसं काल: पिवति। (शीघ्र ही कार्य न करने वाले, लेन-देन न करने वाले कर्म का रस समय पी जाता है।)

(ग) घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः किं वदति? (मल्लिका जब घड़ों के मूल्य के लिए अपने आभूषण देना चाहती है तो कुम्हार क्या कहता है?)
उत्तरम् :
कुम्भकारोऽवदत्-पुत्रिके नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वां आभूषणविहीनां कर्तुम्। (कुम्हार ने कहा- पुत्री मैं यह पापकर्म नहीं करूँगा किसी प्रकार भी मैं तुम्हें आभूषण रहित नहीं करूँगा।)

(घ) मल्लिकया किं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणं ज्ञातम्? (मल्लिका क्या देखकर गाय के प्रहार का वास्तविक कारण जान गई।)
उत्तरम् :
चन्दनं रक्तरंजितं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणम् ज्ञातम्। (चन्दन को लहूलुहान देखकर गाय के लात मारने का वास्तविक कारण जान गई।)

(ङ) मासपर्यन्तं धेनो: अदोहनस्य किं कारणमासीत? (महीने भर तक गाय को न दोहने का क्या कारण था?)
उत्तरम् :
प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थायपानः चेत् यत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अतः अदोहनं कृतम्। (प्रतिदिन दोहन करके रखते हैं तो सुरक्षित नहीं रहता। अतः दूध नहीं दुहा गया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

3. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों को आधार बनाकर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) मल्लिका सखीभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म।
उत्तरम् :
मल्लिकाः काभिः सह धर्मयात्रायै गच्छतिस्म?

(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव स्व प्रातराशस्य प्रबन्धम् अकरोत।
उत्तरम् :
चन्दनः दुग्ध दोहनं कृत्वा एव कस्य प्रबन्धम् अकरोत?

(ग) मोदकानि पूजा निमित्तानि रचितानि आसन्।
उत्तरम् :
कानि पूजा निमित्तानि रचितानि आसन्?

(घ) मल्लिका स्वपतिं चतुरतमं मन्यते।
उत्तरम् :
मल्लिका स्वपतिं कीदृशं मन्यते?

(ङ) नन्दिनी पादाभ्याम् ताडयित्वा चन्दनं रक्तरंजितं करोति?
उत्तरम् :
का पादाभ्याम् ताडयित्वा चन्दनं रक्तरंजितं करोति।

4. मञ्जूषायाः सहायतया भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत-(मंजूषा की सहायता से भावार्थ में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
[गृह व्यवस्थायै, उत्पादयेत्, समर्थकः, धर्मयात्रायाः मंगल कामनाम् कल्याण कारिणः।]
यदा चन्दनः स्वपत्न्या काशी विश्वनाथं प्रति…….विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्य पत्नी तं………. कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते………कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात्…..भवन्तु। मार्गे काचिदपि वाधा तव कृते समस्यां न……..। एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारी स्वतन्त्रतायाः.. आसीत्।
उत्तरम् :
यदा चन्दनः स्वपत्न्या काशी विश्वनाथं प्रति धर्मयात्रायैः विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्य पत्नी तं गृहव्यवस्थायै कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते मंगल कामनाम् कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् कल्याणकारिणः भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधा तव कृते समस्यां न उत्पादयेत्। एतेन सिध्यति यत्। चन्दनः नारी स्वतन्त्रतायाः समर्थकः आसीत्।

5. घटनाक्रमानुसारं लिखत-(घटनाक्रम के अनुसार लिखिए-)
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति।
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति ।
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
उत्तरम् :
(क) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(ख) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथ मन्दिरं प्रति गच्छति।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकता विषये चन्दनं सूचयति।
(घ) चन्दन: उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुम् मासपर्यन्तं दोहनं न करोति।
(ङ) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रा समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
(च) उभौ नन्दिन्याः सर्वविध परिचर्यां कुरुतः।
(छ) उत्सव दिवसे यदा दोग्धुं दोग्धु प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति ।
(ज) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

6. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति इति प्रदत्त स्थाने लिखत-
(निम्न वाक्यों को कौन किससे कहता है, यह दिये हुए स्थान पर लिखिए-)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम् 1

7. पाठस्य आधारेण प्रदत्तपदानां सन्धि/सन्धिविच्छेद वा कुरुत –
(पाठ के आधार पर दिये हुए शब्दों की सन्धि/सन्धि विच्छेद कीजिए-)
उत्तरम्
(क) शिवास्ते – शिवाः + ते
(ख) मनःहरः – मनोहरः
(ग) सप्ताहान्ते – सप्ताह + अन्ते
(घ) नेच्छामि – न + इच्छामि
(ङ) अत्युत्तमः – अति + उत्तमः

8. पाठधारेण अधोलिखित पदानां प्रकृति-प्रत्ययं च संयोज्य/विभज्य वा लिखत –
उत्तरम् :
(क) करणीयम् – कृ + अनीयर् .
(ख) वि + क्री + ल्यप् – विक्रीय
(ग) पठितम् – पठ् + क्त
(घ) ताडय् + क्तवा – ताडयित्वा
(ङ) दोग्धुम् – दुह् + तुमुन्

JAC Class 9th Sanskrit गोदोहनम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
‘गोदोहनम्’ इति पाठस्य रचयिता कः? (‘गोदोहनम्’ पाठ का रचयिता कौन है?)
उत्तरम् :
कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदयः ‘गोदोहनम्’ पाठस्य रचयिता अस्ति। (कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय ‘गोदोहनम्’ पाठ के रचयिता हैं।)

प्रश्न: 2.
‘गोदोहनम्’ पाठः कस्मात् पुस्तकात् सङ्कलितः? (‘गोदोहनम्’ पाठ किस पुस्तक से संकलित है?)
उत्तरम् :
‘गोदोहनम्’ पाठः ‘चतुर्दूहम्’ इति एकांकि संग्रहात् सङ्कलितः। (‘गोदोहनम्’ पाठ ‘चतुर्दूहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।)

प्रश्न: 3.
‘गोदोहनम्’ इति पाठस्य नायकः कः? (‘गोदोहनम्’ पाठ का नायक कौन है?)
उत्तरम् :
‘गोदोहनम्’ पाठस्य नायकः चन्दनः अस्ति। (‘गोदोहनम्’ पाठ का नायक चन्दन है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 4.
का एषा मल्लिका? (यह मल्लिका कौन है?)
उत्तरम् :
एषा मल्लिका ‘गोदोहनम्’ इति एकाङ्कस्य नायिका अस्ति। (यह मल्लिका ‘गोदोहनम्’ एकांकी की नायिका है।)

प्रश्न: 5.
मल्लिका मोदकानि रचयन्ती किं करोति? (मल्लिका लड्डु बनाती हुई क्या कहती है?)
उत्तरम् :
मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति। (मल्लिका लड्डु बनाती हुई मन्दस्वर से शिवस्तुति करती है।)

प्रश्न: 6.
कीदृशः चन्दनः स्वगृहं प्रविशति? (कैसा चन्दन घर में प्रवेश करता है?)
उत्तरम् :
मोदकगन्धमनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः स्वगृहं प्रविशति। (लड्ड की सुगन्ध का अनुभव करता हुआ चन्दन अपने घर में प्रवेश करता है।)

प्रश्नः 7.
मोदकानि अवलोक्य चन्दनः किं करोति? (लड्डुओं को देखकर चन्दन क्या करता है?)
उत्तरम् :
मोदकानि अवलोक्य ‘आस्वादयामि तावत्’ इति उक्त्वा मोदकं ग्रहीतुम् इच्छति। (लड्डुओं को देखकर ‘तो चख लूँ’ कहकर लड्ड लेना चाहता है।)

प्रश्न: 8.
मल्लिकया मोदकानि केन प्रयोजनेन निर्माणितानि? (मल्लिका ने लड्ड किस प्रयोजन से बनाये थे?)
उत्तरम् :
मल्लिकया मोदकानि पूजानिमित्तानि निर्मितानि आसन्। (मल्लिका ने लड्ड पूजा के निमित्त बनाये थे।)

प्रश्न: 9.
मल्लिका कुत्र गच्छति स्म? (मल्लिका कहाँ जा रही थी?)
उत्तरम् :
मल्लिका सखिभिः सह गंगास्नानं कर्तुं काशी विश्वनाथस्य यात्रां सम्पादयितुं गच्छति स्म। (मल्लिका सखियों के साथ गंगा स्नान के लिये काशी विश्वनाथ की यात्रा पर जा रही थी।)

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प्रश्न: 10.
मल्लिकया सह चन्दनस्य गमनं कस्मान्नोचितमासीत्? (मल्लिका के साथ चन्दन का जाना किसलिए उचित नहीं था?)
उत्तरम् :
मल्लिका स्वसखिभिः सह गच्छति स्म अतः तया सह तस्यागमनस्य औचित्यं नासीत्। (मल्लिका अपनी सहेलियों के साथ जा रही थी अत: उसके साथ चन्दन का जाना उचित नहीं था।)

प्रश्न: 11.
यात्रां गच्छन्ती मल्लिका चन्दनं कस्मिन् कार्ये नियुक्तवती? (यात्रा पर जाती मल्लिका ने चन्दन को किस कार्य में नियुक्त किया?).
उत्तरम् :
सा नियुक्तवती यत् त्वं तावत् गृह व्यवस्थां धेनो दुग्धदोहन व्यवस्थां च परिपालय। (उसने नियुक्त किया कि तुम तब तक घर की व्यवस्था और गाय के दूध दोहने के कार्य का पालन करो।)

प्रश्न: 12
धर्मयात्रा प्रस्थाने चन्दनेन मल्लिकायै का कामना कृता? (तीर्थयात्रा पर प्रस्थान करने पर चन्दन ने मल्लिका के लिए क्या कामना की?)
उत्तरम् :
धर्मयात्रा प्रस्थाने चन्दनः मल्लिकायै अकामयत् यत् शिवास्ते सन्तु पन्थानः। (धर्मयात्रा पर प्रस्थान करने पर चन्दन ने मल्लिका के लिए कामना की कि तुम्हारे मार्ग मंगलमय हों।)

प्रश्न: 13.
ग्रामप्रमखस्य महोत्सवाय त्रिंशत सेटकमितं दग्धस्य व्यवस्था केन करणीया आसीत? (ग्राम प्रमुख के महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध की व्यवस्था किसको करनी थी?)
उत्तरम् :
ग्रामप्रमुखस्य महोत्सवाय त्रिंशत सेटकमितं दुग्धस्य व्यवस्था चन्दनेन करणीया आसीत्। (ग्राम प्रमुख के महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध की व्यवस्था चन्दन को करनी थी।)

प्रश्न: 14.
चन्दनः स्त्रीवेष धृत्वा दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्या समीपं कस्मात् आगच्छत्? (चन्दन स्त्रीवेष धारण कर दूध पात्र हाथ में लेकर नन्दिनी के समीप किसलिए गया।)
उत्तरम् :
नित्यमेव मल्लिका एव दुग्धं दोग्धि अतः सा तं मल्लिका इति ज्ञात्वा दुग्धं दद्यात्। (रोजाना मल्लिका ही दूध निकालती थी अतः वह उसे मल्लिका जानकर दूध दे दे।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 15.
मल्लिका कस्याः मातलानी आसीत? (मल्लिका किसकी मामी लगती थी?)
उत्तरम् :
मल्लिका उमायाः मातलानी आसीत्। (मल्लिका उमा की मामी लगती थी।)

प्रश्न: 16.
उमायाः गृहे किमदुग्धमपेक्षते स्म? (उमा के घर पर कितने दूध की अपेक्षा की जा रही थी?)
उत्तरम् :
उमायाः गृहे त्रिंशत सेटकपरिमितं दुग्धमपेक्षते स्मः? (उमा के घर पर तीस लीटर दूध की अपेक्षा थी।)

प्रश्नः 17.
चन्दनेन त्रिंशत सेटकमित दुग्धस्य व्यवस्था कथं चिन्तिता? (चन्दन ने तीस लीटर दूध की व्यवस्था कैसे सोची?)
उत्तरम् :
प्रतिदिनं दोहनं न कृत्वा उत्सव दिवसे एव समग्र दुग्धं धोक्ष्यावः। (प्रतिदिन दोहन न करके उत्सव के दिन ही पूरा दूध दोहन करके।)

प्रश्न: 18.
मल्लिकाचन्दनौ नन्दिनी कथं तोषितः? (मल्लिका और चन्दन नन्दिनी को कैसे सन्तुष्ट करते हैं?)
उत्तरम् :
मल्लिकाचन्दनौ नन्दिनी नीराजनेरापि तोषयतः। (मल्लिका और चन्दन उसे नीराजन से भी सन्तुष्ट करते हैं।)

प्रश्न: 19.
कुम्भकारः कस्य हेतोः घटान् रचयति? (कुम्हार किस प्रयोजन से घड़े बनाता है?)
उत्तरम् :
कुम्भकारः जीविकाहेतोः घटान् रचयति। (कुम्हार आजीविका हेतु घड़े बनाता है।)

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प्रश्न: 20.
जीवनमिदम कीदशमक्तंभकारेण देवेशेन? (यह जीवन देवेश कम्भकार ने कैसा बताया है?)
उत्तरम् :
जीवनमिदं क्षणभङ्करं यथा एष मृत्तिकायाः घटः। (यह जीवन क्षणभंगुर है, जैसे यह मिट्टी का घड़ा।)

प्रश्न: 21.
घटानां मूल्यं देवेशेन कुंभकारेण किं कथितम्? (घड़ों का मूल्य देवेश कुंभकार ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
घटानां मूल्यं पञ्चशतोत्तर रुप्यकाणि देवेशेन उक्तम्। (घड़ों का मूल्य पाँच सौ से ऊपर रुपये देवेश ने बताये।)

प्रश्न: 22.
गोदोहनात् पूर्वम् चन्दनः गां प्रति कथम् आचरति? (गाय दोहने से पूर्व चन्दन गाय के प्रति कैसा व्यवहार करता है?)
उत्तरम् :
चन्दनः धेनुं प्रणम्य मङ्गलाचरण विधाय मल्लिकाम् आह्वयति। (चन्दन गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण करके मल्लिका को आवाज लगाता है।)

प्रश्न: 23.
यदा चन्दनः धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुमिच्छति तदा धेनुः किं करोति? (जब चन्दन गाय के समीप जाकर दोहता है तब गाय क्या करती है?)
उत्तरम् :
यदा चन्दनः धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुमिच्छति तदा सा पृष्ठपादेन प्रहरति। (जब चन्दन गाय के पास जाकर दोहने का प्रयत्न करता है तो गाय पीछे के पैरों से लात मारती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 24.
चन्दनः कथं चीत्करोति? (चन्दन चीत्कार क्यों करता है?)
उत्तरम् :
धेनोः पादप्रहारेण ताडितः चन्दनः रक्तरञ्जितः सन् चीत्करोति। (गाय के प्रहार से ताडित हुआ रक्तरंजित चन्दन चीखता है।)

प्रश्न: 25.
धेनुः दोहनाम् अनुमति कथं न ददाति? (गाय दोहने की अनुमति क्यों नहीं देती?)
उत्तरम् :
तस्याः दुग्धं शुष्कं जातम्। (उसका दूध सूख गया था।)

रेखांकितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
मल्लिका मोदकानि रचयन्ती शिवस्तुतिं करोति। (मल्लिका लड्डु बनाती हुई शिवस्तुति करती है।)
उत्तरम् :
मल्लिका कानि रचयन्ती शिवस्तुतिं करोति? (मल्लिका क्या बनाती हुई शिव स्तुति करती है?)

प्रश्न: 2.
शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। (शीघ्र ही पूजन करो।)
उत्तरम् :
शीघ्रमेव किं सम्पादय? (शीघ्र ही क्या करो।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 3.
अहं श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि। (मैं कल प्रातः काशीविश्वनाथ मन्दिर की ओर जाऊँगी।)
उत्तरम् :
अह श्वः प्रातः कं प्रति गमिष्यामि? (मैं कल किसकी ओर जाऊँगी?)

प्रश्न: 4.
वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। (हम सप्ताह के अन्त में लौटेंगे।)
उत्तरम् :
वयं कदा प्रत्यागमिष्यामः? (हम कब लौटेंगे?)

प्रश्नः 5.
मल्लिका त धर्मयात्रायै गता। (मल्लिका तो तीर्थयात्रा पर गई।)
उत्तरम् :
मल्लिका कस्यै गता? (मल्लिका किसके लिए गई?)

प्रश्नः 6.
स: नन्दिन्याः समीपं गच्छति। (वह नन्दिनी के समीप जाता है।)
उत्तरम् :
सः कस्याः समीपं गच्छति? (वह किसके समीप जाता है?)

प्रश्नः 7.
तत्र त्रिंशत सेटकमितं दुग्धमपेक्षते। (वहाँ तीस लीटर दूध की अपेक्षा है।)
उत्तरम् :
तत्र कियत् दुग्धम् अपेक्षते? (वहाँ कितना दूध अपेक्षित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्नः 8.
एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया? (यह व्यवस्था आपको करनी है।)
उत्तरम् :
एषा व्यवस्था कैः करणीया? (यह व्यवस्था किसको करनी है?)

प्रश्न: 9.
प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति। (प्रसन्न वह गाय की बहुत सेवा करता है।)
उत्तरम् :
प्रसन्न सः कस्याः बहुसेवां करोति? (प्रसन्न वह किसकी बहुत सेवा करता है?)

प्रश्न: 10.
मासान्ते दुग्धस्य आवश्यकता भवति। (महीने के अन्त में दूध की जरूरत है।)
उत्तरम् :
दुग्धस्य आवश्यकता कदा भवति? (दूध की जरूरत कब है?)

प्रश्न: 11.
क्रमेण सप्त दिनानि व्यतीतानि। (क्रमशः सात दिन बीत गये।)।
उत्तरम् :
क्रमेण कति दिनानि व्यतीतानि? (क्रमशः कितने दिन बीत गये?)

प्रश्न: 12.
सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति। (सप्ताह के अन्त में मल्लिका लौट आती है।)
उत्तरम् :
सप्ताहान्ते का प्रत्यागच्छति? (सप्ताह के अन्त में कौन लौट आती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 13.
द्वावेव धेनोः सेवायाम् निरतौ भवतः। (दोनों गाय की सेवा में संलग्न हो जाते हैं।)
उत्तरम् :
द्वावेव कस्याः सेवायाम् निरतौ भवतः? (दोनों किसकी सेवा में संलग्न हो जाते हैं ?)

प्रश्न: 14.
कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः। (कभी सींगों पर तेल लगाते हैं।)
उत्तरम् :
कदाचित् कयोः तैलं लेपयतः? (कभी किसको तेल का लेप करते हैं?)

प्रश्न: 15.
रात्रौ नीराजनेन तोषयतः। (रात को दीपक जलाकर सन्तुष्ट करते हैं।)
उत्तरम् :
रात्रौ केन तोषयतः? (रात को किससे सन्तुष्ट करते हैं?)

प्रश्न: 16.
घटरचनायां लीनः गायति। (घड़ा बनाने में तल्लीन गाता है।)
उत्तरम् :
कस्यां लीनः गायति? (किसमें तल्लीन गाता है?)

प्रश्न: 17.
जीवनं मृत्तिका घट इव भङ्गुरः। (जीवन घड़े की तरह भंगुर है।)
उत्तरम् :
जीवन क इव भगुरः? (जीवन किसकी तरह भंगुर है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 18.
पञ्चदश घटान् इच्छामि। (पन्द्रह घड़े चाहता हूँ।)
उत्तरम् :
कति घटान् इच्छानि? (कितने घड़े चाहता हूँ?)

प्रश्न: 19.
विक्रणाय एव एतेघटा:? (ये घड़े बेचने के लिए ही हैं।)
उत्तरम् :
कस्मै एक एते घटाः? (ये घड़े किसके लिए हैं ?)

प्रश्न: 20.
मल्लिका स्व आभूषणं दातुम् इच्छति। (मल्लिका अपना आभूषण देना चाहती है।)
उत्तरम् :
मल्लिका किं दातुम् इच्छति ? (मल्लिका क्या देना चाहती है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

योग्यताविस्तारः

‘गोदोहनम्’ एकांकी में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान् और सुखी बनने की इच्छा से अपनी गाय से एक महीने तक दूध निकालना बन्द कर देता है, ताकि महीने भर के ध को एक साथ निकालकर बेचकर धनवान् बन सके। इस प्रकार एक मास पश्चात् जब वह गाय को दुहने का प्रयास करता है तब अत्यधिक दूध का तो कहना ही क्या। उसे दूध की एक बूंद भी नहीं मिलती, एक साथ दूध के स्थान पर उसे मिलते हैं गाय के पैरों से प्रहार जिससे आहत और रक्तरजित होने पर वह जमीन पर गिर पड़ता है। इस घटना से वहाँ उपस्थित सभी यह समझ जाते हैं कि यथासमय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।

उपायं चिन्तयेत् प्राज्ञस्तथापायं च चिन्तयेत्।
पश्यतो बकमूर्खस्य नकुलेन हताः बकाः॥

बुद्धिमान व्यक्ति उपाय पर विचार करते हुए अपाय अर्थात् उपाय से होने वाली हानि के विषय में भी सोचे हानिरहित उपाय ही कार्य सिद्ध करता है। अपाय युक्त उपाय नहीं जैसे कि अपने बच्चो को साँप द्वारा खाए जाते हुए देखकर एक बगुले ने नेवले. का प्रबन्ध साँप को खाने के लिए किया जो कि साँप को खाने के साथ-साथ सभी बगुलों को भी बच्चों सहित खा गया। अतः ऐसा उपाय सदैव हानिकारक होता है, जिसके अपाय पर विचार न किया जाए।

“अविवेकः परमापदां पदम्”

गोदोहनम् – एकाङ्की पढ़ाते समय आधुनिक परिवेश से जोड़ें तथा छात्रों को समझाएँ कि कोई भी कार्य यदि नियत समय पर न करके कई दिनों के पश्चात् एक साथ करने के लिए संगृहीत किया जाता रहता है तो उससे होने वाला लाभ-हानि में परिवर्तित हो सकता है।

अतः हमें सदैव अपने सभी कार्य यथासमय करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। पाठ की कथा नाटकीयता के साथ ही छात्रों को यह भी बताएँ कि इस नाटक से तात्कालिक समाज का परिचय भी मिलता है कि घर की व्यवस्था स्त्री-पुरुष मिलकर ही करते थे तथा स्त्री को स्वतन्त्र निर्णय लेने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त था।

गोदोहनम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – यह नाट्यांश कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से संक्षिप्त एवं सम्पादित कर उद्धृत किया गया है। इस नाटक में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान् और सुखी होने का इच्छुक है। वह महीने भर तक गाय का दूध दोहना छोड़ देता है ताकि महीने के अन्त में गाय के शरीर में सञ्चित पर्याप्त दूध एक बार में ही निकाल लिया जाये और उसे बेचट र्याप्त सम्पत्ति अर्जित करने में समर्थ हो सके।

परन्तु महीने के अन्त में जब वह दूध दोहने लगा तो उसे दूध की एक बूंद भी नहीं मिली। दूध के स्थान पर वह गाय के प्रहारों से लहूलुहान हो गया तथा समझ गया कि दैनिक कार्य यदि महीने भर तक इकट्ठा करके किये जायें तो लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। इस घटना से यह शिक्षा मिलती है कि यथा समय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।

मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंगहिन्दी-अनुवादः, सप्रसंग संस्कृत-व्यारव्याःअवबोधन कार्यम्च

(प्रथम दृश्यम्)

1. (मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)

चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः (विलोक्य) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्। (मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम्) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थ क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्?
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।

शब्दार्थाः – मल्लिका = मल्लिका (मल्लिका), मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डुओं का), रचयन्ती = निर्माणं कुर्वन्ती, मन्दस्वरेण = शनैः शनै निम्न स्वरेण वा (धीरे-धीरे अथवा नीचे स्वर में), शिव = महेशस्य (शिव की), स्तुति करोति = स्तुतिं गायति (स्तुति करती है), ततः = तत्पश्चात् (तब), मोदकगन्धम् = लड्डुकानां (लड्डुओं की), गन्धम् = सुवासम् (सुगन्धि का), अनुभवन् = अनुभवं कुर्वन् (महसूस करता हुआ), प्रसन्नमना = प्रसन्नचित्तः (खुश हुआ), चन्दनः प्रविशति = चन्दनः प्रवेशं करोति (चन्दन प्रवेश करता है), अहा! = (अरे), सुगन्धस्तु = सुरभिस्तु (सुगन्ध तो), मनोहरः = मनमोहका (मन को मोहने वाली),

विलोक्य = दृष्ट्वा (देखकर), अये = अरे, मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डू), रच्यन्ते = निर्मीयन्ते (बनाये जा रहे हैं), प्रसन्नो भूत्वा = प्रसीदितः सन् (प्रसन्न होकर), आस्वादयामि तावत् = तदा स्वादं गृह्णामि (तो चखता हूँ), मोदकं = लड्डुकम् (लड्डू को), गृहीतुम् इच्छति = ग्रहीतुमीहते (लेना चाहता है), सक्रोधम् = सकोपम् (नाराजी के साथ), विरम-विरम = तिष्ठ-तिष्ठ (ठहर-ठहर), मा स्पर्श = स्पर्श मा कुरु (छुओ मत), एतानि = इमानि (इनि), मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डुओं को),

किमर्थम् = कस्मात् (किसलिए, कैसे), क्रुध्यसि = प्रकुपसि (क्रोध करते हो), तव = ते (तेरे), हस्त = कर (हाथ के), निर्मितानि = रचितानि (बने हुए), मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डुओं को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), अहं जिह्वा-लोलुपताम् = अहं रसनायाः लिप्साम् (मैं जीभ की लिप्सा को), नियन्त्रयितुम् = संयन्तुम् (काबू करने में), अक्षमः अस्मि = असमर्थोऽस्मि (असमर्थ हूँ), किम् = असि (क्या), त्वम् = भवति (आप), न जानासि = न जानाति (नहीं जानती हो), इदम् = एतत् (यह), नाथ = स्वामिन् (स्वामी), .. सम्यग् = सुष्ठुः (अच्छी तरह), जानामि = जानती हूँ), परम् = परञ्च (लेकिन, परन्तु), एतानि मोदकानि = इमानि लड्डुकानि (ये लड्डू), पूजानिमित्तानि सन्ति = पूजनाय रचितानि (पूजा के लिए बनाये गये हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से सङ्कलित है।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में नायिका मल्लिका को लड्डु बनाते हुए दिखाया है। जिन्हें चन्दन चखना चाहता है तथा मल्लिका ‘ये भगवान की पूजा के लिए हैं’ ऐसा कहकर रोक देती है।
हिन्दी-अनुवाद – (मल्लिका लड़ बनाती हुई मन्दस्वर से शिवजी की स्तुति करती है, न्ध का अनुभव करता हुआ. प्रसन्नचित्त चन्दन प्रवेश करता है।)
चन्दन – अहा! सुगन्ध तो मनमोहक है। (देखकर) अरे क्या लड्डू बनाये जा रहे हैं? (प्रसन्न होकर) तो चखता हूँ। (लड्डू लेना चाहता है)
मल्लिका – (क्रोधसहित) रुको, रुको! मत छुओ इन लड्डुओं को।
चन्दन – नाराज क्यों हो रही हो। तुम्हारे हाथ के बने लड्डुओं को देखकर जीभ के लालच को काबू में करने में असमर्थ हूँ, क्या तुम इसे जानती हो?
मल्लिका – अच्छी तरह जानती हूँ स्वामी ! परन्तु ये लड्ड पूजा के प्रयोजन से बनाये हैं। संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुत नाट्यांशः अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। एषः पाठः कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि संग्रहात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)
प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे नायिका मल्लिका मोदकानि रचयन्ती दर्शिता। चन्दनः नायकः तानि स्प्रष्टुम् इच्छति परञ्च मल्लिका ‘एतानि मोदकानि पूजा निमित्तानि सन्ति’ इत्युक्त्वा वारयति। (इस नाट्यांश में नायिका मल्लिका लड्ड बनाती दिखाई गई है। चन्दन नायक उन्हें छूना चाहता है परन्तु मल्लिका उसे “ये लड्ड पूजा के लिए बनाये हैं” ऐसा कहकर रोक देती है।)
व्याख्या – (मल्लिका लड्डकानि निर्माणं कुर्वन्ती शनैः-शनैः निम्नस्वरेण वा महेशस्य स्तुतिं गायति। तत्पश्चात् लड्डकानां सुवासस्य अनुभवं कुर्वन् प्रसन्नचित्तः चन्दनः प्रवेशं करोति।) (मल्लिका लड्ड बनाती हुई मन्द स्वर में शिवजी की आरती गाती है। तब लड्डुओं की सुगन्ध का अनुभव करता हुआ प्रसन्नचित्त चन्दन प्रवेश करता है।)
चन्दनः – सुरभिः तु मनमोहका। (दृष्ट्वा) अये! लड्डकानि निर्मीयन्ते? (प्रसीदितः सन्) तदा स्वाद गृहणामि। . (लड्डुकम् ग्रहीतुमीहते)। (सुगन्धि तो मन को मोह लेने वाली है। (देखकर) अरे ! लड्डु बनाये जा रहे हैं? (प्रसन्नचित्त होते हुए) तो चखता हूँ। (लड्ड लेना चाहता है।))
मल्लिका – (सकोपम्) तिष्ठ! तिष्ठ! स्पर्श मा कुरु इमानि लड्डूकानि। ((नाराज हुई) रुको, रुको! छुओ मत इन लड्डुओं को।)
चन्दनः – कस्मात् प्रकुपसि? ते कर-रचितानि लड्डुकानि अवलोक्य अहं रसनायाः लिप्सां संयमपितुं असमर्थो अस्मि। अपि भवती न जानानि एतत् ? (नाराज क्यों होती हो। तुम्हारे हाथ के बने लड्ड देखकर मैं जीभ की लालसा को काबू में करने में असमर्थ हूँ। क्या आप इसे नहीं जानती?)
मल्लिका – स्वामिन् ! सुष्ठु जानामि अहम्। परञ्च इमानि लड्डकानि पूजनाय रचितानि। (स्वामी! अच्छी तरह जानती हूँ मैं, परन्तु ये लड्ड पूजा के लिए बनाये गये हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका मोदकानि रचयन्ती किं करोति? (मल्लिका लड्डू बनाती हुई क्या करती है?)
(ख) मोदकानां सुगन्धः कीदृशी आसीत् ? (लड्डुओं की सुगन्ध कैसी थी?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मोदकानि कि निमित्तानि निर्मितानि? (लड्डू किस निमित्त बनाये गये थे?)
(ख) मल्लिका किं कुर्वती आसीत् ? (मल्लिका क्या कर रही थी?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘असमर्थः’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशात् लिखत।
(‘असमर्थ पद का समानार्थी पद गद्यांश से लिखिए।)
(ख) “एतानि मोदकानि’ इति पदयोः विशेषण विशेष्य पदं निर्दिशत।
(‘एतानि मोदकानि’ इन पदों में विशेषण-विशेष्य पद बताइये।)
उत्तराणि :
(1) (क) शिव स्तुतिम् (शिव की स्तुति)।
(ख) मनोहरः (मन को हरने वाली)।

(2) (क) मोदकानि पूजा निमित्तानि निर्मितानि। (लड्डू पूजा के निमित्त बनाये गये थे।)
(ख) मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति। (मल्लिका लड्डू बनाती हुई मन्द स्वर से शिव स्तुति गाती है।)

(3) (क) अक्षमः (असमर्थः) ।
(ख) विशेषणपदम्-एतानि (ये) विशेष्यम्-मोदकानि ।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

2. चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादया प्रसादं च देहि।
मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्थां, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्था: – तर्हि = तदा (तो), शीघ्रमेव = क्षिप्रमेव (जल्दी ही), पूजनं = पूजाकार्यम् (पूजा के), सम्पादय = सम्पन्न कुरु (सम्पन्न करो), भोः = अरे (अजी), अत्र पूजनं = अत्र पूजाकार्यम् न (यहाँ फूजा कार्य नहीं), भविष्यति = सम्पाद्यते (होगा), अहं स्वसखिभि = अहं स्व सहचरीभिः (मैं अपनी सहेलियों के), सह = सार्धम् (साथ), स्वः प्रातः = आगामि-दिवसे (कल), प्रातः = प्रभाते (सुबह), काशीविश्वनाथ-मन्दिरं प्रति गमिष्यामि = काशीविश्वनाथ मन्दिरं यास्यामि (काशी विश्वनाथ मन्दिर जाऊँगी), तत्र = तत्रस्थाने (वहाँ), गङ्गा-स्नानम् = भागीरथी-अवगाहनम् (गंगा स्नान),

धर्मयात्राञ्च = तीर्थयात्रा च (और तीर्थयात्रा), वयं करिष्यामः = सम्पादयिष्यामः वयम् (हम करेंगे), सखिभिः सह = सहचरीभिः साकम् ? (सहेलियों के साथ), न मया सह! = न-मया सार्धम् (मेरे साथ नहीं), विषादं नाटयति = खेदस्य अभि नयं करोति (खेद का अभिनय करता है), आम् = (हाँ) चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी कपिला आद्याः (चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि), सर्वाः = सकलाः (सभी), गच्छन्ति = यानि (जा रही हैं),

अतः मया सह = मत्सार्धम् (मेरे साथ), तवागमनस्य = ते गन्तुं (तुम्हारा जाना), औचित्यं नास्ति = नोचितम् (उचित नहीं है), वयं सप्ताहन्ते = वयं सप्तदिनानि अतीत्य (हम सात दिन बाद), प्रत्यागमिष्यामः = प्रत्यायाष्यामः (लौटेंगे), तावत् गृह व्यवस्थाम् = तावत् गृहस्य व्यवस्थाम् (घर की व्यवस्था को), धेनोः दुग्ध दोहन व्यवस्थांच = गावः पयो दोग्धं च प्रबन्धम् (गाय का दूध दोहने की व्यवस्था), परिपालय = सम्पादय (प्रबन्ध या व्यवस्था करना)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पाठ कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर जाने की तैयारी करते हुए घोषणा करती है। हिन्दी-अनुवाद .. चन्दन – तो शीघ्र ही पूजा सम्पन्न कर लो और प्रसाद दे दो।

मल्लिका – अरे! यहाँ पूजन नहीं होगा। मैं अपनी सहेलियों के साथ कल प्रातः काशी विश्वनाथ मन्दिर जाऊँगी वहाँ हम गंगा-स्नान और तीर्थयात्रा करेंगे। चन्दन – सखियों के साथ ! मेरे साथ नहीं ! (दुःख का अभिनय करता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

मल्लिका – हाँ, चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सभी जा रही हैं। अत: मेरे साथ तुम्हारा आना उचित नहीं है। हम सप्ताह के अन्त में लौट आयेंगे। तब तक घर की व्यवस्था को और गाय के दोहने की व्यवस्था का पालन करना। संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतो नाट्यांशोऽस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। प्रस्तुतः पाठः कृष्णचन्द्रत्रिपाठी महाभाग रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पाठ कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी महाभाग द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम् ‘ एकाङ्की-संग्रह से सङ्कलित है।)

प्रसङ्ग – अस्मिन् नाट्यांशे मल्लिका स्व सखिभिः सह तीर्थयात्रां गमनाय सज्जां कुर्वन्ती घोषयति। (इस नाट्यांश में मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर जाने की तैयारी करती हुई घोषणा करती है।)

व्याख्याः – चन्दन- तदा क्षिप्रमेव पूजाकार्य सम्पन्नं कुरु। नैवेद्यं यच्छ। (तो शीघ्र ही पूजा का कार्य पूरा करो। प्रसाद दे दो।)

मल्लिका – अरे! अत्र पूजाकार्यं न सम्पाद्यते। अहं सहचरीभिः सार्धं आगामि-दिवसे प्रभाते एव काशीविश्वनाथ मन्दिरं यास्यामि, तत्स्थाने भागीरथी-अवगाहनं तीर्थयात्रां च सम्पादयिष्यामः। (अरे, यहाँ पूजन नहीं किया जायेगा। मैं अपनी सहेलियों के साथ कल प्रातः काल ही काशीविश्वनाथ के मन्दिर जायेंगे, वहाँ गंगा में स्नान करेंगे तथा तीर्थयात्रा सम्पन्न करेंगे। )

चन्दनः – सहचरीभिः साकम्? न मया सार्धम्। खेदस्य अभिनयं करोति। (क्या सहेलियों के साथ? मेरे साथ नहीं? (खेद का अभिनय करता है।))

मल्लिका – आम्! चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी कपिलाद्याः सकला: यान्ति अत: मत्सार्धं ते गन्तु नोचितम्। वयं सप्त दिनानि अतीत्य प्रत्यायास्यामः। तावत् गृहस्थ व्यवस्थां, गावः पयोदोग्धुं च प्रबन्धं सम्पादय। (हाँ, चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सभी जा रही हैं। अत: मेरे साथ आपको जाना उचित नहीं है। हम सात दिन व्यतीत कर आयेंगे, तब तक गृहस्थ का प्रबन्ध और गाय का दूध दोहने का प्रबन्ध करना।)

अवबोधन कार्यम

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका सखिभिः सह कुत्र गमिष्यति? (मल्लिका सखियों के साथ कहाँ जायेगी?)
(ख) मल्लिका कदा प्रत्यागमिष्यति? (मल्लिका कब लौटेगी?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका काशी गत्वा किं करिष्यति? (मल्लिका काशी जाकर क्या करेगी?)
(ख) प्रस्थानकाले मल्लिका चन्दनं किं कथयति? (चलते समय मल्लिका चन्दन से क्या कहती है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘न मया सह’ अत्र ‘मया’ सर्वनाम पदं कस्य संज्ञापदस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(‘न मया सह’ यहाँ ‘मया’ सर्वनाम पद किस संज्ञा पद के स्थान पर प्रयोग किया गया है?)
(ख) ‘विषादं नाटयति’ इति वाक्ये ‘नाटयति’ क्रियापदस्य कर्ता कः?
(‘विषादं नाटयति’ वाक्य में ‘नाटयति’ क्रियापद का कर्ता कौन है?)
उत्तराणि :
(1) (क) काशीविश्वनाथमन्दिरम्। (काशी विश्वनाथ मन्दिर।)
(ख) सप्ताहान्ते (सप्ताह बाद)।
(2) (क) मल्लिका काशी गत्वा गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च करिष्यति। (मल्लिका काशी जाकर गंगा स्नान और धर्म यात्रा करेगी।)
(ख) मल्लिका कथयति-वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत् गृहव्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहन-व्यवस्था च ….. परिपालय। (मल्लिका कहती है-हम सप्ताह के अन्त में लौटेंगे, तब तक घर की व्यवस्था और गाय के
दूध दोहने की व्यवस्था का पालन करना।) (क) चन्दनेन (चन्दन)। (ख) चन्दनः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(द्वितीय दृश्यम्)

3. चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानि तु गङ्गास्नानार्थ काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?

शब्दार्था: – अस्तु = भवतु (खैर), गच्छ = यादि (जाओ), सखिभिः सह = सहचरीभिः सार्धम् (सहेलियों के साथ), धर्मयात्रया = तीर्थयात्रा गमनेन (तीर्थयात्रा पर जाने से), आनन्दिता च भव = आत्मानम् सानन्दं कुरु (अपने को.आमन्त्रित करो), अहं सर्वमपि = अहं सकलमपि (मैं सभी को), पालयिष्यामि = सम्पादयिष्यामि (कर लूँगा), ते = तव (तेरे), पन्थान = मार्गाः (मार्ग), शिवाः = शुभाः (शुभ), सन्तु = भवन्तु (हों), मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता = मल्लिका तु तीर्थयात्रायै गता (मल्लिका तो तीर्थयात्रा के लिए गई),

अस्तु = भवतु (खैर), दुग्धदोहनं कृत्वा = पयोदुग्ध्वा (दूध निकालकर), ततः = तदा (तब), स्वप्रातराशस्य = आत्मनः प्रभात भोजनस्य (अपने कलेवा, नास्ते का), प्रबंन्धं = व्यवस्था (प्रबध), करिष्यामि = सम्पादयिष्यामि (करूँगा), स्त्रीवेष – नारीपरिधानम् (स्त्री का वेष), धृत्वा = धारयित्वा (धारण कर), दुग्धपात्रहस्तः = पयः पात्रं करे नीत्वा (दूध का बर्तन हाथ में लेकर), नन्दिन्याः = धेनोः (गाय के), समीपम् = समक्षं (समीप), गच्छति = भगति (जाता है),

मातुलानि! = मातृ-भ्रातृ-जाये मातुः भ्रातुः जाये वा (मामीजी), उमे! अहं तु मातुलः = अहन्तु तव मातृ-भ्राता (मैं तो तेरा मामा हूँ), तवते (तेरी) मातुलानि = मातृ-भ्रातृ-जाया (मामी जी), तु गङ्गास्नानार्थं = भागीरथी-अवगाहनाय (गंगाजी स्नान करने के लिए), काशींगता अस्ति = काशी तीर्थयात्रा (काशी तीर्थ को गई है), कथय = ब्रूहि (कहा), किं ते = किं तव (तुम्हारा क्या), प्रियं करवाणि = शुभं करवै (प्रिय करूं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।
प्रसंग – इस नाट्यांश में मल्लिका के गंगास्नान चले जाने पर चन्दन की व्यवस्था के विषय में बताया है।

हिन्दी-अनुवाद

चन्दन – (खैर, जाओ, सखियों के साथ तीर्थयात्रा से आनन्दित हो। मैं सब सम्पन्न कर लूँगा। तुम्हारी राहें शुभ अर्थात् कल्याणकारी हों।)
चन्दन – (मल्लिका तो तीर्थयात्रा के लिए गयी। खैर दूध दोहकर तब अपने कलेवे का प्रबन्ध करूँगा। (स्त्री वेष धारण कर दूध का बर्तन हाथ में लिए हुए नन्दिनी के समीप जाता है।)
उमा – (मामी जी, मामी जी।)
चन्दन – (अरी उमा! मैं तो मामा हूँ। तेरी मामी जी तो गंगा स्नान के लिए काशी गई हुई हैं। कहो मैं तुम्हारा क्या भला (इच्छित) करूँ?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भः – प्रस्तुतः नाट्यांशः अस्माकम् ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। प्रस्तुतः पाठः कृष्णचन्द त्रिपाठी रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी कृत् चतुर्ग्रह एकांकी संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – अस्मिन् नाट्यांशे मल्लिकायां तीर्थयात्रां गते चन्दनस्य व्यवस्थाया वर्णनम् अस्ति। (इस नाट्यांश में मल्लिका के यात्रा पर चले जाने पर चन्दन की व्यवस्था का वर्णन है।)

व्याख्या: –

चन्दनः – भवतु । याहि। सहचरीभिः सार्धम्, तीर्थयात्रागमनेन आत्मानम् सानन्दं कुरु। अहम् सकलम् अपि सम्पाद यिष्यामि। तव मार्गाः शुभाः भवन्त। (खैर! जाओ! सहेलियों के साथ तीर्थयात्रा से अपने को आनन्दित करो, मैं सब कुछ सम्पन्न कर लूँगा। तुम्हारे मार्ग शुभ हों।)

चन्दनः – मल्लि तु तीर्थयात्रायै याता। भवतु। पयो दुग्ध्वा आत्मनः प्रभातभोजनस्य व्यवस्थां विधास्यामि। (नारी परिधानं धारयित्वा पयः पात्रं करे नीत्वा नन्दिन्याः धेनोः समक्षं याति।) (मल्लिका तो तीर्थयात्रा के लिए गई। खैर, दूध दुहकर अपने कलेवा की व्यवस्था करूँगा। (औरत के कपड़े पहनकर दूध का बर्तन हाथ में लेकर नन्दिनी गाय के पास जाता है।))
उमा – मातृ-भ्रातु-जाये! मातुभ्रातुः जाये! (मामी जी, मामी जी!)
चन्दनः – उमे! अहं तु ते मातृ-भ्राता। ते मातृ-भ्रातु जाया तु भागीरथी अवगाहनाय काशीतीर्थं गता। ब्रूहि, किं तव शुभं करवै? (उमा, मैं तो मामा हूँ। तेरी मामी जी तो गंगास्नान के लिए काशीतीर्थ गई हुई हैं। कहो मैं तुम्हारा क्या भला करूँ।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका कुत्र गता? (मल्लिका कहाँ गई?)
(ख) चन्दनस्य धेनोः नाम किम् आसीत् ? (चन्दन की गाय का नाम क्या था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः मल्लिका प्रति किं वरं वितरति? (चन्दन मल्लिका को क्या आशीष देता है?)
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा किं करिष्यति? (चन्द दूध दोहकर क्या करेगा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘नन्दिन्याः समीपं गच्छति’ अत्र गच्छति क्रियायाः कर्तृपदं लिखत।
(‘नन्दिन्याः समीपं गच्छति’ यहाँ गच्छति क्रिया का कर्ता लिखिए।)
(ख) ‘दूरम्’ इति पदस्य विलोमपदं नाट्यांशात् लिखत? (‘दूरम्’ पद का विलोम पद नाट्यांश से लिखिए?)
उत्तराणि :
(1) (क) धर्मयात्रायै। (धर्म यात्रा के लिए)।
(ख) नन्दिनी।

(2) (क) शिवास्ते सन्तु पन्थानः। (तुम्हारे मार्ग शुभ हों।)
(ख) स्व प्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यति। (अपने. कलेवा का प्रबन्ध करेगा।)

(3) (क) चन्दनः।
(ख) समीपम् (पास)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

4. उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम्! शोभनम्। दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्थाः – मातुल = मातुल! (मामाजी), पितामहः = पितुर्जनक (दादाजी), कथयति = सूचयति (कहते हैं), मासानन्तरम् = व्यतीतेमासे (एक माह पश्चात्), अस्मत् गृहे = अस्माकम् आवासे (हमारे घर), महोत्सवः = महत्पर्व (महान उत्सव), भविष्यति = प्रवर्तिष्यते (होगा), तत्र = तस्मिन् (उसमें), त्रिंशत-सेटकमितं (तीस लीटर) दुग्धम् अपेक्षते = दुग्धस्य आवश्यकता भविष्यति (दूध की आवश्यकता होगी), एषा व्यवस्था = अस्य प्रबन्धं (इसका इन्तजाम),

भवद्भिः करणीया = भवन्त कुर्मुः (आपको करना है), प्रसन्नमनसा = प्रसन्नचित्तेन (प्रसन्नचित्त से), त्रिशत-सेटककपरिमितं. दुग्धम् = त्रिंशत-सेटकपरिमितं पयः (तीस लीटर दूध), शोभनम् = सुन्दरम् (अच्छा), दुग्धव्यवस्था = पयसः प्रबन्धं (दूध की व्यवस्था), भविष्यति एव = विधास्यते एव (हो ही जायेगी), इति पितामहं प्रति = इति पितुर्जनकं (ऐसा दादाजी से), त्वया वक्तव्यम् = त्वम् कथयेत् (तुम कह देना), धन्यवाद मातुल! = धन्यो भवान् मातुल (मामाजी आप धन्य हैं), याम्यधुना = गच्छामि इदानीम् (अब जा रही हूँ), सा निर्गता = असौ निष्क्रान्ता (वह निकल गई)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।

प्रसंग-इस नाट्यांश में मामा चन्दन को उमा महोत्सव के लिए दूध की आवश्यकता बताते हुए कहती है।

हिन्दी अनुवादः

उमा – मामाजी, दादाजी कहते हैं कि एक महीने बाद हमारे घर में एक बड़ा उत्सव होगा। वहाँ तीस लीटर दूध की आवश्यकता होगी। यह व्यवस्था आपको करनी है।

चन्दन – (प्रसन्नचित्त) तीस लीटर दूध! बहुत अच्छा, दूध का प्रबन्ध होना ही है, ऐसा दादाजी से आपको कह देना चाहिए।

उमा – धन्यवाद मामाजी, अब जाती हूँ! (वह निकल गई) संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयम् कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचितात ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि संग्रहात् संकलितः। (यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकाङ्की संग्रह से संकलित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रसङ्गः – नाट्यांशे अस्मिन् मातुलम् चन्दनम् उमा महोत्सवे दुग्धस्य मात्रायाः विषये तस्य व्यवस्थायै च कथयति। (इस नाट्यांश में मामा चन्दन को उमा महोत्सव में दूध की मात्रा के विषय में और उसकी व्यवस्था के विषय में कहती है।)

व्याख्या:

मातुलः – मातुल! मम पितुर्जनकः सूचयति यत् व्यतीतेमासे अस्माकं आवासे एकं महत् पर्व प्रवतिष्यते। तस्मिन् उत्सवे त्रिंशत सेटकमितस्य पयसः आवश्यकता भविष्यति। अस्य प्रबन्धं भवन्तु एव कुर्युः। (मामाजी! मेरे दादाजी सूचित करते हैं कि एक माह पश्चात् हमारे घर पर एक बड़ा उत्सव होगा। उस उत्सव तीस लीटर दूध की आवश्यकता होगी। इसका प्रबन्ध आपको करना है।)

चन्दनः – (प्रसन्नचित्तेन) त्रिंशत सेटकमितं पयः? सुन्दरम्। पयसः प्रबन्धं विधास्यते एव इति पितुर्जनकं त्वं कथयेत्। ((प्रसन्न मन से) तीस लीटर दूध! बहुत अच्छा। दूध का प्रबन्ध कर ही दिया जायेगा ऐसा तुम दादी से कह देना।)

उमा – धन्यो भवान्, मातुल! गच्छामि इदानीम् (असौ निष्क्रान्ता) (धन्य हैं आप, मामाजी! अब मैं जाती हूँ। (वह निकल गई))

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) उत्सवाय दुग्धस्य व्यवस्था केन करणीया? (उत्सव के लिए दूध की व्यवस्था किसके द्वारा की जानी है?)
(ख) महोत्सवाय किमद् दुग्धम् अपेक्षितम्? (महोत्सव के लिए कितना दूध अपेक्षित है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) उमा चन्दनाय किं निवेदयति? (उमा चन्दन से क्या निवेदन करती है?)
(ख) चन्दनः दुग्धस्य विषये उमायै किं कथयति? (चन्दन दूध के विषय में उमा से क्या कहता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘निर्गता’ इति पदे उपसर्ग लिखत? (‘निर्गता’ पद में उपसर्ग लिखिये?)
(ख) ‘गृहे महोत्सवः भविष्यति’ अत्र भविष्यति क्रियापदस्य कर्तृपदं लिखत।
(‘गृहे महोत्सवः भविष्यति’ यहाँ भविष्यति क्रिया का कर्ता कौन है?)
उत्तराणि :
(1) (क) चन्दनेन। (चन्दन द्वारा)।
(ख) त्रिंशत-सेटका (तीस लीटर)।

(2) (क) मातुल! मासान्तरे अस्मद् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत्-सेटकं दुग्धम् अपेक्षित। व्यवस्था भवद्भिः एव करणीया। (मामाजी! महीनेभर बाद हमारे घर पर महोत्सव होगा, वहाँ तीस लीटर दूध की अपेक्षा है। प्रबन्ध आपको करना है।)
(ख) दुग्धस्य व्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं त्वया वक्तव्यम्। (दूध की व्यवस्था हो ही जायेगी, ऐसा दादाजी से तुम कह देना।)

(3) (क) निर् उपसर्ग।
(ख) ‘महोत्सवः’ इति कर्ता।

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(तृतीय दृश्यम्)

5. चन्दनः – (प्रसन्नो भूत्वा, अङ्गलिषु गणयन्) अहो! सेटक-त्रिशतकानि पयासि! अनेन हुभनं लप्स्ये।
(नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति).

चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्ध सुरक्षितं न तिष्ठति। इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि।
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति)

शब्दार्थाः – पन्नो भत्वा = प्रफल्ल सन (प्रसन्न होकर), अङलिष गणयन = अली पर्वस गणनां कर्वन (अँगलियों पर गिनते हुए), सेटक-त्रिंशतकानि पयांसि = सेटक त्रिशतकम् दुग्धं (तीस लीटर दूध), अनेन तु = एतेन तु (इससे तो), बहुधनं लप्स्ये = प्रभूतं धनं प्राप्स्यामि (बहुत धन प्राप्त कर लूँगा), नन्दिनीं दृष्ट्वा = नन्दिनीत्यभिधां धेनुम् अवलोक्य (नन्दिनी नामक गाय को देखकर), भो नन्दिनि! = भोः नन्दिनि (अरी नन्दिनी), तव कृपया तु = ते अनुकम्पयातु (तेरी कृपा से तो),

अहं धनिकः भविष्यामि = अहं धनवान् भविष्यामि (मैं धनवान हो जाऊँगा), प्रसन्नः सः = प्रसीदितोऽसौ (वह खुश हुआ), धेनोः = गावः (गाय की), बहु = प्रभूतं (बहुत), सेवाम् = सपर्या (सेवा), करोति = विदधाति (करता है), चिन्तयति = विचारयति (सोचता है), मासान्ते एव = मासान्तरमेव (महीने के बाद ही), दुग्धस्य = पयसि (दूध की), आवश्यकता = अपेक्षितानि (आवश्यकता होगी), यदि प्रतिदिनम् = अहरहः (प्रत्येक दिन), दोहनं करोमि = (गां दुग्धं दोदिभ) गाय का दूध दोहता हूँ, तर्हि = तदा (तव), दुग्धम् = पयः (दूध),

सुरक्षितं न तिष्ठति = असुरक्षितो भविष्यति (सुरक्षित नहीं रहेगा), इदानीम् = अधुना (अब), किं करवाणि = किं कुर्याम् (क्या करूँ?), भवतु नाम = अस्तु (खैर), मासान्ते एव = मास काले एव (महीने भर बाद ही), सम्पूर्णतया = सम्पूर्णम् एव (सारा ही), दुग्ध दोहनं करोमि = दोहनयामि (दोहन कर लूँगा), एवं क्रमेण = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), सप्ताहान्ते = सप्ताहनमेक (एक सप्ताह), व्यतीतानि = व्यतीतोऽभवत् (बीत गया), सप्ताहान्ते = सप्त दिनान्तरे (सात दिन बाद), मल्लिका प्रत्यागच्छति = मल्लिका प्रत्यायाति निवर्तते वा (लौट रही है)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में चन्दन तीस लीटर दूध की व्यवस्था के विषय में सोचता है कि गाय को रोजना दोहने की अपेक्षा महीने के अन्त में ही दोह लूँगा ताकि एक साथ तीस लीटर दूध उपलब्ध हो सके।

हिन्दी अनुवादः

चन्दन – (प्रसन्न होकर उँगलियों पर गिनते हुए) अरे! तीस लीटर दूध! उससे तो बहुत-सा धन प्राप्त कर लूँगा। (नन्दिनी को देखकर) अरी नन्दिनी ! तेरी कृपा से तो मैं धनवान हो जाऊँगा (प्रसन्न हुआ वह गाय की बहुत सेवा करता है।)
चन्दन – (सोचता है) महीने के अन्त में ही दूध की आवश्यकता होती है। यदि प्रत्येक दिन दूध निकालता हूँ तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। अब क्या करूँ? अच्छा तो महीने के अन्त में ही पूरा दूध दोह लूँगा।
(इस प्रकार क्रमशः सात दिन व्यतीत हो जाते हैं, सप्ताह के अन्त में मल्लिका लौट आती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ पाठात् उद्धृतः। अयं पाठः कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितः अस्ति। (यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन चन्दनः त्रिंशत सेटकमितस्य दुग्धस्य व्यवस्थाया विषये चिन्तयति। धेनुं प्रतिदिनं दोहनात तु मासान्ते दोहनवरम् येन एकदा सेटकत्रिंशतकम् दुग्धं प्राप्तं भविष्यति । (इस नाट्यांश में चन्दन तीस लीटर दूध की व्यवस्था के विषय में सोचता है। गाय को रोजाना दोहने की अपेक्षा महीने के अन्त में दोहना उचित रहेगा, जिससे एक दिन ही तीस लीटर दूध प्राप्त हो जायेगा।)

चन्दनः – (प्रफुल्लः सन्, अङ्गुली पर्वसु गणनां करोति।) अरे! त्रिंशत सेटकमितं दुग्ध! एतेन तु प्रभूतं वित्तं प्राप्स्यमि। (नन्दिनीत्याभिद्यां ध धेनुमवलोक्य) भो नन्दिनि! तेऽनुकम्पया तु अहं धनवान् भविष्यामि। प्रसीदितोऽसौ गावः प्रभूतं सपर्यां विदधाति। ((प्रसन्न होकर अँगुलियों पर गिनती करता है।) अरे तीस लीटर दूध! इससे तो बहुत धन प्राप्त होगा। (नन्दिनी नामक गाय को देखकर) अरी नन्दिनी! तेरी कृपा से तो मैं धनवान हो जाऊँगा।)

चन्दनः – (विचारयति) मासान्तरम् एव पयसि अपेक्षितानि यदि अहरहः गां दुग्धं दोह्नि तदा पयः असुरक्षितो भविष्यति अधुना किं कुर्याम्। अस्तु, मासकाले एव धोक्ष्यामि सम्पूर्ण सेटक त्रिशतकं दुग्धम्। ((सोचता है) अनेन प्रकारेण सप्ताहनमेकं व्यतीतम्। सप्त दिनान्तरे मल्लिका निवर्तते महीने बाद दूध की आवश्यकता होगी। यदि नित्य गाय का दूध दोहता हूँ तो दूध असुरक्षित होगा। अब क्या करूँ। खैर, महीने का समय बीतने पर पूरा तीस लीटर दूध एक साथ दोह लूँगा। इस प्रकार सप्ताह व्यतीत हो गया। सात दिन के बाद मल्लिका लौटती है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) दुग्धस्य गणितं केषु करोति? (दूध का हिसाब किन पर करता है?)
(ख) दुग्धस्य आवश्यकता कदा भविष्यति? (दूध की आवश्यकता कब होगी?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः नन्दिनी किं कथयति? (चन्दन नन्दिनी से क्या कहता है?)
(ख) दुग्धस्य विक्रयं श्रुत्वा चन्दनः आश्चर्यं किमचिन्तयत?
(दूध के विक्रय को सुनकर चन्दन ने आश्चर्य से क्या सोचा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘भूत्वा’ इति पदे मूलधातु-निर्देशं कुरुत्। (भूत्वा’ पद में मूल धातु का निर्देश करो।)
(ख) ‘प्रत्यागच्छति’ क्रियापदस्य कर्तृपदं लिखत। (‘प्रत्यागच्छति’ क्रिया का कर्तृपद लिखो।)
उत्तराणि :
(1) (क) दुग्धस्य आवश्यकता मासान्ते भविष्यति। (दूध की आवश्यकता महीने के अंत में होगी।)।
(ख) नन्दिनि ! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (नन्दिनि! तेरी कृपा से तो मैं धनवान् हो जाऊँगा।)

(2) (क) नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (नन्दिनि! तेरी कृपा से तो मैं धनवान् हो जाऊँगा।)
(ख) ‘अनेन तु बहुधनं लप्स्ये।’ इति अचिन्तयत्। (‘इससे तो बहुत धन मिलेगा’ यह सोचता है।)

(3) (क) भू धातुः।
(ख) मल्लिका (सा)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

6. मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्। (चन्दनः मोदकानि खादति वदति च)
चन्दनः – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम्) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम्?

शब्दार्थाः-प्रविश्य = प्रवेशं कृत्वा (प्रवेश करके), स्वामिन् = नाथ (स्वामी), प्रत्यागता अहम् = अहं प्रत्यावृता (मैं लौट आई), आस्वादय प्रसादम् = नैवेद्यं स्वादयतु (प्रसाद चखना), चन्दनः मोदकानि = चन्दनः लड्डकानि (चन्दन लड्डुओं को), खादति = अत्ति (खाता है), वदति च = कथयति च (और कहता है), मल्लिके! = मल्लिके! (अरी मल्लिका), तव = ते (तेरी), यात्रा = तीर्थयात्रा तु (तीर्थयात्रा तो),

सम्यक् सफला जाता = सुसम्पन्न अभवत् (अच्छी तरह पूरी हो गई), काशीविश्वनाथस्य कृपया = काशीविश्वनाथस्य अनुकम्पया (काशीविश्वनाथ की कृपा से), प्रियं निवेदयामि = एकं सुखदं वृत्तं कथयामि (एक शुभ समाचार सुनाता हूँ), साश्चर्यम् = सविस्मयम् (आश्चर्य के साथ), एवम् = इत्यम् (ऐसे), धर्मयात्रातिरिक्तं = तीर्थयात्राम् अतिरिच्य (तीर्थयात्रा से भी बढ़कर), प्रियतरं किम् = एमस्मादसि शोभनम् किम् (इनसे भी अधिक सुन्दर क्या है)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।
प्रसंग – इस नाट्यांश में मल्लिका यात्रा से लौट आई है तथा अपने पति के साथ संवाद करती है।
मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं लौट आई हूँ। प्रसाद चखो। (चन्दन लड्डू खाता है और बोलता
चन्दन – मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो अच्छी तरह सफल हो गई। काशी विश्वनाथ की कृपा से प्रिय निवेदन करता हूँ।
मल्लिका – (आश्चर्य के साथ) ऐसी बात है। धर्मयात्रा के अतिरिक्त और क्या अधिक प्रिय हो सकता है?

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति । पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-विरचितात् ‘चतुर्दूहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन् मल्लिका तीर्थयात्रां समाप्य प्रत्यागच्छति स्वपतिं च संवदति। (इस नाट्वांश में मल्लिका तीर्थयात्रा समाप्त कर लौट आई है। अपने पति से संवाद करती है।

व्याख्याः-

मल्लिका – (प्रवेशं कृत्वा) नाथ! अहं प्रत्यावृता। नैवेद्यस्य स्वादयतु। (चन्दनः लड्डकानि अत्ति कथयति च।) (प्रवेश करके) स्वामी! मैं लौट आई। प्रसाद चखो। (चन्दन लड्डू खाता है और कहता है।)
चन्दन – मल्लिके! ते तीर्थयात्रा तु सुसम्पन्ना अभवत् ? काशी विश्वनाथस्य अनुकम्पया एक सुखदवृत्तं कथयामि। (अरी मल्लिका? तेरी तीर्थ यात्रा तो अच्छी तरह पूरी हो गई न? काशी विश्वनाथ जी की कृपा से एक सुखद समाचार सुनाता हूँ।)
मल्लिका – (सविस्मयम्) इत्थम्। तीर्थयात्रामतिरिच्य किं एतस्माद् अपि शोभनतरम्? (आश्चर्य के साथ) इस प्रकार तीर्थयात्रा से बढ़कर, इससे भी अधिक और क्या सुखद समाचार होगा?)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कः मोदकं खादति (कौन लड्डू खाता है?)
(ख) ‘आस्वादय प्रसादम्’ इति केनोक्तम्? (‘आस्वादय प्रसादम्’ यह किसने कहा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)”
(क) गृहं प्रविश्य मल्लिका चन्दनं किम कथयत्? (घर में प्रवेश करके मल्लिका ने चन्दन से क्या कहा?)
(ख) चन्दनः मल्लिकां किम् अपृच्छत् ? (चन्दन से मल्लिका ने क्या पूछा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) नाट्यांश ‘खादति’ क्रियायाः कर्तृपदं किम्? (नाट्यांश में ‘खादति’ क्रिया का कर्ता कौन है?)
(ख) ‘प्रियतरम्’ इत्यत्र प्रत्ययं पृथक् कृत्वा लिखत। (‘प्रियतरम्’ यहाँ प्रत्यय को अलग करके लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) चन्दनः (चन्दन)।
(ख) मल्लिकया (मल्लिका द्वारा)।

(2) (क) ‘स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्। (स्वामी मैं आ गई। प्रसाद चखिये।)
(ख) ‘मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? इति चन्दनेन पृष्टम्। (मल्लिके! तुम्हारी यात्रा तो अच्छी तरह सफल हो गई? ऐसा चन्दन ने पूछाः।)

(3) (क) चन्दनः।
(ख) तरम्-प्रत्यय।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

7. चन्दनः – ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति ।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः।
चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्याव:। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः।

शब्दार्थाः – मल्लिका प्रति = (मल्लिका से)! ग्रामप्रमुखस्य = ग्राम प्रधानस्य (ग्राम प्रधान के), गृहे = आवासे (घर पर), मासान्ते = मासान्तरम् (महीने भर बाद), महोत्सवः = महत्वपूर्णम् आयोजनः (महत्वपूर्ण आयोजन), भविष्यति = आयोज्यते (होगा), तत्र = तस्मिन् आयोजने (उस आयोजन में), त्रिंशत सेटकमितं = (तीस लीटर), दुग्धम् = पयः (दूध), दातव्यम् = दद्याम् (देंगे), किन्तु = परं च (परन्तु), एतावन्मात्रम् = इयन्मात्राम् (इतनी मात्रा में), दुग्धम् = पयः (दूध), कुतः = कथम् (कैसे या कहाँ से), प्राप्स्याम = लप्स्यामः (प्राप्त करेंगे),

विचारय मल्लिके! = मल्लिके त्वं चिन्तय (मल्लिका तुम सोचो), प्रतिदिनम् = नित्यम् यदिवयं (यदि हम रोजाना), दोहनं कृत्वा = दुग्धा (दोहन कर), दुग्धं = पयः (दूध को), स्थापयामः = सञ्चयं करिष्याम (इकट्ठा करेंगे), चेत् तत् = तदा तु (तब तो), सुरक्षितं न तिष्ठति = असुरक्षितं भविष्यति (असुरक्षित होगा) अत एव (अत:), दुग्ध दोहनं न क्रियते = गां दुग्धं न दुग्ध्वा (दूध न दोहकर), उत्सवदिवसे = आयोजनस्य दिवसे एव (उत्सव के दिन ही),

समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः = सम्पूर्णस्य पयसः दोहनं करिष्यामः (सम्पूर्ण दूध क दोह लेंगे), स्वामिन् = नाथ! (स्वामी), त्वं चतुरतमः = भवान् पटुतम (आप सबसे अधिक चतुर हैं), अत्युत्तमः विचारः = भवत् चिन्तनं तु श्रेष्ठः (आपका चिन्तन तो श्रेष्ठ है।), अधुना = इदानीम् (अब), दुग्ध दोहनम् विहाय = पयः न दुग्ध (दूध न दोहकर), नन्दियाः = धेनो (गाय की), सेवाम् = सपर्यामेव (सेवा ही), करिष्यावः = विधास्याव (करेंगे), अनेन = एवं (इससे), अधिकाधिकं दुग्धं = प्रभूततरं पयः (अधिकतम दूध), मासान्ते = मासस्य अन्ते उत्सव दिवसे (महीने के अन्त के उत्सव दिवस पर), प्राप्स्यावः = लप्स्यावः (प्राप्त कर लेंगे)।

हिन्दी-अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन महीने के अन्त में ग्राममुखिया के घर पर होने वाले महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध की व्यवस्था के लिये योजना बनाता है।

चन्दन – (मल्लिका के प्रति) गाँव के मुखिया के घर पर महीने के अन्त में महान् उत्सव होगा। वहाँ तीस लीटर दूध हमें देना है। मल्लिका – किन्तु इतना दूध कहाँ से प्राप्त करेंगे?
चन्दन – सोचो मल्लिका! हर रोज दूध दुहकर रख देंगे परन्तु वह सुरक्षित नहीं रहेगा। अतः दूध का दोहन न किया जाये। उत्सव के दिन ही सारा दूध दोह लेंगे।
मल्लिका – स्वामी! तुम तो सबसे अधिक चतुर हो। बहुत उत्तम विचार है। अब दूध दोहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। इससे अधिक-से-अधिक दूध महीने के अन्त में प्राप्त कर लेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुव्यूहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे चन्दन: मासान्ते ग्रामप्रधानस्य गृहे प्रवृत्तमानाय उत्सवाय त्रिंशत सेटकमितं दुग्ध-प्रदानाय योजनां. रचयति। (प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन महीने के अन्त में ग्राम प्रधान के घर पर होने वाले महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध देने की योजना बनाता है।

व्याख्या:

चन्दनः – (मल्लिकां प्रति) प्रिये! मासानन्तरं ग्रामप्रधानस्य आवासे महत्वपूर्णः आयोजनं आयोज्यते। तस्मिन् आयोजने वयं त्रिंशत सेटकपरिमितं पयः दद्याम। (चन्दन (मल्लिका से) प्रिये एक महीने बाद गाँव के प्रमुख के घर पर एक महान् उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। उस आयोजन में हमें तीस लीटर दूध देना है।)
मल्लिका – परञ्च इयत् मात्रां पयः कथं लप्स्यामः? (परन्तु इतनी मात्रा में दूध कैसे प्राप्त करेंगे?)
चन्दनः – मल्लिके! त्वं चिन्तय। यदि वयं नित्यं पयः दुग्धा सञ्चयं करिष्यामः तदा तु असुरक्षितं भविष्यति। इति विचिन्त्य वयं प्रतिदिनं गां न दुग्ध्वा आयोजनस्य दिवसे एव सम्पूर्णस्य पयसः दोहनं करिष्यामः। (मल्लिका, तू सोच। यदि हम रोजाना दूध दोह कर संचय करेंगे तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। यह सोचकर हम प्रतिदिन गाय का दूध न निकाल कर आयोजन के दिन ही सारा दूध दोह लेंगे।)
मल्लिकाः – नाथ! भवान् तु पटुतम। भवतो विचारः तु श्रेष्ठः। इदानीं तु पयः न दुग्ध्वा नन्दिन्याः सपर्याम् एव विधास्वावः। एवम् प्रभूततरं पयः उत्सवदिवसे लप्स्यावः। (स्वामी, आप तो बहुत चतुर हैं। आपका विचार उत्तम है। अब तो गाय का दूध न दोहकर नन्दिनी की मात्र सेवा करेंगे। इस प्रकार बहुत सारा दूध उत्सव के दिन प्राप्त हो जायेगा।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) महोत्सवः कस्य गृहे आसीत्? (महोत्सव किसके घर में था?)
(ख) चन्दनः कदा सर्व दुग्धं धोक्ष्यति? (चन्दन सारा दूध कब दोहेगा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनेन ग्रामप्रमुखाय कियत् दुग्धं देयम् आसीत् ? (चन्दन को ग्राम मुखिया के लिए कितना दूध देना है?)
(ख) मल्लिकया चन्दनः कथं परामृष्टः? (मल्लिका ने चन्दन को क्या परामर्श दिया?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘लप्स्यावः’ इति क्रियापद स्थाने नाट्यांशे किं क्रियापदं प्रयुक्तम्?
(‘लप्स्यावः’ क्रियापद के स्थान पर नाट्यांश में कौन सा क्रियापद प्रयुक्त किया है?)
(ख). ‘चेत् तत् संरक्षितं न तिष्ठति’ अत्र ‘तत्’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(‘चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति’ यहाँ ‘तत्’ सर्वनाम का प्रयोग किसके लिए हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) ग्रामप्रमुखस्य (ग्राम-प्रधान के लिए।)
(ख) उत्सवदिवसे (उत्सव वाले दिन)।

(2) (क) चन्दनेन ग्रामप्रमुखाय त्रिंशत-सेटकमितं दुग्धं देयम् आसीत्। (चन्दन को ग्राम-प्रमुख के लिए तीस लीटर दूध देना था।)
(ख) अधुना दुग्ध दोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। (अब दूध दोहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा करेंगे।)

(3) (क) प्राप्स्यावः (प्राप्त करेंगे)।
(ख) दुग्धम् (दूध)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

8. (द्वावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः। अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः। कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः)

चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकारं प्रति चलावः। दुग्धार्थ पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः। (द्वावेव निर्गतौ)

शब्दार्था: – द्वावेव = मल्लिका चन्दनौ उभौ एव (मल्लिका और चन्दन दोनों ही), धेनोः = गावः (गाय की), सेवायाम् = सपर्यायाम् (सेवा में), निरतौ भवतः = संलग्नौ आस्ताम् (लग गये), अस्मिन् क्रमे = एतस्मिन्नेव प्रसङ्गे (इसी प्रसंग में), घासादिकं गुडादिकं च = शष्पादिकं गुडादिकं च (घास और गुड़ आदि), भोजयतः = खादयतः (खिलाते हैं), कदाचित् = कदाचन (कभी), विषाणयोः = श्रृंगयोः (सींगों पर),

तैलं लेपयतः = स्नेहलेपनं कुरुतः (तेल आदि चिकना लेप करते हैं), तिलकं = पुण्ड्रकं (तिलक), धारयतः = (लगाते हैं), रात्रौ = निशायाम् (रात में), नीराजनेनापि = दीप प्रदानेन (दीपक जलाकर), तोषयतः = सन्तुष्टं कुरुतः (सन्तुष्ट करते हैं), मल्लिके! आगच्छत = मल्लिका आयाति (मल्लिका आओ), कुम्भकारं प्रति चलावः = कुम्भकारस्य गृहं प्रति गच्छावः (कुम्हार के घर चलते हैं), दुग्धार्थम् = दुग्धस्य कृते (दूध के लिए), पात्र-प्रबन्धोऽपि = समुचित भाजनस्य, भाण्डस्य व्यवस्थापि (समुचित पात्र की व्यवस्था भी), करणीयः = कर्त्तव्या (करनी है), द्वावेव = उभावेव (दोनों ही), निर्गतौ = निष्क्रान्तौ (निकल गये)। हिन्दी-अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम् पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन और मल्लिका को नन्दिनी गाय की पूजार्चना एवं सेवा तथा अलंकृत करते हुए बताया
हिन्दी अनुवादः (चन्दन और मल्लिका) दोनों ही गाय की सेवा में संलग्न हो जाते हैं अर्थात् जुट जाते हैं। इसी क्रम में उसे घास तथा गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी सींगों पर तेल मलते हैं, तिलक लगाते हैं तथा रात में दीपक जलाते हुए सन्तुष्ट करते हैं।

चन्दन – मल्लिका, आओ। कुम्हार के पास चलते हैं। दूध के लिए बर्तन की व्यवस्था भी तो करनी है। (दोनों निकल जाते हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे मल्लिकाचन्दनौ नन्दिन्याः सपर्यां कुर्वन्तौ दर्शितौ। (प्रस्तुत नाट्यांश में मल्लिका और चन्दन नन्दिनी की सेवा करते हुए दिखाये गये हैं।)

व्याख्याः – (मल्लिका चन्दनश्च उभौ एव गावः सपर्यायां संलग्नौ आस्ताम्। एतस्मिन् एव प्रसङ्गे शास्पादिक गुडादिकं च खादयतः। कदाचन शृंगयोः स्नेह-लेपन कुरुतः कदाचित् पुण्डूक धारयत निशायां च दीप प्रदानेन सन्तुष्टं कुरुतः। ((मल्लिका और चन्दन दोनों ही गाय की सेवा में लगे हुए है।) इसी क्रम में घास आदि गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी सींगों को चिकनाई से लेप करते हैं। कभी तिलक करते हैं तथा रात में दीपक रखकर सन्तुष्ट करते हैं।)

चन्दनः – मल्लिके! आयाहि। कुम्भकारस्य गृहं प्रति गच्छावः। पयसः कृते समुचितं भाजनस्य भाण्डस्य वा असि व्यवस्था कर्त्तव्या। (उभावेव निष्क्रान्तौ।) (मल्लिका! आओ। कुम्हार के घर की ओर चलते हैं। दूध के लिये समुचित पात्र की भी व्यवस्था करनी है। (दोनों निकलते हैं।))

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) द्वावेव कस्य सेवायां निरतौ भवतः? (दोनों किसकी सेवा में तल्लीन हो गये?)
(ख) धेनोः विषाणयोः किं लेपयतः? (गाय के सींगों पर क्या लेपते हैं?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कुम्भकारं प्रति तौ कस्मात् गच्छतः? (कुम्हार के पास वे दोनों क्यों जाते हैं?)
(ख) धेनुं तौ किं खादयत:? (गाय को वे दोनों क्या खिलाते हैं?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-‘)
(क) ‘दिवसे’ इति पदस्य विलोमपदम् नाट्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘दिवसे’ इस पद का विलोम पद नाट्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘स्नानेन’ इति पदस्य स्थाने नाट्यांशे किं. पदं प्रयुक्तम्?
(‘स्नानेन’ पद के स्थान पर किस पद का प्रयोग नाट्यांश में किया गया है।)
उत्तराणि :
(1) (क) नन्दिन्याः (नन्दिनी की)।
(ख) तैलम् (तेल)।

(2) (क) दुग्धार्थ पात्र-प्रबन्धाय कुम्भकार प्रति गच्छावः।
(दूध के पात्रों के प्रबन्ध के लिए कुम्हार के पास जाते
(ख) धेनुं तौ घासादिकं गुडं च भोजयतः। (गाय को घासादि व गुड़ आदि खिलाते हैं।)

(3) (क) रात्रौ (रात में)।
(ख) नीराजनेन (दीपक की आरती से)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(चतुर्थं दृश्यम्)

9. कुम्भकारः – (घटरचनायां लीन: गायति)
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम्।
जीवनं भङ्गरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघटः।।

चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान्। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि।

शब्दार्थाः – घटरचनायां = मृत्पात्र निर्माणे तल्लीनः (घड़ा बनाने में रत) गायति (गाता है), यथा एषः = यथा अयम् (जैसे यह), मृत्तिका घटः = मृणपात्र/मृद्घटः (मिट्टी का घड़ा), भङ्गुरः = भजनशीलः (नाशवान, फूटने वाला है), तथैव = तथा एव (वैसे ही), सर्वम् = सम्पूर्णम् (सारा), जीवनम् = जीवितम् असि (जीवन भी), क्षणिकः = (क्षणमात्र रहने वाला है), ज्ञात्वा अपि = इति ज्ञानन् असि (ऐसा जानते हुए भी), जीविका हेतो = आजीविकार्थम् (आजीविका के लिए), घटान् अहम् = कलशान् अहम् (घड़ों को मैं), रचयामि = निर्माणं करोति (रचना कर रहा हूँ),

नमस्करोति तात! = नमाम्यहं बन्धो (नमस्कार बन्धु), पञ्चदश घटान् इच्छामि = पञ्चदश कलशान् ईहे (पंद्रह घड़े चाहता हूँ), किं दास्यामि = अपि प्रदास्यामि (क्या दे दोगे?), कथं न = कस्मात् न (क्यों नहीं), विक्रयणाय एव एते = इमे घटाः विक्रेतुमेव सन्ति (ये घड़े बेचने के लिए ही हैं), गृह्मण घटान् = आत्मीय कुरु कलशान् (घड़ों को अपनाओ), पञ्चशतोत्ररुप्यकाणि च देहि = पञ्चशतोत्तर रूप्यकाणि यच्छ (पाँच सौ से अधिक रुपये दो)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन गाय के शरीर में एकत्रित दूध को रखने के लिए कुम्हार के पास घड़े खरीदने जाता है तथा उनकी कीमत ज्ञात करता है।

हिन्दी अनुवाद –

कुम्भकार – (घड़ा बनाने में व्यस्त हुआ गाता है) जिस तरह यह मिट्टी का घड़ा क्षण भंगुर है उसी प्रकार यह सारा जीवन क्षणभंगुर है, इसको जानकर भी मैं घड़ों का निर्माण करता हूँ। हे तात! मैं आपको नमस्कार करना चाहता हूँ, पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। क्या दोगे?
देवेशः – क्यों नहीं? बेचने के लिए ही तो हैं ये। घड़े ले लो और पांच सौ रुपये दो। संस्कत-व्याख्याः
सन्दर्भ: – नाट्याशोऽयम् अस्माकं शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्दूहम्’ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुते नाट्यांशे चन्दनः धेनोः शरीरात् संकलितं दुग्धं सुरक्षितं रक्षितुं कुम्भकारस्य समीपे घटान् क्रेतुम् गच्छति तेषां मूल्यं च जानाति। (प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन गाय के शरीर से एकत्रित दूध को सुरक्षित रखने के लिए कुम्हार के पास घड़े खरीदने जाता है और उनका मूल्य ज्ञात करता है।)

व्याख्या:

घटनिर्माताः – (मृत्पात्र निर्माणे तल्लीनः सन् गायति।) यथा अयं मृद्घटः भञ्जनशीलः अस्ति तथा एव सम्पूर्ण
जीवन अपि क्षणिकः इति ज्ञात्वा अपि अहं आजीविकार्थं कलशानां निर्माणं करोमि। ((घड़ा 42 संस्कृत प्रभा, कक्षा )
बनाने में तल्लीन होकर गाता है। जैसे यह मिट्टी का घड़ा फूटने वाला है वैसे ही यह सम्पूर्ण जीवन भी क्षणिक है, यह जानते हुए भी मैं आजीविका के लिए कलशों (घड़ों) का निर्माण करता हूँ।)
चन्दनः – नमाम्यहं बन्धो! पञ्चदश कलशान् ईहे। अपि प्रदास्यसि? (नमस्कार बन्धु! पन्द्रह घड़े चाहिये।
क्या दोगे?) देवेशः कस्मात् न, इमे घटाः विक्रेतुम् एव सन्ति। आत्मीय कुरु कलशान्। पञ्चशतोत्तर रूप्यकाणि
यच्छ। (क्यों नहीं, ये घड़े बेचने के लिए ही तो हैं। घड़ों को अपना बनायें और पाँच सौ से
अधिक रुपये दे जाओ।) अवबोधन कार्यम् प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कुम्भकारः कस्यां लीनः गायति? (कुम्हार किसमें लीन हुआ गाता है?)
(ख) कुम्भकारः कस्य हेतोः घटं रचयत? (कुम्हार किस के हेतु घड़ा बनाता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कुम्भकारः जीवन-रहस्यं कथं जानाति? (कुम्हार जीवन के रहस्य को कैसे जानता है?)
(ख) चन्दनः कति घटान् इच्छति? (चन्दन कितने घड़े चाहता है?)

प्रश्न 3. यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘गायति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘गायति’ क्रियापद का कर्त्तापद नाट्यांश से चुनकर लिखो।)
(ख) ‘यथैषः’ पदे सन्धिविच्छेदं कुरुत। (‘यथैषः’ पद में सन्धि विच्छेद करो।)
उत्तराणि :
(1) (क) घटरचनायाम् (घड़ा बनाने में)।
(ख) जीविकाहेतोः (जीविका के लिए)।

(2) (क) जीवनं भगुरं सर्वं यथैवः मृत्तिका घटः। (पूरा जीवन मिट्टी के घड़े की तरह क्षणभंगुर है।)
(ख) चन्दनः पञ्चदश घटान् इच्छति। (चन्दन पन्द्रह घड़े चाहता है।)

(3) (क) कुम्भकारः (कुम्हार)।
(ख) यथा + एषः।

10. चन्दनः – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते।
देवेशः – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।

शब्दार्थाः – साधु = उत्तम (बहुत अच्छा), परं = परञ्च (परन्तु), मूल्यं तु = राशि तु (मूल्य तो), दुग्धं विक्रीय = पयः विक्रयणे (दूध बिकने पर ही), दातुं शक्यते = देया एव भविष्यति (दिया जा सकता है), क्षम्यतां पुत्र! = क्षमस्व वत्स (बेटा क्षमा करो), मूल्यं विना = मूल्यन्तरेण (बिना मूल्य के), एकमपि घट न दास्यामि = एकमपि कलशं न दातुं शक्नोमि (एक भी घड़ा नहीं दे सकता), स्वाभूषणं = आत्मनः अलङ्कराणि (अपने आभूषण), दातुमिच्छति = दातुमीहते (देना चाहती है), तात! यदि अधुनैव = तात! चेत् इदानीमेव (तात! यदि अभी), मूल्यम् आवश्यकम् = मूल्यं देयम् (कीमत देनी है), तर्हि = तदा (तो),

गृहाण एतद् आभूषणम् = स्वीकरोतु इदम् अलंकारम् (यह आभूषण स्वीकार कीजिए), पुत्रिके = वत्से (बेटी), नाहं पापकर्म करोमि = अहम् एवं पापकर्म कर्तु न क्षमः (मैं ऐसा पाप नहीं कर सकता), कथमपि = केनापि प्रकारेण (किसी प्रकार), त्वाम् = भवती (आपको), आभूषणविहीनाम् = अनाभूषिताम् (आभूषणरहित) कर्तुम्, नेच्छामि = विधातुं न ईहे (करना नहीं चाहता), यथाभिलषितान् घटान् = यथेच्छम् मृत्पात्राणि (इच्छानुसार घड़े) नयतु (ले जाओ), दुग्धं = पयांसि (दूध), विक्रीय एव = विक्रय एव (बेचकर ही), घटमूल्यम् ददातु = घटवित्तं ददातु (घड़े की राशि/मूल्य दे देना), धन्योऽसि = धन्यवादा) (धन्य हो), तात! धन्योऽसि = भवान् धन्य (आप धन्य हैं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्दूहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन देवेश कुम्भकार से घड़े खरीदने जाता है लेकिन देवेश बिना मूल्य के घड़े नहीं देता परन्तु फिर वह दूध बिकने पर मूल्य लेने को तैयार हो जाता है। दोनों कुम्हार को धन्यवाद देकर आ जाते हैं।

हिन्दी अनुवादः

चन्दन – बहुत अच्छा! परन्तु मूल्य तो मैं दूध बेचकर ही दे सकता हूँ।
देवेश – क्षमा कीजिए बेटा, बिना मूल्य के तो एक भी घड़ा नहीं दूंगा।
मल्लिका – अपने आभूषणों को देना चाहती है। तात! यदि म की अभी आवश्यकता है तो लो ये आभूषण।
देवेश – बेटी ! मैं ऐसा पाप कर्म नहीं करूँगा। किसी भी तरह . तुम्हें आभूषणरहित नहीं करना चाहता।
जितनी इच्छा है उतने घड़े ले जाओ। दूध बेचकर ही घड़ों का मूल्य दे देना। धन्य हो तुम तात! तुम धन्य हो।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। ((यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।))

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन् चन्दनः घटान् क्रेतुं देवेशं कुम्भकारं प्रति गच्छति। देवेश मूल्यं विना घटान् न ददाति परञ्चासौ दुग्धे विक्रय मूल्यं ग्रहीतं स्वीकरोति। उभौ कम्भकाराय धन्यवादं वितीर्य गहमागच्छतः। (इस नाट्यांश में चन्दन घड़े खरीदने देवेश कुम्हार के पास जाता है। देवेश बिना मूल्य घड़े नहीं देता है। परन्तु वह दूध बिकने पर मूल्य लेना स्वीकार कर लेता है। दोनों कुम्हार को धन्यवाद देकर घर आ जाते हैं।)

व्याख्याः

चन्दनः – सुष्ठु, परञ्च राशिस्तु पयो विक्रयणे एव देया एव भविष्यति। (ठीक है, परन्तु राशि तो बिकने पर ही देना सम्भव होगा।)

देवेश – क्षमस्व वत्स, मूल्यमन्तरेण तु एकम् अपि कलशं न दातुं शक्नोमि। (क्षमा कीजिए बेटा! मूल्य के बिना तो एक भी घड़ा नहीं दे सकता।)
मल्लिका – (आत्मनः अलङ्काराणि दातम ईहते) तात् चेत् इदानीम् अपि मूल्यम् देयमेव तदा स्वीकरोत् इदम् अलङ्कारम्’। (अपने आभूषण देना चाहती है।) तात! यदि अभी मूल्य देना है तो लो ये गहने।)
देवेश – वत्से! अहं एवं पातकं न कर्तुं क्षमः। केनाप प्रकारेण भवतीम् अहम् अनाभूषितां विद्यातुम् ईहे। यथेच्छम् मृत् पात्राणि नयत। पयांसि विक्रीय एव वित्तं यच्छतु। (बेटी, मैं ऐसा पाप नहीं करना चाहता। किसी प्रकार भी मैं आपको आभूषणरहित नहीं करना चाहता। इच्छानुसार जितने चाहो उतने घड़े ले जाओ। दूध बिकने पर ही राशि दे देना।)
द्वावेव – धन्यवादा. भवान् धन्यस्त्वम्। (धन्यवाद, आप धन्य हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका घटमूल्याय किदातुम् इच्छति? (मल्लिका घड़ों के मूल्य के लिए क्या देना चाहती है?)
(ख) कुम्भकारस्य किं नाम आसीत् ? (कुम्हार का क्या नाम था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः घटमूल्यं प्रदातुं किं कथयति? (चन्दन घड़ों के मूल्य देने के लिए क्या कहता है?)
(ख) मल्लिका यदा आभूषणं ददाति तदा देवेशः किं कथयति?
(मल्लिका जब आभूषण देती है तब देवेश क्या कहता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘धन्योऽसि’ इति पदस्य सन्धि-विच्छेदं कुरुत। (‘धन्योऽसि’ पद का सन्धि-विच्छेद कीजिए।)
(ख) ‘पापकर्म’ इत्यनयो पदयो विशेषण पदं चिन्नुत? (‘पापकर्म’ इन पदों में विशेषण पद चुनिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) आभूषणम् (आभूषण)।
(ख) देवेशः।

(2) (क) ‘घटमूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दास्यामि’ इति कथयति। (घड़ों का मूल्य तो दूध बेचकर ही दूंगा।)
(ख) नाहं पापकर्म करोमि। न त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम् इच्छामि। (मैं पाप नहीं करता। तुम्हें आभूषण विहीन नहीं करना चाहता।)

(3) (क) धन्यः + असि।
(ख) ‘पाप’ इति विशेषण पदम्।

(पञ्चमं दृश्यम्)

11. (मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति। दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः)
चन्दनः – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयास करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आश्चर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)

शब्दार्थाः – मासानन्तरम् = मास पश्चात् (महीने भर बाद), सन्ध्याकाल = सायं समय (साँझ का समय), एकत्र = एकस्मिन्नेव स्थाने (एक जगह), नूतन घटा सन्ति = नवीनाः घटाः स्थिताः सन्ति (नये घड़े रखे हुए हैं), दुग्ध क्रेतारः = पयस: ग्राहकाः (दूध लेने वाले), अन्ये च ग्रामवासिनः = अन्ये च ग्राम्याः (और दूसरे ग्रामीण), अपरत्र आसीनाः = अपर स्थाने उपविष्टम् (दूसरे स्थान पर बैठे हैं), धेनुं = गाव (गाय को), प्रणम्य = नत्वा/अभिवाद्य (प्रणाम करके),

मङ्गलाचरणं विधाय = स्वस्तिवाचनं कृत्वा (मंगलाचरण करके), मल्लिकाम् आह्वति = मल्लिकाम् आकारयति (मल्लिका को बुलाता है), आयामि नाथ = आगच्छामि स्वामिन् (आई स्वामी), दोहनम् आरभस्व तावत् = दुग्धं दोग्धुम् प्रारम्भं कुरु (दूध दोहना आरम्भ करो तब तक), यदि = तावत् (जैसे ही/जब), धेनोः समीपम् = गाव समया (गाय के समीप), गत्वा = प्राप्य (पहुँचकर), दोग्धुम् इच्छति = दोहनं वाञ्छति (दोहना चाहता है), तदा धेनुः = तावत् गौ (तब तक गाय), पृष्ठपादेन = पश्चपादेन (पीछे के पैर से), प्रहरति = प्रहारं करोति (प्रहार करती है),

चन्दनः च पात्रेण सह पतति = चन्दन: च पात्रेन सहितं धरायां लुण्ठति (और चन्दन बर्तन के साथ गिर जाता है।), दुग्धं देहि = पयः यच्छ (दूध दो), किं जातं ते = तुभ्यं किम् अभवत् तुझे क्या हो गया), पुनः प्रयासं करोति = पुनरपि प्रयतते (फिर से प्रयत्न करता है), नन्दिनी च (और नन्दिनी) पुनःपुनः = मुहुर्मुहुः (बार-बार), पादप्रहारेण = पादाघातेन (लात से), ताडयित्वा = ताडयति (मारती है), चन्दनं रक्तरञ्जितं च करोति = चन्दनं शोणितेन रक्तं करोति (चन्दन को रक्तरंजित करती है), चीत्कारं कुर्वन् पतति = क्रन्दनं कुर्वन् लुण्ठति (चीखता हुआ लुढ़क जाता है।), सर्वे आश्चर्येण = सर्वे सविस्मयम् (सभी आश्चर्य के साथ), चन्दनम् अन्योऽन्यं च = चन्दनम् परस्परं च (चन्दन को और आपस में एक-दूसरे को), पश्यन्ति = अवलोकयन्ति (देखते हैं)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन जैसे ही तीस दिन से रुकी हुई गाय का दूध निकालने बैठता है वैसे ही गाय दूध के बजाय पाद प्रहार करने लगती है तथा चन्दन को लहूलुहान कर देती है।

हिन्दी अनुवाद – (महीने भर पश्चात् सन्ध्या का समय खाली नये घड़े इकट्ठे रखे हैं। दूध खरीदने वाले तथा दूसरे
ग्रामवासी दूसरी ओर बैठे हैं।

चन्दन – (गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण करके मल्लिका को बुलाता है। मल्लिका जल्दी आ जाओ।
मल्लिका – आ रही हूँ। स्वामी! तब तक दूध दोहना आरम्भ कीजिये।
चन्दन – (जब गाय के समीप जाकर दोहना चाहता है, तब गाय पीछे के पैरों से प्रहार करती है अर्थात लात मारती है। चन्दन पात्र समेत गिर जाता है। नन्दिनी दूध दे। तुझे क्या हो गया? (फिर से प्रयास करता है) (नन्दिनी बार-बार पाद प्रहार से प्रताड़ित कर चन्दन को लहू-लुहान कर देती है।) अरे मारा गया (चीखता हुआ गिर जाता है।) सभी अचम्भे से चन्दन को तथा आपस में देखते हैं।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुव्यूहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे चन्दनः यावत् त्रिंशत दिवसात् निरुद्धां गां दोग्धुं गच्छति तावत् धेनुः पाद-प्रहारैः चन्दनं रक्त रञ्जितं करोति। (प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन जब तक तीस दिन से रुकी हुई गाय को दोहने के लिए जाता है वैसे ही गाय लातों से उसे लहूलुहान कर देती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

व्याख्या: –

(मास पश्चात् सायं समयः एकस्मिन्नेव स्थाने नवीना घटाः स्थिताः सन्ति। पयस: ग्राहकाः अन्ये च ग्राम्याः अपर स्थाने उपविष्टाः सन्ति। ((महीने के पश्चात्, सायंकाल, एक स्थान पर नये घड़े रखे हुए हैं। दूध के ग्राहक और दूसरे ग्रामीण दूसरे स्थान पर बैठे हैं।))

चन्दनः – (गां नत्वा, स्वस्तिवाचनं कृत्वा मल्लिकाम् आकारयति) मल्लिके शीघ्रम् आयाहि। ((गाय को प्रणाम कर मंगलाचरण करके मल्लिका को बुलाता है। मल्लिका जल्दी आओ।)
मल्लिका – आगच्छामि स्वामिन्। दुग्धं दोग्धुम् प्रारंभं कुरु। (आ रही हूँ स्वामी। दूध दोहना आरम्भ करो।)
चन्दनः – (यावत् गां समया प्राप्य दोहनम् वाञ्छति तावत् गौ पश्चपादेन प्रहारं करोति। चन्दनः भाण्डेन सहितं धरायां लुंठति नन्दिनि! पयः यच्छ। तुभ्यं किम् अभवत्? (पुनरसि प्रयतते। नन्दिनी च मुहर्मुहुः पादाघातेन ताडयति, चन्दनः शोणितेन रक्तः भवति।) अरे! अहं प्रिये? क्रन्दनं कुर्वन् लुण्ठति। सर्वे सविस्मयं चन्दनं परस्परं चावलोकयन्ति। ((जैसे ही गाय के पास पहुँचकर दोहना चाहता है वैसे ही गाय पीछे के पैर से लात मारती है। चन्दन पात्र सहित धरती पर लुढ़क जाता है) नन्दिनी, दूध दो। तुम्हें क्या हो गया? (फिर प्रयत्न करता है और नन्दिनी बार-बार लात मारती है, चन्दन खून से लाल हो जाता है।) अरे मैं मर गया (अरे मैं मर रहा हूँ) चिल्लाते हुए धरती पर लुढ़क जाता है। सभी अचम्भे से चन्दन को तथा एक-दूसरे को (आपस में) देखते हैं।))

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-) .
(क) धेनुः चन्दनं केन प्रहरति? (गाय चन्दन पर किससे प्रहार करती है?)
(ख) चन्दनस्य समीपे के तिष्ठन्ति? (चन्दन के पास कौन खड़े हैं?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका चन्दनस्य आह्वानं कथम् उत्तरति? (मल्लिका चन्दन के आह्वान का उत्तर कैसे देती है?)
(ख) चन्दनस्य गृहे एकत्र के सन्ति? (चन्दन के घर में एक जगह क्या है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘किं जातं ते?’ अत्र ‘ते’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
नाम पद किसके लिए प्रयोग किया गया है।)
(ख) नाट्यांशे ‘पतति’ क्रियापदस्य कर्तृपदं अन्विष्य लिखत।
(नाट्यांश में ‘पतति’ क्रियापद का कर्ता ढूँढ़कर लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) पृष्ठपादेन (पीछे के पैर से)।
(ख) दुग्ध क्रेतारः। (दूध खरीदने वाले।)

(2) (क) सा उत्तरति-आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्। (वह उत्तर देती है-आ रही हूँ स्वामी। दूध दोहना आरम्भ तो करो।)
(ख) देवेशस्य गृहे एकत्र रिक्ता नूतन घटाः सन्ति। (चन्दन के घर में एक जगह खाली नये घड़े रखे हैं।)

(3) (क) ‘धेनवे’ (गाय के लिए)।
(ख) चन्दनः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

12. मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम्? कथं त्वं रक्तरजित:?
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्।
(मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।)
मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडम् अनुभवति। अत एव ताडयति।
चन्दनः – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम्। सत्यमेव उक्तम्

शब्दार्थाः – चीत्कारं = क्रन्दनम् (चीख को), श्रुत्वा = आकर्ण्य (सुनकर), झटिति प्रविश्य = शीघ्रमेव प्रवेशं कृत्वा (शीघ्र ही प्रवेश करके), नाथ! किं जातम् = स्वामिन् ! किम् अभवत् ? (स्वामी क्या हो गया?), कथं त्वं रक्तरन्जितः = भवान् शोणितेन शोणः कथं जाता (आप खून से लथपथ कैसे हो गये।), धेनुः = गौ (गाय), दोग्धुम् = पयप्रदानस्य (दोहनाय) (दूध देने की), अनुमतिमेव = स्वीकृतिमेव (स्वीकृति ही) न ददाति (नहीं देती है), दोहन प्रक्रियाम् = यदा अहं दोहन आरभे (जैसे ही मैंने दूध दोहना आरम्भ किया),

ताडयति माम् = तथा सा माम् अताडयत (मुझे मारा), मल्लिका धेनुं स्नेहेन = मल्लिका गाव अति स्नेहेन (मल्लिका गाय को अत्यन्त स्नेह से), वात्सल्येन च = वत्सलतया च (और वात्सल्य के साथ), आकार्य = संबोध्य (संबोधन करके), दोग्धुं प्रयतते = दोहनाय प्रयासं करोति (दोहने का प्रयत्न करती है), किन्तु = परञ्च (परन्तु), धेनु = गौ (गाय), दुग्ध हीना एव = पयोविहीना एव (बिना दूध है),

इति अवगच्छति = इति सा जानाति (ऐसा यह जान जाती है), चन्दनं प्रति (चन्दन से) नाथ! = स्वामिन्! (स्वामी) आवाम्, अत्यनुचितं कृतम् = अत्यम् असमीचीनमेव कृतम् (हम दोनों ने अनुचित ही किया), यत् (कि) मासपर्यन्तं = मासावधौ (महीने भर), धेनोः दोहनं न कृतम् = आवां धेनुं न दुग्धवन्तौ (हमने गाय को नहीं दुहा), सा पीडम् अनुभवति = अतः पादाघातैः आघातयति (पैरों से आघात करती है), देवि! मयापि ज्ञातं यत् = देवि! अहमपि ज्ञातवान् यत् (हे देवि! मैं भी जान गया कि),

अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत् = वयं पूर्णतः असमीचीनमेव कृतवन्तः (हमने पूरी तरह अनुचित ही किया है), यत् पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम् = सम्पूर्ण मासकाले आवां धेनुं न दुग्धवन्तौ (कि पूरे महीने भी हमने गाय को नहीं दुहा), अत एव दुग्धं शुष्क जातम् = अत एव पयः शुष्को भवत् (इसलिए दूध सूख गया), सत्यमेव उक्तम् = समुचितमेव कथितम् (ठीक ही कहा गया है)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – यहाँ चन्दन गाय को दोहने का प्रयत्न करता है परन्तु गाय उसे अनुमति नहीं देती है। मल्लिका इसका कारण जानती है तथा कहती है “महीनेभर दोहन रुक गया। अत: गाय का दूध सूख गया है। इसी कारण से यह अस्वीकार कर रही

हिन्दी अनुवादः

मल्लिका – चीख को सुनकर शीघ्र प्रवेश करके) स्वामी! क्या हुआ? तुम लहू-लुहान कैसे हो? चन्दन गाय दोहने की आज्ञा ही नहीं दे रही है। दूध निकालने की प्रक्रिया जैसे ही आरम्भ करता हूँ वह मुझे मारने लगती है। (मल्लिका गाय को प्यार से और बच्चे का सा प्यार करके बुलाकर दोहन का प्रयत्न करती है परन्तु गाय दूधरहित है, यह जान जाती है।

मल्लिका – (चन्दन से) स्वामी! हमने बड़ा अनुचित किया है कि महीनेभर बाद गाय को दुहा है। वह पीड़ा का अनुभव करती है। इसीलिए मारती है। चन्दन – देवी! मैंने भी जान लिया कि हमने सब प्रकार से अनुचित ही किया है, पूरे महीने तक दूध दोहन नहीं किया, इसलिए दूध सूख गया। सच ही कहा है।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भः – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रसङ्गः – अत्र चन्दनः गां दोग्धुं प्रयतते परञ्च धेनुः तु अनुमतिमेव न ददाति। मल्लिका अस्य कारणं जानाति कथयति च यन्मास पर्यन्तं दोहनम् अवरुद्धम् अतः धेनोः दुग्धं शुष्कं जातम् तेनैव कारणेन सा अस्वीकरोति। (यहाँ चन्दन गाय को दोहने का प्रयत्न करता है परन्तु गाय उसे अनुमति नहीं देती है। मल्लिका इसका कारण जानती है और कहती है कि महीने भर दोहन रुक गया। अतः गाय का दूध सूख गया है। इसी कारण से वह अस्वीकार करती है।)

व्याख्याः

मल्लिका – (क्रन्दनं आकर्ण्य शीघ्रमेव प्रवेशं कृत्वा) स्वामिन्! किमभवत् ? भवान् शोणितेन शोणः कथं जातः? (चीख को सुनकर शीघ्र ही प्रवेश करके।) स्वामी! क्या हुआ? आप खून से लाल कैसे हो गये?)
चन्दनः – गौः एषः पयः प्रदानस्य स्वीकृतिमेव न ददाति। यथा अहं दोग्धुम् आरम्भे तथा एव समाम् अताडयत्। (मल्लिका गामति स्नेहेन वत्सलतया च संबोध्य दोहनाय प्रयासं करोति। परञ्च गौ तु पयोविहीना इति सा जानाति) (यह गाय दूध देने की इजाजत ही नहीं देती है। जैसे ही मैं दूध दोहना आरंभ करता हूँ वैसे ही उसने मुझे मारा। (मल्लिका गाय को अति प्रेम से तथा वात्सल्य के साथ बुलाकर दोहने का प्रयास करती है। परन्तु गाय तो दूधरहित है, इसे वह जानती है।)

मल्लिका – चन्दनं कथयति! स्वामिन आवाम अमीचीनमेव कतवन्तौ. यतः मासावधौ आवाम धेनं न दग्धवन्तौ। सा पीडिताभवेत्। अत एव पादाघातैः आघातपति। (चन्दन से कहती है, नाथ! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया क्योंकि महीने भर हमने गाय को नहीं दुहा। वह पीड़ित रही। इसलिए लातों से मारती है।)

चन्दनः – देवि! अहम् अपि ज्ञातवान् यत् वयं पूर्णतः असमीचीनमेव कृतवन्त। सम्पूर्णे मासकाले आवां धेनुं न दुग्धवन्तौ अतएव पयः शुष्कोऽभवत्। समुचितमेव कथितम्। (देवि! मैं भी जान गया कि हम दोनों ने सर्वथा अनुचित ही किया है। पूरे महीने भर हमने गाय को नहीं दुहा, इसलिए दूध सूख गया। सच ही कहा है-)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रक्तरञ्जितः कोऽभवत्? (रक्तरंजित कौन हो गया?)
(ख) मल्लिका धेनुं कथं दोग्धुं प्रयतते? (मल्लिका गाय को कैसे दोहने का यत्न करती है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः स्वस्य त्रुटि कथं स्वीकरोति? (चन्दन अपनी गलती कैसे स्वीकार करता है?)
(ख) धेनुः कीदृशं व्यवहारं करोति? (गाय कैसा व्यवहार करती है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘उचितम्’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘उचितम्’ पद का विलोम पद नाट्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘अनुमतिं न ददाति’ अत्र ददाति क्रियापदस्य कर्तृपदं नाट्यांशात् अन्विष्य लिखत।
(‘अनुमति न ददाति’ यहाँ ददाति क्रियापद का कर्ता नाट्यांश से ढूँढ़कर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) चन्दनः।
(ख) स्नेहेन वात्सल्येन च (प्यार एवं वात्सल्य से)।

(2) (क) मयापि ज्ञातं यत् अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतम् यत् पूर्ण मास पर्यन्तं दोहनं न कृतम्। (मुझे पता चल गया कि हमने भी गलती की है कि पूरे महीने दूध नहीं दोहा।)
(ख) दोहन प्रक्रियाम् आरम्भमाणम् एव ताडयति। (दोहन प्रक्रिया आरम्भ करते ही मारती है।)

(3) (क) अनुचितम्।
(ख) धेनुः (नन्दिनी) गाय।

13. कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम्।।
मल्लिका – आम् भर्तः! सत्यमेव। मयापि पठितं यत्
सुविचार्यविधातव्यकार्यकल्याणकाक्षिणा।
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः।।
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत्।

सर्वे – दिनस्य कार्य तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्।
(जवनिका पतनम्) (सर्वे मिलित्वा गायन्ति।)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्।।

शब्दार्थाः – अद्यतनीयं = अद्यदिवसपर्यन्तम् करणीयम् (आज का काम) यत कार्य (जो कार्य है), तत् अद्य एवं विधीयताम् = तद् अद्य एव सम्पादनीयम् (वह आज ही सम्पन्न कर देना चाहिए), विपरीते गतिर्यस्य = यः विरुद्ध कार्य करोति अर्थात अद्य करणीय कार्य अद्य न कृत्वा आगामिनं दिवसं नयति (जो विरुद्ध कार्य करता है अर्थात् आज जो कार्य करना है उसे अगले दिन को ले जाता है), सः ध्रुवं कष्टं लभते = स: निश्चितम् एव कष्टं प्राप्नोति (वह अवश्य ही कष्ट पाता है।), आम् भर्त = ओम् स्वामिन् (हाँ स्वामी), सत्यमेव = ऋतमेव (सच ही है),

मया अपि पठितं यत् = अहमपि एवं पठितवान् यत (मैंने भी ऐसा पढ़ा है कि-), कल्याणकाक्षिणा = ये जनाः स्वस्य भद्रम् इच्छन्ति (जो लोग अपना कल्याण चाहते हैं) (तैः = उनके द्वारा), सुविचार्य = सम्यक् विचिन्त्य एव (अच्छी तरह सोच-विचार कर ही), कार्य विधातव्यम् = कर्त्तव्यम् (कार्य करना चाहिए), यः = यः जनः (जो व्यक्ति), अविचार्य = अविवेकेण (बिना सोचे-विचारे), करोति = सम्पादयति (करता है), सः मानवः निसीदति = सः मनुष्यः दुःखं लभते (वह मनुष्य दुःख पाता है), किन्तु = परञ्च (किन्तु/परन्तु), प्रत्यक्षत यातु = सम्मुखे तु (प्रत्यक्ष तो),

एतत् = इदम् (यह), अद्यैव (आज ही), अनुभूतम् = दृष्टम्। (देखा है या अनुभव किया है), दिनस्य कार्यम् = यस्य दिवसस्य कार्यमस्ति (जिस दिन का काम हो), तस्मिन् दिने एव = मानवेन तस्मिन्नेव दिवसे करणीयम् (मनुष्य को उसी दिन कर लेना चाहिए), यः एवं न करोति = यः जनः अनेन प्रकारेण न करोति (जो व्यक्ति इस प्रकार से नहीं करता), सः ध्रुवं कष्ट लभते = स: निश्चप्रचमेव पीडाम् अनुभवति (वह निश्चित ही कष्ट पाता है।), जवनिकापातम् = आवरणम् पतति (पर्दा गिरता है), सर्वे मिलित्वा गायन्ति = सर्वे समवेत स्वरेण गायन्ति (सभी समवेत स्वरों में गाते हैं),

य: मनुष्य (जो मनुष्य) आदानस्य = ग्रहणस्य (ग्रहण करने), प्रदानस्य = दानस्य (दान के), कर्तव्यस्य कर्मणः = करणीयस्य कार्यस्य (करने योग्य कार्य को), क्षिप्रम् एव = शीघ्रमेव (जल्दी ही), क्रियमाणस्य = कर्ता भवति (करने वाला होता है अर्थात क्रियमाण कार्य को तत्काल करता है)), तद् रसम् = तस्य फलं . (उसका परिणाम), कालः पिबति = समय: आचमनि भुक्ते वा (काल पी जाता है)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश चन्दन तथा मल्लिका अपने किए हुए पर पश्चाताप करते हुए शिक्षा प्रदान करते हैं कि कोई भी कार्य समय पर ही अवश्य करना चाहिए।
हिन्दी-अनुवाद – आज तक का जो कार्य है उसे आज ही कर लेना चाहिए। इससे उल्टा होने पर तो वह निश्चित
रूप से कष्ट ही पाता है।
मल्लिका – हाँ स्वामी ! सच ही तो है। मैंने भी पढ़ा है कि।
(अपना) भला चाहने वाले व्यक्ति को अच्छी तरह विचार करके ही कार्य करना चाहिए। जो मनुष्य यह बिना विचार करता है वह दुखी होता है।” परन्तु प्रत्यक्ष तो मैंने आज ही अनुभव किया है। सर्वे (सभी) दिन का काम उसी दिन कर लेना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चित ही दुख पाता है।
(पर्दा गिरता है) (सभी मिलकर गाते हैं। शीघ्र ही जो आदान-प्रदान (लेन-देन) और करने योग्य कर्मों को नहीं करता है, उसके रस को
समय पीता है। (अतः वह नीरस हो जाता है, सूख जाता है, गाय के दूध की तरह।)

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र -रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे मल्लिकाचन्दनौ स्व-कृत्यं प्रति पश्चातापं कुरुतः। तौ शिक्षेते यत् कालात् पूर्वं किमपि कार्यं न कुर्यात्। (प्रस्तुत नाट्यांश में मल्लिका और चन्दन अपने किये हुए पर पछताते हैं तथा दोनों शिक्षा देते हैं-समय से पहले कोई कार्य नहीं करना चाहिए।)

व्याख्या: –
चन्दनः – यत् कार्यम् अद्य करणीयम् अस्ति तत् अद्य एव सम्पादनीय यः विरुद्ध कार्यं करोति अर्थात् अद्य करणीयं कार्यम् अद्य न कृत्वा आगामिनं दिवसं नयति सः निश्चितम् एव कष्टं प्राप्नोति। (जो कार्य आज करना है वह आज ही कर लेना चाहिए। जो (इसके) विपरीत कार्य करता है अर्थात् आज करने योग्य कार्य को आज न करके अगले दिन के लिए ले जाता है, वह निश्चित ही कष्ट
पाता है।)
मल्लिका – ओम् स्वामिन् ! ऋतम् एव। अहम् अपि एवं पठितवान् –
“यो जनाः स्वस्य भद्रम् इच्छन्ति तैः करणीयं सम्यक् विचिन्त्य एव कर्त्तव्यम् यः जनः अविवेकेन सम्पादयति सः मनुष्यः दु:खं लभते।” परञ्च सम्मुखे तु अध एव दृष्टम्। (हाँ स्वामी, सच ही है। मैंने भी ऐसा पढ़ा है.-“जो मनुष्य अपना भला चाहते हैं, उन्हें करने योग्य कार्य अच्छी प्रकार विचार करके ही करना चाहिए। जो मनुष्य बिना विचारे (अविवेकपूर्ण) करता है, वह निश्चय ही कष्ट का अनुभव करता है। परन्तु
प्रत्यक्ष तो आज ही देखा है।) .

सर्वे – यस्य दिवसस्य कार्यम् अस्ति मानवेन तस्मिन् एव दिवसे करणीयम्। यो जनः अनेन प्रकारेण न करोति अस्मै निश्चप्रचमेव पीडाम् अनुभवति। (आवरणम् पतति) (सर्वे समवेत स्वरेण गायन्ति-“यः मनुष्य ग्रहणस्य दानस्य करणीयस्य कार्यस्य सम्पादनं शीघ्रम् तत्कालमेव न करोति तस्य रसं फलं वा समय: आचयति। (जिस दिन का कार्य है उसे उसी दिन कर लेना चाहिए जो मनुष्य इस प्रकार नहीं करता वह निश्चित रूप से पीड़ा का अनुभव करता है (पर्दा गिरता है)। सभी मिलकर एक स्वर में गाते हैं-“जो मनुष्य लेन-देन और करने योग्य कर्म का (सम्पादन) शीघ्र ही न करे, समय उसके रस को पीता है।”)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्याणकांक्षिणा कार्यं कथं विधातव्यम् ? (भला चाहने वाले को काम कैसे करना चाहिए?)
(ख) अन्ते सर्वे मिलित्वा किं कुर्वन्ति? (अन्त में सभी मिलकर क्या करते हैं?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) यः अविचार्य कार्यं करोति सः किं फलं प्राप्नोति?
(जो बिना बिचारे काम करता है, वह क्या फल प्राप्त करता है?)
(ख) कालः कस्य रसं पिबति? (समय किसका रस पीता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘कालः पिबति तद्रसम्’ अत्र कर्तृपदम् किम्? (‘कालः पिबति तद्रसम्’ यहाँ कर्तृ पद क्या है?)
(ख) ‘प्रसीदति’ इति क्रियापदस्य विलोमार्थकं पद नाट्यांशात चित्वा लिखत। (‘प्रसीदति क्रिया का विलोम नाट्यांश से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) सुविचार्य। (अच्छी तरह विचार कर)।
(ख) गायन्ति (गाते हैं)।

(2) (क) यः मानवः अविचार्य कार्यं करोति सः विषीदति। (जो बिना विचारे कार्य करता है वह दुख पाता है।)
(ख) आदानस्य प्रदानस्य कर्त्तव्यस्य च कर्मणः क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य तद्रस्य कालः पिबति। (लेन-देन करने योग्य कर्म को शीघ्र न करने वाले का रस काल पीता है।)

(3) (क) कालः (समय)।
(ख) विषीदति (दुखी होता है।)