JAC Class 12 History Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 12 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. गाँधीजी दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापस आए
(क) जनवरी, 1915 में
(ख) मार्च, 1915 में
(ग) दिसम्बर, 1915 में
(घ) सितम्बर, 1915 में
उत्तर:
(क) जनवरी, 1915 में

2. गाँधीजी ने अपना पहला सत्याग्रह किया था –
(क) दक्षिणी अमेरिका में
(ख) दक्षिणी अफ्रीका में
(ग) दक्षिणी आस्ट्रेलिया में
(घ) दक्षिणी भारत में
उत्तर:
(ख) दक्षिणी अफ्रीका में

3. गाँधीजी के राजनीतिक गुरु थे –
(क) बाल गंगाधर तिलक
(ख) महादेव गोविन्द रानाडे
(ग) गोपालकृष्ण गोखले
(घ) वल्लभ भाई पटेल
उत्तर:
(ग) गोपालकृष्ण गोखले

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4. गाँधीजी ने फसल चौपट होने पर लगान माफ करने की माँग कहाँ की ?
(क) सूरत में
(ख) चंपारन में
(ग) बिहार में
(घ) खेड़ा में
उत्तर:
(घ) खेड़ा में

5. जलियाँवाला बाग काण्ड हुआ था –
(क) लाहौर में।
(ख) अमृतसर में
(ग) कराची में
(घ) कलकत्ता में
उत्तर:
(ख) अमृतसर में

6. खिलाफत आन्दोलन चलाने वाले नेता थे –
(क) मोहम्मद अली व शौकत अली
(ख) जिला- जवाहरलाल
(ग) गाँधीजी और सरदार पटेल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) मोहम्मद अली व शौकत अली

7. काला विधेयक किसे कहा जाता है?
(क) इलबर्ट
(ख) रॉलेट एक्ट
(ग) शिक्षा बिल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) रॉलेट एक्ट

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8. सरकारी आँकड़ों के अनुसार 1921 में कुल हड़तालें हुई –
(क) 496
(ख) 396
(ग) 284
(घ) 398
उत्तर:
(ख) 396

9. गाँधीजी ने नमक यात्रा (दांडी मार्च) की थी –
(क) मार्च, 1930 में
(ख) जून, 1931 में
(ग) मार्च, 1931 में
(घ) अप्रैल, 1930 में
उत्तर:
(क) मार्च, 1930 में

10. अमृतसर में जलियाँवाला बाग काण्ड हुआ था-
(क) 13 अप्रैल, 1919 में
(ख) 14 फरवरी, 1919 में
(ग) 17 अप्रैल, 1919 में
(घ) 25 दिसम्बर, 1919 में
उत्तर:
(क) 13 अप्रैल, 1919 में

11. भारतीय राष्ट्र का पिता माना गया है-
(क) महात्मा गाँधी को
(ख) पं. जवाहरलाल नेहरू कॉ
(ग) सुभाष चन्द्र बोस को
(घ) सरदार वल्लभ भाई पटेल को
उत्तर:
(क) महात्मा गाँधी को

12. निम्न में से किस राष्ट्रवादी नेता ने सम्पूर्ण देशभर में रॉलट एक्ट के खिलाफ एक अभियान चलाया था?
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) सरदार पटेल
उत्तर:
(ग) महात्मा गाँधी

13. चरखे के साथ भारतीय राष्ट्रवाद की सर्वाधिक स्थायी पहचान बन गए।
(क) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ख) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) शहिद अमीन
उत्तर:
(ग) महात्मा गाँधी

14. निम्न में से किस वर्ष अंग्रेज सदस्यों वाला साइमन कमीशन भारत आया था –
(क) सन् 1928
(ग) सन् 1936
(ख) सन् 1930
(घ) सन् 1942
उत्तर:
(क) सन् 1928

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15. कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा अपने किस अधिवेशन में की थी?
(क) सूरत अधिवेशन
(ख) लाहौर अधिवेशन
(ग) बम्बई अधिवेशन
(घ) नागपुर अधिवेशन
उत्तर:
(क) सूरत अधिवेशन

16. गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ –
(क) लखनऊ में
(ग) लन्दन में
(ख) कोलम्बो में
(घ) जयपुर
उत्तर:
(ग) लन्दन में

17. निम्न में से किस वर्ष नया गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट पारित हुआ?
(क) सन् 1935
(ग) सन् 1940
(ख) सन् 1936
(घ) सन् 1956
उत्तर:
(क) सन् 1935

18. निम्न में से किस गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गाँधी ने निम्न जातियों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग का विरोध किया –
(क) प्रथम
(ख) द्वितीय
(ग) तृतीय
(घ) चतुर्थ
उत्तर:
(ख) द्वितीय

19. “मुझे सम्राट का सर्वोच्च मन्त्री इसलिए नहीं नियुक्त किया गया है कि मैं ब्रिटिश साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दूँ।” यह कथन किस ब्रितानी प्रधानमन्त्री का था?
(क) विंस्टन चर्चिल
(ख) मारग्रेट पैचर
(ग) जेम्स मैकडोनाल्ड
(घ) लार्ड वेवेल
उत्तर:
(क) विंस्टन चर्चिल

20. ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ?
(क) अप्रैल, 1941 में
(ख) अगस्त, 1942 में
(ग) जनवरी, 1943 में
(घ) अक्टूबर, 1946 में
उत्तर:
(ख) अगस्त, 1942 में

21. निम्न में से किस राजनेता द्वारा ‘ए बंच ऑफ लेटर्स’ का संकलन किया गया-
(क) जवाहरलाल नेहरू द्वारा
(ख) महात्मा गाँधी द्वारा
(ग) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा
(घ) डॉ. राधाकृष्णन द्वारा
उत्तर:
(क) जवाहरलाल नेहरू द्वारा

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. मोहनदास करमचंद गाँधी दो दशक रहने के बाद …………… में अपनी गृहभूमि भारत वापस आ गए।
2. गाँधीजी ने सन् ……………. में भारत छोड़ा था।
3. ……………. भी गाँधीजी की तरह गुजराती मूल के लंदन में प्रशिक्षित वकील थे।
4. गांधीजी ने …………….. एक्ट के खिलाफ अभियान चलाया।
5. ……………. आन्दोलन मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आन्दोलन था।
6. सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में …………… हुई जिनमें ‘लाख श्रमिक शामिल थे।
7. …………… के विद्रोह के बाद पहली बार ……………… आन्दोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजी राज की नींव हिल गई।
8. फरवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रान्त के ……………. पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी।
9. गाँधीजी को मार्च, 1922 में ……………. के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया
10. 1929 में दिसम्बर के अन्त में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन …………… शहर में किया।
उत्तर:
1 जनवरी, 1915
2. 1893
3 मोहम्मद अली जिन्ना
4. गॅलेट
5. खिलाफत
6. 396
6 7.1857, असहयोग
8. चौरी-चौरा
9 राजद्रोह
10 लाहौर।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौनसा कानून ‘काला कानून’ कहलाता था ?
उत्तर:
रॉलेट एक्ट।

प्रश्न 2.
गांधीजी के लिए ‘महात्मा’ शब्द का प्रयोग किसने किया?
उत्तर:
गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने।

प्रश्न 3.
खिलाफत का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
खिलाफत का उद्देश्य था-खलीफा पद की पुनर्स्थापना करना।

प्रश्न 4.
चौरी-चौरा कांड कहाँ हुआ था?
उत्तर:
उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक जगह पर।

प्रश्न 5.
दांडी मार्च कब और कितने सदस्यों के साथ गांधीजी ने शुरू किया?
उत्तर:
12 मार्च, 1930 को 78 सदस्यों के साथ।

प्रश्न 6.
तृतीय गोलमेज सम्मेलन के विचार-विमर्श की परिणति किस कानून के रूप में सामने आयी ?
उत्तर:
1935 का भारत सरकार कानून।

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प्रश्न 7.
महात्मा गाँधी के तीन सत्याग्रह आन्दोलनों का उल्लेख कीजिए जो असहयोग आन्दोलन से पहले प्रारम्भ किये गये थे।
उत्तर:

  • चंपारन सत्याग्रह
  • अहमदाबाद सत्याग्रह
  • खेड़ा सत्याग्रह।

प्रश्न 8.
हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गाँधीजी द्वारा किस आन्दोलन का समर्थन किया गया?
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन का।

प्रश्न 9.
गाँधीजी द्वारा कौन से गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया गया?
उत्तर:
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में।

प्रश्न 10.
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव काँग्रेस के किस अधिवेशन में जारी किया गया?
उत्तर:
1929 के लाहौर अधिवेशन में।

प्रश्न 11.
1905-07 के स्वदेशी आन्दोलन ने कौन से तीन उग्रवादी काँग्रेसी नेताओं को जन्म दिया?
उत्तर:

  • बाल गंगाधर तिलक
  • विपिनचन्द्र पाल और
  • लाला लाजपत राय।

प्रश्न 12.
1915 से पहले के काँग्रेस के किन्हीं दो प्रमुख उदारवादी नेताओं के नाम लिखिये।
उत्तर:
(1) गोपालकृष्ण गोखले
(2) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी।

प्रश्न 13.
भारत में गाँधीजी की पहली महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति कब हुई ?
उत्तर:
फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में।

प्रश्न 14.
असहयोग आन्दोलन का क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन के बाद भारतीय राष्ट्रवाद जन-आन्दोलन में बदल गया।

प्रश्न 15.
16 अगस्त, 1946 को जिला ने पाकिस्तान की स्थापना की माँग के समर्थन में कौनसा दिवस मनाने का आह्वान किया?
उत्तर:
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस।

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प्रश्न 16.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अन्तर्गत गाँधीजी द्वारा संचालित आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • असहयोग आन्दोलन
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन
  • भारत छोड़ो आन्दोलन।

प्रश्न 17.
गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन कब स्थगित किया?
उत्तर:
12 फरवरी, 1922 को

प्रश्न 18.
गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया?
उत्तर:
चौरी-चौरा की हिंसात्मक घटना के कारण।

प्रश्न 19.
किस उद्योगपति ने राष्ट्रीय आन्दोलन का खुला समर्थन किया?
उत्तर:
जी. डी. बिड़ला ने।

प्रश्न 20.
गांधीजी किन नामों से पुकारे जाते थे?
उत्तर:
‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराज’, ‘महात्मा’ के नामों से।

प्रश्न 21.
कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर में कब किया?
उत्तर:
1929 में दिसम्बर के अन्त में।

प्रश्न 22.
दिसम्बर, 1929 में कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन किसकी अध्यक्षता में आयोजित किया गया?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में।

प्रश्न 23.
सम्पूर्ण देश में ‘स्वतन्त्रता दिवस’ कब मनाया गया?
उत्तर:
26 जनवरी, 19301

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प्रश्न 24.
गाँधीजी ने दाण्डी मार्च कब शुरू किया और किस स्थान से किया ?
उत्तर:
(1) 12 मार्च, 1930 को
(2) साबरमती आश्रम से।

प्रश्न 25.
गांधीजी ने नमक सत्याग्रह कब शुरू किया ?
उत्तर:
6 अप्रैल, 1930 को दाण्डी यात्रा की समाप्ति पर नमक बनाकर।

प्रश्न 26.
नमक- कर कानून को तोड़ने की घोषणा गाँधीजी ने कब की थी और कहाँ की थी?
उत्तर:
(1) 5 अप्रैल, 1930 को
(2) झण्डी में

प्रश्न 27.
नमक सत्याग्रह में किस महिला ने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया था?
उत्तर:
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने।

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प्रश्न 28.
किस महिला ने गाँधीजी को सलाह दी थी कि वह अपने आन्दोलन को पुरुषों तक ही सीमित न रखें?
उत्तर:
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने।

प्रश्न 29.
पहला गोलमेज सम्मेलन कब आयोजित किया गया और कहाँ किया गया?
उत्तर:
(1) नवम्बर 1930 में।
(2) लन्दन में।

प्रश्न 30.
गाँधी-इरविन समझौता कब हुआ ?
उत्तर:
5 मार्च, 1931 को

प्रश्न 31.
दूसरा गोलमेज सम्मेलन कब और कहाँ आयोजित किया गया?
उत्तर:
(1) दिसम्बर, 1931 में
(2) लन्दन में।

प्रश्न 32.
गाँधीजी किस गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए?
उत्तर:
दूसरे गोलमेज सम्मेलन में।

प्रश्न 33.
गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट कब पारित हुआ?
उत्तर:
1935 में

प्रश्न 34.
1937 के आम चुनाव में कितने प्रान्तों में से कांग्रेस के प्रधानमंत्री सत्ता में आए ?
उत्तर:
11 प्रान्तों में से 8 प्रान्तों के प्रधानमंत्री।

प्रश्न 35.
कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने कब त्याग-पत्र दे दिया ?
उत्तर:
अक्टूबर, 1939 में।

प्रश्न 36.
दलितों को पृथक् निर्वाचिका का अधिकार दिए जाने की माँग किस दलित नेता ने की थी?
उत्तर:
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर।

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प्रश्न 37.
मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण की माँग कब की थी?
उत्तर:
मार्च, 1940 में

प्रश्न 38.
“मैं सम्राट का सर्वोच्च मन्त्री इसलिए नहीं नियुक्त किया गया हूँ कि मैं ब्रिटिश साम्राज्य के टुकड़े- टुकड़े कर दूँ।” यह किसका कथन था ?
उत्तर:
ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का।

प्रश्न 39.
सर स्टेफर्ड क्रिप्स भारत कब आए?
उत्तर:
मार्च, 1942 में।

प्रश्न 40.
ब्रिटिश सरकार ने स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत क्यों भेजा था ?
उत्तर:
राजनीतिक गतिरोध को दूर करने हेतु।

प्रश्न 41.
भारत छोड़ो आन्दोलन’ कब व किसने आरम्भ किया?
उत्तर:
(1) 8 अगस्त, 1942 को
(2) गाँधीजी ने।

प्रश्न 42.
कांग्रेस के किस नेता ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिगत प्रतिरोध गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया ?
उत्तर:
जय प्रकाश नारायण ने।

प्रश्न 43.
ऐसे दो स्थानों के नाम लिखिए जहाँ आन्दोलनकारियों ने अपनी स्वतन्त्र सरकारें स्थापित कर ली थीं।
उत्तर:
(1) सतास
(2) मेदिनीपुर।

प्रश्न 44.
कैबिनेट मिशन भारत कब आया ?
उत्तर:
23 मार्च, 1946

प्रश्न 45.
पाकिस्तान के निर्माण के लिए मुस्लिम लीग ने ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का कब आह्वान किया?
उत्तर:
16 अगस्त, 19461

प्रश्न 46.
दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गाँधीजी को किसकी उपाधि प्रदान की थी?
उत्तर:
‘राष्ट्रपिता’ की।

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प्रश्न 47.
गाँधीजी के जीवनी लेखक कौन थे?
उत्तर:
जी. डी. तेन्दुलकर।

प्रश्न 48.
खेड़ा में गाँधीजी ने किसानों के लिए क्या किया?
उत्तर:
गांधीजी ने खेड़ा में फसल चौपट होने पर राज्य सरकार से किसानों का लगान माफ करने की माँग की।

प्रश्न 49.
दाण्डी मार्च पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गांधीजी ने 12 मार्च, 1930 को नमक कानून हेतु साबरमती आश्रम से दाण्डी की यात्रा 24 दिनों में पूरी की।

प्रश्न 50.
“महात्मा गाँधी जन नेता थे।” इस कथन की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
गाँधीजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आन्दोलन में हजारों किसानों, मजदूरों, कारीगरों, बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। वे आम लोगों की तरह रहते थे।

प्रश्न 51.
रॉलेट एक्ट क्या था?
उत्तर:
इसके अनुसार किसी को भी बिना कारण बताए जेल में अनिश्चित काल के लिए बन्द किया जा सकता था।

प्रश्न 52.
दक्षिणी अफ्रीका से लौटने पर किसने महात्मा गाँधी को क्या सलाह दी थी?
उत्तर:
गोपाल कृष्ण गोखले ने गाँधीजी को एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा करने की सलाह दी थी।

प्रश्न 53.
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन सफल क्यों नहीं हुआ?
उत्तर:
भारत की स्वतन्त्रता की माँग को स्वीकार न करने तथा साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान न होने के कारण।

प्रश्न 54.
दक्षिण अफ्रीका ने ही गाँधीजी को ‘महात्मा’ बनाया। यह कथन किस इतिहासकार का है?
उत्तर:
चन्द्रन देवनेसन ने।

प्रश्न 55.
खिलाफत आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन तुर्की के खलीफा की पुनर्स्थापना के लिए भारतीय मुसलमानों का एक आन्दोलन था।

प्रश्न 56.
असहयोग आन्दोलन के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) रॉलेट एक्ट’ के कारण भारतीयों में असन्तोष था
(2) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के कारण भारतीयों में आक्रोश व्याप्त था।

प्रश्न 57.
चौरीचौरा की घटना क्या थी?
उत्तर:
फरवरी, 1922 में सत्याग्रहियों द्वारा चौरी- चौरा (गोरखपुर) में पुलिस थाने में आग लगा दी जिससे 22 पुलिसकर्मी (एक थानेदार तथा इक्कीस सिपाही) जलकर मर गये।

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नाम
प्रश्न 58.
गाँधीजी के चार प्रमुख सहयोगियों के लिखिए जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया।
उत्तर:

  • सरदार वल्लभ भाई पटेल
  • सुभाष चन्द्र बोस
  • जवाहर लाल नेहरू
  • अबुल कलाम आजाद।

प्रश्न 59.
असहयोग आन्दोलन के दो प्रभाव बताइये।
उत्तर:
(1) राष्ट्रीय आन्दोलन का क्षेत्र व्यापक हो गया।
(2) राष्ट्रवाद का सन्देश भारत के सुदूर भागों तक फैल गया।

प्रश्न 60.
गांधीजी के दो सामाजिक सुधारों का उल्लेख कीजिये
उत्तर:
(1) छुआछूत के उन्मूलन पर बल देना।
(2) बाल विवाह की कुप्रथा को समाप्त करने पर बल देना ।

प्रश्न 61.
गांधीजी ने चरखा चलाने पर क्यों बल दिया? कोई दो तर्क दीजिये।
अथवा
चरखा राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया ?
उत्तर:
(1) चरखा गरीबों को पूरक आय दे सकता था
(2) यह लोगों को स्वावलम्बी बना सकता था।

प्रश्न 62.
1929 में दिसम्बर के अना में आयोजित कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन किन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर:
(1) जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप मैं चुनाव
(2) ‘पूर्ण स्वराज’ की उद्घोषणा।

प्रश्न 63.
‘स्वतन्त्रता दिवस’ मनाए जाने के तुरन्त बाद महात्मा गाँधी ने क्या घोषणा की थी?
उत्तर:
गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करने की घोषणा की।

प्रश्न 64.
गाँधीजी ने नमक कानून को किसकी संज्ञा दी थी?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानूनों में से एक कानून की।

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प्रश्न 65.
गाँधीजी ने नमक-कानून के विरुद्ध आन्दोलन करने का क्यों निश्चय किया?
उत्तर:
(1) घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाना निषिद्ध था।
(2) लोगों को ऊंचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया गया।

प्रश्न 66.
गाँधीजी के अनुसार नमक विरोध का प्रतीक क्यों था?.
अथवा
गाँधीजी ने नमक सत्याग्रह क्यों शुरू किया?
उत्तर:
(1) नमक एकाधिकार लोगों को ग्राम उद्योग से वंचित करता था
(2) भूखे लोगों से हजार प्रतिशत से अधिक की वसूली करना।

प्रश्न 67.
नमक सत्याग्रह के दो कार्यक्रमों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) वकीलों द्वारा ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार करना
(2) विद्यार्थियों द्वारा सरकारी शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार करना।

प्रश्न 68.
नमक सत्याग्रह के दौरान गाँधीजी ने क्या आह्वान किया था?
उत्तर:
(1) स्थानीय अधिकारी सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतन्त्रता संघर्ष में शामिल हों ।
(2) ऊंची जाति के लोग दलितों की सेवा करें।

प्रश्न 69.
अमेरिकी समाचार पत्रिका ‘टाइम’ ने क्या कहकर गाँधीजी का मजाक उड़ाया था?
उत्तर:
पत्रिका ने गाँधीजी के ‘तकुए जैसे शरीर तथा ‘मकड़ी जैसे पेडू’ का मजाक उड़ाया था।

प्रश्न 70.
नमक सत्याग्रह की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) यह पहला राष्ट्रीय आन्दोलन था जिसमें महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।
(2) यह आन्दोलन पूर्ण अहिंसात्मक था।

प्रश्न 71.
जालियाँवाला बाग कहाँ स्थित है?
उत्तर:
अमृतसर में

प्रश्न 72.
खिलाफत आन्दोलन का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
खलीफा पद की पुनर्स्थापना करना।

प्रश्न 73.
चौरी-चौरा काण्ड कर्ब व कहाँ हुआ था?
उत्तर:
5 फरवरी, 1922 में गोरखपुर।

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प्रश्न 74.
साइमन कमीशन भारत क्यों आया?
उत्तर:
भारतीय उपनिवेश को स्थितियों की जाँच- पड़ताल करने के लिए।

प्रश्न 75.
बरदौली में किसान सत्याग्रह किस वर्ष हुआ?
उत्तर:
सन् 1928 में।

प्रश्न 76.
26 जनवरी 1930 को स्वतन्त्रता दिवस मनाए जाने के पश्चात् गाँधीजी ने क्या घोषणा की?
उत्तर:
गाँधीजी ने यह घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानून को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे।

प्रश्न 77.
गाँधीजी ने अपनी नमक यात्रा की पूर्व सूचना किस अंग्रेज वायसराय को दी थी?
उत्तर:
लॉर्ड इर्बिन को।

प्रश्न 78.
अखिल बंगाल सविनय अवज्ञा परिषद् का गठन किसने किया?
उत्तर:
जे. एम. सेन गुप्ता ने

प्रश्न 79.
गाँधी-इरविन समझौते की दो शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) गाँधीजी सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस ले लेंगे।
(2) ब्रिटिश सत्याग्रहियों को मुक्त कर देगी।
सरकार बन्दी बनाए गए

प्रश्न 80.
गाँधीजी को लन्दन से खाली हाथ क्यों लौटना पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने का आश्वासन नहीं दिया तथा वह साम्प्रदायिकता की समस्या हल नहीं कर सकी।

प्रश्न 81.
गाँधीजी ने निम्न जातियों के लिए पृथक् निर्वाचिका की मांग का विरोध क्यों किया ?
उत्तर:
पृथक् निर्वाचिका की माँग से दलितों का समाज की मुख्य धारा में एकीकरण नहीं हो पायेगा।

प्रश्न 82.
कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने क्यों त्याग-पत्र दे दिया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय युद्ध के बाद भारत को स्वतन्त्रता देने की कांग्रेस की माँग को अस्वीकार कर दिया था।

प्रश्न 83.
दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गाँधीजी को किन तीन दलों ने चुनौती दी थी?
उत्तर:
(1) मुस्लिम लीग
(2) राजे-रजवाड़े
(3) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर।

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प्रश्न 84.
कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के किस सिद्धान्त को कभी स्वीकार नहीं किया?
उत्तर:
दो राष्ट्र सिद्धान्त’।

प्रश्न 85.
किस व्यक्ति ने गाँधीजी की हत्या की भी और कब?
उत्तर:
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने।

प्रश्न 86.
अमेरिका की टाइम पत्रिका’ ने गांधीजी के बलिदान की तुलना किससे की थी?
उत्तर:
अब्राहम लिंकन के बलिदान से।

प्रश्न 87.
किस समाचार-पत्र में गाँधीजी उन पत्रों को प्रकाशित करते थे, जो उन्हें लोगों से मिलते थे?
उत्तर:
‘हरिजन’ में।

प्रश्न 88.
पं. जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान उन्हें लिखे गए पत्रों का एक संकलन तैयार किया था। उसे उन्होंने किस नाम से प्रकाशित किया?
उत्तर:
‘ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स’ (पुराने पत्रों का पुलिन्दा) ।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका में उनके द्वारा किए गए कार्यों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका की सरकार के रंग भेदभाव के विरोध में सत्याग्रह का सहारा लिया। उन्होंने वहाँ विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया। गाँधीजी ने उच्च जातीय भारतीयों से दलितों एवं महिलाओं के प्रति भेदभाव का व्यवहार न करने के लिए चेतावनी दी। वास्तव में दक्षिण अफ्रीका ही उनके सत्याग्रह की प्रथम पाठशाला बना तथा उसने ही उन्हें ‘महात्मा’ बना दिया।

प्रश्न 2.
गाँधीजी के रचनात्मक कार्यों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
गांधीजी ने बुनियादी शिक्षा, ग्राम उद्योग संघ, तालीमी संघ और गौ रक्षा संप स्थापित किये। उन्होंने समाज में फैली शोषण व्यवस्था को समाप्त करने पर बल दिया। उन्होंने कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन के लिए कार्य किया। चरखा और खादी उनके आर्थिक तंत्र के मुख्य आधार थे। उन्होंने दलितोद्धार, शराबबन्दी, नारी सशक्तिकरण तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता को प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 3.
“दक्षिण अफ्रीका ने ही गाँधीजी को महात्मा बनाया।” यह कथन किसका है? इसके पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
इतिहासकार चंदन देवनेसन ने कहा था कि गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में ही पहली बार अहिंसात्मक विरोध के अपने विशेष तरीकों की प्रयोग किया जिसे सत्याग्रह का नाम दिया गया। यहीं पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के मध्य सद्भावना बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जातीय भारतीयों को दलितों एवं महिलाओं के प्रति भेदभाव के व्यवहार के लिए चेतावनी दी।

प्रश्न 4.
गाँधीजी ने खिलाफत आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन का अंग क्यों बनाया?
उत्तर:
गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को विस्तार एवं मजबूती देने के लिए खिलाफत आन्दोलन को इसका अंग बनाया। उन्हें यह विश्वास था कि असहयोग को खिलाफत के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय हिन्दू और मुसलमान आपस में मिलकर औपनिवेशिक शासन का अन्त कर देंगे।

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प्रश्न 5.
महात्मा गाँधी के अमरीकी जीवनी लेखक लुई फिशर ने गाँधीजी के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
लुई फिशर ने लिखा कि “असहयोग भारत और गाँधीजी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। असहयोग शान्ति की दृष्टि से नकारात्मक किन्तु प्रभाव की दृष्टि से सकारात्मक था। इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग एवं स्व- अनुशासन आवश्यक थे। यह स्वशासन के लिए एक प्रशिक्षण था।”

प्रश्न 6.
दलितों के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्र का विरोध गाँधीजी द्वारा क्यों किया गया था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोलमेज सम्मेलन के दौरान गांधीजी ने दमित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था, “अस्पृश्यों के लिए पृथक् निर्वाचिका का प्रावधान करने से उनकी दासता स्थायी रूप ले लेगी। क्या आप चाहते हैं कि ‘अस्पृश्य’ हमेशा ‘अस्पृश्य’ ही बने रहें? पृथक् निर्वाचिका से उनके प्रति कलंक का यह भाव अधिक मजबूत हो जायेगा। जरूरत इस बात की है कि अस्पृश्यतां का विनाश किया जाए।

प्रश्न 7.
1939 में कॉंग्रेस मंत्रिमण्डल ने सरकार से इस्तीफा क्यों दिया?
उत्तर:
1937 में सीमित मताधिकार के आधार पर हुए चुनावों में काँग्रेस की 11 में से 8 प्रांतों में सरकारें बनीं। सितम्बर, 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि अगर अंग्रेज युद्ध की समाप्ति पर स्वतंत्रता देने को राजी हों तो काँग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में सहायता दे सकती है सरकार ने कांग्रेस का प्रस्ताव खारिज कर दिया। इसके विरोध में काँग्रेस ममण्डलों ने अक्टूबर, 1939 में इस्तीफा दे दिया।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किसने किया था और इसका क्या परिणाम रहा?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन की असफलता के बाद जिना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया। इसके लिए 16 अगस्त, 1946 का दिन तय किया गया। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से शुरू होकर ग्रामीण बंगाल, बिहार, संयुक्त प्रांत तथा पंजाब तक फैल गई। कुछ स्थानों पर हिन्दुओं ने मुसलमानों को तथा मुसलमानों ने हिन्दुओं को अपना निशाना बनाया।

प्रश्न 9.
“महात्मा गाँधी भारतीय राष्ट्र के पिता थे।” कैसे?
उत्तर:
गाँधीजी भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली और सम्मानित थे। उन्होंने किसानों, मजदूरों, कारीगरों, व्यापारियों, बुद्धिजीवियों, हिन्दुओं, मुसलमानों, सभी भारतीयों को संगठित किया और उनमें राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया। उन्होंने 1920 से 1947 तक असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं भारत छोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व किया और सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रवाद का और स्वाधीनता प्राप्त करने का जोश भर दिया।

प्रश्न 10.
गाँधी इर्विन समझौता कब हुआ? इसकी शर्तें बताइए। रैडिकल राष्ट्रवादियों ने गाँधी इर्विन समझौते की आलोचना क्यों की?
उत्तर:
गाँधी इर्विन समझौता 5 मार्च 1931 को हुआ था। इस समझौते में निम्न बातों पर सहमति बनी –

  1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना
  2. समस्त राजनैतिक कैदियों की रिहाई
  3. तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति देना।

रैडिकल राष्ट्रवादियों ने गांधी इर्विन समझौते की आलोचना की। क्योंकि गाँधीजी अंग्रेजी वायसराय से भारतीयों के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता का आश्वासन प्राप्त नहीं कर पाये थे। गाँधीजी को इस सम्भावित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए केवल वार्ताओं का आश्वासन मिला था।

प्रश्न 11.
क्रिप्स मिशन भारत कब आया ? क्रिप्स वार्ता क्यों टूट गयी?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन मार्च, 1942 में भारत आया। सर स्टेफर्ड क्रिप्स के साथ वार्ता में कांग्रेस ने इस बात पर बल दिया कि यदि धुरी शक्तियों के विरुद्ध ब्रिटेन कांग्रेस का समर्थन चाहता है तो उसे व्यवसाय की कार्यकारी परिषद में किसी भारतीय को रक्षा सदस्य नियुक्त करना होगा। ब्रिटिश सरकार द्वारा असहमति देने पर यह वार्ता टूट गयी।

प्रश्न 12.
गाँधीजी के प्रारम्भिक जीवन तथा दक्षिण अफ्रीका में उनके कार्यकलापों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सन् 1915 से पूर्व लगभग 22 वर्षों तक मोहनदास करमचंद गाँधी (महात्मा गाँधी) विदेशों में रहे। इन वर्षों का अधिकांश हिस्सा उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किया। गाँधीजी एक वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए थे और बाद में वे इस क्षेत्र के भारतीय समुदायों के नेता बन गए। गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रथम बार वहाँ की सरकार की रंग-भेद एवं जातीय भेद के विरुद्ध सत्याग्रह के रूप में अपना अहिंसात्मक तरीके से विरोध किया तथा विभिन्न धर्मों के मध्य सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया।

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प्रश्न 13.
रॉलेट एक्ट सत्याग्रह से ही गाँधीजी एक सच्चे राष्ट्रीय नेता बन गए।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
गांधीजी ने ‘रॉलेट एक्ट’ के विरुद्ध सम्पूर्ण देश में आन्दोलन चलाया। इसकी सफलता से उत्साहित होकर गाँधीजी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध ‘असहयोग आन्दोलन’ की माँग कर दी। जो लोग भारतीय उपनिवेशवाद को समाप्त करना चाहते थे, उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कालेजों तथा न्यायालयों का बहिष्कार करें तथा कर न चुकाएँ। गाँधीजी ने कहा कि असहयोग आन्दोलन के द्वारा भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।

प्रश्न 14.
खिलाफत आन्दोलन’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन (1919-1920) मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में संचालित भारतीय मुसलमानों का एक आन्दोलन था। इस आन्दोलन की निम्नलिखित मांगें थीं—पूर्व में आटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की सुल्तान अथवा खलीफा का नियन्त्रण बना रहे जजीरात-उल-अरब इस्लामी सम्प्रभुता के अधीन रहे तथा खलीफा के पास काफी क्षेत्र हों। गाँधीजी ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया।

प्रश्न 15.
26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस को किस रूप में मनाए जाने की गाँधीजी ने अपील की?
उत्तर:
गाँधीजी ने सुझाव दिया कि 26 जनवरी को सभी गाँवों और शहरों में स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाए, संगोष्ठियां आयोजित की जाएं तथा राष्ट्रीय ध्वज को फहराए जाने से समारोहों की शुरुआत की जाए। दिन में सूत कातने, दलितों की सेवा करने, हिन्दुओं व मुसलमानों के पुनर्मिलन आदि के कार्यक्रम आयोजित किये जाएं। इस दिन लोग यह प्रतिज्ञा लेंगे कि भारतीय लोगों को भी स्वतन्त्रता प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रश्न 16.
गाँधीजी ने नमक सत्याग्रह क्यों शुरू किया?
उत्तर:

  1. प्रत्येक भारतीय के घर में नमक का प्रयोग होता था, परन्तु उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए नमक बनाने का अधिकार नहीं था
  2. उन्हें दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया जाता था।
  3. नमक के उत्पादन तथा बिक्री पर सरकार का एकाधिकार था, जो बहुत अलोकप्रिय था।
  4. यह भारतीयों को बहुमूल्य सुलभ ग्राम उद्योग से वंचित करता था।
  5. यह राष्ट्रीय सम्पदा के लिए विनाशकारी था।

प्रश्न 17.
लन्दन में आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गाँधीजी के दावे को किन तीन पार्टियों से चुनौती सहन करनी पड़ी?
उत्तर:
(1) मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है। कांग्रेस मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम नहीं करती है।
(2) राजे-रजवाड़ों का दावा था कि कांग्रेस का उनके नियन्त्रण वाले भू-भाग पर कोई अधिकार नहीं है।
(3) डॉ. भीमराव अम्बेडकर का कहना था कि गांधीजी और कांग्रेस पार्टी दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।

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प्रश्न 18.
स्टेफर्ड क्रिप्स मिशन क्यों असफल हो गया?
उत्तर:
मार्च, 1942 में ब्रिटिश सरकार ने स्टेफर्ड क्रिप्स को वार्ता हेतु भारत भेजा। कांग्रेस ने इस बात पर बल दिया कि यदि धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार कांग्रेस का समर्थन चाहती है, तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद में किसी भारतीय को एक रक्षा-सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए। इसी बात पर वार्ता टूट गई और स्टेफर्ड क्रिप्स खाली हाथ स्वदेश लौट गए।

प्रश्न 19.
नमक सत्याग्रह का महत्त्व प्रतिपादित कीजिये।
उत्तर:

  1. इस घटना ने गाँधीजी को संसार भर में प्रसिद्ध कर दिया।
  2. इस सत्याग्रह में भारतीय महिलाओं ने भारी संख्या में हिस्सा लिया। स्वियों ने शराब की दुकानों तथा विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना दिया और अपने आप को गिरफ्तारी के लिए पेश किया।
  3. इस सत्याग्रह से अंग्रेजों को पता चल गया कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।

प्रश्न 20.
महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस क्यों लिया?
उत्तर:
5 फरवरी, 1922 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक गाँव में पुलिस ने कांग्रेस के सत्याग्रहियों पर गोलियाँ चलाई, तो भीड़ क्रुद्ध हो उठी और उसने एक थाने में आग लगा दी। इसके फलस्वरूप एक थानेदार तथा 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। चौरी- चौरा की इस हिंसात्मक घटना से गाँधीजी को प्रबल आघात पहुँचा और उन्होंने असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया।

प्रश्न 21.
दाण्डी यात्रा की प्रमुख घटनाओं की न्व्याख्या कीजिये। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने अपने 78 आश्रमवासियों को लेकर साबरमती आश्रम से दाण्डी नामक स्थान की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने अपनी यात्रा पैदल चल कर 24 दिन में तय की। 6 अप्रैल, 1930 को वहाँ उन्होंने नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया। इस प्रकार सम्पूर्ण भारत में नमक सत्याग्रह शुरू हो गया। इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को व्यापक बनाया, स्वियों में जागृति पैदा की इस आन्दोलन से अंग्रेजों को पता चल गया कि अब उनका राज बहुत दिनों तक नहीं टिक सकेगा।

प्रश्न 22.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रॉलेट एक्ट तथा अपने लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लोगों ने एक सार्वजनिक सभा आयोजित की जनरल डायर ने शान्तिप्रिय तथा निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। इस बर्बरतापूर्ण कार्यवाही में 400 लोग मारे गए तथा सैकड़ों लोग घायल हो गए। इससे भारतीय जनता में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ और सम्पूर्ण देश में इस हत्याकाण्ड की कटु आलोचना की गई।

प्रश्न 23.
“चम्पारन, अहमदाबाद एवं खेड़ा में की गई पहल ने गाँधीजी को एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभारा।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चम्पारन, अहमदाबाद एवं खेड़ा में की गई पहल ने गाँधीजी को एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभारा। गाँधीजी में गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। वर्ष 1917 का अधिकांश समय महात्मा गाँधी को बिहार के चम्पारन जिले में किसानों के लिए काश्तकारी की सुरक्षा साथ-साथ अपनी पसन्द की फसल उपजाने की स्वतन्त्रता दिलाने में बीता। गाँधीजी ने भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग 1917 ई. में चम्पारन में ही किया था।

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वर्ष 1918 ई. में गाँधीजी गुजरात के अपने गृह राज्य में दो अभियानों में व्यस्त रहे। सर्वप्रथम उन्होंने अहमदाबाद के एक श्रम विवाद में हस्तक्षेप करके कपड़ा मिलों में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए काम करने की बेहतर स्थितियों की माँग की। इसके पश्चात् उन्होंने खेड़ा में फसल चौपट होने पर राज्य में किसानों का लगान माफ करने की माँग की। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इन आन्दोलनों ने गाँधीजी को एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभारा।

प्रश्न 24.
असहयोग आन्दोलन से भारतीयों ने क्या उम्मीदें लगा रखी थीं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1920 ई. के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी के प्रस्ताव ‘असहयोग आन्दोलन’ से भारतवासियों को अत्यधिक आशाएँ थीं। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं –

  1. विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से देशी वस्तुओं को बढ़ावा मिलेगा।
  2. सरकारी उत्सवों का बहिष्कार कर देशी उत्सवों को प्रोत्साहन तथा पुनः प्रतिष्ठा प्राप्त होगी।
  3. साम्प्रदायिक रूप से हिन्दू तथा मुस्लिमों में एकता स्थापित होगी।
  4. राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने तथा राष्ट्रवाद को बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
  5. इस आन्दोलन से विभिन्न भारतीय नेताओं को एक मंच अवश्य प्राप्त होगा।

प्रश्न 25.
खिलाफत आन्दोलन की प्रमुख मांगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन (1919-20 ) मुहम्मद अली जिन्ना एवं शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आन्दोलन था। इस आन्दोलन की प्रमुख माँगें निम्नलिखित थीं –

  • पहले के ऑटोमन साम्राज्य के समस्त इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की के सुल्तान अथवा खलीफा का नियन्त्रण बना रहे।
  • जजीरात-उल-अरब ( अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन ) इस्लामी सम्प्रभुता के अधीन रहें।
  • खलीफा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित रखने योग्य बना सके।

प्रश्न 26.
मार्च 1922 में महात्मा गाँधी को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी के पश्चात् सजा सुनाते समय जस्टिस एन. ब्रूमफील्ड ने क्या टिप्पणी की?
उत्तर:
मार्च 1922 ई. में महात्मा गाँधीजी को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर जाँच की कार्यवाही करने वाली समिति की अध्यक्षता करने वाले जज जस्टिस सी. एन. ब्रूमफील्ड ने उन्हें सजा सुनाते समय महत्त्वपूर्ण भाषण दिया। जज ने अपनी टिप्पणी में लिखा ” इस बात को नकारना असम्भव होगा कि मैंने आज तक जिनकी जांच की है या करूंगा आप उनसे अलग श्रेणी के हैं इस तथ्य को नकारना असम्भव होगा कि आपके लाखों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान् देश-भक्त व नेता हैं।

यहाँ तक कि राजनीति में जो लोग आपसे अलग विचार रखते हैं वे भी आपको उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं।” चूँकि गाँधीजी ने कानून की अवहेलना की थी अतः उस न्यायपीठ के लिए गाँधीजी को 6 वर्ष की सजा सुनाया जाना आवश्यक था। लेकिन जज ब्रूमफील्ड ने कहा कि “यदि भारत में घट रही घटनाओं की वजह से सरकार के लिए सजा के इन वर्षों कराना सम्भव हुआ तो इससे नहीं होगा।” में कमी और आपको मुक्त मुझसे ज्यादा कोई प्रसन्न

प्रश्न 27.
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
दिसम्बर, 1929 में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ। इसके अनुसार, 26 जनवरी, 1930 को देश के विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर और देशभक्ति के गीत गाकर ‘स्वतन्त्रता दिवस’ मनाया गया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था –
(1) पं. जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव, जो बुवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था।
(2) इसमें पूर्ण स्वराज की घोषणा की गई।

प्रश्न 28.
दाण्डी यात्रा के समय गाँधीजी ने वसना गाँव में ऊँची जाति वालों को संबोधित करते हुए क्या कहा था?
उत्तर:
गांधीजी ने उच्च जाति के लोगों से कहा, “यदि आप स्वराज के हक में आवाज उठाते हैं तो आपको दलितों की सेवा करनी पड़ेगी। सिर्फ नमक कर या अन्य करों की समाप्ति से ही स्वराज नहीं मिल जायेगा। स्वराज के लिए आपको अपनी उन गलतियों के लिए प्रायश्चित करना पड़ेगा जो आपने दलितों के साथ की हैं। स्वराज के लिए हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सिक्ख सबको एकजुट होना पड़ेगा। ये स्वराज प्राप्त करने की सीढ़ियाँ हैं।”

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प्रश्न 29.
गाँधीजी और नेहरूजी के आग्रह पर काँग्रेस ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर कौनसा प्रस्ताव पारित किया था?
उत्तर:
काँग्रेस ने ‘दो राष्ट्र सिद्धान्त’ को कभी स्वीकार नहीं किया था। जब उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध विभाजन पर मंजूरी देनी पड़ी तो भी उसका दृढ़ विश्वास था कि “भारत बहुत सारे धर्मों और नस्लों का देश है और उसे ऐसे ही बनाए रखना चाहिए।” पाकिस्तान में हालात जो भी रहें, भारत “एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जहाँ सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे तथा धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना सभी को राज्य के द्वारा संरक्षण का अधिकार होगा।”

प्रश्न 30.
भारत विभाजन के समय हुए दंगों में गाँधीजी ने लोगों से क्या अपील की ?
उत्तर:
गांधीजी के जीवनी लेखक डी. जी. तेंदुलकर ने लिखा है कि सितम्बर और अक्टूबर के दौरान गाँधीजी “पीड़ितों को सांत्वना देते हुए अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों में चक्कर लगा रहे थे।” उन्होंने “सिवानों, हेन्दुओं और मुसलमानों से अपील की कि वे अतीत को भुलाकर अपनी पीड़ा पर ध्यान देने के बजाय एक दूसरे के प्रति भाईचारे का हाथ बढ़ाने तथा शान्ति से रहने का संकल्प लें।”

प्रश्न 31.
गाँधीजी का भारत में राष्ट्रवाद के आधार को और अधिक व्यापक बनाने में किस प्रकार सफल रहे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी का जनता से अनुरोध निस्सन्देह कपट से मुक्त था। भारतीय राजनीतिक के सन्दर्भ में तो बिना किसी संकोच के यह कहा जा सकता है कि वह अपने प्रयत्नों से राष्ट्रवाद के आधार को और अधिक व्यापक बनाने में सफल रहे। निम्न बिन्दुओं से यह तथ्य स्पष्ट है –

  • गाँधीजी के नेतृत्व में भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नयी शाखाएँ खोली गयीं।
  • रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धान्त को बढ़ावा देने के लिए प्रजामण्डलों की स्थापना की गई। हम
  • गाँधीजी ने राष्ट्रवादी सन्देश का प्रसारे अंग्रेजी भाषा में करने की बजाय मातृभाषा में करने को प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 32.
1943 में हुए सतारा आन्दोलन की महानता और विशेषता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1943 में महाराष्ट्र में सतारा जिले के कुछ नेताओं ने सेवा दलों और तूफान दलों (ग्रामीण इकाई) के साथ मिलकर एक प्रति (समानान्तर ) सरकार की स्थापना कर ली थी। उन्होंने सतारा में जन अदालतों का आयोजन किया और सम्पूर्ण महाराष्ट्र में रचनात्मक कार्य किए। कुनबी किसानों के दबदबे और दलितों के सहयोग से चलने वाली सतारा की प्रति सरकार, ब्रिटिश सरकार द्वारा किए जा रहे दमन के बावजूद 1946 के चुनाव तक चलती रही।

प्रश्न 33.
आप कैसे कह सकते हैं कि गाँधीजी सर्वसाधारण के पक्षधर एवं हिमायती थे? 1916 से 1918 के मध्य की घटनाओं से इस कथन की पुष्टि कीजिये।
उत्तर:
(1) फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के समय गाँधीजी ने बोलते समय मजदूरों और गरीबों की उपेक्षा किये जाने की आलोचना की।
(2) गाँधीजी ने कहा कि हमारे लिए स्वशासन या स्वराज का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग सम्पूर्ण लाभ स्वयं या अन्य लोगों को ले लेने की अनुमति देते रहेंगे। दिसम्बर, 1916 में उन्होंने चंपारन में तथा 1918 में अहमदाबाद और खेड़ा में सत्याग्रह किये।

प्रश्न 34.
1919 में पास किए गए रौलेट एक्ट के प्रति भारतीय जनमानस की प्रतिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1919 में रॉलेट एक्ट पास किया गया जिसके अनुसार –
(1) अंग्रेज बिना किसी कारण के भारतीयों को गिरफ्तार कर सकते थे तथा बिना मुकदमा चलाए उन्हें जेल में रख सकते थे।
(2) पंजाब जाते समय गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा स्थानीय नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए।
(3) 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल डायर ने निहत्थी व निर्दोष जनता पर गोलियां चलवाई। इस भीषण नरसंहार में 400 लोग मारे गए।

प्रश्न 35.
गाँधीजी की दाण्डी यात्रा के बारे में विभिन्न स्रोतों द्वारा किन-किन बातों का पता लगा? लिखिए।
उत्तर:
(1) 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दाण्डी के लिए कूच किया।
(2) पुलिस रिपोर्ट के अनुसार जगह-जगह गाँधीजी ने भाषण दिए जिसमें दलितों को उनका हक देने, सभी धर्मावलम्बियों को एकजुट होने का आह्वान किया।
(3) अमेरिकी पत्रिका टाइम ने पहले गांधीजी के कमजोर शरीर का मजाक उड़ाया। परन्तु बाद में टाइम ने लिखा कि यात्रा को भारी जनसमर्थन मिल रहा है।

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प्रश्न 36.
दलितों के उत्थान में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के प्रमुख योगदानों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
डॉ. अम्बेडकर दलितों के मसीहा थे। उन्होंने अपना तन-मन-धन दलितों के उत्थान में लगा दिया। उन्होंने प्रथम गोलमेज कान्फ्रेन्स में भाग लिया और उनकी दयनीय दशा पर प्रकाश डाला। उन्होंने 1931 में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में सवर्ण हिन्दुओं द्वारा दलितों के शोषण किए जाने की निन्दा की और उनके लिए पृथक् निर्वाचिका की माँग की। उन्होंने दलितों के लिए स्कूल खुलवाये।

प्रश्न 37.
“भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायने में जन-आन्दोलन था?” समालोचना कीजिये।
उत्तर:
अगस्त, 1942 में गाँधीजी ने अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ प्रारम्भ किया। यह आन्दोलन सही मायने में एक जन आन्दोलन था जिसमें लाखों आम हिन्दुस्तानी शामिल थे। इस आन्दोलन ने युवा वर्ग को बहुत बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया। इस आन्दोलन के दौरान सतारा में स्वतंत्र’ सरकार भी बनी, जो 1946 तक चलती रही। वस्तुतः 1942 का आन्दोलन वास्तव में जन-आन्दोलन था।

प्रश्न 38.
जस्टिस सी. एन. बूमफील्ड ने गाँधीजी को सजा सुनाते हुए क्या कहा?
उत्तर:
जस्टिस सी. अपनी टिप्पणी में लिखा, “इस तथ्य को नकारना असम्भव होगा कि आपके लाखों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और नेता हैं। यहाँ तक कि राजनीति में जो लोग आपसे भिन्न विचार रखते हैं वे भी आपको उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। चूँकि गाँधीजी ने कानून की अवहेलना की थी, अतः उस न्यायपीठ के लिए गाँधीजी को 6 वर्षों की जेल की सजा सुनाया जाना जरूरी था।”

प्रश्न 39.
“गाँधीजी भारतीय राष्ट्रवाद को सम्पूर्ण भारतीय लोगों का और अधिक अच्छे ढंग से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम बनाना चाहते थे।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँधीजी ने महसूस किया कि भारतीय राष्ट्रवाद वकीलों, डॉक्टरों और जमींदारों जैसे विशिष्ट वर्गों द्वारा निर्मित था। फरवरी, 1916 में गाँधीजी ने बनारस हिन्दू ‘विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए कहा था कि “हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है, न तो वकील, न डॉक्टर, न ही जमींदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं।” अतः गाँधीजी लाखों किसानों और मजदूरों को भारतीय राष्ट्रवाद का अभिन्न अंग बनाना चाहते थे।

प्रश्न 40.
गाँधीजी के बारे में कौनसी चमत्कारिक शक्तियों की अफवाहें फैली हुई थीं?
उत्तर:
(1) गाँधीजी के बारे में यह अफवाह भी फैली हुई थी कि उन्हें राजा द्वारा किसानों के दुःखों एवं कष्टों के निवारण के लिए भेजा गया था तथा उनके पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत करने की शक्ति थी
(2) गांधीजी की शक्ति ब्रिटिश सम्राट से उत्कृष्ट है और उनके आगमन से ब्रिटिश शासक जिलों से भाग जायेंगे। (3) गाँधीजी की आलोचना करने वाले गाँवों के लोगों के घर गिर गए या उनकी फसलें नष्ट हो गई।

प्रश्न 41.
गाँधीजी सामान्य जन से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
गांधीजी आम लोगों की तरह रहते थे, उनकी ही तरह के वस्त्र पहनते थे तथा उनकी भाषा में बोलते थे। गाँधीजी लोगों के बीच एक साधारण धोती में जाते थे। वे किसानों, मजदूरों, कारीगरों, गरीबों, दलितों से गहरी सहानुभूति रखते थे। वे प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा चलाते थे। वे मानसिक एवं शारीरिक परिश्रम में कोई भेद नहीं मानते थे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –
(1) रॉलेट एक्ट
(ii) खिलाफत आन्दोलन।
उत्तर:
(i) रॉलेट एक्ट यद्यपि प्रथम विश्व- बुद्ध (1914-18) के दौरान भारतवासियों ने अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की थी, परन्तु विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को कुचलने के लिए कठोर कानून बनाये। 1919 में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पास किया जिसके अनुसार किसी भी भारतीय को बिना किसी जाँच के कारावास में बन्द किया जा सकता था। रॉलेट एक्ट के पारित किये जाने से गाँधीजी को प्रबल आघात पहुँचा। उन्होंने इस काले कानून के विरुद्ध एक देशव्यापी अभियान चलाया। गाँधीजी की अपील पर अनेक नगरों में हड़ताल की गई।

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दिल्ली में लोगों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक जुलूस निकाला जिस पर पुलिस ने गोलियाँ चलाई जिससे अनेक लोग मारे गए। गाँधीजी को पलवल (हरियाणा) नामक रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। इससे भारतवासियों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। पंजाब के लोगों ने रॉलेट एक्ट का घोर विरोध किया।

ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर के स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लोगों ने एक विशाल सभा आयोजित की। एक अंग्रेज ब्रिगेडियर डाबर ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलवार्थी, जिससे 400 से अधिक लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए, इस पर गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय किया।

(ii) खिलाफत आन्दोलन खिलाफत आन्दोलन (1919-20 ) मुहम्मद अली एवं शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आन्दोलन था।

इस आन्दोलन की प्रमुख माँगें निम्नलिखित –

  • पहले के आटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की सुल्तान अथवा खलीफा का नियन्त्रण बना रहे।
  • जंजीरात-उल-अरब इस्लामी सम्प्रभुता के अधीन रहे।
  • खलीफा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित रखने योग्य बन सके।

गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने के लिए खिलाफत आन्दोलन को इसका अंग बनाया। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता उत्पन्न करने के लिए खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया।

प्रश्न 2.
तीनों गोलमेज सम्मेलनों के विषय में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
तीनों गोलमेज सम्मेलनों को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से समझ सकते हैं –
(1) प्रथम गोलमेज सम्मेलन भारतीय संविधान पर विचार करने के लिये लन्दन में 12 नवम्बर, 1930 को प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में कुल 57 भारतीयों ने भागीदारी की। यह वह समय था जब भारत के प्रायः सभी प्रमुख नेता सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण जेल में बन्द थे। इस सम्मेलन में प्रायः कुछ साम्प्रदायिक समस्याओं पर ही चर्चा हुई। इस सम्मेलन में दुर्भाग्य से कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।

(2) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के उपरान्त द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की सफलता के लिये अंग्रेजों ने अत्यधिक प्रयास किये, इसके लिये उन्होंने गाँधीजी को रिहा कर दिया। यहाँ गाँधी- इर्विन में समझौता हुआ था। गाँधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया। 7 सितम्बर, 1931 को लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इसमें गाँधीजी ने कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। गाँधीजी का कहना था कि उनकी पार्टी भारत का प्रतिनिधित्व करती है, परन्तु उनके इस दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी थी। इस सम्मेलन में भाग ले रहे मुस्लिम लीग के जिन्ना का कहना था कि उनकी पार्टी मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है। अनेक रियासतों के प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में सम्मिलित हुए। उनका दावा था कि कांग्रेस का उनके नियन्त्रण वाले भू-भाग पर कोई प्रभुत्व नहीं है। तीसरी चुनौती डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर की ओर से थी। उनका कहना था कि गांधीजी व कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है।

(3) तृतीय गोलमेज सम्मेलन-जिन दिनों भारत में महात्मा गाँधी ने सशक्तता के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन चला रखा था उसी समय लन्दन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। इंग्लैण्ड की एक मुख्य लेबर पार्टी ने इसमें भाग नहीं लिया। भारत में कांग्रेस पार्टी ने भी इस सम्मेलन का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया था। वे भारतीय प्रतिनिधि जो सिर्फ अंग्रेजों की हाँ में हाँ मिलाते थे, ने इस सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में लिये गये निर्णयों को श्वेत-पत्र के रूप में प्रकाशित किया गया। इस श्वेत-पत्र के आधार पर 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया। कांग्रेस के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।

प्रश्न 3.
असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था? उल्लेख कीजिए।
अथवा
असहयोग आन्दोलन के कारणों का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों एवं प्रगति पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
महात्मा गाँधी द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन कब आरम्भ हुआ? इसके उद्देश्य तथा कार्यक्रम क्या थे? यह आन्दोलन क्यों समाप्त हुआ?
अथवा
असहयोग आन्दोलन पर एक लेख लिखिए। उत्तर- असहयोग आन्दोलन के कारण 1920 में गांधीजी द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे –
(1) रॉलेट एक्ट 1919 में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित किया जिसके अनुसार किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाए जेल में बन्द किया जा सकता था। गाँधीजी ने देशभर में ‘रॉलेट एक्ट’ के विरुद्ध एक अभियान चलाया। पंजाब जाते समय गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।

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(2) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड-13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा आयोजित की गई। जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया। इस बर्बरतापूर्ण कार्यवाही में 400 लोग मारे गए तथा सैकड़ों लोग घायल हो गए।

(3) खिलाफत आन्दोलन-गाँधीजी ने हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता उत्पन्न करने के लिए खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया। असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित थीं –

  • सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों का बहिष्कार करना
  • सरकारी उपाधियों तथा अवैतनिक पदों का बहिष्कार करना
  • सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार करना
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना।

आन्दोलन की प्रगति ( असहयोग आन्दोलन प्रतिरोध के रूप में ) – कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन के प्रस्ताव को बहुमत से स्वीकार कर लिया गया। हजारों विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों का बहिष्कार किया तथा वकीलों ने अदालत जाने मना कर दिया। अनेक नगरों में हड़तालें हुई। 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे। उत्तरी आंध्र के पहाड़ी लोगों ने वन्य कानूनों का उल्लंघन किया। अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाया। स्वदेशी का प्रचार हुआ और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया। सरकार ने अनेक कांग्रेसी नेताओं को जेलों में बन्द कर दिया।

चौरी-चौरा काण्ड-5 फरवरी, 1922 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक गाँव में पुलिस ने कांग्रेस के सत्याग्रहियों पर गोलियाँ चलाई तो भीड़ क्रुद्ध हो उठी और उसने एक थाने में आग लगा दी। इसके फलस्वरूप एक थानेदार तथा 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। चौरी-चौरा काण्ड से गाँधीजी को प्रबल आघात पहुँचा और उन्होंने असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया। 10 मार्च, 1922 को सरकार ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया और न्यायाधीश ग्रूमफील्ड ने उन्हें 6 वर्ष के कारावास की सजा दी।

असहयोग आन्दोलन का महत्त्व एवं प्रभाव –
(1) सकारात्मक आन्दोलन लुई फिशर के अनुसार असहयोग भारत और गाँधीजी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। असहयोग शान्ति की दृष्टि से नकारात्मक किन्तु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था। इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग तथा स्व-अनुशासन आवश्यक थे यह स्वशासन के लिए एक प्रशिक्षण था।

(2) अंग्रेजी शासन की नींव हिलना-1857 के विद्रोह के बाद पहली बार असहयोग आन्दोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजी शासन की नींव हिल गई।

(3) जन-आन्दोलन-असहयोग आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को व्यापक एवं जनप्रिय बना दिया।

(4) राष्ट्रीयता का प्रसार असहयोग आन्दोलन ने देशवासियों में राष्ट्रीयता का प्रसार किया 1922 तक गाँधीजी ने भारतीय राष्ट्रवाद को एकदम परिवर्तित कर दिया।

प्रश्न 4.
ब्रिटिश सरकार ने गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन क्यों किया? काँग्रेस का इन सम्मेलनों के प्रति क्या रुख रहा? इनका क्या परिणाम निकला?
अथवा
गोलमेज सम्मेलन क्यों आयोजित किये गए? इनके कार्यों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
पृष्ठभूमि भारत में लागू किए जाने वाले संवैधानिक सुधारों के बारे में चर्चा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने तीन बार गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन लंदन में किया। लेकिन इन सम्मेलनों का कोई भी सार्थक परिणाम नहीं निकला।

(1) प्रथम गोलमेज सम्मेलन – भारतीय राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के उद्देश्य से 1930 में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का लंदन में आयोजन किया गया। इसमें ब्रिटिश सरकार के समर्थक मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि भी शामिल हुए लेकिन कॉंग्रेस का कोई भी प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं हुआ क्योंकि उस समय सविनय अवज्ञा आन्दोलन चल रहा था। आधारभूत मुद्दों पर किसी सहमति के बिना 1931 में यह सम्मेलन स्थगित कर दिया गया। कॉंग्रेस की गैरहाजिरी में यह सम्मेलन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया।

(2) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – 1931 के आखिर में दूसरा गोलमेज सम्मेलन लन्दन में आयोजित किया गया। इसमें गाँधीजी ने कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। इस सम्मेलन में गांधीजी ने मुस्लिम लीग की पृथक् निर्वाचिका की माँग का विरोध करते हुए पूर्ण स्वराज्य की माँग की। गाँधीजी का कहना था कि उनका दल सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करता है।

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परन्तु मुस्लिम लीग, राजे- रजवाड़ों तथा डॉ. अम्बेडकर ने गाँधीजी के दावे को चुनौती दी। मुस्लिम लीग के अनुसार कांग्रेस मुसलमानों का, राजे- रजवाड़ों के अनुसार कांग्रेस देशी रियासतों का तथा डॉ. अम्बेडकर के अनुसार कांग्रेस दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। इस प्रकार दूसरा सम्मेलन भी किसी परिणाम पर नहीं पहुँचा और गाँधीजी को खाली हाथ लौटना पड़ा।

(3) तृतीय गोलमेज सम्मेलन राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए तथा संवैधानिक सुधार लागू करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1932 में तीसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। काँग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया। इसमें इंग्लैण्ड के एक मुख्य राजनीतिक दल लेबर पार्टी ने भी भाग नहीं लिया। इसमें कुछ ऐसे भारतीय प्रतिनिधि सम्मिलित हुए जो अंग्रेजों की हाँ में हाँ मिलाते थे। अन्त में तीनों गोलमेज सम्मेलनों में हुई चर्चाओं के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने 1933 में एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसके आधार पर 1935 का भारत सरकार का अधिनियम पारित किया गया।

प्रश्न 5.
“भारत छोड़ो आन्दोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ गाँधीजी का तीसरा बड़ा आन्दोलन था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात् महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला किया। अगस्त, 1942 ई. में शुरू किए गए इस आन्दोलन को ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ के नाम से जाना गया।

भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के कारण –
(i) अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति- सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। महात्मा गाँधी व जवाहरलाल नेहरू दोनों ही हिटलर व नात्सियों के आलोचक थे। तदनुरूप उन्होंने फैसला किया कि यदि अंग्रेज युद्ध समाप्त होने के पश्चात् भारत को स्वतन्त्रता देने पर सहमत हों तो कांग्रेस उनके बुद्ध प्रयासों में सहायता दे सकती है। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इस घटनाक्रम ने अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित किया।

(i) क्रिप्स मिशन की असफलता द्वितीय विश्व युद्ध में कांग्रेस व गाँधीजी का समर्थन प्राप्त करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल ने अपने एक | मन्त्री सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। क्रिप्स के साथ वार्ता में कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि यदि धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन कांग्रेस का समर्थन चाहता है तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद् में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए। इसी बात पर वार्ता टूट गयी। क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात् गाँधीजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने का फैसला किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ-9 अगस्त, 1942 ई. को गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया तथा सभाओं, जुलूसों व समाचार-पत्रों पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए गए। इसके बावजूद देशभर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों एवं तोड़फोड़ की कार्यवाहियों के माध्यम से आन्दोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत होकर अपनी गतिविधियों को चलाते रहे।
आन्दोलन का अन्त-अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति कठोर रवैया अपनाया फिर भी इस विद्रोह का दमन करने में साल भर से अधिक समय लग गया।

आन्दोलन का महत्त्व भारत छोड़ो आन्दोलन में लाखों की संख्या में आम भारतीयों ने भाग लिया तथा हड़तालों एवं तोड़-फोड़ के माध्यम से आन्दोलन को आगे बढ़ाते रहे। इस आन्दोलन के कारण भारत की ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार यह बात अच्छी तरह जान गई कि जनता में कितना व्यापक असन्तोष है। सरकार समझ गई कि अब वह भारत में ज्यादा दिनों तक शासन नहीं कर पायेगी।

प्रश्न 6.
भारत को स्वतंत्र कराने में गाँधीजी के योगदान का वर्णन कीजिए।’
अथवा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
भारत को स्वतंत्र कराने में गाँधीजी का योगदान भारत को आजादी दिलाने में गाँधीजी की भूमिका मुख्य थी। उन्होंने सत्याग्रह और शान्तिपूर्ण अहिंसा का सहारा लेकर ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को झुकने पर मजबूर कर दिया। भारत को स्वतंत्र कराने में गांधीजी के योगदान को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –
(1) भारतीय राष्ट्र के पिता-राष्ट्रवाद के इतिहास में प्रायः एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के साथ जोड़कर देखा जाता है। महात्मा गाँधी को भारतीय राष्ट्र का ‘पिता’ माना गया है क्योंकि गाँधीजी स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावी और सम्मानित थे।

(2) भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों का कुशलतापूर्वक संचालन –

  • असहयोग आन्दोलन – 1920 में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन चलाया जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। उनके कहने पर भारतीयों ने चाहे वे क्लर्क थे, वकील थे या कारीगर थे, सबने अपना काम करना बन्द कर दिया। विद्यार्थियों ने विद्यालय जाना छोड़ दिया। सभी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन – 1930 में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने नमक कानून तोड़ा जिसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।
  • भारत छोड़ो आन्दोलन अगस्त – 1942 में गाँधीजी ने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू किया। गाँधीजी ने इसके लिए ‘करो या मरो’ का नारा बुलन्द किया था।

(3) स्वदेशी आन्दोलन – गाँधीजी ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों के अन्तर्गत स्वदेशी आन्दोलन का समर्थन किया।

(4) भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को विशिष्टवर्गीय आन्दोलन से जनांदोलन बनाया-भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी का सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रीय आन्दोलन को जन-आन्दोलन में परिणत करने का था। गाँधीजी ने अपनी पहली महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक सभा, जो फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में हुई, में अपने भाषण में मजदूर गरीबों की ओर ध्यान न देने के कारण भारतीय विशिष्ट वर्ग को आड़े हाथों लिया। इसके बाद उन्होंने अपनी वेशभूषा को गरीब भारतीयों की वेशभूषा के अनुरूप ढाला ताकि गरीब जनता उसे अपने जैसा समझते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े इसके अतिरिक्त उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया।

(5) समाज सुधारक गाँधीजी महान समाज सुधारक भी थे। उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता के योग्य बनने के लिए भारतीयों को बाल विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्त होना पड़ेगा। एक मत के भारतीयों को दूसरे मत के भारतीयों के लिए सच्चा संयम लाना होगा और इस प्रकार उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच सौहार्द पर बल दिया। उन्होंने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और स्वदेशी के अपनाने तथा खादी पहनने पर बल दिया।

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(6) हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक गाँधीजी हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने साम्प्रदायिक दंगों का घोर विरोध किया और देश में शान्ति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाये रखने के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान कर दिया।

प्रश्न 7.
महात्मा गाँधी केवल राजनीतिक नेता ही नहीं थे, वे एक समाज सुधारक तथा आर्थिक सुधारक भी थे। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
एक राजनीतिज्ञ के रूप में गांधीजी का महत्त्व तब पता चलता है जब उन्होंने अहिंसक आन्दोलन चलाकर एक साम्राज्यवादी ताकत को हिलाकर रख दिया और देश को आजादी दिलाकर ही दम लिया लेकिन वे एक समाज सुधारक और आर्थिक सुधारक भी थे। यथा –
(1) गाँधीजी एक समाज सुधारक के रूप में- प्रथमतः, गाँधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित की तथा उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एकजुट किया। इसका उदाहरण खिलाफत आन्दोलन के साथ असहयोग आन्दोलन को जोड़ना था। दूसरे, समाज सुधारक के रूप में उन्होंने जातीय प्रथा का। विरोध किया। उन्होंने यथासम्भव दलितों का उद्धार किया तथा पहली बार अछूतों को हरिजन नाम से संबोधित किया। उनके उद्धार के लिए हरिजन नामक पत्र निकाला। ये छुआछूत के विरुद्ध लड़े तथा सभी वर्गों और धर्मों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने पर बल दिया। तीसरे, उन्होंने बाल विवाह, छुआछूत का विरोध किया तथा भारतीयों को मत-मतांतरों के बीच सच्चा संगम लाने पर बल दिया।

(2) आर्थिक सुधारक के रूप में एक आर्थिक सुधारक के रूप में उन्होंने निम्न प्रमुख कार्य किए
(i) आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए उन्होंने चरखा चलाने तथा खादी पहनने पर बल दिया जिससे देशी कपड़ा उद्योग को बढ़ावा मिला। गाँवों के विकास और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया, जिन्हें छोटी पूँजी से परिवार के सदस्य घर से चलाकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते थे। उन्होंने मशीनीकरण की नीति का विरोध किया। वे इस बात के विरुद्ध थे कि धन का केन्द्रीकरण केवल कुछ ही लोगों के हाथों में हो जाए।

(ii) उन्होंने अहमदाबाद के मिल मजदूरों को अपना वेतन बढ़वाने के लिए हड़ताल करने को कहा तथा भारत के सभी वर्गों में आर्थिक समानता लाने पर जोर दिया।

(iii) गाँधीजी किसानों के हित के लिए लड़े तथा उनकी रक्षा के लिए स्वयं आगे आए। चंपारन सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह इसके उदाहरण हैं। गाँधीजी के उपर्युक्त कार्यों के आधार पर हम सकते हैं कि गाँधीजी केवल एक राजनीतिक नेता ही नहीं थे अपितु वे समाज सुधारक तथा आर्थिक सुधारक के रूप में भी हमारे सामने आए वे आजादी दिलाने के साथ-साथ देश की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में भी सुधार लाए।

प्रश्न 8.
“1919 तक महात्मा गाँधी ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में उभर चुके थे, जिनमें गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति थी।” उदाहरण सहित कथन को सिद्ध कीजिए।
अथवा
भारत में गाँधीजी द्वारा किए गए शुरुआती सत्याग्रहों का वर्णन कीजिए। ये सत्याग्रह गाँधीजी के राजनीतिक जीवन में कहाँ तक सहायक हुए ?
अथवा
चम्पारन सत्याग्रह का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
उत्तर:
1915 में दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटने के बाद गाँधीजी ने प्रारम्भ में कई सत्याग्रह किए जिनका विवरण इस प्रकार है –
(1) चम्पारन सत्याग्रह – गाँधीजी ने अपना प्रथम सत्याग्रह 1917 में बिहार के चंपारन नामक स्थान पर किया। वहाँ पर जो किसान नील की खेती करते थे उन पर यूरोपीय निलहे बहुत अत्याचार करते थे। उन किसानों ने गाँधीजी को अपनी समस्या बताई। इस पर गाँधीजी चंपारन पहुँचे। अन्त में सरकार ने किसानों की शिकायतों को दूर करने हेतु कदम उठाये।

(2) खेड़ा सत्याग्रह – 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में फसल खराब होने से किसानों की हालत खराब हो गई। किसानों ने लगान देने से मना कर दिया। गाँधीजी ने उनकी बात का समर्थन किया। यहाँ भी सरकार को झुकना पड़ा और यह निर्णय लिया गया कि जो किसान लगान देने में सक्षम हैं उन्हें ही जमा कराने का आदेश दें। अतः कुछ समय बाद यह आन्दोलन खत्म हो गया।

(3) अहमदाबाद के मिल मजदूरों का संघर्ष – 1918 में अहमदाबाद के कपड़ा मिल मजदूरों ने अपने वेतन को | बढ़वाने के लिए मिल मालिकों से कहा लेकिन मिल- मालिकों ने मना कर दिया। इस पर मजदूरों ने हड़ताल कर दी। गाँधीजी ने मिल मजदूरों की माँग को जायज बताया और अनशन शुरू कर दिया। अन्त में मिल मालिकों ने उनकी बात मान ली। गाँधीजी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया तथा हड़ताल भी खत्म हो गई।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

(4) सर्वसाधारण के प्रति सहानुभूति-गाँधीजी की आम भारतीयों के प्रति गहरी सहानुभूति थी वे किसानों के शोषण से दुःखी थे। फरवरी, 1916 में उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए कहा था कि “हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है, न तो वकील, न डॉक्टर, न ही जमींदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं।” गाँधीजी का कहना था कि हमारे लिए स्वशासन या स्वराज का तब तक कोई अर्थ नहीं है, जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग सम्पूर्ण लाभ स्वयं या अन्य लोगों को ले लेने की अनुमति देते रहेंगे।

(5) रोलेट एक्ट सत्याग्रह 1919 में गाँधीजी ने ‘रोलेट एक्ट’ के विरुद्ध सम्पूर्ण देश में सत्याग्रह चलाया। दिल्ली और अनेक शहरों में लोगों ने सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया और विशाल जुलूस निकाले पंजाब जाते समय गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अतिरिक्त हजारों कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। उपर्युक्त आन्दोलनों का कुशल नेतृत्व करने के कारण गाँधीजी भारत के राजनीतिक आकाश पर छा गये और एक जननेता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। 1919 तक गाँधीजी ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में उभर चुके थे, जिनमें गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति थी।

प्रश्न 9.
1930 में गाँधीजी द्वारा संचालित सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिये। यह आन्दोलन कहाँ तक सफल हुआ?

अथवा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिये। इसका हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधीजी के नेतृत्व में संचालित सविनय अवज्ञा आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे –
1. साइमन कमीशन – 3 फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन जब बम्बई पहुँचा तो उसका प्रबल विरोध हुआ क्योंकि इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। सरकार की दमनकारी नीति के कारण जनता में तीव्र आक्रोश व्याप्त था।

2. पूर्ण स्वराज्य की माँग-दिसम्बर, 1929 में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में कॉंग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ। 31 दिसम्बर, 1929 को अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन (दांडी यात्रा) का प्रारम्भ स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरन्त बाद गाँधीजी ने घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित ‘नमक- कानून’ को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे। नमक पर राज्य का एकाधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था। लोगों को दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया जाता था। यह राष्ट्रीय सम्पदा के लिए विनाशकारी था। नमक कर लोगों को बहुमूल्य सुलभ ग्राम उद्योग से वंचित करता था।

12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने अपने 78 आश्रमवासियों को साथ लेकर साबरमती आश्रम से दांडी (डाण्डी) नामक स्थान की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने लगभग 200 मील की यात्रा पैदल चलकर 24 दिन में तब की 5 अप्रैल, 1930 को वे दाण्डी पहुँचे और 6 अप्रैल को वहाँ उन्होंने मुट्ठीभर नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया और सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति –

  1. देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन कानूनों का उल्लंघन किया।
  2. कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गये।
  3. वकीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार किया।
  4. विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थाओं में पढ़ने से इनकार कर दिया।
  5. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना, विदेशी वस्त्रों की होली जलाना तथा स्वदेशी का प्रयोग करना, सविनय अवज्ञा आन्दोलन का एक अन्य कार्यक्रम था।

(1) अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति- सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। कांग्रेस ने अंग्रेजों को युद्ध में समर्थन देने के लिए दो प्रमुख माँगें प्रस्तुत की –

  •  युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को स्वतंत्रता प्रदान की जाए।
  • युद्धकाल में केन्द्र में भारतीयों की राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाए। ब्रिटिश सरकार ने इन मांगों को ठुकरा दिया। अन्ततः 1939 में 8 प्रांतों में कॉंग्रेसी मंत्रिमण्डलों ने त्याग पत्र दे दिया और उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय कर लिया।

(2) क्रिप्स मिशन की विफलता – द्वितीय विश्व युद्ध में काँग्रेस का सहयोग प्राप्त करने की दृष्टि से चर्चिल ने अपने एक मंत्री सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। क्रिप्स के साथ वार्ता में कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि अगर धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन काँग्रेस का समर्थन चाहता है तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए। इसी बात पर वार्ता टूट गई। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गाँधीजी ने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आन्दोलन शुरू करने का फैसला लिया। भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ- 8 अगस्त, 1942 को मुम्बई में काँग्रेस के विशेष अधिवेशन में गाँधीजी का ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास कर दिया गया।

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आन्दोलन की प्रगति – सरकार ने भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा के बाद 9 अगस्त, 1942 को ही गांधीजी, नेहरूजी आदि अनेक प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद सम्पूर्ण भारत में हड़तालें और सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए। काँग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोध गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे।
पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में ‘स्वतंत्र’ सरकार (प्रति सरकार) की स्थापना कर दी गई थी।

आन्दोलन का अन्त- अंग्रेजों ने आन्दोलन के प्रति सख्त रवैया अपनाया, फिर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को सालभर से अधिक समय लगा। भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्त्व और परिणाम इस आन्दोलन के निम्न प्रमुख परिणाम निकले –

(1) भारत में राजनीतिक जागृति- भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायने में एक जन-आन्दोलन था जिसमें लाखों आम हिन्दुस्तानी शामिल थे। इसके फलस्वरूप भारत में राजनीतिक जागृति में वृद्धि हुई। अब ब्रिटिश सरकार को पता चल गया कि अब वह भारत में अधिक दिनों तक शासन नहीं कर पाएगी।

(2) राष्ट्रीय आन्दोलन में युवकों का प्रवेश – इस आन्दोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया।

(3) मुस्लिम लीग ने पंजाब व सिन्ध में अपनी पहचान बनाई – इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप मुस्लिम लीग को पंजाब तथा सिन्ध में अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिला।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने वाला था –
(अ) जॉन मार्शल
(स) व्हीलर
(ब) कनिंघम
(द) प्रिंसेप
उत्तर:
(द) प्रिंसेप

2. बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में कितने महाजनपदों का उल्लेख मिलता है?
(अ) 8
(स) 16
(ब) 18
(द) 14
उत्तर:
(स) 16

3. अशोक के अधिकांश अभिलेख किस भाषा में हैं?
(अ) संस्कृत
(ब) पालि
(स) हिन्दी
(द) प्राकृत
उत्तर:
(द) प्राकृत

4. ‘अर्थशास्त्र’ का रचयिता कौन था?
(अ) बाणभट्ट
(ब) चाणक्य
(स) कल्हण
(द) मेगस्थनीज
उत्तर:
(ब) चाणक्य

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5. ‘इण्डिका’ की रचना किसने की थी ?
(अ) चाणक्य
(ब) कर्टियस
(स) मेगस्थनीज
(द) प्लूटार्क
उत्तर:
(स) मेगस्थनीज

6. अशोक ने धम्म के प्रचार के लिए किस अधिकारी की नियुक्ति की ?
(अ) धर्माध्यक्ष
(ब) दानाध्यक्ष
(स) सैन्य महामात
(द) धर्म महामात
उत्तर:
(द) धर्म महामात

7. कौनसे शासक अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि लगाते थे?
(अ) मौर्य शासक
(ब) शुंग शासक
(स) सातवाहन शासक
(द) कुषाण शासक
उत्तर:
(द) कुषाण शासक

8. ‘प्रयाग प्रशस्ति’ की रचना किसने की थी?
(अ) हरिषेण
(स) कालिदास
(ब) बाणभट्ट
(द) कल्हण
उत्तर:
(अ) हरिषेण

9. अभिलेखों के अध्ययन को कहते हैं –
(अ) मुखाकृति
(ब) पुरालिपि
(स) अभिलेखशास्त्र
(द) शिल्पशास्त्र
उत्तर:
(स) अभिलेखशास्त्र

10. निम्न में से सबसे महत्त्वपूर्ण जनपद था –
(अ) कुरु
(ब) मत्स्य
(स) गान्धार
(द) मगध
उत्तर:
(द) मगध

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11. मगध महाजनपद की प्रारम्भिक राजधानी थी –
(अ) पटना
(ब) राजगाह
(स) संस्कृत
(द) हिन्दी
उत्तर:
(ब) राजगाह

12. मौर्य साम्राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक केन्द्र
(अ) तक्षशिला
(ब) उज्जयिनी
(स) पाटलिपुत्र
(द) सुवर्णगिरि
उत्तर:
(स) पाटलिपुत्र

13. किस शासक को बीसवीं शताब्दी के राष्ट्रवादी नेताओं ने प्रेरणा का स्रोत माना है?
(अ) अशोक
(ब) कनिष्क
(स) समुद्रगुप्त
(द) चन्द्रगुप्त मौर्य
उत्तर:
(अ) अशोक

14. प्रयाग प्रशस्ति की रचना की –
(अ) कल्हण
(ब) हरिषेण
(स) अशोक
(द) विल्हण
उत्तर:
(ब) हरिषेण

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15. आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रन्थ है –
(अ) ऋग्वेद
(स) रामायण
(ब) मनुस्मृति
(द) महाभारत
उत्तर:
(ब) मनुस्मृति

16. छठी शताब्दी में सबसे पहले ढाले एवं प्रयोग किए गए चाँदी और ताँबे के सिक्के कहलाते हैं –
(अ) आहत
(स) सिक्का
(अ) मुहर
(द) रुपया
उत्तर:
(अ) आहत

17. सर्वप्रथम सोने के सिक्के किन शासकों ने जारी किए?
(अ) शक
(स) मौर्य
(ब) कुषाण
(द) गुप्त
उत्तर:
(ब) कुषाण

18. किस शासक के लिए देवानांपिय उपाधि का प्रयोग हुआ है?
(अ) समुद्रगुप्त
(स) अकबर
(ब) चन्द्रगुप्त
(द) अशोक
उत्तर:
(द) अशोक

19. जनपद शब्द का प्रयोग हमें किन दो भाषाओं में मिल जाता है?
(अ) पालि और प्राकृत
(ब) प्राकृत और पालि
(स) प्राकृत और संस्कृत
(द) पालि और संस्कृत
उत्तर:
(स) प्राकृत और संस्कृत

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20. अजातशत्रु तथा अशोक जैसे शासकों के नाम किन अभिलेखों से प्राप्त हुए हैं?
(अ) प्राकृत अभिलेख
(ब) पालि अभिलेख
(स) संस्कृत अभिलेख
(द) तमिल अभिलेख
उत्तर:
(अ) प्राकृत अभिलेख

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. …………. का अर्थ एक ऐसा भूखण्ड है जहाँ कोई जन अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है।
2. प्राचीनतम अभिलेख ………….. भाषा में लिखे जाते थे।
3. जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है …………… कहते हैं।
4. …………. आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम है।
5. धम्म के प्रचार के लिए ……………. नामक विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।
6. सिलप्यादिकारम् ………….. भाषा का महाकाव्य है।
7. प्रयाग प्रशस्ति की रचना …………… राजकवि …………. ने की थी।
उत्तर:
1. जनपद
2. प्राकृत
3. ओलीगार्की, समूह शासन
4. राजगाह
5. धम्म महामात
6. तमिल
7. समुद्रगुप्त, हरिषेण।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
साँची में कौनसी प्रसिद्ध पुरातात्विक इमारत स्थित है?
उत्तर:
साँची में अशोक द्वारा बनवाया गया बृहद् तथा प्रसिद्ध स्तूप स्थित है।

प्रश्न 2.
शासकों की प्रतिमा और नाम के सिक्के सर्वप्रथम किस राजवंश के राजाओं ने जारी किये थे?
उत्तर:
कुषाण राजवंश के राजाओं ने।

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प्रश्न 3.
मौर्य शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र का वर्तमान नाम क्या है?
उत्तर:
मौर्य शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र का वर्तमान नाम पटना है।

प्रश्न 4.
भारत में सोने के सिक्के सबसे पहले कब और किस वंश के राजाओं ने जारी किए थे?
उत्तर:
प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं ने जारी किए थे।

प्रश्न 5.
लगभग दूसरी शताब्दी ई. में सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्धार किस शक राजा ने करवाया था?
उत्तर:
रुद्रदामन ने।

प्रश्न 6.
अभिलेख किसे कहते हैं?
उत्तर:
अभिलेख पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन पर खुदे होते हैं।

प्रश्न 7.
अशोक के अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर उसका क्या नाम लिखा है?
उत्तर:
अशोक के अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर ‘पियदस्सी’ नाम लिखा है।

प्रश्न 8.
कलिंग पर विजय प्राप्त करने वाला मौर्य सम्राट् कौन था?
उत्तर:
सम्राट् अशोक।

प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई. पूर्व के चार महाजनपदों के नाम उनकी राजधानी सहित लिखिए।
उत्तर:
(1) अंग (चम्पा)
(2) मगध (राजगीर)
(3) काशी (वाराणसी)
(4) कोशल (श्रावस्ती)।

प्रश्न 10.
चौथी शताब्दी ई. पूर्व किसे मगध की राजधानी बनाया गया?
उत्तर:
चौथी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाई गयी।

प्रश्न 11.
मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली होने के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) खेती की अच्छी उपज होना
(2) लोहे की खदानों का उपलब्ध होना।

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प्रश्न 12.
मौर्य साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए दो प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) कौटिल्य कृत ‘अर्थशास्त्र’
(2) मेगस्थनीज द्वारा लिखित ‘इण्डिका।

प्रश्न 13.
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजधानी पाटलिपुत्र तथा चार प्रान्तीय केन्द्र- तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि, सुवर्णगिरि

प्रश्न 14.
सिल्लपादिकारम् क्या है?
उत्तर:
सिल्लपादिकारम् तमिल महाकाव्य है। प्रश्न 15. प्रयाग प्रशस्ति का ऐतिहासिक महत्त्व बताइये। उत्तर- प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त की विजयों, चारित्रिक विशेषताओं की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 16.
मौर्य स्वम्राज्य का संस्थापक कौन था? उसने मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब की ?
उत्तर:
(1) चन्द्रगुप्त मौर्य
(2) 321 ई. पूर्व

प्रश्न 17.
गुप्त साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • साहित्य
  • सिक्के
  • अभिलेख
  • हरिषेण द्वारा लिखित ‘प्रयाग प्रशस्ति’।

प्रश्न 18.
जातक ग्रन्थों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
इनसे राजाओं और प्रजा के सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 19.
‘मनुस्मृति’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
‘मनुस्मृति’ आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रन्थ है।

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प्रश्न 20.
प्रभावती गुप्त कौन थी?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-415 ई.) की पुत्री थी।

प्रश्न 21.
जातक कथाएँ अथवा जातक कहानी क्या
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियों के संकलन को जातक कथाओं के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 22.
गुप्त वंश की किस शासिका ने भूमिदान किया था और क्यों?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त ने भूमिदान किया था क्योंकि वह रानी थी।

प्रश्न 23.
‘हर्षचरित’ की रचना किसने की थी?
उत्तर:
बाणभट्ट ने।

प्रश्न 24.
‘ श्रेणी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादकों और व्यापारियों के संघ’ श्रेणी’ कहलाते

प्रश्न 25.
सोने के सबसे भव्य सिक्के प्रचुर मात्रा में किन सम्राटों ने जारी किये?
उत्तर:
गुप्त सम्राटों ने।

प्रश्न 26.
‘अभिलेख शास्त्र’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
अभिलेखों के अध्ययन को ‘अभिलेख शास्त्र’ कहते हैं।

प्रश्न 27.
गण और संघ नामक राज्यों में कौन शासन करता था?
उत्तर:
लोगों का समूह।

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प्रश्न 28.
महाजनपद के राजा का प्रमुख कार्य क्या
उत्तर:
किसानों, व्यापारियों तथा शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करना।

प्रश्न 29.
मगध राज्य के तीन शक्तिशाली राजाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • बिम्बिसार
  • अजातशत्रु
  • महापद्मनन्द।

प्रश्न 30.
अशोक के प्राकृत के अधिकांश अभिलेख किस लिपि में लिखे गए थे?
उत्तर:
ब्राह्मी लिपि में।

प्रश्न 31.
‘तमिलकम’ में किन सरदारियों (राज्यों) का उदय हुआ?
उत्तर:
‘तमिलकम’ में चोल, चेर तथा पाण्ड्य सरदारियों का उदय हुआ।

प्रश्न 32.
दक्षिणी भारत के सरदारों तथा सरदारियों की जानकारी किससे मिलती है?
उत्तर:
प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों में संग्रहित कविताओं

प्रश्न 33.
‘देवपुत्र’ की उपाधि किन शासकों ने धारण की थी?
उत्तर:
कुषाण शासकों ने।

प्रश्न 34.
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख किस नाम से प्रसिद्ध
उत्तर:
‘इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख’ के नाम से।

प्रश्न 35.
प्राचीन भारत में राजाओं और प्रजा के बीच रहने वाले तनावपूर्ण सम्बन्धों की जानकारी किससे मिली है?
उत्तर:
जातक कथाओं से।

प्रश्न 36.
अग्रहार’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अग्रहार वह भू-भाग था, जो ब्राह्मणों को दान किया जाता था।

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प्रश्न 37.
श्रेणी से क्या आशय है?
उत्तर:
उत्पादक एवं व्यापारियों के संघ को श्रेणी कहा जाता है।

प्रश्न 38.
दानात्मक अभिलेखों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इनमें धार्मिक संस्थाओं को दिए दान का विवरण होता था।

प्रश्न 39.
इस युग में भारत से रोमन साम्राज्य को किन वस्तुओं का निर्यात किया जाता था ?
उत्तर:
कालीमिर्च जैसे मसालों, कपड़ों, जड़ी-बूटियों

प्रश्न 40.
‘पेरिप्लस ऑफ एभ्रियन सी’ नामक ग्रन्थ का रचयिता कौन था?
उत्तर:
एक यूनानी समुद्री यात्री

प्रश्न 41.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में सबसे पहले किन सिक्कों का प्रयोग हुआ?
उत्तर:
चांदी और ताँबे के आहत सिक्कों का।

प्रश्न 42.
मुद्राशास्व’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
‘मुद्राशास्त्र’ सिक्कों का अध्ययन है।

प्रश्न 43.
पंजाब और हरियाणा में प्रथम शताब्दी ई. में किन कबाइली गणराज्यों ने सिक्के जारी किये?
उत्तर:
यौधेय गणराज्यों ने।

प्रश्न 44.
महाजनपद की दो प्रमुख विशेषताएँ क्या था?
उत्तर:
(1) अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था।
(2) प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जो

प्रश्न 45.
अशोक के धम्म के कोई दो सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
(1) बड़ों के प्रति आदर।
(2) संन्यासियों तथा ब्राह्मणों के प्रति उदारता।

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प्रश्न 46.
अशोक के अभिलेखों की लिपियों को किस विद्वान ने पढ़ने में सफलता प्राप्त की और कब ?
उत्तर:
1838 ई. में जेम्स प्रिंसेप को अशोक के अभिलेखों की लिपियों को पढ़ने में सफलता मिली।

प्रश्न 47.
अशोक के अभिलेख किन भाषाओं में लिखे गए?
उत्तर:
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत में हैं तथा पश्चिमोत्तर में मिले अभिलेख अरामेइक तथा यूनानी भाषा में हैं।

प्रश्न 48.
मौर्यवंश के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • कौटिल्यकृत ‘अर्थशास्त्र’
  • मेगस्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका’
  • अशोककालीन अभिलेख
  • जैन, बौद्ध और पौराणिक ग्रन्थ।

प्रश्न 49.
मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए कितनी समितियों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति तथा 6 उपसमितियों का उल्लेख किया है।

प्रश्न 50.
बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत क्यों माना है?
उत्तर:
अन्य राजाओं की अपेक्षा अशोक एक बहुत शक्तिशाली, परिश्रमी, विनम्र, उदार एवं दानशील था।

प्रश्न 51.
सुदर्शन झील का निर्माण किसने करवाया था तथा किस शक राजा ने इसकी मरम्मत करवाई थी ?
उत्तर:
सुदर्शन झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल ने करवाया था तथा शक राजा रुद्रदामन ने इसकी मरम्मत करवाई थी।

प्रश्न 52.
किस महिला शासिका द्वारा किया गया भूमिदान का उदाहरण विरला उदाहरण माना जाता है ?
उत्तर:
वाकाटक वंश की शासिका प्रभावती गुप्त द्वारा किया गया भूमिदान विरला उदाहरण माना जाता है।

प्रश्न 53.
शासकों द्वारा किए जाने वाले भूमिदान के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) भूमिदान कृषि को नए क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
(2) भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत मिलता है।

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प्रश्न 54.
नगरों की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ
(2) प्राय: सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे।

प्रश्न 55.
‘हर्षचरित’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हर्षचरित कनौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है। इसके लेखक बाणभट्ट थे, जो हर्षवर्धन के राजकवि थे।

प्रश्न 56.
आहत या पंचमार्क क्या है?
उत्तर:
6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चाँदी के बने सिक्कों को आहत अथवा पंचमार्क कहा जाता है।

प्रश्न 57.
अशोक के ‘धम्म’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अशोक ने अपनी प्रजा की उन्नति के लिए कुछ नैतिक नियमों के पालन पर बल दिया। इन्हें ‘धम्म’ कहते हैं।

प्रश्न 58.
जातक कथाओं के अनुसार राजा और प्रजा के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) राजा अपनी प्रजा पर भारी कर लगाते थे।
(2) लुटेरों की लूटमार से लोगों में असन्तोष व्याप्त था।

प्रश्न 59.
गहपति कौन था?
उत्तर:
गहपति घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली स्वियों, बच्चों, नौकरों और दासों पर नियन्त्रण करता था।

प्रश्न 60.
आरम्भिक जैन और बौद्ध विद्वानों के अनुसार मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनने के क्या कारण थे?
उत्तर:
मगध के शासक बिम्बिसार, अजातशत्रु, महापद्मनन्द अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी थे तथा उनके मन्त्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।

प्रश्न 61.
ऐसे पाँच महाजनपदों के नाम लिखिए जिनके नाम जैन और बौद्ध ग्रन्थों में मिलते हैं।
उत्तर:

  • वज्जि
  • मगध
  • कोशल
  • कुरु
  • पांचाल

प्रश्न 62.
गणराज्यों की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) गणराज्य में कई लोगों का समूह शासन करता था।
(2) इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।

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प्रश्न 63.
अशोक के धम्म के चार सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • बड़ों के प्रति आदर
  • संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता
  • सेवकों तथा दासों के साथ उदार व्यवहार
  • दूसरों के धर्मों का आदर करना।

प्रश्न 64.
अभिलेखों में किनके क्रियाकलापों एवं उपलब्धियों का उल्लेख होता है?
उत्तर:
अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियों, क्रियाकलापों एवं विचारों का उल्लेख होता है, जो उन्हें बनवाते हैं।

प्रश्न 65.
प्राचीन भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पूर्व को एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल क्यों माना जाता है? दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) इस काल में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म का उदय हुआ।
(2) इस काल में 16 महाजनपदों का भी उदय हुआ।

प्रश्न 66.
दो लिपियों का जिक्र करें जिन्हें सम्राट अशोक के अभिलेखों में उपयोग किया गया है?
अथवा
अशोक के अभिलेख किन लिपियों में लिखे गए थे?
उत्तर:
अशोक के प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में तथा पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गए थे।

प्रश्न 67.
मौर्य साम्राज्य के अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले दो कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) नदियों की देख-रेख करना
(2) भूमि मापन का काम करना।

प्रश्न 68.
मौर्य साम्राज्य क्यों महत्वपूर्ण था? दो बातों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) मौर्य साम्राज्य एक विशाल साम्राज्य था, जिसकी सम्भावना बड़ी चुनौतीपूर्ण थी।
(2) मौर्यकाल में वास्तुकला एवं मूर्तिकला का अत्यधिक विकास हुआ।

प्रश्न 69.
मौर्य साम्राज्य की दो त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्षों तक ही अस्तित्व में रहा।
(2) यह साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फैल पाया।

प्रश्न 70.
अर्थशास्त्र का रचयिता कौन था? इसका क्या ऐतिहासिक महत्त्व है?
उत्तर:
(1) कौटिल्य
(2) इसमें मौर्यकालीन सैनिक और प्रशासनिक संगठन तथा सामाजिक अवस्था के बारे में विस्तृत विवरण मिलते हैं।

प्रश्न 71.
यूनानी इतिहासकारों के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के पास कितनी सेना थी?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख पैदल सैनिक, 30 हजार घुड़सवार तथा 9 हजार हाथी थे।

प्रश्न 72.
दक्षिणी भारत में ‘सरदार’ कौन होते थे?
उत्तर:
सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था, जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी।

प्रश्न 73.
सरदार के दो कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) विशेष अनुष्ठान का संचालन करना
(2) युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करना।

प्रश्न 74.
प्राचीन भारत में उपज बढ़ाने के तरीकों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हल का प्रचलन
(2) कुओं, तालाबों, नहरों के माध्यम से सिंचाई करना।

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प्रश्न 75.
600 ई.पूर्व से 600 ई. के काल में ग्रामीण समाज में पाई जाने वाली विभिन्नताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
इस युग में भूमिहीन खेतिहर मजदूर, किसान और बड़े-बड़े जमींदार अस्तित्व में थे।

प्रश्न 76.
इस युग में भूमिकर के सम्बन्ध में ब्राह्मणों को छोटे कौनसी सुविधाएँ प्राप्त थीं?
उत्तर:
(1) ब्राह्मणों से भूमिकर या अन्य कर नहीं वसूले जाते थे।
(2) ब्राह्मणों को स्थानीय लोगों से कर वसूलने का अधिकार था।

प्रश्न 77.
अशोक के अभिलेखों की क्या महत्ता है ?
उत्तर:
अशोक के अभिलेखों से अशोक की शासन- व्यवस्था उसके साम्राज्य विस्तार, धम्म प्रचार आदि कार्यों के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 78.
‘राजगाह’ का शाब्दिक अर्थ बताइये।
उत्तर:
राजगाह’ का शाब्दिक अर्थ है ‘राजाओं का

प्रश्न 79.
जैन और बौद्ध ग्रन्थों में पाए जाने वाले महाजनपदों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. वज्जि
  2. मगध
  3. कोशल
  4. कुरु
  5. पांचाल
  6. गान्धार
  7. अवन्ति।

प्रश्न 80.
अभिलेखों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं, जो उन्हें बनवाते हैं।

प्रश्न 81.
जैन एवं बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध महाजनपद के प्रसिद्ध सम्राट कौन थे?
उत्तर:
जैन एवं बौद्ध लेखकों के अनुसार बिम्बिसार, अजातशत्रु तथा महापद्मनन्द मगध महाजनपद के प्रसिद्ध सम्राट थे।

प्रश्न 82.
मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली होने के क्या कारण थे?
उत्तर:

  1. मगध क्षेत्र में खेती की उपज अच्छी थी
  2. यहाँ लोहे की अनेक खदानें थीं
  3. जंगली क्षेत्र में हाथी उपलब्ध थे।

प्रश्न 83.
सामान्यतः अशोक को अभिलेखों में किस नाम से सम्बोधित किया गया है?
उत्तर:
अधिकांशतः अशोक को अभिलेखों में देवनामप्रिय प्रियदर्शी अथवा पियदस्सी नाम से सम्बोधित किया गया है।

प्रश्न 84.
प्राकृत भाषा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था, जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं।

प्रश्न 85.
अभिलेखों में किनका ब्यौरा होता है?
उत्तर:
अभिलेखों में राजाओं के क्रियाकलापों तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्यौरा होता है।

प्रश्न 86.
अधिकांश महाजनपदों तथा ‘गण’ और ‘संघ’ नामक राज्यों में कौन शासन करता था?
उत्तर:
अधिकांश महाजनपदों में राजा तथा ‘गण’ और ‘संघ’ नामक राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था।

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प्रश्न 87.
मनुस्मृति क्या है? इसकी रचना कब की
उत्तर:
(1) मनुस्मृति प्रारम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि ग्रन्थ है
(2) इसकी रचना दूसरी शताब्दी ई. पूर्व और दूसरी शताब्दी ई. के बीच की गई।

प्रश्न 88.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र और उज्जयिनी किन संचार मार्गों के किनारे बसे थे?
उत्तर:
पाटलिपुत्र नदी मार्ग के किनारे तथा उम्जयिनी भूतल मार्गों के किनारे बसे थे।

प्रश्न 89.
ओलीगार्की या समूह शासन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ओलीगार्की या समूह शासन उसे कहते हैं जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है।

प्रश्न 90.
कलिंग का आधुनिक नाम क्या है?
उत्तर:
उड़ीसा

प्रश्न 91.
अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किए हुए स्तम्भों पर सन्देश लिखवाने वाले पहले सम्राट् कौन थे?
उत्तर:
अशोक वह पहले सम्राट् थे जिन्होंने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किए हुए स्तम्भों पर सन्देश लिखवाए।

प्रश्न 92.
चीनी शासक स्वयं को किस नाम से सम्बोधित करते थे?
उत्तर:
चीनी शासक स्वयं को स्वर्गपुत्र के नाम से सम्बोधित करते थे।

प्रश्न 93.
गुप्त शासकों का इतिहास किसकी सहायता से लिखा गया है?
उत्तर:
गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है।

प्रश्न 94.
गंदविन्दु जातक नामक कहानी में क्या बताया गया है?
उत्तर:
गंदविन्दु जातक नामक एक कहानी में यह बताया गया है कि एक कुटिल राजा की प्रजा किस प्रकार दुःखी रहती है।

प्रश्न 95.
पालि भाषा में गहपति का प्रयोग किनके लिए किया जाता है?
उत्तर:
पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता है।

प्रश्न 96.
उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र से क्या अभिप्राय
उत्तर:
नगरों में मिले चमकदार कलई वाले मिट्टी के कटोरे, थालियाँ आदि उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहलाते हैं।

प्रश्न 97.
पियदस्सी शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पियदस्सी अर्थात् देखने में सुन्दर।

प्रश्न 98.
देवानांप्रिय शब्द का क्या आशय है?
उत्तर:’
देवानांप्रिय शब्द का आशय है, देवताओं का

प्रश्न 99.
अभिलेखशास्त्रियों ने पतिवेदक शब्द का अर्थ क्या बताया ?
उत्तर:
अभिलेखशास्त्रियों ने पतिवेदक शब्द का अर्थ संवाददाता बताया।

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लघुत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
अशोक द्वारा अपने अधिकारियों और प्रजा को दिए गए संदेशों को वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अशोक ने अपने अधिकारियों और प्रजा को संदेश दिया कि वे बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर करें। वर्तमान समय में भी अशोक के संदेशों की प्रासंगिकता बनी हुई है।

प्रश्न 2.
“हड़प्पा सभ्यता के बाद डेढ़ हजार वर्षों के लम्बे अन्तराल में उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) इस काल में सिन्धु नदी और इसकी उपनदियों के किनारे रहने वाले लोगों ने ऋग्वेद का लेखन- कार्य किया।
(2) उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक आदि कई क्षेत्रों में कृषक बस्तियों का उदय हुआ।
(3) ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दी के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में शवों के अन्तिम संस्कार के नवीन तरीके अपनाए गए। इनमें महापाषाण नामक पत्थरों के बड़े-बड़े ढाँचे मिले हैं। कई स्थानों पर शवों के साथ लोहे से बने उपकरणों एवं हथियारों को भी दफनाया गया था।

प्रश्न 3.
ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भारत में हुए नवीन परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भारत में हुए नवीन परिवर्तन- ई. पूर्व छठी शताब्दी से भारत में निम्नलिखित नवीन परिवर्तन हुए –
(1) इन परिवर्तनों में सबसे प्रमुख परिवर्तन आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास है। इन राजनीतिक प्रक्रियाओं के लिए कुछ अन्य परिवर्तन जिम्मेदार थे। इनकी जानकारी कृषि उपज को संगठित करने के तरीके से होती है।
(2) इस युग में लगभग सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में नए नगरों का उदय हुआ।

प्रश्न 4.
जेम्स प्रिंसेप कौन था? उसके द्वारा किये |गए शोध कार्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जेम्स प्रिंसेप ईस्ट इण्डिया कम्पनी में एक अधिकारी के पद पर नियुक्त था। उसने 1838 ई. में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। इन लिपियों का उपयोग सबसे आरम्भिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है। प्रिंसेप को यह जानकारी हुई कि अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी अर्थात् सुन्दर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम अशोक भी लिखा था।

प्रश्न 5.
“जेम्स प्रिंसेप के शोध कार्य से आरम्भिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को एक नई दिशा मिली।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) भारतीय तथा यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में लिखे अभिलेखों और ग्रन्थों का उपयोग किया। परिणामस्वरूप बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास की एक सामान्य रूपरेखा तैयार हो गई।
(2) उसके पश्चात् विद्वानों को जानकारी हुई कि राजनीतिक परिवर्तनों और आर्थिक तथा सामाजिक विकासों के बीच सम्बन्ध तो थे, परन्तु सम्भवतः सीधे सम्बन्ध सदैव नहीं थे।

प्रश्न 6.
अभिलेख आज भी इतिहास की जानकारी के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वर्तमान इतिहास लेखन में अभिलेखों की उपादेयता सिद्ध कीजिए।
अथवा
इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है?
अथवा
अभिलेख किसे कहते हैं? उनका ऐतिहासिक महत्त्व बताइये।
उत्तर:
अभिलेख अभिलेख उन्हें कहते हैं, जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं।

अभिलेखों का ऐतिहासिक महत्त्व –
(1) अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियों, क्रियाकलापों तथा विचारों का उल्लेख मिलता है, जो उन्हें बनवाते हैं।
(2) इनमें राजाओं के क्रियाकलापों तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए दान का विवरण होता है।
(3) अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है।

प्रश्न 7.
जिन अभिलेखों पर तिथि खुदी हुई नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
जिन अभिलेखों पर तिथि खुदी हुई नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, लगभग 250 ई. पूर्व में अक्षर अ ‘प्र’ इस प्रकार लिखा जाता था और 500 ई. में बह भ इस प्रकार लिखा जाता था।

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प्रश्न 8.
प्राचीनतम अभिलेख किन भाषाओं में लिखे जाते थे?
उत्तर:
प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं। प्राकृत भाषा में अजातशत्रु को ‘अजातसत्तु’ तथा अशोक को ‘असोक’ लिखा जाता है। कुछ अभिलेख तमिल, पालि और संस्कृत भाषाओं में भी मिलते हैं।

प्रश्न 9.
आरम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पूर्व को एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
आरम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पूर्व को निम्न कारणों से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है-

  1. इस काल को प्रायः आरम्भिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग तथा सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है।
  2. इस काल में बौद्ध धर्म, जैन धर्म सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।
  3. इस काल में सोलह महाजनपदों का उदय हुआ।

प्रश्न 10.
‘जनपद’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनपद का अर्थ एक ऐसा भूखण्ड है, जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है। अथवा बस जाता है। इस शब्द का प्रयोग प्राकृत व संस्कृत दोनों भाषाओं में मिलता है प्रारम्भ में इन जनों का कोई निश्चित स्थान नहीं होता था और अपनी आवश्यकतानुसार ये स्थान बदल लिया करते थे परन्तु शीघ्र ही वे एक निश्चित स्थान पर बस गए। भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्र ‘जनों’ के बस जाने के कारण ‘जनपद’ कहलाने लगे।

प्रश्न 11.
बौद्धकालीन 16 महाजनपदों के नाम लिखिए।
अथवा
छठी शताब्दी ई. पूर्व के सोलह महाजनपदों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।

इनके नाम हैं –

  1. अंग
  2. मगध
  3. काशी
  4. कोशल
  5. वज्जि
  6. मल्ल
  7. चेदि
  8. वत्स
  9. कुरु
  10. पांचाल
  11. मत्स्य
  12. शूरसेन
  13. अश्मक
  14. अवन्ति
  15. कम्बोज तथा
  16. गान्धार।

प्रश्न 12.
मगध के शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उदय के प्रमुख कारण लिखिए।
अथवा
मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली बनने के क्या कारण थे?
थी।
उत्तर:
आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली बनने के कारण –

  1. मगध क्षेत्र में खेती की उपज बहुत अच्छी होती
  2. मगध क्षेत्र में लोहे की खदानें भी सरलता से उपलब्ध थीं। अतः लोहे से उपकरण और हथियार बनाना आसान होता था।
  3. मगध के जंगलों में बड़ी संख्या में हाथी उपलब्ध थे। ये हाथी मगध राज्य की सेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग थे।
  4. गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता वसुलभ होता था।
  5. बिम्बिसार, अजातशत्रु की नीतियों मगध के विकास के लिए उत्तरदायी थीं।

प्रश्न 13.
आरम्भिक जैन एवं बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनने के क्या कारण थे?
उत्तर:
आरम्भिक जैन और बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनने के लिए मगध के पराक्रमी शासकों की नीतियाँ उत्तरदायी थीं। बिम्बिसार, अजातशत्रु, महापद्मनन्द आदि राजा अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी एवं पराक्रमी शासक थे जिनके नेतृत्व में मगध राज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ। इनके मन्त्री भी योग्य थे जो इनकी नीतियों को सफलतापूर्वक लागू करते थे।

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प्रश्न 14.
महाजनपदों की शासन व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, परन्तु ‘गण’ और ‘संघ’ नामक प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। बन्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियन्त्रण रखते थे। प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जो प्रायः किले से घेरी जाती थी।

प्रश्न 15.
मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगाह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगाह (आधुनिक बिहार में स्थित राजगीर) थी। राजगाह का शाब्दिक अर्थ है—’राजाओं का घर’। पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबन्द शहर था। बाद में चौथी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जो अब पटना के नाम से जाना जाता है। यह गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर स्थित था।

प्रश्न 16.
अशोक कौन था?
उत्तर:
अशोक बिन्दुसार का पुत्र तथा चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र था। वह आरम्भिक भारत का सर्वप्रसिद्ध सम्राट था। उसने कलिंग पर विजय प्राप्त की अशोक पहला सम्राट था, जिसने अपने अधिकारियों एवं प्रजा के लिए सन्देश प्राकृतिक पत्थरों और पालिश किए हुए स्तम्भों पर लिखवाये थे। उसने अपने अभिलेखों के माध्यम से ‘धम्म’ का प्रचार किया।

प्रश्न 17.
अशोक के अभिलेख किन भाषाओं और लिपियों में लिखे गए थे?
उत्तर:
अशोक के अभिलेखों की भाषाएँ एवं लिपियाँ – अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं जबकि पश्चिमोत्तर से प्राप्त अभिलेख अरामेइक और यूनानी भाषा में हैं। प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे परन्तु पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गए थे। अरामेइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग अफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में किया गया था।

प्रश्न 18.
मेगस्थनीज के द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य के सैनिक विभाग के प्रबन्ध के बारे में क्या विवरण दिया गया है?
उत्तर:
मेगस्थनीज ने लिखा है कि सैनिक विभाग का प्रबन्ध करने के लिए एक समिति तथा छः उपसमितियाँ बनी हुई थीं। पहली उपसमिति का काम नौसेना का संचालन करना था। दूसरी उपसमिति यातायात तथा खानपान का संचालन करती थी। तीसरी उपसमिति का काम पैदल सैनिकों का संचालन करना था। चौथी उपसमिति अश्वारोही सेना का संचालन करती थी तथा पाँचवीं उपसमिति का काम रथारोहियों का संचालन करना था। छठी उपसमिति हाथियों का संचालन करती थी।

प्रश्न 19.
मेगस्थनीज के अनुसार सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए नियुक्त दूसरी उपसमिति क्या कार्य करती थी?
उत्तर:
मेगस्थीज के अनुसार दूसरी उपसमिति विभिन्न प्रकार के कार्य करती थी, जैसे उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था करना, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों को नियुक्त करना आदि।

प्रश्न 20.
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य साम्राज्य के प्रमुख अधिकारियों के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) कुछ अधिकारी नदियों की देख-रेख तथा भूमि मापन का कार्य करते थे।
(2) कुछ अधिकारी प्रमुख नहरों से उपनहरों के लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरीक्षण करते थे ताकि प्रत्येक स्थान पर पानी की समान पूर्ति हो सके। यही अधिकारी शिकारियों का संचालन करते थे।
(3) ये अधिकारी करवसूली करते थे और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरीक्षण करते थे। इसके अतिरिक्त वे लकड़हारों, बढ़ई, लोहारों तथा खननकर्ताओं का भी निरीक्षण करते थे।

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प्रश्न 21.
मौर्य साम्राज्य के प्रमुख राजनीतिक केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे –

  1. पाटलिपुत्र- यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी
  2. तक्षशिला यह प्रान्तीय केन्द्र था।
  3. उज्जयिनी – यह भी प्रान्तीय केन्द्र था।
  4. तोसलि – यह भी एक प्रान्तीय केन्द्र था।
  5. स्वर्णगिरि – यह भी एक प्रान्तीय केन्द्र था।

मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र तथा उसके आस-पास के प्रान्तीय केन्द्रों पर सबसे सुदृढ़ प्रशासनिक नियन्त्रण था।

प्रश्न 22.
मौर्य साम्राज्य के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) मौर्य काल में भवन निर्माण कला, मूर्तिकला आदि की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई।
(2) मौर्य सम्राटों के अभिलेखों पर लिखे संदेश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न हैं।
(3) अन्य शासकों की अपेक्षा अशोक एक बहुत शक्तिशाली, प्रभावशाली और परिश्रमी शासक थे। वह बाद के राजाओं की अपेक्षा विनीत और नम्र भी थे।
(4) अशोक की उपलब्धियों से प्रभावित होकर बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना।

प्रश्न 23.
मौर्य साम्राज्य की कमजोरियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहा। इसे उपमहाद्वीप के इस लम्बे इतिहास में बहुत बड़ा काल नहीं माना जा सकता।
(2) मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फैल पाया था। इसके अतिरिक्त मौर्य साम्राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत भी नियन्त्रण एक समान नहीं था। अतः दूसरी शताब्दी ई. पूर्व तक उपमहाद्वीप के अनेक भागों में नए- नए शासक और रजवाड़े स्थापित होने लगे।

प्रश्न 24.
अशोक ने अपने साम्राज्य को अखण्ड बनाए रखने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
अशोक ने अपने साम्राज्य को अखण्ड बनाए रखने के लिए ‘धम्म’ के प्रचार का सहारा लिया। अशोक के ‘धम्म’ के सिद्धान्त बड़े साधारण व्यावहारिक तथा सार्वभौमिक थे। उसने धम्म के माध्यम से अपनी प्रजा की लौकिक और पारलौकिक उन्नति का प्रयास किया। उसने धम्म के प्रचार के लिए ‘धर्ममहामात्र’ नामक विशेष अधिकारी नियुक्त किए।

प्रश्न 25.
सरदार और सरदारी का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरदार एक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति होता था जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी। उसके समर्थक उसके वंश के लोग होते थे सरदार विशेष अनुष्ठान का संचालन करता था, युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करता था तथा लोगों के विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाता था। वह अपने अधीन लोगों से भेंट लेता था और उसे अपने समर्थकों में बाँट दिया करता था। सरदारी में सामान्यतया कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे।

प्रश्न 26.
दक्षिण के राज्यों और उनके शासकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपमहाद्वीप के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्र में स्थित तमिलकम (अर्थात् तमिलनाडु एवं आन्ध्रप्रदेश और केरल के कुछ भाग) में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ। ये राज्य बहुत ही. समृद्ध और स्थायी सिद्ध हुए कई सरदार और राजा लम्बी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व जुटाते थे। इनमें मध्य और पश्चिम भारत के क्षेत्रों पर शासन करने वाले सातवाहन और उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर और पश्चिम में शासन करने वाले मध्य एशियाई मूल के शक शासक सम्मिलित थे।

प्रश्न 27.
प्राचीन भारतीय शासक देवी-देवताओं के साथ जुड़ने का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय शासक उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए देवी-देवताओं के साथ जुड़ने का प्रयास करते थे। कुषाण शासकों ने इस उपाय का सर्वश्रेष्ठ उद्धरण प्रस्तुत किया। कुषाण सम्राटों ने देवस्थानों पर अपनी विशालकाय मूर्तियाँ स्थापित कीं। वे इन मूर्तियों के माध्यम से स्वयं देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कुछ कुषाण शासकों ने ‘देवपुत्र’ की उपाधि धारण की।

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प्रश्न 28.
‘प्रयाग प्रशस्ति’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘प्रयाग प्रशस्ति’ के रचयिता हरिषेण थे, जो गुप्त वंश के सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे ‘प्रयाग- प्रशस्ति’ संस्कृत में लिखी गई थी। ‘प्रयाग प्रशस्ति’ से हमें समुद्रगुप्त के जीवन, विजयों, व्यक्तिगत गुणों, तत्कालीन राजनीतिक दशा आदि के बारे में जानकारी मिलती है। ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में समुद्रगुप्त की दिग्विजय का उल्लेख है। ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में समुद्रगुप्त को परमात्मा पुरुष, उदारता की प्रतिमूर्ति, कुबेर, वरुण, इन्द्र और यम के तुल्य बताया गया है।

प्रश्न 29.
हरिषेण द्वारा ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में समुद्रगुप्त की चारित्रिक विशेषताओं का किस प्रकार वर्णन किया गया है?
उत्तर:
प्रयाग प्रशस्ति’ में हरिषेण ने समुद्रगुप्त के लिए लिखा है कि “धरती पर उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं था अनेक गुणों और शुभ कार्यों से सम्पन्न उन्होंने अपने पैर के तलवे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया है। वे परमात्मा पुरुष हैं, साधु (भले) की समृद्धि और असाधु (बुरे) के विनाश के कारण हैं। वे करुणा से भरे हुए हैं। उनके मस्तिष्क की दीक्षा दीन-दुखियों विरहणियों और पीड़ितों के उद्धार के लिए की गई है। वे देवताओं में कुबेर ( धन-देव), वरुण (समुद्र-देव), इन्द्र (वर्षा के देवता) और यम (मृत्यु-देव)
के तुल्य हैं।”

प्रश्न 30.
शक- शासक रुद्रदामन के अभिलेख में सुदर्शन झील के बारे में क्या विवरण दिया गया है?
उत्तर:
शक- शासक रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में सुदर्शन झील के बारे में वर्णन है कि जलद्वारों और तटबन्धों वाली इस झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। परन्तु एक भीषण तूफान के कारण इसके तटबन्ध टूट गए और सारा पानी बह गया। तत्कालीन शासक रुद्रदामन ने इस झील की मरम्मत अपने से करवाई थी और इसके लिए अपनी प्रजा से कर भी नहीं लिया था।

प्रश्न 31.
जनता में राजा की छवि के बारे में किस स्त्रोत से जानकारी मिलती है?
उत्तर:
जनता में राजा की छवि के बारे में जातकों एवं पंचतंत्र जैसे ग्रन्थों में वर्णित कथाओं से जानकारी मिलती है। इतिहासकारों ने पता लगाया है कि इनमें से अनेक कथाओं के स्रोत मौखिक किस्से-कहानियाँ हैं, जिन्हें बाद में लिखा गया होगा। इन जातकों से राजा के व्यवहार के कारण जनता की शोचनीय स्थिति तथा राजा और प्रजा के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 32.
‘गंदतिन्दु’ नामक जातक कथा से राजा और प्रजा के सम्बन्धों पर क्या प्रकाश पड़ता है?
उत्तर:
गंदविन्दु’ नामक जातक कथा से पता चलता है कि एक कुटिल राजा की प्रजा किस प्रकार से दुःखी रहती है। जब राजा अपनी पहचान बदलकर प्रजा के बीच में यह जानने के लिए गया कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, तो सभी लोगों ने अपने दुःखों के लिए राजा की आलोचना की। उनकी शिकायत थी कि रात में डाकू लोग उन पर हमला करते हैं तथा दिन में कर इकट्ठा करने वाले अधिकारी उन्हें परेशान करते हैं।

प्रश्न 33.
जातक कथाओं के अनुसार राजा और प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण क्यों रहते थे?
उत्तर:
जातक कथाओं से ज्ञात होता है कि राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि शासक अपने राजकोष को भरने के लिए प्रजा से बड़े-बड़े करों की माँग करते थे, जिससे किसानों में घोर असन्तोष व्याप्त था। जातक कथाओं से ज्ञात होता है कि राजा के अत्याचारों से बचने के लिए किसान लोग अपने घर छोड़कर जंगल की ओर भाग जाते थे। इस प्रकार राजा और ग्रामीण प्रजा के बीच तनाव बना रहता था।

प्रश्न 34.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपज बढ़ाने के तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भारी वर्षा होने वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाती थी। कुछ क्षेत्रों में खेती के लिए कुदाल का उपयोग किया जाता था।
(2) गंगा की घाटी में धान की रोपाई किए जाने से उपज में भारी वृद्धि होने लगी।
(3) उपज बढ़ने के लिए कुओं, तालाबों तथा नहरों के माध्यम से सिंचाई की जाती थी राजाओं द्वारा कुआँ, तालाबों तथा नहरों का निर्माण करवाया जाता था।

प्रश्न 35.
ग्रामीण समाज में पाई जाने वाली विभिन्नताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध ग्रन्थों से पता चलता है कि भारत में खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ता जा रहा था बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। बड़े-बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली तथा प्रभावशाली माने जाते थे तथा वे किसानों पर नियन्त्रण रखते थे आरम्भिक तमिल संगम साहित्य में भी गाँवों में रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है, जैसे कि वेल्लालर या बड़े जमींदार, हलवाहा या उल्चर और दास अणिमई।

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प्रश्न 36.
मनुस्मृति के अनुसार सीमा सम्बन्धी विवादों के समाधान के लिए राजा को क्या सलाह दी गई है?
उत्तर:
मनुस्मृति में सीमा सम्बन्धी विवादों के समाधान के लिए राजा को निम्न सलाह दी गई है –
चूंकि सीमाओं की अनभिज्ञता के कारण विश्व में बार-बार विवाद पैदा होते हैं, इसलिए उसे सीमाओं की पहचान के लिए गुप्त निशान जमीन में गाड़ कर रखने चाहिए जैसे कि पत्थर, हड्डियाँ, गाय के बाल, भूसी, राख, खपटे, गाय के सूखे गोबर, ईंट, कोयला, कंकड़ और रेत। उसे सीमाओं पर इसी प्रकार के और तत्त्व भूमि में छुपाकर गाड़ने चाहिए जो समय के \
साथ नष्ट न हों।

प्रश्न 37.
‘हर्षचरित’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हर्षचरित’ हर्षचरित’ संस्कृत में लिखी गई कनौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है। इस ग्रन्थ की रचना हर्षवर्धन के राजकवि बाणभट्ट ने की थी। ‘हर्षचरित’ से हर्षवर्धन के जीवन, राज्यारोहण, उसकी विजयों, चारित्रिक विशेषताओं आदि की जानकारी मिलती है। इससे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्थाओं तथा समाज के विभिन्न वर्गों तथा उनके व्यवसाय के बारे में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 38.
‘गहपति’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता था। गहपति घर का मुखिया होता था तथा घर में रहने वाली महिलाओं, बच्चों, नौकरों और दासों पर नियन्त्रण करता था। घर से जुड़े भूमि, जानवर या अन्य सभी वस्तुओं का वह मालिक होता था । कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता था।

प्रश्न 39.
बाणभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘हर्षचरित’ में विश्य क्षेत्र के जंगल के किनारे की एक बस्ती के जीवन का किस प्रकार चित्रण किया है?
उत्तर:
‘हर्षचरित’ के अनुसार, बस्ती के किनारे का अधिकांश क्षेत्र जंगल है और यहाँ धान की उपज वाली, खलिहान और उपजाऊ भूमि के हिस्सों को छोटे किसानों ने आपस में बाँट लिया है। यहाँ के अधिकांश लोग कुदाल का प्रयोग करते हैं क्योंकि घास से भरी भूमि में हल चलाना कठिन है। यहाँ लोग पेड़ की छाल के गट्ठर लेंकर चलते हैं। वे फूलों से भरे अनगिनत बोरे, अलसी और सन, भारी मात्रा में शहद, मोरपंख, मोम, लकड़ी और पास के बोझ लेकर आते जाते रहते हैं।

प्रश्न 40.
भूमिदान का उल्लेख किन में मिलता है? भूमिदान किन्हें दिया जाता था ?
उत्तर:
भूमिदान – ईसवी की आरम्भिक शताब्दियों से ही भूमिदान के प्रमाण मिलते हैं। कई भूमिदानों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। इनमें से कुछ अभिलेख पत्थरों पर उत्कीर्ण थे परन्तु अधिकांश अभिलेख ताम्रपत्रों पर खुदे होते थे। इन्हें सम्भवतः उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था जो भूमिदान लेते थे साधारणतया भूमिदान धार्मिक संस्थाओं और ब्राह्मणों को दिए गए थे।

प्रश्न 41.
अभिलेखों से प्रभावती गुप्त के भूमिदान किए जाने के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (लगभग 375-415 ई.) की पुत्री थी संस्कृत धर्मशास्त्रों के अनुसार महिलाओं को भूमि जैसी सम्पत्ति पर स्वतन्त्र अधिकार नहीं था। परन्तु एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रभावती गुप्त भूमि की स्वामिनी थी और उसने भूमिदान भी किया था। इसका एक कारण यह हो सकता है कि चूँकि वह एक रानी थी और इसीलिए उनका यह उदाहरण एक विरला ही रहा हो।

प्रश्न 42.
प्रभावती गुप्त के अभिलेख से हमें ग्रामीण प्रजा के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त के अभिलेख से हमें तत्कालीन ग्रामीण प्रजा के बारे में जानकारी मिलती है। उस समय गाँवों में ब्राह्मण, किसान तथा अन्य प्रकार के वर्गों के लोग रहते थे। ये लोग शासकों या उनके प्रतिनिधियों को अनेक प्रकार की वस्तुएँ प्रदान करते थे। अभिलेखों के अनुसार इन लोगों को गाँव के नए प्रधान की आज्ञाओं का पालन करना पड़ता था। ये लोग अपने भुगतान उसी को ही देते थे।

प्रश्न 43.
भूमिदान के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  1. कुछ इतिहासकारों के अनुसार भूमिदान शासक वंश द्वारा कृषि को नये क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
  2. जब राजा का शासन सामन्तों पर कमजोर होने लगा, तो उन्होंने भूमिदान के माध्यम से अपने समर्थकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
  3. राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।
  4. भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्ध की झांकी मिलती है।

प्रश्न 44.
अपने अभिलेख में दंगुन गाँव के दान में प्रभावती गुप्त द्वारा दी गई रियायतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपने अभिलेख में प्रभावती गुप्त ने निम्नलिखित रियायतों की घोषणा की। इस गाँव में पुलिस या सैनिक प्रवेश नहीं करेंगे। दौरे पर आने वाले शासकीय अधिकारियों को यह गाँव पास देने और आसन में प्रयुक्त होने वाले जानवरों की खाल और कोयला देने के दायित्व से मुक्त है। साथ ही वे मदिरा खरीदने और नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकार को कार्यान्वित किए जाने से मुक्त हैं। इस गाँव को खनिज पदार्थ, खदिर वृक्ष के उत्पाद, फूल और दूध देने से भी छूट है।

प्रश्न 45.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में नये नगरों के विकास का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नगरों का विकास हुआ। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थीं। प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे। पाटलिपुत्र जैसे कुछ नगर नदी मार्ग के किनारे बसे थे। उज्जयिनी जैसे नगर भूतल मार्गों के किनारे बसे थे। इसके अतिरिक्त पुहार जैसे नगर समुद्र तट पर थे, जहाँ से समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए। मथुरा जैसे अनेक शहर व्यावसायिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे।

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प्रश्न 46.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग और शिल्पकार वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किलेबन्द नगरों में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। सम्भवतः इनका उपयोग धनी लोग करते होंगे। इसके साथ ही सोने, चाँदी, हाथीदाँत, कांस्य आदि के बने आभूषण, उपकरण, हथियार भी मिले हैं इनका उपयोग भी धनी लोगों द्वारा किया जाता था। दानात्मक अभिलेखों में नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, स्वर्णकार, व्यापारी, अधिकारी के बारे में विवरण मिलता है।

प्रश्न 47.
पाटलिपुत्र के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पाटलिपुत्र का विकास पाटलिग्राम नामक एक गाँव से हुआ। पाँचवीं सदी ई. पूर्व में मगध शासकों ने अपनी राजधानी राजगाह (राजगीर) से हटाकर इसे बस्ती में लाने का निर्णय किया और इसका नाम पाटलिपुत्र रखा। चौथी शताब्दी ई. पूर्व तक पाटलिपुत्र मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया। कालान्तर में इसका महत्त्व कम हो गया। जब सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ आया, तो उरो यह नगर खंडहर में परिवर्तित मिला।

प्रश्न 48.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप और उसके बाहर के व्यापार मार्ग की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्ग और भूमार्ग विकसित हो चुके थे। ये मार्ग कई दिशाओं में विकसित हो गए थे। मध्य एशिया और उससे भी आगे तक भू-मार्ग थे। समुद्र तट पर बने अनेक बन्दरगाहों से जल मार्ग अरब सागर से होते हुए, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया तक फैल गया था और बंगाल की खाड़ी से यह मार्ग चीन और दक्षिणपूर्व एशिया तक फैल गया था। राजाओं ने इन मार्गों पर नियन्त्रण करने का प्रयास किया।

प्रश्न 49.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप में व्यापारी वर्ग तथा आयात-निर्यात पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
व्यापारी वर्ग-व्यापारिक मार्गों पर चलने वाले व्यापारियों में पैदल फेरी लगाने वाले व्यापारी तथा बैलगाड़ी और घोड़े खच्चरों के दल के साथ चलने वाले व्यापारी थे। साथ ही समुद्री मार्ग से भी लोग यात्रा करते थे। आयात-निर्यात- नमक, अनाज, कपड़ा, धातु और उससे बनी वस्तुएँ, पत्थर, लकड़ी, जड़ी-बूटी आदि वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाई जाती थीं भारत से कालीमिर्च जैसे मसालों, कपड़ों तथा जड़ी-बूटियों का निर्यात रोमन साम्राज्य को किया जाता था।

प्रश्न 50.
‘पेरिप्लस ऑफ एरीशियन सी’ नामक ग्रन्थ में एक यूनानी समुद्री यात्री ने मालाबार तट ( आधुनिक केरल) पर होने वाले आयात-निर्यात का क्या विवरण दिया है?
उत्तर:
यूनानी समुद्री यात्री के अनुसार भारी मात्रा में कालीमिर्च और दालचीनी खरीदने के लिए बाजार वाले नगरों में विदेशी व्यापारी जहाज भेजते हैं। यहाँ भारी मात्रा में सिक्कों, पुखराज, सुरमा, मूँगे, कच्चे शीशे, तांबे, टिन |और सीसे का आयात किया जाता है। इन बाजारों के आस-पास भारी मात्रा में उत्पन्न कालीमिर्च का निर्यात किया जाता है। इसके अतिरिक्त उच्च कोटि के मोतियों, हाथीदाँत, रेशमी वस्त्र, विभिन्न प्रकार के पारदर्शी पत्थरों, हीरों और काले नग तथा कछुए की खोपड़ी का आयात
होता है।

प्रश्न 51.
सिक्कों के प्रचलन से व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  1. व्यापार में विनिमय कुछ सीमा तक आसान हो गया।
  2. बहुमूल्य वस्तु तथा भारी माश में अन्य वस्तुओं का विनिमय किया जाता था।
  3. दक्षिण भारत में अनेक रोमन सिक्कों के प्राप्त होने से पता चलता है कि दक्षिण भारत के रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध थे।
  4. गुप्तकाल में सिक्कों के माध्यम से व्यापार- विनिमय करने में आसानी होती थी जिससे राजाओं को भी लाभ होता था।
  5. यौधेय गणराज्यों ने भी सिक्के चलाए।

प्रश्न 52.
छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के कम संख्या में मिलने से किन तथ्यों के बारे में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
कुछ इतिहासकारों का मत है कि –

  1. इस काल में कुछ आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया
  2. रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् दूरवर्ती व्यापार में कमी आई जिससे उन राज्यों, समुदायों और क्षेत्रों की सम्पन्नता पर प्रभाव पड़ा, जिन्हें दूरवर्ती व्यापार से लाभ मिलता था।
  3. इस काल में नए नगरों और व्यापार के नये तन्त्रों का उदय होने लगा था।
  4. सिक्के इसलिए कम मिलते हैं क्योंकि वे प्रचलन में थे और उनका किसी ने भी संग्रह करके नहीं रखा था।

प्रश्न 53.
अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का अर्थ किस प्रकार निकाला गया?
उत्तर:
ब्राह्मी लिपि का प्रयोग अशोक के अधिकांश अभिलेखों में किया गया है। अठारहवीं शताब्दी से यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय विद्वानों की सहायता से आधुनिक बंगाली और देवनागरी लिपि में कई पाण्डुलिपियों का अध्ययन आरम्भ किया और उनके अक्षरों की प्राचीन अक्षरों के नमूनों से तुलना शुरू की। विद्वानों ने यह अनुमान लगाया कि से संस्कृत में लिखे हैं, जबकि प्राचीनतम अभिलेख वास्तव में प्राकृत में थे जेम्स प्रिंसेप को अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का 1838 ई. में अर्थ निकालने में सफलता मिली।

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प्रश्न 54.
विद्वानों द्वारा खरोष्ठी लिपि को कैसे पढ़ा गया?
उत्तर:
पश्चिमोत्तर के अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया है। इस क्षेत्र में शासन करने वाले हिन्द- यूनानी राजाओं (लगभग द्वितीय- प्रथम शताब्दी ई. पूर्व) द्वारा बनवाए गए सिक्कों में राजाओं के नाम यूनानी और खरोष्ठी में लिखे गए हैं। यूनानी भाषा पढ़ने वाले यूरोपीय विद्वानों ने अक्षरों का मेल किया। चूँकि जेम्स प्रिंसेप ने खरोष्ठी में लिखे अभिलेखों की भाषा की पहचान प्राकृत के रूप में की थी, इसलिए लम्बे अभिलेखों को पढ़ना आसान हो गया।

प्रश्न 55.
अपने अभिलेख में अशोक ने पतिवेदकों को क्या आदेश दिए हैं?
उत्तर:
अपने अभिलेख में अशोक यह कहते हैं, “अतीत में समस्याओं को निपटाने और नियमित रूप से सूचना एकत्र करने की व्यवस्थाएँ नहीं थीं। परन्तु मैंने निम्नलिखित व्यवस्था की है लोगों के समाचार हम तक ‘पतिवेदक’ (संवाददाता) सदैव पहुँचायेंगे। चाहे मैं कहीं भी हूँ, खाना खा रहा हूँ, अन्तःपुर में हूँ, विश्राम कक्ष में हूँ, गोशाला में हूँ, या फिर पालकी में मुझे ले जाया जा रहा हो अथवा वाटिका में हूँ। मैं लोगों के मसलों का निराकरण हर स्थल पर करूँगा।”

प्रश्न 56.
मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मौर्य साम्राज्य के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में इतिहासकारों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न साधनों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:

  1. अशोक के अभिलेखों से अशोक के शासन, उसके धम्म आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
  2. कौटिल्यकृत ‘अर्थशास्त्र’ से मौयों की शासन- व्यवस्था तथा मौर्यकालीन समाज पर प्रकाश पड़ता है।
  3. मेगस्थनीज की पुस्तक ‘इण्डिका’ से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
  4. जैन, बौद्ध पौराणिक ग्रन्थों और मूर्तियों, स्तम्भों आदि से भी मौर्यकालीन इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

प्रश्न 57.
कलिंग युद्ध के परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  1. इस युद्ध में लगभग एक लाख सैनिक मारे गए, 11⁄2 लाख बन्दी बनाए गए और इससे भी ज्यादा लोग मौत के मुँह में चले गए।
  2. इस युद्ध के बाद अशोक ने साम्राज्यवादी नीति का परित्याग कर दिया।
  3. अब अशोक ने धम्म का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया।
  4. कलिंग युद्ध के बाद अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया।
  5. इस युद्ध में हुए भारी नर संहार से अशोक को अत्यधिक पश्चाताप हुआ।

प्रश्न 58.
गुप्त शासकों का इतिहास लिखने में सहायक स्त्रोतों का वर्णन कीजिये।
अथवा
गुप्त वंश के इतिहास के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. पुराणों, स्मृतियों आदि से गुप्त वंश के इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ता है।
  2. विभिन्न साहित्यिक रचनाओं से गुप्तकालीन शासन पद्धति, सामाजिक रीति-रिवाजों, राजनीतिक अवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
  3. ‘प्रयाग प्रशस्ति’ से समुद्रगुप्त की विजयों, जीवन- चरित्र के बारे में जानकारी मिलती है।
  4. गुप्तकालीन सिक्कों से गुप्त शासकों के धर्म, साम्राज्य की सीमाओं के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 59.
समुद्रगुप्त के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:

  1. समुद्रगुप्त एक वीर योद्धा, कुशल सेनापति तथा महान विजेता था ।
  2. ‘प्रयाग प्रशस्ति’ के अनुसार समुद्रगुप्त परमात्मा पुरुष हैं। वह साधु की समृद्धि और असाधु के विनाश के कारण हैं। ये उदारता की प्रतिमूर्ति हैं। वे देवताओं में कुबेर, वरुण, इन्द्र और यम के तुल्य हैं।
  3. समुद्रगुप्त योग्य शासक भी थे।
  4. वह उच्च कोटि के विद्वान तथा साहित्य एवं कला के संरक्षक थे।

प्रश्न 60.
गुप्तकालीन सिक्कों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुप्त सम्राटों के अधिकांश सिक्के सोने के बने हैं। परन्तु कुछ गुप्त शासकों ने चाँदी तथा ताँबे के सिक्के भी चलाए। सोने के सबसे भव्य सिक्कों में से कुछ गुप्त – शासकों ने जारी किए। इन सिक्कों के माध्यम से दूर देशों से व्यापार विनिमय करने में आसानी होती थी जिससे शासकों को भी लाभ होता था। स्कन्दगुप्त ने भी सोने तथा चाँदी के सिक्के चलाए। उसके समय में सिक्कों की शुद्धता तथा सुन्दरता में कमी आ गई।

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प्रश्न 61.
अशोक के ‘धम्म’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा
अशोक के धम्म के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
अशोक के धम्म के सिद्धान्त बहुत ही साधारण और सार्वभौमिक थे। उसके अनुसार धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन इस लोक में तथा परलोक में अच्छा रहेगा। उसके धम्म के सिद्धान्त थे –

  1. बड़ों के प्रति आदर
  2. संन्यासियों तथा ब्राह्मणों के प्रति उदारता
  3. सेवकों तथा दासों के प्रति उदार व्यवहार
  4. दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर
  5. क्रोध, उग्रता, निष्ठुरता, ईर्ष्या तथा अभिमान का परित्याग ।

प्रश्न 62.
मौर्य सम्राट् के अधिकारी क्या-क्या कार्य करते थे?
उत्तर:
मेगस्थनीज के द्वारा लिखे गए विवरण से हमें मौर्य सम्राट् के अधिकारियों के कार्यों का विवरण मिलता है –
साम्राज्य के महान् अधिकारियों में से कुछ नदियों की देख-रेख और भूमि मापन का कार्य करते हैं। कुछ प्रमुख नहरों से उपनहरों के लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरीक्षण करते हैं ताकि प्रत्येक स्थान पर पानी की पूर्ति समान मात्रा में हो सके। यही अधिकारी शिकारियों का संचालन करते हैं और शिकारियों के कृत्यों के आधार पर उन्हें इनाम या दण्ड देते हैं। वे कर वसूली करते हैं और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरीक्षण करते हैं. साथ ही लकड़हारों, बढ़ई, लोहारों और खननकर्त्ताओं का भी निरीक्षण करते हैं।

प्रश्न 63.
” भारतीय उपमहाद्वीप में ईसा पूर्व छठी शताब्दी से नए परिवर्तन के प्रमाण मिलते हैं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में ईसा पूर्व छठी शताब्दी से निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(1) भारतीय उपमहाद्वीप में आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इन राजनीतिक प्रक्रियाओं के पीछे कुछ अन्य परिवर्तन जिम्मेदार थे। इसके बारे में जानकारी का कृषि उपज को संगठित करने के तरीके से पता चलता है।

(2) इस काल में लगभग सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में नए नगरों का उदय हुआ। इतिहासकार इस प्रकार के विकास का आकलन करने के लिए अभिलेखों, ग्रन्थों, सिक्कों तथा चित्रों जैसे विभिन्न प्रकार के स्रोतों का अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 64.
महाजनपदों का उद्भव कैसे हुआ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मध्य गंगा घाटी में 1000 ई.पू. के मध्य प्रथमतः लोहे के साक्ष्य प्राप्त होना प्रारम्भ हो जाते हैं। इस काल में लोहे के आरम्भ के फलस्वरूप उन्नत कृषि के औजार तथा हलों का प्रयोग आरम्भ हुआ। इस प्रयोग के कारण प्रचुर मात्रा में खेती की पैदावार हुई। कृषि में इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप न केवल स्थायी जीवन को बढ़ावा मिला बल्कि राज्य को भरपूर राजस्व की भी प्राप्ति हुई। अधिक राजस्व की प्राप्ति के कारण राज्य को स्थायी सेना रखना सुगम हो गया। इस स्थायी सेना के माध्यम से राजाओं ने अपने क्षेत्र में कानून व्यवस्था स्थापित की, साथ ही साथ अपने समीपवर्ती क्षेत्रों को विजित करके अपने क्षेत्र तथा राज्य को विस्तृत बनाया। अंततः यही विस्तृत क्षेत्र सोलह महाजनपदों के रूप में स्थापित हुए।

प्रश्न 65.
मौर्य साम्राज्य की स्थापना किसने की? भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य की स्थापना का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान् विजेता था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने 321 ई. पू. में मगध के शासक घनानंद को हराकर मगध को अपने अधिकार में कर लिया। मगध प्रदेश भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना का आधार बना। मौर्य साम्राज्य की स्थापना के साथ ही भारत में छोटे-मोटे राज्य समाप्त हो गए और उनके स्थान पर एक विशालकाय साम्राज्य की स्थापना हुई। मौर्य साम्राज्य की स्थापना के पूर्व छोटे राज्यों का कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं था। मौर्य साम्राज्य की स्थापना के पश्चात् भारतीय इतिहास का क्रमबद्ध आधार बना मौर्य साम्राज्य के दौरान विदेश व्यापार में खूब उन्नति हुई, भारत का विदेशों से व्यापक सम्पर्क स्थापित हुआ, इसके साथ ही भारत से विदेशी सत्ता का अन्त भी हुआ।

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प्रश्न 66.
यूनानी राजदूत मेगस्थनीज द्वारा वर्णित चन्द्रगुप्त मौर्य की सैन्य व्यवस्था पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य की | सैन्य व्यवस्था का विधिवत वर्णन किया है। मेगस्थनीज के अनुसार सैन्य व्यवस्था के समुचित संचालन हेतु एक समिति और छह उपसमितियों का गठन किया गया था। इन समितियों को पृथक् पृथक् सैन्य गतिविधियों के संचालन की जिम्मेदारी दी गई थी। जैसे एक समिति नौसैनिक गतिविधियों का संचालन करती थी तो दूसरी समिति सैनिकों की भोजन व्यवस्था का संचालन करती थी तीसरी समिति पैदल सेना का संचालन, चौथी समिति अश्वारोहियों की सेना का, पाँचवीं समिति रथारोहियों की सेना तथा छठी समिति हाथियों की सेना का संचालन करती थी।

प्रश्न 67.
मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्षों तक ही चल सका क्यों?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के केवल 150 वर्षों तक चलने के निम्न कारण हैं –

  1. अशोक की मृत्यु के पश्चात् मौर्य साम्राज्य की बागडोर निर्बल शासकों के हाथ में आई जो मौर्य साम्राज्य के विस्तृत क्षेत्रों को सम्भालने में सक्षम नहीं हुए।
  2. बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के कारण अशोक को ब्राह्मण समाज के क्रोध का भाजन बनना पड़ा, वे मौर्य वंश के विरुद्ध हो गए।
  3. कलिंग विजय के पश्चात् अशोक पश्चात्ताप के भाव से भर उठे और उन्होंने अहिंसा की नीति अपनाई।
  4. साम्राज्य की सीमा के अन्तर्गत नियन्त्रण कमजोर होने के कारण अनेक राजे-रजवाड़ों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता घोषित कर दी।
    इस प्रकार धीरे-धीरे मौर्य साम्राज्य का अन्त हो गया।

प्रश्न 68.
दैविक राजा से क्या तात्पर्य है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
कुषाण शासक ने अपने राज्य को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा प्रजा से पूजनीय तथा उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने आपको ईश्वर के रूप में प्रस्तुत किया। इसका सर्वोत्तम प्रमाण उनकी मूर्तियों और सिक्कों से प्राप्त होता है। कई कुषाण शासक अपने नाम के आगे देवपुत्र की उपाधि लगाते थे। अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने चीनी शासकों का अनुसरण किया जो अपने नाम के आगे ‘स्वर्गपुत्र’ की उपाधि लगाते हैं। कुषाण और शकों ने इस बात का प्रचार किया कि राजा को शासन करने का दैवीय अधिकार परमात्मा से प्राप्त है और यह अधिकार वंशानुगत है।

प्रश्न 69
प्रशस्तियों से आप क्या समझते हैं? इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख किसके सम्बन्ध में है?
उत्तर:
प्रशस्तियों का तात्पर्य राजाओं के यशोगान से है। तत्कालीन साहित्यिक कवियों द्वारा अपने राजाओं की प्रशंसा में प्रशस्ति लिखी जाती थी। गुप्त साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली सम्राट् समुद्रगुप्त के राजकवि हरिषेण ने प्रयाग प्रशस्ति के नाम से एक रचना की जिसे इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख कहा जाता है। यह प्रशस्ति संस्कृत में लिखी गई थी। हरिषेण ने सम्राट् समुद्रगुप्त की प्रशंसा में लिखा है-

“धरती पर उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है, अनेक गुणों और शुभ कार्यों से सम्पन्न उन्होंने अपने पैर के तलवे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया है। वे परमात्मा पुरुष हैं, साधु की समृद्धि और असाधु के विनाश के कारण हैं। वे अजेय हैं। उनके कोमल हृदय को भक्ति और विनय से ही वश में किया जा सकता है। वे करुणा से भरे हुए हैं। वे अनेक सहस्र गायों के दाता हैं। उनके मस्तिष्क की दीक्षा दीन-दुखियों, बिरहिणियों और पीड़ितों के उद्धार के लिए की गई है। वे मानवता के लिए दिव्यमान उदारता की प्रतिमूर्ति हैं। वे देवताओं में कुबेर, वरुण, इन्द्र और यम के तुल्य हैं। ”

प्रश्न 70.
अभिलेखों से भूमिदान के सम्बन्ध में क्या विवरण प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
भूमिदान से सम्बन्धित अभिलेख देश के कई हिस्सों से प्राप्त हुए हैं, कहीं-कहीं भूमि के छोटे टुकड़े तो कहीं बड़े-बड़े क्षेत्रों के दान का उल्लेख है। कुछ अभिलेख पत्थरों पर लिखे गए थे। अधिकांश अभिलेख ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण हैं। साधारणतया भूमिदान ब्राह्मणों और सामाजिक संस्थाओं को दिया जाता था। अभिलेख मुख्यतया संस्कृत में लिखे जाते थे, कुछ अभिलेख तमिल और तेलुगु भाषा में भी हैं। कुछ महिलाओं द्वारा भी भूमिदान के साक्ष्य प्राप्त हैं। वाकाटक वंश के राजा की रानी प्रभावती ने ब्राह्मण को भूमिदान किया था।

प्रश्न 71.
नए नगरों के विकास पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में छठी शताब्दी ईसा पूर्व कई नगरों का विकास हुआ प्रमुख नगर महाजनपदों की राजधानियों के रूप में विकसित हुए। इन नगरों के विकास में प्राकृतिक रूप से संचार मार्गों की भूमिका रही है। पाटलिपुत्र गंगा नदी के किनारे, दक्षिण भारत में पुहार जैसे महाजनपद समुद्र तट के किनारे जहाँ समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए तथा मथुरा जैसे अनेक शहर व्यावसायिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे। उज्जयिनी जैसे नगर भूतल परिवहन मार्गों से देश के सभी भागों से जुड़ा हुआ था। इसके अतिरिक्त तक्षशिला, कन्नौज, वाराणसी, श्रावस्ती, वैशाली, राजगीर, पैठन, सोपारा, विदिशा, धान्यकंटक, कोडूमनाल जैसे प्रमुख अन्य नए शहर विकसित हुए।

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प्रश्न 72.
ब्राह्मी लिपि तथा खरोष्ठी लिपि का अध्ययन कैसे किया गया?
उत्तर:
ब्राह्मी लिपि भारत की सभी भाषा लिपियों की जनक है। यूरोपीय और भारतीय विद्वानों ने बंगाली और देवनागरी शब्दों को पढ़कर उनकी पुराने अभिलेखों के शब्दों से तुलना की आरम्भिक अभिलेखों का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने कई बार यह अनुमान लगाया कि इन अभिलेखों की भाषा संस्कृत थी, वास्तव में अभिलेखों की भाषा प्राकृत थी।

1830 के दशक में जेम्स प्रिंसेप ने अथक प्रयासों से अशोककालीन ब्राह्मी लिपि को पढ़ने और उसका अर्थ निकालने में सफलता प्राप्त की। पश्चिमोत्तर भाग से प्राप्त होने वाली खरोष्ठी लिपि को पढ़ने की विधि अलग थी। यूनानी विद्वान् जो यूनानी लिपि को पढ़ने में समर्थ थे, ने खरोष्ठी भाषा के शब्दों को उसके
साथ मिलान करके पढ़ने में सफलता प्राप्त की।

प्रश्न 73.
गुजरात की सुदर्शन झील पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सुदर्शन झील एक कृत्रिम जलाशय था। हमें इस जलाशय के बारे में जानकारी लगभग दूसरी शताब्दी ई. के संस्कृत के एक पाषाण अभिलेख से होती है। इस अभिलेख में कहा गया है कि जलद्वारों और तटबन्धों वाली इस झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। लेकिन एक भीषण तूफान के कारण इसके तटबन्ध टूट गए और सारा पानी बह गया। बताया जाता है कि तत्कालीन शासक रुद्रदमन ने इस झील की मरम्मत अपने खर्चे से करवाई थी, और इसके लिए अपनी प्रजा से कर भी नहीं लिया था। इसी पाषाण खण्ड पर एक और अभिलेख है जिसमें कहा गया है कि गुप्त वंश के एक शासक ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
छठी शताब्दी ई. पूर्व के सोलह महाजनपदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व के सोलह महाजनपद
(1) जनपद-‘जनपद’ का अर्थ एक ऐसा भूखण्ड है, जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है। बड़ा और शक्तिशाली जनपद ‘महाजनपद’ कहलाता था।

(2) सोलह महाजनपद-छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची इन ग्रन्थों में एक समान नहीं है, परन्तु वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गान्धार और अवन्ति जैसे नाम प्रायः मिलते हैं। इससे ज्ञात होता है कि उक्त महाजनपद सबसे महत्त्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते हैं।

छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में निम्नलिखित सोलह महाजनपद अस्तित्व में थे –

  1. अंग
  2. मगध
  3. क्राशी
  4. कोशल
  5. वज्जि
  6. मल्ल
  7. चेदि
  8. वत्स
  9. कुरु
  10. पांचाल
  11. मत्स्य
  12. शूरसेन
  13. अश्मक
  14. अवन्ति
  15. कम्बोज
  16. गान्धार

(3) शासन व्यवस्था अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, परन्तु ‘गण’ और ‘संघ’ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। वज्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियन्त्रण रखते थे।

(4) महाजनपद की राजधानी- प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी, जो प्रायः किले से घेरी जाती थी। किलेबन्द राजधानियों की देखभाल और प्रारम्भिक सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोतों की आवश्यकता होती थी। शासकों का कार्य किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था। इसके अतिरिक्त पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी सम्पत्ति जुटाने का एक वैध उपाय माना जाता था। धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तन्त्र तैयार कर लिए।

प्रश्न 2.
मौर्य साम्राज्य कितना महत्त्वपूर्ण था? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का महत्त्व उन्नीसवीं शताब्दी में जब इतिहासकारों ने भारत का आरम्भिक इतिहास लिखना शुरू किया, तो उन्होंने मौर्य- साम्राज्य को इतिहास का एक प्रमुख काल स्वीकार किया। इस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक औपनिवेशिक देश था। उन्नीसवीं तथा बीसवीं सदी के भारतीय इतिहासकारों को प्राचीन भारत में एक ऐसे साम्राज्य की सम्भावना बहुत चुनौतीपूर्ण तथा उत्साहवर्धक लगी।

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संक्षेप में मौर्य साम्राज्य के महत्व का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) कला के क्षेत्र में उन्नति मौर्य काल में भवन- निर्माण कला तथा मूर्तिकला की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। खुदाई में प्राप्त मौर्यकालीन सभी पुरातत्व एक उच्चकोटि की कला के प्रमाण हैं।

(2) मौर्य सम्राटों के अभिलेख अशोक ने अनेक शिलाओं, गुफाओं, स्तम्भों आदि पर अभिलेख उत्कीर्ण करवाये। ये अभिलेख जनता की भलाई के लिए थे। इतिहासकारों के अनुसार इन अभिलेखों पर लिखे सन्देश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न थे।

(3) अशोक की महानता इतिहासकारों के अनुसार अन्य शासकों की अपेक्षा सम्राट अशोक एक बहुत शक्तिशाली और न्यायप्रिय शासक था। वह परवर्ती राजाओं की अपेक्षा विनीत और नम्र भी था, जो अपने नाम के साथ बड़ी बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे इसलिए बीसवीं शताब्दी के राष्ट्रवादी नेताओं ने भी अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना

(4) मौर्य साम्राज्य की कमजोरियाँ – यद्यपि मौर्य- साम्राज्य अत्यन्त गौरवशाली था, परन्तु उसमें कुछ कमजोरियाँ भी थीं जिनका वर्णन निम्नानुसार है-

  • मौर्य साम्राज्य का केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहना- मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहा। इसे भारतीय उपमहाद्वीप के इस लम्बे इतिहास में बहुत बड़ा काल नहीं माना जा सकता।
  • मौर्य साम्राज्य का सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में विस्तार न होना- मौर्य साम्राज्य का उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में विस्तार नहीं हो सका साम्राज्य की सीमा के अन्तर्गत भी सभी प्रदेशों पर नियन्त्रण एकसमान नहीं था अतः दूसरी शताब्दी ई. पूर्व तक उपमहाद्वीप के अनेक भागों में नये-नये शासकों और रजवाड़ों की स्थापना होने लगी।

प्रश्न 3.
दक्षिण भारत में सरदारों और सरदारियों के उद्भव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत में सरदारों और सरदारियों का उद्भव 600 ई. पूर्व से 600 ई. के काल में भारत के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्र में स्थित तमिलकम अर्थात् तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश एवं केरल के कुछ भाग में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ ये राज्य बहुत ही समृद्ध और स्थायी सिद्ध हुए।
(1) सरदार और सरदारी सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी हो सकता था। उसके सहयोगी और समर्थक उसके वंश के लोग होते थे सरदारों के प्रमुख कार्य थे –

  •  विशेष अनुष्ठानों का संचालन करना
  • युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करना
  • विवादों का निपटारा करने में मध्यस्थता की भूमिका निभाना सरदार अपनी अधीन प्रजा से भेंट लेता था और उसे अपने समर्थकों में बाँट देता था। राजा लोग विभिन्न करों की वसूली करते थे सरदारी में प्राय: कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे।

(2) जानकारी के स्रोत हमें दक्षिण के इन राज्यों के विषय में विभिन्न प्रकार के स्रोतों से जानकारी मिलती है। उदाहरणार्थ- प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों में संकलित कविताएँ सरदारों का विवरण देती हैं।

(3) व्यापार द्वारा राजस्व प्राप्त करना-दक्षिण भारत के अनेक सरदार और राजा लम्बी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व प्राप्त करते थे इन राजाओं में मध्य और पश्चिम भारत के क्षेत्रों पर शासन करने वाले सातवाहन (लगभग द्वितीय शताब्दी ई. पूर्व से द्वितीय शताब्दी ईसवी तक ) और उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर तथा पश्चिम में शासन करने वाले मध्य एशियाई मूल के शक शासक सम्मिलित थे।

(4) उच्च सामाजिक दर्जे का दावा करना – यद्यपि सातवाहनों की जाति के बारे में विद्वानों में मतभेद है, परन्तु सत्तारूढ़ होने के बाद उन्होंने उच्च सामाजिक दर्जे का दावा कई प्रकार से किया। अधिकांश विद्वानों के अनुसार सातवाहन ब्राह्मणवंशीय थे।

प्रश्न 4.
छठी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक के काल में भारत के राजाओं तथा ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
राजाओं तथा ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध छठी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक के काल में भारत में राजाओं तथा ग्रामीण प्रजा के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के बारे में जातकों तथा पंचतंत्र जैसे ग्रन्थों से पर्याप्त जानकारी मिलती है। जातक कथाओं की रचना पहली सहस्राब्दी ई. के मध्य में पालि भाषा में की गई थी। ग्रामीण प्रजा की दयनीय दशा- जातक कथाओं से पता चलता है कि इस काल में ग्रामीण जनता की दशा बड़ी दयनीय थी। ‘गंदतिन्दु’ नामक जातक में वर्णित एक कथा में बताया गया है कि राजा की प्रजा बड़ी दुःखी थी। इन दुःखी लोगों में वृद्ध महिलाएँ, पुरुष, किसान, पशुपालक, ग्रामीण बालक आदि सम्मिलित थे।

एक बार राजा वेश बदलकर लोगों के बीच में यह जानने के लिए गया कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। उन सभी लोगों ने अपने दुःखों के लिए राजा को उत्तरदायी ठहराया तथा उसकी कटु आलोचना की। उन्होंने अपना दुःख व्यक्त करते हुए राजा को बताया कि रात्रि में डाकू लोग उन पर हमला करते थे तथा दिन में कर एकत्रित करने वाले अधिकारी उन्हें प्रताड़ित करते थे। इस परिस्थिति से मुक्ति पाने के लिए लोग अपने-अपने गाँव छोड़कर जंगलों में बस गए। राजा और प्रजा के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध-उपर्युक्त कथा से ज्ञात होता है कि इस काल में राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे।

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इसका प्रमुख कारण यह था कि शासक अपने राजकोष को भरने के लिए लोगों से विभिन्न प्रकार के करों की माँग करते थे। इससे किसानों में पोर असन्तोष व्याप्त रहता था। इस जातक कथा से ज्ञात होता है कि इस संकट से बचने के लिए ग्रामीण लोग अपने घरों को छोड़ कर जंगलों में भाग जाते थे। इस प्रकार इस काल की जनता में राजा की छवि बड़ी खराब थी क्योंकि वे जनता का शोषण करते थे और उसके कष्टों एवं समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयत्न नहीं करते थे।

प्रश्न 5.
छठी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक के काल में किये जाने वाले भूमिदानों का वर्णन कीजिये। भूमिदानों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
भूमिदान प्राचीन भारत में शासकों, सामन्तों एवं धन-सम्पन्न लोगों द्वारा भूमिदान किये जाते थे अनेक भूमिदानों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। इनमें से कुछ अभिलेख पत्थरों पर लिखे गए थे परन्तु अधिकांश अभिलेख ताम्र- पत्रों पर उत्कीर्ण होते थे जिन्हें उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था, जो भूमिदान लेते थे।
(1) प्रभावती गुप्त द्वारा भूमिदान देना प्रभावती गुप्त गुप्त वंश के प्रसिद्ध सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ( लगभग 375-415 ई.) की पुत्री थी। उसका विवाह दक्कन पठार के वाकाटक वंश के शासक रुद्रसेन द्वितीय के साथ हुआ था प्रभावती गुप्त ने दंगुन गाँव को भूमिदान के रूप में प्रसिद्ध आचार्य चनालस्वामी को दान किया था।

(2) भूमिदान अभिलेख से ग्रामीण प्रजा की जानकारी प्रभावती गुप्त के भूमिदान अभिलेख से हमें ग्रामीण प्रजा के बारे में जानकारी मिलती है। उस समय गाँवों में ब्राह्मण, किसान तथा अन्य प्रकार के वर्गों के लोग रहते थे। ये लोग शासकों या उनके प्रतिनिधियों को अनेक प्रकार की वस्तुएँ प्रदान करते थे।

(3) भूमिदान की भूमि में अन्तर भूमिदान की भूमि की माप एक जैसी नहीं थी। कुछ लोगों को भूमि के छोटे- छोटे टुकड़े दिए गए थे तो कुछ लोगों को बड़े-बड़े क्षेत्र दान में दिए गए थे। इसके अतिरिक्त भूमिदान में दान प्राप्त करने वाले लोगों के अधिकारों में भी क्षेत्रीय परिवर्तन मिलते हैं।

(4) भूमिदान के प्रभाव-भूमिदान के निम्नलिखित प्रभाव हुए –

  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार भूमिदान शासक- वंश के द्वारा कृषि को नये क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
  • कुछ इतिहासकारों का मत है कि भूमिदान से दुर्बल होते हुए राजनीतिक प्रभुत्व की जानकारी मिलती है।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।

प्रश्न 6.
छठी शताब्दी ई. पूर्व के नये नगरों तथा नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग और शिल्पकारों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) छठी शताब्दी ई. पूर्व के नये नगर- छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नये नगरों का उदय हुआ। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थीं। प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे। पाटलिपुत्र जैसे कुछ नगर नदी मार्ग के किनारे बसे थे। उज्जयिनी जैसे अन्य नगर भूतल मार्गों के किनारे बसे थे। इसके अतिरिक्त पुरहार जैसे नगर समुद्रतट पर स्थित थे, जहाँ से समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए मथुरा जैसे अनेक नगर व्यावसायिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे।

(2) नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग के लोग और शिल्पकार – शासक वर्ग और राजा किलेबन्द नगरों में रहते थे। खुदाई में इन नगरों में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे तथा थालियाँ मिली हैं, जिन पर चमकदार कलई चढ़ी हुई है। इन्हें ‘उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र’ कहा जाता है। सम्भवतः इन पात्रों का उपयोग धनी लोग किया करते होंगे। इसके अतिरिक्त सोने, चाँदी, कांस्य, ताँबे, हाथीदांत, शीशे जैसे विभिन्न प्रकार के पदार्थों के बने आभूषण, उपकरण, हथियार, वर्तन आदि मिले हैं। इनका उपयोग भी अमीर लोग करते थे। दानात्मक अभिलेखों में नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, धोबी, अधिकारी, धार्मिक गुरु, व्यापारी आदि शिल्पकारों के बारे में जानकारी मिलती है।

(3) श्रेणी – शिल्पकारों और व्यापारियों ने अपने संघ बना लिए थे, जिन्हें ‘श्रेणी’ कहा जाता है। ये श्रेणियाँ सम्भवतः पहले कच्चे माल को खरीदती थीं, फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच देती थीं। यह सम्भव है कि शिल्पकारों ने नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग के लोगों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कई प्रकार के लौह उपकरणों का प्रयोग किया हो।

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प्रश्न 7.
प्राचीन काल में भारतीय शासकों द्वारा प्रचलित सिक्कों का वर्णन कीजिये। सिक्कों के व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
प्राचीन काल में भारतीय शासकों द्वारा प्रचलित सिक्के प्राचीन काल में भारतीय शासकों द्वारा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के सिक्के जारी किये गए। छठी शताब्दी ई. पूर्व में चाँदी और ताँबे के आहत सिक्कों का सबसे पहले प्रयोग किया गया। सम्पूर्ण भारत में उत्खनन में इस प्रकार के सिक्के मिले हैं।

(1) कुषाण राजाओं द्वारा प्रचलित सिक्के सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं द्वारा जारी किए गए थे। उत्तर और मध्य भारत के अनेक पुरास्थलों पर कुषाणों द्वारा प्रचलित सिक्के मिले हैं। सोने के सिक्कों के व्यापक प्रयोग से पता चलता है कि बहुमूल्य वस्तुओं तथा भारी मात्रा में अन्य वस्तुओं का विनिमय किया जाता था। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के अनेक पुरास्थलों से बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं। इनसे जात होता है कि दक्षिण भारत के रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित थे।

(2) यौधेय शासकों द्वारा जारी किए गए सिक्के- पंजाब और हरियाणा के यौधेय (प्रथम शताब्दी ई.) कबायली गणराज्यों ने भी सिक्के जारी किये थे उत्खनन में यौधेय शासकों द्वारा जारी किए गए ताँबे के सिक्के हजारों की संख्या में मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि यौधेय शासकों की व्यापारिक गतिविधियों में बड़ी रुचि और सहभागिता थी।

(3) गुप्त शासकों द्वारा जारी किये गए सिक्के-सोने के सबसे उत्कृष्ट सिक्कों में से कुछ सिक्के गुप्त शासकों द्वारा जारी किए गए थे। गुप्त शासकों के आरम्भिक सिक्कों में प्रयुक्त सोना अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का था। सोने के कम सिक्के मिलने के कारण छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के मिलने कम हो गए। इसके कारण निम्नलिखित थे प्रमुख

  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार रोमन साम्राज्य के पतन के बाद दूरवर्ती व्यापार में कमी आई जिससे इन राज्यों समुदायों और प्रदेशों की सम्पन्नता क्षीण हो गई, जिन्हें दूरवर्ती व्यापार से लाभ मिलता था।
  • कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है कि इस काल में नये नगरों और व्यापार के नवीन तन्त्रों का उदय होने लगा था।
  • यद्यपि इस काल के सोने के सिक्कों का मिलना तो कम हो गया, परन्तु अभिलेखों और ग्रन्थों में सिक्कों का उल्लेख होता रहा है।

प्रश्न 8.
“अशोक भारत का एक महान सम्राट था।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
अशोक को महान क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
अशोक की गिनती भारत के महान सम्राटों में की जाती है।
अशोक के महान् सम्राट कहे जाने के आधार –
(1) महान् विजेता- गद्दी पर बैठते ही अशोक ने अपने पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य की भाँति साम्राज्यवादी नीति अपनाई। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ से ज्ञात होता है कि अशोक ने कश्मीर को जीत कर मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक ने कलिंग को जीतकर उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। इस प्रकार अशोक ने अपने पूर्वजों से प्राप्त मौर्य साम्राज्य को सुरक्षित ही नहीं रखा, बल्कि उसका विस्तार भी किया।

(2) योग्य शासक अशोक केवल एक विजेता ही नहीं, अपितु एक योग्य शासक भी था वह एक प्रजावत्सल सम्राट था। वह अपनी प्रजा को अपनी सन्तान के तुल्य समझता था तथा उसकी नैतिक और भौतिक उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता था। उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक सुधार किये और अपनी प्रशासकीय प्रतिभा का परिचय दिया।

(3) धम्म – विजेता- कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने साम्राज्यवादी एवं युद्धवादी नीति का परित्याग कर दिया। उसने बुद्ध घोष के स्थान पर धम्म घोष की नीति अपनाई । उसने धम्म के प्रचार के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर दिया।

(4) बौद्ध धर्म को संरक्षण देना बौद्ध धर्म के प्रचारक एवं संरक्षक के रूप में भी प्राचीन भारतीय इतिहास में कि अशोक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसने बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों ल को शिलाओं, स्तम्भों पर उत्कीर्ण करवाया। उसने भारत के च विभिन्न प्रदेशों एवं विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक धर्म प्रचारक भेजे।

(5) कला का संरक्षक अशोक कला प्रेमी था। उसने रा अनेक राजप्रासादों, स्तम्भों, स्तूपों, विहारों आदि का निर्माण ि करवाया। उसके द्वारा निर्मित पाषाण स्तम्भ मौर्यकालीन कला के सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं। बौद्धग्रन्थों के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया।

(6) अशोक की चारित्रिक विशेषताएँ- अशोक के स अभिलेखों का अध्ययन करने वाले इतिहासकारों को यह प्रतीत हुआ कि अन्य राजाओं की अपेक्षा अशोक एक बहुत से ही शक्तिशाली तथा परिश्रमी शासक था। इसके अतिरिक्त वह बाद के उन राजाओं की अपेक्षा विनीत भी था जो अपने नाम के साथ बड़ी-बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे। इसलिए बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना है।

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प्रश्न 9.
मौयों की आर्थिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौर्यों की आर्थिक व्यवस्था मौर्यो की आर्थिक व्यवस्था का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) कृषि- इस काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। कृषकों को राज्य का संरक्षण प्राप्त था। युद्ध के समय भी कृषकों को हानि नहीं पहुंचाई जाती थी। खेती हल और बैलों से की जाती थी। राज्य की ओर से सिंचाई की सुविधा दी जाती थी। अकाल और बाढ़ के समय कृषकों की सहायता की जाती थी मौर्य काल में गेहूं, जौ, चावल, चना, उड़द, मूंग, मसूर, सरसों, कपास, बाजरा आदि की खेती की जाती थी। मेगस्थनीज के अनुसार भारत के कृषक सदा प्रायः दो फसलें काटते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के गवर्नर पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र में सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। इससे ज्ञात होता है कि शासक सिंचाई के साधनों के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे।

(2) पशुपालन इस युग में पशुपालन भी एक प्रमुख व्यवसाय था। पशुओं में गाय-बैल, भेड़-बकरी, भैंस, गधे, ऊँट, सूअर, कुत्ते आदि प्रमुखता से पाले जाते थे।

(3) उद्योग-धन्धे इस काल में अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। इस युग में सूती, ऊनी, रेशमी सभी प्रकार के वस्व जुने जाते थे। वस्यों का निर्यात विदेशों को किया जाता था। उच्चकोटि की मलमल बड़ी मात्रा में दक्षिण भारत से आयात की जाती थी। इस युग में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया जाता था। इस समय जलपोतों का भी निर्माण होने लगा था, जिससे व्यापार का काफी विकास हुआ था। चमड़े का उद्योग भी उन्नत था।

(4) श्रेणियाँ मौर्यकाल में शिल्पियों तथा व्यवसायियों की अपनी श्रेणियाँ (संगठन) होती थीं। इन श्रेणियों को राज्य की ओर से सहायता दी जाती थी और उन्हें सरकारी नियमों के अनुसार कार्य करना पड़ता था।

(5) व्यापार वाणिज्य मौर्यकाल में आन्तरिक और वैदेशिक व्यापार दोनों उन्नत अवस्था में थे। बड़े-बड़े नगर सड़कों से जुड़ गए थे। आन्तरिक व्यापार के लिए देश में सुरक्षित स्थल मार्ग थे। इनमें पाटलिपुत्र से तक्षशिला तक जाने वाला राजपथ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण था। राज्य की ओर से मार्गों की सुरक्षा का प्रबन्ध किया जाता था। आन्तरिक व्यापार देश की नदियों के मार्ग से भी होता था। मौर्य युग में विदेशी व्यापार भी उन्नत था लंका, बर्मा, पश्चिमी एशिया, मिस्र आदि के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे भारत से मिस्र को हाथी, कछुए सीपियाँ, मोती, रंग, नील और बहुमूल्य लकड़ी निर्यात होती थी।

(6) मुद्रा – मौर्यकाल में नियमित सिक्कों का प्रचलन हो गया था। सिक्के सोने, चाँदी तथा तांबे के बने होते थे। ‘अर्थशास्त्र’ में सुवर्ण (स्वर्ण मुद्रा), कार्यापण, पण या धरण (चाँदी के सिक्के), माषक (ताँबे के सिक्के), काकणी (ताम्र मुद्रा) आदि का उल्लेख मिलता है। मुद्राओं को सरकारी टकसालों में ढाला जाता था।

प्रश्न 10.
समुद्रगुप्त के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
समुद्रगुप्त के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए। उत्तर- समुद्रगुप्त का चरित्र एवं व्यक्तित्व (मूल्यांकन) –
समुद्रगुप्त प्राचीन भारत का एक महान् सम्राट था। उसके चरित्र एवं व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन के निम्नानुसार किया गया है –
(1) गुणसम्पन्न व्यक्ति समुद्रगुप्त एक गुणसम्पन्न व्यक्ति था। वह उदार, दयालु और दानशील व्यक्ति था। वह साधु की समृद्धि और असाधु के विनाश का कारण था।

(2) वीर योद्धा तथा महान विजेता-समुद्रगुप्त एक ये वीर योद्धा, कुशल सेनापति तथा महान विजेता था। उसके कि सिक्कों पर अंकित ‘पराक्रमांक’, ‘व्याघ्रपराक्रम’ जैसी उपाधियाँ न्ता उसके अद्वितीय पराक्रम तथा शूरवीरता की परिचायक हैं।

(3) योग्य शासक समुद्रगुप्त एक योग्य शासक भी था। उसका प्रशासन अत्यन्त सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित था। वह एक प्रजावत्सल शासक था तथा अपनी प्रजा की नैति एवं भौतिक उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता था।

(4) कुशल राजनीतिज्ञ समुद्रगुप्त एक कुश राजनीतिज्ञ भी था। उसने देशकाल के अनुकूल भिन्न-भिन्न नीतियों का अनुसरण किया। जहाँ उसने आर्यावर्त के राज्य को जीतकर उन्हें अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया, वह उसने दक्षिणापथ के राजाओं को पराजित कर उनके राज्य वापस लौटा दिये तथा उनसे केवल कर लेना ही उचि
समझा।

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(5) साहित्य का संरक्षक समुद्रगुप्त साहित्य क संरक्षक था। वह स्वयं एक उच्च कोटि का विद्वान था औ विद्वानों, कवियों तथा साहित्यकारों का संरक्षक था। समुद्रगुप्त कविता भी करता था और अपनी काव्य निपुणता के कारण ‘कविराज’ की उपाधि से प्रसिद्ध था।

(6) कला का संरक्षक समुद्रगुप्त कला का भी संरक्षक था संगीत से उसे विशेष प्रेम था। वह स्वयं एक अच्छा संगीतज्ञ था। उसके कुछ सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है, जिससे सिद्ध होता है कि वह संगीत प्रेमी था।

(7) धर्म-सहिष्णु समुद्रगुप्त वैष्णव धर्म का अनुवायी था वैष्णव धर्म का प्रबल समर्थक होते हुए भी उसका धार्मिक दृष्टिकोण उदार तथा न्यायपरक था उसने अपने राजदरबार में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबन्धु को आश्रय प्रदान किया था।

प्रश्न 11.
अभिलेखशास्त्री एवं इतिहासकार अशोक के अभिलेखों से ऐतिहासिक साक्ष्य किस प्रकार प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
अभिलेखों से ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त करना –
(1) अभिलेखों का परीक्षण करना अशोक के एक अभिलेख में यह लिखा है कि “राजन देवानामपिय पियदस्सी यह कहते हैं।” इस अभिलेख में शासक अशोक का नाम नहीं लिखा है। इसमें अशोक द्वारा अपनाई गई उपाधियों (‘देवानाम्पिय’ तथा ‘पियदस्सी) का प्रयोग किया गया है परन्तु अन्य अभिलेखों में अशोक का नाम मिलता है।

जिसमें उसकी उपाधियाँ भी लिखी हैं। इन अभिलेखों का परीक्षण करने के पश्चात् अभिलेखशास्त्रियों ने पता लगाया है कि उनके विषय, शैली, भाषा और पुरालिपि विज्ञान, सबमें समानता है। अतः उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि इन अभिलेखों को एक ही शासक ने बनवाया था। अभिलेखशास्त्रियों तथा इतिहासकारों को इन अभिलेखों का अध्ययन करने के बाद यह पता लगाना पड़ता है कि अशोक ने अपने अभिलेखों में जो कहा है, वह कहाँ तक सही है।

(2) ब्रैकेट में लिखे शब्दों का अर्थ ढूँढ़ना- अशोक के कुछ अभिलेखों में कुछ शब्द ब्रैकेट में लिखे हुए हैं जैसे एक अभिलेख में अशोक कहता है कि “मैंने निम्नलिखित (व्यवस्था) की है ………….. ” इसी प्रकार अशोक ने अपने तेरहवें शिलालेख में कलिंग युद्ध मैं हुए विनाश का वर्णन करते हुए कहा है कि “इस युद्ध में एक लाख व्यक्ति मारे गए, डेढ़ लाख व्यक्ति बन्दी बनाए गए तथा इससे भी कई गुना व्यक्ति (महामारी, भुखमरी आदि) से मारे गए।” अभिलेखशास्त्री प्रायः वाक्यों के अर्थ स्पष्ट करने के लिए इन ब्रैकेटों का प्रयोग करते हैं। इसमें अभिलेखशास्त्रियों को बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है जिससे कि लेखक का मूल अर्थ बदल न जाए।

(3) युद्ध के प्रति मनोवृत्ति में परिवर्तन को दर्शाना- अशोक के तेरहवें शिलालेख से कलिंग के युद्ध के बारे में जानकारी मिलती है। इससे अशोक की वेदना प्रकट होती है। इसके साथ ही यह युद्ध के प्रति अशोक की मनोवृत्ति में परिवर्तन को भी दर्शाता है।

प्रश्न 12.
“अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है।” विवेचना कीजिए
अथवा
“राजनीतिक और आर्थिक इतिहास का पूर्ण ज्ञान मात्र अभिलेख शास्त्र से ही नहीं मिलता है।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की सीमा प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण के लिए अभिलेखों से प्राप्त जानकारी पर्याप्त नहीं होती है। अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है। कभी-कभी इसकी तकनीकी सीमा होती है जैसे अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है, जिन्हें पढ़ पाना कठिन होता है। इसके अतिरिक्त -अभिलेख नष्ट भी हो सकते हैं, जिनसे अक्षर लुप्त हो जाते हैं। अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के बारे में भी पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करना भी काफी कठिन होता है क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से सम्बन्धित होते हैं।

खुदाई में कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए हैं। परन्तु सभी के अर्थ नहीं निकाले जा सके हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक अभिलेख भी रहे होंगे, जो कालान्तर में सुरक्षित नहीं बचे हैं। इसलिए जो अभिलेख अभी उपलब्ध हैं, वे सम्भवतः कुल अभिलेखों के अंशमात्र हैं। यह भी आवश्यक नहीं है कि जिसे हम आज राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण मानते हैं, उन्हें अभिलेखों में अंकित ही किया गया हो।

उदाहरणार्थ, खेती की वन दैनिक प्रक्रियाएँ और जीवन के हर रोज के सुख-दुःख का उल्लेख अभिलेखों में नहीं मिलता है क्योंकि प्रायः अभिलेख पर बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं। इसके अतिरिक्त अभिलेख सदैव उन्हीं लोगों के विचारों को प्रकट करते प हैं, जो उन्हें बनवाते थे। इसलिए इन अभिलेखों में प्रकट किये गए विचारों की समीक्षा अन्य विचारों के परिप्रेक्ष्य में करनी होगी ताकि अपने अतीत का उचित ज्ञान हो सके। इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक और आर्थिक इतिहास त का पूर्ण ज्ञान मात्र अभिलेख शास्त्र में ही नहीं मिलता है।

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प्रश्न 13.
प्रारम्भिक राज्यों के रूप में महाजनपदों के राजनीतिक इतिहास का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक राज्यों के रूप में महाजनपदों के राजनीतिक इतिहास का वर्णन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) प्रारम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल का सम्बन्ध प्रायः आधुनिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग एवं सिक्कों के विकास के साथ स्थापित किया जाता है। इसी काल के दौरान बौद्ध एवं जैन धर्म सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का जन्म एवं विकास हुआ।

बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रारम्भिक ग्रन्थों में महाजनपद नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि इन ग्रन्थों में महाजनपदों के सभी नाम एक जैसे नहीं हैं। लेकिन मगध, कोसल, वज्जि, कुरु, पांचाल, गांधार एवं अवन्ति जैसे नाम प्राय: एक समान देखने को मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि अपने समय में इन सभी महाजनपदों की गिनती महत्त्वपूर्ण महाजनपदों में होती होगी।

(2) अधिकांश महाजनपदों का शासन राजा द्वारा संचालित होता था, लेकिन गण एवं संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान बुद्ध और भगवान महावीर इन्हीं गणों से सम्बन्ध रखते थे। हालांकि इन राज्यों के इतिहास स्रोतों के अभाव के कारण नहीं ‘लिखे जा सके हैं, लेकिन यह सम्भावना है कि ऐसे कई राज्य लगभग एक हजार वर्षों तक अस्तित्व में रहे होंगे।

(3) प्रत्येक महाजनपद अपनी एक राजधानी रखता था। इस राजधानी के चारों तरफ किले का निर्माण किया जाता था। इन किलेबन्द राजधानी शहर के रख-रखाव एवं सेवाओं व नौकरशाही के खर्चों के लिए बहुत बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता पड़ती थी।

(4) इस काल में शासकों का कार्य कृषकों, व्यापारियों एवं शिल्पकारों से कर एवं भेंट वसूलना माना जाता था। वनवासियों एवं चरवाहों से भी कर लिए जाने की कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी। इस काल में पड़ौसी राज्यों पर आक्रमण करके भी धन एकत्रित किया जाता था।

प्रश्न 14.
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर;
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की चर्चा हम निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं –
(1) केन्द्रीय शासन राजकीय सत्ता का प्रमुख केन्द्र तथा प्रशासन का सर्वोच्च सम्राट् होता था। सम्राट् के पास असीमित शक्तियाँ होती थीं। सम्राट् नियमों का निर्माता, सर्वोच्च न्यायाधीश, सेनानायक एवं मुख्य कार्यकारिणी का अध्यक्ष होता था।

(2) राजा के अधिकारियों के दायित्व – राजा ने राज्य कार्यों में सहायता एवं परामर्श हेतु मन्त्रिपरिषद् की स्थापना की थी। मन्त्रिपरिषद् में चरित्रवान तथा बुद्धिमान व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती थी, परन्तु मन्त्रिपरिषद् का निर्णय राजा के लिए मानना अनिवार्य नहीं था कुछ अन्य अधिकारी भी होते थे, जैसे-अमात्य, महामात्य तथा अध्यक्ष आदि अमात्य मन्त्रियों के अधीन विभागों का काम संभालते थे।

(3) प्रान्तीय शासन संचालन की कुशल व्यवस्था हेतु मौर्य शासकों ने साम्राज्य को पाँच विभिन्न प्रान्तों में विभाजित किया था। प्रान्तीय शासन का प्रमुख राजपरिवार से सम्बन्धित होता था। उसका मुख्य कार्य प्रान्त में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखना था।

(4) नगर की प्रशासनिक व्यवस्था उचित प्रशासनिक व्यवस्था हेतु नगर को कई भागों में बाँटा गया था। प्रत्येक नगर की अपनी नगरपालिका तथा न्यायपालिका थी। न्यायपालिका न्यायाधीश की सहायता हेतु न्यायाधिकारी न्य होते थे।

(5) ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था-ग्राम प्रशासन की ह व्यवस्था, ग्राम पंचायतों के द्वारा की जाती थी। ग्राम का र मुखिया ‘ग्रामिक’ अथवा ‘ग्रामिणी’ कहलाता था। के

(6) दण्ड विधान दण्ड विधान काफी कठोर था। वहीं चोरी करने, डाका डालने एवं हत्या जैसे जघन्य अपराधों हेतु मृत्यु दण्ड का विधान था अपराधी का अंग-भंग भी ” किया जाता था। दीवानी तथा फौजदारी दो प्रकार के न्यायालय ता थे। सर्वोच्च न्यायाधीश स्वयं राजा होता था।

(7) सेना प्रणाली मौर्य शासकों ने शक्तिशाली सेना एवं का गठन किया था चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल, 30,000 घुड़सवार तथा 9 हजार हाथी और 8 हजार
रथ थे।

(8) समाज, कला, शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति- चा। कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय था। कृषि आधारित पशुपालन, शिल्प तथा उद्योग काफी उन्नत अवस्था में थे। साहित्य और शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार था अशोक पहला सम्राट् था जिसके बनवाये स्तम्भ शिल्पकला के उदाहरण हैं।

प्रश्न 15.
मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 321 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। मौर्य वंश के उदय के साथ ही भारत का इतिहास रोचक बन जाता है क्योंकि इस काल में इतिहासकारों को तमाम ऐसे ऐतिहासिक साक्ष्य और विवरण प्राप्त होते हैं। प्रमुख स्रोतों का वर्णन निम्न है –
(1) मैगस्थनीज द्वारा रचित इंडिका मेगस्थनीज सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 302 ई.पू. से 298 ई.पू. तक रहा। उसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारत में देखे गए वृतान्त का प्रत्यक्षदर्शी विवरण लिखा है। मेगस्थनीज ने सम्राट् चन्द्रगुप्त की शासन व्यवस्था, सैनिक गतिविधियों का संचालन तथा मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था के बारे में विस्तृत रूप से लिखा है। मेगस्थनीज द्वारा इंडिका में दिया गया वर्णन काफी हद तक प्रामाणिक माना जाता है।

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(2) चाणक्य का अर्थशास्त्र- चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र मौर्यकालीन इतिहास का अन्य प्रमुख स्रोत है। मौर्यकालीन सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक दशाओं का अर्थशास्त्र में व्यापक वर्णन है।

(3) जैन, बौद्ध तथा पौराणिक ग्रन्थ जैन, बौद्ध तथा पौराणिक ग्रन्थों से भी मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल जैसी भाषाओं में साहित्य का सूजन किया है।

(4) पुरातात्त्विक प्रमाण पुरातात्त्विक प्रमाण भी मौर्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। उत्खनन में प्राप्त मूर्तियाँ, राजप्रासाद, स्तम्भ, सिक्के आदि उस काल के इतिहास को जानने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

(5) अभिलेख सम्राट् अशोक ने अपने शासन काल में अनेक अभिलेख उत्कीर्ण करवाए। अभिलेखों से मौर्यकालीन शासन व्यवस्था, नैतिक आदर्शों, धम्मपद के सिद्धान्तों तथा जनकल्याण के लिए किए गए कार्यों की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। जूनागढ़ के अभिलेख तथा अशोक द्वारा लिखवाये गये अभिलेख इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। मौर्यकालीन शासकों के सिक्के भी इस काल का इतिहास जानने में सहायक सिद्ध हुए।

प्रश्न 16.
राजधर्म के नवीन सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए एवं दक्षिण के राजा तथा सरदारों, दक्षिणी राज्यों के उदय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी भागों में नहीं फैल पाया। साम्राज्य की सीमा के अन्तर्गत भी प्रशासन का नियन्त्रण एक समान नहीं था दूसरी शताब्दी ई.पू. आते-आते राजधर्म के नवीन सिद्धान्त स्थापित होने शुरू हो गए थे। उपमहाद्वीप के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्रों में जिनमें आन्ध्र प्रदेश, केरल राज्य तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल थे जिसे संयुक्त रूप से तमिल कम कहा जाता था, में नयी सरदारियों का उदय हुआ। इन सरदारियों में चोल, चेर तथा पांड्य प्रमुख थीं तीसरी शताब्दी के आरम्भ में मध्य भारत तथा दक्षिण में एक नया वंश जिसे वाकाटक कहते थे, बहुत प्रसिद्ध था।

सरदार एक प्रभावशाली व्यक्ति होता था। प्रायः सरदार का पद वंशानुगत होता था। सरदारियों की राज्य व्यवस्था, साम्राज्यों की व्यवस्था से भिन्न होती थी उनकी व्यवस्था में कराधान नहीं था साम्राज्य व्यवस्था में लोगों को कर देना पड़ता था। सरदारी में साधारण रूप से कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे सरदार का कार्य विशेष अनुष्ठानों का संचालन करना था तथा विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता करना भी था।

कई सरदार और राजा लम्बी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व एकत्र करते थे। मध्य एशियाई मूल के इन शासकों के सामाजिक उद्गम के बारे में विशेष विवरण प्राप्त नहीं है, लेकिन सत्ता में आने के बाद इन्होंने राजधर्म में नवीन सिद्धान्त की स्थापना की और राजत्व के अधिकार को दैवीय अधिकार से जोड़ा। कुषाण शासकों ने अपने आपको देवतुल्य प्रस्तुत करने के लिए देवस्थानों पर अपनी विशालकाय मूर्तियाँ लगवाई।

चौथी शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य सहित कई बड़े- बड़े साम्राज्य के साक्ष्य प्राप्त हुए। इस काल को इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस काल में सामन्ती प्रथा का उदय हुआ। कई साम्राज्य सामन्तों पर निर्भर थे, वे अपने निर्वाह स्थानीय संसाधनों द्वारा करते थे, जिसमें भूमि पर नियन्त्रण भी शामिल था जो सामन्त शक्तिशाली होते थे वे राजा बन जाते थे और जो राजा दुर्बल होते थे वे बड़े शासकों के अधीन हो जाते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद राजधर्म के नवीन सिद्धान्तों का चलन प्रारम्भ हुआ। सरदार और सरदारी, सामन्त प्रथा, राजत्व का दैवीय अधिकार इन सिद्धान्तों के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो-
1. प्रदूषण का प्रमुख साधन है ?
(A) अपशिष्ट उत्पाद
(B) फ़सलें
(C) पशु
(D) वन।
उत्तर:
(A) अपशिष्ट उत्पाद

2. कौन – सा साधन प्रदूषण का प्राकृतिक साधन है ?
(A) मानव
(B) जल
(C) कृषि
(D) ज्वालामुखी।
उत्तर:
(D) ज्वालामुखी।

3. गंगा नदी में कानपुर के निकट प्रदूषण का साधन क्या है ?
(A) चमड़ा उद्योग
(B) कागज़ उद्योग
(C) गैसें
(D) कचरा।
उत्तर:
(A) चमड़ा उद्योग

4. यमुना नदी के किनारे कौन – सा नगर प्रदूषण का साधन है ?
(A) लखनऊ
(B) मथुरा
(C) कानपुर
(D) वाराणसी।
उत्तर:
(B) मथुरा

5. शोर के स्तर को मापने की इकाई है ?
(A) मिलीबार
(B) डेसीबल
(C) डेसी मीटर
(D) सैं०मी०।
उत्तर:
(B) डेसीबल

6. धारावी की गन्दी बस्ती किस राज्य में है ?
(A) कर्नाटक
(B) गुजरात
(C) महाराष्ट्र
(D) राजस्थान
उत्तर:
(C) महाराष्ट्र

7. भू-निम्नीकरण का कौन-सा कारक नहीं है ?
(A) अपरदन
(B) लवणता
(C) भूक्षारता
(D) वन।
उत्तर:
(D) वन।

8. भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र में बंजर भूमि का प्रतिशत है-
(A) 7.5
(B) 10.5
(C) 15.9
(D) 17.9.
उत्तर:
(D) 17.9.

9. झबुआ जिला किस राज्य में है ?
(A) कर्नाटक
(B) मध्य प्रदेश
(C) छत्तीसगढ़
(D) झारखण्ड
उत्तर:
(B) मध्य प्रदेश

10. 2050 तक विश्व जनसंख्या का कितना भाग नगरों में होगा ?
(A) एक चौथाई
(B) एक तिहाई
(C) दो तिहाई
(D) तीन चौथाई
उत्तर:
(C) दो तिहाई

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
किस नगर में वाहनों से कार्बन मोनो डाइऑक्साइड अधिक प्राप्त होता है ?
उत्तर:
दिल्ली में।

प्रश्न 2.
गंगा नदी में प्रतिदिन प्रदूषित जल की कितनी मात्रा बहती है ?
उत्तर:
87.3 करोड़ लिटर।

प्रश्न 3.
कानपुर नगर में गंगा नदी के साथ-साथ चमड़े के कितने कारखाने हैं ?
उत्तर:
150.

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 4.
वायु प्रदूषण के दो स्रोत बताओ।
उत्तर:
ज्वालामुखी, कारखाने तथा वायुयान।

प्रश्न 5.
ओजोन परत को पतला करने वाली गैस बताओ।
उत्तर:
क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC)।

प्रश्न 6.
प्रदूषण के तीन मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:
प्रदूषकों के परिवहन के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को तीन वर्गों में विभाजित करते हैं –
(i) वायु प्रदूषण
(ii) जल प्रदूषण
(iii) भूमि प्रदूषण।

प्रश्न 7.
देश में दुपहिया वाहनों की कितनी संख्या है ?
उत्तर:
2.83 करोड़।

प्रश्न 8.
धूम – कोहरा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
औद्योगिक नगरों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के ऊपर धुएँ के जम जाने से इसे धूम कोहरा (Smog) कहते हैं।

प्रश्न 9.
प्रदूषण के मानव जन्य स्त्रोत बताओ ।
उत्तर:
औद्योगिक, नगरीय, कृषि तथा सांस्कृतिक।

प्रश्न 10.
भारत की दो प्रमुख प्रदूषित नदियां बताओ।
उत्तर:
गंगा तथा यमुना।

प्रश्न 11.
प्रदूषण के सांस्कृतिक जल स्त्रोत बताओ।
उत्तर:
तीर्थ यात्राएं, धार्मिक मेले, पर्यटन।

प्रश्न 12.
भारत में कितना क्षेत्रफल भूमि अपरदन से पीड़ित है ?
उत्तर:
13 करोड़ हेक्टयेर भूमि।

प्रश्न 13.
मृदा का लवणीकरण किस क्षेत्र में तथा क्यों हुआ
उत्तर:
उत्तरी भारत में अत्यधिक जल सिंचाई के कारण।

प्रश्न 14.
रासायनिक उर्वरक के प्रयोग का हानिकारक प्रभाव बताओ।
उत्तर:
यह मृदा के सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं ।

प्रश्न 15.
अम्लीय वर्षा का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर:
कारखानों से निकलने वाली गंधक।

प्रश्न 16.
नगरीय अपशिष्ट किस प्रकार एक संसाधन बन सकते हैं ?
उत्तर:
इनका उपयोग ऊर्जा और खाद उत्पादन करके ।

प्रश्न 17.
किस प्रकार के प्रदूषण से सांस सम्बन्धी विभिन्न बीमारियां उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
वायु प्रदूषण।

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प्रश्न 18.
भारत में नगरीय कूड़ा-कर्कट निपटाने सम्बन्धी तीन प्रमुख समस्याएं बताओ।
उत्तर:
(i) ठोस पदार्थों के अपघटन में लम्बा समय लगता है। इस पर कुतरने वाले जीव तथा मक्खियां मण्डराने लगती हैं।
(ii) इससे जल तथा भूमि का प्रदूषण बढ़ता है।
(iii) ये फेफड़ों, हृदय तथा सांस की बीमारियां उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 19.
उत्तर प्रदेश राज्य के दो नगर लिखो जो मुख्य रूप से गंगा नदी में प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है ?
उत्तर:
कानपुर तथा वाराणसी।

प्रश्न 20.
बिहार तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में गंगा नदी के प्रदूषित भाग बताओ ।
उत्तर:
(i) कानपुर से वाराणसी
(ii) वाराणसी से पटना।

प्रश्न 21.
शोर का स्तर मापने की यूनिट क्या है ?
उत्तर:
डेसीबल।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रदूषण का अनुमान लगाने वाले तीन कारक बताओ।
उत्तर:

  • मानव मल-मूत्र का निकास
  • गन्दगी से हानि
  • हानि की मात्रा।

प्रश्न 2.
प्रदूषण तथा प्रदूषक में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
प्रदूषण से अभिप्राय वायु, भूमि तथा जल साधनों का अवनयन तथा हानिकारक बनना। प्रदूषक उन पदार्थों को कहते हैं जो वातावरण में प्रदूषण फैलाते हैं ।

प्रश्न 3.
भारत में वायु प्रदूषण के किन्हीं तीन स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति के कारण वायु प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

  • प्राकृतिक स्रोत – जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि ।
  • उद्योग – उद्योगों से धुआं, राख, गैसें प्रदूषण उत्पन्न होते हैं तथा दृश्यता कम होती है ।
  • मोटर वाहन – मोटर वाहनों की बढ़ती संख्या से गैसें, सीसा युक्त ईंधन तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड उत्पन्न होती है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 4.
नदियों के प्रदूषण के दो उदाहरण दो।
उत्तर:
नदियों का प्रदूषण – तीव्र गति से होने वाले नगरीकरण और औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अपशिष्ट जल नदियों में पहुंच रहा है। गंगा कार्य योजना के प्रारम्भ होने से पूर्व गंगा में प्रतिदिन 87.3 करोड़ लीटर प्रदूषित जल बहाया जाता था। साबरमती एक छोटी-सी नदी है। इसमें भी अहमदाबाद शहर का 99.8 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन डाला जाता है।

प्रश्न 5.
भारत में वायु प्रदूषण के तीन स्त्रोत बताओ।
उत्तर:
औद्योगिक विकास के कारण वायु प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण के अग्रलिखित स्रोत हैं –

  • प्राकृतिक स्रोत जैसे धूल, तूफान, अग्नि आदि।
  • उद्योग तथा कारखाने, धुआं, राख, गैसें प्रदूषण का स्रोत हैं।
  • मोटर वाहनों से कार्बन मोनो ऑक्साइड गैसें, सीसा, गैसें, वायु प्रदूषण का कारण है।

प्रश्न 6.
भारत में जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो सांस्कृतिक गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) धार्मिक उत्सव
(ii) पर्यटन

प्रश्न 7.
भारत के दो ऐसे राज्यों के नाम बताइए जहाँ पाँच प्रतिशत से कम जनसंख्या ग़रीबी रेखा से नीचे है।
उत्तर:
गोवा तथा जम्मू-कश्मीर में पाँच प्रतिशत से कम लोग ग़रीब रेखा से नीचे हैं। गोवा – 4.40% तथा जम्मू- कश्मीर 3.48%।

प्रश्न 8.
भारत के कई बड़े नगरों में ‘ ध्वनि प्रदूषण’ किस प्रकार खतरनाक हो गया है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के कई बड़े-बड़े महानगरों में ध्वनि प्रदूषण बहुत ख़तरनाक रूप धारण कर गया है। ध्वनि प्रदूषण के सभी स्रोतों में से यातायात द्वारा पैदा किया गया शोर सब से बड़ा कलेश है। मोटरवाहन, वाहन, रेलगाड़ी तथा वायुयान प्रमुख कारक है। निर्माण उद्योग, मशीनीकृत निर्माण, तोड़-फोड़ कार्य, ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त सायरन, लाऊड स्पीकर, फेरी वाले, सामुदायिक गतियों तथा त्योहारों पर भी ध्वनि प्रदूषण बहुत है।

प्रश्न 9.
” भारत में मानवीय क्रिया-कलापों के कारण हुआ भूमि निम्नीकरण प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा हुए भूमि निम्नीकरण की तुलना में अधिक हानिकारक है।” इस कथन का उदाहरण सहित विश्लेषण करिए।
उत्तर:
मानव जनित भू-निम्नीकरण कुल निम्नीकरण का 5.88 प्रतिशत है। यह प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा जनित भू- निम्नीकरण (2.4%) से अधिक है। मानव जनित क्रियाओं द्वारा निम्न कोटि भूमियां उत्पन्न होती हैं जैसे स्थानान्तरित कृषि जनित क्षेत्र, रोपण कृषि जनित क्षेत्र, क्षरित वन क्षेत्र, क्षरित चरागाह तथा खनन एवं औद्योगिक व्यर्थ क्षेत्र

प्रश्न 10.
भारत में विभिन्न प्रकार की जल-जनित बीमारियों का प्रमुख स्रोत क्या है ? जल-जनित किसी एक बीमारी का नाम बताइए।
उत्तर:
प्रदूषित जल का उपयोग विभिन्न प्रकार का जल जनित बीमारियों का प्रमुख स्रोत है। हेपेटाइटस एक जल जनित बीमारी है

प्रश्न 11.
भारत में उत्पादक सिंचाई उच्च उत्पादकता प्राप्त करने में किस प्रकार समर्थ है ?
उत्तर:
उत्पादक सिंचाई कृषि ऋतु में पर्याप्त आर्द्रता प्रदान करती है। इससे उत्पादकता में वृद्धि होती है। प्रति हेक्टेयर भूमि में जल निवेश की मात्रा अधिक होती है ।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 12.
मानवीय क्रियाएं जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हो सकती हैं। कुछ ऐसी क्रियाएं लिखें जिसके द्वारा हम जल को प्रदूषण से बचा सकते हैं ?
उत्तर:

  • औद्योगिक प्रक्रियाएं अपशिष्ट पदार्थ को जल में बहाने से रोक कर।
  • बहते हुए जल स्रोत में कपड़े धोने, पशुओं के नहाने की प्रक्रियाएं रोक कर।
  • कृषि पैदावार में कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरक का कम प्रयोग कर।
  • अति सिंचाई कम करके।

प्रश्न 13.
जल-संभर प्रबन्धन क्या है ?
उत्तर:
जल-संरक्षण और प्रबन्धन – अलवणीय जल की घटती हुई उपलब्धता और बढ़ती मांग से, सतत् पोषणीय विकास के लिए महत्त्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता बढ़ गई है। विलवणीकरण द्वारा सागर / महासागर से प्राप्त जल उपलब्धता, उसकी अधिक लागत के कारण नगण्य हो रही है। भारत को जल-संरक्षण के लिए तुरन्त कदम उठाने हैं और प्रभावशाली नीतियां और कानून बनाने हैं और जल संरक्षण हेतु प्रभावशाली उपाय अपनाने हैं। जल बचत तकनीकी और विधियों के विकास के अतिरिक्त, प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिए। जल-संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुनः चक्रण और पुन: उपयोग और लम्बे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल का संयुक्त उपयोग बढ़ाना होगा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण के प्रभाव बताओ।
अथवा
वायु प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत – वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं –
(क) प्राकृतिक स्रोत – जैसे – ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि
(ख) मानवकृत स्रोत – जैसे – कारखाने, नगर- केंद्र, मोटर, वाहन, वायुयान, उर्वरक, पीड़क जीवनाशी, ताप बिजली घर आदि।

उदाहरण:
(1) उद्योगों से अनेक प्रकार की विषैली गैसें राख और धूल
(2) ताप बिजली घरों से गंधक, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन ऑक्साइड
(3) मोटर वाहनों से मोनोक्साइड और सीसा वायुमण्डल में छोड़े जाते हैं। यही नहीं ओज़ोन की परत को पतला करने वाला क्लोरो फ्लूरो कार्बन (सी० एफ० सी०) भी वायुमण्डल में छोड़ा जाता है।
(4) इनके अलावा अनेक औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा हानिकारक गंध भी वायु में फैल जाती है। इसके लिए विशेष रूप से दोषी लुगदी और कागज़, चमड़ा और रासायनिक उद्योग हैं।

वायु प्रदूषण के प्रभाव – वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य और पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं पर प्रभाव डालता है।
(1) क्लोरो फ्लुरोकार्बन ओज़ोन की परत को समाप्त कर देता है, इसके परिणामस्वरूप सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंच जाती हैं और इससे वायुमण्डल में तापमान में वृद्धि हो जाती है।
(2) वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों के संकेंद्रण के बढ़ जाने से हरित गृह प्रभाव पैदा होता है। इससे भी वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि होती है।
(3) इन गैसों के कारण नगरों में धूम – कुहरा छा जाता है। इसे नगरी धूम – कुहरा कहते हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।
(4) वायु प्रदूषण से ‘अम्ल वृष्टि’ भी हो सकती है।
(5) नगरीय पर्यावरण के वर्षा जल के विश्लेषण से पता चला है कि ग्रीष्म ऋतु के बाद पहली वर्षा में पी० एच० मान बाद की वर्षा की तुलना में कम होता है। एन० ई० ई० आर० आई० द्वारा किए गए परीक्षणों के अनुसार कोच्चि का पी० एच० मान सबसे कम 4.5 था, जबकि सभी नगरीय संकुलों की वर्षा के जल का पी० एच० मान 6.2 और 7.6 के मध्य था।

प्रश्न 2.
प्रदूषित जल के नगरीय स्त्रोत क्या हैं ?
उत्तर:
प्रदूषित जल के नगरीय स्रोत ये हैं- मल जल, घरेलू तथा नगरपालिका का कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट, मोटर वाहनों का धुआं आदि। कुछ उदाहरणों से नगरीय अपशिष्टों के नदियों में बहाव की विकरालता का अनुमान लगाया जा सकता है। कानपुर महानगरीय क्षेत्र में स्थित चमड़े के 150 कारखाने गंगा में प्रतिदिन 58 लाख लीटर अपशिष्ट जल बहाते हैं। दिल्ली के निकट यमुना तो एक गंदा नाला बन कर रह गई है। यमुना में 17 खुले गन्दे नालों के द्वारा प्रतिदिन 32.3 करोड़ गैलन मल जल डाला जाता है। गंगा में प्रतिदिन गन्दा और प्रदूषित जल डालने वाले गन्दे नाले ही गंगा को अपवित्र करने वाले प्रमुख अपराधी हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

गंगा की कुल लम्बाई 2555 कि० मी० है। इसकी कुल लम्बाई में से 600 कि० मी० का भाग बुरी तरह से प्रदूषित हो गया है । औद्योगिक और नगरीय स्रोतों से जल प्रदूषण के उदाहरण के रूप में गंगा और यमुना के नाम लिए जा सकते हैं। तीव्र गति से होने वाले नगरीकरण और औद्योगीकरण परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अपशिष्ट जल नदियों में पहुंच रहा है। गंगा कार्य योजना के प्रारम्भ होने से पूर्व गंगा में प्रतिदिन 87.3 करोड़ लीटर प्रदूषित जल बहाया जाता था । साबरमती एक छोटी-सी नदी है। इसमें भी अहमदाबाद शहर का 99.8 करोड़ लीटर गन्दा पानी प्रतिदिन डाला जाता है ।

प्रश्न 3.
गंगा और यमुना नदियों में प्रदूषण की तुलना करो।
उत्तर:

गंगा नदी यमुना नदी
1. प्रदूषित भाग (i) कानपुर जैसे नगरों से औद्योगिक प्रदूषण (i) दिल्ली से चम्बल के संगम तक

(ii) मथुरा और आगरा

2. प्रदूषण का स्वरूप (i) कानपुर जैसे नगरों से औद्योगिक प्रदूषण

(ii) नगरीय केन्द्रों से घरेलू अपशिष्ट

(iii) नदी में लाशों का प्रवाह।

(i) हरियाणा और उत्तर प्रदेश द्वारा सिंचाई के लिए जल की निकासी

(ii) कृषीय अपवाह के परिणामस्वरूप यमुना में सूक्ष्म प्रदूषकों का उच्च स्तर

(iii) दिल्ली के घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों का नदी में प्रवाह।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 4.
उद्योगों के कौन-से उत्पाद तथा अपशिष्ट पदार्थ जल प्रदूषण करते हैं ?
उत्तर:
उद्योग उत्पादों के अलावा अपशिष्ट जैसे अवांछनीय उत्पादों का उत्पादन करते हैं। ये अवांछनीय उत्पाद हैं- औद्योगिक अपशिष्ट, प्रदूषित अपशिष्ट जल, विषैली गैसें, रासायनिक अवशिष्ट, अनेक भारी धातुएं, धूल, धुआं आदि। अधिकतर औद्योगिक अपशिष्ट प्रवाहित जल में बहा दिए जाते है। परिणामतः विषैले तत्त्व जल के भंडार, नदियों तथा अन्य जलाशयों में पहुंच कर इसके जैवतंत्र को नष्ट कर देते हैं। जल को प्रदूषित करने वाले मुख्य उद्योग – चमड़ा, लुगदी और कागज़, वस्त्र तथा रासायनिक उद्योग हैं। कारखानों और सीमेंट की चूना बनाने वाली भट्टियों, कोयले की खानों, मोटर वाहनों, ताप बिजली घरों आदि से भारी मात्रा में निकलने वाले कणीय पदार्थों द्वारा मृदा का बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है।

प्रश्न 5.
प्रदूषित वायु तथा जल से किन रोगों का प्रसार होता है ?
उत्तर:
वायु प्रदूषण से फेफड़ों, हृदय, स्नायु तंत्र और परिसंचरण तंत्रों के रोग होते हैं। कोलकाता के चार में से तीन व्यक्ति सांस की किसी न किसी बीमारी जैसे – खांसी और श्वास नली शोथ (ब्रोनकाइटिस) से पीड़ित थे। वायु प्रदूषण का सबसे अधिक खतरा बच्चों को होता है, क्योंकि इसका सीधा प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है। इससे मनोवैज्ञानिक और शारीरिक हानियां भी होती हैं। प्रदूषित जल के कारण सामान्य रूप से उत्पन्न होने वाली बीमारियां ये हैं- अतिसार, रोहा, आंतों के कृमि, पीलिया, आदि। विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में एक-चौथाई संक्रामक रोग जल से पैदा होते हैं।

प्रश्न 6.
भूमि प्रदूषण पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
भूमि प्रदूषण (Land Pollution ) – भूमि प्रदूषण में ह्रास और मृदा तथा वनस्पति के आवरण का प्रदूषण शामिल है। मृदा की गुणवत्ता के घटने के ये कारण हैं –
(1) मृदा अपरदन
(2) पौधों के पोषक तत्त्वों में कमी
(3) मृदा में सूक्ष्म जीवों का घटना
(4) नमी की कमी,
(5) विभिन्न हानिकारक तत्त्वों का संकेंद्रण आदि।

अपरदन प्राकृतिक और मानवीय दोनों प्रकार के कारकों से होता है। वन विनाश अतिचराई और भूमि का अनुचित उपयोग भी अपरदन की गति को तेज़ कर देते हैं। एक अनुमान के अनुसार देश की 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन की समस्याओं से पीड़ित है। केवल स्थानांतरी कृषि के कारण ही तीन करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन से प्रभावित है। अपरदन के अतिरिक्त, मृदा के लवणीकरण और जल भराव के निम्नलिखित कारण हैं – भूविज्ञान की दृष्टि से अनुपयुक्त क्षेत्रों में बांधों, जलाशयों, नहरों और तालाबों का निर्माण, नहरी सिंचाई का अत्यधिक उपयोग और अप्रवेशय चों वाले क्षेत्रों में बाढ़ के पानी का रुख मोड़ना। इनके द्वारा भूमि की संभावित क्षमता घटती है। अति सिंचाई के कारण देश के उत्तरी मैदानों में लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। सिंचाई मृदा की संरचना को भी बदल देती है। इनके अलावा, रासायनिक उर्वरक, पीड़कनाशी, कीट नाशी और शाक-नाशी मृदा के प्राकृतिक, भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों को नष्ट करके मृदा को बेकार कर देते हैं।

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प्रश्न 7.
प्रदूषण से क्या अभिप्राय है ? इसकी पहचान की तीन कसौटियां बताओ।
उत्तर:
प्रदूषण की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है। “मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों से कुछ पदार्थ और उर्जा मुक्त होती है, जिससे प्राकृतिक पर्यावरण में कुछ परिवर्तन होते हैं, ये परिवर्तन प्रायः हानिकारक होते हैं।” पहचान की कसौटियां – प्रदूषण की पहचान के लिए प्रायः तीन कसौटियों का उपयोग किया जाता है।

ये हैं –
(i) मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थ तथा मानवीय अपशिष्टों का निपटान,
(ii) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फेंके गए अपशिष्टों से उत्पन्न हानि, और
(iii) परिस्थितियां जहां हानि का दुष्प्रभाव तीसरे पक्ष को सहना पड़ता है।

प्रश्न 8.
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत –
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं –
(क) प्राकृतिक स्रोत – जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि
(ख) मानवकृत स्रोत – जैसे – कारखाने, नगर – केंद्र, मोटर, वाहन, वायुयान, उर्वरक, पीड़क जीवनाशी, ताप बिजली घर आदि।
उदाहरण:
(1) उद्योगों से अनेक प्रकार की विषैली गैसें, राख और धूल।
(2) ताप बिजली घरों से गंधक, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन ऑक्साइड।
(3) मोटर वाहनों से मोनोक्साइड और सीसा वायुमण्डल में छोड़े जाते हैं। यही नहीं ओज़ोन की परत को पतला करने वाला क्लोरो फ्लूरो कार्बन (सी० एफ० सी०) भी वायुमण्डल में छोड़ा जाता है।
(4) इनके अलावा अनेक औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा हानिकारक गंध भी वायु में फैल जाती है। इसके लिए विशेष
रूप से दोषी लुगदी और कागज़, चमड़ा और रासायनिक उद्योग हैं।

प्रश्न 9.
मोटर वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण का वर्णन करो। चार महानगरों से उदाहरण दो।
उत्तर:
मोटर वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण – विगत तीन दशकों में मोटर वाहनों की संख्या 32 गुना बढ़ गई है। 1997-98 में देश में 5.3 लाख बसें, 25.3 लाख ट्रक, लगभग 2.83 करोड़ दुपहिया वाहन, 13.4 लाख आटोरिक्शा तथा लगभग 50 लाख कारें, जीप और टैक्सियां थीं। इनके प्रभाव से सम्पूर्ण भारत के नगरों की वायु की गुणवत्ता घट गई है। इसके कारण हैं- प्रदूषण नियन्त्रण का अभाव और सीसा युक्त ईंधन का उपयोग करने वाले मोटर वाहनों की संख्या में निरन्तर वृद्धि। राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी शोध संस्थान (एन० ई० ई० आर० आई०) ने कुछ नगरों में वायुमण्डलीय प्रदूषकों का पर्यवेक्षण करके संकेंद्रण की प्रवृत्तियों का वार्षिक औसत निकाला है।

(1) इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संकेंद्रण की प्रवृत्ति में स्थिरता आ रही है।
(2) इसके विपरीत दिल्ली में सल्फर डाइऑक्साइड का संकेंद्रण घट रहा है, लेकिन यह मुम्बई और कोलकाता में बढ़ रहा है। सभी नगरों में निलम्बित कणीय पदार्थों का संकेंद्रण कुछ हद तक बढ़ गया हैं।
(3) सीसा युक्त ईंधन का उपयोग करने वाले मोटर वाहनों से वायुमण्डल में लगभग 95% सीसा – प्रदूषण होता है।
भारत: चार महानगरों में वाहनीय उत्सर्जन (प्रतिदिन अनुमानित भार टनों में)

नगर निलंबित कणिकीय पदार्थ सल्फर डाइऑक्साइड नाइट्रोजन के ऑक्साइड हाइड्रो कार्बन कार्बन मोनोक्साइ्ड योग
दिल्ली 8.58 7.47 105.38 207.98 542.51 872
मुम्बई 4.66 3.36 59.02 90.17 391.6 549
बंगलौर 2.18 1.47 21.8 65.42 162.8 254
कोलकाता 2.71 3.04 45.58 36.57 156.87 245

प्रश्न 10.
भारत में भूमि में लवणीकरण तथा जल भराव के कारण बताओ।
उत्तर:
(i) बांधों, जलाश्यों, नहरों और तालाबों का निर्माण।
(ii) नहरी सिंचाई का अत्यधिक प्रयोग
(iii) अप्रवेशीय चट्टानों वाले क्षेत्र में बाढ़ के पानी का रुख मोड़ना।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में नगरीकरण तथा इससे उत्पन्न समस्याओं का वर्णन करो।
उत्तर:
नगरीकरण (Urbanization ) – कई भूगोलवेत्ताओं ने नगरीकरण के सम्बन्ध में कुछ परिभाषाएं दी हैं।
(i) ग्रिफिथ टेलर (Griffith Taylor ) महोदय के शब्दों में, “नगरीकरण लोगों का गाँव से नगरों की ओर स्थानान्तरण है।” (‘Urbanization is a shift of people from village to city.”) (ii) जी० टी० ट्रिवार्थ के अनुसार, “कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या के अनुपात में वृद्धि को नगरीकरण की प्रक्रिया कहते हैं।”

(“The urbanization process denotes an increase in the fraction of a population which is urban.”) समय के साथ बदलती हुई राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के फलस्वरूप मानव बस्तियों का विकास होता रहा और उनमें धीरे-धीरे नगरीय विशेषताओं का प्रसार हुआ। अतः वे नगरीय बस्तियों में परिवर्तित हुईं। इस प्रकार नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया (process ) है जिसके अन्तर्गत ग्रामीण बस्तियाँ नगरीय बस्तियों के रूप में बदलती हैं। समाजशास्त्री ई० ई० बर्गेल (E. E. Bergel) महोदय ने यह कहा है कि ” गाँवों के नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं।” इस प्रकार किसी भी क्रिया से नगरीय जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को नगरीकरण कहते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

भारत में नगरीकरण की प्रकृति एवं प्रवृत्तियाँ (Nature and Trends of Urbanization in India)
भारत संसार के उन देशों में से एक है जिसमें बहुत कम नगरीकरण हुआ है। यद्यपि भारत की नगरीय जनसंख्या का आकार बहुत विशाल है तथा इस दृष्टिकोण से भारत का संसार में चीन के पश्चात् दूसरा स्थान है परन्तु कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत अनुपात बहुत कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की केवल 31.2% जनसंख्या ही नगरीय है जबकि विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 45% भाग नगरों में रहता है। भारत का 31.2% नगरीय जनसंख्या का अनुपात संयुक्त राज्य अमेरिका के 75%, जापान के 77%, सोवियत रूस के 66%, ऑस्ट्रेलिया के 85% तथा न्यूज़ीलैण्ड के 84% अनुपात की तुलना में कुछ भी नहीं।

अब तो चीन ने भी अपनी 32% नगरीय जनसंख्या के साथ इस दृष्टि से भारत को पर्याप्त पीछे छोड़ दिया है। पिछले 100 वर्षों में भारत की नगरीय जनसंख्या निरन्तर बढ़ती रही है जो 1901 की 11% से बढ़कर 2001 में 27.78% हो गई है। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत की कुल नगरीय जनसंख्या केवल 2 करोड़ 60 लाख थी । तब से नगरीय जनसंख्या 11 गुनी (28.53 करोड़) से अधिक हो गई है। भारत देश में नगरीय जनसंख्या वृद्धि दर एक दशक से दूसरे दशक में भिन्न-भिन्न रही है जो निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट होती है –

भारत में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि 1901-2001

वर्ष नगरीय जनसंख्या (000 में) कुल जनसंख्या का प्रतिशत दशकीय वृद्धि (प्रतिशत में)
1901 25,867 11.00
1911 25,958 10.40 0.35
1921 28,091 11.34 8.22
1931 33,468 12.18 19.14
1941 44,168 14.10 31.97
1951 62,444 17.62 41.38
1961 78,937 18.20 26.41
1971 109,114 20.22 38.23
1981 159,727 23.31 46.02
1991 212,867 25.72 36.00
2001 285,305 27.78 31.33

गन्दी बस्तियों तथा नगरीय कूड़ा-कर्कट की समस्या (Problem of Slums and Urban-Waste):

नगरों में जनसंख्या की अधिकता के कारण अनेक समस्याओं का विकास हो गया है जिनमें गन्दी बस्तियों तथा नगरीय कूड़ा-कर्कट की अधिकता और निपटान ( disposal) सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

गन्दी बस्तियाँ (Slums ) – नगरों में जनसंख्या अधिक और स्थान कम होने के कारण आवासीय समस्या होती है । नगरीय क्षेत्रों में बहुमंजिले भवनों का निर्माण इसी समस्या का प्रतिफल है। प्रायः जब निर्धन लोग रोज़गार की तलाश में अपने गाँवों को छोड़कर नगरों में आकर बसने लगते हैं तो नगरों में आवास बहुत महँगा तथा कम होने के कारण वे नगर के बाहर पड़ी भूमि पर झुग्गी-झोंपड़ियाँ बनाकर रहना आरम्भ कर देते हैं जिससे वहाँ गन्दी बस्तियों का विकास होने लगता है।

इन गन्दी बस्तियों में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक होता है और वहाँ जल तथा घरेलू मल के निकास के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती । इन बस्तियों में रहने वाले लोग अत्यन्त ही निम्न स्तर का जीवन व्यतीत करते हैं । यद्यपि इन गन्दी बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए प्रशासन अनेक सुविधायें प्रदान करने का प्रयास करता है, तथापि ये आवासीय बस्तियाँ बहुत ही निम्न स्तर की होती हैं और प्रायः ये गन्दगी तथा बीमारियों के क्षेत्र ही होती हैं। भारत के लगभग सभी बड़े नगरों में ऐसी गन्दी बस्तियाँ ( Slums) पाई जाती हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

हमारे देश में पहली बार 2001 की जनगणना में नगरों में पाई जाने वाली गन्दी बस्तियों के आँकड़े एकत्रित किये गये हैं। राज्य सरकारों द्वारा घोषित तथा मान्यता प्राप्त गन्दी बस्तियों में रहने वाले व्यक्तियों को गन्दी बस्ती जनसंख्या कहा जाता है। देश में कुल 4 करोड़ 3 लाख जनसंख्या गन्दी बस्तियों में निवास करती हैं जो गन्दी बस्तियों वाले नगरों की कुल जनसंख्या को लगभग 22.6 प्रतिशत भाग है। इससे स्पष्ट होता है कि इन नगरों की लगभग एक चौथाई जनसंख्या गन्दी बस्तियों में दयनीय जीवन व्यतीत कर रही है।
देश में सबसे अधिक गन्दी बस्तियों की जनसंख्या महाराष्ट्र राज्य में अभिलेखित की गई है जो एक करोड़ 6 लाख, 40 हज़ार है।

दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले महानगरों में सबसे अधिक गन्दी बस्तियों की जनसंख्या बृहत् मुम्बई में पाई जाती है जो कि कुल जनसंख्या का 48.88 प्रतिशत भाग है। पटना नगर में न्यूनतम गन्दी बस्ती जनसंख्या पाई जाती है जो कुल जनसंख्या का मात्र 0.25 प्रतिशत भाग है। भारत की लगभग एक प्रतिशत जनसंख्या महाराष्ट्र के गन्दी बस्तियों में निवास करती है और महाराष्ट्र राज्य की लगभग 6 प्रतिशत जनसंख्या बृहत् मुम्बई की गन्दी बस्तियों में रहती है। विभिन्न राज्यों के नगरों में गन्दी बस्तियों में रहने वाली जनसंख्या का अनुपात 41.33% से 1.81 प्रतिशत है जो अधिकतम मेघालय (41.33%) और न्यूनतम केरल (1.81% ) है।

नगरीय कूड़ा-कर्कट (Urban Waste ) – नगरों में जनसंख्या की अधिकता के कारण विकसित होने वाली दूसरी बड़ी समस्या वहाँ एकत्रित होने वाला कूड़ा-कर्कट तथा घरेलू मल (domestic sewage ) हैं। इन पदार्थों से प्रायः भूमि तथा जलीय प्रदूषण विकसित हो जाते हैं। भूमि प्रदूषण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक घरेलू मल तथा औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ हैं। नगरों द्वारा ठोस कूड़ा- कर्कट, मानवीय मल, पशुशालाओं से प्राप्त गन्दगी, कारखानों तथा खदानों से प्राप्त बेकार पदार्थों के ढेर जमा हो जाने से भूमि अन्य कार्यों, विशेषकर कृषि के उपयुक्त नहीं रहती। इन पदार्थों से प्राप्त अनेक रोगजनक वनस्पति तथा खाद्य पदार्थों द्वारा मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिनसे कई बीमारियाँ पनपने लगती हैं।

नदियों के जल को सबसे अधिक प्रदूषित नगरों के गन्दे नालों द्वारा फेंके गये घरेलू मल करते हैं। नगरों के गन्दे नालों ने ही गंगा और यमुना के जल को प्रदूषित कर दिया है। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि इन नदियों के तट पर बसे नगरों में इन्हीं नदियों का जल पीने के काम में लाया जाता है। प्रदूषित जल नदियों में रहने वाले जीवों को भी प्रभावित करता है। प्रदूषित जल से पीलिया, पेचिश और टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं जो मानव को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 2.
भारत में पर्यावरण प्रदूषण पर निबन्ध लिखो।
उत्तर:
पर्यावरण (Environment):
आस-पास की परिस्थिति या परिवेश जिसमें मनुष्य रहता है उसे पर्यावरण अर्थात् वातावरण कहते हैं। पर्यावरण में प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों प्रकार के तत्त्वों का समावेश होता है।

पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution)
आधुनिक युग में पर्यावरण प्रदूषण मानव के लिए एक गम्भीर समस्या बन गई है। इससे पृथ्वी तल पर मानव जीवन के अस्तित्व को भी भय हो गया है। साधारण शब्दों में भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों के प्राकृतिक वातावरण में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तनों को जिसका जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे प्रदूषण (Pollution) कहते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव का इतिहास । जब से मानव इस पृथ्वी पर आया है तब से ही वह अपने वातावरण को प्रदूषित कर उसकी गुणवत्ता को कम कर रहा है। सबसे पहले उसने वातावरण में आग के प्रयोग से प्रदूषण किया जिससे गैसें धुआँ तथा राख बनी । जब से गाँवों, कस्बों, नगरों तथा औद्योगीकरण का विकास हुआ है तब से यह परिस्थिति धीरे-धीरे और भी अधिक बिगड़ने लगी क्योंकि प्राकृतिक वायु, जल तथा मिट्टी में हर प्रकार की अशुद्धियाँ एकत्रित होने लगीं जिससे पर्यावरण में न सुधारी जाने वाली हानियाँ होने लगीं। वास्तव में प्रदूषण ने वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ी के समक्ष एक बहुत गम्भीर समस्या खड़ी कर दी है।

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प्रदूषक (Pollutants):
विकसित तथा विकासशील देशों में पाये जाने वाले कुछ सामान्य प्रदूषक निम्नलिखित हैं –
1. निक्षेपित पदार्थ (Deposited Matter) – जैसे कालिख (soot), धुआँ (smoke) चर्म शोधन के समय उत्पन्न धूल (tandust) तथा ग्रिट (grit) इत्यादि।
2. गैसें (Gases) – जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया, फ्लोरीन तथा क्लोरीन इत्यादि।
3. रासायनिक यौगिक (Chemical Compounds ) – जैसे एल्डिहाइड (aldehydes), आर्सीन (arsines), हाइड्रोजन फ्लोराइड (Hydrogen fluorides), फासजीन (Phosgenes) तथा अपमार्जक ( detergents) इत्यादि।
4. धातुएँ (Metals ) – जैसे सीसा, लोहा, जस्ता तथा पारा इत्यादि।
5. आर्थिक विष (Economic Poisons ) – जैसे शाकनाशी (herbicides), फंगसनाशी (fungicides), कीटनाशी (insecticides) तथा अन्य जैवनाशी इत्यादि ।
6. वाहितमल ( Sewage)
7. रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive substances )।
8. शोर तथा ऊष्मा (Noise and heat)।

वायुमण्डलीय प्रदूषण (Atmospheric Pollution):
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा वायुमण्डल की वायु में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जायें जिनसे जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे वायुमण्डलीय प्रदूषण (Atmospheric pollution) कहते हैं। 18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रान्ति व भाप के इन्जन के आविष्कार से तो वायु प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होने लगी । कोयले के अधिकाधिक उपयोग तथा इससे उत्पादित धुआँ व गंधक के यौगिकों ने वायुमण्डल को अधिक-से-अधिक दूषित करना प्रारम्भ कर दिया था। जल और भूमि के प्रदूषण का तो केवल स्थानीय या प्रादेशिक प्रभाव पड़ता है, परन्तु वायु प्रदूषण से तो पूरा भू-मण्डल प्रभावित हो जाता है। प्रदूषित वायु में से होकर जब वर्षा होती है, तब प्रदूषण तत्त्व वर्षा जल के साथ मिलकर जलाशयों, भूमि और महासागरों को प्रदूषित कर देते हैं। वायुमण्डलीय प्रदूषण, प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार का हो सकता है। प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा वायु प्रदूषण – प्राकृतिक वायु प्रदूषण मानव के जन्म से पहले से होता आ रहा है और यह वायुमण्डलीय प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है।

प्राकृतिक वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं –
(i) ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic eruptions)
(ii) दावाग्नि (Forest fires)
(iii) जैविक तथा अजैविक पदार्थों का प्राकृतिक अपघटन (Natural decay of organic and inorganic matter) ज्वालामुखी विस्फोटों द्वारा वायुमण्डल में धूल, ज़हरीली गैसों, धुएँ के कणों तथा ऊष्मा की बहुत अधिक मात्रा मिश्रित हो जाती है। दावाग्नि द्वारा भीं धुआँ, राख और गैसें आदि वायु में मिलते हैं। पदार्थों के अपघटन द्वारा भी दुर्गंध तथा सल्फर ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं। वायुमण्डलीय प्रदूषण का लगभग 99% भाग केवल इन प्राकृतिक प्रकियाओं द्वारा ही उत्पन्न होता है जबकि मात्र एक प्रतिशत भाग मानवीय प्रक्रियाओं द्वारा होता है।

मानवीय क्रियाओं द्वारा वायु प्रदूषण – मानवीय क्रियाओं द्वारा वायु प्रदूषण मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से होता है –
(i) जीवाश्म ईंधनों का जलाया जाना
(ii) रासायनिक प्रक्रियाएं।

(i) जीवाश्म ईंधनों का जलाया जाना – पिछले कुछ दशकों में भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधनों को जलाया गया है। फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ रही है। ऐसा अनुमान है कि पिछले सौ वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में लगभग 25% वृद्धि हुई है । फलस्वरूप वायुमण्डल में इस गैस की वृद्धि से वायुमण्डल का तापमान बढ़ गया है। ऐसा अनुमान है कि विगत सौ वर्षों में भू-मण्डलीय मध्यमान तापमान में 0.3° सेल्सियस से लेकर 0.7° सेल्सियस तक वृद्धि हुई है। बड़े पैमाने पर वनों के विनाश से भी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हुई है ।

कोयले और खनिज तेल के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड भी वायुमण्डल में चली जाती है । मोटरों और कारों के धुएँ के साथ निकले सीसे, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के अंश भी वायुमण्डल में मिल जाते हैं मोटरों-कारों का धुआँ साँस के साथ नाक में जाकर जलन पैदा करता है तथा साँस के रोगों का कारण बनता है। बड़े नगरों में मोटरों-कारों के इस विषैले धुएँ से वायु इतनी प्रदूषित हो जाती है कि लोगों का दम घुटने लगता है और उन्हें ऑक्सीजन लेने के लिए “फेस मास्क” पहनने पड़ते हैं।

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(ii) रासायनिक प्रक्रियाएँ – कारखानों, वाहनों तथा जीवाश्म ईंधनों के जलने से जो गैसें बाहर निकलती हैं उनकी रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा भी वायु प्रदूषित होती रहती है। इन प्रक्रियाओं द्वारा धूम कोहरे का विकास, ओज़ोन का ह्रास और विषैली गैसों का विकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

वायु प्रदूषण पर नियन्त्रण (Control mn Air Pollution):
स्वस्थ जीवन के लिए वायु नितांत आवश्यक है। यदि हम स्वस्थ जीवन भोगना चाहते हैं तो हमें हर हालत में वायु के प्रदूषण को रोक कर इसे शुद्ध रखना होगा। स्वस्थ निवासी ही अपने देश में पाये जाने वाले साधनों का समझदारी से समुचित विकास कर सकते हैं।

जलीय प्रदूषण (Water Pollution):
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा जलाशयों के जल में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जाएं जिनसे जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे जलीय प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण की समस्या ने दिल्ली, कोलकाता तथा मुम्बई जैसे बड़े एवं औद्योगिक नगरों में बहुत विकट रूप धारण कर लिया है। जलीय प्रदूषण केवल नदियों, तालाबों तथा झीलों के धरातलीय जल तक ही सीमित नहीं होता, अपितु यह समुद्री जल तथा भूमिगत जल में भी पाया जाता है। जलीय प्रदूषण के लिए निम्नलिखित मानवीय क्रियाएँ उत्तरदायी होती हैं –
(1) घरेलू मल (Domestic Sewage )
(2) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ (Industrial Wastes )
(3) कृषि की प्रक्रियाएँ (Agricultural Activities)
(4) तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution)
(5) समुद्री प्रदूषण (Marine Pollution )

भूमि प्रदूषण
(Land Pollution)
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा भूमि पर पाई जाने वाली मृदा में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जायें, जिससे भूमि किसी कार्य, विशेषकर कृषि के लिए उपयुक्त न रहे तो इसे भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण कहते हैं। भूमि प्रदूषण में निम्नलिखित दो महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं-
(1) मृदा अपरदन
(2) प्रदूषकों का मृदा में संचय।

1. मृदा अपरदन – मिट्टी के नष्ट होने की प्रक्रिया को मिट्टी का कटाव या मृदा अपरदन (Soil Erosion) कहते हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा अपरदन खड़ी ढाल तथा विरल वनस्पति वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। मूसलाधार वर्षा के समय जल का तेज़ बहना ढालू भूमि से मिट्टी की परतों को या तो बहा ले जाता है या उनमें गहरी नालियाँ बना देता है।
कई बार मानव द्वारा मिट्टी के दुरुपयोग तथा उसके अन्य कार्यों द्वारा भी मिट्टी के कटाव की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला है। प्राकृतिक वनस्पति की अन्धाधुन्ध कटाई, अत्यधिक चराई तथा असंगत विधियों से की गई कृषि मानव के कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्होंने मृदा अपरदन की इस प्रक्रिया को काफ़ी बढ़ावा दिया है जिसका दुष्परिणाम मानव स्वयं भुगत रहा है। मृदा अपरदन से मिट्टी के पौष्टिक तत्त्व सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं और इसकी उत्पादन क्षमता कम हो सकती है।

2. प्रदूषकों का संचय – अनेक स्रोतों से विभिन्न प्रदूषक भूमि में संचित हो जाते हैं जिनको वह भूमि किसी कार्य विशेषकर कृषि के लिए उपयुक्त नहीं रहती। अधिकांश वायु तथा जलीय प्रदूषक भी मृदा में प्रवेश करके भूमि को प्रदूषित कर देते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में नगरीय अपशिष्टों के निपटान से सम्बन्धित प्रमुख समस्याओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
नगरीय अपशिष्टों के निपटान की समस्याएं – नगरों की पर्यावरणीय समस्याओं में जल, वायु और शोर प्रदूषण तथा विषैले और खतरनाक अपशिष्टों का निपटान शामिल है।
समस्याएं – मानव मल के सुरक्षित निपटान के लिए (सीवर) या अन्य माध्यमों की कमी और कूड़ा-कचरा संग्रहण की सेवाओं की अपर्याप्तता जल प्रदूषण को बढ़ाती है, क्योंकि असंग्रहीत कूड़ा-कचरा बहकर नदियों में चला जाता है। औद्योगिक अपशिष्टों का नदियों में बहाया जाना जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। नगर-आधारित उद्योगों और अनुपचारित मलजल से उत्पन्न प्रदूषण नीचे की ओर के नगरों में स्वास्थ्य की गम्भीर समस्याएं पैदा करता है।

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अपशिष्टों की मात्रा में वृद्धि – नगरों में ठोस अपशिष्ट की प्रति व्यक्ति और कुल मात्रा दोनों ही बढ़ रही हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि देश के नगरीय क्षेत्रों में अपशिष्टों का जनन प्रति व्यक्ति निरन्तर बढ़ रहा है। 1971-97 की अवधि में यह 375 ग्राम प्रतिदिन से बढ़कर 490 ग्रा० प्रतिदिन हो गया है। अपशिष्ट जनन में वृद्धि तथा इसके साथ ही जनसंख्या वृद्धि ने अपशिष्टों की कुल मात्रा को प्रकट करने वाली संख्याओं को बहुत बढ़ा दिया है। कुल अपशिष्टों की मात्रा 14.9 टन प्रतिदिन से बढ़कर 48. 1 टन प्रतिदिन हो गई

ठोस अपशिष्टों का प्रभाव – यही नहीं, ठोस अपशिष्टों में जैव प्रक्रियाओं से सड़ने – गलने जैव विघटनीय, जैव पदार्थों का स्थान प्लास्टिक और अन्य कृत्रिम पदार्थ लेते जा रहे हैं, जिनके विघटन में बहुत अधिक समय लगता है। जब इस ठोस अपशिष्ट का संग्रहण और निपटान सक्षम तथा प्रभावशाली ढंग से नहीं किया जाता है, तो इस पर कुतरने वाले जीव और मक्खियां मंडराने लगते हैं, जो बीमारियां फैलाते हैं। यह भूमि और जल संसाधनों का प्रदूषण और ह्रास भी करता है।

सारणी – भारत : नगर जनित ठोस अपशिष्ट का संघटन ( प्रतिशत में)
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उपरोक्त सारणी सैं स्पष्ट है कि समय के अनुसार प्लास्टिक, कांच और धातुओं की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 20 वर्षों में प्लास्टिक में पांच गुनी वृद्धि दर्ज की गई है। इसमें से अधिकतर का कोई पुनर्चक्रीय मूल्य नहीं है। अतः नगरपालिकाओं द्वारा इसका रसोई के कचरे के रूप में निपटान कर दिया जाता है।

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक – ठोस अपशिष्टों के संग्रहण में असमर्थता एक गम्भीर समस्या है। मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलौर जैसे नगरों में 90 प्रतिशत ठोस अपशिष्ट इकट्ठा कर लिया जाता है। लेकिन अधिकतर नगरों और कस्बों में जनित अपशिष्टों का 30 से 50 प्रतिशत भाग का संग्रहण नहीं किया जाता। सड़कों, घरों के बीच की खाली भूमि और बेकार भूमि पर इसके ढेर लग जाते हैं। ऐसे ढेर स्वास्थ्य के लिए गम्भीर खतरा हैं। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि ठोस अपशिष्टों के संग्रहण में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं दोनों कार्य कर रही हैं, लेकिन नगरीय अपशिष्टों के निपटान की समस्या अभी तक सुलझ नहीं पाई हैं। इन अपशिष्टों को संसाधन मानकर इनका उपयोग ऊर्जा और खाद उत्पादन के लिए किया जाना चाहिए।

भौम जल पर प्रभाव – नागरिक अधिकारियों द्वारा संग्रहीत नगरपालिका के लगभग 90 प्रतिशत अपशिष्ट अनुपचारित रूप में ही, नगर या कस्बों के बाहर निम्नभूमि में डाल दिए जाते हैं। परिणामस्वरूप भारी धातुएं, भौमजल में मिलकर उसे पीने अयोग्य बना देते हैं। अनुपचारित अपशिष्ट धीरे-धीरे सड़ते हैं। इस सड़न की प्रक्रिया के दौरान हानिकर जैव गैसें निकलकर वायुमण्डल में फैल जाती हैं। इसमें मीथेन गैस (65 से 75 प्रतिशत) भी होती है। जो हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैस है। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इस गैस में भूमण्डलीय तापन की 34 गुनी क्षमता है।

प्रश्न 4.
भूमि अपरदन, लवणीकरण तथा जलभराव की समस्याओं का उदाहरण सहित वर्णन करो।
उत्तर:
अपरदन के कारकों द्वारा भूमि की सम्भावित क्षमता घटती है।

1. अति सिंचाई – अति सिंचाई के कारण देश के उत्तरी मैदानों में लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। सिंचाई की संरचना को भी बदल देती है। इनके अलावा, रासायनिक उर्वरक, पीड़कनाशी, कीटनाशी और शाकनाशी मृदा के प्राकृतिक, भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों को नष्ट करके, मृदा को बेकार कर देते हैं।

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2. उर्वरक – रासायनिक उर्वरक मृदा के सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं। ये जीव मृदा में नाइट्रोजन परिवर्तन का कार्य करते हैं। ये अनुर्वरता में वृद्धि करते हैं तथा मृदा की जलधारण को घटा देते हैं। इनके कुछ अंश फसलों में चले जाते हैं, जो मानव के लिए धीमे विष का कार्य करते हैं।

3. कीटनाशक – इसी प्रकार कीड़ों को मारने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले कार्बनिक फास्फेट के यौगिक मृदा में लम्बी अवधि तक बने रहकर उसके सूक्ष्मजीवों को नष्ट करते रहते हैं।

4. औद्योगिक अपशिष्ट – औद्योगिक और नगरीय अपशिष्टों का अनुचित निपटान तथा नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों के निकट प्रदूषित मल जल से की गई सिंचाई भी मृदा का ह्रास करती है। उद्योगों और नगरों के अपशिष्टों के विषैले रासायनिक पदार्थ आस-पास के क्षेत्रों की मृदा में मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं।

5. चिमनियों का धुआं – इसके अलावा कारखानों तथा अन्य स्रोतों को चिमनियों से निकलने वाले गैसीय और ठोस कणिकीय प्रदूषकों को उड़ाकर हवा सुदूर क्षेत्रों तक ले जाती है। विषैले पदार्थों से युक्त ये प्रदूषक मृदा में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं।

6. अम्ल वर्षा – कारखानों से निकलने वाली गंधक अम्लीय वर्षा का कारण है। इससे मृदा में अम्लता बढ़ती है। कारखानों और सीमेंट के चूना बनाने वाली भट्टियों, कोयले की खानों, मोटर वाहनों, ताप बिजली घरों आदि से भारी मात्रा में निकलने वाले कणीय पदार्थों के द्वारा मृदा का बड़े पैमाने पर प्रदूषित होता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. जनता पार्टी के शासनकाल में भारत के प्रधानमंत्री कौन थे?
(क) चौ. देवीलाल
(ख) चौ. चरण सिंह
(ग) मोरारजी देसाई
(घ) ए.बी. वाजपेयी
उत्तर:
(ग) मोरारजी देसाई

2. श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा कब की थी?
(क) 18 जून, 1975
(ख) 25 जून, 1975
(ग) 5 जुलाई, 1975
(घ) 10 जून, 1975
उत्तर:
(ख) 25 जून, 1975

3. भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही तथा प्रतिबद्ध न्यायपालिका की घोषणा को किसने जन्म दिया?
(क) इंदिरा गाँधी
(ख) लालबहादुर शास्त्री
(ग) मोरारजी देसाई
(घ) जवाहरलाल नेहरू
उत्तर:
(क) इंदिरा गाँधी

4. समग्र क्रान्ति के प्रतिपादक कौन थे?
(क) जयप्रकाश नारायण
(ख) मोरारजी देसाई
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(क) जयप्रकाश नारायण

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5. निम्न में से नक्सलवादी आन्दोलन से किसका सम्बन्ध है?
(क) सुरेश कलमाड़ी
(ख) चारु मजूमदार
(ग) ममता बैनर्जी
(घ) जयललिता
उत्तर:
(ख) चारु मजूमदार

6. आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे?
(क) ज्ञानी जेलसिंह
(ख) फखरुद्दीन अली अहमद
(ग) आर. वैंकटरमन
(घ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(ख) फखरुद्दीन अली अहमद

7. शाह आयोग की स्थापना कब की गई ?
(क) 1977
(ख) 1978
(ग) 1985
(घ) 1980
उत्तर:
(क) 1977

8. 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने कौनसा नारा दिया?
(क) जय जवान जय किसान
(ख) अच्छे दिन
(ग) गरीबी हटाओ
(घ) कट्टर सोच नहीं युवा जोश
उत्तर:
(ग) गरीबी हटाओ

9. आपातकाल का प्रावधान संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है?
(क) अनुच्छेद 350
(ख) अनुच्छेद 42
(ग) अनुच्छेद 351
(घ) अनुच्छेद 352
उत्तर:
(ग) गरीबी हटाओ

10. संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार आपातकाल की घोषणा कौन कर सकता है?
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमंत्री
(ग) लोकसभा अध्यक्ष
(घ) राज्यसभा अध्यक्ष
उत्तर:
(क) राष्ट्रपति

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. सामाजिक और सांप्रदायिक गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर सरकार ने आपातकाल के दौरान …………………और ……….. पर प्रतिबंध लगा दिया।
उत्तर:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जमात-ए-इस्लामी

2. …………………और ………………जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया।
उत्तर:
इंडियन एक्सप्रेस, स्टेट्समैन

3. संविधान के 42वें अनुच्छेद में संशोधन करते हुए देश की विधायिका का कार्यकाल 6 से ………………..साल कर दिया गया।
उत्तर:
6

4. वर्तमान स्थिति में अंदरूनी आपातकाल सिर्फ ………………… की स्थिति में लगाया जा सकता है।
उत्तर:
सशस्त्र विद्रोह

5. काँग्रेस पार्टी में टूट के पश्चात् मोरारजी देसाई ……………………. पार्टी में शामिल हुए।
उत्तर:
काँग्रेस (ओ)

6. चौधरी चरण सिंह ने ……………………..पार्टी की स्थापना की।
उत्तर:
लोकदल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकसभा का पाँचवाँ आम चुनाव किस वर्ष में हुआ था ?
उत्तर:
1971 में।
प्रश्न 2. भारत में आन्तरिक आपातकाल के समय प्रधानमंत्री कौन था ?
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गाँधी।

प्रश्न 3.
बिहार आन्दोलन के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण।

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प्रश्न 4.
1975 में आपातकाल संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत लगाया गया?
अथवा
25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा संविधान के किस अनुच्छेद के तहत की गई?
उत्तर:
अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत।

प्रश्न 5.
आपातकाल लागू करने का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
आपातकाल लागू करने का तात्कालिक कारण था। श्रीमती इन्दिरा गाँधी के निर्वाचन को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अवैध घोषित करना तथा विपक्षी दलों द्वारा उनके इस्तीफे की माँग करना।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र की बहाली का प्रतीक कौंन बना?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण।

प्रश्न 7.
प्रतिबद्ध न्यायपालिका से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रतिबद्ध न्यायपालिका से अभिप्राय है कि न्यायपालिका शासक दल और उसकी नीतियों के प्रति निष्ठावान रहे।

प्रश्न 8.
शाह आयोग का गठन किसलिए किया गया?
उत्तर:
आपातकाल की जाँच हेतु।

प्रश्न 9.
भारत में आपातकाल की जाँच के लिए किस आयोग का गठन किया गया?
उत्तर:
शाह आयोग का।

प्रश्न 10.
1977 के चुनावों में कौनसी पार्टी की करारी हार हुई?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की।

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प्रश्न 11.
देश के प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
मोरारजी देसाई।

प्रश्न 12.
1975 में किस नेता ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों को आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक व अवैधानिक आदेशों का पालन न करें।
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण ने।

प्रश्न 13.
किस वर्ष नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए संघ का नाम बदल कर नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ रख दिया गया?
उत्त
सन् 1980 में।

प्रश्न 14.
1973 में किस न्यायाधीश को तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया?
उत्तर:
न्यायाधीश ए. एन. रे।

प्रश्न 15.
केशवानंद भारती मुकदमे का निर्णय कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1973 में।

प्रश्न 16.
किस मुकदमे में संविधान के मूलभूत ढाँचे की धारणा का जन्म हुआ?
उत्तर:
केशवानंद भारती मुकदमा।

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प्रश्न 17.
जनता पार्टी की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1977।

प्रश्न 18.
1977 का चुनाव विपक्ष ने किस नारे से लड़ा?
उत्तर:
लोकतन्त्र बचाओ नारे से।

प्रश्न 19.
आपातकाल की अवधि कब तक रही?
उत्तर;
1975 से 1977 तक।

प्रश्न 20.
1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा किसने की थी?
उत्तर:
1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने की थी।

प्रश्न 21.
1974 की रेल हड़ताल के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर
जार्ज फर्नांडिस ।

प्रश्न 22.
1970 के दशक के किन दो वर्षों में कीमतों में अधिक वृद्धि हुई?
उत्तर:
1973 और 1974 के दो वर्षों में।

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प्रश्न 23.
1974 के बिहार आन्दोलन का प्रमुख नारा क्या था?
उत्तर:
” सम्पूर्ण क्रान्ति अब नारा है— भावी इतिहास हमारा है। ”

प्रश्न 24.
जनता पार्टी के पतन का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर:
जनता पार्टी की आन्तरिक गुटबाजी|

प्रश्न 25.
1977 के चुनावों में जनता पार्टी को कुल कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
कुल 295 सीटें प्राप्त हुईं?

प्रश्न 26.
1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
कुल 154 सीटें मिलीं।

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प्रश्न 27.
प्रेस सेंसरशिप से आप क्या समझते हैं?
अथवा
प्रेस सेंसरशिप क्या है?
उत्तर:
प्रेस सेंसरशिप के अन्तर्गत अखबारों को कोई भी खबर छापने से पहले उसकी अनुमति सरकार से लेना अनिवार्य है।

प्रश्न 28.
अनुच्छेद 352 क्या है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत देश में आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। 1962, 1971 एवं 1975 में की गई आपात की घोषणा अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत ही की गई थी।

प्रश्न 29.
शाह आयोग की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
शाह आयोग की स्थापना आपातकाल के दौरान की गई कार्यवाही तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विविध पहलुओं की जाँच करने के लिए की गई।

प्रश्न 30.
1977 में स्वतन्त्रता से सम्बन्धित किस संगठन का निर्माण हुआ?
उत्तर:
1977 में स्वतन्त्रता से सम्बन्धित नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का निर्माण हुआ।

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प्रश्न 31.
किस भारतीय नेता ने वचनबद्ध नौकरशाही एवं वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को जन्म दिया?
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गाँधी ने वचनबद्ध नौकरशाही एवं वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा का प्रतिपादन किया।

प्रश्न 32.
1980 के मध्यावधि चुनाव क्यों करवाने पड़े?
उत्तर:
जनता पार्टी की सरकार की अक्षमता एवं अस्थिरता के कारण 1980 के मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े।

प्रश्न 33.
शाह आयोग के अनुसार निवारक नजरबंदी के कानून के तहत कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया?
उत्तर:
शाह आयोग के अनुसार एक लाख ग्यारह हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया।

प्रश्न 34.
जनता पार्टी के किन्हीं चार प्रमुख नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
जनता पार्टी के चार प्रमुख नेता थे। मोरारजी देसाई, चरणसिंह, जयप्रकाश नारायण, सिकन्दर बख्त।

प्रश्न 35.
समग्र क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? इसके प्रतिपादक कौन थे?
उत्तर:
समग्र क्रान्ति का अर्थ है चारों तरफ परिवर्तन। इसके प्रतिपादक जयप्रकाश नारायण थे।

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प्रश्न 36.
जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रान्ति के चार पहलू कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रान्ति के चार पहलू हैं। संघर्ष, निर्माण, प्रचार, संगठन।

प्रश्न 37.
निवारक नजरबंदी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवारक नजरबंदी अधिनियम के अंतर्गत सरकार उन लोगों को हिरासत में ले सकती है जिन पर भविष्य में अपराध करने की आशंका होती है।

प्रश्न 38.
आपातकाल के विरोध का प्रतीक कौन बन गया था?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण।

प्रश्न 39.
रेल हड़ताल कब हुई थी?
उत्तर:
1974

प्रश्न 40.
किस हिंदी लेखक ने आपातकाल के विरोध में पद्मश्री की पदवी लौटा दी?
उत्तर:
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’।

प्रश्न 41.
1975 के आपातकाल की वजह क्या बताई गई?
उत्तर:
अंदरूनी गड़बड़ी।

प्रश्न 42.
1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गाँधी ने चुनाव किस क्षेत्र से लड़े?
उत्तर:
1977 के चुनाव में इंदिरा रायबरेली से तथा संजय गाँधी अमेठी से चुनाव लड़े।

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प्रश्न 43.
1971 के चुनाव में काँग्रेस पार्टी को कितनी सीटें मिलीं?
उत्तर:
353

प्रश्न 44.
1974 के बिहार आंदोलन का नारा क्या था?
उत्तर:
सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारा है।

प्रश्न 45.
1974 के मार्च महीने में बिहार के छात्रों द्वारा आंदोलन क्यों छेड़ा गया ?
उत्तर:
1974 के मार्च महीने में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार के छात्रों ने आंदोलन छेड़ा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1977 के चुनावों में कौन-कौनसी पार्टियाँ विजयी रहीं?
उत्तर:
1977 के लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी विजयी रही। इस पार्टी की सरकार में मोरारजी देसाई भारत के प्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री बने। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटों पर विजयी रही और उसे स्पष्ट बहुमत मिला।

प्रश्न 2.
आपातकाल के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
आपातकाल के कारण है।

  1. आंतरिक गड़बड़ी के आधार पर 1975 में आपातकाल घोषित किया गया।
  2. श्रीमती गाँधी के चुनावों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित करना तथा विपक्षी दलों द्वारा श्रीमती गाँधी से इस्तीफे की माँग करना।

प्रश्न 3.
जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रान्ति पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण के अनुसार समग्र क्रान्ति का अर्थ है। चारों तरफ परिवर्तन। जयप्रकाश नारायण ने समग्र क्रान्ति के चार पहलू बताये निर्माण, प्रचार संगठन और संघर्ष वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध में उनका मत था कि हमें निर्माण कार्य पर ध्यान देना होगा। युवा वर्ग दहेज, जाति-भेद, अस्पृश्यता, सम्प्रदायवाद आदि के विरुद्ध एकजुट होकर कार्य करें।

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प्रश्न 4.
1974 की रेल हड़ताल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1974 में रेल की सबसे बड़ी और राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई। रेलवे कर्मचारियों के संघर्ष से संबंधित राष्ट्रीय समन्वय समिति ने जॉर्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। बोनस और सेवा से जुड़ी शर्तों के संबंध में अपनी माँगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए हड़ताल का यह आह्वान किया गया था। सरकार इन माँगों के खिलाफ थी। ऐसे में भारत के इस सबसे बड़े सार्वजनिक उद्यम के कर्मचारी 1974 के मई महीने में हड़ताल पर चले गए।

प्रश्न 5.
वचनबद्ध न्यायपालिका से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वचनबद्ध न्यायपालिका: ऐसी न्यायपालिका जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफादार हो तथा उसके निर्देशों एवं आदेशों के अनुसार ही चले, उसे वचनबद्ध न्यायपालिका कहा जाता है।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता हेतु क्या-क्या प्रावधान किये गये हैं?
उत्तर:
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता हेतु संवैधानिक उपबन्ध निम्न हैं।

  1. न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  2. न्यायाधीशों की योग्यता का संविधान में वर्णन किया गया है।
  3. न्यायाधीश एक निश्चित आयु पर सेवानिवृत्त होते हैं।
  4. न्यायाधीशों को केवल महाभियोग द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है।

प्रश्न 7.
बिहार आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
बिहार आन्दोलन:
बिहार आन्दोलन सन् 1974 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे पूर्ण या व्यापक क्रान्ति भी कहा है। जयप्रकाश ने 1975 में बिहार के लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि बिहार आन्दोलन का उद्देश्य समाज एवं व्यक्ति के सभी पक्षों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना

प्रश्न 8.
गुजरात आन्दोलन 1974 को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1974 के जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमत तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। इस आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शरीक हो गईं। फलतः गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

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प्रश्न 9.
1977 के चुनावों में जनता पार्टी की जीत के कोई दो कारण लिखिए।
अथवा
1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की पराजय के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1977 में जनता पार्टी की जीत व कांग्रेस की हार के कारण निम्न हैं।

  1. इन्दिरा गाँधी की घटती लोकप्रियता: श्रीमती गाँधी द्वारा की गई आपातकाल की घोषणा से उनकी लोकप्रियता घट गई थी। इससे कांग्रेस की हार हुई
  2. जयप्रकाश नारायण का व्यक्तित्व: जयप्रकाश नारायण इस दौर के सबसे करिश्माई व्यक्तित्व थे। उन्हें अपार जन समर्थन प्राप्त था। जनता पार्टी को जिताने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

प्रश्न 10.
संक्षेप में बताइए कि 1975-76 के 18 माह के आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ था?
उत्तर:
इंदिरा सरकार ने गरीबों के हित के लिए बीस सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की और उसे तेजी से लागू करने का प्रयास किया। इस कार्यक्रम में भूमि सुधार, भू-पुनर्वितरण, खेतीहर मजदूरों के पारिश्रमिक पर पुनर्विचार, प्रबंधन में कामगारों की भागीदारी, बंधुआ मजदूरी की समाप्ति इत्यादि मामले शामिल थे। देश के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया गया। प्रेस पर कई तरह की पाबंदी लगाई। प्रेस सेंसरशिप का बड़ा ढाँचा तैयार किया । झुग्गी-झोंपड़ियों को हटा दिया गया। इस काल के दौरान पुलिस की यातनाएँ और पुलिस हिरासत में यातनाएँ दी गईं। अनिवार्य रूप से नसबंदी के कार्यक्रम चलाए गए।

प्रश्न 11.
नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों की किन्हीं दो समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. प्रायः नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों को राष्ट्रविरोधी कहकर इनकी आलोचना की जाती है।
  2. कुछ तथाकथित ऐसे समाज सुधार भी इन संगठनों से जुड़ गए हैं, जिनके लिए यह केवल एक व्यवसाय है।

प्रश्न 12.
चारू मजूमदार कौन थे?
उत्तर:
चारू मजूमदार:
चारु मजूमदार एक क्रान्तिकारी समाजवादी नेता थे। उनका जन्म 1918 में हुआ। उन्होंने सी. पी. आई. पार्टी छोड़कर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना की। यह पार्टी नक्सलवादी आन्दोलन की प्रेरणास्रोत बनी। वे क्रान्तिकारी हिंसा के समर्थक थे।

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प्रश्न 13.
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 1902 में हुआ। उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की । उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया । स्वतन्त्रता के बाद उन्होंने नेहरू मन्त्रिमण्डल में शामिल होने से मना किया। वे बिहार आन्दोलन के प्रमुख नेता थे। 1979 में उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 14.
जगजीवन राम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जगजीवन राम: जगजीवन राम भारत के महान् स्वतन्त्रता सेनानी और बिहार राज्य के उच्चकोटि के कांग्रेसी नेता थे। इनका जन्म 1908 में हुआ। ये स्वतन्त्र भारत के पहले केंद्रीय मंत्रिमण्डल में श्रम मंत्री बने। 1952 से 1977 तक उन्होंने अनेक मंत्रालयों की जिम्मेदारी निभाई। वे देश की संविधान सभा के सदस्य थे। वे 1952 से लेकर मृत्युपर्यन्त तक सांसद रहे। 1977 से 1979 तक देश के उपप्रधानमंत्री पद पर रहे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दलितों की सेवा में बिताया और उनकी सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते थे। 1986 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 15.
चौधरी चरणसिंह के जीवन पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
चौधरी चरणसिंह: चौधरी चरणसिंह का जन्म 1902 में हुआ। वे महान् स्वतन्त्रता सेनानी और प्रारम्भ में उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे। वे ग्रामीण एवं कृषि विकास की नीति और कार्यक्रमों के कट्टर समर्थक थे। 1967 में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर उन्होंने भारतीय क्रान्ति दल का गठन किया। वे दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने वे जयप्रकाश के क्रांति आन्दोलन से जुड़े और 1977 में जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। 1977 से 1979 तक वे भारत के उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे। उन्होंने लोक दल की स्थापना की। वे कुछ महीनों के लिए जुलाई, 1979 से जनवरी, 1980 के बीच भारत के प्रधानमंत्री रहे। चौधरी चरणसिंह का निधन 1987 में हुआ।

प्रश्न 16.
मोरारजी देसाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मोरारजी देसाई: मोरारजी देसाई एक महान् स्वतन्त्रता सेनानी और गांधीवादी नेता थे। इनका जन्म 1896 में हुआ। वे बम्बई (वर्तमान में मुम्बई ) राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने 1966 में कांग्रेस संसदीय पार्टी का नेतृत्व सम्भाला। वे 1967-1969 तक देश के उपप्रधानमंत्री रहे । वे कांग्रेस पार्टी में सिंडिकेट के एक प्रमुख सदस्य थे। बाद में जनता पार्टी के द्वारा प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए और वे देश में पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 1977 से 1979 के मध्य लगभग 18 महीने इस पद पर कार्य किया। 1995 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 17.
प्रतिबद्ध नौकरशाही पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रतिबद्ध नौकरशाही: प्रतिबद्ध नौकरशाही का अर्थ है कि नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों एवं नीतियों से बंधी हुई रहती है और उस दल के निर्देशन में ही कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती। इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना कोई प्रश्न उठाए आँखें मूंद कर लागू करना होता है। लोकतान्त्रिक देशों में नौकरशाही प्रतिबद्ध नहीं होती। परन्तु साम्यवादी देशों में जैसे कि चीन में वचनबद्ध नौकरशाही पायी जाती है। भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही से आशय किसी दल के सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध न होकर संविधान के प्रति वचनबद्धता ह ।

प्रश्न 18.
भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा का उदय कैसे हुआ?
उत्तर:
भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका का उदय: केशवानन्द भारती मुकदमे की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की एक 13 सदस्यीय संविधान पीठ ने की। 13 में से 9 न्यायाधीशों ने यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान में संशोधन कर सकती है, परन्तु संविधान के मूलभूत ढाँचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। इस निर्णय से सरकार एवं न्यायपालिका में मतभेद बढ़ गए, क्योंकि 1973 में सरकार का नेतृत्व श्रीमती इंदिरा गाँधी कर रही थीं। अतः यह विवाद श्रीमती गांधी एवं न्यायालय के बीच हुआ जिसमें जीत न्यायालय की हुई क्योंकि न्यायालय ने संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया। इसी कारण श्रीमती गाँधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को आगे बढ़ाया। 1975 में आपातकाल के समय वचनबद्ध न्यायपालिका का सिद्धान्त कार्यपालिका का सिद्धान्त बन गया।

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प्रश्न 19.
भारत में वचनबद्ध (प्रतिबद्ध ) न्यायपालिका के लिए सरकार द्वारा प्रयोग किये गये किन्हीं तीन उपायों का वर्णन करें।
अथवा
भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को उदाहरण सहित समझाइये
उत्तर:
भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका के उदाहरण- भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं।

  1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी: श्रीमती गाँधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी करके श्री ए. एन. रे को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया।
  2. न्यायाधीशों का स्थानान्तरण: श्रीमती गाँधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का सहारा लिया। उन्होंने 1981 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस्माइल को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाकर भेजा।
  3. अन्य पदों पर नियुक्तियाँ: सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत, मन्त्री या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफादार थ।

प्रश्न 20.
उन कारकों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण पिछड़े राज्यों में नक्सली आन्दोलन हुआ।
उत्तर:

  1. बंधुआ मजदूरी।
  2. जमींदारों द्वारा शोषण।
  3. बाहरी लोगों द्वारा संसाधनों का शोषण।

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प्रश्न 21.
भारत के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में आप आपातकाल की आलोचना किन आधारों पर करते हैं?
अथवा
भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल के कोई चार दुष्प्रभाव बताइये।
उत्तर:
भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल के दुष्प्रभाव: भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल के निम्नलिखित दुष्प्रभाव पड़े; जिनके कारण हम आपातकाल की आलोचना करते हैं।

  1. लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का ठप होना- आपातकाल में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध करने की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को ठप कर दिया गया।
  2. निवारक नजरबंदी कानून का दुरुपयोग – आपातकाल में निवारक नजरबंदी कानून का दुरुपयोग करते हुए लगभग 1 लाख 11 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। इन्हें अपनी गिरफ्तारी की चुनौती का अधिकार भी नहीं दिया गया।
  3. प्रेस पर नियंत्रण: आपातकाल के दौरान सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी।
  4. संविधान का 42वाँ संशोधन: आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वाँ संशोधन पारित हुआ । इसके जरिये संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किये गये।

प्रश्न 22.
आपातकाल के सबकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आपातकाल के सबक: आपातकाल से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को निम्न सबक मिले-

  1. विरोधी दलों और मतदाताओं ने जितनी अपनी राजनीतिक जागृति दिखाई, इससे साबित हो गया कि बड़े से बड़ा तानाशाह नेता भी भारत से लोकतन्त्र विदा नहीं कर सकता।
  2. आपातकाल के बाद संविधान में अच्छे सुधार किए गए। अब आपातकाल सशक्त स्थिति में लगाया जा सकता था । ऐसा तभी हो सकता था जब मन्त्रिमण्डल लिखित रूप से राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श दे।
  3. आपातकाल में भी न्यायालयों में व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा करने की भूमिका सक्रिय रहेगी और नागरिक अधिकारों की रक्षा तत्परता से होने लगी।

प्रश्न 23.
जनता पार्टी की सरकार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जनता पार्टी की सरकार- जनता पार्टी की सरकार के सम्बन्ध में निम्नलिखित विचार प्रकट किये जा सकते हैं।

  1. 1977 के चुनावों के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार में कोई तालमेल नहीं था। पहले प्रधानमंत्री के पद को लेकर मोरारजी देसाई, चरणसिंह और जगजीवन राम में खींचतान हुई। अंतत: मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
  2. जनता पार्टी अनेक राजनैतिक दलों का संगठन था। इन दलों में निरन्तर खींचा-तानी बनी रही और यह दल कुछ ही महीनों तक अपनी एकता बनाए रख सका।
  3. इस पार्टी की सरकार के पास एक निश्चित दिशा या दीर्घकालीन कल्याणकारी बहुजनप्रिय कार्यक्रम या सर्वमान्य नेतृत्व या न्यूनतम साध्य कार्यक्रम नहीं था।
  4. 18 मास के पश्चात् मोरारजी देसाई को त्यागपत्र देना पड़ा। 1980 के नए चुनावों में जनता पार्टी की हार हुई और कांग्रेस पुनः सत्ता में आयी।

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प्रश्न 24.
विरोधी दलों के विरोध तथा कांग्रेस की टूट ने आपातकाल की पृष्ठभूमि कैसे तैयार की?
उत्तर:
आपातकाल की पृष्ठभूमि के कारण:

  1. 1967 के चुनावों के बाद कुछ प्रान्तों में विरोधी दलों या संयुक्त विरोधी दलों की सरकार बनी। वे केन्द्र में सत्ता में आना चाहते थे।
  2. कांग्रेस के विपक्ष में जो दल थे उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मान कर इस्तेमाल किया जा रहा है और राजनीति हद से ज्यादा व्यक्तिगत होती जा रही है।
  3. कांग्रेस टूट से इंदिरा गाँधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गये थे।
  4. इस अवधि में न्यायपालिका और सरकार के आपसी रिश्तों में भी तनाव आए। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की कई पहलकदमियों को संविधान के विरुद्ध माना सरकार ने न्यायपालिका को प्रगति विरोधी बताया तथा 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती इन्दिरा गाँधी के चुनाव को अवैध करार दिया था।
  5. जयप्रकाश नारायण समग्र क्रान्ति की बात कर रहे थे। ऐसी सभी घटनाओं ने आपातकाल के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।

प्रश्न 25.
“ 1967 के बाद देश की कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के सम्बन्धों में आए तनावों ने आपातकाल की पृष्ठभूमि तैयार की थी।” इस कथन को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
1967 के बाद भारत में श्रीमती इंदिरा गाँधी एक कद्दावर नेता के रूप में उभरीं और 1973-74 तक उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी लेकिन इस दौर में दलगत प्रतिस्पर्धा कहीं ज्यादा तीखी और ध्रुवीकृत हो चली थी। इस अवधि में न्यायपालिका और सरकार के सम्बन्धों में तनाव आए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की कई पहलकदमियों को संविधान के विरुद्ध माना कांग्रेस पार्टी का मानना था कि अदालत का यह रवैया लोकतन्त्र के सिद्धान्तों और संसद की सर्वोच्चता के विरुद्ध है। कांग्रेस ने यह आरोप भी लगाया कि अदालत एक यथास्थितिवादी संस्था है और यह संस्था गरीबों को लाभ पहुँचाने वाले कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने की राह में रोड़ा अटका रही है।

प्रश्न 26.
आपातकाल के संवैधानिक एवं उत्तर संवैधानिक पक्षों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आपातकाल के संवैधानिक एवं उत्तर: संवैधानिक पक्ष- आपातकाल के समय कुछ संवैधानिक एवं उत्तर संवैधानिक पक्ष भी सामने आए। श्रीमती गांधी ने संविधान में 39वाँ संवैधानिक संशोधन किया। इस संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं स्पीकर के चुनाव से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति समाप्त कर दी गई।

इस संशोधन को पास करने का मुख्य उद्देश्य श्रीमती गाँधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय से राहत दिलाना था।  विरोधी पक्ष ने 39 वें संशोधन को संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध बताया परन्तु उच्च न्यायालय की पीठ के पाँच में से चार न्यायाधीशों ने 39वें संशोधन को वैध ठहराया तथा इस संशोधन के आधार पर श्रीमती गाँधी के निर्वाचन को पूर्ण रूप से वैध ठहराया।

प्रश्न 27.
बिहार आन्दोलन की घटनाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बिहार आन्दोलन: बिहार आन्दोलन प्रशासन में भ्रष्टाचारी एवं अयोग्य कर्मचारियों के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। 1974 में इस आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ । इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य समाज एवं व्यक्ति के सभी पक्षों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस आन्दोलन को एक लम्बे समय तक चलाए जाने पर बल दिया गया था।

बिहार आन्दोलन में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी हल करने का प्रयास किया गया। जयप्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के चार पक्षों का वर्णन किया  प्रथम संघर्ष, द्वितीय निर्माण, तृतीय प्रचार तथा चतुर्थ संगठन । जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन परिस्थितियों में निर्माण कार्य पर अधिक जोर दिया।

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प्रश्न 28.
आपातकाल के संदर्भ में विवादों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आपातकाल के संदर्भ में विवाद: आपातकाल के संदर्भ में सरकार तथा विपक्षी दलों के बीच विवाद निम्नलिखित थे।
(अ) आपातकाल लगाना उचित था।: आपातकाल के औचित्य के सम्बन्ध में सरकार के तर्क ये थे:

  1. भारत में लोकतंत्र है और विपक्षी दलों को निर्वाचित शासक दल अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। देश में लगातार गैर-संसदीय राजनीति से अस्थिरता पैदा होती है।
  2. षडयंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में अडंगे लगा रही थीं।
  3. ये ताकतें श्रीमती गाँधी को गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थी।

(ब) आपातकाल लगाना अनुचित था आपातकाल लगाना अनुचित था। इसके सम्बन्ध में विपक्षी दलों के तर्क येथे

  1. भारत में स्वतंत्रता के आंदोलन से लेकर लगातार भारत में जन आंदोलन का एक सिलसिला रहा है तथा लोकतंत्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। इनके कारण आपातकाल लगाना अनुचित था। किया।
  2. जन आंदोलनों से खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और प्रधानमंत्री को था।
  3. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने निजी ताकतों को बचाने के लिए संवैधानिक आपातकालीन प्रावधानों का दुरुपयोग अतः आपातकाल लागू करना अनुचित था।

प्रश्न 29.
नक्सली आंदोलन के दो परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नक्सली आंध्रप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार और आसपास के क्षेत्रों में मार्क्सवादी और लेनिनवादी कृषि कार्यकर्ता थे जिन्होंने आर्थिक अन्याय और असमानता के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन किए और किसानों को भूमि का पुनर्वितरण करने की माँग की।

प्रश्न 30.
बिहार में 1974 के छात्र आंदोलन के कारकों को स्पष्ट कीजिए। जयप्रकाश नारायण ने इस आंदोलन के लिए क्या शर्तें रखीं?
उत्तर:
बिहार आंदोलन के निम्न कारण थे।
बढ़ती हुई कीमत। सर्वोच्चता के विरुद्ध है। कांग्रेस ने यह आरोप भी लगाया कि अदालत एक यथास्थितिवादी संस्था है और यह संस्था गरीबों को लाभ पहुँचाने वाले कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने की राह में रोड़ा अटका रही है।

प्रश्न 26.
आपातकाल के संवैधानिक एवं उत्तर संवैधानिक पक्षों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आपातकाल के संवैधानिक एवं उत्तर: संवैधानिक पक्ष- आपातकाल के समय कुछ संवैधानिक एवं उत्तर संवैधानिक पक्ष भी सामने आए। श्रीमती गांधी ने संविधान में 39वाँ संवैधानिक संशोधन किया। इस संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं स्पीकर के चुनाव से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति समाप्त कर दी गई। इस संशोधन को पास करने का मुख्य उद्देश्य श्रीमती गाँधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय से राहत दिलाना था। विरोधी पक्ष ने 39 वें संशोधन को संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध बताया परन्तु उच्च न्यायालय की पीठ के पाँच में से चार न्यायाधीशों ने 39वें संशोधन को वैध ठहराया तथा इस संशोधन के आधार पर श्रीमती गाँधी के निर्वाचन को पूर्ण रूप से वैध ठहराया।

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प्रश्न 27.
बिहार आन्दोलन की घटनाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बिहार आन्दोलन: बिहार आन्दोलन प्रशासन में भ्रष्टाचारी एवं अयोग्य कर्मचारियों के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। 1974 में इस आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य समाज एवं व्यक्ति के सभी पक्षों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस आन्दोलन को एक लम्बे समय तक चलाए जाने पर बल दिया गया था।

बिहार आन्दोलन में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी हल करने का प्रयास किया गया। जयप्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के चार पक्षों का वर्णन किया प्रथम संघर्ष, द्वितीय निर्माण, तृतीय प्रचार तथा चतुर्थ संगठन। जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन परिस्थितियों में निर्माण कार्य पर अधिक जोर दिया।

प्रश्न 28.
आपातकाल के संदर्भ में विवादों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आपातकाल के संदर्भ में विवाद: आपातकाल के संदर्भ में सरकार तथा विपक्षी दलों के बीच विवाद निम्नलिखित थे।
(अ) आपातकाल लगाना उचित था आपातकाल के औचित्य के सम्बन्ध में सरकार के तर्क ये थे।

  1. भारत में लोकतंत्र है और विपक्षी दलों को निर्वाचित शासक दल अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। देश में लगातार गैर-संसदीय राजनीति से अस्थिरता पैदा होती है।
  2. षडयंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में अडंगे लगा रही थीं।
  3. ये ताकतें श्रीमती गाँधी को गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थी।

(ब) आपातकाल लगाना अनुचित था। आपातकाल लगाना अनुचित था। इसके सम्बन्ध में विपक्षी दलों के तर्क येथे

  1. भारत में स्वतंत्रता के आंदोलन से लेकर लगातार भारत में जन आंदोलन का एक सिलसिला रहा है। तथा लोकतंत्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। इनके कारण आपातकाल लगाना अनुचित था।
  2. जन आंदोलनों से खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और प्रधानमंत्री को था।
  3. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने निजी ताकतों को बचाने के लिए संवैधानिक आपातकालीन प्रावधानों का दुरुपयोग अतः आपातकाल लागू करना अनुचित था।

प्रश्न 29.
नक्सली आंदोलन के दो परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नक्सली आंध्रप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार और आसपास के क्षेत्रों में मार्क्सवादी और लेनिनवादी कृषि कार्यकर्ता थे जिन्होंने आर्थिक अन्याय और असमानता के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन किए और किसानों को भूमि का पुनर्वितरण करने की माँग की।

प्रश्न 30.
बिहार में 1974 के छात्र आंदोलन के कारकों को स्पष्ट कीजिए। जयप्रकाश नारायण ने इस आंदोलन के लिए क्या शर्तें रखीं?
उत्तर:
बिहार आंदोलन के निम्न कारण थे।

  1. बढ़ती हुई कीमत।
  2. खाद्यान्न के अभाव।
  3. बेरोजगारी और भ्रष्टाचार में वृद्धि।

छात्रों ने अपने आंदोलन की अगुवाई के लिए जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा।

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प्रश्न 31.
गुजरात के छात्र आंदोलन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
गुजरात के छात्र आंदोलन के राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव हुए। इस आंदोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शरीक हो गईं। इस प्रकार आंदोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। राज्य में दुबारा विधानसभा के चुनाव की माँग उठने लगी।

प्रश्न 32.
जयप्रकाश नारायण द्वारा बिहार के छात्रों के आंदोलन में साथ देने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण द्वारा बिहार आंदोलन के साथ जुड़ते ही इस आंदोलन ने राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और राष्ट्रव्यापी अपील आई। जीवन के हर क्षेत्र के लोग आंदोलन से जुड़ गए। बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। बिहार की सरकार के खिलाफ लगातार घेराव, बंद और हड़ताल का एक सिलसिला चल पड़ा। इस आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ा।

प्रश्न 33.
आपातकाल की घोषणा के साथ राजनीति में क्या बदलाव आता है?
उत्तर:
आपातकाल की घोषणा के साथ ही शक्तियों के बँटवारे का संघीय ढाँचा व्यावहारिक तौर पर निष्प्रभावी हो जाता है और सारी शक्तियाँ केन्द्र सरकार के हाथ में चली आती हैं। दूसरे, सरकार चाहे तो ऐसी स्थिति में किसी एक अथवा सभी मौलिक अधिकारों पर रोक लगा सकती है अथवा उनमें कटौती कर सकती है।

प्रश्न 34.
आपातकाल के संदर्भ में दो विवादों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. आपातकाल भारतीय राजनीति का सर्वाधिक विवादास्पद प्रकरण है। इसके दो विवाद निम्न हैं।
  2. खाद्यान्न के अभाव।
  3. बेरोजगारी और भ्रष्टाचार में वृद्धि।

छात्रों ने अपने आंदोलन की अगुवाई के लिए जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा।

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प्रश्न 31.
गुजरात के छात्र आंदोलन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
गुजरात के छात्र आंदोलन के राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव हुए। इस आंदोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शरीक हो गईं। इस प्रकार आंदोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। राज्य में दुबारा विधानसभा के चुनाव की माँग उठने लगी।

प्रश्न 32.
जयप्रकाश नारायण द्वारा बिहार के छात्रों के आंदोलन में साथ देने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण द्वारा बिहार आंदोलन के साथ जुड़ते ही इस आंदोलन ने राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और राष्ट्रव्यापी अपील आई। जीवन के हर क्षेत्र के लोग आंदोलन से जुड़ गए। बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। बिहार की सरकार के खिलाफ लगातार घेराव, बंद और हड़ताल का एक सिलसिला चल पड़ा। इस आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ा।

प्रश्न 33.
आपातकाल की घोषणा के साथ राजनीति में क्या बदलाव आता है?
उत्तर:
आपातकाल की घोषणा के साथ ही शक्तियों के बँटवारे का संघीय ढाँचा व्यावहारिक तौर पर निष्प्रभावी हो जाता है और सारी शक्तियाँ केन्द्र सरकार के हाथ में चली आती हैं। दूसरे, सरकार चाहे तो ऐसी स्थिति में किसी एक अथवा सभी मौलिक अधिकारों पर रोक लगा सकती है अथवा उनमें कटौती कर सकती है।

प्रश्न 34.
आपातकाल के संदर्भ में दो विवादों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आपातकाल भारतीय राजनीति का सर्वाधिक विवादास्पद प्रकरण है। इसके दो विवाद निम्न हैं।

  1. आपातकाल की घोषणा की जरूरत को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों का होना।
  2. सरकार ने संविधान प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके व्यावहारिक तौर पर लोकतांत्रिक कामकाज को ठप्प कर दिया था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1975 में आंतरिक आपातकाल क्यों घोषित किया गया? इस दौरान कौनसे परिणाम महसूस किये गये? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय सरकार के अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के क्या कारण थे? आपातकाल की घोषणा से पूर्व क्या घटनाएँ घटित हुई थीं? कीजिए।
अथवा
1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लागू किये गये आपातकाल की घोषणा के प्रमुख कारणों का वर्णन
उत्तर:

  • आपातकाल के कारण 1975 में आन्तरिक राष्ट्रीय आपातकाल के प्रमुख ‘कारण निम्नलिखित हैं।
    1. 1971 के युद्ध में अत्यधिक व्यय: 1971 के भारत-पाक युद्ध तथा बांग्लादेशी शरणार्थियों पर हुए व्यय का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा। इससे लोगों में असन्तोष फैल गया।
    2. कृषिगत तथा औद्योगिक उत्पादन में कमी: 1972-1973 में भारत में फसल भी अच्छी नहीं हुई तथा औद्योगिक उत्पादन में भी निरन्तर कमी आ रही थी। इससे कृषक तथा औद्योगिक कर्मचारियों में असन्तोष बढ़ रहा था।
    3. रेलवे की हड़ताल: 1975 में की गई आपातकालीन घोषणा का एक कारण रेलवे कर्मचारियों द्वारा की गई हड़ताल भी थी जिससे यातायात व्यवस्था बिल्कुल खराब हो गई।
    4. बिहार आंदोलन: जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में किया जा रहा बिहार आन्दोलन भी 1975 में आपातकाल की घोषणा का एक प्रमुख कारण था।
    5. श्रीमती गाँधी के चुनाव को अवैध घोषित करना: 1975 के आपातकाल का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके निर्वाचन को अवैध घोषित करना था। इसके बाद विपक्षी दल श्रीमती गाँधी के त्यागपत्र की माँग करने लगा।
  • आपातकाल के दौरान महंसूस किये गए परिणाम:
    1. आपातकाल की घोषणा की जरूरत को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों का होना।
    2. सरकार ने संविधान प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके व्यावहारिक तौर पर लोकतांत्रिक कामकाज को ठप्प कर दिया था।
  • आपातकाल के दौरान महसूस किये गए परिणाम:दिया
    1. आपातकाल में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार का विरोध करने की लोकतांत्रिक प्रणाली को ठप्प कर
    2. इस काल में निवारक नजरबंदी कानून का दुरुपयोग किया गया।
    3. इस दौरान सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी।
    4. इस दौरान 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किये गये।

प्रश्न 2.
1977 में कांग्रेस पार्टी की पराजय के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर;
1977 में कांग्रेस की पराजय के कारण 1977 के चुनावों में कांग्रेस की पराजय के पीछे निम्नलिखित कारण जिम्मेदार रहे।

  1. आपातकाल की घोषणा: श्रीमती गाँधी द्वारा लागू किये गये आपातकाल के विरुद्ध सभी गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दल एकजुट हो गये।
  2. आपातकाल के दौरान अत्याचार: श्रीमती गाँधी ने आपातकाल के दौरान मीसा कानून तथा अनिवार्य नसबंदी के द्वारा लोगों पर अनेक अत्याचार किये। इससे लोगों में कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध असन्तोष पैदा हुआ।
  3. कीमतों में अत्यधिक वृद्धि: श्रीमती गाँधी की सरकार सभी प्रकार के उपाय करके भी कीमतों की वृद्धि को नहीं रोक पा रही थी तथा 1971 के चुनावों में उनके द्वारा दिया गया गरीबी हटाओ का नारा भी दम तोड़ता नजर आ रहा था।
  4. प्रेस पर प्रतिबन्ध: आपातकाल के समय श्रीमती गाँधी ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस तरह के प्रतिबन्ध से भी लोगों में असन्तोष था।
  5. कर्मचारियों की दयनीय स्थिति: तत्कालीन समय में वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि से सरकारी कर्मचारियों की दशा खराब होने लगी थी। वे सरकार से नाराज हो गए थे।
  6. जगजीवन राम का त्यागपत्र: आपातकाल के समय जगजीवन राम जैसे श्रीमती गाँधी के वफादार नेता भी उनके साथ नहीं रहे तथा कांग्रेस एवं सरकार से त्यागपत्र दे दिया।

प्रश्न 3.
1977 के लोकसभा चुनावों के किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण परिणामों एवं निष्कर्षों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1977 के लोकसभा चुनावों के निष्कर्ष एवं परिणाम: 1977 के चुनावों के कुछ निष्कर्ष इस प्रकार हैं।

  1. कांग्रेस पार्टी के एकाधिकार की समाप्ति: 1977 के चुनावों का सबसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष यह रहा पिछले तीन दशकों से चली आ रही कांग्रेसी सत्ता का एकाधिकार समाप्त हो गया।
  2. केन्द्र में प्रथम गैर-कांग्रेस सरकार का निर्माण: 1977 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में पहली बार गैर- कांग्रेस सरकार का निर्माण हुआ। विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी के झण्डे के नीचे गठबन्धन सरकार का निर्माण किया। जनता पार्टी को मार्च, 1977 के लोकसभा के चुनाव में भारी सफलता प्राप्त हुई। 542 सीटों में से जनता पार्टी गठबन्धन को 330 सीटें मिलीं। इस प्रकार जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी, अतः जनता पार्टी की सरकार बनी।
  3. पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा प्रभावी हो गया: 1977 के चुनावों के बाद अप्रत्यक्ष रूप से पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा भारतीय राजनीति पर हावी होना शुरू हुआ क्योंकि 1977 के चुनाव परिणामों पर पिछड़ी जातियों के मतदान का असर पड़ा था।

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प्रश्न 4.
नागरिक स्वतन्त्रताओं के संगठनों के उदय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नागरिक स्वतन्त्रताओं के संगठनों का उदय: आपातकाल से पूर्व तथा इसके पश्चात् नागरिक स्वतन्त्रता संगठनों के उदय एवं प्रसार में कुछ प्रगति हुई, जिसका वर्णन इस प्रकार है।
1. नव निर्माण समिति का गठन:
जयप्रकाश नारायण ने बिहार आंदोलन के समय दलविहीन लोकतन्त्र तथा सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन को भी इसमें शामिल किया। जयप्रकाश नारायण ने इसके लिए गुजरात एवं बिहार के युवा छात्रों को शामिल किया तथा एक नवनिर्माण समिति का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार को समाप्त करना था।

2. नक्सलवादी संगठनों का उदय:
नक्सलवादी पद्धति बंगाल, केरल एवं आन्ध्रप्रदेश में सक्रिय थी। नक्सलवादी वामदलों से अलग हुआ गुट था, क्योंकि इनका वामदलों से मोह भंग हो गया था। इन्होंने लोगों की स्वतन्त्रता एवं माँगों पूरा करने के लिए हिंसा का सहारा लिया, परन्तु सरकारों ने इस प्रकार के आन्दोलन को समाप्त करने के लिए बल प्रयोग का सहारा लिया।

3. नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों का संघ: नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का उदय अक्टूबर, 1976 में हुआ। संगठन ने न केवल आपातकाल में बल्कि सामान्य परिस्थितियों में भी लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहने के लिए कहा। 1980 में नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का नाम बदलकर ‘नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ’ रख दिया गया तथा इस संगठन का प्रचार-प्रसार पूरे देश में किया गया। यह संगठन नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनमत तैयार करवाता था।

प्रश्न 5.
वचनबद्ध न्यायपालिका से आप क्या समझते हैं? श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सरकार ने इसके लिए क्या प्रयत्न किये?
उत्तर:
वचनबद्ध न्यायपालिका: वचनबद्ध न्यायपालिका से तात्पर्य न्यायपालिका का सरकार के प्रति प्रतिबद्ध होना या सरकार की नीतियों का आंख मूंद कर पालन करने से है। वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए सरकार द्वारा प्रयोग किए गए उपाय थे तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती गांधी की सरकार ने न्यायपालिका की वचनबद्धता के लिए अग्रलिखित उपाय किये

  1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता के सिद्धान्त की अनदेखी: श्रीमती गाँधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी की तथा उन न्यायाधीशों को पदोन्नत किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे।
  2. न्यायाधीशों का स्थानान्तरण: श्रीमती गाँधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का सहारा भी लिया।
  3. न्यायपालिका की आलोचना: न्यायाधीशों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों की प्रायः अधिकारियों द्वारा आलोचना की जाती थी, जबकि ऐसा किया जाना संविधान के विरुद्ध था।
  4. अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति: सरकार अस्थायी तौर पर न्यायाधीशों की नियुक्ति करके न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली एवं व्यवहार का अध्ययन करती थी, कि वह सरकार के पक्ष में कार्य कर रहा है, या विपक्ष में।
  5. अन्य पदों पर नियुक्तियाँ: सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे अथवा सरकार की नीतियों के अनुसार चलते थे।
  6. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का प्रावधान: कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के संवैधानिक प्रावधानों को भी वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए प्रयोग किया गया।

प्रश्न 6.
नक्सलवादी आन्दोलन क्या है? भारतीय राजनीति में इसकी भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
नक्सलवादी आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
1. नक्सलवादी आन्दोलन की पृष्ठभूमि:
पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी पुलिस थाने के इलाके में 1967 में एक किसान विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इस विद्रोह की अगुवाई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय नेताओं ने की। नक्सलबाड़ी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आंदोलन भारत के कई राज्यों में फैल गया। इस आंदोलन को नक्सलवादी आंदोलन के रूप में जाना जाता है।

2. सी.पी.आई. से अलग होना और गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाना:
1969 में नक्सलवादी सी. पी. आई. (एम.) से अलग हो गए और उन्होंने सी.पी.आई. (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नाम से एक नई पार्टी ‘चारु मजूमदार’ के नेतृत्व में बनायी। इस पार्टी की दलील थी कि भारत में लोकतन्त्र एक छलावा है। इस पार्टी ने क्रान्ति करने के लिए गोरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनायी।

3. नक्सलवादियों के कार्यक्रम:
नक्सलवादी आंदोलन ने धनी भूस्वामियों से जमीन बलपूर्वक छीन कर गरीब और भूमिहीन लोगों को दी। इस आंदोलन के समर्थक अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसक साधनों के इस्तेमाल के पक्ष में दलील देते थे।

4. नक्सलवाद का प्रसार एवं प्रभाव:
1970 के दशक में भारत में 9 राज्यों के लगभग 75 जिले नक्सलवाद की हिंसा से प्रभावित हुए। इनमें अधिकांश बहुत पिछड़े इलाके हैं और यहाँ आदिवासियों की संख्या बहुत अधिक है। नक्सलवादी हिंसा व नक्सल विरोधी कार्यवाहियों में अब तक हजारों लोग जान गँवा चुके हैं।

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प्रश्न 7.
निम्न बिन्दुओं का वर्णन आपातकाल 1975 की पृष्ठभूमि के संदर्भ में कीजिए
(अ) गुजरात व बिहार आंदोलन
(ब) सरकार व न्यायपालिका में संघर्ष।
उत्तर:
( अ ) गुजरात आंदोलन:
गुजरांत में नव निर्माण आंदोलन के प्रभावस्वरूप गुजरात के मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना पड़ा। आपातकाल की घोषणा का यह भी एक कारण बना। बिहार आंदोलन बिहार आंदोलन प्रशासन में भ्रष्टाचारी व अयोग्य कर्मचारियों के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाया गया आंदोलन था। बिहार आंदोलन में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी हल करने का प्रयास किया गया। यह बिहार आंदोलन भी 1975 में आपातकाल की घोषणा का एक प्रमुख कारण बना।

(ब) सरकार व न्यापालिका में संघर्ष:
1973-74 की अवधि में न्यायपालिका और सरकार के सम्बन्धों में भी तनाव आए। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की नई पहलकदमियों को संविधान के विरुद्ध माना। सरकार का मानना था कि अदालत का यह रवैया लोकतंत्र के सिद्धान्तों और संसद की सर्वोच्चता के विरुद्ध है। यह सरकार के गरीबों को लाभ पहुँचाने वाले कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने की राह में रोड़ा अटका रही है। इसके साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती गाँधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया तथा श्रीमती गाँधी को छ: वर्ष तक संसद की सदस्यता न ग्रहण करने की सजा दी गई। सरकार और न्यायपालिका के इस संघर्ष ने आपातकाल की घोषणा की पूर्ण पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

प्रश्न 8.
1975 के आपातकालीन घोषणा और क्रियान्वयन से देश के राजनैतिक माहौल, प्रेस, नागरिक अधिकारों, न्यायपालिका के निर्णयों और संविधान पर क्या प्रभाव पड़े? विस्तार में लिखिए ।
उत्तर:
इंदिरा सरकार के आपातकाल की घोषणा पर विरोध- आंदोलनों में कमी आई क्योंकि आपातकाल के दौरान अनेक विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। राजनीतिक माहौल तनावग्रस्त हो गया था। आपातकालीन प्रावधानों का हवाला देते हुए सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना गया। सामाजिक और सांप्रदायिक गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमात-ए- इस्लामी जैसे संगठनों पर रोक लगा दी। आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए।

उनके पास यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। निवारक नजरबंदी के अंतर्गत लोगों को गिरफ्तार इसलिए नहीं किया जाता था कि उन्होंने कोई अपराध किया है बल्कि इसके विपरीत, इस प्रावधान के अंतर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता था कि भविष्य में वे कोई अपराध कर सकते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत सरकार ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ कीं। गिरफ्तार लोग अपनी गिरफ्तारी को चुनौती नहीं दे पाते थे। गिरफ्तार लोगों अथवा उनके पक्ष से किन्हीं और ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, किन्तु सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों को कोई कारण बताना कतई जरूरी नहीं है।

अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है। परंतु 1976 के अप्रैल माह में सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील को सही ठहराया। इसका सामान्य शब्दों में यही अर्थ था कि आपातकाल के दौरान सरकार, नागरिक से जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। आपातकाल के समय जो नेता गिरफ्तारी से बच गए थे वे भूमिगत हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलाई।

पद्मभूषण से सम्मानित कन्नड़ लेखक शिवम कारंत और पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी लेखक फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ ने अपनी-अपनी पदवी वापस कर दी। संसद ने संविधान के सामने कई नई चुनौतियाँ खड़ी कीं। इंदिरा गाँधी के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में संशोधन हुआ। इस संशोधन के अनुसार प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। आपातकाल के दौरान ही संविधान में 42वाँ संशोधन किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 9.
बिहार आंदोलन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए संक्षिप्त सार लिखिए।
उत्तर:
बिहार के आंदोलन के समय वहाँ पर काँग्रेस की सरकार थी। यहाँ आंदोलन छात्र आंदोलन के रूप में शुरू हुआ। यह आंदोलन न केवल बिहार तक बल्कि अनेक वर्षों तक राष्ट्रीय राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला साबित हुआ। बिहार आंदोलन के कारण 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार के छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया। आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा। जेपी तब सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे और सामाजिक कार्यों में लगे थे। छात्रों ने अपने आंदोलन की अगुवाई के लिए जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा।

जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा। इस प्रकार छात्र आंदोलन ने एक राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और उसके भीतर राष्ट्रव्यापी अपील आई जीवन के हर क्षेत्र के लोग अब आंदोलन से आ जुड़े। आंदोलन की प्रगति और सार जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया ताकि ‘सच्चे लोकतंत्र’ की स्थापना की जा सके। बिहार की सरकार के खिलाफ लगातार घेराव, बंद और हड़ताल का एक सिलसिला चल पड़ा। बहराल, सरकार ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। 1974 के बिहार आंदोलन का एक प्रसिद्ध नारा था, “संपूर्ण क्रांति अब नारा है- भावी इतिहास हमारा है।”

प्रभाव-आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हुआ। जयप्रकाश नारायण चाहते थे यह आंदोलन देश के दूसरे हिस्से में भी फैले। जेपी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के साथ ही साथ रेलवे के कर्मचारियों ने भी एक राष्ट्रवादी हड़ताल का आह्वान किया। इससे देश के रोजमर्रा के कामकाज के ठप्प हो जाने का खतरा पैदा हो गया। 1975 में जेपी ने जनता के ‘संसद मार्च’ का नेतृत्व किया। देश की राजधानी में अब तक इतनी बड़ी रैली नहीं हुई थी। जेपी को भारतीय जनसंघ, काँगेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी जैसे गैर- काँग्रेसी का समर्थन मिला। इन दलों ने जेपी को इंदिरा के विकल्प के रूप में पेश किया।

टिप्पणी-जेपी के विचारों और उनके द्वारा अपनायी नई जन-प्रतिरोध की रणनीति की आलोचनाएँ भी मुखर हुईं गुजरात और बिहार, दोनों ही राज्यों के आंदोलन को कांग्रेस विरोधी आंदोलन माना गया। कहा गया कि ये आंदोलन राज्य सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी के नेतृत्व के खिलाफ चलाए गए हैं। इंदिरा गाधी का मानना था कि ये आंदोलन उनके प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित हैं।

प्रश्न 10.
1975 के आपातकाल से सीखे गए तीन सबकों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:

  1. 1975 की आपातकाल से एकबारगी भारतीय लोकतंत्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हो गईं। हालाँकि बहुत से पर्यवेक्षक मानते हैं कि आपातकाल के दौरान भारत लोकतांत्रिक नहीं रह गया था। लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि थोड़े ही दिनों के अंदर कामकाज फिर से लोकतांत्रिक ढर्रे पर लौट आया। इस तरह आपातकाल का एक सबक तो यही है कि भारत से लोकतंत्र को विदा कर पाना बहुत कठिन हैं।
  2. आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब ‘अंदरूनी’ आपातकाल सिर्फ ‘सशस्त्र विद्रोह’ की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपातकाल की धारणा की सलाह मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  3. आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हुआ। आपातकाल की सम्पत्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई।  यपालिका आपातकाल के वक्त नागरिक अधिकारों की रक्षा में तत्पर हो गई। आपातकाल के बाद नागरिक अधिकारों के कई संगठन वजूद में आए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व केन्द्र में कब तक रहा?
(क) 1947 से 1990 तक
(ग) 1947 से 1977 तक
(ख) 1947 से 1960 तक
(घ) 1947 से 1980 तक।
उत्तर:
(ग) 1947 से 1977 तक

2. किस वर्ष इन्दिरा गाँधी ने सोवियत संघ के साथ बीस वर्ष के लिए शान्ति, मित्रता तथा सहयोग की सन्धि पर हस्ताक्षर किए थे?
(कं) जून, 1972
(ख) अक्टूबर, 1977
(ग) अगस्त, 1947
(घ) अंगस्त, 1971
उत्तर:
(घ) अंगस्त, 1971

3. गरीबी हटाओ का नारा किसने दिया?
(क) सुभाषचन्द्र बोस ने
(ख) लाल बहादुर शास्त्री ने
(ग) जवाहरलाल नेहरू ने
(घ) इन्दिरा गाँधी ने।
उत्तर:
(घ) इन्दिरा गाँधी ने।

4. भारत ने प्रथम परमाणु परीक्षण कब किया?
(क) 1974
(ख) 1975
(ग) 1976
(घ) 1977
उत्तर:
(क) 1974

5. ‘जय जवान जय किसान’ का नारा किसने दिया-
(क) लाल बहादुर शास्त्री ने
(ख) इंदिरा गाँधी ने
(ग) जवाहरलाल नेहरू ने
(घ) मोरारजी देसाई ने।
उत्तर:
(क) लाल बहादुर शास्त्री ने

6. बांग्लादेश का निर्माण हुआ
(क) सन् 1966 में
(ख) सन् 1970 में
(ग) सन् 1971 में
(घ) इन्दिरा गाँधी ने।
उत्तर:
(ग) सन् 1971 में

1. निम्नलिखित का मिलान कीजिए

1. जवाहरलाल नेहरू के उपरान्त (क) 1966
2. ताशकन्द समझौता (ख) लालबहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमन्त्री बने।
3. मोरारजी का सम्बन्ध (ग) सिंडीकेट से
4. बांग्लादेश का निर्माण (घ) 1971
5. वी.वी. गिरि (ङ) आन्ध्र प्रदेश के मजदूर नेता
6. कर्पूरी ठाकुर (च) बिहार के नेता

उत्तर:

1. जवाहरलाल नेहरू के उपरान्त (ख) लालबहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमन्त्री बने।
2. ताशकन्द समझौता (क) 1966
3. मोरारजी का सम्बन्ध (ग) सिंडीकेट से
4. बांग्लादेश का निर्माण (घ) 1971
5. वी.वी. गिरि (ङ) बिहार के नेता
6. कर्पूरी ठाकुर (च) आन्ध्र प्रदेश के मजदूर नेता


रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. ………………….. में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हो गई।
उत्तर:
1964

2. 1960 के दशक को ………………… की संज्ञा दी गई।
उत्तर:
खतरनाक दशक

3. लाल बहादुर शास्त्री ……………. से ………………… तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
उत्तर:
1964, 1966

4. 10 जनवरी ……………. को ……………….. में शास्त्रीजी का निधन हो गया।
उत्तर:
1966, ताशकंद

5. सी. नटराजन अन्नादुरई ने 1949 में ……………….. का बतौर राजनीतिक पार्टी गठन किया।
उत्तर:
द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम

6. पंजाब में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार को ……………….. की सरकार कहा गया।
उत्तर:
पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1967 में कांग्रेस के प्रतिष्ठित नेताओं के समूह को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
सिंडिकेट।

प्रश्न 2.
‘जय जवान जय किसान’ का नारा किसने दिया?
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री ने।

प्रश्न 3.
1971 के चुनावों में कांग्रेसी नेताओं को कुल कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
352 सीटें प्राप्त हुईं।

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प्रश्न 4.
विरोधी दलों को लगा कि इन्दिरा गाँधी की अनुभवहीनता और कांग्रेस की आन्तरिक गुटबन्दी से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर मिला। राम मनोहर लोहिया ने इस रणनीति को क्या नाम दिया?
उत्तर:
गैर-कांग्रेसवाद।

प्रश्न 5.
चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया तथा कृष्णकान्त जैसे नेता किस गुट में शामिल थे?
उत्तर:
युवा तुर्क गुट में

प्रश्न 6.
कामराज, एस.के. पाटिल तथा निजलिंगप्पा जैसे नेता किस समूह के सदस्य माने जाते थे?
उत्तर:
सिंडिकेट

प्रश्न 7.
प्रारम्भ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न क्या था तथा वर्तमान में इस दल का चिह्न क्या है?
उत्तर:
प्रारम्भ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न बैलों की जोड़ी था और वर्तमान में हाथ का निशान है।

प्रश्न 8.
कांग्रेस का विभाजन कब हुआ? अथवा कांग्रेस में पहली फूट कब पड़ी?
उत्तर:
1969 में।

प्रश्न 9.
चौथे आम चुनावों के पश्चात् केन्द्र में किस पार्टी की सरकार बनी?
उत्तर:
चौथे आम चुनाव के पश्चात् केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी।

प्रश्न 10.
लाल बहादुर शास्त्री का उत्तराधिकारी कौन बना?
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी।

प्रश्न 11.
1969 में राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए इन्दिरा गाँधी ने किस उम्मीदवार का साथ दिया था?
उत्तर:
श्रीमती गांधी ने निर्दलीय उम्मीदवार वी.वी. गिरि का साथ दिया।

प्रश्न 12.
दस सूत्री कार्यक्रम कब लागू किया गया?
उत्तर:
दस सूत्री कार्यक्रम 1967 में लागू किया गया।

प्रश्न 13.
पाँचवीं लोकसभा के चुनाव कब हुए?
उत्तर:
पाँचवीं लोकसभा के चुनाव 1971 में हुए।

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प्रश्न 14.
1971 में कांग्रेस (आर) का नेतृत्व किस नेता ने किया?
उत्तर:
1971 में कांग्रेस (आर) का नेतृत्व श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया।

प्रश्न 15.
कांग्रेस ऑर्गनाइजेशन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
1969 के नवंबर तक सिंडिकेट की अगुवाई वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस ऑर्गनाइजेशन कहा जाता था।

प्रश्न 16.
पुरानी कांग्रेस से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मोरारजी देसाई के समर्थक कांग्रेस के समूह को पुरानी कांग्रेस की संज्ञा दी गई।

प्रश्न 17.
गैर-कांग्रेसवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह वह राजनीतिक विचारधारा है जो मुख्यतः कांग्रेस विरोधी और उसे सत्ता से अलग करने के लिए समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया द्वारा प्रस्तुत की गई।

प्रश्न 18.
कांग्रेस सिंडिकेट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी के नेता जिनमें कामराज, एस. के. पाटिल, निजलिंगप्पा तथा मोरारजी देसाई (इनमें कुछ को हम इंदिरा विरोधी भी कह सकते हैं) आदि के समूह को कांग्रेस सिंडिकेट के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19.
प्रिवी पर्स से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूतपूर्व देशी राजाओं को दिए जाने वाले विशेष भत्ते आदि को प्रिवी पर्स के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 20.
लोकसभा का पाँचवाँ आम चुनाव कब हुआ था?
उत्तर:
1971 में। इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाले गुट को कांग्रेस का रिक्विजिस्ट खेमा कहा जाता है।

प्रश्न 21.
ग्रैंड अलायंस से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कांग्रेस (ओ) और इंदिरा विरोधी विपक्षी पार्टियों और गैर-साम्यवादी दलों को ग्रैंड अलायंस की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 22.
कामराज योजना क्या थी?
उत्तर:
कामराज योजना के अनुसार 1963 में सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी के पदों से त्यागपत्र दे दिया ताकि उनकी जगह युवा कार्यकर्ताओं को दी जा सके।

प्रश्न 23.
आया राम-गया राम राजनीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आया राम-गया राम से अभिप्राय नेताओं द्वारा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए निरन्तर दल-बदल करना है।

प्रश्न 24.
10 सूत्री कार्यक्रम कब और क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
10 सूत्री कार्यक्रम श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 1967 में कांग्रेस की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के लिए लागू किया गया।

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प्रश्न 25.
राजनीतिक भूकम्प से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
1967 के चुनावों में कांग्रेस को केन्द्र एवं राज्य स्तर पर हुई गहरी हानि को चुनाव विश्लेषकों ने कांग्रेस के लिए इसे राजनीतिक भूकम्प कहा।

प्रश्न 26.
किंगमेकर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी नेता को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं को किंगमेकर कहा है।

प्रश्न 27.
1971 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की जीत का क्या कारण था?
उत्तर:
1971 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की जीत का मुख्य कारण श्रीमती इंदिरा गांधी का चमत्कारिक नेतृत्व कांग्रेस की समाजवादी नीतियाँ तथा गरीबी हटाओ का नारा था।

प्रश्न 28.
कांग्रेस में युवा तुर्क के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
युवा तुर्क कांग्रेस में युवाओं से सम्बन्धित था। इसमें चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा जैसे युवा कांग्रेसी शामिल थे।

प्रश्न 29.
किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखिए जहाँ 1967 के चुनाव के बाद कांग्रेसी सरकारें बनीं।
उत्तर:
महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात।

प्रश्न 30.
किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखिए जहाँ 1967 के चुनावों के बाद गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं।
उत्तर:
पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल

प्रश्न 31.
राममनोहर लोहिया कौन थे?
उत्तर:
राममनोहर लोहिया समाजवादी नेता एवं विचारक थे। 1963 से 1967 तक लोकसभा के सदस्य रहे। वे गैर-कांग्रेसवाद के रणनीतिकार थे। उन्होंने नेहरू की नीतियों का विरोध किया।

प्रश्न 32.
ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले दो महान् राष्ट्राध्यक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री
  2. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान।

प्रश्न 33.
प्रिवी पर्स की समाप्ति कब हुई?
उत्तर:
1971 में कांग्रेस को मिली जीत के बाद इंदिरा गाँधी ने संविधान में संशोधन करवाकर प्रिवी पर्स की समाप्ति करवा दी।

प्रश्न 34.
इंदिरा गाँधी की हत्या कब की गई?
उत्तर:
इदिरा गाँधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 के दिन हुई थी।

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प्रश्न 35.
मद्रास प्रांत को अब किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
तमिलनाडु।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पण्डित जवाहरलाल नेहरू का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर:
जवाहरलाल की मृत्यु के बाद लालबहादुर शास्त्री को नेहरू का उत्तराधिकारी बनाया गया। शास्त्री लगभग 18 महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे। उनके शासन काल में 1965 का पाकिस्तान युद्ध हुआ। भारत को शानदार सफलता प्राप्त हुई। शास्त्रीजी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया। इस प्रकार शास्त्री एक प्रधान समझौताकर्ता, मध्यस्थ तथा समन्वयकार थे।

प्रश्न 2.
लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद भारत का प्रधानमंत्री कौन बना?
उत्तर:
लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीमती कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया, गरीबी को हटाने के लिए कार्यक्रम घोषित किया, देश की सेनाओं का आधुनिकीकरण किया तथा 1974 में पोकरण में ऐतिहासिक परमाणु विस्फोट किया। 1971 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में हराया, जिसके कारण बांग्लादेश नाम का एक नया देश अस्तित्व में आया।

प्रश्न 3.
1966 में कांग्रेस दल के वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री के पद के लिए श्रीमती गाँधी का साथ क्यों दिया?
उत्तर:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संभवतः यह सोचकर 1966 में श्रीमती गाँधी का साथ प्रधानमंत्री पद के लिए दिया कि प्रशासनिक और राजनैतिक मामलों में खास अनुभव नहीं होने के कारण समर्थन व दिशा निर्देशन के लिए वे उन पर निर्भर रहेंगी।

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प्रश्न 4.
1967 के चौथे आम चुनाव में कांग्रेस दल की मुख्य चुनौतियाँ बताइये।
उत्तर:
1967 के चौथे आम चुनाव में कांग्रेस दल की मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार रहीं।

  1. राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा अब गहन हो गई थी और ऐसे में कांग्रेस को अपना प्रभुत्व बरकरार रखने में मुश्किलें आ रही थीं।
  2. विपक्ष अब पहले की अपेक्षा कम विभाजित तथा कहीं ज्यादा ताकतवर था। गैर-कांग्रेसवाद के नारे के साथ वह काफी एकजुट हो गया था।
  3. कांग्रेस को अन्दरूनी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा था क्योंकि यह पार्टी के अन्दर विभिन्नता को थाम कर नहीं चल पा रही थी।

प्रश्न 5.
भारत में सम्पन्न चौथे आम चुनाव परिणामों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में 1967 के चुनाव परिणामों को राजनीतिक भूचाल क्यों कहा गया?
उत्तर:
चौथे आम चुनाव के परिणाम इस प्रकार रहे।

  1. इन चुनावों में भारतीय मतदाताओं ने कांग्रेस को वैसा समर्थन नहीं दिया, जो पहले तीन आम चुनावों में दिया था।
  2. लोकसभा की कुल 520 सीटों में से कांग्रेस को केवल 283 सीटें ही मिल पाईं तथा मत प्रतिशत में भी भारी गिरावट आई।
  3. इन्दिरा गाँधी के मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गये थे।
  4. इसके साथ-साथ कांग्रेस को 8 राज्य विधानसभाओं में भी हार का सामना करना पड़ा। इसलिए अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इन अप्रत्याशित चुनाव परिणामों को राजनीतिक भूचाल की संज्ञा दी।

प्रश्न 6.
1969 में राष्ट्रपति के निर्वाचन में श्रीमती इंदिरा गांधी ने किस उम्मीदवार का साथ दिया?
उत्तर:
1969 के राष्ट्रपति के चुनाव में इंदिरा गांधी ने निर्दलीय उम्मीदवार वी. वी. गिरि का साथ दिया और कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी चुनाव हार गए। यह चुनाव श्रीमती गाँधी का कांग्रेस में वर्चस्व स्थापित करने में मील का पत्थर सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7.
कांग्रेस की फूट (विभाजन) के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. 1967 के चुनावों में मिली हार के बाद कुछ कांग्रेसी दक्षिणपंथी दलों के साथ जबकि कुछ कांग्रेसी वामपंथी दलों के साथ समझौते का समर्थन कर रहे थे, जिससे कांग्रेस में मतभेद बढ़ा
  2. कांग्रेस पार्टी के प्रमुख सदस्यों में 1967 में होने वाले राष्ट्रपति के चुनावों को लेकर मतभेद था जो अन्ततः कांग्रेस के विभाजन का तात्कालिक कारण बना।

प्रश्न 8.
कांग्रेस की फूट के पश्चात् कौनसे दो राजनीतिक दल उभरे?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस विभाजन के पश्चात् जो दो राजनीतिक दल सामने आए उनके नाम कांग्रेस (आर) (Congress Requisitioned) तथा कांग्रेस (ओ) (Congress Organisation) थे। कांग्रेस (आर) का नेतृत्व श्रीमती गाँधी कर रही थीं, वहीं कांग्रेस (ओ) का नेतृत्व सिंडिकेट कर रहा था जिसके अध्यक्ष निजलिंगप्पा थे। गई?

प्रश्न 9.
आया राम गया राम’ किस वर्ष से संबंधित घटना है तथा यह टिप्पणी किस व्यक्ति के सम्बन्ध में की
उत्तर:
‘आया राम गया राम’ सन् 1967 के वर्ष से संबंधित घटना है। ‘आया राम गया राम’ नामक टिप्पणी कांग्रेस के हरियाणा राज्य के एक विधायक गया लाल के सम्बन्ध में की गई थी जिसने एक पखवाड़े के अन्दर तीन दफा अपनी पार्टी बदली।

प्रश्न 10.
1960 के दशक में कांग्रेस प्रणाली को पहली बार चुनौती क्यों मिली?
उत्तर:
कांग्रेस प्रणाली को 1960 के दशक में पहली बार चुनौती मिली क्योंकि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा गहन हो चली थी और ऐसे में कांग्रेस को अपना प्रभुत्व बरकरार रखने में मुश्किलें आ रही थीं। विपक्ष अब पहले की अपेक्षा कम विभाजित – और ज्यादा ताकतवर था । कांग्रेस को अंदरूनी चुनौतियाँ भी झेलनी पड़ीं, क्योंकि अब यह पार्टी अपने अंदर की विभिन्नता को एक साथ थामकर नहीं चल पा रही थी।

प्रश्न 11.
1969-1971 के दौरान इन्दिरा गाँधी की सरकार द्वारा सामना किये जाने वाली किन्हीं दो समस्याओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सन् 1969-71 के दौरान निम्नलिखित दो चुनौतियों का सामना किया।

  1. उन्हें सिंडिकेट (मोरारजी देसाई के प्रभुत्व वाले कांग्रेस का दक्षिणपंथी गुट) के प्रभाव से मुक्त होकर अपना निजी मुकाम बनाने की चुनौती थी।
  2. कांग्रेस ने 1967 के चुनावों में जो जमीन खोई थी उसे वापस हासिल करना था।

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प्रश्न 12.
पांचवीं लोकसभा के चुनावों पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
पांचवीं लोकसभा के चुनाव 1971 में सम्पन्न हुए और चुनावों में श्रीमती गाँधी की कांग्रेस (आर) पार्टी ने शानदार सफलता प्राप्त की। लोकसभा की 518 सीटों में से कांग्रेस ने अकेले ही 352 सीटें जीतीं। इन चुनावों में कांग्रेस ने अपनी विरोधी पार्टियों को बुरी तरह से हराया।

प्रश्न 13.
किसने पाँचवीं लोकसभा निर्वाचन के समय ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुलन्द किया?
उत्तर:
1971 के पांचवीं लोकसभा के चुनावों में श्रीमती इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा बुलन्द किया। कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में भारी सफलता हासिल की तथा 352 स्थानों पर विजय प्राप्त की। कांग्रेस (ओ) ने केवल 10 प्रतिशत मत तथा केवल 16 स्थान प्राप्त किए।

प्रश्न 14.
पांचवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस की जीत के दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. 1971 में पांचवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व था।
  2. 1971 में श्रीमती गांधी की जीत का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण इनके द्वारा की गई समाजवादी नीति सम्बन्धी पहल तथा ‘गरीबी हटाओ’ का नारा था।

प्रश्न 15.
सिंडिकेट पर दक्षिणपंथियों से गुप्त समझौते करने के आरोप क्यों लगे?
उत्तर:
कांग्रेस ने जब राष्ट्रपति पद के लिए नीलम संजीव रेड्डी को आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया, तो कार्यवाहक राष्ट्रपति वी. वी. गिरि ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी तथा श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अंतरात्मा के आधार पर. मत देने की बात कहकर वी.वी. गिरि का समर्थन कर दिया, तो निजलिंगप्पा ने जनसंघ तथा स्वतन्त्र पार्टी

प्रश्न 7.
कांग्रेस की फूट ( विभाजन) के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. 1967 के चुनावों में मिली हार के बाद कुछ कांग्रेसी दक्षिणपंथी दलों के साथ जबकि कुछ कांग्रेसी वामपंथी दलों के साथ समझौते का समर्थन कर रहे थे, जिससे कांग्रेस में मतभेद बढ़ा।
  2. कांग्रेस पार्टी के प्रमुख सदस्यों में 1967 में होने वाले राष्ट्रपति के चुनावों को लेकर मतभेद था जो अन्ततः कांग्रेस के विभाजन का तात्कालिक कारण बना।

प्रश्न 8.
कांग्रेस की फूट के पश्चात् कौनसे दो राजनीतिक दल उभरे?
उत्तर:
969 में कांग्रेस विभाजन के पश्चात् जो दो राजनीतिक दल सामने आए उनके नाम कांग्रेस (आर) (Congress Requisitioned) तथा कांग्रेस (ओ) (Congress Organisation) थे। कांग्रेस (आर) का नेतृत्व श्रीमती गाँधी कर रही थीं, वहीं कांग्रेस (ओ) का नेतृत्व सिंडिकेट कर रहा था जिसके अध्यक्ष निजलिंगप्पा थे गई?

प्रश्न 9.
आया राम गया राम’ किस वर्ष से संबंधित घटना है तथा यह टिप्पणी किस व्यक्ति के सम्बन्ध में की गई?
उत्तर:
‘आया राम गया राम’ सन् 1967 के वर्ष से संबंधित घटना है। ‘ आया राम गया राम’ नामक टिप्पणी कांग्रेस के हरियाणा राज्य के एक विधायक गया लाल के सम्बन्ध में की गई थी जिसने एक पखवाड़े के अन्दर तीन दफा अपनी पार्टी बदली।

प्रश्न 10.
1960 के दशक में कांग्रेस प्रणाली को पहली बार चुनौती क्यों मिली?
उत्तर:
कांग्रेस प्रणाली को 1960 के दशक में पहली बार चुनौती मिली क्योंकि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा गहन हो चली थी और ऐसे में कांग्रेस को अपना प्रभुत्व बरकरार रखने में मुश्किलें आ रही थीं। विपक्ष अब पहले की अपेक्षा कम विभाजित और ज्यादा ताकतवर था। कांग्रेस को अंदरूनी चुनौतियाँ भी झेलनी पड़ीं, क्योंकि अब यह पार्टी अपने अंदर की विभिन्नता को एक साथ थामकर नहीं चल पा रही थी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 11.
1969-1971 के दौरान इन्दिरा गाँधी की सरकार द्वारा सामना किये जाने वाली किन्हीं दो समस्याओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सन् 1969-71 के दौरान निम्नलिखित दो चुनौतियों का सामना।

  1. उन्हें सिंडिकेट (मोरारजी देसाई के प्रभुत्व वाले कांग्रेस का दक्षिणपंथी गुट) के प्रभाव से मुक्त होकर अपना निजी मुकाम बनाने की चुनौती थी।
  2. कांग्रेस ने 1967 के चुनावों में जो जमीन खोई थी उसे वापस हासिल करना था।

प्रश्न 12.
पांचवीं लोकसभा के चुनावों पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
पांचवीं लोकसभा के चुनाव 1971 में सम्पन्न हुए और चुनावों में श्रीमती गाँधी की कांग्रेस (आर) पार्टी ने शानदार सफलता प्राप्त की। लोकसभा की 518 सीटों में से कांग्रेस ने अकेले ही 352 सीटें जीतीं। इन चुनावों में कांग्रेस ने अपनी विरोधी पार्टियों को बुरी तरह से हराया।

प्रश्न 13.
किसने पाँचवीं लोकसभा निर्वाचन के समय ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुलन्द किया?
उत्तर:
1971 के पांचवीं लोकसभा के चुनावों में श्रीमती इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा बुलन्द किया। कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में भारी सफलता हासिल की तथा 352 स्थानों पर विजय प्राप्त की। कांग्रेस (ओ) ने केवल 10 प्रतिशत मत तथा केवल 16 स्थान प्राप्त किए।

प्रश्न 14.
पांचवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस की जीत के दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. 1971 में पांचवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व था।
  2. 1971 में श्रीमती गांधी की जीत का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण इनके द्वारा की गई समाजवादी नीति सम्बन्धी पहल तथा ‘गरीबी हटाओ’ का नारा था।

प्रश्न 15.
सिंडिकेट पर दक्षिणपंथियों से गुप्त समझौते करने के आरोप क्यों लगे?
उत्तर:
कांग्रेस ने जब राष्ट्रपति पद के लिए नीलम संजीव रेड्डी को आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया, तो कार्यवाहक राष्ट्रपति वी. वी. गिरि ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी तथा श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अंतरात्मा के आधार पर मत देने की बात कहकर वी.वी. गिरि का समर्थन कर दिया, तो निजलिंगप्पा ने जनसंघ तथा स्वतन्त्र पार्टी जैसे दक्षिणपंथी पार्टियों से अनुरोध किया कि वे अपना मत नीलम संजीव रेड्डी के पक्ष में डालें । इस पर जगजीवन राम तथा फखरुद्दीन अहमद ने सिंडीकेट पर दक्षिणपंथियों के साथ गुप्त समझौता करने का आरोप लगाया।

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प्रश्न 16.
लालबहादुर शास्त्री के जीवन पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
श्री लालबहादुर शास्त्री ( 1904-1966 ):
श्री लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में हुआ। 1930 से स्वतन्त्रता आंदोलन में भागीदारी की और उत्तरप्रदेश मंत्रिमण्डल में मंत्री रहे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के महासचिव का पदभार सँभाला। वे 1951 – 56 तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर रहे। इसी दौरान रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। 1957-64 के बीच वह मंत्री पद पर रहे। जून, 1964 से अक्टूबर, 1966 तक वह भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहे तथा

1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया तथा जीत हासिल की। उन्होंने देश में हरित क्रांति को आगे बढ़ाने के लिए प्रयोग किया तथा भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर देश बनाया। लेकिन शास्त्रीजी का देहान्त 10 अक्टूबर, 1966 को ताशकंद के उजबेग शहर में हो गया। वे प्रधानमंत्री पद पर अधिक समय तक नहीं रहे परंतु वे एक युद्धवीर साबित हुए।

प्रश्न 17.
श्रीमती इंदिरा गांधी के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए लाल बहादुर शास्त्री के उत्तराधिकारी के रूप में श्रीमती गाँधी पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी का संक्षिप्त परिचय – इंदिरा प्रियदर्शनी 1917 में जवाहर लाल नेहरू के परिवार में उत्पन्न हुईं। वह शास्त्रीजी के देहान्त के पश्चात् पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। युवा कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती गाँधी की भागीदारी रहीं। 1958 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर आसीन हुईं तथा 1964 से 1966 तक शास्त्री मंत्रिमण्डल में केन्द्रीय मन्त्री पद पर रहीं।

1967, 1971 और 1980 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने श्रीमती गाँधी के नेतृत्व में सफलता प्राप्त की। उन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ का लुभावना नारा दिया, 1971 में युद्ध में विजय का श्रेय और प्रिवी पर्स की समाप्ति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण, आण्विक परीक्षण तथा पर्यावरण संरक्षण के कदम उठाए। 31 अक्टूबर, 1984 के दिन इनकी हत्या कर दी गई।

प्रश्न 18.
दल-बदल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
आया राम-गया राम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दल-बदल – भारत की राजनीति में ध्यानाकर्षण करने वाली कुरीति ( बुराई ) दल-बदल रही है। 1967 के आम चुनाव की एक खास बात दल-बदल की रही। इस विशेषता के कारण कई राज्यों में सरकारों के बनने और बिगड़ने की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दृष्टिगोचर हुईं। जब कोई जनप्रतिनिधि किसी विशेष राजनैतिक पार्टी का चुनाव चिह्न लेकर चुनाव लड़े और वह चुनाव जीत जाए और अपने स्वार्थ के लिए या किसी अन्य कारण से मूल दल छोड़कर किसी अन्य दल में शामिल हो जाए, इसे दल-बदल कहते हैं। 1967 के सामान्य चुनावों के बाद कांग्रेस को छोड़ने वाले विधायकों ने तीन राज्यों हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में गैर-कांग्रेसी सरकारों को गठित करने में अहम भूमिका निभाई। इस दल-बदल के कारण ही देश में एक मुहावरा या लोकोक्ति – ‘ आया राम-गया राम’ बहुत प्रसिद्ध हो गया।

प्रश्न 19.
के. कामराज कौन थे? उनके जीवन के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर:
के. कामराज़ का जन्म 1903 में हुआ था। वे देश के महान स्वतन्त्रता एक प्रमुख नेता के रूप में अत्यधिक ख्याति प्राप्त की। सेनानी थे। उन्होंने कांग्रेस के उन्हें मद्रास (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री के पद पर रहने का सौभाग्य मिला। मद्रास प्रान्त में शिक्षा का प्रसार और स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन देने की योजना लागू करने के लिए उन्हें अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई। उन्होंने 1963 में कामराज योजना नाम से मशहूर एक प्रस्ताव रखा जिसके अंतर्गत उन्होंने सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को त्यागपत्र दे देने का सुझाव दिया, ताकि जो अपेक्षाकृत कांग्रेस पार्टी के युवा कार्यकर्ता हैं वे पार्टी की कमान संभाल सकें। वह कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। 1975 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 20.
1967 के गैर-कांग्रेसवाद एवं चुनावी बदलाव का वर्णन करें।
अथवा
1967 में हुए चौथे आम चुनाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
1967 के चौथे आम चुनावों में भारतीय मतदाताओं ने कांग्रेस को वैसा समर्थन नहीं दिया जो पहले तीन आम चुनावों में दिया था। केन्द्र में जहाँ कांग्रेस मुश्किल से बहुमत प्राप्त कर पाई वहीं 8 राज्य विधान सभाओं (बिहार, केरल, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल) में हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा की कुल 520 सीटों में से कांग्रेस को केवल 283 सीटें ही मिल पाईं।

अतः जिस कांग्रेस पार्टी ने पहले तीन आम चुनावों में जिन विरोधी दलों को बुरी तरह से हराया वे दल चौथे लोकसभा चुनाव में बहुत अधिक सीटों पर चुनाव जीत गए। इसी तरह राज्यों में भी कांग्रेस की स्थिति 1967 के आम चुनावों में ठीक नहीं थी। 1967 के चुनाव बहुत बड़े उलट-फेर वाले रहे। पहली बार भारत में बड़े पैमाने पर गैर-कांग्रेसवाद की लहर चली तथा राज्यों में कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त हो गया।

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प्रश्न 21.
इंदिरा गांधी बनाम सिंडिकेट पर टिप्पणी लिखिए। इंदिरा गांधी बनाम सिंडिकेट
उत्तर:
सन् 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को मिली हार के बाद कुछ कांग्रेसी दक्षिणपंथी दलों के साथ जबकि कुछ कांग्रेसी वामपंथी दलों के साथ समझौते का समर्थन कर रहे थे। दक्षिणपंथी दलों के साथ समर्थन का पक्ष लेने वाले नेताओं में रामराज, एस. के. पाटिल, निजलिंगप्पा तथा मोरारजी देसाई प्रमुख थे। इनके समूह को सिण्डीकेट के नाम से जाना जाता है। वामपंथी दलों के साथ समझौते के समर्थक युवा तुर्क कांग्रेसी तथा प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी थीं।

इन दोनों के बीच मतभेद 1967 में राष्ट्रपति के पद के प्रत्याशी को लेकर मतभेद हुए जो पार्टी के विभाजन का कारण बने, 1969 में श्रीमती गाँधी द्वारा मोरारजी देसाई से वित्त विभाग वापस लेने के कारण श्रीमती इन्दिरा गाँधी और सिंडिकेट के बीच मतभेद अत्यन्त बढ़ गये। फलतः 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

प्रश्न 22.
1969 में कांग्रेस पार्टी में विभाजन के क्या कारण थे?
अथवा
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन के प्रमुख कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी के विभाजन के कारण: 1969 में कांग्रेस पार्टी में विभाजन या फूट के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. दक्षिणपंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह: कांग्रेस के सदस्यों में इस बात पर मतभेद मुखर हो गया था कि वे वामपंथी दलों के साथ मिलकर लड़े या दक्षिणपंथी दलों के साथ।
  2. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद: कांग्रेस में 1967 में होने वाले राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को लेकर मतभेद था जो पार्टी के विभाजन का कारण बना।
  3. युवा तुर्क और सिण्डीकेट के बीच कलह: युवा तुर्क और सिण्डीकेट के मध्य मतभेद था। जहाँ युवा तुर्क बैंकों के राष्ट्रीयकरण एवं राजाओं के प्रिवी पर्स को समाप्त करने के पक्ष में था वहीं सिण्डीकेट इसका विरोध कर रहा था।
  4. मोरारजी देसाई से वित्त विभाग वापस लेना: 1969 में श्रीमती गाँधी द्वारा मोरारजी देसाई से वित्त विभाग वापस लेने के कारण भी मतभेद बढ़ा।

प्रश्न 23.
1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पुनर्स्थापना के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
1971 के चुनाव के बाद किन कारणों से कांग्रेस की पुनर्स्थापना हुई?
अथवा
पाँचवीं लोकसभा (1971) में कांग्रेस पार्टी की जीत के मूल कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पांचवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस की विजय के कारण: पांचवीं लोकसभा में कांग्रेस की विजय के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. श्रीमती गांधी का चमत्कारिक नेतृत्व:1971 के चुनावों में कांग्रेस के पीछे श्रीमती गांधी के चमत्कारिक नेतृत्व का हाथ रहा।
  2. समाजवादी नीतियाँ: 1971 के चुनावों में श्रीमती गांधी ने समाजवादी नीतियाँ अपनायीं। उन्होंने प्रत्येक चुनाव रैली में समाजवाद के विषय में बढ़-चढ़ कर बातें कीं।
  3. गरीबी हटाओ का नारा: इस नारे के बल पर श्रीमती गांधी ने अधिकांश गरीबों के वोट बटोरे।
  4. कांग्रेस दल पर श्रीमती गांधी की पकड़: 1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन के पश्चात् श्रीमती गाँधी पूरी तरह पार्टी पर छा गईं। कोई भी नेता उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता था।

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प्रश्न 24.
1971 के चुनाव के परिणामस्वरूप बदली हुई कांग्रेस व्यवस्था की प्रकृति कैसी थी?
उत्तर:
1971 के चुनाव के बाद कांग्रेस व्यवस्था की प्रकृति: 1971 के चुनाव के बाद बदली हुई कांग्रेस व्यवस्था की प्रकृति निम्नलिखित थी।

  1. 1971 के चुनाव के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस को अपने ऊपर निर्भर बना दिया। अब यहाँ उनके आदेश सर्वोपरि बनने प्रारंभ हुए। सिंडीकेट जैसे अनौपचारिक प्रभावशाली नेताओं का समूह राजनीतिक मंच से गायब हो गया।
  2. 1971 के पश्चात् कांग्रेस का संगठन भिन्न-भिन्न विचारधाराओं वाले समूहों के समावेशी किस्म का नहीं रहा। अब यह अनन्य एकाधिकारिता वाला बन गया था।
  3. इन्दिरा गाँधी अब धनी उद्योगपतियों, सौदागरों तथा राजनीतिज्ञों के समूह अथवा सिंडीकेट के हाथों अब कठपुतली नहीं रहीं।

प्रश्न 25.
गरीबी हटाओ की राजनीति से आप क्या समझते हैं?
अथवा
गरीबी हटाओ की राजनीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गरीबी हटाओ की राजनीति:
1971 के चुनावों में श्रीमती इंदिरा गाँधी के गरीबी हटाओ के नारे को मतदाताओं ने अधिक पसन्द करते हुए श्रीमती गांधी को भारी विजय दिलाई। गरीबी हटाओ कार्यक्रम के अन्तर्गत 1970- 1971 से नीतियाँ एवं कार्यक्रम बनाये जाने लगे तथा इस कार्यक्रम पर अधिक से अधिक धन खर्च किया जाने लगा। परन्तु 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध एवं विश्व स्तर पर पैदा हुए तेल संकट के कारण श्रीमती गाँधी ने गरीबी हटाओ कार्यक्रम की राशि में कटौती करना शुरू कर दिया जिससे यह नारा कमजोर पड़ने लगा और केवल पांच साल के अन्दर श्रीमती गाँधी की गरीबी हटाओ की राजनीति असफल हो गई । परिणामतः 1977 के चुनावों में श्रीमती गांधी को पराजय का सामना करना पड़ा तथा जनता पार्टी को सत्ता प्राप्त हुई।

प्रश्न 26.
प्रारंभ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न क्या था? कितने वर्ष बाद कांग्रेस फूट का शिकार बनी? अब इस दल का चुनाव चिह्न क्या है?
उत्तर:
प्रारंभ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी था। आजादी के 22 वर्ष गुजरते गुजरते कांग्रेस में व्यापक फूट हो गई थी। अब इस दल का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है।

प्रश्न 27.
राममनोहर लोहिया का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
राममनोहर लोहिया: राममनोहर लोहिया का जन्म 1910 में हुआ। वे समाजवादी नेता एवं विचारक थे तथा स्वतन्त्रता सेनानी एवं सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे। वे मूल पार्टी में विभाजन के बाद सोशलिस्ट पार्टी एवं बाद में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता बने। 1963 से 1967 तक लोकसभा सांसद रहे। वे ‘मैन काइंड’ एवं ‘जन’ के सम्पादक बने। गैर-यूरोपीय समाजवादी सिद्धान्त के विकास में उनका मौलिक योगदान रहा।

वे भारतीय राजनीति के क्षितिज पर गैर- कांग्रेसवादी विचारधारा के संयोजनकर्ता और रणनीतिकार के रूप में उभरे। उन्होंने जीवन भर दलित और पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिए जाने की वकालत की। उन्होंने प्रारम्भ में नेहरू के खिलाफ मोर्चा खोला। भाषा की दृष्टि से वे अंग्रेजी के घोर विरोधी थे। उनका देहान्त 1967 में हुआ।

प्रश्न 28.
प्रिवी पर्स से आप क्या समझते हैं? इस व्यवस्था की समाप्ति के विभिन्न प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
प्रिवी पर्स का क्या अर्थ है? 1970 में इंदिरा गाँधी इसे क्यों समाप्त कर देना चाहती थीं? प्रिवी पर्स की समाप्ति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रिवी पर्स से आशय भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय देशी रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया तथा इनके तत्कालीन शासकों को जीवनयापन हेतु विशेष धनराशि एवं भत्ते दिये जाने की व्यवस्था की गई। इसे प्रिवी पर्स के नाम से जाना जाता है। प्रिवीपर्स की समाप्ति श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने प्रिवी पर्स को समाप्त करने के लिए 1970 में संविधान में संशोधन का प्रयास किया, लेकिन राज्य सभा में यह मंजूरी नहीं पा सका। इसके बाद सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, लेकिन इसे सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। श्रीमती गांधी ने इसे 1971 के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाया और 1971 में मिली भारी जीत के बाद संविधान में संशोधन किया गया। इस प्रकार प्रिवी पर्स की समाप्ति की राह में मौजूदा कानूनी अड़चनें समाप्त हुईं।

प्रश्न 29.
1971 के चुनावों में इंदिरा गाँधी की नाटकीय जीत के लिए कौन-कौनसे प्रमुख कारक जिम्मेदार थे?
उत्तर:
हालाँकि 1971 के चुनावी मुकाबले में काँग्रेस की स्थिति अत्यंत ही कमजोर थी, इसके बावजूद नयी काँग्रेस के साथ एक ऐसी बात थी, जिसका उसके बड़े विपक्षियों के पास अभाव था। नयी काँग्रेस के पास एक मुद्दा था; एक एजेंडा और कार्यक्रम था। विपक्ष के ‘इंदिरा हटाओ’ के विपरीत इंदिरा गाँधी ने लोगों के सामने ‘गरीबी हटाओ’ नामक सकारात्मक कार्यक्रम रखा। यह इंदिरा गाँधी की नाटकीय जीत के लिए एक प्रमुख कारक साबित हुआ।

प्रश्न 30.
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन क्यों दिया?
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन दिया क्योंकि।

  1. इंदिरा गाँधी जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं और वह पूर्व में काँग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी थीं तथा शास्त्री के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रह चुकी थीं।
  2. वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि इंदिरा गाँधी की प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभवहीनता उन्हें समर्थन और मार्गदर्शन के लिए उन पर निर्भर होने पर मजबूर करेंगी और श्रीमती गाँधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी।

प्रश्न 31.
1967 में इंदिरा गाँधी सरकार ने भारतीय रुपये का अवमूल्यन क्यों किया?
उत्तर:
इंदिरा गाँधी सरकार ने 1967 के आर्थिक संकट की जाँच के लिए भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया। परिणामतः 1 अमरीकी डॉलर की कीमत 5 रुपये थी जो बढ़कर 7 रुपये हो गई।

  1. आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई।
  2. लोग आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, खाद्यान्न की कमी, बढ़ती हुई बेरोजगारी और देश की दयनीय आर्थिक स्थिति को लेकर विरोध पर उतर आए।
  3. साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया।

प्रश्न 32.
काँग्रेस को दूसरी बार राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती का सामना कैसे करना पड़ा?
उत्तर:
काँग्रेस को दूसरी बार राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती का सामना लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के उपरांत करना पड़ा।

  1. यह चुनौती मोरारजी देसाई और इंदिरा गाँधी के बीच एक गुप्तदान के माध्यम से हल करने के लिए एक गहन प्रतियोगिता के साथ शुरू हुई।
  2. इस चुनाव में इंदिरा गाँधी ने मोरारजी देसाई को हरा दिया था। उन्हें कांग्रेस पार्टी के दो-तिहाई से अधिक सांसदों ने अपना मत दिया था।
  3. नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा के बावजूद पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण बड़े शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो गया।

प्रश्न 33.
गठबंधन के नए युग में संयुक्त विधायक दल की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
1967 के चुनावों से गठबंधन की परिघटना सामने आयी। क्योंकि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकार को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया-।

  1. बिहार में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार में वामपंथी: सीपीआई और दक्षिणपंथी जनसंघ शामिल था।
  2. पंजाब में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार को ‘पॉपुलर यूनाइटेड फ्रंट’ की सरकार कहा गया। इसमें परस्पर प्रतिस्पर्धी अकाली दल – संत ग्रुप और मास्टर ग्रुप शामिल थे।

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प्रश्न 34.
1970 के दशक की शुरुआत में इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता बढ़ाने वाले तीन कारकों का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
इंदिरा गाँधी सरकार ने अपनी छवि को समाजवादी बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए?
उत्तर:

  1. 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी ने भूमि सुधार के मौजूदा कानूनों के क्रियान्वय के लिए जबरदस्त अभियान चलाए। उन्होंने भू- परिसीमन के कुछ और कानून भी बनवाए।
  2. दूसरे राजनीतिक दलों पर अपनी निर्भरता समाप्त करने, संसद में अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने और अपने कार्यक्रमों के पक्ष में जनादेश हासिल करने के लिए 1970 के दिसंबर में लोकसभा भंग करने की सिफारिश की।
  3. भारत-पाक युद्ध में बाँग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के संकट ने भी इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 35.
1967 के चुनाव को भारत के राजनीतिक और चुनावी इतिहास में एक ऐतिहासिक वर्ष क्यों माना गया? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1967 के चुनाव को भारत के राजनीतिक और चुनावी इतिहास में ऐतिहासिक वर्ष माना गया क्योंकि।

  1. यह चुनाव नेहरू के बिना पहली बार आयोजित किया गया था । इस चुनाव का फैसला काँग्रेस के पक्ष में नहीं था और इसके नतीजों ने राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर काँग्रेस को झटका दिया।
  2. इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गए थे। इसमें तमिलनाडु से कामराज, महाराष्ट्र से एस. के. पाटिल, पश्चिम बंगाल से अतुल्य घोष और बिहार से के. बी. सहाय इत्यादि शामिल हैं।
  3. चुनावी इतिहास में यह पहली घटना थी जब किसी गैर- काँग्रेसी दल को किसी राज्य में पूर्ण बहुमत मिला।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पण्डित जवाहर लाल नेहरू के बाद राजनीतिक उत्तराधिकार पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
सन् 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि भारत में कांग्रेस पार्टी में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ जायेगा और कांग्रेस पार्टी बिखर जायेगी। लेकिन यह सब गलत साबित हुआ और पं. नेहरू की मृत्यु के बाद उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी के रूप में पहले लालबहादुर शास्त्री तथा बाद में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सफलतापूर्वक कार्य किया।
1. श्री लालबहादुर शास्त्री:
लालबहादुर शास्त्री ने 6 जून, 1964 को भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। जब शास्त्रीजी ने नेहरू की मृत्यु के बाद कार्यभार सँभाला उस समय देश अनेक संकटों का सामना कर रहा था। देश में अनाज की कमी थी। देश का मनोबल नीचा था, सीमान्त क्षेत्रों में तनाव विद्यमान था आदि। शास्त्रीजी ने इन चुनौतियों का दृढ़तापूर्वक सामना किया तथा कृषि पर बल देते हुए ‘अधिक अन्न उगाओ के साथ ही ‘जय जवान जय किसान’ का मशहूर नारा भी दिया।

1965 में पाकिस्तान के आक्रमण का शास्त्रीजी की सूझ-बूझ एवं कुशल नेतृत्व से युद्ध में विजय प्राप्त की । सोवियत संघ के प्रयासों से 1966 में भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकंद में समझौता हुआ और ताशकन्द में ही जनवरी, 1966 में शास्त्रीजी की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।

2. श्रीमती इंदिरा गांधी: शास्त्रीजी की मृत्यु के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। अपने प्रधानमंत्री काल में श्रीमती गांधी ने ऐसे कई कार्य किए जिससे देश प्रगति कर सके। उन्होंने कृषि कार्यों को बढ़ावा दिया। गरीबी को हटाने के लिए कार्यक्रम घोषित किया तथा देश की सेनाओं का आधुनिकीकरण किया। 1974 में पोकरण में ऐतिहासिक परमाणु परीक्षण किया। 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में भारत की निर्णायक विजय हुई तथा बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इस युद्ध में विजय के बाद विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी।

प्रश्न 2.
1971 में पांचवीं लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की विजय पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
अथवा
पांचवीं लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की जीत के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
1971 का लोकसभा चुनाव इंदिरा गांधी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। श्रीमती गाँधी पार्टी अनुभवी नेताओं को छोड़कर, निर्वाचकों के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए निकल पड़ीं और चुनावों में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त की। श्रीमती गाँधी की पार्टी को लोकसभा की 518 सीटों में से 352 सीटें प्राप्त हुईं। कांग्रेस की इस अप्रत्याशित सफलता के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार रहे, जो इस प्रकार हैं।

  1. श्रीमती गांधी का प्रभावशाली नेतृत्व: 1971 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की सफलता का मूल कारण श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक एवं प्रभावशाली नेतृत्व रहा।
  2. पार्टी पर श्रीमती गांधी की पकड़ व नियन्त्रण: इस चुनाव में श्रीमती गांधी की अपने दल पर पूरी पकड़ एवं प्रभाव था।
  3. गरीबी हटाओ का नारा: 1971 में कांग्रेस पार्टी की सफलता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण उनके द्वारा दिया गया गरीबी हटाओ का नारा था । इस नारे के बल पर श्रीमती गांधी ने अधिकांश गरीबों के वोट अपनी झोली में डाले।
  4. समाजवादी नीतियों एवं कार्यक्रमों का निर्धारण: 1971 के चुनावों में कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत का एक और कारण बैंकों का राष्ट्रीयकरण, राजाओं के प्रीविपर्स बन्द करना तथा श्रीमती गाँधी की अन्य समाजवादी नीतियों को भी माना जाता है। इस प्रकार श्रीमती गांधी का चमत्कारिक नेतृत्व गरीबी हटाओ का नारा, बैंकों का राष्ट्रीयकरण व समाजवादी नीतियों का अपनाना ऐसे मुद्दे थे जिन्होंने 1971 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी सफलता दिलाई।

प्रश्न 3.
1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार की लोकप्रियता बढ़ाने वाले कारकों का विस्तारपूर्वक विश्लेषण कीजिए
उत्तर:
1. लोकसभा का पांचवा आमचुनाव 1971 में हुआ था। चुनावी मुकाबला काँग्रेस (आर) के विपरीत जान पड़ रहा था। हर किसी को विश्वास था कि काँग्रेस पार्टी की असली सांगठनिक ताकत काँग्रेस (ओ) के नियंत्रण में है। इसके अतिरिक्त, सभी बड़ी गैर – साम्यवादी और गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था। से ‘ग्रैंड अलायंस’ कहा गया। एसएसपी, पीएसपी, भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांतिदल, चुनाव में एक छतरी के नीचे आ गए। शासक दल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया। इसके बावजूद नयी काँग्रेस के साथ एक ऐसी बात थी, जिसका उसके बड़े विपक्षियों के पास अभाव था।

2. नयी कॉंग्रेस के पास एक मुद्दा था; एक एजेंडा और कार्यक्रम था। ‘ग्रैंड अलायंस’ के पास कोई सुसंगत राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। विपक्षी गठबंधन के ‘इंदिरा हटाओ’ के विपरीत इंदिरा गाँधी के ‘गरीबी हटाओ’ नामक सकारात्मक कार्यक्रम रखा।

3. इंदिरा गाँधी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि, ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी संपदा के परिसीमन, आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा ‘प्रिवी पर्स’ की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे से इंदिरा गाँधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की।

‘गरीबी हटाओ’ का नारा और इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गाँधी की राजनीतिक रणनीति थी। परिणामस्वरूप इंदिरा गाँधी की काँग्रेस (आर) ने 352 सीटें और 44 प्रतिशत वोट हासिल किये। इस जीत के साथ इंदिरा गाँधी की अगुवाई वाली काँग्रेस ने अपने दावे को साबित कर दिया और भारतीय राजनीति में फिर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 4.
काँग्रेस ‘सिंडिकेट’ पर विस्तार में लिखिए।
उत्तर:
कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर ‘सिंडिकेट’ के नाम से इंगित किया जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। ‘सिंडिकेट’ के अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और फिर काँग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। इसमें प्रांतों के ताकतवर नेता जैसे बंबई सिटी के एस. के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आंध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। लालबहादुर शास्त्री और उसके बाद इंदिरा गाँधी दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमंत्री के पद पर आरूढ़ हुए थे।

इंदिरा गाँधी के पहले मंत्रिपरिषद् में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही। इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस के विभाजित होने के बाद सिंडिकेट के नेताओं और उनके प्रति निष्ठावान काँग्रेसी काँग्रेस (ओ) में ही रहे । चूँकि इंदिरा गाँधी की काँग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रहीं, इसलिए भारतीय राजनीति के ये बड़े और ताकतवर नेता 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए।

प्रश्न 5.
1969 के दौरान काँग्रेस में विभाजन के लिए जिम्मेदार कारकों का विस्तार में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
काँग्रेस में औपचारिक विभाजन 1969 में राष्ट्रपति चुनावों के दौरान उम्मीदवार के नामांकन के मुद्दे पर हुआ।

  • राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण राष्ट्रपति का पद रिक्त हो गया और इंदिरा गाँधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को काँग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया।
  • इस स्थिति का प्रतिकार करने के लिए इंदिरा गाँधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भरें।
  • चुनाव के दौरान तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने ‘ह्विप’ जारी किया कि काँग्रेसी सांसद और विधायक संजीव रेड्डी को वोट डालें।
  • दूसरी तरफ इंदिरा गाँधी ने छुपे तौर पर वी.वी. गिरि को समर्थन करते हुए विधायकों और सांसदों को अंतरात्मा की आवाज पर तथा अपनी मनमर्जी से वोट डालने का आह्वान किया।
  • आखिरकार राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी.वी. गिरि विजयी हुए।
  • कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया; और इस प्रकार काँग्रेस पार्टी का विभाजन दो गुटों में हो गया।
    1. सिंडिकेट की अगुवाई वाले काँग्रेसी खेमा को काँग्रेस (ओ) के नाम से तथा
    2. इंदिरा गाँधी की अगुवाई वाले काँग्रेसी खेमे को काँग्रेस (आर) के नाम से जाना गया।
  • इन दोनों दलों को क्रमशः ‘पुरानी काँग्रेस’ और ‘नयी काँग्रेस’ भी कहा जाता था।

प्रश्न 6.
1967 के चौथे आम चुनाव से पहले गंभीर आर्थिक संकट की जाँच करें। चुनावी फैसले का भी आकलन करें।
उत्तर:
इंदिरा गाँधी सरकार ने 1967 के आर्थिक संकट की जाँच के लिए भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया फलस्वरूप पहले के वक्त में 1 अमरीकी डॉलर की कीमत 5 रुपये थी जो बढ़कर 7 रुपये हो गई।

  • आर्थिक संकट के कारण कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ।
  • आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, बेरोजगारी आदि को लेकर जनता विरोध करने लगी।
  • साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया। चौथा आम चुनाव पहली बार नेहरू की गैर मौजूदगी में हुआ था।
    1. चुनाव के परिणामों से काँग्रेस को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर धक्का लगा।
    2. इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गए थे। तमिलनाडु से कामराज, महाराष्ट्र से एस. पाटिल, पश्चिम बंगाल से अतुल्य घोष इत्यादि दिग्गजों को मुँह की खानी पड़ी थी।
    3. काँग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला और दो अन्य राज्यों में दलबदल के कारण यह पार्टी सरकार नहीं बना पायी।
    4. चुनावी इतिहास में यह पहली घटना थी जब किसी गैर – काँग्रेसी दल को किसी राज्य में पूर्ण बहुमत मिला।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. भारतीय विदेश नीति के जनक हैं।
(क) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(ग) वल्लभ भाई पटेल
(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(घ) मौलाना अबुल कलाम आजाद।
उत्तर:
(क) पंडित जवाहरलाल नेहरू

2. भारतीय विदेश नीति किन कारकों से प्रभावित है।
(क) सांस्कृतिक कारक
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय कारक
(ख) घरेलू कारक
(घ) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारक।
उत्तर:
(घ) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारक।

3. बाण्डुंग सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
(क) 1954 में
(ख) 1955 में
(ग) 1956 में
(घ) 1957 में।
उत्तर:
(ख) 1955 में

4. भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है।
(क) पंचशील
(ख) सैनिक गुट
(ग) गुटबन्दी
(घ) उदासीनता।
उत्तर:
(क) पंचशील

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

5. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रणेता हैं।
(क) पं. नेहरू
(ख) नासिर
(ग) मार्शल टीटो
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

6. पंचशील के सिद्धान्त किसके द्वारा घोषित किये गये थे?
(क) नेहरू
(ग) राजीव गाँधी
(ख) लाल बहादुर शास्त्री
(घ) अटल बिहारी वाजपेयी।
उत्तर:
(क) नेहरू

7. पहला परमाणु परीक्षण भारत में कब किया गया था?
(क) 1971
(ख) 1974
(ग) 1980
(घ) 1985।
उत्तर:
(ख) 1974

8. निम्न का सही मिलान कीजिए।

(क) घाना (i) जवाहरलाल नेहरू
(ख) मिस्र (ii) एन कुमा
(ग) भारत (iii) नासिर
(घ) इंडोनेशिया (iv) सुकर्णो
(ङ) यूगोस्लाविया (v) टीटो

उत्तर:

(क) घाना (ii) एन कुमा
(ख) मिस्र (iii) नासिर
(ग) भारत (i) जवाहरलाल नेहरू
(घ) इंडोनेशिया (iv) सुकर्णो
(ङ) यूगोस्लाविया (v) टीटो

9. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीति-निर्देशक सिद्धांत का उल्लेख किया गया हैं।
(क) अनुच्छेद 47
(ख) अनुच्छेद 50
(ग) अनुच्छेद 51
(घ) अनुच्छेद 49
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 51

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10. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान आई. एन. ए. का गठन किसने किया था?
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ग) सरदार पटेल
(ख) सुभाषचंद्र बोस
(घ) भगत सिंह
उत्तर:
(ख) सुभाषचंद्र बोस

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. पंडित नेहरू के अनुसार हर देश की आजादी बुनियादी तौर पर ………………………. संबंधों से ही बनी होती है।
उत्तर:
विदेश

2. शीतयुद्ध के दौरान चीन में ……………………. शासन की स्थापना हुई।
उत्तर:
कम्युनिस्ट

3. शीतयुद्ध के समय अमरीका द्वारा उत्तर अटलांटिक संधि संगठन का जवाब सोवियत संघ ने …………………….. नामक संधि संगठन बनाकर दिया।
उत्तर:
वारसा पैक्ट

4. ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर ………………………….. में आक्रमण किया।
उत्तर:
1956

5. नेहरू की अगुवाई में भारत ने ……………………… के मार्च में ………………………. संबंध सम्मेलन का आयोजन किया।
उत्तर:
एशियाई

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत ने ताशकंद में किस संधि पर हस्ताक्षर किए?
उत्तर:
भारत ने ताशकंद में पाकिस्तान के साथ मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 2.
भारत के पहले विदेश मंत्री कौन थे?
उत्तर:
पण्डित जवाहरलाल नेहरू।

प्रश्न 3.
भारत में एशियाई सम्मेलन का आयोजन कब किया गया?
उत्तर:
सन् 1947 में।

प्रश्न 4.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में किस नये देश का जन्म हुआ?
उत्तर:
बांग्लादेश का।

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प्रश्न 5.
शिमला समझौते पर कब व किसने हस्ताक्षर किये?
उत्तर:
शिमला समझौते पर जुलाई, 1972 में भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किये।

प्रश्न 6.
भारत द्वारा दूसरा परमाणु परीक्षण कब किया गया?
उत्तर:
11 व 13 मई, 1998 के बीच

प्रश्न 7.
1966 में ताशकंद समझौता किन दो राष्ट्रों के मध्य हुआ?
अथवा
ताशकन्द समझौता कब और किसके मध्य हुआ?
उत्तर:
10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के मध्य।

प्रश्न 8.
चीन ने तिब्बत पर कब कब्जा किया?
उत्तर:
चीन ने तिब्बत पर 1950 में कब्जा किया।

प्रश्न 9.
चीन और भारत में पंचशील समझौता कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1954 में।

प्रश्न 10.
एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था।

प्रश्न 11.
राष्ट्र शक्ति के तीन साधन कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक सम्पदा, धन, धन एवं जन-शक्ति।

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प्रश्न 12.
आजाद हिन्द फौज की स्थापना किसने की?
उत्तर:
सुभाषचन्द्र बोस ने।

प्रश्न 13.
विदेश नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देशों के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है। जिसे विदेश नीति कहा जाता है।

प्रश्न 14.
भारतीय विदेश नीति के दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  1. क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा करना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा कायम रखना और उसे प्रोत्साहन देना।

प्रश्न 15.
एशियन सम्बन्ध सम्मेलन कब और किसके नेतृत्व में हुआ?
उत्तर:
एशियन सम्बन्ध सम्मेलन मार्च, 1947 में पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत में हुआ।

प्रश्न 16.
भारतीय विदेश नीति के संवैधानिक आधार बताइए।
उत्तर:
अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिये गये हैं।

प्रश्न 17.
तिब्बत के किस धार्मिक नेता ने भारत में कब शरण ली?
उत्तर:
तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत में शरण माँगी।

प्रश्न 18.
शीतयुद्ध के दौरान अमरीका द्वारा कौन-सा संगठन बनाया गया?
उत्तर:
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO)।.

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प्रश्न 19.
ब्रिटेन ने मिस्र पर कब और क्यों आक्रमण किया?
उत्तर:
ब्रिटेन ने मिस्र पर 1956 में स्वेज नहर के मामले को लेकर आक्रमण किया।

प्रश्न 20.
वारसा पैक्ट नामक संगठन किसके द्वारा बनाया गया?
उत्तर:
सोवियत संघ।

प्रश्न 21. भारत और चीन के बीच सबसे बड़ा मुद्दा क्या रहा है?
उत्तर:
भारत और चीन के बीच सबसे बड़ा मुद्दा सीमा विवाद का रहा है।

प्रश्न 22.
भारतीय विदेश नीति के किन्हीं दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के दो सिद्धान्त ये हैं।

  1. गुटनिरपेक्षता की नीति
  2. पंचशील सिद्धान्त।

प्रश्न 23.
गुटनिरपेक्षता का अर्थ बताइये।
उत्तर:
किसी गुट में शामिल न होते हुए, राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन करना ही गुटनिरपेक्षता है।

प्रश्न 24.
नियोजित विकास की रणनीति में किस बात पर जोर दिया गया?
उत्तर:
आयात कम करने पर और संसाधन आधार तैयार करने पर।

प्रश्न 25.
बांडुंग सम्मेलन कब और कहाँ सम्पन्न हुआ?
उत्तर:
1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग शहर में1

प्रश्न 26.
पंचशील के दो सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:

  1. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  2. अनाक्रमण।

प्रश्न 27.
WTO का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन ( अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन)।

प्रश्न 28.
गुटनिरपेक्षता की नीति के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:

  1. स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन।
  2. विकासशील राष्ट्रों के आर्थिक विकास हेतु प्रयत्न करना।

प्रश्न 29.
सी. टी. बी. टी. का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
कॉम्प्रीहेन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी।

प्रश्न 30.
पंचशील सिद्धान्त का प्रतिपादन कब किया गया?
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन 29 अप्रैल, 1954 को भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने तिब्बत के समझौते पर हस्ताक्षर करके किया।

प्रश्न 31.
मुजीबुर्रहमान की पार्टी का नाम क्या था?
उत्तर:
आवामी लीग।

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प्रश्न 32.
रक्षा – उत्पाद विभाग और रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
रक्षा आपूर्ति विभाग – 1962
रक्षा आपूर्ति विभाग – 1965

प्रश्न 33.
चौथी पंचवर्षीय योजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
1969

प्रश्न 34.
भारत ने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत किसके निर्देशन में की?
उत्तर:
होमी जहाँगीर भाभा।

प्रश्न 35.
अरब-इजरायल युद्ध कब हुआ?
उत्तर:
1973 में।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय विदेश नीति राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है?
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता, दूसरे देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध, जातीय भेदभाव का विरोध और संयुक्त राष्ट्र का समर्थन आदि विदेश नीति के सिद्धांत भारत के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में सहायक सिद्ध हुए हैं। भारत शुरुआत से ही शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए भारत ने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर आधारित किया। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने सबसे मित्रतापूर्ण व्यवहार रखा। वर्तमान समय में भी भारत के संबंध विश्व की महाशक्तियों एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे हैं।

प्रश्न 2.
विकासशील देशों की विदेश नीति का लक्ष्य सीधा-सादा होता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
जिस प्रकार किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को अंदरूनी और बाहरी कारक निर्देशित करते हैं उसी ” तरह एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है। विकासशील देशों के पास अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने के लिए जरूरी संसाधनों का अभाव होता है। इसके कारण विकासशील देश बढ़े – चढ़े देशों की अपेक्षा सीधे-सादे लक्ष्यों को लेकर अपनी विदेश नीति तय करते हैं। ऐसे देश इस बात पर जोर देते हैं कि उनके पड़ोसी देशों में शांति कायम रहे और विकास भी होता रहे।

प्रश्न 3.
शिमला समझौता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
शिमला समझौता क्या है?
उत्तर:
भारत-पाक युद्ध 1971 के बाद जुलाई, 1972 में शिमला में भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ जिसे शिमला समझौता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पंचशील के सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन 29 अप्रैल, 1954 को भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने तिब्बत के सम्बन्ध में एक समझौता किया। ये सिद्धान्त हैं।

  1. सभी देश एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करें।
  2. अनाक्रमण।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  4. परस्पर समानता तथा लाभ के आधार पर कार्य करना।
  5. शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व।

प्रश्न 5.
अनुच्छेद 51 में वर्णित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बढ़ाने वाले कोई दो नीति निदेशक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनुच्छेद-51 में वर्णित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बढ़ाने वाले दो नीति निदेशक तत्त्व ये हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि करना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करना।

प्रश्न 6.
पण्डित नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पण्डित नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता नकारात्मक तटस्थता, अप्रगतिशील अथवा उपदेशात्मक नीति नहीं है । इसका अर्थ सकारात्मक है अर्थात् जो उचित और न्यायसंगत है उसकी सहायता एवं समर्थन करना तथा जो अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है उसकी आलोचना एवं निन्दा करना है।

प्रश्न 7.
भारतीय विदेश नीति में साधनों की पवित्रता से क्या अर्थ है?
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति में साधनों की पवित्रता से तात्पर्य है। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में शान्तिपूर्ण तरीकों का समर्थन तथा हिंसात्मक एवं अनैतिक साधनों का विरोध करना । भारतीय विदेश नीति का यह तत्त्व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को परस्पर घृणा तथा सन्देह की भावना से दूर रखना चाहता है।

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प्रश्न 8.
दूसरे युद्ध के पश्चात् विकासशील देशों ने क्या ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति बनाई?
उत्तर:
विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा ताकतवर देशों पर निर्भर होते हैं। इसलिए दूसरे विश्वयुद्ध के तुरंत बाद के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति अपनाई क्योंकि इन देशों से इन्हें अनुदान अथवा कर्ज मिल रहा था।

प्रश्न 9.
विदेश मंत्री के रूप में नेहरू के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विदेश मंत्री के रहते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। इनकी विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे। कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना।

प्रश्न 10.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना के लिए कौन-कौन उत्तरदायी थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के जन्मदाता के रूप में भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सर्वप्रथम नेहरूजी ने इस नीति को भारत के लिए उपयुक्त समझा। इसके पश्चात् 1955 के बांडुंग सम्मेलन के दौरान नासिर (मिस्र) एवं टीटो (यूगोस्लाविया) के साथ मिलकर इसे विश्व आन्दोलन बनाने पर सहमति प्रकट की।

प्रश्न 11.
गुट निरपेक्षता की नीति ने कम से कम दो तरह से भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया- स्पष्ट कीजिये। गुट निरपेक्ष नीति से भारत को मिलने वाले दो लाभ बताइये।
उत्तर:

  1. गुट निरपेक्ष नीति अपनाकर ही भारत शीत युद्ध काल में दोनों गुटों से सैनिक व आर्थिक सहायता प्राप्त करने में सफल रहा।
  2. इस नीति के कारण ही भारत को कश्मीर समस्या पर रूस का हमेशा समर्थन मिला।

प्रश्न 12.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के प्रमुख कारण निम्न थे।

  1. 1962 में चीन से हार जाने से पाकिस्तान ने भारत को कमजोर माना।
  2. 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद नए नेतृत्व को पाकिस्तान ने कमजोर माना।
  3. पाकिस्तान में सत्ता प्राप्ति की राजनीति।
  4. 1963-64 में कश्मीर में मुस्लिम विरोधी गतिविधियाँ पाकिस्तान की विजय में सहायक होंगी।

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प्रश्न 13.
विदेश नीति से संबंधित किन्हीं दो नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
अथवा
भारतीय विदेश नीति के संवैधानिक सिद्धान्तों को सूचीबद्ध कीजिये।
अथवा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 में विदेश नीति के दिये गये संवैधानिक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि।
  2. राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करना।
  4. संगठित लोगों के परस्पर व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधियों के प्रति आदर की भावना रखना।

प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत की परमाणु नीति- 18 अगस्त, 1999 को जारी की गई भारत की परमाणु नीति में शस्त्र नियंत्रण के सिद्धान्त को अपनाया गया है। भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा, लेकिन उसने पहले परमाणु हमला नहीं करने की प्रतिबद्धता दर्शायी है।

प्रश्न 15.
भारतीय विदेश नीति में आया महत्त्वपूर्ण परिवर्तन बताओ।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पश्चिमी ब्लॉक की तरफ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना, परमाणु ब्लॉक में शामिल होना। 1990 के बाद से रूस का अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व कम हुआ इसी कारण भारत की विदेश नीति में अमरीका समर्थक रणनीतियाँ अपनाई गई हैं। इसके अतिरिक्त मौजूदा अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में सैन्य हितों के बजाय आर्थिक हितों पर जोर ज्यादा है। इसका असर भी भारत की विदेश नीति में अपनाए गए विकल्पों पर पड़ा है।

प्रश्न 16.
भारत-रूस ( सोवियत संघ ) 1971 की सन्धि के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1971 में भारत: सोवियत संघ के बीच 20 वर्षीय मैत्री की सन्धि की गई थी। इस सन्धि के अधीन सोवियत संघ ने भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति को स्वीकार किया तथा दोनों देशों ने किसी के विरुद्ध हुए बाह्य आक्रमण के समय परस्पर विचार-विमर्श करने की व्यवस्था की।

प्रश्न 17.
1950 के दशक में भारत-अमरीकी सम्बन्धों में खटास पैदा करने वाले दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. पाकिस्तान अमरीकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबन्धन में शामिल हो गया। इससे अमरीका तथा भारत के सम्बन्धों में खटास पैदा हो गई।
  2. अमरीका, सोवियत संघ से भारत की बढ़ती हुई दोस्ती को लेकर भी नाराज था।

प्रश्न 18.
प्रथम एफ्रो-एशियाई एकता सम्मेलन कहाँ हुआ? इसकी दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रथम एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन इंडोनेशिया के एक बड़े शहर बांडुंग में 1955 में हुआ इसकी विशेषताएँ हैं।

  1. इस सम्मेलन में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी।
  2. इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों ने इण्डोनेशिया में नस्लवाद विशेषकर दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद का विरोध किया।

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प्रश्न 19.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के कोई तीन राजनीतिक परिणाम बताइये।
उत्तर:

  1. भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तानी सेना ने 90,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
  2. बांग्लादेश के रूप में एक स्वतन्त्र राज्य का उदय हुआ।
  3. 3 जुलाई, 1972 को इन्दिरा गाँधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए और अमन की बहाली हुई।

प्रश्न 20.
विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
उत्तर:
विदेश नीति के चार प्रमुख अनिवार्य कारक ये हैं।

  1. राष्ट्रीय हित,
  2. राज्य की राजनीतिक स्थिति,
  3. पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध,
  4. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण।

प्रश्न 21.
भारतीय विदेश नीति के लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय हित: भारतीय विदेश नीति का लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना है जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास करना है।
  2. विश्व समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण-इनमें प्रमुख रूप से विश्व शान्ति, राज्यों का सहअस्तित्व, राज्यों का आर्थिक विकास मानवाधिकार आदि शामिल हैं।

प्रश्न 22.
नेहरूजी की विदेश नीति की कोई दो विशेषताएँ लिखिये
अथवा
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करना।
  2. राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना।
  3. जाति, रंग, भेदभाव, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद का विरोध करना।

प्रश्न 23.
एशियाई देशों के मामले में नेहरू के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के आकार, अवस्थिति और शक्ति: संभावना को भाँपकर नेहरू ने विश्व के मामलों, मुख्यतया एशियाई मामलों में भारत के लिए बड़ी भूमिका का स्वप्न देखा था। नेहरू के दौर में भारत ने एशियाई और अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों के साथ संपर्क बनाए 1940 और 1950 के दशकों में नेहरू बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता की पैरोकारी करते रहे। नेहरू की अगुवाई में भारत ने 1947 के मार्च में एशियाई संबंध सम्मेलन का आयोजन किया। भारत ने इंडोनेशिया को डच औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन किया।

प्रश्न 24.
ताशकंद समझौते के कोई दो प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  1. दोनों पक्षों ( भारत – पाकिस्तान) का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  2. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों देशों की सेनाएँ फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुँच जाएँ जहाँ 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।

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प्रश्न 25.
शिमला समझौते पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1972 में भारत और पाकिस्तान के मध्य शिमला समझौता हुआ। इसकी प्रमुख शर्तें हैं।

  1. दोनों देश आपसी मतभेदों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करेंगे।
  2. दोनों देश एक-दूसरे की सीमा पर आक्रमण नहीं करेंगे।

प्रश्न 26.
भारत और चीन के मध्य तनाव के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. भारत और चीन में महत्त्वपूर्ण विवाद सीमा का विवाद है। चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा कर रखा है।
  2. चीन का तिब्बत पर कब्जा और भारत का दलाईलामा को राजनीतिक शरण देना।

प्रश्न 27.
भारत व चीन के मध्य अच्छे सम्बन्ध बनाने हेतु दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:

  1. दोनों पक्ष सीमा विवादों के निपटारे के लिए वार्ताएँ जारी रखें तथा सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखें।
  2. दोनों देशों को द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए।

प्रश्न 28.
भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है।
  2. भारत-पाक के मध्य तनाव का अन्य कारण भारत में पाक समर्थित आतंकवाद है। पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर के आतंकवादियों की सभी तरह से सहायता कर रहा है।

प्रश्न 29.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताइ ।
उत्तर:

  1. भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम – अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  2. भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों से भारत युद्ध भी लड़ चुका है।

प्रश्न 30.
भारत की परमाणु नीति की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत परमाणु क्षेत्र में न्यूनतम प्रतिरोध की क्षमता प्राप्त करना चाहता है।
  2. भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा।

प्रश्न 31.
भारतीय विदेश नीति के चार निर्धारक तत्त्वों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व : भारतीय विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं।

  1. भारत की विदेश नीति की आधारशिला उसके राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा है।
  2. शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना का विकास करना।
  3. पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने हेतु शान्तिपूर्ण साधनों के प्रयोग पर बल देना।

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प्रश्न 32.
आप नेहरूजी को विदेश नीति तय करने का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते हैं? दो कारण बताइये।
उत्तर:

  1. नेहरूजी प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री भी थे। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला।
  2. नेहरूजी ने देश की संप्रभुता को बचाए रखने, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने तथा तीव्र आर्थिक विकास की दृष्टि से गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी।

प्रश्न 33.
पण्डित नेहरू के काल में भारत की विदेश नीति की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पण्डित नेहरू के काल में भारत की विदेश नीति की उपलब्धियाँ: प्रधानमन्त्री नेहरू की विदेश नीति अत्यधिक आदर्शवादी और भावना प्रधान थी। इस नीति के चलते भारत ने दोनों गुटों से प्रशंसा तथा सहायता पाने में सफलता प्राप्त की। यह विश्व शान्ति बनाये रखने में अत्यधिक सफल रही। नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत-चीन युद्ध के समय उन्होंने रूस तथा अमेरिका दोनों देशों से सहायता प्राप्त की इस नीति के कारण भारत शान्तिदूत, गुटों का पुल, तटस्थ विश्व का नेता आदि माना जाने लगा।

प्रश्न 34.
पंचशील के पाँच सिद्धान्त क्या हैं?
अथवा
पंचशील के सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त: पंचशील के पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।

  1. सभी राष्ट्र एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और सम्प्रभुता का सम्मान करें।
  2. कोई राज्य दूसरे राज्य पर आक्रमण न करे और राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण न करे।
  3. कोई राज्य किसी दूसरे राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।
  4. प्रत्येक राज्य एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करे तथा पारस्परिक हित में सहयोग प्रदान करे।
  5. सभी राष्ट्र शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त में विश्वास करें

प्रश्न 35.
भारतीय विदेश नीति के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिये जिनमें भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
उत्तर:
निम्नलिखित दो अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं में भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।

  1. शीतयुद्ध के दौरान भारत न तो संयुक्त राज्य अमेरिका और न ही सोवियत संघ के खेमे में सम्मिलित हुआ तथा उसने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को शुरू करने, समय-समय पर होने वाले सम्मेलनों में स्वेच्छा एवं पूर्ण निष्पक्षता से भाग लिया।
  2. भारत ने शांति व विकास के लिए परमाणु ऊर्जा व शक्ति के प्रयोग का समर्थन किया तथा निर्भय होकर सन् में परमाणु परीक्षण किया तथा उसे उचित बताया।

प्रश्न 36.
अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिये जिनमें भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
उत्तर:

  1. 1956 में जब ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर आक्रमण किया तो भारत ने इस औपनिवेशिक हमले के विरुद्ध विश्वव्यापी विरोध की अगुवाई की।
  2. 1956 में ही जब सोवियत संघ ने हंगरी पर आक्रमण किया तो भारत ने सोवियत संघ के इस कदम की सार्वजनिक निंदा की।

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प्रश्न 37
भारतीय विदेश नीति में परिवर्तन के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति का परिवर्तित स्वरूप: भारतीय विदेश नीति के परिवर्तित स्वरूप की व्याख्या निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती है।

  1. सामरिक और तकनीकी ताकत हासिल करने, परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार सन्धि तथा सी. टी. बी. टी. पर हस्ताक्षर न करने की नीति को अपनाया।
  2. बांग्लादेश की स्वतन्त्रता के लिए श्रीलंका की सरकार के चाहने पर तथा मालदीव की सुरक्षा के लिए भारतीय सेनाओं को इन देशों में भेजा।
  3. व्यावहारिक कूटनीति को अपनाना, जैसे अफगानिस्तान पर रूसी कार्यवाही पर चुप रहना, नेपाल को चेतावनी देना, इजरायल से दौत्य सम्बन्ध स्थापित करना आदि।
  4. आकार, शक्ति, तकनीकी और सैनिक श्रेष्ठता आदि के आधार पर दक्षिण एशिया को भारतीय प्रभाव क्षेत्र बनाना।

प्रश्न 38.
बांडुंग सम्मेलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इंडोनेशिया के एक शहर बांडुंग में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन 1955 में हुआ । इसी सम्मेलन को बांडुंग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। अफ्रीका और एशिया के नव-स्वतंत्र देशों के साथ भारत के बढ़ते संपर्क का यह चरम बिंदु था। बांडुंग सम्मेलन में ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी।

प्रश्न 39.
पण्डित नेहरू की विदेश नीति की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पण्डित नेहरू की विदेश नीति की विशेषताएँ पण्डित नेहरू की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. गुटनिरपेक्षता: नेहरू की विदेश नीति की सबसे प्रमुख विशेषता गुटनिरपेक्षता है। गुटनिरपेक्षता का अर्थ – किसी गुट में शामिल न होना और स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करना।
  2. विश्व शान्ति और सुरक्षा की नीति: नेहरू की विदेश नीति का आधारभूत सिद्धान्त विश्व शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना है।
  3. साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध: नेहरू ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है।
  4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार: नेहरू की विदेश नीति की एक अन्य विशेषता विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाने का प्रयास करना रही।

प्रश्न 40.
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति क्या नीति है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति नीति – भारत सदैव ही पड़ोसी देशों से मित्रवत् सम्बन्ध चाहता है। भारत का मानना है कि बिना मित्रतापूर्ण सम्बन्ध के कोई भी देश सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विकास नहीं कर सकता। इसलिए भारत ने पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव, म्यांमार इत्यादि पड़ोसी देशों से मधुर सम्बन्ध बनाए रखने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए हैं। उन्हीं महत्त्वपूर्ण कदमों में से एक सार्क की स्थापना है। इससे न केवल भारत के अन्य पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध मधुर होंगे, बल्कि दक्षिण एशिया और अधिक विकास कर सकेगा। भारत की नीति यह है कि पड़ोसी देशों के साथ जो भी मतभेद हैं, उन्हें युद्ध से नहीं बल्कि बातचीत द्वारा हल किया जाना चाहिए।

प्रश्न 41.
1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत-चीन युद्ध के कारण: 1962 के भारत-चीन युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. तिब्बत की समस्या: 1962 के भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बत वासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।
  2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या- भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र में रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये जो वास्तव में भारतीय भू-भाग में थे, अत: भारत ने इस पर चीन के साथ अपना विरोध दर्ज कराया।
  3. सीमा विवाद – भारत-चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था।

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प्रश्न 42.
ताशकन्द समझौता कब हुआ? इसके प्रमुख प्रावधान लिखिए।
उत्तर:
ताशकन्द समझौता: सितम्बर, 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खां के बीच ताशकंद समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे।
संजीव पास बुक्स

  1. भारत एवं पाकिस्तान अच्छे पड़ोसियों की भाँति सम्बन्ध स्थापित करेंगे और विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझायेंगे।
  2. दोनों देश के सैनिक युद्ध से पूर्व की स्थिति में चले जायेंगे। दोनों युद्ध-विराम की शर्तों का पालन करेंगे।
  3. दोनों एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  4. दोनों राजनयिक सम्बन्धों को पुनः सामान्य रूप से स्थापित करेंगे।
  5. दोनों आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों को पुनः सामान्य रूप से स्थापित करेंगे।
  6. दोनों देश सन्धि की शर्तों का पालन करने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपस में मिलते रहेंगे।

प्रश्न 43.
बांग्लादेश युद्ध, 1971 पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
बांग्लादेश युद्ध, 1971 1970 में पाकिस्तान के हुए आम चुनाव के बाद पाकिस्तान की सेना ने 1971 में शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने इलाके को पाकिस्तान से मुक्त कराने का संघर्ष छेड़ दिया। पाकिस्तानी शासन ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया । फलतः लगभग 80 लाख शरणार्थी पाकिस्तान से भाग कर भारत में शरण लिये हुए थे। महीनों राजनायिक तनाव और सैन्य तैनाती के बाद 1971 के दिसम्बर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। दस दिनों के अन्दर भारतीय सेना ने ढाका को तीन तरफ से घेर लिया और अपने 90000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र का उदय हुआ। भारतीय सेना ने एकतरफा युद्ध विराम कर दिया।

प्रश्न 44.
शिमला समझौता कब हुआ? इसके प्रमुख प्रावधान लिखिए।
उत्तर:
शिमला समझौता:
28 जून, 1972 को श्रीमती इन्दिरा गाँधी एवं जुल्फिकार अली भुट्टो के द्वारा शिमला में दोनों देशों के मध्य जो समझौता हुआ उसे शिमला समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान थे।

  • दोनों देश सभी विवादों एवं समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए सीधी वार्ता करेंगे।
  • दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध दुष्प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के सम्बन्धों को सामान्य बनाने के लिए
    1. संचार सम्बन्ध फिर से स्थापित करेंगे,
    2. आवागमन की सुविधाओं का विस्तार करेंगे।
    3. व्यापार एवं आर्थिक सहयोग स्थापित करेंगे,
    4. विज्ञान एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करेंगे।
  • (4) स्थायी शान्ति स्थापित करने हेतु हर सम्भव प्रयास किये जाएँगे।
  • (5) भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे।

प्रश्न 45.
वी. के. कृष्णमेनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वी.के. कृष्णमेनन (1897-1974) भारतीय राजनयिक एवं मंत्री थे। 1939 से 1947 के समयकाल में ये इंग्लैंड की लेबर पार्टी में सक्रिय थे। आप इंग्लैंड में भारतीय उच्चायुक्त एवं बाद में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के मुखिया थे। आप राज्यसभा के सांसद एवं बाद में लोकसभा सांसद बने। 1956 से संघ केबिनेट के सदस्य 1957 से रक्षा मंत्री का पद संभाला। आपने 1962 में भारत-चीन के युद्ध के बाद इस्तीफा दे दिया।

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प्रश्न 46.
चीन के साथ युद्ध का भारत पर क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
चीन के साथ युद्ध से भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। इस संकट से उबरने के लिए भारत को अमरीका और ब्रिटेन से सैन्य मदद लेनी पड़ी। चीन युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को ठेस लगी परंतु राष्ट्र – भावना मजबूत हुई। नेहरू की छवि भी धूमिल हुई। चीन के इरादों को समय रहते न भाँप सकने और सैन्य तैयारी न कर पाने को लेकर नेहरू की पड़ी आलोचना हुई। पहली बार, उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इसके तुरंत बाद, कांग्रेस ने कुछ महत्त्वपूर्ण चुनावों में हार का सामना किया। देश का राजनीतिक मानस बदलने लगा था।

प्रश्न 47.
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के कोई चार कारण बताइये।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के कारण- भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. कश्मीर समस्या: भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तनाव का प्रमुख मुद्दा कश्मीर है।
  2. सियाचिन ग्लेशियर का मामला: पिछले कुछ समय से पाकिस्तान सैनिक कार्यवाही द्वारा सियाचिन पर कब्जा करने का प्रयास कर रहा है जिसे भारत के सैनिकों ने विफल कर दिया।
  3. आतंकवाद की समस्या: पाकिस्तान भारत में जेहाद के नाम पर आतंकवादी गतिविधियाँ फैला रहा है।
  4. आणविक हथियारों की होड़: भारत और पाकिस्तान के मध्य आणविक हथियारों की होड़ भी दोनों देशों के मध्य तनाव का मुख्य कारण माना जाता है।

प्रश्न 48.
करगिल संघर्ष के कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
करगिल संघर्ष के कारण: करगिल संघर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे।

  1. पाकिस्तान को अमेरिका तथा चीन द्वारा अपनी अति गोपनीय कूटनीति विस्तार हेतु आर्थिक सहायता प्रदान
  2. पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा इस मामले को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखना।
  3. पाकिस्तानी सेना द्वारा छद्म रूप से भारतीय नियंत्रण रेखा के कई ठिकानों, जैसे द्रास, माश्कोह, काकस तथा तालिक पर कब्जा कर लेना।

प्रश्न 49.
करगिल की लड़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
करगिल संकट पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
करगिल की लड़ाई: सन् 1999 के शुरूआती महीनों में भारतीय नियन्त्रण रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिदीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना की इसमें मिली भगत भांप कर भारतीय सेना हरकत में आयी। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया।

इसे करगिल की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई, 1999 तक भारत अपने अधिकतर क्षेत्रों पर पुनः अधिकार कर चुका था। करगिल की इस लड़ाई ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा था क्योंकि इससे ठीक एक वर्ष पहले दोनों देश परमाणु हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे।

प्रश्न 50.
तिब्बत का पठार भारत और चीन के तनाव का बड़ा मामला कैसे बना?
उत्तर:

  1. सन् 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। सन् 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ जिसे चीनी सेनाओं ने दबा दिया। स्थिति को बिगड़ता देखकर तिब्बत के पारम्परिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया तथा उसने 1959 में भारत से शरण मांगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध किया।
  2. 1950 और 1960 के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल तथा राजनेताओं ने तिब्बत की आजादी के प्रति अपना समर्थन जताया, जबकि चीन इसे अपना अभिन्न अंग मानता है। इन कारणों से तिब्बत भारत और चीन के बीच तनाव का बड़ा मामला बना।

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प्रश्न 51.
भारत-चीन युद्ध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत-चीन युद्ध-20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने नेफा और लद्दाख की सीमाओं में घुस कर भारत पर सुनियोजित ढंग से बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। नेफा क्षेत्र में भारत को पीछे हटना पड़ा और असम के मैदान में खतरा उत्पन्न हो गया। 24 नवम्बर, 1962 को चीन ने अपनी तरफ से युद्ध विराम की घोषणा कर दी और चीनी सेनाएँ 7 नवम्बर, 1959 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा से 20 कि.मी. पीछे हट गईं। यद्यपि भारत की पर्याप्त भूमि पर उन्होंने अपना अधिकार कर लिया था।

चीन ने वार्ता का प्रस्ताव भी किया परन्तु भारत ने इस शर्त के साथ इसे अस्वीकार कर दिया कि जब तक चीनी सेनाएँ 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक वापस नहीं लौट जायेंगी तब तक वार्ता नहीं हो सकती। इस युद्ध में भारत की पराजय से एशिया तथा विश्व में भारत की प्रतिष्ठा घटी और इस युद्ध के पीछे चीन का यह मूल उद्देश्य था, जिसमें सफल रहा।

प्रश्न 52.
भारत तथा बांग्लादेश के बीच सहयोग और असहमति के किसी एक-एक क्षेत्र का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  1. भारत तथा बांग्लादेश के बीच सहयोग: भारत तथा बांग्लादेश के बीच 1972 में 25 वर्षीय मैत्री, सहयोग और शांति संधि हुई थी। इसके साथ ही दोनों देशों के मध्य व्यापार समझौता भी हुआ। फलस्वरूप दोनों देशों में 1. सहयोग और मित्रता बढ़ती गयी।
  2. भारत तथा बांग्लादेश के बीच असहयोग: बांग्लादेश से शरणार्थी और घुसपैठिये लगातार भारत आते रहते हैं। भारत में लाखों बांग्लादेशी किसी न किसी तरह से अनाधिकृत रूप से रह रहे हैं। इस मुद्दे पर दोनों में सहमति नहीं हो पा रही है।

प्रश्न 53.
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम अपनाने के कोई चार कारण बताइये।
उत्तर:
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम निर्धारण के कारण: भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम निर्धारण के प्रमुख कारण निम्नलिखित है।

  1. आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना चाहता है । विश्व के जिन देशों के पास भी हथियार हैं वे सभी आत्म-निर्भर राष्ट्र हैं।
  2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  3. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना: भारत के लिए परमाणु नीति एवं हथियार बनाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि भारत के दोनों पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।
  4. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति: परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (C. T. B. T.) को विभेदपूर्ण ढंग से लागू किया जिसके कारण भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये।

प्रश्न 54.
भारत की नवीन परमाणु नीति का मसौदा क्या है?
उत्तर:
भारत की नवीन परमाणु नीति- 18 अगस्त, 1999 को भारत सरकार ने अपनी नवीन परमाणु नीति का एक मसौदा प्रकाशित किया है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. इसमें शस्त्र नियन्त्रण के सिद्धान्त को अपनाया गया है।
  2. किसी भी देश पर भारत पहला हमला नहीं करेगा, परन्तु उस पर हमला किया गया तो उसका मुँहतोड़ जवाब देगा।
  3. प्रधानमन्त्री या प्रधानमन्त्री द्वारा नामांकित व्यक्ति परमाणु विस्फोट के लिए उत्तरदायी होगा।
  4. सी. टी. बी. टी. के प्रश्न को इस मसौदे से अलग रखा गया है।
  5. भारत विश्व को परमाणु शक्तिहीन बनाने की प्रतिबद्धता पर कायम रहेगा।
  6. परमाणु अथवा मिसाइल प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियन्त्रण रखा जायेगा।

प्रश्न 55.
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए हम निम्न सुझाव देंगे।

  1. दोनों पक्ष सीमा विवाद को निपटारे के लिए वार्ताएँ जारी रखें तथा सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखें।
  2. हमें चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण के प्रश्नों में दोनों देशों को मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं में अपना पक्ष रखना चाहिए क्योंकि दोनों देशों के हित समान हैं।
  4. हमें चीन के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देना चाहिए।

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प्रश्न 56.
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद के भारत-चीन संबंध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद इन दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होने में दस साल लग गए। 1976 में दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल हो सके। शीर्ष नेता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी (तब के विदेश मंत्री ) 1979 में चीन के दौरे पर गए। इसके बाद से चीन के साथ भारत संबंधों में ज्यादा जोर व्यापारिक मसलों पर रहा है।

प्रश्न 57.
कश्मीर मुद्दे पर संघर्ष के बावजूद भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच सहयोग-संबंध कायम रहे। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कश्मीर मुद्दे पर संघर्ष के बावजूद भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच सहयोग-संबंध कायम रहे इस कथन का सत्यापन निम्न उदाहरणों द्वारा किया जा सकता है।

  1. दोनों सरकारों ने मिल-जुल कर प्रयास किया कि बँटवारे के समय अपहृत महिलाओं को उनके परिवार के पास लौटाया जा सके।
  2. विश्व बैंक की मध्यस्थता से नदी जल में हिस्सेदारी का लंबा विवाद सुलझा लिया गया।
  3. नेहरू और जनरल अयूब खान ने सिंधु नदी जल संधि पर 1960 में हस्ताक्षर किए और भारत-पाक संबंधों में तनाव के बावजूद इस संधि पर ठीक-ठाक अमल होता रहा।

प्रश्न 58.
भारत ने सोवियत संघ के साथ 1971 में शांति और मित्रता की 20 वर्षीय संधि पर दस्तखत क्यों किये?
उत्तर:
पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने इलाके को पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया। भारत ने बांग्लादेश के ‘मुक्ति संग्राम’ को नैतिक समर्थन और भौतिक सहायता दी। ऐसे समय पर पाकिस्तान को अमरीका और चीन ने सहायता की। 1960 के दशक में अमरीका और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिश चल रही थी, इससे एशिया में सत्ता- समीकरण नया रूप ले रहा था। अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सलाहकार हेनरी किसिंजर ने 1971 के जुलाई में पाकिस्तान होते हुए गुपचुप चीन का दौरा किया। अमरीका- पाकिस्तान-चीन की धुरी बनते देख भारत ने इसके जवाब में सोवियत संघ के साथ 1971 में शांति और मित्रता की एक 20 वर्षीय संधि पर दस्तखत किए। इस संधि से भारत को यह आश्वासन मिला कि हमला होने की सूरत में सोवियत संघ भारत की मदद करेगा ।

प्रश्न 59.
चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं पर आंतरिक क्षेत्रीय नीतियों के हिसाब से क्या उल्लेखनीय प्रभाव डाला? संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डावांडोल स्थिति के प्रति सचेत किया। यह इलाका अत्यंत पिछड़ी दशा में था और अलग-थलग पड़ गया था। चीन युद्ध के तुरंत बाद इस इलाके को नयी तरतीब में ढालने की कोशिशें शुरू की गई। नागालैंड को प्रांत का दर्जा दिया गया। मणिपुर और त्रिपुरा हालांकि केन्द्र शासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार मिला।

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प्रश्न 60.
1962 और 1965 के युद्धों का भारतीय रक्षा व्यय पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आजादी के बाद भारत ने अपने सीमित संसाधनों के साथ नियोजित विकास की रणनीति के साथ शुरुआत की। पड़ोसी देशों के साथ संघर्ष के कारण पंचवर्षीय योजना पटरी से उतर गई। 1962 के बाद भारत को अपने सीमित संसाधनों को रक्षा क्षेत्र में लगाना पड़ा। भारत को अपने सैन्य ढाँचे का आधुनिकीकरण करना पड़ा। 1962 में रक्षा उत्पाद और 1965 में रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना हुई। तीसरी पंचवर्षीय योजना पर असर पड़ा और इसके बाद लगातार तीन एक-वर्षीय योजना पर अमल हुआ। चौथी पंचवर्षीय योजना 1969 में ही शुरू हो सकी। युद्ध के बाद भारत का रक्षा-व्यय बहुत ज्यादा बढ़ गया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएँ: भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा में आस्था: भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए सदैव अपना सहयोग प्रदान किया है, चाहे वह कोरिया समस्या हो या इराक की समस्या।
  • असंलग्नता अथवा गुट निरपेक्षता की नीति: असंलग्नता का अभिप्राय है। किसी गुट (पंक्ति) से संलग्न नहीं होना यह गुटों से पृथक् रहते हुए एक स्वतंत्र विदेश नीति है। यह तटस्थ न होकर एक सक्रिय विदेश नीति है।
  • पंचशील के सिद्धान्त तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति: पंचशील का अर्थ है। पाँच सिद्धान्त। ये पाँच सिद्धान्त अग्रलिखित हैं।
    1. परस्पर एक-दूसरे की भौगोलिक अखण्डता तथा संप्रभुता का सम्मान।
    2. एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं करना।
    3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना।
    4. परस्पर समानता तथा लाभ के आधार पर कार्य करना।
    5. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व।
  • साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध: भारत ने उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद के विरोध की नीति अपनाई। इसी नीति को दृष्टिगत रखते हुए भारत ने एशिया तथा अफ्रीकी देशों के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को सक्रिय समर्थन प्रदान किया।
  • सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना: भारत अपना गुट बनाने के स्थान पर सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना में विश्वास करता है।
  • निःशस्त्रीकरण का समर्थन: भारत ने सदैव ही निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों एवं संयुक्त राष्ट्र के प्रति आस्था: भारत ने सदैव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन किया है तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रति आस्था व्यक्त की है।

प्रश्न 2.
वर्तमान में भारतीय गुटनिरपेक्षता की नीति का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता की नीति का महत्त्व: भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता के महत्त्व का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता

  1. भारत गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर ही शीत युद्ध काल में दोनों गुटों से सैनिक और आर्थिक सहायता बिना शर्त प्राप्त करने में सफल रहा।
  2. गुट निरपेक्ष नीति के कारण भारत को कश्मीर समस्या पर रूस का हमेशा समर्थन मिला जबकि पश्चिमी शक्तियाँ पाकिस्तान का समर्थन कर रही थीं।
  3. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति ने उसे आत्म-निर्भरता का पाठ पढ़ाया है।
  4. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति शीतयुद्ध काल में अमरीका और रूस दोनों के शासनाध्यक्षों की प्रशंसा की पात्र रही है।
  5. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति विश्व शांति में सहायक रही है। भारत ने शीत युद्ध की चरमावस्था में दोनों गुटों में सेतुबन्ध का कार्य किया और संकट की स्थिति को टालने का प्रयत्न किया।

इस प्रकार भारत की गुटनिरपेक्ष नीति अनेक कसौटियों पर कसी गई है। विश्व चाहे द्विध्रुवीय रहा हो या एकध्रुवीय, भारत चाहे अपने आर्थिक विकास के लिए पश्चिम या पूर्व से सहायता ले या सीमाओं की रक्षा के लिए पश्चिम से सैनिक अस्त्र-शस्त्र ले, द्विपक्षीय समझौतों के अन्तर्गत शान्ति सेनाएँ भेजे या मालदीव जैसी स्थितियों में तुरत-फुरत सक्रियता दिखाये, भारत के लिए असंलग्नता की नीति ही सर्वोत्तम है। इसी से उसके राष्ट्रीय हितों की सर्वोत्तम सुरक्षा हो सकती है तथा शान्ति स्थापित की जा सकती है।

प्रश्न 3.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की समकालीन प्रासंगिकता बताइये।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की समकालीन प्रासंगिकता के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. नये राष्ट्रों की स्वतन्त्रता तथा विकास की दृष्टि से प्रासंगिक: नए स्वतन्त्र देशों की स्वतन्त्रता की रक्षा तथा आर्थिक और सामाजिक विकास हेतु उन्हें युद्धों से दूर रहने की दृष्टि से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।
  2. विकासशील राष्ट्रों के बीच परस्पर आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग: वर्तमान समय में विकासशील देशों को शोषण से बचाने, उनमें पारस्परिक आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग को बढ़ाने, अपनी समाचार एजेन्सियों का निर्माण करने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य बना हुआ है।
  3. विश्व जनमत में सहायक: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान काल में विश्व जनमत के निर्माण के लिए अत्यधिक आवश्यकता है।
  4. बहुगुटीय विश्व: सोवियत संघ के विघटन के बाद आज विश्व बहुगुटीय बन रहा है। वर्तमान बहुध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की महती प्रासंगिकता बनी हुई है।
  5. एशिया तथा अफ्रीका में विस्फोटक स्थिति: वर्तमान काल में एशिया तथा अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्र तनाव केन्द्र हैं। ऐसी स्थिति में निर्गुट आन्दोलन इनकी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
  6. महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति शेष:
    • नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना
    • संयुक्त राष्ट्र संघ का लोकतन्त्रीकरण
    • न्यायसंगत विश्व की स्थापना तथा
    • नि:शस्त्रीकरण आदि उद्देश्यों की प्राप्ति में इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
  7. प्रदूषण एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद – प्रदूषण एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध एक संगठित दबाव पैदा करने की दृष्टि से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन उपयोगी है।

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प्रश्न 4.
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव – विवाद के प्रमुख कारण बताइए।
अथवा
भारत-पाक सम्बन्धों की समीक्षा कीजिये।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के कारण: अपने पड़ौसी देशों के प्रति मधुर सम्बन्ध रखने को उच्च प्राथमिकता देने की भारत की नीति के बावजूद अनेक कारणों से भारत-पाक सम्बन्ध में तनाव व कटुता बनी रही है। भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।

  1. विभाजन से उत्पन्न अविश्वास: भारत विभाजन ने भारत और पाकिस्तान के मध्य शत्रुता उत्पन्न कर दी। यह ब्रिटिश शासकों की रणनीति थी।
  2. देशी रियासतों की समस्या तथा कश्मीर विवाद: कश्मीर के विलय का विवाद अभी भी दोनों देशों के मध्य व्याप्त है और यह निरन्तर दोनों देशों के बीच तनाव का मुख्य बिन्दु बना हुआ है।
  3. कच्छ के रन ( सरक्रीक) का प्रश्न 1947 में कच्छ की रियासत के भारत में विलय के साथ ही कच्छ का रन भी भारत का अंग बन गया था। लेकिन जुलाई, 1948 में पाकिस्तान ने यह प्रश्न उठाया कि कच्छ का रन चूँकि एक मृत समुद्री भाग है, अतः उसका मध्य भाग दोनों देशों की सीमा होना चाहिए। भारत ने उसके इस दावे को स्वीकार नहीं किया। दोनों देशों के मध्य इस विवाद को सुलझाने की दिशा में अनेक वार्ताएँ हुई हैं लेकिन अभी तक इनका निपटारा नहीं हो सका हैं।
  4. साम्प्रदायिक विभाजन की राजनीति: पाकिस्तानी राजनेता जान-बूझकर दोनों देशों के मध्य साम्प्रदायिक वैमनस्य बनाये रखना चाहते हैं। वे साम्प्रदायिक वैमनस्य को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संगठनों में अभिव्यक्त करते रहे हैं।
  5. भारत के विरुद्ध पाक प्रायोजित आतंकवाद – भारत के विरुद्ध पाक-प्रायोजित आतंकवाद के कारण भी दोनों देशों के मध्य कटुता बनी हुई है।

प्रश्न 5.
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव: भारत-पाक सम्बन्धों में आयी कटुता को दूर करने तथा उनके बीच सम्बन्धों को सुधारने हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. आपसी बातचीत एवं समझौते की नीति- भारत और पाकिस्तान के मध्य विवादों को आपसी बातचीत और समझौते द्वारा दूर किया जा सकता है।
  2. दोनों देशों के मध्य विश्वास बहाली के उपाय किये जाने चाहिए – भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोगों में आपसी विश्वास को मजबूत करने के लिए बसों, ट्रेनों की आवाजाही तथा व्यक्तिगत सम्पर्क आदि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  3. सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर बल: दोनों देशों में धार्मिक भिन्नताओं के बावजूद सांस्कृतिक समानताएँ हैं। अतः दोनों देशों में समय-समय पर एक-दूसरे के धार्मिक उत्सवों एवं समारोहों का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे दोनों देशों की जनता के बीच परस्पर भाईचारे एवं सद्भावना का विकास हो।
  4. आपसी मतभेदों के अन्तर्राष्ट्रीयकरण पर रोक- दोनों देशों को मतभेदों का समाधान करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मंचों के स्थान पर द्विपक्षीय वार्ता एवं परस्पर सहयोग एवं समझौते की नीति का अनुसरण करना चाहिए।
  5. आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगायी जानी चाहिए: पाकिस्तान को चाहिए कि वह आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाए ताकि वार्ता द्वारा समझौते का वातावरण बन सके।

प्रश्न 6.
भारत एवं चीन सम्बन्धों का वर्तमान संदर्भ में परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत-चीन सम्बन्ध: वर्तमान संदर्भ में भारत तथा चीन के सम्बन्धों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • सीमा-विवाद यथावत्: आज भी दोनों देशों के मध्य सीमा के प्रश्न पर व्यापक मतभेद हैं, तथापि दोनों पक्ष इसे सुलझाने के लिए वार्ता जारी रखे हुए हैं। वर्तमान में दोनों देश इस नीति का दृढ़ता से पालन कर रहे हैं कि जब तक सीमा विवाद का अन्तिम रूप से समाधान नहीं हो जाता है, दोनों पक्ष सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखेंगे।
  • आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों में सहयोग की ओर बढ़ते कदम: 1993 में दोनों देशों के मध्य हुए एक व्यापारिक समझौते के बाद दोनों देशों के बीच सीमा – व्यापार पुनः प्रारम्भ हो गया है तथा यह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच 50 से अधिक संयुक्त उद्यमों की स्थापना हुई है।
  • विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में परस्पर सहयोग; दोनों पक्षों में यह भी सहमति हुई कि वे विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में दोनों के हितों से जुड़े मुद्दों पर परस्पर सहयोग करेंगे।
  • वर्तमान समय में भारत-चीन के मध्य विवाद के प्रमुख मुद्दे: वर्तमान समय में भारत और चीन के मध्य विवाद के प्रमुख मुद्दे निम्न हैं।
    1. अनसुलझा सीमा विवाद
    2. घुसपैठ से घिरा अण्डमान-निकोबार
    3. चीन-पाकिस्तान में बढ़ती निकटता
    4. चीन का नया सामरिक गठजोड़
    5. तिब्बत पर कसता चीनी शिकंजा
    6. माओवाद से घिरता नेपाल
    7. चीन का साइबर आक्रमण
    8. भारतीय सीमा में घुसपैठ
    9. कश्मीरियों के लिए अलग से चीनी वीजा।

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प्रश्न 7.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के कारण: भारत ने सर्वप्रथम 1974 में एक तथा 1998 में पांच परमाणु परीक्षण करके विश्व को दिखला दिया कि भारत भी एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार को बनाने एवं रखने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्मनिर्भर राष्ट्र माने जाते हैं।
  2. प्रतिष्ठा प्राप्त करना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर शक्तिशाली राष्ट्र बन विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है।
  3. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  4. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की भेदपूर्ण नीति- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने NPT-1996 तथा CTBT 1996 की भेदभावपूर्ण संधियों द्वारा अन्य राष्ट्रों को परमाणु सम्पन्न न बनने देने की नीति अपना रखी है। भारत ने इन पर हस्ताक्षर नहीं किये तथा परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।
  5. भारत द्वारा लड़े गए युद्ध – भारत ने समय- समय पर 1962, 1965, 1971 एवं 1999 में युद्धों का सामना किया । युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए भारत परमाणु हथियार प्राप्त करना चाहता है।
  6. दो पड़ोसी राष्ट्रों के पास परमाणु हथियार होना – भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि भारत के दोनों पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।

प्रश्न 8.
भारत की विदेश नीति में नेहरू की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में नेहरू की भूमिका भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभायी। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री भी थे। प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला।
1. गुटनिरपेक्षता की नीति:
नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे। कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना तथा तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे। इन दिनों में भारत में कुछ राजनैतिक दल, नेता तथा समूह ऐसे भी थे जिनका मानना था कि भारत को अमरीकी खेमे के साथ ज्यादा नजदीकी बढ़ानी चाहिए क्योंकि इस खेमे की प्रतिष्ठा लोकतंत्र के हिमायती के रूप में थी। लेकिन विदेश नीति को तैयार करने में नेहरू को खासी बढ़त हासिल थी।

2. सैनिक गठबन्धनों से दूर रहने की नीति:
स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में शांतिपूर्ण विश्व का सपना था और इसके लिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया। भारत ने इसके लिए शीत युद्ध से उपजे तनाव को कम करने की कोशिश की और संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति-अभियानों में अपनी सेना भेजी। भारत ने अमरीका और सोवियत संघ की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधनों से अपने को दूर रखना चाहता था। दोनों खेमों के बीच भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर स्वतंत्र रवैया अपनाया। उसे दोनों खेमों के देशों ने सहायता और अनुदान दिये।

3. एफ्रो-एशियायी एकता की नीति- भारत के आकार, अवस्थिति और शक्ति संभावना को भांपकर नेहरू ने विश्व के मामलों, विशेषकर एशियायी मामलों में भारत के लिए बड़ी भूमिका निभाने की नीति अपनायी। उन्होंने एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों से सम्पर्क बनाए तथा एशियायी एकता की पैरोकारी की। 1955 का बांडुंग में एफ्रो- एशियायी देशों का सम्मेलन हुआ जो अफ्रीका व एशिया के नव-स्वतंत्र देशों के साथ भारत के बढ़ते सम्पर्क का चरम बिन्दु था।

4. चीन के साथ शांति और संघर्ष:
नेहरू के नेतृत्व में भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत दोस्ताना ढंग से की भारत ने सबसे पहले चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता दी। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धान्तों यानी पंचशील की घोषणा नेहरू और चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रेल, 1954 में की। लेकिन चीन ने 1962 में भारत पर अचानक आक्रमण कर इस दोस्ताना रिश्ते को शत्रुता में बदल दिया तथा भारत के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया। तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच सीमा विवाद जारी है। यद्यपि चीन के सम्बन्ध में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आशंका व्यक्त की थी, लेकिन नेहरू ने इस आशंका को नजरअंदाज कर दिया था। एक विदेश नीति के मामले में नेहरू की एक भूल साबित हुई।

प्रश्न 9.
चीन के साथ भारत के युद्ध का भारत तथा भारत की राजनीति पर क्या प्रभाव हुआ? विस्तारपूर्वक समझाइए
उत्तर:

  1. चीन-युद्ध से भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। इस संकट से निपटने के लिए भारत को अमरीका और ब्रिटेन से सैन्य सहायता माँगनी पड़ी।
  2. चीन- युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुँची लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र भावना भी बलवती हुई। इस युद्ध के कारण नेहरू की छवि भी धूमिल हुई। चीन के इरादों को समय रहते न भाँप सकने और सैन्य तैयारी न कर पाने को लेकर नेहरू की आलोचना हुई ।
  3. नेहरू की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। कुछ महत्त्वपूर्ण उप-चुनावों में कांग्रेस ने हार का सामना किया। देश का राजनीतिक मानस बदलने लगा था।
  4. भारत-चीन संघर्ष का असर विपक्षी दलों पर भी हुआ। इस युद्ध और चीन – सोवियत संघ के बीच बढ़ते मतभेद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर बड़ा बदलाव हुआ। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में टूट गई। इस पार्टी के भीतर जो खेमा चीन का पक्षधर था उसने मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनाई। चीन युद्ध के क्रम में माकपा के कई नेताओं को चीन का पक्ष लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
  5. चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डाँवाडोल स्थिति के प्रति सचेत किया क्योंकि राष्ट्रीय एकता के लिहाज से यह इलाका चुनौतीपूर्ण था।
  6. चीन – र – युद्ध के बाद पूर्वोत्तर भारत के इलाकों को नयी तरतीब में ढालने की कोशिशें शुरू की गईं। नागालैंड को प्रांत का दर्जा दिया गया। मणिपुर और त्रिपुरा हालाँकि केन्द्र – शासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार मिला। संजीव पास बुक्स।

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प्रश्न 10.
ऐतिहासिक रूप से तिब्बत भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा मसला रहा है। विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तिब्बत मध्य एशिया का मशहूर पठार है। अतीत में समय-समय पर चीन ने तिब्बत पर अपना प्रशासनिक अधिकार जताया और कई दफा तिब्बत आजाद भी हुआ। 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के ज्यादातर लोगों ने चीनी कब्जे का विरोध किया। 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर हुए तो इसके प्रावधानों में एक बात यह भी थी कि दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करेंगे। चीन ने इसका यह अर्थ लगाया कि भारत तिब्बत पर चीन की दावेदारी को स्वीकार कर रहा है।

1965 में चीनी शासनाध्यक्ष जब भारत आए. उसे समय तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा भी भारत पहुँचे और उन्होंने तिब्बत की बिगड़ती स्थिति की जानकारी नेहरू को दी। चीन ने यह आश्वासन दिया कि तिब्बत को चीन के अन्य इलाकों से ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी। 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीनी सेनाओं द्वारा दबा दिया गया। स्थिति को बिगड़ता देख तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध किया।

पिछले 50 सालों में बड़ी संख्या में तिब्बती जनता ने भारत और दुनिया के अन्य देशों में शरण ली है। भारत में तिब्बती शरणार्थियों की बड़ी-बड़ी बस्तियाँ हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में संभवतया तिब्बती शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती है। दलाई लामा ने भी भारत में धर्मशाला को अपना निवास स्थान बनाया है। 1950 और 1960 के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल और राजनेताओं ने तिब्बत की आजादी के प्रति अपना समर्थन जताया। इन दलों में सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ शामिल हैं।

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 2 From Trade to Territory: The Company Establishes Power

JAC Board Class 8th Social Science Solutions History Chapter 2 From Trade to Territory: The Company Establishes Power

JAC Class 8th History From Trade to Territory: The Company Establishes Power InText Questions and Answers

Page 15

Question 1 .
Imagine that you are a young Company official who has been in India for a few months. Write a letter home to your mother telling her about your luxurious life and contrasting it with your earlier life in Britain.
Answer:
Do it yourself.
Hint. students can use these points in letter – Well-furnished and embellished house has been allotted to you. House maids, gardener and servants are there to do the daily household works. Local landlords are supportive and helpful.

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 2 From Trade to Territory: The Company Establishes Power

Page 18
Question 2.
Imagine that you have come across two old newspapers reporting on the Battle of Seringapatam and the death of Tipu Sultan. One is a British paper and the other is from Mysore. Write the headline for each of the two newspapers.
Answer:
Headline for the British newspaper “The East India Company gets another victory and crushes Tipu Sultan”. Headline for the local newspaper – “Tipu Sultan, the tiger of Mysore sacrifices his life for the country”.

Page 19

Question 3.
Imagine that you are a nawab’s nephew and have been brought up thinking that you will one day be king. Now you find that this will not be allowed by the British because of the new Doctrine of Lapse. What will be your feelings? What will you plan to do so that you can inherit the crown?
Answer:
My feelings would be of disappointment, aggression and anger. I would try to make an army and train them and fight with the British and get victory in the war. I would join with other Indian kings and withdraw the Doctrine of Lapse and inherit the crown of my uncle as he is no more.

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 2 From Trade to Territory: The Company Establishes Power

Page 24
Question 4.
You are living in England in the late eighteenth or early nineteenth century. How would you have reacted to the stories of British conquests? Remember that you would have read about the immense fortunes that many of the officials were making.
Answer:
Students need to do it on their own.The following points may help you.

  1. As a lay person who is not associated with East India company, nor part of the government I would have surely resented British conquest and its policies of colonialism.
  2. As it amounted to subjugation and oppression of the colonial people.
  3. It resulted in the massive drain of wealth, exploitation of the colonial people.
  4. I would have also criticized British policy of divide and rule, of pitting one group against another.
  5. The British conquest reveals it dual face, which on one hand talks of freedom, liberty, in its own country and at the same time denies such values to colonial people.
  6. The British were only motivated by their economic interests, with the prospects of getting cheap labour, raw material, and market, they did nothing to improve the condition of the people.
  7. Whatever administrative changes they introduced served their own interest.
  8. The Company officials made huge money at the expense of innocent population.
  9. It in fact, brought about massive deprivation of the people in the colonies.

JAC Class 8th History From Trade to Territory: The Company Establishes Power Textbook Questions and Answers

Let’s Recall

Question 1.
Match the following.

Diwani Tipu Sultan
“Tiger of Mysore” right to collect land revenue
faujdari adalat Sepoy
Rani Channamma criminal court led an anti-British movement in Kitoor
sipahi Tipu Sultan

Answer:

Diwani right to collect land revenue
“Tiger of Mysore” Tipu Sultan
faujdari adalat criminal court
Rani Channamma led an anti-British movement in Kitoor
sipahi Sepoy

 

Question 2.
Fill in the blanks.
(a) The British conquest of Bengal began with the Battle of
(b) Haidar Ali and Tipu Sultan were the rulers of .
(c) Dalhousie implemented the Doctrine of .
(d) Maratha kingdoms were located mainly in the part of India.
Answer:
(a) Plassey
(b) Mysore
(c) Lapse
(d) western

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 2 From Trade to Territory: The Company Establishes Power

Question 3.
State whether true or false.
(a) The Mughal empire became stronger in the eighteenth century.
(b) The English East India Company was the only European company that traded with India.
(c) Maharaja Ranjit Singh was the ruler of Punjab.
(d) The British did not introduce administrative changes in the territories they conquered.
Answer:
(a) False
(b) False
(c) True
(d) False

Let’s Discuss

Question 4.
What attracted European trading companies to India?
Answer:
European trading companies were attracted to India because of the following reasons. The fine qualities of cotton and silk roduced in India had a big market in Europe. Spices such as pepper, cloves, cardamom and cinnamon too were in great demand. These things were easily available in India at very low price.

Question 5.
What were the areas of conflict between the Bengal nawabs and the East India Company?
Answer:
The areas of conflict between the Bengal nawabs and the East India Company were.

  1. The nawabs refused to grant the Company concessions.
  2. They demanded large tributes for the Company’s right to trade.
  3. They denied it any right to mint coins.
  4. They also stopped it from extending its fortifications.
  5. They claimed that the Company was depriving the Bengal government of huge amounts of revenue and undermining the authority of the nawab by refusing to pay taxes, writing disrespectful letters, and trying to humiliate the nawab and his officials.
  6. The Company on its part declared that the unjust demands of the local officials were ruining the trade of the Company and trade could flourish only if the duties were removed.

Question 6.
How did the assumption of Diwani benefit the East India Company?
Answer:
The assumption of Diwani benefitted the East India Company in many ways.

  1. The Diwani allowed the Company to use the vast revenue resources of Bengal.
  2. The major problem was solved by Diwani which the east India Company had earlier faced.
  3. Though the trade has expanded and grown, a lot of items they had to buy with gold and silver which was imported from Britain.
  4. This overflow stopped after the assumption of Diwani. Now revenue from India could capitalise the Company expenses.
  5. These were used to purchase goods in India, maintain Company troops and meet the expenses to build forts and offices at Calcutta.

Question 7.
Explain the system of “subsidiary alliance”.
Answer:
According to the system of subsidiary alliance, Indian rulers were not allowed to have their independent armed forces. They were to be protected by the East India Company but also had to pay for the “subsidiary forces” that the Company was supposed to maintain for the purpose of this protection. If the Indian rulers failed to make the payment, then part of their territory was taken away as penalty. The states which had to lose their territories on this ground were Awadh and Hyderabad.

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Question 8.
In what way was the administration of the Company different from that of Indian rulers?
Answer:

^Administration of the Company Administration ^ of Indian Ruler
The administrative units of the company was known as Presidencies. They were divided into 3 units – Bengal, Bombay and Madras. The main administrative units in India were the districts.
Each Presidency were governed by a Governor. Each districts were governed by the Collector.
Governor- General was the supreme head of the company. The king was the supreme head of India.
The main job of the Governor- General was to introduce different administrative policies and make amendments and bring reform in work. V The main job of the Collector in India was to collect revenue and taxes and properly maintain law and order in the assigned district with the help of judges, police officers and darogas.

Question 9.
Describe the changes that occurred in the composition of the Company’s army.
Answer:
The changes that occurred in the composition of the Company’s army are.

  1. The East India Company started recruiting peasants into their armies and trained them as professional soldiers and were known as the sepoy army.
  2. As technology of warfare changed from the 1820s, the cavalry requirements of the East India Company’s army declined.
  3. The soldiers of the Company’s army had to keep pace with changing military requirements and its infantry regiments which now became more important.
  4. In the early nineteenth century the British began to develop a uniform military culture. Soldiers were increasingly subjected to European- style training, drill and discipline that regulated their life far more than before.

Let’s Do
Question 10.
After the British conquest of Bengal, Calcutta grew from a small village to a big city. Find out about the culture, architecture and the life of Europeans and Indians of the city during the colonial period.
Answer:
Calcutta was the capital of the British Indian rule until 1911 and after that it was relocated to Delhi. In 1772, Warren Hastings made Calcutta, the capital. It went through rapid industrial growth from 1850s. Many famous architectural buildings and monuments were built. It became the ‘cultural capital of India’ The contribution of Bengal Renaissance on the independence of India was immense.

Question 11.
Collect pictures, stories, poems and information about any of the following – the Rani of Jhansi, Mahadji Sindhia, Haidar Ali, Maharaja Ranjit Singh, Lord Dalhousie or any other contemporary ruler of your region.
Answer:
Students need to do it their own.

JAC Class 8th History From Trade to Territory: The Company Establishes Power Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions

Question 1.
The last powerful Mughal Emperor was………..
a. Aurangzeb
b. Bahadur Shah Zafar
c. Akbar
d. Babur
Answer:
a. Aurangzeb

Question 2.
Mercantile trading companies in those days made profit by.
a. buying at high prices and selling at low.
b. educating people about sea travel.
c. excluding competition.
d. none of these
Answer:
c. excluding competition.

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Question 3.
The items that all European countries wanted to buy from India were
a. cotton, silk, pepper, steel, cardamom.
b. cotton, pepper, cloves, cardamom, silk, cinnamon.
c. cotton, cloves, electronic, silk, cinnamon.
d. cotton, cardamom, rubber, pepper, cloves.
Answer:
b. cotton, pepper, cloves, cardamom, silk, cinnamon.

Question 4.
Robert Clive led the Company’s army against Sirajuddaulah at Plassey in…………
a. 1756
b. 1758
c. 1757
d.1759
Answer:
c. 1757

Question 5.
The Battle of Buxar was fought in the year………..
a. 1763
b. 1764
c. 1765
d. 1766
Answer:
b. 1764

Question 6.
Under ‘subsidiary alliance’, when Richard Wellesley was Governor- General, the Nawab of ………..was forced to give over half of his territory to the Company in 1801 as he failed to pay for the ‘subsidiary forces’.
a. Bengal
b. Mysore
c. Hyderabad
d. Awadh
Answer:

Question 7.
The third battle of Panipat was fought in the year…… .
a. 1761
b. 1861
c. 1791
d. 1891
Answer:
d. 1891

Question 8.
The ‘Doctrine of Lapse’ was introduced by the Governor-General
a. Warren Hastings
c. Dalhousie
b. Clive Lloyd
d. Mountbatten
Answer:
c. Dalhousie

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Question 9.
Sadar Nizamat Adalat was set up in………..
a. Madras
b. Mysore
c. Bombay
d. Calcutta
Answer:
d. Calcutta

Question 10.
The three Presidencies in British India were………
a. Bengal, Mysore and Bombay
b. Bengal, Madras and Bombay
c. Bengal, Bombay and Delhi
d. Bengal, Madras and Awadh
Answer:
b. Bengal, Madras and Bombay

Very Short Answer Type Question

Question 1.
What was the earliest name of the present day Kolkata?
Answer:
The earliest name of the present day Kolkata was Kalikata.

Question 2.
What do you mean by farmanl
Answer:
Farman means a royal order.

Question 3.
When did the East India Company take over Awadh?
Answer:
The East India Company took over Awadh in 1856.

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Question 4.
What was the main goal of East India Company?
Answer:
The main goal of East India Company was the expansion of trade.

Question 5.
Who was made the Nawab of Bengal after the Battle of Plassey?
Answer:
Mir Jafar was made the Nawab of Bengal after the Battle of Plassey.

Question 6.
Who led the Company’s army against Sirajuddaulah at Plassey?
Answer:
Robert Clive led the Company’s army against Sirajuddaulah at Plassey.

Question 7.
Who arrested Bahadur Shah Zafar and his sons?
Answer:
Bahadur Shah Zafar and his sons were arrested by Captain Hudson.

Question 8.
Whom did the Company install in place of Mir Jafar and why?
Answer:
When Mir Jafar protested, the Company deposed him and installed Mir Question asim in his place.

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Question 9.
Who commenced the policy of paramountcy?
Answer:
Lord Hastings (Governor- General from 1813 to 1823) commenced the new policy of “paramountcy”.

Question 10.
Why did Tipu Sultan develop a close relationship with the French in India?
Answer:
Tipu Sultan established a close relationship with the French in India in order to modernise his army with their help.

Short Answer Type Question

Question 1.
What do you mean by puppet?
Answer:
Puppet means a toy that you can move with strings. The term is used disapprovingly to refer to a person who is controlled by someone else. The East India Company also wanted someone who can rule but on their orders.

Question 2.
Why did the East India Company wanted a puppet ruler?
Answer:
The East India Company wanted a puppet ruler because he would willingly give trade concessions and other privileges to them.

Question 3.
What do you understand by “Mercantile”.
Answer:
Mercantile means a business enterprise that makes profit primarily through trade, buying goods cheap and selling them at higher prices.

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Question 4.
What do you understand by ‘nabobs’?
Answer:
East India Company officials who managed to return Britain with enormous wealth, led flashy and very comfortable lives and flaunted their riches. These officials were called “nabobs” , an anglicised version of the Indian word nawab.

Question 5.
How Plassey got its name?
Answer:
Plassey is an anglicised pronunciation of Palashi and the place derived its name from the palash tree known for its beautiful red flowers that yield colour or gulal, the powder used in the festival of Holi.

Question 6.
What has happened in second Anglo- Maratha war?
Answer:
The Second Anglo-Maratha war happened in 1803-05 and was fought on different fronts, resulting in favour of the British gaining Orissa and the territories north of the Yamuna river including Agra and Delhi.

Question 7.
Why the East India Company had to buy most of the goods in India with gold and silver imported from Britain?
Answer:
The East India Company had to buy most of the goods in India with gold and silver imported from Britain because at that time Britain had no other goods to sell in India.

Question 8.
The appointment of residents in Indian states help the East India Company. How?
Answer:
The appointment of residents in Indian states helped the East India Company in many ways. Through the Residents, the East India Company officials began interfering in the internal affairs of Indian states. They tried to decide who was to be the successor to the throne, and who was to be appointed in administrative posts.

Question 9.
Who led an anti-British movement in Kitoor? What was the end result?
Answer:
When the British tried to annex the small state of Kitoor (in Karnataka today), Rani Channamma took to arms and led an anti-British resistance movement. The new policy of ‘paramountcy’ was challenged by her. She was arrested in 1824 and died in prison in 1829.

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Question 10.
What happened in the Battle of Seringapatam?
Answer:
Four wars were fought between the East India Company and Mysore in 1767-69, 1780-84, 1790-92 and 1799. Only in the last war known as the Battle of Seringapatam did the East India Company finally gets a victory over Mysore. Tipu Sultan was killed defending his capital Seringapatam. Under the former ruling dynasty of the Wodeyars, Mysore was placed and a subsidiary alliance was imposed on the state.

Long Answer Type Question

Question 1.
In which manner the East India Company begin trade in Bengal? Discuss.
Answer:
East India Company begin trade in Bengal in the following manner.

  1. In the year 1651, the first English factory was set up on the banks of the river Hugh. This was the base from which the East India Company’s traders known at that time as factors, operated. The factory had a warehouse where goods for export were stored and it had offices where Company officials sat.
  2. The Company persuaded merchants and traders to come and settle near the factory as trade expanded.
  3. The Company began to build a fort around the settlement by 1696.
  4. Two years later it bribed Mughal officials into giving the Company zamindari rights over three villages. One of these was Kalikata, which later grew into the city of Calcutta or Kolkata as it is known today.
  5. It also persuaded and induced the Mughal emperor Aurangzeb to issue a farman granting the East India Company the right to trade duty free.

Question 2.
Explain in brief about Tipu Sultan.
Answer:
Tipu Sultan Under the leadership of powerful rulers like Haidar Ali (ruled from 1761 to 1782) and his famous son Tipu Sultan, Mysore had grown in strength. Tipu Sultan ruled from 1782 to 1799 was known as ‘Tiger of Mysore’ as he fought bravely with the tiger. Mysore controlled the profitable trade of the Malabar coast where the Company purchased pepper and cardamom.
Tipu Sultan was a scholar and great soldier. Tipu Sultan stopped the export of sandalwood, pepper and cardamom through the ports of his kingdom, and disallowed local merchants from trading with the Company in 1785.

He also established a close relationship with the French in India and modernized his army with their help. The British were angry and furious. They saw Haidar and Tipu as ambitious, arrogant and dangerous for them. Four battles were fought with Mysore in the years 1767-69, 1780-84, 1790-92 and 1799. In the last, the Battle of Seringapatam, the East India Company ultimately gets a victory. Tipu Sultan was killed defending his capital Seringapatam.

JAC Class 8 Social Science Solutions

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources

JAC Board Class 8th Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources

JAC Class 8th Geography Resources InText Questions and Answers

Question 1.
List out five resources you use in your home and five you use in your classroom.
Answer:
Five resources we use in our home are:
Question 2.
Circle those resources from Amnia’s list that are regarded as having no commercial value.
JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 1

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 2

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 3

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 4

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 5

Five resources we use in our classroom are:

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JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 7

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 8

JAC Class 8 Social Science Solutions Geography Chapter 1 Resources 9

JAC Class 8 Social Science Solutions GeographyChapter 1 Resources 10

Amma’s List

  • Cotton cloth
  • Iron ore
  • Intelligence
  • Medicinal plants
  • Medical knowledge
  • Coal deposits
  • Beautiful scenery
  • Agricultural land
  • Clean environment
  • Old folk songs
  • Good weather
  • Resourcefulness
  • A good singing voice
  • Grandmother’s home remedies
  • Affection from friends and family

Answer:
Student need to do it on their own.

Question 3.
Think of a few renewable resources and mention how their stock may get affected by overuse.
Answer:
Some of the renewable resources that regenerate over-time such as trees, crops, wind, solar energy and water. Their stock may get affected by overuse or over utilisation because of certain reasons such as land degradation, deforestations, pollution, etc. Rivers are drying up, air becomes more polluted due to smoke from vehicles and industries. Trees are cut down to make more buildings, etc.

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources

Question 4.
Make a list of five human made resources that you can observe around you.
Answer:
A list of five human made resources that we observe around are:

  • Phones
  • Buildings
  • Vehicles
  • Aeroplanes
  • Roads

JAC Class 8th Geography Resources Textbook Questions and Answers

Question 1.
Answer the following questions.
(i) Why are resources distributed unequally over the earth?
Answer:
The resources are distributed unequally over the earth because it is controlled by different factors. One of the factors is physical nature which includes climate, altitude, terrain which vary from place to place.

(ii) What is resource conservation?
Answer:
Resource conservation is to use the resources efficiently, carefully and properly and giving time to get renewed and to regenerate the resource so that it will be available for the coming generations.

(iii) Why are human resources important?
Answer:
Human resources are important because they can utilise the natural resources in a best possible way to generate more resources as they have an intelligent mind. Human resources also include technology and skills to find the suitable resource. Advantage and usefulness of resources can be best judged by human beings only.

(iv) What is sustainable development?
Answer:
Sustainable development is to use the resources in a balanced way so that we conserve it for the future generation and utilise it efficiently for our needs.

Tick the correct answer.

Question 2.
(i) Which one of the following does NOT make substance a resource?
(a) utility
(b) value
(c) quantity
Answer:
(c) quantity

(ii) Which one of the following is a human made resource?
(a) medicines to treat cancer
(b) spring water
(c) tropical forests
Answer:
(a) medicines to treat cancer

(iii) Complete the statement. Non-renewable resources are
(a) those which have limited stock
(b) made by human beings
(c) derived from non-living things
Answer:
(a) those which have limited stock

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources

Question 3.
Activity:
“Rahiman paani raakhiye, Bin paani sab soon. Paani gaye na ubere Mod, manus, choon…” [Says Rahim, keep water, as without water there is nothing. Without water pearl, swan and dough cannot exist.] These lines were written by the poet Abdur Rahim Khankhana, one of the nine gems of Akbar’s court. What kind of resource is the poet referring to? Write in 100 words what would happen if this resource disappeared?
Answer:
The poet is referring to the water. If this resource disappear then we will face serious difficulties as water is one of the most invaluable and irreplaceable resource of life. Without water, we cannot survive and sustain. It serves many purposes such as to drink, to clean clothes and utensils and bath. For irrigation and farming, water is required very much. It is also used for cooking food. Water helps in generating electricity, industries and factories. Apart from human beings, animals, plants and trees also require water to sustain. Without water, the earth will become desert and no life will sustain. For Fun

Question 1.
Pretend that you live in the prehistoric times on a high windy plateau. What are the uses you and your friends could put the fast winds to? Can you call the wind a resource? Now imagine that you are living in the same place in the year 2138. Can you put the winds to any use? How? Can you explain why the wind is an important resource now?
Answer:
Wind has long been in use, since ancient time. It has been used for sailing boats, for navigation. Gradually wind mills were built to grind crops also to pump out water. Wind was regarded as a potential resource. However due to lack of technology it could not be harnessed completely. In 2138, we can surely see wind being used to the fullest as an actual resource. We have built wind turbines to generate electricity. We can see more and more wind turbines brings used in industrial areas, in agricultural farms to meet irrigation and electricity needs.

Question 2.
Pick up a stone, a leaf, a paper straw and a twig. Think of how you can use these as resources. See the example given below and get creative!

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources 11

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources 12

Answer:
Students can do the other two on their

JAC Class 8th Geography Resources Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions

Question 1.
A substance is made a resource when it has………
(a) Value
(b) usability
(c) utility
(d) all of these
Answer:
(d) all of these

Question 2.
Value means
(a) worth
(b) deserves
(c) both ka’ and ‘b’
(d) neither ‘a’ nor ‘b’
Answer:
(c) both ka’ and ‘b’

Question 3.
Time and technology are two important factors that can change substances into .
(a) stock
(b) resource
(c) patent
(d)value
Answer:
(b) resource

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources

Question 4.
Natural resources contains
(a) air
(b) wind
(c) water
(d) all of these
Answer:
(d) all of these

Question 5.
The distribution of natural resources depends on…….
(a) terrain
(b) altitude
(c) both ka’ and kb’
d. none of these
Answer:
(c) both ka’ and kb’

Question 6.
Non-renewable resource is…….
(a) natural gas
(b) solar energy
c. wind energy
d. soil
Answer:
a. natural gas

Question 7.
Water is a………
(a) non-renewable resource.
(b) renewable resource.
(c) either ‘a’ or ‘b’
(d) none of these
Answer:
(b) renewable resource.

Question 8.
Resources to conserved for…..
(a) future generations.
(b) present generations.
(c) not required to conserve.
(d) both ‘a’ and kb’
Answer:
(d) both ‘a’ and kb’

Question 9.
Human resource refers to the
(a) quantity
(c) mental ability
(b) physical ability
(d) all of these
Answer:
(d) all of these

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources

Question 10.
Buildings, bridges are
(a) human-made.
(b) non-renewable.
(c) renewable resource.
(d) resource conservation.
Answer:
(a) human-made.

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
Which value is associated with resources?
Answer:
Economic value is associated withresources.

Question 2.
What do you mean by patent?
Answer:
Patent means the full and unshared right over any idea or invention of any particular thing.

Question 3.
What are the different types of resource?
Answer:
The different types of resources are:

  1. Natural resources
  2. Human made resources
  3. Human resources

Question 4.
What do mean by natural resource?
Answer:
Natural resources are the resources which are drawn from nature, environment and used without much alterations and moderations.

Question 5.
Name the two natural resources.
Answer:
The two natural resources are:

  1. Renewable resource
  2. Non-renewable resource

Question 6.
Which resource has a limited stock? Answer: Non-renewable resource has a limited stock.

Question 7.
What do mean by human made resource?
Answer:
Human made resources are the resources which are generated and made by human beings.

Question 8.
Define human resource development.
Answer:
Human resource development means to improve the caliber, standard and quality of human expertise in order to make them more efficient and useful.

Short Answer Type Questions 

Question 1.
Mention few concepts of Sustainable Development.
Answer:
Few concepts of Sustainable Development are:

  1. Respect and care for all forms of life.
  2. Improve the quality of human life.
  3. Conserve the earth’s vitality and diversity.
  4. Minimise the depletion of natural resources.
  5. Change personal attitude and practices toward the environment.
  6. Enable communities to care for their own environment.

Question 2.
What is the importance of time and technology in making a substance a resource?
Answer:
Two major and important factors are time and technology that can change substances into resources. Each invention opens new routes to many others. The invention of fire led to the practice of cooking and other processes while the invention of the wheel resulted in development of newer modes of transport. The technology to create electricity from water i.e., hydroelectricity has turned energy in fast flowing water into an important resource.

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 1 Resources

Question 3.
Our duty is to maintain and preserve the life support system that nature provides us. What are they?
Answer:
Our duty is to maintain and preserve the life support system that nature provides us. They are:

  • All uses of renewable resources are maintained at a certain level.
  • The varied range of life on the earth is conserved.
  • The damage to natural environmental system is lessened and reduced.

Question 4.
Stock of certain renewable resources may get affected by overuse. How?
Answer:
If we don’t use certain renewable resources efficiently such as water, soil and forest, these can affect their stock. Though water seems to be an unlimited renewable resource but shortage and drying up of natural water sources is a major issue in many parts of the world nowadays.

Question 5.
Describe the term resource and how they are classified.
Answer:
Any object, substance or material that has utility or usability makes a resource. The substances which have certain values become a resource.
Resources are classified into three parts:
Natural Resources These resources are those which are taken from nature.

Human made Resources:
These resources are those which are made by the humans and used their skill and knowledge to make the things for their own use.

Human Resources:
These resources includes human beings who serves in many ways such as teachers, doctors, etc.

Long Answer Type Questions

Question 1.
Distinguish between natural resources and human made resources.
Answer:

Natural Resources Human Made Resources
Natural resources are the resources that are used from nature and used without much alteration and changes. When humans use natural things to make something new that provides utility and value to our lives, it is called human-made resources. For instance, when we use metals, wood, cement, sand, and solar energy to make buildings, machinery,
Most of these resources can be used directly as they are free gifts of nature. vehicles, bridges, roads, etc. they become man-made resources.
Natural resources are the air we breathe, the water in our rivers and lakes, the soils minerals. Natural substances become resources only when their original form has been changed or modified to use such as iron is extracted from iron ore.

 

JAC Class 8 Social Science Solutions

JAC Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 10 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Jharkhand Board Class 12 History विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 290

प्रश्न 1.
इन दोनों रिपोर्टों तथा उस दौरान दिल्ली के हालात के बारे में इस अध्याय में दिए गए विवरणों को पढ़ें याद रखें कि अखबारों में छपी खबरें अक्सर पत्रकार के पूर्वाग्रह या सोच से प्रभावित होती हैं। इस आधार पर बताएँ कि दिल्ली उर्दू अखबार लोगों की गतिविधियों को किस नजर से देखता था?
उत्तर:
दोनों रिपोर्टों को पढ़ने से हमें पता चलता है कि उस समय दिल्ली शहर का सामान्य जनजीवन अस्त- व्यस्त हो गया था। आम लोगों को सब्जियाँ भी नहीं मिल पा रही थीं। गरीब कुलीन लोगों को स्वयं घड़ों में पानी भरकर लाना पड़ता था। निर्धन एवं मध्यम वर्ग के लोगों को भी कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। शहर में गन्दगी और बीमारियाँ फैली हुई थीं। हमारे विचर से दिल्ली उर्दू अखवार ने दिल्ली की तत्कालीन स्थिति का सटीक वर्णन किया है, इसमें पत्रकार की पूर्वाग्रहता नहीं दिखाई पड़ती है।

पृष्ठ संख्या 291

प्रश्न 2.
विद्रोही अपनी योजनाओं को किस तरह एक-दूसरे तक पहुँचाते थे, इस बारे में इस बातचीत से क्या पता चलता है? तहसीलदार ने सिस्टन को सम्भावित विद्रोही क्यों मान लिया था?
उत्तर:
विद्रोही अपनी योजनाओं को आपसी संवाद के द्वारा एक दूसरे तक पहुँचाते थे। यह हमें सिस्टन और तहसीलदार के वार्तालाप से पता चलता है विद्रोह के समय बहुत से सरकारी कर्मचारी भी विद्रोहियों से मिले हुए थे। सिस्टन के देशी पहनावे तथा बैठने के ढंग के आधार पर बिजनौर के तहसीलदार ने उसे सम्भावित विद्रोही मानकर वार्तालाप किया था, क्योंकि वह अवध में नियुक्त था।

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पृष्ठ संख्या 295 चर्चा कीजिए

प्रश्न 3.
इस भाग को एक बार और पढ़िए तथा विद्रोह के दौरान नेता कैसे उभरते थे, इस बारे में समानताओं और भिन्नताओं की व्याख्या कीजिए किन्हीं दो नेताओं के बारे में बताइए कि आम लोग उनकी तरफ क्यों आकर्षित हो जाते थे।
उत्तर:
नेता जनसामान्य का समर्थन पाकर उभरते थे।
(i) रानी लक्ष्मीबाई यह झाँसी की रानी थी। लोग उसके प्रति अंग्रेजों द्वारा अन्याय तथा रानी की वीरता के कारण आकर्षित हुए।
(ii) बहादुरशाह द्वितीय- यह अन्तिम मुगल शासक था मुगलों के प्रति सामान्य जनता में अभी भी श्रद्धा का भाव था।

पृष्ठ संख्या 297

प्रश्न 4.
इस पूरे भाग को पढ़ें और चर्चा करें कि लोग वाजिद अली शाह की विदाई पर इतने दुःखी क्यों थे?
उत्तर:
वाजिद अली शाह अवध (लखनऊ) के लोकप्रिय नवाब थे। उनको गद्दी से हटाने पर तमाम लोग अभिजात, किसान और जन सामान्य सभी लोग रो रहे थे। वे अपने प्रिय नवाब के अपमान से दुःखी थे। इसके अतिरिक्त जो उन पर आश्रित थे, वे बेरोजगार हो गये; उन लोगों की रोजी-रोटी चली गई थी। इन्हीं कारणों से लखनऊ की जनता उनके वियोग से दुःखी थी और सब रो चिल्ला रहे थे कि “हाय! जान-ए-आलम देस से विद्य लेकर परदेस चले गए हैं।”

पृष्ठ संख्या 299

प्रश्न 5.
इस अंश से आपको ताल्लुकदारों के रवैये के बारे में क्या पता चल रहा है? ‘यहाँ के लोगों’ से हनवन्तसिंह का क्या आशय था? उन्होंने लोगों के गुस्से की क्या वजह बताई ?
उत्तर:
इस अंश से हमें ताल्लुकदारों की शरणागत- वत्सलता और देश-प्रेम दोनों भावनाओं का पता चलता है। संकट में शरणागत की रक्षा करना भारतीय संस्कृति का आदर्श रहा है, जिसका राजा हनवन्तसिंह ने पालन किया। दूसरी ओर, देश-प्रेम की खातिर वे अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए बुद्ध करने जाते हैं। ‘यहाँ के लोगों’ से हनवन्तसिंह का आशय भारत के विद्रोही ताल्लुकदारों, किसानों, सैनिकों से था। उन्होंने लोगों के गुस्से की वजह बतायी अंग्रेजी शासन द्वारा भारत के लोगों का शोषण करना तथा ताल्लुकदारों की जमीनें छीनना

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पृष्ठ संख्या 301-302

प्रश्न 6.
इस घोषणा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कौनसे मुद्दे उठाए गए हैं? प्रत्येक तबके के बारे में दिए गए भाग को ध्यान से पढ़िए घोषणा की भाषा पर ध्यान दीजिए और देखिए कि उसमें कौनसी भावनाओं पर जोर दिया जा रहा है?
उत्तर:
यह घोषणा 25 अगस्त, 1857 को मुगल सम्राट द्वारा जारी की गई थी। इस घोषणा में निम्नलिखित मुद्दे उठाए गए हैं –

  • जमींदारों को अपमानित एवं बर्बाद करना
  • व्यापारियों को मुनाफे से वंचित करना एवं उन्हें अपमानित करना
  • भारतीय सरकारी कर्मचारियों को उच्च पदों से वंचित करना
  • कारीगरों में व्याप्त बेरोजगारी और गरीबी
  • पण्डितों और फकीरों का सम्मान न करना।

इस घोषणा में जमींदारों, व्यापारियों, सरकारी कर्मचारियों, कारीगरों तथा पण्डित-फकीरों, मौलवियों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ इस पवित्र युद्ध में भाग लेने हेतु | प्रोत्साहित किया गया था, क्योंकि ये सभी वर्ग ब्रिटिश शासन की निरंकुशता और उत्पीड़न से त्रस्त थे। इसमें इस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया गया, जो सम्बन्धित लोगों के दिलोदिमाग पर असर करे इस घोषणा की भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित है, जिसे हिन्दुस्तानी कहा जा सकता है।

पृष्ठ संख्या 303

प्रश्न 7.
इस अर्जी में सैनिक विद्रोह के जो कारण बताए गए हैं, उनकी तुलना ताल्लुकदार द्वारा बताए गए कारणों (स्रोत-4) के साथ कीजिए।
उत्तर:
इस अर्जी में बताया गया है कि ताल्लुकदारों तथा सैनिकों दोनों में अंग्रेजों का साथ देने में समानता है तथा जब दोनों को ही उत्पीड़ित किया गया तो दोनों ने ही अंग्रेजी शासन के प्रति बगावत कर दी। इसे हम निम्न तालिका के माध्यम से समझ सकते हैं-

ताल्लुकचार
1. ताल्लुकदारों द्वारा अंग्रेजों की रक्षा की गई।
2. ताल्लुकदारों की जागीरें छीन लेने तथा उनकी -सेवाओं को भंग कर देने के कारण उन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु युद्ध किया।
3. ताल्लुकदारों द्वारा अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए प्रयास करना।

सैनिक
1. सैनिकों और उनके पुरखों द्वारा शासन स्थापित करने में अंग्रेजों की मदद करना।
2. चर्बी लगे कारतूसों के कारण रक्षा हेतु युद्ध करना। धर्म की
3. आस्था और धर्म की रक्षा के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध दो वर्ष तक युद्ध करना।

पृष्ठ संख्या 304 चर्चा कीजिए

प्रश्न 8.
आपकी राय में विद्रोहियों के नजरिए को पुनः निर्मित करने में इतिहासकारों के सामने कौनसी मुख्य समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
विद्रोहियों के नजरिए को पुनः निर्मित करने में इतिहासकारों के सामने निम्न समस्याएँ आती हैं-
(1) उचित तथा सटीक स्रोतों का अभाव
(2) भाषा की समस्या
(3) उपलब्ध स्रोतों में विभिन्न विद्वानों की पृथक्

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पृष्ठ संख्या 305

प्रश्न 9.
इस विवरण के अनुसार गाँव वालों से निपटने में अंग्रेजों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
इस विवरण के अनुसार गाँव के लोगों से निपटने में अंग्रेजों के सामने निम्नलिखित मुश्किलें आई –

  • अवध के गाँव के लोगों ने अपनी संचार व्यवस्था मजबूत कर रखी थी। उन्हें अंग्रेजों के आने की खबर तुरन्त मिल जाती थी।
  • वे स्थान छोड़कर तितर-बितर हो जाते थे, जिससे अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पाते थे।
  • गाँव वाले पल में एकजुट हो जाते थे तथा पल में बिखर जाते थे।
  • गाँव वाले बहुत बड़ी संख्या में थे तथा उनके पास बन्दूकें भी थीं।

पृष्ठ संख्या 311

प्रश्न 10.
तस्वीर से क्या सोच निकलती है? शेर और चीते की तस्वीरों के माध्यम से क्या कहने का प्रयास किया गया है? औरत और बच्चे की तस्वीर क्या दर्शाती है?
उत्तर:
इस तस्वीर से ब्रिटिश शासन द्वारा विद्रोहियों से बदला लेने की सोच का पता लगता है। शेर ब्रिटिश बंगाल टाइगर भारतीय विद्रोही शासन का प्रतीक है और का प्रतीक है। इस चित्र के माध्यम से अंग्रेजों को भारतीयों पर आक्रमण करते हुए और उनका दमन करते गया है। स्त्री तथा बच्चे चीते के नीचे दबे -हैं, जो यह बताते हैं कि स्त्री और बच्चे अत्याचारों के शिकार हुए थे।

Jharkhand Board Class 12 History विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान  Text Book Questions and Answers

उत्तर दीजिए ( लगभग 100 से 150 शब्दों में ) –

प्रश्न 1.
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
1857 के विद्रोह में अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए विद्रोहियों के पास न कोई सर्वमान्य नेता था और न ही कोई संगठन था। 1857 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में नेतृत्व तथा संगठन की अति आवश्यकता थी। इसलिए विद्रोहियों ने ऐसे लोगों का नेतृत्व प्राप्त किया, जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे और जनता में बहुत लोकप्रिय थे।

1. दिल्ली में विद्रोहियों ने बड़े हो चुके मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से अपना नेतृत्व करने की दरख्वास्त की, जिसे बहादुरशाह ने ना-नुकर के बाद मजबूरी में स्वीकार किया। परन्तु बहादुरशाह ने नाममात्र के लिए ही विद्रोहियों का नेता बनना स्वीकार किया था।

2. कानपुर में विद्रोहियों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब से नेतृत्व करने का आग्रह किया। विद्रोहियों के दबाव में नाना साहिब ने नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया।

3. झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई को आम जनता के दबाव के कारण बगावत की बागडोर सम्भालनी पड़ी।

4. बिहार में आरा के स्थानीय जमींदार कुँवरसिंह ने विद्रोह की बागडोर सम्भाली।

5. अवध (लखनऊ) में लोगों ने पदच्युत नवाव वाजिद अली शाह के युवा बेटे बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित किया।

6. कुछ स्थानों पर स्थानीय नेताओं ने भी विद्रोहियों का नेतृत्व किया।

प्रश्न 2.
उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और संगठित ढंग से काम कर रहे थे।
उत्तर:
विद्रोही योजनाबद्ध ढंग से काम कर रहे थे। कुछ स्थानों पर शाम के समय तोप का गोला दागा गया तो कहीं बिगुल बजाकर विद्रोह का संकेत दिया गया। हिन्दुओं और मुसलमानों को एकजुट होने और अंग्रेजों का सफाया करने के लिए हिन्दी, उर्दू तथा फारसी में अपीलें जारी की गई। विभिन्न छावनियों के सिपाहियों के बीच अच्छा संचार बना हुआ था। विद्रोह के दौरान अवध मिलिट्री पुलिस के कैप्टेन हियसें की सुरक्षा का दायित्व भारतीय सैनिकों पर था जहाँ कैप्टेन हिवर्से तैनात था, वहीं 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री भी तैनात थी।

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इन्फेन्ट्री का कहना था कि चूंकि वे अपने समस्त गोरे अफसरों को समाप्त कर चुके हैं, इसलिए अवध मिलिट्टी को या तो हियर्स का वध कर देना चाहिए या उसे बन्दी बनाकर 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री को सौंप देना चाहिए। जब मिलिट्री पुलिस ने इन दोनों बातों को अस्वीकार कर दिया, तो इस मामले के समाधान के लिए हर रेजीमेन्ट के देशी अफसरों की एक पंचायत बुलाए जाने का निश्चय किया गया। ये पंचायतें रात को कानपुर सिपाही लाइन में जुटती थीं इसका अर्थ यह है कि सामूहिक रूप से निर्णय होते थे।

प्रश्न 3.
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
अथवा
1857 के विद्रोह को भड़काने में धार्मिक अवस्थाओं की भूमिका पर टिप्पणी कीजिये।
उत्तर:
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।
(1) चर्बी वाले कारतूस – सैनिकों को एनफील्ड राइफलें चलाने के लिए दी गयीं, जिनके कारतूसों में चिकनाई लगी होती थी और चलाने से पहले उन्हें दाँतों द्वारा काटना पड़ता था। इस चिकनाई के बारे में कहा गया कि वह गाय और सुअर की चर्बी थी। इस बात से हिन्दू और मुसलमान दोनों सैनिकों ने स्वयं को अंग्रेजों द्वारा धर्मभ्रष्ट करने का षड्यन्त्र समझा और कारतूसों को चलाने से मना कर दिया।

(2) आटे में हड्डियों का चूरा मिला होना बाजार में जो आटा बिक रहा था, उसके बारे में भी यह कहा गया कि इसमें गाय और सुअर की हडियों को पीसकर मिलाया गया है, जो अंग्रेजों द्वारा धर्मभ्रष्ट करने की साजिश थी। शहरों और छावनियों में सिपाहियों और आम लोगों लॉ लागू कर दिया गया। अपितु फौजी अफसरों तथा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने तथा उनको दण्ड देने का अधिकार दे दिया गया। मार्शल लॉ के अन्तर्गत कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी तथा यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विद्रोह की केवल एक ही सजा है— मृत्यु दण्ड

(3) वहशत फैलाना जनता में दहशत फैलाने के लिए विद्रोहियों को सरेआम फाँसी पर लटकाया गया और तोपों के मुँह से बांधकर उड़ा दिया गया।

(4) आम अंग्रेजों को सजा का अधिकार देना- फौजी अफसरों के अतिरिक्त आम अंग्रेजों को भी विद्रोहियों को सजा देने का अधिकार दे दिया गया। विद्रोह की एक ही सजा भी सजा-ए-मौत।

(5) सैन्य शक्ति का प्रयोग 1857 के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने अत्यन्त ही बर्बरतापूर्ण सैनिक कार्य किए। अंग्रेज अधिकारियों ने दिल्ली में बहादुरशाह के उत्तराधिकारियों का बेरहमी से सर कलम कर दिया जबकि बनारस तथा इलाहाबाद में कर्नल नील ने अत्यधिक बर्बरतापूर्ण विद्रोह का दमन किया। अंग्रेजों ने सैन्य शक्ति का प्रयोग करते हुए दिल्ली और अवध पर अधिकार कर लिया।

(6) जागीरें जब्त करना विद्रोही जागीरदारों तथा ताल्लुकदारों की जागीरें जब्त कर ली गई तथा अपने समर्थक जमींदारों को उनकी जागीरें लौटाने का आश्वासन दिया। स्वामिभक्त जमींदारों को पुरस्कार दिए गए। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) –

प्रश्न 6.
अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों शामिल हुए?
उत्तर:
अवध का विलय – 1856 में अंग्रेजों ने अवध का अधिग्रहण कर लिया और वहाँ के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन एवं अलोकप्रियता का आरोप लगाकर उन्हें गद्दी से हटाकर कलकत्ता भेज दिया। अवध में विद्रोह की व्यापकता – अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाये जाने से अवध की जनता में आक्रोश व्याप्त था अवध का नाय जनता में अत्यधिक लोकप्रिय था और लोग उन्हें दिल से चाहते थे नवाब को हटाए जाने से दरबार और उसकी संस्कृति भी समाप्त हो गई।

इसके अतिरिक कई संगीतकारों, कवियों, नर्तकों, कारीगरों, सरकारी कर्मचारियों आदि की रोजी-रोटी भी जाती रही। 1857 के विद्रोह में तमाम भावनाएँ और मुद्दे, परम्पराएं और निष्ठाएँ अभिव्यक्त हो रही थीं। इसलिए बाकी स्थानों के मुकाबले अवध में यह विद्रोह एक विदेशी शासन के खिलाफ लोक-प्रतिरोध की अभिव्यक्ति बन गया था। यही कारण है कि अवध का विद्रोह भारत में सबसे अधिक लम्बे समय तक चला तथा इसका रूप बहुत ही व्यापक था इसमें राजकुमार, ताल्लुकदार, किसान, जमींदार तथा सैनिक सभी वर्ग शामिल थे।

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(1) ताल्लुकदारों का विद्रोह-अवध में ताल्लुकदार बहुत ताकतवर थे तथा नवाब के द्वारा भी उन्हें व्यापक अधिकार प्राप्त थे अंग्रेजों ने नवाब को पदच्युत करने के साथ ताल्लुकदारों को भी बेदखल करना शुरू कर दिया था। उनकी सेनाएँ भंग कर दी थीं, किले ध्वंस कर दिये थे तथा उनकी जमीनों को छीन लिया था।

अंग्रेज ताल्लुकदारों को विचौलिया मानते थे कि उन्होंने बल और धोखाधड़ी के जरिए अपना प्रभुत्व स्थापित कर रखा था इसलिए अंग्रेजों ने अधिग्रहण के बाद 1856 में एकमुस्त बन्दोबस्त के नाम से ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू कर ताल्लुकदारों को जमीनों से बेदखल करना शुरू कर दिया था। इस प्रकार इस व्यवस्था ने ताल्लुकदारों की हैसियत और सत्ता को चोट पहुँचाई थी और ताल्लुकदारों की सत्ता नष्ट होने के कारण उन्होंने विद्रोह किया।

(2) जमींदारों का विद्रोह – जमींदारों की दशा भी दयनीय थी। राजस्व कर बहुत अधिक था तथा निर्धारित लगान की राशि न चुकाने पर उनकी जागीरें नीलाम कर दी जाती थीं। रैयत द्वारा शिकायत करने पर उन पर मुकदमा चलाया जाता था तथा उन्हें गिरफ्तार करके कारावास में डाल दिया जाता था। इससे जमींदारों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचा और वे भी 1857 के विद्रोह में सम्मिलित हो गए।

(3) किसानों का विद्रोह-अवध में ताल्लुकदारों की सत्ता समाप्त करने के लिए भू-राजस्व की एकमुश्त व्यवस्था लागू की गई। इसके बारे में अंग्रेजों की सोच भी कि इससे किसान को मालिकाना हक मिल जायेगा तथा कम्पनी के भू-राजस्व में भी बढ़ोतरी हो जायेगी। कम्पनी के राजस्व में तो इजाफा हुआ, लेकिन किसान की हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गई।

अंग्रेजों के राज में किसान मनमाने राजस्व आकलन तथा गैर लचीली राजस्व व्यवस्था के कारण बुरी तरह से पिसने लगे थे। किसान सोचने लगा कि बुरे वक्त में जहाँ ताल्लुकदार उसकी मदद करते थे, अब अंग्रेजों के राज में यह नहीं हो पायेगा। अब इस बात की कोई गारण्टी नहीं थी कि कठिन समय में अथवा फसल खराब हो जाने पर सरकार राजस्व की माँग में कोई कमी करेगी या वसूली को कुछ समय के लिए स्थगित कर देगी। फलतः बढ़ते राजस्व और गरीबी के कारण किसानों ने 1857 के विद्रोह में सक्रिय भाग लिया।

प्रश्न 7.
विद्रोही क्या चाहते थे? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था?
अथवा
1857 में विद्रोहियों की घोषणाओं का परीक्षण कीजिये। विद्रोही भारत में अंग्रेजी राज से सम्बन्धित प्रत्येक चीज का परित्याग क्यों करते थे? व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह के बारे में हमारे पास विद्रोहियों के कुछ इश्तहार व घोषणाएँ और नेताओं के पत्र हैं, जिनसे उनके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी मिल पाती है। उनके आधार पर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि विद्रोही क्या चाहते थे? यथा –

(1) विद्रोही सामाजिक एकता को स्थापित कर जनविद्रोह चाहते थे 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में, जाति और धर्म का भेद किए बिना, समाज के सभी वर्गों का आह्वान किया जाता था। इस विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था, जिसमें हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों का नफा- नुकसान बराबर था इश्तहारों में अंग्रेजों से पहले के हिन्दू- मुस्लिम अतीत की ओर संकेत किया जाता था और मुगल साम्राज्य के तहत विभिन्न समुदायों के सहअस्तित्व का गौरवगान किया जाता था।

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(2) ब्रिटिश शासन की नीतियों की कटु आलोचना- इन घोषणाओं में ब्रिटिश राज से सम्बन्धित हर चीज को पूरी तरह खारिज किया जा रहा था। देशी रियासतों पर कब्जे और समझौतों का उल्लंघन करने के लिए अंग्रेजों की निन्दा की जाती थी विद्रोही नेताओं का कहना था कि अंग्रेजों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था, विदेशी व्यापार आदि ब्रिटिश शासन के हर पहलू पर निशाना साधा जाता था। विद्रोही अपनी स्थापित और सुन्दर जीवनशैली को दुबारा बहाल करना चाहते थे। वे चाहते थे कि सभी लोग मिलकर अपने रोजगार, धर्म, इज्जत और अस्मिता के लिए लड़ें।

(3) उत्पीड़न के प्रतीकों के खिलाफ बहुत सारे स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह उन तमाम ताकतों के विरुद्ध हमले की शक्ल ले लेता था जो अंग्रेजों के समर्थक या जनता के उत्पीड़क समझे जाते थे। इन शक्तियाँ में शहर के सम्भ्रान्त लोग, सूदखोर आदि शामिल थे। स्पष्ट है कि विद्रोही तमाम उत्पीड़कों के खिलाफ थे और ऊँच- नीच के भेद-भावों को खत्म करना चाहते थे।

(4) ब्रिटिश पूर्व दुनिया की पुनर्स्थापना – विद्रोही नेता 18वीं सदी की पूर्व ब्रिटिश दुनिया को पुनर्स्थापित करना चाहते थे। इन नेताओं ने पुरानी दरबारी संस्कृति का सहारा लिया। आजमगढ़ घोषणा तथा विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में गुणात्मक अन्तर की नगण्यता- 25 अगस्त, 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह के द्वारा जारी की गई आजमगढ़ घोषणा में विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि का अन्तर देखने को मिलता है।

यथा –

  • जमींदार वर्ग-जमींदार वर्ग राजस्व कर में कमी, अपने हितों की रक्षा और सम्मानपूर्ण व्यवहार की आकांक्षा रखता था।
  • व्यापारी वर्ग-व्यापारी वर्ग बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापार पर अंग्रेजों के एकाधिकार की समाप्ति, अनुचित करों की समाप्ति और सम्मानपूर्ण व्यवहार की इच्छा रखता था।
  • सरकारी कर्मचारी – सरकारी कर्मचारी उच्च प्रशासनिक एवं सैनिक पदों पर नियुक्ति चाहते थे। वे चाहते थे कि उन्हें अच्छे वेतन दिए जाएँ।
  • कारीगरों के बारे में कारीगर चाहते थे कि घरेलू उद्योग-धन्धों को नष्ट न किया जाए तथा कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए।
  • धर्मरक्षकों के बारे में पण्डित और फकीर चाहते थे कि ईसाई धर्म प्रचारक हिन्दु धर्म एवं इस्लाम धर्म का उपहास न करें और इन धर्मों का सम्मान करें।
  • सिपाहियों की सोच सैनिक चाहते थे कि उनकी आस्था एवं धर्म पर कुठाराघात न किया जाए। यदि एक हिन्दू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया, तो दुनियाँ में कुछ नहीं बचेगा।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि समाज के सभी वर्गों का यह मानना था कि अंग्रेज उत्पीड़क थे व उनके धर्म को नष्ट करना चाहते थे अतः उनको देश से बाहर निकाल देना चाहिए। सभी वर्गों की सोच में कोई विशेष अन्तर देखने को नहीं मिलता है।

प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह विश्लेषण करते हैं?
उत्तर:
अंग्रेजों और भारतीयों द्वारा तैयार की गई तस्वीरें सैनिक विद्रोह का एक महत्त्वपूर्ण रिकार्ड रही हैं। इन चित्रों के द्वारा हमें 1857 के विद्रोह की घटनाओं की जानकारी मिलती है।

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1. रक्षकों का अभिनन्दन – अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कुछ चित्रों में अंग्रेजों की रक्षा करने वाले तथा विद्रोह को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों की प्रशंसा की गई है। 1859 में विद्रोह के 2 साल बाद टॉमस जोन्स बार्कर के द्वारा बनाया गया चित्र ‘द रिलीफ आफ लखनऊ इसी प्रकार का चित्र है। बार्कर की इस पेन्टिंग में अंग्रेजों को विजय का जश्न मनाते हुए दिखाया गया है। अगले यह चित्र विद्रोहियों द्वारा लखनऊ रेजीडेन्सी के घेरे जाने से सम्बन्धित है। इसके भाग में शव और घायल इस घेरेबंदी के दौरान हुई मारकाट की गवाही देते हैं। मध्य भाग में घोड़ों की विजयी तस्वीरें हैं। इन चित्रों के द्वारा अंग्रेज जनता का अपनी सरकार में विश्वास पैदा होता था।

2. अंग्रेज औरतें तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा भारत में अंग्रेज औरतों और बच्चों के साथ हुई हिंसा की घटनाओं को पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और पाठ सिखाने की माँग करने लगती थी। वहाँ के चित्रकारों ने सदमे और पीड़ा को चिरात्मक अभिव्यक्तियों के द्वारा प्रकट किया। ऐसा ही एक चित्र जोजफ नोएल पेटन ने विद्रोह के दो साल बाद ‘इन मेमोरियम’ बनाया। इसमें विद्रोहियों को हिंसक तथा बर्बर बताया गया है।

3. बहादुर औरतें – चित्र संख्या 11.12 पृष्ठ 310 में कानपुर में मिस व्हीलर को विद्रोहियों से स्वयं की रक्षा करते हुए दिखाया गया है जिसमें वह अकेले ही विद्रोहियों को पिस्तौल से मारकर अपने सम्मान की रक्षा करती है। यहाँ पर अंग्रेज महिला को वीरता की मूर्ति के रूप में दिखाया गया है। चित्र में जमीन पर पड़ी हुई किताब बाइबल है।

4. प्रतिशोध और सबक ऐसे कई चित्र ब्रिटिश प्रेस ने प्रकाशित किए जो निर्मम दमन और हिंसक प्रतिशोध की जरूरत पर जोर दे रहे थे। ‘जस्टिस’ (‘न्याय’) नामक चित्र में हमें ऐसी ही झलक दिखाई देती है, जिसमें एक अंग्रेज औरत हाथ में तलवार और ढाल लिए हुए विद्रोहियों को अपने पैरों से कुचल रही है, उसके चेहरे पर भयानक गुस्सा और प्रतिशोध की तड़प दिखाई पड़ती है। दूसरी और, इसमें भारतीय औरतों और बच्चों की भीड़ डर से काँप रही है। चित्र ‘बंगाल टाइगर से ब्रिटिश शेर का प्रतिशोध’ में अंग्रेजों के भारतीयों पर दमनात्मक कार्य की झलक मिलती है।

5. दहशत का प्रदर्शन – जनता को भयभीत करने के लिए तथा विद्रोही सैनिकों को सबक सिखाने हेतु उन्हें खुले मैदान में तोपों से उड़ाते हुए तथा फाँसी देते हुए चित्रित किया गया है।

6. उदारवादी दृष्टिकोण की आलोचना करना – एक चित्र में लार्ड कैनिंग को ब्रिटिश पत्रिका पंच के एक उदार बुजुर्ग के रूप में दर्शाया गया है। इस चित्र में ब्रिटिश चित्रकार के द्वारा केनिंग के दया भाव की आलोचना की गई है।

7. राष्ट्रवादी दृश्य भारतीय चित्रकारों द्वारा विद्रोह के नेताओं के जो चित्र बनाए गए हैं, उनमें ब्रिटिश शासन के अन्याय को दृढ़ता के साथ प्रदर्शित किया गया है।

8. इतिहासकारों का विश्लेषण – इन चित्रों के माध्यम से उस समय की भावनाओं का पता चलता है। ब्रिटेन में छप रहे चित्रों से उत्तेजित वहाँ की जनता विद्रोहियों को भयानक बर्बरता से कुचलने की आवाज उठा रही थी। दूसरी तरफ, भारतीय राष्ट्रवादी चित्र हमारी राष्ट्रवादी कल्पना को निर्धारित करने में मदद कर रहे थे।

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प्रश्न 9.
एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्त्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए कि उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल के लिए हम पृष्ठ संख्या 308 पर चित्र संख्या 11.10 पर बने चित्र द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ (लखनऊ की राहत को ले रहे हैं, जिसको चित्रकार टॉमस जोन्स बार्कर ने 1859 में बनाया था। इस चित्र में बार्कर ने ब्रिटिश कमाण्डर कैम्पबेल के आगमन के समय का चित्रण किया है। चित्र के मध्य में कैम्पबेल, ऑट्रम और हेवलॉक तीन नायकों को विजय का जश्न मनाते दिखाया गया है। नायकों के पीछे की ओर टूटी-फूटी लखनऊ रेजीडेंसी को दिखाया गया है।

अगले भाग में पड़े शव और घायल इस पेरेबन्दी के दौरान हुई मारकाट को दिखाते हैं। चित्र के मध्य भाग में खड़े थोड़े इस तथ्य को प्रदर्शित करते हैं कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियन्त्रण पुनः बहाल हो गया है। इन चित्रों से अंग्रेज जनता में अपनी सरकार के प्रति विश्वास पैदा होता था। इन चित्रों के द्वारा उन्हें लगता था कि अब संकट का समय जा चुका है और वे जीत चुके हैं।

इसी तरह के चित्रों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने अपनी दृढ़ता और अपराजयता को प्रदर्शित किया तथा अपनी जनता में विश्वास जगाया। विद्रोह की छवि ब्रिटिश और भारतीय जनता दोनों ने विद्रोह को अपनी-अपनी नजर से देखा। विजेताओं की दृष्टि विद्रोहियों ने विद्रोह करके ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी, जिसे कुचलना शासन का फर्ज बनता था और शासन ने पुनः शान्ति स्थापित करने की जो भी कार्यवाही की, वह उचित है। भारतीयों की दृष्टि इस चित्र के द्वारा विद्रोहियों ने यह दर्शाया कि वे ब्रिटिश सरकार के अत्याचारपूर्ण शासन का अन्त करने के लिए कटिबद्ध थे। उन्होंने अपने सीमित साधनों के बल पर भी शक्तिशाली अंग्रेजों को पराजित कर लखनऊ रेजीडेन्सी पर अधिकार कर लिया। इससे विद्रोहियों के पराक्रमपूर्ण कार्यों, देश-प्रेम, त्याग और बलिदान की भावना प्रकट होती है इसने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया।

विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान JAC Class 12 History Notes

→ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में दोपहर बाद पैदल सेना ने विद्रोह कर दिया। उसके बाद घुड़सवार सेना ने बगावत की। 11 मई को घुड़सवार सेना ने दिल्ली पहुँचकर मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से विद्रोह का नेतृत्व करने की गुजारिश की, जिसे बादशाह ने और कोई विकल्प न पाकर स्वीकार कर लिया। इस प्रकार विद्रोह ने मुगल बादशाह के नाम के साथ वैधता हासिल कर ली।

→ विद्रोह का ढर्रा – हर छावनी में विद्रोह का घटनाक्रम एक समान ही था। जैसे-जैसे खबर फैलती गई, सिपाही विद्रोह करते गये।

I सैन्य विद्रोह की शुरुआत सिपाहियों ने किसी न किसी विशेष संकेत के साथ अपनी कार्रवाई शुरू की। कहीं बिगुल बजाया गया और कहीं तोप का गोला छोड़ा गया। सबसे पहले शस्त्रागारों को लूटा गया और सरकारी खजानों पर कब्जा किया गया; सरकारी दफ्तर, जेल, टेलीग्राफ दफ्तर, रिकार्ड रूम और बंगलों पर हमला किया गया। विद्रोह में आम लोगों के भी शामिल हो जाने से बड़े शहरों में साहूकारों तथा अमीरों पर भी हमले हुए क्योंकि आम जनता उन्हें अंग्रेजी शासन का वफादार और पिट्टू मानती थी।

II संचार के माध्यम अलग-अलग जगह पर विद्रोह के ढर्रे में समानता की वजह आंशिक रूप से उसकी योजना और समन्वय में निहित थी। यथा –

  • एक छावनी से दूसरी छावनी में सिपाहियों के बीच अच्छा संचार बना हुआ था।
  • विद्रोहों में एक योजना और समन्वय था।
  • रात में सिपाहियों की पंचायतें जुड़ती थीं और उनमें सामूहिक रूप से फैसले लिये जाते थे।
  • सिपाही अपने विद्रोह के कर्ता-धर्ता स्वयं ही थे जब वे एकत्र होते थे, तो अपने भविष्य के बारे में फैसले लेते थे।

III. नेता और अनुयायी-अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए नेता और संगठन का होना अतिआवश्यक था।

  • विद्रोहियों ने कई बार ऐसे लोगों की शरण ली, जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे। जैसे- दिल्ली में मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर, कानपुर में नाना साहिब, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई, बिहार में जमींदार कुँवरसिंह, लखनऊ में नवाब के बेटे बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित किया। इन लोगों ने दबाव में अन्य विकल्प न होने पर नेतृत्व स्वीकार किया।
  • आम जनता द्वारा भी नेतृत्व किया गया। जैसे – बहुत सारे धार्मिक नेता तथा स्वयं भू पैगम्बर- प्रचारक भी ब्रिटिश राज्य को खत्म करने की अलख जगा रहे थे।
  • कई स्थानीय नेताओं, जैसे – उत्तरप्रदेश के बड़ौत परगने में शाहमल ने तथा छोटा नागपुर में आदिवासी कोल जाति का नेतृत्व गोनू नामक व्यक्ति ने किया।

IV. अफवाहें और भविष्यवाणियाँ – विद्रोह के समय में तरह-तरह की अफवाहों और भविष्यवाणियों ने जनता को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उठ खड़े होने को उकसाया। जैसे –
(क) कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगे होने की बात से सिपाहियों को भड़काना।
(ख) बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिला होना।
(ग) इस भविष्यवाणी ने भी लोगों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया कि प्लासी के युद्ध के 100 साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज खत्म हो जायेगा।
(घ) गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटी गई। रात में एक आदमी गाँव के चौकीदार को एक चपाती देकर पाँच और चपातियाँ बनाकर अगले गाँवों में पहुँचाने का निर्देश दे जाता था। लोग इसे किसी आने वाली उथल-पुथल का संकेत मान रहे थे।
V. लोगों द्वारा अफवाहों में विश्वास- अफवाहें तभी फैलती हैं, जब उनमें लोगों के दिमाग और मन के अन्दर छिपे हुए डर की आवाज सुनाई देती है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

1857 की अफवाहों के विश्वास के पीछे 1820 के दशक से अंग्रेजों द्वारा किए गए अनेक कार्य थे यथा –

  • सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करना एवं विधवा विवाह को कानूनी जामा पहनाना।
  • अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय खोलना।
  • शासकीय कमजोरी और दत्तकता को अवैध घोषित करके अंग्रेजों द्वारा अवध, झाँसी, सतारा तथा अन्य रियासतों को कब्जे में लेना तथा अंग्रेजी ढंग की शासन व्यवस्था लागू करना।
  • सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाजों में दखल देना।
  • नई भू-राजस्व व्यवस्था लागू करना।
  • ईसाई प्रचारकों द्वारा हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के विरुद्ध अनर्गल प्रचार करना। इन कार्यों व नीतियों से लोगों में यह भय व्याप्त हो गया कि अंग्रेज भारत में ईसाई धर्म फैलाना चाह रहे हैं। इसलिए उन्होंने अफवाहों तथा भविष्यवाणियों को ज्यादा महत्त्व दिया।

→ अवध में विद्रोह सन् 1801 से अवध में सहायक संधि थोपी गई, जिसके कारण नवाब की शक्ति कमजोर होती गई। ताल्लुकदार और विद्रोही मुखिया नवाब के नियंत्रण में नहीं रहे। 1850 के दशक की शुरुआत तक भारत के अधिकांश हिस्सों पर अंग्रेजों को जीत हासिल हो गई थी। मराठा भूमि, दोआय, पंजाब, बंगाल सब अंग्रेजों के कब्जे में थे। 1856 में अवध को भी औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित कर दिया।

I “देह से जान जा चुकी थी डलहौजी द्वारा अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन और अलोकप्रियता का आरोप लगाकर उन्हें गद्दी से हटाकर कलकता भेज दिया गया। लेकिन बजिद अली शाह अलोकप्रिय नहीं थे बल्कि लोकप्रिय थे इसीलिए जब नवाब को लखनऊ से कानपुर ले जाया जा रहा था, तो बहुत सारे लोग उनके पीछे विलाप करते हुए कानपुर तक गये प्रथमतः, नवाब के निष्कासन से दुःख और अपमान का एहसास हुआ। दूसरे, नवाब के हटाये जाने से दरबार और उसकी संस्कृति खत्म हो गयी। तीसरे, संगीतकारों, नर्तकों, कवियों, कारीगरों, बावर्चियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों और बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी चली गई।

II फिरंगी राज का आना तथा एक दुनिया की समाप्ति अवध में विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं से राजकुमार, ताल्लुकदार, किसान एवं सिपाही एक-दूसरे से जुड़ गये थे वे सभी फिरंगी राज के आगमन को विभिन्न अर्थों में एक दुनिया की समाप्ति के रूप में देखने लगे थे अंग्रेजी सत्ता की स्थापना से सभी के सामने संकट पैदा हो गया था। यथा –

  • ताल्लुकदारों की शक्ति को नष्ट करने के लिए उन्हें जमीन से बेदखल किया गया। उनकी सेना व किले नष्ट कर दिए गए।
  • किसानों पर कर का बोझ बहुत ज्यादा लाद दिया गया।
  • दस्तकारों और कारीगरों के सामने जीवनयापन का संकट पैदा हो गया क्योंकि अंग्रेजी माल के आने से उनकी रोजी-रोटी छिन गई।
  • ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से एक पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग हो गई।
  • सिपाहियों को कम वेतन मिलता था तथा समय पर छुट्टियाँ भी नहीं मिलती थीं। इन कारणों से सिपाही भी असन्तुष्ट थे विद्रोह से पूर्व सैनिकों और गोरे अफसरों के बीच मैत्रीपूर्ण व्यवहार था लेकिन 1840 के दशक में यह व्यवहार बदलने लगा। अफसर सैनिकों के साथ बदसलूकी करने लगे थे। दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ने लगी थीं।
  • उत्तर भारत में सिपाहियों और ग्रामीणों के बीच गहरे सम्बन्ध थे। इन सम्बन्धों से जन-विद्रोह के रूप-रंग पर गहरा असर पड़ा।

3. विद्रोही क्या चाहते थे?
विद्रोहियों के कुछ इश्तहारों व घोषणाओं से हमें विद्रोहियों के बारे में जो थोड़ी जानकारी ही प्राप्त हो पाती है, वह इस प्रकार है-
(i) एकता की कल्पना – 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में जाति या धर्म का भेद किए बिना आम आदमी का आह्वान किया जाता था। बहादुरशाह जफर के नाम से जारी घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई देते हुए आम जनता को विद्रोह में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया। 25 अगस्त, 1857 को जारी की गई आजमगढ़ घोषणा इसका उदाहरण है।

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(ii) उत्पीड़न के प्रतीकों के खिलाफ विद्रोहियों द्वारा की गई घोषणाओं में उन सब चीजों की खिलाफत की जा रही थी, जो ब्रिटिश राज से सम्बन्धित थीं। विद्रोही नेताओं का मानना था कि अंग्रेजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे एकत्र होकर अपने रोजगार, धर्म, इज्जत और अस्मिता के लिए लड़ें। यह ‘व्यापक सार्वजनिक भलाई’ की लड़ाई होगी। बहुत जगहों पर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह उन तमाम ताकतों के खिलाफ हमले का रूप धारण कर लेता था, जिन्हें अंग्रेजों का हिमायती या जनता का उत्पीड़क माना जाता था। गाँवों में सूदखोरों के बहीखाते जला दिए गए, उनके घरों में तोड़-फोड़ की गई। इससे स्पष्ट होता है कि विद्रोही तमाम उत्पीड़कों के खिलाफ थे और ऊँच-नीच के परम्परागत सोपानों को खत्म करना चाहते थे।

(iii) वैकल्पिक सत्ता की तलाश- ब्रिटिश शासन ध्वस्त हो जाने के बाद दिल्ली, लखनऊ और कानपुर में विद्रोहियों द्वारा एक प्रकार की सत्ता और शासन संरचना को स्थापित करने का प्रयास किया गया। उनकी इन कोशिशों से हमें ज्ञात होता है कि वे 18वीं शताब्दी से पूर्व की सत्ता स्थापित करना चाहते थे विद्रोही अठारहवीं सदी के मुगल जगत् से ही प्रेरणा ले रहे थे। यह जगत् उन तमाम चीजों का प्रतीक बन गया, जो उनसे छिन चुकी थीं। विद्रोहियों द्वारा स्थापित शासन संरचना का प्राथमिक उद्देश्य युद्ध की आवश्यकताओं को पूरा करना था लेकिन अधिकांश मामलों में ये अंग्रेजों का मुकाबला करने में असफल सिद्ध हुई अंग्रेजों के खिलाफ अवध में विद्रोह सबसे अधिक समय तक चला।

→ दमन-अंग्रेजों को इस विद्रोह को दबाने में बहुत ताकत का प्रयोग करना पड़ा। यथा –

  • मई-जून, 1857 में कई कानून पारित किए गए, जिनके आधार पर सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू किया गया। फौजी अफसरों के अलावा आम अंग्रेजों को भी हिन्दुस्तानियों को सजा देने का हक दे दिया गया। कानून और मुकदमे की साधारण प्रक्रिया बन्द कर दी गई और यह स्पष्ट कर दिया गया कि विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है – सजा-ए-मौत।
  • नये कानूनों और ब्रिटेन से मँगाई गई नयी सैनिक टुकड़ियों की मदद से विद्रोह को कुचलने का काम शुरू किया गया।
  • अंग्रेजों ने सैनिक ताकत के प्रयोग के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के भू-स्वामियों की ताकत को कुचलने के लिए कूटनीति अपनाई। उन्होंने बड़े जमींदारों को आश्वासन दिया कि अंग्रेजों का साथ देने पर उन्हें उनकी जागीरें लौटा दी जायेंगी। अंग्रेजों के प्रति बफादारी दिखाने वालों को पुरस्कृत किया गया तथा विद्रोह करने वाले जमींदारों से उनकी जमीनें छीन ली गई।

→ विद्रोह की छवियाँ – ब्रिटिश अखबारों और पत्रिकाओं में इस विद्रोह की जो कहानियाँ छपी हैं, उनमें सैनिक विद्रोहियों द्वारा की गई हिंसा को बड़े लोमहर्षक शब्दों में छापा जाता था ये कहानियाँ ब्रिटेन की जनता की भावनाओं को भड़काती थीं तथा प्रतिशोध और सबक सिखाने की माँगों को हवा देती थीं। समस्त उपलब्ध तथ्यों के आधार पर विद्रोहियों की निम्नलिखित छवियाँ उभरती हैं –

(i) रक्षकों का अभिनन्दन- अंग्रेजों ने विद्रोह के जो चित्र बनाए हैं, वे दो प्रकार के हैं – कुछ में अंग्रेजों को बचाने और विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों का गुणगान किया गया है। कुछ चित्रों में यह दिखाया गया है कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियंत्रण बहाल हो चुका है। इनसे यह लगता है कि विद्रोह खत्म हो चुका हैं और अंग्रेज जीत चुके हैं।

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(ii) अंग्रेज औरतें तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा – भारत में औरतों और बच्चों के साथ हुई हिंसा की कहानियों को पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग करने लगी। कलाकारों ने सदमे और पीड़ा की अपनी विशत्मक अभिव्यक्तियों के द्वारा इन भावनाओं को रूप दिया। इन चित्रों में भी विद्रोहियों को हिंसक और बर्बर बताया गया है और ब्रिटिश टुकड़ियों को रक्षक के तौर पर बढ़ते हुए तथा अंग्रेज औरतों को विद्रोहियों के हमले से बचाव करने वाली वीरता की मूर्ति के रूप में दिखाया गया है।

(iii) प्रतिशोध और सबक – जैसे-जैसे ब्रिटेन में गुस्से और शोक का माहौल बनता गया, वैसे-वैसे लोगों में प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग जोर पकड़ने लगी। ब्रिटिश प्रेस में असंख्य दूसरी तस्वीरें और कार्टून थे, जो निर्मम दमन और हिंसक प्रतिशोध की जरूरत पर जोर दे रहे थे।

(iv) दहशत का प्रदर्शन – प्रतिशोध और सबक सिखाने के लिए विद्रोहियों को खुले में फांसी पर लटकाया गया तथा तोपों के मुहाने पर बाँध कर उड़ाया गया, जिससे लोगों में दहशत फैले। इन सजाओं की तस्वीरें आम पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा दूर-दूर तक पहुँचाई गई, जिससे ब्रिटिश शासन की अपराजेयता में लोगों का विश्वास पैदा हो सके।

(v) दया के लिए कोई जगह नहीं-गवर्नर जनरल लॉर्ड केलिंग द्वारा नरमी के सुझाव पर उसका मजाक उड़ाया गया। ब्रिटिश पत्रिका ‘पन्च’ में उसका कार्टून छापा गया, जिसमें केनिंग को एक भव्य बुजुर्ग के रूप में दिखाया गया है, जो एक विद्रोही सैनिक के सिर पर हाथ रखे है।

(vi) राष्ट्रवादी दृश्य कल्पना – बीसवीं सदी में राष्ट्रवादी आन्दोलन को इस 1857 के घटनाक्रम से काफी प्रेरणा मिली। इसको प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के रूप में याद किया जाता है, जिसमें देश के हर तबके के लोगों ने साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी इतिहास लेखन की भांति कला और साहित्य ने भी 1857 की याद को जीवित रखा। विद्रोह के नायक-नायिकाओं पर कविताएँ लिखी गई। उन्हें वीर योद्धा के रूप में चित्रित किया गया। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता ‘खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ आज भी हममें जोश भर देती है। इसके अतिरिक्त भारतीय राष्ट्रवादी चित्रों ने हमारी राष्ट्रवादी कल्पना को साकार रूप दिया।

काल-रेखा
1801 अवध में वेलेजली द्वारा सहायक संधि लागू की गई।
1856 नवाब वाजिद् अली शाह को गद्दी से हटाया गया, अवध का अधिग्रहण।
1856-57 अंग्रेजों द्वारा अवध में एकमुश्त लगान बन्दोबस्त लागू।
1857,10 मई मेरठ में सैनिक विद्रोह।
1857 दिल्ली रक्षक सेना में विद्रोह : बहादुरशाह सांकेतिक नेतृत्व स्वीकार करते हैं।
11-12 मई अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, एटा में सिपाही विद्रोह। लखनक में विद्रोह।
20-27 मई सैनिक विद्रोह एक व्यापक जनविद्रोह में बदल जाता है।
30 मई चिनहट के युद्ध में अंग्रेजों की हार होती है।
मई-जून हेवलॉक और ऑट्रम के नेतृत्व में अंग्रेजों की टुकड़ियाँ लखनऊ रेजीडेन्सी में दाखिल होती हैं।
30 जून युद्ध में रानी झाँसी की मृत्यु।
25 सितम्बर युद्ध में शाहमल की मृत्यु।
1858 अवध में वेलेजली द्वारा सहायक संधि लागू की गई।
जून नवाब वाजिद् अली शाह को गद्दी से हटाया गया, अवध का अधिग्रहण।
जुलाई अंग्रेजों द्वारा अवध में एकमुश्त लगान बन्दोबस्त लागू।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

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JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

Jharkhand Board Class 12 Political Science एक दल के प्रभुत्व का दौर InText Questions and Answers

पृष्ठ 27

प्रश्न 1.
हमारे लोकतन्त्र में ही ऐसी कौन-सी खूबी है? आखिर देर-सवेर हर देश ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपना ही लिया है न?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रवाद की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए दुनिया के अन्य राष्ट्रों (जो उपनिवेशवाद के चंगुल से आजाद हुए) ने भी देर-सवेर लोकतान्त्रिक ढाँचे को अपनाया। लेकिन हमारे लोकतन्त्र की खूबी यह थी कि हमारे स्वतन्त्रता संग्राम की गहरी प्रतिबद्धता लोकतन्त्र के साथ थी। हमारे नेता लोकतन्त्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे। भारत में सन् 1951-52 के आम चुनाव लोकतंत्र के लिए परीक्षा की घड़ी थी। इस समय तक लोकतंत्र केवल धनी देशों में ही कायम था। लेकिन भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतन्त्र के सबसे बड़े प्रयोग को जन्म दिया। इससे यह सिद्ध हो गया कि विश्व में कहीं भी लोकतन्त्र पर अमल किया जा सकता है।

पृष्ठ 31

प्रश्न 2.
क्या आप पृष्ठ 31 में दिए गए मानचित्र में उन जगहों को पहचान सकते हैं जहाँ काँग्रेस बहुत मजबूत थी? किन प्रान्तों में दूसरी पार्टियों को ज्यादातर सीटें मिलीं?
उत्तर:

  1. मानचित्र के अनुसार 1952 से 1967 के दौरान काँग्रेस शासित राज्य थे- पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम, मणिपुर, त्रिपुरा, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, मैसूर, पाण्डिचेरी, मद्रास आदि।
  2. जिन राज्यों में अन्य दलों को अधिकांश सीटें प्राप्त हुईं, वे थे – केरल में केरल डेमोक्रेटिक लेफ्ट फ्रंट (1957- 1959) तथा जम्मू और कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस पार्टी।

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पृष्ठ 36

प्रश्न 3.
पहले हमने एक ही पार्टी के भीतर गठबंधन देखा और अब पार्टियों के बीच गठबन्धन होता देख रहे हैं। क्या इसका मतलब यह हुआ कि गठबन्धन सरकार 1952 से ही चल रही है?
उत्तर:
भारत में ‘पार्टी में गठबन्धन’ और ‘पार्टियों का गठबन्धन’ का सिलसिला 1952 से ही चला आ रहा है लेकिन इस गठबन्धन के स्वरूप एवं प्रकृति में व्यापक अन्तर है। आजादी के समय एक पार्टी अर्थात् कांग्रेस के अन्दर गठबन्धन था। कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर प्रकार की विचारधाराओं के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह हित और राजनीतिक दल आ जुटते थे और राजनीतिक कार्यों में भाग लेते थे। कांग्रेस पार्टी ने इन विभिन्न वर्गों, समुदायों एवं विचारधारा के लोगों में आम सहमति बनाये रखी। लेकिन 1967 के पश्चात् अनेक राजनीतिक दलों का विकास हुआ और गठबन्धन की राजनीति शुरू हुई जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के समर्थन के आधार पर सरकारों का गठन किया जाने लगा। लेकिन यह गठबन्धन निजी स्वार्थी व शर्तों पर आधारित होने के कारण परस्पर सहमति बनाए नहीं रख पा रहे हैं।

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प्रश्न 1.
सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें:
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ ……………………. के लिए भी चुनाव कराए गए थे ( भारत के राष्ट्रपति पद / राज्य विधानसभा / राज्य सभा / प्रधानमंत्री )
उत्तर:
राज्य विधानसभा

(ख) ……………………… “लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही। (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी / भारतीय जनता पार्टी)
उत्तर:
भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

(ग) ………………………. स्वतन्त्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धान्त था। बैठाएँ (कामगार तबके का हित/ रियासतों का बचाव / राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था / संघ के भीतर राज्यों की स्वायत्तता )
उत्तर:
राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था।

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प्रश्न 2.
यहाँ दो सूचियाँ दी गई हैं। पहले में नेताओं के नाम दर्ज हैं और दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल

(क) एस. ए. डांगे (i) भारतीय जनसंघ
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी (ii) स्वतन्त्र पार्टी
(ग) मीनू मसानी (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
(घ) अशोक मेहता (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

उत्तर:

(क) एस. ए. डांगे (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी (i) भारतीय जनसंघ
(ग) मीनू मसानी (ii) स्वतन्त्र पार्टी
(घ) अशोक मेहता (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी

प्रश्न 3.
एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहाँ चार बयान लिखे गए हैं। प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ-
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी प्रभुत्व का कारण था।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पार्टी प्रभुत्व का सम्बन्ध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पार्टी – प्रभुत्व से देश में लोकतान्त्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत।

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प्रश्न 4.
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती ? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर:
यदि पहले आम चुनावों के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी या जनसंघ की सरकार बनती तो विदेश नीति के मामलों में इस सरकार से अलग नीति अपनायी गयी होती। दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों में तीन प्रमुख अन्तर निम्नलिखित होते:

भारतीय जनसंघ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(1) जनसंघ संभवतः असंलग्नता की विदेश नीति को न अपनाकर अमरीकी गुट के साथ मिलकर चलती। (1) कम्युनिस्ट पार्टी असंलग्नता की नीति को अपनाते हुए सोवियत गुट के साथ मिलकर विदेश नीति का संचालन करती।
(2) जनसंघ अंग्रेजी भाषा को हटाकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने में महती भूमिका निभाती। (2) कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रभाषा के संदर्भ में कांग्रेस की नीति का ही समर्थन करती।
(3) जनसंघ कश्मीर में 370 का प्रयोग नहीं करती। इस तरह कश्मीर को भारत में अन्य राज्यों की तरह विलय करती। (3) कम्युनिस्ट पार्टी इस प्रकार का कोई प्रयास नहीं करती।

प्रश्न 5.
कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी ? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
आजादी के पूर्व से ही कांग्रेस ने परस्पर विरोधी हितों के कई समूहों को एक साथ जोड़ने का कार्य किया और आजादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल अख्तियार कर चुकी थी। यथा

  1. इसमें विभिन्न वर्ग, जाति, भाषा तथा अन्य हितों से जुड़े हुए व्यक्ति इस गठबन्धन से जुड़ चुके थे।
  2. कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी । क्योंकि इसने अपने अंदर क्रान्तिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर विचारधारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया।
  3. सन् 1924 से 1942 तक भारतीय साम्यवादी दल कांग्रेस के एक गुट के रूप में रहकर ही कार्य करता था।
  4. कांग्रेस एक ऐसा मंच था जिस पर अनेक हित समूह, दबाव समूह और राजनीतिक दल आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। स्वतंत्रता से पहले अनेक संगठन और राजनीतिक दलों को कांग्रेस में रहने की अनुमति थी।
  5. कांग्रेस ने सोशलिस्ट पार्टी, जिसका अलग संविधान व संगठन था, को भी कांग्रेस के एक गुट के रूप में बनाए रखा। इस प्रकार कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 6.
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?
उत्तर:
यह कथन सत्य है, क्योंकि एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतान्त्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ। क्योंकि

  1. इस कारण कोई भी अन्य विचारधारात्मक गठबन्धन या पार्टी उभर कर सामने नहीं आ पाई।
  2. मतदाताओं के पास भी कांग्रेस को समर्थन देने के अतिरिक्त और विकल्प नहीं था।
  3. दल प्रभुत्व की प्रणाली में राजनीतिक तानाशाही को भी बल मिला और लोकतान्त्रिक मूल्यों का ह्रास भी हुआ। बार-बार अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग हुआ और देश ने 1975 से 1977 तक

आपातकाल की स्थिति को जिया जिसमें नागरिकों के मूल अधिकारों का निलम्बन हुआ, संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग हुआ तथा जनता को अनेक अत्याचारों का सामना करना पड़ा।
अथवा
एकल पार्टी प्रभुत्व- – प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र का अच्छा प्रभाव हुआ। यथा

  1. इसने भारतीय लोकतंत्र तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
  2. तत्कालीन भारत में लोकतंत्र और संसदीय शासन अपनी शैशवावस्था में था। यदि इस समय एकल पार्टी प्रभुत्व न होता तो सत्ता के लिए प्रतिस्पर्द्धा होती इससे जनता का विश्वास लोकतंत्र से उठ जाता।.
  3. तत्कालीन मतदाता राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं था तथा मात्र 15% लोग ही शिक्षित थे। मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति विश्वास था। इसी विश्वास ने यहाँ लोकतंत्र को सुदृढ़ किया।
  4. प्रभुत्व प्राप्त स्थिति होने पर भी विपक्षी दलों को सरकार की आलोचना का अधिकार था। इससे जनता राजनीतिक रूप से जागरूक होती रही।

प्रश्न 7.
समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बताएँ। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतन्त्र पार्टी के बीच के तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर:
समाजवादी दल समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टी में अन्तर

समाजवादी दल कम्युनिस्ट पार्टी
(1) समाजवादी दल लोकतान्त्रिक विचार-धारा में विश्वास करते हैं। (1) कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधि-नायकवादी लोकतन्त्र में विश्वास करती है।
(2) समाजवादी दल पूँजीपतियों को और पूँजी को पूर्णतया अनावश्यक और समाज-विरोधी नहीं मानते। (2) कम्युनिस्ट पार्टी निजी पूँजी और पूँजी-पतियों को पूर्णतया अनावश्यक और राजद्रोही मानती है।
(3) समाजवादी दल मजदूरों और किसानों के पक्षधर तो हैं लेकिन वे सामाजिक नियन्त्रण, लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक उपायों के पक्षधर हैं। (3) कम्युनिस्ट पार्टी हर हाल में पूँजीपतियों के बजाय मजदूरों, जमींदारों की बजाय किसानों के हितों की की पक्षधर है चाहे वह हिंसात्मक तरीकों या सरकार के जबरदस्ती उत्पादन के साधनों और भूमि का राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर क्यों न हो।

भारतीय जनसंघ और स्वतन्त्र पार्टी में अन्तर

भारतीय जनसंघ स्वतन्त्र पार्टी
(1) जनसंघ एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र के पक्ष में थी। (1) स्वतन्त्र पार्टी इस प्रकार के विचार के पक्ष में नहीं थी।
(2) जनसंघ भारत और पाकिस्तान को मिलाकर अखण्ड भारत बनाने के पक्ष में थी। (2) स्वतन्त्र पार्टी इस प्रकार के. अखण्ड भारत को व्यावहारिक नहीं मानती थी।
(3) जनसंघ आण्विक हथियार बनाने के पक्ष में थी। (3) स्वतन्त्र पार्टी आण्विक हथियारों की अपेक्षा विकास पर पर अधिक जोर दे रही थी।


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प्रश्न 8.
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएं कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
उत्तर:
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय में एक ही दल का प्रभुत्व था। परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था

  1. भारत में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व मुख्यतः 1977 तक अर्थात् 27 वर्ष तक रहा जबकि मैक्सिको में आर.पी.आई का प्रभुत्व 60 वर्ष तक रहा। हुआ।
  2. मैक्सिको में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतन्त्र की कीमत पर कायम हुआ जबकि भारत में ऐसा कभी नहीं
  3. भारत में एक पार्टी (कांग्रेस) के प्रभुत्व के साथ-साथ शुरू से ही अनेक पार्टियाँ चुनाव में राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय स्तर पर विद्यमान थीं जबकि मैक्सिको में ऐसा नहीं हुआ। वहाँ एक दल की तानाशाही थी तथा लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था।
  4. भारत में प्रजातांत्रिक संस्कृति व प्रजातांत्रिक प्रणाली के अन्तर्गत कांग्रेस का प्रभुत्व रहा जबकि मैक्सिको में शासक दल की तानाशाही के कारण इसका प्रभुत्व रहा।

प्रश्न 9.
भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और उसमें निम्नलिखित को चिह्नित कीजिए-
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) ऐसे दो राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
उत्तर:
(क) (i) जम्मू और कश्मीर (ii) केरल
(ख) (i) पंजाब (ii) उत्तर प्रदेश।
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सुगुंफित पार्टी के रूप में उभरे। ‘यथार्थवादी’ होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे।

अगर ” आंदोलन को चलाते चले जाने के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था। – रजनी कोठारी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए? (ख) शुरुआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(क) लेखक का यह विचार है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासन पार्टी नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक अनुशासित पार्टी में किसी विवादित विषय पर स्वस्थ विचार-विमर्श सम्भव नहीं हो पाता, जो कि देश एवं लोकतन्त्र के लिए अच्छा होता है। लेखक का यह विचार है कि कांग्रेस पार्टी में सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं एवं विचारधाराओं के नेता शामिल हैं, उन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक है तभी देश का वास्तविक लोकतन्त्र उभर कर सामने आयेगा इसलिए लेखक कहता है कि कांग्रेस पार्टी को सर्वांगसम एवं अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए ।

(ख) कांग्रेस ने अपनी स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कई विषयों में समन्वयकारी भूमिका निभाई, इसने देश के नागरिकों एवं ब्रिटिश सरकार के मध्य एक कड़ी का कार्य किया। कांग्रेस ने अपने अंदर क्रान्तिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेते थे। इसी प्रकार कांग्रेस समाज के प्रत्येक वर्ग कृषक, मजदूर, व्यापारी, वकील, उद्योगपति, सभी को साथ लेकर चली इसे सिख, मुस्लिम जैसे अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों, ब्राह्मण, राजपूत व पिछड़ा वर्ग सभी का समर्थन प्राप्त हुआ।

 एक दल के प्रभुत्व का दौर JAC Class 12 Political Science Notes

→ लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती:
भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के साथ ही एक और गम्भीर चुनौती लोकतन्त्र की स्थापना करना थी। भारतीय नेताओं ने लोकतन्त्र की स्थापना हेतु विभिन्न धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों में पारस्परिक एकता की भावना को विकसित करने का प्रयास किया। इसके साथ ही राजनीतिक गतिविधियों का उद्देश्य जनहित में फैसला करना निर्धारित किया गया। भारत के विस्तृत आकार को देखते हुए निष्पक्ष चुनावों की व्यवस्था करना भी एक गम्भीर चुनौती थी। चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन जरूरी था। फिर मतदाता सूची अर्थात् मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की सूची बनाना भी आवश्यक था। इन दोनों कार्यों में बहुत सारा समय लगा। इस समय देश में 17 करोड़ मतदाता थे। इन्हें 3200 विधायक और लोकसभा के लिए 489 सांसद चुनने थे।

इन मतदाताओं में केवल 15 प्रतिशत ही साक्षर थे। चुनाव आयोग को मतदान की एक विशेष पद्धति के बारे में सोचना पड़ा तथा चुनाव कराने के लिए 3 लाख से ज्यादा अधिकारियों और चुनाव कर्मियों को प्रशिक्षित किया। अधिकांश अप्रशिक्षित जनता को मतदान के विषय में जानकारी देना एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी। अन्ततः 1952 में आम चुनाव हुए। कुल मतदाताओं के आधे से अधिक ने मतदान में अपना वोट डाला। चुनाव निष्पक्ष हुए। ये चुनाव पूरी दुनिया में लोकतन्त्र के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए।

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→ पहले तीन चुनावों में कांग्रेस का प्रभुत्व-
→ पहले आम चुनावों में कांग्रेस को आश्चर्यचकित सफलता प्राप्त हुई। कांग्रेस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत प्राप्त थी, यही एकमात्र पार्टी थी जिसका संगठन पूरे देश में था। इस पार्टी के लोकप्रिय नेता पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई नेता थे। प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस को 489 में से . 364 स्थानों पर विजय प्राप्त हुई।

→ दूसरे आम चुनावों (1957) में भी कांग्रेस ने अपनी स्थिति को बरकरार रखते हुए 371 स्थानों पर सफलता प्राप्त की। दूसरे राजनीतिक दल लोकसभा में विपक्षी पार्टी का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाए।

→ तीसरे आम चुनावों (1962) में भी कांग्रेस ने 2/3 बहुमत प्राप्त करके 361 स्थानों पर विजय प्राप्त की। केन्द्र और अधिकतर राज्यों में एक बार फिर एक – दलीय प्रभुत्व की व्यवस्था स्थापित हो गई। दूसरे राजनीतिक दल लोकसभा में बौने साबित हुए। किसी राजनीतिक दल को लोकसभा में विपक्षी दल की स्थिति प्राप्त नहीं हुई। कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति – भारत में कांग्रेस पार्टी की असाधारण सफलता की जड़ें स्वाधीनता संग्राम की विरासत में हैं। कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय आंदोलन के वारिस के रूप में देखा गया। आजादी के आंदोलन में अग्रणी रहे उनके नेता अब कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस पहले से ही एक सुसंगठित पार्टी थी। बाक़ी दल कांग्रेस के सामने बौने साबित हो रहे थे। 1952 से 1967 तक भारत कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा। भारत का एक पार्टी प्रभुत्व दूसरे

→ देशों के एक पार्टी प्रभुत्व से भिन्न था क्योंकि:

  • अन्य देशों में एक पार्टी प्रभुत्व लोकतन्त्र की कीमत पर कायम हुआ जबकि भारत में एक पार्टी प्रभुत्व लोकतान्त्रिक स्थितियों में कायम हुआ।
  • अन्य देशों में एक पार्टी प्रभुत्व संविधान में एक पार्टी को ही शासन की अनुमति देने या कानूनी व सैन्य उपायों के चलते कायम हुआ जबकि भारत में एक पार्टी प्रभुत्व विभिन्न पार्टियों के बीच मुक्त और निष्पक्ष चुनाव के तहत हुआ।

→ केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार:
1957 में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार बनी। यहाँ विधान सभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बहुमत नहीं मिला। विधानसभा चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 126 में से 60 सीटें हासिल हुईं। विश्व में यह पहला अवसर था जब एक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनावों के जरिए बनी। चुनाव प्रणाली – भारत की चुनाव प्रणाली में ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ के तरीके को अपनाया गया। यह प्रणाली कांग्रेस पार्टी के पक्ष में सिद्ध हुई।

→ कांग्रेस एक सामाजिक और विचारधारात्मक गठबंधन के रूप में:

  • कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था। इस समय यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित – समूह भर थी लेकिन 20वीं सदी में इसने जन-आंदोलन का रूप ले लिया। इस कारण से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया और राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ। आजादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल ग्रहण कर चुकी थी।
  • कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, क्रान्तिकारी वामपंथी और हर· धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया। कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे।
  • अपने गठबन्धनी स्वभाव के कारण कांग्रेस विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी। कांग्रेस के विभिन्न गुटों में कुछ विचारधारात्मक सरोकारों की वजह से तथा अन्य गुटों के पीछे व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा तथा प्रतिस्पर्द्धा की भावना भी थी। कांग्रेस की अधिकतर प्रांतीय इकाइयाँ भी विभिन्न गुटों से मिलकर बनी थीं। गुटों की मौजूदगी की यह प्रणाली शासक दल के भीतर सन्तुलन साधने के एक औजार की तरह काम करती थी।
  • चुनावी प्रतिस्पर्द्धा के पहले दशक में कांग्रेस ने शासक दल की भूमिका निभाई और विपक्ष की भी । इसी कारण भारतीय राजनीति के इस काल खण्ड को ‘कांग्रेस प्रणाली’ कहा जाता है।

→ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया:
→ 1920 के दशक के शुरुआती सालों में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी समूह (कम्युनिस्ट – ग्रुप) उभरे। ये रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे और देश की समस्याओं के समाधान के लिए साम्यवाद की राह अपनाने की तरफदारी कर रहे थे। 1935 से साम्यवादियों ने मुख्यतया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दायरे में रहकर काम किया। कांग्रेस से साम्यवादी 1941 के दिसम्बर से अलग हुए।

→ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेताओं में ए. के. गोपालन, एस. ए. डांगे, ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद, पी. सी. जोशी, अजय घोष और पी. सुंदरैया के नाम प्रमुख हैं। चीन और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक अन्तर आने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में एक बड़ी टूट का शिकार हुई। सोवियत संघ की विचारधारा को ठीक मानने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे जबकि इसके विरोध में राय रखने वालों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सी. पी.आई. (एम.) नाम से अलग दल बनाया। ये दोनों दल आज तक कायम हैं।

→ भारतीय जनसंघ:
भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था। श्यामाप्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक अध्यक्ष थे। इस दल की जड़ें आजादी से पहले सक्रिय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) और हिन्दू महासभा में खोजी जा सकती हैं। जनसंघ अपनी विचारधारा और कार्यक्रमों की दृष्टि से बाकी दलों से भिन्न है। जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति, एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया।

→ विपक्षी पार्टियों का उद्भव:

  • पहले तीन आम चुनावों में विपक्षी पार्टियों का अस्तित्व नगण्य था। कई पार्टियाँ 1952 के आम चुनावों से पहले बन चुकी थीं। इनमें से कुछ ने साठ और सत्तर के दशक में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 1950 के दशक में इन सभी विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में कहने भर को प्रतिनिधित्व मिल पाया।
  • प्रारम्भिक वर्षों में काँग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच पारस्परिक सम्मान का गहरा भाव था।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

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JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

Jharkhand Board Class 12 Political Science राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ InText Questions and Answers

पृष्ठ 8

प्रश्न 1.
अच्छा! तो मुझे अब पता चला कि पहले जिसे पूर्वी बंगाल कहा जाता था वही आज का बांग्लादेश है तो क्या यही कारण है कि हमारे वाले बंगाल को पश्चिमी बंगाल कहा जाता है?
उत्तर;
देश के विभाजन से पूर्व बंगाल प्रान्त को दो भागों में विभाजित किया गया जिसका एक भाग पूर्वी बंगाल जो 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। 1971 में जिया उर रहमान के नेतृत्व में यह स्वतन्त्र बांग्लादेश बन गया तथा बंगाल का दूसरा भाग जो भारत में आ गया उसे पश्चिमी बंगाल के नाम से जाना जाता है।

पृष्ठ 15

प्रश्न 2.
क्या जर्मनी की तरह हम लोग भारत और पाकिस्तान के बँटवारे को समाप्त नहीं कर सकते ? मैं तो अमृतसर में नाश्ता और लाहौर में लंच करना चाहता हूँ।
उत्तर:
जर्मनी की तरह भारत एवं पाकिस्तान के बँटवारे को समाप्त करना सम्भव नहीं है क्योंकि जर्मनी के विभाजन व भारत के विभाजन की परिस्थितियों में व्यापक अन्तर है। जर्मनी के विभाजन का मूल कारण विचारधारा और आर्थिक कारण थे जबकि भारत के विभाजन में पाकिस्तान की धार्मिक कट्टरपंथिता की भावना विशेष स्थान रखती है

प्रश्न 3.
क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर रहना और सम्मान करना सीख जाएँ?
उत्तर:
राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों में सुधार हेतु यह आवश्यक है कि वे एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर रहें तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा का सम्मान करें। प्रायः यह देखा गया है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव का मुख्य कारण दोनों देशों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का न होना तथा पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ करना व आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना है। पाकिस्तान भारत विरोधी नीति को त्यागे तभी दोनों देशों के मध्य सम्मान का भाव पैदा हो सकता है।

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पृष्ठ 18

प्रश्न 4.
मैं सोचता हूँ कि आखिर उन सैकड़ों राजा-रानी राजकुमार और राजकुमारियों का क्या हुआ होगा? आखिर आम नागरिक बनने के बाद उनका जीवन कैसा रहा होगा?
उत्तर:
भारत में देशी रियासतों के एकीकरण के पश्चात् इन रियासतों के राजा, महाराजाओं के जीवन बसर के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष सहायता देने का प्रावधान किया गया जिसमें इनको प्रतिवर्ष विशेष सहायता राशि ‘प्रिवीपर्स’ के रूप में देने की व्यवस्था की गई। यह व्यवस्था 1970 तक रही। इसके पश्चात् ये व्यक्ति आम नागरिक की भाँति जीवन बसर कर रहे हैं। इनको भी संविधान द्वारा वही अधिकार प्रदान किये गये हैं जो एक आम नागरिक को प्राप्त हैं। आम नागरिक बनने के बाद वैभव-विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर उन्हें सामान्य जीवन अपनाने में अत्यन्त कष्ट का अनुभव हुआ होगा तथा अपना राजपाट छिनने का दुःख भी हुआ होगा।

पृष्ठ 20

प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तक में पृष्ठ 20 पर दिये मानचित्र को ध्यान से देखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
1. स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले निम्नलिखित राज्य किन मूल राज्यों के अंग थे?
(क) गुजरात
(ग) मेघालय
(ख) हरियाणा
(घ) छत्तीसगढ़।
उत्तर:
(क) गुजरात मूलतः मुम्बई राज्य (महाराष्ट्र) का अंग था।
(ख) हरियाणा पंजाब राज्य का अंग था।
(ग) मेघालय असम राज्य का अंग था।
(घ) छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश राज्य का अंग था।

2. देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:
पंजाब, बंगाल, देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले दो राज्य थे।

3. दो ऐसे राज्यों के नाम बताएँ जो पहले संघ – शासित राज्य थे
उत्तर:
(अ) गोवा (ब) अरुणाचल प्रदेश।

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पृष्ठ 23

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका की जनसंख्या अपने देश के मुकाबले एक-चौथाई है लेकिन वहाँ 50 राज्य हैं। भारत में 100 से भी ज्यादा राज्य क्यों नहीं हो सकते?
उत्तर:
राज्यों की संख्या में वृद्धि का आधार केवल जनसंख्या नहीं हो सकता। राज्यों की संख्या के निर्धारण में अनेक तत्त्वों का ध्यान रखना पड़ता है जिनमें जनसंख्या के साथ-साथ देश का क्षेत्रफल, आर्थिक संसाधन, उस क्षेत्र के लोगों की भाषा, देश की सभ्यता एवं संस्कृति, लोगों का जीवन व शैक्षणिक स्तर आदि तत्त्व प्रमुख हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का क्षेत्रफल भारत की तुलना में बहुत अधिक है तथा वह एक विकसित देश है और संसाधनों की तुलना में भी वह भारत से समृद्ध है। इस आधार पर संयुक्त राज्य में राज्यों की संख्या 50 है। भारत के क्षेत्रफल का कम होना, उसका विकासशील देश होना तथा संसाधनों की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका से कम समृद्ध होना आदि ऐसे तत्त्व हैं जिनके कारण भारत में 100 से भी अधिक राज्य नहीं बनाए जा सकते।

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प्रश्न 1.
भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?
(क) भारत विभाजन ‘द्वि राष्ट्र सिद्धान्त’ का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रांतों – पंजाब और बंगाल का बँटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर:
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सिद्धान्तों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 2. भारत और पाकिस्तान
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन 3. झारखण्ड और छत्तीसगढ़
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन 4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड

उत्तर:

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 2. भारत और पाकिस्तान
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन 4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन 3. झारखण्ड और छत्तीसगढ़

प्रश्न 3.
भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों ) और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए-
(क) जूनागढ़
(ख) मणिपुर
(ग) मैसूर
(घ) ग्वालियर।
उत्तर:
JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ 1

प्रश्न 4.
नीचे दो तरह की राय लिखी गई हैं: विस्मय : रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ। इन्द्रप्रीत : यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बलप्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतन्त्र में आम सहमति से काम लिया जाता है। देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?
उत्तर:
1. विस्मय की राय के सम्बन्ध में विचार:
देशी रियासतों के विलय से पूर्व अधिकांश रियासतों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया जाता था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे। इन रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ समान रूप से चुनावी प्रक्रिया क्रियान्वित हुई। अतः विस्मय का यह विचार सही है कि भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ जनता तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ।

2. इन्द्रप्रीत की राय के सम्बन्ध में विचार:
565 देशी रियासतों में केवल चार-पाँच को छोड़कर सभी स्वेच्छा से भारतीय संघ में शामिल हुईं। लेकिन दो रियासतों (हैदराबाद एवं जूनागढ़) को भारत में मिलाने के लिए बल प्रयोग किया गया, क्योंकि इनकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की थी कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को हमेशा खतरा बना रहता था। दूसरे, बल प्रयोग इन रियासतों की जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि शासन ( शासक वर्ग) के विरुद्ध किया गया क्योंकि इन दोनों राज्यों की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या भारत में विलय चाह रही थी और जब से ये रियासतें भारत में सम्मिलित हो गईं, तब से इन रियासतों के लोगों को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार दे दिए गए।

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प्रश्न 5.
नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यंत भिन्न हैं: आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा …………………… आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा …………………… अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी। – मोहनदास करमचंद गाँधी

………………… भारत आजादी की जिंदगी के लिए जागेगा …………………. हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएँगे …………………… आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिंदुस्तान अपने को फिर से पा लेगा ……………………… आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं…………………….. – जवाहरलाल नेहरू
इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा जँच रहा है और क्यों ?
उत्तर:
गाँधीजी ने देश की जनता से कहा है कि देश में स्वतंत्रता के बाद स्थापित लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राजनीतिक दलों में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष होगा। ऐसी स्थिति में नागरिकों को अधिक विनम्र और धैर्यवान रहते हुए चुनावों में निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश हित को प्राथमिकता देनी होगी। जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिये गये बयान में कहा गया है कि स्वतन्त्र भारत में राजनीतिक स्वतन्त्रता, समानता तथा एक हद तक न्याय की स्थापना हुई है; उपनिवेशवाद समाप्त हो गया है; लेकिन इससे आगे अब आने वाली समस्याओं को दूर कर गरीब से गरीब भारतीयों के लिए नये अवसरों के द्वार खोलना है। राष्ट्र को आत्मनिर्भर तथा स्वाभिमानी बनाना है।

उपर्युक्त दोनों कथनों में महात्मा गाँधी का कथन अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह भविष्य में लोकतांत्रिक शासन के समक्ष आने वाली समस्याओं के प्रति नागरिकों को आगाह करता है कि राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के मोह, विभिन्न प्रकार के लोभ-लालच, भ्रष्टाचार, धर्म, जाति, वंश, लिंग के आधार पर जनता में फूट डाल सकते हैं तथा हिंसा हो सकती है । ऐसी परिस्थितियों में जनता को विनम्र और धैर्यवान रहते हुए देशहित में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया? क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी हैं?
उत्तर:

  1. नेहरूजी के अनुसार भारत ऐतिहासिक और स्वाभाविक रूप में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। वे धर्म को राजनीति से दूर रखना चाहते थे। उनका विचार था कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होना चाहिए, न ही उसे किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित करना चाहिए और न ही उसका विरोध करना चाहिए। राज्य को सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करना चाहिए और सभी धर्मों को उनके क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए।
  2. नेहरूजी ने सदा इस बात पर बल दिया कि भारत की एकता और अखण्डता तभी चिरस्थायी रह सकती है जबकि अल्पसंख्यकों को समान नागरिक अधिकार, धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतन्त्रता तथा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का वातावरण प्राप्त हो।
  3. नेहरू ने अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिमों के सम्बन्ध में यह तर्क दिया था कि भारत में मुस्लिमों की संख्या इतनी अधिक है कि चाहे तो भी वे दूसरे देशों में नहीं जा सकते। अतः उन्होंने मुस्लिमों के साथ समानता का व्यवहार करने पर बल दिया, तभी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलायेगा। निष्कर्ष रूप में, यह कहा जा सकता है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए प्रस्तुत किये गये नेहरूजी के तर्क केवल भावनात्मक व नैतिक ही नहीं बल्कि युक्तिपरक भी हैं।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 7.
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या थे?
उत्तर:
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर निम्नलिखित थीं।

  1. पूर्वी क्षेत्रों में भाषायी समस्या अधिक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्र में धार्मिक एवं जातिवादी समस्याएँ अधिक
  2. पूर्वी क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में विकास की चुनौती

प्रश्न 8.
राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी?
उत्तर:
1953 में स्थापित राज्य पुनर्गठन आयोग का मुख्य कार्य राज्यों के सीमांकन के विषय में कार्यवाही करना था। इस आयोग की सिफारिशों में राज्यों की सीमाओं के निर्धारण हेतु उस राज्य में बोली जाने वाली भाषा को प्रमुख आधार बनाया गया। इस आयोग की प्रमुख सिफारिश यह थी कि भारत की एकता व सुरक्षा, भाषायी और सांस्कृतिक सजातीयता तथा वित्तीय और प्रशासनिक विषयों पर उचित ध्यान रखते हुए राज्यों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर किया जाये।

प्रश्न 9.
कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में ‘कल्पित समुदाय’ होता है और सर्वसामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बँधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।
उत्तर:
भारत की एक राष्ट्र के रूप में विशेषताएँ: भारत की एक राष्ट्र के रूप में प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मातृभूमि के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम:
मातृभूमि से प्रेम प्रत्येक व्यक्ति का स्वाभाविक लक्षण एवं विशेषता माना जाता है। भारत में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं तथा अपने आपको भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते हैं।

2. भौगोलिक एकता: भौगोलिक एकता भी राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करती है। भारत सीमाओं की दृष्टि से कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एक स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई से घिरा है।

3. सांस्कृतिक एकरूपता:
भारतीय संस्कृति इस देश को एक राष्ट्र बनाती है। यह विभिन्नता में एकता लिए हुए है। इस संस्कृति की अपनी पहचान है। वैवाहिक बंधन, जाति प्रथाएँ, साम्प्रदायिक सद्भाव, सहनशीलता, त्याग, , पारस्परिक प्रेम, ग्रामीण जीवन का आकर्षक वातावरण इस राष्ट्र की एकता को बनाने में अधिक सहायक रहा है।

4. सामान्य इतिहास:
भारत का एक अपना राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास रहा है। इस इतिहास का अध्ययन सभी करते हैं।

5. सामान्य हित:
भारत राष्ट्र के लिए सामान्य हित भी महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके अन्तर्गत एक संविधान, धर्मनिरपेक्षता, इकहरी नागरिकता, सरकारी का संघीय ढाँचा, मौलिक अधिकारों व कर्त्तव्यों की व्यवस्था लागू की गई है।

6. संचार के साधनों की विशिष्ट भूमिका:
भारत एक राष्ट्र है। इसकी भावना को सुदृढ़ करने के लिए साहित्यकार, लेखक, फिल्म निर्माता-निर्देशक, जनसंचार माध्यम, इलैक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया, यातायात के साधन, दूरभाष तथा मोबाइल टेलीफोन आदि भी भारत को एक राष्ट्र बनाने में योगदान दे रहे हैं।

7. जन इच्छा:
भारतीय राष्ट्र में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में राष्ट्रवादी बनने की इच्छा भी है।

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प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। – रामचंद्र गुहा

(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।

(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों?
उत्तर:
(क) सोवियत संघ के समान ही भारत में भी अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषायी समुदाय और सामाजिक वर्गों में एकता का भाव पाया जाता है। यथा – भारत में अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं, उनकी भाषा और वेश भूषा, संस्कृति भी भिन्न-भिन्न हैं, तथापि सभी प्रान्तों के लोग एक-दूसरे के धर्म, भाषा तथा संस्कृति का सम्मान करते हैं।

(ख) (i) सोवियत संघ ने राष्ट्र निर्माण के लिए आत्म-निर्भरता का सहारा लिया था जबकि भारत ने कई तरह से बाहरी मदद से राष्ट्र निर्माण के कार्य को पूरा किया।
(ii) सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र निर्माण हुआ जबकि भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र निर्माण हुआ।

(ग) यदि पीछे मुड़कर देखें तो हम पायेंगे कि भारत के लिए राष्ट्र निर्माण के प्रयोग बेहतर रहे, क्योंकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन ने उसके राष्ट्र निर्माण के प्रयोगों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया।

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ JAC Class 12 Political Science Notes

→ नए राष्ट्र की चुनौतियाँ: भारत सन् 1947 में आजाद हुआ लेकिन स्वतन्त्रता के साथ ही भारत को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जहाँ एक ओर स्वतन्त्रता के साथ भारत का विभाजन हुआ वहीं दूसरी ओर हिंसा और विस्थापन की त्रासदी की मार भी झेलनी पड़ी।
→ तीन चुनौतियाँ: स्वतन्त्र भारत के समक्ष तत्कालीन समय में तीन चुनौतियाँ प्रमुख थीं-

  • विविधता में एकता की स्थापना: भारत अपने आकार और विविधता में किसी भी महादेश से कम नहीं था । यहाँ अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग थे, उनकी संस्कृति अलग थी और वे विभिन्न धर्मों को मानने वाले थे । इन सभी में एकता स्थापित करना तत्कालीन समय की महान चुनौती थी।
  • लोकतन्त्र को कायम रखना: लोकतान्त्रिक सरकार की स्थापना करने के साथ ही संविधान के अनुकूल लोकतान्त्रिक व्यवहार एवं बरताव की व्यवस्था करना तत्कालीन समय की आवश्यकता थी।
  • सभी वर्गों का समान विकास-तीसरी चुनौती सम्पूर्ण समाज का भलां व विकास करने की थी। इस संदर्भ में संविधान में इस बात का उल्लेख किया गया कि सामाजिक रूप से वंचित वर्गों तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा दी जाए।

→ विभाजन: विस्थापन और पुनर्वास – 14-15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश भारत दो राष्ट्रों ‘भारत’ और ‘पाकिस्तान’ में विभाजित हुआ । विभाजन में मुस्लिम लीग की ‘द्विराष्ट्र सिद्धान्त’ की नीति की भी भूमिका रही। इस सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नाम की दो कौमों का देश था । इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए पाकिस्तान की माँग की और अन्ततः भारत का विभाजन हुआ।

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→ विभाजन की प्रक्रिया:
इस प्रक्रिया में धार्मिक बहुसंख्या को विभाजन का आधार बनाया गया। इसके मायने यह थे कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे और शेष हिस्सा भारत कहलायेगा। विभाजन की इस प्रक्रिया में भी अनेक समस्याएँ थीं। ‘ब्रिटिश इण्डिया’ में ऐसे दो इलाके थे जहाँ मुसलमान बहुसंख्या में थे। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। इस आधार पर पाकिस्तान दो इलाकों में विभाजित हुआ-पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान दूसरे, मुस्लिम बहुल हर इलाका, पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था। पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के नेता खान अब्दुल गफ्फार खाँ द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे।

उनकी आवाज को अनदेखा करके पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत को पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया। तीसरे, ब्रिटिश इण्डिया के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक और गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। फलतः दोनों प्रान्तों का बंटवारा किया गया। यह बंटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी साबित हुआ। चौथे, सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। जैसे ही यह निश्चित हुआ कि देश का बंटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे।

→ विभाजन के परिणाम: सन् 1947 में भारत विभाजन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिनमें प्रमुख थीं-

  • विभाजन के कारण दोनों सम्प्रदायों के मध्य अचानक साम्प्रदायिक दंगे हुए। मानव इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानांतरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मारा। लाहौर, अमृतसर और कलकत्ता जैसे शहर साम्प्रदायिक अखाड़े में तब्दील हो गए।
  • बँटवारे के कारण शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हुई। लाखों लोग घर से बेघर हो गये तथा लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आये जिनके पुनर्वास की समस्या का सामना करना पड़ा।
  • परिसम्पत्तियों के बँटवारे को लेकर भी दोनों देशों के मध्य अनेक मतभेद उत्पन्न हुए।
  • विभाजन के साथ ही दोनों देशों के मध्य सीमा निर्धारण को लेकर अनेक विवाद उत्पन्न हुए। कश्मीर समस्या इसी का परिणाम मानी जाती है।
  • एक समस्या यह उत्पन्न हुई कि भारत अपने मुसलमान नागरिकों तथा दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ क्या बरताव करे ? भारतीय नेताओं ने धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श को अपनाकर इसका निराकरण किया।
  • रजवाड़ों का विलय – भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप विरासत के रूप में जो दूसरी बड़ी समस्या मिली, वह थी, देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था – ब्रिटिश भारत और देशी राज्य। ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देशी राज्यों का शासन देशी राजाओं के हाथों में था। रजवाड़ों अथवा रियासतों की संख्या 565 थी। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के मार्ग में देशी रियासतें सदैव बाधा बनी रहीं। स्वतन्त्रता के पश्चात् भी ये रियासतें एकीकरण के मार्ग में सिरदर्द बनी रहीं।

→ विलय की समस्याएँ: आजादी के तुरन्त पहले अँग्रेजी प्रशासन ने घोषणा की कि रजवाड़े ब्रिटिश राज की समाप्ति के पश्चात् अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो जायें तथा यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया। यह अपने आप में गम्भीर समस्या थी। इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा।

→ सरकार का नजरिया: यद्यपि देशी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी परन्तु सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया।
देशी रजवाड़ों के विलय के सम्बन्ध में तीन बातें अधिक महत्त्वपूर्ण थीं-

  1. पहली बात यह थी कि अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे।
  2. दूसरा, भारत सरकार का रुख लचीला था । वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी। जैसा जम्मू-कश्मीर में हुआ।
  3. तीसरी बात, विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखण्डता – एकता का सवाल सबसे ज्यादा अहम हो उठा था।

शांतिपूर्ण बातचीत के द्वारा लगभग सभी रजवाड़ों जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गईं। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय अन्य की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ। सितम्बर, 1948 में हैदराबाद के निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा हैदराबाद का भारत में विलय हो गया। मणिपुर के महाराजा बोधचन्द्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये और जून, 1948 में चुनावों के फलस्वरूप वहाँ संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ।

→ राज्यों का पुनर्गठन: बँटवारे और देशी रियासतों के बाद राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भी महत्त्वपूर्ण थी। राष्ट्र के समक्ष प्रांतों की सीमाओं को इस तरह तय करने की चुनौती थी कि देश की भाषायी और सांस्कृतिक बहुलता की झलक भी मिले, साथ ही राष्ट्रीय एकता भी खण्डित न हो राज्यों का पुनर्गठन करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का कार्य राज्यों के सीमांकन के मामले में गौर करना था। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ।

इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाये गये। इस अधिनियम में राज्यों के पुनर्गठन का आधार भाषा को बनाया गया। भाषा के आधार पर राज्यों का संगठन करने से भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हुईं। कई राज्यों के लोग इस भाषागत पुनर्गठन से सन्तुष्ट नहीं थे, क्योंकि कई राज्यों में रहने से लोग, अपनी भाषा के आधार पर अलग राज्यों की स्थापना चाहते थे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गम्भीर आन्दोलन आरम्भ कर दिए गए और भारत सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े।