JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

Jharkhand Board Class 12 Political Science वैश्वीकरण InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
बहुत से नेपाली मजदूर काम करने के लिए भारत आते हैं। क्या यह वैश्वीकरण है?
उत्तर:
हाँ, श्रम का प्रवाह भी वैश्वीकरण का एक भाग है। एक देश के लोग दूसरे देश में जाकर मजदूरी करें । यह स्थिति भी विश्व के समस्त देशों को एक विश्व गांव में बदलती है।

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प्रश्न 2.
भारत में बिकने वाली चीन की बनी बहुत-सी चीजें तस्करी की होती हैं। क्या वैश्वीकरण के चलते तस्करी होती है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई है। अब वैश्वीकरण के कारण आयात-प्रतिबंध कम हो गये हैं; इससे तस्करी में कमी हुई है। वैश्वीकरण के चलते तस्करी का प्रमुख कारण आयात पर प्रतिबंध तो समाप्त हो गया है, लेकिन तस्करी के अन्य कारण, जैसे-विक्रय पर लगने वाला कर, आय कर आदि अन्य करों की चोरी आदि कारण तो विद्यमान रहेंगे ही।

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प्रश्न 3.
क्या साम्राज्यवाद का ही नया नाम वैश्वीकरण नहीं है? हमें नये नाम की जरूरत क्यों है?
उत्तर:
वैश्वीकरण साम्राज्यवाद नहीं है। साम्राज्यवाद में राजनीतिक प्रभाव मुख्य रहता है। इसमें एक शक्तिशाली देश दूसरे देशों पर अधिकार करके उनके संसाधनों का अपने हित में शोषण करता है। यह एक जबरन चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आयाम हैं। इसमें विचारों, पूँजी, वस्तुओं और व्यापार तथा बेहतर आजीविका का प्रवाह पूरी दुनिया में तीव्र हो जाता है। इन प्रवाहों की निरन्तरता से विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव बढ़ रहा है। अतः स्पष्ट है कि वैश्वीकरण साम्राज्यवाद से भिन्न तथा बहुआयामी प्रक्रिया है, इसलिए हमें इसके लिए नये नाम की आवश्यकता पड़ी है।

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प्रश्न 4.
आप या आपका परिवार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के जिन उत्पादों को इस्तेमाल करता है, उसकी एक सूची तैयार करें।
उत्तर:
मैं या मेरा परिवार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अनेक उत्पादों का इस्तेमाल करता है, जैसे कॉलगेट टूथपेस्ट, घड़ियाँ, पेफे, लिवाइस आदि के बने परिधान, कार, माइक्रोवेव, फ्रिज, टी.वी., वाशिंग मशीन, फर्नीचर, मैकडोनाल्ड के भोजन, साबुन, बालपैन, रोशनी के बल्ब, शैम्पू, दवाइयाँ आदि। [ नोट – विद्यार्थी इस सूची को और विस्तार दे सकते हैं ।]

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प्रश्न 5.
जब हम सामाजिक सुरक्षा कवच की बात करते हैं तो इसका सीधा-सादा मतलब होता है कि कुछ लोग तो वैश्वीकरण के चलते बदहाल होंगे ही। तभी तो सामाजिक सुरक्षा कवच की बात की जाती है। है न?
उत्तर:
सामाजिक न्याय के पक्षधर इस बात पर जोर देते हैं कि ‘सामाजिक सुरक्षा कवच’ तैयार किया जाना चाहिए ताकि जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन पर वैश्वीकरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। इसका आशय यह है कि आर्थिक वैश्वीकरण से जनसंख्या के एक बड़े छोटे तबके को लाभ होगा जबकि नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ-सफाई की सुविधा आदि के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बदहाल हो जाएँगे क्योंकि वैश्वीकरण के चलते सरकारें सामाजिक न्याय सम्बन्धी अपनी जिम्मेदारियों से अपने हाथ खींचती हैं। इससे अल्पविकसित और विकासशील देशों के गरीब लोग एकदम बदहाल हो जायेंगे। इससे स्पष्ट होता है कि वैश्वीकरण के चलते गरीब देशों के गरीब लोग बदहाल हो जायेंगे। इसीलिए उनके लिए सामाजिक सुरक्षा कवच की बात की जाती है।

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प्रश्न 6.
हम पश्चिमी संस्कृति से क्यों डरते हैं? क्या हमें अपनी संस्कृति पर विश्वास नहीं है?
उत्तर:
हम पश्चिमी संस्कृति से डरते हैं, क्योंकि वैश्वीकरण का एक पक्ष सांस्कृतिक समरूपता है जिसमें विश्व – संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है। इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे खत्म होती है जो समूची मानवता के लिए खतरनाक है। हमें अपनी संस्कृति पर पूर्ण विश्वास है; लेकिन हमारे ऊपर पाश्चात्य संस्कृति को जबरन लादा न जाये।

प्रश्न 7.
अपनी भाषा की सभी जानी-पहचानी बोलियों की सूची बनाएँ। अपने दादा की पीढ़ी के लोगों से इस बारे में सलाह लीजिए। कितने लोग आज इन बोलियों को बोलते हैं?
उत्तर:
विद्यार्थी यह स्वयं करें।

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प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
(ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।
(ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान हैं।
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
उत्तर;
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।
उत्तर:
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।

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प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
(ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
(ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ।
(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
उत्तर:
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन गलत है?
(क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
(ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।
(ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

प्रश्न 6.
विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव ‘ क्या है? इसके कौन-कौन से घटक हैं?
उत्तर:
विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का अर्थ है।विचार, वस्तुओं तथा घटनाओं का दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचना। इससे विश्व के विभिन्न भाग परस्पर एक-दूसरे के नजदीक आ गये हैं। इसके प्रमुख घटक अग्र हैं।

  • विश्व के एक हिस्से के विचारों एवं धारणाओं का दूसरे हिस्से में पहुँचना।
  • निवेश के रूप में पूँजी का विश्व के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना।
  • वस्तुओं का कई-कई देशों में पहुँचना और उनका बढ़ता हुआ व्यापार।
  • बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की आवाजाही का बढ़ना । विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव ऐसे प्रवाहों की निरन्तरता से पैदा हुआ है और कायम है।

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प्रश्न 7.
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?
उत्तर:
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का प्रमुख योगदान इस प्रकार रहा है।

  1. टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार की क्रांति ला दी है। इस प्रौद्योगिकी का प्रभाव हमारे सोचने के तरीके और सामूहिक जीवन की गतिविधियों पर उसी तरह पड़ रहा है जिस तरह मुद्रण की तकनीकी का प्रभाव राष्ट्रवाद की भावनाओं पर पड़ा था।
  2. विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौद्योगिकी में तरक्की के कारण संभव हुई उदाहरण के लिये, आज इण्टरनेट की सुविधा के चलते ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, ई-लर्निंग जैसी तकनीकें अस्तित्व में आ गई हैं जिनके द्वारा विश्व के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में व्यापार किया जा सकता है, खोजे जा सकते हैं तथा

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का विवेचन अग्र बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  1. वैश्वीकरण के युग में प्रत्येक विकासशील देश को इस प्रकार की विदेश एवं आर्थिक नीति का निर्माण करना पड़ता है जिससे कि दूसरे देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाये जा सकें। पूँजी निवेश के कारण विकासशील देशों ने भी अपने बाजार विश्व के लिये खोल दिये हैं ।
  2. विकासशील देशों में विश्व संगठनों के प्रभाव में राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली निजीकरण की नीतियाँ, कर्मचारियों की छँटनी, सरकारी अनुदानों में कमी तथा कृषि से सम्बन्धित नीतियों पर वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।
  3. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप राज्य ने अपने को पहले के कई ऐसे लोककल्याणकारी कार्यों से खींच लिया है।
  4. विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय निगमों के कारण सरकारों की अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आई है।
  5. वैश्वीकरण के फलस्वरूप कुछ मायनों में राज्य की ताकत का इजाफा भी हुआ है। आज राज्यों के पास अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बल पर राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनायें जुटा सकते हैं।

आलोचना – विकासशील देशों में आज भी निर्धनता, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा, बेरोज़गारी, कुपोषण विद्यमान है। इसलिए राज्य द्वारा सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी कार्य करने की महती आवश्यकता है। लेकिन वैश्वीकरण के चलते राज्य ने इन कार्यों से अपना हाथ खींच लिया है। इसीलिए अनेक संगठनों व विचारकों द्वारा वैश्वीकरण की आलोचना की जा रही है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं? इस संदर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है?
उत्तर:
वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ
वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियों का विवेचन निम्न बिंदुओं के अन्तर्गत किया गया है-

  1. व्यापार में वृद्धि तथा खुलापन – वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में आयात प्रतिबंधों के कम होने से वस्तुओं के व्यापार में इजाफा हुआ है।
  2. सेवाओं का विस्तार तथा प्रवाह – वैश्वीकरण के चलते अब सेवाओं का प्रवाह अबाध हो उठा है। इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है।
  3. राज्यों द्वारा आर्थिक जिम्मेदारियों से हाथ खींचना – आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें अपनी सामाजिक सुरक्षा तथा जन कल्याण की जिम्मेदारियों से अपने हाथ खींच रही हैं और इससे सामाजिक न्याय से सरोकार रखने वाले लोग चिंतित हैं।
  4. विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण- कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण कहा है।
  5. आर्थिक वैश्वीकरण के लाभकारी परिणाम – आर्थिक वैश्वीकरण से व्यापार में वृद्धि हुई है, देश को प्रगति का अवसर मिला है तथा खुशहाली बढ़ी है तथा लोगों में जुड़ाव बढ़ रहा है।

वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव – वैश्वीकरण की प्रक्रिया के तहत भारत पर निम्न प्रमुख प्रभाव पड़े हैं।

  1. वैश्वीकरण के प्रभाव के चलते भारत में व्यापार व विदेशी पूँजी निवेश के क्षेत्र में उदारवादी व निजीकरण की नीतियों को लागू किया गया । विदेशी पूँजी हेतु प्रतिबन्धों में ढील दी गई तथा अर्थव्यवस्था के नियमन व नियन्त्रणं में सरकार की क्षमता में कमी आई है।
  2. इसके तहत सकल घरेलू उत्पाद दर, विकास दर में तीव्र वृद्धि हुई है।
  3. विश्व के देश भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देखने लगे हैं। अतः यहाँ विदेशी निवेश बढ़ा है।
  4. रोजगार हेतु श्रम का प्रवाह बढ़ा है तथा पाश्चात्य संस्कृति का तीव्र प्रसार हुआ है।

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प्रश्न 10.
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है?
उत्तर:
वैश्वीकरण में सांस्कृतिक विभिन्नता और सांस्कृतिक समरूपता दोनों ही प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं। यथा- सांस्कृतिक समरूपता में वृद्धि – वैश्वीकरण के कारण पश्चिमी यूरोप के देश तथा अमेरिका अपनी तकनीकी और आर्थिक शक्ति के बल पर सम्पूर्ण विश्व पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयास कर रहे हैं। इससे पश्चिमी संस्कृति के तत्व अब विश्वव्यापी होते जा रहे हैं। इससे कई परम्परागत संस्कृतियों को खतरा उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार यहां संजीव पास बुक्स सांस्कृतिक समरूपता से अभिप्राय केवल पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से है, नकि किसी नयी विश्व संस्कृति के उदय से सांस्कृतिक विभिन्नता में वृद्धि – वैश्वीकरण के द्वारा सांस्कृतिक विभिन्नताएँ भी बढ़ रही हैं तथा नयी मिश्रित संस्कृतियों का उदय हो रहा है। उदाहरण के लिए अमेरिका की नीली जीन्स, हथकरघे के देशी कुर्ते के साथ पहनी जा रही है। यह कुर्ता विदेशों में भी निर्यात किया जा रहा है। इस प्रकार वैश्वीकरण के कारण हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग व विशिष्ट होती जा रही है। रहा है?

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर
उत्तर:
वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव : वैश्वीकरण ने भारत को अत्यधिक प्रभावित किया है। यथा-

  1. वैश्वीकरण के अन्तर्गत भारत ने निजीकरण व उदारीकरण की नीतियों को अपनाया; बहुत-सी आर्थिक गतिविधियाँ राज्य द्वारा निजी क्षेत्र को सौंप दी गईं। विदेशी पूँजी निवेश हेतु भी प्रतिबन्धों को उदार बनाया गया। परिणामतः भारत में विदेशी वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ी। औद्योगिक प्रतियोगिता के तहत बाजार में उपलब्ध वस्तुओं के विकल्पों व गुणवत्ता में वृद्धि हुई।
  2. वैश्वीकरण के कारण भारत की सकल घरेलू उत्पाद दर में तेजी से वृद्धि हुई है।
  3. वैश्वीकरण के कारण भारत की विकास दर 4.3% से बढ़कर 7 और 8% के आसपास बनी रही है।
  4. विश्व के अधिकांश विकसित देश वैश्वीकरण की प्रक्रिया के प्रभावस्वरूप भारत को एक बड़ी मण्डी के रूप में देखने लगे हैं। इससे विदेशी निवेश बढ़ा है।
  5. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप भारतीय लोगों ने आजीविका के लिए विदेशों में बसना शुरू कर दिया है।
  6. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप यूरोप और अमेरिका की पश्चिमी संस्कृति बड़ी तेजी से भारत में फैल
  7. वैश्वीकरण के कारण विश्व बाजार में विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के मध्य आत्मर्निर्भरता और प्रतियोगिता बढ़ गई है।

वैश्वीकरण पर भारत का प्रभाव: भारत ने भी वैश्वीकरण को कुछ हद तक प्रभावित किया है। यथा-

  1. भारत से अब अधिक लोग विदेशों में जाकर अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों का प्रसार कर रहे हैं।
  2. भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम ने विश्व के देशों को इस ओर आकर्षित किया है।
  3. भारत ने कम्प्यूटर तथा तकनीकी के क्षेत्र में बड़ी तेज़ी से उन्नति कर विश्व में अपना प्रभुत्व जमाया है।

वैश्वीकरण JAC Class 12 Political Science Notes

→ वैश्वीकरण की अवधारणा:
एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात है। प्रवाह प्रवाह कई तरह के हो सकते हैं, जैसे- विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना; पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर जाना; वस्तुओं का कई देशों में पहुँचना और उनका व्यापार तथा आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की आवाजाही। यहाँ सबसे जरूरी बात है।’ विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव ‘ जो ऐसे प्रवाहों की निरन्तरता से पैदा हुआ है और कायम भी है। अतः वैश्वीकरण विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की आवाजाही से जुड़ी परिघटना है। वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आयाम हैं। वैश्वीकरण के कारक – वैश्वीकरण के लिए अनेक कारक जिम्मेदार हैं। यथा-

  • प्रौद्योगिकी: वैश्वीकरण के लिए प्रमुख जिम्मेदार कारक प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति है। टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार की क्रांति कर दिखाई है। प्रौद्योगिकी की तरक्की के कारण ही विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी हुई है।
  • लोगों की सोच में ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का बढ़ना: विश्व के विभिन्न भागों के लोग अब समझ रहे हैं कि वे आपस में जुड़े हुए हैं। आज हम इस बात को लेकर सजग हैं कि विश्व के एक हिस्से में घटने वाली घटना का प्रभाव विश्व के दूसरे हिस्से में भी पड़ेगा।

वैश्वीकरण के परिणाम – वैश्वीकरण के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़े हैं। यथा

  • वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव-
    • वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता में कमी आती है। पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई है और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ले ली है। लोककल्याणकारी राज्य की जगह अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है। पूरे विश्व में बहुराष्ट्रीय निगम अपने पैर पसार चुके हैं।
    • कुछ मायनों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में वृद्धि हुई है। अब राज्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बल पर अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं और इसके आधार पर राज्य ज्यादा कारगर ढंग से कार्य कर सकते हैं।
    • राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को वैश्वीकरण से कोई चुनौती नहीं मिली है।
  • आर्थिक प्रभाव- वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव को आर्थिक वैश्वीकरण भी कहा जाता है। आर्थिक वैश्वीकरण में दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हो जाता है। कुछ आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं जबकि कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और ताकतवर देशों द्वारा जबरन लादे जाते हैं। ये प्रवाह कई किस्म के हो सकते हैं, जैसे वस्तुओं, पूँजी, जनता अथवा विचारों का प्रवाह। यथा—
    • वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई है।
    • वस्तुओं के आयात-निर्यात तथा पूँजी की आवाजाही पर राज्यों के प्रतिबंध कम हुए हैं।
    • धनी देश के निवेशकर्ता अब अपना धन अपने देश की जगह कहीं और निवेश कर सकते हैं, विशेषकर विकासशील देशों में, जहाँ उन्हें अपेक्षाकृत अधिक लाभ होगा।
    • वैश्वीकरण के चलते अब विचारों का प्रवाह अबाध हो गया है।
    • इंटरनेट और कम्प्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार हुआ है।

→ वैश्वीकरण के कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सरकारों ने एक-सी आर्थिक नीतियों को अपनाया है, लेकिन विश्व के विभिन्न भागों में इसके परिणाम अलग-अलग हुए हैं। इसलिए वैश्वीकरण के अनेक सकारात्मक तथा नकारात्मक परिणाम हुए हैं। आर्थिक वैश्वीकरण के दुष्परिणाम या विरोध में तर्क-आर्थिक वैश्वीकरण के प्रमुख नकारात्मक परिणाम ये हैं।

  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण पूरे विश्व का जनमत बड़ी गहराई में बंट गया है।
  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मेदारियों से अपने हाथ खींच रही हैं और इससे सामाजिक न्याय से सरोकार रखने वाले चिंतित हैं क्योंकि इसके कारण नौकरी और जनकल्याण के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बदहाल हो जायेंगे।
  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण गरीब देश आर्थिक रूप से बर्बादी की कगार पर पहुँच जायेंगे।
  • कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण कहा है।

→ आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में तर्क-

  1. आर्थिक वैश्वीकरण से समृद्धि बढ़ती है।
  2. खुलेपन के कारण ज्यादा से ज्यादा जनसंख्या की खुशहाली बढ़ती है।
  3. इससे व्यापार में वृद्धि होती है। इससे सम्पूर्ण विश्व को लाभ मिलता है।
    मध्यम मार्ग – वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का कहना है कि वैश्वीकरण ने चुनौतियाँ पेश की हैं और सजग होकर पूरी बुद्धिमानी से इसका सामना किया जाना चाहिए क्योंकि पारस्परिक निर्भरता तेजी से बढ़ रही है और वैश्विक स्तर पर लोगों का जुड़ाव बढ़ रहा है।
  4. सांस्कृतिक प्रभाव – वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव को निम्न प्रकार समझा जा सकता है।

→ (अ) नकारात्मक प्रभाव:
वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लाता है। लेकिन इस सांस्कृतिक समरूपता में विश्व-संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव के अन्तर्गत राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपना प्रभाव छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे खत्म होती है और यह समूची मानवता के लिए खतरनाक है। इससे स्पष्ट होता है कि वैश्वीकरण की सांस्कृतिक प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी।.

→ (ब) सकारात्मक प्रभाव: वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव का सकारात्मक पक्ष यह है कि

  • कभी – कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है।
  • कभी – कभी इनसे परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार भी होता है।

→ (स) दो-तरफा प्रभाव:
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक प्रभाव दो-तरफा है। इसका एक प्रभाव जहाँ सांस्कृतिक समरूपता है तो दूसरा प्रभाव ‘सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण’ है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

→ भारत और वैश्वीकरण
पूँजी, वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है। यथा

  • औपनिवेशिक दौर में भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा निर्मित माल का आयातक देश था।
  • स्वतंत्रता के बाद भारत ने ‘संरक्षणवाद’ की नीति अपनाते हुए स्वयं उत्पादक चीजों के बनाने पर बल दिया इससे कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई लेकिन स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा सका। भारत की आर्थिक वृद्धि दर भी धीमी रही।
  • 1991 के बाद भारत ने आर्थिक वृद्धि की ऊंची दर हासिल करने की इच्छा से आर्थिक सुधार अपनाये, आयात पर प्रतिबंध हटाये तथा व्यापार एवं विदेशी निवेश को अनुमति दी। इससे आर्थिक वृद्धि दर बढ़ी है लेकिन आर्थिक विकास का लाभ गरीब तबकों को अभी नहीं मिल पाया है।

→ वैश्वीकरण का प्रतिरोध
वैश्वीकरण के विरोध में आलोचकों द्वारा अग्र तर्क दिये जाते हैं।

  • वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण की प्रक्रिया धनिकों को और ज्यादा धनी और गरीबों को और ज्यादा गरीब बनाती है। इसमें राज्य कमजोर होता है और गरीबों के हितों की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है।
  • वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचकों का प्रतिरोध इस प्रकार है
    • इससे राज्य कमजोर हो रहा है।
    • इससे परम्परागत संस्कृति को हानि होगी ।
    • कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और संरक्षणवाद का होना आवश्यक है।
  • वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन भी जारी हैं जो वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण के किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं। विरोधियों का तर्क है कि आर्थिक रूप से ताकतवर देशों ने व्यापार के जो अनुचित तौर-तरीके अपनाये हैं, वे दूर हों। उदीयमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया है।
  • एक विश्वव्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ वैश्वीकरण के विरोध में गठित किया गया है। इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा तथा महिला कार्यकर्ताएँ हैं।

→ भारत और वैश्वीकरण का प्रतिरोध
भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई क्षेत्रों से हो रहा है। ये विभिन्न पक्ष हैं – वामपंथी राजनीतिक दल, इण्डियन सोशल फोरम, औद्योगिक श्रमिक और किसान संगठन पेटेन्ट कराने के कुछ प्रयासों का यहाँ कड़ा विरोध किया गया है। यहाँ दक्षिणपंथी खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के किस घटक के परिवर्तन हुआ है ?
(A) मात्रा
(B) संघटन
(C) दिशा
(D) सभी उपरोक्त।
उत्तर:
(D) सभी उपरोक्त।

2. विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी है।
(A) 1%
(B) 2%
(C) 3%
(D) 4%.
उत्तर:
(A) 1%

3. भारत में खाद्यान्न आयात कम होने का क्या कारण था ?
(A) हरित क्रांति
(B) जनसंख्या में कमी
(C) जन्म दर में कमी
(D) आयात कर।
उत्तर:
(A) हरित क्रांति

4. भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है ?
(A) ब्रिटेन
(B) चीन
(C) संयुक्त राज्य
(D) पाकिस्तान।
उत्तर:
(C) संयुक्त राज्य

5. भारत में प्रमुख पत्तन कितने हैं ?
(A) 6
(B) 8
(C) 10
(D) 12.
उत्तर:
(D) 12.

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

6. भारतीय पत्तनों की नौभार निपटान क्षमता कितने मिलियन टन है ?
(A) 100
(B) 300
(C) 500
(D) 700.
उत्तर:
(C) 500

7. न्हावा शेवा पत्तन किस राज्य में है ?
(A) गुजरात
(B) गोआ
(C) महाराष्ट्र
(D) कर्नाटक।
उत्तर:
(C) महाराष्ट्र

8. न्यू मंगलौर पत्तन से प्रमुख निर्यात है ?
(A) कोयला
(B) लौह-अयस्क
(C) तांबा
(D) अभ्रक।
उत्तर:
(B) लौह-अयस्क

9. अरब सागर की रानी किस पत्तन को कहते हैं ?
(A) मंगलौर
(B) कोच्चि
(C) मुम्बई
(D) कांडला।
उत्तर:
(B) कोच्चि

10. चेन्नई पत्तन कब बनाया गया ?
(A) 1839
(B) 1849
(C) 1859
(D) 1869.
उत्तर:
(C) 1859

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत का 2004-05 में विदेशी व्यापार कितना था ?
उत्तर:
₹8371 अरब के मूल्य का।

प्रश्न 2.
विश्व निर्यात व्यापार में भारत का कितना हिस्सा है ?
उत्तर:
·1%.

प्रश्न 3.
भारत की सबसे अधिक मूल्य की आयात बताओ।
उत्तर:
पेट्रोलियम

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 4.
भारत में व्यापार घाटा कितना है ?
उत्तर:
1250 अरब रुपए का।

प्रश्न 5.
भारत का कुल निर्यात कितने मूल्य का है ?
उत्तर:
3560 अरब रुपए ।

प्रश्न 6.
भारत में सबसे अधिक निर्यात किस क्षेत्र को है ?
उत्तर:
एशिया – ओशनिया ।

प्रश्न 7.
भारत में कुल प्रमुख समुद्री पत्तन कितने हैं ?
उत्तर:
12.

प्रश्न 8.
भारत की दो नवीन बन्दरगाहों के नाम लिखो।
उत्तर:
न्हावा शेवा व पारादीप ।

प्रश्न 9.
भारत में घरेलू विमान पत्तन कितने हैं ?
उत्तर:
112.

प्रश्न 10.
तमिलनाडु में एक नवीन बन्दरगाह का नाम लिखो।
उत्तर:
तूतीकोरन।

प्रश्न 11.
भारत के आयात-निर्यात व्यापार में अन्तर बताओ।
उत्तर:
1250 अरब रुपए।

प्रश्न 12.
भारत के आयात व्यापार में वस्तुओं के दो समूह बताओ।
उत्तर:
(क) ईंधन
(ख) कच्चा माल, खनिज।

प्रश्न 13.
भारत की पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद के आयात में कितने प्रतिशत भागीदारी है ?
उत्तर:
26%.

प्रश्न 14.
भारत से निर्यात में खनिजों का योगदान बताओ।
उत्तर:
5 प्रतिशत।

प्रश्न 15.
महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु राज्य में एक-एक पत्तन का नाम लिखो जो मुख्य बन्दरगाहों पर बोझा कम करने के लिए बनाई गई हैं ?
उत्तर:
महाराष्ट्र – न्हावा शेवा, तमिलनाडु – एन्नौर

प्रश्न 16.
भारत का सबसे बड़ा समुद्री पत्तन बताओ।
उत्तर:
मुम्बई

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प्रश्न 17.
भारतीय पत्तनों में से कौन-सा समुद्री पत्तन स्थल रूद्ध पड़ौसी देशों को पत्तन सुविधाएं प्रदान करता है ? ऐसे किसी एक देश का नाम बताइए।
उत्तर:
कोलकाता पत्तन नेपाल तथा भूटान को पत्तन सुविधाएं प्रदान करता है।

प्रश्न 18.
भारत के सबसे पुराने कृत्रिम समुद्री पत्तन का नाम बताइए।
उत्तर:
चेन्नई भारत का सबसे पुराना कृत्रिम पत्तन है। इसका निर्माण 1839

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उन चार महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के नाम लिखो जो भारत अन्य देशों से आयात करता है ?
उत्तर:
(1) खनिज तेल तथा तेल से बने पदार्थ
(2) उर्वरक
(3) मशीनरी
(4) परिवहन सामान।

प्रश्न 2.
उन चार महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के नाम लिखो जो भारत अन्य देशों को निर्यात करता है ?
उत्तर:
(1) तैयार माल
(2) सिले सिलाए वस्त्र
(3) सूती धागा
(4) चमड़े का सामान।

प्रश्न 3.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित बन्दरगाहों के नाम लिखो।
उत्तर:
कोलकाता, हल्दिया, विशाखापट्टनम, प्रायद्वीप, चेन्नई तथा तूतोकोरिन।

प्रश्न 4.
भारत के किस राज्य में दो प्रमुख पत्तन हैं ?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 5.
भारत के आयात और निर्यात के मूल्य में अन्तर बढ़ने के दो कारण बताओ।
उत्तर:
भारत का 2004-05 में आयात का मूल्य ₹48106 अरब था तथा निर्यात मूल्य ₹35607 अरब था। इसलिए दोनों में अन्तर ₹ 12499 अरब है। इसके दो कारण हैं –
(i) विश्व स्तर पर मूल्यों में वृद्धि
(ii) विश्व बाज़ार में भारतीय रुपए का अवमूल्यन अन्य कारण उत्पादन में धीमी प्रगति,, घरेलू, उपयोग में बढ़ोत्तरी, विश्व बाज़ार में कड़ी प्रतिस्पर्धा, निर्यात में धीमी वृद्धि ।

प्रश्न 6.
भारत के आयात में किन वस्तुओं की वृद्धि हुई है ?
उत्तर:
उर्वरक, रसायन, मशीनों, विद्युत् और गैर-विद्युत् उपकरणों, यन्त्रों और मशीनी उपकरणों के आयात में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 7.
भारत में किन वस्तुओं का आयात तेज़ी से घट गया है ?
उत्तर:
खाद्य और सम्बन्धित उत्पाद, अनाज दालें, दुग्ध उत्पाद, फल, सब्ज़ियां।

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प्रश्न 8.
भारत के निर्यात में कृषीय उत्पाद बताओ।
उत्तर:
कृषीय उत्पादों में सामुद्रिक उत्पाद, मछलियों और उनके उत्पाद निर्यात की प्रमुख वस्तुएं हैं। भारत के निर्यात के कुल मूल्य में इनकी भागीदारी 3.1 प्रतिशत की है। महत्त्व की दृष्टि से इनके बाद, अनाज, चाय, खली, काजू, मसाले, फल और सब्ज़ियां, कहवा और तम्बाकू का स्थान है । थोड़ी-सी मात्रा में कपास का भी निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 9.
‘पत्तन व्यापार के प्रवेश द्वार हैं। व्याख्या करो।
उत्तर:
अंग्रेज़ी भाषा का पोर्ट (Port) शब्द लैटिन भाषा के पोर्टा (Porta) शब्द से बना है जिसका अर्थ प्रदेश द्वार होता है। इसके द्वारा आयात-निर्यात का संचालन होता है । इसलिए पत्तन को प्रवेश द्वार कहते हैं।

प्रश्न 10.
‘पत्तन विदेशी व्यापार के केन्द्र बिन्दु हैं’ स्पष्ट करो।
उत्तर:
पत्तन व्यापार के प्रवेश द्वार हैं । एक ओर पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश से विदेशों को भेजी जाने वाली वस्तुओं के संकलन केन्द्र हैं तथा दूसरी ओर भारत आने वाली वस्तुओं को देश के आन्तरिक भागों में वितरण करने वाले केन्द्रों के रूप में कार्य करते हैं।

प्रश्न 11.
भारत के प्रमुख समुद्र पत्तनों की दो मुख्य विशेषताएं बताओ। किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखिए जहां प्रमुख पत्तन हैं।
उत्तर:
भारत में 12 प्रमुख पत्तन हैं। ये पत्तन भारत के आयात तथा निर्यात के प्रवेश द्वार हैं। ये अपने पृष्ठ प्रदेश से विदेशों को भेजी जाने वाली वस्तुओं के संकलन केन्द्र हैं तथा भारत आने वाली वस्तुओं को प्राप्त करके उनका वितरण करने वाले केन्द्र हैं। पश्चिमी बंगाल में दो प्रमुख पत्तन कोलकाता तथा हल्दिया हैं। तमिलनाडु में चेन्नई तथा तूतीकोरिन के दो प्रमुख पत्तन हैं।

प्रश्न 12.
भारत के विदेशी व्यापार में समुद्री पत्तनों की क्या भूमिका है ? इस संदर्भ में कोई तीन बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
पत्तन भारत के विदेशी व्यापार के केन्द्र बिन्दु के रूप में कार्य कर रहे हैं।

  • पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश से विदेशों को भेजी जाने वाली वस्तुओं के संकलन केन्द्र हैं।
  • पत्तन भारत को आने वाली विदेशी वस्तुओं को प्राप्त करके देश के आन्तरिक भागों में उनके वितरण करने वाले केन्द्र हैं।
  • पत्तन विदेशी व्यापार के द्वार हैं क्योंकि उनके द्वारा आयात तथा निर्यात का संकलन होता है।

प्रश्न 13.
मुम्बई को ‘एक अनूठा बन्दरगाह’ क्यों कहा जाता है ? तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  • मुम्बई भारत की सबसे बड़ी बन्दरगाह है । यहाँ से आयात तथा निर्यात सब से अधिक है।
  • यह एक प्राकृतिक बन्दरगाह है, जहां गहरे जल के कारण बड़े-बड़े जहाज़ों के लिए सुरक्षित सुविधाएं हैं।
  • यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक तथा व्यापारिक केन्द्र है।

प्रश्न 14.
सभी कृषीय वस्तुओं के निर्यात में कटौती हुई है। स्पष्ट करो ।
उत्तर:
(1) चाय निर्यात की प्रधान वस्तु हुआ करती थी। 1960-61 के कुल निर्यात मूल्य में इसकी 19.6 प्रतिशत की भागीदारी थी । लेकिन अब इसका महत्त्व घट गया है। चाय का निर्यात दो लाख टन पर स्थिर बना हुआ है । 1960-61 में यह 1.992 लाख टन तथा 2000-01 में 2.023 लाख टन था। कुल निर्यात मूल्य में इसका हिस्सा भी घटकर केवल एक प्रतिशत रह गया है।
(2) इसी अवधि में कपास का निर्यात भी 32.2 हज़ार टन से घटकर 30.2 हज़ार टन रह गया है।
(3) यद्यपि अन्य कृषीय वस्तुओं की धीमी गति से हुई है ।

प्रश्न 15.
जूट उत्पादों, अर्धनिर्मित लोहे, सूती वस्त्र की निर्यात में भागीदारी घटी है। कारण बताओ।
उत्तर:
(1) 1960-61 में जूट उत्पादों की कुल निर्यात में 20.0 प्रतिशत से अधिक भागीदारी थी, लेकिन अब यह केवल 0.46 प्रतिशत रह गई है। इसका मुख्य कारण आयातक देशों द्वारा जूट के स्थान पर अन्य पदार्थों का उपयोग ही है। पैकिंग के कामों में जूट के बजाय कृत्रिम धागों से निर्मित वस्त्रों का उपयोग किया जाता है।
(2) प्राथमिक और अर्धनिर्मित लोहे और इस्पात का प्रतिशतांक भी 13.4 घट गया है। यह 15.4 प्रतिशत से घटकर केवल 2.0 प्रतिशत रह गया है। प्राथमिक लोहे और इस्पात के बजाय इनके उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है।
(3) इसी प्रकार सूती वस्त्रों के स्थान पर निर्यात में सिले – सिलाए वस्त्र और हस्तशिल्प को वरीयता दी जा रही है । इसलिए इस अवधि में इनका महत्त्व बढ़ गया है।

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तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
पोताश्रय तथा पत्तन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

पोताश्रय (Harbour) पत्तन (Port)
(1) पोताश्रय समुद्र में जहाजों के प्रवेश करने का प्राकृतिक स्थान होता है। (1) पत्तन समुद्री तट पर जहाजों के ठहरने के स्थान होते हैं।
(2) यहां जहाज लहरों तथा तूफान से सुरक्षा प्राप्त करते हैं। (2) यहां जहाजों पर सामान लादने उतारने की सुविधाएं होती हैं।
(3) ज्वारनद मुख तथा कटे-फटे तट खाड़ियां प्राकृतिक पोताश्रय बनाते हैं जैसे मुम्बई में। (3) यहां कई बस्तियां, गोदामों की सुविधाएं होती हैं।
(4) जलतोड़ दीवारें बनाकर कृत्रिम पोताश्रय बनाए जाते हैं, जैसे चेन्नई में। (4) पत्तन व्यापार के द्वार कहे जाते हैं। यहां स्थल तथा समुद्री भाग मिलते हैं।
(5) पोताश्रय में एक विशाल क्षेत्र में जहाजों के आगमन की सुविधाएं होती हैं। (5) पत्तन प्राय: अपनी पृष्ठभूमि से रेलों व सड़कों द्वारा जुड़े होते हैं।

प्रश्न 2.
प्रश्न 2.
भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी तट पर स्थित पोताश्रयों को उनकी स्थिति, पृष्ठ प्रदेश तथा विदेशी व्यापार की दृष्टि से तुलना करें।
उत्तर:

पूर्वी तट पर स्थित पोताश्रय पश्चिमी तट पर स्थित पोताश्रय
1. स्थिति भारत के पूर्वी तट पर कोलकाता, पाराद्वीप, विशाखापटनम, चेन्नई तथा तूतोकोरिन प्रमुख पोताश्रय हैं ये पोताश्रय नदियों के डेल्टा प्रदेश में स्थित हैं। यह प्राकृतिक तथा सुरक्षित बन्दरगाहें नहीं हैं। यहां ज्वार भाटा तथा नदियों द्वारा रेत के जमाव की समस्याएं हैं। इस तट पर खाड़ी बंगाल के तूफानों द्वारा बहुत हानि होती है। कई बन्दरगाहों को सुरक्षित बनाने के लिए जलतोड़ दीवारें बनाई गई हैं। 1. भारत के पश्चिमी तट पर कोचीन, मंगलौर, मरामगाओ, मुम्बई तथा कांधला की प्रमुख बन्दरगाहें हैं। यह कटे-फटे तट के किनारे सुरक्षित तथा प्राकृतिक पोताश्रय हैं। इस तट पर गहरी खाड़ियां हैं। यहां मानसून काल में तूफानों से जहाज सुरक्षित खड़े रह सकते हैं।
2. पृष्ठ प्रदेश – पूर्वी तट पर प्रमुख बन्दरगाहों के पृष्ठ प्रदेश प्राकृतिक सम्पदा से सम्पन्न हैं। ये पोताश्रय अपने पृष्ठ प्रदेश से रेलों, सड़कों तथा जलमार्गों द्वारा जुड़े हुए हैं। इस पृष्ठ प्रदेश से विभिन्न प्रकार के कृषि पदार्थ, खनिज तथा औद्योगिक वस्तुएं प्राप्त होती हैं। गंगा के मैदान से गन्ना, पटसन, चावल, दामोदर घाटी से कोयला, लोहा, मैंगनीज, अभ्रक, तमिलनाडु प्रदेश से सूती वस्त्र, चमड़ा, सीमेंट आदि वस्तुएं प्राप्त होती हैं। विशाखापटनम तथा पाराद्वीप बन्दरगाहों के विकास का मुख्य उद्देश्य खनिज पदार्थों का निर्यात करना है। 2. पश्चिमी तट के पोताश्रयों के पृष्ठ प्रदेश घनी जनसंख्या वाले प्रदेश हैं। ये विशाल पृष्ठ प्रदेश हैं जहां उत्तर- पश्चिमी भारत तथा महाराष्ट्र में कपास मुख्य उपज हैं। इसके पृष्ठ प्रदेश से सूती कपड़ा, चीनी, सीमेंट, ऊन प्राप्त होती है। पश्चिमी घाट बागवानी खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां से चाय, कहवा, रबड़ काजू आदि वस्तुएं प्राप्त होती हैं। पश्चिमी तट की बन्दरगाहों से लोहा तथा मँगनीज विदेशों को निर्यात किया जाता है।
3. विदेशी व्यापार पूर्वी तट के पोताश्रयों से अधिकतर व्यापार जापान तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों से होता है। सबसे अधिक व्यापार कोलकाता बन्दरगाह द्वारा होता है। धीरे-धीरे इस तट पर अन्य बन्दरगाहों द्वारा विदेशी व्यापार बढ़ता जा रहा है। 3. इस तट पर स्थित मुम्बई भारत की सबसे बड़ी बन्दरगाह है। यह तट स्वेज मार्ग पर स्थित है। इसलिए अधिकतर व्यापार यूरोपियन देशों तथा दक्षिणी-पश्चिमी एशियाई देशों से होता है।

प्रश्न 3.
आयात और निर्यात में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
कोई भी देश सभी वस्तुओं में पूर्ण रूप से आत्म-निर्भर नहीं होता। जब देश में किसी वस्तु का उत्पादन आवश्यकता से अधिक होता है तो उसे कमी वाले देशों को भेजता है। इसे निर्यात कहते हैं। जब किसी देश में किसी वस्तु का उत्पादन कम होता है तो उसे पूरा करने के लिए विदेशों से मंगवाया जाता है तो उसे आयात कहते हैं। भारत संसार में चाय निर्यात करता है परन्तु खनिज तेल आयात करता है।

प्रश्न 4.
विदेशी व्यापार तथा घरेलू व्यापार में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
वस्तुओं के आयात-निर्यात को व्यापार कहते हैं। घरेलू व्यापार के अधीन वस्तुएं देश के एक भाग से दूसरे भाग को भेजी जाती हैं। पंजाब से सारे राज्यों को गेहूँ भेजा जाता है। विदेशी व्यापार के अधीन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं को निर्यात किया जाता है। कमी वाले देश उस वस्तु का आयात करते हैं। भारत विश्व के 80 देशों को चाय निर्यात करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘भारत के विदेशी व्यापार में निरन्तर वृद्धि हो है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार में समय के साथ व्यापक परिवर्तन हुए हैं। 1950-51 में भारत का कुल विदेशी व्यापार 12.14 अरब रुपयों का था । तब से इसमें निरन्तर वृद्धि हो रही है। 2004-05 के दौरान भारत के विदेशी व्यापार का कुल मूल्य 83713 अरब रुपयों का हो गया था। 1950-51 में और 2000-01 की अवधि में यह 353 गुनी वृद्धि थी।

प्रश्न 2.
भारत के विदेशी व्यापार के संघटन में बहुत विविधता पाई जाती है। स्पष्ट करो
उत्तर:
भारत में 7500 से भी अधिक वस्तुओं का निर्यात तथा लगभग 6,000 वस्तुओं का आयात किया जाता है।
1. निर्यात की जाने वाली वस्तुएं – कृषि क्षेत्र से लेकर औद्योगिक क्षेत्रों की वस्तुओं के साथ-साथ हथकरघों और कुटीर उद्योगों में निर्मित वस्तुएं और हस्तशिल्प की वस्तुएं निर्यात की जाती हैं। योजना निर्यात जिसमें परामर्श भी शामिल है, भवन-निर्माण के ठेकों आदि में हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। कम्प्यूटर साफ्टवेयर के निर्यात में भी असाधारण वृद्धि दर्ज की गई है।

2. आयात वस्तुएं – लेकिन आयात में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई है। सबसे अधिक आयात पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों, उर्वरकों, बहुमूल्य और अल्प मूल्य रत्नों और पूंजीगत वस्तुओं का होता है। इस प्रकार आयात और निर्यात की परम्परागत वस्तुओं के स्थान पर अनेक नई वस्तुओं का आयात और निर्यात होने लगा है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 3.
भारत में पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद के आयात में वृद्धि तथा इसके कारण बताओ।
उत्तर:
सबसे बड़ा सकारात्मक परिवर्तन पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों के समूह के आयात में हुआ है। इस समूह ने 1960-61 व 2000-01 अवधि में 23.8 प्रतिशत अंक अर्जित किए हैं। 1960-61 में कुल आयात मूल्य में इन वस्तुओं की भागीदारी मात्र 6.2 प्रतिशत की थी। लेकिन यह बढ़कर 1973-74 में 19.2 प्रतिशत तथा 2004-05 में 26.0 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह तीव्र वृद्धि कीमतों में बढ़ोत्तरी के कारण हुई न कि मात्रा में वृद्धि के कारण। तेल उत्पादक और निर्यातक देशों ने कच्चे पेट्रोलियम के मूल्य में कई गुनी वृद्धि के परिणामस्वरूप पेट्रोलियम का बिल बहुत भारी हो गया।

प्रश्न 4.
भारत के आयात में निर्मित वस्तुओं तथा कच्चे माल का महत्त्व बहुत कम हो गया है। व्याख्या करो।
उत्तर:
भारत में निर्मित वस्तुओं का आयात कम हो गया। जूट वस्त्र, सूती वस्त्र, चमड़े का सामान, लोहे तथा इस्पात ऐसे ही उत्पाद हैं। कच्चे माल के समूह की वस्तुओं के आयात में उल्लेखनीय कमी दिखाई पड़ी। इस समूह में कच्चा रबड़, लकड़ी, इमारती लकड़ी, वस्त्रों के लिए धागे और लौह खनिज के आयात में सबसे अधिक कमी हुई है। इन
वस्तुओं के घरेलू उत्पादन में वृद्धि ही इसका मुख्य कारण है।

प्रश्न 5.
‘भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हाल के वर्षों में व्यापार की मात्रा, संघटन तथा दिशा की दृष्टि से बदल गया है’ इस कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए ।
उत्तर:
भारत में विदेशी व्यापार में 1947 के पश्चात् बहुत परिवर्तन हुए हैं –
1. व्यापार की मात्रा – व्यापार की मात्रा में कई गुणा वृद्धि हुई है। 1931 में कुल व्यापार 1250 करोड़ रुपए था जोकि 8,37,133 करोड़ रुपए 2004-2005 में था। यह औद्योगिक विकास के कारण है।
2. निर्यात व्यापार के संगठन में परिवर्तन – भारत पहले चाय, पटसन, चमड़ा, लौहा, गर्म मसाले निर्यात करता था परन्तु अब तैयार वस्तुओं का व्यापार बढ़ गया है ।
3. आयात व्यापार के संगठन में परिवर्तन – खाद्यान्न, कपास, पटसन आयात व्यापार में बढ़ गया है, परन्तु अब पेट्रोलियम, उर्वरक, इस्पात मशीनरी, रसायन अधिक मात्रा में आयात किए जाते हैं।

प्रश्न 6.
भारत द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अपनाए गए किन्हीं तीन उपायों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर: भारत का उद्देश्य आगामी पांच वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को दुगुना करना है। इस सम्बन्ध में तीन उपाय किए जा रहे हैं-
(i) आयात उदारीकरण
(ii) आयात करों में कमी
(iii) डी – लाइसेंसिंग

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 7.
भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में निर्यात की मदों के बदलते स्वरूप का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(i) भारत के व्यापार में तेज़ी में वृद्धि है।
(ii) कृषि तथा समवर्गी उत्पाद के निर्यात में हिस्सा घटा है।
(iii) पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात बढ़ा है।
(iv) कहवा, चाय, मसालों का निर्यात घटा है।
(v) ताज़े फलों, चीनी आदि के निर्यात में वृद्धि हुई है।
(vi) निर्यात क्षेत्र में विनिर्मित वस्तुओं की भागीदारी बढ़ी है।
(vii) इंजीनियरिंग सामान में वृद्धि हुई है।
(viii) मणिरत्नों तथा आभूषण का निर्यात में वृद्धि हुई है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत की प्रमुख बन्दरगाहों का वर्णन करो। उनकी स्थिति, विशेषताएं तथा व्यापारिक महत्त्व बताएं।
उत्तर:
समुद्र पत्तन समुद्र के किनारे जहाज़ों के ठहरने के स्थान होते हैं। इनके द्वारा किसी देश का विदेशी व्यापार होता है। एक आदर्श बन्दरगाह के लिए कटी-फटी तट रेखा, अधिक गहरा जल सम्पन्न, पृष्ठ-भूमि, उत्तम जलवायु तथा समुद्र मार्गों पर स्थित होना आवश्यक है। भारत की तट रेखा 7517 किलोमीटर लम्बी है। इस तट रेखा पर अच्छी बन्दरगाहों की कमी है। केवल 12 बन्दरगाहें (Major Ports), 22 मध्यम बन्दरगाहें (Intermediate Ports) तथा 185 छोटी बन्दरगाहें (Minor Ports) हैं। भारत की प्रमुख बन्दरगाहें – भारत के पश्चिमी तट पर कांडला, मुम्बई, मार्मगोआ तथा कोचीन प्रमुख बन्दरगाहें हैं । पूर्वी तट पर कोलकाता, पाराद्वीप, विशाखापट्टनम तथा चेन्नई प्रमुख बन्दरगाहें हैं। मंगलौर और तूतीकोरन का बड़े बन्दरगाहों के रूप में विस्तार किया जा रहा है। भारत की प्रमुख बन्दरगाहों का उल्लेख इस प्रकार है –

I. कांडला (Kandla) –
(क) पश्चिमी तट की बन्दरगाहें
(i) स्थिति (Location ) – यह बन्दरगाह खाड़ी कच्छ (Gulf of Kutch) के शीर्ष (Head) पर स्थित है। यह एक ज्वारी पत्तन है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) यह एक सुरक्षित व प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(2) इसकी पृष्ठभूमि बहुत विशाल तथा सम्पन्न है, जिसमें समस्त उत्तर-पश्चिमी भारत के उपजाऊ प्रदेश हैं।
(3) समुद्र की गहराई 10 मीटर से अधिक है।
(4) यहां बड़े-बड़े जहाज़ों के ठहरने की सुविधाएं हैं।
(5) यह स्थान स्वेज़ (Suez) समुद्री मार्ग पर स्थित है।
(6) यह बन्दरगाह कराची की बन्दरगाह का स्थान लेगी।
(7) यह वाडीनार में एक अपतटीय टर्मिनल विकसित किया गया है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार - 1
(iii) व्यापार (Trade) –
1. आयात (Imports) – सूती कपड़ा, सीमेंट, मशीनें तथा दवाइयां।
2. निर्यात (Exports) – सूती कपड़ा, सीमेंट, अभ्रक, तिलहन, नमक।

II. मुम्बई (Mumbai)
(i) स्थिति (Location ) – यह बन्दरगाह पश्चिमी तट के मध्य भाग पर एक छोटे से टापू पर स्थित है। यह टापू एक पुल द्वारा मुख्य स्थल से मिला हुआ है।

(ii) fagtuaný (Characteristics) –
(1) यह भारत की सबसे बड़ी प्राकृतिक व सुरक्षित बन्दरगाह है।
(2) स्वेज़ मार्ग पर स्थित होने के कारण यूरोप (Europe ) के निकट स्थित है।
(3) इसकी पृष्ठभूमि में काली मिट्टी का कपास क्षेत्र तथा उन्नत औद्योगिक प्रदेश है।
(4) अधिक गहरा जल होने के कारण बड़े-बड़े जहाज़ ठहर सकते हैं, परन्तु यहां कोयले की कमी है।
(5) यहां पांच डॉकों (Docks) में 54 गोदामों की व्यवस्था है। यह पत्तन 20 कि०मी० लम्बा, 6-10 कि०मी० चौड़ा है।
(6) यह भारत की सबसे बड़ी बन्दरगाह है। यहां न्हावा शेवा (जवाहर लाल नेहरू पत्तन) का नया पत्तन बनाया जा रहा है। यह भारत का विशालतम कंटेनर पतन है।
(7) इसे भारत का सिंह द्वार (Gateway of India) भी कहते हैं। यह महाराष्ट्र की राजधानी है। यहां ट्राम्बे में भाभा अणु शक्ति केन्द्र, मैरीन ड्राइव, इण्डिया गेट तथा एलीफेंटा गुफाएं दर्शनीय स्थान हैं। यह भारतीय जल-सेना का प्रमुख केन्द्र है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार - 2
(iii) व्यापार (Trade ) –
1. आयात (Imports ) – मशीनरी, पेट्रोल, कोयला, कागज़, कच्ची फिल्में।
2. निर्यात (Exports ) – सूती कपड़ा, तिलहन, मैंगनीज़, चमड़ा, तम्बाकू।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

III. मरमागाओ (Marmago) –
(i) स्थिति (Location ) – यह बन्दरगाह पश्चिमी तट गोआ (Goa ) में स्थित है। यह एक जुआरी नदमुख के मुहाने पर स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) यह एक प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(2) इसकी पृष्ठभूमि में महाराष्ट्र तथा कर्नाटक प्रदेश के पश्चिमी भाग हैं। कोंकण रेलवे ने इसके पृष्ठ भूमि का विस्तार किया है।
(3) इसमें 50 के लगभग जहाज़ खड़े हो सकते हैं।
(iii) व्यापार (Trade ) –
1. आयात ( Imports ) – खाद्यान्न, रासायनिक खाद, मशीनें, खनिज तेल।
2. निर्यात (Exports ) – नारियल, मूंगफली, मैंगनीज़, खनिज लोहा।
(iv) न्यू मंगलौर (New Mangalore ) – यह कर्नाटक में लौह खनिज, उर्वरक, कहवा, चाय, सूत, आदि निर्यात करता है।

IV. कोच्चि (Cochi) –
(i) स्थिति (Location ) – यह बन्दरगाह मालाबार तट पर केरल प्रदेश में पाल घाट दर्रे के सामने स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) यह बन्दरगाह एक लैगून झील (Lagoon) के किनारे स्थित होने के कारण सुरक्षित और प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(2) इसकी पृष्ठभूमि में नीलगिरि का बागानी कृषि क्षेत्र तथा कोयम्बटूर का औद्योगिक प्रदेश स्थित है।
(3) यह जल – मार्ग द्वारा पृष्ठभूमि से मिला हुआ है।
(4) यह पूर्वी एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया के जलमार्गों पर स्थित है। इसे ‘अरब सागर की रानी’ भी कहते हैं।
(5) भारत का दूसरा पोत निर्माण केन्द्र (Shipyard ) यहां पर है।
(iii) व्यापार (Trade) –
1. आयात ( Imports ) – चावल, कोयला, पेट्रोल, रसायन, मशीनरी।
2. निर्यात (Exports ) – कहवा, चाय, काजू, गर्म मसाले, नारियल, इलायची, रबड़, सूती कपड़ा।

(ख) पूर्वी तट की बन्दरगाहें –

I. कोलकाता (Kolkata) –
(i) स्थिति (Location) – यह एक नदी पत्तन ( River port) है। यह खाड़ी बंगाल में गंगा के डेल्टा प्रदेश पर हुगली नदी के बाएं किनारे पर तट से 128 किलोमीटर भीतर स्थित है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार - 3

(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) इसकी पृष्ठभूमि बहुत विशाल तथा सम्पन्न है जिसमें गंगा घाटी का कृषि क्षेत्र, छोटा नागपुर का खनिज व उद्योग
क्षेत्र तथा बंगाल, असम का चाय और पटसन क्षेत्र शामिल हैं।
(2) यह दूर पूर्व में जापान तथा अमेरिका के जलमार्ग पर स्थित है।
(3) परन्तु यह एक कृत्रिम बन्दरगाह है तथा गहरी नहीं है।
(4) प्रति वर्ष नदियों की रेत और मिट्टी हटाने के लिए काफ़ी खर्च करना पड़ता है।
(5) जहाज़ केवल ज्वार-भाटा के समय ही आ जा सकते हैं। बड़े जहाज़ों को 70 किलोमीटर दूर डायमण्ड हारबर (Diamond Harbour ) में ही रुक जाना पड़ता है।
(6) इस बन्दरगाह के विस्तार के लिए हल्दिया (Haldia) नामक स्थान पर एक विशाल पत्तन का निर्माण किया जा रहा है। यह भारत की दूसरी बड़ी बन्दरगाह है।

(iii) व्यापार (Trade ) –
1. आयात (Imports) – मोटरें, पेट्रोल, रबड़, चावल, मशीनरी।
2. निर्यात (Exports) – पटसन, चाय, खनिज लोहा, कोयला, चीनी, अभ्रक।

II. विशाखापट्टनम (Vishakhapatnam) –
(i) स्थिति (Location ) – यह बन्दरगाह पूर्वी तट पर कोलकाता और चेन्नई के मध्य स्थित है। यह सब से गहरा पत्तन है तथा भू- आबद्ध है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) डाल्फिन नोज (Dalphin-Nose) नाम की कठोर चट्टानों से घिरे होने के कारण यह एक सुरक्षित व प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(2) इसकी पृष्ठभूमि में लोहा, कोयला तथा मैंगनीज़ का महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र है।
(3) यहां तेल, कोयला, ईंधन आदि सुलभ हैं।
(4) भारत का जहाज़ बनाने का सबसे बड़ा कारखाना यहां पर स्थित है।
(5) यह भारत की तीसरी प्रमुख बन्दरगाह है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

(iii) व्यापार (Trade ) –
1. आयात (Imports) – मशीनरी, चावल, पेट्रोल, खाद्यान्न।
2. निर्यात (Exports ) – मैंगनीज़, लोहा, तिलहन, चमड़ा, लाख, तम्बाकू।

III. पाराद्वीप (Paradip) –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार - 4
(i) स्थिति (Location) – यह बन्दरगाह खाड़ी बंगाल में कटक से 160 किलोमीटर दूर महानदी डेल्टे पर स्थित है।
(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) यह एक नवीनतम बन्दरगाह है।
(2) यह एक सुरक्षित व प्राकृतिक बन्दरगाह है।
(3) पानी की अधिक गहराई के कारण यहां बड़े-बड़े जहाज़ ठहर सकते हैं।
(4) इसकी पृष्ठ भूमि में उड़ीसा का विशाल खनिज क्षेत्र है।
(5) उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड के खनिज पदार्थों के निर्यात के लिए इस बन्दरगाह का विशेष महत्त्व है।

(iii) व्यापार (Trade ) –
1. निर्यात (Exports ) – जापान को लोहा, मैंगनीज़, अभ्रक आदि खनिज पदार्थ।
2. आयात (Imports ) – मशीनरी, तेल, चावल।

IV. चेन्नई (Chennai) –
(i) स्थिति (Location ) – यह बन्दरगाह तमिलनाडु राज्य में कोरोमण्डल तट पर स्थित है। यह 1859 में बनाया गया।
(ii) विशेषताएं (Characteristics) –
(1) यह एक कृत्रिम बन्दरगाह है।
(2) कंकरीट की दो मोटी जल-तोड़ दीवारें (Break waters) बनाकर यह सुरक्षित बन्दरगाह बनाई गई है।
(3) इसकी पृष्ठभूमि में एक उपजाऊ कृषि क्षेत्र तथा औद्योगिक प्रदेश है
(4) यहां कोयले की कमी है।
(iii) व्यापार (Trade) –
1. आयात (Imports ) – चावल, कोयला, मशीनरी, पेट्रोल, लोहा, इस्पात।
2. निर्यात (Exports) – चाय, कहवा, गर्म मसाले, तिलहन, चमड़ा, रबड़।
(iv) एन्नोर (Ennore ) – चेन्नई से 25 कि०मी० उत्तर में स्थित है।
(v) तूतीकोरन (Tuticorn) – चेन्नई के दक्षिण में यह पत्तन बनाया गया है।

प्रश्न 2.
भारत में विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारत का विदेशी व्यापार (India’s Foreign Trade)
भारत का विदेशी व्यापार बहुत प्राचीन समय से है। विदेशी व्यापार की अधिकता के कारण ही भारत को “सोने की चिड़िया ” कहा जाता था परन्तु अंग्रेज़ों के शासनकाल में विदेशी व्यापार समाप्त हो गया। भारत से कच्चा माल इंग्लैण्ड जाने लगा तथा भारत इंग्लैण्ड के तैयार माल की खपत के लिए एक मण्डी बन कर रह गया। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत विकास की ओर अग्रसर हो रहा है तथा भारत के विदेशी व्यापार को विकसित किया जा रहा है। भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. अधिकांश व्यापार का समुद्र द्वारा होना – भारत का 90% व्यापार समुद्र द्वारा होता है। वायु तथा स्थल द्वारा व्यापार कम है।
2. विदेशी व्यापार का कम होना-भारत का विदेशी व्यापार विश्व व्यापार की दृष्टि से बहुत कम है। भारत का विदेशी व्यापार विश्व व्यापार का केवल 1% भाग है।
3. प्रति व्यक्ति व्यापार का कम होना – भारत में प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार की मात्रा अन्य देशों की तुलना में कम है।
4. व्यापार के परिणाम तथा मूल्य में वृद्धि – भारत का विदेशी व्यापार लगातार तथा परिणाम में बढ़ रहा है।

वर्ष आयात (करोड़ रुपए) निर्यात (करोड़ रुपए) कुल (करोड़ रुपए)
1950-51 650 600 1250
1982-83 14054 8637 22791
2004-2005 481064 356069 837133

5. व्यापार का सन्तुलन का प्रतिकूल होना – भारत में प्रति वर्ष आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक रहने के कारण व्यापार शेष प्रतिकूल रहता है। भविष्य में इसके और भी प्रतिकूल होने की सम्भावना है।

वर्ष आयात निर्यात व्यापार शेष
1972-73 ₹ 1786 करोड़ ₹ 1960 करोड़ ₹ 184 करोड़
1982-83 ₹ 14054 करोड़ ₹ 8637 करोड़ ₹ 5417 करोड़
2004-2005 ₹ 481064 करोड़ ₹ 356069 करोड़ ₹ 124995 करोड़

6. निर्यात व्यापार (Export Trade) की विशेषताएं –
(i) निर्यात में परम्परावादी वस्तुओं की अधिकता – भारत के निर्यात व्यापार में कुछ परम्परावादी वस्तुओं की अधिकता है। इसमें चाय, पटसन का माल सूती कपड़ा, तिलहन, खनिज पदार्थ, चमड़ा व खालें महत्त्वपूर्ण हैं। परन्तु कुछ वर्षों से निर्यात वस्तुओं में विविधता आ गई है।
(ii) इन्जीनियरिंग सामान व उद्योग से तैयार माल का अधिक निर्यात – पहले भारत केवल कच्चे माल का निर्यात करता था। परन्तु औद्योगिक विकास के कारण कारखानों द्वारा बनाई गई वस्तुओं, सूती वस्त्र तथा इन्जीनियरिंग के सामान के निर्यात में वृद्धि हो रही है।
(iii) भारत में निर्यात माल के अनेक खरीददार – पहले भारत का निर्यात व्यापार कुछ ही बड़े देशों के साथ था परन्तु अब व्यापार अनेक देशों के साथ है।
(iv) व्यापार की दिशा में परिवर्तन – पहले भारत का अधिकतर व्यापार इंग्लैंड के साथ था। फिर यह व्यापार संयुक्त राज्य तथा रूस के साथ सबसे अधिक था। परन्तु अब भारत का निर्यात व्यापार जापान के साथ अधिक हो गया है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

7. आयात व्यापार की विशेषताएं –
(i) व्यापार में भारी मशीनरी की अधिकता – भारत में उद्योगों की स्थापना के कारण मशीनरी का आयात बढ़ता जा रहा है। इसमें मशीनें, कल-पुर्जे, परिवहन सामग्री शामिल है।
(ii) तैयार माल के आयात में वृद्धि – कई उद्योगों के कच्चे माल की कमी के कारण भारत में बाहर के तैयार माल का आयात बढ़ रहा है। इसमें धातुएं, कागज़, रेशम, लोहा-इस्पात के सामान व रासायनिक पदार्थ, पेट्रोल, उपभोग की वस्तुएँ शामिल हैं। खनिज तेल की कीमतों के बढ़ जाने से आयात में वृद्धि हुई है।
(iii) खाद्यान्नों व कच्चे माल के आयात में कमी – देश में हरित क्रान्ति (Green Revolution) के कारण खाद्यान्नों का आयात कम हो गया है। इसी प्रकार कपास, पटसन के अधिक उत्पादन के कारण इनका आयात कम हो गया है।
(iv) व्यापार की दिशा में परिवर्तन – भारत का आयात व्यापार एक बार फिर संयुक्त राज्य अमेरिका से अधिक हो गया है। इनके अतिरिक्त बंगला देश, जापान, रूस, ईरान, प० जर्मनी से भी आयात व्यापार बढ़ा है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के विदेशी व्यापार में क्या परिवर्तन आए हैं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के विदेशी व्यापार में काफ़ी परिवर्तन आए हैं –
1. विदेशी व्यापार का परिमाण (Volume of Foreign Trade ) – इस अवधि में भारत के विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई। सन् 1951 में यह व्यापार ₹ 1250 करोड़ का था। सन् 1951 के बाद महत्त्वपूर्ण औद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप विदेशी व्यापार की पूरी तरह कायापलट हो गई है।
विदेशी व्यापार का परिमाण जो 1950-51 में ₹ 1,250 करोड़ था 2004-2005 में बढ़कर ₹837133 करोड़ हो गया।

2. निर्यात व्यापार की रचना में परिवर्तन (Change in the Composition of Exports) – सन् 1947 के पश्चात् भारत के निर्यात व्यापार में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत चाय, जूट, कपड़े, चमड़े, कच्चे लोहे, काजू तथा मसालों का अधिक निर्यात करता था। अब अनेक प्रकार की तैयार वस्तुओं का निर्यात किया जाने लगा है जैसे पूंजीगत माल (मशीनें ), इन्जीनियरिंग सामान, रासायनिक उत्पादन, सिले-सिलाये कपड़े, हीरे-जवाहरात, तैयार भोजन, हस्तशिल्प आदि।

3. आयात व्यापार की रचना में परिवर्तन (Change in the Composition of Imports ) – सन् 1947 के पश्चात् भारत के आयात व्यापार की रचना में अनाज, कपास, जूट के आयात काफ़ी बढ़ गये थे । अब ये कम हो गये हैं। भारत में पेट्रोलियम, खाद, इस्पात, लोहा, अलौह धातुएं, औद्योगिक, कच्चे माल, मशीनरी पूंजीगत सामग्री, खाने के तेल, रसायन बिना तराशे जवाहरात के आयात बढ़ गये हैं।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

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पृष्ठ 118

प्रश्न 1.
जंगल के सवाल पर राजनीति, पानी के सवाल पर राजनीति और वायुमण्डल के मसले पर राजनीति! फिर किस बात में राजनीति नहीं है।
उत्तर:
वर्तमान में विश्व की स्थिति कुछ ऐसी बन गई है, जहाँ प्रत्येक बात में राजनीति होने लगी है। इससे ऐसा लगता है कि अब कोई विषय ऐसा नहीं बचा है जिस पर राजनीति हावी नहीं हो।

पृष्ठ 119

प्रश्न 2.
पर दिए गए चित्र में अँगुलियों को चिमनी और विश्व को एक लाईटर के रूप में दिखाया गया है। ऐसा क्यों?
उत्तर:
दिए गए चित्रों में अँगुलियाँ उद्योगों से चिमनी से निकलने वाले प्रदूषण को दर्शाती हैं और लाइटर प्राकृतिक संसाधनों के जलने और घटने का प्रतिनिधित्व करता है।

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पृष्ठ 120

प्रश्न 3.
क्या पृथ्वी की सुरक्षा को लेकर धनी और गरीब देशों के नजरिये में अन्तर है?
उत्तर:
हाँ, पृथ्वी की सुरक्षा को लेकर धनी और गरीब देशों के नजरिये में अन्तर है। धनी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत की छेद और वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) को लेकर है जबकि गरीब देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्यादा चिंतित हैं। धनी देश पर्यावरण के मुद्दे पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस रूप में पर्यावरण आज मौजूद है। ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो, जबकि निर्धन देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को हानि अधिकांशतः विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँची है। यदि धनी देशों ने पर्यावरण को अधिक हानि पहुँचायी है तो उन्हें इस हानि की भरपाई करने की जिम्मेदारी भी अधिक उठानी चाहिए। साथ ही निर्धन देशों पर वे प्रतिबंध न लगें जो विकसित देशों पर लगाए जाने हैं।

पृष्ठ 122

प्रश्न 4.
क्योटो प्रोटोकॉल के बारे में और अधिक जानकारी एकत्र करें। किन बड़े देशों ने इस पर दस्तखत नहीं किये और क्यों?
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल – जलवायु परिवर्तन के संबंध में विभिन्न देशों के सम्मेलन का आयोजन जापान के क्योटो शहर में 1 दिसम्बर से 11 दिसम्बर, 1997 तक हुआ। इस सम्मेलन में 150 देशों ने हिस्सा लिया और जलवायु परिवर्तन को कम करने की वचनबद्धता को रेखांकित किया। इस प्रोटोकॉल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए सुनिश्चित, ठोस और समयबद्ध उपाय करने पर बल दिया गया। 11 दिसम्बर, 1997 को क्योटो प्रोटोकॉल (न्यायाचार) को विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों द्वारा स्वीकार कर लिया गया। इस न्यायाचार (प्रोटोकॉल) के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें विकसित देशों को अपने सभी छः ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर को 2008 से 2012 तक 1990 के स्तर से औसतन 5.2% कम करने को कहा गया।
  2. यूरोपीय संघ को सन् 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में 8%, अमेरिका को 7%, जापान तथा कनाडा को 6% की कमी करनी होगी, जबकि रूस को अपना वर्तमान उत्सर्जन स्तर 1990 के स्तर पर बनाए रखना होगा।
  3. इस अवधि में आस्ट्रेलिया को अपने उत्सर्जन स्तर को 8 प्रतिशत तक बढ़ाने की छूट दी गई।
  4. विकासशील देशों को निर्धारित लक्ष्य के उत्सर्जन स्तर में कमी करने की अनुमति दी गई।
  5. इस प्रोटोकॉल में उत्सर्जन के दायित्वों की पूर्ति के लिए विकासशील देश विकास में स्वैच्छिक भागीदारी में शामिल होंगे। इस हेतु विकासशील देशों में पूँजी निवेश करने के लिए विकसित देशों को ऋण की सुविधा उपलब्ध होगी।

पृष्ठ 124

प्रश्न 5.
लोग कहते हैं कि लातिनी अमरीका में एक नदी बेच दी गई। साझी संपदा कैसे बेची जा सकती है?
उत्तर:
साझी संपदा का अर्थ होता है–ऐसी संपदा जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो। ऐसे संसाधन की प्रकृति, उपयोग के स्तर और रख-रखाव के संदर्भ में समूह के हर सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होते हैं और समान उत्तरदायित्व निभाने होते हैं। लेकिन वर्तमान में निजीकरण, आबादी की वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र की गिरावट समेत कई कारणों से पूरी दुनिया में साझी संपदा का आकार घट रहा है। गरीबों को उसकी उपलब्धता कम हो रही है। संभवत: लातिनी अमरीका में इन्हीं किन्हीं कारणों से नदी पर किसी मनुष्य समुदाय या राज्य ने उस पर अधिकार कर लिया हो और वह साझी संपदा न रहने दी गई हो। ऐसी स्थिति में उसे उसके स्वामित्व वाले समूह किसी अन्य को बेच दिया हो। इस प्रकार साझी संपदा को निजी सम्पदा में परिवर्तित कर उसे बेचा जा रहा है।

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पृष्ठ 125

प्रश्न 6.
मैं समझ गया! पहले उन लोगों ने धरती को बर्बाद किया और अब धरती को चौपट करने की हमारी बारी है। क्या यही है हमारा पक्ष ?
उत्तर:
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन से संबंधित बुनियादी नियमाचार के अन्तर्गत चर्चा चली कि तेजी से औद्योगिक होते देश (जैसे–ब्राजील, चीन और भारत) नियमाचार की बाध्यताओं का पालन करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें। भारत इस बात के खिलाफ है। उसका कहना है कि भारत पर इस तरह की बाध्यता आयद करना अनुचित है क्योंकि 2030 तक उसकी प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर मात्र 1.6 ही होगी, जो आधे से भी कम होगी। बावजूद विश्व के ( सन् 2000 ) औसत ( 3.8 टन प्रति व्यक्ति) के आधे से भी कम होगा।

भारत या विकासशील देशों के उक्त तर्कों को देखते यह आलोचनात्मक टिप्पणी की गई है कि पहले उन लोगों ने अर्थात् विकसित देशों ने धरती को बर्बाद किया, इसलिए उन पर उत्सर्जन कम करने की बाध्यता को लागू करना न्यायसंगत है और विकासशील देशों में कार्बन की दर कम है इसलिए इन देशों पर बाध्यता नहीं लागू की जाये। इसका यह अर्थ निकाला गया है कि अब धरती को चौपट करने की हमारी बारी है। लेकिन भारत या विकासशील देशों का अपने पक्ष रखने का यह आशय नहीं है, बल्कि आशय यह है कि विकासशील देशों में अभी कार्बन उत्सर्जन दर बहुत कम है तथा 2030 तक यह मात्र 1.6 टन प्रति व्यक्ति ही होगी, इसलिए इन देशों को अभी इस नियमाचार की बाध्यता से छूट दी जाये ताकि वे अपना आर्थिक और सामाजिक विकास कर सकें। साथ ही ये देश स्वेच्छा से कार्बन की उत्सर्जन दर को कम करने का प्रयास करते रहेंगे।

पृष्ठ 127

प्रश्न 7.
क्या आप पर्यावरणविदों के प्रयास से सहमत हैं? पर्यावरणविदों को यहाँ जिस रूप में चित्रित किया गया है क्या आपको वह सही लगता है? (चित्र के लिए देखिए पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या 127 )
उत्तर:
चित्र में दूर से पर्यावरणविदों को अपने किसी उपकरण वृक्ष को जांचते हुए या पानी देते हुए दिखाया गया है। एक व्यक्ति के पीछे पाँच प्राणी खड़े हैं। वे वृक्ष की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। पेड़ पर एक खम्भा है जिस पर विद्युत की तारें दिखाई देती हैं। शायद वे पेड़ को सूखा समझकर इसे काटे जाने की सिफारिश करना चाहते हैं। वे विशेषज्ञ होते हुए पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभावों को नहीं देख रहे हैं। वे पर्यावरण के संरक्षण में स्थानीय लोगों के ज्ञान, अनुभव एवं सहयोग की भी बात करते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं। अतः यह चित्र पर्यावरणविदों को जिस रूप में चित्रित कर रहा है, वह सही नहीं लगता।

पृष्ठ 131

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर पानी का विस्तार ज्यादा और भूमि का विस्तार कम है। फिर भी, कार्टूनिस्ट ने जमीन को पानी की अपेक्षा ज्यादा बड़े हिस्से में दिखाने का फैसला किया है। यह कार्टून किस तरह पानी की कमी को चित्रित करता है? (कार्टून के लिए देखिए पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ संख्या 131 )
उत्तर:
पृथ्वी पर पानी का विस्तार ज्यादा और भूमि का विस्तार कम है। फिर भी, कार्टूनिस्ट ने जमीन को पानी की अपेक्षा ज्यादा बड़े हिस्से में दिखाने का फैसला किया है। यह कार्टून विश्व में पीने योग्य जल की कमी को चित्रित करता है। विश्व के कुछ भागों में पीने योग्य साफ पानी की कमी हो रही है तथा विश्व के हर हिस्से में स्वच्छ जल समान मात्रा में मौजूद नहीं है। इस जीवनदायी संसाधन की कमी के कारण हिंसक संघर्ष हो सकते हैं । कार्टूनिस्ट ने इसी को इंगित करते हुए विश्व में जमीन की तुलना में पानी की मात्रा को कम दिखाया है क्योंकि समुद्रों का पानी पीने योग्य नहीं है, इसलिए उसे इस जल की मात्रा में शामिल नहीं किया गया है।

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पृष्ठ 132

प्रश्न 9.
आदिवासी जनता और उनके आंदोलनों के बारे में कुछ ज्यादा बातें क्यों नहीं सुनायी पड़तीं ? क्या मीडिया का उनसे कोई मनमुटाव है?
उत्तर:
आदिवासी जनता और उनके आंदोलनों से जुड़े मुद्दे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में लम्बे समय तक उपेक्षित रहे हैं। इसका प्रमुख कारण मीडिया के लोगों तक इनके सम्पर्क का अभाव रहा है। 1970 के दशक में विश्व के विभिन्न भागों के आदिवासियों के नेताओं के बीच सम्पर्क बढ़ा है। इससे उनके साझे अनुभवों और सरकारों को शक्ल मिली है तथा 1975 में इन लोगों की एक वैश्विक संस्था ‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल’ का गठन हुआ तथा इनसे सम्बन्धित अन्य स्वयंसेवी संगठनों का गठन हुआ है।

अब इनके मुद्दों तथा आंदोलनों की बातें भी मीडिया में उठने लगी हैं। अतः स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी लोगों की संस्थाओं के न होने के कारण मीडिया में इनकी बातें अधिक नहीं सुनाई पड़ती हैं। जैसे-जैसे आदिवासी समुदाय अपने संगठनों को अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर संगठित करता जायेगा, उन संगठनों के माध्यम से उनके मुद्दे और आंदोलनं भी मीडिया में मुखरित होंगे।

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प्रश्न 1.
पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है? निम्नलिखित में सबसे बेहतर विकल्प चुनें।
(क) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।
(ख) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिए जरूरी है।
(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगायें ये कथन पृथ्वी सम्मेलन के बारे में हैं।-
(क) इसमें 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।
(ख) यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में हुआ।
(ग) वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों ने पहली बार राजनीतिक धरातल पर ठोस आकार ग्रहण किया ।
(घ) यह महासम्मेलनी बैठक थी।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) सही।

प्रश्न 3.
‘विश्व की साझी विरासत’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-से कथन सही हैं?
(क) धरती का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।
(ख) ‘विश्व की साझी विरासत’ किसी राज्य के संप्रभु क्षेत्राधिकार में नहीं आते।
(ग) ‘विश्व की साझी विरासत’ के प्रबंधन के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच मतभेद हैं
(घ) उत्तरी गोलार्द्ध के देश ‘विश्व की साझी विरासत’ को बचाने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) गलत।

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प्रश्न 4.
रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुये?
उत्तर:
रियो सम्मेलन के परिणाम – सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित ‘रियो’ या ‘पृथ्वी’ सम्मेलन हुआ इस सम्मेलन के निम्न प्रमुख परिणाम हुए-

  1. वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला।
  2. इसमें जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियम – आचार निर्धारित हुए।
  3. इसमें ‘एजेंडा-21’ के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाये गये।
  4. इसमें ‘टिकाऊ विकास’ की धारणा को विकास रणनीति के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ।
  5. रियो सम्मेलन में पर्यावरण सुरक्षा की साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धान्त को मान लिया गया। इसका तात्पर्य है कि पर्यावरण के विश्वव्यापी क्षय में विभिन्न देशों का योगदान अलग-अलग है जिसे देखते हुए इन राष्ट्रों की पर्यावरण रक्षा के प्रति साझी, किन्तु अलग-अलग जिम्मेदारी होगी।

प्रश्न 5.
‘विश्व की साझी विरासत’ का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?
उत्तर:
विश्व की साझी विरासत से आशय: विश्व की साझी विरासत’ का अर्थ है कि ऐसी सम्पदा जिस पर किसी एक व्यक्ति, समुदाय या देश का अधिकार न हो, बल्कि विश्व के सम्पूर्ण समुदाय का उस पर हक हो। विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। उन्हें विश्व की साझी विरासत कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं।

विश्व की साझी विरासत का दोहन:
विश्व की साझी विरासत का दोहन औद्योगीकरण, यातायात, बढ़ते वैश्विक व्यापार के रूप में किया जा रहा है।

विश्व की साझी विरासत में प्रदूषण – विश्व की साझी विरासत को गैर-जिम्मेदाराना ढंग से उपयोग करने के रूप प्रदूषित किया जा रहा है । यथा-

  1. अंटार्कटिका क्षेत्र के कुछ हिस्से तेल के रिसाव के दबाव में अपनी गुणवत्ता खो रहे हैं
  2. समुद्री सतह में मछली और समुद्री जीवों के अतिशय दोहन, समुद्री तटों पर औद्योगिक प्रदूषण, भारी मात्रा में प्रदूषित जल को समुद्र में डालना तथा अत्यधिक मशीनीकरण के कारण समुद्रीय पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।
  3. औद्योगीकरण, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन, यातायात के साधनों के बढ़ने से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।

प्रश्न 6.
साझ परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों’ से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं?
उत्तर;
साझी तथा अलग-अलग जिम्मेदारियों से आशय – विश्व पर्यावरण की रक्षा के सम्बन्ध में साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारी से आशय यह है कि धरती के पर्यावरण की रक्षा के लिए सभी राष्ट्र आपस में सहयोग करेंगे। लेकिन पर्यावरण के विश्वव्यापी अपक्षय में विभिन्न राष्ट्रों का योगदान अलग-अलग है। इसे देखते हुए इसकी रक्षा में विभिन्न राष्ट्रों की अलग-अलग जिम्मेदारियाँ हैं। इसमें विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों की जिम्मेदारी अधिक है। ‘साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ के सिद्धान्त को लागू करना – साझी समझ तथा अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धान्त को निम्न प्रकार से लागू किया जा सकता है।

  1. सभी देश विश्वबंधुत्व की भावना से आपस में सहयोग करें।
  2. विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव ज्यादा है और इनके पास विपुल प्रौद्योगिकीय तथा वित्तीय साधन हैं। इसे देखते हुए ये देश टिकाऊ विकास के प्रयास में अपनी विशिष्ट जिम्मेदारी निभायें।
  3. सभी देश अपनी क्षमतानुसार पर्यावरण की सुरक्षा में अपनी जिम्मेदारी निभायें।
  4. विकासशील देशों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम है, इसलिए इन पर क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं को लादा न जाए।
  5. विकासशील देश स्वेच्छा से इस ओर अपनी जिम्मेदारी उठाते जाएँ।

प्रश्न 7.
वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार बन गये हैं-

  1. खाद्य उत्पादन में कमी आना – दुनिया में जहाँ जनसंख्या बढ़ रही है, वहाँ कृषि योग्य भूमि में बढ़ोतरी नहीं हो रही है। दूसरे, जलराशि की कमी तथा जलीय प्रदूषण, चरागाहों की समाप्ति, भूमि की उर्वरता की कमी के कारण खाद्यान्न उत्पादन जनसंख्या के अनुपात में कम हो रहा है।
  2. स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी आना – विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता और यहाँ इस वजह से 30 लाख से ज्यादा बच्चे हर साल मौत के शिकार हो रहे हैं।
  3. जैव-विविधता की हानि होना-वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, लोग विस्थापित हो रहे हैं तथा जैव- विविधता की हानि जारी है।
  4. ओजोन गैस की मात्रा में क्षय होना- धरती के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
  5. समुद्रतटीय क्षेत्रों में प्रदूषण का बढ़ना- पूरे विश्व में समुद्रतटीय क्षेत्रों का प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इससे समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ रही है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 8.
पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
1980 के दशक से तेजी से बढ़ते वैश्विक पर्यावरणीय प्रदूषण के गंभीर खतरों को देखते हुए विश्व के अधिकांश देशों ने पृथ्वी को बचाने के लिए परस्पर सुलह और सहकार नीति अपनाने के लिए परस्पर बातचीत की। यद्यपि पृथ्वी को बचाने के लिए उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों ने अपनी वचनबद्धता दिखाई, लेकिन इनके बीच जो वार्ताएँ हुईं उनमें पर्यावरण के सवाल पर निम्न सहमतियाँ तथा असहमतियाँ उभरी हैं-

  1. रियो सम्मेलन में ‘ एजेंडा – 21’ के रूप में टिकाऊ विकास के तरीके पर दोनों में सहमति बनी, लेकिन यह समस्या बनी रही कि इस पर अमल कैसे किया जाएगा।
  2. ‘वैश्विक सम्पदा’ की सुरक्षा के प्रश्न पर सहयोग करने की दृष्टि से अंटार्कटिका संधि (1959), मांट्रियल न्यायाचार 1987 तथा अंटार्कटिका न्यायाचार 1991 हुए, लेकिन इनमें किसी सर्वसम्मत पर्यावरणीय एजेण्डा पर सहमति नहीं बन पायीं।
  3. क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 में दोनों गोलार्द्ध के बीच मतभेद और बढ़ गये । जहाँ विकासशील देशों का कहना है कि विकसित देशों की भूमिका इस सम्बन्ध में अधिक होनी चाहिए क्योंकि प्रदूषण उनके द्वारा अधिक किया जा रहा है, वहीं विकसित देश समान जिम्मेदारी पर बल दे रहे हैं।
  4. इसके बाद हुए सम्मेलनों में भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में तुरंत कटौती की आवश्यकता पर तो सहमति बनी, पर यह समयबद्ध नहीं हो पायी।

प्रश्न 9.
विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुँचाये बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरणों के साथ समझायें।
उत्तर:
वर्तमान परिस्थितियों में विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौती पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुँच ये बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह निम्न प्रकार से संभव हो सकता है-

  1. विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के स्तर में निरन्तर कमी लाने की एक समयबद्ध तथा बाध्यतामूलक न्यायाचार का पालन करें।
  2. विकासशील देशों में आर्थिक विकास जारी रह सके और पर्यावरण प्रदूषण न बढ़े इसके लिए विकसित देशों को स्वच्छ विकास यांत्रिकी परियोजनाओं को चलाने के लिए पूँजी निवेश करना चाहिए तथा विकासशील देशों को इसके लिए ऋण सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ।
  3. सभी देश ऊर्जा का और अधिक कुशलता के साथ प्रयोग करें तथा ऊर्जा के असमाप्य संसाधनों, जैसे – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा का विकास करें।
  4. पानी को दूषित करने वाले लोगों व उद्योगों पर जुर्माना लगायें।
  5. उद्योगों से सुरक्षापूर्ण व सफाई युक्त उत्पादन की विधियों को अपनायें।
  6. कूड़े-कचरे के प्रबंध के लिए राष्ट्रीय योजना तैयार करें तथा कूड़े-कचरे की खपत के प्रारूपों को बदलें।
  7. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकें तथा वृक्षारोपण को एक राष्ट्रीय अभियान बनाएँ।
  8. वर्षा के पानी को संरक्षित करें।

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन JAC Class 12 Political Science Notes

→ वैश्विक राजनीति में पर्यावरण की चिंता-
(1) विश्व में कृषि योग्य भूमि में उर्वरता की कमी होने, चरागाहों के चारे खत्म होने, मत्स्य-भंडारों के घटने तथा जलाशयों में प्रदूषण बढ़ने से खाद्य उत्पादन में कमी आ रही है।
(2) प्रदूषित पेयजल व स्वच्छता की सुविधा की कमी के कारण विकासशील देशों में 30 लाख से भी अधिक बच्चे प्रतिवर्ष मौत के शिकार हो रहे हैं।
(3) वनों की अंधाधुंध कटाई से जैव-विविधता में कमी आ रही है।
(4) वायुमंडल में ओजोन गैस की परत में छेद होने से पारिस्थितिकीय तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।
(5) समुद्र तटों पर बढ़ते प्रदूषण से समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ रही है।

→ पर्यावरण के ये मामले निम्न अर्थों में वैश्विक राजनीति के हिस्से हैं-

  • इन मसलों में अधिकांश ऐसे हैं कि किसी एक देश की सरकार इनका पूरा समाधान अकेले दम पर नहीं कर सकती।
  • पर्यावरण को नुकसान कौन पहुँचाता है? इस पर रोक लगाने की जिम्मेदारी किसकी है? ऐसे सवालों के जवाब इस बात से निर्धारित होते हैं कि कौन देश कितना ताकतवर है?
  • संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) सहित अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर सम्मेलन कराये, इस विषय के अध्ययन को बढ़ावा दिया ताकि पर्यावरण की समस्याओं पर कारगर प्रयासों की शुरुआत हो।

→ पृथ्वी सम्मेलन (1992 ) – 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ जिसे पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।

  • इस सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आई कि विश्व के धनी और विकसित देश तथा गरीब और विकासशील देश पर्यावरण के अलग-अलग एजेंडों के पैरोकार हैं।
  • रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियम-आचार निर्धारित हुए।
  • इसमें इस बात पर सहमति बनी कि आर्थिक विकास का तरीका ऐसा होना चाहिए कि इससे पर्यावरण को हानि न पहुँचे। इसमें एजेंडा – 21 के तहत विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाये गये।

→ विश्व की साझी संपदा की सुरक्षा-
विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें वैश्विक साझी संपदा या ‘मानवता की साझी विरासत’ कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं। वैश्विक सम्पदा की सुरक्षा की दिशा में यद्यपि कुछ महत्त्वपूर्ण समझौते, जैसे—अंटार्कटिका संधि (1959), मांट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकाल 1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991), हो चुके हैं; तथापि अनेक बिन्दुओं पर देशों में मतभेद हैं। किसी सर्व – सामान्य पर्यावरणीय एजेंडे पर सहमति नहीं बन पायी है। बाहरी अंतरिक्ष क्षेत्र के प्रबंधन पर भी उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच मौजूद असमानता का असर पड़ा है। धरती के वायुमण्डल और समुद्री सतह के समान यहाँ भी महत्त्वपूर्ण मसला प्रौद्योगिकी और औद्योगिक विकास का है।

पर्यावरण के सम्बन्ध में दक्षिणी और उत्तरी गोलार्द्ध के देशों के
दृष्टिकोणों में अन्तर

→ पर्यावरण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के दृष्टिकोणों में अन्तर निम्न हैं:

  • उत्तर के विकसित देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो, दक्षिण के विकासशील देशों का कहना है कि विकसित देशों ने पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाया है, उन्हें इस नुकसान की भरपाई की ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
  • विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, इसलिए उन पर वे प्रतिबंध न लगें जो विकसित देशों पर लगाये जाने हैं।

→ साझी तथा अलग-अलग जिम्मेदारियाँ:
1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन में विकासशील देशों के उक्त तर्क को मान लिया गया और इसे ‘साझी तथा अलग-अलग जिम्मेदारियों का सिद्धान्त’ कहा गया। जलवायु परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के नियमाचार (1992) में भी इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए संधि की गई है तथा 1997 के क्योटो प्रोटोकाल की बाध्यताओं से विकासशील देशों को मुक्त रखा गया है।

→ साझी संपदा:
साझी संपदा के पीछे मूल तर्क यह है कि ऐसे संसाधन की प्रकृति, उपयोग के स्तर और रख- रखाव के संदर्भ में समूह के हर सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होंगे और समान उत्तरदायित्व निभाने होंगे। लेकिन निजीकरण, गहनतर खेती, जनसंख्या वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र की गिरावट समेत कई कारणों से पूरी दुनिया में साझी संपदा का आकार घट रहा है, उसकी गुणवत्ता और गरीबों को उसकी उपलब्धता कम हो रही है।

→ पर्यावरण के मसले में भारत का पक्ष:
भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकाल (1997) पर हस्ताक्षर किये और इसका अनुमोदन किया। भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट दी गई है क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में इनका कुछ खास योगदान नहीं है। लेकिन क्योटो प्रोटोकाल के आलोचकों ने कहा भारत-चीन आदि देशों को जल्दी ही क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं को मानना चाहिये। भारत ने इस सम्बन्ध में अपने पक्ष को निम्न प्रकार रखा है।

  • 2005 के जून में ग्रुप-8 के देशों की बैठक में भारत ने बताया कि विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विकसित देशों की तुलना में नाममात्र है। इनके उत्सर्जन दर में कमी करने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी विकसित देशों की है।
  • भारत पर्यावरण से जुड़े अन्तर्राष्ट्रीय मसलों में ज्यादातर ऐतिहासिक उत्तरदायित्व का तर्क रखता है कि ऐतिहासिक और मौजूदा जवाबदेही ज्यादातर विकसित देशों की है।
  • तेजी से औद्योगिक होते देश, जैसे चीन व भारत आदि देशों को नियमाचार की बाध्यताओं को पालन करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना चाहिए। भारत का कहना है कि यह बात इस नियमाचार की मूल भावना के विरुद्ध है। भारत में 2030 तक कार्बन का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व के औसत के आधे से भी कम होगा।
  • भारत की सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये पर्यावरण से संबंधित वैश्विक प्रयासों में शिरकत कर रही है।
  • विकासशील देशों को रियायती शर्तों पर नये और अतिरिक्त वित्तीय संसाधन तथा प्रौद्योगिकी मुहैया कराने की दिशा में कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है।
  • भारत चाहता है कि दक्षेस के देश पर्यावरण के प्रमुख मुद्दों पर समान राय बनाएँ।

→ पर्यावरण आंदोलन:
पर्यावरण की चुनौतियों के मद्देनजर कुछ महत्त्वपूर्ण पहल पर्यावरण के प्रति सचेत कार्यकर्ताओं ने की है। इन | कार्यकर्ताओं में कुछ तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और बाकी स्थानीय स्तर पर सक्रिय हैं।

  • वनों की कटाई के विरुद्ध आंदोलन – दक्षिणी देशों के वन – आंदोलनों पर बहुत दबाव है । इसके बावजूद तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों में वनों की कटाई खतरनाक गति से जारी है।
  • खनिज उद्योग के विरुद्ध आन्दोलन – खनिज उद्योग रसायनों का भरपूर उपयोग करता है, भूमि और जल मार्गों को प्रदूषित करता है तथा स्थानीय वनस्पतियों का विनाशं करता है। इसके कारण जन समुदायों को विस्थापित होना पड़ता है। विश्व के विभिन्न भागों में खनिज उद्योग के प्रति आंदोलन चले हैं। इसका एक उदाहरण फिलीपीन्स में आस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कम्पनी ‘वेस्टर्न माइनिंग कॉरपोरेशन’ के खिलाफ चला आंदोलन है।
  • बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन – कुछ आंदोलन बड़े बांधों के खिलाफ चल रहे हैं जिन्होंने नदियों को बचाने के आंदोलन का रूप ले लिया है। भारत में नर्मदा आंदोलन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

→ संसाधनों की भू-राजनीति:
यूरोपीय ताकतों के विश्वव्यापी प्रसार का एक मुख्य साधन और मकसद संसाधन रहे हैं। संसाधनों को लेकर राज्यों के बीच तनातनी हुई है। संसाधनों से जुड़ी भू-राजनीति को पश्चिमी दुनिया ने ज्यादातर व्यापारिक संबंध, युद्ध तथा शक्ति के संदर्भ में सोचा। इस सोच के मूल में था संसाधनों की मौजूदगी तथा समुद्री नौवहन में दक्षता।
→ इमारती लकड़ी का महत्त्व और भू-राजनीति: समुद्री नौवहन के लिए आवश्यक इमारती लकड़ियों की आपूर्ति 17वीं सदी के बाद में यूरोपीय शक्तियों की प्राथमिकताओं में रही।

→ तेल की विश्व राजनीति: शीत युद्ध के दौरान विकसित देशों ने तेल और इमारती लकड़ी, खनिज आदि संसाधनों की सतत आपूर्ति के लिए कई तरह के कदम उठाये, जैसे–संसाधन दोहन के इलाकों तथा समुद्री परिवहन मार्गों के इर्द-गिर्द सेना की तैनाती, महत्त्वपूर्ण संसाधनों का भंडारण, संसाधनों के उत्पादक देशों में मनपसंद सरकारों की बहाली तथा बहुराष्ट्रीय निगमों और अपने हित साधक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों को समर्थन देना आदि। इसके पीछे सोच यह थी कि संसाधनों तक पहुँच अबाध रूप से रहे क्योंकि सोवियत संघ इसे खतरे में डाल सकता था। दूसरी चिंता यह थी कि खाड़ी के देशों में मौजूद तेल तथा एशिया के देशों में मौजूद खनिज पर विकसित देशों का नियंत्रण बना रहे।

वैश्विक रणनीति में तेल प्रमुख संसाधन बना हुआ है। 20वीं सदी में विश्व की अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर रही है। तेल के साथ विपुल संपदा जुड़ी हुई है। इसीलिए इस पर कब्जा जमाने के लिए राजनीतिक संघर्ष छिड़ता है। पश्चिम एशिया, विशेषकर खाड़ी क्षेत्र, विश्व के कुल तेल – उत्पादन का 30 प्रतिशत मुहैया कराता है। सऊदी अरब के पास विश्व के कुल तेल भंडार का एक चौथाई हिस्सा मौजूद है। सऊदी अरब विश्व में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। इराकका स्थान दूसरा है।

→ स्वच्छ जल के लिए संघर्ष: विश्व – राजनीति के लिए पानी एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। विश्व के कुछ भागों में साफ पानी की कमी हो रही है तथा विश्व के हर हिस्से में स्वच्छ जल समान मात्रा में मौजूद नहीं है। इसलिए 21वीं सदी में इस जीवनदायनी संसाधन को लेकर हिंसक संघर्ष होने की संभावना है। देशों के बीच स्वच्छ जल- संसाधनों को हथियाने या उनकी सुरक्षा करने के लिए झड़पें हुई हैं। बहुत से देशों के बीच नदियों का साझा है और उनके बीच सैन्य संघर्ष होते रहते हैं। तुर्की, सीरिया और इराक के बीच फरात नदी पर बांध के निर्माण को लेकर एक- दूसरे से ठनी हुई है।

→ मूलवासी और उनके अधिकार:
मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूदा देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे हैं। लेकिन किसी दूसरी संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के दूसरे हिस्से से उस देश में आए और इन लोगों को अधीन बना लिया। ये मूलवासी आज भी अपनी परम्परा, सांस्कृतिक रिवाज और अपने खास सामाजिक-आर्थिक ढर्रे पर जीवन-यापन करना ही पसंद करते हैं। भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में लगभग 30 करोड़ मूलवासी विद्यमान हैं। दूसरे सामाजिक आंदोलनों की तरह मूलवासी भी अपने संघर्ष, एजेंडा और अधिकारों की आवाज उठाते हैं यथा

  • विश्व राजनीति में इनकी आवाज विश्व: बिरादरी में बराबरी का दर्जा पाने के लिए उठी है। इन्हें आदिवासी कहा जाता है। सरकारों से इनकी मांग है कि इन्हें मूलवासी कौम के रूप में स्वतंत्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाए। ये अपने मूल वास स्थान पर अपने अधिकार की दावेदारी प्रस्तुत करते हैं।
  • भारत में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में जाना जाता है। ये कुल जनसंख्या का 8% हैं। ये अपने जीवन-यापन के लिए खेती पर निर्भर हैं। आजादी के बाद चली विकास की परियोजनाओं में इन लोगों को बड़ी संख्या में विस्थापित होना पड़ा है।
  • 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ में ‘मूल वासी लोगों की विश्व परिषद्’ का गठन हुआ। इसके अतिरिक्त आदिवासियों के सरकारों से संबद्ध 10 अन्य स्वयंसेवी संगठनों को भी यह दर्जा दिया गया है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन विश्व में सरक्षा InText Questions and Answers

पृष्ठ 100

प्रश्न 1.
मेरी सुरक्षा के बारे में किसने फैसला लिया? कुछ नेताओं और विशेषज्ञों ने? क्या मैं अपनी सुरक्षा का फैसला नहीं कर सकती?
उत्तर:
यद्यपि व्यक्ति स्वयं अपनी सुरक्षा का फैसला कर सकता है, लेकिन यदि यह फैसला नेताओं और विशेषज्ञों द्वारा किया गया है तो हम उनके अनुभव और अनुसंधान का लाभ उठाते हुए उचित निर्णय ले सकते हैं।

प्रश्न 2.
आपने ‘शांति सेना’ के बारे में सुना होगा। क्या आपको लगता है कि ‘शांति सेना’ का होना स्वयं में एक विरोधाभासी बात है? (पृष्ठ 100 पर दिये कार्टून के आधार पर इस कथन पर टिप्पणी करें।)
उत्तर:
भारत द्वारा श्रीलंका में भेजी गई शांति सेना के बारे में हमने समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में पढ़ा है। इस कार्टून के द्वारा यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि जो सैनिक शक्ति का प्रतीक है, जिसकी कमर पर बन्दूक और युद्ध सामग्री है, वह कबूतर पर सवार है कबूतर को शांतिदूत माना जाता है लेकिन शक्ति के बल पर शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती और यदि इसे शक्ति के बल पर स्थापित कर भी दिया गया तो वह शांति अस्थायी होगी तथा कुछ समय गुजरने के बाद वह एक नवीन संघर्ष, तनाव तथा हिंसात्मक घटनाओं को जन्म देगी।

पृष्ठ 102

प्रश्न 3.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 102 पर दिये गये कार्टून का अध्ययन कीजिये इसके नीचे दिये गये दोनों प्रश्नों के उत्तर दीजिये।
(क) जब कोई नया देश परमाणु शक्ति सम्पन्न होने की दावेदारी करता है तो बड़ी ताकतें क्या रवैया अख्तियार करती हैं?
(ख) हमारे पास यह कहने के क्या आधार हैं कि परमाणविक हथियारों से लैस कुछ देशों पर तो विश्वास किया जा सकता है, परन्तु कुछ पर नहीं?
उत्तर:
(क) जब कोई नया देश परमाणु शक्ति सम्पन्न होने की दावेदारी करता है तो बड़ी ताकतें उसके प्रति शत्रुता एवं दोषारोपण का रवैया अख्तियार करती हैं। यथा- प्रथमतः वे यह कहती हैं कि इससे विश्व शान्ति एवं सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ गया है। दूसरे, वे यह आरोप लगाती हैं कि एक नये देश के पास परमाणु शक्ति होगी तो उसके पड़ोसी भी अपनी सुरक्षा की चिन्ता की आड़ में परमाणु परीक्षण करने लगेंगे। इससे विनाशकारी शस्त्रों की बेलगाम दौड़ शुरू हो जायेगी।

तीसरे, ये बड़ी शक्तियाँ उसकी आर्थिक नाकेबंदी, व्यापारिक संबंध तोड़ने, निवेश बंद करने, परमाणु निर्माण में काम आने वाले कच्चे माल की आपूर्ति रोकने आदि के लिए कदम उठा देती हैं। चौथे, ये शक्तियाँ उस पर परमाणु विस्तार विरोधी संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालती हैं। पांचवें, ये बड़ी शक्तियाँ उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सत्ता को पलटने का प्रयास करती हैं।

(ख) हमारे पास यह कहने के कई आधार हैं कि परमाण्विक हथियारों से लैस कुछ देशों पर तो विश्वास किया जा सकता हैं, परन्तु कुछ पर नहीं। यथा-

  1. जो देश परमाणु शक्ति सम्पन्न बिरादरी के पुराने सदस्य हैं, वे कहते हैं कि यदि बड़ी शक्तियों के पास परमाणु हथियार हैं तो उनमें ‘अपरोध’ का पारस्परिक भय होगा जिसके कारण वे इन हथियारों का प्रथम प्रयोग नहीं करेंगे।
  2. परमाणु बिरादरी के देश परमाणुशील होने की दावेदारी करने वाले देशों पर यह दोष लगाते हैं कि वे आतंकवादियों की गतिविधियाँ रोक नहीं सकते। यदि कोई गलत व्यक्ति या सेनाध्यक्ष राष्ट्राध्यक्ष बन गया तो उसके काल में परमाणु हथियार किसी गलत व्यक्ति के हाथों में जा सकते हैं जो अपने पागलपन से पूरी मानव जाति को खतरे में डाल सकता है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

पृष्ठ 106

प्रश्न 4.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 106 पर दिये गये कार्टून का अध्ययन करें। इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखें।
(क) अमरीका में सुरक्षा पर तो भारी-भरकम खर्च होता है जबकि शांति से जुड़े मामलों पर बहुत ही कम खर्च किया जाता है। यह कार्टून इस स्थिति पर क्या टिप्पणी करता है?
(ख) क्या हमारे देश में हालात इससे कुछ अलग हैं?
उत्तर;
(क) अमरीका विश्व का सर्वाधिक धनी देश है। वह अपनी आर्थिक शक्ति का प्रयोग सुरक्षा पैदल सेना, नौ-सेना, वायु-सेना, अस्त्र-शस्त्र, युद्ध – सामग्री, परमाणु शक्ति विस्तार, युद्ध सम्बन्धी प्रयोगशालाओं में प्रयोग व अनुसंधान पर तो भारी मात्रा में खर्च करता है, लेकिन शांति विभाग पर धन व्यय करने को धन की बर्बादी मानता है। अमेरिकी सन्दर्भ में यह उचित ही प्रतीत होता है क्योंकि वहाँ नागरिक समस्यायें कम हैं और देश की जनता आत्मनिर्भर है।

(ख) हमारे देश (भारत) में अमेरिका की तुलना में स्थिति भिन्न है। भारत एक विकासशील देश है। यहाँ गरीबी बहुत है, बेरोजगारी बढ़ रही है। इसलिए अमरीका की तुलना में भारत में सुरक्षा पर बहुत कम प्रतिशत व्यय होता है । यहाँ की सरकार आदिवासियों, पिछड़ी जातियों, वृद्धों, महिलाओं, वंचितों, किसानों, शिक्षा, स्वास्थ्य, औद्योगिक विकास आदि के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्रयत्नशील है। इसके बावजूद भारत को बहुत-सी धनराशि सुरक्षा पर भी खर्च करनी पड़ रही है।

पृष्ठ 108

प्रश्न 5.
मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात हो तो हम हमेशा बाहर क्यों देखते हैं? क्या हमारे अपने देश में इसके उदाहरण नहीं मिलते?
उत्तर:
1990 के दशक में रवांडा में जनसंहार, कुवैत पर इराक का हमला, पूर्वी तिमोर में इंडोनेशियाई सेना के रक्तपात इत्यादि घटनाओं पर तो हमने मानवाधिकारों के उल्लंघन की दुहाई दे डाली, लेकिन अपने देश में घटित हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर हमने चुप्पी साध ली। इसका प्रमुख कारण मानव की यह प्रवृत्ति है कि वह दूसरों की बुराई को तलाशने में आनंद की अनुभूति करती है, जबकि अपनी गलत बात को छुपाती है या वह इसे दूसरों के समक्ष सही बताने की कोशिश करती है। हमारे देश में भी मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले देखे जा सकते हैं जो समय-समय पर समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं।

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन विश्व में सरक्षा Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ-

(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स CBMs) (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज।
(2) अस्त्र नियंत्रण (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा – मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया।
(3) गठबंधन (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिये कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(4) निरस्त्रीकरण (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश।

उत्तर:

(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स CBMs) (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा – मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया।
(2) अस्त्र नियंत्रण (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश।
(3) गठबंधन (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिये कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(4) निरस्त्रीकरण (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परंपरागत सरोकार / सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार / खतरे की स्थिति नहीं का दर्जा देंगे-
(क) चिकेनगुनिया / डेंगू बुखार का प्रसार
(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद
(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद
(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की माँग करने वाले समूह का उदय
(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिये जाने की माँग करने वाले समूह का उदय (च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नजर से देखने वाला अखबार।
उत्तर:
(क) सुरक्षा का अपारम्परिक सरोकार
(ख) सुरक्षा का पारम्परिक सरोकार
(ग) खतरे की स्थिति नहीं
(घ) सुरक्षा का पारम्परिक सरोकार
(ङ) ख़तरे की स्थिति नहीं
(च) खतरे की स्थिति नहीं।

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प्रश्न 3.
परम्परागत और अपारंपरिक सुरक्षा में क्या अंतर है? गठबंधनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है?
उत्तर:
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में निम्नलिखित अन्तर हैं

पारंपरिक सुरक्षा की धारणा अपारंपरिक सुरक्षा की धारणा
1. पारंपरिक धारणा का संबंध बाहरी तथा आंतरिक रूप से मुख्यतः राष्ट्र की सुरक्षा से है। 1. सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में राष्ट्र की सुरक्षा के साथ-साथ मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले अन्य व्यापक खतरों और आशंकाओं को भी शामिल किया जाता है।
2. सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक समझा जाता है। इसमें भू-क्षेत्रों, संस्थाओं और राज्यों की सुरक्षा प्रमुख होती है। 2. सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में सैन्य खतरों के साथसाथ मानवता की सुरक्षा तथा वैश्विक सुरक्षा पर भी बल दिया जाता है।
3. इसमें बाहरी सुरक्षा के खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश (मुल्क) होता है। 3. इसमें सुरक्षा के खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र के साथसाथ कोई अन्य भी हो सकता है।
4. परम्परागत सुरक्षा में एक देश की सेना व नागरिकों को दूसरे देश की सेना से खतरा होता है। 4. अपारम्परिक सुरक्षा में देश के नागरिकों को विदेशी सेना के साथ-साथ अपने देश की सरकारों से भी बचाना आवश्यक होता है।
5. पारम्परिक सुरक्षा का सरोकार बाहरी खतरे या आक्रमण से निपटने के लिए युद्ध की स्थिति में आत्मसमर्पण, अपरोध या आक्रमणकारी को युद्ध में हराने के विकल्पों को अपनाने से है। 5. अपारंपरिक सुरक्षा का सरोकार सुरक्षा के कई नये स्रोत हैं, जैसे—आतंकवाद, भयंकर महामारियों और मानव अधिकारों पर चिंताजनक प्रहारों से जनता की क्षा करना।

गठबंधन का निर्माण और सुरक्षा कोटि- सैनिक गठबन्धनों का निर्माण करना तथा उन्हें बनाए रखना पारम्परिक सुरक्षा की कोटि में आता है। यह सैन्य सुरक्षा का एक साधन है।

प्रश्न 4.
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है?
उत्तर:
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित

  1. जहाँ विकसित देशों के लोगों को केवल बाहरी खतरे की आशंका रहती है, किंतु तीसरी दुनिया के देशों को आंतरिक व बाहरी दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है।
  2. तीसरी दुनिया के लोगों को पर्यावरण असंतुलन के कारण विकसित देशों की जनता के मुकाबले अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  3. आतंकवाद की घटनाएँ तीसरी दुनिया के देशों में अपेक्षाकृत अधिक हुई हैं।
  4. तीसरी दुनिया के देशों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में मानवीय सुरक्षा को अधिक खतरा
  5. तीसरी दुनिया के देशों के लोगों को निर्धनता और कुपोषण का शिकार होना पड़ रहा है जबकि विकसित देशों के लोगों के समक्ष ये समस्याएँ नगण्य हैं।
  6. शरणार्थियों या आप्रवासियों की समस्या की चुनौती भी तीसरी दुनिया के देशों में अधिक है।
  7. एच. आई. वी., एड्स, बर्ड फ्लू और सार्स जैसी महामारियों की दृष्टि से भी तीसरी दुनिया के लोगों की स्थिति विकसित देशों के लोगों की तुलना में अत्यन्त दयनीय है।
  8. प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से भी तीसरी दुनिया के लोगों की जनहानि विकसित देशों के लोगों की तुलना में बहुत अधिक हो रही है।

प्रश्न 5.
आतंकवाद सुरक्षा के लिये परम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरम्परागत?
उत्तर:
आतंकवाद, सुरक्षा के लिए अपरम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है। चूँकि यह नई छिपी हुई चुनौती है। इसका सामना परम्परागत सैन्य तरीके से नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि वर्तमान में आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए विश्व के राष्ट्र वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग का प्रयास कर रहे हैं।

प्रश्न 6.
सुरक्षा के परम्परागत दृष्टिकोण के हिसाब से बताएँ कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं?
उत्तर:
सुरक्षा के परम्परागत दृष्टिकोण के हिसाब से किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने तीन विकल्प होते हैं- आये।

  1. आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किये मान लेना।
  2. युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहम कर हमला करने से बाज
  3.  युद्ध ठन जाये तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाये अथवा हमलावर को पराजित कर देना।

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प्रश्न 7.
‘शक्ति संतुलन’ क्या है? कोई देश इसे कैसे कायम करता है?
उत्तर:
शक्ति संतुलन का अर्थ:
शक्ति संतुलन का अर्थ है कि किसी भी देश को इतना सबल नहीं बनने दिया जाये कि वह दूसरों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाये शक्ति संतुलन के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र अपने आपसी शक्ति सम्बन्धों को बिना किसी बड़ी शक्ति के हस्तक्षेप के स्वतन्त्रतापूर्वक संचालित करते हैं।

शक्ति संतुलन को बनाये रखने वाले साधन: शक्ति संतुलन को बनाये रखने वाले साधन निम्नलिखित हैं-

  1. मुआवजा या क्षतिपूर्ति: साधारणतया इसका अर्थ उस देश की भूमि को बाँटने से लिया जाता है जो शक्ति संतुलन के लिये खतरा होती है।
  2. हस्तक्षेप तथा अहस्तक्षेप: हस्तक्षेप राज्य या राज्यों के आंतरिक मामलों में तानाशाही दखलंदाजी होती है तथा उसमें अहस्तक्षेप, किसी विशिष्ट परिस्थिति में जानबूझकर कार्यवाही न करना ये दोनों शक्ति संतुलन को बनाये रखने के साधन हैं।
  3. गठबंधन बनाना: शक्ति संतुलन का एक अन्य तरीका सैन्य गठबंधन बनाना है। कोई देश दूसरे देश या देशों के साथ सैन्य गठबंधन कर अपनी शक्ति को बढ़ा लेते हैं। इससे क्षेत्र विशेष में शक्ति सन्तुलन बना रहता है।
  4. शस्त्रीकरण तथा निःशस्त्रीकरण – आज सभी राष्ट्र अपने शक्ति सम्बन्धों को बनाये रखने के लिये साधन के रूप में सैनिक शस्त्रीकरण को बड़ा महत्त्व देते हैं। वर्तमान में यह विश्व शांति तथा सुरक्षा अर्थात् संतुलन के लिये सबसे बड़ा और गम्भीर खतरा बन चुका है। इसके परिणामस्वरूप आज शस्त्रीकरण को छोड़कर निःशस्त्रीकरण पर बल दिया जाने लगा है।

प्रश्न 8.
सैन्य गठबन्धन के क्या उद्देश्य होते हैं? किसी ऐसे सैन्य गठबन्धन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबन्धन के उद्देश्य भी बताएँ।
उत्तर:
सैन्य गठबन्धन का उद्देश्य – सैन्य गठबंधन का उद्देश्य विरोधी देश के सैन्य हमले को रोकना अथवा उससे अपनी रक्षा करना होता है। सैन्य गठबन्धन में कई देश शामिल होते हैं। सैन्य गठबंधन बनाकर एक विशेष क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। सामान्यतः सैन्य गठबन्धन संधि पर आधारित होते हैं जिसमें इस बात का लिखित में उल्लेख होता है कि एक राष्ट्र पर आक्रमण अन्य सदस्य राष्ट्रों पर भी आक्रमण समझा जायेगा।

विद्यमान सैन्य गठबंधन – नाटो – वर्तमान समय में ‘नाटो’ (North Atlantic Treaty Organization) अर्थात् उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) नाम का सैन्य गठबंधन कायम है। नाटो के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं।

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में सभी अमेरिकी और पश्चिमी यूरोपीय देशों की सामूहिक सैन्य सुरक्षा को बनाये रखना।
  2. नाटो के एक सदस्य पर आक्रमण सभी पर आक्रमण समझा जाएगा और सभी मिलकर सैन्य प्रतिरोध करेंगे।
  3. पश्चिमी देशों के सैन्य वैचारिक, सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्व को बनाये रखना।
  4. सदस्यों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाना तथा उसके विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना।

प्रश्न 9.
पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? उदाहरण देते हुए अपने तर्कों की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व स्तर पर पर्यावरण तेजी से खराब हो रहा है। पर्यावरण खराब होने से निस्संदेह मानव जाति को खतरा उत्पन्न हो गया है। वैश्विक पर्यावरण के नुकसान से देशों की सुरक्षा को निम्न खतरे पैदा हो रहे हैं।

  1. ग्लोबल वार्मिंग से हिमखण्ड पिघलने लगे हैं, जिसके कारण मालद्वीप तथा बांग्लादेश जैसे देश तथा भारत के मुम्बई जैसे शहरों के पानी में डूबने की आशंका पैदा हो गई है।
  2. पर्यावरण खराब होने से तथा धरती के ऊपर वायुमण्डल में ओजोन गैस की कमी होने से वातावरण में कई तरह की बीमारियाँ फैल गई हैं, जिसके कारण व्यक्तियों के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है।
  3. कृषि योग्य भूमि, जलस्रोत तथा वायुमण्डल के प्रदूषण से खाद्य उत्पादन में तथा यह मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। विकासशील देशों में स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी आई है। उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

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प्रश्न 10.
देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिये बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।
उत्तर:
विश्व में जिन देशों ने परमाणु हथियार प्राप्त कर रखे हैं, उनका यह तर्क है कि उन्होंने शत्रु देश के आक्रमण से बचने तथा शक्ति संतुलन कायम रखने के लिये इनका निर्माण किया है, परन्तु वर्तमान समय में इन हथियारों के होते हुये भी एक देश की सुरक्षा की पूर्ण गारंटी नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिये आतंकवाद तथा पर्यावरण के खराब होने से वातावरण में जो बीमारियाँ फैल रही हैं, उन पर परमाणु हथियारों के उपयोग का कोई औचित्य नहीं है। इसीलिये यह कहा जाता है कि वर्तमान समय में जो ख़तरे उत्पन्न हुये हैं, उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिये बड़ा सीमित उपयोग रह गया है।

प्रश्न 11.
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुये किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिये- पारंपरिक या अपारंपरिक ? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे?
उत्तर:
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुये भारत को पारम्परिक एवं अपारम्परिक दोनों प्रकार की सुरक्षा को वरीयता देनी चाहिये। क्योंकि भारत सैनिक दृष्टि से भी सुरक्षित नहीं है एवं अपारम्परिक ढंग से भी सुरक्षित नहीं है। भारत के दो पड़ौसी देशों पाकिस्तान और चीन के पास परमाणु हथियार हैं तथा उन्होंने भारत पर आक्रमण भी किया है। चीन की सैन्य क्षमता भारत से अधिक है। इसके साथ ही भारत के कई क्षेत्रों, जैसे- कश्मीर, नागालैंड, असम आदि में अलगाववादी हिंसक गुट तथा कुछ क्षेत्रों में नक्सलवादी समूह सक्रिय हैं।

अतः भारत को पारम्परिक सुरक्षा को वरीयता देना आवश्यक है। इसके साथ-साथ अपारम्परिक सुरक्षा की दृष्टि से भारत में कई समस्याएँ हैं, जिसके कारण भारत को अपारम्परिक सुरक्षा को भी वरीयता देनी चाहिये । उदाहरण के लिए भारत में आतंकवाद का निरन्तर विस्तार हो रहा है; एड्स जैसी महामारी बढ़ रही है; मानवाधिकारों का उल्लंधन हो रहा है; धार्मिक और जातीय संघर्ष की स्थिति बनी रहती है तथा निर्धनता जनित समस्याएँ बढ़ रही हैं। इसलिए भारत को पारम्परिक और अपारम्परिक दोनों ही सुरक्षा साधनों पर ध्यान देना चाहिए।

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प्रश्न 12.
पाठ्यपुस्तक में पृष्ठ संख्या 116 में दिए गए कार्टून को समझें। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो संबंध दिखाया गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इस कार्टून में यह बताया गया है कि आजकल युद्ध और आतंकवाद में गहरा सम्बन्ध है। पिछले कुछ वर्षों में जो युद्ध लड़े गये हैं, उनका प्रमुख कारण आतंकवाद ही था। उदाहरण के लिए 2001 में आतंकवाद के कारण ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में युद्ध लड़ा। दिसम्बर, 2001 में आतंकवाद के कारण ही भारत और पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति बन गयी थी। युद्ध और आतंकवाद के गहरे सम्बन्ध को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। युद्ध की जड़ में एक अहम कारण आतंकवाद है जो मानव सुरक्षा के लिए एक नया सरोकार बनाए हुए है। युद्ध के पक्षधर देश यह मानते हैं कि आतंकवाद को कुचलने के लिए सभी राष्ट्र एक हो जाएँ और वे तब तक युद्ध का मोर्चा खोले रहें जब तक आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।

समकालीन विश्व में सरक्षा JAC Class 12 Political Science Notes

→ सुरक्षा क्या है?
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी। सुरक्षा का सम्बन्ध बड़े गंभीर खतरों से है; ऐसे खतरे जिनको रोकने के उपाय न किये गये तो हमारे केन्द्रीय मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुँचेगी। फिर भी विभिन्न कालों तथा समाजों में सुरक्षा की धारणाओं में अन्तर रहा है। अतः सुरक्षा एक विवादग्रस्त धारणा है। सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं को मोटे रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। ये वर्ग हैं।
(अ) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा और
(ब) सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा। यथा

(अ) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा – इसके दो रूप हैं।
(क) बाह्य सुरक्षा
(ख) आंतरिक सुरक्षा। यथा

(क) बाहरी सुरक्षा: बाहरी सुरक्षा की पारंपरिक धारणा से आशय राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से है। इसमें सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्यवाही से जन-धन की भी अपार हानि होती है। बाह्य सुरक्षा की पारंपरिक नीतियाँ निम्नलिखित हैं।

→  आत्मसमर्पण: आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना।

→  अपरोध तथा सुरक्षा नीति: सुरक्षा नीति का सम्बन्ध समर्पण करने से ही नहीं है, बल्कि इसका सम्बन्ध युद्ध की आशंका को रोकने से भी है, जिसे ‘अपरोध’ कहते हैं। युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहम कर हमला करने से रुक जाये।

→  रक्षा: युद्ध ठन जाये तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके या पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना। इस प्रकार युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने का सम्बन्ध अपनी रक्षा करने से है।

→  शक्ति सन्तुलन: परम्परागत सुरक्षा नीति का एक अन्य रूप शक्ति सन्तुलन है। प्रत्येक देश की सरकार दूसरे देश से अपने शक्ति – सन्तुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है। प्रत्येक देश दूसरे देशों से शक्ति सन्तुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए जी-तोड़ कोशिश करता है। शक्ति सन्तुलन बनाये रखने की यह कवायद ज्यादातर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने की होती है, लेकिन आर्थिक और प्रौद्योगिकी की ताकत भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य शक्ति का यही आधार है।

→  गठबंधन बनाना: पारंपरिक सुरक्षा नीति का चौथा तत्त्व है। गठबंधन बनाना गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि से एक औपचारिक रूप मिलता है। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं। बाह्य – सुरक्षा की परम्परागत धारणा में किसी देश की सुरक्षा को ज्यादातर खतरा उसकी सीमा के बाहर से होता है। विश्व राजनीति में हर देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं उठानी होती है।

(ख) आन्तरिक सुरक्षा:
सुरक्षा की परम्परागत धारणा का दूसरा रूप आन्तरिक सुरक्षा का है। दूसरे विश्व युद्ध के से सुरक्षा के इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया था क्योंकि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त थे। शीत युद्ध के दौर में दोनों गुटों के आमने-सामने होने से इन राष्ट्रों में बाह्य सुरक्षा का ही भय था या अपने उपनिवेशों को स्वतंत्रता देने की समस्या थी। लेकिन 1940-50 के दशकों में एशिया और अफ्रीका के नये स्वतंत्र हुए देशों के समक्ष दोनों प्रकार की सुरक्षा की चुनौतियाँ थीं

  • एक तो इन्हें अपने पड़ौसी देशों से सैन्य हमले की आशंका थी।
  • दूसरे, इन्हें आंतरिक सैन्य संघर्ष की भी चिन्ता करनी थी।

इसलिए इन देशों को सीमा पार के पड़ौसी देशों से खतरा था, तो भीतर से भी खतरे की आशंका थी। इन दोनों में मुख्य समस्या अलगाववादी आंदोलनों की थी, जो गृह-युद्धों का रूप ले रहे थे। इस प्रकार पड़ौसी देशों से युद्ध और आंतरिक संघर्ष नव स्वतंत्र देशों के सामने सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती थे।

→  सुरक्षा के पारंपरिक तरीके-
सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का प्रयोग यथासंभव सीमित होना चाहिए अर्थात् युद्ध स्वयं अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए तथा युद्ध के साधनों का भी सीमित प्रयोग करना चाहिए संघर्ष विमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति तथा आत्मसमर्पण करने वाले शत्रु पर बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही बल प्रयोग तभी किया जायें जब शेष सभी उपाय विफल हो गये हों। सुरक्षा के पारंपरिक तरीके इस संभावना पर आधारित हैं कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हैं।

→  सुरक्षा के ये तरीके निम्नलिखित हैं।

  • निरस्त्रीकरण: इसका आशय यह है कि सभी राज्य कुछ खास किस्म के हथियारों से बाज आएँ। 1972 की जैविक हथियार संधि, 1992 की रासायनिक हथियार संधि इसी का उदाहरण हैं। लेकिन महाशक्तियाँ परमाणविक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थीं इसलिए दोनों ने अस्त्र – नियंत्रण का सहारा लिया।
  • अस्त्र नियंत्रण: इसके अन्तर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के सम्बन्ध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। अमरीका और सोवियत संघ ने अस्त्र – नियंत्रण की कई संधियों पर हस्ताक्षर किये हैं। इनमें
    • एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) 1972,
    • साल्ट-2 (SALT-II),
    • स्टार्ट (START) प्रमुख हैं। परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1968 भी एक अर्थ में अस्त्र – नियंत्रण संधि ही है।
  • विश्वास बहाली के उपाय; विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाएँ। इस हेतु सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्विता वाले देश को सूचनाओं और विचारों के नियमित आदान-प्रदान करना, एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताना तथा अपने सैन्य बलों के बारे में सूचनाएँ देकर परस्पर विश्वास बहाली का प्रयास करते हैं।

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(ब) सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा- सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा सिर्फ सैन्य खतरों से संबद्ध नहीं है। इसमें मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले व्यापक खतरों और आशंकाओं को शामिल किया जाता है। इसमें राज्य के साथ- साथ व्यक्तियों, समुदायों तथा समूची मानवता की सुरक्षा को आवश्यक बताया गया है। इसी कारण सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को ‘मानवता की सुरक्षा’ अथवा ‘विश्व- सुरक्षा’ कहा जाता है।

1. मानवता की सुरक्षा:
मानवता की सुरक्षा का विचार राज्य की सुरक्षा से व्यापक है। इसका प्राथमिक लक्ष्य व्यक्तियों की संरक्षा है। मानवता की सुरक्षा का संकीर्ण अर्थ लेने वाले पैरोकारों का जोर व्यक्तियों को हिंसक खतरों यानी खून खराबे से बचाने पर होता है। मानवता की सुरक्षा के व्यापक अर्थ में युद्ध, जन-संहार और आतंकवाद आदि हिंसक खतरों के साथ-साथ अकाल, महामारी और आपदाएँ भी शामिल हैं। मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में आर्थिक सुरक्षा और मानवीय गरिमा की सुरक्षा को भी शामिल किया जाता है। इसमें जोर ‘अभाव से मुक्ति’ और ‘भय से मुक्ति’ पर जोर दिया जाता है।

2. विश्व सुरक्षा: वैश्विक ताम वृद्धि, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स तथा बर्ड फ्लू जैसी समस्याओं व महामारियों के मद्देनजरु 1990 के दशक में विश्व – सुरक्षा की धारणा उभरी। चूंकि इन समस्याओं की प्रकृति वैश्विक है, इसलिए इनके समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अति आवश्यक है।

→  खतरे के नये स्त्रोत
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के दोनों पक्ष:

  • मानवता की सुरक्षा और
  • विश्व सुरक्षा सुरक्षा के संबंध में खतरों की बदलती प्रकृति पर बल देते हैं। ये खतरे हैं-
    • आतंकवाद
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन,
    • निर्धनता,
    • असमानता,
    • शरणार्थी समस्या,
    • एड्स, बर्ड फ्लू और सार्स जैसी महामारियाँ,
    • एबोला वायरस, हैण्टावायरस और हैपेटाइटिस, टीबी, मलेरिया, डेंगू बुखार तथा हैजा जैसी पुरानी महामारियाँ।

सुरक्षा का मुद्दा: किसी मुद्दे को सुरक्षा का मुद्दा कहलाने के लिए एक सर्वस्वीकृत न्यूनतम मानक पर खरा उतरना आवश्यक है। जैसे- अगर किसी मुद्दे से राज्य या जनसमूह के अस्तित्व को खतरा हो रहा हो तो उसे सुरक्षा का मामला कहा जा सकता है, चाहे इस खतरे की प्रकृति कुछ भी हो।

→  सहयोगमूलक सुरक्षा
सुरक्षा पर मंडराते अनेक अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए आपसी सहयोग की आवश्यकता है।

  • विभिन्न देशों के बीच सहयोग: यह सहयोग द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, महादेशीय या वैश्विक स्तर का हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि खतरे की प्रकृति क्या है ?
  • संस्थागत सहयोग: सहयोगात्मक सुरक्षा में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, स्वयंसेवी संगठन, व्यावसायिक संगठन, निगम तथा जानी-मानी हस्तियाँ शामिल हो सकती हैं।
  • बल प्रयोग: सहयोगमूलक सुरक्षा में अन्तिम उपाय के रूप में बल-प्रयोग किया जा सकता है; लेकिन यह बल प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से तथा सामूहिक रूप में होना चाहिए।

→  भारत की सुरक्षा रणनीतियाँ
भारत को पारंपरिक (सैन्य) और अपारंपरिक खतरों का सामना करना पड़ा है। ये खतरे सीमा के अन्दर से भी हैं। और बाहर से भी। भारत की सुरक्षा नीति के चार प्रमुख घटक हैं। यथा-

  • सैन्य क्षमता को मजबूत करना: भारत-पाक युद्ध, भारत-चीन युद्ध तथा दोनों देशों के साथ चलते सीमा विवाद तथा भारत के चारों तरफ परमाणु हथियारों से लैस देशों के होने के कारण भारत ने
  • अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करने के लिए 1974 तथा फिर 1998 में परमाणु परीक्षण करने के फैसले किये।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना: भारत ने अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करने की नीति अपनायी । एशियाई एकता, उपनिवेशीकरण का विरोध, निरस्त्रीकरण, संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्वास, गुट निरपेक्षता, परमाणु अप्रसार की भेदभाव भरी संधियों का विरोध करना, क्योटो प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर आदि ऐसे ही कार्य हैं।
  • देश की आंतरिक सुरक्षा: समस्याओं से निपटना – भारत की तीसरी सुरक्षा रणनीति देश की आंतरिक सुरक्षा – समस्याओं से निपटने की तैयारी से संबंधित है। नागालैंड, मिजोरम, पंजाब तथा कश्मीर के उग्रवादी समूहों से निपटना, राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था को अपनाना आदि बातें इसके अन्तर्गत आती हैं।
  • आर्थिक विकास की रणनीति: भारत ने गरीबी और अभाव से निजात दिलाने के लिए आर्थिक विकास की रणनीति भी अपनायी है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Jharkhand Board Class 12 Political Science अंतर्राष्ट्रीय संगठन InText Questions and Answers

पृष्ठ 82

प्रश्न 1.
यही बात तो वे संसद के बारे में कहते हैं? क्या हमें बतकही की ऐसी चौपालें वास्तव में चाहिए?
उत्तर:
हाँ, हमें बतकही की ऐसी चौपालें वास्तव में चाहिए क्योंकि इनमें हुए वाद-विवाद के पश्चात् समस्याओं के समाधान सरलता से तलाश लिये जा सकते हैं।

पृष्ठ 83

प्रश्न 2.
ऐसे मुद्दों और समस्याओं की एक सूची बनाएँ जिन्हें सुलझाना किसी एक देश के लिए संभव नहीं है और जिनके लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की जरूरत है।
उत्तर:
ऐसे मुद्दे व समस्याओं की सूची, जिन्हें सुलझाना किसी एक देश के लिए संभव नहीं है तथा जिनके लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की जरूरत है, इस प्रकार है।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान।
  2. प्राकृतिक आपदाएँ-भूकम्प, बाढ़, सुनामी आदि।
  3. महामारियाँ।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद।
  5. विश्वव्यापी ताप वृद्धि को रोकना।
  6. युद्धों को रोकना।
  7. विभिन्न देशों के मध्य नदी जल बंटवारा।

पृष्ठ 93

प्रश्न 3.
क्या हम पांच बड़े दादाओं की दादागिरी खत्म करना चाहते हैं या उनमें शामिल होकर एक और दादा बनना चाहते हैं?
उत्तर:
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनना चाहता है ताकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में अपनी बात को रख सके और अन्य स्थायी सदस्यों की दादागिरी को रोक सके क्योंकि यदि भारत के पास सुरक्षा परिषद् में पांच स्थायी राष्ट्रों की तरह वीटो शक्ति होगी तो वह उसका प्रयोग करके दादागिरी को रोक सकेगा। इस प्रकार भारत सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनकर सुरक्षा परिषद् के निर्णयों को न्यायसंगत दिशा की ओर मोड़ना चाहेगा। वह उन देशों की समस्याओं को मुखरित करेगा जो दादागिरी के असहनीय व्यवहार से पीड़ित हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

पृष्ठ 94

प्रश्न 4.
अगर संयुक्त राष्ट्र संघ किसी को न्यूयार्क बुलाए और अमरीका उसे वीजा न दे तो क्या होगा?
उत्तर:
अगर संयुक्त राष्ट्र संघ किसी को न्यूयार्क बुलाए और अमरीका उसे वीजा न दे तो वह संयुक्त राष्ट्र संघ नहीं आ सकेगा क्योंकि न्यूयार्क संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रान्त है और न्यूयार्क के लिए वीजा देने या न देने का निर्णय करना अमेरिका के क्षेत्राधिकार में आता है।

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प्रश्न 5.
आसियान क्षेत्रीय मंच के सदस्यों के नाम पता करें।
उत्तर:
आसियान क्षेत्रीय सुरक्षा मंच की स्थापना 1993 में हुई। 10 आसियान देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओ, म्यांमार, कंबोडिया के अतिरिक्त इस क्षेत्रीय मंच के अन्य सदस्य देश हैं। अमरीका, चीन, जापान, कनाडा, यूरोपीय यूनियन, पापुआ न्यूगिनी, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और भारत।

Jharkhand Board Class 12 Political Science अंतर्राष्ट्रीय संगठन Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
निषेधाधिकार ( वीटो ) के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। इनमें प्रत्येक के आगे सही या गलत चिह्न लगाएँ।
(क) सुरक्षा परिषद् के सिर्फ स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’ का अधिकार है।
(ख) यह एक तरह की नकारात्मक शक्ति है।
(ग) सुरक्षा परिषद् के फैसलों से असंतुष्ट होने पर महासचिव ‘वीटो’ का प्रयोग करता है।
(घ) एक ‘वीटो’ से भी सुरक्षा परिषद् का प्रस्ताव नामंजूर हो सकता है।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। इनमें से प्रत्येक के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ-
(क) सुरक्षा और शांति से जुड़े सभी मसलों का निपटारा सुरक्षा परिषद् में होता है।
(ख) मानवतावादी नीतियों का क्रियान्वयन विश्वभर में फैली मुख्य शाखाओं तथा एजेंसियों के मार्फत होता है।
(ग) सुरक्षा के किसी मसले पर पाँचों स्थायी सदस्य देशों का सहमत होना उसके बारे में लिए गए फैसले के क्रियान्वयन के लिए जरूरी है।
(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ के बाकी प्रमुख अंगों और विशेष एजेंसियों के स्वतः सदस्य हो जाते हैं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) गलत।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के प्रस्ताव को ज्यादा वजनदार बनाता है?
(क) परमाणु क्षमता
(ख) भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के जन्म से ही उसका सदस्य है।
(ग) भारत एशिया में है
(घ) भारत की बढ़ती हुई आर्थिक ताकत और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था।
उत्तर:
(घ) भारत की बढ़ती हुई आर्थिक ताकत और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था।

प्रश्न 4.
परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग और उसकी सुरक्षा से संबद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी का नाम है-
(क) संयुक्त राष्ट्रसंघ निरस्त्रीकरण समिति
(ख) अंतर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी
(ग) संयुक्त राष्ट्रसंघ अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) अंतर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी

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प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन निम्नलिखित में से किस संगठन का उत्तराधिकारी है?
(क) जेनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ
(ख) जेनरल एरेंजमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ
(ग) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम
उत्तर:
(क) जेनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ

प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:
(क) संयुक्त राष्ट्रसंघ का मुख्य उद्देश्य …………….. है।
(ख) संयुक्त राष्ट्रसंघ का सबसे जाना-पहचाना पद ……………. का है।
(ग) संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा – परिषद् में ……….. स्थायी और ……….. अस्थायी सदस्य हैं।
(घ) ………….. “संयुक्त राष्ट्रसंघ के वर्तमान महासचिव हैं।
(ङ) मानवाधिकारों की रक्षा में सक्रिय दो स्वयंसेवी संगठन …………..”और …………… हैं।
उत्तर:
(क) विश्व में शांति व सुरक्षा बनाए रखना,
(ख) महासचिव,
(ग) पांच और दस
(घ) एंटोनियो गुटेरेस
(ङ) एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की मुख्य शाखाओं और एजेंसियों का सुमेल उनके काम से करें-

1. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (क) वैश्विक वित्त व्यवस्था की देखरेख।
2. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ख) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का संरक्षण।
3. अंतर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी (ग) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिंता।
4. सुरक्षा परिषद् (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शांतिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा।
5. संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग (ङ) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा।
6. विश्व व्यापार संगठन (च) आपातकाल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया कराना।
7. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (छ) वैश्विक मामलों पर बहस-मुबाहिसा।
8. आम सभा (ज) संयुक्त राष्ट्र संघ के मामलों का समायोजन और प्रशासन।
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन (झ) सबके लिए स्वास्थ्य।
10. सचिवालय (ञ) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना।

उत्तर:

1. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (ग) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिंता।
2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (ङ) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा।
3. अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शांतिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा।
4. सुरक्षा परिषद् (ख) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का संरक्षण।
5. संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग (च) आपातकाल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया कराना।
6. विश्व व्यापार संगठन (ञ) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना ।
7. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (क) वैश्विक वित्त व्यवस्था की देखरेख।
8. आम सभा (छ) वैश्विक मामलों पर बहस – मुबाहिसा।
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन (झ) सबके लिए स्वास्थ्य।
10. सचिवालय (ज) संयुक्त राष्ट्र संघ के मामलों का समायोजन और

प्रश्न 8.
सुरक्षा परिषद् के कार्य क्या हैं?
उत्तर;
सुरक्षा परिषद् के कार्य – सुरक्षा परिषद् निम्न कार्य करती है-

  1. सुरक्षा परिषद् विचार-विमर्श, बातचीत, पूछताछ, मध्यस्थता, जाँच-पड़ताल, मेल-मिलाप के माध्यम से शांति और सुरक्षा की स्थापना का प्रयास करती है।
  2. पंच निर्णय, न्यायिक समझौता, क्षेत्रीय व्यवस्थाओं या अन्य शांतिमय उपायों का प्रयोग करती है।
  3. प्रवर्तन साधनों का प्रयोग, जिनके अन्तर्गत परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों की शांति और सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करने या शांति भंग करने या आक्रमणकारी राज्य के विरुद्ध पूर्ण या आंशिक आर्थिक सम्बन्धी, रेल, समुद्री वायु, डाक-तार, रेडियो संचारण के अन्य साधनों और कूटनीतिक सम्बन्धों के विच्छेद के प्रयोग के लिये कर सकती है।
  4. सुरक्षा परिषद् अंतिम उपाय के रूप में वायु, जल और थल सेनाओं द्वारा भी सैनिक कार्यवाही कर सकती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य सुरक्षा परिषद् की मांग पर सशस्त्र सेनाएँ तथा अन्य प्रकार की सहायता देने के लिये वचनबद्ध हैं। सुरक्षा परिषद् ने प्रवर्तन साधनों के बजाय शांति साधनों का ही प्रयोग किया है।
  5. सुरक्षा परिषद् अपने आन्तरिक मामलों का स्वयं निर्णय करती है।
  6. सुरक्षा परिषद् नये राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्रदान करना, महासचिव का चयन, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति आदि कार्य महासभा से मिलकर करती है।

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प्रश्न 9.
भारत के नागरिक के रूप में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष का समर्थन आप कैसे करेंगे? अपने प्रस्ताव का औचित्य सिद्ध करें।
उत्तर:
हम भारत के नागरिक के रूप में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन निम्नलिखित आधारों पर करते हैं।

  1. भारत विश्व में सबसे बड़ी आबादी वाला दूसरा देश है।
  2. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति बहाल करने के प्रयासों में भारत लंबे समय से ठोस भूमिका निभाता आ रहा है।
  4. भारत तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर एक बड़ी आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है।
  5. भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में नियमित रूप से अपना योगदान दिया है और यह कभी भी अपने भुगतान से चूका नहीं है।
  6. भारत इस बात से आगाह है कि सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता का एक प्रतीकात्मक महत्त्व भी है।
  7. भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के झण्डे के नीचे कई देशों में शांति स्थापना के लिये अपनी सेनाएँ भेजी हैं।
  8. भारतीय संस्कृति सदैव ही अहिंसा, शांति, सहयोग की समर्थक रही है।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के ढाँचे को बदलने के लिये सुझाये गये उपायों के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाइयों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर:
प्रमुख सुझाव- संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे को बदलने के लिए निम्नलिखित प्रमुख सुझाव दिये गये है।

  1. सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों में वृद्धि की जाए।
  2. सभी निर्णय महासभा में बहुमत से होने चाहिए। सभी सदस्यों को एक मत देने का अधिकार होना चाहिए और व्यक्तिगत रूप में गुप्त मतदान के रूप में इसका प्रयोग होना चाहिए।
  3. सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों को दिया गया वीटो का अधिकार समाप्त होना चाहिए।
  4. बदले हुए विश्व वातावरण में भारत, जापान, जर्मनी, कनाडा, ब्राजील एवं दक्षिणी अफ्रीका को सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता प्रदान करनी चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे को बदलने के लिये सुझाये गये उपर्युक्त उपायों के क्रियान्वयन में अनेक कठिनाइयाँ आ रही हैं। यथा-

  1. संयुक्त राष्ट्रसंघ के साधारण सभा के सदस्यों की संख्या में हुई वृद्धि के आधार पर सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि किये जाने के सुझाव पर यह समस्या आ रही है कि इनमें किन सदस्यों को शामिल किया जाये? जनसंख्या, आर्थिक स्थिति, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रभाव आदि में से किस आधार पर देशों को शामिल किया जाये।
  2. स्थायी सदस्यों की वीटो पॉवर समाप्त कर दी जायेगी तो वे देश संयुक्त राष्ट्र संघ में उतनी रुचि नहीं लेंगे यह भी अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से उचित नहीं है।

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प्रश्न 11.
हालांकि संयुक्त राष्ट्रसंघ युद्ध और इससे उत्पन्न विपदा को रोकने में नाकामयाब रहा है लेकिन विभिन्न देश अभी भी इसे बनाये रखना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ को एक अपरिहार्य संगठन मानने के क्या कारण हैं? संयुक्त राष्ट्रसंघ एक अपरिहार्य संगठन है
उत्तर:
यद्यपि संयुक्त राष्ट्रसंघ युद्ध और इससे उत्पन्न विपदा को रोकने में नाकामयाब रहा है तथापि वर्तमान में यह एक अपरिहार्य संगठन है, क्योंकि

  1. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान – संयुक्त राष्ट्रसंघ विभिन्न देशों के बीच विवाद पैदा करने वाली घटनाओं को शांतिपूर्वक समाधान की दिशा में पहल करने वाला महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है।
  2. प्राकृतिक आपदा, महामारी आदि से निपटने के लिए – प्राकृतिक आपदा, महामारी, आतंकवाद आदि से निपटने के लिए देशों के पारस्परिक सहयोग की आवश्यकता होती है और संयुक्त राष्ट्रसंघ इसके लिए सर्वश्रेष्ठ अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है।
  3. विश्वव्यापी ताप वृद्धि के दुष्प्रभावों के समाधान में सहायक – विश्वव्यापी ताप वृद्धि के दुष्प्रभावों का समाधान संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ही कर सकता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ इस सम्बन्ध में सभी देशों के लिए एक आधार तैयार करने में सहायता करता है।
  4. युद्धों की रोकथाम में सहायक – आज विश्व को युद्ध की विभीषिका से बचाने में संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक अहम भूमिका है।
  5. सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अपरिहार्य – झगड़ों और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के माध्यम से 193 राष्ट्रों को एक साथ किया जा सकता है।
  6. अन्य कारण
    • विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी रवैये और नीतियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।
    • विश्व के समाजों की बढ़ती पारस्परिक निर्भरता संयुक्त राष्ट्रसंघ की अपरिहार्यता को सिद्ध करती है।

प्रश्न 12.
संयुक्त राष्ट्रसंघ में सुधार का अर्थ है सुरक्षा परिषद् के ढाँचे में बदलाव इस कथन का सत्यापन
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार का अर्थ है। सुरक्षा परिषद् के ढाँचे में बदलाव अर्थात् सुरक्षा परिषद् में ही अधिकांश सुधारों की बात की जाती है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्य अंगों जैसे महासभा में सभी सदस्य राज्यों को समान अधिकार प्राप्त है, परन्तु सुरक्षा परिषद् में सभी राज्यों को समान अधिकार प्राप्त नहीं है। इसमें पाँच स्थायी सदस्यों को सर्वाधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। इन पांचों को ही किसी प्रस्ताव पर वीटो शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार है। इस प्रकार समस्त निर्णय इन पांचों सदस्यों द्वारा ही लिये जाते हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की अधिकांश मांगें सुरक्षा परिषद में सुधार से संबंधित हैं।

  1. सुरक्षा परिषद् में स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाये तथा इसमें एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के देशों का समुचित प्रतिनिधित्व हो।
  2. पांच सदस्यों को दिया गया वीटो पावर खत्म किया जाये।
  3. निषेधाधिकार लोकतंत्र की धारणा से मेल नहीं खाता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार का मुख्य बिन्दु सुरक्षा परिषद् में सुधार से ही संबंधित है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन JAC Class 12 Political Science Notes

→ हमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन क्यों चाहिए?

  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन देशों की समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सदस्य देशों की सहायता करते हैं- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन कोई शक्तिशाली राज्य नहीं होता जिसकी अपने सदस्यों पर धौंस चलती हो। इसका निर्माण विभिन्न राज्य ही करते हैं और यह उनके मामलों के लिए जवाबदेह होता है। जब राज्यों में इस बात की सहमति होती है कि कोई अन्तर्राष्ट्रीय संगठन बनना चाहिए, तभी ऐसे संगठन कायम होते हैं। एक बार इनका निर्माण हो जाने के बाद ये सदस्य देशों की समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सहायता करते हैं।
  • एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन सहयोग करने के उपाय और सूचनाएँ जुटाने में मदद कर सकता।
  • एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन नियमों और नौकरशाही की एक रूपरेखा दे सकता है ताकि सदस्यों को यह विश्वास हो कि आने वाली लागत में सबकी समुचित साझेदारी होगी, लाभ का बँटवारा न्यायोचित होगा और कोई सदस्य उस समझौते में शामिल हो जाता है तो वह इस समझौते के नियम और शर्तों का पालन करेगा।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ आज की दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन माना जाता है। इस संगठन को विश्व भर के अधिकांश लोग एक अनिवार्य संगठन मानते हैं। यह संगठन उनकी नजर में शांति और प्रगति के प्रति | मानवता की आशा का प्रतीक है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना-
→ अगस्त, 1941: अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और ब्रितानी प्रधानमंत्री चर्चिल द्वारा अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए।

→ जनवरी, 1942: धुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ रहे 26 मित्र – राष्ट्र अटलांटिक चार्टरे समर्थन में वाशिंग्टन में मिले और दिसंबर, 1943 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा पर हस्ताक्षर हुए।

→ फरवरी,1945: तीन बड़े नेताओं ( रूजवेल्ट, चर्चिल और स्टालिन) ने याल्टा सम्मेलन में प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय संगठन के बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ का एक सम्मेलन करने का निर्णय किया।

→ अप्रैल-मई, 1945: सेन फ्रांसिस्को में संयुक्त राष्ट्रसंघ का अंतर्राष्ट्रीय संगठन बनाने के मामले पर केंद्रित दो महीने लंबा सम्मेलन संपन्न।

→ 26 जून, 1945: संयुक्त राष्ट्रसंघ चार्टर पर 50 देशों के हस्ताक्षर। पोलैंड ने 15 अक्टूबर को हस्ताक्षर किए। इस तरह संयुक्त राष्ट्रसंघ में 51 मूल संस्थापक सदस्य हैं।

→ 24 अक्टूबर, 1945: संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना 24 अक्टूबर संयुक्त राष्ट्रसंघ दिवस।

→ 30 अक्टूबर 1945 – भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ में शामिल।

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→ संयुक्त राष्ट्रसंघ का विकास-

  • प्रथम विश्वयुद्ध ने दुनिया को इस बात का आभास करवाया कि एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन होना चाहिए जो झगड़ों का निपटारा कर सके। इसके परिणामस्वरूप ‘लीग ऑफ नेशंस’ का जन्म हुआ। किन्तु यह संगठन दूसरा विश्वयुद्ध (1939-45) रोकने में असफल रहा। इसलिए 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होते ही संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई। 51 देशों द्वारा इसके घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए।
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्य :
    • अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को रोकना और राष्ट्रों के बीच सहयोग की राह दिखाना।
    • अंतर्राष्ट्रीय युद्ध होने की स्थिति में यह संगठन शत्रुता के दायरे को सीमित करने का काम करता है।
    • पूरे विश्व में सामाजिक-आर्थिक विकास की संभावनाओं को बढाने हेतु विभिन्न देशों को एक साथ लाना।
  • 2011 तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य देशों की संख्या 193 थी।
  • इसकी सुरक्षा परिषद् में पाँच स्थायी सदस्य हैंअमरीका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन।
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ की कई शाखाएँ और एजेंसियाँ हैं। जिनमें विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्रसंघ विकास कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार आयोग, संयुक्त राष्ट्रसंघ बाल कोष और संयुक्त राष्ट्रसंघ शैक्षिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन शामिल हैं।

→ शीत युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार: संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने दो तरह के बुनियादी सुधारों का मसला है। संगठन की बनावट और प्रक्रियाओं में सुधार – इस सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि

→ सुरक्षा परिषद् में स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ायी जाये, विशेषकर एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमरीका के ज्यादा देशों को इसमें सदस्यता दी जाये।

→ अमरीका और पश्चिमी देश इसके बजट से जुड़ी प्रक्रियाओं और इसके प्रशासन में सुधार चाहते हैं। सुरक्षा परिषद् में सदस्यों की संख्या बढ़ाने तथा नये सदस्यों को चुने जाने के लिए स्थायी और अस्थायी सदस्यता के लिए निम्नलिखित मानदण्ड सुझाये गये हैं

  • वह देश बड़ी आर्थिक ताकत हो,
  • वह बड़ी सैन्य ताकत हो,
  • संयुक्त राष्ट्र के बजट में अधिक योगदान हो,
  • जनसंख्या की दृष्टि से बड़ा राष्ट्र हो,
  • लोकतंत्र तथा मानवाधिकारों का सम्मान करता हो तथा
  • अपने भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति की दृष्टि से विश्व की विविधता का प्रतिनिधित्व करता हो।

इन कसौटियों में भी अनेक किन्तु परन्तु हैं। सदस्यता की प्रकृति को बदलने का भी मुद्दा उठाया गया है कि पाँच स्थायी सदस्यों को दिया गया ‘वीटो ‘ समाप्त होना चाहिए या नहीं? इस सम्बन्ध में भी कोई एक राय नहीं बन पायी है।

→ न्यायाधिकार में आने वाले मुद्दों की समीक्षा सम्बन्धी सुधार – इस सम्बन्ध में कुछ देश चाहते हैं कि यह संगठन शांति एवं सुरक्षा से जुड़े मिशनों में ज्यादा प्रभावकारी भूमिका निभाये, जबकि कुछ देश चाहते हैं कि यह संगठन अपने को विकास तथा मानवीय भलाई के कामों तक सीमित रखे। सन् 2005 में संयुक्त राष्ट्र की 60वीं सालगिरह के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए निम्न कदम उठाने का फैसला किया गया-

  • शांति संस्थापक आयोग का गठन।
  • यदि कोई राष्ट्र अपने नागरिकों को अत्याचारों से बचाने में असफल हो जाए तो विश्व बिरादरी इसका उत्तरदायित्व ले।
  • मानवाधिकार परिषद् की स्थापना।
  • सहस्राब्दि विकास लक्ष्य को प्राप्त करने पर सहमति।
  • हर रूप – रीति के आतंकवाद की निंदा।
    एक लोकतंत्र कोष का गठन।
  • ट्रस्टीशिप काउंसिल को समाप्त करने पर सहमति। लेकिन ये मुद्दे भी संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए अनेक किन्तु परन्तुओं से भरे हुए हैं।

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संयुक्त राष्ट्रसंघ में सुधार और भारत
→ (अ) भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के ढांचे में बदलाव के मसले को कई आधारों पर समर्थन दिया है-

  • विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की मजबूती और दृढ़ता आवश्यक है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ को विभिन्न देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और विकास को बढ़ावा देने में ज्यादा बड़ी ‘भूमिका निभानी चाहिए।
  • सुरक्षा परिषद् में सदस्यों की संख्या बढ़ाने से सुरक्षा परिषद् ज्यादा प्रतिनिधिमूलक होगी और उसे विश्व- बिरादरी का ज्यादा समर्थन मिलेगा। इसलिए सुरक्षा परिषद् के स्थायी और अस्थायी दोनों प्रकार के सदस्यों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए।

→ (ब) भारत की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के पक्ष में तर्क:

  • भारत विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला दूसरा देश है।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की लगभग सभी पहलकदमियों में भाग लिया है
  • भारत तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में नियमित रूप से अपना योगदान दिया है।
  • भारत सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के प्रतीकात्मक महत्त्व को समझता है।

→ (स) भारत की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता की दावेदारी के विपक्ष में तर्क- कुछ देश वीटोधारी स्थायी सदस्य के रूप में भारत की सदस्यता के विरोध में ये तर्क देते हैं-

  • भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है तथा पाक – भारत तनावों के कारण वह स्थायी सदस्य के रूप में सफल नहीं रहेगा।
  • भारत के साथ ही ब्राजील, जर्मनी, जापान और दक्षिण अफ्रीका को भी शामिल करना पड़ेगा, जिसका ये देश विरोध करते हैं।
  • सुरक्षा परिषद् में प्रतिनिधित्व की दृष्टि से दक्षिण अमरीका महाद्वीप तथा अफ्रीका महाद्वीप की पहली दावेदारी होनी चाहिए।

→ एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ:
एक ध्रुवीय विश्व में क्या संयुक्त राष्ट्र संघ ढांचे और प्रक्रियाओं में सुधार के बाद अमरीका की मनमानी को रोकने में सफल होगा। इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका की मनमानी पर आसानी से अंकुश नहीं लगा सकेगा क्योंकि-

  • विश्व की एकमात्र महाशक्ति रह जाने के कारण अमरीका अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर वह संयुक्त राष्ट्र संघ की अनदेखी कर सकता है।
  • अमरीका संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में सबसे ज्यादा योगदान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीकी भू-क्षेत्र में स्थित है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के कई नौकरशाह इसके नागरिक हैं।
  • उसके पास निषेधाधिकार की शक्ति है।
  • वीटो ताकत के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के चयन में भी अमरीका की चलती है।
  • अमरीका अपनी सैन्य तथा आर्थिक शक्ति के बल पर विश्व में फूट डालने की क्षमता रखता है।

इन कारणों से संयुक्त राष्ट्र संघ के भीतर अमरीका का खासा प्रभाव है जिसके कारण यह संगठन उसकी मनमानी को नहीं रोक सकता।

→ एकध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता:
यद्यपि एकध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका पर नियंत्रण नहीं लगा सकता तथापि निम्न संदर्भ में उसकी अभी भी प्रासंगिकता विद्यमान है-

  • संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका और शेष विश्व के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत कायम कर सकता है।
  • झगड़ों और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये 193 देशों को एक साथ किया जा सकता है।
  • शेष विश्व संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच के माध्यम से अमरीकी रवैये और नीतियों पर कुछ न कुछ अंकुश लगा सकता है।
  • आज विभिन्न समाजों और मुद्दों के बीच आपसी तार जुड़ते जा रहे हैं। आने वाले दिनों में पारस्परिक निर्भरता बढ़ती जायेगी। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्त्व भी निरन्तर बढ़ेगा।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. ‘मुगल’ की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है –
(अ) महान
(स) मुसलमान
(ब) मंगोल
(द) मोगली
उत्तर:
(ब) मंगोल

2. किस मुगल सम्राट को शेरशाह से पराजित होकर ईरान भागना पड़ा?
(अ) बाबर
(ब) अकबर
(स) हुमायूँ
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(स) हुमायूँ

3. मुगल साम्राज्य का संस्थापक था –
(अ) बाबर
(ब) हुमायूँ
(स) अकबर
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(अ) बाबर

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

4. मुगल राजवंश का अन्तिम सम्राट कौन था?
(अ) मुअज्जम
(ब) फर्रुखसियर
(स) शाह आलम
(द) बहादुरशाह जफर द्वितीय
उत्तर:
(द) बहादुरशाह जफर द्वितीय

5. महाभारत का फारसी में अनुवाद किसके रूप में हुआ –
(अ) अकबरनामा
(ब) शाहीनामा
(स) एमनामा
(द) बाबरनामा
उत्तर:
(स) एमनामा

6. फारसी के हिन्दवी के साथ पारस्परिक सम्पर्क से किस नई भाषा का जन्म हुआ?
(ब) उर्दू
(द) संस्कृत
(अ) अरबी
(स) तुर्की
उत्तर:
(ब) उर्दू

7. नस्तलिक शैली के सबसे अच्छे सुलेखकों में से एक था –
(अ) रजा खाँ
(ब) इब्राहीम खाँ
(स) मन्सूर अली
(द) मुहम्मद हुसैन
उत्तर:
(द) मुहम्मद हुसैन

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8. एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल की स्थापना किसके द्वारा की गई?
(अ) जॉन मार्शल
(ब) मैकाले
(स) विलियम जोन्स
(द) कनिंघम
उत्तर:
(स) विलियम जोन्स

9. एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की गई –
(अ) 1784 ई.
(ब) 1794 ई.
(स) 1884 ई.
(द) 1795 ई.
उत्तर:
(अ) 1784 ई.

10. अकबर ने जजिया कर कब समाप्त कर दिया?
(अ) 1573
(ब) 1564
(द) 1579
(स) 1604
उत्तर:
(ब) 1564

11. मुगल पितृ पक्ष से निम्न में से किस तुर्की शासक के वंशज थे?
(अ) तिमूर
(ब) चंगेज खाँ
(स) मंगोल
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) तिमूर

12. रज्मनामा निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ का फारसी अनुवाद है-
(अ) रामायण
(ब) लीलावती
(स) पंचतन्त्र
(द) महाभारत
उत्तर:
(द) महाभारत

13. नस्तलिक का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किससे है?
(अ) एक ग्रन्थ
(ब) एक कविता
(स) सुलेखन शैली
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) सुलेखन शैली

14. निम्न में से किस मुगल दरबारी इतिहासकार ने चित्रकारी को एक जादुई कला के रूप में वर्णित किया है?
(अ) मुहम्मद हुसैन
(ब) अबुल फजल
(स) अब्दुल हमीद लाहौरी
(द) अब्दुल हसन
उत्तर:
(ब) अबुल फजल

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15. 1560 के दशक में अकबर ने किस इमारत का निर्माण करवाया?
(अ) आगरा का किला
(ब) ताजमहल
(स) फतेहप्हपुर सीकरी
(द) सिकन्दर
उत्तर:
(अ) आगरा का किला

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. जंगल बुक …………… द्वारा लिखी गई है जिससे युवा नायक …………….. का नाम व्युत्पन्न हुआ है।
2. हुमायूँ ने सूरों को …………… में पराजित किया था।
3. अकबर का उत्तराधिकारी …………….. हुआ।
4. …………… मुगल वंश का अन्तिम मुगल शासक था।
5. अकबर, शाहजहाँ आलमगीर की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक क्रमशः ……………. और …………. है।
6. चगताई तुर्क स्वयं को …………….. के सबसे बड़े पुत्र का वंशज मानते थे।
उत्तर:
1. रुडयार्ड किपलिंग, मोगली
2. 1555
3. जहाँगीर
4. बहादुरशाह जफर द्वितीय
5. अकबरनामा, शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा
6. चंगेज खाँ।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुगल शासकों में सबसे महान कौन था?
उत्तर:
मुगल शासकों में अकबर सबसे महान था।

प्रश्न 2.
‘सिजदा तथा जमींबोसी ‘ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘सिजदा’ का अर्थ बादशाह के सामने दंडवत लेटना तथा ‘जमींबोसी’ का अर्थ जमीन चूमना था।

प्रश्न 3.
कौन-सा किला सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े का कारण रहा था?
उत्तर:
कन्धार का किला।

प्रश्न 4.
बादशाहनामा के दरबारी दृश्य में अंकित शान्तिपूर्वक चिपटकर बैठे हुए शेर एवं बकरी क्या संदेश देते हैं
उत्तर:
मुगल- राज्य में सबल तथा निर्बल परस्पर सद्भाव से रहते थे।

प्रश्न 5.
मुगल दरबार में प्रचलित अभिवादन के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) सिजदा अथवा दण्डवत लेटना
(2) जमीं बरेसी (जमीन चूमना)।

प्रश्न 6.
फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा क्यों और किसने बनवाया?
उत्तर:
गुजरात में मुगल विजय की बाद में अकबर ने बुलन्द दरवाजा बनवाया।

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प्रश्न 7.
मुगलकाल में पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र क्या कहलाता था?
उत्तर:
शाही किताबखाना।

प्रश्न 8.
‘मुगल’ नाम किस शब्द से व्युत्पन्न हुआ है?
उत्तर:
मंगोल।

प्रश्न 9.
मुगल किस मूल के वंशज थे और उनकी मातृ भाषा क्या थी?
उत्तर:
(1) चगताई तुर्क
(2) तुर्की भाषा।

प्रश्न 10.
मुगल शासक अपने को तैमूरी क्यों कहते थी?
उत्तर:
क्योंकि पितृ पक्ष से वे वंशज थे। तुर्की शासक तिमूर के

प्रश्न 11.
बावर मातृपक्ष से किसका सम्बन्धी था?
उत्तर:
चंगेज खाँ का।

प्रश्न 12.
मुगल साम्राज्य का संस्थापक कौन था?
उत्तर:
जहीरुद्दीन बाबर।

प्रश्न 13.
अकबर के तीन योग्य उत्तराधिकारियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) जहाँगीर
(2) शाहजहाँ
(3) औरंगजेब।

प्रश्न 14.
अकबर, शाहजहाँ, आलमगीर (औरंगजेब ) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक बताइये।
उत्तर:
(1) अकबरनामा
(2) शाहजहाँनामा
(3) आलमगीरनामा।

प्रश्न 15.
संस्कृत के दो ग्रन्थों के नाम लिखिए जिनका फारसी में अनुवाद करवाया गया।
उत्तर:
(1) रामायण
(2) महाभारत

प्रश्न 16.
चुगताई तुर्क कौन थे?
उत्तर:
मुगल

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प्रश्न 17.
अकबर की पसंदीदा सुलेखन शैली कौनसी
उत्तर:
नस्तलिक।

प्रश्न 18.
अबुल फसल के अनुसार चित्रकारी का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
चित्रकारी निर्जीव वस्तुओं में भी प्राण फूंक सकती थी।

प्रश्न 19.
ईरान से मुगल दरबार में आने वाले दो प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) मीर सैय्यद अली
(2) अब्दुस समद।

प्रश्न 20.
दो महत्त्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) अकबरनामा
(2) बादशाहनामा।

प्रश्न 21.
एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
भारतीय पांडुलिपियों का सम्पादन, प्रकाशन और अनुवाद करना।

प्रश्न 22.
अबुल फसल के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के किन-किन सत्वों की रक्षा करते थे?
उत्तर:
मुगल सम्राट अपनी प्रजा के निम्न सत्त्वों की रक्षा करते थे-
(1) जीवन (जन),
(2) धन (माल),
(3) सम्मान (नामस)
(4) विश्वास (दीन)।

प्रश्न 23.
इन सवों की रक्षा के बदले में बादशाह अपनी प्रजा से क्या माँग करता था?
उत्तर:
(1) आज्ञापालन
(2) संसाधनों में हिस्से की

प्रश्न 24.
जजिया क्या था?
उत्तर:
जजिया एक कर था, जो गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता था।

प्रश्न 25.
अकबर ने फतेहपुर सीकरी से राजधानी को कहाँ स्थानान्तरित किया और कब?
उत्तर:
1585 में अकबर ने राजधानी को लाहौर स्थानान्तरित किया।

प्रश्न 26.
मुगलकाल में दरबारियों के द्वारा बादशाह के अभिवादन के उच्चतम तरीके क्या थे?
उत्तर:
(1) सिजदा अथवा दण्डवत् लेटना
(2) चार तस्लीम
(3) जर्मी बोसी (जमीन चूमना )।

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प्रश्न 27.
मुगल दरबार को किन चार अवसरों पर खूब सजाया जाता था?
उत्तर:
(1) सिंहासनारोहण की वर्षगांठ
(2) ईद
(3) शबे बरात
(4) होली। प्रश्न

प्रश्न 28.
औरंगजेब ने जयसिंह तथा जसवन्त सिंह
को किसकी पदवी प्रदान की थी?
उत्तर:
मिर्जा राजा।

प्रश्न 29.
मुगल सम्राट द्वारा दिए जाने वाले उपहारों (पुरस्कारों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) सम्मान का जामा (खिल्लत)
(2) सरप्या
(3) रत्नजड़ित आभूषण।

प्रश्न 30.
शाहजहाँ की कौनसी पुत्रियों को ऊंचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी?
उत्तर-
(1) जहाँआरा
(2) रोशनआरा।

प्रश्न 31.
मुगल साम्राज्य के आरम्भ से ही कौन से अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे?
उत्तर:
तूरानी और ईरानी अभिजात।

प्रश्न 32.
मुगलकाल में सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो प्रकार के संख्या-विषयक पद कौनसे होते थे?
उत्तर:
(1) जात
(2) सवार

प्रश्न 33.
केन्द्रीय सरकार के दो महत्त्वपूर्ण मंत्रियों के नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) दीवाने आला (वित्तमंत्री)
(2) सद्र- उस- सुदूर (मदद-ए-माशा अथवा अनुदान का मन्त्री)

प्रश्न 34.
मुगलकाल में प्रान्तीय शासन के तीन प्रमुख अधिकारियों के नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) दीवान
(2) बख्शी
(3) सूबेदार।

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प्रश्न 35.
मुगलकालीन परगनों के तीन अधिकारियों के नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) कानूनगो (राजस्व आलेख का रखवाला)
(2) चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी)
(3) काजी।

प्रश्न 36.
ईरानी सेना ने मुगलों के किस दुर्ग पर और कब अधिकार किया?
उत्तर:
1622 में कन्धार के दुर्ग पर

प्रश्न 37.
पहला जेसुइट शिष्टमण्डल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में कब पहुँचा?
उत्तर:
1580 ई. में

प्रश्न 38.
अकबर ने इबादतखाने का निर्माण कहाँ करवाया था?
उत्तर:
फतेहपुरी सीकरी में।

प्रश्न 39.
मुन्तखाब उत तवारीख’ की रचना किसने की थी?
उत्तर:
अब्दुल कादिर बदायूँनी ने

प्रश्न 40.
अकबर द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा कहाँ स्थित है?
उत्तर:
फतेहपुर सीकरी में।

प्रश्न 41.
फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती का मकबरा किस मुगल सम्राट ने बनवाया था?
उत्तर:
अकबर ने।

प्रश्न 42
आलमगीर की पदवी किसने धारण की
उत्तर:
औरंगजेब।

प्रश्न 43.
फारसी के हिन्दवी के साथ पारस्परिक सम्पर्क से किस भाषा की उत्पत्ति हुई?
उत्तर:
उर्दू।

प्रश्न 44.
‘बाबरनामा’ क्या है?
उत्तर:
‘बाबरनामा’ में बाबर के संस्मरण संकलित हैं।

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प्रश्न 45.
फारसी को मुगल दरबार की भाषा बनाने वाला सम्राट कौन था?
उत्तर:
अकबर।

प्रश्न 46.
अकबर के शासनकाल में ‘महाभारत’ का -फारसी में किस नाम से अनुवाद हुआ?
उत्तर:
‘रक्मनामा’।

प्रश्न 47.
अबुल फजल ने चित्रकारी को किसकी संज्ञा दी है?
था।
उत्तर:
‘जादुई कला’ की।

प्रश्न 48.
बिहजाद कौन था?
उत्तर:
बिहजाद मुगलकाल का एक प्रसिद्ध चित्रकार

प्रश्न 49.
अकबर ने धार्मिक क्षेत्र में कौनसी नीति अपनाई थी?
उत्तर:
सुलह-ए-कुल।

प्रश्न 50.
‘सुलह-ए-कुल’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूर्ण शान्ति।

प्रश्न 51.
अकबर के पश्चात् किस मुगल सम्राट ने हिन्दुओं पर जजिया कर पुनः लगा दिया?
उत्तर:
औरंगजेब ने।

प्रश्न 52.
पीड़ित लोगों को निष्पक्षतापूर्वक न्याय दिलाने के लिए अपने महल में न्याय की जंजीर लगाने वाला मुगल सम्राट कौन था?
उत्तर:
जहाँगीर।

प्रश्न 53.
झरोखा दर्शन की प्रथा किस मुगल सम्राट ने शुरू की थी?
उत्तर:
अकबर ने

प्रश्न 54.
कोर्निश का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कोर्निश दरबार में औपचारिक अभिवादन का एक तरीका था।

प्रश्न 55.
शाहजहाँ ने कब और किसे अपनी राजधानी बनाया?
उत्तर:
1648 में शाहजहाँ ने शाहजहाँनाबाद को अपनी राजधानी बनाया।

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प्रश्न 56.
शाहजहाँ द्वारा निर्मित तीन इमारतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) लाल किला (दिल्ली)
(2) जामा मस्जिद (दिल्ली)
(3) ताजमहल (आगरा)।

प्रश्न 57.
हरम शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘पवित्र स्थान’ मुगलों का अन्तःपुर हरम कहलाता था।

प्रश्न 58.
मुगल परिवार में ‘अगाचा’ कौन होती थीं?
उत्तर:
मुगल सम्राटों की उप-पत्नियाँ।

प्रश्न 59.
‘हुमायूँनामा’ की रचना किसने की थी?
उत्तर:
गुलबदन ने।

प्रश्न 60.
अकबर की शाही सेवा में नियुक्त होने वाला प्रथम व्यक्ति कौनसा राजपूत मुखिया था?
उत्तर:
भारमल कछवाहा।

प्रश्न 61.
अकबर के साथ सर्वप्रथम किस राजपूत नरेश ने अपनी पुत्री का विवाह किया था?
उत्तर:
आम्बेर के राजा भारमल कछवाहा ने।

प्रश्न 62.
टोडरमल कौन था?
उत्तर:
टोडरमल अकबर का वित्तमन्त्री था

प्रश्न 63.
मीरबख्शी कौन था?
उत्तर:
यह सैन्य विभाग का मन्त्री था।

प्रश्न 64.
मुगलों के केन्द्रीय शासन के दो प्रमुख मन्त्रियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) दीवान-ए-आला
(2) सद्र-उस- सुदूर

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प्रश्न 65.
मुगलकाल में प्रान्त का प्रमुख क्या कहलाता
उत्तर:
सूबेदार

प्रश्न 66.
मुगल काल में प्रत्येक सूबा किनमें विभाजित
उत्तर:
सरकारों में।

प्रश्न 67.
अकबर ने कन्धार के दुर्ग पर कब अधिकार स्थापित किया था?
उत्तर:
1595 ई. में

प्रश्न 68.
ईरानियों और मुगलों के बीच विवाद का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर:
कन्धार पर अधिकार करना।

प्रश्न 69.
मुगलकाल में सिजदा के महत्व का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
‘अकबरनामा’ का लेखक अबुल फसल तथा ‘बादशाहनामा’ का लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी था।

प्रश्न 79.
अबुल फजल के अनुसार सुलह-ए-कुल क्या था?
उत्तर:
अबुल फसल सुलह-ए-कुल के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला मानता था।

प्रश्न 80.
सुलह-ए-कुल की नीति के अन्तर्गत अकबर द्वारा किए गए दो उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर समाप्त कर दिया।

प्रश्न 81.
सुलह-ए-कुल का क्या आदर्श था?
उत्तर:
साम्राज्य के सभी धार्मिक तथा नृजातीय समूहों के लोगों के बीच शान्ति, सद्भावना और एकता बनाये रखना।

प्रश्न 82.
राज्यारोहण के बाद जहाँगीर ने पहला आदेश क्या दिया था?
उत्तर:
न्याय की जंजीर को लगाने का ताकि पीड़ित व्यक्ति जंजीर हिलाकर जहाँगीर का ध्यान आकर्षित कर सकें।

प्रश्न 83.
अकबर द्वारा बनाई गई राजधानियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) आगरा
(2) फतेहपुरी सीकरी
(3) लाहौर।

प्रश्न 84.
अकबर ने कब और किसे अपनी राजधानी बनाया?
उत्तर:
1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुरी सीकरी को अपनी राजधानी बनाया।

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प्रश्न 85.
झरोखा दर्शन की प्रथा का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति को और विस्तार देना।

प्रश्न 86.
दीवान-ए-आम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दीवान-ए-आम सार्वजनिक सभा भवन था जहाँ राज्य के प्रमुख अधिकारी अपनी रिपोर्ट और प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करते थे।

प्रश्न 87.
‘दीवान-ए-खास’ क्या था?
उत्तर:
मुगल सम्राट दीवान-ए-खास नामक भवन में राज्य के वरिष्ठ मन्त्रियों से गोपनीय मुद्दों पर चर्चा करते थे। प्रश्न 88. मुगल सम्राट वर्ष में कौन-से तीन मुख्य त्यौहार मनाते थे?
उत्तर:
(1) सूर्य वर्ष के अनुसार सम्राट का जन्म दिन
(2) चन्द्र वर्ष के अनुसार सम्राट का जन्म दिन तथा
(3) फारसी नव वर्ष (नौ रोज)।

प्रश्न 89.
मुगल सम्राटों द्वारा अपने अमीरों को दी जाने वाली प्रमुख पदवियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 90.
(1) आसफ खाँ
(2) मिर्जा राजा।मुगल परिवार में बेगम और अगहा महिलाएँ कौन होती थीं?
उत्तर:
(1) शाही परिवारों से आने वाली महिलाएँ ‘बेगम’ कहलाती थीं।
(2) कुलीन परिवार में जन्म न लेने वाली महिलाएँ ‘अगहा’ कहलाती थीं।

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प्रश्न 91.
गुलबदन बेगम कौन थी?
उत्तर:
गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री, हुमायूँ की बहिन तथा अकबर की बुआ थी।

प्रश्न 92.
अभिजात कौन थे?
उत्तर:
मुगल राज्य के अधिकारियों का दल अभिजात- वर्ग कहलाता था।

प्रश्न 93.
आप ‘जात’ व ‘सवार’ से क्या समझते हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘जात’ मनसबदार के पद, वेतन का सूचक था तथा ‘सवार’ यह सूचित करता था कि उसे कितने घुड़सवार रखने थे।

प्रश्न 94.
मीरबख्शी का क्या कार्य था?
उत्तर:
वह शाही सेवा में नियुक्ति तथा पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को मुगल सम्राट के सामने प्रस्तुत करता था।

प्रश्न 95.
‘तैनात ए-रकांब’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
यह अभिजातों का ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था।

प्रश्न 96.
दरबारी लेखक या वाकिया नवीस कौन थे?
उत्तर:
दरबारी लेखक दरबार में प्रस्तुत किये जाने वाले सभी प्रार्थना-पत्रों, दस्तावेजों तथा शासकीय आदेशों का आलेख तैयार करते थे।

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प्रश्न 97.
नस्तलिक शैली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नस्तलिक शैली एक ऐसी शैली थी जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था।

लघुत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जलालुद्दीन अकबर को मुगल बादशाहों में महानतम क्यों माना जाता है?
उत्तर:
जलालुद्दीन अकबर को (1556-1605) को मुगल बादशाहों में महानतम माना जाता है क्योंकि उसने न केवल मुगल साम्राज्य का विस्तार ही किया, बल्कि इसे अपने समय का विशालतम दृढ़तम तथा सबसे समृद्ध राज्य भी बना दिया। अकबर ने हिन्दूकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसने ईरान के सफावियों और तूरान (मध्य एशिया) के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर अंकुश लगाए रखा। उसने 1595 में कन्धार पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 2.
सुलेखन का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कौशल मानी जाती थी। इसका प्रयोग भिन्न- भिन्न शैलियों में होता था ‘नस्तलिक’ अकबर की मनपसन्द शैली थी। यह एक ऐसी तरल शैली थी जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था। इसे 5 से 10 मिलीमीटर की नोक वाले छटे हुए सरकंडे के टुकड़े से स्याही में डुबोकर लिखा जाता था।

प्रश्न 3.
मुगल पांडुलिपियों में चित्रों के समावेश का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
(1) चित्र पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं।
(2) जहाँ लिखित माध्यम से राजा और राजा की शक्ति के विषय में जो बात कही न जा सके, उन्हें चित्रों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता था।
(3) अबुल फजल के अनुसार चित्रकला एक जादुई कला थी। उसकी राय में चित्रकला किसी निर्जीव वस्तु में भी प्राण फूँक सकती थी।

प्रश्न 4.
“अबुल फजल ने न्यायपूर्ण सम्प्रभुता को एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषित किया है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्वों की रक्षा करता है-
(1) जीवन (जन),
(2) धन (मूल्य),
(3) सम्मान (नामस),
(4) विश्वास (दीन)।
इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण सम्प्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस सामाजिक अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे।

प्रश्न 5.
मुगल काल में न्याय के विचार को दृश्य रूप में किन प्रतीकों के माध्यम से निरूपित किया गया? इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
मुगल राजतंत्र में न्याय के विचार को सर्वोत्तम सद्गुण माना गया। कलाकारों द्वारा प्रयुक्त सर्वाधिक मनपसन्द प्रतीकों में से एक था. एक-दूसरे के साथ चिपटकर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी अथवा शेर और गाय इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दर्शाना था जहाँ दुर्बल तथा सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते थे।

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प्रश्न 6.
अकबर ने फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
अकबर ने फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया। इसका कारण यह था कि फतेहपुर | सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित थी,
जहाँ शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुकी थी। मुगल बादशाहों के चिश्ती सिलसिले के सूफियों के साथ अच्छे सम्बन्ध थे।

प्रश्न 7.
राज्यारोहण के बाद जहाँगीर द्वारा दिए गए पहले आदेश का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्यारोहण के बाद जहाँगीर ने जो पहला आदेश दिया, वह न्याय की जंजीर लगाने का था। इसका कारण यह था कि यदि न्याय करने वाले अधिकारी न्याय करने में देरी करें अथवा वे न्याय चाहने वाले लोगों के विषय में मिथ्याचार करें तो उत्पीड़ित व्यक्ति इस जंजीर को हिलाकर बादशाह का ध्यान आकृष्ट कर सकता था। इस जंजीर को शुद्ध सोने से बनाया गया था। यह 30 गज लम्बी थी तथा इसमें 60 पटयाँ लगी हुई थीं।

प्रश्न 8.
शाहजहाँ द्वारा किसे शाही राजधानी बनाया गया? उसका संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1648 में शाहजहाँ ने शाहजहांनाबाद को नई शाही राजधानी बनाया। दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में शाहजहाँनाबाद एक नई और शाही आबादी थी। यहाँ लाल किला, जामा मस्जिद, चांदनी चौक के बाजार की वृक्षवीथि और अभिजात वर्ग के बड़े-बड़े घर थे। शाहजहाँनाबाद विशाल एवं भव्य मुगल राजतंत्र की औपचारिक कल्पना को व्यक्त करता था।

प्रश्न 9.
‘कोर्निश’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुगल काल में ‘कोर्निश’ औपचारिक अभिवादन का एक ऐसा तरीका था, जिसमें दरबारी दाएँ हाथ की तलहधी को ललाट पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाते थे। यह इस बात का प्रतीक था कि कोर्निश करने वाला व्यक्ति अपने इन्द्रिय और मन के स्थल को हाथ लगाते हुए शुककर विनम्रतापूर्वक शाही दरबार में अपने को प्रस्तुत कर रहा था।

प्रश्न 10.
मुगल अभिजात वर्गों के बीच हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दरबार में अभिजात वर्ग के किसी व्यक्ति की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह बादशाह के कितना पास और दूर बैठा है। किसी भी दरबारी को बादशाह द्वारा दिया गया स्थान बादशाही की दृष्टि में उसकी महत्ता का प्रतीक था। बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था।

प्रश्न 11.
भारत में मुगल राजवंश का अन्त कैसे हुआ?
उत्तर:
1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल राजवंश की शक्ति घट गई। अतः विशाल मुगल साम्राज्य के स्थान पर कई क्षेत्रीय शक्तियाँ उभर आई, फिर भी सांकेतिक रूप से मुगल शासक की प्रतिष्ठा बनी रही। 1857 ई. में इस वंश के अन्तिम शासक बहादुरशाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका इस प्रकार मुगल राजवंश का अन्त हो गया।

प्रश्न 12.
मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्तों के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्तों के प्रमुख दो उद्देश्य निम्नलिखित थे.
(i) मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले समस्त लोगों के समक्ष मुगल राज्य को एक प्रबुद्ध राज्य के रूप में चित्रित करना।
(ii) मुगल शासन का विरोध करने वाले लोगों को यह बताना कि उनके सभी विरोधों का असफल होना निश्चित है।

प्रश्न 13.
न्याय की जंजीर किस बादशाह द्वारा लगवाई गई?
उत्तर:
न्याय की जंजीर जहाँगीर नामक बादशाह के द्वारा लगवाई गयी जो अपनी न्यायप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध था जहाँगीर ने सिंहासन पर आरूढ़ होने के बाद सबसे पहला आदेश न्याय की जंजीर लगाने के सम्बन्ध में दिया। कोई भी व्यक्ति जिसे प्रशासन से न्याय न मिले, वह सीधे इस जंजीर को हिलाकर सम्बद्ध घण्टे को बजाकर न्याय की फरियाद बादशाह से कर सकता था। इस जंजीर को विशुद्ध रूप से सोने से बनाया गया था यह 30 गज लम्बी थी तथा इसमें 60 घण्टियाँ लगी हुई थीं।

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प्रश्न 14.
मुगल काल में अभिवादन का ‘चार तसलीम’ तरीका क्या था?
उत्तर:
मुगल काल में अभिवादन का ‘चार तसलीम’ तरीका दाएँ हाथ को जमीन पर रखने से शुरू होता था। इसमें तलहथी ऊपर की ओर होती थी। इसके बाद हाथ को धीरे-धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा होता था तथा तलहथी को सिर के ऊपर रखता था ऐसी तसलीम चार बार की जाती थी। तसलीम का शाब्दिक अर्थ आत्मनिवेदन है।

प्रश्न 15.
मुगल दरबार में राजनयिक दूत सम्बन्धी नयाचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुगल बादशाह के समक्ष प्रस्तुत होने वाले राजदूत से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अभिवादन के मान्य रूपों में से एक या तो बहुत झुककर अथवा जमीन को चूमकर अथवा फारसी रिवाज के अनुसार छाती के सामने हाथ बाँधकर तरीके से अभिवादन करेगा। अंग्रेज राजदूत टामस रो ने यूरोपीय रिवाज के अनुसार जहाँगीर के सामने केवल झुककर अभिवादन किया और बैठने के लिए कुर्सी का आग्रह किया।

प्रश्न 16.
शब-ए-बारात’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शब-ए-बारात हिजरी कैलेंडर के आठवें महीने अर्थात् चौदहवें सावन को पड़ने वाली पूर्ण चन्द्ररात्रि है। भारतीय उपमहाद्वीप में प्रार्थनाओं और आतिशबाजियों के खेल द्वारा इस दिन को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात मुसलमानों के लिए आगे आने वाले वर्ष का भाग्य निर्धारित होता है और पाप माफ कर दिए जाते हैं।

प्रश्न 17.
सम्मान का जामा’ तथा ‘सरप्पा’ नामक पुरस्कार क्या थे?
उत्तर:
योग्य व्यक्तियों को मुगल सम्राटों द्वारा पुरस्कार दिए जाते थे। इन पुरस्कारों में ‘सम्मान का जामा’ (खिल्लत) भी शामिल था जिसे पहले कभी न कभी बादशाह द्वारा पहना गया हुआ होता था इसलिए यह समझा जाता था कि वह बादशाह के आशीर्वाद का प्रतीक था ‘सरप्पा’ (सर से पाँव तक) एक अन्य उपहार था इस उपहार के तीन हिस्से हुआ करते थे- जामा, पगड़ी और पटका।

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प्रश्न 18.
‘शाही परिवार’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘हरम’ शब्द का प्रयोग प्राय: मुगलों की घरेलू दुनिया की ओर संकेत करता है। यह शब्द फारसी से निकला है जिसका तात्पर्य है पवित्र स्थान’ मुगल परिवार (शाही) में बादशाह की पत्नियों और उपपत्नियाँ, उसके निकटस्थ और दूर के सम्बन्धी (माता, सौतेली व उपमाताएँ. बहन, पुत्री, बहू, चाची-मौसी, बच्चे आदि) व महिला परिचारिकाएँ तथा गुलाम होते थे।

प्रश्न 19.
‘जात’ और ‘सवार’ मनसबदार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुगल काल में सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो तरह के संख्या-विषयक पद होते थे। ‘जात’ शाही पदानुक्रम में अधिकारी ( मनसबदार) के पद और वेतन का सूचक था और ‘सवार’ यह सूचित करता था कि उससे सेवा में कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित था। सत्रहवीं शताब्दी में 1000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार अभिजात ‘उमरा’ कहलाते थे।
हैं?

प्रश्न 20.
‘तैनात ए रकाब से आप क्या समझते
उत्तर:
भुगल दरबार में नियुक्त ‘तैनात ए रकाब ‘ अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था, जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। ये प्रतिदिन दो बार सुबह व शाम को सार्वजनिक सभा- भवन में बादशाह के प्रति आत्मनिवेदन करने के लिए उपस्थित होते थे। वे दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा का दायित्व भी वहन करते थे।

प्रश्न 21.
अब्दुल कादिर बदायूँनी द्वारा ‘हरम में होम’ का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
‘अब्दुल कादिर बदायूँनी ने लिखा है कि युवावस्था के आरम्भ से ही, मुगल सम्राट अकबर अपनी पत्नियों अर्थात् भारत के राजाओं की पुत्रियों के सम्मान में ‘हरम में होम’ का आयोजन कर रहे थे। यह ऐसी धर्मक्रिया थी जो अग्नि पूजा (आतिश-परस्ती) से उत्पन्न हुई थी परन्तु अपने 25वें शासन वर्ष ( 1578) के नए वर्ष पर उसने सार्वजनिक रूप से सूर्य और अग्नि को दंडवत् प्रणाम किया।

प्रश्न 22.
मुगल सम्राट अपने राजवंश का इतिहास क्यों लिखवाना चाहते थे?
उत्तर:
मुगल सम्राटों की यह मान्यता थी कि उन्हें एक विशाल एवं विजातीय जनता पर शासन के लिए स्वयं ईश्वर ने नियुक्त किया है। ऐसा दृष्टिकोण सदैव महत्त्वपूर्ण बना रहा। इस दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार का एक तरीका राजवंशीय इतिहास लिखना लिखवाना था। अतः मुगल सम्राटों ने दरबारी इतिहासकारों को विवरण लिखने का कार्य सौंपा। इन विवरणों में मुगल सम्राटों के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 23.
मुगल इतिवृत्त / इतिहास के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मुगल इतिवृत्त घटनाओं का काल क्रमानुसार विवरण प्रस्तुत करते हैं। मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक विद्वानों के लिए ये इतिवृत्त अनिवार्य स्रोत हैं। एक ओर तो ये इतिवृत्त मुगल साम्राज्य की संस्थाओं के बारे में तथ्यात्मक सूचनाएँ प्रदान करते थे, तो दूसरी ओर ये उन उद्देश्यों का प्रसार करते थे जिन्हें मुगल सम्राट अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। ये इतिवृत्त यह प्रकट करते हैं कि शाही विचारधाराएँ कैसे रची तथा प्रसारित की जाती थीं।

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प्रश्न 24.
खिल्लत, सरण्या, पद्म मुरस्सा आदि उपहारों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मुगल सम्राटों द्वारा योग्य व्यक्तियों को पदवियाँ और पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया जाता था खिल्लत पुरस्कार में बादशाह अपने द्वारा पहना हुआ जामा उपहारस्वरूप देता था। इसे बादशाह के आशीर्वाद का प्रतीकं समझा जाता था सरप्पा, सिर से पाँव तक का उपहार होता था। इसमें जामा, पगड़ी और पटका शामिल होते थे। बादशाह द्वारा उपहार में दिए गए कमल की मंजरियों वाले रत्नजड़ित गहनों के सेट को पद्म मुरस्सा कहा जाता था।

प्रश्न 25.
मुगल वास्तुकला में जहाँआरा के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जहाँआरा मुगल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री थी। उसने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की कई वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। इनमें से आँगन एवं बाग के साथ एक दोमंजिली भव्य कारवाँ सराय थी। शाहजहाँनाबाद के मुख्य केन्द्र चाँदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँआरा द्वारा बनाई गई थी।

प्रश्न 26.
सरकारी अधिकारियों के दर्जे जात, मनसबदार, उमरा आदि से आपका क्या तात्पर्य सवार, है?
उत्तर:
सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो तरह के ओहदे होते थे। यह ओहदे संख्या विषयक होते थे। शाही पदानुक्रम में जात अधिकारी जिसे मनसबदार कहा जाता था, के पद और वेतन को सूचित करता था और ‘सवार’ से यह सूचित होता था कि वह कितने घुड़सवार रख सकता था। 1000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार ‘उमरा’ जो कि अमीर का बहुवचन है, कहे जाते थे।

प्रश्न 27.
मीर बख्शी कौन था? मीर बख्शी तथा उसका कार्यालय क्या कार्य करता था?
उत्तर:
मुगलकाल में मीर बख्शी सर्वोच्च वेतनदाता था। मीर बख्शी खुले दरबार में बादशाह के दायीं ओर खड़ा रहकर नियुक्ति तथा पोदन्नति पाने वाले उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था उसका कार्यालय उसकी मुहर एवं हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर तथा हस्ताक्षर वाले आदेश भी तैयार करता था।

प्रश्न 28.
मुगल कौन थे?
उत्तर:
‘मुगल’ शब्द की उत्पत्ति ‘मंगोल’ से हुई है। मुगल शासकों ने अपने को ‘तैमूरी’ कहा क्योंकि पितृपक्ष से वे तुर्की शासक तिमूर के वंशज थे प्रथम मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेजखों का सम्बन्धी था। वह तुर्की भाषा बोलता था। मुगल चगताई मूल के थे तथा तुर्की उनकी मातृभाषा थी। सोलहवीं शताब्दी में यूरोपियों ने मुगल राजवंश के लिए मुगल शब्द का प्रयोग किया था उस समय से ही इस शब्द का निरन्तर प्रयोग होता रहा है।

प्रश्न 29.
” मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्त्रोत हैं।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
इतिवृत्त किस प्रकार मुगल सम्राटों के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं?
उत्तर:
मुंगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण खोत हैं। ये इतिवृत्त मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने मुगल- राज्य को एक प्रबुद्ध राज्य के रूप में दर्शाने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इसी प्रकार उनका उद्देश्य मुगल शासन का विरोध करने वाले लोगों को यह भी बताना था कि उनके सभी विरोधों का असफल होना निश्चित है। मुगल सम्राट यह भी चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन के विवरण उपलब्ध रहे।

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प्रश्न 30.
“मुगल इतिवृत्तों के लेखक निरपवाद रूप से दरबारी ही रहे।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
मुगल इतिवृत्तों में शासक पर केन्द्रित घटनाओं, शासक के परिवार दरबार व अभिजात वर्ग, बुद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाओं का समावेश था। अकबर, शाहजहाँ तथा आलमगीर (औरंगजेब) के शासन काल की घटनाओं पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक ‘अकबरनामा’, ‘शाहजहाँनामा’ तथा ‘आलमगीरनामा’ यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य एवं दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

प्रश्न 31.
अकबर ने फारसी को दरबार की मुख्य भाषा क्यों बनाया?
उत्तर:
अकबर ने सोच समझकर फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया। सम्भवतया ईरान के साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक सम्पर्कों के साथ-साथ मुगल दरबार में पद पाने को इच्छुक ईरानी और मध्य एशियाई प्रवासियों ने अकबर को फारसी भाषा को अपनाए जाने के लिए प्रेरित किया होगा। फारसी को दरबार की भाषा का ऊंचा स्थान दिया गया तथा उन लोगों को शक्ति तथा प्रतिष्ठा प्रदान की गई, जिनका इस भाषा पर अच्छा नियंत्रण था।

प्रश्न 32.
मुगल पाण्डुलिपियों में चित्रों को किस प्रकार संलग्न किया जाता था?
उत्तर:
मुगल पांडुलिपियों की रचना में चित्रकारों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था। किसी मुगल सम्राट के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ ही उन घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में भी वर्णित किया जाता था जब किसी पुस्तक में घटनाओं अथवा विषयों को दृश्य रूप में वर्णित किया जाना होता था, तो सुलेखक उसके आस-पास के पृष्ठों को खाली छोड़ देते थे। चित्रकार शब्दों में वर्णित विषय को अलग से चित्र के रूप में उतारकर वहाँ संलग्न कर देते थे।

प्रश्न 33.
मुगल पाण्डुलिपियों में चित्रों को संलग्न करने का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
पाण्डुलिपियों में चित्रों का महत्त्व-
(1) चित्र पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते थे।
(2) राजा और उसकी शक्ति के बारे में जो बात लिखित रूप से नहीं कही जा सकती थी, उसे चित्र व्यक्त कर देते थे।
(3) अबुल फजल ने चित्रकारी को एक ‘जादुई कला’ की संज्ञा दी है उसके अनुसार चित्रकला किसी निर्जीव वस्तु को भी सजीव रूप प्रदान कर सकती है।

प्रश्न 34.
मुगल सम्राट तथा उसके दरबार का चित्रण करने वाले चित्रों की रचना को लेकर शासकों और उलमा के बीच तनाव की स्थिति क्यों बनी रहती थी?
उत्तर:
उलमा रूढ़िवादी मुसलमान वर्ग के प्रतिनिधि थे। उन्होंने कुरान के साथ-साथ हदीस में प्रतिष्ठापित मानव रूपों के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबन्ध का आह्वान किया। हदीस में एक प्रसंग में पैगम्बर साहब को प्राकृतिक तरीके से जीवित रूपों के चित्रण की मनाही करते हुए उल्लिखित किया गया है। इसका कारण यह है कि ऐसा करने से यह लगता था कि कलाकार रचना की शक्ति को अपने हाथ में लेने का प्रयास कर रहा है। यह केवल ईश्वर का ही कार्य था।

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प्रश्न 35.
मुगल शासनकाल की पांडुलिपियों में चित्रों को किस प्रकार संलग्न किया जाता था?
उत्तर:
मुगल शासनकाल की पांडुलिपियों की रचनाओं में चित्रकारों का भी बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान था। किसी मुगल बादशाह के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ-साथ उन घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में दर्शाया जाता था। जब किसी पुस्तक में घटनाओं अथवा विषयों को दृश्य रूप में व्यक्त किया जाना होता था तो सुलेखक उसके आसपास के पृष्ठों को खाली छोड़ देते थे। चित्रकार शब्दों में वर्णित विषय को अलग से चित्रों में उतारकर वहाँ संलग्न कर देते थे। ये लघु चित्र होते थे जिन्हें पांडुलिपि के पृष्ठों पर आसानी से लगाया और देखा जा सकता था।

प्रश्न 36.
दैवीय प्रकाश से आप क्या समझते हैं? दरबारी इतिहासकारों ने इसकी व्याख्या कैसे की?
उत्तर:
मुगल दरबार के इतिहासकारों ने मुगल सम्राटों का महिमामण्डन करने के लिए उन्हें इस प्रकार वर्णित किया कि वे ईश्वर से सीधे दैवीय शक्ति या दैवीय प्रकाश प्राप्त करते थे। इतिहासकारों ने इसके लिए एक दंतकथा का वर्णन किया है। इस दंतकथा में वर्णन है कि मंगोल रानी अलानकुआ अपने शिविर में विश्राम करते हुए सूर्य की किरण द्वारा गर्भवती हुई। उससे उत्पन्न सन्तान दैवीय प्रकाश से युक्त थी। प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के अनुसार देवीय प्रकाश से युक्त राजा अपनी प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था। अबुल फजल ने ईश्वर से उद्भूत प्रकाश को ग्रहण करने वाली वस्तुओं में मुगल राजत्व को सबसे शीर्ष स्थान पर रखा।

प्रश्न 37.
मुगल किताबखानों में रचित पाण्डुलिपियों की रचना में किन-किन लोगों का योगदान होता था?
अथवा
पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले लोगों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले अनेक लोग शामिल थे। कागज बनाने बालों की पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने, सुलेखकों की पाठ की नकल तैयार करने, कोफ्तगरों की पृष्ठों को चमकाने के लिए, चित्रकारों की पाठ से दृश्यों को चित्रित करने के लिए और जिल्दसाजों की प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा कर उसे अलंकृत आवरण में बैठाने के लिए आवश्यकता होती थी। तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु के रूप में देखा जाता था।

प्रश्न 38.
अबुल फजल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अबुल फजल अकबर का एक प्रसिद्ध दरबारी इतिहासकार था। अबुलफजल का पालन-पोषण मुगल राजधानी आगरा में हुआ था। वह अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद का प्रकाण्ड विद्वान था। वह एक प्रभावशाली विवादी तथा स्वतंत्र चिन्तक था। उसने सदैव रूढ़िवादी उलमा के विचारों का विरोध किया। अबुल फजल के इन गुणों से अकबर बढ़ प्रभावित हुआ। उसने अबुलफजल को अपने सलाहकार और अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में बहुत उपयुक्त पाया।

प्रश्न 39.
‘अकबरनामा’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अबुलफजल द्वारा रचित अकबरनामा तीन जिल्दों में विभाजित है जिनमें से प्रथम दो इतिहास हैं। तीसरी जिल्द ‘आइन-ए-अकबरी’ है पहली जिल्द में आदम से | लेकर अकबर के जीवन के एक खगोलीय कालचक्र तक (30 वर्ष) का मानव जाति का इतिहास है। दूसरी जिल्द अकबर के 46वें शासन वर्ष (1601 ई.) पर समाप्त होती है ‘अकबरनामा’ में राजनीतिक घटनाओं, साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक तथा सांस्कृतिक आदि पक्षों का विस्तृत विवरण मिलता है।

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प्रश्न 40.
‘बादशाहनामा’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘बादशाहनामा’ का लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी था। ‘बादशाहनामा’ सरकारी इतिहास है। यह तीन जिल्दों में विभाजित है। प्रत्येक जिल्द दस चन्द्र वर्षों का विवरण देती है। लाहौरी ने शाहजहाँ के शासन (1627-47) के पहले दो दशकों पर पहला व दूसरा दफ्तर लिखा। इन जिल्दों में बाद में शाहजहाँ के वजीर सादुल्लाखाँ ने सुधार किया। वृद्धावस्था की कमजोरियों के कारण लाहौरी तीसरे दशक के बारे में नहीं लिख सका जिसे बाद में इतिहासकार वारिस ने लिखा।

प्रश्न 41.
औपनिवेशिक काल में ऐतिहासिक पांडुलिपियों को किस प्रकार संरक्षित किया गया?
उत्तर:
1784 ई. में सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित ‘एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल ने अनेक भारतीय पांडुलिपियों के सम्पादन, प्रकाशन और अनुवाद का दायित्व अपने ऊपर ले लिया। ‘अकबरनामा’ तथा ‘बादशाहनामा’ के सम्पादित पाठान्तर सर्वप्रथम एशियाटिक सोसाइटी द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी में प्रकाशित किए गए। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हेनरी बेवरिज ने ‘अकबरनामा’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। ‘बादशाहनामा’ के केवल कुछ ही अंशों का अभी तक अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है।

प्रश्न 42.
” मुगल सम्राटों में दैवीय प्रकाश सम्प्रेषित होता था। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दरबारी इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों के आधार पर यह दर्शाया कि मुगल सम्राटों को सीधे ईश्वर से शक्ति मिली थी। अबुल फजल ने ईश्वरीय प्रकाश को ग्रहण करने वाली वस्तुओं में मुगल राजत्व को सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचार के अनुसार यह दैवीय प्रकाश राजा में सम्प्रेषित होता था जिसके बाद राजा अपनी प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।

प्रश्न 43.
“सुलह-ए-कुल एकीकरण का एक स्रोत था।” विवेचना कीजिए।
अथवा
सुलहकुल का आदर्श क्या था? इसे किस प्रकार लागू किया गया?
उत्तर:
अबुल फसल ‘सुलह-ए-कुल’ (पूर्ण शान्ति ) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है। यद्यपि ‘सुलह-ए-कुल’ में सभी धर्मों तथा मतों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता थी, किन्तु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य- सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएंगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे। ईरानी तूरानी, अफगानी राजपूत, दक्खनी आदि अभिजातों को पद और पुरस्कार दिए गए। 1563 में अकबर ने तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया।

प्रश्न 44.
अबुल फजल ने प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषित क्यों किया? उत्तर- अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्त्वों की रक्षा करता है –

  1. जीवन (जन),
  2. धन (माल),
  3. सम्मान (नामस) तथा
  4. विश्वास ( दोन )।

इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण सम्प्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे। न्याय के विचार को मुगल राजतन्त्र में सर्वोत्तम सद्गुण माना गया। न्याय के विचार को चित्रों में अनेक प्रतीकों के रूप में दर्शाया गया।

प्रश्न 45.
मुगल दरबार में अभिजात वर्ग के बीच उनकी हैसियत दर्शाने वाले नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दरबार में किसी अभिजात की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह बादशाह के कितने पास और दूर बैठा है। किसी भी दरबारी को बादशाह द्वारा दिया गया स्थान बादशाह की दृष्टि में उसकी महत्ता का द्योतक था दरबारी समाज में सामाजिक नियन्त्रण का व्यवहार दरबार में मान्य सम्बोधन, शिष्टाचार तथा बोलने के नियमों द्वारा होता था। शिष्टाचार का उल्लंघन करने वालों को तुरन्त ही दंडित किया जाता था।

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प्रश्न 46.
राजवंशीय इतिहास लेखन, इतिवृत्त से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मुगलवंशीय साम्राज्य के शासकों ने अपने उद्देश्यों के प्रचार प्रसार एवं राजवंशीय इतिहास के संकलन हेतु दरबारी इतिहासकारों को इतिवृत्तों के लेखन का कार्य सौंपा। आधुनिक इतिहासकारों ने इस शैली को इतिवृत्ति इतिहास के नाम से सम्बोधित किया। इतिवृत्तों द्वारा हमें मुगल राज्य की घटनाओं का कालक्रम के अनुसार क्रमिक विवरण प्राप्त होता है इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के प्रामाणिक स्त्रोत थे: जिन्हें इनके लेखकों द्वारा परिश्रम से एकत्र और वर्गीकृत किया था। इतिवृत्तों के द्वारा इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि शाही विचारधाराएँ कैसे प्रसारित की जाती हैं।

प्रश्न 47.
मुगल दरबार में राजनयिक दूतों से सम्बन्धित न्याचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुगल दरबार में बादशाह के सामने प्रस्तुत होने वाले राजदूत से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अभिवादन के मान्य रूपों में से एक या तो बहुत झुक कर अथवा जमीन को चूम कर अथवा फारसी रिवाज के अनुसार छाती के सामने हाथ बाँध कर- तरीके से अभिवादन करेगा। जेम्स प्रथम के अंग्रेज दूत टामसरो ने यूरोपीय रिवाज के अनुसार जहाँगीर के सामने केवल झुककर अभिवादन किया और फिर बैठने के लिए कुर्सी का आग्रह कर दरबार को आश्चर्यचकित कर दिया।

प्रश्न 48.
झरोखा दर्शन की प्रथा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में बादशाह अपने दिन की शुरूआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था। इसके बाद वह पूर्व की ओर मुँह किए एक छोटे छज्जे अर्थात् शरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भारी भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा करती थी। झरोखा दर्शन की प्रथा अकबर द्वारा शुरू की गई थी। इस प्रथा का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति का और विस्तार करना था।

प्रश्न 49.
अबुल फजल के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा का एक परिपूर्ण रक्षक है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा का परिपूर्ण रक्षक है। वह प्रजा के जीवन, धन, सम्मान तथा विश्वास की रक्षा करता है जीवन, धन, सम्मान तथा विश्वास की रक्षा के बदले वह प्रजा से आज्ञापालन और राज्य के संसाधनों में कर के रूप में उचित हिस्सेदारी की आशा करता है। न्यायपूर्ण बादशाह ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस सामाजिक अनुबन्ध का दृढ़तापूर्वक पालन कर सकने में समर्थ थे। मुगल सम्राटों के इन न्यायपूर्ण विचारों का तत्कालीन चित्रकारों द्वारा बादशाहनामा आदि ग्रन्थों में प्रतीकात्मक रूप से सचित्र निरूपण किया गया।

प्रश्न 50.
अबुल फजल ने अकबर के दरबार का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
अबुल फजल के अनुसार जब भी मुगल- सम्राट अकबर दरबार लगाते थे तो एक विशाल ढोल पीटा जाता था और इसके साथ-साथ अल्लाह का गुणगान होता था। बादशाह के पुत्र, पौत्र, दरबारी आदि दरबार में उपस्थित होते थे और कोर्निश (औपचारिक अभिवादन का एक तरीका ) कर अपने स्थान पर खड़े रहते थे प्रसिद्ध विद्वान तथा विशिष्ट कलाओं में निपुण लोग आदर व्यक्त करते थे तथा न्यायिक अधिकारी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे बादशाह सभी मामलों को सन्तोषजनक तरीके से निपटाते थे।

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प्रश्न 51.
शाहजहाँ के ‘रत्नजड़ित सिंहासन’ (तख्त- ए-मुरस्सा) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रत्नजड़ित सिंहासन की भव्य संरचना में एक छतरी थी जो द्वादशकोणीच स्तम्भों पर टिकी हुई थी। इसकी ऊँचाई सीढ़ियों से गुम्बद तक लगभग 10 फीट थी। बादशाह ने यह आदेश दिया कि 86 लाख रुपये के रत्न तथा बहुमूल्य पत्थर तथा चौदह लाख रुपये के मूल्य के एक लाख तोला सोने से इसे सुसज्जित किया जाना चाहिए। सिंहासन की साज-सज्जा में सात वर्ष लग गए। इसकी सजावट में प्रयुक्त हुए बहुमूल्य पत्थरों में रुबी था जिसका मूल्य एक लाख रुपये था।

प्रश्न 52.
मुगल दरबार में मनाए जाने वाले विशिष्ट उत्सवों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, ईद, शब-ए-बारात तथा होली जैसे विशिष्ट अवसरों पर दरबार का वातावरण सजीव हो उठता था। सजे हुए डिब्बों में रखी सुगंधित मोमबत्तियाँ और महल की दीवारों पर लटक रहे रंग-बिरंगे बन्दनवार आने वाले लोगों को अत्यधिक प्रभावित करते थे। मुगल सम्राट वर्ष में तीन मुख्य त्यौहार मनाया करते थे-सूर्यवर्ष और चन्द्रवर्ष के अनुसार सम्राट का जन्म दिन और वसन्तागमन पर फारसी नववर्ष नौरोज

प्रश्न 53.
मुगल काल में शाही परिवारों में विवाहों के आयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में शाही परिवारों में विवाहों का आयोजन काफी खर्चीला होता था 1633 ई. में शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह का विवाह राजकुमार परवेज की पुत्री नादिरा से हुआ था। विवाह के उपहारों के प्रदर्शन की व्यवस्था दीवान-ए-आम में की गई थी। बादशाह तथा हरम की स्वियों दोपहर में इसे देखने के लिए आई। हिनाबन्दी (मेंहदी लगाना) की रस्म दीवान-ए-खास में अदा की गई। दरबार में उपस्थित लोगों के बीच पान, इलायची तथा मेवे बांटे गए।

प्रश्न 54.
शाहजहाँ के तख्त-ए-मुरस्सा के बारे में बादशाहनामा में क्या वर्णन किया गया है?
उत्तर:
आहरा महल के सार्वजनिक सभा भवन में रखे हुए शाहजहाँ के रत्नजड़ित सिंहासन के बारे में बादशाहनामा में निम्नलिखित प्रकार से वर्णन किया गया है-
सिंहासन की भव्य संरचना में एक छतरी है जो द्वादशकोणीय स्तम्भों पर टिकी हुई है। इसकी ऊँचाई सीढ़ियों से गुंबद तक पाँच क्यूबिट (लगभग 10 फुट) है। अपने राज्यारोहण के समय महामहिम ने यह आदेश दिया कि 86 लाख रुपए के रत्न तथा बहुमूल्य पत्थर और एक लाख तोला सोना जिसकी कीमत चौदह लाख रुपए है, से इसे सजाया जाना चाहिए। सिंहासन की साज-सज्जा में सात वर्ष लग गए। इसकी सजावट में प्रयुक्त हुए बहुमूल्य पत्थरों में रूबी था जिसकी कीमत एक लाख रुपए थी। इस रूबी पर महान बादशाह तिमूर साहिब-ए-किरान, मिर्जा शाहरुख, मिर्जा उलुग बेग और शाह अब्बास के साथ-साथ अकबर, जहाँगीर और स्वयं महामहिम के नाम अंकित थे।

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प्रश्न 55.
शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह के विवाह के आयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बादशाहनामा में दाराशिकोह के विवाह के आयोजन का वर्णन किया गया है। शाही परिवारों में विवाहों का आयोजन अत्यन्त धूम-धाम से किया जाता था। इसमें काफी धनराशि व्यय की जाती थी। 1633 ई. में दाराशिकोह और नादिरा, जो कि राजकुमार परवेज की पुत्री थी, के विवाह की व्यवस्था राजकुमारी जहाँआरा और दिवंगत महारानी मुमताज महल की प्रमुख नौकरानी सती उननिसाखानुम द्वारा की गई दीवान-ए-आम में उपहारों के प्रदर्शन की भव्य व्यवस्था की गई थी। हिनाबन्दी दीवाने खास में की गई। दरबार में उपस्थित व्यक्तियों के बीच पान, इलायची और मेवे बांटे गए। विवाह के इस आयोजन में तत्कालीन समय में 32 लाख रु. खर्च हुए। इनमें 6 लाख रु. शाही खजाने से, 16 लाख रु. जहाँआरा तथा शेष धनराशि दुल्हन की माँ के द्वारा दिए गए थे।

प्रश्न 56
मुगल परिवार में बेगमों, अगहा एवं अगाचा स्त्रियों की स्थिति का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मुगल परिवार में शाही परिवारों से आने वाली स्त्रियां बेगमें कहलाती थीं अगहा स्वियों ये थीं जिनका जन्म कुलीन परिवार में नहीं हुआ था। दहेज (मेहर) के रूप में विपुल धन नकद और बहुमूल्य वस्तुएँ लेने के बाद विवाह करके आई बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक रूप से ‘अगहाओं’ की तुलना में अधिक ऊँचा दर्जा और सम्मान प्राप्त था। उपपत्नियों (अगाचा) की स्थिति सबसे निम्न थी। इन सभी को नकद मासिक भत्ता तथा अपने- अपने दर्जे के हिसाब से उपहार मिलते थे।

प्रश्न 57.
“राजपूत कुलों एवं मुगलों, दोनों के लिए विवाह राजनीतिक सम्बन्ध बनाने व मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का एक तरीका था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विवाह में पुत्री को पेंटस्वरूप दिए जाने के साथ प्रायः एक क्षेत्र भी उपहार में दिया जाता थे। इससे विभिन्न शासक वर्गों के बीच पदानुक्रमिक सम्बन्धों की निरन्तरता निश्चित हो जाती थी इस प्रकार के विवाह और उनके फलस्वरूप विकसित सम्बन्धों के कारण ही मुगल शासक बन्धुता के एक व्यापक तन्त्र का निर्माण कर सके। इसके फलस्वरूप उनके महत्त्वपूर्ण वर्गों से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुए और उन्हें एक विशाल साम्राज्य को सुरक्षित रखने में सहायता मिली।

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प्रश्न 58.
गुलबदन बेगम पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री, हुमायूँ की बहिन तथा अकबर की बुआ थी। उसने ‘हुमायूँनामा’ नामक पुस्तक लिखी जिससे हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की एक झलक मिलती है। गुलबदन तुर्की तथा फारसी में धाराप्रवाह लिख सकती थी। गुलबदन ने जो लिखा वह मुगल बादशाहों की प्रशस्ति नहीं थी, बल्कि उसने राजाओं और राजकुमारों के बीच चलने वाले संघर्षों और तनावों का उल्लेख किया है। उसने परिवार की स्वियों द्वारा कुछ झगड़ों को सुलझाने का भी उल्लेख किया है।

प्रश्न 59.
“योग्य व्यक्तियों को पदवियाँ देना मुगल राजतन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष था।” विवेचना कीजिए।
अथवा
मुगल सम्राटों द्वारा अभिजात वर्ग के लोगों को प्रदान की जाने वाली पदवियों एवं पुरस्कारों का वर्णन कीजिए। उत्तर- ‘आसफ खाँ’ की पदवी उच्चतम मन्त्रियों को दी जाती थी। औरंगजेब ने अपने दो उच्चपदस्थ अभिजात जयसिंह और जसवन्त सिंह को ‘मिर्जा राजा’ की पदवी प्रदान की। योग्यता के आधार पर पदवियाँ अर्जित की जा सकती थीं कुछ मनसबदार धन देकर भी पदवियाँ प्राप्त करने का प्रयास करते थे। अन्य पुरस्कारों में सम्मान का ‘जामा’ (खिल्लत) भी शामिल था ‘सरप्पा’ एक अन्य उपहार था। इस उपहार के तीन भाग हुआ करते थे
(1) जामा
(2) पगड़ी तथा
(3) पटका।

प्रश्न 60.
दरबारियों एवं राजदूतों द्वारा मुगल बादशाहों को दिए जाने वाले उपहारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोई भी दरबारी बादशाह के पास खाली हाथ नहीं जाता था। वह या तो नज के रूप में थोड़ा धन या पेशकश के रूप में मोटी रकम बादशाह की सेवा में प्रस्तुत करता था। राजनयिक सम्बन्धों में उपहारों को सम्मान और आदर का प्रतीक माना जाता था। राजदूत प्रतिद्वन्द्वी राजनीतिक शक्तियों के बीच सन्धि और सम्बन्धों के द्वारा समझौता करवाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते थे। ऐसी परिस्थितियों में उपहारों की महत्त्वपूर्ण प्रतीकात्मक भूमिका होती थी।

प्रश्न 61.
‘जात’ और ‘सवार’ मनसब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुगलकाल में सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पर्दों में दो प्रकार के संख्या-विषयक पद होते थे-
(1) जात तथा
(2) सवार ‘जात’ शाही पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद और वेतन का सूचक था। ‘सवार’ यह सूचित करता था कि उससे सेवा में कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित था। सत्रहवीं शताब्दी में 1000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार अभिजात ‘उमरा’ कहलाते थे।

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प्रश्न 62.
अभिजात वर्ग की सैनिक और असैनिक
कार्यों में क्या भूमिका थी?
उत्तर:
(1) अभिजात सैन्य अभियानों में अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे।
(2) वे प्रान्तों में साम्राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे।
(3) प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों को भर्ती करता था। उन्हें हथियारों आदि से लैस करता था और उन्हें प्रशिक्षण देता था।
(4) घुड़सवार सेना मुगल सेना का अपरिहार्य अंग थी। घुड़सवार सैनिक उत्कृष्ट श्रेणी के घोड़े रखते थे।

प्रश्न 63,
“अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक माध्यम थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शाही सेवा में आने का इच्छुक व्यक्ति एक अभिजात के माध्यम से प्रार्थना-पत्र देता था जो बादशाह के सामने तजवीज प्रस्तुत करता था यदि प्रार्थी को सुयोग्य माना जाता था, तो उसे मनसब प्रदान किया जाता था। मीरबख्शी (उच्चतम वेतनदाता) खुले दरबार में बादशाह के दाएँ ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था। उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश तैयार करता था।

प्रश्न 64.
मुगलों के केन्द्रीय शासन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सम्राट अपने साम्राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था साम्राज्य की समस्त शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित थीं। शासन- कार्यों में सहायता व सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती थी। मीरबख्शी, दीवान-ए-आला तथा सद्र- उस सुदूर प्रमुख मन्त्री थे मीरबख्शी नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था दीवान-ए-आला आय-व्यय का हिसाब रखता था तथा सद्र-उस-सुदूर अनुदान का मन्त्री और स्थानीय न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रभारी था।

प्रश्न 65.
“सटीक और विस्तृत आलेख तैयार करना मुगल प्रशासन के लिए मुख्य रूप से महत्त्वपूर्ण था। ” विवेचना कीजिए।
अथवा
मुगल दरबार की गतिविधियों से सम्बन्धित सूचनाएँ किस प्रकार लेखबद्ध की जाती थीं?
उत्तर:
मौरबख्शी दरबारी लेखकों (वाकिया नवीसों) के समूह का निरीक्षण करता था। ये लेखक ही दरबार में प्रस्तुत किए जाने वाले सभी अर्जियों एवं दस्तावेजों तथा सभी शासकीय आदेशों (फरमानों) का आलेख तैयार करते थे। इसके अतिरिक्त, अभिजातों और क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि (वकील), दरबार की बैठकों (पहर) की तिथि और समय के साथ ‘उच्च दरबार से समाचार’ (अखबारात- ए-दरबार-ए-मुअल्ला) शीर्षक के अन्तर्गत दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे।

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प्रश्न 66.
अखबारात में मुगल दरबार से सम्बन्धित कौनसी सूचनाएँ होती थीं?
उत्तर:
अखबारात में हर प्रकार की सूचनाएँ होती थीं जैसे दरबार में उपस्थिति, पदों और पदवियों का दान, राजनयिक शिष्टमण्डलों, ग्रहण किए गए उपहारों अथवा किसी अधिकारी के स्वास्थ्य के बारे में बादशाह द्वारा की गई पूछताछ राजाओं और अभिजातों के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन का इतिहास लिखने के लिए ये सूचनाएँ बहुत उपयोगी होती थीं।

प्रश्न 67.
मुगल काल में साम्राज्य में समाचार वृत्तान्त और महत्त्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज भेजे जाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में समाचार वृत्तांत और महत्त्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही ठाक के द्वारा मुगल साम्राज्य में एक कोने से दूसरे कोने तक भेजे जाते थे। बांस के डिब्बों में लपेटकर रखे कागजों को लेकर हरकारों (कसीद अथवा पथमार) के दल दिन-रात दौड़ते रहते थे। काफी दूर स्थित प्रान्तीय राजधानियों से भी समाचार वृत्तान्त बादशाह को कुछ ही दिनों में मिल जाया करते थे। राजधानी से बाहर नियुक्त उच्च अधिकारी सूचनाएँ सन्देश वाहकों के द्वारा भेजते थे।

प्रश्न 68.
मुगलकालीन प्रान्तीय शासन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य अनेक प्रान्तों में विभाजित था। प्रान्तीय शासन के संचालन के लिए सूबेदार, दीवान, बख्शी, सद्र आदि अधिकारी होते थे। प्रान्तीय शासन का प्रमुख गवर्नर (सूबेदार) होता था जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था। प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बंटा हुआ था। इन क्षेत्रों में फौजदारों को विशाल घुड़सवार सेना और तोपचियों के साथ नियुक्त किया जाता था। परगनों (उप- जिला) के प्रबन्ध के लिए कानूनगो, चौधरी तथा काजी नियुक्त किये जाते थे।

प्रश्न 69.
कन्धार सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े की जड़ क्यों था? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कन्धार ईरान के सफावियों एवं मुगलों के बीच झगड़े की जड़ था क्योंकि ईरान का शासक शाह अब्बास कन्धार पर अधिकार स्थापित करना चाहता था। 1613 में जहाँगीर ने शाह अब्बास के दरबार में कन्धार को मुगलों के आधिपत्य में रहने देने की वकालत करने के लिए एक राजनयिक दूत भेजा, परन्तु यह शिष्टमण्डल सफल नहीं हुआ। 1622 में एक ईरानी सेना ने कन्धार पर आक्रमण कर मुगल सेना को पराजित कर दिया और कन्धार के दुर्ग पर टि अधिकार कर लिया।

प्रश्न 70.
आटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आरोमन साम्राज्य के साथ मुगलों ने अपने सम्बन्ध इस बात को ध्यान में रखकर बनाए कि वे आटोमन- नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों व तीर्थयात्रियों के स्वतन्त्र आवागमन को बनाये रखवा सकें मुगल बादशाह प्राय: धर्म एवं वाणिज्य के मुद्दों को मिलाने का प्रयास करता था। वह लाल सागर के बन्दरगाह अदन और मोरवा को बहुमूल्य वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहन देता था और इनकी विक्री से प्राप्त आय को उस क्षेत्र के धर्म-स्थलों व फकीरों में दान में बाँट देता था।

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प्रश्न 71.
जेसुइट धर्म प्रचारकों के साथ मुगलों के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था। उसके निमन्त्रण पर अनेक जेसुइट शिष्टमण्डल मुगल दरबार में आए। अकबर ने इन जेसुइट लोगों से ईसाई धर्म के विषय में वार्तालाप किया और उनसे बड़ा प्रभावित हुआ। जेसुइट लोगों को सार्वजनिक सभाओं में अकबर के सिंहासन के पास जगह दी जाती थी। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा उसके फुरसत के समय में वे प्रायः उसके साथ होते थे।

प्रश्न 72.
अकबर के धार्मिक विचारों के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिये। उत्तर- 1575 में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में इबादतखाने का निर्माण करवाया। उसने यहाँ इस्लाम, हिन्दू धर्म, ईसाई धर्म, जैन धर्म, पारसी धर्म के विद्वानों को आमन्त्रित किया। अकबर के धार्मिक विचार विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के विद्वानों से प्रश्न पूछने और उनके धर्म-सिद्धान्तों के बारे में जानकारी एकत्रित करने से विकसित हुए। धीरे- धीरे वह धर्मों को समझने के रूढ़िवादी तरीकों से दूर प्रकाश और सूर्य पर केन्द्रित दैवीय उपासना की ओर बढ़ा।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मुगल साम्राज्य के उत्कर्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
मुगल साम्राज्य के उत्थान व पतन का वर्णन कीजिए। उत्तर- मुगलों की उत्पत्ति ‘मुगल’ शब्द की उत्पत्ति मंगोल से हुई है। मुगलों ने स्वयं को ‘तैमूरी’ कहा क्योंकि पितृपक्ष से वे तुर्की शासक तिमूर के वंशज थे प्रथम मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज खाँ का सम्बन्धी था। उस समय से ही इस शब्द का निरन्तर प्रयोग होता रहा है।
मुगल साम्राज्य का उत्कर्ष
(1) जहीरुद्दीन बाबर जहीरुद्दीन बाबर मुगल- साम्राज्य का संस्थापक था उसे उसके प्रतिद्वन्द्वी उजबेकों ने उसके अपने देश फरगना से भगा दिया था। उसने सबसे पहले काबुल पर अधिकार किया। इसके बाद 1526 में अपने दल के सदस्यों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में वह भारतीय उपमहाद्वीप में और आगे की ओर बढ़ा। 1530 में बाबर की मृत्यु हो गई।

(2) हुमायूँ बाबर की मृत्यु के बाद 1530 में हुमायूँ गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासनकाल (1530-40.1555- 56) में साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। परन्तु वह अफगान नेता शेरशाह सूरी से पराजित हो गया। उसे विवश होकर भारत से भागना पड़ा। उसे ईरान के सफावी शासक के दरबार में शरण लेनी पड़ी 1555 में हुमायूँ ने अफगानों को पराजित कर दिया। परन्तु एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।

(3) जलालुद्दीन अकबर हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जलालुद्दीन अकबर (1556-1605) गद्दी पर बैठा। वह मुगल राजवंश का सबसे महान शासक माना जाता है। अकबर ने हिन्दुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसने ईरान के सफ़ावियों और तूरान (मध्य एशिया) के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर अंकुश लगाए रखा। 1605 में अकबर की मृत्यु हो गई।

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(4) अकबर के उत्तराधिकारी अकबर के बाद जहाँगीर (1605-27), शाहजहाँ (162858) तथा औरंगजेब (1658-1707) गद्दी पर बैठे ये तीनों ही बहुत योग्य उत्तराधिकारी सिद्ध हुए। इनके अधीन क्षेत्रीय विस्तार जारी रहा, यद्यपि इस विस्तार की गति काफी धीमी रही। उन्होंने शासन के विविध यन्त्रों को बनाए रखा और उन्हें सुदृढ़ किया।

(5) शाही संस्थाओं के ढाँचे का निर्माण इनके अन्तर्गत प्रशासन और कराधान के प्रभावशाली तरीके सम्मिलित थे। मुगलों द्वारा शुरू की गई राजनीतिक व्यवस्था सैन्य शक्ति और उपमहाद्वीप की भिन्न-भिन्न परम्पराओं को समायोजित करने की बुद्धिमत्तापूर्ण नीति पर आधारित थी।

(6) मुगल साम्राज्य का पतन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के पश्चात् मुगलं साम्राज्य 1 का विघटन शुरू हो गया। फिर भी सांकेतिक रूप से मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा बनी रही। 1857 में मुगल वंश के | अन्तिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका।

प्रश्न 2.
अबुल फजल के मुगल साम्राज्य में योगदान के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
अबुल फजल अकबर का एक अति महत्त्वपूर्ण दरबारी था। उसने अकबरनामा जैसे ग्रन्थों की रचना की थी। अबुल फजल का पालन-पोषण मुगल राजधानी आगरा हुआ था। वह अरबी तथा फारसी का अच्छा ज्ञाता था: साथ ही वह यूनानी दर्शन और सूफीवाद में भी रुचि रखता था अबुल फजल एक प्रभावशाली विचारक तथा तर्कशास्त्री था। उसने दकियानूसी उलेमाओं के विचारों का पूर्ण विरोध किया, जिसके कारण अकबर उससे अत्यधिक प्रभावित हुआ अकबर ने उसे अपने सलाहकार तथा अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में उपयुक्त पाया। अबुल फजल ने दरबारी इतिहासकार के रूप में अकबर के शासन से जुड़े विचारों को न केवल आकार दिया अपितु उनको स्पष्ट रूप से व्यक्त भी किया।

मुगल साम्राज्य में अबुल फजल का योगदान- अबुल फजल का महत्त्वपूर्ण योगदान अकबर के समय की ऐतिहासिक घटनाओं के वास्तविक विवरणों, शासकीय दस्तावेजों तथा जानकार व्यक्तियों के मौखिक प्रमाणों जैसे विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों पर आधारित, अकबरनामा ग्रन्थ की रचना था। इस ग्रन्थ की रचना उसने 1589 ई. में आरम्भ की तथा इसे पूर्ण करने में उसे लगभग 13 वर्ष लगे। अबुल फजल का अकबरनामा तीन जिल्दों में है जिसमें प्रथम दो भाग इतिहास से सम्बन्धित हैं तथा तृतीय भाग आइन-ए-अकबरी है। प्रथम जिल्द में आदम से लेकर अकबर के जीवन के एक खगोलीय कालचक्र तक का मानव जाति का इतिहास है। द्वितीय जिल्द अकबर के 46वें शासन वर्ष पर खत्म होती है।

अकबरनामा का लेखन राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण पटनाओं का विवरण देने के उद्देश्य से किया गया। अकबर के साम्राज्य की तिथियों तथा समय के साथ होने वाले परिवर्तनों के उल्लेख के बिना ही भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक तथा सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत करने के अभिन्न तरीके से भी इसका लेखन हुआ। अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी में मुगल साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनों, बौद्धों तथा मुसलमानों की भिन्न-भिन्न जनसंख्या वाले तथा एक मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इससे भारतीय- फारसी शैली को दरबार में संरक्षण प्राप्त हुआ।

प्रश्न 3.
मुगलकाल में फारसी भाषा के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुगल सम्राटों ने फारसी भाषा को महत्त्व क्यों प्रदान किया?
उत्तर:
मुगलकाल में फारसी भाषा का विकास मुगलों के दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। दिल्ली के सुल्तानों के काल में उत्तर भारतीय भाषाओं के साथ-साथ फारसी दरवार तथा साहित्यिक रचनाओं की भाषा के रूप में खूब विकसित हुई। चूंकि मुगल चग़ताई मूल के थे, अतः तुर्की उनकी मातृभाषा थी प्रथम मुगल सम्राट बाबर ने कविताएँ और अपने संस्मरण तुर्की भाषा में ही लिखे थे।
(1) फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाना- मुगल सम्राट अकबर ने फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया।

सम्भवतः ईरान के साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक सम्पर्कों के साथ-साथ मुगल दरबार में पद पाने के इच्छुक ईरानी और मध्य एशियाई प्रवासियों ने बादशाह को फारसी भाषा को अपनाए जाने के लिए प्रेरित किया होगा। फारसी को दरबार की भाषा का ऊंचा स्थान दिया गया तथा उन लोगों को “शक्ति एवं प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनका इस भाषा पर अच्छा नियन्त्रण था। सम्राट शाही परिवार के लोग और दरबार के विशिष्ट सदस्य फारसी भाषा बोलते थे। कुछ और आगे, यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गई, जिससे लेखाकारों, लिपिकों तथा अन्य अधिकारियों ने भी इसे सीख लिया।

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(2) अन्य भाषाओं को प्रभावित करना- जहाँ-जहाँ फारसी प्रत्यक्ष प्रयोग में नहीं आती थी, वहाँ भी राजस्थानी, मराठी और यहाँ तक कि तमिल में शासकीय लेखकों की भाषा को फारसी की शब्दावली और मुहावरों ने व्यापक रूप से प्रभावित किया। चूंकि सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के दौरान फारसी का प्रयोग करने वाले लोग उपमहाद्वीप के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आए थे और वे अन्य भारतीय भाषाएँ भी बोलते थे, इसलिए स्थानीय मुहावरों को शामिल करने से फारसी का भी भारतीयकरण हो गया था। फारसी के हिन्दवी के साथ पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा का उद्भव हुआ।

(3) फारसी में अनुवाद ‘ अकबरनामा’ और ‘बादशाहनामा’ जैसे मुगल इतिहास फारसी में लिखे गए थे, जबकि बाबर के संस्मरणों का ‘बाबरनामा’ के नाम से तुर्की से फारसी में अनुवाद किया गया था। मुगल बादशाहों ने ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ जैसे संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाया। ‘महाभारत’ का अनुवाद ‘रज्मनामा’ (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ।

प्रश्न 4.
“मुगलकाल में मानव रूपों का चित्रण निरन्तर तनाव का कारण था।” उपर्युक्त तर्क देकर इस कथन का औचित्य निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
मुगलकाल में मानव रूपों का चित्रण निरन्तर तनाव का कारण था। इस कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत हैं-
(i) मुगलकाल में बादशाह, उसके दरबार एवं उसमें भाग लेने वाले लोगों का चित्रण करने वाले चित्रों की रचना को लेकर शासकों और मुसलमानों, रूढ़िवादी वर्ग के प्रतिनिधियों अर्थात् उलेमाओं के मध्य लगातार तनाव बना रहा। उलेमाओं ने कुरान के साथ-सात हदीस जिसमें पैगम्बर मुहम्मद के जीवन से एक ऐसा ही प्रसंग वर्णित है, में प्रतिष्ठित मानव रूपों के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबन्ध का आह्वान किया।

(ii) इस प्रसंग में पैगम्बर मुहम्मद को प्राकृतिक तरीके से जीवित रूपों के चित्रण की मनाही करते हुए उल्लिखित किया गया है। क्योंकि ऐसा करने में लगता है कि कलाकार रचना की शक्ति को अपने हाथ में लेने का प्रयास कर रहा है। यह एक ऐसा कार्य था, जो केवल ईश्वर का ही था।

(iii) समय के साथ-साथ शरिया की व्याख्याओं में भी परिवर्तन आया। विभिन्न सामाजिक समूहों ने इस्लामी परम्परा के ढाँचे की अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की। प्रायः प्रत्येक समूह ने इस परम्परा की ऐसी व्याख्या प्रतिपादित की, जो उनकी राजनीतिक आवश्यकताओं में सबसे अधिक समानता रखती थी। जिन शताब्दियों के दौरान सामान्य निर्माण हो रहा था। उस समय कई चित्रकार स्रोतों के शासकों ने नियमित रूप से कलाकारों को उनके चित्र एवं उनके राज्य के जीवन के दृश्य चित्रित करने के लिए नियुक्त किया। मुगलकालीन भारत में ईरान से कई चित्रकार आए: जैसे—मीर सैयद अली एवं अब्दुल समद।

(iv) बादशाह एवं रूढ़िवादी मुसलमान विचारधारा के प्रवक्ताओं के मध्य मानवों के दृश्य निरूपण पर मुगल दरबार में तनाव बना हुआ था। अकबर का दरबारी इतिहासकार अबुल फजल बादशाह को यह कहते हुए उद्धृत करता है” कई लोग ऐसे हैं जो चित्रकला को नापसन्द करते हैं। पर मैं ऐसे व्यक्तियों को नापसन्द करता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि कलाकार के पास ख़ुदा को पहचानने का बेजोड़ तरीका है। क्योंकि कहीं न कहीं उसे ये महसूस होता है कि खुदा की रचना को वह जीवन नहीं दे सकता।”

(v) 17वीं शताब्दी में मुगल चित्रकारों ने बादशाहों को प्रभामण्डल के साथ चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया। ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक के रूप में इन प्रभामण्डलों को उन्होंने ईसा और वर्जिन मैरी के यूरोपीय चित्रों में देखा था।

प्रश्न 5.
मुगल पांडुलिपियों की रचना में चित्रकारों की भूमिका का वर्णन कीजिए। चित्रों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। चित्रों की रचना को लेकर तनाव क्यों बना रहा? उत्तर- मुगल पांडुलिपियों की रचना में चित्रकारों की भूमिका मुगल पांडुलिपियों की रचना में चित्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। किसी मुगल सम्राट के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ ही उन घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में भी वर्णित किया जाता था।
किसी
(1) चित्रों का महत्त्व –

  • सौन्दर्य में वृद्धि चित्र पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते थे।
  • चित्रों के माध्यम से राजा की शक्ति को व्यक्त करना- लिखित माध्यम से राजा और राजा की शक्ति विषय में जो बात नहीं कही जा सकी हों, उन्हें चित्रों के माध्यम से व्यक्त कर दिया जाता था। के
  • निर्जीव वस्तुओं को सजीव बनाना इतिहासकार अबुल फजल ने चित्रकारी को एक ‘जादुई कला’ की संज्ञा दी है। उसके अनुसार चित्रकला निर्जीव वस्तुओं में भी प्राण फूंक सकती है।

(2) चित्रों की रचना को लेकर तनाव-मुगल सम्राट तथा उसके दरबार का चित्रण करने वाले चित्रों की रचना को लेकर शासकों और उलमा के बीच तनाव की स्थिति बनी रही। उलमा रूढ़िवादी मुसलमान वर्ग के प्रतिनिधि थे। उन्होंने कुरान के साथ-साथ हदीस में प्रतिष्ठापित मानव रूपों के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबन्ध का आह्वान किया।

(3) नियमित रूप से कलाकारों को नियुक्त करना- कई एशियाई शासकों ने अपने तथा अपने राज्य के जीवन के दृश्य चित्रित करने के लिए नियमित रूप से कलाकारों को नियुक्त किया। उदाहरण के लिए, ईरान के सफावी राजाओं ने अपने दरबार की कार्यशालाओं में प्रशिक्षित एवं उत्कृष्ट कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया। विहजाद जैसे चित्रकारों ने सफ़ावी दरबार की सांस्कृतिक प्रसिद्धि को चारों ओर फैलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

(4) ईरानी कलाकारों का मुगलकालीन भारत में आगमन – मुगलकाल में ईरानी कलाकार भी भारत में आए। ईरान के प्रसिद्ध चित्रकार मीर सैयद अली तथा अब्दुस समद बादशाह हुमायूँ के साथ दिल्ली आए। कुछ अन्य कलाकार संरक्षण और प्रतिष्ठा के अवसरों की तलाश में भारत पहुँचे। परन्तु बादशाह और रूढ़िवादी मुस्लिम विचारधारा के प्रवक्ताओं के बीच जीवधारियों के चित्र बनाने पर मुगल दरबार में तनाव की स्थिति बनी रही।

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प्रश्न 6.
अबुल फजल चित्रकला को महत्त्वपूर्ण क्यों मानता था? उसने अकबरकालीन चित्रकला की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
उत्तर:
चित्रकला का महत्त्व अबुल फसल निम्नलिखित आधारों पर चित्रकला को महत्त्वपूर्ण मानता था-
(1) चित्रकला एक जादुई कला इतिहासकार अबुल फजल ने चित्रकला को एक ‘जादुई कला’ की संज्ञा दी है उसके अनुसार चित्रकला किसी भी निर्जीव वस्तु में प्राण फूँक सकती है।

(2) मुगल सम्राटों की चित्रकला में रुचि अबुल फसल के अनुसार मुगल सम्राट अकबर ने अपनी युवावस्था के प्रारम्भिक दिनों से ही चित्रकला में अपनी अभिरुचि व्यक्त की थी। वह चित्रकला को अध्ययन और मनोरंजन दोनों का ही साधन मानते थे तथा इस कला को हर सम्भव प्रोत्साहन देते थे। मुगल पांडुलिपियों में चित्रों के अंकन के लिए चित्रकारों की एक बड़ी संख्या नियुक्त की गई थी। हर सप्ताह शाही कार्यालय के अनेक निरीक्षक और लिपिक बादशाह के सामने प्रत्येक कलाकार का कार्य प्रस्तुत करते थे। इन कृतियों के अवलोकन के बाद बादशाह प्रदर्शित उत्कृष्टता के आधार पर चित्रकारों को पुरस्कृत करते थे तथा उनके मासिक वेतन में वृद्धि करते थे।

(3) अकबरकालीन चित्रकला की विशेषताएँ- अकबरकालीन चित्रकला की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

  • उत्कृष्ट चित्रकारों का उपलब्ध होना चित्रकारों को प्रोत्साहन दिए जाने के परिणामस्वरूप अकबर के समय में उत्कृष्ट चित्रकार मिलने लगे थे। बिहजाद जैसे चित्रकारों की सर्वोत्तम कलाकृतियों को तो उन यूरोपीय चित्रकारों की उत्कृष्ट कलाकृतियों के समक्ष रखा जा सकता था जिन्होंने विश्व में अत्यधिक ख्याति प्राप्त कर ली थी।
  • विवरण की सूक्ष्मता, परिपूर्णता तथा प्रस्तुतीकरण की निर्भीकता विवरण की सूक्ष्मता, परिपूर्णता तथा प्रस्तुतीकरण की निर्भीकता जो अकबरकालीन चित्रों में दिखाई पड़ती थी, वह अतुलनीय थी यहाँ तक कि निर्जीव वस्तुएँ भी सजीव प्रतीत होती थीं।
  • हिन्दू चित्रकारों की दक्षता अकबर के प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप उसके दरबार में सौ से भी अधिक चित्रकार थे, जो इस कला की साधना में लगे हुए थे। हिन्दू कलाकारों के लिए यह बात विशेष तौर पर सही थी। उनके चित्र वस्तुओं की हमारी परिकल्पना से परे थे। वस्तुतः सम्पूर्ण विश्व में कुछ लोग ही उनकी तुलना कर सकते थे।

प्रश्न 7.
सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के दौरान मुगलों की राजधानियाँ तीव्रता से स्थानान्तरित होने लगीं। | व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राजधानी नगर मुगल साम्राज्य का केन्द्रीय स्थल होता था दरबार का आयोजन इसी केन्द्रीय स्थल राजधानी के नगर में किया जाता था मुगलों की राजधानियाँ सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में तीव्रता से एक नगर से दूसरे नगर में स्थानान्तरित होने लग। बाबर, जिसने कि मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी, ने इब्राहीम लोदी के द्वारा स्थापित राजधानी आगरा पर अधिकार कर लिया था। अपने शासन काल के चार वर्षों में अपने दरबार भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगाए। 1560 ई. में अकबर ने आगरा में किले का निर्माण करवाया, जिसे आस-पास की खदानों से लाए गए लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया था।

(1) फतेहपुर सीकरी – अकबर ने 1570 ई. के दशक में अपनी नई राजधानी फतेहपुर सीकरी में बनाने का निर्णय लिया। इसका कारण सम्भवतः यह माना जाता है कि अकबर प्रसिद्ध सूफी संत शेख मुईनुद्दीन चिश्ती का मुरीद था जिनकी दरगाह अजमेर में है। फतेहपुर सीकरी अजमेर जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जुम्मा मस्जिद के निकट ही शेख सलीम चिश्ती के लिए संगमरमर के मकबरे का निर्माण भी करवाया। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में ही एक विशाल मेहराबी प्रवेश द्वार: जिसे बुलन्द दरवाजा कहा जाता है, का निर्माण भी करवाया।

(2) लाहौर अकबर ने 1585 ई. में अपनी राजधानी को लाहौर स्थानान्तरित कर दिया। लाहौर में राजधानी के स्थानान्तरण का कारण उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर प्रभावशाली नियन्त्रण स्थापित करना था।

(3) शाहजहांनाबाद में राजधानी की स्थापना- शाहजहाँ के पास भवन निर्माण के लिए व्यापक धन राशि का प्रबन्ध था। शाहजहाँ ने दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में शाहजहाँनाबाद के नाम से नई राजधानी का निर्माण किया। शाहजहांनाबाद एक नई शाही आबादी के रूप में विकसित हुआ। मुख्य बात तो यह है कि शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने इस नई राजधानी की कई वास्तुकलात्मक संरचनाओं की रूपरेखा निर्मित की: जिनमें चाँदनी चौक और कारवाँ सराय नामक दोमंजिली इमारत प्रमुख थी।

प्रश्न 8.
अकबरनामा के ऐतिहासिक महत्त्व का विवेचन कीजिए।
अथवा
‘अकबरनामा’ पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
अथवा
‘अबुल फजल’ और ‘अकबरनामा’ का परिचय दीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल का परिचयं अबुल फसल मुगल सम्राट अकबर का दरबारी इतिहासकार था। अबुल फजल का पालन पोषण मुगल राजधानी आगरा में हुआ था वह अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद का प्रकाण्ड विद्वान् था। वह एक प्रभावशाली तर्कशील व्यक्ति तथा स्वतन्त्र चिन्तक था। उसने आजीवन रूढ़िवादी उलमा के विचारों का विरोध किया। अबुल फसल के इन गुणों से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। दरबारी इतिहासकार के रूप में अबुल फजल ने अकबर के शासन से जुड़े विचारों को न केवल आकार प्रदान किया, बल्कि उनको स्पष्ट रूप से व्यक्त भी किया।

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‘अकबरनामा’
‘अकबरनामा’ महत्त्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसमें लगभग 150 पूरे अथवा दोहरे पृष्ठों पर लड़ाई, घेराबन्दी, शिकार, भवन-निर्माण, दरबारी दृश्य आदि के चित्र हैं। अबुल फजल ने 1589 में शुरू कर ‘ अकबरनामा’ पर तेरह वर्षों तक कार्य किया और इस दौरान उसने कई बार इसके प्रारूप में सुधार किया। यह इतिहास घटनाओं के वास्तविक विवरणों, शासकीय दस्तावेजों तथा जानकार व्यक्तियों के मौखिक प्रमाणों पर आधारित है।
(1) तीन जिल्दों में विभक्त’ अकबरनामा’ को तीन जिल्दों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रथम दो जिल्दें इतिहास हैं। तीसरी जिल्द ‘आइन-ए-अकबरी’ है।

  • पहली जिल्द पहली जिल्द में आदम से लेकर अकबर के जीवन के एक खगोलीय कालचक्र तक (30 वर्ष) का मानव जाति का इतिहास है।
  • दूसरी जिल्द दूसरी जिल्द अकबर के 46 वें शासन वर्ष (1601 ई.) पर समाप्त होती है। 1602 में राजकुमार सलीम ने अबुल फजल की हत्या का एक षड्यन्त्र रचा जिसके अनुसार सलीम के सहापराधी बीरसिंह बुन्देला ने ‘अबुल फसल की हत्या कर दी।
  • तीसरी जिल्द-तीसरी जिल्द ‘आइन-ए-अकबरी’ है। इसमें मुगल साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनियों, बौद्धों और मुसलमानों की भिन्न-भिन्न आबादी वाले तथा एक मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

(2) ‘अकबरनामा’ का ऐतिहासिक महत्त्व इसमें तिथियों और समय के साथ होने वाले परिवर्तनों के उल्लेख के बिना ही अकबर साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, संजीव पास बुक्स प्रशासनिक और सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।

(3) अबुल फजल की भाषा अबुल फजल की भाषा बहुत अलंकृत थी इस भारतीय फारसी शैली को मुगल दरबार में संरक्षण प्राप्त हुआ।

प्रश्न 9.
मुगल साम्राज्य के सूचना तन्त्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में व्यापक सूचना तन्त्र विकसित था साम्राज्य से सम्बन्धित सभी क्रिया-कलापों का व्यापक आलेखन किया जाता था। सभी महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को दर्ज किया जाता था। लेखन के लिए दरबारी लेखकों, जिन्हें वाकया नवीस कहा जाता था की नियुक्ति की गयी थी। मीर बख्शी इन लेखकों के कार्यों का निरीक्षण करता था। वाकया नवीस ही दरबार में प्रस्तुत की जाने वाली अर्जियों, दस्तावेजों और शासकीय आदेशों को लिपिबद्ध करते थे।

इसके अतिरिक्त अखबारात ए- दरबारी )- मुअल्ला उच्च दरबार से समाचार शीर्षक के अन्तर्गत ओभजातों और क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे। इन अखवारों में सभी प्रकार की सूचनाओं: जैसे- दरबार में उपस्थित लोगों का विवरण, पदों और पदवियों का दान, राजनयिक शिष्टमण्डलों से जुड़ी हुई सूचनाएँ, ग्रहण तथा दान किए गए उपहारों आदि का दिनांक और समय के साथ लेखन किया जाता था। यह सूचनाएँ राजाओं के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन का इतिहास लिखने के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत होती हैं।

सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए पूरा साम्राज्य एक तन्त्र से जुड़ा हुआ था। समाचार वृत्तान्त और महत्त्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज डाक के जरिए बाँस के डिब्बे में लपेटकर हरकारों के दलों द्वारा भेजे जाते थे। हरकारों के यह दल क्रमबद्ध रूप से दिन-रात दौड़ते रहते थे। इस प्रकार बादशाह को राजधानी से काफी दूर स्थित प्रान्तों के समाचार कुछ ही दिन में मिल जाते थे। प्रान्तों में राजधानी के अभिजातों के प्रतिनिधि दरवार द्वारा माँगी गई जानकारी को एकत्र कर सन्देशवाहकों के जरिए अपने अधिकारी के पास भेज दिया करते थे। विस्तृत मुगल साम्राज्य के सुचारु संचालन हेतु यह सूचना तन्त्र अति आवश्यक था।

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प्रश्न 10.
‘सुलह-ए-कुल’ के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। इसे किस प्रकार लागू किया गया?
उत्तर:
‘सुलह-ए-कुल’ के सिद्धान्त मुगल इतिवृत्त मुगल साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनों, जरतुश्तियों और मुसलमानों के अनेक नृजातीय और धार्मिक समुदायों के समूह के रूप में प्रस्तुत करते हैं। शान्ति और स्थायित्व के स्त्रोत के रूप में मुगल सम्राट सभी धार्मिक और नृजातीय समूहों से ऊपर होता था वह इनके बीच मध्यस्थता करता था तथा यह सुनिश्चित करता था कि न्याय और शान्ति बनी रहे।
(1) प्रबुद्ध शासन का आधार अबुल फजल सुलाह- ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है।
(2) अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता-‘सुलह-ए-कुल’ में सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता थी।
(3) राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाना-किन्तु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुँचायेंगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।

सुलह-ए-कुल के आदर्श को लागू करना-
(1) अभिजात वर्ग को पद और पुरस्कार देना- सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के द्वारा लागू किया गया। मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग में ईरानी, तूरानी, अफगानी राजपूत, दक्खनी सभी सम्मिलित थे। इन सब को पद और पुरस्कार दिए गए जो पूरी तरह से राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे।

(2) तीर्थयात्रा कर तथा जजिया समाप्त करना- 1563 में अकबर ने तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया को समाप्त कर दिया क्योंकि ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।

(3) प्रशासन में सुलह-ए-कुल के नियमों का अनुपालन करवाना साम्राज्य के अधिकारियों को आदेश दिए गए कि ये प्रशासन में सुलह-ए-कुल’ के नियमों का अनुपालन करवाएं।

(4) सहिष्णुतापूर्ण धार्मिक नीति- अधिकांश मुगल बादशाहों ने सहिष्णुतापूर्ण धार्मिक नीति अपनाई। उन्होंने उपासना स्थलों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान दिए। यहाँ तक कि युद्ध के दौरान जब मन्दिर नष्ट कर दिए जाते थे, तो बाद में सम्राटों द्वारा उनकी मरम्मत के लिए अनुदान जारी किए जाते थे। ऐसा हमें शाहजहाँ और औरंगजेब के शासन में पता चलता है, यद्यपि औरंगजेब के शासन काल में गैर-मुसलमान प्रजा पर जजिया फिर से लगा दिया गया।

प्रश्न 11.
मुगलकालीन राजधानी नगरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलकालीन राजधानी नगर मुगल राजधानी नगर मुगल साम्राज्य का हृदय स्थल था। राजधानी नगर में ही दरबार लगता था। सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों के दौरान मुगलों की राजधानी तेजी से स्थानान्तरित होने लगीं। 1560 के दशक में अकबर ने आगरा के किले का निर्माण करवाया। इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया था। यह बलुआ पत्थर आस-पास के क्षेत्रों की खदानों से लाया गया था।

(1) फतेहपुर सीकरी – 1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया। मुगल सम्राटों के चिश्ती सिलसिले के सूफियों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गए थे। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जुम्मा मस्जिद के बगल में ही शेख सलीम चिश्ती के लिए सफेद संगमरमर का एक मकबरा बनवाया। उसने एक विशाल मेहराबी प्रवेशद्वार अथवा बुलन्द दरवाजा भी बनवाया जिसका उद्देश्य वहाँ आने वाले लोगों को गुजरात में मुगल विजय की याद दिलाना था।

(2) लाहौर 1585 ई. में उत्तर-पश्चिमी सीमा पर प्रभावशाली नियन्त्रण स्थापित करने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानान्तरित कर दिया गया। इस प्रकार तेरह वर्षों तक अकबर ने इस सीमा पर गहरी चौकसी बनाए रखी।

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(3) शाहजहाँ की भवन निर्माण में गहरी रुचि- शाहजहाँ की भवन निर्माण में गहरी रुचि थी। उसने विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों को आगे बढ़ाया तथा भवन निर्माण की अपनी अभिरुचि की पूर्ति के लिए पर्याप्त धन इकट्ठा कर लिया। राजकीय संस्कृतियों में भवन निर्माण कार्य राजवंशीय सत्ता, धन तथा प्रतिष्ठा का सर्वाधिक ठोस प्रतीक था मुसलमान शासकों के संदर्भ में इसे धर्मनिष्ठा के एक कार्य के रूप में भी देखा जाता था।

(4) नई राजधानी शाहजहाँनाबाद की स्थापना- 1648 में शाहजहाँ के शासनकाल में दरबार, सेना व राजसी खानदान आगरा से नई निर्मित शाही राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) चले गए। दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में स्थित शहजहांनाबाद एक नई और शाही आबादी थी। यहाँ लालकिला, जामा मस्जिद, चाँदनी चौक के बाजार की वृक्ष-वीथि और अभिजात वर्ग के बड़े-बड़े पर थे। शाहजहाँ द्वारा स्थापित यह नया शहर विशाल एवं भव्य मुगल राजतंत्र का प्रतीक था।

प्रश्न 12.
“मुगल दरबार का केन्द्र बिन्दु राजसिंहासन अथवा तख्त था जिसने सम्प्रभु के कार्यों को भौतिक स्वरूप प्रदान किया था।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
मुगल दरबार में अभिजात वर्गों के बीच हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों, अभिवादन के तरीकों एवं दरबार में मनाए जाने वाले त्यौहारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल दरबार बादशाह पर केन्द्रित दरबार की भौतिक व्यवस्था ने बादशाह के अस्तित्व को समाज के हृदय के रूप में दर्शाया। दीर्घकाल से भारत में राजतन्त्र का प्रतीक रही छतरी, बादशाह की चमक को सूर्य की चमक से अलग करने वाली मानी जाती थी।
(1) अभिजात वर्गों के बीच हैसियत को निर्धारित करने वाले नियम- मुगल इतिवृत्तों में मुगल अभिजात वर्गों के बीच हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों का वर्णन किया गया है।

दरबार में किसी दरबारी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह बादशाह के कितना पास और दूर बैठा है। एक बार जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी भी दरबारी को अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था।

(2) बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से अभिजात वर्ग की हैसियत का बोध होना-मुगल दरबार में बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से अभिजात- वर्ग के व्यक्ति की हैसियत का बोध होता था। जिस व्यक्ति के सामने अधिक झुक कर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत अधिक ऊँची मानी जाती थी। अभिवादन का उच्चतम रूप ‘सिजदा’ या दंडवत् लेटना था।

(3) राजनयिक दूतों से सम्बन्धित नयाचार- मुगल- सम्राट के सामने प्रस्तुत होने वाले राजदूत से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अभिवादन के मान्य रूपों में से एक या तो बहुत झुककर अथवा जमीन को चूमकर अथवा फारसी रिवाज के अनुसार छाती के सामने हाथ बाँधकर तरीके से अभिवादन करेगा।

(4) झरोखा दर्शन – मुगल बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था। इसके बाद वह पूर्व की ओर मुँह किए एक छोटे छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों को एक भारी भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा करती थी। इस प्रथा का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति का और विस्तार करना था।

(5) दीवान-ए-आम एवं दीवान-ए-खास-झरोखे में एक घंटा बिताने के बाद बादशाह सार्वजनिक सभा- भवन (दीवान-ए-आम) में आता था। वहाँ राज्य के अधिकारी रिपोर्ट तथा प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करते थे दो घंटे बाद बादशाह दीवान-ए-खास में निजी सभाएँ करता था तथा गोपनीय मामलों पर चर्चा करता था।

(6) दरबार का जीवन्त वातावरण सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, ईद, शब-ए-बारात तथा होली जैसे कुछ विशिष्ट अवसरों पर दरबार का वातावरण जीवन्त हो उठता था सुसज्जित डिब्बों में रखी सुगंधित मोमबत्तियाँ और महल की दीवारों पर लटक रहे रंग-बिरंगे बंदनवार आने वाले लोगों को आश्चर्यजनक रूप से प्रभावित करते थे।

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(7) विवाह मुगल काल में शाही परिवारों में विवाहों का आयोजन काफी खर्चीला होता था। 1633 ई. में शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह का विवाह राजकुमार परवेज की पुत्री नादिरा से हुआ। विवाह के उपहारों के प्रदर्शन की व्यवस्था ‘दीवान-ए-आम’ में की गई थी। हिनाबन्दी (मेहंदी लगाना) की रस्म दीवान-ए-खास में अदा की गई। दरबार में उपस्थित लोगों के बीच पान, इलायची तथा मेवे वाटे गए। इस विवाह पर कुल 32 लाख रुपये खर्च हुए थे।

प्रश्न 13.
मुगल सम्राटों द्वारा अभिजात वर्ग को प्रदान की जाने वाली पदवियों और उपहारों का वर्णन कीजिए। दरबारियों और राजदूतों द्वारा बादशाहों को उपहार देने का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मुगल सम्राटों द्वारा अभिजात वर्ग को प्रदान की जाने वाली पदवियाँ तथा उपहार
राज्याभिषेक के समय अथवा किसी शत्रु पर विजय के. बाद मुगल बादशाह विशाल पदवियाँ ग्रहण करते थे। जब उद्घोषक (नकीब) इन पदवियों की घोषणा करते थे, तो दरबार में आश्चर्य का वातावरण बन जाता था मुगल सिक्कों पर राजसी नयाचार के साथ सत्तारूढ़ बादशाह की पूरी पदवी होती थी।

(1) अभिजात वर्ग को पदवियाँ, पुरस्कार एवं उपहार देना योग्य व्यक्तियों को पदवियाँ देना मुगल- राजतन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष था दरबारी पदानुक्रम में किसी व्यक्ति की उन्नति को उसके द्वारा धारण की जाने वाली पदवियों से जाना जा सकता था। ‘आसफखों की पदवी उच्चतम मन्त्रियों में से एक को दी जाती थी। औरंगजेब ने अपने दो उच्च पदस्थ अभिजातों-जयसिंह और जसवन्त सिंह को ‘मिज राजा’ की पदवी प्रदान की। योग्यता के आधार पर पदवियाँ या तो अर्जित की जा सकती थीं अथवा इन्हें प्राप्त करने के लिए धन दिया जा सकता था। मीरखान नामक एक मनसबदार ने अपने नाम में अलिफ अर्थात् ‘अ’ अक्षर लगाकर उसे अमीरखान करने के लिए औरंगजेब को एक लाख रुपये देने का प्रस्ताव किया।

( 2) ‘ सम्मान का जामा’ (खिल्लत) – अन्य पुरस्कारों में सम्मान का जामा ( खिल्लत) भी शामिल था जिसे पहले कभी-न-कभी बादशाह द्वारा पहना गया होता था। इसलिए यह समझा जाता था कि वह बादशाह के आशीर्वाद का प्रतीक है।

(3) सरप्पा (सर से पाँव तक )- बादशाह द्वारा अभिजातों को प्रदान किये जाने वाले एक अन्य उपहार

‘सरप्पा’ (सर से पाँव तक) था इस उपहार के तीन भाग हुआ करते थे-
(1) जामा
(2) पगड़ी तथा
(3) पटका।
(4) रत्नजड़ित आभूषण बादशाह द्वारा अभिजात- वर्ग के लोगों को प्रायः रत्नजड़ित आभूषण भी उपहार के रूप में दिए जाते थे। विशिष्ट परिस्थितियों में बादशाह कमल की मंजरियों वाला रत्नजड़ित गहनों का सेट (पद्ममुरस्सा) भी उपहार में प्रदान करता था।

(5) दरबारियों एवं राजदूतों द्वारा बादशाह की सेवा में उपहार प्राप्त करना कोई भी दरबारी बादशाह के पास कभी खाली हाथ नहीं जाता था। वह या तो नज़ के रूप में थोड़ा धन या पेशकश के रूप में मोटी रकम बादशाह की सेवा में प्रस्तुत करता था। राजनयिक सम्बन्धों में उपहारों को सम्मान और आदर का प्रतीक माना जाता था। राजदूत प्रतिद्वन्द्वी राजनीतिक शक्तियों के बीच सन्धि और सम्बन्धों के द्वारा समझौता करवाने के महत्त्वपूर्ण कार्य करते थे। ऐसी परिस्थितियों में उपहारों की महत्त्वपूर्ण प्रतीकात्मक भूमिका होती थी। अंग्रेज राजदूत सर टामस रो ने आसफ खाँ को एक अंगूठी भेंट की थी, परन्तु वह उसे केवल इसलिए वापस कर दी गई कि वह मात्र चार सौ रुपये मूल्य की थी।

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प्रश्न 14.
“मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। ” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगल परिवार मुगल परिवार में बादशाह की पत्नियाँ और उपपत्नियाँ, उसके नजदीकी और दूर के सम्बन्धी (माता, सौतेली व उपमाताएँ, बहन, पुत्री, बहू, चाची-मौसी, बच्चे आदि) महिला परिचारिकाएँ तथा गुलाम होते थे। शासक वर्ग में बहुविवाह प्रथा व्यापक रूप से प्रचलित थी।

(2) अगहा तथा अगाचा मुगल परिवार में शाही परिवारों से आने वाली स्त्रियों (बेगमों) और अन्य स्वियों (अगहा) जिनका जन्म कुलीन परिवार में नहीं हुआ था, में अन्तर रखा जाता था। दहेज (मेहर) के रूप में विपुल नकद और बहुमूल्य वस्तुएँ लाने वाली बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक रूप से ‘अगहाओं’ की तुलना में अधिक ऊंचा दर्जा और सम्मान मिलता था।

(3) वंश आधारित पारिवारिक ढाँचे का स्थायी नहीं होना – वंश आधारित पारिवारिक ढाँचा पूरी तरह स्थायी नहीं था।

(4) गुलाम- पत्नियों के अतिरिक्त मुगल परिवार में अनेक महिला तथा पुरुष गुलाम होते थे वे साधारण से साधारण कार्य से लेकर कौशल, निपुणता तथा बुद्धिमत्ता के अलग-अलग कार्य करते थे गुलाम हिजड़े (ख्वाजासर) परिवार के अन्दर और बाहर के जीवन में रक्षक, नौकर तथा व्यापार में रुचि रखने वाली महिलाओं के एजेन्ट होते थे।

(5) शाही परिवार की स्त्रियों का वित्तीय संसाधनों पर नियंत्रण – नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियंत्रण रखना शुरू कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियों जहाँआरा तथा रोशनआरा को ऊंचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी। इसके अतिरिक्त जहाँआरा को सूरत के बन्दरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था।

(6) निर्माण कार्यों में भाग लेना मुगल परिवार की महत्त्वपूर्ण स्वियों ने इमारतों व बागों का निर्माण भी करवाया। जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहांनाबाद (दिल्ली) की अनेक वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। इनमें से एक दो मंजिली भव्य इमारत कारवां सराय थी, जिसमें एक आँगन व बाग भी था। शाहजहाँनाबाद के मुख्य केन्द्र चाँदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँआरा द्वारा बनाई गई थी।

(7) लेखन कार्य में योगदान गुलबदन बेगम एक उच्च कोटि की लेखिका थी वह बाबर की पुत्री हुमायूँ की बहिन तथा अकबर की बुआ थी वह स्वयं तुर्की तथा फारसी में धारा प्रवाह लिख सकती थी। उसने ‘हुमायूँनामा’ नामक पुस्तक लिखी जिससे हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की एक झलक मिलती है।

प्रश्न 15.
कन्धार, आटोमन साम्राज्य तथा जैसुइट धर्म प्रचारकों के साथ मुगल सम्राटों के सम्बन्धों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) कन्धार के साथ मुगल सम्राटों के सम्बन्ध-कन्धार ईरान के सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े की जड़ था। कन्धार का किला नगर आरम्भ में हुमायूँ के आधिकार में था। 1595 में अकबर ने कन्धार पर पुनः अधिकार कर लिया था। यद्यपि ईरान के शासक शाह अब्बास ने मुगलों के साथ अपने राजनयिक सम्बन्ध बनाए रखे तथापि कन्धार पर वह अपना दावा करता रहा।

1613 में जहाँगीर ने शाह अब्बास के दरबार में कन्धार को मुगलों के आधिपत्य में रहने देने की वकालत करने के लिए एक राजनयिक दूत भेजा, परन्तु यह शिष्टमण्डल अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हुआ। 1622 में एक ईरानी सेना ने कन्धार पर घेरा डाल दिया। यद्यपि मुगल सेना ने ईरानियों का मुकाबला किया, परन्तु उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस प्रकार कन्धार के किले तथा नगर पर ईरानियों का अधिकार हो गया।

(2) आटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों के सम्बन्ध- आटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों ने अपने सम्बन्ध इस बात को ध्यान में रखकर बनाए कि वे आटोमन नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों व तीर्थयात्रियों के स्वतंत्र आवागमन को बनाये रखवा सकें। इस क्षेत्र के साथ अपने सम्बन्धों में मुगल बादशाह, प्राय: धर्म एवं वाणिज्य के मुद्दों को मिलाने का प्रयास करता था। वह लाल सागर के बन्दरगाह अदन और मोरवा को बहुमूल्य वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहन देता था और इनकी बिक्री से प्राप्त आय को उस क्षेत्र के धर्मस्थलों व फकीरों में दान में बाँट देता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

(3) जैसुइट धर्म प्रचारकों के साथ मुगलों के सम्बन्ध-पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त में पुर्तगाली व्यापारियों ने तटीय नगरों में व्यापारिक केन्द्रों का जाल स्थापित किया। पुर्तगाल का सम्राट भी ‘सोसाइटी ऑफ जीसस’ (जेसुइट ) के धर्म प्रचारकों की सहायता से ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करना चाहता था। सोलहवीं शताब्दी के दौरान भारत आने वाले जेसुइट शिष्टमण्डल व्यापार और साम्राज्य निर्माण की इस प्रकिया के हिस्सा थे।

अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था। उसने जेसुइट पादरियों को आमन्त्रित करने के लिए एक दूत मंडल गोवा भेजा। पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वह वहाँ लगभग दो वर्ष रहा। इन जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से वार्तालाप किया और इसके सद्गुणों के विषय में उलमा से उनका वाद-विवाद हुआ।

लाहौर के मुगल दरबार में दो और शिष्टमण्डल 1591 और 1595 में भेजे गए। जेसुइट विवरण व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित हैं और वे मुगल सम्राट अकबर के चरित्र और सोच पर गहरा प्रकाश डालते हैं। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के काफी निकट स्थान दिया जाता था। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा उसके फुरसत के समय में वे प्रायः उसके साथ होते थे। जेसुइट विवरण मुगलकाल के राज्य अधिकारियों और सामान्य जन-जीवन के विषय में फारसी इतिहासों में दी गई सूचना की पुष्टि करते हैं।

प्रश्न 16.
मुगलों के प्रान्तीय प्रशासन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलों का प्रान्तीय प्रशासन शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुगल- सम्राटों ने साम्राज्य को अनेक प्रान्तों में विभक्त कर दिया था प्रान्तीय शासन के प्रमुख अधिकारी निम्नलिखित थे-

  1. सूबेदार – प्रान्त का सर्वोच्च अधिकारी सूबेदार कहलाता था। सूबेदार की नियुक्ति सम्राट के द्वारा की जाती थी। वह सीधा मुगल सम्राट को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था।
  2. दीवान दीवान प्रान्तीय वित्त विभाग का अध्यक्ष होता था। वह प्रान्त की आय-व्यय की देख-रेख करता था।
  3. बख्शी सैनिकों की भर्ती, उनकी आवश्यकताओं एवं साज-सज्जा की पूर्ति, रसद की व्यवस्था उसके कार्य थे।
  4. सद्र सद्र का प्रमुख कार्य लोगों के नैतिक चरित्र की देखभाल करना, दान-पुण्य तथा इस्लाम के कानूनों के पालन की व्यवस्था करवाना था।
  5. काजी- काजी प्रान्त का प्रमुख न्यायिक अधिकारी होता था।

सरकार अथवा जिला प्रबन्ध-मुगलकाल में प्रान्तों को सरकारों अथवा जिलों में बाँटा गया था। सरकार का प्रबन्ध करने के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए गए थे-
(1) फौजदार यह सरकार अथवा जिले का प्रमुख अधिकारी होता था। विद्रोहियों का दमन करना, अपने क्षेत्र में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखना आदि उसके प्रमुख कार्य थे। उसके अधीन एक विशाल घुड़सवार सेना तथा तोपची होती थे।

(2) अमलगुजार यह सरकार का राजस्व अधिकारी परगने का प्रबन्ध- प्रत्येक सरकार अनेक परगनों में विभक्त था। परगनों का प्रबन्ध करने के लिए निम्नलिखित अधिकारी होते थे

  • कानूनगो ( राजस्व अभिलेख का रखवाला)
  • चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) तथा
  • काजी (न्याय का अधिकारी)।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. संसार में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा का क्षेत्र कौन-सा है?
(क) भूमध्य रेखीयं खण्ड
(ख) ध्रुवीय प्रदेश
(ग), 20°-30° अक्षांश
(घ) उष्ण कटिबन्ध।
उत्तर:
(क) भूमध्य रेखीय खण्ड।

2. किस खण्ड में निरपेक्ष आर्द्रता अधिक होती है?
(क) भूमध्य रेखीय खण्ड
(ख) मरुस्थल
(ग) ध्रुवीय प्रदेश
(घ) पर्वतीय प्रदेश।
उत्तर:
(क) भूमध्य रेखीय खण्ड।

3. वायु के जलवाष्प के जल में बदल जाने की क्रिया को क्या कहते हैं?
(क) संघनन
(ग) विकिरण
(ख) वाष्पीकरण
(घ) संवहन।
उत्तर:
(क) संघनन।

4. भारत के दक्षिणी पठार पर कम वर्षा का मुख्य कारण है?
(क) अधिक तापमान
(ख) पठारी धरातल
(ग) वर्षा छाया में स्थित होना
(घ) कम वाष्पीकरण।
उत्तर:
(ग) वर्षा छाया में स्थित होना।

5. किसी वायु में 4 ग्रेन जलवाष्प उपस्थित है उसी तापमान पर उस वायु में 8 ग्रेन जल वाष्प समा सकते हैं तो उस वायु की सापेक्ष आर्द्रता कितनी होगी?
(क) 10 प्रतिशत
(ख) 50 प्रतिशत
(ग) 100 प्रतिशत
(घ) 200 प्रतिशत।
उत्तर:
(ख) 50 प्रतिशत।

6. सापेक्षिक आर्द्रता मापी जाती है:
(क) हाइड्रोमीटर से
(ख) हाइग्रोमीटर से
(ग) बैरोमीटर से
(घ) एनिमोमीटर से।
उत्तर:
(ख) हाइग्रोमीटर से।

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7. संघनन से क्या होता है?
(क) जल जलवाष्प में बदल जाता है।
(ख) वायुमण्डल में विद्यमान जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित होते हैं।
(ग) जल हिम – कणों में बदल जाता है।
(घ) हिम-कण पिघलने लगते हैं।
उत्तर:
(ख) वायु-मण्डल में विद्यमान जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित होते हैं।

8. वह प्रक्रिया जिससे संघनित जलवाष्प जल-कणों या हिमकणों के रूप में वायुमण्डल से भूतल पर गिरने लगे।
(क) संघनन
(ख) वाष्पीकरण
(ग) वाष्पोत्सर्जन
(घ) वृष्टि।
उत्तर:
(घ) वृष्टि

9. भूतल के निकट जलवाष्प के संघनन से बने जल-कणों या हिम-कणों के झुण्ड जिससे दृश्यता बहुत कम हो जाती है:
(क) आर्द्रता
(ख) मेघ
(ग) कोहरा
(घ) वर्षा।
उत्तर:
(ग) कोहरा।

10. पंजाब में शीतकाल में किस प्रकार की वर्षा होती है-
(क) संवहनीय वर्षा
(ख) पर्वतकृत वर्षा
(ग) चक्रवातीय वर्षा
(घ) वाताग्रीय वर्षा।
उत्तर:
(ग) चक्रवातीय वर्षा।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ऊँचाई के साथ जलवाष्प शीघ्रता से क्यों कम होते जाते हैं?
उत्तर:
ऊँचाई पर जल स्रोतों की कमी होती है तथा तापमान भी कम होता है। इसलिए वाष्पन क्रिया कम होती है।

प्रश्न 2.
मेघों के तीन प्रमुख वर्गों में वर्गीकृत करने का समान्य आधार क्या है?
उत्तर:
ऊँचाई के अनुसार मेघों को तीन वर्गों में बांटा जाता है

  1. उच्च मेघ (5-14 Km )
  2. मध्य मेघ ( 2-7 Km )
  3. निम्न मेघ ( 2 Km से नीचे )।

प्रश्न 3.
वर्षण क्या है? वर्षण के रूप को कौन-सी दशाएं निर्धारित करती हैं?
उत्तर:
वर्षण का अर्थ है जल वाष्प का नीचे गिरना । इसमें केवल वर्षा तथा हिमपात ही शामिल नहीं बल्कि ओले, बजरी तथा कोहरा भी आते हैं। यह निम्नलिखित दिशाओं पर निर्भर हैं-

  1. संघनन का तापमान
  2. वायुमण्डल की दशा
  3. मेघों के प्रकार तथा ऊँचाई
  4. वर्षण को उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया

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प्रश्न 4.
आर्द्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आर्द्रता (Humidity ):
वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। ( Humidity is the amount of water vapour present in air.) वायु में सदा जल वाष्प होते हैं जिससे वायु नमी प्राप्त करती है। वायुमण्डल के कुल भार का 2% भाग जलवाष्प के रूप में मौजूद है। यह जलवाष्प महासागरों, समुद्रों, झीलों, नदियों आदि के जल से प्राप्त होता है।

प्रश्न 5.
विशिष्ट आर्द्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता (Specific humidity) कहते हैं। यह कुल वायु के आयतन में जलवाष्प के आयतन का अनुपात है। इस प्रकार विशिष्ट आर्द्रता पर तापमान तथा वायुदाब के परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 6.
वृष्टि छाया किसे कहते हैं?
उत्तर:
वृष्टि छाया (Rain Shadow ): पर्वतों की पवन मुखी ढाल पर काफ़ी वर्षा होती है, परन्तु पवन विमुखी ढाल शुष्क रह जाते हैं। पवन मुखी ढाल पर जब पवनें नीचे उतरती हैं तो गर्म होकर शुष्क हो जाती हैं। इसलिए पवन विमुखी ढाल शुष्क रहते हैं। इन्हें वर्षा छाया क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 7.
सहिम वृष्टि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सहिम वृष्टि (Sleet): सहिम वृष्टि वर्षा की बूंदों के जमने से या हिम कणों से पिघले जल के पुनः जमने से होती है। यह जल वृष्टि तथा हिम वृष्टि का मिश्रण होता है। (Sleet is a mixture of Rain and Snow. ) धरती से ऊँचाई पर हवा की परत गर्म होती है। इस परत से वर्षा की बूंदें नीचे गिरती हैं। इससे नीचे हवा की ठण्डी परत होती है। इस ठण्डी परत में जल की बूंदें गिर कर जम जाती हैं तथा हिम के रूप में गिरती हैं।

प्रश्न 8.
जल विज्ञान क्या है?
उत्तर:
जल विज्ञान विज्ञान की वह शाखा है जो जल के उत्पादन, आदान-प्रदान, स्रोत, विलीनता, वाष्पता, हिमपात, संभरण तथा मापन आदि से सम्बन्धित है

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वाष्पीकरण के परिमाण एवं दर को प्रभावित करने वाले घटकों का नाम लिखो ।
उत्तर:
जिस क्रिया के द्वारा तरल पदार्थ एवं जल-गैसीय पदार्थ जल वाष्प में बदल जाते हैं, उसे वाष्पीकरण कहते हैं। वाष्पीकरण की दर तथा परिमाण चार घटकों पर निर्भर करते हैं

1. शुष्कता (Aridity): शुष्क वायु में जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। आर्द्र वायु होने पर वाष्पीकरण की दर एवं मात्रा कम हो जाती है।
2. तापमान (Temperature ): धरातल का तापक्रम बढ़ जाने से वाष्पीकरण बढ़ जाता है तथा ठण्डे धरातल पर कम वाष्पीकरण होता है।
3. वायु परिसंचरण (Movement of air ): वायु संचरण से वाष्पीकरण की मात्रा में वृद्धि होती है।
4. जल खण्ड (Water-bodies): विशाल जल-खण्डों के ऊपर वाष्पीकरण स्थल की अपेक्षा अधिक होता है।

प्रश्न 2.
ओसांक क्या है? नमी की मात्रा से इसका क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
ओसांक (Dew-point ):
संतृप्त वायु के ठण्डे होने से जल वाष्प के रूप में बदल जाती है। जिस तापमान पर किसी वायु का जलवाष्प जल रूप में बदलना शुरू हो जाता है, उस तापमान को ओसांक कहते हैं। जिस तापमान पर संघनन की क्रिया आरम्भ होती है उसे ओसांक या संघनन तापमान कहा जाता है। ओसांक तथा नमी की मात्रा में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है, जब सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है तो संघनन की क्रिया जल्दी होती है। थोड़ी मात्रा में शीतलन की क्रिया से वायु ओसांक पर पहुंच जाती है। परन्तु कम सापेक्ष आर्द्रता के कारण संघनन नहीं होता संघनन के लिए तापमान का ओसांक के निकट या उससे नीचे होना आवश्यक है।

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प्रश्न 3.
संघनन कब और कैसे होता है?
उत्तर:
संघनन (Condensation):
जिस क्रिया द्वारा वायु के जल वाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं। जल कणों के वाष्प का गैस से तरल अवस्था में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं । (“Change of water-vapour into water is called condensation.”) वायु का तापमान कम होने से उस वायु की वाष्प धारण करने की शक्ति कम हो जाती है। कई बार तापमान इतना कम हो जाता है कि वायु जल वाष्प को सहार नहीं सकती और जल वाष्प तरल रूप में वर्षा के रूप में गिरता है। इस क्रिया के उत्पन्न होने के कई कारण हैं

  1. जब वायु लगातार ऊपर उठ कर ठण्डी हो जाए ।
  2. जब नमी से लदी हुई वायु किसी पर्वत के सहारे ऊँची उठ कर ठण्डी हो जाए ।
  3. जब गर्म तथा ठण्डी वायु-राशियां आपस में मिलती हैं। कोहरा, धुन्ध, मेघ, हिमपात, ओस, पाला, उपल वृष्टि इसके विभिन्न रूप हैं।

प्रश्न 4.
बादल कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
बादलों के प्रकार (Types of Clouds ) ऊँचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं:

  1. उच्च स्तरीय मेघ (High Clouds ): 6,000 से 10,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे- पक्षाभ, स्तरी तथा कपासी मेघ।
  2. मध्यम स्तरीय मेघ (Medium Clouds ): 3,000 से 6,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-मध्य कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ (Low Clouds ): 3,000 मीटर तक ऊँचे मेघ जिनमें स्तरी कपासी मेघ, वर्षा स्तरी मेघ, कपासी मेघ, कपासी वर्षा मेघ शामिल हैं।

प्रश्न 5.
बादल कैसे बनते हैं?
उत्तर:
मुक्त वायु में, ऊँचाई पर, धूलि – कणों पर लदे जलकणों या हिम कणों के समूह को बादल कहते हैं। वायु के तापमान के ओसांक से नीचे गिरने पर बादल बनते हैं। वायु के ऊपर उठने तथा फैलने से उसका तापमान ओसांक से नीचे हो जाता है। इससे हवा में संघनन होता है। ये जलकण वायु में आर्द्रताग्राही कणों पर जम कर बादल बन जाते हैं।

प्रश्न 6.
उपल वृष्टि तथा पाले की रचना पर नोट लिखो।
उत्तर:
उपल वृष्टि ( Hail Stones ): जब संघनन की क्रिया 0°C या 32°F से कम तापमान पर होती है तो जल – वाष्प हिम कणों में बदल जाते हैं। कई बार तूफान (Thunder Storm) के कारण होने वाली वर्षा में से ये हिम- कण ठोस ओलों के रूप में गिरते हैं।

पाला (Frost ): जब संघनन की क्रिया हिमांक 0°C (32°F) कम तापमान पर हो तो जलवाष्प ओस की बूंदों के रूप में नहीं गिरता अपितु छोटे-छोटे सफेद हिम कणों के रूप में पृथ्वी तल पर परत के रूप में फैल जाता है । इसे पाला कहते हैं ।

प्रश्न 7.
सापेक्ष आर्द्रता तथा वर्षा में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
सापेक्ष आर्द्रता तथा वर्षा में सम्बन्ध (Relation between Relative Humidity and Rainfall) सापेक्ष आर्द्रता बढ़ने से वायु संतृप्त होती चली जाती है। जब सापेक्ष आर्द्रता 100% हो जाती है तो वायु पूर्ण रूप से संतृप्त हो जाती है। वह वायु नमी को सहार नहीं सकती और उसे नमी वर्षा के रूप में छोड़नी पड़ती है। इस प्रकार सापेक्ष आर्द्रता के बढ़ने से वर्षा की सम्भावना अधिक रहती है। इस प्रकार सापेक्ष आर्द्रता वाष्पीकरण की मात्रा एवं दर निर्धारित करती है अतः यह एक महत्त्वपूर्ण जलवायविक घटक है।

प्रश्न 8.
किसी स्थान की वर्षा किन तत्त्वों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
किसी स्थान की वर्षा निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  1. भूमध्य रेखा से दूरी: भूमध्य रेखीय क्षेत्रों से अधिक गर्मी के कारण वर्षा अधिक होती है।
  2. समुद्र से दूरी: तटवर्ती प्रदेशों में वर्षा अधिक होती है परन्तु महाद्वीपों के भीतरी भागों में कम।
  3. समुद्र तल से ऊँचाई: पर्वतीय भागों में मैदानों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।
  4. प्रचलित पवनें: सागर से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं परन्तु स्थल से आने वाली पवनें शुष्क होती हैं।
  5. महासागरीय धाराएं: उष्ण धाराओं के ऊपर से गुजरने वाली पवनें अधिक वर्षा करती हैं, इसके विपरीत शीतल पवनों के ऊपर से गुजरने वाली पवनें शुष्क होती हैं।

प्रश्न 9.
संसार में वर्षा का वार्षिक वितरण बताओ।
उत्तर:
संसार में वर्षा का वितरण समान नहीं है। भूपृष्ठ पर होने वाली कुछ वर्षा का 19 प्रतिशत महाद्वीपों पर तथा 81 प्रतिशत महासागरों पर प्राप्त होता है। संसार की औसत वार्षिक वर्षा 975 मिलीमीटर है।
1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र: इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेंटीमीटर है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय भागों में अधिक वर्षा होती है।
2. सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र: इन क्षेत्रों में 100 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है। यह क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में स्थित है तथा मध्यवर्ती पर्वतों पर मिलते हैं।
3. कम वर्षा वाले क्षेत्र: महाद्वीपों के मध्यवर्ती भाग तथा शीतोष्ण कटिबन्ध के पूर्वी तटों पर 25 से 100 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
4. वर्षा विहीन प्रदेश: गर्म मरुस्थल, ध्रुवीय प्रदेश तथा वृष्टि छाया प्रदेशों में 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions )

प्रश्न 1.
ओस तथा ओसांक में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

ओस (Dew) ओसांक (Dew Point)
(1) भू-तल तथा वनस्पति पर संघनित जल की छोटी – छोटी बूँदों को ओस कहते हैं। (1) जिस तापमान पर संघनन की क्रिया आरम्भ होती है उसे ओसांक कहते हैं।
(2) ओस बनने के लिए लम्बी रातें, स्वच्छ आकाश, शान्त वायुमण्डल अनुकूल दशाएं हैं। (2) ओसांक को संघनन तापमान भी कहा जाता है।
(3) विकिरण द्वारा ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु जल्दी संतृप्त हो जाती है तथा कुछ जलवाष्प जल बूंदों में बदल जाता है। (3) जब वायु पूरी तरह संतृप्त हो जाती है और जलवाष्प ग्रहण नहीं कर सकती तो उस तापमान को ओसांक कहते हैं।
(4) ओस के निर्माण के लिए तापमान 0°C से ऊपर होना चाहिए। (4) ओसांक पर सापेक्ष आर्द्रता 100% होती है।

प्रश्न 2.
वर्षा तथा वृष्टि में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

वर्षा (Rainfall) वृष्टि (Precipitation)
(1) जलवाष्प का जल कणों के रूप में पृथ्वी पर गिरना वर्षा कहलाता है। (1) किसी क्षेत्र में वायुमण्डल से गिरने वाली समस्त जलराशि को वृष्टि कहा जाता है।
(2) वर्षा मुख्य रूप से तीन प्रकार की है संवाहिक, पर्वतीय तथा चक्रवातीय। (2) वृष्टि मुख्यत: तरल तथा ठोस रूप में पाई जाती है।
(3) संतृप्त वायु के ठण्डा होने से वर्षा होती है। (3) ओसांक से कम तापमान पर संघनन से वृष्टि होती है।
(4) जब जल-कणों का आकार बड़ा हो जाता है तो वे वर्षा के रूप में गिरते हैं। (4) जल वर्षा, हिम वर्षा तथा ओलावृष्टि वृष्टि के मुख्य रूप हैं।

प्रश्न 3.
कोहरा तथा धुन्ध में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

कोहरा (Fog) धुन्ध (Mist)
(1) कोहरा एक प्रकार का बादल है जो धरातल के निकट वायु में धूल-कणों पर लटके हुए जल- बिन्दुओं से बनता है। (1) हल्के कोहरे को धुन्ध कहते हैं। यह भी संघनित जल- वाष्प होता है।
(2) कोहरे में संघनता अधिक होती है तथा 200 मी० से अधिक दूरी की वस्तु दिखाई नहीं देती। (2) धुन्ध में संघनता कम होती है तथा 2 कि० मी० तक की दूरी पर भी वस्तुएं दिखाई पड़ती हैं।
(3) कोहरे में शुष्कता अधिक होती है। (3) धुन्ध में नमी अधिक होती है।
(4) शीत ऋतु में लम्बी रातों के कारण भूमि का कोहरा बनता है! (4) शीत ऋतु में शीतोष्ण कटिबन्ध में धुन्ध एक साधारण- सी बात है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मेघ कैसे बनते हैं? मेघों के प्रकार बताओ।
उत्तर:
मेघों का निर्माण वायु में उपस्थित महीन धूलकणों के केन्द्रकों के चारों ओर जलवाष्प के संघनित होने से होता है। अधिकांश दशाओं में, मेघ जल की अत्यधिक छोटी-छोटी बूंदों से बने होते हैं। लेकिन वे बर्फ़ कणों से भी निर्मित हो सकते हैं बशर्ते कि तापमान हिमांक से नीचे हो अधिकांश मेघ, गर्म एवं आर्द्र वायु के ऊपर उठने से बनते हैं। ऊपर उठती हवा फैलती है और जब तक ओसांक तक न पहुंच जाए, ठंडी होती जाती है और कुछ जलवाष्प मेघों के रूप में संघनित होती है। दो विभिन्न तापमान रखने वाली वायुराशियों के आपस में मिश्रण से भी मेघों की रचना होती है। मेघ-आधार की औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के 10 प्रकारों को तीन वर्गों में रखा गया है। ये निम्नलिखित हैं:

  1. उच्च मेघ (5 से 14 कि०मी०);
  2. मध्य मेघ (2 से 7 कि०मी०);
  3. निम्न मेघ (2 कि०मी० से नीचे)।

1. उच्च मेघ (High Clouds )
(i) पक्षाभ मेघ:
यह तंतुनुमा, कोमल तथा सिल्क जैसी आकृति के मेघ हैं। जब ये मेघ समूह से अलग होकर आकाश में अव्यवस्थित तरीके से तैरते नज़र आते हैं, तो ये साफ मौसम लाते हैं। इसके विपरीत जब ये व्यवस्थित तरीके से पट्टियों के रूप में अथवा पक्षाभ स्तरी अथवा मध्यस्तरी मेघों से जुड़े हुए होते हैं, तो आर्द्र मौसम की पूर्व सूचना देते हैं।

(ii) पक्षाभ स्तरी मेघ:
पतले श्वेत चादर जैसे मेघ, जो लगभग समस्त आकाश को घेरते हैं तथा इसे दूध जैसी शक्ल प्रदान करते हैं, पक्षाभ स्तरी मेघ कहलाते हैं। सामान्यतः ये मेघ सूर्य अथवा चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामण्डल बनाते हैं। सामान्यतः ये आने वाले तूफान के लक्षण हैं।

(iii) पक्षाभ कपासी मेघ:
ये मेघ छोटे-छोटे श्वेत पत्रकों अथवा छोटे गोलाकार रूप में दिखाई देते हैं, इनकी कोई छाया नहीं पड़ती। सामान्यतः ये समूहों, रेखाओं अथवा उर्मिकाओं में व्यवस्थित होते हैं, जो मेघ रूपी चादर में पड़ने वाली सिलवटों से उत्पन्न होते हैं ऐसी व्यवस्था को मैकेरेल आकाश कहते हैं।

2. मध्य मेघ (Medium Clouds )
(i) मध्य स्तरी मेघ:
भूरे अथवा नीले वर्ण के मेघों की एक समान चादर, जिनकी संरचना सामान्यतः तंतुनुमा होती है, इस मेघ वर्ग से संबंधित हैं। बहुधा, ये मेघ धीरे-धीरे पक्षाभ स्तरी मेघ में बदल जाते हैं। इन मेघों से होकर सूर्य तथा चन्द्रमा धुंधले दिखाई देते हैं । कभी-कभी इनसे प्रभामण्डल की छटा दिखाई देती है। साधारणतया इनसे दूर-दूर तक और लगातार वर्षा होती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल  1
(ii) मध्य कपासी मेघ:
ये चपटे हुए गोलाकार मेघों के समूह हैं, जो रेखाओं अथवा तरंगों की भांति व्यवस्थित होते हैं। ये पक्षाभ कपासी मेघ से भिन्न होते हैं, क्योंकि इनकी गोलाकार आकृति काफ़ी विशाल होती है, और अक्सर इनकी छाया भूमि पर दिखाई देती है ।

3. निम्न मेघ (Low Clouds )

  1. स्तरी कपासी मेघ: कोमल एवं भूरे मेघों के बड़े गोलाकार समूह जो चमकीले अंतराल के साथ देखे जाते हैं, इस वर्ग में शामिल हैं। साधारणतः इनकी व्यवस्था नियमित प्रतिरूप में होती है।
  2. स्तरी मेघ: ये निम्न, एक समान परत वाले मेघ हैं, जो कुहरे से मिलते-जुलते होते हैं, परन्तु भूपृष्ठ पर ठहरे नहीं होते हैं। ये मेघ किरीट या प्रभामण्डल उत्पन्न करते हैं।
  3. वर्षा स्तरी मेघ: ये घने आकृतिविहीन तथा बहुधा बिखरे परतों के रूप में निम्न मेघ हैं, जो सामान्यतः लगातार वर्षा देते हैं
  4. कपासी मेघ: ये मोटे, घने ऊर्ध्वाधर विकास वाले मेघ हैं। इनका ऊपरी भाग गुम्बद की शक्ल का होता है। इसकी संरचना गोभी के फूल जैसी होती है जबकि इसका आधार लगभग क्षैतिज होता है। अधिकाँश कपासी मेघ साफ़ मौसम रखते हैं। हालांकि इनका आधार कपासी वर्षा में मेघ में बदल कर तूफानों को जन्म देता है।
  5. वर्षा कपासी मेघ: ऊर्ध्वाधर विकास वाले मेघों के भारी समूह जिनके शिखर पर्वत अथवा टॉवर की भांति होते हैं, कपासी वर्षा मेघ कहलाते हैं। इसकी विशेषता इसके ऊपरी भाग का निहाई आकृति का होना है। इसके साथ भारी वर्षा, झंझा, तड़ितझंझा और कभी-कभी ओलों का गिरना भी जुड़ा हुआ है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल 

प्रश्न 2.
निरपेक्ष आर्द्रता तथा सापेक्ष आर्द्रता में क्या अन्तर है?
उत्तर:
निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity):
किसी समय किसी तापमान पर वायु में जितनी नमी मौजूद हो, उसे वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। यह ग्राम प्रति घन से० मी० द्वारा प्रकट की जाती है। इस प्रकार निरपेक्ष आर्द्रता को वायु के प्रति आयतन जलवाष्प के भार के रूप में परिभाषित किया जाता है। तापमान बढ़ने या घटने पर भी वायु की वास्तविक आर्द्रता वही रहेगी जब तक उसमें और अधिक जल वाष्प शामिल न हों या कुछ जल वाष्प पृथक् न हो जाएं। वाष्पीकरण द्वारा निरपेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है तथा वर्षा द्वारा कम हो जाती है। वायु के ऊपर उठकर फैलने या नीचे उतर कर सिकुड़ने से भी यह यात्रा बढ़ या घट जाती है।

वितरण (Distribution ):

  1. भूमध्य रेखा पर सबसे अधिक निरपेक्ष आर्द्रता होती है तथा ध्रुवों की ओर घटती जाती है।
  2. ग्रीष्म ऋतु में शीतकाल की अपेक्षा तथा दिन में रात की अपेक्षा वायु की निरपेक्ष आर्द्रता अधिक होती है।
  3. निरपेक्ष आर्द्रता महासागरों पर स्थल खण्डों की अपेक्षा अधिक होती है।
  4. उच्च वायु दबाव क्षेत्रों में नीचे उतरती हुई पवनों के कारण निरपेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है।
  5. इससे वर्षा के सम्बन्ध में अनुमान लगाने में सहायता नहीं मिलती।

सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity ):
किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं।
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दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।
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उदाहरण (Example ):
किसी वायु में 70°F पर 4 Grain प्रति घन फुट आर्द्रता मौजूद है परन्तु वायु 70°F तापमान पर 8 Grain प्रति घन फुट ग्रहण कर सकती है तो उस वायु की सापेक्ष आर्द्रता \(=\frac{4}{8} \times 100\)
= 50% होगी।

नोट: सापेक्ष आर्द्रता को भिन्न की बजाय % में प्रकट किया जाता है। इसे वायु संतृप्तता का प्रतिशत अंश भी कहा जाता है। वायु के फैलने व सिकुड़ने में सापेक्ष आर्द्रता बदल जाती है। तापमान के बढ़ने से वायु की वाष्प ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है। तापमान घटने से वायु ठण्डी हो जाती है तथा वाष्प ग्रहण क्षमता कम हो जाती है। इस प्रकार सापेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है।

वितरण (Distribution):

  1. भूमध्य रेखा पर सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है।
  2. उष्ण मरुस्थलों में सापेक्ष आर्द्रता कम होती है।
  3. कम वायु दबाव क्षेत्रों में सापेक्ष आर्द्रता अधिक परन्तु अधिक दबाव क्षेत्रों में कम होती है।
  4. महाद्वीपों के भीतरी क्षेत्रों में सापेक्ष आर्द्रता कम होती है।
  5. दिन को सापेक्ष आर्द्रता कम होती है परन्तु रात्रि को अधिक।

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प्रश्न 3.
वर्षा किस प्रकार होती है? वर्षा के विभिन्न प्रकारों का उदाहरण सहित वर्णन करो।
उत्तर:
वायु की आर्द्रता ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का मुख्य कारण संतृप्त वायु का ठण्डा होना है। (“Rainfall is caused due to the cooling of saturated air.”) वर्षा होने की क्रिया कई पदों (Stages) में होती है-

(i) संघनन होना (Condensation): नम वायु के ऊपर उठने से उसका तापक्रम प्रति 1000 फुट (300 मीटर) पर 5.6°F घटता जाता है। तापमान के निरन्तर घटने से वायु की वाष्प – शक्ति घट जाती है। वायु संतृप्त हो जाती है तथा संघनन क्रिया (Condensation) होती है।

(ii) मेघों का बनना (Formation of Clouds ):वायु में लाखों धूल-कण तैरते-फिरते हैं। जल वाष्प इन कणों पर जमा हो जाते हैं। ये मेघों का रूप धारण कर लेते हैं।

(iii) जल-कणों का बनना (Formation of Rain Drops): छोटे-छोटे मेघ कणों के आपस में मिलने से जल की बूंदें (Rain drops) बनती हैं। जब इन जल कणों का आकार व भार बढ़ जाता है तो वायु इसे सहार नहीं सकती। ये जल-कण पृथ्वी पर वर्षा के रूप में गिरते हैं।

  • इस प्रकार जल-कणों का पृथ्वी पर गिरना ही वर्षा कहलाता है। वर्षा होने के लिए आवश्यक है कि:
    1. वायु में पर्याप्त नमी हो।
    2. वायु का किसी प्रकार से ठण्डा होना या द्रवीभवन क्रिया का होना।
    3. वायु में धूल कणों का होना।
  • वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall): वायु तीन दशाओं में ठण्डी होती है
    1. गर्म तथा नम वायु का संवाहिक धाराओं के रूप में ऊपर उठना।
    2. किसी पर्वत से टकराकर नम वायु का ऊपर उठना।
    3. ठण्डी तथा गर्म वायु का आपस में मिलना इन दशाओं के आधार पर वर्षा तीन प्रकार की है

1. संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall):
स्थल पर अधिक गर्मी के कारण वायु गर्म होकर फैलती है। तथा हल्की हो जाती है। यह वायु हल्की होकर ऊपर उठती है और इस वायु का स्थान लेने के लिए पास वाले अधिक दबाव वाले खण्ड की ठण्डी वायु आती है। यह वायु भी गर्म होकर ऊपर उठ जाती है। इस प्रकार संवाहिक धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं। इन धाराओं के कारण कुछ ही ऊंचाई पर वायु ठण्डी हो जाती है तथा वर्षा होती है। इसे संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall) कहते हैं। यह वर्षा घनघोर, अधिक मात्रा तथा तीव्र बौछारों के रूप में होती है। यह वर्षा स्थानिक गर्मी के कारण उपस्थित होती है। भूमध्य रेखा पर प्रतिदिन वायु दोपहर तक गर्म हो उठती है और शाम को वर्षा होती है।
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2. पर्वतीय वर्षा ( Orographic or Relief Rainfall): किसी पर्वत के सहारे ऊपर उठती हुई नम पवनों द्वारा वर्षा को पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall) कहते हैं। इस प्रकार की वर्षा के लिए आवश्यक है कि वायु में पर्याप्त मात्रा में नमी हो तथा पर्वतों का विस्तार पवन दिशा में लम्बवत् हो। संसार की अधिकांश वर्षा इसी प्रकार होती है, परन्तु यह वर्षा पर्वतों की पवन सम्मुख ढाल (Windward Slope) पर अधिक होती है। पर्वतों की पवन विमुख या दूसरी ओर की ढाल (Leeward Slope) पर बहुत कम वर्षा होती है। ऐसे प्रदेश वृष्टि छाया (Rain Shadow) के प्रदेश कहलाते हैं। पर्वत के दूसरी ओर नीचे उतरती हुई पवनें (Descending Winds) वर्षा नहीं करतीं। उतरने की क्रिया में दबाव से वायु का तापमान बढ़ जाता है तथा द्रवीभवन क्रिया नहीं हो पाती। पर्वत के दूसरी ओर तक पहुंचते-पहुंचते वायु की आर्द्रता समाप्त हो जाती है।
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भारत में पश्चिमी घाट पर समुद्र से आने वाली पवनें लगभग 400 सम वर्षा करती हैं परन्तु पूर्वी ढाल पर वृष्टि छाया (Rain Shadow) के कारण केवल 65 सम वर्षा होती है।

3. चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rainfall):
चक्रवात में गर्म व नम वायु ठण्डी शुष्क वायु के मिलने से ठण्डी वायु गर्म वायु को ऊपर उठा देती है। आर्द्र वायु उष्ण अग्र (Warm Front) के सहारे वायु से ऊपर चढ़ जाती है। ऊपर उठने पर गर्म वायु का जलवाष्प ठण्डा होकर वर्षा के रूप में गिरता है। इसे चक्रवातीय (Cyclonic) वर्षा कहते हैं। वह वर्षा लगातार बहुत देर तक परन्तु थोड़ी मात्रा में होती है।
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शीतोष्ण कटिबन्ध में शीत काल में पश्चिमी यूरोप में इसी प्रकार वर्षा होती है। पंजाब में शीतकाल में कुछ वर्षा रूम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. सामान्य वायुदाब कितना होता है?
(A) 34 मिलीबार
(B) 300 मिलीबार
(C) 1013 मिलीबार
(D) 900 मिलीबार।
उत्तर:
(C) 1013 मिलीबार।

2. भूमध्य रेखीय खण्ड में निम्न वायुदाब पेटी का मुख्य कारण क्या है?
(A) दैनिक गति
(B) चक्रवात
(C) समुद्री धाराएं
(D) संवाहिक धाराएं।
उत्तर:
(D) संवाहिक धाराएं।

3. उपध्रुवीय क्षेत्र में निम्न वायु दाब का मुख्य कारण क्या है?
(A) दैनिक गति
(B) उच्च तापमान
(C) संवाहिक धाराएं
(D) चक्रवात।
उत्तर:
(A) दैनिक गति।

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4. डोलड्रमज़ किस क्षेत्र को कहा जाता है?
(A) भू-मध्य रेखीय क्षेत्र
(B) ध्रुवीय क्षेत्र
(C) शीत ऊष्ण कटिबन्ध क्षेत्र
(D) शीत कटिबन्ध क्षेत्र।
उत्तर:
(C) भू-मध्य रेखीय क्षेत्र।

5. उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा क्या होती है?
(A) उत्तर-पूर्वी
(B) दक्षिण-पूर्वी
(C) पश्चिमी
(D) दक्षिणी।
उत्तर:
(A) उत्तर-पूर्वी।

6. वायुदाब निम्नतम होता है जब वायु
(A) उष्ण तथा आर्द्र होती है
(B) ठण्डी तथा शुष्क होती है
(C) उष्ण तथा शुष्क होती है
(D) ठण्डी तथा आर्द्र होती है।
उत्तर:
(A) उष्ण और आर्द्र होती है।

7. वायुमण्डलीय दाब के मापन के लिए इकाई होती है:
(A) वार
(B) मिलीबार
(C) कैलोरी
(D) मीटर।
उत्तर:
(B) मिलीबार।

8. ऊंचाई के बढ़ने के साथ वायुदाब तथा तापमान में क्या अन्तर आता है?
(A) दोनों कम होते जाते हैं
(B) दोनों बढ़ते जाते हैं
(C) दोनों स्थाई रहते हैं।
(D) वायुदाब कम और तापमान बढ़ने लगता है।
उत्तर:
(A) दोनों कम होते जाते हैं।

9. पवन का वेग मापने के लिए उपयोग किया जाता है:
(A) हाइग्रोमीटर
(B) एनिमोमीटर
(C) बैरोमीटर
(D) थर्मामीटर।
उत्तर:
(B) एनिमोमीटर।

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10. घोड़ों के अक्षांश भूगोलिक नाम है-
(A) उत्तरी उपोष्णीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध का
(B) विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध का
(C) विषुवतरेखीय शान्त मण्डल का
(D) ध्रुवीय क्षेत्रों का ।
उत्तर:
(A) उत्तरी उपोष्णीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध का।

11. चिनूक पवनें किन पर्वतों के पूर्वी ढलानों से उतरती हैं?
(A) हिमालय
(B) एंडीज
(C) रॉकीज
(D) आल्पस।
उत्तर:
(C) रॉकीज।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता का क्या कारण है?
उत्तर:
वायु गर्म होने पर फैलती है और ठण्डा होने पर सिकुड़ती है। इससे वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता आती है। परिणामस्वरूप वायु गतिमान होकर अधिक दाब वाले क्षेत्रों से न्यून दाब वाले क्षेत्रों में प्रवाहित होती है। क्षैतिज गतिमान वायु ही पवन है।

प्रश्न 2.
वायुमण्डलीय दाब के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब यह निर्धारित करता है कि कब वायु ऊपर उठेगी व कब नीचे बैठेगी। पवनें पृथ्वी पर तापमान व आर्द्रता का पुनर्वितरण करती हैं जिससे पूरी पृथ्वी का तापमान स्थिर बना रहता है। ऊपर उठती हुई वायु का तापमान कम होता जाता है। बादल बनते हैं और वर्षा होती है जैसे हम ऊपर ऊंचाई पर चढ़ते हैं, वायु विरल होती जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण: भूमण्डलीय पवनों का प्रारूप मुख्यतः निम्न बातों पर निर्भर है

  1. वायुमण्डलीय ताप में अक्षांशीय भिन्नता,
  2. वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति,
  3. वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन,
  4. महासागरों व महाद्वीपों का वितरण तथां
  5. पृथ्वी का घूर्णन। वायुमण्डलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण भी कहा जाता है। यह वायुमण्डलीय परिसंचरण महासागरीय जल को भी गतिमान करता है, जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure ):
वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 . औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहां की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार।

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प्रश्न 2.
‘वाताग्र’ कैसे बनते हैं?
उत्तर:
जहां दो भिन्न वायुराशियां (शीत व उष्ण) वायुराशियां परस्पर टकराती हैं, तो उसे वायुराशि का वाताग्र कहते हैं। वाताग्र न तो धरातलीय सतह के सामान्तर होता है और न ही उस पर लम्बवत् होता है बल्कि कुछ कोण पर झुका होता है।

प्रश्न 2.
सामान्य वायु दाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामान्य वायु दाब (Normal Atmosphere Pressure ): समुद्र तल पर प्रति वर्ग इंच पर वायुमण्डल का दबाव 6.68 किलोग्राम या 1.03 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। वायुमण्डल का औसत या सामान्य दाब 45° अक्षांश पर समुद्र तल पर 29.92 इंच या 76 सेंटीमीटर या 1013.2 मिलीबार होता है।

प्रश्न 3.
एक मिलीबार से क्या अभिप्राय है? वायुदाब की माप इकाइयों में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
एक वर्ग से०मी० पर एक ग्राम भार के बल को एक मिलीबार कहते हैं। दूसरे शब्दों में 1000 डाइन (Dynes) प्रति वर्ग से०मी० के वायु भार को एक मिलीबार कहते हैं। 1000 मिली बार के वायुभार को एक बार (Bar) कहते हैं। विभिन्न माप इकाइयों में सम्बन्ध:
30 इंच वायुदाब = 76 से०मी० = 1013.2 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार
1 से०मी० वायु दाब = 13.3 मिलीबार

प्रश्न 4.
दाब प्रवणता (Pressure Gradient) को परिभाषित करें
उत्तर:
वायुदाब का वितरण समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समदाब रेखाओं के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। यह दो समदाब रेखाओं पर समकोण बनाती हुई होती है। यह दाब प्रवणता वायु दिशा तथा वायु वेग को प्रदर्शित करती है। यदि समदाब रेखाएं एक-दूसरे के निकट हों तो दाब प्रवणता तीव्र होती है तथा तेज़ पवनें चलती हैं। यदि समदाब रेखाएं दूर-दूर हों तो वायु की गति मन्द होती है।

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प्रश्न 5.
ऊँचाई के साथ वायु दाब में कमी क्यों होती है?
उत्तर:
ऊँचाई के साथ साथ 34 मिलीबार प्रति 300 मीटर की दर से वायुदाब कम होता है। इस कमी का मुख्य कारण वायु का घनत्व तथा सम्पीड़न क्रिया है। वायुमण्डल की ऊपरी परतें हल्की होती हैं। ऊपरी परतों के बोझ तथा दबाव के कारण नीचे की परतों पर सम्पीड़न क्रिया होती है इसलिए धरातल के निकट की परतों में वायुदाब अधिक होता है।

निश्चित ऊँचाई पर मानक तापमान व वायुदाब

स्तर वायुदाब (mle) समुद्रतल
समुद्रतल 1013.25 15.2
1 कि०मी० 898.76 8.7
5 कि०मी० 540.48 – 17.3
10 कि०मी० 265.00 -49.7

प्रश्न 6.
कॉरिऑलिस प्रभाव किस प्रकार पवन की दिशा प्रभावित करता है?
उत्तर:
व्यापारिक पवनों की दिशा पर कॉरिऑलिस शक्ति का प्रभाव पड़ता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-दक्षिण की अपेक्षा उत्तर-पूर्व हो जाती है। दैनिक गति के कारण उत्पन्न कॉरिऑलिस प्रभाव से इन पवनों की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती है।

प्रश्न 7.
वाताग्र के विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
वाताग्र (Fronts ): जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन (Frontogenesis) कहते हैं। वाताग्र चार प्रकार के होते हैं:

  1. शीत वाताग्र
  2. उष्ण वाताग्र
  3. अचर वाताग्र
  4. अधिविष्ट वाताग्र।

जब वाताग्र स्थिर हो जाए तो इन्हें अचर वाताग्र कहा जाता है (अर्थात् ऐसे वाताग्र जब कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती)। जब शीतल व भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण वायुराशियों को ऊपर धकेलती है, इस सम्पर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं। यदि गर्म वायुराशियाँ आक्रामक रूप में ठण्डी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस सम्पर्क क्षेत्र को उष्ण वाताग्र कहते हैं। यदि एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाए तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं। वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं और तीव्र वायुदाब प्रवणता व तापमान इनकी विशेषता है। ये तापमान में अचानक बदलाव लाते हैं तथा इसी कारण वायु ऊपर ऊठती है, बादल बनते हैं तथा वर्षा होती है।

प्रश्न 8.
फ़ैरल का नियम क्या है? चित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर:
फ़ैरल का नियम (Ferral’s Law):
धरातल पर पवनें कभी सीधे उत्तर से दक्षिण को नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फ़ैरल का नियम कहते हैं। ” All moving bodies are deflected to the right in the northern hemisphere and to left in the southern hemisphere.”
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वायु की दिशा में परिर्वतन का कारण पृथ्वी की दैनिक गति है। जब हवाएं कम चाल वाले भागों से अधिक चाल वाले भागों की ओर आती हैं तो पीछे रह जाती हैं। इस विक्षेप शक्ति (Deffective Force) को कोरोलिस बल भी कहा जाता है।

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प्रश्न 9.
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण महासागरीय धाराओं की गति को कैसे प्रभावित करता है तथा ENSO घटना का वर्णन करें।
उत्तर:
वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण और उसका महासागरों पर प्रभाव- वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण के सन्दर्भ में प्रशान्त महासागर का गर्म या ठण्डा होना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मध्य प्रशान्त महासागर की गर्म जलधाराएं दक्षिणी अमेरिका के तट की ओर प्रवाहित होती हैं और पीरू की ठण्डी धाराओं का स्थान ले लेती हैं। पीरू के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति एल-निनो कहलाता है। एल-निनो घटना का मध्य प्रशान्त महासागर और ऑस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा सम्बन्ध है। प्रशान्त महासागर पर बायुदाब में यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन कहलाता है।

इन दोनों (दक्षिणी दोलन बदलाव व एल निनो) की संयुक्त घटना को ईएनएसओ (ENSO) के नाम से जाना जाता है। जिन वर्षों में ईएनएसओ (ENSO) शक्तिशाली होता है, विश्व में वृहत् मौसम सम्बन्धी भिन्नताएँ देखी जाती हैं। दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी शुष्क तट पर भारी वर्षा होती है, ऑस्ट्रेलिया और कभी-कभी भारत अकालग्रस्त होते हैं तथा चीन में बाढ़ आती है। इन घटनाओं के ध्यानपूर्वक आकलन से संसार के अन्य भागों की मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
वायु राशि क्या होती है? पवन से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
वायु राशि वायुमण्डल का एक मोटा तथा विस्तृत भाग है जिसमें तापमान और आर्द्रता के लक्षण एक समान होते हैं। इस प्रकार वायुराशियों में एकरूपता का पाया जाना इसका मुख्य लक्षण है। एक वायु राशि में एक-दूसरे के ऊपर वायु की विभिन्न परतें होती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल में पर्याप्त ऊँचाई तक एक विशाल वायु राशि में एकरूपता पाई जाती है। वायु राशि तथा वायु में कई प्रकार से भिन्नता पाई जाती है। वायु धरातल के समानान्तर चलती है तथा इसकी विभिन्न पर्तों में ताप एवं आर्द्रता में विभिन्नता पाई जाती है। वायु राशि में वायु धाराएं ऊपर उठती हैं तथा एक विशाल क्षेत्र में तापमान एवं आर्द्रता में समानता पाई जाती है।

प्रश्न 11.
स्रोत प्रदेश किसे कहते हैं? ध्रुवीय महाद्वीपीय स्रोत प्रदेशों का वर्णन करो
उत्तर:
धरातल के ऐसे समान क्षेत्र जहां वायु राशियों की उत्पत्ति होती है, स्रोत प्रदेश (Source Region) कहलाते हैं। यह प्रदेश पृथ्वी के धरातल पर विस्तृत क्षेत्र हैं जहां एक सम लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे प्रदेश में एक सम धरातल तथा प्रति चक्रवातीय वायु व्यवस्था पाई जाती है। इस अवस्था में अपसारी वायु संचरण (Divergent) होता है। प्रायः स्रोत प्रदेश ध्रुवीय तथा उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। शीतकाल में उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया के ध्रुवीय प्रदेश बर्फ से ढके रहते हैं। यहां प्रति चक्रवात चलते हैं। वायु स्थिर तथा शुष्क होती है। तापमान तथा आर्द्रता में एकरूपता पाई जाती है।

प्रश्न 12.
विभिन्न प्रकार की वायु राशियों की उत्पत्ति, स्रोत के आधार पर वर्गीकरण करो
उत्तर:
संसार की विभिन्न राशियों के सुविधापूर्वक अध्ययन के लिए इनका वर्गीकरण आवश्यक है। उत्पत्ति, स्रोत के आधार पर वायु राशियां दो प्रकार की हैं-

  1. ध्रुवीय वायु राशियां (Polar Air Masses): वे वायु राशियां उच्च अक्षांशों में जन्म लेती हैं। ये ठण्डी तथा कम आर्द्र होती हैं ।
  2. उष्ण कटिबन्धीय वायु राशियां (Tropical Air Masses): ये वायु राशियां निम्न अक्षांशों में जन्म लेती हैं तथा इनमें तापक्रम व आर्द्रता अधिक होती है।

वायुराशियों को उत्पत्ति के आधार पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है:

  1. समुद्री वायु राशियां (Maritime Air Masses): जो अधिक आर्द्र होती हैं।
  2. महाद्वीपीय वायु राशियां (Continental Air Masses ): जो प्रायः शुष्क होती हैं।

इस प्रकार वायु राशियों के चार प्रकार माने जाते हैं:

  1. समुद्री ध्रुवीय वायु राशियां।
  2. महाद्वीपीय ध्रुवीय वायु राशियां।
  3. समुद्री उष्ण कटिबन्धीय वायु राशियां|
  4. महाद्वीपीय उष्ण कटिबन्धीय वायु राशियां।

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प्रश्न 13.
उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा उत्तरी पूर्वी क्यों है? व्याख्या करें।
उत्तर:
व्यापारिक पवनें उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी से भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी की ओर चलती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी होती है। यदि पृथ्वी स्थिर होती तो ये पवनें उत्तर-दक्षिण दिशा में चलतीं, परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें लम्बवत् दिशा से हट कर एक ओर चली जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में विक्षेप शक्ति (Deflective force) दाईं ओर कार्य करती है। इसलिए ये पवनें दाईं ओर मुड़ जाती हैं। इस शक्ति को कोरोलिस बल भी कहा जाता है। इसी बल पर फैरल का सिद्धान्त आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर मुड़ जाती हैं तथा इनकी दिशा उत्तरी-पूर्वी हो जाती है।

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प्रश्न 14.
चक्रवात किसे कहते हैं?
उत्तर:
चक्रवात न्यून वायुदाब की ऐसी व्यवस्था है जिसमें पवनें चारों ओर से केन्द्र की ओर चलती हैं। इस प्रकार चक्रवात न्यून वायुदाब के केन्द्र होते हैं जिनमें समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में पवनों की दिशा घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुसार (Clock-wise) होती है । चक्रवात उत्पत्ति क्षेत्र की दृष्टि से उष्ण कटिबन्धीय तथा शीत उष्ण कटिबन्धीय होते हैं।

प्रश्न 15.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के प्रमुख गुणों का वर्णन करो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones):

  1. ये चक्रवात 5° से 30° अक्षांशों के बीच व्यापारिक पवनों के साथ – साथ पूर्व से पश्चिम में चलते हैं।
  2. इनके केन्द्र में अत्यधिक निम्न दाब होता है तथा समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती हैं।
  3. साधारणतः इनका आकार तथा विस्तार छोटा होता है। इसका व्यास 150 से 500 किलोमीटर तक होता है।
  4. चक्रवात के केन्द्रीय भाग को ‘आंधी की आंख’ (Eye of the Storm) कहते हैं। यह प्रदेश शान्त तथा वर्षाहीन होता है। यह गर्म वायु की धाराओं के रूप में ऊपर उठने से बनता है तथा इनकी ऊर्जा
  5. के स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा है।
  6. शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में इनका अधिक विकास होता है।
  7. इन चक्रवातों में हरीकेन तथा टाइफून बहुत विनाशकारी होते हैं।
  8. इन चक्रवातों द्वारा भारी वर्षा होती है।

प्रश्न 16.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात इतने वृत्ताकार क्यों होते हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती हैं। केन्द्र में अत्यधिक निम्न दाब होता है। इनकी उत्पत्ति दो विभिन्न गुणों वाली वायु राशियों के मिलने के कारण होती है। परन्तु तीव्र हवाओं के कारण इन वायु राशियों के सीमान्त प्रदेश समाप्त हो जाते हैं। एक चक्रधार वायु व्यवस्था उत्पन्न हो जाती है जिसके चारों ओर अधिक वायुदाब होता है। यह वायुदाब समान रूप से बढ़ता है इसलिए ये चक्रवात वृत्ताकार होते हैं।

प्रश्न 17.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में भारी वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
चक्रवात के केन्द्रीय भाग में पवनें नीचे उतरती हैं। इसलिए यह भाग शान्त तथा वर्षाहीन होता है। अन्य भागों दाब प्रवणता काफ़ी तीव्र होती है तथा तेज़ हवाएं चलती हैं। चारों ओर से ऊपर उठती हुई पवनों में संघनन की क्रिया से घनघोर वर्षा होती है। ये चक्रवात महासागर में उत्पन्न होते हैं इसलिए नमी से भरपूर होने के कारण अधिक वर्षा करते हैं।

प्रश्न 18.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का प्रभाव विनाशकारी क्यों होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात निम्न दाब के केन्द्र होते हैं। अतः बाहर से तीव्र हवाएं भीतर आती हैं। इनकी गति लगभग 200 कि० मी० प्रति घण्टा होती है। ये चक्रवात महासागरों पर बिना रोक-टोक के चलते हैं। समुद्र में ऊंची- ऊंची लहरें होती हैं जिससे समुद्री जहाज़ों को हानि होती है। समुद्री तटों पर छोटे-छोटे द्वीपों पर भयंकर लहरें अपार धन-जन की हानि करती हैं हज़ारों लोग समुद्र में डूब जाते हैं। समुद्री यातायात ठप्प हो जाता है। डैल्टा क्षेत्रों में ऊंची लहरों से भारी हानि होती है। सन् 1970 में बांग्ला देश में ऐसे ही चक्रवात से धन-जन की भारी हानि हुई थी।

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प्रश्न 19.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
ये चक्रवात भिन्न-भिन्न सागरों में विभिन्न नामों से प्रसिद्ध हैं। खाड़ी बंगाल में इन्हें चक्रवात (Depression), पश्चिमी द्वीप समूह में हरीकेन (Huricane), चीन सागर में टाइफून (Typhoon) तथा अन्ध महासागर में टारनेडोज़. (Tornadoes) कहते हैं। ऑस्ट्रेलिया में विली – विली ( Willy-Willy) कहते हैं।

प्रश्न 20.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
1. स्थिति-यह चक्रवात उष्ण कटिबन्ध में 5° से 3°अक्षांश तक चलते हैं। 1. यह चक्रवात शीतोष्ण कटिबन्ध में 35° से 65° अक्षांश तक चलते हैं।
2. दिशा-यह व्यापारिक पवनों के साथ-साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 2. यह पश्चिमी पवनों के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।
3. विस्तार-इनका व्यास 150 से 500 कि० मी० तक होता है। 3. इनका व्यास 1000 कि० मी० से अधिक होता है।
4. आकार-यह वृत्ताकार होते हैं। 4. यह प्राय: V आकार के होते हैं।
5. उत्पत्ति-यह संवाहिक धाराओं के कारण जन्म लेते हैं। 5. यह उष्ण तथा शीत वायु के मिलने से जन्म लेते हैं।
6. गति-इनमें वायु गति 100-200 कि० मी० प्रति घण्टा होती है। 6. इनमें वायु गति 30-40 कि० मी० प्रति घण्टा होती है।
7. रचना-यह प्राय: ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं। इसके केन्द्रीय भाग को आंधी की आंख कहा जाता है। 7. यह प्राय: शीतकाल में उत्पन्न होते हैं। इसमें दो भाग उष्ण वाताग्र तथा शीत वाताग्र होते हैं।
8. मौसम-इसमें थोड़े समय के लिए तेज़ हवाएं चलती हैं तथा भारी वर्षा होती है। 8. इसमें शीत लहर चलती है तथा कई दिनों तक थोड़ीथोड़ी वर्षा होती रहती है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब से क्या अभिप्राय है? वायुदाब किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure ):
वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहां की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार।

सामान्य वायुदाब (Normal Atmosphere Pressure ):
समुद्र तल पर प्रति वर्ग इंच पर वायुमण्डल का दबाव 6.68 किलोग्राम या 1.03 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। वायुमण्डल का औसत या सामान्य दाब 45° अक्षांश पर समुद्र तल पर 29.92 इंच या 76 सेंटीमीटर या 1013.2 मिली बार होता है।

मिलीबार (Millibar):
एक वर्ग सें० मी० पर एक ग्राम भार के बल को एक मिलीबार कहते हैं। दूसरे शब्दों में 1000 डाइन (Dynes) प्रति वर्ग से० मी० के वायु भार को एक मिलीबार कहते हैं। वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार तथा पास्कल है। व्यापक रूप से प्रयोग किए जाने वाली इकाई किलो पास्कल है जिसे hpa लिखते हैं। 1000 मिलीबार के वायुभार को एक बार (Bar) कहते हैं।

विभिन्न माप इकाइयों में सम्बन्ध:
30 इंच वायुदाब = 76 से० मी० = 1013.2 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार
1 सें०मी० वायुदाब = 13.3 मिलीबार

वायुदाब को प्रभावित करने वाले तत्त्व:
1. तापमान (Temperature ):
गर्म होने पर वायु फैल कर हल्की हो जाती है। ठण्डी वायु सिकुड़ कर भारी हो जाती है। इसलिए यदि तापमान अधिक होगा तो वायु दबाव कम होगा। यदि तापमान कम होगा तो वायु दबाव अधिक होगा जैसे कहा जाता है कि ” A rising thermometer shows a falling barometer.” यही कारण है कि दिन को कम तथा रात को अधिक वायु दबाव होता है।

2. ऊँचाई (Altitude):
वायु की ऊपरी सतहों का भार निचली सतह पर पड़ता है। नीचे की हवा भारी तथा घनी हो जाती है। ऊपर जाने पर प्रत्येक 300 मीटर की ऊँचाई पर वायु दबाव 1 इंच या 34 मिलीबार गिर जाता है। प्रत्येक दस मीटर की ऊंचाई पर 1 hpa (किलो पास्कल) वायुदाब घटता है। अनुमान है कि वायुमण्डल का आधा दबाव केवल 5000 मी० की ऊँचाई तक सीमित है।

3. जलवाष्प (Water Vapour ):
जलवाष्प वायु की अपेक्षा हल्का होता है, इसलिए शुष्क वायु नम वायु की अपेक्षा भारी होती है। यही कारण है कि स्थलीय पवनें (Land Winds) शुष्क होने के कारण समुद्री पवनों (Sea Winds) की अपेक्षा भारी होती हैं।

4. दैनिक गति (Rotation ):
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण कई स्थानों पर वायु इकट्ठी होती है तथा दूसरे स्थानों पर वायु दबाव कम हो जाता है। 60° अक्षांश पर कम वायु दबाव पृथ्वी की दैनिक गति के ही कारण है।

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प्रश्न 2.
समदाब रेखाएं क्या होती हैं? इनकी विशेषताएं बताओ।
अथवा
मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर:
समदाब रेखाएं (Isobars) – Iso शब्द का अर्थ है:
समान और Bar का अर्थ है – दाब । इसलिए Isobars का अर्थ है – समदाब रेखाएं (Lines of Equal Pressure) “Isobars are lines joining the places of same pressure reduced to sea level.” (धरातल पर समान वायु दबाव वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाओं को समदाब रेखाएं कहते हैं।) इस वायु दबाव को समुद्र – तल पर घटा कर दिखाया जाता है। ऊँचाई के प्रभाव को वायु दबाव में से घटा लेते हैं। यह कल्पना की जाती है कि सभी स्थान समुद्र – तल पर स्थित हैं। यदि कोई स्थान 300 मीटर ऊँचा है और उसका वास्तविक वायु दबाव 900 मिलीबार है तो उसका समुद्र तल पर वायु दबाव = 900 + 34 = 934 मिलीबार होगा क्योंकि प्रति 300 मीटर पर 34 मिलीबार वायु दबाव कम हो जाता है।

विशेषताएं (Characteristics):

  1. ये रेखाएं पूर्व – पश्चिम दिशा में फैली हुई होती हैं।
  2. ये दक्षिणी गोलार्द्ध में अक्षांश रेखाओं के लगभग समानान्तर हैं।
  3. ये रेखाएं अधिक दबाव से कम दबाव की ओर खींची जाती हैं।
  4. ये रेखाएं समुद्र पर स्थल की अपेक्षा अधिक नियमित (Regular) होती हैं।
  5. जलवायु मानचित्रों में वायुभार समदाब रेखाओं से दिखाया जाता है।
  6. इससे पवन की दिशा व गति का पता चलता है।

प्रश्न 3.
व्यापारिक तथा पश्चिमी पवनें क्या होती हैं? इनके विस्तार तथा दिशा का वर्णन करो। ये कैसे उत्पन्न होती हैं तथा अपनी दिशा क्यों बदलती हैं? इनके प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
स्थायी पवनें (Planetary Winds):
धरातल पर उच्च वायु दबाव तथा कम वायु दबाव की विभिन्न स्थायी पेटियां (Belts) मिलती हैं। उच्च वायु भार पेटियों की ओर से कम वायु भार की ओर निरन्तर पवनें चलती हैं। इन्हें स्थायी पवनें कहते हैं। ये सदा एक ही दिशा में चलती हैं। स्थायी पवनें तीन प्रकार की हैं

  1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds)
  2. प्रतिकूल व्यापारिक या पश्चिमी पवनें (Westerlies)
  3. ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)

1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds):
विस्तार (Extent): व्यापारिक पवनें वे स्थायी पवनें हैं जो उष्ण कटिबन्ध (Tropics) के बीच भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं। ये पवनें अश्व अक्षांशों (Horse Latitudes) या उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दबाव (Sub- Tropical High Pressure) के क्षेत्र से डोलड्रमस् (Doldrums) भूमध्य रेखा की कम वायु दबाव पेटी की ओर चलती हैं। इनका विस्तार प्रायः 5°—35° उत्तर तथा दक्षिण तक चला जाता है।
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दिशा (Direction): ये पवनें दोनों गोलाद्ध में पूर्व से आती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए इन्हें पूर्वी पवनें (Easterlies) भी कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तरी-पूर्वी (North-East) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण- पूर्वी (South-East) होती है।

नाम का कारण (Why so called?): इन पवनों को Trade Winds अर्थात् व्यापारिक पवनें कहने के दो कारण

  1. प्राचीन काल में यूरोप तथा अमेरिका के बीच बादबानी जहाज़ों को इन पवनों से बहुत सहायता मिलती थी ये पवनें Backing winds के रूप में जहाज़ों की गति बढ़ा देती थीं, इसलिए व्यापार में सहायक होने के कारण इन्हें व्यापारिक पवनें कहा जाता है।
  2. अंग्रेज़ी के मुहावरे ‘To blow trade’ का अर्थ है निरन्तर चलना ये पवनें लगातार एक ही दिशा में चलती हैं इसलिए इन्हें Trade winds या Track winds कहते हैं।

उत्पत्ति का कारण (Why caused):
भूमध्य रेखा पर अधिक गर्मी के कारण कम वायु दबाव पेटी मिलती है। भूमध्य रेखा से ऊपर उठने वाली गर्म तथा हल्की वायु 30° उत्तर तथा दक्षिण के पास ठण्डी तथा भारी होकर नीचे उतरती रहती है। ध्रुवों से खिसक कर आने वाली वायु भी अक्षांशों में नीचे उतरती है । इन उतरती हुई पवनों के कारण कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट उच्च वायु दबाव पेटी बन जाती है। इसलिए भूमध्य रेखा के न्यून वायु दबाव (Low Pressure) का स्थान ग्रहण करने के लिए 30° उत्तर तथा दक्षिण के उच्च वायुदाब से भूमध्य रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं।

दिशा परिवर्तन का कारण (Change in Direction):
यदि पृथ्वी स्थिर होती तो ये पवनें उत्तर दिशा में चलतीं परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें इस लम्बवत् दिशा से हट कर एक ओर झुक जाती हैं अर्थात् परे (Deflect) हो जाती हैं। फैरल के नियम (Ferral’s Law) तथा कोरोलिस बल के कारण ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रभाव (Effects):

  1. गर्म प्रदेशों की ओर चलने के कारण ये पवनें प्रायः शुष्क होती हैं।
  2. ये पवनें महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं तथा पश्चिमी भागों तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। यही कारण है कि पश्चिमी भागों में 20° – 30° में उष्ण मरुस्थल (Hot Deserts) मिलते हैं।
  3. ये पवनें उत्तरी भाग में उच्च दबाव (High Pressure) के निकट होने के कारण ठण्डी (Cool) तथा शुष्क (Dry) होती हैं। परन्तु भूमध्य रेखा के निकट दक्षिणी भागों में गर्म (Hot) तथा आर्द्र (Wet) होती हैं।
  4. ये पवनें समुद्रों पर निरन्तर तथा धीमी गति से चलती हैं। परन्तु महाद्वीपों पर इनकी दिशा व गति में अन्तर पड़ जाता है।

2. पश्चिमी पवनें (Westerlies):
विस्तार (Extent): ये पवनें वे स्थायी पवनें हैं जो शीतोष्ण (Temperate) खण्ड में 35° के उच्च वायु दबाव से 60° के उपध्रुवीय न्यून वायु दबाव (Subpolar Low Pressure) की ओर चलती हैं। इनका विस्तार प्राय: 35° से 65° तक पहुंच जाता है। इन पवनों की उत्तरी सीमा ध्रुवीय सीमान्त ( Polar Fronts) तथा चक्रवातों (Cyclones) के कारण सदा बदलती रहती है।

दिशा (Direction):
उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिमी ( South-West) होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-पश्चिमी (North-West) होती है।

नाम का कारण (Why so called ):
दोनों गोलाद्धों में ये पवनें पश्चिम से आती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए इन्हें पश्चिमी पवनें कहते हैं। इनकी दिशा व्यापारिक पवनों के विपरीत होती है। इसलिए उन्हें प्रतिकूल व्यापारिक पवनें (Anti-Trade Winds) भी कहते हैं।

उत्पत्ति का कारण (Why caused?):
कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट नीचे उतरती हुई पवनों (Descending Winds) के कारण उच्च वायु दबाव हो जाता है। भूमध्य रेखा से गर्म तथा हल्की वायु इन अक्षांशों से नीचे उतरती रहती है। इस प्रकार ध्रुवों से खिसक कर आने वाली वायु भी यहां उतरती है। परन्तु 60° अक्षांश के निकट Arctic circle तथा Antarctic circle पर पृथ्वी की दैनिक गति के कारण कम वायु दबाव हो जाता है। इसलिए 30° के उच्च वायु दबाव की ओर से 60° के कम वायु दबाव की ओर पश्चिमी पवनें चलती हैं।

दिशा परिवर्तन (Change in Direction ):
साधारणतया पवनों की दिशा उत्तर-दक्षिण होनी चाहिए, परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें लम्बवत् दिशा से हटकर एक ओर झुक जाती हैं। फैरल के नियम (Ferral’s law) के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रभाव (Effects):
1. समुद्रों की नमी से लदी होने के कारण ये पवनें अधिक वर्षा करती हैं।

2. ये पवनें पश्चिमी प्रदेशों में बहुत वर्षा करती हैं, परन्तु पूर्वी भाग शुष्क रह जाते हैं।

3. ये पवनें बहुत अस्थिर होती हैं । इनकी दिशा तथा शक्ति बदलती रहती है।चक्रवात (Cyclones) तथा प्रति- चक्रवात (Anti-Cyclones) इनके मार्ग में अनिश्चित मौसम ले आते हैं । वर्षा, बादल, कोहरा, बर्फ़ तथा तेज़ आंधियों के कारण मौसम लगातार बदलता रहता है।

4. यह दक्षिणी गोलार्द्ध में समुद्रों पर निरन्तर तथा तीव्र गति से चलती हैं। 40° – 50° दक्षिण के अक्षांशों में इन्हें गर्जता चलीसा (Roaring Forties) भी कहा जाता है। 50° – 60° दक्षिण में इन्हें प्रचण्ड पछुआ Furious Fifties तथा Shrieking Sixties कहते हैं। इन प्रदेशों में ये इतनी तेज़ी से चलती हैं कि दक्षिणी अमेरिका के सिरे (Cape Horn) पर समुद्री यातायात बन्द हो जाता है।

5. व्यापारिक पवनों की अपेक्षा इनका प्रवाह क्षेत्र बड़ा होता है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित स्थानीय पवनों का विस्तार – पूर्वक वर्णन करो-
1. स्थल तथा जल समीर।
2. पर्वतीय तथा घाटी पवनें।
3. चिनूक तथा फोएन पवनें।
उत्तर:
1. स्थल तथा जल समीर (Land and Sea Breezes):
धरातल पर स्थानीय पवनों का क्रम है। परन्तु जल तथा स्थल में तापमान की विभिन्नता के कारण कुछ स्थानीय पवनें जन्म लेती हैं। जल – समीर व स्थल – समीर वे अस्थायी पवनें हैं जो समुद्र तटीय प्रदेशों में अनुभव की जाती हैं। ये जल तथा स्थल की असमान गर्मी के कारण उत्पन्न होती हैं। इसलिए इन्हें छोटे पैमाने पर मानसून पवनें (Monsoons on a small scale) भी कहते हैं।

तीव्र गर्मी से स्थल भाग समुद्र की अपेक्
(क) जल समीर (Sea Breeze):
ये वे पवनें हैं जो दिन के समय समुद्र की ओर चलती हैं। उत्पत्ति के कारण (Origin) दिन के समय सूर्य की तीव्र गर्मी से स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक तथा जल्दी गर्म हो जाता है। स्थल पर वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा कम वायु दबाव हो जाता है, समुद्र पर स्थल की अंपेक्षा अधिक वायु दबाव रहता है। इस प्रकार स्थल के कम दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठण्डी पवनें चलती हैं। स्थल की गर्म वायु ऊपर उठकर समुद्र की ओर चली जाती है। इस प्रकार वायु के चलने का संवहन चक्र बन जाता है।
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प्रभाव (Effects):

  1. जल – समीर ठण्डी तथा सुहावनी (Cool and Fresh) होती ह।
  2. गर्मियों में तटीय भागों के तापक्रम को कम करती है, परन्तु सर्दियों में तटीय भागों के तापक्रम को ऊंचा करती है। इस प्रकार मौसम सुहावना तथा समान हो जाता है।
  3. इनका प्रभाव समुद्र तट से 33 कि० मी० की दूरी तक सीमित रहता है।

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(ख) स्थल समीर (Land Breeze ): ये वे पवनें हैं जो रात के समय स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
उत्पत्ति का कारण (Origin):
रात की स्थिति दिन विपरीत होती है। स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक तथा जल्दी ठण्डे हो जाते हैं। समुद्र पर वायु दबाव कम हो जाता है। परन्तु स्थल पर अधिक वायु दबाव होता है। इस प्रकार स्थल की ओर से समुद्र की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र की गर्म वायु ऊपर उठकर स्थल पर उतरती है जिससे वायु चलने का क्रम पूरा हो जाता है।

प्रभाव (Effects):

  1. इनका स्थल भागों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होता।
  2. इन पवनों का लाभ उठाकर मछली पकड़ने वाले प्रात: काल स्थल समीर (Land Breeze) की सहायता से समुद्र की ओर बढ़ जाते हैं तथा सायंकाल को जल- समीर (Sea Breeze) के साथ-साथ तट की ओर वापस आ जाते हैं।
  3.  इनका प्रभाव तभी अनुभव होता है जबकि आकाश साफ हो, दैनिक तापान्तर अधिक हो तथा तेज़ पवनों का अभाव हों।

2. पर्वतीय तथा घाटीय पवनें (Mountain and Valley Winds): ये पवनें साधारणतया दैनिक पवनें हैं जो दैनिक तापान्तर के फलस्वरूप वायु दबाव की विभिन्नता के कारण चलती हैं।
(क) पर्वतीय पवनें (Mountain Winds0): पर्वतीय प्रदेश में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर ठण्डी और भारी वायु बहती है जिसे पर्वतीय पवनें (Mountain Winds) कहते हैं।
उत्पत्ति ( Origin):
रात के समय तीव्र विकिरण (Rapid radiation) के कारण वायु ठण्डी तथा भारी हो जाती है। यह वायु गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती है। इसे वायु प्रवाह (Air Drainage) भी कहते हैं। इन्हें अवरोही पवनें (Katabatic Winds) भी कहते हैं।
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प्रभाव (Effects): इन पवनों के कारण घाटियां (Valleys ) ठण्डी वायु से भर जाती हैं जिससे घाटी के निचले भाग पर पाला पड़ता है। इसलिए कैलीफोर्निया (California) में फलों के बाग तथा ब्राज़ील में कहवा के बाग ढलानों पर लगाए जाते हैं।

(ख) घाटीय पवनें (Valley Winds ): दिन के समय घाटी की गर्म वायु ढाल से होकर शिखर की ओर ऊपर चढ़ती है। इसे घाटीय पवनें (Valley Winds) कहते हैं।
उत्पत्ति (Origin):
दिन के समय पर्वत के शिखर पर तीव्र गर्मी तथा विकिरण के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा वायु दबाव कम हो जाता है। उसका स्थान लेने के लिए घाटी से हवाएं ऊपर चढ़ती हैं। ज्यों-ज्यों पवनें ऊपर चढ़ती हैं, ठण्डी होती जाती हैं। इन्हें आरोही पवनें (Anabatic winds) भी कहते हैं।

प्रभाव (Effects):

  1. ऊपर चढ़ने के कारण ये पवनें ठण्डी होकर घनघोर वर्षा करती हैं।
  2. ये ठण्डी पवनें गहरी घाटियों में गर्मी की तीव्रता को कम करती हैं।

3. चिनूक तथा फोएन पवनें (Chinook and Foehn Winds):
उत्पत्ति (Origin):
ये गर्म तथा शुष्क पवनें हैं। ये पवनें पर्वतों के सम्मुख ढाल पर टकराकर ऊपर चढ़ती हैं। इस क्रिया के कारण ये ठण्डी होकर पवन के सामने वाले ढाल (Windward slope ) पर काफ़ी वर्षा करती हैं। फिर ये पवनें पर्वत के विपरीत ढाल पर नीचे उतरती हैं। ये नीचे उतरती हुई पवनें (Descending Winds) दबाव से गर्म तथा शुष्क हो जाती हैं तथा वर्षा नहीं करतीं। मैदानी भागों में उतर कर उनका तापमान बढ़ा देती हैं।

(क) चिनूक पवनें ( Chinook Winds):
अमेरिका में रॉकीज (Rockies) पर्वतों को पार करके प्रेयरी के मैदान में चलने वाली ऐसी पवनों को चिनूक (Chinook) पवनें कहते हैं। चिनूक का अर्थ है – बर्फ खाऊ (Snow Eater) क्योंकि ये पवनें अधिक तापक्रम के कारण बर्फ को पिघला देती हैं । कई बार 24 घण्टों के समय में 50°F (10° C ) तापमान बढ़ जाता है

(ख) फोएन पवनें (Foehn Winds ):
यूरोप में एल्पस (Alps) को पार करके स्विट्ज़रलैण्ड में उतरने वाली पवनों को फोएन (Foehn) पवनें कहते हैं।
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प्रभाव (Effects):

  1. ये पवनें तापमान बढ़ा देती हैं जिससे बर्फ पिघल जाती है और फसलों के पकने में सहायता मिलती है।
  2. ये पवनें शीतकाल की कठोरता को कम करती हैं।
  3. बर्फ के पिघल जाने से पहाड़ी चरागाह सारा साल खुले रहते हैं तथा पशु-पालन की सुविधा रहती है।

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प्रश्न 5.
शीतोष्ण चक्रवात कैसे निर्मित होते हैं ? इनकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
शीतोष्ण चक्रवात ( Temperate Cyclones): ये चक्रवात पश्चिमी पवनों के क्षेत्र में 350 से 650 अक्षांशों के बीच तरंगों की तरह जन्म लेते हैं तथा पश्चिम से पूर्व दिशा में आगे बढ़ते हैं।
शीतोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति दो प्रकार से होती है

  1. धरातलीय अग्र ( Surface Front ) की अस्थिर पवनों से।
  2. उच्च-वायु (Upper Air) द्रोणी के नीचे की ओर प्रसार से।

इन चक्रवातों की उत्पत्ति के विषय में ध्रुवीय सीमान्त सिद्धान्त (Polar Front Theory ) प्रस्तुत किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार चक्रवात की उत्पत्ति दो भिन्न तापमान वाली वायु राशियों के मिलने से होती है। इस सिद्धान्त के अनुसार चक्रवात के जीवन के इतिहास में अवस्थाओं का एक क्रम देखा जा सकता है:

  1. पहली अवस्था: इस अवस्था में दो वायु राशियां एक-दूसरे के निकट आती हैं तथा अग्र (front ) की रचना होती है। ध्रुवों की तरफ से शीतल वायु राशि तथा भू-मध्य रेखा की ओर से गर्म वायु विपरीत दिशाओं में आती है।
  2. दूसरी अवस्था: इस अवस्था में उष्ण वायु राशि में एक उभार उत्पन्न हो जाता है तथा अग्र एक तरंग का रूप धारण कर लेता है। अग्र के दो भाग हो जाते हैं- उष्ण अग्र तथा शीतल अग्र । गर्म वायु राशि उष्ण उग्र (Warm
    front) की शीतल वायु से टकराती है।
  3. तीसरी अवस्था: इस अवस्था में शीतल अग्र तेज़ी से आगे बढ़ता है। तरंगों की ऊँचाई तथा वेग में वृद्धि हो जाती है। गर्म वायु राशि का भाग छोटा हो जाता है।
  4. चौथी अवस्था: इस अवस्था में तरंगों की ऊँचाई अधिकतम हो जाती है। दोनों वायु राशियों में धाराएं वृत्ताकार गति प्राप्त कर लेती हैं तथा चक्रवात का विकास होता है।
  5. पांचवीं अवस्था: इस अवस्था में शीतल अग्र उष्ण अग्र को पकड़ लेता है। शीतल वायु उष्ण वायु को धरातल पर दबा देती है।
  6. अन्तिम अवस्था: इस अवस्था में उष्ण वायु अपने स्रोत से हट कर ऊपर उठ जाती है धरातल पर एक शीतल वायु का विशाल भंवर (whirl) चक्रवात का निर्माण करता है

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ  8

शीतोष्ण चक्रवात की मुख्य विशेषताएं:

  1. ये चक्रवात पश्चिमी पवनों के क्षेत्र में 35° से 65° के अक्षांश के बीच पश्चिम पूर्व दिशा में चलते हैं।
  2. साधारणतः ये वृत्ताकार होते हैं परन्तु कुछ चक्रवात ‘V’ आकार के होते हैं।
  3. इनकी लम्बवत् मोटाई 9 से 11 किलोमीटर तथा व्यास 1000 किलोमीटर चौड़ा होता है।
  4. चक्रवात में अभिसारी पवनें केन्द्र में वायु को ऊपर उठा देती हैं। इसके परिणामस्वरूप मेघों का निर्माण तथा वर्षा होती है।
  5. साधारणतः इनकी गति 50 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीतकाल में इनकी गति अधिक होती है।
  6. इसकी संरचना में दो अग्र (Fronts ), दो खण्ड (Sectors) तथा चार वृत्तपाद (Quadrants) होते हैं। उष्ण अग्र दक्षिणी-पूर्वी वृत्तपाद में होता है जबकि शीतल अग्र दक्षिणी-पश्चिमी वृत्तपाद में होता है।

JAC Class 10 Hindi रचना संदेश लेखन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana संदेश लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana संदेश लेखन

अपने मनोभावों और विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम संदेश-लेखन कहलाता है। इस माध्यम के द्वारा हम अपने प्रियजन, सहपाठियों, मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या संबंधियों को किसी शुभ अवसर, त्योहार या फिर परीक्षा अथवा नौकरी में सफलता प्राप्त करने आदि अवसरों में अपने मन के भावों को संदेश लिखकर आत्मीयता से प्रकट करते हैं। इस प्रकार संदेश लेखन के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजने के साथ-साथ नि:संदेह उनका मनोबल बढ़ाना होता है।

संदेश लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य प्रमुख बिंदु – 

  1. संदेश को बॉक्स के अंदर लिखना चाहिए।
  2. संदेश लिखते समय शब्द, शब्द-सीमा 30 से 40 शब्द ही होनी चाहिए।
  3. संदेश हृदयस्पर्शी तथा संक्षिप्त होने चाहिए।
  4. बॉक्स के बाएँ शीर्ष में दिनांक और उसके नीचे स्थान अवश्य लिखें।
  5. संदेश के आखिर में नीचे प्रेषक का नाम लिखना न भूलें।
  6. संदेश लिखते समय केवल महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करें।
  7. मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
  8. संदेश लेखन में तुकबंदी वाली प्रभावशाली पंक्तियाँ भी लिखी जाती हैं।
  9. संदेश दो प्रकार के अनौपचारिक व औपचारिक हो सकते हैं।

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उदाहरण स्वरनप कुछ संदेश दिए गए हैं –

1. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने सहेली को 30 से 40 शब्दों में एक शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

15 अगस्त, 20XX
चेन्नई
प्रिय सहेली।
स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है, विजयी-विश्व का गान अमर है। देश-हित सबसे पहले है, बाकी सबका राग अलग है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ। रोशनी

2. अपने मित्र को वसंत पंचमी के अवसर पर शब्बों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संवेश

10 फ़रवरी, 20
नई दिल्ली
मित्रवर,
गेंदा गमके महक बिखेरे।
उपवन को आभास दिलाए।
बहे बयरिया मधुरम-मधुरम।
प्यारी कोयल गीत जो गाए।
ऐसी बेला में उत्सव होता जब।
वाग्देवी भी तान लगाए।
आपको वसंत पंचमी के अवसर पर ढेर सारी बधाई और उम्मीद है कि आप हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक वसंतोत्सव में वाग्देवी की सेवा में सहभागिता देंगे।
आर्यन

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3. आप अमेरिका में रहते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने भारतीय सहेली को 30 से 40 शब्बों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

26 जनवरी, 20
नवी मुंबई
प्रिय मान्यता।
भारत देश हमारा है यह हमको जान से प्यारा है
दुनिया में सबसे न्यारा यह सबकी आँखों का तारा है
मोती हैं इसके कण-कण में बूँद-बूँद में सागर है
प्रहरी बना हिमालय बैठ धरा सोने की गागर है।
इस गणतंत्र दिवस की आप और आपके परिवार को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत देश ऐसे ही कामयाबी की बुलंदियों को छूता रहे। अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में अपना योगदान देना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
कविता

4. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शिष्य द्वारा विज्ञान शिक्षक को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

28 फ़रवरी, 20XX
नई दिल्ली
आदरणीय गुरुदेव,
28 फ़रवरी, 1928 को सर सी०आर० रमन ने 1930 में अपनी खोज की घोषणा कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया था। जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान को जीवन के अनुभव के साथ जोड़कर शिक्षा देता है और उस शिक्षा से शिक्षार्थी का जीवन सार्थक बनता है, वही विषय विज्ञान कहलाता है। हर दिन आपके द्वारा पढ़ाए गए विज्ञान विषय से मेरी रुचि में अद्भुत परिवर्तन आया। आपके अनुभव ने मेरा और मुझ जैसे अनेक शिष्यों का मार्गदर्शन कर आदर्श विज्ञान शिक्षक की भूमिका का निर्वाह किया। आपका उद्देश्य सर्वदा विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना रहा है। ऐसे विशिष्ट गुरु को मेरा शत-शत प्रणाम। विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अभिनव

5. विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन पर अध्यक्ष द्वारा विद्यार्थियों को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

5 अप्रैल, 20
कोलकाता
प्रिय विद्यार्थियो,
सत्र 20-20 की वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उत्कृष्ट लेख, नाटक, प्रहसन, चुट्कुले, निबंध आदि के प्रकाशन हेतु प्रवेश नियम विद्यार्थियों को विद्यालय के सूचना बोर्ड पर शर्तों के साथ सूचित कर दिया गया है। इस साहित्यिक पत्रिका में विद्यार्थियों का चहुमुखी साहित्यिक विकास होगा और आप कवि या लेखक के रूप में लेखन द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करेंगे, मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
अध्यक्ष
शिखर त्रिवेदी

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6. अपने मित्र की नौकरी में पदोन्नति होने पर बधाई देते हुए शुभकामना संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

संदेश

8 जून, 20
नई दिल्ली
मित्रवर,
फूल बनके मुसकराना ज़िंदगी है
मुसकरा कर गम भुलाना भी ज़िंदगी है
जीत कर खुश हो तो अच्छा है पर,
हार कर खुशियाँ मनाना भी ज़िंदगी है
आपने अपनी योग्यता और कुशलता का अद्भुत परिचय तो परीक्षा का अंतिम पड़ाव पारकर सभी का दिल जीत लिया था। आज फिर वह अवसर आ गया है कि आपको योग्यता और परिश्रम के बल पर पदोन्नति मिली है, आप इस पदोन्नति के सच्चे हकदार हैं। भविष्य में भी आप अपने सहकर्मियों के लिए एक आदर्श बने रहेंगे। आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जयंत शुक्ल

7. अपनी पूजनीया माता जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

14 अप्रैल, 20
नई दिल्ली
खुद से पहले तुम मुझे खिलाती थी,
रोने पर तुम भी बच्चा बन जाती थी,
खुद जाग-जागकर मुझे सुलाती थी,
शिक्षक बनकर तुम मुझे पढ़ाती थी,
कभी बहन कभी सहेली बन जाती थी।
आपने-अपने प्रेम, परम त्याग और आदर्शों से पूरे परिवार को प्रेम के धागे में बाँधे रखा। हमेशा अपने मश्दु अनुभवों से हमारा मार्गदर्शन किया। मैंने माँ के रूप में सच्ची सहेली और शिक्षिका पाया। आपके चरणों में शत-शत नमन। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
अनन्या

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8. मोबाइल फोन को कम उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

22 जुलाई, 20
नई दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियो
खोजा बहुत ही उसको, नहीं मुलाकात हुई उससे।
घर-घर में खिलता था वह बचपन बिना मोबाइल जो।
जो करता दुरुपयोग इसका नर्वस सिस्टम होता खराब।
बीमारियों का आमंत्रण, डिप्रैशन, अनेक विकार।
स्मरण शक्ति का निश्चय होता है ह्रास।
रवि

9. अपनी छोटी बहन के जन्मदिवस पर उसे एक बधाई संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
शुभकामना संवेश
दिनांक : 6 नवंबर, 20
समय : प्रातः 6 : 00 बजे
प्रिय आयुषि
जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।
खुशियाँ व सफलता तुम्हारे कदम चूमें। मेरी ईश्वर से यही दुआ है कि तुम दीर्घायु हो, स्वस्थ रहो और प्रगति के मार्ग प्रशस्त करती रहो। तुम्हारी बड़ी बहन
कामिनी

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10. ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर अपने हिंदी शिक्षक के लिए एक भावपूर्ण संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
दिनांक : 5 सितंबर, 20 संदेश
समय : प्रातः 8: 00 बजे
आदरणीय गीता मैडम
शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
“मातृभाषा (हिंदी) का हमें ज्ञान कराया
अपने अथक प्रयासों से हमारे भविष्य को चमकाया।
आप जैसे शिक्षक से हमने अपना जीवन धन्य पाया।”
“शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ”
आपका शिष्य
क० ख० ग०

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है ? इससे संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका की क्या इच्छा होती है ?
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है ? अपने शब्दों में लिखिए।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या ? स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) तट पर एक गुलाब सोचता है, “देते स्वर यदि मुझे विधाता, अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता। ”

(ख) जब शुक गाता है तो उसका स्वर सारे जंगल में गूँज उठता है, परंतु शुकी चुपचाप रहती है और अपने पंख फुलाकर भविष्य में मिलने वाले मातृत्व के सुखद भावों में डूबी रहती है।

(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका उसका गीत सुनने घर से बाहर उस स्थान तक आ जाती है जहाँ प्रेमी गीत गा रहा होता है। वह एक नीम के पेड़ के नीचे छिपकर उसका गीत सुनती रहती है और मन-ही-मन सोचती है कि वह अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई ? प्रेमी गीत गाता रहता है और प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जाता है।

(घ) नदी पहाड़ से उतरकर कल-कल ध्वनि करती हुई निरंतर बहते हुए सागर की ओर तेजी से बढ़ती जाती है। नदी अपने रास्ते में पड़े हुए पत्थरों से टकराकर आगे बढ़ती जाती है। नदी के किनारे गुलाब के फूल उगे हुए हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है जो किसी सामान्य मानव की तरह अपने भावों को व्यक्त करती है। वह अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए तेज़ वेग से बहती हुई अपने हृदय में छिपी प्रेमकथा अपने तल में पड़े पत्थरों को सुनाती जाती है और नदी किनारे उगा गुलाब सोचता है कि यदि उसके पास वाणी होती तो वह भी पतझड़ के सपनों का गीत सुनाता।

(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों का संबंध तो मणि- कंचन योग की तरह है। पशु-पक्षी अपने सुंदर रंगों, तरह-तरह के रूप- आकारों, आवाज़ों और चहचहाहट से प्रकृति को जीवंतता प्रदान करते हैं। हरे-भरे पेड़ जब तक पक्षियों के कलरव से गुंजायमान नहीं होते; झाड़ियों के झुरमुट तरह-तरह के कीड़े-मकोड़ों की ध्वनियों से नहीं गूँजते और जंगल छोटे-बड़े जीवों की आवाज़ों से नहीं थर्राते तब तक प्रकृति सूनी-सी लगती है। भागते-दौड़ते पशु, उड़ते – मंडराते पक्षी, रेंगते – सरकते कीड़े और सरीसृप, तालाब में तैरती मछलियाँ और टर-टर्राते मेंढक और बादलों में उड़ती सारसों की पंक्तियाँ ही प्रकृति को जीवन देती हैं। प्रकृति और पशु-पक्षी एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं।

(च) मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। मनुष्य प्रकृति का हिस्सा ही तो है। प्रकृति उसे सदा आंदोलित करती रहती है तथा उसकी विभिन्न प्रेरणाओं की आधार बनती है। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल, उड़ते रंग-बिरंगे पक्षी तथा तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े मानव को सदा आंदोलित करते हैं कि वह भी उनकी तरह आकाश में उड़ान भरे और मनुष्य हवा में उड़ान भरने के लिए साधन बना लिए। पानी में मछली की तरह तैरना सीख लिया; सागर की गहराइयों में गोते खाना सीख लिया। ऊँचे पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों को देख ऊँचे-ऊँचे भवनों में रहना सीख लिया। प्रकृति सदा मनुष्य को प्रेरणा देती है, दिशा दिखाती है। तभी तो वह तितली के रंगों से प्रेरित रंग-बिरंगे कपड़े पहनना सीख गया।

(छ) यदि मन के कोमल भावों को गाकर मधुर स्वर में प्रकट करना गीत है तो मन के वे कोमल भाव अगीत हैं जो मन में छिपे रहते हैं। वे मुखर नहीं होते, मौन रह जाते हैं। यदि गीत हैं तो वे अगीत के कारण से हैं। मन में छिपे सभी कोमल-कठोर भाव अगीत ही तो हैं जो शब्दों का रूप नहीं ले पाते। यदि अगीत न हों तो गीत बन नहीं सकते। गीत तो अगीत के ही शाब्दिक रूप हैं। इस संसार के हर मानव में हर समय तरह-तरह के भाव उत्पन्न होते रहते हैं। वे भाव, प्रेम, घृणा, वीरता, भक्ति, साहस, करुणा आदि के हो सकते हैं, पर हर भाव तब तक गीत नहीं बनता जब तक उसे शब्द प्राप्त नहीं हो जाते। वास्तव में भावों के रूप में अगीत पहले बनते हैं और गीतों की सर्जना बाद में होती है।

(ज) ‘गीत-अगीत’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम की पहचान प्रदर्शन में नहीं अपितु मौन-भाव से प्रेम की पीड़ा को पी जाने में है। नदी विरह गीत गाते हुए तीव्र गति से सागर से मिलने चली जाती है। वह अपनी विरह व्यथा अपने मार्ग में आने वाले पत्थरों को सुनाती है, परंतु नदी किनारे उगा हुआ गुलाब मौन-भाव से सोचता रहता है तथा अपने प्रेम-भावों को व्यक्त नहीं करता है। तोता दिन निकलने पर मुखरित हो उठता है परंतु तोती स्नेहभाव में डूबी मौन रहती है। प्रेमी उच्च स्वर में आल्हा गाकर अपना प्रेम व्यक्त करता है परंतु प्रेमिका छिपकर उसका गीत सुनकर भी मौन रहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

प्रश्न 2.
संदर्भ – सहित व्याख्या कीजिए –
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
(ख) गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
(ग) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?
यों मन में गुनती है।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के लिए पद क्रमांक 1, 2, 3 की व्याख्या देखिए।

भाषा-अध्ययन –

निम्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य- विचलन’ को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य – विन्यास लिखिए –
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता- एक गुलाब तट पर सोचता है।
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
(ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
(ङ) शुकी बैठी अंडे है सेती।
उत्तर :
(क) यदि विधाता मुझे स्वर देते।
(ख) उस घनी डाल पर शुक बैठा है।
(ग) वन में शुक का स्वर गूँज रहा है।
(घ) मैं गीत की कड़ी क्यों न हुई ?
(ङ) शुकी बैठकर अंडे सेती है।

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘गीत-अगीत’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु मौन भाव में है।
उत्तर :
‘गीत-अगीत’ कविता में कविवर श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने प्रेम के साहित्यिक पक्ष को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि का मानना है कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु प्रेम की पीड़ा को मौन भाव से पी जाने में है। इसे कवि ने नदी और गुलाब, शुक और शुकी तथा प्रेमी और प्रेमिका की निम्नलिखित तीन स्थितियों के माध्यम से स्पष्ट किया है –

(क) नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेजी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है। लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझड़ में मिलने वाली हताशा और दुख प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गाकर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है।

(ख) एक तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रहा है जिस पर उसका घोंसला है घोंसले में तोती पंख फुला कर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छनकर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में मग्न है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुला कर मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है।

(ग) शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने यह सोचकर नहीं जाती कि कहीं उसका प्रेमी गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई? प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय मूक प्रसन्नता से भरता जा रहा है।

इन तीनों स्थितियों में नदी, शुक और प्रेम मुखरित हैं किंतु गुलाब, शुकी और प्रेमिका अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करते हैं किंतु मन-ही-मन प्रेम का आस्वादन करते हैं। इनका प्रेम भी नदी, शुक और प्रेमी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इनका यह मौन भाव ही इनके सात्विक प्रेम की पहचान है। इसलिए स्पष्ट है कि सच्चा प्रेम मुखरता में नहीं बल्कि मौन भाव में होता है।

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प्रश्न 2.
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कैसे कम करती है और उसके विरह के गीत कौन सुनता है ?
उत्तर :
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कम करने के लिए पहाड़ से नीचे उतरते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते हुए विरह के गीत गाती है। अपनी विरह – पीड़ा की कथा कल-कल ध्वनि से सुनाती है। उसकी विरह कथा किनारे या मध्य पड़े पत्थर सुनते हैं। इस तरह नदी अपनी बात कह कर अपना मन हल्का कर लेती है।

प्रश्न 3.
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब का फूल क्या सोच रहा है ?
उत्तर :
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब सोचता है कि यदि भगवान ने उसे भी वाणी दी होती तो वह भी की कहानी सुनाता। वह भी संसार को बताता कि पतझड़ आने पर वह कैसे निराश और दुखी हो जाता है

प्रश्न 4.
शुक अपना प्यार कैसे व्यक्त करता है ?
उत्तर :
शुक अपने परिवार के साथ पेड़ की शाखा पर बने घोंसले में रहता है। शुकी घोंसले में अंडों को सेने का काम करती है। वह मातृत्व के स्नेह में डूबी हुई है। शुक सूर्य निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छनकर उसकी ओर आती हैं तो वह प्रसन्नता से भर जाता है और मधुर गीत गाने लगता है। इस प्रकार वह अपना प्रेम प्रकट करता है।

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प्रश्न 5.
शुकी, शुक के प्रेम-भरे गीत सुनकर भी बाहर क्यों नहीं आती है ?
उत्तर :
शुकी घोंसले में अपने पंख फैलाकर अपने अंडे सेने का काम कर रही है। वह मातृत्व स्नेह से भरी हुई है। उसे शुक के प्रेम-भरे गीत सुनाई दे रहे हैं। परंतु उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। शुकी अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। वह शुक का प्रेम-गीत सुन रही है, परंतु उसका प्रेम मौन रूप धारण किए हुए है। वह अपना प्रेम प्रकट नहीं करती है क्योंकि वह मातृत्व के सुखद भावों में डूबी हुई है।

प्रश्न 6.
प्रेमी आल्हा गीत क्यों गाता है ?
उत्तर :
कवि एक प्रेमी जोड़े का वर्णन करता है। प्रेमी संध्या होते ही आल्हा की कथा रसमय ढंग से गाने लगता है। से अपनी प्रेमिका को अपने पास बुलाना चाहता है। वह चाहता है कि उसके गीत सुनकर, उसकी प्रेमिका उसके वह अपने प्रेम को गीतों के माध्यम से व्यक्त करता है।

प्रश्न 7.
प्रेमिका का प्रेम मौन क्यों है ?
उत्तर :
प्रेमिका प्रेमी की आल्हा की कथा सुनकर अपने को रोक नहीं पाती है। वह घर से प्रेम में डूबी हुई निकल पड़ती है। वह घर से प्रेमी से मिलने निकलती है, परंतु वह उसके सामने न जाकर एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ी हो जाती है। वहीं खड़े-खड़े वह अपने प्रेमी द्वारा गाए जा रहे गीत सुनती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि ईश्वर उसे प्रेमी के गीत की एक कड़ी बना दे। वह मौन रहकर अपने प्रेम को प्रकट करती है। वह अपने प्रेम को शब्दों में व्यक्त नहीं करती है।

व्याख्या :

1. गाकर गीत विरह के तटिनी वेगवती बहती जाती है।
दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता, “देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता।”
गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : तटिनी नदी वेगवती तेज़ी से बहने वाली। उपलों – पत्थरों। विधाता – ईश्वर। जग – संसार। निर्झरी नदी। पाटल – गुलाब, रंग के जैसा। मूक – चुपचाप।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने प्रेम और शृंगार के भावों को व्यंजित किया है। उसने माना है कि प्रेम-भावों में मौन रहने वालों का महत्व किसी प्रकार से भी कम नही है। तीन चित्रों में से प्रस्तुत पहले चित्र में नदी और गुलाब के रूपक से कवि ने अपने कथन की सार्थकता को प्रमाणित करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए कहता है कि गीत के स्वर प्रकट करना अच्छा है या मौन रहना ? वह प्रश्न का उत्तर देने की अपेक्षा चित्र प्रस्तुत करता है। नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेज़ी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती जाती है। कल-कल की ध्वनि करती हुई नदी निरंतर बहती रहती है, अपनी विरह – पीड़ा की कथा कहती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है।

लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझर में मिलने वाली हताशा और दुख को प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गा कर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है। पता नहीं, व्यक्त किया गया गीत अच्छा है या मौन भाव से प्रकट किया गया भाव श्रेष्ठ है ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

2. बैठा शुक उस घनी डाल पर जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर रह जाते स्नेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : शुक – तोता। खोंते – घोंसले, नीड़। शुकी – तोती। पर्ण – पत्ते। स्नेह – प्यार। सनकर – युक्त होकर। फूला – प्रसन्नता से भरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि प्रेम के मौन और मुखर रूपों में से किसी एक को श्रेष्ठ घोषित करना चाहता है पर वह ऐसा शब्दों में न कर शब्द-चित्रों के द्वारा प्रकट करता है।

व्याख्या : तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रही है। उस पर उसका घोंसला है। घोंसले में तोती पंख फुलाकर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छन कर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुलाकर भावी मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है। कवि प्रश्न करता है कि पता नहीं गीत सुंदर है या अगीत ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

3. दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब पड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?’ यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : बिधना – ब्रह्म, भाग्य। आल्हा – पृथ्वीराज चौहान के समय का एक योद्धा, वीर रस का गीत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गीत-अगीत में अंतर स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चित्र अंकित किए हैं जिनके माध्यम से मौन प्रेम को महत्वपूर्ण बताया है। नदी – गुलाब तथा शुक शुकी के चित्रों के माध्यम से उसने प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम-भाव को प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यहाँ दो प्रेमी हैं। शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने भी एकदम से नहीं जाती शायद यह सोचकर कि उसका प्रेमी कहीं गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई। प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जा रहा है। पता नहीं, प्रेमी के द्वारा गाकर प्रकट किया गया प्रेम-भाव महत्वपूर्ण है या प्रेमिका के द्वारा छिपकर प्रकट किया मौन प्रेम ?

गीत – अगीत Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय चेतना का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। मोकामाघाट के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्होंने सन् 1932 में पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया।

सन् 1950 में बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे सन् 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। इसके बाद वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। कुछ वर्षों तक आप भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1959 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनका निधन सन् 1974 में हुआ।

रचनाएँ – कविवर दिनकर ने अपनी रचनाएँ काव्य, निबंध आलोचना, बाल-साहित्य आदि के रूप में प्रस्तुत की हैं। ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘उर्वशी’, ‘हुंकार’, ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘द्वंद्वगीत’, ‘धूप-छाँह ‘, सीपी और शंख’, ‘धूप और धुआँ’ आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।

‘संस्कृति के चार अध्याय’ आपका संस्कृति संबंधी एक विशाल ग्रंथ है। ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘मिट्टी की ओर’ तथा ‘अर्द्ध- नारीश्वर’, उनकी प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ हैं। ‘चित्तौड़ का साका’ तथा ‘ मिर्च का मज़ा इनके बाल-साहित्य के अंतर्गत लिखी गई पुस्तकें हैं।

काव्य की विशेषताएँ – कविवर दिनकर सर्वोन्मुखी प्रतिभा के कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध पक्षों को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की अनेक समस्याओं को अपने काव्य में संजोया है। उनके काव्य का मुख्य स्वर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय उत्थान की भावना है। उन्होंने विश्व में व्याप्त वर्ग संघर्ष व पूँजीवादी व्यवस्था का भी विरोध किया है। प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से भी इनके काव्य में ग्राम्य-जीवन सजीव हो उठता है।

कवि के हृदय में समाज के दलित वर्ग के प्रति सहानुभूति का स्वर दिखाई देता है। कवि की भाषा सहज, सरल, मधुर एवं तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। लाक्षणिकता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने मुख्य रूप से गीति – शैली को अपनाया है। इन्होंने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों ही शैलियों में काव्य-रचनाएँ की हैं। छंद और अलंकारों की विविधता इनके काव्य की विशेषता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

कविता का सार :

श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ शृंगारिक चेतना से परिपूर्ण रचना है जिसमें जीवन में प्रेम और कोमलता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। कवि मानता है कि प्रेम की महानता उसकी पहचान करने में नहीं है बल्कि मौन भाव में सारी पीड़ा को पी जाने में है। कवि ने तीन रूपकों के माध्यम से अपने भाव कहने चाहे हैं। वे रूपक हैं-सरिता और गुलाब, मुखर शुक और मौन शुकी तथा आल्हा गाने वाला प्रेमी और चोरी-चोरी उसका गीत सुनने वाली उसकी प्रेमिका।

नदी विरह के गीत गाती हुई तीव्र वेग से बहती हुई आगे निकल जाती है। वह किनारे पड़े पत्थरों से कुछ-कुछ कहकर अपना हृदय हल्का कर लेती है पर नदी के किनारे उगा हुआ एक गुलाब मौन भाव से सोच में डूबा रहता है। वह अपने प्रेम-भावों को प्रकट नहीं कर पाता। एक डाली पर तोता बैठा है और उसके कुछ नीचे घोंसले में पड़े अंडों को तोती से रही है। धूप की सुनहरी किरणों को पाकर तोता तो गाता है पर तोती स्नेह भाव में डूबी मौन है, वह कुछ नहीं बोलती।

प्रेमी संध्या समय आल्हा गाता है। वह अपने प्रेम को गीत के माध्यम से व्यक्त करता है पर उसकी प्रेमिका नीम की छाया में चुपचाप गीत सुनती है, कुछ बोलती नहीं, पर सोचती अवश्य है कि भाग्य ने उसे गीत की कड़ी क्यों नहीं बना दिया। इस कविता में जो नहीं कहा गया, वह कहे गए से अधिक महत्वपूर्ण है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है –
सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
(ख) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
(ग) पुजारी से प्रसाद। फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
(घ) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप
उत्तर :
(क) बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भाँति इस बार उसे।
(ख) ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण – कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप – धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर-बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।
(ग) मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

(घ) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय ! फूल – सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी !
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 2.
बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की थी ?
उत्तर :
बीमार बच्ची ने देवी के प्रसाद के एक फूल को लाकर देने की इच्छा प्रकट की थी।

प्रश्न 3.
सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया ?
उत्तर :
सुखिया के पिता पर यह आरोप लगाया गया कि उसने मंदिर में घुसकर मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है।

प्रश्न 4.
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया ?
उत्तर :
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने देखा कि उसकी बच्ची उसके जेल जाने के बाद मर गई थी। उसे उसके परिचितों ने जला दिया था। वह उसके सामने बुझी हुई चिता की राख के ढेर के समान पड़ी हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 5.
इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘एक फूल की चाह’ कविता के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता से पूर्व हमारे देश में जाति-भेद की समस्या बहुत उग्र थी। जाति विशेष के लोगों को मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता था। सुखिया महामारी से पीड़ित थी। उसने अपने पिता से देवी के मंदिर से देवी के प्रसाद के रूप में एक फूल लाने के लिए कहा। उसका पिता मंदिर गया और उसे देवी का प्रसाद भी मिल गया परंतु कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया और पीटते हुए न्यायालय ले गए। वहाँ उसे सात दिन का दंड मिला। जब वह लौटकर आया तो उसकी बच्ची मर गई थी। उसका दाह-संस्कार भी उसके पड़ोसियों ने कर दिया था। वह बेटी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका था।

प्रश्न 6.
इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों / बिंबों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण – अंधकार की छाया।
उत्तर :
(क) स्वर्ण – धन
(ग) हृदय – चिताएँ
(ख) पुण्य- पुष्प
(घ) चिरकालिक शुचिता
(ङ) उत्सव की धारा

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ- सौंदर्य बताइए-
(क) अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।
(ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी।
(ग) हाय ! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(घ) पापी ने मंदिर में घुसकर, किया अनर्थ बड़ा भारी।
उत्तर :
(क) सुखिया का पिता जेल में बंद निरंतर रोता रहा। वह अपनी बेटी की इच्छा पूरी न कर पाने के कारण मन-ही-मन तड़पता रहा। लगातार रोने पर भी उसकी आँखों से आँसू कम नहीं हुए। मन की पीड़ा आँखों के रास्ते बहती ही रही।
(ख) श्मशान में सुखिया की बेटी की चिता बुझी पड़ी थी। सगे-संबंधी उसे जलाकर जा चुके थे। पिता का हृदय बेटी की चिता को देखकर धधक उठा था।
(ग) बेटी महामारी की चपेट में आ गई थी। हर समय चंचल रहने वाली अटल शांत-सी चुपचाप पड़ी हुई थी। वह कोई गति नहीं कर रही थी: अचंचल थी।
(घ) लोगों ने सुखिया के पिता को इस अपराध में पकड़ लिया था कि वह बीमार बेटी के लिए देवी माँ के चरणों का एक फूल प्रसाद रूप में प्राप्त करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया था। भक्तों को लगा था कि उसने बहुत अनर्थ कर दिया था। उसने देवी का अपमान किया था।

योग्यता- विस्तार –

प्रश्न 1.
‘एक फूल की चाह’ एक कथात्मक कविता है। इसकी कहानी को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 2.
‘बेटी’ पर आधारित निराला की रचना ‘सरोज- स्मृति’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
तत्कालीन समाज में व्याप्त स्पृश्य और अस्पृश्य भावना में आज आए परिवर्तनों पर एक चर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से क्या कहा ?
उत्तर :
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से कहा- क्या मेरा पाप माँ की महिमा से भी बड़ा है। क्या वह किसी बात में माँ की महिमा से भी आगे है। तुम लोग माँ के कैसे अजीब भक्त हो जो माँ के सामने ही माँ के गौरव को छोटा बना रहे हो।

प्रश्न 2.
सुखिया के पिता को अंत में किस बात का पछतावा रहा?
उत्तर :
सुखिया के पिता को अंत में इस बात का पछतावा था कि वह अंत समय में अपनी बेटी की देवी के प्रसाद की फूल-प्राप्ति की इच्छा भी पूरी नहीं कर सका। फूल का प्रसाद पहुँचाने में असमर्थ होने के कारण उसे पश्चात्ताप तथा दुख का अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 3.
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद क्यों नहीं ले पाया ?
उत्तर :
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद लेना इसलिए भूल गया क्योंकि वह जल्दी-से-जल्दी देवी के मंदिर से पुण्य-पुष्प लाकर अपनी बेटी को देना चाहता था।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(ख) माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
उत्तर :
इन प्रश्नों के उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या का अंश देखें।

प्रश्न 5.
स्वर्ण कलश-सरसिज विहाँसित थे
पाकर समुदित रवि कर – जाल।
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि स्वर्ण कलश के सौंदर्य की तुलना कवि ने किससे की है ?
उत्तर :
स्वर्ण कलश की तुलना कवि ने कमल के फूलों से की है। जिस प्रकार सूर्य की किरणों से कमल खिल उठते हैं, उसी प्रकार सूर्य की किरणों के प्रकाश से स्वर्ण कलश चमक उठे थे। यहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग है। मंदिर के स्वर्ण कलश की उपमा स्वर्ण कमल से दी गई है।

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प्रश्न 6.
जान सका न प्रभात सजग से,
हुई अलस कब दोपहरी।
आपके विचार में प्रभात के लिए ‘सजग’ और दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषणों का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर :
प्रभात के लिए कवि ने ‘सजग’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि प्रभात का समय जागरण का समय है। दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि यह समय आलस्य का भाव उत्पन्न करता है।

प्रश्न 7.
भीतर, “जो डर रहा छिपाए, हाय वही बाहर आया” कौन – सा डर था जो बाहर आया? कैसे?
उत्तर :
महामारी का भयंकर प्रकोप इधर-उधर फैल रहा था। सुखिया के पिता को यह डर था कि कहीं उसकी बेटी को यह रोग न घेर ले। एक दिन सुखिया को बुखार आ गया। यह देखकर पिता के मन में छिपा डर बाहर आ गया। उसे जिसका डर था, वही हुआ।

प्रश्न 8.
‘एक फूल की चाह’ कविता में बालिका के पिता के मन में भय क्यों था ?
उत्तर :
चारों ओर भयंकर महामारी फैली हुई थी। बहुत से बच्चे उस महामारी के प्रकोप से काल का ग्रास हो चुके थे। बालिका सुखिया पिता के बार-बार रोकने पर भी खेलने के लिए घर से बाहर चली जाती थी। इसी कारण पिता के मन में भय था कि कहीं उसकी बेटी महामारी की चपेट में न आ जाए।

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प्रश्न 9.
‘एक फूल की चाह’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इस कविता में कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर की दृष्टि में सब बराबर हैं। जात-पात का भाव व्यर्थ है। कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। दूसरों पर अत्याचार करने वाले प्रभुभक्त नहीं हो सकते।

प्रश्न 10.
“छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !” भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यहाँ तिमिर मौत का सूचक है। छोटी-सी और कोमल बच्ची भयंकर महामारी से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी। उस फूल- सी बच्ची की दयनीय दशा देखकर ऐसा लग रहा था मानो प्रचंड महामारी मौत का रूप धारण कर उसे ग्रसने आई हो।

प्रश्न 11.
लोगों की मृत्यु का क्या कारण था ? मृतकों के सगे-संबंधियों का रोना किस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर रहा था ?
उत्तर :
लोगों की मृत्यु का कारण उस क्षेत्र में फैली महामारी थी। महामारी से मरने वालों के सगे-संबंधियों का रोना निरंतर वातावरण में दुख फैला रहा था। उनके हृदय रूपी चिताएँ जल रही थीं, धधक रही थीं व माताओं का रोना सभी दिशाओं को चीरता हुआ फैल रहा था। वे किसी भी प्रकार अपने हृदय को सांत्वना नहीं दे पा रहे थे।

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प्रश्न 12.
सुखिया किस प्रकार लेटी हुई थी और उसका पिता उसे क्यों उकसा रहा था ?
उत्तर :
सुखिया महामारी का शिकार बन तेज़ बुखार में तपती हुई स्थिर व शांत लेटी हुई थी। उसका पिता उसे इस प्रकार लेटे देखकर डर रहा था। सुखिया तो कभी शांत होकर नहीं बैठती थी। पिता उसे पहले की तरह चंचल देखना चाहता था, इसलिए उसे देवी के प्रसाद की प्राप्ति के लिए उकसा रहा था ताकि वह कुछ तो बोले।

प्रश्न 13.
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा क्यों की ?
उत्तर :
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा इसलिए की क्योंकि उन लोगों का मंदिर में आना मना था, परंतु वह अपनी बेटी के लिए देवी माँ का प्रसाद लेने आया था। लोगों के अनुसार उसने मंदिर में आकर मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी थी। उसने ऐसा अपराध किया था जो क्षमा के योग्य नहीं था।

व्याख्या :

1. उद्वेलित कर अश्रु – राशियाँ, हृदय – चिताएँ धधकाकर,
महा महामारी प्रचंड हो फैल रही थी इधर-उधर।
क्षीण- कंठ मृतवत्साओं का करुण रुदन दुर्दात नितांत,
भरे हुए था निज कृश रव में हाहाकार अपार अशांत।

शब्दार्थ : उद्वेलित – भाव-विभोर। अश्रु – राशियाँ – आँसुओं की झड़ी। प्रचंड तीव्र। क्षीण कंठ – दबी आवाज़। मृतवत्साओं – जिन माताओं की संतानें मर गई हैं। रुदन रोना। दुर्दात जिसे वश में करना कठिन हो, हृदय को दहलाने वाला। नितांत – बिलकुल। निज – अपना। कृश – कमज़ोर। रव – शोर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने महामारी से ग्रस्त कन्या की व्यथा को चित्रित किया है जो देवी के चरणों में अर्पित एक फूल की कामना करती है परंतु समाज में व्याप्त छुआछूत की समस्या उसकी इस इच्छापूर्ति में बाधक बन जाती है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि महामारी के फैलने का वर्णन करते हुए लिखता है कि लोग महामारी से मर रहे थे। मृतकों के सगे-संबंधी परेशान और पीड़ित हो निरंतर आँसू बहाते थे। उनके हृदय रूपी चिताएँ धधक – धधक कर पीड़ा को व्यक्त करती थीं। भीषण महामारी प्रचंड होकर इधर-उधर फैल रही थी। जिन ममतामयी माताओं की संतानें मौत को प्राप्त हो गई थीं वे अपने कमज़ोर गले से चीख – चिल्ला रही थीं। उनकी करुणा से भरी चीख-पुकार सब दिशाओं में फैल रही थी। अपने कमज़ोर और दीन-हीन हाहाकार के शोर में उनकी अशांत कर देनेवाली अपार मानसिक पीड़ा छिपी हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

2. बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भांति इस बार उसे।

शब्दार्थ : निहार – देखकर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘स्पर्श’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। इसमें उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की दयनीय दशा का चित्रण किया है। महामारी का भयंकर रोग फैल जाता है। एक व्यक्ति अपनी बेटी सुखिया को छूत के इस रोग से बचाने की कोशिश करता है पर अंततः उसकी बेटी इस रोग से प्रभावित हो ही जाती है। इस पद्यांश में पिता की मनःस्थिति का चित्रण हुआ है।

व्याख्या : छूत की बीमारी फैलने पर सुखिया के पिता का हृदय भय से भर गया था कि कहीं उसकी बेटी को भी महामारी का रोग न घेर ले। अतः वह अपनी बेटी को बहुत रोकता था कि वह खेलने के लिए घर से बाहर न जाए। लेकिन स्वभाव से चंचल होने के कारण सुखिया का खेल नहीं रुकता था। वह पलभर के लिए भी घर में न टिकती थी। उसे बाहर गया देखकर पिता का हृदय काँप उठता था। वह यही मनौती मनाता था कि किसी तरह इस बार उसे बचा ले।

3. भीतर जो डर रहा छिपाए, हाय! वही बाहर आया।
एक दिवस सुखिया के तनु को, ताप तप्त मैंने पाया।
ज्वर में विह्वल हो बोली वह, क्या जानूँ किस डर से डर,
मुझको देवी के प्रसाद का, एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : दिवस – दिन। तनु – शरीर। ताप-तप्त – ज्वर, बुखार से पीड़ित। विह्वल – दुखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता, ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इस कविता में कवि ने एक व्यक्ति की दयनीय दशा का चित्रण किया है। उसका हृदय हमेशा डरता रहता था कि कहीं महामारी का रोग उसकी बेटी को ग्रस्त न कर ले।

व्याख्या : वह कहता है कि – मेरे भीतर जो डर का भाव था, वही एक दिन प्रकट रूप में सामने आ गया। मैंने अपनी बेटी सुखिया के शरीर को ज्वर से पीड़ित पाया। ज्वर की पीड़ा से पीड़ित होकर तथा न जाने किस डर से डरकर वह कहने लगी- मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो। सुखिया का एक फूल के प्रसाद की कामना करना उसपर दैवी प्रकोप के प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

4. क्रमशः कंठ क्षीण हो आया, शिथिल हुए अवयव सारे,
बैठा था नव-नव उपाय की, चिंता में मैं मन मारे।
जान सका न प्रभात सजग से, हुई अलस कब दोपहरी,
स्वर्ण- घनों में कब रवि डूबा, कब आई संध्या गहरी।

शब्दार्थ : क्रमशः – क्रम से, सिलसिलेवार। शिथिल – ढीले। अवयव अंग। नव नए। प्रभात – नए। प्रभात – सवेरा। स्वर्ण घने – सोने के रंग जैसे बादल। रवि सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। सुखिया का पिता हमेशा इस बात से डरता था कि कहीं उसकी बेटी भी महामारी का शिकार न बन जाए। आखिर वही हुआ जिसका डर था। सुखिया को भी महामारी ने आ घेरा। सुखिया की दशा का वर्णन करते हुए उसका पिता कहता है।

व्याख्या : धीरे-धीरे सुखिया के गले की आवाज़ कमज़ोर हो गई। सारे अंग ढीले पड़ गए। मैं मन को मारे हुए अर्थात उदास हुए नए-नए तरीके सोचने में लीन था। सोचता था इसके लिए फूल कैसे लाया जाए। सवेरे सजग होकर, जागकर मैं यह जान न सका कि कब दोपहर हो गई। यह भी न समझ सका कि कब सुनहरे बादलों में सूर्य डूबा और कब गहरी घनी, अंधकारपूर्ण संध्या आ गई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

5. सभी ओर दिखलाई दी बस, अंधकार की ही छाया,
छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !
ऊपर विस्तृत महाकाश में, जलते से अंगारों से,
झुलसी-सी जाती थीं आँखें, जगमग जगते तारों से।

शब्दार्थ : ग्रसने – डसने। तिमिर – अंधकार। महाकाश – विशाल आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित है। करुण रस से ओत-प्रोत इस कविता में कवि ने समाज के एक वर्ग की दयनीय दशा का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। यहाँ सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा का वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा के कारण उसका निराश पिता कहता है कि यद्यपि मैंने अपनी बेटी का हठ पूरा करने के अनेक उपायों पर विचार किया, किंतु केवल निराशा ही मेरे हाथ लगी। मेरी इतनी सुकुमार और छोटी-सी बालिका को ग्रसने के लिए इतनी प्रचंड महामारी का प्रकोप छाया हुआ था। सुखिया की आँखों से आग निकल रही थी, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो विस्तृत आकाश में अंगारों की तरह अगणित तारे चमक रहे हों। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार तारों से आकाश के विस्तार का अनुमान नहीं लग पाता, उसी प्रकार सुखिया की झुलसती आँखों से उसके शरीर के ताप का सही अनुमान नहीं लग सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

6. देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
सुनना वही चाहता था मैं, उसे स्वयं ही उकसाकर
मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : सुस्थिर एक स्थान पर टिका हुआ, अडिग। अटल – स्थिर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। सुखिया रोग ग्रस्त हो जाने के कारण स्थिर अवस्था में पड़ी रहती थी।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है- जो बेटी स्वभाव से चंचल होने के कारण पल-भर के लिए भी एक स्थान पर टिककर नहीं बैठती थी, वही अब स्थिर शांति धारण किए एक ही स्थान पर पड़ी रहती थी। अब वह दुर्बल तथा क्षीण कंठ होने के कारण बोल भी नहीं सकती थी। उसका पिता अपनी मानसिक शांति के लिए स्वयं उसको उकसाकर एक बार उससे यही सुनना चाहता था – ‘मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो।’

7. ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप- धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर – बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।

शब्दार्थ : शैल शिखिर पर्वत की चोटी। विस्तीर्ण – विस्तृत। विशाल – बहुत बड़े आकारवाला। स्वर्ण कलश – सोने के कलश। सरसिज – कमल। विहसित – हँसते हुए। रवि-कर- जाल सूर्य की किरणों का समूह। आमोदित प्रसन्न।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। कवि मंदिर के बाहरी सौंदर्य तथा भीतरी वातावरण पर प्रकाश डालता हुआ कहता है।

व्याख्या : पर्वत की चोटी पर एक बहुत बड़ा मंदिर था। सूर्य की किरणों के समूह को पाकर सोने का कलश कमल के समान हँसता हुआ दिखाई देता था। भाव यह है कि सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल खिलते हैं। मंदिर का स्वर्णिम कलश भी सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल के समान खिला हुआ दिखाई दे रहा था। दीपकों और सुगंधित धूप से मंदिर का सारा आँगन प्रसन्नता को व्यक्त कर रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर उत्सव की धारा प्रकट हो रही थी। भाव यह है कि मंदिर के भीतर जो भजन आदि गाए जा रहे थे, उनकी आवाज़ भी गूँज रही थी।

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8. भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से, गाते थे सभक्ति मुद-मय-
‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी’ माता तेरी जय-जय।’
‘पतित-तारिणी’ तेरी जय जय, मेरे मुख से भी निकला,
बिना बढ़े ही मैं आगे को, जाने किस बल से ढिकला।

शब्दार्थ : भक्त वृंद – भक्तों का समूह। मुद-मय प्रसन्नतापूर्वक। पतित-तारिणी पापियों को तारने वाली। पाप हारिणी- पापों को हरनेवाली। ढिकला – ढकेला गया; ठेला गया।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। मंदिर में भक्तों का समूह देवी माँ की वंदना कर रहा था।

व्याख्या : भक्तों का समूह भक्ति भाव से भरकर कोमल, मधुर तथा प्रसन्नचित्त मन से यही गा रहा था – हे माता ! तू पतितों को तारनेवाली तथा उनके पापों को हरनेवाली है। हे माता ! तुम्हारी जय-जयकार हो। सुखिया का पिता कहता है कि उन भक्तों के अनुकरण पर मेरे मुख से भी यही निकला – हे पापियों को तारनेवाली तेरी जय हो। वह बिना बढ़े ही भीड़ द्वारा आगे ठेल दिया गया।

9. मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये, पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं,

शब्दार्थ : अंबा – माँ, देवी माँ। अर्पित – भेंट। अंजलि – मुट्ठी। पुण्य-पुष्प – पवित्र फूल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। सुखिया का पिता अपनी बीमार बेटी के लिए देवी के मंदिर में प्रसाद लेने जा पहुँचता है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मेरे दीप और फूल को लेकर पुजारी ने देवी माँ के चरणों में अर्पित कर दिए। पुजारी ने जब अपना हाथ आगे बढ़ाकर मुझे प्रसाद दिया तो मैं उसको लेना ही भूल गया। मैंने परम लाभ पाकर यही सोचा कि मैं अपनी बेटी को शीघ्र अति शीघ्र जाकर माँ के पवित्र फूल दूँ।

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10. सिंह पौर तक भी आँगन से, नहीं पहुँचने मैं पाया,
सहसा यह सुन पड़ा कि – “कैसे यह अछूत भीतर आया ?
पकड़ो, देखो भाग न जावे, बना धूर्त यह धूर्त यह है कैसा;
साफ-स्वच्छ परिधान किए है, भले मानुषों के जैसा !”

शब्दार्थ : सिंह पौर – मंदिर का मुख्य द्वार। सहसा – प्रसंग। अचानक। धूर्त – दुष्ट। परिधान – वस्त्र। मानुषों – मनुष्यों।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। यहाँ सुखिया के पिता के मंदिर में जाने के दुष्परिणाम परिणाम पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है – मैं माँ के मंदिर से पवित्र फूल लेकर अभी मंदिर के मुख्य द्वार पर भी नहीं पहुँचा था कि अचानक यह आवाज़ सुनाई दी कि यह मंदिर के भीतर कैसे घुस आया। सबने कहा कि उसे पकड़ लो, कहीं भाग न जाए। साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर यह दुष्ट भले मानुष का सा रूप धारण करके आ गया है।

11. पापी ने मंदिर में घुसकर किया अनर्थ बड़ा भारी,
कलुषित कर दी है मंदिर की, चिरकालिक शुचिता सारी।
ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है, देवी की गरिमा से भी;
किसी बात में हूँ मैं आगे, माता की महिमा के भी ?

शब्दार्थ : अनर्थ – अविष्ट। कलुषित – अपवित्र। चिरकालिक – बहुत पुराने समय से चली आ रही। शुचिता – पवित्रता। कलुष – पाप। गरिमा – महानता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। जब मंदिर में उपस्थित लोगों को यह पता लगा कि सुखिया का पिता देवी के मंदिर में घुस आया है तो सभी ने उसकी कठोर भर्त्सना एवं निंदा की।

व्याख्या : मंदिर में उपस्थित लोग कहने लगे कि – देखो तो सही, इस पापी ने मंदिर में घुसकर कितना बड़ा अनर्थ कर डाला है। इसने मंदिर की पुरानी पवित्रता को नष्ट कर दिया है। निश्चय ही इसका कृत्य अक्षम्य है। जब सुखिया के पिता ने यह सब सुना तो वह सहज भाव से बोला, हे भाई, क्या मेरा पाप इतना बड़ा है कि देवी की महानता उसे क्षमा नहीं कर सकती ? अभिप्राय यह है कि देवी के समक्ष तो सभी एकसमान हैं- फिर मेरा ही पाप तो इतना बड़ा नहीं है कि मुझे क्षमादान नहीं मिल सकता। मेरी तरह तुम सब भी तो किसी-न-किसी रूप में पापी हो। तात्पर्य यह है कि देवी की गरिमा और महानता को मुझसे और मेरे कृत्यों से कोई क्षति नहीं पहुँच सकती। देवी के सर्वशक्तिशाली रूप के समक्ष मेरा अकिंचन अस्तित्व कोई महत्व नहीं रखता।

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12. माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
कुछ न सुना भक्तों ने, झट से मुझे घेर कर पकड़ लिया;
मार मार कर मुक्के घूँसे, धम-से नीचे गिरा दिया !

शब्दार्थ : सम्मुख – सामने। गौरव – सम्मान।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता के उद्गारों का मार्मिक वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया का पिता देवी के भक्तों को संबोधित कर कहता है कि इतना तुच्छ विचार रखकर तुम माँ के कैसे विचित्र भक्त हो। तुम माँ के सम्मुख ही माँ की महिमा को छोटा कर रहे हो। अभिप्राय यह है कि माँ का मंदिर इतना पवित्र है कि वह किसी भी पापी के प्रवेश से अपवित्र बन ही नहीं सकता। मंदिर को अपवित्र कहना माँ के गौरव का हनन करना है। लेकिन देवी के भक्तों ने उसकी बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उसे पकड़ लिया तथा मुक्के और घूँसे मार-मारकर उसे धरती पर गिरा दिया।

13. मेरे हाथों से प्रसाद भी, बिखर गया हा ! सबका सब
हाय ! अभागी बेटी तुझ तक कैसे पहुँच सके यह अब !
न्यायालय ले गए मुझे वे सात दिवस का दंड विधान
मुझको हुआ; हुआ था मुझसे देवी का महान अपमान!

शब्दार्थ : न्यायालय – अदालत। दंड – सज़ा। विधान – नियम।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता की व्यथा का मार्मिक चित्रण है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मंदिर में उपस्थित भक्तों ने उसे खूब पीटा, क्योंकि उसने मंदिर में घुसकर घोर अपराध किया था। मार-पीट के दौरान उसके हाथों का प्रसाद भी नीचे गिर गया था। वह सोचता है कि उसकी अभागी बेटी के पास अब प्रसाद कैसे पहुँचे। सुखिया तक उस प्रसाद के पहुँचने की कोई संभावना न थी। अदालत ने उसे इस अपराध के लिए सात दिन की सज़ा सुनाई। लोगों के अनुसार उसके कारण देवी का घोर अपमान हुआ था।

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14. मैंने स्वीकृत किया दंड वह शीश झुकाकर चुप ही रह;
उस असीम अभियोग, दोष का क्या उत्तर देता, क्या कह ?
सात रोज़ ही रहा जेल में या कि वहाँ सदियां बीतीं,
अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। शीश – सिर। असीम – सीमा से रहित, अत्यधिक। अविश्रांत – लगातार, बिना रुके हुए। तनिक – ज़रा भी। रीतीं – खाली हुईं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श- भाग एक’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। कवि ने समाज में व्याप्त धर्म पर आधारित रूढ़ियों का सजीव चित्रण किया है। सुखिया के पिता को मंदिर से प्रसाद लेने के अपराध में जेल में भेज दिया गया था जबकि उसकी बेटी घर में पड़ी मौत से लड़ रही थी।

व्याख्या : सुखिया के पिता का कहना है कि उसने न्यायालय के सामने सिर झुकाकर दिए गए दंड को स्वीकार किया। उस पर लगाए गए इतने बड़े आरोप का भला वह क्या कह कर उत्तर देता। उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। वह सात दिन तक जेल में बंद रहा। उसे ऐसा लगता कि वह सदियों से वहाँ बंद था। निरंतर उसकी आँखें आँसू बहाती रहतीं पर फिर भी वे ज़रा भी खाली न हुईं। आँसू तो उनमें ज्यों- के त्यों भरे ही रहे और बेटी की याद और अपने साथ हुए अन्याय के कारण बरसते रहे।

15. दंड भोगकर जब मैं छूटा, पैर न उठते थे घर को ;
पीछे ठेल रहा था कोई भय जर्जर तनु पंजर को।
पहले की-सी लेने मुझको नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा ! अबकी दी न दिखाई वह।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। ठेल – धकेल। तनु – शरीर।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पर्श (भाग – एक) में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। बेटी के लिए प्रसाद लेने के लिए पिता मंदिर गया था, पर जाति-भेद के कारण उसे मार-पीट कर सात दिन के लिए जेल में भेज दिया गया था।

व्याख्या : सुखिया के पिता जेल में सजा भोगने के बाद जब घर को लौट रहा था तो ग्लानि के कारण उसके पाँव नहीं उठ रहे थे। डर और कमज़ोरी के कारण उसके लड़खड़ाते शरीर को जैसे कोई पीछे धकेल रहा था। वह आगे बढ़ ही नहीं पा रहा था। आज उसे पहले की तरह लेने के लिए उसकी बेटी सुखिया भागकर आगे से नहीं आई थी और न ही किसी खेल – कूद में ही उलझी हुई दिखाई दी।

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16. उसे देखने मरघट को ही गया दौड़ता हुआ वहाँ,
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही, फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

शब्दार्थ : मरघट मरघट – श्मशान। बंधु मित्र, रिश्तेदार। फूँक चुके – जला चुके।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पर्श (भाग – एक) ‘ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। महामारी के कारण बेटी चल बसी थी पर पिता उसे देवी माँ के प्रसाद रूप में एक फूल तक न लाकर दे सका।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि वह अपनी मृतक बेटी को देखने के लिए श्मशान की ओर दौड़ता हुआ पहुँचा लेकिन उसके सगे-संबंधी पहले ही उसके मृतक शरीर को जला चुके थे। उसकी बुझी हुई चिता ही थी। पिता का हृदय धधक पड़ा, वह कराह उठा। हाय ! उसकी फूल – सी कोमल बेटी राख की ढेरी बन चुकी थी। पिता अपनी बेटी को अंतिम बार गोद में भी नहीं ले सका। बेटी ने एक ही तो चीज़ माँगी थी और वह देवी माँ का प्रसाद रूप में एक फूल भी उसे नहीं दे सका था। वह अपनी इच्छा को साथ लेकर ही यहाँ से चली गई।

एक फूल की चाह Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – परिचय – सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उनका जन्म सन् 1895 ई० में चिरगाँव, जिला झाँसी में हुआ था। श्वास रोग, पत्नी की असामयिक मृत्यु तथा राष्ट्रीय आंदोलन की असफलता ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था। यही कारण है कि उनके काव्य में करुणा, पीड़ा एवं विषाद का स्वर प्रधान हो गया है। सन् 1963 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – गुप्त जी ने काव्य-रचना के साथ-साथ कहानी, उपन्यास, निबंध एवं नाटक के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। वे कवि रूप में ही अधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं – मौर्य विजय, दूर्वादल, आर्द्रा, पाथेय, आत्मोत्सर्ग, मृण्मयी, बापू, उन्मुक्त, गोपिका, नकुल, दूर्वादल तथा नोआखली आदि। ‘गीता-संवाद’ में श्रीमद्भगवद गीता का काव्यानुवाद है।

काव्य की विशेषताएँ – सियारामशरण गुप्त की कविताओं में मानवतावाद तथा राष्ट्रवाद की प्रधानता है। अतीत के प्रति अनुराग तथा नवीनता के प्रति आस्था उनके काव्य की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। आख्यानक गीति रचने में वे सिद्धहस्त रहे हैं। गाँधी एवं विनोबा के जीवन-दर्शन के प्रभावस्वरूप उन्होंने दया, सहानुभूति, सत्य, अहिंसा एवं परोपकार आदि भावनाओं को विशेष महत्त्व दिया है। गुप्त जी की काव्यभाषा खड़ी बोली है जिसके ऊपर संस्कृत के तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रभाव है।

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कविता का सार :

‘एक फूल की चाह’ कविता श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित है। इस कविता में एक ओर पुत्री के प्रति पिता के असीम स्नेह का चित्रण है, तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त छुआछूत एवं ऊँच-नीच की समस्या पर प्रकाश डाला है। कवि ने इस रचना के माध्यम से यह भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि किसी के स्पर्श से देवी की पवित्रता और गरिमा नष्ट नहीं होती, बल्कि देवी की शरण में जाने पर सभी पवित्र हो जाते हैं। देवी की महिमा अपरंपार है और उसकी गरिमा पतितों का उद्धार करने में ही है।

किसी स्थान पर भीषण महामारी फैल गई। इस महामारी के भय से बालिका सुखिया का पिता उसे घर से बाहर नहीं जाने देता। फिर भी सुखिया उस महामारी की चपेट में आ ही गई। महामारी से ग्रस्त सुखिया पिता से देवी के प्रसाद में मिलनेवाले फूल को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करती है। अपनी जाति के कारण पिता मंदिर में जाकर फूल लाने से डरता है किंतु पुत्री के मोह ने उसे देवी के मंदिर से फूल लाने के लिए विवश कर दिया।

प्रसाद रूप में फूल लेकर जैसे ही वह लौटने लगा, कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया तथा पकड़कर बुरी तरह पीटा। फिर उसपर मंदिर की पवित्रता भंग करने का आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया। सात दिन का कारावास का दंड भोगकर जब वह घर लौटा तो उसकी प्यारी बेटी सुखिया की मृत्यु हो चुकी थी। अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी न कर सकने के कारण उसका हृदय चीत्कार कर उठा।