JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. स्थानीय स्वशासन का सम्बन्ध है।
(क) स्थानीय हित से
(ख) राष्ट्रीय हित से
(ग) प्रादेशिक हित से
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं से
उत्तर:
(क) स्थानीय हित से

2. जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सुनिश्चित करता है।
(क) जनता की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को
(ख) जनता की निरंकुशता को
(ग) जनता की स्वेच्छाचारिता को
(घ) सामन्तशाही को।
उत्तर:
(क) जनता की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को

3. ब्रिटिश काल में भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय को कहा जाता था।
(क) ग्राम पंचायत
(ख) तालुका पंचायत
(ग) नगर परिषद
(घ) मुकामी बोर्ड
उत्तर:
(घ) मुकामी बोर्ड

4. जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय सौंप दिया गया।
(क) संघ की सरकार को
(ख) प्रदेशों की सरकार को
(ग) मुकामी बोर्डों को
(घ) उपर्युक्त में से किसी को नहीं
उत्तर:
(ख) प्रदेशों की सरकार को

5. पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित संविधान संशोधन है।
(क) 72वां संविधान संशोधन
(ख) 78वां संविधान संशोधन
(ग) 73वां संविधान संशोधन
(घ) 74वां संविधान संशोधन
उत्तर:
(ग) 73वां संविधान संशोधन

6. अब प्रत्येक पंचायती निकाय का चुनाव किया जाता है।
(क) 3 साल के लिए
(ख) चार साल के लिए
(ग) 6 साल के लिए
(घ) पांच साल के लिए
उत्तर:
(घ) पांच साल के लिए

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7. सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं।
(क) 7 1/2 प्रतिशत
(ख) 50 प्रतिशत
(ग) 20 प्रतिशत
(घ) 33 प्रतिशत
उत्तर:
(घ) 33 प्रतिशत

8. संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज विषय प्रदान किये गये हैं।
(क) संघ सरकार को
(ख) राज्य सरकारों को
(ग) स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को
(घ) किसी को नहीं
उत्तर:
(ग) स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को

9. शहरी स्थानीय निकायों का कुल राजस्व उगाही में योगदान है।
(क) 0.24 प्रतिशत का
(ख) 4 प्रतिशत का
(ग) 24 प्रतिशत का
(घ) 76 प्रतिशत का
उत्तर:
(क) 0.24 प्रतिशत का

10. संविधान का कौनसा संशोधन शहरी स्थानीय शासन से संबंधित है?
(क) 60वाँ
(ख) 62वाँ
(ग) 63वाँ
(घ) 74वाँ
उत्तर:
(घ) 74वाँ

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. गाँव और जिला स्तर के शासन को …………………… कहते हैं।
उत्तर:
स्थानीय शासन

2. स्थानीय शासन का विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की ………………….
उत्तर:
जिंदगी

3. संविधान का ……………… संविधान संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है।
उत्तर:
63वाँ

4. संविधान का 74वाँ संशोधन ………………… स्थानीय शासन से जुड़ा है।
उत्तर:
शहरी

5. सभी पंचायत संस्थाओं में एक-तिहाई सीटें …………………… के लिए आरक्षित हैं।
उत्तर:
महिलाओं।

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाकों में रहती है।
उत्तर:
सत्य

2. अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
उत्तर:
सत्य

3. हर पंचायती निकाय की अवधि 3 साल की होती है।
उत्तर:
असत्य

4. ऐसे 29 विषय जो पहले समवर्ती सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं।
उत्तर:
असत्य

5. प्रदेशों की सरकार के लिए हर 5 वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना जरूरी है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. पंचायत समिति (अ) नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्था
2. नगर निगम (ब) पी.के. थुंगन समिति (1989)
3. सामुदायिक विकास (स) सन् 1993 कार्यक्रम
4. स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा (द) सन् 1952 प्रदान करने की सिफारिश की
5. 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुए (य) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्था

उत्तर:

1. पंचायत समिति (य) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्था
2. नगर निगम (अ) नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्था
3. सामुदायिक विकास (द) सन् 1952
4. स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा (ब) पी.के. थुंगन समिति (1989)
5. 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुए (स) सन् 1993

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज क्या है?
उत्तर:
पंचायती राज उस व्यवस्था को कहते हैं जिसके अन्तर्गत ग्रामों में रहने वाले लोगों को अपने गांवों का प्रशासन तथा विकास का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 2.
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने वाली संस्थाओं को स्थानीय स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं।

प्रश्न 3.
पंचायती राज के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. ग्रामों का विकास करना व उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
  2. ग्रामीणों को उनके अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान कराना।

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प्रश्न 4.
पंचायती राज संस्थाओं में स्त्रियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित की गई हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायती राज संस्थाओं के सभी स्तरों में स्त्रियों के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं।

प्रश्न 5.
ग्राम सभा क्या है?
उत्तर:
ग्राम सभा एक तरह से गांव की संसद है। एक ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। इसकी एक वर्ष में दो सामान्य बैठकें होना आवश्यक है।

प्रश्न 6.
स्थानीय शासन का विषय क्या है?
उत्तर:
स्थानीय शासन का विषय है। आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी।

प्रश्न 7.
स्थानीय शासन की मान्यता क्या है?
उत्तर:
स्थानीय शासन की मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसले लेने के लिए तथा कारगर और जन 1 हितकारी प्रशासन के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 8.
संविधान में स्थानीय शासन का विषय किसे सौंपा गया है?
उत्तर:
संविधान में स्थानीय शासन को राज्य सूची में रखा गया है। प्रदेशों को इस बात की छूट है कि वे स्थानीय शासन के बारे में अपनी तरह का कानून बनाएं।

प्रश्न 9.
ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज किन्हीं दो विषयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
कृषि, लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास।

प्रश्न 10.
73वें संविधान संशोधन द्वारा राज्य सूची के कितने विषय 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गये हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन के द्वारा राज्य सूची के 29 विषय संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिये गये हैं।

प्रश्न 11.
11वीं अनुसूची के विषयों का स्थानीय शासन को वास्तविक हस्तांतरण किस पर निर्भर है?
उत्तर:
11वीं अनुसूची में दर्ज विषयों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

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प्रश्न 12.
संविधान के 74वें संविधान संशोधन का संबंध किससे है?
उत्तर:
संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से है।

प्रश्न 13.
भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है?
उत्तर:
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है।

प्रश्न 14.
आज ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की संख्या क्या है?
उत्तर:
आज ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन से संबंधित

  1. जिला पंचायतों की संख्या 500,
  2. मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6000 तथा
  3. ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40,000 है

प्रश्न 15.
वर्तमान में शहरी भारत में कितने नगर निगम, नगरपालिकाएँ और नगर पंचायतें हैं?
उत्तर:
वर्तमान में शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1400 नगरपालिका तथा 2000 नगर पंचायतें विद्यमान हैं।

प्रश्न 16.
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसकी है?
उत्तर:
राज्य निर्वाचन आयुक्त की।

प्रश्न 17.
जिला परिषद् क्या है?
उत्तर:
जिला परिषद् पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था का शीर्ष निकाय है।

प्रश्न 18.
नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी को महापौर कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान में स्थानीय शासन के मामले को अधिक महत्त्व न मिलने के कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
संविधान में निम्नलिखित कारणों से स्थानीय शासन के मामले को अधिक महत्त्व नहीं मिल सका

  1. देश-विभाजन की खलबली के कारण संविधान निर्माताओं का झुकाव केन्द्र को मजबूत बनाने का रहा। नेहरू स्वयं अति स्थानीयता को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा मानते थे।
  2. डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि ग्रामीण भारत में जाति-पांति और आपसी फूट का बोलबाला है। ऐसे माहौल में स्थानीय शासन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पायेगा।

प्रश्न 2.
स्थानीय शासन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व।

  1. स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होता है। इस कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।
  2. जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
  3. मजबूत स्थानीय शासन से लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होती है।

प्रश्न 3.
ब्राजील के संविधान का कौनसा प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है? ब्राजील के संविधान में प्रांत, संघीय जिले तथा नगर परिषदों में हर एक को स्वतंत्र शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। जिस तरह गणराज्य (Republic) राज्यों के काम-काज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह राज्य भी नगरपालिका-नगरपरिषद के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। अहस्तक्षेप का यह प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है।

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प्रश्न 4.
73वें संविधान संशोधन की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन की विशेषताएँ-

  • त्रिस्तरीय बनावट: 73वें संशोधन के द्वारा अब प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
    1. ग्राम पंचायत
    2. मध्यवर्ती या खंड स्तरीय पंचायत और
    3. जिला पंचायत।
  • ग्राम सभा: संविधान संशोधन में अब ग्राम सभा की दो बैठकें अनिवार्य कर दी गई हैं। ग्राम पंचायत का हर मतदाता इसका सदस्य होता है।
  • चुनाव: पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव अब सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि 5 साल की होती है।
  • आरक्षण: सभी पंचायत संस्थाओं में एक-तिहाई आरक्षण महिलाओं के लिए दिया गया है। साथ ही अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण के प्रावधान किये गये हैं।

प्रश्न 5.
ग्यारहवीं अनुसूची में किस प्रकार के विषय रखे गये हैं? किन्हीं पांच विषयों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ग्यारहवीं अनुसूची में राज्य सूची के 29 विषय रखे गये हैं। अधिकांश मामलों में इन विषयों का सम्बन्ध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है।11वीं अनुसूची के पांच प्रमुख विषय ये हैं।

  1. कृषि
  2. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
  3. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
  4. ग्रामीण आवास
  5. ग्रामीण विद्युतीकरण।

प्रश्न 6.
ग्राम पंचायत की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत की भूमिका-ग्रामीण जीवन में ग्राम पंचायत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो कि निम्नलिखित है।

  1. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में जल आपूर्ति, शांति एवं व्यवस्था, स्वच्छता तथा जन-स्वास्थ्य के प्रति उत्तरदायी
  2. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में स्थानीय सरकार के समस्त कार्य करती है।
  3. यह अपने क्षेत्र में ग्रामीण विकास, ग्रामीण सुधार, सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी है तथा उसके लिए योजनाएँ बनाती है तथा उन्हें क्रियान्वित करती है।
  4. ग्राम पंचायत समूची पंचायती राज व्यवस्था का आधार है जिसकी सफलता पर ही इसकी सफलता निर्भर करती है।
  5. ग्राम पंचायत ग्रामीणों को प्रशासन का प्रशिक्षण देती है जो कि भारतीय लोकतंत्र की सफलता का आधार है।

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प्रश्न 7.
राज्य चुनाव आयुक्त की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राज्य चुनाव आयुक्त: 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों ने स्थानीय स्वशासन के लिए एक राज्य चुनाव आयुक्त की स्थापना की है। इस आयुक्त की जिम्मेदारी राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी। प्रदेश का यह चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी है। इसका संबंध भारत के चुनाव आयोग से नहीं होता।

प्रश्न 8.
राज्य वित्त आयोग की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राज्य वित्त आयोग: 73वें व 74वें संविधान संशोधन में प्रदेशों की सरकार के लिए पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना आवश्यक है। यह आयोग एक तरफ प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा।

प्रश्न 9.
पंचायती राज व्यवस्था की त्रिस्तरीय बनावट क्या है? था
उत्तर:
त्रिस्तरीय बनावट: भारत में वर्तमान में सभी राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रिस्तरीय है।

  1. ग्राम पंचायत: पहले स्तर पर या सबसे नीचे ग्राम पंचायत आती है जिसमें एक या एक से ज्यादा गांव होते
  2. खंड या तालुका पंचायत-मवर्ती स्तर मंडल का है जिसे खंड या तालुका भी कहा जाता है। यह अनेक ग्राम पंचायतों से मिलकर बना होता है।
  3. जिला पंचायत: सबसे ऊपर के पायदान पर जिला पंचायत का स्थान है। इसके दायरे में जिले का सम्पूर्ण ग्रामीण इलाका आता है।

प्रश्न 10.
73वें संविधान संशोधन में चुनाव सम्बन्धी क्या प्रावधान किये गये हैं?
उत्तर:
निर्वाचन सम्बन्धी प्रावधान: 73वें संविधान संशोधन के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि पांच साल की होती है। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके छ: माह के अन्दर नये चुनाव हो जाने चाहिए।

प्रश्न 11.
73वें तथा 74वें संशोधन के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन को किस प्रकार मजबूती मिली है?
उत्तर:
73वें तथा 74वें संशोधन के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन को अग्र रूपों में मजबूती मिली है।

  1. स्थानीय निकायों की चुनावों की निश्चितता के बाद से चुनाव के कारण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
  2. इन संशोधनों ने देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एकसा किया है।
  3. अब महिलाओं के आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
  4. दलित तथा आदिवासियों को आरक्षण मिलने से स्थानीय निकायों की सामाजिक बनावट में भारी बदलाव आए हैं।

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प्रश्न 12.
वर्तमान में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के कारगर ढंग से कार्य नहीं कर पाने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के अप्रभावी होने के कारण यद्यपि सैद्धान्तिक रूप अर्थात् 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को समर्थ तथा सक्षम बनाने का प्रयास किया गया है, लेकिन व्यवहार में कुछ कारणों ने अभी भी इन्हें दुर्बल बना रखा है और ये संस्थाएँ अपनी भूमिका सार्थक ढंग से नहीं निभा पा रही हैं।

1. स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की छूट का न होना:
संविधान के संशोधनों ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं। स्थानीय शासन के कामकाज के पिछले दशकों के अनुभव बताते हैं कि भारत में इसे अपना कामकाज स्वतंत्रतापूर्वक करने की छूट बहुत कम है। अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे हैं। फलतः वे कारगर ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं।

2. धन की कमी:
स्थानीय निकायों के पास धन बहुत कम होता है। वे प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं। इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का बहुत क्षरण हुआ है।

प्रश्न 13.
1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं?
उत्तर:
1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं।

  1. नगरपालिकाओं में समाज के कमजोर वर्गों तथा महिलाओं को आरक्षण के माध्यम से सार्थक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है।
  2. विधान की 12वीं अनुसूची नगरीय संस्थाओं को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करती है।
  3. नगरीय संस्थाओं के लिए वित्तीय साधन जुटाने के लिए एक वित्तीय आयोग की स्थापना का प्रावधान है।
  4. नगर निगम या नगरपालिकाओं का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन इससे पूर्व इनके भंग हो जाने की दशा में नयी संस्थाओं के गठन के लिए 6 महीनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होगा। चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपी गई है।

प्रश्न 14.
नगरीय स्वशासी संस्थाएँ किन-किन समस्याओं से जूझ रही हैं?
उत्तर:
नगरीय स्वशासी संस्थाओं की समस्यायें: नगरीय स्वशासी संस्थाएँ नगर निगम तथा नगरपालिकाएँ। आज निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रही हैं।

  1. सरकार का हस्तक्षेप: स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के कामकाज में राज्य सरकार और जिला अधिकारियों का अनावश्यक हस्तक्षेप उनके कार्यों में रुकावट डाल रहा है। यदि एक नगर निगम में उस दल का बहुमत है जो दल राज्य सरकार में विरोधी दल है तो राज्य मंत्रिमंडल उसे ठीक से कार्य नहीं करने देता।
  2. राजनेताओं द्वारा दबाव: नगरीय स्वशासी संस्थाओं पर शहरी राजनेताओं द्वारा तरह-तरह के दबाव डाले जाते हैं।
  3. जनसंख्या वृद्धि: शहरी जनसंख्या में जनसंख्या बेहताशा ढंग से बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि के कारण आवास सुविधाओं का बड़ा अभाव है तथा तेजी से गंदी बस्तियों का विकास हो रहा है। इससे पर्यावरण सम्बन्धी समस्यायें बढ़ी हैं तथा अपराध भी बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 15.
स्थानीय शासन के महत्त्व का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व ( उपयोगिता ) स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है। इसका विषय है। आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी। लोकतंत्र और कारगर तथा जनहितकारी प्रशासन की दृष्टि से यह अत्यन्त उपयोगी है। इसके महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

1. स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान तीव्र गति से तथा कम खर्च में:
चूंकि स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होता है इसलिए उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है। उदाहरण के लिए, गीता राठौड़ ने ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हुए जमनिया तालाब पंचायत में बड़ा बदलाव कर दिखाया। बेंगैसवल गांव की जमीन पर उस गांव का ही हक रहा।

2. सक्रिय भागीदारी तथा उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही: लोकतंत्र की सफलता के लिए सार्थक भागीदारी और जवाबदेही की सुनिश्चितता आवश्यक होती है। जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं वे काम स्थानीय लोगों और इनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। इस तरह, स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाता है।

प्रश्न 16.
संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज कोई 10 विषयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज विषय ग्यारहवीं अनसूची में दर्ज प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं।

  1. कृषि
  2. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
  3. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
  4. ग्रामीण आवास
  5. पेयजल
  6. सड़क, पुलिया
  7. ग्रामीण विद्युतीकरण
  8. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
  9. शिक्षा इसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा शामिल है।
  10. तकनीकी प्रशिक्षण तथा व्यावसायिक शिक्षा।

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प्रश्न 17.
बोलिविया के स्थानीय स्वशासन पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
बोलिविया में स्थानीय स्वशासन लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के सफल उदाहरण के रूप में अक्सर लातिनी अमेरिका के देश बोलिविया का नाम लिय जाता है। यथा बोलिविया में स्थानीय स्वशासन का संगठन: सन् 1994 में जनभागीदारी कानून के तहत यहाँ सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर स्थानीय स्तर नगरपालिका प्रशासन को सत्ता सौंपी गई है। बोलिविया में 314 नगरपालिकाएँ हैं। नगरपालिकाओं का नेतृत्व जनता द्वारा निर्वाचित महापौर करते हैं। इन्हें Presidente Municipal भी कहा जाता है महापौर के साथ एक नगरपालिका परिषद होती है। स्थानीय स्तर पर देशव्यापी चुनाव हर पांच वर्ष पर होते हैं। बोलिविया स्थानीय स्वशासन की शक्तियाँ।

  1. यहाँ स्थानीय सरकार को स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधा बहाल करने तथा आधारभूत ढांचे के रख-रखाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  2. यहाँ देशव्यापी राजस्व उगाही का 20 प्रतिशत नगरपालिकाओं को प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया जाता है।
  3. नगरपालिका को मोटर वाहन, शहरी संपदा तथा बड़ी कृषि सम्पदा पर कर लगाने का अधिकार है इन नगरपालिकाओं के बजट का अधिकांश हिस्सा वित्तीय हस्तांतरण प्रणाली के जरिये प्राप्त होता है। इस प्रकार बोलिविया में एक ऐसी प्रणाली अपनायी गई है कि इन नगरपालिकाओं को धन स्वतः हस्तांतरित हो जाये।

प्रश्न 18.
स्पष्ट कीजिये कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
उत्तर:
73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित किये जाने का प्रावधान किया गया है। सभी राज्यों की सरकारों ने अपने स्थानीय स्वशासन सम्बन्धी कानूनों में इस प्रावधान का पालन किया। महिलाओं के लिए आरक्षण के इस प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। यथा

  1. निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं। 2000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80000 से ज्यादा है।
  2. नगर निगमों में 30 महिलाएँ मेयर (महापौर) हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में है। संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं ने ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है। साथ ही इससे स्त्रियों में राजनीति के प्रति समझ बढ़ी है। स्थानीय निकायों में महिलाओं की मौजूदगी से चर्चा ज्यादा संवेदनशील हुई है।

प्रश्न 19.
स्पष्ट कीजिये कि स्थानीय शासन की संस्थाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व से निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।
उत्तर:
स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में परिवर्तन:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को संविधान संशोधन ने अनिवार्य बना दिया था । इसके साथ ही, अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। भारत की जनसंख्या में 16.2 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा 8.2 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है। स्थानीय शासन के शहरी तथा ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों के सदस्यों की संख्या लगभग 6.6 लाख है। इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।

ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं, अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के जरिये ज्यादा हो रही है। कभी-कभी इससे तनाव पैदा होता है। लेकिन तनाव और संघर्ष हमेशा बुरे नहीं होते। जब भी लोकतंत्र को ज्यादा सार्थक बनाने और ताकत से वंचित लोगों को ताकत देने की कोशिश होगी तो समाज में संघर्ष और तनाव होना ही है।

प्रश्न 20.
” सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के आरक्षण ने ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के स्वरूप को परिवर्तन कर दिया है। ” कैसे ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ग्रामीण स्तर पर आरक्षण ने नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। 73वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत पंचायती राज संस्थाओं में प्रत्येक स्तर पर आरक्षण न केवल सीटों के लिए किया गया है, बल्कि उनके अध्यक्षों व सरपंचों के पदों पर भी आरक्षण किया गया है तथा इन श्रेणी की स्त्रियों के लिए भी 1/3 सीटों का आरक्षण किया गया है। इस प्रावधान ने ग्राम स्तर के नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। यथा।

  1. पहले जहाँ उच्च वर्ग या प्रभुत्व वर्गों के पुरुष सदस्यों का नेतृत्व पर एकाधिकार था, जब दलित और पिछड़े वर्गों के पुरुष तथा स्त्री सदस्य भी इस नेतृत्व में भागीदार बने हैं।
  2. अब दलित तथा पिछड़े वर्गों के पुरुष तथा स्त्री भी इन संस्थाओं में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और गांव के विकास तथा प्रशासन के प्रस्तावों पर समान रूप से विचार-विमर्श में भागीदारी कर रहे हैं।
  3. अब दलित तथा पिछड़े वर्गों के स्त्री-पुरुष प्रतिनिधि भी निर्णय – निर्माण प्रक्रिया में समान रूप से भागीदारी कर रहे हैं। पहले जो तबका सामाजिक रूप से प्रभावशाली होने के कारण गांव पर अपना नियंत्रण रखता था, लेकिन अब दलित आदिवासी तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों का नेतृत्व भी उभरा है। इससे ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन आया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थानीय स्वशासन क्या है? इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन का अर्थ- स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने वाली संस्थाओं को स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं। गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं और जब इन संस्थाओं का शासन वहाँ की जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, तो ऐसे स्थानीय शासन को ही स्थानीय स्वशासन कहा जाता है। स्थानीय स्वशासन का महत्त्व स्थानीय स्वशासन की उपयोगिता या उसके महत्व का विवेचन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

1. स्थानीय आवश्यकताओं का सर्वोत्तम प्रशासन:
स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है। इसका विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी। इसकी मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसले लेने के अनिवार्य घटक हैं। लोगों की स्थानीय आवश्यकताएँ क्षेत्र और स्थान की भिन्नता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती हैं। वे पूरे देश में एकसमान नहीं हो सकतीं। इन आवश्यकताओं और समस्याओं को उस क्षेत्र के निवासी अच्छी तरह जानते हैं। चूंकि जब उस क्षेत्र के निवासियों के निर्वाचित प्रतिनिधि स्थानीय शासन का कार्य संभालेंगे तथा नीतियों का निर्माण करेंगे तो स्वाभाविक रूप से वे उस क्षेत्र की आवश्यकताओं और समस्याओं का अधिक अच्छी तरह से समाधान कर सकेंगे।

2. स्थानीय शासन और जनता के बीच घनिष्ठ सम्पर्क:
स्थानीय स्वशासन में जनता और शासन के मध्य घनिष्ठ सम्पर्क रहता है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। स्थानीय शासन क्या कर रहां है और क्या करने में नाकाम रहा है। आम जनता का इस सवाल से अधिक सरोकार रहता है क्योंकि इस बात का सीधा असर उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी पर पड़ता है। स्थानीय स्वशासन में लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं, जिन तक वे आसानी से पहुंचकर अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दबाव बना सकते हैं। इस प्रकार स्थानीय स्वशासन में जनता और शासन के बीच घनिष्ठ सम्पर्क रहता है।

3. प्रशासन में दक्षता:
स्थानीय स्वशासन प्रशासन में दक्षता लाता है। स्थानीय सरकारें प्रान्तीय और संघीय सरकारों के प्रशासनिक बोझ को कम करती हैं। स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय निकायों द्वारा की जाती है। प्रशासनिक बोझ के कम होने से प्रत्येक स्तर की सरकार की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। उदाहरण के रूप में गीता राठौड़ ने ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हुए जमनिया तलाब पंचायत में बड़ा बदलाव कर दिखाया।

4. कम खर्च:
स्थानीय स्वशासन, प्रदेश की सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों के माध्यम से किये जाने वाले स्थानीय शासन की तुलना में कम खर्चीला होता है। स्थानीय निकायों के सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं, वे स्थानीय मामलों के प्रबन्ध पर अपना समय और शक्ति या तो ऑनरेरी आधार या छोटे भत्तों पर प्रदान करते हैं। दूसरे, सरकार जो धन व्यय करती है, उस पर कम ध्यान देती है; जबकि स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य खर्च किये जाने वाले धन को सावधानी से खर्च करते हैं। अतः निर्वाचित स्थानीय निकायों के द्वारा स्थानीय समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।

5. सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही:
लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता की सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही पूर्ण प्रशासन की आवश्यकता होती है। जीवन्त और मजबूत स्थानीय स्वशासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। गीता राठौड़ की कहानी प्रतिबद्धता के साथ लोकतंत्र में भागीदारी करने की घटनाओं में से एक है। स्थानीय स्वशासन के स्तर पर आम नागरिक को उसके जीवन से जुड़े मसलों, जरूरतों और उसके विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।

6. लोकतंत्र की सफलता में सहायक:
लोकतंत्र केवल वहाँ सफल हो सकता है जहाँ लोगों में स्वतंत्रता की भावना हो। इसके लिए शक्ति के विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता होती है, जब तक निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने में विकेन्द्रीकरण नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता। इसलिए जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं, वे काम स्थानीय लोगों और उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। इस तरह स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के समान है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 2.
भारत में स्थानीय शासन के विकास की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत में स्थानीय शासन का विकास: भारत में स्थानीय शासन के विकास का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1. प्राचीन काल में स्थानीय शासन:
प्राचीन भारत में गाँवों और शहरों में स्थानीय सरकारें थीं। इतिहासकारों तथा विदेशी यात्रियों ने शहरों में स्थानीय निकायों का उल्लेख किया है। गाँवों में प्राचीन भारत में ‘सभा’ के रूप में स्थानीय निकाय थे । समय बीतने के साथ गांव की इन सभाओं ने ‘पंचायत’ का रूप ले लिया। समय बदलने के साथ- साथ पंचायतों की भूमिका और काम भी बदलते रहे।

2. ब्रिटिश काल में स्थानीय शासन:
भारत में ब्रिटिश काल में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के इन स्थानीय निकायों ने अपना महत्व खो दिया। इसलिए आधुनिक काल के स्थानीय निकायों और प्राचीन तथा मध्यकालीन भारत के स्थानीय निकायों के मध्य कोई तारतम्य नहीं है।
जब अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन स्थापित किया, उन्होंने भारत में गाँवों और शहरों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इसकी अपेक्षा उन्होंने स्थानीय आत्मनिर्भरता तथा स्वायत्तता को खत्म करने का प्रयास किया और उनके ऊपर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया।

लार्ड रिपन का शासनकाल आधुनिक भारत के स्थानीय स्वशासन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण है। उसने इन निकायों को बनाने की दिशा में पहलकदमी की। सबसे पहले सन् 1888 में बम्बई में एक म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की स्थापना की गई। इसके बाद कलकत्ता और मद्रास में भी इनकी स्थापना हुई। प्रारम्भ में स्थानीय स्वशासन की इन संस्थाओं में सरकारी बहुमत था तथा सरकार का उनके ऊपर पूर्ण नियंत्रण था। उस समय इन्हें मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था।

1909 में रॉयल कमीशन ने स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के विकास और उनकी स्थापना की सिफारिश की। इसने यह भी सिफारिश की कि इन निकायों में निर्वाचित गैर-सरकारी सदस्यों का बहुमत हो तथा इन निकायों को कर लगाने के अधिकार होने चाहिए। गवर्नमेंट आफ इण्डिया एक्ट 1919 के बनने पर अनेक प्रान्तों में ग्राम पंचायत बने। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट बनने के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही।

3. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय नेताओं की मांग:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सरकार से यह मांग की कि सभी स्थानीय बोर्डों को ज्यादा कारगर बनाने के लिए वह जरूरी कदम उठाये। महात्मा गाँधी ने जोर देकर कहा कि आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। उनका मानना था कि ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाना सत्ता के विकेन्द्रीकरण का कारगर साधन है। विकास की हर पहलकदमी में स्थानीय लोगों की भागीदारी होनी चाहिए ताकि यह सफल हो। इस तरह, पंचायत को सहभागी लोकतंत्र को स्थापित करने के साधन के रूप में देखा गया।

4. संविधान में स्थानीय स्वशासन के प्रावधान:
जब स्वतंत्र भारत का संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया। संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में भी इसकी चर्चा है। इसमें कहा गया है कि देश की हर सरकार अपनी नीति में इसे एक निर्देशक तत्व मानकर चले। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानीय शासन के मसले को संविधान में यथोचित महत्व नहीं मिला।

5. स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का विकास: स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का विकासक्रम इस प्रकार
(i) सामुदायिक विकास कार्यक्रम:
स्थानीय शासन के निकाय बनाने के सम्बन्ध में स्वतंत्रता के बाद 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम बना। इस कार्यक्रम के पीछे सोच यह थी कि स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो।

(ii) स्वतन्त्र भारत में संविधान संशोधन 73 व 74 के पूर्व तक स्थानीय निकायों के गठन की स्थिति:
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों के लिए त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई तथा कुछ प्रदेशों गुजरात, महाराष्ट्र ने 1960 में निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकायों की प्रणाली अपनायी । लेकिन ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। कई प्रदेशों ने निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकाय स्थापित करने की जरूरत भी नहीं समझी। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहाँ स्थानीय शासन का जिम्मा सरकारी अधिकारी को सौंप दिया गया। कई प्रदेशों में अधिकांश स्थानीय निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से हुए। अनेक प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव समय-समय पर स्थगित होते रहे।

(iii) थुंगन समिति की सिफारिश (1989):
सन 1989 में पी. के. थुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की और कहा कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराने, उनके समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये।

(iv) संविधान का 73वां और 74वां संशोधन:
स्थानीय शासन को मजबूत करने तथा पूरे देश में इसके कामकाज तथा बनावट की एकता लाने के उद्देश्य से सन् 1992 में संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन संसद ने पारित किये। संविधान का 73वां संशोधन गांव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका सम्बन्ध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है। संविधान का 74वां संशोधन शहरी स्थानीय शासन ( नगरपालिका) से जुड़ा है। ये दोनों संविधान संशोधन 1993 में लागू हुए। संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन के बाद देश में स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला है।

(v) 73वें और 74वें संशोधनों का क्रियान्वयन:
अब सभी प्रदेशों ने 73वें संशोधन के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं। अब सभी प्रदेशों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के चुनाव प्रति 5 वर्ष के लिए प्रत्यक्ष रूप से किये जाते हैं। सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रि-स्तरीय है। ग्रामसभा को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सीटों पर तथा अध्यक्ष पदों पर आरक्षण दिया गया है।

राज्य सूची के 29 विषयों को 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिया गया है, लेकिन इन सभी विषयों को अभी प्रदेशों ने स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरित नहीं किया है। एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयुक्त की स्थापना की गई है जो इन संस्थाओं के चुनाव करायेगा। इसके साथ ही स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को राजस्व के बंटवारे की समीक्षा हेतु एक राज्य वित्त आयोग की स्थापना भी की गई है। लेकिन अभी भी स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र सरकार की वित्तीय मदद के लिए निर्भर रहते हैं क्योंकि उनके पास आय के साधन कम हैं और खर्च की मदें अधिक हैं।

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प्रश्न 3.
पंचायती राज व्यवस्था के संबंध में संविधान के 73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताएँ: 73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  • त्रिस्तरीय बनावट; 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि राज्य सरकार अपने क्षेत्र में पंचायती राज संस्थाएँ निम्न प्रकार से स्थापित करेगी
    1. ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर एक गांव या एक से अधिक गांवों में एक ग्राम पंचायत।
    2. मध्यवर्ती स्तर पर जिसे खंड या तालुका भी कहा जाता है। एक मंडल पंचायत या तालुका पंचायत या पंचायत समिति।
    3. जिला स्तर पर एक जिला पंचायत (जिला परिषद्)।
  • ग्रामसभा की अनिवार्यता: संविधान के 73वें संशोधन में इस बात का भी प्रावधान है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनायी जानी चाहिए। पंचायती हलके में मतदाता के रूप में दर्ज हर व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम सभा की भूमिका और कार्य का फैसला प्रदेश के कानूनों से होता है।
  • चुनाव: इस संशोधन अधिनियम में निर्वाचन सम्बन्धी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं।
    1. पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के सदस्य सीधे जनता द्वारा निर्वाचित होंगे।
    2. हर पंचायती निकाय की अवधि पांच साल की होगी। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके छः माह के अन्दर नये चुनाव कराये जायेंगे। इन प्रावधानों से निर्वाचित स्थानीय निकायों के अस्तित्व को सुनिश्चित किया गया है।
  • आरक्षण के प्रावधान: इस संशोधन अधिनियम में किए गए सदस्यों तथा अध्यक्ष पदों के आरक्षण के निम्न प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं।
    1. सभी पंचायती संस्थाओं में एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
    2. तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसचित जनजाति के लिए सीटों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अनुसूचित जाति / जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में की गई है।
    3. यदि प्रदेश की सरकार जरूरी समझे, तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग को भी सीट में आरक्षण दे सकती है।
    4. तीनों ही स्तर पर अध्यक्ष पद तक आरक्षण दिया गया है।
    5. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था है।

(5) विषयों का स्थानान्तरण:
ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं। इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। इन कार्यों का वास्तविक हस्तान्तरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

(6) आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को सम्मिलित नहीं किया गया है- भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73वें संशोधन के प्रावधानों से दूर रखा गया है। ये क्षेत्र हैं।

  1. नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम के राज्य।
  2. मणिपुर राज्य में ऐसे पर्वतीय क्षेत्र जिनके लिए उस समय लागू किसी विधि के अधीन जिला परिषदें विद्यमान
  3. पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के ऐसे पर्वतीय क्षेत्र, जहाँ विधिवत गोरखा पर्वतीय परिषद विद्यमान ये प्रावधान इन क्षेत्रों पर लागू नहीं होते थे। सन् 1996 में अलग से एक अधिनियम बना और पंचायती व्यवस्था के प्रावधानों के दायरे में इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया।

(7) राज्य चुनाव आयुक्त:
इस संशोधन अधिनियम में अब प्रदेशों के लिए एक राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गयी है, जो एक स्वतंत्र अधिकारी होगा। इसकी जिम्मेदारी राज्य में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।

(8) राज्य वित्त आयोग:
इस संशोधन अधिनियम में अब प्रदेशों की सरकार के लिए हर पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना अनिवार्य कर दिया गया है जो मौजूदा स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा तथा प्रदेश के राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा।

प्रश्न 4.
शहरी स्थानीय स्वशासन से संबंधित संविधान के 74वें संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
74वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं: संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका से है। शहरी इलाका क्या है? भारत की जनगणना में शहरी इलाके की परिभाषा करते हुए जरूरी माना गया है कि ऐसे इलाके में

(क) कम से कम 5000 जनसंख्या हो,

(ख) इस इलाके के कामकाजी पुरुषों में कम से कम 75 प्रतिशत खेती-बाड़ी के काम से अलग माने जाने वाले पेशे में हों, और

(ग) जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।
सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाके में रहती है। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण, विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग के प्रावधान वही हैं, जो 73वें संविधान संशोधन में दिये गये हैं। इन मामलों में यह 73वें संविधान संशोधन का दोहराव मात्र है।
  2. 74वां संविधान संशोधन नगरपालिकाओं पर लागू होता है। ( इसके विस्तृत विवेचन के लिए कृपया पूर्व प्रश्न का उत्तर देखें ।)

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प्रश्न 5.
73वें और 74वें संविधान संशोधन के क्रियान्वयन पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
73वें और 74वें संविधान संशोधन का क्रियान्दयन: वर्तमान में सभी प्रदेशों ने 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं। इन प्रावधानों को अस्तित्व में आए अब 15 वर्ष से ज्यादा हो रहे हैं । इस अवधि ( 1994 – 2010) में अधिकांश प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव कम से कम तीन बार हो चुके हैं। इनके क्रियान्वयन से स्थानीय शासन के क्षेत्र में निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आई हैं।

1. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में वृद्धि:
73वें व 74वें संविधान संशोधनों के क्रियान्वयन के पश्चात् ग्रामीण भारत में जिला पंचायतों की संख्या लगभग 600, मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6000 तथा ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40,000 है। शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1400 नगरपालिकाएँ तथा 2,000 नगर पंचायतें मौजूद हैं। हर पांच वर्ष पर इन निकायों के लिए 32 लाख सदस्यों का निर्वाचन होता है। इनमें से 13 लाख महिलाएँ हैं। यदि प्रदेशों की विधानसभा तथा संसद को एक साथ रखकर देखें तो भी इनमें निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या 5000 कम बैठती है। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानीय निकायों के निश्चित चुनाव होने के कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।

2. देश भर की स्थानीय संस्थाओं की बनावट में समानता:
73वें और 74वें संशोधन ने देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एक-सा किया है। इससे शासन में जनता की भागीदारी के लिए मंच और माहौल तैयार होगा।

3. स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी का सुनिश्चित होना:
पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। आरक्षण का प्रावधान अध्यक्ष और सरपंच जैसे पद के लिए भी है। इस कारण निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं।

2000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80 हजार से ज्यादा है। नगर निगमों में 30 महिलाएँ महापौर हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में है। इसके निम्न प्रभाव परिलक्षित हुए

  • संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं में ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है।
  • इन संस्थाओं में महिलाओं की मौजूदगी के कारण बहुत सी स्त्रियों की राजनीतिक समझ पैनी हुई है।
  • स्थानीय निकायों के विचार-विमर्श में महिलाओं की मौजूदगी एक नया परिप्रेक्ष्य जोड़ती है और चर्चा ज्यादा संवेदनशील होती है।

4. स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में परिवर्तन:
73वें तथा 74वें संविधान संशोधन ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को अनिवार्य बना दिया है। इसके साथ ही अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। स्थानीय शासन के शहरी और ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों की संख्या लगभग 6.6 लाख है। इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी परिवर्तन आए हैं।

ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के माध्यम से ज्यादा हो रही है। कभी-कभी इससे पुराने नेतृत्व और नये नेतृत्व के बीच तनाव भी पैदा होता है तथा सत्ता के लिए संघर्ष तेज हो जाता है। जब भी लोकतंत्र को ज्यादा सार्थक बनाने और ताकत से वंचित लोगों को ताकत देने की कोशिश होती है, तब समाज में संघर्ष और तनाव बढ़ता ही है।

5. व्यवहार में विषयों का हस्तांतरण नहीं:
संविधान के संशोधन ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं। लेकिन स्थानीय कामकाज के पिछले दशक के अनुभव से व्यवहार में निम्नलिखित तथ्य उजागर हुए है।

  1. भारत में अभी भी स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को अपना कामकाज स्वतंत्रतापूर्वक करने की छूट बहुत कम
  2. अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे थे। इस तरह, इतने सारे जन-प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने का पूरा का पूरा काम बस प्रतीकात्मक बनकर रह गया है। स्थानीय स्तर की जनता के पास लोक-कल्याण के कार्यक्रमों अथवा संसाधनों के आबंटन के बारे में विकल्प चुनने की ज्यादा शक्ति नहीं होती।

6. वित्तीय निर्भरता:
स्थानीय निकायों के पास अपना कह सकने लायक धन बहुत कम होता है। स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं। इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का क्षरण हुआ है; क्योंकि ये निकाय अनुदान देने वाले पर निर्भर होते हैं।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Textbook Exercise Questions and Answers.

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क्रियाकलाप 1 : जापानियों और एजटेकों का यूरोपीय लोगों से जो सम्पर्क / टकराव हुआ, उसके अन्तरों की पहचान करिए।
उत्तर:
जापानियों का यूरोपीय लोगों से सम्पर्क / टकराव – 1854 में अमरीकी कामोडोर मैथ्यू पेरी की माँग पर जापान को अमरीका के साथ राजनयिक और व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने पड़े। जापान ने अमरीका की सैन्य शक्ति से भयभीत होकर अपने तीन बन्दरगाह अमेरिका के लिए खोल दिये। इसी प्रकार जापान को इंग्लैण्ड, रूस, हालैण्ड आदि देशों से भी सन्धियाँ करनी पड़ीं। जापान के बहुत से विद्वान् और नेता यूरोप के नए विचारों से सीखना चाहते थे, बजाय उसकी उपेक्षा करने के। कुछ ने देश को बाहरी दुनिया के लिए धीरे-धीरे और सीमित तरह से खोलने के लिए तर्क दिया।

एजटेकों का यूरोपीय लोगों से सम्पर्क – स्पेन के सेनापति कोर्टेस ने मैक्सिको पर आक्रमण किया। स्पेन के सैनिकों ने ट्लैक्सक्लानों पर आक्रमण कर दिया। अन्त में उन्होंने समर्पण कर दिया। स्पेनी सैनिकों ने क्रूरतापूर्वक उन सबका सफाया कर दिया। एजटेक शासक ने कोर्टेस पर उपहारों की वर्षा कर दी; परन्तु कोर्टेस ने धोखे से शासक को गिरफ्तार कर लिया। जब एजटेकों ने विद्रोह किया, तो स्पेन की सेना ने एजटेकों के विद्रोह को कुचल दिया।

पृष्ठ 242

क्रियाकलाप 2 : निशितानी ने ‘आधुनिक’ को जिस तरह परिभाषित किया, क्या आप उससे सहमत हैं?
उत्तर:
जापान के दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने ‘आधुनिक’ को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया : पुनर्जागरण, प्रोटेस्टेन्ट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास। उन्होंने कहा कि जापान की ‘नैतिक ऊर्जा’ ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया। जापान का यह कर्त्तव्य बनता है कि एक नई विश्व पद्धति, एक विशाल पूर्वी एशिया का निर्माण किया जाए। इसके लिए एक नई सोच की आवश्यकता है, जो विज्ञान और धर्म को जोड़ सके। हम इस परिभाषा से सहमत हैं।

पृष्ठ 247

क्रियाकलाप 3 : भेदभाव का एहसास लोगों को कैसे एकताबद्ध करता है?
उत्तर:
शंघाई में एक काला अमरीकी तुरेहीवादक, बक क्लेटन अपने जैज ऑरकेस्ट्रा के साथ विशेषाधिकार प्राप्त प्रवासी का जीवन व्यतीत कर रहा था। वह काला था तथा एक बार कुछ गोरे अमरीकी लोगों ने उसे तथा उसके साथियों को मार-पीट करके उन्हें उनके होटल से बाहर निकाल दिया। वह अमरीकी होने के बावजूद स्वयं नस्ली भेदभाव का शिकार होने के कारण चीनियों के कष्टदायक जीवन के साथ उसकी बहुत सहानुभूति थी।

गोरे अमरीकियों के साथ हुई अपनी लड़ाई, जिसमें वे जीत गए, के बारे में वह लिखते हैं, “चीनी तमाशबीनों ने हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे हमने उनका अभीष्ट काम सम्पन्न किया हो और घर पहुँचने तक रास्ते भर वे किसी विजेता फुटबाल टीम की तरह हमारा अभिनन्दन करते रहे।”

चीनी लोग निर्धनता का जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें कठोर शारीरिक श्रम करना पड़ता था। चीनियों की दयनीय दशा का चित्रण करते हुए वह लिखते हैं कि – ” मैं कभी-कभी देखता हूँ कि बीस या तीस कुली मिलकर किसी बड़े भारी ढेले को खींच रहे हैं, जो कि अमेरिका में किसी ट्रक द्वारा या घोड़े द्वारा खींचा जाता है। ये लोग इन्सानी घोड़ों से अलग कुछ नहीं लगते थे और पूरा काम करने के बाद उन्हें इतना ही मिलता था, कि किसी तरह पेट भर चावल और सोने का एक स्थान प्राप्त कर लें।

मेरी समझ में नहीं आता, वे कैसे अपना काम चलाते थे।” चीनी संजीव पास बुक्स लोगों ने उस अमरीकी व्यक्ति के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार किया। इससे सिद्ध होता है कि भेदभाव का एहसास लोगों को एकताबद्ध करता है। अमरीकी और चीनी लोग भेदभाव के शिकार थे। इसी भावना ने उन्हें एकताबद्ध कर दिया था।

Jharkhand Board Class 11 History आधुनिकीकरण के रास्ते Text Book Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेजी पुनर्स्थापना से पहले की वे अहम घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को सम्भव किया?
उत्तर:
मेजी पुर्स्थापना से पहले की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ – 1867-68 में जापान में मेजी पुनर्स्थापना हुई। इससे पूर्व निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को सम्भव बनाया।
(1) किसानों से हथियार ले लिए गए। अब केवल सामुराई लोग ही तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति एवं व्यवस्था बनी रही।

(2) दैम्पो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए और उन्हें काफी स्वायत्तता प्रदान की गई।

(3) मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए जमीन का सर्वेक्षण किया गया तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया।

(4) 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया। ऐसे 6 शहरों का उदय हुआ जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। इससे वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ। व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहन दिया।

(5) क्योतो के निशिजन में रेशम उद्योग के विकास के लिए प्रयास किए गए, जिससे रेशम का आयात कम किया जा सके। कुछ ही वर्षों में निशिजन का रेशम सम्पूर्ण विश्व में उत्कृष्ट रेशम माना जाने लगा।

प्रश्न 2.
जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोजमर्रा की जिन्दगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जापानियों की रोजमर्रा की जिन्दगी में परिवर्तन – जापान के विकास के साथ-साथ जापानियों की रोजमर्रा की जिन्दगी में अनेक परिवर्तन आए।
यथा –
(i) पृथक् परिवार प्रणाली – आधुनिकीकरण से पहले जापान में पैतृक परिवार व्यवस्था प्रचलित थी। इसमें कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियन्त्रण में रहती थीं; परन्तु समृद्ध होने के साथ- साथ, लोगों में परिवार के बारे में नये विचारों का उदय हुआ। अब ‘नया घर’ का प्रचलन हुआ। पृथक् परिवार प्रथा के अन्तर्गत पति – पत्नी साथ रहकर कमाते थे और घर बसाते थे।

(ii) नया घर व्यवस्था – पृथक् परिवार प्रथा के कारण नये प्रकार के घरेलू उत्पादों, नये प्रकार के पारिवारिक मनोरंजनों आदि की माँग बढ़ने लगी । अब लोग नए प्रकार के घरों की माँग करने लगे जिनमें सभी प्रकार की सुख- सुविधाएँ हों। 1920 के दशक में निर्माण कम्पनियों ने प्रारम्भ में 200 येन देने के पश्चात् निरन्तर 10 वर्ष के लिए 12 यान प्रतिमाह की किस्तों पर लोगों को सस्ते मकान उपलब्ध कराए।

प्रश्न 3.
पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग राजवंश ने कैसे किया?
उत्तर:
चीन के छींग राजवंश के शासकों को पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना निम्न प्रकार से किया

  1. क्विंग शासकों ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में अनेक सुधार किए ताकि वह आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था के मापदण्डों पर ठीक उतर सके।
  2. छींग शासकों ने नवीन सेना तथा नवीन शिक्षा व्यवस्था के लिए नीतियाँ बनाईं।
  3. शिक्षा को सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। लोगों को नए विषयों की जानकारी हो सके इसलिए विद्यार्थियों को जापान, इंग्लैंड, फ्रांस आदि में भेजा गया ताकि वे नए विचार सीखकर वापस आयें। इसके अतिरिक्त पुरानी चीनी परीक्षा प्रणाली समाप्त कर दी गई।
  4. संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं का भी गठन किया गया। उन्होंने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने का भरसक प्रयास किया।
  5. कन्फ्यूशियसवाद को प्रोत्साहन दिया गया।

प्रश्न 4.
सन – यात – सेन के तीन सिद्धान्त क्या थे?
उत्तर:
सन – यात – सेन के तीन सिद्धान्त- डॉ. सनयात सेन के कार्यक्रम तीनं सिद्धान्तों पर आधारित थे, जिन्हें ‘सनमिन चुई’ कहा जाता था। उसके सिद्धान्त निम्नलिखित थे –
1. राष्ट्रवाद–इसका अर्थ था मांचू वंश को सत्ता से हटाना, क्योंकि मांचू वंश विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था। इसके अतिरिक्त अन्य साम्राज्यवादी शक्तियों को चीन से हटाना भी राष्ट्रवाद का उद्देश्य था। डॉ. सनयात सेन ने चीनियों को विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

2. गणतन्त्रवाद – डॉ. सेन चीन में गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना चाहते थे। डॉ. सनयात सेन जनता को सर्वोपरि स्थान देते थे तथा चाहते थे कि जनता शासन के कार्यों में अधिकाधिक भाग ले।

3. समाजवाद-डॉ. सनयात सेन समाजवाद की स्थापना पर बल देते थे। समाजवाद का उद्देश्य पूँजी का नियमन करना तथा भूस्वामित्व में समानता लाना था।

प्रश्न 5.
कोरिया ने 1997 में विदेशी मुद्रा संकट का सामना किस प्रकार किया?
उत्तर:
व्यापार घाटे में वृद्धि, वित्तीय संस्थानों के खराब प्रबंधन, संगठनों द्वारा बेईमान व्यापारिक संचालन के कारण कोरिया को 1997 में विदेशी मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा। कोरिया ने इस संकट का सामना निम्न प्रकार से किया –

  • कोरिया ने इस संकट को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा आपात वित्तीय सहायता के जरिए संभालने की कोशिश की गई।
  • इस आर्थिक संकट में पूरे देश ने एक साथ प्रयास किए, नागरिकों ने गोल्ड कलेक्शन मूवमेंट के माध्यम से विदेशी ऋण भुगतान के लिए सक्रिय रूप से योगदान दिया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
क्या पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध और उसके पर्यावरण का विनाश तीव्र औद्योगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ?
उत्तर:
जापान की तीव्र औद्योगिक नीति के परिणाम जापान के आधुनिकीकरण के अन्तर्गत जापान का तीव्र गति से औद्योगीकरण हुआ। जापान में लोहे-कपड़े, गोला- बारूद, बन्दूक, तोपें आदि बनाने के अनेक कारखाने स्थापित किये गए। इस औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप जापान एक अत्यन्त शक्तिशाली एवं समृद्ध देश बन गया। इससे जापान को साम्राज्यवादी नीति अपनाने की प्रेरणा मिली जिसके फलस्वरूप उसे पड़ोसियों के साथ युद्ध लड़ने पड़े।

1. पड़ोसी देशों के साथ युद्ध –
(1) चीन के साथ युद्ध – 1894-95 में कोरिया के मामले पर जापान और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसमें जापान की विजय हुई। अन्त में 1895 में चीन को जापान से एक सन्धि करनी पड़ी, जिसे ‘शिमोनिस्की की सन्धि’ कहते हैं।

(2) रूस-जापान युद्ध-जापान और रूस दोनों ही कोरिया तथा मन्चूरिया में अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। अतः जापान ने 8 फरवरी, 1904 को पोर्ट आथर पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार रूस तथा जापान के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में रूस की बुरी तरह से पराजय हुई। अन्त में 5 सितम्बर, 1905 को रूस तथा जापान के बीच एक सन्धि हो गई, जिसे ‘पोर्ट्समाउथ की सन्धि’ कहते हैं।

(3) चीन से युद्ध – 1931 में जापान ने मन्चूरिया पर आक्रमण कर दिया और 4 जनवरी, 1932 तक जापान ने सम्पूर्ण मन्चूरिया पर अधिकार कर लिया। जापान ने मन्चूरिया में ‘मन्चुकाओ’ नामक एक पृथक् राज्य की स्थापना कर दी। जापान ने चीन के जेहौल प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया। 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर पीकिंग, नानकिंग, शंघाई, कैंटन आदि नगरों पर अधिकार कर लिया।

2. पर्यावरण का विनाश –
(i) जापान की औद्योगीकरण की नीति तथा लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ।

(ii) ओशियो खान से वातारासे नदी में प्रदूषण फैल रहा था जिसके कारण 100 वर्ग मील की कृषि भूमि नष्ट हो रही थी और एक हजार परिवार प्रभावित हो रहे थे। इस पर 1897 में जापानी संसद के पहले निम्न सदन के सदस्य तनाको शोजो ने प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन छेड़ा। इस आन्दोलन ने सरकार को प्रभावी कार्यवाही करने के लिए विवश किया। 1960 के दशक में नागरिक समाज आन्दोलन ने बढ़ते हुए औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की पूर्ण रूप से उपेक्षा करने का विरोध किया।

(iii) अरगजी का विष, जिसके चलते बड़ी ही कष्टदायक बीमारी होती थी, एक प्रारम्भिक सूचक था। इसके बाद 1960 के दशक में मिनामाता के पारे के जहर के फैलने और 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में हवा में प्रदूषण से भी समस्याएँ उत्पन्न हुईं।

प्रश्न 7.
क्या आप मानते हैं कि माओत्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफलता प्राप्त की?
उत्तर:
माओत्से तुंग तथा साम्यवादी दल की उपलब्धियाँ-आधुनिक चीन के निर्माण में माओत्से तुंग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। माओत्से तुंग तथा साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने तथा उसकी वर्तमान सफलता की आधारशिला रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। च्यांग काई शेक द्वारा साम्यवादियों का दमन – 1925 में डॉ. सनयात सेन की मृत्यु हो गई और उसके बाद च्यांग काई शेक कुओमिंगतांग दल का नेता बना।

उसने राष्ट्रीय एकता का प्रयास किया, स्थानीय नेताओं को अपने नियन्त्रण में किया। यद्यपि उसने देश को एकीकृत करने का प्रयास किया, परन्तु अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण वह असफल हो गया। उसने डॉ. सनयात सेन के दो सिद्धान्तों-पूँजी के नियमन तथा भूमि अधिकारों में समानता लानाको कार्यान्वित नहीं किया।

उसने साम्यवादियों का कठोरतापूर्वक दमन किया। इन सभी कारणों से वह देश में अलोकप्रिय हो गया। चीनी साम्यवादी दल का उदय और माओत्से तुंग का कुशल नेतृत्व – 1921 में चीन में साम्यवादी दल की स्थापना हुई। माओत्से तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी दल की शक्ति तथा प्रभाव में निरन्तर वृद्धि होती गई। माओत्से तुंग ने क्रान्ति के कार्यक्रम को किसानों पर आधारित किया। उनके कुशल नेतृत्व में चीन की साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति बनी, जिसने अन्त में कुओमिनतांग पर विजय प्राप्त की।

माओत्से तुंग के सुधार कार्य – 1928-34 के बीच माओत्से तुंग ने जियांग्सी के पहाड़ों में कुओमिनतांग के आक्रमणों से सुरक्षित शिविर लगाए। उसने एक शक्तिशाली किसान परिषद् का गठन किया। उसने भूमि सम्बन्धी सुधार किये तथा जमींदारों की जमीनों पर अधिकार करके उनकी भूमि को किसानों में बाँट दिया। उसने स्वतन्त्रं सरकार तथा सेना पर बल दिया। उसने ग्रामीण महिला संघों को प्रोत्साहन दिया और महिलाओं की समस्याओं का हल करने का प्रयास किया। उसने विवाह के नये कानून बनाए तथा तलाक को सरल बनाया।

साम्यवादियों का महा प्रस्थान – 1934 में च्यांग काई शेक ने साम्यवादियों के दमन के लिए एक विशाल सेना भे। च्यांग काई शेक की सेना के आक्रमण के दबाव के कारण 90 हजार साम्यवादियों को जियांग्सी प्रान्त को छोड़कर शेन्सी की ओर प्रस्थान करना पड़ा। साम्यवादियों की यह जियांग्सी से शेन्सी तक 6 हजार मील लम्बी यात्रा इतिहास में ‘महाप्रस्थान’ (Long March) के नाम से प्रसिद्ध है। इस यात्रा के दौरान लगभग 60 हजार साम्यवादी मौत के मुँह में चले गए तथा केवल 30 हजार साम्यवादी ही शेन्सी पहुँच सके।
येनान को नया अड्डा बनाना – साम्यवादियों ने येनान को अपना नया अड्डा बनाया।

यहाँ उन्होंने युद्ध सामन्तवाद को समाप्त करने, भूमि सुधार लागू करने तथा विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इससे उन्हें सुदृढ़ सामाजिक आधार प्राप्त हुआ। जापान के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा-चीन में जापान की आक्रामक गतिविधियाँ बढ़ती जा रही थीं। 1937 में साम्यवादियों तथा च्यांग काई शेक के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार दोनों ने संयुक्त रूप से जापानी आक्रमण का मुकाबला करने का निश्चय किया।

चीन – जापान युद्ध तथा संयुक्त मोर्चों की भूमिका – 1937 में जापान तथा चीन के बीच युद्ध छिड़ गया। यद्यपि संयुक्त मोर्चे की सेनाओं ने जापानी सेनाओं का वीरतापूर्वक मुकाबला किया, परन्तु उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा। साम्यवादियों ने जिस साहस और वीरता से जापानियों का मुकाबला किया, उससे चीनी लोग बड़े प्रभावित हुए। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया।

चीन में गृह-युद्ध और साम्यवादी दल की सफलता – अगस्त, 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने आत्म-समर्पण कर दिया और विश्व युद्ध का अन्त हो गया। शीघ्र ही चीन में साम्यवादियों तथा च्यांग काई शेक के सैनिकों के बीच गृह-युद्ध छिड़ गया, जिसमें च्यांग काई शेक को पराजय का मुँह देखना पड़ा। साम्यवादियों ने पीकिंग, शंघाई, नानकिंग, कैंटन आदि पर अधिकार कर लिया। च्यांग काई शेक फारमोसा भाग गया। 21 नवम्बर, 1949 को साम्यवादी दल के अध्यक्ष माओत्से तुंग ने चीन में चीनी जनवादी गणतन्त्र की स्थापना की घोषणा की।

प्रश्न 8.
क्या साउथ कोरिया की आर्थिक वृद्धि ने इसके लोकतंत्रीकरण में योगदान दिया?
उत्तर:
साउथ कोरिया की आर्थिक वृद्धि और लोकतंत्रीकरण – सन् 1980 के अन्त में चुन यूसूइन संविधान के तहत एक अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से राष्ट्रपति बने । चुन प्रशासन ने अपनी सरकार को स्थिर बनाने के लिए, लोकतांत्रिक प्रभाव का मजबूती से दमन किया। लेकिन चुन प्रशासन ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक दृष्टिकोण से, कोरिया के आर्थिक विका को 1980 के 1.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 1983 तक 13.2 प्रतिशत कर दिया और मुद्रा स्फीति को भी कम कर दिया।

(i) आर्थिक विकास ने शहरीकरण, शिक्षा के स्तर में सुधार और मीडिया की प्रगति को जन्म दिया। इसके फलस्वरूप नागरिकों में अपने राजनीतिक अधिकारों की आत्म जागरूकता बढ़ी, जिससे राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष चुनावों के लिए संवैधानिक संशोधन की माँग की गई।

(ii) मई 1987 में एक विश्वविद्यालय के छात्र की अत्याचारों से मृत्यु हुई। इसके बाद नागरिकों ने लोकतंत्रीकरण के लिए बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। चुन सरकार के खिलाफ लोकतंत्रीय आंदोलन में छात्रों के साथ-साथ मध्यवर्ग के नागरिकों ने भी भाग लिया। इन प्रयासों के चलते चुन प्रशासन को संविधान में संशोधन के लिए मजबूर होना पड़ा और नागरिकों को सीधे चुनाव का अधिकार मिला। इस प्रकार आर्थिक विकास ने कोरियायी लोकतंत्रीकरण में योगदान दिया।

आधुनिकीकरण के रास्ते JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. परिचय –
(i) चीन विशालकाय महाद्वीपीय देश है जिसमें कई तरह के जलवायु वाले क्षेत्र हैं; मुख्य क्षेत्र में हुआंग हे, छांग जियांग और पर्ल – तीन प्रमुख नदियाँ हैं। हान प्रमुख जातीय समूह है और प्रमुख भाषा चीनी है, लेकिन कई राष्ट्रीयताएँ हैं। चीनी खानों में क्षेत्रीय विविधता की झलक मिलती है। यहाँ गेहूँ और चावल मुख्य आधार हैं।

(ii) जापान एक द्वीप शृंखला है जिसमें चार बड़े द्वीप हैं। यह बहुत सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में है। अधिकतर जनसंख्या जापानी है। चावल यहाँ की मूल फसल है, मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है।

(अ) जापान
1. जापान की राजनीतिक व्यवस्था – जापान पर क्योतो में रहने वाले सम्राट का शासन हुआ करता था, परन्तु 12वीं शताब्दी आते-आते वास्तविक सत्ता, शोगुनों के हाथ में आ गई जो राजा के नाम पर शासन करते थे। देश 250 भागों में विभाजित था जिनका शासन दैम्पो चलाते थे। शोगुन दैम्यो पर नियंत्रण रखते थे तथा राजधानी ‘एदो’ में रहते थे। समुराई शासन करने वाले कुलीन थे जो शोगुन और दैम्पो की सेवा में थे। 16वीं सदी में किसानों से हथियार ले लिए गए, दैम्पो को राजधानी क्षेत्रों में रहने के निर्देश दे दिए तथा राजस्व हेतु भूमि का वर्गीकरण किया गया। 17वीं सदी में यहाँ कई शहरी उभरे, वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और जापान एक अमीर देश के रूप में उभरा।

2. मेजी पुनर्स्थापना – 1867-68 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त किया गया। अब वास्तविक सत्ता सम्राट के हाथ में आ गई। 1870 के दशक में नई विद्यालय व्यवस्था का निर्माण हुआ । लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो गया। आधुनिक सेना का गठन किया गया। कानून व्यवस्था बनायी गई। राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों और क्षेत्रीय सीमाओं को बदलकर नयाप्रशासनिक ढाँचा तैयार किया। सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के निर्देशन में रखा गया। ये दो गुट सरकारी नियंत्रण से बाहर रहे। इस वजह से चीन और रूस से जंग में जापान विजयी रहा और उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम किया।

3. अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण – रेल लाइनों का निर्माण किया गया तथा अनेक कारखानों की स्थापना की गई। आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं की शुरुआत हुई।

4. औद्योगिक मजदूर-औद्योगिक मजदूरों की संख्या 1870 में 7 लाख से बढ़कर 1913 में 40 लाख पहुँच गईं। कारखानों में भी मजदूरों की संख्या बढ़ गई।

5. आक्रामक राष्ट्रवाद – सम्राटं सैन्य बल का कमाण्डर था और 1890 से यह माना जाने लगा कि थलसेना और नौसेना का नियन्त्रण स्वतन्त्र है। अब उपनिवेश स्थापना पर बल दिया जाने लगा।

6. पश्चिमीकरण और परम्परा – कुछ बुद्धिजीवी जापान का ‘पश्चिमीकरण’ चाहते थे। कुछ विद्वान् पश्चिमी उदारवाद की ओर आकर्षित थे। कुछ लोग उदारवादी शिक्षा के समर्थक थे।

7. रोजमर्रा की जिंदगी – नया घर का मतलब मूल परिवार से था जहाँ पति-पत्नी साथ रहकर कमाते थे और घर बसाते थे।

8. आधुनिकता पर विजय – 1930-40 की अवधि में जापान ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए लड़ाइयाँ लड़ीं। 1943 में एक संगोष्ठी हुई ‘आधुनिकता पर विजय’। इसमें चर्चा हुई कि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय प्राप्त की जाए।

9. पराजय के बाद – एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में वापसी – द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को पराजय का मुँह देखना पड़ा। अपनी भयंकर पराजय के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का जिस तेजी से पुनर्निर्माण हुआ, उसे एक युद्धोत्तर ‘चमत्कार’ कहा गया है।

(ब) चीन
1. आधुनिक चीन की शुरुआत – अफीम युद्धों में पराजय के बाद चीन में एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था नई सेना और शिक्षा व्यवस्था की स्थापना की गई।

2. गणतन्त्र की स्थापना – 1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और सनयात सेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई। डॉ. सेन के तीन सिद्धान्त थे –
(1) राष्ट्रवाद
(2) गणतन्त्रवाद
(3) समाजवाद।
सन यात सेन के विचार ‘कुओमीनतांग’ के राजनीतिक दर्शन के आधार बने। सनयात सेन के बाद च्यांग काई शेक कुओमीन तांग के नेता बनकर उभरे।

3. च्यांग काई – शेक-व्यांग काई शेक ने सैन्य अभियानों के द्वारा स्थानीय नेताओं को अपने नियन्त्रण में किया और साम्यवादियों का सफाया कर दिया। लेकिन कुओमीनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टि के चलते असफल हो गया।

4. चीनी साम्यवादी दल का उदय – 1921 में चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना हुई। माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति बनी।

5. नए जनवाद की स्थापना ( 1949-65 ) – पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार 1949 में स्थापित हुई। यह ‘नए लोकतान्त्रिक’ के सिद्धान्त पर आधारित थी। 1958 में लम्बी छलांग वाले आन्दोलन की नीति के द्वारा चीन का तेजी से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया।

6. दर्शनों का टकराव – 1965 में माओ द्वारा महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति शुरू की गई। इससे खलबली का दौर शुरू हो गया।

7. 1978 से शुरू होने वाले सुधार – 1978 में साम्यवादी पार्टी ने अपने चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की। यह था— विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा का विकास। 1989 में बीजिंग के तियानमेन चौक पर छात्रों के प्रदर्शन को क्रूरतापूर्वक दबाया गया।

8. ताइवान – गृह-युद्ध में चीनी साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के बाद चियांग काई – शेक 1949 में ताइवान भाग गया। वहाँ उन्होंने चीनी गणतन्त्र की घोषणा की। 1975 में च्यांग काई शेक की मृत्यु हो गई।

(स) कोरिया की कहानी –

(1) आधुनिकीकरण की शुरुआत – 1392 से 1910 तक कोरिया पर जोसोन वंश का शासन था लेकिन 1910 में जापान ने अपनी कोलोनी के रूप में कोरिया पर कब्जा कर लिया । जापानी औपनिवेशिक शासन 35 साल के बाद अगस्त, 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ समाप्त हुआ। लेकिन मुक्ति के बाद कोरियाई महाद्वीप उत्तरी और दक्षिणी दो भागों में विभाजित हो गया जिसने 1948 में स्थायी रूप ले लिया।

(2) युद्धोत्तर राष्ट्र – जून 1950 में कोरियाई युद्ध शुरू हुआ जो जुलाई 1953 में युद्ध विराम समझौते से समाप्त हआ। युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया को अमरीका की आर्थिक सहायता लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1948 में सिन्गमैन री लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से राष्ट्रपति चुने गए लेकिन ‘री’ को 1960 में इस्तीफा देना पड़ा और इसके बाद मई, 1961 में सैन्य तख्तापलट हुआ।

(3) तीव्र औद्योगीकरण और मजबूत नेतृत्व – अक्टूबर, 1963 के चुनाव में सैन्य नेता ‘पार्क चुंग- ही ‘ राष्ट्रपति बने। पार्क – प्रशासन के दौरान 1960 के दशक में कोरिया का अभूतपूर्व आर्थिक विकास हुआ। मजबूत नेताओं, प्रशिक्षित अफसरों, आक्रामक उद्योगपतियों और सक्षम श्रम बल के संयोजन से कोरिया आज सारे विश्व को आर्थिक वृद्धि से चौंका रहा है। 1979 में दूसरे तेल संकट और राजनीतिक अस्थिरता के चलते पार्क का प्रशासन अक्टूबर, 1979 में ‘पार्क चुंग ही’ की हत्या के साथ खत्म हो गया।

(4) लोकतंत्रीकरण की माँग और निरंतर आर्थिक विकास – 1980 में सांविधान के तहत एक अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुन युसुइन राष्ट्रपति बने। उसने लोकतंत्री प्रभाव का मजबूती से दमन किया। लेकिन 1987 में उसे संविधान से संशोधन हेतु मजबूर होना पड़ा और नागरिकों को सीधे चुनाव का अधिकार मिला और कोरियाई लोकतंत्र का नया अध्ययन शुरू हुआ।

(5) कोरियाई लोकतंत्र और आई एम एफ संकट – 1971 के बाद पहला प्रत्यक्ष चुनाव दिसम्बर, 1987 में हुआ जिसमें एक सैनिक नेता ‘रोह ताए – वू’ का चुनाव हुआ। लेकिन कोरिया में लोकतंत्र जारी रहा। दिसम्बर, 1992 में एक नागरिक नेता ‘किम’ को राष्ट्रपति चुना गया। 1996 में किम प्रशासन ने ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ‘ में शामिल होने का निर्णय लिया। लेकिन खराब प्रबंधन के कारण 1997 में उसे विदेशी मुद्रा संगठन का सामना करना पड़ा। कोरिया में तब से निरन्तर लोकतंत्र जारी है। मई, 2017 में वहाँ मून जे इन ने राष्ट्रपति पद संभाला है।

आधुनिकता के दो मार्ग – जापान का आधुनिकीकरण ऐसे वातावरण में हुआ जहाँ पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रभुत्व था। चीन का आधुनिकीकरण की यात्रा बहुत अलग थी। चीन के साम्यवादी दल ने परम्परा को समाप्त करने की लड़ाई लड़ी।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग रहते थे –
(अ) क्यूबा
(ब) अन्ध महासागर के क्षेत्र
(स) मैक्सिको
(द) कैरीबियन द्वीप-समूह।
उत्तर:
(द) कैरीबियन द्वीप-समूह।

2. एजटेक लोग रहते थे –
(अ) ब्राजील
(ब) काँगो
(स) मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी
(द) न्यूयार्क।
उत्तर:
(स) मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी

3. मक्का की खेती किन लोगों की सभ्यता का मुख्य आधार था-
(अ) तुपिनांबा
(ब) अरावाकी
(स) एजटेक
(द) माया।
उत्तर:
(द) माया।

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4. दक्षिणी अमरीकी देशों की संस्कृतियों में से सबसे बड़ी संस्कृति. थी –
(अ) स्पेनिश लोगों की
(ब) इंका लोगों की
(स) एजटेक लोगों की
(द) अरावाकी लोगों की।
उत्तर:
(ब) इंका लोगों की

5. पन्द्रहर्वीं शताब्दी में खोज-यात्रियों में कौनसे यूरोपीय देश सबसे आगे थे?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) हालैण्ड
(स) स्पेन और पुर्तगाल
(द) बेल्जियम और फ्रांस।
उत्तर:
(स) स्पेन और पुर्तगाल

6. कोलम्बस द्वारा खोजे गए उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का नामकरण किसके नाम पर किया गया-
(अ) कोलम्बस
(ब) वास्कोडिगामा
(स) अमेरिगो वेस्पुस्सी
(द) हेनरी।
उत्तर:
(स) अमेरिगो वेस्पुस्सी

7. मैक्सिको पर अधिकार करने वाला स्पेन का निवासी था-
(अ) डियाज
(ब) हेनरी
(स) मोटेजुमा
(द) कोर्टेस।
उत्तर:
(द) कोर्टेस।

8. इंका साम्राज्य पर अधिकार करने वाला स्पेन का निवासी था-
(अ) कैब्राल
(ब) पिजारो
(स) क्वेटेमोक
(द) कोर्टेस।
उत्तर:
(ब) पिजारो

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. ……………. लोग लड़ने की बजाय बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।
2. …………….. लोग दक्षिणी अमरीका के पूर्वी समद्र तट तथा ब्राजील-पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गांवों में रहते थे।
3. 12 वीं सदी में …………… लोग उत्तर से आकर मेक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे।
4. ……………. की खेती मैक्सिको की माया संस्कृति का मुख्य आधार थी।
5. दक्षिणी अमरीकी देशज संस्कृतियों में सबसे बड़ी पेरू में ……….. लोगों की संस्कृति थी।
उत्तर:
1. अरावाक
2. तुपिनांबा
3. एजटेक
4. मक्का
5. इंका

निम्न में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये –
1. 1380 में कुतुबनुमा का आविष्कार हो चुका था।
2. 15 वीं शताब्दी में इंग्लैंड और फ्रांस के लोग समुद्री खोज यात्राओं में सबसे आगे रहे।
3. 14 वीं शताब्दी के मध्य से 15 वीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप की अर्थव्यवस्था उन्नति के दौर से गुजर रही थी।
4. 12 अक्टूबर, 1492 को कोलम्बस ने बहाना द्वीपसमूह के गुआनाहानि द्वीप की खोज की।
5. सन् 1521 में कोर्टेस ने एजटेक लोगों को हराया।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. असत्य
4. सत्य
5. सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. टॉलेमी (अ) बहामा द्वीप समूह के गुहानाहानि द्वीप की खोज की
2. कोलम्बस (ब) मैक्सिको पर विजय प्रास की
3. कोर्टेस (स) इंका राज्य पर विजय प्राप्त की
4. पिजारो (द) ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक लिखी
5. क्रैब्राल (य) ब्राजील की खोज की

उत्तर:

1. टॉलेमी (द) ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक लिखी
2. कोलम्बस (अ) बहामा द्वीप समूह के गुहानाहानि द्वीप की खोज की
3. कोर्टेस (ब) मैक्सिको पर विजय प्रात की
4. पिजारो (स) इंका राज्य पर विजय प्राप्त की
5. क्रैब्नाल (य) ब्राजील की खोज की

 

प्रश्न 1.
समुद्री खोजों का कार्य सर्वप्रथम किन यूरोपीय देशों ने किया ?
उत्तर:स्पेन और पुर्तगाल ने।

प्रश्न 2.
मैक्सिको की माया संस्कृति का मुख्य आधार क्या थी?
उत्तर:
मक्के की खेती।

प्रश्न 3.
कुतुबनुमा का आविष्कार कब हुआ ?
उत्तर:
1380 ई. में

प्रश्न 4.
कुतुबनुमा की समुद्री यात्राओं में क्या उपयोगिता थी ?
उत्तर:
यात्रियों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी मिलना।

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प्रश्न 5.
एजटेक लोग कहाँ के निवासी थे ?
उत्तर:
मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी के।

प्रश्न 6.
एजटेक लोगों ने भूमि उद्धार क्यों किया?
उत्तर:
भूमि की कमी के कारण।

प्रश्न 7.
माया संस्कृति कहाँ प्रचलित थी ?
उत्तर:
मैक्सिको में।

प्रश्न 8.
टालेमी ने किस पुस्तक की रचना की थी ?
उत्तर:
‘ज्योग्राफी’।

प्रश्न 9.
‘ज्योग्राफी’ पुस्तक कब प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
1477 ई. में।

प्रश्न 10.
कोलम्बस अपने अभियान पर कब रवाना हुआ?
उत्तर:
अगस्त, 1942 को।

प्रश्न 11.
कोलम्बस ने किस द्वीप की खोज की?
उत्तर:
बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि द्वीप की।

प्रश्न 12.
कोलम्बस द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका का क्या नाम रखा गया ?
उत्तर:
नई दुनिया

प्रश्न 13.
मैक्सिको पर किसने विजय प्राप्त की और कब ?
उत्तर:
1519 में स्पेन के निवासी कोर्टेस ने।

प्रश्न 14.
इंका राज्य पर किसने विजय प्राप्त की और कब की ?
उत्तर:
1532 में पिजारो ने इंका राज्य पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 15.
ब्राजील की खोज किसने की ?
उत्तर:
स्पेन – निवासी कैब्राल ने।

प्रश्न 16.
यूरोपवासियों को अमेरिका में पैदा होने वाली किन नई फसलों के बारे में जानकारी हुई?
उत्तर:
आलू, तम्बाकू, गन्ने की चीनी, रबड़, लाल मिर्च।

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प्रश्न 17.
एजटेक की राजधानी कौन सी थी ?
उत्तर:
टेनोक्टिलान।

प्रश्न 18.
माया संस्कृति में खेतों में बेशुमार पैदावार क्यों होती थी?
उत्तर:
खेती करने के उन्नत और कुशलतापूर्ण तरीकों के कारण।

प्रश्न 19.
दक्षिणी अमरीकी देशज संस्कृतियों में सबसे बड़ी संस्कृति किनकी थी ?
उत्तर:
इंका लोगों की।

प्रश्न 20.
आज दक्षिण अमेरिका को क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
‘लैटिन अमेरिका’।

प्रश्न 21.
अफ्रीका के किन देशों से दास पकड़ कर यूरोप और अमेरिका ले जाये जाते थे? दो का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) अंगोला
(2) सिमरालोन।

प्रश्न 22.
कोलम्बस ने गुआनाहानि का क्या नाम रखा ?
उत्तर:
सैन सैल्वाडोर।

प्रश्न 23.
पुर्तगाल का राजकुमार हेनरी किस नाम से प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
‘नाविक’ के नाम से।

प्रश्न 24.
कोलम्बस ने किस देश की खोज की थी ?
उत्तर:
उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका।

प्रश्न 25.
कोलम्बस ने अमेरिका का नाम किसके नाम पर रखा था ?
उत्तर:
‘अमेरिगो वेस्पुस्सी’ नामक भूगोलवेत्ता के नाम पर।

प्रश्न 26.
पन्द्रहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोपीय लोगों ने कौनसी वस्तुएँ प्राप्त करने के लिए समुद्री यात्राएँ कीं ?
उत्तर:
पन्द्रहवीं शताब्दी तथा सत्रहवीं शताब्दी के बीच यूरोपीय लोगों ने चाँदी और मसाले प्राप्त करने के लिए समुद्री यात्राएँ कीं।

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प्रश्न 27.
दक्षिण अमेरिका की खोज और बाद में बाहरी लोगों का वहाँ बस जाना वहां के मूल निवासियों के लिए उनकी संस्कृतियों के लिए विनाशकारी क्यों सिद्ध हुआ?
उत्तर:
यूरोपवासी अफ्रीका से गुलाम पकड़ कर या खरीद कर उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका की खानों तथा बागानों में काम करने के लिए बेचने लगे।

प्रश्न 28.
अमेरिका के लोगों पर यूरोपवासियों की विजय का क्या दुष्परिणाम हुआ ?
उत्तर:
अमरीकी लोगों की पांडुलिपियों तथा स्मारकों को निर्ममतापूर्वक नष्ट कर दिया गया।

प्रश्न 29.
दक्षिणी अमेरिका तथा मध्य अमेरिका की भौगोलिक स्थिति बताइए।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका घने जंगलों तथा पहाड़ों से ढका हुआ था। विश्व की सबसे बड़ी नदी अमेजन वहाँ के घने वन्य प्रदेशों से होकर बहती थी।

प्रश्न 30.
मध्य अमेरिका की भौगोलिक स्थिति बताइये।
उत्तर:
मध्य अमेरिका में मेक्सिको में समुद्रतट के आस-पास के क्षेत्र तथा मैदानी प्रदेश घने बसे हुए थे, अन्यत्र सघन वनों वाले प्रदेशों में गाँव दूर-दूर स्थित थे जबकि

प्रश्न 31.
अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कहाँ रहते थे?
उत्तर:
अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे सैकड़ों द्वीप-समूहों तथा बृहत्तर ऐंटिली में रहते थे।

प्रश्न 32.
अरावाकी लोगों की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अरावाकी लोग शान्तिप्रिय थे। वे लड़ने की बजाय वार्तालाप से झगड़ा निपटाना अधिक पसन्द करते थे।
(2) वे कुशल नौका-निर्माता थे।

प्रश्न 33.
‘जीववादी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जीववादियों का विश्वास है कि आज के वैज्ञानिक जिन वस्तुओं को निर्जीव मानते हैं, उनमें भी जीव या आत्मा हो सकती है।

प्रश्न 34.
अरावाकी संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) अरावाकी संस्कृति के लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित थे। (2) उनमें बहु-विवाह प्रथा प्रचलित थी।

प्रश्न 35.
‘तुपिनांबा’ लोग कहाँ रहते थे?
उत्तर:
तुपिनांबा लोग दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी समुद्र तट पर और ब्राजील नामक पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गाँवों में रहते थे।

प्रश्न 36.
तुपिनांबा लोग खेती क्यों नहीं कर पाते थे ?
उत्तर:
तुपिनांबा लोग खेती के लिए घने जंगलों का सफाया नहीं कर सके क्योंकि पेड़ काटने का कुल्हाड़ा बनाने के लिए उनके पास लोहा नहीं था।

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प्रश्न 37.
तुपिनांबा लोगों को कृषि पर निर्भर क्यों नहीं होना पड़ा ?
उत्तर:
तुपिनांबा लोगों को बहुतायत से फल, सब्जियाँ, मछलियाँ आदि मिल जाती थीं जिससे उन्हें खेती पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।

प्रश्न 38.
मध्य अमेरिका की संस्कृति की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मध्य अमेरिका के राज्यों में मक्के की उपज अत्यधिक होती थी
(2) इन शहरों की वास्तुकला उच्चकोटि की थी।

प्रश्न 39.
एजटेक लोग कौन थे ?
उत्तर:
बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मेक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। उन्होंने अनेक जनजातियों को हराकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

प्रश्न 40.
एजटेक समाज किन वर्गों में विभाजित था ?
उत्तर:
(1) अभिजात वर्ग (उच्चकुलोत्पन्न, पुरोहित)
(2) व्यापारी वर्ग थे।
(3) शिल्पी, चिकित्सक तथा विशिष्ट अध्यापक।

प्रश्न 41.
भूमि उद्धार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भूमि उद्धार का अभिप्राय बंजर भूमि को आवासीय अथवा कृषि योग्य भूमि में परिवर्तन से है।

प्रश्न 42.
एजटेक लोगों द्वारा बनाए गए चिनाम्पा क्या थे?
उत्तर:
एजटेक लोगों ने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाए जिन्हें ‘चिनाम्पा’ कहते थे। ये द्वीप अत्यन्त उपजाऊ थे।

प्रश्न 43.
एजटेक लोगों की वास्तुकला के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
एजटेक लोगों ने 1325 में राजधानी टेनोक्टिलान का निर्माण किया जिसके राजमहल और पिरामिड झील के बीच में खड़े हुए दर्शनीय लगते थे।

प्रश्न 44.
एजटेक लोगों के धर्म की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) एजटेक लोग सूर्य देवता तथा अन्न देवी की पूजा करते थे।
(2) उनके मन्दिर भी युद्ध के देवताओं और सूर्य भगवान को समर्पित थे।

प्रश्न 45.
माया संस्कृति की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) मक्के की खेती माया संस्कृति का मुख्य आधार थी।
(2) खेती करने के तरीके उन्नत और कुशलतापूर्ण थे।

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प्रश्न 46.
माया लोगों की लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
माया लोगों की लिपि चित्रात्मक लिपि कहलाती थी। परन्तु इस लिपि को अभी तक पूरी तरह नहीं पढ़ा जा सका है।

प्रश्न 47.
माया संस्कृति की दो उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
(1) माया संस्कृति में वास्तुकला, खगोल विज्ञान और गणित जैसे विषयों की पर्याप्त उन्नति हुई।
(2) माया लोगों के पास अपनी एक चित्रात्मक लिपि थी।

प्रश्न 48.
इंका लोगों की संस्कृति कहाँ विकसित हुई थी ? उनका साम्राज्य कहाँ तक फैला हुआ था ?
उत्तर:
(1) पेरू में इंका लोगों की संस्कृति विकसित हुई।
(2) उनका साम्राज्य इक्वेडोर से चिली तक 3000 मील में फैला हुआ था।

प्रश्न 49.
इंका संस्कृति की दो राजनीतिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) साम्राज्य अत्यन्त केन्द्रीकृत था। राजा में ही सम्पूर्ण शक्ति निहित थी।
(2) प्रत्येक व्यक्ति को प्रशासन की भाषा क्वेचुआ बोलनी पड़ती थी।

प्रश्न 50.
“इंका लोगों की वास्तुकला उच्चकोटि की थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से चिली तक अनेक सड़कें बनाईं। उनके किले शिलापट्टियों को बारीकी से तराश कर बनाए जाते थे।

प्रश्न 51.
इंका सभ्यता की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) इंका सभ्यता का आधार कृषि था।
(2) उनकी बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने की कला उच्च कोटि की थी।

प्रश्न 52.
इंका लोगों की हिसाब लगाने की प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
इंका लोगों के पास हिसाब लगाने की एक प्रणाली थी, जो ‘क्विपु’ कहलाती थी। इसके अनुसार डोरियों पर गाँठें लगाकर गणितीय इकाइयों का हिसाब रखा जाता था।

प्रश्न 53.
एजटेक तथा इंका संस्कृतियाँ यूरोपीय संस्कृति से किस प्रकार भिन्न थीं?
उत्तर:
एजटेक तथा इंका लोगों का समाज श्रेणीबद्ध था, परन्तु वहाँ यूरोप की भाँति कुछ लोगों के हाथों में संसाधनों का निजी स्वामित्व नहीं था।

प्रश्न 54.
15वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक की अवधि में खोज – यात्राएँ करना सरल हो गया था। इसके दो कारण बताइए |
उत्तर:
(1) 1380 में कुतुबनुमा (दिशासूचक यन्त्र) का आविष्कार हो चुका था।
(2) इस समय तक समुद्री यात्रा पर जाने वाले जहाजों में काफी सुधार हो चुका था।

प्रश्न 55.
सृष्टि – शास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सृष्टि – शास्त्र विश्व का मानचित्र तैयार करने का विज्ञान है।

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प्रश्न 56.
टालेमी की पुस्तक ‘ज्योग्राफी’ से समुद्री खोज करने वाले यात्री किस प्रकार लाभान्वित हुए?
उत्तर:
टालेमी ने विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति को अक्षांश और देशान्तर रेखाओं के रूप में व्यवस्थित किया था। जिनसे यूरोपवासियों को संसार के बारे में जानकारी मिली।

प्रश्न 57.
स्पेन और पुर्तगाल के शासक समुद्री खोज के लिए लालायित क्यों थे? दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) यूरोप की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई थी।
(2) स्पेन और पुर्तगाल के ईसाई बाहरी विश्व के लोगों को ईसाई बनाना चाहते थे।

प्रश्न 58.
अफ्रीकी देशों की खोज में पुर्तगाल के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने पश्चिमी अफ्रीका की तटीय यात्रा आयोजित की और सिउटा पर आक्रमण किया। अफ्रीका के बोजाडोर अन्तरीप में पुर्तगालियों ने अपना व्यापार- केन्द्र स्थापित कर लिया।

प्रश्न 59.
‘रीकांक्विस्टा’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कांक्विस्टा ईसाई राजाओं द्वारा आइबेरियन प्रायद्वीप (स्पेन और पुर्तगाल) पर प्राप्त की गई सैनिक विजय

प्रश्न 60.
‘कैपिटुलैसियोन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘कैपिटुलैसियोन’ एक प्रकार के इकरारनामे थे जिनके अन्तर्गत स्पेन का शासक नव – विजित प्रदेशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर लेता था।

प्रश्न 61.
कोलम्बस कौन था ?
उत्तर:
कोलम्बस इटली का निवासी था। 12 अक्टूबर 1492 ई. को उसने बहामा के गुआनाहानि द्वीप की खोज

प्रश्न 62.
कोलम्बस किन तीन जहाजों को लेकर अटलांटिक यात्रा के लिए रवाना हुआ था ?
उत्तर:
‘सान्ता मारिया’ नामक एक छोटी नाओ ( भारी जहाज) तथा दो कैरेवल (छोटे हल्के जहाज) ‘पिंटा’ तथा ‘नीना’ को लेकर।

प्रश्न 63.
कोलम्बस ने गुआनाहानि द्वीप का नया नाम क्या रखा ? उसने वहाँ अपने आपको क्या घोषित किया ?
उत्तर:
(1) कोलम्बस ने गुआनाहानि का नया नाम सैन सैल्वाडोर रखा।
(2) उसने अपने आपको वायसराय (स्पेन के राजा का प्रतिनिधि) घोषित किया।

प्रश्न 64.
कोलम्बस की विशेष उपलब्धि क्या थी?
उत्तर:
कोलम्बस की विशेष उपलब्धि यह रही कि उसने अनन्त समुद्र की सीमाएं खोज निकालीं।

प्रश्न 65.
कोलम्बस द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का नामकरण किसके नाम पर किया गया ?
उत्तर:
कोलम्बस द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का नामकरण ‘अमेरिगो वेस्पुस्सी’ के नाम पर किया गया।

प्रश्न 66.
अमेरिका में स्पेनी साम्राज्य का विस्तार किसकी बदौलत हुआ?
उत्तर:
अमेरिका में स्पेनी साम्राज्य का विस्तार बारूद और घोड़ों के प्रयोग पर आधारित स्पेन की सैन्य शक्ति की बदौलत हुआ।

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प्रश्न 67.
बार्टोलोम डिलास कैसास कौन था? उसने स्पेनी उपनिवेशक के बारे में क्या कहा है?
उत्तर:
बार्टोलोम डिलास कैसास एक कैथोलिक भिक्षु था। उसने कहा है कि स्पेनी उपनिवेशक प्रायः अपनी तलवार की धार अरावाकों के नंगे शरीर पर आजमाते थे।

प्रश्न 68.
स्पेन के आक्रमणकारी टेनोक्टिलैन नगर को देखकर क्यों आश्चर्यचकित हुए?
उत्तर:
क्योंकि यह नगर मैड्रिड से पाँच गुना बड़ा था और इसकी जनसंख्या स्पेन के सबसे बड़े शहर सेविली से दो गुनी ( अर्थात् एक लाख ) थी.

प्रश्न 69.
डोना मैरीना कौन थी?
उत्तर:
डोना मैरीना कोर्टेस की सहायिका थी। उसने कोर्टेस के लिए दुभाषिये के रूप में कार्य किया।

प्रश्न 70.
कौनसी घटना ‘आँसू भरी रात’ के नाम से जाना जाती है?
उत्तर:
एजटेकों तथा स्पेनियों के बीच हुई लड़ाई में लगभग 600 अत्याचारी स्पेनिश सैनिक और उतने ही ट्लैक्सक्लान के लोग मारे गए। इसे ‘आँसू भरी रात’ कहा जाता है।

प्रश्न 71.
मैक्सिको पर स्पेन की विजय के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
(1) कोर्टेस मैक्सिको में ‘न्यू स्पेन’ का कैप्टन – जनरल बन गया।
( 2 ) स्पेनियों ने अपना नियन्त्रण . ग्वातेमाला, निकारगुआ पर भी कर लिया।

प्रश्न 72.
पिजारो कौन था ?
उत्तर:
पिजारो एक निर्धन और अनपढ़ व्यक्ति था। उसने इंका राज्य पर विजय प्राप्त की थी।

प्रश्न 73.
पिजारो द्वारा इंका राज्य की विजय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1532 में स्पेन निवासी पिजारो ने इंका राज्य पर आक्रमण किया और लूट-पाट के बाद इंका राज्य पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 74.
कैब्राल कौन था?
उत्तर:
कैब्राल पुर्तगाल-निवासी था। उसने पश्चिमी अफ्रीका का एक चक्कर लगाया और ब्राजील पहुँच गया।

प्रश्न 75.
ब्राजील में कौनसा प्राकृतिक संसाधन था?
उत्तर:
ब्राजील में एक प्राकृतिक संसाधन था और वह था ‘इमारती लकड़ी’।

प्रश्न 76.
पुर्तगालियों और फ्रांसीसियों में किस कारण भयंकर लड़ाइयाँ हुईं और इनमें कौन विजयी हुए?
उत्तर:
इमारती लकड़ी के व्यापार के कारण पुर्तगालियों और फ्रांसीसियों के बीच भयंकर लड़ाइयाँ हुईं जिनमें पुर्तगालियों की जीत हुई।

प्रश्न 77.
यूरोपीय निवासी जेसुइट पादरियों को पसन्द क्यों नहीं करते थे ?
उत्तर:
जेसुइट पादरी मूल निवासियों के साथ दया का बर्ताव करने की सलाह देते थे और दास प्रथा की कटु आलोचना करते थे।

प्रश्न 78.
अमरीका की खोज के यूरोपवासियों के लिए निकले दो परिणाम बताइए।
उत्तर:
(1) सोने-चाँदी की बाढ़ ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और औद्योगीकरण का और अधिक विस्तार किया।
(2) यूरोपवासियों को अमेरिका में पैदा होने वाली नई-नई फसलों के बारे में जानकारी मिली।

प्रश्न 79.
उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली वह होती है जिसमें उत्पादन तथा वितरण के साधनों का स्वामित्व व्यक्तियों अथवा निगमों के पास होता है।

प्रश्न 80.
दक्षिण अमरीका को आज ‘लैटिन अमरीका’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
दक्षिण अमेरिका को आज ‘लैटिन अमरीका’ भी कहा जाता है क्योंकि स्पेनी और पुर्तगाली दोनों भाषाएँ लैटिन भाषा परिवार की हैं।

प्रश्न 80.
उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों के लिए यूरोपवासियों के अभियानों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
(1) उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों की जनसंख्या कम हो गई।
(2) उनकी जीवन- शैली नष्ट हो गई।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अमेरिका के लोगों पर यूरोपवासियों की विजय का क्या दुष्परिणाम हुआ ?
उत्तर:
अमेरिका के लोगों पर यूरोपवासियों की विजय का दुष्परिणाम – अमरीका के लोगों पर यूरोपवासियों की विजय का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि अमरीकी लोगों की पांडुलिपियों और स्मारकों को नष्ट कर दिया गया। इसके बाद उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दौर में जाकर ही मानव विज्ञानियों द्वारा इन संस्कृतियों का अध्ययन प्रारम्भ किया गया और उसके पश्चात् पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इन सभ्यताओं के भग्नावशेषों को ढूँढ़ निकाला। सन् 1911 में इंकाई नगर माचू-पिच्चू की पुनः खोज की गई। वर्तमान में, वायुयान से लिए गए चित्रों से ज्ञात होता है कि वहाँ और भी कई नगर थे जो अब जंगलों से ढके हुए हैं।

प्रश्न 2.
“हम अमरीका के मूल निवासियों तथा यूरोपवासियों के बीच हुई मुठभेड़ों के बारे में मूल निवासियों के पक्ष को तो अधिक नहीं जानते, परन्तु यूरोपीय पक्ष को विस्तारपूर्वक जानते हैं। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
र-हम अमरीका के मूल निवासियों तथा यूरोपवासियों के बीच हुई मुठभेड़ों के सम्बन्ध में मूल निवासियों के पक्ष को तो अधिक नहीं जानते, परन्तु यूरोपीय पक्ष को विस्तारपूर्वक जानते हैं। इसका कारण यह है कि जो यूरोपवासी अमरीका की यात्राओं पर गए, वे अपने साथ रोजनामचा और डायरियाँ रखते थे। इनमें वे अपनी यात्राओं का दैनिक विवरण लिखते थे। हमें यूरोप के सरकारी अधिकारियों एवं जेसुइट धर्म प्रचारकों के विवरणों से भी इन संघर्षों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। परन्तु यूरोपवासियों ने अपनी अमरीकी खोज के बारे में जो कुछ विवरण दिया है और वहाँ के देशों के जिन इतिहासों की रचना की है, उनमें यूरोपीय बस्तियों के बारे में ही अधिक लिखा गया है। उनमें स्थानीय लोगों के बारे में बहुत कम या न के बराबर ही लिखा गया है।

प्रश्न 3.
‘समुद्री खोजी यात्राओं’ के पीछे वास्तविक प्रेरक तत्त्व क्या थे?
उत्तर:
समुद्री खोजी यात्राओं के पीछे मुख्य प्रेरक तत्त्व निम्नलिखित थे –
(i) 14वीं तथा 15वीं सदी में यूरोप में आयी अर्थव्यवस्था की गिरावट से उबरने हेतु पूर्वी देशों से व्यापार कर व्यापार में वृद्धि करना तथा धन कमाने की इच्छा का प्रबल होना।
(ii) मसाले और सोना प्राप्त करके यश कमाना।
(iii) रोमांचकारी साहसिक यात्राएँ करके विदेशों में ईसाई धर्म का प्रचार करना।
(iv) नये स्थानों की खोज करके वहाँ अपना राजनैतिक नियंत्रण स्थापित कर, उन्हें अपने उपनिवेश बना कर अधिक लाभ कमाना।

प्रश्न 4.
अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कौन थे? उनकी संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे सैकड़ों द्वीप-समूहों और बृहत्तर ऐंटिलीज में रहते थे।
अरावाक संस्कृति की विशेषताएँ –
1. अरावाक लोग शान्तिप्रिय, उदार तथा सहयोगी प्रवृत्ति के थे। वे लड़ने की अपेक्षा वार्तालाप द्वारा झगड़े निपटाना चाहते थे।
2. वे कुशल नौका-निर्माता थे और डोंगियों में बैठकर खुले समुद्र में यात्रा करते थे।
3. वे खेती, शिकार और मछली पकड़ कर अपना जीवन-निर्वाह करते थे। वे मक्का, मीठे आलू, कन्द-मूल और कसावा की फसलें उगाते थे।
4. वे सब एक साथ मिलकर खाद्य उत्पादन करते थे। उनका यह प्रयत्न रहता था कि समुदाय के प्रत्येक सदस्य को भोजन प्राप्त हो।
5. वे अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे।
6. उनमें बहु-विवाह प्रथा प्रचलित थी। वे जीववादी थे।
7. अरावाक लोग सोने के आभूषण पहनते थे, परन्तु यूरोपवासियों की भाँति सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे उनमें बुनाई की कला बहुत विकसित थी। वे झूले का प्रयोग करते थे।
8. उनमें बनाई की कला बहत विकसित थी। वे झले का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 5.
अरावाक लोगों के प्रति यूरोपीय ( स्पेनी) लोगों के व्यवहार की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अरावाक लोगों को यदि कोई यूरोपवासी सोने के बदले काँच के मनके दे देता था, तो वे प्रसन्न हो जाते थे, क्योंकि उन्हें काँच का मनका अधिक सुन्दर दिखाई देता था। हैमक अर्थात् झूले का प्रयोग उनकी एक विशेषता थी जिसे यूरोपीय लोग बहुत पसन्द करते थे। अरावाकी लोगों का व्यवहार उदारतापूर्ण होता था और वे सोने की तलाश में स्पेनी लोगों की सहायता करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। परन्तु सोने के लालच में स्पेनी लोग अरावाकों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने लगे तो उनमें असन्तोष उत्पन्न हुआ। अतः अरावाकों ने स्पेनियों की अत्याचारपूर्ण नीति का विरोध किया, परन्तु उन्हें उसके विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़े। स्पेनी लोगों के सम्पर्क में आने के बाद लगभग 25 वर्ष के अन्दर ही अरावाकों और उनकी जीवन-शैली का विनाश हो गया।

प्रश्न 6.
‘तुपिनांबा’ लोग कहाँ रहते थे? उनकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तुपिनांबा – तुपिनांबा लोग दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी समुद्रतट पर तथा ब्राजील नामक वृक्षों के जंगलों में बसे गाँवों में रहते थे। वे खेती के लिए जंगलों का सफाया नहीं कर सके, क्योंकि वृक्ष काटने का कुल्हाड़ा बनाने के लिए उनके पास लोहा नहीं था। फिर भी उन्हें बड़ी मात्रा में फल, सब्जियाँ और मछलियाँ मिल जाती थीं जिससे उन्हें . खेती पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। वे प्रसन्नचित्त रहते थे और स्वतन्त्रतापूर्वक जीवन व्यतीत करते थे। उनसे मिलने वाले यूरोपीय लोग उनकी स्वतन्त्रता को देखकर उनसे ईर्ष्या करने लगते थे। इसका कारण यह था कि वहाँ न कोई राजा था, न सेना थी, न कोई चर्च था जो उनके जीवन को नियन्त्रित कर सके।

प्रश्न 7.
एजटेक लोग कौन थे? उनके सामाजिक संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एजटेक लोग-बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। उन्होंने अनेक जनजातियों को हराकर अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया और उन पराजित लोगों से कर वसूल करने लगे। एजटेक लोगों का सामाजिक संगठन- एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात वर्ग में उच्चकुलोत्पन्न, पुरोहित तथा वे लोग सम्मिलित थे जिन्हें बाद में यह प्रतिष्ठा दी गई थी। वे सरकार, सेना और पौरोहित्य कर्म में उच्च पदों पर नियुक्त थे। अभिजात वर्ग के लोग अपनों में से एक सर्वोच्च नेता का चुनाव करते थे जो आजीवन शासक बना रहता था। राजा पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि माना जाता था। समाज में योद्धा, पुरोहित तथा अभिजात वर्गों को सर्वाधिक सम्मान दिया जाता था। व्यापारियों को भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। उन्हें प्रायः सरकारी राजदूतों तथा गुप्तचरों के पदों पर नियुक्त किया जाता था। कुशल शिल्पियों, चिकित्सकों तथा विशिष्ट अध्यापकों को भी आदर की दृष्टि से देखा जाता था।

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प्रश्न 8.
एजटेक लोगों ने भूमि की कमी को पूरा करने के लिए किस प्रकार भूमि उद्धार किया?
उत्तर:
(1) एजटेक लोगों के पास भूमि की कमी थी, इसलिए उन्होंने भूमि उद्धार (जल में से जमीन लेकर इस कमी को पूरा करना) किया। सरकंडे की बहुत बड़ी चटाइयाँ बुनकर और उन्हें मिट्टी तथा पत्तों से ढककर उन्होंने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाये, जो ‘चिनाम्पा’ कहलाते थे। इन अत्यन्त उपजाऊ द्वीपों के मध्य नहरों का निर्माण किया गया। इन पर 1325 में एजटेक राजधानी टेनोक्टिलान का निर्माण किया गया। इसमें बने हुए राजमहल और पिरामिड झील के बीच में खड़े हुए बड़ा सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करते थे।

प्रश्न 9.
एजटेक लोगों की आर्थिक स्थिति का विवेचन कीजिए।
(2) एजटेक लोग मक्का, फलियाँ, कुम्हड़ा, कद्दू, कसावा, आलू और अन्य फसलें उगाते थे। भूमि का स्वामित्व किसी व्यक्ति विशेष के पास नहीं होता था, बल्कि यह स्वामित्व कुल के पास होता था। खेतिहर लोग अभिजातों के खेत जोतते थे और इसके बदले उन्हें फसल में से कुछ हिस्सा मिलता था। गरीब लोग कभी-कभी अपने बच्चों को भी गुलामों के रूप में बेच देते थे।

प्रश्न 10.
शिक्षा के प्रति एजटेक लोगों का क्या दृष्टिकोण था ?
अथवा
एजटेक लोगों की शैक्षणिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शिक्षा के प्रति एजटेक लोगों का दृष्टिकोण – एजटेक लोगों की शिक्षा में बड़ी रुचि थी। वे इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे कि उनके सभी बच्चे स्कूल अवश्य जाएँ। कुलीन वर्ग के बच्चे ‘कालमेकाक’ में भर्ती किये जाते थे। यहाँ उन्हें सेना अधिकारी और धार्मिक नेता बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। शेष समस्त बच्चे पड़ोस के तेपोकल्ली स्कूल में पढ़ते थे। यहाँ उन्हें इतिहास, पुराण – मिथकों, धर्म और उत्सवी गीतों की शिक्षा दी जाती थी। लड़कों को सैन्य प्रशिक्षण, खेती और व्यापार करना सिखाया जाता था और लड़कियों को घरेलू काम- -धन्धों में निपुण बनाया जाता था।

प्रश्न 11.
माया संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मैक्सिको की माया संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  • मक्के की खेती माया लोगों की सभ्यता का मुख्य आधार थी। उनके अनेक धार्मिक क्रिया-कलाप एवं उत्सव मक्का बोने, उगाने और काटने से जुड़े होते थे।
  • उनके खेती करने के तरीके उन्नत तथा कुशलतापूर्ण थे, जिनके कारण खेतों में बहुत अधिक पैदावार होती थी। इससे शासक वर्ग, पुरोहितों तथा प्रधानों को एक उन्नत संस्कृति का विकास करने में सहायता मिली।
  • माया संस्कृति के अन्तर्गत वास्तुकला, खगोल विज्ञान और गणित की पर्याप्त उन्नति हुई।
  • माया लोगों के पास अपनी एक चित्रात्मक लिपि थी। परन्तु इस लिपि को अभी तक पूरी तरह से नहीं पढ़ा जा सका है।

प्रश्न 12.
माया लोगों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माया लोगों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ – माया लोगों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –

  • वास्तुकला – माया लोग वास्तुकला में निपुण थे। उन्होंने अनेक मन्दिरों, वेधशालाओं, पिरामिडों आदि का है। निर्माण करवाया। टिकल, ग्वातेमाला में स्थित माया मन्दिर तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना
  • गणित एवं खगोल विज्ञान – माया लोग गणित एवं खगोल विज्ञान में भी निपुण थे। वे शून्य के लिए एक प्रतीक चिह्न का प्रयोग करते थे।
  • पंचांग- माया लोगों के पंचांग में वर्ष में 365 दिन होते थे। उन्होंने वर्ष को 18 महीने में विभाजित किया था और प्रत्येक महीना 20 दिन का होता था।
  • चित्रात्मक लिपि – माया लोगों के पास अपनी एक चित्रात्मक लिपि भी थी।

प्रश्न 13.
इंका लोगों के राजनीतिक जीवन का विवेचन कीजिए।
अथवा
इंका संस्कृति की राजनीतिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • दक्षिणी अमरीकी देशों की संस्कृतियों में से सबसे बड़ी पेरू में क्वेचुआ अथवा इंका लोगों की संस्कृति थी। इंका राज्य का विस्तार इक्वेडोर से चिली तक 3000 मील में फैला हुआ था।
  • इंका साम्राज्य अत्यन्त केन्द्रीकृत था। साम्राज्य की सम्पूर्ण शक्ति राजा में ही निहित थी। वही साम्राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था।
  • प्रत्येक इंका व्यक्ति को प्रशासन की भाषा क्वेचुआ बोलनी पड़ती थी।
  • प्रत्येक कबीला स्वतन्त्र रूप से वरिष्ठ लोगों की एक सभा द्वारा शासित होता था, परन्तु पूरा कबीला अपने आप में शासक के प्रति निष्ठावान था।

प्रश्न 14.
इंका लोगों की वास्तुकला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संजीव पास बुक्स – इंका लोगों की वास्तुकला – इंका लोग उच्च कोटि के भवन निर्माता थे। उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से चिली तक अनेक सड़कों का निर्माण किया था। उनके दुर्ग शिलापट्टियों को इतनी बारीकी से तराश कर बनाए जाते थे कि उन्हें जोड़ने के लिए गारे की आवश्यकता नहीं होती थी। वे टूटकर गिरी हुईं चट्टानों से पत्थरों को तराशने और ले जाने के लिए श्रम-प्रधान प्रौद्योगिकी का उपयोग करते थे।

इसके लिए अपेक्षाकृत अधिक संख्या में मजदूरों की आवश्यकता पड़ती थी। राजमिस्त्री खण्डों को सुन्दर रूप देने के लिए शल्क पद्धति ( फ्लेकिंग) का प्रयोग करते थे। यह पद्धति प्रभावकारी और सरल होती थी। कई शिलाखण्ड वजन में 100 मेट्रिक टन से भी अधिक भारी होते थे, उनके पास इतने बड़े शिलाखण्डों को ढोने के लिए पहियेदार गाड़ियाँ नहीं थीं। यह समस्त कार्य मजदूरों द्वारा ही बड़ी सावधानी से सम्पन्न कराया जाता था।

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प्रश्न 15.
इंका संस्कृति की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंका संस्कृति की आर्थिक स्थिति – इंका संस्कृति का आधार कृषि था। इंका लोगों के यहाँ जमीन खेती के लिए बहुत उपजाऊ नहीं थी। इसलिए उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाए और जल निकासी तथा सिंचाई की प्रणालियाँ विकसित कीं। पन्द्रहवीं शताब्दी में ऊँची भूमियों में खेती आज की तुलना में काफी अधिक परिमाण में की ती थी। इंका लोग मक्का तथा आलू की फसलें उगाते थे और भोजन तथा श्रम के लिए लामा पालते थे। इंका लोगों की बुनाई तथा मिट्टी के बर्तन बनाने की कला उच्च कोटि की थी।

प्रश्न 16.
एजटेक तथा इंका संस्कृतियाँ यूरोपीय संस्कृति से किस प्रकार भिन्न थीं?
उत्तर:
(1) एजटेक तथा इंका संस्कृतियों में समाज श्रेणीबद्ध था, परन्तु वहाँ यूरोप की भाँति कुछ लोगों के हाथों में संसाधनों का निजी स्वामित्व नहीं था।
(2) एजटेक तथा इंका संस्कृतियों में पुरोहितों तथा शमनों को समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त था, परन्तु यूरोप में ऐसा नहीं था।
(3) यद्यपि एजटेक तथा इंका लोग भव्य मन्दिर बनाते थे तथा उनमें परम्परागत रूप से सोने का प्रयोग करते थे; परन्तु वे सोने-चाँदी को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। इसके विपरीत यूरोपीय लोग सोने-चाँदी को अत्यधिक महत्त्व देते थे। सोना-चाँदी प्राप्त करने के लिए वे क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे और स्थानीय लोगों को गुलाम बनाकर उनका शोषण करते थे।

प्रश्न 17.
पुर्तगालियों द्वारा पश्चिमी अफ्रीका में व्यापारिक केन्द्र स्थापित करने के प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जब यूरोपवासी स्पेन और मसालों की खोज में नए-नए प्रदेशों में जाने की योजनाएँ बना रहे थे, तो यूरोप के एक छोटे से देश पुर्तगाल ने पश्चिमी अफ्रीका के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने का निश्चय किया। पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने पश्चिमी अफ्रीका की तटीय यात्रा आयोजित की और 1415 में सिउटा पर आक्रमण कर दिया। उसके पश्चात् कई अभियान आयोजित किये गए और अफ्रीका के बोजडोर अन्तरीप में पुर्तगालियों ने अपना व्यापार केन्द्र स्थापित कर लिया। उन्होंने अफ्रीकियों को बड़ी संख्या में गुलाम बना लिया और स्वर्णधूलि को साफ करके सोना तैयार करने लगे।

प्रश्न 18.
“स्पेन में आर्थिक कारणों ने लोगों को महासागरी शूरवीर बनने के लिए प्रोत्साहित किया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्पेन के आर्थिक कारणों ने लोगों को महासागरी शूरवीर बनने के लिए प्रोत्साहन दिया। धर्म-युद्धों की याद और रीकांक्विस्टा की सफलता ने उनकी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ा दिया था। रीकांक्विस्टा (पुनर्विजय) ईसाई राजाओं द्वारा आइबेरियन प्रायद्वीप (स्पेन और पुर्तगाल के राज्य) पर प्राप्त की गई सैनिक विजय थी।

इस विजय के द्वारा इन राजाओं ने 1492 में इस प्रायद्वीप को अरबों के आधिपत्य से मुक्त करा लिया था। अब स्पेन के लोगों ने इकरारनामों की शुरुआत की जिसके अन्तर्गत स्पेन का शासक नव – विजित प्रदेशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर लेता था और उन्हें विजयी अभियानों के नेताओं को पुरस्कार के रूप में पदवियाँ तथा विजित प्रदेशों पर शासनाधिकार देता था।

प्रश्न 19.
अमरीका में स्पेन के साम्राज्य की स्थापना किस प्रकार हुई ?
उत्तर:
अमेरिका में स्पेन के साम्राज्य का विस्तार उसकी सैन्य शक्ति के आधार पर हुआ। उसकी सैन्य शक्ति बारूद तथा घोड़ों के प्रयोग पर आधारित थी। स्पेन के लोग वहाँ शुरू में खोज के बाद छोटी बस्ती बसा लेते थे जिसमें रहने वाले स्पेनी लोग स्थानीय मजदूरों पर निगरानी रखते थे। स्थानीय प्रधानों को नये-नये प्रदेश और सोने के नए-नए स्रोतों की खोज के लिए भर्ती किया जाता था।

अधिक से अधिक सोना प्राप्त करने के लालच में स्पेन के लोगों ने दमनकारी नीति अपनाई जिसका स्थानीय लोगों ने प्रतिरोध किया। इसके अतिरिक्त स्पेन की सेना के साथ आई चेचक की महामारी ने अरावांक लोगों का सफाया कर दिया क्योंकि उनमें प्रतिरोध क्षमता नहीं थी।” कोलम्बस के अभियानों के पश्चात् स्पेनवासियों द्वारा मध्यवर्ती तथा दक्षिणी अमरीका में खोज बराबर चलती रही और उसमें सफलता मिलती गई। 50 वर्षों के भीतर ही स्पेनवासियों ने लगभग 40 डिग्री उत्तरी से 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक के समस्त क्षेत्र को खोज खोज कर उस पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 20.
कोलम्बस की अटलान्टिक यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोलम्बस की अटलान्टिक यात्रा – 3 अगस्त, 1492 को कोलम्बस पालोस के पत्तन से अटलान्टिक यात्रा के लिए रवाना हुआ। कोलम्बस के बेड़े में सांता मारिया नाम की एक छोटी नाओ ( भारी जहाज) और दो कैरेवल – छोटे हल्के जहाज ‘पिंटा’ और ‘नीना’ थे। ‘सांता मारिया’ की कमान स्वयं कोलम्बस के हाथों में थी।

उसमें 40 कुशल नाविक थे। 33 दिनों तक कोलम्बस का बेड़ा आगे बढ़ता गया। अन्त में 12 अक्टूबर, 1492 को कोलम्बस को जमीन दिखाई दी जिसे उसने भारत समझा परन्तु वह स्थान बहामा द्वीप समूह का गुआनाहानि द्वीप था। कोलम्बस ने गुआनाहानि में स्पेन का झण्डा गाड़ दिया और उसने उस द्वीप का नया नाम ‘सैन सैल्वाडोर’ रखा। उसने अपने-आपको वाइसराय घोषित कर दिया। उसने बड़े द्वीप समूह क्यूबानास्कैन, क्यूबा तथा किस्केया तक आगे बढ़ने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग प्राप्त किया।

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प्रश्न 21.
समुद्री खोज के सम्बन्ध में कोलम्बस की विशेष उपलब्धि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समुद्री खोज के सम्बन्ध में कोलम्बस की विशेष उपलब्धि यह रही कि उसने अनन्त समुद्र की सीमाएँ खोज निकालीं और यह दिखा दिया कि यदि पाँच सप्ताहों तक व्यापारिक हवाओं के साथ-साथ यात्रा की जाए तो पृथ्वी के गोले के दूसरी ओर पहुँचा जा सकता है। कोलम्बस के द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी और दक्षिणी अमरीका का नामकरण फ्लोरेन्स के एक भूगोलवेत्ता ‘अमेरिगो वेस्पुस्सी’ के नाम पर किया गया। उसने उन्हें ‘नई दुनिया’ के नाम से पुकारा। उनके लिए ‘अमरीका’ नाम का प्रयोग सर्वप्रथम एक जर्मन प्रकाशक द्वारा 1507 में किया गया।

प्रश्न 22.
स्पेनिश सेनापति कोर्टेस की मैक्सिको विजय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1519 में स्पेनिश सेनापति कोर्टेस क्यूबा से मैक्सिको आया था जहाँ उसने टाटानैक समुदाय से मैत्री कर ली। स्पेनी सैनिकों ने ट्लेक्सकलानों पर आक्रमण कर दिया और वहाँ के लोगों को पराजित कर दिया। इसके बाद 8 नवम्बर, 1519 को स्पेनी सैनिकों ने टेनोक्टिलान पर अधिकार कर लिया।

मैक्सिको के शासक मोंटेजुमा ने कोर्टेस का हार्दिक स्वागत किया, परन्तु कोर्टेस ने सम्राट मोंटेजुमा को नजरबन्द कर लिया और उसके नाम पर शासन चलाने का प्रयास करने लगा। जब कोर्टेस क्यूबा लौट गया तो मैक्सिको की जनता ने विद्रोह कर दिया, परन्तु स्पेनी सेना ने उनके विद्रोह का दमन कर दिया। कुछ समय बाद कोर्टेस ने 180 सैनिकों और 30 घोड़ों के साथ टैनोक्टिलान पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। मैक्सिको पर विजय प्राप्त करने में दो वर्ष का समय लग गया।

प्रश्न 23.
डोना मैरीना के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डोना मैरीना – बर्नार्ड डियाज डेलकैस्टिलो ने अपने ग्रन्थ ‘टू हिस्ट्री ऑफ मैक्सिको’ में लिखा है कि टैबेस्को के लोगों ने स्पेन के सेनापति कोर्टेस को डोना मैरीना नामक एक सहायिका दी थी।

डोना मैरीना तीन भाषाओं में प्रवीण थी और उसने कोर्टेस के लिए दुभाषिये के रूप में अत्यन्त निर्णायक भूमिका निभाई थी। बर्नार्ड डियाज ने लिखा है कि, “यह हमारी विजयों की जोरदार शुरुआत थी और डोना मैरीना की सहायता के बिना हम न्यू स्पेन और मैक्सिको की भाषा नहीं समझ सकते थे। ” बर्नार्ड डियाज का विचार था कि डोना मैरीना एक राजकुमारी थी। परन्तु मेक्सिकन लोग उसे ‘मांलिच’ अर्थात् विश्वासघाती कहते थे। ‘मांलिचिस्टा’ का अर्थ है – वह व्यक्ति जो दूसरों की भाषाओं तथा कपड़ों की हू-ब-हू नकल करता है।

प्रश्न 24.
पिजारो द्वारा इंका साम्राज्य की विजय का विवरण दीजिए।
उत्तर:
पिजारो सेना में भर्ती होकर 1502 में कैरीबियन द्वीप समूह में आया था। स्पेन के राजा ने पिजारो को यह वचन दिया था कि यदि वह इंका राज्य को जीत लेगा, तो उसे वहाँ का राज्यपाल बना दिया जायेगा। 1532 में पिजारो इंका राज्य पहुँचा और धोखे से वहाँ के राजा को बन्दी बना लिया। राजा ने अपनी मुक्ति के लिए पिजारो को एक कमरा भर सोना फिरौती में देने का प्रस्ताव किया।

परन्तु पिजारो ने इस प्रस्ताव पर कोई ध्यान नहीं दिया और राजा का वध करवा दिया। पिजारो के सैनिकों ने इंका राज्य को लूटने के बाद इंका राज्य पर अधिकार कर लिया। 1534 में स्पेनी सैनिकों के अत्याचारों के विरुद्ध इंका राज्य के लोगों ने विद्रोह कर दिया, जो दो वर्ष तक चलता रहा। अगले पाँच वर्षों में स्पेनियों ने पोटोसी, ऊपरी पेरू की खानों में चाँदी के विशाल भण्डारों का पता लगा लिया और उन खानों में काम करने के लिए उन्होंने इंका लोगों को गुलाम बना लिया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अरावाकी लुकायो समुदाय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरावाकी लुकायो समुदाय – अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे- छोटे सैकड़ों द्वीप समूहों और बृहत्तर ऐंटिलीज में रहते थे। कैरिब नामक एक खूंखार कबीले ने उन्हें लघु ऐंटिलीज प्रदेश से मार भगाया था। अरावाक लोग शान्तिप्रिय थे तथा लड़ने की अपेक्षा वार्तालाप से अपने झगड़े निपटाना चाहते थे। अरावाक संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ अरावाक संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. कुशल नौका-निर्माता-अरावाक लोग कुशल नौका-निर्माता थे। वे वृक्ष के खोखले तनों से अपनी डोंगियाँ बनाते थे और डोंगियों में बैठकर खुले समुद्र में यात्रा करते थे।

2. शान्तिप्रिय लोग – अरावाकी लोग शान्तिप्रिय थे तथा लड़ने की अपेक्षा वार्तालाप से अपने झगड़े निपटाना चाहते थे।

3. जीवन – निर्वाह के साधन – अरावाक लोग खेती, शिकार तथा मछली पकड़कर अपना जीवन-निर्वाह करते थे खेती में वे मक्का, मीठे आलू और अन्य प्रकार के कन्द-मूल और कसावा उगाते थे।

4. मिल-जुलकर खाद्य उत्पादन करना – अरावाक संस्कृति की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि वे सब एक-साथ मिलकर खाद्य उत्पादन करते थे ताकि समुदाय के प्रत्येक सदस्य को भोजन प्राप्त हो सके। वे अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे।

5. रीति-रिवाज – अरावाक लोगों में बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे जीववादी थे। अरावाक समाज में भी शमन लोगों का बड़ा प्रभाव था। शमन लोग कष्ट दूर करने वालों तथा इहलोक और परलोक के बीच मध्यस्थों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

6. सोने को अधिक महत्त्व नहीं देना – अरावाक लोग सोने के आभूषण पहनते थे परन्तु यूरोपवासियों की भाँति सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे। यदि कोई यूरोपीय व्यक्ति सोने के बदले काँच के मनके दे देता था, तो वे बहुत प्रसन्न होते थे क्योंकि उन्हें काँच का मनका अधिक सुन्दर दिखाई देता था।

7. बुनाई की उन्नत कला – अरावाक लोगों की बुनाई की कला बहुत उन्नत थी। हैमक अर्थात् झूले का प्रयोग उनकी एक विशेषता थी। इसे यूरोपीय लोगों ने भी बहुत पसन्द किया था।

8. उदारतापूर्ण व्यवहार – अरावाक लोगों का व्यवहार बड़ा उदारतापूर्ण होता था। वे सोने की खोज में स्पेनी लोगों को सहयोग देने के लिए सदैव तैयार रहते थे। परन्तु कालान्तर में जब स्पेनी लोगों ने दमनकारी नीति अपनाई, तो अरावाकों ने उसका विरोध किया। परन्तु इस विरोध के उन्हें विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़े। अरावाक संस्कृति का विनाश – स्पेनी लोगों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अरावाक लोगों का क्रूरतापूर्वक दमन किया। स्पेनी लोगों के सम्पर्क में आने के बाद लगभग 25 वर्ष के अन्दर ही अरावाकों और उनकी संस्कृति का अन्त हो गया।

प्रश्न 2.
एजटेक संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एजटेक जन – बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। उन्होंने अनेक जनजातियों को पराजित करके अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। उन्होंने पराजित लोगों से नजराना वसूल किया। एज़टेक संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ एंजटेक संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थीं –

1. समाज- एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजातवर्ग में उच्च कुलोत्पन्न, पुरोहित तथा वे लोग सम्मिलित थे जिन्हें बाद में यह प्रतिष्ठा दी गई थी। पुश्तैनी अभिजातों की संख्या बहुत कम थी और वे सरकार, सेना तथा पौरोहित्य-कर्म में उच्च पदों पर आसीन थे। अभिजात लोग अपने में से एक सर्वोच्च नेता का चुनाव करते थे, जो आजीवन शासक बना रहता था। राजा का पद अत्यन्त प्रतिष्ठित था। वह पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि माना जाता था।

योद्धा, पुरोहित तथा अभिजात वर्गों को समाज में सर्वाधिक सम्मान दिया जाता था। व्यापारियों को भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे प्रायः सरकारी राजदूतों तथा गुप्तचरों के रूप में कार्य करते थे। कुशल शिल्पियों, चिकित्सकों तथा विशिष्ट अध्यापकों को भी आदर की दृष्टि से देखा जाता था।

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2. भूमि उद्धार – एजटेक लोगों के पास भूमि की कमी थी। इसलिए उन्होंने भूमि उद्धार किया अर्थात् जल में से जमीन लेकर इस कमी को पूरा किया।

3. निर्माण कार्य – सरकंडे की बहुत बड़ी चटाइयाँ बन कर और उन्हें मिट्टी तथा पत्तों से ढक कर उन्होंने मेक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाये, जिन्हें ‘चिनाम्पा’ कहते थे। इन अत्यन्त उपजाऊ द्वीपों के बीच नहरें बनाई गईं। 1325 में इन पर एजटेक राजधानी टेनोक्टिलान का निर्माण किया गया। यहाँ के राजमहल और पिरामिड झील के बीच में खड़े हुए बड़ा सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करते थे। एजटेक शासक प्रायः युद्धों में व्यस्त रहते थें, इसलिए उनके सर्वाधिक भव्य मन्दिर भी युद्ध के देवताओं और सूर्य भगवान को समर्पित थे। .

4. आर्थिक जीवन – एजटेक साम्राज्य ग्रामीण आधार पर टिका हुआ था। एजटेक लोग मक्का, फलियाँ, कुम्हड़ा, कद्दू, कसावा, आलू और अन्य फसलें उगाते थे। भूमि का स्वामी कोई व्यक्ति विशेष नहीं होता था, बल्कि यह स्वामित्व कुल के पास होता था जो सार्वजनिक निर्माण कार्यों को सामूहिक रूप से पूरा करवाता था। खेतिहर लोग अभिजात वर्ग के लोगों के खेत जोतते थे तथा बदले में उन्हें फसल में से कुछ हिस्सा दे दिया जाता था। निर्धन लोग, कभी – कभी अपने बच्चों को भी गुलामों के रूप में बेच देते थे, परन्तु यह बिक्री प्राय: कुछ वर्षों के लिए ही की जाती थी। गुलाम अपनी स्वतन्त्रता फिर से खरीद सकते थे।

5. शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण – एजटेक लोगों की शिक्षा में काफी रुचि थी। वे इस बात का अत्यधिक ध्यान रखते थे कि उनके सभी बच्चे स्कूल अवश्य जाएँ। कुलीन वर्ग के बच्चे ‘कालमेकाक’ में भर्ती किये जाते थे। वहाँ उन्हें सेना अधिकारी तथा धार्मिक नेता बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। शेष समस्त बच्चे पड़ोस के तपोकल्ली स्कूल में पढ़ते थे। वहाँ उन्हें इतिहास, पुराण – मिथकों, धर्म और उत्सवी गीतों की शिक्षा दी जाती थी। लड़कों को सैन्य प्रशिक्षण, खेती और व्यापार करना सिखाया जाता था और लड़कियों को घरेलू काम-धन्धों में निपुण बनाया जाता था।

6. एजटेक साम्राज्य में अस्थिरता – सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में, एजटेक साम्राज्य में अस्थिरता के चिह्न दिखाई देने लगे। यह अस्थिरता हाल ही जीते गए लोगों में उत्पन्न असन्तोष के कारण आई थी, जो एजटेक शासकों के नियन्त्रण मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील थे।

प्रश्न 3.
“दक्षिणी अमरीकी देशों की संस्कृतियों में से सबसे बड़ी पेरू में क्वेचुआ या इंका लोगों की संस्कृति थी। ” व्याख्या कीजिए।
अथवा
पेरू की इंका संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
पेरू की इंका संस्कृति – दक्षिणी अमरीकी देशों की संस्कृतियों में से सबसे बड़ी पेरू में क्वेचुआ या इंका लोगों की संस्कृति थी। बारहवीं शताब्दी में प्रथम इंका शासक मैंकोकपाक ने कुजको में अपनी राजधानी स्थापित की थी। ‘नौवें इंका शासक के काल में इंका राज्य का विस्तार शुरू हुआ और अन्त में इंका साम्राज्य इक्वेडोर से चिली तक 3000 मील में फैल गया। इंका संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ इंका संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. केन्द्रीकृत साम्राज्य – इंका साम्राज्य अत्यन्त केन्द्रीकृत था। राजा साम्राज्य का सर्वोच्च अधि कारी होता था। राजा में ही सम्पूर्ण शक्ति निहित थी। नवविजित कबीलों तथा जनजातियों को साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया था। प्रत्येक व्यक्ति को प्रशासन की भाषा क्वेचुआ बोलनी पड़ती थी। प्रत्येक कबीला स्वतन्त्र रूप से व ष्ठों की एक सभा द्वारा शासित होता था। परन्तु पूरा कबीला शासक के प्रति वफादार होता था। स्थानीय शासकों को उन के सैनिक सहयोग के लिए पुरस्कृत किया जाता था। इस प्रकार इंका साम्राज्य एक संघ के समान था। विद्वानों का अनुमान है कि इंका साम्राज्य की आबादी 10 लाख से अधिक थी।

2. वास्तुकला – इंका साम्राज्य में वास्तुकला की पर्याप्त उन्नति हुई। एजटेक लोगों की भाँति इंका लोग भी उच्च कोटि के भवन-निर्माता थे। इंका लोगों ने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से चिली तक अनेक सड़कें बनाई थीं। उनके दुर्ग शिलापट्टियों को इतनी बारीकी से तराश कर बनाए जाते थे कि उन्हें जोड़ने के लिए गारे की आवश्यकता नहीं होती थी। वे निकटवर्ती प्रदेशों में टूटकर गिरी हुई चट्टानों से पत्थरों को तराशने और ले जाने के लिए श्रम – प्रधान प्रौद्योगिकी का उपयोग करते थे।

इसमें अपेक्षाकृत अधिक मजदूरों की आवश्यकता पड़ती थी। राजमिस्त्रीखण्डों को सुन्दर रूप देने के लिए शल्क पद्धति का प्रयोग करते थे। यह पद्धति प्रभावकारी तथा सरल थी। कई शिलाखण्ड 100 मैट्रिक टन से भी अधिक भारी होते थे; परन्तु उनके पास इतने बड़े शिलाखण्डों को ढोने के लिए पहिएदार गाड़ियाँ नहीं थीं। वे इस काम को मजदूरों के सहयोग से बड़ी सावधानी से करवाते थे।

3. कृषि – इंका सभ्यता का आधार कृषि था। इंका साम्राज्य में जमीन खेती के लिए बहुत उपजाऊ नहीं थी। इसलिए इंका लोगों ने पहाड़ी प्रदेशों में सीढ़ीदार खेत बनाए और जल निकासी तथा सिंचाई की प्रणालियाँ विकसित कीं। इंका लोग मक्का और आलू उगाते थे तथा भोजन और श्रम के लिए लामा पालते थे।

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4. उद्योग – इंका लोगों की बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने की कला उच्च कोटि की थी।

5. हिसाब लगाने की प्रणाली- इंका लोगों के पास हिसाब लगाने की एक प्रणाली थी— यह थी ‘क्विपु’ अर्थात् डोरियों पर गाँठें लगाकर गणितीय इकाइयों का हिसाब रखना। कुछ विद्वानों का विचार है कि इंका लोग इन धागों में एक प्रकार का संकेत (कोड) बुनते थे।

6. साम्राज्य का पिरामिडनुमा ढाँचा – इंका साम्राज्य का ढाँचा पिरामिडनुमा था। इसका अभिप्राय यह था कि इंका शासक के बन्दी बना लिए जाने पर उसके शासन की समस्त श्रृंखला टूट जाती थी। जब स्पेनी सैनिकों ने इंका – राज्य पर आक्रमण किया, तो उस समय भी यही स्थिति उत्पन्न हुई।

प्रश्न 4.
कोलम्बस की अमरीका की खोज-यात्रा का विवरण दीजिए।
उत्तर:
कोलम्बस का परिचय – क्रिस्टोफर कोलम्बस (1451-1506) इटली का निवासी था। वह एक स्वयं- शिक्षित व्यक्ति था। उसमें साहसिक कार्य करने तथा यश प्राप्त करने की इच्छा कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह भविष्यवाणियों में विश्वास करता था। उसका विश्वास था कि उसके भाग्य में पश्चिम की ओर से यात्रा करते हुए पूर्व की ओर जाने का मार्ग खोजना लिखा है। कोलम्बस कार्डिनल पिएर डिएली द्वारा 1410 में रचित पुस्तक ‘इमगो मुंडी’ से बहुत प्रेरित हुआ। सर्वप्रथम उसने पुर्तगाल के शासक के समक्ष अपने योजनाएँ प्रस्तुत कीं, परन्तु वे स्वीकृत नहीं हुईं। परन्तु स्पेन के शासक ने उसकी एक साधारण-सी योजना स्वीकार कर ली।

(1) कोलम्बस द्वारा अमरीका की खोज – यात्रा – 3 अगस्त, 1492 को कोलम्बस ने तीन जहाजों तथा 87 नाविकों के साथ पालोस के पत्तन से पश्चिम की ओर प्रस्थान किया। कोलम्बस का बेड़ा छोटा-सा था जिसमें ‘सांता मारिया’ नामक एक छोटी नाओ ( भारी जहाज) और दो कैरेवल (छोटे, हल्के जहाज) ‘पिंटा’ तथा ‘नीना’ थे। ‘सांता मारिया’ की कमान स्वयं कोलम्बस के हाथों में थी। उसमें 40 कुशल नाविक थे। कोलम्बस का बेड़ा अनुकूल व्यापारिक हवाओं के सहारे आगे बढ़ता जा रहा था। 33 दिनों तक बेड़ा तैरता हुआ आगे से आगे बढ़ता गया, परन्तु तट दिखाई नहीं दिया। उसके नाविक अधीर हो उठे और उनमें से कुछ तुरन्त वापस लौटने की माँग करने लगे।

(2) बहामा द्वीप समूह पहुँचना – अन्तत: 12 अक्टूबर, 1492 को नाविकों को जमीन दिखाई दी। कोलम्बस ने इसे भारत समझा परन्तु वह स्थान बहामा द्वीप – समूह का गुआनाहानि द्वीप था। गुआनाहानि पहुँचने पर अरावाक लोगों ने इस बेड़े के नाविकों का स्वागत किया। उन्होंने नाविकों के प्रति मैत्री प्रदर्शित की और उन्हें खाने-पीने का सामान भी दिया। कोलम्बस उनकी उदारता से बड़ा प्रभावित हुआ।

(3) कोलम्बस द्वारा अपने आपको वायसराय घोषित करना – कोलम्बस ने गुआनाहानि में स्पेन का झण्डा गाड़ दिया। वहाँ उसने सार्वजनिक उपासना करवाई और स्थानीय लोगों से बिना पूछे ही अपने आप को वायसराय घोषित कर दिया। उसने बड़े द्वीप समूह क्यूबानास्कैन और किस्केया तक आगे बढ़ने के लिए इन स्थानीय लोगों का सहयोग प्राप्त किया।

(4) कोलम्बस की कठिनाइयाँ और वापसी यात्रा – शीघ्र ही कोलम्बस का यह अभियान दुर्घटनाओं में फँस गया और खूँखार कैरिब कबीलों की शत्रुता का भी उन्हें सामना करना पड़ा। नाविक शीघ्रातिशीघ्र घर लौटने के लिए बेचैन हो गए। वापसी यात्रा अधिक कठिन सिद्ध हुई क्योंकि जहाजों को दीमक लग गई थी और नाविकों को थकान व घर की याद सताने लग गई थी।

इस सम्पूर्ण यात्रा में कुल 32 सप्ताह लगे। कुछ समय बाद कोलम्बस द्वारा ऐसी तीन यात्राएँ और आयोजित की गईं, जिनके दौरान कोलम्बस ने बहामा और बृहत्तर ऐंटिलीज द्वीपों, दक्षिणी अमरीका की मुख्य भूमि तथा उसके तटवर्ती प्रदेशों में अपना खोज कार्य पूरा किया। बाद की यात्राओं से यह ज्ञात हुआ कि इन स्पेनी नाविकों ने ‘इंडीज’ नहीं, बल्कि एक नया महाद्वीप ही खोज निकाला था।

(5) कोलम्बस की उपलब्धि – कोलम्बस की विशेष उपलब्धि यह रही कि उसने अनन्त समुद्र की सीमाएँ खोज निकालीं तथा यह दिखा दिया कि यदि पाँच सप्ताहों तक व्यापारिक हवाओं के साथ-साथ यात्रा की जाए तो पृथ्वी के गोले के दूसरी ओर पहुँचा जा सकता है। उसके द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी और दक्षिणी अमरीका का नामकरण फ्लोरेन्स के एक भूगोलवेत्ता ‘अमेरिगो वेस्पुस्सी’ के नाम पर किया गया जिसने उन्हें ‘नई दुनिया’ के नाम से पुकारा। ‘अमरीका’ नाम का प्रयोग सर्वप्रथम एक जर्मन प्रकाशक द्वारा 1507 ई. में किया गया।

प्रश्न 5.
कोर्टेस की मैक्सिको की विजय का वर्णन कीजिए।
अथवा
मैक्सिको पर स्पेनियों की विजय का वर्णन कीजिये।
अथवा
कोर्टस के मैक्सिको अभियान का विवरण दीजिए।
उत्तर:
कोर्टेस की मैक्सिको की विजय कोर्टेस स्पेन का एक वीर योद्धा तथा कुशल सेनापति था। उसने बड़ी आसानी से मैक्सिको पर अधिकार कर लिया। 1519 ई. में कोर्टेस क्यूबा से मैक्सिको आया था जहाँ उसने टाटानैक लोगों से मैत्री कर ली। टाटानैक लोग एजटेक शासन से अलग होना चाहते थे। एजटेक शासक मोंटेजुमा ने कोर्टेस से भेंट करने के लिए अपना एक अधिकारी भेजा। वह स्पेनवासियों की सैन्य शक्ति, आक्रमण-क्षमता, उनके बारूद और घोड़ों के प्रयोग को देखकर भयभीत हो गया। स्वयं मोंटेजुमा को यह विश्वास हो गया कि कोर्टेस वास्तव में किसी निर्वासित देवता का अवतार है जो अपना बदला लेने के लिए पुनः प्रकट हुआ है।

(1) टेनोविट्टलैन पर कोर्टेस का अधिकार – स्पेनी सैनिकों ने ट्लैक्सकलानों पर आक्रमण कर दिया। ट्लैक्सकलान वीर-योद्धा थे। यद्यपि उन्होंने स्पेनी सैनिकों का प्रबल प्रतिरोध किया, परन्तु अन्त में उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा और उन्होंने समर्पण कर दिया। स्पेनी सैनिकों ने क्रूरतापूर्वक उन सबको मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद 8 नवम्बर, 1519 को उन्होंने टेनोक्टिलैन पर अधिकार कर लिया। स्पेनी सैनिक टेनोक्ट्रिटलैन के दृश्य को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। यह नगर मैड्रिड से पाँच, गुना बड़ा था और इसकी जनसंख्या स्पेन के सबसे बड़े नगर सेविली से दो गुनी अर्थात् 1,00,000 थी।

(2) एजटेक शासक मोंटेजुमा द्वारा कोर्टेस का स्वागत करना- एजटेक शासक मोटेजुमा ने कोर्टेस का हार्दिक स्वागत किया। स्पेनियों को बड़े सम्मान के साथ नगर के बीचोंबीच लाया गया, जहाँ मोटेजुमा ने उन्हें उपहार भेंट किये। परन्तु ट्लैक्सकलान के हत्या – काण्ड के बारे में जानकारी होने के कारण एजटेक लोगों के मन में आशंका थी।

(3) कोर्टेस द्वारा मोंटेजुमा को नजरबन्द करना – एजटेक लोगों की धारणा सही सिद्ध हुई। कोर्टेस ने बिना कोई कारण बताए सम्राट मोंटेजुमा को नजरबन्द कर लिया और फिर उसके नाम पर शासन संचालन करने का प्रयास करने लगा। कोर्टेस ने एजटेक मन्दिरों में ईसाई मूर्तियाँ स्थापित करवाईं। एक समझौते के अनुसार मन्दिरों में एजटेक और ईसाई दोनों प्रकार की मूर्तियाँ स्थापित की गईं।

(4) एजटेक लोगों के विद्रोह का दमन करना- इसी समय कोर्टेस को अपने सहायक एल्वारैडो को सत्ता सौंप कर शीघ्रता से क्यूबा लौटना पड़ा। स्पेनी शासन के अत्याचारों से परेशान होकर तथा सोने के लिए स्पेनियों की निरन्तर माँगों के दबाव के कारण, एजटेक लोगों ने विद्रोह कर दिया। एल्वारैडो ने हुईजिलपोक्टली के वसन्तोत्सव में विद्रोहियों के कत्ले-आम का आदेश दे दिया।

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(5) कोर्टेस की कठिनाइयाँ- जब 25 जून, 1520 को कोर्टेस वापस लौटा, तो उसे भीषण संकटों का सामना करना पड़ा। विद्रोहियों द्वारा पुल नष्ट कर दिए गए थे, जल-मार्ग काट दिए गए थे तथा सड़कें बन्द कर दी गई थीं। स्पेनी सैनिकों को पानी और भोजन की भीषण कमी का सामना करना पड़ा। अन्त में कोर्टेस को विवश होकर वापस लौटना पड़ा।

(6) एजटेकों तथा स्पेनियों के बीच संघर्ष – इसी समय मोंटेजुमा की मृत्यु हो गई। एजटेकों तथा स्पेनियों के बीच संघर्ष जारी रहा जिसके परिणामस्वरूप लगभग 600 स्पेनी सैनिक और उतने ही ट्लैक्सकलान के लोग मारे गए। हत्याकाण्ड की इस भयंकर रात को ‘आँसूभरी रात’ के नाम से पुकारा जाता है।

(7) टेनोक्ट्ठिलैन पर कोर्टेस का पुनः अधिकार- मोटेजुमा के बाद क्वेटेमोक एजटेक का नया राजा निर्वाचित हुआ। कोर्टेस को उसके विरुद्ध अपनी रणनीति की योजना बनाने हेतु ट्लैक्सकलान में शरण लेनी पड़ी। उस समय एजटेक लोग यूरोपीय लोगों के साथ आई चेचक की महामारी के प्रकोप से मर रहे थे। कोर्टेस केवल 180 सैनिकों और 30 घोड़ों के साथ टेनोक्ट्रिटलान में प्रविष्ट हो गया। एजटेक लोगों ने स्पेनियों का मुकाबला करने का निश्चय किया। परन्तु अपशकुनों ने एजटेकों को बता दिया कि उनका अन्त निकट है। परिणामस्वरूप एजटेक सम्राट ने अपनी जीवनलीला समाप्त करना ही उचित समझा।

(8) मैक्सिको – अभियान की समाप्ति – मैक्सिको पर विजय प्राप्त करने में दो वर्ष का समय लग गया। कोर्टेस मैक्सिको में ‘न्यू स्पेन’ का कैप्टन – जनरल बन गया। उसे चार्ल्स पंचम द्वारा सम्मानों से विभूषित किया गया। मैक्सिको से, स्पेनियों ने अपना नियन्त्रण ग्वातेमाला, निकारगुआ तथा होंडुरास पर भी स्थापित कर लिया।

प्रश्न 6.
पुर्तगालियों द्वारा ब्राजील पर आधिपत्य किस प्रकार स्थापित किया गया?
अथवा
ब्राजील में पुर्तगालियों द्वारा अपना उपनिवेश स्थापित करने का वर्णन कीजिए। कैब्राल द्वारा ब्राजील पर अधिकार करना
उत्तर:
ब्राजील पर पुर्तगालियों का आधिपत्य संयोगवश ही हुआ। सन् 1500 में पुर्तगाल निवासी पेड्रो अल्वारिस कैब्राल जहाजों का एक बेड़ा लेकर भारत के लिए रवाना हुआ। तूफानी समुद्रों से बचने के लिए उसने पश्चिमी अफ्रीका का एक बड़ा चक्कर लगाया और ब्राजील के समुद्रतट पर पहुँच गया। दक्षिणी अमरीका का यह पूर्वी भाग उस क्षेत्र के अन्तर्गत था जिसे पोप ने पुर्तगाल को सौंप रखा था। इसलिए पुर्तगाली इस क्षेत्र को अपना क्षेत्र ही मानते थे।

(1) ब्राजील में इमारती लकड़ी की प्रचुरता – पुर्तगाली ब्राजील की बजाय पश्चिमी भारत के साथ अपना व्यापार बढ़ाना चाहते थे, क्योंकि ब्राजील में सोना मिलने की कोई सम्भावना नहीं थी। परन्तु ब्राजील में इमारती लकड़ी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी, जिसका पुर्तगालियों ने भरपूर लाभ उठाया। ब्राजीलवुड वृक्ष से एक सुन्दर लाल रंजक मिलता था।

ब्राजील के मूल निवासी लोहे के चाकू-छुरियों और आरियों के बदले में इमारती लकड़ी के वृक्षों को काटने और इनके लठ्ठे बनाकर जहाजों तक ले जाने के लिए तुरन्त तैयार हो गए। वे बहुत सरल प्रकृति के व्यक्ति थे तथा एक हंसिए, चाकू या कंघे के बदले ढेरों मुर्गियाँ, बन्दर, तोते, शहद, मोम, सूती धागा आदि चीजें देने को तैयार रहते थे।

(2) ब्राजील को पुर्तगाली आनुवंशिक कप्तानियों में बाँटना – इमारती लकड़ी का व्यापार बड़ा लाभप्रद था। अतः इमारती लकड़ी के व्यापार के कारण पुर्तगालियों और फ्रांसीसियों के बीच भयंकर लड़ाइयाँ हुईं। अन्त में इन लड़ाइयों में पुर्तगालियों की विजय हुई क्योंकि वे स्वयं तटीय क्षेत्र में बसना और अपना उपनिवेश स्थापित करना चाहते थे। 1534 में पुर्तगाल के शासक ने ब्राजील के तट को चौदह आनुवंशिक कप्तानियों में बाँट दिया।

उसने इनके स्वामित्व सम्बन्धी अधिकार उन पुर्तगालियों को दे दिए जो वहाँ स्थायी रूप से रहना चाहते थे। उसने उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का अधिकार भी प्रदान कर दिया। ब्राजील में बसने वाले बहुत से पुर्तगाली लोग भूतपूर्व सैनिक थे, जिन्होंने भारत के गोवा – क्षेत्र में लड़ाइयों में भाग लिया था। ये पुर्तगाली लोग स्थानीय लोगों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे।

(3) पुर्तगालियों द्वारा स्थानीय लोगों का शोषण – 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने ब्राजील के बड़े-बड़े बागानों में गन्ना उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। इस चीनी को यूरोप के बाजारों में बेचा जाता था। बहुत ही गर्म तथा नम जलवायु में चीनी की मिलों में काम करने के लिए पुर्तगाली लोग स्थानीय लोगों पर निर्भर थे।

जब स्थानीय लोगों ने इस कष्टदायक और थकाने वाले नीरस काम को करने से इनकार कर दिया, तो मिल मालिकों ने उनका अपहरण करवाकर उन्हें गुलाम बनाना शुरू कर दिया पुर्तगालियों की इस शोषणकारी नीति से स्थानीय लोगों में घोर असन्तोष उत्पन्न हुआ और वे मिल मालिकों के अत्याचारों से बचने के लिए गाँव छोड़ कर जंगलों में भाग गए। परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों के अधिकांश गाँव खाली हो गए, परन्तु उनके बदले यूरोपीय लोगों के कस्बे बस गए। विवश होकर पुर्तगालियों ने पश्चिमी अफ्रीका से गुलामों को लाना शुरू कर दिया।

(4) पुर्तगाली राजा के अधीन एक औपचारिक सरकार स्थापित करना – 1549 में ब्राजील में पुर्तगाल के शासक के अधीन एक औपचारिक सरकार स्थापित की गई और बहिया / सैल्वाडोर को उसकी राजधानी बनाया गया। इस समय तक ईसाई धर्म के प्रचार के लिए जेसुइट पादरियों ने ब्राजील जाना शुरू कर दिया था। परन्तु यूरोपीय नागरिक इन जेसुइट पादरियों को पसन्द नहीं करते थे। इसका कारण यह था कि जेसुइट पादरी मूल निवासियों के साथ दया का बर्ताव करने की सलाह देते थे। वे जंगलों में जाकर मूल निवासियों के गाँवों में रहते हुए यह शिक्षा देते थे कि ईसाई धर्म एक आनन्ददायक धर्म है और उसका आनन्द लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त ये धर्म प्रचारक दास प्रथा की कटु आलोचना करते थे।

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प्रश्न 7.
समुद्री यात्राओं तथा अमरीका की खोज के यूरोप तथा उत्तरी- दक्षिणी अमरीका पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
I. समुद्री यात्राओं के यूरोप पर प्रभाव – समुद्री यात्राओं तथा अमरीका की खोज के यूरोप पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
1. ‘अटूट समुद्री मार्गों’ का खुलना – समुद्री यात्राओं ने एक महासागर से दूसरे महासागर तक के ‘अटूट समुद्री मार्ग’ खोल दिए। इन समुद्री यात्राओं से पूर्व तक, इनमें से अधिकांश मार्ग यूरोप के लोगों के लिए अज्ञात थे और कुछ मार्गों को तो कोई भी नहीं जानता था। तब तक कोई भी जहाज कैरीबियन या अमरीका महाद्वीपों के जल-क्षेत्रों में प्रविष्ट नहीं हुआ था। दक्षिणी अटलांटिक तो पूरी तरह से अछूता था। कोई भी जहाज दक्षिणी अटलांटिक से प्रशान्त महासागर या हिन्द महासागर तक नहीं पहुँचा था। 15वीं शताब्दी के अन्तिम तथा 16वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में ये सभी साहसिक कार्य सम्पन्न किए गए।

2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा औद्योगीकरण का विस्तार – अमरीका की खोज के यूरोपवासियों के लिए दीर्घकालीन परिणाम निकले। सोने-चाँदी की बाढ़ ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा औद्योगीकरण का और अधिक विस्तार किया। 1560 से 1600 तक सैकड़ों जहाज प्रतिवर्ष दक्षिणी अमरीकी की खानों से चाँदी स्पेन को लाते रहे। परन्तु स्पेन और पुर्तगाल इसका अधिक लाभ नहीं उठा सके। उन्होंने अपने मुनाफों को आगे व्यापार में या अपने व्यापारी जहाजों के बेड़े का विस्तार करने में नहीं लगाया।

3. इंग्लैण्ड, फ्रांस, बैल्जियम, हालैण्ड को लाभ- इंग्लैण्ड, फ्रांस, बैल्जियम, हालैण्ड आदि देशों ने इन खोजों का भरपूर लाभ उठाया। उनके व्यापारियों ने बड़ी-बड़ी संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना की और अपने बड़े-बड़े व्यापारिक अभियान चलाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने उपनिवेश स्थापित किये तथा यूरोपवासियों को नई दुनिया में पैदा होने वाली नई-नई चीजों जैसे तम्बाकू, आलू, गन्ने की चीनी, ककाओ तथा रबड़ आदि से परिचित कराया।

4. नई फसलों से परिचित होना – यूरोपीय देश अमरीका से आने वाली नई फसलों विशेष रूप मिर्च से परिचित हो गए। आगे चलकर यूरोपवासी इन फसलों को भारत जैसे अन्य देशों में ले गए।

II. समुद्री यात्राओं के उत्तरी तथा दक्षिणी अमरीका पर प्रभाव – समुद्री यात्राओं के उत्तरी तथा दक्षिणी अमरीका पर निम्नलिखित प्रभाव हुए –
1. मूल निवासियों की जनसंख्या का कम होना – यूरोपवासियों की नर-संहार की नीति के कारण उत्तरी तथा दक्षिणी अमरीका के मूल निवासियों की जनसंख्या कम हो गई। इस जन हानि के लिए लड़ाइयाँ और बीमारियाँ प्रमुख रूप से जिम्मेदारी थीं।

2. मूल निवासियों की जीवन-शैली का नष्ट होना-यूरोपवासियों की नर-संहार की नीति के कारण मूल निवासियों की जीवन-शैली का विनाश हो गया।

3. मूल निवासियों का शोषण – यूरोपवासियों ने मूल निवासियों को गुलाम बनाकर खानों, बागानों तथा कारखानों में उनसे काम लेना शुरू किया। वहाँ उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। स्पेनी मालिकों ने आर्थिक लाभ के लिए स्थानीय लोगों का शोषण किया।

प्रश्न 8.
समुद्री यात्राओं के परिणामस्वरूप दास प्रथा के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समुद्री यात्राओं के परिणामस्वरूप दास प्रथा का विकास – यूरोपवासियों ने अपनी उत्कृष्ट सैन्य शक्ति के बल पर स्थानीय निवासियों को पराजित कर दिया और हारे हुए लोगों को गुलाम बना लिया। दक्षिणी अमेरिका में दास-प्रथा के साथ-साथ वहाँ उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली का उदय हुआ।

स्पेन के शासक को दास प्रथा को चालू रखने पर विवश करना – 1601 ई. में स्पेन के शासक फिलिप द्वितीय सार्वजनिक रूप से बेगार की प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया, परन्तु उसने एक गुप्त आदेश के द्वारा इसे चालू रखने की भी व्यवस्था कर दी। 1609 ई. में स्पेन की सरकार ने एक कानून बनाया जिसके अन्तर्गत ईसाई तथा गैर-ईसाई सभी प्रकार के स्थानीय लोगों को पूरी स्वतन्त्रता प्रदान कर दी गई। परन्तु इस कानून से यूरोप से आकर अमेरिका में बसे हुए लोग नाराज हो गए। उन्होंने दो वर्ष के भीतर ही स्पेन के शासक को यह कानून हटाने तथा गुलाम बनाने की प्रथा को चालू रखने के लिए विवश कर दिया।

दास प्रथा को प्रोत्साहन – 1700 ई. में सोने की खोज के बाद खानों के काम में बड़ी प्रगति हुई और खानों के कामों के लिए सस्ते श्रम की माँग बनी रही। यह निश्चित था कि स्थानीय लोग गुलाम बनने का विरोध करेंगे। अतः अफ्रीका से गुलाम मँगाए जाने का निश्चय किया गया। 1550 ई. के दशक से 1880 ई. के दशक तक ब्राजील में 36 लाख से भी अधिक अफ्रीकी गुलामों का आयात किया गया। 1750 ई. में कुछ ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति भी थे, जिनके पास हजार-हजार गुलाम होते थे। दास प्रथा को जारी रखने के प्रयास- कुछ लोगों ने दास प्रथा के उन्मूलन के बारे में यह तर्क दिया कि यूरोपवासियों के अफ्रीका में आने से पहले भी वहाँ दास प्रथा विद्यमान थी।

उनका कहना था कि पन्द्रहवीं शताब्दी में अफ्रीका में स्थापित किए जाने वाले राज्यों में भी अधिकांश मजदूर वर्ग गुलामों से ही बना था। यूरोपीय व्यापारियों को युवा स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाने में अफ्रीकी लोगों से भी सहायता प्राप्त होती थी। ये व्यापारी बदले में उन अफ्रीकावासियों को दक्षिणी अमरीका से आयात की गई फसलें जैसे मक्का, कसावा, कुमाला आदि देते थे। इस सम्बन्ध में 1789 ई. की अपनी आत्मकथा में ओलाउदाह एक्वियानो नामक एक मुक्त किये गये गुलाम ने इन तर्कों का उत्तर देते हुए लिखा है कि अफ्रीका में गुलामों के साथ परिवार के सदस्यों जैसा व्यवहार किया जाता था।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 9 संस्कृतियों का टकराव

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 9 संस्कृतियों का टकराव Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 9 संस्कृतियों का टकराव

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग रहते थे-
(अ) क्यूबा
(ब) अन्ध महासागर के क्षेत्र
(स) मैक्सिको
(द) कैरीबियन द्वीप-समूह।
उत्तर:
(द) कैरीबियन द्वीप-समूह।

2. एजटेक लोग रहते थे –
(अ) ब्राजील
(ब) काँगो
(स) मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी
(द) न्यूयार्क।
उत्तर:
(स) मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी

3. मक्का की खेती किन लोगों की सभ्यता का मुख्य आधार था –
(अ) तुपिनांबा
(ब) अरावाकी
(स) एजटेक
(द) माया।
उत्तर:
(द) माया।

4. दक्षिणी अमरीकी देशों की संस्कृतियों में से सबसे बड़ी संस्कृति थी –
(अ) स्पेनिश लोगों की
(ब) इंका लोगों की
(स) एजटेक लोगों की
(द) अरावाकी लोगों की।
उत्तर:
(ब) इंका लोगों की

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5. पन्द्रहर्वीं शताब्दी में खोज-यात्रियों में कौनसे यूरोपीय देश सबसे आगे थे?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) हालैण्ड
(स) स्पेन और पुर्तगाल
(द) बेल्जियम और फ्रांस।
उत्तर:
(स) स्पेन और पुर्तगाल

6. कोलम्बस द्वारा खोजे गए उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का नामकरण किसके नाम पर किया गया-
(अ) कोलम्बस
(ब) वास्कोडिगामा
(स) अमेरिगो वेस्पुस्सी
(द) हेनरी।
उत्तर:
(ब) वास्कोडिगामा

7. मैक्सिको पर अधिकार करने वाला स्पेन का निवासी था-
(अ) डियाज –
(ब) हेनरी
(स) मोंटेजुमा
(द) कोर्टेस।
उत्तर:
(द) कोर्टेस।

8. इंका साम्राज्य पर अधिकार करने वाला स्पेन का निवासी था-
(अ) कैब्राल
(ब) पिजारो
(स) क्वेटेमोक
(द) कोर्टेस।
उत्तर:
(ब) पिजारो

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. . …………… लोग लड़ने की बजाय बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।
2. …………….. क्जिए ………….. लोग दक्षिणी अमरीका के पूर्वी समुद्र तट तथा ब्राजील-पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गांवों में रह थे।
3. 12 वीं सदी में ………….. लोग उत्तर से आकर मेक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे।
4. ………….. की खेती मैक्सिको की माया संस्कृति का मुख्य आधार थी।
5. दक्षिणी अमरीकी देशज संस्कृतियों में सबसे बड़ी पेरू में …………….. लोगों की संस्कृति थी।
उत्तर:
1. अरावाक
2. तुपिनांबा
3. एजटेक
4. मक्का
5. इंका

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निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये-

(अ) बहामा द्वीप समूह के गुहानाहानि द्वीप की खोज की
(ब) मैक्सिको पर विजय प्रास की
(स) इंका राज्य पर विजय प्राप्त की
(द) ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक लिखी
(य) ब्राजील की खोज की
1. टॉलेमी
2. कोलम्बस
3. कोर्टेस
4. पिजारो
5. क्रैब्राल

उत्तर-
1. टॉलेमी
(द) ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक लिखी
2. कोलम्बस
(अ) बहामा द्वीप समूह के गुहानाहानि द्वीप की खोज की
3. कोर्टेस
(ब) मैक्सिको पर विजय प्रास की

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में सबसे बड़ा शहर कौन सा था ?
उत्तर:
लन्दन।

प्रश्न 2.
बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1694 ई. में।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाली दो मुख्य सामग्रियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) कोयला तथा
(2) लोहा।

प्रश्न 4.
म्यूल का आविष्कार किसने किया और कब ?
उत्तर:
1779 में, सैम्युअल क्राम्पटन ने।

प्रश्न 5.
वाटर फ्रेम का आविष्कार किसने किया और कब ?
उत्तर:
1769 में, रिचर्ड आर्कराइट ने।

प्रश्न 6.
प्रथम भाप से चलने वाले रेल का इंजन किसने बनाया और कब ?
उत्तर:
1814 में, स्टीफेन्सन ने।

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प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड में 1788 से 1796 की अवधि किस नाम से पुकारी जाती है?
उत्तर:
‘नहरोन्माद’ के नाम से।

प्रश्न 8.
इंग्लैण्ड में पहली नहर किसने बनाई और कब ?
उत्तर:
1761 में, जेम्स ब्रिंडली ने।

प्रश्न 9.
1801 में किसने इंजन बनाया?
उत्तर:
रिचर्ड ट्रेविथिक ने।

प्रश्न 10.
रिचर्ड ट्रेविथिक द्वारा निर्मित इंजन क्या कहलाता था ?
उत्तर:
पफिंग डेविल (फुफकारने वाला दानव)।

प्रश्न 11.
1814 में जार्ज स्टीफेन्सन ने किस रेल इंजन का निर्माण किया ?
उत्तर:
‘ब्लुचर’ नामक रेल इंजन का।

प्रश्न 12.
1850 में इंग्लैण्ड में 50 हजार से अधिक की आबादी वाले कितने नगर थे ?
उत्तर:
29।

प्रश्न 13.
अंग्रेजी में ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसके द्वारा किया गया ?
उत्तर:
आरनाल्ड टायनबी द्वारा।

प्रश्न 14.
स्पिन्निंग जैनी का आविष्कार किसने किया और कब किया ?
उत्तर:
1765 में, हारग्रीव्ज ने।

प्रश्न 15.
‘पावरलूम’ का आविष्कार किसने किया और कब किया?
उत्तर:
1787 में, एडमण्ड कार्टराइट ने।

प्रश्न 16.
भाप के इंजन का आविष्कार किसने किया और कब किया ?
उत्तर:
1769 में, जेम्स वाट ने।

प्रश्न 17.
किस देश के साथ लम्बे समय तक युद्ध करने में इंग्लैण्ड को औद्योगिक क्षेत्र में हानि उठानी पड़ी?
उत्तर:
फ्रांस के साथ।

प्रश्न 18.
फ्लाइंग शटल का आविष्कारक कौन था ?
उत्तर:
जान के।

प्रश्न 19.
चार्ल्स डिकन्स ने अपने किस उपन्यास में एक काल्पनिक औद्योगिक नगर कोकटाउन की दशा का वर्णन किया है ?
उत्तर:
‘हार्ड टाइम्स’ में।

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प्रश्न 20.
मजदूरों की दशा में सुधार के लिए ‘लुडिज्म’ नामक आन्दोलन किसने चलाया था?
उत्तर:
जनरल नेडलुड ने।

प्रश्न 21.
‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्रिटेन में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं।

प्रश्न 22.
इंग्लैण्ड में दूसरी औद्योगिक क्रान्ति कब हुई ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में दूसरी औद्योगिक क्रान्ति लगभग 1850 के बाद आई। इसमें रसायन तथा बिजली जैसे नये औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ।

प्रश्न 23.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किन विद्वानों के द्वारा किया गया ?
उत्तर:
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस के विद्वान जार्जिस मिशले तथा जर्मनी के विद्वान फ्रेडरिक एंजेल्स द्वारा किया गया।

प्रश्न 24.
लन्दन इंग्लैण्ड के बाजारों का केन्द्र क्यों बना हुआ था ?
उत्तर:
लन्दन इंग्लैण्ड का सबसे बड़ा शहर था। लन्दन ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ऋण-प्राप्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में एम्सटर्डम का स्थान ले लिया था।

प्रश्न 25.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब हाथ के स्थान पर बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा विशाल कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाने लगा, उसे ‘औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं।

प्रश्न 26.
सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के शुरू होने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) इंग्लैण्ड सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सन्तुलित रहा था।
(2) इंग्लैण्ड में कोयला और लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था।

प्रश्न 27.
1750 से 1800 के बीच इंग्लैण्ड में बड़ी आबादी वाले शहरों की संख्या कितनी थी ? उनमें सबसे बड़ा शहर कौनसा था ?
उत्तर:
(1) 11
(2) लन्दन।

प्रश्न 28.
इंग्लैण्ड की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र कौनसा बैंक था ? उस बैंक की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र बैंक ऑफ इंग्लैण्ड था। बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना 1694 में हुई

प्रश्न 29.
लोहा प्रगलन की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसमें किसका प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
लोहा प्रगलन की प्रक्रिया के द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल – धातु के रूप में निकाला जाता है। इसमें काठ कोयले (चारकोल) का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 30.
लोहा प्रगलन की प्रक्रिया में काठ कोयले (चारकोल) के प्रयोग करने से उत्पन्न दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) काठ कोयला लम्बी दूरी तक ले जाने की प्रक्रिया में टूट जाया करता था।
(2) घटिया प्रकार के लोहे का ही उत्पादन होता था।

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प्रश्न 31.
लौह धातुकर्म उद्योग में क्रान्ति लाने का श्रेय किस परिवार को है?
उत्तर:
लौह धातुकर्म उद्योग में क्रान्ति लाने का श्रेय श्रीप शायर के एक डर्बी परिवार को है। इस परिवार की तीन पीढ़ियों ने धातुकर्म उद्योग में क्रान्ति ला दी।

प्रश्न 32.
धमन भट्टी का आविष्कार किसने किया और कब किया?
उत्तर:
1709 में प्रथम अब्राहम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम ‘कोक’ का प्रयोग किया गया।

प्रश्न 33.
धमन भट्टी में कोक के प्रयोग के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) कोक में उच्च ताप उत्पन्न करने की शक्ति थी।
(2) अब भट्टियों को काठ कोयले पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।

प्रश्न 34.
लौह- उद्योग के क्षेत्र में हेनरी कोर्ट ने क्या आविष्कार किया ?
उत्तर:
हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेलन मिल का आविष्कार किया।

प्रश्न 35.
लौह उद्योग के विकास में जोन विल्किन्सन के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1770 के दशक में जोन विल्किन्सन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ और लोहे की सभी आकार की पाइपें बनाईं।

प्रश्न 36.
विश्व में प्रथम लोहे का पुल किसने और कब बनाया?
उत्तर:
1779 ई. में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्न नदी पर बनाया।

प्रश्न 37.
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाले कौनसे मुख्य खनिज बहुतायत में उपलब्ध थे ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाले मुख्य खनिज कोयला तथा लौह-अयस्क बहुतायत में उपलब्ध

प्रश्न 38.
कपास की कताई और बुनाई के क्षेत्र में हुए दो आविष्कारों और उनके आविष्कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) 1733 ई. में जान के ने ‘उड़न तुरी करघे’ (फ्लाइंग शटल लूम) तथा
(2) 1765 में हारग्रीव्ज ने स्पिन्निंग जैनी का आविष्कार किया।

प्रश्न 39.
‘वाटर फ्रेम’ का आविष्कार किसने किया और कब किया?
उत्तर:
1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक मशीन का आविष्कार किया।

प्रश्न 40.
औद्योगीकरण में भाप की शक्ति का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भाप की शक्ति उच्च तापमानों पर दबाव उत्पन्न करती जिससे अनेक प्रकार की मशीनें चलाई जा सकती

प्रश्न 41.
भाप की शक्ति के क्षेत्र में थामस सेवरी ने क्या आविष्कार किया ?
उत्तर:
1698 में थामस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए ‘माइनर्स फ्रेंड’ (खनक-मित्र) नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया।

प्रश्न 42.
थॉमस न्यूकामेन ने भाप के इंजन का कब आविष्कार किया?
उत्तर:
1712 में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का इंजन बनाया।

प्रश्न 43.
जेम्स वाट ने भाप का इंजन कब बनाया? इसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर:
1769 में जेम्स वाट ने ऐसा भाप का इंजन बनाया जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।

प्रश्न 44.
‘सोहो फाउन्ड्री’ का निर्माण किसने किया?
उत्तर:
1775 में जेम्स वाट ने एक धनी निर्माता मैथ्यू बॉल्टन की सहायता से बर्मिंघम में ‘सोहो फाउन्ड्री’ की स्थापना की।

प्रश्न 45.
1800 ई. के पश्चात् किन तत्त्वों ने भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान दिया ?
उत्तर:
अधिक हल्की तथा सुदृढ़ धातुओं के प्रयोग ने, अधिक सटीक मशीनी औजारों के निर्माण ने और वैज्ञानिक उन्नति के अधिक प्रसार ने।

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प्रश्न 46.
प्रारम्भ में इंग्लैण्ड में नहरों का निर्माण क्यों किया गया?
उत्तर:
प्रारम्भ में इंग्लैण्ड में नहरों का निर्माण कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए किया गया।

प्रश्न 47.
इंग्लैण्ड में पहली नहर कब और किसके द्वारा बनाई गई ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल ‘ 1761 ई. में जेम्स ब्रिंडली द्वारा बनाई गई।

प्रश्न 48.
नहरों के निर्माण के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) नहरों के आपस में जुड़ जाने से नए-नए शहरों में बाजार बन गए।
(2) बर्मिंघम शहर का विकास तीव्र गति से हुआ।

प्रश्न 49.
पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन किसके द्वारा बनाया गया और कब ?
उत्तर:
पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन ‘रॉकेट’ 1814 में स्टीफेंसन के द्वारा बनाया गया।

प्रश्न 50.
रेलवे परिवहन के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) रेलगाड़ियाँ वर्ष भर उपलब्ध रहती थीं।
(2) ये सस्ती और तेज भी थीं तथा माल और यात्री दोनों को ढो सकती थीं।

प्रश्न 51.
रिचर्ड ट्रेविथिक ने रेल के इंजन का निर्माण कब किया? इसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने रेल के इंजन का निर्माण किया। इसे ‘पफिंग डेविल’ (फुफकारने वाला दानव) कहते थे।

प्रश्न 52.
‘ब्लचर’ नामक रेलवे इंजन किसने बनाया और कब ?
उत्तर:
1814 में जार्ज स्टीफेन्सन नामक एक रेलवे इन्जीनियर ने ‘ब्लचर’ नामक रेल इंजन बनाया।

प्रश्न 53.
इंग्लैण्ड में पहली रेलवे लाइन कब बनाई गई ?
उत्तर:
1825 में इंग्लैण्ड में पहली रेलवे लाइन स्टाकटन तथा डार्लिंगटन शहरों के बीच बनाई गई।

प्रश्न 54.
1830 के दशक में नहरी परिवहन में कौनसी समस्याएँ आईं ?
उत्तर:
(1) नहरों के कुछ भागों में जलपोतों की भीड़भाड़ के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ गई।
(2) पाले, बाढ़ या सूखे के कारण नहरों के प्रयोग का समय सीमित हो गया।

प्रश्न 55.
‘छोटे रेलोन्माद’ तथा ‘बड़े रेलोन्माद’ के दौरान कितने मील लम्बी रेल लाइन बनाई गई ?
उत्तर:
1833-37 के ‘छोटे रेलोन्माद’ के दौरान 1400 मील लम्बी रेल लाइन और 1844-47 के ‘बड़े रेलोन्माद’ के दौरान 9500 मील लम्बी रेल लाइन बनाई गई।

प्रश्न 56.
ब्रिटेन के उद्योगपति प्रायः स्त्रियों और बच्चों को अपने कारखानों में काम पर क्यों लगाते थे? दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) स्त्रियों और बच्चों को पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी।
(2) स्त्रियाँ और बच्चे अपने काम की घटिया परिस्थितियों की कम आलोचना करते थे।

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प्रश्न 57.
कारखानों में काम करते समय बच्चों को किन दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता था ?
उत्तर:
(1) कारखानों में काम करते समय कई बार तो बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे अथवा उनके हाथ कुचल जाते थे। (2) कभी – कभी बच्चे मशीनों में गिर कर मर जाते थे।

प्रश्न 58.
कोयले की खानें बच्चों के काम करने के लिए क्यों खतरनाक होती थीं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) खानों की छतें धँस जाती थीं अथवा वहाँ विस्फोट हो जाता था।
(2) छोटे बच्चों को ‘ट्रैपर’ का काम करना पड़ता था।

प्रश्न 59.
कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना आवश्यक क्यों समझते थे ?
उत्तर:
कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना बहुत आवश्यक समझते थे ताकि वे अभी से काम सीख कर बड़े होकर उनके लिए अच्छा काम कर सकें।

प्रश्न 60.
फ्रांस के साथ लम्बे समय तक युद्ध करते रहने से इंग्लैण्ड पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
(1) इंग्लैण्ड तथा यूरोप के बीच होने वाला व्यापार अस्त-व्यस्त हो गया।
(2) अनेक फैक्ट्रियों को बन्द करना पड़ा।
(3) बेरोजगारी में वृद्धि हुई।

प्रश्न 61.
1795 के अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटेनवासियों पर क्या प्रतिबन्ध लगाए गए ?
उत्तर:
1795 के अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटेनवासियों को भाषण या लेखन द्वारा उकसाना अवैध घोषित कर दिया

प्रश्न 62.
ब्रिटेनवासियों ने ‘पुराने भ्रष्टाचार’ के विरुद्ध अपना आन्दोलन जारी रखा। ‘पुराना भ्रष्टाचार’ क्या था ?
उत्तर:
‘पुराना भ्रष्टाचार’ शब्द का प्रयोग राजतन्त्र और संसद के सम्बन्ध में किया जाता था।

प्रश्न 63.
‘कार्न लाज’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘कार्न लाज’ कानून के अन्तर्गत ब्रिटेन में विदेशों से सस्ते अनाज के आयात पर रोक लगा दी गई थी।

प्रश्न 64.
लुडिज्म आन्दोलन क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटेन के जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म (1811-17) नामक एक आन्दोलन चलाया गया। यह एक प्रकार के विरोध प्रदर्शन का उदाहरण था।

प्रश्न 65.
लुडिज्म के अनुयायियों की प्रमुख माँगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) न्यूनतम मजदूरी
(2) नारी एवं बाल-श्रम पर नियन्त्रण
(3) मशीनों के आविष्कारों से बेरोजगार हुए लोगों के लिए काम।

प्रश्न 66.
‘पीटरलू के नरसंहार’ की घटना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्रिटेन में अगस्त, 1819 में 80,000 लोग अपने लिए लोकतान्त्रिक अधिकारों की माँग करने के लिए सेंट पीटर्स मैदान में इकट्ठे हुए, परन्तु उनका बलपूर्वक दमन कर दिया गया।

प्रश्न 67.
1819 के कानूनों के अनुसार ब्रिटेन में मंजदूरों को क्या सुविधाएँ प्रदान की गई ?
उत्तर:
1819 के कानूनों के अन्तर्गत 9 वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लंगा दिया गया।

प्रश्न 68.
फैक्ट्री पद्धति की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) एक ही कारखाने में असंख्य लोगों का एक-साथ काम करना।
(2) मशीनों का यान्त्रिक शक्ति से चलना।

प्रश्न 69.
औद्योगिक क्रान्ति के दो सामाजिक परिणाम (प्रभाव) बताइए।
उत्तर:
(1) स्त्रियों और बच्चों की स्थिति शोचनीय हो गई।
(2) मजदूरों की स्थिति भी शोचनीय हो गई।

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प्रश्न 70.
औद्योगिक क्रान्ति के दो आर्थिक परिणाम बताइए।
उत्तर:
(1) वस्तुओं के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई।
(2) औद्योगिक पूँजीवाद का विकास हुआ।

प्रश्न 71.
‘नहरोन्माद’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
1788 से 1796 ई. तक की अवधि को ‘नहरोन्माद’ कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में 46 नहरों के निर्माण की परियोजनाएँ शुरू की गई थीं।

लघुत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
ब्रिटेन में सम्पन्न हुई ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ एवं ‘द्वितीय औद्योगिक क्रान्ति’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ब्रिटेन में ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ – ब्रिटेन में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं। इस क्रान्ति के ब्रिटेन में दूरगामी प्रभाव हुए। ब्रिटेन में ‘द्वितीय औद्योगिक क्रान्ति’ – इंग्लैण्ड में ‘दूसरी औद्योगिक क्रान्ति’ लगभग 1850 ई. के बाद आई। इस क्रान्ति में रसायन तथा बिजली जैसे नये औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ। उस अवधि में ब्रिटेन, जो पहले विश्व- भर में औद्योगिक शक्ति के रूप में अग्रणी था, पिछड़ गया और जर्मनी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका उससे आगे निकल गए।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ- जब हाथ के स्थान पर मशीनों द्वारा बड़े-बड़े कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा, जिसके परिणामस्वरूप उद्योग, व्यवसाय, यातायात, संचार आदि क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए, उन्हें ‘औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। अब घरेलू उत्पादन पद्धति का स्थान कारखाना पद्धति ने ले लिया, जहाँ बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने लगा। इस प्रकार, औद्योगिक जीवन में परिवर्तन इतने बड़े और तीव्र गति से हुए कि उन्हें व्यक्त करने के लिए ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। इंग्लैण्ड में 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे प्रथम ‘औद्योगिक क्रान्ति’ कहते हैं। इंग्लैण्ड में दूसरी औद्योगिक क्रान्ति लगभग 1850 के बाद आई। इतिहासकार डेविस ने ‘औद्योगिक क्रान्ति’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ” ‘औद्योगिक क्रान्ति’ का अभिप्राय उन परिवर्तनों से है, जिन्होंने यह सम्भव कर दिया कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन साधनों को त्याग कर विशाल पैमाने पर विशाल कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके।”

प्रश्न 3.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किन विद्वानों द्वारा किया गया ?
उत्तर:
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग – ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग फ्रांस के विद्वान जार्जिस मिले और जर्मनी के विद्वान फ्रेडरिक एंजेल्स द्वारा किया गया। अंग्रेजी में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री आरनाल्ड टायनबी द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया जो ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में 1760 और 1820 के बीच हुए थे। इस सम्बन्ध में टायनबी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कई व्याख्यान दिए थे। उनके व्याख्यान उनकी मृत्यु के पश्चात् 1884 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए, जिसका नाम था -‘लेक्चर्स ऑन दि इण्डस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैण्ड’।

प्रश्न 4.
सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में ही औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
1. इंग्लैण्ड में सुदृढ़ राजनीतिक व्यवस्था – इंग्लैण्ड सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सन्तुलित रहा था। इंग्लैण्ड में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही सिक्का ( मुद्रा – प्रणाली) और एक ही बाजार व्यवस्था थी। मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में होने से लोगों को अपनी आय से अधिक खर्च करने के लिए साधन प्राप्त हो गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।

2. कृषि क्रान्ति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ‘कृषि क्रान्ति’ सम्पन्न हुई। इसके परिणामस्वरूप बड़े जमींदारों ने छोटे-छोटे खेत खरीद लिए। इससे भूमिहीन किसान और चरवाहे एवं पशुपालक रोजगार की तलाश में शहरों में चले गए।

3. भूमंडलीय व्यापार – 18वीं सदी तक आते-आते भूमंडलीय व्यापार का केन्द्र इटली और फ्रांस के पत्तनों से हटकर हालैंड और ब्रिटेन के पत्तनों पर आ गया और लंदन ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में एम्सटर्डम का स्थान ले लिया।

4. कोयला, लोहा आदि की उपलब्धता – इंग्लैण्ड इस मामले में सौभाग्यशाली था कि वहाँ मशीनीकरण में काम आने वाली मुख्य सामग्रियाँ – कोयला और लौह अयस्क तथा उद्योगों में काम आने वाली खनिज जैसे सीसा, ताँबा, रांगा (टिन) आदि बहुतायत में उपलब्ध थीं।

5. अन्य कारण – उक्त कारणों के साथ-साथ अन्य कारण थे-
(i) गाँवों से आए गरीब लोग नगरों में काम करने के लिए उपलब्ध हो गए।
(ii) बड़े-बड़े उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक मौजूद थे।
(iii) परिवहन के लिए एक अच्छी व्यवस्था उपलब्ध थी। रेल मार्गों के निर्माण से वहाँ एक नया परिवहन तंत्र तैयार हो गया था।
(iv) प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों (आविष्कारों) की एक श्रृंखला ने उत्पादन के स्तर में अचानक वृद्धि कर दी थी।

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प्रश्न 5.
18वीं शताब्दी तक ब्रिटेन में लोहे के क्षेत्र में क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
18वीं शताब्दी तक ब्रिटेन में प्रयोग योग्य लोहे की कमी थी। लोहा प्रगलन की प्रक्रिया के द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल – धातु के रूप में निकाला जाता था। प्रगलन प्रक्रिया के लिए काठ कोयले (चारकोल) का प्रयोग किया जाता था। इस कार्य में निम्नलिखित समस्याएँ थीं-
(1) काठ कोयला लम्बी दूरी तक ले जाने की प्रक्रिया में टूट जाया करता था।
(2) इसकी अशुद्धताओं के कारण घटिया प्रकार के लोहे का ही उत्पादन होता था।
(3) यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी नहीं था, क्योंकि लकड़ी के लिए जंगल काट लिए गए
(4) यह उच्च तापमान उत्पन्न नहीं कर सकता था।

प्रश्न 6.
18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में लोहा उद्योग के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी में ब्रिटेन में लोहा उद्योग के क्षेत्र में हुए विकास –
(i) 1709 में प्रथम अब्राहम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया। इसमें सर्वप्रथम ‘कोक’ का प्रयोग किया गया। कोक में उच्च ताप उत्पन्न करने की शक्ति थी। इस आविष्कार से काठ कोयले की निर्भरता समाप्त हो गई।
(ii) द्वितीय डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया जो कम भंगुर था।
(iii) हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया। अब लोहे से अनेकानेक उत्पाद बनाना संभव हो गया।
(iv) 1770 के दशक में जोन विल्किन्सन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ तथा लोहे की नलियाँ (पाइपें ) बनाईं।
(v) 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्न नदी पर बनाया। (vi) विलकिन्सन ने पेरिस को पानी की आपूर्ति के लिए 40 मील लम्बी पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे में बनाई। ब्रिटेन के लौह उद्योग ने 1800 से 1830 की अवधि में अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।

प्रश्न 7.
कपास की कताई और बुनाई के क्षेत्र में ब्रिटेन में हुए विभिन्न आविष्कारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूम ) – 1733 ई. में लंकाशायर निवासी जान के ने उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूम) का आविष्कार किया। इसकी सहायता से कम समय में अधिक चौड़ा कपड़ा बनाना सम्भव हो गया।

2. स्पिनिंग जैनी – 1765 ई. में ब्लैकबर्न निवासी जेम्स हारग्रीव्ज ने ‘स्पिन्निंग जैनी’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस पर एक अकेला व्यक्ति एक साथ कई धागे कात सकता था।

3. वाटर फ्रेम – 1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन द्वारा पहले से कहीं अधिक मजबूत धागा बनाया जाने लगा।

4. म्यूल – 1779 ई. में सेम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया।

5. पावरलूम – 1787 में एडमंड कार्टराइट ने पावरलूम अर्थात् शक्ति-चालित करघे का आविष्कार किया।

प्रश्न 8.
18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटेन में कताई व बुनाई के उद्योग में क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
ब्रिटेन में कताई व बुनाई के उद्योग में समस्याएँ – अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटेन में कताई का काम इतनी धीमी गति और परिश्रम से किया जाता था कि एक बुनकर को व्यस्त रखने के लिए आवश्यक धागा कातने के लिए 10 कातने वालों, अधिकतर स्त्रियों की आवश्यकता पड़ती थी। इसलिए कातने वाले दिन भर कताई के काम में व्यस्त रहते थे, जबकि बुनकर बुनाई के लिए धागे की प्रतीक्षा में समय नष्ट करते रहते थे।

प्रश्न 9.
“1780 के दशक से कपास उद्योग कई रूपों में ब्रिटिश औद्योगीकरण का प्रतीक बन गया। ” स्पष्ट कीजिए। इस उद्योग की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में कपास की कताई और बुनाई के उद्योग में अनेक आविष्कार हुए जिसके फलस्वरूप वस्त्र उद्योग में अत्यधिक उन्नति हुई। 1780 के दशक से कपास उद्योग कई रूपों में ब्रिटिश औद्योगीकरण का प्रतीक बन गया। इस उद्योग की दो प्रमुख विशेषताएँ थीं –
(1) कच्चे माल के रूप में आवश्यक कपास सम्पूर्ण रूप से आयात करना पड़ता था।
(2) जब उससे कपड़ा तैयार हो जाता था, तो उसका अधिकांश भाग निर्यात किया जाता था। इसके लिए इंग्लैण्ड के पास अपने उपनिवेश होना आवश्यक था ताकि वह इन उपनिवेशों से कच्चा कपास प्रचुर मात्रा में मँगा सके और फिर इंग्लैण्ड में उससे कपड़ा बनाकर तैयार माल को उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेच सके।

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प्रश्न 10.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में हुए आविष्कारों व परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भाप के इंजन के मॉडल का आविष्कार – भाप की शक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया। 1698 में थॉमस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए माइनर्स फ्रेंड ( खनक – मित्र) नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया। ये छिछली गहराइयों में धीरे-धीरे काम करते थे।

2. थॉमस न्यूकामेन द्वारा भाप का इंजन बनाना – 1712 ई. में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का एक और इंजन बनाया। इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि संघनन बेलन के निरन्तर ठण्डा होते रहने से इसकी ऊर्जा समाप्त होती रहती थी।

3. जेम्स वाट द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार – 1769 ई. में जेम्स वाट ने भाप के इंजन का आविष्कार किया। जेम्स वाट ने एक ऐसी मशीन विकसित की, जिससे भाप का इंजन केवल एक साधारण पम्प की बजाय एक प्रमुख चालक के रूप में काम देने लगा जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।

4. सोहो फाउन्डरी का निर्माण – 1775 में जेम्स वाट ने मैथ्यू बाल्टन की सहायता से बर्मिंघम में ‘सोहो फाउन्डरी’ का निर्माण किया। उस फाउन्डरी से जेम्स वाट के स्टीम इंजन बराबर बढ़ती हुई संख्या में निकलने लगे। 18वीं सदी के अन्त तक जेम्स वाट के भाप इंजन ने द्रवचालित शक्ति का स्थान लेना शुरू कर दिया था। 1800 के बाद भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी और अधिक विकसित हो गई।

प्रश्न 11.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में नहरों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन में प्रारम्भ में नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए बनाई गईं। इसका कारण यह था कि कोयले को नहरों के मार्ग से ले जाने में समय और खर्च दोनों ही कम लगते थे।
इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल ‘1761 ई. में जेम्स ब्रिंडली द्वारा बनाई गई। इस नहर के निर्माण का केवल यही उद्देश्य था कि इसके द्वारा वर्सले के कोयला भण्डारों से शहर तक कोयला ले जाया जाए। नहरों के आपस में जुड़ जाने से नए-नए शहरों में बाजार बन गए और उनका विकास हुआ। उदाहरणार्थ बर्मिंघम शहर का विकास केवल इसलिए तेजी से हुआ क्योंकि वह लन्दन, ब्रिस्टल चैनल और करसी तथा हंबर नदियों के साथ जुड़ने वाली नहर प्रणाली के बीच में स्थित था। ब्रिटेन में 1760 से 1790 के बीच नहरें बनाने की 25 परियोजनाएँ शुरू की गईं। 1788 से 1796 तक की अवधि में 46 नई परियोजनाएँ शुरू की गईं। उसके पश्चात् अगले 60 वर्षों में अनेक नहरें बनाई गईं जिनकी लम्बाई कुल मिलाकर 4000 मील से अधिक थी।

प्रश्न 12.
औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन में वेतनभोगी मजदूरों के जीवन की औसत अवधि कम क्यों थी?
उत्तर:
1842 में ब्रिटेन में किए गए एक सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ कि वहाँ वेतनभोगी मजदूरों या कामगारों के जीवन की औसत अवधि शहरों में रहने वाले अन्य सामाजिक समूहों के जीवन-काल से कम थी जैसे बर्मिंघम में यह 15 वर्ष, मैनचेस्टर में 17 वर्ष तथा डर्बी में 21 वर्ष थी। नए औद्योगिक नगरों में गाँवों से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मौत के मुँह में चले जाते थे। वहाँ उत्पन्न होने वाले बच्चों में से आधे तो पाँच वर्ष की आयु प्राप्त करने से पूर्व ही मर जाते थे।
मजदूरों की मृत्यु अधिकतर उन महामारियों के कारण होती थी जो जल- प्रदूषण से जैसे हैजा तथा आंत्रशोथ से और वायु-प्रदूषण से जैसे क्षय रोग से होती थी। 1832 में ब्रिटेन में हैजे की महामारी फैल गई जिसमें 31,000 से अधिक लोग मौत के मुँह में चले गए। 19वीं सदी के अंतिम दशकों तक नगर – प्राधिकारी जीवन की इन भयंकर परिस्थितियों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे और इन बीमारियों के निदान व उपचार के बारे में चिकित्सकों को कोई जानकारी नहीं थी।

प्रश्न 13.
औद्योगिक क्रान्ति से ब्रिटेनवासियों के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर:
1. पूँजी में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप धनी लोगों ने उद्योग-धन्धों में पूँजी निवेश किया जिससे उन्हें खूब मुनाफा हुआ और उनके धन में अत्यधिक वृद्धि हुई।
2. अन्य क्षेत्रों में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप धन, माल, आय, सेवाओं, ज्ञान और उत्पादक कुशलता के रूप में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई।
3. नगरीय जनसंख्या में वृद्धि – 1750 में इंग्लैण्ड में 50,000 से अधिक की आबादी वाले नगरों की संख्या केवल दो थी जो बढ़कर 1850 में 29 हो गई।
4. परिवारों का टूटना – पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। परिणामस्वरूप अनेक परिवार टूट गए।
5. नवीन समस्याएँ उत्पन्न होना – मजदूरों को अनेक नई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें कारखानों के आस-पास भीड़भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा। वे अनेक बीमारियों के शिकार बन गए और असमय मौत के मुँह में जाने लगे।

प्रश्न 14.
फैक्ट्री पद्धति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फैक्ट्री पद्धति की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिनमें हजारों लोग एक-साथ काम करते थे
(2) उत्पादन के सभी साधनों पर पूँजीपतियों का स्वामित्व था।
(3) श्रमिकों की देखभाल के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति की जाती थी।
(4) पूँजीपति कारखानों के स्वामी होते थे तथा मजदूर कारखानों में अपनी मजदूरी पाने के लिए कार्य करते थे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के कारण
इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ होने के कारण निम्नलिखित थे-
1. इंग्लैण्ड में राजनीतिक स्थिरता – इंग्लैण्ड सत्रहवीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सन्तुलित था और इसके तीनों भागों—इंग्लैण्ड, वेल्स और स्कॉटलैण्ड पर एक ही राजतन्त्र अर्थात् सम्राट का एकछत्र शासन रहा था। वहाँ अन्य देशों की अपेक्षा राजनीतिक स्थिरता अधिक थी। इंग्लैण्ड में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही सिक्का ( मुद्रा- प्रणाली) और एक ही बाजार व्यवस्था थी। इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी तक आते-आते, मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में व्यापक रूप से होने लगा था। तब तक बड़ी संख्या में ब्रिटेनवासी अपनी कमाई वस्तुओं की बजाय मजदूरी और वेतन के रूप में प्राप्त करने लगे। इससे उन्हें अपनी आय से अधिक खर्च करने के लिए साधन प्राप्त हो गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।

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2. कृषि क्रान्ति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ‘कृषि – क्रान्ति’ सम्पन्न हुई। इसके परिणामस्वरूप बड़े जमींदारों ने अपनी जमीनों के आस-पास छोटे-छोटे खेत खरीद लिए और गाँव की सार्वजनिक जमीनों को घेर लिया। इससे विवश होकर भूमिहीन किसान, चरवाहे और पशुपालक रोजगार की तलाश में शहरों में चले गए।

3. शहरों का विकास – यूरोप के जिन 19 शहरों की आबादी सन् 1750 से 1800 के बीच दोगुनी हो गई थी; उनमें से 11 ब्रिटेन में थे। इन 11 शहरों में लन्दन सबसे बड़ा था, जो देश के बाजारों का केन्द्र था, शेष बड़े- बड़े शहर भी लन्दन के आसपास ही स्थित थे। लन्दन ने सम्पूर्ण विश्व में भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था। शहरों में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गई। इससे उद्योगपतियों को बड़े पैमाने पर वस्तुओं के उत्पादन की प्रेरणा मिली।

4. व्यापार की उन्नति – 18वीं सदी तक आते-आते भू-मण्डलीय व्यापार का केन्द्र इटली तथा फ्रांस के भूमध्य सागरीय बन्दरगाहों से हट कर हालैण्ड और ब्रिटेन के अटलान्टिक बन्दरगाहों पर आ गया था। इसके बाद लन्दन ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु ऋण प्राप्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में एम्स्टर्डम का स्थान ले लिया था। लन्दन इंग्लैण्ड, अफ्रीका और वेस्टइण्डीज के बीच स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केन्द्र बन गया था।

5. यातायात का विकास – 1724 से इंग्लैण्ड के पास नदियों के द्वारा लगभग 1160 मील लम्बा जलमार्ग था जिसमें नौकाएँ चल सकती थीं तथा पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर देश के अधिकांश स्थान नदी से अधिक से अधिक 15 मील की दूरी पर थे। इंग्लैण्ड की नदियों के समस्त नौचालन के भाग समुद्र से जुड़े हुए थे, इसलिए नदी पोतों के द्वारा ढोया जाने वाला माल समुद्र-तटीय जहाजों तक सरलता से ले जाया और सौंपा जा सकता था।

6. बैंकों का विकास – इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था। 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना हो चुकी थी। यह देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र था। 1784 तक इंग्लैण्ड में कुल मिलाकर एक सौ से अधिक प्रान्तीय बैंक थे। 1820 के दशक तक प्रान्तों में 600 से अधिक बैंक थे। अतः बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण-राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक मौजूद थे।

7. लोहे तथा कोयले का प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना – इंग्लैण्ड में लोहे और कोयले की खानें आसपास थीं। वहां लोहा तथा कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। इससे पक्के लोहे का निर्माण सरलता से होने लगा।

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8. पूँजी की अधिकता – इंग्लैण्ड में पूँजी की अधिकता थी। वाणिज्यवाद के परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में प्रचुर पूँजी जमा हो गई थी। बैंकिंग व्यवस्था ने भी इंग्लैण्ड में पूँजी – संचय तथा विनियोग को समान बनाया।

9. वैज्ञानिक आविष्कार – 18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में अनेक वैज्ञानिक हुए जिन्होंने कृषि, व्यवसाय, यातायात आदि क्षेत्रों के अनेक आविष्कार किये। इन आविष्कारों ने औद्योगिक क्रान्ति को सफल बनाने में योगदान दिया।

10. कुशल श्रमिकों की उपलब्धि – इंग्लैण्ड में कुशल श्रमिक बड़ी संख्या में उपलब्ध थे। यूरोप के अधिकांश देशों में आन्तरिक शान्ति तथा व्यवस्था का अभाव था। इसलिए वहाँ के बहुत से कुशल श्रमिक भाग कर इंग्लैण्ड में आ गए थे।

11. औपनिवेशिक साम्राज्य – अठारहवीं शताब्दी के अन्त तक इंग्लैण्ड ने एक विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया था। इंगलैण्ड इन उपनिवेशों से कच्चा माल प्राप्त कर सकता था तथा वहाँ अपना तैयार माल बेच सकता था।

प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में कोयले और लोहे के उद्योग क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में कोयले और लोहे के उद्योग क्षेत्र में विकास
इंग्लैण्ड में मशीनीकरण में काम आने वाली मुख्य सामग्रियाँ – कोयला और लौह-अयस्क प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थीं। इसके अतिरिक्त वहाँ उद्योग में काम आने वाले अन्य खनिज, जैसे-सीसा, ताँबा और राँगा (टिन) आदि भी उपलब्ध थे। परन्तु अठारहवीं शताब्दी तक, वहाँ प्रयोग योग्य लोहे की कमी थी।

1. काठ कोयले ( चारकोल ) के प्रयोग की समस्याएँ – लोहा प्रगलन की प्रक्रिया के द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल – धातु के रूप में निकाला जाता है। सैकड़ों वर्षों तक इस प्रगलन प्रक्रिया के लिए काठ – कोयले ( चारकोल) का प्रयोग किया जाता था। इस प्रक्रिया की निम्नलिखित समस्याएँ थीं –
(i) काठ – कोयला लम्बी दूरी तक ले जाने की प्रक्रिया में टूट जाया करता था।
(ii) इसकी अशुद्धताओं के कारण घटिया प्रकार के लोहे का ही उत्पादन होता था।
(iii) यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं था क्योंकि लकड़ी के लिए जंगल काट लिये गए थे।
(iv) यह उच्च तापमान भी उत्पन्न नहीं कर सकता था।

2. धमन भट्टी का आविष्कार – लौह उद्योग के क्षेत्र में, 1709 में प्रथम अब्राहम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया गया। इस आविष्कार के परिणामस्वरूप भटिट्यों को काठ कोयले पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। इन भट्टियों से निकलने वाला पिघला हुआ लोहा पहले की अपेक्षा श्रेष्ठ होता था। 3. पिटवाँ लोहे का विकास- द्वितीय अब्राहम डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया जो कम भंगुर था।

4. आलोडन भट्टी तथा बेलन मिल का आविष्कार – हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेलन मिल का आविष्कार किया, जिसमें परिशोधित लोहे से छड़ें तैयार करने के लिए भाप की शक्ति का प्रयोग किया जाता था। अब लोहे से अनेकानेक उत्पाद बनाना सम्भव हो गया।
5. लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियाँ बनाना – 1770 के दशक में जोन विल्किन्सन ने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ, आसव तथा शराब की भट्टियों के लिए टंकियां और लोहे की सभी आकारों की नलियाँ (पाइपें ) बनाई।

6. लोहे के पुल का निर्माण – 1779 ई. में तृतीय अब्राहम डर्बी ने विश्व में प्रथम लोहे का पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्न नदी पर बनाया। विल्किन्सन ने पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाईं।

7. इस्पात बनाने की विधि – 1856 में हेनरी बैस्सेमर ने इस्पात बनाने की विधि खोज निकाली।

8. लौह उत्पादन में वृद्धि – ब्रिटेन के लौह उद्योग ने 1800 से 1830 के दौरान अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया और उसका उत्पादन सम्पूर्ण यूरोप में सबसे सस्ता था। 1820 में एक टन ढलवाँ लोहा बनाने के लिए 8 टन कोयले की आवश्यकता होती थी, परन्तु 1850 तक आते-आते यह मात्रा घट गई और केवल 2 टन कोयले से ही एक टन ढलवाँ लोहा बनाया जाने लगा। 1848 तक ब्रिटेन द्वारा पिघलाए जाने वाले लोहे की मात्रा शेष सम्पूर्ण विश्व द्वारा कुल मिलाकर पिघलाए जाने वाले लोहे से अधिक थी।

प्रश्न 3.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई व बुनाई के उद्योग में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई व बुनाई के उद्योग में हुए आविष्कारों का वर्णन कीजिए। उत्तर- अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई तथा बुनाई के उद्योग में विकास – अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रिटेन में कताई का काम धीमी गति से किया जाता था। एक ओर कातने वाले लोग दिन-भर कताई के काम में व्यस्त रहते थे, तो दूसरी ओर बुनकर लोग बुनाई के लिए धागे के लिए अपना समय नष्ट करते रहते थे। परन्तु कालान्तर में कताई व बुनाई की प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक आविष्कार हुए जिसके फलस्वरूप कपास से धागा कातने और उससे कपड़ा बनाने की गति में जो अन्तर था, वह समाप्त हो गया।

कपास की कताई और बुनाई के उद्योग में महत्त्वपूर्ण आविष्कार अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में कपास की कताई और बुनाई के उद्योग में निम्नलिखित आविष्कार हुए-
1. उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूम ) – 1733 ई. में लंकाशायर निवासी जान के ने उड़न तुरी करघा (फ्लाइंग शटल लूंम) का आविष्कार किया। इसकी सहायता से कम समय में चौड़ा कपड़ा बनाना सम्भव हो गया। इसकी सहायता से दुगुनी गति से कपड़ा बुना जा सकता था।

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2. स्पिन्निंग जैनी – 1765 में ब्लैकबर्न निवासी जेम्स हारग्रीव्ज ने ‘स्पिन्निंग जैनी’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस पर एक अकेला व्यक्ति एक-साथ सूत के आठ धागे कात सकता था। इससे बुनकरों को उनकी आवश्यकता से अधिक तेजी से धागा मिलने लगा।

3. वाटर फ्रेम – 1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक सूत कातने की मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन द्वारा पहले से कहीं अधिक मजबूत धागा बनाया जाने लगा। इससे लिनन और सूती धागा दोनों को मिलाकर कपड़ा बनाने की बजाय अकेले सूती धागे से ही विशुद्ध सूती कपड़ा बनाया जाने लगा। इसने भावी ‘कारखाना पद्धति’ को जन्म दिया।

4. म्यूल – 1779 ई. में सैम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इससे कता हुआ धागा बहुत मजबूत और श्रेष्ठ होता था।

5. पावरलूम – 1787 ई. में एडमण्ड कार्टराइट ने शक्ति से चलने वाले ‘पावरलूम’ नामक करघे का आविष्कार किया। ‘पावरलूम’ को चलाना अत्यन्त आसान था। जब भी धागा टूटता, वह अपने आप काम करना बन्द कर देता था। इससे किसी भी प्रकार के धागे से बुनाई की जा सकती थी। 1830 के दशक से, वस्त्र उद्योग में नई-नई मशीनें बनाने की बजाय श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। इन आविष्कारों के बाद कताई – बुनाई का काम अब घरों से हटकर, कारखानों में चला गया ताकि इस कार्य में और कुशलता लायी जा सके।

प्रश्न 4.
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में क्या परिवर्तन एवं आविष्कार हुए?
अथवा
‘भाप की शक्ति बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के लिए निर्णायक सिद्ध हुई। “स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में आविष्कार एवं परिवर्तन भाप की शक्ति ने ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भाप की शक्ति उच्च तापमानों पर दबाव पैदा करती थी जिससे अनेक प्रकार की मशीनें चलाई जा सकती थीं। इस प्रकार भाप की शक्ति ऊर्जा का एकमात्र ऐसा स्त्रोत था जो मशीनरी बनाने के लिए विश्वसनीय एवं कम खर्चीला था। अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में भाप की शक्ति के क्षेत्र में निम्नलिखित आविष्कार एवं परिवर्तन हुए-

1. भाप के इंजन के मॉडल का आविष्कार – भाप की शक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया। खानों में अचानक पानी भर जाना भी एक जटिल समस्या थी। 1698 ई. में थॉमस सेवरी ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए ‘माइनर्स फ्रेंड’ नामक एक भाप के इंजन का मॉडल बनाया। ये इंजन छिछली गहराइयों में धीरे-धीरे काम करते थे तथा अधिक दबाव हो जाने पर उनका बायलर फट जाता था।

2. थॉमस न्यूकॉमेन द्वारा भाप का इंजन बनाना – 1712 ई. में थॉमस न्यूकॉमेन ने भाप का एक और इंजन बनाया। इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि संघनन बेलन के निरन्तर ठंडा होते रहने से इसकी ऊर्जा समाप्त होती रहती थी।

3. जेम्स वाट द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार – 1769 तक भाप के इंजन का प्रयोग केवल कोयले की खानों में ही होता था। परन्तु 1769 में जेम्स वाट ने इसका एक और प्रयोग खोज निकाला। 1769 में जेम्स वाट ने ऐसी मशीन विकसित की, जिससे भाप का इंजन केवल एक साधारण पम्प की बजाय एक प्रमुख चालक के रूप में काम देने लगा। इससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी। इस प्रकार जेम्स वाट के भाप के इंजन के आविष्कार के कारण अब कारखानों में भी भाप की शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा।

4. सोहो फाउन्डरी का निर्माण – 1775 में जेम्स वाट ने एक धनी निर्माता मैथ्यू बाल्टन की सहायता से बर्मिंघम में ‘सोहो फाउन्डरी’ का निर्माण किया। इस फाउन्डरी से जेम्स वाट के भाप के इंजन बड़ी संख्या में बनकर निकलने लगे। अठारहवीं सदी के अन्त तक जेम्स वाट के भाप के इंजन ने द्रवचालित शक्ति का स्थान लेना शुरू कर दिया था।

5. भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी का विकास – 1800 ई. के बाद भाप के इंजन की प्रौद्योगिकी का और अधिक विकास हुआ। इसमें निम्नलिखित तत्त्वों ने सहयोग दिया –
(i) अधिक हल्की तथा मजबूत धातुओं का प्रयोग।
(ii) अधिक सटीक मशीनी औजारों का निर्माण।
(iii) वैज्ञानिक जानकारी का अधिक व्यापक प्रसार।
1840 में स्थिति यह थी कि ब्रिटेन में बने भाप के इंजन ही सम्पूर्ण यूरोप में आवश्यक ऊर्जा की 70 प्रतिशत से अधिक अश्व शक्ति का उत्पादन कर रहे थे।

प्रश्न 5.
अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन में रेलों के विकास का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन में रेलों का विकास अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन में रेलों के विकास का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
1. भाप से चलने वाले रेल के इंजन का आविष्कार – 1814 में पहला भाप से चलने वाला रेल का इंजन- स्टीफेन्सन का राकेट बना। अब रेलगाड़ियाँ परिवहन का एक ऐसा नया साधन बन गईं, जो साल भर उपलब्ध रहती थीं, सस्ती तथा तेज भी थीं और माल तथा यात्री दोनों को ढो सकती थीं। इस साधन में एक-साथ दो आविष्कार शामिल थे –
(1) लोहे की पटरी जिसने 1760 के दशक में लकड़ी की पटरी का स्थान ले लिया था तथा
(2) भाप के इंजन द्वारा इस लोहे की पटरी पर रेल के डिब्बों को खींचना।

2. रिचर्ड ट्रेविथिक द्वारा ‘पफिंग डेविल’ नामक रेलवे इंजन का निर्माण करना – 1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया जिसे ‘पंफिंग डेविल’ (फुफकारने वाला दानव) कहते थे। यह इंजन ट्रकों को कार्नवाल में उस खान के चारों ओर खींच कर ले जाता था, जहाँ रिचर्ड ट्रेविथिक काम करता था।

3. ‘ब्लचर’ नामक रेल इंजन का निर्माण करना – 1814 में जार्ज स्टीफेन्सन नामक एक रेलवे इंजीनियर ने एक रेल इंजन का निर्माण किया, जिसे ‘ब्लचर’ कहा जाता था। यह इंजन 30 टन भार 4 मील प्रति घण्टे की गति से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था।

4. ब्रिटेन में रेल मार्ग का विस्तार – सर्वप्रथम 1825 में स्टाकटन और डार्लिंगटन शहरों के बीच 9 मील लम्बा रेलमार्ग 24 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से 2 घण्टे में रेल द्वारा तय किया गया। 1830 में लिवरपूल तथा मैनचेस्टर को आपस में रेल मार्ग से जोड़ दिया गया। 20 वर्षों के अन्दर रेलें 30 से 50 मील प्रति घण्टे की गति से दौड़ने लगीं। 1830 से 1850 के बीच ब्रिटेन में रेल पथ कुल मिलाकर दो चरणों में लगभग 6000 मील लम्बा हो गया। 1833-37 के ‘छोटे रेलोन्माद’ के दौरान, 1400 मील लम्बी रेल लाइन बनाई गई। इसके बाद 1844-47 के ‘बड़े रेलोन्माद’ के दौरान फिर 9500 मील लम्बी रेल लाइन बनाने की स्वीकृति दी गई। रेलवे लाइन के निर्माण में कोयले और लोहे का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया तथा बड़ी संख्या में लोगों को . काम पर लगाया गया। इसके फलस्वरूप निर्माण तथा लोक कार्य उद्योगों की गतिविधियों में तेजी आई। 1850 तक अधिकांश इंग्लैण्ड के नगर और गाँव रेल मार्ग से जुड़ गए।

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प्रश्न 6. ब्रिटेन की स्त्रियों और बच्चों पर औद्योगिक क्रान्ति के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
ब्रिटेन की स्त्रियों और बच्चों पर औद्योगिक क्रान्ति के प्रभाव ब्रिटेन की स्त्रियों और बच्चों पर औद्योगिक क्रान्ति के अग्रलिखित प्रभाव पड़े –
1. स्त्रियों और बच्चों के काम करने के तरीकों में परिवर्तन-औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप स्त्रियों और बच्चों के काम करने के तरीकों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए। औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व गरीब ग्रामीणों के बच्चे घरों में या खेतों में अपने माता-पिता अथवा सम्बन्धियों की देख-रेख में अनेक प्रकार के काम किया करते थे। ये काम समय, दिन अथवा मौसम के अनुसार परिवर्तित होते रहते थे। इसी प्रकार गाँवों में स्त्रियाँ भी खेती के काम में हिस्सा लेती थीं और अपने घरों में चरखे चलाकर सूत कातती थीं।

2. प्रतिकूल परिस्थितियों में कारखानों में काम करना – औद्योगिक क्रान्ति के सूत्रपात के बाद स्त्रियों तथा बच्चों को प्रतिकूल परिस्थितियों में कारखानों में काम करना पड़ा। क्योंकि पुरुषों को बहुत कम मजदूरी मिलती थी जिससे परिवार का खर्च नहीं चल पाता था। उन्हें निरन्तर कई घण्टों तक नीरस काम कठोर अनुशासन में करना पड़ता था तथा साधारण-सी गलतियों पर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था। कारखानों के मालिक पुरुषों की बजाय स्त्रियों और बच्चों को अपने यहाँ काम पर लगाना अधिक पसन्द करते थे। इसके दो कारण थे –
(1) स्त्रियों और बच्चों की मजदूरी कम होती थी तथा
(2) स्त्री एवं बच्चें कठोर और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रायः शान्तिपूर्ण बने रहते थे।

3. सूती कपड़ा उद्योग में स्त्रियों और बच्चों को काम पर लगाना – स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर तथा यार्कशायर नगरों के सूती कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था। रेशम, फीते बनाने और बुनने के उद्योग-धन्धों में और बर्मिंघम के धातु – उद्योगों में बच्चों के साथ-साथ स्त्रियों को ही अधिकतर कारखानों में काम पर लगाया जाता था। कपास कातने की जेनी जैसी अनेक मशीनें तो कुछ इस प्रकार की बनाई गई थीं कि उनमें बच्चे ही अपनी चुस्त उंगिलयों और छोटी कद-काठी के कारण सरलता से काम कर सकते थे। बच्चों को प्रायः कपड़ा मिलों में रखा जाता था क्योंकि वहाँ सटाकर रखी गई मशीनों के बीच से छोटे बच्चे सरलता से आ-जा सकते थे।

4. बच्चों का शोषण – कारखानों में बच्चों से कई घण्टों तक काम लिया जाता था। उन्हें हर रविवार को भी मशीनें साफ करने के लिए काम पर आना पड़ता था। इसके परिणामस्वरूप उन्हें विश्राम करने, ताजा हवा खाने या व्यायाम करने का कभी कोई अवसर नहीं मिलता था। काम करते समय कई बार तो बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे अथवा उनके हाथ कुचल जाते थे। निरन्तर कई घण्टों तक काम करते रहने के कारण बच्चे इतने थक जाते थे कि उन्हें नींद की झपकी आ जाती थी और वे मशीनों में गिरकर मर जाते थे।

5. कोयले की खतरनाक खानों में बच्चों द्वारा काम करना – बच्चों के लिए कोयले की खानों में काम करना बहुत खतरनाक था। खानों की छतें धँस जाती थीं या वहाँ विस्फोट हो जाता था। इससे बच्चों को चोट लगना सामान्य बात थी। कोयला खानों के मालिक कोयले के गहरे अन्तिम छोरों को देखने के लिए संकरे रास्ते पर जाने के लिए, वहाँ बच्चों को ही भेजते थे। छोटे बच्चों को कारखानों में ‘ट्रैपर’ का काम भी करना पड़ता था। कोयला कारखानों में जब कोयला भरे डिब्बे इधर-उधर ले जाये जाते थे, तो वे आवश्यकतानुसार उन दरवाजों को खोलते तथा बन्द करते थे। उन्हें अपनी पीठ पर रख कर कोयले का भारी वजन भी ढोना पड़ता था।

6. कारखानों के मालिकों द्वारा बच्चों से काम लेना – कारखानों के मालिक बच्चों से काम लेना अत्यन्त आवश्यक समझते थे, ताकि वे अभी से काम सीख कर बड़े होकर उनके लिए अच्छा काम कर सकें।

7. स्त्रियों पर प्रभाव – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप स्त्रियों को मजदूरी मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ तथा उनके आत्म-सम्मान में भी वृद्धि हुई। परन्तु इससे उन्हें लाभ कम हुआ और हानि अधिक हुई। उन्हें अपमानजनक परिस्थितियों में काम करना पड़ता था। प्रायः उनके बच्चे पैदा होते ही या बचपन में ही मर जाते थे। उन्हें विवश होकर शहर की गन्दी एवं घिनौनी बस्तियों में रहना पड़ता था।

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प्रश्न 7.
ब्रिटेन में अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध मजदूरों के विरोध- आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन में अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध मजदूरों का विरोध- आन्दोलन इंग्लैण्ड में फैक्ट्रियों में काम करने की कठोर एवं अपमानजनक परिस्थितियों के विरुद्ध राजनीतिक विरोध बढ़ता जा रहा था और मजदूर लोग मताधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। परन्तु ब्रिटिश सरकार ने मजदूरों की माँगों को स्वीकृत करने की बजाय दमनकारी नीति अपनाना शुरू कर दिया।

1. ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति – 1795 ई. में ब्रिटिश संसद ने दो जुड़वाँ अधिनियम पारित किए। इनके अन्तर्गत लोगों को भाषण या लेखन द्वारा सम्राट, संविधान या सरकार के विरुद्ध घृणा या अपमान करने के लिए उकसाना अवैध घोषित कर दिया गया और 50 से अधिक लोगों की अनधिकृत, सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। परन्तु लोगों ने ‘पुराने भ्रष्टाचार’ के विरुद्ध आन्दोलन करना जारी रखा जो मजदूरों को मताधिकार दिए जाने की माँग से संबंधित था। .

2. ब्रेड के लिए दंगे – 1790 के दशक से सम्पूर्ण इंग्लैण्ड में ब्रेड अथवा खाद्य के लिए दंगे होने लगे। गरीब लोगों का मुख्य आहार ब्रैड ही था और इसके मूल्य पर ही उनके रहन-सहन का स्तर निर्भर करता था। आन्दोलनकारियों ने ब्रैड के भण्डारों पर अधिकार कर लिया और उन्हें मुनाफाखोरों द्वारा निर्धारित ऊँची कीमतों से काफी कम मूल्य में बेचना शुरू किया। यह कीमत सामान्य व्यक्ति के लिए उचित थी और नैतिक दृष्टि से भी सही थी। ऐसे दंगे, विशेषकर 1795 ई. में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच चलने वाले युद्ध के दौरान बार- बार हुए परन्तु वे 1840 के दशक तक जारी रहे।

3. चकबन्दी या बाड़ा पद्धति से मजदूरों में असन्तोष – इंग्लैण्ड के लोगों में चकबन्दी या बाड़ा-पद्धति के विरुद्ध भी तीव्र असन्तोष था। इस पद्धति के अन्तर्गत 1770 के दशक से छोटे-छोटे सैकड़ों खेत शक्तिशाली जमींदारों के बड़े फार्मों में मिला दिए गए। इससे गरीब लोगों में घोर असन्तोष उत्पन्न हुआ और उन्होंने औद्योगिक काम देने की माँग की। परन्तु मशीनों के प्रचलन के कारण हजारों की संख्या में हथकरघा बुनकर बेरोजगार हो गए थे तथा गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे।

4. बुनकरों द्वारा हड़ताल – 1790 के दशक से बुनकर लोग अपने लिए न्यूनतम वैध मजदूरी की माँग करने लगे। परन्तु जब ब्रिटिश संसद ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया, तो वे हड़ताल पर चले गए। परन्तु सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए आन्दोलनकारियों को तितर-बितर कर दिया। इससे हताश और क्रुद्ध होकर सूती कपड़े के बुनकरों ने लंकाशायर में पावरलूमों को नष्ट कर दिया। इसका कारण यह था कि वे अपना रोजगार छिन जाने के लिए इन बिजली के करघों को ही उत्तरदायी मानते थे। नोटिंघम में ऊनी वस्त्र उद्योग में भी मशीनों के प्रयोग का प्रतिरोध किया गया। इसी प्रकार लैसेस्टरशायर और डर्बीशायर में भी मजदूरों ने विरोध-प्रदर्शन किये।

5. यार्कशायर में विरोध आन्दोलन – यार्कशायर में ऊन कतरने वालों ने ऊन कतरने के ढाँचों को नष्ट कर दिया। ये लोग अपने हाथों से भेड़ों के बालों को काटते थे। 1830 के दंगों में फार्मों में काम करने वाले, मजदूरों को भी उनके धन्धे के चौपट हो जाने की आशंका पैदा हुई क्योंकि खेती में भूसी से दाना अलग करने के लिए नई खलिहानी मशीनों का प्रयोग शुरू हो गया था। दंगाइयों ने इन खलिहानी मशीनों को नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप नौ दंगाइयों को फाँसी की सजा हुई और 450 लोगों को बन्दियों के रूप में आस्ट्रेलिया भेज दिया गया।

6. लुडिज्म आन्दोलन – इंग्लैण्ड में जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म नामक आन्दोलन चलाया गया। लुडिज्म के अनुयायी मशीनों की तोड़-फोड़ में ही विश्वास नहीं करते थे, बल्कि न्यूनतम मजदूरी आदि अनेक माँगों पर भी जोर देते थे। लुडिज्म के अनुयायियों की माँगें निम्नलिखित थीं –

(i) न्यूनतम मजदूरी प्रदान की जाए
(ii) नारी एवं बाल-श्रम पर नियन्त्रण स्थापित किया जाए
(iii) मशीनों के आविष्कार एवं प्रचलन से बेरोजगार हुए लोगों को काम दिया जाए
(iv) कानूनी तौर पर अपनी माँगें प्रस्तुत करने के लिए उन्हें मजदूर संघ (ट्रेड यूनियन) बनाने का अधिकार दिया जाए।

7. ‘पीटरलू का नर-संहार’ – अगस्त, 1819 में 80,000 लोग अपने लिए लोकतान्त्रिक अधिकारों अर्थात् राजनीतिक संगठन बनाने, सार्वजनिक सभाएँ करने तथा प्रेस की स्वतन्त्रता के अधिकारों की माँग करने हेतु मैनचेस्टर में सेन्टपीटर्स मैदान में इकट्ठे हुए। वे शान्तिपूर्ण थे, परन्तु सरकार ने उनका कठोरतापूर्वक दमन कर दिया। इसे ‘पीटरलू का नरसंहार’ के नाम से पुकारा जाता है। उन्होंने जिन अधिकारों की माँग की थी, उन्हें उसी वर्ष संसद द्वारा ठुकरा दिया गया। परन्तु इससे कुछ लाभ भी हुए। पीटरलू के नरसंहार के बाद ब्रिटिश संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ को अधिक प्रतिनिधित्वकारी बनाए जाने की आवश्यकता उदारवादी राजनीतिक दलों द्वारा अनुभव की गई। 1824-25 ई. में 1795 के जुड़वाँ अधिनियमों को भी निरस्त कर दिया गया।

प्रश्न 8.
ब्रिटिश सरकार द्वारा मजदूरों की दशा सुधारने के लिए बनाए गए कानूनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार द्वारा मजदूरों की दशा सुधारने के लिए बनाए गए कानून धीरे-धीरे मजदूरों में जागृति उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। अन्त में बाध्य होकर सरकार को मजदूरों की दशा में सुधार करने के लिए अनेक कानून बनाने पड़े। ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का वर्णन निम्नानुसार है –
1. 1819 के कानून-1819 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कुछ कानून बनाए गए जिनके अन्तर्गत नौ वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। नौ से सोलह वर्ष की आयु वाले बच्चों से काम कराने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई। परन्तु इस कानून में प्रमुख दोष यह था कि इस कानून का पालन कराने के लिए आवश्यक अधिकारों की व्यवस्था नहीं की गई।

2. 1833 का अधिनियम – 1833 में एक अन्य अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत नौ वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई। बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए और कुछ फैक्ट्री निरीक्षकों की व्यवस्था की गई ताकि अधिनियम के प्रावधानों का उचित प्रकार से पालन कराया जा सके।

3. दस घण्टा विधेयक – 1847 में ‘दस घण्टा विधेयक’ पारित किया गया। इस कानून के अन्तर्गत स्त्रियों और युवकों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए तथा पुरुष श्रमिकों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित कर दिया गया। ये अधिनियम वस्त्र उद्योगों पर ही लागू होते थे, खान उद्योग पर नहीं। ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित, 1842 के खान आयोग ने यह घोषित किया कि खानों में काम करने की परिस्थितियाँ वास्तव में 1833 के अधिनियम के लागू होने से पहले कहीं अधिक खराब हो गई हैं। इसका कारण यह था कि पहले से अधिक संख्या में बच्चों को कोयला खानों में काम पर लगाया जा रहा था।

4. 1842 का खान और कोयला खान अधिनियम – 1842 के खान और कोयला खान अधिनियम के अन्तर्गत दस वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से खानों में नीचे काम लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

5. फील्डर्स फैक्ट्री अधिनियम – फील्डर्स फैक्ट्री अधिनियम ने 1847 में यह कानून बना दिया कि अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

6. त्रुटियाँ – इन कानूनों का पालन फैक्ट्री निरीक्षकों के द्वारा किया जाना था, परन्तु यह एक कठिन और जटिल काम था। निरीक्षकों का वेतन बहुत कम था। प्रायः प्रबन्धक उन्हें रिश्वत देकर सरलता से चुप कर देते थे। दूसरी ओर, बच्चों के माता-पिता भी उनकी आयु के सम्बन्ध में झूठ बोलकर उन्हें काम पर लगवा देते थे ताकि उनकी मजदूरी से परिवार का खर्च चलाने में सुविधा मिले।

प्रश्न 9.
क्या 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिक विकास को ‘औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारना तर्कसंगत है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति – 1970 के दशक तक, इतिहासकार ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग ब्रिटेन में 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिकी विकास व विस्तारों के लिए करते थे। परन्तु उसके पश्चात् इस शब्द के प्रयोग को अनेक आधारों पर चुनौती दी जाने लगी। 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिक विकास को औद्योगिक क्रान्ति की संज्ञा देना तर्क-संगत नहीं – कुछ विद्वानों का विचार है कि 1780 के दशक से 1820 के दशक के बीच हुए औद्योगिक विकास को ‘औद्योगिक क्रान्ति’ की संज्ञा देना तर्क संगत नहीं है। इन विद्वानों का कहना है कि औद्योगीकरण की क्रिया इतनी धीमी गति से होती रही कि इसे क्रान्ति की संज्ञा देना उचित नहीं है। इसके परिणामस्वरूप फैक्ट्रियों में मजदूरों की संख्या अवश्य बहुत अधिक बढ़ गई तथा धन का प्रयोग भी पहले से अधिक व्यापक रूप से होने लगा। इस सम्बन्ध में विद्वानों निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए हैं –

1. इंग्लैण्ड के बड़े-बड़े क्षेत्रों में फैक्ट्रियाँ या खानों का अभाव – उन्नीसवीं शताब्दी शुरू होने के काफी समय बाद तक भी इंग्लैण्ड के बड़े-बड़े क्षेत्रों में कोई फैक्ट्रियाँ या खानें नहीं थीं। इसलिए इसे ‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द की संज्ञा देना उपयुक्त नहीं है। इंग्लैण्ड में परिवर्तन प्रमुख रूप से लन्दन, मैनचेस्टर, बर्मिंघम, न्यूकासल आदि नगरों के चारों ओर हुआ, परन्तु यह परिवर्तन सम्पूर्ण देश में नहीं हुआ।

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2. कपास या लोहा उद्योगों में हुए विकास को क्रान्तिकारी कहना उचित नहीं है- इन विद्वानों का कहना है कि 1780 के दशक से 1820 के दशक तक कपास या लौह उद्योग अथवा विदेशी व्यापार में हुए विकास को क्रान्तिकारी कहना उचित नहीं है। नई मशीनों के कारण सूती वस्त्र उद्योग में जो उल्लेखनीय विकास हुआ, वह एक ऐसे कच्चे माल (कपास) पर आधारित था जो इंग्लैण्ड में बाहर से मँगाया जाता था। इसी प्रकार तैयार माल भी दूसरे देशों में विशेषतः भारत में बेचा जाता था। धातु से निर्मित मशीनें तथा भाप की शक्ति तो उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक दुर्लभ रहीं। 1780 के दशक में ब्रिटेन के आयात-निर्यात में वृद्धि अमरीकी स्वतंत्रता संग्राम के खत्म होने के कारण हुई, न कि औद्योगिक क्रांति के कारण।

3. सतत् औद्योगीकरण का 1815-20 के बाद में दिखाई देना- विद्वानों के अनुसार सतत् औद्योगीकरण 1815-20 से पहले की बजाय बाद में दिखाई दिया था। लाभदायक निवेश उत्पादकता के स्तरों के साथ – साथ 1820 के बाद धीरे-धीरे बढ़ने लगा। 1840 के दशक तक कपास, लोहा और इन्जीनियरिंग उद्योगों से आधे से भी कम औद्योगिक उत्पादन होता था। तकनीकी उन्नति केवल इन्हीं शाखाओं में नहीं हुई, बल्कि वह कृषि उपकरणों तथा मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे अन्य उद्योग-धन्धों में भी देखी जा सकती थी। स्पष्ट है कि ब्रिटेन में औद्योगिक विकास 1815 से पहले की अपेक्षा उसके बाद ही अधिक तीव्र गति से हुआ।

4. क्रांति के साथ प्रयुक्त ‘औद्योगिक’ शब्द सीमित अर्थ वाला है – ब्रिटेन में इस काल में जो रूपान्तरण हुआ वह केवल आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उसका विस्तार इन क्षेत्रों से परे समाज के भीतर भी हुआ। इसके फलस्वरूप ही दो वर्गों – मध्यम वर्ग और मजदूर ( सर्वहारा ) वर्ग को प्रधानता मिली। अतः इसे औद्योगिक क्रांति कहना इस परिवर्तन के आयामों को सीमित करना है।

प्रश्न 10.
औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक एवं आर्थिक परिणामों की विवेचना कीजिए।
अथवा
औद्योगिक क्रान्ति के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक परिणाम – औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक परिणामों का विवेचन निम्नानुसार है –
1. मजदूरों की दयनीय दशा – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप मजदूरों की दशा दयनीय बनी हुई थी। उनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता था परन्तु उन्हें मजदूरी बहुत कम दी जाती थी। मजदूरों को गन्दे मकानों में पशुओं की भाँति जीवन व्यतीत करना पड़ता था।

2. संयुक्त परिवारों का विघटन – मजदूर रोजगार की तलाश में गाँव छोड़कर नगरों में आ गए जिससे संयुक्त परिवार प्रथा विघटित होती चली गई। अब संयुक्त परिवार टूट गए।

3. गन्दी बस्तियों की समस्या – कारखानों के आसपास मजदूरों के परिवार बस गए। वे कच्चे-पक्के झोंपड़ों में रहने लगे। इससे गन्दी बस्तियों का जन्म हुआ।

4. स्वास्थ्य की हानि – मजदूरों को गन्दे कारखानों में काम करना पड़ता था। कारखानों में शुद्ध वायु तथा प्रकाश का अभाव था। गन्दी बस्तियों में रहने तथा शुद्ध पेय जल की व्यवस्था न होने से मजदूर कई प्रकार की बीमारियों के शिकार बन जाते थे।

5. नैतिक पतन – थकावट को दूर करने के लिए मजदूरों को मनोरंजन के रूप में मद्यपान, जुए, वेश्यावृत्ति आदि का सहारा लेना पड़ा। इसके फलस्वरूप उनका नैतिक पतन हुआ।

6. मध्यम वर्ग का उदय – कारखानों के संचालन के लिए पूँजी तथा व्यावसायिक बुद्धि की आवश्यकता थी। मध्यम वर्ग के लोगों के पास पूँजी तथा व्यावसायिक बुद्धि दोनों ही थीं। इसके फलस्वरूप मध्यम वर्ग का उदय हुआ।

7. पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव – जीवन – निर्वाह करने के लिए पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। अतः अब घर सुनसान रहने लगे। स्त्री, पुरुष और बच्चों को आपस में मिलने- जुलने का समय नहीं मिल पाता था।

8. मानव समाज की सुख-सुविधा में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप लोगों के रहन-सहन, खान-पान, वस्त्रादि में परिवर्तन आ गया। अब मानव जीवन को अधिक से अधिक सुखदायक बनाए जाने पर बल दिया जाने लगा।

II. औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक परिणाम – औद्योगिक क्रान्ति के निम्नलिखित आर्थिक परिणाम हुए –
1. औद्योगिक पूँजीवाद का विकास – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप औद्योगिक पूँजीवाद का विकास हुआ। नवीन औद्योगिक व्यवस्था में वही लोग ठहर सके जिनके पास अधिक पूँजी थी।

2. नये नगरों का विकास – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप हजारों भूमिहीन किसान अपने गाँव छोड़कर आजीविका की तलाश में नगरों में आ गए और औद्योगिक केन्द्रों के आसपास रहने लगे। इस प्रकार औद्योगिक केन्द्रों के आसपास नये नगरों का विकास हुआ।

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3. राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि – उद्योग-धन्धों तथा व्यापार की उन्नति के कारण अनेक देशों की राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई।

4. बड़े कारखानों की स्थापना – औद्योगिक क्रान्ति के कारण बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिनमें हजारों लोग एक-साथ काम करते थे। बड़े-बड़े कारखानों में ‘फैक्ट्री पद्धति अपनाई गई।

5. बड़े पैमाने पर उत्पादन – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पादन बहुत बढ़ गया। इंग्लैण्ड में वस्त्र – उद्योग, लौह एवं इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग, जहाज, मशीनों तथा रेलों के उद्योगों में आश्चर्यजनक उन्नति हुई।

6. दैनिक जीवन की वस्तुओं का सस्ता होना – बड़े-बड़े कारखानों में दैनिक आवश्यकता में काम में आने वाली वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाने लगा। परिणामस्वरूप दैनिक जीवन में काम में आने वाली वस्तुएँ सस्ती हो गईं।

7. घरेलू उद्योगों का विनाश – मशीनों से बनी हुई वस्तुएँ घरेलू उद्योगों की वस्तुओं से काफी सस्ती तथा सुन्दर होती थीं। परिणामस्वरूप घरेलू उद्योग-धन्धे नष्ट होते गए।

8. बेरोजगारी की समस्या – घरेलू उद्योग-धन्धों के नष्ट हो जाने से असंख्य लोग बेरोजगार हो गए। एक मशीन कई व्यक्तियों का कार्य कर सकती थी। परिणामस्वरूप घरेलू उद्योगों में लगे हुए कारीगर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गए।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. संयुक्त राज्य अमेरिका की कौनसी सरहद (फ्रंटियर) खिसकती रहती थी-
(अ) पूर्वी
(ब) उत्तरी
(स) पश्चिमी
(द) दक्षिणी।
उत्तर:
(स) पश्चिमी

2. अमेरिका में गृह-युद्ध हुआ –
(अ) 1761-65
(ब) 1861-65
(स) 1961-65
(द) 1865-90
उत्तर:
(ब) 1861-65

3. अमेरिकां के संविधान में व्यक्ति के किस अधिकार को सम्मिलित किया गया-
(अ) जीवन का अधिकार
(ब) शिक्षा का अधिकार
(स) मताधिकार
(द) सम्पत्ति का अधिकार।
उत्तर:
(द) सम्पत्ति का अधिकार।

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4. ब्रिटेन ने संयुक्त राज्य अमेरिका को एक स्वतन्त्र देश के रूप में मान्यता दी –
(अ) 1783 में
(ब) 1883 में
(स) 1781 में
(द) 1791 में।
उत्तर:
(स) 1781 में

5. संयुक्त राज्य अमेरिका के तीसरे प्रेसिडेन्ट थे –
(अ) लायड जार्ज
(ब) थॉमस जैफर्सन
(स) जार्ज बुश
(द) केनेडी।
उत्तर:
(ब) थॉमस जैफर्सन

6. ब्रिटिश लोगों ने फ्रांस के साथ हुई लड़ाई में कनाडा को जीता था –
(अ) 1861
(ब) 1761
(स) 1769
(द) 1763
उत्तर:
(द) 1763

7. संयुक्त राज्य अमेरिका में रेलवे लाइनों के निर्माण के लिए किन श्रमिकों की नियुक्ति हुई –
(अ) चीनी
(ब) भारतीय
(स) अफ्रीकी
(द) ब्रिटिश।
उत्तर:
(अ) चीनी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. उत्तरी अमेरिका के सबसे पहले वाशिंदे 30000 साल पहले ……………….. से आए थे।
2. उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी जमीन पर अपनी मिल्कियत की कोई ……………. महसूस किए बगैर उससे मिलने वाले भोजन और आश्रय से संतुष्ट थे।
3. 18 वीं सदी में पश्चिमी यूरोप के लोगों को अमरीका के मूल निवासी ……………. प्रतीत हुए। महसूस किए बगैर उससे
4. 17 वीं सदी में यूरोपीय लोगों के कुछ समूह ईसाइयत से भिन्न सम्र्रदाय से ताल्लुक रखने की वजह से ……………. के शिकार थे।
5. संयुक्त राज्य अमेरिका की ………………… सरहद सिसकती रहती थी।
उत्तर:
1. एशिया
2. मिल्कियत
3. असभ्य
4. उत्पीड़न
5. पश्चिमी।

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निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये –

1. ‘गोल्ड रश’ उस आपाधापी का नाम है, जिसमें हजारों की संख्या में आतुर यूरोपीय लोग चुटकियों में अपनी तकदीर सँवार लेने की उम्मीद में अमरीका पहुँचे।
2. उच्च अधिकारी अमरीका में मूल वाशिंदों की बेदखली को गलत मानते थे।
3. उत्तरी अमेरिका में मूल निवासी रिजर्वेशन्स में कैद कर दिए गए थे।
4. 1834 के इंडियन री ऑर्गेनाइजेशन एक्ट के द्वारा रिजर्वेशन्स में मूल निवासियों को जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार मिला।
5. 18 वीं सदी के आखिरी दौर में आस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के 350 से 750 तक समुदाय थे।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

Table
उत्तर:
Table

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कनाडा की प्रमुख फसलें कौनसी हैं ?
उत्तर:
गेहूँ, मकई और फल।

प्रश्न 2.
कनाडा का मुख्य उद्योग कौनसा है ?
उत्तर:
मत्स्य उद्योग

प्रश्न 3.
होपी लोग कौन थे ?
उत्तर:
होपी लोग कैलिफोर्निया के पास रहने वाले आदिवासी हैं।

प्रश्न 4.
अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थामस जैफर्सन उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों को क्या मानते थे ?
उत्तर:
असभ्य लोग।

प्रश्न 5.
यूरोपवासी अमरीका से कौनसी वस्तुएँ प्राप्त करना चाहते थे ?
उत्तर:
मछली और रोएँदार खाल।

प्रश्न 6.
अमेरिका के उत्तरी राज्यों और दक्षिणी राज्यों में गृह-युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1861-65 में।

प्रश्न 7.
अमेरिका के कौनसे राज्य दास प्रथा को समाप्त करने के समर्थक थे ?
उत्तर:
उत्तरी राज्य।

प्रश्न 8.
अमरीकी सरकार ने जार्जिया प्रान्त के किस कबीले को नागरिक अधिकार नहीं दिए थे?
उत्तर:
चिरोकी कबीले को।

प्रश्न 9.
अमेरिका के किस राष्ट्रपति ने चिरोकी कबीले के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के आदेश दिए?
उत्तर:
एंड्रिउ जैक्सन ने।

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प्रश्न 10.
उत्तरी अमेरिका के सबसे पहले निवासी कब आए और कहाँ से आए?
उत्तर:
(1) 30,000 वर्ष पूर्व
(2) एशिया से।

प्रश्न 11.
कनाडा को स्वायत्त राज्यों के एक महासंघ के रूप में कब संगठित किया गया ?
उत्तर:
1867 में।

प्रश्न 12.
कैलीफोर्निया में प्राप्त सोने को प्राप्त करने के लिए यूरोपीय लोगों में अमेरिका पहुँचने की होड़ मच गई। इसे क्या कहा गया ?
उत्तर:
‘गोल्ड रश’।

प्रश्न 13.
अमेरिका कब दुनिया की अग्रणी औद्योगिक शक्ति बन गया था ?
उत्तर:
1890 में।

प्रश्न 14.
संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘फ्रंटियर’ की समस्या कब समाप्त हुई ?
उत्तर:
1892 में।

प्रश्न 15.
आस्ट्रेलिया के शहर अधिकतर कहाँ बसे हुए हैं?
उत्तर:
समुद्रतट के साथ।

प्रश्न 16.
आस्ट्रेलिया की राजधानी किसे बनाया गया और कब ?
उत्तर:
1911 में, कैनबरा को।

प्रश्न 17.
‘व्हाई वरन्ट वी टोल्ड’ (‘हमें बताया क्यों नहीं गया’ ) नामक पुस्तक का रचयिता कौन था ?
उत्तर:
हेनरी रेनॉल्ड्स।

प्रश्न 18.
1974 से आस्ट्रेलिया की राजकीय नीति क्या रही है?
उत्तर:
बहुसंस्कृतिवाद।

प्रश्न 19.
आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के अधिकारों के लिए प्रबल आवाज उठाने वाली लेखिका कौन थी ?
उत्तर:
ज्यूडिथ राइट।

प्रश्न 20.
आस्ट्रेलिया के प्रारम्भिक मनुष्य या आदि मानव क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:
‘एबारिजिनीज’।

प्रश्न 21.
यूरोपवासियों द्वारा कनाडा का नामकरण किस प्रकार किया गया ?
उत्तर:
‘कनाडा’ शब्द की उत्पत्ति ‘कनाटा’ से हुई है जिसका अर्थ है – गाँव।

प्रश्न 22.
अमेरिका में ‘सेटलर’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया जाता था ?
उत्तर:
‘सेटलर’ (आबादकार) शब्द अमेरिका में यूरोपीय लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 23.
दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमरीका में यूरोपीय उपनिवेशों की राजभाषा कौनसी थी ?
उत्तर:
कनाडा को छोड़कर इन उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेजी थी। कनाडा में अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रांसीसी भी एक राजभाषा थी।

प्रश्न 24.
उत्तरी अमरीका में किन चीजों का विकास किन लोगों के द्वारा हुआ है?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका में खनन, उद्योग तथा बड़े पैमाने पर खेती का विकास पिछले 200 वर्षों में ही यूरोप, अफ्रीका तथा चीन के आप्रवासियों के द्वारा हुआ है

प्रश्न 25.
‘नेटिव’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
‘नेटिव’ शब्द का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जो अपने वर्तमान निवास-स्थान में ही उत्पन्न हुआ हो।

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प्रश्न 26.
यूरोपीय लोग नेटिव शब्द का प्रयोग किन लोगों के लिए करते थे ?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों तक इस शब्द का प्रयोग यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों के निवासियों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 27.
‘अमरीका की पूर्व सन्ध्या’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘अमरीका की पूर्व सन्ध्या’ से अभिप्राय उस समय से है जब यूरोपीय लोग अमरीका में आए और इस महाद्वीप को उन्होंने अमरीका की संज्ञा दी।

प्रश्न 28.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) उत्तरी अमरीका के मूल निवासी नदी घाटी के गाँवों में समूह बनाकर रहते थे।
(2) वे मछली और माँस खाते थे तथा सब्जियाँ और मकई उगाते थे।

प्रश्न 29.
उत्तरी अमरीका के लोगों ने दक्षिणी अमरीका की भाँति राजशाही और साम्राज्य का विकास क्यों नहीं किया?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका के लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने दक्षिणी अमरीका की भाँति राजशाही तथा साम्राज्य का विकास नहीं किया।

प्रश्न 30.
उत्तरी अमरीका के लोग धरती को किस प्रकार पढ़ सकते थे ?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका के लोग जलवायु और विभिन्न भू-दृश्यों को उसी भाँति समझ सकते थे, जैसे शिक्षित लोग लिखी हुई चीजें पढ़ते हैं।

प्रश्न 31.
‘रेड इण्डियन’ कौन थे?
उत्तर:
‘रेड इण्डियन’ गेहुँए वर्ण के लोग थे, जिनके निवास स्थान को कोलम्बस ने गलती से इण्डिया समझ लिया था।

प्रश्न 32.
उत्तरी अमरीका के लोगों की परम्परा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताइए।
उत्तर:
औपचारिक सम्बन्ध और मित्रता स्थापित करना तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना।

प्रश्न 33.
स्थानीय उत्पादों के बदले में यूरोपीय लोग उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को कौनसी वस्तुएँ देते थे ?
उत्तर:
स्थानीय उत्पादों के बदले में यूरोपीय लोग उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को कम्बल, लोहे के बर्तन, बन्दूकें और शराब देते थे।

प्रश्न 34.
यूरोपवासियों द्वारा मूल निवासियों को शराब से परिचित कराना उनके लिए लाभप्रद सिद्ध क्यों हुआ ?
उत्तर:
क्योंकि इसने उन्हें व्यापार के लिए मूल निवासियों पर अपनी शर्तें थोपने में सक्षम बनाया।

प्रश्न 35.
अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान किन आधारों पर करते थे ?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म तथा शहरीपन के आधार पर करते थे।

प्रश्न 36.
अंग्रेजी के कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बारे में क्या विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर:
“उत्तरी अमरीका के मूल निवासी ‘जंगलों’ में रहते हैं, जहाँ कल्पना शक्ति के पास उन्हें भाव सम्पन्न करने, उन्हें ऊँचा उठाने व परिष्कृत करने के अवसर बहुत कम हैं।”

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प्रश्न 37.
आप ‘वेमपुम बेल्ट’ से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘वेमपुम बेल्ट’ रंगीन सीपियों को आपस में मिलाकर बनायी जाती थी। किसी समझौते के पश्चात् स्थानीय कबीलों के बीच इसका आदान-प्रदान होता था।

प्रश्न 38.
अमरीका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जैफर्सन ने मूल निवासियों के बारे में क्या विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर:
“यह अभागी नस्ल, जिसे सभ्य बनाने के लिए हमने इतनी जहमत उठाई ….अपने उन्मूलन का औचित्य सिद्ध करती है। ”

प्रश्न 39.
जमीन के प्रति यूरोपीय लोगों का दृष्टिकोण मूल निवासियों से किस प्रकार अलग था ?
उत्तर:
मूल निवासी जमीन का मालिक बनने के लिए उत्सुक नहीं थे। परन्तु यूरोपीय लोग जमीन का मालिक बनने के लिए लालायित रहते थे।

प्रश्न 40.
यूरोपीय बागान – मालिकों ने अफ्रीका से दास क्यों खरीदे ?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीकी उपनिवेशों से दास बनाकर लाए गए मूल निवासी बहुत बड़ी संख्या में मर गए थे। इसलिए यूरोपीय बागान मालिकों ने अफ्रीका से दास खरीदे।

प्रश्न 41.
अमरीका के उत्तरी राज्यों और दक्षिणी राज्यों के बीच गृह-युद्ध कब हुआ और क्यों हुआ?
उत्तर:
1861-65 में दास प्रथा को लेकर अमरीका के उत्तरी राज्यों और दक्षिणी राज्यों में गृह-युद्ध हुआ।

प्रश्न 42.
अमरीकी गृह-युद्ध के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
(1) इस गृह-युद्ध में दास प्रथा विरोधियों की जीत हुई।
(2) दास प्रथा समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 43.
कनाडा की सरकार को किस समस्या का सामना करना पड़ा ?
उत्तर:
1763 में ब्रिटिश लोगों ने फ्रांस के साथ हुई लड़ाई में कनाडा को जीता था। वहाँ बसे फ्रांसीसी लोग निरन्तर स्वायत्त राजनीतिक दर्जे की माँग कर रहे थे।

प्रश्न 44.
यूरोप के लोगों ने अमरीका में कौनसी फसलें उगाईं, जिनसे उन्हें बहुत मुनाफा हुआ?
उत्तर:
यूरोप के लोगों ने अमरीका में धान, कपास आदि की फसलें उगाईं, जो यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं तथा जिन्हें ऊँचे मुनाफे पर बेचा जा सकता था।

प्रश्न 45.
अमरीका के उच्च अधिकारी भी मूल निवासियों को उनकी जमीनों से बेदखली को गलत नहीं मानते थे। इसका एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जार्जिया के अधिकारियों ने कहा कि यद्यपि जार्जिया के चिरोकी कबीले के लोग राज्य के कानून से शासित तो होते हैं, परन्तु वे नागरिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते।

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प्रश्न 46.
चिरोकी लोग कौन थे ?
उत्तर:
चिरोकी कबीले के लोग संयुक्त राज्य अमेरिका के जार्जिया प्रान्त में रहते थे। उन्हें नागरिक अधिकार नहीं दिए गए थे।

प्रश्न 47.
1832 में जार्जिया के चिरोकी कबीले के बारे में अमरीका के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल ने क्या निर्णय सुनाया था?
उत्तर:
” चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले क्षेत्र में जार्जिया का कानून लागू नहीं होता। ”

प्रश्न 48.
अमरीकी राष्ट्रपति एन्ड्रिउ जैक्सन ने वहाँ के मुख्य न्यायाधीश की बात मानने से इन्कार करते हुए चिरोकी कबीले के विरुद्ध क्या कार्यवाही की ?
उत्तर:
अमरीकी राष्ट्रपति एन्ड्रिउ जैक्सन ने चिरोकी लोगों को अपनी जमीन से हाँककर विस्तृत अमरीकी भूमि की ओर खदेड़ने के लिए अमरीकी सेना भेज दी।

प्रश्न 49.
जिन लोगों ने अमरीका के मूल निवासियों से जमीनें ले ली थीं, वे किस आधार पर अपने को उचित मानते थे ?
उत्तर:
अमरीकी मूल निवासियों से जमीनें लेने वाले लोग इस आधार पर अपने को उचित ठहराते थे कि मूल निवासी जमीन का अधिकांश प्रयोग करना नहीं जानते।

प्रश्न 50.
यूरोपवासी मूल निवासियों की किस आधार पर आलोचना करते थे ?
उत्तर:
यूरोपवासी मूल निवासियों की इस आधार पर आलोचना करते थे कि वे आलसी हैं, इसलिए बाजार के लिए उत्पादन करने में अपने शिल्प कौशल का प्रयोग नहीं करते हैं।

प्रश्न 51.
एक फ्रांसीसी आगन्तुक ने लिखा था कि ” आदिम जानवरों के साथ-साथ आदिम मनुष्य लुप्त हो जायेंगे।” इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोपवासी अमरीका के मूल निवासियों को असभ्य मानते थे। उनकी मान्यता थी कि अमरीकी मूल निवासी मर-खपने योग्य ही हैं।

प्रश्न 52.
‘रिजर्वेशन्स’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अमरीका के मूल निवासी छोटे इलाकों तक सीमित कर दिए गए थे। इन्हें ‘रिजर्वेशन्स’ (आरक्षण) कहा जाता था।

प्रश्न 53.
अमरीका के मूल निवासियों ने संघर्ष के बाद ही अपनी जमीनों का परित्याग किया था। उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
यह तथ्य इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि अमरीका की सेना ने 1865 से 1890 के बीच मूल निवासियों के निरन्तर होने वाले विद्रोहों का दमन किया था।

प्रश्न 54.
उत्तरी अमरीका में मानवशास्त्र विषय का सूत्रपात कब हुआ और क्यों हुआ ?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका में 1840 के दशक से मानवशास्त्र विषय का सूत्रपात स्थानीय आदिम समुदायों और यूरोप के सभ्य समुदायों के बीच के अन्तर के अध्ययन के लिए हुआ था।

प्रश्न 55.
मानवशास्त्रियों ने अमरीका के मूल निवासियों के विषय में किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया?
उत्तर:
कुछ मानवशास्त्रियों ने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि जिस प्रकार यूरोप में ‘आदिम’ लोग नहीं पाए जाते, उसी प्रकार अमरीकी मूल निवासी भी समाप्त हो जायेंगे।

प्रश्न 56.
‘गोल्ड रश’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘गोल्ड रश’ उस आपाधापी का नाम है जिसमें हजारों की संख्या में यूरोपीय लोग सोना पाने की आशा में अमरीका पहुँचे।

प्रश्न 57.
गोल्ड रश का अमरीका पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
गोल्ड रश के कारण सम्पूर्ण महाद्वीप में रेलवे लाइनों का निर्माण हुआ। 1870 में संयुक्त राज्य अमरीका में तथा 1885 में कनाडा में रेलवे का काम पूरा हुआ।

प्रश्न 58.
उत्तरी अमरीका में उद्योगों के विकास के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) रेलवे के साज-सामान बनाने के लिए।
(2) ऐसे यन्त्रों का उत्पादन करने के लिए जिनसे खेती बड़े पैमाने पर की जा सके।

प्रश्न 59.
” संयुक्त राज्य अमरीका एक साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका था।” उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्षेत्र में उन्नति करने के बाद कुछ ही वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका ने हवाई तथा फिलिपीन्स में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

प्रश्न 60.
संयुक्त राज्य अमरीका के संविधान की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) अमरीका में लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना हुई।
(2) उनके संविधान में व्यक्ति के ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को सम्मिलित किया गया।

प्रश्न 61.
1928 में समाज वैज्ञानिक लेवाइस मेरिअम के निर्देशन में किए गए सर्वेक्षण में क्या बताया गया था?
उत्तर:
इस सर्वेक्षण में रिजर्वेशन्स में रह रहे अमरीका के मूल निवासियों की स्वास्थ्य एवं शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं की दरिद्रता का भयंकर चित्र प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 62.
1934 के ‘इण्डियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट’ के द्वारा अमरीका के मूल निवासियों को क्या अधिकार प्राप्त हुआ ?
उत्तर:
1934 के ‘इण्डियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट’ के द्वारा अमरीका के मूल निवासियों को जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार प्राप्त हुआ।

प्रश्न 63.
1954 में अमरीका के अनेक मूल निवासियों ने किन शर्तों के साथ अमरीका की नागरिकता स्वीकार की थी?
उत्तर:
उनके ‘रिजर्वेशन्स’ वापस नहीं लिए जायेंगे तथा उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।

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प्रश्न 64.
आदि मानव या एबारिजनीज आस्ट्रेलिया में कब आए ?
उत्तर:
आदिमानव या ‘एबारिजनीज’ आस्ट्रेलिया में 40,000 वर्ष पहले आने शुरू हुए।

प्रश्न 65.
आस्ट्रेलिया के उत्तर में रहने वाला समूह क्या कहलाता है? ये कौन लोग हैं?
उत्तर:
आस्ट्रेलिया के उत्तर में रहने वाला समूह टारसस्ट्रेट यपूवासी कहलाता है। ये लोग ‘एबारिजनीज’ नहीं कहलाते क्योंकि ये कहीं और से आए हैं और एक अलग नस्ल के हैं।

प्रश्न 66.
आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति ब्रिटिश लोगों की क्या धारणा थी ?
उत्तर
प्रारम्भ में ब्रिटिश लोगों ने आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के व्यवहार को मित्रतापूर्ण बताया था। कैप्टन कुक की हत्या के बाद ब्रिटिशों ने उनके व्यवहार को हिंसापूर्ण बताया।

प्रश्न 67.
‘व्हाई वरन्ट वी टोल्ड’ में किस बात की कटु आलोचना की गई है ?
उत्तर:
इस पुस्तक में आस्ट्रेलियाई इतिहास-लेखन के उस ढर्रे की कटु आलोचना की गई है जिसमें कैप्टन कुक की खोज से ही इतिहास की शुरुआत मानी जाती है।

प्रश्न 68.
आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों के अध्ययन के लिए किये गये उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) विश्वविद्यालयी विभागों की स्थापना की गई है।
(2) कलादीर्घाओं में देशी कलाओं की दीर्घाएँ सम्मिलित की गई हैं।

प्रश्न 69.
मूल निवासियों की जमीन सम्बन्धी शिकायतों को दूर करने के लिए आस्ट्रेलिया की सरकार द्वारा लिए गए निर्णय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस निर्णय में इस बात को मान्यता दी गई कि मूल निवासियों का जमीन के साथ, मजबूत ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा है और इसका आदर किया जाना चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
साम्राज्यवादी देशों द्वारा अमरीका आदि देशों में उपनिवेश स्थापित करने के क्या कारण थे? उनकी . नियन्त्रण स्थापित करने की प्रकृति में क्या विविधताएँ थीं?
उत्तर:
साम्राज्यवादी देशों द्वारा अमरीका आदि देशों में उपनिवेश स्थापित करने का मूल कारण था –
उपनिवेशों से व्यापार करके मुनाफा कमाना। उनकी नियंत्रण स्थापित करने की प्रकृति में निम्नलिखित विविधताएँ थीं-
(1) दक्षिण एशिया में व्यापारिक कम्पनियों ने अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित की। उन्होंने स्थानीय शासकों को पराजित किया और अपने क्षेत्रों का विस्तार किया। उन्होंने पुरानी प्रशासकीय व्यवस्था जारी रखी तथा भू-स्वामियों से कर वसूल करते रहे। उन्होंने रेलवे का भी निर्माण किया, खदानें खुदवाईं और बड़े-बड़े बागान स्थापित किए।

(2) दक्षिणी अफ्रीका को छोड़कर शेष सम्पूर्ण अफ्रीका में यूरोपवासी हर जगह समुद्र तट पर ही व्यापार करते रहे। 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में ही वे आन्तरिक प्रदेशों में जाने का साहस कर सके। कालान्तर में यूरोपीय देशों के मध्य अपने उपनिवेशों के रूप में अफ्रीका का विभाजन करने का समझौता हो गया।

(3) अमरीकी महाद्वीपों के क्षेत्रों में यूरोप से आए आप्रवासी बसने लगे। इस प्रक्रिया ने वहाँ के बहुत से मूल निवासियों को दूसरे इलाकों जाने पर मजबूर किया गया।

प्रश्न 2.
उत्तरी अमरीका की भौगोलिक स्थिति और विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी अमरीका का महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्करेखा तक और प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक फैला है। पहाड़ों की श्रृंखला के पश्चिम में अरिजोना और नेवाडा के मरुस्थल हैं। थोड़ा और पश्चिम में सिएरा नेवाडा पर्वत है। पूरब में विस्तृत मैदानी प्रदेश, विस्तृत झीलें, मिसीसिपी, ओहियों और अप्पालाचियाँ पर्वतों की घाटियाँ हैं। दक्षिणी दिशा में मैक्सिको है। उत्तर में कनाडा है जिसका 40 प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से ढका है।

प्रश्न 3.
यूरोपीय व्यापारियों का उत्तरी अमरीका जाने का क्या उद्देश्य था ? यहाँ के मूल निवासियों और यूरोपीय लोगों के बीच किन चीजों का आदान-प्रदान होता था ?
उत्तर:
यूरोपीय व्यापारी उत्तरी अमरीका से व्यापार कर भारी मुनाफा कमाना चाहते थे। यूरोपीय व्यापारी यहाँ मछली और रोएंदार खाल के व्यापार के लिए आए थे जिसमें उन्हें कुशल शिकारी देसी लोगों से काफी सहायता मिली। यहाँ के मूल निवासी यूरोपीय व्यापारियों को स्थानीय उत्पाद देते थे। इनके बदले में यूरोपीय लोग वहाँ के मूल निवासियों को कम्बल, लोहे के बर्तन, बन्दूकें और शराब देते थे। मूल निवासी शराब से परिचित नहीं थे, परन्तु शीघ्र ही वे भी शराब पीने के आदी हो गए। यूरोपीय लोगों ने मूल निवासियों से तम्बाकू की आदत ग्रहण की।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के प्रति यूरोपीय लोगों के स्वार्थपूर्ण व्यवहार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय लोग उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को ‘असभ्य’ समझते थे। वहाँ के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उनके लिए मित्रता में दिए गए ‘उपहार’ थे। इसके विपरीत धनी बनने को उत्सुक यूरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खाल मुनाफा कमाने की वस्तुएँ थीं। इन बेची जाने वाली वस्तुओं के मूल्य इनकी पूर्ति के आधार पर प्रति वर्ष बदलते रहते थे। मूल निवासी इसे समझने में असमर्थ थे क्योंकि उन्हें सुदूर यूरोप में स्थित ‘बाजार’ के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

प्रश्न 5.
जंगलों के बारे में अमरीका के मूल निवासियों और यूरोपीय लोगों के दृष्टिकोण में क्या अन्तर था ?
उत्तर:
जंगलों के बारे में अमरीका के मूल निवासियों और यूरोपीय लोगों का अलग-अलग दृष्टिकोण था। मूल निवासियों ने वनों में ऐसे रास्तों की पहचान की जो यूरोपीय लोगों के लिए अदृश्य थे। यूरोपीय लोग कटे हुए जंगल की कल्पना नहीं करते थे, बल्कि वे कटे हुए जंगल के स्थान पर मक्के के खेत देखना चाहते थे। अमरीकी राष्ट्रपति जैफर्सन एक ऐसे देश की कल्पना करते थे जो छोटे-छोटे खेतों वाले यूरोपीय लोगों से आबाद था। मूल निवासी केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए फसलें उगाते थे, न कि बिक्री और मुनाफे के लिए। वे जमीन का ‘मालिक’ बनने को गलत मानते थे।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा कब अस्तित्व में आए ? संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी सीमाओं का किस प्रकार विस्तार किया?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपनी सीमाओं का विस्तार करना संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा अठारहवीं शताब्दी के अन्त में अस्तित्व में आए। उस समय उनके पास वर्तमान क्षेत्रफल का एक छोटा भाग ही था। उन्होंने अगले सौ वर्षों में अपने नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में काफी वृद्धि की। संयुक्त राज्य अमरीका ने कई विशाल क्षेत्रों को खरीद लिया। उसने दक्षिण में फ्रांस (लुइसियाना) तथा रूस (अलास्का) से जमीन खरीदी। इसके अतिरिक्त उसने युद्धों द्वारा भी जमीनें प्राप्त कीं। उदाहरण के लिए, दक्षिणी संयुक्त राज्य अमरीका का अधिकतर हिस्सा मैक्सिको से ही जीता गया है। संयुक्त राज्य अमरीका की पश्चिमी सीमा ( फ्रन्टियर) खिसकती रहती थी और जैसे-जैसे वह खिसकती जाती, मूल निवासियों को भी पीछे खिसकना पड़ता था।

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प्रश्न 7.
“19वीं सदी में अमरीका के भू-दृश्य में जबरदस्त परिवर्तन आया। ” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जमीन के प्रति यूरोपीय लोगों का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे, जो छोटे पुत्र होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। वे इस कारण से अमरीका में जमीनों के मालिक बनना चाहते थे।

(2) कालान्तर में जर्मनी, स्वीडन और इटली से ऐसे आप्रवासी बड़ी संख्या में अमरीका आए, जिनकी जमीनें बड़े किसानों के कब्जे में चली गई थीं। वे ऐसी जमीन चाहते थे जिसे अपना कह सकें।

(3) पोलैण्ड से आए लोग प्रेयरी चरागाहों में काम करना पसन्द करते थे जो उन्हें अपने घरों के स्टेपीज (घास के मैदानों) की याद दिलाते थे। उन्हें यहाँ बहुत कम कीमत पर पड़ी सम्पत्तियाँ खरीदना बहुत रुचिकर लग रहा था।

(4) उन्होंने जमीनों की सफाई की और खेती का विकास किया। उन्होंने धान, कपास आदि फसलें उगाईं जो में नहीं उगाई जा सकती थीं।

(5) अपने खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए उन्होंने शिकार के द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के बाद उन्हें जंगली जानवरों से सुरक्षा प्राप्त हो गई।

प्रश्न 8.
अमरीका में 1861-65 में गृह युद्ध क्यों हुए? इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
यूरोपीयं बागान मालिकों ने अफ्रीका से दास खरीदे। दास प्रथा के विरोधियों ने इसके विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप दासों के व्यापार पर तो प्रतिबन्ध लगा दिया गया, परन्तु जो अफ्रीकी संयुक्त राज्य अमरीका में थे, वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे। संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों ने दास प्रथा को समाप्त करने पर बल दिया। उन्होंने दास प्रथा को एक अमानवीय प्रथा बताया। 1861-65 में दास प्रथा के समर्थक तथा विरोधी राज्यों में गृह-युद्ध छिड़ गया।

परिणाम –
(1) इस गृह-युद्ध में दास प्रथा के विरोधियों की विजय हुई।
(2) संयुक्त राज्य अमरीका में दास- प्रथा समाप्त कर दी गई। परन्तु अफ्रीकी मूल के अमरीकियों को नागरिक स्वतन्त्रताओं हेतु अपने संघर्ष में विजय 20वीं सदी में आकर ही मिल पाई और तभी स्कूलों तथा ट्रेनों-बसों में उन्हें अलग रखने की व्यवस्था समाप्त हुई।

प्रश्न 9.
कनाडाई सरकार के समक्ष प्रमुख समस्या क्या थी और उसका हल किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
कनाडाई सरकार के समक्ष मुख्य समस्या यह थी कि उसे स्वायत्त राजनीतिक दर्जा प्राप्त हो। सन् 1763 ई. में ब्रिटिश लोगों ने फ्रांस के साथ हुई लड़ाई में कनाडा को जीता था। वहाँ फ्रांसीसी आबादकार लगातार स्वायत्त राजनीतिक दर्जे की मांग कर रहे थे। 1867 में कनाडा को स्वायत्त राज्यों के एक महासंघ के रूप में संगठित करके ही इस समस्या का हल निकल पाया।

प्रश्न 10.
आस्ट्रेलिया में मानव निवास के इतिहास का वर्णन कीजिए और वहाँ के मूल निवासियों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
आस्ट्रेलिया में मानव निवास का इतिहास – आस्ट्रेलिया में मानव निवास का इतिहास लम्बा है। वहाँ के आदिमानव जिन्हें ‘एबारिजनीज’ कहते हैं, आस्ट्रेलिया में 40,000 वर्ष पहले आने शुरू हुए थे। वे न्यूगिनी से आए थे। मूल निवासियों की परम्पराओं के अनुसार वे आस्ट्रेलिया नहीं आए थे, बल्कि सदा से यहीं थे। मूल निवासियों के समुदाय – 18वीं सदी के अन्तिम चरण में आस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के 350 से 750 तक समुदाय थे।

हर समुदाय की अपनी भाषा थी। देसी लोगों का एक और विशाल समूह उत्तर में रहता है। इस समुदाय को टारस स्ट्रेट टापूवासी कहते हैं। 2005 में कुल मिलाकर वे आस्ट्रेलिया की आबादी का 2.4 प्रतिशत भाग थे। आस्ट्रेलिया की आबादी छितराई हुई है। आज भी वहाँ के अधिकतर शहर समुद्र तट के साथ-साथ बसे हैं।

प्रश्न 11.
यूरोपवासियों की आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के बारे में क्या धारणाएँ थीं? मूल निवासियों ने यूरोपियों के आगमन को खतरा क्यों नहीं माना?
उत्तर:
यूरोपवासियों की आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के बारे में धारणाएँ – 1770 ई. में ब्रिटिश नाविक कैप्टन कुक ने आस्ट्रेलिया की खोज की थी। कैप्टन कुक तथा उसके साथी आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के मित्रतापूर्ण व्यवहार से बड़े प्रभावित हुए। परन्तु बाद में जब एक मूल निवासी ने हवाई में कैप्टन कुक की हत्या कर दी, तो ब्रिटिश लोगों का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल गया। अब उन्होंने मूल निवासियों के हिंसक व्यवहार की आलोचना करना शुरू कर दिया।

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सभी औपनिवेशिक शक्तियाँ ऐसा ही आचरण करती हैं यूरोपीय लोगों के आगमन को खतरा न मानना-आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों ने यूरोपीय लोगों के आगमन को खतरा नहीं माना। वे यह अनुमान नहीं लगा पाए कि 19वीं और 20वीं शताब्दियों के बीच कीटाणुओं के प्रभाव से, अपनी जमीनें खोने के चलते तथा यूरोपीय लोगों के साथ हुई लड़ाइयों में लगभग 90 प्रतिशत मूल निवासियों को अपने प्राण गँवाने पड़ेंगे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमेरिका में मानव के आगमन के बारे में आप क्या जानते हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए
उत्तर:
उत्तरी अमरीका में मानव का आगमन – उत्तरी अमरीका में सबसे पहले निवासी 30,000 वर्ष पहले बेरिंग स्ट्रेट्स के आर-पार फैले भूमि सेतु के मार्ग से एशिया से आए थे। लगभग 10,000 वर्ष पहले वे आगे दक्षिण की ओर बढ़े। अमरीका में मिलने वाली सबसे प्राचीन मानव कृति एक तीर की नोक 11,000 वर्ष पुरानी है। लगभग 5,000 वर्ष पहले जलवायु में अधिक स्थिरता आने पर मूल निवासियों की जनसंख्या बढ़ने लगी।

उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की प्रमुख विशेषताएँ उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
1. भोजन और शिकार – उत्तरी अमरीका के मूल निवासी नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मछली और मांस खाते थे। वे सब्जियाँ तथा मकई उगाते थे। वे प्रायः मांस की तलाश में लम्बी यात्राएँ करते थे। मुख्य रूप से उन्हें ‘बाइसन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते थे। परन्तु वे उतने ही जानवर मारते थे, जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

2. बड़े पैमाने पर खेती करने में रुचि न होना- उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की बड़े पैमाने पर खेती करने में रुचि नहीं थी। वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने केन्द्रीय तथा दक्षिणी अमरीका की भाँति राजशाही और साम्राज्य का विकास नहीं किया। वे जमीन पर नियन्त्रण स्थापित करने के इच्छुक नहीं थे। वे अपनी जमीन पर अपना स्वामित्व स्थापित करने की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे और उससे प्राप्त होने वाले भोजन और से सन्तुष्ट थे।

3. परम्परा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता – उनकी परम्परा की एक प्रमुख विशेषता औपचारिक सम्बन्ध और मित्रता स्थापित करना तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना था।

4. अनेक भाषाओं का प्रचलित होना- उत्तरी अमरीका में अनेक भाषाएँ बोली जाती थीं, यद्यपि वे लिखी नहीं जाती थीं। उनका विश्वास था कि समय की गति चक्रीय है। प्रत्येक कबीले के पास अपनी उत्पत्ति और इतिहास के ब्यौरे थे, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते आ रहे थे।

5. कुशल कारीगर – उत्तरी अमरीका के मूल निवासी कुशल कारीगर थे। वे सुन्दर कपड़े बनाते थे।

6. जलवायु और भू-दृश्यों की जानकारी – वे जलवायु और विभिन्न भू-दृश्यों को उसी प्रकार समझ सकते थे, जैसे शिक्षित लोग लिखी हुई चीजें पढ़ते हैं।

प्रश्न 2.
संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी जमीन से मूल निवासियों की बेदखली की नीति की विवेचना कीजिए। इस सम्बन्ध में उच्च अधिकारियों की क्या नीति थी?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी जमीन से मूल निवासियों की बेदखली जब संयुक्त राज्य अमरीका ने अपनी बस्तियों का विस्तार करना शुरू किया, तो जमीन की बिक्री के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद मूल निवासियों को वहाँ से हटने के लिए बाध्य या प्रेरित किया गया। उन्हें जो कीमतें दी गईं, वे बहुत कम थीं। ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि अमरीका में रहने वाले यूरोपीय लोगों ने धोखे से मूल निवासियों से उनकी जमीनें ले लीं या उन्हें पैसा देने के सम्बन्ध में अपने वचनों का पालन नहीं किया।

1. उच्च अधिकारियों द्वारा बेदखली का समर्थन करना – संयुक्त राज्य अमरीका के उच्च अधिकारी भी मूल निवासियों की बेदखली को उचित मानते थे। संयुक्त राज्य अमरीका के जार्जिया नामक प्रान्त के उच्च अधिकारियों ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि चिरोकी कबीला राज्य के कानून से शासित तो होता है, परन्तु वे नागरिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते। इन चिरोकी लोगों ने अंग्रेजी सीखने तथा अमरीकी जीवन-शैली को समझने का सर्वाधिक प्रयास किया था। इसके बावजूद उन्हें नागरिक अधिकार प्रदान नहीं किए गए।

2. चिरोकी लोगों को बेदखल करने के लिए सेना का प्रयोग करना – 1832 में संयुक्त राज्य अमरीका के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाया। उन्होंने कहा कि, ” चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले क्षेत्र में जार्जिया का कानून लागू नहीं होता।” वे कुछ मामलों में सर्वप्रभुता – सम्पन्न हैं। परन्तु संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति एंड्रिउ जैक्सन ने मुख्य न्यायाधीश की भावनाओं का सम्मान नहीं किया और चिरोकियों को अपनी जमीन से बेदखल करने के लिए अमरीकी सेना भेज दी। सेना ने लगभग 15 हजार चिरोकियों को जमीन से बेदखल कर दिया। इनमें से एक-चौथाई अपने ‘आँसुओं की राह ‘ (Trail of Tears) की यात्रा में ही मर – खप गए।”

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3. जमीन से बेदखल करने के कार्य को उचित ठहराना -जिन लोगों ने मूल निवासियों की जमीनें प्राप्त कर लीं, वे इस आधार पर अपने को उचित ठहराते थे कि मूल निवासी जमीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते। इसलिए वह जमीन उनके अधिकार में नहीं रहनी चाहिए।

वे इस कारण भी मूल निवासियों की आलोचना करते थे कि वे आलसी हैं और बाजार के लिए उत्पादन करने में अपने शिल्प कौशल का प्रयोग नहीं करते हैं। वे अंग्रेजी सीखने और ‘ढंग के कपड़े पहनने में भी उनकी रुचि नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मूल निवासी वास्तव में ‘मर-खपने’ योग्य ही हैं। खेती के लिए प्रेयरीज साफ की गई और जंगली भैंसों को मार डाला गया। एक फ्रांसीसी आगन्तुक ने लिखा, “आदिम जानवरों के साथ- साथ आदिम मनुष्य लुप्त हो जाएगा।”

4. मूल निवासियों को स्थायी तौर पर दी गई जमीन से भी खदेड़ना – इस बीच मूल निवासी पश्चिम की ओर खदेड़ दिए गए थे। उन्हें स्थायी तौर पर अपनी जमीन दे दी गई थी। परन्तु उनकी जमीन के अन्दर सीसा, सोना या तेल जैसे खनिज के पता चलने पर प्रायः उन्हें उस स्थान से भी बेदखल कर दिया जाता था। प्रायः कई समूहों को मूलतः किसी एक के अधिकार वाली जमीन में ही साझा करने के लिए बाध्य किया जाता था। इससे उनके बीच झगड़े हो जाते थे।

5. रिजर्वेशन्स – अमरीका के मूल निवासी छोटे-छोटे क्षेत्रों में सीमित कर दिए गए थे, जिन्हें ‘रिजर्वेशन्स’ कहा जाता था। ये प्रायः ऐसी जमीन होती थीं जिनके साथ उनका पहले से कोई सम्बन्ध नहीं होता था। ऐसा नहीं है कि मूल निवासियों ने अपनी जमीनें बिना संघर्ष किये समर्पित की हों। संयुक्त राज्य अमरीका की सेना ने 1865 से 1890 के मध्य अनेक विद्रोहों का दमन किया था। कनाडा में 1869 से 1885 के बीच मेटिसों (यूरोपीय मूल निवासियों के वंशज) के सशस्त्र विद्रोह हुए। परन्तु इन लड़ाइयों के पश्चात् उन्होंने हार मान ली थी।

प्रश्न 3.
‘गोल्ड रश’ से क्या अभिप्राय है? इससे उद्योगों को बढ़ावा क्यों मिला?
अथवा
गोल्ड रश के संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक विकास में योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘गोल्ड रश’ से अभिप्राय – लोगों की यह धारणा थी कि उत्तरी अमरीका में पृथ्वी के नीचे सोना हैं। 1840 में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिन्ह मिले। सोना प्राप्ति की लालसा ने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। ‘गोल्ड रश’ उस आपा-धापी का नाम है, जिसमें हजारों यूरोपीय लोग क्षण-भर में धनी बनने की आशा में अमरीका पहुँचे।

1. रेलवे का निर्माण – ‘गोल्ड रश’ ने अमरीका के बहुमुखी आर्थिक विकास को प्रोत्साहन दिया। गोल्ड रश के चलते सम्पूर्ण महाद्वीप में रेलवे लाइनों का निर्माण हुआ। रेलवे लाइनों के निर्माण के लिए हजारों चीनी श्रमिकों की नियुक्ति की गई। संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे का काम 1870 में तथा कनाडा में रेलवे का काम 1885 पूरा हुआ।

2. उद्योगों का विकास – उत्तरी अमरीका में उद्योगों का खूब विकास हुआ। उत्तरी अमरीका में उद्योगों के विकसित होने के दो कारण थे –
(i) रेलवे के साज-सामान बनाने के लिए यहाँ उद्योगों का विकास हुआ ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
(ii) ऐसे यन्त्रों का उत्पादन करने के लिए उद्योगों का विकास हुआ जिनसे बड़े पैमाने की खेती की जा सके।
गोल्ड रश के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमरीका तथा कनाडा, दोनों देशों में औद्योगिक नगरों का विकास हुआ और कारखानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। 1860 में संयुक्त राज्य अमरीका का अर्थतन्त्र अविकसित अवस्था में था। 1890 में वह विश्व की अग्रणी औद्योगिक शक्ति बन चुका था।

3. बड़े पैमाने की खेती का विस्तार – गोल्ड रश से संयुक्त राज्य अमरीका में बड़े पैमाने की खेती का भी विस्तार हुआ। वहाँ बड़े-बड़े इलाके साफ किए गए और उन्हें खेतों के रूप में बदल दिया गया। 1890 तक जंगलो भैंसों का लगभग पूरी तरह से सफाया किया जा चुका था। इस प्रकार शिकार वाली जीवनचर्या भी समाप्त हो गई जिसे मूल निवासी सदियों से जीते आ रहे थे।

4. महाद्वीपीय विस्तार – 1892 में संयुक्त राज्य अमरीका का महाद्वीपीय विस्तार पूरा हो चुका था। प्रशान्त महासागर तथा अटलांटिक महासागर के बीच का क्षेत्र राज्यों में विभाजित किया जा चुका था। अब कोई ‘फ्रंटियर’ नहीं रहा, जो कई दशकों तक यूरोपीय निवासियों को पश्चिम की ओर खींचता रहा था। प्रशान्त महासागर और अटलान्टिक महासागर के बीच का क्षेत्र राज्यों में विभाजित किया जा चुका था। कुछ ही वर्षों में संयुक्त राज्य अमरीका ने हवाई तथा फिलीपीन्स में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए। अब संयुक्त राज्य अमरीका एक साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका था।

प्रश्न 4.
संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार द्वारा मूल निवासियों की भलाई के लिए किये गये कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संयुक्त राज्य अमेरिका में बदलाव की लहर पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार द्वारा मूल निवासियों की भलाई के कार्य 1920 के दशक तक संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार ने मूल निवासियों की भलाई के लिए प्रभावशाली कदम नहीं उठाये। 1928 में समाज वैज्ञानिक लेवाइस मेरिअम के निर्देशन में सम्पन्न हुआ एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ – ‘दि प्राब्लम ऑफ इण्डियन एडमिनिस्ट्रेशन’। इस सर्वेक्षण में रिजर्वेशन्स में रह रहे मूल निवासियों की स्वास्थ्य और शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं के न होने का बड़ा ही करुणाजनक चित्रण प्रस्तुत किया गया था। इस प्रकार उन्हें स्वास्थ्य तथा शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं से वंचित रखा गया। परन्तु कालान्तर में परिवर्तन की लहर आई और संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार ने मूल निवासियों की भलाई के लिए निम्नलिखित कार्य किये –

1. रि- ऑर्गेनाइजेशन एक्ट – मूल निवासियों की करुणाजनक दशा देखकर गोरे अमरीकियों के मन में उनके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई, जिन्हें अपनी संस्कृति का पालन करने से रोका जाता था तथा जिन्हें नागरिकता के लाभों से भी वंचित रखा जाता था। इसने संयुक्त राज्य अमरीका में एक युगान्तरकारी कानून को जन्म दिया। 1934 में इण्डियन रिआर्गेनाइजेशन एक्ट पारित हुआ जिसके द्वारा रिजर्वेशन्स में मूल निवासियों को जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार दिया गया।

2. मूल निवासियों के लिए किए गए विशेष प्रावधानों को समाप्त करने पर विचार करना – 1950 और 1960 के दशकों में संयुक्त राज्य अमरीका तथा कनाडा की सरकारों ने मूल निवासियों के लिए किए गए विशेष प्रावधानों को समाप्त करने का इस आशा से विचार किया कि वे मुख्य धारा में शामिल होंगे, अर्थात् वे यूरोपीय संस्कृति को अपनायेंगे।

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परन्तु मूल निवासी ऐसा नहीं चाहते थे। 1954 में अनेक मूल निवासियों ने अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन ऑफ संजीव पास बुक्स इण्डियन राइट्स’ में इस शर्त के साथ संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता स्वीकार की कि उनके रिजर्वेशन्स वापस नहीं लिए जायेंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। कनाडा में भी कुछ ऐसी ही चीजें हुईं।

3. मूल निवासियों द्वारा सरकार की नीति का विरोध – 1969 में संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार ने घोषणा की कि वह ” आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं देगी।” परन्तु मूल निवासियों ने इसका प्रबल विरोध किया और धरनों-प्रदर्शनों का आयोजन किया। अन्त में, 1982 में एक संवैधानिक धारा के अन्तर्गत मूल निवासियों के वर्तमान आदिवासी अधिकारों तथा समझौता – आधारित अधिकारों को स्वीकृति प्रदान की गई। यद्यपि संयुक्त राज्य अमरीका तथा कनाडा दोनों के मूल निवासियों की संख्या 18वीं सदी के मुकाबले में बहुत कम हो गई है, फिर भी उन्होंने अपनी संस्कृति का पालन करने के अपने अधिकारों की प्रबल दावेदारी की है।

प्रश्न 5.
आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के यूरोपीय लोगों के प्रति दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए और आस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का यूरोपीय लोगों के प्रति दृष्टिकोण – आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का यूरोपीय लोगों के प्रति आरंभिक रूप में दोस्ताना व्यवहार था। यूरोपीय लोगों के आगमन को वहाँ के सभी मूल वाशिंदों ने खतरे की तरह नहीं देखा। लेकिन 19वीं और 20वीं सदी के दरम्यान कीटाणुओं के असर तथा आबादकारों के साथ जमीनों के लिए हुई लड़ाइयों के चलते 90 प्रतिशत मूल वाशिंदों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

आस्ट्रेलिया का आर्थिक विकास – आस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास में बहुत लम्बा समय लगा। पहले भेड़ों के विशाल फार्म और खानें विकसित हुईं। इसके बाद शराब बनाने के लिए अंगूर के बाग और गेहूँ की खेती एक लम्बे समय में और काफी मेहनत से विकसित हो पाए। इसने आस्ट्रेलिया की सम्पन्नता की आधारशिला रखी। 1911 में आस्ट्रेलिया की नई राजधानी बनाने का निश्चय किया गया। प्रारम्भ में राजधानी के लिए ‘वूलव्हीट गोल्ड’ नाम का सुझाव दिया गया परन्तु अन्त में राजधानी का नाम ‘कैनबरा’ रखा गया। कैनबरा एक स्थानीय शब्द ‘कैमबरा’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘ सभा-स्थल’।

मूल निवासियों का कठोर परिस्थितियों में खेतों में काम करना-आस्ट्रेलिया में कुछ मूल निवासियों को कठोर परिस्थितियों में खेतों में काम करना पड़ता था। उन्हें दासों जैसी कठोर परिस्थितियों में काम करना पड़ता था। परन्तु बाद में चीनी आप्रवासियों ने सस्ता श्रम उपलब्ध कराया। कुछ समय बाद सरकार ने चीनी आप्रवासियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया ताकि गैर- गोरों पर निर्भरता न बढ़े। 1974 तक आस्ट्रेलिया के लोगों के मन में यह डर उत्पन्न हो गया था कि दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशिया के ‘गहरी रंगत वाले’ लोग बड़ी संख्या में आस्ट्रेलिया आ सकते हैं। अत: ग़ैर- गोरों को आस्ट्रेलिया आने से रोकने के लिए सरकार ने एक नीति अपनाई।

प्रश्न 6.
आस्ट्रेलिया में आई परिवर्तन की लहर का वर्णन कीजिए। इसके परिणामस्वरूप आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति के अध्ययन के लिए किये गये उपायों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
आस्ट्रेलिया में आई बदलाव की लहर पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
आस्ट्रेलिया में परिवर्तन की लहर – 1968 में एक मानवशास्त्री डब्ल्यू. ई. एच. स्टैनर के एक व्याख्यान से आस्ट्रेलिया के लोगों में जागृति उत्पन्न हुई। व्याख्यान का शीर्षक था – दि ग्रेट आस्ट्रेलियन साइलेंस (महान आस्ट्रेलियाई चुप्पी ) – यह इतिहासकारों की मूल निवासियों के बारे में चुप्पी थी। 1970 के दशक से उत्तरी अमरीका की भाँति आस्ट्रेलिया में भी यहाँ के मूल निवासियों को एक नये रूप में समझने की लालसा पैदा हो चुकी थी। उन्हें विशिष्ट संस्कृतियों वाले समुदायों के रूप तथा प्रकृति और जलवायु को समझने की विशिष्ट पद्धतियों के रूप में समझने की आवश्यकता महसूस की गई।

उन्हें ऐसे समुदायों के रूप में समझा जाना था, जिनके पास अपनी कलाओं, कपड़ा-साजी, चित्रकारी, हस्तशिल्प आदि के कौशल का विशाल भण्डार था। उनका यह भण्डार प्रशंसा करने, सम्मान करने तथा अभिलेखन के योग्य था। इसलिए हेनरी रेनाल्ड्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘व्हाइ वरंट वी टोल्ड ?’ में आस्ट्रेलियाई इतिहास, लेखन की उस पद्धति की आलोचना की गई थी, जिसमें ‘कैप्टन कुक की खोज’ से ही इतिहास की शुरुआत मानी जाती थी।

1. मूल निवासियों की संस्कृतियों के अध्ययन पर बल देना- उसके बाद से आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालयों में विभागों की स्थापना हुई है। कलादीर्घाओं (आर्ट गैलरीज) में तो इस देसी कलाओं की दीर्घाएँ सम्मिलित की गई हैं। इसके अतिरिक्त देसी संस्कृति पर प्रकाश डालने के लिए संग्रहालयों में सज्जित कमरों की व्यवस्था की गई है।

अब मूल निवासियों ने भी अपने जीवन – इतिहासों को लिखना आरम्भ किया है। यह एक प्रशंसनीय प्रयास है। यदि मूल निवासियों की संस्कृतियों के अध्ययन की ओर ध्यान नहीं दिया जाता, समय तक उसका बहुत कुछ हिस्सा भुला दिया गया होता। 1974 से ‘बहुसंस्कृतिवाद’ आस्ट्रेलिया की राजकीय नीति रही है, जिसने मूल निवासियों की संस्कृतियों तथा एशिया के आप्रवासियों की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों को समान आदर दिया है।

2. भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी समस्या – 1970 के दशक से, जब संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों की बैठकों में ‘मानवाधिकार’ शब्द सुनाई पड़ने लगा, आस्ट्रेलिया की जनता को इस बात का बोध हुआ कि आस्ट्रेलिया में यूरोपीय लोगों द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण को औपचारिक बनाने के लिए मूल निवासियों के साथ कोई समझौता – पत्र तैयार नहीं किया गया था। सरकार सदा से आस्ट्रेलिया की जमीन को ‘टेरान्यूलिअस’ बताती आई थी। इसका अर्थ था- ‘जो किसी की नहीं है।’ इसके अतिरिक्त वहाँ अपने आदिवासी सम्बन्धियों से छीने गए मिश्रित रक्त वाले बच्चों का भीषण शोषण किया जाता था।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

आस्ट्रेलियाई जनता द्वारा इन प्रश्नों पर किये गए आन्दोलनों के परिणामस्वरूप दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए-

  • इस बात को मान्यता देना कि मूल निवासियों का जमीन के साथ, सुदृढ़ ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा है और इसका आदर किया जाना चाहिए। जमीन उनके लिए पवित्र है।
  • पिछली गलतियों को मिटाया तो नहीं जा सकता, परन्तु ‘गोरों’ और ‘रंग-बिरंगे लोगों’ को अलग-अलग रखने का प्रयास करके बच्चों के साथ जो अन्याय किया गया है, उसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी माँगी जानी चाहिए।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग Important Questions and Answers.

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बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. लार्ड का घर कहलाता था –
(अ) राजमहल
(ब) वैसल
(स) वर्साई का महल
(द) मेनर।
उत्तर:
(द) मेनर।

2. कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए किस नए वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ?
(अ) सामन्त वर्ग
(ब) योद्धा वर्ग
(स) नाइट वर्ग
(द) पादरी वर्ग।
उत्तर:
(स) नाइट वर्ग

3. लार्ड द्वारा नाइट को दिया गया भूमि का भाग कहलाता था –
(अ) सर्फ
(ब) मेनर
(स) जागीर
(द) फीफ।
उत्तर:
(द) फीफ।

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4. कृषकों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला कर कहलाता था –
(अ) टीथ
(ब) धार्मिक कर
(स) कृषक कर
(द) स्वैच्छिक कर।
उत्तर:
(अ) टीथ

5. इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास हुआ –
(अ) तेरहवीं सदी में
(ब) नौवी सदी में
(स) ग्यारहर्वी सदी में
(द) दसवीं सदी में।
उत्तर:
(स) ग्यारहर्वी सदी में

6. फ्रांस के प्रान्त नारमैंडी के किस ड्यूक ने इंग्लैण्ड पर विजय प्राप्त की थी?
(अ) जेम्स
(ब) चार्ल्स
(स) लुई तेरहवाँ
(द) विलियम।
उत्तर:
(द) विलियम।

7. फ्रांस में समाज में किसने एक चौथा वर्ग बना लिया था?
(अ) शिल्पकारों ने
(ब) व्यवारियों ने
(स) सैनिकों ने
(द) नगरवासियों ने।
उत्तर:
(द) नगरवासियों ने।

8. फ्रांस के नगरों में बनने वाले बड़े चर्च क्या कहलाते थे?
(अ) आबे
(ब) विशाल चर्च
(स) कथीड्रल
(द) वृहद गिरजाघर।
उत्तर:
(स) कथीड्रल

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. सामन्तवाद की पहचान थी-दुर्गों व मेनर-भवन के इर्द-गिर्द ……………….
2. जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामन्तवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में ………………. के उत्तराई्द्ध में हुई।
3. जर्मनी की एक जनजाति ………………. ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया।
4. यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन विशपों और पादरियों द्वारा किया जाता था, जो ………………. के अंग थे।
5. काश्तकार दो तरह के होते थे ………………. (i) स्वतंत्र किसान और (ii) ……………….
उत्तर:
1. कृषि-उत्पादन
2: 11वीं सदी
3. फ्रैंक
4. प्रथम वर्ग
5. सर्फ ( कृषिदास)।

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निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये –

1. तीर्थयात्रा ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी।
2. भिक्षु जिस धार्मिक समुदाय में रहते थे, उसे चर्च कहा जाता था।
3. यूरोप में स्थानीय युद्धों के कारण कुशल अश्व सेना की आवश्यकता ने एक नए वर्ग को बढ़ावा दिया जो लार्ड कहलाते थे।
4. फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव ‘वैसलेज’ प्रथा के कारण था।
5. 9वीं से 16वीं सदी के मध्य चर्च यूरोप में एक मुख्य भूमिधारक और राजनीतिक शक्ति बन गया था।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. असत्य
4. सत्य
5. सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. मेनर (क) फ्रांस के नगरों में बनने वाले बड़े चर्च
2. फीफ (ख) लार्ड का घर
3. टीथ (ग) मठों में रहने वाले अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति
4. कथीड्रल (घ) लार्ड द्वारा नाइट को दिया गया भूमि का भाग
5. भिक्षु (च) कृषकों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला कर

उत्तर:

1. मेनर (ख) लार्ड का घर
2. फीफ (घ) लार्ड द्वारा नाइट को दिया गया भूमि का भाग
3. टीथ (च) कृषकों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला कर
4. कथीड्रल (क) फ्रांस के नगरों में बनने वाले बड़े चर्च
5. भिक्षु (ग) मठों में रहने वाले अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मार्क ब्लाक कौन थे ?
उत्तर:
मार्क ब्लाक (1886 – 1994) फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान थे।

प्रश्न 2.
सामन्ती समाज’ का रचयिता कौन था ?
उत्तर:
मार्क ब्लाक।

प्रश्न 3.
मार्क ब्लाक क्यों प्रसिद्ध थे ?
उत्तर:
सामन्तवाद पर महत्त्वपूर्ण कार्य करने के लिए।

प्रश्न 4.
अभिजात वर्ग का घर क्या कहलाता था ?
उत्तर:
मेनर

प्रश्न 5.
योरोप में काश्तकार कितने प्रकार के होते थे?
उत्तर:
दो प्रकार के –
(1) स्वतन्त्र किसान तथा
(2) कृषि – दास।

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प्रश्न 6.
एंजिललैण्ड किस देश का रूपान्तरण है ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड का।

प्रश्न 7.
1614 के बाद फ्रांस की एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन कब बुलाया गया ?
उत्तर:
1789 ई. में।

प्रश्न 8.
यूरोप में चौथा वर्ग किन लोगों का था ?
उत्तर:
नगरवासियों का।

प्रश्न 9.
इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी से।

प्रश्न 10.
शार्लमैन कौन था ?
उत्तर:
शार्लमैन (742-814 ई.) फ्रांस का राजा था।

प्रश्न 11.
इंग्लैण्ड पर ग्यारहवीं सदी में किस व्यक्ति ने विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर:
नारमैंडी के ड्यूक विलियम ने।

प्रश्न 12.
आबे से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
आबे से तात्पर्य है-मठ।

प्रश्न 13.
1347 और 1350 के मध्य यूरोप पर महामारी का क्या प्रभाव हुआ ?
उत्तर:
यूरोप की आबादी का लगभग 20% भाग नष्ट हो गया।

प्रश्न 14.
15वीं और 16वीं शताब्दी में किन नए शासकों का प्रादुर्भाव हुआ? दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) इंग्लैण्ड में हैनरी सप्तम
(2) फ्रांस में लुई ग्यारहवाँ।

प्रश्न 15.
इंग्लैण्ड में स्थापित संसद के दो सदनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हाउस ऑफ लाईर्ड्स
(2) हाउस ऑफ कामन्स।

प्रश्न 16.
इंग्लैण्ड के किस शासक को मृत्यु – दण्ड देकर वहाँ गणतन्त्र की स्थापना की गई ?
उत्तर:
चार्ल्स प्रथम को।

प्रश्न 17.
फ्रांस के एस्टेट्स जनरल के तीन सदनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग
(3) सामान्य लोगों का वर्ग।

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प्रश्न 18.
विश्व इतिहास में विभिन्न तरीकों से परम्पराएँ बदलने के क्या कारक थे? दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) वैज्ञानिक ज्ञान का विकास
(2) लोक-सेवाओं का निर्माण।

प्रश्न 19.
‘वाइकिंग’ कौन थे?
उत्तर:
वाइकिंग स्कैंडीनेविया के वे लोग थे जो आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य उत्तर-पश्चिमी यूरोप पर आक्रमण करने के बाद वहाँ बस गए थे ।

प्रश्न 20.
तीन वर्ग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तीन वर्ग यूरोप की तीन सामाजिक श्रेणियाँ थीं। ये वर्ग थे –
(1) ईसाई पादरी
(2) भूमि- धारक अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक।

प्रश्न 21.
‘मध्यकालीन युग’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
‘मध्यकालीन युग’ शब्द पाँचवीं और पन्द्रहवीं सदी के मध्य के यूरोपीय इतिहास को इंगित करता है।

प्रश्न 22.
‘सामन्तवाद’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामन्तवाद शब्द जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ है- ‘भूमि का टुकड़ा’। यह ऐसे समाज की ओर इंगित करता है जो फ्रांस और इंग्लैण्ड में विकसित हुआ।

प्रश्न 23.
‘सामन्तवाद’ की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर:
जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामन्तवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक देशों में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई।

प्रश्न 24.
फ्रांस की स्थापना किस प्रकार हुई ?
उत्तर:
जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने रोमन साम्राज्य के गॉल नामक एक प्रान्त को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया।

प्रश्न 25.
फ्रांस में समाज कितने वर्गों में विभाजित था ?
उत्तर:
फ्रांस में समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी
(2) अभिजात
(3) कृषक।

प्रश्न 26.
सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका क्यों थी ?
उत्तर:
भूमि पर अभिजात वर्ग के नियन्त्रण के कारण सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका

प्रश्न 27.
अभिजात वर्ग के दो विशेषाधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अभिजात वर्ग का अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था।
(2) वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे।

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प्रश्न 28.
मेनर की जागीर से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
फ्रांस में लार्ड का घर मेनर कहलाता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। जागीरों में अरण्य भूमि और वन होते थे

प्रश्न 29.
तेरहवीं शताब्दी से दुर्गों का विकास क्यों किया गया ?
उत्तर:
तेरहवीं शताब्दी से कुछ दुर्गों का विस्तार किया गया ताकि नाइट के परिवार के लोग उन दुर्गों में निवास कर सकें।

प्रश्न 30.
मेनर के आत्मनिर्भर न होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) मेनर को नमक, चक्की का पाट तथा धातु के बर्तन बाहर के स्रोतों से प्राप्त करने पड़ते थे।
(2) लार्ड को महँगे साजो-सामान को, दूसरे स्थानों से प्राप्त करना पड़ता था।

प्रश्न 31.
‘फीफ’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
लार्ड ‘नाइट’ को भूमि का एक भाग देता था, जो ‘फीफ’ कहलाता था। फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे।

प्रश्न 32.
फ्रांस में घुमक्कड़ चारण कौन थे ?
उत्तर:
घुमक्कड़ चारण गायक लोग थे।

प्रश्न 33.
फ्रांस में घुमक्कड़ चारणों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
ये लोग फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियाँ गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे।

प्रश्न 34.
कौन लोग पादरी बनने के लिए अयोग्य थे ?
उत्तर:
(1) कृषि – दास तथा शारीरिक रूप से बाधित लोग पादरी नहीं हो सकते थे।
(2) स्त्रियाँ भी पादरी नहीं बन सकती थीं।

प्रश्न 35.
बिशप कौन थे ?
उत्तर:
धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी लार्ड की भाँति बड़ी-बड़ी जागीरें थीं तथा वे शानदार महलों में रहते थे।

प्रश्न 36.
टीथ’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
चर्च को एक वर्ष में कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था। इसे ‘टीथ’ कहा जाता था।

प्रश्न 37.
कैथोलिक चर्च की आय के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:
(1) किसानों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला ‘टीथ’,
(2) धनी लोगों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला दान।

प्रश्न 38.
भिक्षु कौन लोग थे ?
उत्तर:
कुछ अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति एकान्त जीवन जीना पसन्द करते थे। ये लोग मठों में रहते थे जो प्रायः मनुष्य की आम आबादी से बहुत दूर होते थे है।

प्रश्न 39.
‘मोनेस्ट्री’ शब्द से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
‘मोनेस्ट्री’ शब्द ग्रीक भीषा के शब्द ‘मोनोस’ से बना है जिसका अर्थ है – ऐसा व्यक्ति जो अकेला रहता

प्रश्न 40.
पादरियों और भिक्षुओं में क्या अन्तर था ?
उत्तर:
पादरी लोगों के बीच में नगरों और गाँवों में गिरजाघरों में रहते थे परन्तु भिक्षु मठों में रहते हुए एकान्त जीवन पसन्द करते थे।

प्रश्न 41.
मठ किसे कहते थे ?
उत्तर:
कुछ अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति एकान्त जीवन व्यतीत करना पसन्द करते थे। वे धार्मिक समुदायों में रहते थे, जिन्हें मठ कहते थे।

प्रश्न 42.
यूरोप के दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 529 ई. में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट का मठ।
(2) 910 ई. में बरगंडी में स्थापित क्लूनी का मठ।

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प्रश्न 43.
अबेसे हिल्डेगार्ड कौन था ?
उत्तर:
अबेसे हिल्डेगार्ड एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ था। उसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।

प्रश्न 44.
‘फ्रायर’ कौन थे ?
उत्तर:
यूरोप में तेरहवीं शताब्दी से भिक्षुओं के कुछ समूह मठों में नहीं रहते थे तथा विभिन्न स्थानों पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते थे। ये ‘फ्रायर’ कहलाते थे।

प्रश्न 45.
चौदहवीं शताब्दी में मठवाद के महत्त्व में कमी आने के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) भिक्षुओं के द्वारा आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करना
(2) चौसर द्वारा अपनी रचना ‘कैंटरबरी टेल्स’ में भिक्षु–भिक्षुणी तथा फ्रायर का हास्यास्पद चित्रण करना।

प्रश्न 46.
‘टैली कर’ क्या था ?
उत्तर:
टैली एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर था, जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे।

प्रश्न 47.
लार्ड को कृषि – दासों पर क्या एकाधिकार प्राप्त थे
उत्तर:
(1) कृषि दास अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे।
(2) वे उनके तन्दूर में ही रोटी सेंक सकते थे तथा उनकी मदिरा सम्पीडक में ही शराब बना सकते थे।

प्रश्न 48.
मध्यकाल में प्रारम्भ में इंग्लैण्ड की कृषि प्रौद्योगिकी के दो दोष बताइए।
उत्तर:
(1) कृषक का लकड़ी का हल केवल पृथ्वी की सतह को खुरच सकता था।
(2) फसल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था।

प्रश्न 49.
इंग्लैण्ड में मेनरों के लार्ड के विरुद्ध कृषकों ने निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति क्यों अपनाई?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य होना पड़ता था।

प्रश्न 50.
इंग्लैण्ड में नई कृषि प्रौद्योगिकी नीति के अन्तर्गत कृषि में हुए कोई दो परिवर्तन बताइए।
उत्तर:
(1) लोहे के भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का उपयोग होने लगा।
(2) पशुओं को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ।

प्रश्न 51.
मध्यकाल में यूरोप में नगरों के विकास के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) कृषि का विस्तार और जनसंख्या का बढ़ना।
(2) नगरों का वातावरण स्वतन्त्रतापूर्ण था।

प्रश्न 52.
‘श्रेणी’ (गिल्ड) से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
आर्थिक संस्था का आधार ‘ श्रेणी’ (गिल्ड ) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक ‘ श्रेणी’ के रूप में संगठित था। यह उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियन्त्रण रखती थी।

प्रश्न 53.
आप ‘कथीड्रल नगर’ के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर:
बारहवीं सदी में फ्रांस में बड़े- बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा, जो कथीड्रल कहलाते थे। इन चर्चों के चारों तरफ विकसित होने वाले नगर ‘कथीड्रल नगर’ कहलाये।

प्रश्न 54.
कथीड्रल बनाते समय किन दो बातों का ध्यान रखा जाता था ?
उत्तर:
(1) कथीड्रल इस प्रकार बनाए जाते थे कि पादरी की आवाज सभागार में लोगों को स्पष्ट रूप से सुनाई पड़े
(2) लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घण्टियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें।

प्रश्न 55.
यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के दो संकटों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 1315 और 1317 में यूरोप में भयंकर अकाल पड़े।
(2) 1347-1350 के मध्य यूरोप में भीषण महामारी फैल गई।

प्रश्न 56.
यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के संकट के सामाजिक क्षेत्र में पड़े दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:
(1) जनसंख्या में अत्यधिक कमी हो गई तथा मजदूरों की संख्या में अत्यधिक कमी आई।
(2) कृषि और उत्पादन के बीच असन्तुलन हुआ।

प्रश्न 57.
चौदहवीं शताब्दी में हुए कृषकों के विद्रोह के दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) आय कम होने से अभिजात वर्ग ने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया।
(2) उन्होंने पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया।

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प्रश्न 58.
पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी में यूरोपीय शासकों को ‘नए शासक’ क्यों कहा गया ? उत्तर-पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति में वृद्धि की और नए शक्तिशाली राज्यों का निर्माण किया।

प्रश्न 59.
फ्रांस की ‘एस्टेट्स जनरल’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
फ्रांस की ‘एस्टेट्स जनरल’ फ्रांस की परामर्शदात्री सभा थी। इसके तीन सदन थे जो पादरी, अभिजात वर्ग तथा साधारण लोगों का प्रतिनिधित्व करती थी।

प्रश्न 60.
1789 ई. तक फ्रांस की एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन क्यों नहीं बुलाया गया ?
उत्तर:
फ्रांस की एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन 1789 ई. तक नहीं बुलाया गया, क्योंकि फ्रांस के राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 61.
मध्यकालीन यूरोप के पादरी वर्ग (प्रथम वर्ग) को समझाइये
उत्तर:
पादरी लोग चर्च में धर्मोपदेश दिया करते थे। ये लोग ईसाई समाज का मार्गदर्शन करते थे। ये अविवाहित होते थे।

प्रश्न 62.
पाँचवीं शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी तक यूरोप में पर्यावरण का कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
तीव्र सर्दी के कारण फसलों का उपज काल छोटा हो गया और कृषि की उपज कम हो गई। परन्तु 11वीं सदी में तापमान बढ़ने से कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोप में वैसलेज नामक प्रथा क्या थी?
उत्तर:
वैसलेज प्रथा के अन्तर्गत बड़े भू-स्वामी ( अभिजात वर्ग) राजा के अधीन और कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे। अभिजात वर्ग दास व कृषक की रक्षा करता था और बदले में वह उसके प्रति निष्ठावान रहता था। इस प्रकार वैसलेज की प्रथा के कारण फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव रहता था।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोप के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक इतिहास की जानकारी इतिहासकारों को भू- स्वामित्व के विवरणों, मूल्यों, कानूनी मुकदमों जैसी बहुत-सी सामग्री दस्तावेजों के रूप में उपलब्ध थी। इसलिए वे विविध क्षेत्रों के इतिहासों पर उपयोगी कार्य कर सके। उदाहरण के लिए चर्चों में मिलने वाले जन्म, मृत्यु तथा विवाह के अभिलेखों की सहायता से परिवारों और जनसंख्या की संरचना को समझने में सहायता मिली। चर्चों से प्राप्त अभिलेखों से व्यापारिक संस्थाओं के बारे में जानकारी मिली और गीतों तथा कहानियों से त्यौहारों तथा सामुदायिक गतिविधियों के बारे में बोध हुआ।

प्रश्न 3.
मार्क ब्लाक की रचनाओं से सामन्तवाद पर क्या प्रकाश पड़ता है?
उत्तर:
सामन्तवाद पर सर्वप्रथम कार्य करने वाले विद्वानों में से एक फ्रांस के मार्क ब्लाक थे। मार्क ब्लाक का ‘सामन्ती समाज’ यूरोपियों, विशेषकर 900 से 1300 के बीच, फ्रांसीसी समाज के सामाजिक सम्बन्धों और श्रेणियों, भूमि प्रबन्धन तथा उस समय की जन-संस्कृति के बारे में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जानकारी देता है।

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प्रश्न 4.
‘सामन्तवाद’ के बारे में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सामन्तवाद-‘सामन्तवाद’ (Feudalism) जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ है – एक भूमि का टुकड़ा। यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैण्ड तथा दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ। आर्थिक दृष्टि से सामन्त एक प्रकार के कृषि उत्पाद की ओर संकेत करता है जो सामन्त तथा कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित है। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लार्ड (सामन्त ) के खेतों पर कार्य करते थे।

इस प्रकार कृषक लार्ड को – सेवा प्रदान करते थे तथा बदले में लार्ड उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान करते थे। इसके अतिरिक्त लार्ड को कृषकों पर न्यायिक अधिकार भी प्राप्त थे। इस प्रकार सामन्तवाद ने कृषकों के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन पर अधिकार कर लिया था। श्रम-ऐसा माना जाता है कि जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामन्तवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में गयारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई।

प्रश्न 5.
फ्रांस और इंग्लैण्ड किस प्रकार अस्तित्व में आए ?
उत्तर:
गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। इसमें दो विस्तृत तट रेखाएँ, पर्वत – श्रेणियाँ, लम्बी नदियाँ, वन और कृषि करने के लिए विस्तृत मैदान थे। जर्मनी की फ्रैंक नामक एक जनजाति ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया। छठी शताब्दी से इस प्रदेश पर फ्रैंकिश अथवा फ्रांस के ईसाई राजा शासन करते थे। फ्रांसीसियों के चर्च के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध थे। ये सम्बन्ध पोप द्वारा फ्रांस के सम्राट शार्लमैन को ‘पवित्र रोमन सम्राट’ की उपाधि दिए जाने पर और अधिक सुदृढ़ हो गए। ग्यारहवीं शताब्दी में फ्रांस के नारमंडी नामक प्रान्त के राजकुमार विलियम ने एक संकरे जलमार्ग के पार स्थित इंग्लैण्ड- स्काटलैण्ड के द्वीपों पर अधिकार कर लिया। छठी शताब्दी में मध्य यूरोप से ऐंजिल और सेक्सन इंग्लैण्ड में आकर बस गए थे। इंग्लैण्ड देश का नाम ‘एंजिल लैण्ड’ का रूपान्तरण है।

प्रश्न 6.
मध्यकालीन यूरोप में मठों में रहने वाले भिक्षुओं के जीवन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भिक्षु – भिक्षु कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक श्रेणी थी। ये अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे तथा एकान्त जीवन जीना पसन्द करते थे। वे धार्मिक समुदायों में रहते थे जिन्हें एबी या मठ कहते थे। ये मठ अधिकतर मनुष्य की सामान्य आबादी से बहुत दूर होते थे। मध्यकालीन यूरोप के दो सबसे प्रसिद्ध मठों में एक मठ 529 में इटली में स्थापित सेन्ट बेनेडिक्ट था तथा दूसरा 910 में बरगंडी में स्थापित क्लूनी का मठ था।

भिक्षुओं का जीवन – मध्यकालीन यूरोप के भिक्षु अपना सारा जीवन ऐबी में रहने और अपना समय प्रार्थना करने तथा अध्ययन एवं कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेते थे। भिक्षु का जीवन पुरुष और स्त्री दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को ‘मोंक’ तथा स्त्रियों को ‘नन’ कहा जाता था। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग मठ थे। पादरियों की भाँति भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोप के भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए बनाए गए नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बेनेडिक्टीन मठों में भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक होती थी जिसमें नियमों के 73 अध्याय थे। भिक्षुओं द्वारा इन नियमों का पालन कई सदियों तक किया जाता रहा। इनमें से कुछ नियम इस प्रकार हैं –
(1) भिक्षुओं को बोलने की आज्ञा कभी-कभी ही दी जानी चाहिए।
(2) विनम्रता का अर्थ है-आज्ञा-पालन।
(3) किसी भी भिक्षु को निजी सम्पत्ति नहीं रखनी चाहिए।
(4) आलस्य आत्मा का शत्रु है। इसलिए भिक्षु भिक्षुणियों को निश्चित समय में शारीरिक श्रम और निश्चित घण्टों में पवित्र पाठ करना चाहिए।
(5) मठों का निर्माण इस प्रकार करना चाहिए कि आवश्यकता की सभी वस्तुएँ- जल, चक्की, उद्यान, कार्यशाला आदि सभी उसकी सीमा के अन्दर हों।

प्रश्न 8.
मध्यकालीन यूरोप के समाज पर चर्च का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
यद्यपि यूरोपवासी ईसाई बन गए थे, परन्तु उन्होंने अभी भी कुछ सीमा तक चमत्कार और रीति-रिवाज से जुड़े अपने पुराने विश्वासों को नहीं त्यागा था। चौथी शताब्दी से ही क्रिसमस तथा ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे। 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाले ईसा मसीह के जन्म दिन ने एक पुराने पूर्व- रोमन त्यौहार का स्थान ले लिया था। इस तिथि की गणना सौर- पंचांग के आधार पर की गई थी। ईस्टर ईसा के शूलारोपण तथा उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था।

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इसने एक प्राचीन त्यौहार का स्थान ले लिया था जो लम्बी सर्दी के बाद बसन्त के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता था। यद्यपि यह दिन प्रार्थना करने के लिए था, परन्तु लोग सामान्यतः इसका अधिकतर समय मौज-मस्ती करने और दावतों में बिताते थे। तीर्थयात्रा ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग थी। अतः बहुत से लोग शहीदों की समाधियों अथवा बड़े गिरजाघरों की लम्बी यात्राओं पर जाते थे।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोप में कृषि – दासों द्वारा लार्ड को दी गई सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन यूरोप में कृषि – दासों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि – दास अपने जीवन – निर्वाह के लिए जिन भू-खण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को ही मिलती थी। कृषि-दास उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे, जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थे। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी।

कृषि – दासों पर अनेक प्रतिबन्ध लगे हुए थे। वे लार्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। कृषि – दास केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे, उनके तन्दूर में ही रोटी सेंक सकते थे तथा उनकी मदिरा – सम्पीडक में ही मदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे। लार्ड को कृषि – दास का विवाह तय करने का भी अधिकार था। वह कृषि – दास की पसन्द को भी अपना आशीर्वाद दे सकता था, परन्तु इसके लिए कृषि – दास से शुल्क लेता था।

प्रश्न 10.
मध्यकालीन यूरोप में स्वतन्त्र कृषकों की दशा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्वतन्त्र कृषक अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में रखते थे। पुरुषों को सैनिक सेवा भी देनी पड़ती थी। कृषकों के परिवारों को लार्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन ‘ श्रम – अधिशेष’ कहलाता था। यह ‘श्रम – अधिशेष’ सीधे लार्ड के पास जाता था। इसके अतिरिक्त उनसे गड्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना, बाड़ बनाना, सड़कों व इमारतों की मरम्मत करने आदि कार्य करने की भी आशा की जाती थी ।

इन कार्यों के लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। स्त्रियों और बच्चों को खेतों में सहायता करने के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे सूत कातते, कपड़ा बुनते, मोमबत्ती बनाते तथा लार्ड के उपयोग के लिए अंगूरों से रस निकाल कर शराब तैयार करते थे । कृषकों को एक प्रत्यक्ष कर ‘टैली’ भी राजा को देना पड़ता था, जबकि पादरी वर्ग तथा अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे।

प्रश्न 11.
इंग्लैण्ड में सामन्तवाद के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास – सामन्तवाद का विकास इंग्लैंड में 11वीं सदी से हुआ। ग्यारहवीं शताब्दी में फ्रांस के एक प्रान्त नारमैंडी के ड्यूक विलियम ने इंग्लैण्ड पर आक्रमण किया और वहाँ के सैक्शन राजा को पराजित कर दिया और इंग्लैण्ड पर अधिकार कर लिया। विलियम प्रथम ने देश की भूमि नपवाई, उसके नक्शे तैयार करवाये और उसे अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया।

ये लार्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए। इनसे राजा सैन्य सहायता की आशा करता था। वे राजा को कुछ नाइट देने के लिए बाध्य थे। शीघ्र ही लार्ड नाइटों को कुछ भूमि उपहार में देने लगे और बदले में वे उनसे उसी प्रकार सेवा की आशा रखते थे जैसी वे राजा से करते थे। परन्तु वे अपने निजी युद्धों के लिए नाइटों का उपयोग नहीं कर सकते थे। क्योंकि इस पर इंग्लैण्ड में प्रतिबन्ध था। ऐंग्लो-सेक्सन कृषक विभिन्न स्तरों के भूस्वामियों के काश्तकार बन गए।

प्रश्न 12.
पाँचवीं शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी तक यूरोप में पर्यावरण का कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप का अधिकांश भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था। अतः कृषि के लिएं उपलब्ध भूमि सीमित थी। इसके अतिरिक्त अत्याचारों से बचने के लिए कृषक वहाँ से भाग कर वनों में आश्रय प्राप्त कर सकते थे। इस समय यूरोप में भीषण शीत का दौर चल रहा थ। इससे सर्दियाँ प्रचण्ड और लम्बी अवधि की हो गई थीं।

इससे फसलों का उपज – काल भी छोटा हो गया था। इसके कारण कृषि की उपज कम हो गई। ग्यारहवीं शताब्दी से यूरोप में गर्मी का दौर शुरू हो गया और औसत तापमान बढ़ गया जिसका कृषि पर अच्छा प्रभावं पड़ा। अब कृषकों को कृषि के लिए लम्बी अवधि मिलने लगी। मिट्टी पर पाले का प्रभाव कम होने से खेती आसानी से की जा सकती थी। इसके परिणामस्वरूप यूरोप के अनेक भागों में वन- -क्षेत्रों में कमी हुई जिसके फलस्वरूप कृषि भूमि का विस्तार · हुआ।

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प्रश्न 13.
“प्रारम्भ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म की थी। ” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
11वीं शताब्दी से पूर्व यूरोप में कृषि की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) प्रारम्भ में किसानों के पास केवल बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था। यह हल केवल पृथ्वी की सतह को खुरच ही सकता था । यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था। इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था । भूमि को प्रायः चार वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था जिसके लिए अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी।

(2) उस समय फसल-चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था। भूमि को दो भागों में बाँट दिया जाता था। एक भाग में शरद् ऋतु में सर्दी का गेहूँ बोया जाता था, जबकि दूसरी भूमि को परती या खाली रखा जाता था। अगले वर्ष परती भूमि पर राई बोई जाती थी, जबकि दूसरा आधा भाग खाली रखा जाता था। इस व्यवस्था के कारण मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा और प्रायः अकाल पड़ने लगे। दीर्घकालीन कुपोषण और विनाशकारी अकालों से गरीबों के लिए जीवन अत्यन्त मुश्किल हो गया।

प्रश्न 14.
मध्यकालीन यूरोप में कृषि सम्बन्धी समस्याओं के कारण लार्डों तथा कृषकों के बीच विवाद क्यों उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में लार्ड अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। चूँकि भूमि का उत्पादन बढ़ाना सम्भव नहीं था, इसलिए कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य होना पड़ता था। यह कार्य करने के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से अधिक समय देना पड़ता था। कृषक इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकते थे। चूँकि उनमें खुलकर विरोध करने की सामर्थ्य नहीं थी, इसलिए उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का सहारा लिया।

वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे और उस परिश्रम का अधिकतर उत्पाद अपने पास रखने . लगे। वे बेगार करने से भी संकोच करने लगे। चरागाहों तथा वन- -भूमि के कारण उनका उन लार्डों के साथ विवाद होने लगा। लार्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति समझते थे जबकि कृषक इसको सम्पूर्ण समुदाय की साझी सम्पदा मानते थे।

प्रश्न 15.
ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नये प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नये प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के निम्नलिखित परिणाम हुए –
(1) विभिन्न सुधारों से भूमि की प्रत्येक इकाई में होने वाले उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई। फलस्वरूप भोजन की उपलब्धता दुगुनी हो गई।
(2) आहार में मटर और सेम का अधिक उपयोग अधिक प्रोटीन का स्रोत बन गया।
(3) पशुओं को भी अच्छा चारा मिलने लगा।
(4) कृषक अब कम भूमि पर अधिक भोजन का उत्पादन कर सकते थे।
(5) तेरहवीं सदी तक एक कृषक के खेत का औसत आकार सौ एकड़ से घट कर बीस से तीस एकड़ तक रह गया। छोटी जोतों पर अधिकतर कुशलता से कृषि की जा सकती थी और उसमें कम श्रम की आवश्यकता थी। इससे कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय मिल गया।

प्रश्न 16.
मध्यकालीन यूरोप में प्रौद्योगिकी परिवर्तनों में लगने वाली धन-सम्बन्धी समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में कुछ प्रौद्योगिकी परिवर्तनों में अत्यधिक धन लगता था। कृषकों के पास पनचक्की तथा पवन चक्की स्थापित करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था । इस सम्बन्ध में पहल लार्डों द्वारा की गई। परन्तु कृषक भी कुछ मामलों में पहल करने में सक्षम रहे। उदाहरण के लिए, उन्होंने खेती – योग्य भूमि का विस्तार किया । उन्होंने फसलों की तीन चक्रीय व्यवस्था को अपनाया और गाँवों में लोहार की दुकानें तथा भट्टियाँ स्थापित कीं। यहाँ पर लोहे की नोक वाले हल तथा घोड़ों की नाल बनाने और मरम्मत करने का काम सस्ती दरों पर किया जाने लगा।

प्रश्न 17.
ग्यारहवीं शताब्दी में लार्डों तथा कृषकों के बीच व्यक्तिगत सम्बन्ध क्यों कमजोर पड़ गए ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में कथीड्रलों का निर्माण- मध्यकालीन यूरोप में कथीड्रलों का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि पादरी की आवाज कथीड्रल में लोगों के एकत्रित होने वाले सभागार में स्पष्ट रूप से सुनाई दे सके और भिक्षुओं का गायन भी अधिक मधुर सुनाई पड़े। इस प्रकार का भी प्रावधान रखा जाता था कि लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घण्टियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें।

खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग होता था। दिन के समय सूर्य की रोशनी उन्हें कथीड्रल के अन्दर मौजूद व्यक्तियों के लिए चमकदार बना देती थी। सूर्य अस्त होने के बाद मोमबत्तियों की रोशनी उन्हें बाहर के व्यक्तियों के लिए स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला भवन बनाती थी। अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बने चित्र बाइबल की कथाओं से सम्बन्धित थे जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़ सकते थे

प्रश्न 23.
एबट सुगेर ने पेरिस के निकट सेन्ट डेनिस में स्थित आबे के बारे में क्या विवरण दिया है?
उत्तर:
एबट सुगेर ने पेरिस के निकट सेन्ट डेनिस में स्थित आबे के बारे में लिखा है कि विभिन्न क्षेत्रों से आए अनेक विशेषज्ञों के अत्यन्त कुशल हाथों से अनेक प्रकार की शानदार नई खिड़कियों की पुताई करवाई, क्योंकि ये खिड़कियाँ अपने अद्भुत निर्माण तथा अत्यधिक महँगे रंजित एवं सफायर काँच के कारण बहुत मूल्यवान थीं। इसलिए उनकी रक्षा के लिए हमने एक सरकारी प्रधान शिल्पकार और स्वर्णकार को नियुक्त किया। वे अपना वेतन वेदिका से सिक्कों के रूप में और आटा अपने भाई-बन्धुओं के सार्वजनिक भण्डार से प्राप्त कर सकते थे। वे उन कला- देखभाल के कर्त्तव्यों की अवहेलना कभी नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 24.
चौदहवीं सदी के शुरू में यूरोप में पड़े भीषण अकालों के लिए कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी
उत्तर:
उत्तरी यूरोप में तेरहवीं सदी के अन्त तक पिछले तीन सौ वर्षों की तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान तेज ठण्डी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया था। परिणामस्वरूप उपज वाले मौसम छोटे हो गए तथा ऊँची भूमि पर फसल उगाना काफी कठिन हो गया। तूफानों और सागरीय बाढ़ों के कारण अनेक फार्म-प्रतिष्ठान नष्ट हो गए जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को करें द्वारा कम आय हुई तेरहवीं सदी के पूर्व की अनुकूल जलवायु के कारण अनेक जंगल तथा चरागाह कृषि भूमि में बदल गए।

परन्तु गहन जुताई ने फसलों के तीन क्षेत्रीय फसल चक्र के प्रचलन के बावजूद भूमि को कमजोर बना दिया। भूमि के कमजोर होने का कारण उचित भू-संरक्षण का अभाव था। चरागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में भारी कमी आ गई। दूसरी ओर जनसंख्या इतनी तीव्र गति से बढ़ी कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए। इसके परिणामस्वरूप यूरोपवासियों को अकालों का सामना करना पड़ा। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भीषण अकाल पड़े। इसके पश्चात् 1320 के दशक में अनगिनत पशुओं की मौतें हुईं।

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प्रश्न 25.
चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में फैली महामारियों का वर्णन कीजिए। इनके क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
बारहवीं तथा तेरहवीं सदी में वाणिज्य – व्यापार में विस्तार के कारण दूर देशों से व्यापार करने वाले पोत यूरोप के तटों पर आने लगे। पोतों के साथ-साथ बड़ी संख्या में चूहे भी आ गए जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण ( Black Death) लाए। अतः पश्चिमी यूरोप 1347 और 1350 के बीच महामारी से अत्यधिक प्रभावित हुआ। आधुनिक विद्वानों के अनुसार यूरोप की आबादी का लगभग 20% भाग मौत के मुँह में चला गया।

कुछ स्थानों पर तो मौत के मुँह में जाने वाली संख्या वहाँ की जनसंख्या का 40% तक थी। व्यापार केन्द्र के होने के कारण, नगर महामारी से सर्वाधिक प्रभावित हुए। मठों तथा आश्रमों में जब एक व्यक्ति प्लेग की चपेट में आ जाता था, तो वहाँ रहने वाले सभी व्यक्ति महामारी के शिकार बन जाते थे । परिणामस्वरूप कोई भी व्यक्ति महामारी से नहीं बच पाता था। इस प्लेग के पश्चात् 1360 और 1370 में प्लेग की कुछ छोटी-छोटी घटनाएँ हुईं। इस महामारी के कारण यूरोप की जनसंख्या 1300 ई. में 730 लाख से घटकर 1400 ई. में 450 लाख रह गई।

प्रश्न 26.
यूरोप में फैली महामारी के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
यूरोप में फैली महामारी के निम्नलिखित परिणाम हुए –
(1) इस विनाश – लीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।
(2) जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की संख्या में अत्यधिक कमी आ गई।
(3) कृषि और उत्पादन के बीच भारी असन्तुलन पैदा हो गया। क्योंकि इन दोनों ही कार्यों में पर्याप्त संख्या में लग सकने वाले लोगों में भारी कमी आ गई थी।
(4) खरीददारों की कमी के कारण कृषि उत्पादों के मूल्यों में कमी आई।
(5) प्लेग के बाद इंग्लैण्ड में मजदूरों, विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई।

प्रश्न 27.
चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में कृषकों के विद्रोहों का वर्णन कीजिए। इन विद्रोहों के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में कृषकों के विद्रोह – चौदहवीं शताब्दी में पड़े अकालों, महामारी, आर्थिक मन्दी आदि के कारण यूरोप के लार्डों की आय काफी कम हो गई। मजदूरों की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों में कमी ने अभिजात वर्ग की आय को कम कर दिया। इससे उनमें निराशा आ गई और उन्होंने उन धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया जिसे उन्होंने हाल ही में सम्पन्न किया था। उन्होंने पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया। इससे कृषकों में असन्तोष उत्पन्न हुआ और उन्होंने विशेषकर पढ़े-लिखे तथा समृद्ध कृषकों ने विद्रोह कर दिया। 1323 में कृषकों ने फ्लैंडर्स में, 1358 में फ्रांस में तथा 1381 में इंग्लैण्ड में विद्रोह किए।

प्रश्न 28.
चौदहवीं शताब्दी में हुए कृषकों के विद्रोहों के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी में हुए कृषकों के विद्रोहों के निम्नलिखित परिणाम हुए-
(1) यद्यपि इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया, परन्तु इससे स्पष्ट हो गया कि कृषक पिछली संदियों हुए लाभों को बचाने के लिए प्रयत्नशील थे।
(2) इन विद्रोहों की तीव्रता ने यह सुनिश्चित कर दिया कि पुराने सामन्ती सम्बन्धों को पुनः थोपा नहीं जा सकता। धन अर्थव्यवस्था काफी अधिक विकसित थी, जिसे पलटा नहीं जा सकता था।
(3) यद्यपि लार्डों ने कृषक – विद्रोहों का दमन कर दिया, परन्तु कृषकों ने यह सुनिश्चित कर लिया कि दासता का युग पुनः नहीं लौट सकेगा।

प्रश्न 29.
पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं सदियों में यूरोप में शक्तिशाली राज्यों का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राज्यों का प्रादुर्भाव – पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक तथा आर्थिक शक्ति में काफी वृद्धि कर ली। उनके द्वारा निर्मित शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक परिवर्तनों के समान ही महत्त्वपूर्ण थे। इसी कारण इतिहासकारों ने इन राजाओं को ‘नए शासक’ की संज्ञा दी। फ्रांस में लुई ग्यारहवें आस्ट्रिया में मैक्समिलन, इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम तथा स्पेन में इजाबेला और फर्डीनेण्ड निरंकुश शासक थे। उन्होंने संगठित स्थायी सेनाओं, स्थायी नौकरशाही तथा राष्ट्रीय कर – र- प्रणाली की स्थापना की। स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की योजनाएँ बनाईं।

प्रश्न 30.
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राजतन्त्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. सामाजिक परिवर्तन – जागीरदारी तथा सामन्तशाही वाली सामन्त प्रथा के विलय और आर्थिक विकास की धीमी गति ने यूरोप के शासकों को प्रभावशाली बनाया। शासकों ने सामन्तों से अपनी सेना के लिए कर लेना बन्द कर दिया और उसके स्थान पर बन्दूकों तथा बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना का गठन किया जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी। राजाओं की शक्तिशाली सेना के कारण अभिजात वर्ग उनका विरोध करने में असमर्थ रहा।

2. करों में वृद्धि से शासकों की आय में वृद्धि -करों में वृद्धि करने से यूरोप के शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ। इसके फलस्वरूप वे पहले से बड़ी सेनाएँ रखने में समर्थ हुए। सेना की सहायता से उन्होंने अपने राज्य में होने वाले आन्तरिक विद्रोहों का भी दमन कर दिया।

प्रश्न 31.
इंग्लैण्ड में हुए राजनीतिक परिवर्तन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में राजनीतिक परिवर्तन- इंग्लैण्ड में नारमन – विजय से भी पहले ऐंग्लो-सेक्सन लोगों की एक महान परिषद होती थी। अपनी प्रजा पर कर लगाने से पहले राजा को महान परिषद की सलाह लेनी पड़ती थी। यह परिषद कालान्तर में पार्लियामेन्ट के रूप में विकसित हुई जिसमें ‘हाउस ऑफ लाईस’ तथा ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ शामिल थे। इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स प्रथम (1629 – 1640 ) ने पार्लियामेन्ट का अधिवेशन बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया।

धन की आवश्यकता पड़ने पर एक बार उसे पार्लियामेन्ट का अधिवेशन बुलाना पड़ा। इस अवसर पर पार्लियामेन्ट के एक भाग ने राजा का विरोध किया। बाद में चार्ल्स प्रथम को मृत्यु – दण्ड देकर इंग्लैण्ड में गणतन्त्र की स्थापना की गई। परन्तु यह व्यवस्था अधिक समय तक नहीं चल सकी और राजतन्त्र की पुनः स्थापना इस शर्त पर की गई कि अब पार्लियामेन्ट नियमित रूप से बुलायी जायेगी।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज कितने सामाजिक वर्गों में बंटा हुआ था? मध्यकाल के अन्त में कौन- सा नया वर्ग इन समाजों में उदय हुआ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन सामाजिक वर्गों में बंटा हुआ था। ये सामाजिक वर्ग निम्नलिखित थे –
(1) प्रथम वर्ग – पादरी वर्ग-पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में रखा था। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। जो पुरुष पादरी बनते थे, वे शादी नहीं कर सकते थे। धर्म के क्षेत्र में विशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें थीं तथा वे शानदार महलों में रहते थे चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी। अधिकतर गांवों में चर्च हुआ करते थे, जहाँ पर प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना हेतु इकट्ठा होते थे।

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(2) दूसरा वर्ग – अभिजात वर्ग- दूसरा सामाजिक वर्ग अभिजात वर्ग था। यह बड़ा भू-स्वामी वर्ग था। बड़े भू- स्वामी और अभिजात राजा के अधीन होते थे और कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे। भूस्वामियों का अपनी संपदा पर स्थायी रूप से नियंत्रण था। वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे तथा स्वयं अपना न्यायालय लगा सकते थे एवं अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के मालिक थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जिनको वे आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में काम में लेते थे।

(3) तीसरा वर्ग – किसान-यूरोपीय समाज का तीसरा वर्ग काश्तकारों का था जो पहले दो वर्गों का भरण-पोषण करते थे। काश्तकार दो तरह के होते थे –
(i) स्वतंत्र किसान और
(ii) सर्फ ( कृषि दास ) –
स्वतंत्र किसान- ये अपनी भूमिका को लॉर्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। इसकी एवज में पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था। कृषक के परिवार कुछ लार्ड की जागीरों पर काम करते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन सीधे लार्ड के पास जाता था। इसके अतिरिक्त भी उनसे अन्य अनेक काम कराये जाते थे। इनके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। इसके अतिरिक्त एक प्रत्यक्ष कर ‘टैली’ था जिसे राजा कृषकों पर कभी – कभी लगाते थे।

(4) चौथा वर्ग-नए नगरवासी – कृषि के विस्तार के साथ-साथ जनसंख्या, व्यापार और नगरों का विस्तार हुआ। नगरों में लोग, सेवा के स्थान पर, उन लार्डों को जिनकी भूमि पर वे बसे थे, कर देने लगे। इसके कृषक परिवारों को लार्ड के नियंत्रण से मुक्ति मिली। इसके अतिरिक्त नगर में आकर कृषि दास भी स्वाधीन नागरिक बने। ये लोग कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे। इसके बाद वकीलों और साहूकारों की आवश्यकता हुई। इस प्रकार नगरों में नया वर्ग स्वतंत्र श्रमिकों, व्यापारियों तथा मध्यम वर्ग अस्तित्व में आया।

प्रश्न 2. मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग की दशा की विवेचना कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग को कौन-कौनसे अधिकार प्राप्त थे ? इस वर्ग की समाज में क्या भूमिका
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस में अभिजात वर्ग की दशा- यद्यपि पादरी को प्रथम वर्ग में तथा अभिजात वर्ग को द्वितीय वर्ग में रखा गया था, परन्तु वास्तव में सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इसका कारण यह था किं भूमि पर अभिजात वर्ग का नियन्त्रण था। यह नियन्त्रण वैसलेज नामक एक प्रथा के विकास के कारण हुआ।
वैसलेज की प्रथा – फ्रांस के शासक ‘वैसलेज’ नामक एक प्रथा के कारण लोगों से जुड़े हुए थे। बड़े भू-स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे, जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे।

अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी (Seigneur अथवा Senior) – मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे। सेन्योर अथवा लार्ड दास (वैसल) की रक्षा करता था और बदले में वह लार्ड के प्रति निष्ठावान रहता था। इन सम्बन्धों के साथ व्यापक रीति-रिवाज तथा शपथें जुड़ी हुई थीं। ये शपथें चर्च में बाइबल की शपथ लेकर ली जाती थीं। इस समारोह में दास को लार्ड द्वारा दी गई भूमि के प्रतीक के रूप में एक लिखित अधिकार-पत्र अथवा एक छड़ी या केवल एक मिट्टी का डला दिया जाता था।

अभिजात वर्ग के अधिकार ( समाज में भूमिका) – अभिजात वर्ग के निम्नलिखित अधिकार थे –
1. सम्पदा पर स्थायी अधिकार – अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था।
2. सैन्य क्षमता में वृद्धि करना – वे अपनी सैन्य क्षमता में वृद्धि कर सकते थे। उनके द्वारा गठित सेना सामन्ती सेना कहलाती थी।
3. अपना न्यायालय स्थापित करना – वे अपना स्वयं का न्यायालय स्थापित कर लेते थे
4. मुद्रा प्रचलित करना – यहाँ तक कि वे अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।
5. विस्तृत क्षेत्र के स्वामी – वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत, जोत व चरागाह और उनके असामी कृषकों के घर और खेत होते थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था।
6. कृषकों द्वारा सेवा प्रदान करना – उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय कृषकों को पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था । इसके अतिरिक्त उन्हें अपने लार्ड के खेतों पर भी काम करना पड़ता था।

प्रश्न 3.
‘मेनर की जागीर’ के बारे में आप क्या जानते हैं? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेनर की जागीर – मध्यकालीन यूरोप में समाज में अभिजात वर्ग का बोलबाला था। लार्ड का अपना मेनर- भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। कुछ लार्ड अनेक गाँवों के स्वामी थे। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर तथा बड़ी जागीर में 50-60 परिवार हो सकते थे।

मेनर की जागीर की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. दैनिक उपभोग की वस्तुओं का उपलब्ध होना – दैनिक उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर ही मिलती थी। अनाज खेतों में उगाये जाते थे। लोहार तथा बढ़ई लार्ड के औजारों की देखभाल तथा हथियारों की मरम्मत करते थे। राजमिस्त्री लार्ड की इमारतों की देखभाल करते थे। स्त्रियाँ सूत कातती एवं बुनती थीं। बच्चे लार्ड की मदिरा – सम्पीडक में कार्य करते थे। जागीरों में विस्तृत अरण्य भूमि और वन होते थे जहाँ लार्ड शिकार करते थे। जागीर में चरागाह होते थे जहाँ लार्ड के पशु और घोड़े चरते थे। जागीर में एक चर्च और सुरक्षा के लिए एक दुर्ग होता था ।

2. दुर्गों का विकास – तेरहवीं शताब्दी से कुछ दुर्गों को बड़ा बनाया जाने लगा ताकि वे नाइट के परिवार का निवास-स्थान बन सकें। वास्तव में इंग्लैण्ड में नारमन – विजय के पहले दुर्गों की कोई जानकारी नहीं थी और दुर्गों का विकास सामन्त प्रथा के अन्तर्गत राजनीतिक प्रशासन तथा सैनिक शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ था ।

3. मेनरों का आत्म-निर्भर न होना – मेनर कभी भी आत्म-निर्भर नहीं हो सकते थे क्योंकि उन्हें नमक, चक्की का पाट और धातु के बर्तन बाहर के स्रोतों से प्राप्त करने पड़ते थे । कुछ लार्ड विलासी जीवन व्यतीत करना चाहते थे। उन्हें महंगी वस्तुएँ, वाद्य-यन्त्र और आभूषण आदि दूसरे स्थानों से प्राप्त करनी पड़ती थीं क्योंकि ये वस्तुएँ स्थानीय जगह पर उपलब्ध नहीं होती थीं।.

प्रश्न 4.
नाइट कौन थे? उनके लार्ड के साथ क्या सम्बन्ध थे?
उत्तर:
नाइट- नौवीं शताब्दी में यूरोप में स्थानीय युद्ध प्रायः होते रहते थे। शौकिया कृषक – सैनिक इन युद्धों के लिए अधिक उपयोगी नहीं थे। इनके लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक नये वर्ग का उदय हुआ, जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। लार्ड से सम्बन्ध-नाइट लार्ड से उसी प्रकार सम्बद्ध थे, जिस प्रकार लार्ड राजा से सम्बद्ध था।

लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था और उसकी रक्षा करने का वचन देता था। इस भू-भाग को ‘फीफ’ कहा जाता था। फीफ को उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता था। यह 1000-2000 एकड़ या इससे अधिक क्षेत्र में फैली हुई हो सकती थी। इसमें नाइट और उसके परिवार के लिए एक पनचक्की और मदिरा – सम्पीडक के अतिरिक्त उसके व उसके परिवार के लिए घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के रहने का स्थान होता था।

सामन्ती मेनर की भाँति फीफ की भूमि को भी कृषक जोतते थे। इसके बदले में नाइट, अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। अपनी सैन्य- योग्यताओं को बनाए रखने के उपाय – अपनी सैन्य- योग्यताओं को बनाए रखने के लिए नाइट प्रतिदिन अपना समय बाड़ बनाने, घेराबन्दी करने और पुतलों से लड़ने तथा अपने बचाव का अभ्यास करने में व्यतीत अन्य लार्डों को सेवाएँ प्रदान करना – नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लार्डों को भी प्रदान कर सकता था, परन्तु उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लार्ड के प्रति ही होती थी। घुमक्कड़ चारणों द्वारा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ सुनाना – बारहवीं शताब्दी से गायक फ्रांस के मेनरों में वीर और पराक्रमी राजाओं तथा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ, गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे। उस युग में जब शिक्षित लोगों की कमी थी तथा पाण्डुलिपियाँ भी अधिक नहीं थीं, ये घुमक्कड़ चारण बहुत प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 5.
मध्यकालीन यूरोप में पादरी-वर्ग की स्थिति की विवेचना कीजिए।
अथवा
कैथोलिक चर्च तथा पादरी-वर्ग की समाज में क्या भूमिका थी?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में पादरी-वर्ग की स्थिति – मध्यकालीन यूरोप में समाज में पादरी वर्ग को प्रथम वर्ग में रखा गया था। समाज में कैथोलिक चर्च तथा पादरी वर्ग का बोलबाला था। कैथोलिक चर्च के अपने नियम थे। उसके पास बड़ी-बड़ी भूमियाँ थीं जिनसे वे कर वसूल करते थे। इसलिए कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी, जो राजा पर निर्भर नहीं थी। पोप पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष थे। वे रोम में रहते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। अधिकतर गाँवों के अपने चर्च होते थे जहाँ प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होते थे। कृषि – दास, शारीरिक रूप से बाधित व्यक्ति और स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकते थे। वे विवाह नहीं कर सकते थे।

पादरी वर्ग के अधिकार – धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी लार्ड की भाँति बड़ी-बड़ी जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे । चर्च को एक वर्ष में कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था। इसे ‘टीथ’ कहा जाता था। इसके अतिरिक्त धनी लोग अपने कल्याण तथा मृत्यु के बाद अपने सम्बन्धियों के कल्याण के लिए चर्च को दान देते थे। यह भी चर्च की आय का एक स्रोत था।

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चर्च के औपचारिक सामन्ती रीति-रिवाज – चर्च के औपचारिक रीति-रिवाज की कुछ महत्त्वपूर्ण रस्में सामन्ती कुलीनों की नकल थीं। चर्च में प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना, नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लार्ड के प्रति स्वामि भक्ति की शपथ लेते समय अपनाये गए तरीके की नकल थी। इसी प्रकार ईश्वर के लिए लार्ड शब्द का प्रचलन इस बात का प्रतीक था कि सामन्ती संस्कृति ने चर्च के उपासना – कक्षों में प्रवेश कर लिया था। इस प्रकार चर्च ने अनेक सांस्कृतिक सामन्ती रीति-रिवाजों और तौर-तरीकों को अपना लिया था।

प्रश्न 6.
मध्यकालीन यूरोप के मठों तथा उनमें रहने वाले भिक्षुओं के जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप के मठ तथा भिक्षु भिक्षु कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक श्रेणी थी। भिक्षु अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे तथा एकान्त जीवन जीना पसन्द करते थे। वे धार्मिक समुदायों में रहते थे, जो ऐबी या मोनेस्ट्री या मठ कहलाते थे। ये मठ अधिकतर मनुष्य की सामान्य आबादी से बहुत दूर होते थे। मध्यकालीन यूरोप के दो सबसे प्रसिद्ध मठों में एक मठ 529 ई. में इटली में स्थापित सेन्ट बेनेडिक्ट मठ था तथा दूसरा 910 में बरगंडी में स्थापित क्लून मठ था।

भिक्षुओं का जीवन – मध्यकालीन यूरोप के भिक्षु अपना सारा जीवन ऐबी में रहने और अपना समय प्रार्थना करने तथा अध्ययन एवं कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेते थे। भिक्षु का जीवन पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को ‘मोंक’ तथा स्त्रियों को ‘नन’ कहा जाता था। पुरुष और स्त्रियों के लिए अलग-अलग मठ थे। पादरियों की भाँति भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकते थे।

बेनेडिक्टीन – मठों में भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक होती थी जिसमें नियमों के 73 अध्याय थे इसका पालन भिक्षुओं द्वारा कई सदियों तक किया जाता रहा। इसके कुछ प्रमुख नियम थे – विनम्रता तथा आज्ञापालन, निजी सम्पत्ति नहीं रखना, निश्चित समय में शारीरिक श्रम और निश्चित घंटों में पवित्र पाठ करना तथा आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ मठ की सीमा के अंदर हो आदि। मठों के आकार का विस्तार- कालान्तर में मठों का आकार बढ़ गया और उनमें भिक्षुओं की संख्या सैकड़ों तक पहुँच गई।

इन बड़े मठों से बड़ी इमारतें और भू- जागीरों के साथ-साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। कला के विकास में मठों का योगदान- इन मठों ने कला के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आबेस हिल्डेगार्ड एक प्रसिद्ध एवं प्रतिभाशाली संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। फ्रायर-तेरहवीं सदी में भिक्षुओं के ऐसे समूहों का प्रादुर्भाव हुआ जो फ्रायर कहलाते थे। फ्रायर मठों में नहीं रहते थे। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते थे और दान से अपनी जीविका चलाते थे।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोप में कृषकों की दशा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मध्यकालीन यूरोप में कृषकों की दशा मध्यकालीन यूरोप में कृषक तीसरे वर्ग में रखे गये थे।
कृषक दो प्रकार के होते थे –
(1) स्वतन्त्र किसान
(2) कृषिदास अथवा सर्फ।

1. स्वतन्त्र कृषकों की दशा – स्वतन्त्र कृषक अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। पुरुषों को सैनिक सेवा भी देनी पड़ती थी । उन्हें अपने लार्ड को वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सैनिक सेवा देनी पड़ती थी। कृषकों के परिवारों को लार्ड की जागीरों पर जाकर काम करना पड़ता था। उन्हें सप्ताह में तीन या उससे अधिक दिनों तक लार्ड की जागीरों पर जाकर काम करना पड़ता था। इस श्रम से होने वाला उत्पादन ‘ श्रम – अधिशेष’ कहलाता था।

यह श्रम- अधिशेष सीधे लार्ड के पास जाता था। इसके अतिरिक्त उनसे खड्डे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठे करना, बाड़ बनाना, सड़कों व इमारतों की मरम्मत करने आदि कार्य करने की भी आशा की जाती थी। इन कार्यों के लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। स्त्रियों और बच्चों को खेतों में सहायता करने के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे. सूत कातते, कपड़ा बुनते, मोमबत्ती बनाते तथा लार्ड के उपयोग के लिए अंगूरों से रस निकाल कर शराब तैयार करते थे। कृषकों को एक प्रत्यक्ष कर ‘टैली’ भी राजा को देना पड़ता था, जबकि पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे।

2. कृषि – दासों की दशा – कृषि – दास अथवा सर्फ अपने जीवन – निर्वाह के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को मिलती थी। कृषि – दास उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थे। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। वे लार्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। कृषि – दासों पर अनेक प्रतिबन्ध लगे हुए थे।

वे केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे, उनके तन्दूर में ही रोटी सेंक सकते थे तथा उनकी मदिरा – सम्पीडक में ही शराब और बीयर तैयार कर सकते थे। लार्ड को कृषि – दास का विवाह तय करने का भी अधिकार था। वह कृषि – दास की पसन्द को भी अपना आशीर्वाद दे सकता था, परन्तु इसके लिए वह कृषि – दास से शुल्क लेता था। इस प्रकार मध्यकालीन यूरोप में कृषकों की दशा बड़ी शोचनीय थी। लार्ड द्वारा उनका शोषण किया जाता था जिससे उनकी दशा दयनीय बनी हुई थी । कठोर परिश्रम करने के बाद भी उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिल पाता था।

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प्रश्न 8.
मध्यकालीन यूरोप में ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए । इनके क्या परिणाम हुए ?
अथवा
मध्यकालीन यूरोप में लार्ड और सामन्तों के सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारकों का विवेचन कीजिए ।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित थे –
1. पर्यावरण-पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप का अधिकांश भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था। अतः कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी। इस समय यूरोप में भीषण शीत पड़ने के कारण सर्दियाँ प्रचण्ड और लम्बी अवधि की हो गई थीं। इससे फसलों का उपज – काल भी छोटा हो गया था। इसके कारण कृषि की उपज कम हो गई।

ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप में गर्मी का दौर शुरू हो गया और औसत तापमान बढ़ गया, जिसका कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा। अब कृषकों को कृषि के लिए लम्बी अवधि मिलने लगी। मिट्टी पर पाले का प्रभाव कम होने से खेती आसानी से की जा सकती थी । इसके परिणामस्वरूप यूरोप के अनेक भागों में वन क्षेत्रों में कमी हुई, जिसके परिणामस्वरूप कृषि भूमि का विस्तार हुआ ।

2. भूमि का उपयोग – प्रारम्भ में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म की थी। कृषक बैलों की जोड़ी से चलने वाले लकड़ी के हल से जमीन जोतते थे। भूमि को प्रायः चार वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था और उसमें अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी। इसके अतिरिक्त फसल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था। इस व्यवस्था के कारण, मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा और प्राय: अकाल पड़ने लगे। दीर्घकालीन कुपोषण और विनाशकारी अकाल बारी- बारी से पड़ने लगे जिससे गरीबों के लिए जीवन अत्यन्त कठिन हो गया।

इन कठिनाइयों के बावजूद लार्ड अपनी आय को अधिकाधिक बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। भूमि के उत्पादन को बढ़ाना सम्भव नहीं था, इसलिए कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य किया जाता था। इस कार्य के लिए उन्हें नियमानुसार निर्धारित समय से अधिक समय देना पड़ता था। कृषक इस अत्याचार को मौन रहकर नहीं सहते थे। उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का मार्ग अपनाया। वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे और उस श्रम का अधिकतर उत्पाद अपने लिए रखने लगे। वे बेगार करने से भी बचने लगे। चरागाहों व वन – भूमि के कारण उनका उन लार्डों के साथ विवाद होने लगा। लार्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति समझते थे, जबकि कृषक इसको सम्पूर्ण समुदाय द्वारा उपयोग की जाने वाली साझा सम्पदा मानते थे।

3. नई कृषि प्रौद्योगिकी – यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(1) लोहे की भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का उपयोग – अब लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की भारी नोक वाले हल तथा साँचेदार पटरे का उपयोग होने लगा। ऐसे हल अधिक गहरा खोद सकते थे तथा साँचेदार पटरे सही तरीके से ऊपरी मिट्टी को पलट सकते थे। इसके फलस्वरूप भूमि में मौजूद पौष्टिक तत्त्वों का बेहतर उपयोग होने लगा।

(2) पशुओं को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार – पशुओं को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ। अब जुआ पशु के गले के स्थान पर कन्धे पर बाँधा जाने लगा। इससे पशुओं को अधिक शक्ति मिलने लगी।

(3) घोड़े के खुरों पर लोहे की नाल लगाना – घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाई जाने लगी जिससे उनके खुर सुरक्षित हो गए।

(4) कृषि के लिए वायु-शक्ति और जल- शक्ति का उपयोग – कृषि के लिए वायु-शक्ति तथा जल-शक्ति का उपयोग बड़ी मात्रा में होने लगा।

(5) कारखानों की स्थापना – अन्न को पीसने तथा अंगूरों को निचोड़ने के लिए अधिक जल-शक्ति तथा वायु- शक्ति से चलने वाले कारखाने स्थापित हुए।

(6) भूमि के उपयोग के तरीके में परिवर्तन – भूमि के उपयोग के तरीके में भी परिवर्तन आया। सबसे क्रान्तिकारी परिवर्तन था—दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली व्यवस्था में परिवर्तन। इस व्यवस्था में कृषक तीन वर्षों में से दो वर्ष अपने खेत का उपयोग कर सकता था।

परिणाम – कृषि प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों के निम्नलिखित परिणाम हुए –
1. उत्पादन में वृद्धि – इन सुधारों के कारण भूमि की प्रत्येक इकाई में होने वाले उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि
2. अधिक प्रोटीन का स्त्रोत- मटर और सेम जैसे पौधों का अधिक उपयोग यूरोपीय लोगों के आहार में अधिक प्रोटीन का स्रोत बन गया। इसी प्रकार उनके पशुओं के लिए अच्छे चारे का स्रोत बन गया।
3. कृषकों को उत्तम अवसर प्राप्त होना – अब कृषकों को उत्तम अवसर मिलने लगे। अब वे कम भूमि पर अधिक खाद्यान्न का उत्पादन कर सकते थे
4. छोटी जोतों पर अधिक कुशलता से कृषि करना – तेरहवीं शताब्दी तक एक कृषक के खेत का औसत आकार घटकर बीस से तीस एकड़ तक रह गया। छोटी जोतों पर अधिक कुशलता से खेती की जा सकती थी और उसमें कम श्रम की आवश्यकता होती थी। इससे कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय मिल गया।
5. खेती योग्य भूमि का विस्तार- कृषकों ने खेती योग्य भूमि का विस्तार करने में पहल की।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में नगरों का विकास मध्यकालीन यूरोप में नगरों के विकास के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –
1. कृषि के विकास व विस्तार से नगरों का विकास – रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके नगर उजाड़ और बर्बाद हो गए थे। परन्तु ग्यारहवीं शताब्दी से जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार ‘सहन करने में सक्षम हुई, तो नगरों का पुनः विकास होने लगा। जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था, उन्हें एक ऐसे स्थान की आवश्यकता अनुभव हुई जहाँ वे अपना बिक्री केन्द्र स्थापित कर सकें और जहाँ से वे अपने उपकरण और कपड़े आदि खरीद सकें।

इस आवश्यकता ने मियादी हाट – मेलों को प्रोत्साहन दिया और छोटे विपणन – केन्द्रों का विकास किया, जिनमें धीरे-धीरे नगरों के लक्षण पनपने लगे। ये लक्षण थे – एक नगर चौक, चर्च, सड़कें, व्यापारियों के घर और दुकानें। इन लक्षणों में एक कार्यालय भी था जहाँ नगर के प्रशासन का संचालन करने वाले व्यक्ति आपस में मिलते थे। अन्य स्थानों पर नगरों का विकास, बड़े दुर्गों, बिशपों की जागीरों और बड़े चर्चों के चारों ओर होने लगा।

2. नगरों में लोगों द्वारा सेवा के स्थान पर कर देना- नगरों में लोग सेवा के स्थान पर उन लार्डों को कर देने लगे जिनकी भूमि पर नगर बसे हुए थे।

3. नगरों में कृषक परिवारों के लोगों को वैतनिक कार्य मिलना-नगरों में कृषक परिवारों के नवयुवक लोगों को वैतनिक कार्य मिलने लगा। इसके अतिरिक्त नगरों में रहने से उन्हें लार्ड के कठोर नियन्त्रण से मुक्ति मिलने की अधिक सम्भावनाएँ थीं।

4. नगरों का स्वतन्त्र जीवन तथा मध्यम वर्ग का उदय – स्वतन्त्र होने के इच्छुक अनेक कृषि – दास भाग कर नगरों में छिप जाते थे। अपने लार्ड की नजरों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषि – दास एक स्वतन्त्र नागरिक माना जाता था। नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषक होते थे। ये कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे। इनके अतिरिक्त दुकानदार एवं व्यापारी भी काफी बड़ी संख्या में थे। बाद में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकारों एवं वकीलों की आवश्यकता हुई। बड़े नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हजार होती थी। इस प्रकार नगरों का विकास होता गया।

5. श्रेणी (गिल्ड ) – मध्यकालीन यूरोप में आर्थिक संस्था का आधार श्रेणी (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक श्रेणी के रूप में संगठित था। श्रेणी उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य तथा बिक्री पर नियन्त्रण रखती थी। ‘ श्रेणी सभागार’ प्रत्येक नगर का एक आवश्यक अंग था। इस सभागार में आनुष्ठानिक समारोह आयोजित किये जाते थे, जहाँ श्रेणियों के प्रधान आपस में मिलते थे और विचार-विमर्श करते थे । पहरेदार नगर के चारों ओर गश्त लगाते थे तथा नगर में शान्ति स्थापित करते थे। संगीतकारों को प्रीतिभोजों तथा नागरिक जुलूसों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया जाता था । सराय वाले यात्रियों की देखभाल की जाती थी।

6. वाणिज्य – व्यापार का विकास – ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप तथा पश्चिमी एशिया के बीच नवीन व्यापार-मार्ग विकसित हो रहे थे । बारहवीं सदी तक फ्रांस में भी वाणिज्य और शिल्प का विकास होने लग गया था । पहले दस्तकारों को एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था । परन्तु अब उन्हें एक स्थान पर बसना अधिक सुविधाजनक लगा जहाँ वे वस्तुओं का उत्पादन कर सकते थे तथा अपने जीवन-निर्वाह के लिए उनका व्यापार कर सकते थे। इस प्रकार वाणिज्य-व्यापार तथा शिल्प के विकास के कारण नगर भी विकसित होते चले गए।

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प्रश्न 10.
यूरोप में चौदहवीं शताब्दी का संकट क्या था? इसके लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के संकट के लिए कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं? इसके क्या परिणाम हुए? चौदहवीं शताब्दी का संकट
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी में यूरोपवासियों को भीषण अकालों, धातु मुद्रा की कमी तथा प्लेग जैसी महामारी का सामना करना पड़ा।
चौदहवीं शताब्दी के यूरोप के संकट के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –

1. मौसम में परिवर्तन – उत्तरी यूरोप में, तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक पिछले तीन सौ वर्षों की तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान तेज ठण्डी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया था। परिणामस्वरूप उपज वाले मौसम छोटे हो गए और ऊँची भूमि पर फसल उगाना काफी कठिन हो गया। तूफानों और सागरीय बाढ़ों के कारण अनेक फार्म-प्रतिष्ठान नष्ट हो गए जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को करों द्वारा कम आय हुई । तेरहवीं सदी के पूर्व की अनुकूल जलवायु के कारण अनेक जंगल तथा चरागाह कृषि भूमि में बदल गए।

2. भूमि का कमजोर होना – गहन जुताई ने फसलों के तीन क्षेत्रीय फसल चक्र के प्रचलन के बावजूद भूमि को कमजोर बना दिया। भूमि के कमजोर होने का कारण उचित भू-संरक्षण का अभाव था। चरागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में भारी कमी आ गई।

3. जनसंख्या में वृद्धि – मध्यकालीन यूरोप में जनसंख्या इतनी तीव्र गति से बढ़ी कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए। इसके परिणामस्वरूप यूरोपवासियों को अकालों का सामना करना पड़ा। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में कई भयंकर अकाल पड़े। इसके पश्चात् 1320 के दशक में अनगिनत पशु मृत्यु के मुँह में चले गए।

4. चाँदी के उत्पादन में कमी – आस्ट्रिया और सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी आ गई। इसके कारण धातु मुद्रा में भारी कमी आई जिसका व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वरूप सरकार को मुद्रा में चाँदी की शुद्धता में कमी करनी पड़ी और उसमें सस्ती धातुओं का मिश्रण करना पड़ा।

5. महामारी-बारहवीं तथा तेरहवीं शताब्दी में वाणिज्य – व्यापार में विस्तार के कारण दूर देशों से व्यापार करने वाले पोत यूरोप के तटों पर आने लगे। पोतों के साथ-साथ बड़ी संख्या में चूहे भी आ गए, जो अपने साथ ब्यूबोनिक . प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण (Black Death) लाए। अतः पश्चिमी यूरोप 1347 और 1350 के बीज महामारी से अत्यधिक प्रभावित हुआ।

आधुनिक विद्वानों के अनुसार महामारी के कारण यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20% भाग मौत के मुँह में चला गया। नगर इस महामारी से सर्वाधिक प्रभावित हुए। इस महामारी के कारण यूरोप की जनसंख्या 1300 ई. में 730 लाख से घट कर 1400 ई. में 450 लाख रह गई।
परिणाम- इसके निम्नलिखित परिणाम हुए –

1. सामाजिक विस्थापन – इस विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ जाने से व्यापक सामाजिक विस्थापन
2. मजदूरों की संख्या में कमी- जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की संख्या में अत्यधिक कमी आ गई।
3. कृषि और उत्पादन के बीच असन्तुलन – कृषि और उत्पादन के बीच भारी असन्तुलन पैदा हो गया।
4. कृषि उत्पादों के मूल्यों में कमी-खरीददारों की कमी के कारण कृषि उत्पादों के मूल्यों में कमी आई।
5. मजदूरी की दरों में वृद्धि – प्लेग के पश्चात् इंग्लैण्ड में मजदूरों, विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरों की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई।

प्रश्न 11.
मध्यकालीन यूरोप में हुए राजनीतिक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राज्यों के प्रादुर्भाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में राजनीतिक परिवर्तन ( शक्तिशाली राज्यों का प्रादुर्भाव ) – पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दियों में यूरोप के शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति में काफी वृद्धि कर ली थी। फ्रांस में लुई ग्यारहवें आस्ट्रिया में मैक्समिलन, इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम तथा स्पेन में इजाबेला और फर्डीनेण्ड निरंकुश शासक थे।

उन्होंने संगठित स्थायी सेनाओं, स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली की स्थापना की । स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र – पार विस्तार की योजनाएँ बनाईं। इस प्रकार यूरोप में अनेक शक्तिशाली राज्यों की स्थापना हुई। यूरोप में शक्तिशाली राजतन्त्रों की स्थापना के लिए उत्तरदायी तत्त्व – यूरोप में शक्तिशाली राजतन्त्रों की स्थापना के लिए निम्नलिखित तत्त्व उत्तरदायी थे –

1. सामाजिक परिवर्तन – मध्यकालीन यूरोप में बारहवीं तथा तेरहवीं सदी में जागीरदारी तथा सामन्तशाही वाली सामन्त प्रथा के विलय तथा आर्थिक विकास की धीमी गति ने यूरोप के शासकों को प्रभावशाली बनाया और उन्हें जन – साधारण पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने का अवसर दिया। शासकों ने सामन्तों से अपनी सेना के लिए कर लेना बन्द कर दिया और उसके स्थान पर बन्दूकों तथा बड़ी तोपों से सुसज्जित तथा प्रशिक्षित सेना का गठन किया जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी । राजाओं की शक्तिशाली सेनाओं के कारण अभिजात वर्ग उनका विरोध करने में असमर्थ रहा।

2. करों में वृद्धि से शासकों की आय में वृद्धि-करों में वृद्धि करने से यूरोप के शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ । इसके फलस्वरूप वे पहले से बड़ी सेनाएँ रखने में समर्थ हुए। अपनी शक्तिशाली सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्यों की सीमाओं की रक्षा की तथा उनका विस्तार किया। सेना की सहायता से उन्होंने राज्य में होने वाले आन्तरिक विद्रोहों का भी दमन कर दिया।

प्रश्न 12.
मध्यकालीन यूरोप में राजाओं के अभिजात वर्ग के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। फ्रांस और इंग्लैण्ड राजनीतिक परिवर्तनों से किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में राजाओं के अभिजात वर्ग के साथ सम्बन्ध – मध्यकालीन यूरोप में राजाओं के विरुद्ध अभिजात वर्ग ने अनेक विद्रोह किये, परन्तु उनका दमन कर दिया गया।

1. अभिजात वर्ग द्वारा अपने को राजभक्त के रूप में बदलना – अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए कूटनीति से काम लिया। उन्होंने नई शासन व्यवस्था का विरोधी होने की बजाय अपने को राज-भक्त के रूप में बदल लिया। इसी कारण शाही निरंकुशता को सामन्तवाद का सुधरा हुआ रूप माना जाता है।

वास्तव में लार्ड, जो सामन्ती प्रथा में शासक थे, राजनीतिक क्षेत्र में अभी भी प्रभावशाली बने हुए थे। उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में स्थायी स्थान दिए गए थे। परन्तु नवीन शासन व्यवस्था कई तरीकों में सामन्ती प्रथा से अलग थी। अब शासक उस पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राज – भक्ति विश्वास और आपसी निर्भरता पर टिकी थी। अब शासक एक व्यापक दरबारी समाज का केन्द्र – बिन्दु था। वह अपने अनुयायियों को आश्रय देने वाला केन्द्र-बिन्दु भी था।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

2. राजतन्त्रों द्वारा सत्ताधारियों से सहयोग प्राप्त करना – सभी राजतन्त्र, चाहे वे कमजोर हों अथवा शक्तिशाली हों, सत्ताधारियों का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे। धन इस प्रकार के सहयोग को प्राप्त करने का साधन था। सत्ताधारियों का सहयोग अथवा समर्थन धन के माध्यम से दिया या प्राप्त किया जा सकता था । अतः धन गैर – अभिजात वर्गों जैसे व्यापारियों और साहूकारों के लिए राजदरबार में प्रवेश करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गया। वे राजाओं को धन उधार देते थे तथा राज़ा इस धन का उपयोग सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे । इस प्रकार शासकों ने राज्य-व्यवस्था में गैर-सामन्ती तत्त्वों के लिए स्थान बना दिया।

राजनीतिक परिवर्तनों का फ्रांस पर प्रभाव – 1614 में शासक लुई XIII के शासन काल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा-एस्टेट्स जनरल का एक अधिवेशन हुआ। इसके तीन सदनं थे, जो तीन वर्गों―पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग तथा सामान्य लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके पश्चात् 175 वर्ष तक अर्थात् 1789 तक इसका अधिवेशन नहीं बुलाया गया। इसका कारण यह था कि फ्रांस के राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे।

राजनीतिक परिवर्तनों का इंग्लैण्ड पर प्रभाव – इंग्लैण्ड में नारमन – विजय से भी पहले ऐंग्लो-सेक्सन लोगों की एक महान परिषद होती थी। अपनी प्रजा पर कर लगाने से पहले राजा को महान परिषद की सलाह लेनी पड़ती थी। यह परिषद कालान्तर में पार्लियामेन्ट के रूप में विकसित हुई, जिसमें ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ तथा ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ शामिल थे। हाउस ऑफ लाईस के सदस्य लार्ड तथा पादरी थे तथा ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में नगरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते थे।

इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स प्रथम (1629 – 1640 ) ने पार्लियामेन्ट का अधिवेशन बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया। धन की आवश्यकता पड़ने पर एक बार पार्लियामेन्ट का अधिवेशन बुलाना पड़ा। इस अवसर पर पार्लियामेन्ट के एक भाग ने राजा का विरोध किया। बाद में चार्ल्स प्रथम को मृत्यु – दण्ड देकर इंग्लैण्ड में गणतन्त्र की स्थापना की गई।

परन्तु यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं चल सकी और राजतन्त्र की पुनः स्थापना इस शर्त पर की गई कि अब पार्लियामेन्ट नियमित रूप से बुलाई जायेगी। साधारण पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने का अवसर दिया। शासकों ने सामन्तों से अपनी सेना के लिए कर लेना बन्द कर दिया और उसके स्थान पर बन्दूकों तथा बड़ी तोपों से सुसज्जित तथा प्रशिक्षित सेना का गठन किया जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी। राजाओं की शक्तिशाली सेनाओं के कारण अभिजात वर्ग उनका विरोध करने में असमर्थ रहा।

2. करों में वृद्धि से शासकों की आय में वृद्धि-करों में वृद्धि करने से यूरोप के शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ । इसके फलस्वरूप वे पहले से बड़ी सेनाएँ रखने में समर्थ हुए। अपनी शक्तिशाली सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्यों की सीमाओं की रक्षा की तथा उनका विस्तार किया। सेना की सहायता से उन्होंने राज्य में होने वाले आन्तरिक विद्रोहों का भी दमन कर दिया।

प्रश्न 12.
मध्यकालीन यूरोप में राजाओं के अभिजात वर्ग के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। फ्रांस और इंग्लैण्ड राजनीतिक परिवर्तनों से किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में राजाओं के अभिजात वर्ग के साथ सम्बन्ध – मध्यकालीन यूरोप में राजाओं के विरुद्ध अभिजात वर्ग ने अनेक विद्रोह किये, परन्तु उनका दमन कर दिया गया।

1. अभिजात वर्ग द्वारा अपने को राजभक्त के रूप में बदलना – अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए कूटनीति से काम लिया। उन्होंने नई शासन व्यवस्था का विरोधी होने की बजाय अपने को राज-भक्त के रूप में बदल लिया। इसी कारण शाही निरंकुशता को सामन्तवाद का सुधरा हुआ रूप माना जाता है।

वास्तव में लार्ड, जो सामन्ती प्रथा में शासक थे, राजनीतिक क्षेत्र में अभी भी प्रभावशाली बने हुए थे। उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में स्थायी स्थान दिए गए थे। परन्तु नवीन शासन व्यवस्था कई तरीकों में सामन्ती प्रथा से अलग थी। अब शासक उस पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राज – भक्ति विश्वास और आपसी निर्भरता पर टिकी थी। अब शासक एक व्यापक दरबारी समाज का केन्द्र – बिन्दु था। वह अपने अनुयायियों को आश्रय देने वाला केन्द्र-बिन्दु भी था।

2. राजतन्त्रों द्वारा सत्ताधारियों से सहयोग प्राप्त करना – सभी राजतन्त्र, चाहे वे कमजोर हों अथवा शक्तिशाली हों, सत्ताधारियों का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे। धन इस प्रकार के सहयोग को प्राप्त करने का साधन था। सत्ताधारियों का सहयोग अथवा समर्थन धन के माध्यम से दिया या प्राप्त किया जा सकता था। अतः धन गैर – अभिजात वर्गों जैसे व्यापारियों और साहूकारों के लिए राजदरबार में प्रवेश करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गया। वे राजाओं को धन उधार देते थे तथा राज़ा इस धन का उपयोग सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे। इस प्रकार शासकों ने राज्य-व्यवस्था में गैर-सामन्ती तत्त्वों के लिए स्थान बना दिया।

राजनीतिक परिवर्तनों का फ्रांस पर प्रभाव – 1614 में शासक लुई XIII के शासन काल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा-एस्टेट्स जनरल का एक अधिवेशन हुआ। इसके तीन सदनं थे, जो तीन वर्गों-पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग तथा सामान्य लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके पश्चात् 175 वर्ष तक अर्थात् 1789 तक इसका अधिवेशन नहीं बुलाया गया। इसका कारण यह था कि फ्रांस के राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे।

राजनीतिक परिवर्तनों का इंग्लैण्ड पर प्रभाव – इंग्लैण्ड में नारमन – विजय से भी पहले ऐंग्लो-सेक्सन लोगों की एक महान परिषद होती थी। अपनी प्रजा पर कर लगाने से पहले राजा को महान परिषद की सलाह लेनी पड़ती थी। यह परिषद कालान्तर में पार्लियामेन्ट के रूप में विकसित हुई, जिसमें ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ तथा ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ शामिल थे। हाउस ऑफ लाईस के सदस्य लार्ड तथा पादरी थे तथा ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में नगरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते थे।

इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स प्रथम (1629 – 1640 ) ने पार्लियामेन्ट का अधिवेशन बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया। धन की आवश्यकता पड़ने पर एक बार पार्लियामेन्ट का अधिवेशन बुलाना पड़ा। इस अवसर पर पार्लियामेन्ट के एक भाग ने राजा का विरोध किया। बाद में चार्ल्स प्रथम को मृत्यु – दण्ड देकर इंग्लैण्ड में गणतन्त्र की स्थापना की गई। परन्तु यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं चल सकी और राजतन्त्र की पुनः स्थापना इस शर्त पर की गई कि अब पार्लियामेन्ट नियमित रूप से बुलाई जायेगी।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक लोकतन्त्र में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का निकटतम उदाहरण है।
(क) ग्राम सभा
(ग) पंचायत समिति
(ख) ग्राम पंचायत
(घ) नगरपालिक।
उत्तर:
(क) ग्राम सभा

2. निम्नलिखित में कौनसा कथन भारत की लोकसभा सदस्यों के निर्वाचन व्यवस्था की विशेषता नहीं है।
(क) पूरे देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट दिया गया है।
(ख) प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
(ग) उस निर्वाचन क्षेत्र में जिस प्रत्याशी को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
(घ) विजयी प्रत्याशी के लिए यह जरूरी है कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले।
उत्तर:
(घ) विजयी प्रत्याशी के लिए यह जरूरी है कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले।

3. जिस प्रत्याशी को अन्य सभी प्रत्याशियों से अधिक वोट मिल जाते हैं, उसे ही निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। निर्वाचन की इस विधि को कहते हैं।
(क) समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
(ख) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली
(ग) जो सबसे आगे वही जीते’ प्रणाली
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) जो सबसे आगे वही जीते’ प्रणाली

4. ‘पूरे देश को एक निर्वाचन क्षेत्र मानकर प्रत्येक पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में प्राप्त वोटों के अनुपात में सीटें दे दी जाती हैं।’ समानुपातिक प्रतिनिधित्व का यह प्रकार किस देश में अपनाया जा रहा है?
(क) भारत
(ख) ब्रिटेन
(ग) इजरायल
(घ) पुर्तगाल।
उत्तर:
(ग) इजरायल

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

5. भारत में निम्नलिखित में से किसमें आनुपातिक प्रतिनिधिक प्रणाली को नहीं अपनाया गयां है?
(क) लोकसभा के चुनाव में
(ख) राज्यसभा के चुनाव में
(ग) राष्ट्रपति के चुनाव में
(घ) विधान परिषदों के चुनाव में।
उत्तर:
(क) लोकसभा के चुनाव में

6. भारत में निम्नलिखित में किस संस्था के चुनाव के लिए फर्स्ट- पास्ट – द – पोस्ट सिस्टम को अपनाया गया है-
(क) लोकसभा के चुनाव के लिए
(ख) विधानसभा के चुनाव के लिए
(ग) स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के चुनाव के लिए
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।

7. निम्नलिखित में कौनसा कथन ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ प्रणाली से सम्बद्ध नहीं है।
(क) पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट दिया जाता है।
(ख) हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
(ग) मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है।
(घ) मतदाता पार्टी को वोट देता है।
उत्तर:
(घ) मतदाता पार्टी को वोट देता है।

8. निम्नलिखित में कौनसा कथन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की विशेषता को व्यक्त नहीं करता है?
(क) एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जाते हैं।
(ख) मतदाता पार्टी को वोट देता है।
(ग) विजयी उम्मीदवार को जरूरी नहीं कि उसे वोटों का बहुमत (50% + 1) मिले।
(घ) हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात में विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।
उत्तर:
(ग) विजयी उम्मीदवार को जरूरी नहीं कि उसे वोटों का बहुमत (50% + 1) मिले।

9. भारत में वयस्क मताधिकार की न्यूनतम आयु है।
(क) 21 वर्ष
(ख) 18 वर्ष
(ग) 25 वर्ष
(घ) 16 वर्ष।
उत्तर:
(ख) 18 वर्ष

10. भारत में लोकसभा या विधानसभा चुनाव में खड़े होने के लिए उम्मीदवार को कम-से-कम कितने वर्ष का होना चाहिए?
(क) 25 वर्ष
(ख) 21 वर्ष
(ग) 30 वर्ष उत्तरमाला
(घ) 35 वर्ष।
उत्तर:
(क) 25 वर्ष

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

1. लोकतंत्र का वह रूप जिसमें देश के शासन और प्रशासन को चलाने के लिए जनता अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है, ………………. लोकतंत्र कहलाता है।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष

2. आधुनिक भारत में ग्राम पंचायत की ……………….. प्रत्यक्ष लोकतंत्र की उदाहरण हैं।
उत्तर:
ग्राम सभाएँ

3. भारत में लोकसभा चुनावों में ……………………. प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनायी गई है।
उत्तर:
जो सबसे आगे वही जीते

4. इजरायल के चुनावों में ……………………. प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनायी गई है।
उत्तर:
समानुपातिक

5. पृथक् निर्वाचन मंडल की व्यवस्था भारत के लिए …………………. रही है।
उत्तर:
अभिशाप

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को केवल अप्रत्यक्ष चुनावों के लिए ही सीमित रूप में अपनाया गया है।
उत्तर:
सत्य

2. भारत के संविधान निर्माताओं ने दलित उत्पीड़ित सामाजिक समूहों के लिए उचित प्रतिनिधित्व हेतु पृथक् निर्वाचन मंडल की व्यवस्था को अपनाया गया. है।
उत्तर:
असत्य

3. भारतीय संविधान में प्रत्येक वयस्क नागरिक को चुनाव में मत देने का अधिकार है।
उत्तर:
सत्य

4. लोकसभा और विधानसभा के प्रत्याशी के लिए कम से कम 35 वर्ष की आयु आवश्यक है।
उत्तर:
असत्य

5. भारत में एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. ग्राम सभा (अ) प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र
2. लोकसभा (ब) भारत के राष्ट्रपति का चुनाव
3. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (स) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति
4. समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (द) सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार
5. लोकसभा और राज्यसभा (य) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

उत्तर:

1. ग्राम सभा (य) प्रत्यक्ष लोकतंत्र
2. लोकसभा (अ) प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र
3. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (द) सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार
4. समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (ब) भारत के राष्ट्रपति का चुनाव
5. लोकसभा और राज्यसभा (स) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
लोकतन्त्र का वह रूप जिसमें नागरिक रोजमर्रा के फैसलों और सरकार चलाने में सीधे भाग लेते हैं, लोकतन्त्र कहलाता

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र के कोई दो उदाहरण दीजि ।
उत्तर:

  1. प्राचीन यूनान के नगर राज्य।
  2. आधुनिक भारत में ग्राम पंचायत की ग्राम सभाएँ।

प्रश्न 3.
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
लोकतन्त्र का वह रूप जिसमें देश के शासन और प्रशासन को चलाने के लिए जनता अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है।, अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहलाता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 4.
लोकतंत्र का बुनियादी तत्त्व क्या है।
उत्तर:
लोकतंत्र का बुनियादी तत्त्व जनता द्वारा प्रतिनिधियों का निर्वाचन है।

प्रश्न 5.
निर्वाचन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनता अपने प्रतिनिधियों को जिस विधि से निर्वाचित करती है, उस विधि को चुनाव या निर्वाचन कहते

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान चुनाव से सम्बन्धितं किन दो लक्ष्यों को लेकर चलता है?
उत्तर:

  1. एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव, जिसे लोकतान्त्रिक चुनाव कहा जा सके।
  2. न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव हेतु किन मूलभूत नियमों को निर्धारित करता है? (कोई दो का उल्लेख कीजिए ।)
उत्तर:

  1. भारत का प्रत्येक वयस्क नागरिक, जिसकी न्यूनतम आयु 18 वर्ष है, मत देने का अधिकार रखता है
  2. सभी नागरिकों को चुनाव में खड़े होने और जनता का प्रतिनिधि होने का अधिकार है।

प्रश्न 8.
निर्वाचक मण्डल से क्या आशय है?
उत्तर:
निर्वाचक मण्डल से आशय एक ऐसे समूह से है जिसका निर्माण किसी विशेष पद के चुनाव के लिए किया जाता है।

प्रश्न 9.
निर्वाचन विधि से क्या आशय है?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक चुनाव में अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए लोगों के द्वारा अपनी रुचि जिस तरीके से व्यक्त की जाती है और उनकी पसन्द की गणना जिस विधि से की जाती है, उसे निर्वाचन विधि कहते हैं।

प्रश्न 10.
पृथक् निर्वाचक मण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथक् निर्वाचक मण्डल से अभिप्राय किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के लोग वोट डाल सकेंगे।

प्रश्न 11.
चुनाव आचार संहिता क्या है?
उत्तर:
चुनाव आचार संहिता निर्वाचन के समय में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के चुनाव – संचालन के नियंत्रण हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों की एक संहिता होती है ।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 12.
विशेष बहुमत क्या होता है?
उत्तर:
विशेष बहुमत का आशय सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत तथा सदन की कुल सदस्य संख्या के साधारण बहुमत से है।

प्रश्न 13.
परिसीमन आयोग का गठन कौन करता है?
उत्तर;
परिसीमन आयोग का गठन राष्ट्रपति करता है।

प्रश्न 14.
किन्हीं दो निर्वाचन विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जो सबसे आगे वही जीते (फर्स्ट – पास्ट – द – पोस्ट सिस्टम) विधि।
  2. समानुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति।

प्रश्न 15.
‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ पद्धति की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. इसमें पूरे देश को छोटे-छोटे एकल निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है।
  2. इसमें सर्वाधिक वोट पाने वाले प्रत्याशी को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न 16.
‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ पद्धति को अपनाने वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. यूनाइटेड किंग्डम
  2. भारत।

प्रश्न 17.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।
  2. हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात में विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।

प्रश्न 18.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को अपनाने वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. इजरायल
  2. नीदरलैंड

प्रश्न 19.
भारत में सर्वाधिक जीत वाली व्यवस्था जिन संस्थाओं के चुनाव के लिए अपनाई गई है, उनमें से किन्हीं दो संस्थाओं के नाम लिखिए। है?
उत्तर:

  1. लोकसभा
  2. राज्यों की विधानसभाएँ।

प्रश्न 20.
हमारे संविधान ने किन संस्थाओं के चुनावों के लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को लागू किया
उत्तर:
हमारे संविधान ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषदों के चुनावों के लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को लागू किया है।

प्रश्न 21.
संविधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में किन जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करता है?
उत्तर:
संविधान अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में आरक्षण की व्यवस्था करता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 22.
भारतीय संविधान में निर्वाचन आयोग की व्यवस्था क्यों की गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में भारत में चुनाव प्रक्रिया को स्वतन्त्र और निष्पक्ष बनाने के लिए तथा चुनावों के संचालन और देखरेख के लिए निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 23.
निर्वाचन आयोग के कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर:

  1. मतदाता सूची तैयार करना।
  2. स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव की व्यवस्था करना।

प्रश्न 24.
20 वर्ष पहले के मुकाबले आज निर्वाचन आयोग ज्यादा स्वतन्त्र और प्रभावी क्यों है?
उत्तर:
वर्तमान में निर्वाचन आयोग ने उन शक्तियों का और प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करना शुरू कर दिया है जो उसे संविधान में पहले से ही प्राप्त थीं। इसी कारण आज यह 20 वर्ष पहले की तुलना में ज्यादा स्वतन्त्र और प्रभावी है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के लिए किस विधि को स्वीकार करता है? समझाइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के लिए ‘जो सबसे आगे वही जीते’ (फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट) व्यवस्था को स्वीकार करता है। इस व्यवस्था में जिस प्रत्याशी को अन्य सभी प्रत्याशियों से अधिक वोट मिल जाते हैं, उसे ही निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है । विजयी प्रत्याशी के लिए यह जरूरी नहीं कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले।

प्रश्न 2.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस चुनाव व्यवस्था में प्रत्येक पार्टी चुनावों से पहले अपने प्रत्याशियों की एक प्राथमिकता सूची जारी कर देती है और अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची से चुन लेती है जितनी सीटों का कोटा उसे मतगणना के बाद प्राप्त वोटों के अनुपात के हिसाब से दिया जाता है। चुनावों की इस व्यवस्था को समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक वोट से जीत प्रणाली क्यों स्वीकार की गई?
उत्तर:
भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत में सर्वाधिक वोट से जीत प्रणाली इन कारणों से अपनायी।

  1. यह प्रणाली अत्यधिक सरल तथा लोकप्रिय है।
  2. इसमें चुनाव के समय मतदाताओं के पास स्पष्ट विकल्प होते हैं कि वह प्रत्याशी को मत दे या दल को।
  3. प्रतिनिधि का मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होने की दृष्टि से भी यह प्रणाली श्रेष्ठ है।
  4. यह प्रणाली स्थायी सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है।

प्रश्न 4.
आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था से यह आशय है कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदाता वोट तो डालेंगे लेकिन प्रत्याशी केवल उसी समुदाय या सामाजिक वर्ग का होगा जिसके लिए वह सीट आरक्षित है।

प्रश्न 5.
भारत में चुनाव प्रक्रिया को स्वतन्त्र और निष्पक्ष बनाने के लिए तथा चुनाव की देख-रेख करने के लिए किस संस्था का गठन किया गया है?
उत्तर:
भारत में चुनाव प्रक्रिया को स्वतन्त्र और निष्पक्ष बनाने तथा चुनाव की देख-रेख करने के लिए एक स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई है। वर्तमान में भारत का निर्वाचन आयोग बहुसदस्यीय है जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं। उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मन्त्रिपरिषद् के परामर्श पर की जाती है।

प्रश्न 6.
भारत में चुनावों को स्वतन्त्र और निष्पक्ष बनाने के लिए किये गये किन्हीं तीन संवैधानिक व्यवस्थाओं का उल्लेख कीजिए। जाये।
उत्तर:
भारत में चुनावों को स्वतन्त्र और निष्पक्ष बनाने के लिए संविधान में निम्नलिखित तीन व्यवस्थाएँ की गई

  1. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था।
  2. प्रत्येक नागरिक को चुनाव लड़ने की स्वतन्त्रता।
  3. एक स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग की स्थापना।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 7.
भारत में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए कोई तीन सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारत में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए सुझाव।

  1. चुनावी राजनीति में धन के प्रभाव को नियन्त्रित करने के लिए और कठोर कानूनी प्रावधानों की व्यवस्था की
  2. सभी उम्मीदवार, राजनीतिक दल और वे सभी लोग जो चुनाव प्रक्रिया में भाग लेते हैं। लोकतान्त्रिक प्रतिस्पर्द्धा की भावना का सम्मान करें।
  3. जनता स्वयं ही और अधिक सतर्क रहते हुए राजनीतिक कार्यों में और अधिक सक्रियता से भाग ले।

प्रश्न 8.
जो सबसे आगे वही जीते अर्थात् सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत वाली चुनांव व्यवस्था ( फर्स्ट- पास्ट-द- पोस्ट सिस्टम) की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत वाली चुनाव व्यवस्था – सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत वाली चुनाव व्यवस्था (फर्स्ट – पास्ट – द – पोस्ट – सिस्टम) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1.  निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण: इस चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट देते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहते हैं।
  2. एक क्षेत्र से एक प्रतिनिधि का निर्वाचन: इसमें हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
  3. मतदान प्रत्याशी को इसमें मतदाता प्रत्याशी को मत देता है।
  4. वोट प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में असन्तुलन: इस प्रणाली में पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका में मिल सकती हैं।
  5. इसमें विजयी उम्मीदवार के लिए यह जरूरी नहीं है कि वोटों का बहुमत (50% + 1 ) ही मिले।

प्रश्न 9.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की विशेषताएँ – समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. निर्वाचन क्षेत्र: समानुपातिक प्रतिनिधिक प्रणाली में या तो किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है, जिससे दो या दो से अधिक सदस्यों का निर्वाचन होना अनिवार्य होता है या पूरा का पूरा देश एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है।
  2. एक क्षेत्र से प्रतिनिधियों की संख्या: इसमें एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।
  3. मतदान पार्टी को समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में मतदाता पार्टी को वोट देता है, न कि प्रत्याशी को।
  4. सीटें प्राप्त मतों के अनुपात में: इस प्रणाली में प्रत्येक पार्टी को प्राप्त मतों के अनुपात में विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।
  5. वोटों के बहुमत से विजय: इसमें विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत (50% + 1 ) हासिल होता है।

प्रश्न 10.
‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ तथा ‘समानुपातिक प्रतिनिधित्व’ प्रणाली के बीच कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ तथा ‘समानुपातिक प्रतिनिधित्व’ चुनाव प्रणाली में अन्तर

सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत समानुपातिक प्रतिनिधित्व
1. पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट देते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहते हैं। 1. किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है। पूरा का पूरा देश एक निर्वाचन क्षेत्र गिना जा सकता है।
2. हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है। 2. एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।
3. मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है। 3. मतदाता रांजनैतिक दल को वोट देता है।
4. पार्टी को प्राप्तोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका में मिल सकती हैं। 4. हर पार्टी को प्रास मत के अनुपात में ही विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।

प्रश्न 11.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार क्या है?
उत्तर:
जब देश के सभी वयस्क नागरिकों को जाति, धर्मा, लिंग, धन, स्थान आदि के आधार पर उत्पन्न भेदभाव के बिना, समान रूप से मतदान का अधिकार दे दिया जाए तो उसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं। इंग्लैंड, भारत तथा अमेरिका में इसकी न्यूनतम आयु 18 वर्ष है। इस निश्चित आयु के पश्चात् प्रत्येक नागरिक को यहाँ मतदान करने का अधिकार प्राप्त है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 12.
परिसीमन आयोग किसे कहते हैं? उसके कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिसीमन आयोग पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा खींचने के उद्देश्य से राष्ट्रपति द्वारा एक स्वतन्त्र संस्था का गठन किया जाता है जिसे परिसीमन आयोग कहते हैं। परिसीमन आयोग के कार्य: रिसीमन आयोग के दो प्रमुख कार्य हैं।

1. निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएँ निर्धारित करना: परिसीमन आयोग आम निर्वाचन से पहले पूरे देश में निर्वाचन के क्षेत्रों की सीमाएँ निर्धारित करता है। इस कार्य को वह चुनाव आयोग के साथ मिलकर करता है।

2. आरक्षित किये जाने वाले निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण: प्रत्येक राज्य में आरक्षण के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का एक कोटा होता है जो उस राज्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की संख्या के अनुपात में होता ह। परिसीमन के बाद, परिसीमन आयोग प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में जनसंख्या की संरचना देखता है। जिन निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा होती है उसे उनके लिए आरक्षित कर दिया जाता है। अनुसूचित जातियों के मामले में परिसीमन आयोग दो बातों पर ध्यान देता है।

आयोग उन निर्वाचन क्षेत्रों को चुनता है जिनमें अनुसूचित जातियों का अनुपात ज्यादा होता है। लेकिन वह इन निर्वाचन क्षेत्रों को राज्य के विभिन्न भागों में फैला भी देता है। ऐसा इसलिए कि अनुसूचित जातियों को पूरे देश में बिखराव समरूप है। जब कभी भी परिसीमन का काम होता है, इन आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में कुछ परिवर्तन कर दिया जाता है।

प्रश्न 13.
1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 543 में से 415 सीटें जीतीं – जो कुल सीटों के 80 प्रतिशत से भी अधिक है। जबकि इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 48 प्रतिशत वोट ही मिले थे। अन्य दलों के प्रदर्शन से भी उनको प्राप्त मतों और प्राप्त सीटों में कोई सन्तुलन नहीं है। ऐसा कैसे हुआ?
उत्तर:
1984 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को प्राप्त मतों के अनुपात से अधिक सीटें मिलीं जबकि भाजपा, लोकदल को प्राप्त मतों के अनुपात से कम सीटें मिलीं। ऐसा इसलिए सम्भव हुआ कि भारत में चुनाव की एक विशेष विधि का पालन किया जाता है। इस विधि को फर्स्ट – पास्ट – द – पोस्ट सिस्टम कहते हैं । इस विधि के अन्तर्गत चुनाव की निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जाती है।

  1. पूरे देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट दिया गया है।
  2. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
  3. उस निर्वाचन क्षेत्र में जिस प्रत्याशी को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता।
  4. इसमें विजयी प्रत्याशी के लिए यह जरूरी नहीं है कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले।

यदि चुनाव मैदान में कई प्रत्याशी हों तो जीतने वाले प्रत्याशी को प्रायः 50 प्रतिशत से कम वोट मिलते हैं। सभी हारने वाले प्रत्याशियों के वोट बेकार चले जाते हैं क्योंकि इन वोटों के आधार पर उन प्रत्याशियों या दलों को कोई सीट नहीं मिलती। मान लीजिए कि किसी पार्टी को प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में 25 प्रतिशत वोट मिलते हैं लेकिन अन्य प्रत्याशियों को उससे भी कम वोट मिलते हैं। उस स्थिति में केवल 25 प्रतिशत या उससे कम वोट पाकर कोई दल सभी सीटें जीत सकता है। इस विधि की इसी विशेषता के कारण 1984 में कांग्रेस पार्टी ने 48% मत पाकर भी 80 प्रतिशत सीटें प्राप्त कीं।

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प्रश्न 14.
इजरायल में अपनायी गयी समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इजराइल में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली: इजराइल में चुनावों के लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनाई गई है। वहाँ विधायिका (नेसेट) के चुनाव प्रत्येक चार वर्ष पर होते हैं। यहाँ पूरे देश को एक निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है। प्रत्येक पार्टी चुनावों से पहले अपने प्रत्याशियों की एक प्राथमिकता सूची जारी कर देती है। लेकिन मतदाता प्रत्याशियों को नहीं वरन् पार्टियों को वोट देते हैं। मतगणना के बाद, प्रत्येक पार्टी को संसद में उसी अनुपात में सीटें दे दी जाती हैं जिस अनुपात में उन्हें वोटों में हिस्सा मिलता है।

इस प्रकार प्रत्येक पार्टी अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची से चुन लेती है जितनी सीटों का कोटा उसे दिया जाता है। इससे सीमित जनाधार वाली छोटी पार्टियों को भी विधायिका में कुछ प्रतिनिधित्व मिल जाता है। शर्त यह है कि विधायिका में सीट पाने के लिए न्यूनतम 3.25 प्रतिशत वोट मिलने चाहिए। इससे प्राय: बहुदलीय गठबन्धन सरकारें बनती हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग के संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग का संगठन: भारत में चुनाव प्रक्रिया को स्वतन्त्र और निष्पक्ष बनाने के लिए एक स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई संविधान के अनुच्छेद 324(1) के अनुसार, “इस संविधान के अधीन संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमण्डल के लिए कराये जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली
तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचकों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियन्त्रण एक आयोग में निहित होगा (जिसे इस संविधान में निर्वाचन आयोग कहा गया है।)

निर्वाचन आयुक्त: भारत का निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय या बहुसदस्यीय भी हो सकता है। वर्तमान में निर्वाचन आयोग त्रिसदस्यीय है जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो अन्य निर्वाचन आयुक्त हैं। एक सामूहिक संस्था के रूप में चुनाव सम्बन्धी हर निर्णय में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दोनों निर्वाचन आयुक्तों की शक्तियाँ समान हैं।

नियुक्ति: निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मन्त्रिपरिषद् के परामर्श पर की जाती है।

कार्यकाल: संविधान मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के कार्यकाल की सुरक्षा देता है। उन्हें 6 वर्षों के लिए अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो पहले खत्म हो) के लिए नियुक्त किया जाता है।

पद: विमुक्ति-मुख्य निर्वाचन आयुक्त को कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है; पर इसके लिए संसद के दोनों सदनों को विशेष बहुमत से पारित कर इस आशय का एक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को भेजना होगा। विशेष बहुमत से आशय है। उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत; और सदन की कुल सदस्य संख्या का साधारण बहुमत। मुख्य निर्वाचन अधिकारी व अन्य कर्मचारी – भारत के निर्वाचन आयोग की सहायता करने के लिए प्रत्येक राज्य में एक मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है। निर्वाचन आयोग के पास बहुत ही सीमित कर्मचारी होते हैं।

वह प्रशासनिक मशीनरी की मदद से कार्य करता है। एक बार चुनाव प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाने के बाद चुनाव सम्बन्धी कार्यों के सम्बन्ध में आयोग का पूरी प्रशासनिक मशीनरी पर नियन्त्रण हो जाता है। चुनाव प्रक्रिया के दौरान राज्य और केन्द्र सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों को चुनाव सम्बन्धी कार्य दिये जाते हैं और इस सम्बन्ध में निर्वाचन आयोग का उन पर पूरा नियन्त्रण होता है। निर्वाचन आयोग इन अधिकारियों का तबादला कर सकता है या उनके तबादले रोक सकता है; अधिकारियों के निष्पक्ष ढंग से काम करने में विफल रहने पर आयोग उनके विरुद्ध कार्यवाही भी कर सकता है।

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प्रश्न 2.
भारतीय निर्वाचन आयोग के मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चुनाव आयोग के कार्य: भारत में चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।
1. निर्वाचक नामावली तैयार करना:
निर्वाचन आयोग का प्रमुख कार्य निर्वाचन हेतु निर्वाचक नामावली तैयार करना है। इस हेतु वह मतदाता सूचियों को नया करने के काम की देख-रेख करता है। वह पूरा प्रयास करता है कि मतदाता सूचियों में गलतियाँ न हों अर्थात् पंजीकृत मतदाताओं के नाम न छूट जाएँ और न ही उसमें ऐसे लोगों के नाम हों जो मतदान के अयोग्य हों या जीवित न हों।

2. चुनाव कार्यक्रम तैयार करना तथा इसका क्रियान्वयन करना:
निष्पक्ष और स्वतन्त्र निर्वाचन कराने की दृष्टि से वह चुनाव का समय और चुनावों का पूरा कार्यक्रम तैयार करता है। इसमें चुनाव की अधिघोषणा, नामांकन प्रक्रिया शुरू करने की तिथि, मतदान की तिथि, मतगणना की तिथि और चुनाव परिणामों की घोषणा आदि बातों का उल्लेख होता है। चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग इस निर्वाचन कार्यक्रम को क्रियान्वित करता है।

3. चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति:
चुनाव आयोग चुनाव करवाने के लिए प्रत्येक राज्य में मुख्य चुनाव अधिकारी और प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए एक चुनाव अधिकारी व अन्य कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं। चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग का पूरी प्रशासनिक मशीनरी पर नियंत्रण हो जाता है। निर्वाचन आयोग इन प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को चुनाव सम्बन्धी कार्य देता है।

4. राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता का निर्माण:
निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के लिए एक आदर्श आचार संहिता लागू करता है।

5. राजनीतिक दलों को मान्यता तथा चुनाव चिह्न का आवंटन: निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को मान्यता देता है और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करता है।

6. अन्य कार्य: निर्वाचन आयोग को स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निर्णय लेने का अधिकार है।

  1. वह पूरे देश, किसी राज्य या किसी निर्वाचन क्षेत्र में चुनावों को इस आधार पर स्थगित या रद्द कर सकता है कि वहाँ माकूल माहौल नहीं है तथा स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव कराना सम्भव नहीं है।
  2. वह किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में दुबारा चुनाव कराने की आज्ञा दे सकता है।
  3. यदि उसे लगे कि मतगणना प्रक्रिया पूरी तरह से उचित और न्यायपूर्ण नहीं थी तो वह दोबारा मतगणना कराने की भी आज्ञा दे सकता है।

प्रश्न 3.
भारत में चुनावों को निष्पक्ष और स्वतन्त्र बनाने हेतु चुनाव सुधार सम्बन्धी सुझाव दीजिए।
उत्तर:
चुनाव सुधार हेतु सुझाव: वयस्क मताधिकार, चुनाव लड़ने की स्वतन्त्रता और एक स्वतन्त्र निर्वाचन आयोग की स्थापना को स्वीकार कर भारत में चुनावों को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष बनाने की कोशिश की गई है। पिछले 50 वर्षों के अनुभव के बाद इस सन्दर्भ में भारत की चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

1. समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू की जाये: भारत में चुनाव व्यवस्था के अन्तर्गत ‘सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली’ (फर्स्ट- पास्ट-द-पोस्ट-सिस्टम) के स्थान पर किसी प्रकार की समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू करनी चाहिए। इससे राजनीतिक दलों को उसी अनुपात में सीटें मिलेंगी जिस अनुपात में उन्हें वोट मिलेंगे।

2. महिलाओं को आरक्षण दिया जाये: संसद और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटों पर महिलाओं को चुनने के लिए विशेष प्रावधान बनाये जाएँ।

3. धन के प्रभाव पर नियन्त्रण हो: चुनावी राजनीति में धन के प्रभाव को नियन्त्रित करने के लिए और अधिक कठोर प्रावधान होने चाहिए। सरकार को एक विशेष निधि से चुनावी खर्चों का भुगतान करना चाहिए।

4. अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक: जिस उम्मीदवार के विरुद्ध फौजदारी का मुकदमा हो उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए, भले ही उसने इसके विरुद्ध न्यायालय में अपील कर रखी हो।

5. जाति: धर्म आधारित चुनावी अपीलों पर प्रतिबन्ध लगे- चुनाव प्रचार में जाति और धर्म के आधार पर की जाने वाली किसी भी अपील को पूरी तरह से प्रतिबन्धित कर देना चाहिए।

6. राजनीतिक दलों को अधिक पारदर्शी तथा लोकतान्त्रिक बनाया जाये: राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली को नियन्त्रित करने के लिए तथा उनकी कार्यविधि को और अधिक पारदर्शी तथा लोकतान्त्रिक बनाने के लिए एक कानून होना चाहिए।

7. जनता की सतर्कता और सक्रियता में वृद्धि आवश्यक; कानूनी सुधारों के अतिरिक्त चुनावों की स्वतन्त्रता व निष्पक्षता के लिए यह भी आवश्यक है कि स्वयं जनता अधिक सतर्क रहते हुए राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रहे। वास्तव में निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव तभी हो सकते हैं जब सभी उम्मीदवार, राजनीतिक दल और वे सभी लोग जो चुनाव प्रक्रिया में भाग लेते हैं। लोकतान्त्रिक प्रतिस्पर्द्धा की भावना का सम्मान करें।

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प्रश्न 4.
भारत में चुनाव व्यवस्था की सफलता का मापन कीजिए।
अथवा
भारत में चुनाव व्यवस्था ने सफलतापूर्वक अपना कार्य किया है। इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए भारत में चुनाव व्यवस्था की सफलता।
उत्तर:
जिन देशों में प्रतिनिध्यात्मक लोकतान्त्रिक व्यवस्था है, वहाँ चुनाव और चुनाव का प्रतिनिधित्व वाला स्वरूप लोकतन्त्र को प्रभावी और विश्वसनीय बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता है। भारत में चुनाव व्यवस्था ने अपना कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया है। इसकी सफलता को निम्नलिखित आधारों पर मापा जा सकता है।
1. शान्तिपूर्ण ढंग से सरकारों में परिवर्तन सम्भव: भारतीय चुनाव व्यवस्था ने मतदाताओं को न केवल अपने प्रतिनिधियों को चुनने की स्वतन्त्रता दी है, बल्कि उन्हें केन्द्र और राज्यों में शान्तिपूर्ण ढंग से सरकारों को बदलने का अवसर भी दिया है।

2. मतदाताओं तथा दलों की चुनाव प्रक्रिया में निरन्तर रुचि का होना; भारतीय चुनाव व्यवस्था के अन्तर्गत मतदाताओं ने चुनाव प्रक्रिया में लगातार रुचि ली है और उसमें भाग लिया है। चुनावों में भाग लेने वाले उम्मीदवारों और दलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

3. सभी को साथ लेकर चलना: भारतीय निर्वाचन व्यवस्था में सभी को स्थान मिला है और यह सभी को साथ लेकर चली है। हमारे प्रतिनिधियों की सामाजिक पृष्ठभूमि भी धीरे-धीरे बदली है। अब हमारे प्रतिनिधि विभिन्न सामाजिक वर्गों से आते हैं।

4. अधिकाश चुनाव परिणाम चुनावी अनियमितताओं और धाँधली से अप्रभावित: देश के अधिकतर भागों में चुनाव परिणाम चुनावी अनियमितताओं और धाँधली से प्रभावित नहीं होते, यद्यपि चुनाव में धाँधली करने के अनेक प्रयास किये जाते हैं। फिर भी ऐसी घटनाओं से शायद ही कोई चुनाव परिणाम प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता हो।

5. चुनाव भारत के लोकतान्त्रिक जीवन के अभिन्न अंग: चुनाव भारत के लोकतान्त्रिक जीवन के अभिन्न अंग बन गये हैं। कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि कभी कोई सरकार चुनावों में जनादेश का उल्लंघन भी करेगी। इसी तरह, कोई यह भी कल्पना नहीं कर सकता कि बिना चुनावों के कोई सरकार बन सकेगी। भारत में निश्चित अन्तराल पर होने वाले नियमित चुनावों को एक महान लोकतान्त्रिक प्रयोग के रूप में ख्याति मिली है। इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि भारत में निर्वाचन व्यवस्था ने सफलतापूर्वक निर्वाचन कार्य को सम्पन्न किया है। इससे भारत में मतदाता के अन्दर आत्म-विश्वास बढ़ा है तथा मतदाताओं की निगाह में निर्वाचन आयोग का कद बढ़ा है।

प्रश्न 5.
भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को किनके चुनावों के लिए अपनाया गया है? राज्यसभा के चुनावों का विवेचन करते हुए इसके स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का स्वरूप: भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को केवल अप्रत्यक्ष चुनावों के लिए ही सीमित रूप में अपनाया गया है। भारत का संविधान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों के लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का एक जटिल स्वरूप प्रस्तावित करता है जिसे एकल संक्रमणीय मत प्रणाली कहा जाता है। राज्यसभा के चुनावों में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली समानुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का स्वरूप हमें भारत में राज्यसभा के चुनावों में देखने को मिलता है। यथा

1. राज्यवार सीटों की संख्या का निर्धारण: प्रत्येक राज्य को राज्यसभा में सीटों का एक निश्चित कोटा प्राप्त है।

2. मतदाता: राज्यों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा इन सीटों के लिए चुनाव किया जाता है। इसमें राज्य के विधायक ही मतदाता होते हैं।

3. प्रत्याशियों को वरीयता क्रम में मतदान: मतदाता चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों को अपनी पसन्द के अनुसार एक वरीयता क्रम में मत देता है।

4. कोटा का निर्धारण: जीतने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी को मतों का एक कोटा प्राप्त करना पड़ता है, निम्नलिखित फार्मूले के आधार पर निकाला जाता है।
JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व 1
उदाहरण के लिए यदि राजस्थान के 200 विधायकों को राज्यसभा के लिए चार सदस्य चुनने हैं तो विजयी उम्मीदवार को \(\left(\frac{200}{4+1}\right)\) + 1 = \(\frac{200}{5}\) + 1 = 41 वोटों की जरूरत पड़ेगी।

5. मतगणना और परिणाम: जब मतगणना होती है तब उम्मीदवारों को प्राप्त ‘प्रथम वरीयता’ का वोट गिना जाता है। प्रथम वरीयता के आधार पर वोटों की गणना के पश्चात्, यदि प्रत्याशियों की वांछित संख्या वोटों का कोटा प्राप्त नहीं कर पाती तो पुनः मतगणना की जाती है। ऐसे प्रत्याशी को मतगणना से निकल दिया जाता है जिसे प्रथम वरीयता वाले सबसे कम वोट मिले हों। उसके वोटों को दूसरी वरीयता के अनुसार अन्य प्रत्याशियों को हस्तान्तरित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखा जाता है जब तक वाँछित संख्या में प्रत्याशियों को विजयी घोषित नहीं कर दिया जाता।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 6.
‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली’ और ‘समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली’ की तुलना कीजिए।
उत्तर:
सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली और समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की तुलना- ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली’ और ‘समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली’ की तुलना अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की गई है।

1. निर्वाचन क्षेत्र सम्बन्धी अन्तर: ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली’ के अन्तर्गत पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट दिया जाता है जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहते हैं। एक निर्वाचन दूसरी तरफ ‘समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली’ के अन्तर्गत या तो किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को क्षेत्र मानकर पूरे देश को इस प्रकार के बड़े निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है या पूरा का पूरा देश एक निर्वाचन क्षेत्र गिना जा सकता है।

2. एकल या बहुल निर्वाचन क्षेत्र सम्बन्धी अन्तर-सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है, जबकि समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।

3. वोट प्रत्याशी को या दल को: ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली’ के अन्तर्गत मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है। दूसरी तरफ समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत मतदाता पार्टी को वोट देता है।

4. प्राप्त मत और प्राप्त सीटें: ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली’ के अन्तर्गत पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका में मिल सकती हैं; जबकि समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात में ही विधायिका में सीटें हासिल होती हैं।

6. वोटों के बहुमत का अन्तर-सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली के अन्तर्गत विजयी उम्मीदवार को जरूरी नहीं है कि उसे कुल वोटों का बहुमत (50% + 1) मिले जबकि समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत हासिल होता है। सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत प्रणाली के उदाहरण हैं – यूनाइटेड किंगडम और भारत तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के उदाहरण हैं- इजरायल और नीदरलैण्ड।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. आगस्टस कौन था?
(अ) रोम का सेनापति
(ब) बिशप
(स) प्रधानमन्त्री
(द) रोम का प्रथम सम्राट्।
उत्तर:
(द) रोम का प्रथम सम्राट्।

2. किस रोमन सम्राट ने भारत की विजय का स्वप्न देखा था –
(अ) आगस्टस
(ब) टिबेरियस
(स) त्राजान
(द) कान्स्टैन्टाइन।
उत्तर:
(स) त्राजान

3. सैनेट में किसका बोलबाला था ?
(अ) सेना का
(ब) पुरोहितों का
(स) अभिजात वर्ग का
(द) श्रमिकों का।
उत्तर:
(स) अभिजात वर्ग का

4. सेन्ट आगस्टीन कौन थे?
(अ) रोम के पोप
(ब) उत्तरी अफ्रीका के हिप्पो नगर के बिशप
(स) ईसाई धर्म का प्रचारक
(द) चर्च के पादरी।
उत्तर:
(ब) उत्तरी अफ्रीका के हिप्पो नगर के बिशप

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5. सबसे बढ़िया अंगूरी शराब के लिए कौनसा प्रदेश प्रसिद्ध था –
(अ) कैम्पैनिया
(ब) इटली
(स) सिसली
(द) स्पेन।
उत्तर:
(अ) कैम्पैनिया

6. दास-समूहों के प्रयोग की निन्दा करने वाले इतिहासकार थे –
(अ) हेरोडोटस
(ब) टिसीटस
(स) वरिष्ठ प्लिनी
(द) होमर।
उत्तर:
(स) वरिष्ठ प्लिनी

7. वह कौनसा नगर था जो 79 ई. में ज्वालामुखी फटने से दफन हो गया था?
(अ) ऐडेसा
(ब) पोम्पेई
(स) सिकन्दरिया
(द) रोम।
उत्तर:
(ब) पोम्पेई

8. किस रोमन सम्राट का शासन काल शान्ति के लिए याद किया जाता है –
(अ) टिबेरियस
(ब) आगस्टस
(स) कान्स्टैन्टाइन
(द) त्राजान।
उत्तर:
(ब) आगस्टस

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. रोम साम्राज्य में स्त्रियों की …………….. स्थिति काफी सुदृढ़ थी।
2. रोम साम्राज्य की अर्थव्यवस्था बहुत कुछ …………….. के बल पर चलती थी।
3. ईसा मसीह के जन्म से लेकर 630 ई. के दशक तक की अवधि में यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व तक के क्षेत्र में दो सशक्त, …………….. और …………….. के साम्राज्यों का शासक था।
4. प्रथम सम्राट, ऑगस्टस ने 27 ई. पू. जो राज्य स्थापित किया उसे …………….. कहा जाता था।
5. सत्ता का सहज परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए ऑंगस्टस ने ……………..
उत्तर:
1. कानूनी
2. दास श्रम
3. रोग, ईरान
4. प्रिंसपेट
5. टिबेरियस

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छौंटिये –

1. ऑगस्टस का शासन काल शान्ति के लिए याद किया जाता है।
2. रोमन साम्राज्य के प्रारंभिक विस्तार में एकमात्र अभियान सम्राट ट्वेिरियस ने 113-117 ईस्वी में चलाया।
3. इटली के सिवाय, रोमन साम्राज्य के सभी क्षेत्र प्रान्तों में बंटे हुए थे।
4. प्रथम शताब्दी में रोम साम्राज्य को बेहद तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ा।
5. रोमन साम्राज्य के काल में स्पेन की सोने और चांदी की खानों में जल- शक्ति से खुदाई की जाती थी।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. एम्फ (अ) स्पेन में उत्पादित जैतून के तेल के कंटेनर
2. ड्रेसल – 20 (ब) ओवन आकार की झोंपड़ियां
3. मैपालिया (स) स्पेन की पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँव
4. केस्टोला (द) निम्नतर वर्ग
5. हयूमिलिओरिस (य) मटके या कंटेनर

उत्तर:

1. एम्फोरा (य) मटके या कंटेनर
2. ड्रेसल – 20 (अ) स्पेन में उत्पादित जैतून के तेल के कंटेनर
3. मैपालिया (ब) ओवन आकार की झोंपड़ियां
4. केस्टोला (स) स्पेन की पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँव
5. ह्यूमिलिओरिस (द) निम्नतर वर्ग

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रोमन साम्राज्य को किन दो भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
(1) पूर्ववर्ती साम्राज्य तथा
(2) परवर्ती साम्राज्य।

प्रश्न 2.
रोम में गणतन्त्र की अवधि क्या थी?
उत्तर;
509 ई. पूर्व से 27 ई. पूर्व तक।

प्रश्न 3.
आगस्टस कौन था ?
उत्तर:
आगस्टस रोम का प्रथम सम्राट था।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में तीन प्रमुख खिलाड़ी कौन थे ?
उत्तर:

  • सम्राट
  • सैनेट
  • सेना।

प्रश्न 5.
रोम में गृह-युद्ध कब हुआ था?
उत्तर:
रोम में गृह-युद्ध 66 ई. में हुआ था।

प्रश्न 6.
रोम के शहरी जीवन की एक प्रमुख विशेषता बताइये।
उत्तर:
सार्वजनिक स्नान गृह।

प्रश्न 7.
रोम में किस प्रकार के परिवार का व्यापक रूप से चलन था ?
उत्तर:
रोम में एकल परिवार का व्यापक रूप से चलन था।

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प्रश्न 8.
रोमन साम्राज्य में किस नगर में साक्षरता व्यापक रूप से विद्यमान थी ?
उत्तर:
पोम्पई नगर में।

प्रश्न 9.
रोमन साम्राज्य के ऐसे चार क्षेत्रों के नाम लिखिए जो अपनी असाधारण उर्वरता के कारण प्रसिद्ध थे ।
अथवा
स्ट्रैबो तथा प्लिनी के अनुसार रोमन साम्राज्य के घनी आबादी वाले तथा धन-सम्पन्न चार नगर कौन-से थे ?
उत्तर:

  • कैम्पैनिया
  • सिसली
  • फैय्यूम
  • गैलिली।

प्रश्न 10.
रोमन साम्राज्य के ऐसे दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिये जो बहुत कम उन्नत अवस्था में थे।
उत्तर:
(1). नुमीडिया (आधुनिक अल्जीरिया) तथा
(2) स्पेन का उत्तरी क्षेत्र।

प्रश्न 11.
रोम के कौन-से दो प्रदेश रोम को भारी मात्रा में गेहूँ का निर्यात करते थे ?
उत्तर:
(1) सिसली तथा
(2) बाइजैकियम।

प्रश्न 12.
रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन ने किस नगर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया?
उत्तर:
कुस्तुन्तुनिया को।

प्रश्न 13.
रोमवासियों के चार प्रमुख देवी-देवताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • जूपिटर
  • जूनो
  • मिनर्वा
  • मार्स।

प्रश्न 14.
‘एकाश्म’ का शाब्दिक अर्थ बताइये।
उत्तर:
एकाश्म का तात्पर्य एक बड़ी चट्टान का टुकड़ा होता है। यह विविधता की कमी का सूचक है।

प्रश्न 15.
सातवीं शताब्दी में रोमन साम्राज्य अधिकतर किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
बाइजेंटियम।

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प्रश्न 16.
रोम में सालिडस नामक सोने का सिक्का किसने चलाया था?
उत्तर:
रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन ने।

प्रश्न 17.
रोम साम्राज्य का ईसाईकरण करने का श्रेय किस सम्राट को दिया जाता है?
उत्तर:
कान्स्टैन्टाइन को।

प्रश्न 18.
रोम के लोग किस नाम के वृक्षों पर लेखन कार्य करते थे?
उत्तर:
पेपाइरस नाम के वृक्षों पर।

प्रश्न 19.
आगस्टस ने ‘प्रिंसिपेट’ की स्थापना कब की थी?
उत्तर:
27 ई. पूर्व में।

प्रश्न 20.
रोम क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
अपने विशाल साम्राज्य, गणतन्त्रीय व्यवस्था, कला, साहित्य की उन्नति के कारण।

प्रश्न 21.
रोम साम्राज्य का विस्तार क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
रोम साम्राज्य में आज का अधिकांश यूरोप और उर्वर अर्द्धचन्द्राकार क्षेत्र अर्थात् पश्चिमी एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका का बहुत बड़ा हिस्सा शामिल था।

प्रश्न 22.
रोम के इतिहास की स्रोत सामग्री को किन वर्गों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर:
रोम के इतिहास की स्रोत सामग्री को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है –

  • पाठ्य सामग्री
  • प्रलेख या दस्तावेज तथा
  • भौतिक अवशेष

प्रश्न 23.
रोम्मन गणतन्त्र ( रिपब्लिक) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
रोम साम्राज्य में गणतन्त्र ( रिपब्लिक) एक ऐसी शासन व्यवस्था थी जिसमें वास्तविक सत्ता ‘सैनेट’ नामक निकाय में निहित थी।

प्रश्न 24.
‘प्रिंसिपेट’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रोमन सम्राट आगस्टस ने 27 ई. पूर्व में जो राज्य स्थापित किया था, उसे ‘प्रिंसिपेट’ कहा जाता था।

प्रश्न 25.
रोमन सम्राट आगस्टस को ‘प्रमुख नागरिक’ क्यों माना जाता था?
उत्तर:
रोमन सम्राट आगस्टस को यह प्रदर्शित करने के लिए कि वह निरंकुश शासक नहीं था, ‘प्रमुख नागरिक’ माना जाता था।

प्रश्न 26.
सैनेट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सैनेट रोम का वह निकाय था जिसमें कुलीन एवं अभिजात वर्गों अर्थात् मुख्यतः रोम के धनी परिवारों का प्रतिनिधित्व था ।

प्रश्न 27.
रोमन सम्राटों के बुरे व अच्छे होने का मापदण्ड क्या माना जाता था ?
उत्तर:
सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वाले सम्राट सबसे बुरे तथा सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं करने वाले सम्राट अच्छे सम्राट माने जाते थे।

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प्रश्न 28.
रोम में गणतन्त्र को समाप्त करके किसने अपनी सत्ता स्थापित की थी ?
उत्तर:
रोम में गणतन्त्र को समाप्त करके आगस्टस ने 27 ई. पू. में अपनी सत्ता स्थापित की थी।

प्रश्न 29.
रोम की सेना की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
(1) रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था।
(2) प्रत्येक सैनिक को न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी।

प्रश्न 30.
रोमन सेना निरन्तर आन्दोलन क्यों करती रहती थी ?
उत्तर:
रोमन सेना अच्छे वेतन तथा सेवा शर्तों के लिए निरन्तर आन्दोलन करती रहती थी।

प्रश्न 31.
रोमन सम्राटों की सफलता किस बात पर निर्भर करती थी?
उत्तर:
रोमन सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियन्त्रण रख पाते थे।

प्रश्न 32.
रोम में गृह-युद्ध क्यों होते थे ?
उत्तर:
जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं, तो इसका परिणाम सामान्यतः गृह-युद्ध होता था।

प्रश्न 33.
गृह-युद्ध से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गृह-युद्ध अपने ही देश में सत्ता प्राप्त करने के लिए किया गया सशस्त्र संघर्ष है।

प्रश्न 34.
त्राजान कौन था ? उसने साम्राज्य – विस्तार के लिए कब अभियान किया ?
उत्तर:
त्राजान रोम का सम्राट था। उसने साम्राज्य के विस्तार के लिए 113-117 ई. में एक सैनिक अभियान

प्रश्न 35.
सम्राट आगस्टस का शासन काल किस बात के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
सम्राट आगस्टस का शासन काल शान्ति के लिए याद किया जाता है।

प्रश्न 36.
‘निकटवर्ती पूर्व’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
‘निकटवर्ती पूर्व’ से अभिप्राय भूमध्य सागर के बिल्कुल पूर्वी प्रदेशों से है। इसमें सीरिया, फिलिस्तीन और मेसोपोटामिया के प्रान्त, अरब आदि प्रदेश शामिल थे।

प्रश्न 37.
रोमन सम्राट अत्यन्त विस्तृत और दूर-दूर तक फैले हुए साम्राज्य पर किस प्रकार नियन्त्रण रखते थे?
उत्तर:
सम्पूर्ण साम्राज्य में दूर-दूर तक अनेक नगर स्थापित किये गये थे जिनके माध्यम से समस्त साम्राज्य पर नियन्त्रण रखा जाता था।

प्रश्न 38.
रोम में साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार कौन थे ?
उत्तर:
भूमध्य सागर के तटों पर स्थापित बड़े शहरी केन्द्र जैसे कार्थेज, सिकन्दरिया तथा एंटिऑक रोम साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार थे।

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प्रश्न 39.
रोम साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का विस्तार किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
रोम के प्रान्तीय राज्य क्षेत्र में अनेक आश्रित राज्यों के मिला लिए जाने से रोम साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का विस्तार हुआ।

प्रश्न 40.
रोम के सन्दर्भ में नगर के शहरी केन्द्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोम के सन्दर्भ में नगर एक ऐसा शहरी केन्द्र था, जिसके अपने दण्डनायक (मजिस्ट्रेट), नगर परिषद् तथा एक निश्चित राज्य – क्षेत्र था।

प्रश्न 41.
रोमन साम्राज्य में शहरी लोगों को उच्च स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे। उदाहरण देकर इसकी पुष्टि कीजिये।
उत्तर:
एक कैलेण्डर से हमें ज्ञात होता है कि एक वर्ष में कम-से-कम 176 दिन रोम में कोई-न-कोई मनोरंजक कार्यक्रम या प्रदर्शन अवश्य होता था।

प्रश्न 42.
तीसरी शताब्दी में ईरान के किस शासक ने रोमन साम्राज्य पर आक्रमण किया और रोमन सेना का संहार किया?
उत्तर:
ईरान के शासक शापुर प्रथम ने आक्रमण कर 60,000 रोमन सेना का सफाया कर दिया तथा रोमन साम्राज्य की पूर्वी राजधानी एंटिऑक पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 43.
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को अत्यधिक तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ा। इसका एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में थोड़े-थोड़े अन्तर से 47 वर्षों में 25 सम्राट रोम की गद्दी पर बैठे। इस अवधि में रोमन साम्राज्य को अत्यधिक तनाव की स्थिति में से गुजरना पड़ा था।

प्रश्न 44.
रोमन परिवारों में किन्हें सम्मिलित किया जाता था और क्यों ?
उत्तर:
रोमन परिवारों में पति-पत्नी, अवयस्क बच्चों तथा दासों को सम्मिलित किया जाता था क्योंकि रोमवासियों के लिए परिवार की यही अवधारणा थी।

प्रश्न 45.
रोम में स्त्रियों को सम्पत्ति सम्बन्धी क्या अधिकार प्राप्त थे ?
उत्तर:
रोम में महिला अपने पिता की मुख्य उत्तराधिकारी बनी रहती थी और अपने पिता की मृत्यु होने पर उसकी सम्पत्ति की स्वतन्त्र मालिक बन जाती थी।

प्रश्न 46.
सेंट आगस्टीन कौन थे ?
उत्तर:
सेंट आगस्टीन 396 ई. से उत्तरी अफ्रीका के हिप्पो नामक नगर में बिशप थे। चर्च के बौद्धिक इतिहास में उनका उच्चतम स्थान था।

प्रश्न 47.
रोम में महिलाओं को पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था और महिलाओं पर उनके पति प्राय: हावी रहते थे इसकी पुष्टि किस साक्ष्य से होती है ?
उत्तर:’
सेंट आगस्टीन नामक प्रसिद्ध बिशप ने लिखा है कि उनकी माता की उनके पिता द्वारा नियमित रूप से पिटाई की जाती थी।

प्रश्न 48.
रोमन साम्राज्य में पिताओं का अपने बच्चों पर अत्यधिक कानूनी नियन्त्रण होता था । इसे उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में अवांछित बच्चों के मामलों में पिताओं को उन्हें जीवित रखने या मार डालने तक का कानूनी अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 49.
रोमन साम्राज्य में कौनसी मुख्य व्यापारिक मदें थीं जिनका अधिक मात्रा में उपयोग होता था ? ये वस्तुएँ कहाँ से मँगाई जाती थीं?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में गेहूँ, अंगूरी शराब तथा जैतून का तेल मुख्य व्यापारिक मदें थीं जो स्पेन, गैलिक प्रान्तों, उत्तरी अफ्रीका, मिस्र तथा इटली से मँगाई जाती थीं।

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प्रश्न 50.
एम्फोरा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में शराब, जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की ढुलाई जिन मटकों या कंटेनरों से होती थी, उन्हें ‘एम्फोरा’ कहते थे।

प्रश्न 51.
‘ड्रेसल – 20’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल मुख्य रूप से ऐसे कंटेनरों से ले जाया जाता था जिन्हें ड्रेसल – 20 कहते हैं।

प्रश्न 52.
ड्रेसल – 20 का नाम किसके नाम पर आधारित है?
उत्तर:
ड्रेसल – 20 का नाम हेनरिक डेसिल नामक पुरातत्त्वविद् के नाम पर आधारित है जिसने ऐसे कन्टेनरों का रूप सुनिश्चित किया था ।

प्रश्न 53.
कैम्पैनिया क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
कैम्पैनिया एक धन-सम्पन्न नगर था। रोम में सबसे बढ़िया प्रकार की अंगूरी शराब कैम्पैनिया से आती थीं।

प्रश्न 54.
ऋतु प्रवास से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
ग्वालों तथा चरवाहों का अपने जानवरों को चराने के लिए चरागाहों की खोज में मौसम के अनुसार आवागमन ऋतु प्रवास कहलाता है।

प्रश्न 55.
मैपालिया से क्या अभिप्राय है? –
उत्तर:
चरवाहे तथा अर्द्ध- यायावर ओवन ( Oven) आकार की झोंपड़ियाँ उठाए इधर-उधर घूमते-फिरते थे, जिन्हें मैपालिया कहते थे ।

प्रश्न 56.
स्पेन के उत्तरी क्षेत्र के कौनसे गाँव कैस्टेला कहलाते थे ?
उत्तर:
स्पेन के उत्तरी क्षेत्र अधिकतर केल्टिक भाषी – किसानों की आबादी थी, जो पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँवों में रहते थे, जिन्हें कैस्टेला कहा जाता था।

प्रश्न 57.
रोमन साम्राज्य में किस प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में जल- शक्ति से मिलें चलाने की प्रौद्योगिकी में विशेष प्रगति हुई।

प्रश्न 58.
रोमन साम्राज्य में जल- शक्ति से मिलें चलाने की प्रौद्योगिकी की उन्नति का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्पेन की सोने और चाँदी की खानों में जल शक्ति से खुदाई की जाती थी और पहली तथा दूसरी शताब्दियों में इन खानों से खनिज निकाले जाते थे।

प्रश्न 59.
रोमन साम्राज्य में दासता का सबसे अधिक प्रचलन किन क्षेत्रों में था?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में भूमध्य सागर तथा निकटवर्ती पूर्व (पश्चिमी एशिया) दोनों ही क्षेत्रों में दासता का सबसे अधिक प्रचलन था।

प्रश्न 60.
रोमन साम्राज्य में लोग दासों के साथ कैसा बर्ताव करते थे?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्राय: क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे, परन्तु साधारण लोग उनके प्रति कहीं अधिक सहानुभूति रखते थे।

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प्रश्न 61.
‘दास – प्रजनन’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में दास प्रजनन दासों की संख्या बढ़ाने की एक ऐसी प्रथा थी जिसके अन्तर्गत दास-दासियों को अधिकाधिक बच्चे उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।

प्रश्न 62.
रोमन साम्राज्य में जब दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी तो दास श्रम का प्रयोग करने वालों ने किन उपायों का सहारा लिया ?
उत्तर:
दास-श्रम का प्रयोग करने वालों ने दास – प्रजनन अथवा वेतनभोगी मजदूरों की नियुक्ति जैसे उपायों का सहारा लिया ।

प्रश्न 63.
प्लिनी ने दास-समूहों के प्रयोग की निन्दा क्यों की थी?
उत्तर:
प्लिनी ने दास – समूहों के प्रयोग की यह कहकर निन्दा की कि यह उत्पादन आयोजित करने का सबसे बुरा तरीका है।

प्रश्न 64.
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर नियन्त्रण करने के लिए किये जाने वाले दो उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) श्रमिकों को जंजीरों में डालकर रखा जाता था।
(2) श्रमिकों को दागा जाता था ताकि भागने या छिपने पर उन्हें पहचाना जा सके।

प्रश्न 65.
आगस्टीन के पत्रों से तत्कालीन दास प्रथा के बारे में क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर:
आगस्टीन के पत्रों से जानकारी मिलती है कि कभी-कभी माता-पिता अपने बच्चों को 25 वर्ष के लिए बेचकर बन्धुआ मजदूर बना लेते थे

प्रश्न 66.
‘यहूदी विद्रोह’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
66 ई. में जूडेया में रोम की सरकार के विरुद्ध यहूदी विद्रोह हुआ था जिसमें क्रान्तिकारियों ने साहूकारों के ऋण-पत्र नष्ट कर दिये थे।

प्रश्न 67.
‘फ्रैंकिन्सेंस’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
फ्रैंकिन्सेंस से अभिप्राय है – सुगन्धित राल। इसका प्रयोग धूप-अगरबत्ती और इत्र बनाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 68.
सबसे अच्छी किस्म की राल रोम में कहाँ से आती थी ?
उत्तर:
सबसे अच्छी किस्म की सुगन्धित राल रोम में अरब प्रायद्वीप से आती थी ।

प्रश्न 69.
इतिहासकार टैसिटस द्वारा उल्लिखित रोमन साम्राज्य के चार सामाजिक वर्गों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • सैनेटर
  • अश्वारोही या नाइट वर्ग
  • जनता का सम्माननीय वर्ग
  • फूहड़ निम्नतर वर्ग अर्थात् कमीनकारु।

प्रश्न 70.
‘परवर्ती पुराकाल’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘परवर्ती पुराकाल’ से अभिप्राय रोम साम्राज्य के उद्भव, विकास और पतन के इतिहास की उस अवधि से है जो चौथी से सातवीं शताब्दी तक फैली हुई थी।

प्रश्न 71.
परवर्ती पुराकाल में सांस्कृतिक क्षेत्र में हुए दो परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन द्वारा ईसाई धर्म को राज-धर्म बना लेने का निर्णय
(2) सातवीं शताब्दी में इस्लाम का उदय।

प्रश्न 72.
सैनेटर और नाइट ( अश्वारोही) वर्गों में क्या समानता थी ?
उत्तर:
सैनेटरों की भाँति अधिकतर नाइट (अश्वारोही) जमींदार होते थे।

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प्रश्न 73.
सैनेटरों और नाइट (अश्वारोही) वर्गों में क्या अन्तर था ?
उत्तर:
सैनेटरों के विपरीत नाइट वर्ग के कई लोग जहाजों के मालिक, व्यापारी और साहूकार होते थे अर्थात् वे व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न रहते थे।

प्रश्न 74.
परवर्ती साम्राज्य में चाँदी के सिक्कों का प्रचलन क्यों बन्द हो गया था ?
उत्तर:
स्पेन की खानों से चाँदी मिलनी बन्द हो गई थी और सरकार के पास चाँदी के सिक्कों के प्रचलन के लिए पर्याप्त चाँदी नहीं रह गई थी।

प्रश्न 75.
इतिहासकार ओलिंपि ओडोरस के अनुसार रोम नगर में रहने वाले कुलीन परिवारों की क्या आमदनी थी?
उत्तर:
इतिहासकार ओलिंपि ओडोरस के अनुसार रोम नगर में रहने वाले कुलीन परिवारों को अपनी सम्पत्ति से प्रतिवर्ष 4,000 पाउण्ड सोने की आय प्राप्त होती थी।

प्रश्न 76.
रोमन सम्राट डायोक्लीशियन ने साम्राज्य को थोड़ा छोटा क्यों बना लिया ?
उत्तर:
रोमन सम्राट डायोक्लीशियन ने अनुभव किया कि साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक हो चुका है और उसके अनेक प्रदेशों का सामरिक अथवा आर्थिक दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं है।

प्रश्न 77.
सम्राट डायोक्लीशियन के द्वारा किये गए दो सैनिक सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) सम्राट डायोक्लीशियन ने साम्राज्य की सीमाओं पर किले बनवाये।
(2) उसने असैनिक कार्यों को सैनिक कार्यों से अलग कर दिया।

प्रश्न 78.
रोमन सम्राट् कान्स्टैन्टाइन द्वारा मौद्रिक क्षेत्र में किये गये परिवर्तन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन ने ‘सालिडस’ नामक एक नया सिक्का चलाया जो 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था।

प्रश्न 79.
सम्राट कान्स्टैन्टाइन के समय में प्रतिष्ठापित प्रमुख प्रौद्योगिकियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तेल की मिलों, शीशे के कारखानों, पेंच की प्रेसों तथा विभिन्न प्रकार की पानी की मिलों जैसी नई प्रौद्योगिकियाँ प्रतिष्ठापित हुईं।

प्रश्न 80.
“रोमवासियों की पारम्परिक धार्मिक संस्कृति बहुदेवतावादी थी।” दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) रोमवासी अनेक पंथों तथा उपासना पद्धतियों में विश्वास रखते थे।
(2) वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना किया करते थे।

प्रश्न 81.
ईसाईकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ईसाईकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा ईसाई धर्म भिन्न-भिन्न जन-और वहाँ का प्रमुख धर्म बना दिया गया।

प्रश्न 82.
‘रोमोत्तर राज्य’ से आप क्या समझते हैं ? समूहों के बीच फैलाया गया
उत्तर:
जर्मन मूल के समूहों द्वारा छठी शताब्दी में पश्चिमी रोमन साम्राज्य में स्थापित किये गए अपने-अपने राज्य ‘रोमोत्तर राज्य’ कहलाते हैं।

प्रश्न 83.
तीन प्रमुख रोमोत्तर राज्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • स्पेन में विसिगोथों का राज्य
  • गाल में फ्रैंकों का राज्य
  • इटली में लोंबार्डों का राज्य।

प्रश्न 84.
जस्टीनियन की दो विजयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जस्टीनियन ने 533 ई. में अफ्रीका को वैंडलों के अधिकार से मुक्त करा लिया।
(2) उसने आस्ट्रेगोथों को पराजित कर इटली पर अधिकार कर लिया ।

प्रश्न 85.
जस्टीनियन के अभियानों का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर:
इनसे देश तहस-नहस हो गया और लोम्बार्डों के आक्रमण के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया।

प्रश्न 86.
किस घटना को ‘प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति’ कहा जाता है ?
उत्तर:
अरब प्रदेश से शुरू होने वाले इस्लाम के विस्तार को ‘प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति’ कहा जाता है।

प्रश्न 87.
642 ई. तक पूर्वी रोमन तथा ससानी दोनों राज्यों के बड़े-बड़े भागों पर किन लोगों ने अधिकार कर लिया ?
उत्तर:
642 ई. तक पूर्वी रोमन तथा संसानी दोनों राज्यों के बड़े- बड़े भागों पर अरब लोगों ने अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 88.
बर्बर या बारबेरियन से क्या अभिप्राय है? संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जर्मन मूल की जनजातियों अथवा राज्य समुदायों ने रोमन साम्राज्य के अनेक प्रान्तों पर आक्रमण किया। रोमन लोग इन्हें बारबेरियन कहते थे।

प्रश्न 89.
रोमवासियों के चार प्रमुख देवी-देवताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • जूपिटर
  • मिनर्वा
  • जूनो
  • मार्स।

प्रश्न 90.
‘पैपाइरस’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पैपाइरस एक सरकंडा जैसा पौधा था जो मिस्र में नील नदी के किनारे उगता था। इससे कागज तैयार किया जाता था। रोमन लोग इस कागज पर लिखते थे।

प्रश्न 91.
बलात् भर्ती वाली सेना किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
बलात् भर्ती वाली सेना वह होती थी जिसमें कुछ वर्गों या समूहों के वयस्क पुरुषों को अनिवार्य रूप से सैनिक सेवा करनी पड़ती थी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रोम के इतिहास को जानने के मुख्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोम के इतिहास को जानने के स्रोतों को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है –

  1. पाठ्य सामग्री
  2. प्रलेख अथवा दस्तावेज और
  3. भौतिक अवशेष।

(1) पाठ्य सामग्री – पाठ्य सामग्री के अन्तर्गत समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया उस काल का इतिहास, पत्र, व्याख्यान, प्रवचन, कानून आदि सम्मिलित हैं।

(2) प्रलेख या दस्तावेज – प्रलेखों या दस्तावेजों में मुख्य रूप से उत्कीर्ण अभिलेख या पैपाइरस वृक्ष के पत्तों आदि पर लिखी गई पाण्डुलिपियाँ सम्मिलित हैं। काफी बड़ी संख्या में संविदा-पत्र, लेख, संवाद पत्र और सरकारी दस्तावेज आज भी ‘पैपाइरस’ पत्र पर लिखे हुए पाए गए हैं और पैपाइरस शास्त्री कहे जाने वाले विद्वानों द्वारा प्रकाशित किये गए हैं।

(3) भौतिक अवशेष – भौतिक अवशेषों में अनेक प्रकार की वस्तुएँ शामिल हैं जो मुख्य रूप से पुरातत्त्वविदों को खुदाई और सर्वेक्षण के द्वारा अपनी खोजों में प्राप्त हुई हैं। इनमें इमारतें, स्मारक, मिट्टी के बर्तन, सिक्के आदि शामिल हैं।

प्रश्न 2.
रोम साम्राज्य की भौगोलिक स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रोम साम्राज्य की भौगोलिक स्थिति – यूरोप और अफ्रीका के महाद्वीप एक समुद्र द्वारा एक-दूसरे को पृथक् किए हुए हैं जो पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में सीरिया तक फैला हुआ है। यह समुद्र भूमध्य सागर कहलाता है। भूमध्य सागर उन दिनों रोम साम्राज्य का हृदय था। रोम का भूमध्य सागर तथा उसके आस-पास उत्तर और दक्षिण में स्थित सभी प्रदेशों पर प्रभुत्व था। उत्तर में साम्राज्य की सीमा दो महान नदियाँ राइन और डैन्यूब निर्धारित करती थीं। दक्षिण सीमा का निर्धारण सहारा नामक एक विस्तृत रेगिस्तान से होता था । इस प्रकार रोम साम्राज्य एक अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ था।

प्रश्न 3.
ईरानी साम्राज्य की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिये!
उत्तर:
ईरानी साम्राज्य की भौगोलिक स्थिति-ईरानी साम्राज्य में कैस्पियन सागर के दक्षिण से लेकर पूर्वी अरब तक का सम्पूर्ण प्रदेश और कभी-कभी अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्र भी सम्मिलित थे। रोम और ईरानी साम्राज्यों ने विश्व के उस अधिकांश भाग को आपस में बाँट रखा था जिसे चीनी लोग ता – चिन (वृहत्तर चीन या पश्चिम) कहा करते थे।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य तथा ईरानी साम्राज्य में अन्तर बताइए।
अथवा
रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान की तुलना में किस प्रकार अधिक विविधतापूर्ण था ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य तथा ईरानी साम्राज्य में अन्तर – रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान की तुलना में कहीं अधिक विविधतापूर्ण था। ईरान पर पहले पार्थियन तथा बाद में ससानी राजवंशों ने शासन किया। उन्होंने जिन लोगों पर शासन किया, उनमें अधिकतर ईरानी थे। इसके विपरीत, रोमन साम्राज्य ऐसे क्षेत्रों तथा संस्कृतियों का एक मिला-जुला रूप था, जो कि मुख्यतः सरकार की एक साझा प्रणाली द्वारा एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए थे । रोमन साम्राज्य में अनेक भाषाएँ बोली जाती थीं, परन्तु प्रशासन में लैटिन तथा यूनानी भाषाओं का ही प्रयोग किया जाता था।

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प्रश्न 5.
रोम साम्राज्य में स्थापित गणतन्त्र शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रोम साम्राज्य में स्थापित गणतन्त्र शासन व्यवस्था – रोम साम्राज्य में गणतन्त्र एक ऐसी शासन व्यवस्था थी जिसमें वास्तविक सत्ता ‘सैनेट’ नामक निकाय में निहित थी। सैनेट में धनी परिवारों के एक समूह का वर्चस्व था जिन्हें अभिजात कहा जाता था। व्यावहारिक तौर पर गणतन्त्र अभिजात वर्ग की सरकार थी जिसका शासन ‘सैनेट’ नामक संस्था के माध्यम से चलता था। सैनेट की सदस्यता जीवन-भर चलती थी और उसके लिए जन्म की अपेक्षा धन और पद-प्रतिष्ठा को अधिक महत्त्व दिया जाता था। गणतन्त्र का शासन 509 ई. पूर्व से 27 ई. पूर्व तक चला।

प्रश्न 6.
रोमन सम्राट आगस्टस द्वारा स्थापित राज्य ‘प्रिंसिपेट’ का वर्णन कीजिए।
अथवा
रोम राज्य के संदर्भ में ‘प्रिंसिपेट’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रोमन सम्राट आगस्टस द्वारा स्थापित राज्य ‘प्रिंसिपेट’ – प्रथम रोमन सम्राट आगस्टस ने 27 ई. पूर्व में जो राज्य स्थापित किया था, उसे ‘प्रिंसिपेट’ कहा जाता था। आगस्टस अपने राज्य का एकछत्र शासक था तथा राज्य की सम्पूर्ण सत्ता उसके हाथों में केन्द्रित थी । उसने यह दर्शाने का प्रयास किया कि वह केवल एक ‘प्रमुख नागरिक’ (लैटिन भाषा में प्रिंसेप्स) था, निरंकुश शासक नहीं था। ऐसा उसने ‘सैनेट’ को सम्मान प्रदान करने के लिए किया। उसने सैनेट. को प्रभावहीन बनाने का प्रयास नहीं किया ।

प्रश्न 7.
प्रिंसिपेट में ‘सैनेट’ तथा ‘सम्राट’ की स्थिति की विवेचना कीजिये। अभिजात वर्ग के क्या कार्य एवं अधिकार थे ?
अथवा
उत्तर:
सैनेट – सैनेट ने रोम में गणतन्त्र के शासन काल में सत्ता पर अपना नियन्त्रण स्थापित किया था। रोम में सैनेट का अस्तित्व कई शताब्दियों तक बना रहा था । सैनेट में कुलीन एवं अभिजात वर्गों अर्थात् रोम के धनी परिवारों का बोलबाला रहा था। कालान्तर में इस संस्था में इतालवी मूल के जमींदारों को भी सम्मिलित कर लिया गया था। सैनेट और सम्राटों के सम्बन्ध-सम्राटों का मूल्यांकन इस बात से किया जाता था कि वे सैनेट के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करते थे। वे सम्राट सबसे बुरे माने जाते थे जो सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते थे, उनके प्रति सन्देहशील रहते थे तथा उनके साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव करते थे।

प्रश्न 8.
रोमन साम्राज्य में सेना के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में सम्राट और सैनेट के बाद सेना शासन की एक प्रमुख और महत्त्वपूर्ण संस्था थी। रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था और उसे कम-से-कम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी। सेना साम्राज्य में सबसे बड़ा एकल संगठित निकाय थी जिसमें चौथी शताब्दी तक 6,00,000 सैनिक थे।

सेना का काफी प्रभाव था और उसके पास निश्चित रूप से सम्राटों का भाग्य निश्चित करने की शक्ति थी। रोमन साम्राज्य के सैनिक अधिक वेतन तथा अच्छी सेवा शर्तों के लिए निरन्तर आन्दोलन करते थे। कभी-कभी ये आन्दोलन सैनिक विद्रोहों का रूप धारण कर लेते थे। सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियन्त्रण रख पाते थे। जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं, तो साम्राज्य को गृह-युद्ध का सामना करना पड़ता था।

प्रश्न 9.
प्रथम दो शताब्दियों में अन्य देशों के प्रति रोमन सम्राटों की नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रथम दो शताब्दियों में रोम के अन्य देशों के साथ युद्ध भी बहुत कम हुए। रोमन सम्राट आगस्टस एवं टिबेरियस द्वारा प्राप्त किया गया साम्राज्य पहले ही इतना विस्तृत था कि इसमें और अधिक विस्तार करना अनुपयोगी मालूम होता था। आगस्टस का शासन काल शान्ति के लिए प्रसिद्ध है क्योंकि रोमन लोगों को यह शान्ति दीर्घकाल तक चले आन्तरिक संघर्षों और सदियों की सैनिक विजयों के पश्चात् मिली थी। साम्राज्य के विस्तार के लिए एकमात्र अभियान रोमन सम्राट त्राजान ने 113 – 117 ई. में किया जिसके फलस्वरूप उसने फरात नदी के पार के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था, परन्तु उसके उत्तराधिकारियों ने उन प्रदेशों पर से अपना अधिकार हटा लिया।

प्रश्न 10.
” पूर्ववर्ती रोमन साम्राज्य की प्रारम्भिक काल की एक विशेष उपलब्धि यह थी कि रोमन साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का क्रमिक रूप से काफी विस्तार हुआ। ” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ववर्ती रोमन साम्राज्य के प्रारम्भिक काल की एक विशेष उपलब्धि यह थी कि रोमन साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का क्रमिक रूप से काफी विस्तार हुआ। इस काल में अनेक आश्रित राज्यों को रोम के प्रान्तीय राज्य-क्षेत्र में सम्मिलित कर लिया गया। निकटवर्ती पूर्व में ऐसे बहुत से राज्य मौजूद थे। दूसरी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में फरात नदी के पश्चिम में स्थित राज्यों पर भी रोम ने अधिकार कर लिया। ये राज्य अत्यन्त समृद्ध थे। वास्तव में इटली के सिवाय रोमन साम्राज्य के सभी क्षेत्र प्रान्तों में बँटे हुए थे और उनसे कर वसूल किया जाता था। दूसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य स्काटलैण्ड से आर्मीनिया की सीमाओं तक तथा सहारा से फरात और कभी-कभी उससे भी आगे तक फैला हुआ था। इस समय रोमन साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।

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प्रश्न 11.
रोमन सम्राटों ने इतने बड़े साम्राज्य पर नियन्त्रण करने और शासन का संचालन करने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
रोमन सम्राटों द्वारा विस्तृत साम्राज्य पर शासन करना – सम्पूर्ण रोमन साम्राज्य में दूर-दूर तक अनेक नगर स्थापित किये गए थे, जिनके माध्यम से समस्त साम्राज्य पर नियन्त्रण रखा जाता था। भूमध्य सागर के तटों पर स्थापित बड़े शहरी केन्द्र जैसे कार्थेज, सिकन्दरिया तथा एंटिऑक आदि साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार थे। इन्हीं शहरों के माध्यम से रोमन सरकार ‘प्रान्तीय ग्रामीण क्षेत्रों’ पर कर लगाने में सफल हुई थी। इसके फलस्वरूप साम्राज्य को विपुल धन-सम्पदा प्राप्त होती थी। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि स्थानीय उच्च वर्ग रोमन साम्राज्य को कर वसूली और अपने क्षेत्रों के प्रशासन के कार्य में सहायता देते थे।

प्रश्न 12.
” इटली और अन्य प्रान्तों के बीच सत्ता का आकस्मिक अन्तरण वास्तव में, रोम के राजनीतिक इतिहास का एक अत्यन्त रोचक पहलू रहा है। ” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
दूसरी और तीसरी शताब्दियों के दौरान, अधिकतर प्रशासक तथा सैनिक अफसर उच्च प्रान्तीय वर्गों में से होते थे। इस तरह उनका एक नया संभ्रान्त वर्ग बन गया जो कि सैनेट के सदस्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली था, क्योंकि उसे रोमन सम्राटों का समर्थन प्राप्त था। रोमन सम्राट गैलीनस ( 253 – 268 ई.) ने सैनेटरों को सैनिक कमान से हटाकर इस नये वर्ग के उत्थान में योगदान दिया।

उसने सैनेटरों को सेना में सेवा करने अथवा इस तर्क पहुँच रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था ताकि वे साम्राज्य पर अपना नियन्त्रण स्थापित न कर सकें। दूसरी शताब्दी के दौरान तथा तीसरी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में सेना तथा प्रशासन में अधिकाधिक लोग प्रान्तों से लिए जाने लगे क्योंकि इस क्षेत्र के लोगों को भी नागरिकता मिल चुकी थी जो पहले इटली तक ही सीमित थी। सैनेट पर कम-से-कम तीसरी शताब्दी तक इतालवी मूल के लोगों का प्रभुत्व बना रहा, परन्तु बाद में प्रान्तों से लिए गए सैनेटर बहुसंख्यक हो गए थे।

प्रश्न 13.
रोम के सन्दर्भ में नगर कैसा शहरी केन्द्र था ?
उत्तर:
नगर का शहरी – केन्द्र होना – रोम के सन्दर्भ में नगर एक ऐसा शहरी केन्द्र था, जिसके अपने दण्डनायक ( मजिस्ट्रेट), नगर परिषद् (सिटी काउन्सिल) और अपना एक सुनिश्चित राज्य क्षेत्र था जिसमें उसके अधिकार – क्षेत्र में आने वाले कई ग्राम सम्मिलित थे । इस प्रकार किसी भी शहर के अधिकार – क्षेत्र में कोई दूसरा शहर नहीं हो सकता था, किन्तु उसके अन्तर्गत कई गाँव होते थे। किसी गाँव को शहर का दर्जा मिलना सम्राट की कृपा पर निर्भर करता था। इसी प्रकार अप्रसन्न होने पर सम्राट किसी शहर को गाँव का दर्जा प्रदान कर सकता था।

प्रश्न 14.
रोमन साम्राज्य के शहरी जीवन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
शहरी जीवन की विशेषताएँ –

  1. शहरों में खाने की कमी नहीं थी।
  2. अकाल के दिनों में भी शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अच्छी सुविधाएँ प्राप्त होने की सम्भावना रहती
  3. सार्वजनिक स्नान गृह रोम के शहरी जीवन की एक प्रमुख विशेषता थी।
  4. शहरी लोगों को उच्च स्तर के मनोरंजन प्राप्त थे। उदाहरण के लिए, एक कलेंडर से हमें ज्ञात होता है कि एक वर्ष में कम-से-कम 176 दिन वहाँ कोई-न-कोई मनोरंजक कार्यक्रम या प्रदर्शन अवश्य होता था।
  5. शहरों में साक्षरता विद्यमान थी।
  6. नगर प्रशासनिक इकाइयों के रूप में क्रियाशील थे। इसलिए वहाँ पर लोगों की सुख-सुविधाओं का ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा, अधिक ध्यान रखा जाता था।

प्रश्न 15.
डॉ. गैलेन के अनुसार रोमन शहरों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के साथ किये जाने वाले व्यवहार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डॉ. गैलेन ने लिखा है कि कई प्रान्तों में निरन्तर अनेक वर्षों से पड़ रहे अकाल ने लोगों को यह बता दिया था कि लोगों में कुपोषण के कारण बीमारियाँ हो रही हैं। शहरों में रहने वाले लोगों का फसल कटाई के शीघ्र पश्चात् अगले पूरे वर्ष के लिए काफी मात्रा में खाद्यान्न अपने भण्डारों में एकत्रित कर लेना एक रिवाज था।

गेहूँ, जौ, सेम तथा मसूर और दालों का काफी बड़ा भाग शहरियों द्वारा ले जाने के बाद भी कई प्रकार की दालें किसानों के लिए बची रह गई थीं। सर्दियों के लिए जो कुछ भी बचा था, उसे खा-पीकर समाप्त कर देने के बाद ग्रामीण लोगों को बसन्त ॠतु से ऐसे खाद्यों पर निर्भर रहना पड़ा जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थे। उन लोगों ने वृक्षों की टहनियाँ, छालें, जड़ें, झाड़ियाँ, अखाद्य पेड़-पौधे और पत्ते खाकर अपने प्राणों को बचाए रखा।

प्रश्न 16.
रोमन साम्राज्य में तीसरी शताब्दी में आए संकटों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। इसकी पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से होती है-

(1) 225 ई. में ईरान में एक साम्राज्यवादी और आक्रामक वंश का प्रादुर्भाव हुआ। इस वंश के लोग स्वयं को ससानी कहते थे। एक प्रसिद्ध शिलालेख से ज्ञात होता है कि ईरान के शासक शापुर प्रथम ने 60,000 रोमन सेना का सफाया कर दिया था और रोम साम्राज्य की पूर्वी राजधानी एंटिऑक पर अधिकार भी कर लिया था।

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(2) इसी दौरान जर्मन मूल की कई जनजातियों ने राइन तथा डैन्यूब नदी की सीमाओं की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया। इन जनजातियों ने 233 से 280 ई. तक की अवधि में उन प्रान्तों की पूर्वी सीमा पर बार-बार आक्रमण किये जो काला सागर से लेकर आल्पस तथा दक्षिणी जर्मनी तक फैले हुए थे। परिणामस्वरूप रोमवासियों को डैन्यूब से आगे का क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।

(3) रोमन सम्राज्य में तीसरी शताब्दी में थोड़े-थोड़े अन्तर से अनेक सम्राट ( 47 वर्षों में 25 सम्राट) गद्दी पर बैठे । इससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को भीषण तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ा।

प्रश्न 17.
सेन्ट आगस्टीन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सेन्ट आगस्टीन-सेन्ट आगस्टीन (354-430) 396 ई. से उत्तरी अफ्रीका के हिप्पो नामक नगर के प्रसिद्ध बिशप थे। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन उत्तरी अफ्रीका में व्यतीत किया था। कैथोलिक चर्च के बौद्धिक इतिहास में उनका उच्चतम स्थान था। बिशप लोग ईसाई समुदाय में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्यक्ति माने जाते थे और प्रायः वे बहुत शक्तिशाली होते थे। उन्होंने रोमन साम्राज्य में महिलाओं की शोचनीय स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा है कि उनकी माता की उनके पिता द्वारा नियमित रूप से पिटाई की जाती थी। जिस नगर में वे बड़े हुए वहाँ की अधिकतर पलियाँ इसी तरह की पिटाई से अपने शरीर पर लगी खरोंचें दिखाती रहती थीं।

प्रश्न 18.
रोमन साम्राज्य में साक्षरता की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रोमर साम्राज्य में साक्षरता की स्थिति-रोमन साम्राज्य में काम-चलाऊ साक्षरता की दरें साम्राज्य के विभिन्न भागों में काफी अलग-अलग थीं। उदाहरण के लिए रोम के पोम्पेई नगर में काम-चलाऊ साक्षरता व्यापक रूप से विद्यमान थी। इसके विपरीत, मिस्न में काम-चलाऊ साक्षरता की दर काफी कम थी। मिस्र से प्राप्त दस्तावेज हमें यह बताते हैं कि अमुक व्यक्ति ‘क’ अथवा ‘ख’ पढ़ या लिख नहीं सकता था। किन्तु यहाँ भी साक्षरता निश्चित रूप से सैनिकों, सैनिक अधिकारियों, सम्पदा-प्रबन्धकों आदि कुछ वर्गों के लोगों में अपेक्षाकृत अंधिक व्यापक थी।

प्रश्न 19.
“रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक विविधता कई रूपों एवं स्तरों पर दिखाई देती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक विविधता-रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक विविधता कई रूपों एवं स्तरों पर दिखाई देती है। इसकी पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से होती है-

  1. रोमन साम्राज्य में धार्मिक सम्प्रदायों तथा स्थानीय देवी-देवताओं में बहुत विविधता थी।
  2. साम्राज्य में बोल-चाल की अनेक भाषाएँ प्रचलित थीं।
  3. साम्राज्य में वेशभूषा की विविध शैलियाँ प्रचलित थीं।
  4. रोमन लोग तरह-तरह के भोजन खाते थे।
  5. साम्राज्य में सामाजिक संगठनों के रूप भिन्न-भिन्न थे।
  6. उनकी बस्तियों के अनेक रूप थे।
  7. अरामाइक निकटवर्ती पूर्व का प्रमुख भाषा-समूह था। मिस्न में काप्टिक; उत्तरी अफ्रीका में प्यूनिक तथा बरबर और स्पेन तथा उत्तर-पश्चिम में कैल्टिक भाषा बोली जाती थी।

प्रश्न 20.
रोमन साम्राज्य की आर्थिक प्रगति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य की आर्थिक प्रगति –
(1) रोमन साम्राज्य में बन्दरगाहों, खानों, खदानों, ईंट-भट्टों, जैतून के तेल की फैक्ट्रियों आदि की संख्या बहुत अधिक थी, जिनसे साम्राज्य का आर्थिक आधारभूत ढाँचा काफी मजबूत था।

(2) गेहूँ, अंगूरी शराब तथा जैतून का तेल मुख्य व्यापारिक मदें थीं। ये वस्तुएँ मुख्यतः स्पेन, गैलिक प्रान्तों, उत्तरी अफ्रीका, मिस्न तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा में इटली से आती थीं।

(3) शराब, जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की ढुलाई ऐसे मटकों या कंटेनरों में होती थी, जिन्हें ‘एम्फोरा’ कहते थे।

(4) स्पेन में जैतून का तेल निकालने का उद्यम 140-160 ई. के वर्षों में अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन दिनों स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल मुख्य रूप से ऐसे कंटेनरों में ले जाया जाता था जिन्हें ‘ड्रेसल -20 कहते थे।

(5) रोमन साम्राज्य के अन्तर्गत बहुत से ऐसे क्षेत्र आते थे जो अपनी असाधारण उर्वरता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। इनमें इटली के कैम्पैनिया, सिसली, मिस्न के फैय्यूम, गैलिली, बाइजैकियम (ट्यूनीसिया), दक्षिणी गाल तथा बाएटिका (दक्षिणी स्पेन) के प्रदेश उल्लेखनीय थे।

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(6) सबसे बढ़िया किस्म की अंगूरी शराब कैम्पैनिया से आती थी। सिसली तथा बाइजैकियम रोम को भारी मात्रा में गेहूँ का निर्यात करते थे। गैलिली में गहन खेती की जाती थी।

(7) इस काल में जल-शक्ति से मिलें चलाने की प्रौद्योगिकी में खासी प्रगति हुई। स्पेन की सोने और चाँदी की खानों में जल-शक्ति से खुदाई की जाती थी।

(8) उस समय साम्राज्य में सुगठित वाणिज्यिक तथा बैंकिंग व्यवस्था थी।

प्रश्न 21.
रोमन साम्राज्य में दासों के प्रति किये गए व्यवहार के बारे में रोमन इतिहासकार टीसटस न क्या लिखा है?
उत्तर:
रोमन इतिहासकार टैसिटस ने लिखा है कि शहर के शासक ल्यूसियस पेडेनियस सेकेण्डस का उसके एक दास ने वध कर दिया। प्राचीन रिवाज के अनुसार यह आवश्यक था कि एक ही छत के नीचे रहने वाले प्रत्येक दास को फाँसी की सजा दी जाए। परन्तु बहुत से निर्दोष लोगों के प्राण बचाने के लिए एक भीड़ इकट्ठी हो गई और शहर में दंगे शुरू हो गए। भीड़ ने सैनेट भवन को घेर लिया।

यद्यपि सैनेट भवन में सैनेटरों ने दासों के प्रति अत्यधिक कठोर व्यवहार किये जाने का विरोध किया गया, परन्तु अधिकांश सदस्यों ने सजा में परिवर्तन किए जाने का विरोध किया। अन्त में उन सैनेटरों की बात मानी गई जो दासों को फाँसी दिए जाने के समर्थक थे। परन्तु पत्थर और जलती हुई मशालें लिए क्रुद्ध भीड़ ने इस आदेश को लागू किये जाने से रोका। परन्तु रोमन सम्राट नीरो ने अभिलेख द्वारा ऐसे लोगों को बुरी तरह फटकारा और उन समस्त. रास्तों पर सेना को नियुक्त कर दिया जहाँ सैनिकों के साथ दोषियों को फाँसी पर चढ़ाने के लिए ले जाया जा रहा था।

प्रश्न 22.
रोमन साम्राज्य में दासों की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में दासों की स्थिति-भूमध्यसागर और निकटवर्ती पूर्व दोनों ही क्षेत्रों में दासता की जड़ें… बहुत गहरी थीं। वहाँ दास-प्रथा बड़े पैमाने पर प्रचलित थी। इटली में तो गुलामों का बोलबाला था। रोमन सम्राट आगस्टस के शासन काल में इटली की कुल 75 लाख की जनसंख्या में 30 लाख दास थे। यद्यपि उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्रायः क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे, परन्तु सामान्य लोग दासों के प्रति काफी सहानुभूति रखते थे।

जब प्रथम शताब्दी में शान्ति स्थापित होने के साथ लड़ाई-झगड़े कम हो गए, तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी और दास – श्रम का प्रयोग करने वालों को दास – प्रजनन अथवां वेतनभोगी मजदूरों जैसे विकल्पों का सहारा लेना पड़ा। बाद की अवधि में कृषि क्षेत्र में अधिक संख्या में दास-मजदूर नहीं रहे। अब इन दासों और मुक्त हुए गुलामों को व्यापार-प्रबन्धकों के रूप में बड़ी संख्या में नियुक्त किया जाने लगा। मालिक प्रायः अपने दासों अथवा मुक्त हुए दासों को अपनी ओर से व्यापार चलाने के लिए पूँजी की व्यवस्था कर देते थे और कभी-कभी उन्हें सम्पूर्ण कारोबार सौंप देते थे।

प्रश्न 23.
पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में रोमन अभिजात वर्ग की आमदनियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में रोमन अभिजात वर्ग की आमदनियाँ – इतिहासकार ओलिंपि ओडोरस के अनुसार रोम के उच्च घरानों में से प्रत्येक के पास अपनी आय में वह सब कुछ उपलब्ध था जो एक मध्यम आकार के शहरों में हो सकता है। एक घुड़दौड़ का मैदान ( हिप्पोड्रोम), अनेक मंच – मन्दिर, फव्वारे और विभिन्न प्रकार स्नानागार आदि थे। बहुत से रोमन परिवारों को अपनी सम्पत्ति से प्रतिवर्ष 4,000 पाउण्ड सोने की आय प्राप्त होती थी। इसमें अनाज, शराब और अन्य उपज शामिल नहीं थी; इन उपजों को बेचने पर सोने में प्राप्त आय के एक-तिहाई के बराबर आय हो सकती थी। सेम में द्वितीय श्रेणी के परिवारों की आय 1,000 अथवा 1,500 पाउण्ड सोना थी।

प्रश्न 24.
रोमन साम्राज्य के परवर्ती काल में वहाँ की नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्गों की स्थिति का वर्णन कीजिए। सरकार ने इन वर्गों में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य की नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्गों की आर्थिक दशा – परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य. की नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्ग अपेक्षाकृत बहुत धनी थे क्योंकि उन्हें अपना वेतन सोने के रूप में मिलता था और वे अपनी आय का काफी बड़ा हिस्सा जमीन आदि खरीदने में लगाते थे। इसके अतिरिक्त रोमन साम्राज्य में भ्रष्टाचार बहुत फैला हुआ था, विशेष रूप से न्याय प्रणाली तथा सैन्य आपूर्ति के प्रशासन में। उच्च अधिकारी और गवर्नर लूट- खसोट और रिश्वत के द्वारा खूब धन कमाते थे। अतः सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अनेक कानून बनाए। इतिहासकारों एवं अन्य बुद्धिजीवियों ने भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की कटु निन्द्रा की।

प्रश्न 25.
परवर्ती काल में रोम के तानाशाह सम्राटों पर अंकुश लगाने के लिए क्या उपाय किये गए ?
उत्तर:
रोम के तानाशाह सम्राटों पर अंकुश लगाना- रोमन राज्य तानाशाही पर आधारित था। रोम के सम्राट अपना विरोध अथवा आलोचना सहन नहीं करते थे । वे हिंसात्मक उपायों द्वारा अपने विरोधियों का दमन करने का प्रयास करते थे। परन्तु चौथी शताब्दी तक आते-आते रोमन कानून की एक प्रेबल परम्परा शुरू हो गई थी और उसने रोम के तानाशाह सम्राटों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया। इन कानूनों के अन्तर्गत सम्राट लोग अपनी मनमानी नहीं कर सकते थे।

नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनों का प्रभावशाली ढंग से प्रयोग किया जाता था। कानूनों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए एम्ब्रोस नामक शक्तिशाली बिशप ने कहा था कि यदि सम्राट सामान्य जनता के प्रति कठोर एवं दमनकारी नीति अपनायें, तो बिशप भी उतनी ही अधिक शक्ति से उनका मुकाबला करें।

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प्रश्नं 26.
रोमन साम्राज्य की सामाजिक संरचनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य की सामाजिक संरचनाएँ – इतिहासकार टैसिटस के अनुसार रोमन साम्राज्य निम्नलिखित प्रमुख वर्गों में विभाजित था –

  • सेनेटर या अभिजात वर्ग
  • अश्वारोही वर्ग
  • जनता का सम्माननीय मध्यम वर्ग
  • निम्नतर वर्ग तथा
  • दास। यथा

(1) अभिजात वर्ग तथा अश्वारोही वर्ग-साम्राज्य के परवर्ती काल में सैनेटर और अश्वारोही वर्ग एकीकृत होकर एक विस्तृत अभिजात वर्ग बन चुके थे। यह ‘परवर्ती रोमन’ अभिजात वर्ग अत्यधिक धनवान था किन्तु कई तरीकों से यह विशुद्ध सैनिक संभ्रान्त वर्ग से कम शक्तिशाली था जिनकी पृष्ठभूमि अधिकतर अभिजातवर्गीय नहीं थी।

(2) मध्यम वर्ग – मध्यम वर्गों में नौकरशाही और सेना की सेवा से जुड़े आम लोग सम्मिलित थे, किन्तु इस वर्ग में अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध सौदागर तथा किसान भी सम्मिलित थे जिनमें से बहुत से लोग पूर्वी प्रान्तों के निवासी थे। टैसिटस ने इस सम्माननीय मध्यम वर्ग का महान सीनेट गृहों के आश्रितों के रूप में वर्णन किया है। मुख्य रूप से सरकारी सेवा और राज्य पर निर्भरता ही इन मध्यम वर्गीय परिवारों का भरण-पोषण करती थी।

(3) निम्नतर वर्ग तथा दास – मध्यम वर्ग से नीचे निम्नतर वर्गों का एक विशाल समूह था, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘ह्यूमिलिओरिस’ अर्थात् ‘निम्नतर वर्ग’ कहा जाता था। इनमें ग्रामीण श्रमिक सम्मिलित थे, जिनमें बहुत से लोग स्थायी रूप से बड़ी जागीरों में नियोजित थे। इनमें औद्योगिक और खनन प्रतिष्ठानों के कामगार, प्रवासी कामगार, स्व-1 -नियोजित शिल्पकार, कभी-कभी काम करने वाले श्रमिक सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त दास वर्ग में बड़ी संख्या में गुलाम लोग सम्मिलित थे।

प्रश्न 27.
परवर्ती काल में रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन द्वारा किये गए सुधारों का वर्णन कीजिए। उसके समय में हुई आर्थिक प्रगति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन द्वारा किये गये सुधार-
(1) कान्स्टैन्टाइन ने मौद्रिक क्षेत्र में अनेक सुधार किये। उसने सॉलिडस नामक सोने का एक नया सिक्का चलाया जो 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था। यह सिक्का रोमन साम्राज्य की समाप्ति के बाद भी चलता रहा।

(2) कान्स्टैन्टाइन ने एकदूसरी राजधानी कुस्तुन्तुनिया का निर्माण करवाया। यह नई राजधानी तीन ओर समुद्र से घिरी हुई थी।

(3) मौद्रिक स्थायित्व तथा बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक विकास में तेजी आई।

(4) पुरातात्विक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों सहित ग्रामीण उद्योग-धन्धों तथा व्यापार के विकास में काफी पूँजी लगाई गई। तेल की मिलों, शीशे के कारखानों, पेंच की प्रेसों तथा पानी की मिलों की स्थापना की गई।

(5) इन सभी के फलस्वरूप शहरी सम्पदा एवं समृद्धि में अत्यधिक वृद्धि हुई जिससे स्थापत्य कला का विकास हुआ तथा भोग-विलास के साधनों में तेजी आई।

प्रश्न 28.
परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
“परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य की धार्मिक स्थिति-

  1. रोमन लोग बहुदेववादी थे। ये लोग अनेक पंथों एवं उपासना पद्धतियों में विश्वास रखते थे।
  2. ये लोग जूपिटर, मिनर्वा, जूनो मार्स आदि अनेक देवी-देवताओं की पूजा किया करते थे।
  3. इन्होंने देवी-देवताओं की पूजा के लिए अनेक मन्दिरों, मठों और देवालयों का निर्माण किया था।
  4. रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा धर्म यहूदी था। परन्तु यहूदी धर्म में अनेक विविधताएँ विद्यमान थीं।
  5. चौथी या पाँचवीं शताब्दियों में साम्राज्य का ‘ईसाईकरण’ एक क्रमिक एवं जटिल प्रक्रिया के रूप में हुआ।
  6. चौथी शताब्दी में भिन्न-भिन्न धार्मिक समुदायों के बीच की सीमाएँ इतनी कठोर एवं गहरी नहीं थीं, जितनी कि आगे चलकर हो गईं। ऐसा शक्तिशाली बिशपों के प्रयासों के परिणामस्वरूप हुआ।

प्रश्न 29.
प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अरब प्रदेश से शुरू होने वाले इस्लाम के विस्तार को ‘प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति’ कहा जाता है। 642 ई. तक पूर्वी रोमन और ससानी दोनों राज्यों के बड़े- बड़े भाग भीषण युद्ध के बाद अरबों के अधिकार में आ गए थे, परन्तु उभरते हुए इस्लामी राज्य की विजयें, अरब जनजातियों को पराजित करने से ही हुईं। अरब देशों से शुरू होकर ये विजयें सीरियाई रेगिस्तान तथा इराक की सीमाओं तक पहुँच गईं जिसके बाद मुस्लिम सेनाएँ दूर- दूर तक के प्रदेश में गईं।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

प्रश्न 30.
रोमन साम्राज्य के पतन की परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के पतन की परिस्थितियाँ – छठी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के पतन की प्रक्रिया शुरू हो गई। साम्राज्य का पश्चिमी भाग राजनीतिक दृष्टि से विखण्डित हो गया । उत्तर से आने वाले जर्मन मूल के समूहों (गोथ, वेंडल, लोंबार्ड आदि) ने सभी बड़े प्रान्तों पर अधिकार कर लिया और अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए जिन्हें ‘रोमोत्तर राज्य’ कहा जाता है। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य थे – स्पेन में विसिगोथों का राज्य, गाल में फ्रैंकों का राज्य (लगभग 511-587) और इटली में लोम्बार्डों का राज्य (568-774)।

533 ई. में जस्टीनियन ने अफ्रीका को वेंडलों के आधिपत्य से मुक्त करा लिया और इटली पर अधिकार कर लिया परन्तु इससे देश तहस-नहस हो गया और लोम्बार्डों के आक्रमण के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया। सातवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में रोम और ईरान के बीच युद्ध पुनः छिड़ गया। ईरान के ससानी शासकों ने मिस्र सहित पूर्वी प्रान्तों पर आक्रमण कर दिया। परन्तु 620 के दशक में बाइजेन्टियन (रोमन साम्राज्य ) ने इन प्रान्तों पर पुनः अधिकार कर लिया। 642 ई. तक पूर्वी रोमन और ससानी राज्यों के बड़े-बड़े भागों पर अरबों ने अधिकार कर लिया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
” सम्राट, अभिजात वर्ग और सेना रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में तीन मुख्य खिलाड़ी थे। ” स्पष्ट कीजिए
अथवा
रोमन साम्राज्य की तीन प्रमुख राजनीतिक संस्थाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन मुख्य खिलाड़ी रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन मुख्य खिलाड़ी निम्नलिखित थे –
(1) सम्राट – सम्राट राज्य का एकछत्र शासक था। साम्राज्य की सभी शक्तियाँ उसके हाथ में केन्द्रित थीं। इस प्रकार वह सत्ता का वास्तविक स्रोत था। परन्तु उसे ‘प्रमुख नागरिक’ कहा जाता था। ऐसा सैनेट के महत्त्व को बनाए रखने तथा उसे सम्मान प्रदान करने के लिए किया गया था। सम्राट यह प्रदर्शित करना चाहता था कि वह निरंकुश शासक नहीं है।

(2) अभिजात वर्ग अथवा सैनेट- सैनेट में धनवान परिवारों के समूह का बोलबाला था जिन्हें अभिजात कहा जाता था। गणतन्त्र काल में सैनेट ने ही सत्ता पर अपना नियन्त्रण बनाए रखा था। सैनेट एक ऐसी संस्था थी जिसमें कुलीन एवं अभिजात वर्गों अर्थात् धनी परिवारों के सदस्य सम्मिलित थे। सम्राटों का मूल्यांकन इस बात से किया जाता था कि वे सैनेट प्रति किस प्रकार का व्यवहार करते थे।

जो सम्राट सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते थे और उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखते थे, वे सबसे बुरे सम्राट माने जाते थे। कई सैनेटर गणतन्त्र युग में लौटने की अभिलाषा करते थे, सैनेटों को यह ज्ञात अवश्य हो गया था कि यह असम्भव था। परन्तु अधिकतर सैनेट की सदस्यता जीवन-भर चलती थी और उसके लिए जन्म की अपेक्षा धन और पद-प्रतिष्ठा को प्राथमिकता दी जाती थी। रोम में सैनेट का अस्तित्व कई शताब्दियों तक रहा था।

(3) सेना – सेना भी साम्राज्यिक शासन की एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था और उसे कम-से-कम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी। इस प्रकार एक वेतनभोगी सेना का होना रोमन साम्राज्य की एक प्रमुख विशेषता थी। सेना साम्राज्य में सबसे बड़ा एकल संगठित निकाय थी। चौथी शताब्दी तक रोमन सेना में 6,00,000 सैनिक थे। सेना काफी प्रभावशाली थी और उसमें सम्राटों का भाग्य निश्चित करने की शक्ति थी। सैनिक अच्छे वेतन और सेवा शर्तों के लिए निरन्तर आन्दोलन करते रहते थे।

कभी-कभी ये आन्दोलन सैनिक विद्रोहों का रूप धारण कर लेते थे। सैनेट सेना घृणा करती थी और उससे भयभीत रहती थी, क्योंकि सेना हिंसा का स्रोत थी। सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियन्त्रण रख पाते थे। जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं, तो इसके परिणामस्वरूप साम्राज्य को गृह युद्ध का सामना करना पड़ता था। 69 ई. में रोम में गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप एक के बाद एक कुल मिलाकर चार सम्राट सत्तासीन हुए थे।

प्रश्न 2.
रोमन समाज की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रोमन समाज की प्रमुख विशेषताएँ
रोमन समाज की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की गई है –
(1) सामाजिक संरचनाएँ – इतिहासकार टैसिटस के अनुसार रोमन साम्राज्य निम्नलिखित प्रमुख वर्गों में विभाजित था-

  • सेनेटर या अभिजात वर्ग
  • अश्वारोही वर्ग
  • जनता का सम्माननीय मध्यम वर्ग
  • निम्नतर वर्ग तथा
  • दास।

साम्राज्य के परवर्ती काल के सेनेटर और अश्वारोही वर्ग एकीकृत होकर एक विस्तृत अभिजात वर्ग बन चुके थे। यह ‘परवर्ती रोमन’ अभिजात वर्ग अत्यधिक धनवान था किन्तु कई तरीकों में यह विशुद्ध सैनिक सम्भ्रान्त वर्ग से कम शक्तिशाली था। मध्यम वर्ग में नौकरशाही और सेना की सेवा से जुड़े हुए आम लोग सम्मिलित थे, किन्तु इस वर्ग में अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध सौदागर तथा किसान भी सम्मिलित थे। मध्यम वर्ग से नीचे निम्नतर वर्गों का एक विशाल समूह था, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘ह्यूमिलिओरिस’ अर्थात् ‘निम्नतर वर्ग’ कहा जाता था। इनमें ग्रामीण श्रमिक सम्मिलित थे, जिनमें बहुत से लोग स्थायी रूप से बड़ी जागीरों में नियोजित थे।

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(2) एकल परिवार – रोमन समाज में एकल परिवार का व्यापक रूप से चलन था। वयस्क पुत्र अपने पिता के परिवारों के साथ नहीं रहते थे। वयस्क भाई भी बहुत कम साझे परिवार में रहते थे। परन्तु दासों को परिवार में सम्मिलित किया जाता था क्योंकि रोमवासियों के लिए परिवार की यही अवधारणा थी।

(3) विवाह – प्रथम शताब्दी ई. पूर्व तक विवाह का स्वरूप ऐसा था कि पत्नी अपने पति को अपनी सम्पत्ति हस्तान्तरित नहीं किया करती थी परन्तु अपने पैतृक परिवार में वह अपने पूरे अधिकार बनाए रखती थी। स्त्री का दहेज वैवाहिक अवधि में उसके पति के पास चला जाता था, परन्तु स्त्री अपने पिता की मुख्य उत्तराधिकारी बनी रहती थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद वह उसकी सम्पत्ति की स्वतन्त्र मालिक बन जाती थी।

इस प्रकार रोमन साम्राज्य की स्त्रियों को सम्पत्ति के स्वामित्व व संचालन में व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे। तलाक देना अपेक्षाकृत सरल था। इसके लिए पति अथवा पत्नी द्वारा केवल विवाह भंग करने के निश्चय की सूचना देना ही पर्याप्त था। पुरुष प्राय: 28-29, 30-32 की आयु में विवाह करते थे, जबकि लड़कियाँ 16-18 व 22-23 की आयु में विवाह करती थीं। विवाह प्रायः परिवार द्वारा नियोजित किये जाते थे।

(4) स्त्रियों को प्रताड़ना – परिवारों में पुरुषों का बोलबाला था। यही कारण है कि स्त्रियों पर उनके पति प्रायः हावी रहते थे और उनके साथ कठोर बर्ताव करते थे। प्रसिद्ध कैथोलिक बिशप आगस्टीन ने लिखा है कि उनकी माता की उनके पिता द्वारा नियमित रूप से पिटाई की जाती थी। जिस नगर में वे बड़े हुए थे वहाँ की अधिकतर पत्नियाँ इसी तरह की पिटाई से अपने शरीर पर लगी खरोंचें दिखाती रहती थीं। इससे पता चलता है कि रोमन समाज में स्त्रियों की दशा शोचनीय थी।

(5) पिता का अपने बच्चों पर कानूनी नियन्त्रण होना- रोमन समाज में पिताओं का अपने बच्चों पर अत्यधिक कानूनी नियन्त्रण होता था। अवांछित बच्चों के मामले में पिता को उन्हें जीवित रखने अथवा मार डालने तक का कानूनी अधिकार प्राप्त था। साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि कभी-कभी पिता अपने बच्चों को मारने के लिए उन्हें ठण्ड में छोड़ देते थे।

(6) साक्षरता – काम चलाऊ साक्षरता की दरें साम्राज्य के विभिन्न भागों में अलग-अलग थीं। उदाहरण के लिए, रोम के पोम्पेई नगर में काम चलाऊ साक्षरता व्यापक रूप में मौजूद थी। दूसरी ओर, मिस्र से प्राप्त दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि वहाँ साक्षरता की दर काफी कम थी। यहाँ भी साक्षरता का निश्चित रूप से कुछ वर्गों के लोगों जैसे कि सैनिकों, सैनिक अधिकारियों, सम्पदा -प्रबन्धकों आदि के लोगों में अपेक्षाकृत अधिक थी।

प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य में दासों की स्थिति पर प्रकाश डालिए। साम्राज्य में श्रम – प्रबन्धन तथा श्रमिकों पर नियन्त्रण सम्बन्धी अवधारणा का वर्णन कीजिए।
अथवा
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों और दासों की स्थिति पर लेख लिखिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में दासों की स्थिति रोमन साम्राज्य में दास प्रथा व्यापक रूप से प्रचलित थी। भूमध्य सागर और निकटवर्ती पूर्व दोनों ही क्षेत्रों में दासता की जड़ें बहुत गहरी थीं। आगस्टस के शासन काल में इटली की कुल 75 लाख जनसंख्या में से 30 लाख दास थे। उन दिनों दासों को पूँजी निवेश की दृष्टि से देखा जाता था। यद्यपि उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्रायः व्यवहार करते थे, परन्तु साधारण लोग उनके प्रति काफी सहानुभूति रखते थे। क्रूरतापूर्ण रोम की अर्थव्यवस्था में दासों की भूमिका – जब प्रथम शताब्दी में रोमन साम्राज्य में शान्ति स्थापित होने के साथ लड़ाई-झगड़े कम हो गए तो दासों की आपूर्ति में कमी आ गई।

अतः दास- श्रम का प्रयोग करने वालों को दास- प्रजनन अथवा वेतनभोगी श्रमिकों जैसे विकल्पों का सहारा लेना पड़ा। वेतनभोगी मजदूर सस्ते पड़ते थे तथा उन्हें सरलता से छोड़ा और रखा जा सकता था। दास- श्रमिकों को वर्ष भर रखना पड़ता था और इस अवधि में उन्हें भोजन देना पड़ता तथा उनके अन्य खर्चे भी उठाने पड़ते थे।

इसके परिणामस्वरूप दास – श्रमिकों को रखने से लागत बढ़ जाती थी। इसलिए बाद की अवधि में कृषि – क्षेत्र में अधिक संख्या में दास – मजदूर नहीं रहे। दूसरी ओर, इन दासों और मुक्त हुए दासों को व्यापार-1 र- प्रबन्धकों के रूप में व्यापक रूप से नियुक्त किया जाने लगा। मालिक अपनी ओर से व्यापार चलाने के लिए उन्हें पूँजी देते थे और कभी-कभी अपना सम्पूर्ण कारोबार उन्हें सौंप देते थे। श्रम-प्रबन्धन और श्रमिकों पर नियन्त्रण सम्बन्धी अवधारणा – रोमन साम्राज्य में श्रम – प्रबन्धन पर विशेष ध्यान दिया गया था। इस सम्बन्ध में कृषि विषयक लेखकों ने निम्नलिखित अवधारणाओं पर बल दिया है –

(1) कोलूमेल्ला के सुझाव –
(i) प्रथम शताब्दी के लेखक कोलूमेल्ला ने सिफारिश की थी कि ज़मींदारों को अपनी आवश्यकता से दुगुनी संख्या में उपकरणों तथा औजारों का सुरक्षित भण्डार रखना चाहिए ताकि उत्पादन निरन्तर होता रहे।

(ii) दासों तथा श्रमिकों के कार्यों की निगरानी रखने पर भी विशेष बल दिया गया। नियोक्ताओं की यह मान्यता थी कि निरीक्षण के बिना कभी भी कोई काम ठीक से नहीं करवाया जा सकता। इसलिए दासों तथा मुक्त हुए दासों के कार्यों के निरीक्षण की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया। निरीक्षण को सरल बनाने के लिए कामगारों को कभी-कभी छोटे दलों में विभाजित कर दिया जाता था। कोलूमेल्ला ने दस-दस श्रमिकों के समूह बनाने की सिफारिश की थी और इस बात पर बल दिया कि इन छोटे समूहों में यह बताना अपेक्षाकृत सरल होता है कि उनमें से कौन काम कर रहा है और कौन काम से जी चुरा रहा है।

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(2) इतिहासकार वरिष्ठ प्लिनी का विश्लेषण –
(i) ‘प्रकृति विज्ञान’ नामक पुस्तक के रचयिता वरिष्ठ प्लिनी ने दास-समूहों के प्रयोग की यह कहकर निन्दा की कि यह उत्पादन संगठित करने का सबसे बुरा तरीका है क्योंकि इस प्रकार अलग-अलग समूह में काम करने वाले दासों को सामान्यतया पैरों में जंजीर डाल कर एक साथ रखा जाता था।

(ii) रोमन साम्राज्य में कुछ औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने तो इससे भी अधिक कड़े नियन्त्रण लागू कर रखे थे। वरिष्ठ प्लिनी ने सिकन्दरिया की फ्रैंकिन्सेंस (सुगन्धित राल ) की फैक्ट्रियों की परिस्थितियों का वर्णन किया है। उनके अनुसार कितना ही कड़ा निरीक्षण रखें, काफी प्रतीत नहीं होता था। वरिष्ठ प्लिनी ने लिखा है कि ” कामगारों के एप्रेनों पर एक सील लगा दी जाती है, उन्हें अपने सिर पर एक गहरी जाली वाला मास्क या नेट पहनना पड़ता है और उन्हें फैक्ट्री से बाहर जाने के लिए अपने सभी कपड़े उतारने पड़ते हैं।” सम्भवतः यही बात अधिकांश फैक्ट्रियों और कारखानों पर लागू होती थी।

(iii) 398 ई. के एक कानून में यह कहा गया है कि कामगारों को दागा जाता था ताकि भागने या छिपने का प्रयत्न करने पर उन्हें पहचाना जा सके।

(iv) कई निजी मालिक कामगारों के साथ ऋण-संविदा के रूप में अनुबन्ध कर लेते थे ताकि वे यह दावा कर सकें कि उनके कर्मचारी उनके कर्जदार हैं। इस प्रकार वे अपने कामगारों पर कड़ा नियन्त्रण रखते थे।

(3) आगस्टीन के विचार – आगस्टीन के एक पत्र से हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि कभी-कभी माता- पिता अपने बच्चों को 25 वर्ष के लिए बेच कर बन्धुआ मजदूर बना देते थे। ग्रामीण ऋणग्रस्तता और भी अधिक व्यापक थी।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य की सामाजिक संरचना की विवेचना कीजिए।
अथवा
रोमन साम्राज्य की सामाजिक श्रेणियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. पूर्ववर्ती काल में रोमन साम्राज्य की प्रमुख सामाजिक श्रेणियाँ – इतिहासकार टैसिटस के अनुसार पूर्ववर्ती काल में रोमन साम्राज्य की प्रमुख सामाजिक श्रेणियाँ निम्नलिखित थीं –

  • सैनेटर-तीसरी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में सैनेट की सदस्य संख्या लगभग 1000 थी। कुल सैनेटरों में लगभग आधे सैनेटर अभी भी इतालवी परिवारों के थे।
  • अश्वारोही या नाइट वर्ग।
  • जनता का सम्माननीय वर्ग, जिनका सम्बन्ध महान घरानों से था।
  • फूहड़ निम्नतर वर्ग अथवा कमीनकारु ( प्लेब्स सोर्डिडा ) – ये लोग सर्कस तथा थियेटर तमाशे देखने के शौकीन थे।
  • दास।

II. परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य की प्रमुख सामाजिक श्रेणियाँ – परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य की प्रमुख सामाजिक श्रेणियाँ निम्नलिखित थीं –
(1) अभिजात वर्ग- परवर्ती काल में सैनेटर और नाइट (अश्वारोही) एकीकृत होकर एक विस्तृत अभिजात वर्ग बन चुके थे। इनके कुल परिवारों में से कम-से-कम आधे परिवार अफ्रीकी या पूर्वी मूल के थे। यह अभिजात वर्ग अत्यधिक धनवान था परन्तु विशुद्ध सैनिक संभ्रान्त वर्ग की तुलना में कम शक्तिशाली था।

(2) मध्यम वर्ग – मध्यम वर्ग में नौकरशाही और सेना की सेवा से जुड़े सामान्य लोग सम्मिलित थे। इसमें अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध सौदागर तथा किसान भी शामिल थे। इन मध्यम वर्ग के परिवारों का जीवन निर्वाह सरकारी सेवा तथा राज्य पर निर्भरता द्वारा होता था।

(3) निम्नतर वर्ग – मध्यम वर्ग के नीचे निम्न वर्ग का एक विशाल समूह था, जिसे सामूहिक रूप से ‘ह्यूमिलि ओरिस’ अर्थात् ‘निम्नतर वर्ग’ कहा जाता था । इस वर्ग में निम्नलिखित वर्गों के लोग सम्मिलित थे –

  • ग्रामीण श्रमिक – इनमें बहुत से लोग स्थायी रूप से बड़ी जागीरों में काम करते थे।
  • औद्योगिक और खनन प्रतिष्ठानों के श्रमिक
  • प्रवासी कामगार-ये अनाज तथा जैतून की फसल कटाई और निर्माण उद्योग में अधिकांश श्रम की पूर्ति करते
  • स्व-नियोजित शिल्पकार-ये लोग मजदूरी पाने वाले श्रमिकों की तुलना में अच्छा खाते-पीते थे।
  • अस्थायी अथवा कभी-कभी काम करने वाले श्रमिक
  • दास-ये विशेष रूप से सम्पूर्ण पश्चिमी साम्राज्य में पाए जाते थे।

प्रश्न 5.
परवर्ती पुराकाल में रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में हुए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
“परवर्ती पुराकाल में रोमन साम्राज्य में शहरी सम्पदा एवं समृद्धि में अत्यधिक वृद्धि हुई।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परवर्ती पुराकाल में रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक तथा प्रशासनिक परिवर्तन ‘परवर्ती पुराकाल’ शब्द का प्रयोग रोमन साम्राज्य के इतिहास की उस अन्तिम अवधि का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो प्रायः चौथी से सातवीं शताब्दी तक फैली हुई थी। इस काल में रोमन साम्राज्य में धार्मिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में निम्नलिखित परिवर्तन हुए-
(1) धार्मिक परिवर्तन –

  • चौथी शताब्दी में रोमन सम्राट कान्स्टैन्टाइन ने ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया। इसके फलस्वरूप रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म का व्यापक रूप से प्रसार हुआ।
  • सातवीं शताब्दी में इस्लाम का उदय हुआ।

(2) प्रशासनिक परिवर्तन- राज्य के प्रशासनिक ढाँचे में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन सम्राट डायोक्लीशियन (284-305 ई.) के समय से शुरू हुए।

यथा –

  • सम्राट डायोक्लीशियन के समय में हुए परिवर्तन-
  • सम्राट डायोक्लीशियन ने महसूस किया कि साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक हो चुका है और उसके अनेक प्रदेशों का सामरिक अथवा आर्थिक दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं है, इसलिए उसने उन प्रदेशों को छोड़ कर साम्राज्य को थोड़ा छोटा बना लिया।
  • उसने साम्राज्य की सीमाओं पर किले बनवाए।
  • उसने प्रान्तों का पुनर्गठन किया और असैनिक कार्यों को सैनिक कार्यों से पृथक् कर दिया।
  • उसने सेनापतियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की, जिससे इन सैनिक अधिकारियों की शक्ति में वृद्धि हुई।

(ii) सम्राट कान्स्टैन्टाइन के समय में हुए परिवर्तन – सम्राट कान्स्टैन्टाइन के समय में अग्रलिखित परिवर्तन हुए –

  • सम्राट् कान्स्टैन्टाइन ने मौद्रिक क्षेत्र में अनेक सुधार किये। उसने ‘सालिडस’ नामक एक नया सिक्का चलाया जो 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था। ये सिक्के बहुत बड़े पैमाने पर ढाले जाते थे और बहुत बड़ी संख्या में चलन में थे।
  • कान्स्टैन्टाइन ने कुस्तुन्तुनिया का निर्माण करवाया और उसे अपनी दूसरी राजधानी बनाया। यह नई राजधानी तीन ओर समुद्र से घिरी हुई थी।
  • नई राजधानी के लिए नयी सैनेट की आवश्यकता थी, इसलिए चौथी शताब्दी में शासक वर्ग का तीव्र गति से विकास हुआ।

(3) आर्थिक क्षेत्र में प्रगति – मौखिक स्थायित्व और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक विकास में तेजी आई। औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा ग्रामीण उद्योग-धन्धों और व्यापार के विकास में काफी पूँजी लगाई गई। इनमें तेल की मिलें, शीशे के कारखाने, पेंच की प्रेसें तथा पानी की मिलें उल्लेखनीय थीं। लम्बी दूरी के व्यापार में भी काफी पूँजी का निवेश किया गया जिसके फलस्वरूप ऐसे व्यापार का पुनरुत्थान हुआ। शहरी सम्पदा तथा समृद्धि में अत्यधिक वृद्धि – उपर्युक्त परिवर्तनों के फलस्वरूप शहरी सम्पदा तथा समृद्धि में अत्यधिक वृद्धि हुई जिससे स्थापत्य कला के क्षेत्र में उन्नति हुई तथा भोग-विलास के साधनों में वृद्धि हुई।

शासक वर्ग के कुलीन लोग, पहले से कहीं अधिक धनवान और शक्तिशाली हो गए। विभिन्न दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध था, जहाँ मुद्रा का व्यापक रूप से प्रयोग होता था तथा ग्रामीण सम्पदाएँ भारी मात्रा में सोने के रूप में लाभ कमाती थीं। छठी शताब्दी में सम्राट जस्टीनियन के शासन काल में अकेले मिस्र से प्रतिवर्ष 25 लाख सालिडस (लगभग 35,000 पाउण्ड सोना) से अधिक धन राशि करों के रूप में प्राप्त होती थी। वास्तव में पाँचवीं और छठी शताब्दियों में पश्चिमी एशिया के बड़े-बड़े ग्रामीण क्षेत्र अधिक विकसित और घने बसे हुए थे।

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प्रश्न 6.
विश्व के इतिहास में रोमन सभ्यता की देन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
विश्व के इतिहास में रोमन सभ्यता की देन विश्व के इतिहास में रोमन सभ्यता की देन को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –
(1) विस्तृत साम्राज्य की स्थापना का मार्ग दिखाना – रोम निवासियों ने अनेक देशों को अपने अधीन करके साम्राज्य स्थापित किया। यह साम्राज्य बहुत विस्तृत था। इतना बड़ा साम्राज्य इससे पहले कोई जाति स्थापित नहीं कर की थी। इस प्रकार उन्होंने एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करके संसार के अन्य लोगों को विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने का मार्ग दिखाया।

(2) उत्तम प्रबन्ध – विस्तृत रोमन साम्राज्य का प्रबन्ध बड़े उत्तम ढंग से किया गया, वहाँ अशान्ति एवं अव्यवस्था नहीं थी। इस साम्राज्य ने विभिन्न जातियों को एक सूत्र में पिरोय।

(3) धार्मिक सहिष्णुता – रोमन साम्राज्य ने विश्व को धार्मिक सहिष्णुता का मार्ग दिखाया। रोमन साम्राज्य में विभिन्न जातियों तथा धर्मों के लोग रहते थे, लेकिन इस आधार पर किसी भी नागरिक को तंग नहीं किया जाता था।

(4) सैनिक संगठन और अनुशासन-रोम ने अनेक सेनानायकों को जन्म दिया जिन्होंने विशाल सेनाएँ रखीं और उसका अच्छा प्रबन्ध किया। अतः विशाल सैनिक संगठन और अनुशासन रोम की ही देन है।

(5) कानून – आधुनिक विधानशास्त्र का उद्भव रोम से ही माना जाता है। कानूनों का एक संग्रह जस्टीनियन ने सर्वप्रथम संसार के समक्ष रखा। आज भी यूरोप के अनेक देशों में कानून का आधार यही संग्रह है।

(6) ईसाई मत का विस्तार – रोमन शासक कांस्टैंटाइन ने ईसाई धर्म को अपनाकर उसे अपने सारे साम्राज्य का राज्य धर्म बना दिया। इसके बाद ईसाई धर्म का तेजी से विस्तार हुआ।

(7) भवन निर्माण कला – भवन निर्माण कला में भी रोमनों की विश्व को बड़ी देन है। उन्होंने जो अनेक मंदिर, स्नानागार, थियेटर, राजमहल आदि बनवाए वे स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

(8) लैटिन भाषा का विकास – लैटिन भाषा का रोमन साम्राज्य में अत्यधिक विकास हुआ।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. मेसोपोटामिया वर्तमान में किस राज्य का हिस्सा है?
(अ) ईरान
(ब) कुवैत
(स) तुकी
(द) इराक।
उत्तर:
(द) इराक।

2. मेसोपोटामिया के किस भाग में सर्वप्रथम नगरों और लेखन प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ?
(अ) उत्तरी भाग
(ब) दक्षिणी भाग
(स) पूर्वी भाग
(द) पूर्वोत्तर भाग।
उत्तर:
(ब) दक्षिणी भाग

3. मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण शुरू हो गया था –
(अ) 7000 ई. पूर्व
(ब) 5000 ई. पूर्व
(स) 3000 ई.पू.
(द) 2000 ई. पूर्व।
उत्तर:
(स) 3000 ई.पू.

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4. शहरी जीवन की प्रमुख विशेषता है –
(अ) शिल्पियों की अधिकता
(ब) उत्तम जलवायु
(स) शिक्षित लोगों का आवास
(द) श्रम-विभाजन।
उत्तर:
(द) श्रम-विभाजन।

5. मेसोपोटामिया की लिपि कहलाती थी-
(अ) वर्णाक्षर लिपि
(ब) संकेतांत्मक लिपि
(स) कीलाकार (क्यूनीफार्म)
(द) प्राकृतिक लिपि।
उत्तर:
(स) कीलाकार (क्यूनीफार्म)

6. मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा थी-
(अ) अक्कदी
(ब) बेबीलोनियुन
(स) असीरियाई
(द) सुमेरियन।
उत्तर:
(द) सुमेरियन।

7. युद्धबन्दियों तथा स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिरों में तथा राजा के यहाँ काम करना पड़ता था। उन्हें काम के बदले दिया जाता था-
(अ) वेतन
(ब) अनाज
(स) लूट का हिस्सा
(द) पारिश्रमिक।
उत्तर:
(ब) अनाज

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8. असुरबनिपाल कौन था?
(अ) पुरोहित
(ब) योद्धा
(स) असीरियाई शासक
(द) शिल्पी।
उत्तर:
(स) असीरियाई शासक

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. शहरी जीवन की शुरुआत ……………. में हुई।
2. फरात और दजला नदियों के बीच स्थित मेसोपोटामिया प्रदेश आजकल ……………. गणराज्य का हिस्सा है।
3. आरंभिक काल में मेसोपोटामिया प्रदेशं को मुख्यतः इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को ……………. कहा जाता था।
4. 2000 ई. पू. के बाद मेसोपोटामिया के दक्षिणी क्षेत्र को ……………. कहा जाने लगा।
5. 1100 ई. पूर्व से मेसोपोटामिया क्षेत्र को ……………. कहा जाने लगा।
6. शहरी अर्थव्यवस्थाओं में ………….. के अलावा व्यापार, उत्पादन तथा सेवाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
उत्तर:
1. मेसोपोटामिया
2. इराक
3. सुमेर, अक्कद
4. बेबीलोनिया
5. असीरिया
6. खाद्य उत्पादन।

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये-
1. मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण लगभग 3000 ई. पू. में शुरू हो गया था।
2. कुशल परिवहन व्यवस्था शहरी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं होती है।
3. मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा अक्कदी थी।
4. सुमेर के व्यापार की पहली घटना को एनमर्कर के साथ जोड़ा जाता है।
5. 2000 ई. पूर्व के बाद मारी नगर मंदिर नगर के रूप में खूब फला-फूला।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. असत्य
4. सत्य
5. असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. उरुक (अ) नगर का एक रिहायशी इलाका
2. मारी (ब) गडरिये
3. उर (स) उरूक नगर का शासक
4. यायावर समुदायों के झुंड (द) शाही नगर
5. गिल्गेमिश (य) मंदिर नगर

उत्तर:

1. उरुक (य) मंदिर नगर
2. मारी (द) शाही नगर
3. उर (अ) नगर का एक रिहायशी इलाका
4. यायावर समुदायों के झुंड (ब) गडरिये
5. गिल्गेमिश (स) उरूक नगर का शासक

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया किन नदियों के बीच स्थित है?
उत्तर:
मेसोपोटामिया फरात तथा दज़ला नदियों के बीच स्थित है।

प्रश्न 2.
वर्तमान में मेसोपोटामिया किस गणराज्य का हिस्सा है?
उत्तर:
वर्तमान में मेसोपोटामिया इराक गणराज्य का हिस्सा है।

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प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया में प्रचलित भाषाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
सुमेरियन, अक्कदी तथा अरामाइक भाषाएँ।

प्रश्न 4.
सभी पुरानी व्यवस्थाओं में कहाँ की खेती सबसे अधिक उपज देने वाली हुआ करती थी?
उत्तर:
दक्षिणी मेसोपोटामिया की।

प्रश्न 5.
शहरी जीवन की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) श्रम – विभाजन तथा
(2) व्यापार।

प्रश्न 6.
प्राचीन काल में मेसोपोटामिया में व्यापार के लिए विश्व मार्ग के रूप में कौनसा जल मार्ग काम करता
उत्तर:
फरात नदी जलमार्ग।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया की लिपि क्या कहलाती थी ?
उत्तर:
क्यूनीफार्म अथवा कीलाकार।

प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौनसी थी ?
उत्तर:
सुमेरियन भाषा।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया की परम्परागत कथाओं के अनुसार मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम किस राजा ने व्यापार और लेखन की व्यवस्था की थी ?
उत्तर:
उरुक के राजा एनमार्कर ने।

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प्रश्न 10.
मेसोपोटामियावासियों के दो प्रमुख देवताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) उर (चन्द्र देवता) तथा
(2) इन्नाना (प्रेम व युद्ध की देवी )।

प्रश्न 11.
मारी नगर के समृद्ध होने का क्या कारण था ?
उत्तर:
मारी नगर के व्यापार का उन्नत होना।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध महाकाव्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
गिल्गेमिश महाकाव्य।

प्रश्न 13.
नैबोनिडस कौन था?
उत्तर:
नैबोनिडस स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था।

प्रश्न 14.
यायावर से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
यायावर गड़रिये खानाबदोश होते थे।

प्रश्न 15.
मेसोपोटामिया का नाम यूनानी भाषा के किन शब्दों से बना है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों – ‘मेसोस’ तथा ‘पोटैमोस’ से बना है।

प्रश्न 16.
बाइबल के अनुसार जल-प्लावन के बाद परमेश्वर ने किस नाम के मनुष्य को चुना ?
उत्तर:
नोआ नाम के मनुष्य को।

प्रश्न 17.
‘क्यूनीफार्म’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया की लिपि ‘क्यूनीफार्म’ कहलाती थी।

प्रश्न 18.
‘क्यूनीफार्म’ शब्द की उत्पत्ति किन शब्दों से हुई है ?
उत्तर:
क्यूनीफार्म शब्द लातिनी शब्द क्यूनियस (खूँटी) और ‘फोर्मा’ (आकार) से बना है।

प्रश्न 19.
मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग क्या कहलाता था ?
उत्तर:
रेगिस्तान।

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प्रश्न 20.
उरुक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उरुक मेसोपोटामिया का एक अत्यन्त सुन्दर मंदिर शहर था।

प्रश्न 21.
मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ बताइए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ है-दो नदियों के बीच में स्थित प्रदेश

प्रश्न 22.
मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी किन विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर:
मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी सम्पन्नता, शहरी जीवन, विशाल एवं समृद्ध साहित्य, गणित तथा खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 23.
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया क्यों महत्त्वपूर्ण था ?
उत्तर:
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाइबिल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में इसका उल्लेख कई सन्दर्भों में किया गया है।

प्रश्न 24.
मेसोपोटामिया में पुरातत्त्वीय खोज कब शुरू हुई? वहाँ किन दो स्थलों पर उत्खनन कार्य किया गया?
उत्तर:
(1) मेसोपोटामिया में पुरातत्त्वीय खोज 1840 के दशक में हुई।
(2) यहाँ उरुक तथा मारी में उत्खनन कार्य कई दशकों तक चलता रहा।

प्रश्न 25.
मेसोपोटामिया में खेती कब शुरू हो गई थी ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में 7000 से 6000 ई. पूर्व के बीच खेती शुरू हो गई थी।

प्रश्न 26.
मेसोपोटामिया (इराक) के किस भाग में सबसे पहले नगरों तथा लेखन प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में सबसे पहले नगरों तथा लेखन प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ।

प्रश्न 27.
मेसोपोटामिया के रेगिस्तानों में शहरों का प्रादुर्भाव क्यों हुआ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के रेगिस्तानों में शहरों के लिए भरण-पोषण का साधन बन सकने की क्षमता थी। फरात तथा दजला नामक नदियाँ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं ।

प्रश्न 28.
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण कांस्य युग अर्थात् 3000 ई. पूर्व में शुरू हुआ था।

प्रश्न 29.
मेसोपोटामिया के किस नगर से ‘वार्का शीर्ष’ नामक मूर्तिकला का नमूना प्राप्त हुआ और कब हुआ ?
उत्तर:
3000 ई. पू. मेसोपोटामिया के उरुक नामक नगर से ‘वार्का शीर्ष’ नामक मूर्तिकला का नमूना प्राप्त हुआ।

प्रश्न 30.
मेसोपोटामिया के लोग किन वस्तुओं का निर्यात और आयात करते थे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी, पत्थर आदि का आयात करते थे तथा कपड़े और कृषिजन्य उत्पाद का निर्यात करते थे।

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प्रश्न 31.
परिवहन का सबसे सस्ता तरीका क्या है और क्यों है ?
उत्तर:
परिवहन का सबसे सस्ता तरीका जलमार्ग होता है क्योंकि थलमार्ग की तुलना में पशुओं से माल की ढुलाई करने में अधिक खर्चा लगता है।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया में पाई गई पहली पट्टिकाएँ कब की हैं?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में पाई गई पहली पट्टिकाएँ लगभग 3200 ई. पूर्व की हैं। उनमें चित्र जैसे चिह्न और संख्याएँ दी गई हैं।

प्रश्न 33.
मेसोपोटामिया के लोग लिखने के लिए किसका प्रयोग करते थे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग लिखने के लिए मिट्टी की पट्टिकाओं का प्रयोग करते थे 1

प्रश्न 34.
मेसोपोटामिया में लेखन का प्रयोग किन कार्यों में किया जाता था ?
उत्तर:
हिसाब-किताब रखने, शब्दकोश बनाने, राजाओं की उपलब्धियों का उल्लेख करने तथा कानूनों में परिवर्तन करने के कार्यों में ।

प्रश्न 35.
सुमेरियन भाषा का स्थान किस भाषा ने ले लिया और कब ?
उत्तर:
2400 ई. पूर्व के बाद सुमेरियन भाषा का स्थान अक्कदी भाषा ने ले लिया ।

प्रश्न 36.
मेसोपोटामिया में लेखन कार्य क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में लेखन कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता था क्योंकि लेखन कार्य के लिए बड़ी कुशलता की आवश्यकता होती थी ।

प्रश्न 37.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में शहरों का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
5000 ई. पूर्व से दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप धारण कर लिया था।

प्रश्न 38.
प्रारम्भ में मेसोपोटामिया में विकसित होने वाले कितने प्रकार के शहर थे ?
उत्तर:
तीन प्रकार के शहर –

  • मन्दिरों के चारों ओर विकसित हुए शहर
  • व्यापार के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए शहर
  • शाही शहर।

प्रश्न 39.
मेसोपोटामिया का सबसे पहला ज्ञात मन्दिर कौनसा था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया का सबसे पहला ज्ञात मन्दिर एक छोटा-सा देवालय था जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था।

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प्रश्न 40.
मेसोपोटामिया के प्रारम्भिक मन्दिरों और साधारण घरों में क्या अन्तर था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के प्रारम्भिक मन्दिरों की बाहरी दीवारें भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थीं, परन्तु साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।

प्रश्न 41.
प्राय: प्रारम्भिक मन्दिर साधारण घरों की भाँति क्यों माने जाते थे?
उत्तर:
प्राय: प्रारम्भिक मन्दिर साधारण घरों की भाँति होते थे क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर माना जाता था।

प्रश्न 42.
मेसोपोटामिया में कृषि को हानि पहुँचाने वाले दो कारण लिखिए।
अथवा
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि को कई बार संकटों का सामना क्यों करना पड़ता था ?
उत्तर:
(1) फरात नदी की प्राकृतिक धाराओं में बहुत अधिक पानी आना
(2) कभी – कभी इन धाराओं द्वारा अपना मार्ग बदल लेना।

प्रश्न 43:
मेसोपोटामिया के तत्कालीन गाँवों में जमीन और पानी के लिए बार-बार झगड़े क्यों हुआ करते थे ?
उत्तर:
(1) जलधारा के नीचे की ओर बसे हुए गाँवों को पानी नहीं मिलना।
(2) लोगों द्वारा अपने हिस्सों की नदी में से गाद (मिट्टी ) नहीं निकालना।

प्रश्न 44.
मेसोपोटामिया के धार्मिक जीवन की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर;
(1) मेसोपोटामियावासी अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे।
(2) वे देवी-देवताओं को अन्न, मछली आदि अर्पित करते थे।

प्रश्न 45.
‘स्टेल’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘स्टेल’ पत्थर के ऐसे शिलापट्ट होते हैं, जिन पर अभिलेख उत्कीर्ण किये जाते हैं।

प्रश्न 46.
चाक का निर्माण शहरी अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त क्यों सिद्ध हुआ ?
उत्तर:
चाक से कुम्हार की कार्यशाला में एक साथ बड़े पैमाने पर अनेक एक जैसे बर्तन सरलता से बनाए जाने

प्रश्न 47.
मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था में धन-सम्पत्ति के अधिकतर हिस्से पर किस वर्ग का अधिकार था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था में धन-सम्पत्ति के अधिकतर हिस्से पर उच्च या संभ्रान्त वर्ग का अधिकार था ।

प्रश्न 48.
इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है कि मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था में धन-सम्पत्ति के अधिकतर हिस्से पर उच्च वर्ग का अधिकार था ?
उत्तर:
अधिकतर बहुमूल्य चीजें जैसे आभूषण, सोने के पात्र आदि बड़ी मात्रा में राजाओं तथा रानियों की कब्रों तथा समाधियों में उनके साथ दफनाई गई मिली हैं।

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प्रश्न 49.
मेसोपोटामिया में जल निकासी की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से भीतरी आँगनों में बने हुए हौजों में ले जाया जाता था।

प्रश्न 50.
उर नगर में घरों की दहलीजों को क्यों ऊँचा उठाना पड़ता था ?
उत्तर:
उर नगर में घरों की दहलीजों को ऊँचा उठाना पड़ता था तकि वर्षा के बाद कीचड़ बहकर घरों के भीतर न आ सके।

प्रश्न 51.
उर के निवासियों में घरों, के बारे में प्रचलित दो अन्धविश्वासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) यदि घर की देहली ऊँची उठी हुई हो, तो वह धन-दौलत लाती है।
(2) यदि सामने का दरवाजा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले, तो वह सौभाग्य प्रदान करता है।

प्रश्न 52.
मारी नगर कहाँ स्थित था ?
उत्तर:
मारी नगर फरात नदी की ऊर्ध्व धारा पर स्थित था।

प्रश्न 53.
मारी नगर का अधिकांश भाग किस काम में लिया जाता था ?
उत्तर:
मारी नगर का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था।

प्रश्न 54.
मारी नगर के किसानों तथा खानाबदोशों के बीच झगड़े होने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) खानाबदोश अपनी भेड़-बकरियों को किसानों के बोए हुए खेतों से गुजार कर ले जाते थे।
(2) खानाबदोश किसानों पर हमला कर उनका माल लूट लेते थे।

प्रश्न 55.
इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है कि मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न- भिन्न समुदायों के लोगों और संस्कृतियों के लिए खुली थी ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में बसने वाले खानाबदोश अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आर्मीनियन आदि विभिन्न जातियों के थे ।

प्रश्न 56.
मारी का विशाल राजमहल किन चीजों का प्रमुख केन्द्र था ?
उत्तर:
मारी का विशाल राजमहल वहाँ के शाही परिवार, प्रशासन, उत्पादन, विशेष रूप से कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केन्द्र था।

प्रश्न 57.
मारी के राजा के भोजन में प्रतिदिन कौनसे खाद्य पदार्थ पेश किये जाते थे ?
उत्तर:
मारी के राजा के भोजन में प्रतिदिन आटा, रोटी, मांस, मछली, फल, मदिरा, बीयर आदि पेश किये जाते थे।

प्रश्न 58.
मारी नगर से किन वस्तुओं का निर्यात किया जाता था और किन देशों को किया जाता था ?
उत्तर:
मारी नगर से लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा आदि वस्तुएँ नावों के द्वारा फरात नदी के रास्ते तुर्की, सीरिया, लेबनान आदि देशों में भेजी जाती थीं।

प्रश्न 59.
मारी नगर में साइप्रस के किस द्वीप से किस धातु का आयात किया जाता था ?
उत्तर:
मारी नगर में साइप्रस के अलाशिया से ताँबे का आयात किया जाता था ।

प्रश्न 60.
गिल्गेमिश महाकाव्य से क्या ज्ञात होता है ?
उत्तर:
गिल्गेमिश महाकाव्य से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के लोग अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व करते

प्रश्न 61.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
गिल्गेमिश उरुक नगर का राजा था। वह एक महान योद्धा था तथा उसने दूर-दूर तक के अनेक प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था।

प्रश्न 62.
मेसोपोटामिया की सभ्यता की विश्व को सबसे बड़ी देन क्या है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया की सभ्यता की विश्व को सबसे बड़ी देन उसकी कालगणना और गणित की विद्वतापूर्ण परम्परा है।

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प्रश्न 63.
मेसोपोटामिया निवासियों ने समय का विभाजन किस प्रकार किया था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया निवासियों ने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को 4 सप्ताहों में, एक दिन को 24 घण्टों में और एक घण्टे को 60 मिनट में बाँटा था।

प्रश्न 64.
मेसोपोटामियावासियों द्वारा किये गए समय के विभाजन को किन लोगों ने अपनाया था?
उत्तर:
मेसोपोटामियावासियों द्वारा किये गए समय के विभाजन को सिकन्दर महान के उत्तराधिकारियों, रोम तथा फिर मुस्लिम देशों और फिर मध्ययुगीन यूरोप ने अपनाया था।

प्रश्न 65.
असुरबनिपाल के पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ तथा लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था।

प्रश्न 66.
असीरियाई शासक बेबीलोनिया को उच्च संस्कृति का केन्द्र क्यों मानते थे?
उत्तर:
क्योंकि बेबीलोनिया के कई नगर पट्टिकाओं के विशाल संग्रह तैयार किये जाने और प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 67.
नैबोपोलास्सर कौन था?
उत्तर:
नैबोपोलास्सर दक्षिणी कछार का एक महान योद्धा था। उसने बेबीलोनिया को 625 ई. पू. में असीरियन लोगों के आधिपत्य से मुक्त कराया था।

प्रश्न 68.
नैबोनिडस ने किस मूर्ति की मरम्मत करवाई और किस कारण करवाई?
उत्तर:
नैबोनिडस ने देवताओं के प्रति भक्ति और राजा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण अक्कद के राजा सारगोन की टूटी हुई मूर्ति की मरम्मत करवाई

प्रश्न 69.
‘वार्का शीर्ष’ के बारे में संक्षेप में लिखिए।
अथवा
वार्का शीर्ष के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
3000 ई. पूर्व उरुक नगर में एक स्त्री का सिर एक सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। यह मूर्तिकला का श्रेष्ठ नमूना है।

प्रश्न 70.
विश्व को मेसोपोटामिया की दो देन बताइये।
उत्तर:
(1) मेसोपोटामिया की कालगणना
(2) गणित की विद्वत्तापूर्ण परम्परा का विकास।

प्रश्न 71.
हौज किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
हौज जमीन में एक ऐसा ढका हुआ गड्ढा होता था जिसमें पानी और मल जाता था।

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प्रश्न 72.
इन्नाना कौन थी ?
उत्तर:
इन्नाना मेसोपोटामिया की प्रेम व युद्ध की देवी थी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया की स्थिति तथा इसके प्राथमिक इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया फरात और दजला नामक नदियों के बीच स्थित है। यह प्रदेश आजकल इराक गणराज्य का हिस्सा है। प्रारम्भ में इस प्रदेश को मुख्यतः इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर तथा अक्कद कहा जाता था। 2000 ई.पू. के बाद दक्षिणी क्षेत्र को बेबीलोनिया कहा जाने लगा। 1100 ई. पू. में असीरियाई लोगों ने उत्तर में अपना राज्य स्थापित कर लिया।

अत: 1100 ई. पू. से यह क्षेत्र असीरिया कहा जाने लगा। मेसोपोटामिया की प्रथम ज्ञात भाषा सुमेरियन थी। लगभग 2400 ई. पूर्व में अक्कदी भाषा का प्रचलन हो गया। 1400 ई. पूर्व से अरामाइक भाषा का प्रचलन शुरू हुआ। यह भाषा हिब्रू से मिलती-जुलती थी और 1000 ई.पू. के बाद व्यापक रूप से बोली जाने लगी थी।

प्रश्न 2.
यूरोपवासी मेसोपोटामिया को महत्त्वपूर्ण क्यों मानते थे?
उत्तर:
यूरोपवासी मेसोपोटामिया को महत्त्वपूर्ण मानते थे क्योंकि बाइबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेन्ट’ में इसका उल्लेख अनेक सन्दर्भों में किया गया है। उदाहरण के लिए ओल्ड टेस्टामेन्ट की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ में ‘शिमार’ का उल्लेख है जिसका अर्थ सुमेर से है। यूरोप के यात्री और विद्वान लोग मेसोपोटामिया को एक प्रकार से अपने पूर्वजों की भूमि मानते थे।

प्रश्न 3.
बाइबल में उल्लिखित जल-प्लावन की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बाइबल के अनुसार पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला जल – प्लावन हुआ था । किन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के पश्चात् भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ नामक एक व्यक्ति को चुना । नोआ ने एक अत्यन्त विशाल नौका का निर्माण किया और उसमें सभी जीव-जन्तुओं का एक – एक जोड़ा रख दिया। जल-प्लावन के समय नौका में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए परन्तु बाकी सब कुछ नष्ट हो गया।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में वर्णित ‘जल – प्लावन आख्यान’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में वर्णित ‘जल – प्लावन आख्यान’ में बताया गया है कि एक बार देवता मनुष्य जाति को नष्ट करने पर उतारू हो गए परन्तु एनकी ने जिउसूद्र नामक एक व्यक्ति को यह रहस्य बता दिया । जिउसूद्र ने एनकी के आदेशानुसार एक विशाल नौका बनाई और उसे अनेक जीवों के जोड़ों और अन्नादि से भर लिया । अपने परिवार को भी उसने नाव पर चढ़ा लिया। फिर भीषण जल-प्लावन आया जो सात दिन तक चलता रहा। जिउसूद्र ने देवताओं को बलि दी जिससे वे उस पर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे अमृत्व प्रदान किया और दिलमुन पर्वत पर उसे स्थान दिया।

प्रश्न 5.
इराक की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इराक भौगोलिक विविधता का देश है। इसके पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं जो धीरे-धीरे वृक्षों से ढके हुए पर्वतों के रूप में फैलते गए हैं। यहाँ साफ पानी के झरने तथा जंगली फूल हैं। यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है। उत्तर में ऊँची भूमि है जहाँ स्टेपी- घास के मैदान हैं। यहाँ पशु-पालन ‘खेती की अपेक्षा आजीविका का अच्छा साधन है। सर्दियों की वर्षा के पश्चात् भेड़-बकरियाँ यहाँ उगने वाली छोटी-छोटी झाड़ियों और घास से अपना भरण-पोषण करती हैं। पूर्व में दजला की सहायक नदियाँ ईरान के पहाड़ी प्रदेशों में जाने के लिए परिवहन के अच्छे साधन हैं। दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया के दक्षिण भाग (रेगिस्तान) में सबसे पहले नगरों के प्रादुर्भाव के क्या कारण थे?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग (रेगिस्तान) में सबसे पहले नगरों के प्रादुर्भाव के निम्नलिखित कारण थे –
(1) इन रेगिस्तानों में शहरों के लिए भरण-पोषण का साधन बन सकने की क्षमता थी, क्योंकि फरात और दजला नामक नदियाँ उत्तरी पहाड़ों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ बारीक मिट्टी लाती रही हैं। जब इन नदियों में बाढ़ आती है अथवा जब इनके पानी का सिंचाई के लिए खेतों में ले जाया जाता है, तब यह उपजाऊ मिट्टी वहाँ जमा हो जाती है।

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(2) फरात नदी रेगिस्तान में प्रवेश करने के बाद कई धाराओं में बँटकर बहने लगती है। कभी-कभी इन धाराओं में बाढ़ आ जाती है। प्राचीन काल में ये धाराएँ सिंचाई की नहरों का काम देती थीं। इनमें आवश्यकता पड़ने पर गेहूँ, जौ, मटर, मसूर आदि के खेतों की सिंचाई की जाती थी। इस प्रकार वर्षा की कमी के बावजूद सभी पुरानी सभ्यताओं में दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सबसे अधिक उपज देती थी।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया में नगरों के उदय के परिणामस्वरूप कौन-कौनसे प्रमुख परिवर्तन दिखाई दिए?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में नगरों के उदय व उनके विकास के परिणामस्वरूप समाज में निम्न प्रमुख परिवर्तन दिखाई दिए –

  • नगरों के विकास के परिणामस्वरूप कृषि के साथ-साथ संगठित व्यापार, श्रम विभाजन, वितरण और भंडारण की गतिविधियों को बढ़ावा मिला।
  • नगरों के विकास के परिणामस्वरूप ऐसी प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ जिसमें कुछ लोग आदेश देते थे और दूसरे • उनका पालन करते थे।
  • शहरी अर्थव्यवस्था को अपना हिसाब-किताब रखने की आवश्यकता हुई । हिसाब-किताब लिखने के लिए कीलाक्षर लिपि का विकास हुआ तथा पट्टिकाओं की आवश्यकता पड़ी।
  • नगरों के परिणामस्वरूप मुद्राओं के द्वारा वस्तु-विनिमय शुरू हुआ तथा मुद्रा का प्रचलन हुआ।
  • नगरों के उदय के साथ-साथ अन्य प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ प्रचलन में आयीं, जैसे— नक्काशीकारी, बढईगिरी, बर्तन बनाने की कला आदि।

प्रश्न 8.
शहरीकरण के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘श्रम-विभाजन शहरी जीवन की विशेषता है।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया की सभ्यता का शहरीकरण कैसे हुआ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शहरी अर्थव्यवस्था में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त व्यापार, उत्पादन और भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। नगर के लोग आत्म-निर्भर नहीं होते हैं। वे नगर या गाँव के अन्य लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं के लिए उन पर आश्रित होते हैं। उनमें आपस में बराबर लेन-देन होता रहता है। सभी लोग एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। इसलिए श्रम विभाजन होता है जिसके अन्तर्गत लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति एक-दूसरे के उत्पादन अथवा सेवाओं के द्वारा करते हैं। इस प्रकार श्रम विभाजन शहरी जीवन की विशेषता है।

प्रश्न 9.
शहरीकरण के लिए कौनसे महत्त्वपूर्ण कारक आवश्यक होते हैं?
उत्तर:
शहरीकरण के लिए निम्नलिखित कारकों का होना आवश्यक है-

  1. प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन का उच्च स्तर।
  2. कुशल जल परिवहन का होना।
  3. व्यापारिक गतिविधियों का होना तथा श्रम विभाजन और विशेषीकरण।
  4. विभिन्न शिल्पों का विकास।
  5. विभिन्न प्रकार की सेवाओं की उपलब्धि।
  6. सुव्यवस्थित प्रबन्ध व्यवस्था, जिससे राज्य में शांति व्यवस्था बनी रहे।

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया में कितने प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ।
यथा –
(1 ) मंदिर नगर – पहले प्रकार के नगर मंदिर नगर थे। यहाँ पहले मंदिर की स्थापना हुई और फिर उसके इर्द- गिर्द लोग बसते चले गए। उरुक सबसे पुराना मंदिर नगर था।

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(2) व्यापारिक नगर – मेसोपोटामिया में कुछ नगरों का विकास व्यापारिक केन्द्रों के रूप में हुआ। व्यापारिक गतिविधियों के कारण लोग व्यापारिक केन्द्रों के इर्द-गिर्द बसते चले गए और वे नगरों के रूप में विकसित हो गए।

(3) शाही नगर – कुछ नगरों का निर्माण सत्ता का केन्द्र अर्थात् राजधानी होने के कारण हुआ।

प्रश्न 11.
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना आवश्यक है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित
(1) शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर, लकड़ी आदि आवश्यक वस्तुएँ अलग- अलग स्थानों से आती हैं। इनके लिए संगठित व्यापार और भण्डारण की भी आवश्यकता होती है।
(2) शहरों में अनाज और अन्य खाद्य-पदार्थ गाँवों से आते हैं और उनके संग्रह तथा वितरण के लिए व्यवस्था करनी होती है।
(3) नगरों में अनेक प्रकार की गतिविधियाँ चलती रहती हैं जिनमें तालमेल बैठाना पड़ता है। उदाहरणार्थ, मुद्रा काटने वालों को केवल पत्थर ही नहीं, उन्हें तराशने के लिए औजार तथा बर्तन भी चाहिए। इस प्रकार कुछ लोग आदेश देने वाले होते हैं और कुछ उनका पालन करने वाले होते हैं।
(4) शहरी अर्थव्यवस्था में अपना हिसाब-किताब लिखित रूप में रखना होता है। इसके लिए अनेक सक्षम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 12.
“वार्का शीर्ष मेसोपोटामिया की मूर्ति कला का एक विश्व प्रसिद्ध नमूना है।” स्पष्ट कीजिए। उत्तर- उरुक नामक नगर में 3000 ई.पू. स्त्री का सिर एक सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। इसकी आँखों और भौंहों में क्रमशः नीले लाजवर्द तथा सफेद सीपी और काले डामर की जड़ाई की गई होगी। इस मूर्ति के सिर के ऊपर एक खाँचा बना हुआ है जो शायद आभूषण पहनने के लिए बनाया गया था । यह मूर्ति अत्यन्त सुन्दर है। यह मूर्तिकला का एक विश्व-प्रसिद्ध नमूना है। इसके मुख, ठोड़ी और गालों की सुकोमल – सुन्दर बनावट के लिए इसकी प्रशंसा की जाती है। यह एक ऐसे कठोर पत्थर में तराशा गया है जिसे बहुत अधिक दूरी से लाया गया होगा।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया में किन वस्तुओं का आयात और निर्यात किया जाता था ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में खाद्य – संसाधनों की प्रचुरता होते हुए भी, वहाँ खनिज संसाधनों का अभाव था। इसलिए प्राचीन काल में मेसोपोटामियावासी सम्भवतः लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी और विभिन्न प्रकार के पत्थरों को तुर्की और ईरान अथवा खाड़ी – पार के देशों से मँगाते थे।
  • ये लोग इन वस्तुओं के बदले में इन देशों को कपड़ा तथा कृषि-उत्पाद का निर्यात करते थे।
  • इन वस्तुओं का नियमित रूप से आदान-प्रदान तभी सम्भव था जबकि इसके लिए कोई सामाजिक संगठन हो। दक्षिणी मेसोपोटामिया के लोगों ने ऐसे संगठन की स्थापना करने की शुरुआत की।

प्रश्न 14.
कुशल परिवहन व्यवस्था शहरी विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:
कुशल परिवहन व्यवस्था शहरी विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। अनाज या काठ कोयला भारवाही पशुओं की पीठ पर रखकर अथवा बैल – गाड़ियों में डालकर शहरों में लाना- – ले जाना अत्यन्त कठिन होता है। इसका कारण यह है कि इसमें बहुत अधिक समय लगता है और पशुओं के चारे आदि पर भी काफी खर्चा आता है। शहरी अर्थव्यवस्था इसका बोझ उठाने के लिए सक्षम नहीं होती। जलमार्ग परिवहन का सबसे सस्ता तरीका होता है।

अनाज के बोरों से लदी हुई नावें या बजरे नदी की धारा या हवा के वेग से चलते हैं, जिसमें कोई खर्चा नहीं लगता, जबकि पशुओं से माल की ढुलाई पर काफी खर्चा आता है। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जलधाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच माल के परिवहन का अच्छा मार्ग थीं फरात नदी उन दिनों व्यापार के लिए ‘विश्व – मार्ग’ के रूप में महत्त्वपूर्ण थी।

प्रश्न 15.
मेसोपोटामिया में लेखन कला के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
अथवा
कलाकार लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग लेखन कला से परिचित थे। उनके पास अपनी लिपि थी। मेसोपोटामिया में जो पहली पट्टिकाएँ पाई गई हैं, वे लगभग 3200 ई.पू. की हैं। उनमें चित्र जैसे चिह्न और संख्याएँ दी गई हैं। वहाँ बैलों, मछलियों, रोटियों आदि की लगभग 5 हजार सूचियाँ मिली हैं। मेसोपोटामिया में लेखन कार्य की शुरुआत तभी हुई जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की आवश्यकता पड़ी, क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर होते थे, उन्हें करने वाले भी कई लोग होते थे और सौदा भी कई प्रकार की वस्तुओं के विषय में होता था। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे।

लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था और उसे ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था, जिसे वह सरलता से अपने एक हाथ में पकड़ सके। वह उसकी सतहों को चिकनी बना लेता था तथा फिर सरकंडे की तीली की नोक से वह उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न बना देता था। धूप में सुखाने पर ये पट्टिकाएँ पक्की हो जाती थीं। इस प्रकार मेसोपोटामिया से कीलाकार लिपि का जन्म हुआ।

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पूपन 16.
ऐसोपोटासिया में पुन्दिा निर्माण महत्व बताइए
अथवा
मेसोपोटामिया के प्रारम्भिक धर्म (मन्दिर एवं पूजा) को समझाइये
उत्तर:
5000 ई. पूर्व से दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से प्राचीन मंदिर उहरों का रूप ग्रहण कर लिया। बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में कुछ मन्दिरों का निर्माण करना या उनका पुनर्निर्माण करना शुरू कर दिया। सबसे पहला ज्ञात मन्दिर एक छोटा-सा देवालय था जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी – देवताओं के निवास स्थान थे। इन देवी-देवताओं में उर (चन्द्र) तथा इन्नाना (प्रेम व युद्ध की देवी) प्रमुख थे।

ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे और धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ता गया। इन मन्दिरों के खुले आँगनों के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मन्दिर साधारण घरों जैसे थे; क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर ही होता था। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था। लोग देवी – देवता को प्रसन्न करने के लिए अन्न- दही, मछली आदि भेंट करते थे। आराध्यदेव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशु-धन का स्वामी माना जाता था।

प्रश्न 17.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि को कई बार संकटों का सामना क्यों करना पड़ता था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि को कई बार निम्नलिखित कारणों से संकटों का सामना करना पड़ता था-
(1) फरात नदी की प्राकृतिक धाराओं में किसी वर्ष तो बहुत अधिक पानी बह आता था और फसलों को डुबो देता था और कभी-कभी ये धाराएँ अपना मार्ग बदल लेती थीं, जिससे खेत सूखे रह जाते थे।

(2) जो लोग इन धाराओं के ऊपरी क्षेत्रों में रहते थे, वे अपने निकट की जलधारा से इतना अधिक पानी अपने
खेतों में ले लेते थे कि धारा के नीचे की ओर बसे हुए गाँवों को पानी ही नहीं मिलता था।

(3) ये लोग अपने हिस्से की नदी में से मिट्टी नहीं निकालते थे, जिससे बहाव रुक जाता था और नीचे वाले क्षेत्रों के लोगों को पानी नहीं मिल पाता था। इसलिए मेसोपोटामिया के तत्कालीन ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन और पानी के लिए बार-बार झगड़े हुआ करते थे।

प्रश्न 18.
उरुक में हुई तकनीकी प्रगति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उरुक के शासक के आदेश से साधारण लोग पत्थर खोदने, धातु – खनिज लाने, मिट्टी से ईंटें तैयार करने और मन्दिरों में लगाने तथा सुदूर देशों में जाकर मन्दिरों के लिए उपयुक्त सामान लाने के कार्यों में जुटे रहते थे। इसके फलस्वरूप 3000 ई.पू. के आस-पास उरुक शहर में अत्यधिक तकनीकी प्रगति हुई। इस तकनीकी प्रगति का वर्णन अग्रानुसार है –
(1) अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औजारों का प्रयोग किया जाने लगा।

(2) वास्तुविदों ने ईंटों के स्तम्भ बनाना सीख लिया था क्योंकि बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को सम्भालने के लिए शहतीर बनाने के लिए उपयुक्त लकड़ी नहीं मिलती थी।

(3) सैकड़ों लोग चिकनी मिट्टी के शंकु (कोन) बनाने और पकाने के काम में लगे रहते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों में रंग कर मन्दिरों की दीवारों में लगाया जाता था जिससे वे दीवारें विभिन्न रंगों से आकर्षक दिखाई देती थीं।

(4) उरुक में मूर्तिकला के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। मूर्तियाँ अधिकतर आयातित पत्थरों से बनाई जाती थीं।

(5) कुम्हार के चाक के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक युगान्तरकारी परिवर्तन आया। चाक से कुम्हार की कार्यशाला में एक साथ बड़े पैमाने पर अनेक एक जैसे बर्तन सरलता से बनाए जाने लगे।

प्रश्न 19.
” मुद्रा (मोहर) सार्वजनिक जीवन में नगरवासी की भूमिका को दर्शाती थी। ” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया में मुद्रा – निर्माण कला पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया में पहली सहस्राब्दी ई. पूर्व से अन्त तक पत्थर की बेलनाकार मुद्राएँ बनाई जाती थीं। इनके बीच में छेद होता था। इस छेद में एक तीली लगाकर मुद्रा को गीली मिट्टी के ऊपर घुमाया जाता था। इस प्रकार उनसे निरन्तर चित्र बनता जाता था। इन मुद्राओं को अत्यन्तं कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। कभी-कभी उनमें ऐसे लेख होते थे, जैसे मालिक का नाम, उसके इष्टदेव का नाम और उसकी अपनी पदीय स्थिति आदि।

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किसी कपड़े की गठरी या बर्तन के मुँह को चिकनी मिट्टी से लीप-पोत कर उस पर वह मोहर घुमाई जाती थी जिससे उसमें अंकित लिखावट मिट्टी की सतह पर छा जाती थी। इससे उस गठरी या बर्तन में रखी चाजों को मोहर लगाकर सुरक्षित रखा जा सकता था। जब इस मोहर को मिट्टी की बनी पट्टिका पर लिखे पत्र पर घुमाया जाता था, तो वह मोहर उस पत्र की प्रामाणिकता को प्रदर्शित करती थी । इस प्रकार मुद्रा सार्वजनिक जीवन में नगरवासी की भूमिका को प्रकट करती थी।

प्रश्न 20.
मेसोपोटामियावासियों की विवाह – प्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर- विवाह करने की इच्छा के सम्बन्ध में घोषणा की जाती थी और कन्या के माता-पिता उसके विवाह के लिए अपनी सहमति प्रदान करते थे। उसके पश्चात् वर पक्ष के लोग वधू को कुछ उपहार देते थे। जब विवाह की रस्म पूरी हो जाती थी, तब दोनों पक्षों की ओर से एक-दूसरे को उपहार दिये जाते थे और वे एकसाथ बैठकर भोजन करते थे। इसके बाद वे मन्दिर में जाकर देवी-देवता को भेंट चढ़ाते थे। जब नववधू को उसकी सास लेने आती थी, तब वधू को उसके पिता के द्वारा उसकी दाय का भाग दे दिया जाता था।

प्रश्न 21.
मारी नगर के पशुचारकों की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
2000 ई. पूर्व के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में विकसित हुआ। मारी नगर फरात नदी की ऊर्ध्वधारा पर स्थित है। इस ऊपरी क्षेत्र में खेती और पशुपालन साथ-साथ चलते थे। यद्यपि मारी राज्य में किसान और पशुचारक दोनों प्रकार के लोग होते थे, परन्तु वहाँ का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था।

पशुचारकों को जब अनाज, धातु के औजारों आदि की आवश्यकता पड़ती थी तब वे अपने पशुओं तथा उनके पनीर, चमड़ा तथा मांस आदि के बदले ये चीजें प्राप्त करते थे। बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं के गोबर से बनी खाद भी किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती थी। फिर भी मारी राज्य में किसानों तथा गड़रियों के बीच कई बार झगड़े हो जाते थे।

प्रश्न 22.
मारी राज्य में किसानों तथा गड़रियों के बीच झगड़े होने के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मारी राज्य में किसानों तथा गड़रियों के बीच कई बार झगड़े हो जाते थे। इन झगड़ों के निम्नलिखित कारण थे –
(1) गड़रिये कई बार अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए किसानों के बोए हुए खेतों से गुजार कर ले जाते थे जिससे किसानों की फसलों को हानि पहुँचती थी।
(2) ये गड़रिये खानाबदोश होते थे और कई बार किसानों के गाँवों पर हमला कर उनका माल लूट लेते थे। इससे दोनों पक्षों में कटुता बढ़ती थी।
(3) दूसरी ओर, बस्तियों में रहने वाले लोग भी इन गड़रियों का मार्ग रोक देते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को नदी – नहर तक नहीं ले जाने देते थे।

प्रश्न 23.
“मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों और संस्कृतियों का मिश्रण था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया के कृषि से समृद्ध हुए मुख्य भूमि – प्रदेश में यायावर समुदायों के झुण्ड के झुण्ड पश्चिमी मरुस्थल से आते रहते थे। ये गड़रिये गर्मियों में अपने साथ इस उपजाऊ क्षेत्र के बोए हुए खेतों में अपनी भेड़-बकरियाँ ले आते थे। गड़रियों के ये समूह फसल काटने वाले श्रमिकों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे और समृद्ध होकर यहीं बस जाते थे। उनमें से कुछ तो बहुत शक्तिशाली थे जिन्होंने यहाँ अपनी स्वयं की सत्ता स्थापित करने की शक्ति प्राप्त कर ली थी।

ये खानाबदोश लोग अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे। उनकी वेश-भूषा वहाँ के मूल निवासियों से अलग होती थी तथा वे मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर करते थे। उन्होंने स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए मारी नगर में एक अन्य मन्दिर का निर्माण भी करवाया। इस प्रकार मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों और संस्कृतियों के लिए खुली थी तथा सम्भवतः विभिन्न जातियों और समुदायों के लोगों के परस्पर मिश्रण से ही वहाँ की सभ्यता में जीवन-शक्ति उत्पन्न हो गई थी।

प्रश्न 24.
जिमरीलिम के मारी स्थित राजमहल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिमरीलिम का मारी स्थित राजमहल –

  1. मारी स्थित विशाल राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास-स्थान था। इसके अतिरिक्त वह प्रशासन और उत्पादन, विशेष रूप से कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केन्द्र भी था।
  2. यह राजमहल विश्व में प्रसिद्ध था जिसे देखने के लिए दूसरे देशों के लोग भी आते थे।
  3. यह राजमहल 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में स्थित एक अत्यन्त विशाल भवन था जिसमें 260 कक्ष बने हुए थे।
  4. मारी के राजा जिमरीलिम के भोजन की मेज परं प्रतिदिन भारी मात्रा में खाद्य पदार्थ प्रस्तुत किये जाते थे जिनमें आटा, रोटी, मांस, मछली, फल, मदिरा, बीयर आदि सम्मिलित थीं।
  5. राजमहल का केवल एक ही प्रवेश-द्वार था जो उत्तर की ओर बना हुआ था। उसके विशाल खुले प्रांगण सुन्दर पत्थरों से जड़े हुए थे।
  6. राजमहल में राजा के विदेशी अतिथियों तथा अपने प्रमुख लोगों से मिलने वाले कक्ष में सुन्दर भित्तिचित्र लगे हुए।

प्रश्न 25.
मारी के राजाओं को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सदा सतर्क और सावधान क्यों रहना पड़ता था?
उत्तर:
मारी के राजाओं को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सदा सतर्क और सावधान रहना पड़ता था। यद्यपि मारी राज्य में विभिन्न जनजातियों के पशुचारकों को घूमने-फिरने की अनुमति तो थी, परन्तु उनकी गतिविधियों पर कड़ी दृष्टि रखी जाती थी। राजा के पदाधिकारियों को इन पशुचारकों की गतिविधियों के बारे में अपने राजा को सूचना देनी पड़ती थी। इस बात का पता राजाओं तथा उनके पदाधिकारियों के बीच हुए पत्र-व्यवहार से चलता है। एक बार एक पदाधिकारी ने राजा को लिखा था कि उसने रात्रि में बार-बार आग से किये गए ऐसे संकेतों को देखा है जो एक शिविर से दूसरे शिविर को भेजे गए थे और उसे सन्देह है कि कहीं किसी धावे या हमले की योजना तो नहीं बनाई जा रही है।

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प्रश्न 26.
“मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर स्थित था, जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगे, तेल, मदिरा और अन्य कई वस्तुओं को नावों के द्वारा फरात नदी के मार्ग से दक्षिण और तुर्की, सीरिया और लेबनान के ऊँचे प्रदेशों के बीच लाया ले जाया जाता था। व्यापार की उन्नति के कारण मारी नगर अत्यन्त समृद्ध शहर बना हुआ था। दक्षिणी नगरों में घिसाई – पिसाई के पत्थर, चक्कियाँ, लकड़ी, शराब तथा तेल के पीपे ले जाने वाले जलपोत मारी में रुका करते थे।

मारी के अधिकारी जलपोत पर जाकर उस पर लदे हुए सामान की जाँच करते थे और उसमें लदे हुए सामान की कीमत का लगभग 10 प्रतिशत प्रभार वसूल करते थे। जौ एक विशेष प्रकार की नौकाओं में आता था। कुछ पट्टिकाओं में साइप्रस के द्वीप ‘अलाशिया’ से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला है। यह द्वीप उन दिनों ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ राँगे का भी व्यापार होता था क्योंकि काँसा, औजार तथा हथियार बनाने के लिए यह एक मुख्य औद्योगिक सामग्री था। इसलिए इसके व्यापार का काफी महत्त्व था। इस प्रकार मारी नगर व्यापार और समृद्धि के मामले में अद्वितीय था।

प्रश्न 27.
मेसोपोटामिया के नगरों की खुदाई के फलस्वरूप मेसोपोटामिया की सभ्यता के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के नगरों में हुए उत्खनन कार्य के फलस्वरूप पुरातत्त्वविदों को इमारतों, मूर्तियों, आभूषणों, औजारों, मोहरों, मन्दिरों आदि के अवशेष प्राप्त हुए जिनसे मेसोपोटामिया की सभ्यता के बारे में काफी जानकारी मिलती है।
यथा –
(i) खुदाई में ‘अबुसलाबिख’ नामक एक छोटा कस्बा 2500 ई. पूर्व में लगभग 10 हैक्टेयर क्षेत्र में बसा हुआ था और इसकी जनसंख्या 10,000 से कम थी। पुरातत्त्वविदों ने इसकी दीवारों की ऊपरी सतहों को सर्वप्रथम खरोंचकर निकाला। उन्हें नीचे की मिट्टी कुछ नम मिली और भिन्न-भिन्न रंगों, उसकी बनावट, ईंटों की दीवारों की स्थिति आदि की जानकारी प्राप्त की।

(ii) उन्हें पौधों और पशुओं की अनेक प्रजातियों की जानकारी मिली।

(iii) उन्हें बड़ी मात्रा में जली हुई मछलियों की हड्डियाँ मिलीं।

(iv) उन्हें वहाँ गोबर के उपलों के जले हुए ईंधन में से निकले हुए पौधों के बीज और रेशे मिले। इससे ज्ञात हुआ कि इस स्थान पर रसोईघर था।

(v) वहाँ की गलियों में सूअरों के छोटे बच्चों के दाँत पाए गए हैं जिनसे ज्ञात होता है कि यहाँ सूअर विचरण करते थे।

(vi) वहाँ के घरों में कुछ कमरों पर पोपलर के लट्ठों, खजूर की पत्तियों तथा घास-फूस की छतें थीं और कुछ कमरे बिना किसी छत के थे।

प्रश्न 28.
गिल्गेमिश महाकाव्य से मेसोपोटामिया की संस्कृति में शहरों के महत्त्व के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
मेसोपोटामियावासी शहरी जीवन को महत्त्व देते थे। ‘गिलोमिश महाकाव्य’ से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के लोग अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व करते थे। गिल्गेमिश महाकाव्य 12 पट्टियों पर लिखा गया था। गिल्गेमिश ने राजा एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया था। वह एक महान योद्धा था। उसने दूर- दूर तक के अनेक प्रदेशों को जीत कर अपने अधीन कर लिया था। परन्तु जब उसके घनिष्ठ मित्र की अचानक मृत्यु हो गई तो उसे प्रबल आघात पहुँचा।

इससे दुःखी होकर वह अमरत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने सम्पूर्ण संसार का चक्कर लगाया, परन्तु उसे अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिली। अन्त में गिोमिश अपने नगर उरुक नगर लौट आया। एक दिन जब वह शहर की चहारदीवारी के निकट भ्रमण कर रहा था, तो उसकी दृष्टि उन पकी ईंटों पर पड़ी, जिनसे उसकी नींव डाली गई थी। वह भाव-विभोर हो उठा। यहीं पर ही गिल्गेमिश महाकाव्य की लम्बी साहसपूर्ण और वीरतापूर्ण कहानी का अन्त हो गया। इस प्रकार गिल्गेमिश को अपने नगर में ही सान्त्वना मिलती है, जिसे उसकी प्रिय प्रजा ने बनाया था।

प्रश्न 29.
विश्व को मेसोपोटामिया की सभ्यता की क्या देन है ?
अथवा
गणित, ज्योतिष शास्त्र व खगोल विद्या के क्षेत्र में मेसोपोटामिया की देन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया की सभ्यता की विश्व को सबसे बड़ी देन उसकी काल-गणना और गणित की विद्वत्तापूर्ण परम्परा है। विश्व को मेसोपोटामिया की देन का वर्णन निम्नानुसार है –
(1) 1800 ई. पूर्व के आस-पास कुछ पट्टिकाएँ मिली हैं, जिनमें गुणा और भाग की तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्गमूल और चक्रवृद्धि ब्याज की सारणियाँ दी गई हैं। इनमें दो का वर्गमूल दिया गया है जो सही उत्तर से थोड़ा-सा ही भिन्न है।

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(2) मेसोपोटामियावासियों ने पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की परिक्रमा के अनुसार एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को 4 सप्ताहों, एक दिन को 24 घण्टों में और एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया था। सिकन्दर के उत्तराधिकारियों ने समय के इस विभाजन को अपनाया, वहाँ से वह रोम और फिर इस्लामी देशों को मिला और फिर मध्ययुगीन यूरोप में पहुँचा।

(3) मेसोपोटामियावासी सूर्य और चन्द्र ग्रहण के घटित होने का हिसाब भी रखते थे।

(4) वे रात को आकाश में तारों और तारामण्डल की स्थिति पर बराबर दृष्टि रखते थे तथा उनका हिसाब रखते थे।

प्रश्न 30.
नैबोपोलास्सर तथा उनके उत्तराधिकारियों के समय में बेबीलोनिया के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
बेबीलोन नगर की मुख्य विशेषतायें बताइये।
उत्तर:
नैबोपोलास्सर दक्षिणी कछार का एक महान योद्धा था। उसने बेबीलोनिया को 625 ई. पूर्व में असीरियन लोगों के आधिपत्य से मुक्ति दिलाई। उसके उत्तराधिकारियों ने बेबीलोनिया के राज्य का विस्तार किया और बेबीलोन में भवन-निर्माण की योजनाएँ पूरी कीं। 539 ई. पूर्व में ईरान के एकेमिनिड लोगों द्वारा विजित होने के पश्चात् तथा 331 ई. पूर्व में सिकन्दर महान से पराजित होने तक बेबीलोन विश्व का एक प्रमुख नगर बना रहा।

प्रमुख विशेषताएँ – इस नगर की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  1. इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था।
  2. इसकी चहारदीवारी तिहरी थी।
  3. इसमें विशाल राजमहल तथा मन्दिर बने हुए थे।
  4. इसमें एक जिगुरात अर्थात् सीढ़ीदार मीनार थी।
  5. इस नगर के मुख्य अनुष्ठान केन्द्र तक शोभा यात्रा के लिए एक विस्तृत मार्ग बना हुआ था।
  6. इसके व्यापारिक घराने दूर-दूर तक व्यापार करते थे।
  7. इसके गणितज्ञों तथा खगोलविदों ने अनेक नई खोजें की थीं।

प्रश्न 31.
” नैबोनिडस मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं का पालक था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नैबोनिडस स्वतन्त्र बेबीलोनिया का अन्तिम शासक था। उसने लिखा है कि उसे सपने में उर के नगर- देवता ने सुदूर – दक्षिण के उस पुरातन नगर का कार्य – भार सम्भालने के लिए एक महिला पुरोहित को नियुक्त करने का आदेश दिया। उसने लिखा, “चूँकि बहुत लम्बे समय से उच्च महिला पुरोहित का प्रतिष्ठान भुला दिया गया था नैबोनिडस ने लिखा है कि उसे एक बहुत पुराने राजा (1150 ई. पू.) का पट्टलेख मिला और उस पर उसने महिला पुरोहित की आकृति अंकित देखी।

उसने उसके आभूषणों और वेशभूषा को ध्यानपूर्वक देखा। फिर उसने अपनी पुत्री को वैसी ही वेशभूषा से सुसज्जित कर महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। कुछ समय बाद नैबोनिडस के व्यक्ति उसके पास एक टूटी हुई मूर्ति लाए जिस पर अक्कद के राजा सारगोन (2370 ई.पू.) का नाम उत्कीर्ण था। नैबोनिडस ने लिखा है कि ” देवताओं के प्रति भक्ति और राजा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण, मैंने कुशल शिल्पियों को बुलाया और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया। ”

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“इराक भौगोलिक विविधता का देश है।” इस कथन के सन्दर्भ में मेसोपोटामिया की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया की भौगोलिक विशेषताएँ मेसोपोटामिया की भौगोलिक विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) भौगोलिक स्थिति – इराक भौगोलिक विविधता का देश है। इसके पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं, जो वृक्षों से ढके हुए पर्वतों के रूप में फैलते गए हैं। यहाँ स्वच्छ झरने तथा जंगली फूल हैं। यहाँ अच्छी उपज के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है। यहाँ 7000 ई.पू. से 5000 ई.पू. के बीच खेती की शुरुआत हो गई थी।

उत्तर में ऊँची भूमि है जहाँ ‘स्टेपी’ घास के मैदान हैं। यहाँ पशुपालन खती की अपेक्षा लोगों के आजीविका का अधिक अच्छा साधन है। सर्दियों की वर्षा के पश्चात्, भेड़-बकरियाँ छोटी-छोटी झाड़ियों तथा घास से अपना भरण-पोषण करती हैं। पूर्व में जला की सहायक नदियाँ ईरान के पहाड़ी प्रदेशों में जाने के लिए परिवहन का अच्छा साधन हैं। दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है और यहीं पर सबसे पहले नगरों तथा लेखन प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ।

(2) उपज – फरात नदी रेगिस्तान में प्रवेश करने के पश्चात् कई धाराओं में बँटकर बहने लगती है। कभी-कभी इन धाराओं में बाढ़ आ जाती है। पुराने युग में ये धाराएँ सिंचाई की नहरों का काम देती थीं। इनसे आवश्यकता पड़ने पर गेहूँ, जौ, मटर या मसूर के खेतों की सिंचाई की जाती थी। इस प्रकार यहाँ गेहूँ, जौ, खजूर, मटर या मसूर की खेती की ती थी। प्राचीन सभ्यताओं में दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सबसे अधिक उपज देने वाली हुआ करती थी। फिर भी वहाँ फसलों की खेती के लिए आवश्यक वर्षा की कुछ कमी रहती थी।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

(3) पशुपालन – खेती के अतिरिक्त भेड़-बकरियाँ स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों और पहाड़ों के ढालों `पर पाली जाती थीं। इनसे प्रचुर मात्रा में मांस, दूध और ऊन आदि
वस्तुएँ मिलती थीं। इसके अतिरिक्त मछली – पालन भी प्रचलित था तथा नदियों में मछलियों की कोई कमी नहीं थी।

प्रश्न 2.
शहरी विकास के लिए आवश्यक कारकों की विवेचना कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया के शहरी जीवन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मेसोपोटामिया में लेखन कला का विकास लेखन या लिपि का अर्थ है – उच्चरित ध्वनियाँ, जो दृश्य संकेतों के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।
(1) मिट्टी की पट्टिकाओं पर लेखन कार्य – मेसोपोटामिया में जो पहली पट्टिकाएँ पाई गई हैं, वे लगभग 3200 ई. पूर्व की हैं। उनमें चित्र जैसा चिह्न और संख्याएँ दी गई हैं। वहाँ बैलों, मछलियों, रोटियों आदि की लगभग 5000 सूचियाँ मिली हैं। इससे ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया में लेखन कार्य तभी शुरू हुआ था जब समाज को अपने लेन- देन का स्थायी हिसाब रखने की आवश्यकता हुई क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर होते थे। उन्हें करने वाले भी कई लोग होते थे और सौदा भी कई प्रकार की वस्तुओं के बारे में होता था।

(2) मिट्टी की पट्टिकाओं पर कीलाकार चिह्न बनाना – मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था और फिर उसको गूंथ कर और थापकर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सरलता से अपने एक हाथ में पकड़ सके। वह उसकी सतहों को चिकना बना लेता था । इसके बाद सरकंडे की तीली की तीखी नोक से वह उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाक्षर चिह्न (क्यूनीफार्म) बना देता था।

जब ये पट्टिकाएँ धूप में सूख जाती थीं, तो पक्की हो जाती थीं और वे मिट्टी के बर्तनों जैसी ही मजबूत हो जाती थीं इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना भी अपेक्षाकृत आसान था। जब पट्टिकाओं पर लिखा हुआ कोई हिसाब असंगत हो जाता था, तो उस पर कोई नया चिह्न या अक्षर नहीं लिखा जा सकता था। इस प्रकार प्रत्येक सौदे के लिए चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, एक पृथक् पट्टिका की आवश्यकता होती थी । इसीलिए मेसोपोटामिया के खुदाई स्थलों पर अनेक पट्टिकाएँ मिली हैं।

(3) लेखन का प्रयोग – लगभग 2600 ई.पू. के आस-पास वर्ण कीलाकार हो गए और भाषा सुमेरियन रही। अब लेखन का प्रयोग हिसाब-किताब रखने के लिए ही नहीं, बल्कि शब्दकोश बनाने, भूमि के हस्तान्तरण को कानूनी मान्यता प्रदान करने, राजाओं के कार्यों और उपलब्धियों का वर्णन करने तथा कानून में परिवर्तनों की उद्घोषणा करने के लिए किया जाने लगा। 2400 ई. पूर्व के बाद सुमेरियन भाषा का स्थान अक्कदी भाषा ने ले लिया। अक्कदी भाषा में . कीलाकार लेखन की प्रणाली ई. सन् की पहली शताब्दी तक अर्थात् 2 हजार से अधिक वर्षों तक चलती रही।

(4) लेखन प्रणाली – मेसोपोटामिया में जिस ध्वनि के लिए कीलाक्षर या कीलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था, वह एक अकेला व्यंजन या स्वर नहीं होता था परन्तु अक्षर होते थे। इस प्रकार मेसोपोटामिया के लिपिक को सैकड़ों चिह्न सीखने पड़ते थे और उसे गीली पट्टी पर उसके सूखने से पहले ही लिखना होता था। लेखन कार्य के लिए बड़ी कुशलता की जरूरत होती थी, इसलिए लेखन कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता था। इस प्रकार, किसी भाषा – विशेष की ध्वनियों को एक दृश्य-‍ -रूप में प्रस्तुत करना मेसोपोटामियावासियों की एक महान् बौद्धिक उपलब्धि मानी जाती थी।

(5) साक्षरता – मेसोपोटामिया में साक्षर लोगों की संख्या बहुत कम थी । मेसोपोटामिया में बहुत कम लोग पढ़- लिख सकते थे। इसका कारण यह था कि न केवल प्रतीकों या चिह्नों की संख्या सैकड़ों में थी, बल्कि ये कहीं अधिक जटिल भी थे। यदि राजा स्वयं पढ़ सकता था, तो वह चाहता था कि प्रशस्तिपूर्ण अभिलेखों में उन तथ्यों का उल्लेख अवश्य किया जाए।

प्रश्न 4.
दक्षिणी मेसोपोटामिया के शहरीकरण का वर्णन करते हुए वहाँ के मन्दिरों के निर्माण एवं उनके महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी मेसोपोटामिया का शहरीकरण – 5000 ई.पू. से दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप धारण कर लिया।

ये शहर मुख्यतः तीन प्रकार के थे –
(1) पहले वे शहर जो मन्दिरों के चारों ओर विकसित हुए।
(2) दूसरे वे शहर जो व्यापार के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए।
(3) शेष शाही शहर।
(1) मन्दिरों का निर्माण – मेसोपोटामिया में बाहर से आकर बसने वालों ने अपने गाँवों में कुछ चुने हुए स्थानों पर मन्दिरों का निर्माण करवाया या उनका पुनर्निर्माण करवाना शुरू किया। सबसे पहला ज्ञात मन्दिर एक छोटा-सा देवालय था, जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के निवास स्थान थे, जैसे-उर (चन्द्र देवता), अन (आकाश देवता), इन्नाना ( प्रेम और युद्ध की देवी )।

(2) मन्दिरों का स्वरूप- ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे और समय के साथ इनके आकार बढ़ते गए क्योंकि उनके खुले आँगनों के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मन्दिर साधारण घरों की तरह होते थे, क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर ही होता था, परन्तु मन्दिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशेष अन्तरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थीं। यही मन्दिरों की विशेषता थी। परन्तु साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।

(3) देवी-देवता को भेंट अर्पित करना – देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था। मेसोपोटामियावासी देवी- देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अन्न, दही, मछली, खजूर आदि लाते थे। इन वस्तुओं का एक भाग देवी-देवताओं को अर्पित कर दिया जाता था। आराध्यदेव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था।

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(4) मन्दिरों के क्रियाकलापों में वृद्धि – धीरे-धीरे मन्दिरों के क्रियाकलाप बढ़ते चले गए।
यथा –
(i) कालान्तर में उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया (जैसे तेल निकालना, अनाज पीसना, कातना और ऊनी कपड़ा बुनना आदि) मन्दिरों में ही की जाती थी।
(ii) घर-परिवार से ऊपर के स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, जौ की शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मन्दिरों ने धीरे-धीरे अपने क्रिया-‍ -कलाप बढ़ा लिए।
(iii) यह परिवार के ऊपरी स्तर के उत्पादन का केन्द्र बन गया। इस प्रकार मंदिरों ने मुख्य शहरी संस्था का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में राजा का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ ? उसके प्रभाव और शक्ति में वृद्धि किस प्रकार हुई ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में ‘राजा’ का प्रादुर्भाव – मेसोपोटामिया के तत्कालीन देहातों में जमीन और पानी के लिए बार-बार झगड़े हुआ करते थे। जब किसी क्षेत्र में दीर्घकाल तक लड़ाई चलती थी, तो लड़ाई में जीतने वाले मुखिया, अपने साथियों व समर्थकों को लूट का माल बाँट कर उन्हें प्रसन्न कर देते थे तथा पराजित हुए समूहों में से लोगों को बन्दी बनाकर अपने साथ ले जाते थे जिन्हें वे अपने चौकीदार या नौकर बना लेते थे। इस प्रकार, वे अपना प्रभाव और अनुयायियों की संख्या बढ़ा लेते थे। परन्तु युद्ध में विजयी होने वाले ये नेता स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे।

राजाओं की शक्ति तथा प्रभाव में वृद्धि –
(1) समुदाय के कल्याण पर ध्यान देना – कालान्तर में समुदाय के इन नेताओं ने समुदाय के कल्याण पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया, जिसके फलस्वरूप नई-नई संस्थाओं और परिपाटियों का जन्म हुआ।

(2) मन्दिरों के सौन्दर्यीकरण पर बल देना – इस समय के विजेता मुखियाओं ने बहुमूल्य भेंटों को देवताओं पर अर्पित करना शुरू कर दिया जिससे कि समुदाय के मन्दिरों की सुन्दरता बढ़ गई। उन्होंने लोगों को बहुमूल्य पत्थरों तथा धातुओं को लाने के लिए भेजा, जो देवताओं और समुदाय को लाभ पहुँचा सकें, मन्दिर की धन-सम्पदा के वितरण का तथा मन्दिरों में आने-जाने वाली वस्तुओं का अच्छी प्रकार से हिसाब-किताब रख सकें। इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा समुदाय पर उसका नियन्त्रण स्थापित किया।

(3) ग्रामीणों की सुरक्षा – राजाओं ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे कि वे आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त अपनी सेना संगठित कर सकें। इसके अतिरिक्त लोग एक-दूसरे के निकट रहने से स्वयं को अधिक सुरक्षित अनुभव कर सकते थे।

(4) युद्धबन्दियों और स्थानीय लोगों से अनिवार्य रूप से काम लेना – युद्धबन्दियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिर का या प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना पड़ता था। जिन्हें काम पर लगाया जाता था, उन्हें काम के बदले अनाज दिया जाता था। सैकड़ों ऐसी राशन-सूचियाँ मिली हैं जिनमें काम करने वाले लोगों के नामों के आगे उन्हें दिये जाने वाले अन्न, कपड़े, तेल आदि की मात्रा लिखी गई है।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया में कला के क्षेत्र में हुई उन्नति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया में कला के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई।

(1) भवन निर्माण कला – मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की धूप में सूखी हुई ईंटों से मकान बनाते थे। मकानों मध्य एक विशाल कक्ष (हॉल) रहता था, जिससे होकर अन्य कक्षों में जाया जाता था। बाद में खुले आँगन बनने लगे। धन-सम्पन्न लोगों के मकान मिट्टी के टीलों पर बनाये जाते थे। अन्दर की दीवारों पर प्लास्तर किया जाता था। भवन- *निर्माण में स्तम्भों और मेहराबों का प्रयोग भी किया जाता था। वास्तुविदों ने ईंटों के स्तम्भों को बनाना सीख लिया था क्योंकि उन दिनों बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को सम्भालने के लिए शहतीर बनाने हेतु उपयुक्त लकड़ी नहीं मिलती थी।

मेसोपोटामिया में अनेक मन्दिरों का भी निर्माण किया गया। मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे और धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ता गया। मन्दिरों को देवताओं का निवास-स्थान माना जाता था। प्रत्येक नगर में विशाल मीनारों वाला एक मन्दिर होता था, जिसमें मेहराब, गुम्बद तथा स्तम्भ बहुत ही सुन्दर होते थे। सुमेरियन कला की सबसे बड़ी विशेषता ‘ज़िगुरात’ है। यह एक सीढ़ीदार मीनार थी। इन जिगुरातों का निर्माण एक ऊँचे चबूतरे पर किया जाता था जिसमें एक के ऊपर एक छज्जे का निर्माण किया जाता था।

(2) मूर्ति – कला – मेसोपोटामिया में मूर्तिकला की भी पर्याप्त उन्नति हुई। उर नगर की खुदाई में अनेक सुन्दर मूर्तियाँ मिली हैं। एक रथ पर सवार एक राजा की मूर्ति बड़ी सुन्दर और सजीव है। यहाँ एक मन्दिर के सामने चबूतरे पर बैल की एक अत्यन्त सजीव मूर्ति रखी हुई है। मेसोपोटामिया में मूर्तिकला के सुन्दर नमूने अधिकतर आयातित पत्थरों से तैयार किये जाते थे। 3000 ई. पूर्व उरुक नगर में एक स्त्री का सिर एक सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। यह वार्का शीर्ष मेसोपोटामिया की मूर्ति कला का एक विश्व-प्रसिद्ध नमूना है।

(3) चित्रकला – मेसोपोटामिया में चित्रकला की भी उन्नति हुई। मेसोपोटामियावासी अपने मन्दिरों तथा दीवारों को पशुओं और मनुष्यों के चित्रों से सजाते थे। चित्रकारों द्वारा युद्ध के दृश्य भी चित्रित किये जाते थे।

(4) अन्य कलाएँ – मेसोपोटामिया के स्वर्णकार सोने-चाँदी के सुन्दर आभूषण और बर्तन बनाते थे। एक समाधि में एक राजकुमार के सिर पर स्वर्ण की भारी चादर का बना हुआ मुकुट मिला है जिस पर स्वर्णकार ने अद्भुत कौशल का प्रदर्शन किया है। धातु – पात्रों पर नक्काशी का बहुत सुन्दर काम भी मिलता है । यहाँ मिट्टी के सुन्दर बर्तन भी बनाये जाते थे।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया की सामाजिक व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया के शहरी जीवन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था (शहरी जीवन) – मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है –
(1) समाज का वर्गीकरण – मेसोपोटामिया का समाज तीन वर्गों में विभाजित था –
(1) उच्च वर्ग
(2) मध्यम वर्ग
(3) निम्न वर्ग।
समाज में उच्च या सम्भ्रान्त वर्ग का बोलबाला था। अधिकांश धन-सम्पत्ति पर इसी वर्ग का अधिकार था। इस बात की पुष्टि इस बात से होती है कि बहुमूल्य वस्तुएँ, जैसे आभूषण, सोने के पात्र, सफेद सीपियाँ, लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्य यन्त्र, सोने के सजावटी खंजर आदि विशाल मात्रा में उर नामक नगर में राजाओं और रानियों की कुछ कब्रों या समाधियों में उनके साथ दफनाई गई मिली हैं। परन्तु सामान्य लोगों की दशा शोचनीय थी।

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(2) परिवार – विवाह, उत्तराधिकार आदि के मामलों से सम्बन्धित कानूनी दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। एकल परिवार में एक पुरुष, उसकी पत्नी और बच्चे शामिल होते थे। फिर भी विवाहित पुत्र और उसका परिवार प्राय: अपने माता-पिता के साथ ही रहा करता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। पुत्र ही पिता की सम्पत्ति का वास्तविक उत्तराधिकारी होता था।

(3) विवाह – विवाह करने की इच्छा के बारे में घोषणा की जाती थी और कन्या के माता-पिता उसके विवाह के लिए अपनी सहमति देते थे। उसके पश्चात् वर पक्ष के लोग वधू को कुछ उपहार भेंट में देते थे। विवाह की रस्म पूरी हो जाने के बाद दोनों पक्षों की ओर से उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था। वे एक-साथ बैठकर भोजन करते थे तथा मन्दिर में जाकर भेंट चढ़ाते थे। जब वधू को उसकी सास लेने आती थी, तब वधू को उसके पिता द्वारा उसकी दाय का हिस्सा दे दिया जाता था। पिता के घर, खेत और पशुधन पर उसके पुत्रों का अधिकार होता था।

प्रश्न 8.
उर नगर की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
उर नगर की प्रमुख विशेषताएँ उर नगर की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नानुसार है –
1. नगर- नियोजन की पद्धति का अभाव – मेसोपोटामिया के उर नामक नगर में सबसे पहले खुदाई की गई थी। नगर में टेढ़ी-मेढ़ी तथा सँकरी गलियाँ पाई गईं। इससे ज्ञात होता है कि पहिए वाली गाड़ियाँ वहाँ के अनेक घरों तक नहीं पहुँच सकती थीं। अन्न के बोरे तथा ईंधन के गट्ठे सम्भवतः गधों पर लादकर घरों तक लाए जाते थे। पतली व घुमावदार गलियों तथा घरों के भूखण्डों के एक जैसा आकार न होने से पता चलता है कि उर में नगर नियोजन की पद्धति का
अभाव था।

2. जल – निकासी – जल निकासी की नालियों और मिट्टी की नलिकाएँ उर नगर के घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं जिससे ज्ञात होता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था और वर्षा का पानी निकास नालियों के माध्यम से भीतरी आँगन में बने हुए हौजों में ले जाया जाता था। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि एक साथ तेज वर्षा आने पर घर के बाहर कच्ची गलियाँ बुरी तरह कीचड़ से न भर जायें।

3. गलियों में कूड़ा-कचरा डालना – उर नगर के लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा गलियों में डाल देते थे। यह कूड़ा- – कचरा आने-जाने वाले लोगों के पैरों के नीचे आता रहता था। गलियों में कूड़ा-कचरा डालते रहने से गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं जिसके फलस्वरूप कुछ समय बाद घरों की दहलीजों को भी ऊँचा उठाना पड़ता था ताकि वर्षा के पश्चात् कीचड़ बहकर घरों के भीतर प्रवेश न कर सक।

4. दरवाजों से होकर रोशनी का आना- कमरों के अन्दर रोशनी खिड़कियों से नहीं बल्कि उन दरवाजों से होकर आती थी जो आँगन में खुला करते थे। इससे घरों के परिवारों में गोपनीयता भी बनी रहती थी।

5. घरों के बारे में प्रचलित अन्धविश्वास – लोगों में घरों के बारे में कई प्रकार के अन्धविश्वास प्रचलित थे। इस सम्बन्ध में उर नगर में शकुन-अपशकुन सम्बन्धी बातें पट्टिकाओं पर लिखी मिली हैं। लोगों में निम्नलिखित अन्धविश्वास प्रचलित थे –

  • यदि घर की दहली ऊँची उठी हुई हो, तो वह धन-दौलत लाती है।
  • सामने का दरवाजा यदि किसी दूसरे के घर की ओर न खुले, तो वह सौभाग्य प्रदान करता है।
  • यदि घर का लकड़ी का मुख्य दरवाजा (भीतर की ओर न खुल कर) बाहर की ओर खुले, तो पत्नी अपने पति के लिए कष्टों का कारण बनेगी।

6. कब्रिस्तान – उर में नगरवासियों के लिए एक कब्रिस्तान था, जिसमें शासकों तथा सामान्य लोगों की समाधियाँ पाई गई हैं। परन्तु कुछ लोग साधारण घरों के फर्शों के नीचे भी दफनाए हुए पाए गए थे।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया के मारी नगर की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मारी नगर की प्रमुख विशेषताएँ 2000 ई. पूर्व के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब विकसित हुआ। मारी नगर फरात नदी की ऊर्ध्वधारा पर स्थित है। इस नगर की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) खेती और पशुपालन – मारी राज्य में खेती और पशुपालन साथ-साथ चलते थे। यद्यपि मारी राज्य में किसान और पशुचारक दोनों ही प्रकार के लोग होते थे, परन्तु उस प्रदेश का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था।

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(2) अनाज, धातु आदि प्राप्त करना – पशुचारकों को जब अनाज, धातु के औजारों आदि की आवश्यकता पड़ती थी, तब वे अपने पशुओं तथा उनके पनीर, चमड़ा, मांस आदि के बदले ये वस्तुएँ प्राप्त करते थे। पशुओं के गोबर से बनी खाद भी किसानों के लिए बड़ी उपयोगी होती थी। फिर भी किसानों तथा गड़रियों के बीच कई बार झगड़े हो जाया करते थे।

(3) मारी के राजाओं द्वारा मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर करना-मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे। उनकी वेशभूषा वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। वे मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर करते थे। उन्होंने स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए मारी नगर में एक मन्दिर का निर्माण करवाकर अपनी धर्म – सहिष्णुता का परिचय दिया।

(4) व्यापार का प्रमुख केन्द्र – मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर स्थित था। यहाँ से लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा तथा अन्य कई प्रकार का सामान नावों के द्वारा फरात नदी के मार्ग से दक्षिण और तुर्की, सीरिया तथा लेबनान के प्रदेशों में लाया ले जाया जाता था। व्यापार की उन्नति के कारण मारी नगर एक अत्यन्त समृद्ध नगर बना हुआ था। दक्षिणी नगरों को घिसाई – पिसाई के पत्थर, चक्कियाँ, लकड़ी, शराब तथा तेल के पीपे ले जाने वाले जलपोत मारी में रुका करते थे।

मारी के अधिकारी जलपोतों पर लदे हुए सामान की जाँच करते थे तथा जलपोतों को आगे बढ़ने. की अनुमति देने के पहले उसमें लदे हुए माल के मूल्य का लगभग 10 प्रतिशत प्रभार वसूल करते थे। कुछ पट्टिकाओं में साइप्रस के द्वीप ‘अलाशिया’ से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला है। अलाशिया उन दिनों ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए बहुत प्रसिद्ध था। परन्तु यहाँ राँगे का भी व्यापार होता था जबकि काँसा औजार और हथियार बनाने के लिए एक मुख्य औद्योगिक सामग्री थी। इसलिए इसके व्यापार का अत्यधिक महत्त्व था। मारी राज्य सैनिक दृष्टि से उतना शक्तिशाली नहीं था, परन्तु व्यापार और समृद्धि के मामले में वह अद्वितीय था।

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया की विश्व को क्या देन है?
अथवा
मेसोपोटामिया में हुई ज्ञान-विज्ञान की उन्नति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया की विश्व को देन ( ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति )
मेसोपाटामिया की विश्व को सबसे बड़ी देन उसकी काल-गणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परम्परा है। मेसोपोटामिया में ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में निम्नलिखित उन्नति हुई –

(1) गणित-मेसोपोटामियावासी गुणा, भाग, जोड़, बाकी, वर्गमूल, घनमूल आदि जानते थे। 1800 ई. पूर्व के -पास की कुछ पट्टिकाएँ मिली हैं, जिनमें गुणा और भाग की तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्गमूल और चक्रवृद्धि ब्याज की सारणियाँ दी गई हैं। उनमें 2 का जो वर्गमूल दिया गया है वह इसके सही उत्तर से थोड़ा-सा ही भिन्न है।

(2) ज्योतिष तथा खगोल विद्या – मेसोपोटामिया के लोगों ने ज्योतिष तथा खगोल विद्या के क्षेत्र में भी पर्याप्त उन्नति की। उन्होंने चन्द्रमा की गति के आधार पर एक कैलेण्डर का निर्माण किया था। उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को चार सप्ताहों में, एक दिन को 24 घण्टों में तथा एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया था।

समय के इस विभाजन को सिकन्दर के उत्तराधिकारियों ने अपनाया, वहाँ से वह रोम तथा मुस्लिम देशों में पहुँचा और फिर मध्ययुगीन यूरोप में पहुँचा। जब कभी सूर्य और चन्द्रग्रहण होते थे, तो वर्ष, मास और दिन के अनुसार उनके घटित होने का हिसाब रखा जाता था। इसी प्रकार ये लोग रात्रि में आकाश में तारों और तारामण्डल की स्थिति पर नजर रखते थे तथा उनका हिसाब रखते थे।

(3) चिकित्साशास्त्र – मेसोपोटामिया का चिकित्साशास्त्र मुख्यतः जादू-टोने तक सीमित था। फिर वैद्यों का एक वर्ग के रूप में अस्तित्व था। तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व के मध्य का एक ऐसा अभिलेख मिला है जिस पर एक वैद्य के महत्त्वपूर्ण नुस्खे हैं।

(4) नाप-तौल – मेसोपोटामियावासियों का एक मीना 60 शेकल का होता था। एक शेकल 8.416 ग्राम के बराबर तथा एक मीना एक पौण्ड से कुछ अधिक होता था।

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(5) लेखन कला और साहित्य – मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लेखन कला का जन्म हुआ। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। उनकी लिपि ‘क्यूनीफार्म’ अथवा ‘कीलाकार’ कहलाती थी। मेसोपोटामिया में साहित्य के क्षेत्र में भी पर्याप्त विकास हुआ। मेसोपोटामिया में ‘गिलगमेश’ नामक महाकाव्य की रचना हुई, जिसकी गिनती विश्व के प्राचीनतम महाकाव्यों में की जाती है। असीरियाई शासक असुरबनिपाल ने एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की जिसमें 1000 मूल ग्रन्थ थे तथा लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं, जिन्हें विषयानुसार – वर्गीकृत किया गया था।

(6) अन्य देन –

  • कुम्हार के चाक का प्रयोग मेसोपोटामिया के लोगों ने संभवत: सबसे पहले किया।
  • लिखित विधि संहिता सर्वप्रथम बेबोलोनिया के शासक हम्मूराबी द्वारा विश्व को दी गई।
  • नगर राज्यों की स्थापना संभवत: मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम हुई।
  • बैंक प्रणाली, व्यापारिक समझौते एवं हुंडी प्रणाली का विकास सर्वप्रथम यहीं हुआ।

प्रश्न 11.
असुरबनिपाल द्वारा स्थापित पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
असुरबनिपाल द्वारा स्थापित पुस्तकालय – असीरिया के शासक दक्षिणी क्षेत्र बेबीलोनिया को उच्च संस्कृति केन्द्र मानते थे। असुरबनिपाल ( 668-627 ई. पू.) असीरिया का अन्तिम शासक था। वह विद्या – प्रेमी शासक था। उसने अपनी राजधानी निनवै में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की। उसने इतिहास, महाकाव्य, शकुन साहित्य, ज्योतिष विद्या, स्तुतियों और कविताओं की पट्टिकाओं को एकत्रित करने का भरसक प्रयास किया और वह अपने उद्देश्य में सफल रहा।

पुरानी पट्टिकाओं का पता लगाना – असुरबनिपाल ने अपने लिपिकों को दक्षिण में पुरानी पट्टिकाओं का पता लगाने के लिए भेजा क्योंकि दक्षिण में लिपिकों को विद्यालयों में पढ़ना-लिखना सिखाया जाता था, जहाँ उन्हें काफी बड़ी संख्या में पट्टिकाओं की नकलें तैयार करनी होती थीं।

बेबीलोनिया में ऐसे भी नगर थे जो पट्टिकाओं के विशाल संग्रह तैयार किये जाने और प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध थे, यद्यपि 1800 ई.पू. के बाद सुमेरियन भाषा बोली जानी बन्द हो गई थी, परन्तु विद्यालयों में वह शब्दावलियों, संकेत-सूचियों, द्विभाषी (सुमेरी और अक्कदी) पट्टिकाओं आदि के . माध्यम से अब भी पढ़ाई जाती थी। अत : 650 ई. पूर्व में भी 2000 ई.पू. तक प्राचीन कीलाकार अक्षरों में लिखी पट्टिकाएँ पढ़ी जा सकती थीं। असुरबनिपाल के व्यक्ति भी जानते थे कि प्राचीन पट्टिकाओं तथा उनकी प्रतिकृतियों को कहाँ ढूँढ़ा और प्राप्त किया जा सकता है।

गिलगमेश महाकाव्य की पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। प्रतियाँ तैयार करने वाले उनमें अपना नाम और तिथि अंकित करते थे। कुछ पट्टिकाओं के अन्त में असुरबनिपाल का उल्लेख भी मिलता है। “मैं असुरबनिपाल, ब्रह्माण्ड का सम्राट, असीरिया का शासक, जिसे देवताओं ने विशाल बुद्धि प्रदान की है। मैंने देवताओं के बुद्धि-विवेक को पट्टिकाओं पर लिखा है और मैंने पट्टिकाओं की जाँच की और उन्हें संगृहीत किया।

मैंने उन्हें निनवै स्थित अपने इष्टदेव नाबू के मन्दिर के पुस्तकालय में भविष्य के उपयोग के लिए रख दिया। ” इन पट्टिकाओं की सूची तैयार करवाई गई। इसके लिए पट्टिकाओं पर मिट्टी के लेबल से इस प्रकार अंकित किया “असंख्य पट्टिकाएँ भूत-प्रेत निवारण विषय पर, ‘अमुक’ व्यक्ति द्वारा लिखी गईं।” गया: असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे और लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं, जिन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था।

प्रश्न 12.
बेबीलोनिया के विकास पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
बेबीलोनिया का विकास- दक्षिणी कछार के एक पराक्रमी शासक नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को 625 ई. पूर्व में असीरियन लोगों के आधिपत्य से मुक्ति दिलाई। उसके उत्तराधिकारियों ने अपने राज्य-क्षेत्र का विस्तार किया और बेबीलोन में अनेक भवन बनवाये। उस समय से लेकर 539 ई. पूर्व में ईरान के एकेमेनिड लोगों द्वारा विजित होने के पश्चात् और 331 ई. पूर्व में सिकन्दर से पराजित होने तक बेबीलोन विश्व का एक प्रमुख नगर बना रहा। बेबीलोन का क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था।

इसकी चहारदीवारी तिहरी थी। इसमें विशाल राजमहल तथा मन्दिर विद्यमान थे। इसमें जिगुरात अर्थात् सीढ़ीदार मीनार थी और नगर के मुख्य अनुष्ठान – केन्द्र तक शोभायात्रा के लिए विस्तृत मार्ग बना हुआ था। इसका व्यापार उन्नत अवस्था में था। व्यापारी लोग दूर-दूर तक अपना व्यवसाय करते थे।

यहाँ विज्ञान के क्षेत्र में भी पर्याप्त उन्नति हुई तथा यहाँ के गणितज्ञों एवं खगोलविदों ने अनेक नई खोजें की थीं। नैबोनिस द्वारा मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं का सम्मान करना – नैबोनिडस स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने लिखा है कि उर के नगर-देवता ने उसे सपने में दर्शन दिये और उसे सुदूर दक्षिण के उस प्राचीन नगर का कार्य – भार सम्भालने के लिए एक महिला पुरोहित को नियुक्त करने का आदेश दिया।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

उसने लिखा, चूँकि बहुत लम्बे समय से उच्च महिला पुरोहित का प्रतिष्ठान भुला दिया गया था, उसके विशिष्ट लक्षणों को कहीं नहीं बताया गया है, मैंने दिन-प्रतिदिन उसके बारे में सोचा – नैबोनिडस ने आगे लिखा है कि उसे एक बहुत पुराने राजा (1150 ई. पूर्व के लगभग) का पट्टलेख मिला और उस पर उसने महिला पुरोहित की आकृति अंकित देखी। उसने उसके आभूषणों और वेशभूषा को ध्यानपूर्वक देखा। फिर उसने अपनी पुत्री को वैसी ही वेशभूषा से सुसज्जित कर महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया।

कालान्तर में नैबोनिडस के व्यक्ति उसके पास एक टूटी हुई मूर्ति लाए जिस पर अक्कद के राजा सारगोन का नाम उत्कीर्ण था। सारगोन ने 2370 ई. पूर्व के आस-पास शासन किया था। नैबोनिडस ने भी प्राचीन युग के इस महान शासक के सम्बन्ध में सुन रखा था। नैबोनिडस ने यह अनुभव किया कि उसे उस मूर्ति की मरम्मत करानी चाहिए। वह लिखता है, “देवताओं के प्रति भक्ति और राजा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण, मैंने कुशल शिल्पियों को बुलाया और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया। “

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पृष्ठ 79

प्रश्न 1.
सत्रहवीं से बीसवीं सदी के बीच यूरोप के गोरे लोगों ने दक्षिण अफ्रीका के लोगों पर अपना शासन कायम रखा। 1994 तक दक्षिण अफ्रीका में अपनाई गई नीतियों के बारे में आगे दिये गए ब्यौरे को पढ़िए।
श्वेत लोगों का मत देने, चुनाव लड़ने और सरकार को चुनने का अधिकार था। वे सम्पत्ति खरीदने और देश में कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र थे। काले लोगों को ऐसे अधिकार नहीं थे। काले और गोरे लोगों के लिए पृथक् मुहल्ले और कालोनियाँ बसाई गई थीं। काले लोगों को अपने पड़ौस के गोरे लोगों की बस्ती में काम करने के लिए ‘पास’ लेने पड़ते थे। उन्हें गोरों के इलाके में अपने परिवार रखने की अनुमति नहीं थी। अलग-अलग रंग के लोगों के लिए विद्यालय भी अलग-अलग थे।
(अ) क्या अश्वेत लोगों को दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण और समान सदस्यता मिली हुई थी ? कारण सहित बताइये।
(ब) ऊपर दिया गया ब्यौरा हमें दक्षिण अफ्रीका में विभिन्न समूहों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
(अ) नहीं, अश्वेत लोगों को दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण और समान सदस्यता नहीं मिली हुई थी क्योंकि पूर्ण और समान सदस्यता के लिए देश के सभी लोगों को कुछ राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं, जिनमें मत देने का अधिकार, चुनाव लड़ने और सरकार बनाने का अधिकार, देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता आदि प्रमुख हैं। दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत लोगों को ये अधिकार नहीं दिये गए थे। अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक है।

(ब) ऊपर दिया गया ब्यौरा हमें दक्षिण अफ्रीका में विभिन्न समूहों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में रंग के आधार पर भेद-भाव को दर्शाता है जिसमें श्वेत लोगों को जो अधिकार प्राप्त हैं और अश्वेत लोगों को वे अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

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प्रश्न 1.
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व हैं?
उत्तर:
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन विश्व में राष्ट्रों ने पने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान अर्थात् नागरिकता, के साथ- साथ कुछ अधिकार भी प्रदान किये हैं। नागरिक अपने राष्ट्र से कुछ बुनियादी अधिकारों के अलावा कहीं भी यात्रा में सहयोग और सुरक्षा की अपेक्षा करते हैं। लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों के अधिकार नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों की सुस्पष्ट प्रकृति विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन अधिकतर लोकतांत्रिक देशों ने आज उनमें से कुछ राजनीतिक नागरिक तथा सामाजिक-आर्थिक अधिकार शामिल किये हैं। ये हैं

1. मतदान का अधिकार: जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना की जाती है, उनमें वहाँ के वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान किया जाता है। इस अधिकार के अनुसार लोग समय-समय पर होने वाले चुनावों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं जो सरकार का निर्माण कर शासन का संचालन करते हैं।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को निर्वाचन में खड़ा होने का अधिकार है। निर्वाचित होने के बाद वे नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में सरकार का निर्माण करते हैं

3. सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार है।

4. अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता के बुनियादी अधिकार के उपभोग के लिए नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।

5. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार: अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

6. आस्था की स्वतंत्रता का अधिकार: अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों ने धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को अपनाते हुए नागरिकों को धर्म के प्रति आस्था की स्वतंत्रता प्रदान की है अर्थात् नागरिक किसी भी धर्म को अपना सकता है। राज्य व्यक्ति की आस्था के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

7. न्यूनतम मजदूरी पाने का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को न्यूनतम मजदूरी पाने का अधिकार प्रदान किया गया है।

8. गमनागमन की स्वतंत्रता का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों में एक है- गमनागमन की स्वतंत्रता। यह अधिकार कामगारों के लिए विशेष महत्त्व का है। गृह क्षेत्र में काम के अवसर उपलब्ध नहीं होने पर कामगार रोजगार की तलाश में आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं।

9.  शिक्षा सम्बन्धी अधिकार: अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। कोई भी नागरिक समूह अपनी भाषा तथा संस्कृति को बनाए रखने के लिए अपने शिक्षा संस्थान खोल सकता है। सरकारी स्कूलों में सबको प्रवेश पाने की समानता प्राप्त है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक अनेक राजनैतिक, नागरिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं।

नागरिकों के राज्य के प्रति कर्तव्य: नागरिकों के राज्य के प्रति निम्नलिखित दायित्व हैं।

1. राज्य के प्रति भक्ति:
प्रत्येक नागरिक से राज्य के प्रति निष्ठा व भक्ति की आशा की जाती है। प्रत्येक नागरिक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह देशद्रोह न करे और देश पर आए संकट के समय अपना तन-मन-धन न्यौछावर करने को तैयार रहे।

2. कानूनों का पालन करना:
नागरिकों में कानून पालन की भावना से ही राज्य में शांति व व्यवस्था स्थापित हो सकती है। जिस देश में नागरिकों की प्रकृति कानूनों का उल्लंघन करने की होती है, उस देश में शान्ति व व्यवस्था विद्यमान नहीं रहती । अतः कानूनों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

3. टैक्स देना:
सरकार को अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए धंन की आवश्यकता होती है। सरकार टैक्स लगाकर धन की प्राप्ति करती है। अत: नागरिकों का राज्य के प्रति यह कर्तव्य है कि वे अपने हिस्से के करों को ईमानदारी से चुकायें। करों को ईमानदारी से न चुकाने पर राज्य द्वारा दण्ड भी दिया जा सकता है।

4. सैनिक सेवा में भाग लेना: नागरिकों का राज्य के प्रति यह दायित्व भी है कि वे आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा हेतु सेना में भर्ती हों।

नागरिकों के अन्य नागरिकों के प्रति दायित्व: नागरिकों के अन्य नागरिकों के प्रति प्रमुख दायित्व निम्नलिखित हैं।

1. नागरिक अधिकारों का उचित प्रयोग:
लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को जो राजनैतिक, नागरिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, उन अधिकारों के साथ यह दायित्व भी जुड़ा होता है कि वह अन्य नागरिकों को प्राप्त इन अधिकारों के उपभोग के मार्ग में बाधायें नहीं डाले, अन्य नागरिकों के ऐसे ही अधिकारों का हनन न करे तथा इन अधिकारों का सदुपयोग करे न कि दुरुपयोग।

2. समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का दायित्व:
नागरिकता में नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति और समाज के प्रति निश्चित दायित्व शामिल हैं। इनमें सिर्फ राज्य द्वारा थोपी गई कानूनी बाध्यताएँ ही नहीं हैं, बल्कि समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल है।

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प्रश्न 2.
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें । इस कथन की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये तो जा सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। इस कथन का आशय यह है कि समाज के विभिन्न समूह के लोगों की जरूरत और समस्यायें अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं। यथा

1. शहरों में झोंपड़पट्टियों तथा फुटपाथों पर रहने वाले लोग:
यद्यपि हमारे देश में सभी वयस्क नागरिकों को मत देने का समान अधिकार दिया गया है, लेकिन मत देने के लिए मतदाता सूची में नाम दर्ज होना आवश्यक है और मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए स्थायी पते की जरूरत होती है। शहरों में अनधिकृत बस्तियों, झुग्गी-झोंपड़ियों तथा पटरी पर रहने वाले लोगों के लिए ऐसा स्थायी पता पेश करना कठिन होता है । इस प्रकार ये लोग मत देने के अधिकार का प्रयोग समानता के साथ नहीं कर पाते हैं।

2. रोजगार के लिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में गये अकुशल श्रमिक:
भारत में सभी नागरिकों को देश के भू- क्षेत्र में कहीं भी गमनागमन की स्वतंत्रता समान रूप से है तथा कोई भी व्यवसाय करने एवं बसने की स्वतंत्रता भी समान रूप से प्राप्त है। अपने गृहक्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध न होने से कामगार रोजगार की तलाश में आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में कुशल और अकुशल मजदूरों के लिए बाजार विकसित हुए हैं। इन बाजारों में अधिक संख्या में जब रोजगार बाहर से आने वाले नागरिकों के हाथ में आ जाता है तो उनके खिलाफ स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा होती है।

और कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों को देने की मांग उठती है। इस हेतु राजनीतिक दलों द्वारा आन्दोलन किये जाते हैं तथा वहाँ के आप्रवासियों को रोजगार में असुविधा पैदा की जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नागरिकों को राज्य के भू-भाग में कहीं भी गमनागमन, व्यवसाय करने तथा बसने की समान स्वतंत्रता का अधिकार तो प्राप्त है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में वे इस स्वतंत्रता का प्रयोग समानता से नहीं कर पाते हैं।

3. स्त्रियाँ: स्त्रियों को लगभग सभी समाजों में द्वितीय स्तर का नागरिक समझा जाता है और वे समान अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाती हैं।

4. शोषित व्यक्ति: सामाजिक असमानताओं के कारण कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण किया जाता है, जिसके चलते वे समान अधिकारों का प्रयोग समानता के साथ नहीं कर पाते।

प्रश्न 3.
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिये। इन संघर्षों में किन अधिकारों की मांग की गई थी?
उत्तर:
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए दो संघर्ष निम्नलिखित हैं।
1. बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने के लिए संघर्ष:
यदि आजीविका, चिकित्सा या शिक्षा जैसी सुविधाएँ और जल-जमीन जैसे प्राकृतिक साधन सीमित हों, तब बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने की मांग उठती है। यही कारण है कि मुम्बई में हाल के वर्षों में यह नारा दिया गया कि ‘मुम्बई मुंबईकर (मुम्बई वाले ) के लिए’। भारत के अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के संघर्ष होते आए हैं। भारत में गमनागमन की स्वतंत्रता, व्यवसाय की स्वतंत्रता तथा कहीं भी बसने की स्वतंत्रता के तहत अपने गृहक्षेत्र में काम के अवसर न होने पर कामगार रोजगार की तलाश में आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं।

रोजगार की तलाश में बिहार व अन्य राज्यों के बहुत से कामगार मुम्बई जाकर काम करने लग गए। इससे वहाँ के रोजगार बाहरी लोगों के हाथों में अधिक संख्या में आ गए। इससे स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हुई और कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की मांग उठी। क्षेत्रीय दलों ने इस मुद्दे को उठाया तथा इस प्रतिरोध ने ‘बाहरी’ के खिलाफ संगठित हिंसा व संघर्ष का रूप धारण कर लिया। इस संघर्ष में स्थानीय लोगों को ही स्थानीय नौकरियाँ या काम दिये जाने की मांग की गई थी।

2. शहरी झोंपड़पट्टियों में रहने वालों की आश्रय के अधिकार की मांग – भारत के हर शहर में बहुत बड़ी आबादी झोंपड़पट्टियों और अवैध कब्जे की जमीन पर बसे लोगों की है। झोंपड़पट्टियों के लोग हाल के वर्षों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और संगठित होकर संघर्षरत हुए हैं। उन्होंने कभी-कभी अदालतों में भी दस्तक दी है। स्थायी आश्रय न होने के कारण उनके लिए वोट देने जैसे बुनियादी राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करना भी कठिन हो जाता है क्योंकि मतदाता सूची में नाम दर्ज होने के लिए स्थायी पते की जरूरत होती है।

और अनधिकृत बस्तियों तथा पटरी पर रहने वालों के लिए ऐसा पता पेश करना कठिन होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने मुम्बई की झोंपड़पट्टियों में रहने वालों के अधिकारों के सम्बन्ध सन् 1985 में एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया। याचिका में कार्यस्थल के निकट रहने की वैकल्पिक जगह उपलब्ध न होने के कारण फुटपाथ या झोंपड़पट्टियों में रहने के अधिकार का दावा किया गया था। अगर यहाँ रहने वालों को हटाने के लिए मजबूर किया गया तो उन्हें आजीविका भी गंवानी पड़ेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संविधान की धारा 21 में जीने के अधिकार की गारंटी दी गई है जिसमें आजीविका का अधिकार शामिल है। इसलिए अगर फुटपाथियों को बेदखल करना हो, तो उन्हें आश्रय के अधिकार के तहत पहले वैकल्पिक जगह उपलब्ध करानी होगी।

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प्रश्न 4.
शरणार्थियों की समस्यायें क्या हैं? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है?
उत्तर:
शरणार्थी से आशय:
युद्ध, उत्पीड़न, अकाल या अन्य कारणों से लोग विस्थापित होते हैं। यदि कोई देश उन्हें स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होता और वे घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन या शरणार्थी कहे जाते हैं। वे शिविरों में या अवैध रूप में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं शरणार्थियों की प्रमुख समस्यायें ये हैं।

  1. शरणार्थी आम तौर पर असुरक्षित हालत में जीवनयापन करते हैं।
  2. ये शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने के लिए मजबूर किये जाते हैं।
  3. वे अक्सर कानूनी तौर पर काम नहीं कर सकते या अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं सकते या सम्पत्ति अर्जित नहीं कर सकते।
  4. ऐसी समस्यायें लोकतांत्रिक नागरिकता के उस वायदे को चुनौती देती हैं, जो यह कहता है कि समकालीन विश्व में सभी लोगों को नागरिक की पहचान और अधिकार उपलब्ध होने चाहिए। अनेक लोग अपने पसन्द के देश की नागरिकता हासिल नहीं कर सकते, उनके लिए अपनी पहचान का विकल्प भी नहीं होता।

वैश्विक नागरिकता शरणार्थियों की समस्या के रूप में:
शरणार्थियों या राज्यहीन लोगों का प्रश्न आज विश्व के लिए गंभीर समस्या बन गया है। राष्ट्रीय नागरिकता ऐसे लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रही है। वैश्विक नागरिकता ही इस समस्या का हल प्रस्तुत कर सकती है। यथा

  1. विश्व नागरिकता से राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का मुकाबला करना आसान हो सकता है जिसमें कई देशों की सरकारों और लोगों की संयुक्त कार्यवाही जरूरी होती है। उदाहरण के लिए इससे प्रवासी और राज्यहीन लोगों की समस्या का सर्वमान्य समाधान पाना आसान हो सकता है या कम से कम उनके बुनियादी अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, चाहे वे किसी भी देश में रहते हों।
  2. वैश्विक नागरिकता की अवधारणा हमें याद दिलाती है कि राष्ट्रीय नागरिकता को इस समझदारी से जोड़ने की आवश्यकता है कि हम आज अन्तर्सम्बद्ध विश्व में रहते हैं और हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करें और राष्ट्रीय सीमाओं के पार के लोगों और सरकारों के साथ ‘काम करने के लिए तैयार हों।

प्रश्न 5.
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के आप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
बाहरी के खिलाफ स्थानीय लोगों का प्रतिरोध:
अगर आजीविका, चिकित्सा या शिक्षा जैसी सुविधायें और जल-जमीन जैसे प्राकृतिक साधन सीमित हों, तो बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने की मांग उठने की संभावना रहती है। ‘मुम्बई मुंबईकर के लिए’ के नारे से ऐसी ही भावनाएँ प्रकट होती हैं। भारत और विश्व के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के अनेक संघर्ष होते आए हैं।

जब गृहक्षेत्र में कार्य के अवसर उपलब्ध नहीं होते तो कामगार रोजगार की तलाश में, गमनागमन, व्यवसाय तथा बसने की स्वतंत्रता के तहत आप्रवास की ओर प्रवृत्त होते हैं। शहरों में तेजी से पनपता भवन निर्माण उद्योग देश के विभिन्न हिस्सों के श्रमिकों को आकर्षितं करता है। लेकिन अधिक संख्या में रोजगार बाहर के लोगों के हाथ में जाने के खिलाफ स्थनीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हो जाती है। कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा को जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की माँग उठती है। राजनीतिक पार्टियाँ यह मुद्दा उठाती हैं। यह प्रतिरोध बाहरी के खिलाफ संगठित हिंसा का भी रूप ले लेता है। भारत के लगभग सभी क्षेत्र इस तरह के आंदोलनों से गुजर चुके हैं।

स्थानीय लोग निम्नलिखित आधारों पर आप्रवासन का विरोध कर सकते हैं:
1. यदि आप्रवासियों के निरन्तर आगमन के कारण नौकरियों में अवसर तथा व्यवसायों की स्थापना के अवसर घटते जा रहे हों और स्थानीय लोगों में यह भावना घर कर जाए कि इन बाहरी लोगों के कारण वे अपने अधिकारों और जीवनयापन के अवसरों से वंचित हो रहे हैं, तो स्थानीय लोग अपने क्षेत्र में आप्रवासन का विरोध करने लगते हैं।

2. जब क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है और लोगों को रहने के लिए निवास की कमी महसूस होने लगती है। कभी-कभी आप्रवासी लोग स्थानीय गरीब लोगों से अच्छी कीमत पर घर तथा अन्य सम्पत्तियाँ खरीद लेते हैं । लेकिन जल्दी ही स्थानीय लोग बाहरी लोगों द्वारा अपने घरों से वंचित किया जाना महसूस करने लगते हैं और वे बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

3. आप्रवासियों के तेजी से आगमन से दिन-प्रतिदिन के उपयोग की वस्तुओं की उपलब्धता पर भी दबाव पड़ता है और कभी-कभी उनकी अत्यधिक कमी आ जाती है या उनकी कीमत बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में स्थानीय लोग बाहरी लोगों के आगमन का विरोध करते हैं।

4. स्थानीय प्रशासन की आधारभूत संरचना नागरिक सुविधाओं, जैसे— पानी की आपूर्ति, विद्युत, गन्दे जल की निकासी तथा यातायात के साधनों आदि की अतिरिक्त आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती तो वे सुविधाएँ कीमती हो जाती हैं और स्थानीय लोग इन सुविधाओं के कम होने या अधिक कीमती होने के लिए बाहरी लोगों के आगमन पर उत्तरदायी ठहराते हैं।

5. जब बाहरी लोगों द्वारा अच्छी नौकरियों पर कब्जा कर लिया जाता है और स्थानीय प्रशासन पर भी उनका वर्चस्व हो जाता है तो स्थानीय लोग यह महसूस करने लगते हैं कि इन बाहरी लोगों द्वारा वे पीछे की ओर धकेल दिये गये हैं, तब स्थानीय लोग बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

6. गरीब, अप्रशिक्षित तथा अकुशल बाहरी श्रमिक व्यक्ति कम मजदूरी पर कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में बुरी दशाओं में रहने लगते हैं तो वे स्थानीय कामगारों पर बुरा प्रभाव डालते हैं तथा इस क्षेत्र में स्वास्थ्यकर वातावरण पर दुष्प्रभाव भी इन गंदी बस्तियों के कारण पड़ता है। फलतः स्थानीय लोग ऐसे अकुशल बाहरी कामगारों का विरोध करने लग जाते हैं।

प्रवासी लोगों का स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान: प्रवासी लोग अपने श्रम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।

  1. प्रवासी लोग अन्य पेशों के बीच फेरी वाले, छोटे व्यापारी, सफाईकर्मी या घरेलू नौकर, नल ठीक करने वाले या मिस्त्री होते हैं।
  2. ये लोग बेंत बुनाई या कपड़ा रंगाई – छपाई या सिलाई जैसे छोटे-छोटे कारोबार भी चलाते हैं।
  3. प्रवासी लोगों को सफाई या जलापूर्ति जैसी सुविधाएँ मुहैया करने पर कोई भी शहर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है।
  4. बाहर से आने वाले उद्योगपति या पूँजीपति उस क्षेत्र में कारखाने स्थापित कर आर्थिक विकास तथा व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि करते हैं, इससे उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का विकास होता है।
  5. एक नया कारखाना क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि करता है।
  6. इससे क्षेत्र में कुशल तथा अकुशल दोनों प्रकार के कामगारों की आपूर्ति होती है। वे कठिन परिश्रम कर स्थानीय लोगों में भी कठिन परिश्रम कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाते हैं।

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प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन् एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिये जो आजकल भारत में उठाये जा रहे हैं।
उत्तर:
भारत में लोकतांत्रिक नागरिकता एक परियोजना है- भारत स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र- राज्य कहता है। भारतीय संविधान ने बहुत ही विविधतापूर्ण समाज को समायोजित करने की कोशिश की है; जैसे इसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे भिन्न-भिन्न समुदायों, पूर्व में समान अधिकार से वंचित रही महिलाएँ, आधुनिक सभ्यता के साथ माकूल सम्पर्क रखने वाले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ सुदूरवर्ती समुदायों और कई अन्य समुदायों को पूर्ण और समान नागरिकता देने का प्रयास किया है। इसने देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न भाषाओं, धर्म और रिवाजों की पहचान बनाए रखने का प्रयास किया है। इसने संविधान के माध्यम से लोगों को

स्थानीय लोग निम्नलिखित आधारों पर आप्रवासन का विरोध कर सकते हैं:
1. यदि आप्रवासियों के निरन्तर आगमन के कारण नौकरियों में अवसर तथा व्यवसायों की स्थापना के अवसर घटते जा रहे हों और स्थानीय लोगों में यह भावना घर कर जाए कि इन बाहरी लोगों के कारण वे अपने अधिकारों और जीवनयापन के अवसरों से वंचित हो रहे हैं, तो स्थानीय लोग अपने क्षेत्र में आप्रवासन का विरोध करने लगते हैं।

2. जब क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है और लोगों को रहने के लिए निवास की कमी महसूस होने लगती है। कभी-कभी आप्रवासी लोग स्थानीय गरीब लोगों से अच्छी कीमत पर घर तथा अन्य सम्पत्तियाँ खरीद लेते हैं । लेकिन जल्दी ही स्थानीय लोग बाहरी लोगों द्वारा अपने घरों से वंचित किया जाना महसूस करने लगते हैं और वे बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

3. आप्रवासियों के तेजी से आगमन से दिन-प्रतिदिन के उपयोग की वस्तुओं की उपलब्धता पर भी दबाव पड़ता है और कभी-कभी उनकी अत्यधिक कमी आ जाती है या उनकी कीमत बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में स्थानीय लोग बाहरी लोगों के आगमन का विरोध करते हैं।

4. स्थानीय प्रशासन की आधारभूत संरचना नागरिक सुविधाओं, जैसे पानी की आपूर्ति, विद्युत, गन्दे जल की निकासी तथा यातायात के साधनों आदि की अतिरिक्त आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती तो वे सुविधाएँ कीमती हो जाती हैं और स्थानीय लोग इन सुविधाओं के कम होने या अधिक कीमती होने के लिए बाहरी लोगों के आगमन पर उत्तरदायी ठहराते हैं।

5. जब बाहरी लोगों द्वारा अच्छी नौकरियों पर कब्जा कर लिया जाता है और स्थानीय प्रशासन पर भी उनका वर्चस्व हो जाता है तो स्थानीय लोग यह महसूस करने लगते हैं कि इन बाहरी लोगों द्वारा वे पीछे की ओर धकेल दिये गये हैं, तब स्थानीय लोग बाहरी लोगों का विरोध करने लगते हैं।

6. गरीब, अप्रशिक्षित तथा अकुशल बाहरी श्रमिक व्यक्ति कम मजदूरी पर कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में बुरी दशाओं में रहने लगते हैं तो वे स्थानीय कामगारों पर बुरा प्रभाव डालते हैं तथा इस क्षेत्र में स्वास्थ्यकर वातावरण पर दुष्प्रभाव भी इन गंदी बस्तियों के कारण पड़ता है। फलतः स्थानीय लोग ऐसे अकुशल बाहरी कामगारों का विरोध करने लग जाते हैं।

प्रवासी लोगों का स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान: प्रवासी लोग अपने श्रम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।

  1. प्रवासी लोग अन्य पेशों के बीच फेरी वाले, छोटे व्यापारी, सफाईकर्मी या घरेलू नौकर, नल ठीक करने वाले या मिस्त्री होते हैं।
  2. ये लोग बेंत बुनाई या कपड़ा रंगाई – छपाई या सिलाई जैसे छोटे-छोटे कारोबार भी चलाते हैं।
  3. प्रवासी लोगों को सफाई या जलापूर्ति जैसी सुविधाएँ मुहैया करने पर कोई भी शहर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है।
  4. बाहर से आने वाले उद्योगपति या पूँजीपति उस क्षेत्र में कारखाने स्थापित कर आर्थिक विकास तथा व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि करते हैं, इससे उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का विकास होता है।
  5. एक नया कारखाना क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि करता है।
  6. इससे क्षेत्र में कुशल तथा अकुशल दोनों प्रकार के कामगारों की आपूर्ति होती है । वे कठिन परिश्रम कर स्थानीय लोगों में भी कठिन परिश्रम कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन् एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिये जो आजकल भारत में उठाये जा रहे हैं।
उत्तर:
भारत में लोकतांत्रिक नागरिकता एक परियोजना है- भारत स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र- राज्य कहता है। भारतीय संविधान ने बहुत ही विविधतापूर्ण समाज को समायोजित करने की कोशिश की है; जैसे इसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे भिन्न-भिन्न समुदायों, पूर्व में समान अधिकार से वंचित रही महिलाएँ, आधुनिक सभ्यता के साथ माकूल सम्पर्क रखने वाले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ सुदूरवर्ती समुदायों और कई अन्य समुदायों को पूर्ण और समान नागरिकता देने का प्रयास किया है। इसने देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न भाषाओं, धर्म और रिवाजों की पहचान बनाए रखने का प्रयास किया है। इसने संविधान के माध्यम से लोगों को उनकी निजी आस्था, भाषा या सांस्कृतिक रिवाजों को छोड़ने के लिए बाध्य किए बिना सभी को समान अधिकार उपलब्ध कराना है।

संविधान में नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान:
नागरिकता से सम्बन्धित प्रावधानों का उल्लेख संविधान के दूसरे भाग और संसद द्वारा बाद में पारित कानूनों में हुआ है। संविधान ने लोकतांत्रिक और समावेंशी धारणा को अपनाया है। भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राजक्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता हासिल की जा सकती है। संविधान में नागरिकों के अधिकार और दायित्व दर्ज हैं। यह प्रावधान भी है कि राज्य केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। इसमें धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया गया है।

संविधान के प्रावधानों से संघर्ष और विवादों की उत्पत्ति:
संविधान में नागरिकता सम्बन्धी उक्त प्रावधानों ने भी संघर्ष और विवादों को जन्म दिया है। महिला आन्दोलन, दलित आन्दोलन या विकास योजनाओं से विस्थापित लोगों का संघर्ष ऐसे लोगों द्वारा चलाया जा रहा है, जो मानते हैं कि उनकी नागरिकता को पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। भारत के उक्त अनुभव से संकेत मिलते हैं कि किसी देश में लोकतांत्रिक नागरिकता एक परियोजना या लक्ष्य सिद्धि का एक आदर्श है। जैसे-जैसे समाज बदल रहे हैं, वैसे-वैसे नित नए मुद्दे उठाये जा रहे हैं और वे समूह नई मांगें पेश कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि वे हाशिये पर ठेले जा रहे हैं। जैसे शहरों में झोंपड़पट्टियों या फुटपाथ पर रहने वाले लोगों द्वारा आश्रय के अधिकार के तहत वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराने की मांग, देश के विकास को खतरे में डाले बिना आदिवासियों के रहवास की सुरक्षा की मांग आदि।

नागरिकता JAC Class 11 Political Science Notes

→ नागरिकता का अर्थ तथा परिभाषा: नागरिकता एक राजनैतिक समुदाय की सम्पूर्ण और समान सदस्यता है।
नागरिकता राज्यसत्ता और उसके सदस्यों के बीच सम्बन्धों के निरूपण के रूप में समकालीन विश्व में: राष्ट्रों ने अपने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान के साथ-साथ कुछ अधिकार भी प्रदान किये हैं। इसलिए हम संबद्ध राष्ट्र के आधार पर अपने को भारतीय, जापानी या जर्मन मानते हैं । नागरिक अपने राष्ट्र से कुछ बुनियादी अधिकारों के अलावा कहीं भी यात्रा करने में सहयोग और सुरक्षा की अपेक्षा रखते हैं।

नागरिकों को प्रदत्त अधिकार: नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों की सुस्पष्ट प्रकृति विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन अधिकतर लोकतांत्रिक देशों ने आज उनमें से कुछ राजनैतिक अधिकार शामिल किये हैं। यथा मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति या आस्था की स्वतंत्रता जैसे नागरिक अधिकार और न्यूनतम मजदूरी तथा शिक्षा पाने से जुड़े कुछ सामाजिक-आर्थिक अधिकार। अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक है। नागरिक आज जिन अधिकारों का प्रयोग करते हैं, उन सभी को संघर्ष के बाद हासिल किया गया है। पूर्ण सदस्यता और समान अधिकार पाने का संघर्ष विश्व के कई हिस्सों में आज भी जारी है।

→ नागरिकता नागरिकों के आपसी सम्बन्धों के निरूपण के रूप में: नागरिकता सिर्फ राज्य सत्ता और उसके सदस्यों के बीच के सम्बन्धों का निरूपण ही नहीं बल्कि यह नागरिकों के आपसी सम्बन्धों का निरूपण भी है। इसमें नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति और समाज के प्रति निश्चित दायित्व शामिल हैं। इनमें सिर्फ राष्ट्र द्वारा थोपी गई कानूनी बाध्यताएँ नहीं, बल्कि समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल होता है।

→ सम्पूर्ण और समान सदस्यता:
सम्पूर्ण और समान सदस्यता का असली अर्थ क्या है? ( अ ) क्या इसका अर्थ यह होता है कि नागरिकों को देश में जहाँ भी चाहें रहने, पढ़ने या काम करने का समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए? (ब) क्या इसका अर्थ यह है कि सभी अमीर-गरीब नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार और सुविधाएँ मिलनी चाहिए? यथा-

(अ) भारत में तथा अन्य देशों में नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों में एक है। गमनागमन की स्वतंत्रता यह अधिकार कामगारों के लिए विशेष महत्त्व का है। गृह क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होने पर कामगार रोजगार की तलाश में देश के दूसरे क्षेत्रों में जाते हैं। इससे अधिक संख्या में रोजगार बाहर के लोगों के हाथ में जाने के खिलाफ स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हो जाती है और कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा को जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की मांग उठती है। राजनीतिक दल यह मुद्दा उठाते हैं और यह प्रतिरोध ‘बाहरी लोगों के खिलाफ’ संगठित हिंसा का भी रूप ले लेता है। भारत के लगभग सभी क्षेत्र इस तरह के आन्दोलन से गुजर चुके हैं। तो क्या गमनागमन की स्वतंत्रता में देश के किसी भी हिस्से में काम करने या बसने का अधिकार शामिल है?

(ब) क्या सम्पूर्ण और समान सदस्यता का यह अर्थ है कि सभी गरीब और अमीर नागरिकों को कुछ बुनियादी और समान सुविधाएँ मिलनी चाहिए? कभी-कभी गरीब प्रवासी और कुशल प्रवासी को लेकर हमारी प्रतिक्रिया में अन्तर होता है। हम प्रायः गरीब और अकुशल प्रवासियों को उस तरह स्वागत योग्य नहीं मानते, जिस तरह कुशल और दौलतमंद कामगारों को मानते हैं। इससे लगता है कि गरीब कामगारों को देश में कहीं भी रहने और काम करने का समान अधिकार नहीं है।

इन्हीं दोनों मुद्दों पर आज हमारे देश में बहस जारी है। यद्यपि नागरिक समूह बनाकर, प्रदर्शन कर, मीडिया का उपयोग कर, राजनीतिक दलों से अपील कर या अदालत में जाकर जनमत और सरकारी नीतियों के परखने और प्रभावित करने के लिए स्वतंत्र हैं। अदालतें उस पर निर्णय दे सकती हैं या समाधान हेतु सरकार से आग्रह कर सकती हैं। यह धीमी प्रक्रिया है, लेकिन इससे कई बार न्यूनाधिक सफलताएँ संभव हैं। इसके समाधान हेतु हमें बल प्रयोग के स्थान पर वार्ता और विचार-विमर्श का रास्ता अपनाना चाहिए। यह नागरिकता के प्रमुख दायित्वों में से एक है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

→ समान अधिकार: क्या पूर्ण और समान नागरिकता का अर्थ यह है कि राजसत्ता द्वारा सभी नागरिकों को, चाहे वे अमीर या गरीब हों, कुछ बुनियादी अधिकारों और न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी दी जानी चाहिए? भारत के हर शहर में गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की समस्याएँ शहर के अन्य लोगों से भिन्न हैं। इसी प्रकार हमारे यहाँ आदिवासियों की भी भिन्न समस्यायें हैं। उनकी जीवन-पद्धति और आजीविका खतरे में पड़ती जा रही है। इससे स्पष्ट होता है कि विभिन्न समूह के लोगों की जरूरत और समस्यायें अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं।

नागरिकों के लिए समान अधिकार का अर्थ यह नहीं होता कि सभी लोगों पर समान नीतियाँ लागू कर दी जाएँ क्योंकि विभिन्न समूह के लोगों की जरूरतें भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। यदि नागरिकता का प्रयोजन लोगों को अधिक बराबरी पर लाना है तो नीतियाँ तैयार करते समय लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं और दावों का ध्यान रखना आवश्यक है। अतः नागरिकता से सम्बन्धित औपचारिक कानून प्रस्थान बिन्दु भर होते हैं और कानूनों की व्याख्या निरंतर विकसित होती है। सामान्य रूप से समान नागरिकता की अवधारणा का अर्थ यही है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करना सरकारी नीतियों का मार्गदर्शन सिद्धान्त हो।

→ नागरिक और राष्ट्र:
राष्ट्र राज्य और नागरिकता: राष्ट्र राज्य की अवधारणा आधुनिक काल में विकसित हुई है। राष्ट्र-राज्यों का दावा है कि उनकी सीमाएँ सिर्फ राज्य क्षेत्र को नहीं, बल्कि एक अनोखी संस्कृति और साझा इतिहास को भी परिभाषित करती हैं। राष्ट्रीय पहचान को एक झंडा, राष्ट्रगान, राष्ट्रभाषा जैसे प्रतीकों से व्यक्त किया जा सकता है। एक लोकतांत्रिक राज्य की राष्ट्रीय पहचान में नागरिकों को ऐसी राजनीतिक पहचान देने की कल्पना होती है, जिसमें राज्य के सभी सदस्य भागीदार हो सकें। लेकिन व्यवहार में अधिकतर देश अपनी पहचान को इस तरह परिभाषित करने की ओर अग्रसर होते हैं, जो कुछ नागरिकों के लिए राष्ट्र के साथ अपनी पहचान कायम करना अन्यों की तुलना में आसान बनाता है।

यह राजसत्ता के लिए भी अन्यों की तुलना में कुछ लोगों को नागरिकता देना आसान कर देता है। उदाहरण के लिए फ्रांस, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी होने का दावा करता है लेकिन वह सार्वजनिक जीवन में फ्रांसीसी भाषा-संस्कृति से आत्मसात् होने में बल देता है। लेकिन अपनी पगड़ी पहनने के कारण सिक्ख छात्रों को और सिर पर दुपट्टा पहनने के कारण मुस्लिम लड़कियों को इसके साथ आत्मसात् होना कठिन हो जाता है, जबकि फ्रांसीसी राष्ट्रीय संस्कृति में शामिल होना दूसरे धर्मावलम्बियों के लिए अपेक्षाकृत आसान होता है। दूसरे, नागरिकता के लिए आवेदकों को अनुमति देने की कसौटी हर देश में भिन्न-भिन्न होती है। कुछ समूहों के लिए इनमें कुछ प्रतिषेध स्पष्टतः दिखाई देते हैं।
यथा

→ भारत में नागरिकता: भारत के संविधान ने नागरिकता की लोकतांत्रिक और समावेशी धारणा को अपनाया।

  • भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राज क्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता हासिल की जा सकती है।
  • संविधान में नागरिकों के अधिकार और दायित्व दर्ज हैं।
  • संविधान में यह भी दर्ज है कि राज्य को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  • संविधान में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया गया है।
  • इस तरह के समावेशी प्रावधानों ने भी संघर्ष और विवादों को जन्म दिया है। महिला आन्दोलन, दलित आन्दोलन या विकास योजनाओं से विस्थापित लोगों का संघर्ष ऐसे लोगों द्वारा चलाए जा रहे संघर्षों के कुछ नमूने हैं, जो यह मानते हैं कि उनकी नागरिकता को पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि किसी देश में लोकतांत्रिक नागरिकता लक्ष्य-सिद्धि का एक आदर्श है। सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ कुछ समूह नयी मांगें उठाते हैं जिन पर खुले मस्तिष्क से बातचीत करनी होती है।

→ सार्वभौमिक नागरिकता:
हम प्राय: यह मान लेते हैं कि किसी देश की पूर्ण सदस्यता उन सबको उपलब्ध होनी चाहिए, जो सामान्यतया उस देश में रहते और काम करते हैं या जो नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। यद्यपि अनेक देश वैश्विक और समावेशी नागरिकता का समर्थन करते हैं लेकिन नागरिकता देने की शर्त भी निर्धारित करते हैं। ये शर्तें आमतौर पर देश के संविधान और कानूनों में लिखी होती हैं। अवांछित आगंतुकों, जैसे- शरणार्थियों को नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्य सत्ताएँ ताकत का प्रयोग करती हैं।

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→ शरणार्थी समस्या: युद्ध, उत्पीड़न, अकाल या अन्य कारणों से लोग विस्थापित होते हैं। यदि कोई देश उन्हें स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होता और वे घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन या शरणार्थी कहे जाते हैं। वे शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने शरणार्थियों की जाँच करने और मदद करने के लिए उच्चायुक्त नियुक्त किया है।

अनेक देशों ने युद्ध या उत्पीड़न से पलायन करने वाले लोगों को अंगीकार करने की नीति अपना रखी है। लेकिन वे भी ऐसे लोगों की अनियंत्रित भीड़ को स्वीकार करने या सुरक्षा के संदर्भ में देश को जोखिम में डालना नहीं चाहेंगे। अतः इनमें से कुछ को ही नागरिकता प्राप्त होती है। ऐसी समस्याएँ लोकतांत्रिक नागरिकता के उस वायदे को चुनौती देती हैं जो यह कहता है कि समकालीन विश्व में सभी लोगों को नागरिक की पहचान और अधिकार उपलब्ध होने चाहिए।
राज्यहीन लोगों का सवाल आज विश्व के लिए गंभीर समस्या बन गया है। राष्ट्रों की सीमाएँ अभी भी युद्ध या राजनीतिक विवादों के जरिए पुनर्परिभाषित की जा रही हैं। राज्यहीन लोगों को आज किस तरह की राजनैतिक पहचान दी जा सकती है? क्या हमें राष्ट्रीय नागरिकता से अधिक सच्ची वैश्विक पहचान हेतु विश्व नागरिकता की धारणा विकसित की जानी चाहिए।

→ विश्व नागरिकता के समर्थन में तर्क:

→ वर्तमान काल में संचार के नए तरीकों ने विश्व के विभिन्न हिस्सों की हलचलों को हमारे तत्काल सम्पर्क के दायरे में ला दिया है। इसलिए चाहे विश्व – कुटुम्ब और वैश्विक समाज अभी विद्यमान नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आज परस्पर जुड़ा महसूस करते हैं। विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के पीड़ितों की सहायता के लिए विश्व के सभी हिस्सों से उमड़ा भावोद्गार विश्व-समाज के उभार के संकेत हैं। अतः इस भावना को और मजबूत करते हुए विश्व नागरिकता की अवधारणा की दिशा में सक्रिय होना चाहिए।

→ मानवाधिकार की अवधारणा के विकास के साथ-साथ विश्व: नागरिकता की अवधारणा की ओर बढ़ने का समय आ गया है।

→ विश्व: नागरिकता की अवधारणा से राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का मुकाबला करना आसान हो सकता है जिसमें कई देशों की सरकारें और लोगों की संयुक्त कार्यवाही जरूरी होती है।

→ विश्व: नागरिकता की अवधारणा राष्ट्रीय नागरिकता को इस समझदारी से जोड़ने का प्रयास करती है कि हम विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करें।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार

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पृष्ठ 72

प्रश्न 1.
समूह या समुदाय विशेष को दिए गए निम्न अधिकारों में से कौन-से न्यायोचित हैं? चर्चा कीजिए
(अ) एक शहर में जैन समुदाय के लोगों ने अपना विद्यालय खोला और उसमें केवल अपने समुदाय के छात्र – छात्राओं को ही प्रवेश दिया।
(ब) हिमाचल प्रदेश में वहाँ के स्थायी निवासियों के अलावा बाकी लोग जमीन या अन्य अचल सम्पत्ति नहीं खरीद सकते।
(स) एक सह शिक्षा विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने एक सर्कुलर जारी किया कि कोई भी छात्रा किसी भी प्रकार का पश्चिमी परिधान नहीं पहनेगी।
(द) हरियाणा की एक पंचायत ने निर्णय दिया कि अलग-अलग जातियों के जिस लड़के और लड़की ने शादी कर ली थी, वे अब गांव में नहीं रहेंगे।
उत्तर:
समूह का समुदाय विशेष को दिए गए उपर्युक्त अधिकारों में से (ब) न्यायोचित है।

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प्रश्न 1.
अधिकार क्या हैं और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
अधिकार से आशय:
अधिकार व्यक्ति के वे दावे हैं, जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो तथा राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त हो। एक नागरिक, व्यक्ति और मनुष्य होने के नाते अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समाज के समक्ष कुछ मांगें (दावे) प्रस्तुत करते हैं और शेष समाज सामाजिक हित की दृष्टि से व्यक्ति की उन माँगों को मान्यता प्रदान कर देता है तो वे मांगें या दावे अधिकार कहलाते हैं। समाज में इन अधिकारों को कार्यान्वित करने के लिए कानूनी मान्यता की भी आवश्यकता होती है। अतः अधिकार राज्य के संरक्षण के बिना प्रभावहीन हैं। इसलिए वास्तविक अर्थों में अधिकार के लिए व्यक्ति की मांगों को समाज द्वारा मान्यता तथा राज्य का संरक्षण आवश्यक होता है।

प्रो. अर्नेस्ट बार्कर ने कहा है कि ” अधिकार राज्य द्वारा संरक्षित उस क्षमता का नाम है जिससे समाज में मुझे एक विशिष्ट स्थिति मिली होती है। अधिकार वे कानूनी परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्ति को कुछ कार्यों को करने की स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं। “वाइल्ड के अनुसार, “कुछ विशेष कार्यों को करने की स्वतंत्रता की विवेकपूर्ण माँग को अधिकार कहा जाता है।” इस प्रकार अधिकार ऐसी अनिवार्य परिस्थितियाँ हैं जो मानवीय विकास हेतु जरूरी हैं। वह व्यक्ति की माँग तथा उसका हक है, जिसे समाज, राज्य तथा कानून भौतिक मान्यता देते हुए उसकी रक्षा करते हैं।

अधिकार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं? अधिकार निम्नलिखित दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

  1. अधिकार लोगों के सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. अधिकार हमारी दक्षता और प्रतिभा के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  3. अधिकार सरकार को निरंकुश बनने से रोकते हैं
  4. अधिकार सामाजिक कल्याण का एक साधन हैं।

अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार; अधिकारों का दावा करने के लिए निम्नलिखित उपयुक्त आधार हो सकते हैं:
1. हमारे सम्मान और गरिमा का आधार:
अधिकारों की दावेदारी का पहला आधार यह है कि अधिकार उन बातों का द्योतक है, जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए आवश्यक समझते हैं। उदाहरण के लिए, आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है। लाभकर रोजगार में नियोजित होना व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता देता है, इसीलिए यह उसकी गरिमा के लिए प्रमुख है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है।

2. हमारी बेहतरी का आधार:
अधिकारों की दावेदारी का दूसरा आधार यह है कि वे हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं। ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा का अधिकार हमारी तर्क शक्ति विकसित करने में मदद करता है, हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ- बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति के कल्याण के लिए इस हद तक शिक्षा को अनिवार्य समझा जाता है कि उसे सार्वभौमिक अधिकार माना गया है।

अगर कोई मांग या दावा हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक है, तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए, चूंकि नशीली दवाएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तथा ये अन्यों के साथ हमारे सम्बन्धों पर बुरा प्रभाव डालती हैं, इसलिए हम यह दावा नहीं कर सकते कि हमें नशीले पदार्थों के सेवन करने का अधिकार होना चाहिए। नशीले पदार्थ न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि वे कभी-कभी हमारे आचरण के रंग-ढंग को बदल देते हैं और हमें अन्य लोगों के लिए खतरा करार देते हैं। अतः धूम्रपान करने या प्रतिबंधित दवाओं के सेवन को अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता।

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प्रश्न 2.
किन आधारों पर अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं?
उत्तर:
अधिकारों की सार्वभौमिक प्रकृति के आधार: निम्नलिखित दो आधारों पर अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं।
(अ) प्राकृतिक अधिकारों का विचार
(ब) मानवाधिकार

(अ) प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धान्त:
17वीं तथा 18वीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धान्तकार यह तर्क देते थे कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें जन्म से अधिकार प्राप्त हैं। अतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये  जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और सम्पत्ति का अधिकार अन्य सभी अधिकार इन मूलभूत अधिकारों से ही निकले हैं। ये अधिकार हमें व्यक्ति होने के नाते प्राप्त हैं, क्योंकि ये ईश्वर प्रदत्त हैं। इसलिए ये अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक प्राकृतिक अधिकारों के विचार का प्रयोग राज्यों अथवा सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्ति के प्रयोग का विरोध करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया जाता था।

(ब) मानवाधिकार:
वर्तमान में प्राकृतिक अधिकार शब्द से ज्यादा मानवाधिकार शब्द का प्रयोग हो रहा है, क्योंकि अधिकारों के प्राकृतिक या ईश्वर प्रदत्त होने का विचार आज अस्वीकार्य लग रहा है। आजकल अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं ही खोजा या पाया है। मानव अधिकारों के पीछे यह मान्यता है कि सभी लोग, मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में प्रत्येक मनुष्य समान महत्त्व का है अर्थात् एक आंतरिक दृष्टि से सभी मनुष्य समान हैं और कोई भी व्यक्ति दूसरों का नौकर होने के लिए पैदा नहीं हुआ है। इसलिए सभी मनुष्यों को स्वतंत्र रहने और अपनी पूरी संभावना को साकार करने का समान अवसर मिलना चाहिए।

अधिकारों की इसी समझदारी पर संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणा पत्र बना है। इस विचार का प्रयोग नस्ल, जाति, धर्म, लिंग पर आधारित विद्यमान असमानताओं को चुनौती देने के लिए किया जाता रहा है। पूरी दुनिया के उत्पीड़ित मनुष्य सार्वभौम मानवाधिकार की अवधारणा का इस्तेमाल उन कानूनों को चुनौती देने के लिए कर रहे हैं जो उन्हें पृथक करने वाले और समान अवसरों तथा अधिकारों से वंचित करते हैं। विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नये खतरे और चुनौतियाँ उभरती आई हैं, त्यों-त्यों उन मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है, जिनका लोगों ने दावा किया है।

जैसे पर्यावरण की सुरक्षा की आवश्यकता ने स्वच्छ हवा, शुद्ध पानी, टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की माँग पैदा की है। इसी प्रकार युद्ध या प्राकृतिक संकट के दौरान महिलाओं व बच्चों की समस्याओं ने आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार जैसे अधिकारों की मांग भी पैदा की है। ये दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक आक्रोश का भाव व्यक्त करते हैं और वे समस्त मानव समुदाय हेतु अधिकारों के प्रयोग और विस्तार के लिए लोगों से एकजुट होने का आह्वान करते हैं।

प्रश्न 3.
संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए जो हमारे देश के सामने रखे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आदिवासियों के अपने रहवास और जीने के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नये अधिकारों को लिया जा सकता है।
उत्तर:
भारत में संविधान द्वारा नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये मौलिक अधिकार बाकी सारे अधिकारों के स्रोत हैं। हमारा संविधान और हमारे कानून हमें और बहुत सारे अधिकार देते हैं और साल दर साल अधिकारों का दायरा बढ़ता गया है। यथा
1. समय-समय पर अदालतों ने ऐसे फैसले दिये हैं जिनसे अधिकारों का दायरा बढ़ा है। प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार, सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकारों के ही विस्तार हैं। अब स्कूली शिक्षा हर भारतीय का अधिकार बन चुकी है। 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाना सरकार की जिम्मेदारी है। संसद ने नागरिकों को सूचना का अधिकार देने वाला कानून भी पारित कर दिया है जो कि विचारों और . अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत ही है। हमें सरकारी दफ्तरों से सूचना मांगने और पाने का अधिकार है।

2. सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को नया विस्तार देते हुए उसमें भोजन के अधिकार को भी शामिल कर दिया है।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत बेगार प्रथा का निषेध किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने बेगार प्रथा के अन्तर्गत ही ‘बंधुआ मजदूरी प्रथा’ को भी अन्तर्निहित किया है और बंधुआ मजदूरी का भी निषेध किया है। इसके अन्तर्गत ही बच्चों की बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार निहित है तथा सभी प्रकार की बंधुआ मजदूरी को अवैध घोषित कर दिया गया है तथा उसके विरुद्ध अधिकार प्रदान किया गया है। लोकहित याचिकाओं के माध्यम से यह अधिकार प्रभावी बनाया गया है।

4. आदिवासियों को भी अपने रहने और जीने के तरीके संरक्षित रखने के अधिकार को संस्कृति के अधिकार के. तहत लिया जा सकता है। इस प्रकार हमारे देश के सामने अनेक नये अधिकार रखे जा रहे हैं। इन अधिकारों की मांग या तो वंचित समुदाय अपने संघर्ष के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं या न्यायपालिका अपने निर्णयों द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत अन्तर्निहित सिद्धान्त के द्वारा इनका विस्तार कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अंतर बताइये। हर प्रकार के अधिकार के उदाहरण भी दीजिये।
उत्तर:
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अन्तर
1. राजनीतिक अधिकार:
राजनीतिक अधिकार नागरिकों के कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं तथा ये नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं। इस प्रकार राजनीतिक अधिकार किसी सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियाद का निर्माण करते हैं। राजनीतिक अधिकार सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाकर, शासकों की अपेक्षा लोगों के सरोकार को अधिक महत्त्व देकर तथा सभी लोगों के लिए सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने का मौका सुनिश्चित करने में सहयोग करते हैं।

राजनीतिक अधिकारों के प्रमुख उदाहरण हैं। वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने का अधिकार; स्वतंत्रता व समानता का अधिकार, निष्पक्ष जांच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार तथा असहमति प्रकट करने तथा प्रतिवाद करने का अधिकार आदि।

2. आर्थिक अधिकार:
आर्थिक अधिकार वे होते हैं जो नागरिकों को बुनियादी जरूरतों – भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य आदि की जरूरतों की पूर्ति हेतु पर्याप्त मजदूरी और मेहनत की उचित परिस्थितियों जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं। राजनीतिक अधिकारों को पूरी तरह से व्यवहार में लाने के लिए बुनियादी जरूरतों की पूर्ति आवश्यक है। फुटपाथ पर रहने और बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करने वालों के लिए अपने-आप में राजनीतिक अधिकार का कोई मूल्य नहीं है।
इस प्रकार राजनीतिक अधिकार जहाँ लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव का निर्माण करते हैं, वहीं आर्थिक अधिकार उस नींव पर भव्य तथा रहने योग्य भवन का निर्माण करते हैं। प्रमुख आर्थिक अधिकार हैं। काम का अधिकार, न्यूनतम वेतन प्राप्त करने का अधिकार, समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, अवकाश का अधिकार, प्रसूति अवकाश, आर्थिक सुरक्षा का अधिकार आदि।

3. सांस्कृतिक अधिकार:
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आजकल राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के साथ नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों को भी मान्यता दे रही हैं। सांस्कृतिक अधिकार से आशय है। अपनी भाषा और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने से संबंधित स्वतंत्रताएँ व सुविधायें प्राप्त करना। प्रमुख सांस्कृतिक अधिकार हैं। अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए संस्थाएँ बनाने का अधिकार आदि। सांस्कृतिक अधिकार किसी समुदाय को बेहतर जिंदगी जीने के लिए आवश्यक माने जाते हैं।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 5.
अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अधिकार और राज्य की सत्ता पर सीमाएँ: अधिकार राज्य से किये जाने वाले दावे हैं; इनके माध्यम से हम राज्य सत्ता से कुछ मांग करते हैं और राज्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह उन अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक उपायों का प्रवर्तन करे, जिससे हमारे अधिकारों की पूर्ति सुनिश्चित हो सके। लेकिन अधिकारों को लागू करने के सम्बन्ध में अधिकार राज्य की सत्ता पर अनेक सीमाएँ भी लगाते हैं। यथा।

1. प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य को क्या करना है।
अधिकार राज्य को कुछ खास तरीकों से काम करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं। प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य के लिए क्या करने योग्य है और क्या नहीं? उदाहरण के लिए, मेरा जीवन जीने का अधिकार राज्य को ऐसे कानून बनाने के लिए बाध्य करता है, जो दूसरों के द्वारा क्षति पहुँचाने से मुझे बचा सके। यह अधिकार राज्य से मांग करता है कि वह मुझे चोट या नुकसान पहुँचाने वालों को दंडित करे।

यदि कोई समाज महसूस करता है कि जीने के अधिकार का अर्थ अच्छे स्तर के जीवन का अधिकार है, तो वह राज्य सत्ता से ऐसी नीतियों के अनुपालन की अपेक्षा करता है, जो स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण और अन्य आवश्यक निर्धारकों का प्रावधान करे। इस प्रकार मेरा अधिकार यहाँ राजसत्ता पर यह सीमा लगाता है कि वह खास तरीके से काम करने के अपने वैधानिक दायित्व को पूरा करे।

2. अधिकार यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है।
अधिकार सिर्फ यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहता है कि राज्यसत्ता महज अपनी मर्जी से उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर वह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है, तो उसे इस कार्रवाई को जायज ठहराना पड़ेगा और उसे किसी न्यायालय के समक्ष इस व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करने का कारण बताना होगा। इसीलिए, मुझे पकड़ने से पहले गिरफ्तारी का वारंट दिखाना पुलिस के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार मेरे अधिकार राजसत्ता पर कुछ अंकुश भी लगाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता का उल्लंघन किये बगैर कार्य करे।

3. जनकल्याण की सीमा: हमारे अधिकार राज्य सत्ता पर जनकल्याण हेतु कार्य करने की सीमा भी लगाते हैं। राज्य संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न हो सकता है, उसके द्वारा निर्मित कानून बलपूर्वक लागू किये जा सकते हैं, लेकिन संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य का अस्तित्व अपने लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति के हित के लिए होता है। इसमें जनता का ही अधिक महत्त्व है। इसलिए सत्तारूढ़ सरकार को उसके ही कल्याण के लिए काम करना होता है। शासक अपनी समस्त कार्यवाहियों के लिए जनता के प्रति जवाबदेह है। इसलिए उसे लोगों के अधिकारों के उपभोग की उचित परिस्थितियाँ पैदा करते हुए लोगों की भलाई सुनिश्चित करनी आवश्यक है।

अधिकार JAC Class 11 Political Science Notes

→ अधिकार क्या हैं?
अधिकार मूल रूप से व्यक्ति का ऐसा दावा है जिसका औचित्य सिद्ध हो तथा जिसे शेष समाज ऐसे वैध दावे के रूप में स्वीकार करे जिसका अनुमोदन अनिवार्य हो । अधिकारों की दावेदारी के दो प्रमुख आधार हैं। इसका पहला आधार यह है कि ये वे बातें या वे दावे या मांगें हैं, जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्त्वपूर्ण और आवश्यक समझते हैं और इसका दूसरा आधार यह है कि ये हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं। ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते हैं।

→ अधिकार कहाँ से आते हैं?
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा: 17वीं और 18वीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धान्तकारों का मत था कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। ये जन्मजात हैं, कोई इन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये थे। ये थे

  • जीवन का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार और
  • संपत्ति का अधिकार अन्य तमाम अधिकार इन्हीं तीन अधिकारों से ही निकले हैं।

→ मानवाधिकार सम्बन्धी अवधारणा:
वर्तमान काल में मानवाधिकार शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके प्राकृतिक होने का विचार आज अस्वीकार्य लगता है। अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं ही खोजा या पाया है। मानव अधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने के नाते कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं, जैसे उन्हें स्वतंत्र रहने तथा समान अवसर दिये जाने का अधिकार है।

संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र में उन मानव-अधिकारों का उल्लेख किया गया है जिन्हें विश्व सामूहिक रूप से गरिमा और आत्मसम्मान से परिपूर्ण जिंदगी जीने के लिए आवश्यक मानता है। विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभर रही हैं, त्यों-त्यों इन मानवाधिकारों की सूची निरन्तर बढ़ रही है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार

→ कानूनी अधिकार और राज्य सत्ता मानवाधिकारों के दावों की नैतिक अपील चाहे जितनी हो, उनकी सफलता की डिग्री कुछ कारकों पर निर्भर है। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। सरकारों और कानून का समर्थन। यही कारण है कि अधिकारों की कानूनी मान्यता को इतना महत्त्व दिया जाता है। अनेक देशों में अधिकारों के विधेयक वहाँ के संविधान में प्रतिष्ठित रहते हैं। संविधान में उन अधिकारों का उल्लेख रहता है, जो बुनियादी महत्त्व के माने जाते हैं। अपने देश में इन्हें हम मौलिक अधिकार कहते हैं।

→ कानूनी और संवैधानिक मान्यता: अनेक सिद्धान्तकारों ने अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित किया है, जिन्हें राज्य मान्य किया हो। लेकिन कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता, कानूनी मान्यता से हमारे अधिकारों को समाज में एक खास दर्जा अवश्य मिलता है। अधिकतर मामलों में अधिकार राज्य से किए जाने वाले दावे हैं। अधिकारों के माध्यम से हम राज्यसत्ता से कुछ माँग करते हैं। राज्य जब उन मांगों को सामाजिक हित की दृष्टि से मान्यता दे देते हैं और समाज उन्हें स्वीकार कर लेता है, तो वे मांगें अधिकार बन जाते हैं

  • अधिकार राज्य से किये जाने वाले दावे हैं। अधिकारों के माध्यम से हम राज्य सत्ता से कुछ मांग करते हैं। राज्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अधिकारों को प्रवर्तन में लाने के लिए आवश्यक उपाय करे।
  • अधिकार राज्य को कुछ खास तरीकों से कार्य करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं कि राज्य को क्या कुछ करना है और क्या कुछ नहीं करना है। दूसरे शब्दों में, अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बिना काम करे अर्थात् उसके द्वारा निर्मित कानून जनता के हित के लिए हों और शासक अपनी कार्यवाहियों के लिए जवाबदेह हो।

→ अधिकारों के प्रकार अधिकारों के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।

  • राजनीतिक अधिकार: राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी और राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। इनमें मत देने, प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनैतिक दल बनाने या उनमें शामिल होने जैसे अधिकार शामिल हैं। राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं; जैसे- स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार।
  • आर्थिक अधिकार: भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा, बेरोजगारी भत्ता आदि सुविधाएँ अपनी बुनियादी करने के लिए दी जाती हैं।
  • सांस्कृतिक अधिकार: अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए संस्थाएँ बनाने का अधिकार।
  • बुनियादी अधिकार: ुछ अधिकार जैसे जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समान व्यवहार का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार बुनियादी (मूल) अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।

→ अधिकार और जिम्मेदारियाँ अधिकार न केवल राज्य पर जिम्मेदारी डालते हैं कि वह खास तरीके से काम करे बल्कि ये नागरिकों पर भी निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ डालते हैं।

→ अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए हितकर हैं; जैसे  वायु और जल प्रदूषण कम से कम करना, नए वृक्ष लगाना आदि।

→ अधिकार यह अपेक्षा करते हैं कि मैं अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करूँ। अर्थात् मेरे अधिकार सब के लिए बराबर और एक ही अधिकार के सिद्धान्त से सीमाबद्ध हैं। टकराव की स्थिति में हमें अपने अधिकारों को संतुलित करना होता है।

→ नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रण के बारे में चौकस रहना होगा। यह देखना आवश्यक है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रताओं पर थोपे गए प्रतिबन्ध अपने आप में लोगों के अधिकारों के लिए खतरा न बन जाएँ क्योंकि इनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। इसलिए हमें अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा में सतर्क व जागरूक रहना चाहिए क्योंकि ये लोकतांत्रिक समाज की नींव का निर्माण करते हैं।

→ मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की प्रस्तावना
10 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार किया और लागू किया। इसमें सभी सदस्य देशों से मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के पाठ को प्रचारित करने का आह्वान किया गया है। इस घोषणा में मानव की गरिमा और समानता पर बल देते हुए भाषण तथा विश्वास की स्वतंत्रता, विधि का शासन, राष्ट्रों के मध्य मित्रतापूर्ण संबंधों की स्थापना, पुरुषों तथा महिलाओं के प्रति समान अधिकारों के प्रति विश्वास तथा मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के विश्वस्तर पर सम्मान और अनुपालन को प्रोत्साहित किया गया है।