JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Civics Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए:

1. अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ
(ख) एमनेस्टी इंटरनेशनल
(ग) इण्टरपोल
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) एमनेस्टी इंटरनेशनल।

2. निम्न में से कौन-सा मूल अधिकार नहीं है
(क) स्वतन्त्रता का अधिकार
(ख) समानता का अधिकार
(ग) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
(घ) सम्पत्ति का अधिकार।
उत्तर:
(घ) सम्पत्ति का अधिकार।

3. भारतीय संविधान में कितने मूल अधिकार हैं
(क) छः
(ख) पाँच
(ग) सात
(घ) नौ।
उत्तर;
(क) छः।

4. मनुष्य जाति के अवैध व्यापार का निषेध करने वाले मूल अधिकार हैं
(क) समानता का अधिकार
(ख) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
(ग) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ग) शोषण के विरुद्ध अधिकार।

5. कोई भी व्यवसाय चुनना किस मूल अधिकार के अन्तर्गत आता है
(क) स्वतन्त्रता का अधिकार
(ख) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
(ग) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) स्वतन्त्रता का अधिकार।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गुआंतानामो बे किस कारण चर्चा में है?
उत्तर:
गुतानामो बे क्यूबा के निकट एक टापू है जिस पर अमेरिकी नौसेना का नियन्त्रण है। यहाँ पर लगभग 600 लोगों को संदेह के आधार पर पकड़कर जेल में डाल | दिया गया है।

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प्रश्न 2.
एमनेस्टी इण्टरनेशनल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं का एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन दुनियाभर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर स्वतन्त्र रिपोर्ट प्रकाशित करता है।

प्रश्न 3.
किस संस्था ने यह रिपोर्ट दी थी कि गुआंतानामो बे की जेल में कैदियों को प्रताड़ित किया जा रहा है?
उत्तर:
एमनेस्टी इण्टरनेशनल ने।

प्रश्न 4.
गुआंतानामो बे की जेल के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने क्या कहा?
उत्तर:
गुआंतानामो बे की जेल को बन्द कर देना चाहिए।

प्रश्न 5.
किस देश में राजा या शाह को चुनने या बदलने में लोगों की कोई भूमिका नहीं होती?
उत्तर:
सऊदी अरब में।

प्रश्न 6.
पुराने यूगोस्लाविया के किस प्रान्त में जातीय नरसंहार हुआ?
उत्तर:
कोसोवो प्रान्त में।

प्रश्न 7.
किस देश में प्रत्येक नागरिक का मुसलमान होना आवश्यक है?
उत्तर:
सऊदी अरब में।

प्रश्न 8.
कोसोवो में किस वर्ष जातीय नरसंहार हुआ?
उत्तर:
सन् 1999 ई. में।

प्रश्न 9.
कानून के शासन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इससे अभिप्राय है कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा, चाहे व्यक्ति की हैसियत कुछ भी

प्रश्न 10.
अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अधिकार किसी व्यक्ति के वे तार्किक दावे है जो वह दूसरे व्यक्तियों, समाज एवं सरकार पर करता है। इन्हें कानून की मान्यता प्राप्त होती है।

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प्रश्न 11.
लोकतन्त्र में अधिकारों की क्या आवश्यकता होती है?
उत्तर:
लोकतन्त्र की स्थापना के लिए अधिकारों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 12.
मौलिक अधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कुछ ऐसे अधिकार जो हमारे जीवन के लिए मूलभूत एवं अति आवश्यक हैं, उन्हें विशेष स्थान दिया गया है। इन्हीं अधिकारों को मौलिक अधिकार कहते हैं।

प्रश्न 13.
समानता का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समानता का अभिप्राय है प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य करने का समान अवसर | उपलब्ध कराना।

प्रश्न 14.
संविधान में कौन-कौन सी बुराइयों को गैरकानूनी घोषित किया गया है?
उत्तर:

  1. मनुष्य जाति का अवैध व्यापार
  2. बेगार प्रथा
  3. बाल मजदूरी निषेध।

प्रश्न 15.
किस मूल अधिकार को हमारे संविधान की आत्मा और हृदय’ कहा गया है?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों के अधिकार को।

प्रश्न 16.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार को किस विद्वान ने हमारे संविधान की ‘आत्मा और हृदय’ कहा है?
उत्तर:
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने।

प्रश्न 17.
समय-समय पर अदालतों ने ऐसे फैसले दिये हैं जिनसे अधिकारों का दायरा बढ़ा है? ये अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. प्रेस की स्वतन्त्रता का अधिकार
  2. सूचना का अधिकार
  3. शिक्षा का अधिकार।

प्रश्न 18.
शिक्षा का अधिकार क्या है?
उत्तर:
6 से 14 वर्ष तक के समस्त बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाना।

प्रश्न 19.
भारतीय संविधान में कुल कितने मौलिक अधिकार दिये गये हैं?
उत्तर:
छः मौलिक अधिकार दिये गये हैं।

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प्रश्न 20.
सम्पत्ति रखने का अधिकार मौलिक अधिकार है या संवैधानिक अधिकार?
उत्तर:
संवैधानिक अधिकार।

प्रश्न 21.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में सम्मिलित किन्हीं दो अधिकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. निजता का अधिकार
  2. पर्यावरण का अधिकार।

प्रश्न 22.
भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार के किन्हीं तीन पहलुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. कानून के समक्ष समानता
  2. सरकारी सेवाओं में अवसरों की समानता
  3. छुआछूत की समाप्ति।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मिलोशेविक कौन था? अल्बानियाई लोगों के प्रति उसकी कैसी नीति थी? वह सर्बो से क्या चाहता था?
उत्तर:
मिलोशेविक एक संकीर्ण मानसिकता का उग्र सर्ब राष्ट्रवादी नेता था जो यूगोस्लाविया में चुनाव जीता था। उसकी सरकार ने कोसोवो के अल्बानियाई लोगों के प्रति बहुत ही कठोर व्यवहार किया। कोसोवो में अल्बानियाई लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी किन्तु सम्पूर्ण देश में सर्ब लोगों का बाहुल्य था। वह चाहता था कि देश पर सर्ब लोगों का ही पूर्ण नियन्त्रण हो।

प्रश्न 2.
वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो किसी दावे को अधिकार बना देती हैं?
उत्तर:
वे निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जो किसी दावे को अधिकार बना देती हैं

  1. यह तार्किक होता है कि इसे समान रूप से दूसरे लोगों को भी उपलब्ध कराया जा सकता है।
  2. इसे सम्पूर्ण समाज से भी स्वीकृति मिलनी चाहिए।
  3. इसे कानून द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को दिये गये मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में नागरिक को निम्नलिखित छः अधिकार दिये गये हैं

  1. संवैधानिक उपचार का अधिकार
  2. समानता का अधिकार
  3. स्वतंत्रता का अधिकार
  4. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  5. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  6. शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकार।

प्रश्न 4.
‘कानून के शासन’ को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कानून का शासन किसी भी लोकतन्त्र का आधार है अर्थात् कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। इस आधार पर किसी राजनेता, सरकारी अधिकारी या सामान्य नागरिक में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। देश के प्रधानमन्त्री से लेकर दूरदराज के खेतिहर मजदूर तक सब पर एक ही कानून लागू होता है। कोई भी व्यक्ति वैधानिक रूप से अपने पद या जन्म के आधार पर विशेषाधिकार या विशेष व्यवहार का दावा नहीं कर सकता।

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प्रश्न 5.
क्या आरक्षण की व्यवस्था समानता के अधिकार के विरुद्ध है? बताइए।
उत्तर:
नहीं, ऐसा नहीं है। क्योंकि समानता का अर्थ यह नहीं है कि सभी व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करना। समानता का अर्थ है-प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार काम करने का समान अवसर उपलब्ध कराना। कभी-कभी अवसर की समानता को सुनिश्चित करने के लिए किसी व्यक्ति समूह को विशेष अवसर देना जरूरी होता है। सरकारी सेवाओं में आरक्षण भी इसी का एक उदाहरण है।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को कौन-कौन सी स्वतन्त्रताएँ दी गई हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ दी गई हैं

  1. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता।
  2. संगठन और संघ बनाने की स्वतन्त्रता।
  3. शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने की स्वतन्त्रता।
  4. देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता।
  5. देश के किसी भी भाग में रहने व बसने की स्वतन्त्रता।
  6. कोई भी काम धन्धा, व्यवसाय, व्यापार करने व चुनने की स्वतन्त्रता।

प्रश्न 7.
संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत कौन-कौन-सी तीन प्रमुख बुराइयों की चर्चा की गयी है?
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित तीन बुराइयों की चर्चा की गयी है

  1. संविधान मनुष्य जाति के अवैध व्यापार का निषेध करता है। आमतौर पर इसमें अनैतिक कार्यों हेतु महिलाओं का शोषण होता है।
  2. हमारा बंधुआ मजदरी का निवर यो वर्ग के लोग इसके शिकार बनते हैं।
  3. संविधान बाल मजदूरी का निषेध करता है। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे इसके शिकार होते हैं। अत: उनसे कोई कार्य नहीं लिया जा सकता है।

प्रश्न 8.
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार किसी भी लोकतन्त्र की एक अनिवार्य विशेषता है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में बोलने, लिखने एवं कला के विभिन्न रूपों में स्वयं को व्यक्त करना सम्मिलित है। दूसरों से स्वतन्त्र ढंग से विचार-विमर्श और संवाद स्थापित करके ही हमारे विचारों और व्यक्तित्व का विकास होता है।

हमें अलग तरीके से सोचने तथा उसके अनुसार अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार है। हम सरकार की किसी नीति या किसी संगठन की गतिविधियों की आलोचना करने के लिए स्वतन्त्र हैं। हम अपने विचारों को जनता में प्रेषित कर सकते हैं। इसे हम पेंटिंग, कविता या गीत के माध्यम से भी फैला सकते हैं।

प्रश्न 9.
किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते अथवा हिरासत में लेते समय किन-किन नियमों का पालन करना पड़ता है?
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते अथवा हिरासत में लेते समय निम्न नियमों का पालन करना पड़ता

  1. गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी और हिरासत में लेने के कारणों की जानकारी देनी होती है।
  2. गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष गिरफ्तारी के 24 घण्टों के अन्दर प्रस्तुत करना होता है।
  3. ऐसे व्यक्ति को किसी भी वकील से सम्पर्क करने या अपने बचाव के लिए वकील रखने का अधिकार होता है।

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प्रश्न 10.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।’ इस कथन की पुष्टि कीजिए। – उत्तर-भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। उक्त कथन की पुष्टि हेतु निम्न प्रमाण प्रस्तुत हैं

  1. भारत में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसन्द के धर्म को मानने, उसका प्रबन्धन करने एवं उसके प्रचार-प्रसार का अधिकार है।
  2. भारत में सरकार किसी धर्म विशेष को किसी भी तरह से समर्थन नहीं देती है न ही यह किसी भी व्यक्ति को धार्मिक मान्यताओं के कारण सजा देती है या उसके साथ भेदभाव करती है।
  3. सरकार किसी धर्म या धार्मिक संस्था को बढ़ावा देने या उसके रखरखाव के लिए ‘कर’ देने हेतु किसी व्यक्ति को मजबूर नहीं करती।
  4. सरकार शैक्षिक संस्थानों में किसी भी प्रकार का धार्मिक निर्देश नहीं देती है।

प्रश्न 11.
संविधान अल्पसंख्यकों को कौन-कौन से सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार देता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान अल्पसंख्यकों को निम्नलिखित सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार देता है

  1. नागरिकों में विशिष्ट भाषा एवं संस्कृति वाले किसी भी समूह को अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने का अधिकार है।
  2. किसी भी राजकीय अथवा राजकीय अनुदान प्राप्त शैक्षिक संस्थान में किसी नागरिक को धर्म या भाषा के आधार पर प्रवेश लेने से नहीं रोका जा सकता।
  3. सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसन्द के शैक्षिक संस्थान की स्थापना करने व संचालन करने का अधिकार है।

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प्रश्न 12.
उन नये अधिकारों के बारे में बताइए जो दक्षिण अफ्रीका के संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए हैं?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में संविधान द्वारा निम्नलिखित नये अधिकार वहाँ के नागरिकों को दिए गए हैं

  1. निजता का अधिकार ताकि नागरिकों और उनके घरों की तलाशी न ली जाए। उनके फोन टेप नहीं किये जा सकते और उनके पत्र व्यवहार को खोलकर पढ़ा नहीं जा सकता।
  2. एक ऐसे पर्यावरण का अधिकार जो उनके स्वास्थ्य के प्रतिकूल न हो।
  3.  स्वास्थ्य सेवाओं, पर्याप्त भोजन और पानी तक पहुँच का अधिकार। किसी भी व्यक्ति को आपात चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने से इन्कार नहीं किया जा सकता।

JAC Class 9 Social Science Important Questions

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए
1. औपचारिक रूप से देश का सबसे बड़ा अधिकारी होता है
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री।
(ग) मुख्य न्यायाधीश
(घ) मुख्यमन्त्री।
उत्तर:
(क) राष्ट्रपति।

2. सरकार का प्रमुख होता है
(क) राष्ट्रपति
(ख) लोकसभा अध्यक्ष
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) प्रधानमन्त्री।
उत्तर:
(घ) प्रधानमन्त्री।

3. भारत सरकार ने किस वर्ष दूसरा पिछड़ी जाति आयोग गठित किया था?
(क) सन् 1979 में
(ख) सन् 1950 में
(ग) सन् 1947 में
(घ) सन् 1970 में।
उत्तर:
(क) सन् 1979 में।

4. मन्त्रियों द्वारा किये गये फैसले को लागू करने के उपायों के लिए एक निकाय के रूप में जिम्मेदार होते हैं
(क) प्रधानमन्त्री
(ख) नौकरशाह
(ग) संसद सदस्य
(घ) जनता।
उत्तर:
(ख) नौकरशाह।

5. नागरिक और सरकार के बीच विवाद सुलझाने वाली संस्था है
(क) सर्वोच्च न्यायालय
(ख) उच्च न्यायालय
(ग) संसद
(घ) मन्त्री।
उत्तर:
(क) सर्वोच्च न्यायालय।

6. भारतीय संसद के कितने सदन हैं
(क) एक
(ख) दो।
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
(ख) दो।

7. भारत के राष्ट्रपति के अधिकार कहाँ की महारानी की तरह होते हैं
(क) ब्रिटेन
(ख) सं. रा. अमेरिका
(ग) कनाडा
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(क) ब्रिटेन।

8. भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमाण्डर कौन होता है
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) गृहमन्त्री
(घ) लोकसभा अध्यक्षा
उत्तर:
(क) राष्ट्रपति।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्यालय ज्ञापन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सक्षम अधिकारी द्वारा जारी पत्र जिसके माध्यम से सरकार के फैसले अथवा नीति के बारे में बताया जाता है कार्यालय ज्ञापन कहलाता है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज

प्रश्न 2.
SEBC का विस्तारित रूप बताइए।
उत्तर:
सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (Socially and Economically Backward Classes)।

प्रश्न 3.
हमारे देश का राष्ट्राध्यक्ष कौन है?
उत्तर:
राष्ट्रपति।

प्रश्न 4.
राजकाज से जुड़े अधिकतर निर्णय कहाँ पर लिये जाते हैं?
उत्तर
मन्त्रिमण्डल की बैठकों में राजकाज से जुड़े अधिकतर निर्णय लिये जाते हैं।

प्रश्न 5.
भारतीय संसद के कितने सदन हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संसद के दो सदन हैं-राज्यसभा और लोकसभा।

प्रश्न 6.
प्रधानमन्त्री के लिए किस सदन के सदस्यों के बहुमत का समर्थन प्राप्त होना जरूरी है?
उत्तर:
लोकसभा के सदस्यों का।

प्रश्न 7.
द्वितीय पिछड़ी जाति आयोग के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
बी. पी. मण्डल।

प्रश्न 8.
मण्डल रिपोर्ट सरकार को कब सौंपी गयी?
उत्तर:
सन् 1980 ई. में।

प्रश्न 9.
मण्डल आयोग की प्रमुख सिफारिश क्या थी?
उत्तर:
सरकारी नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देना।

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प्रश्न 10.
मण्डल आयोग की रिपोर्ट के पक्ष में लोगों के कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. कुछ लोगों का मत था कि भारत में विभिन्न जातियों के बीच असमानता के कारण ही नौकरियों में आरक्षण आवश्यक है।
  2. वे समुदाय जिन्हें सरकारी नौकरियों में अभी तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है उन्हें अब पर्याप्त अवसर प्राप्त होगा।

प्रश्न 11.
मण्डल आयोग की रिपोर्ट के विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. कुछ लोगों का मत है कि आरक्षण लागू होने से जो लोग पिछड़े वर्ग के नहीं हैं उनके अवसर छिनेंगे।
  2. देश में जातिवाद बढ़ेगा जिससे देश की प्रगति व एकता पर असर होगा।

प्रश्न 12.
सरकारी निर्णय से उत्पन्न विवादों का निपटारा कौन करता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय।

प्रश्न 13.
जनता की ओर से सर्वोच्च राजनीतिक अधिकार का प्रयोग कौन करती है?
उत्तर:
लोकतन्त्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की सभा जनता की ओर से सोंच्च राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करती है।

प्रश्न 14.
राज्यसभा को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर:
काउंसिल ऑफ स्टेट्स।

प्रश्न 15.
लोकसभा को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर:
हाउस ऑफ पी’ पल।

प्रश्न 16.
संसद के फैसले किसकी मंजूरी के बाद लागू होते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रपति की।

प्रश्न 17.
भारतीय संसद के अपर हाउस एवं लोअर हाउस कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय संसद के अपर हाउस एवं लोअर हाउस क्रमशः राज्यसभा एवं लोकसभा हैं।

प्रश्न 18.
मन्त्रिपरिषद् को संसद का कौन-सा सदन नियन्त्रित करता है?
उत्तर:
लोकसभा।

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प्रश्न 19.
किस राजनीतिक संस्था द्वारा जनता के धन पर नियन्त्रण रखा जाता है ?
उत्तर;
संसद द्वारा।

प्रश्न 20.
कार्यपालिका के दो वर्ग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. राजनीतिक कार्यपालिका
  2. स्थायी कार्यपालिका।

प्रश्न 21.
क्या राष्ट्रपति संसद का सदस्य होता है?
उत्तर:
नहीं, राष्ट्रपति संसद का सदस्य नहीं होता किन्तु संसद का अंग होता है।

प्रश्न 22.
संसद के दोनों सदनों में से कौन अधिक शक्तिशाली होता है?
उत्तर:
लोकसभा।

प्रश्न 23.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति का नाम लिखें।
उत्तर:
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द।

प्रश्न 24.
विभिन्न विभागों के सचिव क्या कार्य करते हैं?
उत्तर:
मन्त्रियों को आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराना ताकि वे निर्णय ले सकें तथा उनके द्वारा लिए गये निर्णयों को लागू कराना।

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प्रश्न 25.
देश की सभी राजनीतिक संस्थाओं के काम की निगरानी कौन करता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति।

प्रश्न 26.
समस्त सरकारी गतिविधियाँ किसके नाम से होती हैं?
उत्तर:
राष्ट्रपति के नाम से।

प्रश्न 27.
कैबिनेट के भीतर सबसे प्रभावशाली व्यक्ति कौन होता है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री।

प्रश्न 28.
प्रधानमन्त्री के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करना
  2. मन्त्रियों के बीच कार्य का वितरण एवं समीक्षा करना।

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प्रश्न 29.
भारत में राष्ट्रपति का चयन कैसे होता है?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रपति का चयन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं किया जाता। सम्पूर्ण देश के संसद सदस्य एवं राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य उसे चुनते हैं।

प्रश्न 30.
किसके नाम से अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ एवं समझौते किये जाते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रपति के नाम से।

प्रश्न 31.
संसद द्वारा पारित कोई विधेयक किसकी मंजूरी के बाद कानून बनता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति की।

प्रश्न 32.
राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति के मामले में अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कब करता है?
उत्तर:
जब किसी पार्टी या गठबन्धन को लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो राष्ट्रपति अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

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प्रश्न 33.
भारत के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति।

प्रश्न 34.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कितनी आयु में सेवानिवृत्त होते हैं?
उत्तर:
65 वर्ष में।

प्रश्न 35.
भारतीय न्यायपालिका की संरचना के बारे में बताइए।
उत्तर:
भारतीय न्यायपालिका सम्पूर्ण देश के लिए एक सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय एवं स्थानीय स्तर के न्यायालयों से मिलकर बनी

प्रश्न 36.
देश की सभी अदालतों को किसका फैसला मानना होता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय का।

प्रश्न 37.
देश के संविधान की व्याख्या कौन करता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय।

प्रश्न 38.
लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कौन करती है?
उत्तर:
न्यायपालिका।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत सरकार द्वारा गठित मंडल आयोग पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारत सरकार द्वारा सन् 1979 में दूसरा पिछड़ी जाति आयोग श्री बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में गठित किया गया इसीलिए इसे मंडल आयोग कहते हैं। इसे भारत में सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए मापदण्ड तय करने एवं उनके पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाने के लिए गठित किया गया था। इस आयोग ने 1980 में अपनी सिफारिशों दीं जिनमें से प्रमुख एक सिफारिश सरकारी नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देना था।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज

प्रश्न 2.
राजनीतिक संस्थाओं की क्या आवश्यकता है ? बताइए।
उत्तर:
राजनीतिक संस्थाओं की आवश्यकता निम्न कारणों से है

  1. सरकारी गतिविधियों को चलाने के लिए कुछ लोगों को फैसला लेना होता है कि इन गतिविधियों को कैसे चलाया जाये। दूसरे अन्य लोगों को इन निर्णयों को लागू करना होता है।
  2. यदि इन निर्णयों या इन्हें लागू करने पर कोई विवाद उत्पन्न होता है तो कोई होना चाहिए जो इनके सही या गलत होने का फैसला कर सके।
  3. यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति इस बात को जाने कि कौन-कौन किस कार्य के लिए जिम्मेदार हैं।
  4. यह भी जरूरी है कि भले ही प्रमुख पदों पर लोग बदल जाएँ लेकिन विकासात्मक गतिविधियाँ जारी रहें।

प्रश्न 3.
हमें संसद की आवश्यकता क्यों है? कारण दीजिए। उत्तर-हमें संसद की निम्न कारणों से आवश्यकता है

  1. आवश्यकतानुसार कानूनों में परिवर्तन करने या उन्हें समाप्त करने अथवा नया कानून बनाने हेतु।
  2. जनता के धन अर्थात् राजकोष पर नियन्त्रण रखने के लिए।
  3. सरकार को ठीक ढंग से चलाने एवं उन लोगों पर नियन्त्रण रखने के लिए जो सरकार चलाते हैं।
  4. सार्वजनिक मामलों एवं किसी देश की राष्ट्रीय नीति पर चर्चा व बहस के लिए संसद ही सर्वोच्च संघ है। संसद किसी भी मामले में सूचना माँग सकती है।

प्रश्न 4.
लोकसभा एवं राज्यसभा के अधिकारों पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
हमारे संविधान में राज्यों के सम्बन्ध में राज्यसभा को विशेषाधिकार दिये गये हैं। लेकिन अधिकतर मामलों में अधिकार लोकसभा के पास ही हैं। किसी सामान्य कानून के पारित करने के लिए दोनों सदनों की जरूरत होती है। लोकसभा धन विधेयकों के मामले में अधिक महत्व रखती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोकसभा के बहुमत से ही कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है। यदि लोकसभा में बहुमत नहीं होगा तो प्रधानमंत्री सहित पूरी मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ेगा।

प्रश्न 5.
भारत में प्रधानमन्त्री का चुनाव किस तरह होता है?
उत्तर:
भारत में प्रधानमन्त्री पद के लिए कोई प्रत्यक्ष रूप से चुनाव नहीं होता है। प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति, लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन दलों के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। यदि किसी दल या गठबन्धन को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो राष्ट्रपति उस व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है जो उसकी नजर में लोकसभा में बहुमत साबित कर सकता है।

प्रश्न 6.
प्रधानमन्त्री के कार्य एवं शक्तियाँ क्या हैं?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री के कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं

  1. प्रधानमन्त्री कैबिनेट बैठकों की अध्यक्षता करता है एवं विभिन्न विभागों के मध्य कार्य का समन्वय करता है।
  2. वह विभिन्न विभागों के कामकाज का निरीक्षण करता है एवं विभागों के मतभेद सम्बन्धी मामलों में उसका निर्णय अन्तिम माना जाता है।
  3. वह मन्त्रियों के कार्यों का वितरण एवं पुनर्वितरण करता है। सभी मन्त्री उसके नेतृत्व में कार्य करते हैं।
  4. वह मन्त्रियों को बर्खास्त भी कर सकता है। जब प्रधानमन्त्री त्यागपत्र देता है तो साथ में सभी मन्त्रियों को अपना पद त्यागना पड़ता है।

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प्रश्न 7.
मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों के कौन-कौन से वर्ग होते हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों के तीन वर्ग होते हैं

  1. कैबिनेट मन्त्री-ये सत्ताधारी दल या गठबन्धन की पार्टियों के वरिष्ठ नेता होते हैं। ये प्रमुख मन्त्रालयों के प्रभारी होते हैं। ये मन्त्री कैबिनेट के नाम पर फैसले करने के लिए बैठक करते हैं।
  2. राज्यमन्त्री (स्वतन्त्र प्रभार) ये प्रायः छोटे मन्त्रालयों के प्रभारी होते हैं। ये विशेष रूप से आमन्त्रित किये जाने पर ही कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं।
  3. राज्यमन्त्री-ये अपने विभाग के कैबिनेट मन्त्रियों से जुड़े होते हैं। ये कार्य में उनकी सहायता करते हैं।

प्रश्न 8.
संसदीय लोकतन्त्र को कभी-कभी सरकार का प्रधानमन्त्रीय रूप क्यों कहा जाने लगा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसके निम्न कारण हैं

  1. हाल के दशकों में संसार के समस्त संसदीय लोकतन्त्रों में प्रधानमन्त्रियों की शक्ति में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
  2. राजनीति में राजनीतिक दलों की भूमिका बढ़ने से प्रधानमन्त्री पार्टी के माध्यम से कैबिनेट और संसद को नियन्त्रित करने लगा है।
  3. मीडिया राजनीति और चुनाव को पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के मध्य प्रतिस्पर्धा के रूप में पेश करके इस रुझान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 9.
”गठबन्धन की राजनीति ने प्रधानमन्त्री की शक्तियों पर अकुंश लगाने का कार्य किया है ?” चर्चा कीजिए।
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति ने प्रधानमन्त्री की शक्तियों पर अंकुश लगाने का कार्य किया है। यह निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है’

  1. गठबन्धन सरकार का प्रधानमन्त्री अपनी इच्छा से फैसला करने के लिए स्वतन्त्र नहीं रहता है।
  2. प्रधानमन्त्री को केवल अपनी पार्टी के अन्दर उपस्थित विभिन्न समूहों और गुटों के साथ-साथ गठबन्धन के साझीदार दलों को भी खुश रखना पड़ता है। इस हेतु उनकी राय माननी पड़ती है। उनके बीच संतुलन बनाकर चलना पड़ता है।
  3. प्रधानमन्त्री को विपक्ष तथा सहयोगी दलों के अतिरिक्त अन्य दलों के विचारों का भी ध्यान रखना पड़ता है। अन्यथा ये दल सरकार पर अनेकानेक आरोप लगाकर जनता में प्रचार कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
राजनीतिक कार्यपालिका को गैर राजनीतिक कार्यपालिका से अधिक अधिकार क्यों होते हैं?
उत्तर:
इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. लोकतन्त्र में जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है। राजनीतिक कार्यपालिका जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। अतः वे जनता की ओर से समस्त शक्तियों का उपयोग करते हैं।
  2. राजनैतिक कार्यपालक (मन्त्री) अपनी नीति एवं फैसले के लिए अन्तिम रूप से जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।

प्रश्न 11.
राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों के बारे में बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं

  1. सभी प्रमुख नियुक्तियाँ राष्ट्रपति के नाम से की जाती हैं। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यों के राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों एवं दूसरे देशों में भारत के राजदूतों की नियुक्ति करता है।
  2. सभी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ एवं समझौते राष्ट्रपति के नाम से ही किए जाते हैं।
  3. राष्ट्रपति भारतीय सेनाओं का सर्वोच्च कमाण्डर होता है। वह भारतीय सेना के समस्त सर्वोच्च पदों पर नियुक्तियाँ करता है।
  4. राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री एवं मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  5. संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों के पश्चात् ही कानून बनता है।

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प्रश्न 12.
शासन की राष्ट्रपति प्रणाली एवं संसदीय प्रणाली में क्या अन्तर है?
उत्तर:
शासन की राष्ट्रपति प्रणाली एवं संसदीय प्रणाली में निम्नलिखित अन्तर हैं

राष्ट्रपति प्रणाली संसदीय प्रणाली
1. राष्ट्रपति प्रणाली में कार्यपलिका का चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से होता है। संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका का चुनाव अप्रत्यक्ष संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निश्चित अवधि के लिये होता है।
2. इस प्रणाली में सत्ता में रहने के लिए कार्यपालिका को संसद के समर्थन की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रणाली में सत्ता में रहने के लिए संसद के बहुमत के समर्थन की आवश्यकता होती है।
3. इस प्रणाली में प्रायः राष्ट्रपति को उसकी नीतियों के लिए संसद का समर्थन प्राप्त नहीं होता है। उदाहरण-संयुक्त राज्य अमेरिका। इस प्रणाली में कार्यपालिका को उसकी नीतियों के लिए संसद का समर्थन प्राप्त होता है। उदाहरण भारत।
4. इस प्रणाली में राष्ट्र की नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका में कोई अन्तर नहीं होता, दोनों एक होती हैं। इस प्रणाली में राष्ट्र की नाममात्र एवं वास्तविक कार्यपालिका अलग-अलग होती हैं।
5. सरकार के इस स्वरूप में राष्ट्रपति की केन्द्रीय भूमिका होती है। सरकार के इस स्वरूप में प्रधानमन्त्री की केन्द्रीय भूमिका होती है।

प्रश्न 13.
सर्वोच्च न्यायालय के कार्य एवं शक्तियाँ क्या हैं?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं

  1. सर्वोच्च न्यायालय देश का सबसे बड़ा न्यायालय है। यह देश के समस्त न्यायिक प्रशासन को नियन्त्रित करता है। इसके फैसले देश के अन्य सभी न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होते हैं।
  2. यह फौजदारी एवं दीवानी मामलों की अपील सुनता है। यह उच्च न्यायालयों के फैसलों के विरुद्ध भी सुनवाई करता है।
  3. यह किसी भी विवाद की सुनवाई कर सकता है, जो
    (अ) देश के नागरिकों के बीच हो।
    (ब) नागरिक व सरकार के बीच हो।
    (स) दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच हो।
    (द) केन्द्र व राज्य सरकार के बीच हो।
  4. यह देश के संविधान की व्याख्या करता है।

प्रश्न 14.
”भारतीय न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त है। यह निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट

  1. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रधानमन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है किन्तु उसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श किया जाता है।
  2. न्यायाधीश सरकार के निर्देश या सत्ताधारी पार्टी की इच्छानुसार कार्य नहीं करते हैं।
  3. सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के नये न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश चुनते हैं।
  4. एक बार किसी व्यक्ति को सर्वोच्च या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने के पश्चात् उसे उसके पद से हटाना लगभग असम्भव है।
  5. किसी न्यायाधीश को पद से हटाने हेतु संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग दो तिहाई बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित कराना होता है जो अत्यन्त कठिन है।

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प्रश्न 15.
‘भारतीय न्यायपालिका दुनिया की सबसे अधिक प्रभावशाली न्यायपालिकाओं में से एक है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय न्यायपालिका दुनिया की सबसे प्रभावशाली न्यायपालिकाओं में से एक है। यह निम्न बिन्दुओं से – स्पष्ट है

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है।
  2. ये कार्यपालिका द्वारा किये गए किसी कार्य एवं विधायिका द्वारा पारित किसी कानून की वैधानिकता की जाँच कर सकते हैं।
  3. राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तर पर विधायिका द्वारा पारित किसी ऐसे कानून अथवा कार्यपालिका के किसी भी ऐसे कार्य को ये अवैध घोषित कर सकते हैं जो संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध हो।
  4. भारतीय न्यायपालिका मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में भी कार्य करती है। यदि जनता को सरकार के किसी कार्य द्वारा नुकसान पहुँचता है तो कोई भी व्यक्ति न्यायालय की शरण में जा सकता है और जनहित याचिका प्रस्तुत कर न्याय प्राप्त कर सकता है।
  5. न्यायालय सरकार के निर्णय लेने की शक्ति के दुरुपयोग होने पर उसमें हस्तक्षेप कर सकता है।
  6. न्यायालय सरकारी अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण को रोकता है।

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JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

JAC Class 9th History फ्रांसीसी क्रांति InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु निर्देश:  पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-5)

प्रश्न 1.
बताएँ कि चित्रकार ने कुलीन व्यक्ति को मकड़े और किसान को मक्खी के रूप में क्यों चित्रित किया
उत्तर:
चित्रकार ने कुलीन व्यक्ति को मकड़े और किसान को मक्खी के रूप में इसलिए चित्रित किया है, क्योंकि मक्खियाँ अपना भोजन प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करती हुईं इधर-उधर भटकती रहती हैं। जबकि मकड़ा एक जाल बनाकर मक्खियों को फँसा लेता है एवं बिना कोई मेहनत किये बैठे-बिठाये भोजन प्राप्त कर लेता है।

ठीक उसी प्रकार तत्कालीन फ्रांसीसी समाज में कुलीन वर्गों ने एक ऐसा राजतन्त्र विकसित कर लिया था, जिसमें किसान कड़ी मेहनत से रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे तथा कुलीन वर्ग उसे बिना कोई मेहनत किये ‘कर’ के रूप में प्राप्त कर लेता था। चित्रकार द्वारा इस तरह का चित्रण तत्कालीन फ्रांसीसी समाज में शोषक वर्ग और उसके द्वारा निर्मित विधि-व्यवस्था को निरूपित करता है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-6)

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए शब्दों में से सही शब्द चुनकर चित्र 4 के रिक्त स्थानों को भरें: खाद्य दंगे, अन्नाभाव, मृतकों की संख्या में वृद्धि, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत, कमजोर शरीर।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति 1

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-7)

प्रश्न 1.
यहाँ आर्थर यंग क्या सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं? ‘गुलामों’ से उनका क्या आशय है? वह किसकी आलोचना कर रहे हैं? सन् 1787 ई. में उन्हें किन खतरों का आभास होता है?
उत्तर:

  1. यहाँ आर्थर यंग यह सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि पादरी एवं कुलीन वर्ग गुलामों की जगह स्वतन्त्र लोगों की सेवा लेने के खतरों के प्रति पूरी तरह सावधान हैं।
  2. गुलामों से उनका आशय फ्रांसीसी सामाजिक व्यवस्था के शिकार लोगों से है।
  3. वह पादरी तथा कुलीन वर्गों की आलोचना कर रहे हैं जिन्होंने भोली-भाली गरीब जनता को अपना शिकार बनाया है।
  4. सन् 1787 ई. में उन्हें उस खतरे का आभास होता है जब पीड़ित लोगों का विलाप एक ऐसे दंगे का रूप ले सकता है जिसमें स्वयं पादरी एवं कुलीन वर्ग के परिवार सुरक्षित नहीं होंगे।

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क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-8)

प्रश्न 1.
तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि मध्य में एक मेज पर खड़े असेम्बली अध्यक्ष बेयली की ओर हाथ उठाकर शपथ लेते हैं। क्या आप मानते हैं कि उस समय बेयली निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर पीठ करके खड़ा रहा होगा? बेयली को इस तरह दर्शाने (चित्र 5) के पीछे डेविड का क्या इरादा प्रतीत होता है ?
उत्तर:
नहीं, मेरा मानना है कि बेयली उस समय निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर पीठ करके खड़ा नहीं रहा होगा। बेयली को इस तरह से दर्शाकर डेविड ने यह इरादा दर्शाया है कि निर्वाचित प्रतिनिधि बेयली के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर रहे थे।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-13)

प्रश्न 1.
पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ 12-13 पर दिए बॉक्स 1 में स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुत्व के प्रतीकों की पहचान करें।
उत्तर:
टूटी हुई जंजीर – स्वतन्त्रता की सूचक विधिपट समानता का सूचक नीला-सफेद-लाल फ्रांस के राष्ट्रीय रंग जो उसकी जनता के बीच बन्धुत्व के सूचक हैं।

प्रश्न 2.
ले बार्बिये के पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ 11 के (चित्र 8) में चित्रित प्रतीकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
चित्र में एक महिला को नीले, सफेद और लाल रंग के वस्त्र में दर्शाया गया है, ये रंग फ्रांस के राष्ट्रीय रंग हैं। महिला के हाथ में टूटी हुई जंजीर है, जो स्पष्ट करती है कि फ्रांस की जनता अब आजाद है। परन्तु दूसरी ओर डेनों वाली स्त्री का चित्र है, जो स्वयं कानून का प्रतीक है। इससे संदेश मिलता है कि जनता की स्वतन्त्रता कानून के दायरे में ही है। दोनों चित्रों को विधि पट पर दर्शाया गया है जिससे संदेश मिलता है कि कानून सभी के लिए समान है।

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प्रश्न 3.
सन् 1791 ई. के संविधान में नागरिकों को दिए गए राजनीतिक अधिकारों के घोषणा-पत्र (स्रोत ग)के अनुच्छेद 1 एवं 6 में दिए गए अधिकारों से तुलना करें।क्या दोनों दस्तावेज एक-दूसरे के अनुरूप हैं? क्या दोनों दस्तावेजों से एक ही विचार का बोध होता है?
उत्तर:

  1. अनुच्छेद (1) के तहत् सभी नागरिकों को समान अधिकार दिया गया है, जबकि अनुच्छेद (6) के तहत् सभी नागरिकों को प्रत्यक्ष रूप से अथवा अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से कानून के निर्माण में भाग लेने का अधिकार दिया गया है।
  2. दोनों दस्तावेजों में घोषित अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं।
  3. दोनों दस्तावेजों से एक ही विचार का बोध नहीं होता है। अनुच्छेद (1) में लोगों की प्राकृतिक स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों पर जोर दिया गया है, किन्तु अनुच्छेद (6) के तहत् लोगों की सम्प्रभुता एवं कानून के निर्माण में सबकी सहभागिता की घोषणा की गई है तथा कानून के समक्ष समानता के उनके अधिकार की चर्चा की गई है।

प्रश्न 4.
सन् 1791 ई.के संविधान से फ्रांसीसी समाज के कौन-से समूह लाभान्वित हुए होते? किन समूहों को इससे असन्तोष हो सकता था? ‘मरा’ ने भविष्य के बारे में कौन-से पूर्वानुमान (स्रोत खोलगाए थे?
उत्तर:

  1. सन् 1791 ई. के संविधान से फ्रांसीसी समाज के तृतीय एस्टेट के सदस्यों को सर्वाधिक लाभ पहुँचा होगा।
  2. प्रथम तथा द्वितीय एस्टेट्स के सदस्यों अर्थात् पादरी एवं कुलीन वर्गों के लिये निराश होने के पर्याप्त कारण मौजूद थे। एक तरफ उनको मिली हुई सभी विशेष सुविधाएँ समाप्त कर दी गईं तथा दूसरी तरफ अब दी गईं सुविधाओं के अनुपात में उन्हें ‘कर’ भी अदा करना था।
  3. ‘मरा’ भविष्य के विकास के बारे में यह राय रखता है कि यदि लोग कुलीन वर्ग की गुलामी की जंजीरों को उतार कर फेंक सकते हैं तो आगे चलकर उसी तरह की पुनरावृत्ति अन्य अमीरों के साथ भी हो सकती है।

प्रश्न 5.
फ्रांस की घटनाओं से निरंकुश राजतन्त्र वाले प्रशा, ऑस्ट्रिया, हंगरी या स्पेन आदि देशों पर पड़ने वाले प्रभावों की कल्पना कीजिए। फ्रांस में हो रही घटनाओं की खबरों पर राजाओं, व्यापारियों, किसानों, कुलीनों एवं पादरियों ने कैसी प्रतिक्रिया दी होगी?
उत्तर:

  1. फ्रांस की घटनाओं की छाया पड़ोस के निरंकुश राजतन्त्र वाले देशों प्रशा ऑस्ट्रिया हंगरी या स्पेन आदि पर भी अवश्य पड़ी होगी। इन देशों ने अपनी निरंकुशता कम करके नागरिकों का शोषण कम कर दिया होगा, क्योंकि उन्हें भय होने लगा होगा कि फ्रांस की घटना यहाँ भी दोहराई जा सकती हैं।
  2.  इन राज्यों में राजा, कुलीन वर्ग तथा पादरी सभी फ्रांस की घटनाओं से डर गये होंगे। उन्होंने गरीबों का शोषण और उन पर अत्याचार करना कम कर दिया होगा, जबकि किसान, मजदूर तथा व्यापारी वर्ग इन राज्यों में फ्रांस जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति का स्वागत करने के लिये तैयार बैठे होंगे।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-15)

प्रश्न 1.
चित्र 10 को ध्यान से देखें और उन वस्तुओं की सूची बनाएँ जिन्हें आपने राजनीतिक प्रतीकों के रूप में बॉक्स 1 में देखा है (लाल टोपी, टूटी हुई जंजीर, छड़ों का बींदार गट्ठर, अधिकारों का घोषणा-पत्र)। पिरामिड समानता का प्रतीक है, जिसे अक्सर एक त्रिभुज के रूप में दिखाया जाता था। इन प्रतीकों की सहायता से इस चित्र की व्याख्या करें। स्वतन्त्रता की प्रतिमूर्ति इस महिला मूर्ति के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर:

  1. महिला के हाथ में स्थित लाल टोपी तथा अधिकारों का घोषणा-पत्र दो राजनीतिक चिह्न हैं।
  2. पिरामिड की त्रिभुजीय आकृति समानता की सूचक है, क्योंकि इसकी तीनों भुजाएँ यह प्रदर्शित करती हैं कि सरकार बनाने वाली तीनों एस्टेट्स की शक्तियाँ एवं अधिकार बराबर हैं।
  3. स्वतन्त्रता की प्रतिमूर्ति यह महिला मूर्ति, सच्ची स्वतन्त्रता की सूचक है, क्योंकि सदियों तक महिलाओं को उनकी स्वतन्त्रता से दूर रखा गया था।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-16)

प्रश्न 1.
1. डेस्मॉलिन्स और रोबेस्प्येर के विचारों की तुलना करें। राज्य शक्ति के प्रयोग से दोनों का क्या तात्पर्य है?
2. निरंकुशता के विरुद्ध स्वतन्त्रता की लड़ाई से रोबेस्प्येर का क्या मतलब है?
3. डेस्मॉलिन्स स्वतन्त्रता को कैसे देखता है?
4. एक बार फिर स्रोत (ग) देखें। व्यक्तिगत अधिकारों के बारे में संविधान में कौन-से प्रावधान थे? इस विषय पर अपनी कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:

  1. रोबेस्प्येर का मानना था कि क्रान्ति के दौरान लोकतान्त्रिक सरकार के लिये आतंक का उपयोग न्यायोचित था, जबकि डेस्मॉलिन्स मानते थे कि राजदण्ड का उपयोग स्थापित कानून के अनुरूप हो।
  2. निरंकुशता के विरुद्ध स्वतन्त्रता की लड़ाई से रोबेस्प्येर का मतलब देश के अन्दर तथा बाहर गणतन्त्र के दुश्मनों को समूल नष्ट कर देने से था।
  3. डेस्मॉलिन्स के लिये स्वतन्त्रता से तात्पर्य था खुशहाली, विवेक , समानता, न्याय आदि। वे इसे अधिकारों की घोषणा के रूप में लेते थे।
  4. संविधान के नियमों के तहत् व्यक्ति को स्वतन्त्रता, समानता, सम्पत्ति, सुरक्षा एवं शोषण का विरोध करने के अधिकार दिये गये थे।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-17)

प्रश्न 1.
यहाँ चित्रित जनसमूह, उनकी वेशभूषा, भूमिका एवं क्रियाकलाप का वर्णन करें। इस चित्र से क्रांतिकारी उत्सव की कैसी छवि बनती है?
उत्तर:
चित्र में दर्शाया गया जनसमूह उत्सव मना रहा है। उसकी वेशभूषा गौरवमयी इतिहास को प्रदर्शित कर रही है जिसमें प्राचीन यूनान व रोम की सभ्यताओं के प्रतीकों का प्रयोग किया गया है। इस उत्सव के द्वारा क्रान्तिकारी सरकार ने जनता की वफादारी हासिल करने का प्रयास किया है। अत: एक अच्छी छवि का प्रदर्शन हो रहा है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या 18)

प्रश्न 1.
1. चित्र 12 में अंकित औरतों, उनकी क्रियाओं, उनके हाव-भाव एवं उनके हाथ की वस्तुओं का विवरण दें।गौर से देखें कि क्या वे सभी एक ही सामाजिक वर्ग की लगती हैं?
2. चित्रकार ने इस आकृति में किन प्रतीकों को शामिल किया है? इन प्रतीकों के क्या मायने हैं?
3. क्या महिलाओं को देखकर लगता है कि वे सार्वजनिक रूप से वही कर रही हैं जिसकी उनसे उम्मीद की जाती थी?
4. आप क्या सोचते हैं चित्रकार, महिलाओं के साथ है या उनके विरोध में खड़ा है? कक्षा में अपनी राय पर विचार-विमर्श कीजिए। उनके हाथों में ढोल, त्रिशूल तराजू, लालटोपी, भाला तलवार डण्डा आदि दिखाई दे रहे हैं तथा उनके हाव-भाव क्रान्ति के लिए बढ़ती हुई महिलाओं के लग रहे हैं।
उत्तर:

  1. चित्र 12 में दिखायी गई सभी स्त्रियाँ तृतीय एस्टेट्स की लगती हैं। उनके हाथों में ढोल त्रिशूल, तराज, लाल टोपी, भाला, तलवार, डण्डा आदि दिखाई दे रहे हैं तथा उनके हाव-भाव क्रान्ति के लिए आगे बढ़ती हुई महिलाओं के लग रहे हैं।
  2. चित्रकार ने अपने चित्र में निम्नलिखित प्रतीकों को शामिल किया हैमहिलाएँ-न्याय की देवी की सूचक हैं। तराजू-समानता का सूचक है। त्रिशूल, भाला, फरसा तथा तलवार-ये शक्ति एवं विद्रोह के सूचक हैं।
  3. नहीं, महिलाओं की मुद्रायें सार्वजनिक जीवन में उनसे अपेक्षित पारम्परिक व्यवहार के विचार को प्रदर्शित नहीं करती हैं।
  4. मेरे विचार से चित्रकार महिलाओं के साथ है वह महिलाओं की गतिविधियों के प्रति सहानुभूति रखता है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ-20)

प्रश्न 1.
ओलम्प दे गूज द्वारा तैयार किये गये घोषणा-पत्र (स्रोत छ ) तथा पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ (स्रोत ग)की तुलना करें।
उत्तर:
पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र (स्रोत ग) केवल मानव तथा नागरिक के अधिकारों की बात करता है। इस घोषणा-पत्र में महिलाओं के अधिकारों की चर्चा किसी भी अनुच्छेद में नहीं की गई है। जबकि ओलम्प दे गूज द्वारा तैयार किया गया घोषणा-पत्र (स्रोत छ) पुरुष एवं महिला के अधिकारों की चर्चा समानता के आधार पर करता है।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

प्रश्न 2.
कल्पना करें कि आप चित्र 13 की कोई महिला हैं और शोमेत ( स्रोत ज )के तर्कों का जवाब दें।
उत्तर:
यह सही है कि कुछ कार्यों को महिलाएँ अच्छी प्रकार से कर सकती हैं तथा कुछ को पुरुष अच्छी प्रकार से कर सकते हैं। लेकिन परिवार एवं समाज के विकास के लिए एक-दूसरे के कार्यों में सहयोग करना आवश्यक है। अत: महिलाओं को उनकी पसंद का कार्य करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए क्योंकि किसी कार्य को करने की क्षमता एवं योग्यता कार्य करने वाले पर व्यक्तिगत रूप से निर्भर होती है।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-22 )

प्रश्न 1.
इस चित्र का अपने शब्दों में वर्णन करें। चित्रकार ने लोभ, समानता, न्याय, राज्य द्वारा चर्च की सम्पत्ति का अधिग्रहण आदि विचारों को सम्प्रेषित करने के लिए किन प्रतीकों का सहारा लिया है?
उत्तर:

  1. लोभ: मोटे आदमी के प्रतीक द्वारा प्रतिरोध करना।
  2. समानता: पुरुष तथा महिला का एक साथ होना।
  3. न्याय: दो व्यक्ति दु:खी होकर जा रहे हैं। जो इस बात का प्रतीक हैं कि न्याय नहीं किया गया।
  4. राज्य द्वारा चर्च की सम्पत्ति का अधिग्रहण: चित्र में एक व्यक्ति को दाब मशीन में लगाकर दबाया जा रहा है, जो राजा द्वारा चर्च की सम्पत्ति के अधिग्रहण का प्रतीक है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-24)

प्रश्न 1.
इस अध्याय में आपने जिन क्रान्तिकारी व्यक्तियों के बारे में पढ़ा है उनमें से किसी एक के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। उस व्यक्ति की संक्षिप्त जीवनी लिखें।
उत्तर:
ओलम्प दे गूज (1748-1793) ओलम्प दे गूज फ्रांसीसी क्रान्ति में सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाने वाली महिलाओं में से एक थी। उसने संविधान तथा पुरुष एवं नागरिकों के अधिकार सम्बन्धी घोषणा-पत्र का विरोध किया। क्योंकि इस घोषणा-पत्र ने प्रत्येक मनुष्य को प्राप्त मौलिक अधिकारों से महिलाओं को दूर रखा।

उसने स्वयं महिलाओं तथा नागरिकों के अधिकार सम्बन्धी एक घोषणा-पत्र को सन् 1791 ई. में तैयार किया। उसने इसे महारानी तथा नेशनल असेम्बली के सदस्यों को भेजा तथा उसने इन लोगों से इस घोषणा-पत्र पर कार्यवाही करने की माँग की। सन् 1793 ई. में उसने जैकोबिन सरकार द्वारा बलपूर्वक महिलाओं के क्लबों को बन्द कराये जाने की आलोचना की। उसके ऊपर नेशनल कन्वेंशन ने देशद्रोह का मुकदमा चलाकर फाँसी दे दी।

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान ऐसे अखबारों का जन्म हुआ जिनमें हर दिन और हर हफ्ते की घटनाओं का ब्यौरा दिया जाता था। किसी एक घटना के बारे में जानकारियाँ और तस्वीरें इकट्ठा करें तथा अखबार के लिए एक लेख लिखें। आप चाहें तो मिराब्यो, ओलम्प दे गूज या रोबेस्प्येर आदि के साथ काल्पनिक साक्षात्कार भी कर सकते हैं। दो या तीन का समूह बना लें। हर समूह फ्रांसीसी क्रांति पर एक दीवार पत्रिका बनाकर बोर्ड पर लटकाए।
उत्तर:
(अ) बास्तील के अन्त पर अखबार में लेख:
14 जुलाई, सन् 1789 ई. को पेरिस शहर में खतरे की घंटी बज उठी। चारों ओर यही चर्चा फैली हुई है कि शीघ्र ही राजा, सेना को जनता पर गोली चलाने का आदेश देने जा रहा है। लगभग 7000 की संख्या में पुरुष और महिलाएँ टॉउन हॉल के सामने एकत्रित हो गये तथा जन-सेना का गठन करने का निश्चय किया। फिर इस जन-सेना की एक टुकड़ी बास्तील किले की जेल की ओर गोला-बारूद पाने की उम्मीद में बढ़ गई।

गुस्साई भीड़ ने बास्तील के किले की जेल को तोड़ डाला। इसके बाद सैन्य बल के साथ जन समूह की झड़प हुई जिसमें बास्तील का कमाण्डर मारा गया। इस जन-सेना ने वहाँ बन्द कैदियों को मुक्त कर दिया। यद्यपि, इन कैदियों की संख्या केवल 7 थी। इस तरह दमन के सूचक बास्तील के किले को ढहाकर उसका अन्त कर दिया गया।

(ब) काल्पनिक साक्षात्कार
1. मिराब्यो के साथ साक्षात्कार:
पत्रकार : श्रीमान्, आप कुलीन वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं, किन्तु आप यहाँ उन लोगों के साथ हैं जो कुलीनता का विरोध कर रहे हैं।

मिराब्यो : हाँ, मैं कुलीन वर्ग में पैदा हुआ हूँ पर इसका मतलब यह नहीं है कि अगर वे गलती करें तो उनका विरोध नहीं किया जाए।

पत्रकार : श्रीमान्, क्या आप समाज के कुछ वर्गों को जन्म के आधार पर दिए जाने वाली विशेष सुविधाओं एवं अधिकारों आदि का समर्थन करेंगे?

मिराब्यो : नहीं, मैं समाज के कुछ वर्गों को जन्म के आधार पर दिये जाने वाली किसी भी प्रकार की विशेष सुविधाओं एवं अधिकारों का समर्थन नहीं करना चाहूँगा।

2. ओलम्प दे गूज के साथ साक्षात्कार:
पत्रकार : मैडम, आप संविधान तथा पुरुष व नागरिक अधिकारों के घोषणा-पत्र का विरोध क्यों कर रही हैं?

गूज : हाँ, मैं इसलिए इनका विरोध कर रही हूँ कि इनमें महिलाओं के उन अधिकारों की चर्चा भी नहीं की गई, जो नागरिक होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त होते हैं।

पत्रकार : क्या कारण है कि आपने जैकोबिन सरकार की आलोचना की?

गूज : मैंने जैकोबिन सरकार की आलोचना इसलिए की कि इसने जबरन महिला क्लबों को बन्द करवा दिया।

3. रोबेस्प्येर के साथ साक्षात्कार:
पत्रकार : श्रीमान्, आप प्रजातन्त्र को किस तरह स्थापित एवं संगठित करेंगे?

रोबेस्प्येर : प्रजातन्त्र की स्थापना एवं संगठन के लिये सर्वप्रथम मैं आतंक के खिलाफ स्वतन्त्रता की जंग को देश तथा देश के बाहर जीतना चाहूँगा।

पत्रकार : क्रान्ति के दौरान एक प्रजातान्त्रिक सरकार को कौन-सा तरीका अपनाना चाहि?

रोबेस्प्येर : क्रान्ति के दौरान एक प्रजातान्त्रिक सरकार को आतंक का रास्ता अपनाना चाहिए।

पत्रकार : श्रीमान्, आतंक से आपका क्या अभिप्राय है?

रोबेस्प्येर : आतंक कुछ और नहीं बल्कि कठोर, तुरन्त व अनम्य न्याय की नीति है जिसकी सहायता से पितृभूमि एवं गणतन्त्र की सुरक्षा की जा सकती है।

JAC Class 9th History फ्रांसीसी क्रांति Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर:
सन् 1789 ई. में हुई फ्रांस की क्रान्ति इतिहास की एक प्रमुख घटना थी। इस क्रान्ति के समय फ्रांस में राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक दशा की स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। अन्ततः फ्रांस में निरंकुश राजतन्त्र का अन्त करके लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की गई। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

1. राजनीतिक कारण:
फ्रांस के शासक स्वेच्छाचारी और निरंकुश थे। वे राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धान्त में विश्वास करते थे अतः वे प्रजा के सुख-दुःख, हित-अहित की कोई चिन्ता न करके अपनी इच्छानुसार कार्य करते थे। वे जनता पर नए ‘कर’ लगाते रहते थे और ‘कर’ के रूप में वसूले गए धन को मनमाने ढंग से विलासिता के कार्यों पर व्यय करते थे। सम्पूर्ण देश के लिए एक समान कानून व्यवस्था भी नहीं थी। इस प्रकार फ्रांस की जनता शासकों की निरंकुशता से बहुत परेशान थी।

2. आर्थिक कारण:
फ्रांस द्वारा अनेक युद्धों में भाग लेने के कारण उसकी आर्थिक दशा अत्यन्त खराब हो चुकी थी। राजदरबार की शान-शौकत एवं कुलीन वर्ग के व्यक्तियों की विलासप्रियता के कारण साधारण जनता पर अनेक प्रकार के ‘कर’ लगाये जाते थे और उनकी वसूली निर्दयतापूर्वक की जाती थी। फ्रांस में कुलीन वर्ग और पादरी करों का भार वहन करने में समर्थ थे, परन्तु उन्हें करों से मुक्त रखा गया। इस प्रकार दयनीय आर्थिक दशा भी फ्रांस की क्रान्ति का एक बड़ा कारण बनी।

3. सामाजिक कारण:
फ्रांस में क्रान्ति से पूर्व बहुत बड़ी सामाजिक असमानता थी। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों का जीवन बहुत विलासी था तथा उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त थे। इसके विपरीत किसानों तथा मजदूरों का जीवन नारकीय था। वे विभिन्न प्रकार के करों एवं बेगार के बोझ के नीचे पिस रहे थे। समाज में बुद्धिजीवी वर्ग अर्थात् वकील, डॉक्टर, अध्यापक एवं व्यापारी आदि का सम्मान नहीं था। अत: फ्रांस की मध्यमवर्गीय धनी एवं शिक्षित जनता; कुलीन वर्ग के लोगों तथा चर्च के उच्च अधिकारियों से सदैव द्वेष रखती थी। अतः क्रान्ति प्रारम्भ होते ही तृतीय वर्ग की सम्पूर्ण जनता ने इसका पूर्ण समर्थन किया।

4. दार्शनिकों एवं लेखकों के विचारों का प्रभाव:
फ्रांस जैसी दशा यूरोप के लगभग अन्य सभी देशों में थी। फ्रांस के दार्शनिकों और लेखकों के क्रान्तिकारी विचारों के परिणामस्वरूप फ्रांस में ही सबसे पहले क्रान्ति हुई। फ्रांस के लेखकों एवं दार्शनिकों के विचारों ने राज्य के खिलाफ क्रान्ति की भावना का बीजारोपण किया। इनमें मॉण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो आदि दार्शनिकों ने फ्रांस की क्रान्ति को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

5. तात्कालिक कारण:
5 मई, सन् 1789 ई. को लुई सोलहवें द्वारा नये कर लगाने के लिए एस्टेट्स जेनराल के अधिवेशन की तिथि निर्धारित की गई। इस बैठक में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। एस्टेट्स जेनराल के नियम के अनुसार, प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था, परन्तु तृतीय एस्टेट वर्ग के प्रतिनिधि इस मत से सहमत नहीं थे।

उनका मत था कि इस बार सम्पूर्ण सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा। इस बात से सम्राट लुई सोलहवाँ सहमत नहीं हुआ। अन्ततः तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध स्वरूप सभा से बाहर चले गए, इस बात ने फ्रांसीसी क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार की।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रान्ति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर:

  1. सन् 1789 ई. में हुई फ्रांस की क्रान्ति से समाज के निम्न वर्ग; जैसे-मजदूर, किसान एवं शिक्षित वर्ग को सबसे अधिक लाभ हुआ। इस वर्ग के लोगों में फ्रांस की जनसंख्या के लगभग 90 प्रतिशत किसान सम्मिलित थे।
  2. इस क्रान्ति के द्वारा उच्च वर्ग के लोगों, राज-परिवार, पादरियों तथा सामन्तों को सत्ता छोड़ने के लिए बाध्य किया गया।
  3. फ्रांस की क्रान्ति से कुलीन वर्ग के लोगों को अत्यधिक निराशा हुई। इस वर्ग के लोगों की जमीनें जब्त कर ली गईं एवं उनके सभी विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।

प्रश्न 3.
उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई?
उत्तर:
सन् 1789 ई. में हुई फ्रांस की क्रान्ति के उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी की दुनिया पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  1. फ्रांस की क्रान्ति के परिणामस्वरूप यूरोप के अन्य देशों; जैसे-जर्मनी, इटली आदि में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ जिससे स्वेच्छाचारी शासन की समाप्ति हुई तथा सभी देशों में मनुष्यों की समानता पर बल दिया जाने लगा।
  2. इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप विश्व के लोगों में सामन्तवाद के विरुद्ध आन्दोलन को एक नई दिशा मिली और सामन्तवाद का स्थान प्रजातन्त्र ने लेना प्रारम्भ कर दिया।
  3. इस क्रान्ति ने प्रचलित कानूनों का रूप बदल दिया, सामाजिक मान्यताएँ बदल डाली और आर्थिक ढाँचे में आश्चर्यजनक परिवर्तन किए।
  4. इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप अन्य देशों के शासक वर्ग ने सजगता दिखाते हुए अपनी जनता का अधिक से अधिक कल्याण करने का प्रयत्न करना प्रारम्भ कर दिया।
  5. इस क्रान्ति से भारत सहित अनेक अफ्रीकी एवं एशियाई देशों के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को प्रेरणा मिली।

प्रश्न 4.
उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ, जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है।
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति ही प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सभी जनवादी अधिकारों की उत्पत्ति का स्रोत है। स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व फ्रांसीसी क्रान्ति के मार्गदर्शन के सिद्धान्त हैं। हमारे देश में संविधान ने स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों को छः मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, जो निम्नलिखित

  1. समानता का अधिकार,
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार,
  3. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार.
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
  5. शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 5.
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अन्तर्विरोध थे?
उत्तर:
हाँ, मैं इस तर्क से सहमत हूँ कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में विभिन्न प्रकार के निम्नांकित अन्तर्विरोध थे

  1. सार्वभौमिक अधिकारों के अन्तर्गत सभी को समान अधिकारों की बात तो की गयी लेकिन महिलाओं एवं अन्य शोषित वर्ग के विकास एवं संरक्षण के लिए कोई प्रावधान नहीं था।
  2. सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में शोषण के प्रतिरोध का अधिकार तो दिया लेकिन दास प्रथा, जाति प्रथा, रंगभेद आदि को समाप्त करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किये गये।
  3. सार्वभौमिक अधिकारों के अन्तर्गत कानून सम्मत अधिकार प्रदान किये गये हैं लेकिन कानून बनाने का अधिकार कुछ ही चुने हुए लोगों को है जिससे शोषित एवं दमित वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व मिलना आसान नहीं है। क्योंकि उनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।
  4. इसमें सार्वजनिक शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया था।
  5. इसमें व्यापार तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार नहीं दिया गया था।
  6. सभी देशों में एक निश्चित आयु के पूर्व लोगों को मताधिकार नहीं दिया गया। फ्रांस में 25 वर्ष या उससे अधिक उम्र के उन्हीं पुरुषों को मताधिकार मिला, जो सरकार को कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर की राशि ‘कर’ के रूप में भुगतान करते थे।
  7. इन अधिकारों का सबसे बड़ा दोष यह था कि इनके साथ मानव के कर्तव्य निश्चित नहीं किए गए थे। अत: कर्त्तव्य के बिना अधिकार महत्वहीन ही थे। अन्त में यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक शिक्षा का अधिकार न होना तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार न होना एवं एक निश्चित आयु के बाद सभी को मताधिकार प्राप्त न होना इन अधिकारों के अन्तर्विरोध को प्रकट करता है।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति

प्रश्न 6.
नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर:
जैकोबिन सरकार के पतन के बाद एक नया संविधान बना। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका ‘डिरेक्ट्री’ को नियुक्त किया। डिरेक्ट्री के सदस्य अक्सर विधान परिषदों में झगड़ते रहते थे।

डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर नेपोलियन सेना की मदद से तानाशाह बन गया और सन् 1804 ई. में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। इस प्रकार सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। उसका शासन असीम एवं निरंकुश था, वह सम्पूर्ण यूरोप का शासक बनना चाहता था।

शासक के रूप में उसने फ्रांस में एक कुशल एवं सक्षम शासन की स्थापना की और फ्रांसीसी जनता को क्रान्ति से उत्पन्न अराजकता से मुक्ति दिलाई। नेपोलियन ने शिक्षा को बढ़ावा दिया और व्यापार एवं उद्योग को सुधारने के लिए उपयुक्त कदम उठाये। उसने निजी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए कानून बनाये और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलाई।

प्रारम्भ में तो जनता को नेपोलियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतन्त्रता मिलने की उम्मीद थी, परन्तु शीघ्र ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे। आखिरकार सन् 1815 ई. में वॉटर लू के युद्ध में उसकी हार हुई। नेपोलियन के क्रान्तिकारी विचारों, जैसे-स्वतन्त्रता एवं आधुनिक कानूनों की धारणा ने यूरोप के लोगों पर एक अमिट छाप छोड़ी।

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JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

→ घुमंतू ऐसे लोग होते हैं, जो किसी एक स्थान पर स्थाई रूप से नहीं रहते अपितु अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।

→ जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुण्ड रखते हैं।

→ हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में रहने वाले चरवाहा समुदाय को ‘गद्दी’ के नाम से जाना जाता है।

→ ‘धंगर’ महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश के पठारी क्षेत्रों में ‘गोल्ला’ समुदाय के लोग गाय-भैंस, जबकि ‘कुरुमा’ और ‘कुरुवा’ समुदाय के लोग भेड़-बकरियाँ पालते थे।

→ उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र के कई भागों में बंजारा चरवाहा समुदाय तथा राजस्थान के रेगिस्तानों में राइका समुदाय रहता था। औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिन्दगी में बहुत बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने-जाने पर रोक लगने लगी। उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा जिससे उनके पेशे और हुनरों पर बहुत बुरा असर पड़ा।

→ उन्नीसवीं सदी के मध्य तक देश के विभिन्न राज्यों में वन अधिनियमों के बन जाने से चरवाहों की जिन्दगी बदल गई। अब उन्हें जंगलों में जाने से रोक दिया गया जो मवेशियों के लिए चारे के स्रोत थे।

→ भारत के अधिकांश चरवाही क्षेत्रों में उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया।

→ आज भी अफ्रीका के लगभग सवा दो करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए किसी न किसी तरह की चरवाही गतिविधियों पर ही निर्भर हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

→ उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीका में चरवाहों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने-फिरने पर प्रतिबन्ध लगाना प्रारम्भ कर दिया।

→ बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान, तुर्काना आदि अफ्रीका के प्रमुख चरवाहा समुदाय हैं।

→ उपनिवेश बनने से पहले ‘मासाई समाज’ दो सामाजिक श्रेणियों में बँटा हुआ था वरिष्ठ जन (ऐल्डर्स) और योद्धा (वॉरियर्स)। वरिष्ठ जन शासन चलाते थे, जबकि योद्धाओं को मुख्य रूप से लड़ाई लड़ने और कबीले की हिफाजत करने के लिए तैयार किया जाता था।

→ पर्यावरणवादी और अर्थशास्त्री अब इस बात को गम्भीरता से मानने लगे हैं कि घुमंतू चरवाहों की जीवन-शैली संसार के बहुत सारे पहाड़ी और सूखे क्षेत्रों में जीवनयापन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है।

→ सन् 1871 ई.- अंग्रेजी शासक चरवाहों को सन्देह की दृष्टि से देखते थे। अतः सन् 1871 ई. में विदेशी सरकार ने चरवाहों के विरुद्ध एक अपराधी जनजाति अधिनियम पारित कर दिया। इसके अनुसार उन्हें अपराधी समुदायों का दर्जा दिया गया।

→ सन् 1850-1880 ई. – इन दशकों में टैक्स-वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंपा गया था।

→ सन् 1880 ई. – सरकार ने इस दशक में अपने कर्मचारियों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ‘कर’ वसूल करना प्रारम्भ कर दिया था। प्रत्येक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया।

→ सन् 1885 ई. – ब्रिटिश कीनिया एवं जर्मन तांगान्यिका (वर्तमान तंज़ानिया) के बीच एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा खींचकर मासाईलैण्ड के दो बराबर-बराबर टुकड़े कर दिए गए।

→ सन् 1919 ई. – तांगान्यिका ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।

→ सन् 1947 ई. – भारत-पाक विभाजन के पश्चात् ऊँट एवं भेड़ पालने वाले राइका समुदाय के लोग न तो सिन्ध प्रान्त में प्रवेश कर सकते थे और न ही सिन्धु नदी के किनारे अपने पशुओं को चरा सकते थे।

→ मारू – राजस्थान के मरुस्थल का स्थानीय नाम।

→ गुज्जर बक्करवाल-जम्मू – कश्मीर का एक चरवाहा समुदाय, जो भेड़ एवं बकरियाँ पालता है।

→ गद्दी – हिमाचल प्रदेश का एक चरवाहा समुदाय।

→ ढंडी – राजस्थान में ऊँटों के झुण्ड की बस्ती का स्थानीय नाम! मासाई-अफ्रीका का एक चरवाहा समुदाय।

→ धनगर – महाराष्ट्र का भेड़ पालने वाला प्रमुख समुदाय।

→ धार – ऊँचे पर्वतों में स्थित चरागाह।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

→ चलवासी – एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले घुमक्कड़ लोग।

→ चरवाही – वह प्रक्रिया जो जानवरों की देखभाल एवं चराने से सम्बन्धित है।

→ कृषि चरवाही – कृषि के साथ-साथ की जाने वाली चरवाही क्रिया।

→ घुमंतू चरवाहे – घुमंतू चरवाहे वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं रहते बल्कि अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।

→ भाबर – गढ़वाल तथा कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के आस-पास पाए जाने वाला शुष्क वनों का क्षेत्र।

→ लूंठ – फसल की कटाई के बाद जमीन में शेष रह जाने वाले अनाज के पौधों का निचला सिरा या उनकी जड़।

→ चरागाह – भूमि के विशाल भाग में पशुओं के चरने के लिए उगाई गई घास तथा अन्य पौधों वाला क्षेत्र।

→ बुग्याल – ऊँचे पहाड़ों पर स्थित विस्तृत घास के मैदान।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

→ खरीफ – वर्षा ऋतु में बोई जाने वाली तथा सितम्बर तथा अक्टूबर के बीच कटने वाली फसल।

→ रबी – जाड़ों की फसल, जिसे प्रायः मार्च के बाद काटा जाता है।

→ परम्परागत अधिकार – परम्परा और रीति-रिवाज के आधार पर मिलने वाले अधिकार।

→ अपराधी जनजाति अधिनियम – सन् 1871 ई. में, औपनिवेशिक सरकार ने भारत में अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) पारित किया। इस अधिनियम के द्वारा दस्तकारों, व्यापारियों तथा चरवाहों की कुछ जातियों को अपराधी जनजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया।

→ निर्वाह – जीवन की जरूरी आवश्यकताएँ पूर्ण करना।

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए1. भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है
(क) राज्यपाल
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमन्त्री
(घ) मुख्यमन्त्री।
उत्तर:
(ख) राष्ट्रपति।

2. देश में चुनाव करवाने का दायित्व किसका है?
(क) राष्ट्रपति का।
(ख) लोकसभा अध्यक्ष का
(ग) चुनाव आयुक्त का
(घ) प्रधानमन्त्री का।
उत्तर:
(ग) चुनाव आयुक्त का।

3. नियमित अन्तराल पर जनता के प्रतिनिधियों के चुनने की प्रक्रिया कहलाती है
(क) चुनाव
(ख) राजनीतिक दल
(ग) मतदाता
(घ) धाँधली
उत्तर:
(क) चुनाव।

4. जब किसी निर्वाचित सदस्य की मृत्यु अथवा त्यागपत्र देने की स्थिति में रिक्त सीट पर पुनः चुनाव आयोजित किया जाता है, वह कहलाता है
(क) निर्वाचन
(ख) आम चुनाव
(ग) मध्यावधि चुनाव
(घ) उप चुनाव
उत्तर:
(घ) उप चुनाव।

5. चुनाव घोषणा पत्र जारी किया जाता है
(क) राष्ट्रपति द्वारा
(ख) राजनीतिक दल द्वारा
(ग) सरकार द्वारा
(घ) चुनाव आयोग द्वारा
उत्तर:
(ख) राजनीतिक दल द्वारा।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें चुनावों की जरूरत क्यों होती है?
उत्तर:
अपनी पसन्द के प्रतिनिधि का चुनाव करने के लिए।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

प्रश्न 2.
चुनाव का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
चुनाव का अभिप्राय राजनीतिक प्रतियोगिता या प्रतिद्वन्द्विता है।

प्रश्न 3.
चुनावी प्रतियोगिता का कोई एक दोष बताइए।
उत्तर:
प्रत्येक स्थान पर चुनावी प्रतियोगिता लोगों के बीच एकता की भावना को नुकसान पहुँचाती है एवं उन्हें दलों में बाँटती है।

प्रश्न 4.
नियमित चुनाव प्रक्रिया किस तरह जनता के हाथों में नेताओं को दण्डित या पुरस्कृत करने का एक साधन है?
उत्तर:
राजनेता इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि यदि वे जनता की इच्छा के अनुसार मुद्दों को उठाते हैं तो उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी और अगले चुनावों में उनके जीतने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन यदि वे अपने कामकाज से मतदाताओं को सन्तुष्ट करने में असफल रहते हैं तो वे अगला चुनाव नहीं जीत सकते।

प्रश्न 5.
कितने अन्तराल पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव आयोजित किये जाते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक पाँच वर्ष के अन्तराल पर।

प्रश्न 6.
विधायक किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित प्रतिनिधि को विधायक कहते हैं।

प्रश्न 7.
लोकसभा चुनाव के लिए हमारे देश को कितने निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है?
उत्तर:
543 निर्वाचन क्षेत्रों में।

प्रश्न 8.
संसद सदस्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक संसदीय क्षेत्र से चुने गये प्रतिनिधि को संसद सदस्य कहते हैं।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

प्रश्न 9.
वार्ड’ क्या है?
उत्तर:
पंचायत तथा नगर पालिका चुनावों के लिए प्रत्येक पंचायत अथवा शहर को कई छोटे-छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। ऐसे प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र को वार्ड कहते हैं।

प्रश्न 10.
सीट किसे कहते हैं?
उत्तर:
संसदीय या विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र को ! आम बोलचाल की भाषा में सीट कहा जाता है।

प्रश्न 11.
आरक्षित क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों के लिए सुरक्षित रखे गये चुनाव क्षेत्र को आरक्षित क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 12.
लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए कितनी सीटें आरक्षित हैं?
उत्तर;
लोकसभा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए क्रमशः 84 एवं 47 सीटे आरक्षित हैं।

प्रश्न 13.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में लोकसभा की सीटों की संख्या सर्वाधिक है?
उत्तर:
दिल्ली (7)

प्रश्न 14.
किस राज्य में लोकसभा की सीटों की संख्या सर्वाधिक है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश (80)

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

प्रश्न 15.
मतदाता सूची क्या है?
उत्तर:
मतदान की योग्यता रखने वाले लोगों की सूची को मतदाता सूची कहते हैं।

प्रश्न 16.
चुनाव में कौन मतदान कर सकता है?
उत्तर:
हमारे देश के सभी नागरिक जिनकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, जाति, धर्म या लिंग के आधार पर बिना भेदभाव के चुनाव में मतदान कर सकता है।

प्रश्न 17.
किसे मतदान से वंचित किया जा सकता है?
उत्तर:
अपराधियों और दिमागी असन्तुलन वाले – कुछ लोगों को विशेष परिस्थितियों में मतदान के अधिकार से वंचित किया जा सकता है।

प्रश्न 18.
चुनाव कौन लड़ सकता है?
उत्तर:
कोई भी मतदाता जिसकी आयु 25 वर्ष या – उससे अधिक है, चुनाव लड़ सकता है।

प्रश्न 19.
मतदाता सूची का पूर्णतया नवीनीकरण – कब किया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक पाँच वर्ष में मतदाता सूची का पूर्णतया नवीनीकरण किया जाता है।

प्रश्न 20.
राजस्थान में लोकसभा की कुल कितनी सीटें हैं?
उत्तर:
राजस्थान में लोकसभा की कुल 25 सीट हैं।

प्रश्न 21.
नामांकन पत्र किसे भरना पड़ता है?
उत्तर:
चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्येक उम्मीदवार को एक नामांकन पत्र भरना पड़ता है।

प्रश्न 22.
टिकट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में अपने उम्मीदवार मनोनीत किये जाते हैं जिन्हें पार्टी का चुनाव चिह्न और समर्थन मिलता है। पार्टी के इस मनोनयन को आम बोलचाल की भाषा में ‘टिकट’ कहते हैं।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

प्रश्न 23.
चुनाव का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
चुनाव का मुख्य उद्देश्य जनता को अपनी पसंद का प्रतिनिधि और सरकार चुनाव करने का अवसर देना है।

प्रश्न 24.
हमारे देश में चुनावों का आयोजन कौन करता है?
उत्तर:
चुनाव आयोग।

प्रश्न 25.
आप कैसे कह सकते हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त किसी भी तरह के दबाव से मुक्त है?
उत्तर;
राष्ट्रपति द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जाती है एवं एक बार नियुक्त हो जाने पर वह राष्ट्रपति या सरकार के प्रति उत्तरदायी नहीं रहता है। सरकार के लिए भी उसके कार्यकाल से पहले उसे हटाना लगभग असम्भव है।

प्रश्न 26.
चुनाव ड्यूटी पर तैनात अधिकारी व कर्मचारी किसके नियन्त्रण में रहकर कार्य करते हैं?
उत्तर:
चुनाव आयोग के।

प्रश्न 27.
आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चुनाव प्रचार के लिए किसी पार्टी द्वारा धर्मस्थल का उपयोग करना।

प्रश्न 28.
भारत के प्रथम निर्वाचन आयुक्त कौन थे और प्रथम चुनाव कब हुए?
उत्तर:
सुकुमार सेन भारत के प्रथम निर्वाचन आयुक्त थे। सन् 1952 में प्रथम चुनाव हुए।

प्रश्न 29.
चुनाव घोषणा पत्र से क्या अभिप्राय
उत्तर:
सभी राजनीतिक दल चुनाव के समय जनता के समक्ष अपना भावी कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। ये कार्यक्रम एवं नीतियाँ राजनीतिक दल विशेष का चुनाव घोषणा पत्र कहलाता है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Civics Chapter 3 चुनावी राजनीति

प्रश्न 30.
चुनाव प्रचार के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए जाते हैं?
उत्तर:

  1. चुनाव घोषणा पत्र
  2. चुनाव सभा व जुलूस आयोजित करना
  3. घर-घर जाकर मत माँगना।

प्रश्न 31.
कानून द्वारा वर्जित चुनाव के किन्हीं दो भ्रष्ट तरीकों को लिखिए।
उत्तर:

  1. मतदाताओं को रिश्वत देना
  2. मतदाताओं को डराना या धमकाना।

प्रश्न 32.
चुनाव के किन्हीं चार चरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. चुनाव प्रक्रिया की घोषणा
  2. नामांकन पत्र दाखिल करना
  3. चुनाव घोषणा पत्र जारी करना F
  4. मतदान।

प्रश्न 33.
मतपत्र क्या है? उस मशीन का नाम बताइए जिसने इन मतपत्रों का स्थान ले लिया है?
उत्तर:
वह प्रपत्र जिस पर चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशियों के नाम, उनकी पार्टियों के नाम एवं चुनाव चिह्न अंकित होते हैं उसे मतपत्र कहते हैं। मतपत्रों का स्थान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (E.V.M.) ने ले लिया है।

प्रश्न 34.
जब राजकीय अधिकारी चुनावों के समय कार्य करते हैं, नियन्त्रण में होते हैं? कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनावों के लिए कार्य करते समय राजकीय अधिकारी निर्वाचन आयोग के नियन्त्रण में होते हैं। ऐसा स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव करने के लिए किया जाता है । ताकि सत्ताधारी दल सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न कर सके।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनता विधायिकाओं के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव किन-किन स्तरों पर करती है?
उत्तर:
जनता निम्नलिखित स्तरों पर विधायिकाओं के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है

  1. राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा के प्रतिनिधियों का चुनाव करती है।
  2. राज्य स्तर पर विधानसभा के प्रतिनिधियों का चुनाव करती है।
  3. स्थानीय स्तर पर जनता ग्राम पंचायतों एवं नगरीय निकायों, जैसे-नगर पालिका आदि के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करती है।

प्रश्न 2.
चुनाव क्या है? चुनाव में मतदाता किस तरह चुनाव करते हैं?
उत्तर:
नियमित अंतराल पर अपने प्रतिनिधियों के चुनने की व्यवस्था को चुनाव कहते हैं। चुनाव में मतदाता कई तरह से चुनाव करते हैं

  1. वे अपने लिए कानून बनाने वाले का चुनाव कर सकते हैं।
  2. वे सरकार बनाने तथा बड़े निर्णय लेने वालों का चयन कर सकते हैं।
  3. वे सरकार और उसके द्वारा बनने वाले कानूनों का दिशा-निर्देश करने वाली पार्टी का चुनाव कर सकते हैं।

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प्रश्न 3.
लोकतान्त्रिक चुनावों के लिए आवश्यक न्यूनतम शर्ते क्या हैं?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक चुनावों के लिए आवश्यक न्यूनतम शर्ते अग्रलिखित हैं

  1. जनता को चुनाव करने का अवसर मिलना अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति के पास एक मत हो और प्रत्येक मत का मूल्य समान होना चाहिए।
  2. चुनाव में विकल्प उपलब्ध होने चाहिए अर्थात् दल और उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की आजादी हो तथा वे मतदाताओं के सामने कुछ विकल्प रख सकें।
  3. जनता को चुनाव का अवसर नियमित अन्तराल पर मिलते रहना चाहिए।
  4. जनता द्वारा वरीयता प्राप्त उम्मीदवारों का चयन होना चाहिए।
  5. चुनाव स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष ढंग से कराए जाने चाहिए।

प्रश्न 4.
आरक्षित क्षेत्र बनाने की क्यों आवश्यकता पड़ी?
उत्तर:
हमारे संविधान निर्माताओं को चिन्ता थी कि खुले चुनावी मुकाबले में कुछ कमजोर समूहों के लोग लोकसभा तथा विधानसभाओं में नहीं पहुंच पायेंगे। उनके पास चुनाव लड़ने और जीतने लायक जरूरी संसाधन, शिक्षा व सम्पर्क हैं ही नहीं। अतः विधायी निकायों में उनकी उपस्थिति को सुरक्षित करने के लिए आरक्षित क्षेत्रों का निर्माण किया गया जिनसे केवल उन्हीं वर्गों के लोग चुनाव लड़ सकते हैं।

प्रश्न 5.
अपने नामांकन पत्र में प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा कौन-कौन सी सूचनाएँ अनिवार्य रूप से दी जाती हैं? इसका क्या लाभ है?
उत्तर:
अपने नामांकन पत्र में प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा निम्नलिखित सूचनाएँ अनिवार्य रूप से दी जाती हैं

  1. उम्मीदवार के विरुद्ध चल रहे गम्भीर आपराधिक मामले।
  2. उम्मीदवार और उसके परिवार के सदस्यों की सम्पत्ति और देनदारियों का विवरण।
  3. उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता। इन सूचनाओं के सार्वजनिक होने से मतदाताओं को उम्मीदवारों से उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर अपना निर्णय लेने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 6.
जब देश की सभी नौकरियों के लिए किसी न किसी किस्म की शैक्षिक योग्यता आवश्यक है तो विधायक या सांसद जैसे महत्वपूर्ण पदों के चुनाव के लिए किसी किस्म की शैक्षिक योग्यता की जरूरत क्यों नहीं है ?
उत्तर:
सभी तरह के कार्य केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर नहीं होते हैं, जैसे-भारतीय क्रिकेट टीम में चनाव के लिए डिग्री की नहीं अच्छा क्रिकेट खेलने की योग्यता आवश्यक है। इसी प्रकार विधायक या सांसद की सबसे बड़ी योग्यता यह है कि वह अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को समझे, उनकी चिन्ताओं को समझे एवं उनके हितों का प्रतिनिधित्व करे। वे यह काम कर रहे हैं अथवा नहीं इसकी परीक्षा उनके लाखों वोटर पाँच वर्ष तक लेते रहते हैं।

अगर शिक्षा या डिग्री की प्रासंगिकता हो भी तो यह जिम्मेदारी लोगों पर छोड़ देनी चाहिए कि वे शैक्षिक योग्यता को कितना महत्व देते हैं। हमारे देश में शैक्षिक योग्यता की शर्त लगाना एक अन्य कारण से भी लोकतन्त्र की मूलभावना के खिलाफ होगा। इसका मतलब होगा देश के अधिकांश लोगों को चुनाव लड़ने के मौलिक अधिकार से वंचित करना, जैसे यदि उम्मीदवारों के लिए बी. ए., बी. कॉम या बी. एस.-सी. की स्नातक डिग्री को भी अनिवार्य किया गया तो 90 प्रतिशत से अधिक नागरिक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएँगे।

प्रश्न 7.
विभिन्न चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा दिये गये कुछ सफल नारों का विवरण दीजिए।
उत्तर:

  1. 1971 के लोकसभा चुनावों में इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था।
  2. 1977 के लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने ‘लोकतन्त्र बचाओ’ का नारा दिया था।
  3. 1977 में पश्चिमी बंगाल के विधानसभा चुनावों में वामपंथी दलों ने ‘जमीन जोतने वाले की’ का नारा दिया था।
  4. 1983 के आन्ध्र प्रदेश के विधानसभा चुनावों में एन. टी. रामाराव के नेतृत्व में तेलुगू देशम पार्टी ने ‘तेलुगू स्वाभिमान’ का नारा दिया था।

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प्रश्न 8.
एक आदर्श चुनाव आचार संहिता के तहत उम्मीदवारों एवं पार्टियों को कौन-कौन से कार्य करने की मनाही है?
उत्तर:
एक आदर्श चुनाव आचार संहिता के तहत उम्मीदवारों एवं पार्टियों को निम्नलिखित कार्य करने की मनाही

  1. चुनाव प्रचार के लिए किसी धर्मस्थल का उपयोग करना।
  2. सरकारी वाहन, हवाई जहाज या अधिकारियों व कर्मचारियों का चुनाव में उपयोग करना।
  3. चुनाव की घोषणा होने के पश्चात् सत्ताधारी पार्टी के मन्त्री द्वारा किसी बड़ी योजना का शिलान्यास करना, बड़े नीतिगत फैसले लेना अथवा जनता को सुविधाएँ देने वाले वायदे करना।

प्रश्न 9.
चुनाव कानूनों के अनुसार कोई भी उम्मीदवार या पार्टी कौन-कौन से कार्य नहीं कर सकती है?
उत्तर:
चुनाव कानूनों के अनुसार कोई भी उम्मीदवार या पार्टी निम्नलिखित कार्य नहीं कर सकती है

  1. मतदाता को प्रलोभन देना, घूस देना अथवा डराना-धमकाना।
  2. उनसे जाति या धर्म के नाम पर वोट माँगना।
  3. चुनाव अभियान में राजकीय संसाधनों का उपयोग करना।
  4. लोकसभा चुनाव में एक निर्वाचन क्षेत्र में 25 लाख अथवा विधान सभा चुनाव में 10 लाख रुपये से अधिक खर्च करना।

प्रश्न 10.
चुनावों के दौरान अखबार और टीवी चैनलों पर दी जाने वाली अधिकांश खबरों में किस तरह की गड़बड़ियों और धाँधलियों की सूचना होती है ?
उत्तर:

  1. मतदाता सूची में फर्जी नाम डालना एवं सही नाम को गायब करना।
  2. सत्ताधारी दल द्वारा सरकारी सुविधाओं और अधिकारों का दुरुपयोग करना।
  3. बड़ी-बड़ी पार्टियों एवं धनिक वर्ग के उम्मीदवारों द्वारा बड़े पैमाने पर धन खर्च करना।
  4. मतदान के दिन चुनावी धाँधली/मतदाताओं को डराना और फर्जी मतदान करना।

प्रश्न 11.
भारत में चुनाव परिणामों से कैसे सिद्ध होता है कि चुनावों का आयोजन स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष रूप से हुआ है?
उत्तर:
भारत में चुनावों का परिणाम यह प्रदर्शित करता है कि

  1. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर सत्ताधारी दल अक्सर चुनाव हारते हैं।
  2. वोट खरीदने में सक्षम धनी उम्मीदवार अथवा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार प्रायः चुनाव हारते हैं।
  3. यदि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो हारी हुई पार्टी द्वारा चुनाव के परिणामों को जनादेश मानकर स्वीकार किया जाता है। इससे सिद्ध होता है कि भारत में चुनावों का आयोजन स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष हुआ है।

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प्रश्न 12.
उदाहरण देकर बताइए कि चुनाव आयोग एक स्वतन्त्र संस्था है?
उत्तर:
निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है कि चुनाव आयोग एक स्वतन्त्र संस्था है

  1. चुनाव आयोग आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करने वाले उम्मीदवारों और पार्टियों को सजा देता है।
  2. प्रायः देखा जाता है कि चुनाव के दौरान गलती करने पर चुनाव आयोग सरकार और प्रशासन को फटकार लगाता है।
  3. अगर चुनाव आयोग यह सोचता है कि कुछ मतदान केन्द्रों पर या सम्पूर्ण चुनाव क्षेत्र में मतदान ठीक ढंग से नहीं हुआ तो ऐसी स्थिति में पुनर्मतदान का आदेश दे सकता है।
  4. मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना लगभग असम्भव होता है। अत: वह स्वतंत्रतापूर्वक कार्य कर सकता है।

प्रश्न 13.
भारत में चुनाव आयोग की शक्तियों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत में चुनाव आयोग की शक्तियाँ निम्नलिखित हैं

  1. चुनाव आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करने से लेकर चुनावी परिणामों के आने तक प्रत्येक पहलू की देखरेख एवं गतिविधियों पर प्रभावी नियन्त्रण रखने का कार्य करता है।
  2. यह आदर्श चुनाव संहिता लागू कराता है एवं इसका उल्लंघन करने वाले उम्मीदवार और पार्टियों को सजा भी देता है।
  3. चुनाव के दौरान चुनाव आयोग सरकार को कुछ दिशा-निर्देशों का पालन करने का आदेश दे सकता है। इसमें सरकार द्वारा चुनाव जीतने के लिए चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना एवं अधिकारियों का स्थानान्तरण करना भी सम्मिलित है।
  4.  चुनाव कार्य हेतु लगाये गये अधिकारी एवं कर्मचारियों पर सरकार का नियन्त्रण न होकर चुनाव आयोगं का नियन्त्रण होता है।

प्रश्न 14.
चुनावी सहभागिता किस प्रकार दर्शाती है कि चुनाव प्रक्रिया का आयोजन स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष हुआ है?
उत्तर:

  1. भारत में पिछले लगभग 70 वर्षों में चुनावी सहभागिता में या तो वृद्धि हुई है या यह स्थिर बनी हुई है।
  2. भारत में निर्धन, अविकसित एवं कमजोर वर्ग के लोग अमीर और सुविधाभोगी लोगों की तुलना में मतदान में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
  3. भारत में आम जनता चुनावों को बहुत महत्व देती है। उनका मानना है कि चुनावों की सहायता से वे राजनीतिक दलों पर अपने अनुकूल नीति एवं कार्यक्रम बनाने के लिए दबाव डाल सकते हैं। इससे सिद्ध होता है कि भारत में चुनाव प्रक्रिया का आयोजन स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष हुआ है।

प्रश्न 15.
पार्टी चुनाव चिह्न क्या होता है एवं इसे क्यों आवंटित किया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को चुनाव आयोग द्वारा एक चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है। चुनावों के दौरान स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ने वाले (निर्दलीय) उम्मीदवारों को भी आयोग द्वारा चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है। एक ही चुनाव क्षेत्र में दो उम्मीदवारों के एक जैसे चुनाव चिह्न नहीं हो सकते। भारत में बहुत अधिक जनसंख्या अशिक्षित है किन्तु वे चुनाव चिह्नों की सहायता से पार्टी एवं उम्मीदवारों को सरलता से पहचान कर सकते हैं एवं अपने मत का उचित उपयोग कर सकते हैं। इसलिए चुनाव चिह्न का आबंटन किया जाता है।

प्रश्न 16.
मतदान समाप्ति से लेकर वोटों की गिनती तक की प्रक्रिया को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मतदान समाप्ति से लेकर वोटों की गिनती तक की निम्नलिखित प्रक्रिया होती है

  1. एक बार मतदान खत्म हो जाने के पश्चात् सभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को सील कर एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाता है।
  2. फिर एक निश्चित दिनांक को एक चुनाव क्षेत्र की सभी मशीनों को एक साथ खोला जाता है और प्रत्येक उम्मीदवार को प्राप्त मतों की गिनती की जाती है।
  3. मतदान स्थल पर सभी दलों के एजेंट रहते हैं जिससे मतगणना का कार्य निष्पक्ष ढंग से हो सके।
  4. चुनाव क्षेत्र में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है।
  5. सामान्यतया आम चुनाव में सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतगणना एक ही तारीख को होती है।

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प्रश्न 17.
क्या भारत में चुनाव बहुत मँहगे हैं? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में चुनाव करवाने पर बहुत ज्यादा राशि खर्च होती है जैसे सन् 2014 में लोकसभा चुनावों पर ही सरकार ने लगभग 3,500 करोड़ रुपये खर्च किए। यदि इसका हिसाब लगाया जाए तो मतदाता सूची में दर्ज प्रत्येक नाम पर 40 रु. के लगभग खर्च हुआ। विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों ने चुनाव में सरकार से भी ज्यादा व्यय किया। एक मोटे अनुमान के अनुसार सरकार, पार्टियों और उम्मीदवारों का कुल खर्च लगभग 30,000 करोड़ रु. हुआ होगा अर्थात् प्रति मतदाता पर लगभग 500 रु. व्यय हुए।

प्रश्न 18.
स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनावों के मार्ग में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनावों के मार्ग में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं
1. चुनावों में धन का अत्यधिक प्रयोग:
बहुत अधिक धनी उम्मीदवार एवं दलों को अपनी जीत का निश्चय नहीं होता, परन्तु वे छोटे दलों एवं निर्दलीय उम्मीदवारों की अपेक्षा अधिक व अनुचित लाभ उठा लेते हैं।

2. भाई-भतीजावाद:
कुछ परिवार राजनीतिक पार्टियों में सर्वोच्च होते हैं इस प्रकार टिकट इन्हीं परिवारों के रिश्तेदारों में बाँट दिये जाते हैं।

3. अपराधियों का चुनाव लड़ना:
देश के कुछ भागों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार चुनाव की दौड़ में से अन्य को हटाकर प्रमुख पार्टियों से टिकट प्राप्त कर लेते हैं।

4. भ्रष्ट राजनीतिज्ञ:
चुनाव लड़ने वाले अधिकांश उम्मीदवार भ्रष्ट राजनीतिज्ञ होते हैं एवं अधिकांश जनता के लिए चुनावों में उनके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है।

JAC Class 9 Social Science Important Questions

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ जंगलों से हमें कागज, मसाले, गोंद, शहद, कॉफी, चाय, रबड़, चमड़ा, जड़ीबूटी, बाँस, कोयला, फल-फूल, पशु-पक्षी, फर्नीचर एवं जलाने हेतु लकड़ी आदि प्राप्त होते हैं।

→  औद्योगीकरण के दौर में सन् 1700 ई. से सन् 1995 ई. के मध्य 139 लाख वर्ग किमी. वन क्षेत्र कृषि, चरागाहों, ईंधन की लकड़ी एवं उद्योगों के कच्चे माल के लिए साफ कर दिया गया।

→ वन विनाश की समस्या प्राचीनकाल से चली आ रही है। वनों के लुप्त होने को सामान्यत: वन विनाश कहते हैं।

→ सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के लगभग ! भाग पर ही खेती होती थी आज यह आँकड़ा लगभग आधे तक पहुँच गया है।

→  सन् 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़त हुई।

→ खेती के विस्तार को हम विकास का सूचक मानते हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जमीन को जोतने से पहले जंगलों की कटाई करनी पड़ती है।

→  भारत में रेल-लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला, सन् 1946 तक इन रेल लाइनों की लम्बाई 7,65,000 कि. मी. तक बढ़ चुकी थी। इनके विस्तार हेतु जमीन एवं स्लीपरों के लिए बड़ी मात्रा में पेड़ों को काटा गया।

→ पेड़ों की अंधाधुध कटाई पर रोक लगाने के लिए अंग्रेजों ने जर्मन विशेषज्ञ डायट्रिच भेंडिस को देश का पहला बन महानिदेशक नियुक्त किया। उसने सन् 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की।

→ वन अधिनियम द्वारा जंगलों को आरक्षित, सुरक्षित एवं ग्रामीण इन तीन श्रेणियों में बाँटा गया।

→ सरकार ने वनों की सुरक्षा के लिए घुमंतू कृषि पर रोक लगाने का फैसला किया। जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटकर और जलाकर उन पर खेती करना घुमंतू कृषि कहलाता है।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ सन् 1905 ई. में जब ब्रिटिश सरकार ने वनों के 2/3 भाग को आरक्षित करने, घुमन्तू कृषि को रोकने, शिकार करने एवं अनेक वन्य उत्पादों के संग्रह पर प्रतिबन्ध लगाने जैसे प्रस्ताव रखे तो बस्तर के लोग चिन्तित हो गए क्योंकि उन्हें अपनी आजीविका इन वन्य उत्पादों से ही प्राप्त होती थी। अंग्रेजों की नजर में बड़े जानवर जंगली, बर्बर और आदि समाज के प्रतीक थे इसलिए उन्होंने बाघ, भेड़िये तथा दूसरे बड़े जानवरों को मारने एवं शिकार करने को प्रोत्साहित किया।

→ जावा को आजकल इंडोनेशिया के चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है लेकिन एक जमाने में यह क्षेत्र वनाच्छादित था। उन्नीसवीं सदी में डच उपनिवेशकों ने जावा में वन कानून लागू कर ग्रामीण लोगों के वनों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अब वनों में लकड़ी केवल विशिष्ट उद्देश्यों जैसे-नाव या घर बनाना आदि के लिए चुने हुए जंगलों से ही काटने की इजाजत दी गई। डचों ने वहाँ वन प्रबंधन की शुरुआत की।

→ अस्सी के दशक से एशिया और अफ्रीका की सरकारों को यह समझ में आने लगा कि वैज्ञानिक वानिकी और वन समुदायों को जंगल से बाहर रखने की नीतियों के चलते बार-बार टकराव पैदा होते हैं अत: सरकार ने यह मान लिया कि जंगलों के संरक्षण हेतु प्रदेशों में रहने वालों की मदद लेनी होगी।

→  सन् 1600 ई. – भारत के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी।

→  सन् 1700-1995 ई. – इस काल के मध्य 139 लाख वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र अर्थात् विश्व के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक उपयोग, कृषि कार्य, चरागाहों एवं ईंधनों की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया।

→  सन् 1820 ई. – सन् 1820 ई. के दशक में इंग्लैण्ड के खोजी दस्ते भारत की वन-सम्पदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए।

→  सन् 1850 ई. -सन् 1850 ई. के दशक में औपनिवेशिक विस्तार के लिए रेल-लाइनों के प्रसार का कार्य एवं लकड़ी की माँग में वृद्धि हुई।

→  सन् 1860 ई. – सन् 1860 ई. के दशक में भारत में रेल-लाइनों का जाल तेजी से फैला।

→  सन् 1864 ई. – चैंडिस द्वारा भारतीय वन सेवा की स्थापना।

→  सन् 1865 ई. – भारत में वन अधिनियम लागू।

→  सन् 1878 ई. – वन अधिनियम में प्रथम बार संशोधन किया गया।

→  सन् 1880-1920 ई. – खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई।

→  सन् 1899-1900 ई. – औपनिवेशिक सरकार के काल में भारत में भयंकर अकाल।

→  सन् 1906 ई. – देहरादून में इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना। अब इसको वन अनुसंन्धान संस्थान कहा जाता है तथा इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।

→  सन् 1907-1908 ई. – औपनिवेशिक सरकार के काल में पुन: अकाल का दौर।

→  सन् 1910 ई. – बस्तर रियासत में विद्रोह।

→  सन् 1927 ई. – वन अधिनियम में दूसरी बार संशोधन किया गया।

→ डायट्रिच बैंडिस – जर्मन विशेषज्ञ, जिसे भारत का प्रथम वन महानिदेशक नियुक्त किया गया।

→ जॉर्ज यूल – एक अंग्रेज अफसर जिसने 400 बाघों को अपना शिकार बनाया।

→ सुरोन्तिको सामिन – इन्होंने जावा में डच सरकार के विरुद्ध आन्दोलन किया तथा वनों पर राज्य के अधिकार को नहीं माना।

→ चरवाहे – ऐसे लोग जो भेड़-बकरियाँ एवं पशुओं को चराने के लिए इधर-उधर घूमते रहते हैं।

→ विलुप्त प्रजातियाँ – पौधों और पशुओं की ऐसी प्रजातियाँ जो बिल्कुल समाप्त हो चुकी हैं।

→ वनोन्मलन – वनोन्मूलन का अर्थ है-वन विनाश या समाप्ति। कृषि के विस्तार, रेलवे के विस्तार, जलयान-निर्माण आदि कई कार्यों के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा गया।

→ वैज्ञानिक वानिकी – वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई करके उनके स्थान पर पंक्तिबद्ध तरीके से एक निश्चित प्रजाति के पौधों को लगाना।

→ वन उत्पाद – वनों से प्राप्त होने वाली विभिन्न उपयोगी वस्तुएँ।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ वन अधिनियम – औपनिवेशिक शासकों ने वनों की उपयोगिता को जानते हुए वन अधिनियम पारित करके वनों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

→ सुरक्षित वन – वे वन, जिनमें पशुओं को चराने की अनुमति सामान्य प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है।

→ आरक्षित वन – वे वन, जो व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इमारती लकड़ी का उत्पादन करते हैं। इन वनों में किसी भी प्रकार की कृषि करने की अनुमति नहीं होती।

→ स्लीपर – रेल की पटरी के आर-पार लगे लकड़ी के तख्ते जो पटरियों को उनकी जगह पर रोके रखते हैं।

→ परती-भूमि – वह भूमि, जिसकी उर्वरता बढ़ाने के लिए उसे कुछ समय तक जोता नहीं जाता।

→ वन-ग्राम – वे ग्राम जिन्हें इस शर्त पर आरक्षित वनों में बसने दिया जाता था कि गाँववासी पेड़ों को काटने, उनकी ढुलाई तथा वनों को आग से बचाने में वन विभाग के लिए मुफ्त में काम करेंगे।

→ लेटेक्स – रबड़ की आपूर्ति के लिए जंगली रबड़ के वृक्षों से प्राप्त होने वाला पदार्थ।

→ इजारेदारी – एकाधिकार।

→ व्यावसायिक वानिकी – जब वनों को केवल व्यावसायिक बिक्री एवं मुनाफा कमाने के उद्देश्य से उद्योग के रूप में संचालित किया जाए तो उसे व्यावसायिक वानिकी कहा जाता है।

→ बागान – जब बहुत बड़े स्तर पर एक विशाल क्षेत्र पर एक ही तरह के पेड़ लगाये जाएँ, विशेषकर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए तो उसे बागान कहा जाता है, जैसे-असम के चाय बागान।

→ झूम कृषि – इस कृषि में वन के कुछ भागों को काट कर बारी-बारी से जला दिया जाता है। पहली मानसून वर्षा के पश्चात् इस राख में बीज बोए जाते हैं तथा अक्टूबर-नवम्बर में फसल काटी जाती है। ऐसे खेतों को कुछ वर्षों के लिए जोता जाता है तथा फिर कई वर्षों तक खेतों को खाली छोड़ दिया जाता है ताकि वन फिर से पनप जाएँ। इन भूखण्डों में मिली-जुली फसलें उगाई जाती हैं।

→ भारतीय वन अधिनियम,1878 – इस अधिनियम के अन्तर्गत वनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया-आरक्षित, संरक्षित एवं गाँव वन।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ ब्लैण्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली – इस प्रणाली का आरम्भ जावा में किया गया, जिसके अन्तर्गत कुछ ग्रामीणों को इस शर्त पर करों में छूट दी गयी थी कि वे वन काटने एवं इमारती लकड़ी ढोने के लिए भैंसें उपलब्ध कराने का काम मुफ्त करेंगे।

→ बस्तर – वर्तमान में बस्तर छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है। वन नियन्त्रण से प्रभावित यहाँ के आदिवासी कबीलों ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह किए। इन विद्रोहों का आरम्भ धुरवा समुदाय द्वारा हुआ था।

→ छोटा नागपुर – बिरसा मुण्डा ने छोटा नागपुर में वन समुदाय के विद्रोह का नेतृत्व किया था।

→ सन्थाल परगना – वन्य समुदाय के नेता सीधू एवं कानू के नेतृत्व में सन्थाल परगना में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह किया गया।

→ सामिन आन्दोलन – जावा के वन्य लोगों का डच सरकार के विरुद्ध एक आन्दोलन था। इसका नेतृत्व सुरोन्तिको सामिन ने किया।

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय 

JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

→ बीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जर्मनी एक ताकतवर साम्राज्य था।

→ जर्मनी ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर रूस, फ्रांस एवं इंग्लैण्ड के विरुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध (सन् 1914-1918 ई.) लड़ा था। इस युद्ध में जर्मनी की बुरी तरह पराजय हुई।

→ जून सन् 1919 ई. में मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय में हुई शान्ति सन्धि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर एवं अपमानजनक थी। मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी की सेना भंग कर दी। उस पर छ: अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया।

→ समाजवादियों, डेमोक्रेट्स और कैथलिक गुटों ने वाइमर में एकत्र होकर तत्कालीन शासन व्यवस्था का विरोध करते हुए लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना का फैसला लिया।

→ पुराने सैनिकों की मदद से इस विद्रोह को कुचल कर स्पार्टकिस्टों ने जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी की नींव डाली।

→ 1929 ई. में अमेरिका में आई मंदी का सबसे बुरा प्रभाव जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर पड़ा। चारों तरफ गहरी हताशा का माहौल था तथा लोग बेरोजगार हो रहे थे।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय 

→ अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज में गहराते जा रहे इस संकट ने हिटलर के सत्ता में पहुँचने का रास्ता साफ कर दिया।

→ सन् 1889 ई. को ऑस्ट्रिया में जन्मे एडोल्फ हिटलर का प्रारम्भिक जीवन बहुत गरीबी में गुजरा। सन् 1912 ई. में वह जर्मनी चला गया था। उसने सैनिक के रूप में प्रथम
विश्वयुद्ध में भाग लिया एवं उसे उत्कृष्ट सेवाओं के लिए विशिष्ट पदक भी मिला था।

→ सितम्बर सन् 1919 ई. में हिटलर ने राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन कामगार पार्टी की स्थापना की। बाद में यही नात्सी पार्टी कहलाई।

→ 30 जनवरी, सन् 1933 ई. को राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने हिटलर को चांसलर का पद ग्रहण करने का निमन्त्रण दिया।

→ सत्ता प्राप्त कर लेने के बाद हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को भंग करना शुरू कर दिया तथा 28 फरवरी सन् 1933 को जारी अग्नि अध्यादेश के द्वारा अभिव्यक्त, प्रेस तथा सभा करने के अधिकारों को अनिश्चित काल के लिए निलम्बित कर दिया।

→ 3 मार्च सन् 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम द्वारा तानाशाही स्थापित कर दी।

→ हिटलर ने एक जन, एक साम्राज्य, एक नेता का नारा दिया तथा राईनलैंड, ऑस्ट्रिया तथा चेकोस्लोवाकिया पर कब्जा कर लिया।

→ सन् 1940 तक हिटलर अपनी ताकत के शिखर पर था। जून 1941 में उसने सोवियत संघ पर हमला कर दिया। यह द्वितीय विश्वयुद्ध मई 1945 में हिटलर की पराजय और जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराने के साथ खत्म हुआ।

→ नात्सी शासन ने भाषा और मीडिया का बड़ी होशियारी से इस्तेमाल किया और उसका जबरदस्त फायदा उठाया।

→ जर्मनी के बहुत से लोगों ने पुलिस दमन और मौत की आशंका के बावजूद नात्सीवाद का विरोध किया था।

→ 1899 ई. – ऑस्ट्रिया में हिटलर का जन्म हुआ।

→ 1अगस्त,सन् 1914 ई. – प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ।

→ 9 नवम्बर, सन् 1918 ई. – जर्मनी की पराजय एवं प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति, वाइमर गणराज्य की स्थापना।

→ 28 जून, सन् 1919 ई. – जर्मनी वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर।

→ सन् 1922 ई. – नात्सी यूथ लीग का गठन।

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→ सन् 1929 ई. – अमेरिका का वॉलस्ट्रीट शेयर एक्सचेंज धराशायी।

→ 30 जनवरी, सन् 1933 ई. – हिटलर जर्मनी का चांसलर बना।

→ 28 फरवरी,सन् 1933 ई. – जर्मनी में अग्नि अध्यादेश के तहत् मुख्य नागरिक अधिकारों का अनिश्चित काल के लिए निलम्बन।

→ 3 मार्च, सन् 1933 ई. – जर्मनी में प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम पारित।

→ सन् 1938 ई. – जर्मनी द्वारा ऑस्ट्रिया पर अधिकार।

→ 1 सितम्बर,सन् 1939 ई. – जर्मनी द्वारा पोलैण्ड पर हमला, द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ।

→ 22 जून, सन् 1941 ई. – जर्मन सेनाओं द्वारा सोवियत संघ पर हमला।

→ 23 जून, सन् 1941 ई. – बड़े पैमाने पर यहूदियों की हत्या।

→ 8 दिसम्बर, सन् 1941 ई. – संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेना।

→ 27 जनवरी, सन् 1945 ई. – सोवियत सेनाओं द्वारा औषावित्स को मुक्त कराना।

→ 8मई,सन् 1945 ई. – यूरोप के मित्र राष्ट्रों की विजय तथा जर्मनी का समर्पण।

→ एडोल्फ हिटलर – जर्मनी का तानाशाह शासक।

→ नात्सी – ‘नात्सियोणाल’ शब्द हिटलर की पार्टी के नाम का पहला शब्द था इसलिए इस पार्टी के लोगों को नात्सी कहा जाता था।

→ ह्यालमार शाख्त – हिटलर के शासनकाल का प्रमुख अर्थशास्त्री।

→ ग्योबल्स – हिटलर का प्रचार मंत्री जिसने हिटलर के साथ परिवार सहित आत्महत्या कर ली।

→ चार्ल्स डार्विन – एक प्रकृति विज्ञानी और डार्विनवाद का प्रणेता।

→ नाजीवाद – यह शब्द हिटलर द्वारा स्थापित दल अर्थात् नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी के नाम से प्रचलित हुआ।

→ हर्जाना – किसी गलती के बदले दण्ड के रूप में नुकसान की भरपाई करना।

→ प्रोपेगैंडा – जनमत को प्रभावित करने के लिए किया जाने वाला खास तरह का प्रचार।

→ जिप्सी – विशेष सामुदायिक पहचान वाले लोगों के समूह।

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→ सूदखोर – अत्यधिक ब्याज वसूल करने वाले महाजन। मेन काम्फ हिटलर द्वारा जेल में लिखी पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ (Mein Kampf)।

→ यन्त्रणा शिविर – यन्त्रणा शिविर जर्मनी में हिटलर द्वारा स्थापित किए गए थे। इनमें नात्सीवाद के विरोधियों को यातनाएँ दी जाती थीं।

→ मित्र राष्ट्र – चार देशों का समूह अर्थात् ब्रिटेन, फ्रांस, रूस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका। जो धुरी शक्तियों अर्थात् जर्मनी, इटली तथा जापान के विरुद्ध द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े।

→ धुरी शक्तियाँ – द्वितीय विश्वयुद्ध में तीन देशों का समूह जर्मनी, इटली एवं जापान।

→ वर्साय की संधि – प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हस्ताक्षरित की हुई एक शक्ति सन्धि थी, जिसके अन्तर्गत जर्मनी पर अपमानजनक शर्ते थोपी गईं।

→ कंसन्देशन कैम्प – ऐसे स्थान जहाँ बिना किसी कानूनी कार्यवाही के लोगों को कैद रखा जाता था। ये कंसन्ट्रेशन कैम्प बिजली का करंट दौड़ते कँटीले तारों से घिरे रहते थे। इनका निर्माण हिटलर ने किया था।

→ अति-मुद्रास्फीति – कीमतों में बेहिसाब वृद्धि।

→ नॉर्डिक जर्मन आर्य – आर्यों की एक शाखा जो उत्तरी यूरोपीय देशों में रहते थे तथा वे जर्मन अथवा सम्बन्धित मूल के थे।

→ युंगफोक – 14 वर्ष से कम आयु के नात्सी युवकों का संगठन। राष्ट्रीय समाजवाद-नाजी लोगों द्वारा प्रतिपादित समाजवाद।

→ घेटो – यहूदियों के लिए रखा गया पृथक् क्षेत्र, जहाँ वे रह सकते थे। इसे दड़बा भी कहा जाता था।

→ ब्लॉण्ड – नीली आँखों और सुनहरे बालों वाले जर्मन आर्य।

→ वाल स्ट्रीट एक्सचेंज – संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज।

→ सोवियत रेड आर्मी – द्वितीय विश्वयुद्ध में शक्तिशाली विशाल सोवियत सेना।

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→ खंदक – युद्ध के मोर्चे पर सैनिकों के छिपने के लिए खोदे गये गड्डे।

→ सर्वहाराकरण – श्रमजीवी वर्गों के निम्न स्तर तक गिरकर बहुत ही निर्धन हो जाना।

→ परसेक्यूट – किसी एक समूह या धर्मावलम्बियों को योजनाबद्ध तरीके से बड़ी सोची-समझी योजना के तहत् कत्लेआम करने की प्रक्रिया।

→ राइखस्टाग – जर्मन संसद।

→ होलोकास्ट – यहूदियों को मारने के लिए प्रयोग की जाने वाली नात्सियों की कत्लेआम प्रक्रिया। इसे महाध्वंस भी कहते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार 

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→ बाजार व उपभोक्ता

  • बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है।
  • उपभोक्ता के रूप में हम बाजार से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करते हैं।
  • बाजार में उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा हेतु नियमों व विनियमों की आवश्यकता होती है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

→ उपभोक्ता आन्दोलन

  • विश्व में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई।
  • भारत में उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म अनैतिक व अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
  • हमारे देश में 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म हुआ।
  • 24 दिसम्बर, 1986 को भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का निर्माण किया गया। यह अधिनियम ‘COPRA’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • उपभोक्ताओं को वस्तुओं के बाजारीकरण तथा सेवाओं की प्राप्ति के विरुद्ध सुरक्षित रहने का अधिकार होता है क्योंकि ये जीवन एवं सम्पत्ति के लिए खतरनाक होते हैं।

→ सूचना का अधिकार अधिनियम

  • उपभोक्ता जिन वस्तुओं व सेवाओं को बाजार से खरीदता है उनके बारे में उसे सूचना पाने का अधिकार है।
  • अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार ने देश में सूचना पाने के अधिकार को लागू किया जिसे RTI एक्ट कहा जाता है।
  • उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है।
  • भारत में उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु उपभोक्ता अदालतों का गठन किया गया है।
  • उपभोक्ता अदालतें उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करती हैं।
  • उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता विवादों के निवारण हेतु जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गयी है।
  • भारत में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
  • भारत में उपभोक्ता ज्ञान का धीरे-धीरे प्रसार हो रहा है। उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी से ही उपभोक्ता प्रभावी भूमिका का निर्वाह कर सकता है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. उपभोक्ता: किसी वस्तु या सेवा का बाजार से क्रय कर उपभोग करने वाले व्यक्ति को उपभोक्ता कहते हैं।

2. उपभोक्ता शोषण: उपभोक्ता शोषण का अर्थ उन क्रियाओं अथवा व्यवहारों से होता है जिनके माध्यम से उत्पादक या विक्रेता किसी उपभोक्ता से वस्तु या सेवा की अधिक कीमत लेता है अथवा घटिया स्तर की वस्तु देता है।

3. उपभोक्ता इंटरनेशनल: एक गैर सरकारी संस्था जो सम्पूर्ण विश्व में उपभोक्ता समूहों की एजेंसियों का प्रतिनिधित्व करता है।

4. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986: भारत सरकार द्वारा सन् 1986 में उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा हेतु – निर्मित एक कानून।

5. भारतीय मानक ब्यूरो: मानक वस्तुओं के लिए आई.एस.आई. (ISI) चिह्न जारी करने वाली संस्था।

6. हॉलमार्क: जब उपभोक्ता स्वर्ण आभूषण खरीदता है तो उस पर लगा हॉलमार्क प्रमाणन चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो हॉलमार्क प्रमाणन प्रदान करता है।

7. आर.टी.आई. राइट टू इनफॉर्मेशन (सूचना पाने का अधिकार)।

8. उपभोक्ता अदालतें: ये वे अदालतें हैं जिनकी स्थापना उपभोक्ता सुरक्षा कानून, 1986 के तहत राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर की गयी है ताकि उपभोक्ताओं को बेईमान उत्पादकों अथवा विक्रेताओं द्वारा की जाने वाली ठगी से बचाया जा सके और उनकी शिकायतों को सरल, तीव्र एवं कम खर्च में दूर किया जा सके।

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JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

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JAC Class 9th History नात्सीवाद और हिटलर का उदय InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश: पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-61)

प्रश्न 1.
इनसे हिटलर के साम्राज्यवादी मंसूबों के बारे में आपको क्या पता चलता है ?
उत्तर:

  1. स्रोत क और ख को पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हिटलर एक बहुत भयानक साम्राज्यवादी लक्ष्य को लेकर चल रहा था।
  2. वह अपने देश की सीमा को विस्तार देना चाहता था।
  3. हिटलर का मानना था कि एक विशाल तथा जागृत राष्ट्र अपनी जनसंख्या के आकार के अनुसार नये क्षेत्र के अधिग्रहण का रास्ता स्वयं ही चुन लेता है।
  4. हिटलर की इच्छा जर्मनी को एक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित करने की थी। इसीलिए वह असन्तुष्ट था कि उसके देश का भौगोलिक क्षेत्रफल मात्र पाँच सौ वर्ग किमी. था जबकि कई दूसरे देशों का क्षेत्रफल महाद्वीपों के बराबर था।

प्रश्न 2.
आपकी राय में इन विचारों पर महात्मा गाँधी हिटलर से क्या कहते?
उत्तर;
मेरी राय में इन विचारों पर महात्मा गाँधी हिटलर को हिंसा रोकने की सलाह देते, क्योंकि उनका मानना था कि हिंसा ही हिंसा को जन्म देती है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-63)

प्रश्न 1.
आपके लिए नागरिकता का क्या मतलब है? अध्याय 1 एवं 3 को देखें और 200 शब्दों में बताएँ कि फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सीवाद ने नागरिकता को किस तरह परिभाषित किया?
उत्तर:
नागरिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति का अपने इच्छित देश अथवा जन्म के देश में रहने के अधिकार से है। फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सीवाद के नागरिकता के सम्बन्ध में विचार-फ्रांसीसी क्रान्ति तथा नात्सीवाद दोनों ने अलग-अलग तरीकों तथा दृष्टिकोणों से नागरिकता को परिभाषित करने की कोशिश की। फ्रांसीसी क्रान्ति-फ्रांसीसी क्रान्ति का आधार यह था कि सभी मानव जन्म से समान एवं स्वतन्त्र हैं तथा उनके अधिकार भी समान हैं।

स्वतन्त्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा तथा शोषण का विरोध, ये नागरिक के प्रारम्भिक अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करने तथा अपने इच्छित स्थान पर बस जाने के लिए स्वतन्त्र है। किसी भी लोकतान्त्रिक तथा समाजवादी समाज में कानून का शासन होना चाहिए, जिसके ऊपर कोई नहीं होता। नात्सीवाद-नात्सियों ने नागरिकता को प्रजातीय विभेद के दृष्टिकोण से परिभाषित किया।

यही कारण है कि उन्होंने यहूदियों को जर्मन नागरिक मानने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार करते हुए उन्हें जर्मनी से बाहर निकाल दिया। कालान्तर में उन्हें जर्मनी से बाहर पोलैण्ड एवं पूर्वी यूरोप में भागकर बसना पड़ा। हिटलर के शासन काल में यहूदियों को सबसे निचले पायदान पर रखा जाता था उन पर अत्याचार अर्थदण्ड आदि के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास किया जाता था तथा जर्मन आर्यों को श्रेष्ठ माना जाता था। यह विचार फ्रांसीसी क्रान्ति के आधारभूत विचार स्वतंत्रता एवं समानता के विपरीत थे।

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प्रश्न 2.
नात्सी जर्मनी में ‘अवांछितों’ के लिए न्यूरेम्बर्ग कानूनों का क्या मतलब था? उन्हें इस बात का अहसास कराने के लिए कि वह अवांछित हैं अन्य कौन-कौन से कानूनी कदम उठाए गए?
उत्तर:
न्यूरेम्बर्ग नियम के अनुसार नागरिक के रूप में रह रहे योग्यों के बीच अयोग्यों को रहने का कोई अधिकार नहीं था।

  • सन् 1935 ई. में निर्मित नागरिकता सम्बन्धी न्यूरेम्बर्ग नियम निम्नलिखित थे:
    1. केवल जर्मन अथवा उससे सम्बन्धित रक्त वाले व्यक्ति ही आगे से जर्मन नागरिक होंगे, जिन्हें जर्मन साम्राज्य की सुरक्षा प्राप्त होगी।
    2. यहूदियों तथा जर्मनों के बीच विवाह सम्बन्ध पर प्रतिबन्ध लागू किया गया।
    3. यहूदियों को राष्ट्र ध्वज फहराने से प्रतिबन्धित किया गया।
  • अन्य कानूनी कदमों में शामिल थे:
    1. यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार।
    2. यहूदियों का सरकारी नौकरियों से निष्कासन।
    3. यहूदियों की सम्पत्ति को जब्त करना एवं उसकी बिक्री करना।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-66)

प्रश्न 1.
अगर आप ऐसी किसी कक्षा में होते तो यहूदियों के प्रति आपका रवैया कैसा होता?
उत्तर:
अगर मैं ऐसी किसी कक्षा में बैठा होता तो, नात्सियों द्वारा यहूदियों के प्रति किये जाने वाले व्यवहार के कारण मुझे उनके प्रति सहानुभूति होती। मेरा हृदय यहूदियों के प्रति दयाभाव से भर जाता, साथ ही नात्सी सरकार के प्रति उतनी ही घृणा पैदा होती।

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प्रश्न 2.
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जान-पहचान वाले अन्य समुदायों के बारे में क्या सोचते हैं? उन्होंने इस तरह की छवियाँ कहाँ से हासिल की हैं?
उत्तर:
हाँ, हमने अपने चारों तरफ फैले अपनी जान-पहचान वाले अन्य समुदायों के बारे में प्रचलित रूढिबद्ध धारणाओं के बारे में सोचा है। ऐसी अधिकतर छवियाँ किसी खास समुदाय, उसके नेताओं, उनमें प्रचलित परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों से विकसित होती हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-67)

प्रश्न 1.
चित्र 23, 24 और 27 को देखिए। कल्पना कीजिए कि आप नात्सी जर्मनी में रहने वाले यहूदी या पोलिश मूल के व्यक्ति हैं। आप सितम्बर सन् 1941 ई. में जी रहे हैं और अभी-अभी कानून बनाया गया है सामाजिक विज्ञान कक्षा-9 कि यहूदियों को डेविड का तमगा पहनकर रहना होगा। ऐसी परिस्थिति में अपने जीवन के एक दिन का ब्यौरा लिखिए।
उत्तर:
मैं बर्लिन की सड़कों एवं गलियों में भटक रहा हूँ। मुझे बहुत तेज भूख एवं प्यास लग रही है। मेरी आँखें बालकोनी में खड़ी किसी सज्जन जर्मन महिला को खोज रही हैं जो मुझे एक रोटी दे सके। परन्तु आह ! मेरी यह खोज है कि समाप्त ही नहीं हो रही। शीघ्र ही मुझे कुछ लड़कों के पीछे भागती एक भीड़ की आवाज सुनाई देती है। भीड़ में सम्मिलित लोग मुझे भी शामिल होने के लिए कह रहे थे।

सभी के शरीर पर डेविड का तमगा लगा हुआ है। जैसे ही मैंने महसूस किया कि वे भी मेरी तरह यहूदी हैं तो मैं भी उनके साथ भागने लगा किन्तु वाह रे मेरा भाग्य ! अन्त में उनके साथ मुझे भी पकड़ लिया गया तथा कंसन्ट्रेशन कैंप में डाल दिया गया। हमारे सभी कपड़े उतार लिए गए तथा हमें बेरहमी से मारा-पीटा गया। ठीक अर्धरात्रि में हमें गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दिया गया।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-69)

प्रश्न 1.
अगर आप:
1. यहूदी औरत या
2. गैर-यहूदी जर्मन औरत होतीं तो हिटलर के विचारों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देती?
उत्तर:
1. यहदी औरत: यदि मैं यहदी औरत होती तो मैं जनता के बीच जाकर हिटलर के विचारों की आलोचना करती। मैं अपने घर तक सुरक्षित रास्ता, जीविकोपार्जन के समान अवसर एवं भेदभाव रहित जीवन की माँग का समर्थन करती।

2. गैर-यहूदी जर्मन औरत: यदि मैं एक गैर-यहूदी जर्मन औरत होती तो मैं खुशी-खुशी रहती, अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने एवं समाज में प्रतिष्ठा पाने की कोशिश करती तथा हिटलर के विचारों की प्रशंसा करती।

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प्रश्न 2.
आपके विचार से इस पोस्टर (चित्र 28) में क्या दिखाने की कोशिश की जा रही है?
उत्तर:
इस पोस्टर के द्वारा यहूदी लोगों के प्रति नफरत का भाव जगाने की कोशिश की जा रही है। इस पोस्टर के अनुसार यहूदी पैसों के भूखे यानी हर तरह से पैसा कमाने वाले हैं और उस पैसे को इकट्टा करके अपनी तिजोरियों को भरना चाहते हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-70)

प्रश्न 1.
इनसे नात्सी प्रचार के बारे में हमें क्या पता चलता है? आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए नात्सी क्या प्रयास कर रहे हैं?
उत्तर:
चित्र 29-30 से हमें नात्सी प्रचार के बारे में यह पता चलता है कि नात्सी किसानों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था और विश्व यहूदीवाद का भय दिखाकर अपने पक्ष में करना चाहते हैं। आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए नात्सी हिटलर को एक अग्रिम मोर्चे का सिपाही बता रहे हैं तथा इन वर्गों को बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर उनका समर्थन प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-71)

प्रश्न 1.
एर्ना क्रॉत्स ने ये क्यों कहा-‘कम से कम मुझे तो यही लगता था’ ? आप उनकी राय को किस तरह देखते हैं?
उत्तर:
एर्ना क्रॉत्स, लॉरेंस रीस को सन् 1930 ई. के दशक के अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में बता रही थीं। उनके अनुसार अब लोगों को उम्मीद नजर आ रही है। लोगों का वेतन बढ़ा है। जर्मनी का पुन: नये सिरे से विकास होगा। अब अच्छा दौर प्रारम्भ होने वाला है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-74)

प्रश्न 1.
एक पन्ने में जर्मनी का इतिहास लिखें:
1. नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से।
2. यातना गृह से जिन्दा बच निकले एक यहूदी की नजर से।
3. नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से।
उत्तर:
1. जर्मनी का इतिहास (नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से):
नात्सी जर्मनी की परिस्थितियाँ विशेषकर स्कूली बच्चों के लिए बहुत ही कष्टप्रद थीं। स्कूली बच्चों को तीन वर्ष की अवस्था से ही नात्सी विचारधाराओं की शिक्षा की शुरुआत कर दी जाती थी। उन्हें उस आयु में एक छोटा-सा झंडा लहराना पड़ता था जबकि उसके बारे में उनकी कोई सोच भी विकसित नहीं हुई होती थी।

10 वर्ष का होने पर बच्चों को नात्सी युवा संगठन ‘युंगफोक’ में दाखिल करा दिया जाता था। उसके बाद 14 वर्ष की उम्र में सभी बच्चों को नात्सियों के युवा संगठन हिटलर यूथ की सदस्यता तथा 18 वर्ष की उम्र में श्रम सेना में सम्मिलित होना पड़ता था। इसके बाद उन्हें सेना में काम करना पड़ता था और किसी नात्सी संगठन की सहायता लेनी पड़ती थी। इस तरह उनकी पूरी जिन्दगी ही थोपे गये विकृत विचारों के अनुसार गुजरती थी।

स्कूली बच्चों को उनके यहूदी मित्रों से अलग कर एक निश्चित दूरी पर बिठाया जाता था। उन्हें ऐसी पुस्तकें पढ़ाई जाती थीं जो नात्सी विचारों के प्रसार के लिए तैयार की गई थीं। नात्सियों ने खेल को भी अपनी विचारधारा से दूर नहीं रखा। उस पर भी अपने विचार थोपे। बच्चों को खेल के रूप में मुक्केबाजी का चुनाव करने के लिए बाध्य किया जाता था।

2. जaर्मनी का इतिहास (यातना गृह से जिन्दा बध निकले एक यहूदी की नजर से):
जर्मनी नात्सियों को यहूदियों पर किये गये अत्याचार के लिए सदैव याद किया जाएगा। यह जर्मन इतिहास का एक काला अध्याय है। समस्त यूरोप के यहूदी मकानों, यातना गृह और घेटो बस्तियों के रहने वाले यहूदियों को मालगाड़ियों में भर-भरकर मौत के कारखानों ‘कंसन्ट्रेशन कैम्पों (यातना गृहों)’ में डाल दिया जाता था जहाँ उन्हें घोर यातनाएँ दी जाती थीं।

आज भी मुझे वहाँ के दृश्यों को याद कर डर लगने लगता है। वहाँ मैं जिन्दा रहते हुए भी सैकड़ों बार मरा हूँ। बहुत दिनों तक विभिन्न तरह के अत्याचार के बाद यहदियों को गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। कंसन्ट्रेशन कैम्प से बाहर के यहूदियों की स्थिति भी दयनीय थी। उन्हें समाज में घोर अपमान सहना पड़ता था। अपनी पहचान प्रदर्शित करने के लिए उन्हें डेविड का पीला सितारा युक्त वस्त्र पहनने पड़ते थे एवं उनके घरों पर विशेष चिह्न छाप दिया जाता था।

किसी भी तरह के सन्देह की स्थिति अथवा कानून के मामली उल्लंघन पर उन्हें कसन्ट्रेशन कैम्प भेज दिया जाता था, जहाँ अत्याचार का एक नया दौर शुरू होता था जिसकी अन्तिम परिणति मौत के रूप में होती थी। हमारी आँखों के सामने हजारों-लाखों यहदियों को गैस चैम्बरों में दम घोट कर मारा गया।

3. जर्मनी का इतिहास (नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से):
जर्मनी में नात्सी शासन प्रचार के खोखले एवं कमजोर पैरों पर टिका हुआ था। युद्ध द्वारा नये क्षेत्रों के हड़पने की नीति से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं था। यह कभी भी देश में एक लम्बी शान्ति तथा समृद्धि का दौर नहीं ला सकती थी। हालांकि, मैं राष्ट्रवाद जैसे विचारों का समर्थक है, किन्तु नात्सी लोग इसका जो अर्थ लगाते थे तथा जिन साधनों तथा नीतियों के उपयोग द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे, उससे बिल्कुल भी सहमत नहीं हुआ जा सकता है।

जर्मन राष्ट्रवाद की प्राप्ति के लिए, पहले से अल्प धन की मात्रा को सेना या सैन्य उपकरणों पर खर्च करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। महिलाओं तथा बच्चों के प्रति नात्सियों की नीति पूर्णतः असंगत थी। जर्मन बच्चों को उनके नैसर्गिक व्यक्तित्व के विकास से दूर हटाकर उन पर नात्सी विचारधारा को थोपना और नात्सी विचारों को सही ठहराने के लिए नस्ल विज्ञान के नाम से एक नया विषय पाठ्यक्रम में चलाना।

यहूदियों से नफरत करना एवं हिटलर की पूजा करना उनके साथ घोर अन्याय था। महिलाओं पर अव्यावहारिक आचार संहिताओं का थोपा जाना उनकी स्वतन्त्रता को खत्म करने जैसा था। एक प्रकार से नात्सी लोगों ने असभ्यता के सभी लक्षणों के प्रचार द्वारा जर्मन जनता को भ्रष्ट करने का असफल प्रयास किया जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप हेलमुट हैं। स्कूल में आपके बहुत सारे यहूदी दोस्त हैं। आपका मानना है कि यहूदी खराब नहीं होते। ऐसे में आप अपने पिता से क्या कहेंगे? इस बारे में एक पैराग्राफ लिखें।
उत्तर:
प्रिय पिताजी, मेरे कई यहूदी दोस्त हैं। हमारे विद्यालय में यहूदियों से नफरत करना सिखाया जा रहा है। नात्सियों द्वारा यहूदी बच्चों को विद्यालय से निकाला जा रहा है तथा उन्हें गैस चैम्बरों में मरने के लिए ले जाया जा रहा है। आखिर यहूदियों ने कौन-सा ऐसा पाप किया है जिसके लिए निर्दयतापूर्वक उनकी हत्या की जा रही है? यदि हममें से कोई हत्यारा है तथा नात्सी शासन का समर्थक है तो उनको लेकर मैं लज्जित हूँ।

वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों यहूदियों को गैर-कानूनी रूप से मारा जा रहा है? क्या वे हमारी तरह इंसान नहीं हैं? क्या उनमें वही सारी भावनाएँ नहीं हैं जो हममें हैं? आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि मुझे कोई गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दे तो आप पर क्या गुजरेगी? उनकी सिर्फ यही गलती है कि वे यहूदी हैं, तो क्या यहूदी होना गुनाह है? यदि हाँ, तो जो ईसाई कर रहे हैं उस गुनाह की क्या सजा होनी चाहिए। नात्सियों के द्वारा किया जा रहा यह अत्याचार प्रभु ईसा मसीह कभी भी माफ नहीं करेंगे।

JAC Class 9th History और हिटलर का उदय Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
वाइमर गणराज्य के सामने निम्नलिखित समस्याएँ थीं

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में पराजय के पश्चात् जर्मनी पर विजयी देशों ने बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं।
  2. इसे वर्साय की अपमानजनक सन्धि पर हस्ताक्षर करने पड़े।
  3. इसे मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में भारी धन-राशि देनी पड़ी।
  4. देश में मुद्रास्फीति के कारण कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी थी। वाइमर सरकार मूल्य-वृद्धि को रोकने में पूर्णत: असफल रही।
  5. देश में बेरोजगारी बढ़ गई थी तथा उद्योग एवं व्यापार पिछड़ गए थे।
  6. मित्र-राष्ट्रों ने जर्मनी को कमजोर करने के लिए उसकी सेना को भंग कर दिया।
  7. युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने जर्मनी को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ-साथ मित्र-राष्ट्रों को हुए नुकसान के लिए भी उत्तरदायी ठहराया।
  8. वाइमर गणराज्य की स्थापना के साथ ही स्पार्टकिस्ट लीग अपनी क्रांतिकारी विद्रोह की योजनाओं को अंजाम देने लगी।

प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि सन् 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त पराजित होने पर विजयी देशों ने बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं । जर्मनी के लिए वर्साय की सन्धि बड़ी अपमानजनक थी। इसकी कठोरता के कारण जर्मनी में नात्सीवाद का उत्थान हुआ। इसके नेता हिटलर ने वर्साय संधि-पत्र की अपमानजनक शर्तों की धीरे-धीरे अवहेलना करनी प्रारम्भ कर दी। वह उपनिवेशवाद, सैन्यवाद एवं विस्तारवाद में विश्वास करता था। जर्मनी में निम्न कारकों ने नात्सीवाद की लोकप्रियता बढ़ाने में योगदान दिया

1. जर्मनी में राजनीतिक अस्थिरता:
हिटलर के उत्थान से पूर्व जर्मनी पर वाइमर गणराज्य का शासन था। इसके शासनकाल में देश में बेरोजगारी एवं कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई, इससे सेना में भी असन्तोष फैल गया। हिटलर ने ऐसी स्थिति का पूरा-पूरा लाभ उठाया। उसने जर्मनी की जनता को विश्वास दिलाया कि वह राष्ट्र का खोया हुआ सम्मान पुनः वापस लाएगा। जर्मनी की सभी समस्याओं का समाधान करके वह उसे विश्व की नई महाशक्ति बनाएगा।

2. जर्मन जनता का प्रजातन्त्र में अविश्वास:
जर्मनी के लोगों का स्वभाव से ही प्रजातन्त्र में विश्वास नहीं था। प्रजातन्त्र उनकी सभ्यता एवं परम्पराओं के विरुद्ध था। वे पार्लियामेंट्री संस्थाओं एवं उसके क्रिया-कलापों को समझने में असमर्थ थे। अत: जर्मनी में वाइमर संविधान बड़े प्रतिकूल वातावरण में लागू हुआ, जिसका सफल होना भी सम्भव नहीं था। अत: वहाँ के लोगों की मनोवृत्ति नात्सी दल के विकास और हिटलर के अधिनायक बनने में सहायक सिद्ध हुई।

3. आर्थिक संकट:
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को गहरे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में जर्मनी को अपार जन एवं धन की हानि उठानी पड़ी। इसके शहर एवं कस्बे, व्यापार एवं वाणिज्य, कारखानों एवं उद्योगों को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया था। सन् 1929 ई. की आर्थिक मन्दी ने जर्मनी की आर्थिक स्थिति पर और भी बुरा प्रभाव डाला। जर्मनी की गणतन्त्रीय सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में पूर्ण रूप से असफल रही।

4. नात्सियों ने यहूदियों के प्रति घृणा:
भावना का प्रचार स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों से ही करना प्रारम्भ कर दिया। पाठ्यक्रम परिवर्तित कर दिया गया। स्कूलों से यहूदी शिक्षकों को निकाल दिया गया अत: जर्मनी की नई पीढ़ी में यहूदियों के प्रति घृणा एवं द्वेष के भाव पहले से ही भर दिए गए।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 5.
नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रान्ति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें। फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ।
उत्तर:
नात्सी समाज में औरतों की भूमिका-नात्सी समाज में महिलाओं को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें आर्य संस्कृति का संवाहक माना जाता था। दुनिया के सभी प्रजातान्त्रिक देशों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे, लेकिन नात्सी जर्मनी में महिला का महत्व सिर्फ “आर्य सन्तान की माँ” के रूप में था।

महिलाओं को आर्य नस्ल की शुद्धता को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था और दबाव बनाया जाता था कि वह यहूदी पुरुष के साथ किसी प्रकार का प्रेम सम्बन्ध स्थापित न करे। अनेक सन्तानों को जन्म देने वाली माँ को विशेष पुरस्कार दिया जाता था। निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली ‘आर्य’ औरतों की सार्वजनिक रूप से निन्दा की जाती थी और उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था।

फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच तुलना:
1. नात्सी समाज में औरतों को पुरुषों के समान दर्जा नहीं दिया जाता था, जबकि फ्रांसीसी समाज में स्त्री-पुरुष को समान समझा जाता था। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे।

2. नात्सी समाज में महिलाएँ स्वतन्त्र नहीं थीं उनका काम केवल घर-परिवार की देखभाल और बच्चों को जन्म देना था। इसके विपरीत फ्रांसीसी समाज में महिलाओं को बराबर का साझीदार माना जाता सकती थीं।

3. नात्सी महिलाओं को अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार नहीं था। महिलाओं के लिए निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली महिलाओं को सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाता था। उन्हें न केवल जेल की सजा दी जाती थी अपितु अनेक तरह के नागरिक सम्मान एवं उनके पति एवं परिवार भी छीन लिए जाते थे। इसके विपरीत फ्रांसीसी महिलाएं अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतन्त्र थीं। महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार प्रदान किया गया। महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं।

प्रश्न 6.
नासियों ने जनता पर पूरा नियन्त्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?
उत्तर:
नात्सी सरकार ने जनता पर सम्पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए
1. स्कूली बच्चों का विचार परिवर्तन:
नात्सी सरकार ने अपनी विचारधारा पर आधारित नए पाठ्यक्रम के अनुरूप पुस्तके तैयार करवाई। नस्ल विज्ञान को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया। उनसे कहा जाता था कि वे यहूदियों से पूणा करें तथा हिटलर की पूजा करें।

2. पुवाओं का विचार परिवर्तन:
बाल्यावस्था से ही नात्सी सरकार ने बच्चों के मन-मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गये उन्हें वैचारिक प्रशिक्षण द्वारा नात्सीवाद की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया।

3. लड़कियों का विधार परिवर्तन:
लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी कि उन्हें अच्छी माँ बनना था तथा शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देकर उनका लालन-पालन करना था।

4. खेल गतिविधियाँ:
उन सभी खेल गतिविधियों विशेषकर मुक्केबाजी को प्रोत्साहित किया गया जो बच्चों में हिंसा तथा आक्रामकता की भावना उत्पन्न करती थीं।

5. आर्यों के आर्थिक हितों की रक्षा:
आर्य प्रजाति के लोगों के लिए आर्थिक अवसरों की पर्याप्त उपलब्धता थी। उन्हें रोजगार दिया जाता था, उनके व्यापार को सुरक्षा दी जाती थी तथा सरकार की तरफ से उन्हें हर सम्भव सहायता दी जाती थी।

6. महिलाओं के बीच भेदभाव:
महिलाओं के बीच उनके बच्चों के आधार पर भेदभाव किया जाता था। एक अनुपयुक्त बच्चे की माँ होने पर महिलाओं को दण्डित किया जाता था तथा जेल में कैद कर दिया जाता था, किन्तु बच्चे के शुद्ध आर्य प्रजाति का होने पर महिलाओं को सम्मानित किया जाता था।

7. नात्सी विचारधारा का प्रचार:
जनता पर पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने में नात्सियों द्वारा विशेष पूर्व नियोजित प्रचार का सर्वाधिक योगदान था। नाजियों ने शासन के लिए समर्थन पाने तथा अपनी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने के लिए दृश्य चित्रों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, नारों तथा इश्तहारी पर्चों द्वारा प्रचार किया। पोस्टरों में समाजवादियों एवं

8. नात्सियों:
ने जनसंख्या के विभिन्न हिस्से को अपील करने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने इस आधार पर उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया कि केवल नात्सी ही उनकी हर समस्या का हल ढूँढ़ सकते थे।

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JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

→ अन्तरदेशीय उत्पादन

  • पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बाजार पूर्णतः परिवर्तित हो गया है। अब हमारे उपभोक्ताओं के समक्ष वस्तुओं एवं सेवाओं के विस्तृत विकल्प उपलब्ध हैं।
  • बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्य रूप से देश की सीमाओं के भीतर तक ही सीमित था।
  • भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चे माल का विदेशों को निर्यात होता था तथा तैयार माल का आयात होता था।

→  बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ

  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उद्भव के पश्चात् व्यापार विश्व स्तर पर होने लगा।
  • सामान्यतः बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उन्हीं स्थानों पर अपने कारखाने स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें विभिन्न सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, जैसे- बाजार की समीपता, सस्ते श्रम की उपलब्धता आदि।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का विश्व स्तर पर उत्पादन करने के परिणामस्वरूप उत्पादन प्रक्रिया क्रमशः जटिल ढंग से संगठित हुई है।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा कोई भी निवेश लाभ अर्जित करने की दृष्टि से ही किया जाता है।
  • सामान्यत: बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विश्व के विभिन्न देशों में स्थानीय कम्पनियों को खरीदकर उत्पादन का प्रसार करती हैं।
  • अमेरिकी कम्पनी फोर्ड मोटर्स विश्व के 26 देशों में प्रसार के साथ विश्व की सबसे बड़ी मोटरगाड़ी निर्माता कम्पनी है। सन् 1995 में भारत आने वाली फोर्ड मोटर्स ने 1700 करोड़ रुपए का निवेश चेन्नई के समीप एक विशाल संयंत्र की स्थापना की। यह संयंत्र महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा (भारत में जीपों व ट्रकों की प्रमुख निर्माता कम्पनी) के सहयोग से  पित
    किया।

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→  विदेशी व्यापार

  • बहुत लम्बे समय से विदेश व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने या एकीकरण करने का एक माध्यम रहा है।
  • विदेश व्यापार अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है।
  • विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजार को जोड़ने या एकीकरण करने में एक सहायक का कार्य करता है।
  • अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के क्रियाकलापों में वस्तुओं एवं सेवाओं का वृहत स्तर पर व्यापार सम्मिलित होता है।

→  वैश्वीकरण

  • विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध तथा तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को ही वैश्वीकरण कहा जाता है।
  • आज विश्व के विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश एवं प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। लोगों का आवागमन भी विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का एक माध्यम है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने वाला मुख्य कारक प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति है। इससे लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्रतर आपूर्ति कम लागत पर सम्भव हुई है।
  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास से भी विश्व स्तर पर व्यापार में वृद्धि हुई है।

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→  विदेशी व्यापार व विदेशी निवेश का उदारीकरण

  • आयात पर कर, व्यापार अवरोधक का एक उदाहरण हैं क्योंकि यह कुछ प्रतिबन्ध लगाता है।
  • भारत सरकार द्वारा सन् 1991 से विदेश व्यापार व विदेशी निवेश पर से अधिकांश अवरोधों को हटा दिया गया है।
  • सरकार द्वारा अवरोधों या प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है।
  • विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तौर-तरीकों को सरल बनाना है। यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित नियमों को निर्धारित करता है।
  • भारत सरकार व राज्य सरकारें विदेशी निवेश को आकर्षित करने हेतु अनेक कदम उठा रही हैं।
  • वैश्वीकरण से सभी उपभोक्ता, कुशल, शिक्षित एवं धंनी उत्पादक ही लाभान्वित हुए हैं परन्तु बढ़ती हुई प्रतियोगिता से अनेक छोटे उत्पादक एवं श्रमिक प्रभावित हुए हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण टाटा मोटर्स, इंफोसिस (आईटी), रैनबैक्सी (दवाइयाँ), एशियन पेंट्स (पेंट) तथा सुंदरम फास्नर्स (नट व बोल्ट) जैसी कुछ भारतीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरी हैं।
  • न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसरों का सृजन करेगा एवं यह भी सुनिश्चित करेगा कि वैश्वीकरण के लाभों में सभी की बेहतर हिस्सेदारी हो।

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→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है।

2. निवेश: परिसम्पतियों, जैसे-भूमि, भवन, मशीन व अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं।

3. विदेशी निवेश: बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किया गया निवेश विदेशी निवेश कहलाता है।

4. विदेशी व्यापार: दो या दो से अधिक देशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान विदेशी व्यापार कहलाता है।

5. वैश्वीकरण: अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है।

6. व्यापार: अवरोधक विदेशों से होने वाले आयात पर लगने वाले प्रतिबन्ध।

7. उदारीकरण: सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया।

8. कोटा: सरकार द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं की संख्या को सीमित करना ‘कोटा’ कहलाता है।

9. विश्व व्यापार संगठन: अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित नियमों को निर्धारित करने वाला अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।

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JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति 

JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

→ फ्रांस की क्रान्ति के पश्चात् यूरोप एवं एशिया सहित विश्व के बहुत से भागों में एक विशेष प्रकार की सामाजिक एवं राजनीतिक क्रान्ति आयी।

→ उन्नीसवीं शताब्दी में समाज में परिवर्तन के विषय में लोग विभिन्न विचारधाराओं-उदारवादी (लिबरल), क्रान्तिकारी (रैडिकल) तथा रूढ़िवादी (कंजरवेटिव) श्रेणियों में बँटे हुए थे। उदारवादी विचारक धार्मिक एवं आर्थिक मामलों में राज्य के हस्तक्षेप के विरुद्ध थे। वे जीवन के अधिकार, नागरिक व धार्मिक स्वतन्त्रता, सम्पत्ति की सुरक्षा एवं कोई भी व्यापार या व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता के अधिकार पर बल देते थे। ये केवल सम्पत्तिधारी वयस्क मताधिकार के पक्ष में थे।

→ क्रान्तिकारी विचारक राजनीति में अधिक से अधिक व्यक्तियों की भागीदारी के पक्ष में थे। ये बड़े जमींदारों एवं उद्योगपतियों को प्राप्त विशेषाधिकारों के विरोधी तथा सभी वयस्कों के मताधिकार के पक्षधर थे।

→ रूढ़िवादी विचारक रैडिकल और उदारवादी दोनों के खिलाफ थे। वे चाहते थे कि आवश्यकतानुसार तथा धीमी गति से बदलाव आये।

→ सन् 1760 ई. के आस-पास यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति हुई। परिवहन के नये साधन विशेषकर रेल परिवहन का विकास हुआ। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप शहर तेजी से बसते और फैलते जा रहे थे जिससे आवास और साफ-सफाई के कार्यों में मुश्किल हो रही थी।

→ समाजवादी निजी सम्पत्ति के विरोधी थे। तत्कालीन विचारक कार्ल मार्क्स का मानना था कि पूँजीपतियों का मुनाफा मजदूरों की मेहनत से पैदा होता है अत: जब तक सम्पत्तियों पर सामाजिक नियन्त्रण एवं स्वामित्व नहीं होगा तब तक मजदूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता है। 9 जनवरी, सन् 1905 ई. को रूस में प्रथम क्रान्ति हुई जिसे ‘खूनी रविवार’ के रूप में याद किया जाता है।

→ सन् 1914 ई. में प्रथम विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ जिसमें एक तरफ थे जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बल्गारिया व तुर्की तथा दूसरी तरफ-फ्रांस, ब्रिटेन व रूस। 16 अक्टूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्जा करने के लिए राजी कर लिया।

→ जब बोल्शेविकों ने जमीन के पुनर्वितरण के आदेश दिये तो गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो गयी, लेकिन उन्होंने उद्योगों और बैंकों के राष्ट्रीयकरण को जारी रखा।

→ लेनिन के बाद स्तालिन ने पार्टी की कमान सम्हाली तथा खेती के सामूहिकीकरण पर बल दिया, जिसका काफी विरोध हुआ।

→ बीसवीं सदी के अन्त तक एक समाजवादी देश के रूप में सोवियत संघ की प्रतिष्ठा काफी कम हो गयी थी।

अध्याय की महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ

→ सन् 1850-1880 ई. — तीस वर्षों का कालखण्ड जिसमें रूस में समाजवाद पर बहस जारी रही।

→ सन् 1898 ई. — रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी का गठन किया गया।

→ सन् 1900 ई. — सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी का गठन किया गया।

→ सन् 1905 ई. — रूसी क्रान्ति एवं खूनी रविवार की घटना तथा जार द्वारा ड्यूमा के गठन की सहमति।

→ सन् 1914 ई. — प्रथम विश्व युद्ध का आरम्भ। सन् 1916 ई. रोटी की दुकानों पर दंगे होने लगे।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति 

→ सन् 1917 ई. — 2 मार्च को रूस के जार को सत्ता से हटना पड़ा तथा 24 अक्टूबर को पैत्रोग्राद में बोल्शेविक क्रान्ति हुई। जिसमें रूस की सत्ता पर समाजवादियों का कब्जा हो गया।

→ सन् 1918-1920 ई. — रूस में गृहयुद्ध जारी रहा।

→ सन् 1919 ई. — कॉमिन्टर्न का गठन।

→ सन् 1927-1932 ई. — रूस में प्रथम पंचवर्षीय योजना।

→ सन् 1929 ई. — रूस में सामूहिकीकरण की शुरुआत।

→ सन् 1930-1933 ई. — सोवियत रूस के इतिहास का सबसे बड़ा अकाल, 40 लाख से अधिक लोग मारे गये।

→ सन् 1933-1938 ई. — रूस की द्वितीय पंचवर्षीय योजना की समयावधि।

→ जार निकोलस द्वितीयरूसी — क्रान्ति जार निकोलस द्वितीय के शासनकाल में हुई।

→ कार्ल मार्क्स — समाजवादी दार्शनिक एवं विचारक।

→ फ्रेडरिक एंगेल्स — समाजवादी दार्शनिक एवं विचारक।

→ केरेंस्की — अक्टूबर सन् 1917 ई. की क्रान्ति के समय रूस के प्रधानमंत्री।

→ जदीदी — रूसी साम्राज्य में सक्रिय मुस्लिम सुधारवादी।

→ मेजिनी — इटली का राष्ट्रवादी नेता।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति 

→ मार्फा वासीलेवा — मार्फा वासीलेवा नामक महिला ने अकेले ही एक सफल हड़ताल की।

→ लुई ब्लां — फ्रांसीसी समाजवादी विचारक।

→ लेनिन — रूस का एक क्रान्तिकारी नेता। उसने रूस की बोल्शेविक क्रान्ति का नेतृत्व किया।

→ स्टालिन — लेनिन के बाद पार्टी का नेतृत्व, कृषि के सामूहिकीकरण का फैसला एवं श्रम शिविरों की स्थापना।

→ रॉबर्ट ओवन — अंग्रेज समाजवादी विचारक एवं उद्योगपति।

→ अतिवादी — ये निजी सम्पत्ति के केन्द्रीकरण के विरोधी थे।

→ रूढ़िवादी — ये समाज की व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाने के पक्षधर थे। उनका विश्वास था कि अतीत का सम्मान होना चाहिए।

→ इयमा — ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद थी। इसका गठन सन् 1905 ई. में प्रथम बार हुआ। रूस के जार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में बदल दिया था।

→ उदारवादी — उदारवादी यूरोप के समाज के वे लोग थे जो वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। उदारवादी एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान एवं स्थान मिले।

→ रूसी आर्थोडॉक्स चर्च — ईसाई धर्म की एक शाखा जो रूसी साम्राज्य का प्रमुख धर्म था। कोलखोज-रूस में सामूहिक खेतों को ‘कोलखोज’ कहा जाता था।

→  रूसी साम्यवादी दल — सन् 1917 ई. में रूस की क्रान्ति के पश्चात् बोल्शेविक पार्टी को ‘रूसी कम्युनिस्ट पार्टी’ (बोल्शेविक) का नाम दिया गया।

→ घुमन्तु — ऐसे लोग जो अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। इन्हें ‘खानाबदोश’ भी कहा जाता है।

→ सुफ्फरेगेट — महिलाओं को मताधिकार दिए जाने के लिए चलाया गया आन्दोलन। कुलक-रूस में सम्पन्न किसानों को ‘कुलक’ कहा जाता था।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति 

→ चेका — चेका एक ‘कमीशन’ था जिसका कार्य रूसी साम्यवादी पार्टी के विरोधियों को दण्ड देना था।

→ तालाबन्दी — कारखाने को स्थायी रूप से बन्द करने के लिए कारखाना मालिकों द्वारा फाटक पर ताला लगा देना।

→ कॉमिन्टन — कम्युनिस्ट पार्टियों की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था।

→ खूनी रविवार — 9 जनवरी, सन् 1905 ई. को पुलिस ने मजदूरों के एक समूह पर गोलियाँ चलायीं, जिसमें सौ से अधिक मजदूर मारे गए। इस दिन को खूनी रविवार कहा जाता है।

→ अप्रैल थीसिस — बोल्शेविक नेता लेनिन की सन् 1917 ई. की रूसी क्रान्ति से पूर्व तीन माँगें- शक्ति, भूमि को किसानों को स्थानान्तरित करना एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जानी गई।

→ रूसी स्टीम रोलर — शाही रूसी सेना को ‘रूसी स्टीम रोलर’ कहा जाता था।

→ ऑरोरा — यह एक रूसी युद्धपोत था।

→ ओजीपीयू व एनकेवीडी — गुप्तचर पुलिस जो बोल्शेविकों की आलोचना करने वालों को दण्डित करती थी।

→ सोवियत — रूस के स्थानीय स्वशासी संगठन।

→ मताधिकार आन्दोलन — वोट डालने का अधिकार पाने के लिए किया गया आन्दोलन।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति 

→ निरंकुश राजशाही — राजा द्वारा बिना रोकटोक के शासन करना!

→ स्वायत्तता — अपना शासन स्वयं चलाने का अधिकार।

→ कार्यस्थितियाँ — काम करने की परिस्थितियाँ।

→ प्रतिक्रांतिकारी — क्रांति का विरोध करने वाले।

→ फरवरी क्रान्ति — रूस की यह क्रान्ति पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 27, फरवरी सन् 1917 ई. को हुई थी। अत: इसे फरवरी क्रान्ति के नाम से पुकारा जाता है। जार ने राजगद्दी छोड़ दी तथा अन्तरिम सरकार की स्थापना हुई।

→ अक्टूबर क्रान्ति — पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 24 अक्टूबर, सन् 1917 ई. को ‘अक्टूबर क्रान्ति’ हुई। इस क्रान्ति के फलस्वरूप केरेस्की सरकार’ का पतन हो गया।

→ बोल्शेविक क्रान्ति — अक्टूबर सन् 1917 ई. की रूसी क्रान्ति को बोल्शेविक क्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है।

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