JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

JAC Class 9th History नात्सीवाद और हिटलर का उदय InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश: पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-61)

प्रश्न 1.
इनसे हिटलर के साम्राज्यवादी मंसूबों के बारे में आपको क्या पता चलता है ?
उत्तर:

  1. स्रोत क और ख को पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हिटलर एक बहुत भयानक साम्राज्यवादी लक्ष्य को लेकर चल रहा था।
  2. वह अपने देश की सीमा को विस्तार देना चाहता था।
  3. हिटलर का मानना था कि एक विशाल तथा जागृत राष्ट्र अपनी जनसंख्या के आकार के अनुसार नये क्षेत्र के अधिग्रहण का रास्ता स्वयं ही चुन लेता है।
  4. हिटलर की इच्छा जर्मनी को एक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित करने की थी। इसीलिए वह असन्तुष्ट था कि उसके देश का भौगोलिक क्षेत्रफल मात्र पाँच सौ वर्ग किमी. था जबकि कई दूसरे देशों का क्षेत्रफल महाद्वीपों के बराबर था।

प्रश्न 2.
आपकी राय में इन विचारों पर महात्मा गाँधी हिटलर से क्या कहते?
उत्तर;
मेरी राय में इन विचारों पर महात्मा गाँधी हिटलर को हिंसा रोकने की सलाह देते, क्योंकि उनका मानना था कि हिंसा ही हिंसा को जन्म देती है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-63)

प्रश्न 1.
आपके लिए नागरिकता का क्या मतलब है? अध्याय 1 एवं 3 को देखें और 200 शब्दों में बताएँ कि फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सीवाद ने नागरिकता को किस तरह परिभाषित किया?
उत्तर:
नागरिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति का अपने इच्छित देश अथवा जन्म के देश में रहने के अधिकार से है। फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सीवाद के नागरिकता के सम्बन्ध में विचार-फ्रांसीसी क्रान्ति तथा नात्सीवाद दोनों ने अलग-अलग तरीकों तथा दृष्टिकोणों से नागरिकता को परिभाषित करने की कोशिश की। फ्रांसीसी क्रान्ति-फ्रांसीसी क्रान्ति का आधार यह था कि सभी मानव जन्म से समान एवं स्वतन्त्र हैं तथा उनके अधिकार भी समान हैं।

स्वतन्त्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा तथा शोषण का विरोध, ये नागरिक के प्रारम्भिक अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करने तथा अपने इच्छित स्थान पर बस जाने के लिए स्वतन्त्र है। किसी भी लोकतान्त्रिक तथा समाजवादी समाज में कानून का शासन होना चाहिए, जिसके ऊपर कोई नहीं होता। नात्सीवाद-नात्सियों ने नागरिकता को प्रजातीय विभेद के दृष्टिकोण से परिभाषित किया।

यही कारण है कि उन्होंने यहूदियों को जर्मन नागरिक मानने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार करते हुए उन्हें जर्मनी से बाहर निकाल दिया। कालान्तर में उन्हें जर्मनी से बाहर पोलैण्ड एवं पूर्वी यूरोप में भागकर बसना पड़ा। हिटलर के शासन काल में यहूदियों को सबसे निचले पायदान पर रखा जाता था उन पर अत्याचार अर्थदण्ड आदि के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास किया जाता था तथा जर्मन आर्यों को श्रेष्ठ माना जाता था। यह विचार फ्रांसीसी क्रान्ति के आधारभूत विचार स्वतंत्रता एवं समानता के विपरीत थे।

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प्रश्न 2.
नात्सी जर्मनी में ‘अवांछितों’ के लिए न्यूरेम्बर्ग कानूनों का क्या मतलब था? उन्हें इस बात का अहसास कराने के लिए कि वह अवांछित हैं अन्य कौन-कौन से कानूनी कदम उठाए गए?
उत्तर:
न्यूरेम्बर्ग नियम के अनुसार नागरिक के रूप में रह रहे योग्यों के बीच अयोग्यों को रहने का कोई अधिकार नहीं था।

  • सन् 1935 ई. में निर्मित नागरिकता सम्बन्धी न्यूरेम्बर्ग नियम निम्नलिखित थे:
    1. केवल जर्मन अथवा उससे सम्बन्धित रक्त वाले व्यक्ति ही आगे से जर्मन नागरिक होंगे, जिन्हें जर्मन साम्राज्य की सुरक्षा प्राप्त होगी।
    2. यहूदियों तथा जर्मनों के बीच विवाह सम्बन्ध पर प्रतिबन्ध लागू किया गया।
    3. यहूदियों को राष्ट्र ध्वज फहराने से प्रतिबन्धित किया गया।
  • अन्य कानूनी कदमों में शामिल थे:
    1. यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार।
    2. यहूदियों का सरकारी नौकरियों से निष्कासन।
    3. यहूदियों की सम्पत्ति को जब्त करना एवं उसकी बिक्री करना।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-66)

प्रश्न 1.
अगर आप ऐसी किसी कक्षा में होते तो यहूदियों के प्रति आपका रवैया कैसा होता?
उत्तर:
अगर मैं ऐसी किसी कक्षा में बैठा होता तो, नात्सियों द्वारा यहूदियों के प्रति किये जाने वाले व्यवहार के कारण मुझे उनके प्रति सहानुभूति होती। मेरा हृदय यहूदियों के प्रति दयाभाव से भर जाता, साथ ही नात्सी सरकार के प्रति उतनी ही घृणा पैदा होती।

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प्रश्न 2.
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जान-पहचान वाले अन्य समुदायों के बारे में क्या सोचते हैं? उन्होंने इस तरह की छवियाँ कहाँ से हासिल की हैं?
उत्तर:
हाँ, हमने अपने चारों तरफ फैले अपनी जान-पहचान वाले अन्य समुदायों के बारे में प्रचलित रूढिबद्ध धारणाओं के बारे में सोचा है। ऐसी अधिकतर छवियाँ किसी खास समुदाय, उसके नेताओं, उनमें प्रचलित परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों से विकसित होती हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-67)

प्रश्न 1.
चित्र 23, 24 और 27 को देखिए। कल्पना कीजिए कि आप नात्सी जर्मनी में रहने वाले यहूदी या पोलिश मूल के व्यक्ति हैं। आप सितम्बर सन् 1941 ई. में जी रहे हैं और अभी-अभी कानून बनाया गया है सामाजिक विज्ञान कक्षा-9 कि यहूदियों को डेविड का तमगा पहनकर रहना होगा। ऐसी परिस्थिति में अपने जीवन के एक दिन का ब्यौरा लिखिए।
उत्तर:
मैं बर्लिन की सड़कों एवं गलियों में भटक रहा हूँ। मुझे बहुत तेज भूख एवं प्यास लग रही है। मेरी आँखें बालकोनी में खड़ी किसी सज्जन जर्मन महिला को खोज रही हैं जो मुझे एक रोटी दे सके। परन्तु आह ! मेरी यह खोज है कि समाप्त ही नहीं हो रही। शीघ्र ही मुझे कुछ लड़कों के पीछे भागती एक भीड़ की आवाज सुनाई देती है। भीड़ में सम्मिलित लोग मुझे भी शामिल होने के लिए कह रहे थे।

सभी के शरीर पर डेविड का तमगा लगा हुआ है। जैसे ही मैंने महसूस किया कि वे भी मेरी तरह यहूदी हैं तो मैं भी उनके साथ भागने लगा किन्तु वाह रे मेरा भाग्य ! अन्त में उनके साथ मुझे भी पकड़ लिया गया तथा कंसन्ट्रेशन कैंप में डाल दिया गया। हमारे सभी कपड़े उतार लिए गए तथा हमें बेरहमी से मारा-पीटा गया। ठीक अर्धरात्रि में हमें गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दिया गया।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-69)

प्रश्न 1.
अगर आप:
1. यहूदी औरत या
2. गैर-यहूदी जर्मन औरत होतीं तो हिटलर के विचारों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देती?
उत्तर:
1. यहदी औरत: यदि मैं यहदी औरत होती तो मैं जनता के बीच जाकर हिटलर के विचारों की आलोचना करती। मैं अपने घर तक सुरक्षित रास्ता, जीविकोपार्जन के समान अवसर एवं भेदभाव रहित जीवन की माँग का समर्थन करती।

2. गैर-यहूदी जर्मन औरत: यदि मैं एक गैर-यहूदी जर्मन औरत होती तो मैं खुशी-खुशी रहती, अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने एवं समाज में प्रतिष्ठा पाने की कोशिश करती तथा हिटलर के विचारों की प्रशंसा करती।

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प्रश्न 2.
आपके विचार से इस पोस्टर (चित्र 28) में क्या दिखाने की कोशिश की जा रही है?
उत्तर:
इस पोस्टर के द्वारा यहूदी लोगों के प्रति नफरत का भाव जगाने की कोशिश की जा रही है। इस पोस्टर के अनुसार यहूदी पैसों के भूखे यानी हर तरह से पैसा कमाने वाले हैं और उस पैसे को इकट्टा करके अपनी तिजोरियों को भरना चाहते हैं।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-70)

प्रश्न 1.
इनसे नात्सी प्रचार के बारे में हमें क्या पता चलता है? आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए नात्सी क्या प्रयास कर रहे हैं?
उत्तर:
चित्र 29-30 से हमें नात्सी प्रचार के बारे में यह पता चलता है कि नात्सी किसानों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था और विश्व यहूदीवाद का भय दिखाकर अपने पक्ष में करना चाहते हैं। आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए नात्सी हिटलर को एक अग्रिम मोर्चे का सिपाही बता रहे हैं तथा इन वर्गों को बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर उनका समर्थन प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-71)

प्रश्न 1.
एर्ना क्रॉत्स ने ये क्यों कहा-‘कम से कम मुझे तो यही लगता था’ ? आप उनकी राय को किस तरह देखते हैं?
उत्तर:
एर्ना क्रॉत्स, लॉरेंस रीस को सन् 1930 ई. के दशक के अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में बता रही थीं। उनके अनुसार अब लोगों को उम्मीद नजर आ रही है। लोगों का वेतन बढ़ा है। जर्मनी का पुन: नये सिरे से विकास होगा। अब अच्छा दौर प्रारम्भ होने वाला है।

क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-74)

प्रश्न 1.
एक पन्ने में जर्मनी का इतिहास लिखें:
1. नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से।
2. यातना गृह से जिन्दा बच निकले एक यहूदी की नजर से।
3. नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से।
उत्तर:
1. जर्मनी का इतिहास (नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से):
नात्सी जर्मनी की परिस्थितियाँ विशेषकर स्कूली बच्चों के लिए बहुत ही कष्टप्रद थीं। स्कूली बच्चों को तीन वर्ष की अवस्था से ही नात्सी विचारधाराओं की शिक्षा की शुरुआत कर दी जाती थी। उन्हें उस आयु में एक छोटा-सा झंडा लहराना पड़ता था जबकि उसके बारे में उनकी कोई सोच भी विकसित नहीं हुई होती थी।

10 वर्ष का होने पर बच्चों को नात्सी युवा संगठन ‘युंगफोक’ में दाखिल करा दिया जाता था। उसके बाद 14 वर्ष की उम्र में सभी बच्चों को नात्सियों के युवा संगठन हिटलर यूथ की सदस्यता तथा 18 वर्ष की उम्र में श्रम सेना में सम्मिलित होना पड़ता था। इसके बाद उन्हें सेना में काम करना पड़ता था और किसी नात्सी संगठन की सहायता लेनी पड़ती थी। इस तरह उनकी पूरी जिन्दगी ही थोपे गये विकृत विचारों के अनुसार गुजरती थी।

स्कूली बच्चों को उनके यहूदी मित्रों से अलग कर एक निश्चित दूरी पर बिठाया जाता था। उन्हें ऐसी पुस्तकें पढ़ाई जाती थीं जो नात्सी विचारों के प्रसार के लिए तैयार की गई थीं। नात्सियों ने खेल को भी अपनी विचारधारा से दूर नहीं रखा। उस पर भी अपने विचार थोपे। बच्चों को खेल के रूप में मुक्केबाजी का चुनाव करने के लिए बाध्य किया जाता था।

2. जaर्मनी का इतिहास (यातना गृह से जिन्दा बध निकले एक यहूदी की नजर से):
जर्मनी नात्सियों को यहूदियों पर किये गये अत्याचार के लिए सदैव याद किया जाएगा। यह जर्मन इतिहास का एक काला अध्याय है। समस्त यूरोप के यहूदी मकानों, यातना गृह और घेटो बस्तियों के रहने वाले यहूदियों को मालगाड़ियों में भर-भरकर मौत के कारखानों ‘कंसन्ट्रेशन कैम्पों (यातना गृहों)’ में डाल दिया जाता था जहाँ उन्हें घोर यातनाएँ दी जाती थीं।

आज भी मुझे वहाँ के दृश्यों को याद कर डर लगने लगता है। वहाँ मैं जिन्दा रहते हुए भी सैकड़ों बार मरा हूँ। बहुत दिनों तक विभिन्न तरह के अत्याचार के बाद यहदियों को गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। कंसन्ट्रेशन कैम्प से बाहर के यहूदियों की स्थिति भी दयनीय थी। उन्हें समाज में घोर अपमान सहना पड़ता था। अपनी पहचान प्रदर्शित करने के लिए उन्हें डेविड का पीला सितारा युक्त वस्त्र पहनने पड़ते थे एवं उनके घरों पर विशेष चिह्न छाप दिया जाता था।

किसी भी तरह के सन्देह की स्थिति अथवा कानून के मामली उल्लंघन पर उन्हें कसन्ट्रेशन कैम्प भेज दिया जाता था, जहाँ अत्याचार का एक नया दौर शुरू होता था जिसकी अन्तिम परिणति मौत के रूप में होती थी। हमारी आँखों के सामने हजारों-लाखों यहदियों को गैस चैम्बरों में दम घोट कर मारा गया।

3. जर्मनी का इतिहास (नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से):
जर्मनी में नात्सी शासन प्रचार के खोखले एवं कमजोर पैरों पर टिका हुआ था। युद्ध द्वारा नये क्षेत्रों के हड़पने की नीति से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं था। यह कभी भी देश में एक लम्बी शान्ति तथा समृद्धि का दौर नहीं ला सकती थी। हालांकि, मैं राष्ट्रवाद जैसे विचारों का समर्थक है, किन्तु नात्सी लोग इसका जो अर्थ लगाते थे तथा जिन साधनों तथा नीतियों के उपयोग द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे, उससे बिल्कुल भी सहमत नहीं हुआ जा सकता है।

जर्मन राष्ट्रवाद की प्राप्ति के लिए, पहले से अल्प धन की मात्रा को सेना या सैन्य उपकरणों पर खर्च करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। महिलाओं तथा बच्चों के प्रति नात्सियों की नीति पूर्णतः असंगत थी। जर्मन बच्चों को उनके नैसर्गिक व्यक्तित्व के विकास से दूर हटाकर उन पर नात्सी विचारधारा को थोपना और नात्सी विचारों को सही ठहराने के लिए नस्ल विज्ञान के नाम से एक नया विषय पाठ्यक्रम में चलाना।

यहूदियों से नफरत करना एवं हिटलर की पूजा करना उनके साथ घोर अन्याय था। महिलाओं पर अव्यावहारिक आचार संहिताओं का थोपा जाना उनकी स्वतन्त्रता को खत्म करने जैसा था। एक प्रकार से नात्सी लोगों ने असभ्यता के सभी लक्षणों के प्रचार द्वारा जर्मन जनता को भ्रष्ट करने का असफल प्रयास किया जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप हेलमुट हैं। स्कूल में आपके बहुत सारे यहूदी दोस्त हैं। आपका मानना है कि यहूदी खराब नहीं होते। ऐसे में आप अपने पिता से क्या कहेंगे? इस बारे में एक पैराग्राफ लिखें।
उत्तर:
प्रिय पिताजी, मेरे कई यहूदी दोस्त हैं। हमारे विद्यालय में यहूदियों से नफरत करना सिखाया जा रहा है। नात्सियों द्वारा यहूदी बच्चों को विद्यालय से निकाला जा रहा है तथा उन्हें गैस चैम्बरों में मरने के लिए ले जाया जा रहा है। आखिर यहूदियों ने कौन-सा ऐसा पाप किया है जिसके लिए निर्दयतापूर्वक उनकी हत्या की जा रही है? यदि हममें से कोई हत्यारा है तथा नात्सी शासन का समर्थक है तो उनको लेकर मैं लज्जित हूँ।

वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों यहूदियों को गैर-कानूनी रूप से मारा जा रहा है? क्या वे हमारी तरह इंसान नहीं हैं? क्या उनमें वही सारी भावनाएँ नहीं हैं जो हममें हैं? आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि मुझे कोई गैस चैम्बर्स में मरने के लिए छोड़ दे तो आप पर क्या गुजरेगी? उनकी सिर्फ यही गलती है कि वे यहूदी हैं, तो क्या यहूदी होना गुनाह है? यदि हाँ, तो जो ईसाई कर रहे हैं उस गुनाह की क्या सजा होनी चाहिए। नात्सियों के द्वारा किया जा रहा यह अत्याचार प्रभु ईसा मसीह कभी भी माफ नहीं करेंगे।

JAC Class 9th History और हिटलर का उदय Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:
वाइमर गणराज्य के सामने निम्नलिखित समस्याएँ थीं

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में पराजय के पश्चात् जर्मनी पर विजयी देशों ने बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं।
  2. इसे वर्साय की अपमानजनक सन्धि पर हस्ताक्षर करने पड़े।
  3. इसे मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में भारी धन-राशि देनी पड़ी।
  4. देश में मुद्रास्फीति के कारण कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी थी। वाइमर सरकार मूल्य-वृद्धि को रोकने में पूर्णत: असफल रही।
  5. देश में बेरोजगारी बढ़ गई थी तथा उद्योग एवं व्यापार पिछड़ गए थे।
  6. मित्र-राष्ट्रों ने जर्मनी को कमजोर करने के लिए उसकी सेना को भंग कर दिया।
  7. युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने जर्मनी को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ-साथ मित्र-राष्ट्रों को हुए नुकसान के लिए भी उत्तरदायी ठहराया।
  8. वाइमर गणराज्य की स्थापना के साथ ही स्पार्टकिस्ट लीग अपनी क्रांतिकारी विद्रोह की योजनाओं को अंजाम देने लगी।

प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि सन् 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त पराजित होने पर विजयी देशों ने बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं । जर्मनी के लिए वर्साय की सन्धि बड़ी अपमानजनक थी। इसकी कठोरता के कारण जर्मनी में नात्सीवाद का उत्थान हुआ। इसके नेता हिटलर ने वर्साय संधि-पत्र की अपमानजनक शर्तों की धीरे-धीरे अवहेलना करनी प्रारम्भ कर दी। वह उपनिवेशवाद, सैन्यवाद एवं विस्तारवाद में विश्वास करता था। जर्मनी में निम्न कारकों ने नात्सीवाद की लोकप्रियता बढ़ाने में योगदान दिया

1. जर्मनी में राजनीतिक अस्थिरता:
हिटलर के उत्थान से पूर्व जर्मनी पर वाइमर गणराज्य का शासन था। इसके शासनकाल में देश में बेरोजगारी एवं कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई, इससे सेना में भी असन्तोष फैल गया। हिटलर ने ऐसी स्थिति का पूरा-पूरा लाभ उठाया। उसने जर्मनी की जनता को विश्वास दिलाया कि वह राष्ट्र का खोया हुआ सम्मान पुनः वापस लाएगा। जर्मनी की सभी समस्याओं का समाधान करके वह उसे विश्व की नई महाशक्ति बनाएगा।

2. जर्मन जनता का प्रजातन्त्र में अविश्वास:
जर्मनी के लोगों का स्वभाव से ही प्रजातन्त्र में विश्वास नहीं था। प्रजातन्त्र उनकी सभ्यता एवं परम्पराओं के विरुद्ध था। वे पार्लियामेंट्री संस्थाओं एवं उसके क्रिया-कलापों को समझने में असमर्थ थे। अत: जर्मनी में वाइमर संविधान बड़े प्रतिकूल वातावरण में लागू हुआ, जिसका सफल होना भी सम्भव नहीं था। अत: वहाँ के लोगों की मनोवृत्ति नात्सी दल के विकास और हिटलर के अधिनायक बनने में सहायक सिद्ध हुई।

3. आर्थिक संकट:
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को गहरे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में जर्मनी को अपार जन एवं धन की हानि उठानी पड़ी। इसके शहर एवं कस्बे, व्यापार एवं वाणिज्य, कारखानों एवं उद्योगों को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया था। सन् 1929 ई. की आर्थिक मन्दी ने जर्मनी की आर्थिक स्थिति पर और भी बुरा प्रभाव डाला। जर्मनी की गणतन्त्रीय सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में पूर्ण रूप से असफल रही।

4. नात्सियों ने यहूदियों के प्रति घृणा:
भावना का प्रचार स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों से ही करना प्रारम्भ कर दिया। पाठ्यक्रम परिवर्तित कर दिया गया। स्कूलों से यहूदी शिक्षकों को निकाल दिया गया अत: जर्मनी की नई पीढ़ी में यहूदियों के प्रति घृणा एवं द्वेष के भाव पहले से ही भर दिए गए।

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प्रश्न 5.
नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रान्ति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें। फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ।
उत्तर:
नात्सी समाज में औरतों की भूमिका-नात्सी समाज में महिलाओं को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें आर्य संस्कृति का संवाहक माना जाता था। दुनिया के सभी प्रजातान्त्रिक देशों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे, लेकिन नात्सी जर्मनी में महिला का महत्व सिर्फ “आर्य सन्तान की माँ” के रूप में था।

महिलाओं को आर्य नस्ल की शुद्धता को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था और दबाव बनाया जाता था कि वह यहूदी पुरुष के साथ किसी प्रकार का प्रेम सम्बन्ध स्थापित न करे। अनेक सन्तानों को जन्म देने वाली माँ को विशेष पुरस्कार दिया जाता था। निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली ‘आर्य’ औरतों की सार्वजनिक रूप से निन्दा की जाती थी और उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था।

फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच तुलना:
1. नात्सी समाज में औरतों को पुरुषों के समान दर्जा नहीं दिया जाता था, जबकि फ्रांसीसी समाज में स्त्री-पुरुष को समान समझा जाता था। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे।

2. नात्सी समाज में महिलाएँ स्वतन्त्र नहीं थीं उनका काम केवल घर-परिवार की देखभाल और बच्चों को जन्म देना था। इसके विपरीत फ्रांसीसी समाज में महिलाओं को बराबर का साझीदार माना जाता सकती थीं।

3. नात्सी महिलाओं को अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार नहीं था। महिलाओं के लिए निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली महिलाओं को सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाता था। उन्हें न केवल जेल की सजा दी जाती थी अपितु अनेक तरह के नागरिक सम्मान एवं उनके पति एवं परिवार भी छीन लिए जाते थे। इसके विपरीत फ्रांसीसी महिलाएं अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतन्त्र थीं। महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार प्रदान किया गया। महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं।

प्रश्न 6.
नासियों ने जनता पर पूरा नियन्त्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?
उत्तर:
नात्सी सरकार ने जनता पर सम्पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए
1. स्कूली बच्चों का विचार परिवर्तन:
नात्सी सरकार ने अपनी विचारधारा पर आधारित नए पाठ्यक्रम के अनुरूप पुस्तके तैयार करवाई। नस्ल विज्ञान को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया। उनसे कहा जाता था कि वे यहूदियों से पूणा करें तथा हिटलर की पूजा करें।

2. पुवाओं का विचार परिवर्तन:
बाल्यावस्था से ही नात्सी सरकार ने बच्चों के मन-मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गये उन्हें वैचारिक प्रशिक्षण द्वारा नात्सीवाद की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया।

3. लड़कियों का विधार परिवर्तन:
लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी कि उन्हें अच्छी माँ बनना था तथा शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देकर उनका लालन-पालन करना था।

4. खेल गतिविधियाँ:
उन सभी खेल गतिविधियों विशेषकर मुक्केबाजी को प्रोत्साहित किया गया जो बच्चों में हिंसा तथा आक्रामकता की भावना उत्पन्न करती थीं।

5. आर्यों के आर्थिक हितों की रक्षा:
आर्य प्रजाति के लोगों के लिए आर्थिक अवसरों की पर्याप्त उपलब्धता थी। उन्हें रोजगार दिया जाता था, उनके व्यापार को सुरक्षा दी जाती थी तथा सरकार की तरफ से उन्हें हर सम्भव सहायता दी जाती थी।

6. महिलाओं के बीच भेदभाव:
महिलाओं के बीच उनके बच्चों के आधार पर भेदभाव किया जाता था। एक अनुपयुक्त बच्चे की माँ होने पर महिलाओं को दण्डित किया जाता था तथा जेल में कैद कर दिया जाता था, किन्तु बच्चे के शुद्ध आर्य प्रजाति का होने पर महिलाओं को सम्मानित किया जाता था।

7. नात्सी विचारधारा का प्रचार:
जनता पर पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने में नात्सियों द्वारा विशेष पूर्व नियोजित प्रचार का सर्वाधिक योगदान था। नाजियों ने शासन के लिए समर्थन पाने तथा अपनी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने के लिए दृश्य चित्रों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, नारों तथा इश्तहारी पर्चों द्वारा प्रचार किया। पोस्टरों में समाजवादियों एवं

8. नात्सियों:
ने जनसंख्या के विभिन्न हिस्से को अपील करने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने इस आधार पर उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया कि केवल नात्सी ही उनकी हर समस्या का हल ढूँढ़ सकते थे।

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