JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ जंगलों से हमें कागज, मसाले, गोंद, शहद, कॉफी, चाय, रबड़, चमड़ा, जड़ीबूटी, बाँस, कोयला, फल-फूल, पशु-पक्षी, फर्नीचर एवं जलाने हेतु लकड़ी आदि प्राप्त होते हैं।

→  औद्योगीकरण के दौर में सन् 1700 ई. से सन् 1995 ई. के मध्य 139 लाख वर्ग किमी. वन क्षेत्र कृषि, चरागाहों, ईंधन की लकड़ी एवं उद्योगों के कच्चे माल के लिए साफ कर दिया गया।

→ वन विनाश की समस्या प्राचीनकाल से चली आ रही है। वनों के लुप्त होने को सामान्यत: वन विनाश कहते हैं।

→ सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के लगभग ! भाग पर ही खेती होती थी आज यह आँकड़ा लगभग आधे तक पहुँच गया है।

→  सन् 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़त हुई।

→ खेती के विस्तार को हम विकास का सूचक मानते हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जमीन को जोतने से पहले जंगलों की कटाई करनी पड़ती है।

→  भारत में रेल-लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला, सन् 1946 तक इन रेल लाइनों की लम्बाई 7,65,000 कि. मी. तक बढ़ चुकी थी। इनके विस्तार हेतु जमीन एवं स्लीपरों के लिए बड़ी मात्रा में पेड़ों को काटा गया।

→ पेड़ों की अंधाधुध कटाई पर रोक लगाने के लिए अंग्रेजों ने जर्मन विशेषज्ञ डायट्रिच भेंडिस को देश का पहला बन महानिदेशक नियुक्त किया। उसने सन् 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की।

→ वन अधिनियम द्वारा जंगलों को आरक्षित, सुरक्षित एवं ग्रामीण इन तीन श्रेणियों में बाँटा गया।

→ सरकार ने वनों की सुरक्षा के लिए घुमंतू कृषि पर रोक लगाने का फैसला किया। जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटकर और जलाकर उन पर खेती करना घुमंतू कृषि कहलाता है।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ सन् 1905 ई. में जब ब्रिटिश सरकार ने वनों के 2/3 भाग को आरक्षित करने, घुमन्तू कृषि को रोकने, शिकार करने एवं अनेक वन्य उत्पादों के संग्रह पर प्रतिबन्ध लगाने जैसे प्रस्ताव रखे तो बस्तर के लोग चिन्तित हो गए क्योंकि उन्हें अपनी आजीविका इन वन्य उत्पादों से ही प्राप्त होती थी। अंग्रेजों की नजर में बड़े जानवर जंगली, बर्बर और आदि समाज के प्रतीक थे इसलिए उन्होंने बाघ, भेड़िये तथा दूसरे बड़े जानवरों को मारने एवं शिकार करने को प्रोत्साहित किया।

→ जावा को आजकल इंडोनेशिया के चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है लेकिन एक जमाने में यह क्षेत्र वनाच्छादित था। उन्नीसवीं सदी में डच उपनिवेशकों ने जावा में वन कानून लागू कर ग्रामीण लोगों के वनों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अब वनों में लकड़ी केवल विशिष्ट उद्देश्यों जैसे-नाव या घर बनाना आदि के लिए चुने हुए जंगलों से ही काटने की इजाजत दी गई। डचों ने वहाँ वन प्रबंधन की शुरुआत की।

→ अस्सी के दशक से एशिया और अफ्रीका की सरकारों को यह समझ में आने लगा कि वैज्ञानिक वानिकी और वन समुदायों को जंगल से बाहर रखने की नीतियों के चलते बार-बार टकराव पैदा होते हैं अत: सरकार ने यह मान लिया कि जंगलों के संरक्षण हेतु प्रदेशों में रहने वालों की मदद लेनी होगी।

→  सन् 1600 ई. – भारत के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी।

→  सन् 1700-1995 ई. – इस काल के मध्य 139 लाख वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र अर्थात् विश्व के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक उपयोग, कृषि कार्य, चरागाहों एवं ईंधनों की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया।

→  सन् 1820 ई. – सन् 1820 ई. के दशक में इंग्लैण्ड के खोजी दस्ते भारत की वन-सम्पदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए।

→  सन् 1850 ई. -सन् 1850 ई. के दशक में औपनिवेशिक विस्तार के लिए रेल-लाइनों के प्रसार का कार्य एवं लकड़ी की माँग में वृद्धि हुई।

→  सन् 1860 ई. – सन् 1860 ई. के दशक में भारत में रेल-लाइनों का जाल तेजी से फैला।

→  सन् 1864 ई. – चैंडिस द्वारा भारतीय वन सेवा की स्थापना।

→  सन् 1865 ई. – भारत में वन अधिनियम लागू।

→  सन् 1878 ई. – वन अधिनियम में प्रथम बार संशोधन किया गया।

→  सन् 1880-1920 ई. – खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई।

→  सन् 1899-1900 ई. – औपनिवेशिक सरकार के काल में भारत में भयंकर अकाल।

→  सन् 1906 ई. – देहरादून में इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना। अब इसको वन अनुसंन्धान संस्थान कहा जाता है तथा इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।

→  सन् 1907-1908 ई. – औपनिवेशिक सरकार के काल में पुन: अकाल का दौर।

→  सन् 1910 ई. – बस्तर रियासत में विद्रोह।

→  सन् 1927 ई. – वन अधिनियम में दूसरी बार संशोधन किया गया।

→ डायट्रिच बैंडिस – जर्मन विशेषज्ञ, जिसे भारत का प्रथम वन महानिदेशक नियुक्त किया गया।

→ जॉर्ज यूल – एक अंग्रेज अफसर जिसने 400 बाघों को अपना शिकार बनाया।

→ सुरोन्तिको सामिन – इन्होंने जावा में डच सरकार के विरुद्ध आन्दोलन किया तथा वनों पर राज्य के अधिकार को नहीं माना।

→ चरवाहे – ऐसे लोग जो भेड़-बकरियाँ एवं पशुओं को चराने के लिए इधर-उधर घूमते रहते हैं।

→ विलुप्त प्रजातियाँ – पौधों और पशुओं की ऐसी प्रजातियाँ जो बिल्कुल समाप्त हो चुकी हैं।

→ वनोन्मलन – वनोन्मूलन का अर्थ है-वन विनाश या समाप्ति। कृषि के विस्तार, रेलवे के विस्तार, जलयान-निर्माण आदि कई कार्यों के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा गया।

→ वैज्ञानिक वानिकी – वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई करके उनके स्थान पर पंक्तिबद्ध तरीके से एक निश्चित प्रजाति के पौधों को लगाना।

→ वन उत्पाद – वनों से प्राप्त होने वाली विभिन्न उपयोगी वस्तुएँ।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ वन अधिनियम – औपनिवेशिक शासकों ने वनों की उपयोगिता को जानते हुए वन अधिनियम पारित करके वनों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

→ सुरक्षित वन – वे वन, जिनमें पशुओं को चराने की अनुमति सामान्य प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है।

→ आरक्षित वन – वे वन, जो व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इमारती लकड़ी का उत्पादन करते हैं। इन वनों में किसी भी प्रकार की कृषि करने की अनुमति नहीं होती।

→ स्लीपर – रेल की पटरी के आर-पार लगे लकड़ी के तख्ते जो पटरियों को उनकी जगह पर रोके रखते हैं।

→ परती-भूमि – वह भूमि, जिसकी उर्वरता बढ़ाने के लिए उसे कुछ समय तक जोता नहीं जाता।

→ वन-ग्राम – वे ग्राम जिन्हें इस शर्त पर आरक्षित वनों में बसने दिया जाता था कि गाँववासी पेड़ों को काटने, उनकी ढुलाई तथा वनों को आग से बचाने में वन विभाग के लिए मुफ्त में काम करेंगे।

→ लेटेक्स – रबड़ की आपूर्ति के लिए जंगली रबड़ के वृक्षों से प्राप्त होने वाला पदार्थ।

→ इजारेदारी – एकाधिकार।

→ व्यावसायिक वानिकी – जब वनों को केवल व्यावसायिक बिक्री एवं मुनाफा कमाने के उद्देश्य से उद्योग के रूप में संचालित किया जाए तो उसे व्यावसायिक वानिकी कहा जाता है।

→ बागान – जब बहुत बड़े स्तर पर एक विशाल क्षेत्र पर एक ही तरह के पेड़ लगाये जाएँ, विशेषकर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए तो उसे बागान कहा जाता है, जैसे-असम के चाय बागान।

→ झूम कृषि – इस कृषि में वन के कुछ भागों को काट कर बारी-बारी से जला दिया जाता है। पहली मानसून वर्षा के पश्चात् इस राख में बीज बोए जाते हैं तथा अक्टूबर-नवम्बर में फसल काटी जाती है। ऐसे खेतों को कुछ वर्षों के लिए जोता जाता है तथा फिर कई वर्षों तक खेतों को खाली छोड़ दिया जाता है ताकि वन फिर से पनप जाएँ। इन भूखण्डों में मिली-जुली फसलें उगाई जाती हैं।

→ भारतीय वन अधिनियम,1878 – इस अधिनियम के अन्तर्गत वनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया-आरक्षित, संरक्षित एवं गाँव वन।

JAC Class 9th Social Science Notes History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

→ ब्लैण्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली – इस प्रणाली का आरम्भ जावा में किया गया, जिसके अन्तर्गत कुछ ग्रामीणों को इस शर्त पर करों में छूट दी गयी थी कि वे वन काटने एवं इमारती लकड़ी ढोने के लिए भैंसें उपलब्ध कराने का काम मुफ्त करेंगे।

→ बस्तर – वर्तमान में बस्तर छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है। वन नियन्त्रण से प्रभावित यहाँ के आदिवासी कबीलों ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह किए। इन विद्रोहों का आरम्भ धुरवा समुदाय द्वारा हुआ था।

→ छोटा नागपुर – बिरसा मुण्डा ने छोटा नागपुर में वन समुदाय के विद्रोह का नेतृत्व किया था।

→ सन्थाल परगना – वन्य समुदाय के नेता सीधू एवं कानू के नेतृत्व में सन्थाल परगना में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह किया गया।

→ सामिन आन्दोलन – जावा के वन्य लोगों का डच सरकार के विरुद्ध एक आन्दोलन था। इसका नेतृत्व सुरोन्तिको सामिन ने किया।

JAC Class 9 Social Science Notes

Leave a Comment