JAC Class 9 Social Science Important Questions Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत के ग्रामों में उत्पादन की प्रमुख गतिविधि है
(अ) डेयरी
(ब) पशुपालन
(स) कृषि
(द) परिवहन।
उत्तर:
(स) कृषि

2. ज्ञान और उद्यम को कहा जाता है.
(अ) पूँजी
(ब) कार्यशील पूँजी
(स) भौतिक पूँजी
(द) मानव पूँजी।
उत्तर:
(द) मानव पूँजी।

3. एक वर्ष में गन्ने की कटाई होती है
(अ) 1 बार
(ब) 2 बार
(स) 3 बार
(द) कई बार।
उत्तर:
(अ) 1 बार

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन के कारक किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन हेतु आवश्यक भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी तथा मानव पूँजी इन चारों को उत्पादन के कारक कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
पालमपुर गाँव में उच्च जाति के कितने परिवार निवास करते हैं?
उत्तर:
पालमपुर गाँव में उच्च जाति के लगभग 80 परिवार निवास करते हैं।

प्रश्न 3.
भूमि को मापने की मानक इकाई क्या है?
उत्तर:
भूमि को मापने की मानक इकाई ‘हेक्टेयर’

प्रश्न 4.
एक हेक्टेयर में कितने वर्ग मीटर होते हैं।
उत्तर:
एक हेक्टेयर में 10,000 वर्ग मीटर होते हैं।

प्रश्न 5.
बहुविध फसल प्रणाली क्या है?
उत्तर:
एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 6.
स्थायी पूँजी से क्या आशय है?
उत्तर:
उत्पादन के लिए आवश्यक औजार, मशीन और भवन जिनका उपयोग कई वर्षों तक होता है, स्थायी पूँजी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
भारत में मुख्य रूप से कौन-कौन सी फसलें प्राप्त की जाती हैं?
उत्तर:
भारत में मुख्य रूप से दो फसलें-खरीफ और रबी प्राप्त की जाती हैं।

प्रश्न 8.
आधुनिक कृषि का प्रयोग सर्वप्रथम भारत के किन राज्यों में किया गया?
उत्तर:
आधुनिक कृषि का प्रयोग सर्वप्रथम भारत के पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शिया गया।

प्रश्न 9.
कृषि के कार्य में जुताई व कटाई के कार्य में शीघ्रता किस साधन से आई?
उत्तर:
कृषि के कार्य में जुताई व कटाई कार्य में शीघ्रता ट्रैक्टर के प्रयोग से आई।

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प्रश्न 10.
मिट्टी की उर्वरता में कमी किसके प्रयोग से हुई?
उत्तर:
मिट्टी की उर्वरता में कमी रासायनिक खादों के प्रयोग से हुई।

प्रश्न 11.
ग्रामों में विनिर्माण कार्य के लिए श्रम की व्यवस्था कैसे होती है?
उत्तर:
ग्रामों में विनिर्माण कार्य हेतु श्रम की व्यवस्था पारिवारिक सदस्यों से होती है।

प्रश्न 12.
गैर कृषि कार्यों के प्रसार हेतु प्रमुखतः क्या आवश्यक है?
उत्तर:
गैर कृषि कार्यों के प्रसार हेतु आवश्यक है कि ऐसे बाजार उपलब्ध हों जहाँ विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं को बेचा जा सके।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन के लिए आवश्यक चारों चीजों को नाम लिखिए तथा भूमि को समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन के लिए भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी तथा मानव पूँजी की आवश्यकता होती है। भूमि-भूमि उत्पादन का एक स्थिर साधन है। इसे बढ़ाया नहीं जा सकता है। अतः इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। भारत में अधिकांश लोग भूमि पर कृषि कार्य करके ही अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं। भूमि का नियोजित प्रयोग करके ही इसकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 2.
भौतिक पूँजी के अन्तर्गत कौन-कौन सी मदें आती हैं? बताइए।
उत्तर:
भौतिक पूँजी से आशय उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर आवश्यक आगतों से है। भौतिक पूँजी को दो भागों में बाँटा गया है
1. स्थायी पूँजी:
उत्पादन के लिए आवश्यक भवन, मशीनरी, औजार जिनमें साधारण औजारों से लेकर परिष्कृत मशीनें भी शामिल होती हैं। साधारणतः ये सभी आगतें उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग में आते हैं।

2. कार्यशील पूँजी:
उत्पादन के लिये आवश्यक कच्चे माल तथा श्रमिकों और अन्य कई खर्चों के भुगतान करने हेतु कुछ पैसों की आवश्यकता होती है जिसे कार्यशील पूँजी कहते हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय कृषि में सिंचाई व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय कृषि का लगभग 60% भाग वर्षा पर निर्भर करता है। भारत के केवल 40% भाग में सिंचाई की सुविधाओं की व्यवस्था है, जैसे-नदीय मैदानों व तटीय क्षेत्रों में। इन्हीं क्षेत्रों में वर्ष में तीन फसलें किसान ले पाते हैं। शेष भाग, जैसे- पठारी, रेगिस्तानी आदि में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार नहीं होने के कारण आज भी वहाँ कृषि पूरी तरह से वर्षा पर ही निर्भर है।

प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि उत्पादन में गुणात्मक वृद्धि के लिए सन् 1960 के दशक के अन्त में पारम्परिक कृषि के तरीकों के स्थान पर कुछ परिवर्तनों के साथ कृषि करने की विधियाँ भारतीय किसानों को बताई गईं जिसमें अधिक उपज देने वाले बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशकों, सिंचाई के लिए नलकूप आदि के प्रयोग करना बताया गया। इससे कृषि पैदावार में हुई गुणात्मक वृद्धि को हरित क्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 5.
हरित क्रान्ति के कोई दो दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर:

  1. मिट्टी की उर्वरता कम होना–हरित क्रान्ति के अन्तर्गत प्रयोग किये जाने वाले रासायनिक खादों, कीटनाशकों तथा बीजों की नई-नई प्रजातियों के उपयोग के कारण भूमि की उवरता में कमी आयी है।
  2. भूमि जल स्तर कम होना–हरित क्रान्ति के कारण नलकूपों से सिंचाई में वृद्धि हुई है। इसके कारण भूमि के अन्दर जल के स्तर में लगातार कमी आ रही है और अब यह चिन्ताजनक स्थिति तक पहुँच गया है।

प्रश्न 6.
कृषि उत्पादन के एक साधन के रूप में श्रम पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
श्रम कृषि उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसके बिना कृषि कार्यों की कल्पना नहीं की जा सकती है। छोटे किसान अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कृषि कार्य कर लेते हैं जिससे उन्हें रोजगार भी प्राप्त हो जाता है जबकि बड़े एवं मझोले किसान कृषि कार्यों के लिए कृषि मजदूरों को काम पर बुलाते हैं। इस प्रकार गाँव में रहने वाले ऐसे लोग जिन पर कृषि भूमि नहीं है उन्हें रोजगार मिल जाता है।

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प्रश्न 7.
किसान खेती के लिए आवश्यक पूँजी कैसे जुटाते हैं?
उत्तर:
बड़े किसान अपनी बचतों का प्रयोग आगे कृषि उत्पादन हेतु कर लेते हैं लेकिन छोटे एवं मझोले किसान साहूकारों, बड़े किसानों, व्यापारियों एवं बैंकों से उधार लेकर खेती के लिए पूँजी की पूर्ति करते हैं तथा फसल आने पर उनका भुगतान करते हैं। यही क्रम लगातार चलता रहता है।

प्रश्न 8.
गैर-कृषि कार्य के रूप में डेयरी उद्योग पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
डेयरी उद्योग गाँव में कई परिवार गाय, भैंस पालकर उनके दूध को बेचकर अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं। दूध को गाँव के स्तर पर एकत्रित करके कुछ लोग आस-पास के कस्बों एवं शहरों में बेचने का कार्य भी करते हैं। इससे गाँव में लोगों को रोजगार मिलता है तथा शहर के लोगों को दूध की प्राप्ति हो जाती है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में इस उद्योग के फलने-फूलने की असीमित संभावनाएं हैं।

JAC Class 9 Social Science Important Questions

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

JAC Class 9th Geography जलवायु InText Questions and Answers 

प्रश्न 1.
राजस्थान में घरों की दीवार मोटी तथा छत चपटी क्यों होती हैं?
उत्तर:
राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थलीय है, यहाँ की जलवायु अत्यन्त गर्म है, यहाँ वनस्पति के अभाव के कारण सूर्य की किरणें धरातल पर सीधी पड़ती हैं। यहाँ हवाएँ भी तीव्र गति से चलती हैं, यहाँ गर्मियों में तो धूल भरी आँधियाँ चलती हैं। राजस्थान में इन्हीं विषम परिस्थितियों के कारण यहाँ के निवासी अपने घरों की दीवार मोटी बनाते हैं ताकि वे देरी से गर्म हों।

इससे घर के अन्दर का तापमान कम रहता है एवं लम्बे समय तक ठंडक बनी रहती है। घरों की छतें चपटी बनायी जाती हैं क्योंकि यहाँ वर्षा कम होती है। इस प्रकार की छतों से वर्षा जल की एक-एक बूंद को एकत्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसी छतों का आँधियों में उड़ जाने का खतरा भी नहीं रहता है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मैंगलोर में ढाल वाली छतें क्यों होती हैं?
उत्तर:
तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मैंगलोर भारत के ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं, जहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है। गोवा एवं मैंगलोर में 300-400 सेमी. से भी अधिक वर्षा एवं तराई क्षेत्रों में 100-200 सेमी तक वर्षा होती है इसलिए इन क्षेत्रों में ढलान वाली छतें बनाई जाती हैं ताकि पानी छतों पर रुके नहीं बल्कि ढलवाँ छतों के सहारे आसानी से बह जाए।

प्रश्न 3.
असम में प्रायः कुछ घर बाँस के खम्भों पर क्यों बने होते हैं?
उत्तर:
असम में प्रतिवर्ष 300 सेमी. से अधिक वर्षा होती है, इस क्षेत्र में अकसर बाढ़े आती रहती हैं जिससे सम्पूर्ण क्षेत्र पानी में डूब जाता है। धरातल पर लगभग सम्पूर्ण वर्ष बाढ़ का पानी भरा रहता है जिससे उसमें विषैले जीव-जन्तु; जैसे-साँप, कीड़े-मकोड़े आदि अपना निवास बना लेते हैं। अत: घर को पानी के भराव से एवं विषैले जीव-जन्तुओं से सुरक्षित रखने के लिए असम के निवासी अपने घरों को बाँस के खम्भों पर बनाते हैं।

प्रश्न 4.
विश्व के अधिकतर मरुस्थल उपोष्ण कटिबन्धीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर क्यों स्थित हैं ?
उत्तर:
उपोष्ण कटिबन्ध में सर्वाधिक वर्षा की प्राप्ति व्यापारिक पवनों से होती है जो उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर चलती हैं। जब ये पवनें किसी महाद्वीप के पूर्वी छोर से उठती हैं, तब वे आर्द्रता से परिपूर्ण होती हैं।

तथा पूर्वी किनारों पर किसी अवरोध के आते ही तुरन्त वर्षा करना प्रारम्भ कर देती हैं परन्तु जैसे ही ये महाद्वीपों के पश्चिमी छोर पर पहुँचती हैं, शुष्क हो जाती हैं। इनकी आर्द्रता समाप्त हो जाती है फलस्वरूप, पश्चिमी छोर वर्षारहित रह जाता है। यही कारण है कि विश्व के अधिकांश मरुस्थल उपोष्ण कटिबन्धीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर स्थित हैं।

‘क्या आप जानते हैं?’ आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति किससे हई है?
उत्तर:
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ मौसम है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
मानसून का क्या अर्थ है?
उत्तर:
मानसून का अर्थ एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है।

प्रश्न 3.
विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र कौन सा है?
उत्तर:
मॉसिनराम।

प्रश्न 4.
मॉसिनराम की दो प्रसिद्ध गुफाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. स्टैलैग्माइट,
  2. स्टैलैक्टाइट।

JAC Class 9th Geography जलवायु Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें:
1. नीचे दिए गए स्थानों में से किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है
(क) सिलचर
(ख) चेरापूंजी
(ग) मॉसिनराम
(घ) गुवाहाटी।
उत्तर:
(ग) मॉसिनराम।

2. ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है
(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) लू।

3. निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है
(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानसून।
उत्तर:
(ख) पश्चिमी विक्षोभ।

4. भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है
(क) मई के प्रारम्भ में
(ख) जून के प्रारम्भ में
(ग) जुलाई के प्रारम्भ में
(घ) अगस्त के प्रारम्भ में।
उत्तर:
(ख) जून के प्रारम्भ में।

5. निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है
(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें
(ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें
(घ) ठंडा दिन एवं गर्म रातें।
उत्तर:
(ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए
1. भारत की जलवाय को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर:
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं-अक्षांश, ऊँचाई, वायुदाब, पवनें, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ एवं उच्चावचीय लक्षण।

2. भारत में मानसूनी प्रकार की जलवाय क्यों है?
उत्तर:
धरातल पर मानसूनी जलवायु का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 30° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। वास्तव में ये प्रदेश व्यापारिक हवाओं की पेटी में आते हैं, जिनमें ऋतुवत् उत्तर एवं दक्षिण की ओर खिसकाव होता रहता है जिस कारण मानसूनी प्रकार की जलवायु की उत्पत्ति होती है

जिसमें 6 महीने तक हवाएँ सागर से स्थल की ओर तथा शेष 6 महीने में स्थल से सागर की ओर चला करती हैं। चूँकि भारत का अधिकांश अक्षांशीय विस्तार इन्हीं अक्षांशों के मध्य है। मानसूनी जलवायु की उत्पत्ति हेतु आवश्यक समस्त परिस्थितियाँ भारत में मौजूद हैं। इस कारण भारत की जलवायु मानसूनी प्रकार की है।

3. भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं
(अ) माह मई, जून में भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में न्यून वायुदाब का केन्द्र विकसित हो जाता है।

(ब) इन भागों में गर्म पवनें जिन्हें ‘लू’ के नाम से जाना जाता है, चलने लगती हैं। ये धूल भरी गर्म हवाएँ होती हैं जो तापमान को बढ़ा देती हैं।

4. किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा मालाबार तट पर वर्षा होती है।

5. जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायुको प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
जेट धाराएँ एक संकरी पट्टी में स्थित क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई (12000 मीटर से अधिक) वाली पश्चिमी हवाएँ होती हैं। इनकी गति ग्रीष्म ऋतु में 110 किमी. प्रति घण्टा एवं शीत ऋतु में 184 किमी. प्रति घण्टा होती है। भारत में जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती हैं। इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं।

6. मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-मौसम। मानसून का अर्थ, एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है। मानसून में विराम, मानसून से सम्बन्धित एक परिघटना है, इसमें आर्द्र एवं शुष्क दोनों तरह के अंतराल होते हैं। दूसरे शब्दों में, मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक होती है। इसमें वर्षारहित अंतराल भी होते हैं, इसे ही मानसून में विराम के नाम से जाना जाता है। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से सम्बन्धित होते हैं।

7. मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहाँ उच्चावच, जलवायु एवं वनस्पति में ही नहीं वरन् जनजीवन में भी विभिन्नताएँ मिलती हैं किन्तु मानसून एक ऐसा भौगोलिक कारक है जो देश की इन विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एकता स्थापित करता है। मानसून के आगमन पर समस्त देश में वर्षा होती है। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं।

समस्त भारतीय भू-परिदृश्य, इसका वन्य एवं वनस्पति जीवन, सम्पूर्ण कृषि कार्यक्रम, लोगों की जीवन-शैली और उनके त्यौहार सभी कुछ मानसून के इर्द-गिर्द घूमते हैं। मानसून के कारण ही प्रतिवर्ष ऋतुओं के चक्र की एक लय बनी रहती है। यही कारण है कि मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला समझा जाता है।

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प्रश्न 3.
उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय भारत की त्रिभुजाकार आकृति के कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून दो भागों में बँट जाता है

  1. अरब सागरीय शाखा,
  2. बंगाल की खाड़ी की शाखा।

आर्द्रता से युक्त बंगाल की खाड़ी की शाखा तीव्र गति से उत्तरी-पूर्वी राज्यों की ओर प्रवेश करती है और वहाँ पर स्थित पहाड़ियों से टकराकर घनघोर वर्षा प्रदान करती है। यहाँ से ये पवनें हिमालय के सहारे-सहारे पश्चिम में गंगा के मैदान की ओर मुड़ जाती हैं। जैसे ही ये पवनें पश्चिम की ओर बहती हैं, धीरे-धीरे इनकी आर्द्रता घटती जाती है जिस कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 4.
कारण बताएँ
1. भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन के निम्नलिखित कारण हैं
(अ) ग्रीष्मकाल में सम्पूर्ण उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप अत्यधिक गर्म रहता है। इससे यहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और यहाँ निम्न वायुदाब का केन्द्र बन जाता है जबकि जलीय क्षेत्रों में जहाँ इस समय उच्च वायुदाब होता है और पवनें निम्न दाब की ओर चलती हैं। अतः इस समय पवनों की दिशा जल से स्थल की ओर होती है।

(ब) शीत ऋतु सम्पूर्ण उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च वायुदाब का केन्द्र बन जाता है। इसके विपरीत जलीय भाग पर इस समय निम्न वायुदाब रहता है। अत: पवनें स्थल से जल की ओर चलती हैं।

2. भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
उत्तर:
भारत में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होती है जो भारत में केवल जून से सितम्बर के मध्य सक्रिय होते हैं। यही कारण है कि भारत में अधिकतर वर्षा इन्हीं महीनों में होती है।

3. तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर:
तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होने के निम्नलिखित कारण हैं
(अ) तमिलनाडु तट दक्षिण-पश्चिमी मानसून के वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ने के कारण ग्रीष्म ऋतु में वर्षा प्राप्त नहीं करता है।

(ब) शीत ऋतु में तमिलनाडु तट भारत में चलने वाली उत्तरी-पूर्वी पवनों के प्रभाव के क्षेत्र में पड़ता है। ये पवनें शुष्क होती हैं।

(स) जब ये उत्तरी-पूर्वी पवनें बंगाल की खाड़ी के ऊपर से होकर गुजरती हैं तो काफी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और तमिलनाडु के तट से टकराकर खूब वर्षा करती हैं।

4. पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।
उत्तर:
पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्रों में प्रायः चक्रवात आने के निम्नलिखित कारण हैं

(अ) नवम्बर माह के प्रारम्भ में अण्डमान सागर में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात उत्पन्न होते हैं। ये उत्तरी-पूर्वी पवनों के प्रभाव में आकर दक्षिण-पश्चिम की ओर चलते हैं।

(ब) इसके कारण उत्तर-पश्चिम भारत का निम्न वायुदाब क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाता है। इनकी दिशा पूर्वी तट की ओर होती है।

(स) जो चक्रवात सामान्यतः पूर्वी तट को पार करते हैं वे बहुत तीव्र गति वाले होते हैं, ये भारी वर्षा करते हैं। पूर्वी तट पर गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा हैं जहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। अतः इन चक्रवातों के प्रभाव से यहाँ जन-धन की भारी हानि होती है।

5. राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सखा प्रभावित क्षेत्र है।
उत्तर:
राजस्थान एवं गुजरात राज्य के कुछ भाग, जो पश्चिमी छोर पर स्थित हैं, सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं क्योंकि वर्षा ऋतु में जब मानसूनी पवनें इन क्षेत्रों में पहुँचती हैं तो उनकी आर्द्रता समाप्त हो चुकी होती है और ये बहुत कम वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र पवनाविमुख ढाल पर स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा न्यूनतम होती है।

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प्रश्न 5.
भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट समझा जा सकता
1. तापमान:
ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाता है, जबकि इसी समय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° सेण्टीग्रेड तक होता है। शीत ऋतु में जम्मू-कश्मीर के द्रास का तापमान 45° सेण्टीग्रेड तक गिर जाता है जबकि तिरुवन्तपुरम् में तापमान 22° सेण्टीग्रेड तक बना रहता है। सामान्य रूप से देश के तटीय क्षेत्रों के तापमान में अन्तर कम होता है। देश के आन्तरिक भागों में मौसमी या ऋतुनिष्ठ अन्तर अधिक होता है।

2. वर्षा:
देश के अधिकांश भागों में वर्षा जून से सितम्बर के मध्य होती है लेकिन तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा शरद ऋतु में अक्टूबर एवं नवम्बर के महीने में होती है।
वार्षिक वर्षा में भी भिन्नता देखने को मिलती है जहाँ मेघालय में यह वर्षा 400 सेमी. से अधिक वहीं लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह वर्षा 10 सेमी. से भी कम होती है। उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।

3. वर्षण का रूप:
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में अधिकांश वर्षा हिमपात के रूप में होती है, जबकि देश के अन्य भागों में यह वर्षा के रूप में होती है।

4. पवनों की दिशा:
ग्रीष्म ऋतु में पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं, जबकि शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 6.
मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करिए। उत्तर-मानसून अभिक्रिया (रचना तन्त्र) को निम्न प्रकार समझा जा सकता है
1. स्थल एवं जल के गर्म एवं ठण्डे होने की विभेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है, जबकि इसके आस-पास के समुद्रों के ऊपर उच्च वायुदाब का क्षेत्र बनता है।

2. ग्रीष्म ऋतु के अन्तः उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है। यह विषुवतीय गर्त है, जो सामान्यतः विषुवत् वृत से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून काल में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।

3. हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व में लगभग 20° दक्षिण के ऊपर उच्च दबाव क्षेत्र की उपस्थिति मिलती है। इस उच्च दबाव क्षेत्र की स्थिति और तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।

4. ग्रीष्म ऋतु के दौरान तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है। इस कारण समुद्र तट से लगभग 9 किमी. की ऊँचाई पर इस पठार के ऊपर उच्च दाब एवं तीव्र ऊर्ध्वाधर वायुधाराओं का निर्माण हो जाता है।

5. ग्रीष्म ऋतु में हिमालय के ऊपर उत्तर-पश्चिमी जेट वायुधाराओं का एवं भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी जेट वायुधाराओं का प्रभाव दिखाई देता है।

6. इसके अतिरिक्त दक्षिणी महासागरों के ऊपर दाब की अवस्थाओं में परिवर्तन भी स्पष्ट रूप से मानसून को प्रभावित करता है।

प्रश्न 7.
शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शीत ऋतु में मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित होती हैं।
1. शीत ऋतु की अवधि:
यह ऋतु मध्य नवम्बर से आरम्भ होकर फरवरी तक रहती है। भारत के उत्तरी भाग में दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठण्डे महीने होते हैं।

2. तापमान:
इस ऋतु में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता जाता है। दक्षिणी भारत में पूर्वी तट पर स्थित चेन्नई में औसत तापमान 24° से 25° सेण्टीग्रेड के मध्य होता है, जबकि उत्तरी मैदानों में यह 10° से 15° सेण्टीग्रेड के मध्य होता है। इस ऋतु में दिन गर्म होते हैं एवं रातें ठण्डी होती हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य होता है एवं हिमालय के उच्च ढलानों पर हिमपात होता है।

3. पवनें:
इस ऋतु के दौरान देश में उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं, ये स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। अतः देश के अधिकांश भागों में यह शुष्क मौसम होता है।

4. वर्षा:
इस ऋतु में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक वनों से तमिलनाडु तट पर अल्प मात्रा में वर्षा होती है। यहाँ वर्षा होने का प्रमुख कारण पवनों का समुद्र से स्थल की ओर चलना है।

5. वायुदाब:
देश के उत्तरी भाग में एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं।

6. शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर:
पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह न्यून दाब प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती हैं इसके कारण शीत ऋतु में मैदानों में वर्षा होती है एवं पर्वतों पर हिमपात। इस ऋतु में होने वाली वर्षा को महावट के नाम से जाना जाता है जो रबी की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है।

7. प्रायद्वीपीय भागों में शीत ऋतु सम्बद्ध नहीं होती। समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण इस ऋतु में भी यहाँ तापमान के प्रारूप में बहुत कम परिवर्तन होता है। शीत ऋतु की विशेषताएँ:

  1. इस ऋतु में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता जाता है।
  2. इस ऋतु में आसमान साफ, तापमान एवं आर्द्रता कम एवं पवनें धीरे-धीरे चलती हैं।
  3. इस ऋतु में दिन की अवधि छोटी एवं रातें लम्बी होती हैं।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 8.
भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताइए। उत्तर-भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मानसूनी वर्षा:
भारत में अधिकांश वर्षा (लगभग 98%) दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों से होती है। शीतकालीन मानसूनों से यहाँ वर्षा मात्र 5 प्रतिशत होती है।

2. अनिश्चितता:
मानसूनी वर्षा में निश्चितता नहीं पाई जाती है इनका आगमन एवं वापसी बहुत ही अनिश्चित होती है। कभी भारी वर्षा होती है और कभी सूखा ही पड़ जाता है।

3. असमान वितरण:
मानसूनी वर्षा का वितरण असमान होता है, कहीं पर मानसूनी वर्षा बहत अधिक होती है, जैसे-उत्तरी-पूर्वी राज्य जबकि कहीं वर्षा बहुत कम होती है, जैसे-राजस्थान का मरुस्थल।

4. अवधि में अन्तर:
मानसून (ग्रीष्मकालीन मानसून) की अवधि में भी अन्तर पाया जाता है। पश्चिमी राजस्थान में दो महीने से कम तथा केरल एवं अण्डमान और निकोबार क्षेत्र समूह में लगभग 6 महीने की अवधि का होता है।

5. क्रमभंगता की प्रवृत्ति:
मानसून वर्षा के क्रम में निरन्तरता नहीं होती बल्कि वर्षा रुक-रुक कर होती है। भारी वर्षा होने के पश्चात् बीच-बीच में शुष्क मौसम आता रहता है। कभी-कभी यह अन्तराल अधिक हो जाता है जिससे फसलें सूख जाती हैं।

6. मूसलाधार वर्षा;
मानसूनी वर्षा मूसलाधार होती है। एक बार आने पर यह लगातार कई दिनों तक जारी रहती है इसे मानसून का फटना कहते हैं।

मानचित्र कौशल

भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए:
1. 400 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र,
2. 20 सेमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र,
3. भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा।
उत्तर:
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परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
पता लगाइए कि आपके क्षेत्र में एक विशेष मौसम से कौन-से गाने, नृत्य, पर्व एवं भोजन सम्बन्धित हैं? क्या भारत के दूसरे क्षेत्रों से इनमें कुछ समानता है?
उत्तर:
विद्यार्थी अपने क्षेत्र के अनुसार इस प्रश्न को शिक्षक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विशेष ग्रामीण मकानों तथा लोगों की वेशभूषा के फोटोग्राफ इकडे कीजिए। देखिए क्या उनमें और उन क्षेत्रों की जलवायु की दशाओं तथा उच्चावच में कोई सम्बन्ध है।
उत्तर:
इस कार्य को विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

स्वयं करने के लिए

प्रश्न 1.
सारिणी-1 में दस प्रतिनिधि स्थानों के औसत माध्य, मासिक तापमान तथा औसत मासिक वार्षिक वर्षा दिया गया है। इसका अध्ययन करके प्रत्येक स्थान के तापमान और वर्षा के आरेख बनाइए।
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JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु 4

प्रश्न 2.
दस स्थानों को दो भिन्न क्रमों में लिखिए:
1. विषुवत् वृत्त से उनकी दूरी के क्रम में।
2. समुद्रतल से उनकी ऊँचाई के क्रम में।
उत्तर:
(i) निम्नलिखित दस स्थान विषुवत् वृन्त से उनकी दूरी के क्रम समुद्रतल से उनकी ऊँचाई के क्रम में दिए गए हैं

स्थान विषुवत् वृत्त से दूरी स्थान समुद्र तल से औसत ऊँचाई (मीटर में)
(i) तिरुवनंतपुरम् 8°29 उ. (942 किमी.) (i) कोलकाता 6 मीटर
(ii) बंगलौर (बैंगलुरु) 12° 58 उ. (1439 किमी.) (ii) चेन्नई 7. मीटर
(iii) चेन्नई 13° 4 उ. (1451 किमी.) (iii) मुम्बई 11 मीटर
(iv) मुम्बई 19°उ. (2100 किमी.) (iv) तिरुवनंतपुरम 61 मीटर
(v) नागपुर 21° 9 उ. (2348 किमी.) (v) दिल्ली 219 मीटर
(vi) कोलकाता 22° 34 उ. (2505 किमी.) (vi) जोधपुर 224 मीटर
(vii) शिलांग 24°34 उ. (2835 किमी.) (vii) नागपुर 312 मीटर
(viii) जोधपुर 26°18 उ. (2919 किमी.) (viii) बंगलौर (बैंगलुरु) 909 मीटर
(ix) दिल्ली 29°उ. (3219 किमी.) (ix) शिलाँग 1461 मीटर
(x) लेंह 34°उ. (3774 किमी.) (x) लेह 3506 मीटर

प्रश्न 3.
1. सर्वाधिक वर्षा वाले दो स्थान।
उत्तर:
शिलाँग, मुम्बई।

2. दो शुष्कतम् स्थान।
उत्तर:
लेह, जोधपुर।

3. सर्वाधिक समान जलवायु वाले दो स्थान।
उत्तर:
मुम्बई, तिरुवनंतपुरम्।

4. जलवायु में अत्यधिक अन्तर वाले दो स्थान।
उत्तर:
दिल्ली, जोधपुर।

5. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की अरब सागर शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
मुम्बई, बैंगलुरु।

6. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
शिलाँग, कोलकाता।

7. दोनों से प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
तिरुवनंतपुरम्, कन्याकुमारी।

8. लौटती हुई तथा उत्तर-पूर्वी मानसून से प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
चेन्नई, आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र।

9. पश्चिमी विक्षोभों के द्वारा शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त करने वाले दो स्थान।
उत्तर:
दिल्ली, लेह (हिमपात के रूप में)।

10. सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले दो महीने।
उत्तर:
जुलाई, अगस्त।

11. निम्नलिखित महीनों में सर्वाधिक गर्म दो महीने: फरवरी, अप्रैल, मई, जून।
उत्तर:
मई एवं, जून।

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प्रश्न 4.
अब ज्ञात कीजिए:
1. तिरुवनंतपुरम् तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
तिरुवनंतपुरम् केरल राज्य में भारत के दक्षिणी सिरे पर स्थित है। मानसून भारत में जून के महीने में दक्षिण की ओर से प्रवेश करता है जिससे तिरुवनंतपुरम् में पर्याप्त वर्षा होती है। मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के रास्ते में सबसे पहले शिलाँग की पहाड़ियाँ आती हैं जिनसे ये आर्द्र पवनें टकराकर वर्षा करती हैं। मानसूनी पवनों के मार्ग में सबसे पहले पड़ने के कारण तिरुवनंतपुरम् एवं शिलांग जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं।

2. जुलाई में तिरुवनंतपुरम् की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
जुलाई में मानसूनी हवाएँ देश के आन्तरिक भागों में पहुँच जाती हैं जिसके कारण तिरुवनंतपुरम् में वर्षा होती जबकि मुम्बई में अरब सागर की ओर से आने वाली मानसूनी पवनें जून के दूसरे सप्ताह में यहाँ पहुँचती हैं और इसके पश्चात् पश्चिमी घाट से टकराकर इस क्षेत्र में वर्षा करती हैं। यही कारण है कि जुलाई में तिरुवनंतपुरम् की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा होती है।

3. चेन्नई में दक्षिण-पश्चिमी मानसन के द्वारा कम वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की अरब सागरीय शाखा पश्चिमी घाट के पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट को पार करने पर इन पवनों में आर्द्रता की कमी आ जाती है। पवनों के नीचे उतरने से उनका तापमान बढ़ जाता है तथा उनमें शुष्कता बढ़ जाती है। इस तरह चेन्नई वृष्टिछाया क्षेत्र में आ आता है। फलस्वरूप चेन्नई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा बहुत कम वर्षा होती है।

4. शिलाँग में कोलकाता की अपेक्षा अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
शिलाँग, मेघालय के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है पर्वतों से घिरे होने के कारण यहाँ संघनन प्रक्रिया तीव्र होती है और पवनें भारी वर्षा करने को विवश होती हैं, जबकि कोलकाता मैदानी भाग में स्थित है। यहाँ ऐसा कोई पर्वत या पहाड़ियाँ नहीं हैं जो मानसूनी पवनों को घेरने में सक्षम हों इसलिए यहाँ कम वर्षा होती है।

5. कोलकाता में जुलाई में जून से अधिक वर्षा क्यों होती है? इसके विपरीत, शिलाँग में जून में जुलाई से अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
जून के महीने में बंगाल की खाड़ी की ओर से मानसून पवनें, जो आर्द्रता से भरी होती हैं, जब उत्तरी-पूर्वी भाग से भारत में प्रवेश करती हैं तो वहाँ स्थित गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियों से टकराकर भारी वर्षा करती हैं। इन्हीं पहाड़ियों के मध्य शिलाँग स्थित है, जिससे यहाँ जून में अधिक वर्षा होती है। यहाँ से धीरे-धीरे ये मानसूनी पवनें पश्चिम दिशा की ओर बढ़ती हैं और जुलाई में कोलकाता में वर्षा करती हैं। इस प्रकार जून में कोलकाता में मानसून पूरी तरह नहीं पहुँच पाता है, जबकि शिलाँग में पहुँच जाता है। यही कारण है कि कोलकाता में जुलाई में जून से अधिक वर्षा होती है एवं इसके विपरीत शिलाँग में जून में जुलाई से अधिक वर्षा होती है।

6. दिल्ली में जोधपुर से अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाली दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनें जब भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की पहाड़ियों से टकराकर वर्षा करती हैं। इसके बाद ये पवनें पश्चिम की ओर बहना प्रारम्भ कर देती हैं तथा भारत के उत्तरी मैदानों में वर्षा करती हैं। दिल्ली भी इन्हीं मैदानी भागों में स्थित है जिससे दिल्ली में भी इन्हीं पवनों से वर्षा होती है। इसके विपरीत जोधपुर राजस्थान के पश्चिमी भाग में स्थित है

इस क्षेत्र में मानसून की अरब सागरीय शाखा के समानान्तर ही अरावली पर्वत स्थित है जिससे यहाँ पवनें बिना वर्षा किये आगे निकल जाती हैं। इसके अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी की मानसूनी शाखा यहाँ पहुँचते-पहुँचते अपनी आर्द्रता समाप्त कर चुकी होती हैं इसलिए इन पवनों से यहाँ नाममात्र की वर्षा होती है। यही कारण है कि दिल्ली में जोधपुर की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।

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प्रश्न 5.
1. अब सोचिए ! ऐसा क्यों होता है तिरुवनंतपुरम् की जलवायु सम है।
उत्तर:
समुद्र तटीय स्थानों की जलवायु सम होती है। जल अपना समकारी प्रभाव थल पर छोड़ता है। अतः समुद्र तटीय क्षेत्र ग्रीष्म ऋतु में न अधिक गर्म और न शीत ऋतु में अधिक ठण्डे होते हैं इसके अतिरिक्त समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों का दैनिक तथा वार्षिक ताप परिसर दोनों ही कम होते हैं। यही कारण है कि तिरुवनंतपुरम् की जलवायु सम है।

2. देश के अधिकतर भागों में मानसूनी वर्षा के समाप्त होने के बाद ही चेन्नई में अधिक वर्षा होती है।
उत्तर:
देश के अधिकतर भागों में वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों से होती है। सितम्बर-अक्टूबर माह में मानसूनी पवनें लौटना प्रारम्भ कर देती हैं। इस समय समस्त भारत में उत्तरी-पूर्वी पवनें चलने लगती हैं ये मानसूनी पवनें बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरते समय आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और संघनित होकर चेन्नई में अधिक वर्षा करती हैं।

3. जोधपुर की जलवायु उष्ण मरुस्थलीय है।
उत्तर:
जोधपुर की जलवायु के उष्ण मरुस्थलीय होने के निम्नलिखित कारण हैं:

  1. यहाँ मानसूनी पवनें पहुँचते-पहुँचते शुष्क हो जाती हैं और वर्षा बहुत कम होती है।
  2. यहाँ तापमान उच्च रहता है जो वायु की आर्द्रता को वाष्पीकृत कर वर्षा के लिए बाधक बनता है।
  3. यहाँ बलुई मिट्टी पायी जाती है जो वर्षा के जल को तुरन्त सोख लेती है।
  4. यहाँ वार्षिक एवं दैनिक तापान्तर अधिक पाया जाता है।
  5. यहाँ वनस्पति का अभाव पाया जाता है।

4. लेह में लगभग पूरे वर्ष मध्य वर्षण होता है।
उत्तर:
जम्मू: कश्मीर का लेह क्षेत्र अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित है जिसके कारण यहाँ वृष्टि का केवल हिमरूप ही दिखाई पड़ता है। यहाँ का न्यून तापक्रम भी जल को जमा देता है जिससे लेह में लगभग पूरे वर्ष मध्य वर्षण होता है।

5. दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा लगभग तीन महीनों में होती है, लेकिन तिरुवनंतपुरम् और शिलाँग में वर्ष के 9 महीने तक वर्षा होती है।
उत्तर:
दिल्ली और जोधपुर देश के आन्तरिक भागों में स्थित हैं, यहाँ मानसूनी पवनें बहुत देरी से पहुँचती हैं तथा सबसे पहले लौट भी जाती हैं, जबकि तिरुवनंतपुरम् और शिलांग में मानसूनी पवनें सबसे पहले पहुँचकर वर्षा करती हैं और सबसे बाद में लौटती हैं।

6. गम्भीरता से विचार कीजिए कि इन सब तथ्यों के बावजूद क्या हमारे पास इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पुष्ट प्रमाण है कि पूरे देश में जलवायु की सामान्य एकता बनाए रखने में मानसून का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान
उत्तर:
यह तथ्य पूर्णरूपेण सत्य है कि पूरे देश में जलवायु की सामान्य एकरूपता बनाए रखने में मानसून का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान है जो निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है

  1. पवन की दिशाओं का ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन एवं उनसे सम्बन्धित ऋतुओं की दशाएँ ऋतु चक्रों को एक लय प्रदान करती हैं।
  2. सम्पूर्ण भारतीय परिदृश्य, इसके जीव-जन्तु एवं वनस्पति, इसका कृषि चक्र , मानवीय जीवन एवं उनके त्यौहार-उत्सव, सभी इसी मानसूनी लय के चारों तरफ घूमते हैं।
  3. मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की सम्पूर्ण प्रक्रिया में तीव्रता लाती हैं एवं सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती हैं।

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JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

JAC Class 9th Economics भारत में खाद्य सुरक्षा InText Questions and Answers 

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 42

प्रश्न 1.
कुछ लोगों का कहना है कि बंगाल का अकाल चावल की कमी के कारण हुआ था सारणी 4.1 का अध्ययन करें और बताएँ कि क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ क्योंकि 1943 में बंगाल में जब अकाल पड़ा तो वहाँ 79 लाख टन चावल उपलब्ध था जो 1941 में उपलब्ध चावल 70 लाख टन से अधिक था अत: चावल की कमी से अकाल पड़ता तो 1941 में पड़ना चाहिए था। यह अकाल दूषित जल एवं सड़े भोजन के प्रयोग के कारण फैलने वाली महामारियों के कारण हुआ था।

प्रश्न 2.
किस वर्ष खाद्य उपलब्धता में भारी कमी हुई ?
उत्तर:
सारणी 4.1 के अवलोकन से स्पष्ट है कि सन् 1941 में खाद्य उपलब्धता में भारी कमी रही थी।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 44

प्रश्न 3.
कृषि एक मौसमी क्रिया क्यों है?
उत्तर:
कृषि के अन्तर्गत बीज बोने, निराई करने, फसल काटने एवं दाना निकालने का कार्य किसी खाद्य मौसम में ही किया जा सकता है जबकि कुछ महीने कृषि पर निर्भर रहने वाले लोगों को काम नहीं मिलने की लाचारी होती है। यही कारण है कि कृषि एक मौसमी क्रिया है।

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प्रश्न 4.
रामू वर्ष के चार महीने बेरोजगार क्यों रहता है?
उत्तर:
रामू एक अनियमित खेतिहर मजदूर है तथा खेतिहर मजदूरों को वर्ष में कृषि कार्यों हेतु केवल कृषि फसलों-रबी और खरीफ के मौसम में तो कार्य मिलता है लेकिन प्रति वर्ष जब खेतों में 4 महीने कोई कार्य नहीं होता तब ये बेरोजगार होते हैं।

प्रश्न 5.
जब रामू बेरोजगार होता है, तो वह क्या करता है?
उत्तर:
रामू जब बेरोजगार होता है तो वह दूसरे कार्यों की तलाश करके कभी ईंट के भट्टे पर तो कभी गाँव में चल रहे निर्माण कार्यों में काम करता है।

प्रश्न 6.
रामू के परिवार में पूरक आय कौन प्रदान करता है?
उत्तर:
रामू के परिवार में उसकी पत्नी सुनहरी एवं बड़ा बेटा सोमू पूरक आय प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
कोई भी काम पाने में असमर्थ होने पर रामू को कठिनाई क्यों होती है?
उत्तर:
राम को बेरोजगारी के समय में जब कोई काम नहीं मिल पाता तो उसे और उसके परिवार को बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि उसके छोटे बच्चों को भी भूखे पेट सोना पड़ता है। परिवार को भोजन के साथ दूध और सब्जियाँ नियमित रूप से प्राप्त नहीं होती हैं।

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प्रश्न 8.
रामू खाद्य की दृष्टि से कब असुरक्षित होता है?
उत्तर:
कृषि कार्य की मौसमी प्रकृति के कारण अपनी बेरोजगारी के चार महीनों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित रहता है।

प्रश्न 9.
क्या रिक्शा चलाने से अहमद को नियमित आय होती है ? उत्तर-अहमद का रोजगार सुरक्षित नहीं हैं उसकी आय प्रतिदिन घटती-बढ़ती है उसे नियमित आय प्राप्त नहीं होती

प्रश्न 10.
रिक्शा चलाने से होने वाली थोड़ी-सी आय के बावजूद पीला कार्ड अहमद को अपना परिवार चलाने में कैसे मदद कर रहा है?
उत्तर:
अहमद की जिस दिन रिक्शा चलाने से अधिक आय होती है उसमें से दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के बाद शेष रकम को बचत के रूप में रख लेता है और पीले कार्ड से वह दैनिक जरूरतों के उपयोग हेतु पर्याप्त मात्रा में गेहूँ, चावल, चीनी, केरोसीन आदि बाजार से आधी कीमत पर निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों की दुकान से मासिक भंडार हेतु खरीद लेता है। इस प्रकार अहमद को पीले कार्ड से अपना परिवार चलाने में मदद मिल रही है।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 46

प्रश्न 11.
आरेख 4.1 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें
उत्तर:
1. हमारे देश में किस वर्ष में अनाज उत्पादन 200 करोड़ टन प्रतिवर्ष से अधिक हुआ?
उत्तर:
हमारे देश में 200 करोड़ टन प्रतिवर्ष से अधिक अनाज सन् 2001-11, 2011-12, 2012-13, 2014-15, 2015-16, 2016-17, 2017-18, 2018-19 में हुआ।

2. भारत में किस दशक में अनाज उत्पादन में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि हुई?
उत्तर:
भारत के अनाज उत्पादन में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि 2000-01 से 2010-11 तक की अवधि के मध्य हुई।

3. क्या 2000-01 से भारत में उत्पादन में वृद्धि, स्थाई है?
उत्तर:
नहीं, सन् 2000-01 से भारत में उत्पादन में वृद्धि स्थाई नहीं है। क्योंकि 2012-13, 2014-15 2015-16 में उत्पादन में कमी आयी तथा फिर 2016-17, 2017-18 तथा 2018-19 मे वृद्धि हुई है। पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या-49

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प्रश्न 12.
आरेख 4.2 के अध्ययन के बाद निम्न प्रश्नों का उत्तर दें
1. हाल में किस वर्ष में सरकार के पास खाद्यान्न का स्टॉक सबसे अधिक था?
उत्तर:
वर्ष 2014 में एफ . सी. आई के पास गेहूँ और चावल का भंडार 65.2 करोड़ टन था।

2. एफ. सी. आई. का न्यूनतम बफर स्टॉक प्रतिमान क्या है?
उत्तर:
एफ.सी.आई. का न्यूनतम बफर स्टॉक प्रतिमान 41.12 करोड़ टन है।

3. एफ. सी. आई. के भंडारों में खाद्यान्न ठसाठस क्यों भरा हुआ है?
उत्तर:
एफ. सी. आई. के भंडारों में खाद्यान्न ठसाठस भरा होने के मुख्य कारण पी. डी. एस. डीलर की दुकान पर घटिया किस्म का खाद्यान्न होने के कारण उसकी बिक्री नहीं होना तथा तीन प्रकार की कार्ड व्यवस्था और कीमतों की अलग-अलग दर के कारण बड़ी संख्या में लोग पी. डी. एस. डीलर से खाद्यान्न नहीं खरीदते हैं। क्योंकि ए. पी. एल. परिवार कार्ड धारकों के लिए निर्धारित कीमतें बाजार कीमतों के लगभग बराबर हैं।

JAC Class 9th Economics भारत में खाद्य सुरक्षा Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
भारत में खाद्य सुरक्षा पर्याप्त मात्रा में बफर स्टॉक बनाकर एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा सुनिश्चित की जाती है।

प्रश्न 2.
कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
उत्तर:
समाज के निर्धनता रेखा के नीचे के लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं। लेकिन जब देश में । प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे- भूकम्प, बाढ़, सुनामी आदि के कारण फसलों के खराब होने से अकाल पैदा होता है तब निर्धनता रेखा के ऊपर जीवन-यापन करने वाले लोग भी खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं।

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प्रश्न 3.
भारत में कौन-से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?
उत्तर:
भारत के वे राज्य जहाँ अधिक पिछड़ेपन के कारण निर्धनता अधिक व्याप्त है तथा आदिवासी और सुदूर क्षेत्र, प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होने वाले राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त होते हैं। इनमें प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी हिस्से, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भाग शामिल हैं।

प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्म-निर्भर बना दिया है? कैसे?
उत्तर:
हाँ, हम यह मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्म-निर्भरता प्रदान की है। क्योंकि 1960-1970 के दशक में भारत ने कृषि में हरित क्रांति की शुरुआत की जिसके कारण 2018-19 में अनाजों का उत्पादन 281.37 करोड़ टन पहुँच गया तथा मौसम की विपरीत दशाओं के दौरान भी देश में अकाल की स्थिति पैदा नहीं हुई और भारत पिछले 60 वर्षों के दौरान हरित क्रांति के कारण खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बन गया। सरकार द्वारा तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था से देश में खाद्यान्नों की उपलब्धता सुनिश्चित हुई।

प्रश्न 5.
भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से वंचित है, परन्तु इसमें सर्वाधिक प्रभावित वर्ग हैं-भूमिहीन जो थोड़ी बहुत भूमि पर निर्भर हैं, पारंपरिक दस्तकार व पारंपरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, अपना छोटा-मोटा काम करने वाले दस्तकार, निराश्रित व भिखारी। शहरी क्षेत्रों खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों और अनियमित श्रम-बाजार में काम करते हैं।

इनके अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्ग भी शामिल हैं। सार रूप में यह कहा जा सकता है कि निर्धनता रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों का वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है क्योंकि उनकी आय के स्रोत बहुत ही कम हैं। सरकार द्वारा खाद्य आपूर्ति हेतु लागू सार्वजनिक वितरण प्रणाली की अनेक खामियाँ हैं जैसे कि इन दुकानों से घटिया किस्म का अनाज मिलना, दुकानों का कभी-कभार खुलना, अधिक आय के लालच में डीलरों द्वारा राशन के अनाज को खुले बाजार में बेचना आदि। इन सबके कारण निर्धन वर्ग आज भी खाद्य से वंचित है।

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प्रश्न 6.
जब कोई आपदा आती है तो खाद्य-पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो फसलें सर्वाधिक प्रभावित होती हैं अर्थात् प्राकृतिक आपदा; जैसे- भूकंप, बाढ़, सूखा या सुनामी के कारण फसलें बर्बाद हो जाती हैं और लोग रोजगार की तलाश में दूसरी जगहों पर पलायन करते हैं। इन्हें इन जगहों पर भी नियमित रोजगार नहीं मिल पाने के कारण इनकी खाद्य आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती तथा इन प्राकृतिक आपदाओं से फसलों के बर्बाद हो जाने के कारण खुले बाजारों में कीमतें बढ़ जाती हैं। इन बढ़ी हुई कीमतों और अनियमित काम के कारण खाद्य-पूर्ति में कठिनाई पैदा होती है।

प्रश्न 7.
मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए।
उत्तर:
मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में निम्नलिखित अंतर पाये जाते हैं
1. दीर्घकालिक भुखमरी मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। जबकि मौसमी भुखमरी फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बन्धित है।
2. निर्धन लोग अपनी निम्न आय और जीविका के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्र की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम की उपलब्धता के कारण मौसमी भुखमरी पायी जाती है।

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प्रश्न 8.
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गईं किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत में खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारतीय नीति निर्माताओं ने खाद्यान्नों में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने हेतु भारतीय कृषि में एक नवीन रणनीति को अपनाया, जिसकी परिणति हरित क्रांति के रूप में हुई और इसके चलते भारत ने पिछले तीस वर्षों में खाद्यान्न आपूर्ति में केवल आत्मनिर्भरता ही प्राप्त नहीं की, बल्कि सभी को खाद्यान्न उपलब्धता भी सुनिश्चित की। इस खाद्यान्न सुनिश्चितता के दो प्रमुख घटक हैं- बफर स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली। 6 बफर स्टॉक- भारतीय खाद्य निगम के द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल के भंडारों को बफर स्टॉक कहते हैं।

एफ. सी. आई. अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से पूर्व घोषित न्यूनतम समर्थित मूल्य पर गेहूँ और चावल को खरीदती है। इस खरीदे हुए अनाज को भण्डारों में सुरक्षित रखती है तथा अनाज की कमी वाले क्षेत्रों और समाज के निर्धन वर्गों को बाजार मूल्य से कम कीमत पर वितरित किया जाता है। बफर स्टॉक के माध्यम से खराब मौसम व आपत्ति के समय में अनाज की समस्या को हल किया जाता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली-भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिशेष उपजों के माध्यम से जो बफर स्टॉक किया जाता है

उसे सरकार विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के निर्धन व गरीब लोगों में बाजार से कम मूल्य पर वितरित करवाती है, इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। राशन कार्ड धारक कोई भी परिवार प्रतिमाह एक निश्चित मात्रा में उपलब्ध खाद्य पदार्थ अपनी निकटवर्ती राशन दुकान से क्रय कर सकता है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा देने के लिए निम्नलिखित दो महत्वपूर्ण योजनाएं चलाई हैं

  1. काम के बदले अनाज का राष्ट्रीय कार्यक्रम-यह कार्यक्रम 1977-78 में प्रारम्भ किया गया, इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ अतिरिक्त मजदूरी व रोजगार का निर्माण करना था।
  2. अन्त्योदय अन्न योजना-निर्धनों में निर्धनतम लोगों के लिए दिसम्बर 2000 में यह योजना प्रारम्भ की गई।

प्रश्न 9.
सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर:
देश के सभी नागरिकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार बफर स्टॉक का निर्माण भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से करती है। बफर स्टॉक के माध्यम से सरकार अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों से खाद्यान्न न्यूनतम समर्थित मूल्य पर खरीदकर कमी वाले क्षेत्रों में पूर्ति के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं के समय खाद्यान्न की आपूर्ति को निश्चित करने के लिए भी सरकार बफर स्टॉक का निर्माण करती है।

प्रश्न 10.
टिप्पणी लिखें
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत,
(ग) निर्गम कीमत
(ख) बफर स्टॉक
(घ) उचित दर की दुकान।
उत्तर:
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत-न्यूनतम समर्थित मूल्य वह कीमत है जिस पर सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से किसानों से अनाज खरीदती है।

(ख) बफर स्टॉक:
सरकार भारतीय खाद्य निगम (एफ. सी. आई.) के माध्यम से अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों से अनाज, गेहूँ, चावल आदि पूर्व घोषित न्यूनतम समर्थित मूल्य पर क्रय करके भण्डारण करती है। इसे ही बफर स्टॉक कहते हैं। इस बफर स्टॉक का उद्देश्य देश के सभी लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना होता है चाहे कोई भी समस्या सामने आई हो। यह योजना अपने उद्देश्यों में सफल भी हुई है क्योंकि बफर स्टॉक प्रणाली के बाद देश के किसी क्षेत्र में अकाल के कारण खाद्य समस्या पैदा नहीं हुई है।

(ग) निर्गम कीमत:
सरकार बफर स्टॉक को खाद्यान्न की कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के निर्धन वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित करती है। इस कीमत को “निर्गम कीमत” कहते हैं।

(घ) उचित दर की दुकान:
सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के निर्धन वर्ग के परिवारों को खाद्यान्न वितरित कराने की व्यवस्था करती है। वर्तमान में अधिकांश क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में इन राशन की दुकानों का एक जाल है। इन्हीं राशन की दुकानों को उचित दर की दुकानें कहते हैं। इन दुकानों पर खाद्यान्न सरकार द्वारा निर्धारित दर पर उपलब्ध कराये जाते हैं।

प्रश्न 11.
राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर:
राशन की दुकानों के संचालन में निम्नांकित समस्याएँ देखने को मिलती हैं- पी. डी. एस. डीलर अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को खुले बाजारों में अधिक कीमतों पर चोरी छुपे बेच देते हैं। राशन की दुकानों पर जो अनाज एफ. सी. आई. से आता है उसकी किस्म घटिया होती है। राशन की दुकानें निश्चित समय पर नहीं खुलतीं और कभी-कभार ही खुलती हैं।

जिससे ज्यादातर निर्धन उपभोक्ता परेशान रहते हैं और कम कीमत का खाद्यान्न प्राप्त नहीं कर पाते हैं। राशन की दुकानों पर घटिया किस्म का अनाज पड़ा रहना एक आम बात है। इन समस्याओं के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सफलता में कमी आई है। वर्तमान में तीन भिन्न कीमतों वाले पी. डी. एस. की व्यवस्था के कारण निर्धनता रेखा से ऊपर वाले ए. पी. एल. परिवारों को न के बराबर छूट के कारण राशन की दुकानों से खाद्यान्न खरीदने के लिए प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

प्रश्न 12.
खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारत के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली राशन की दुकानें खोलकर खाद्यान्न उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उदाहरण के लिए; तमिलनाडु राज्य में जितनी राशन की दुकानें हैं उनमें से 94% दुकाने सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं। दिल्ली में मदर डेयरी के माध्यम से उपभोक्ताओं को निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध व सब्जियाँ उपलब्ध करायी जा रही हैं।

इसी प्रकार गुजरात में अमूल एक सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत सहकारी समितियों के अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में अहम् भूमिका निभाई है। महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस (ए.डी.एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी

संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है। यह ए. डी. एस. इन गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है। ए. डी. एस. अनाज बैंक कार्यक्रम को सफल और नवीन खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति मिली है।

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शोषण का मूल कारण है
(क) बेरोजगारी
(ख) अशिक्षा
(ग) गरीबी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अशिक्षा

2. कोपरा (COPRA) क्या है?
(क) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम
(ख) उपभोक्ता आन्दोलन
(ग) उपभोक्ता दल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम

3. अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया, वह कानून है
(क) सूचना पाने का अधिकार
(ख) चुनने का अधिकार
(ग) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) सूचना पाने का अधिकार

4. 20 लाख से लेकर एक करोड़ तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों की शिकायतें किसमें प्रस्तुत की जा सकती हैं?
(क) जिलास्तरीय न्यायालय
(ख) राज्यस्तरीय न्यायालय
(ग) राष्ट्रीयस्तर की अदालतें
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) राज्यस्तरीय न्यायालय

5. एगमार्क किन वस्तुओं के लिए प्रामाणिक चिह्न है?
(क) उत्पादित सामान
(ख) स्वर्ण व चाँदी
(ग) खाद्य-पदार्थ
(घ) उत्पादित मशीन
उत्तर:
(ग) खाद्य-पदार्थ

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

6. भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब मनाया जाता है?
(क) 24 सितम्बर
(ख) 24 दिसम्बर
(ग) 5 सितम्बर
(घ) 21 जून।।
उत्तर:
(क) 24 सितम्बर

रिक्त स्थानपूर्ति

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. ………….के रूप में हम वस्तुओं तथा सेवाओं को कम करते हैं।
उत्तर:
उपभोक्ता,

2. भारत में …………के दशक में व्यवस्थित उपभोक्ता आन्दोलन का उदय हुआ?
उत्तर:
1960,

3. भारत सरकार ने…………सूचना पाने का अधिकार लागू किया।
उत्तर:
अक्टूबर, 2005,

4. भारत से प्रतिवर्ष………..को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
उत्तर:
दिसम्बर

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ताओं की बाजार में भागीदारी कब होती है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं की बाजार में भागीदारी तब होती है जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं और सेवाओं को खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
उपभोक्ताओं का शोषण क्यों होता रहता है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं का शोषण इसलिए होता रहता है कि वे या तो अपने अधिकारों के बारे में जानते नहीं या जानते हैं तो वे उनका प्रयोग नहीं करते।

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प्रश्न 3.
अधिकारों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता को किसका निर्वहन करना आवश्यक है?
उत्तर:
अधिकारों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता को अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ किस कारण हुआ?
उत्तर:
उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
कोपरा (COPRA)।

प्रश्न 6.
‘सूचना का अधिकार’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार द्वारा निर्मित एक कानून जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएँ प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 7.
उपभोक्ता के किन्हीं दो अधिकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सुरक्षा का अधिकार,
  2. सूचना पाने का अधिकार ।

प्रश्न 8.
यदि व्यापारी द्वारा उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई गई है, तो किस उपभोक्ता अधिकार के अन्तर्गत वह नुकसान की भरपाई के लिए उपभोक्ता न्यायालय जा सकता है?
उत्तर;
सुरक्षा का अधिकार।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित की गई अदालतों के नाम लिखिए।
उत्तर;

  1. जिला स्तर की उपभोक्ता अदालत,
  2. राज्य स्तर की उपभोक्ता अदालत,
  3. राष्ट्र स्तर की उपभोक्ता अदालत।

प्रश्न 10.
बाजार से वस्तुएँ खरीदते समय उपभोक्ता को आई.एस.आई. या एगमार्क के शब्द चिह्न क्यों देखने चहिए?
उत्तर:
क्योंकि यह वस्तु की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं।

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प्रश्न 11.
विद्युत उपकरणों एवं खाद्य वस्तुओं पर अंकित शब्द चिह्न और प्रमाणकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विद्युत उपकरण ISI चिद्न। खाद्य वस्तुओं पर AGMARK चिह्न।

प्रश्न 12.
मान लीजिए कि आपको बिजली का सामान (उपकरण) खरीदना है, तो उस सामान पर गुणवत्ता के लिए आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखोगे ?
उत्तर:
विद्युत उपकरणों पर हम ISI चिह्न देखेंगे।

प्रश्न 13.
कल्पना कीजिए कि आपको यात्रा के ौरान पीने के लिए पानी की पैक बोतल खरीदनी पड़ी। इसकी गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त होने के लिए आप कौन-सा शब्द चिह्न (Logo) देखना चाहोगे ?
उत्तर:
पानी की बोतल पर हम AGMARK का चिह्न देखेंगे।

प्रश्न 14.
मान लीजिए कि आपके माता-पिता आपके साथ सोने के आभूषण खरीदना चाहते हैं, तो इसके लिए आप आभूषणों पर कौन-सा शब्द चिह्न (लोगो) देखना चाहोगे?
उत्तर:
हॉलमार्क।

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प्रश्न 15.
भारत में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि 1986 में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया था।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बाजार में हमारी भागीदारी कैसे होती है?
उत्तर:
बाजार में हमारी भागीदारी निम्न प्रकार से होती है

  1. बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है।
  2. वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादक के रूप में हम कृषि, उद्योग या सेवा में से किसी क्षेत्रक में कार्यरत हो सकते हैं।
  3. उपभोक्ता के रूप में हमारी भागीदारी तब होती है जब हम अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
चयन के अधिकार को संक्षेप में उदाहरण सहित बताइए।
अथवा
उपभोक्ता के ‘चुनने का अधिकार’ का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी भी उपभोक्ता को जो कि किसी सेवा को प्राप्त करता है, चाहे वह किसी भी आयु एवं लिंग का हो तथा किसी भी प्रकार की सेवा प्राप्त करता हो, उसको सेवा प्राप्त करते हुए हमेशा चयन का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि विक्रेता हमें कहता है कि एक दंत मंजन के साथ कुछ खरीदना पड़ेगा तो यह हमारे चयन के अधिकार का उल्लंघन होगा। अत: हम अपने ‘चयन (चुनने) के अधिकार’ का इस्तेमाल करते हुए केवल दंत मंजन ही खरीद सकते हैं।

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प्रश्न 3.
क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार को संक्षेप में बताइए।
अथवा
उपभोक्ताओं के लिए ‘क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार’ के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता को अनुचित व्यवसाय कार्यों एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार होता है। यदि उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचायी जाती है तो उसे हुई क्षति की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए एक सरल व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 4.
प्रतिनिधित्व के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हमें उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालयों में जाने का अधिकार है। हमारे हितों को उपयुक्त मंचों पर उचित महत्त्व मिलना चाहिए। यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में निरस्त कर दिया जाता है तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके पश्चात् राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है।

प्रश्न 5.
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति के समर्थन में कोई तीन तर्क दीजिए। उत्तर–भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति के समर्थन में प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं

  1. भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ उपभोक्ता निपटारे के लिए अलग अदालतें हैं।
  2. हमारे देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं जिसमें से 20-25 संगठन ऐसे हैं जो सुसंगठित एवं अच्छी कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं।
  3. भारत में उपभोक्ता ज्ञान धीरे-धीरे फैल रहा है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ता आंदोलन के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ को पारित करने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आंदोलन के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं

  1. उपभोक्ता आंदोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवहारों में सम्मिलित होते हैं।
  2. 1980 के दशक से पहले बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक जब तक उपभोक्ता एवं विशेष ब्रांड के उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो सामान्यत: वह उस ब्रांड उत्पाद को एवं उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था।
  3. यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते समय वह सावधानी बरते विक्रेता का कोई उत्तरदायित्व नहीं है।
  4. अनुचित व्यवसाय कार्यों, अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी एवं कालाबाजारी ने भी उपभोक्ता आन्दोलन को प्रोत्साहन प्रदान किया।

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प्रश्न 2.
उपभोक्ता आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं? समझाइए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में सम्मिलित होते थे। बाजार में उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह मान लिया गया था कि वस्तु या सेवा खरीदते समय सावधान रहना उपभोक्ता की जिम्मेदारी है।

सन् 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था के दिशा-निर्देश को अपनाया। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा हेतु उपयुक्त तरीके अपनाने हेतु राष्ट्रों के लिए एवं सेवा करने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर करने हेतु उपभोक्ता वकालत दलों के लिए एक हथियार था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह उपभोक्ता आन्दोलन का आधार बना।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता अधिकार के रूप में ‘सुरक्षा का अधिकार’ को उदाहरण सहित संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत सी वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करते हैं तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार प्राप्त होता है क्योंकि ये जीवन व सम्पत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा विनियमों एवं नियमों का पालन करें। ऐसी बहुत सी वस्तुएँ एवं सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से विशेष सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए प्रेशर कुकर में एक सेफ्टी वाल्व होता है जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना का कारण बन सकता है। सेफ्टी वाल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता को प्राप्त किन्हीं तीन अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 24 दिसम्बर, 1986 में पारित हुआ था। उपभोक्ता अधिकार उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं।

1. सुरक्षा का अधिकार- इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को ऐसे माल के क्रय:
विक्रय के विरुद्ध संरक्षण पाने का अधिकार प्रदान किया गया है, जो जीवन व सम्पत्ति के लिए हानिकारक हैं। उपभोक्ता को किसी भी वस्तु या सेवा के क्रय या उपभोग से बीमार होने, चोट लगने या किसी भी व्यक्ति के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से होने वाली हानि के विरुद्ध सुरक्षा पाने का अधिकार है।

2. सूचना पाने का अधिकार:
उपभोक्ता को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि उसे माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्यों के बारे में सूचना प्रदान की जाये। यदि ये सूचनाएँ माल के उत्पादक द्वारा नहीं लिखी गयी हैं तो उपभोक्ता इन सूचनाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखता है। आज सरकार द्वारा प्रदत्त विविध सेवाओं को उपयोगी बनाने के लिए सूचना पाने के अधिकार का दायरा बढ़ा दिया गया है। अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने एक नया कानून लागू किया जो RTI या सूचना पाने के अधिकार के नाम से जाना जाता है।

3. चुनाव का अधिकार:
इस अधिकार के तहत उपभोक्ता बाजार में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से किसी का भी चयन कर सकता है। वह किसी भी व्यवसायी द्वारा उत्पादित माल की किसी भी किस्म को अपनी इच्छा से पसन्द कर सकता है। …

4. क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार:
इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को व्यवसायी द्वारा किये जाने वाले प्रतिबन्धात्मक एवं अनुचित व्यवहार के कारण होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार दिया गया है।

5. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:
इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को वस्तुओं, सेवाओं एवं उनके उपयोग की विधि आदि के सम्बन्ध में जानकारी या शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होता है। यह अधिकार उपभोक्ताओं को जागरूक बने रहने के लिए ज्ञान तथा क्षमता प्रदान करने का अधिकार है।

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प्रश्न 5.
सूचना का अधिकार क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उपभोक्ताओं के लिए ‘सूचना पाने का अधिकार’ (आर.टी.आई.) के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता को खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है। इसके अन्तर्गत माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्यों आदि की सूचना सम्मिलित है। यदि ये सूचनाएँ माल के उत्पादक द्वारा नहीं लिखी गयी हैं तो उपभोक्ता इन सूचनाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखता है।

यह अधिकार उपभोक्ताओं को इसलिए दिया गया है ताकि विक्रेता द्वारा धोखा दिया जाने पर उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार ने सूचना पाने के अधिकार को एक कानून के रूप में लागू किया। यह अधिकार भारतीय नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यालयों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है। इसे RTI या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 6.
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार का आप किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं?
अथवा
उपभोक्ता अपने ‘क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार’ का उपयोग किस प्रकार कर सकते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उपभोक्ता को अनुचित व्यवसाय कार्यों एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार होता है। यदि उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचायी जाती हैं तो उसे हुई क्षति की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए एक सरल व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है। उदाहरण-रामप्रसाद ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए अपने गाँव एक मनीआर्डर भेजा।

उसकी पुत्री को जब इन पैसों की आवश्यकता थी, तब पैसे पोस्ट ऑफिस में जाकर मनीआर्डर के बारे में पूछताछ की लेकिन वहाँ से उसे कोई 10 सन्तोषप्रद जबाव नहीं मिला। तत्पश्चात् रामप्रसाद अपने जिले की उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराते हैं तथा आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं। उपभोक्ता अदालत ने निर्धारित तिथि को दोनों पक्षों के तर्क सुनकर रामप्रसाद के पक्ष में फैसला देते हैं तथा पोस्ट ऑफिस से मनीआर्डर की राशि मय ब्याज के रामप्रसाद को उपलब्ध करवाते हैं। इस प्रकार हम भी अनुचित व्यवसाय कार्यों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रश्न 7.
उपभोक्ता संरक्षण परिषद क्या है? ये उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु क्या-क्या सेवाएं प्रदान करते हैं?
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन ने विभिन्न ऐच्छिक संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया है। उन्हें सामान्य तथा उपभोक्ता अदालत अथवा उपभोक्ता संरक्षण परिषद के नाम से जाना जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण परिषद उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करती हैं

  1. ये उपभोक्ताओं को जानकारी देते हैं कि किस प्रकार उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज करायें।
  2. सामान्यतः ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
  3. वें जनता में उपभोक्ता के अधिकारों एवं कर्त्तव्य को प्रति उन्हें जागरूक करने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए स्थापित न्यायिक तंत्र को समझाइए।
अथवा
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र किस प्रकार स्थापित किया गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए कोपरा (उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986) के अन्तर्गत जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गई है। जिला स्तर के न्यायालय को जिला केन्द्र भी कहते हैं। यह 20 लाख तक दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करता है।

राज्य स्तरीय अदालत को राज्य आयोग भी कहते हैं। यह 20 लाख से 1 करोड़ तक के विवादों पर विचार करते हैं। राष्ट्रीय स्तर की अदालत को राष्ट्रीय आयोग भी कहते हैं। यह 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारियों से सम्बन्धित मुकदमों को देखती है। यदि कोई मुकदमा जिला केन्द्र से खारिज हो जाता है तो उपभोक्ता राज्य आयोग में तथा उसके बाद राष्ट्रीय आयोग में भी अपील कर सकता है।

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प्रश्न 9.
भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल क्यों होती जा रही है ? कारण दीजिए।
अथवा
भारत में उपभोक्ता शिकायतों की निवारण प्रक्रिया किस प्रकार जटिल, खर्चीली और समयसाध्य साबित हो रही है? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समयसाध्य साबित हो रही है।” इस समस्या के समाधान के लिए किन्हीं तीन कारकों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया किस प्रकार जटिल, खर्चीली और समय-साध्य हो रही है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया निम्न कारणों में जटिल होती जा रही है

  1. उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया खर्चीली एवं समयसाध्य साबित हो रही है।
  2. कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमे अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने एवं आगे बढ़ने आदि में बहुत अधिक समय लेते हैं।
  3. अधिकांश क्रेताओं को खरीददारी के समय विक्रेताओं द्वारा रसीद नहीं दी जाती। ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना, आसान नहीं होता। इसके अतिरिक्त बाजार में अधिकांश खरीदारियाँ छोटी फुटकर दुकानों से होती हैं।
  4. श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद विशेषकर असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार बाजार के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता है।
    पभोक

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी कारक कौन-कौन से हैं? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं

  1. भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म अनैतिक एवं अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
  2. देश में अत्यधिक खाद्य पदार्थों की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों में एवं तेलों में मिलावट के कारण से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म हुआ।
  3. 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बन्धित आलेखों एवं प्रदर्शनों के आयोजन का कार्य करने लगी थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ एवं राशन की दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर निगरानी रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाये।
  4. पिछले कुछ वर्षों से भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए हुआ कि. व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण के अनेक मामले लगातार हमारे समक्ष आते जा रहे हैं।
  5. उपभोक्ता आन्दोलन वृहत स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ एवं अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों एवं सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया जिसे उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के नाम से जाना जाता है। 24 दिसम्बर, 1986 को भारत की संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया जो कोपरा (COPRA) नाम से जाना जाता है।
  6. कोपरा के अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरों या एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 2.
क्या कोपरा (उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम) प्रभावकारी हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क कीजिए।
उत्तर:
हाँ, कोपरा प्रभावकारी है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  1. कोपरा (COPRA) अधिनियम ने केन्द्र और राज्य सरकारों में उपभोक्ता मामले के अलग विभागों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा की है।
  2. विज्ञापनों के माध्यम से सरकार नागरिकों को उपभोक्ता सुरक्षा सम्बन्धी कानूनी प्रक्रिया के बारे में अवगत कराती है, जिससे नागरिक कानूनों का प्रयोग कर सकें।
  3. जब हम विभिन्न वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते समय, उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे, तब हम अच्छे और बुरे में फर्क करने तथा श्रेष्ठ का चुनाव करने में सक्षम होंगे। कोपरा के माध्यम से इस प्रकार की जागरूकता का विकास हुआ है।
  4. एक जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए निपुणता और ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है। हम अपने अधिकारों के प्रति कैसे सजग रहें इसके लिए उपभोक्ता कानून बनाये गये हैं।
  5. कोपरा के माध्यम से विभिन्न उपभोक्ता अदालतों एवं मंचों का गठन किया गया है जिससे उपभोक्ता आसानी से एवं कम खर्च में न्याय प्राप्त कर सकते हैं।
  6. अब उपभोक्ता की तरफ से कोई उपभोक्ता संगठन भी उत्पाद की शिकायत करके क्षतिपूर्ति दिला सकता है।
  7. कोपरा के द्वारा अब उपभोक्ता वस्तु के खराब होने पर आसानी से क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

प्रश्न 3.
उपभोक्ता का शोषण किस प्रकार किया जाता है? इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने क्या किया है?
उत्तर:
बाजार में उपभोक्ताओं का निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है

  1. विक्रेता प्रायः वस्तुओं की उचित ढंग से माप-तौल नहीं करते तथा माप-तौल में कमी करते हैं।
  2. कई अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते हैं।
  3. बाजार में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है।
  4. कई बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत या अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं।

उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा निर्मित 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act, COPRA) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपर्ति की व्यवस्था की गई है। उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता-विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में त्रिस्तरीय न्यायिक व्यवस्था है

जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता मंच (फोरम) की स्थापना की गयी है। यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है। इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए गए निवेश को क्या कहते हैं?
(क) उत्पादन
(ख) व्यय
(ग) वितरण
(घ) विदेशी निवेश
उत्तर:
(घ) विदेशी निवेश

2. कारगिल फूड्स किस देश की बहुराष्ट्रीय कम्पनी है?
(क) अमेरिका
(ख) भारत
(ग) फ्रांस
(घ) कनाडा
उत्तर:
(क) अमेरिका

3. विदेशी व्यापार किनके मध्य होता है?
(क) दो देशों के मध्य
(ख) दो नगरों के मध्य
(ग) दो गाँवों के मध्य
(घ) दो प्रदेशों के मध्य
उत्तर:
(क) दो देशों के मध्य

4. देशों के तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
(क) उदारीकरण
(ख) वैश्वीकरण
(ग) शहरीकरण
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) वैश्वीकरण

5. तत्काल इलेक्ट्रॉनिक डाक किसके द्वारा भेजी जा सकती है?
(क) डाकघर:
(ख) वायु परिवहन
(ग) बहुराष्ट्रीय निगम
(घ) इण्टरनेट
उत्तर:
(घ) इण्टरनेट

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

6. एक ऐसा संगठन जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है
(क) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(ख) विश्व व्यापार संगठन
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) विश्व व्यापार संगठन

7. सर्वप्रथम विश्व व्यापार संगठन किसके द्वारा शुरू हुआ?
(क) विकसित देश
(ख) विकासशील देश
(ग) अल्प-विकसित देश
(घ) निर्धन देश
उत्तर:
(क) विकसित देश

8. वैश्वीकरण से सर्वाधिक लाभान्वित हुए हैं।
(क) ग्रामीण मजदूर
(ख) शहरी शिक्षित व्यक्ति
(ग) धनी वर्ग के उपभोक्ता
(घ) ये सभी.
उत्तर:
(ग) धनी वर्ग के उपभोक्ता

9. वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव में सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं
(क) वस्त्र निर्यातक
(ख) श्रमिक
(ग) धनिक वर्ग
(घ) बहुराष्ट्रीय कम्पनी
उत्तर:
(क) वस्त्र निर्यातक

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. परिसम्पत्तियों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा…………. कहलाती है।
उत्तर:
निवेश,

2. देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना …………. कहलाता है।
उत्तर:
वैश्वीकरण,

3. वैश्वीकरण से अनेक………….एवं श्रमिक प्रभावित हुए है।
उत्तर:
छोटे उत्पादक,

4. ……………… का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तौर-तरीकों के सरल बनाना है।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन।

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपेक्षाकृत नवीन परिघटना कौन-सी है?
उत्तर:
हमारे बाजारों में वस्तुओं के बहुव्यापी विकल्प अपेक्षाकृत नवीन परिघटना है।

प्रश्न 2.
बीसर्वीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन की क्या मुख्य विशेषता थी?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन देश की सीमाओं के अन्दर तक ही सीमित था।

प्रश्न 3.
भारत में आयात-निर्यात का क्या स्वरूप था?
उत्तर:
भारत से कच्चा माल तथा खाद्य पदार्थों का निर्यात होता था और तैयार वस्तुओं का आयात होता था।

प्रश्न 4.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है, बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहलाती है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किन प्रदेशों में अपने कार्यालय व उत्पादन के कारखाने स्थापित करती हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय व उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम व अन्य संसाधन मिल सकते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-सा देश सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है?
उत्तर:
चीन सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
निवेश क्या है?
अथवा
निवेश का अर्थ लिखिए।
अथवा
निवेश और विदेशी निवेश में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
निवेश-परिसम्पत्तियों; जैसे – भूमि, भवन, मशीन व अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की मुद्रा को निवेश कहते हैं। विदेशी निवेश-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किया गया निवेश विदेशी निवेश कहलाता है।

प्रश्न 8.
‘वैश्वीकरण’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका कौन निभा रहा है?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

प्रश्न 10.
व्यापार अवरोधक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशों से होने वाले आयात पर लगने वाले प्रतिबन्ध व्यापार अवरोधक कहलाते हैं।

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प्रश्न 11.
सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग किसलिए कर सकती हैं?
उत्तर:
सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती करने और देश में किस प्रकार की वस्तुएँ कितनी मात्रा में आयात होनी चाहिए, यह निर्णय करने के लिए कर सकती हैं।

प्रश्न 12.
उदारीकरण क्या है?
अथवा
उदारीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 13.
कोटा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या पर एक सीमा तय कर देती है, जिसे ‘कोटा’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के कितने देश सदस्य हैं?
उत्तर:
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के 164 देश सदस्य हैं।

प्रश्न 15.
किस देश में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोग उत्पादन एवं दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए सरकार से बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोग सरकार से बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 16.
किन लोगों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है?
उत्तर:
उत्पादकों एवं श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रश्न 17.
विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने किन कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति प्रदान की है?
उत्तर:
विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार ने श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति प्रदान की है।

प्रश्न 18.
विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए किन्हीं दो कदमों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना।
  2. सरकार द्वारा श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति देना।

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण ने किस क्षेत्र वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सृजन किया है?
उत्तर:
वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कम्पनियों विशेषकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सुजन किया है।

प्रश्न 20.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में अपने ग्राहक देखभाल केन्द्र क्यों स्थापित कर रही हैं?
उत्तर:
क्योंकि भारत में अंग्रेजी बोलने वाले शिक्षित युवक कम वेतन पर उपलब्ध हैं।

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प्रश्न 21.
वैश्वीकरण ने किस प्रकार छोटे उत्पादकों के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी की है?
उत्तर:
छोटे उत्पादकों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सस्ती दर पर वस्तुएँ उत्पादित कर रही हैं।

प्रश्न 22.
न्यायसंगत वैश्वीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसर प्रदान करेगा और यह सुर्निश्चित भी करेगा कि वैश्वीकरण से प्राप्त लाभ में सभी की हिस्सेदारी हो।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या आशय है? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से आशय-बहुराष्ट्रीय कम्पनी वह है जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है। विशेषताएँ

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनी उन देशों में अपने कार्यालय व उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती है, जहाँ उसे सस्ता श्रम व अन्य संसाधन मिल सकते हैं।
  2. उत्पादन लागत में कमी करने एवं अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ऐसा करती हैं।

प्रश्न 2.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किन स्थितियों में किसी देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ निम्नलिखित स्थितियों में किसी देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं

  1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं, जो बाजार के समीप हो।
  2. जहाँ कम लागत पर कुशल श्रम व अकुशल श्रम उपलब्ध हो।
  3. जहाँ उत्पादन के अन्य तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
  4. जहाँ सरकारी नीतियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अनुकूल हों।

प्रश्न 3.
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को क्या लाभ होता है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को क्या लाभ होते हैं?
अथवा
बहराष्ट्रीय कम्पनियों के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को दोहरा लाभ होता है, जो निम्नलिखित है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अतिरिक्त निवेश के लिए धन प्रदान कर सकती हैं; जैसे-तीव्र उत्पादन हेतु मशीन खरीदना।
  2. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ ला सकती हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के पश्चात भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर क्यों प्रतिबन्ध लगा रखा था?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबन्ध उत्पादकों को विदेशी दिर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए लगाया। सन् 1950 एवं 1960 के दशक में उद्योगों का उदय हो रहा था। इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती इसलिए भारत ने केवल अनिवार्य वस्तुओं; जैसे-मशीनरी, उर्वरक एवं पेट्रोलियम के आयातों की ही अनुमति दी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायक होता है? समझाइए।
अथवा
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं वाले बाज़ारों को एकीकृत करता है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार दूसरे देशों में बाज़ारों को सहूलियत देते हैं। परन्तु हर देश उन्हीं वस्तुओं का आयात करता है जिनका निर्माण वह अपने देश में नहीं करता या उनके देश में उनका उत्पादन कम है। इसी तरह निर्यात भी उन वस्तुओं का किया जाता है जो अपने देश में ज़रूरत से अधिक हों या दूसरे देशों के मुकाबले उनका उत्पादन सस्ते दामों पर अपने देश में किया जा रहा हो।

सामान्यतः विदेश व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। विभिन्न बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं । इस प्रकार विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या उनके एकीकरण में सहायक होता है।

उदाहरण के लिए भारत में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग उपकरणों का बहुतायत में उत्पादन होता है। विश्व के विभिन्न देशों में इन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, यदि वे इनकी माँग करते हैं। दूसरी तरफ भारत में खाद्य तेल, खनिज तेल व जीवन रक्षक दवाइयों की कमी भी है तो ये वस्तुएँ भारत में विभिन्न देशों से आयात की जाती हैं। इस प्रकार विदेश व्यापार से विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में सहायता मिलती है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की क्या भूमिका है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के किन्हीं तीन लाभों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के फलस्वरूप भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  2. देश में अनेक उद्योगों की स्थापना होने से देश का तीव्र औद्योगिक विकास हुआ है।
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादन में नवीन तकनीकों का प्रयोग करने से देश में नवीन तकनीकी का आगमन हुआ है।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश में अनेक उद्योगों की स्थापना कर रही हैं जिसमें लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है।
  5. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अच्छी गुणवत्तायुक्त वस्तुएँ उपलब्ध करायी जा रही हैं, इसके फलस्वरूप भारतीय उपभोक्ताओं के समक्ष अनेक विकल्प उपलब्ध हो गये हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
“सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है।” उपयुक्त उदाहरण देकर कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को संक्षेप में बताइए।
अथवा
वैश्वीकरण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका को किन्हीं तीन आधारों पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार उत्प्रेरित किया है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। दूसरे शब्दों में, अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका निम्नलिखित है

  1. प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति वह कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया।
  2. परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार ने लम्बी दूरियों तक कम लागत पर वस्तुओं की तीव्रतम आपूर्ति को सम्भव बनाया है।
  3. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी अर्थात् दूरसंचार, कम्प्यूटर व इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का तीव्र विकास हुआ है। इन्होंने सम्पूर्ण विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क को आसान बना दिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटर का उपयोग किया जा रहा है।
  4. प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है।

प्रश्न 4.
उदाहरण देकर उन कारकों का वर्णन कीजिए जिन्होंने भारत में वैश्वीकरण को सम्भव बनाया है।
अथवा
वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वैश्वीकरण के लिए उत्तरदायी कारक

  1. प्रौद्योगिकी में तीव्र गति से हुई प्रगति।
  2. निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नीतियों का उदारीकरण
  3. विश्व व्यापार संगठन जैसे, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सहयोग।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी इकाइयाँ तथा कार्यालय भारत में स्थापित करना।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन क्या है ? क्या यह संगठन अपना कार्य ठीक ढंग से कर रहा है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य विभिन्न सदस्य देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार पर निगरानी करना, उसे प्रोत्साहित करना व उदार बनाना है। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित कानून बनाता है तथा यह भी देखता है कि इन कानूनों का पालन हो रहा है या नहीं।

यह संगठन ठीक से कार्य नहीं कर पा रहा है। यद्यपि विश्व व्यापार संगठन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सभी देशों को मुक्त व्यापार करने की अनुमति दे परन्तु व्यवहार में यह देखा गया है कि विकसित देश अनुचित रूप से व्यापार अवरोधकों का स । अभी तक ले रहे हैं वहीं दूसरी ओर संगठन के नियमों ने विकासशील देशों को व्यापार अवरोधक हटाने के लिए बाध्य कि है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण क्या है? भारत में इसके दो प्रभाव लिखिए।
अथवा
भारत में वैश्वीकरण के किन्हीं तीन प्रभावों को समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी एवं श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण के अन्तर्गत विदेशी व्यापार अवरोधक हटा लिये जाते हैं, जिससे पूँजी व श्रम का स्वतन्त्र रूप में आवागमन होता है, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, आयात-निर्यात में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त उत्पादन व उत्पादकता का स्तर बढ़ता है। वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव-वैश्वीकरण के भारत की अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं

  1. वैश्वीकरण में भारतीय उत्पादकों को वस्तुओं और सेवाओं के अनेक विकल्प मिले हैं तथा भारतीय उपभोक्ताओं को कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं की प्राप्ति होती है। उपभोक्ता को विश्व स्तर की वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध होती हैं।
  2. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है, जिससे देश में उत्पादन एवं रोजगार में वृद्धि
  3. उत्पादकों एवं श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के विभिन्न वर्गों पर कौन-कौन से नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
विभिन्न वर्गों पर वैश्वीकरण के निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं

  1. छोटे उद्योगों जैसे-बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक खिलौने, टायर, डेयरी उत्पाद एवं खाद्य तेल आदि को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण बहुत नुकसान झेलना पड़ा है।
  2. कई उद्योग बन्द हो गये जिसके अनेक श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं।
  3. वैश्वीकरण तथा प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन में बहुत परिवर्तन ला दिया है। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता आजकल श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि अब श्रमिकों का रोजगार सुनिश्चित एवं सुरक्षित नहीं रह गया है।
  4. नियोक्ता श्रम लागतों में निरन्तर कटौती कर रहे हैं, वे कम वेतन पर श्रमिकों से अधिक समय काम ले रहे हैं।
  5. वैश्वीकरण से धनिक एवं निर्धन वर्ग के मध्य अन्तर में और अधिक वृद्धि हुई है।

प्रश्न 8.
न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार क्या भूमिका निभा सकती है?
अथवा
न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कौन-कौन से उपाय करने चाहिए?
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण सभी के लिए लाभप्रद नहीं रहा है। शिक्षित, कुशल एवं सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है वहीं दूसरी ओर अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है। न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने हेतु सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1. सरकारी नीतियों से देश के धनी व प्रभावशील लोगों के साथ-साथ देश के सभी लोगों के हितों का संरक्षण करना चाहिए।
  2. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि श्रमिक कानूनों का उचित ढंग से क्रियान्वयन हो एवं श्रमिकों को उनके अधिकार मिलें।
  3. सरकार को छोटे उत्पादकों को कार्य निष्पादन में सुधार के लिए उस समय तक सहायता करनी चाहिए जब तक कि वे प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम न हो जाएँ।
  4. सरकार को विश्व व्यापार संगठन में कसित देशों के प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के लिए समान हित वाले अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर प्रयास कर पाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अन्य देशों में अपना उत्पादन किस प्रकार स्थापित तथा नियंत्रित करती हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या अभिप्राय है? आधुनिक अर्थव्यवस्था में उनकी कार्यप्रणाली समझाइए।
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या आशय है? उनकी कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हराष्ट्रीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वे कम्पनियाँ होती हैं जो एक से अधिक देशों में अपनी औद्योगिक इकाइयाँ व कार्यालय स्थापित करती हैं। ये कम्पनियाँ एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण व स्वामित्व रखती हैं। इन कम्पनियों में पूँजी निवेश अधिक होता है। इन कम्पनियों की इकाइयों का आकार विशाल होता है तथा उत्पादन की माँग व पूर्ति बड़े पैमाने पर होती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा दूसरे देशों में अपने उत्पादन पर नियंत्रण बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दूसरे देशों में अपने उत्पादन पर निम्न प्रकार से नियंत्रण स्थापित करती हैं
1. संयुक्त उत्पादन द्वारा:
कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कुछ देशों की स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनी को दोहरा लाभ प्राप्त होता है।

2. स्थानीय कम्पनियाँ खरीद कर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों को खरीदकर अपने उत्पादन का विस्तार करती हैं। अपार सम्पदा वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ यह आसानी से कर सकती हैं।

3. छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आर्डर देना:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एक अन्य तरीके से भी उत्पादन नियन्त्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल का सामान ऐसे उद्योग हैं जहाँ विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति की जाती है। ये कम्पनियाँ इन वस्तुओं को अपने ब्रांड नाम से उपभोक्ताओं को बेच देती

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण क्या है? भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण से होने वाले किन्हीं चार लाभों को समझाइए।
अथवा
वैश्वीकरण के किन्हीं पाँच प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के किन्हीं तीन लाभों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है जिससे वस्तुओं और सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी एवं श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके।

वैश्वीकरण के अन्तर्गत विदेशी व्यापार अवरोधक हटा लिये जाते हैं, जिससे पूँजी व श्रम का स्वतंत्र रूप से आवागमन होता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, आयात-निर्यात में वृद्धि होती है तथा उत्पादन व उत्पादकता का स्तर बढ़ता है। वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव-वैश्वीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्न सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं

  1. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत का विश्व के अन्य देशों के साथ सम्पर्क बढ़ा है तथा आर्थिक व राजनैतिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
  2. स्थानीय व विदेशी उत्पादकों के मध्य प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं विशेषकर शहरी क्षेत्र में रह रहे धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। वे अब अनेक वस्तुओं और सेवाओं की उत्कृष्टता, गुणवत्ता तथा कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं।
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने शहरी क्षेत्रों में सेलफोन, मोटरगाड़ियाँ, इलेक्ट्रोनिक उत्पादों, ठण्डे पेय पदार्थों, जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसे सेवाओं के निवेश में रुचि दिखाई है। जिससे शहरी क्षेत्रों में पढ़े-लिखे लोगों एवं कुशल श्रमिकों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कम्पनियों के लाभ में वृद्धि हुई है।
  5. वैश्वीकरण ने कुछ वृहत् भारतीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है।
  6. वैश्वीकरण सूचना प्रौद्योगिकी, आँकड़ा प्रविष्टि, लेखांकन, प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग आदि कई सेवाएँ प्रदान करने वाली कम्पनियों के लिए नए अवसर उत्पन्न किए हैं।
  7. वैश्वीकरण के फलस्वरूप देश के विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे भारतीय उत्पादकों को लाभ प्राप्त हुआ है।
  8. वैश्वीकरण से देश में नवीन प्रौद्योगिकी का आगमन हुआ है।
  9. वैश्वीकरण से देश में विदेशी पूँजी में वृद्धि हुई है, जिसके प्रभाव से उत्पादन व रोजगार में वृद्धि दर्ज की गयी है।
  10. वैश्वीकरण से देश में प्रतिस्पर्धा का वातावरण उत्पन्न हुआ है, जिसका लाभ उत्पादक व उपभोक्ता दोनों को ही प्राप्त हुआ है।

नीचे दिए गए स्रोतों को पढ़िए और उनके नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
स्रोत (क)-अन्तरदेशीय उत्पादन:
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अन्दर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लांघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जरिया था। यह बड़ी कम्पनियाँ थीं, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कहते हैं।

स्रोत (ख)-विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण:
सरल शब्दों में कहा जाए, तो विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।

स्रोत (ग)-भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव:
वैश्वीकरण और उत्पादों-स्थानीय एवं विदेशी दोनों के बीच वृहत्तर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामतः ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनन्द ले रहे हैं। उत्पादकों और श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एकसमान प्रभाव नहीं पड़ा है।

स्रोत (क)-अन्तरदेशीय उत्पादन:
(i) बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किस प्रकार संसार के देशों को जोड़ रही हैं?

स्रोत (ख)-विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण:
(ii) विदेशी व्यापार किस प्रकार देशों को जोड़ने का प्रमुख मार्ग है?

स्रोत (ग)-भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव:
(iii) वैश्वीकरण किस प्रकार उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है?
उत्तर:
1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं या स्थानीय कम्पनियों को खरीद लेती हैं तथा अपने उत्पाद का विस्तार करती हैं।

2. विदेशी व्यापार बाजारों को बाहर के बाजारों में पहुंचने के लिए उत्पादों का अवसर प्रदान करता है, जिससे बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं।

3. वैश्वीकरण निम्न प्रकार से उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है
(क) ज्यादा-से-ज्यादा वस्तुओं तथा सेवाओं का सृजन हुआ।
(ख) नई प्रौद्योगिकी तथा नए तरीकों का विकास हुआ।
(ग) वस्तुओं तथा सेवाओं के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ी है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

बहविकल्पीय

प्रश्न 1.
केन्द्रीय सरकार की ओर से निम्नलिखित में कौन करेंसी नोट जारी करता है?
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक
(ग) भारतीय वाणिज्यिक बैंक
(घ) यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक

2. बैंकों से सम्बंधित निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(क) बैंक जमा राशि का उपयोग लोगों की ऋण सम्बंधी माँगों को पूरा करने के लिए नहीं कर सकते
(ख) बैंक जमा राशि का उपयोग सरकार की आवश्यकताओं के लिए करते हैं।
(ग) बैंक जमा राशि रख लेते हैं और ऋण नहीं देते।
(घ) बैंक जमा राशि को लोगों की कर्जे सम्बन्धी माँगों को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं
उत्तर:
(घ) बैंक जमा राशि को लोगों की कर्जे सम्बन्धी माँगों को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं

3. ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की आवश्यकता मुख्यतः किसलिए होती है?
(क) आवास
(ख) फसल उगाने के लिए
(ग) विदेश यात्रा के लिए
(घ) पारिवारिक यात्रा के लिए
उत्तर:
(ख) फसल उगाने के लिए

4. कर्ज लेने के लिए कर्जदार निम्नलिखित में से किसका उपयोग गारण्टी देने के लिए करता है?
(क) साख
(ख) करेंसी नोट
(ग) चैक
(घ) समर्थक ऋणाधार
उत्तर:
(घ) समर्थक ऋणाधार

5. निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नज़र रखती है?
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) सैंट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) ग्रामीण बैंक
उत्तर:
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक

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6. स्वयं सहायता समूह का सम्बन्ध है
(क) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं
(ख) अमीर लोगों का समूह जो मिलकर काम करते हैं
(ग) एक औपचारिक ऋण क्षेत्रक
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं

7. “अगर गरीब लोगों को सही और उचित शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है, तो लाखों छोटे लोग अपनी लाखों छोटी-छोटी गतिविधियों के जरिए विकास का सबसे बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।” यह कथन किसका है?
(क) प्रो. मोहम्मद यूनुस
(ख) प्रो. अमर्त्य सेन
(ग) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
(घ) डॉ. मनमोहन सिंह।
उत्तर:
(क) प्रो. मोहम्मद यूनुस

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. …………प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय किया जाता है।
उत्तर:
वस्तु विनिमय,

2. भारतीय रिजर्व बैंक…………की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार,

3. बैंकों व सरकारी समितियों से लिया गया ऋण………. कहलाता है।
उत्तर:
औपचारिक क्षेत्रक ऋण,

4. साहूकार, मालिक या परिचित से लिया गया ऋण ………………कहलाता है।
उत्तर:
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वस्तुओं का लेन-देन बिना मुद्रा के प्रयोग से आपस में ही हो जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 2.
मुद्रा को परिभाषित कीजिए।
अथवा
मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:
मुद्रा से अभिप्राय उस वैधानिक वस्तु से है जिसका उपयोग सामान्यतः विनिमय माध्यम के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 3.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वस्तुओं के आदान-प्रदान की प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है।

प्रश्न 4.
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने व बेचने पर सहमति रखते हैं तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं।

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प्रश्न 5.
वस्तु विनिमय प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण क्या है?
उत्तर:
विनिमय प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण आवश्यकताओं का दोहरा संयोग है।

प्रश्न 6.
विनिमय का माध्यम क्या है?
उत्तर:
मुद्रा विनिमय का माध्यम है क्योंकि यह विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है।

प्रश्न 7.
विनिमय की प्रक्रिया में मुद्रा किस प्रकार माध्यम का काम करती है?
उत्तर:
मुद्रा के माध्यम से वस्तुएँ खरीदी व बेची जा सकती हैं।

प्रश्न 8.
आधुनिक मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
अथवा
मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है।

प्रश्न 9.
मुद्रा के सम्बन्ध में भारतीय कानून क्या है?
उत्तर:
भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं है।

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प्रश्न 10.
माँग जमा क्या है?
उत्तर:
जब बैंक खातों में जमा धन को ग्राहक द्वारा माँग के अनुसार निकाला जा सकता है तो उसे माँग जमा कहते हैं।

प्रश्न 11.
बैंक चेक क्या है?
उत्तर:
चेक एक ऐसा कागज है जो बैंक को कोई व्यक्ति अपने खाते से चेक पर लिख्रे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का धुगतान करने का आदेश देता है।

प्रश्न 12.
हम चेक क्यों जारी करते हैं?
उत्तर:
हम माँग जमाओं के विरुद्ध चेक जारी करते हैं जिससे बिना नकद का इस्तेमाल किए सीधा भुगतान करना सम्भव होता है।

प्रश्न 13.
माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
बैंक खातों में जमाधन को माँग करने पर निकाला जा सकता है। अतः इस माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है।

प्रश्न 14.
बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में क्यों रखते हैं?
उत्तर:
किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही वैंक से नगदी निकालने के लिए आते हैं। इन्हें नगदी देने के लिए बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास रखते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में बैंक जमा का कितना प्रतिशत हिस्सा’ नकद के रूप में अपने पास रखते हैं?
उत्तर:
भारत में बैंक जमा का 15 प्रतिशत हिस्सा नकद् रूप में अपने पास रखते हैं।

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प्रश्न 16.
बैंक शेष जमा राशि का कैसे उपयोग करते हैं?
उत्तर:
बैंक शेष जमा राशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग करते हैं।

प्रश्न 17.
बैंक के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. धन जमा करना
  2. ऋण देना।

प्रश्न 18.
बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत क्या है?
अथवा
बैंकों में जमा राशियाँ किस प्रकार बैंकों की आय का स्रोत बनती है?
उत्तर:
कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 19.
ऋण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
ॠण क्या है?
उत्तर:
ऋण से तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूका कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदल में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वायदा लेता है।

प्रश्न 20.
ऋण किस प्रकार एक महत्त्वपूर्ण एव सकारात्मक भूमिका निभाता है ?
उत्तर:
ऋण उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने, उत्पादन को समय पर पूरा करने एवं आय बढ़ाने मे सहायता करता है।

प्रश्न 21.
बैंकों के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का प्रमुख स्रोत कौन-सा है ?
उत्तर:
सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का एक प्रमुख स्रोत हैं।

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प्रश्न 22.
कृषक सहकारी समिति का क्या कार्य है?
उत्तर:
कृषक सहकारी समिति उपकरण खरीदने, खेती एवं व्यापार करने, मछली पालन करने, घर बनाने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ॠण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 23.
ॠणों को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है? नाम लिखो।
उत्तर:

  1. औपचारिक क्षेत्रक ॠण
  2. अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण।

प्रश्न 24.
औपचारिक क्षेत्रक ऋण के स्रोत क्या हैं?
अथवा
ऋण के औपचारिक स्रोत क्या हैं ?
उत्तर:

  1. बैंक
  2. सहकारी समितियौ।

प्रश्न 25.
ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नजर रखना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
ऋणों के समान वितरण और ब्याज दरों को निम्न रखने के लिए।

प्रश्न 26.
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण के स्रोत क्या हैं?
अथवा
साख (ऋण) के अनौपचारिक क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. साहूकार,
  2. व्यापारी,
  3. मालिक,
  4. रिश्तेदार,
  5. दोस्त आदि।

प्रश्न 27.
ऋण की ऊँची लागत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ऋण की ऊँची लागत का अर्थ है कि कर्जदार की आय का अधिकांश भाग ऋण कै ब्याज भुगतान में ही खर्च हो जाता है। इसलिए कर्जदारों के पास अपने लिए कम आय शेष रहती है।

प्रश्न 28.
कर्जदारों की अनौपचारिक स्रोतों पर से निर्भरता कम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
बैकों व सहकारी समितियों को अपनी गतिविधियाँ विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़्मनी चाहिए।

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प्रश्न 29.
एक स्वयं सहायता समूह में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
एक स्वयं सहायता समूह में 15-20 सदस्य होते हैं।

प्रश्न 30.
लोग स्वर्यं सहायता समूह से ऋण लेने के लिए प्राथमिकता देते हैं। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि इनकी ब्याज की दरें अनौपचारिक स्रोतों से कम होती हैं।

प्रश्न 31.
यदि स्वयं सहायता समूह नियमित रूप से बचत करता है तो वह किससे ऋण लेने योग्य हो जाता है?
उत्तर:
स्वयं सहायता समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है।

प्रश्न 32.
स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक से समूह के नाम से लिये गये ऋणों का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
भारत में मुद्रा के आधुनिक रूप कौन कौन से हैं? इसे विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
अथवा
आधुनिक मुद्रा को, जिसका अपना कोई उपयोग नहीं है, विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है? कारण ज्ञात कीजिए।
अथवा
“करेंसी’ का अर्थ स्पष्ट कीजिएस.
उत्तर:
भारत में मुद्रा का आधुनिक रूप करेंसी है जिसमें कागज के नोट व सिक्के सम्मिलित हैं। इसे विनिमय का माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है क्योंकि सरकार द्वारा इसे प्राधिकृत किया गया है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी को छापती है और वैधानिक विनिमय के माध्यम के रूप में इसे इस्तेमाल करने के लिए स्वीकार करती है। भारत में किसी भी सौदे एवं लेन-देन के लिए इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
मुद्रा के आधुनिक रूप एवं पार व्यरिक रूप में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मुद्रा के आधुनिक रूप एवं पारम्पक रूप में निम्नलिखित अन्तर हैं

  • मुद्रा का आधुनिक रूप:
    1. मुद्रा के आधुनिक रूप में करेंसी-कागज के नोट एवं सिक्के सम्मिलित किये जाते हैं।
    2. मुद्रा का यह रूप वर्तमान काल में प्रचलन में है।
    3. आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है।
  • मुद्रा का पारम्परिक रूप
    1. मुद्रा के प म्परिक रूप में सोना, चाँदी, ताँबा जैसी धातुओं को सम्मिलित किया जाता था।
    2. मुद्रा का यह रूप प्राचीनकाल में प्रचलन में था।
    3. इस मुद्रा का अपना इस्तेमाल होता था।

प्रश्न 3.
माँग जमा क्या है? माँग जमा की मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
माँग जमा:
बैंक खातों में वह जमा राशि जिसे माँग के अनुसार निकाला जा सके जमा कहलाती है। माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है क्योंकि:

  1. इसे विनिमय के माध्यम के रूप से प्रयोग किया जा सकता है।
  2. यह आसानी से सबको स्वीकार्य होती है।
  3. बिना नकद का प्रयोग किए इससे भगतान करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
‘माँग जमा में मुद्रा के अनिवार्य लक्षण मिलते हैं।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक खाते में वह जमा राशि जिसे माँग के अनुसार निकाला जा सके माँग जमा कहलाती है। माँग जमा में मुद्रा के निम्नलिखित अनिवार्य लक्षण मिलते हैं

  1. लोगों की मुद्रा बैंकों में सुरक्षित रहती है।
  2. लोगों को बैंक में जमा राशि पर ब्याज भी मिलती है।
  3. भुगतान नकद के बदले चेक के द्वारा भी किया जा सकता है। इसलिए बैंकों के द्वारा अपने खाताधारकों को चेक बुक जारी की जाती है।
  4. लोग अपनी इच्छानुसार बैंकों से की भी मुद्रा निकाल सकते हैं।

प्रश्न 5.
चेक क्या है? हम चेक क्यों और कैसे जारी करते हैं?
उत्तर:
चेक चेक एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष धनराशि का भुगतान करने का आदेश देता है। हम माँग जमाओं के विरुद्ध चेक जारी करते हैं, जिससे बिना नकद लेन-देन का प्रयोग किए सीधे भुगतान करना संभव होता है। चेक से भुगतान करने के लिए भुगतानकर्ता, जिसका किसी बैंक में खाता है, एक निश्चित राशि के लिए चेक काटता है।

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प्रश्न 6.
बैंकों की आवश्यकता हमें क्यों है? बैंक लोगों को किस प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं?
उत्तर:
बैंकों की आवश्यकता व सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।
  2. बैंक में जमा धन से लोगों को ब्याज प्राप्त होता है।
  3. बैंक बचत के लिए आवश्यक हैं।
  4. बैंक जमा राशि से लोगों की आवश्? कताओं को पूरा करने के लिए ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।
  5. माँग जमा के बदले चेक लिखने की सुविधा से बिना नकद का प्रयोग किए सीधा भुगतान किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की माँग क्यों होती है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य मांग फसल उगाने के लिए होती है। फसल उगाने में बीज, खाद, कीटनाशक दवाओं, पानी, विद्युत, कृषि उपकरणों की मरम्मत आदि पर बहुत खर्च होता है। इन आगतों को खरीदने एवं फसल की बिक्री होने के बीच कम से कम 3-4 महीने का अन्तरल होता है। अधिकांशतया किसान ऋतु के प्रारम्भ में फसल उगाने के लिए उधार लेते हैं और फसल तैयार होने के पश्चात् का देते हैं। उधार का भुगतान मुख्य रूप से फसल से प्राप्त आय पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
भारत में बैंकों एवं सहकारी सतियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ऋण सुविधाएँ क्यों प्रदान करनी चाहिए?
अथवा
बैंकों और सहकारी समितियों को अपनी ऋण देने की गतिविधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में बैंकों एवं सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ऋण सुविधाएँ निम्न कारणों से प्रदान करनी चाहिए

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकार, व्यापारी आदि ऊँची ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।
  2. साहूकार व व्यापारी आदि अपना पैसा वापस लेने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं।
  3. सस्ता कर्ज उत्पादन की लागत में कमी करता है तथा आय बढ़ाता है।
  4. ग्रामीण विकास के लिए सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज होना चाहिए।

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प्रश्न 9.
कर्ज जाल क्या है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एक स्थिति में ऋण आय बढ़ाने में सहायता करता है, जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले से बेहतर हो जाती है। दूसरी स्थिति में फसल बर्बाद होने के कारण ऋण व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेता है। कर्ज उतारने के लिए उसे जमीन का टुकड़ा बेचना पड़ता है जिससे उसकी स्थिति पहले की तुलना में बुरी हो जाती है। इस तरह ऋण कर्जदार को ऐसी परिस्थिति में धकेल देता है जहाँ से बाहर निकलना बहुत कष्टदायक होता है। इसे ही कर्ज जाल कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
खरीददारी मुद्रा के माध्यम से क्यों होती है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मुद्रा में लेन-देन क्यों किए जाते हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा मूल्य के मापन का कार्य करती है। मुद्रा के रूप में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का निर्धारण किया । जा सकता है। मुद्रा विनिमय का एक माध्यम है। यह आसानी से स्वीकार्य है। जिस व्यक्ति के पास मुद्रा होती है वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति भुगतान मुद्रा के रूप में लेना पसन्द करता है फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने के लिए करता है।

उदाहरण:
एक किसान बाजार में गेहूँ बेचना चाहता है और घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदना चाहता है। इसलिए किसान सबसे पहले गेहूँ के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा। इसके पश्चात् मुद्रा का प्रयोग घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के लिए करेगा।

प्रश्न 2.
“मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की आवश्यकता को समाप्त कर देती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
वस्तु विनिमय प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग वस्तु विनिमय प्रणाली में देखने को मिलता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय होता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मनुष्य ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ता है जो उसकी अतिरिक्त वस्तु लेकर उसे इच्छित वस्तु दे। उदाहरण के लिए, किसान गेहूँ बेचकर जूते खरीदना चाहता है तो उसे ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ना पड़ेगा जो उससे गेहूँ लेकर जूते दे दे।

यह एक कठिन कार्य है। इसकी तुलना में ऐसी अर्थव्यवस्था में जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत को समाप्त कर देती है। अब किसान के लिए जरूरी नहीं रह जाता कि वह ऐसे जूता निर्माता को ढूँढ़े जो न केवल उसका गेहूँ खरीदे बल्कि साथ-साथ उसको जूते में बेचे।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 3.
“बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है, के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है, के बीच मध्यस्थता का कार्य निम्न प्रकार करते हैं

  1. बैंक उन लोगों से जमा राशि स्वीकार करते हैं जिनके पास अतिरिक्त धन होता है।
  2. बैंक जमाओं पर ब्याज का भी भुगतान करते हैं।
  3. बैंक अपने पास जमा धनराशि का एक छोटा भाग नकद के रूप में रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है।
  4. चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही नकद रुपया निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश भाग उन्हें ऋण देने के लिए प्रयोग में लेते हैं, जिन्हें धन की आवश्यकता होती है। इस तरह बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।

प्रश्न 4.
“बैंकों द्वारा मुद्रा निक्षेप स्वीकार करना उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  1. लोग अपनी अतिरिक्त मुद्रा को बैंकों में निक्षेप के रूप में सुरक्षित रखते हैं।
  2. लोग अतिरिक्त नकद को बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते हैं। बैंक जमा स्वीकार करते हैं और इस पर ब्याज़ भी देते हैं।
  3. लोगों को आवश्यकतानुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध करायी जाती है। चूँकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के जरिए निकाला जा सकता है, इसलिए इस जमा को ‘माँग जमा’ कहा जाता है।

प्रश्न 5.
जब कोई ऋण लेने वाला किसी महाजन अथवा साहूकार से कर्ज लेता है, तो उसके समक्ष आने वाली समस्याओं में से किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. हर ऋण समझौते के अंतर्गत ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जदार महाजन को मूल रकम के साथ वापस करता है। इसके अलावा, उधारदाता कोई समर्थक ऋणाधार (गिरवी रखने के लिए) की माँग कर सकता है।
  2. समर्थक ऋणाधार ऐसी सम्पत्ति है, जिसका मालिक कर्जदार है (जैसे कि भूमि, इमारत, गाड़ी, पशु बैंकों में पूँजी) और इसका इस्तेमाल वह उधारदाता को गारण्टी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।
  3. यदि कर्जदार ऋण का भुगतान नहीं कर पाता है तो ऋणदाता को ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।

प्रश्न 6.
सहकारी समितियाँ क्या होती हैं? संक्षेप में बताइए।
अथवा
सहकारी समितियों की कार्य-प्रणाली को बताइए।
अथवा
ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की गतिविधियाँ बढ़ाने हेतु कोई तीन सुझाव दीजिए
उत्तर:
वे लोग जो कुछ सामान्य उद्देश्यों पर एक साथ मिल-जुलकर कार्य करना चाहते हैं, एक समिति का गठन कर लेते हैं जिसे सहकारी समिति कहते हैं। यह लोगों का एक ऐच्छिक संगठन होता है जिसके अन्तर्गत वे अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। सहकारी समितियाँ पारस्परिक सहायता के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। लोग एक समूह के रूप में एकत्रित होकर अपने व्यक्तिगत संसाधनों को एकत्रित करते हैं तथा उनका सर्वोत्तम ढंग से उपयोग करते हैं और इससे प्राप्त सामूहिक लाभ को आपस में मिलजुलकर बाँट लेते हैं। सुझाव:

  1. बैंकों द्वारा सहकारी समितियों को सस्ती दर पर ऋण प्रदान करना।
  2. सहकारी समितियों द्वारा अपने सदस्यों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना।
  3. कृषकों पर किसी भी प्रकार की कोई अनुचित शर्त न लगाना ताकि सहकारी समिति के अधिकाधिक सदस्य बन सकें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आपके दृष्टिकोण से वस्तु विनिमय प्रणाली और मौद्रिक प्रणाली में कौन-सी प्रणाली श्रेष्ठ है और क्यों?
उत्तर:
मेरे दृष्टिकोण से दोनों प्रणालियों में से मौद्रिक प्रणाली श्रेष्ठ है क्योंकि जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय कोई भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए कर सकता है। हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसंद करता है, फिर उस मुद्रा का उपयोग अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए कर सकता है। एक जूता निर्माता का उदाहरण लेते हैं। वह बाज़ार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है।

जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगां फिर इस मुद्रा का इस्तेमाल गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। यदि जूता निर्माता बिना मुद्रा का इस्तेमाल किए जूते का सीधे गेहूँ से विनिमय करता है, तो उसे गेहूँ शास्त्र पैदा करने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ेगा, जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो बल्कि साथ में जूते भी खरीदना चाहता हो अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने व बेचने पर सहमत हों। विनिमय की दूसरी प्रणाली में समय एवं श्रम अधिक लगेगा जबकि मौद्रिक प्रणाली में समय एवं श्रम की बचत है। चूँकि मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, अतः वस्तु विनिमय की तुलना में मुद्रा विनिमय प्रणाली श्रेष्ठ है।

प्रश्न 2.
भारत में ‘करेंसी नोट’ कौन जारी करता है? बैंकों के तीन कार्य बताइए।
अथवा
भारत की अर्थव्यवस्था में बैंक किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“बैंक, देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।” कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं है। मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी में कागज के नोट एवं सिक्कों को सम्मिलित किया गया है। बैंक के कार्य अथवा भारत की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका
1. जमा राशि को स्वीकार करना:
बैंक जनता से जमा स्वीकार करते हैं। लोग अपनी नकदी को सुविधा के लिए बैंकों के बचत जमा खाता, सावधि जमा खाता, चालू खाता आदि में जमा कराते हैं। बैंक इन जमाओं पर ब्याज भी देता है। इस तरह लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।

2. ऋण प्रदान करना:
बैंक अपने पास जमा रकम का एक छोटा हिस्सा नकदं के रूप में रखते हैं। उदाहरण के लिए आजकल भारत में बैंक जमा धन का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा नकद में अपने पास रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है। चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही नगद राशि निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश हिस्सा ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।

3. पूँजी निर्माण:
बैंक लोगों की बचतों को संग्रह करते हैं तथा उसे अन्य उत्पादक क्रियाओं में निवेश करते हैं। इस प्रकार बैंक देश में पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं तथा आर्थिक विकास की दर को तीव्र करते हैं।

4. लॉकर सुविधाएँ:
बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं, जिसमें लोग अपनी मूल्यवान वस्तुओं एवं महत्त्वपूर्ण कागजातों को सुरक्षित रख सकते हैं।

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प्रश्न 3.
उदाहरण सहित समझाइए कि किस प्रकार से बैंक ऋण उत्पादन में सकारात्मक भूमिका अदा करते हैं?
उत्तर:
हमारी दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं में व्यापक लेन-देन किसी-न-किसी रूप में ऋण द्वारा ही होता है। ऋण किसानों को अपनी फसल उगाने में मदद करता है। यह उद्यमियों के लिए व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना, समय पर उत्पादन को पूरा करने एवं उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने में सहायक होता है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है। ऋण देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में बैंकों द्वारा ऋण के अन्य स्रोतों के मुकाबले सस्ती दर पर अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान किया जाता है।

बैंक जमा रकम का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में रखकर शेष जमा राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण की बहुत अधिक माँग रहती है। बैंक जमा धनराशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं! लोग बैंकों से सस्ती दर पर ऋण प्राप्त कर उत्पादन कार्यों में लगाते हैं तथा अधिक लाभ प्राप्त करते हैं।

उदाहरण: सोहन का जूते बनाने का कारखाना है। उसके पास शहर के एक बड़े व्यापारी से 5000 जोड़ी जूतों की माँग आती है जिसे एक महीने के अन्दर पूरा करना है। उत्पादन के कार्य को समय पर पूर्ण करने के लिए सोहन को सिलाई व चिपकाने के काम के लिए अतिरिक्त मजदूर रखने की आवश्यकता है तथा उसे कच्चा माल भी खरीदना है। अतः सोहन को इस कार्य के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

वह बैंक की औपचारिकताओं को पूर्ण करके उससे ऋण ले लेता है। समय पर शहर के व्यापारी को जूते बनाकर दे देता है। इस प्रकार सोहन उत्पादन के लिए कार्यशील पूँजी की जरूरत को ऋण के द्वारा पूरा करता है। ऋण उसे उत्पादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को समय पर पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार सोहन बैंक ऋण द्वारा अपनी कमाई बढ़ा लेता है। इस प्रकार बैंक ऋण उत्पादन में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 4.
साख की दो विभिन्न स्थितियाँ बताइए एवं बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साख की स्थितियाँ प्रथम स्थिति:
एक स्थिति में ऋण (साख) आय बढ़ाने में सहयोग करता है, जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले से बेहतर हो जाती है।

द्वितीय स्थिति:
दूसरी स्थिति में फसल बर्बाद होने के कारण ऋण व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेता है। जहाँ से बाहर निकलना काफी कष्टदायक होता है। आमदनी में वृद्धि की बजाय कर्जदार की स्थिति पहले से बदतर हो जाती है। ऋण उपयोगी होगा या नहीं, यह परिस्थितियों के खतरों एवं हानि होने पर प्राप्त सहयोग की सम्भावना पर निर्भर करता है।

बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्ते: बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्ते निम्नलिखित हैं

  1. सर्वप्रथम ऋण लेने वाले व्यक्ति को यह प्रमाण-पत्र देना होगा कि यह देख लिया जाए कि उसे कितना ऋण दिया जाए, जिसे वह आसानी से उतार सके।
  2. यदि वह व्यक्ति कहीं नौकरी कर रहा हो तो उसे अपनी आय के विषय में ब्यौरा उपलब्ध कराना होगा।
  3. बैंक कर्जदार से समर्थक ऋणाधार की माँग कर सकता है, जिसमें भूमि, पशु, सम्पत्ति एवं बैंकों में जमा-पूँजी आदि सम्मिलित होती है।
  4. बैंक कर्जदार से किसी ऐसे व्यक्ति की गारंटी माँग सकता है जो उसके कर्ज न चुकाने पर रकम वापस कर सके।

प्रश्न 5.
शहरी गरीबों व अमीरों के ऋणों में औपचारिक साख के योगदान की तुलना कीजिए। औपचारिक क्षेत्र की ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:
गरीबों की तुलना में अमीर परिवारों को औपचारिक ऋणों का अधिक हिस्सा मिलता है क्योंकि अमीर परिवारों के पास ऋण लेने हेतु समर्थक ऋणाधार होता है तथा उन परिवारों की ऋण चुकाने की क्षमता भी अधिक होती है। जिस प्रकार से साहूकार, महाजन आदि गरीबों का शोषण करते हैं, जबकि औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्ज लिए जाने पर उनका शोषण नहीं किया जाता है।

गरीबों को उचित व कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार से अमीरों को ऋण उचित ब्याज दरों पर प्रदान कर औपचारिक संस्थाएँ, बहुत से उद्योगपतियों की उनकी विनियोग संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करती हैं। जिससे लोगों को रोजगार की प्राप्ति होती है तथा राष्ट्रीय उत्पादन व आय में भी वृद्धि होती है। औपचारिक क्षेत्र की ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु दो उपाय इस प्रकार से हैं

  1. औपचास्कि स्रोतों को गैर-उत्पादक उद्देश्यों के लिए भी ऋण प्रदान करना चाहिए ।
  2. औपचारिक स्रोतों को ऋण के दस्तावेज संबंधी प्रक्रिया सरल कर देनी चाहिए, जिससे कि सभी जरूरतमंद लोग जरूरत के समय जल्द से जल्द ऋण प्राप्त कर सकें।

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प्रश्न 6.
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की कोई दो कमियाँ बताइए। इस सन्दर्भ में औपचारिक क्षेत्रक ऋण किस प्रकार बेहतर हैं?
उत्तर:
ऋण के स्रोत भारत में ऋण प्रदान करने वाले स्रोतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. औपचारिक ऋण स्रोत:
भारत में औपचारिक ऋण स्रोतों में व्यापारिक बैंक, सहकारी समितियाँ, ग्रामीण बैंक आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन स्रोतों द्वारा कम ब्याज दर पर लम्बे समय के लिए ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।

2. अनौपचारिक ऋण स्रोत:
भारत में बड़ी संख्या में ऋण अनौपचारिक स्रोतों द्वारा उपलब्ध करवाये जाते हैं। अनौपचारिक स्रोतों में साहूकार, महाजन, व्यापारियों, रिश्तेदारों एवं मित्रों को सम्मिलित किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश छोटे कृषक एवं मजदूर आज भी भारत के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।

  • अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की कमियाँ: अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं
    1. भारत में अनौपचारिक ऋण स्रोतों द्वारा ऊँची दर पर ऋण दिया जाता है।
    2. अनौपचारिक स्रोतों द्वारा अत्यन्त कठोर शर्तों पर ऋण दिया जाता है।
    3. ऋण न चुकाने की स्थिति में ऋणदाता, कृषकों का अनाज सस्ते में खरीद लेते हैं तथा कई बार उन्हें अपने खेतों अथवा घरों पर बिना परिश्रम के कार्य करवाते हैं।
  • औपचारिक क्षेत्रक ऋण निम्न प्रकार से बेहतर हैं:
    1. औपचारिक क्षेत्रक ऋण में ऋण के वे स्रोत सम्मिलित होते हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। इनमें बैंक व सहकारी समितियाँ प्रमुख हैं।
    2. भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज पर निगरानी रखता है।
    3. ऋण के औपचारिक स्रोतों द्वारा ऋण प्रदान किये जाने का उद्देश्य लाभ कमाने के साथ-साथ सामाजिक भी होता है।
    4. इन स्रोतों से कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाए जाते हैं।
    5. ऋण के औपचारिक स्रोत ऋण लेने वाले के समक्ष कोई अनुचित शर्त नहीं लगाते हैं।
    6. औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्जदारों का शोषण नहीं किया जाता है।

प्रश्न 7.
स्वयं सहायता समूह क्या हैं? स्वयं सहायता समूहों की कार्यविधि को विस्तार से बताइए।
अथवा:
स्वयं सहायता समूहों के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वयं सहायता समूह क्या है? ये किस प्रकार कार्य करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. हाल के वर्षों में लोगों ने गरीबों को उधार देने के कुछ नए तरीके अपनाने की कोशिश की है। इनमें से एक विचार ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करने एवं उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है।’
  2. एक विशेष सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ौसी 15-20 सदस्य होते हैं जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं।
  3. स्वयं सहायता समूहों का प्रमुख उद्देश्य गरीब लोगों की बचत पूँजी को एकत्रित करना होता है।
  4. प्रतिव्यक्ति बचत 25 रुपये से लेकर 100 रुपये या उससे अधिक भी हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है।
  5. स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं। यह साहूकार द्वारा लिये गये ब्याज से कम होता है।
  6. एक या दो वर्षों के पश्चात् अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है तो समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है।
  7. बैंकों द्वारा ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
  8. सदस्यों को छोटे-छोटे ऋण अपनी गिरवी भूमि को छुड़ाने हेतु, कार्यशील पूँजी की जरूरतों, जैसे-बीज, खाद, . बाँस व कपड़ा खरीदने के लिए, घर बनाने तथा सिलाई मशीन, हथकरघा व पंशु आदि खरीदने के लिए दिये जाते हैं।
  9. स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत बचत व ऋण गतिविधियों से सम्बन्धित निर्णय समूह के सदस्य स्वयं लेते हैं। समूह ही दिये जाने वाले ऋण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम, ब्याज-दर, वापस लौटाने की अवधि आदि के बारे में निर्णय करता है।
  10. स्वयं सहायता समूहों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें से अधिकांश समूह महिलाओं द्वारा संगठित किए गए हैं। ये समूह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने में मदद करते हैं। समूह की नियमित बैठकों के माध्यम से लोगों को एक मंच मिलता है, जहाँ वह विभिन्न प्रकार के सामाजिक विषयों; जैसे-स्वास्थ्य, पोषण व घरेलू हिंसा आदि पर आपस में चर्चा कर पाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→ भारत में राष्ट्रवाद का उदय

  • भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की घटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का परिणाम रही है।
  • 1914 ई. में प्रारम्भ हुए प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में एक नयी राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति उत्पन्न कर दी जिसके कारण रक्षा खर्च में बहुत अधिक वृद्धि हुई। सीमा शुल्क में वृद्धि के साथ आयकर की शुरुआत की गई।
  • 1918-19 ई तथा 1920-21ई. में देश के अनेक क्षेत्रों में फसल खराब होने के कारण खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई। इसी दौरान फ्लू की महामारी फैल गई। जनगणना 1921 के अनुसार दुर्भिक्ष तथा महामारी की वजह से 120-130 लाख मारे गए।

→  सत्याग्रह का विचार

  • महात्मा गांधी जनवरी, 1915 में दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापस आये थे। वहाँ उन्होंने सत्याग्रह का मार्ग अपनाकर वहाँ की नस्लभेदी सरकार से लोहा लिया।
  • गाँधीजी का विश्वास था कि अहिंसा समस्त भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकती है।
  • भारत आने के पश्चात् गाँधीजी ने अनेक स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया, जिनमें चंपारन 1916 ई., खेड़ा 1917 ई. एवं अहमदाबाद 1918 ई. आदि प्रमुख हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→  रॉलेट एक्ट

  • 1919 ई. में गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाया।
  • रॉलेट एक्ट के तहत सरकार राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने तथा राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बन्द रख सकती थी।
  • 13 अप्रैल, 1919 ई. को अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए।
  • सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने खिलाफत आन्दोलन के समर्थन तथा स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू करने पर अन्य नेताओं को राजी किया।

→  असहयोग आंदोलन

  • महात्मा गाँधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ (1909 ई.) में कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था तथा उनके सहयोग से ही चल पा रहा है। यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो शीघ्र ही ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज्य की स्थापना हो जाएगी।
  • दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौते के साथ असहयोग कार्यक्रम को मंजूरी दी गई।
  • असहयोग-खिलाफत आन्दोलन जनवरी, 1921 में प्रारम्भ हुआ। असहयोग-खिलाफत आन्दोलन की शुरुआत शहरी मध्यम वर्ग की भागीदारी के साथ हुई। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये तथा लोगों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।
  • असहयोग आन्दोलन शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैल गया। देश के विभिन्न भागों में संचालित किसानों व आदिवासियों के संघर्ष भी इस आन्दोलन में सम्मिलित हो गये।
  • अंग्रेजों के बागानों में कार्य करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत के बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी। जब उन्होंने असहयोग आन्दोलन के बारे में सुना तो हजारों मजदूरों ने अपने अधिकारियों की अवहेलना कर बागान छोड़ दिये और अपने घर को चल दिए।
  • गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर घटित घटना के विरोध में फरवरी, 1922 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लेने का फैसला किया।
  • वल्लभ भाई पटेल ने 1928 ई. में गुजरात के बारदोली में किसान आन्दोलन का सफल नेतृत्व किया। यह आन्दोलन भू-राजस्व में वृद्धि के खिलाफ था। इस आन्दोलन को ‘बारदोली सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारों से किया गया।
  • दिसम्बर, 1929 में पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाना तय किया गया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→  नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन:

  • देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गाँधी ने नमक को एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। 6 अप्रैल, 1930 को महात्मा गाँधी ने दांडी पहुँचकर वहाँ नमक बनाकर ब्रिटिश कानून को तोड़ा तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
  • 5 मार्च, 1931 को महात्मा गाँधी ने लॉर्ड इरविन के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए तथा लन्दन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति प्रदान की। •गाँवों में सम्पन्न कृषक समुदाय जैसे गुजरात के पटीदार व उत्तर प्रदेश के जाट सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सक्रिय थे।
  • औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में नागपुर के अतिरिक्त कहीं भी बहुत बड़ी संख्या में भाग नहीं लिया।
  • इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बड़े पैमाने पर भाग लिया।
  • महात्मा गाँधीजी ने घोषणा की कि छुआछूत को समाप्त किये बिना हम स्वराज की स्थापना नहीं कर सकते। उन्होंने अछूतों को हरिजन यानि ईश्वर की सन्तान बताया।
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने सन् 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया।
  • अंबेडकर ने गाँधीजी की बात मानकर सितंबर, 1932 में पूना पैक्ट पर दस्तखत किए।
  • भारत में सामूहिक अपनेपन की भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों के चलते उत्पन्न हुई थी।
  • राष्ट्रवाद को साकार करने में इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक, सभी ने अपना योगदान दिया था।
  • 1870 के दशक में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने मातृभूमि की स्तुति में ‘वन्देमातरम्’ गीत लिखा। यह गीत उनके उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में शामिल है।
  • स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा से अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की छवि को चित्रित किया।
  • जैसे-जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन आगे-बढ़ा। राष्ट्रवादी नेताओं ने लोगों को एकजुट करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए विभिन्न प्रकार के चिह्नों व प्रतीकों का प्रयोग किया।
  • अंग्रेज सरकार के विरुद्ध तीव्र गति से बढ़ता गुस्सा भारतीय समूहों एवं वर्गों के लिए स्वतन्त्रता का साझा संघर्ष बनता जा रहा था। औपनिवेशिक शासन से मुक्ति की चाह में लोगों को सामुहिक होने का आधार प्रदान किया था।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ

तिथि घटनाएँ
1. 1913 ई. 6 नवम्बर को महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत मजदूरों के अधिकारों को हनन करने वाले नस्लभेदी कानून के विरुद्ध सत्याग्रह किया।
2. 1915 ई. जनवरी माह में महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये।
3. 1916 ई. महात्मा गाँधी ने बिहार के चम्पारन क्षेत्र का दौरा किया।
4. 1918-19 ई. बाबा रामचन्द्र द्वारा उत्तर-प्रदेश के कृषकों को संगठित किया।
5. 1918 ई. महात्मा गाँधी सूती वस्त्र कारखानों के श्रमिकों के मध्य सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद पहुँचे।
6. 1919 ई. रॉलेट एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह चलाने का निश्चय किया। 13 अप्रैल को अमृतसर का जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ।
7. 1920 ई. सितम्बर माह में महात्मा गाँधी द्वारा कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में खिलाफत आन्दोलन के समर्थन एवं स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु अन्य नेताओं को सहमत किया।
8. 1921 ई. असहयोग आन्दोलन के लिए समर्थन जुटाने हेतु गाँधीजी व शौकत अली ने देशभर में यात्राएँ कीं। दिसम्बर माह में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति हेतु समझौता। भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस का गठन।
9. 1922 ई. जनवरी माह में असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ।
10. 1924 ई. फरवरी माह चौरी-चौरा कांड, महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लिया।
11. 1927 मई माह में अल्लूरी सीताराम राजू की गिरफ्तारी। दो वर्ष से चला आ रहा हथियारबन्द आदिवासी संघर्ष समाप्त।
12. 1928 भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ का गठन।
13. 1929 साइमन कमीशन भारत पहुँचा। सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन।
14. 1930 ई. अक्टूबर माह में वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा भारत के लिए डोमीनियन स्टेट्स की घोषणा। दिसम्बर माह में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग औपचारिक रूप से स्वीकार, 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाये जाने का निर्णय।
15. 1931 जनवरी माह में महात्मा गाँधी द्वारा 11 सूत्री माँगों के साथ वायसराय इरविन को पत्र लिखा गया। मार्च में गाँधीजी द्वारा दांडी में नमक कानून का उल्लंघन करके सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करना, डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित करना।
16. 1932 मार्च माहृ में गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वापस लिया जाना। 5 मार्च को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। दिसम्बर माह द्वितीय गोलमेज सम्मेलन। गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने महात्मा गाँधीजी लन्दन गये। सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुन: प्रारम्भ, सितम्बर माह में पूना समझौता हुआ।
17. 1942 14 जुलाई को अपनी कार्यकारिणी में कांग्रेस कार्य समिति में ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया। 8 अगस्त को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। महात्मा गाँधी ने प्रसिद्ध ‘करो या मरो’ का नारा दिया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  1. जबरन भर्ती: इस प्रक्रिया के अन्तर्गत अंग्रेज भारतीय लोगों को अपनी सेना में जबरदस्ती भर्ती कर लेते थे।
  2. पिकेटिंग: विरोध अथवा प्रदर्शन का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दुकान, कारखाना या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते है।
  3. बहिष्कार: किसी के साथ सम्पर्क रखने एवं जुड़ने से इंकार करना अथवा गतिविधियों में हिस्सेदारी, वस्तुओं की खरीद एवं प्रयोग से इन्कार करना। सामान्यतया यह विरोध प्रदर्शन का एक रूप होता है।
  4. सत्याग्रह: दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध गाँधीजी द्वारा प्रयोग किया गया एक अहिंसात्मक ढंग।
  5. गिरमिटिया मजदूर: औपनिवेशिक शासन के दौरान अधिक संख्या में लोगों को काम करने के लिए गयाना, फिजी, वेस्टइंडीज. आदि स्थानों पर ले जाया जाता था जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा। इन श्रमिकों को एक अनुबन्ध के तहत ले जाया जाता था, बाद में इसी समझौते के अन्तर्गत ये श्रमिक गिरमिट कहने लगे, जिससे आगे चलकर इन श्रमिकों को गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा।
  6. खिलाफत आन्दोलन: यह मोहम्मद अली एवं शौकत अली बन्धुओं द्वारा संचालित एक विरोध आन्दोलन था जो तुर्की के साथ युद्ध के पश्चात् किए गए अन्याय के विरुद्ध चलाया गया था।
  7. असहयोग आन्दोलन: जनवरी, 1921 ई. में महात्मा गाँधी जी द्वारा संचालित आन्दोलन। इस आन्दोलन का उद्देश्य पंजाब एवं तुर्की में हुए अन्याय का विरोध करना एवं स्वराज की प्राप्ति था।
  8. इंग्लैंड इमिग्रेशन एक्ट: अंग्रेज सरकार द्वारा लागू एक कानून जिसके तहत बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को बिना अनुमति बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाजत उन्हें कभी-कभी ही मिलती थी।
  9. पूना समझौता: सितम्बर, 1932 ई. में गाँधीजी एवं डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के मध्य हुआ एक समझौता जिसके अन्तर्गत दलित वर्गों को प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में सीटों का आरक्षण दिया गया।
  10. दांडी यात्रा: महात्मा गाँधी जी अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट दांडी तक पैदल यात्रा की थी तथा वहाँ नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

→ फ्रांसीसी क्रांति

  • फ्रांसीसी कलाकार फ्रेड्रिक सॉरयू ने सन् 1848 में चार चित्रों की एक श्रृंखला (विश्वव्यापी प्रजातांत्रिक और सामाजिक
    गणराज्यों का स्वप्न-राष्ट्रों के बीच संधि) बनाई। इनके कल्पनादर्श (युटोपिया) में विश्व के लोग अलग राष्ट्रों के समूहों में विभक्त हैं जिन्हें उनके कपड़ों एवं राष्ट्रीय पोशाकों से पहचाना जा सकता है।
  • 19 वीं सदी के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसी शक्ति के रूप में सामने आया जिसने यूरोप के राजनीतिक तथा मानसिक जगत में बड़े बदलाव किए जिनके परिणामस्वरूप अंततः यूरोप के बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्यों की जगह ‘राष्ट्र-राज्य’ का उदय हुआ।

→ यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

  • यूरोप में राष्ट्रवाद की प्रथम स्पष्ट अभिव्यक्ति सन् 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति के साथ हुई। इससे उत्पन्न हुए राजनीतिक
    तथा संवैधानिक परिवर्तनों से प्रभुसत्ता का हस्तांतरण राजतंत्र से निकलकर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हुआ।
  • फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने प्रारम्भ से ही ऐसे अनेक कदम उठाए जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की
    भावना उत्पन्न हो सकती थी।
  • इस्टेट जेनरल का नाम बदलकर नेशनल एसेबंली कर दिया गया तथा इसका चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा
    करवाया जाने लगा।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति, रियों का प्रमुख लक्ष्य यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराना था। नेपोलियन ने प्र में राजतंत्र को वापस लाकर प्रजातंत्र को समाप्त किया लेकिन उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक क्रान्तिकारी सिद्धान्तों को सम्मिलित किया।
  • सन् 1804 में नेपोलियन ने एक नागरिक संहिता का निर्माण किया, जिसे नेपोलियन संहिता के नाम से भी जाना जाता है। इसमें जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
  • नेपोलियन द्वारा निर्मित नागरिक संहिता में कानून के समक्ष समानता एवं सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित रखने की बात कही गयी थी। अठारहवीं शताब्दी के मध्य में पूर्वी व मध्य यूरोप निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन था। यहाँ रहने वाले लोग विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे। केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा ही इन समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व था। यूरोप महाद्वीप का सबसे शक्तिशाली वर्ग-कुलीन वर्ग था जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से भूमि का मालिक था।
  • जनसंख्या की दृष्टि से कुलीन वर्ग एक छोटा समूह था जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे।
  • मध्य एवं पश्चिमी यूरोप में औद्योगिक उत्पादन एवं व्यापार में वृद्धि होने से विभिन्न शहरों व वाणिज्यिक वर्गों का जन्म हुआ। इन वर्गों का अस्तित्व बाजार के लिए उत्पादन पर टिका था।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

→ उदारवादी राष्ट्रवाद

  • कुलीन वर्ग को प्राप्त विशेषाधिकारों की समाप्ति के पश्चात् शिक्षित एवं उदारवादी वर्गों के बीच ही राष्ट्रीय एकता के विचारों का अधिक प्रचार-प्रसार हुआ।
  • उदारवाद (Liberalism) शब्द लैटिन भाषा के मूल शब्द Liber से निकला है जिसका अर्थ है- आजाद।
  • यूरोप के नवीन मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का अर्थ था-लोगों के लिए स्वतन्त्रता एवं कानून के समक्ष सभी की
    समानता।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति के पश्चात् से ही उदारवाद निरंकुश शासक व पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति तथा संविधान एवं संसदीय प्रतिनिधि सरकार का समर्थक था।
  • आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाजारों की मुक्ति एवं पूँजी व वस्तुओं के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाये गये नियन्त्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था।

→  रूढ़िवाद का उदय व वियना संधि

  • सन् 1815 में नेपोलियन की पराजय के पश्चात् यूरोप की सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित थीं। रूढ़िवादियों का मत था कि राज्य व समाज द्वारा स्थापित की गयी पारम्परिक संस्थाओं जैसे- चर्च, सामाजिक भेदभाव, राजतन्त्र, सम्पत्ति एवं परिवार को बनाए रखना चाहिए।
  • नेपोलियन को पराजित करने वाली यूरोपीय शक्तियों-ब्रिटेन, रूस, प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के प्रतिनिधियों ने यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मुलाकात की। ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने इस सम्मेलन की मेजबानी की। इस सम्मेलन में सभी प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से सन् 1815 की वियना सन्धि तैयार की।
  • वियना सन्धि का उद्देश्य उन बहुत से बदलावों को समाप्त करना था जिन्हें नेपोलियाई युद्धों के दौरान किया गया था।
  • वियना सन्धि के तहत, फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान हटाए गये बूढे राजवंश को वापस शासन का अधिकार दिया गया।
  • फ्रांस को भविष्य में विस्तार करने से रोकने के लिए उसकी सीमाओं पर उत्तर में नीदरलैंड्स राज्य स्थापित किया गया तथा दक्षिण में पीडमॉण्ट में जेनोआ को सम्मिलित किया गया।
  • सन् 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं।
  • रूढ़िवादी व्यवस्था के आलोचक उदारवादी राष्ट्रवादी प्रेस की स्वतन्त्रता चाहते थे।

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→  क्रांतिकारी

  • सन् 1815 के पश्चात् यूरोप में अनेक उदारवादी-राष्ट्रवादी सरकारी दमन के भय से भूमिगत हो गये।
  • विभिन्न यूरोपीय देशों में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण एवं विचारों का प्रसार करने के लिए अनेक गुप्त संगठनों का निर्माण हुआ।
  • इटली का ज्युसेपी मेत्सिनी भी एक ऐसा क्रान्तिकारी था जो, कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य था।
  • मेत्सिनी ने 24 वर्ष की अवस्था में लिगुरिया में क्रांति करने के लिए बहिष्कृत होने के बाद ‘यंग इनी’ (मार्सेई में) तथा ‘यंग यूरोप’ (बर्न में) नामक दो अन्य भूमिगत संगठनों की स्थापना की।
  • मेत्सिनी राजतंत्र का घोर विरोध कर तथा प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने स्वप्न से रूढ़िवादियों ६ हराने में सफल रहा। उसे मैटरनिख ने ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ करार दिया।

→ क्रांतियों का युग व रूमावी कल्पनी और राष्ट्रीय भावना

  • जुलाई 1830 में फ्रांस में प्रथम विद्रोह हुआ जिसमें उदारवादी क्रांतिकारियों ने बूढे राजा को सत्ता से बेदखल कर दिया तथा लुई फिलिप की अध्यक्षता में एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया।
  • सन् 1832 में हुई कुस्तुनतुनिया की सन्धि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की।
  • राष्ट्रवाद के विचार के निर्माण में संस्कृति का बहुत अधिक योगदान रहा।
  • रूमानी कलाकारों एवं कवियों ने तर्क-वितर्क व विज्ञान के स्थान पर भावनाओं, अंतर्दृष्टि एवं रहस्यवादी भावनाओं पर – अधिक बल दिया।
  • जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड के अनुसार राष्ट्र की वास्तविक आत्मा लोकगीतों, जनकाव्य एवं लोकनृत्यों से प्रकट होती थी।
  • यूरोप में राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भाषा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

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→ भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह तथा उदारवादियों की क्रांति:

  • सन् 1830 के दशक में यूरोप में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिनमें तीव्र जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी में वृद्धि, वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि एवं निर्धनता प्रमुख थीं। सन् 1848 में खाने-पीने की सामग्री की कमी एवं अत्यधिक बेरोजगारी के कारण लोगों ने पेरिस की सड़कों पर आकर आन्दोलन कर दिया।
  • सन् 1848 में अनेक यूरोपीय देशों में किसान व मजदूर वर्ग ने गरीबी, बेरोजगारी व भुखमरी के कारण विद्रोह कर दिया।
    उसी समय शिक्षित मध्यम वर्ग ने भी राजा के विरुद्ध क्रान्ति कर दी।
  • उदारवादी मध्यम वर्ग ने राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग की जो संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता एवं संगठन निर्माण की
    स्वतन्त्रता जैसे संसदीय व्यवस्था के सिद्धान्तों पर आधारित थी।
  • 18 मई, 1848 को जर्मन क्षेत्रों में मतदान द्वारा सर्व-जर्मन नेशनल एसेम्बली का गठन किया गया, जिसमें 831 निर्वाचित प्रतिनिधि थे। इसे ‘फ्रैंकफर्ट संसद’ के नाम से जाना गया।
  • फ्रैंकफर्ट संसद में मध्यम वर्ग का प्रभाव अधिक था, जिसने मजदूर-कारीगर वर्ग की माँगों का विरोध किया। फलस्वरूप मध्यम वर्ग ने समर्थन खो दिया और संसद भंग हो गयी।
  • उदारवादी आंदोलन में महिलाओं को राजनैतिक अधिकार प्रदान करने का मुद्दा विवादास्पद था।
  • सन् 1848 में रूढ़िवादी ताकतों ने उदारवादी आन्दोलन को समाप्त कर दिया। लेकिन वे पुरानी व्यवस्था बहाल करने में नाकाम रहीं।

→ जर्मनी व इटली का एकीकरण

  • मध्य वर्ग के जर्मन राष्ट्रवादी लोगों के प्रयासों से जर्मनी व इटली एकीकृत होकर राष्ट्र-राज्य बने।
  • बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व किया। ऑस्ट्रिया, डेनमार्क व फ्रांस से सात वर्ष के दौरान तीन युद्धों में जीत के साथ प्रशा ने एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया।
  • जनवरी 1871 में वर्साय में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
  • जर्मनी की तरह इटली का भी राजनीतिक विखण्डन का एक लम्बा इतिहास रहा है।
  • उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में इटली सात राज्यों में विभाजित था। इनमें से मात्र एक सार्डिनिया पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था।
  • सन् 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इटली गणराज्य के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत की तथा ‘यंग इटली’ नामक गुप्त संगठन का गठन किया।
  • सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय के मंत्री प्रमुख कापूर ने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया।
  • सन् 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली राष्ट्र का राजा घोषित किया गया।

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→  ब्रिटेन का उदय

  1. ब्रिटेन में राष्ट्र राज्य का निर्माण अचानक न होकर एक लम्बी प्रक्रिया द्वारा हुआ।
  2. अठारहवीं शताब्दी से पहले विश्व में कोई ब्रिटेन नाम का राष्ट्र नहीं था। सन् 1688 में आंग्ल संसद ने राजतंत्र से सत्ता छीनकर एक राष्ट्र राज्य का निर्माण किया जिसके केन्द्र में इंग्लैण्ड था।
  3. सन् 1707 में इंग्लैण्ड और स्कॉटलैण्ड के बीच एक्ट ऑफ यूनियन नामक समझौते के तहत ‘यूनाइटेड किगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ।
  4. सन् 1801 में आयरलैण्ड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में सम्मिलित कर लिया गया। इस तरह नये ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण हुआ।

→  राष्ट्र दृश्य की कल्पना

  • 18 वीं एवं 19 वीं शताब्दी के कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके उसे मानव के रूप में चित्रित किया। उस समय राष्ट्र को महिला भेष में प्रस्तुत किया जाता था। इस काल में महिला की छवि राष्ट्र का प्रतीक (रूपक) बन गयी।
  • फ्रांसीसी गणराज्य में मारीआन की तस्वीर, जर्मनी में जर्मेनिया की तस्वीर इसी प्रकार की अभिव्यक्ति के प्रमुख उदाहरण

→  राष्ट्रवाद व साम्राज्य

  • सन् 1871 के पश्चात् यूरोप महाद्वीप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का प्रमुख स्रोत बाल्कन क्षेत्र था।
  • बाल्कन क्षेत्र में भौगोलिक एवं जातीय भिन्नता बहुत अधिक थी। इस क्षेत्र में आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया एवं मॉन्टिनिग्रो आदि सम्मिलित थे। आमतौर पर इस क्षेत्र के निवासियों को स्लाव कहा जाता था।
  • बाल्कन क्षेत्र का अधिकांश भाग ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था।
  • 19वीं शताब्दी में बाल्कन क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र ऑटोमन साम्राज्य के नियन्त्रण से निकलकर स्वतन्त्रता की घोषणा करने लगे।
  • साम्राज्यवाद से जुड़कर राष्ट्रवाद सन् 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। अंततः प्रथम विश्व युद्ध हआ।
  • यूरोपीय शक्तियों के अधीन विश्व के विभिन्न राष्ट्रों ने उनके साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध किया।
तिथि घटनाएँ
1. 1688 ई. आंग्ल (इंग्लैण्ड) की संसद ने राजतंत्र से शक्ति छीन ली एवं एक राष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ।
2. 1707 ई. इंग्लैण्ड एवं स्कॉटलैण्ड के मध्य एक्ट ऑफ यूनियन द्वारा ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन किया गया।
3. 1785 ई. जर्मनी के उदारवादी नेता जैकब ग्रिम का जन्म।
4. 1786 ई. जर्मनी के उदारवादी नेता विल्हेल्म ग्रिम का जन्म।
5. 1789 ई. फ्रांस की क्रान्ति।
6. 1797 ई. नेपोलियन का इटली पर आक्रमण, नेपोलियन के युद्धों की शुरुआत।
7. 1801 ई. आयरलैण्ड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में सम्मिलित किया गया।
8. 1804 ई. फ्रांस में नागरिक संहिता का निर्माण किया गया, जिसे नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना गया।
9. 1807 ई. इटली के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी ज्युसेपे मेत्सिनी का जन्म।
10. 1812 ई. ग्रीम्स बन्धु जैकब ग्रिम व विल्हेल्म ग्रिम की लोककथाओं की कहानियों का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ।
11. 1814-15 ई. नेपोलियन का पतन एवं वियना शांति संधि।
12. 1819 ई. लुइजे ऑटो पीटर्स का जन्म।
13. 1821 है. यूनानियों का स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ।
14. 1830 ई. फ्रांस की उुलाई क्रान्ति।
15. 1831 ई. रूस के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह।
16. 1832 है. कुस्तुनु निया की संधि ने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी।
17. 1834 ह. प्रशा की पहल पर एक शुल्क संघ, ‘जॉवेराइन’ की स्थापना जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य सम्मिलित थे।
18. 1848 ईई. फ्रांस में क्रान्ति, आर्थिक समस्याओं से परेशान कारीगरों, औद्योगिक मजदूरों एवं किसानों की बगावत, मध्यम वर्ग द्वारा संविधान तथा प्रतिनिध्यात्मक सरकार के गठन की माँग, जर्मन, इतालवी, पोलिश, चेक आदि के लोगों ने राष्ट्र राज्यों की माँग की।
19. 1859-1870 ई. इटली का एकीकरण।
20. 1861 ई. इमेनुएल द्वितीय एकीकृत इटली का राजा घोषित।
21. 1866-1871 ई. जर्मनी का एकीकरण।
22. जनवरी 1871 ई. वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
23. 1905 ई. हैब्सबर्ग एवं ऑटोमन साम्राज्यों में स्लाव राष्ट्रवाद की मजबूती।
24. 1914 ई प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. निरंकुशवाद:
एक ऐसी सरकार अथवा शासन व्यवस्था जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता। इतिहास में ऐसी राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार कहा जाता है जो अत्यधिक केन्द्रीकृत सैन्य बल पर निर्भर एवं दमनकारी सरकारें होती थीं।

2. कल्पनादर्श (युटोपिया): एक ऐसे समाज की कल्पना जो इतना अधिक आदर्श है कि उसका साकार होना लगभग असम्भव होता है।

3. जनमत संग्रह: एक प्रत्यक्ष मतदान जिसके माध्यम से एक क्षेत्र के समस्त लोगों को किसी प्रस्ताव को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करने के लिए पूछा जाता है।

4. राष्ट्र: समान नस्ल, भाषा, धर्म एवं क्षेत्र है, जिसे एक लम्बे प्रयासों, त्याग एवं निष्ठा के द्वारा प्राप्त किया है।
5. मताधिकार: मत (वोट) देने का अधिकार।

6. रूढ़िवाद: एक ऐसा राजनीतिक दर्शन जो परम्परा, स्थापित संस्थाओं व रीति-रिवाज़ों पर बल देता है एवं तीव्र परिवर्तन की अपेक्षा धीमे व श्रमिक विकास को प्राथमिकता देता है।

7. नारीवाद: महिला व पुरुष की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक समानता की सोच के आधार पर महिलाओं के अधिकारों व हितों के प्रति जागृति की विचारधारा।

8. विचारधारा: एक विशेष प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक दृष्टि को इंगित करने वाले विचारों का समूह।

9. नृजातीय: एक साझा नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान स्वीकार करता है।

10. राष्ट्रवाद: व्यक्तियों के द्वारा एकता की भावना को महसूस करना जो एक समान भाषा, इतिहास एवं साझी संस्कृति के भागीदार होते हैं।

11. उदारवाद: यूरोप में 19वीं शताब्दी में मध्यम वर्ग के लोगों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा प्रोत्साहित वह विचारधारा जिसमें उनको ही अधिक-से-अधिक राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में अवसर प्रदान हों तथा उनकी हिस्सेदारी को महत्व प्रदान किया जाये।

12. रूपक: जब किसी भी अमूर्त विचार; जैसे-लालच, ईर्ष्या, स्वतन्त्रता, मुक्ति आदि को किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। एक रूपकात्मक कहानी के दो अर्थ होते हैं- एक शाब्दिक अर्थ व एक प्रतीकात्मक अर्थ।

13. मारीआन: फ्रांस में राष्ट्रीय भावना के रूपक के रूप में दर्शायी गई एक नारी की छवि। यह ईसाइयों का लोकप्रिय नाम था। इसे सिक्कों और डाक-टिकटों पर दर्शाया गया था।

14. जर्मेनिया: जर्मन राष्ट्र की रूपक। इसे वीरता के प्रतीक ‘बलूत के वृक्ष के पत्तों का मुकुट’ पहने हुए दर्शाया गया है।

15. राष्ट्र का मानवीकरण: एक देश को इस प्रकार चित्रित करना कि वह कोई व्यक्ति हो।

16. हलेनिज्म: प्राचीन यूनानी संस्कृति।

17. क्रान्ति: अचानक होने वाली ऐसी कार्यवाही जो गैर-कानूनी तरीके अथवा शक्ति के द्वारा सरकार या शासन में परिवर्तन के लिए विद्रोह के रूप में प्रकट होती है।

18. जॉलवेराइन: प्रशा की पहल पर स्थापित एक शुल्क संघ।

19. रूमानीवाद: एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।

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JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती

JAC Class 9th Economics निर्धनता: एक चुनौती InText Questions and Answers 

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या- 32

प्रश्न 1.
विभिन्न देश विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग क्यों करते हैं?
उत्तर:
व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न कालों एवं विभिन्न देशों में भिन्न होने के कारण विभिन्न देश विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग करते हैं।

JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

प्रश्न 2.
आपके अनुसार आपके क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यक स्तर’ क्या होगा?
उत्तर:
हमारे अनुसार हमारे क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यक स्तर 2500 रुपये प्रतिमाह प्रतिव्यक्ति होना चाहिए। पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या-33 प्रश्न 3. तालिका 3.1 का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए तालिका 3.1 : भारत में निर्धनता के अनुमान ( तेंदुलकर कार्य प्रणाली) निर्धनता अनुपात (प्रतिशत)

1. 1993-94 और 2004-05 के मध्य निर्धनता अनुपात में गिरावट आने के बावजूद निर्धनों की संख्या 407 मिलियन के आस-पास क्यों बनी रही?
उत्तर:
इसका प्रमुख कारण इन वर्षों में देश की तीव्र जनसंख्या वृद्धि हुई है।

2. क्या भारत में निर्धनता में कमी की गति ग्रामीण और शहरी भारत में समान है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता में कमी की गति ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में समान नहीं है क्योंकि तालिका 3.1 यह दर्शाती है के निर्धनता में कमी की गति शहरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक तीव्र है।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 36

प्रश्न 4.
आरेख 3.2 के आधार पर निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए
1. तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सर्वाधिक है।
उत्तर:
बिहार, ओडिशा तथा असम सर्वाधिक निर्धनता अनुपात वाले राज्य हैं।

2. तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सबसे कम है।
उत्तर:
केरल, पंजाब और हिमाचल प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहाँ निर्धनता अनुपात सबसे कम है।

JAC Class 9th Economics निर्धनता: एक चुनौती Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण मानव के लिए आवश्यक प्राथमिक आवश्यकताओं, जैसे-खाद्य आवश्यकता, कपड़े, ईंधन, शिक्षा, चिकित्सा आदि की भौतिक मात्रा को रुपये में उनकी कीमतों से गुणा करके किया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकता पर आधारित है जो कि ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ऊर्जा देने वाले भोजन से है।

प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर:
हम यह मानते हैं कि वर्तमान में निर्धनता आकलन के तरीके में व्यक्ति की आय और उपभोग को आधार बनाया गया है। वर्तमान में केवल व्यक्ति की मूल आवश्यकता उदर-पूर्ति नहीं है इसलिए मानव की दूसरी प्राथमिक आवश्यकताओं जैसे वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ मनोरंजन को भी शामिल किया जाये तो निर्धनता का आकलन अधिक प्रभावी रहेगा तथा जीवन स्तर सुधार हेतु किये गये प्रयासों में अधिक सफलता प्राप्त होगी।

JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

प्रश्न 3.
भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में 1973 में लगभग 55% निर्धन लोग थे जिनमें शहरी क्षेत्र में 49% तथा ग्रामीण क्षेत्र में 56.4% निर्धन लोग थे। इनकी देश में कुल संख्या 32 करोड़ के आस-पास थी। दो दशक बाद निर्धनता के प्रतिशत में तो कमी आई क्योंकि यह प्रतिशत केवल 36 रह गया। लेकिन कुल संख्या में कोई खास कमी नहीं आई, इसका प्रमुख कारण देश में तीव्र जनसंख्या वृद्धि रहा।

लेकिन अगले 5 वर्षों में न केवल निर्धनता का प्रतिशत घटकर 26 रह गया बल्कि कुल निर्धनों की संख्या भी घटकर 26 करोड़ रह गयी। निर्धनों की संख्या में कमी का यह क्रम शीघ्र ही टूट गया तथा 2009-10 में यह संख्या पुन: बढ़कर 35 करोड़ के लगभग हो गयी जो कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत थी परन्तु सरकारी आँकड़ों के अनुसार 2011-12 में निर्धनों की संख्या में तेजी गिरावट आई, तब यह संख्या 27 करोड़ हो गई थी।

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता में अन्तर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
भारतीय निर्धनता का एक पहलू यह भी है कि यहाँ सभी राज्यों में निर्धनता का अनुपात समान नहीं है। राज्यों में निर्धनता को कम करने की सफलता दर विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है। देश के 20 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में निर्धनता का अनुपात राष्ट्रीय निर्धनता औसत से कम है तथा शेष राज्यों, जैसे-उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा व उत्तर-प्रदेश में यह एक गम्भीर समस्या है। देश के बिहार और उड़ीसा में क्रमश: 33.7 और 326% निर्धनता का औसत है तथा यही दोनों राज्य सर्वाधिक निर्धनता वाले राज्य हैं।

उड़ीसा, मध्य-प्रदेश, बिहार व उत्तर-प्रदेश में ग्रामीण निर्धनता के साथ-साथ नगरीय निर्धनता का प्रतिशत भी अधिक है। उक्त राज्यों की तुलना में केरल, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिमी बंगाल में उल्लेखनीय कमी आई है। पंजाब, हरियाणा में उच्च कृषि वृद्धि दर से, केरल में मानव संसाधन विकास से, पश्चिमी बंगाल में भूमि सुधार कार्यक्रमों से, आन्ध्र-प्रदेश व तमिलनाडु में सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुधार से निर्धनता को कम करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की गई है।

प्रश्न 5.
उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं?
उत्तर:
भारत में अग्रलिखित सामाजिक और आर्थिक समूह निर्धनता के समक्ष निरूपाय हैं
1. सामाजिक समूह:
यद्यपि निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों का औसत भारत में सभी समूहों के लिए 22 है, अनुसूचित जनजातियों के 100 में से 43 लोग अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसी तरह नगरीय क्षेत्रों में 34 प्रतिशत अनियत मजदूर निर्धनता रेखा के नीचे हैं। लगभग 34 प्रतिशत अनियत कृषि श्रमिक ग्रामीण क्षेत्र में और 29 प्रतिशत अनुसूचित जातियाँ भी निर्धन हैं।

अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सामाजिक रूप से सुविधा वंचित समूहों का भूमिहीन अनियत दिहाड़ी श्रमिक होना उनकी दोहरी असुविधा की समस्या की गम्भीरता को दिखाता है। 1990 के दशक के दौरान अनुसूचित जनजाति परिवारों को छोड़कर अनुसूचित जाति, ग्रामीण कृषि श्रमिक और शहरी अनियत मजदूर परिवार की निर्धनता में कमी आई है।

2. आर्थिक समूह: इस समूह के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार तथा शहरी अनियत श्रमिक परिवार आते

JAC Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

प्रश्न 6.
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारणों को बताइए।
उत्तर:
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. राज्यों में जनसंख्या घनत्व की असमानता का पाया जाना।
  2. राज्यों में लोगों की शिक्षा के प्रतिशत की असमानता का विद्यमान होना।
  3. प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता में भी असमानता की विद्यमानता।
  4. धरातल की असमानता भी राज्यों में निर्धनता की विभिन्नता को दर्शाता है।
  5. औपनिवेशिक राज्य की अवधि भी राज्यों में निर्धनता की विभिन्नता का एक कारण है।
  6. राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रयासों ने भी राज्यों की निर्धनता में विभिन्नताएँ पैदा की हैं।

प्रश्न 7.
वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
वैश्विक निर्धनता पर दृष्टि डालते हैं तो पता चलता है कि विकासशील देशों में अधिक आर्थिक निर्धनता व्याप्त है। हालांकि निर्धनता (विश्व बैंक की परिभाषा के अनुपात प्रतिदिन 1.9 से कम पर जीवन निर्वाह करना) में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 35% से गिरकर 2013 में 10.68 प्रतिशत हो गया है जो महत्त्वपूर्ण गिरावट को दर्शाता है। फिर भी वैश्विक निर्धनता में बहुत क्षेत्रीय विभिन्नताएँ विद्यमान हैं।

चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में तीव्र आर्थिक विकास और मानव संसाधन विकास में वृहत् निवेश से विशेष कमी हुई है। चीन में निर्धनों की संख्या 1981 के 88.3 प्रतिशत से घटकर 2008 में 14.7 प्रतिशत और वर्ष 2013 में 1.9 प्रतिशत रह गई है। दक्षिण एशिया के देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान में निर्धनों की संख्या में गिरावट इतनी ही तीव्र रही है।

यह 54 प्रतिशत से गिरकर 15 प्रतिशत हो गई है। निर्धनों के प्रतिशत में गिरावट के बावजूद निर्धनों की संख्या में भी कमी आई जो 1990 में 44 प्रतिशत से घटकर 2013 में 17 प्रतिशत रह गई। भिन्न निर्धनता रेखा परिभाषा के कारण भारत में भी निर्धनता राष्ट्रीय अनुमान से अधिक है।

सब-सहारा अफ्रीकी देशों में निर्धनता वास्तव में 1991 के 54 प्रतिशत से घटकर 2013 में 41 प्रतिशत हो गई है। लैटिन अमेरिका निर्धनता का अनुपात वही रहा है। यहाँ पर निर्धनता रेखा 1990 में 16 प्रतिशत से गिरकर 2013 में 5.4 प्रतिशत रह गई है। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में भी निर्धनता पुनः समाप्त हो गई, जहाँ पहले आधिकारिक रूप से कोई निर्धनता थी ही नहीं। संयुक्त राष्ट्र के नये सतत विकास के लक्ष्य को 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव है।

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प्रश्न 8.
निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा करें।
उत्तर:
निर्धनता उन्मूलन भारतीय सरकारी रणनीति का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। भारत सरकार की वर्तमान निर्धनता उन्मूलन रणनीति प्रमुख रूप से निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर है

  1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन, और
  2. लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रमों को पूरा करना।

भारत में 1980 के अन्त तक 30 वर्ष की योजना अवधि के दौरान प्रतिव्यक्ति आय में कोई वृद्धि नहीं हुई जिससे निर्धनता में भी अधिक कमी नहीं आई। 1980-90 के दशक में भारतीय आर्थिक संवृद्धि दर विश्व में सबसे ज्यादा 6% के आस-पास रही। इस आर्थिक संवृद्धि दर ने देश में व्याप्त निर्धनता को कम करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इससे एक बात यह स्पष्ट हुई कि आर्थिक संवृद्धि और निर्धनता-उन्मूलन के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है।

क्योंकि आर्थिक संवृद्धि अवसरों की व्यापकता को बढ़ाकर मानवीय विकास में निवेश हेतु आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध कराती है। इसके बाद भी यह सम्भव है कि आर्थिक विकास से उपलब्ध अवसरों के द्वारा निर्धन लोग प्रत्यक्ष रूप में लाभ नहीं उठा पाते। इसके अलावा कृषि क्षेत्रों में संवृद्धि की दर बहुत कम होने का सीधा प्रभाव निर्धनता पर पड़ा क्योंकि निर्धन लोगों की बड़ी संख्या गाँवों में निवास करती है जो कृषि पर निर्भर है।

उक्त परिस्थितियों में लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रमों की आवश्यकता प्रत्यक्ष में दिखाई देने लगी। देश में ऐसी अनेक योजनाएँ हैं जिन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्धनता कम करने हेतु तैयार किया गया है इनमें से कुछ निम्नांकित महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) सितम्बर 2005 में पारित किया गया। इस विधेयक द्वारा देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित करने का प्रावधान है।

इसका उद्देश्य सतत् विकास में मदद करना ताकि सूखा, वन कटाई एवं मिट्टी के कटाव जैसी समस्याओं से बचा जा सके। इस प्रावधान के अन्तर्गत एक-तिहाई रोजगार महिलाओं के लिये सुरक्षित किया गया है। इस स्कीम के अन्तर्गत 4.78 करोड़ परिवार को 220 करोड़ प्रतिव्यक्ति रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इस योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं का हिस्सा क्रमश: 23 प्रतिशत, 17 प्रतिशत एवं 53 प्रतिशत हैं। औसतन रोजगार वर्ष 2006-07 में 65 रुपये से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 132 रुपये कर दिया गया है। केन्द्र सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी। इसी तरह राज्य सरकारें भी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य रोजगार गारंटी कोष की स्थापना करेंगी।

कार्यक्रम के अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा। एक और महत्वपूर्ण योजना राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम है जिसे 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केन्द्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यान्न नि:शुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। एक बार एन. आर. ई. जी. ए. लागू हो जाए तो काम के बदले अनाज (एन. एफ. डब्ल्यू. पी.) का राष्ट्रीय कार्यक्रम भी इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आ जाएगा।

इन्हीं कार्यक्रमों के अन्तर्गत एक और योजना ‘प्रधानमन्त्री रोजगार योजना’ सन् 1993 में प्रारम्भ की गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण और छोटे शहरों के शिक्षित बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। ‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना’ का श्रीगणेश सन् 1999 में सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों का स्वसहायता समूहों में संगठित करके बैंक व सरकारी सहायिकी संयोजन के द्वारा निर्धनता रेखा के ऊपर उठाना है। उक्त योजनाओं के अलावा प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना-2000, अन्त्योदय अन्न योजना आदि निर्धनता निवारण हेतु लक्षित कार्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर दें:
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानव निर्धनता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं, लाभों और अवसरों से वंचित रहते हैं जिनका उपभोग दूसरे लोग उनसे अधिक करते हैं।

(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन है?
उत्तर:
महिलाएँ, बच्चे विशेषकर लड़कियाँ तथा वृद्ध व्यक्ति निर्धनों में सबसे अधिक निर्धन हैं।

(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताओं में प्रत्येक वर्ष देश 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोजगार का प्रावधान करना है। योजना में प्रस्तावित रोजगारों में से एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे।

केन्द्र में राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कोष की स्थापना के साथ राज्यों में राज्य रोजगार गारण्टी कोषों’ की स्थापना की जायेगी। कार्यक्रम के अन्तर्गत यदि आवेदक को 15 दिन में रोजगार उपलब्ध नहीं होता है तो वह बेरोजगार भत्ता का हकदार होगा। इस योजना के नाम में आंशिक परिवर्तन किया गया है। अब इसका नाम महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारण्टी (मनरेगा) योजना हो गया है। यह योजना अब 600 जिलों में लागू है।

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JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

JAC Class 9th Geography अपवाह InText Questions and Answers 

प्रश्न 1.
भारत में किस नदी की अपवाह द्रोणी सबसे बड़ी है।
उत्तर:
भारत में गंगा नदी की अपवाह द्रोणी सबसे बड़ी है।

प्रश्न 2.
भारत का सबसे बड़ा जल प्रपात कौन-सा है?
उत्तर:
भारत का सबसे बड़ा जल प्रपात जोग जल प्रपात है जो शरावती नदी द्वारा निर्मित है।

‘क्या आप जानते हैं’ पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी किस नदी की है?
उत्तर:
अमेजन नदी की।

प्रश्न 2.
सिंधु जल समझौता, 1960 के अनुसार भारत सिंधु नदी के कितने प्रतिशत जल का उपभोग कर सकता है?
उत्तर:
20 प्रतिशत जल का।

प्रश्न 3.
विश्व का सबसे बड़ा एवं तेजी से वृद्धि करने वाला डेल्टा कौन-सा है?
उत्तर:
सुन्दर डेल्टा।

प्रश्न 4.
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत एवं बांग्लादेश में किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में सांगपो एवं बांग्लादेश में जमुना कहा जाता है।

प्रश्न 5.
भारत में दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात कौन-सी नदी बनाती है?
उत्तर:
कावेरी नदी।

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प्रश्न 6.
भारत में दूसरा सबसे बड़ा जल प्रपात कौन-सा है?
उत्तर:
कावेरी नदी द्वारा बनाया गया शिवसमुद्रम् जलप्रपात।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के धरातल का लगभग कितने प्रतिशत भाग जल से ढंका है?
उत्तर:
71 प्रतिशत।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग कितने प्रतिशत जल स्वच्छ है?
उत्तर:
3 प्रतिशत।

प्रश्न 9.
बड़े आकार वाली झीलों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
समुद्र कहा जाता है।

प्रश्न 10.
पृथ्वी पर उपलब्ध जल का कितने प्रतिशत लवणीय है?
उत्तर:
97 प्रतिशत।

क्रियाकलाप आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
एटलस की सहायता से प्राकृतिक तथा मानव निर्मित झीलों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:

  • प्राकृतिक झील:
    1. डल झील (जम्मू और कश्मीर),
    2. वूलर झील (जम्मू और कश्मीर),
    3. भीमताल झील (उत्तराखण्ड),
    4. नैनीताल झील (उत्तराखण्ड),
    5. लोनार झील (महाराष्ट्र),
    6. पुष्कर झील (राजस्थान),
    7. कोलेरु झील (आन्ध्र प्रदेश),
    8. चिल्का झील (उड़ीसा),
    9. वेम्बनाद झील (केरल),
    10. सांभर झील (राजस्थान),
    11. लोकतक झील (मणिपुर),
    12. पुलीकट झील (आन्ध्र प्रदेश)।
  • मानव निर्मित झील:
    1. गोविन्द सागर झील (हिमाचल प्रदेश),
    2. नागार्जुन सागर (आन्ध्र प्रदेश)
    3. राणा प्रताप सागर (राजस्थान),
    4. हीराकुण्ड (उड़ीसा),
    5. गांधी सागर (मध्य प्रदेश),
    6. गोविन्द बल्लभ सागर (उत्तर प्रदेश)।

JAC Class 9th Geography अपवाह Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
दिए गये चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए।
1. वूलर झील निम्नलिखित में से किस राज्य में स्थित है
(क) राजस्थान
(ख) पंजाब
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) जम्मू-कश्मीर।
उत्तर:
(घ) जम्मू-कश्मीर।

2. नर्मदा नदी का उद्गम कहाँ से है
(क) सतपुड़ा
(ख) अमरकंटक
(ग) ब्रह्मगिरी
(घ) पश्चिमी घाट के ढाल।
उत्तर:
(ख) अमरकंटक।

3. निम्नलिखित में से कौन-सी लवणीय जल वाली झील है
(क) सांभर
(ख) वूलर
(ग) डल
(घ) गोविन्द सागर।
उत्तर:
(क) सांभर।

4. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है
(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) कृष्णा
(घ) महानदी।
उत्तर:
(ख) गोदावरी।

5. निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी से होकर बहती है
(क) महानदी
(ख) कृष्णा
(ग) तुंगभद्रा
(घ) तापी।
उत्तर:
(घ) तापी।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए
1. जल विभाजक का क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जल विभाजक वह उच्च स्थलीय भाग है जो दो अपवाह द्रोणियों को एक-दूसरे से पृथक् करता है। उदाहरण के लिए; अंबाला नगर सिंधु और गंगा नदी तन्त्रों के बीच जल विभाजक पर स्थित है।

2. भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
उत्तर:
गंगा द्रोणी।

3. सिंध एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं?
उत्तर:
सिंधु नदी मानसरोवर झील (तिब्बत) के निकट से एवं गंगा नदी गंगोत्री नामक हिमानी (उत्तराखण्ड) से निकलती है।

4. गंगा की दो मुख्य धाराओं के नाम लिखिए।ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती
उत्तर:
गंगा की दो मुख्य धाराएँ भागीरथी एवं अलकनंदा हैं। ये दोनों धाराएँ एक-दूसरे से उत्तराखण्ड राज्य के देवप्रयाग (जनपद टिहरी) नामक स्थान पर मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।

5. लम्बी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद(सिल्ट क्यों है?
उत्तर:
लम्बी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद (सिल्ट) है क्योंकि यह एक शीत एवं शुष्क क्षेत्र है अतः यहाँ इस नदी में जल की मात्रा कम है जिसके फलस्वरूप अपरदन कम होता है।

6. कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं? समुद्र में प्रवेश करने से पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं?
उत्तर:
नर्मदा एवं तापी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ हैं जो गर्त से होकर बहती हैं। समुद्र में प्रवेश करने से पहले वे ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।

7. नदियों तथा झीलों के कुछ आर्थिक महत्व को बताइएं।
उत्तर:

  • नदियों का आर्थिक महत्व:
    1. नदियाँ घरेलू कार्यों, उद्योगों एवं फसलों की सिंचाई के लिए जल उपलब्ध करवाती हैं।
    2. नदियाँ गाद और तलछट को बहाकर लाती हैं जो बाढ़ के मैदानों को उपजाऊ बनाती हैं तथा देश को उपजाऊ कृषि भूमि प्रदान करती हैं।
    3. नदियाँ जल विद्युत के उत्पादन में सहायक हैं।
    4. नदियाँ नौ-संचालन में प्रयोग होती हैं।
  • झीलों का आर्थिक महत्व:
    1. झीलें प्राकृतिक सुन्दरता एवं पर्यटन को बढ़ावा देती हैं तथा हमें मनोरंजन प्रदान करती हैं।
    2. झीलें नदी के बहाव को सुचारु बनाये रखती हैं।
    3. झीलों का प्रयोग जल विद्युत उत्पादन में किया जाता है।
    4. अत्यधिक वर्षा के समय झीलें बाढ़ के पानी को रोकती हैं।
    5. झीलों का प्रयोग नौका संचालन में भी किया जाता है।
    6. सूखे के मौसम में झीलें पानी के बहाव को सन्तुलित करने में सहायता करती हैं।
    7. झीलें आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु को सामान्य बनाती हैं।
    8. झीलें जलीय पारितन्त्र को सन्तुलित रखती हैं।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

प्रश्न 3.
नीचे भारत की कुछ झीलों के नाम दिये गए हैं। इन्हें प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वर्गों में बाँटिए
(क) वूलर
(ग) नैनीताल
(ङ) गोविन्द सागर
(छ) बारापानी
(झ) सांभर
(ट) निजामसागर
(ड) नागार्जुन सागर
(ख) डल
(घ) भीमताल
(च) लोकताल
(ज) चिल्का
(अ) राणा प्रताप सागर
(ठ) पुलिकट
(ढ) हीराकुण्ड
उत्तर:
1. प्राकृतिक झीलें: (क) वूलर, (ख) डल, (ग) नैनीताल, (घ) भीमताल, (च) लोकताल, (छ) बारापानी, (ज) चिल्का, (झ) सांभर, (ठ) पुलिकट।

2. मानव निर्मित झीलें: (ङ) गोविन्द सागर, (ब) राणाप्रताप सागर, (ट) निजाम सागर, (ठ) नागार्जुन सागर, (ढ) हीराकुण्ड।

प्रश्न 4.
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य अन्तरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैंहिमालयी नदियाँ

हिमालयी नदियाँ प्रायद्वीपीय नदियाँ
1. हिमालय से निकलने वाली नदियों का अपवाह क्षेत्र लम्बा है। 1. प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह क्षेत्र छोटा है।
2. हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ बारहमासी हैं। इनमें पूरे वर्ष भर पानी बना रहता है। 2. प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं। इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है।
3. हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियों का जन्म हिमानियों से हुआ है। 3. प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ वर्षा जल पर निर्भर हैं। यहाँ कोई हिमानी नहीं है।
4. अपने ऊपरी मार्ग में ये नदियाँ तीव्र गति से अपरदन कार्य करती हैं फलस्वरूप ये अपने साथ भारी मात्रा में गाद एवं तलछट लाती हैं। 4. धीमे ढलानों के कारण ये नदियाँ अपेक्षाकृत धीमी गति से अपरदन कार्य करती हैं।
5. समतल भूभाग में होकर बहने के कारण ये नदियाँ नौकायन करने योग्य हैं। 5. ये नदियाँ मार्ग में जल प्रपात बनाती हैं अतः तटीय मैदानों को छोड़कर ये नदियाँ नहीं हैं।
6. ये नदियाँ विशाल डेल्टा बनाती हैं। 6. ये नदियाँ अपेक्षाकुत छोटे डेल्टा बनाती हैं।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

प्रश्न 5.
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की तुलना निम्न प्रकार से हैपूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ

पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ पशिचम की ओर बहने वाली नदियाँ
1. ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। 1. ये नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं।
2. ये नदियाँ डेल्टा का निर्माण करती हैं। 2. ये नदियाँ ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।
3. ये नदियाँ अधिक लम्बी दूरी को पार करती हैं तथा अपनी घाटी का स्वयं निर्माण करती हैं। 3. नर्मदा एवं तापी को छोड़कर सभी नदियाँ अत्यन्त छोटी हैं तथा तेजी से तीव्र ढाल पर बहती हुई अरब सागर में गिरती हैं।
4. पूर्व की ओर बहने वाली नदियों में महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि प्रमुख हैं। 4. पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में नर्मदा एवं तापी आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 6.
किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्वपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर:
किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि

  1. नदियाँ घरेलू कार्यों, उद्योगों एवं फसलों की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराती हैं विशेषकर भारत जैसे देश में जहाँ फसल मानसून पर निर्भर होती है।
  2. नदियाँ परिवहन के साधन एवं अन्तर्देशीय जल मार्ग उपलब्ध करवाती हैं।
  3. नदियों के किनारे नगर, मनोरंजन केन्द्र, पर्यटन एवं मत्स्य संग्रहण केन्द्र भी विकसित होते हैं।
  4. नदियाँ गाद और तलछट बहाकर लाती हैं जो बाढ़ के मैदानों को उपजाऊ बनाती हैं।
  5. नदियाँ अवशिष्ट को जमने नहीं देतीं, उसे गलाकर नष्ट कर देती हैं।
  6. नदियों का उपयोग जल विद्युत उत्पादन में किया जाता है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मानव सभ्यता की जीवन रेखायें यह नदियाँ ही हैं।

मानचित्र कौशल

भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित नदियों को चिह्नित कीजिए तथा उनके नाम लिखिए गंगा, सतलुज, दामोदर, कृष्णा, नर्मदा, तापी, महानदी, दिहांग।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह 1

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

प्रश्न 2.
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित झीलों को चिह्नित कीजिए तथा उनके नाम लिखिए: चिल्का, सांभर, वूलर, पुलिकट तथा कोलेरू।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह 2

क्रियाकलाप

नीचे दी गई वर्ग पहेली को हल करें नोट: पहेली के उत्तर अंग्रेजी के शब्दों में हैं।

  • बाएँ से दाएँ:
    1. नागार्जुन सागर नदी परियोजना किस नदी पर है?
    2. भारत की सबसे लम्बी नदी।
    3. व्यास कुण्ड से उत्पन्न होने वाली नदी।
    4. मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से उत्पन्न होकर पश्चिम की ओर बहने वाली नदी।
    5. प. बंगाल का ‘शोक’ के नाम से जानी जाने वाली नदी। मूल रूप से पाठ्य-पुस्तक में बिहार का शोक है। लेकिन पहेली में स्थान दामोदर के लिए छोड़ा गया है उस हिसाब से प. बंगाल का शोक ठीक है।
    6. किस नदी से इंदिरा गांधी नहर निकाली गयी है?
    7. रोहतांग दर्रा के पास किस नदी का स्रोत है?
    8. प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी।
  • ऊपर से नीचे
    1. सिन्धु नदी की सहायक नदी, जिसका उद्गम हिमाचल प्रदेश में है।
    2. भ्रंश अपवाह होकर अरब सागर में मिलने वाली नदी।
    3. दक्षिण भारतीय नदी, जो ग्रीष्म तथा शीत ऋतु दोनों में वर्षा का जल प्राप्त करती है।
    4. लद्दाख, गिलगित तथा पाकिस्तान में बहने वाली नदी।
    5. भारतीय मरुस्थल की एक महत्वपूर्ण नदी।
    6. पाकिस्तान में चिनाव से मिलने वाली नदी।
    7. यमुनोत्री हिमानी से निकलने वाली नदी।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह 3

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JAC Class 9 Social Science Solutions Civics Chapter 2 संविधान निर्माण

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Civics Chapter 2 संविधान निर्माण

JAC Class 9th Civics संविधान निर्माण InText Questions and Answers 

विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश:
पाठ्य-पुस्तक के इस अध्याय में विभिन्न पृष्ठों पर लड़के/लड़की के कार्टून चित्रों के नीचे अथवा ‘खुद करें, खुद सीखें’ शीर्षक से बॉक्स में अथवा ‘कार्टून बूझें शीर्षक के नीचे अथवा कहाँ
पहुँचे? क्या समझे? शीर्षक से बॉक्स में प्रश्न दिए हुए हैं। इन प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 22

प्रश्न 1.
नेल्सन मण्डेला के जीवन और संघर्षों पर एक पोस्टर बनाएँ।
उत्तर:
छात्र इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।

प्रश्न 2.
अगर उनकी आत्मकथा, ‘द लाँग वाक टू फ्रीडम’ उपलब्ध हो तो कक्षा में उसके कुछ हिस्से पढ़कर आपस में चर्चा करें।
उत्तर:
छात्र, इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।

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प्रश्न 3.
अगर दक्षिण अफ्रीका के बहुसंख्यक काले लोगों ने गोरों से अपने दमन और शोषण का बदला लेने का निश्चय किया होता तो क्या होता?
उत्तर:
ऐसा करने पर दक्षिण अफ्रीका में हर तरफ युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाती। हर तरफ खून ही खून दिखाई पड़ता। हर तरफ विनाश तथा अराजकता का माहौल होता, किन्तु दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने हिंसा की जगह अहिंसा का सहारा लिया तथा अपनी समस्याओं का हल ढूँढ़ निकाला।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 23

प्रश्न 4.
आज का दक्षिण अफ्रीका : यह तस्वीर आज के दक्षिण अफ्रीका की सोच को उजागर करती है। आज का दक्षिण अफ्रीका खुद को ‘इन्द्रधनुषी देश’ कहता है। क्या आप बता सकते हैं, क्यों?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीकी लोग स्वयं को ‘इन्द्रधनुषी देश’ कहकर बुलाते हैं, क्योंकि रंगभेदी सरकार के समय अपने कडुवे अनुभवों को भुलाकर गोरे, काले, दूसरे वर्ण के लोग तथा भारतीय मूल के लोग सभी मिलकर काम करते हुए लोकतान्त्रिक मूल्यों पर आधारित एक नये राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रयासरत हैं।

प्रश्न 5.
क्या दक्षिण अफ्रीका के स्वतन्त्रता संग्राम से आपको भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की याद आई? इन बिन्दुओं के आधार पर दोनों संघर्षों में समानताएँ और असमानताएँ बताएँ
1. विभिन्न समुदायों के बीच सम्बन्ध
2. नेतृत्व-गाँधी/मंडेला
3. संघर्ष का नेतृत्व करने वाली पार्टी-अफ्रीकी नेशनल काँग्रेस/भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
4. संघर्ष का तरीका उपनिवेशवाद का चरित्र।
उत्तर:
हाँ, दक्षिण अफ्रीका के स्वतन्त्रता संग्राम की कहानी हमें भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की याद दिलाती है।

1. विभिन्न समुदायों के बीच सम्बन्ध समानता असमानता भारत के कुछ लोगों ने भी दक्षिण अफ्रीकी स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया, लेकिन किसी भी दक्षिण अफ्रीकी ने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग नहीं लिया।
2. नेतृत्व दोनों ही देशों में गोरे शासकों द्वारा वहाँ की जनता को हीन दृष्टि से देखा जाता था। मंडेला को आजीवन कारावास की सजा दी गई। उन्होंने जेल से ही आन्दोलन का नेतृत्व किया। गाँधीजी कई बार जेल गये, लेकिन उन्होंने जेल से आन्दोलन का नेतृत्व नहीं किया बल्कि वे जनता के बीच जाकर आन्दोलन का नेतृत्व करते थे।
3. संघर्ष नेत्रत्व करने वाली पार्टी गाँधी/मंडेला-गाँधी तथा मंडेला दोनों ने अपने देश के राष्ट्रीय आन्दोलनों में अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया तथा दोनों ही जनता के बीच बहुत ही लोकप्रिय थे। भारत में गाँधी तथा दक्षिण अक्रीका में मंडेला। अफ्रीका में केवल अफ्रीकी नेशनल काँग्रेस ही एकमात्र पार्टी थी, जबकि भारत में दूसरी अन्य राजनीतिक पार्टियाँ तथा चरमपंथी दल थे जिन्होंने आन्दोलन में अपनी-अपनी तरह से भाग लिया।
4. संघर्ष तरीका अफ्रीकी नेशनल काँरेस। भारतीय राष्ट्रीय कँग्रेस-दोनों पार्टियों ने अपने-अपने देश में जन आन्दोलनों का नेतृत्व किया तथा उचित समय पर उचित कार्यक्रम द्वारा उन्हें निर्देशित किया। दोनों ही संगठन आम जनता के सामान्य हितों की रक्षा करते हुए संघर्ष कर रहे थे। भारत में कुछ आदिवासी संगठन भी थे जिन्होंने हिंसक तरीकों से अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्वतन्त्रता की लड़ाई में अपना योगदान दिया।
5. उपनिवेशवाद का चरित्र दोनों ही देशों में स्वतन्त्रता की लड़ाई अधिकतर लोकतान्त्रिक तथा अहिंसक तरीकों से लड़ी गई। इन तरीकों में धरना, प्रदर्शन व हड़ताल आदि थे। भारत में यूरोपीय लोग बसे नहीं हैं। लेकिन यूरोपीय लोग दक्षिण अफ्रीका में बस गये तथा वहाँ के स्थानीय शासक बन गये।


पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 24

प्रश्न 6.
अपने इलाके के किसी क्लब, सहकारी संगठन अथवा मजदूर संघ या राजनीतिक दल के दफ्तर में जाएँ और उनसे संविधान या संगठन के नियमों की पुस्तिका माँगें तथा उसका अध्ययन करें।
क्या उसके नियम लोकतान्त्रिक नियमों के अनुकूल हैं? क्या वे बिना भेदभाव के सभी को सदस्यता देते हैं?
उत्तर:
छात्र इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।

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प्रश्न 7.
यह तो गड़बड़ हो गई। अगर सभी बुनियादी बातों पर पहले ही फैसला हो गया था तो संविधान सभा बनाने का क्या औचित्य था?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत एक लोकतान्त्रिक देश बनने जा रहा था। अतः सर्वप्रथम यह आवश्यक था कि नीचे से ऊपर तक भारतीय जनता के सभी वर्गों के विचारों एवं समस्याओं को समझा जाए। इसके उपरान्त बहस व चर्चा द्वारा उनके लिए निर्धारित नियमों में सुधार किया जाए। अतः बुनियादी बातों पर पहले ही फैसला हो जाने के बावजूद संविधान सभा का गठन किया गया।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 25

प्रश्न 8.
अपने दादा-दादी, नाना-नानी या इलाके के किसी बुजुर्ग से बात कीजिए। उनसे पूछिए कि क्या उनको आजादी या बँटवारे या संविधान निर्माण के बारे में कुछ बातें याद हैं। उस समय लोगों को किन बातों की उम्मीद थी और क्या-क्या अंदेशे थे ? अपनी कक्षा में इन बातों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र, इस प्रश्न को अध्यापकों व अपने बुजुर्गों की सहायता से स्वयं हल करें।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 27

प्रश्न 9.
अपने राज्य या इलाके से संविधान सभा में गये ऐसे सदस्य का नाम पता करें जिनका जिक्र यहाँ नहीं किया गया है। उस नेता की तस्वीर जुटाएँ या उनका स्केच बनाएँ। हमने जिस तरह संक्षेप में कुछ नेताओं के बारे में सूचना दी है उसी तरह उनके बारे में भी ब्यौरा दें। यानि नाम (जन्म वर्ष-मृत्यु वर्ष), जन्म स्थान ( वर्तमान राजनैतिक सीमाओं के आधार पर), राजनीतिक गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण, संविधान सभा के बाद की भूमिका।
उत्तर:
छात्र इस प्रश्न को अध्यापकों की सहायता से स्वयं हल करें।

 पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 28 

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान निर्माताओं के बारे में यहाँ दी गई जानकारियों को पढ़ें। आपको यह जानकारी कंठस्थ करने की जरूरत नहीं है। इस आधार पर निम्नलिखित कथनों के पक्ष में उदाहरण प्रस्तुत करें
1. संविधान सभा में ऐसे अनेक सदस्य थे जो कांग्रेसी नहीं थे।
2. सभा में समाज के अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व था।
3. सभा के सदस्यों की विचारधारा भी अलग-अलग थी।
उत्तर:
1. संविधान सभा में ऐसे अनेक सदस्य थे जो कांग्रेसी नहीं थे। इन सदस्यों में वल्लभभाई झावरभाई पटेल (1875-1950), जयपाल सिंह (1903-1970), भीमराव रामजी अम्बेडकर (1891-1956), श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953) आदि प्रमुख थे।

2. सभा में समाज के अलग:
अलग समूहों का प्रतिनिधित्व था। इन समूहों व उनके नेताओं में

  1. वल्लभभाई झावरभाई पटेल-किसान सत्याग्रह के नेता।
  2. अबुल कलाम आजाद-धर्मशास्त्री, अरबी के विद्वान्।
  3. जयपाल सिंह-आदिवासी महासभा के संस्थापक अध्यक्ष।
  4. भीमराव रामजी अम्बेडकर-सामाजिक क्रान्तिकारी चिंतक तथा जाति-विभाजन एवं जाति-आधारित असमानता के प्रखर विरोधी।
  5. श्यामा प्रसाद मुखर्जी-हिन्दू महासभा के सदस्य। आदि प्रमुख थे।

3. सभा के सदस्यों की विचारधारा भी अलग:
अलग थी। कुछ अलग विचारधारा वाले नेताओं में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (1889-1963), एच. सी. मुखर्जी (1887-1956), जी. दुर्गाबाई देशमुख (1909-1981), जवाहरलाल नेहरू (1889-1964), सरोजिनी नायडू (1879-1949) आदि प्रमुख थे।

पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ सं. 29

प्रश्न 1.
पहले दिए तीनों उद्धरणों को गौर से पढ़ें। पहचानिए कि कौन-सा एक विचार इन तीनों उद्धरणों में उपस्थित है। इन तीनों उद्धरणों में इस साझे विचार को व्यक्त करने का तरीका किस तरह एक-दूसरे से भिन्न है?
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को अपने शिक्षकों की सहायता से स्वयं हल करें।

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प्रश्न 2.
संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और दक्षिण अफ्रीका के संविधानों की प्रस्तावना की तुलना कीजिए।
1. इन सभी में जो विचार साझा है, उनकी सूची बनाएँ।
2. इन सभी में कम-से-कम एक बड़े अन्तर को रेखांकित करें।
3. तीनों में से कौन-सी प्रस्तावना अतीत की ओर संकेत करती है?
4. इन प्रस्तावनाओं में कौन-सी ईश्वर का आह्वान नहीं करती?
उत्तर:

  1. इन तीनों में मिले-जुले विचार हैं:
    • इन तीनों संविधानों की शुरुआत प्रस्तावना से हुई है।
    • इन तीनों संविधानों की प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम (देश का नाम) के लोग’ से हुई है।
  2. इनके बीच एक प्रमुख अन्तर है-‘समाजवादी विचारधारा का प्रयोग सिर्फ भारतीय संविधान की प्रस्तावना में हुआ
  3. दक्षिण अफ्रीकी संविधान की प्रस्तावना अतीत की ओर संकेत करती है।
  4. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ईश्वर का आह्वान नहीं किया गया है।

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प्रश्न 1.
नीचे कुछ गलत वाक्य दिए गए हैं। हर एक में की गई गलती पहचानें और इस अध्याय के आधार पर उसको ठीक करके लिखें।
(क) स्वतन्त्रता के बाद देश लोकतान्त्रिक हो या नहीं, इस विषय पर स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं ने अपना दिमाग खुला रखा था।
(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान में कही गई हरेक बात पर सहमत थे।
(ग) जिन देशों में संविधान है वहाँ लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था ही होगी।
(घ) संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है इसलिए इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता।
उत्तर:
(क) स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं की इस बारे में स्पष्ट धारणा थी कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में लोकतन्त्र होना चाहिए।

(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्यों की संविधान के सभी उपबन्धों को लेकर अलग-अलग धारणाएँ थीं।

(ग) जिन देशों में संविधान है वहाँ लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था का होना जरूरी नहीं है।

(घ) यह सत्य है कि संविधान देश का सर्वोत्तम कानून होता है परन्तु संविधान में संशोधन की व्यवस्था होती है, क्योंकि इसे लोगों की इच्छाओं तथा समाज में आए परिवर्तन के अनुसार होना चाहिए।

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प्रश्न 2.
दक्षिण अफ्रीका का लोकतान्त्रिक संविधान बनाने में इनमें से कौन-सा टकराव सबसे महत्वपूर्ण था
(क) दक्षिण अफ्रीका और उसके पड़ोसी देशों का।
(ख) स्त्रियों और पुरुषों का।
(ग) गोरे अल्पसंख्यक और अश्वेत बहुसंख्यकों का।
(घ) रंगीन चमड़ी वाले बहुसंख्यकों और अश्वेत अल्पसंख्यकों का।
उत्तर:
(ग) गोरे अल्पसंख्यक और अश्वेत बहुसंख्यकों का।

प्रश्न 3.
लोकतान्त्रिक संविधान में इनमें से कौन-सा प्रावधान नहीं रहता
(क) शासन प्रमुख के अधिकार
(ख) शासन प्रमुख का नाम
(ग) विधायिका के अधिकार
(घ) देश का नाम।
उत्तर:
(ख) शासन प्रमुख का नाम।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माण में इन नेताओं और उनकी भूमिका में मेल बैठाएँ

(क) मोतीलाल नेहरू 1. संविधान सभा के अध्यक्ष
(ख) बी. आर. अम्बेडकर 2. संविधान सभा की सदस्य
(ग) राजेन्द्र प्रसाद 3. प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष
(घ) सरोजिनी नायडू 4. 1928 ई. में भारत का संविधान बनाया।

उत्तर:

(क) मोतीलाल नेहरू 4. 1928 ई. में भारत का संविधान बनाया।
(ख) बी. आर. अम्बेडकर 3. प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष
(ग) राजेन्द्र प्रसाद 1. संविधान सभा के अध्यक्ष
(घ) सरोजिनी नायडू 2. संविधान सभा की सदस्य

प्रश्न 5.
जवाहरलाल नेहरू के नियति के साथ साक्षात्कार वाले भाषण के आधार पर निम्नलिखित का जवाब
(क) नेहरू ने क्यों कहा कि भारत का भविष्य सुस्ताने और आराम करने का नहीं है?
(ख) नये भारत के सपने किस तरह विश्व से जुड़े हैं?
(ग) वे संविधान निर्माताओं से क्या शपथ चाहते थे?
(घ) “हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की कामना हर आँख के आँसू पोंछने की है।” वे इस कथन में किसका जिक्र कर रहे थे?
उत्तर:
(क) नेहरू ने यह बात ‘भारत का भविष्य सुस्ताने और आराम करने का नहीं है। इसलिए कहा था कि भारत के लोग अपने वायदों को पूरा करने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहें।

(ख) नये भारत के सपने दरिद्रता का, अज्ञान का, बीमारियों का और अवसर की असमानता का अन्त करना है। विश्व शान्ति और समृद्धि के लिए भी यह आवश्यक है।

(ग) वह संविधान के निर्माताओं से यह शपथ लेना चाहते थे कि वे भारत के संसाधनों तथा जनता के हित में अपने आपको समर्पित कर दें।

(घ) वह इस कथन में महात्मा गाँधी की ओर संकेत कर रहे थे।

प्रश्न 6.
हमारे संविधान को दिशा देने वाले ये कुछ मूल्य और उनके अर्थ हैं। इन्हें आपस में मिलाकर दोबारा लिखिए।

(क) संप्रभु 1. सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी।
(ख) गणतन्त्र 2. फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है।
(ग) बंधुत्व 3. शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है।
(घ) धर्मनिरपेक्ष 4. लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए।

उत्तर:

(क) संप्रभु 2. फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है।
(ख) गणतन्त्र 3. शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है।
(ग) बंधुत्व 4. लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए।
(घ) धर्मनिरपेक्ष 1. सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी।

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प्रश्न 7.
कुछ दिन पहले नेपाल से आपके एक मित्र ने वहाँ की राजनीतिक स्थिति के बारे में आपको पत्र लिखा था। वहाँ अनेक राजनीतिक पार्टियाँ राजा के शासन का विरोध कर रही थीं। उनमें से कुछ का कहना था कि राजा द्वारा दिये गये मौजूदा संविधान में ही संशोधन करके चुने हुए प्रतिनिधियों को ज्यादा अधिकार दिये जा सकते हैं। अन्य पार्टियाँ नया गणतान्त्रिक संविधान बनाने के लिए नई संविधान सभा गठित करने की माँग कर रही थीं। इस विषय में अपनी राय बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।
उत्तर:
प्रिय मित्र, आपने अपने पत्र में जिन मुद्दों की चर्चा की है। उनके विषय में मैं अपनी राय को निम्न रूप में प्रेषित कर रहा हूँ नेपाल में लोगों के विचार अलग-अलग हैं। कुछ लोगों का कहना है कि राजा ने जो संविधान बनाया है, उसी में थोड़ा सुधार करके चुने हुए लोगों को अधिक शक्ति दे दी जाये, लेकिन दूसरी पार्टियाँ चाहती हैं कि नई संविधान सभा का गठन किया जाये।

मेरी राय में मौजूदा संविधान में संशोधन कर जन प्रतिनिधियों को अधिक अधिकार दे देना उचित है। कुछ सालों के बाद स्वतन्त्र चुनाव कराने चाहिए। तब राजा के पास निर्णय लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए, राजा सिर्फ सलाहकार की भूमिका निभायेगा। अतः वर्तमान संविधान में उपयुक्त संशोधन ही नेपाल के हित में उपयुक्त फैसला होगा।

प्रश्न 8.
भारत के लोकतन्त्र के स्वरूप में विकास के प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकार हैं। आप इनमें से हर कथन को भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्वपूर्ण कारण मानते हैं?

(क) अंग्रेजी शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतान्त्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी प्रान्तीय असेंबलियों के जरिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था में काम करने का प्रशिक्षण पाया।

(ख) हमारे स्वतन्त्रता संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण और भारतीय लोगों को तरह-तरह की आजादी न दिये जाने का विरोध किया। ऐसे में स्वतन्त्र भारत को लोकतान्त्रिक होना ही था।

(ग) हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की आस्था लोकतन्त्र में थी। अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों में लोकतन्त्र का न आना हमारे नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
उत्तर:
(क) अंग्रेजी शासकों के योगदान को कुछ सीमा तक स्वीकार किया जा सकता है। हालांकि इसे अंग्रेजों की देन नहीं माना जा सकता है। यदि हमें पूर्व प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता तो भारत जैसे विशाल देश में आरम्भिक दौर में प्रजातान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना बहुत ही मुश्किल कार्य होता।

(ख) इस तथ्य का भारत में प्रजातन्त्र की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान है। चूँकि हमारे संघर्ष का तरीका लोकतान्त्रिक था, हमारे राजनीतिक दलों की संरचना भी लोकतान्त्रिक थी, अतः प्रजातन्त्र की अच्छाइयों को हम अनुभव कर रहे थे। दूसरी ओर, चूँकि लोगों को विभिन्न स्वतन्त्रताएँ नहीं मिली थीं, अतः प्रजातन्त्र ही एकमात्र ऐसी व्यवस्था थी जो लोगों की इच्छाओं को पूरा कर सकती थी।

(ग) स्वतन्त्रता प्राप्ति के दौरान यह बहुत आवश्यक था कि सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना के लिए लोकतान्त्रिक विचारों वाले नेता हों, जिससे इन मूल्यों की स्थापना के लिए दूसरों को भी प्रेरित कर सकें। अतः इस कारण का योगदान भी महत्वपूर्ण था।

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प्रश्न 9.
1912 में प्रकाशित विवाहित महिलाओं के लिए आचरण’ पुस्तक के निम्नलिखित अंश को पढ़ें “ईश्वर ने औरत जाति को शारीरिक और भावनात्मक, दोनों ही तरह से ज्यादा नाजुक बनाया है, उन्हें आत्मरक्षा के भी योग्य नहीं बनाया है। इसलिए ईश्वर ने ही उन्हें जीवनभर पुरुषों के संरक्षण में रहने का भाग्य दिया है-कभी पिता के, कभी पति के और कभी पुत्र के। इसलिए महिलाओं को निराश होने की जगह इस बात से अनुगृहीत होना चाहिए कि वे अपने आपको पुरुषों की सेवा में समर्पित कर सकती हैं।” क्या इस अनुच्छेद में व्यक्त मूल्य संविधान के दर्शन से मेल खाते हैं या वे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं ?
उत्तर:
इस पाठ्यांश में व्यक्त मूल्य हमारे संविधान के मूल्यों को प्रदर्शित नहीं करते क्योकि हमारा संविधान पुरुष तथा महिला को प्रत्येक दृष्टि से समान मानता है। भारतीय संविधान में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान किए गए हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। क्या आप उनसे सहमत हैं? अपने कारण भी बताइए।
(क) संविधान के नियमों की हैसियत किसी भी अन्य कानून के बराबर है।
(ख) संविधान बताता है कि शासन व्यवस्था के विविध अंगों का गठन किस तरह होगा।
(ग) नागरिकों के अधिकार और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी संविधान में स्पष्ट रूप में है।
(घ) संविधान संस्थाओं की चर्चा करता है, उसका मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है।
उत्तर:
(क) यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि संवैधानिक नियम मौलिक नियम हैं, जबकि दूसरे अन्य नियमों की वैधानिकता इस आधार पर तय होती है कि वे संवैधानिक नियमों के अनुरूप हैं अथवा नहीं है।

(ख) यह कथन ठीक है, क्योंकि हमारे संविधान में सरकार के तीनों अंगों-विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के गठन तथा शक्ति की चर्चा की गई है।

(ग) यह कथन सही है, क्योंकि हमारे संविधान में नागरिकों को दिये गये विभिन्न अधिकारों और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी स्पष्ट रूप से है।

(घ) यह कथन गलत है, क्योंकि संविधान जिन मूल्यों पर आधारित है उनकी चर्चा संविधान की प्रस्तावना में की गई है तथा प्रस्तावना हमारे संविधान का हिस्सा है।

आइए, अखबार पढ़ें

प्रश्न 1.
संविधान संशोधन के किसी प्रस्ताव या किसी संशोधन की माँग से सम्बन्धित अखबारी खबरों को ध्यान से पढ़िए। आप किसी एक विषय पर, जैसे-संसद/विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण विषय पर छपी खबरों पर गौर कर सकते हैं। क्या इस सवाल पर कोई सार्वजनिक चर्चा हुई थी? संशोधन के पक्ष में क्या-क्या तर्क दिए गए हैं ? संविधान पर विभिन्न दलों की क्या प्रतिक्रिया थी? क्या यह संशोधन हो गया है?
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को शिक्षकों की सहायता से स्वयं हल करें।

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