JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ वृत्त (Circle) : वृत्त एक समतल में स्थित उन बिन्दुओं का समुच्चय (Set) होता है, जो समतल में दिए गए एक स्थिर बिन्दु से दी हुई नियत दूरी पर होते हैं।
स्थिर बिन्दु को वृत्त का केन्द्र (Centre) और उस केन्द्र से वृत्त के प्रत्येक बिन्दु की नियत दूरी को वृत्त की त्रिज्या (Radius) कहते हैं।
(i) वृत्त की परिभाषा एक बिन्दुपध के रूप में भी दी जा सकती है।
परिभाषा : यदि एक समतल में कोई बिन्दु इस तरह गतिमान होता है कि समतल में दिए गए एक स्थिर बिन्दु से उसकी दूरी सदा ही नियत रही है, तो उस बिन्दु के पथ को वृत्त कहते हैं।
(ii) समुच्चय संकेतन में वृत्त को इस प्रकार लिखा जाता है:
C(O, r) = {X : OX = r}
(iii) एक वृत्त की सभी त्रिज्याएँ समान होती हैं। आकृति में,
OX = OY = OZ = r
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→ वृत्त का अन्तः और बाह्य भाग (Interior and Exterior of a Circle) :
बिन्दु को, जहाँ OP <r, वृत्त का अन्तः बिन्दु कहते हैं। वृत्त के अन्तःबिन्दु को I1 से प्रदर्शित करते हैं। बिन्दु Q को, जहाँ OQ > r वृत्त का बाह्य बिन्दु कहते हैं। वृत्त के बाह्य भाग को I2 से दशति हैं।
सांकेतिक रूप में,
I1 = {P: OP < r } तथा
I2 = {P: OP > r}
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→ गोल चक्रिका (Circular Disc) वृत्त C (O, r) के अन्तःभाग और वत्त पर स्थित बिन्दुओं के समुच्चय को केन्द्र O तथा त्रिज्या r वाली एक गोल चक्रिका कहते हैं।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ संकेन्द्रीय वृत्त (Concentric Circles): एक ही केन्द्र वाले दो या दो से अधिक वृत्तों को संकेन्द्रीय वृत्त कहते हैं।
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→ वृत्त का चाप (Arc of Circle) : यदि PQ वृत्त C (O, r) पर कोई दो बिन्दु हों तो वृत्त दो भागों में बँट जाता है, जिनमें से प्रत्येक भाग को वृत्त का चाप कहते हैं। छोटे भाग को लघु चाप (Minor arc) तथा बड़े भाग को दीर्घ चाप (Major arc) कहते हैं। चाप को प्रायः JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त 4 से प्रदर्शित करते हैं। आकृति में \(\overparen{P X Q}\) लघु चाप तथा \(\overparen{P Y Q}\) दीर्घ चाप है।
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→ दक्षिणावर्त दिशा और वामावर्त दिशा (Clockwise Direction and Counter Clockwise or Anticlockwise Direction) : जिस दिशा में घड़ी की मिनट वाली सुई घूमती है, उसे दक्षिणावर्त दिशा तथा उसकी उलटी दिशा को वामावर्त दिशा कहते हैं। आकृति में P से Q की ओर की दिशा वामावर्त दिशा तथा Q से P की ओर की दिशा दक्षिणावर्त दिशा है।
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→ वृत्त की जीवा (Chord of a Circle): वृत्त के दो बिन्दुओं को मिलाने वाले रेखाखण्ड को वृत्त की जीवा कहते हैं। आकृति में वृत्त पर स्थित प्रदत्त दो बिन्दुओं P तथा Q से खींची गयी रेखा जीवा PQ है।
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→ वृत्त का व्यास (Diameter of a Circle) : वृत्त के केन्द्र से होकर जाने वाली जीवा को वृत्त का व्यास कहते हैं। आकृति में XY वृत्त का व्यास है। यदि वृत्त C (O, r) का व्यास हो, तो
d = 2r.
नोट:

  • एक वृत्त के अनेक व्यास होते हैं।
  • वृत्त के समस्त व्यास लम्बाई में समान होते हैं।
  • वृत्त का व्यास उस वृत्त की सबसे बड़ी जीवा होती है।
  • वृत्त का व्यास वृत्त की त्रिज्या का दोगुना होता है।

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→ अर्द्धवृत्त (Semicircle) : व्यास वृत्त को दो बराबर चापों में विभाजित करता है। प्रत्येक चाप अर्द्धवृत्त कहलाता है।
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आकृति में \(\overparen{P Q}\) तथा \(\overparen{Q P}\) अर्द्धवृत्त हैं।

→ वृत्तखण्ड (Segment) वृत्त की जीवा वृत्ताकार चक्रिका को दो भागों में विभक्त करती है उन दो भागों में से प्रत्येक भाग को वृत्तखण्ड कहते हैं। छोटे भाग को लघु वृत्तखण्ड (Minor segment) और बड़े भाग को दीर्घ वृत्तखण्ड (Major segment) कहते हैं।
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इन खण्डों में से प्रत्येक खण्ड को दूसरे खण्ड का एकान्तर वृत्तखण्ड (Alternate segment) कहते हैं।

→ त्रिज्यखण्ड (Sector) किसी वृत्त के चाप तथा उसके अन्त्यबिन्दु से जाने वाली त्रिज्याओं से बनी आकृति त्रिज्यखण्ड कहलाती है। आकृति में OAQB लघु त्रिज्यखण्ड (Minor Sector) तथा OAPB दीर्घ त्रिज्यखण्ड (Major Sector) है।
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→ चाप का अंशमाप (Degree Measure of an Arc) मान लीजिए C(O, r) एक वृत्त है, तो उस कोण को जिसका शीर्ष O है, वृत्त का केन्द्रीय कोण (Central angle) कहा जाता है। वृत्त की अंश माप 365° तथा अर्द्धवृत्त की अंशमाप 180° होती है चाप की अंश माप को M \(\overparen{A B}\) से प्रकट करते हैं। यदि चाप द्वारा केन्द्र पर अन्तरित कोण अंशों में दिया हों अथवा अंशों में ज्ञात किया जाए तो वह कोण चाप का अंशमाप कहलाता है।
अतः m\(\overparen{A B}\) = ∠AOB का मान अंशों में।

→ सर्वांगसम वृत्त (Congruent Circles) ऐसे दो या दो से अधिक वृत्त सर्वांगसम वृत्त कहलाते हैं, जिनकी त्रिज्याओं की माप समान हों। आकृति में, OA = O’C।
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→ सर्वांगसम चाप (Congruent Arcs) : दो सर्वांगसम वृत्तों के ऐसे चाप जिनके अंशमाप समान हों, सर्वागसम चाप कहलाते हैं। आकृति में चाप AB, चाप CD के सर्वागसम है इसे “\(\overparen{A B}\) ≡ \(\overparen{C D}\)” भी लिखा जा सकता है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 10 वृत्त

→ वृत्त की परिधि (Circumference of a Circle) : वृत्त के परिमाप को परिधि कहते हैं।
यदि त्रिज्या r होता
परिधि = 2πr ⇒ πd
यहाँ π = \(\frac{22}{7}\) या 3.1416.

→ चक्रीय चतुर्भुज (Cyclic Quadrilateral) : किसी चतुर्भज को चक्रीय चतुर्भुज कहते हैं, यदि उसके चारों शीर्ष बिन्दु वृत्त पर स्थित हों। आकृति में ABCD चक्रीय चतुर्भुज है।
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JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

JAC Class 9 Hindi मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे ?
उत्तर :
जुलाई, सन् 1989 में लेखक को एक साथ तीन हार्ट अटैक हुए। उसकी नब्ज, साँस और धड़कन लगभग बंद हो गई। तब डॉक्टर बोर्नेस ने प्रयोग के तौर पर लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स दिए जिससे उसके प्राण लौट आए। इस प्रक्रिया में लेखक के हार्ट का लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया था। अब केवल चालीस प्रतिशत हार्ट बचा था और उसमें भी तीन अवरोध थे। इसी कारण ओपन हार्ट ऑपरेशन करने से सर्जन हिचक रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं यह चालीस प्रतिशत हार्ट भी धड़कना बंद न कर दे। अंत में कुछ अन्य विशेषज्ञों की राय लेकर कुछ दिन बाद ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया।

प्रश्न 2.
‘किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी ?
उत्तर :
लेखक को अर्द्धमृत्यु की स्थिति में वापस घर लाया गया। जब उसे बेडरूम में लिटाया जाने लगा तो लेखक ने किताबों वाले कमरे में रहने की इच्छा व्यक्त की। उसे चलने, बोलने और पढ़ने की सख्त मनाही थी। वह चुपचाप उन किताबों को देखता रहता था। किताबों वाले कमरे में रहने का मुख्य कारण उसका किताबों के प्रति लगाव था। उसे किताबों से अत्यधिक प्रेम था और किताबों के बीच रहकर वह अपने आपको भरा-भरा महसूस करता था। पिछले कई वर्षों से एक-एक करके उसने इन किताबों को जमा किया था। प्रत्येक किताब से उसका एक भावनात्मक रिश्ता था। इसी कारण उसने किताबों वाले कमरे में रहने की जिद्द की थी।

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प्रश्न 3.
लेखक के घर में कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थीं ?
उत्तर :
लेखक के पिता गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे और आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे। उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी कुछ पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें ‘आर्यमित्र’ साप्ताहिक, ‘वेदोदय’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ आदि के साथ-साथ दो बाल-पत्रिकाएँ ‘बालसखा’ और ‘चमचम आती थीं। इन बाल-पत्रिकाओं में परियों, राजकुमारों, दानवों और सुंदर राजकन्याओं की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे।

प्रश्न 4.
लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा ?
उत्तर :
लेखक के घर में बाल-पत्रिकाएँ आती थीं जिनमें मज़ेदार कहानियाँ होती थीं। लेखक हर समय उन्हें पढ़ता रहता। यहाँ तक कि खाना खाते समय भी वह थाली के पास पत्रिकाएँ रखकर पढ़ता। धीरे-धीरे उसने घर में आने वाली अन्य पत्रिकाओं ‘सरस्वती’ और आर्यमित्र’ को भी पढ़ना शुरू कर दिया। उसे सबसे अधिक प्रिय स्वामी दयानंद की जीवनी पर लिखी एक पुस्तक थी। इसमें अनेक चित्र थे और रोचक शैली में उनके जीवन की अनेक घटनाओं का वर्णन था। ये सभी घटनाएँ लेखक को प्रभावित करती थीं। इसी कारण वह बार-बार उसे पढ़ता। इस प्रकार उसे किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक लग गया।

प्रश्न 5.
माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी ?
उत्तर :
लेखक अपने घर में आने वाली पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने में ही व्यस्त रहता था और स्कूल की पुस्तकों की ओर कम ध्यान उसकी माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देती। उसे डर था कि कहीं उसका बेटा फेल न हो जाए। वह लेखक के कक्षा की किताबें न पढ़ने के कारण चिंतित रहती। उसे यह भी डर था कि कहीं उसका पुत्र साधु बनकर घर से भाग न जाए। लेखक के पिता के समझाने पर लेखक ने कक्षा की किताबों को भी पढ़ना आरंभ किया।

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प्रश्न 6.
स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए ?
उत्तर :
स्कूल में अंग्रेज़ी में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने के लिए इनाम के रूप में लेखक को दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें मिलीं। इन पुस्तकों में पशु-पक्षियों तथा पानी के जहाज़ों का वर्णन था। उसके पिता ने अपनी अलमारी के एक खाने से चीजें हटाकर उन दो किताबों के लिए जगह बनाई। इस प्रकार अलमारी में किताबें रखने का सिलसिला आरंभ हो गया। लेखक किताबें इकट्ठी करने लगा और उन्हें अलमारी में रखता गया। धीरे-धीरे उसके पास एक समृद्ध पुस्तकालय हो गया। इस प्रकार स्कूल से मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए। यही दो पुस्तकें उसके समृद्ध पुस्तकालय का आधार बनी थीं।

प्रश्न 7.
‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी’ – पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली ?
उत्तर :
पिता के इस कथन से लेखक को पुस्तकें इकट्ठा करने की प्रेरणा मिली। पिता द्वारा अपनी अलमारी से एक खाना लेखक को किताबों के लिए दिए जाने पर लेखक बहुत खुश हुआ। उसने उस खाने में रखने के लिए अधिक-से-अधिक पुस्तकें इकट्ठी करना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसकी लाइब्रेरी में पुस्तकें भी बढ़ती चली गईं। एक-एक करके उसने लगभग एक हज़ार पुस्तकों की लाइब्रेरी बना ली। इस प्रकार पिता के स्नेहपूर्ण कहे गए उस कथन ने लेखक को पुस्तकें इकट्ठा करने और उन्हें पढ़ने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 8.
लेखक की पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा। वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी।

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प्रश्न 9.
‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि अनेक विद्वानों द्वारा लिखी पुस्तकें उसे बहुत ताजगी प्रदान करती थीं। उसकी लाइब्रेरी में रखी इन पुस्तकों को देखकर उसे बड़ा सुख मिलता था। ये पुस्तकें ही उसकी संचित पूँजी थीं। इन पुस्तकों को देखकर वह बहुत खुश होता था। अनेक लेखकों और चिंतकों की पुस्तकें उसके खालीपन को दूर कर देती थीं। अपनी इन पुस्तकों के बीच पहुँचकर वह नयापन महसूस करता था। वहाँ उसके जीवन की रिक्तता और नीरसता अपने आप दूर हो जाया करती थी। लेखक को अपने द्वारा संचित की गई पुस्तकों से बहुत अधिक प्रेम था।

JAC Class 9 Hindi मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
डॉक्टर बोर्जेस ने लेखक को शॉक्स क्यों दिए ? उससे लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
सन् 1989 में लेखक को तीन हार्ट अटैक हुए। सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी। उसने लेखक की धड़कन लौटाने के लिए नौ सौ वाल्ट्स के शॉक्स दिए। उसका मत था कि यदि शरीर मृत है तो उसे दर्द महसूस ही नहीं होगा किंतु यदि एक कण प्राण भी शेष होंगे तो हार्ट रिवाइव कर सकता है। डॉक्टर बोर्जेस के इस प्रयोग से लेखक के प्राण तो लौटे किंतु उसका साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया।

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प्रश्न 2.
अस्पताल से घर आकर लेखक कहाँ रहा और उसने क्या महसूस किया ?
उत्तर :
लेखक अस्पताल से अर्धमृत हालत में घर लाया गया और उसे पूर्ण रूप से विश्राम करने के लिए कहा गया। उसके चलने, बोलने और पढ़ने पर मनाही थी। अस्पताल से घर लाकर उसे किताबों वाले कमरे में रखा गया। वहाँ वह दिन-भर खिड़की के बाहर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के पत्ते और कमरे में रखी किताबों से भरी अलमारियों को देखता रहता। लेखक ने महसूस किया कि बचपन में पढ़ी परी – कथाओं में जिस प्रकार राजा के प्राण तोते में रहते थे, उसी प्रकार उसके प्राण भी मानो कमरे में रखी इन किताबों में बसे हैं। इन किताबों को लेखक ने बड़ी कठिनाई से एक-एक करके इकट्ठे किए थे।

प्रश्न 3.
पुस्तकालय अपने आपमें ज्ञान का संचित कोष होता है। वहाँ अथाह पुस्तकों का भंडार होता है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि पुस्तकालय का मानव जीवन में क्या स्थान है?
उत्तर :
पुस्तकालय आज जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। इनमें अपार ज्ञान का कोष है। आज के आधुनिक तथा प्रतिस्पर्धा-युक्त वातावरण में इसका और भी अधिक महत्व है। व्यक्ति पुस्तकालय में जाकर उसमें रखी पुस्तकों का अध्ययन करता है। एक व्यक्ति इतनी अधिक मात्रा एवं संख्या में पुस्तकों को न खरीद सकता है और संजोकर रख सकता है। यह विद्यार्थियों तथा आम जन मानस के लिए शिक्षक, थियेटर, आदर्श तथा उत्प्रेरक है।

यह परामर्शदाता तथा उनका साथी भी है। सही अर्थों में पुस्तकालय जनता तथा विद्यार्थियों को विवेकशील तथा ज्ञानवान बनाने का काम करता है तथा कर रहा है। इनमें लेखकों के लेख, नेताओं के भाषण, व्यापार और मेलों की सूचनाएँ, स्त्रियों और बच्चों के उपयोग की अनेक पत्र-पत्रिकाएँ, नाटक, कहानी, उपन्यास हास्य व्यंग्यात्मक लेख आदि विशेष सामग्री रहती हैं। अतः इनके प्रयोग से व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। यदि यह कहा जाए कि पुस्तकालय आज सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में बड़ा सहायक है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी।

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प्रश्न 4.
पुस्तकें इकट्ठी करना तथा उन्हें क्रमबद्ध रूप में अलमारी में सजाकर रखना मानव की आदत में है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि क्या पुस्तकों को इकट्ठा करना या उन्हें सजाकर रखना ही उनका सही प्रयोग है या उनके अंदर के ज्ञान को आत्मसात् करना उसका प्रयोग है?
उत्तर :
हाँ, यह अक्सर देखा जाता है कि बहुत से लोग किताबे खरीदते हैं। उन्हें अलमारी में सजाकर रखते हैं किंतु पुस्तक के अंदर के ज्ञान को समझ नहीं पाते। वे ऐसे लोग होते हैं जो पुस्तकें इकट्ठी करने के तो शौकीन होते हैं किंतु उन्हें पढ़कर उनके ज्ञान को आत्मसात् नहीं करना चाहते। आज समाज के अधिकतर लोग दिखावे और प्रदर्शनी हेतु पुस्तकों का संचय करते हैं। पुस्तकें धूल चाटती रहती हैं किंतु उनके पास उन्हें पढ़ने का समय नहीं होता। वे उस ज्ञान से वंचित हो जाते हैं जिसे वे अपने साथ पुस्तक के रूप में घर तो ले आए किंतु उन्हें पढ़कर आत्मसात् नहीं कर पाए।

सच्चा ज्ञान पुस्तक के अंदर निहित उस शब्दावली में है जो मानव को कल्याणकारी बनाने का संदेश देती है, उसे सन्मार्ग पर आने के लिए प्रेरित करती है, उसकी इच्छा-शक्ति तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करती है। अतः स्पष्ट है कि पुस्तकों को इकट्ठा करना इतना आवश्यक नहीं जितना आवश्यक पुस्तकों में निहित ज्ञान को आत्मसात् करना है।

प्रश्न 5.
मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने लेखक की लाइब्रेरी देखकर लेखक से क्या कहा था ?
उत्तर :
मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने लेखक से कहा था- ” भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक रूप में तुम्हारे चारों ओर विराजमान हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें पुनर्जीवन दिया है। ” तब लेखक ने कवि विंदा तथा पुस्तकों के महान लेखकों को मन-ही-मन प्रणाम किया था।

प्रश्न 6.
लेखक के प्राण कहाँ रहते थे और क्यों ?
उत्तर :
लेखक को लगता था कि उसकी स्थिति बिल्कुल उस राजा की तरह है जिसके प्राण तोते में थे और उसके अपने पुस्तकालय में रखी किताबों में थे। इसी कारण लेखक बीमारी के बाद अपने निजी पुस्तकालय में रहना चाहता था। वह इन किताबों के बिना अपने जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था।

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प्रश्न 7.
लेखक के माता-पिता क्या काम करते थे ?
उत्तर :
लेखक के पिता सरकारी नौकरी में थे। उन्होंने बर्मा रोड बनाते समय बहुत पैसा बनाया था। गाँधी जी के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। बाद में उनके पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान बने। उनकी माता ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।

प्रश्न 8.
लेखक के पिता ने उन्हें आरंभ में स्कूल क्यों नहीं भेजा ?
उत्तर :
लेखक के पिता ने उन्हें बचपन में स्कूल नहीं भेजा था। उनके विचार में छोटे बच्चे स्कूल में ग़लत बातें सीखते हैं। पिता के अनुसार वे ग़लत संगत में पड़कर कहीं गाली-गलौच करना न सीख ले या फिर कहीं बुरे संस्कार न ग्रहण कर लें, इसलिए उन्हें पढ़ाने के लिए घर में ही अध्यापक रखा गया था।

प्रश्न 9.
लेखक के पिता ने उनसे क्या वचन लिया ?
उत्तर :
लेखक ने कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर की थी। तीसरी कक्षा में उन्हें स्कूल भेजा गया। स्कूल के पहले दिन उनके पिता ने उनसे वचन लिया कि वे स्कूल में मन लगाकर पढ़ेंगे। अन्य किताबों की तरह पाठ्यक्रम की किताबें भी ध्यान से पढ़ेंगे और अपनी माँ की उनके भविष्य को लेकर हो रही चिंताओं को दूर करेंगे।

प्रश्न 10.
क्या लेखक ने अपना निजी पुस्तकालय का सपना पूरा किया ?
उत्तर :
हाँ, लेखक ने अपना निजी पुस्तकालय का सपना पूरा किया। लेखक को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए वह मोहल्ले की लाइब्रेरी में बैठकर किताबें पढ़ता था। कई बार कोई उपन्यास अधूरा रह जाता तो वह सोचता कि पैसे होते, तो वह खरीदकर पढ़ लेता। धीरे-धीरे उसने बचत करके अपने लिए किताबें खरीदनी शुरू की और अपना सपना पूरा किया।

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प्रश्न 11.
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ के आलोक में अपने विद्यालय के पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हमारे विद्यालय का पुस्तकालय विद्यालय के प्रथम तल पर एक बहुत बड़े सभा भवन में स्थित है। इसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों से अलमारियाँ भरी हुई हैं। बीच में समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि पढ़ने के लिए मेज़ – कुर्सियाँ लगी हुई हैं। प्रवेश-द्वार के पास पुस्तकालयाध्यक्ष अपने सहयोगियों के साथ बैठते हैं। यहाँ विभिन्न भाषाओं के समाचार-पत्र तथा अनेक विषयों से संबंधित पत्रिकाएँ आती हैं, जिनसे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है तथा मनोरंजन भी होता है। हमें घर पर पढ़ने के लिए पंद्रह दिनों के लिए दो पुस्तकें भी मिलती हैं। हमें हमारे पुस्तकालय से ज्ञान – प्राप्ति में बहुत सहायता मिलती है।

प्रश्न 12.
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ में लेखक फ़िल्म न देखकर पुस्तक क्यों खरीदता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा।

वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी। इस प्रकार वह पैसों की बचत कर लेता है और देवदास फ़िल्म जिस पुस्तक पर आधारित थी, वह भी उसे प्राप्त हो जाती है।

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प्रश्न 13.
आपको कौन-सी पुस्तक अच्छी लगती अच्छी लगती है और क्यों ?
उत्तर :
मेरी प्रिय पुस्तक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस है क्योंकि उसमें केवल राम की कथा ही नहीं है बल्कि अनेक आदर्शों की स्थापना भी की गई है, जिनसे हमें अपना जीवन सँवारने की प्रेरणा मिलती है। हनुमान जैसा सेवक – धर्म, भरत लक्ष्मण का भाई के प्रति प्रेम, राम का मर्यादित स्वरूप, सुग्रीव – राम की मित्रता, शबरी के प्रति राम की भावनाएँ तथा राम-राज्य की परिकल्पना, रावण के वध द्वारा बुराई पर अच्छाई की विजय आदि सभी इन सब घटनाओं से जीवन को सद्आचरण से युक्त बनाने की प्रेरणा मिलती है तथा इनका अनुपालन करके देश और समाज को आदर्श बनाया जा सकता है।

मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है। इसमें भारती जी ने अपनी पढ़ने-लिखने और पुस्तकें इकट्ठा करने की रुचि का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि उसने एक-एक पुस्तक को बड़ी मेहनत से इकट्ठा किया है। अब उसके निजी पुस्तकालय में अनेक विधाओं से संबंधित लगभग एक हजार पुस्तकें इकट्ठा हो गई हैं।

जुलाई, 1989 को लेखक को तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक हुए। सभी डॉक्टरों ने घोषित कर दिया कि अब उसमें प्राण नहीं रहे। पर एक डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने लेखक को नौ सौ वाल्ट्स के शॉक्स दिए। इस भयानक प्रयोग से लेखक के प्राण तो लौट आए किंतु उसका साठ प्रतिशत हृदय सदा के लिए नष्ट हो गया। दोबारा ऑपरेशन करने में खतरा था। अतः अन्य विशेषज्ञों की राय लेने के लिए ऑपरेशन कुछ दिन बाद करने का निर्णय लिया गया और लेखक को अस्पताल से घर लाया गया। उसे बिना हिले-डुले विश्राम करने की सलाह दी गई। लेखक ने जिद्द करके अपना बिस्तर किताबों वाले कमरे में लगवाया। वह सारा दिन किताबों को देखकर सोचता रहता कि शायद उसके प्राण इन किताबों में ही बसे हुए हैं।

लेखक अपने किताबें पढ़ने और सहेजने के शौक के बारे में बताता है कि उसके पिता सरकारी नौकरी करते थे। बाद में गांधी जी के प्रभाव में आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी। उस आर्थिक संकट के दौर में भी उनके घर में कई पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें दो पत्रिकाएँ ‘बाल सखा’ और ‘चमचम’ बाल पत्रिकाएँ थीं जो लेखक के लिए आती थीं। लेखक को उन्हें पढ़ने में बड़ा मज़ा आता था। इसके अतिरिक्त उसे स्वामी दयानंद की जीवनी पढ़ने में भी बड़ा आनंद आता था। लेखक सारा दिन वही पत्रिकाएँ पढ़ता था। लेखक की माँ उसकी कक्षा की किताबें न पढ़ने के कारण चिंतित रहती थी। एक दिन पिता द्वारा समझाने पर उसने स्कूली पुस्तकों को पढ़ना शुरू किया। स्कूल में अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक पाने के कारण उसे दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें इनाम में मिलीं। उसके पिता ने अपनी अलमारी का एक खाना उसे उन पुस्तकों को रखने के लिए दिया। तब से लेखक ने लगातार पुस्तकों को इकट्ठा करना आरंभ कर दिया।

लेखक बताता है कि उसके पिता की मृत्यु के बाद परिवार आर्थिक संकट में घिर गया। ऐसे में किताब खरीदकर पढ़ना उसके लिए असंभव था। अतः वह मुहल्ले की लाइब्रेरी में बैठकर घंटों पुस्तकें पढ़ता रहता। लेखक अपनी पहली खरीदी हुई पुस्तक के विषय में बताता है कि वह पुस्तक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास ‘देवदास’ था। उसकी माँ ने उसे दो रुपये ‘देवदास’ फ़िल्म देखने के लिए दिए। शो छूटने में देर होने के कारण वह आस-पास टहलने लगा। तब उसने एक किताबों की दुकान के काउंटर पर ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। दुकानदार ने उसे वह दस आने में किताब दे दी। लेखक ने फ़िल्म देखने की बजाय किताब खरीदना बेहतर समझा।

इस प्रकार यह उसकी खरीदी हुई पहली पुस्तक थी। धीरे-धीरे उसका पुस्तकालय समृद्ध होता गया। उसके पास उपन्यास, नाटक तथा प्रत्येक विधा से संबंधित लगभग एक हजार पुस्तकों का निजी पुस्तकालय बन गया। लेखक इन पुस्तकों के बीच अपने आपको भरा-भरा महसूस करता है। लेखक का ऑपरेशन सफल होने पर उनसे मिलने आए मराठी के कवि विंदा करंदीकर ने लेखक के पुस्तकालय को देखकर कहा कि इन पुस्तकों के महान लेखकों के आशीर्वाद से ही उसे पुनर्जीवन मिला है। लेखक ने तब विंदा करंदीकर और पुस्तकों के रूप में उसके पुस्तकालय में विराजमान महापुरुषों को मन ही मन प्रणाम किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • हार्ट-अटैक – दिल का दौरा।
  • शॉक्स – झटके।
  • मृत – मरा हुआ, जिसमें प्राण न बचे हों।
  • अवरोध – रुकावट।
  • अदर्धमृत्यु – अधमरा।
  • बेडरूम – सोने का कमरा।
  • आह्वान – बुलावा।
  • आर्थिक – रुपये-पैसे से संबंधित।
  • रोचक – मनोरंजन।
  • सुसज्जित – सजी हुई।
  • तत्कालीन – उस समय के।
  • पाखंड – बाहरी आडंबर।
  • अदम्य – जिसे दबाया न जा सके।
  • प्रतिमाएँ – मूर्तियाँ।
  • तमाम – सारा।
  • हिमशिखर – बर्फ़ की चोटी।
  • रूढ़ियाँ – प्रथाएँ।
  • रोमांचित – पुलकित।
  • नासमझ – जिसे कोई समझ न हो।
  • फर्स्ट – प्रथम।
  • द्वीप – वह भू-भाग जो चारों ओर से पानी से घिरा हो।
  • लाइब्रेरी – पुस्तकालय।
  • यूनिवर्सिटी – विश्वविद्यालय।
  • सनक – धुन।
  • प्रख्यात – प्रसिद्ध।
  • दिवंगत – स्वर्गीय।
  • अनूदित उपन्यास – जिस उपन्यास का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद किया गया हो।
  • आकर्षक – लुभावना।
  • अनिच्छा – बेमन, इच्छा न होते हुए भी।
  • कसक – पीड़ा।
  • देहावसान – मृत्यु।
  • विपन्न – गरीब।
  • सहसा – अचानक।
  • दाम – मूल्य, कीमत।
  • हज़ारहा – हज़ार से अधिक।
  • वरिष्ठ – बड़ा, पूजनीय।
  • पुनर्जीवन – दोबारा जीवन।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

JAC Class 9 Hindi कल्लू कुम्हार की उनाकोटी Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न –

प्रश्न 1.
उनाकोटी का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
उनाकोटी का अर्थ है-‘एक कोटि अर्थात एक करोड़ से एक कम’। उनाकोटी में भगवान शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं। इसी कारण इस स्थान को उनाकोटी नाम से बुलाया जाता है। यह स्थान काफ़ी पुराना है। पाल शासन के दौरान नवीं से बारहवीं शताब्दी तक के तीन सौ वर्षों में उनाकोटी में खूब चहल-पहल रहा करती थी। भगवान शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियों वाला यह स्थान तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है।

प्रश्न 2.
पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पाठ के अनुसार उनाकोटी में एक विशाल चट्टान है, जो ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर आने वाली गंगा के अवतरण को चित्रित करती है। जब ऋषि भगीरथ गंगा को लेकर पृथ्वी पर आ रहे थे, तो गंगा के वेग से पृथ्वी के पाताल लोक में धँसने का डर पैदा हो गया। तब भगवान शिव से प्रार्थना की गई कि वे गंगा को अपनी जटाओं में जगह दें और बाद में उसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें। भगवान शिव ने उनाकोटी में ही गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। वहाँ एक समूची चट्टान पर शिव का चेहरा बना हुआ है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। यहाँ पूरे साल बहने वाला एक जलप्रपात पहाड़ों से उतरता है जिसे गंगा के समान ही पवित्र माना जाता है। उनाकोटी में गंगावतरण की यही कथा प्रसिद्ध है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

प्रश्न 3.
कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया ?
उत्तर :
उनाकोटी में बनी सभी मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार माना जाता है। वह पार्वती का भक्त था। उसकी इच्छा शिव-पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर जाने की थी। भगवान शिव उसे लेकर नहीं जाना चाहते थे, किंतु पार्वती के जोर देने पर वे कल्लू कुम्हार को कैलाश ले चलने को तैयार हो गए। इसके लिए उन्होंने एक शर्त रखी कि कल्लू को एक रात में उनकी एक कोटि (करोड़) मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू सारी रात मूर्तियाँ बनाता रहा, लेकिन प्रातः काल होने पर उसकी मूर्तियाँ एक करोड़ से एक कम निकलीं। भगवान शिव शर्त पूरी न करने के कारण कल्लू को उनाकोटी में ही छोड़कर कैलाश पर्वत की ओर चले गए। तब से कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से जुड़ गया।

प्रश्न 4.
‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी – सी दौड़ गई’ – लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है ?
उत्तर :
लेखक और उसकी शूटिंग टीम के सदस्य सी०आर० पी०एफ० की निगरानी में शूटिंग कर रहे थे। उन्हें बताया गया था कि वहाँ जंगलों में विद्रोही भी छिपे हुए हो सकते हैं। लेखक अपनी शूटिंग के काम में इतना व्यस्त हो गया कि उसे कोई डर नहीं लगा। तभी सुरक्षा प्रदान कर रहे सी० आर० पी०एफ० के एक जवान ने लेखक का ध्यान निचली पहाड़ियों पर जानबूझकर रखे दो पत्थरों की ओर दिलाया। उसने लेखक को बताया कि दो दिन पहले उनका एक जवान यहीं विद्रोहियों द्वारा मार डाला गया था। यह सुनकर लेखक विद्रोहियों के इरादों की कल्पना करके बुरी तरह सहम गया। उस समय डर के मारे उसकी रीढ़ में एक झुरझुरी – सी दौड़ गई।

प्रश्न 5.
त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण कैसे बना?
उत्तर :
त्रिपुरा भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है। यहाँ के स्थानीय निवासियों की संख्या बहुत कम है, किंतु त्रिपुरा के आस-पास से बहुत लोग आकर यहाँ बस गए हैं। यह तीन तरफ से बाँग्लादेश से घिरा हुआ है। इसके सोनामुरा, बेलोनिया, सवरूप और कैलाशनगर शहर बाँग्लादेश की सीमा से बिल्कुल जुड़े हुए हैं। अतः बाँग्लादेश से लोगों का गैर-कानूनी ढंग से त्रिपुरा में लगातार आना लगा रहता है। इन लोगों को त्रिपुरा में सामाजिक स्वीकृति भी मिली हुई है। असम और पश्चिम बंगाल से भी लोगों का त्रिपुरा में प्रवास होता. है। इस प्रकार त्रिपुरा में आस-पास के अनेक लोग आकर बस जाते हैं। ये लोग भिन्न-भिन्न धर्म में आस्था रखने वाले होते हैं। धीरे- धीरे त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जातियाँ और विश्व के चारों बड़े धर्मों के लोग आकर बस गए हैं। इस प्रकार त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बन गया।

प्रश्न 6.
टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ ? समाज कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था ?
उत्तर :
टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया तथा मंजु ऋषिदास से हुआ। हेमंत कुमार जमातिया को सन् 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है। वे पहले पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे, अब वे त्रिपुरा के जिला परिषद् के सदस्य थे। वे अपने गीतों के माध्यम से अपने क्षेत्र की खुशहाली और शांति को व्यक्त करते थे। मंजु ऋषिदास टीलियामुरा शहर के वार्ड नं० 3 का प्रतिनिधित्व करने वाली आकर्षक महिला थीं। वे रेडियो कलाकार होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि लेती थीं। वे अपने वार्ड के लिए स्वच्छ पेयजल जुटाने के लिए प्रयासरत थीं। उन्होंने अपने वार्ड में नल का पानी पहुँचाने और मुख्य गलियों में ईंटें बिछवाने का काम करवाने के लिए नगर पंचायत को तैयार कर लिया था। निरक्षर होने पर भी वे अपने वार्ड की उन्नति और खुशहाली के लिए लगातार प्रयास करती थीं।

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प्रश्न 7.
कैलासशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी ?
उत्तर :
कैलासशहर के जिलाधिकारी केरल से आए तेजतर्रार, मिलनसार और उत्साही व्यक्ति थे। उन्होंने त्रिपुरा में आलू की खेती के विषय में लेखक को बताया कि वहाँ अब टी०पी०एस० (टरू पोटैटो सीड्स) से आलू की खेती होती है। सामान्य तौर पर एक हेक्टेयर भूमि में पारंपरिक आलू के दो मीट्रिक टन बीजों की जरूरत पड़ती है, लेकिन टी०पी०एस० की सिर्फ 100 ग्राम मात्रा ही एक हेक्टेयर भूमि की बुआई के लिए काफी होती है। इस प्रकार यह बीज सस्ता होने के कारण वहाँ के लोग टी०पी०एस० से आलू की खेती करने लगे है। हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि त्रिपुरा से टी०पी०एस० का निर्यात पूरे भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी होने लगा

प्रश्न 8.
त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय में बताइए।
उत्तर :
त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों में सबसे प्रमुख उद्योग अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करना है। यह कार्य त्रिपुरा में बहुतायत में किया जाता है। इन सींकों को फिर अगरबत्तियाँ बनाने के लिए कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त त्रिपुरा में ऋषिदास नामक समुदाय जूते बनाने के अलावा थाप वाले वाद्यों जैसे तबला व ढोल के निर्माण तथा उनकी मरम्मत का काम भी करता है। वे इस कार्य में निपुण हैं। कुछ अन्य घरेलू उद्योगों में साबुन बनाना, मोमबत्ती बनाना, मिट्टी के बर्तन व मूर्तियाँ बनाना, चटाई व टोकरियाँ बनाना आदि को लिया जा सकता है।

JAC Class 9 Hindi कल्लू कुम्हार की उनाकोटी Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
किस घटना के कारण लेखक त्रिपुरा के उनाकोटी क्षेत्र की यादों में खो गया ?
उत्तर :
एक दिन प्रातःकाल आकाश काले बादलों से भर गया। चारों ओर अँधेरा छा गया था। उस दिन सुबह – सुबह आकाश बिल्कुल ठंडा और भूरा दिखाई दे रहा था। बादलों की तेज़ गर्जना और बीच-बीच में बिजली का कड़क कर चमकना प्रकृति के तांडव के समान दिखाई दे रहा था। तीन साल पहले ठीक ऐसा ही लेखक के साथ त्रिपुरा के उनाकोटी क्षेत्र में हुआ था। वहाँ भी अचानक घनघोर बादल घिर आए थे और गर्जन – तर्जन के साथ प्रकृति का तांडव शुरू हो गया था। तीन साल पहले और उस दिन के वातावरण में पूर्ण समानता होने के कारण ही लेखक त्रिपुरा के उनाकोटी क्षेत्र की यादों में खो गया।

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प्रश्न 2.
प्रस्तुत पाठ में त्रिपुरा के विषय में दी गई जानकारी को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि दिसंबर 1999 में ‘ ऑन द रोड’ शीर्षक से तीन खंडों वाली एक टी०वी० श्रृंखला बनाने के सिलसिले में वह त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गया था। उसने बताया कि त्रिपुरा भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है। इसकी जनसंख्या वृद्धि की दर चौंतीस प्रतिशत से भी अधिक है। यह तीन ओर से बाँग्लादेश और एक ओर से भारत के मिज़ोरम व असम राज्य से जुड़ा हुआ है। यहाँ बाँग्लादेश के लोगों का गैर-कानूनी ढंग से आना-जाना लगा रहता है। असम और पश्चिम बंगाल के लोग भी यहाँ खूब रहते हैं।

यहाँ बाहरी लोगों के लगातार आने से जनसंख्या का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ा हुआ है। यह त्रिपुरा में आदिवासी असंतोष का भी मुख्य कारण है। इसके साथ-साथ त्रिपुरा अनेक धर्मों के लोगों के यहाँ बस जाने के कारण बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बना हुआ है। त्रिपुरा में महात्मा बुद्ध और भगवान शिव की अनेक मूर्तियाँ हैं। यहाँ के उनाकोटी क्षेत्र को तो शैव तीर्थ के रूप में जाना जाता है। यहाँ का पूरा इलाका देवी – देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। उनाकोटी में भगवान शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं।

प्रश्न 3.
लेखक के त्रिपुरा जाने का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
लेखक दिसंबर 1999 में ‘ऑन द रोड’ शीर्षक से तीन खंडों वाली एक टी०वी० श्रृंखला बनाने के सिलसिले में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गया था। इसके पीछे उसका उद्देश्य त्रिपुरा की समूची लंबाई में आर-पार जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग – 44 से यात्रा करने और त्रिपुरा की विकास संबंधी गतिविधियों के बारे में जानकारी ग्रहण करके उसे अपनी टी०वी० श्रृंखला में प्रस्तुत करना था।

प्रश्न 4.
उनाकोटी में शूटिंग करते समय शाम का मौसम अचानक कैसा हो गया ?
उत्तर :
लेखक और उसके साथियों को उनाकोटी में शूटिंग करते-करते शाम के चार बज गए। शाम होते ही सूर्य उनाकोटी के ऊँचे पहाड़ों के पीछे छिप गया और चारों ओर भयानक अंधकार छा गया। अचानक मौसम में भी बदलाव आ गया। तभी कुछ ही मिनटों में वहाँ चारों ओर बादल घिर आए। बादलों ने गर्जन – तर्जन के साथ कहर बरपाना आरंभ कर दिया। उस समय लेखक को ऐसा लगा, मानो शिव का तांडव शुरू हो गया हो।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

प्रश्न 5.
त्रिपुरा के आदिवासियों के असंतोष का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर :
त्रिपुरा भारत का एक छोटा राज्य है। यहाँ जनसंख्या वृद्धि दर चौंतीस प्रतिशत से भी अधिक है। इसका कारण पड़ोसी देश बाँग्लादेश से लोगों का अवैध ढंग से यहाँ आना है। असम और पश्चिम बंगाल से भी लोग यहाँ आकर बस गए हैं। बाहरी लोगों के यहाँ आकर रहने के कारण यहाँ के स्थानीय आदिवासियों में असंतोष फैल गया है; वे विद्रोही हो गए हैं।

प्रश्न 6.
लेखक ने अगरतला के विषय में क्या कहा है ?
उत्तर :
अगरतला त्रिपुरा की राजधानी है। पहले अगरतला मंदिरों और महलों के शहर के रूप में जाना जाता था। उज्जयंत महल अगरतला का मुख्य महल है। इस महल में अब त्रिपुरा की विधानसभा बैठती है। यह महल राजाओं से आम जनता को हुए सत्ता हस्तांतरण को अभिव्यक्त करता है।

प्रश्न 7.
डूबते सूरज में मनु नदी का दृश्य कैसा लग रहा था ?
उत्तर :
मनु नदी त्रिपुरा की प्रमुख नदियों में से एक है। जब लेखक मनु नदी के पुल पर पहुँचा, तो उस समय ऐसा लग रहा था कि सूर्य मनु के जल में अपनी सुनहरी किरणों से सोना उड़ेल रहा हो। यह दृश्य देखकर लेखक सम्मोहित – सा हो गया।

प्रश्न 8.
उज्जयंत महल के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
उज्जयंत महल अगरतला का मुख्य महल है। इसकी शोभा अद्वितीय है। पूरे अगरतला में इस तरह का सुंदर एवं भव्य महल अन्य दूसरा कोई नहीं है। वर्तमान समय में अगरतला की विधानसभा इस महल में बैठती है। राजाओं से आम जनता को हुए सत्ता हस्तांतरण को यह महल एक प्रतीक रूप हैं चित्रित करता है। यह भारत के सबसे सफल शासक वंशों में से एक माणिक्य वंश के दुखद अंत का साक्षी है।

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प्रश्न 9.
ज़िला परिषद ने लेखक और उसकी शूटिंग यूनिट के लिए किस प्रकार का आयोजन किया था ?
उत्तर :
ज़िला परिषद ने लेखक और उसकी शूटिंग यूनिट के लिए एक भोज का आयोजन किया था। यह एक सीधा-सादा खाना था, जिसे सम्मान और लगाव के साथ परोसा गया था। यह ज़िला परिषद का प्यार था, जो भोज के रूप में लेखक और उसकी यूनिट के सामने आया था।

प्रश्न 10.
त्रिपुरा में संगीत की जड़ें काफ़ी गहरी हैं। कैसे ?
उत्तर :
त्रिपुरा को यदि सुरों का घर कहा जाए, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। त्रिपुरा में संगीत की जड़ें काफी गहरी हैं। बॉलीवुड के सबसे मौलिक संगीतकारों में से एक एस०डी० बर्मन त्रिपुरा से ही आए थे। वे त्रिपुरा के राजपरिवार के उत्तराधिकारियों में से एक थे। यहीं लोकगायक हेमंत कुमार जमातियाँ हुए, जिन्होंने अपने गीतों से जनमानस को आनंदित किया।

प्रश्न 11.
उत्तरी त्रिपुरा किस कार्य के लिए लोकप्रिय है ?
उत्तर :
उत्तरी त्रिपुरा घरेलू उद्योगों और विकास का जीता-जागता नमूना है। यहाँ की घरेलू गतिविधियों में अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सीकें तैयार करना सम्मिलित है। इन सीकों को अगरबत्तियाँ बनाने के लिए गुजरात तथा कर्नाटक भेजा जाता है। उत्तरी त्रिपुरा का मुख्यालय कैलाश शहर है। यह बाँग्लादेश की सीमा के बहुत नज़दीक है।

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी Summary in Hindi

पाठ का सार :

एक दिन प्रातः काल जब लेखक ने खिड़की से झाँककर बाहर देखा, तो आकाश में चारों ओर बादल छाए हुए थे। ऐसा लगता था, जैसे प्रलय आने वाली हो। मौसम के इस बदलाव ने लेखक को तीन साल पहले त्रिपुरा में उनाकोटी की एक शाम की याद दिलवा दी। लेखक दिसंबर 1999 में ‘ऑन द रोड’ शीर्षक से तीन खंडों वाली एक टी०वी० श्रृंखला बनाने के सिलसिले में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गया था। वह त्रिपुरा के राजमार्ग – 44 से यात्रा करना और त्रिपुरा की विकास संबंधी गतिविधियाँ जानना चाहता था।

लेखक त्रिपुरा के विषय में बताता है कि वह भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है। इसकी जनसंख्या वृद्धि दर काफ़ी ऊँची है। त्रिपुरा तीन ओर से बाँग्लादेश से घिरा है। आस-पास के अनेक लोगों के यहाँ आकर बस जाने से त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का अच्छा उदाहरण बन गया है। पहले तीन दिन लेखक ने अगरतला में शूटिंग की। उसके बाद वह राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से होता हुआ टीलियामुरा कस्बे में पहुँचा। वहाँ उसकी मुलाकात प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया से हुई। उन्हें वर्ष 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था। वे वहाँ की ज़िला परिषद् के सदस्य थे। वहीं लेखक का परिचय मंजु ऋषिदास नामक एक आकर्षक महिला से हुआ। वह एक अच्छी गायिका होने के साथ-साथ टीलियामुरा शहर के वार्ड नं० 3 का प्रतिनिधित्व भी कर रही थी। मंजु ऋषिदास बिलकुल अनपढ़ होने के बावजूद समाज कल्याण के कार्यों में सक्रिय योगदान दे रही थी।

लेखक अपनी शूटिंग टीम के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से 83 किलोमीटर आगे के हिंसाग्रस्त भाग में सी०आर० पी०एफ० के जवानों की घेराबंदी में चला। उनका काफिला दिन में 11 बजे के आसपास चलना शुरू हुआ। लेखक को अपने काम में व्यस्त होने के कारण कोई डर नहीं लगा। बाद में एक जवान ने लेखक का ध्यान निचली पहाड़ियों पर इरादतन रखे दो पत्थरों की ओर आकृष्ट किया और बताया कि दो दिन पहले उनका एक साथी वहाँ विरोधियों द्वारा मार डाला गया था। लेखक यह सुनकर बुरी तरह सहम गया। लेखक त्रिपुरा के विषय में बताता है कि वहाँ का लोकप्रिय घरेलू उद्योग अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करना है।

लेखक की मुलाकात त्रिपुरा जिले के मुख्यालय कैलाश शहर के जिलाधिकारी से भी हुई। वे एक तेजतर्रार मिलनसार और उत्साही व्यक्ति थे। उन्होंने लेखक को बताया कि अब त्रिपुरा में टी०पी०एस० (टरू पोटैटो सीड्स) से आलू की खेती होती है। यह पारंपरिक आलू की खेती से काफी सस्ता पड़ता है। उन्होंने यह भी बताया कि त्रिपुरा से टी०पी०एस० का निर्यात केवल भारत के विभिन्न राज्यों में ही नहीं अपितु विदेशों में भी हो रहा है। जिलाधिकारी ने लेखक से उनाकोटी में शूटिंग करने के विषय में भी पूछा। लेखक ने उनाकोटी के विषय में जानने की इच्छा प्रकट की। जिलाधिकारी ने बताया कि उनाकोटी शैव तीर्थ के रूप में काफी प्रसिद्ध स्थान है। लेखक ने अगले दिन उनाकोटी जाकर शूटिंग करने का निश्चय किया।

उनाकोटी का मतलब है- ‘एक करोड़ से एक कम’। ऐसा कहा जाता है कि उनाकोटी में भगवान शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं। उनाकोटी में एक विशाल चट्टान पर भगवान शिव की मूर्ति बनी हुई है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि भगीरथ ने जब स्वर्गलोक से गंगा को अवतरित किया, तो भगवान शिव ने इसी स्थान पर गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था। उनाकोटी में भगवान शिव की एक करोड़ से एक कम बनी मूर्तियों के बारे में वहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मूर्तियाँ कल्लू नामक कुम्हार ने बनाई हैं। कल्लू कुम्हार पार्वती का भक्त था और शिव-पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था।

पार्वती द्वारा ज़ोर दिए जाने पर शिव ने कल्लू कुम्हार के आगे शर्त रखी कि यदि वह एक रात में उनकी एक कोटि (करोड़) मूर्तियाँ बना लेगा, तो वे उसे कैलाश पर्वत पर ले जाएँगे। कल्लू कुम्हार सारी रात मूर्तियाँ बनाता रहा। प्रातःकाल होने पर उन मूर्तियों की संख्या एक करोड़ से एक कम थी। भगवान शिव कल्लू कुम्हार को वहीं छोड़कर कैलाश पर्वत चले गए। तब से उनाकोटी के साथ कल्लू कुम्हार का नाम जुड़ गया। लेखक और उसके साथी उनाकोटी में शाम चार बजे तक शूटिंग करते रहे। शाम होते ही अचानक चारों ओर भयानक अंधकार छा गया। कुछ ही मिनटों में बादलों ने गर्जन-तर्जन के साथ कहर बरपाना शुरू कर दिया। अब तीन साल बाद जब दिल्ली में लेखक ने वैसा ही वातावरण देखा, तो उसे उनाकोटी की वह शाम याद आ गई और वह उसकी यादों में खो गया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • अद्भुत – विचित्र।
  • सोहबत – संगति, साथ।
  • आमतौर पर – सामान्य रूप से।
  • दरअसल – वास्तव में।
  • ऊर्जादायी – ऊर्जा (शक्ति) देने वाली।
  • खलल – बाधा, रूकावट।
  • कानफाड़ू – बहुत तेज़ आवाज़।
  • खुदा – ईश्वर।
  • विक्षिप्त – पागल।
  • तड़ित – बिजली।
  • अलस्सुबह – प्रात:काल, बिल्कुल सुबह।
  • दुर्गम – जहाँ जाया न जा सके।
  • अवैध – गैर-कानूनी।
  • सत्ता हस्तांतरण – एक व्यक्ति के हाथ से दूसरे व्यक्ति के हाथ में सत्ता का आना।
  • प्रतीकित – अभिव्यक्त।
  • लोकगायक – लोकगीत गाने वाला।
  • कबीलाई – कबीले से संबंधित।
  • निरक्षर – अनपढ़।
  • पेयजल – पीने का पानी।
  • गृहिणी – घरेलू स्त्री।
  • स्वच्छता – साफ़-सफ़ाई।
  • इरादतन – जान-बूझकर।
  • आकृष्ट – खींचा हुआ, आकर्षित।
  • तेज़तर्रार – बहुत तेज़।
  • पारंपरिक – परंपरा से चले आ रहे।
  • शैव – भगवान् शिव से संबंधित।
  • दंतकथा – कल्पित कथा, लोगों में प्रचलित कथा।
  • अवतरण – आना।
  • मिथक – पौराणिक कथा।
  • जल-प्रपात – झरना।
  • कोटि – एक करोड़।
  • भयावना – डरावना।
  • जाड़ा – सर्दी।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

परिभाषा – एक विचार पूर्णता से प्रकट करने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं। वाक्य शब्दों का व्यवस्थित एवं सार्थक समूह होता है। जैंसे – (i) अशोक पुस्तक पढ़ता है। (ii) राम दिल्ली गया है।
एक वाक्य में कम-से-कम दो शब्द – कर्ता और क्रिया अवश्य होने चाहिए। लेकिन वार्तालाप की स्थिति में कभी-एक शब्द भी पूरे वाक्य का काम कर जाता है।
जैसे – आप कहाँ गए थे?
दिल्ली।
कौन बीमार है ?
माता जी।
वाक्य के दो अंग होते हैं – 1. उद्देश्य 2. विधेय।
1. उद्देश्य – वाक्य में जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं।
2. विधेय – वाक्य में उद्देश्य अर्थात् करता के विषय में जो कुछ बताया जाता है, उसे विधेय कहते हैं। वाक्य के दो भेद होते हैं – 1. अर्थ के आधार पर, 2. रचना के आधार पर।

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
सार्थक शब्दों का वह व्यवस्थित समूह जिसके माध्यम से मनोभाव प्रकट किए जाते हैं, उन्हें वाक्य कहते हैं।

प्रश्न 2.
अर्थ की दृष्टि से वाक्य के कितने भेद होते हैं?
उत्तर :
आठ।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

प्रश्न 3.
आज्ञा या अनुमति का बोध किस वाक्य से होता है?
उत्तर :
आज्ञार्थक वाक्य से।

प्रश्न 4.
किन वाक्यों में क्या, कौन, कहाँ लगते हैं?
उत्तर :
प्रश्नवाचक वाक्यों में।

प्रश्न 5.
वाक्य के कौन-से दो अंग होते हैं?
उत्तर- 1. उद्देश्य
2. विधेयक

अर्थ की दुष्टि से वाक्य-भेद – 

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं :
1. विधानवाचक वाक्य – जिस वाक्य से कार्य के होने की निश्चित सूचना मिलती है, उसे विधानवाचक वाक्य कहते हैं। सूचना असत्य भी हो सकती है और सत्य भी। ऐसा वाक्य किसी बात अथवा कार्य के करने या होने का सामान्य कथन मात्र होता है। जैसे –

  1. वह विद्यालय गया है।
  2. मैं पढ़ रहा हूँ।
  3. वह कल लौट आया था।
  4. गंगा हिमालय से निकलती है।

2. निषेधात्मक (नकारात्मक) वाक्य – जिस वाक्य से कार्य के न होने का बोध होता है, उसे निषेधात्मक अथवा नकारात्मक वाक्य कहते हैं। जैसे –

  1. मैं पढ़ नहीं रहा हूँ।
  2. मैं कल लखनऊ नहीं जाऊँगा।
  3. वह कल नहीं लौटा।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

3. आज्ञावाचक वाक्य – जिस वाक्य से आज्ञा या अनुमति का बोध होता है, उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-

  1. अपना काम देखो।
  2. अब बैठकर पाठ याद करो।
  3. अब कढ़ाई में मसाला भूनिए।
  4. मुझे यह पुस्तक दीजिए।
  5. आप जा सकते हैं।

4. प्रश्नवाचक वाक्य – जिस वाक्य के मूल में जिज्ञासा होती है, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। इन वाक्यों में क्या, कौन, कब, कहाँ आदि शब्द लगते हैं। जैसे-

  1. आप कल कहाँ गए थे ?
  2. कल कौन आया था ?
  3. क्या सूर्य एक ग्रह है ?

5. इच्छवाचक वाक्य – जिस वाक्य द्वारा इच्छा, आशीष या स्तुति प्रकट हो, उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं। सुझाव भी इसी कोटि में आता है। जैसे-

  1. तुम जल्दी स्वस्थ हो जाओ।
  2. आपकी यात्रा मंगलमय हो।
  3. ईश्वर तुम्हारा भला करे।
  4. काश, आज कहीं से मिठाई मिल जाए।

6. संदेहवाचक वाक्य-जिस वाक्य से संदेह अथवा संभावना का बोध होता है, उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं। इसमें संदेहार्थी वृत्ति का प्रयोग होता है। जैसे –

  1. शायद वह कल यहाँ आए।
  2. यह पत्र उनके बड़े पुत्र ने लिखा होगा।
  3. अब वह घर पहुँच चुका होगा।
  4. शायद आज बारिश होगी।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

7. संकेतवाचक वाक्य-जिस वाक्य में विधान किसी शर्त की पूर्ति के बाद हो अथवा जिस वाक्य में एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर करे, उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। इसमें संकेतार्थी वृत्ति का प्रयोग होता है। जैसे –

  1. अगर वह आएगा तो मैं जाऊँगा।
  2. अगर तुमने परिश्रम किया होता तो सफल हो जाते।
  3. अगर वह आ जाता तो मैं उससे मिल लेता।
  4. यदि बस आई तो मैं स्कूल जाऊँगा।

8. विस्मयवाचक वाक्य-जिस वाक्य में हर्ष, शोक, घृणा, विस्मय आदि भाव प्रकट होते हैं, उन्हें विस्मयवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे –

  1. वाह ! बहुत सुंदर फूल है।
  2. शाबाश ! क्या चौका मारा है।
  3. छि ! वहाँ बहुत गंदगी है।
  4. उफ़ ! कितनी गरमी है।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

अभ्यास के लिख प्रश्नातर –

निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार बदलिए –

  1. इस बार हमारे विद्यालय में बहुत बड़े-बड़े आदमी आ रहे हैं। (निषेधार्थक रूप में)
  2. वह सामान खरीदने के लिए बाज़ार में गया है। (निषेधार्थक रूप में)
  3. राम और श्याम अब साथ-साथ रहते हैं। (निषेधार्थक रूप में)
  4. श्याम पढ़ता है। (प्रश्नवाचक में)
  5. सूर्य भ्रमणशील है। (निषेधार्थक रूप में)
  6. आप अपना पाठ याद करेंगे। (प्रश्नवाचक में)
  7. मैं अपनी बात कह चुका हूँ। (प्रश्नवाचक में)
  8. वे कल बाहर जाएँगे। (संदेहवाचक वाक्य में)
  9. धर्म समाज से चला गया है। (निषेधार्थक वाक्य में)
  10. कपिलवस्तु जाना अब संभव है। (प्रश्नवाचक में)
  11. भूख हमारा कुछ बिगाड़ सकती है ? (निषेधार्थक में)
  12. युद्ध में जय बोलने वालों का भी महत्त्व है। (प्रश्नवाचक में)
  13. विवेकानंद अपने समय के श्रेष्ठ वक्ता थे। (प्रश्नवाचक में)
  14. शीला रोज़ पढ़ने जाती है। (आज्ञार्थक में)
  15. तुम आ गए। (विस्मयादिबोधक में)

उत्तर :

  1. इस बार हमारे विद्यालय में बहुत बड़े-बड़े आदमी नहीं आ रहे हैं।
  2. वह सामान खरीदने के लिए बाज़ार में नहीं गया है।
  3. राम और श्याम अब साथ-साथ नहीं रहते हैं।
  4. क्या श्याम पढ़ता है ?
  5. सूर्य भ्रमणशील नहीं है।
  6. क्या आप अपना पाठ याद करेंगे ?
  7. क्या मैं अपनी बात कह चुका हूँ ?
  8. शायद वे कल बाहर जाएँगे।
  9. धर्म समाज से चला नहीं गया है।
  10. क्या कपिलवस्तु जाना अब संभव है ?
  11. भूख हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है।
  12. क्या युद्ध में जय बोलने वालों का महत्त्व है ?
  13. क्या विवेकानंद अपने समय के श्रेष्ठ वक्ता थे ?
  14. शीला रोज़ पढ़ने जाए।
  15. अरे ! तुम आ गए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

JAC Class 9 Hindi स्मृति Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न :

प्रश्न 1.
भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था ?
उत्तर :
लेखक अपने साथियों के साथ सर्दी के दिनों में बेर खाने गया हुआ था। जब गाँव के एक आदमी ने उसे बताया कि उसका बड़ा भाई उसे बुला रहा है, तो वह डर गया। उसके मन में तरह-तरह के विचार उठने लगे। उसे अपने भाई से पिटने का डर सताने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके किस अपराध का दंड उसे दिया जाएगा। लेखक को इस बात की आशंका थी कि शायद बेर तोड़कर खाने के अपराध के कारण उसकी पिटाई हो। बड़े भाई के हाथों मार पड़ने के डर से ही वह घर में डरते-डरते घुसा था।

प्रश्न 2.
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी ?
उत्तर :
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली के सभी बच्चे शरारती थे। लेखक भी उनमें से एक था। एक दिन जब वे सभी स्कूल से लौट रहे थे, तो उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में झाँका। लेखक ने कुएँ में एक ढेला भी फेंका। उसका उद्देश्य उससे निकलने वाली आवाज़ को सुनना था। जैसे ही लेखक ने कुएँ में ढेला फेंका, तो साँप के फुंफकारने की आवाज सुनाई दी। सभी बच्चे उसको सुनकर हैरान रह गए। उसके बाद तो सभी ने उछल-उछलकर एक-एक ढेला फेंका। जब कुएँ से साँप के फुंफकारने की आवाज़ आती थी, तो वे जोर-जोर से हँसते थे। तब से वे प्रतिदिन आते-जाते उस कुएँ में ढेला फेंकते थे। ऐसा करने में उन्हें बड़ा मजा आता था।

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प्रश्न 3.
‘साँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’ – यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
उत्तर :
इस कथन से स्पष्ट होता है कि घटना के समय लेखक पूरी तरह से बदहवास था। चिट्ठियों के कुएँ में गिरते ही लेखक का ध्यान ढेले की आरे से हट गया था। उसे सिर्फ कुएँ में गिरती चिट्ठियाँ ही दिखाई दे रही थी। ढेले का कुएँ में गिरना, साँप को लगना या न लगना, साँप का फुंफकारना या न फुंफकारना- इन सबका उसे ध्यान न रहा।

प्रश्न 4.
किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?
उत्तर :
लेखक को डर था कि चिट्ठियों खोने की बात सुनकर उसे बड़े भाई से अवश्य मार पड़ेगी। भाई से झूठ बोलने का साहस भी उसमें नहीं था। इसके अतिरिक्त उसे विश्वास था कि वह साँप को मारकर चिट्ठियाँ पुनः प्राप्त कर लगा, क्योंकि इसमें पहले भी वह कई साँप मार चुका था। इन्हीं सब कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया।

प्रश्न 5.
साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाईं ?
उत्तर :
लेखक को अपने भाई की चिट्ठियाँ उठाने के लिए साँप वाले कुएँ में उतरना है पड़ा। साँप साक्षात् मौत के समान उसके सामने था। उसने देखा कि कुएँ का व्यास कम होने के कारण वहाँ डंडा चलाना संभव नहीं है। अब किसी प्रकार साँप को धोखा देकर उसके पास पड़ी चिट्ठियाँ उठाने में ही भलाई थी। लेखक ने साँप का ध्यान बँटाने के लिए डंडे को साँप की विपरीत दिशा में पटका। साँप उस ओर झपटा, तो उसका स्थान बदल गया और लेखक ने तुरंत चिट्ठियाँ उठा लीं। अब लेखक ने देखा कि उसका डंडा साँप के नीचे है। उसने कुएँ की बगल से एक मुट्ठी मिट्टी लेकर साँप के दाईं ओर फेंकी। साँप उस पर झपटा और लेखक ने दूसरे हाथ से डंडा खींच लिया। साँप ने तभी दूसरा वार भी किया, किंतु डंडा बीच में होने के कारण लेखक को काट न सका। इस प्रकार लेखक चिट्ठियाँ और डंडा लेकर सकुशल कुएँ से बाहर आ गया।

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प्रश्न 6.
कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखक अपने छोटे भाई को कुएँ के बाहर छोड़कर चिट्ठियाँ निकालने के लिए साँप वाले कुएँ में दाखिल हुआ है। उसने सोचा था कि वह डंडे से साँप को मारकर चिट्ठियाँ लेकर बाहर आ जाएगा। किंतु कुएँ का व्यास बहुत कम था; वहाँ डंडा चलाना संभव ही नहीं था। चिट्ठियाँ साँप के आस-पास ही गिरी हुई थीं। लेखक के सामने दो मार्ग थे। एक तो यह कि वह साँप को मार दे और दूसरा यह कि साँप से बिल्कुल छेड़खानी किए बगैर चिट्ठियाँ उठा ले। उसने दूसरे मार्ग को चुनने का निर्णय लिया। जैसे ही लेखक ने धीरे-धीरे साँप के पास पड़ी चिट्ठी की ओर डंडा बढ़ाया, तो साँप ने डंडे पर आक्रमण कर दिया।

लेखक के हाथ से डंडा छूट गया। उसने डंडा उठाकर फिर चिट्ठी उठाने का प्रयास किया, तो साँप ने डंडे पर पुनः वार किया और डंडे पर चिपट गया। झिझक, सहम और आतंक से लेखक की ओर डंडा खिंच गया और उसके व साँप के स्थान बदल गए। लेखक ने तुरंत चिट्ठियाँ उठाकर धोती के छोर में बाँध ली। इस तेजी में डंडा साँप के पास गिर गया था। लेखक ने कुएँ के बगल से थोड़ी-सी मिट्टी मुट्ठी में लेकर साँप के दाईं ओर फेंकी। साँप तुरंत उस मिट्टी पर झपटा और लेखक ने तेज़ी से डंडा उठा लिया। इसके बाद वह डंडा लेकर 36 फुट ऊपर चढ़कर कुएँ के बाहर सकुशल पहुँचा। उसकी बाँहें पूरी तरह थक गई थीं और छाती फूल कर धौंकनी के समान चल रही थी; किंतु चिट्ठियाँ लेकर कुएँ के बाहर पहुँच जाने की उसे बहुत प्रसन्नता हो रही थी।

प्रश्न 7.
इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है ?
उत्तर :
बचपन सदा ही अनेक खट्टी-मीठी यादों से भरा होता है। हमारे बचपन में अनेक ऐसी घटनाएँ घटती हैं, जो हमें आजीवन याद रहती हैं। व्यक्ति बचपन की शरारतों को याद करके बाद में कई बार रोमांचित होता है। बचपन में व्यक्ति सब प्रकार की चिंताओं से बेपरवाह होता है। इस पाठ के आरंभ में ही लेखक का अपने बचपन में साथियों के साथ झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खाना और इधर-उधर घूमने का वर्णन है। लेखक और उसके साथी रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में झाँककर और ढेला फेंककर शरारत करते हैं। जब कुएँ का सांप उनके ढेले पर फुंफकारता है, तो उन्हें बड़ा मज़ा आता है। बचपन में हम असंभव से असंभव काम को करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। लेखक का साँप वाले कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय लेना भी ऐसा ही असंभव कार्य था।

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प्रश्न 8.
‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि कई बार मनुष्य सोचता कुछ है, किंतु होता कुछ और है। मनुष्य अपनी बुद्धि से सोच-समझकर अनुमान लगाता है और भावी योजनाएँ बनाता है, लेकिन समय आने पर वे सभी अनुमान और योजनाएँ निरर्थक सिद्ध होती हैं। उसकी सारी बातें धरी की धरी रह जाती हैं। इस पाठ में भी लेखक साँप को डंडे से मारने की योजना बनाकर कुएँ में उतरता है, परंतु कुएँ के धरातल पर पहुँचकर वह देखता है कि उसका अनुमान और योजना बिल्कुल गलत थी। कुएँ का व्यास कम होने के कारण वहाँ डंडा चलाने का स्थान ही नहीं था। लेखक द्वारा लगाया गया अनुमान और उसकी योजना व्यर्थ सिद्ध होती है।

प्रश्न 9.
‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’ – पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि जब कोई व्यक्ति दृढ़ संकल्प कर लेता है, तो फिर वह फल की चिंता नहीं करता। किसी भी कार्य की सुखद या दुखद समाप्ति ईश्वर की इच्छा पर निर्भर करती है। लेखक ने कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ निकालने का साहसिक निर्णय लिया। वह चिट्ठियों के लिए साँप से टकराने को तैयार था। उसने तो दृढ़ संकल्प कर लिया था और अब उसे फल की कोई चिंता नहीं थी। अब चाहे मौत का आलिंगन होता अथवा साँप से बचकर उसे दूसरा जन्म मिलता, उसने पीछे न हटने का निर्णय लिया था। उसने सबकुछ ईश्वर के ऊपर छोड़ दिया था।

JAC Class 9 Hindi स्मृति Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक और उसका भाई कुएँ के बाहर बैठे क्यों रो रहे थे ?
उत्तर :
लेखक और उसके भाई के रोने का कारण यह था कि वे अपने बड़े भाई द्वारा डाक में डालने वाली चिट्ठियाँ साँप को ढेला मारने के चक्कर में कुएँ में गिरा बैठे थे। लेखक ने चिट्ठियाँ टोपी के नीचे रखी हुई थीं। अपनी प्रतिदिन की आदत के अनुसार जैसे ही उसने टोपी उतारकर कुएँ में ढेला फेंका, तो चिट्ठियाँ उड़कर कुएँ में जा गिरीं। कुएँ में साँप होने के कारण उसमें से चिट्ठियाँ निकालना आसान नहीं था। यदि वे घर जाकर यह बात बताते, तो पिटने का डर था। अतः पिटने के डर के कारण लेखक और उसका छोटा भाई कुएँ के बाहर बैठकर रोने लगे थे।

प्रश्न 2.
लेखक अपने बचपन में किस वस्तु से अधिक मोह रखता था और क्यों ?
उत्तर :
लेखक अपने बचपन में बबूल के डंडे से बहुत अधिक मोह रखता था। वह डंडा उसे रायफल से भी अधिक प्रिय था। उस डंडे से अधिक मोह होने का एक कारण यह भी था कि वह उसके द्वारा अनेक साँप मार चुका था। इसके अतिरिक्त इसी डंडे की सहायता से उसने अनेक बार आम तोड़े थे। लेखक अपने डंडे को गरुड़ की संज्ञा देता है। उसे अपना निर्जीव डंडा सजीव प्रतीत होता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

प्रश्न 3.
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की क्या आदत बन गई थी ?
उत्तर :
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की यह आदत बन गई थी कि जब भी वे गाँव से मक्खनपुर जाते, तो लौटते समय रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में पत्थर अवश्य फेंकते। उस कुएँ में एक साँप रहता था। जब वे कुएँ में पत्थर फेंकते, तो साँप की फुंफकारने की आवाज़ सुनाई देती। उस आवाज़ को सुनकर उन्हें मज़ा आता था। इसी आदत के कारण लेखक को एक बार भारी कठिनाई का भी सामना करना पड़ा। लेखक और उसका छोटा भाई मक्खनपुर डाकखाने में चिट्ठियाँ डालने जा रहे थे, तो अपनी पुरानी आदत के अनुसार लेखक ने ज्यों ही टोपी हाथ में लेकर कुएँ में मिट्टी का ढेला फेंका तो उसकी टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में जा गिरी थीं।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार दुविधा की बेड़ियाँ किस प्रकार कट जाती हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार दृढ़ संकल्प तथा स्थिति का सामना करने की इच्छा से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। दृढ़ संकल्प मनुष्य को किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार कर देता है।

प्रश्न 5.
इस संस्मरण में से तीन ऐसे वाक्य चुनकर लिखिए, जो आपको बहुत अच्छे लगे हों ?
उत्तर :

  1. दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं।
  2. मार के ख्याल से शरीर ही नहीं मन भी काँप जाता था।
  3. दिन का बुढ़ापा बढ़ता जाता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

प्रश्न 6.
लेखक किस समय की बात कर रहा था ? उस समय उसकी और उसके भाई की क्या आयु थी ?
उत्तर :
लेखक अपने बचपन की बात कर रहा था। सन् 1908 दिसंबर के अंत में यह घटना घटी थी। सर्दी का मौसम था। उस समय लेखक ग्यारह वर्ष का और उसका भाई आठ वर्ष का था। घटना उस समय की है, जब दोनों भाई बड़े भाई के कहने पर मक्खनपुर डाकखाने में चिट्ठियाँ डालने गए थे।

प्रश्न 7.
जिस कुएँ में साँप रहता था, वह कुआँ कैसा था ?
उत्तर :
जिस कुएँ में साँप रहता था, वह कुआँ गाँव से चार फर्लांग की दूरी पर था। कुआँ कच्चा था तथा चौबीस हाथ गहरा था। उस कच्चे कुएँ का व्यास ऊपर अधिक और नीचे बहुत कम था। नीचे का व्यास डेढ़ गज से अधिक नहीं था। कुएँ में पानी नहीं था।

प्रश्न 8.
लेखक ने अपनी आदत के अनुसार क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर :
लेखक स्कूल से आते-जाते समय कुएँ में रह रहे साँप को पत्थर मारता था। जब वह मक्खनपुर डाकखाने में चिट्ठियाँ डालने जा रहा था, उस समय आदत के अनुसार उसने हाथ में टोपी घुमाते हुए कुएँ में पत्थर फेंका। उस समय वह भूल गया था कि उसने टोपी में चिट्ठियाँ रखी हुई हैं। टोपी हाथ में लेते ही चिट्ठियाँ कुएँ में जा गिरीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

प्रश्न 9.
लेखक को माँ की गोद क्यों याद आ रही थी ?
उत्तर :
लेखक से चिट्ठियाँ उस कुएँ में गिर गई थीं, जिसमें साँप रहता था। वहाँ से चिट्ठियाँ निकालना कठिन था। दोनों भाई घबरा गए। छोटा भाई घबराकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। लेखक को भी रोना आ रहा था, पर वह खुलकर रो नहीं पा रहा था; उसे अपने बड़े भाई से पिटने का डर सता रहा था। उस समय उसे माँ की गोद याद आ रही थी। वह चाह रहा था कि माँ उसे छाती से लगा ले और कह दे कि चिट्ठियाँ ही थीं; वे फिर से लिखी जा सकती हैं। उस समय लेखक को माँ की गोद के अतिरिक्त कोई सहारा दिखाई नहीं दे रहा था।

प्रश्न 10.
‘पर उस नग्न मौत से मुठभेड़ के लिए मुझे भी नग्न होना पड़ा।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर :
‘पर उस नग्न मौत से मुठभेड़ के लिए मुझे भी नग्न होना पड़ा’ से लेखक का अभिप्राय यह था कि कुएँ में साक्षात मौत-रूपी साँप था, जो मुकाबला करने उसे डँसने का इंतजार कर रहा था। वास्तव में मौत सजीव और नग्न रूप में कुएँ में बैठी थी। उस मौत से के लिए लेखक ने अपनी और अपने भाई की पहनी हुई धोती उतार लीं। साथ में ठंड से बचने के लिए कानों पर लपेट रखी धोती भी उतार लीं। इस प्रकार धोतियों को गाँठ मारकर रस्सी बनाई। इसलिए लेखक ने कहा कि नग्न मौत से लड़ने के लिए उसे नंगा होना पड़ा।

प्रश्न 11.
लेखक को स्वयं पर विश्वास क्यों था ?
उत्तर :
लेखक को विश्वास था कि वह कुएँ में उतरकर व साँप को मारकर चिट्ठियाँ ले आएगा। इसका कारण यह था कि उसने अपने डंडे से पहले भी बहुत सारे साँप मारे थे। वह साँप को मारना बाएँ हाथ का खेल समझता था। इसलिए उसने अपने छोटे भाई को आश्वासन दिया कि वह कुएँ में उतरते ही साँप को मार देगा।

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प्रश्न 12.
पाठ के आधार पर लेखक की किन विशेषताओं का पता चलता है ?
उत्तर :
‘स्मृति’ पाठ के लेखक ‘ श्रीराम शर्मा’ हैं। लेखक ने इस पाठ में अपने बचपन की एक साहसिक घटना का वर्णन किया है। जिस समय लेखक के साथ यह घटना घटी, उस समय वह ग्यारह वर्ष का था। पाठ के आधार पर पता चलता है कि लेखक बहुत साहसी, निर्भीक, सूझ-बूझ वाला और फुर्तीला था। उसने अपनी सूझ-बूझ और साहस से कुएँ में रहने वाले विषधर का मुकाबला किया और चिट्ठियों को बड़ी फुर्ती से उठाकर सुरक्षित बाहर आ गया।

प्रश्न 13.
तीनों पत्र कुएँ में कैसे गिर गए ?
उत्तर :
लेखक अपने छोटे भाई के साथ तीनों पत्रों को डाकखाने में डालने के लिए जा रहा था। रास्ते में गाँव से चार फर्लांग की दूरी पर एक कुआँ था, जिसमें पानी नहीं था। वे दोनों रोज़ यहाँ आकर रुकते थे तथा कुएँ के अंदर बैठे साँप को पत्थर मारते थे। आज भी उन्होंने टोपी उतारते हुए नीचे कुएँ में जैसे ही एक ढेला उठाकर फेंका, तीनों पत्र सर- सराकर नीचे गिर पड़े, क्योंकि लेखक ने तीनों पत्र टोपी के नीचे रखे हुए थे।

प्रश्न 14.
छोटे भाई को कैसे लगा कि उसके भाई का काम तमाम होने वाला है ?
उत्तर :
कुएँ में से फूँ-फूँ और लेखक के उछलने की आवाजें सुनकर छोटे भाई को लगा कि उसके भाई का काम तमाम होने वाला है। अब वह नहीं बच सकता। साँप बार-बार डंक मार रहा था और लेखक अपने डंडे द्वारा बचने का प्रयास कर रहा था। यह दृश्य देखकर लेखक के छोटे भाई के मुख से चीख निकल गई और उसे विश्वास हो गया कि अब अवश्य साँप उसके भाई को डँस लेगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

प्रश्न 15.
कुएँ के बाहर आ जाने पर लेखक की बाँहें क्यों थक गई थीं ?
उत्तर :
लेखक साँप को चकमा देकर 36 फुट ऊपर हाथों के बल पर चढ़ गया। यह कार्य कोई आसान काम नहीं था। इस काम में उसकी जान का जोखिम था। उसकी छाती फूल कर धौंकनी के समान चल रही थी। बिना रुके 36 फुट हाथों के सहारे ऊपर चढ़ना अपने आप में एक कठिन कार्य था। इसलिए लेखक की बाँहें थक गई थीं।

स्मृति Summary in Hindi

पाठ का सार :

श्रीराम शर्मा द्वारा रचित ‘स्मृति’ संस्मरण उनके बचपन की एक साहसपूर्ण घटना का स्मरण करवाते हुए बच्चों को जीवन में साहस और विवेक से काम लेने की प्रेरणा देता है। यह घटना सन् 1908 ई० की भयंकर सर्दियों की एक शाम को साढ़े तीन-चार बजे की है, जब लेखक अपने साथियों के साथ झरबेरी के बेर खा रहा था। उस समय वह ग्यारह वर्ष का था। उसके साथ उसका आठ वर्षीय छोटा भाई भी था। तभी उसे घर से बड़े भाई का बुलावा आया। वे डरते-डरते घर गए कि कहीं चोरी से बेर तोड़कर खाने पर मार न पड़े।

परंतु भाई ने उन्हें मक्खनपुर डाकखाने में डालने के लिए पत्र दिए और जल्दी से जाकर डाल आने के लिए कहा, जिससे आज शाम की डाक से पत्र निकल जाएँ। पत्रों को अपनी टोपी में रखकर, कानों को ठंड से बचाने के लिए धोती से बाँध कर और अपना-अपना डंडा लेकर दोनों भाई प्रसन्नतापूर्वक मक्खनपुर चल दिए। दोनों भाई उछलते-कूदते गाँव से चार फर्लांग दूर उस कुएँ के पास पहुँच गए जिसमें पानी नहीं था, पर एक साँप रहता था। स्कूल जाते समय वे तथा अन्य बच्चे कुएँ में पत्थर फेंककर साँप की फुफकार सुनते थे।

आज भी उसने कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उछलकर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेला फेंक मारा। इस बीच तीनों पत्र भी चक्कर काटते हुए कुएँ में गिरने लगे, क्योंकि पत्र उसने टोपी में रखे हुए थे। इन पत्रों को पकड़ने के लिए उसने झपट्टा भी मारा, पर वे उसकी पहुँच से बाहर होने के कारण कुएँ में जा गिरे। कुएँ में भयंकर साँप था। वहाँ से पत्र निकालना संभव नहीं था।

इसलिए दोनों कुएँ के किनारे पर बैठकर रोने लगे। उसे माँ की याद आ रही थी और वह चाह रहा था कि माँ उसे छाती से लगा ले और प्यार से कह दे कि कोई बात नहीं, चिट्ठियाँ फिर लिख ली जाएँगी। उसका मन यह भी कह रहा था कि कुएँ में गिरी हुई चिट्ठियों पर मिट्टी डाल दी जाए और घर जाकर कह दिया जाए कि चिट्ठियाँ डाल आए हैं, पर वह झूठ नहीं बोलना चाहता था। घर जाकर सच बोलने पर उसे पिटने का भय था। इसी दुविधा में सोचते – विचारते और सिसकते हुए उसे पंद्रह मिनट हो गए।

अंत में उसने निश्चय किया कि वह कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ निकालेगा। पाँच धोतियाँ और कुछ रस्सी मिलाकर कुएँ की गहराई तक जाने का प्रबंध करने के बाद धोती के एक सिरे से डंडा बाँधकर कुएँ में डाल दिया तथा दूसरे सिरे को कुएँ की डेंग से बाँधकर छोटे भाई को दे दिया। इसके बाद वह धोती के सहारे कुएँ में घुसने लगा, तो उसका भाई रोने लगा। उसने यह कहकर उसे तसल्ली दी कि वह कुएँ में जाते ही साँप को मारकर चिट्ठियाँ ले आएगा, क्योंकि इससे पहले भी वह अनेक साँप मार चुका है।

जैसे ही वह कुएँ के धरातल से चार- पाँच गज़ ऊपर तक पहुँचा, तो यह देखकर भयभीत हो गया कि साँप फन फैलाए धरातल से एक हाथ ऊपर उठकर लहरा रहा है। रस्सी के नीचे बँधे हुए डंडे के हिलने से साँप क्रोधित होकर फन फैलाए खड़ा था। दोनों हाथों से धोती पकड़कर उसने अपने पाँव कुएँ की बगल में लगाए जिससे दीवार से कुछ मिट्टी नीचे गिर गई और उस जिस पर साँप ने फुंफकार कर मुँह मारा। वह किसी तरह अपने पैर कुएँ की बगल में सटाकर कुएँ के दूसरी ओर साँप से डेढ़ गज की दूरी पर धरातल पर खड़ा हो गया।

डंडे से साँप को मारने की संभावना पर विचार करने पर यह उसे संभव नहीं लगता, क्योंकि वहाँ डंडा घुमाने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। दो चिट्ठियाँ साँप के पास पड़ी हुई थीं। उसने डंडे से साँप के ओर की चिट्ठियाँ अपनी ओर सरकाने का प्रयास किया जैसे ही उसका डंडा चिट्ठियों के पास पहुँचा साँप ने फुंफकार कर डंडे पर डंक मारा।

कुएँ में फूँ-फूँ और लेखक के उछलने की आवाजें सुनकर उसके छोटे भाई को लगा कि पुनः उसके भाई का काम तमाम हो गया है। उसके मुँह से चीख निकल गई। पर किया और डंडे से चिपक भी गया। जैसे ही लेखक ने डंडा अपनी ओर खींचा, साँप का पिछला भाग उसके हाथों को छू गया तथा डंडे को उसने एक तरफ पटक दिया। डंडे को अपनी ओर खींचने से लेखक और साँप के आसन बदल गए थे। अतः उसने फौरन लिफ़ाफ़े और पोस्टकार्ड उठाकर धोती के छोर में बाँधे, जिन्हें छोटे भाई ने ऊपर खींच लिया। डटा रहा और उसने डंडे के सहारे पुनः पत्र उठाने का प्रयास किया।

इस बार साँप ने डंडे पर वार भी अब उसके सामने डंडे को उठाने की समस्या थी, क्योंकि साँप डंडे पर बैठा हुआ था। तब उसने कुएँ की बगल से मिट्टी लेकर दायी ओर फेंकी, जिस पर साँप झपटा और वह डंडा लेकर 36 फुट ऊपर चढ़ गया। हालाँकि इस कार्य में उसकी बाहें थक गई थीं तथा छाती फूल कर धौंकनी के समान चल रही थी। ऊपर आकर कुछ देर वह बेहाल पड़ा रहा तथा किशनपुर के उस लड़के को; जिसने उसे ऊपर चढ़ते हुए देखा था; तथा अपने छोटे भाई को किसी से भी इस घटना का जिक्र करने से मना कर दिया।

सन् 1915 में जब लेखक ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, तो माँ को यह घटना सुनाई। उन्होंने अपने आँसुओं से भरे नेत्रों के साथ उसे गोद में ऐसे बैठा लिया, जैसे कोई चिड़िया अपने बच्चों को पंखों के नीचे छिपा लेती अपने अतीत के उन दिनों को लेखक बहुत अच्छा मानता है, जब रायफल के बिना डंडे से ही वह साँप के शिकार करता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • चिल्ला जाड़ा – बहुत अधिक सर्दी।
  • सहमा हुआ – डरा हुआ।
  • कसूर – अपराध, दोष।
  • आशंका – संदेह।
  • प्रकोप – तेज़ी, आतंक।
  • किलोल – क्रीड़ा।
  • प्रवृत्ति – आदत।
  • मृगशावक – हिरण का बच्चा।
  • बिजली-सी गिरना – मुसीबत आना।
  • अकस्मात् – अचानक।
  • हत – आहत।
  • उद्वेग – व्याकुलता, घबराहट।
  • कपोल – गाल।
  • दुधारी – दो तरफ धार वाली।
  • दृढ़ – मज़बूत।
  • संकल्प – इरादा।
  • विषधर – साँप।
  • बूता – बल।
  • ठानना – निश्चय करना।
  • धरातल – तल, धरती।
  • अक्ल चकराना – घबरा जाना।
  • प्रतिद्वंद्वी – दुश्मन, शत्रु, वैरी, दो समान विरोधी।
  • व्यास – घेरा।
  • पीठ दिखाना – मैदान छोड़कर भाग जाना।
  • एकाग्रचित्तता – ध्यान केंद्रित करना।
  • चक्षुःश्रवा – आँखों से सुनने वाला।
  • मोहनी-सी डालना – मोहित कर देना।
  • आकाश-कुसुम – काल्पनिक पुष्प, कठिन कार्य।
  • मिथ्या – गलत, झूठी।
  • अवलंबन – सहारा, आश्रय।
  • बाध्य – मज़बूर।
  • उपहास – मज़ाक।
  • उपरांत – बाद में।
  • नाकीद – किसी बात के लिए ज़ोर देकर अनुरोध करना।
  • डैने – पंख।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

JAC Class 9 Hindi गिल्लू Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न :

प्रश्न 1.
सोनजुही में लगी पीली कली को देख लेखिका के मन में कौन-से विचार उमड़ने लगे ?
उत्तर :
लेखिका ने मृत गिल्लू को सोनजुही की बेल के नीचे समाधि दी थी। गिल्लू को सोनजुही की बेल विशेष प्रिय थी, जिसमें वह अक्सर छिपता और खेलता रहता था। हर वर्ष सोनजुही पर फूल लगते। लेखिका के मन में यह विचार उमड़ता था कि किसी वर्ष वसंत में जूही के पीले रंग के छोटे-से फूल के रूप में गिल्लू भी उस बेल पर महकेगा। वह फूल के समान था और फूल के रूप में फिर प्रकट होगा।

प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समादरित और अनादरित प्राणी क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
लेखिका को गिलहरी का छोटा-सा बच्चा गमले और दीवार की संधि में से प्राप्त हुआ था, जो घोंसले से गिरने के बाद दो कौवों का आहार बनने से बच गया था। लेखिका को कौवों की चोंच से घायल गिलहरी का बच्चा लगभग दो वर्ष तक मानसिक सुख देता रहा। यदि कौवे उसे वहाँ न फेंकते, तो वह कभी लेखिका के पास न होता। इसलिए कौवे समादरित थे, पर निरीह जीव पर चोट करने के कारण वे अनादरित थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 3.
गिलहरी के घायल बच्चे का उपचार किस प्रकार किया गया ?
उत्तर :
लेखिका ने दो घायल गिलहरी के बच्चे को उठा लिया। वह कौओं द्वारा चोंच मारे जाने से बिल्कुल निश्चेष्ट – सा गमले से चिपटा पड़ा था। लेखिका उसे धीरे से उठाकर अपने कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर मरहम लगाया। लेखिका ने रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर बार-बार उसके नन्हे मुँह पर लगाई, किंतु उसका मुँह पूरी तरह खुल नहीं पाता था इसलिए वह दूध न पी सका। तब काफी देर तक लेखिका उसका उपचार करती रही और उसके मुँह में पानी की बूँद टपकाने में सफल हो गयी। लेखिका के इस प्रकार के उपचार के तीन दिन बाद ही गिलहरी का बच्चा पूरी तरह अच्छा और स्वस्थ हो गया।

प्रश्न 4.
लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था ?
उत्तर :
लेखिका ने घायल गिलहरी के बच्चे का उपचार करके उसे स्वस्थ किया और उसका नाम गिल्लू रखा। कुछ ही दिनों में गिल्लू लेखिका से काफी घुल-मिल गया। जब लेखिका लिखने बैठती, तो गिल्लू उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता। इसके लिए वह लेखिका के पैर तक आकर तेजी से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेज़ी से उतरता। गिल्लू यह क्रिया तब तक करता, जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न दौड़ती। इस प्रकार वह लेखिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो जाता। लेखिका को गिल्लू की समझदारी और उसके इस प्रकार के कार्यों पर हैरानी होती थी।

प्रश्न 5.
गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता क्यों समझी गई और उसके लिए लेखिका ने क्या उपाय किया ?
उत्तर :
लेखिका ने देखा कि वसंत के आगमन के साथ ही बाहर की कुछ गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करने लगी हैं। गिल्लू भी जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकता रहता। तब लेखिका को लगा कि शायद वह मुक्त होना चाहता है। अतः लेखिका ने खिड़की की जाली के एक कोने से कीलें निकालकर कोना पूरी तरह खोल कर दिया। यह मार्ग गिल्लू की मुक्ति के लिए खोला गया था। लेखिका द्वारा मुक्त किए जाने पर गिल्लू बहुत प्रसन्न दिखाई दिया। लेखिका जब घर से बाहर जाती, तो गिल्लू खिड़की की जाली के रास्ते बाहर निकल जाता और जब लेखिका को घर आया देखता, तो उसी रास्ते से वापस घर में आ जाता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 6.
गिल्लू किन अर्थों में परिचारिका की भूमिका निभा रहा था ?
उत्तर :
एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई और उसे कई दिन अस्पताल में रहना पड़ा। अस्पताल से घर आने पर गिल्लू ने उसकी सेवा की। वह लेखिका के पास बैठा रहता। वह सिरहाने बैठकर अपने नन्हे नन्हे पंजों से लेखिका के सिर और बालों को इस प्रकार सहलाता, जिस प्रकार कोई सेविका हल्के हाथों से मालिश करती है। जब तक गिल्लू सिरहाने बैठा रहता, लेखिका को ऐसा प्रतीत होता मानो कोई सेविका उसकी सेवा कर रही है। उसका वहाँ से हटना सेविका के हटने के समान लगता। इस प्रकार लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू ने परिचारिका की भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
गिल्लू की किन चेष्टाओं से यह आभास मिलने लगा था कि अब उसका अंत समय समीप है ?
उत्तर :
गिलहरी के जीवन की अवधि लगभग दो वर्ष होती है। जब गिल्लू का अंत समय आया, तो उसने दिन भर कुछ नहीं खाया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। अपने अंतिम समय में वह अपने झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर आकर निश्चेष्ट लेट गया। उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह अपने ठंडे पंजों से लेखिका की उँगली पकड़कर उसके हाथ से चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे गर्मी देने का प्रयास किया, किंतु कोई लाभ न हुआ। प्रातः काल होने तक गिल्लू की मृत्यु हो चुकी थी।

प्रश्न 8.
प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखिका स्पष्ट करना चाहती है कि प्रभात काल के समय गिल्लू की मृत्यु हो गई। लेखिका का मत है कि गिल्लू की आत्मा किसी अन्य जीव के रूप में जन्म लेने के लिए उसके शरीर से निकल गई थी। लेखिका ने उसके ठंडे शरीर को गर्मी देने का प्रयास किया। लेकिन प्रभातकाल होने तक गिल्लू के शरीर से प्राण निकलकर किसी अन्य जीवन में जागने के लिए निकल गए थे और वह लेखिका का साथ छोड़कर सदा के लिए मौत की नींद में सो गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 9.
सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में किस विश्वास का जन्म होता है ?
उत्तर :
गिल्लू की मृत्यु के बाद लेखिका ने उसे सोनजुही की लता के नीचे दफना दिया था। वही गिल्लू की समाधि थी। वह लता गिल्लू को
बहुत प्रिय भी थी। सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में इस विश्वास का जन्म हुआ कि किसी वासंती दिन गिल्लू अवश्य ही जूही के छोटे से पीले फूल के रूप में खिलेगा। लेखिका के मन में विश्वास था कि गिल्लू एक-न-एक दिन फिर से उसके आस-पास जन्म लेगा और वह फिर उसे किसी-न-किसी रूप में देख पाएगी।

JAC Class 9 Hindi गिल्लू Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका ने गिलहरी के बच्चे को कहाँ देखा ? वह किस स्थिति में था ?
उत्तर :
लेखिका ने गिलहरी के बच्चे को गमले और दीवार की संधि में छिपे हुए देखा। वह घोंसले से गिर पड़ा था और कौए उसे अपना भोजन बनाने की ताक में थे। कौओं के द्वारा चोंच मारे जाने के कारण गिलहरी का बच्चा बुरी तरह से घायल हो गया था। जब लेखिका ने उसे देखा, तो वह निश्चेष्ट – सा गमले से चिपटा पड़ा था।

प्रश्न 2.
गिल्लू को मुक्त करने के बाद जब लेखिका घर लौटी, तो उसने क्या पाया ?
उत्तर :
लेखिका ने अपने घर की खिड़की की जाली से रास्ता बनाकर गिल्लू को मुक्त कर दिया। वह अपना कमरा बंद करके कॉलेज चली गई। कॉलेज से लौटने पर उसने पाया कि गिल्लू खिड़की के उसी रास्ते से वापस आ गया और उसके चारों ओर दौड़ लगाने लगा। गिल्लू को भी लेखिका से गहरा लगाव था। यह देखकर लेखिका हैरान रह गई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 3.
लेखिका को चौंकाने के लिए गिल्लू क्या करता था ?
उत्तर :
लेखिका को चौंकाने के लिए गिल्लू कभी फूलदान के फूलों में, कभी परदे की चुन्नर में और कभी सोनजुही की पत्तियों में छिप जाता था।

प्रश्न 4.
लेखिका ने गिल्लू को किस बात में अन्य पालतू पशु-पक्षियों से भिन्न पाया ?
उत्तर :
लेखिका के पास बहुत से पशु-पक्षी थे और उनका उससे लगाव भी बहुत था, लेकिन उसे गिल्लू सबसे अलग लगा था। गिल्लू से पहले लेखिका की थाली में लेखिका के साथ खाने की हिम्मत किसी की भी नहीं हुई थी। गिल्लू लेखिका के पीछे-पीछे खाने के कमरे में पहुँचता था और उसकी थाली में बैठने का प्रयास करता। लेखिका ने बड़ी कठिनाई से उसे थाली के पास बिठाकर खाना सिखाया। लेखिका को अपने साथ बैठकर खाने वाला जीव पहली बार मिला था। इसी कारण वह उसे सबसे भिन्न लगता था।

प्रश्न 5.
गिल्लू ने गर्मी से बचने का क्या उपाय निकाला ?
उत्तर :
गर्मी के दिनों में गिल्लू न बाहर जाता था और न ही अपने झूले में बैठता था। वह लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाता था। ऐसा करने से वह लेखिका के समीप भी रहता और सुराही से उसे ठंडक भी मिलती थी। इस प्रकार गर्मी से बचने का उपाय उसने स्वयं ही खोज निकाला था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 6.
‘गिल्लू’ पाठ के माध्यम से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
‘गिल्लू’ पाठ ‘महादेवी वर्मा’ द्वारा लिखित संस्मरणात्मक गद्य रचना है। लेखिका के पास कई तरह के पालतू पशु-पक्षी थे। गिल्लू उन्हें अपने बगीचे में घायल अवस्था में मिला। उन्होंने उसका उपचार किया। इस प्रकार देखभाल करने पर गिल्लू का लेखिका से एक विशेष प्रकार का लगाव हो गया था, जो उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहा। इस रचना के माध्यम से पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम व उनके संरक्षण की भावना के साथ-साथ उनकी गतिविधियों का पास से सूक्ष्म अवलोकन करने तथा उनसे सद्व्यवहार करने की प्रेरणा मिलती है। इस पाठ द्वारा पशु-पक्षियों को स्वच्छंद और मुक्त रख उनके स्वाभाविक विकास की भावना को प्रोत्साहित किया गया है।

प्रश्न 7.
लेखिका गिल्लू को लिफ़फ़े में क्यों बंद कर देती थी ?
उत्तर :
लेखिका जब लिखने बैठती थी, तो गिल्लू उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसके पैर तक आकर तेज़ी से पर्दे पर चढ़ जाता और उसी तेज़ी से नीचे उतर जाता था। उसकी इस हरकत से लेखिका का ध्यान उचट जाता था। इसलिए लेखिका उसे काम करने के समय लिफ़ाफ़े में बंद कर देती थी।

प्रश्न 8.
लेखिका और गिल्लू में कैसा संबंध था ?
उत्तर :
लेखिका और गिल्लू में एक विशेष संबंध था। लेखिका के पास बहुत सारे पालतू पशु-पक्षी थे। उसका सबसे स्नेह था, परन्तु गिल्लू से उसका विशेष लगाव था। इसका कारण यह था कि गिल्लू उसका ध्यान अपनी ओर खींचकर रखता था। जब वह लिख रही होती थी, तो वह उसकी मेज़ के आस-पास कूदता रहता था। उसके कॉलेज से लौटने पर उसके साथ ही कमरे में प्रवेश करता और आस-पास घूमकर अपना प्यार प्रकट करता। गिल्लू ने सर्वप्रथम लेखिका के साथ उसकी थाली में खाना खाने की चेष्टा की थी। जब लेखिका बीमार हो गई थी, तो उसने उसकी देखभाल एक सेविका की तरह की थी। लेखिका का भी उससे विशेष स्नेह था। उसने उसे अपने पास बैठाकर खाना खाना सिखाया। उसका साथ उसे भी अच्छा लगता था। इस प्रकार दोनों में विशेष संबंध था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 9.
‘गिल्लू’ पाठ के आधार पर बताइए कि गिल्लू में क्या-क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
‘गिल्लू’ एक गिलहरी का नाम था, जिसके प्राण लेखिका ने बचाए थे। लेखिका ने उसकी घायल अवस्था में देखभाल की और उसे नया जीवन प्रदान किया। उसी समय से गिल्लू का उससे विशेष लगाव हो गया था। वह हर समय उसका ध्यान अपनी ओर खींचकर रखता था। वह लेखिका के साथ ही कमरे से बाहर निकलता और उसके साथ ही कमरे में प्रवेश करता था। उनके चारों ओर घूमकर अपना प्यार प्रकट करता था।

वह लेखिका के हाथ से ही भोजन ग्रहण करता था। लेखिका के बीमार पड़ने पर उसने कई दिन तक सही ढंग से भोजन नहीं किया। इस प्रकार उसने लेखिका के प्रति अपना दुख प्रकट किया। वह उसके पास बैठकर अपने पंजों से बालों और सिर को सहलाता था। ऐसे लगता था, जैसे कोई सेविका देखभाल कर रही हो। वह उसके साथ बैठकर भोजन करता था। लेखिका बाहर होती थी, तो वह सभी गिलहरियों का मुखिया बनकर घूमता था। उसे देखकर लगता था कि वह गिलहरी न होकर कोई छोटा बच्चा हो, जो लेखिका के साथ वर्षों से रह रहा है। अपनी इन्हीं बातों से वह उनका बहुत प्यारा था।

प्रश्न 10.
गिल्लू कौन था ? लेखिका ने उसे स्वस्थ रखने के लिए क्या उपचार किया ?
उत्तर :
गिल्लू गिलहरी जाति का एक छोटा-सा जीव था। लेखिका ने गिल्लू को ठीक करने के लिए रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर उसके नन्हे मुँह से लगाई। तीसरे दिन वह पूर्णतः स्वस्थ हो गया। वह लेखिका की हथेली पर बैठकर इधर-उधर देखने लगा था।

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प्रश्न 11.
गिल्लू का घर कैसा था ? लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह क्या करता था ?
उत्तर :
गिल्लू का घर एक डलिया में बिछा रूई का बिछौना था, जो तार से खिड़की पर लटका था। वह देखने में बड़ा ही सुंदर था। जब लेखिका लिखने के लिए बैठती थी, तब गिल्लू लेखिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी उछल-कूद दिखाने लगता था। वह कभी लेखिका के पैरों को छूता, तो कभी परदे पर तेज़ी से चढ़कर तेज़ी से नीचे उतर आता था।

प्रश्न 12.
लेखिका ने पाठ में ‘जातिवाचक संज्ञा’ को ‘व्यक्तिवाचक संज्ञा’ का रूप कैसे दे दिया ?
उत्तर :
पाठ में लेखिका ने बताया है कि गिल्लू जातिवाचक संज्ञा शब्द है, क्योंकि गिलहरी के हर बच्चे को गिल्लू कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद भी गिल्लू व्यक्तिवाचक बन गया, क्योंकि अब वह गिल्लू एक था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

प्रश्न 13.
लेखिका ने घायल गिलहरी के बच्चे की करुण दशा का चित्रण किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
लेखिका ने घायल गिलहरी के बच्चे की करुण दशा का चित्रण करते हुए कहा है कि एक दिन जब वह अपने कमरे से बरामदे में आई, तो अचानक उसने देखा कि दो कौए एक गमले के चारों ओर अपनी चोंचों से कुछ छूने का खेल खेल रहे हैं। तभी लेखिका की दृष्टि गमले और दीवार के बीच खाली पड़ी जगह पर गई। जब उसने पास आकर देखा तो वहाँ गिलहरी का एक छोटा-सा बच्चा था, जिसे देखकर लगता था कि वह अपने घोंसले से गिर गया होगा। अब कौए उसे अपना भोजन बनाने का प्रयास कर रहे थे।

गिल्लू Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘गिल्लू’ पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखित है, जिसमें उन्होंने ‘गिल्लू’ नामक एक गिलहरी के बच्चे की चंचलता और उसके क्रियाकलापों के बारे में बताते हुए उसकी मृत्यु तक का वर्णन किया है। एक दिन लेखिका ने दो कौओं द्वारा घायल किए गए गिलहरी के एक बच्चे को देखा। वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पड़ा था। लेखिका उसे धीरे से उठाकर अपने कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर मरहम लगाया। इस उपचार के तीन दिन बाद वह गिलहरी का बच्चा कूदने – फाँदने लगा।

लेखिका ने उसका नाम ‘गिल्लू’ रखा और फूल रखने की डलिया में रूई बिछाकर उसके रहने के लिए घोंसला बना दिया। कुछ ही दिनों में गिल्लू लेखिका से घुलमिल गया। जब लेखिका लिखने बैठती, तो गिल्लू लेखिका के आस-पास तेजी से दौड़कर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता। कई बार लेखिका उसे पकड़कर एक लंबे लिफाफे में बंद कर देती। भूख लगने पर वह चिक-चिक की ध्वनि करके लेखिका को इसकी सूचना देता और लेखिका उसे काजू या बिस्कुट खाने को देती।

एक दिन लेखिका ने देखा कि गिल्लू बाहर घूमती हुई गिलहरियों को बड़े अपनेपन से देख रहा है। लेखिका ने खिड़की की जाली से कीलें निकालकर गिल्लू के बाहर जाने का मार्ग खोल दिया। जब लेखिका घर से बाहर जाती, तो गिल्लू भी उसी रास्ते से बाहर निकल जाता तथा जब लेखिका घर वापस आती, तो वह भी खिड़की के रास्ते घर में आ जाता। लेखिका गिल्लू की एक हरकत से बड़ी हैरान थी। हरकत यह थी कि वह लेखिका के साथ बैठकर खाना चाहता था। धीरे-धीरे लेखिका ने उसे भोजन की थाली के पास बैठना सिखाया और तब से वह लेखिका के साथ बैठकर खाता। काजू गिल्लू का प्रिय खाद्य पदार्थ था।

एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई और उसे कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। गिल्लू ने उसके पीछे अपना प्रिय खाद्य काजू भी खाना छोड़ दिया और लेखिका के घर लौटने पर एक परिचारिका के समान व्यवहार किया। अंततः गिल्लू का अंतिम समय आ गया। उसने खाना-पीना और बाहर जाना छोड़ दिया। वह रात भर लेखिका की उँगली पकड़े रहा और प्रभात होने तक वह सदा के लिए मौत की नींद सो गया। लेखिका ने सोनजूही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि बनाई। लेखिका को विश्वास था कि एक दिन गिल्लू जूही के छोटे से पीले पत्ते के रूप में फिर से खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • बाधा – रूकावट।
  • संधि – दो वस्तुओंस्थितियों के मिलने के स्थान, मेल, संयोग।
  • दृष्टि – नज़र।
  • आहार – भोजन।
  • काकद्वय – दो कौए।
  • लघुप्राण – छोटा-सा जीव।
  • निश्चेष्ट – बिना किसी हरकत के।
  • हौले से – धीरे से।
  • रक्त – खून।
  • उपचार – इलाज।
  • उपरांत – बाद।
  • आश्वस्त – निश्चिंत।
  • स्निग्ध – चिकना।
  • विस्मित – हैरान, आश्चर्यचकित।
  • लघुगात – छोटा शरीर।
  • मुक्त – आज़ाद।
  • नित्य – प्रतिदिन।
  • अपवाद – सामान्य नियम को बाधित या मर्यादित करने वाला।
  • खाद्य – खाने योग्य।
  • अस्वस्थता – बीमारी।
  • परिचारिका – सेविका।
  • सर्वथा – बिल्कुल।
  • यातना – पीड़ा।
  • मरणासन्न – जिसकी मृत्यु निकट हो, मृत्यु के समीप पहुँचा हुआ।
  • उष्णता – गरमी।
  • पीताभ – पीले रंग का।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 2 बहुपद

Students should go through these JAC Class 9 Maths Notes Chapter 2 बहुपद will seemingly help to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 2 बहुपद

चर / अचर : चर का मान स्थिर नहीं होता है। इसे हम स्वेच्छा से बदल सकते हैं जबकि अचर का मान स्थिर रहता है। हम चरों को अक्षरों x, y, z आदि से व्यक्त करते हैं तथा अचरों को वास्तविक संख्याओं या अक्षरों a, b, c द्वारा व्यक्त करते हैं।
बीजीय व्यंजक = [(एक अचर) × चर], कुछ निश्चित चर तथा अचर राशियों के योग, अन्तर, गुणन, भाग के आधार पर बने व्यंजक को बीजीय व्यंजक कहते हैं।
एक चरीय बहुपद : सभी बीजीय व्यंजकों में केवल एक चर हो तथा उस चर के घातांक पूर्ण संख्या हों, तो इस रूप के व्यंजकों को एक चरीय बहुपद कहते हैं।
एक चर वाला बहुपद p(x) निम्न रूप का x में बीजीय व्यंजक है :
p(x) = a0 + a1x + a2x2 + a3x3 + …….. + anxn
जहाँ a0, a1, a2, ……… an अचर हैं और (a ≠ 0) तथा इन्हें x0, x1, x2, x3, ……… xn के गुणांक भी कहते हैं।
बहुपद : यदि बीजीय व्यंजक में x (चर) की सभी घातें धनात्मक पूर्ण संख्या हों, उसे बहुपद कहते हैं।
उदाहरण के लिए, y-2 बहुपद नहीं है क्योंकि चर y की घात ऋणात्मक है जबकि y2 बहुपद है।

बहुपद के प्रकार : (A) पदों के आधार पर :
(i) एकपदी (Monomial) व्यंजक : वह बहुपद जिसमें केवल एक पद हो, एकपदी बहुपद कहलाता है।
जैसे- 2x, 2, 5x3, y और u4 आदि।
(ii) द्विपदीय (Binomial) व्यंजक : वह बहुपद जिसमें दो पद हों, द्विपदी बहुपद कहलाता है।
जैसे- x + 1, x2 + 3, y10 + 1, x2 + u10 आदि।
(iii) त्रिपदीय (Trinomial) व्यंजक : वह बहुपद जिसमें तीन पद हों, त्रिपदी बहुपद कहलाता है।
जैसे- x4 + x3 + 2, 5x2 + 4 + 3x आदि ।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 2 बहुपद

(B) घात के आधार पर :
(i) रैखिक बहुपद : वह बहुपद जिसकी घात एक हो, रैखिक बहुपद कहलाता है। उदाहरण के लिए,
p(x) = 4x + 5, q(y) = 2y, r(t) = t + \(\sqrt{2}\) आदि ।
(ii) द्विघाती बहुपद : वह बहुपद जिसकी घात दो हो, द्विघाती बहुपद कहलाता है। उदाहरण के लिए,
2x2 + 5, 5x2 + 3x + π, x2 + \(\frac{2}{5}\)x आदि ।
किसी व्यंजक की सबसे बड़ी घात को बहुपद की घात कहते हैं।

शून्य बहुपद : यदि a0 = a1 = a2 = a3 ……… an = 0
अर्थात सभी अचर शून्य हों तो बहुपद शून्य बहुपद कहलाता है। शून्य बहुपद की घात को परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

  • एक चर वाले प्रत्येक रैखिक बहुपद में एक शून्यांक होता है।
  • स्थिर (अचर) बहुपद का कोई शून्यांक नहीं होता है।
  • प्रत्येक वास्तविक संख्या शून्य बहुपद का शून्यांक होता है।

बहुपद का शून्यक: किसी बहुपद में चर के स्थान पर किसी वास्तविक संख्या को प्रतिस्थापित करने पर यदि बहुपद का मान शून्य आता है वह वास्तविक संख्या उस बहुपद का शून्यक कहलाती है।
शेषफल प्रमेय : माना बहुपद p(x) एक या एक से अधिक घात वाला एक बहुपद है। p(x) को रैखिक बहुपद (x – a) से भाग देने पर शेषफल p(a) के बराबर होता है तथा p(a) = 0।

  • यदि p(a) = 0 हो, तो (x – a) बहुपद p(x) का एक गुणनखण्ड होता है।
  • यदि p(a) ≠ 0 हो, तो (x – a) बहुपद p(x) का एक गुणनखण्ड है।

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 2 बहुपद

बीजीय सर्वसमिकाएँ :

  1. (x + y)2 = x2 + y2 + 2xy
  2. (xy)2 = x2 + y2 – 2xy
  3. (x2 – y2) = (x + y) (x – y)
  4. (x + y + z)2 = x2 + y2 + z2 + 2xy + 2yz + 2zx
  5. (x + y)3 = x3 + y3 + 3(x + y)xy = x3 + y3 + 3x2y + 3xy2
  6. (x – y)3 = x3 – y3 – 3(x – y)xy = x3 – y3 – 3x2y + 3xy2
  7. x3 + y3 + z3 – 3xyz = (x + y + z) (x2 + y2 + z2 – xy – yz – zx)
  8. (x + a) (x + b) = x2 + (a + b)x + ab

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल

→ क्षेत्रफल : “तल का वह भाग जो एक आकृति की सीमाओं के अन्दर घिरा रहता है, उस आकृति का क्षेत्रफल (area) कहलाता है।” क्योंकि क्षेत्रफल द्वि-आयामी संकल्पना है अतः इसका मात्रक वर्ग इकाई (मी2, सेमी2, आदि) होता है।”

→ “वह समतल एवं संवृत्त आकृति, जो तीन रेखाखण्डों से बनी होती है त्रिभुज (Triangle) कहलाती है।”

→ “बहुभुज एवं बहुभुज के अभ्यन्तर (Interior) के सम्मिलन को बहुभुज प्रदेश (Polygonal Region) कहते है।”

→ “समान्तर चतुर्भुज की कोई भी एक भुजा इसका आधार (Base) कहलाती है।”

→ “समान्तर चतुर्भुज के प्रत्येक आधार के संगत शीर्षलम्ब (Altitude) वह रेखाखण्ड है जो आधार के किसी बिन्दु से सम्मुख भुजा को अणविष्ट करने वाली रेखा पर लम्ब है।”

→ “त्रिभुज की माध्यिका उसे दो समान क्षेत्रफल वाले त्रिभुजों में विभाजित करती है।”

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल

→ “एक ही आधार तथा समान समान्तर रेखाओं के मध्य त्रिभुजों के क्षेत्रफल बराबर होते हैं।”

→ “यदि एक त्रिभुज तथा समान्तर चतुर्भुज एक ही आधार तथा समान समान्तर रेखाओं के मध्य स्थित हैं तो त्रिभुज का क्षेत्रफल समान्तर चतुर्भुज के क्षेत्रफल का आधा होता है।”

→ “यदि एक आयत तथा एक समान्तर चतुर्भुज एक ही आधार तथा समान समान्तर रेखाओं के मध्य स्थित हो तो उनके क्षेत्रफल समान होते हैं।”

→ “समस्त सर्वांगसम आकृतियाँ क्षेत्रफल में समान होती हैं, किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि क्षेत्रफल में समान आकृतियाँ सर्वांगसम हों।”

→ “समान आधार और समान लम्बाइयों के लम्ब वाले त्रिभुज क्षेत्रफल में समान होते हैं।”

→ “समान आधार और समान ऊँचाई वाले समान्तर चतुर्भुज क्षेत्रफल में भी समान होते हैं।”

→ “समान क्षेत्रफल वाले दो त्रिभुजों की यदि एक-एक भुजा बराबर हो तो उनकी ऊँचाइयाँ भी समान होती हैं।”

→ किसी भी Δ का क्षेत्रफल उसके आधार तथा शीर्ष लम्ब के गुणनफल का आधा होता है। अर्थात् Δ का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × लम्ब

→ किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लम्बाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के बराबर होता है।” अर्थात् आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल

→ “किसी चतुर्भुज का क्षेत्रफल उसके एक विकर्ण की लम्बाई तथा उस पर शेष दो शीर्षों से डाले गए लम्बों के योगफल के गुणनफल के आधे के बराबर होता है।”
चतुर्भुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × SQ × (PM + NR)
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल 1

→ “किसी समलम्ब का क्षेत्रफल उसकी समान्तर भुजाओं की लम्बाइयों के योगफल तथा उनके बीच की दूरी के गुणनफल का आधा होता है।
समलम्ब का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\)(SR + PQ) × SD
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल 2

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

JAC Class 9 Hindi नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Textbook Questions and Answers

(क) नए इलाके में –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है ?
(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है ?
(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है ?
(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है ?
(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी की ओर क्यों इशारा किया है ?
(च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता इसलिए भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन नए-नए मकान बनते रहते हैं जिस कारण उसे याद नहीं रहता कि उसे किधर से मुड़कर कहाँ जाना है क्योंकि उसकी याद की हुई सभी निशानियाँ मिट जाती हैं।

(ख) कविता में कवि ने पीपल के पेड़, ढहे हुए मकान, ज़मीन के खाली टुकड़े जहाँ से उसने बाएँ मुड़ना था तथा बिना रंग वाले लोहे के फाटक के इकमंजिले मकान को पुराने निशानों के रूप में उल्लेख किया है।

(ग) नई बस्ती में रोज़ नए-नए घर बन रहे हैं जिस कारण कवि को भ्रम हो जाता है कि वह सही जगह पर आया है या नहीं। इसी भ्रमित अवस्था में वह कभी एक घर पीछे या दो घर आगे चला जाता है और सही स्थान पर नहीं पहुँच पाता।

(घ) इन कथनों का यह अभिप्राय है कि महीनों बाद लौटकर आना।

(ङ) कवि ने इस कविता में समय की कमी की ओर इसलिए संकेत किया है क्योंकि आकाश में बादल घिर आए हैं और कभी भी वर्षा हो सकती है।

(च) इस कविता में शहरों की इस विडंबना की ओर संकेत किया गया है कि अपनेपन का भाव सर्वत्र समाप्त हो गया है। कोई किसी को नहीं पहचानता। सब अपने आप में सिमटे हुए हैं। उन्हें किसी के बारे न तो जानने की इच्छा है और न अपने बारे में बताने की। सब अपने द्वारा बनाए गए खोल में सिमटे रहना चाहते हैं। शहर लगातार फैलते जा रहे हैं। पुराने परिवेश की पहचान समाप्त होती जा रही है। जो कल था, वह आज नहीं है और जो आज है, वह कल नहीं होगा। पुरानी पहचान तो समाप्त ही हो गई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

प्रश्न 2.
व्याख्या कीजिए –
(क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
उत्तर :
उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।

योग्यता- विस्तार –

प्रश्न :
पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी महीनों के नाम क्रम से लिखिए।
उत्तर :
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भादों, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

(ख) खुशबू रचते हैं हाथ –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘खुशबू रचने वाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में और कहाँ-कहाँ रहते हैं ?
(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है ?
(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ ?
(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है ?
(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
(क) खुशबू रचने वाले हाथ अत्यंत दयनीय दशा में कई गलियों के बीच और कई गंदे नालों को पार करने के बाद कूड़े-करकट की बदबू के बीच बसी हुई एक गंदी बस्ती में रहते हैं। वहाँ की बदबू से लोगों के सिर फटने लगते हैं, परंतु वे वहीं रहने के लिए विवश हैं।

(ख) कविता में छह तरह के हाथों की चर्चा हुई है जो बच्चों, जवानों और बूढ़ों के हैं। ये हाथ हैं- उभरी नसों वाले हाथ घिसे नाखूनों वाले हाथ, पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ, जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ और ज़ख्म से फटे हुए हाथ।

(ग) कवि ने यह इसलिए कहा है क्योंकि ये लोग गंदगी तथा बदबू बस्ती में रहते हुए भी अपने हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं वहाँ का माहौल सारी दुनिया की गंदगी और बदबू से भरा हुआ होता है।

(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का चित्रण करते हुए यह बताना है कि खुशबू बनाने वाले स्वयं किस प्रकार नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। समाज को उनके लिए भी कुछ करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

प्रश्न 2.
व्याख्या कीजिए –
(क) (i) पीपल के पत्ते – से नए-नए हाथ
जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ
(ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है। इसका क्या कारण है ?
(ग) कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है ?
उत्तर :
(क) उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।
(ख) कवि ने मेहनत करने वाले निर्धन लोगों, उनकी बस्तियों, टोलों, अगरबत्तियों आदि का वर्णन इस कविता में किया है जो देश की बड़ी जनसंख्या और परिवेश का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए कवि ने ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है।
(ग) कवि ने हाथों के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया है, वे हैं – उभरी नसों वाले, घिसे नाखुनों वाले, पीपल के पत्ते से नए-नए, जूही की डाल से खुशबूदार, गंदे कटे-पिटे, जख्म से फटे हुए।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न :
अगरबत्ती बनाना, माचिस बनाना, मोमबत्ती बनाना, लिफाफ़े बनाना, पापड़ बनाना, मसाले कूटना आदि लघु उद्योगों के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘नए इलाके में’ कविता में नगरीय बोध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जनसंख्या बढ़ती जा रही है। नगरों की ज़मीन कम पड़ती जा रही है और ये गाँवों की ओर पसरते जा रहे हैं। गाँवों-कस्बों में अपनेपन की भावना अधिक होती है। सबकी अपनी एक पहचान होती है लेकिन जब वहाँ नगर फैल जाते हैं तब सब अपनी पहचान खो देते हैं। सारा वातावरण ही अनजाना-सा लगने लगता है। स्थान भी पराया और लोग भी पराये। कोई किसी को नहीं पहचानता। पड़ोसी को पड़ोसी का पता नहीं तो भला किसी पराये का क्या पता होगा। सब अपने आप में सिमटे हुए होते हैं। कोई पराया आदमी तो वहाँ पहुँचकर बेहाल – सा हो जाता है।

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प्रश्न 2.
‘खुशबू रचते हैं हाथ’ में निहित विडंबना को प्रकट कीजिए।
उत्तर :
अगरबत्ती बनाने वाले नगरों, कस्बों और बस्तियों से दूर गंदे स्थानों पर रहकर तरह-तरह की सुगंधियों से युक्त अगरबत्तियाँ बनाते हैं। स्वयं को इन असहायों से अलग रखने वाले तथाकथित सभ्य जब अगरबत्तियाँ जलाते हैं, परमात्मा को प्रसन्न करने की कामना करते हैं या अपने परिवेश को सुवासित करते हैं तब वे एक बार भी नहीं सोचते कि इन्हें बनाने वाले कौन हैं? कैसे हैं? वे किस हालत में रहते हैं ?

प्रश्न 3.
कवि नए इलाकों में अपना रास्ता क्यों भूल जाता है ?
उत्तर :
कवि नए बस रहे इलाकों की बात करता है जहाँ प्रतिदिन नई इमारतें बनती दिख रही हैं। इससे कवि अपना पुराना रास्ता भूल जाता है क्योंकि इन नए इलाकों में उसके मंजिल तक पहुँचाने के लिए बनाए गए निशान खो गए हैं। नया रास्ता उसे समझ में नहीं आता है, इसलिए वह रास्ता भूल जाता है।

प्रश्न 4.
कवि किसके माध्यम से जीवन के किस रहस्य की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
कवि नए बसते इलाकों के माध्यम से जीवन और संसार में परिवर्तनशीलता के नियम की बात कर रहा है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। संसार में प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है। जो पहले था अब वह वैसा नहीं है और जो अब है, वह वैसा नहीं रहेगा। परिवर्तन ही जीवन का नाम है।

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प्रश्न 5.
कवि को अपनी स्मृतियों पर भरोसा क्यों नहीं रहा है ?
उत्तर :
कवि को अपनी स्मृतियों पर भरोसा इसलिए नहीं रहा है क्योंकि जीवन में हर पल पुराना नए रूप में बदल रहा है। वर्षों पहले की पहचान अब धोखा देने लगी थी। नया बनने के कारण पुराने पहचान चिह्न व्यर्थ सिद्ध होने लगे हैं। उसे मुड़ना कहीं और होता है और मुड़ कहीं और जाता है। रात-दिन बनती-गिरती इमारतों ने उसकी यादों को धोखे में डाल दिया है।

प्रश्न 6.
कवि परिवर्तन से परेशान क्यों है ?
उत्तर :
कवि परिवर्तन और अपनी स्मृतियों से परेशान है। उसके पास समय कम है। परिवर्तन के कारण उसे कोई पहचानता नहीं है और वह किसी को पहचान नहीं पा रहा है। आकाश से पानी बरसने को तैयार है। वह सोच रहा है कि कोई उसे पहचान ले, पुकार ले और वह उस नए इलाके में फिर पुरानी पहचान प्राप्त कर ले।

प्रश्न 7.
‘खुशबू रचने वाले हाथ’ किस जगह रहते हैं ?
उत्तर :
‘खुशबू रचने वाले हाथ’ दुनिया को खुशबू देने के लिए अगरबत्तियाँ बनाते हैं। ये लोग दूसरों को खुशबू देकर स्वयं गंदगी में रहते हैं। इनके घर छोटी-छोटी बस्तियों में होते हैं। वहाँ कूड़े-करकट का ढेर लगा रहता है। इनके घरों के पास गंदे – बदबूदार नाले गुज़रते हैं।

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प्रश्न 8.
अगरबत्तियाँ बनाने में कैसे-कैसे लोग काम करते हैं ?
उत्तर :
अगरबत्तियाँ बनाने में छोटे-बड़े और जवान सभी प्रकार के लोग लगे रहते हैं। कवि ने हाथों की पहचान के माध्यम से उन लोगों का वर्णन किया है। जैसे ‘पीपल के नए-नए पत्ते से हाथ’ अभिप्राय छोटे बच्चों के सुकोमल हाथ से है जो अगरबत्ती बनाने का काम करते हैं। नवयुवतियों के हाथों को जुही की डाल कहा है। बूढ़े लोगों के हाथ गंदे, कटे-पिटे और जख्मों से फटे हुए हैं।

नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – अरुण कमल का जन्म 15 फरवरी, सन् 1954 ई० को बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इन्हें अध्ययन-अध्यापन के अतिरिक्त काव्य लेखन तथा अनुवाद कार्य में विशेष रुचि है। इन्हें साहित्य अकादमी तथा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

रचनाएँ – अरुण कमल की काव्य रचनाएँ हैं – अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में और पुतली में संसार। ‘कविता और समय इनकी आलोचनात्मक रचना है। इन्होंने ‘मायकोव्यस्की की आत्मकथा’ और ‘जंगल बुक’ का भी हिंदी में अनुवाद किया है तथा हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का ‘वॉयसेज़’ नाम से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है।

काव्य की विशेषताएँ – अरुण कमल की कविताओं का मुख्य स्वर आम आदमी के जीवन की विभिन्न विसंगतियों को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत करना है। इनकी रचनाओं में वर्तमान अव्यवस्था के विरुद्ध तीव्र आक्रोश का स्वर सुनाई देता है। इनकी कामना है कि समाज में मानवीय मूल्यों पर आधारित व्यवस्था का निर्माण हो। इनकी काव्य-भाषा अत्यंत सहज तथा व्यावहारिक खड़ी बोली है, जिसमें देशज शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।

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कविताओं का सार :

1. नए इलाके में –

अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि जीवन में सब कुछ परिवर्तनशील है। कवि नए बसते हुए क्षेत्रों में जाकर अक्सर रास्ता भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन कोई-न-कोई नया मकान बन जाता है। वह उन निशानियों को ढूँढ़ता रह जाता है जिनके सहारे उसने अपनी मंजिल पर जाना था। प्रतिदिन बदलने वाले इस क्षेत्र में उसकी स्मृतियाँ भी उसे धोखा दे जाती हैं और वह जहाँ जाना चाहता है उससे दो घर आगे या पीछे पहुँच जाता है। उसे लगता है कि अब तो हर घर का दरवाजा खटखटा कर पूछना पड़ेगा कि क्या यही वह घर है जहाँ उसने जाना था अथवा कोई उसे पहचान कर ही पुकार लेगा कि इधर आओ, तुमने यहाँ आना था।

2. खुशबू रचते हैं हाथ –

‘खुशबू रचते हैं हाथ’ कविता में अरुण कमल ने समाज में व्याप्त विसंगतियों का चित्रण करते हुए बताया है कि जो लोग समाज को सुंदर बना रहे हैं, समाज उन्हें ही अभाव और गंदगी में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश कर रहा है। ये लोग सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते हैं परंतु इन्हें अपना जीवन नारकीय स्थितियों में व्यतीत करना पड़ता है। इनके घर के आस-पास कूड़े-करकट के ढेर लगे हुए हैं। नालियों से बदबू आती रहती है। मेहनत कर-करके इनके शरीर कमज़ोर हो गए हैं। दुनिया की सारी गंदगी के बीच में रहकर भी ये लोग दुनियावालों के लिए सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते रहते हैं।

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व्याख्या :

(क) नए इलाके में –

1. इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था इक मंज़िला
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता

शब्दार्थ : इलाका – क्षेत्र। ताकता – देखता। ढहा – गिरा हुआ। ठकमकाता – धीरे-धीरे, डगमगाते हुए।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नई बसने वाली बस्तियों में प्रतिदिन होने वाले परिवर्तनों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जब भी मैं इस नई बस्ती में आता हूँ, प्रायः रास्ता भूल जाता हूँ। जिन निशानियों के आधार पर मुझे अपनी मंजिल पर जाना होता है वे पुराने निशान मिट चुके होते हैं, क्योंकि रोज नए-नए मकान बन जाते हैं और बस्ती का नक्शा बदल जाता है। वहाँ मैं पीपल का पेड़ और पुराना गिरा हुआ मकान ढूँढ़ता हूँ। वहीं एक खाली ज़मीन के टुकड़े के पास से मुझे मुड़ना था पर वह भी मुझे नहीं दिखाई देता। जिस घर में मुझे जाना था वह वहाँ दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का इक मंजिला मकान था। पर जब वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता तो मैं अपने आप को उस मकान से एक घर पीछे या उस मकान से दो घर आगे डगमगाते हुए चलता अनुभव करता हूँ।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

2. यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर ?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

शब्दार्थ : स्मृति याद। अकास आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नई बनती हुई बस्तियों की परिवर्तनशीलता पर विचार करते हुए स्पष्ट किया है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता, निरंतर परिवर्तन होता रहता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि नई बनने वाली बस्तियों में प्रतिदिन कुछ-न-कुछ नया बनता रहता है तथा पुराना कम होता जाता है। यहाँ पुरानी यादों के सहारे कुछ नहीं ढूँढ़ा जा सकता क्योंकि यहाँ होने वाले नव-निर्माण के कारण पुरानी निशानियाँ मिट जाती हैं। जैसे वसंत में कहीं गया व्यक्ति पतझड़ में लौटकर आए हो अथवा बैसाख का गया भादों में लौटे तो उसे सब कुछ बदला-बदला नज़र आता है। इसलिए सही मकान तलाश करने का अब तो केवल यही उपाय है कि हर घर का दरवाज़ा खटखटाकर पूछा जाए कि क्या यह वही घर है जहाँ उसको जाना है ? कवि को लगता है कि आकाश में बादल घिर आए हैं तथा वर्षा होने वाली है। लगता है कि कोई उसे पहचानकर पुकार लेगा कि इधर आ जाओ, यहीं तुम्हें आना था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ

(ख) खुशबू रचते हैं हाथ –

1. कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

शब्दार्थ : टोले – बस्ती। खुशबू – सुगंध। रचते – बनते।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि बताता है कि सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाने वाले कैसे गंदे वातावरण में रहते हैं। कवि कहता है कि कई गलियों के बीच तथा कई गंदे नालों के पार कूड़े-करकट के ढेरों की बदबू से सने हुए वातावरण की एक बस्ती के अंदर रहने वाले लोग अपने हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

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2. उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ
जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
जख़्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

शब्दार्थ : खुशबूदार – सुगंध से युक्त। जख़्म – घाव, चोट।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि इनमें से कई लोगों के काम करने से हाथों की नसें उभर आई हैं तो कुछ के हाथों के नाखून घिस गए हैं। कुछ कोमल पीपल के पत्ते से हाथों वाले बच्चे हैं जो यह काम कर रहे हैं। कुछ यौवन से संपन्न युवतियाँ भी यही कार्य कर रही हैं जिनके हाथ जूही की डाल जैसे सुगंधित हैं। बूढ़े भी अपने गंदे और कटे-पिटे हाथों से यही कार्य करते हैं तथा घायल हाथों से भी लोगों को यही काम करना पड़ रहा है। ये सभी खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

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3. यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की
मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी
खुशबू रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

शब्दार्थ : मुल्क – देश मशहूर प्रसिद्ध। रचना – बनाना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि ऐसे ही गंदे वातावरण तथा बदबूदार गलियों में देश की प्रसिद्ध सुगंधित अगरबत्तियाँ बनती हैं। इन्हीं गंदे मुहल्लों में रहने वाले गंदे लोग केवड़ा, गुलाब, खस और रात की रानी की सुगंध वाली अगरबत्तियाँ बनाते हैं। ये लोग दुनिया की सबसे गंदी बस्तियों में रहकर अपने हाथों से दुनिया के लिए सुगंध से युक्त अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

JAC Class 9 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions अपठित बोध अपठित गद्यांश Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

अपठित-बोध के अंतर्गत विद्यार्थी को किसी अपठित गद्यांश और काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर देने हैं। उत्तर देने से पूर्व अपठित को अच्छी प्रकार से पढ़कर समझ लेना चाहिए। जिन प्रश्नों के उत्तर पूछे जाते हैं, वे उसी में ही छिपे रहते हैं। उत्तर पूर्ण रूप से सटीक होने चाहिए। काव्यांश पर आधारित प्रश्नों में भावात्मकता, लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। अपठित का शीर्षक भी पूछा जाता है। शीर्षक अपठित में व्यक्त भावों के अनुरूप होना चाहिए। ध्यान रहे कि शीर्षक से अपठित का मूल – भाव भी स्पष्ट होना चाहिए। व्याकरण से संबंधित प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं।

अपठित गद्यांश के महत्वपूर्ण उदाहरण –

निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

1. भाषा और धर्म किसी भी संस्कृति के मूलाधार होते हैं। धर्म वह मूल्य तय करता है जिनसे जनसमूह संचालित होते हैं और भाषा सनातन मानव परंपराओं की वाहक और नई अभिव्यक्ति का वाहन दोनों है। निर्मल के रचना संसार में भारतीय धर्मों और भाषाओं की आश्यचर्यपूर्ण भिन्नता के प्रति एक सहज उत्सुकता और आदर का भाव हर कहीं है लेकिन इसी के साथ एक त्रासद अहसास भी है कि असली लड़ाई बाहरी युद्ध क्षेत्रों में नहीं, मनुष्यों के मनों में चलती है और आवश्यकता नहीं कि उस लड़ाई में जीत हमेशा उदात्त, धैर्यवान और क्षमाशील तत्वों की ही हो।

इस दर्शन के कारण आदमी, देवता, नदी, पर्वत, वनोपवन से जुड़े मिथकों की एक धुंध हमेशा उनके मन को आधुनिक जीवन जीने के बीच स्वदेश, परदेश पर कहीं घेरे रहती है। ” मिथक मनुष्य को ‘सर्जना’ उतनी नहीं, जितना वह मनुष्य की अज्ञात, अनाम, सामूहिक चेनता का अंग हैं इसके द्वारा अर्थ ग्रहण किया जाता है।…. कला चेतना की उपज है (जो)….. उदात्ततम क्षणों में मिथक होने का स्वप्न देखती है….. जिसमें व्यक्ति और समूह का भेद मिट जाता है।”

प्रश्न :

  1. ‘संस्कृति’ और ‘सामूहिक’ शब्दों में प्रत्यय लिखिए।
  2. संस्कृति के मूलाधार किसे माना जाता है ?
  3. निर्मल वर्मा के साहित्य में क्या उपलब्ध होता है ?
  4. कला क्या है ?
  5. संस्कृति के अनुशासन से क्या उत्पन्न होता है ?
  6. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. ‘इ’ और ‘इक’।
  2. संस्कृति के मूलाधार भाषा और धर्म को माना जाता है क्योंकि इन्हीं के द्वारा जीवन मूल्य और सनातन परंपराओं का वहन और जीवन का संचालन होता है।
  3. निर्मल वर्मा के साहित्य में भारतीय धर्मों और भाषाओं की आश्चर्यजनक उत्सुकता और आदर का भाव विद्यमान है। साथ ही मानव के मन में उत्पन्न होने वाले भिन्न-भिन्न भाव भी उपलब्ध होते हैं।
  4. कला चेतना की उपज है जिसमें मिथकों के माध्यम से व्यक्ति और समूह का भेद मिट जाता है।
  5. संस्कृति के अनुशासन से किसी लेखक में सच्चे और कठोर आत्मालोचन की क्षमता उत्पन्न होती है। इससे संस्कृति के नए आयाम रचने की शक्ति मिलती है।
  6. भाषा और धर्म।

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2. हमारा हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला हुआ देश, आकार और आत्मा दोनों दृष्टियों से महान और सुंदर है। उसका बाह्य सौंदर्य विविधता की सामंजस्यपूर्ण स्थिति है और आत्मा का सौंदर्य विविधता में छिपी हुई एकता की अनुभूति है। चाहे कभी न गलने वाला हिम का प्राचीर हो, चाहे कभी न जमने वाला अतल समुद्र हो, चाहे किरणों की रेखाओं से खचित हरीतिमा हो, चाहे एकरस शून्यता ओढ़े हुए मरु हो, चाहे साँवले भरे मेघ हों, चाहे लपटों में साँस लेता हुआ बवंडर हो, सब अपनी भिन्नता में भी एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता देते हैं। जैसे मूर्ति के एक अंग का टूट जाना संपूर्ण देव – विग्रह को खंडित कर देता है, वैसे ही हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति है।

यदि इस भौगोलिक विविधता में व्याप्त सांस्कृतिक एकता न होती, तो यह विविध नदी, पर्वत, वनों का संग्रह मात्र रह जाता। परंतु इस महादेश की प्रतिभा ने इसकी अंतरात्मा को एक रसमयता में प्लावित करके इसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है, जिससे यह आसमुद्र एक नाम की परिधि में बँध जाता है। हर देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ एक भौतिक इकाई है, जिससे वह समस्त विश्व की भौतिक और भौगोलिक इकाई से जुड़ा हुआ है। विकास की दृष्टि से उसकी दूसरी स्थिति आत्म-रक्षात्मक तथा व्यवस्थापरक राजनीतिक सत्ता में है।

प्रश्न :

  1. अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
  2. ‘सुंदरता’ और ‘भौगोलिक’ में प्रत्यय बताइए।
  3. कौन एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं ?
  4. हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति कैसी है ?
  5. विकास की दृष्टि से किसी देश की स्थिति किसमें है?
  6. हमारे देश की अखंडता के लिए कैसी स्थिति आवश्यक है ?

उत्तर :

  1. देश की सांस्कृतिक एकता।
  2. ‘ता’ और ‘इक’।
  3. ऊँचे-ऊँचे बर्फ से ढके पर्वत, अतल गहराई वाले सागर, रेगिस्तान घने काले बादल, बवंडर आदि देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं।
  4. हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति वैसी ही है जैसे किसी मूर्ति की पूर्णता। मूर्ति का एक अंग भी टूट जाना देव-विग्रह को जैसे खंडित कर देता है वैसे ही हमारे देश की अखंडता है।
  5. विकास की दृष्टि से किसी देश की स्थिति आत्मरक्षात्मक और व्यवस्थात्मक राजनीतिक सत्ता में है। वह उसकी सांस्कृतिक गतिशीलता में है।
  6. हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति आवश्यक है।

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3. आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थिति पा चुके हैं, राष्ट्र की अनिवार्य विशेषताओं में दो हमारे पास हैं – भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता, परंतु अब तक हम उस वाणी को प्राप्त नहीं कर सके हैं जिसमें एक स्वतंत्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के निकट अपना परिचय देता है जहाँ तक बहुभाषा- भाषी होने का प्रश्न है, ऐसे देश की संख्या कम नहीं है जिनके भिन्न भागों में भिन्न भाषाओं की स्थिति है। पर उनकी अविच्छिन्न स्वतंत्रता की के परंपरा ने उन्हें सम-विषम स्वरों से एक राग रच लेने की क्षमता दे दी है।

हमारे देश की कथा कुछ दूसरी है। हमारी परतंत्रता आँधी-तूफ़ान समान नहीं आई, जिसका आकस्मिक संपर्क तीव्र अनुभूति से अस्तित्व को कंपित कर देता है। वह तो रोग के कीटाणु लाने वाले मंद समीर के समान साँस में समाकर शरीर में व्याप्त हो गई है। हमने अपने संपूर्ण अस्तित्व से उसके भार को दुर्वह नहीं अनुभव किया और हमें यह ऐतिहासिक सत्य भी विस्मृत हो गया कि कोई भी विजेता विजित कर राजनीतिक प्रभुत्व पाकर ही संतुष्ट नहीं होता, क्योंकि सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना राजनीतिक विजय न पूर्ण है, न स्थायी। घटनाएँ संस्कारों में चिर जीवन पाती हैं और संस्कार के अक्षय वाहक, शिक्षा, साहित्य, कला आदि हैं। राष्ट्र-जीवन की पूर्णता के लिए उसके मनोजगत को मुक्त करना होगा और यह कार्य विशेष प्रयत्न- साध्य है, क्योंकि शरीर को बाँधने वाली श्रृंखला से आत्मा को जकड़ने वाली श्रृंखला अधिक दृढ़ होती है।

प्रश्न :

  1. राष्ट्र की कौन-सी अनिवार्य विशेषताएँ हमारे पास हैं ?
  2. हमारी परतंत्रता कैसे आई ?
  3. किसके बिना राजनीतिक विजय अपूर्ण है ?
  4. संस्कार के अक्षय वाहक क्या हैं ?
  5. राष्ट्र जीवन की पूर्णता के लिए किसे मुक्त करना होगा ?
  6. उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. हमारे पास राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता एवं भौगोलिक अखंडता है।
  2. हमारी परतंत्रता रोग के कीटाणु लाने वाली वायु जैसी आई।
  3. सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना राजनीतिक विजय न पूर्ण है और न ही स्थायी है।
  4. संस्कार के अक्षय वाहक कला, शिक्षा एवं साहित्य हैं।
  5. राष्ट्र जीवन की पूर्णता के लिए हमें अपने मनोजगत को मुक्त करना होगा।
  6. राष्ट्र – जीवन।

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4. जल और मानव-जीवन का संबंध अत्यंत घनिष्ठ है। वास्तव में जल ही जीवन है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियों का जन्म बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे ही हुआ है। बचपन से ही हम जल की उपयोगिता, शीतलता और निर्मलता के कारण उसकी ओर आकर्षित होते रहे हैं। किंतु नल के नीचे नहाने और जलाशय में डुबकी लगाने में ज़मीन-आसमान का अंतर है। हम जलाशयों को देखते ही मचल उठते हैं, उसमें तैरने के लिए। आज सर्वत्र सहस्त्रों व्यक्ति प्रतिदिन सागरों, नदियों और झीलों में तैरकर मनोविनोद करते हैं और साथ ही अपना शरीर भी स्वस्थ रखते हैं।

स्वच्छ और शीतल जल में तैरना तन को स्फूर्ति ही नहीं मन को शांति भी प्रदान करता है। तैराकी आनंद की वस्तु होने के साथ-साथ हमारी आवश्यकता भी है। नदियों के आस – पास गाँव के लोग सड़क मार्ग न होने पर एक-दूसरे से तभी मिल सकते हैं जब उन्हें तैरना आता हो अथवा नदियों में नावें हों। प्राचीनकाल में नावें कहाँ थीं ? तब तो आदमी को तैरकर ही नदियों को पार करना पड़ता था। किंतु तैरने के लिए आदिम मनुष्य को निश्चय ही प्रयत्न और परिश्रम करना पड़ता होगा, क्योंकि उसमें अन्य प्राणियों की भाँति तैरने की जन्मजात क्षमता नहीं है।

जल में मछली आदि जलजीवों को स्वच्छंद विचरण करते देख मनुष्य ने उसी प्रकार तैरना सीखने का प्रयत्न किया और धीरे-धीरे उसने इस कार्य में इतनी निपुणता प्राप्त कर ली कि आज तैराकी एक कला के रूप में गिनी जाने लगी। विश्व में जो भी खेल प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं, उनमें तैराकी प्रतियोगिता अनिवार्य रूप से सम्मिलित की जाती है।

प्रश्न :

  1. विश्व की प्रमुख संस्कृतियों का जन्म कहाँ से हुआ ?
  2. तैराकी के द्वारा क्या लाभ प्राप्त होते हैं ?
  3. प्राचीनकाल में तैराकी मानव के लिए आवश्यक क्यों थी ?
  4. आदिमानव को तैराकी की प्रेरणा कैसे मिली होगी ?
  5. मनुष्य के लिए ‘तैराकी’ कैसी क्षमता है ?
  6. तैराकी की विश्व में महत्ता कैसे प्रकट होती है ?

उत्तर :

  1. विश्व की प्रमुख संस्कृतियों का जन्म बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे हुआ।
  2. तैराकी द्वारा मनोविनोद, शारीरिक स्फूर्ति और मानसिक शांति मिलती है।
  3. एक-दूसरे तक पहुँचने के लिए नदियों को तैरकर पार करना पड़ता था।
  4. आदिमानव को तैराकी की प्रेरणा जलचरों से मिली होगी।
  5. मनुष्य के लिए तैराकी अभ्यास से प्राप्त क्षमता है।
  6. तैराकी की विश्वस्तरीय विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर विजित होने से।

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5. भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं – सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देरी नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावशाली बनाने के लिए उसमें उतार- चढ़ाव, तथ्य और आँकड़ों का समावेश आवश्यक है। अतः उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।

प्रश्न :

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
  2. अच्छे भाषण के कौन-से गुण होते हैं ?
  3. श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं ?
  4. कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता ?
  5. ‘श्रोता’ तथा ‘जोश’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
  6. ‘उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है।’ अर्थ की दृष्टि से कौन – सा भेद है?

उत्तर :

  1. श्रेष्ठ भाषणकर्ता।
  2. अच्छे भाषण में सादगी, तथ्य, उत्साह, आँकड़ों का समावेश होना चाहिए।
  3. जो भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, उसे श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
  4. जिस भाषण में सादगी, वास्तविकता और उत्साह नहीं होता, उस भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।
  5. श्रोता = सुनने वाला। जोश = आवेग, उत्साह।
  6. विधानवाचक वाक्य।

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6. सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि घृणा से घृणा का जन्म होता है जो दावाग्नि की तरह सबको जलाने का काम करती है। महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतने में विश्वास करते थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव द्वारा सांप्रदायिक घृणा को मिटाने का आजीवन प्रयत्न किया। हिंदू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाओं को समान आदर की दृष्टि से देखा। सभी धर्म शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन बताते हैं। धर्मों में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं, इसलिए धर्म के मूल में पार्थक्य या भेद नहीं है।

प्रश्न :

  1. घृणा से किसका जन्म होता है ?
  2. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
  3. सभी धर्म किन बातों पर बल देते हैं ?
  4. सांप्रदायिक सद्भावना कैसे बनाए रखी जा सकती है ?
  5. महात्मा गांधी घृणा को कैसे जीतना चाहते थे ?
  6. ‘छोटे-बड़े’ शब्द में कौन-सा समास है?

उत्तर :

  1. घृणा का जन्म होता है
  2. सांप्रदायिक सद्भाव
  3. सभी धर्म, सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं।
  4. सांप्रदायिक सद्भावना बनाए रखने के लिए सब धर्मों वालों को आपस में प्रेम और विश्वास बनाए रखते हुए सब धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए।
  5. महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतना चाहते थे।
  6. द्वंद्व समास।

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7. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्तव्य पूरा करने में नहीं। अहं बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है। एक सीमा तक आवश्यक भी है। परंतु आज के विद्यार्थियों में इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गए हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने उन अधिकारों को, जिनके वे अधिकारी नहीं हैं, उसे भी वे अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक- दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती हैं जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है, परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है।

प्रश्न :

  1. आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है ?
  2. विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं ?
  3. विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक हैं ?
  4. रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
  6. ‘अधिकारी’ शब्द से प्रत्यय और उपसर्ग अलग करके लिखिए।

उत्तर :

  1. आधुनिक विद्यार्थियों में अहंकार बढ़ने और विनम्रता न होने से नम्रता की कमी होती जा रही है।
  2. विद्यार्थी प्रायः गुरुजनों या बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
  3. विद्यार्थियों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता अधिक है।
  4. विनय = नम्रता। सजग = सावधान।
  5. विद्यार्थियों में अहंकार।
  6. अधि उपसर्ग, ई प्रत्यय।

8. जीवन घटनाओं का समूह है। यह संसार एक बहती नदी के समान है। इसमें बूँद न जाने किन-किन घटनाओं का सामना करती जूझती आगे बढ़ती है। देखने में तो इस बूँद की हस्ती कुछ भी नहीं। जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जो मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं। मनुष्य अपने को महान कार्य कर सकने में समर्थ समझने लगता है। मेरे जीवन में एक रोमांचकारी घटना है जिसे मैं आपको सुनाना चाहती हूँ। यह घटना जीवन के सुख-दुख के मधुर मिलन का रोमांच लिए है।

प्रश्न :

  1. जीवन क्या है ?
  2. लेखिका क्या सुनाना चाहती है ?
  3. नदी की धारा में पानी की एक बूँद का क्या महत्व है ?
  4. रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. यह संसार कैसा है?
  6. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. जीवन घटनाओं का समूह है।
  2. लेखिका अपने जीवन की एक रोमांचकारी घटना सुनाना चाहती है।
  3. नदी की धारा पानी की एक-एक बूँद से मिलकर बनती है, इसलिए नदी की धारा में पानी की एक बूँद भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  4. हस्ती = महत्व, अस्तित्व, वजूद। रोमांचकारी = आनंद देने वाली, पुलकित करने वाली।
  5. यह संसार एक बहती नदी के समान है।
  6. जीवन : एक संघर्ष।

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9. लोग कहते हैं कि मेरा जीवन नाशवान है। मुझे एक बार पढ़कर लोग फेंक देते हैं। मेरे लिए एक कहावत बनी है “पानी केरा बुदबुदा अस अखबार की जात, पढ़ते ही छिप जात है, ज्यों तारा प्रभात।” पर मुझे अपने इस जीवन पर भी गर्व है। मर कर भी मैं दूसरों के काम आता हूँ। मेरे सच्चे प्रेमी मेरे सारे शरीर को फाइल में क्रम से सँभाल कर रखते हैं। कई लोग मेरे उपयोगी अंगों को काटकर रख लेते हैं। मैं रद्दी बनकर भी ग्राहकों की कीमत का एक तिहाई भाग अवश्य लौटा देता हूँ। इस प्रकार महान उपकारी होने के कारण मैं दूसरे ही दिन नया जीवन पाता हूँ और अधिक ज़ोर-शोर से सज-धज के आता हूँ। इस प्रकार एक बार फिर सबके मन में समा जाता हूँ। तुमको भी ईर्ष्या होने लगी है न मेरे जीवन से। भाई ईर्ष्या नहीं स्पर्धा करो। आप भी मेरी तरह उपकारी बनो। तुम भी सबकी आँखों के तारे बन जाओगे।

प्रश्न :

  1. अखबार का जीवन नाशवान कैसे है ?
  2. अखबार क्या- क्या लाभ पहुँचाता है ?
  3. यह किस प्रकार उपकार करता है ?
  4. इन शब्दों के अर्थ लिखिए – उपयोगी, स्पर्धा।
  5. गद्यांश का उपयुक्त ‘शीर्षक’ दीजिए।
  6. हमें ईर्ष्या के स्थान पर क्या करना चाहिए?

उत्तर :

  1. इसे लोग एक बार पढ़ कर फेंक देते हैं। इसलिए अखबार का जीवन नाशवान है।
  2. अखबार ताज़े समाचार देने के अतिरिक्त रद्दी बनकर लिफाफे बनाने के काम आता है। कुछ लोग उपयोगी समाचार काट कर फाइल बना लेते हैं।
  3. रद्दी के रूप में बिककर वह अपना एक-तिहाई मूल्य लौटाकर उपकार करता है।
  4. उपयोगी = काम में आने वाला। स्पर्धा = मुकाबला।
  5. ‘अखबार’।
  6. हमें ईर्ष्या के स्थान पर स्पर्धा करनी चाहिए।

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10. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन में नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान जीवन पथ का सारथी बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शास्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान जीवनों के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुख और निराशा की काली घटाएँ आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुँह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है। लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा, जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।

प्रश्न :

  1. महान जीवन के रथ किस पथ से गुज़रते हैं ?
  2. आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं ?
  3. निराशा की काली घटाएँ किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं ?
  4. रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
  6. आत्मविश्वास को कौन – सा शास्त्र कहा गया है?

उत्तर :

  1. महान जीवन के रथ फूलों से भरे वनों से ही नहीं गुज़रते बल्कि कांटों से भरे बीहड़ पथ पर भी चलते हैं। द्वारा हम जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं।
  2. आत्म-विश्वास के शस्त्र के द्वारा हम जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं।
  3. आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति के आगे निराशा की काली घटाएँ समाप्त हो जाती हैं।
  4. सोपानों सीढ़ियों। ज्योति प्रकाश।
  5. शीर्षक – आत्मविश्वास।
  6. आत्मविश्वास को दुर्जय शास्त्र कहा गया है।

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11. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है, प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आंतरिक सहयोग पर अवलंबित है। किसी मशीन का उसके पुर्जों के साथ संबंध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, नाक, हाथ, पाँव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुँच जाता है। पहले क्षण आँख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुँच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का संबंध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज को पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो कहीं पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलता-फूलता है।

प्रश्न :

  1. समाज कैसे फलता-फूलता है ?
  2. शरीर के अंग कैसे सहयोग करते हैं ?
  3. समाज और व्यक्तियों का क्या संबंध है ?
  4. ‘अवलंबित’ में कौन-सा प्रत्यय है?
  5. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
  6. समाज को पूर्णता कैसी मिलती है?

उत्तर :

  1. प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपना काम मेहनत, लगन और ईमानदारी से करने पर समाज फलता-फूलता है।
  2. शरीर के अंग शरीर को स्वस्थ रखने में सहयोग करते हैं। जैसे जब शरीर के किसी अंग को चोट लगती है तो मन के संकेत पर आँख और हाथ उसकी सहायता के लिए पहुँच जाते हैं।
  3. समाज और व्यक्तियों का आपस में घनिष्ठ संबंध है। समाज के विकास के लिए व्यक्तियों को आपस में मिल-जुलकर काम करना होता है। समाज को पूर्णता भी व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है।
  4. ‘इत’ प्रत्यय है।
  5. शीर्षक – व्यक्ति और समाज।
  6. व्यक्तियों के सहयोग से समाज को पूर्णता मिलती है।

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12. भारतवर्ष एक धर्म-निरपेक्ष गणतंत्र है। यहाँ प्रत्येक धर्मावलम्बी को अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुरूप अपने आराध्य देव की आराधना करने की स्वतंत्रता है। किंतु कुछ स्वार्थी तत्व देश की एकता को खंडित करने के लिए धर्म के नाम पर लोगों के मन में विष भरकर सांप्रदायिक दंगे कराते रहते हैं। इसमें कुछ लोग देश का विभिन्न संप्रदायों के आधार पर विभाजन करना चाहते हैं। हमें इस षड्यंत्र से सावधान रहना चाहिए तथा देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना चाहिए, क्योंकि “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।”

प्रश्न :

  1. भारतवर्ष कैसा गणतंत्र है ?
  2. हमारे देश में प्रत्येक धर्मावलंबी को किस कार्य की स्वतंत्रता है ?
  3. हमें किस षड्यंत्र से सावधान रहना चाहिए ?
  4. ‘आराध्य’ और ‘मज़हब’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए !
  6. ‘धर्मावलंबी’ में कौन-सा समास है?

उत्तर :

  1. भारतवर्ष एक धर्मनिरपेक्ष गणतन्त्र है।
  2. हमारे देश में प्रत्येक धर्मावलम्बी को अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुरूप अपने आराध्य देव की आराधना करने की स्वतन्त्रता है।
  3. हमें देश की एकता को खंडित करने वाले तथा धर्म के नाम पर सांप्रदायिक दंगा कराने वालों के षड्यन्त्र से सावधान रहना चाहिए।
  4. आराध्य = पूजनीय, मज़हब = धर्म।
  5. सांप्रदायिक सद्भाव।
  6. संबंध तत्पुरुष समास।

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13. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश होता है जिसके आधार पर राष्ट्रीयता का जन्म तथा विकास होता है। इस कारण देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के उद्देश्य से कुछ विघटनकारी शक्तियाँ हमारे देश को देश न कहकर उपमहाद्वीप के नाम से संबोधित करती हैं। भौगोलिक दृष्टि से भारत के विस्तृत भू-खंड, जिसमें अनेक नदियाँ और पर्वत कभी-कभी प्राकृतिक बाधाएँ भी उपस्थित कर देते हैं, को ये शक्तियाँ संकीर्ण क्षेत्रीयता की भावनाएँ विकसित करने में सहायता करती हैं।

प्रश्न :

  1. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण क्या है ?
  2. देश की इकाई किसलिए आवश्यक है ?
  3. भौगोलिक दृष्टि से भारत कैसा है ?
  4. ‘राष्ट्रीय तथा भौगोलिक’ शब्दों से प्रत्यय अलग करके लिखिए।
  5. इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  6. भारत के विस्तृत भूखंड में कौन प्राकृतिक बाधाएँ उत्पन्न करते हैं?

उत्तर :

  1. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश है।
  2. देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है।
  3. भौगोलिक दृष्टि से भारत उपमहाद्वीप जैसा है जिसमें अनेक नदियाँ, पहाड़ और विस्तृत भूखंड है।
  4. ईय और इक।
  5. राष्ट्रीयता।
  6. नदियाँ और पर्वत प्राकृतिक बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।

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14. दस गीदड़ों की अपेक्षा एक सिंह अच्छा है। सिंह – सिंह और गीदड़ – गीदड़ है। यही स्थिति परिवार के उन सदस्य की होती है जिनकी संख्या आवश्यकता से अधिक हो। न भरपेट भोजन, न तन ढकने के लिए वस्त्र। न अच्छी शिक्षा, न मनचाहा रोज़गार। गृहपति प्रतिक्षण चिंता में डूबा रहता है। रात की नींद और दिन का चैन गायब हो जाता है। बार-बार दूसरों पर निर्भर होने की विवशता। सम्मान और प्रतिष्ठा तो जैसे सपने की बातें हों। यदि दुर्भाग्यवश गृहपति न रहे तो आश्रितों का कोई टिकाना नहीं। इसलिए आवश्यक है कि परिवार छोटा हो।

प्रश्न :

  1. परिवार के सदस्यों की क्या स्थिति होती है ?
  2. गृहपति प्रतिक्षण चिंता में क्यों डूबा रहता है ?
  3. रात की नींद और दिन का चैन क्यों गायब हो जाता है ?
  4. ‘प्रतिक्षण’ में कौन-सा समास है?
  5. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
  6. गृहपति किसे कहा गया है ?

उत्तर :

  1. जिस परिवार की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है, उस परिवार को न भरपेट भोजन, न वस्त्र, न अच्छी शिक्षा और न ही मनचाहा रोज़गार मिलता है। उनकी स्थिति दस गीदड़ों जैसी हो जाती है।
  2. गृहपति प्रतिक्षण परिवार के भरण-पोषण की चिंता में डूबा रहता है कि इतने बड़े परिवार का गुजारा कैसे होगा ?
  3. रात की नींद और दिन का चैन इसलिए गायब हो जाता है क्योंकि बड़े परिवार के गृहपति को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका सम्मान तथा प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। उसे अपने मरने के बाद परिवार की दुर्दशा के संबंध में सोचकर बेचैनी होती है।
  4. क्षण-क्षण = अव्ययीभाव समास।
  5. छोटा परिवार : सुखी परिवार।
  6. गृहपति घर के मालिक को कहा गया है।

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15. अकेलेपन की समस्या आज के मशीनी युग में बढ़ती ही जा रही है। यह समस्या घर-परिवार व समाज में प्रत्येक स्थान पर मुँह खोले खड़ी दिखाई देती है। यह अकेलापन मनुष्य की नियति बनकर उसे ग्रसित कर रहा है। इसका कारण चाहे विघटित होते हुए संयुक्त परिवार हों, चाहे पारस्परिक संबंधों की विच्छिन्नता हो, चाहे मशीनी सभ्यता का प्रभाव हो, चाहे पुराने जीवन मूल्यों का खंड-खंड होकर बिखरा जाना हो, परंतु इस वास्तविकता को किसी भी दशा में नकारा नहीं जा सकता कि आज यह अकेलेपन की समस्या समाज में धीरे-धीरे अपने प्रभाव व अनुपात में वृद्धि की ओर अग्रसर हो चुकी है। आज पारिवारिक संबंधों में भी औपचारिकता घर कर चुकी है। हममें से न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो बताएँ या न बताएँ; पर कहीं-न-कही किसी-न-किसी सीमा तक अकेलेपन की समस्या से संत्रस्त हैं।

प्रश्न :

  1. मशीनी युग में कौन-सी समस्या बढ़ती जा रही है ?
  2. आज के पारिवारिक संबंध कैसे हो चुके हैं ?
  3. अकेलेपन के मुख्य कारण कौन-से हैं ?
  4. ‘अकेलापन’ और ‘औपचारिकता’ में कौन-से प्रत्यय हैं?
  5. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
  6. अकेलापन क्या बनकर मनुष्य को ग्रसित कर रहा है?

उत्तर :

  1. मशीनी युग में अकेलेपन की समस्या बढ़ती जा रही है ?
  2. आज के पारिवारिक संबंध औपचारिक हो गए हैं।
  3. अकेलेपन के मुख्य कारण विघटित होते हुए संयुक्त परिवार, आपसी संबंध में गिरावट, मशीनी युग का प्रभाव तथा पुराने मूल्यों का बिखरना है।
  4. पन तथा इक, ता।
  5. अकेलेपन की त्रासदो।
  6. अकेलापन मनुष्य को नियति बनकर ग्रसित कर रहा है।

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16. हिंदी की वर्तमान दशा पर प्रकाश डालने से पूर्व इसके उद्भव और विकास से आपका परिचय कराना चाहती हूँ। हिंदी के उद्भव की प्रक्रिया बहुत प्राचीन है। संस्कृत दो रूपों में बँटी – वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत। संस्कृत के लौकिक रूप से प्राकृत भाषा आई। प्राकृत के अपभ्रंश से शौरसैनी भाषा उत्पन्न हुई जिससे आज प्रयुक्त होने वाली पश्चिमी हिंदी भाषा का आविर्भाव हुआ। तुलसीदास और जायसी ने जिस अवधी भाषा का प्रयोग किया वह अर्ध मागधी प्राकृत से विकसित हुई। सूरदास, नंददास और अष्टछाप के कवियों ने जिस ब्रजभाषा में काव्य-रचना की वह शौरसैनी अथवा नगर अपभ्रंश से विकसित हुई।

भौगोलिक दृष्टि से खड़ी बोली उस बोली को कहते हैं जो रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ़्फ़रनगर, सहारनपुर, देहरादून, अंबाला और पटियाला के पूर्वी भागों में बोली जाती है। चौदहवीं शताब्दी में सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने इसे ‘भारत के मुसलमानों की भाषा’ कहकर इसमें काव्य-रचना की थी। तत्पश्चात भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला, पंत आदि ने इसे अपने साहित्य में प्रयुक्त किया और आज देश के लाखों साहित्यकार इसमें साहित्य-रचना कर रहे हैं। भाषा विज्ञान की दृष्टि से पश्चिमी हिंदी को ही हिंदी कहा जाता है और इस भू-भाग की भाषा थी जिसे प्राचीनकाल में अंतर्वेद कहते थे। इस भाषा में अरबी, फ़ारसी के शब्दों को भी स्वीकार किया गया।

प्रश्न :

  1. हिंदी के उद्भव से पूर्व संस्कृत की क्या दशा थी ?
  2. प्राकृत भाषा का विकास किससे हुआ था ?
  3. भाषा विज्ञान की दृष्टि से हिंदी का क्या स्वरूप है ?
  4. शौरसैनी से विकसित किस भाषा से किन कवियों ने काव्य रचना की ?
  5. ‘भौगोलिक’ शब्द में कौन-सा प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है ?
  6. भौगोलिक दृष्टि से खड़ी बोली किसे कहते हैं?

उत्तर :

  1. हिंदी के उद्भव से पूर्व संस्कृत भाषा वैदिक और लौकिक संस्कृत दो रूपों में विभक्त हो गई थी।
  2. प्राकृत भाषा का विकास संस्कृत भाषा के लौकिक रूप से हुआ था।
  3. भाषा विज्ञान की दृष्टि से पश्चिमी हिंदी को हिंदी कहा जाता है, जिसमें अरबी-फ़ारसी के शब्दों को भी स्वीकार किया गया है।
  4. शौरसैनी से विकसित ब्रजभाषा में अष्टछाप के सूरदास, नंददास आदि कवियों ने काव्य रचना की।
  5. ‘इक’ प्रत्यय।
  6. भौगोलिक दृष्टि से खड़ी बोली उस बोली को कहते हैं जो रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, अंबाला और पटियाला के पूर्वी भागों में बोली जाती है।

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17. मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 को बनारस के लमही नामक ग्राम में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। उनका बचपन अभावों में ही बीता और हर प्रकार के संघर्षों को झेलते हुए उन्होंने बी० ए० तक शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की किंतु असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह लेखन कार्य में जुट गए। वे तो जन्म से ही लेखक और चिंतक थे। शुरू में वे उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखने लगे। एक ओर समाज की कुरीतियों और दूसरी ओर तत्कालीन व्यस्था के प्रति निराशा और आक्रोश था। उनके लेखों में कमाल का जादू था।

वे अपनी बात को बड़ी ही प्रभावशाली ढंग से लिखते थे। जनता की खबरें पहुँच गयीं। अंग्रेजा सरकार ने उनके लेखों पर रोक लगा दी। किंतु, उनके मन में उठने वाले स्वतंत्र एवं क्रांतिकारी विचारों को भला कौन रोक सकता था। इसके बाद उन्होंने ‘प्रेमचंद’ के नाम से लिखना शुरू कर दिया। इस तरह से धनपतराय से प्रेमचंद बन गए। ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं जिनमें सामाजिक समस्याओं का सफल चित्रण है।

इनके अतिरिक्त उन्होंने ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोगा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘बड़े भाई साहब’ और ‘पंच परमेश्वर’ आदि अनेक अमर कहानियाँ भी लिखीं। वे आजीवन शोषण, रूढ़िवादिता, अज्ञानता और अत्याचारों के विरुद्ध अबाधित गति से लिखते रहे। गरीबों, किसानों, विधवाओं और दलितों की समस्याओं का प्रेमचंद जी ने बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे समाज में पनप चुकी कुरीतियों से बहुत आहत होते थे इसलिए उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास इनकी रचनाओं में सहज ही देखा जा सकता है। निःसंदेह वे महान उपन्यासकार और कहानीकार थे। सन 1936 में इनका देहांत हो गया।

प्रश्न :

  1. मुंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम क्या था ?
  2. प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र क्यों दे दिया था ?
  3. वे आजीवन किसके विरुद्ध लिखते रहे?
  4. ‘अबाधित’ तथा ‘आहत’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. प्रेमचंद के मन में किसके प्रति आक्रोश और निराशा थी ?
  6. प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यासों के नाम बताइए।

उत्तर :

  1. मुंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था।
  2. प्रेमचंद ने असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था।
  3. वे आजीवन सामाजिक समस्याओं से जुड़कर शोषण, अज्ञानता, रूढ़िवादी और गरीब किसानों, विधवाओं, दलितों आदि की विभिन्न समस्याओं और कुरीतियों को विरुद्ध लिखते रहे।
  4. ‘अबाधित’ – बिना किसी रुकावट के, ‘आहत’ – दुखी।
  5. प्रेमचंद के मन में समाज की कुरीतियों और देश की तत्कालीन व्यवस्था के प्रति आक्रोश और निराशा थी।
  6. प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास – सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि तथा गोदान हैं।

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18. आज की मौत कल पर ढकेलते-ढकेलते एक दिन ऐसा आ जाता है कि उस दिन मरना ही पड़ता है। यह प्रसंग उन पर नहीं आता, जो ‘मरण के पहले ‘ मर लेते हैं। जो अपना मरण आँखों से देखते हैं, जो मरण का ‘ अगाऊ’ अनुभव कर लेते हैं उनका मरण है। और, जो मरण के अगाऊ अनुभव से जी चुराते हैं, उनकी छाती पर मरण आ पड़ता है। सामने खंभा है, यह बात अंधे को उस खंभे का छाती में प्रत्यक्ष धक्का लगने के बाद मालूम होती है। आँख वाले को यह खंभा पहले ही दिखाई देता है। अतः उसका धक्का उसकी छाती को नहीं लगता। जिंदगी की ज़िम्मेदारी कोई गिरी मौत नहीं है और मौत कौन ऐसी बड़ी मौत है ? अनुभव के अभाव से यह सारा होता है।

जीवन और मरण दोनों आनंद की वस्तु होनी चाहिए। कारण, अपने परम प्रिय पिता ने – ईश्वर ने वे हमें दिए हैं। ईश्वर ने जीवन दुखमय नहीं रचा। पर, हमें जीवन जीना आना चाहिए। कौन पिता है, जो अपने बच्चों के लिए परेशानी की जिंदगी चाहेगा ? तिस पर ईश्वर के प्रेम और करुणा का कोई पार है ? वह अपने लाडले बच्चों के लिए सुखमय जीवन का निर्माण करेगा कि परेशानियों और झंझटों से भरा जीवन रचेगा ? कल्पना की क्या आवश्यकता है, प्रत्यक्ष ही देखिए न, हमारे लिए जो चीज़ जितनी ज़रूरी है, उसके उतनी ही सुलभता से मिलने का इंतज़ाम ईश्वर की ओर से है।

पानी से हवा ज़्यादा ज़रूरी है, तो ईश्वर ने हवा को अधिक सुलभ किया है। जहाँ नाक है, वहाँ हवा मौजूद है। पानी से अन्न की ज़रूरत कम होने की वजह से पानी प्राप्त करने की बनिस्बत अन्न प्राप्त करने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है। आत्मा सबसे अधिक महत्व की वस्तु होने के कारण, वह हर एक को हमेशा के लिए दे डाली गई है। ईश्वर की ऐसी प्रेमपूर्ण योजना है। इसका ख्याल न करके हम निकम्मे, जड़-जवाहरात जमा करने में जितने जड़ बन जाएँ, उतनी तकलीफ़ हमें होगी। पर, यह हमारी जड़ता का दोष है, ईश्वर का नहीं।

प्रश्न :

  1. अनुभव और अभाव में प्रयुक्त उपसर्ग लिखिए।
  2. मरण से पहले मरने का क्या तात्पर्य है?
  3. जीवन और मरण कैसे होने चाहिए?
  4. जीवन के लिए आवश्यक सुख-दुख कौन प्रदान करता है?
  5. सबसे अधिक महत्वपूर्ण वस्तु कौन-सी है ? वह कहाँ है ?
  6. आत्मा किस प्रकार की योजना है? इसका ख्याल न करने से क्या होगा ?

उत्तर :

  1. ‘अनु’ और ‘अ’।
  2. मृत्यु तो सभी को आनी है चाहे कोई इससे भयभीत हो या न हो। जो मौत से बिना भयभीत हुए जीवन की राह में आने वाली मुसीबतों को बिना परवाह किए टकराने का साहस रखते हैं वे मरण से पहले ही नहीं मरते।
  3. जीवन और मरण दोनों ही आनंद की वस्तुएँ होनी चाहिए क्योंकि इन दोनों को ईश्वर ने प्रदान किया है।
  4. जीवन के लिए सभी सुख – दुःख ईश्वर ही प्रदान करता है। उसी ने हवा दी और उसी ने पानी।
  5. सबसे महत्वपूर्ण वस्तु आत्मा है जो परमात्मा ने सभी को सदा के लिए दे दी है।
  6. आत्मा एक प्रेम पूर्ण योजना है। इसका ख्याल न करके हम जड़, निकम्मे तथा जड़-जवाहरात जमा करने में जड़ बन जाएँगे और तकलीफ होगी।

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19. सच्चरित्र दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ संपत्ति मानी गयी है। पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि पंचभूतों से बना मानव शरीर मौत के बाद समाप्त हो जाता है किंतु चरित्र का अस्तित्व बना रहता है। बड़े- बड़े चरित्रवान ऋषि-मुनि, विद्वान, महापुरुष आदि इसका प्रमाण हैं। आज भी श्रीराम, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि अनेक विभूतियाँ समाज में पूजनीय हैं। ये अपने सच्चरित्र के द्वारा इतिहास और समाज को नयी दिशा देने में सफल रहे हैं। समाज में विद्या और धन भला किस काम का।

अतः विद्या और धन के साथ-साथ चरित्र का अर्जन अत्यंत आवश्यक है। यद्यपि लंकापति रावण वेदों और शास्त्रों का महान ज्ञाता और अपार धन का स्वामी था किंतु सीता हरण जैसे कुकृत्य के कारण उसे अपयश का सामना करना पड़ा। आज युगों बीत जाने पर भी उसकी चरित्रहीनता के कारण उसके प्रतिवर्ष पुतले बनाकर जलाए जाते हैं। चरित्रहीनता को कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसा व्यक्ति आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से सदैव वंचित रहता है। वह कभी भी समाज में पूजनीय स्थान नहीं ग्रहण कर पाता है। जिस तरह पक्की ईंटों से पक्के भवन का निर्माण होता है उसी तरह सच्चरित्र से अच्छे समाज का निर्माण होता है। अतएव सच्चरित्र ही अच्छे समाज की नींव है।

प्रश्न :

  1. दुनिया की समस्त संपत्तियों में किसे श्रेष्ठ माना गया है ?
  2. रावण को क्यों अपयश का सामना करना पड़ा ?
  3. चरित्रहीन व्यक्ति सदैव किससे वंचित रहता है?
  4. ‘सच्चरित्र’ और ‘यद्यपि ‘ में संधि-विच्छेद कीजिए।
  5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  6. चरित्रहीन व्यक्ति के पुतले क्यों जलाए जाते हैं?

उत्तर :

  1. सच्चरित्र को दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ माना गया है।
  2. रावण को सीता जी के हरण के कारण अपयश का सामना करना पड़ा।
  3. चरित्रहीन व्यक्ति सदैव आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से वंचित रहता है।
  4. सत् + चरित्र, यदि + अपि।
  5. श्रेष्ठ संपत्ति – सच्चरित्रता।
  6. उसकी चरित्रहीनता के कारण उसके प्रतिवर्ष पुतले जलाए जाते हैं।

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20. हस्तकला ऐसे कलात्मक कार्य को कहा जाता है जो उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है। ऐसे कार्य मुख्य रूप से हाथों से अथवा छोटे-छोटे आसान उपकरणों या साधनों की मदद से ही किए जाते हैं। अपने हाथों से सजावट, पहनावे, बरतन, गहने, गहने, खिलौने आदि से संबंधित चीजों का निर्माण करने वालों को हस्तशिल्पी या दस्तकार कहा जाता है। इसमें अधिकतर पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिवार काम करते आ रहे हैं। जो चीजों मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर बनाई जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता।

भारत में हस्तशिल्प के पर्याप्त अवसर हैं। सभी राज्यों की हस्तकला अनूठी है। पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई की विशेष तकनीक को फुलवारी कहा जाता है। इस प्रकार की कढ़ाई से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढाँचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थान वस्त्रों, कीमती हीरे जवाहरात से जड़े आभूषणों, चमकते हुए बर्तनों, मीनाकारी, वड़ियाँ, पापड़, चूर्ण, भुजिया के लिए जाना जाता है।

आंध्र प्रदेश सिल्क की साड़ियों, केरल हाथी दाँत की नक्काशी और शीशम की लकड़ी के फर्नीचर, बंगाल हाथ से बुने हुए कपड़े, तमिलनाडु ताम्र मूर्तियों एवं कांजीवरम साड़ियों, मैसूर रेशम और चंदन की लकड़ी की वस्तुओं, कश्मीर अखरोट की लकड़ी के बने फर्नीचर, कढ़ाई वाली शालों तथा गलीचों, असम बेंत के फर्नीचर, लखनऊ चिकनकारी वाले कपड़ों, बनारस ज़री वाली सिल्की साड़ियों, मध्य प्रदेश चंदेरी और कोसा सिल्क के लिए प्रसिद्ध है। हस्तकला के क्षेत्र में रोज़गार की अनेक संभावनाएँ हैं। हस्तकला के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करके अपने पैरों पर खड़ा हुआ जा सकता है। इसमें निपुणता के साथ-साथ आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की भी आवश्यकता रहती है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जब आप उत्कृष्ट व अनूठी चीज़ बनाते हैं तो हस्तकला के मुरीद लोगों की कमी नहीं रहती।

प्रश्न :

  1. हस्तशिल्पी किसे कहते हैं?
  2. हस्तकला किसे कहते हैं?
  3. किन चीज़ों को हस्तकला की श्रेणी में नहीं लिया जाता ?
  4. पंजाब में हस्तकला के रूप में कौन-कौन सी चीजें प्रसिद्ध हैं?
  5. ‘दस्तकार’ तथा ‘निपुणता’ शब्दों से प्रत्यय अलग करके लिखिए।
  6. फुलवारी किसे कहा जाता है?

उत्तर :

  1. अपने हाथों से सजावट, पहनावे, बरतन, गहने, खिलौने आदि का निर्माण करने वाले को हस्तशिल्पी कहते हैं।
  2. हस्तकला उस श्रेष्ठ कलात्मक कार्य को कहते हैं जो समाज के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है।
  3. वे चीजें जो मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर तैयार की जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता।
  4. पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई (फुलकारी) से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढाँचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी अति प्रसिद्ध हैं।
  5. कार, ता।
  6. पंजाब में हाथ से की जाने वाली विशेष कढ़ाई की विशेष तकनीक को फुलवारी कहते हैं।

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21. व्यापार और वाणिज्य ने यातायात के साधनों को सुलभ बनाने में योग दिया है। यद्यपि यातायात के साधनों में उन्नति युद्धों के कारण भी हुई है, तथापि युद्ध स्थायी संस्था नहीं है। व्यापार से रेलों, जहाजों आदि को प्रोत्साहन मिलता है और इनसे व्यापार को। व्यापार के आधार पर हमारे डाक तार विभाग भी फले-फूले हैं। व्यापार ही देश की सभ्यता का मापदंड है। दूसरे देशों से जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, वह व्यापार के बल – भरोसे होती है। व्यापार में आयात और निर्यात दोनों ही सम्मिलित हैं। व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए व्यापारी को अच्छा आचरण रखना बहुत आवश्यक है। उसे सत्य से प्रेम करना चाहिए।

अकेला यही गुण उसे अनेक सांसारिक झंझटों से बचाने में सफल हो सकेगा और उसे एक चतुर व्यापारी बना सकेगा, क्योंकि जो आदमी सच्चा होता है वह अपने काम-काज और व्यवहार में सादगी से काम लेता है। फल यह होता है कि उससे गलती कम होती है और नुकसान उठाने के अवसर बहुत कम आते हैं। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं उनके अपने रोज्याना के काम-काज और व्यवहार में उचित – अनुचित और अच्छे-बुरे का ध्यान अवश्य बना रहता है। व्यापारी को आशावादी और शांत स्वभाव का होना चाहिए।

उसे न निराश होने की आवश्यकता है और न क्रोध करने की। यदि आज थोड़ा नुकसान हुआ है तो कल फ़ायदा भी ज़रूर होगा, यह सोचकर उसे घबराना नहीं चाहिए। सेवा की पतवार के सहारे अपने व्यापार अथवा व्यवसाय की नाव को उत्साह सहित भँवर से निकाल ले जाने में बुद्धिमानी है। हारकर हाथ-पैर छोड़ देने से यश नहीं मिलता। व्यापार ने हमारे सुख-साधनों को बढ़ाकर हमारे जीवन का स्तर ऊँचा किया है। हमारे विशाल भवन, गगनचुंबी अट्टालिकाएँ, स्वच्छ दुग्ध, फेनोज्ज्वल कटे-छटे वस्त्र, विद्युत – प्रकाश, रेडियो, तार, टेलीविजन, रेल और मोटरें सब हमारे व्यापार पर ही आश्रित हैं। व्यापार में दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता अभी बढ़ी हुई है। जब तक यह निर्भरता रहेगी तब तक हम सच्चे अर्थ में स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं।

प्रश्न :

  1. इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  2. देश की सभ्यता का मापदंड किसे कहा गया है?
  3. किसी व्यापारी का आचरण कैसा होना चाहिए?
  4. व्यापारी को आशावादी क्यों होना चाहिए ?
  5. व्यापार ने सुख-साधनों को कैसे बढ़ाया है?
  6. हमें व्यापार के क्षेत्र में क्या करना चाहिए?

उत्तर :

  1. शीर्षक सफल व्यापारी है।
  2. व्यापार देश की सभ्यता का मापदंड है।
  3. व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए किसी भी व्यापारी के सत्य प्रेमी, सादगी पसंद, चतुर और व्यवहार कुशल होना चाहिए। उसे उचित – अनुचित में भेद की समझ होनी चाहिए। उसे विवेकी और आशावादी होना चाहिए।
  4. किसी भी व्यापार में लाभ-हानि तो लगी रहती है। आशावादी बनकर उसे नुकसान की स्थिति को सहना आना चाहिए। निराशा की भावना उसे और उसके व्यापार को अधिक क्षति पहुँचा सकती है।
  5. व्यापार ने सारे समाज के सुख-साधनों को बढ़ाया है। हमारे जीवन स्तर को ऊँचा किया है। ऊँचे-ऊँचे भवन, वैज्ञानिक उपकरण तथा सभी सुख – सामग्री व्यापार पर ही आश्रित हैं।
  6. हमें व्यापार के क्षेत्र में आयात को कम कर निर्यात को बढ़ाना चाहिए। जब तक हम सामग्री के लिए दूसरे देशों पर निर्भर करते रहेंगे तब तक हम विकसित नहीं होंगे। हमें आत्मनिर्भर बनना चाहिए।

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22. किशोरावस्था में शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन आते हैं और इन्हीं परिवर्तनों के साथ किशोरों की भावनाएँ भी प्रभावित होती हैं। बार-बार टोकना, अधिक उपदेशात्मक बातें किशोर सहन नहीं करना चाहते। कोई बात बुरी लगने पर वे क्रोध में शीघ्र आ जाते हैं। यदि उनका कोई मित्र बुरा है तब भी वे यह दलील देते हैं कि वह चाहे बुरा है किन्तु मैं तो बुरा नहीं हूँ। कई बार वे बेवजह बहस एवं ज़िद्द के कारण क्रोध करने लगते हैं। अभिभावकों को उनके साथ डाँट-डपट नहीं अपितु प्यार से पेश आना चाहिए।

उन्हें सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ बाज़ार से स्वयं फल-सब्ज़ियाँ लाना, बिजली-पानी का बिल अदा करना आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में लगाना चाहिए। अभिभावकों को उन पर विश्वास दिखाना चाहिए। उनके अच्छे कामों की प्रशंसा की जानी चाहिए। किशोरों को भी चाहिए कि वे यह समझें कि उनके माता-पिता मात्र उनका भला चाहते हैं। किशोर पढ़ाई को लेकर भी चिंतित रहते हैं। वे परीक्षा में अच्छे नंबर लेने का दबाव बना लेते हैं जिससे उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है।

इसके लिए उन्हें स्वयं योजनाबद्ध तरीके से मन लगाकर पढ़ना चाहिए। उन्हें दिनचर्या में खेलकूद, सैर, व्यायाम, संगीत आदि को भी शामिल करना चाहिए। इससे उनका तनाव कम होगा। उन्हें शिक्षकों से उचित मार्गदर्शन लेना चाहिए। माता-पिता को भी उन पर अच्छे नंबरों का दबाव नहीं बनाना चाहिए और न ही किसी से उनकी तुलना करनी चाहिए। अपने किसी सहपाठी या पड़ोस में किसी को सफलता मिलने पर कई किशोरों में ईर्ष्या की भावना आ जाती है। जबकि उन्हें ईर्ष्या नहीं, प्रतिस्पर्धा रखनी चाहिए।

कई बार कुछ किशोर किसी विषय को कठिन मानकर उससे भय खाने लगते हैं कि इसमें पास होंगे कि नहीं जबकि उन्हें समझना चाहिए कि किसी समस्या का हल डर से नहीं अपितु उसका सामना करने से हो सकता है। इसके अतिरिक्त कुछ किशोर शर्मीले स्वभाव के होते हैं, अधिक संवेदनशील होते हैं। उनका दायरा भी सीमित होता है। वे अपने उसी दायरे के मित्रों को छोड़कर अन्य लोगों से शर्माते हैं। इसके लिए उन्हें स्कूल की पाठ्येतर क्रियाओं में भाग लेना चाहिए जिससे उनकी झिझक दूर हो सके।

प्रश्न :

  1. किशोरावस्था में किशोरों की भावनाएँ किस प्रकार प्रभावित होती हैं?
  2. किशोरों की ऊर्जा को उचित दिशा में कैसे लगाना चाहिए ?
  3. किशोर अपनी चिंता और दबाव को किस प्रकार दूर कर सकते हैं ?
  4. ‘प्रतिस्पर्धा’ तथा ‘संवेदनशील’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. किशोर क्या सहन नहीं करते ?
  6. गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

उत्तर :

  1. विभिन्न प्रकार के शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन किशोरावस्था में आते हैं और इन्हीं के कारण उनकी भावनाएँ बहुत तीव्रता से प्रभावित होती हैं।
  2. किशोरों की सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ उपयोगी कार्यों की तरफ़ दिशा दिखानी चाहिए और उन्हें बाज़ार से फल-सब्ज़ियाँ लेने भेजना, बिजली-पानी का बिल अदा करने आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में उन्मुख करना चाहिए।
  3. किशोर योजनाबद्ध और व्यवस्थित तरीके से पढ़कर, खेलकूद में भाग लेकर, सैर, व्यायाम और संगीत, सामाजिक गतिविधियों आदि को सम्मिलित करके अपनी चिंता और दबाव को दूर कर सकते हैं।
  4. ‘प्रतिस्पर्धा ‘ – होड़, ‘संवेदनशील’ – भावुक।
  5. किशोर किसी बात पर उन्हें बार-बार टोकना, सदा उपदेश देते रहना, सहन नहीं करते तथा किसी बात में बुरा लगने पर शीघ्र ही क्रोध में आ जाते हैं।
  6. किशोरावस्था।

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23. जब एक उपभोक्ता अपने घर पर बैठे इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं की खरीददारी करता है तो उसे ऑन लाइन खरीददारी कहा जाता है। इस तरह की खरीददारी आज अत्यंत लोकप्रिय हो गई है। दुकानों, शोरूमों आदि के खुलने और बंद होने का समय होता है किंतु ऑनलाइन खरीददारी का कोई विशेष समय नहीं है। आप जब चाहें इंटरनेट के माध्यम से खरीददारी कर सकते हैं। आप फर्नीचर, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

यद्यपि यह बहुत ही सुविधाजनक व लाभदायक है तथापि इसमें कई जोखिम भी समाविष्ट हैं। अतः ऑनलाइन खरीददारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। सबसे पहले इस बात का यान रखें कि जिस वेबसाइट से आप खरीददारी करने जा रहे हैं वह वास्तविक है अथवा वस्तुओं की कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन करके ही खरीददारी करें। बिक्री के नियम एवं शर्तों को पढ़ने के बाद उसका प्रिंट लेना समझदारी होगी। यदि आप क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान करते हैं तो भुगतान के बाद तुरंत जाँच लें कि आपने जो कीमत चुकाई है वह सही है या नहीं।

यदि आप उससे कोई भी परिवर्तन पाते हैं तो तत्काल संबंधित अधिकारियों से संपर्क स्थापित करके उन्हें सूचित करें। वैसे ऐसी साइटों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिसमें ऑर्डर की गई वस्तु की प्राप्ति होने पर नकद भुगतान करने ही सुविधा हो एवं खरीदी गई वस्तु नापसंद होने पर वापस करने का प्रावधान हो।

प्रश्न :

  1. ऑनलाइन खरीददारी किसे कहा जाता है ?
  2. आप इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन क्या-क्या खरीददारी कर सकते हो ?
  3. क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो हमें क्या करना चाहिए ?
  4. ‘समाविष्ट’ और ‘प्राथमिकता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. किस साइट से ऑनलाइन खरीद करनी चाहिए ?
  6. ‘प्रतिस्पर्धा ‘ शब्द का समानार्थक लिखिए।

उत्तर :

  1. जब कोई उपभोक्ता बिना बाज़ार गए अपने घर बैठे-बैठे इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह की वस्तुओं की खरीददारी करता है तो उसे ऑनलाइन खरीददारी कहा जाता है।
  2. हम इंटरनेट के माध्यम से फर्नीचर, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं।
  3. क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो तुरंत ही संबंधित अधिकारियों को इसकी सूचना दी जानी चाहिए।
  4. समाविष्ट – सम्मिलित होना, प्राथमिकता – वरीयता।
  5. ऐसी साइटस से ऑनलाइन खरीद करनी चाहिए जिसमें ऑर्डर दी गई वस्तु की प्राप्ति होने पर भुगतान करने की सुविधा हो तथा खरीदी वस्तु पसंद नहीं आने पर वापस भी की जा सके।
  6. प्रतियोगिता।

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24. पंजाब की संस्कृति का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई। यहीं प्राचीनतम सिंधु घाटी की सभ्यता का जन्म हुआ। यह गुरुओं की पवित्र धरती है। यहाँ गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोविंद सिंह जी तक दस गुरुओं ने धार्मिक चेतना तथा लोक-कल्याण के अनेक सराहनीय कार्य किए हैं। गुरु तेग बहादुर जी एवं गुरु गोविंद सिंह जी के चारों साहिबज़ादों का बलिदान हमारे लिए प्रेरणादायक है और ऐसा उदाहरण संसार में अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देता। यहाँ अमृतसर का श्री हरमंदिर साहिब प्रमुख धार्मिक स्थल है।

इसके अतिरिक्त आनंदपुर साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब, फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे भी प्रसिद्ध हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के वीरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश के अन्न भंडार के लिए सबसे अधिक अनाज पंजाब ही देता है। पंजाब में लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों के अवसरों पर मेलों का आयोजन भी हर्षोल्लास से किया जाता है। आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला, मुक्तसर का माघी मेला, सरहिंद में शहीदी जोड़ मेला, फ़रीदकोट में शेख फरीद आगम पर्व, सरहिंद में रोज़ा शरीफ पर उर्स और छपार मेला जगराओं की रोशनी आदि प्रमुख हैं।

पंजाबी संस्कृति के विकास में पंजाबी साहित्य का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मुसलमान सूफ़ी संत शेख फ़रीद, शाह हुसैन, बुल्लेशाह, गुरु नानकदेव जी, शाह मोहम्मद, गुरु अर्जनदेव जी आदि की वाणी में पंजाबी साहित्य के दर्शन होते हैं। इसके बाद दामोदर, पीलू, वारिस शाह, भाई वीर सिंह, कवि पूर्ण सिंह, धनीराम चात्रिक, शिव कुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि कवियों, जसवंत सिंह, गुरदयाल सिंह और मोहन सिंह शीतल आदि उपन्यासकारों तथा अजमेर सिंह औलख, बलवंत गार्गी तथा गुरशरण सिंह आदि नाटककारों की पंजाबी साहित्य के उत्थान में सराहनीय भूमिका रही है।

प्रश्न :

  1. चारों वेदों की रचना कहाँ हुई ?
  2. पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल कौन-से हैं?
  3. पंजाब के प्रमुख त्योहार कौन-से हैं?
  4. देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब का क्या योगदान था ?
  5. ‘प्रेरणादायक’ और ‘हर्षोल्लास’ में संधि-विच्छेद कीजिए।
  6. किन लोगों का बलिदान हमारे लिए प्रेरणादायक है ?

उत्तर :

  1. पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई।
  2. अमृतसर, आनंदपुर साहिब, फतेहगढ़ साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब आदि पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं।
  3. लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि पंजाब के प्रमुख त्योहार हैं।
  4. देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के वीरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
  5. प्रेरणा दायक, हर्ष + उल्लास।
  6. गुरुतेग बहादुर जी एवं गुरु गोविंद जी के चारों साहिबजादों का बलिदान प्रेरणादायक हैं।

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25. इस संसार में प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदत्त सबसे अमूल्य उपहार ‘समय’ है। ढह गई इमारत को दुबारा खड़ा किया जा सकता है। बीमार व्यक्ति को इलाज द्वारा स्वस्थ किया जा सकता है; खोया हुआ धन दुबारा प्राप्त किया जा सकता है; किंतु एक बार बीता समय दुबारा नहीं पाया जा सकता। जो समय के महत्व को पहचानता है, वह उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। जो समय का तिरस्कार करता है, हर काम में टालमटोल करता है, समय को बरबाद करता है, समय भी उसे एक दिन बरबाद कर देता है।

समय पर किया गया हर काम सफलता में बदल जाता है जबकि समय के बीत जाने पर बहुत कोशिशों के बावजूद भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता। समय का सदुपयोग केवल कर्मठ व्यक्ति ही कर सकता है, लापरवाह, कामचोर और आलसी नहीं। आलस्य मनुष्य की बुद्धि और समय दोनों का नाश करता है। समय के प्रति सावधान रहने वाला मनुष्य आलस्य से दूर भागता है तथा परिश्रम, लगन और सत्कर्म को गले लगाता है। विद्यार्थी जीवन में समय का अत्यधिक महत्व होता है। विद्यार्थी को अपने समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन में करना चाहिए न कि अनावश्यक बातों, आमोद-प्रमोद या फैशन में।

प्रश्न :

  1. प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार क्या है?
  2. समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति किससे दूर भागता है?
  3. विद्यार्थी को समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए?
  4. ‘कर्मठ’ तथा ‘तिरस्कार’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
  5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  6. गद्यांश से विशेषण शब्द छाँटकर लिखिए।

उत्तर :

  1. प्रकृति के द्वारा मनुष्य को दिया गया अमूल्य उपहार समय
  2. समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति आलस्य से दूर भागता है।
  3. विद्यार्थी को समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन से करना चाहिए।
  4. कर्मठ – परिश्रमी, तिरस्कार – अपमान।
  5. समय – प्रकृति का अमूल्य उपहार।
  6. कर्मठ, लापरवाह, कामचोर, आलसी, बीमार आदि विशेषण शब्द हैं।

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26. व्यवसाय या रोज़गार पर आधारित शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है। भारत सरकार इस दिशा में सराहनीय भूमिका निभा रही है। इस शिक्षा को प्राप्त करके विद्यार्थी शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। प्रतियोगिता के इस दौर में तो इस शिक्षा का महत्व और भी बढ़ जाता है व्यावसायिक शिक्षा में ऐसे कोर्स रखे जाते हैं जिनमें व्यावहारिक प्रशिक्षण अर्थात प्रेक्टिकल ट्रेनिंग पर अधिक जोर दिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता के लिए एक बेहतर कदम है। व्यावसायिक शिक्षा के महत्व को देखते हुए भारत और राज्य सरकारों ने इसे स्कूल स्तर पर शुरू किया है। निजी संस्थाएँ भी इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका निभा रही हैं।

कुछ स्कूलों में तो नौवीं कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है। परंतु बड़े पैमाने पर इसे ग्यारहवीं कक्षा से शुरू किया गया है। व्यावसायिक शिक्षा का दायरा काफ़ी विस्तृत है। विद्यार्थी अपनी पसंद और क्षमता के आधार पर विभिन्न व्यावसायिक कोर्सों में प्रवेश ले सकते हैं। कॉमर्स – क्षेत्र में कार्यालय प्रबंधन, आशुलिपि और कंप्यूटर एप्लीकेशन, बैंकिंग, लेखापरीक्षण, मार्केटिंग एंड सेल्ज़मैनशिप आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफ़रीजरेशन एवं ऑटोमोबाइल टेक्नोलॉजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

कृषि – क्षेत्र में डेयरी उद्योग, बागवानी तथा कुक्कुट (पोल्ट्री) उद्योग से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। गृह विज्ञान क्षेत्र में स्वास्थ्य, ब्यूटी, फैशन तथा वस्त्र उद्योग आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। हेल्थ एंड पैरामेडिकल क्षेत्र में मेडिकल लेबोरटरी, एक्स-रे टेक्नोलॉजी एवं हेल्थ केयर साइंस आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म एंड ट्रैवल, बेकरी से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। सूचना तकनीक के तहत आई०टी० एप्लीकेशन कोर्स किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय प्रबंधन, जीवन बीमा, पत्रकारिता आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं।

प्रश्न :

  1. व्यावसायिक शिक्षा से आपका क्या अभिप्राय है?
  2. इंजीनियरिंग क्षेत्र में कौन-कौन से व्यावसायिक कोर्स आते हैं?
  3. व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने से क्या लाभ है?
  4. कॉमर्स क्षेत्र में कौन-कौन से व्यावसायिक कोर्स आते हैं?
  5. ‘आधारित’ और ‘व्यावसायिक’ में प्रत्यय अलग करके लिखिए।
  6. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

उत्तर :

  1. व्यवसाय अथवा रोजगार पर आधारित शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा कहते हैं।
  2. इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफ्रीजरेशन और ऑटोमोबाइल टेक्नोलॉजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।
  3. व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करके विद्यार्थी शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा होकर कमाने लगता है।
  4. कॉमर्स क्षेत्र में कार्यालय प्रबंधन, आशुलिपि, कंप्यूटर एप्लीकेशन, बैंकिंग, लेखापरीक्षण, सेल्स, मार्केटिंग, इंश्योरेंस आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।
  5. इत और इक।
  6. व्यावसायिक शिक्षा।

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27. समय वह संपत्ति है जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वही शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं। इसी समय संपत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन सकता है। उसी के द्वारा मूर्ख विद्वान, निर्धन धनवान और यज्ञ अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष या सुख मनुष्य को कदापि प्राप्त नहीं होता जब तक वह उचित रीति से समय का उपयोग नहीं करता। समय निःसंदेह एक रत्न-शील है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-दिन अकिंचन, रिक्त हस्त और दरिद्र होता है।

वह आजीवन खिन्न रहकर भाग्य को कोसता रहता है, मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुख से छुड़ा नहीं सकती। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्म-हत्या है, अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन – जंजाल छुड़ा देती है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवनमृत की दशा बनी रहती है। ये ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता में बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उनकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है।

यदि उसे कहा जाता है कि तेरी आयु से दस-पाँच वर्ष घटा दिए तो नि:संदेह उनके हृदय पर भारी आघात पहुँचता, परन्तु वह स्वयं निश्चेष्ट बैठे अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शोक नहीं करता। यद्यपि समय की निरूपभोगिता आयु को घटाती है, परंतु यदि हानि होती है तो अधिक चिंता की बात न थी, क्योंकि संसार में सब को दीर्घायु प्राप्त नही होती; परंतु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता और अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं। वास्तव में बात तो यह है कि मनुष्य कुछ-न-कुछ करने के लिए बनाया गया है।

जब चित्त और मन लाभदायक कार्य में लवलीन नहीं होते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है तो सब कामों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न सोचे, प्रत्येक कार्य के लिए पृथक समय और प्रत्येक समय के लिए कार्य निश्चित करे।

प्रश्न :
1. किस प्रकार के व्यक्ति शारीरिक और आत्मिक सुख प्राप्त कर सकते हैं ?
2. समय का सदुपयोग न करने से क्या अहित हो सकता है ?
3. समय नष्ट करने को आत्मघात किस प्रकार माना जा सकता है ?
4. मनुष्य की सफलता का क्या रहस्य है ?
5. मनुष्य को सचमुच मनुष्य बनने के लिए क्या करना चाहिए?
6. इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
1. जो लोग समय के महत्व को समझकर उसका नियमित रूप से पालन करते हैं, वे ही शारीरिक और आत्मिक सुख प्राप्त कर सकते हैं।
2. समय का सदुपयोग न करने से मनुष्य अपने जीवन में किसी प्रकार का भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। यह अज्ञान के कारण मूर्ख तथा धन के अभाव में ग़रीब रहेगा।
3. आत्मघात के द्वारा व्यक्ति अपने जीवन को समाप्त कर लेता है और समय नष्ट करके वह अमूल्य जीवन में विभिन्न प्रकार के कष्टों को इकट्ठा कर लेता है जिससे जीवन बोझ बन जाता है। उसके दुख उसे मृतक की पीड़ा से बढ़कर कष्टकारी हो जाते हैं।
4. मनुष्य के लिए समय ईश्वर द्वारा दी गई अमूल्य संपत्ति है उसके सदुपयोग से जीवन का विकास होता है। शारीरिक तथा आत्मिक सुख और आनंद की प्राप्ति होती है। इसका उपयोग बहुमूल्य पदार्थ के समान करना चाहिए। इसको खोना जीवन को खोना है। समय का दुरुपयोग करने वाला मृत्यु में भी सुख नहीं पाता। समय नष्ट करने से आयु घटती है और विचार दूषित बनता है। आलसी, पापी और शैतान की कोटि में आते हैं। मनुष्य जीवन की सार्थकता कर्मठ होने में है। प्रत्येक क्षण का सदुपयोग जीवन की सफलता का परिचायक है।
5. मनुष्य को एक पल व्यर्थ सोचे बिना, प्रत्येक कार्य के लिए पृथक समय और प्रत्येक समय के लिए कार्य निश्चित करे। तभी वह सचमुच मनुष्य बन सकता है।
6. ‘समय का सदुपयोग’।

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28. साहित्यकार बहुधा अपने देशकाल में प्रवाहित होता है। जब कोई लहर देश में उठती है, साहित्यकार के लिए उससे अविचलित रहना असंभव हो जाता है। उसकी विशाल आत्मा अपने देश बंधुओं के कष्टों से विकल हो उठती है और इस तीव्र विकलता में वह रो उठता है, पर उसके क्रंदन में भी व्यापकता होती है। वह स्वदेश होकर भी सार्वभौमिक रहता है। ‘टाम काका की कुटिया’ गुलामी की प्रथा से व्यथित हृदय की रचना है, पर आज उस प्रथा के उठ जाने पर भी उसमें व्यापकता है कि लोग उसे पढ़कर मुग्ध हो जाते हैं।

सच्चा साहित्य कभी पुराना नहीं होता। वह सदा नया बना रहता है। दर्शन और विज्ञान समय की गति के अनुसार बदलते रहते हैं। पर साहित्य तो हृदय की वस्तु है और मानव – हृदय में तबदीलियाँ नहीं होतीं। हर्ष और विस्मय, क्रोध और द्वेष, आशा और भय उपज भी हमारे मन पर उसी तरह अधिकृत हैं, जैसे आदिकवि वाल्मीकि के समय में भी और कदाचित अनंत मन पर उसी तक रहेंगे। रामायण के काल का समय अब नहीं है, महाभारत का समय भी अतीत हो गया। पर ये ग्रंथ अभी तक नए हैं। साहित्य ही सच्चा इतिहास है, क्योंकि इसमें अपने देश और काल का जैसे चित्र होता है, वैसा कोरे इतिहास में नहीं हो सकता। घटनाओं की तालिका इतिहास नहीं है और न राजाओं की लड़ाइयाँ ही इतिहास है। इतिहास जीवन के विभिन्न अंगों की प्रगति का नाम और जीवन पर साहित्य अपने देश-काल का प्रतिबिंब होता है।

प्रश्न :
1. साहित्यकार अपने साहित्य के लिए प्रेरणा कहाँ से प्राप्त करता है ?
2. साहित्य में व्यक्त समाज की पीड़ा का क्या कारण होता है ?
3. ‘साहित्य कभी पुराना नहीं होता’ इस धारणा का क्या कारण है ?
4. सच्चा इतिहास किसे माना जाना चाहिए ?
5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
6. समय और गति के अनुसार कौन बदलते हैं?
उत्तर :
1. प्रत्येक साहित्यकार अपने साहित्य के लिए प्रेरणा अपने समाज से प्राप्त करता है। देश में उत्पन्न किसी भी प्रकार की हलचल उसे प्रभावित करती है। लोगों के सुख-दुख उसे व्यथित करते हैं और वह उन सुख – दुखों को साहित्य के माध्यम से प्रकट करने लगता है।

2. प्रत्येक साहित्यकार अपने समाज से प्रभावित होता है और लोगों के दुखों को अनुभव करके उन्हें वाणी प्रदान करता है। साहित्यकार भावुक होता है और उसे लोगों की पीड़ा अपनी पीड़ा लगने लगती है।

3. साहित्य मानव मन और उसके व्यवहार से संबंधित है। मानव के हृदय में उत्पन्न होने वाले भाव कभी नहीं बदलते। दुख, सुख, विस्मय, क्रोध, द्वेष, आशा, निराशा, भय आदि सदा उसे समान रूप से प्रभावित करते हैं। जब वे साहित्य के माध्यम से प्रकट हो जाते हैं तो शाश्वत गुण प्राप्त कर सदा नया रूप प्राप्त किए रहते हैं।

4. साहित्यकार अपने देश की परिस्थितियों से प्रभावित होता है। उसकी वाणी में व्यापकता होती है। इसलिए वह देश का होकर भी स्वदेशीय बन जाता है। सच्चा साहित्य मानवीय अनुभूतियों का चित्रण होने के कारण कभी पुरानी नहीं होता। रामायण और महाभारत अमर रचनाएँ हैं। इतिहास और साहित्य में बड़ा अन्तर होता है। इतिहास में घटनाओं की तालिका और राजाओं के नाम और उनके कारनामे होते हैं। इसे सच्चा इतिहास नहीं कहा जा सकता है। सच्चा इतिहास तो साहित्य ही है।

5. साहित्यकार और समाज।

6. दर्शन और विज्ञान समय और गति के अनुसार बदलते हैं।

JAC Class 9 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

29. शिक्षा के क्षेत्र के समान चिकित्सा के क्षेत्र में भी स्त्रियों का सहयोग वांछनीय है। हमारा स्त्री – समाज रोगों से जर्जर हो रहा है। उसकी संतान कितनी अधिक संख्या से असमय ही काल का ग्रास बन रही है, यह पुरुष से अधिक स्त्री की खोज का विषय है। जितनी सुयोग्य स्त्रियाँ इस क्षेत्र में होंगी, उतना ही अधिक समाज का लाभ होगा। स्त्री में स्वाभाविक कोमलता पुरुष की अपेक्षा अधिक होती है, साथ ही पुरुष के समान व्यवसाय बुद्धि प्रायः उसमें नहीं रहती है। अतः वह इस कार्य को अधिक सहानुभूति के साथ ही कर सकती है।

इसी कारण रोगी की परिचर्या के लिए नर्स ही रखी जाती है। यह सत्य है कि न सब पुरुष ही इस कार्य के लिए उपयुक्त होते हैं और न सब स्त्रियाँ, परंतु जिन्हें इस गुरुतम कर्तव्य के लिए रुचि और सुविधाएँ दोनों ही मिली हैं, उन स्त्रियों का इस क्षेत्र में प्रवेश करना उचित ही होगा। कुछ इनी – गिनी स्त्री – चिकित्सक भी हैं, परंतु समाज अपनी आवश्यकता के समय ही उनसे संपर्क रखता है। उसका शिक्षिकाओं से अधिक बहिष्कार है, कम नहीं। ऐसी महिलाओं में से, जिन्होंने सुयोग्य एवं संपन्न व्यक्तियों से विवाह करके बाहर के वातावरण की नीरसता को घर की सरसता में मिलाना चाहा, उन्हें प्रायः असफलता ही प्राप्त हो सकी।

उनका इस प्रकार घर की सीमा से बाहर ही कार्य करना पतियों की प्रतिष्ठा के अनुकूल सिद्ध न हो सका। इसलिए अंत में उन्हें अपनी शक्तियों को घर तक ही सीमित रखने के लिए बाध्य होना पड़ा। वे पारिवारिक जीवन में कितनी सुखी हुईं, यह कहना तो कठिन है, परन्तु उन्हें इस प्रकार खोकर स्त्री- समाज अधिक प्रसन्न न हो सका। यदि झूठी प्रतिष्ठा की भावना इस प्रकार की बाधा न डालती और वे अवकाश के समय कुछ अंश इस कर्तव्य के लिए भी रख सकतीं तो अवश्य ही समाज का अधिक कल्याण होता।

प्रश्न :
1. स्त्रियाँ चिकित्सा क्षेत्र में अधिक सफलता क्यों प्राप्त कर सकती हैं ?
2. प्रायः स्त्रियाँ चिकित्सक के रूप में इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकीं, जितना पुरुष चिकित्सक। क्यों ?
3. समाज का कल्याण कब अधिक अच्छा हो पाता है ?
4. स्त्री चिकित्सकों के पतियों को किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए ?
5. ऊपर दिए गए गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
6. ‘स्वाभाविक’ शब्द में प्रत्यय अलग करके लिखिए।
उत्तर –
1. स्त्रियाँ अपेक्षाकृत अधिक भावुक और मानसिक रूप में कोमल होती हैं। उनमें पुरुषों से अधिक कोमलता होती है। वे उतनी व्यावसायिक कभी नहीं हो सकतीं जितने पुरुष होते हैं। उनमें सहानुभूति की भावना अधिक होती है, इसलिए वे चिकित्सा के क्षेत्र में अधिक सफलता प्राप्त कर सकती हैं।

2. स्त्री चिकित्सकों के साथ समाज में प्रायः तभी संपर्क रखा जाता है जब उसे उसकी आवश्यकता होती है। साथ ही वे विवाह के पश्चात घर-बाहर के प्रति ठीक प्रकार से ताल-मेल नहीं बिठा पातीं जिस कारण परिवार में असंतुष्टि की भावना पनपने लगती है। वे घर-बाहर दोनों जगह असंतोष उत्पत्ति के कारण उतनी प्रतिष्ठित नहीं हो पातीं जितने पुरुष चिकित्सक।

3. यदि स्त्री चिकित्सक घर-बाहर से ठीक प्रकार से संतुलन बना पातीं तो समाज का अधिक कल्याण हो पाता।

4. स्त्रियों को शिक्षा के क्षेत्र के समान चिकित्सा के क्षेत्र में भी आना चाहिए। वे शरीर तथा स्वभाव दोनों से इस व्यवसाय के लिए उपयुक्त हैं। भारतीय महिलाएँ प्रायः बीमार तथा कमजोर रहती हैं। उनके बच्चे भी अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं। इन समस्याओं की खोज स्त्रियाँ भली-भाँति कर सकती हैं। कुछ स्त्रियाँ इस व्यवसाय को अपनाना चाहती हैं पर उनके पति इस व्यवसाय को अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझते हैं। उन्हें विवश होकर इस व्यवसाय से विमुख होना पड़ता है। पतियों को समाज के हित के लिए निरर्थक सम्मान की भावना का त्याग करना चाहिए।

5. ‘स्त्री चिकित्सक’।
6. स्वभाव + इक (प्रत्यय)।

JAC Class 9 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए बहुविकल्पी प्रश्नों के सही विकल्प वाले उत्तर चुनिए –

1. अहिंसा और कायरता कभी साथ नहीं चलती। मैं पूरी तरह शस्त्र – सज्जित मनुष्य के हृदय से कायर होने की कल्पना कर सकता हूँ। हथियार रखना कायरता नहीं तो डर का होना तो प्रकट करता ही है, परंतु सच्ची अहिंसा शुद्ध निर्भयता के बिना असंभव है। क्या मुझमें बहादुरों की वह अहिंसा है? केवल मेरी मृत्यु ही इसे बताएगी। अगर कोई मेरी हत्या करे और मैं मुँह से हत्यारे के लिए प्रार्थना करते हुए तथा ईश्वर का नाम जपते हुए और हृदये मंदिर में उसकी जीती-जागती उपस्थिति का भान रखते हुए मरूँ तो ही कहा जाएगा कि मझमें बहादुरों की अहिंसा थी। मेरी सारी शक्तियों के क्षीण हो जाने से अपंग बनकर मैं एक हारे हुए आदमी के रूप में नहीं मरना चाहता। किसी हत्यारे की गोली भले मेरे जीवन का अंत कर दे, मैं उसका स्वागत करूँगा।

लेकिन सबसे ज़्यादा तो मैं अंतिम श्वास तक अपना कर्तव्य पालन करते हुए ही मरना पसंद करूंगा। मुझे शहीद होने की तमन्ना नहीं है। लेकिन अगर धर्म की रक्षा का उच्चतम कर्तव्य पालन करते हुए मुझे शहादत मिल जाए तो मैं उसका पात्र माना जाऊँगा। भूतकाल में मेरे प्राण लेने के लिए मुझ पर अनेक बार आक्रमण किए गए हैं, परंतु आज तक भगवान ने मेरी रक्षा की है और प्राण लेने का प्रयत्न करने वाले अपने किए पर पछताए हैं। लेकिन अगर कोई आदमी यह मानकर मुझ पर गोली चलाए कि वह एक दुष्ट का खात्मा कर रहा है, तो वह एक सच्चे गांधी की हत्या नहीं करेगा, बल्कि उस गांधी की करेगा जो उसे दुष्ट दिखाई दिया था।

(क) अहिंसा और कायरता के बारे में क्या कहा गया है?
(i) कभी – कभी एक साथ चलती है।
(ii) हमेशा साथ चलती है।
(iii) दोनों खतरनाक होती हैं।
(iv) कभी साथ नहीं चलती।
उत्तर :
(iv) कभी साथ नहीं चलती।

(ख) सच्ची अहिंसा किसके बिना असंभव है?
(i) कायरता के बिना
(ii) शुद्ध निर्भयता के बिना
(iii) ममता के बिना
(iv) शुद्ध जड़ता के बिना
उत्तर :
(ii) शुद्ध निर्भयता के बिना

JAC Class 9 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

(ग) गांधी जी किस प्रकार मरना पसंद करेंगे?
(i) कर्तव्य पालन करते हुए
(ii) शत्रु को बदले की भावना से मारते हुए
(iii) हिंसा करते हुए
(iv) सभी विकल्प
उत्तर :
(i) कर्तव्य पालन करते हुए

(घ) प्राण लेने का प्रयत्न करने वालों के साथ क्या हुआ है ?
(i) कोई फर्क नहीं पड़ा है।
(ii) आंतरिक ग्लानि नहीं हुई।
(iii) अपने किए पर पछताए हैं।
(iv) कभी झुके नहीं हैं।
उत्तर :
(iii) अपने किए पर पछताए हैं।

(ङ) किसी हत्यारे की गोली भले मेरे जीवन का अंत कर दे, मैं उसका
(i) उसका जड़ से खात्मा करूँगा।
(ii) हृदय से स्वागत करूँगा।
(iii) उसको मिट्टी में मिला दूँगा।
(iv) मैं उसकी प्रशंसा करूँगा।
उत्तर :
(ii) हृदय से स्वागत करूँगा।

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2. तानाशाह जनमानस के जागरण को कोई महत्व नहीं देता। उसका निर्माण ऊपर से चलता है, किंतु यह लादा हुआ भार – स्वरूप निर्माण हो जाता है। सच्चा राष्ट्र-निर्माण वह है, जो जनमानस की तैयारी पर आधारित रहता है। योजनाएँ शासन और सत्ता बनाएँ, उन्हें कार्यरूप में परिणत भी करें, किंतु साथ ही उन्हें चिर स्थायी बनाए रखने एवं पूर्णतया उद्देश्य पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि जनमानस उन योजनाओं के लिए तैयार हो। स्पष्ट शब्दों में हम कह सकते हैं कि सत्ता राष्ट्र-निर्माण रूपी फ़सल के लिए हल चलाने वाले किसान का कार्य तो कर सकती है, किंतु उसे भूमि जनमानस को ही बनानी पड़ेगी।

अन्यथा फ़सल या तो हवाई होगी या फिर गमलों की फ़सल होगी। जैसा आजकल ‘अधिक अन्न उपजाओ’ आंदोलन के कर्णधार भारत के मंत्रिगण कराया करते हैं। इस फ़सल को किस-किस बुभुक्षित के सामने रखेगी शासन सत्ता? यह प्रश्न मस्तिष्क में चक्कर ही काटा करता है। इस विवेचन से हमने राष्ट्र-निर्माण में जनमानस की तैयारी का महत्व पहचान लिया है। यह जनमानस किस प्रकार तैयार होता है ? इस प्रश्न का उत्तर आपको समाचार पत्र देगा।

निर्माण – काल में यदि समाचार – पत्र सत्समालोचना से उतरकर ध्वंसात्मक हो गया तो निश्चित रूप से वह कर्तव्यच्युत हो जाता है, किंतु सत्समालोचना निर्माण के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितना निर्माण का समर्थन। जनमानस को तैयार करने के लिए समाचार-पत्र किस नीति को अपनाएँ ? यह प्रश्न अपने में एक विवाद लिए हुए है; क्योंकि भिन्न-भिन्न समाचार-पत्र भिन्न-भिन्न नीतियों को उद्देश्य बनाकर प्रकाशित होते हैं। यहाँ तक कि राष्ट्र-निर्माण की योजनाएँ भी उनके मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न होती हैं।

(क) सच्चा राष्ट्र-निर्माण किसे कहा गया है?
(i) जो जनमानस की तैयारी पर आधारित रहता है।
(ii) जो केवल योजना – निर्माण पर आधारित रहता है।
(iii) जो केवल शासन की तानाशाही पर आधारित रहता है।
(iv) जो आकस्मिक तैयारी पर आधारित रहता है।
उत्तर :
(i) जो जनमानस की तैयारी पर आधारित रहता है।

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(ख) किस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है?
(i) जनमानस केवल व्यय करने के लिए तैयार हो।
(ii) सरकार की सख्ती से तैयारी हो।
(iii) जनमानस उन सभी योजनाओं के लिए मन से तैयार हो।
(iv) योजनाओं के लिए केवल कामगारों की पूर्ण तैयारी हो।
उत्तर :
(iii) जनमानस उन सभी योजनाओं के लिए मन से तैयार हो।

(ग) शासन और सत्ता को लेखक ने क्या हिदायत दी है?
(i) शासन और सत्ता योजनाएँ बनाएँ।
(ii) योजनाओं को कार्यरूप में परिणत भी करें।
(iii) योजनाओं को चिर – स्थायी बनाए।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प।

(घ) राष्ट्र-निर्माण में जनमानस की आवश्यकता पर लेखक क्या कहते हैं?
(i) सत्ता राष्ट्र-निर्माण रूपी फ़सल के लिए किसान का कार्य तो कर सकती है।
(ii) राष्ट्र-निर्माण रूपी फ़सल के लिए भूमि जनमानस को ही बनाना होगा।
(iii) भूमि का निर्माण आधुनिक यंत्रों से करना होगा।
(iv) (i) व (ii) विकल्प
उत्तर :
(iv) (i) व (ii) विकल्प

(ङ) जनमानस तैयार करने का साधन क्या है ?
(i) आलोचना
(ii) समाचार – पत्र
(iii) सरकार
(iv) संविधान
उत्तर :
(ii) समाचार – पत्र

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3. काव्य- कला गतिशील कला है; किंतु चित्रण – कला स्थायी कला है। काव्य में शब्दों की सहायता से क्रियाओं और घटनाओं का वर्णन किया जा सकता है। कविता का प्रवाह समय द्वारा बँधा हुआ नहीं है। समय और कविता दोनों ही प्रगतिशील हैं; इसलिए कविता समय के साथ परिवर्तित होने वाली क्रियाओं, घटनाओं और परिस्थितियों का वर्णन समुचित रूप से कर सकती है। चित्रण – कला स्थायी होने के कारण समय के केवल एक पल को पदार्थों के केवल एक रूप को अंकित कर सकती है। चित्रण – कला में केवल पदार्थों का चित्रण हो सकता है।

कविता में परिवर्तनशील परिस्थितियों, घटनाओं और क्रियाओं का वर्णन हो सकता है, इसलिए कहा जा सकता है कि कविता का क्षेत्र चित्रकला से विस्तृत है। कविता द्वारा व्यक्त किए हुए एक-एक भाव और कभी-कभी कविता के एक शब्द के लिए अलग चित्र उपस्थित किए जा सकते हैं। किंतु पदार्थों का अस्तित्व समय से परे तो है नहीं, उनका भी रूप समय के साथ बदलता रहता है और ये बदलते हुए रूप बहुत अंशों में समय का प्रभाव प्रकट करते हैं। इसी प्रकार क्रिया और गति, बिना पदार्थों के आधार के संभव नहीं। इस भाँति किसी अंश में कविता पदार्थों का सहारा लेती है और चित्रण – कला प्रगतिवान समय द्वारा प्रभावित होती है, पर यह सब गौण रूप से होता है।

हमने लिखा है कि पदार्थों का चित्रण चित्रकला का काम है, कविता का नहीं। इस पर कुछ लोग आपत्ति कर सकते हैं कि काव्य-कला के माध्यम से अधिक शब्द सर्वशक्तिमान हैं, उनसे जो काम चाहे लिया जा सकता है; पदार्थों के वर्णन में वे उतने ही काम के हो सकते हैं जितने क्रियाओं के, पर यह अस्वीकार करते हुए भी कि शब्द बहुत कुछ करने में समर्थ हैं, यह नहीं माना जा सकता कि वे पदार्थों का चित्रण उसी सुंदरता से कर सकते हैं जिस सुंदरता से चित्र।

(क) काव्य में क्रियाओं और घटनाओं का वर्णन किसकी सहायता से किया जा सकता है?
(i) शब्दों की सहायता से
(ii) संगीत की सहायता से
(iii) कल्पना की सहायता से
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(i) शब्दों की सहायता से

(ख) चित्रण – कला स्थायी होने के कारण पदार्थों के केवल –
(i) एक रूप को तथा समय के एक पल को ही चित्रित कर सकती है।
(ii) परिवर्तनशील परिस्थितियों, घटनाओं और क्रियाओं का वर्णन नहीं कर सकती है।
(iii) प्रभाव उत्पन्न कर सकती है।
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प

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(ग) पदार्थों का चित्रण किस कला का काम है?
(i) काव्यकला का
(ii) वास्तुकला का
(iii) चित्रकला
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(iii) चित्रकला

(घ) काव्य-कला के माध्यम से शब्दों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(i) अधिक सर्वशक्तिमान होते हैं।
(ii) वे क्रियाओं के समान पदार्थों के वर्णन भी प्रभवी ढंग से कर सकते हैं।
(iii) शब्द चित्रकला के समान पदार्थों का चित्रण कर सकते हैं।
(iv) इनमें से सभी विकल्प
उत्तर :
(iv) इनमें से सभी विकल्प

(ङ) चित्र को देखकर मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(i) हम चित्र को भूल जाते हैं।
(ii) हम चित्रित पदार्थों को अपनी आँखों के सामने देखने लगते हैं।
(iii) हम काल्पनिक पदार्थों को अपने आँखों के सामने देखने लगते हैं।
(iv) (i) व (ii) विकल्प
उत्तर :
(iv) (i) व (ii) विकल्प

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4. हमारे बाल्यकाल के संस्कार ही जीवन का ध्येय निर्धारित करते हैं, अतः यदि वैभव में हमारी संतान ऐसे व्यक्तियों की छाया में ज्ञान प्राप्त करेगी, जिनमें चरित्र तथा सिद्धांत की विशेषता नहीं है, जिनमें संस्कारजनित अनेक दोष हैं, तो फिर विद्यार्थियों के चरित्र पर भी उसी की छाप पड़ेगी और भविष्य में उनके ध्येय भी उसी के अनुसार स्वार्थमय तथा अस्थिर होंगे। शिक्षा एक ऐसा कर्तव्य नहीं है जो किसी पुस्तक को प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक पढ़ने से ही पूर्ण हो जाता हो, वरन् वह ऐसा कर्तव्य है जिसकी परिधि सारे जीवन को घेरे हुए है और पुस्तकें ऐसे साँचे हैं जिनमें ढालकर उसे सुडौल बनाया जा सकता है।

यह वास्तव में आश्चर्य का विषय है कि हम अपने साधारण कार्यों के लिए करने वालों में जो योग्यता देखते हैं, वैसी योग्यता भी शिक्षकों में नहीं ढूँढ़ते। जो हमारी बालिकाओं, भविष्य की माताओं का निर्माण करेंगे उनके प्रति हमारी उदासीनता को अक्षम्य ही कहना चाहिए। देश-विशेष, समाज – विशेष तथा संस्कृति – विशेष के अनुसार किसी के मानसिक विकास के साधन और सुविधाएँ उपस्थित करते हुए उसे विस्तृत संसार का ऐसा ज्ञान करा देना ही शिक्षा है, जिससे वह अपने जीवन में सामंजस्य का अनुभव कर सके और उसे अपने क्षेत्र – विशेष के साथ ही बाहर भी उपयोगी बना सके। यह महत्वपूर्ण कार्य ऐसा नहीं है जिसे किसी विशिष्ट संस्कृति से अनभिज्ञ चंचल चित्त और शिथिल चरित्र वाले व्यक्ति सुचारु रूप से संपादित कर सकें।

परंतु प्रश्न यह है कि इस महान उत्तरदायित्व के योग्य व्यक्ति कहाँ से लाए जाएँ ? पढ़ी-लिखी महिलाओं की संख्या उँगलियों पर गिनने योग्य है और उनमें भी भारतीय संस्कृति के अनुसार शिक्षिताएँ बहुत कम हैं, जो हैं उनके जीवन के ध्येयों में इस कर्तव्य की छाया का प्रवेश भी निषिद्ध समझा जाता है। कुछ शिक्षिकावर्ग को उच्छृंखलता समझी जाने वाली स्वतंत्रता के कारण और कुछ अपने संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण अन्य महिलाएँ अध्यापन कार्य तथा उसे जीवन का लक्ष्य बनाने वालियों को अवज्ञा और अनादर की दृष्टि से देखने लगी हैं।

अतः जीवन के आदि से अंत तक कभी किसी के अवकाश के क्षण में उनका ध्यान इस आवश्यकता की ओर नहीं जाता, जिसकी पूर्ति पर उनकी संतान का भविष्य निर्भर है। अपने सामाजिक दायित्वों को समझा जाना चाहिए। यह समाज में आज सबसे बड़ी कमी है।

(क) संस्कारजनित दोषों से युक्त व्यक्तियों से ज्ञान प्राप्त करने पर विद्यार्थियों के चरित्र पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(i) विद्यार्थियों के चरित्र पर भी उसी की छाप पड़ती है।
(ii) उनके ध्येय भी उसी के अनुसार स्वार्थमय तथा अस्थिर होते हैं।
(iii) उनके ध्येय निश्चित स्वार्थयुक्त और स्थिर रहते हैं।
(iv) (i) व (ii) विकल्प
उत्तर :
(iv) (i) व (ii) विकल्प

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(ख) शिक्षा को कैसा कर्तव्य बताया गया है ?
(i) शिक्षा की परिधि में सभी प्रकार के जीवन संबंधित क्षेत्र आ जाते हैं।
(ii) शिक्षा सबको प्रभावित नहीं करती है।
(iii) शिक्षा का क्षेत्र सीमित होता है।
(iv) शिक्षा की बुनियादी ज़रूरत नहीं है।
उत्तर :
(i) शिक्षा की परिधि में सभी प्रकार के जीवन संबंधित क्षेत्र आ जाते हैं।

(ग) लेखक ने किसे आश्चर्य किसे कहा है?
(i) अपने साधारण कार्य करवाने के लिए भी हम लोगों में योग्यता खोजते हैं।
(ii) भविष्य की माताओं का निर्माण करने वाली शिक्षिकाओं के प्रति उदासीन हो जाते हैं।
(iii) भविष्य के बालकों को तैयार करने वाली माताओं के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं।
(iv) (i) तथा (ii) विकल्प।
उत्तर :
(iv) (i) तथा (ii) विकल्प।

(घ) शिक्षा वास्तव में क्या है?
(i) विस्तृत संसार का ज्ञान करा देना ही शिक्षा है।
(ii) जो मानव की ज़रूरतों की सीमित विकास करती है।
(iii) जो स्वयं को आवश्यक साधन के रूप में नहीं मानती।
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(i) विस्तृत संसार का ज्ञान करा देना ही शिक्षा है।

(ङ) गद्यांश का शीर्षक लिखिए-
(i) आश्चर्य का विषय
(ii) व्यक्तियों की छाया
(iii) जीवन का ध्येय
(iv) उत्तरदायित्व
उत्तर :
(iii) जीवन का ध्येय

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5. हमें स्थिर बुद्धि वाला बनना चाहिए परंतु स्थिर बुद्धि वाले मनुष्य के लक्षण क्या हैं? स्थिर बुद्धि वाला पुरुष सभी इच्छाओं को त्याग देता है और हमेशा संतुष्ट रहता है। उसका मन दुख में विचलित अथवा व्याकुल नहीं होता। सुखों की उसे कोई कामना भी नहीं होती। अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में वह समान रहता है। ऐसे कर्मयोगी की बुद्धि स्थिर अर्थात अटल हो जाती है। इंद्रियों को वश में करने का अभ्यास मनुष्य को बार-बार करना चाहिए।

जो मनुष्य सांसारिक विषय-वस्तुओं के बारे में सोचता है, उसे विषयों से लगाव हो जाता है। तब उसे इन विषयों या भोग-विलास की वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा होती है। फिर उसमें ‘लोभ’ पैदा हो जाता है। लोभ के बाधा पड़ने पर उसे क्रोध आ जाता है। क्रोध से मूढ़ता या अज्ञानता उत्पन्न होती है। मूढ़ता से स्मृति यानी विचारों को याद रखने की शक्ति समाप्त हो जाती है। स्मृति नष्ट होने पर विवेक नष्ट हो जाता है। ऐसे मनुष्य का हर प्रकार से पतन होता है।

(क) स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति की क्या विशेषता है?
(i) वह सभी इच्छाओं को सर्वोपरि रखता है।
(iii) वह अपनी इच्छाओं को त्याग देता है।
(ii) वह हमेशा संतुष्ट रहता है।
(iv) (ii) तथा (iii)
उत्तर :
(iv) (ii) तथा (iii)

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(ख) स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए कौन-सा कथन अनुचित है?
(i) उसका मन दुख में विचलित होता है।
(ii) उसका मन दुख में व्याकुल नहीं होता।
(iii) उसे सुखों की प्राप्ति की कोई इच्छा नहीं होती।
(iv) अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में समान रहता है।
उत्तर :
(i) उसका मन दुख में विचलित होता है।

(ग) स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति को क्या कहा गया है?
(i) राजयोगी
(ii) कर्मयोगी
(iii) ध्यानयोगी
(iv) तंत्रयोगी
उत्तर :
(ii) कर्मयोगी

(घ) मनुष्य को कौन-सा अभ्यास बार-बार करना चाहिए?
(i) दूसरे प्राणियों को वश में करने का
(ii) इंद्रियों को काबू से बाहर करने का
(iii) इच्छाओं को दमन करने का
(iv) इंद्रियों को वश में करने का
उत्तर :
(iv) इंद्रियों को वश में करने का

(ङ) मनुष्य को लोभ कब पैदा होता है?
(i) सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति की इच्छा होने पर
(ii) प्राकृतिक वस्तुओं के सौंदर्य को देखकर
(iii) केवल धन के भंडार को देखकर
(iv) अनमोल वस्तुओं की कीमतें देखकर
उत्तर :
(i) सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति की इच्छा होने पर

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6. जितनी अनिच्छा से हम सलाह को स्वीकार करते हैं उतनी अनिच्छा से किसी अन्य को नहीं। सलाह देने वाले के बारे में हम सोचते हैं कि वह हमारी समझ को अपमान की दृष्टि से देख रहा है अथवा हमें बच्चा या बुद्धू मानकर व्यवहार कर रहा है। हम उसे एक अव्यक्त सेंसर मानते हैं और ऐसे अवसरों पर हमारी भलाई के लिए जो उत्साह दिखाया जाता है, उसे हम एक पूर्व धारणा या धृष्टता मानते हैं। इसकी सच्चाई यह है कि जो सलाह देने का बहाना करता है, वह इसी कारण से हमारे ऊपर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करता है।

इसके अतिरिक्त कोई और कारण नहीं हो सकता किंतु अपने से हमारी तुलना करते हुए, वह हमारे आचरण अथवा समझदारी में कोई दोष देखता है। इन कारणों से, सलाह को स्वीकार्य बनाने से कठिन कोई कला नहीं है और वास्तव में प्राचीन और आधुनिक दोनों युग के लेखकों ने इस कला में जितनी दक्षता प्राप्त की है, उसी आधार पर स्वयं को एक-दूसरे से अधिक विशिष्ट प्रमाणित किया है। इस कटु पक्ष को रोचक बनाने के कितने उपाय काम में लाए गए हैं? कुछ सर्वोत्तम शब्दों में अपनी शिक्षा हम तक पहुँचाते हैं, कुछ अत्यंत सुसंगत ढंग से, कुछ वाकचातुर्य से और अन्य छोटे मुहावरों में। पर मैं सोचता हूँ कि सलाह देने के विभिन्न उपायों में जो सबसे अधिक प्रसन्नता देता है, वह गलत है, वह चाहे किसी भी रूप में आए। यदि हम इस रूप में शिक्षा देने या सलाह देने की बात सोचते हैं तो वह अन्य सबसे बेहतर है क्योंकि सबसे कम झटका लगता है।

(क) गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(i) शिक्षा
(ii) समझदारी
(iii) सलाह
(iv) भलाई
उत्तर :
(iii) सलाह

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(ख) ‘इच्छा’ शब्द का विपरीतार्थक शब्द है –
(i) मन
(ii) दिल
(iii) भक्ति
(iv) अनिच्छा
उत्तर :
(iv) अनिच्छा

(ग) सलाह देने वाले के बारे में हम क्या सोचते हैं?
(i) वह समझ को सम्मान की नज़र से देख रहा है।
(ii) वह समझ को अपमान की नज़र से देख रहा है।
(iii) वह समझ को कूटनीतिक नज़र से देख रहा है।
(iv) इनमें से सभी विकल्प। लग जाते हैं?
उत्तर :
(ii) वह समझ को अपमान की नज़र से देख रहा है।

(घ) भलाई के लिए दिखाए गए उत्साह को हम क्या मानने
(i) पूर्व धारणा
(ii) धृष्टता
(iii) अग्रिम समझ
(iv) विकल्प (i) तथा (ii)
उत्तर :
(iv) विकल्प (i) तथा (ii)

(ङ) सलाह को स्वीकार करना कैसी कला है?
(i) आसान कला है।
(ii) कठिन कला है।
(iii) चमत्कारिक कला है।
(iv) दैनिक कला है।
उत्तर :
(ii) कठिन कला है।

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7. यदि मनुष्य की आयु सौ वर्ष की मानी जाती है, तो इतने वर्षों तक वह स्वस्थ रहकर जिए, तभी इस दीर्घ आयु की सार्थकता है। ‘पहला सुख नीरोगी काया’ कहावत का अनुभव प्रत्येक व्यक्ति को आगे-पीछे होता ही है। फिर भी हम स्वास्थ्य को बनाए रखने में पूर्णत: जागरूक नहीं रहते। कदाचित हमारे पास तत्संबंधी पर्याप्त जानकारी का अभाव और अभ्यास की लगन का अभाव होता है। शरीर को सशक्त, सुगठित एवं नीरोगी रखने के लिए प्राणायाम बहुत लाभप्रद है।

प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है- ‘प्राण’ और ‘आयाम’ अर्थात ‘विस्तार’। वास्तव में प्राण स्थूल पृथ्वी पर प्रत्येक वस्तु का संचालन करता हुआ दिखाई देता है और विश्व में विचार रूप से स्थित है। दूसरे शब्दों में, प्राण का संबंध मन से, मन का संबंध बुद्धि से और बुद्धि का संबंध आत्मा से और आत्मा का संबंध परमात्मा से है। इस प्रकार प्राणायाम का उद्देश्य शरीर में व्याप्त प्राणशक्ति को उत्प्रेरित संचारित, नियमित और संतुलित करना है। यही कारण है कि प्राणायाम को योग विज्ञान का एक अमोघ साधन माना गया है।

मनु के अनुसार जिस प्रकार अग्नि में सोना आदि धातुएँ गलाने से उनका मैल दूर होता है, उसी प्रकार प्राणायाम करने से शरीर की इंद्रियों का मैल दूर होता है। जिस प्रकार शरीर की शुद्धि के लिए स्नान की आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार मन की शुद्धि के लिए प्राणायाम की आवश्यकता है। प्राणायाम से शरीर स्वस्थ और नीरोगी रहता है। इससे दीर्घ आयु प्राप्त होती है, स्मरण शक्ति बढ़ती है और मानसिक रोग दूर होते हैं।

(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है-
(i) दीर्घ आयु की सार्थकता
(ii) प्राणशक्ति
(iii) प्राणायाम
(iv) स्वास्थ्य और मनुष्य
उत्तर :
(iii) प्राणायाम

(ख) कहावत के अनुसार मनुष्य का पहला सुख क्या है?
(i) नीरोगी मन
(ii) नीरोगी काया
(iii) चंचल मन
(iv) स्वस्थ मस्तिष्क
उत्तर :
(ii) नीरोगी काया

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(ग) प्राणायाम क्यों बहुत लाभप्रद है?
(i) शरीर को सशक्त बनाता है।
(ii) शरीर सुगठित बनाता है।
(iii) नीरोगी रहने में सहायक होता है।
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प

(घ) स्थूल पृथ्वी पर कौन संचालन करता है?
(i) आयाम
(ii) प्राण
(iii) वायु
(iv) जल
उत्तर :
(ii) प्राण

(ङ) प्राणायाम का उद्देश्य है-
(i) प्राण शक्ति को उत्प्रेरित करना
(ii) प्राण शक्ति को नियमित करना
(iii) प्राण शक्ति को संतुलित करना
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प

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8. महात्माओं और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है-आवाज़ को ध्यान से सुनना। यह आवाज़ कुछ भी हो सकती है। कौओं की कर्कश आवाज़ से लेकर नदियों की छलछल तक। मार्टिन लूथर किंग के भाषण से लेकर किसी पागल के बड़बड़ाने तक। अमूमन ऐसा होता नहीं। यह सच है कि हम सुनना चाहते ही नहीं। बस बोलना चाहते हैं। हमें लगता है कि इससे लोग हमें बेहतर तरीके से समझेंगे। हालाँकि ऐसा होता नहीं। हमें पता ही नहीं चलता और अधिक बोलने की कला हमें अनसुना करने की कला में पारंगत कर देती है।

एक मनोवैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन घरों के अभिभावक ज़्यादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है, क्योंकि जितनी अनिच्छा ज़्यादा बोलना बातों को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दों के जाल में फँसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनौपचारिक, दोनों स्थितियों में हम दूसरे की न सुन, बस हावी होने की कोशिश करते हैं।

खुद ज़्यादा बोलने और दूसरों को अनसुना करने से ज़ाहिर होता है कि हम अपने बारे में ज़्यादा सोचते हैं और दूसरों के बारे में कम। ज़्यादा बोलने वालों के दुश्मनों की भी संख्या ज़्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो अपने दोस्तों से ज़्यादा बोलें और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते हैं, तो दुश्मनों से कम बोलें। अमेरिका के सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रपति रूजवेल्ट अपने माली तक के साथ कुछ समय बिताते और इस दौरान उसकी बातें ज़्यादा सुनने की कोशिश करते। वह कहते थे कि लोगों को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला कि ज़्यादातर अमेरिकी नागरिक उनके सुख में सुखी होते, और दुख में दुखी।

(क) गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(i) बोलने की कला
(iii) आवाज़
(ii) स्वाभाविक ज्ञान
(iv) दोस्ती दुश्मनी
उत्तर :
(iii) आवाज़
(ख) अधिक बोलने की कला हमें किस कला में पारंगत कर देती है?
(i) अनसुना करने की कला
(iii) प्रशंसा करने की कला
(ii) चाटुकारिता करने की कला
(iv) लीपापोती करने की कला
उत्तर :
(i) अनसुना करने की कला में

(ग) जिन घरों के अभिभावक ज्यादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में क्या असर पड़ता है?
(i) सही-गलत का स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित होता है।
(ii) सांसारिक ज्ञान अधिक विकसित होता है।
(iii) पारिवारिक ज्ञान अधूरा रह जाता है।
(iv) अधूरा ज्ञान अधिक विकसित होता है।
उत्तर :
(i) सही-गलत का स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित होता है।

JAC Class 9 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

(घ) ज़्यादा बोलने से क्या होता है?
(i) बातों को सामान्य रूप से सामने रखता है।
(ii) बातों को विरोधाभाषी तरीके से सामने रखता है।
(iii) बातों को रोचक तरीके से प्रकट करता है।
(iv) बातों को सारहीन करके सामने रखता है।
उत्तर :
(ii) बातों को विरोधाभाषी तरीके से सामने रखता है।

(ङ) नए दोस्त बनाने के लिए क्या करना ज़रूरी है?
(i) दुश्मनों से कम बोलना चाहिए।
(ii) पुराने मित्रों से अधिक बोलना चाहिए।
(iii) दुश्मनों से काम पड़ने पर बोलना चाहिए।
(iv) अनजान लोगों से कभी-कभार बोलना चाहिए।
उत्तर :
(i) दुश्मनों से कम बोलना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran समास Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran समास

परिभाषा – परस्पर संबंध रखने वाले दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल का नाम समास है। जैसे – राजा का पुत्र = राजपुत्र। समास के छह भेद होते हैं-अव्ययीभाव, तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु, द्वंद्व और बहुव्रीहि।

(क) समस्तपद – विभिन्न शब्दों के समूह को संरक्षित करने से जो शब्द बनता है, उसे समस्तपद अथवा सामासिक शब्द बनता है।
(ख) समास-विग्रह – सामासिक पद को तोड़ना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे राष्ट्रपिता एक समस्तपद अथवा सामासिक पद है। इसका समास-विग्रह होगा-राष्ट्र का पिता।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

1. अव्ययीभाव समास –

जिस समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त पद अव्यय (क्रिया-विशेषण) का काम करे, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।

जैसे – यथाशक्ति, भरपेट, प्रति-दिन, बीचों-बीच।

अव्ययीभाव के कुछ उदाहरण –

  • यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
  • यथासंभव – जैसा संभव हो
  • यथामतिं – मति के अनुसार
  • आमरण – मरण-पर्यंत
  • आजानु – जानुओं (घुटनों) तक
  • भरपेट – पेट भर कर
  • यथाविधि – विधि के अनुसार
  • प्रतिदिन – दिन-दिन
  • प्रत्येक – एक-एक
  • मनमन – मन-ही-मन
  • द्वार-द्वार – द्वार-ही-द्वार
  • बेशक – बिना संदेह
  • बेफ़ायदा – फ़ायदे (लाभ) के बिना
  • बखूबी – खूबी के साथ
  • बाकायदा – कायदे के अनुसार
  • भरसक – पूरी शक्ति से
  • निडर – बिना डर
  • घर-घर – हर घर
  • अनजाने – जाने बिना
  • बीचों-बीच – ठीक बीच में
  • रातों-रात – रात-ही-रात में
  • हाथों हाथ – हाथ-ही-हाथ
  • आसमुद्र – समुद्र पर्यंत
  • बेखटके – खटके के बिना
  • दिनों-दिन – दिन के बाद दिन
  • हर-रोज़ – रोज़-रोज़

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

2. तत्पुरुष समास –

तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है (तत् = वह, पुरुष = आदमी) वह (दूसरा) आदमी। इस प्रकार ‘तत्पुरुष’ शब्द अपना एक अच्छा उदाहरण है। इसी आधार पर इसका नाम यह पड़ा है, क्योंकि ‘तत्पुरुष’ समास का दूसरा पद प्रधान होता है। इस प्रकार जिस समास का दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच प्रथम (कर्ता) तथा अंतिम (संबोधन) कारक के अतिरिक्त शेष किसी भी कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे –

  • राजपुरुष – राजा का पुरुष
  • ॠणमुक्त – ॠण से मुक्त
  • राहखर्च – राह के लिए खर्च
  • वनवास – वन में वास।

तत्पुरुष के छह भेद हैं जिनका परिचय इस प्रकार है –

(क) कर्म तत्पुरुष –

जिसमें कर्म कारक की विभक्ति (को) का लोप पाया जाता है। जैसे –

  • ग्रंथकर्ता – ग्रंथ को करने वाला
  • स्वर्गप्राप्त – स्वर्ग को प्राप्त
  • देशगत – देश को गत (गया हुआ)
  • यशप्राप्त – यश को प्राप्त
  • परलोक गमन – परलोक को गमन
  • आशातीत – आशा को लाँघ कर गया हुआ
  • जलपिपासु – जल को पीने की इच्छा वाला
  • गृहागत – गृह को आगत (आया हुआ)
  • ग्रंथकार – ग्रंथ को रचने वाला
  • ग्रामगत – ग्राम को गत (गया हुआ)

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

(ख) करण तत्पुरुष –

जिसमें करण कारक की विभक्ति (से तथा के द्वारा) का लोप पाया जाता है। जैसे –

  • हस्तलिखित – हस्त से लिखित
  • तुलसीकृत – तुलसी से कृत
  • बाणबिद्ध – बाण से बिद्ध
  • वज्रहत – वज्र से हत
  • ईश्वरप्रदत्त – ईश्वर से प्रदत्त
  • मनगढ़ंत – मन से गढ़ी हुई
  • कपड़छन – कपड़े से छना हुआ
  • मदमाता – मद से माता
  • शोकाकुल – शोक से आकुल
  • प्रेमातुर – प्रेम से आतुर
  • दयार्द्र – दया से आर्द्र
  • अकाल पीड़ित – अकाल से पीड़ित
  • कष्ट साध्य – कष्ट से साध्य
  • गुरुकृत – गुरु से किया हुआ
  • मदांध – मद से अंधा
  • दु:खार्त्त – दु:ख से आर्त्त
  • मनमाना – मन से माना हुआ
  • रेखांकित – रेखा से अंकित
  • कीर्तियुक्त – कीर्ति से युक्त
  • अनुभवजन्य – अनुभव से जन्य
  • गुणयुक्त – गुण से युक्त
  • जन्मरोगी – जन्म से रोगी
  • दईमारा – दई से मारा हुआ
  • बिहारी रचित – बिहारी द्वारा रचित

(ग) संप्रदान तत्पुरुष

जिसमें संप्रदान कारक की विभक्ति (के लिए) का लोप पाया जाता है। जैसे –

  • देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
  • रणनिमंत्रण – रण के लिए निमंत्रण
  • कृष्पार्पण – कृष्ण के लिए अर्पण
  • यज्शाला – यज्ञ के लिए शाला
  • क्रीड़ाक्षेत्र – क्रीड़ा के लिए क्षेत्र
  • राहखर्च – राह के लिए खर्च
  • रसोईघर – रसोई के लिए घर
  • रोकड़बही – रोकड़ के लिए बही
  • हथकड़ी – हाथों के लिए कड़ी
  • मालगाड़ी – माल के लिए गाड़ी
  • पाठशाला – पाठ के लिए शाला
  • ठकुरसुहाती – ठाकुर को सुहाती
  • आरामकुर्सी – आराम के लिए कुर्सी
  • बलिपशु – बलि के लिए पशु
  • विद्यागृह – विद्या के लिए गृह
  • गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
  • हवनसामग्री – हवन के लिए सामग्री
  • मार्गव्यय – मार्ग के लिए व्यय
  • युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि
  • राज्यलिप्सा – राज्य के लिए लिप्सा
  • डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
  • जेबखर्च – जेब के लिए खर्च

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

(घ) अपादान तत्पुरुष

जिसमें अपादान कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है। जैसे –

  • पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
  • भयभीत – भय से भीत
  • पदच्युत – पद से च्युत
  • ऋणमुक्त – ॠण से मुक्त
  • देशनिर्वासित – देश से निर्वासित
  • बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त
  • ईश्वरविमुख – ईश्वर से विमुख
  • मदोन्मत्त – मद से उन्मत्त
  • विद्याहीन – विद्या से हीन
  • आकाशपतित – आकाश से पतित
  • धर्मभ्रष्ट – धर्म से भ्रष्ट
  • देशनिकाला – देश से निकालना
  • गुरुभाई – गुरु के संबंध से भाई
  • रोगमुक्त – रोग से मुक्त
  • कामचोर – काम से जी चुराने वाला
  • आकाशवाणी – आकाश से आगत वाणी
  • जन्मांध – जन्म से अंधा
  • धनहीन – धन से हीन

(ङ) संबंध तत्पुरुष –

जिसमें संबंध कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है। जैसे –

  • मृगशावक – मृग का शावक
  • वज्रपात – वज्र का पात
  • घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़
  • लखपति – लाखों (रुपए) का पति
  • राजरानी – राजा की रानी
  • अमचूर – आम का चूर
  • बैलगाड़ी – बैलों की गाड़ी
  • वनमानुष – वन का मानुष
  • दीनानाथ – दीनों के नाथ
  • रामकहानी – राम की कहानी
  • रेलकुली – रेल का कुली
  • पितृगृह – पिता का घर
  • राष्ट्रपति – राष्ट्र का पति
  • चायबागान – चाय के बगीचे
  • वाचस्पति – वाच: (वाणी) का पति
  • विद्याभ्यासी – विद्या का अभ्यासी
  • रामाश्रय – राम का आश्रय
  • अछूतोद्धार – अछूतों का उद्धार
  • विचाराधीन – विचार के अधीन
  • देवालय – देवों का आलय
  • लक्ष्मीपति – लक्ष्मी का पति
  • रामानुज – राम का अनुज
  • पराधीन – पर (अन्य) का अधीन
  • राजपुत्र – राजा का पुत्र
  • पवनपुत्र – पवन का पुत्र
  • राजकुमार – राजा का कुमार

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

(च) अधिकरण तत्पुरुष –

जिसमें अधिकरण कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है । जैसे –

  • देशाटन – देशों में अटन
  • वनवास – वन में वास
  • कविश्रेष्ठ – कवियों में श्रेष्ठ
  • आनंदमग्न – आनंद में मग्न
  • गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
  • शरणागत – शरण में आगत
  • ध्यानावस्थित – ध्यान में अवस्थित
  • कलाप्रवीण – कला में प्रवीण
  • शोकमग्न – शोक में मग्न
  • दानवीर – दान (देने) में वीर
  • कविशिरोमणि – कवियों में शिरोमणि
  • आत्मविश्वास – आत्म (स्वयं) पर विश्वास
  • आपबीती – अपने पर बीती
  • घुड़सवार – घोड़े पर सवार
  • कानाफूसी – कानों में फुसफुसाहट
  • हरफ़नमौला – हर फ़न में मौला
  • नगरवास – नगर में वास
  • घरवास – घर में वास

इनके अतिरिक्त तत्पुरुष के तीन अन्य भेद और भी माने जाते हैं –

(i) नञ् तत्पुरुष –

निषेध या अभाव के अर्थ में किसी शब्द से पूर्व ‘अ’ या ‘अन्’ लगाने से जो समास बनता है, उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे –

  • अहित – न हित
  • अधर्म – न धर्म
  • अनुदार – न उदार
  • अनिष्ट – न इष्ट
  • अपूर्ण – न पूर्ण
  • असंभव – न संभव
  • अनाश्रित – न आश्रित
  • अनाचार – न आचार

विशेष – (क) प्रायः संस्कृत शब्दों में जिस शब्द के आदि में व्यंजन होता है, तो ‘नञ्’ समास में उस शब्द से पूर्व ‘अ’ जुड़ता है और यदि शब्द के आदि में स्वर होता है, तो उससे पूर्व ‘अन्’ जुड़ता है। जैसे –

  • अन् + अन्य = अनन्य
  • अ + वांछित = अवांछित
  • अन् + उत्तीर्ण = अनुत्तीर्ण
  • अ + स्थिर = अस्थिर

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

(ख) किंतु उक्त नियम प्रायः तत्सम शब्दों पर ही लागू होता है, हिंदी शब्दों पर नहीं। हिंदी में सर्वत्र ऐसा नहीं होता। जैसे –

  • अन् + चाहा – अनचाहा
  • अन् + होनी – अनहोनी
  • अ + न्याय – अन्याय
  • अ + टूट – अटूट
  • अ + काज – अकाज
  • अन + बन – अनबन
  • अन + देखा – अनदेखा
  • अ + सुंदर – असुंदर

(ग) हिंदी और संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त ‘गैर’ और ‘ना’ वाले शब्द भी ‘नञ्’ तत्पुरुष के अंतर्गत आ जाते हैं। जैसे –

  • नागवार
  • ग़ैरहाज़िर
  • नालायक
  • नापसंद
  • नाबालिग
  • गैरवाज़िब

(ii) अलुक् तत्पुरुष –

जिस तत्पुरुष समास में पहले पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे ‘अलुक्’ समास कहते हैं। जैसे –

  • मनसिज – मन में उत्पन्न
  • वाचस्पति – वाणी का पति
  • विश्वंभर – विश्व को भरनेवाला
  • युधिष्ठिर – युद्ध में स्थिर
  • धनंजय – धन को जय करने वाला
  • खेचर – आकाश में विचरनेवाला

(iii) उपपद तत्पुरुष –

जिस तत्पुरुष समास का स्वतंत्र रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता, ऐसे सामासिक शब्दों को ‘उपपद तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे- जलज (‘ज’ का अर्थ उत्पन्न अर्थात पैदा होने वाला है, पर इस शब्द को अलग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है। )

  • तटस्थ – तट + स्थ
  • पंकज – पंक + ज
  • कृतघ्न – कृत + हन
  • तिलचट्टा – तिल + चट्टा
  • बटमार – बट + मार
  • पनडुब्बी – पन + डुब्वी
  • कलमतराश – कलम + तराश
  • गरीबनिवाज़ – गरीब + निवाज़

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

3. कर्मधारय समास – 

जिस समास के दोनों पदों के बीच विशेष्य- विशेषण अथवा उपमेय-उपमान का संबंध हो और दोनों पदों में एक ही कारक (कर्ता कारक) की विभक्ति आए, उसे कर्मधारय समास कहते हैं । जैसे –

  • नीलकमल – नीला है जो कमल
  • लाल मिर्च – लाल है जो मिर्च
  • पुरुषोत्तम – पुरुषों में है जो उत्तम
  • महाराजा – महान है जो राजा
  • सज्जन – सत् (अच्छा) है जो जन
  • भलामानस – भला है जो मानस (मनुष्य)
  • सद्गुण – सद् (अच्छे) हैं जो गुण
  • शुभागमन – शुभ है जो आगमन
  • नीलांबर – नीला है जो अंबर
  • महाविद्यालय – महान है जो विद्यालय
  • कालापानी – काला है जो पानी
  • चरणकमल – कमल रूपी चरण
  • प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
  • वज्रदेह – वज्र के समान देह
  • विद्याधन – विद्या रूपी धन
  • देहलता – देह रूपी लता
  • घनश्याम – घन के समान श्याम
  • कालीमिर्च – काली है जो मिर्च
  • महारानी – महान है जो रानी
  • नीलगाय – नीली है जो गाय
  • करकमल – कमल के समान कर
  • मुखचंद्र – मुख रूपी चंद्र
  • नरसिंह – सिंह के समान है जो नर
  • देहलता – देह रूपी लता
  • भवसागर – भव रूपी सागर
  • पीतांबर – पीत है जो अंबर
  • मालगाड़ी – माल ले जाने वाली गाड़ी
  • चंद्रमृगशावकमुख – चंद्र के समान है जो मुख
  • पुरुषसिंह – सिंह के समान है जो पुरुष
  • नीलकंठ – नीला है जो कंठ
  • महाजन – महान है जो जन
  • बुद्धिबल – बुद्धि रूपी बल
  • गुरुदेव – गुरु रूपी देव
  • करपल्लव – पल्लव रूपी कर
  • कमलनयन – कमल के समान नयन
  • कनकलता – कनक की सी लता
  • चंद्रमुख – चंद्र के समान मुख
  • मृगनयन – मृग के नयन के समान नयन
  • कुसुमकोमल – कुसुम के समान कोमल
  • सिंहनाद – सिंह के नाद के समान नाद
  • जन्मांतर – अंतर (अन्य) जन्म
  • नराधम – अधम है जो नर
  • दीनदयालु – दीनों पर है जो दयालु
  • मुनिवर – मुनियों में है जो श्रेष्ठ
  • मानवोचित – मानवों के लिए है जो उचित
  • पुरुषरत्न – पुरुषों में है जो रत्न
  • घृतान्न – घृत में मिला हुआ अन्न
  • छायातरु – छाया-प्रधान तरु
  • वनमानुष – वन में निवास करने वाला मानुष
  • गुरुभाई – गुरु के संबंध से भाई
  • बैलगाड़ी – बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी
  • दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
  • जेबघड़ी – जेब में रखी जाने वाली घड़ी
  • पनचक्की – पानी से चलने वाली चक्की

कर्मधारय और बहुव्रीहि तथा द्विगु और बहुव्रीहि का अंतर –

(i) कर्मधारय समास विशेषण और विशेष्य, उपमान और उपमेय में होता है। बहुव्रीहि समास में समस्त पदों को छोड़कर अन्य तीसरा ही अर्थ प्रधान होता है। जैसे- नीलांबर-यहाँ नीला विशेषण तथा अंबर विशेष्य है। अतः यह कर्मधारय समास का उदाहरण है। दशानन- दश हैं आनन जिसके अर्थात रावण। यहाँ दश और आनन दोनों शब्द मिलकर अन्य अर्थ का बोध करा रहे हैं। अतः यह बहुव्रीहि समास का उदाहरण है।

(ii) द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद से समुदाय का बोध होता है। जैसे-दशाब्दी – दस वर्षों का समूह, पंचसेरी-पाँच सेरों का समूह। बहुव्रीहि में भी पहला खंड संख्यावाचक हो सकता है। उसके योग से जो समस्त शब्द बनता है, वह किसी अन्य अथवा तीसरे अर्थ का बोधक होता है। जैसे- चतुर्भुज- यदि इसका अर्थ चार भुजाओं का समूह लें तो यह द्विगु समास है, पर चार हैं भुजाएँ जिसकी’ अर्थ लेने से बहुव्रीहि समास बन जाएगा।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

4. द्विगु समास –

जिस समास में पहला पद संख्यावाचक (गिनती बनाने वाला) हो, दोनों पदों के बीच विशेषण – विशेष्य संबंध हो और समस्त पद समूह या समाहार का ज्ञान कराए उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे –

  • शताब्दी – शत (सौ) अब्दों (वर्षों)
  • सतसई – सात सौ दोहों का समूह
  • चौराहा – चार राहों (रास्तों) का समाहार
  • चौमासा – चार मासों का समाहार
  • अठन्नी – आठ आनों का समूह
  • पंसेरी – पाँच सेरों का समाहार
  • दोपहर – दो पहरों का समाहार
  • त्रिफला – तीन फलों का समूह
  • चौपाई – चार पदों का समूह
  • नव-रत्न – नौ रत्नों का समूह
  • त्रिवेणी – तीन वेणियों (नदियों) का समाहार का समूह
  • सप्ताह – सप्त (सात) अह (दिनों) का समूह
  • सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह
  • अष्टार्यायी – अष्ट (आठ) अध्यायों का समूह
  • त्रिभुवन – तीन भुवनों (लोकों) का समूह
  • पंचवटी – पाँच वट (वृक्षों) का समाहार
  • नवग्रह – नौ ग्रहों का समाहार
  • चतुर्वर्ण – चार वर्णों का समूह
  • चतुष्पदी – चार पदों का समाहार
  • पंचतत्व – पाँच तत्वों का समूह

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

5. दद्वंद्व समास –

जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह (अलग – अलग) करने पर दोनों पदों के बीच ‘और’, ‘तथा’, ‘अथवा’, ‘या’ योजक शब्द लगें, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। जैसे –

  • अन्न-जल – अन्न और जल
  • पाप-पुण्य – पाप और पुण्य
  • धर्माधर्म – धर्म और अधर्म
  • वेद-पुराण – वेद और पुराण
  • दाल-रोटी – दाल और रोटी
  • नाम-निशान – नाम और निशान
  • दीन-ईमान – दीन और ईमान
  • लव-कुश – लव और कुश
  • नमक-मिर्च – नमक और मिर्च
  • अमीर-गरीब – अमीर और गरीब
  • राजा-रंक – राजा और रंक
  • राधा-कृष्ण – राधा और कृष्ण
  • निशि-वासर – निशि (रात) और वासर (दिन)
  • देश- विदेश – देश और विदेश
  • माँ-बाप – माँ और बाप
  • नदी-नाले – नदी और नाले
  • रूपया-पैसा – रुपया और पैसा
  • दूध-दही – दूध और दही
  • आब-हवा – आब (पानी) और हवा
  • आमद-रफ़्त – आमद (आना) और रफ़्त (जाना)
  • घी-शक्कर – घी और शक्कर
  • नर-नारी – नर और नारी
  • गुण-दोष – गुण तथा दोष
  • देश-विदेश – देश और विदेश
  • राम-लक्ष्मण – राम और लक्ष्मण
  • भीमारुन – भीम और अर्जुन
  • धन-धाम – धन और धाम
  • भला-बुरा – भला और बुरा
  • धर्माधर्म – धर्म या अधर्म
  • पाप-पुण्य – पाप या पुण्य
  • ऊँच-नीच – ऊँच और नीच
  • सुख-दुख – सुख और दुख
  • माता-पिता – माता और पिता
  • भाई-बहन – भाई और बहन
  • रात-दिन – रात और दिन
  • छोटा-बड़ा – छोटा या बड़ा
  • जात-कुजात – जात या कुजात
  • ऊँचा-नीचा – ऊँचा या नीचा
  • न्यूनाधिक – न्यून (कम) या अधिक
  • थोड़ा-बहुत – थोड़ा या बहुत

JAC Class 9 Hindi व्याकरण समास

6. बहुव्रीहि समास –

जिस समास का कोई भी पद प्रधान नहीं होता और दोनों पद मिलकर किसी अन्य शब्द (संज्ञा) के विशेषण होते हैं, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे –

  • चक्रधर – चक्र को धारण करने वाला अर्थात विष्णु
  • कुरूप – कुत्सित (बुरा) है रूप जिसका (कोई व्यक्ति)
  • बड़बोला – बड़े बोल बोलने वाला (कोई व्यक्ति)
  • लंबोदर – लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात गणेश
  • महात्मा – महान है आत्मा जिसकी (व्यक्ति विशेष)
  • सुलोचना – सुंदर हैं लोचन (नेत्र) जिसके (स्त्री विशेष)
  • आजानुबाहु – अजानु (घुटनों तक) लंबी हैं भुजाएँ जिसकी (व्यक्ति विशेष)
  • दिगंबर – दिशाएँ ही हैं वस्त्र जिसके अर्थात नग्न।
  • राजीव-लोचन – राजीव (कमल) के समान लोचन (नेत्र) हैं जिसके (व्यक्ति विशेष)
  • चंद्रमुखी – चंद्र के समान मुख है जिसका (कोई स्त्री)
  • चतुर्भुज – चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात विष्णु
  • अलोना – (अ) नहीं है लोन (नमक) जिसमें ऐसी कोई पकी सब्ज़ी
  • अंशुमाली – अंशु (किरणें) हैं माला जिसकी अर्थात सूर्य
  • लमकना – लंबे हैं कान जिसके अर्थात चूहा
  • तिमंज़िला – तीन हैं मंज़िल जिसमें वह मकान
  • अनाथ – जिसका कोई नाथ (स्वामी या संरक्षक) न हो (कोई बालक)
  • असार – सार (तत्व) न हो जिसमें (वह वस्तु)
  • सहस्तबाहु – सहस्र (हज़ार) हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात दैत्यराज
  • षट्कोण – षट् ( छह) कोण हैं जिसमें (वह आकृति)
  • मृगलोचनी – मृग के समान लोचन हैं जिसके (कोई स्त्री)
  • वज्रांगी (बजंरगी) – वज्र के समान अंग हैं जिसके अर्थात हनुमान
  • पाषाण हदय – पाषाण के समान कठोर हो हददय जिसका (कोई व्यक्ति)
  • सतखंडा – सात हैं खंड जिसमें (वह भवन)
  • सितार – सितार (तीन) हों जिसमें (वह बाजा)
  • त्रिनेत्र – तीन हैं नेत्र जिसके अर्थात शिव
  • द्विरद – द्वि (दो) हों रद (दाँत) जिसके अर्थात हाथी
  • चारपाई – चार हैं पाए जिसमें अर्थात खाट
  • कलहप्रिय – कलह (क्लेश, झगड़ा) प्रिय हो जिसको (कोई व्यक्ति)
  • कनफटा – कान हो फटा हुआ जिसका (कोई व्यक्ति)
  • मनचला – मन रहता हो चलायमान जिसका (कोई व्यक्ति)
  • मृत्युंजय – मृत्यु को भी जीत लिया है जिसने अर्थात शंकर
  • सिरकटा – सिर हो कटा हुआ जिसका (कोई भूत-प्रेतादि)
  • पतझड़ – पत्ते झड़ते हैं जिसमें वह ऋतु
  • मेघनाद – मेघ के समान नाद है जिसका अर्थात रावण का पुत्र
  • घनश्याम – घन के समान श्याम है जो अर्थात कृष्ण
  • मक्खीचूस – मक्खी को भी चूस लेने वाला अर्थात कृपण (कंजूस)
  • विषधर – विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
  • गिरिधर – गिरि (पर्वत) को धारण करने वाला अर्थात कृष्ण
  • जितेंद्रिय – जीत ली है इंद्रियाँ जिसने (संयमी पुरुष)
  • कृत-कार्य – कर लिया है कार्य जिसने (सफल व्यक्ति)
  • इंद्रजीत – इंद्र को जीत लिया है जिसने (मेघनाद)
  • गजानन – गज के समान आनन (मुख) है जिसका अर्थात गणेश
  • बारहसिंगा – बारह सींग हैं जिसके ऐसा मृग विशेष
  • पीतांबर – पीत (पीले) अंबर (वस्त्र) हैं जिसके अर्थात ‘कृष्ण’
  • चंद्रशेखर – चंद्र है शेखर (मस्तक) पर जिसके अर्थात ‘शिव’
  • नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव
  • शुभ्र-वस्त्र – शुभ्र (स्वच्छ) हैं वस्त्र जिसके (कोई व्यक्ति)
  • श्वेतांबर – श्वेत हैं अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात सरस्वती
  • अजातशत्रु – नहीं पैदा हुआ हो शत्रु जिसका (कोई व्यक्ति)