JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला

JAC Class 9th Sanskrit लौहतुला Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-).
(क) वणिक् पुत्रस्य किम् नाम आसीत्? (व्यापारी के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः।

(ख) तुला कैः भक्षिता आसीत्?
(तराजू किनके द्वारा खा ली गई?)
उत्तरम् :
मूषकैः (चूहों द्वारा)।

(ग) तुला कीदृशी आसीत्? (तुला कैसी थी?)
उत्तरम् :
लौहघटिता। (लोहे की बनी हुई।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

(घ) पुत्र केन हृतः इति जीर्णधनः वदति?
(पुत्र किसके द्वारा हरण कर लिया गया, जैसा जीर्णधन कहता है?)
उत्तरम् :
श्येनेन। (बाज के द्वारा)

(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ? (विवाद करते हुए वे दोनों कहाँ गये?)
उत्तरम् :
राजकुलम्। (राजदरबार में।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) देशान्तरं गन्तमिच्छन वणिकपत्रः किं व्यचिन्तयत? (परदेश जाने के इच्छक वणिक पत्र ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
यस्मिन् देशे स्थाने वा स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः, तत्र विभवहीनो यदि वसति, सः पुरुषाधमः, एवं व्यचिन्तयत्।
(जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे हैं, वहाँ निर्धन होकर जो रहता है, वह अधम पुरुष है, इस प्रकार सोचा।)

(ख) स्वतुला याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत्? (अपनी तराजू को माँगते हुए जीर्णधन से सेठ ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता” इति। (वह बोला-“अरे! वह नहीं है, तेरी तराजू को चूहे खा गये।”)

(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः? (जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को किससे ढंककर घर आया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहच्छिलयाच्छाद्य गृहमागतः। (जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को विशाल शिला से ढंककर घर आया।)

(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् अवदत्? (स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे गये वणिक् पुत्र ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनम् उवाच-“नदीतटात् सः श्येनेन हृतः” इति। (वणिक् पुत्र ने सेठ से कहा-“नदी के किनारे से उसे बाज ने हरण कर लिया।”)

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(ङ) धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं तोषितवन्तः? (धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को कैसे सन्तुष्ट किया?)
उत्तरम् :
धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं सम्बोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन तोषितवन्तः।
(धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को आपस में समझाकर तराजू और बच्चा दिलवाकर सन्तुष्ट किया।)

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(मोटे पदों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्। (जीर्णधन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाने की इच्छा करता हुआ सोचने लगा।)
उत्तरम् :
कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ? (कौन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाने की इच्छा करता हुआ सोचने लगा?)

(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। (सेठ का बच्चा नहाने के साधन लेकर अतिथि के साथ गया।)
उत्तरम् :
श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? (सेठ का बच्चा नहाने के .साधन लेकर किसके साथ गया?)

(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान्।
उत्तरम् :
वणिक् गिरिगुहां कया आच्छादितवान् ?

(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिश-प्रदानेन सन्तोषितौ। (सभासदों ने उन दोनों को आपस में समझाकर तराजू और बालक दिलवाकर सन्तुष्ट कर दिया।)
उत्तरम् :
सभ्यैः तौ परस्परं सम्बोध्य कथं सन्तोषितौ? (सभासदों ने उन दोनों को आपस में समझाकर कैसे सन्तुष्ट किया?)

4. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः, पाठमाधृत्य तं पूरयत
(निम्नलिखित श्लोकों का अधुरा अन्वय दिया हआ है. पाठ के आधार पर उसे परा करो-)
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने ………. भोगाः भुक्ताः ………. विभवहीनः यः ………… स पुरुषाधमः।
उत्तरम् :
यत्र देशेऽथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः। (जिस देश या स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे गये हैं, उसमें निर्धन हुआ जो रहे वह अधम पुरुष है।)

(ख) राजन् ! यत्र लौहसहस्रस्य ………… मूषकाः ……… तत्र श्येनः ………… हरेत् अत्र संशयः न।।
उत्तरम् :
राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषका: खादन्ति तत्र श्येनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न। (राजन! जहाँ हजार (तोला) लोहे की बनी तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज बच्चे को ले जाये तो इसमें कोई संदेह नहीं।)

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5. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र-(उस पद को रेखांकित करो जहाँ-)
(क) ‘ल्यप् प्रत्यय: नास्ति। (‘ल्यप् प्रत्यय नहीं है।) विहस्य, लौहसहस्रस्य, सम्बोध्य, आदाय।
उत्तरम् :
लौहसहस्रस्य (षष्ठी विभक्तिः)।

(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति। (जहाँ द्वितीया विभक्ति नहीं है।)
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्वरम्, कार्यकारणम्। उत्तरम् : सत्वरम् (अव्यय)।

(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति। (जहाँ षष्ठी विभक्ति नहीं है।) पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम्।
उत्तरम् :
स्ववीर्यतः (पंचमी)।

6. सन्धिना सन्धि-विच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-) सन्धिः सन्धि-विच्छेदः
(क) श्रेष्ठ्याह = …….. + आह।
(ख) ………. = द्वौ + अपि।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + …………!
(घ) ………………… = यथा + इच्छया।
(ङ) स्नानोपकरणम् = …….. + उपकरणम्।
(च) …………….. = स्नान + अर्थम्।
उत्तरम् :
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह।
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता।
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया।
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्।
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्।

7. (अ) समस्तपदं विग्रहं वा लिखत-(समास करके अथवा विग्रह करके लिखिए-)
विग्रहः – समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = ……………
(ख) …………. = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = ……………
(घ) ………….. = विभवहीनाः
उत्तरम् :
समस्तपदम् – विग्रहः।
(क) स्नानोपकरणम् = स्नानस्य उपकरणम्
(ख) गिरिगुहायाम् = गिरेः गुहायाम्
(ग) धर्माधिकारी = धर्मस्य अधिकारी
(घ) विभवहीनाः = विभवात् हीनः

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(आ) यथापेक्षम अधोलिखितानां शब्दानां सहायतया ‘लौहतला’ इति कथायाः सारांशं संस्कृतभाषया लिखत –
(अपेक्षानुसार निम्नलिखित शब्दों की सहायता से ‘लौहतुला’ कहानी का सारांश संस्कृत में लिखिए-)
वणिकपुत्रः, लौहतुला, वृत्तान्तं, श्रेष्ठिनं, गतः, स्नानार्थम्, अयाचत्, ज्ञात्वा, प्रत्यागतः, प्रदानम्।
उत्तर :
पुरा जीर्णधननामकः वणिक्पुत्रः आसीत्। सः धनहीनः एकां लौहतुलां कस्यापि श्रेष्ठिनः गृहे न्यक्षिपत् देशान्तरं च अगच्छत्। देशान्तराद् आगत्य यदा सः श्रेष्ठिनं स्वकीयां तुलाम् अयाचत् तदा श्रेष्ठी अवदत्-‘सा तुला तु मूषकैः खादिता।’ जीर्णधनः सर्वं रहस्यं ज्ञात्वा अवदत्-“अहं स्नानार्थं गन्तुमिच्छामि अतः स्वपुत्रं मया सह प्रेषय।” श्रेष्ठी तम् प्रेषयत। सः तं बालकं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य शिलायाः च द्वारम् आच्छाद्य गृहं प्रत्यागतः।

श्रेष्ठी जीर्णधनमपृच्छत्-“क्व मे पुत्र: गतः?” सोऽवदत्-“श्येनेन अपहृतः।” श्रेष्ठी अवदत्-“श्येनः कथं बालकं हर्तु शक्नोति?” एवं विवदमानौ तौ राजकुलं प्राप्तौ। धर्माधिकारिणः तयोः वृत्तान्तं ध्यानेन श्रुत्वा परस्परं तौ संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।

JAC Class 9th Sanskrit लौहतुला Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत् ? (व्यापारी के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रस्य नाम जीर्णधनः आसीत्। (व्यापारी के पुत्र का नाम जीर्णधन था।)

प्रश्न: 2.
जीर्णधनः कस्मात् कारणात् देशान्तरं गन्तुमैच्छत् ? (जीर्णधन किस कारण से परदेश जाना चाहता था?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमैच्छत्। (जीर्णधन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाना चाहता था।)

प्रश्न: 3.
जीर्णधनः लौहतुलां कुत्र निक्षिप्तवान्? (जीर्णधन ने लोहे की तराजू कहाँ धरोहर रखी?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः लौहतुलां श्रेष्ठिनः गृहे निक्षिप्तवान्। (जीर्णधन ने लोहे की तराजू सेठ के घर में धरोहर रखी।)

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प्रश्न: 4.
तुलां निक्षिप्य जीर्णधनः कुत्र अगच्छत्? (तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन कहाँ गया?)
उत्तरम् :
तुला निक्षिप्य जीणेधनः देशान्तरम् अगच्छत्। (तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन परदेश गया।)

प्रश्न: 5.
श्रेष्ठिनः कथनानुसारं तुला कैः भक्षिता? (सेठ के कहने के अनुसार तराजू किसने खा ली?)
उत्तरम :
श्रेष्ठिन: कथनानुसारं तुला मूषकैः भक्षिता। (सेठ के कहने के अनुसार तराजू चूहों ने खा ली।)

प्रश्न: 6.
स्वपुरं प्रत्यागत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनं किमुवाच? (अपने नगर में लौटकर जीर्णधन ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
स्वपुरं प्रत्यागत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनमकथयत्-“भोः श्रेष्ठिन्। दीयतां मे सा निक्षेपतुला।” (अपने नगर को लौटकर जीर्णधन ने सेठ से कहा-“अरे सेठजी ! मेरी वह धरोहर रखी तराजू दे दीजिए।”)

प्रश्नः 7.
कः पुरुषाधमः कथ्यते? (कौन अधम पुरुष कहलाता है?)
उत्तरम् :
यः विभवहीनः सन् स्ववीर्यतः भुक्ते स्थाने वसति सः पुरुषाधमः कथ्यते। (जो धनहीन होकर अपने पराक्रम से भोगे हुए स्थान पर रहता है वह अधम पुरुष कहलाता है।)

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प्रश्न: 8.
लौहघटिता तुला कैः उपार्जिता आसीत् ? (लोहे की बनी हुई तराजू किनकी कमाई हुई थी?)
उत्तरम् :
लौहघटिता तुला जीर्णधनस्य पूर्वपुरुषैः उपार्जिता आसीत्। (लोहे की बनी तराजू जीर्णधन के पुरखों की कमाई हुई थी।)

प्रश्न: 9.
जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रं कुत्र प्राक्षिपत्? (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को कहाँ रख छोड़ा?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायां प्राक्षिपत्। (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को पर्वत की गुफा में रख छोड़ा।)

प्रश्न: 10.
स्नानोपकरणमादाय जीर्णधनेन सह कः अगच्छत? (स्नान की सामग्री लेकर जीर्णधन के साथ कौन गया?)
उत्तरम् :
स्नानोपकरणमादाय जीर्णधनेन सह श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः अगच्छत्। (स्नान की सामग्री लेकर जीर्णधन के साथ सेठ का पुत्र धनदेव गया।)

प्रश्न: 11.
जीर्णधन-श्रेष्ठिनौ विवदमानौ कुत्र गतौ? (जीर्णधन और सेठ झगड़ते हुए कहाँ गये?)
उत्तरम् :
जीर्णधन-श्रेष्ठिनौ विवदमानौ राजकुलं गतौ। (जीर्णधन और सेठ झगड़ते हुए राजदरबार में गये।)

प्रश्न: 12.
धर्माधिकारिभिः जीर्णधनः किमादिष्टः? (धर्माधिकारियों द्वारा जीर्णधन को क्या आदेश दिया गया?).
उत्तरम् :
धर्माधिकारिभिः जीर्णधन: आदिष्ट:-“भोः! समर्प्यतां श्रेष्ठिसुतः।” (धर्माधिकारियों द्वारा जीर्णधन को आदेश दिया गया-“अरे! सेठ का बेटा दे दो।”)

प्रश्न: 13.
सभ्यानामग्रे आदितः सम्पूर्णं वृत्तान्तं कः निवेदयामास? (सभासदों के आगे आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त को किसने निवेदन किया?)
उत्तरम् :
सभ्यानामग्रे आदितः सम्पूर्णं वृत्तान्त जीर्णधनः निवेदयामास। (सभासदों के आगे आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त जीर्णधन ने निवेदन किया।)

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प्रश्न: 14.
न्यायाधिकारिणां शङ्का निवारयितुं जीर्णधनः किम् उदतरत्? (न्यायाधिकारियों की शंका का निवारण करने के लिए जीर्णधन ने क्या उत्तर दिया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः उदतरत्-“यत्र लौहतुलां मूषकाः खादन्ति, तत्र श्येनेन बालकस्य हरणे का शङ्का?” (जीर्णधन ने उत्तर दिया-“जहाँ लोहे की तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज द्वारा बालक के हरण करने में क्या शंका?”)

प्रश्न: 15.
कः पुरुषाधमः? (अधमपुरुष कौन है?)
उत्तरम् :
यस्मिन् देशे स्थाने वा स्ववीर्यतः भोगान् भुक्त्वा स्थितः तस्मिन् स्थाने विभवहीनो यः वसेत् सः पुरुषाधमः। (जिस देश या स्थान पर अपने पराक्रम से भोग कर रह चुका हो, उस स्थान पर वैभवरहितं (निर्धन) होकर रहे, वह पुरु अधम है।)

प्रश्न: 16.
जीर्णधनानुसारं कीदृशोऽयं संसार:? (जीर्णधन के अनुसार यह संसार कैसा है?)
उत्तरम् :
जीर्णधनानुसारम् अयं संसार: नाशवान् यतः न किञ्चित् अत्र शाश्वतमस्ति। (जीर्णधन के अनुसार यह संसार नाशवान है, क्योंकि यहाँ कोई वस्तु शाश्वत नहीं है।)

प्रश्न: 17.
श्रेष्ठिनः पुत्रस्य किन्नाम आसीत्? (सेठ के बेटे का क्या नाम था?) उत्तरम् : श्रेष्ठिनः पुत्रस्य नाम धनदेवः आसीत्। (सेठ के बेटे का नाम धनदेव था।)

प्रश्न: 18.
स्नानं कृत्वा प्रत्यागतं जीर्णधनं श्रेष्ठिपुत्रं किमपृच्छत्? (स्नान कर लौटे जीर्णधन से सेठ ने क्या पूछा?)
उत्तरम् :
भो अभ्यागत ! कथ्यताम् कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नर्दी गतः? (अरे अतिथि! कहो मेरा बेटा जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था, कहाँ है?)

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रेखांकित पदान्यधिकृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण करो-)

प्रश्न: 1.
आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक् पुत्रः। (किसी कस्बे में जीर्णधन नाम का एक बनिया का बेटा रहता था।)
उत्तरम् :
कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने किन्नाम वणिकपुत्रः आसीत् ? (किसी कस्बे में किस नाम का बनिया का बेटा रहता था?)

प्रश्न: 2.
स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुम् इच्छति। (और वह वैभव नष्ट हो जाने के कारण परदेश जाना चाहता है।)
उत्तरम् :
सच कस्मात् देशान्तरं गन्तुम् इच्छति? (और वह किस कारण से परदेश जाना चाहता है?)

प्रश्न: 3.
तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। (और उसके घर लोहे से गढ़ी (बनी) हुई पुरखों द्वारा उपार्जित तराजू थी।)
उत्तरम् :
तस्य च गृहे लौहघटिता कैरुपार्जिता तुला आसीत् ? (और उसके घर में किनके द्वारा उपार्जित की गई तराजू थी?)

प्रश्न: 4.
तुला मूषकैः भक्षितम्। (तराजू चूहों ने खा ली।)
उत्तरम् :
तुला कैः भक्षितम्? (तराजू किसने खा ली?)

प्रश्नः 5.
तुला निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (तराजू को रखकर परदेश चला गया।)
उत्तरम् :
तुलां निक्षेपभूतां कृत्वा कुत्र प्रस्थितः? (तराजू को रखकर कहाँ प्रस्थान कर गया?)

प्रश्न: 6.
स्वपुरम् आगत्य सः श्रेष्ठिनम् अवदतु। (अपने नगर आकर वह सेठजी से बोला।)
उत्तरम् :
स्वपुरम् आगत्य सः कम् अवदत् ? (अपने नगर आकर वह किससे बोला?)

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प्रश्नः 7.
स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्। (वह सेठ अपने पुत्र से बोला।)
उत्तरम् :
स श्रेष्ठी कम् अवदत् ? (वह सेठ किससे बोला?)

प्रश्न: 8.
धनदेवः स्नानोपकरणमादाय तेन सह प्रस्थितः। (धनदेव नहाने की सामग्री लेकर उसके साथ प्रस्थान कर गया।)
उत्तरम् :
धनदेवः किम् आदाय तेन सह प्रस्थितः? (धनदेव क्या लेकर उसके साथ प्रस्थान कर गया?)

प्रश्न: 9.
शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य गृहमागतः। (बच्चे को पर्वत की गुफा में डालकर घर आ गया।)
उत्तरम् :
शिशुं कुत्र प्रक्षिप्य गृहमागतः? (बच्चे को कहाँ डालकर घर आ गया?)

प्रश्नः 10.
द्वारं बृहत् शिलया आच्छादितवान्। (द्वार को विशाल शिला से ढंक दिया।)
उत्तरम् :
द्वारं कया आच्छादितवान् ? (दरवाजे को किससे ढंक दिया?)

प्रश्न: 11.
पुत्रः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः। (पुत्र नदी के किनारे से बाज द्वारा हर लिया गया।)
उत्तरम् :
पुत्रः नदीतटात् केन अपहृतः? (बेटा नदी के किनारे से किसने हरण कर लिया?)

प्रश्न: 12.
पुत्रः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः। (पुत्र नदी के किनारे से बाज ने हर लिया।)
उत्तरम् :
पुत्रः कुतः श्येनेन अपहृतः? (बेटा कहाँ से बाज ने हर लिया?)

प्रश्न: 13.
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। (इस प्रकार विचार करते हुए वे दोनों राजदरबार को गये।)
उत्तरम् :
एवं किं कुर्वाणौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ? (इस प्रकार क्या करते हुए वे दोनों राजदरबार को गये?)

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प्रश्न: 14.
तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्। (वहाँ सेठ जोर से बोला।)
उत्तरम् :
तत्र श्रेष्ठी कथम् अवदत्? (वहाँ सेठ कैसे बोला?)

कथा-क्रम-संयोजनम्

अधोलिखितानि वाक्यानि पूर्वानुक्रमशः लिखित्वा कथा-क्रम-संयोजनं कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों को पूर्वानुक्रम से लिखकर कथा-क्रम संयोजन कीजिये-)
1. जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रेण सह नर्दी स्नातुमगच्छत्, तत्र श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायामक्षिपत् ।
2. स आह-“नदीतटात् श्येनेन हृतः।”
3. “कुत्र मे पुत्रः?” इति श्रेष्ठिना पृष्टम्।
4. तौ राजकुलं गतौ, वृत्तान्तं च अकथयताम्।
5. न्यायाधिकारिणः सर्वं श्रुत्वा तुला-शिशु-प्रदानेन तौ सन्तोषितौ।
6. “सा तु मूषकैः खादिता” इति श्रेष्ठिनोक्तम्।
7. निर्धनः जीर्णधन: लौहतुलां श्रेष्ठिनो गृहे निक्षिप्य देशान्तरं प्रस्थितः।
8. पर्यटनात् प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत्। .
उत्तरम् :
1. निर्धन: जीर्णधनः लौहतुलां श्रेष्ठिनो गृहे निक्षिप्य देशान्तरं प्रस्थितः।
2. पर्यटनात् प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत्।
3. “सा तु मूषकैः खादिता” इति श्रेष्ठिनोक्तम्।
4. जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रेण सह नर्दी स्नातुमगच्छतु, तत्र श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायामक्षिपत्।
5. “कुत्र मे पुत्र:?” इति श्रेष्ठिना पृष्टम्।
6. स आह- “नदीतटात् श्येनेन हृतः।”
7. तौ राजकुलं गतौ, वृत्तान्तं च अकथयताम्।
8. न्यायाधिकारिणः सर्वं श्रुत्वा तुला-शिशु-प्रदानेन तौ सन्तोषितौ।

योग्यताविस्तारः

ग्रन्थ परिचय-महाकवि विष्णुशर्मा (200 ई. से 600 ई. के मध्य) ने राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ पाँच भागों में विभाजित है। इन्हीं भागों को ‘तन्त्र’ कहा गया है। पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र (भाग) हैं-मित्रभेदः, मित्रसंप्राप्तिः, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाशः और अपरीक्षितकारकम्। इस ग्रन्थ में अत्यन्त सरल शब्दों में लघु कथाएँ दी गयी हैं। इनके माध्यम से ही लेखक ने नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।

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भावविस्तारः

‘लौहतुला’ नामक कथा में दी गयी शिक्षा के सन्दर्भ में इन सूक्तियों को भी देखा जाना चाहिए।

1. न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। (न कोई किसी का मित्र है (और) न कोई किसी का शत्रु है। व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बनते हैं।)

व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा।

2. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (स्वयं को प्रतिकूल लगने वाले (अच्छे न लगने वाले) आचरण दूसरों के साथ नहीं करने चाहिए)

भाषिकविस्तारः

1. तसिल् प्रत्यय-पञ्चमी विभक्ति के अर्थ में तसिल् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
यथा- ग्रामात् – ग्रामत: (ग्राम + तसिल).
आदेः – आदितः (आदि + तसिल)
यथा- छात्रः विद्यालयात् आगच्छति।
छात्रः विद्यालयतः आगच्छति।
इसी प्रकार – गृह + तसिल – गृहतः – गृहात्।
तन्त्र + तसिल – तन्त्रतः – तन्त्रात्।
प्रथम + तसिल – प्रथमतः – प्रथमात्।
आरम्भ + तसिल – आरम्भतः – आरम्भात्।

2. अभितः, परितः, उभयतः, सर्वतः, समया, निकषा, हा और प्रति के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
यथा – गृहम् अभितः वृक्षाः सन्ति।
विद्यालयम् परितः द्रुमाः सन्ति।
ग्रामम् उभयतः नद्यौ प्रवहतः।
हा दुराचारिणम्।
क्रीडाक्षेत्रं निकषा तरणतालम् अस्ति।
बालकः विद्यालयम् प्रति गच्छति।
नगरम् समया औषधालयः विद्यते।
ग्रामम् सर्वतः गोचारणभूमिः अस्ति।

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योग्यताविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विष्णुशर्मा का कार्य-काल क्या माना गया है?
उत्तर :
200 ई. से 600 ई. के मध्य तक।

प्रश्न 2.
विष्णुशर्मा का ‘अमरकथा-ग्रन्थ’ कौन-सा है?
उत्तर :
पञ्चतन्त्र।

प्रश्न 3.
‘पञ्चतन्त्र’ किसकी रचना है अथवा ‘पञ्चतन्त्र’ के लेखक कौन थे?
उत्तर :
पं. विष्णुशर्मा।

प्रश्न 4.
‘पञ्चतन्त्र’ किस प्रयोजन से लिखा गया था?
उत्तर :
‘पञ्चतन्त्र’ राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से लिखा गया था।

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प्रश्न 5.
‘पञ्चतन्त्र’ के कितने तन्त्र (भाग) है? नाम लिखिए।
उत्तर :
पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र (भाग) हैं –

मित्रभेदः
मित्रसम्प्राप्तिः
काकोलूकीयम्
लब्धप्रणाशः
अपरीक्षित कारकम्।

प्रश्न 6.
लेखक का इस ग्रन्थ को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है?
उत्तर :
लेखक का इस ग्रन्थ को लिखने का मुख्य उद्देश्य नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन करने का रहा है।

भावविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लौहतुला’ कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
‘लौहतुला’ कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि संसार में मनुष्य के मित्र और शत्रु व्यवहार से होते हैं तथा जो कार्य । अपने प्रतिकूल हो दूसरों के लिए उसका आचरण नहीं करना चाहिए।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न 2.
निम्न सूक्तियों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
(क) न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। ”
व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा।
अनुवाद – न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु है। शत्रु और मित्र तो व्यवहार से ही बनते हैं।

(ख) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
अनुवाद – अपने प्रतिकूल कार्य दूसरों के साथ नहीं करने चाहिए।

भाषिकविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. नी, प्रच्छ तथा दा धातुओं में ‘क्त’ प्रत्यय लगाकर शब्द-रचना कीजिए
उत्तर :
नी + क्त = नीतः, प्रच्छ् + क्त = पृष्टः, दा + क्त = दत्तः निम्न शब्दों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजिए पृष्टवान्, दत्तवती, दानीयम्, नेतव्यम्, नयनम्, दाता, प्रष्टव्यम्, देयम्, नेता, दानम्।
उत्तर :
प्रच्छ् + क्तवतु = पृष्टवान् (पु.)
दा. + क्तवतु = दत्तवती (स्त्री.)
दा + अनीयर् = दानीयम् (नपुं.)
नी+ तव्यत् = नेतव्यम् (नपुं.)
नी + ल्युट् = नयनम् (नपुं)
दा + तृच् = दाता (पु.)
प्रच्छ् + तव्यत् = प्रष्टव्यम् (नपुं.)
दा + यत् = देयम् (नपुं.)
नी + तृच् = नेता (पु.)
दा + ल्युट् = दानम् (नपुं.)

3. निम्न शब्दों में तसिल्’ प्रत्यय लगाकर शब्द-रचना कीजिए
ग्राम, आदि, सर्व, परि, काल, तद्, यद्, किम्, प्रथम, आरम्भ ।
उत्तर :
ग्राम + तसिल = ग्रामतः
आदि + तसिल = आदितः
सर्व + तसिल = सर्वतः
परि + तसिल = परितः
काल + तसिल = कालतः
तद् + तसिल = ततः
यद् + तसिल = यतः
किम् + तसिल = कुतः
प्रथम + तसिल = प्रथमतः
आरम्भ+ तसिल = आरम्भतः

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4. अभि, परि, सर्व तथा उभय अव्ययों में तसिल् प्रत्यय लगाइये-
अभि + तसिल् = अभितः
परि + तसिल = परितः
सर्व + तसिल = सर्वतः ।
उभय + तसिल = उभयतः

5. निम्न शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-समया, निकषा, सर्वतः, परितः, उभयतः, हा, अभितः, प्रति।
उत्तर :
ग्रामं समयां विद्यालयः अस्ति। (गाँव के समीप विद्यालय है।)
विद्यालयं निकषा एव चिकित्सालयः अस्ति। (विद्यालय के समीप ही चिकित्सालय है।)
पुष्पं सर्वतः जलमस्ति। (फूल के सभी ओर पानी है।)
नगरं परितः परिखा अस्ति। (नगर के चारों ओर खाई है।)
कृष्णम् उभयतः गोपाः सन्ति। (कृष्ण के दोनों ओर ग्वाले हैं।)
हा दुर्जनम्। (दुर्जन होने का अफसोस है।)
भवनम् अभितः वृक्षाः सन्ति। (भवन के दोनों ओर वृक्ष हैं।)
त्वं नित्यमेव कूपं प्रति कथं गच्छसि? (तुम रोजाना ही कुएँ की ओर क्यों जाते हो?)

लौहतुला Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से संकलित है। सरल संस्कृत भाषा में नीति की शिक्षा देने वाले कथा-ग्रन्थों में ‘पञ्चतन्त्र’ का अत्यधिक महत्त्व है। इस ग्रन्थ में विष्णु शर्मा ने एक राजा के तीन मूर्ख पुत्रों को छह माह में राजनीति और व्यवहार में कुशल बनाने के लिए कहानियाँ कही हैं। यह ग्रन्थ पाँच तन्त्रों (भागों) में विभक्त है-(1) मित्रभेद (2) मित्रसम्प्राप्ति (3) काकोलूकीय (4) लब्धप्रणाश तथा (5) अपरीक्षित कारक। प्रत्येक तन्त्र में एक मुख्य कथा है तथा उसके भीतर अवान्तर कथाएँ हैं। कथाओं को परस्पर ऐसा था गया है कि एक कथा के अन्त में दूसरी कथा का सङ्केत हो जाता है। इसका स्वरूप गद्य-पद्यात्मक है। सामान्यतः कथा गद्य में और नैतिक शिक्षा पद्य में है जिनमें से अधिकांश श्लोक विभिन्न नीतिग्रन्थों से उद्धृत किये गये हैं।

पाठ का सारांश – किसी नगर में एक जीर्णधन नाम का व्यापारी रहता था। धन के अभाव में वह गरीब हो गया था। उसने सोचा, जहाँ व्यक्ति समृद्ध जीवन व्यतीत कर चुका हो वहाँ अभावपूर्ण जीवन व्यतीत नहीं करना चाहिए। उसके पास एक लोहे की तराजू थी। वह उसे एक सेठ के पास धरोहर के रूप में रखकर अन्य स्थानों पर भ्रमण करने के लिए निकल गया।

देशाटन से लौटकर जब जीर्णधन ने अपनी तराजू माँगी तो सेठ ने कह दिया – “तराजू तो नहीं है, उसे तो चूहे खा गये।” व्यापारी ने कहा-“कोई बात नहीं, अब तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ स्नान की सामग्री लेकर भेज दो ताकि मैं स्नान कर अन्य दैनिक कार्य सम्पन्न कर सकूँ।” सेठ ने अपने पुत्र को उसके साथ नदी पर भेज दिया। वहाँ सौदागर ने उसे पर्वत की एक गुफा में छुपाकर शिला से ढंक दिया तथा सेठ के घर आ गया। सेठ ने पूछा-“मेरा बेटा कहाँ है?” जीर्णधन बोला-“तुम्हारे बेटे को बाज उठा ले गया।” सेठ ने कहा-“यह असम्भव है।”

दोनों झगड़ते-झगड़ते राजा के दरबार में पहुँच गये। राजा ने जीर्णधन से सेठ के पुत्र को लौटाने के लिए कहा। जीर्णधन ने कहा- “श्रीमन! जहाँ चहे लोहे की तराज को खा सकते हैं वहाँ यदि बाज बालक को उठा ले जाये तो है? न्यायाधिकारी के पूछने पर जीर्णधन व्यापारी ने सम्पूर्ण घटना बता दी। तब न्यायाधिकारी ने सम्पूर्ण घटना को सूक्ष्म दृष्टि से परखकर जीर्णधन व्यापारी को उसकी तराजू तथा सेठ को उसका बेटा वापस करवा दिया।

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1. आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् –
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥

शब्दार्थाः – आसीत् = अवर्तत (था), कस्मिंश्चिद = कुत्रचित् (किसी), अधिष्ठाने = स्थाने (स्थान पर), जीर्णधनो नाम = जीर्णधनाभिधः (जीर्णधन नाम का ), वणिकपुत्रः = व्यापारिसुतः (व्यापारी का पुत्र), स च = असौ च (और वह), विभवक्षयात् = धनाभावात्(धन के अभाव में/धन नष्ट हो जाने के कारण), देशान्तरम् = अन्यस्थानं (दूसरे स्थान पर), गन्तुमिच्छन् = प्रयातुकामः (जाने की इच्छा वाला), व्यचिन्तयत् = चिन्तितवान् (सोचने लगा), यत्र = यस्मिन् स्थाने (जिस स्थान पर), स्ववीर्यतः = स्वपराक्रमेण (अपने पराक्रम से), भोगाः = भोग्यानि वस्तूनि (भोगने योग्य वस्तुएँ), भुक्ताः = उपभुक्तानि (उपभोग किया गया), तस्मिन् देशे = तस्मिन् स्थाने (उस स्थान पर), विभवहीनः = धनरहित: (निर्धन होकर), यः = जो, वसेत् = निवसेत् (निवास करे), सः = असौ (वह), पुरुषाधमः = अधमः पुरुषः (नीच व्यक्ति है।)

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसङ्ग – इस गद्यांश में व्यापारी पुत्र जीर्णधन निर्धन हुआ आत्मग्लानि का अनुभव करता हुआ उस स्थान पर ठहरना नहीं चाहता है, जहाँ उसने समृद्ध जीवन व्यतीत किया है।

अनुवाद – किसी स्थान पर जीर्णधन नाम का एक व्यापारी का पुत्र रहता था और वह धनाभाव के कारण दूसरे स्थान पर जाने का इच्छुक सोचने लगा- “जिस स्थान पर अपने पराक्रम से भोगने योग्य वस्तुओं का उपभोग किया है, उस स्थान पर निर्धन होकर जो निवास करे, वह अधम पुरुष होता है।”

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संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं.विष्णुशर्मा रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ विष्णु शर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ ‘मित्रभेद’ तन्त्र से संकलित है।)

प्रसङ्गः – गद्यांशेऽस्मिन् वणिक्पुत्रः जीर्णधनः निर्धनः सन् आत्मग्लानिमनुभवन् तस्मिन् स्थाने न स्थातुमिच्छति, यत्र तेन समद्धं जीवनं यापितम्। (इस गद्यांश में वणिक पुत्र जीर्णधन निर्धन हुआ आत्मग्लानि का अनुभव करता हुआ उस स्थान पर नदी रहना चाहता है जहाँ उसने समृद्ध जीवन व्यतीत किया था।

व्याख्या: – कुत्रचित् स्थाने जीर्णधनाभिधः व्यापारिसुतः अवर्तत। असौ च धनाभावात् अन्यस्थानं प्रयातुकामः चिन्तितवान्-“यस्मिन् स्थाने स्वपराक्रमेण भोग्यानि वस्तूनि उपभुक्तानि तस्मिन् स्थाने धनाभावग्रसितः सन् यो निवसेत्, असौ अधमः पुरुषः भवति।” (कहीं जीर्णधन नामक वणिक् पुत्र था। वह धनाभाव के कारण अन्य स्थान पर जाने का इच्छुक सोचने लगा- “जिस स्थान पर अपने पराक्रम से भोगने योग्य वस्तुओं का उपभोग किया उस स्थान पर धनाभाव-ग्रसित होकर नहीं रहना चाहिए। वह पुरुष अधम (नीच) होता है।)

अवबोधन कार्यम

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) वणिक पुत्रस्य किन्नाम आसीत् ? (वणिक पुत्र का क्या नाम था?)
(ख) जीर्णधन: देशान्तरं कस्मात् अगच्छत् ? (जीर्णधन परदेश क्यों गया?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मनुष्यः कुत्र न वसेत् ? (मनुष्य को कहाँ नहीं बसना चाहिए?)
(ख) जीर्णधनः किं विचिन्तयत्? (जीर्णधन ने क्या सोचा?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘तस्मिन् विभवहीनो न वसेत्’ अत्र तस्मिन् इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(तस्मिन् विभवहीनो न वसेत्’ यहाँ तस्मिन् सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘आसीत्’ इति क्रियापदं लट्लकारे वर्तमान काले वा लिखत ।
(‘आसीत्’ क्रियापद को लट्लकार वर्तमान काल में लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) जीर्णधनः ।
(ख) विभवक्षयात् (गरीब होने के कारण)।

(2) (क) यत्र भोगाः युक्ता तत्र विभवहीनो न वसेत्।
(जहाँ भोग भोगे हैं। वहाँ वैभवहीन होने पर नहीं रहना चाहिए।)
(ख) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
(जीर्णधन ने विभवहीन होने के कारण विदेश : जाने की सोची।)

(3) (क) स्थाने (स्थान पर)।
(ख) अस्ति (है)।

2. तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पनः स्वपरम आगत्य तं श्रेष्ठिनम अवदत-“भोः श्रेष्ठिन! दीय मे सा निक्षेपतुला।” सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति। जीर्णधनः अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैः भक्षिता। ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशं. धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति।

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शब्दार्थाः – तस्य च = अमुष्य च (और उसके) गृहे = सदने (घर में), लौहघटिता = अयोनिर्मिता (लोहे से बनी हुई), पूर्वपुरुषोपार्जिता = पूर्वजैरर्जिता, (पुरखों द्वारा कमाई हुई), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), आसीत् = अवर्तत (थी), तां च = और उसको, कस्यचित् = (किसी) श्रेष्ठिनो = महाजनस्य (सेठ के), गृहे = सदने (घर में), निक्षेपभूतां कृत्वा = न्यासः कृत्वा (धरोहर के रूप में रखकर), देशान्तरम् = अन्यं देशं (दूसरे स्थान पर), प्रस्थितः = प्रस्थानं कृतवान् (प्रस्थान कर गया) ततः = तदा (तब), सुचिरं कालम् = सुदीर्घकालपर्यन्तम् (बहुत लम्बे समय तक),

देशान्तरम् = अन्यत्र (दूसरे स्थानों पर), यथेच्छया = इच्छानुसारेण (इच्छा के अनुसार), भ्रान्त्वा = भ्रमणं कृत्वा, देशाटनं कृत्वा (घूमकर), पुनः = ततः (फिर), स्वपुरम् = स्वनगरम् (अपने नगर को), आगत्य = आगम्य/प्रत्यागम्य/प्राप्य (आकर), तम् = अमुम् (उस), श्रेष्ठिनम् = धनिकम् (सेठ से), अवदत् = अकथयत् (कहा), भोः! = रे! (अरे!), श्रेष्ठिन्! = धनिक! (सेठजी!), दीयताम् = देहि (दे दो), मे सा = मह्यम् असौ (मुझे वह), निक्षेपतुला = न्यासकृतं तोलनयन्त्रम्, (धरोहर रखी तराजू), सोऽवदत् = असौ अकथयत् (वह बोला/उसने कहा),

भोः! = रे! (अरे!), नास्ति सा = असौ (तुला) न वर्तते (वह तराजू नहीं है), त्वदीया = तव/भवदीया (तेरी/आपकी), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), मूषकैः = आखुभिः (चूहों द्वारा), भक्षिता – = खादिता (खा ली गई/खा ली), इति = एवं (इस प्रकार), जीर्णधनः अवदत् = अकथयत् (जीर्णधन बोला), भोः श्रेष्ठिन्! = हे धनिक ! (अरे सेठ जी!), नास्ति = न वर्तते (नहीं), दोषस्तेः = तव अपराधः (तेरा/तुम्हारा दोष), यदि मूषकैः = यदि आखुभिः (यदि चूहों द्वारा), भक्षिता = खादिता (खा ली गई), ईदृशः एव = एवमेव/एतादृश एव (ऐसा ही है), अयं संसारः = इदं जगत् (यह संसार),

न = (नहीं), किञ्चिदत्र = अत्र किमपि (यहाँ, इस संसार में कुछ भी), शाश्वतमस्ति = अविनश्वरम् वर्तते (अविनाशी है/सदा स्थायी रहने वाला है), परमहँ = परञ्च अहम् (लेकिन मैं), नद्याम् = सरिति (मैं नदी में), स्नानार्थम् = स्नातुं (नहाने के लिए), गमिष्यामि = यास्यामि (जाऊँगा), तत् = तदा (तो), त्वम् = भवान् (आप), आत्मीयम् = स्वकीयम् (अपने), एनम् = इमम् (इस), शिशुम् = बालकं (बालक को), धनदेवनामानम् = धनदेवाभिधम् (धनदेव नाम के), मया सह = मया सार्धम् (मेरे साथ), स्नानोपकरणहस्तम् = अभिषेकसामग्री हस्ते निधाय (नहाने की सामग्री हाथ में लेकर), प्रेषय = गमनाय आदिश (भेज दो)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्रम्’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहता है कि लोभ से घिरा मनुष्य झूठ बोलना आदि अनेक पाप करता है। सेठ तुला को लेने के लिए असंभव झूठ बोलता है।

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अनुवाद – उस जीर्णधन के घर में पुरखों द्वारा कमाई हुई एक लोहे की बनी हुई तराजू थी और वह उसे किसी धनवान् के घर में धरोहर के रूप में रखकर अन्य स्थान पर प्रस्थान कर गया (रवाना हो गया)। तब लम्बे समय तक इच्छानुसार घूमकर अपने नगर में लौटकर उस धनवान् से कहा-“अरे! सेठ जी, मेरी वह धरोहर रखी तराजू दो।” उसने कहा-“अरे! वह तराजू तो नहीं है। तुम्हारी तराजू को तो चूहे खा गये।” जीर्णधन बोला-“हे धनिक जी, यदि (उसे) चूहों ने खा लिया तो तुम्हारा (कोई) अपराध नहीं है, यह संसार ऐसा ही है। यहाँ कुछ भी अविनाशी नहीं है। परन्तु अब मैं नदी में नहाने के लिए जाऊँगा तो आप अपने इस धनदेव नाम के बालक (पुत्र) को नहाने की सामग्री हाथ में लेकर मेरे साथ भेज दो।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्त्क ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ विष्णु शर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के मित्रभेद तन्त्र से संकलित है।

प्रसंग: – प्रस्तुतगद्यांशे लेखकः कथयति यत् लोभाविष्टः जनः मिथ्याभाषणादीनि अनेकानि पापानि सम्पादयति। श्रेष्ठी तुलां गृहीतुम् असंभावनीयम् असत्यं वदति। (इस गद्यांश में लेखक कहता है कि लोभ में पड़ा व्यक्ति झूठ आदि बोलकर अनेक पाप करता है। सेठ तराजू को लेने के लिए असम्भव असत्य बोलता है।)

व्याख्या: – अमुष्य जीर्णधनस्य च सदने पूर्वजैः अर्जितम् एकम् अयोनिर्मितं तोलनयन्त्रम् अवर्तत। अमुं च कस्यचित् धनिकस्य सदने न्यासः कृत्वा सः (जीर्णधन:) अन्यदेशं (स्थान) प्रस्थानमकरोत्। तदा सुदीर्घसमयपर्यन्तम् अन्यदेशम्. इच्छानुसारेण भ्रमणं कृत्वा स्वनगरं प्रत्यागम्य (प्राप्य) अमुम् धनिकमवदत्-“रे धनिक! मह्यमसौ न्यासीकृतं तोलनयन्त्रं देहि।” सः अवदत्- “रे! असौ तुला न वर्तते। तव तोलनयन्त्रं तु आखुभिः खादितम्।” जीर्णधनः अवदत्-“हे धनिक ! मम तोलनयन्त्रं चेद् आखुभिः खादितं तर्हि तव अपराधः नास्ति। इदं जगत् एतादृशमेव अस्ति। इह किमपि अविनश्वरं न वर्तते। परञ्च अहं सरिति स्नातुं यास्यामि।

तदा भवान् स्वकीयम् इमम् धनदेवाभिधं बालकं अभिषेकसामग्री हस्ते निधाय मया सार्धं गमनायादिश।” (इस जीर्णधन के घर में पूर्वजों द्वारा प्राप्त की हुई एक लोहे से बनी हुई तराजू थी। इसको किसी धनवान के घर में धरोहर के रूप में रखकर वह जीर्णधन अन्य स्थान पर चला गया। जब लम्बे समय तक अन्य देश में भ्रमण कर अपने नगर को लौटा तो उस धनिक से कहा- “अरे धनिक ! मेरी वह धरोहर रखी हुई तराजू दे दो।” वह बोला-“अरे वह तराजू तो नहीं है। तुम्हारी तराजू को तो चूहे खा गये।” जीर्णधन बोला-“रे धनिक ! मेरी तराजू यदि चूहों ने खा ली तो तुम्हारा क्या अपराध। यह संसार ऐसा ही है, इसमें कुछ भी अविनाशी नही है।”)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) जीर्णधनस्य गृहे पूर्व पुरुषैः उपार्जिता का आसीत् ? (जीर्णधन के घर में पुरखों द्वारा अर्जित क्या थी?)
(ख) श्रेष्ठि-अनुसारं लोहतुला केन खादितम् ? (सेठ के अनुसार लोहे की तराजू किसने खा ली?)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिये)
(क) जीर्णधनेन तुला कुत्र निक्षिप्ता? (जीर्णधन ने तराजू कहाँ रख दी?)
(ख) विभवहीनस्य जीर्णधनस्य गृहे किम् अवशिष्टमासीत्? (विभवहीन जीर्णधन के पास क्या शेष बचा था?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘आदीयताम्’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् लिखत। (‘आदीयताम्’ पद का विलोम पद गद्यांश से लिखिए।)
(ख) ‘खादिता’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशात् चिनुत। (‘खादिता’ पद का समानार्थी गद्यांश से चुनिए।)
उत्तराणि-
1.(क) लौहतुला (लोहे की तराजू)
(ख) मूषकैः (चूहों द्वारा)

2. (क) जीर्णधन तुलां कस्यचित श्रेष्ठिनः गृहे निक्षेप भूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थित। (जीर्णधन तुला को किसी सेठ के घर रखकर विदेश चला गया।)
(ख) विभवहीनस्य जीर्णधनस्य गृहे लौहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुला एव अवशिष्टा। (विभवहीन जीर्णधन के घर में लोहे की बनी पुरखों द्वारा प्राप्त हुई. एक तराजू बची।)

3. (क) दीयताम् (दिया जाना चाहिए)।
(ख) भक्षिता (खा ली गई)।

3. स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्-“वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ” इति।
अथासौ श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः।।
सः श्रेष्ठी पृष्टवान्-“भोः अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र में शिशः यः त्वया सह नदीं गतः”? इति।
स अवदत्-“तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः’ इति। श्रेष्ठी अवदत् – “मिथ्यावादिन्! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।” इति।
सोऽकथयत्-“भोः सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति। तदर्पय में तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

शब्दार्थाः – सः श्रेष्ठी = असौ धनिकः (वह सेठ), स्वपुत्रम् अवदत् = स्वकीयमात्मजमवदत् (अपने पुत्र से बोला)-“वत्स!, = पुत्रक! (बेटा!), पितृव्योऽयंः = पितुः भ्राताष्स (यह चाचा), तव = ते (तेरा), स्नानार्थम् = स्नातुम् (नहाने के लिए), यास्यति = गमिष्यति (जायेगा), तद् = ततः (तो), अनेन साकम् = एतेन सह (इसके साथ), गच्छ = याहि (जाना चाहिए/जाओ), अथासौ = ततः सः (इसके बाद वह), श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः = व्यापारिसुतः (बनिया का बेटा), स्नानोपकरणमादाय = अभिषेकसामग्री नीत्वा (नहाने का सामान लेकर), प्रहृष्टमनाः = प्रसन्नचित्तः (प्रसन्नचित्त हुआ), तेन = अमुना (उस), अभ्यागतेन सह = अतिथिना सार्धम् (अतिथि के साथ), प्रस्थितः = प्रस्थानमकरोत् (रवाना हो गया),

तथानुष्ठिते = एवं सम्पादिते कृते (ऐसा करने पर), स: वणिक् = असौ व्यापारी (वह व्यापारी), स्नात्वा = स्नानं कृत्वा (स्नान करके/नहा करके), तं शिशुम् = अमुं बालकम् (उस बालक को), गिरिगुहायाम् = पर्वतदाँ (पर्वत की गुफा में), प्रक्षिप्य = धृत्वा (रखकर), तद्वारम् = तस्याः द्वारम् (उसके दरवाजे को), बृहत् शिलाया आच्छाद्य = विशालप्रस्तरपट्टेनापिधाय (विशाल शिला से ढंककर), सत्वरम् = क्षिप्रम् (शीघ्र), गृहमागतः = सदनं प्राप्त:/आयातः (घर आ गया), सः = असौ (वह), श्रेष्ठी = धनिकः, (धनवान) पृष्टवान् = च अपृच्छत् (और पूछा गया),

भोः अभ्यागत! = हे अतिथे! (हे अतिथि जी!) कथ्यताम् = वदत/कथय (बोलो/कहो), कुत्र = कस्मिन् स्थाने (कहाँ है), मे शिशुः = मम बालकः (मेरा बच्चा), यः त्वया सह = यः भवता सार्धम् (जो आपके साथ), नदीम् = सरितम् (नदी पर), गतः = यातः (गया था), स अवदत् = असौ अवदत् (वह बोला), तव पुत्रः = ते सुतः (तुम्हारा पुत्र), नदीतटात् = सरितः तीरात् (नदी के किनारे से), श्येनेन = हिंसकप्रकृतिपक्षिविशेषः तेन (हिंसक पक्षी विशेष बाज के द्वारा), हतः = अपहृतः (अपहरण कर लिया गया है), श्रेष्ठी अवदत् = धनिकोऽवदत् (सेठ बोला), मिथ्यावादिन्! = असत्यवादिन्! (मिथ्यावादी/झूठा!) किम् = अपि (क्या),

क्वचित् = कुत्रचित् (कहीं), श्येनो = बाज, बालम् = शिशुम् (बालक को), हर्तुं शक्नोति = हरणाय क्षमः (अपहरण करने में समर्थ है), तत् = तर्हि (तो), समर्पय = देहि (दे दो/लौटा दो), मे = मम (मेरे), सुतम् = पुत्रम् (बेटे को), अन्यथा = नो चेत् (नहीं तो), राजकुले = राजगृहे/न्यायाधिकरणे (राजदरबार में), निवेदयिष्यामि = निवेदनं करिष्यामि (निवेदन कर दूंगा/शिकायत कर दूंगा), सोऽकथयत् = असौ अवदत् (वह बोला), भोः सत्यवादिन्! = हे सत्यवक्तः! (हे सत्यवादी जी!), यथा = येन-प्रकारेण (जिस प्रकार से),श्येनो = बाज, बालम् = शिशुम् (बच्चे को), न नयति = नापहरति (नहीं ले जाता है), तथा = तेनैव प्रकारेण (उसी प्रकार), मूषका अपि = आखवोऽपि (चूहें भी), लौहघटिताम् = अयोनिर्मिताम् (लोहे की बनी), तुलाम् = तोलनयन्त्रम् (तराजू को), न भक्षयन्ति = न खादन्ति (नहीं खाते हैं), तदर्पय मे मम तोलनयन्त्रम् (तो मेरी तराजू दे दो), यदि दारकेण – यदि पुत्रेण (यदि पुत्र से), प्रयोजनम् = अर्थम् (प्रयोजन है)।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीर्णधन असत्यवादी सेठ की भर्त्सना करता हुआ उसे अपने तर्कों से परास्त करता है । अनुवाद-वह सेठ अपने पुत्र से बोला-“बेटा ! यह तेरा चाचा नहाने के लिए जायेगा, तो इसके साथ जाओ।”

इसके बाद वह सेठ का बेटा नहाने का सामान लेकर प्रसन्नचित्त हुआ उस अतिथि के साथ रवाना हो गया। ऐसा करने पर वह व्यापारी नहाकर के उस बालक को पर्वत की गुफा में रखकर, उसके दरवाजे को विशाल शिला से ढंककर शीघ्र घर आ गया और सेठ के द्वारा पूछा गया-“अरे अतिथि! कहो, मेरा बालक जो आपके साथ नदी पर गया था, कहाँ है?” वह बोला-“नदी के किनारे से वह हिंसक पक्षी विशेष बाज के द्वारा अपहरण कर लिया गया है।” सेठ बोला-“झूठा! क्या कहीं बाज बालक को अपहरण करने में समर्थ है? तो बेटे को दे दो नहीं तो राजदरबार में शिकायत कर दूंगा।” वह बोला-“हे सत्यवादी! जिस प्रकार से बाज बच्चे को नहीं ले जाता है उसी प्रकार चूहे भी लोहे की बनी तराजू नहीं खाते हैं। यदि पुत्र से प्रयोजन है, तो मेरी तराजू दे दो।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ पं. विष्णु शर्मा द्वारा रचित पञ्चतन्त्र कथाग्रन्थ के मित्रभेद तन्त्र से संकलित है।)

प्रसंगः – प्रस्तुतगद्यांशे जीर्णधनः असत्यवादिनः श्रेष्ठिनः भर्त्सनां कुर्वन् स्वतर्केण तं परास्तं करोति। (प्रस्तुत गद्यांश में जीर्णधन झूठ बोलने वाले सेठ की भर्त्सना करते हुए अपने तर्क से उसे परास्त करता है।)

व्याख्या: – असौ धनिकः स्वकीयम् आत्मजम् अवदत्-“पुत्रक ! एषः ते पितुः भ्राता स्नातुं गमिष्यति, ततः एतेन सह गच्छेः।” ततः सः व्यापारिसुतः अभिषेकसामग्री नीत्वा प्रसन्नचित्तः अमुना अतिथिना सार्धं प्रस्थानम् अकरोत्। एवं सम्पादित कृते असौ अतिथि स्नानं कृत्वा अमुं बालकं पर्वतदयाँ धृत्वा तस्याः द्वारं विशाल प्रस्तरपट्टेन अपिधाय क्षिप्रं सदनम् आयातः। श्रेष्ठी च पृष्टवान्-“हे अतिथे! कथय, मम बालकः यः भवता सार्धं सरितं यातः कस्मिन् स्थाने (वर्तते)?” असौ अवदत्-“सरितः तीरात् असौ हिंसकखगेन श्येनेन अपहृतः।”

धनिकोऽवदत्- “हे असत्यवक्त: ! अपि कुत्रचित् हिंसकपक्षिविशेषः श्येनः शिशुं हरणाय क्षमः (भवति) तर्हि मम पुत्रं देहि नो चेत् न्यायाधिकरणे निवेदनं करिष्यामि।” सः अवदत्-“हे सत्यवक्तः! येन प्रकारेण हिंसकखगविशेषः श्येनः शिशुं नापहरति तेनैव प्रकारेण आखवोऽपि अयोनिर्मितं तोलनयन्त्रं न खादन्ति। यदि पुत्रेण प्रयोजनमस्ति, तर्हि देहि मम तोलनयन्त्रम्।” वह सेठ अपने बेटे से बोला-“बेटा ! ये तुम्हारे चाचा नहाने जायेंगे तो इनके साथ जाओ।”

तब वह व्यापारी का पुत्र नहाने का सामान लेकर प्रसन्नचित्त हुआ उस अतिथि के साथ प्रस्थान कर गया। ऐसा करने पर उस अतिथि ने स्नान करके उस बालक को पर्वत गुफा में रखकर उसके दरवाजे पर एक विशाल शिला ढककर शीघ्र घर आ गया। सेठ ने पूछा- हे अतिथि! कहो मेरा बालक जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था, वह कहाँ है? वह (अतिथि) बोला “नदी के किनारे से वह हिंसक पक्षी बाज द्वारा अपहरण कर लिया गया।” धनवान् बोला- अरे असत्यवादी ! क्या कहीं हिंसक पक्षी बाज बालक का अपहरण कर सकता है? जिस प्रकार से हिंसक पक्षी विशेष बाज बच्चे को अपहरण नहीं कर सकता उसी प्रकार चूहे भी लोहे की बनी तराजू नहीं खाते हैं। यदि बेटे से प्रयोजन है तो मेरी तराजू दे दो।)

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठि पुत्रस्य किं नाम आसीत्? (श्रेष्ठि पुत्र का क्या नाम था?)
(ख) जीर्णधनः धनदेवं कुत्र प्रक्षितवान् ? (जीर्णधन ने धनदेव को कहाँ छुपा दिया था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) जीर्णधनः स्नानान्तरं किम् अकरोत् ? (जीर्णधन ने स्नान के बाद क्या किया?)
(ख) श्रेष्ठिगहमागत्य जीर्णधनः धनदेवस्य विषये किं कथितवान् (श्रेष्ठि के घर आकर जीर्णधन ने धनदेव के विषय में क्या कहा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘सत्यवादिन्’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत। (‘सत्यवादिन’ पद का विलोम गद्यांश से. चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘अतिथिः’ इति पदस्य पर्यायवाचिपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत। (‘अतिथि’ पद का समानार्थी पद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
1.(क) धनदेवः,
(ख) गिरिगुहायाम् (पर्वत की गुफा में)।

2. (क) जीर्णधनः श्रेष्ठि पुत्रं गिरिगुहाया प्रक्षिप्य तद्वारं वृहत् शिलया आच्छाद्य सत्वरं गृहमागततः। (जीर्णधन सेठ के पुत्र को पर्वत गुफा में फेंककर उसका द्वार को बड़ी शिला से ढककर शीघ्र ही घर आ गया।)
(ख) श्रेष्ठिगृहमागत्य जीर्णधनः अवदत्-‘तव पुत्रः नदी तटात् थ्येनेन हतः। (सेठ के घर आकर जीर्णधन
बोला-‘तुम्हारा पुत्र नदी किनारे से बाज़ ने हरण कर लिया।’)

3. (क) मिथ्यावादिन् (झूठा)
(ख) अभ्यागतः (अतिथि)।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

4. एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्-“भोः! वञ्चितोऽहम्! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम! अनेन चौरेण मम शिशः अपहतः’ इति।
अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन् – “भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः”। सोऽवदत्-“किं करोमि? पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशुः अपहृतः। इति। तच्छुत्वा ते अवदन्-भोः! भवता सत्यं नाभिहितम्-किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति? सोऽअवदत्-भोः भोः! श्रूयतां मद्वचः
तुला लौहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं, नात्र संशयः॥ ते अपृच्छन्-“कथमेतत्”।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्व वृत्तान्तं न्यवेदयत्। ततः, न्यायाधिकारिणः विहस्य, तौ द्वावपि सम्बोध्य तुला-शिशुप्रदानेन तोषितवन्तः।

शब्दार्थाः – एवम् = इत्थम् (इस प्रकार से), विवदमानौ = कलहं कुर्वन्तौ (झगड़ते हुए), तौ द्वावपि = अमू उभावपि (वे दोनों ही), राजकलम = न्यायाधिकरणम् (राजा के दरबार को), गतौ = प्राप्तौ (पहँच गये). श्रेष्ठी = धनिकः (सेठ), तारस्वरेण = उच्चस्वरेण (जोर से/ऊँची आवाज में), अवदत् = अकथयत् (बोला), भोः! = रे! (अरे!) वञ्चितोऽहम् वञ्चितोऽहम्! = छलितोऽहम् छलितोऽहम्, अब्रह्मण्यम्! = अन्यायरूपम्, अनुचितम् (बड़ा अन्याय या अनुचित हुआ), अनेन चौरेण = एतेन स्तेनेन (इस चोर के द्वारा), मम शिशुः = मे पुत्रः/बालकः (मेरा बेटा), अपहृतः = चोरित:/हृतः (चुरा लिया गया है), अथ = ततः (इसके बाद), धर्माधिकारिणः = न्यायाधिकारिणः (न्यायाधिकारी लोग),

तम् अवदन् = अमुम् अवदन् (उससे बोले), भोः! = रे! (अरे!), समर्प्यताम् = देहि (दे दो), श्रेष्ठिसुतः = धनिकपुत्रः (सेठ का बेटा), सोऽवदत् = सः अकथयत् (उसने कहा), किं करोमि = किं कुर्याम् (क्या करूँ), पश्यतो मे = मयि पश्यति (मेरे देखते-देखते), नदीतटात् = सरितः तीरात् (नदी के किनारे से), श्वान = हिंसकखगेन श्येनेन (बाज के द्वारा), शिशुः बालकः (बालक), अपहृतः = हृतः/नीतः (ले जाया गया), तच्छ्रुत्वा = तन्निशम्य (उसे सुनकर), ते = अमी (वे), अवदन् = तेऽकथयन् (बोले), भोः! = रे! (अरे!), भवता = त्वया (आपके द्वारा/ आपने), सत्यं नाभिहितम् = न ऋतमुक्तम् (सही नहीं कहा),

किं श्येनः = (क्या बाज), शिशुम् = बालकम् (बालक को), हर्तुम् = हरणाय (हरण करने के लिए), समर्थों भवति = सक्षमः जायते (समर्थ होता है), सोअवदत् = असावदत् (वह बोला)भो: भोः! = रे रे! (अरे अरे!), श्रूयतां मद्वचः = मम वचनानि आकर्णय (मेरी बात सुनो), लौहसहस्रस्य = दशशतलौहनिर्मितं (हजार (तोला) लोहे की बनी हुई) तुलाम् = तोलनयन्त्रम् (तराजू को), यत्र = यस्मिन् स्थाने (जहाँ), मूषकाः = आखवः (चूहे), खादन्ति = भक्षयन्ति (खा जाते हैं), राजन्तत्र = हे राजन् !

तस्मिन् स्थाने (हे राजन्! वहाँ, उस स्थान पर), श्येनः = बाज, बालकम् = शिशुम् (बच्चे को), हरेत् = नयेत् (ले जाये), नात्र संशयः = न अस्मिन् सन्देहः वर्तते (इसमें कोई शंका नहीं है), ते अपृच्छन् = अमी पृष्टवन्तः (उन्होंने पूछ), कथमेतत् = इदं केन प्रकारेण (यह कैसे), ततः = तदा (तब), स श्रेष्ठी = असौ धनिकः (उस सेठ ने), सभ्यानामग्रे = सभासदां समक्षे (सभासदों के आगे), आदितः = प्रारम्भतः (आरम्भ से), सर्वम् = सम्पूर्णम् (सारा), वृत्तान्तम् = घटितं (घटना को), न्यवेदयत् = कथितवान् (निवेदन कर दिया), ततः = तदा (तब), न्यायाधिकरणः = (न्यायाधीशः), विहस्य = स्मित्या (हँसकर), तौ द्वावपि = अमूभावपि (उन दोनों को), संबोध्य = बोधयित्वा (समझाकर), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), शिशु = बालक (बालक के), प्रदानेन = समर्पणेन (दिलाने से/दिलाकर), तोषितवन्तः = सन्तुष्टीकृतौ (सन्तुष्ट कर दिये गये)।

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेदः’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।

प्रसंग – इस गद्यांश में जीर्णधन न्यायालय में अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाता है। न्यायाधिकारी लोग भी सूक्ष्म दृष्टि से गम्भीरतापूर्वक विचारकर न्याय करते हैं तथा तुला व शिशु-प्रदान से उन दोनों को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।

अनुवाद – इस प्रकार कलह करते हुए वे दोनों राजा के दरबार में पहुँचे। वहाँ सेठ ऊँची आवाज में बोला-“अरे! बड़ा अन्याय, बड़ा अनुचित हुआ। मेरा बेटा इस चोर द्वारा चुरा लिया गया है।” इसके बाद न्यायाधिकारी लोग उससे बोले-“अरे सेठ का बेटा दे दो।” उसने कहा-“क्या करूँ? मेरे देखते-देखते बाज द्वारा नदी के किनारे से उसे ले जाया गया अर्थात् मेरे देखते-देखते बाज उसे नदी किनारे से ले गया।” उसे सुनकर वे बोले-“अरे आपने सही नहीं कहा। क्या बाज बालक का हरण करने में समर्थ है?” वह (जीर्णधन) बोला-“अरे ! अरे! मेरी बात सुनो, हजार (तोला) लोहे की बनी हुई तराजू को जहाँ चूहे खा जाते हैं, हे राजन् ! वहाँ बाज बच्चे को ले जाये तो इसमें कोई सन्देह नहीं।” वे बोले-“यह कैसे?” उस सेठ ने सभासदों के सामने सारी घटना को निवेदन कर दिया। तब उन्होंने हँसकर उन दोनों को आपस में समझा-बुझाकर तराजू और बालक को दिलाकर सन्तुष्ट किया।

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य “शेमुष्या:’ ‘लौहतुला’ इति पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रा सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के लौहतुला’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णु शर्म के पंचतन्त्र कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र से संकलित है।)

प्रसंग: – गद्यांशेऽस्मिन् जीर्णधनः न्यायालये सम्पूर्णवृत्तान्तं श्रावयति, न्यायाधिकारिणोऽपि सूक्ष्मदृष्ट्या गाम्भीर्येण विचार्य न्यायं कुर्वन्ति, तुला-शिशु-प्रदानेन च तौ सन्तुष्टिं प्रददति। (इस गद्यांश में जीर्णधन न्यायालय में सम्पूर्ण वृत्तान्त सुना देता है- न्यायाधीश भी सूक्ष्म दृष्टि से गम्भीरता के साथ विचार कर न्याय करता है। और तुला-शिशु प्रदान से दोनों को सन्तुष्ट कर देता है।)

व्याख्या: – इत्थं कलहं कुर्वन्तौ अम् उभावपि न्यायाधिकरणं प्राप्तौ। तस्मिन् स्थाने धनिकः उच्चस्वरेण अवदत्-“रे! अन्यायरूपमनुचितम् अभवत्, मे बालकः (पुत्रः) एतेन स्तेनेन हृतः (चोरितः)।” ततः न्यायाधिकारिणः अमुम् अवदन्-“रे! धनिकस्य पुत्रं देहि।” तेनोक्तम्-“किं कुर्याम्? मयि पश्यति हिंसकखगेन श्येनेन सरितः तीरात् बालकः नीतः।” तन्निशम्य

अमी न्यायाधिकारिणः अवदन्-“रे! त्वया न ऋतमुक्तं। किं श्येनः बालकस्य हरणाय सक्षमः भवति?” असौं अवदत् “रे ! रे! मम वचनानि आकर्णय-दशशतलौहनिर्मितं तोलनयन्त्रं यस्मिन् स्थाने आखवः भक्षयन्ति, तस्मिन् स्थाने श्येनः शिशु नयेत्, नास्मिन् सन्देहः वर्तते।” अमी न्यायाधिकारिणः अवदन्-“इदं केन प्रकारेण? “तदा असौ धनिकः सभासदां समक्षे प्रारम्भतः सम्पूर्णवृत्तान्तं कथितवान्। तदा अमीभिः हसित्वा अमूभावपि परस्परम् अन्योऽन्यं बोधयित्वा तोलनयन्त्रस्य बालकस्य च समर्पणेन सन्तुष्टीकृतौ। (इस प्रकार कलह करते हुए वे दोनों न्यायालय पहुँचे।

वहाँ धनिक ऊँचे स्वर में बोला- अरे बड़ा अन्याय हुआ, अनुचित हुआ। मेरा बेटा इस चोर ने हर लिया। तब न्यायाधीश उससे बोला- “अरे धनिक सेठ का बेटा दे दो।” उसने कहा- “क्या करूँ? मेरे देखते-देखते हिंसक पक्षी बाज नदी के किनारे से ले गया।” इस बात को सुनकर न्यायाधीश बोले- “अरे तूने सच नहीं बोला। क्या बाज बच्चे का हरण करने में समर्थ है?” वह बोला अजी, अजी, मेरी बात सुनो। हजार तोला लोहे की बनी तराजू जहाँ चूहे खा जायें वहाँ बाज बच्चे को ले जाये, इसमें कोई सन्देह नहीं है। वे न्यायाधीश बोले-‘यह किस तरह?’ तब उस धनिक ने सभासदों के समक्ष आरम्भ से सारा किस्सा सुना दिया। तब उन्होंने इस पर उन दोनों को आपस में एक दूसरे को समझाकर तराजू और बालक के समर्पण से सन्तुष्ट किया।) अवबोधन कार्यम्

 JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठि-जीर्णधनौ विवदमानौ कुत्र गतौ? (सेठ और जीर्णधन विवाद करते हुए कहाँ गये?) .
(ख) श्रेष्ठी राज-कुले कथम् अवदत्? (सेठ न्यायालय में कैसे बोला?) प्रश्न 2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठी राजकुले किम् अवदत् ? (सेठ ने दरबार में क्या कहा?)
(ख) जीर्णधनः श्रेष्ठि पुत्रस्य विषये किम् अकथयत्? (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र के विषय में क्या कहा?)

प्रश्न 3.
(क) ‘धर्माधिकारिणः तम् अवदत अत्र ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्? .
(‘धर्माधिकारिणः तम् अवदत’ यहाँ ‘तम्’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘कथितम्’ इति क्रियापदस्य स्थाने गद्यांशे प्रयुक्ते समानार्थी पदं चित्वा लिखत।
(‘कथितम्’ क्रियापद के स्थान पर गद्यांश में प्रयुक्त समानार्थी शब्द लिखिए।)
उत्तराणि :
1. (क) राजकुले (न्यायालय में )
(ख) तारस्वरेण (चीखकर)।

2. (क) श्रेष्ठी राजकुले अवदत्-भोः वञ्चितोऽहम् ! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम्। अनेन चोरेणमम शिशुः अपहतः।
(सेठ राजकुल में बोला-अरे मैं छला गया! छला गया! अनुचित हुआ! इस चोर ने मेरे बच्चे का अपहरण कर लिया।)
(ख) जीर्णधनः अवदत् – ‘तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः। (जीर्णधन बोला- ‘तुम्हारे बेटे को नदी किनारे से बाज हरण कर ले गया।)

3. (क) जीर्णधनम् (जीर्णधन से)
(ख) अभिहितम् (कहा)।

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JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

JAC Class 9th Sanskrit जटायोः शौर्यम् Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) आयतलोचना का अस्ति? (विशाल नयनों वाली कौन है?)
उत्तरम् :
सीता। (जानकी।)

(ख) सा कं ददर्श? (उसने किसे देखा?)
उत्तरम् :
जटायुम्। (जटायु को।)

(ग) खगोत्तमः कीदृशीं गिरं ब्याजहारः? (पक्षिराज ने कैसी वाणी बोली?)
उत्तरम् :
शुभां गिरम्। (शुभवाणी।)

(घ) जटायुः काभ्यां रावणस्य मात्रे व्रणं चकार? (जटायु ने किनसे रावण के शरीर पर घाव कर दिए?)
उत्तरम् :
तीक्ष्णनखाभ्याम् (तीखे नाखूनों से)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

(ङ) अरिन्दमः खगाधिपः रावणस्य कति बाहून व्यपाहरत्? (शत्रुनाशक जटायु ने रावण की कितनी भुजाएँ काट दी?)
उत्तरम् :
दश (दश भुजाओं को।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) “जटायो! पश्य” इति का वदति? (‘जटायु ! देखो’ ऐसा कौन कहती है?)
उत्तरम् :
“जटायो! पश्य” इति सीता वदति। (‘जटायु! देखो’ ऐसा सीता कहती है।)

(ख) जटायुः रावणं किं कथयति? (जटायु रावण से क्या कहता है?)
उत्तरम् :
जटायुः रावणं कथयति-“परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय, धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्।”
(जटायु रावण से कहता है-“पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी मति को दूर कर दो (क्योंकि) धीर पुरुष वह आचरण नहीं करे जिससे दूसरे इसकी निन्दा करें।”)

(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत्? (क्रोध के कारण से रावण क्या करने के लिए उद्यत हो गया?)
उत्तरम् :
क्रोधवशात् रावण: जटायुं हन्तुम् उद्यतः अभवत् । (क्रोध के कारण से रावण जटायु को मारने के लिए तैयार हो गया।)

(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज? (पक्षिराज ने रावण के कैसे धनुष को बाणसहित तोड़ दिया?)
उत्तरम् :
पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं बभञ्ज। (पक्षिराज ने रावण के मोती-मणियों से सुशोभित बाणसहित धनुष को तोड़ दिया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

(ङ) जटायुः केन वामबाहुं दंशति? (जटायु किससे बायीं भुजाओं को उखाड़ता या काटता है?)
उत्तरम् :
जटायुः तुण्डेन (चञ्चुना) वामबाहुं दंशति। (जटायु चोंच से बायीं भुजाओं को उखाड़ता है।)

3. (अ) उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत –
(उदाहरण का अनुसरण करके णिनि-प्रत्यय का प्रयोग करके पदों की रचना करो-)
यथा – गुण + णिनि = गुणिन् (गुणी)
दान + णिनि = दानिन् (दानी)
(क) कवच + णिनि = ………..
(ख) शर + णिनि = ………..
(ग) कुशल + णिनि = ………..
(घ) धन + णिनि = ………..
(ङ) दण्ड + णिनि = ………..
उत्तरम् :
(क) कवचिन् (कवची)
(ख) शरिन् (शरी)
(ग) कुशलिन् (कुशली)
(घ) धनिन् (धनी)
(ङ) दण्डिन् (दण्डी)

(आ) रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत।
(रावण और जटायु के विशेषण सम्मिलित रूप से लिखे गये हैं, उन्हें अलग-अलग करके लिखिये।)
युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृध्रः, खगाधिपः, क्रोधमूछितः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम् 1

4. ‘क’ स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः ‘ख’ स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत
(‘क’ स्तम्भ में लिखे हुए पदों के पर्यायवाची ‘ख’ स्तम्भ में लिखे गये हैं। उन्हें उचित पदं के सामने लिखिये-) ..
क – ख
कवची – अपतत्
आशु – पक्षिश्रेष्ठः
विरथः – पृथिव्याम्
पपात – कवचधारी
भुवि – शीघ्रम्
पतगसत्तमः – रथविहीनः
उत्तरम् :
क – ख
कवची – कवचधारी
आशु – शीघ्रम्
विरथः – रथविहीनः
पपात – अपतत्
भुवि – पृथिव्याम्
पतगसत्तमः – पक्षिश्रेष्ठः

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

5. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत –
(निम्नलिखित पदों के विलोम पदों को मंजूषा में दिये हुए पदों में से चुनकर उचित पद के सामने लिखिए-
मन्दम्, पुण्यकर्मणा, हसन्ती, अनार्य, अनतिक्रम्य, देवेन्द्रेण, प्रशंसेत्, दक्षिणेन, युवा।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम् 2

6. (अ) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत –
(निम्नलिखित विशेषण पदों का प्रयोग करके संस्कृत-वाक्यों की रचना कीजिए)
(क) शुभाम्…………
(ख) खगाधिपः…………
(ग) हतसारथिः ………
(घ) वामेन…………..
(ङ) कवची………..
उत्तरम् :
(क) सा शुभां वाणीम् अवदत्। (उस (स्त्री) ने शुभ वाणी (वचन) बोली।)
(ख) जटायुः खगाधिपः आसीत्। (जटायु पक्षियों का स्वामी था।)
(ग) हतसारथिः रावणः भूमौ अपतत्। (मरे हुए सारथी वाला रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा।)
(घ) अहं वामेन हस्तेन लिखामि। (मैं बायें हाथ से लिखता हूँ।)
(ङ) कवची अपि रावणः जटायुं पराजेतुं समर्थः न अभवत्। (कवच धारण करने वाला भी रावण जटायु को हराने में समर्थ नहीं हुआ।) (आ) उदाहरणमनुसत्य समस्तपदं रचयत- (उदाहरण का अनुसरण करके समस्त पद की रचना कीजिये-)
यथा-त्रयाणां लोकानां समाहार:= त्रिलोकी
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = ………….
(ii) सप्तानां पदानां समाहारः = ………….
(iii) अष्टानां भुजानां समाहारः = …………..
(iv) चतुर्णा मुखानां समाहारः = …………
उत्तर :
(i) पञ्चवटी
(ii) सप्तपदी
(iii) अष्टभुजी
(iv) चतुर्मुखी।

JAC Class 9th Sanskrit जटायोः शौर्यम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
कीदृशी सीता गृधम् अपश्यत्? (कैसी सीता ने गिद्ध को देखा?)
उत्तरम् :
सुदु:खिता आयतलोचना च सीता गध्रम् अपश्यत्। (दुःखी और विशाल नेत्रों वाली सीता ने गिद्ध को देखा।)

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प्रश्नः 2.
सीता गृधं कुत्र अपश्यत्? (सीता ने गिद्ध को कहाँ पर देखा?)
उत्तरम् :
सीता गृधं वृक्षे स्थितम् अपश्यत्। (सीता ने गिद्ध को पेड़ पर बैठे देखा।)

प्रश्न: 3.
सीता जटायुं किम् अकथयत्? (सीता ने जटायु से क्या कहा?)
उत्तरम् :
सीता जटायुम् अकथयत्-“आर्य जटायो! पापकर्मणा अनेन राक्षसेन्द्रेण अनाथवत् ह्रियमाणां मां करुणं पश्य।” ”(सीता ने जटायु से कहा-“आर्य जटायु! इस पापी राक्षसराज के द्वारा अनाथ की तरह हरण की जाती हुई मुझ . करुणामयी को देखिये।)

प्रश्न: 4.
अवसुप्तः जटायुः किम् अशृणोत्? (उनींदे जटायु ने क्या सुना?)
उत्तरम् :
अवसुप्तः जटायुः सीतायाः करुणशब्दं अशृणोत्। (उनींदे जटायु ने सीता के करुण स्वर को सुना।)

प्रश्न: 5.
रावणं निरीक्ष्य जटायुः किम् अपश्यत्? (रावण को देखकर जटायु ने क्या देखा?)
उत्तरम् :
रावणं निरीक्ष्य जटायुः वैदेहीम् अपश्यत्। (रावण को देखकर जटायु ने सीता को देखा।)

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प्रश्न: 6.
जटायुः कीदृशः आसीत्? (जटायु कैसा था?)
उत्तरम् :
जटायुः खगोत्तमः, पर्वतशृङ्गाभः, तीक्ष्णतुण्डः च आसीत्।
(जटायु पक्षिश्रेष्ठ, पर्वतशिखर की कान्ति वाला और तेज चोंच वाला था।)

प्रश्न: 7.
धीरः किं न समाचरेत्? (धीर पुरुष को क्या आचरण नहीं करना चाहिए?)
उत्तरम् :
धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्। (धीर को वह (आचरण) नहीं करना चाहिए जिससे दूसरे इसकी निन्दा करें।)

प्रश्नः 8.
जटायुः रावणं किम् उपदिशति? (जटायु रावण को क्या उपदेश देता है?)
उत्तरम् :
जटायुः रावणं परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तयितुम् उपदिशति। (जटायु रावण को पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी बुद्धि को त्यागने का उपदेश देता है।)

प्रश्न: 9.
‘जटायोः शौर्यम्’ पाठे रावणः कीदृशः वर्णितः? (‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ में रावण कैसा वर्णित है?)
उत्तरम् :
रावणः युवा, धन्वी, सरथः, कवची शरी च वर्णितः। (रावण जवान, धनुषधारी, रथयुक्त, कवचधारी और बाणधारी वर्णित है।)

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प्रश्न: 10.
जटायुः केन प्रकारेण रावणस्य गात्रे बहुधा व्रणान् अकरोत्?
(जटायु ने किस प्रकार से रावण के शरीर पर बहुत से घाव किये?)
उत्तरम् :
जटायुः तीक्ष्णनखाभ्यां रावणस्य गात्रे बहुधा व्रणान् अकरोत्।
(जटायु ने तीखे नाखूनों से रावण के शरीर पर अनेक घाव कर दिए।)

प्रश्न: 11.
भग्नधन्वा रावणः किम् अकरोत् ? (टूटे धनुष वाले रावण ने क्या किया?)
उत्तरम् :
भग्नधन्वा रावण: वैदेहीम् अङ्केन आदाय भुवि अपतत्। (टूटे धनुष वाला रावण सीता को गोद में लेकर धरती पर गिर पड़ा।)

प्रश्न: 12.
सीतायाः निवेदनं श्रुत्वा जटायु प्रथम किमकरोत्? (सीता के निवेदन को सुनकर जटायु ने पहले क्या किया?)
उत्तरम् :
सीतायाः निवेदनं श्रुत्वा जटायुः रावणमपश्यत। (सीता के निवेदन को सुनकर जटायु ने रावण को देखा।)

प्रश्न: 13.
रावणः कथं जटायुम् अहन् ? (रावण ने किस प्रकार जटायु को मारा?)
उत्तरम् :
रावण: वैदेहीं वामेनाङ्केन संपरिष्वज्य जटायुं तलेन अभिजघान। (रावण ने वैदेही को बायीं गोद में लेकर जटायु को थप्पड़ से मारा।)

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प्रश्न: 14.
कीदृशः जटायुः रावणम् अतिक्रमति? (कैसा जटायु रावण पर आक्रमण करता है।)
उत्तरम् :
खगाधिपः अरिन्दमः जटायुः रावणम् अतिक्रमति। (पक्षिराज शत्रु-विनाशक जटायु रावण पर आक्रमण करता है।)

प्रश्न: 15.
जटायुः कथं रावणस्य बाहून व्यपाहरत्? (जटायु ने कैसे रावण की भुजाओं को उखाड़ दिया?)
उत्तर :
जटायुः तुण्डेन रावणस्य दशान् अपि वामबाहून् व्यपाहरत्। (जटायु ने चोंच से रावण की दसों बायीं भुजाओं को उखाड़ दिया।)

प्रश्न: 16.
वृक्षरूढः जटायुः कीदृशीं वाणीम् अवदत्? (वृक्ष पर बैठा जटायु कैसी वाणी बोला?)
उत्तर :
वृक्षारूढ़ः जटायुः शुभां गिरम अवदत्। (वृक्ष पर बैठा जटायु शुभ वाणी बोला।)

प्रश्न: 17.
जटायुः रावणं कथम् अभिगृहीतयाम्? (जटायु ने रावण को कैसे ललकारा?) ।
उत्तर :
रावण! त्वं मे कुशली वैदेही आदाय न गमिष्यसि। (रावण तुम मेरे सकुशल रहते हुए जानकी को लेकर नहीं जाओगे।)

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प्रश्न: 18.
पाठेऽस्मिन् ‘पतगसत्तमः’ इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्? (इस पाठ में पतगसत्तमः किसके लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तर :
पाठेऽस्मिन् जटायवे पतगसत्तमः प्रयुक्तम्। (इस पाठ में पतगसत्तमः जटायु के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

प्रश्न: 19.
रावणस्य महद्धनुः महातेजां जटायुना कस्य बभञ्ज? (रावण का महान् धनुष महान तेजस्वी जटायु ने किससे से तोड़ा?)
उत्तर :
णस्य महद्धनः महातेजा जटायुना चरणाभ्यां बभञ्ज। (रावण का महान् धनुष जटायु ने चरणों से तोड़ दिया।)

रेखांकितपदान्याधुत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
गृधं ददर्शायतलोचना। (विशाल नेत्रों वाली ने गृध्र को देखा।)
उत्तर :
गृधं का ददर्श? (जटायु को किसने देखा?)

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प्रश्न: 2.
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायत लोचना। (विशाल नयनों वाली ने वृक्ष पर बैठे गृध्र को देखा।)
उत्तर :
कीदृशं गृधं ददर्शायत लोचना? (विशाल नेत्रों वाली ने कैसे गृध्र को देखा?)

प्रश्न: 3.
अनेन राक्षसेन्द्रेण हियमाणां माम् पश्य। (इस राक्षसराज द्वारा हरण की जाती हुई मुझे देखो।)
उत्तर :
अनेन राक्षसेन्द्रेण कीदृशी माम् पश्य? (इस राक्षसराज द्वारा कैसी मुझको देखे?)

प्रश्न: 4.
श्रीमान्व्याजहारः शुभां गिरिम्। (श्रीमान् ने सुन्दर वाणी बोली।)
उत्तर :
श्रीमान् कीदृशीम् गिरम् व्याजहार? (श्रीमान् ने कैसी वाणी बोली?)

प्रश्न: 5.
महाबलः चरणाभ्यां गात्रे व्रणान् चकार। (महान् बलवान् ने पैरों से शरीर में घाव कर दिये।)
उत्तर :
महाबलः कास्याम् गात्रे व्रणान् चकार? (महाबली ने किनसे शरीर में घाव कर दिए?)

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प्रश्नः 6.
मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं बभञ्ज। (मुक्ता-मणियों से विभूषित बाण समेत धनुष को तोड़ दिया।)
उत्तर :
कीदृशं चापं बभञ्ज? (कैसे धनुष को तोड़ा?)

प्रश्न: 7.
शब्दम् अवसुप्तः जटायुः शुश्रुवे। (उनींदे जटायु ने शब्द सुने।)
उत्तर :
कीदृशः जटायुः शब्दं शुश्रुवे? (कैसे जटायु ने शब्द सुना?)

प्रश्न: 8.
पुनः अतिशय प्रहारैः रावणः मूर्छितो भवति। (फिर बहुत से प्रहारों से रावण मूर्छित हो गया।)
उत्तर :
पुन: कैः रावणः मूच्छितोऽभवत् ? (फिर किनसे रावण मूर्छित हो गया?)
कथाक्रम-संयोजनम अधोलिखितानि वाक्यानि क्रमशः लिखित्वा कथाक्रम-संयोजनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों को क्रमश: लिखकर कथन के क्रम में जोड़ो-)
1. भग्नधन्वा, विरथः, हताश्वः हतसारथिः च रावणः वैदेहीमङ्केनादाय भुवि पपात।
2. जटायुः च तुण्डेन रावणस्य दशानपि वामबाहून् व्यपाहरत्।
3. रावण: जटायुं तलेनाभिजघान।
4. जटायुः नखाभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणान् चकार मुक्तामणिविभूषितं सशरं च चापं चरणाभ्यां बभञ्ज।
5. रावणः सीताम् अपहत्य रथेन लङ्कापुरौं नेतुमैच्छत्।
6. जटायुः रावणमभयित् परदाराभिमर्शनाच्चावारयत्।
7. सुसुप्तोऽसौ जटायुः वैदेहीं रावणं च अपश्यत्।
8. विलपन्ती दुःखिता सीता वनस्पतिगतं गृध्रमपश्यत्।
उत्तरम् :
1. रावणः सीताम् अपहत्य रथेन लङ्कापुरी नेतुमैच्छत्।
2. विलपन्ती दुःखिता सीता वनस्पतिगतं गृध्रमपश्यत्।
3. सुसुप्तोऽसौ जटायुः वैदेहीं रावणं च अपश्यत्।
4. जटायुः रावणमभर्त्सयत् परदाराभिमर्शनाच्चावारयत्।
5. जटायुः नखाभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणान् चकार मुक्तामणिविभूषितं सशरं च चापं चरणाभ्यां बभञ्ज।
6. भग्नधन्वा, विरथः, हताश्वः हतसारथिः च रावणः वैदेहीमङ्केनादाय भुवि पपात।
7. रावणः जटायुं तलेनाभिजघान।
8. जटायुः तुण्डेन रावणस्य दशानपि वामबाहून् व्यपाहरत्।

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योग्यताविस्तारः

(क) कवि-परिचयं-महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य रामायण के रचयिता हैं। कहा जाता है कि वाल्मीकि का हृदय, एक व्याध द्वारा क्रीडारत क्रौञ्चयुगल (पक्षियों के जोड़े) में से एक के मार दिये जाने पर उसकी सहचरी के विलाप को सुनकर द्रवित हो गया तथा उनके मुख से शाप के रूप में जो वाणी निकली वह श्लोक के रूप में थी। वही श्लोक लौकिक संस्कृत
का आदिश्लोक माना जाता है

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥

(हे व्याध! तुम आने वाले वर्षों में कभी प्रतिष्ठा (सम्मान) को प्राप्त नहीं होगे क्योंकि (तुमने) क्रौञ्च पक्षी के जोड़े में से पत्नी-प्रेम से मोहित होने वाले एक क्रौञ्च नरपक्षी का वध कर दिया है।)

(ख) भाव-विस्तार

जटायु-सूर्य के सारथी अरुण के दो पुत्र थे-सम्पाती और जटायु। जटायु पञ्चवटी वन के पक्षियों का राजा था, जहाँ वह अपने पराक्रम एवं बुद्धिकौशल से शासन करता था। पञ्चवटी में रावण द्वारा अपहरण की गयी सीता के विलाप को सुनकर जटायु ने सीता की रक्षा के लिए रावण के साथ युद्ध किया और वीरगति पाई। इस प्रकार राज-धर्म की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले जटायु को भारतीय संस्कृति का महान् नायक माना जाता है।

(ग) सीता-विषयक सूचना देते हुए जटायु ने राम से जो वचन कहे, वे इस प्रकार हैं –

यामोषधीमिवायुष्मन्नन्वेषसि महावने।
सा च देवी मम प्राणाः रावणेनोभयं हृतम्॥

(हे आयुष्मन् (राम!) जिस (सीता) को (तुम) महान् वन में औषधि के समान ढूँढ़ रहे हो, उस देवी (सीता) और मेरे (मुझ जटायु के) प्राणों, दोनों का रावण ने हरण किया है।)

भाषिकविस्तारः

(घ) वाक्य प्रयोग –
गिरम् – छात्रः मधुरां गिरम् उवाच। (छात्र मीठी वाणी बोला।)
पतगेश्वरः – पक्षिराजः जटायुः पतगेश्वरः अपि कथ्यते। (पक्षियों का राजा जटायु ‘पतगेश्वर’ भी कहलाता है।)
शरी – शरी रावण: निःशस्त्रेण जटायुना आक्रान्तः। (बाणधारी रावण पर शस्त्रहीन जटायु ने आक्रमण किया।)
विध्य – वीरः शत्रप्रहारान विधय अग्रे अगच्छत। (वीर शत्रुओं पर प्रहार करके आगे चला गया।)
व्रणान् – चिकित्सकः औषधेन व्रणान् विरोपितान् अकरोत्। (चिकित्सक ने औषधि से घावों को भर दिया।)
व्यपाहरत् – जटायुः रावणस्य बाहून व्यपाहरत्। (जटायु ने रावण की भुजाओं को उखाड़ दिया।)
आशु – स्वकार्यम् आशु सम्पादय। (अपने कार्य को शीघ्र पूरा करो।)

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(ङ) स्त्री प्रत्यय –
टाप् प्रत्यय – करुणा, दुखिता, शुभा, निम्ना, रक्षणीया।
ङीप् प्रत्यय – विलपन्ती, यशस्विनी, वैदेही, कमलपत्राक्षी।
ति प्रत्यय – युवतिः
पुल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग पद निर्माण में टाप्-ङीप्-ति प्रत्यय होते हैं। टाप् प्रत्यय का ‘आ’ तथा ङीप् प्रत्यय का ‘ई’ शेष रहता है।
यथा –
मूषक + टाप् = मूषिका
बालक + टाप् = बालिका
अश्व + टाप् = अश्वा
वत्स + टाप् = वत्सा
हसन् + ङीप = हसन्ती
विद्वस् + ङीप् = विदुषी
मानिन् + ङीप् = मानिनी
श्रीमत् + ङीप् = श्रीमती
युवन् + ङीप् = युवतिः

योग्यताविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर – 

प्रश्न: 1.
कः रामायणस्य रचयिता अस्ति? (रामायण का रचयिता कौन है?)
उत्तरम् :
आदिकवि: वाल्मीकि रामायणस्य रचयिता अस्ति। (आदिकवि वाल्मीकि रामायण के रचयिता हैं।)

प्रश्न: 2.
वाल्मीकिः निषादं किं शप्तवान् ? (वाल्मीकि ने व्याध को क्या शाप दिया?)
उत्तरम् :
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती: समाः, इति वाल्मीकिः तं शप्तवान्।
(अरे व्याध! तुम आने वाले वर्षों में कभी प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं होगे, ऐसा वाल्मीकि ने उसे शाप दिया।)

प्रश्न: 3.
जटायुः रामाय सीताविषयकवृत्तं कथमसूचयत्?
(जटायु ने राम को सीता विषयक समाचार कैसे सूचित किया?)
उत्तरम् :
हे राम! यां त्वं महावने वृक्षेषु अन्वेषसि सा देवी मम प्राणा: च, उभयं रावणेन हतम्। (हे राम ! जिसको तुम महावन में वृक्षों में ढूँढ़ रहे हो, उस देवी और मेरे प्राणों, दोनों का रावण ने हरण किया है।)

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भाषिक विस्तार –

प्रश्न 1.
निम्नपदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत- (निम्न शब्दों को आधार मानकर वाक्य-रचना कीजिए-)
गिरम्, विधूय, आशु, तुण्डेन, व्रणान्। उत्तर :
गिरम् – सा मधुरां गिरम् उवाच। (उसने मधुर वाणी बोली।)
विधूय – वीरः शत्रुप्रहारान् विधूय अग्रे अगच्छत् । (वीर शत्रुओं पर प्रहार करके आगे चला गया।)
आशु – स्वकार्यम् आशु सम्पादय। (अपने कार्य को शीघ्र पूरा करो।)
तुण्डेन – काक: तुण्डेन आमिषं खादति। (कौवा चोंच से मांस खाता है।)
व्रणान् – व्रणान् औषधेन उपचारय। (औषधि से घावों का उपचार (इलाज) करो।)

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों में टाप् प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिंग बनाइये मूषक, बालक, अश्व, मूर्ख, शुभ।
उत्तर :
मूषक + टाप् (आ) = मूषिका
बालक + टाप् (आ) = बालिका
अश्व + टाप् (आ) = अश्वा
मूर्ख + टाप् (आ) = मूर्खा
शुभ + टाप् (आ) = शुभा

प्रश्न 3.
निम्न शब्दों में ङीप् प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंग बनाइये –
लिखत्, राजन्, कामिन्, देव, मानुष
उत्तर :
लिखत् + ङीप् (ई) = लिखन्ती
राजन् + ङीप् (ई) = राज्ञी
कामिन् + ङीप् (ई) = कामिनी
देव + ङोप् (ई) = देवी
मानुष + डीप् (ई) = मानुषी

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 4.
प्रकृति-प्रत्यय बताइये –
करुणा, विलपन्ती, दुःखिता, यशस्विनी, शुभा, वैदेही, रक्षणीया, युवति, मानिनी, वत्सा
उत्तर :
पद प्रकृति प्रत्यय
करुणा = करुण + टाप्
विलपन्ती = विलपत् + डींप्
दु:खिता = दुःखित् + टाप्
यशस्विनी = यशस्विन् + डींप्
शुभा = शुभ + टाप्
वैदेही = वैदेह + डींप्
रक्षणीया = रक्षणीय + टाप्
युवतिः = युवन् + ति
मानिनी = मानिन् + डींप्
वत्सा = वत्स + टाप्

जटायोः शौर्यम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ आदिकवि वाल्मीकि-प्रणीत ‘रामायणम्’ महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है। रामायण को संस्कृत का आदिकाव्य तथा उसके प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन का काव्यात्मक वर्णन है। यह सात काण्डों में विभक्त है। ये काण्ड हैं –

  1. बालकाण्ड।
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. युद्धकाण्ड तथा
  7. उत्तरकाण्ड।

पाठ का सारांश – इस पाठ में जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पञ्चवटी वन में जनक-नन्दिनी सीता का करुण विलाप सुनकर गिद्ध पक्षिराज जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। समीप आकर उन्होंने लंकापति रावण को परस्त्री स्पर्शरूप निन्दनीय दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहा। रावण की हठी मनोवृत्ति को देखकर जटायु ने उस पर भयावह आक्रमण किया। महाबली जटायु ने अपने तीखे नाखूनों वाले पंजों से रावण के शरीर पर अनेक घाव कर दिये तथा पंजों से उसके विशाल धनुष को तोड़ दिया। टूटे हुए धनुष वाला और मारे गये घोड़ों और सारथी वाला रथहीन रावण मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।

परन्तु कुछ ही क्षणों बाद वह क्रोधान्ध रावण जटायु पर टूट पड़ा और निहत्थे जटायु पर प्राणघातक प्रहार करने लगा। परन्तु पक्षियों में श्रेष्ठ जटायु अपना बचाव करते हुए चोंच और पंजों से प्रहार करते रहे! इस प्रकार से जटायु ने रावण के बायें भाग की दसों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर दिया।

प्रस्तुत पाठ में एक ओर सीता के क्रन्दन से करुणरस की अजस्त्र धारा प्रवाहित हो रही है तो दूसरी ओर महाबली . पक्षिश्रेष्ठ जटायु के वीरतापूर्ण युद्ध से वीररस की सरिता प्रवाहित हो रही है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता ।
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥

अन्वय-तदा सुदुःखिता करुणा वाचः विलपन्ती, आयतलोचना सा (सीता) वनस्पतिगतं गृधं (जटायु) ददर्श।

शब्दार्थाः – तदा = तदानीम् (तब/उस समय), सुदुःखिता = आपद्ग्रस्ता (अत्यन्त दु:खी ), करुणा वाचः = करुणार्द्रवाण्या। (करुणाजनक वाणी से), विलपन्ती = क्रन्दन्ती/रुदन्ती (विलाप करती हुई), आयतलोचना सा (सीता) = विशालनयना असौ सीता (विशाल नेत्रों वाली उस सीता ने), वनस्पतिगतम् = वृक्षे स्थितम् (वृक्ष पर बैठे हुए), गृधम् (जटायु) = (गिद्ध जटायु को), ददर्श = अपश्यत् (देखा)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में जनकनन्दिनी सीता की भयाक्रान्त दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया गया है। लंकापति राक्षसराज रावण द्वारा अपहत सीता इधर-उधर देखती हुई अपनी रक्षार्थ विलाप करती है।

अनुवाद – उस समय अत्यन्त दुःखी, करुणाजनक वाणी से विलाप करती हुई, विशाल नेत्रों वाली उस (सीता) ने वृक्ष पर बैठे हुए गिद्ध (जटायु) को देखा।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलत: यह पाठ आदिकवि वाल्मीकि-रचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् रावणेन अपहृतायाः सीतायाः भयाक्रान्तायाः दयनीयायाः च मार्मिकं चित्रणं महाकविना प्रस्तुतम्। (इस श्लोक में रावण द्वारा अपहरण की गई भयभीत और दयनीया सीता का मार्मिक चित्रण महाकवि द्वारा किया गया है।)

व्याख्या: – तदा अत्यन्त दु:खिता करुणापूर्ण विलापं कुर्वन्ती विशालनयना सीता वृक्षेस्थितं पक्षिराज जटायुम् अपश्यत्। (तब अत्यन्त दुखी करुणापूर्ण विलाप करती हुई विशाल नेत्रों वाली सीता ने वृक्ष पर बैठे पक्षीराज जटायु को देखा।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता किं कुर्वन्ती गृध्रम् अपश्यत् ? (सीता ने क्या करती हुई ने गृध्र को देखा?)
(ख) गृध्रः कुत्र स्थितः आसीत् ? (गिद्ध कहाँ बैठा था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता कुत्र स्थितं गृधं अपश्यत् ? (सीता ने कहाँ बैठे गृध्र को देखा?)
(ख) सीता कीदृशी आसीत् ? (सीता कैसी थी?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क), ‘वृक्ष’ शब्दस्य स्थाने श्लोके किम् पदं प्रयुक्तम्?
(‘वृक्ष’ शब्द के स्थान पर श्लोक में क्या शब्द प्रयोग किया है?)

(ख) ‘सा’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम् श्लोकेऽस्मिन्?
(‘इस श्लोक में ‘सा’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग किया गया है?).
उत्तराणि-
(1) (क) विलपन्ती (विलाप करती हुई)।
(ख) वनस्पतिगत (पेड़ पर बैठा)।

(2) (क) सीता वनस्पति गतं गृध्रम् अपश्यत्। (सीता ने पेड़ पर बैठे गिद्ध को देखा।)
(ख) सीता आयतलोचना दु:खिता विलपन्ती आसीत्। (सीता विशाल नेत्रों वाली दुखी और विलाप करती हुई थी।)

(3) (क) वनस्पति (वृक्ष)। (ख) सीता (सीता)।

2. जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत् ।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ॥

अन्वय-आर्य ! जटायो! पापकर्मणा अनेन राक्षसेन्द्रेण अनाथवत् करुणं ह्रियमाणां मां (सीताम्) पश्य।

शब्दार्था: – आर्य! = हे श्रेष्ठ ! (उत्तम!)। जटायो! = हे पक्षिराज जटायो! (हे जटायु!)। पापकर्मणा = अघकर्मणा (पापकर्म करने वाले/पापाचारी)। अनेन = एतेन (इस)। राक्षसेन्द्रेण = दानवपतिना (राक्षसों के राजा (रावण) द्वारा)। करुणम् = करुणोपेताम् (करुणा से युक्त)। ह्रियमाणाम् = नीयमानाम् (अपहरण की जाती हुई)। माम् = मा (मुझको)। पश्य = ईक्षस्व (देखो)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – राक्षसराज रावण द्वारा अपहरण किये जाने पर जनक-नन्दिनी सीता करुण विलाप करती हुई अपनी सहायतार्थ खगश्रेष्ठ जटायु का आह्वान करते हुए कहती है।

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अनुवाद – हे आर्य! जटायु! पापकर्म करने वाले इस राक्षसों के राजा रावण द्वारा करुणा से युक्त, अपहरण की जाती हुई मुझ (सीता) को देखो।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितऽस्ति। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

सङ्कलितऽस्ति र यह श्लाक हमारी शभुषा पाठ्यपुस्तक

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् राक्षसराजरावणेनापहता सीता जनकनन्दिनी करुणं विलपति। सा स्व सहायतार्थं वृक्षस्थं जटायुम् आह्वयन्ती कथयति। (इस श्लोक में राक्षसराज रावण द्वारा अपहरण की गई सीता जनक नन्दिनी करुण विलाप करती है। वह अपनी सहायता के लिए वृक्ष पर स्थित जटायु को बुलाती हुई कहती है)।

व्याख्या: – हे आर्य! जटायेत्वम् अनेन पापिष्ठेन राक्षसानां राजा अपहृता करुणां माम् पीडितां पश्य। (हे आर्य जटायु! तुम इस पापी, राक्षसों के राजा द्वारा अपहृत करुणा से युक्त पीड़िता की ओर देखो।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता आत्मानं किंवत् वदति? (सीता अपने को किस की तरह कहती है?)
(ख) सीता केन अपहता? (सीता का अपहरण किसने किया?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सीता जटायु किं निवेदयत् ? (सीता ने जटायु से क्या निवेदन किया?)
(ख) सीता कीदृशेन राक्षसेन अपहृता? (सीता कैसे राक्षस ने हरण की?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘पुण्यः’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘पुण्य’ शब्द का विलोम पद श्लोक से चुनकर लिखिये।)
(ख) श्लोके ‘अनेन’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञापदस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(श्लोक में ‘अनेन’ सर्वनाम पद किस संज्ञा पद के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) अनाथवत् (अनाथ की तरह)।
(ख) राक्षसेन्द्रेण (राक्षसराज द्वारा)।

(2) (क) सीता निवेदयत्-जटायो! अनाथवतु यां पापकर्मणा राक्षसेन्द्र ह्रियमाणां पश्य। (सीता ने नि
अनाथ की तरह मुझको पापी रावण द्वारा अपहरण की जाती हुई को देखो।)
सीता पापकर्मणा राक्षसेन्द्रेण अपहृता। (सीता पापी राक्षसराज द्वारा हरी गई।)

(3) (क) पाप।
(ख) रावणेन (रावणे के)।

3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः ॥

अन्वय-अथ अवसुप्तः तु जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। सः (जटायुः) रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं च वैदेहीं ददर्श।

शब्दार्था: – अथ = ततः (इसके बाद), अवसुप्तस्तु = सुसुप्तावस्थातु (सोती हुई अवस्था वाले तो), जटायुः = गृध्रराज: (जटायु ने), तम् = सीतायाः विलापस्य (उस सीता-विलाप के), शब्दं = स्वरम् (स्वर को), शुश्रुवे = अशृणोत् (सुना), सः = असौ जटायुः (उस जटायु ने), रावणं निरीक्ष्य = लंकापतिम् अवलोक्य (रावण को अच्छी प्रकार देखकर), च = और, क्षिप्रम् = शीघ्रम् (शीघ्र ही), वैदेहीं = विदेहनन्दिनीम् (सीता को), ददर्श = अपश्यत् (देखा)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में कवि कहता है कि सीता के करुण विलाप को सुनकर सोता हुआ गृद्धराज जटायु जागता है तथा सामने आकाश में रावण और सीता को देखता है।

अनुवाद – इसके बाद सोती हुई अवस्था वाले तो जटायु ने उस (सीता के विलाप) के स्वर को सुना। उस (जटायु) ने रावण को अच्छी प्रकार देखकर और शीघ्र ही विदेहनन्दिनी सीता को देखा।

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संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक (1489 संस्कृत प्रभा, कक्षा-1) के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदिकवि वाल्मीकि विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।) .

प्रसंग: – प्रस्तुत श्लोके कवि: वर्णयति यत् जनकनन्दिन्या करुणविलापं श्रुत्वा गृध्रराजः जटायुः जागृतवान् गगने च रावणं सीतां च पश्यति। (प्रस्तुत श्लोक में कवि वर्णन करता है कि जनकनन्दिनी के करुण विलाप को सुनकर गृध्रराज जटायु जाग गये और आकाश से रावण तथा सीता को देखा।)

व्याख्या-ततः सुसुप्त: गृध्रराजो जटायुः सीतायाः विलापस्य स्वनं अशृणोत्। असौ जटायुः लंकापतिमवलोक्य शीघ्रमेव च विदेहनन्दिनीम् अपश्यत्। (तब उनींदी अवस्था में गृध्रराज जटायु ने सीता के विलाप का स्वर सुना। उस जटायु ने लंकापति रावण को देखकर और फिर शीघ्र ही अपहरण की गई सीता को देखा।

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सीतायाः विलापं कः अश्रृणोत्? (सीता के विलाप को किसने सुना?)
(ख) जटायुः तदा कस्यां स्थितौ आसीत् ? (जटायु तब किस स्थिति में था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) यदा सीता विलापं करोति स्म तदा जटायुः किं करोति स्म?
(जब सीता विलाप कर रही थी तब जटायु क्या कर रहा था?)
(ख) सीतायाः करुणं क्रन्दनं श्रुत्वा जटायुः किम् अपश्यत्?
(सीता के करुण क्रन्दन को सुनकर जटायु ने क्या किया?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) शीघ्रम्’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘शीघ्रम्’ पद का पर्यायवाची पद श्लोक से चुनकर लिखिए।)
(ख) ददर्श सः अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(‘ददर्श सः’ यहाँ ‘सः’ सर्वनाम पद किसके लिये प्रयुक्त किया गया है?)
उत्तराणि :
(1) (क) जटायुः।
(ख) सुसुप्त स्थितौ (सुसुप्तावस्था)।

(2) (क) यदा सीता विलपति स्म तदा जटायुः स्वपिति स्म। (जब सीता विलाप कर रही थी तो जटायु सो रहा था।)
(ख) सीताया क्रन्दनं श्रुत्वासौ रावणं निरीक्ष्य वैदेही सीताम् अपश्यत्। (सीता के क्रन्दन को सुनकर रावण को देखकर जटायु (उसने) ने सीता को देखा।)

(3) (क) क्षिप्रम् (जल्दी ही)।
(ख) जटायुः (जटायु के लिए)।

4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः ।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम् ॥

अन्वय – ततः खगोत्तमः श्रीमान् पर्वतशृङ्गाभः, तीक्ष्णतुण्ड: वनस्पतिगतः (एव) शुभां गिरं व्याजहार।

शब्दार्थाः – ततः = तदा (तब/इसके बाद), खगोत्तमः = पक्षिश्रेष्ठः (पक्षियों में श्रेष्ठ), श्रीमान् = शोभायुक्तः (सुन्दर), पर्वतशृङ्गाभः = गिरिशिखरकान्तः (पर्वत के शिखर के समान कान्ति वाले), तीक्ष्णतुण्डः = तीक्ष्णचञ्चुयुक्तः (तीखी चोंच वाले जटायु), वनस्पतिगतः = वृक्षे स्थितः (पेड़ पर बैठे हुए), एव = ही, शुभाम् = मंगलां (शुभ), गिरम् = वाणी (वचन), व्याजहार = प्रकाशितवान्/अकथयत् (व्यक्त की/बोले)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में गृध्रराज जटायु की शारीरिक विशेषताओं एवं क्षमताओं का चित्रण किया गया है।

अनुवाद – तब पक्षिराज शोभायुक्त, पर्वत के शिखर के समान कान्ति वाले, तीखी चोंच वाले (जटायु) वृक्ष पर बैठे हुए (ही) शुभ वचन बोले।

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संस्कत व्याख्याः

सन्दर्भः – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः आदिकवि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् कवि वाल्मीकिः गृध्रराज जटायोः शारीरिक वैशिष्ट्यम् अन्याषां क्षमतानां च वर्णनं करोति। सः कथयति। (इस श्लोक में कवि वाल्मीकि गृध्रराज जटायु की शारीरिक विशेषताओं तथा अन्य क्षमताओं का वर्णन करता है। वह कहता है-)

व्याख्याः – पक्षिराजोऽयम् शोभासम्पन्नः, गिरि-शिखर इव कान्तिमय, सुतीक्ष्णचञ्चुः च वृक्षे विराजमानः अस्ति। (शोभायुक्त यह पक्षिराज (जटायु) पर्वत की चोटी की शोभा की तरह तीखी चोंच वाला वृक्ष पर विराज रहा है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) पर्वतशृङ्गाभः कः उक्तः? (पर्वत शिखर के समान किसे कहा गया है?).
(ख) जटायुः कीदृशीं वाणीम् व्याजहार? (जटायु कैसी वाणी बोला?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) खगोत्तमः जटायुः कीदृशः आसीत् ? (खगराज जटायु कैसा था?)
(ख) जटायुः कुत्र स्थितः कीदृशी वाचामवदत् ? (जटायु ने कहाँ बैठे हुए कैसी वाणी बोली?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अशुभाम्’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘अशुभाम्’ पद का विलोम पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘शुभां गिरम्’ इत्यनयोः किं विशेष्यपदम्?
(‘शुभां गिरम्’ इन शब्दों में विशेषण पद क्या है?)
उत्तराणि-
(1) (क) जटायुः।
(ख) शुभाम् (अच्छी)।

(2) (क) खगोत्तमः जटायुः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः आसीत्। (खगोत्तम जटायु पर्वतशिखर के समान व तीक्ष्ण चोंच वाला था।)
(ख) जटायुः वनस्पतौ स्थितः आसीत् । (जटायु पेड़ पर बैठा था।)

(3) (क) शुभाम् (शुभ)।
(ख) गिरम् (वाणी)।

5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात् ।।
न तत्समाचारेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥

अन्वय – परदार अभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय (यतः) धीरः तत् (कर्म) न समाचरेत् यत् (कर्मणा) परः अस्य विगर्हयेत्।

शब्दार्था: – परदार = परस्त्री (परायी स्त्री के), अभिमर्शनात् = स्पर्शात् (स्पर्श से), नीचाम् = निम्नां (नीच बनी), मतिम् = बुद्धिम् (बुद्धि को), निवर्तय = अपसारय (दूर कर दो), (यतः = क्योंकि), धीरः = धैर्ययुक्तः (बुद्धिमान्, धैर्यशील व्यक्ति), तत् = वह कर्म/उस कर्म का), न समाचरेत् = नाचरेत् (आचरण न करे) , यत् = येन (जिस कर्म से), परः = अन्यः (दूसरे लोग), अस्य = एतस्य (इसकी), विगर्हयेत् = निन्द्यात् (निन्दा करें)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत श्लोक में गृध्रराज जटायु, रावण को नैतिक उपदेश देता है।

अनुवाद – पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी बुद्धि को दूर कर (अर्थात् मन में उत्पन्न नीच विचारों को त्याग दो) (क्योंकि) बुद्धिमान् व्यक्ति उस कर्म का आचरण न करे, जिस कर्म से (लोग) इसकी निन्दा करें।

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संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – आलोच्योऽयम् श्लोकोऽस्माकम् इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकविः वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (आलोच्य यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः आदिकवि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – श्लोकेऽस्मिन् गृध्रराजः जटायुः राक्षसराज रावणं नीतिं ब्रूते। (इस श्लोक में गृध्रराज जटायु राक्षसों के राजा रावण को नीति का उपदेश देता है।)

व्याख्या – रे मूर्ख! त्वं परदारं प्रपीडनात् विरम। तस्याः स्पर्शात् स्वकीयाम् अधर्मा बुद्धि निवर्तय अर्थात् त्वं मनसि : आगतान् निम्न विचारान् त्यज। यतो बुद्धिमन्तः जना तत् कर्म न आचरन्ति यस्मात् जनैः निन्दितो भवेत्। (अरे मूर्ख! तू पराई स्त्री को पीड़ित करने से रुक जा। उसको स्पर्श करने से अपनी नीच बुद्धि को लौटा लो अर्थात् तुम अपने मन में आये निम्न विचारों को त्याग दो। क्योंकि बुद्धिमान लोग उस कार्य का आचरण नहीं करते हैं, जो लोगों द्वारा निन्दित हो।

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य मतिः कीदृशी आसीत् ? (रावण की मति कैसी थी?)
(ख) निन्दनीयम् आचरणं केन न आचरणीयम् ? (निन्दनीय व्यवहार किसे नहीं करना चाहिए?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायुः रावणं किम् अवदत् ? (जटायु ने रावण से क्या कहा?)
(ख) धीरः किं न आचरेत् ? (धीर पुरुष को क्या आचरण नहीं करना चाहिए?)

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प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-).
(क) ‘निन्देत्’ इति क्रियापदस्य समानार्थी पदं श्लोक चित्वा लिखत।
(‘निन्देत्’ क्रियापद का पर्याय श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘मतिं नीचां’ इत्यनयोः विशेषण पदं चिनुत।
(‘मति नीचां’ इनमें से विशेषण पद चुनिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) नीचा (निम्न) ।
(ख) धीरेण (धीर पुरुष द्वारा)।

(2) (क) जटायुः अवदत्-“परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय।”
(जटायु ने कहा-“पराई स्त्री को पीड़ित करने से हुई नीच मति को त्याग दो।”)
(ख) धीरः तत् न आचरेत् यत् परः विगहेंयेत्।
(धीर को वह आचरण नहीं करना चाहिए जिसकी दूसरा निन्दा करे।)

(3) (क) ‘विगर्हयेत्’ (निन्दा करें)।
(ख) नीचाम् इति विशेषण पदम्।

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6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥

अन्वय-अहं वृद्धः, त्वं युवा, सरथः, कवची, शरी (च असि) (तथापि त्वं) मे वैदेहीम् आदाय कुशली न गमिष्यसि।

शब्दार्थाः – अहम् = मैं, वृद्धः = जरठः (बूढ़ा हो गया हूँ), त्वं च = भवान् च (और तुम), युवा = युवकः (जवान हो), धन्वी = धनुर्धारी (धनुर्धारी), सरथः = रथेन युक्तः (रथयुक्त), कवची = कवचधारी (कवच धारण करने वाले), शरी = बाणधारी, (बाण धारण करने वाले हो), तथापि = पुनरपि (फिर भी), त्वम् = भवान् (तुम), मे = मम (मेरे रहते/मेरे होते हुए), वैदेहीम् = विदेहनन्दिनी (सीता को), आदाय = नीत्वा (लेकर), कुशली = सकुशलं (कुशलपूर्वक), न गमिष्यसि = न यास्यसि (नहीं जा सकोगे)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – खगराज जटायु अपने को निहत्था तथा रावण को सशस्त्र एवं सरथ बताते हुए चुनौती देता है कि मेरे होते हुए तू सीता को कुशलतापूर्वक नहीं ले जा सकेगा।

अनुवाद – (अरे रावण!) मैं बूढ़ा हो गया हूँ और तू युवक है, (मैं निहत्था हूँ) और तू धनुषवाला, रथवाला, कवच वाला और बाणों वाला है। (फिर भी तू) मेरे होते हुए सीता को लेकर कुशलतापूर्वक नहीं जा सकेगा। संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदि कवि वाल्मीकि-विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है। __ प्रसंग:-खगराजो जटायुः आत्मानं शस्त्रविहीनं रावणं च स शायकं, रथयुक्तं कवचावृतं सशरं च मनुते तथापि रावणम् आह्वयति यत् यावत् अहम् कुशली तावत् त्वं जनकनन्दिनी सीता अपहत्य न गन्तु शक्ष्यामि। (पक्षिराज जटायु अपने को शस्त्रहीन तथा रावण को धनुष-बाण युक्त, रथ युक्त, कवच से ढका हुआ तथा बाण युक्त मानता है फिर भी रावण को ललकारता है कि जब तक मैं हूँ तब तक तुम जनक पुत्री सीता का अपहरण कुशलता से नहीं कर सकोगे।)

व्याख्या: – रे रावण! अहं जीर्ण जातोऽस्मि त्वम् च यौवनारूढः। अहम् शस्त्रहीनोऽस्मि त्वं च धनुर्धारी, रथेन युक्तः, कवचधारी (वक्त्रयुक्त) बाणधारी च असि तथापि मपि जीविते त्वं जानकीम् अपहत्य न गन्तु राक्ष्यामि। (अरे रावण! मैं वृद्ध हो गया हूँ और तुम जवानी पर आरूढ़ हो। मैं शस्त्रहीन हूँ और तुम धनुष धारण करने वाले, रथ से युक्त, कवच धारण किए हुए हो, फिर भी मेरे जीते-जी तुम जानकी को अपहरण कर नहीं ले जा सकते।)

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अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कः आत्मानं वृद्धः इति कथयति? (स्वयं को वृद्ध कौन कहता है?)
(ख) धन्वी, सरथः, कवची शरी च कः आसीत् ? (धनुष, रथ, कवच और बाण वाला कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायुना रावणः कीदृशः वर्णितः? (जटायु द्वारा रावण का कैसा वर्णन किया गया है?)
(ख) जटायुः रावणं किम् उक्तवान्? (जटायु ने रावण से क्या कहा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) श्लोके सीतायै किं पदं प्रयुक्तम्? (श्लोक में सीता के लिए किस पद का प्रयोग किया गया है?)
(ख) ‘दत्वा’ इति पदस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत। .
(‘दत्वा’ पद का विलोमार्थी पद श्लोक से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) जटायुः।
(ख) रावणः।

(2) (क) रावणः धन्वी सरथः कवची शरी च जटायुना वर्णितः। (रावण धनुष, रथ, कवच और बाण से युक्त जटायु द्वारा वर्णित है।)
(ख) यद्यपि अहं वृद्धः त्वं च धन्वी सरथः कवची शरीति तथापि त्वं जानकी नीत्वा सकुशलं न गन्तु शक्नोषि। (यद्यपि मैं वृद्ध हूँ, तुम धनुष, कवच, वाण वाले हो फिर भी सीता को सरलता (कुशलता) से नहीं ले जा सकते।)

(3) (क) वैदेही (सीता)।
(ख) आदाय (लेकर)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः॥

अन्वय-महाबलः पतगसत्तमः तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्यां तु तस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार।

शब्दार्थाः – महाबलः = शक्तिपुञ्जः (महान् बलवान्), पतगसत्तमः = पक्षिशिरोमणिः (पक्षियों में शिरोमणि जटायु ने), तीक्ष्ण = तीखे, नखाभ्याम् = नखयुक्ताभ्याम् (नाखूनों वाले), चरणाभ्याम् = प्रपदाभ्याम् (पैरों से/पंजों से), तु = तो , तस्य = अमुष्य (उसके), गाने = शरीरे (शरीर पर), बहुधा = विविधान् (अनेक), व्रणान् = क्षतान्/स्फोटान् (घाव), चकार = अकरोत् (कर दिए)। . हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।
प्रसंग-कवि महर्षि वाल्मीकि ने इस श्लोक में महाबली जटायु की वीरता का चित्रण किया है।

अनुवाद – उस महान् बलवान् पक्षिशिरोमणि जटायु ने अपने तीखे नाखूनों वाले पंजों से तो उस (रावण) के शरीर पर अनेक घाव कर दिये। संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (आलोच्य श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के. ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ वाल्मीकि-विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – महाकविः वाल्मीकिः अस्मिन् श्लोके पक्षिराज जटायोः वीरतां साहसं च चित्रयति। (महाकवि वाल्मीकि इस श्लोक में पक्षिराज जटायु की वीरता और साहस का चित्रण करते हैं।)

व्याख्या: – असौ महान् शक्तिपुञ्जः पक्षिशिरोमणि: तीक्षण नखयुक्ताभ्याम् पादाभ्यम् तु तस्य रावणस्य शरीरे विविधान् क्षतान् अकरोत्। (उस महान् शक्तिशाली पक्षियों के शिरोमणि ने तीखे नाखूनों से युक्त पंजों से उस रावण के शरीर में अनेक घाव कर दिये।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य गात्रे कैः व्रणान् चकार जटायु:?
(रावण के शरीर में जटायु ने किनसे घाव कर दिए?)
(ख) जटायोः किमपि एक विशेषण अस्मात् श्लोकात् लिखत्।
(जटायु का कोई एक विशेषण इस श्लोक से लिखिए।)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-) …
(क) जटायोः चरणौ कीदृशौ आस्ताम्? (जटायु के पैर कैसे थे?)
(ख) जटायुः रावण कथं क्षतमकरोत?
(जटायु ने रावण को कैसे क्षत कर दिया?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘महाबलः’ इत्यस्य विशेषणस्य विशेष्यपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘महाबलः’ इस विशेषण का विशेष्य पद श्लोक से लिखिए।)
(ख) ‘तस्य’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञापदस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(‘तस्य’ सर्वनाम किस संज्ञा पद के स्थान पर प्रयोग किया गया है?)
उत्तराणि :
(1) (क) तीक्ष्ण नखैः (तीखे नाखूनों से)।
(ख) महाबलः (महा बलवान)।

(2) (क) जटायो: चरणौ तीक्ष्णनखौ आस्ताम्। (जटायु के पैर तीखे नाखूनों वाले थे।)
(ख) जटायुः रावणं तीक्ष्ण नखाभ्यां चरणाभ्यां बहुधा व्रणान् चकार। (जटायु ने रावण को तीखे नाखूनों वाले पैरों (पंजों) से अनेक घाव कर दिए।)

(3) (क) जटायुः।
(ख) रावणस्य (रावण का)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

8. तोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम् ।
चरणाभ्यां महातेजा बभजास्य महद्धनुः ॥

अन्वय-ततः महातेजा (जटायुः) अस्य (रावणस्य) मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं महद् धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज।

शब्दार्थाः – ततः = तदा (तब), महातेजा = महान् तेजस्वी (अत्यधिक तेज वाले), जटायुः = जटायु ने, अस्य = एतस्य (इस (रावण) के), मुक्तामणिविभूषितम् = मुक्ताभिः मणिभिः सज्जितम् (मोतियों और रत्नों से विभूषित/सुशोभित/सजे. हुए), सशरम् = बाणधारिणं (बाण सहित), महद् धनुः = विशालचापम् (महान् धनुष को) बभञ्ज = भग्नं कृतवान् (तोड़ दिया)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसंग – कवि महर्षि वाल्मीकि इस श्लोक में महाबली जटायु की वीरता का चित्रण करते हैं। – अनुवाद-तब महान् तेजस्वी (पक्षिशिरोमणि जटायु) ने इस रावण के मोतियों और रत्नों से विभूषित बाणों सहित महान धनुष को तोड़ दिया।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि वाल्मीकि-रचित रामायण के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – महर्षि वाल्मीकिः अस्मिन् श्लोके रावण-जटायोः युद्धं दर्शयन् महावीरस्य गृध्रराजस्य जटायोः वीरतां सामर्थ्य च . वर्णयति। (महर्षि वाल्मीकि इस श्लोक में रावण और जटायु का युद्ध दिखाते हुए महान वीर गृध्रराज जटायु की वीरता और सामर्थ्य का वर्णन करते हैं।)

व्याख्या: – तदा महान् पक्षिशिरोमणिः जटायुः एतस्य रावणस्य मुक्ताभि: मणिभिः विभूषितं शोभितं वा शरैः संयुक्त महत् शरासनं बाणधारिणं वा भग्नं कृतवान्। (तब महान् तथा पक्षियों में सर्वोपरि जटायु ने इस रावण के मुक्ता-मणियों से विरचित अर्थात् शोभित, बाणों से युक्त महान् अथवा बाणों को धारण किए धनुष को तोड़ दिया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

अवबोधन कार्यम

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य चापः कीदृशः आसीत्? (रावण का धनुष कैसा था?)
(ख) जटायुः चापं कैः अभनक्? (जटायु ने चाप को किससे तोड़ा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणस्य चापं कीदशं वर्णितम? (रावण का चाप कैसा वर्णित है?)
(ख) महातेजा जटायुना रावणस्य महत् धनुः कथं बभञ्ज?
(महान तेजस्वी जटायु ने रावण के धनुष को कैसे तोड़ दिया?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘महद्धनुः’ इत्यस्मात् पदात् विशेषणपदं पृथक् कृत्वा लिखत।
(महद्धनुः’ इस पद से विशेषण पद अलग कर लिखिए।)
(ख) ‘ततोऽस्य’ अत्र अस्य इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(‘ततोऽस्य’ यहाँ ‘अस्य’ सर्वनाम पद किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) मुक्तामणिविभूषितम् (मोती-मणियों से विभूषित था)।
(ख) चरणाभ्याम् (पंजों से)।

(2) (क) रावणस्य चापं सशरं मुक्तामणिविभूषितम् आसीत्। (रावण का धनुष बाण सहित मोती आदि मणियों से सुसज्जित था।)
(ख) महातेजा जटायुना रावणस्य महद्धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज। (महान् तेजवाले जटायु ने रावण का महान् धनुष पंजों से तोड़ दिया।)

(3) (क) महत् (महान) ।
(ख) रावणस्य (रावण का)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
तलेनाभिजधानाशु जटायुं क्रोधमूर्छितः ॥

अन्वय-सः भग्नधन्वा हताश्वः हतसारथिः विरथः क्रोधामूच्छितः (रावण:) आशु तलेन जटायुम् अभिजघान।

शब्दार्थाः – सः = असौ (वह), रावणः = लङ्कापतिः रावणः (लंकापति रावण), भग्नधन्वा = खण्डितधनुः (जिसका धनुष टूट गया है/टूटे हुए धनुष वाला), विरथः = रथविहीनः (रथरहित), हताश्वः = हतहयः (मरे हुए घोड़ों वाला/जिसके घोड़े मर चुके हैं), हतसारथिः = हतरथचालकः (मरे हुए सारथी वाला/जिसका सारथी मर चुका है), कोपाविष्ट (क्रुद्ध हुआ), आशु = शीघ्रम् (तत्काल), जटायुम् = खगेन्द्रम् (पक्षीराज गृद्ध की), अभिजघान = आक्रान्तवान् (हमला किया), तलेन = चपेताम् (थप्पड़)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसङ्ग – प्रस्तुत श्लोक में आदिकवि वाल्मीकि ने रावण द्वारा जटायु पर आक्रमण का वर्णन है।

अनुवाद – टूटे हुए धनुष वाला, रथहीन, जिसके घोड़े मर चुके हैं तथा जिसका सारथी मर चुका है, (ऐसा) उस रावण पर क्रोधित पक्षिराज जटायु ने थप्पड़ देकर हमला किया।

संस्कत व्यारव्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात उदधतः। पाठोऽयं मलतः आदिकवि: वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महर्षि वाल्मीकि विरचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकलित है।)

प्रसंग: – अस्मिन् श्लोके कवि वाल्मीकिना जटायोः उपरि रावणस्य आक्रमण: वर्णितः। (इस श्लोक में कवि वाल्मीकि ने जटायु पर रावण के आक्रमण का वर्णन किया है।)

व्याख्या: – असौ लङ्कापतिः रावणः खण्डितधनुः, हतहयः, रथविहीनः हतरथचालकः, क्रुद्धः सन् शीघ्रमेव तलाघातेन पक्षिराज जटायुम् आक्रान्तवान्। (लंकापति रावण जिसका धनुष टूट गया था, घोड़े मर गये थे, रथ के बिना हो गया था, जिसके य का चालक मर गया थे, ने क्रुद्ध होकर शीघ्र ही जटायु पर थप्पड़ से आक्रमण कर दिया।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क). ‘भग्नधन्वा इति कस्य विशेषणम् ? (‘भग्नधन्वा’ किसका विशेषण है?)
(ख) क्रोधमूञ्छितः कः आसीत् ? (क्रोध से मूच्छित कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) रावणः कीदृशः अभवत् ? (रावण कैसा हो गया?)
(ख) रावण जटायुं कथं जघान? (रावण ने जटायु को कैसे मारा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम उत्तरत-(निर्देशानसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘शीघ्रम् तत्कालं वा’ इति पदस्य समानार्थी पदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(‘शीघ्रं तत्कालं वा’ पद का समानार्थी पद श्लोक से चुनकर लिखिए)
(ख) ‘स भग्नधन्वा’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञास्थाने प्रयुक्तम् ?
(‘स भग्नधन्वा’ यहाँ ‘सः’ सर्वनाम पद किस संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) रावणस्य (रावण का)।
(ख) रावणः (रावण)।

(2) (क) रावणः भग्नधन्वा, विरथः हताश्वो हतसारथिः च अभवत्।
(रावण टूटे धनुष वाला, बिना रथ, अश्वरहित, हत सारथी हो गया ।)
(ख) क्रोधमूछितः रावण जटायुं तलेनाभिजघान् (क्रोधित रावण ने थप्पड़ से जटायु पर हमला किया।)

(3) (क) आशु (तत्काल)।
(ख) रावणः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥

अन्वय-तदा तम् (वारम्) अतिक्रम्य अरिन्दमः खगाधिपः तुण्डेन अस्य वाम दश बाहून् व्यपाहरत्।

शब्दार्थ – तदा = तदानीम् (तब), तम् वारम् = तं तलाघातम् (उस थप्पड़ के वार को), अतिक्रम्य = उल्लङ्घ्य (बचाव करके),अरिन्दमः = शत्रुदमनः/शत्रुनाशकः (शत्रुओं का विनाश करने वाला),खगाधिपः = पक्षिराजः (खगराज/पक्षियों = मुखेन/चञ्चुना (चोच से), अस्य = एतस्य रावणस्य (इस रावण की), वाम = वामभागे स्थितान् (बायी), दश बाहून् = दशभुजाः (दसों भुजाओं को), व्यपाहरत् = व्यनश्यत् (उखाड़ दिया/नष्ट कर दिया)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जटायोः शौर्यम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो आदिकवि वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है।

प्रसङ्ग – प्रस्तुत श्लोक में रावण से युद्ध के समय जटायु की वीरता का वर्णन किया गया है।

अनुवाद – तब उस (थप्पड़ के वार) को बचा करके शत्रुओं का विनाश करने वाले पक्षियों के राजा जटायु ने अपनी चोंच से इस (रावण की) बायीं ओर की दसों भुजाओं को उखाड़ दिया।

संस्कत व्याख्याः

सन्दर्भ: – श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘जटायोः शौर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः आदिकविः वाल्मीकि रचितस्य रामायण महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् सङ्कलितः। (यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वाल्मीकि रचित रामायण महाकाव्य के अरण्यकाण्ड से संकिलत है।)

प्रसंग: – अत्र कवि रावणेन सह प्रवृत्ते समरे जटायोः वीरतायाः वर्णनमस्ति। (यहाँ कवि रावण के साथ होने वाले युद्ध में जटायु की वीरता का वर्णन करता है।)

व्याख्या – तदा असौ जटायुः तम् चपेटाम् उललङ्हय शत्रुनाशकः पक्षिराज: जटायुः स्वकीयेन तीक्ष्णेन चञ्चुना एतस्य रावणस्य वामभागे स्थितान् दशभुजाः व्यनश्यत्। (तब वह जटायु उस थप्पड़ के वार को बचाकर, शत्रुविनाशक खगराज जटायु ने अपनी तेज चोंच से इस रावण के वाम भाग में स्थित दस भुजाओं को विनष्ट कर दिया अर्थात् काट दिया।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायु केन रावणम् आक्रान्तवत्? (जटायु ने किससे रावण पर आक्रमण किया?)
(ख) जटायुः रावणस्य कान् अदशत्? (जटायु ने रावण के किनको डसा?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जटायुः रावणं कथम् आक्रान्तवत्? (जटायु ने रावण को कैसे आक्रमण किया?)
(ख) जटायुः रावणस्य कान् व्यपाहरत्? (जटायु ने रावण के किनको नष्ट कर दिया?)

प्रश्न 3. यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-) ।
(क) ‘चञ्चुना’ इति पदस्य स्थाने श्लोके किं समानार्थी पदं प्रयुक्तम्?
(‘चञ्चुना’ पद के स्थान पर श्लोक में क्या समानार्थी पद प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘बामवाहून्दश’ अत्र विशेषणपदं चिनुत। (‘बामबाहून्दश’ यहाँ विशेषण पद को चुनिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) तुण्डेन (चोंच से)।
(ख) वामबाहून् (बायीं भुजाओं को)।

(2) (क) खगाधिपः जटायुः रावणम् तुण्डेन आक्रम्य वामवाहून् अदशत्। (खगेश जटायु ने रावण पर चोंच से आक्रमण कर बायीं भुजायें काट दी।)
(ख) जटायुः रावणस्य दशवामबाहून् तुण्डेन अदशत्। (जटायु ने रावण की दश भुजाओं को चोंच से काट दिया।)

(3) (क) तुण्डेन (चोंच से)।
(ख) वाम विशेषणपदम्।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

JAC Class 10 Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर :
गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में व्यंग्य का भाव छिपा हुआ है। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण के साथ ही रहते थे, पर फिर भी उनके हृदय में पूरी तरह से प्रेमहीनता थी। वे प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त थे। उनका मन किसी के प्रेम में डूबता नहीं था। श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी वे प्रेमभाव से वंचित थे।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर :
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पत्ता पानी में डूबा रहता है, पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती। उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। इसी तरह तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए हैं। उन्होंने उसे बडभागी’ कहकर प्रेम से रहित माना है, जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण गोपियाँ वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियों को पहले आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल जाएँगी, पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग-साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था।

गोपियों के अनुसार उद्धव का योग कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह उन्हें योगरूपी बीमारी देने वाला था। गोपियों ने जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव को उलाहने दिए हैं, वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्रतिपादन हुआ है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर :
गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि जला रही थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं, पर फिर भी उनके मन में हें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापस ब्रज-क्षेत्र में आएंगे, तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापस मिल उनके सामने प्रकट कर सकेंगी। पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आया तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई।

उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा। योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर :
श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के कारण गोपियों ने अपना सुख-चैन खो दिया था। उन्होंने घर-बाहर का विरोध करते हुए अपनी मान-मर्यादा की परवाह भी नहीं की, जिस कारण उन्हें सबसे भला-बुरा भी सुनना पड़ा। पर अब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भिजवाया, तब उन्हें ऐसा लगा कि कृष्ण के द्वारा उन्हें त्याग देने से उनकी पूरी मर्यादा नष्ट हो गई है। उनकी प्रतिष्ठा पूरी तरह से मिट ही गई है।

प्रश्न 6.
कृष्णा के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर :
गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। उन्हें सिवाय श्रीकृष्ण के कुछ और सूझता ही नहीं था। वे उनकी रूप माधुरी में इस प्रकार उलझी हुई थी, जिस प्रकार चींटी गुड़ पर आसक्त होती है। जब एक बार चींटी गुड़ से चिपट जाती है, तो फिर वहाँ से कभी छूट नहीं पाती। वे उसके लगाव में वहीं अपना जीवन त्याग देती हैं। गोपियों को ऐसा प्रतीत होता था कि उनका मन श्रीकृष्ण के साथ ही मथुरा चला गया है। वे हारिल पक्षी के तिनके के समान मन, वचन और कर्म से उनसे जुड़ी हुई थीं। उनकी प्रेम की अनन्यता ऐसी थी कि रात-दिन, सोते-जागते वे उन्हें ही याद करती रहती थीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 7.
गोपियों ने उदधव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है, जिनके मन में चकरी हो; जो अस्थिर बुद्धि हो; जिनका मन चंचल हो। योग की शिक्षा उन्हें नहीं दी जानी चाहिए, जिनके मन प्रेम-भाव के कारण स्थिरता पा चुके हैं। ऐसे लोगों के लिए योग की शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर :
कोमल हृदय वाली गोपियाँ केवल श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती हैं। उनको कृष्ण की भक्ति ही स्वीकार्य है। योग-साधना से उनका कोई संबंध नहीं है। इसलिए वे मानती हैं कि जो युवतियों के लिए योग का संदेश लेकर घूमते रहते है, वे बड़े अज्ञानी हैं। संभव है कि योग महासुख का भंडार हो, पर गोपियों के लिए वह बीमारी से अधिक कुछ नहीं है।

योग के संदेश विरह में जलने वालों को और अधिक जला देते हैं। योग-साधना मानसिक रोग के समान है, जिसे गोपियों ने न कभी पहले सुना था और न देखा था। कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ योग गोपियों के लिए नहीं बल्कि चंचल स्वभाव वालों के लिए उपयुक्त है। गोपियों को योग संदेश भिजवाना किसी भी अवस्था में बुद्धिमत्ता का कार्य नहीं है। प्रेम की रीति को छोड़कर योग-साधना का मार्ग अपनाना मूर्खता है।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर :
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म होना चाहिए कि वह किसी भी दशा में प्रजा को न सताए। वह प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखे।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण जब ब्रज-क्षेत्र में रहते थे, तब गोपियों को बहुत अधिक प्रेम करते थे। लेकिन गोपियों को प्रतीत होता है कि मथुरा जाकर राजा बन जाने के पश्चात उनका व्यवहार बदल गया है। उन्होंने उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भिजवाकर अन्याय और अत्याचारपूर्ण कार्य किया है। वे अब उनको सुखी नहीं अपितु दुखी देखना चाहते हैं। वे राजनीति का पाठ पढ़ चुके हैं। वे अब चालें चलने लगे हैं। इसलिए गोपियाँ चाहती हैं कि वे उन्हें उनके हृदय वापस कर दें, जिन्हें मथुरा जाते समय वे चुराकर अपने साथ ले गए थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत में गोपियाँ श्रीकृष्ण की याद में केवल रोती-तड़पती ही नहीं बल्कि उद्धव को उसका अनुभव करवाने के लिए मुस्कुराती भी हैं। वे उद्धव और कृष्ण को कोसती हैं और उन पर व्यंग्य भी करती हैं। उद्धव को अपने निर्गुण ज्ञान पर बड़ा अभिमान था, पर गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर उसे परास्त कर दिया। वे तों, उलाहनों और व्यंग्यपूर्ण उक्तियों से कभी अपने हृदय की वेदना प्रकट करती हैं, कभी रोने लगती हैं। उनका वाक्चातुर्य अनूठा है, जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ प्रमुख हैं –

1. निर्भीकता – गोपियाँ अपनी बात कहने में पूर्ण रूप से निडर और निर्भीक हैं। किसी भी बात को कहने में वे झिझकती नहीं हैं। योग-साधना को ‘कड़वी ककड़ी’ और ‘व्याधि’ कहना उनकी निर्भीकता का परिचायक है –

सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
सु तो व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

2. व्यंग्यात्मकता-वाणी में छिपा हुआ गोपियों का व्यंग्य बहुत प्रभावशाली है। उद्धव से मज़ाक करते हुए वे उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी वह उनके प्रेम से दूर ही रहा –

प्रीति-नदी मैं पाउँ बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।

व्यंग्य का सहारा लेकर वे श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र का ज्ञाता कहती हैं –

इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।’
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।

3. स्पष्टता – गोपियों को अपनी बात साफ़-साफ़ शब्दों में कहनी आती है। यदि वे बात को घुमा-फिरा कर कहना जानती हैं, तो उन्हें साफ़-स्पष्ट रूप में कहना भी आता है –

अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।

वे साफ़ स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करती हैं कि वे सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का नाम रटती रहती हैं –

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

पर वे क्या करें? वे अपने मुँह से अपने प्रेम का वर्णन नहीं करना चाहतीं। उनकी बात उनके हृदय में ही अनकही रह गई है।

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

4. भावुकता और सहृदयता-गोपियाँ भावुकता और सहृदयता से परिपूर्ण हैं, जो उनकी बातों से सहज ही प्रकट हो जाती हैं। जब उनकी भावुकता बढ़ जाती है, तब वे अपने हृदय की वेदना पर नियंत्रण नहीं रख सकती। उन्हें जिस पर सबसे अधिक विश्वास था; जिसके कारण उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की, जब वही उन्हें दुख देने के लिए तैयार था तब बेचारी गोपियाँ क्या कर सकती थीं –

अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही॥

सहृदयता के कारण ही वे श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानती हैं। वे स्वयं को मन-वचन-कर्म से श्रीकृष्ण का ही मानती हैं –

हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

वास्तव में गोपियाँ सहृदय और भावुक थीं, लेकिन समय और परिस्थितियों ने उन्हें चतुर और वाग्विदग्ध बना दिया। वाक्चातुर्य के आधार पर ही उन्होंने ज्ञानवान उद्धव को परास्त कर दिया था।

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प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी-साहित्य का भावपूर्ण उलाहनों को प्रकट करने वाला काव्य है। यह काव्य मानव हृदय की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम का सच्चा, भव्य और सात्विक पक्ष प्रस्तुत हुआ है। कवि ने कृष्ण और गोपियों के हृदय की गहराइयों को अनेक ढंगों से परखा है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम – गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ गहरा प्रेम था। वे उन्हें पलभर भी भुला नहीं पातीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन के आधार हैं, जिनके बिना वे पलभर जीवित नहीं रह सकतीं। वे उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान थे, जो उन्हें जीने के लिए मानसिक सहारा देते थे –

हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

गोपियाँ सोते-जागते श्रीकृष्ण की ओर अपना ध्यान लगाए रहती थीं। उन्हें लगता था कि उनका हृदय उनके पास था ही नहीं। उसे श्रीकृष्ण चुराकर ले गए थे। इसलिए वे अपने मन को योग की तरफ़ नहीं लगा सकती थीं।।

2. वियोग श्रृंगार – गोपियाँ हर समय श्रीकृष्ण के वियोग में तड़पती रहती थीं। वे उनकी सुंदर छवि को अपने मन से दूर नहीं कर पाती थीं। श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे, पर गोपियाँ रात-दिन उन्हीं की यादों में डूबकर उन्हें रटती रहती थीं –

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

वे अपने हृदय की वियोग पीड़ा को अपने मन में छिपाकर रखना चाहती थीं। वे उसे दूसरों के सामने कहना भी नहीं चाहती थीं। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे कभी-न-कभी अवश्य वापस आएँगे। श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण उन्होंने अपने जीवन में मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

3. व्यंग्यात्मकता – गोपियाँ भले ही श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, पर उन्हें सदा यही लगता था कि श्रीकृष्ण ने उनसे चालाकी की है; उन्हें धोखा दिया है। वे मथुरा में रहकर उनसे चालाकियाँ कर रहे हैं; राजनीति के खेल से उन्हें मूर्ख बना रहे हैं। इसलिए व्यंग्य करते हुए वे कहती हैं –

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

उद्धव पर व्यंग्य करते हुए वे उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं, जो प्रेम के स्वरूप श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम से दूर रहा। उसने कभी प्रेम की नदी में अपने पैर तक डुबोने का प्रयत्न नहीं किया। वे श्रीकृष्ण को बड़ी बुद्धि वाला मानती हैं, जिन्होंने उन्हें योग का पाठ भिजवाया था।

4. स्पष्टवादिता – गोपियाँ बीच-बीच में अपनी स्पष्टवादिता से प्रभावित करती हैं। वे योग-साधना को ऐसी ‘व्याधि’ कहती हैं, जिसके बारे में कभी देखा या सुना न गया हो। उनके अनुसार योग केवल उनके लिए ही उपयोगी हो सकता था, जिनके मन में चकरी हो; जो अस्थिर और चंचल हों।

5. भावुकता – गोपियाँ स्वभाव से ही भावुक और सरल हृदय वाली थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था और उसी प्रेम में डूबी रहना चाहती थीं। वे प्रेम में उसी प्रकार से मर-मिटना चाहती थीं, जिस प्रकार से चींटी गुड़ से चिपट जाती है और उससे अलग न होकर अपना जीवन गँवा देना चाहती है। भावुक होने के कारण वे योग के संदेश को सुनकर दुखी हो जाती हैं। अधिक भावुकता ही उनकी पीड़ा का बड़ा कारण बनती है।

6. सहज ज्ञान – गोपियाँ भले ही गाँव में रहती थीं, पर उन्हें अपने वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि राजा के अपनी प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य है और उसे क्या करना चाहिए

ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राजधरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए॥

7. संगीतात्मकता-सूरदास का भ्रमरगीत संगीतमय है। कवि ने विभिन्न राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर भ्रमरगीत की रचना की है। उनमें गेयता है, जिस कारण सूरदास के भ्रमरगीत का साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर :
गोपियाँ श्रीकृष्ण से अपार प्रेम करती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण के बिना वे रह ही नहीं सकतीं। जब श्रीकृष्ण ने उद्धव के द्वारा उन्हें योग-साधना का उपदेश भिजवाया, तब गोपियों का विरही मन इसे सहन नहीं कर सका और उन्होंने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए थे।

यदि गोपियों की जगह हमें तर्क देने होते, तो हम उद्धव से पूछते कि श्रीकृष्ण ने उनसे प्रेम करके फिर उन्हें योग की शिक्षा देने का कपट क्यों किया? उन्होंने मथुरा में रहने वाली कुब्जा को निर्गुण ब्रह्म का संदेश क्यों नहीं दिया? प्रेम सदा दो पक्षों में होता है। यदि गोपियों ने प्रेम की पीडा झेली थी, तो श्रीकृष्ण ने उस पीडा का अनुभव क्यों नहीं किया? यदि पीडा का अनुभव किया था, तो वे स्वयं ही योग-साधना क्यों नहीं करने लगे?

यदि गोपियों के भाग्य में वियोग की पीड़ा लिखी थी, तो श्रीकृष्ण ने उनके भाग्य को बदलने के लिए उद्धव को वहाँ क्यों भेजा? किसी का भाग्य बदलने का अधिकार किसी के पास नहीं है। यदि श्रीकृष्ण ने गोपियों को योग-साधना का संदेश भिजवाया था, तो अन्य सभी ब्रजवासियों, यशोदा माता, नंद बाबा आदि को भी वैसा ही संदेश क्यों नहीं भिजवाया? वे सब भी तो श्रीकृष्ण से प्रेम करते थे।

प्रश्न 14.
उद्धव जानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर :
किसी भी मनुष्य के पास सबसे बड़ी शक्ति उसके मन की होती है; मन में उत्पन्न प्रेम के भाव और सत्य की होती है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। उन्होंने अपने प्रेम के लिए सभी प्रकार की मान-मर्यादाओं की परवाह करनी छोड़ दी थी। जब उन्हें उद्धव के दुवारा श्रीकृष्ण के योग-साधना का संदेश मिला, तो उन्हें अपने प्रेम पर ठेस लगने का अनुभव हुआ।

उन्हें वह झेलना पड़ा था, जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी। उनके विश्वास को गहरा झटका लगा था, जिस कारण उनकी आहत भावनाएँ फूट पड़ी थीं। उद्धव चाहे ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; पर वे गोपियों के हृदय में छिपे प्रेम, विश्वास और आत्मिक बल का सामना नहीं कर पाए। गोपियों के वाक्चातुर्य के सामने वे किसी भी प्रकार टिक नहीं पाए।

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प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गोपियों ने सोच-विचारकर ही कहा था कि अब हरि राजनीति पढ़ गए हैं। राजनीति मनुष्य को दोहरी चालें चलना सिखाती है। श्रीकृष्ण गोपियों से प्रेम करते थे और प्रेम सदा सीधी राह पर चलता है। जब वे मथुरा चले गए थे, तो उन्होंने उद्धव के माध्यम से गोपियों को योग का संदेश भिजवाया था। कृष्ण के इस दोहरे आचरण के कारण ही गोपियों को कहना पड़ा था कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं।

गोपियों का यह कथन आज की राजनीति में साफ़-साफ़ दिखाई देता है। नेता जनता से कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं। वे धर्म, अपराध, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में दोहरी चालें चलकर जनता को मूर्ख बनाते हैं और अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी करनी-कथनी में सदा अंतर दिखाई देता है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पदों की सबसे बड़ी विशेषता है गोपियों की वाग्विदग्धता’। आपने ऐसे और चरित्रों के बारे में पढ़ा या सुना होगा जिन्होंने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई; जैसे-बीरबल, तेनालीराम, गोपालभांड, मुल्ला नसीरुद्दीन आदि। अपने किसी मनपसंद चरित्र के कुछ किस्से संकलित कर एक एलबम तैयार करें।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

प्रश्न 2.
सूर रचित अपने प्रिय पदों को लय एवं ताल के साथ गाएँ।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

JAC Class 10 Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
‘श्रमरगीत’ से आपका क्या तात्यर्य है?
उत्तर :
‘भ्रमरगीत’ दो शब्दों-‘भ्रमर’ और ‘गीत’ के मेल से बना है। ‘भ्रमर’ छ: पैर वाला एक काला कीट होता है। इसे भंवरा भी कहते हैं। ‘गीत’ गाने का पर्याय है। इसलिए ‘भ्रमरगीत’ का शाब्दिक अर्थ है-भँवरे का गान, भ्रमर संबंधी गान या भ्रमर को लक्ष्य करके लिखा गया गान। श्रीकृष्ण ने उद्धव को मथुरा से निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान देकर ब्रज-क्षेत्र में भेजा था ताकि वह विरह-वियोग की आग में झुलसती गोपियों को समझा सके कि श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को भुलाकर योग-साधना में लीन होना ही उनके लिए उचित है।

गोपियों को उद्धव की बातें कड़वी लगी थीं। वे उसे बुरा-भला कहना चाहती थीं, पर मर्यादावश श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए उद्धव को वे ऐसा कह नहीं पातीं। संयोगवश एक भँवरा उड़ता हुआ वहाँ से गुजरा। गोपियों ने झट से भँवरे को आधार बनाकर अपने हृदय में व्याप्त क्रोध को सुनाना आरंभ कर दिया। उद्धव का रंग भी भँवरे के समान काला था। इस प्रकार भ्रमरगीत का अर्थ है-‘उद्धव को लक्ष्य करके लिखा गया गान’। कहीं-कहीं गोपियों ने श्रीकृष्ण को भी ‘भ्रमर’ कहा है।

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प्रश्न 2.
सूरदास के ‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘भ्रमरगीत’ का उद्देश्य है-‘ज्ञान और योग का खंडन करके निर्गुण भक्ति के स्थान पर सगुण भक्ति की प्रतिष्ठा करना।’ सूरदास ने उद्धव की पराजय दिखाकर ऐसा करने में सफलता प्राप्त की है।

प्रश्न 3.
भ्रमरगीत में प्रयुक्त सूरदास की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत की भाषा ब्रज है। उन्होंने अत्यंत मार्मिक शब्दावली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लालित्य है। उन्होंने व्यंग्य-प्रधान शब्दों का सहजता और सुंदरता से प्रयोग किया है। उनकी उलाहने भरी भाषा और चुभते हुए शब्द बहुत अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उनकी भाषा में व्यंजना शक्ति और प्रभाव-क्षमता के साथ माधुर्य और प्रसाद गुणों की अधिकता है। उनका शब्द-चयन सुंदर और भावानुकूल है।

प्रश्न 4.
भ्रमरगीत के आधार पर गोपियों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत में गोपियाँ अत्यंत निर्भीक, स्वाभिमानी, वाक्पटु और हँसमुख हैं। उनमें नारी सुलभ लज्जा की अपेक्षा चंचलता की अधिकता है। वे उद्धव से बिना किसी संकोच के बातचीत ही नहीं करतीं बल्कि अपनी वाक्चातुरी का परिचय भी देती हैं। वे अपने प्रेम के लिए सामाजिक-पारिवारिक मर्यादाओं का विरोध करने में भी नहीं झिझकतीं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसी, ज्यौं करुई ककरी।
स तौ व्याधि हमकौं ले आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥

(क) श्रीकृष्ण गोपियों के लिए किस पक्षी की लकड़ी के समान हैं?
(i) कबूतर की
(ii) तीतर की
(iii) हारिल की
(iv) तोता की
उत्तर :
(iii) हारिल की।

(ख) गोपियाँ सोते-जागते किस नाम का जाप करती रहती हैं?
(i) कान्ह-कान्ह
(ii) नंद-नंद
(iii) राम-राम
(iv) पान्ह-पान्ह
उत्तर :
(i) कान्ह-कान्ह

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(ग) योग का संदेश गोपियों को किसके समान लगता है?
(i) तीखी मूली
(ii) कड़वी ककड़ी
(iii) मीठी तोरई
(iv) कड़वा खीरा
उत्तर :
(ii) कड़वी ककड़ी

(घ) ‘सु तौ व्याधि हमकौं ले आए’-पंक्ति में व्याधि का क्या अर्थ है?
(i) बाधा
(ii) रोग
(iii) शिकारी
(iv) मरीज
उत्तर :
(ii) रोग

(ङ) योग संदेश को गोपियाँ कैसे लोगों के लिए उपयुक्त मानती है?
(i) जिनके मन शांत और गंभीर हैं।
(ii) जिनके मन चकरी की भाँति अस्थिर हैं।
(iii) जिनके पास वैभव है।
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
(ii) जिनके मन चकरी की भाँति अस्थिर हैं।

2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, विरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार वही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।

(क) गोपियों के मन में किसके दर्शन की इच्छा अधूरी रह गई?
(i) श्रीकृष्ण की
(ii) यशोदा की
(iii) उद्धव की
(iv) सूरदास की
उत्तर :
(i) श्रीकृष्ण की

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(ख) गोपियाँ किससे संदेश प्राप्त करती हैं?
(i) उद्धव से
(ii) सुदामा से
(iii) श्रीकृष्ण से
(iv) सूरदास से
उत्तर :
(i) उद्धव से

(ग) किसने प्रेम की मर्यादा का उल्लंघन किया है?
(i) गोपियों ने
(ii) श्रीकृष्ण ने
(iii) उद्धव ने
(iv) बलराम ने
उत्तर :
(ii) श्रीकृष्ण ने

(घ) उद्धव कृष्ण का कौन-सा संदेश लेकर आए थे?
(i) प्रेम-संदेश
(ii) अनुराग-संदेश
(iii) योग-संदेश
(iv) वैदिक संदेश
उत्तर :
(iii) योग-संदेश

(ङ) गोपियाँ तन-मन की व्यथा क्यों सहन कर रही थीं?
(i) उद्धव से मिलने की आस में
(ii) नंदबाबा से मिलने की आस में
(iii) बलराम से मिलने की आस में
(iv) श्रीकृष्ण से मिलने की आस में
उत्तर :
(iv) श्रीकृष्ण से मिलने की आस में

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3. ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी में पाउँ! न बोर्यो, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी॥

(क) बड़भागी का संबोधन किसके लिए किया गया है?
(i) श्रीकृष्ण
(ii) प्रेमी
(iii) क्रोधी
(iv) उद्धव
उत्तर :
(i) श्रीकृष्ण

(ख) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है?
(i) कुमुदिनी के पत्तों से
(ii) बारिश की बूंदों से
(iii) नदी की लहरों से
(iv) गुड़ पर चिपकी चींटियों से
उत्तर :
(iv) गुड़ पर चिपकी चीटियों से

(ग) गोपियों द्वारा उद्धव की तुलना किससे की गई है?
(i) पानी में उगे कमल के पत्तों से
(ii) पानी में पड़ी रहने वाली तेल की गगरी से
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(i) और (ii) दोनों

(घ) उद्धव किनके संग रहकर भी उनके प्रेम से वंचित रहे?
(i) नंदबाबा के
(ii) माता-पिता के
(iii) श्रीकृष्ण के
(iv) सुदामा के
उत्तर :
(iii) श्रीकृष्ण के

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(ङ) ‘अपराध रहत सनेह तगा तें’-पंक्ति में ‘तगा’ का क्या भाव निहित है?
(i) ताकना
(ii) धागा
(iii) दगा देना
(iv) बंधन
उत्तर :
(iv) बंधन

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) सूरदास के पद किस भाषा में रचित हैं?
(i) अवधी भाषा
(ii) ब्रजभाषा
(iii) भोजपुरी
(iv) मैथिली भाषा
उत्तर :
(ii) ब्रजभाषा

(ख) सूरदास किस रस के महान कवि हैं?
(i) करुण रस
(ii) संयोग शृंगार रस
(iii) वियोग शृंगार रस और वात्सल्य रस।
(iv) भयानक रस
उत्तर :
(iii) वियोग शृंगार रस और वात्सल्य रस

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ग) ‘अवधि आधार आस आवन की’ पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार है –
(i) रूपक अलंकार
(ii) अनुप्रास अलंकार
(iii) यमक अलंकार
(iv) श्लेष अलंकार
उत्तर :
(ii) अनुप्रास अलंकार

(घ) ‘मधुकर’ का संबोधन किसके लिए किया गया है?
(i) श्रीकृष्ण के लिए
(ii) सुदामा के लिए
(iii) उद्धव के लिए
(iv) बलराम के लिए
उत्तर :
(iv) बलराम के लिए

सिप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

पद :

1. ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

शब्दार्थ बड़भागी – भाग्यवान। अपरस – अलिप्त; नीरस, अछूता। तगा – धागा; डोरा; बंधन। पुरइनि पात – कमल का पत्ता। रस – जल। न दागी – दाग तक नहीं लगता। माहँ – में। प्रीति-नदी – प्रेम की नदी। पाउँ – पैर। बोरयौ – डुबोया परागी – मुग्ध होना। भोरी – भोली। गुर चाँटी ज्यौं पागी – जिस प्रकार चौंटी गुड़ में लिपटती है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद कृष्ण-भक्ति के प्रमुख कवि सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ से लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित किया गया है। गोपियाँ सगुण प्रेमपथ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करती हैं और मानती हैं कि वे किसी भी प्रकार स्वयं को श्रीकृष्ण के प्रेम से दूर नहीं कर सकतीं।

व्याख्या – गोपियाँ उद्धव की प्रेमहीनता पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! तुम सचमुच बड़े भाग्यशाली हो, क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त हो; अनासक्त हो और तुम्हारा मन किसी के प्रेम में डूबता नहीं । तुम श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम बंधन से उसी तरह मुक्त हो, जैसे कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है पर फिर भी उस पर जल का एक दाग भी नहीं लग पाता; उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती।

इसी प्रकार तुम भी श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं करते और उनके प्रभाव से सदा मुक्त बने रहते हो। तुमने आज तक कभी भी प्रेमरूपी नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देखकर भी उसमें उलझी नहीं। पर हम तो भोली-भाली अबलाएँ हैं, जो अपने प्रियतम श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रेम में उसी प्रकार उलझ गई हैं जैसे चींटी गुड़ पर आसक्त हो उस पर चिपट जाती है और फिर कभी छूट नहीं पाती; वह वहीं प्राण त्याग देती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों ने किसके प्रति अपनी अनन्यता प्रकट की है?
3. ‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य-भाव को स्पष्ट कीजिए।
4. उद्धव के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन क्यों नहीं था?
5. सूरदास ने किन दृष्टांतों से उद्धव की अनासक्ति को प्रकट किया है ?
6. पद में निहित गेयता का आधार स्पष्ट कीजिए।
7. ‘गुर चींटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को प्रतिपादित कीजिए।
8. अंतिम पंक्तियों में गोपियों ने स्वयं को ‘अबला’ और ‘भोरी’ क्यों कहा है ?
9. उद्धव के मन में अनुराग नहीं है, फिर भी गोपियाँ उन्हें बड़भागी क्यों कहती हैं ?
10. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
11. इस पद में परोक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है?
12. उद्धव को बड़भागी किस लिए कहा गया है ?
13. गोपियों ने ऊधो को क्या कहा है?
14. ‘पुरइनि पात’ के माध्यम से कवि ने क्या कहा है?
उत्तर :
1. गोपियाँ उद्धव की प्रेमहीनता का मजाक उड़ाती हुए कहती हैं कि उसके हृदय में प्रेम की भावना का अभाव है। वह पूर्ण रूप से प्रेम के बंधन से मुक्त और अनासक्त है। उसने कभी प्रेम की नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और उसकी आँखें श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देखकर भी उनमें नहीं उलझीं। लेकिन हम गोपियाँ तो भोली-भाली थीं और श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी पर आसक्त हो गईं। अब हम किसी भी अवस्था में उस प्रेम-भाव से दूर नहीं हो सकतीं।

2. गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है। उनकी अनन्यता श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी के प्रति है।

3. गोपियों के द्वारा प्रयुक्त ‘अति बड़भागी’ शब्द व्यंग्य के भाव को अपने भीतर छिपाए हुए है। मज़ाक में गोपियाँ उद्धव को बड़ा भाग्यशाली मानती हैं, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति प्रेम-भाव में नहीं बँधा।

4. उद्धव निर्गुण ब्रह्म के प्रति विश्वास रखता था। उसका ब्रह्म रूप आकार से परे था, इसलिए वह स्वयं को श्रीकृष्ण के साकार रूप के प्रति नहीं बाँध पाया। उसके हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन भाव नहीं था।

5. सूरदास ने उद्धव को अनासक्त और श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सर्वथा मुक्त माना है। सूरदास कहते हैं कि जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा जल में रहता है, पर फिर भी उस पर जल की एक बूंद तक नहीं ठहर पाती; उसी प्रकार उद्धव श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति भक्ति भावों से रहित था। तेल की किसी मटकी को जल के भीतर डुबोने पर उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती, उसी प्रकार उद्धव के हृदय पर श्रीकृष्ण की भक्ति थोड़ा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकी थी।

6. सूरदास के द्वारा रचित पद ‘राग मलार’ पर आधारित है। इसमें स्वर-मैत्री का सफल प्रयोग और ब्रज–भाषा की कोमलकांत शब्दावली गेयता के आधार बने हैं।

7. गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भरा मन चाहकर भी कहीं और नहीं टिकता। वे पूरी तरह से अपने प्रियतम की रूप-माधुरी पर आसक्त थीं; उनके प्रेम में पगी हुई थीं। जिस प्रकार चींटी गुड़ पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती है और फिर छूट नहीं पाती; वह वहीं अपने प्राण दे देती है। इसी तरह गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव में डूबी रहना चाहती हैं और कभी उनसे दूर नहीं होना चाहतीं।

8. गोपियों ने स्वयं को ‘भोरी’ कहा है। वे छल-कपट और चतुराई से दूर थीं, इसलिए वे अपने प्रियतम की रूप-माधुरी पर शीघ्रता से आसक्त हो गईं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण से किसी भी प्रकार से दूर करने में असमर्थ मानती थीं। वे चाहकर भी उन्हें प्राप्त नहीं कर सकतीं, इसलिए उन्होंने स्वयं को अबला कहा है।

9. श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी उद्धव के मन में प्रेम-भाव नहीं है। इस कारण उसे विरह-भाव का अनुभव नहीं होता; उसे वियोग की पीड़ा नहीं उठानी पड़ती। इसलिए गोपियों ने उद्धव को बड़भागी कहा है।

10. उद्धव के व्यवहार की तुलना पानो पर तैरते कमल के पत्ते और जल में पड़ी तेल की मटकी से की गई है। दोनों पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी तरह उद्धव भी सब प्रकार से अनासक्त था।

11. इस पद में उद्धव को समझाया गया है कि वह ज्ञानवान है: नीतिवान है, प्रेम से विरक्त है, इसलिए उसका प्रेम-संदेश गोपियों के लिए निरर्थक है। श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न गोपियों पर उसके उपदेश का कोई असर नहीं होने वाला था।

12. उद्धव को बड़भागी व्यंग्य में कहा गया है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम में नहीं डब पाया।

13. गोपियों ने उधव से कहा है कि वह अभागा है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी उनके प्रेम से दूर रहा, गोपियाँ स्पष्ट कहती हैं कि वे कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव से समर्पित हैं। वे किसी भी अवस्था में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को नहीं त्याग सकती।

14. ‘पुरइनि पात’ के माध्यम कवि ने उन लोगों पर कटाक्ष किया है, जो संसार में रहकर भी प्रेम-मार्ग पर नहीं चल पाते; जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति विरक्त बने रहते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. कवि ने पद में किस भाषा का प्रयोग किया है?
2. गोपियों की भाषा में किस भाव की अधिकता है ?
3. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
4. गोपियों के प्रेम-भाव में निहित विशिष्टता को स्पष्ट कीजिए।
5. यह पद किस काव्य-विधा से संबंधित है?
6. इस पद में कौन-सा काव्य गुण प्रधान है?
7. ‘अति बड़भागी’ में कौन-सी शब्द-शक्ति निहित है?
8. भक्तिकाल के किस भाग से इस पद का संबंध है?
9. गोपियों का कथन किस भाव-मुद्रा से संबंधित है?
10. पद को संगीतात्मकता किस गुण ने प्रदान की है?
11. किन्हीं दो प्रयुक्त तद्भव शब्दों को लिखिए।
उत्तर
1. ब्रजभाषा।
2. व्यंग्य भाव।

3. अनुप्रास –
सनेह तगा तैं,
पुरइनि पात रहत,
ज्यौं जल।

उपमा –
गुर चाँटी ज्यौं पागी। रूपक
अपरस रहत सनेह तगा तें
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ।

उदाहरण –
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।

दृष्टांत –
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

4. सूरदास के इस पद में गोपियों की निश्छल प्रेम-भावना की अभिव्यक्ति हुई है। वे कृष्ण के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। उनके प्रेम को ठेस लगाने वाला कोई भी विचार उन्हें क्रोधित कर देता है। क्रोध-प्रेरित व्यंग्य उनके प्रेम-भाव की विशिष्टता है।

5. नीति काव्य।
6. माधुर्य गुण।
7. लक्षणा शब्दशक्ति।
8. कृष्ण भक्ति काव्य।
9. वक्रोक्ति।
10. छंद प्रयोग और स्वर मैत्री के प्रयोग।
11. अपरस, सनेह।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही॥

शब्दार्थ : माँझ – में। अधार – आधार; सहारा। आवन – आगमन; आने की। बिथा – व्यथा। सँदेसनि – संदेश। बिरहिनि – वियोग में जीने वाली। बिरह दही – विरह की आग में जल रही। हुती – थी। गुहारि – रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तें – जहाँ से। उत – उधर; वहाँ। धार – धारा; लहर। धीर – धैर्य। मरजादा – मर्यादा; प्रतिष्ठा। लही – नहीं रही; नहीं रखी।

प्रसंग – प्रस्तुत पद भक्त सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। श्रीकृष्ण के द्वारा ब्रज भेजे गए उद्धव ने गोपियों को ज्ञान का उपदेश दिया था, जिसे सुनकर वे हताश हो गई थीं। वे श्रीकृष्ण को ही अपना एकमात्र सहारा मानती थीं, पर उन्हीं के द्वारा भेजा हुआ हृदय-विदारक संदेश सुनकर वे पीड़ा और निराशा से भर उठीं। उन्होंने कातर स्वर में उद्धव के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई थी।

व्याख्या – गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे मन में छिपी बात तो मन में ही रह गई। हम सोचती थीं कि जब श्रीकृष्ण वापिस आएँगे, तब हम उन्हें विरह-वियोग में झेले सारे कष्टों की बातें सुनाएँगी। परंतु उन्होंने निराकार ब्रह्म को प्राप्त करने का संदेश भेज दिया है। उनके द्वारा त्याग दिए जाने पर अब हम अपनी असहनीय विरह-पीड़ा की कहानी किसे जाकर सुनाएँ? हमसे यह और अधिक कही भी नहीं जाती। अब तक हम उनके वापस लौटने की उम्मीद के सहारे अपने तन और मन से इस विरह-पीड़ा को सहती आ रही थीं।

अब इन योग के संदेशों को सुनकर हम विरहिनियाँ वियोग में जलने लगी हैं। विरह के सागर में डूबती हुई हम गोपियों को जहाँ से सहायता मिलने की आशा थी; जहाँ हम अपनी रक्षा के लिए पुकार लगाना चाहती थीं, अब उसी स्थान से योग संदेशरूपी जल की ऐसी प्रबल धारा बही है कि यह हमारे प्राण लेकर ही रुकेगी अर्थात श्रीकृष्ण ने हमें योग-साधना करने का संदेश भेजकर हमारे प्राण ले लेने का कार्य किया है। हे उद्धव! तुम्हीं बताओ कि अब हम धैर्य धारण कैसे करें? जिन श्रीकृष्ण के लिए हमने अपनी सभी मर्यादाओं को त्याग दिया था, उन्हीं श्रीकृष्ण के द्वारा हमें त्याग देने से हमारी संपूर्ण मर्यादा नष्ट हो गई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों की कौन-सी मन की बात मन में ही रह गई?
3. गोपियाँ अब किसके पास जाने का साहस नहीं कर सकतीं और क्यों?
4. गोपियाँ अब तक विरह-वियोग को किस आधार पर सहती आ रही थीं?
5. योग के संदेशों ने गोपियों के हृदय पर क्या प्रभाव डाला था?
6. गोपियाँ किससे गुहार लगाना चाहती थीं?
7. ‘धार बही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
8. ‘मरजादा न लही’ से क्या तात्पर्य है?
9. गोपियाँ किसे अपनी मर्यादा समझती थीं?
10. गोपियों के लिए प्रिय और अप्रिय क्या है?
उत्तर :
1. गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे सोच भी नहीं सकती थीं कि उन्हें कभी उनके प्रेम से वंचित होना पड़ेगा। उद्धव द्वारा दिए जाने वाले निर्गुण भक्ति के ज्ञान ने उनके धैर्य को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। वे निराशा के भावों से भर उठी थीं और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उनकी मर्यादा पूरी तरह से नष्ट हो गई है।

2. गोपियाँ अपने हृदय की पीड़ा श्रीकृष्ण को सुनाना चाहती थीं, लेकिन निर्गुण ज्ञान के संदेश को सुनकर वे कुछ न कर पाईं। उनके वियोग से उत्पन्न पीड़ा संबंधी बात उनके मन में ही रह गई।

3. गोपियाँ अब श्रीकृष्ण के पास जाकर अपनी वियोग से उत्पन्न पीड़ा को कहने का साहस नहीं कर सकती थीं। गोपियों को पहले विश्वास था कि जब कभी श्रीकृष्ण मिलेंगे, तब वे उन्हें अपनी पीड़ा सुनाएँगी। लेकिन अब श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्धव द्वारा निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें संदेश रूप में भेज दिया था।

4. गोपियाँ अब तक विरह-वियोग को इस आधार पर सहती आ रही थीं कि वे श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और श्रीकृष्ण भी उनसे उतना ही प्रेम करते हैं। परिस्थितियों के कारण उन्हें अलग होना पड़ा है। वे श्रीकृष्ण के प्रेम के आधार पर विरह-वियोग को सहती आ रही थीं।

5. योग के संदेशों ने गोपियों के हृदय को अपार दुख से भर दिया था। उन संदेशों ने उनके प्राण लेने का काम कर दिया था।

6. गोपियाँ उन श्रीकृष्ण से गुहार लगाना चाहती थीं, जिनके प्रेम के प्रति उन्हें अपार विश्वास था। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ने उद्धव के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म का संदेश भिजवाकर उनके प्रेम को धोखा दिया था।

7. ‘धार बही’ लाक्षणिक प्रयोग है। गोपियों को प्रतीत होता है कि निर्गुण भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बहकर उन तक पहुँचती है। उन्होंने ही उद्धव को उनके पास निर्गुण ज्ञान की धारा ले जाने के लिए भेजा है।

8. गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को ही अपनी मर्यादा मानती थीं। लेकिन जब स्वयं श्रीकृष्ण ने निर्गुण भक्ति का ज्ञान उन्हें भिजवा दिया, तो उनकी उस प्रेम संबंधी मर्यादा का कोई अर्थ ही नहीं रहा। ‘मरजादा न लही’ से तात्पर्य उनके प्रेम भाव के प्रति श्रीकृष्ण का वह संदेश था, जिसके कारण गोपियों ने अपने जीवन की सभी सामाजिक-धार्मिक मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

9. गोपियाँ अपने प्रति श्रीकृष्ण के प्रेम को ही अपनी मर्यादा समझती थीं।

10. गोपियों के लिए कृष्ण का प्रेम प्रिय और योग का संदेश अप्रिय है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है ?
2. प्रयुक्त भाषा-शैली का नाम लिखिए।
3. किन्हीं दो तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
4. कौन-सा काव्य गुण प्रधान है?
5. कवि ने किस रस का प्रयोग किया है ?
6. किसने लयात्मकता की सृष्टि की है?
7. कवि ने किस प्रकार की शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है?
8. किस शब्द में प्रतीकात्मकता विद्यमान है?
9. किस शब्द शक्ति ने गोपियों के स्वर को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
10. यह पद किस काल से संबंधित है?
11. पद में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. ब्रजभाषा।
2. नीति काव्य/गीति-शैली।
3. विथा, माँझ।
4. माधुर्य गुण।
5. वियोग श्रृंगार रस।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. कोमलकांत ब्रजभाषा के प्रयोग में तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
8. ‘धार’ में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
9. लाक्षणिकता के प्रयोग ने गोपियों के स्वर को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
10. हिंदी साहित्य के भक्तिकाल से।
11. अनुप्रास –
मन की मन ही माँझ,
सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही,
धीर धरहिं

रूपकातिशयोक्ति –
उत तँ धार बही

पुनरुक्ति प्रकाश –
सुनि-सुनि

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

3. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दुद करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
सु तो व्याधि हम को लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तो सूर’ तिनहिं ले सौंपी, जिनके मन चकरी॥

शब्दार्थ हरि – श्रीकृष्ण। हारिल की लकरी – एक पक्षी, जो अपने पंजों में सदा कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकड़े रहता है। क्रम – कर्म। नंद-नंदन – श्रीकृष्ण। उर – हृदय। पकरी – पकड़ना। कान्ह – कृष्ण। जकरी – रटती रहती है। करुई – कड़वी। ककरी – ककड़ी। व्याधि – बीमारी, पीड़ा पहुँचाने वाली वस्तु। तिनहिं – उनको। मन चकरी – जिनका मन स्थिर नहीं होता।

प्रसंग – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित सूरदास के पदों से लिया गया है। गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अपार प्रेम था। मथुरा आने के बाद श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव के निर्गुण ज्ञान पर सगुण भक्ति की विजय के लिए उन्हें गोपियों के पास भेजा था। गोपियों ने उद्धव के निर्गुण ज्ञान को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट किया कि उनका प्रेम केवल श्रीकृष्ण के लिए है। उनका प्रेम अस्थिर नहीं है।

व्याख्या – श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम की दृढ़ता को प्रकट करते हुए गोपियों ने उद्धव से कहा कि श्रीकृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बन गए हैं। जैसे हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, वैसे हम भी सदा श्रीकृष्ण का ध्यान करती हैं ! हमने मन, द के नंदन श्रीकृष्ण के रूप और उनकी स्मृति को कसकर पकड़ लिया है। अब कोई भी उसे हमसे छुड़ा नहीं सकता। हमारा मन जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा कृष्ण-कृष्ण की रट लगाए है; वह सदा उन्हीं का स्मरण करता है। हे उद्धव!

तुम्हारी योग की बातें सुनकर हमें ऐसा लगता है, मानो कड़वी ककड़ी खा ली हो! तुम्हारी योग की बातें हमें बिलकुल अरुचिकर लगती हैं। तुम हमारे लिए योगरूपी ऐसी बीमारी लेकर आए हो, जिसे हमने न तो कभी देखा, न सुना और न कभी भोगा है। हम तुम्हारी योगरूपी बीमारी से पूरी तरह अपरिचित हैं। तुम इस बीमारी को उन लोगों को दो, जिनके मन सदा चकई के समान चंचल रहते हैं। भाव है कि हमारा मन श्रीकृष्ण के प्रेम में दृढ और स्थिर है। जिनका मन चंचल है, वही योग की बातें स्वीकार कर सकते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियाँ कृष्ण को ‘हारिल की लकड़ी’ क्यों कहती हैं?
3. गोपियों ने श्रीकृष्ण को किस प्रकार अपने हृदय में धारण कर रखा था?
4. गोपियाँ कब-कब श्रीकृष्ण को रटती थीं?
अथवा गोपियों को रात-दिन किस बात की रट लगी रहती है? क्यों?
5. उद्धव की योग संबंधी बातें गोपियों को कैसी लगती थीं?
6. गोपियों की दृष्टि में ‘व्याधि’ क्या थीं?
7. गोपियों ने व्याधि को किसे देने की सलाह दी?
8. गोपियों के अनुसार योग संबंधी बातें कौन स्वीकार कर सकते हैं?
अथवा
गोपियों को योग कैसा लगता है और वस्तुतः उनकी आवश्यकता कैसे लोगों को है ?
9. गोपियों के लिए योग व्यर्थ क्यों था?
उत्तर :
1. गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति गहरा प्रेम-भाव है। उनका हृदय दृढ़ और स्थिर है। श्रीकृष्ण के प्रति चित्त-वृत्ति होने के कारण उन्हें योग का संदेश व्यर्थ लगता है।
2. गोपियों ने कृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान माना था। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकडे रहता है, उसी तरह गोपियों के हृदय ने भी श्रीकृष्ण को पकड लिया है।
3. गोपियों ने श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान अपने हृदय धारण कर रखा था।
4. गोपियाँ श्रीकृष्ण को जागते, सोते, स्वप्न या प्रत्यक्ष में सदा रटती रहती थीं, क्योंकि वे उनसे प्रेम करती थीं और उन्हें पाना चाहती थीं।
5. उद्धव की योग संबंधी बातें गोपियों को कड़वी ककड़ी के समान लगती थीं।
6. गोपियों की दृष्टि में उद्धव के द्वारा बताई जाने वाली योग संबंधी बातें ही ‘व्याधि’ थीं।
7. गोपियों ने सलाह दी कि उद्धव योगरूपी व्याधि उन्हें दें, जिनका मन चकई के समान सदा चंचल रहता है।
8. गोपियों को योग रूपी ज्ञान व्यर्थ लगता था। उनके अनुसार योग-संबंधी बातें वही लोग स्वीकार कर सकते हैं, जिनका मन अस्थिर होता है। जिनका मन पहले ही श्रीकृष्ण के प्रेम में स्थिर हो चुका हो, उनके लिए योग व्यर्थ था।
9. गोपियों का मन श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति में पूरी तरह से डूब गया था। वे स्वयं को मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण का मानती थीं; इसलिए उनके लिए योग व्यर्थ था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. यह पद हिंदी साहित्य के किस काल से संबंधित है ?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है ?
3. पद में किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. कौन-सा काव्य रस प्रधान है?
5. काव्य की कौन-सी शैली प्रयुक्त हुई है?
6. कवि ने किस राग पर गेयता का गुण आधारित किया है ?
7. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहन-गंभीरता प्रदान की है?
8. पद में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
9. पद में से ब्रजभाषा के पाँच शब्दों को चुनकर उनके सही रूप लिखिए।
10. पद में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. भक्तिकाल से।
2. ब्रजभाषा।
3. माधुर्य गुण।
4. वियोग शृंगार।
5. गीति शैली।
6. राग सारंग।
7. लाक्षणिकता ने।
8. जोग, करुई।
9. तद्भव तत्सम
बचन – वचन
जोग – योग
ककरी – ककड़ी
ब्याधि – व्याधि
निसि – निशि

10. रूपक –
हमारे हरि हारिल की लकरी।

अनुप्रास –
हमारे हरि हारिल,
जागत सोवत स्वप्न दिव

स-निसि,
करुई ककरी,
नंद-नंदन

उपमा –
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।

रूपकातिशयोक्ति –
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए।

स्वरमैत्री –
देखी सुनी न करी।

पुनरुक्तिप्रकाश –
कान्ह-कान्ह।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

4. हरि है राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।

शब्दार्थ : मधुकर – भँवरा, उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त संबोधन। हुते – थे। पठाए – भेजा। आगे के – पहले के। पर हित – दूसरों के कल्याण के लिए। डोलत धाए – घूमते-फिरते थे। फेर – फिर से। पाइहैं – पा लेंगी। अनीति – अन्याय।

प्रसंग – प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ प्रसंग से लिया गया है, जोकि हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। गोपियों ने उद्धव से निर्गुण-भक्ति संबंधी जिस ज्ञान को पाया था, उससे वे बहुत व्यथित हुईं। उन्होंने कृष्ण को कुटिल राजनीति का पोषक, अन्यायी और धोखेबाज़ सिद्ध करने का प्रयास किया है।

व्याख्या – गोपियाँ श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए योग संदेश को उनका अन्याय और अत्याचार मानते हुए कहती हैं कि हे सखी! अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। यह भँवरा हमसे जो बात कह रहा है, वह क्या तुम्हें समझ आई ? क्या तुम्हें कुछ समाचार प्राप्त हुआ? एक तो श्रीकृष्ण पहले ही बहुत चतुर-चालाक थे और अब गुरु ने उन्हें ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान इसी बात से हो गया है कि वे युवतियों के लिए योग-साधना का संदेश भेज रहे हैं।

यह सिद्ध हो गया है कि वे बुद्धिमान नहीं हैं, क्योंकि कोई भी युवतियों के लिए योग-साधना को उचित नहीं मान सकता। हे उद्धव! पुराने ज़माने के सज्जन दूसरों का भला करने के लिए इधर-उधर भागते-फिरते थे, पर आजकल के सज्जन दूसरों को दुख देने और सताने के लिए ही यहाँ तक दौड़े चले आए हैं। हम केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए, जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय चुपचाप चुराकर अपने साथ ले गए थे। पर उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम की आशा कैसे की जा सकती है!

वे तो दूसरों के द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को छुड़ाने का प्रयत्न करते हैं। भाव यह है कि हम श्रीकृष्ण से प्रेम करने की रीति अपना रहे थे, पर वे चाहते हैं कि हम प्रेम की रीति को छोड़कर योग-साधना के मार्ग को अपना लें। यह अन्याय है। सच्चा राजधर्म उसी को माना जाता है, जिसमें प्रजाजन को कभी न सताया जाए। श्रीकृष्ण अपने स्वार्थ के लिए हमारे सारे सुख-चैन को छीनकर हमें दुखी करने की कोशिश कर रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. गोपियों ने क्यों कहा कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है? अथवा गोपियाँ उद्धव से क्यों कहती हैं- “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।”
3. गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ से क्या कहना चाहा है ?
4. पुराने जमाने में सज्जन क्या करते थे?
5. गोपियों के अनुसार आजकल के सज्जन उनके पास क्या करने आए थे?
6. गोपियाँ क्या पाना चाहती थीं?
7. कृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ क्या ले गए थे?
8. कृष्ण के व्यवहार में गोपियों की अपेक्षा क्या अंतर था?
9. सच्चा राजधर्म किसे कहा गया है?
उत्तर :
1. गोपियाँ श्रीकृष्ण को राजनीति शास्त्र में निपुण एक स्वार्थी और धोखेबाज़ राजनीतिज्ञ सिद्ध करना चाहती थी, जो मथुरा जाते समय उनके मन को चुराकर अपने साथ ले गए थे। अब वे उनके प्रेमभाव को लेकर बदले में योग-साधना का पाठ पढ़ाना चाहते थे। वे कृष्ण को राजधर्म की शिक्षा देना चाहती थीं।

2. गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, क्योंकि अब वे प्रेम के संबंध में राजनीति के क्षेत्र में अपनायी जाने वाली कुटिलता और छल-कपट से काम लेने लगे हैं। वे अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीनकर उन्हें दुखी करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

3. गोपियों ने ‘जानी बुद्धि बड़ी’ में व्यंजना का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण की बुद्धि कितनी बड़ी थी- इसका अनुमान इसी बात से हो गया कि वे युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे हैं। इससे तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान श्रीकृष्ण ने अच्छा कार्य नहीं किया। कोई मूर्ख ही युवतियों के लिए योग-साधना को उचित मान सकता था, बुद्धिमान नहीं।

4. पुराने जमाने में लोग दूसरों का उपकार करने के लिए इधर-उधर भागते फिरते थे।

5. गोपियों के अनुसार आजकल के सज्जन दूसरों को दुख देने और सताने के लिए उन तक दौड़े चले आते हैं।

6. गोपियाँ केवल अपना-अपना मन वापस पाना चाहती थीं, जिन्हें श्रीकृष्ण चुराकर अपने साथ मथुरा ले गए थे।

7. श्रीकृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ गोपियों का मन चुराकर ले गए थे।

8. श्रीकृष्ण का व्यवहार गोपियों की अपेक्षा भिन्न था। गोपियाँ प्रेम की राह पर चलना चाहती थीं, परंतु कृष्ण चाहते थे कि गोपियाँ प्रेम की राह छोड़कर योग-साधना पर चलना आरंभ कर दें।

9. सच्चा राजधर्म प्रजा को सदा सुखी रखना कहा गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
2. कवि ने किन शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है?
3. गोपियों के माध्यम से किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
4. कवि ने किसकी सुंदर व्याख्या करने की चेष्टा की है?
5. किस काव्य गुण का प्रयोग किया गया है?
6. स्वरमैत्री का प्रयोग क्यों किया गया है?
7. किन्हीं दो तद्भव शब्दों को चुनकर लिखिए।
8. किस काव्य-शैली का प्रयोग किया गया है ?
9. किसी एक मुहावरे को चुनकर लिखिए।
10. पद से अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. ब्रजभाषा का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग दिखाई देता है।
3. गोपियों ने व्यंजना का प्रयोग किया है। कृष्ण और उद्धव पर मार्मिक और चुभता हुआ व्यंग्य किया गया है।
4. कवि द्वारा नीति की सुंदर व्याख्या करने की सफल चेष्टा की गई है।
5. माधुर्य गुण का प्रयोग है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. जोग, धरम।
8. गीति शैली।
9. हृदय चुराना।

10. अनुप्रास –

  • हरि हैं
  • समाचार सब पाए।
  • गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
  • बढ़ी बुद्धि जानी जो।
  • क्यौँ अनीति करें आपुन।
  • जो प्रजा न जाहिं सताए।

वक्रोक्ति –

  • हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
  • बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
  • समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
  • ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।

सूरदास के पद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी में कृष्ण-काव्य की श्रेष्ठता का प्रमुख श्रेय महात्मा सूरदास को जाता है। वे साहित्याकाश के देदीप्यमान सूर्य थे, जिन्होंने भक्ति, काव्य और संगीत की त्रिवेणी बहाकर भक्तों, संगीतकारों और साधारणजन के मन को रससिक्त कर दिया था।

सूरदास का जन्म सन 1478 ई० की वैशाख पंचमी को वल्लभगढ़ के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार इनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था। वे सारस्वत ब्राह्मण थे। इसके अतिरिक्त उनकी पारिवारिक स्थिति का कुछ और ज्ञान नहीं है। सूरदास नेत्रहीन थे परंतु यह अब तक निश्चित नहीं हो पाया कि वे जन्मांध थे अथवा बाद में अंधे हुए।

उनके काव्य में दृश्य जगत के सूक्ष्मातिसूक्ष्म दृश्यों का सजीव अंकन देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे जन्मांध हों। चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार वे संन्यासी वेष में मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे। यहीं उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई थी।

उन्होंने सूरदास को अपने संप्रदाय में दीक्षित कर उन्हें भागवत के आधार पर लीलापद रचने को कहा। गुरु आज्ञा से वे श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन और स्व-रचित पदों का गायन करने लगे। उन्होंने तैंतीस वर्ष की अवस्था में श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन करना आरंभ किया था और सन 1583 ई० तक मृत्युपर्यंत र नियमित रूप से यह कार्य करते रहे। उनका देहांत पारसौली में हुआ था। मान्यता है कि अपने 105 वर्ष के जीवन में उन्होंने लगभग सवा लाख पदों की रचना की। सूरदास ने भागवत के आधार पर कृष्णलीला संबंधी पदों की रचना की, जो बाद में संगृहीत होकर ‘सूरसागर’ कहलाने लगा। अब इसमें मात्र चार-पाँच हजार पद हैं।

इसके अतिरिक्त सूर-कृत लगभग चौबीस ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है, पर उनकी प्रामाणिकता विवादास्पद है। उनके तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं – ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’ और ‘साहित्य लहरी’। ‘सूर सारावली’ एक प्रकार से सूरसागर की विषय-सूची सी है और ‘साहित्य लहरी’ में सूरसागर से लिए गए कूट पदों का संग्रह है। इस प्रकार ‘सूरसागर’ ही उनकी कीर्ति का आधार स्तंभ बन जाता है। इसमें भागवत की तरह बारह स्कंध हैं, पर यह भागवत का अनुवाद नहीं है और न ही इसमें भागवत जैसी वर्णनात्मकता है।

यह एक गेय मुक्तक काव्य है, जिसमें श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवन का चित्रण न करके उनकी लीलाओं का विस्तारपूर्वक फुटकर पदों में वर्णन किया है। सूरदास को ‘वात्सल्य’ और ‘शृंगार’ का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। इन्होंने मानव-जीवन की सहज-स्वाभाविक विशेषताओं को अति सुंदर ढंग से कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया। राधा और कृष्ण के प्रेम की प्रतिष्ठा करने में इन्होंने अपार सफलता प्राप्त की। इनकी कविता 3 में कोमलकांत ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। इन्होंने गीति काव्य का सुंदर रूप प्रस्तुत किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

पदों का सार :

सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में संकलित ‘भ्रमरगीत’ से लिए गए चार पदों में गोपियों के विरह-भाव को प्रकट किया गया है। : ब्रजक्षेत्र से मथुरा जाने के बाद श्रीकृष्ण ने गोपियों को कभी कोई संदेश नहीं भेजा और न ही स्वयं वहाँ गए। जिस कारण गोपियों पीड़ा बढ़ गई थी। श्रीकृष्ण ने ज्ञान-मार्ग पर चलने वाले उद्धव को ब्रज भेजा ताकि वे गोपियों को संदेश देकर उनकी वियोग-पीड़ा को कुछ कम कर सकें, पर उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की पीड़ा को घटाने के स्थान पर बढ़ा दिया।

गोपियों को उद्धव के द्वारा दिया जाने वाला शुष्क निर्गुण संदेश बिलकुल भी पसंद नहीं आया। उन्होंने अन्योक्ति के द्वारा उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। उन्होंने उसके द्वारा ग्रहण किए गए निर्गुण-मार्ग को उचित नहीं माना। सूरदास ने इन भ्रमरगीतों के द्वारा निर्गुण भक्ति की पराजय और सगुण भक्ति की विजय दिखाने का सफल प्रयत्न किया है।

गोपियाँ मानती हैं कि उद्धव बड़े भाग्यशाली हैं, जिनके हृदय में कभी किसी के लिए प्रेम का भाव जागृत ही नहीं हुआ। वे तो श्रीकृष्ण के पास रहते हुए भी उनके प्रेम-बंधन में नहीं बँधे। जैसे कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है, पर फिर भी उस पर जल की बूंद नहीं ठहर पाती तथा तेल की मटकी को जल के भीतर डुबोने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती।

उद्धव ने प्रेम-नदी में कभी अपना पैर तक नहीं डुबोया, पर वे बेचारी भोली-भाली गोपियाँ श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य के प्रति रीझ गई थीं। वे उनके प्रेम में डूब चुकी हैं। उनके हृदय की सारी अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं। वे मन ही मन वियोग की पीड़ा को झेलती रहीं। योग के संदेशों ने उन्हें और भी अधिक पीड़ित कर दिया है। श्रीकृष्ण का प्रेम उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान है, जिसे वे कदापि नहीं छोड़ सकती।

उन्हें सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का ही ध्यान रहता है। योग-साधना का नाम ही उन्हें कड़वी ककड़ी-सा लगता है। वह उनके लिए किसी मानसिक बीमारी से कम नहीं है। गोपियाँ श्रीकृष्ण को ताना मारती हैं कि उन्होंने अब राजनीति पढ़ ली है। एक तो वे पहले ही बहुत चतुर थे और अब गुरु के ज्ञान को भी उन्होंने प्राप्त कर लिया है। गोपियाँ उद्धव को याद दिलाती हैं कि राजा को कभी भी अपनी प्रजा को नहीं सताना चाहिए: यही राजधर्म है।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Page-107

Question 1.
In Fig, sides QP and RQ of ΔPQR are produced to points S and T respectively. If ∠SPR = 135° and ∠PQT = 110°, find ∠PRQ.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 1
Answer:
Given, ∠SPR = 135° and ∠PQT = 110°
∠SPR + ∠QPR = 180° (SQ is a straight line)
⇒ 135° + ∠QPR = 180°
⇒ ∠QPR = 45°
Also, ∠PQT +∠PQR = 180° (TR is a straight line)
⇒ 110° + ∠PQR= 180°
⇒ ∠PQR = 70°
Now, ∠PQR + ∠QPR + ∠PRQ = 180°
(Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 70° + 45° + ∠PRQ = 180°
⇒ 115° + ∠PRQ = 180°
⇒ ∠PRQ = 65°

Question 2.
In Fig, ∠X = 62°, ∠XYZ = 54°. If YO and ZO are the bisectors of ∠XYZ and ∠XZY respectively of ΔXYZ, find ∠OZY and ∠YOZ.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 2
Answer:
Given ∠X = 62°, ∠XYZ = 54°
YO and ZO are the bisectors of ∠XYZ and ∠XZY respectively.
∠X + ∠XYZ + ∠XZY = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 62° + 54° + ∠XZY = 180°
⇒ 116° + ∠XZY = 180°
⇒ ∠XZY = 64°

Now, ∠OZY = \(\frac {1}{2}\) ∠XZY (ZO bisector.)
⇒ ∠OZY = 32°
also, ∠OYZ = \(\frac {1}{2}\) ∠XYZ (YO is the bisector.)
⇒ ∠OYZ = 27°
Now, ∠OZY + ∠OYZ + ∠YOZ = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 32° + 27° + ∠YOZ = 180°
⇒ 59° + ∠YOZ = 180°
⇒ ∠YOZ = 121°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Question 3.
In, Fig , if AB || DE, ∠BAC = 35° and ∠CDE = 53° and ∠DCE.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 3
Answer:
Given, AB || DE, ∠BAC = 35° and ∠CDE = 53°
∠BAC = ∠CED (Alternate interior angles.)
∴ ∠CED = 35°
Now, ∠DCE + ∠CED + ∠CDE = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ ∠DCE + 35° + 53° = 180°
⇒ ∠DCE + 88° = 180°
⇒ ∠DCE = 92°

Question 4.
In Fig, if lines PQ and RS intersect at point T, such that ∠PRT = 40°, ∠RPT = 95° and ∠TSQ = 75°, find ∠SQT.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 4
Answer:
Given, ∠PRT = 40°, ∠RPT = 95° and ∠TSQ = 75°
∠PRT + ∠RPT + ∠PTR = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 40° + 95° + ∠PTR = 180°
⇒ 135° + ∠PTR = 180°
⇒ ∠PTR = 45°
∠STQ = ∠PTR = 45° (Vertically opposite angles)
Now, ∠TSQ + ∠STQ + ∠SQT = 180° (Sum of the interior angles of the triangle)
⇒ 75° + 45° + ∠SQT = 180°
⇒ 120° + ∠SQT = 180°
⇒ ∠SQT = 60°

Page-108

Question 5.
In Fig, if PQ || PS, PQ || SR, ∠SQR = 28° and ∠QRT = 65°, then find the values of x and y.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 5
Answer:
Given, PQ || PS, PQ || SR, ∠SQR = 28° and ∠QRT = 65°
x + ∠SQR = ∠QRT (Alternate angles as QR is transversal)
⇒ x + 28° = 65°
⇒ x = 37°
also, ∠QSR = x (Alternate angles)
⇒ ∠QSR = 37°
also, ∠QRS+∠QRT=180°(Linear pair)
⇒ ∠QRS + 65° = 180°
⇒ ∠QRS =115°
Now, ∠P + ∠Q+ ∠R + ∠S = 360°
(Sum of the angles in a quadrilateral)
⇒ 90° + 65° + 115° + ∠S = 360°
⇒ 270° + y + ∠QSR = 360°
⇒ 270° + y + 37° = 360°
⇒ 307° + y = 360°
⇒ y = 53°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3

Question 6.
In Fig, the side QR of APQR is produced to a point S. If the bisectors of ∠PQR and ∠PRS meet at point T, then prove that ∠QTR = \(\frac{1}{2}\) ∠QPR.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.3 - 6
Answer:
Given: Bisectors of ∠PQR and ∠PRS meet at point T.
To prove: ∠QTR = \(\frac{1}{2}\) ∠QPR.
Proof: ∠TRS = ∠TQR + ∠QTR (Exterior angle of a triangle equals the sum of its interior opposite angles.)
⇒ ∠QTR = ∠TRS – ∠TQR …………(i) also,
∠SRP = ∠QPR + ∠PQR
∵ 2 ∠TRS = ∠QPR + 2 ∠TQR
⇒ ∠SRP = 2∠TRS and ∠PQR = 2∠TQR
⇒ ∠QPR = 2 ∠TRS – 2 ∠TQR
⇒ \(\frac{1}{2}\) QPR = ∠TRS – ∠TQR …………(ii)
Equating (i) and (ii)
∠QTR = \(\frac{1}{2}\) ∠QPR
∴ Hence, proved.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2

Page-103

Question 1.
Fig, find the values of x and y and then show that AB || CD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 - 1
Answer:
x + 50°=180° (Linear pair)
⇒ x = 130°
Also, y = 130° (Vertically opposite angle)
Now, x = y = 130°
Alternate interior angles are equal. Therefore, AB || CD.

Page-104

Question 2.
In Fig, if AB || CD, CD || EF and y : z = 3 : 7, find x.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 - 2
Answer:
Given, AB || CD end CD || EF y : z = 3 : 7
Now, x + y = 180°
(Angles on the same side of transversal.)
also, p = z (Corresponding angles)
and, y + p = 180° (Linear pair)
⇒ y + z = 180°
Let y = 3w and z = 7w
3w + 7w = 180°
⇒ 10 w = 180°
⇒ w = 18°
∴ y = 3×18° = 54° and, z = 7 × 18° = 126°
Now, x + y = 180°
⇒ x + 54° = 180°
⇒ x = 126°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2

Question 3.
In Fig, if AB || CD, EF || CD and ∠GED = 126°, find ∠AGE, ∠GEF and ∠FGE.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 - 3
Answer:
Given, AB || CD EF || CD ∠GED = 126°
∠FED = 90° (v EF || CD)
Now, ∠AGE = ∠GED
(Since, AB || CD and GE is transversal.
∴ ∠AGE = 126°
(Alternate interior angles.)
Also, ∠GEF = ∠GED – ∠FED
⇒ ∠GEF = 126° – 90°
⇒ ∠GEF = 36°
Now, ∠FGE + ∠AGE = 180°
⇒ ∠FGE = 180° – 126°
⇒ ∠FGE = 54°

Question 4.
In Fig, if PQ || ST, ∠PQR = 110° and ∠RST = 130°, find ∠QRS.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 - 4
[Hint: Draw a line parallel to ST through point R.]
Answer:
Given, PQ 11 ST, ∠PQR =110° and ∠RST = 130°
Construct, a line XY parallel to PQ and ST
∠PQR + ∠QRX= 180°
(Angles on the same side of transversal.)
⇒ 110° + ∠QRX = 180°
⇒ ∠QRX = 70°
Also, ∠RST + ∠SRY = 180°
(Angles on the same side of transversal.)
⇒ 130° + ∠SRY = 180°
⇒ ∠SRY = 50°
Now, ∠QRX + ∠SRY + ∠QRS = 180°
⇒ 70° + 50° + ∠QRS = 180°
⇒ ∠QRS = 60°

Question 5.
In Fig, if AB || CD, ∠APQ = 50° and ∠PRD = 127°, find x and y.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 - 5
Answer:
Given, AB || CD, ∠APQ = 50° and ∠PRD = 127°
∠PQR = ∠APQ
∴ x = 50° (Alternate interior angles)
∠PRD + ∠RPB = 180°
(Angles on the same side of transversal)
⇒ 127° + ∠RPB = 180°
⇒ ∠RPB = 53°
Now, y + 50° + ∠RPB = 180°
(AB is a straight line.)
⇒ y+50°+ 53°= 180°
⇒ y+ 103° = 180°
⇒ y = 77°

Question 6.
In Fig, PQ and RS are two mirrors placed parallel to each other. An incident ray AB strikes the mirror PQ at B, the reflected ray moves along the path BC and strikes the mirror RS at C and again reflects back along CD. Prove that AB || CD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 6 Lines and Angles Ex 6.2 - 6
Answer:
Let us draw BE ⊥ PQ and CF ⊥ RS.
As PQ || RS
So, BE || CF
By laws of reflection we know that,
Angle of incidence = Angle of reflection
Thus, ∠1 = ∠2 and ∠3 = ∠4 ……….. (i)
also, ∠2 = ∠3 …………. (ii)
(alternate interior angles because BE || CF and a transversal BC cuts them at B and C)
From (i) and (ii),
∠1 + ∠2 = ∠3 + ∠4
⇒ ∠ABC = ∠DCB
AB || CD
(Alternate interior angles are equal)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

Page – 34

Question 1.
Find the value of the polynomial 5x + 4x2 + 3 at
(i) x = 0
(ii) x = – 1
(iii) x = 2 ,
Answer:
(i) p(x) = 5x + 4x2 + 3
p(0) = 5(0) + 4(0)2 + 3 = 3

(ii) p(x) = 5x + 4x2 + 3
P(-1) = 5(-1) + 4(-1)2 + 3
= -5 + 4(1) + 3 = 2

(iii) p(x) = 5x + 4x2 + 3
p(2) = 5(2) + 4(2)2 + 3
= 10 + 16 + 3 = 29

Question 2.
Find p(0), p(1) and p(2) for each of the following polynomials:
(i) p(y) = y2 – y + 1
(ii) p(x) = x3
(iii) p(t) = 2 + t + 2t2 – t3
(iv) p(x) = (x – 1) (x + 1)
Answer:
(i) p(y) = y2 – y + 1
P(0) = (0)2 – (0) + 1 = 1
p(1) = (1)2 – (1) + 1 = 1
p(2) = (2)2 – (2) + 1 = 3

(ii) p(x) = x3
P(0) = (0)3 = 0
p(1) = (1)3 = 1
p(2) = (2)3 = 8

(iii) p(t) = 2 + t + 2t2 – t3
p(0) = 2 + 0 + 2 (0)2 – (0)3 = 2
P(1) = 2 + (1) + 2(1)2 – (1)3
= 2 + 1 + 2 – 1 = 4
p(2) = 2 + 2 + 2(2)2 – (2)3
= 2 + 2 + 8 – 8 = 4

(iv) p(x) = (x – 1) (x + 1)
P(0) = (0 – 1) (0 + 1) = (-1) (1) = – 1
p(1) = (1 – 1) (1 + 1) = 0(2) = 0
p(2) = (2 – 1) (2 + 1) = 1(3) = 3

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

Page – 35

Question 3.
Verify whether the following are zeroes of the polynomial, indicated against them.
(i) p(x) = 3x + 1, x = \(– \frac{1}{3}\)
(ii) p(x) = 5x – π, x = \(\frac{4}{5}\)
(iii) p(x) = x2 – 1, x = 1, – 1
(iv) p(x) = (x + 1) (x – 2), x = – 1, 2
(v) p(x) = x2, x = 0
(vi) p(x) = lx + m, x = \(– \frac{m}{l}\)
(vii) p(x) = 3x2 – 1, x = \(-\frac{1}{\sqrt{3}}, \frac{2}{\sqrt{3}}\)
(viii) p(x) = 2x + 1, x = \(\frac{1}{2}\)
Answer:
(i) If x = \(– \frac{1}{3}\) is a zero of polynomial p(x) then p(\(– \frac{1}{3}\)) = 0
p(\(– \frac{1}{3}\)) = 3(\(– \frac{1}{3}\)) + 1 = -1 + 1 = 0
Therefore, x = \(– \frac{1}{3}\) is a zero of polynomial p(x) = 3x + 1.

(ii) If x = \(\frac{4}{5}\) is a zero of polynomial
p(x) = 5x – π then p(\(\frac{4}{5}\)) should be 0.
p(\(\frac{4}{5}\)) = 5(\(\frac{4}{5}\)) – π = 4 – π ≠ 0
Therefore, x = \(\frac{4}{5}\) is not a zero of given polynomial p(x) = 5x – π.

(iii) If x = 1 and x = – 1 are zeroes of polynomial p(x) = x2 – 1, then p(1) and p(-1) each should be 0.
p(1) = (1)2 – 1 = 0 and
P(-1) = (-1)2 – 1 = 0
Hence, x = 1 and – 1 are zeroes of the polynomial p(x) = x2 – 1.

(iv) If x = -1 and x = 2 are zeroes of polynomial p(x) = (x + 1) (x – 2), then p( -1) and p(2) each should be 0.
p(-1) = (-1 + 1) (-1 – 2) = 0 (-3) = 0, and
p(2) = (2 + 1) (2 – 2) = 3 (0) = 0
Therefore, x = – 1 and x = 2 are zeroes of the polynomial p(x) = (x+1) (x – 2).

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

(v) If x = 0 is a zero of polynomial p(x) = x2, then p(0) should be zero.
Here, p(0) = (0)2 = 0
Hence, x = 0 is a zero of the polynomial p(x) = x2.

(vi) If x = \(– \frac{m}{l}\) is a zero of polynomial p(x) = lx + m, then p(\(– \frac{m}{l}\))= 0 should be 0.
p(\(– \frac{m}{l}\)) = l(\(– \frac{m}{l}\)) + m = -m + m = 0
Therefore x = (\(– \frac{m}{l}\)) is a zero of polynomial p(x) = lx + m

(vii) If x = \(-\frac{1}{\sqrt{3}}\) and x = \( \frac{2}{\sqrt{3}}\) are zeros of polynomial p(x) = 3x2 – 1, then p(\(-\frac{1}{\sqrt{3}}\)) and p(\( \frac{2}{\sqrt{3}}\))should be 0.
p(\( \frac{-1}{\sqrt{3}}\)) = \(3\left(\frac{-1}{\sqrt{3}}\right)^2\) – 1 = 3(\(\frac{1}{3}\))-1 = 1 – 1 = 0
p(\( \frac{2}{\sqrt{3}}\)) = \(3\left(\frac{2}{\sqrt{3}}\right)^2\) – 1 = 3(\(\frac{4}{3}\)) – 1 = 4 – 1 = 3 ≠ 0
Therefore, x = \( \frac{-1}{\sqrt{3}}\) is a zero of polynomial p(x) = 3x2 – 1 but, x = \( \frac{2}{\sqrt{3}}\) is not a zero of this polynomial.

(viii) If x = \(\frac{1}{2}\) is a zero of polynomial p(x) = 2x + 1then p(\(\frac{1}{2}\)) should be 0.
p(\(\frac{1}{2}\)) = 2(\(\frac{1}{2}\)) + 1 = 1 + 1 = 2 ≠ 0
Therefore, x = \( \frac{1}{2}\) is not a zero of given polynomial p(x) = 2x + 1

Question 4.
Find the zero of the polynomial in each of the following cases:
(i) p(x) = x + 5
(ii) p(x) = x – 5
(iii) p(x) = 2x + 5
(iv) p(x) = 3x – 2
(v) p(x) = 3x
(vi) p(x) = ax, a ≠ 0
(vii) p(x) = cx + d, c ≠ 0, d, are real numbers.
Answer:
(i) p(x) = x + 5
p(x) = 0
x + 5 = 0
x = – 5
Therefore, x = – 5 is a zero of polynomial p(x) = x + 5 .

(ii) p(x) = x – 5
p(x) =0
x – 5 = 0
x = 5
Therefore, x = 5 is a zero of polynomial p(x) = x – 5.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.2

(iii) p(x) = 2x + 5
p(x) = 0
2x + 5 = 0
2x = – 5
x = \(– \frac{5}{2}\)
Therefore, x = \(– \frac{5}{2}\) is a zero of polynomial p(x) = 2x + 5.

(iv) p(x) = 3x – 2
p(x) = 0
3x – 2 = 0
x = \( \frac{2}{3}\)
Therefore, x = \( \frac{2}{3}\) is a zero of polynomial p(x) = 3x – 2.

(v) p(x) = 3x
p(x) = 0
3x = 0
x = 0
Therefore, x = 0 is a zero of polynomial p(x) = 3x.

(vi) p(x) = ax, a ≠ 0
p(x) = 0
ax = 0
x = 0
Therefore, x = 0 is a zero of polynomial p(x) = ax.

(vii) p(x) = cx + d, c ≠ 0
p(x) = 0
cx + d = 0
x = \(– \frac{d}{c}\)
Therefore, x = \(– \frac{d}{c}\) is a zero of polynomial p(x) = cx + d.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 3 Coordinate Geometry Ex 3.1

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 3 Coordinate Geometry Ex 3.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 3 Coordinate Geometry Ex 3.1

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Question 1.
How will you describe the position of a table lamp on your study table to another person?
Answer:
To describe the position of a table lamp on the study table, we have to take two lines, a perpendicular and other horizontal. Considering the table as a plane and taking perpendicular line as y-axis and horizontal as x-axis. Take one corner of table as origin where both x and y axes intersect each other. Now, the length of table is y axis and breadth is x axis. From the origin, join the line to the lamp and mark a point. Calculate the distance of this point from both x and y axes and then write it in terms of coordinates.

Let the distance of point from y-axis is x and from x-axis is y then the the position of the table lamp in terms of coordinates is (x, y).

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 3 Coordinate Geometry Ex 3.1

Question 2.
(Street Plan): A city has two main roads which cross each other at the centre of the city. These two roads are along the North-South direction and East-West direction.

All the other streets of the city run parallel to these roads and are 200 m apart. There are 5 streets in each direction. Using 1cm = 200 m, draw a model of the city on your notebook. Represent the roads/streets by single lines. There are many cross-streets in your model. A particular cross-street is made by two streets, one running in the North – South direction and another in the East – West direction. Each cross street is referred to in the following manner: If the 2nd street running in the North – South direction and 5th in the East – West direction meet at some crossing, then we will call this cross-street (2, 5). Using this convention, find:
(i) how many cross – streets can be referred to as (4, 3).
(ii) how many cross – streets can be referred to as (3, 4)
Answer:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 3 Coordinate Geometry Ex 3.1 - 1
(i) Only one cross-street can be referred to as (4, 3) as we see from the figure.
(ii) Only one cross-street can be referred to as (3, 4) as we see from the figure.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.1

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.1

Page-155

Question 1.
Which of the following figures lie on the same base and between the same parallels. In such a case, write the common base and the two parallels.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.1 - 1
Answer:
(i) Trapezium ABCD and ΔPDC lie on the same base DC and between the same parallel lines AB and DC.
(ii) Parallelogram PQRS and trapezium SMNR lie on the same base SR but not between the same parallel lines.
(iii) Parallelogram PQRS and ΔRTQ lie on the same base QR and between the same parallel lines QR and PS.
(iv) Parallelogram ABCD and ΔPQR do not lie on the same base but between the same parallel lines BC and AD.
(v) Quadrilateral ABQD and trapezium APCD lie on the same base AD and between the same parallel lines AD and BQ.
(vi) Parallelogram PQRS and parallelogram ABCD do not lie on the same base but between the same parallel lines SR and PQ.

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना पत्र-लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana पत्र-लेखनम्

कक्षा 10 की परीक्षा में पत्र-लेखन का ज्ञान अपेक्षित है। उक्त प्रश्न के अन्तर्गत दी गयी मंजूषा (तालिका) में दिये गये शब्दों के द्वारा पत्र के रिक्त स्थानों की पूर्ति करके पत्र को पूर्ण करना होता है। कुछ पत्र लिखवाये भी जा सकते हैं।
इन पत्रों को मुख्यतः हम दो भागों में विभाजित करते हैं – (1) औपचारिक (2) अनौपचारिक।

1. औपचारिक पत्र – ये व्यावसायिक अथवा कार्यालयीय पत्र होते हैं।
2. अनौपचारिक पत्र – ये पत्र नितान्त व्यक्तिगत होते हैं और अपने मित्रों, सम्बन्धियों, परिचितों एवं परिजनों को उनकी कुशल – क्षेम जानने, परामर्श, प्रेरणा, सन्देश आदि के आदान-प्रदान करने हेतु लिखे जाते हैं। इनमें किसी निश्चित प्रविधि
अथवा प्रारूप का पालन नहीं किया जाता, अपितु सम्बन्धों की घनिष्ठता के आधार पर इनका प्रारूप कुछ भी हो सकता है। औपचारिकताओं के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता, इसीलिए इन्हें अनौपचारिक पत्र कहा जाता है।

प्राचीनकाल में तो पत्र-लेखन-प्रणाली आज की प्रणाली से पूर्णतया भिन्न थी। उस समय पत्र-लेखन का आरम्भ ‘स्वस्ति’ या ‘शुभमस्तु’ से किया जाता था और प्रथम वाक्य में लिखने के स्थान अर्थात् लेखक के स्थान की सूचना देते हुए पत्र-लेखक जहाँ और जिसके पास अपना पत्र भेजना चाहता था, उसका उल्लेख करते हुए अपना परिचय (नाम-निवासादि) लिखता था, परन्तु वर्तमान काल में हिन्दी भाषा में लिखे जाने वाले पत्रों के समान संस्कृत में भी पत्र लिखे जाने लगे हैं। हिन्दी पत्र-लेखन पर अंग्रेजी पत्र-लेखन का प्रभाव स्पष्ट है। अतः यहाँ जो भी पत्र दिए जाएँगे, वे नूतन शैली पर ही होंगे।

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

पत्र – लेखन सम्बन्धी आवश्यक निर्देश

पत्र जितना संक्षिप्त एवं व्यवस्थित रूप में लिखा जाएगा, वह पाठक को उतना ही अधिक प्रभावित करेगा। अत: पत्र को अधिक आकर्षक, बोधगम्य एवं असंदिग्ध बनाने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए

  1. पत्र-लेखन बहुत ही सरल एवं स्पष्ट भाषा में होना चाहिए।
  2. वाक्य यथासंभव छोटे और सारगर्भित होने चाहिए।
  3. पत्र जिस उद्देश्य से लिखा जा रहा हो, उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
  4. पत्र में अनावश्यक बातों एवं विशेषणों का प्रयोग न करें।
  5. जिसके लिए पत्र लिखा जा रहा है, उसके लिए यथोचित संबोधन प्रयुक्त करना चाहिए।

संक्षेप में पत्र का प्रारूप

(i) स्थान ……………..
(ii) दिनाङ्क ……………

(iii) सम्बोधन
(iv) अभिवादन

(v) कुशल-सूचना (vi) सन्देश (मुख्य विषय) ……………………………………………………
…………………………………………………………………………………………
(vii) उपसंहार ……………………………………………………………………………………………..

(viii) पत्र लिखने वाले का नाम
(हस्ताक्षर)

1. अनौपचारिकपत्रम् :

1. पादकन्दुकस्पर्धायां विजयात् मित्राय वर्धापनपत्रम्
(फुटबाल प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने से मित्र के लिए बधाई-पत्र)

हनुमानगढ़तः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र स्वदेश !
नमो नमः।

अत्र कशलं तत्रास्त। अद्य चिरात तव पत्रं प्राप्तम। अहम अतीव हर्षम अनभवामि। भवान पादकन्दकस्पर्धायां विजयं प्राप्तवान् इति ज्ञात्वा महती प्रसन्नता जाता। सफलतायै अभिनन्दनम्। भवान् सम्यक् परिश्रमं करोति, अतः फलम् अपि प्राप्नोति। अत एव मां बहु आनन्दः अभवत्। भवत्सकाशमागन्तुं मम प्रायः अभिलाषा भवति। ग्रीष्मावकाशे अहं भवत्सकाशम् आगमिष्यामि।

अत्र मम अध्ययनं सम्यक् प्रचलति। आशासे भवतः अध्ययनम् अपि निर्विघ्नं तत्र प्रचलेत्। सर्वेभ्य: ज्येष्ठेभ्यः प्रणामाः कनिष्ठेभ्यः च आशिष: वक्तव्याः।

कुशलम् अन्यत्।

भवदभिन्न मित्रम्
मनोजः

हिन्दी-अनुवाद

हनुमानगढ़
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र स्वदेश!
नमो नमः।

यहाँ सब कुशल है, वहाँ भी हो। आज बहुत समय बाद तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। मैं अत्यन्त हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। तुमने फुटबाल प्रतियोगिता में विजय प्राप्त की, यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। सफलता के लिए अभिनन्दन। तुम अच्छी तरह परिश्रम करते हो, अत: फल भी प्राप्त करते हो। इसीलिए मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। तुम्हारे पास मेरी प्रायः आने की अभिलाषा होती है। ग्रीष्मावकाश में मैं तुम्हारे पास आऊँगा। यहाँ मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही है। आशा है, तुम्हारी पढ़ाई भी वहाँ निर्विघ्न चल रही होगी। सभी बड़ों को प्रणाम और छोटों को आशीर्वाद कहना।
शेष कुशल है।

तुम्हारा अभिन्न मित्र
मनोज

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

2. राकेशः पितृभ्यां सह हरिद्वारनगरं पर्यटनाय अगच्छत्। परावृत्य सः स्वमित्रं मुकेशं यात्रायाः संस्मरण-स्वरूपं पत्रं लिखति।

भरतपुरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र मुकेश !
सस्नेहं वन्दे !

अत्र कुशलं तत्रापि कुशली भवान्। अहं ग्रीष्मावकाशे हरिद्वारनगरं भ्रमणाय अगच्छम्। मम पितरौ अपि मया सह तत्र पर्यटनाय शोभा-दर्शनाय च अगच्छताम्। तत्र हरिसोपाने सायंकाले मन्दिरेषु घण्टानादं भवति। गङ्गा कलकलध्वनिना सह सामावकाश हारद्वारनगरं भ्रमणाय गच्छम्। मम पितरौ अपि मया सह तत्र प्रवहति। दर्शकाः तत्र एकत्रीभूय स्नानं कुर्वन्ति, हरिदर्शनं कुर्वन्ति, शोभां पश्यन्ति आनन्दं च अनुभवन्ति। आशासे यत् आगामिनि वर्षे ग्रीष्मावकाशे त्वम् अपि मया सह गमिष्यसि। तत्र तव स्वास्थ्यं शोभनम्, आनन्द-लाभश्च भविष्यति। मातापितरौ प्रणामाः अनुजायै च स्नेहाशिषा: वक्तव्याः। शेषं कुशलम् अस्ति।

भवदीयः अभिन्नहृदयः
राकेशः

हिन्दी-अनुवाद

(राकेश अपने माता-पिता के साथ हरिद्वार नगर को पर्यटन के लिए गया। लौटकर वह अपने मित्र मुकेश को यात्रा-संस्मरण स्वरूप पत्र लिखता है।)

भरतपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र मुकेश !
सस्नेह नमस्ते।

यहाँ कुशल है, वहाँ तुम भी सकुशल होगे। मैं ग्रीष्मावकाश में भ्रमण के लिए हरिद्वार नगर गया था। मेरे माता-पिता भी मेरे साथ पर्यटन और शोभादर्शन के लिए गये थे। वहाँ हरि की पौड़ी पर सायंकाल मन्दिरों में घण्टानाद होता है। गंगा . कलकल ध्वनि के साथ बहती है। दर्शक वहाँ इकट्ठे होकर स्नान करते हैं, हरिदर्शन करते हैं। शोभा देखते हैं और आनन्द का अनुभव करते हैं। मैं आशा करता हूँ कि अगले वर्ष ग्रीष्मावकाश में तुम भी मेरे साथ चलोगे। वहाँ तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा और आनन्द-लाभ होगा।

माता – पिता को प्रणाम और छोटी बहिन के लिए स्नेहयुक्त आशीर्वाद कहना। शेष कुशल है।

तुम्हारा अभिन्न हृदय
राकेश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

3. भवत: नाम अरुणः। भवान् छात्रावासे निवसति। आगरास्थितं ताजमहलं द्रष्टुकामः शैक्षिकभ्रमणाय गन्तुं भवान् इच्छति। तदर्थं धनप्रेषणाय पितरं प्रति पत्रं लिखत।

विद्याभवनछात्रावासः
उदयपुरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

परमादरणीयाः पितृमहाभागाः !
सादरं प्रणामाः।

भवतां कृपया अत्र कुशली अहम्। सविनयं निवेदनं यत् मम वार्षिकी परीक्षा समाप्ता जाता। मम उत्तरपत्राणि शोभनानि अभवन्। विद्यालयेन एकस्याः शैक्षिकयात्रायाः आयोजनं कृतम्। एषा शैक्षिकयात्रा आगरास्थितं ताजमहलं द्रष्टुम् आयोजिता अस्ति। अतः यात्राव्ययार्थं सहस्रमेकं रूप्यकाणि प्रेषयन्तु भवन्तः। शेषं सर्वं कुशलम्। मात्रे अग्रजाय च मम प्रणामाः, अनुजाय निमेषाय च आशिषः वक्तव्यः।

भवदीयः प्रियपुत्रः
अरुणः

हिन्दी-अनुवाद

(आपका नाम अरुण है। आप छात्रावास में रहते हैं। आगरा स्थित ताजमहल देखने के इच्छुक आप शैक्षिक भ्रमण के लिए जाना चाहते हैं। इसके लिए धन भेजने के लिए पिताजी को एक पत्र लिखिए।)

विद्याभवन – छात्रावास
उदयपुर
दिनांक 25.03.20_ _

परमादरणीय पिताजी !

सादर प्रणाम,
आपकी कृपा से यहाँ मैं सकुशल हूँ। सविनय निवेदन है कि मेरी वार्षिक परीक्षा समाप्त हो गई है। मेरे उत्तर-पत्र अच्छे हो गए हैं। विद्यालय ने एक शैक्षिक यात्रा का आयोजन किया है। यह शैक्षिक यात्रा आगरा के ताजमहल को देखने के लिए आयोजित की गई है। अत: यात्रा व्यय के लिए आप एक हजार रुपये भेज दें। शेष सब कुशल है। माताजी और बड़े भाई साहब के लिए प्रणाम और छोटे भाई निमेश के लिए आशीष कहिए।

आपका प्रिय पुत्र
अरुण

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

4. मित्राय विवाहस्य निमन्त्रणपत्रम्

5, उद्योगनगरम्
बीकानेरः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र अंकुर !
सप्रेम नमो नमः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। मित्र ! अहम् इदं प्रसन्नतापूर्वकं ज्ञापयामि यत् मम अग्रजस्य विवाहः अग्रिममासस्य सप्तम्यां तिथौ निश्चितो जातः। वरयात्रा च अत्रत: जयपुरं गमिष्यति। अहं त्वां प्रेम्णा पूर्वतः एव ज्ञापयामि येन त्वम् अत्र त्रिचतुर्दिनानि पूर्वतः एव प्राप्तः स्याः। त्वया अत्र अवश्यमेव आगन्तव्यम्। नात्र कस्यापि मिषस्य अवसरो देयः। तव स्निग्धां संगति साहाय्यं च अहं कामये। आदरणीयाभ्यां पितृभ्यां सादरं प्रणामाः।

भवन्मित्रम्
प्रदीपः

हिन्दी-अनुवाद

5, उद्योगनगर
बीकानेर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र अंकुर !
सप्रेम नमोनमः।
यहाँ कुशल है, आशा है, वहाँ पर भी हो। मित्र ! मैं यह प्रसन्नतापूर्वक निवेदन करता हूँ कि मेरे बड़े भाई का विवाह आगामी महीने की सात तारीख को निश्चित हुआ है और बारात यहाँ से जयपुर को जाएगी। मैं तुम्हें प्रेमपूर्वक पहले से ही निवेदन करता हूँ, जिससे तुम यहाँ तीन-चार दिन पूर्व ही पहुँच जाओ। तुम्हें यहाँ अवश्य ही आना है। इस विषय में कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हारी स्नेहमयी संगति और सहायता की मैं कामना करता हूँ। आदरणीय माताजी और पिताजी को सादर प्रणाम।

तुम्हारा मित्र
प्रदीप

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

5. अध्ययन प्रति उपेक्षारतम् अनुजं प्रति पत्रं लिखत –

ज्ञानदीपविद्यालयछात्रावासः
भरतपुरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय कुणाल !
शुभाशिषः।

अत्र कुशलं तत्रास्तु। अद्य पितृपादानां पत्रं प्राप्तम्। विविधेषु विषयेषु त्वया ये अङ्काः प्राप्ताः, तान् पठित्वा अतिदुःखं जातम्। तव अङ्काः सर्वेषु एव विषयेषु हीनाः सन्ति। तत् कथम् ? मन्ये त्वं नियमेन न पठसि समयं च व्यर्थम् अतिवाहयसि। त्वया समयेन एव सर्वं कार्यं कर्त्तव्यम्। अध्ययनस्य काले अध्ययनम्, क्रीडनस्य काले एव क्रीडनम्, विश्रामस्य काले च विश्रामं कर्त्तव्यम्। मनसा पठनीयम्। समयं व्यर्थं न अतिवाहयेत्। ततः एव उच्चाङ्काः प्राप्याः। अस्तु, किञ्चित् समयानन्तरम् अहं त्वया सूचनीयः यत् का तव समयपालने उन्नतिः इति।

आदरणीयाभ्यां पितृभ्यां सादरं प्रणामाः अनुजायै च आशिषः।

तव ज्येष्ठभ्राता
देवदत्तः

हिन्दी-अनुवाद

ज्ञानदीप विद्यालय छात्रावास
भरतपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय कुणाल !
शुभाशिष।

यहाँ कुशल है, वहाँ भी हो। आज पिताजी का पत्र प्राप्त हुआ। विविध विषयों में तुमने जो अंक प्राप्त किए हैं, उनको पढ़कर बहुत दुःख हुआ। तुम्हारे अंक सभी विषयों में न्यून (कम) हैं। यह कैसे ? मुझे लगता है कि तुम नियमित रूप से नहीं पढ़ते हो। समय व्यर्थ गँवाते हो। तुम्हें समय से सब काम करने चाहिए। पढ़ाई के समय पढ़ाई, खेल के समय खेल और विश्राम के समय विश्राम करना चाहिए। मन से पढ़ना चाहिए। समय व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए, तब ही उच्च अंक प्राप्त किये जा सकते हैं। खैर, कुछ समय पश्चात् मुझे सूचित करना समय-पालन में क्या उन्नति हुई ?
आदरणीय माताजी और पिताजी को प्रणाम तथा छोटे भाई को को आशीष।

तुम्हारा बड़ा भाई,
देवदत्त

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

6. विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवम् अधिकृत्य मित्रं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयत।
(विद्यालय के वार्षिक उत्सव के आधार पर मित्र को लिखे गये पत्र के रिक्तस्थानों की पूर्ति मञ्जूषा में दिये पदों की सहायता से कीजिए।)
[मञ्जूषा – वार्षिकोत्सवः, कार्यक्रमम्, मित्रम्, प्रणामः, व्यस्ताः, मुख्यातिथि, पारितोषिकानि, राम।]

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25-03-20_ _

प्रिंय (i) ……………..
अद्य तव पत्रं प्राप्तम्। अग्रे समाचारः अयम्, यत् गते सप्ताहे विद्यालयस्य (ii) …………… आसीत्। अहं सर्वे च अध्यापका: (iii) ……………… आस्मः। शिक्षानिदेशकः कार्यक्रमस्य (iv) ……………. आसीत्। सः अस्माकम (v) ………….. प्राशंसत्। सः योग्येभ्यः छात्रेभ्यः (vi) …………… अयच्छत्। पितृभ्यां मम (vii) ……….. निवेदयतु।

भवतः (viii) ………….
क ख ग

उत्तरम् :

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय राम!
अद्य तव पत्रं प्राप्तम्। अग्रे समाचारः अयम्, यत् गते सप्ताहे विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः आसीत्। अहं सर्वे च अध्यापकाः व्यस्ताः आस्मः। शिक्षानिदेशकः कार्यक्रमस्य मुख्यातिथिः आसीत्। सः अस्माकं कार्यक्रमं प्राशंसत्। सः योग्येभ्यः छात्रेभ्यः पारितोषिकानि अयच्छत्। पितृभ्यां मम प्रणामः निवेदयतु।

भवतः मित्रम्
क ख ग

हिन्दी-अनुवाद

परीक्षा भवन
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय राम !
आज तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। आगे समाचार यह है कि गत सप्ताह विद्यालय का वार्षिक उत्सव हुआ। मैं और सभी अध्यापक व्यस्त थे। शिक्षा निदेशक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने हमारे कार्यक्रम की प्रशंसा की। उन्होंने योग्य छात्रों को पारितोषिक भी प्रदान किये। माताजी और पिताजी को प्रणाम निवेदन करना।

तुम्हारा मित्र
क ख ग

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

7. मित्रं प्रति लिखितं निम्नलिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः उचितैः शब्दैः पूरयत।
(मित्र को लिखे गए निम्नलिखित पत्र को मञ्जूषा में दिये गये पदों से भरिए।)
[मञ्जूषा – विना, तत्र, वयं, सस्नेहं, चेन्नईत:, ह्यः, मग्ना: अपि।]

(i)…………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र दिवाकर !
(ii) …………….. नमस्ते।
(iii) ……………… अहं मित्रः सह जन्तुशालां द्रष्टुं काननवनम् अगच्छम्। तत्र (iv) ……………… नेकान् पशून् अपश्याम। सर्वे पशवः इतस्ततः भ्रमन्ति स्म। सिंहाः उच्चस्वरैः अगर्जन्। मयूराः नृत्ये (v) ………………………… आसन्। वस्तुतः मयूरं (vi) …………………….. कुत्र जन्तुशालायाः भव्यशोभा ? तत्र आम्रवृक्षाः अपि आसन्, कोकिला (vii) ……………….। वस्तुतः यत्र आम्रवृक्षाः (viii) ……………….. कोकिला तु भविष्यति एव। अग्रे पुनः लेखिष्यामि। सर्वेभ्यः मम नमस्कारः कथनीयः।

भवदीयम् अभिन्नमित्रम्
शेखरः

उत्तरम् :

चेन्नईतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र दिवाकर !
सस्नेह नमस्ते।

ह्यः अहं मित्रैः सह जन्तुशालां द्रष्टुं काननवनम् अगच्छम्। तत्र वयम् अनेकान् पशून् अपश्याम। सर्वे पशवः इतस्ततः भ्रमन्ति स्म। सिंहाः उच्चस्वरैः अगर्जन्। मयूराः नृत्ये मग्नाः आसन्। वस्तुतः मयूरं विना कुत्र जन्तुशालायाः भव्यशोभा ? तत्र आम्रवृक्षाः अपि आसन्, कोकिला अपि। वस्तुतः यत्र आम्रवृक्षाः तत्र कोकिला तु भविष्यति एव। अग्रे पुनः लेखिष्यामि। सर्वेभ्यः मम नमस्कारः कथनीयः।

भवदीयम् अभिन्नमित्रम्
शेखरः

हिन्दी-अनुवाद

चेन्नई
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रियमित्र दिवाकर !
सप्रेम नमस्ते।

कल मैं मित्रों के साथ चिड़ियाघर देखने काननवन गया। वहाँ हमने अनेक पशुओं को देखा। सभी पशु इधर उधर घूम रहे थे। सिंह उच्च स्वर में गर्जना कर रहे थे। मोर नाचने में मग्न थे। वास्तव में मोर के बिना चिड़ियाघर की भव्य शोभा कहाँ ? वहाँ आम के वृक्ष भी थे, कोयल भी (थी)। वास्तव में जहाँ आम के पेड़ (हों), वहाँ कोयल भी होगी ही। आगे फिर लिखूगा। सभी के लिए मेरा नमस्कार कहना।

तुम्हारा अभिन्न मित्र
शेखर

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

8. अनुजं प्रति लिखिते पत्रे मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत।
(छोटे भाई को लिखे गए पत्र में मञ्जूषा में दिये गये शब्दों से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए।)
[मञ्जूषा- गणितविषये, छात्रावासतः, अनुज, आशिषः, ह्यः, शोभनः, तव, प्राप्ताः।]

(i) …………………
आगरा
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii) …………….. सोमेश !
संस्नेहं (iii) ………………।
(iv) ……………….. अहं तव पत्रं प्राप्तवान्। (v) ………………. परीक्षा परिणामः (vi) ………………… अस्ति, परं (vii) ……………… भवता न्यूनाः अङ्काः (viii) …………….. इति सखेदं मया अधीतम्। त्वं प्रतिदिनं प्रातःकाले उत्थाय गणितस्य अभ्यासं कुरु, गणिताध्यापकं च पुनः पुनः प्रश्नान् पृच्छ। अभ्यासेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति। पित्रोः चरणयोः सादरं प्रणामः।

भवदीयः अग्रजः
श्रीशः

उत्तरम् :

छात्रावासतः
आगरा
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सोमेश !

सस्नेहम् आशिषः।
ह्यः अहं तव पत्रं प्राप्तवान्। तव परीक्षापरिणामः शोभन: अस्ति, परं गणितविषये भवता न्यूना: अङ्काः प्राप्ताः इति सखेदं मया अधीतम्। त्वं प्रतिदिनं प्रात:काले उत्थाय गणितस्य अभ्यासं कुरु, गणिताध्यापकं च पुनः पुनः प्रश्नान् पृच्छ। अभ्यासेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति। पित्रो: चरणयोः सादरं प्रणामः।

भवदीयः अग्रजः
श्रीशः

हिन्दी-अनुवाद

छात्रावास
आगरा
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सोमेश !
सस्नेह आशीर्वाद।
कल मुझे तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारा परीक्षा परिणाम अच्छा है, परन्तु गणित विषय में तुमने कम अंक प्राप्त किये, ऐसा मैंने खेद के साथ पढ़ा। तुम प्रत्येक दिन प्रातःकाल उठकर गणित का अभ्यास न करो, गणित के अध्यापक से बार-बार प्रश्न पूछो। अभ्यास से ही सारे कार्य सिद्ध होते हैं। माता-पिताजी के चरणों में सादर प्रणाम।

तुम्हारा बड़ा भाई
श्रीश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

9. स्वविद्यालयस्य वर्णनं कुर्वन् मित्रं संजीवं प्रति अधः लिखितं पत्रम् उत्तर-पुस्तिकायां रिक्तस्थानपूर्ति कृत्वा पुनः लिखत। सहायतायै मञ्जूषायां पदानि दत्तानि।
(अपने विद्यालय का वर्णन करते हुए मित्र संजीव को नीचे लिखे पत्र को उत्तर-पुस्तिका में रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पुनः लिखिए। सहायतार्थ मञ्जूषा में पद दिये हुए हैं।)
[मञ्जूषा – पुस्तकालये, सजीव, सस्नेह नमस्कारः, शतप्रतिशतम मनोयोगेन, करोमि, क्रीडाक्षेत्र विद्यालयः]

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (i) ……………….
(ii) ………………।
भवतः पत्रं प्राप्तम्। मनः प्रासीदत्। यथा भवता कथितं तथा अहं पत्रोत्तरे स्व विद्यालयस्य वर्णनं (iii) ………..। मम (iv) …………………. अतीव विशालः सुन्दरः च अस्ति। अत्र त्रिसहस्रछात्राः। (v) ……………….. पठन्ति। (vi) ………………. पुस्तकानां पत्र-पत्रिकाणां च सुव्यवस्था अस्ति। (vit) ………………….. वालीबाल-बैडमिण्टन क्रिकेट-रज्जु-आकर्षणादि-खेलानाम् उत्तमः प्रबन्धः अस्ति। बोईस्य परीक्षापरिणामः प्रतिवर्षम् (viii) ………. भवति। मातापित्रोः चरणयोः प्रणामाः।

भवतः अभिन्नमित्रम्
क ख ग

उत्तरम् :

परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय संजीव !

सस्नेह नमस्कारः।
भवतः पत्रं प्राप्तम्। मनः प्रासीदत्। यथा भवता कथितं तथा अहं पत्रोत्तरे स्व-विद्यालयस्य वर्णनं करोमि। मम ‘विद्यालयः अतीव विशालः सुन्दरः च अस्ति। अत्र त्रिसहस्रछात्रा: मनोयोगेन पठन्ति। पुस्तकालये पुस्तकानां पत्र-पत्रिकाणां च सुव्यवस्था अस्ति। क्रीडाक्षेत्रे वालीबाल-बैडमिण्टन-क्रिकेट-रज्जु-आकर्षणादिखेलानाम् उत्तमः प्रबन्धः अस्ति। बोईस्य परीक्षापरिणाम: प्रतिवर्ष शतप्रतिशतं भवति। मातापित्रोः चरणयोः प्रणामाः।

भवतः अभिन्नमित्रम्
क ख ग

हिन्दी-अनुवाद

परीक्षाभवन
दिनांक : 25.03.20_ _

प्रिय संजीव !
सस्नेह नमस्कार।

आपका पत्र प्राप्त हुआ। मन प्रसन्न हुआ। जैसा आपने कहा था, वैसे ही मैं पत्र के उत्तर में अपने विद्यालय का वर्णन कर रहा हूँ। मेरा विद्यालय अत्यन्त विशाल और सुन्दर है। यहाँ तीन हजार छात्र मनोयोग से पढ़ते हैं। पुस्तकालय में पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं की सुव्यवस्था है। क्रीडा के क्षेत्र में वालीबाल, बैडमिण्टन, क्रिकेटे और रस्साकशी आदि खेलों का उत्तम प्रबन्ध है। बोर्ड का परीक्षा परिणाम प्रतिवर्ष शत-प्रतिशत रहता है। माता-पिताजी के चरणों में प्रणाम।

आपका अभिन्न मित्र
क ख ग

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

10. भवती रश्मिः। भवती छात्रावासे पठति। भवत्याः अनुजः सूर्यः नवमकक्षायां संस्कृतं पठितुं न इच्छति। तं प्रेरयितम अधोलिखितं पत्रं मञ्जषापदसहायतया परयित्वा उत्तरपस्तिकायां पनः लिखत।
(आप रश्मि है। आप छात्रावास में पढ़ती है। आपका खेटा भाई सूर्य नवम कक्षा में संस्कृत पढ़ना नहीं चाहता है। उसको प्रेरित करने के लिए निम्नलिखित पत्र मञ्जूषा के पदों की सहायता से भरकर उत्तर-पुस्तिका में पुनः लिखें।)

[मञ्जूषा – संस्कृतभाषायाः, प्रेरणाप्रदम्, भोपालतः, जन्मीलितम्, शुभाशिषः कृत्वा, अनुज, भवतः]

गङ्गाात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
(i) ……………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii)………….. सूर्य !
(iii) ……………।

भवान् अष्टं कक्षायां नवतिप्रतिशतम् अङ्कान् प्राप्य उत्तीर्ण: जातः इति (iv) …………….पत्रात् ज्ञात्वा अहम् अतीव प्रसन्ना अस्मि। शतश: वर्धापनानि। मया इदम् अपि ज्ञातं यत् भवान् नवम्यां कक्षायां संस्कृतविषयं स्वीकर्तुं न इच्छति। प्रिय वत्स ! (v) ………………… ज्ञानं विना अस्माकं जीवनम् एव अपूर्णं भवति। अस्माकं संस्कृतसाहित्यं तु सम्पूर्णविश्वाय (vi) …………… अस्ति। तत्कथं भवान् तस्मात् अपूर्वज्ञानात् वञ्चितः भवितुम् इच्छति। मम तु ज्ञानचक्षुः एव अनेन (vii) …………….. जातम्।

आशासे यद् भवान् नवमकक्षातः एव स्वज्ञानवर्धनं (viii) …………….. अन्यान् अपि प्रेरयिष्यति। मातृपितृचरणयोः मे प्रणामाः निवेद्यन्ताम् इति।

भवतः अग्रजा
रश्मिः

उत्तरम् :

गङ्गांछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
भोपालतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सूर्य !
शुभाशिषः।
भवान् अष्टं कक्षायां नवतिप्रतिशतम् अङ्कान् प्राप्य उत्तीर्णः जातः इति भवतः पत्रात् ज्ञात्वा अहम् अतीव प्रसन्ना अस्मि। शतशः वर्धापनानि। मया इदम् अपि ज्ञातं यत् भवान् नवम्यां कक्षायां संस्कृतविषयं स्वीकर्तुं न इच्छति। प्रिय वत्स! संस्कृतभाषायाः ज्ञानं विना अस्माकं जीवनम् एव अपूर्णं भवति। अस्माकं संस्कृतसाहित्यं तु सम्पूर्णविश्वाय प्रेरणाप्रदम् अस्ति। तत्कथं भवान् तस्मात् अपूर्वज्ञानात् वञ्चितः भवितुम् इच्छति। मम तु ज्ञानचक्षुः एव अनेन उन्मीलितं जातम्। :

आशासे यद् भवान् नवमकक्षातः एव स्वज्ञानवर्धनं कृत्वा अन्यान् अपि प्रेरयिष्यति। मातृपितृचरणयोः मे प्रणामाः निवेद्यन्ताम् इति।

भवतः अग्रजा
रश्मिः

हिन्दी-अनुवाद

गंगा छात्रावास
नवोदय विद्यालय
भोपाल
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय अनुज सूर्य !
शुभाशिष।
आप आठवीं कक्षा में नब्बे प्रतिशत अंक प्राप्त करके उत्तीर्ण हुए, आपके पत्र से यह जानकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। शत-शत बधाईयाँ। मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि आप नवमी कक्षा में संस्कृत विषय स्वीकार करना नहीं चाहते हैं। प्रिय भाई (बच्चे)! संस्कृत ज्ञान के बिना हमारा जीवन अपूर्ण होता है। हमारा संस्कृत साहित्य तो संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा देने वाला है। तो क्यों आप उस अपूर्व ज्ञान से वञ्चित रहना (होना) चाहते हैं। मेरे तो ज्ञानचक्षु ही इसने खोल दिये।

आशा है कि आप नवम कक्षा से ही अपना ज्ञान-वर्धन करके दूसरों को भी प्रेरित करेंगे। माता-पिता के चरणों में मेरा प्रणाम निवेदन करें।

आपकी बड़ी बहिन
रश्मि

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

11. भवान् ‘चन्द्रः’। भवतां विद्यालये संस्कृतस्य सम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत्। स्व-अनुभवान् वर्णयन् भवान् स्वमित्रं सुरेशं प्रति पत्रं लिखति, परन्तु मध्ये कानिचित् पदानि त्यक्तानि। पत्रं पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु। सहायतायै अधः मञ्जूषा दत्ता।

(आप’चन्द्र’ हैं। आपके विद्यालय में संस्कृत-सम्भाषण-शिविर आयोजित किया गया था। अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए आप अपने मित्र सुरेश को पत्र लिखते हैं परन्तु बीच में कुछ पद छूट गए हैं। पत्र को पूरा करके फिर से उत्तर-पुस्तिका में लिखिए। सहायता के लिए नीचे मञ्जूषा दी हुई है।)
[मञ्जूषा – इन्द्रपुरीतः, हसित्वा, अभ्यासम्, सुरेश, सस्नेह नमस्ते, वयम्, अभिनयं, मयि।]

अ 77, शालीमारबागः
(i) …………………………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii) …………….
(iii) ………………
अत्र सर्वगतं कुशलम्। मन्ये भवान् अपि कुशली। गत सप्ताहे अस्माकं विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत्। दशदिनानि वयं संस्कृतेन सम्भाषणस्य (iv) ……………. कृतवन्तः। एकस्याः लघुनाटिकायाः मञ्चनम् अपि (v) …………………. अकुर्म। अहं तु विदूषकस्य (vi) …………………….. कृतवान्। सर्वे जनाः हसित्वा ………………. पौन:पुन्येन करतलध्वनिम् अकुर्वन्। अहं तु इदानीं सर्वदा संस्कृते एव वदामि। मम शिक्षकाः अपि (viii) ………………. स्नेहं कुर्वन्ति। त्वम् अपि प्रयत्नं कुरु। नूनं यशस्वी भविष्यसि। पितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिं निवेदयतु।

भवताम् अभिन्नहृदयः
चन्द्रः

उत्तरम् :

अ 77, शालीमारबागः
इन्द्रपुरीतः
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय सुरेश !
सस्नेह नमस्ते।
अत्र सर्वगतं कुशलम्। मन्ये भवान् अपि कुशली। गत सप्ताहे अस्माकं विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत्। दशदिनानि वयं संस्कृतेन सम्भाषणस्य अभ्यासं कृतवन्तः। एकस्याः लघुनाटिकायाः मञ्चनमपि वयम् अकुर्म। अहं तु विदूषकस्य अभिनयं कृतवान्। सर्वे जनाः हसित्वा हसित्वा पौन:पुन्येन करतलध्वनिम् अकुर्वन्। अहं तु इदानीं सर्वदा संस्कृते एव वदामि। मम शिक्षका: अपि मयि स्नेहं कुर्वन्ति। त्वम् अपि प्रयत्नं कुरु। नूनं यशस्वी भविष्यसि। पितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिं निवेदयतु।

भवताम् अभिन्नहृदयः
चन्द्रः

हिन्दी-अनुवाद

अ 77, शालीमार बाग
इन्द्रपुरी
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रिय सुरेश !
सस्नेह नमस्ते।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। मानता हूँ, आप भी सकुशल होंगे। गत सप्ताह हमारे विद्यालय में संस्कृत-सम्भाषण शिविर आयोजित किया गया था। दस दिन तक हमने संस्कृत सम्भाषण का अभ्यास किया। एक लघु नाटिका का मंचन भी हमने किया। मैंने तो विदूषक का अभिनय किया। सभी लोगों ने हँस-हँसकर बार-बार करतल ध्वनि की। मैं तो अब सदैव संस्कृत में ही बोलता हूँ। मेरे शिक्षक भी मुझसे स्नेह करते हैं। तुम भी प्रयत्न करो। निश्चित यशस्वी होओगे। माता-पिता को मेरा प्रणाम निवेदन करना।

आपका अभिन्न हृदय
चन्द्र

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

12. भवती सरोजिनी। भवत्याः वर्गेण अनाथबालकैः सह प्रतियोगितायां पराजयः अनुभूतः। आत्मानुभवान् वर्णयन्त्या भवत्या मातरं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः लेखनीयम्।
(आप सरोजिनी हैं। आपके वर्ग ने अनाथ बालकों के साथ प्रतियोगिता में पराजय का अनुभव किया। अपने अनुभवों का वर्णन करती हुई आप माताजी के लिए लिखे गए पत्र को मंजूषा के पदों की सहायता से पूरा करके फिर से लिखिए।)
[मञ्जूषा – सर्वे, पराजिताः, मातः, कुशलिनः, आयोजितवान्, सह, चरणस्पर्शः, सर्वगतम्।]

नूतनविद्यापीठम्
कर्णाटकतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पूज्ये (i) ……………
सादरं (ii) ……………
अत्र खलु (iii) …………………… कुशलम्। मन्ये तत्रापि सर्वे (iv) ……………..। मातः ! अस्माकं विद्यालयस्य समीपे एकः अन्यः विद्यालयः अस्ति। यत्र (v) ……………….. दीनाः असहायाः छात्राः एव पठन्ति। अस्माकं प्राचार्यः तस्य विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रैः (vi) …………… गीतान्त्याक्षरी-प्रतियोगिताम् (vii) ………..। जानाति भवती, वयं सर्वे तस्यां (viii) …………… जाताः। तेषां प्रदर्शनं तु अभूतपूर्वम् आसीत्। नूनं दर्पः सर्वं नाशयति, श्रमः सर्वत्र विजयते।
पितृचरणयोः प्रणामाः।

भवत्याः प्रिया सुता
सरोजिनी

उत्तरम् :

नूतनविद्यापीठम्
कर्णाटकतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पूज्ये मातः !
सादरं चरणस्पर्शः।
अत्र खलु सर्वगतं कुशलम्। मन्ये तत्रापि सर्वे कुशलिनः। मातः ! अस्माकं विद्यालयस्य समीपे एक: अन्यः विद्यालयः अस्ति। यत्र सर्वे दीनाः असहायाः छात्राः एव पठन्ति। अस्माकं प्राचार्यः तस्य विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रैः सह प्रतियोगिताम् आयोजितवान्। जानाति भवती, वयं सर्वे तस्यां पराजिता: जाताः। तेषां प्रदर्शनं तु अभूतपूर्वम आसीत्। नूनं दर्पः सर्वं नाशयति, श्रमः सर्वत्र विजयते।
पितृचरणयोः प्रणामाः।

भवत्याः प्रिया सुता
सरोजिनी

हिन्दी-अनुवाद

नूतन विद्यापीठ
कर्णाटक
दिनांक : 25.03.20_ _

पूज्य माताजी !
सादर चरणस्पर्श।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। मानती हूँ वहाँ भी सभी कुशल से हैं। माताजी ! हमारे विद्यालय के समीप एक अन्य विद्यालय है जहाँ सभी दीन-असहाय छात्र ही पढ़ते हैं। हमारे प्राचार्य ने उस विद्यालय की दशमी कक्षा के छात्रों के साथ गीतान्त्याक्षरी की प्रतियोगिता आयोजित की। आप जानती हैं, हम सब उस प्रतियोगिता में पराजित हो गये। उनका प्रदर्शन तो अभूतपूर्व था। निश्चित ही घमण्ड सबका नाश कर देता है, श्रम की सर्वत्र विजय होती है।
पिताजी के चरणों में प्रणाम।

आपकी प्यारी बेटी
सरोजिनी

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

13. भवान् आशुतोषः। भवतः मित्रं शुभम् ऊन-एकोनविंशतिवर्षीयां क्रिकेट प्रतियोगितां विजित्य आगतः। स्वानुभवान् वर्णयन् भवान् स्वपितरं प्रति पत्रं लिखति। तस्मिन् पत्रे विद्यमानानि रिक्तस्थानानि मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखतु।
(आप आशुतोष हैं। आपका मित्र शुभम् उन्नीस वर्ष से कम आयु की क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी होकर आया है। अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए आप अपने पिता को पत्र लिख रहे हैं। उस पत्र में विद्यमान रिक्तस्थानों को मञ्जूषा के पदों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा-पितचरणाः, प्रार्थये, प्रणामाः, परितोषम्, विजयी, समाचार:, शुभम, कुशलिनः।]

प्रतिभाविकासविद्यालयः,
इन्द्रप्रस्थम्
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रातः स्मरणीयाः (i) ……………
सादरं (ii) ……………
अत्र सर्वं कुशलम्। तत्रापि सर्वे (iii) …………….. सन्तु इति श्रीपतिं ‘विष्णुं’ (iv) ……………..। आनन्दप्रदः (v) ………….. अस्ति यत् मम मित्रम् (vi) ……………….. ऊन-एकोनविंशतिवर्षीयां क्रिकेटप्रतियोगितायां (vii) ……………….. भूत्वा प्रतिनिवृत्तः। अतः अंहं महान्तं (viii) …………… अनुभवामि। आशासे यत् स भूयों भूयः बहवीः प्रतियोगिताः विजेष्यते। भवानपि तस्मै वर्धापनपत्रं लिखत्।
मातृचरणयोः साभिवादनं प्रणामाः, राधिकायै शुभाशिषः।

भवतां वशंवदः
आशुतोषः

उत्तरम् :

इन्द्रप्रस्थम्
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रातः स्मरणीयाः पितृचरणाः !
सादरं प्रणामाः।

अत्र सर्वं कुशलम्। तत्रापि सर्वे कुशलिनः सन्तु इति श्रीपति विष्णुं प्रार्थये। आनन्दप्रदः समाचारः अस्ति यत् मम मित्रं शुभम् ऊन एकोनविंशतिवर्षीयां क्रिकेटप्रतियोगितायां विजयी भूत्वा प्रतिनिवृत्तः। अतः अहं महान्तं परितोषम् अनुभवामि। आशासे यत् सः भूयो भूयः बह्वीः प्रतियोगिताः विजेष्यते। भवानपि तस्मै वर्धापनपत्रं लिखतु।
मातचरणयोः साभिवादनं प्रणामाः, राधिकायै शुभाशिषः।

भवतां वशंवदः
आशुतोषः

हिन्दी-अनुवाद

प्रतिभाविकास विद्यालय,
इन्द्रप्रस्थ
दिनांक 25.03.20_ _

प्रातः स्मरणीय पिताजी !
सादर प्रणाम।

यहाँ सब सकुशल हैं। वहाँ भी सब कुशल हों, ऐसी श्रीपति विष्णु से प्रार्थना करता हूँ। (एक) सुखद समाचार है कि मेरा मित्र शुभम् उन्नीस वर्ष से कम उम्र वालों की क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी होकर लौटा है। अतः मैं बहुत सन्तोष का अनुभव कर रहा हूँ। आशा है कि वह बार-बार बहुत-सी प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त करेगा। आप भी उसके लिए बधाई पत्र लिख दें।
माताजी के चरणों में अभिवादन सहित प्रणाम, राधिका के लिए शुभ आशीष।

आपका आज्ञाकारी
आशुतोष

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

14. मित्रं प्रति लिखितं निम्नलिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः पदैः पूरयत।
(मित्र को लिखे गए निम्नलिखित पत्र को मंजूषा में दिये पदों से पूरा कीजिए।)
[मञ्जूषा- वृक्षः, मित्रम्, नमस्ते, अरुणाचलतः, अस्य, एव, वयं, गतसप्ताहे]

(i) ………………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (ii) ……………….. भास्कर !
सस्नेहं (iii) …………..
(iv) …………. अहं मित्रैः सह शैक्षिकभ्रमणाय ‘दार्जिलिङ्ग’ इति पर्वतीयस्थलं गतवान्। (v) ………… स्थानस्य सौन्दर्यम् अद्भुतम् (vi) …………. अस्ति। विशालैः (vii) ………….. सुसज्जिता इयं देवभूमिः एव अस्ति। एवं प्रतीयते यत् (viii) …………….. अन्यस्मिन् एव संसारे वसामः। इमं सुरम्यं प्रदेशं दृष्ट्वा इदम् असत्यम् एव प्रतीयते यत पर्वताः केवलं दरतः एव रम्याः। पर्वताः त सदैव रम्याः एव भवन्ति। अहं त्वया सह अपि एकवारं तत्र पुनः गन्तुम् इच्छामि। आशासे आवां शीघ्रं गमिष्यावः। अधुना विरमामि। सर्वेभ्यो मम नमस्कारः कथनीयः।

भवतः मित्रम्
शैलज

उत्तरम् :

अरुणाचलतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियं मित्रं भास्कर !
सस्नेहं नमस्ते।

गतसप्ताहे अहं मित्रैः सह शैक्षिकभ्रमणाय ‘दार्जिलिङ्ग’ इति पर्वतीयस्थलं गतवान्। अस्य स्थानस्य सौन्दर्यम् अद्भुतम् एव अस्ति। विशालैः वृक्षैः सुसज्जिता इयं देवभूमिः एव अस्ति। एवं प्रतीयते यत् वयम् अन्यस्मिन् एव संसारे वसामः। इमं सुरम्य प्रदेशं दृष्ट्वा इदम् असत्यम् एव प्रतीयते यत् पर्वताः केवलं दूरतः एव रम्याः। पर्वताःतु सदैव रम्याः एव भवन्ति। अहं त्वया सह ‘अपि एकवार तत्र पुनः गन्तुम् इच्छामि। आशासे आवां शीघ्रं गमिष्यावः। अधुना विरमामि। सर्वेभ्यो मम नमस्कारः कथनीयः।

भवतः मित्रम्
शैलजा

हिन्दी-अनुवाद

अरुणाचल
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र भास्कर !
सस्नेह नमस्ते।
गत सप्ताह मैं मित्रों के साथ शैक्षिक भ्रमण के लिए ‘दार्जिलिंग’ पर्वतीय स्थल को गया। इस स्थान का सौन्दर्य अद्भुत ही है। विशाल वृक्षों से सुसज्जित यह देवभूमि ही है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम दूसरे ही संसार में रह रहे हैं। इस सुरम्य प्रदेश को देखकर यह असत्य ही प्रतीत होता है कि पर्वत केवल दूर से ही सुन्दर लगते हैं। पर्वत तो सदैव रम्य ही होते हैं। मैं तुम्हारे साथ भी एक बार वहाँ फिर जाना चाहता हूँ। आशा है हम दोनों शीघ्र ही जाएँगे। अब विराम देता हूँ। सभी को मेरा नमस्कार कहना।

आपका मित्र
शैलज

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

15. मित्रं प्रति परीक्षासफलतायां लिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(मित्र के लिए परीक्षा की सफलता पर लिखे गए पत्र को मंजूषा में दिये गये शब्दों से पूरा करो।)
[मञ्जूषा- परीक्षाभवनात्, सन्तोषः, अङ्कान्, साधुवादान्, कामये, प्राप्तम्, प्रिय मित्र, सप्रेमनमस्कारम्।]

(i) ………………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

(i) …………….!
(iii) ………………..
भवतः परीक्षासफलतापत्रम् अधुनैव (iv) ………………। भवतः उत्तीर्णतां ज्ञात्वा मयि अति (v) ……………. अस्ति। अहोरात्रं प्रयासं विधाय भवान् 95 प्रतिशतम् (vi) ……………….. लब्धवान्। त्वं मम परिवारजनः (vii) ………………. अर्हसि। पत्रसमाप्तौ तुभ्यं पुनः वर्धापनम् (viii) ………… । पितृभ्यां सादरं नमः।
भवतः प्रियमित्रम्
अ ब स
उत्तरम् :

परीक्षाभवनात्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र !
सप्रेमनमस्कारम्।
भवतः परीक्षासफलतापत्रम् अधुनैव प्राप्तम्। भवतः उत्तीर्णतां ज्ञात्वा मयि अति सन्तोषः अस्ति। अहोरात्रं प्रयासं विधाय भवान् 95 प्रतिशतम् अङ्कान् लब्धवान्। त्वं मम परिवारजनस्य साधुवादान् अर्हसि। पत्रसमाप्तौ तुभ्यं पुनः वर्धापनं कामये। पितृभ्यां सादरं नमः।

भवतः प्रियमित्रम्
अ ब स

हिन्दी-अनुवाद

परीक्षाभवन
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र !
सप्रेम नमस्कार।

आपका परीक्षाफल पत्र अभी प्राप्त हुआ। आपकी उत्तीर्णता को जानकर मुझे अत्यंत सन्तोष हुआ है। दिन-रात प्रयास करके आपने 95 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। तुम मेरे परिवारीजनों के साधुवादों के योग्य हो। पत्र-समाप्ति पर तुम्हें फिर बधाई की कामना करता हूँ। माता-पिता जी को सादर नमस्कार।

आपका प्रिय मित्र
अ ब स

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

16. भवतां नाम सौरभः। भवतां विद्यालये वार्षिकोत्सवे संस्कृतनाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। तदर्थं स्वमित्रं गौरवं प्रति लिखितं निमन्त्रणपत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(आपका नाम सौरभ है। आपके विद्यालय में वार्षिकोत्सव में संस्कृत नाटक का मञ्चन होगा। इसके लिए अपने मित्र गौरव को लिखे गये निमन्त्रण पत्र को मंजूषा के पदों की सहायता से भरकर पुनः उत्तरपुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – द्रष्टुम्, दिल्लीतः, कुशली, मञ्चनम्, गौरव !, दीपावल्याः, करिष्यामि, उत्साहवर्धनम्]

सर्वोदयविद्यालयः
(i) …………..।
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र (ii) ………………….
दीपावलिपर्वणः शुभाशंसाः। अत्र सर्वगतं कुशलम्। भवान् अपि (iii) ……………….. इति मन्ये। अस्माकं विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः (iv) ………… पर्वणः शुभावसरे भविष्यति। तत्र अस्माकं पुस्तकस्य ‘रमणीया हि सृष्टिः एषा’ इति नाटकस्य (v) ……………… भविष्यति। अहं तस्मिन् नाटके काकस्य अभिनयं (vi) ……। भवान् अवश्यमेव तत् (vii) ……………….. आगच्छतु। मम अपि (viii) … भविष्यति। सर्वेभ्यः अग्रजेभ्यः मम प्रणामाञ्जलिः निवेद्यताम् इति।

भवदीयः वयस्यः
सौरभः

उत्तरम् :

सर्वोदयविद्यालयः
दिल्लीतः
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र गौरव !
दीपावलिपर्वणः शुभाशंसाः। अत्र सर्वगतं कुशलम्। भवान् अपि कुशली इति मन्ये। अस्माकं विद्यालयस्य सवः दीपावल्याः पर्वणः शुभावसरे भविष्यति। तत्र अस्माकं पुस्तकस्य ‘रमणीया हि सृष्टिः एषा’ इति नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। अहं तस्मिन् नाटके काकस्य अभिनयं करिष्यामि। भवान् अवश्यमेव तत् द्रष्टुम् आगच्छतु। मम अपि उत्साहवर्धनं भविष्यति। सर्वेभ्यः अग्रजेभ्यः मम प्रणामाञ्जलिः निवेद्यताम् इति।

भवदीयः वयस्यः
सौरभः

हिन्दी-अनुवाद

सर्वोदय विद्यालय
दिल्ली
दिनांक 25.08.20_ _

प्रिय मित्र गौरव !
दीपावली पर्व की शुभकामनाएँ। यहाँ सब प्रकार कुशल है। आप भी सकुशल होंगे, ऐसा मानता हूँ। हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर होगा। वहाँ हमारी पुस्तक के यह सृष्टि रमणीय है’ इस नाटक का मंचन होगा। मैं इस नाटक में कौए का अभिनय करूँगा। आप अवश्य ही उसे देखने आएँ। मेरा भी उत्साहवर्धन होगा। सभी बड़ों के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करें।

आपका मित्र
सौरभ

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

17. भवती सुनीता। भवती पुस्तकालयात् एकं पुस्तकं ‘चुटुकुल्याशतकम्’ प्राप्य पठितवती। तस्य पुस्तकस्य छायाप्रति स्वभगिन्याः स्मितायाः सकाशं प्रेषयति। तदर्थं लिखितं पत्रं मञ्जूषादत्तपदैः पूरयित्वा पुनः लिखतु।
(आप सुनीता हैं। आपने पुस्तकालय से एक पुस्तक ‘चुटुकुल्याशतकम्’ लेकर पढ़ी। उस पुस्तक की छायाप्रति (फोटोकॉपी) अपनी बहन स्मिता के पास भेज रही हैं। इस आशय से लिखे गये पत्र को मंजूषा में दिये गये पदों से भरकर पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – वर्धताम्, कुशलिनी, स्मिते, संस्कृतपुस्तकम्, भवत्याः, हसित्वा, लिखतु, कानपुरतः]

ए 10, विष्णुनगरम्
(i) ……………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये (ii) ……………..
सस्नेहं नमः।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति। मन्ये भवती अपि (iii) ……………। भवती लिखितवती यत् भवती संस्कृत भाषायां लिखितं सरलपुस्तकं पठितुम् इच्छति। मया पुस्तकालयात् ‘चुटुकुल्याशतकम्’ (iv) …………….. प्राप्य पठितम्। हसित्वा (v) …………… मम उदरे तु पीडा जाता। तस्य पुस्तकस्य छायाप्रतिं कारयित्वा अहं (vi) ………………. सकाशं प्रेषयामि। पठन-पाठने भवत्याः रुचिः सर्वदा (vii) ……………. पठतु तावत्। कथम् अस्ति इति (viii) ……………….। स्वपितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिः निवेदनीया।

भवदीया स्नेहसिक्ता भगिनी,
सुनीता

उत्तरम् :

ए 10, विष्णुपुरम्
कानपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये स्मिते !
सस्नेहं नमः।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति। मन्ये भवती अपि कुशलिनी। भवती लिखितवती यत् भवती संस्कृतभाषायां लिखितं सरलपुस्तकं पठितुम् इच्छति। मया पुस्तकालयात् ‘चुटुकुल्याशतकम्’ संस्कृतपुस्तकं प्राप्य पठितम्। हसित्वा-हसित्वा मम उदरे तु पीडा जाता। तस्य पुस्तकस्य छायाप्रति कारयित्वा अहं भवत्याः सकाशं प्रेषयामि। पठन-पाठने भवत्याः रुचिः सर्वदा वर्धताम्। पठतु तावत्। कथम् अस्ति इति लिखतु। स्वपितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिः निवेदनीया।

भवदीया स्नेहसिक्ता भगिनी,
सुनीता

हिन्दी-अनुवाद

ए 10, विष्णुपुर
कानपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिये स्मिते !
सस्नेह नमस्ते।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। मानती हूँ, आप भी सकुशल हैं। आपने लिखा है कि आप संस्कृत भाषा में लिखी हुई सरल पुस्तक पढ़ना चाहती हैं। मैंने पुस्तकालय से ‘चुटुकुल्याशतकम्’ संस्कृत-पुस्तक लेकर पढ़ी। हँसते-हँसते मेरे तो पेट में दर्द होने लगा। उस पुस्तक की छायाप्रति मैं आपके पास भेज रही हूँ। पठन-पाठन में आपकी रुचि हमेशा बढ़े। तो पढ़ो। कैसी है ? यह लिखना। अपने माता-पिताजी को मेरी प्रणामाञ्जलि कहना।

आपकी स्नेहमयी बहन,
सुनीता

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

18. भवान् सोमेशः। भवतः ज्येष्ठा भगिनी रमा जयपुरे छात्रावासे निवसति। रक्षाबन्धनपर्वणि भवतां विद्यालये संस्कृतदिवसस्य भव्यम् आयोजनम् अस्ति। तदर्थं तां निमन्त्रयितुं लिखिते पत्रे मञ्जूषापदसाहाय्येन रिक्तस्थानपूर्ति कृत्वा पत्रं पुनः लिखतु।
(आप सोमेश हैं। आपकी बड़ी बहन रमा जयपुर में छात्रावास में रहती है। रक्षाबन्धन पर्व पर आपके विद्यालय में संस्कृत दिवस का भव्य आयोजन है। इस प्रयोजन से उसे निमन्त्रित करने के लिए लिखे गये पत्र में मंजूषा के पदों की सहायता से रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पत्र को पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – चारुदत्तमिति, चारुदत्तस्य, भगिनि !, तत्रास्तु, अभिवादनम्, प्रतिवर्षम, जानाति, प्रसन्नचित्ता।]

115, शालीमारबागः
दिल्लीतः
दिनाङ्कः 25.07.20_ _

प्रिये (i) …………….
सस्नेहं (ii) ……………..
अत्र कुशलम् (iii) ……………….। मन्ये भवती सर्वथा स्वस्था (iv) ………………. च भविष्यति। भवती (v) ………………….. एव यत् श्रावणमासस्य पौर्णमास्यां रक्षाबन्धनपर्वणि अस्माकं विद्यालये (vi) ……………………… संस्कृतदिवसस्य आयोजनं भवति। अस्मिन् वर्षे (vii) ……………… नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। अहं तत्र (viii) …………….. अभिनयं करिष्यामि। भवत्याः आगमनेन ‘रक्षाबन्धनम्’ इति पर्वणः अपि आयोजनं भविष्यति। विद्यालये भवत्याः उपस्थित्या मम उत्साहवर्धनम् अपि भविष्यति।

भवत्याः स्नेहपात्रम्
सोमेशः

उत्तरम् :

115, शालीमारबागः
दिल्लीतः
दिनाङ्कः 25.07.20_ _

प्रिये भगिनि !
सस्नेहम् अभिवादनम्।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। मन्ये भवती सर्वथा स्वस्था प्रसन्नचित्ता च भविष्यति। भवती जानाति एव यत् श्रावणमासस्य पौर्णमास्यां रक्षाबन्धनपर्वणि अस्माकं विद्यालये प्रतिवर्ष संस्कृतदिवसस्य आयोजनं भवति। अस्मिन् वर्षे ‘चारुदत्तमिति’. नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति। अहं तत्र चारुदत्तस्य अभिनयं करिष्यामि। भवत्याः आगमनेन ‘रक्षाबन्धनम्’ इति पर्वणः अपि आयोजनं भविष्यति। विद्यालये भवत्याः उपस्थित्या मम उत्साहवर्धनम् अपि भविष्यति।

भवत्याः स्नेहपात्रम्
सोमेशः

हिन्दी-अनुवाद

115, शालीमार बाग
दिल्ली
दिनांक 25.07.20_ _

प्रिय बहन !
सस्नेह अभिवादन।
यहाँ कुशल है, वहाँ (भी) होंगे। मानता हूँ (कि) आप पूर्णतः स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगी। आप जानती ही हैं कि श्रावण मास पूर्णिमा पर रक्षाबन्धन त्योहार पर हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष संस्कृत दिवस का आयोजन होता है। इस वर्ष ‘चारुदत्तम्’ नाटक का मंचन होगा। मैं वहाँ चारुदत्त का अभिनय करूँगा। आपके आगमन से रक्षाबन्धन त्योहार का भी आयोजन हो जाएगा। विद्यालय में आपकी उपस्थिति से मेरा उत्साहवर्धन भी होगा।

आपका स्नेह पात्र
सोमेश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

19. भवान् नीरजः। भवतः ग्रामे स्वास्थ्यकेन्द्रस्योद्घाटनं भवति। भवतः मनसः आह्लादस्य वर्णनं कुर्वन् भवान् मित्रं सुनन्दं प्रति पत्रं लिखति। तस्मिन् पत्रे मञ्जूषायाः रिक्तस्थानानि पूरयन् पत्रं पूर्णं कृत्वा पुनः लिखतु।
(आप नीरज हैं। आपके गाँव में स्वास्थ्य केन्द्र का उद्घाटन हो रहा है। आपके मन की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए आप मित्र सुनन्द को पत्र लिखते हैं। उस पत्र में मञ्जूषा से रिक्त-स्थानों को भरते हुए पत्र को पूरा करके फिर लिखिए।)
[मञ्जूषा – चिकित्सायै, सुनन्द !, पञ्चविंशत्याम्, प्रसन्नाः, ग्रामीणाः, नमः, ग्रामे, आर्तवानाम्।]

गुरुग्रामः
पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र (i) …………..
सस्नेहं (ii) …………….
भवतः पत्रं प्राप्तम्। समाचाराः अवगताः। हर्षस्य विषयोऽयं यद् अस्माकं (iii) …………. मण्डलाधिकारिभिः स्वास्थ्यकेन्द्रस्योद्घाटनं (iv) ………………….. रिकायां भविष्यति। सर्वे (v) ………………. समाचारम् एतं ज्ञात्वा ……….. सजाताः। अनेन स्वास्थ्यकेन्द्रेण (vii) ……………… रोगाणाम् उपचारो ग्रामे एव भविष्यति। ग्रामीणाः अधुना उपनगरं (viii) ……………. न गमिष्यन्ति। एतेन न केवलं ग्रामीणानां धनस्य अपव्ययो न भविष्यति, परं तेषां समयस्य नाशोऽपि न भविष्यति। क्षणेन रोगेषु नष्टेषु ग्रामे वातावरणं सुखदं भविष्यति।
भाव जनाना ज्ञातुं भवान् अवश्यं मम ग्रामम् आगच्छतु। मातृचरणयोः प्रणामः स्निग्धायै च शुभाशिषः।

भवतां सुहृद्
नीरजः

उत्तरम् :

गुरुग्रामः
पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय मित्र सुनन्द !
सस्नेहं नमः।
भवत: पत्रं प्राप्तम्। समाचारा: अवगताः। हर्षस्य विषयोऽयं यद् अस्माकं ग्रामे मण्डलाधिकारिभिः स्वास्थ्यकेन्द्रोद्घाटनं पञ्चविंशत्यां तारिकायां भविष्यति। सर्वे ग्रामीणाः समाचारम् एतं ज्ञात्वा प्रसन्नाः सञ्जाताः। अनेन स्वास्थ्यकेन्द्रेण आर्तवानां रोगाणाम् उपचारो ग्रामे एव भविष्यति। ग्रामीणाः अधुना उपनगरं चिकित्सायै न गमिष्यन्ति। एतेन न केवलं ग्रामीणानां धनस्य अपव्ययो न भविष्यति, परं तेषां समयस्य नाशोऽपि न भविष्यति। क्षणेन रोगेषु नष्टेषु ग्रामे वातावरणं सुखदं भविष्यति।
भावं जनानां ज्ञातुं भवान् अवश्यं मम ग्रामम् आगच्छतु। मातृचरणयोः प्रणामाः स्निग्धायै च शुभाशिषः।

भवतां सुहृद्
नीरजः

हिन्दी-अनुवाद

गुरुग्राम
पाटलिपुत्र
दिनांक: 25.03.20_ _

प्रियमित्र सुनन्द !
सप्रेम नमस्कार। आपका पत्र प्राप्त हुआ। समाचार ज्ञात हुए। हर्ष का विषय यह है कि हमारे गाँव में मंडल अधिकारियों द्वारा स्वास्थ्य केन्द्र का उद्घाटन पच्चीस तारीख को होगा। सभी ग्रामीण इस समाचार को जानकर प्रसन्न हो गए हैं। इस स्वास्थ्य केन्द्र से रोगियों के रोगों का इलाज गाँव में ही हो जाएगा। ग्रामीण अब चिकित्सा के लिए कस्बे को नहीं जाएँगे। इससे न केवल ग्रामीणों के धन का अपव्यय ही नहीं होगा, अपितु उनका समय भी नष्ट नहीं होगा। क्षणभर में रोगों के नष्ट होने पर गाँव में वातावरण सुखद होगा।

लोगों की भावना को जानने के लिए आप अवश्य गाँव आएँ। माताजी के चरणों में प्रणाम और स्निग्धा के लिए शुभ आशीष।

आपका मित्र
नीरज

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

20. भवान् कमलेशः। बैंगलुरुनगरे निवसति। भवतां मित्रं सोमेशः दिल्लीनगरे वसति। सः संस्कृतभाषण प्रतियोगितायां प्रथम स्थान प्राप्तवान्। तं प्रति लिखितं वर्धापनपत्रं पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु। सहायतार्थं मञ्जूषायां पदानि दत्तानि। (आप कमलेश हैं। बैंगलुरु नगर में रहते हैं। आपका मित्र सोमेश दिल्ली नगर में रहता है। उसने संस्कृत भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। उसको लिखे गये बधाई पत्र को भरकर दोबारा उत्तरपुस्तिका में लिखिए। सहायतार्थ मंजूषा में शब्द दिए हुए हैं।)
[मञ्जूषा – सोमेश, आनन्दितम्, कोटिशः, प्रशंसनीयः, भवताम्, बैंगलुरुः, प्राप्तवान्, साफल्यम्।]

10, गिरिनगरम्
(i) ……..
कर्णाटकप्रदेशतः।
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र (ii) …………….
नमोनमः।
(iii) ………… पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा मम मनः (iv) ……….. जातम्। भव [ संस्कृतभाषण प्रतियोगितायां प्रथम स्थानं (v) …………….। भवतां संस्कृतानुरागः (vi) ………….। अस्मत्पक्षतः (vii) ………………. वर्धापनानि। भगवान् इतः अपि अधिकं (viii) ………… ददातु। पितृचरणयोः प्रणामः निवेद्यते।

भवतां प्रियसुहृद्
कमलेशः

सेवायाम,
श्रीमान् सोमेशः
120, शक्तिनगरम्, दिल्ली
उत्तरम् :

10, गिरिनगरम्
बैंगलुरुः
कर्णाटकप्रदेशतः।
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियमित्र सोमेश !
नमो नमः।
भवतां पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा मम मनः आनन्दितं जातम्। भवान् संस्कृतभाषण-प्रतियोगितायां प्रथमस्थानं प्राप्तवान्। भवतां संस्कृतानुरागः प्रशंसनीयः। अस्मत्पक्षतः कोटिशः वर्धापनानि। भगवान् इतः अपि अधिकं साफल्यं ददातु। पितृचरणयोः प्रणाम: निवेद्यते।

भवतां प्रिय सुहृत्
कमलेशः

सेवायाम्,
श्रीमान् सोमेशः
120, शक्तिनगरं, दिल्ली

हिन्दी-अनुवाद

10, गिरिनगरम्
बैंगलुरु
कर्नाटक प्रदेश
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय मित्र सोमेश !
नमोनमः।
आपका पत्र प्राप्त हुआ। पत्र पढ़कर मेरा मन आनन्दित हो गया। आपने संस्कृत-भाषण-प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आपका संस्कृत-अनुराग प्रशंसनीय है। हमारी ओर से कोटि-कोटि बधाईयाँ। भगवान् आपको इससे भी अधिक सफलता प्रदान करें। पिताजी के चरणों में प्रणाम निवेदन करें।
सेवा में,

आपका प्रिय मित्र
कमलेश

श्रीमान् सोमेश
120, शक्ति नगर, दिल्ली

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

21. भवान् सुरेशः, छात्रावासे वसति। शारदीये अवकाशे भवतां विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरं प्रचलिष्यति, अतः भवान् गृहं न गमिष्यति इति सूचयन् पितरं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां पुनः लिखत। (आप सुरेश हैं और छात्रावास में रह रहे हैं। शीतकालीन अवकाश में आपके विद्यालय में संस्कृत सम्भाषण शिविर चलेगा, अतः आप घर नहीं जाएँगे। ऐसा सूचित करते हुए पिता के प्रति लिखे हुए पत्र को मंजूषा के शब्दों द्वारा पूर्ण करके उत्तर-पुस्तिका में पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – सम्यक्, जयपुरतः, कुशलिनः, मातृचरणयोः सुरेशः, सादरं वन्दनानि, समाप्ता, संस्कृतसम्म]

नर्मदाछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
(i) …………………
दिनाङ्कः 25.11.20_ _

परमपूज्यपितृमहाभागाः !
(ii) ……………….
अत्र कुशलं तत्रास्तु। तत्रापि भवन्तः सर्वे (iii) ……….. इति मन्ये। अत्र मम पठनं (iv) ………. प्रचलति। अर्धवार्षिकी परीक्षा (v) ……………….। मम विद्यालये शारदीयेऽवकाशे (vi) ………… प्रचलिष्यति। अतः अहम् अवकाशदिनेषु गृहम् आगन्तुं न शक्नोमि। भवतां दर्शनेन अहं वञ्चितः भवामि इति खेदः, तथापि शिविरेण मम ज्ञानवर्धनं भविष्यति इति नास्ति सन्देहः। (vii) ………… अपि मम वन्दनानि। स्वकीयं क्षेमसमाचारं सूचयन्तु इति।।

भवदीयः पुत्रः
(viii) …………..

उत्तरम् :

नर्मदाछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.11.20_ _

परमपूज्यपितृमहाभागाः!
सादरं वन्दनानि।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। तत्रापि भवन्तः सर्वे कुशलिनः इति मन्ये। अत्र मम पठनं सम्यक् प्रचलति। अर्धवार्षिकी परीक्षा समाप्ता। मम विद्यालये शारदीयेऽवकाशे संस्कृतसम्भाषणशिविरं प्रचलिष्यति। अतः अहम् अवकाशदिनेषु गृहम् आगन्तुं न शक्नोमि। भवतां दर्शनेन अहं वञ्चितः भवामि इति खेदः, तथापि शिविरेण मम ज्ञानवर्धनं भविष्यति इति नास्ति सन्देहः। मातृचरणयोः अपि मम वन्दनानि। स्वकीयं क्षेमसमाचारं सूचयन्तु इति।

भवदीयः पुत्रः
सुरेशः

हिन्दी-अनुवाद

नर्मदा छात्रावास,
नवोदय विद्यालय,
जयपुर
दिनाङ्कः 25.11.20_ _

परमपूज्य पिताजी !
सादर वन्दना। यहाँ सब कुशल हैं, वहाँ भी हों। वहाँ पर भी आप सब सकुशल हैं, ऐसा मानता हूँ। यहाँ मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। अर्द्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हुई। मेरे विद्यालय में शीतकालीन अवकाश में संस्कृत सम्भाषण शिविर चलेगा। अतः मैं अवकाश के दिनों में घर नहीं आ सकता हूँ। आपके दर्शनों से वंचित रहूँगा, यही खेद है, फिर भी शिविर से मेरा ज्ञानवर्धन होगा, इसमें सन्देह नहीं। माँ के चरणों में भी मेरा प्रणाम। अपने कुशल समाचार सूचित करें।

आपका पुत्र
सुरेश

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

22. भवती श्यामला। भवती पितरं प्रति एक पत्रं लिखति। मञ्जूषायाः उचितानि पदानि चित्वा पत्रं पूरयतु। (आप श्यामला हैं। आप पिताजी को एक पत्र लिखती हैं। मंजूषा से उचित पद चुनकर पत्र पूर्ण कीजिए।)
[मञ्जूषा – अभवत्, श्रीनगरतः, स्वास्थ्यविषये, प्रियपुत्री, आगत्य, वन्दनानि, मातृचरणयों:, कुशलिनी]

(i) ………………..
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पितृश्रीचरणसन्निधौ,
सादरं (ii) ………………।

भवतः पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा बहु आनन्दः (iii) ……………….। अहम् अत्र (iv) ……………..। भवतः मातुः च (v) ………………….. अधिकं चिन्तयामि। अत्र मम प्रशिक्षणं सम्यक् प्रचलति। भवता दत्तं पुस्तकम् आगमनसमये मार्गे एव मया पठितम्। प्रशिक्षणस्य पश्चात् अहं शैक्षिकप्रवासाय गमिष्यामि। ततः (vi) …………. गृहम् आगमिष्यामि। एतं विषयं पूज्यमातरम् अपि सूचयतु। (vii) ……….. अपि मम वन्दनानि अनुजाय च शुभाशिषः।

भवदीया (viii) …………….
श्यामला

उत्तरम् :

श्रीनगरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

पितृश्रीचरणसन्निधौ,
सादरं वन्दनानि।
भवतः पत्रं प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा बहु आनन्दः अभवत्। अहम् अत्र कुशलिनी। भवतः मातुः च स्वास्थ्यविषये अधिक चिन्तयामि। अत्र मम प्रशिक्षणं सम्यक् प्रचलति। भवता दत्तं पुस्तकम् आगमनसमये मार्गे एव मया पठितम्। प्रशिक्षणस्य पश्चात् अहं शैक्षिकप्रवासाय गमिष्यामि। ततः आगत्य गृहम् आगमिष्यामि। एतं विषयं पूज्यमातरम् अपि सूचयतु। मातृचरणयोः अपि मम वन्दनानि, अनुजाय च शुभाशिषः।

भवदीया प्रियपुत्री
श्यामला

हिन्दी-अनुवाद

श्रीनगर
दिनांक 25.03.20_ _

पिताजी के श्रीचरणों में,
सादर वन्दना।
आपका पत्र प्राप्त हुआ। पत्र पढ़कर बहुत आनन्द हुआ। मैं यहाँ पर सकुशल हूँ। आप और माताजी के स्वास्थ्य के विषय में चिन्तित हूँ। यहाँ मेरा प्रशिक्षण ठीक चल रहा है। आपके द्वारा दी गयी पुस्तक आगमन के समय रास्ते में ही मैंने पढ़ ली थी। प्रशिक्षण के पश्चात् मैं शैक्षिक प्रवास पर जाऊँगी। वहाँ से आकर घर आऊँगी। इस विषय में पूज्य माताजी को भी सूचित कर दें। माताजी के चरणों में भी मेरी वन्दना। अनुज के लिए शुभ आशीर्वाद।

आपकी प्रिय पुत्री
श्यामला

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

23. भवती सुशीला। भवती छात्रावासे पठति। और्णवस्त्राणि पुस्तकानि च क्रेतुं धनप्रेषणार्थं पितरं प्रति अध: अपूर्णपत्रं लिखितम्। मञ्जूषायाः सहायतया उचितशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयित्वा पुनः पत्रम् उत्तरपुस्तिकायां लिखतु। (आप सुशीला हैं। आप छात्रावास में पढ़ती हैं। ऊनी वस्त्र और पुस्तकें खरीदने के लिए धन भेजने के लिए पिता को नीचे अधूरा पत्र लिखा है। मंजूषा की सहायता से उचित शब्दों से रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पुनः पत्र उत्तरपुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – प्रणामाः, धनादेशद्वारा, छात्रावासतः, चिराद्, पूज्यपितृचरणेषु, और्णवस्त्राणि, सुशीला, स्नेहवचनानि।]

(i) ……………….
दिनाङ्कः 25.12.20_ _

(ii) …………………..
सादरं (iii) ………………
अत्र अहं स्वस्था अस्मि। (iv) ……………… भवतां कृपापत्रं न आयातम्। चिन्तिता अस्मि। अत्र मम सकाशे धनाभावः वर्तते। शीत: वर्धते। (v) ……….. ……………. क्रेतव्यानि। पुस्तकानि चापि क्रेतव्यानि सन्ति। अतः सहस्ररूप्यकाणि। (vi) ……………… शीघ्रमेव प्रेषणीयानि। मातृचरणेषु प्रणती: समर्पये। रमायै अतुलाय च (vii) …………….. दद्यात् भवान्।

भवतः पुत्री
(viii) ……………..

उत्तरम् :

छात्रावासतः
दिनाङ्कः 25.12.20_ _

पूज्य पितृचरणेषु
सादर प्रणामाः।
अत्र अहं स्वस्था अस्मि। चिराद् भवतां कृपापत्रं न आयातम्। चिन्तिता अस्मि। अत्र मम सकाशे धनाभावः वर्तते। शीत: वर्धते। और्णवस्त्राणि क्रेतव्यानि। पुस्तकानि चापि क्रेतव्यानि सन्ति। अतः सहस्ररूप्यकाणि धनादेशद्वारा शीघ्रमेव प्रेषणीयानि। मातृचरणेषु प्रणती: समर्पये। रमायै अतुलाय च स्नेहवचनानि दद्यात् भवान्।

भवतः पुत्री
सुशीला

हिन्दी-अनुवाद

छात्रावास
दिनांक 25.12.20_ _

पूज्य पिताजी के चरणों में,
सादर प्रणाम !
यहाँ मैं स्वस्थ हूँ। बहुत दिनों से आपका कृपापत्र नहीं आया। चिन्तित हूँ। यहाँ मेरे पास धन का अभाव है। सर्दी बढ़ रही है। ऊनी कपड़े खरीदने हैं और पुस्तकें भी खरीदनी हैं। अतः एक हजार रुपये मनीऑर्डर (धनादेश) द्वारा शीघ्र ही भेज दें। माताजी को प्रणाम समर्पित करती हूँ। रमा और अतुल के लिए स्नेहवचन कहें।

आपकी पुत्री
सुशीला

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

24. विनीतः नागपुरनगरे वसति। तस्य मित्रं प्रगीतः कर्णपुरनगरे वसति। विनीतेन गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः गृहीतः। सः स्वानुभवान् स्वमित्रं प्रगीतं प्रति पत्रे लिखति। भवान् मञ्जूषातः पदानि चित्वा पत्रं पूरयतु। (विनीत नागपुर नगर में रहता है। उसका मित्र प्रगीत कानपुर नगर में रहता है। विनीत ने गणतन्त्र दिवस की शोभायात्रा में भाग लिया। वह अपने अनुभवों को अपने मित्र प्रगीत को पत्र में लिखता है। आप मञ्जूषा से पदों को चुनकर पत्र पूरा करें।)
[मञ्जूषा – गृहीतः, नमस्ते, मम, वाद्यवृन्दम्, राजमार्गम्, लोकनृत्यानि, गणतन्त्रदिवससमारोहस्य, प्रमुखसञ्चालकः]

नागपुरतः
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र प्रगीत !
(i) ………………….
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अहं (ii) ……………… सज्जायां व्यस्तः आसम्। अतः विलम्बेन तव पत्रस्य उत्तरं ददामि। अस्मिन् वर्षे मयापि गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः (iii) ………………। अस्माकं विद्यालयस्य (iv) ………….. स्वकलायाः प्रदर्शनम् अकरोत्। अहं नृत्यस्य (v) ……….. आसम्। छात्राणां राष्ट्रगानस्य ओजोयुक्तध्वनिः (vi) ……………….. गुञ्जितम् अकरोत्। स्वराष्ट्रस्य सैन्यबलानां पराक्रम- प्रदर्शनानि विचित्रवर्णानि परिदृश्यानि (vii) ………………. च दृष्ट्वा अहं गौरवान्वितः अस्मि। (viii) ……… बाल्यावस्थायाः स्वप्नः तत्र पूर्णः जातः। पितरौ वन्दनीयौ।

भवतः सुहृद्
विनीतः

उत्तरम् :

नागपुरतः
दिनाङ्कः 25.08.20_ _

प्रियमित्र प्रगीत !
नमस्ते
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अहं गणतन्त्रदिवससमारोहस्य सज्जायां व्यस्तः आसम्। अतः विलम्बेन तव पत्रस्य उत्तरं ददामि। अस्मिन् वर्षे मयापि गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः गृहीतः।
अस्माकं विद्यालयस्य वाद्यवृन्दम् स्वकलायाः प्रदर्शनम् अकरोत्। अहं नृत्यस्य प्रमुखसञ्चालक: आसम्। छात्राणां राष्ट्रगानस्य ओजोयुक्तध्वनिः राजमार्गं गुञ्जितम् अकरोत्। स्वराष्ट्रस्य सैन्यबलानां पराक्रमप्रदर्शनानि, विचित्रवर्णानि, परिदृश्यानि लोकनृत्यानि च दृष्ट्वा अहं गौरवान्वितः अस्मि। मम बाल्यावस्थायाः स्वप्नः तत्र पूर्णः जातः। पितरौ वन्दनीयौ।

भवतः सुहृद्
विनीतः

हिन्दी-अनुवाद

नागपुर
दिनांक 25.08.20_ _

प्रियमित्र प्रगीत !
नमस्ते।

यहाँ कुशल है, वहाँ भी हो। मैं गणतन्त्र दिवस समारोह की तैयारी में व्यस्त था। अतः तुम्हारे पत्र का उत्तर विलम्ब से दे रहा हूँ। इस वर्ष मैंने भी गणतन्त्र दिवस शोभायात्रा में भाग लिया।

हमारे विद्यालय के वाद्यवृन्द ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। मैं नृत्य का प्रमुख सञ्चालक था। छात्रों के राष्ट्रगान की ओजस्वी ध्वनि ने राजमार्ग को गुंजित कर दिया। अपने राष्ट्र की सेना के पराक्रम का प्रदर्शन, विचित्र वर्गों के परिदृश्यों तथा लोकनृत्यों को देखकर मैं गौरवान्वित हूँ। मेरे बचपन का स्वप्न वहाँ पूरा हो गया। माता-पिता वन्दनीय हैं।

आपका सुहृद्
विनीत

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

25. भवती स्मृतिः। अमृतसरे निवसति। स्वस्य जन्म-दिवसे आमन्त्रणाय सखीम् अनितां प्रति अधोलिखितम् अपूर्णपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु।
(आप स्मृति हैं। अमृतसर में रहती हैं। अपने जन्मदिन पर बुलाने के लिए सहेली अनिता को लिखे गये निम्न अधूरे पत्र को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके फिर से उत्तर पुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – दिवसे, अवसरे, सखी, आगन्तव्यम्, हर्षस्य, कुशलं, जन्मदिवसः, उत्साहवर्धनम्।]

अमृतसरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिय (i) ………………. अनिते !
सप्रेम नमः।
अत्र (ii) ………… तत्रास्तु। अपरं च अयम् अतीव (iii) ……………. विषयः यत् विगतवर्षाणि इव अस्मिन् अपि वर्षे मम (iv) …………….. ऐप्रिलमासस्य अष्टमे (v) ……………. मन्यते। अस्मिन् (vi) ……………. भवत्या अपि अवश्यमेव (vii) ……………। तवागमनेन मे (viii) …………. भविष्यति। भवत्याः पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः अनुजाय स्नेहश्च।

भवत्याः सखी
स्मृतिः

उत्तरम् :

अमृतसरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियसखि अनिते !
सप्रेम नमः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अपरं च अयम् अतीव हर्षस्य विषयः यत् विगतवर्षाणि इव अस्मिन् अपि वर्षे मम जन्मदिवसः ऐप्रिलमासस्य अष्टमे दिवसे मन्यते। अस्मिन् अवसरे भवत्या अपि अवश्यमेव आगन्तव्यम्। तवागमनेन मे उत्साहवर्धनं भविष्यति। भवत्याः पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः अनुजाय स्नेहश्च।

भवत्याः सखी
स्मृतिः

हिन्दी-अनुवाद

अमृतसर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय सखी अनिता !
सप्रेम नमस्कार !
यहाँ कुशल है (आशा है) वहाँ भी (कुशल होंगे)। और दूसरा यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी मेरा जन्म दिवस आठ अप्रैल को मनाया जा रहा है। इस अवसर पर आपको भी अवश्य ही आना. है। आपके आगमन से मेरे उत्साह में वृद्धि होगी। आपके माता-पिता जी के चरणों में प्रणाम और अनुज के लिए स्नेह।।

आपकी सखी
स्मृति

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

26. भवती कविता। जयपुरे निवसति कैलाशपुर्याम्। स्वस्य दिनचर्याविषयकं स्वसखीं स्मितां प्रति अधोलिखितमपूर्णपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु।
(आप कविता हैं। जयपुर में कैलाशपुरी में रहती हैं। अपनी सखी स्मिता को अपनी दिनचर्याविषयक निम्नलिखित अधूरे पत्र को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – दिनचर्याम्, चिरात्, पञ्चवादने, हर्षम्, सार्धषड्वादनपर्यन्तं, दशवादने, निवृत्य, भुक्त्वा

कैलाशपुरी
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियसखि स्मिते !
सस्नेह नमस्ते।
अत्र सर्वं कुशलम्। भवती अपि कुशलिनी इत्यहं कामये। अद्य (i) ………… भवत्पत्रं प्राप्तम्। अहम् अतीव (ii) ………………… अनुभवामि। भवती मम (iii) ……………………. ज्ञातुम् इच्छति। अतोऽहम् अत्र मे दिनचर्यां लिखामि। सखि ! अहं प्रातः (iv) ……………… उत्तिष्ठामि। सार्धपञ्चवादनात् (v) ……………. प्रातः भ्रमणं करोमि। ततः स्नानादिभिः (vi) ………… नववादनतः दशवादनपर्यन्तम् अध्ययनं करोमि। (vii) ………………….. विद्यालयं गच्छामि। सायं पञ्चवादने विद्यालयात् आगत्य कीडाङ्गणे क्रीडामि। सप्तवादने अहं भोजनं (viii) …………………. पठामि गृहकार्यं च करोमि। रात्रौ दशवादने शये। मातापित्रोः चरणयोः मे प्रणत्यः।

भवदीया प्रिय सखी
कविता

उत्तरम् :

कैलाशपुरी
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रियसखि स्मिते !
सस्नेह नमस्ते।
अत्र सर्वं कुशलम्। भवती अपि कुशलिनी इत्यहं कामये। अद्य चिरात् भवत्पत्रं प्राप्तम्। अहम् अतीव हर्षम् अनुभवामि। भवती मम दिनचर्यां ज्ञातुम् इच्छति। अतोऽहम् अत्र मे दिनचर्या लिखामि।
सखि ! अहं प्रातः पञ्चवादने उत्तिष्ठामि। सार्धपञ्चवादनात् सार्धषड्वादनपर्यन्तं प्रातः भ्रमणं करोमि। ततःस्नानादिभिः

निवृत्य नववादनतः दशवादनपर्यन्तम् अध्ययनं करोमि। दशवादने विद्यालयं गच्छामि। सायं पञ्चवादने विद्यालयात् आगत्य क्रीडाङ्गणे क्रीडामि। सप्तवादने अहं भोजनं भुक्त्वा पठामि गृहकार्यं च करोमि। रात्रौ दशवादने शये। मातापित्रो: चरणयोः मे प्रणत्यः।

भवदीया प्रिय सखी,
कविता

हिन्दी-अनुवाद

कैलाशपुरी
जयपुर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय सखी स्मिता !
सस्नेह नमस्ते।
यहाँ सब कुशल है। आप भी कुशल हों ऐसी मेरी कामना है। आज बहुत दिनों बाद आपका पत्र मिला। मैं अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ। आप मेरी दिनचर्या जानना चाहती हैं। इसलिए यहाँ मैं अपनी दिनचर्या लिख रही हूँ। सखि! मैं प्रात:काल पाँच बजे उठती हूँ। साढ़े पांच बजे से साढ़े छ: बजे तक प्रातः भ्रमण करती हूँ। तब स्नान आदि से निवृत्त होकर नौ बजे से दस बजे तक अध्ययन करती हूँ। दस बजे विद्यालय जाती हूँ। सायं पाँच बजे विद्यालय से आकर खेल के मैदान में खेलती हूँ। सात बजे मैं खाना खाकर पढ़ती हूँ और गृहकार्य करती हूँ। रात को दस बजे सोती हूँ। माता जी और पिताजी के चरणों में मेरा प्रणाम।

आपकी प्यारी सखी
कविता

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

27. भवती राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः रामनगरम् इत्यस्य दशमकक्षायाः नन्दिनी नामा छात्रा अस्ति। भवत्याः सखी प्रतिभाम् एकं पत्रं लिखत, यस्मिन् ‘मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिकं रोचते’ इति वर्णनं स्यात्।।
(आप राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रामनगर की कक्षा दस की नन्दिनी नामक छात्रा हैं। अपनी सखी प्रतिभा को एक पत्र लिखिए कि जिसमें मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है’ ऐसा वर्णन हो।)

राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः
(i) ………………
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये सखि प्रतिभे !
सादरं वन्दे।
अत्र सर्वगतं (ii) ……………….. अस्ति। भवती अपि तत्र कुशलिनी इत्यहं मन्ये। अद्य चिरात् प्राप्तम् (iii) ……………………. स्नेहसिक्तं पत्रम्। भवती इच्छति यद् अहं मम विद्यालयस्य विषये भवतीं प्रति लिखेयम्। निः संशयोऽयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिकं रोचते यतः अस्य भवनम् अतिविस्तृतं, भव्यम्, (iv) ………….. च। अस्य पुस्तकालये बहूनि (v) ……………. सन्ति, वाचनालये विविधाः नूतनाः (vi) …………….. च समायान्ति। अत्र पठन-पाठनस्य क्रीडायाः च सम्यग् व्यवस्था अस्ति। एष एकः सुव्यवस्थितः, सम्यगनुशासितः प्रशासितश्च (vii) ………………….. अस्ति। अतः अयं मम विद्यालय: मह्यम् अत्यधिक रोचते। शेषं कुशलम्। पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः मनीषायै च स्नेहः (viii) ………….।

भवत्याः प्रिय सखी
नन्दिनी।

उत्तरम् :

राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः
रामनगरम्
दिनाङ्कः 25.03.20_ _

प्रिये सखि प्रतिभे !
सादरं वन्दे।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति। भवती अपि तत्र कुशलिनी इत्यहं मन्ये। अद्य चिरात् प्राप्तम् भवत्याः स्नेहसिक्तं पत्रम्। भवती इच्छति यद् अहं मम विद्यालयस्य विषये भवतीं प्रति लिखेयम्। निः संशयोऽयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिक रोचते यतः अस्य भवनम् अतिविस्तृतं, भव्यम्, सुसज्जितं द्विभूमिकं च। अस्य पुस्तकालये बहूनि पुस्तकानि सन्ति, वाचनालये विविधाः नूतनाः पत्र-पत्रिकाः च समायान्ति। अत्र पठन-पाठनस्य क्रीडायाः च सम्यग् व्यवस्था अस्ति। एष एकः सुव्यवस्थितः, सम्यगनुशासितः प्रशासितश्च आदर्शविद्यालयः अस्ति। अतः अयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिक रोचते। शेषं कुशलम्। पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः मनीषायै च स्नेहः निवेद्यताम्।

भवत्याः प्रियसखी
नन्दिनी।

हिन्दी-अनुवाद

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
रामनगर
दिनांक 25.03.20_ _

प्रिय सखी प्रतिभा !
सादर वन्दे।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है। आप भी वहाँ कुशल हैं, ऐसा मानती हूँ। आज बहुत दिन बाद आपका स्नेहसिक्त पत्र प्राप्त हुआ। आप चाहती हैं कि मैं अपने विद्यालय के विषय में आपको लिखें। निस्सन्देह यह मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इसका भवन अति विस्तृत, भव्य, सुसज्जित और दोमंजिला है। इसके पुस्तकालय में बहुत-सी पुस्तकें हैं। वाचनालय में विविध नवीन पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। यहाँ पठन, पाठन और क्रीड़ा की सम्यक् व्यवस्था है। यह एक सुव्यवस्थित, सम्यक अनुशासित और प्रशासित आदर्श विद्यालय है। अतः यह मेरा विद्यालय मुझे बहुत रुचिकर लगता है। शेष कुशल है। माता-पिताजी के चरणों में प्रणाम और मनीषा को प्यार कहें।

आपकी प्यारी सहेली
नन्दिनी

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

28. भवती कनकग्रामवासिनी रेखा स्वकीयां सखीम् अंकितां प्रति संस्कृतभाषाशिक्षणम्’ इति विषये अधोलिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायता पूरयित्वा लिखतु।
(आप कनक ग्राम की निवासी रेखा हैं। मञ्जूषा में दिये शब्दों की सहायता से अपनी सखी अंकिता को ‘संस्कृतभाषाशिक्षणम्’ विषय पर अधोलिखित पत्र लिखिए।)
[मञ्जूषा – कनकग्रामतः, अस्माकम्, इच्छति, रेखा, पृथक्, पठित्वा, प्राप्तम्, सुगन्धम्]

(i) ……………….
दिनाङ्कः 18.03.20_ _

प्रिये अंकिते !
नमस्ते।
भवत्या पत्रं (ii) …………….। भवती संस्कृतभाषां पठितुम् (iii) ………….. एषा भाषा वैज्ञानिकी।। संस्कृतम् (iv) ………………. देशस्य प्रसिद्धा भाषा। भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतं (v) ………………….. कर्ता तथैव न शक्यते यथा पुष्पेभ्य (vi) ………. । अतः भवती अपि संस्कृतं पठतु एवं च (vii) ………………… प्रचारं करोतु।

भवत्याः प्रिय सखी
(viii) ………..

उत्तरम् :

कनकग्रामतः
दिनाङ्कः 18.03.20_ _

प्रिये अंकिते !
नमस्ते।
भवत्या पत्रं प्राप्तम्। भवती संस्कृतभाषां पठितुम् इच्छति। एषा भाषा वैज्ञानिकी। संस्कृतम् अस्माकं देशस्य प्रसिद्धा भाषा। भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतं पृथक् कर्तुं तथैव न शक्यते यथा पुष्पेभ्यः सुगन्धम्। अतः भवती अपि संस्कृतं पठतु एवं च पठित्वा प्रचारं करोतु।

भवत्याः प्रियसखी
रेखा।

हिन्दी-अनुवाद

प्रिय अंकिता !
नमस्ते।
आपका पत्र मिला। आप संस्कृत पढ़ना चाहती हो। यह एक वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत हमारे देश की प्रसिद्ध भाषा है। संस्कृति को संस्कृत से, फूलों से सुगन्ध की भाँति अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए आप भी संस्कृत पढ़ें और इस प्रकार पढ़कर (इसका) प्रचार करें।

आपकी प्यारी सहेली
रेखा

2. औपचारिक पत्रम्

29. अस्वस्थतायाः कारणात् दिवसत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(बीमारी के कारण तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम,
………………. प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि. ………….
भरतपुरम्।
विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं ……………………. यत् अद्य अहं शीतज्वरेण……………..। अस्मात् कारणात …………… यावत् विद्यालये शक्नोमि। अतः ………………. यत् दि. 11-5-20_ _ तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं ………….मामनुगृहीष्यन्ति ………………।

दिनांक 11-5-20_ _

भवदाज्ञाकारी …………….
सुदर्शनः
कक्षा 10 (जी)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – निवेदयामि, भवन्तः, श्रीमन्तः, स्वीकृत्य, विद्यालयः, प्रार्थये, दिनत्रयस्य, शिष्यः, पीडितोऽस्मिं, उपस्थातुम्।]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. उ. मा. वि.,
भरतपुरम्।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामि यत् अद्य अहं शीतज्वरेण पीडितोऽस्मि। अस्मात् कारणात् अहं दिनत्रयं यावत् विद्यालये उपस्थातुं न शक्नोमि। अतः प्रार्थये यत् दि. 11-5-20_ _ तः 13-5-20_ _ पर्यन्त दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य मामनुगृहीष्यन्ति भवन्तः।
दिनांक : 11-5-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुदर्शनः
कक्षा 10 (जी)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राज. उ. माध्य. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि आज मैं शीतज्वर से पीड़ित हूँ। इस कारण से मैं तीन दिन तक विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ। इसलिए प्रार्थना करता हूँ कि दिनांक 11-5-20_ _ से 13-5-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझ पर अनुग्रह करेंगे।
दिनांक : 11-5-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुदर्शन
कक्षा 10 (जी)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

30. शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये………………”छात्रोऽस्मि। मम……………… आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता…………….”प्रतिदिवसं कार्ये केवलं पञ्चाशद् रूप्यकाणाम् …………….. भवति। तेन…………….. पालन-पोषणञ्च कथमपि भवितुं न शक्नोति। अतः अहं………….. शिक्षणशुल्क……………… असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्ति:…………….। नवमकक्षायाः……………… अहं प्रथम श्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

……………… शिष्यः

दिनांक : 11-8-20_ _

सुरेशचन्द्रः
कक्षा 9 (स)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – आसीत्, भवदाज्ञाकारी, विद्यालयस्य, पितुः, अर्जनमेव, दशमकक्षायाः, वृद्धोऽस्ति, परिवारस्य, परीक्षायाम्, प्रदातुम्।]
उत्तरम् :

शुल्कमुक्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालयः,
भरतपुरम्।

विषयः – शिक्षणशुल्कमुक्तये प्रार्थनापत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं प्रार्थये यदहं श्रीमतां विद्यालये दशमकक्षायाः छात्रोऽस्मि। मम पितुः आर्थिकस्थितिः शोचनीयाऽस्ति। मम पिता वृद्धोऽस्ति, प्रतिदिवसं केवलं पञ्चाशद् रूप्यकाणाम् अर्जनमेव भवति। तेन परिवारस्य पालन-पोषणञ्च कथमपि भवितुं न शक्नोति। अतः अहं विद्यालयस्य शिक्षणशुल्क प्रदातुम् असमर्थोऽस्मि। गतवर्षे मम शिक्षणशुल्क-मुक्तिः स्वीकृता आसीत्। नवम-कक्षायाः परीक्षायाम् अहं प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णोऽभवम्।
अतः पुनः निवेदनमस्ति यत् भवन्तः अध्ययने मम रुचिम् अवलोक्य मह्यं शिक्षणशुल्कात् मुक्ति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
सुरेशचन्द्रः
कक्षा 10 (स)

दिनांक : 11-8-20_ _

हिन्दी-अनुवाद
शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
महाराजा बदनसिंह उ. मा. विद्यालय,
भरतपुर।

विषय – शिक्षण-शुल्क-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं श्रीमान्जी के विद्यालय में दशवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता की आर्थिक स्थिति शोचनीय है। मेरे पिता वृद्ध हैं, प्रतिदिन कार्य में केवल पचास रुपये कमा पाते हैं। उससे परिवार का पालन-पोषण किसी प्रकार भी नहीं हो सकता है। इसलिए मैं विद्यालय का शिक्षण शुल्क देने में असमर्थ हूँ। गतवर्ष मेरी शिक्षण शुल्क-मुक्ति स्वीकार हुई थी। नौवीं कक्षा की परीक्षा में मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था।
इसलिए पुनः निवेदन है कि आप अध्ययन में मेरी रुचि को देखकर मुझे शिक्षण-शुल्क से मुक्ति प्रदान कर अनुगृहीत करेंगे।
दिनांक: 11-8-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुरेशचन्द्र
कक्षा 10 (स)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

31. ज्येष्ठभ्रातुः विवाहकारणात् दिनद्वयस्य अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः चितपदैः पूरयत।
(बड़े भाई के विवाह के कारण से दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः
राजकीयः उच्चः ……………… विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य …………….. ‘प्रार्थना-पत्रम्।

सविनयं निवेदनम् ………… यत् मम ज्येष्ठभ्रातुः ………………16-5-20_ _ दिनाङ्के..। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न………..।
अत:. “यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं ………. अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति …………..।

सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारतः शर्मा
(कक्षा-10)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, श्रीमन्तः, निवेदनमस्ति, निश्चितः, शक्नोमि, माध्यमिकः, महोदयाः, पाणिग्रहणसंस्कार:, पाणिग्रहणसस्कार:,।। अस्ति, अवकाशार्थम्।]

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषयः – दिनद्वयस्य अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम ज्येष्ठधातुः पाणिग्रहणसंस्कारः 16-5-20_ _ दिनाङ्के निश्चितः। एतत् कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।
अतः निवेदनमस्ति यत् 16-5-20_ _ दिनाङ्कतः 17-5-20_ _ दिनाङ्कपर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।
सधन्यवादम्।
दिनाङ्कः 16-5-20_ _

भवदीयः शिष्यः
भारतः शर्मा
(कक्षा-10)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय-दो दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे बड़े भाई की शादी दिनांक 16-5-20_ _ को निश्चित हुई है। इस कारण से दो दिन तक मैं अपनी कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता हूँ।
अतः निवेदन है कि दिनांक 16-5-20 से 17-5-20_ _ तक दो दिन का अवकाश स्वीकृत कर श्रीमान् मुझ पर अनुग्रह करेंगे।

सधन्यवाद।
दिनांक 16-5-20_ _

आपका शिष्य
भारत शर्मा
(कक्षा-10)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

32. चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।।
(चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
……………..,
श्रीमन्तः ………….,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं ………….अस्ति यत् अहं आंग्ल………… वाद-विवाद ………….”भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् ………. चरित्र-प्रमाण ………………….. आवश्यकता………………… अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं ……………. अनुग्रहीष्यन्ति ……………..
सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(दशमी कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा – प्रदाय, भाषया, पत्रस्य, भवन्तः, प्रधानाचार्यमहोदयाः, निवेदनम्, सेवायाम्, कारणात्, वर्तते, प्रतियोगितायाम्]

चरित्र-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:,
राजकीयः उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
जयपुरम्।

विषयः – चरित्र-प्रमाण-पत्र-प्राप्त्यर्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् अहम् आंग्लभाषया वाद-विवादप्रतियोगितायां भागं ग्रहीतुम् इच्छामि। एतत् कारणात् चरित्र-प्रमाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते।
अतः प्रार्थना अस्ति यत् मह्यं चरित्र-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 7-9-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
अनूपः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
चरित्र-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जयपुर।

विषय – चरित्र-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं अंग्रेजी भाषा की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ। इस कारण से चरित्र-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है।
अतः प्रार्थना है कि आप चरित्र-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुग्रहीत करेंगे।
दिनांक : 7-9-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
अनूप
(कक्षा दसवीं)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

33. मातुः सेवार्थं दिनत्रयस्य अवकाशाय प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः चितपदैः पूरयत।
(माता की सेवा के लिए तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
………………………..
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
……………. उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य…………”प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
……………. निवेदनम् अस्ति यत् ……………. गतदिवसात् शीतज्वरेण……………… अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयं ………………. न शक्नोमि। अतः कृपया 7-7-20_ _ दिनांकत: 9-7-20_ _ दिनांक …………….. दिनत्रयस्य
…………….. अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-7-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्य
रमनः
(दशमी कक्षा)

[संकेतसूची/मञ्जूषा – मम, माम् पर्यन्तम्, माता, अवकाशार्थम्, राजकीय, आगन्तुम्, पीडिता, स्वीकृत्य, सविनयम्, सेवायाम्]

अवकाशाय प्रार्थना – पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
अजयमेरुः।

विषयः – दिनत्रयस्य अवकाशार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम माता गतदिवसात् शीतज्वरेण पीडिता अस्ति। एतस्मात् कारणात् अहं विद्यालयम् आगन्तुं न शक्नोमि। अत: कृपया 7-7-20_ _ दिनांकतः 9-7-20_ _ दिनांकपर्यन्तं दिनत्रयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक: 7-7-20_ _

भवदाकारी शिष्यः
रमनः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
अजमेर।

विषय – तीन दिन के अवकाश हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरी माताजी कल से बुखार से पीड़ित हैं। इस कारण मैं विद्यालय नहीं आ सकता हूँ। कृपया दिनांक 7-7-20_ _ से दिनांक 9-7-20_ _ तक तीन दिन का अवकाश स्वीकृत कर आप मुझे अनुगृहीत करेंगे।

सधन्यवाद।
दिनांक 7-7-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रमन
(कक्षा दसवीं)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

34. स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः,
……………..

विषय: – ……………”प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र…………… अस्ति। …………… तस्य स्थानान्तरणं……………… अभवत्। मम ……………… मम पित्रा सह भरतपुरम् गमिष्यति। अहम् अस्मात् …………….”नवमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, दशमीकक्षायाम् अहं भरतपुरे………………। अत: मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाए। ”अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति।

सधन्यवादम्।
दिनांक 6-4-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रामकुमारः
(दशमी कक्षा)

संकेत सूची/मञ्जूषा-स्थानान्तरणम्, लिपिकः, पठिष्यामि, अधुना, दौसानगरम्, भरतपुरम्, परिवारः, प्रदाय, विद्यालयात्, भवदाज्ञाकारी
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्राय प्रार्थना-पत्रम् उत्तरम् सेवायाम्, श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः, दौसानगरम्।
विषय-स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्। महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् मम पिता अत्र लिपिकः अस्ति। अधुना तस्य स्थानान्तरणं भरतपुरम् अभवत्। मम परिवारः मम पित्रा सह भरतपुरं गमिष्यति। अहम् अस्मात् विद्यालयात् नवमकक्षाम् उत्तीर्णवान्, दशमीकक्षायाम् अहं भरतपुरे पठिष्यामि। अतः मह्यं स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्रं प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः इति।

सधन्यवादमा
दिनांक 8-4-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
रामकुमारः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
दौसानगर।

विषय-स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी यहाँ लिपिक हैं। अब उनका स्थानान्तरण भरतपुर हो गया है। मेरा परिवार मेरे पिताजी के साथ भरतपुर जाएगा। मैंने इस विद्यालय से कक्षा नौ उत्तीर्ण की है, कक्षा दसवीं में मैं भरतपुर में पर्दैगा। अतः आप स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र देकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।

सधन्यवाद।
दिनांक 6-4-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रामकुमार
(कक्षा दसवीं)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

35. क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(खेलकूद की उचित व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः ……………. महोदयाः,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयः
जोधपुरम्।

विषय: – ……………… सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं …………….. क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न ………………। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि………….. रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां……… अस्मान् अनुग्रहणन्तु ……………….।

सधन्यवादम्।
दिनांक : 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(दशमी कक्षा)

[संकेत सूची/मञ्जूषा-श्रीमन्तः, अस्मभ्यम्, प्रधानाचार्यमहोदयाः, विद्यालये, विधाय, वर्तते, क्रीडायाः]

क्रीडाव्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीय-उच्च-माध्यमिक विद्यालयः,
जोधपुरम्।

विषय: – क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यदस्माकं विद्यालये क्रीडायाः व्यवस्था भद्रतरा न वर्तते। अध्ययनेन समम् एव क्रीडनमपि अस्मभ्यं रोचते। अतः क्रीडायाः सम्यग् व्यवस्थां विधाय अस्मान् अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्।
दिनांक 15-8-20_ _

भवदाज्ञाकारी शिष्यः
हरीशः
(दशमी कक्षा)

हिन्दी-अनुवाद
खेलकूद-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।

विषय – खेलकूद की उचित व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
सविनय. निवेदन है कि हमारे विद्यालय में खेल की व्यवस्था ठीक नहीं है। अध्ययन के साथ ही खेलना भी हमको अच्छा लगता है। अतः खेल की समुचित व्यवस्था कराकर आदरणीय आप हमारे ऊपर अनुग्रह करें।
सधन्यवाद।
दिनांक 15-8-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
हरीश
(कक्षा दसर्वी)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

36. विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(विद्यालय में स्वच्छता की व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
…………………….
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये……………. व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् ……………….. विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छतायाः …………………. वर्तते। अस्मिन् ……………. त्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता: जायन्ते। ……………………… अस्माकं मनांसि न………………। अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित-व्यवस्थायै प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।

दिनांकः 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्त: ………………..
…………………………..

[संकेत सूची/मम्जूना-छात्रवृन्दः, कर्मकरान्, अध्ययने, वातावरणे, रमन्ते, साम्राज्यम्, सेवायाम्, अस्माकम्, स्वच्छतायाः]

स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
रा. सी. सै. विद्यालयः, श्रीकरनपुरम्।

विषयः – विद्यालये स्वच्छतायाः व्यवस्थायै प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदयामो यद् अस्माकं विद्यालये सम्प्रति अस्वच्छतायाः साम्राज्यं वर्तते। अस्मिन् वातावरणे छात्राः शिक्षकाश्च रोगग्रस्ता जायन्ते। अध्ययने अस्माकं मनांसि न रमन्ते। अतः कृपया स्वच्छतायाः समुचित व्यवस्थायै कर्मकरान् प्रेरयन्तु अत्रभवन्तः।

दिनांकः 10-8-20_ _

भवताम् आज्ञानुवर्तिनः
समस्तः छात्रवृन्दः
कक्षा दशमी

हिन्दी-अनुवाद
स्वच्छता-व्यवस्था के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राज. सीनि. सै. विद्यालय, श्रीकरनपुर।

विषय – विद्यालय में स्वच्छता-व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि हमारे विद्यालय में इस समय अस्वच्छता का साम्राज्य है। इस वातावरण में छात्र और शिक्षक रोगग्रस्त हो जाते हैं। अध्ययन में हमारा मन नहीं लगता है। अतः कृपया स्वच्छता की समुचित व्यवस्था हेतु श्रीमान् जी कर्मचारियों को प्रेरित करें।

दिनांक 10-8-20_ _

आपके आज्ञाकारी
समस्त छात्रगण
कक्षा दसवीं

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

37. शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायाः उचितपदैः पूरयत।
(शैक्षिक शिविर के आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा के उचित शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
राजकीयः उच्चमाध्यमिक ………….,
बीकानेरम्।

विषय: – शैक्षिक……..”आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं …………..”यद् अस्मद्विद्यालये……………. पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि ……………………. तृप्ति न एति। अतः प्रार्थयामो …………………… यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् ‘अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।

दिनांक 16-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिण: ………..
दशमीकक्षास्थाः छात्राः

[संकेत सूची/मञ्जूषा-निवेद्यते, वयम्, शिक्षण-व्यवस्था, विद्यालयः, शिविरस्य, शिष्याः, अस्माकं, आयोज्य, ज्ञान-पिपासा]

शैक्षिक शिविर आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्

उत्तरम् :
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः।
राजकीय-उच्च-माध्यमिक-विद्यालयः,
बीकानेरम्

विषयः – शैक्षिक-शिविरस्य आयोजनार्थं प्रार्थना-पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेद्यते यद् अस्मद्विद्यालये शिक्षण-व्यवस्था पूर्णसन्तोषकरी वर्तते। तथापि अस्माकं ज्ञान-पिपासा तृप्ति न एति। अतः प्रार्थयामो वयं यद् अस्मत्-कृते 15 दिनात्मकम् एकं शैक्षिक-शिविरम् आयोज्य अनुग्रहणन्तु श्रीमन्तः।
दिनांकः 11-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणः शिष्याः
दशमी कक्षास्थाः छात्राः

हिन्दी-अनुवाद
शैक्षिक शिविर-आयोजन के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बीकानेर।

विषय – शैक्षिक शिविर के आयोजन हेतु प्रार्थना-पत्र।

महोदय,
विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण व्यवस्था पूर्ण सन्तोषजनक है। फिर भी हमारी ज्ञान-पिपासा तृप्त नहीं हो पाती है। अतः हम सभी प्रार्थना करते हैं कि हमारे लिए 15 दिन का एक शैक्षिक शिविर श्रीमान् आप आयोजित कर अनुगृहीत करें।
दिनांक: 16-7-20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा 10 के छात्र

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

38. प्रधानाध्यापिकां प्रति अवकाशहेतोः प्रार्थना-पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः पूरयत।
(प्रधानाध्यापिका को अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र मञ्जूषा में दिए गए शब्दों से पूर्ण कीजिए।)
सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
……………….. माध्यमिकविद्यालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनयं ……….. यत् मम ज्येष्ठभगिन्या:.. “दिनद्वयं पश्चात् ……..। एतत्कारणात् दिनद्वयं अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न……………..। अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ त: 17-7-20_ _ पर्यन्तं …………….. अवकाशं …………………. माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः। सधन्यवादम्।

दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-दशमी (अ)

[संकेतसूची/मञ्जूषा-दिनद्वयस्य, भविष्यति, पाणिग्रहणसंस्कारः, शक्नोमि, निवेदनमस्ति, यावद्, राजकीयः बालिका, स्वीकृत्य]
उत्तरम् :

अवकाशाय प्रार्थना-पत्रम्

सेवायाम्,
श्रीमत्यः प्रधानाध्यापिकामहोदयाः,
राजकीयः बालिका माध्यमिकविधालयः,
जोधपुरम्।
महोदयाः,
सविनयं निवेदनमस्ति यत् मम ज्येष्ठभगिन्याः पाणिग्रहणसंस्कारः दिनद्वयं पश्चात् भविष्यति। एतत्कारणात् दिनद्वयं यावद् अहं स्वकक्षायामुपस्थातुं न शक्नोमि।

अतः निवेदनमस्ति यत् दिनांक 16-7-20_ _ तः 17-7-20_ _पर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति श्रीमत्यः।
सधन्यवादम्।
दिनांक : 14-7-20_ _

भवदाज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-दशमी (अ)

हिन्दी अनुवाद
अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमती प्रधानाध्यापिका महोदया,
राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय,
जोधपुर।
महोदया,
सविनय निवेदन है कि मेरी बड़ी बहिन का विवाह-संस्कार दो दिन बाद होगा। इस कारण दो दिन तक मैं अपनी कक्षा। उपस्थित होने में असमर्थ हूँ।
इसलिए निवेदन है कि दिनांक 16-7-20_ _ से 17-7-20_ _ तक दो दिनों का अवकाश स्वीकृत करके श्रीमती मुझे अनुगृहीत करेंगी।

सधन्यवाद
दिनांक : 14-7-20_ _

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या
अभिलाषा शर्मा
कक्षा-10 (अ)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

39. भवान् दिवाकरः दशम कक्षायाः छात्रः। आदर्श माध्यमिक विद्यालये पठन्ति। आधारकार्ड प्राप्तुं अध्ययन पाण-पत्रस्य आवश्यकता वर्तते। अतः प्रधानाध्यापकाय अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना पत्रम् लिखत।
(आप दिवाकर दसर्वी कक्षा के छात्र हैं। आदर्श माध्यमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए अध्ययन-प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है। अतः प्रधानाध्यापक से अध्ययन प्रमाणपत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।)
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः
आदर्श माध्यमिक विद्यालयः
…………….।

विषयः – अध्ययन-प्रमाण-पत्र प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्।

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहं ई-मित्रात्…………प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य…………प्रमाण-पत्रम् नाते। अहं……………कक्षायाः छात्रः अस्मि। अतः………….निरन्तराध्ययनस्य …………….. कक्षायाः छात्रः आस्म। अतः………….निरन्तराध्ययनस्य………….प्रदाय………..माम……….।

भवताम्………….शिष्यः

…………….
दिनांक : 6.3.20_ _

दिवाकरः
(दशमी कक्षा)

[संकेतसूची-सूची/मजूवा-आधारकार्डम, आशाकारी, मौलपुरम्, अध्ययन, नवम अनुगृह्णन्तु, मह्यम्, सधन्यवादम्, श्रीमन्तः प्रमाण-पत्रम]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
धौलपुरम्।

विषय – अध्ययन-प्रमाण-पत्रं प्राप्तुं प्रार्थना-पत्रम्

महोदयाः,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यद् अहम् ई-मित्रात् आधारकार्ड प्राप्तुम् इच्छामि। तस्य हेतोः विद्यालयस्य अध्ययन-प्रमाण पत्रम् अपेक्षते। अहं दशम कक्षायाः छात्रः अस्मि। अतः मह्यम् निरन्तराध्ययनस्य प्रमाण-पत्रम् प्रदाय अनुगृह्णन्तु माम् श्रीमन्तः।

सधन्यवादम्
दिनाङ्कः 6.3.20_ _

भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः
दिवाकर
(दशमी कक्षा)

हिन्दी अनुवाद

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाध्यापक महोदय,
धौलपुर

विषय – अध्ययन प्रमाण-पत्र प्राप्ति हेतु प्रार्थना-पत्र

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं ई-मित्र से आधार कार्ड प्राप्त करना चाहता हूँ। इसके लिए विद्यालय से अध्ययन प्रमाण-पत्र की अपेक्षा है। मैं नौवीं कक्षा का छात्र हूँ। अतः अध्ययनरत होने का प्रमाण-पत्र देकर श्रीमान मुझे अनुग्रहीत करें।

धन्यवाद सहित
दिनांक : 06-03-20_ _

आपका आज्ञाकारी शिष्य
दिवाकर
(कक्षा 10)

JAC Class 10 Sanskrit रचना पत्र-लेखनम्

40. यूयं राजकीय-माध्यमिक विद्यालय लखनपुरस्य दशमी कक्षायाः छात्राः। स्वकीयं प्रधानाध्यापकं प्रति एकं प्रार्थना पत्रं शैक्षणिक भ्रमणार्थम् अनुमति हेतुः लिखत।
(तुम राजकीय माध्यमिक विद्यालय लखनपुर के दशवीं कक्षा के छात्र है। अपने प्रधानाध्यापक के लिए एक प्रार्थना-पत्र शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति के लिए लिखिए।)

सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापकाः महोदया:
राजकीयः माध्यमिकः विद्यालयः
लखनपुरम्

विषय – शैक्षिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।

महोदयाः,
सविनय………..यद् अस्माकं………शिक्षणस्तु………..प्रवर्तते। वयं सर्वे…………स्मः। तथापि अस्माकं……….तृप्तिः न भवति। अतः निवेदयामः………यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं……………आयोजानीयम् कक्षायाः सर्वे….. एवमेव इच्छन्ति। वयमास्वस्थाः स्मः यत्………..प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्त।
दिनाङ्क : 18.11.20_ _

भवदाज्ञाकारिणः ………………….
दशमी-कक्षास्थाः

[मञ्जूषा – छात्राः, क्यम्, शिष्या, अनुमति, शैक्षिक-भ्रमणम्, सन्तुष्टाः, निवेदनम्, विद्यालये, सम्यक्, ज्ञान-पिपासायाः।]
उत्तरम् :
सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापक महोदयाः,
राजकीयः माध्यमिक: विद्यालयः
लखनपुरम्।
विषय – शैक्षणिक भ्रमणस्य अनुमत्यर्थं प्रार्थना पत्रम्।
महोदयाः,
सविनयम् निवेदनम् यद् अस्माकं विद्यालये शिक्षणस्तु सम्यक् प्रवर्तते। वयं सर्वे सन्तुष्टाः स्मः। तथापि अस्माकं ज्ञान पिपासायाः तृप्तिः न भवति। अत: निवेदयामः वयं यद् एतत् तृप्तये सप्ताहात्मकम् एकं शैक्षिक-भ्रमणम् आयोजनीयम्। कक्षायाः सर्वे छात्राः एवमेव इच्छन्ति। वयम् आस्वस्थाः स्मः यतु अनुमति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति भवन्तः।,

दिनांङ्क : 18.12.20

भवदाज्ञाकारिणः शिष्याः
दशमी-कक्षास्थाः

हिन्दी अनुवाद

सेवा में
श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय
राजकीय माध्यमिक विद्यालय,
लखनपुर।

विषय – शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शिक्षण तो अच्छी तरह चल रहा है। फिर भी हमारे ज्ञान की प्यास तृप्ति को प्राप्त नहीं हो रही है। अतः हम निवेदन करते हैं कि इस तृप्ति के लिए एक सप्ताह का एक शैक्षणिक-भ्रमण आयोजित किया जाय। कक्षा के सभी छात्र ऐसा ही चाहते हैं। हमें विश्वास है कि आप अनुमति देकर हमें अनुगृहीत करेंगे।

दिनांक : 18.11.20_ _

आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा 10

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.1

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.1

Question 1.
Which of the following expressions are polynomials in one variable and which are not? State reasons for your answer.
(i) 4x2 – 3x + 7
(ii) y2 + \( \sqrt{2} \)
(iii) 3\( \sqrt{t} \) + t\( \sqrt{2} \)
(iv) y + \(\frac{2}{y}\)
(v) x10 + y3 + t50
Answer:
(i) 4x2 – 3x + 7
There is only one variable x with whole number powers so this is a polynomial in one variable.

(ii) y2 + \( \sqrt{2} \)
There is only one variable y with whole number powers so this is a polynomial in one variable.

(iii) 3\( \sqrt{t} \) + t\( \sqrt{2} \)
There is only one variable t but in 3\( \sqrt{t} \) power of t is \(\frac{1}{2}\) which is not a whole number. So, 3\( \sqrt{t} \) + t\( \sqrt{2} \) is not a polynomial.

(iv) y + \(\frac{2}{y}\)
There is only one variable y but \(\frac{2}{y}\) = 2y-1 So, the power of y is not a whole number in the second term. Hence, y + \(\frac{2}{y}\) is not a polynomial.

(v) x10 + y3 + t50
There are three variables x, y and t. So, this is not a polynomial in one variable.

Question 2.
Write the coefficients of x2 in each of the following:
(i) 2 + x2 + x
(ii) 2 – x2 + x3
(iii) \(\frac{π}{2}\)x2 + x
(iv) \( \sqrt{2} \) – 1
Answer:
(i) Coefficient of x2 = 1
(ii) Coefficient of x2 = -1
(iii) Coefficient of x2 = \(\frac{π}{2}\)
(iv) Coefficient of x2 = 0

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 2 Polynomials Ex 2.1

Question 3.
Give one example each of a binomial of degree 35, and of a monomial of degree 100.
Answer:
3x35 + 7 and 4x100 are binomials of degree 35 and monomial of degree 100 respectively.

Question 4.
Write the degree of each of the following polynomials:
(i) 5x3 + 4x2 + 7x
(ii) 4 – y2
(iii) 5t – \( \sqrt{7} \)
(iv) 3
Answer:
(i) 5x3 has highest power in the given polynomial, which is 3. Therefore, degree of polynomial is 3.
(ii) -y2 has highest power in the given polynomial, which is 2. Therefore, degree of polynomial is 2.
(iii) 5t has highest power in the given polynomial, which is 1. Therefore, degree of polynomial is 1.
(iv) There is no variable in the given polynomial. Therefore, degree of polynomial is 0.

Question 5.
Classify the following as linear, quadratic and cubic polynomials:
(i) x2 + x
(ii) x – x3
(iii) y + y2 + 4
(iv) 1 + x
(v) 3t
(vi) r2
(vii) 7x3
Answer:
(i) x2 + x Quadratic Polynomial
(ii) x – x3 Cubic Polynomial
(iii) y + y2 + 4 Quadratic Polynomial
(iv) 1 + x Linear Polynomial
(v) 3t Linear Polynomial
(vi) r2 Quadratic Polynomial
(vii) 7x3 Cubic Polynomial