Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला
JAC Class 9th Sanskrit लौहतुला Textbook Questions and Answers
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखिए-).
(क) वणिक् पुत्रस्य किम् नाम आसीत्? (व्यापारी के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः।
(ख) तुला कैः भक्षिता आसीत्?
(तराजू किनके द्वारा खा ली गई?)
उत्तरम् :
मूषकैः (चूहों द्वारा)।
(ग) तुला कीदृशी आसीत्? (तुला कैसी थी?)
उत्तरम् :
लौहघटिता। (लोहे की बनी हुई।)
(घ) पुत्र केन हृतः इति जीर्णधनः वदति?
(पुत्र किसके द्वारा हरण कर लिया गया, जैसा जीर्णधन कहता है?)
उत्तरम् :
श्येनेन। (बाज के द्वारा)
(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ? (विवाद करते हुए वे दोनों कहाँ गये?)
उत्तरम् :
राजकुलम्। (राजदरबार में।)
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) देशान्तरं गन्तमिच्छन वणिकपत्रः किं व्यचिन्तयत? (परदेश जाने के इच्छक वणिक पत्र ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
यस्मिन् देशे स्थाने वा स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः, तत्र विभवहीनो यदि वसति, सः पुरुषाधमः, एवं व्यचिन्तयत्।
(जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे हैं, वहाँ निर्धन होकर जो रहता है, वह अधम पुरुष है, इस प्रकार सोचा।)
(ख) स्वतुला याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत्? (अपनी तराजू को माँगते हुए जीर्णधन से सेठ ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता” इति। (वह बोला-“अरे! वह नहीं है, तेरी तराजू को चूहे खा गये।”)
(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः? (जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को किससे ढंककर घर आया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहच्छिलयाच्छाद्य गृहमागतः। (जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को विशाल शिला से ढंककर घर आया।)
(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् अवदत्? (स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे गये वणिक् पुत्र ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनम् उवाच-“नदीतटात् सः श्येनेन हृतः” इति। (वणिक् पुत्र ने सेठ से कहा-“नदी के किनारे से उसे बाज ने हरण कर लिया।”)
(ङ) धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं तोषितवन्तः? (धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को कैसे सन्तुष्ट किया?)
उत्तरम् :
धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं सम्बोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन तोषितवन्तः।
(धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को आपस में समझाकर तराजू और बच्चा दिलवाकर सन्तुष्ट किया।)
3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(मोटे पदों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्। (जीर्णधन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाने की इच्छा करता हुआ सोचने लगा।)
उत्तरम् :
कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ? (कौन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाने की इच्छा करता हुआ सोचने लगा?)
(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। (सेठ का बच्चा नहाने के साधन लेकर अतिथि के साथ गया।)
उत्तरम् :
श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? (सेठ का बच्चा नहाने के .साधन लेकर किसके साथ गया?)
(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान्।
उत्तरम् :
वणिक् गिरिगुहां कया आच्छादितवान् ?
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिश-प्रदानेन सन्तोषितौ। (सभासदों ने उन दोनों को आपस में समझाकर तराजू और बालक दिलवाकर सन्तुष्ट कर दिया।)
उत्तरम् :
सभ्यैः तौ परस्परं सम्बोध्य कथं सन्तोषितौ? (सभासदों ने उन दोनों को आपस में समझाकर कैसे सन्तुष्ट किया?)
4. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः, पाठमाधृत्य तं पूरयत
(निम्नलिखित श्लोकों का अधुरा अन्वय दिया हआ है. पाठ के आधार पर उसे परा करो-)
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने ………. भोगाः भुक्ताः ………. विभवहीनः यः ………… स पुरुषाधमः।
उत्तरम् :
यत्र देशेऽथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः। (जिस देश या स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे गये हैं, उसमें निर्धन हुआ जो रहे वह अधम पुरुष है।)
(ख) राजन् ! यत्र लौहसहस्रस्य ………… मूषकाः ……… तत्र श्येनः ………… हरेत् अत्र संशयः न।।
उत्तरम् :
राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषका: खादन्ति तत्र श्येनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न। (राजन! जहाँ हजार (तोला) लोहे की बनी तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज बच्चे को ले जाये तो इसमें कोई संदेह नहीं।)
5. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र-(उस पद को रेखांकित करो जहाँ-)
(क) ‘ल्यप् प्रत्यय: नास्ति। (‘ल्यप् प्रत्यय नहीं है।) विहस्य, लौहसहस्रस्य, सम्बोध्य, आदाय।
उत्तरम् :
लौहसहस्रस्य (षष्ठी विभक्तिः)।
(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति। (जहाँ द्वितीया विभक्ति नहीं है।)
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्वरम्, कार्यकारणम्। उत्तरम् : सत्वरम् (अव्यय)।
(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति। (जहाँ षष्ठी विभक्ति नहीं है।) पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम्।
उत्तरम् :
स्ववीर्यतः (पंचमी)।
6. सन्धिना सन्धि-विच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(सन्धि अथवा सन्धि-विच्छेद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-) सन्धिः सन्धि-विच्छेदः
(क) श्रेष्ठ्याह = …….. + आह।
(ख) ………. = द्वौ + अपि।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + …………!
(घ) ………………… = यथा + इच्छया।
(ङ) स्नानोपकरणम् = …….. + उपकरणम्।
(च) …………….. = स्नान + अर्थम्।
उत्तरम् :
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह।
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता।
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया।
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्।
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्।
7. (अ) समस्तपदं विग्रहं वा लिखत-(समास करके अथवा विग्रह करके लिखिए-)
विग्रहः – समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = ……………
(ख) …………. = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = ……………
(घ) ………….. = विभवहीनाः
उत्तरम् :
समस्तपदम् – विग्रहः।
(क) स्नानोपकरणम् = स्नानस्य उपकरणम्
(ख) गिरिगुहायाम् = गिरेः गुहायाम्
(ग) धर्माधिकारी = धर्मस्य अधिकारी
(घ) विभवहीनाः = विभवात् हीनः
(आ) यथापेक्षम अधोलिखितानां शब्दानां सहायतया ‘लौहतला’ इति कथायाः सारांशं संस्कृतभाषया लिखत –
(अपेक्षानुसार निम्नलिखित शब्दों की सहायता से ‘लौहतुला’ कहानी का सारांश संस्कृत में लिखिए-)
वणिकपुत्रः, लौहतुला, वृत्तान्तं, श्रेष्ठिनं, गतः, स्नानार्थम्, अयाचत्, ज्ञात्वा, प्रत्यागतः, प्रदानम्।
उत्तर :
पुरा जीर्णधननामकः वणिक्पुत्रः आसीत्। सः धनहीनः एकां लौहतुलां कस्यापि श्रेष्ठिनः गृहे न्यक्षिपत् देशान्तरं च अगच्छत्। देशान्तराद् आगत्य यदा सः श्रेष्ठिनं स्वकीयां तुलाम् अयाचत् तदा श्रेष्ठी अवदत्-‘सा तुला तु मूषकैः खादिता।’ जीर्णधनः सर्वं रहस्यं ज्ञात्वा अवदत्-“अहं स्नानार्थं गन्तुमिच्छामि अतः स्वपुत्रं मया सह प्रेषय।” श्रेष्ठी तम् प्रेषयत। सः तं बालकं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य शिलायाः च द्वारम् आच्छाद्य गृहं प्रत्यागतः।
श्रेष्ठी जीर्णधनमपृच्छत्-“क्व मे पुत्र: गतः?” सोऽवदत्-“श्येनेन अपहृतः।” श्रेष्ठी अवदत्-“श्येनः कथं बालकं हर्तु शक्नोति?” एवं विवदमानौ तौ राजकुलं प्राप्तौ। धर्माधिकारिणः तयोः वृत्तान्तं ध्यानेन श्रुत्वा परस्परं तौ संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।
JAC Class 9th Sanskrit लौहतुला Important Questions and Answers
प्रश्न: 1.
वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत् ? (व्यापारी के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रस्य नाम जीर्णधनः आसीत्। (व्यापारी के पुत्र का नाम जीर्णधन था।)
प्रश्न: 2.
जीर्णधनः कस्मात् कारणात् देशान्तरं गन्तुमैच्छत् ? (जीर्णधन किस कारण से परदेश जाना चाहता था?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमैच्छत्। (जीर्णधन धन क्षीण होने के कारण परदेश जाना चाहता था।)
प्रश्न: 3.
जीर्णधनः लौहतुलां कुत्र निक्षिप्तवान्? (जीर्णधन ने लोहे की तराजू कहाँ धरोहर रखी?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः लौहतुलां श्रेष्ठिनः गृहे निक्षिप्तवान्। (जीर्णधन ने लोहे की तराजू सेठ के घर में धरोहर रखी।)
प्रश्न: 4.
तुलां निक्षिप्य जीर्णधनः कुत्र अगच्छत्? (तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन कहाँ गया?)
उत्तरम् :
तुला निक्षिप्य जीणेधनः देशान्तरम् अगच्छत्। (तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन परदेश गया।)
प्रश्न: 5.
श्रेष्ठिनः कथनानुसारं तुला कैः भक्षिता? (सेठ के कहने के अनुसार तराजू किसने खा ली?)
उत्तरम :
श्रेष्ठिन: कथनानुसारं तुला मूषकैः भक्षिता। (सेठ के कहने के अनुसार तराजू चूहों ने खा ली।)
प्रश्न: 6.
स्वपुरं प्रत्यागत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनं किमुवाच? (अपने नगर में लौटकर जीर्णधन ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
स्वपुरं प्रत्यागत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनमकथयत्-“भोः श्रेष्ठिन्। दीयतां मे सा निक्षेपतुला।” (अपने नगर को लौटकर जीर्णधन ने सेठ से कहा-“अरे सेठजी ! मेरी वह धरोहर रखी तराजू दे दीजिए।”)
प्रश्नः 7.
कः पुरुषाधमः कथ्यते? (कौन अधम पुरुष कहलाता है?)
उत्तरम् :
यः विभवहीनः सन् स्ववीर्यतः भुक्ते स्थाने वसति सः पुरुषाधमः कथ्यते। (जो धनहीन होकर अपने पराक्रम से भोगे हुए स्थान पर रहता है वह अधम पुरुष कहलाता है।)
प्रश्न: 8.
लौहघटिता तुला कैः उपार्जिता आसीत् ? (लोहे की बनी हुई तराजू किनकी कमाई हुई थी?)
उत्तरम् :
लौहघटिता तुला जीर्णधनस्य पूर्वपुरुषैः उपार्जिता आसीत्। (लोहे की बनी तराजू जीर्णधन के पुरखों की कमाई हुई थी।)
प्रश्न: 9.
जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रं कुत्र प्राक्षिपत्? (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को कहाँ रख छोड़ा?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायां प्राक्षिपत्। (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को पर्वत की गुफा में रख छोड़ा।)
प्रश्न: 10.
स्नानोपकरणमादाय जीर्णधनेन सह कः अगच्छत? (स्नान की सामग्री लेकर जीर्णधन के साथ कौन गया?)
उत्तरम् :
स्नानोपकरणमादाय जीर्णधनेन सह श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः अगच्छत्। (स्नान की सामग्री लेकर जीर्णधन के साथ सेठ का पुत्र धनदेव गया।)
प्रश्न: 11.
जीर्णधन-श्रेष्ठिनौ विवदमानौ कुत्र गतौ? (जीर्णधन और सेठ झगड़ते हुए कहाँ गये?)
उत्तरम् :
जीर्णधन-श्रेष्ठिनौ विवदमानौ राजकुलं गतौ। (जीर्णधन और सेठ झगड़ते हुए राजदरबार में गये।)
प्रश्न: 12.
धर्माधिकारिभिः जीर्णधनः किमादिष्टः? (धर्माधिकारियों द्वारा जीर्णधन को क्या आदेश दिया गया?).
उत्तरम् :
धर्माधिकारिभिः जीर्णधन: आदिष्ट:-“भोः! समर्प्यतां श्रेष्ठिसुतः।” (धर्माधिकारियों द्वारा जीर्णधन को आदेश दिया गया-“अरे! सेठ का बेटा दे दो।”)
प्रश्न: 13.
सभ्यानामग्रे आदितः सम्पूर्णं वृत्तान्तं कः निवेदयामास? (सभासदों के आगे आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त को किसने निवेदन किया?)
उत्तरम् :
सभ्यानामग्रे आदितः सम्पूर्णं वृत्तान्त जीर्णधनः निवेदयामास। (सभासदों के आगे आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त जीर्णधन ने निवेदन किया।)
प्रश्न: 14.
न्यायाधिकारिणां शङ्का निवारयितुं जीर्णधनः किम् उदतरत्? (न्यायाधिकारियों की शंका का निवारण करने के लिए जीर्णधन ने क्या उत्तर दिया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः उदतरत्-“यत्र लौहतुलां मूषकाः खादन्ति, तत्र श्येनेन बालकस्य हरणे का शङ्का?” (जीर्णधन ने उत्तर दिया-“जहाँ लोहे की तराजू को चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज द्वारा बालक के हरण करने में क्या शंका?”)
प्रश्न: 15.
कः पुरुषाधमः? (अधमपुरुष कौन है?)
उत्तरम् :
यस्मिन् देशे स्थाने वा स्ववीर्यतः भोगान् भुक्त्वा स्थितः तस्मिन् स्थाने विभवहीनो यः वसेत् सः पुरुषाधमः। (जिस देश या स्थान पर अपने पराक्रम से भोग कर रह चुका हो, उस स्थान पर वैभवरहितं (निर्धन) होकर रहे, वह पुरु अधम है।)
प्रश्न: 16.
जीर्णधनानुसारं कीदृशोऽयं संसार:? (जीर्णधन के अनुसार यह संसार कैसा है?)
उत्तरम् :
जीर्णधनानुसारम् अयं संसार: नाशवान् यतः न किञ्चित् अत्र शाश्वतमस्ति। (जीर्णधन के अनुसार यह संसार नाशवान है, क्योंकि यहाँ कोई वस्तु शाश्वत नहीं है।)
प्रश्न: 17.
श्रेष्ठिनः पुत्रस्य किन्नाम आसीत्? (सेठ के बेटे का क्या नाम था?) उत्तरम् : श्रेष्ठिनः पुत्रस्य नाम धनदेवः आसीत्। (सेठ के बेटे का नाम धनदेव था।)
प्रश्न: 18.
स्नानं कृत्वा प्रत्यागतं जीर्णधनं श्रेष्ठिपुत्रं किमपृच्छत्? (स्नान कर लौटे जीर्णधन से सेठ ने क्या पूछा?)
उत्तरम् :
भो अभ्यागत ! कथ्यताम् कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नर्दी गतः? (अरे अतिथि! कहो मेरा बेटा जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था, कहाँ है?)
रेखांकित पदान्यधिकृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण करो-)
प्रश्न: 1.
आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक् पुत्रः। (किसी कस्बे में जीर्णधन नाम का एक बनिया का बेटा रहता था।)
उत्तरम् :
कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने किन्नाम वणिकपुत्रः आसीत् ? (किसी कस्बे में किस नाम का बनिया का बेटा रहता था?)
प्रश्न: 2.
स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुम् इच्छति। (और वह वैभव नष्ट हो जाने के कारण परदेश जाना चाहता है।)
उत्तरम् :
सच कस्मात् देशान्तरं गन्तुम् इच्छति? (और वह किस कारण से परदेश जाना चाहता है?)
प्रश्न: 3.
तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। (और उसके घर लोहे से गढ़ी (बनी) हुई पुरखों द्वारा उपार्जित तराजू थी।)
उत्तरम् :
तस्य च गृहे लौहघटिता कैरुपार्जिता तुला आसीत् ? (और उसके घर में किनके द्वारा उपार्जित की गई तराजू थी?)
प्रश्न: 4.
तुला मूषकैः भक्षितम्। (तराजू चूहों ने खा ली।)
उत्तरम् :
तुला कैः भक्षितम्? (तराजू किसने खा ली?)
प्रश्नः 5.
तुला निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (तराजू को रखकर परदेश चला गया।)
उत्तरम् :
तुलां निक्षेपभूतां कृत्वा कुत्र प्रस्थितः? (तराजू को रखकर कहाँ प्रस्थान कर गया?)
प्रश्न: 6.
स्वपुरम् आगत्य सः श्रेष्ठिनम् अवदतु। (अपने नगर आकर वह सेठजी से बोला।)
उत्तरम् :
स्वपुरम् आगत्य सः कम् अवदत् ? (अपने नगर आकर वह किससे बोला?)
प्रश्नः 7.
स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्। (वह सेठ अपने पुत्र से बोला।)
उत्तरम् :
स श्रेष्ठी कम् अवदत् ? (वह सेठ किससे बोला?)
प्रश्न: 8.
धनदेवः स्नानोपकरणमादाय तेन सह प्रस्थितः। (धनदेव नहाने की सामग्री लेकर उसके साथ प्रस्थान कर गया।)
उत्तरम् :
धनदेवः किम् आदाय तेन सह प्रस्थितः? (धनदेव क्या लेकर उसके साथ प्रस्थान कर गया?)
प्रश्न: 9.
शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य गृहमागतः। (बच्चे को पर्वत की गुफा में डालकर घर आ गया।)
उत्तरम् :
शिशुं कुत्र प्रक्षिप्य गृहमागतः? (बच्चे को कहाँ डालकर घर आ गया?)
प्रश्नः 10.
द्वारं बृहत् शिलया आच्छादितवान्। (द्वार को विशाल शिला से ढंक दिया।)
उत्तरम् :
द्वारं कया आच्छादितवान् ? (दरवाजे को किससे ढंक दिया?)
प्रश्न: 11.
पुत्रः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः। (पुत्र नदी के किनारे से बाज द्वारा हर लिया गया।)
उत्तरम् :
पुत्रः नदीतटात् केन अपहृतः? (बेटा नदी के किनारे से किसने हरण कर लिया?)
प्रश्न: 12.
पुत्रः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः। (पुत्र नदी के किनारे से बाज ने हर लिया।)
उत्तरम् :
पुत्रः कुतः श्येनेन अपहृतः? (बेटा कहाँ से बाज ने हर लिया?)
प्रश्न: 13.
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। (इस प्रकार विचार करते हुए वे दोनों राजदरबार को गये।)
उत्तरम् :
एवं किं कुर्वाणौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ? (इस प्रकार क्या करते हुए वे दोनों राजदरबार को गये?)
प्रश्न: 14.
तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्। (वहाँ सेठ जोर से बोला।)
उत्तरम् :
तत्र श्रेष्ठी कथम् अवदत्? (वहाँ सेठ कैसे बोला?)
कथा-क्रम-संयोजनम्
अधोलिखितानि वाक्यानि पूर्वानुक्रमशः लिखित्वा कथा-क्रम-संयोजनं कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों को पूर्वानुक्रम से लिखकर कथा-क्रम संयोजन कीजिये-)
1. जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रेण सह नर्दी स्नातुमगच्छत्, तत्र श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायामक्षिपत् ।
2. स आह-“नदीतटात् श्येनेन हृतः।”
3. “कुत्र मे पुत्रः?” इति श्रेष्ठिना पृष्टम्।
4. तौ राजकुलं गतौ, वृत्तान्तं च अकथयताम्।
5. न्यायाधिकारिणः सर्वं श्रुत्वा तुला-शिशु-प्रदानेन तौ सन्तोषितौ।
6. “सा तु मूषकैः खादिता” इति श्रेष्ठिनोक्तम्।
7. निर्धनः जीर्णधन: लौहतुलां श्रेष्ठिनो गृहे निक्षिप्य देशान्तरं प्रस्थितः।
8. पर्यटनात् प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत्। .
उत्तरम् :
1. निर्धन: जीर्णधनः लौहतुलां श्रेष्ठिनो गृहे निक्षिप्य देशान्तरं प्रस्थितः।
2. पर्यटनात् प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत्।
3. “सा तु मूषकैः खादिता” इति श्रेष्ठिनोक्तम्।
4. जीर्णधनः श्रेष्ठिपुत्रेण सह नर्दी स्नातुमगच्छतु, तत्र श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायामक्षिपत्।
5. “कुत्र मे पुत्र:?” इति श्रेष्ठिना पृष्टम्।
6. स आह- “नदीतटात् श्येनेन हृतः।”
7. तौ राजकुलं गतौ, वृत्तान्तं च अकथयताम्।
8. न्यायाधिकारिणः सर्वं श्रुत्वा तुला-शिशु-प्रदानेन तौ सन्तोषितौ।
योग्यताविस्तारः
ग्रन्थ परिचय-महाकवि विष्णुशर्मा (200 ई. से 600 ई. के मध्य) ने राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ पाँच भागों में विभाजित है। इन्हीं भागों को ‘तन्त्र’ कहा गया है। पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र (भाग) हैं-मित्रभेदः, मित्रसंप्राप्तिः, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाशः और अपरीक्षितकारकम्। इस ग्रन्थ में अत्यन्त सरल शब्दों में लघु कथाएँ दी गयी हैं। इनके माध्यम से ही लेखक ने नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।
भावविस्तारः
‘लौहतुला’ नामक कथा में दी गयी शिक्षा के सन्दर्भ में इन सूक्तियों को भी देखा जाना चाहिए।
1. न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। (न कोई किसी का मित्र है (और) न कोई किसी का शत्रु है। व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बनते हैं।)
व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा।
2. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (स्वयं को प्रतिकूल लगने वाले (अच्छे न लगने वाले) आचरण दूसरों के साथ नहीं करने चाहिए)
भाषिकविस्तारः
1. तसिल् प्रत्यय-पञ्चमी विभक्ति के अर्थ में तसिल् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
यथा- ग्रामात् – ग्रामत: (ग्राम + तसिल).
आदेः – आदितः (आदि + तसिल)
यथा- छात्रः विद्यालयात् आगच्छति।
छात्रः विद्यालयतः आगच्छति।
इसी प्रकार – गृह + तसिल – गृहतः – गृहात्।
तन्त्र + तसिल – तन्त्रतः – तन्त्रात्।
प्रथम + तसिल – प्रथमतः – प्रथमात्।
आरम्भ + तसिल – आरम्भतः – आरम्भात्।
2. अभितः, परितः, उभयतः, सर्वतः, समया, निकषा, हा और प्रति के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
यथा – गृहम् अभितः वृक्षाः सन्ति।
विद्यालयम् परितः द्रुमाः सन्ति।
ग्रामम् उभयतः नद्यौ प्रवहतः।
हा दुराचारिणम्।
क्रीडाक्षेत्रं निकषा तरणतालम् अस्ति।
बालकः विद्यालयम् प्रति गच्छति।
नगरम् समया औषधालयः विद्यते।
ग्रामम् सर्वतः गोचारणभूमिः अस्ति।
योग्यताविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
विष्णुशर्मा का कार्य-काल क्या माना गया है?
उत्तर :
200 ई. से 600 ई. के मध्य तक।
प्रश्न 2.
विष्णुशर्मा का ‘अमरकथा-ग्रन्थ’ कौन-सा है?
उत्तर :
पञ्चतन्त्र।
प्रश्न 3.
‘पञ्चतन्त्र’ किसकी रचना है अथवा ‘पञ्चतन्त्र’ के लेखक कौन थे?
उत्तर :
पं. विष्णुशर्मा।
प्रश्न 4.
‘पञ्चतन्त्र’ किस प्रयोजन से लिखा गया था?
उत्तर :
‘पञ्चतन्त्र’ राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से लिखा गया था।
प्रश्न 5.
‘पञ्चतन्त्र’ के कितने तन्त्र (भाग) है? नाम लिखिए।
उत्तर :
पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र (भाग) हैं –
मित्रभेदः
मित्रसम्प्राप्तिः
काकोलूकीयम्
लब्धप्रणाशः
अपरीक्षित कारकम्।
प्रश्न 6.
लेखक का इस ग्रन्थ को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है?
उत्तर :
लेखक का इस ग्रन्थ को लिखने का मुख्य उद्देश्य नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन करने का रहा है।
भावविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लौहतुला’ कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
‘लौहतुला’ कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि संसार में मनुष्य के मित्र और शत्रु व्यवहार से होते हैं तथा जो कार्य । अपने प्रतिकूल हो दूसरों के लिए उसका आचरण नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 2.
निम्न सूक्तियों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
(क) न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। ”
व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा।
अनुवाद – न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु है। शत्रु और मित्र तो व्यवहार से ही बनते हैं।
(ख) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
अनुवाद – अपने प्रतिकूल कार्य दूसरों के साथ नहीं करने चाहिए।
भाषिकविस्तार पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. नी, प्रच्छ तथा दा धातुओं में ‘क्त’ प्रत्यय लगाकर शब्द-रचना कीजिए
उत्तर :
नी + क्त = नीतः, प्रच्छ् + क्त = पृष्टः, दा + क्त = दत्तः निम्न शब्दों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजिए पृष्टवान्, दत्तवती, दानीयम्, नेतव्यम्, नयनम्, दाता, प्रष्टव्यम्, देयम्, नेता, दानम्।
उत्तर :
प्रच्छ् + क्तवतु = पृष्टवान् (पु.)
दा. + क्तवतु = दत्तवती (स्त्री.)
दा + अनीयर् = दानीयम् (नपुं.)
नी+ तव्यत् = नेतव्यम् (नपुं.)
नी + ल्युट् = नयनम् (नपुं)
दा + तृच् = दाता (पु.)
प्रच्छ् + तव्यत् = प्रष्टव्यम् (नपुं.)
दा + यत् = देयम् (नपुं.)
नी + तृच् = नेता (पु.)
दा + ल्युट् = दानम् (नपुं.)
3. निम्न शब्दों में तसिल्’ प्रत्यय लगाकर शब्द-रचना कीजिए
ग्राम, आदि, सर्व, परि, काल, तद्, यद्, किम्, प्रथम, आरम्भ ।
उत्तर :
ग्राम + तसिल = ग्रामतः
आदि + तसिल = आदितः
सर्व + तसिल = सर्वतः
परि + तसिल = परितः
काल + तसिल = कालतः
तद् + तसिल = ततः
यद् + तसिल = यतः
किम् + तसिल = कुतः
प्रथम + तसिल = प्रथमतः
आरम्भ+ तसिल = आरम्भतः
4. अभि, परि, सर्व तथा उभय अव्ययों में तसिल् प्रत्यय लगाइये-
अभि + तसिल् = अभितः
परि + तसिल = परितः
सर्व + तसिल = सर्वतः ।
उभय + तसिल = उभयतः
5. निम्न शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-समया, निकषा, सर्वतः, परितः, उभयतः, हा, अभितः, प्रति।
उत्तर :
ग्रामं समयां विद्यालयः अस्ति। (गाँव के समीप विद्यालय है।)
विद्यालयं निकषा एव चिकित्सालयः अस्ति। (विद्यालय के समीप ही चिकित्सालय है।)
पुष्पं सर्वतः जलमस्ति। (फूल के सभी ओर पानी है।)
नगरं परितः परिखा अस्ति। (नगर के चारों ओर खाई है।)
कृष्णम् उभयतः गोपाः सन्ति। (कृष्ण के दोनों ओर ग्वाले हैं।)
हा दुर्जनम्। (दुर्जन होने का अफसोस है।)
भवनम् अभितः वृक्षाः सन्ति। (भवन के दोनों ओर वृक्ष हैं।)
त्वं नित्यमेव कूपं प्रति कथं गच्छसि? (तुम रोजाना ही कुएँ की ओर क्यों जाते हो?)
लौहतुला Summary and Translation in Hindi
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से संकलित है। सरल संस्कृत भाषा में नीति की शिक्षा देने वाले कथा-ग्रन्थों में ‘पञ्चतन्त्र’ का अत्यधिक महत्त्व है। इस ग्रन्थ में विष्णु शर्मा ने एक राजा के तीन मूर्ख पुत्रों को छह माह में राजनीति और व्यवहार में कुशल बनाने के लिए कहानियाँ कही हैं। यह ग्रन्थ पाँच तन्त्रों (भागों) में विभक्त है-(1) मित्रभेद (2) मित्रसम्प्राप्ति (3) काकोलूकीय (4) लब्धप्रणाश तथा (5) अपरीक्षित कारक। प्रत्येक तन्त्र में एक मुख्य कथा है तथा उसके भीतर अवान्तर कथाएँ हैं। कथाओं को परस्पर ऐसा था गया है कि एक कथा के अन्त में दूसरी कथा का सङ्केत हो जाता है। इसका स्वरूप गद्य-पद्यात्मक है। सामान्यतः कथा गद्य में और नैतिक शिक्षा पद्य में है जिनमें से अधिकांश श्लोक विभिन्न नीतिग्रन्थों से उद्धृत किये गये हैं।
पाठ का सारांश – किसी नगर में एक जीर्णधन नाम का व्यापारी रहता था। धन के अभाव में वह गरीब हो गया था। उसने सोचा, जहाँ व्यक्ति समृद्ध जीवन व्यतीत कर चुका हो वहाँ अभावपूर्ण जीवन व्यतीत नहीं करना चाहिए। उसके पास एक लोहे की तराजू थी। वह उसे एक सेठ के पास धरोहर के रूप में रखकर अन्य स्थानों पर भ्रमण करने के लिए निकल गया।
देशाटन से लौटकर जब जीर्णधन ने अपनी तराजू माँगी तो सेठ ने कह दिया – “तराजू तो नहीं है, उसे तो चूहे खा गये।” व्यापारी ने कहा-“कोई बात नहीं, अब तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ स्नान की सामग्री लेकर भेज दो ताकि मैं स्नान कर अन्य दैनिक कार्य सम्पन्न कर सकूँ।” सेठ ने अपने पुत्र को उसके साथ नदी पर भेज दिया। वहाँ सौदागर ने उसे पर्वत की एक गुफा में छुपाकर शिला से ढंक दिया तथा सेठ के घर आ गया। सेठ ने पूछा-“मेरा बेटा कहाँ है?” जीर्णधन बोला-“तुम्हारे बेटे को बाज उठा ले गया।” सेठ ने कहा-“यह असम्भव है।”
दोनों झगड़ते-झगड़ते राजा के दरबार में पहुँच गये। राजा ने जीर्णधन से सेठ के पुत्र को लौटाने के लिए कहा। जीर्णधन ने कहा- “श्रीमन! जहाँ चहे लोहे की तराज को खा सकते हैं वहाँ यदि बाज बालक को उठा ले जाये तो है? न्यायाधिकारी के पूछने पर जीर्णधन व्यापारी ने सम्पूर्ण घटना बता दी। तब न्यायाधिकारी ने सम्पूर्ण घटना को सूक्ष्म दृष्टि से परखकर जीर्णधन व्यापारी को उसकी तराजू तथा सेठ को उसका बेटा वापस करवा दिया।
1. आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् –
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥
शब्दार्थाः – आसीत् = अवर्तत (था), कस्मिंश्चिद = कुत्रचित् (किसी), अधिष्ठाने = स्थाने (स्थान पर), जीर्णधनो नाम = जीर्णधनाभिधः (जीर्णधन नाम का ), वणिकपुत्रः = व्यापारिसुतः (व्यापारी का पुत्र), स च = असौ च (और वह), विभवक्षयात् = धनाभावात्(धन के अभाव में/धन नष्ट हो जाने के कारण), देशान्तरम् = अन्यस्थानं (दूसरे स्थान पर), गन्तुमिच्छन् = प्रयातुकामः (जाने की इच्छा वाला), व्यचिन्तयत् = चिन्तितवान् (सोचने लगा), यत्र = यस्मिन् स्थाने (जिस स्थान पर), स्ववीर्यतः = स्वपराक्रमेण (अपने पराक्रम से), भोगाः = भोग्यानि वस्तूनि (भोगने योग्य वस्तुएँ), भुक्ताः = उपभुक्तानि (उपभोग किया गया), तस्मिन् देशे = तस्मिन् स्थाने (उस स्थान पर), विभवहीनः = धनरहित: (निर्धन होकर), यः = जो, वसेत् = निवसेत् (निवास करे), सः = असौ (वह), पुरुषाधमः = अधमः पुरुषः (नीच व्यक्ति है।)
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।
प्रसङ्ग – इस गद्यांश में व्यापारी पुत्र जीर्णधन निर्धन हुआ आत्मग्लानि का अनुभव करता हुआ उस स्थान पर ठहरना नहीं चाहता है, जहाँ उसने समृद्ध जीवन व्यतीत किया है।
अनुवाद – किसी स्थान पर जीर्णधन नाम का एक व्यापारी का पुत्र रहता था और वह धनाभाव के कारण दूसरे स्थान पर जाने का इच्छुक सोचने लगा- “जिस स्थान पर अपने पराक्रम से भोगने योग्य वस्तुओं का उपभोग किया है, उस स्थान पर निर्धन होकर जो निवास करे, वह अधम पुरुष होता है।”
संस्कत-व्यारव्याः
सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्या:’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं.विष्णुशर्मा रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ विष्णु शर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ ‘मित्रभेद’ तन्त्र से संकलित है।)
प्रसङ्गः – गद्यांशेऽस्मिन् वणिक्पुत्रः जीर्णधनः निर्धनः सन् आत्मग्लानिमनुभवन् तस्मिन् स्थाने न स्थातुमिच्छति, यत्र तेन समद्धं जीवनं यापितम्। (इस गद्यांश में वणिक पुत्र जीर्णधन निर्धन हुआ आत्मग्लानि का अनुभव करता हुआ उस स्थान पर नदी रहना चाहता है जहाँ उसने समृद्ध जीवन व्यतीत किया था।
व्याख्या: – कुत्रचित् स्थाने जीर्णधनाभिधः व्यापारिसुतः अवर्तत। असौ च धनाभावात् अन्यस्थानं प्रयातुकामः चिन्तितवान्-“यस्मिन् स्थाने स्वपराक्रमेण भोग्यानि वस्तूनि उपभुक्तानि तस्मिन् स्थाने धनाभावग्रसितः सन् यो निवसेत्, असौ अधमः पुरुषः भवति।” (कहीं जीर्णधन नामक वणिक् पुत्र था। वह धनाभाव के कारण अन्य स्थान पर जाने का इच्छुक सोचने लगा- “जिस स्थान पर अपने पराक्रम से भोगने योग्य वस्तुओं का उपभोग किया उस स्थान पर धनाभाव-ग्रसित होकर नहीं रहना चाहिए। वह पुरुष अधम (नीच) होता है।)
अवबोधन कार्यम
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) वणिक पुत्रस्य किन्नाम आसीत् ? (वणिक पुत्र का क्या नाम था?)
(ख) जीर्णधन: देशान्तरं कस्मात् अगच्छत् ? (जीर्णधन परदेश क्यों गया?)
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मनुष्यः कुत्र न वसेत् ? (मनुष्य को कहाँ नहीं बसना चाहिए?)
(ख) जीर्णधनः किं विचिन्तयत्? (जीर्णधन ने क्या सोचा?)
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘तस्मिन् विभवहीनो न वसेत्’ अत्र तस्मिन् इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(तस्मिन् विभवहीनो न वसेत्’ यहाँ तस्मिन् सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘आसीत्’ इति क्रियापदं लट्लकारे वर्तमान काले वा लिखत ।
(‘आसीत्’ क्रियापद को लट्लकार वर्तमान काल में लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) जीर्णधनः ।
(ख) विभवक्षयात् (गरीब होने के कारण)।
(2) (क) यत्र भोगाः युक्ता तत्र विभवहीनो न वसेत्।
(जहाँ भोग भोगे हैं। वहाँ वैभवहीन होने पर नहीं रहना चाहिए।)
(ख) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
(जीर्णधन ने विभवहीन होने के कारण विदेश : जाने की सोची।)
(3) (क) स्थाने (स्थान पर)।
(ख) अस्ति (है)।
2. तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पनः स्वपरम आगत्य तं श्रेष्ठिनम अवदत-“भोः श्रेष्ठिन! दीय मे सा निक्षेपतुला।” सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति। जीर्णधनः अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैः भक्षिता। ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशं. धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति।
शब्दार्थाः – तस्य च = अमुष्य च (और उसके) गृहे = सदने (घर में), लौहघटिता = अयोनिर्मिता (लोहे से बनी हुई), पूर्वपुरुषोपार्जिता = पूर्वजैरर्जिता, (पुरखों द्वारा कमाई हुई), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), आसीत् = अवर्तत (थी), तां च = और उसको, कस्यचित् = (किसी) श्रेष्ठिनो = महाजनस्य (सेठ के), गृहे = सदने (घर में), निक्षेपभूतां कृत्वा = न्यासः कृत्वा (धरोहर के रूप में रखकर), देशान्तरम् = अन्यं देशं (दूसरे स्थान पर), प्रस्थितः = प्रस्थानं कृतवान् (प्रस्थान कर गया) ततः = तदा (तब), सुचिरं कालम् = सुदीर्घकालपर्यन्तम् (बहुत लम्बे समय तक),
देशान्तरम् = अन्यत्र (दूसरे स्थानों पर), यथेच्छया = इच्छानुसारेण (इच्छा के अनुसार), भ्रान्त्वा = भ्रमणं कृत्वा, देशाटनं कृत्वा (घूमकर), पुनः = ततः (फिर), स्वपुरम् = स्वनगरम् (अपने नगर को), आगत्य = आगम्य/प्रत्यागम्य/प्राप्य (आकर), तम् = अमुम् (उस), श्रेष्ठिनम् = धनिकम् (सेठ से), अवदत् = अकथयत् (कहा), भोः! = रे! (अरे!), श्रेष्ठिन्! = धनिक! (सेठजी!), दीयताम् = देहि (दे दो), मे सा = मह्यम् असौ (मुझे वह), निक्षेपतुला = न्यासकृतं तोलनयन्त्रम्, (धरोहर रखी तराजू), सोऽवदत् = असौ अकथयत् (वह बोला/उसने कहा),
भोः! = रे! (अरे!), नास्ति सा = असौ (तुला) न वर्तते (वह तराजू नहीं है), त्वदीया = तव/भवदीया (तेरी/आपकी), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), मूषकैः = आखुभिः (चूहों द्वारा), भक्षिता – = खादिता (खा ली गई/खा ली), इति = एवं (इस प्रकार), जीर्णधनः अवदत् = अकथयत् (जीर्णधन बोला), भोः श्रेष्ठिन्! = हे धनिक ! (अरे सेठ जी!), नास्ति = न वर्तते (नहीं), दोषस्तेः = तव अपराधः (तेरा/तुम्हारा दोष), यदि मूषकैः = यदि आखुभिः (यदि चूहों द्वारा), भक्षिता = खादिता (खा ली गई), ईदृशः एव = एवमेव/एतादृश एव (ऐसा ही है), अयं संसारः = इदं जगत् (यह संसार),
न = (नहीं), किञ्चिदत्र = अत्र किमपि (यहाँ, इस संसार में कुछ भी), शाश्वतमस्ति = अविनश्वरम् वर्तते (अविनाशी है/सदा स्थायी रहने वाला है), परमहँ = परञ्च अहम् (लेकिन मैं), नद्याम् = सरिति (मैं नदी में), स्नानार्थम् = स्नातुं (नहाने के लिए), गमिष्यामि = यास्यामि (जाऊँगा), तत् = तदा (तो), त्वम् = भवान् (आप), आत्मीयम् = स्वकीयम् (अपने), एनम् = इमम् (इस), शिशुम् = बालकं (बालक को), धनदेवनामानम् = धनदेवाभिधम् (धनदेव नाम के), मया सह = मया सार्धम् (मेरे साथ), स्नानोपकरणहस्तम् = अभिषेकसामग्री हस्ते निधाय (नहाने की सामग्री हाथ में लेकर), प्रेषय = गमनाय आदिश (भेज दो)।
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्रम्’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहता है कि लोभ से घिरा मनुष्य झूठ बोलना आदि अनेक पाप करता है। सेठ तुला को लेने के लिए असंभव झूठ बोलता है।
अनुवाद – उस जीर्णधन के घर में पुरखों द्वारा कमाई हुई एक लोहे की बनी हुई तराजू थी और वह उसे किसी धनवान् के घर में धरोहर के रूप में रखकर अन्य स्थान पर प्रस्थान कर गया (रवाना हो गया)। तब लम्बे समय तक इच्छानुसार घूमकर अपने नगर में लौटकर उस धनवान् से कहा-“अरे! सेठ जी, मेरी वह धरोहर रखी तराजू दो।” उसने कहा-“अरे! वह तराजू तो नहीं है। तुम्हारी तराजू को तो चूहे खा गये।” जीर्णधन बोला-“हे धनिक जी, यदि (उसे) चूहों ने खा लिया तो तुम्हारा (कोई) अपराध नहीं है, यह संसार ऐसा ही है। यहाँ कुछ भी अविनाशी नहीं है। परन्तु अब मैं नदी में नहाने के लिए जाऊँगा तो आप अपने इस धनदेव नाम के बालक (पुत्र) को नहाने की सामग्री हाथ में लेकर मेरे साथ भेज दो।”
संस्कत-व्यारव्याः
सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्त्क ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ विष्णु शर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के मित्रभेद तन्त्र से संकलित है।
प्रसंग: – प्रस्तुतगद्यांशे लेखकः कथयति यत् लोभाविष्टः जनः मिथ्याभाषणादीनि अनेकानि पापानि सम्पादयति। श्रेष्ठी तुलां गृहीतुम् असंभावनीयम् असत्यं वदति। (इस गद्यांश में लेखक कहता है कि लोभ में पड़ा व्यक्ति झूठ आदि बोलकर अनेक पाप करता है। सेठ तराजू को लेने के लिए असम्भव असत्य बोलता है।)
व्याख्या: – अमुष्य जीर्णधनस्य च सदने पूर्वजैः अर्जितम् एकम् अयोनिर्मितं तोलनयन्त्रम् अवर्तत। अमुं च कस्यचित् धनिकस्य सदने न्यासः कृत्वा सः (जीर्णधन:) अन्यदेशं (स्थान) प्रस्थानमकरोत्। तदा सुदीर्घसमयपर्यन्तम् अन्यदेशम्. इच्छानुसारेण भ्रमणं कृत्वा स्वनगरं प्रत्यागम्य (प्राप्य) अमुम् धनिकमवदत्-“रे धनिक! मह्यमसौ न्यासीकृतं तोलनयन्त्रं देहि।” सः अवदत्- “रे! असौ तुला न वर्तते। तव तोलनयन्त्रं तु आखुभिः खादितम्।” जीर्णधनः अवदत्-“हे धनिक ! मम तोलनयन्त्रं चेद् आखुभिः खादितं तर्हि तव अपराधः नास्ति। इदं जगत् एतादृशमेव अस्ति। इह किमपि अविनश्वरं न वर्तते। परञ्च अहं सरिति स्नातुं यास्यामि।
तदा भवान् स्वकीयम् इमम् धनदेवाभिधं बालकं अभिषेकसामग्री हस्ते निधाय मया सार्धं गमनायादिश।” (इस जीर्णधन के घर में पूर्वजों द्वारा प्राप्त की हुई एक लोहे से बनी हुई तराजू थी। इसको किसी धनवान के घर में धरोहर के रूप में रखकर वह जीर्णधन अन्य स्थान पर चला गया। जब लम्बे समय तक अन्य देश में भ्रमण कर अपने नगर को लौटा तो उस धनिक से कहा- “अरे धनिक ! मेरी वह धरोहर रखी हुई तराजू दे दो।” वह बोला-“अरे वह तराजू तो नहीं है। तुम्हारी तराजू को तो चूहे खा गये।” जीर्णधन बोला-“रे धनिक ! मेरी तराजू यदि चूहों ने खा ली तो तुम्हारा क्या अपराध। यह संसार ऐसा ही है, इसमें कुछ भी अविनाशी नही है।”)
अवबोधन कार्यम्
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) जीर्णधनस्य गृहे पूर्व पुरुषैः उपार्जिता का आसीत् ? (जीर्णधन के घर में पुरखों द्वारा अर्जित क्या थी?)
(ख) श्रेष्ठि-अनुसारं लोहतुला केन खादितम् ? (सेठ के अनुसार लोहे की तराजू किसने खा ली?)
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिये)
(क) जीर्णधनेन तुला कुत्र निक्षिप्ता? (जीर्णधन ने तराजू कहाँ रख दी?)
(ख) विभवहीनस्य जीर्णधनस्य गृहे किम् अवशिष्टमासीत्? (विभवहीन जीर्णधन के पास क्या शेष बचा था?)
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘आदीयताम्’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् लिखत। (‘आदीयताम्’ पद का विलोम पद गद्यांश से लिखिए।)
(ख) ‘खादिता’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशात् चिनुत। (‘खादिता’ पद का समानार्थी गद्यांश से चुनिए।)
उत्तराणि-
1.(क) लौहतुला (लोहे की तराजू)
(ख) मूषकैः (चूहों द्वारा)
2. (क) जीर्णधन तुलां कस्यचित श्रेष्ठिनः गृहे निक्षेप भूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थित। (जीर्णधन तुला को किसी सेठ के घर रखकर विदेश चला गया।)
(ख) विभवहीनस्य जीर्णधनस्य गृहे लौहघटिता पूर्व पुरुषोपार्जिता तुला एव अवशिष्टा। (विभवहीन जीर्णधन के घर में लोहे की बनी पुरखों द्वारा प्राप्त हुई. एक तराजू बची।)
3. (क) दीयताम् (दिया जाना चाहिए)।
(ख) भक्षिता (खा ली गई)।
3. स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्-“वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ” इति।
अथासौ श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः।।
सः श्रेष्ठी पृष्टवान्-“भोः अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र में शिशः यः त्वया सह नदीं गतः”? इति।
स अवदत्-“तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः’ इति। श्रेष्ठी अवदत् – “मिथ्यावादिन्! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।” इति।
सोऽकथयत्-“भोः सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति। तदर्पय में तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति।
शब्दार्थाः – सः श्रेष्ठी = असौ धनिकः (वह सेठ), स्वपुत्रम् अवदत् = स्वकीयमात्मजमवदत् (अपने पुत्र से बोला)-“वत्स!, = पुत्रक! (बेटा!), पितृव्योऽयंः = पितुः भ्राताष्स (यह चाचा), तव = ते (तेरा), स्नानार्थम् = स्नातुम् (नहाने के लिए), यास्यति = गमिष्यति (जायेगा), तद् = ततः (तो), अनेन साकम् = एतेन सह (इसके साथ), गच्छ = याहि (जाना चाहिए/जाओ), अथासौ = ततः सः (इसके बाद वह), श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः = व्यापारिसुतः (बनिया का बेटा), स्नानोपकरणमादाय = अभिषेकसामग्री नीत्वा (नहाने का सामान लेकर), प्रहृष्टमनाः = प्रसन्नचित्तः (प्रसन्नचित्त हुआ), तेन = अमुना (उस), अभ्यागतेन सह = अतिथिना सार्धम् (अतिथि के साथ), प्रस्थितः = प्रस्थानमकरोत् (रवाना हो गया),
तथानुष्ठिते = एवं सम्पादिते कृते (ऐसा करने पर), स: वणिक् = असौ व्यापारी (वह व्यापारी), स्नात्वा = स्नानं कृत्वा (स्नान करके/नहा करके), तं शिशुम् = अमुं बालकम् (उस बालक को), गिरिगुहायाम् = पर्वतदाँ (पर्वत की गुफा में), प्रक्षिप्य = धृत्वा (रखकर), तद्वारम् = तस्याः द्वारम् (उसके दरवाजे को), बृहत् शिलाया आच्छाद्य = विशालप्रस्तरपट्टेनापिधाय (विशाल शिला से ढंककर), सत्वरम् = क्षिप्रम् (शीघ्र), गृहमागतः = सदनं प्राप्त:/आयातः (घर आ गया), सः = असौ (वह), श्रेष्ठी = धनिकः, (धनवान) पृष्टवान् = च अपृच्छत् (और पूछा गया),
भोः अभ्यागत! = हे अतिथे! (हे अतिथि जी!) कथ्यताम् = वदत/कथय (बोलो/कहो), कुत्र = कस्मिन् स्थाने (कहाँ है), मे शिशुः = मम बालकः (मेरा बच्चा), यः त्वया सह = यः भवता सार्धम् (जो आपके साथ), नदीम् = सरितम् (नदी पर), गतः = यातः (गया था), स अवदत् = असौ अवदत् (वह बोला), तव पुत्रः = ते सुतः (तुम्हारा पुत्र), नदीतटात् = सरितः तीरात् (नदी के किनारे से), श्येनेन = हिंसकप्रकृतिपक्षिविशेषः तेन (हिंसक पक्षी विशेष बाज के द्वारा), हतः = अपहृतः (अपहरण कर लिया गया है), श्रेष्ठी अवदत् = धनिकोऽवदत् (सेठ बोला), मिथ्यावादिन्! = असत्यवादिन्! (मिथ्यावादी/झूठा!) किम् = अपि (क्या),
क्वचित् = कुत्रचित् (कहीं), श्येनो = बाज, बालम् = शिशुम् (बालक को), हर्तुं शक्नोति = हरणाय क्षमः (अपहरण करने में समर्थ है), तत् = तर्हि (तो), समर्पय = देहि (दे दो/लौटा दो), मे = मम (मेरे), सुतम् = पुत्रम् (बेटे को), अन्यथा = नो चेत् (नहीं तो), राजकुले = राजगृहे/न्यायाधिकरणे (राजदरबार में), निवेदयिष्यामि = निवेदनं करिष्यामि (निवेदन कर दूंगा/शिकायत कर दूंगा), सोऽकथयत् = असौ अवदत् (वह बोला), भोः सत्यवादिन्! = हे सत्यवक्तः! (हे सत्यवादी जी!), यथा = येन-प्रकारेण (जिस प्रकार से),श्येनो = बाज, बालम् = शिशुम् (बच्चे को), न नयति = नापहरति (नहीं ले जाता है), तथा = तेनैव प्रकारेण (उसी प्रकार), मूषका अपि = आखवोऽपि (चूहें भी), लौहघटिताम् = अयोनिर्मिताम् (लोहे की बनी), तुलाम् = तोलनयन्त्रम् (तराजू को), न भक्षयन्ति = न खादन्ति (नहीं खाते हैं), तदर्पय मे मम तोलनयन्त्रम् (तो मेरी तराजू दे दो), यदि दारकेण – यदि पुत्रेण (यदि पुत्र से), प्रयोजनम् = अर्थम् (प्रयोजन है)।
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा-रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीर्णधन असत्यवादी सेठ की भर्त्सना करता हुआ उसे अपने तर्कों से परास्त करता है । अनुवाद-वह सेठ अपने पुत्र से बोला-“बेटा ! यह तेरा चाचा नहाने के लिए जायेगा, तो इसके साथ जाओ।”
इसके बाद वह सेठ का बेटा नहाने का सामान लेकर प्रसन्नचित्त हुआ उस अतिथि के साथ रवाना हो गया। ऐसा करने पर वह व्यापारी नहाकर के उस बालक को पर्वत की गुफा में रखकर, उसके दरवाजे को विशाल शिला से ढंककर शीघ्र घर आ गया और सेठ के द्वारा पूछा गया-“अरे अतिथि! कहो, मेरा बालक जो आपके साथ नदी पर गया था, कहाँ है?” वह बोला-“नदी के किनारे से वह हिंसक पक्षी विशेष बाज के द्वारा अपहरण कर लिया गया है।” सेठ बोला-“झूठा! क्या कहीं बाज बालक को अपहरण करने में समर्थ है? तो बेटे को दे दो नहीं तो राजदरबार में शिकायत कर दूंगा।” वह बोला-“हे सत्यवादी! जिस प्रकार से बाज बच्चे को नहीं ले जाता है उसी प्रकार चूहे भी लोहे की बनी तराजू नहीं खाते हैं। यदि पुत्र से प्रयोजन है, तो मेरी तराजू दे दो।”
संस्कत-व्यारव्याः
सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘लौहतुला’ नामक पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ पं. विष्णु शर्मा द्वारा रचित पञ्चतन्त्र कथाग्रन्थ के मित्रभेद तन्त्र से संकलित है।)
प्रसंगः – प्रस्तुतगद्यांशे जीर्णधनः असत्यवादिनः श्रेष्ठिनः भर्त्सनां कुर्वन् स्वतर्केण तं परास्तं करोति। (प्रस्तुत गद्यांश में जीर्णधन झूठ बोलने वाले सेठ की भर्त्सना करते हुए अपने तर्क से उसे परास्त करता है।)
व्याख्या: – असौ धनिकः स्वकीयम् आत्मजम् अवदत्-“पुत्रक ! एषः ते पितुः भ्राता स्नातुं गमिष्यति, ततः एतेन सह गच्छेः।” ततः सः व्यापारिसुतः अभिषेकसामग्री नीत्वा प्रसन्नचित्तः अमुना अतिथिना सार्धं प्रस्थानम् अकरोत्। एवं सम्पादित कृते असौ अतिथि स्नानं कृत्वा अमुं बालकं पर्वतदयाँ धृत्वा तस्याः द्वारं विशाल प्रस्तरपट्टेन अपिधाय क्षिप्रं सदनम् आयातः। श्रेष्ठी च पृष्टवान्-“हे अतिथे! कथय, मम बालकः यः भवता सार्धं सरितं यातः कस्मिन् स्थाने (वर्तते)?” असौ अवदत्-“सरितः तीरात् असौ हिंसकखगेन श्येनेन अपहृतः।”
धनिकोऽवदत्- “हे असत्यवक्त: ! अपि कुत्रचित् हिंसकपक्षिविशेषः श्येनः शिशुं हरणाय क्षमः (भवति) तर्हि मम पुत्रं देहि नो चेत् न्यायाधिकरणे निवेदनं करिष्यामि।” सः अवदत्-“हे सत्यवक्तः! येन प्रकारेण हिंसकखगविशेषः श्येनः शिशुं नापहरति तेनैव प्रकारेण आखवोऽपि अयोनिर्मितं तोलनयन्त्रं न खादन्ति। यदि पुत्रेण प्रयोजनमस्ति, तर्हि देहि मम तोलनयन्त्रम्।” वह सेठ अपने बेटे से बोला-“बेटा ! ये तुम्हारे चाचा नहाने जायेंगे तो इनके साथ जाओ।”
तब वह व्यापारी का पुत्र नहाने का सामान लेकर प्रसन्नचित्त हुआ उस अतिथि के साथ प्रस्थान कर गया। ऐसा करने पर उस अतिथि ने स्नान करके उस बालक को पर्वत गुफा में रखकर उसके दरवाजे पर एक विशाल शिला ढककर शीघ्र घर आ गया। सेठ ने पूछा- हे अतिथि! कहो मेरा बालक जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था, वह कहाँ है? वह (अतिथि) बोला “नदी के किनारे से वह हिंसक पक्षी बाज द्वारा अपहरण कर लिया गया।” धनवान् बोला- अरे असत्यवादी ! क्या कहीं हिंसक पक्षी बाज बालक का अपहरण कर सकता है? जिस प्रकार से हिंसक पक्षी विशेष बाज बच्चे को अपहरण नहीं कर सकता उसी प्रकार चूहे भी लोहे की बनी तराजू नहीं खाते हैं। यदि बेटे से प्रयोजन है तो मेरी तराजू दे दो।)
अवबोधन कार्यम् –
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठि पुत्रस्य किं नाम आसीत्? (श्रेष्ठि पुत्र का क्या नाम था?)
(ख) जीर्णधनः धनदेवं कुत्र प्रक्षितवान् ? (जीर्णधन ने धनदेव को कहाँ छुपा दिया था?)
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) जीर्णधनः स्नानान्तरं किम् अकरोत् ? (जीर्णधन ने स्नान के बाद क्या किया?)
(ख) श्रेष्ठिगहमागत्य जीर्णधनः धनदेवस्य विषये किं कथितवान् (श्रेष्ठि के घर आकर जीर्णधन ने धनदेव के विषय में क्या कहा?)
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)
(क) ‘सत्यवादिन्’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत। (‘सत्यवादिन’ पद का विलोम गद्यांश से. चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘अतिथिः’ इति पदस्य पर्यायवाचिपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत। (‘अतिथि’ पद का समानार्थी पद गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
उत्तराणि :
1.(क) धनदेवः,
(ख) गिरिगुहायाम् (पर्वत की गुफा में)।
2. (क) जीर्णधनः श्रेष्ठि पुत्रं गिरिगुहाया प्रक्षिप्य तद्वारं वृहत् शिलया आच्छाद्य सत्वरं गृहमागततः। (जीर्णधन सेठ के पुत्र को पर्वत गुफा में फेंककर उसका द्वार को बड़ी शिला से ढककर शीघ्र ही घर आ गया।)
(ख) श्रेष्ठिगृहमागत्य जीर्णधनः अवदत्-‘तव पुत्रः नदी तटात् थ्येनेन हतः। (सेठ के घर आकर जीर्णधन
बोला-‘तुम्हारा पुत्र नदी किनारे से बाज़ ने हरण कर लिया।’)
3. (क) मिथ्यावादिन् (झूठा)
(ख) अभ्यागतः (अतिथि)।
4. एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्-“भोः! वञ्चितोऽहम्! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम! अनेन चौरेण मम शिशः अपहतः’ इति।
अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन् – “भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः”। सोऽवदत्-“किं करोमि? पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशुः अपहृतः। इति। तच्छुत्वा ते अवदन्-भोः! भवता सत्यं नाभिहितम्-किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति? सोऽअवदत्-भोः भोः! श्रूयतां मद्वचः
तुला लौहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं, नात्र संशयः॥ ते अपृच्छन्-“कथमेतत्”।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्व वृत्तान्तं न्यवेदयत्। ततः, न्यायाधिकारिणः विहस्य, तौ द्वावपि सम्बोध्य तुला-शिशुप्रदानेन तोषितवन्तः।
शब्दार्थाः – एवम् = इत्थम् (इस प्रकार से), विवदमानौ = कलहं कुर्वन्तौ (झगड़ते हुए), तौ द्वावपि = अमू उभावपि (वे दोनों ही), राजकलम = न्यायाधिकरणम् (राजा के दरबार को), गतौ = प्राप्तौ (पहँच गये). श्रेष्ठी = धनिकः (सेठ), तारस्वरेण = उच्चस्वरेण (जोर से/ऊँची आवाज में), अवदत् = अकथयत् (बोला), भोः! = रे! (अरे!) वञ्चितोऽहम् वञ्चितोऽहम्! = छलितोऽहम् छलितोऽहम्, अब्रह्मण्यम्! = अन्यायरूपम्, अनुचितम् (बड़ा अन्याय या अनुचित हुआ), अनेन चौरेण = एतेन स्तेनेन (इस चोर के द्वारा), मम शिशुः = मे पुत्रः/बालकः (मेरा बेटा), अपहृतः = चोरित:/हृतः (चुरा लिया गया है), अथ = ततः (इसके बाद), धर्माधिकारिणः = न्यायाधिकारिणः (न्यायाधिकारी लोग),
तम् अवदन् = अमुम् अवदन् (उससे बोले), भोः! = रे! (अरे!), समर्प्यताम् = देहि (दे दो), श्रेष्ठिसुतः = धनिकपुत्रः (सेठ का बेटा), सोऽवदत् = सः अकथयत् (उसने कहा), किं करोमि = किं कुर्याम् (क्या करूँ), पश्यतो मे = मयि पश्यति (मेरे देखते-देखते), नदीतटात् = सरितः तीरात् (नदी के किनारे से), श्वान = हिंसकखगेन श्येनेन (बाज के द्वारा), शिशुः बालकः (बालक), अपहृतः = हृतः/नीतः (ले जाया गया), तच्छ्रुत्वा = तन्निशम्य (उसे सुनकर), ते = अमी (वे), अवदन् = तेऽकथयन् (बोले), भोः! = रे! (अरे!), भवता = त्वया (आपके द्वारा/ आपने), सत्यं नाभिहितम् = न ऋतमुक्तम् (सही नहीं कहा),
किं श्येनः = (क्या बाज), शिशुम् = बालकम् (बालक को), हर्तुम् = हरणाय (हरण करने के लिए), समर्थों भवति = सक्षमः जायते (समर्थ होता है), सोअवदत् = असावदत् (वह बोला)भो: भोः! = रे रे! (अरे अरे!), श्रूयतां मद्वचः = मम वचनानि आकर्णय (मेरी बात सुनो), लौहसहस्रस्य = दशशतलौहनिर्मितं (हजार (तोला) लोहे की बनी हुई) तुलाम् = तोलनयन्त्रम् (तराजू को), यत्र = यस्मिन् स्थाने (जहाँ), मूषकाः = आखवः (चूहे), खादन्ति = भक्षयन्ति (खा जाते हैं), राजन्तत्र = हे राजन् !
तस्मिन् स्थाने (हे राजन्! वहाँ, उस स्थान पर), श्येनः = बाज, बालकम् = शिशुम् (बच्चे को), हरेत् = नयेत् (ले जाये), नात्र संशयः = न अस्मिन् सन्देहः वर्तते (इसमें कोई शंका नहीं है), ते अपृच्छन् = अमी पृष्टवन्तः (उन्होंने पूछ), कथमेतत् = इदं केन प्रकारेण (यह कैसे), ततः = तदा (तब), स श्रेष्ठी = असौ धनिकः (उस सेठ ने), सभ्यानामग्रे = सभासदां समक्षे (सभासदों के आगे), आदितः = प्रारम्भतः (आरम्भ से), सर्वम् = सम्पूर्णम् (सारा), वृत्तान्तम् = घटितं (घटना को), न्यवेदयत् = कथितवान् (निवेदन कर दिया), ततः = तदा (तब), न्यायाधिकरणः = (न्यायाधीशः), विहस्य = स्मित्या (हँसकर), तौ द्वावपि = अमूभावपि (उन दोनों को), संबोध्य = बोधयित्वा (समझाकर), तुला = तोलनयन्त्रम् (तराजू), शिशु = बालक (बालक के), प्रदानेन = समर्पणेन (दिलाने से/दिलाकर), तोषितवन्तः = सन्तुष्टीकृतौ (सन्तुष्ट कर दिये गये)।
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘लौहतुला’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णुशर्मा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेदः’ तन्त्र (भाग) से सङ्कलित है।
प्रसंग – इस गद्यांश में जीर्णधन न्यायालय में अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाता है। न्यायाधिकारी लोग भी सूक्ष्म दृष्टि से गम्भीरतापूर्वक विचारकर न्याय करते हैं तथा तुला व शिशु-प्रदान से उन दोनों को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।
अनुवाद – इस प्रकार कलह करते हुए वे दोनों राजा के दरबार में पहुँचे। वहाँ सेठ ऊँची आवाज में बोला-“अरे! बड़ा अन्याय, बड़ा अनुचित हुआ। मेरा बेटा इस चोर द्वारा चुरा लिया गया है।” इसके बाद न्यायाधिकारी लोग उससे बोले-“अरे सेठ का बेटा दे दो।” उसने कहा-“क्या करूँ? मेरे देखते-देखते बाज द्वारा नदी के किनारे से उसे ले जाया गया अर्थात् मेरे देखते-देखते बाज उसे नदी किनारे से ले गया।” उसे सुनकर वे बोले-“अरे आपने सही नहीं कहा। क्या बाज बालक का हरण करने में समर्थ है?” वह (जीर्णधन) बोला-“अरे ! अरे! मेरी बात सुनो, हजार (तोला) लोहे की बनी हुई तराजू को जहाँ चूहे खा जाते हैं, हे राजन् ! वहाँ बाज बच्चे को ले जाये तो इसमें कोई सन्देह नहीं।” वे बोले-“यह कैसे?” उस सेठ ने सभासदों के सामने सारी घटना को निवेदन कर दिया। तब उन्होंने हँसकर उन दोनों को आपस में समझा-बुझाकर तराजू और बालक को दिलाकर सन्तुष्ट किया।
संस्कत-व्यारव्याः
सन्दर्भ: – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य “शेमुष्या:’ ‘लौहतुला’ इति पाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं पं. विष्णुशर्मा-रचितस्य ‘पञ्चतन्त्रम्’ इति कथाग्रन्थस्य ‘मित्रभेदः’ तन्त्रा सङ्कलितोऽस्ति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के लौहतुला’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पं. विष्णु शर्म के पंचतन्त्र कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ तन्त्र से संकलित है।)
प्रसंग: – गद्यांशेऽस्मिन् जीर्णधनः न्यायालये सम्पूर्णवृत्तान्तं श्रावयति, न्यायाधिकारिणोऽपि सूक्ष्मदृष्ट्या गाम्भीर्येण विचार्य न्यायं कुर्वन्ति, तुला-शिशु-प्रदानेन च तौ सन्तुष्टिं प्रददति। (इस गद्यांश में जीर्णधन न्यायालय में सम्पूर्ण वृत्तान्त सुना देता है- न्यायाधीश भी सूक्ष्म दृष्टि से गम्भीरता के साथ विचार कर न्याय करता है। और तुला-शिशु प्रदान से दोनों को सन्तुष्ट कर देता है।)
व्याख्या: – इत्थं कलहं कुर्वन्तौ अम् उभावपि न्यायाधिकरणं प्राप्तौ। तस्मिन् स्थाने धनिकः उच्चस्वरेण अवदत्-“रे! अन्यायरूपमनुचितम् अभवत्, मे बालकः (पुत्रः) एतेन स्तेनेन हृतः (चोरितः)।” ततः न्यायाधिकारिणः अमुम् अवदन्-“रे! धनिकस्य पुत्रं देहि।” तेनोक्तम्-“किं कुर्याम्? मयि पश्यति हिंसकखगेन श्येनेन सरितः तीरात् बालकः नीतः।” तन्निशम्य
अमी न्यायाधिकारिणः अवदन्-“रे! त्वया न ऋतमुक्तं। किं श्येनः बालकस्य हरणाय सक्षमः भवति?” असौं अवदत् “रे ! रे! मम वचनानि आकर्णय-दशशतलौहनिर्मितं तोलनयन्त्रं यस्मिन् स्थाने आखवः भक्षयन्ति, तस्मिन् स्थाने श्येनः शिशु नयेत्, नास्मिन् सन्देहः वर्तते।” अमी न्यायाधिकारिणः अवदन्-“इदं केन प्रकारेण? “तदा असौ धनिकः सभासदां समक्षे प्रारम्भतः सम्पूर्णवृत्तान्तं कथितवान्। तदा अमीभिः हसित्वा अमूभावपि परस्परम् अन्योऽन्यं बोधयित्वा तोलनयन्त्रस्य बालकस्य च समर्पणेन सन्तुष्टीकृतौ। (इस प्रकार कलह करते हुए वे दोनों न्यायालय पहुँचे।
वहाँ धनिक ऊँचे स्वर में बोला- अरे बड़ा अन्याय हुआ, अनुचित हुआ। मेरा बेटा इस चोर ने हर लिया। तब न्यायाधीश उससे बोला- “अरे धनिक सेठ का बेटा दे दो।” उसने कहा- “क्या करूँ? मेरे देखते-देखते हिंसक पक्षी बाज नदी के किनारे से ले गया।” इस बात को सुनकर न्यायाधीश बोले- “अरे तूने सच नहीं बोला। क्या बाज बच्चे का हरण करने में समर्थ है?” वह बोला अजी, अजी, मेरी बात सुनो। हजार तोला लोहे की बनी तराजू जहाँ चूहे खा जायें वहाँ बाज बच्चे को ले जाये, इसमें कोई सन्देह नहीं है। वे न्यायाधीश बोले-‘यह किस तरह?’ तब उस धनिक ने सभासदों के समक्ष आरम्भ से सारा किस्सा सुना दिया। तब उन्होंने इस पर उन दोनों को आपस में एक दूसरे को समझाकर तराजू और बालक के समर्पण से सन्तुष्ट किया।) अवबोधन कार्यम्
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठि-जीर्णधनौ विवदमानौ कुत्र गतौ? (सेठ और जीर्णधन विवाद करते हुए कहाँ गये?) .
(ख) श्रेष्ठी राज-कुले कथम् अवदत्? (सेठ न्यायालय में कैसे बोला?) प्रश्न 2. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(क) श्रेष्ठी राजकुले किम् अवदत् ? (सेठ ने दरबार में क्या कहा?)
(ख) जीर्णधनः श्रेष्ठि पुत्रस्य विषये किम् अकथयत्? (जीर्णधन ने सेठ के पुत्र के विषय में क्या कहा?)
प्रश्न 3.
(क) ‘धर्माधिकारिणः तम् अवदत अत्र ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्? .
(‘धर्माधिकारिणः तम् अवदत’ यहाँ ‘तम्’ सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘कथितम्’ इति क्रियापदस्य स्थाने गद्यांशे प्रयुक्ते समानार्थी पदं चित्वा लिखत।
(‘कथितम्’ क्रियापद के स्थान पर गद्यांश में प्रयुक्त समानार्थी शब्द लिखिए।)
उत्तराणि :
1. (क) राजकुले (न्यायालय में )
(ख) तारस्वरेण (चीखकर)।
2. (क) श्रेष्ठी राजकुले अवदत्-भोः वञ्चितोऽहम् ! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम्। अनेन चोरेणमम शिशुः अपहतः।
(सेठ राजकुल में बोला-अरे मैं छला गया! छला गया! अनुचित हुआ! इस चोर ने मेरे बच्चे का अपहरण कर लिया।)
(ख) जीर्णधनः अवदत् – ‘तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः। (जीर्णधन बोला- ‘तुम्हारे बेटे को नदी किनारे से बाज हरण कर ले गया।)
3. (क) जीर्णधनम् (जीर्णधन से)
(ख) अभिहितम् (कहा)।