JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश है।
(अ) भारत
(ब) पाकिस्तान
(स) श्रीलंका
(द) बांग्लादेश
उत्तर:
(अ) भारत

2. दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) का गठन किया गया।
(अ) 1985 में
(ब) 1986 में
(स) 1990 में
(द) 1991 में
उत्तर:
(अ) 1985 में

3. कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई कब हुई ?
(अ) 1954
(ब) 1947
(स) 1966
(द) 1955
उत्तर:
(ब) 1947

4. ‘साफ्टा’ सम्बन्धित है।
(अ) आसियान से
(ब) सार्क से
(स) हिमतेक्ष से
(द) ओपेक से
उत्तर:
(ब) सार्क से

5. आजादी के बाद से श्रीलंका की राजनीति पर किस समुदाय का दबदबा रहा?
(अ) तमिल
(ब) हिन्दू
(स) मुस्लिम
(द) सिंहली
उत्तर:
(द) सिंहली

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6. भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 में हुए युद्ध के फलस्वरूप किस प्रांत के दो हिस्से हुए?
(अ) बांग्लादेश
(ब) बंगाल
(स) कश्मीर
(द) असम
उत्तर:
(स) कश्मीर

7. 1998 में पाकिस्तान ने कहाँ पर परमाणु परीक्षण किया?
(अ) कश्मीर
(ब) पश्चिमी पाकिस्तान
(स) चगाई पहाड़ी
(द) पोखरण
उत्तर:
(स) चगाई पहाड़ी

8. बांग्लादेश एक स्वतन्त्र सम्प्रभु राष्ट्र बना।
(अ) 1947 में
(ब) 1948 में
(स) 1949 में
(द) 1971 में
उत्तर:
(द) 1971 में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1998 में भारत ने …………………………. में परमाणु परीक्षण किया।
उत्तर:
पोखरण

2. …………………… के दशक में भारत तथा पाकिस्तान ने परमाणु हथियार और ऐसे हथियारों को एक-दूसरे पर दागने ………………………की क्षमता वाले मिसाइल हासिल कर लिए।
उत्तर:
1990

3. 1960 में विश्व बैंक की मदद से भारत और पाकिस्तान ने …………………… पर दस्तखत किए।
उत्तर:
सिंधु जल संधि

4. भूटान ………………………. में संवैधानिक राजतंत्र बना।
उत्तर:
2008

5. मालदीव ………………………. में गणतंत्र बना और यहाँ शासन की ……………………… प्रणाली अपनायी गयी।
उत्तर:
1968, अध्यक्षात्मक

6. …………………………. से ………………………………. तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था।
उत्तर:
1947, 1971

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता के बाद दक्षिण एशिया के किन दो देशों में आज तक लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है?
उत्तर:
भारत और श्रीलंका में।

प्रश्न 2.
भारत में स्वतंत्रता के बाद किस प्रकार की शासन प्रणाली अपनाई गई?
उत्तर:
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली।

प्रश्न 3.
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध से पूर्वी पाकिस्तान ‘बांग्लादेश’ के रूप में नया स्वतंत्र देश

प्रश्न 4.
भारत के पड़ौसी देश कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत के पड़ौसी देश हैं।

  1. पाकिस्तान,
  2. नेपाल,
  3. भूटान,
  4. बांग्लादेश,
  5. श्रीलंका,
  6. चीन आदि।

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता कब हुआ?
उत्तर:
जुलाई, 1972 में भारत-पाक के बीच शिमला समझौता हुआ।

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प्रश्न 6.
श्रीलंका को आजादी के बाद से ही किस कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है?
उत्तर:
जातीय संघर्ष का।

प्रश्न 7.
दक्षिण एशियायी देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों से आपस में सहयोग के लिए उठाया गया कदम कौनसा है?’ – यह बड़ा कदम है। दक्षेस (सार्क) की स्थापना का।
उत्तर:

प्रश्न 8.
12वें दक्षेस सम्मेलन में किस संधि पर हस्ताक्षर किये गये?
उत्तर:
मुक्त व्यापार संधि पर।

प्रश्न 9.
दक्षेस के देशों ने साफ्टा (SAFTA) पर कब हस्ताक्षर किये?
उत्तर:
दक्षेस के देशों ने सन् 2004 में साफ्टा पर हस्ताक्षर किये।

प्रश्न 10.
साफ्टा में क्या वायदा किया गया है?
उत्तर:
‘साफ्टा’ में पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है।

प्रश्न 11.
सार्क का पूरा नाम लिखिये।
उत्तर:
सार्क का पूरा नाम है। साउथ एशियन एसोसियेशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ)।

प्रश्न 12.
सार्क में कितने देश हैं?
उत्तर:
सार्क में कुल आठ देश हैं। ये हैं- भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान।

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प्रश्न 13.
दक्षिण एशिया का इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। क्यों?
उत्तर:
उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण का हिन्द महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। उत्तर- ‘साफ्टा’ का पूरा नाम है।’ दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता’ (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया)।

प्रश्न 14.
दक्षेस को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कोई दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:

  1. महाशक्तियों को इस क्षेत्र से दूर रखा जाये।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर दक्षेस देशों द्वारा सर्वसम्मत दृष्टिकोण अपनाया जाये।

प्रश्न 15.
ताशकंद समझौता कब और किसके मध्य हुआ?
उत्तर:
सन् 1966 में भारत और पाकिस्तान के मध्य ताशकंद समझौता हुआ।

प्रश्न 16.
दो समझौतों के नाम लिखिये जिन्हें भारत ने पाकिस्तान के साथ किये।
उत्तर:

  1. 1965 में ताशकंद समझौता
  2. 1971 में शिमला समझौता।

प्रश्न 17.
शिमला समझौते के दो प्रावधान लिखिये।
उत्तर:

  1. दोनों देश अपने मतभेदों को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का प्रयास करेंगे।
  2. दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध बल का प्रयोग नहीं करेंगे।

प्रश्न 18.
भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव के दो मुख्य बिन्दु बताइये।
उत्तर:

  1. कमा शरणार्थियों की समस्या।
  2. गंगा – जल के वितरण की समस्या।

प्रश्न 19.
भारत-पाक मैत्री के मार्ग में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ये दो बाधायें हैं।

  1. चीन का पाकिस्तान को सामरिक सहयोग तथा
  2. भारतीय आतंकवादियों को प्रशिक्षण व सहायता देना।

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प्रश्न 20.
भारत को किन दो कठिनाइयों का सामना पड़ौसियों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने में करना पड़ता है?
उत्तर:

  1. पड़ौसी देशों द्वारा भारतीय आतंकवादियों को संरक्षण, प्रशिक्षण व सहयोग देना।
  2. सीमा विवाद तथा शरणार्थियों की समस्या।

प्रश्न 21.
राजनीतिक प्रणाली की दृष्टि से भारत और श्रीलंका की किसी एक समानता को बताइये।
उत्तर:
भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद, लोकतांत्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है। एक राष्ट्र के रूप में भारत और श्रीलंका हमेशा लोकतांत्रिक रहे हैं।

प्रश्न 22.
पाकिस्तान में शीत युद्ध के बाद के सालों में कौनसी दो लोकतांत्रिक सरकारें बनीं?
उत्तर:
पाकिस्तान में शीत युद्ध के बाद के सालों में लगातार ये दो लोकतांत्रिक सरकारें बनीं

  1. बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में बनी सरकार और
  2. नवाज शरीफ के नेतृत्व में बनी सरकार।

प्रश्न 23.
दक्षिण एशिया के दो सबसे छोटे देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के दो सबसे छोटे देश हैं। मालदीव और भूटान।

प्रश्न 24.
मालदीव में 1968 के बाद कौनसी शासन प्रणाली अपनाई गई?
अथवा
मालदीव में कैसी शासन प्रणाली है?
उत्तर:
1968 से मालदीव में लोकतन्त्र की अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अपनाई गई है।

प्रश्न 25.
दक्षिण एशियायी देशों की जनता किस प्रकार के शासन को वरीयता देती है?
उत्तर:
दक्षिण एशियायी देशों के लोग लोकतंत्र को वरीयता देते हैं।

प्रश्न 26.
दक्षेस का कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
दक्षेस का कार्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में स्थित है।

प्रश्न 27.
भारत के उत्तर में किन्हीं दो सदस्य देशों का उल्लेख कीजिये जो सार्क में सम्मिलित हैं।
उत्तर:
भारत के उत्तर में स्थित नेपाल और भूटान सार्क के सदस्य देश हैं।

प्रश्न 28.
भारत के दक्षिण में सार्क के किन्हीं दो सदस्य देशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
श्रीलंका और मालदीव

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प्रश्न 29.
आर्थिक वैश्वीकरण का दक्षिण एशिया पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण से दक्षिण एशिया में मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिला तथा आर्थिक सुविधाओं में गुणात्मक सुधार हुआ।

प्रश्न 30.
नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राज्य में कब परिवर्तित किया गया?
उत्तर:
नेपाल को 17 मई, 2006 को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में परिवर्तित किया गया।

प्रश्न 31.
श्रीलंका में जातीय संघर्ष के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:

  1. श्रीलंका में सिंहली जाति बहुसंख्या में है।
  2. उसमें बहुसंख्यकवाद की भावना है जो अल्पसंख्यक तमिलों की उपेक्षा करती है।

प्रश्न 32
भारत द्वारा शांति सेना कब और किस देश में भेजी गई?
उत्तर:
1987 में श्रीलंका में।

प्रश्न 33.
श्रीलंका के जातीय समुदायों के नाम लिखिये।
उत्तर:
श्रीलंका के जातीय समुदाय ये हैं

  1. सिंहली
  2. श्रीलंकाई तमिल
  3. भारतवंशी तमिल तथा
  4. मुसलमान।

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प्रश्न 34.
सियाचीन की समस्या किन देशों के बीच मतभेद का प्रमुख कारण है?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच।

प्रश्न 35.
फरक्का संधि पर हस्ताक्षर कब और किनके बीच हुआ था?
उत्तर:
फरक्का संधि पर हस्ताक्षर दिसंबर, 1996 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुआ था।

प्रश्न 36.
1975 में बांग्लादेश के संविधान में क्या संशोधन किया गया?
उत्तर:
1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन कराया और संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को मान्यता मिली।

प्रश्न 37.
श्रीलंका में पैदा हुए जान्ति संघर्ष का निवारण करने हेतु किन दो स्कैंडिनेवियाई देशों ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई?
उत्तर:
नार्वे और आइसलैंड।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया से क्या आशय है?
उत्तर:
सामान्यतः दक्षिण एशिया प्रदेश का प्रयोग सात देशों

  1. बांग्लादेश,
  2. भूटान,
  3. भारत,
  4. मालदीव,
  5. नेपाल,
  6. पाकिस्तान और
  7. श्रीलंका के लिए किया जाता है। इसमें जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 2.
पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी न बन पाने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी न बन पाने के प्रमुख कारण ये हैं।

  1. यहाँ सेना, धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है।
  2. भारत के साथ निरन्तरं तनातनी रहने के कारण सेना समर्थक समूह अधिक मजबूत है।
  3. अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 3.
पूर्वी पाकिस्तान के लोग मूलतः पश्चिमी पाकिस्तान के विरोधी क्यों थे?
उत्तर:
पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद ही यहाँ के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया था ।

प्रश्न 4.
किन कारणों की वजह से अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देश पाकिस्तान को ‘पश्चिम’ तथा दक्षिण एशिया में पश्चिमी हितों को रखवाला मानते हैं?
उत्तर:
पाकिस्तान में सेना, धर्मगुरु और भूस्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है। परिणामतः कई बार निर्वाचित सरकारों को गिराकर सैनिक शासन कायम हुआ । यद्यपि पाकिस्तान में लोकतंत्र का जज्बा मजबूती के साथ कायम रहा है तथापि लोकतंत्र पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया। लोकतांत्रिक शासन के लिए पाकिस्तान को कोई खास अंतर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता। इस वजह से भी सेना को अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए बढ़ावा दिया।

अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने-अपने स्वार्थों की वजह से भी पाकिस्तान में सैनिक शासन को प्रोत्साहन दिया। इन देशों को विश्वव्यापी इस्लामी आतंकवाद से भय लगता है कि पाकिस्तान के परमाण्विक हथियार आतंकवादी समूहों के हाथ न लग जाएँ। उपरोक्त बातों के मद्देनजर पाकिस्तान को ये देश ‘पश्चिम’ तथा दक्षिण एशिया में पश्चिमी हितों का रखवाला मानते हैं।

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प्रश्न 5.
दक्षेस से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दक्षेस से आशय है। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन। यह दक्षिण एशिया के आठ देशों:

  1. भारत,
  2. पाकिस्तान,
  3. बांग्लादेश,
  4. श्रीलंका,
  5. नेपाल,
  6. भूटान,
  7. मालदीव,
  8. अफगानिस्तान- का एक क्षेत्रीय आर्थिक संगठन है जिसकी स्थापना इन देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से की है।

प्रश्न 6.
लिट्टे क्या है?
उत्तर:
लिट्टे का पूरा नाम है- लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम । यह 1983 के बाद से श्रीलंका में सक्रिय एक उग्र तमिल संगठन है जो श्रीलंका के तमिलों के लिए एक अलग देश की मांग को लेकर श्रीलंकाई सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है।

प्रश्न 7.
श्रीलंका की प्रमुख सफलताएँ क्या हैं?
उत्तर:
श्रीलंका की प्रमुख सफलताएँ निम्न हैं।

  1. श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है।
  2. इसने जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण स्थापित किया है।
  3. दक्षिण एशियायी देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही आर्थिक उदारीकरण किया।
  4. श्रीलंका में निरन्तर लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रही है।

प्रश्न 8.
भारत-श्रीलंका की दो समान विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत तथा श्रीलंका दोनों ही ब्रिटेन के अधीन रहे तथा कुछ माह के अन्तराल से इन्हें स्वतंत्रता मिली – भारत 1947 में तथा श्रीलंका 1948 में स्वतंत्र हुआ।
  2. स्वतंत्रता के बाद से दोनों ही देशों में लोकतांत्रिक शासन चला आ रहा है।

प्रश्न 9.
‘बांग्लादेश’ के निर्माण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली जनता के आंदोलन को कुचलने का प्रयत्न किया। हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए। परिणामस्वरूप इन शरणार्थियों को संभालने की समस्या भारत के सामने खड़ी हो गई। अतः भारतीय सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी का समर्थन किया। इस कारण 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध आरंभ हो गया। युद्ध की समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तनी सेना के आत्मसमर्पण तथा एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ के निर्माण के साथ हुई।

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के देशों में मुख्य रूप से कौन-कौन सी समस्यायें हैं?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देशों में प्रमुख समस्यायें ये हैं।

  1. निर्धनता और बेरोजगारी की समस्या
  2. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समस्या
  3. जातीय संघर्ष
  4. संसाधनों के बंटवारे में होने वाले झगड़े
  5. सीमा एवं नदी जल बंटवारे से संबंधित विवाद

प्रश्न 11.
दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:

  1. दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ सद्भाव और शत्रुता, आशा और निराशा तथा पारस्परिक शंका और विश्वास साथ-साथ बसते हैं।
  2. सामान्यतः बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है। इस क्षेत्र में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है।
  3. उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण का हिंद महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह क्षेत्र एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है 1
  4. दक्षिण एशिया विविधताओं से भरा-पूरा इलाका है फिर भी भू-राजनैतिक धरातल पर यह एक क्षेत्र है।

प्रश्न 12.
दक्षिण एशिया के देशों की राजनैतिक प्रणाली किस प्रकार की है?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक सी राजनैतिक प्रणाली नहीं है। यथा।

  1. इस क्षेत्र के दो देशों, भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद, सफलतापूर्वक कायम है। लोकतांत्रिक व्यवस्था
  2. पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक और सैनिक दोनों तरह की शासन व्यवस्थाएँ बदलती रही हैं। वर्तमान में दोनों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है।
  3. नेपाल में 2006 तक संवैधानिक राजतंत्र था। अप्रेल, 2006 से वहाँ लोकतंत्र की स्थापना हुई है।
  4. भूटान में अब भी राजतंत्र है लेकिन यहाँ के राजा ने भूटान में लोकतंत्र स्थापित करने की योजना की शुरुआत . कर दी है।
  5. मालदीव में 1968 तक राजतंत्र (सल्तनत) शासन था। 1968 में यह एक गणतंत्र बना।

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प्रश्न 13.
” दक्षिण एशियायी देशों की जनता लोकतंत्र की आकांक्षाओं में सहभागी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का रिकार्ड मिला-जुला रहा है। इसके बावजूद इस क्षेत्र के देशों की जनता लोकतंत्र की आकांक्षाओं में सहभागी है अर्थात् वह लोकतंत्र को अन्य शासन प्रणालियों से अच्छा समझती है। इस क्षेत्र के पांच बड़े देशों – बांग्लादेश, नेपाल, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में हाल ही में एक सर्वेक्षण किया गया था जिसमें यह बात स्पष्ट हुई कि इन पांच देशों में लोकतंत्र को व्यापक जन-समर्थन हासिल है। इन देशों में हर वर्ग और धर्म के आम नागरिक लोकतंत्र को अच्छा मानते हैं और प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र की संस्थाओं का समर्थन करते हैं। इन देशों के लोग शासन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतंत्र को वरीयता देते हैं और मानते हैं कि उनके देश के लिए लोकतंत्र ही ठीक है।

प्रश्न 14.
बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र कब से कायम है?
उत्तर:
शेख मुजीब की हत्या के बाद जियाउर्रहमान ने बांग्लादेश में सैनिक शासन की पुनर्स्थापना की तथा बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी। जियाउर्रहमान की हत्या के बाद लेफ्टिनेंट जनरल एच एम इरशाद ने सैन्य शासन की बागडोर संभाली। परन्तु बांलादेश की जनता लोकतंत्र की माँग करने लगी। इस आंदोलन के फलस्वरूप जनरल इरशाद को राजनीतिक गतिविधियों में छूट देनी पड़ी। इसके बाद जनरल इरशाद पाँच सालों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। परन्तु 1990 में जनता के विरोध के आगे जनरल इरशाद को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा। और 1991 में पुन: चुनाव हुए। इसके बाद से बांगलादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र कायम है।

प्रश्न 15.
नेपाल में लोकतंत्र की राह कैसे अवरुद्ध हुई?
उत्तर:
नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के समय में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाते रहे । परन्तु राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और इस प्रकार नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई।

प्रश्न 16.
बांग्लादेश का निर्माण क्यों और कैसे हुआ?
उत्तर:
1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का एक अंग था, जिसे ‘पूर्वी पाकिस्तान’ नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तानी दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे।

  1. शेख मुजीब की गिरफ्तारी:
    जब 1970 के चुनावों में शेख मुजीब के नेतृत्व वाली अवामी लीग को संपूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया तो सरकार ने सभा को आहूत करने से इन्कार कर दिया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी प्रतिक्रिया में पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र में शासन के विरुद्ध जन- आंदोलन फैल गया।
  2. भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण: जन-आंदोलन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत शरणार्थी के रूप में आये भारत सरकार ने लोगों के जन-आंदोलन का समर्थन किया परिणामस्वरूप 1971 में भारत-पाक युद्ध हुआ जिसकी समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान के एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ के निर्माण के साथ हुई।

प्रश्न 17.
1975 में बांग्लादेश में सेना ने शासन के खिलाफ बगावत क्यों की?
उत्तर;
स्वतंत्रता के बाद बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया। लेकिन, 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन कराया और संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को मान्यता दी गई। शेख मुजीब ने अपनी पार्टी अवामी लीग को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हुई। अगस्त, 1975 में सेना ने शेख मुजीब के शासन के खिलाफ बगावत कर दी।

प्रश्न 18.
श्रीलंका की जातीय समस्या पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
श्रीलंका की जातीय समस्या: श्रीलंका की राजनीति पर बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के हितों की नुमाइंदगी करने वालों का दबदबा रहा है। ये लोग भारत से आकर श्रीलंका में बसे तमिलों के खिलाफ हैं। सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना है कि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए। सिंहलियों के तमिलों के प्रति इस उपेक्षा भरे व्यवहार से श्रीलंका में एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई। 1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) श्रीलंका सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है। इसने ‘तमिल ईलम’ यानी श्रीलंका के तमिलों के लिए एक अलग देश की माँग की है। इस प्रकार श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है जिसकी मांग है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र बनाया जाये।

प्रश्न 19.
भारत सरकार श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर प्रत्यक्ष रूप से कब और किस रूप में शामिल हुई?
उत्तर:
भारत की तमिल जनता का भारतीय सरकार पर भारी दबाव रहा कि वह श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करे। भारत सरकार समय-समय पर इस संदर्भ में श्रीलंका सरकार से बातचीत करने की कोशिश करती रही। लेकिन 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई। सन् 1987 में भारत की सरकार ने श्रीलंका सरकार से तमिल मुद्दे को सुलझाने के लिए एक समझौता किया तथा श्रीलंका सरकार और तमिलों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए भारत ने शांति सेना को भेजा। लेकिन शांति सेना अन्ततः लिट्टे के साथ संघर्ष में फंस गई। भारतीय सेना की उपस्थिति को श्रीलंका की जनता ने श्रीलंका के अंदरूनी . मामलों में भारत की दखलंदाजी समझा । परिणामस्वरूप ‘शांति सेना’ अपना लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली गई।

प्रश्न 20.
श्रीलंका की आर्थिक व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है। उसने जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण किया है। दक्षिण एशिया के देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया । जातीय संघर्ष से गुजरने के बावजूद कई सालों से इस देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है।

प्रश्न 21.
सार्क की स्थापना के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
सार्क की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे।

  1. दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण करने की कामना तथा उनके जीवन स्तर को सुधारना।
  2. दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक उन्नति को प्राप्त करना तथा इस क्षेत्र के सभी व्यक्तियों के लिए प्रतिष्ठा के अवसर प्रदान करना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता पैदा करना तथा उसको बढ़ावा देना।
  4. एक-दूसरे की समस्याओं को पारस्परिक विश्वास, सूझ-बूझ तथा अभिमूल्यन की दृष्टि से देखना।

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प्रश्न 22.
क्षेत्रीय सहयोग के साधन के रूप में सार्क की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
दक्षिण एशिया क्षेत्र में सहयोग के साधन के रूप में सार्क की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. इस क्षेत्र में सातों देश एक-दूसरे के काफी नजदीक आए हैं तथा इससे उनमें दिखाई देने वाला तनाव कम हुआ है।
  2. दक्षेस (सार्क) के कारण इस क्षेत्र के देशों के छोटे-मोटे मतभेद अपने-आप आसानी से सुलझ रहे हैं और इन देशों में अपनापन विकसित हुआ है।
  3. सार्क के माध्यम से इस क्षेत्र में विदेशी शक्तियों का इस क्षेत्र में प्रभाव कम हुआ है और ये देश अपने को अधिक स्वतंत्र महसूस करने लगे हैं।
  4. सार्क ने एक संरक्षित अन्न भंडार की स्थापना की है जो इस क्षेत्र के देशों की आत्मनिर्भरता की भावना के प्रबल होने का सूचक है।

प्रश्न 23.
भारत और बांग्लादेश के बीच मतभेद के कारणों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के बीच मतभेद के मुद्दे: भारत और बांग्लादेश के बीच मतभेद के प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं।
(अ) भारत के बांग्लादेश से अप्रसन्नता के कारण – भारतीय सरकारों के बांग्लादेश से नाखुश होने के कारण हैं।

  1. भारत में अवैध आप्रवास पर ढाका द्वारा खंडन करना।
  2. बांग्लादेश सरकार द्वारा भारत विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन देना।
  3. भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश का इन्कार करना।
  4. म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देना।

(ब) बांग्लादेश भारत पर निम्न कारणों से अप्रसन्न है।

  1. भारतीय सरकार गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी – जल में हिस्सेदारी के प्रश्न पर इलाके के दादा की तरह बरताव करती है।
  2. भारत की सरकार चटगाँव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को हवा दे रही है।
  3. भारत उसकी प्राकृतिक गैस में सेंधमारी कर रहा है तथा व्यापार में बेईमानी बरत रहा है।

प्रश्न 24.
भारत और बांग्लादेश के सहयोग के मुद्दों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग के मुद्दे भारत और बांग्लादेश निम्नलिखित मुद्दों पर आपस में सहयोग करते हैं।

  1.  पिछले बीस वर्षों के दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्धं ज्यादा बेहतर हुए हैं।
  2. बांग्लादेश भारत के ‘लुक ईस्ट’ और 2014 से ‘एक्ट ईस्ट’ की नीति का हिस्सा है। इस नीति के अन्तर्गत स्यांमार के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया से सम्पर्क साधने की बात है ।
  3. आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मसले पर भी दोनों देशों ने निरन्तर सहयोग किया है।
  4. इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक-दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरत कर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाये।

प्रश्न 25.
भारत-नेपाल के सम्बन्धों के बीच कड़वाहट के मुद्दों पर एक टिप्पणी लिखिये । भारत-नेपाल के सम्बन्धों के बीच तनाव के मुद्दे
उत्तर:
भारत-नेपाल के मधुर सम्बन्धों के बीच निम्नलिखित मुद्दे मनमुटाव पैदा करते रहे हैं।

  1. नेपाल की चीन के साथ मित्रता को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता जतायी है।
  2. नेपाल सरकार भारत विरोधी तत्त्वों के विरुद्ध आवश्यक कदम नहीं उठाती है। इससे भी भारत नाखुश है।
  3. भारत की सुरक्षा एजेंसियां नेपाल में चल रहे माओवादी आंदोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती हैं।
  4. नेपाल के लोगों की यह सोच है कि भारत की सरकार नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल दे रही है और उसके नदी जल तथा पन बिजली पर आँख गड़ाए हुए है।
  5. नेपाल को यह भी लगता है कि भारत उसको अपने भू-क्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुँचने से रोकता है।

प्रश्न 26.
” भारत-नेपाल के बीच मधुर संबंध हैं ।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत और नेपाल के बीच मधुर संबंध हैं, इसे हम निम्न उदाहरणों से स्पष्ट कर सकते हैं।
1. भारत और नेपाल दोनों देशों के बीच पारगमन संधि है। इस संधि के तहत दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट (पारपत्र) और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं।
2. दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन और जल प्रबंधन ग्रिड के मसले पर एक साथ हैं।
3. नेपाल में लोकतंत्र की बहाली से दोनों देशों के बीच संबंधों के और मजबूत होने की संभावना है। प्रश्न 27. भारत-श्रीलंका के सम्बन्धों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
भारत और श्रीलंका के सम्बन्ध

  1. यद्यपि श्रीलंका और भारत की सरकारों के संबंधों में तनाव इस द्वीप में जारी जातीय संघर्ष को लेकर है तथापि 1987 के सैन्य हस्तक्षेप के बाद से भारतीय सरकार श्रीलंका के अंदरूनी मामलों में असंलग्नता की नीति अपनाये हुए है।
  2. दोनों देशों की सरकारों ने परस्पर एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर अपने सम्बन्धों को और मजबूत किया है।
  3. श्रीलंका में ‘सुनामी’ से हुई तबाही के बाद के पुनर्निर्माण कार्यों में भारतीय मदद से भी दोनों देश एक-दूसरे के नजदीक आये हैं।

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प्रश्न 28.
भूटान और मालदीव के साथ भारत के सम्बन्धों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:

  • भारत-भूटान सम्बन्ध – भारत के भूटान के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं तथा भूटानी सरकार के साथ भारत का कोई बड़ा झगड़ा नहीं है।
    1. भूटान से अपने काम का संचालन कर रहे पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों और गुरिल्लों को भूटान ने अपने क्षेत्र से खदेड़ भगाया। भूटान के इस कदम से भारत को बड़ी सहायता मिली है।
    2. भारत भूटान में पन बिजली की बड़ी परियोजनाओं में हाथ बँटा रहा है
    3. भूटान के विकास कार्यों के लिए सबसे ज्यादा अनुदान भारत से हासिल होता है।
  • भारत और मालदीव सम्बन्ध:
    1. मालदीव के साथ भारत के संबंध सौहार्द्रपूर्ण तथा गर्मजोशी से भरे हैं।
    2. भारत ने मालदीव के आर्थिक विकास, पर्यटन और मत्स्य उद्योग में भी मदद की है।

प्रश्न 29.
‘साफ्टा’ क्या है?
उत्तर:
साफ्टा (SAFTA ) साफ्टा’ का पूरा नाम है। दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asia Free Trade Area)! दक्षेस के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते’ पर दस्तखत करने का वायदा किया। इसमें पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है। इस समझौते पर 2004 में हस्ताक्षर हुए और यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया है। इस समझौते का लक्ष्य है कि इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को 2007 तक 20 प्रतिशत कम कर दिया जाये।

प्रश्न 30.
भारत-पाकिस्तान के बीच सियाचिन की समस्या को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
भारतीय नक्शे में शीर्ष पर स्थित सियाचिन हिमनाद को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच विवाद बना हुआ है। सियाचिन सैनिक तथा सामरिक दृष्टि महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ से पाक अधिकृत कश्मीर, चीन के सिक्यांग प्रान्त, रूसी राष्ट्रकुल के देशों तथा अफगानिस्तान पर पैनी दृष्टि रखी जा सकती है। इसलिए इसे भारत और पाकिस्तान दोनों अपने-अपने अधिकार में लेना चाहते हैं। इसे लेकर दोनों देशों में अनेक मुठभेड़ें हो चुकी हैं। वर्तमान में दोनों ही देश इस समस्या के स्थायी हल के लिए वार्ताएँ कर रहे हैं।

प्रश्न 31.
“श्रीलंका की समस्या भारतवंशी लोगों से जुड़ी है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की तमिल जनता का भारतीय सरकार पर भारतीय सरकार पर भारी दबाव है कि वह श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करे भारतीय सरकार ने समय-समय पर तमिलों के सवाल पर श्रीलंका की सरकार से बातचीत की कोशिश की है। 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका के तमिल मसले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई। भारतीय सरकार ने श्रीलंका से समझौता किया तथा श्रीलंका और तमिलों के बीच रिश्ता सामान्य करने के लिए भारतीय सेना भेजा अतः हम कह सकते हैं कि श्रीलंका की समस्या भारतवंशी लोगों से जुड़ी है।

प्रश्न 32.
1989 में भारत को अपनी ‘शांति सेना’ वापस बुलानी पड़ी।
उत्तर:
भारतीय सरकार ने श्रीलंका से समझौता किया और इसके फलस्वरूप भारतीय सरकार ने श्रीलंका सरकार और तमिलों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए भारतीय सेना भेजी सेना लिट्टे के साथ संघर्ष में फँस गई। भारतीय सेना की उपस्थिति का श्रीलंका की जनता ने विरोध किया। वहाँ की जनता ने यह समझा कि भारतीय सेना उनके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। फलस्वरूप 1989 में भारत ने अपनी ‘शांति सेना’ लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली।

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प्रश्न 33.
कश्मीर के दो हिस्सों में विभाजित होने के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कश्मीर के दो हिस्सों में विभाजित होने के कारण निम्नलिखित हैं।

  1. दक्षिण एशिया में स्थित देशों के आपसी संघर्षों में सबसे प्रमुख और सर्वग्रासी संघर्षों में सबसे प्रमुख और सर्वग्रासी संघर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच का संघर्ष है।
  2. भारत और पाकिस्तान के विभाजन के तुरंत बाद ही दोनों देश कश्मीर के मसले पर लड़ पड़े।
  3. पाकिस्तान सरकार कश्मीर पर अपना दावा कर रही थी।
  4. पाकिस्तान सरकार कश्मीर पर अपना दावा कर रही थी।
  5. 1948 के युद्ध के फलस्वरूप कश्मीर के दो हिस्से हो गए।

प्रश्न 34.
“दक्षिण एशिया के सारे झगड़े सिर्फ भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच ही नहीं है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के सारे झगड़े सिर्फ भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच ही नहीं है क्योंकि।

  1. नेपाल – भूटान तथा बांग्लादेश – म्यांमार के बीच जातीय मूल के नेपालियों के भूटान आप्रवास तथा रोहिंग्या लोगों म्यांमार में आप्रवास के मामलों पर मतभेद रहे हैं।
  2. बांग्लादेश और नेपाल के बीच हिमालयी नदियों के जल की हिस्सेदारी को लेकर खटपट है।

प्रश्न 35.
‘साफ्टा’ के उद्देश्य पर भारत और अन्य देश एकमत नहीं है। इस कथन की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच 2004 में ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर हुआ और यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया। यद्यपि इस समझौते का मकसद इन क्षेत्रों के सीमा रेखा मुक्त व्यापार पर सहमत होना था। परंतु कुछ देशों का मानना था कि ‘साफ्टा’ की ओट लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है ओर व्यावसायिक उद्यम तथा व्यावसायिक मौजूदगी जरिये उनके समाज ओर राजनीति पर असर डालना चाहता है।

जबकि भारत सोचता है कि ‘साफ्टा’ के जरिये इस क्षेत्र के हर देश का फायदा होगा और क्षेत्र में मुक्तव्यापार बढ़ने से राजनीतिक मसलों पर सहयोग बेहतर होगा। भारत में कुछ लोगों का मानना है कि भारत को साफ्टा पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि भारत भूटान, नेपाल और श्रीलंका से पहले ही द्विपक्षीय समझौता कर चुका है।

प्रश्न 36.
दक्षिण एशिया के क्षेत्रों की सुरक्षा और शांति के भविष्य से अमरीका के हित बंधे हुए हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के बाद से दक्षिण एशिया में अमरीकी प्रभाव तेजी से बढ़ा है। अमरीका ने शीतयुद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों से अपने संबंध सुधारे हैं। आवश्यकता पड़ने पर अमरीका ने भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की भूमिका भी निभाई है। दोनों देशों में आर्थिक सुधार हुए हैं और उदार नीतियाँ अपनाई गई हैं। इस वजह से दक्षिण एशिया में अमरीकी भागीदारी ज्यादा गहरी हुई है। अमरीका में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों की जनसंख्या अच्छी-खासी है। दक्षिण एशिया की जनसंख्या और बाजार भी भारी भरकम है। इस कारण इस क्षेत्र की सुरक्षा और शांति के भविष्य से अमरीका के हित भी बंधे हुए हैं।

प्रश्न 37.
नेपाल में लोकतंत्र की बहाली किस प्रकार हुई ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नेपाल में अप्रेल, 2006 में लोकतंत्र के लिए देशव्यापी आंदोलन हुए। लोकतंत्र के समर्थन में जगह-जगह प्रदर्शन किए गए। संघर्षरत लोकतंत्र – समर्थकों को जीत हासिल हुई और नेपाल के राजा को बाध्य होकर संसद को चलने की अनुमति दे दी इस प्रकार नेपाल में लोकतंत्र की बहाली हुई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया से आप क्या समझते हैं? शीत युद्ध के बाद के काल में दक्षिण एशिया के देशों में राजनीतिक प्रणाली की मुख्य प्रवृत्ति क्या रही है?
उत्तर:
दक्षिण एशिया से आशय सामान्य रूप से बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका इन सात देशों को इंगित करने के लिए दक्षिण एशिया पद का इस्तेमाल किया जाता है। इस क्षेत्र की चर्चा में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है। दक्षिण एशिया के देशों में राजनीतिक प्रणाली शीत युद्ध के बाद के काल में इस क्षेत्र के देशों में तथा यहाँ के लोगों में मुख्य प्रवृत्ति लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली को अपनाने की रही है। यथा

  1. भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश: भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद से आज तक लोकतांत्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है तथा शीत युद्ध के बाद से बांग्लादेश में भी लोकतांत्रिक सरकारें कायम हैं।
  2. पाकिस्तान: पाकिस्तान में शीत युद्ध के बाद के सालों में लगातार दो लोकतांत्रिक सरकारें बनीं। 1999 से 2007 तक सैनिक तख्ता पलट के कारण पाकिस्तान में गैर लोकतांत्रिक सरकार रही लेकिन 2008 से आज तक वहां लोकतांत्रिक सरकार कार्यरत है।
  3. नेपाल: अप्रेल, 2006 तक नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र था, लेकिन अप्रेल 2006 से आज तक नेपाल में भी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था कायम है।
  4. भूटान: भूटान में 2007 तक राजतंत्र शासन रहा। लेकिन मार्च, 2008 से यहाँ भी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है।
  5.  मालदीव: मालदीव में 1968 तक राजतंत्र शासन व्यवस्था रही। 1968 से यहाँ भी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है। स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया के देशों में लोकतंत्र को अपनाने की मुख्य प्रवृत्ति रही है।

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प्रश्न 2.
पाकिस्तान में लोकतंत्र और उसके सैनिक तंत्र में बदलाव तथा पुनः लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया पर एक निबंध लिखिये।
उत्तर:
14 अगस्त, 1947 को भारत का विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना हुई। पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खां ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। लेकिन 1948 में जिन्ना की मृत्यु हो गई और पाकिस्तान के शासन की बागडोर लियाकत अली खां के हाथों में पूरी तरह से आ गई। अक्टूबर, 1951 में लियाकत अली खां की हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद ख्वाजा निजामुद्दीन को प्रधानमंत्री तथा गुलाम मोहम्मद को गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्त किया गया। 7 अप्रैल, 1953 को गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद ने निजामुद्दीन मंत्रिमंडल को भंग कर दिया।

अमरीकी प्रभाव में अब मुहम्मद अली को प्रधानमंत्री बनाया गया। सैनिक तानाशाही: 7 अक्टूबर, 1958 को प्रधान सेनापति जनरल अयूब खां के नेतृत्व में सेना ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा सत्ता प्राप्त कर ली। तब से लेकर 1971 तक तथा पुनः 5 जुलाई, 1977 से 1988 तक पाकिस्तान में सैनिक शासन रहा।

लोकतंत्र: 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार बनी जो 1977 तक कायम रही। इसके बाद 1989 से 1999 तक पाकिस्तान में पुनः लोकतान्त्रिक सरकारों ने काम किया।

  1. पुनः सैनिक शासन ( 1999 से 2007 तक ): सन् 1999 में सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पदच्युत करके अपने आपको वहां का शासक बना लिया जो 2007 तक सत्ता पर काबिज रहे।
  2. पुनः लोकतंत्र की वापसी (2008 से वर्तमान तक ): जन आंदोलनों और जनमत के दबाव में 2008 में पाकिस्तान में चुनाव हुए और तब से वर्तमान तक वहाँ लोकतांत्रिक सरकारें चली आ रही हैं।

प्रश्न 3.
बांग्लादेश का निर्माण क्यों और किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
बांग्लादेश का निर्माण क्यों और कैसे?
1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था, जिसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था।

  1. बंगाली संस्कृति की उपेक्षा: पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही यहां के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया था।
  2. प्रशासन तथा राजनीतिक सत्ता में भागीदारी की माँग- इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने न्यायोचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी तथा पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की मांग उठायी।
  3. 1970 के आम चुनाव और शेख मुजीब की अवामी लीग को बहुमत मिलना:1970 के आम चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग को सम्पूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया। लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था और सरकार ने इस सभा को आहूत करने से इन्कार कर दिया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया।
  4. भारत-पाक युद्ध 1971: पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान की जनता के आंदोलन को कुचलने हेतु हजारों लोगों को मौत के मुँह सुला दिया। वहाँ के लोगों ने भारत में पलायन किया। इससे भारत में शरणार्थी की समस्या खड़ी हो गई। फलतः भारत-पाक युद्ध 1971 हुआ ।
  5. बांग्लादेश का निर्माण: युद्ध समाप्त होने से पहले ही पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और अन्त में अप्रेल, 1971 में बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

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प्रश्न 4.
बांग्लादेश में लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियों की व्याख्या कीजिए। (कोई चार )
अथवा
बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना की चर्चा कीजिए।
अथवा
बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
बांग्लादेश में लोकतंत्रीय शासन स्थापना की प्रक्रिया: बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना निम्न प्रकार हुई।

1. संसदीय लोकतंत्र की स्थापना:
12 अप्रेल, 1971 को स्वतंत्र बांग्लादेश सरकार का गठन हुआ। बांग्लादेश ने अपना एक नवीन संविधान बनाया जिसमें इसे संसदात्मक, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया गया।

2. संसदीय लोकतंत्र के स्थान पर अध्यक्षीय लोकतंत्र:
19075 में शेख मुजीब ने संसदीय लोकतंत्र के स्थान पर अध्यक्षात्मक प्रणाली को मान्यता दी। इसके विरोध में सेना ने बगावत कर दी तथा शेख मुजीब की हत्या कर दी।

3. सैनिक शासन:
शेख मुजीब की हत्या के बाद 1975 में सैनिक शासके जियाउर्रहमान ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनाई तथा 1979 के चुनाव में विजयी रही। लेकिन जियाउर्रहमान की हत्या हुई। अब लेफ्टिनेंट जनरल एम. एम. इरशाद के नेतृत्व में एक और सैनिक शासन ने बागडोर संभाली तथा 1990 तक सत्ता में बने रहे।

4. पुनः लोकतंत्र की स्थापना: जनता के व्यापक विरोध के समक्ष झुकते हुए ले. जनरल इरशाद को राष्ट्रपति का पद 1990 में छोड़ना पड़ा और 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है।

प्रश्न 5.
नेपाल में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया की एक समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र: 1947 से 1960 तक नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता खुले और उत्तरदायी शासन की माँग उठाते रहे। विवश होकर राजा ने 1990 में नए लोकतान्त्रिक संविधान की माँग मान ली। इस प्रकार नेपाल में 1990 से लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ। लेकिन 1990 के दशक में ही 5-6 जिलों में माओवादियों की समानान्तर शासन व्यवस्था को नियंत्रित करने की प्रक्रिया में शाही सेना व माओवादियों के बीच हिंसक लड़ाई छिड़ गई।

कुछ समय तक राजा की सेना, लोकतंत्र – समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। अन्त में सन् 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। लोकतंत्र की बहाली ( 2006 ) – अप्रेल, 2006 में नेपाल में देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए तथा 24 अप्रेल, 2006 को राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया।

प्रश्न 6.
भारत के नेपाल व श्रीलंका के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
अथवा
भारत-श्रीलंका सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत-नेपाल सम्बन्ध: भारत के नेपाल के साथ सम्बन्धों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. दोनों देशों के बीच बहुत नजदीकी सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  2. 1950 से नेपाल और भारत के बीच पारगमन और व्यापार संधि रही है।
  3. नेपाल के राजनीतिक विकास और लोकतंत्रीकरण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  4. भारत ने नेपाल में शिक्षण संस्थाओं के विकास, हवाई सेवा के विकास, भारतीय सशस्त्र बलों से सेवानिवृत्त नेपाली लोगों के कल्याण आदि में नेपाल को सहयोग दिया है।
  5. दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन और जल प्रबंधन ग्रिड के मुद्दों पर एक साथ हैं।
  6. दोनों देशों के बीच पारगमन संधि पर नेपाल के संदेह, नेपाल के चीन से बढ़ते रिश्ते, कालापानी के मुद्दे, जल- विवाद आदि के सम्बन्ध में मतभेद उभरते रहे हैं। उक्त विवादों के होते हुए दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण बने हुए हैं।

भारत-श्रीलंका सम्बन्ध: भारत और श्रीलंका दोनों पड़ौसी देश हैं। दोनों के बीच घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध हैं। यथा।

  1. दक्षिण एशिया में भारत और श्रीलंका दोनों ही स्वतंत्रता के बाद से लोकतांत्रिक देश रहे हैं।
  2. भारत और श्रीलंका के बीच केवल समुद्र है और दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा विषयक समझौता है।
  3. भारत ने समय-समय पर आर्थिक सहयोग दिया है। दोनों गुटनिरपेक्ष देश हैं। दोनों के बीच मुक्त व्यापार समझौता है। यथा।
  4. दोनों देशों के बीच श्रीलंका तमिल समस्या विवाद का विषय रही। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत-श्रीलंका के बीच परस्पर अच्छे पड़ौसी के सम्बन्ध कायम हैं।

प्रश्न 7.
भारत और नेपाल के आपसी सम्बन्धों में विवाद और सहयोग के मुख्य मुद्दों की विवेचना कीजिये भारत और नेपाल सम्बन्ध
उत्तर:
भारत व नेपाल के बीच सम्बन्धों में विवाद और सहयोग दोनों का सुगुंफन है। यथा।
I. भारत और नेपाल के सम्बन्धों में सहयोग के मुद्दे – भारत-नेपाल के बीच सहयोग के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित

  1. दोनों देशों के बीच बहुत नजदीकी सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  2. 1950 से नेपाल और भारत के बीच पारगमन और व्यापार संधि रही है।
  3. नेपाल के राजनीतिक विकास और लोकतंत्रीकरण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  4. भारत ने नेपाल में शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक संस्थाओं और संगठनों के विकास में योगदान दिया है।
  5. दोनों देशों के बीच हवाई सेवा सम्बन्धी समझौता है।

II. भारत-नेपाल के बीच विवाद के मुद्दे – भारत – नेपाल के बीच अनेक मुद्दों पर विवाद उभरता रहा है।

  1. नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्त्वों के खिलाफ कदम नहीं उठाती।
  2. भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ नेपाल में चल रहे माओवादी आंदोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती है क्योंकि वे भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं।
  3. नेपाल के चीन से बढ़ते रिश्तों के कारण भारत की चिंता बढ़ी है।
  4. नेपाल के बहुत से लोग सोचते हैं कि भारत सरकार नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल दे रही है और उसके नदी जल तथा पन बिजली पर आँख गड़ाए हुए है।
  5. नेपाल को यह संशय है कि भारत उसको अपने भूक्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुँचने से रोकता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 8.
भारत-पाक के बीच प्रमुख विवादग्रस्त मुद्दे क्या हैं? प्रकाश डालिये।
अथवा
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दों का विवेचन कीजिये । भारत – पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे
उत्तर;
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।’
1. कश्मीर का मुद्दा: विभाजन के तुरन्त बाद दोनों देश कश्मीर के मुद्दे पर लड़ पड़े। पाकिस्तान की सरकार का दावा था कि कश्मीर पाकिस्तान का है जबकि भारत का कहना है कि कश्मीर भारत का अंग है। दोनों देशों के अपने-अपने तर्क हैं। इस मुद्दे को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच 1947-48 तथा 1965 का युद्ध हो चुका है, लेकिन इन युद्धों से इस मसले का समाधान नहीं हो पाया है।

2. सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण का मुद्दा:
हिमालय में भारत – पाक-चीन सीमा पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर उचित सीमा निर्धारण नहीं किये जा सकने के कारण भारत-पाक के बीच विवाद का मुद्दा बना हुआ है। सामरिक दृष्टि से इस क्षेत्र का अत्यधिक महत्त्व होने के कारण दोनों देश इस पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते हैं।

3. हथियारों की होड़ का मुद्दा: हथियारों की होड़ को लेकर भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी रहती है। 1998 में दोनों ने परमाणु परीक्षण किये तथा दोनों परमाणु अस्त्रों से लैस हैं।

4. एक-दूसरे पर संदेह तथा आरोप-प्रत्यारोप: दोनों देशों की सरकारें लगातार एक-दूसरे को संदेह की नजर से देखती हैं। उग्रवाद, आतंकवाद, जासूसी आदि के लिए एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करती रहती है।

5. नदी – जल बँटवारे पर विवाद: भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की व्याख्या और नदी – जल के इस्तेमाल को लेकर विवाद बना हुआ है।

6. सरक्रीक की समस्या: कच्छ के रन में सरक्रीक की सीमा रेखा को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।

प्रश्न 9.
पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्धों को किस प्रकार सुधारा जा सकता है?
अथवा
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव दीजिये।
उत्तर:
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधार हेतु सुझाव: भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों को सुधारने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. राजनीतिक स्तर पर बातचीत एवं विश्वास बहाली के प्रयास: भारत और पाकिस्तान दोनों राजनीतिक स्तर पर प्रयास करके आपसी विवादों को बातचीत और समझौतों के द्वारा दूर कर सकते हैं।
  2. आर्थिक स्तर पर प्रयास: दोनों देशों को आपसी सम्बन्ध सुधारने के लिए आर्थिक स्तर पर ‘मुक्त व्यापार संधि’ तथा एक-दूसरे की आर्थिक जरूरतों को पूरा करके सम्बन्धों में सुधार के प्रयत्न करने चाहिए।
  3. सांस्कृतिक स्तर पर प्रयास: सांस्कृतिक स्तर पर दोनों देशों को साहित्य, कला और खेल गतिविधियों के आदान-प्रदान, वीजा सुविधा तथा सिनेमा के द्वारा सहयोग बढ़ाना चाहिए।
  4. सामाजिक स्तर पर प्रयास: भारत और पाकिस्तान को अपने सम्बन्ध सुधारने के लिए समय पर इन लोगों को आपस में मिलने की सुविधा प्रदान करें।समय
  5. तकनीकी तथा चिकित्सा सेवा का आदान-प्रदान- दोनों देश तकनीकी ज्ञान तथा चिकित्सा के क्षेत्र में भी साथ काम करके आपसी सम्बन्ध सुधार सकते हैं। गया है।
  6. शिमला समझौते का पालन- दोनों देशों को शिमला समझौते की शर्तों का पालन करना चाहिए।

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प्रश्न 10.
भारत और बांग्लादेश के मध्य तनाव तथा सहयोग के मुद्दों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के मध्य तनाव और सहयोग के मुद्दे भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव तथा सहयोग के मुद्दों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया दोनों देशों के मध्य तनाव के मुद्दे भारत और बांग्लादेश के मध्य तनाव के अग्रलिखित प्रमुख मुद्दे हैं।
(अ) भारत सरकार निम्न कारणों से बांग्लादेश से नाराज है।

  1. भारत में अवैध आप्रवास (बांग्लादेशी शरणार्थियों की भारत में घुसपैठ ) पर ढाका द्वारा खंडन करना।
  2. बांग्लादेश सरकार का भारत विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन देना।
  3. भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश का इन्कार करना।
  4. ढाका का भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने का फैसला।
  5. म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात नहीं करने देना।

(ब) बांग्लादेश सरकार निम्न कारणों से भारत सरकार से नाखुश है।

  • बांग्लादेश सरकार नदी – जल में हिस्सेदारी के सवाल पर भारत सरकार से नाखुश है।
  • भारत की सरकार पर चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को हवा देने, बांग्लादेश के प्राकृतिक गैस में सेंधमारी करने के भी आरोप हैं।
    1. पिछले दस वर्षों के भारत और बांग्लादेश के मध्य सहयोग के मुद्दे. दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध ज्यादा बेहतर हुए हैं।
    2. आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मसले पर भी दोनों देशों ने निरंतर सहयोग किया है।
    3.  इस बात के भी प्रयास किये जा रहें हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक-दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरतकर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाये ।

प्रश्न 11.
दक्षिण एशियायी क्षेत्रीय सहयोग के क्षेत्र में सार्क की स्थापना के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये तथा उसके संगठन पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
‘सार्क सार्क की स्थापना: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना दिसम्बर, 1985 में हुई । वर्तमान में, सार्क में आठ सदस्य राष्ट्र हैं। सार्क के उद्देश्य – सार्क के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण में वृद्धि तथा उनके जीवन स्तर में उन्नति लाना।
  2. इस क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक विकास लाना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों के बीच सामूहिक आत्मविश्वास को विकसित करने का प्रयास करना।
  4. एक-दूसरे की समस्याओं को समझने, सुलझाने तथा परस्पर विश्वास को लाने में योगदान करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में परस्पर सहयोग करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ पारस्परिक सहयोग में वद्धि करना।
  7. समान हितों के मामलों में अन्तर्राष्ट्रीय आधारों पर परस्पर सहयोग में वृद्धि करना।
  8. समान उद्देश्यों वाले क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

सार्क का संगठन: सार्क की प्रमुख संस्थाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. शिखर सम्मेलन: सार्क देशों का प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता है जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेते हैं।
  2. मंत्रिपरिषद्: सार्क के सभी राष्ट्रों के विदेशमंत्रियों से मिलकर एक मंत्रिपरिषद् का निर्माण किया गया है जो नीतियों का निर्माण करती है ।
  3. स्थायी समिति: सार्क की एक स्थायी समिति है जो परिषद् की योजनाओं की स्वीकृति देती है तथा उनका वित्तीय प्रबन्ध करती है।
  4. तकनीकी समिति: सार्क की तकनीकी समिति क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार, योजनाओं का निर्माण व उनके कार्यान्वयन का मूल्यांकन आदि कार्य करती है।
  5. सचिवालय: सार्क का एक सचिवालय है। इसका एक महासचिव होता है जिसका कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया है।
  6. वित्तीय व्यवस्था: सार्क के चार्टर के अनुच्छेद 9 में वित्तीय व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।

प्रश्न 12.
दक्षिण एशिया में शांति एवं सहयोग हेतु किये गये प्रयासों की विवेचना कीजिए।
अथवा
दक्षिण (सार्क) क्या है? दक्षिण एशिया की शांति व सहयोग में इसका क्या योगदान है।?
उत्तर:
सार्क (दक्षेस) से आशय: सार्क (दक्षेस) दक्षिण एशिया के देशों का इस क्षेत्र में शांति एवं सहयोग की स्थापना हेतु स्थापित किया गया एक क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1985 में हुई। वर्तमान में इसके सदस्य देश हैं- भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान। दक्षिण एशिया के देशों में शांति एवं सहयोग के कदम दक्षिण एशिया के देशों ने दक्षिण एशिया में शांति एवं सहयोग की स्थापना की दिशा में निम्न प्रमुख कदम उठाये हैं

(1) सार्क (दक्षेस) की स्थापना तथा उसके कार्य:
सार्क के विभिन्न शिखर सम्मेलनों में दक्षिण एशिया के देशों में नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने, पर्यटन के विकास, आपदा प्रबन्ध, खाद्य सुरक्षा भण्डार की स्थापना, पर्यावरण की सुरक्षा, संयुक्त उद्यम स्थापित करने, क्षेत्रीय परियोजनाओं हेतु सामूहिक कोष गठित करने आदि के निर्णय लिये गये

(2) दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asia Free Trade Area)-SAFTA ): इन देशों ने साफ्टा (SAFTA) लागू करना स्वीकार कर लिया। सन् 2004 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के समझौते पर सार्क के देशों ने हस्ताक्षर किये तथा यह समझौता 2006 से प्रभावी हो गया। इसके अतिरिक्त इन सम्मेलनों में एक गरीबी उन्मूलन कोष गठित करने; दोहरे करारोपण से बचाव, वीसा नियमों में उदारता तथा दक्षेस संचार विषयों पर सहमति हुई है।

(3) भारत-पाकिस्तान सहयोग के प्रयास: भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने और शांति बहाल करने के लिए सार्क सम्मेलनों में लगातार प्रयास हुए हैं।

प्रश्न 13
श्रीलंका के जातीय संघर्ष का वर्णन कीजिए।
उत्तर: श्रीलंका का जातीय संघर्ष श्रीलंका 1948 में स्वतंत्र हुआ और स्वतंत्रता के बाद से अब तक वहाँ लोकतंत्र कायम है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद से ही श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।

  1. सिंहली समुदाय व उसका दृष्टिकोण: श्रीलंका की राजनीति में सिंहली समुदाय बहुसंख्यक है। तथा सिंहली समुदाय का ही वहाँ दबदबा रहा है। सिंहलियों का मानना है कि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। अतः तमिलों को कोई रियायत नहीं दी जाए।
  2. तमिल समुदाय: श्रीलंका के तमिल समुदाय की माँग रही है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को तमिलों के लिए एक अलग राष्ट्र बनाया जाये। लेकिन सिंहलियों के तमिल अल्पसंख्यकों के उक्त उपेक्षा भरे व्यवहार के कारण वहाँ उग्र- तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई।
  3. जातीय संघर्ष: 1983 के बाद श्रीलंका के एक उग्रवादी तमिल संगठन लिट्टे ने श्रीलंका की सेना के साथ एक पृथक तमिल राष्ट्र की स्थापना के लिए सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ कर दिया। श्रीलंका का यह हिंसक संघर्ष लगातार चलता आ रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थ के रूप में नार्वे और आइसलैंड जैसे देश युद्धरत दोनों पक्षों को बातचीत करने के लिए राजी कर रहे हैं। लेकिन यह संभव नहीं हो पाया है। अंदरूनी संघर्ष के झंझावतों को झेलकर भी श्रीलंका ने लोकतांत्रिक राज व्यवस्था कायम रखी है।

प्रश्न 14.
पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग पलायन करके भारत आ गए। कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंग्रेजी शासन के समय बंगाल और असम के विभाजित हिस्सों से पूर्वी पाकिस्तान बना था। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध का प्रदर्शन करने लगे। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने न्यायोचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी की माँग की। पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ लोगों ने आंदोलन किया तथा पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की।

परिणामस्वरूप शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में आवामी लीग को 1970 में पूर्वी पाकिस्तान की सारी सीटों पर विजय मिली। लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था। जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. भारत में सर्वाधिक लम्बा राष्ट्रीय मार्ग है-
(A) NH-1
(B) NH-7
(C) NH-5
(D) NH-3.
उत्तर:
(B) NH-7

2. उत्तर – दक्षिण गलियारा इन स्थानों को जोड़ता है-
(A) श्री नगर – कन्याकुमारी
(B) दिल्ली-चेन्नई
(C) जयपुर – सेलम
(D) पटना- कोच्ची
उत्तर:
(A) श्री नगर – कन्याकुमारी

3. भारत में पहली रेल कब चली ?
(A) 1833
(B) 1843
(C) 1853
(D) 1863
उत्तर:
(C) 1853

4. भारत में आन्तरिक जल मार्गों की लम्बाई है-
(A) 14000 कि०मी०
(B) 14200 कि०मी०
(C) 14300 कि०मी०
(D) 14500 कि०मी०
उत्तर:
(D) 14500 कि०मी०

5. संचार साधन किस तत्त्व को दूसरे स्थान तक नहीं भेजते ?
(A) विचार
(B) संदेश
(C) दर्शन
(D) दिल्ली – चेन्नई
उत्तर:
(D) दिल्ली – चेन्नई

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6. NH-1 किन नगरों को जोड़ता है ?
(A) दिल्ली-अमृतसर
(B) दिल्ली-कोलकाता
(C) दिल्ली – मुम्बई
(D) यात्रियों
उत्तर:
(A) दिल्ली-अमृतसर

7. भारत में राष्ट्रीय महामार्ग का सड़कों में प्रतिशत है-
(A) 1%
(B) 2%
(C) 3%
(D) 4%.
उत्तर:
(D) 4%.

8. स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्गों की लम्बाई है-
(A) 3846 कि०मी०
(B) 4846 कि०मी०
(C) 5846 कि०मी०
(D) 6846 कि०मी०
उत्तर:
(C) 5846 कि०मी०

9. भारत में सर्वाधिक सड़क घनत्व किस राज्य में है ?
(A) पंजाब
(B) केरल
(C) तमिलनाडु
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(B) केरल

10. भारत में कितने रेल मंडल हैं ?
(A) 9
(B) 12
(C) 14
(D) 16
उत्तर:
(D) 16

11. बड़े गेज़ की रेल पटरी की चौड़ाई है-
(A) 1.5 मीटर
(B) 1.6 मीटर
(C) 1.3 मीटर
(D) 1.8 मीटर
उत्तर:
(B) 1.6 मीटर

12. भारत में पहली पाइप लाइन कब बनी ?
(A) 1957
(B) 1958
(C) 1959
(D) 1960
उत्तर:
(C) 1959

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में सड़कों की कुल लम्बाई बताओ।
उत्तर:
-33 लाख कि०मी०।

प्रश्न 2.
पूर्व – पश्चिम गलियारे के दो अन्तिम स्टेशन बताओ।
उत्तर:
सिलचर तथा पोरबन्दर।

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प्रश्न 3.
भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन – सा है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग – 7 ( वाराणसी से कन्याकुमारी तक)।

प्रश्न 4.
भारत में सड़कों का राष्ट्रीय घनत्व कितना है ?
उत्तर:
प्रति 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्रफल में सड़कों की लम्बाई 75 कि०मी० है।

प्रश्न 5.
भारत में रेलमार्गों की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर:
62759 कि०मी०

प्रश्न 6.
भारत में नाव्य जलमार्गों की लम्बाई बताओ।
उत्तर:
14500 कि०मी०

प्रश्न 7.
भारत में कितने अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन हैं ?
उत्तर:
11.

प्रश्न 8.
भारत में एक प्रमुख गैस पाइप लाइन बताओ।
उत्तर:
HBJ गैस पाइप लाइन।

प्रश्न 9.
प्रसार भारती का गठन कब हुआ ?
उत्तर:
1997 में।

प्रश्न 10.
भारत में रेडियो प्रसारण कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1923 में।

प्रश्न 11.
परिवहन तन्त्र किन स्तरों पर अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है ?
उत्तर:
भूमण्डलीय, राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय स्तर।

प्रश्न 12.
संचार तन्त्र के तीन रूप बताओ।
उत्तर:

  1. भौतिक
  2. तार द्वारा
  3. वायु तरंगों द्वारा।

प्रश्न 13.
भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन-सा है?
उत्तर:
NH-7 जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक 2369 कि०मी० लम्बा

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प्रश्न 14.
भारत में पक्की सड़कों का सबसे अधिक घनत्व तथा सबसे कम घनत्व किन राज्यों में है?
उत्तर:
भारत में पक्की सड़कों का सबसे अधिक घनत्व केरल में – 387 कि०मी० प्रति 100 वर्ग कि०मी० और सबसे कम घनत्व जम्मू-कश्मीर में – 3.5 कि०मी० प्रति 100 वर्ग कि०मी० है।

प्रश्न 15.
भारत के तट रेखा की लम्बाई तथा समुद्री आर्थिक क्षेत्र कितना है ?
उत्तर:
तट रेखा 7516 कि०मी० लम्बी है तथा समुद्री क्षेत्र 20 लाख कि०मी० से अधिक समुद्री आर्थिक क्षेत्र है।

प्रश्न 16.
भारत में वायु परिवहन के दो मुख्य वर्ग बताओ।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तथा घरेलू परिवहन।

प्रश्न 17.
भारत में उत्तरी रेलवे क्षेत्र का प्रमुख कार्यालय बताओ।
उत्तर:
नई दिल्ली।

प्रश्न 18.
भारत के राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 1 के मार्ग का विस्तार बताओ।
उत्तर:
इलाहाबाद से हल्दिया तक।

प्रश्न 19.
भारत के उस वायु परिवहन सेवा का नाम लिखो जो सभी महाद्वीपों को जोड़ती है ?
उत्तर:
एयर इण्डिया।

प्रश्न 20.
भारत में किस वर्ग की सड़कें कुल सड़क मार्गों की 2% लम्बाई रखती है परन्तु देश के सड़क भार का 40% बोझा परिवहन करती हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सड़क मार्गों के क्या दोष हैं ?
उत्तर:

  1. सड़क मार्ग महंगे हैं।
  2. इनसे वायु प्रदूषण होता है।
  3. अधिक दूरी तक भारी वस्तुओं का परिवहन नहीं होता।
  4. दुर्घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

प्रश्न 2.
स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrangles) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ किन चार महानगरों को जोड़ता है ?
उत्तर:
यह एक सुपर महामार्ग है जो देहली-कोलकाता – मुम्बई तथा चेन्नई को आपस में जोड़ता है। इसमें 4 या 6 लेन वाले महामार्ग शामिल हैं। इसका आकार एक चतुर्भुज जैसा है।

प्रश्न 3.
चार राष्ट्रीय महामार्गों के नाम लिखो तथा इनके अन्तिम स्टेशन बताओ।
उत्तर:

  • शेरशाह सूरी मार्ग – राष्ट्रीय महामार्ग नं० 1 – देहली से अमृतसर तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 3 – आगरा से मुम्बई तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 7 – वाराणसी से कन्याकुमारी तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 2 – देहली से कोलकाता तक।

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प्रश्न 4.
दो राष्ट्रीय जल मार्ग बताओ।
उत्तर:
(i) राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 1 – इलाहाबाद से हल्दिया तक (गंगा नदी)
(ii) राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 2 – सदिया से दुबरी तक (ब्रह्मपुत्र नदी )

प्रश्न 5.
भारतीय रेल मार्ग पटरी की चौड़ाई के आधार पर कितने प्रकार की है ?
उत्तर:
भारत में धरातल की विभिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार के रेलमार्ग बनाए गए हैं। मैदानी भागों में चौड़ी पटरी वाले रेलमार्ग हैं, जबकि पहाड़ी भागों में तंग पटरी वाले रेलमार्ग हैं।
(i) चौड़ी पटरी (Broad gauge ) – 1.616 मीटर चौड़ाई
(ii) छोटी पटरी (Meter gauge) – 1 मीटर चौड़ाई
(iii) तंग पटरी (Narrow gauge) – 0.76 मीटर और
0.610 मीटर चौड़ाई
कुल लम्बाई – कुल ल० का %
46807 कि० मी० – (74.14%)
13290,, – (21.2%)
3124,, – (4.94%)
63221 – 100%

प्रश्न 6.
संचार तन्त्र के विभिन्न रूप बताओ।
उत्तर:
संचार का जाल एक स्थान से दूसरे स्थान को सूचनाएं भेजता या प्राप्त करता है। इसके तीन रूप हैं भौतिक जैसे डाक सेवाएं, तार द्वारा जैसे टेलीग्राम और टेलीफोन और वायु तरंगों द्वारा जैसे रेडियो और टेलीविजन। कुछ संचार तन्त्र परिवहन के सहयोग से कार्य करते हैं, जैसे डाक सेवाएं लेकिन कुछ संचार के साधन परिवहन तन्त्र से अलग स्वतन्त्र रूप में कार्य करते हैं; जैसे- रेडियो।

प्रश्न 7.
भारत में रेलमार्गों का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
(1) भारतीय रेलों का जाल एशिया में प्रथम लेकिन विश्व में चौथा सबसे बड़ा जाल है।
(2) यात्रियों और माल के परिवहन के लिए यह सस्ता साधन है।
(3) यह वस्तुओं के केन्द्रों से मांग के क्षेत्रों में वितरण को जैसे खाद्य पदार्थ, रेशों, कच्चे माल और तैयार माल को, करता है।
(4) रेल मार्गों की लम्बाई 62,759 कि०मी० है जिस पर 6867 स्टेशनों के मध्य प्रतिदिन 12670 गाड़ियां चलती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में राष्ट्रीय जलमार्गों के वितरण बताओ।
उत्तर:
देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, रख-रखाव और नियमन के लिए 1986 में भारतीय आन्तरिक जलमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया था। इस समय देश में तीन राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। 10 अन्य जलमार्गों को भी राष्ट्रीय जलमार्गों का दर्जा देने पर विचार किया जा रहा है। तीन राष्ट्रीय जलमार्ग ये हैं – राष्ट्रीय जलमार्ग – 1 : गंगा-भागीरथी- हुगली नदी तन्त्र का इलाहाबाद और हल्दिया के बीच का मार्ग ( 1620 कि०मी०); राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 : ब्रह्मपुत्र नदी का सदिया – धूबरी भाग ( 891 कि०मी०) और राष्ट्रीय जलमार्ग-3 : पश्चिम तट नहर का कोटापुरम में कोल्लम खण्ड तथा उद्योग मण्डल और चंपाकारा नहरें (205 कि०मी० )।

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प्रश्न 9.
परिवहन जाल का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव है ?
उत्तर:
परिवहन जाल की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने में रही है । हमारे देश में स्थानीय स्तरों पर उत्पादन की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्ट उत्पादों के लिए स्थानीय बाज़ार हैं। उत्पादन तथा साथ ही साथ उपभोग की ये विशिष्टताएं हमारे परिधानों, भोजन और कलाकृतियों में झलकती हैं। परिवहन जाल ने इन स्थानीय बाज़ारों को राष्ट्रीय बाज़ार के साथ जोड़ने का बहुत बड़ा काम किया है। इस एकीकरण का विस्तार और आगे अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार के साथ भी हुआ है 1

प्रश्न 10.
भारत में आकाशवाणी के विकास पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
आकाशवाणी – देश में रेडियो जनसंचार का सशक्त माध्यम है। भारत में सन् 1927 में रेडियो प्रसारण का प्रारम्भ हुआ। इसके लिए मुम्बई और कोलकाता में दो निजी ट्रांसमीटर लगाए गए थे। 1936 में इसे ऑल इण्डिया रेडियो ( ए०आई० आर०) नाम दिया गया। इसे आकाशवाणी भी कहते हैं । स्वतन्त्रता के समय छः रेडियो स्टेशन थे। इस समय आकाशवाणी के 208 स्टेशन तथा 327 प्रसारण केन्द्र हैं। ये स्टेशन और प्रसारण केन्द्र देश की 99 प्रतिशत जनसंख्या तथा देश के 90 प्रतिशत क्षेत्र को प्रसारण सेवाएं प्रदान करते हैं। निजी क्षेत्र में 100 एफ० एम० रेडियो स्टेशन स्थापित किए गए हैं। आकाशवाणी सूचना, शिक्षा और मनोरंजन से सम्बन्धित विविध प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित करता है। समाचार सेवा, विविध भारती, व्यावसायिक कार्यक्रम, राष्ट्रीय चैनल (1988) आदि प्रमुख सेवाएं हैं।

प्रश्न 11.
भारत में दूरदर्शन पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
दूरदर्शन – दूरदर्शन भारत का राष्ट्रीय टेलीविज़न है। यह संसार के सबसे बड़े क्षेत्रीय प्रसारण संगठनों में से एक है। इसने गांवों और नगरों दोनों में ही लोगों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को बदल दिया है । दूरदर्शन – 1 ( डी०डी०- 1 ) 1042 स्थल ट्रांसमीटरों के द्वारा देश की 87 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंचता है। यही नहीं 65 अतिरिक्त ट्रांसमीटर भी हैं, जो अन्य चैनलों को स्थानीय सहायता प्रदान करते हैं। दूरदर्शन का पहला कार्यक्रम 15 सितम्बर, 1959 को प्रसारित किया गया था। भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित पहला प्रयोग 1975-76 में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्स्पेरिमेंट (साइट) कार्यक्रम के अन्तर्गत किया गया था। देश में राष्ट्रीय कार्यक्रम और रंगीन टेलीविज़न की शुरुआत 1992 में ही हो सकी।

प्रश्न 12.
कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग बताओ।
उत्तर:
उपग्रह – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तंत्र में एक क्रान्ति आ गई है। रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह छोड़ा था। उपग्रहों, प्रेक्षपण यानों और सम्बन्धित स्थलीय प्रणालियों का विकास देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का अंग है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणालियों को दो वर्गों में रखा जा सकता है – भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) तथा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई० आर०एस० )। इन्सैट, दूरसंचार, मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रेक्षण और अन्य विविध आंकड़ों तथा कार्यक्रमों के लिए एक बहु-उद्देशीय उपग्रह प्रणाली है।

दूरदर्शन की तीन स्तरों वाली बुनियादी कार्यक्रम प्रसारण सेवाएं हैं –
(1) राष्ट्रीय
(2) प्रादेशिक और
(3) स्थानीय।

राष्ट्रीय दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रमों में समाचार, सामयिक विषय, विज्ञान, सांस्कृतिक पत्रिकाएं, वृत्तचित्र, संगीत, नृत्य नाटक, सीरियल और फीचर फिल्में शामिल होती हैं । यह स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिए भी शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित करता है। भारतीय सुदूर संवेदन (आई० आर० एस०) उपग्रह प्रणाली का प्रारम्भ मार्च, 1988 में हुआ जब पहला आई० आर०एस० – 1 ए अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। तब से लेकर अब तक दो शृंखलाओं के उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित किए जा चुके हैं। भारतीय सुदूर संवेदन एजेंसी हैदराबाद में स्थित है। यह आंकड़ों के अर्जन और इनके प्रसंस्करण की सुविधाएं प्रदान करती है। प्रकृति के संसाधनों के प्रबन्धन में ये बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

प्रश्न 13.
मुक्त आकाश नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मुक्त आकाश नीति (Open Sky Policy) – वायु परिवहन के केन्द्रों को विमान पत्तन कहा जाता है। वायु परिवहन किराया अपेक्षाकृत अधिक होता है । अतः इसका मुख्य रूप से यात्री परिवहन के लिए ही उपयोग किया जाता है। केवल हल्की और मूल्यवान वस्तुएं ही मालवाहक वायुयानों द्वारा भेजी जाती हैं । भारतीय निर्यातकों की सहायता करने के लिए तथा उनके निर्यात को और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए भारत सरकार ने व्यावसायिक माल के लिए ‘मुक्त आकाश की नीति” शुरू करने का निर्णय लिया है। इस नीति के अनुसार कोई भी विदेशी वायुयान कम्पनी या निर्यातकों का संघ माल ले जाने के लिए देश में मालवाहक जहाज़ ला सकते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

प्रश्न 14.
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
देश में 11 अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन तथा 112 घरेलू विमान पत्तन हैं। भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण इन विमान पत्तनों का प्रबन्ध करता है। इन विमान पत्तनों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है – अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन, प्रमुख राष्ट्रीय विमान पत्तन, मध्यम विमान पत्तन और लघु विमान पत्तन। अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन मुम्बई (सांताक्रूज और सहारा विमान पत्तन), दिल्ली ( इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन ), कोलकाता ( दमदम), चेन्नई (मीनेबक्कम् ), बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, पणजी, अमृतसर, गुवाहाटी और कोच्चि हैं। ये पत्तन अन्तर्राष्ट्रीय सेवाओं के साथ-साथ घरेलू सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में शेरसाह सूरी मार्ग का वर्णन करें।
उत्तर:
शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से लेकर बंगाल की सोनार घाटी तक सुदृढ़ एवं संघटित (समेकित ) रखने के लिए शाही राजमार्ग का निर्माण कराया था । कोलकाता से पेशावर तक जोड़ने वाले इसी मार्ग को ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रांड ट्रंक (जी० टी०) रोड के नाम से पुनः नामित किया गया था। वर्तमान में यह अमृतसर से कोलकाता के बीच विस्तृत है और इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है –
(क) राष्ट्रीय महामार्ग दिल्ली से अमृतसर तक और
(ख) राष्ट्रीय महामार्ग दिल्ली से कोलकाता तक।

प्रश्न 16.
भारत में कोंकण रेलवे का वर्णन करो।
उत्तर:
1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यह 760 कि० मी० लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है। इसे अभियांत्रिकी का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है। यह रेलमार्ग 146 नदियों व धाराओं तथा 2000 पुलों एवं 91 सुरंगों को पार करता है। इस मार्ग पर एशिया की सबसे लंबी 6.5 कि० मी० की सुरंग भी है। इस उद्यम में कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य भागीदार हैं।

प्रश्न 17.
भारत में वायु सेवाओं के दो प्रमुख प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में वायु सेवाएं दो प्रकार की हैं – अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू
(1) एयर इंडिया, यात्रियों और माल के परिवहन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वायु सेवाएं प्रदान करती है। इसके द्वारा चार प्रमुख विमान पत्तनों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता से 35 देशों के लिए विमान सेवाएं उपलब्ध हैं। सन् 2000-01 में एयर इंडिया के द्वारा 38.3 लाख यात्रियों ने यात्रा की। प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय वायु मार्ग ये हैं – दिल्ली – रोम – फ्रैंकफुर्ट, दिल्ली – मास्को, कोलकाता टोकियो, कोलकाता – पर्थ, मुम्बई – लन्दन – न्यूयार्क।

(2) इंडियन एयरलाइंस दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया के पड़ोसी देशों को भी वायु सेवाएं प्रदान करती है। इस समय दो निजी कम्पनियां नियमित घरेलू वायु सेवा प्रदान करती हैं। 38 निजी कम्पनियों के पास अनियमित एयर – टैक्सी चलाने के परमिट हैं। निजी वायु सेवा कम्पनियों की घरेलू वायु यातायात में इस समय 52.8 प्रतिशत की भागीदारी है। उदारीकरण की नीति के लागू होने के बाद वायु सेवा के क्षेत्र में निजी कम्पनियों की भागीदारी बहुत तेज़ी से बढ़ी है।

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प्रश्न 18.
अन्तः स्थलीय जलमार्ग के विकास के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदियों, नहरों और झीलें महत्त्वपूर्ण अन्तः स्थलीय जलमार्ग हैं। अन्तः स्थलीय जलमार्गों का विकास निम्नलिखित मार्गों पर निर्भर करता है-

  1. जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई – कई नदियों की नाव्यता बढ़ाने के लिए सुधार करके जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई को बढ़ाया गया है।
  2. जल प्रवाह की निरन्तरता – जल प्रवाह की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए बांधों तथा बराजों का निर्माण किया गया है।
  3. परिवहन प्रौद्योगिकी का प्रयोग – नदी में पानी की एक निश्चित गहराई को बनाए रखने के लिए उसकी तलहटी से सिल्ट एवं बालू निकालकर सफ़ाई करना।

प्रश्न 19.
दी गई तालिक का 1 तथा 2 स्थान पर उपयुक्त शब्द लिख कर पूरा करें तथा अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखें।
उत्तर:
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 2

प्रश्न 20.
भारतीय रेलों की तीन मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63229 कि० मी० है जो एशिया में सर्वाधिक है तथा विश्व में चौथे स्थान पर है।
  2. भारतीय रेलों की पटरी की चौड़ाई तीन गेज है-चौड़ी पटरी, मीटर पटरी तथा तंग पटरी।
  3. अधिकतर रेलमार्ग गंगा- सतलुज मैदान में पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
भारत में समुद्र परिवहन की किन्हीं छः विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) संसार के बड़े महामार्गों के जाल में से एक भारत में है।
(2) भारत में सड़कों की कुल लम्बाई 33 लाख कि०मी० है।
(3) सड़कें 85% यांत्री परिवहन तथा 70% भार परिवहन ढोती हैं।
(4) सड़कें नगरीय केन्द्रों के इर्द-गिर्द केन्द्रित हैं।
(5) ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें कम हैं।
(6) 5846 कि०मी० लम्बी स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई तथा मुम्बई को जोड़ता है।

प्रश्न 22.
भारत में सर्वाधिक प्रभावी और अधुनातन वैयक्तिक संचार प्रणाली कौन-से हैं ? इसकी किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी वैयक्तिक संचार तन्त्रों में इन्टरनेट सर्वाधिक प्रभावित एवं अधुनातन है।
विशेषताएं –
(1) इन साधन का नगरीय क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है।
(2) यह उपयोगकर्त्ता को ई मेल के माध्यम से ज्ञान एवं सूचना की दुनिया में सीधे पहुंच बनाने में सहायक होता है।
(3) यह ई कामर्स तथा मौद्रिक लेन-देन के लिए अधिकाधिक प्रयोग में लाया जा रहा है।
(4) यह आंकड़ों का विशाल केन्द्रीय भण्डारागार होता है।

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प्रश्न 23.
भारतीय रेल प्रणाली को सोलह मण्डलों में क्यों बांटा गया है ? पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी तथा दक्षिणी मंडलों के मुख्यालयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में रेल मण्डलों की रचना का उद्देश्य रेलों की कार्यक्षमता में वृद्धि करना है । भार तथा यात्री ढोने में सहायता मिलती है।

रेल मण्डल मुख्यालय
1. पूर्वी कोलकाता
2. पश्चिमी मुम्बई
3. उत्तरी नई दिल्ली
4. दक्षिणी चेन्नई

प्रश्न 24.
भारतीय रेलों की तीन मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63229 कि०मी० है जो एशिया में सर्वाधिक है तथा विश्व में चौथे स्थान पर है।
  2. भारतीय रेलों की पटरी की चौड़ाई तीन गेज है-चौड़ी पटरी, मीटर पटरी तथा तंग पटरी ।
  3. अधिकतर रेलमार्ग गंगा- सतलुज मैदान में पाए जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में सड़कों का वितरण समान नहीं है। स्पष्ट करो।
अथवा
भारत में सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक भिन्नता का वर्णन करो।
उत्तर:
देश में सड़कों का वितरण समान नहीं है। सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक अन्तर बहुत है। सड़कों के घनत्व का अर्थ है : प्रति 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सड़कों की लम्बाई। जम्मू और कश्मीर में सड़कों का घनत्व 10 कि०मी० है, जबकि केरल में 375 कि०मी०। सड़कों का राष्ट्रीय घनत्व 75 कि०मी० (1996-97) है। अधिक घनत्व वाले प्रदेश – लगभग सभी उत्तरी राज्यों और प्रमुख दक्षिणी राज्यों में सड़कों का घनत्व अधिक है। कम घनत्व वाले प्रदेश – यह हिमालयी प्रदेश, उत्तर-पूर्वी राज्यों, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कम है। भूमि का स्वरूप और आर्थिक विकास का स्तर, सड़कों के घनत्व के मुख्य निर्धारक हैं।

समतल मैदानी क्षेत्र में सड़कों का निर्माण आसान और सस्ता होता है, जबकि पहाड़ी और अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों में सड़कें बनाना महंगा और कठिन होता है। इसीलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व और गुणवत्ता दोनों ही ऊंचे होते हैं। दुर्गम भूमियां लगभग सड़क विहीन होती हैं। जनसंख्या के उच्च घनत्व से भी सड़कों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है।

पक्की सड़कों के घनत्व में और भी अधिक अन्तर पाया जाता है। देश के प्रति 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्र में औसतन 75.4 कि०मी० लम्बी सड़कें हैं। गोवा में पक्की सड़कों का घनत्व सबसे अधिक है (153.8 कि०मी०)। इसके विपरीत जम्मू और कश्मीर में सबसे कम घनत्व ( 10.5 कि०मी०) है। अरुणाचल प्रदेश में पक्की सड़कों का घनत्व कुछ अधिक अर्थात् 4.8 कि०मी० है। सड़कों के उच्चतर घनत्व वाले राज्यों में ही पक्की सड़कों का भी घनत्व अधिक है। असम और नागालैंड इसके अपवाद हैं। केरल में 387.2 कि० मी० घनत्व है।

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प्रश्न 2.
रेलमार्गों के प्रारूप को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों के विकास को निम्नलिखित कारकों ने प्रभावित किया है-
1. भौतिक कारक – भारत के समतल मैदानी भागों में रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है। जैसे उत्तरी मैदान में। परन्तु पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में रेलमार्ग कम हैं; जैसे- असम तथा हिमालय प्रदेश में।
2. आर्थिक कारक – बड़े-बड़े औद्योगिक, व्यापारिक नगरों तथा प्रमुख पत्तनों के समीप रेलमार्गों का अधिक विस्तार हुआ है परन्तु राजस्थान में कम आर्थिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।
3. राजनीतिक कारक – ब्रिटिश प्रशासन ने देश के संसाधनों के शोषण की नीति के कारण प्रमुख पत्तनों को देश के आन्तरिक भागों से रेलमार्गों द्वारा जोड़ दिया ।

प्रश्न 3.
हिमालय पर्वत के विभिन्न क्षेत्रों में रेलमार्गों का विकास कम क्यों है ?
उत्तर:
हिमालय प्रदेश में धरातलीय बाधाओं के कारण रेलमार्गों का विकास नहीं किया जा सका। कई प्रदेशों में सुरंगें बनाना तथा तेज़ धारा वाली नदियों पर पुल बनाना कठिन कार्य है । रेलमार्गों को केवल पद स्थली पर स्थित नगरों तक ले जाकर छोड़ देना पड़ा। जैसे पहले रेलमार्ग पठानकोट तक, परन्तु अब इसका विस्तार जम्मू तक है। जम्मू से उधमपुर, जवाहर सुरंग तथा कोजी कुण्ड से होकर कश्मीर घाटी तक रेल बनाने की योजना बनाई गई है। संकरे गेज़ द्वारा शिमला-कालका रेलमार्ग तथा सिलीगुड़ी – दार्जिलिंग रेलमार्ग बनाए गए हैं। इसलिए हिमालय क्षेत्र कटे-फटे भू- भाग पिछड़ी अर्थव्यवस्था तथा विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग कम हैं।

प्रश्न 4.
रेल तन्त्र में तीन गेज होने के कारण क्या कठिनाइयां हैं ?
उत्तर:
भारतीय रेल तन्त्र में चौड़े गेज, मीटर गेज तथा संकरे गेज के कारण कई कठिनाइयां उत्पन्न हो गई हैं। यात्रियों एवं माल के सुचारू परिवहन में यह बाधक है। एक गेज की रेल पटरी से दूसरी गेज की पटरी पर सामान चढ़ाने बहुत असुविधा होती है। सामान उतारने लादने की प्रक्रिया में समय नष्ट होता है तथा खर्च अधिक होता है।

वर्तमान रेल पटरियों को चौड़े गेज में बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसे Unigauge कहते हैं। पटरियों के तीन गेज यात्रियों एवं माल के सुचारु परिवहन में यह बाधक हैं। एक गेज की रेल पटरी से दूसरी गेज की पटरी पर स्थानान्तरण करने में बार-बार उतारने एवं लादने की क्रिया में समय लगता है तथा यह महंगा होता है। जल्दी नष्ट होने वाली वस्तुएं इस देरी के कारण खराब हो जाती हैं। यात्रियों की संख्या तथा ढोये जाने वाले माल की मात्रा में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। वर्तमान रेल पटरियां अधिक भार सहन नहीं कर सकतीं।

प्रश्न 5.
भारतीय सड़क मार्गों को विभिन्न प्रकारों में बांटो।
उत्तर:
भारत में 6 प्रकार के सड़क मार्ग हैं-
1. स्वर्ण चतुष्कोण परम राजमार्ग (Golden Quadrangle Super Highways ) – सरकार ने सड़कों के विकास की एक मुख्य परियोजना तैयार की है। इसके द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को 6 गलियों वाले परम राजमार्गों द्वारा जोड़ा जा रहा है। श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ने वाला उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा सिल्चर को पोरबन्दर से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम गलियारा इसके मुख्य अंग हैं।

2. राष्ट्रीय महामार्ग (National Highways) – जो देश के प्रमुख नगरों को मिलाते हैं। इनका निर्माण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग करता है। इनकी कुल लम्बाई 65769 कि० मी० है। इन सड़कों की लम्बाई देश की सड़कों की कुल लम्बाई का 2% भाग है परन्तु यातायात में इसकी भागीदारी 40% है।

3. राजकीय मार्ग (State Highways ) – जो राजधानियों को अन्य नगरों से मिलाते हैं। इनकी कुल लम्बाई 1,37,100 लाख कि० मी० है। इनका निर्माण राज्य सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है।

4. जिला सड़क मार्ग (District Roads ) – जो किसी राज्य के मुख्यालयों को अन्य नगरों से जोड़ती हैं। इनकी लम्बाई 6 लाख कि० मी० है।

5. ग्रामीण सड़कें (Village Roads) – जो ग्रामीण केन्द्रों को नगरों से मिलाती हैं। इनमें से लगभग आधी सड़कें पक्की हैं।

6. सीमावर्ती सड़कें ( Border Roads ) – सीमा सड़क संगठन 1960 में बनाया गया था। यह सामरिक महत्त्व की सड़कों का निर्माण करता है। इसके 30,028 कि०मी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया है तथा दुर्गम क्षेत्रों में आवागमन सुगम बनाया है।

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प्रश्न 6.
पंजाब में सड़कों की सर्वाधिक सघनता क्यों है ? इसके लिए उत्तरदायी पांच कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पंजाब में सड़कों की सर्वाधिक सघनता है। सड़कों की घनता 74 कि० मी० प्रति 100 कि०मी० है। इसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
(1) पंजाब एक साधारण ढलान वाला जलोढ़ मैदान है। इसलिए यहाँ सड़क निर्माण कार्य सुगम है।
(2) पंजाब एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए सड़क निर्माण आवश्यक है।
(3) पंजाब प्रदेश से गेहूँ, चावल आदि उत्पाद बाहर निर्यात किए जाते हैं जिसके लिए सड़क निर्माण आवश्यक है।
(4) पंजाब में लोगों के रहन-सहन का स्तर तथा प्रति व्यक्ति आय अधिक है। इसलिए कच्चे माल तथा तैयार माल के परिवहन के लिए सड़कों के निर्माण की आवश्यकता है।
(5) यात्री परिवहन अधिक है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों द्वारा ही यात्रा सम्भव है।

प्रश्न 7.
सीमान्त प्रदेशों में सड़क निर्माण की प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर:
सीमान्त प्रदेशों के सामरिक महत्त्व को देखते हुए सन् 1960 में ‘सीमा सड़क संगठन’ (Border Road Organisation) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य सीमान्त प्रदेशों में सुरक्षा प्रदान करने तथा आर्थिक विकास तेज़ करने के लिए सड़कों का निर्माण करना था । इस संगठन ने मनाली (हिमाचल प्रदेश) से लेह (कश्मीर) तक संसार की सबसे ऊंची सड़क का निर्माण किया है। यह सड़क औसत रूप से 4270 मीटर समुद्र तल से ऊंची है। इस संगठन ने भारत- चीन सीमा हिन्दुस्तान तिब्बत सीमा सड़क का भी निर्माण किया है। इस संगठन ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, असम, मेघालय, नागालैंड सीमान्त प्रदेशों में लगभग 40,450 कि० मी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया है तथा 35,577 कि० मी० सड़कों की देखभाल का कार्य किया है।

प्रश्न 8.
सड़क परिवहन के कौन-से गुण एवं अवगुण हैं ?
उत्तर:
छोटी दूरियों के लिए माल तथा यात्रियों के ढोने में सड़क परिवहन लाभदायक है। यह एक प्रकार से तन्त्र है जो ग्रामीण क्षेत्रों को नगरों से जोड़ता है। सड़क परिवहन से सामान ग्राहक के घर तक भेजा जा सकता है। यह एक विश्वसनीय परिवहन साधन है। कई दुर्गम क्षेत्रों में धरातलीय बाधाओं के कारण सड़कें बनाना कठिन है। सड़क परिवहन द्वारा अधिक भारी माल नहीं ढोया जा सकता। वर्षा ऋतु में सड़क परिवहन में कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

प्रश्न 9.
भारत में वायु परिवहन सेवाओं के प्रकार बताओ।
उत्तर:
भारत में वायु परिवहन के दो खण्ड हैं- आन्तरिक सेवाएं तथा अन्तर्देशीय सेवाएं। एयर इण्डिया संगठन विदेशी उड़ानों का प्रबन्ध करती है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एयर इण्डिया के केन्द्र बिन्दु हैं। इण्डियन एयर लाइन्स देश के भीतरी भागों तथा पड़ोसी देशों के साथ वायु सेवाओं का प्रबन्ध करती है। सन् 1981 से देश के भीतर दुर्गम भागों में वायुदूत एयर लाइन्स सेवाओं का भी प्रारम्भ किया गया है। 1985 में पवन हंस लिमिटेड की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों, वनाच्छादित तथा पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने हेतु हेलीकाप्टर सेवाएं उत्पन्न करवाने के लिए की गई।

अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International Airports)

भारत में निम्नलिखित अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं –
(1) इन्दिरा गांधी हवाई अड्डा – देहली ( पालम)
(2) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा – कोलकाता (डम डम)
(3) सहार हवाई अड्डा – मुम्बई ( सान्ता क्रूज़)
(4) मीनामबकम हवाई अड्डा – चेन्नई
(5) राजासांसी हवाई अड्डा-अमृतसर
(6) त्रिवनन्तपुरम हवाई अड्डा – तिरुवनन्तपुरम्।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय तथा राजकीय महामार्ग में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:
राष्ट्रीय तथा राजकीय महामार्ग में निम्नलिखित अन्तर हैं-

राष्ट्रीय महामार्ग (National Highways): राजकीय महामार्ग (State Highways)
(1) ये समस्त देश की प्रमुख सड़कें हैं। (1) ये विभिन्न राज्यों की मुख्य सड़कें हैं।
(2) ये महामार्ग प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक नगरों, राजधानियों तथा प्रमुख बन्दरगाहों को आपस में मिलाते हैं। (2) ये महामार्ग विभिन्न राज्यों की राजधानियों को राज्यों के प्रमुख नगरों व कार्यालय को मिलाते हैं।
(3) ये प्रायः केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए जाते हैं। (3) ये महामार्ग राज्य सरकारों के अधीन होते हैं।
(4) भारत में राष्ट्रीय महामार्गों की कुल लम्बाई 33,612 कि० मी० है। (4) भारत में राजकीय महामार्गों की लम्बाई 3,81,000 कि० मी० है।
(5) ये आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। (5) ये प्रशासकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
(6) अमृतसर – चण्डीगढ़ मार्ग एक राजकीय महामार्ग है। (6) शेरशाह सूरी मार्ग एक राष्ट्रीय महामार्ग है।

प्रश्न 11.
मीटर गेज तथा बड़े गेज वाले मार्ग में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:

मीटर गेज पटरी (Metre Gauge) चौड़ी पटरी(Broad Gauge )
(1) ये रेलमार्ग एक मीटर चौड़ी पटरी वाले मार्ग हैं। (1) ये रेल मार्ग 1.68 मीटर चौड़ी पटरी वाले मार्ग हैं।
(2) इनकी चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है। (2) इनकी चौड़ाई अधिक है।
(3) ये मार्ग यात्रियों तथा हल्के सामान को सम्भालने के लिए बनाए गए थे। (3) ये मार्ग अधिक भारी सामान तथा यात्रियों के परिवहन के योग्य हैं।
(4) ये मार्ग अधिकतर पहाड़ी भागों में स्थित हैं। (4) ये मार्ग अधिकतर मैदानी भागों में स्थित हैं।

प्रश्न 12.
परिवहन तथा संचार में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
लोगों तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के साधन को परिवहन कहते हैं। देश के आर्थिक विकास को गतिशीलता प्रदान करने के लिए परिवहन आवश्यक है। परिवहन साधनों में सड़कें, रेलें, जलमार्ग तथा वायु मार्ग शामिल हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचनाएं भेजने के साधनों को संचार साधन कहते हैं। देश की सामाजिक प्रगति के लिए संचार साधन आवश्यक है। डाक तार सेवाएं, टेलीफोन, टेलीविज़न आदि संचार साधन हैं।

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत संचार और जन संचार में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना भेजने के साधन को व्यक्तिगत संचार कहते हैं। जैसे – डाक सेवा आदि। कम्प्यूटर द्वारा सूचना को शीघ्र भेजा जा सकता है। जब जन साधारण तक संदेश या सूचनाएं भेजनी हों तो उसे जन संचार कहते हैं। जैसे रेडियो, टेलीविज़न आदि आकाशवाणी तथा दूरदर्शन भारत में दो प्रमुख जन संचार साधन हैं।

प्रश्न 14.
यातायात के साधन किसी देश की जीवन रेखाएं क्यों कही जाती हैं ?
उत्तर:
यातायात के साधन राष्ट्र रूपी शरीर की धमनियां हैं। किसी भी देश की आर्थिक व सामाजिक उन्नति यातायात के साधनों के विकास पर निर्भर है। देश के प्राकृतिक साधनों का पूरा लाभ उठाने के लिए इन साधनों का विकास आवश्यक है। परिवहन साधन व्यापार तथा उद्योगों की आधारशिला हैं। देश के दूर-दूर स्थित भागों को यातायात साधनों द्वारा मिलाकर एक राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का निर्माण होता है। इस प्रकार यातायात के साधन राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक होते हैं । विभिन्न प्रदेशों में मानव तथा पदार्थों की गतिशीलता यातायात के साधनों पर निर्भर करती है। जिस प्रकार शरीर में नाड़ियों द्वारा रक्त प्रवाह होता है, उसी प्रकार किसी देश में सड़कों, रेलमार्गों, जलमार्गों आदि द्वारा व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। इसलिए यातायात के साधनों को देश की जीवन रेखाएं कहा जाता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

प्रश्न 15.
भारत के किन-किन प्रदेशों में रेलमार्गों का विकास कम है और क्यों ?
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों का विकास राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित हुआ है। देश के कई भागों में रेलों का विकास कम है।
(1) हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में रेलों की कमी है। अधिक ऊंचाई के कारण रेलमार्ग बनाना कठिन है। इस दुर्गम प्रदेश में विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग बनाना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(2) राजस्थान के मरुस्थल में भी रेलमार्ग कम हैं।
(3) उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में घने जंगलों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(4) पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई, दलदली भागों में रेलमार्ग बनाना सम्भव नहीं है।
(5) असम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(6) दक्षिणी प्रायद्वीप में पहाड़ी तथा ऊँचे-नीचे धरातल के कारण कई बाधाएं हैं तथा रेलमार्ग कम हैं इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत को तीन भौतिक इकाइयों (पर्वत, पठार तथा मैदान) के स्वरूप देश में रेल यातायात का असमान वितरण है। मैदानी भागों में अधिक रेलमार्ग मिलते हैं जबकि पर्वतीय तथा पठारी भागों में कम। है।

प्रश्न 16.
भारत में भीतरी जलमार्गों का अधिक विकास क्यों नहीं हो पाया है ?
उत्तर:
देश में नदियों तथा नहरों के भीतरी जलमार्गों का कम विकास हुआ है। भारत में नदियों की लम्बाई अधिक परन्तु इनका पूरा उपयोग नहीं किया जाता है। इसके कई कारण हैं-
(1) भारत की अधिकांश नदियों में बाढ़ों के कारण वर्षा ऋतु में जहाज़ तथा नावें नहीं चलाई जा सकतीं।
(2) शुष्क ऋतु में पानी की कमी के कारण नदियों का प्रयोग जलमार्गों के रूप में नहीं होता।
(3) दक्षिणी भारत की नदियां तेज़ गति व ऊंचे-नीचे धरातल के कारण जल प्रपात बनाती हैं तथा जहाज़रानी के अयोग्य हैं।
(4) नदियों के मुहानों पर रेत के जमाव, छिछले डेल्टा के निर्माण के कारण बड़े-बड़े जहाज़ प्रयोग नहीं किए जा सकते।
(5) नदियों के तली पर अवसादों के जमाव के कारण गहराई कम हो जाती है। अधिकतर नदियों का जल सिंचाई के लिए प्रयोग कर लिया जाता है। इसलिए भारत में नदियों का भीतरी जलमार्गों के रूप में बहुत कम विकास हुआ।

प्रश्न 17.
भारत के तीन राष्ट्रीय जलमार्ग कौन-से हैं ? प्रत्येक राष्ट्रीय जलमार्ग की एक मुख्य विशेषता लिखिए ।
उत्तर:
राष्ट्रीय जलमार्ग-
(1) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1
(2) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 2
(3) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 3

विशेषताएं –
राष्ट्रीय जलमार्ग 1
(1) यह भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय जलमार्ग है।
( 2 ) इसका मुख्य विस्तार इलाहाबाद और हल्दिया के मध्य है। (गंगा – भागीरथी)
( 3 ) यह यन्त्रीकृत नौकाओं द्वारा पटना तक तथा साधारण नौकाओं द्वारा हरिद्वार तक नौकायान योग्य है।
( 4 ) यह 1620 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग है तथा सबसे लम्बा जलमार्ग है।

राष्ट्रीय जलमार्ग 2
(1) यह ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली का एक भाग है।
(2) यह सदिया से डिब्रूगढ़ तक विस्तृत है। (891 कि० मी०)
(3) इसका उपयोग भारत और बांग्लादेश साझेदारी से करते हैं। राष्ट्रीय जलमार्ग 3

(1) इस जलमार्ग में तीन नहरें शामिल हैं-
(क) चंपाकारा
(ख) उद्योग मंडल
(ग) पश्चिमी तट नहर।
(2) इस मार्ग की कुल लम्बाई 205 किलोमीटर है।
(3) इस जलमार्ग को कोट्टापुरम कोलम विस्तार के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 18.
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय महामार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग वे सड़क मार्ग हैं जो देश के प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक नगरों, राजधानियों तथा बन्दरगाहों को आपस में जोड़ते हैं। इनका निर्माण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (C. P. W. D.) करता है। देश में इन महामार्गों की कुल लम्बाई 38445 कि० मी० है। प्रमुख महामार्ग निम्नलिखित हैं-

(1) राष्ट्रीय महामार्ग नं०
1. (National Highway ) – यह महामार्ग अमृतसर तथा दिल्ली को आपस में जोड़ता है। इसे शेरशाह सूरी मार्ग या ग्रांड ट्रंक रोड (G. T. Road) भी कहते हैं।
(2) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 2. दिल्ली को कोलकाता से मिलाता है।
(3) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 3. आगरा व मुम्बई को मिलाता है।
(4) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 4. चेन्नई को मुम्बई से जोड़ता है।
(5) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 7 देश का सबसे लम्बा मार्ग है जो वाराणसी को कन्याकुमारी तक मिलाता है । इसकी कुल लम्बाई 2369 कि०मी० है।
(6) राष्ट्रीय महामार्ग नं0 5 चेन्नई – कोलकाता मार्ग है।
(7) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 6 मुम्बई से कोलकाता तक है ।
(8) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 17 मुम्बई – कन्याकुमारी मार्ग है।
(9) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 15 एक सीमान्त सड़क है जो कांधला से होकर पंजाब तक चली गई है।

प्रश्न 19.
भारत में स्वर्ण चतुष्कोण पर राजमार्ग का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वर्ण चतुष्कोण परम राजमार्ग – सरकार ने सड़कों के विकास की एक मुख्य परियोजना शुरू की है। इसके द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई – मुंबई और दिल्ली को छः गलियों वाले परम राजमार्गों द्वारा जोड़ा जा रहा है श्रीनगर ( जम्मू और कश्मीर) को कन्याकुमारी ( तमिलनाडु) से जोड़ने वाला उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा सिलचर (असम) को पोरबंदर (गुजरात) से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम गलियारा इसी परियोजना के अंग हैं। इन राजमार्गों पर बड़ी तेज़ी से काम चल रहा है तथा ये 2013 के अंत तक उपयोग के योग्य हो जाएंगे।
इन परम राजमार्गों के बन जाने से भारत के महानगरों के बीच समय – दूरी काफ़ी घट जाएगी (यात्रा में कम समय लगेगा)। इन राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण का दायित्व भारत के राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण का है।

प्रश्न 20.
“ भारत में सड़क यातायात रेल यातायात का प्रतियोगी नहीं है, वरन् यह उसका पूरक है।” इस कथन को पांच तर्क देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सड़कें तथा रेलमार्ग भारत में यातायात के प्रमुख साधन हैं। ये साधन एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक-दूसरे की सहायता करते हैं। रेलें भारी वस्तुओं को सस्ते दर पर लम्बी दूरियों तक होती हैं । परन्तु इन वस्तुओं को ट्रकों द्वारा रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाया जाता है। तैयार वस्तुओं को भी सड़क मार्गों द्वारा घरों तक भेजा जाता है। दुर्गम प्रदेशों में कम खर्च पर सड़कें बनाई जा सकती हैं। सड़कें तीव्रगामी साधन हैं। परन्तु रेलों की क्षमता अधिक होती है। रेलें भारत के कुल भार का 80% परिवहन करती हैं। बड़े-बड़े नगर रेलवे द्वारा जोड़े गए हैं। परन्तु ग्राम तथा छोटे नगर सड़कों द्वारा बड़े नगरों से जोड़े जाते हैं। सड़क मार्गों द्वारा कारखानों तक कच्चे माल तथा खनिज पदार्थ पहुंचाए जाते हैं। इस प्रकार दोनों साधनों के अपने-अपने गुण हैं, दोनों साधन ही देश के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य हैं। इसलिए सड़क यातायात रेल यातायात का पूरक है।

प्रश्न 21.
भारत के राज्य महामार्गों की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राज्य महामार्गों की विशेषताएं –
(1) इन महामार्गों की निर्माण एवं रखरखाव राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
(2) ये मार्ग राज्य की राजधानी से जिला मुख्यालयों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों को जोड़ते हैं।
(3) ये मार्ग राष्ट्रीय राज्य में ही बनाए जाते हैं।
(4) देश की कुल सड़कों की लम्बाई में राज्य महामार्गों का योगदान 4 प्रतिशत है तथा इनका प्रशासनिक महत्त्व है।

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प्रश्न 22.
पटरियों की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेलों के तीन वर्ग कौन-कौन से हैं ? प्रत्येक वर्ग की मुख्य विशेषता लिखिए।
उत्तर:
पटरियों की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेलों के तीन वर्ग निम्नलिखित हैं-
(क) बड़ी लाइन
(ख) मीटर लाइन
(ग) छोटी लाइन।

मुख्य विशेषताएं –
(क) बड़ी लाइन –
(1) रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर (1 मीटर से अधिक) होती है।
(2) बड़ी लाइन के मार्ग की कुल लम्बाई 46807 कि० मी० सबसे अधिक है।
(3) यह देश के कुल रेलमार्गों की लम्बाई का 74.14 प्रतिशत भाग है।

(ख) मीटर लाइन –
(1) रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती है।
(2) मीटर लाइन की कुल लम्बाई 13290 कि० मी० है।
(3) भारतीय रेल की कुल लम्बाई में इसकी लम्बाई केवल 21.02 प्रतिशत है।

(ग) संकरी लाइन
(1) इसमें दो पटरियों के बीच की दूरी केवल 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है। (1 मीटर से कम)।
(2) इसकी कुल लम्बाई 3124 कि० मी० है तथा पर्वतीय भाग में है।
(3) भारतीय रेल की कुल लम्बाई की छोटी लाइन का अनुपात मात्र 4.94 प्रतिशत भाग है।

प्रश्न 23.
‘भारत में सड़कों का घनत्व और गुणवत्ता अन्य क्षेत्रों की तुलना में, मैदानों में अधिक अच्छी है।’ इस कथन की उदाहरण सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी राज्यों में अधिकतर सड़कों का घनत्व उच्च है। हिमालयाई प्रदेशों में यह घनत्व निम्न है किसी प्रदेश के आर्थिक विकास के स्तर पर सड़क घनत्व निर्भर करता है । पंजाब तथा केरल राज्यों में सड़क घनत्व बहुत ऊँचा है (300 कि० मी० प्रति 100 वर्ग कि० मी०)। सड़कों का घनत्व तथा गुणवत्ता भू-भाग की प्रकृति पर निर्भर करता है। मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण आसान एवं सस्ता होता है जबकि पहाड़ी व पठारी क्षत्रों में यह कठिन तथा महंगा होता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों की गुणवत्ता अच्छी होती है। सड़कों का घनत्व बरसाती क्षेत्रों, वन क्षेत्र तथा दक्षिणी राज्यों में कम है।

प्रश्न 24.
भारत की उपग्रह प्रणाली की समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो वर्गों में बांटिए। प्रत्येक वर्ग की मुख्य विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तन्त्र में एक क्रान्ति आ गई है। रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह छोड़ा था। उपग्रहों, प्रक्षेपण यानों और सम्बन्धित स्थलीय प्रणालियों का विकास देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का अंग है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणालियों को दो वर्गों में रखा जा सकता है – भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) तथा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई० आर० एस० ) । इन्सैट दूरसंचार मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रेक्षण और अन्य विविध आंकड़ों तथा कार्यक्रमों के लिए एक बहु-उद्देशीय उपग्रह प्रणाली है।

प्रश्न 25.
भारत में रेलमार्गों के विकास में मुख्य भूमिका निभाने वाले मूल आधारित तीन कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों के विकास को निम्नलिखित कारकों ने मुख्य भूमिका निभाई-
1. भौतिक कारक – भारत के समतल मैदानी भागों में रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है। जैसे उत्तरी मैदान में। परन्तु पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में रेलमार्ग कम हैं, जैसे- असम तथा हिमालय प्रदेश में।

2. आर्थिक कारक – बड़े-बड़े औद्योगिक, व्यापारिक नगरों तथा प्रमुख पत्तनों के समीप रेलमार्गों का अधिक विस्तार हुआ है परन्तु राजस्थान में कम आर्थिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।

3. राजनीतिक कारक – ब्रिटिश प्रशासन ने देश के संसाधनों के शोषण की नीति के कारण प्रमुख पत्तनों को देश के आन्तरिक भागों से रेलमार्गों द्वारा जोड़ दिया।

प्रश्न 26.
भारत के भिन्न क्षेत्रों में रेलमार्गों का विकास समान रूप से नहीं हो पाया है। कौन-से ऐसे मूल्य आधारित कारक जिनके चलते ऐसा है ?
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों का विकास राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित हुआ है। इसके फलस्वरूप देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रेलों का विकास कम हुआ, जैसे कि –
(1) हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में रेलों की कमी है। अधिक ऊंचाई के कारण रेलमार्ग बनाना कठिन है। इस दुर्गम प्रदेश में विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग बनाना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(2) राजस्थान के मरुस्थल में भी रेलमार्ग कम हैं। क्योंकि यहाँ के रेतीले क्षेत्रों में पट्टी बिछाना आसान नहीं है।
(3) उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में घने जंगलों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(4) पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई, दलदली भागों में रेलमार्ग बनाना सम्भव नहीं है।
(5) असम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ों के कारण रेलमार्ग का विस्तार कम है।
(6) दक्षिणी प्रायद्वीप में पहाड़ी तथा ऊँचे-नीचे धरातल के कारण रेलमार्ग के निर्माण में बहुत बाधाएँ हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत को तीन भौतिक इकाइयों (पर्वत, पठार तथा मैदान) के स्वरूप देश में रेल यातायात का असमान वितरण है। मैदानी भागों में अधिक रेलमार्ग मिलते हैं जबकि पर्वतीय तथा पठारी भागों में कम।
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प्रश्न 27.
भारत के वायु परिवहन के क्षेत्र में ‘एयर इण्डिया’ तथा ‘इण्डियन’ के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में वायु परिवहन के दो खण्ड हैं- आन्तरिक सेवाएं तथा अन्तर्देशीय सेवाएं एयर इण्डिया संगठन विदेशी उड़ानों का प्रबन्ध करती है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एयर इण्डिया के केन्द्र बिन्दु हैं। इंण्डियन एयर लाइन्स देश के भीतरी भागों तथा पड़ोसी देशों के साथ वायु सेवाओं का प्रबन्ध करती है। सन् 1981 से देश के भीतर दुर्गम भागों में वायुदूत एयर लाइन्स सेवाओं का भी प्रारम्भ किया गया है। 1985 में पवन हंस लिमिटेड की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों, वनाच्छादित तथा पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने हेतु हेलीकाप्टर सेवाएं उत्पन्न करवाने के लिए की गई।

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निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय रेलमार्गों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
रेलमार्गों का वितरण – रेलमार्गों के मानचित्र देखने से रेल – जाल की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट हो जाती हैं-
1. उत्तरी मैदान – भारत के उत्तरी मैदान में अमृतसर एवं हावड़ा के बीच रेल मार्गों का घना जाल विकसित हुआ है जिसमें मुगलसराय, लखनऊ, आगरा तथा पटना जैसे मुख्य रेल जंक्शन पाये जाते हैं। उत्तरी मैदान का सम्पूर्ण भाग रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है। इस मैदान में पूर्व-पश्चिम की दिशा में संबद्धता अधिक पाई जाती है जबकि उत्तर – दक्षिण की दिशा में यह उतनी सक्षम नहीं है। उदाहरण के लिए दिल्ली से कोलकाता के बीच की 1500 किलोमीटर की दूरी 17 घंटे में तय की जा सकती है। इसके विपरीत दिल्ली से देहरादून पहुँचने में 10 घंटे लगते हैं। जबकि दिल्ली एवं देहरादून के बीच की दूरी कोलकाता की अपेक्षा एक तिहाई भी नहीं है। इस मैदान में रेल – जाल का बहुत घनिष्ठ सह- सम्बन्ध इस के कृषि एवं औद्योगिक विकास के स्तर से है। दिल्ली तक केन्द्र बिन्दु है जहाँ से रेलमार्ग प्रत्येक दिशा में विकीर्ण होते हैं। दिल्ली को सभी पत्तन नगरों से अति शीघ्र (सुपरफास्ट) रेल गाड़ियों द्वारा जोड़ा गया है।

उत्तरी मैदान में रेलमार्गों के विकास के लिए कई अनुकूल दशाएं हैं।
(1) देश का सबसे लम्बा रेलमार्ग उत्तरी रेलवे इसी क्षेत्र में है जिसकी लम्बाई 10,977 किलोमीटर है।
(2) उत्तरी मैदान एक समतल सपाट मैदान है। यहां रेलमार्ग आसानी से बनाए जा सकते हैं। मीलों तक सीधे रेलमार्ग मिलते हैं।
(3) इस क्षेत्र में जनसंख्या बहुत घनी है, बड़े-बड़े नगर बसे हैं, जिनके कारण रेलमार्गों की घनता अधिक है।
(4) यहां औद्योगिक विकास के लिए कृषि पदार्थों के परिवहन के लिए रेलमार्गों की अधिक आवश्यकता है।
(5) कई आर्थिक तथा प्रशासनिक केन्द्रों को एक-दूसरे से मिलाने के लिए रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है।
(6) उत्तरी मैदान के सम्पन्न पृष्ठ प्रदेश को मुम्बई तथा कोलकाता की बन्दरगाहों से मिलाने के लिए रेलमार्गों का निर्माण आवश्यक है।

2. प्रायद्वीपीय पठार – प्रायद्वीपीय भाग, गुजरात तथा तमिलनाडु में अन्य भागों की तुलना में मध्यम सघन रेल – जाल पाया जाता है। सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय मैदान एक पहाड़ी भू-भाग है। जनसंख्या का संकेन्द्रण भी मध्यम है। अतः रेल – जाल भी मध्यम सघन है। मुख्य रेलमार्गों को इस प्रकार बिछाया गया है कि मुम्बई – चेन्नई, चेन्नई – कोचीन, चेन्नई-दिल्ली तथा चेन्नई – हैदराबाद के मध्य अधिक सक्षम रेल सेवा उपलब्ध है।

3. तटीय मैदान – पूर्वी तटीय प्रदेशों एवं पश्चिमी तटीय प्रदेशों के रेल- जाल से स्पष्ट भिन्नता देखने को मिलती है। पूर्वी तट के साथ-साथ कोलकाता एवं चेन्नई के बीच एक मुख्य रेलमार्ग बनाया गया है जबकि पश्चिमी तटीय मैदान में मुम्बई एवं कोचीन के मध्य सीधा रेलमार्ग कोंकण रेल मार्ग ( 837 कि०मी० लम्बा) है। पश्चिमी तटीय मैदान में घाट की पहाड़ियां तट के बहुत निकट हैं अतः तटीय मैदान संकरा है तथा समुद्र तट की ओर बढ़ी हुई पहाड़ियाँ रेलमार्ग में अवरोध पैदा करती हैं। इसके विपरीत पूर्वी तटीय मैदान अधिक चौड़ा है एवं पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ तट से दूर स्थित हैं।

4. विरल रेल जाल वाले क्षेत्र – देश में हिमालय पर्वत, पश्चिमी राजस्थान ब्रह्मपुत्र घाटी, पूर्वी पर्वतीय प्रदेश में रेल मार्ग कम हैं।
(क) हिमालय पर्वतीय क्षेत्र – इस क्षेत्रों में मुख्य हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र है। कटा-फटा भूभाग, पर्वतों एवं उपत्यकाओं का धरातल, पिछड़ी अर्थव्यवस्था एवं विरल जनसंख्या आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो रेल – जाल के विरल होने के लिए उत्तरदायी हैं।
(ख) पश्चिमी राजस्थान – पश्चिमी राजस्थान के शुष्क प्रदेश में केवल एक दो मीटर गेज के रेलमार्ग प्रविष्ट हो सके हैं।
(ग) ब्रह्मपुत्र घाटी – ब्रह्मपुत्र घाटी में दो समान्तर रेलमार्ग हैं परन्तु मेघालय पठार पर कोई रेलमार्ग नहीं बनाया जा सका है।
(घ) उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र – त्रिपुरा, मणिपुर, मिज़ोरम एवं नागालैण्ड में भी कोई रेलमार्ग नहीं है। पर्वतीय धरातल एवं घने वनों से आच्छादित भूमि ही रेलमार्गों के न होने के लिए उत्तरदायी है। इन क्षेत्रों में रेल मार्ग बनाने में बहुत बड़ी लागत आएगी। विरल जनसंख्या होने के कारण भी रेलमार्ग बनाने के कार्य को प्रोत्साहन नहीं मिला।

प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख आन्तरिक जलमार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
जब देश के भीतरी भागों झीलों, नदियों का प्रयोग परिवहन के लिए किया जाता है तो इन्हें आन्तरिक जलमार्ग (Inland Water-ways) कहा जाता है। किसी दिशा के प्रादेशिक व्यापार के लिए यह सबसे सस्ते तथा महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भारत में 3700 कि० मी० लम्बे नदी मार्गों पर तथा 4300 किलोमीटर लम्बी नहरों के मार्ग पर जल – यातायात के साधन प्रयोग किए जा सकते हैं। भारत में झीलों द्वारा बने जलमार्ग बहुत कम हैं।
(क) नदी परिवहन मार्ग –
(1) गंगा नदी में छोटे स्टीमर कोलकाता से पटना तक चल सकते हैं। नावें हरिद्वार तक चलाई जा सकती हैं। गंगा नदी- भागीरथी – हुगली नदी तन्त्र को राष्ट्रीय जलमार्ग – 1 कहा जाता है। यह इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 कि०मी० लम्बा है।
(2) ब्रह्मपुत्र नदी में, असम में सदिया – धूबरी, राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 ( 89 कि०मी०) में नौकाओं द्वारा जाया जा सकता है।
(3) राष्ट्रीय जलमार्ग – 3 पश्चिमी तट नहर को कोटापुरम से कोल्लम खण्ड तथा उद्योगमंडल व चम्पाकर नहरें ( 205 कि०मी०) बराक नदी, गोवा की मांडावी नदी और जुआरी नदी को भी आन्तरिक जलमार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(4) दक्षिणी भारत में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और महानदी नदियों के निचले भाग में नावें चलाई जा सकती हैं।
(ख) नहर परिवहन मार्ग – भारत में कई नहरों का जल-मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे तमिलनाडु में बकिंघम नहर तथा कंवेर जुआ नहर, गंगा की नहरें, केरल प्रदेश में लैगून झीलों द्वारा बने जल-मार्ग तथा गोदावरी डेल्टाई नहरों का जल मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 3.
भारत में प्रमुख पाइप लाइनों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. नहर कटिया – बारौनी पाइप लाइन – आयल इंडिया लिमिटेड कम्पनी ने असम के नहरकाटिया तेल क्षेत्र से बिहार की बरौनी तेल परिष्करणशाला तक नूनमती होकर सबसे पहली 1152 कि०मी० लम्बी पाइप लाइन सन् 1962-68 में बनाई थी।
2. हल्दिया – कानपुर पाइप लाइन – पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन के लिए 1966 में हल्दिया-बरौनी- कानपुर पाइप लाइन बिछाई गई थी। इसके बाद हल्दिया- मौरीग्राम – राजबन्ध पाइप लाइन बनी।
3. अंकलेश्वर- कोयली पाइप लाइन – अंकलेश्वर तेल क्षेत्र को कोयली परिष्करणशाला से जोड़ने वाली पहली पाइप लाइन सन् 1965 में बनाई गई। इसके बाद कलोल – साबरमती कच्चे तेल की पाइप लाइन, नवगांव – कलोल – कोयली पाइप लाइन और मुम्बई हाई – कोयली पाइप लाइन बिछाई गई ।
4. अहमदाबाद – कोयली पाइप लाइन – पैट्रोलियम उत्पादों के परिवहन के लिए अहमदाबाद को पाइप लाइन द्वारा कोयली से जोड़ा गया है।
5. अंकलेश्वर – बड़ोदरा पाइप लाइन – खंभात और धुवरन के मध्य अंकलेश्वर और उत्तरण तथा अंकलेश्वर और बडोदरा के मध्य गैस पाइप लाइनें भी बिछाई गई हैं । भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड देश में 4200 कि०मी० पाइप लाइनों का संचालन करता है तथा बिजली घरों को गैस की आपूर्ति करता है ।
6. HBJ गैस पाइप लाइन – 1750 कि०मी० लम्बी हजीरा – विजयपुर – जगदीशपुर गैस पाइप लाइन काफ़ी पहले बन चुकी है। अब इस पाइप लाइन का बीजापुर से उत्तर प्रदेश में दादरी तक विस्तार कर दिया गया है।
7. कांडला – दिल्ली पाइप लाइन – भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड आजकल रसोई गैस (एल०पी०जी० ) के परिवहन के लिए 1246 कि०मी० लम्बी पाइप लाइन गुजरात में कांडला – जामनगर से लेकर दिल्ली से होते हुए उत्तर प्रदेश में लोनी तक बना रहा है।
8. मथुरा – जालन्धर तेल पाइप लाइन
9. कांडला – भठिण्डा पाइप लाइन-

प्रश्न 4.
‘भारत में सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक एकीकरण को मज़बूत करने में त्रिविध परिवहन तन्त्र की विशेष भूमिका है’ प्रश्न में निहित चारों तत्त्वों का उदाहरण सहित विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवहन का एकीकरण कार्य ( Integrating Role of Transport ) – स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में परिवहन व्यवस्था के विकास के कई कार्य किए गए हैं। बीस वर्षीय नागपुर सड़क विकास योजना के अधीन सड़कों का विस्तार किया गया। औद्योगिक, व्यापारिक तथा पिछड़े हुए क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य को बढ़ावा दिया गया। इसी प्रकार रेलमार्गों के निर्माण की कई योजनाएं पूरी हो गई हैं। देश की आर्थिक व्यवस्था में भारी सामान को दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए रेलों तथा सड़कों को एक-दूसरे के पूरक बनाया गया है। प्रादेशिक विकास के लिए सभी प्रकार के परिवहन साधनों का संगठन किया गया।

देश में राजनीतिक तथा आर्थिक एकता के लिए यातायात के सभी साधनों को एक-दूसरे से पूरक एक संगठित परिवहन व्यवस्था बनाई गई है। यह साधन खाद्यान्नों, कच्चे माल, खनिज पदार्थों तथा तैयार माल को उत्पादन क्षेत्रों से खपत केन्द्रों तक पहुंचाते हैं। यातायात के इन साधनों के एकीकरण के प्रभाव से व्यापारी बाज़ारों का विकास हुआ है। देश के जल पोताश्रयों को आन्तरिक प्रदेशों से जोड़कर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ा गया है। इस प्रकार जलीय तथा स्थलीय यातायात के साधन मिलकर एक संगठित व्यवस्था बनाते हैं।

देश के दुर्गम तथा दूरस्थ भागों में वायु परिवहन के तीव्रगामी साधनों द्वारा कम समय में पहुंचा जा सकता है । यह साधन पूर्वी भागों के घने वनों, हिमालय के उच्च पर्वतीय प्रदेशों तथा राजस्थान के मरुस्थल को एक-दूसरे से मिलाकर राष्ट्रीय एकता का आभास कराते हैं। इसी प्रकार जलयान तथा वायुयान सेवाओं द्वारा अण्डमान द्वीप को देश के मुख्य भू-भाग से मिलाया गया है। पीरपंजाल पर्वत श्रेणी में जवाहर सुरंग के निर्माण से कश्मीर घाटी को भारत के अन्य भागों से मिलाया गया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में संतुलित विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी परिवहन साधनों का एकीकरण करके एक स्वस्थ, सुसंगठित परिवहन व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है ।

प्रश्न 5.
भारत में सड़क महामार्गों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में प्राचीनकाल से ही सड़कें महत्त्वपूर्ण रही हैं। शेरशाह सूरी ने राष्ट्रीय राजमार्ग, ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण किया । स्वाधीनता के पश्चात् 10 वर्षीय नागपुर योजना के अन्तर्गत सड़क मार्गों का विकास किया गया। भारत में अधिकतर पक्की सड़कें दक्षिणी भारत में हैं, क्योंकि यहां सड़कों को बनाने के लिए दक्षिणी पठार में पर्याप्त मात्रा में पत्थर मिल जाते हैं

भारतीय सड़कों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –
(1) भारत की कुल सड़कों की लम्बाई 33 लाख किलोमीटर है।
(2) देश में राष्ट्रीय महामार्गों की लम्बाई 57,700 किलोमीटर।
(3) प्रमुख महामार्ग मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, बंगलौर तथा श्रीनगर को मिलाते हैं।
(4) भारत में महामार्ग देश को पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में तिब्बत तथा चीन, पूर्व में बांग्ला देश और बर्मा (म्यानमार) को जोड़ते हैं।
(5) भारत में सीमा प्रदेशों में 30,028 कि० मी० लम्बी सड़कें बनाई गई हैं जिनमें मनाली से लेकर लेह तक सड़क मार्ग 4270 मीटर ऊंचा है।
(6) लगभग पच्चीस लाख मोटरगाड़ियां भारतीय सड़कों पर चलती हैं तथा प्रति वर्ष 1500 करोड़ रुपए की आय होती है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 3
Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of india extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line. The external boundaries and coastlines of India agree with the Recored Master copy certified by-the Survey of India.

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

प्रश्न 6.
भारत में रेल मार्गों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय रेल मार्ग – परिवहन के साधनों में रेलों का महत्त्व सबसे अधिक है। 1853 ई० में भारत में प्रथम रेल लाइन 34 कि० मी० लम्बी बम्बई (मुम्बई) से थाना स्टेशन तक बनाई गई। भारतीय रेलवे की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) भारतीय रेल मार्ग 62,759 कि० मी० लम्बा है।
(2) यह एशिया में सबसे लम्बा रेल मार्ग है।
(3) विश्व में भारत का चौथा स्थान है।
(4) भारतीय रेलों में 18 लाख कर्मचारी काम करते हैं।
(5) प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियां लगभग 13 लाख कि० मी० दूरी चलती हैं तथा 6867 रेलवे स्टेशन हैं।
(6) प्रतिदिन लगभग 130 लाख यात्री यात्रा करते हैं तथा 13 लाख टन भार ढोया जाता है।
(7) भारतीय रेलों में 8000 करोड़ रुपए की पूंजी लगी हुई है तथा प्रतिवर्ष 21,000 करोड़ रुपए की आय होती है।
(8) भारतीय रेलों में 11,000 रेल इंजन, 38,000 सवारी डिब्बे तथा 4 लाख भार ढोने वाले डिब्बे हैं ।
(9) भारत में 80% सामान तथा 70% यात्री रेलों द्वारा ही ले जाए जाते हैं।
(10) भारतीय रेलों का अधिक विस्तार उत्तरी भारत के समतल मैदान में है।
(11) भारत में जम्मू – कश्मीर, पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर का पठार तथा थार के मरुस्थल में रेल मार्ग कम हैं।
(12) दक्षिणी भारत में पथरीली, ऊंची-नीची भूमि के कारण, छोटी-छोटी नदियों पर जगह-जगह पुल बनाने की असुविधा है।
(13) अब भारतीय रेलों पर 4259 डीज़ल इंजन तथा 2302 बिजली के इंजन 347 भाप इंजन चलते हैं।
(14) लगभग 13517 कि० मी० लम्बे रेल मार्ग पर विद्युत् गाड़ियां दौड़ती हैं।

भारत में रेल मार्ग तीन प्रकार के हैं –
(1) चौड़ी पटरी ( Broad Gauge ) – 1.676 मीटर चौड़ाई। (कुल लंबाई 44380 कि०मी० – 70.7%)
(2) छोटी पटरी (Metre Gauge ) – 1 मीटर चौड़ाई। ( कुल लंबाई 15013 कि०मी० – 23.9 %)
(3) तंग पटरी (Narrow Gauge ) – 0.76 मीटर और 0.610 मीटर चौड़ाई। (कुल लंबाई 3363 कि०मी० – 5.4%)
रेल क्षेत्र (Railway Zones) – भारत में 16 रेल क्षेत्र हैं। ये रेल तथा प्रमुख कार्यालय इस प्रकार हैं –

रेल क्षेत्र प्रमुख कार्यालय लम्बाई ( कि०मी०)
(1) उत्तर रेलवे नई दिल्ली 10977
(2) उत्तर-पूर्वी रेलवे गोरखपुर 5163
(3) उत्तर-पूर्वी सीमान्त रेलवे गोहाटी 3613
(4) मध्य रेलवे मुम्बई 6309
(5) दक्षिण रेलवे चेन्नई 6703
(6) दक्षिण मध्य रेलवे सिकन्द्राबाद 6932
(7) दक्षिण-पूर्वी रेलवे कोलकाता 704
(8) पश्चिमी रेलवे मुम्बई 10292
(9) पूर्वी रेलवे कोलकाता 4204
(10) मध्य-पूर्वी हाजीपुर
(11) पूर्वतटीय भुवनेश्वर
(12) उत्तर-मध्यवर्ती इलाहाबाद
(13) उत्तर-पश्चिमी जयपुर
(14) दक्षिण-पूर्व मध्यवर्ती बिलासपुर
(15) दक्षिण-पश्चिम हुबली
(16) पश्चिम-मध्य जबलपुर

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

Jharkhand Board Class 12 Political Science भारतीय राजनीति : नए बदलाव InText Questions and Answers

पृष्ठ 174

प्रश्न 1
‘अगर हर सरकार एक-सी नीति पर अमल करे तो मुझे नहीं लगता कि इससे राजनीति में कोई बदलाव आयेगा।’
उत्तर:
यदि सभी सरकारें या उनसे सम्बद्ध राजनीतिक दल एक ही प्रकार की नीतियाँ अपनाएं तो इससे राजनीतिक व्यवस्था स्थिर व जड़ हो जायेगी। लेकिन लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इस प्रकार की नीति लागू होना सम्भव नहीं है क्योंकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनमत सर्वोपरि होता है और जनसामान्य के हित अलग-अलग होते हैं और यह हित समय और परिस्थितियों के अनुसार निरन्तर परिवर्तित भी होते रहते हैं, इसलिए प्रत्येक सरकार को जन इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए कार्य करना पड़ता है।

ऐसी स्थिति में सभी सरकारें एक जैसी नीति का अनुसरण नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त भारत जैसे बहुदलीय व्यवस्था वाले देश में तो इस प्रकार की नीति लागू करना बिल्कुल भी सम्भव नहीं है क्योंकि भारत में प्रत्येक दल की विचारधारा व कार्यक्रमों में व्यापक अन्तर है और ये राजनीतिक दल सत्ता में आने पर अलग-अलग ढंग से निर्णय लेते हैं।

पृष्ठ 180

प्रश्न 2.
चलो मान लिया कि भारत जैसे देश में लोकतान्त्रिक राजनीति का तकाजा ही गठबन्धन बनाना है। लेकिन क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि हमारे देश में हमेशा से गठबन्धन बनते चले आ रहे हैं। अथवा, राष्ट्रीय स्तर के दल एक बार फिर से अपना बुलंद मुकाम हासिल करके दिखाएंगे।
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में गठबन्धन का दौर हमेशा से चला आ रहा है । यह बात कुछ हद तक सहीं है, लेकिन इन गठबन्धनों के स्वरूप में व्यापक अन्तर है। पहले जहाँ एक ही पार्टी के भीतर गठबन्धन होता था अब पार्टियों के बीच गठबन्धन होता है। जहाँ तक राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व का सवाल है, वर्तमान दलीय व्यवस्था के बदलते दौर में अपना बुलंद मुकाम पाना बहुत कठिन है। क्योंकि वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बहुदलीय हो गया है जिसमें राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता। यही कारण है कि भारत में नब्बे के दशक से गठबन्धन सरकारों का सिलसिला चला आ रहा है।

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प्रश्न 3.
मुझे इसकी चिन्ता नहीं है कि सरकार किसी एक पार्टी की है या गठबन्धन की। मसला तो यह है कि कोई सरकार काम कौनसे कर रही है? क्या गठबन्धन सरकार में ज्यादा समझौते करने पड़ते हैं? क्या गठबन्धन सरकार साहसी और कल्पनाशील नीतियाँ नहीं अपना सकती?
उत्तर:
सरकारों का स्वरूप चाहे कैसा भी हो। चाहे वह गठबन्धन सरकार हो या एक ही दल की सरकार हो लेकिन सरकार जनता की कसौटियों पर खरी उतरे वही सफल सरकार है। गठबन्धन सरकारों में विभिन्न दल आपसी समझौतों या शर्तों के आधार पर सरकार का गठन करते हैं। इन दलों के सभी के अपने-अपने हित एवं स्वार्थ होते हैं जिन्हें पूरा करने हेतु निरन्तर प्रयास करते रहते हैं।

जहाँ आपसी हितों में रुकावट या टकराव आता है वहीं दल अलग हो जाते हैं और सरकारें गिर जाती हैं। इस प्रकार गठबन्धन सरकारों में स्थिरता बहुत कम पायी जाती है। इस प्रकार की सरकारों में स्वतन्त्र निर्णय लेना सम्भव नहीं है। इस प्रकार गठबन्धन सरकार साहसी और कल्पनाशील नीतियाँ नहीं अपना सकती।

पृष्ठ 183

प्रश्न 4.
क्या इससे पिछड़े और दलित समुदायों के सभी नेताओं को लाभ होगा या इन समूहों के भीतर मौजूद कुछ ताकतवर जातियाँ और परिवार ही सारे फायदे अपनी मुट्ठी में कर लेंगे?
उत्तर:
इससे पिछड़े और दलित समुदायों के सभी नेताओं का लाभ तो शायद ही हो अपितु हमने यह देखा है कि ऐसे संगठनों में मौजूद कुछ नेता अत्यधिक ताकतवर और रसूखवाले हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
असल मुद्दा नेताओं का नहीं, जनता का है! क्या इस बदलाव से सचमुच के वंचितों के लिए बेहतर नीतियाँ बनेंगी और उन पर कारगर तरीके से अमल होगा या फिर यह सारा कुछ एक राजनीतिक खेल मात्र बनकर रह जाएगा?
उत्तर:
हम इस बात को पूरी तरह नकार नहीं सकते कि ऐसे बदलावों से वंचितों के लिए कोई बेहतर नीतियाँ नहीं बनीं और उन पर कारगर तरीके से अमल होगा। परंतु कई बार नेताओं ने ऐसे नीतियों का फायदा जरूरतमंदों तक पूरा-पूरा नहीं पहुँचने दिया।

पृष्ठ 188

प्रश्न 6.
क्या हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि जो लोग ऐसे जनसंहार की योजनाएँ बनाएँ, अमल करें और उसे समर्थन दें। वे कानून के हाथों से बच न पाएँ? ऐसे लोगों को कम-से-कम राजनीतिक रूप से तो सबक सिखाया ही जा सकता है।
उत्तर:
भारत में धर्म, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर अनेक बार साम्प्रदायिक दंगे हुए। इन साम्प्रदायिक दंगों के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों का हाथ रहा है। ये दल अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु दुष्प्रचार करते हैं जिससे जनसामान्य इनके बहकावे में आकर गलत कदम उठाते हैं। भारत में 1984 के सिख दंगे हों, अयोध्या की घटना हो या 2002 में गुजरात का गोधरा काण्ड, इन सभी घटनाओं के पीछे राजनीतिक दलों की स्वार्थपूर्ण नीति रही है।

इन घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक है कि ऐसे राजनीतिक दल व उनके नेतृत्वकर्ता जिनका आपराधिक रिकार्ड रहा है या साम्प्रदायिक दंगों में लिप्त रहे हैं उन पर चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए। जो लोग नरसंहार की योजना बनाएँ या उस पर अमल करें उन्हें कानून द्वारा सख्त सजा दी जानी चाहिए।

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प्रश्न 1.
उन्नी – मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें।
(क) मंडल आयोग की सिफारिशें और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ख) जनता दल का गठन
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(घ) इन्दिरा गांधी की हत्या
(ङ) राजग सरकार का गठन
(च) संप्रग सरकार का गठन
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
उत्तर:
(क) इन्दिरा गांधी की हत्या (1984)
(ख) जनता दल का गठन (1988)
(ग) मण्डल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा (1990)
(घ) बाबरी मस्जिद का विध्वंस (1992)
(ङ) राजग सरकार का गठन (1999)
(च) गोधरा दुर्घटना और उसके परिणाम (2002)
(छ) संप्रग सरकार का गठन (2004)।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में मेल करें-

(क) सर्वानुमति की राजनीति (i) शाहबानो मामला
(ख) जाति आधारित दल (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय (iii) गठबन्धन सरकार
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत (iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति

उत्तर:

(क) सर्वानुमति की राजनीति (iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति
(ख) जाति आधारित दल (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय (i) शाहबानो मामला
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत (iii) गठबन्धन सरकार

प्रश्न 3.
1989 के बाद की अवधि में भारतीय के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आये हैं?
उत्तर:
1989 के बाद भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे – 1989 के बाद भारतीय राजनीति में कई बदलाव आये जिनमें कांग्रेस का कमजोर होना, मण्डल आयोग की सिफारिशें एवं आन्दोलन, आर्थिक सुधारों को लागू करना, राजीव गांधी की हत्या तथा अयोध्या मामला प्रमुख हैं । इन स्थितियों में भारतीय राजनीति में जो मुद्दे प्रमुख रूप से उभरे उनसे राजनीतिक दलों का आपसी जुड़ाव निम्न रूप में सामने आया-

  1. कांग्रेस ने स्थिर सरकार का मुद्दा उठाकर कहा कि देश में स्थिर सरकार कांग्रेस ही दे सकती है।
  2. भाजपा ने राम मंदिर बनाने का मुद्दा उठाकर हिन्दू मतों को अपने पक्ष में कर अपने जनाधार को ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक करने का प्रयास किया।
  3. लोकदल व जनता दल ने मंडल आयोग की सिफारिशों का मुद्दा उठाकर पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने का प्रयास किया ।

प्रश्न 4.
“गठबन्धन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-कौनसे तर्क देंगे?
उत्तर:
पक्ष में तर्क- वर्तमान युग में गठबन्धन की राजनीति का दौर चल रहा है। इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार बनाकर गठजोड़ नहीं कर रहे बल्कि अपने निजी राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं। इस बात के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  1. 1977 में जे. पी. नारायण के आह्वान पर जो जनता दल बना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः सी. पी. आई. को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल शामिल थे। इन सभी दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते।
  2. जनता दल की सरकार गिरने के बाद केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा बना जिसमें एक ओर जनता पार्टी के वी. पी. सिंह तो दूसरी ओर उन्हें समर्थन देने वाले सी. पी. एम. वामपंथी और भाजपा जैसे तथाकथित हिन्दुत्व समर्थक गांधीवादी राष्ट्रवादी दल भी थे।
  3. कांग्रेस की सरकार, 1991 से 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में अल्पमत होते हुए भी इसलिए चलती रही क्योंकि उसे अनेक ऐसे दलों का समर्थन प्राप्त था जिससे तथाकथित साम्प्रदायिक शक्तियाँ सत्ता में न आ सकें।
  4. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी जनतांत्रिक गठबन्धन ( एन. डी.ए) की सरकार को अकालियों, तृणमूल कांग्रेस, बीजू पटनायक कांग्रेस, समता दल, जनता पार्टी तथा अनेक क्षेत्रीय दलों ने भी सहयोग और समर्थन दिया।

विपक्ष में तर्क- उपर्युक्त कथन के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-

  1. गठबन्धन की राजनीति के नए दौर में भी वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाया, वे उसे अब भी राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्शीय पार्टी मानते हैं।
  2. समाजवादी पार्टी, वामपंथी मोर्चा, डी. पी. के. जैसे क्षेत्रीय दल किसी भी उस प्रत्याशी को खुला समर्थन नहीं देना चाहते जो एन. डी. ए. अथवा भाजपा का प्रत्याशी हो।
  3. कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश मोर्चों पर बीजेपी विरोधी और बीजेपी ने कांग्रेस विरोधी रुख अपनाया है

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प्रश्न 5.
आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास क्रम का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी का विकास-क्रम – आपातकाल के पश्चात् भाजपा की विकास यात्रा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

  1. जनता पार्टी सरकार के पतन के बाद जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने वर्ष 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।
  2. वर्ष 1984 के चुनावों में भाजपा को लोकसभा में केवल दो सीटें प्राप्त हुईं।
  3. सन् 1989 के चुनावों में भाजपा ने चुनाव में राम मंदिर बनवाने के नारे को उछाला। फलतः इस चुनाव में भाजपा को आशा से अधिक सफलता मिली। भाजपा ने वी. पी. सिंह को बाहर से समर्थन देकर संयुक्त मोर्चा सरकार का गठन करने में सहयोग दिया।
  4. 1991 के चुनाव में भी राम मंदिर निर्माण का नारा भाजपा के लिए विशेष लाभदायक सिद्ध हुआ।
  5. 1996 के चुनावों में यह लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।
  6. सन् 1998 के चुनावों में इसने कुछ क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर सरकार बनाई तथा 1999 के चुनावों में भाजपानीत गठबंधन ने फिर सत्ता प्राप्त की। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के काल में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।
  7. सन् 2004 में तथा 2009 के चुनावों में भाजपा को पुनः अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी । फिर भी कांग्रेस के बाद आज यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है।
  8. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ तथा नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई।

प्रश्न 6.
कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
देश की राजनीति से यद्यपि कांग्रेस का प्रभुत्व समाप्त हो गया है परन्तु अभी कांग्रेस का असर कायम है, क्योंकि अब भी भारतीय राजनीति कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूम रही है तथा सभी राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ एवं योजनाएँ कांग्रेस को ध्यान में रखकर बनाते हैं। अभी भी कांग्रेस पार्टी दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। 2004 के 14वें लोकसभा के चुनावों में इसने अन्य दलों के सहयोग से केन्द्र सरकार बनाई।

इसके साथ-साथ जुलाई, 2007 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में भी इस दल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वर्ष 2009 के आम चुनावों में पहले से काफी अधिक सीटों पर जीत प्राप्त कर गठबंधन की सरकार बनाई । 2014 के लोकसभा चुनावों में यद्यपि उसे 44 ही सीटें प्राप्त हुईं तथापि उसके मत प्रतिशत में बहुत अधिक अन्तर नहीं आया है। अतः कहा जा सकता है कि कमजोर होने के बावजूद भी कांग्रेस का असर भारतीय राजनीति पर कायम है।

प्रश्न 7.
अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं?
उत्तर:
कुछ लोगों का मानना है कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो दलीय व्यवस्था जरूरी है। इनका मानना है कि द्विदलीय व्यवस्था में साधारण बहुमत के दोष समाप्त हो जाते हैं, सरकार स्थायी होती है, भ्रष्टाचार कम फैलता है, निर्णय शीघ्रता से लिये जा सकते हैं। भारत में बहुदलीय प्रणाली भारत में बहुदलीय प्रणाली है।

कई विद्वानों का मत है कि भारत में बहुदलीय प्रणाली उचित ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है तथा यह भारतीय लोकतन्त्र के लिए बाधा उत्पन्न कर रही है अतः भारत को द्वि-दलीय पद्धति अपनानी चाहिए परन्तु पिछले बीस सालों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को अग्रलिखित फायदे हुए हैं-

  1. विभिन्न मतों का प्रतिनिधित्व: बहुदलीय प्रणाली के कारण भारतीय राजनीति में सभी वर्गों तथा हितों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
  2. मतदाताओं को अधिक स्वतन्त्रता: अधिक दलों के कारण मतदाताओं को अपने वोट का प्रयोग करने के लिए अधिक विकल्प प्राप्त होते हैं।
  3. राष्ट्र दो गुटों में नहीं बँटता:  बहुदलीय प्रणाली होने के कारण भारत कभी भी दो विरोधी गुटों में विभाजित नहीं हुआ।
  4. मन्त्रिमण्डल की तानाशाही स्थापित नहीं होती: बहुदलीय प्रणाली के कारण भारत में मन्त्रिमण्डल तानाशाह नहीं बन सकता।
  5. अनेक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व:  बहुदलीय प्रणाली में व्यवस्थापिका में देश की अनेक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व हो सकता है

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 8.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दें-
भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे राजव्यवस्था के सामने एक महत्त्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें – जोया हसन
(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?
(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनसे एकजुटता का होना क्यों जरूरी है?
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों
की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की?
उत्तर:
(क) इस अध्याय में दलगत व्यवस्था की निम्नलिखित चुनौतियाँ उभर कर सामने आती हैं-

  1. गठबन्धन की राजनीति को चलाना।
  2. क्षेत्रीय दलों का उभरना तथा राजनीतिक भ्रष्टाचार का बढ़ना।
  3. पिछड़े वर्गों की राजनीति का उभरना।
  4. अयोध्या विवाद का उभरना।
  5. गैर सैद्धान्तिक राजनीतिक समझौते का होना।
  6. साम्प्रदायिक दंगे होना।

(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना जरूरी है, क्योंकि तभी भारत अपनी एकता और अखण्डता को बनाए रखकर विकास कर सकता है।

(ग) अयोध्या विवाद ने भारत में राजनीतिक दलों के सामने साम्प्रदायिकता की चुनौती पेश की तथा भारत में साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों की राजनीति बढ़ गई।

भारतीय राजनीति : नए बदलाव JAC Class 12 Political Science Notes

→ 1990 का दशक:
1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तथा 1984 के लोकसभा चुनावों में श्रीमती गांधी की हत्या के बाद सहानुभूतिस्वरूप भारतीय जनता ने कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से विजयी बनाया। 1980 के दशक के आखिर के सालों में देश में पाँच ऐसे बदलाव आये जिनका देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

  • 1990 के दशक में एक महत्त्वपूर्ण घटना 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार है। 1989 में ही ‘कांग्रेस प्रणाली’ की समाप्ति हो गई।
  • दूसरा बड़ा बदलाव राष्ट्रीय राजनीति में मण्डल मुद्दे का उदय था। 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की नई सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया। इन सिफारिशों के अन्तर्गत प्रावधान किया गया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाएगा।
  • विभिन्न सरकारों ने इस दौर में जो आर्थिक नीतियाँ अपनाईं वह बुनियादी तौर पर बदल चुकी थीं। इसे ढांचागत समायोजन कार्यक्रम अथवा नये आर्थिक प्रकार के नाम से जाना जाता है।
  • इन्हीं घटनाओं के सिलसिले में एक और घटना अयोध्या स्थित एक विवादित ढाँचे (बाबरी मस्ज़िद के रूप में प्रसिद्ध) के विध्वंस के सम्बन्ध में है। यह घटना 1992 में दिसम्बर महीने में घटी। इस घटना ने देश की राजनीति में कई परिवर्तनों को जन्म दिया।
  • मई, 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई और इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन हुआ। 1991 के चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी। राजीव गांधी के बाद नरसिम्हा राव ने कांग्रेस पार्टी की बागडोर सम्भाली।

→ गठबन्धन का युग:
1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई। कांग्रेस की हार के बावजूद भी यह सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन बहुमत न मिलने के कारण उसने विपक्ष में बैठने का फैसला किया। राष्ट्रीय मोर्चा को (यह मोर्चा जनता दल और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बनाया) परस्पर विरुद्ध दो राजनीतिक समूहों भाजपा और वाममोर्चा ने बाहर से समर्थन दिया।

→ काँग्रेस का पतन:
काँग्रेस की हार के साथ भारत की दलीय व्यवस्था से उसका दबदबा खत्म हो गया। 1960 के दशक के अंतिम सालों में काँग्रेस के एकछत्र राज को चुनौती मिली थी, लेकिन इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय राजनीति पर अपना प्रभुत्व फिर से कायम किया। 90 के दशक में काँग्रेस की अग्रणी हैसियत को एक बार फिर चुनौती मिली। इस दौर में काँग्रेस के दबदबे के खात्मे के साथ बहुदलीय शासन प्रणाली का युग शुरू हुआ। 1989 के. बाद से लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी पार्टी को 2014 तक पूर्ण बहुमत नहीं मिला।

→ गठबन्धन की राजनीति:
1989 के बाद लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस प्रकार केन्द्र में गठबन्धन की राजनीति प्रारम्भ हुई। इसके साथ ही नब्बे का दशक ताकतवर पार्टियों और आन्दोलनों के उभार का साक्षी रहा। इन पार्टियों और आन्दोलनों ने दलित तथा पिछड़ा वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग या ओ.बी.सी.) की नुमाइंदगी की। इन दलों में से अनेक ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं की दमदार दावेदारी की। 1996 में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार में इन पार्टियों ने अहम भूमिका निभाई।

→ भाजपा का उभार:
1991 तथा 1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली। 1996 के चुनावों में यह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। इस नाते भाजपा को सरकार बनाने का निमन्त्रण मिला लेकिन अधिकांश दल भाजपा की नीतियों एवं कार्यक्रमों के खिलाफ थे । इस तरह भाजपा लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर पायी। आखिरकार भाजपा एक गठबन्धन (राजग) के अगुआ के रूप में सत्ता में आई और 1998 के मई से 1999 के जून तक सत्ता में रही। फिर 1999 में इस गठबन्धन ने दोबारा सत्ता हासिल की। 1999 की वाजपेयी सरकार ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया। अन्य पिछड़ा वर्ग का राजनीतिक उदय – ‘ अन्य पिछड़ा वर्ग’ में शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय की गणना की जाती है।

→ मंडल का लागू होना:
1980 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्गों के बीच लोकप्रिय ऐसे ही राजनीतिक समूहों को जनता दल ने एकजुट किया। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीति को सुगठित रूप देने में मदद मिली।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

→ राजनीतिक परिणाम:
1980 के दशक में दलित जातियों के राजनीतिक संगठनों का भी उभार हुआ। 1978 में बामसेफ (बेकवर्ड एवं माइनॉरिटी क्लासेज एम्पलाइज फाउंडेशन) का गठन हुआ। इस संगठन ने बहुजन यानी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की। कांशीराम के नेतृत्व वाली बसपा ने अपने संगठन की बुनियाद व्यवहार में बामसेफ की नीतियों पर केन्द्रित की। साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतन्त्र – इस दौर में आया एक दूरगामी बदलाव धार्मिक पहचान पर आधारित राजनीति का उदय है।

इसने धर्मनिरपेक्षता और लोकतन्त्र के बारे में बहसों को सरगर्म किया। शुरू-शुरू में भाजपा ने जनसंघ की अपेक्षा कहीं ज्यादा बड़ा राजनीतिक मंच अपनाया इसने गाँधीवादी समाजवाद को अपनी विचारधारा के रूप में स्वीकार किया। लेकिन भाजपा को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली। 1986 के बाद इस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिन्दू राष्ट्रवाद के तत्त्वों पर जोर देना शुरू किया। भाजपा ने हिन्दुत्व की राजनीति का रास्ता चुना और हिन्दुओं को लामबन्द करने की नीति अपनाई।

→ अयोध्या विवाद का निर्णय:
फैजाबाद जिला न्यायालय द्वारा फरवरी, 1986 में अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया गया। इस अदालत ने यह फैसला दिया कि रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खोला जाना चाहिए ताकि हिन्दू यहाँ पूजा-पाठ कर सकें क्योंकि वे इस जगह को पवित्र मानते हैं। विध्वंस और उसके बाद- राम मंदिर निर्माण का समर्थन करने वाले संगठनों ने दिसम्बर, 1992 में कारसेवा का आयोजन किया। इसके अन्तर्गत रामभक्तों का आह्वान किया गया कि वे राम मन्दिर के निर्माण में श्रमदान करें। लाखों श्रद्धालु अयोध्या की ओर चल पड़े। पूरे देश में माहौल तनावपूर्ण हो गया।

अयोध्या में तनाव अपने चरम पर था। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह विवादित स्थल की सुरक्षा का पूरा इंतजाम करे। लेकिन 6 दिसम्बर, 1992 को देश के विभिन्न भागों से लोग आ जुटे और इन लोगों ने विवादित ढाँचे को गिरा दिया। विवादित ढाँचे के विध्वंस की खबर से देश के कई भागों में हिन्दू और मुसलमानों के बीच झड़प हुई। जनवरी, 1993 में एक बार फिर मुम्बई में हिंसा भड़की और अगले दो हफ्तों तक जारी रही।

→ गुजरात के दंगे:
2002 के फरवरी मार्च में गुजरात में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक चला। 2004 के लोकसभा चुनाव-2004 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने भी गठबन्धन बनाकर चुनावों में भाग लिया राजग की हार हुई और संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) की सरकार बनी। इस गठबन्धन का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी ने किया। संप्रग को वाम मोर्चा तथा कुछ अन्य दलों का समर्थन मिला। 2004 के चुनावों में एक हद तक कांग्रेस पार्टी का पुनरुत्थान भी हुआ। बढ़ती सहमति – संप्रग सरकार में आपसी सहमति के प्रमुख बिन्दु निम्न हैं।

  • नई आर्थिक नीति की सहमति
  • पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति।
  • देश के शासन में प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति।
  • विचारधारात्मक पक्ष की जगह कार्यसिद्धि पर जोर और विचारधारा सहमति के बिना राजनीतिक गठजोड़ 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस गठबन्धन को बहुमत मिला

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana संदेश लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana संदेश लेखन

अपने मनोभावों और विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम संदेश – लेखन कहलाता है। इस माध्यम के द्वारा हम अपने प्रियजन, सहपाठियों, मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या संबंधियों को किसी शुभ अवसर, त्योहार या फिर परीक्षा अथवा नौकरी में सफलता प्राप्त करने आदि अवसरों में अपने मन के भावों को संदेश लिखकर आत्मीयता से प्रकट करते हैं। इस प्रकार संदेश लेखन के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजने के साथ-साथ निःसंदेह उनका मनोबल बढ़ाना होता है।

संदेश लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य प्रमुख बिंदु –

  • संदेश को बॉक्स के अंदर लिखना चाहिए।
  • संदेश लिखते समय शब्द, शब्द – सीमा 30 से 40 शब्द ही होनी चाहिए।
  • संदेश हृदयस्पर्शी तथा संक्षिप्त होने चाहिए।
  • बॉक्स के बाएँ शीर्ष में दिनांक और उसके नीचे स्थान अवश्य लिखें।
  • संदेश के आखिर में नीचे प्रेषक का नाम लिखना न भूलें।
  • संदेश लिखते समय केवल महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करें।
  • मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
  • संदेश लेखन में तुकबंदी वाली प्रभावशाली पंक्तियाँ भी लिखी जाती हैं।
  • संदेश दो प्रकार के अनौपचारिक व औपचारिक हो सकते हैं।

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संदेश लेखन के महत्वपूर्ण उदाहरण :

प्रश्न 1.
आप अमेरिका में रहते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने भारतीय सहेली को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

26 जनवरी, 20XX
नवी मुंबई
प्रिय मान्यता।
भारत देश हमारा है यह हमको जान से प्यारा है दुनिया में सबसे न्यारा यह सबकी आँखों का तारा है मोती हैं इसके कण-कण में बूँद-बूँद में सागर है
प्रहरी बना हिमालय बैठ धरा सोने की गागर है।
इस गणतंत्र दिवस की आप और आपके परिवार को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत देश ऐसे ही कामयाबी की बुलंदियों को छूता रहे। अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में अपना योगदान देना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
कविता

प्रश्न 2.
अपने मित्र को वसंत पंचमी के अवसर पर 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

10 फ़रवरी, 20Xx
नई दिल्ली
मित्रवर,
संदेश
गेंदा गमके महक बिखेरे। उपवन को आभास दिलाए।
बहे बयरिया मधुरम – मधुरम। प्यारी कोयल गीत जो गाए।
ऐसी बेला में उत्सव होता जब।
वाग्देवी भी तान लगाए।
आपको वसंत पंचमी के अवसर पर ढेर सारी बधाई और उम्मीद है कि आप हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक वसंतोत्सव में वाग्देवी की सेवा में सहभागिता देंगे।
आर्यन

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प्रश्न 3.
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने सहेली को 30 से 40 शब्दों में एक शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

15 अगस्त, 20XX
चेन्नई
प्रिय सहेली।
संदेश
स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है, विजयी – विश्व का गान अमर है।
देश-हित सबसे पहले है, बाकी सबका राग अलग है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ।
रोशनी

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शिष्य द्वारा विज्ञान शिक्षक को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

28 फ़रवरी, 20XX
नई दिल्ली
आदरणीय गुरुदेव,
28 फ़रवरी, 1928 को सर सी०आर० रमन ने 1930 में अपनी खोज की घोषणा कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया था। जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान को जीवन के अनुभव के साथ जोड़कर शिक्षा देता है और उस शिक्षा से शिक्षार्थी का जीवन सार्थक बनता है, वही विषय विज्ञान कहलाता है। हर दिन आपके द्वारा पढ़ाए गए विज्ञान विषय से मेरी रुचि में अद्भुत परिवर्तन आया। आपके अनुभव ने मेरा और मुझ जैसे अनेक शिष्यों का मार्गदर्शन कर आदर्श विज्ञान शिक्षक की भूमिका का निर्वाह किया। आपका उद्देश्य सर्वदा विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना रहा है। ऐसे विशिष्ट गुरु को मेरा शत-शत प्रणाम। विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। अभिनव

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प्रश्न 5.
अपनी पूजनीया माता जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

14 अप्रैल, 20XX
नई दिल्ली
खुद से पहले तुम मुझे खिलाती थी, रोने पर तुम भी बच्चा बन जाती थी,
खुद जाग जागकर मुझे सुलाती थी, शिक्षक बनकर तुम मुझे पढ़ाती थी,
कभी बहन कभी सहेली बन जाती थी।
आपने – अपने प्रेम, परम त्याग और आदर्शों से पूरे परिवार को प्रेम के धागे में बाँधे रखा। हमेशा अपने मश्दु अनुभवों से हमारा मार्गदर्शन किया। मैंने माँ के रूप में सच्ची सहेली और शिक्षिका पाया। आपके चरणों में शत-शत नमन। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
अनन्या

प्रश्न 6.
अपने मित्र की नौकरी में पदोन्नति होने पर बधाई देते हुए शुभकामना संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

संदेश

8 जून, 20XX
नई दिल्ली
मित्रवर,
फूल बनके मुसकराना जिंदगी है
मुसकरा कर गम भुलाना भी जिंदगी है जीत कर खुश हो तो अच्छा है पर,
हार कर खुशियाँ मनाना भी जिंदगी है
आपने अपनी योग्यता और कुशलता का अद्भुत परिचय तो परीक्षा का अंतिम पड़ाव पारकर सभी का दिल जीत लिया था। आज फिर वह अवसर आ गया है कि आपको योग्यता और परिश्रम के बल पर पदोन्नति मिली है, आप इस पदोन्नति के सच्चे हकदार हैं। भविष्य में भी आप अपने सहकर्मियों के लिए एक आदर्श बने रहेंगे। आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जयंत शुक्ल

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प्रश्न 7.
विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन पर अध्यक्ष द्वारा विद्यार्थियों को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

5 अप्रैल, 20XX
कोलकाता
प्रिय विद्यार्थियो
सत्र 20XX – 20XX की वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उत्कृष्ट लेख, नाटक, प्रहसन, चुटकुले, निबंध आदि के प्रकाशन हेतु प्रवेश नियम विद्यार्थियों को विद्यालय के सूचना बोर्ड पर शर्तों के साथ सूचित कर दिया गया है। इस साहित्यिक पत्रिका में विद्यार्थियों का चहुमुखी साहित्यिक विकास होगा और आप कवि या लेखक के रूप में लेखन द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करेंगे, मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
अध्यक्ष
शिखर त्रिवेदी

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प्रश्न 8.
मोबाइल फोन को कम उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

22 जुलाई, 20XX
नई दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियो
खोजा बहुत ही उसको, नहीं मुलाकात हुई उससे।
घर-घर में खिलता था वह बचपन बिना मोबाइल जो।
जो करता दुरुपयोग इसका नर्वस सिस्टम होता खराब।
बीमारियों का आमंत्रण, डिप्रैशन, अनेक विकार।
स्मरण शक्ति का निश्चय होता है ह्रास।
रवि

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

Jharkhand Board Class 12 Political Science जन आंदोलनों का उदय InText Questions and Answers

पृष्ठ 129

प्रश्न 1.
है तो यह बड़ी शानदार बात! लेकिन कोई मुझे बताए कि हम जो यहाँ राजनीति का इतिहास पढ़ रहे हैं, उससे यह बात कैसे जुड़ती है?
उत्तर:
सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों में जन आंदोलनों की शानदार उपलब्धि रही है । चिपको आंदोलन के अन्तर्गत उत्तराखण्ड के एक गाँव के स्त्री एवं पुरुषों ने पर्यावरण की सुरक्षा और जंगलों की कटाई का विरोध करने के लिए एक अनूठा प्रयास किया, जिसमें इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाँहों में भर लिया ताकि उनको काटने से बचाया जा सके। इस आन्दोलन को व्यापक सफलता प्राप्त हुई। जन-आंदोलन, कभी राजनीतिक तो कभी सामाजिक आंदोलन का रूप ले सकते हैं और अक्सर यह दोनों ही रूपों में नजर आते हैं। स्वतन्त्रता के तीन दशक बाद लोगों का धैर्य टूटा और जनता की बेचैनी जन-आन्दोलनों में उमड़ी। यहाँ हम राजनीति का इतिहास पढ़ रहे हैं परन्तु वह कुशल राजनीति की असफलता के उमड़े जन-आन्दोलन के उभार की अभिव्यक्ति है।

पृष्ठ 130

प्रश्न 2.
गैर-राजनीतिक संगठन ? मैं यह बात कुछ समझा नहीं! आखिर, पार्टी के बिना राजनीति कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
सामान्यतः गैर-राजनीतिक संगठन ऐसे संगठन हैं जो दलगत राजनीति से दूर स्थानीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़े हुए होते हैं तथा सक्रिय राजनीति में भाग लेने की अपेक्षा एक दबाव समूह की तरह कार्य करते हैं। औपनिवेशिक दौर में अनेक स्वतंत्र सामाजिक आंदोलनों का जन्म हुआ, जैसे— जाति प्रथा विरोधी आंदोलन, किसान सभा आंदोलन और मजदूर संगठनों के आंदोलन। मुंबई, कोलकाता और कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में मजदूर संगठनों के आंदोलनों का मुख्य जोर आर्थिक अन्याय और असमानता के मसले पर रहा। ये सभी गैर-राजनैतिक संगठन थे और इन्होंने अपनी माँगें मनवाने के लिए आंदोलनों का सहारा लिया। इन गैर-राजनैतिक संगठनों का राजनीतिक दलों से नजदीकी सम्बन्ध रहा।

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पृष्ठ 132

प्रश्न 3.
क्या दलितों की स्थिति इसके बाद से ज्यादा बदल गई है? दलितों पर अत्याचार की घटनाओं के बारे में मैं रोजाना सुनती हूँ। क्या यह आंदोलन असफल रहा? या, यह पूरे समाज की असफलता है?
उत्तर:
दलितों की स्थिति में सुधार हेतु 1972 में शिक्षित दलित युवा वर्ग ने महाराष्ट्र में एक आन्दोलन चलाया, जिसे दलित पैंथर्स आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन के माध्यम से दलितों की स्थिति सुधारने हेतु अनेक प्रयास किये गये। इस आन्दोलन का उद्देश्य जाति प्रथा को समाप्त करना तथा गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन तैयार करना था। लेकिन इस आन्दोलन को अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो पायी।

छुआछूत प्रथा को कानूनन समाप्त किये जाने के बावजूद भी अछूत जातियों के साथ नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बरताव कई रूपों में जारी रहा। दलितों की बस्तियाँ मुख्य गाँव से अब भी दूर हैं, दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते हैं। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-मोटी बात को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म ढाये जाते हैं। इस सबके बावजूद यह आन्दोलन पूरी तरह से असफल नहीं कहा जा सकता क्योंकि धीरे-धीरे दलितों को उनके हक मिलने लगे हैं।

पृष्ठ 135

प्रश्न 4.
मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो कहे कि मैं किसान बनना चाहता हूँ। क्या हमें अपने देश में किसानों की जरूरत नहीं है?
उत्तर:
यद्यपि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा कृषि पर आधारित है, लेकिन संसाधनों के अभाव व वर्षा आधारित कृषि होने के कारण किसानों को इस कार्य में पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अतिरिक्तं जनाधिक्य व कृषिगत क्षेत्र की सीमितता के कारण इस क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी जैसी समस्या आम बात हो गई है। इसलिए आम नागरिक को इस क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य नजर नहीं आ रहा है। इसलिए लोग कृषिगत कार्यों की अपेक्षा अन्य कार्यों में अधिक रुचि लेने लगे हैं। लेकिन हमें अपने देश में किसानों की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि किसान खेती का काम करना बन्द कर देंगे, तो अन्न कहाँ से आयेगा? कृषि – आधारित उद्योग नष्ट हो जायेंगे और देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जायेगी अतः देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कृषक वर्ग की अत्यन्त आवश्यकता है। हाँ, कृषि सम्बन्धी समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को प्राथमिकता से ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 5.
हमें इस तरह की अच्छी-अच्छी कहानियाँ तो सुनाई जाती हैं लेकिन हमें कभी यह नहीं बताया जाता कि इन कहानियों का अंत कैसा रहा। क्या यह आंदोलन शराबबंदी में सफल हो पाया? या पुरुषों ने एक समय के बाद फिर पीना शुरू कर दिया?
उत्तर:
इन कहानियों का अंत तो बहुत ही रोचक होता है। लेकिन हकीकत में इन कहानियों का अंत इतना रोचक नहीं होता। ऐसे आंदोलनों का असर पर कुछ समय के लिए ही होता है बाद में फिर पुरुष शराब पीना शुरू कर देते हैं

पृष्ठ 142

प्रश्न 6.
क्या आंदोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जा सकता है? आंदोलनों के दौरान नए प्रयोग किए जाते हैं और सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल अपना लेते हैं।
उत्तर:
जन-आन्दोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जन-आन्दोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना रहता है। समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को सार्थक दिशा देकर इन आन्दोलनों ने एक तरह से लोकतन्त्र की रक्षा की है। जन-आन्दोलनों में शरीक अनेक व्यक्ति और संगठन राजनीतिक दलों में सक्रिय रूप से जुड़े। ऐसे जुड़ाव से दलगत राजनीति में विभिन्न सामाजिक तबकों की बेहतर नुमाइंदगी सुनिश्चित हुई। इस प्रकार जन-आन्दोलनों के दौरान किये जाने वाले सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल अपना लेते हैं।

Jharkhand Board Class 12 Political Science जन आंदोलनों का उदय TextBook Questions and Answers

प्रश्न 1.
चिपको आंदोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत हैं-
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आंदोलन था।
(ख) इस आंदोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आंदोलन था।
(घ) इस आंदोलन की माँग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए । उत्तर- (ग) गलत।

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे कुछ कथन गलत हैं। इनकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें-
(क) सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आंदोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ।
उत्तर:
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को बढ़ावा दे रहे हैं।
(ख) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।
(ग) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।

प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में ( अब उत्तराखण्ड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आन्दोलन का जन्म हुआ? इस आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
चिपको आंदोलन के कारण-चिपको आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब वन विभाग ने खेती-बाड़ी के लिए औजार बनाने के लिए गाँव वालों को ‘Ashtree’ काटने की अनुमति नहीं दी तथा खेल सामग्री बनाने वाली एक व्यावसायिक कम्पनी को यह पेड़ काटने की अनुमति प्रदान कर दी। इससे गाँव वालों में रोष उत्पन्न हुआ तथा कटाई के विरोध में यह आन्दोलन उठ खड़ा हुआ।
  2. गाँव वालों ने माँग रखी कि वन की कटाई का ठेका किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक साधनों पर उपयुक्त नियंत्रण होना चाहिए।
  3. चिपको आंदोलन का एक अन्य कारण पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना था। गांव वासी चाहते थे कि इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को हानि पहुँचाये बिना विकास किया जाये।
  4. इस क्षेत्र में वनों की कटाई के दौरान ठेकेदार यहाँ के पुरुषों को शराब आपूर्ति का व्यवसाय भी करते थे अतः स्त्रियों ने शराबखोरी की लत के विरोध में भी आवाज बुलन्द की।

प्रभाव – इस आन्दोलन के निम्न प्रमुख प्रभाव हुए-

  1. सरकार ने 15 वर्ष के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी।
  2. इस आन्दोलन ने अन्य आन्दोलनों को प्रभावित तथा प्रेरित किया।
  3. इस आन्दोलन के प्रभावस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता के आन्दोलन चलाए गए।

प्रश्न 4.
भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?
उत्तर:
1990 के दशक में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने भारतीय किसानों की दुर्दशा सुधारने हेतु अनेक मुद्दों पर बल दिया, जिनमें प्रमुख निम्न हैं-

  1. इसने बिजली की दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया तथा उचित दर पर गारण्टीशुदा बिजली आपूर्ति करने पर बल दिया।
  2. इसने नगदी फसलों के सरकारी खरीद मूल्यों में बढ़ोतरी की माँग की।
  3. इसने कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियों को हटाने पर बल दिया।
  4. किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की माँग की।
  5. किसानों के बकाया कर्ज को माफ किया जाये।

सफलताएँ – भारतीय किसान यूनियन को निम्न सफलताएँ प्राप्त हुईं-

  1. बीकेयू (BKU) जैसी माँगें देश के अन्य किसान संगठनों ने भी उठायीं I
  2. 1990 के दशक में बीकेयू ने अपनी संख्या बल के आधार पर एक दबाव समूह की तरह कार्य किया तथा अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी मांगें मनवाने में सफलता पाई।

प्रश्न 5.
आन्ध्रप्रदेश में चले शराब-विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे?
उत्तर:
आन्ध्रप्रदेश में चले शराब-विरोधी या ताड़ी विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान निम्नलिखित गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा-

  1. शराब पीने से पुरुषों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य कमजोर होता है।
  2. शराब पीने से व्यक्ति की कार्यक्षमता प्रभावित होती है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
  3. शराबखोरी से ग्रामीणों पर कर्ज का बोझ बढ़ता है।
  4. शराबखोरी से कामचोरी की आदत बढ़ती है।
  5. शराब माफिया के सक्रिय होने से गांवों में अपराधों को बढ़ावा मिलता है तथा अपराध और राजनीति के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध बनता है।
  6. शराबखोरी से परिवार की महिलाओं से मारपीट एवं तनाव को बढ़ावा मिलता है।
  7. शराब विरोधी आंदोलन ने महिलाओं के मुद्दों दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल व सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़क, लैंगिक असमानता आदि  के प्रति समाज में जागरूकता उत्पन्न की।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 6.
क्या आप शराब-विरोधी आंदोलन को महिला आंदोलन का दर्जा देंगे? कारण बताएँ।
उत्तर:
शराब-विरोधी आंदोलन को महिला आंदोलन का दर्जा दिया जा सकता है। क्योंकि शराब – 1 ब- विरोधी आंदोलन में महिलाओं ने अपने आस-पड़ौस में मदिरा या ताड़ी की बिक्री पर पाबन्दी लगाने की माँग की। यह महिलाओं का स्वतः स्फूर्त आन्दोलन था। यह आन्दोलन महिलाओं ने शराब माफिया तथा सरकार दोनों के खिलाफ चलाया। शराबखोरी से सर्वाधिक परेशानी महिलाओं को होती है। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है, परिवार में तनाव व मारपीट का वातावरण बनता है। तनाव के चलते पुरुष शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाते इन्हीं कारणों से शराब विरोधी आंदोलनों का प्रारंभ प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता रहा है। अत: शराब-विरोधी ‘नों को महिला आंदोलन भी कहा जा सकता है।

प्रश्न 7.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजना का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजना का विरोध निम्नलिखित कारणों से किया

  1. बाँध निर्माण से प्राकृतिक नदियों व पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है।
  2. जिस क्षेत्र में बाँध बनाये जाते हैं वहाँ रह रहे गरीबों के घर-बार, उनकी खेती योग्य भूमि, वर्षों से चले आ रहे कुटीर -धन्धों पर भी बुरा असर पड़ता है।
  3. प्रभावित गाँवों के करीब ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मामला उठाया जा रहा था।
  4. परियोजना पर किये जाने वाले व्यय में हेरा-फेरी के दोषों को उजागर करना भी परियोजना विरोधी स्वयंसेवकों का उद्देश्य था।
  5. आन्दोलनकर्ता प्रभावित लोगों को आजीविका और उनकी संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण को बचाना चाहते थे। वे जल, जंगल और जमीन पर प्रभावित लोगों का नियन्त्रण या इन्हें उचित मुआवजा और उनका पुनर्वास चाहते थे।

प्रश्न 8.
क्या आंदोलन और विरोध की कार्यवाहियों से देश का लोकतन्त्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
शांतिपूर्ण आन्दोलनों एवं विरोध की कार्यवाहियों से लोकतन्त्र मजबूत होता है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-

  1. चिपको आंदोलन अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से चलाया गया। यह एक व्यापक जन आंदोलन था। इससे पेड़ों की कटाई, वनों का उजड़ना रुका। पशु-पक्षियों और जनता को जल, जंगल, जमीन और स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण मिला। सरकार लोकतान्त्रिक मांगों के समक्ष झुकी।
  2. वामपंथियों द्वारा चलाये गये किसान और मजदूर आंदोलनों द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी और सरकार को सर्वहारा वर्ग की उचित माँगों के लिए जगाने में सफलता मिली।
  3. दलित पैंथर्स नेताओं द्वारा चलाए गए आंदोलनों ने आदिवासी, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों में चेतना पैदा की। समाज में समानता, स्वतन्त्रता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।
  4. ताड़ी – विरोधी आंदोलन ने नशाबंदी और मद्य-निषेध के विरोध का वातावरण तैयार किया। महिलाओं से जुड़ी अनेक समस्याएँ, जैसे यौन उत्पीड़न, घरेलू समस्या, दहेज प्रथा और महिलाओं को विधायिका में दिये जाने वाले आरक्षण के मामले उठे। महिलाओं में राजनैतिक चेतना बढ़ी।

प्रश्न 9.
दलित- पैंथर्स ने कौन-कौन-से मुद्दे उठाये?
उत्तर:
दलित पैंथर्स – दलित पैंथर्स बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों में दलित शिक्षित युवा वर्ग का आन्दोलन था। इसमें ज्यादातर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित पैंथर्स ने दलित समुदाय से सम्बन्धित सामाजिक असमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दे उठाये।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-
लगभग सभी नए सामाजिक आंदोलन नयी समस्याओं जैसे – पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपने आप में समाजव्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था। इस अर्थ में ये आंदोलन अतीत की क्रांतिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग हैं। लेकिन, ये आंदोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है सामाजिक आंदोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है।

ये आंदोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्त्वों से भरे हैं, अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। ‘इस’ या ‘उस’ के विरोध ( पश्चिम-विरोधी, पूँजीवाद – विरोधी, ‘विकास’- विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हों- ऐसी बात नहीं। – रजनी कोठारी

(क) नए सामाजिक आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधाराओं में क्या अंतर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आंदोलनों की सीमाएँ क्या-क्या हैं?
(ग) यदि सामाजिक आंदोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ‘बिखरा’ हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केंद्रित हैं। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर:
(क) सामाजिक आन्दोलन समाज से जुड़े हुए मामलों अथवा समस्याओं को उठाते हैं; जैसे जाति भेदभाव, रंग भेदभाव, लिंग भेदभाव के विरोध में चलाये जाने वाले सामाजिक आन्दोलन। इसी प्रकार ताड़ी- विरोधी आन्दोलन, सभी को शिक्षा, सामाजिक न्याय और समानता के लिए चलाये जाने वाले आन्दोलन आदि जबकि क्रान्तिकारी विचारधारा के लोग तुरन्त सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में बदलाव लाना चाहते हैं। वे’ लक्ष्यों को ज्यादा महत्त्व देते हैं, तरीकों को नहीं।

(ख) सामाजिक आन्दोलन बिखरे हुए हैं तथा इनमें एकजुटता का अभाव पाया जाता है। सामाजिक आन्दोलनों के पास सामाजिक बदलाव के लिए कोई ढांचागत योजना नहीं है।

(ग) सामाजिक आन्दोलनों द्वारा उठाए गए विशिष्ट मुद्दों के कारण यह कहा जा सकता है कि ये आन्दोलन अपने मुद्दों पर अधिक केन्द्रित हैं।

जन आंदोलनों का उदय JAC Class 12 Political Science Notes

→ सामान्यतः
वे आन्दोलन जो दलगत राजनीति से दूर तथा जन सामान्य के हित में चलाये जाते हैं उन्हें जन- आन्दोलन कहा जाता है। भारतीय राजनीति में इस प्रकार के आन्दोलनों की विशेष भूमिका रही है।

→ चिपको आन्दोलन:
इस आन्दोलन की शुरुआत उत्तराखण्ड के दो-तीन गाँवों से हुई। 1973 में उत्तराखण्ड सरकार ने स्थानीय लोगों को कृषिगत औजार बनाने के लिए वन की कटाई करने से इनकार कर दिया, लेकिन एक खेल कम्पनी को पेड़ों की कटाई की अनुमति प्रदान कर दी। इससे स्थानीय लोगों में रोष की भावना उत्पन्न हुई और उन्होंने वनों की कटाई रोकने के लिए विशेष अभियान चलाया। इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाँहों में भर लिया ताकि इनको काटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आन्दोलन के रूप में परिणत हुआ और ‘चिपको आन्दोलन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

→ आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण पक्ष:
(i) ग्रामवासियों ने माँग की कि जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्तियों को नहीं दिया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों का जल, जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियन्त्रण होना चाहिए।
(ii) लोग चाहते थे कि सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए और उस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुँचाए बगैर यहाँ का विकास सुनिश्चित करे। आंदोलन ने भूमिहीन वन कर्मचारियों का आर्थिक मुद्दा भी उठाया और न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी की माँग की।

→ आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका:
चिपको आन्दोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। यह आन्दोलन का एकदम नया पहलू था। इलाके में सक्रिय जंगल कटाई के ठेकेदार यहाँ के पुरुषों को शराब की आपूर्ति का व्यवसाय भी करते थे। महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी लगातार आवाज उठायी। इससे आन्दोलन का दायरा विस्तृत हुआ और उसमें कुछ और सामाजिक मसले आ जुड़े।

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→ दल – आधारित आन्दोलन:
जन-आन्दोलन कभी-कभी सामाजिक तो कभी राजनीतिक आन्दोलन का रूप ले सकते हैं और अक्सर ये आन्दोलन दोनों ही रूपों में नजर आते हैं, जैसे- भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन। यह मुख्य रूप से राजनीतिक आंदोलन था, लेकिन हम जानते हैं कि औपनिवेशिक दौर में सामाजिक-आर्थिक मसलों पर भी विचार मंथन चला, जिससे अनेक स्वतन्त्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ, जैसे- जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, नारी कल्याण आन्दोलन, नारी मुक्ति आन्दोलन, धर्म सुधार आन्दोलन, शिक्षा प्रसार आन्दोलन कहे जा सकते हैं। अनेक आन्दोलन 19वीं और 20वीं शताब्दी में सर्वहारा वर्गों के हितों के लिए चलाए गए। जैसे किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठन आन्दोलन।

ये आन्दोलन 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में सामने आये। इन आन्दोलनों ने सामाजिक संघर्षों के कुछ अंदरूनी मुद्दे उठाये। ऐसे कुछ आन्दोलन आजादी के बाद के दौर में चलते रहे। मुंबई, कोलकाता और कानपुर जैसे बड़े शहरों के औद्योगिक मजदूरों के बीच मजदूर संगठनों के आन्दोलनों का जोर था। बड़ी पार्टियों ने इस तबके के मजदूरों को लामबंद करने के लिए अपने-अपने मजदूर संगठन बनाए। भारत की स्वतन्त्रता के उपरान्त प्रारम्भिक वर्षों में आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में किसान तथा कृषि मजदूरों ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में अपना विरोध जारी रखा। भारत के कुछ दल सीधी कार्यवाही अथवा हिंसा में यकीन करने वाले थे जिनमें मार्क्सवादी-लेनिनवादी दल प्रमुख हैं। इस काल में किसान और मजदूरों के आंदोलनों का मुख्य जोर आर्थिक पिछड़ापन, अन्याय तथा असमानता के मसले पर रहा।

→ राजनीतिक दलों से स्वतंत्र आंदोलन:
70 और 80 के दशक में कई सामाजिक तबकों का राजनीतिक दलों के. आचार-व्यवहार से मोहभंग हुआ। देश ने आजादी के बाद नियोजित विकास का मॉडल अपनाया था। इस मॉडल को अपनाने के पीछे दो लक्ष्य थे- आर्थिक संवृद्धि और आय का समतापूर्ण बँटवारा। राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया । ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध को स्वर देने के लिए इन्होंने आवाम को लामबंद करना शुरू किया। मध्यवर्ग के युवा कार्यकर्ताओं ने गाँव के गरीब लोगों के बीच रचनात्मक कार्यक्रम तथा सेवा संगठन चलाए। इन संगठनों के सामाजिक कार्यों की प्रकृति स्वयंसेवी थी इसलिए इन संगठनों को स्वयंसेवी संगठन या स्वयंसेवी क्षेत्र के संगठन कहा गया। इन संगठनों ने स्वयं को दलगत राजनीति से दूर रखा । स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर ये संगठन न तो चुनाव लड़े और न ही इन्होंने किसी एक राजनीतिक दल को समर्थन दिया । इसी कारण इन संगठनों को ‘स्वतंत्र राजनीतिक संगठन’ कहा जाता है।

→ दलित पैंथर्स आन्दोलन: सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें ज्यादातर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की | दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972
में दलित युवाओं का संगठन ‘दलित पैन्थर्स’ बना। इस संगठन में पढ़े-लिखे दलित युवकों को सम्मिलित किया गया।

→ आंदोलन की गतिविधियाँ: महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना दलित पैंथर्स की मुख्य गतिविधि थी। दलित पैंथर्स तथा इसके सहधर्मी संगठनों द्वारा दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार के मुद्दे पर लगातार विरोध आंदोलन चलाया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून बनाया। इस कानून के तहत दलितों पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया। दलित पैंथर्स का विचारधारात्मक एजेंडा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था।

→ भारतीय किसान यूनियन: भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का एक संगठन था। यह अस्सी के दशक के किसान आंदोलन के अग्रणी संगठनों में एक था। बीकेयू की विशेषताएँ – बीकेयू की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

  • इसने सरकार पर अपनी माँगों को मनवाने के लिए रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो आन्दोलन का सहारा लिया। इन कार्यवाहियों में पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उसके आस-पास के इलाकों के गांवों के हजारों किसानों ने भाग लिया।
  • बीकेयू के अधिकांश सदस्य एक खास समुदाय के थे। इस संगठन ने जातिगत समुदायों को आर्थिक मसले पर एकजुट करने के लिए ‘जाति-पंचायत’ की परम्परागत संस्था का उपयोग किया।
  • बीकेयूं के लिए धनराशि और संसाधन जातिगत संगठनों से जुटाये जाते थे और इन्हीं के सहारे बीकेयू की गतिविधियाँ भी संचालित होती थीं।
  • 1990 के शुरुआती वर्षों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर यह राजनीतिक दलों में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें मनवाने में सफलता पाई। इस अर्थ में किसान आंदोलन अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था।
  • किसान आंदोलन मुख्य रूप से देश के समृद्ध राज्यों में सक्रिय था। खेती को अपनी जीविका का आधार बनाने वाले अधिकांश भारतीय किसानों के विपरीत बीकेयू जैसे संगठनों के सदस्य बाजार के लिए नगदी फसल उपजाते। थे।
  • बीकेयू की तरह राज्यों के अन्य किसान संगठनों ने अपने सदस्य उन समुदायों के बीच से बनाए जिनका क्षेत्र की चुनावी राजनीति से रसूख था। महाराष्ट्र शेतकारी संगठन और कर्नाटक का रैयत संगठन ऐसे किसान संगठनों के जीवंत उदाहरण हैं।

→ ताड़ी-विरोधी आन्दोलन:
ताड़ी – विरोधी आन्दोलन की शुरुआत आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले से मानी जाती है । इस आन्दोलन के अन्तर्गत ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ी तथा शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाने की माँग की। यह लड़ाई माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। ताड़ी – विरोधी आंदोलन के कारण दो परस्पर विरोधी गुट दृष्टिगोचर हुए। एक शराब माफिया और दूसरी ओर ताड़ी के कारण पीड़ित परिवार। शराब के ठेकेदार ताड़ी व्यापार पर एकाधिकार बनाये रखने के लिए अपराधों में व्यस्त थे। शराबखोरी से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही थी। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा।

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→ नारी मुक्ति एवं ताड़ी:
विरोधी आंदोलन – ताड़ी – विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन का एक हिस्सा बन गया । इससे घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और यह बात पूरे देश पर लागू होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू हुई कि औरतों पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खास जटिल है। इस तरह के अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता उत्पन्न की। धीरे-धीरे महिला आंदोलन कानूनी सुधारों से हटकर सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुले तौर पर बात करने लगा। नवें दशक तक आते-आते महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगे तथा इसी के परिणामस्वरूप संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अन्तर्गत महिलाओं को स्थानीय निकायों में आरक्षण प्रदान किया गया। इस व्यवस्था को राज्यों की विधानसभाओं तथा संसद में भी लागू करने की मांग की जा रही है।

→ नर्मदा बचाओ आन्दोलन:
आठवें दशक के प्रारम्भ में भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मझोले तथा 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। गुजरात के सरदार सरोवर और मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बाँध के रूप में दो सबसे बड़ी बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया। नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चला। इस आंदोलन के संचालनकर्ताओं की मुख्य माँग नर्मदा नदी पर बने इन छोटे एवं मझोले बांधों के निर्माण को रोकना है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन इन बाँधों के निर्माण के साथ-साथ देश में चल रही विकास परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाता रहा है। सरदार सरोवर बाँध के निर्माण से सम्बन्धित राज्यों के 245 गाँव डूब के क्षेत्र में आ रहे थे। अतः प्रभावित गाँवों के करीब ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मुद्दा सबसे पहले स्थानीय कार्यकर्त्ताओं ने उठाया।

→ जन आन्दोलन के सबक:
जन आंदोलनों का राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था पर विशेष प्रभाव होता है और इन आंदोलनों से राजनीतिक व्यवस्था के संचालनकर्ताओं को नई सीख मिलती है। जन आंदोलनों के सबक निम्न हैं

  • जन आंदोलनों का इतिहास लोकतान्त्रिक राजनीति को बेहतर ढंग से समझने में मदद प्रदान करता है।
  • समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आंदोलनों ने लोकतन्त्र की रक्षा की है तथा भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।
  • सामाजिक आंदोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी दिक्कतों को चुनावी राजनीति के जरिए हल नहीं कर पा रहे थे।
  • इन आंदोलनों के आलोचकों ने यह दलील दी है कि हड़ताल, धरना और रैली जैसी सामूहिक कार्यवाहियों से सरकार के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। इनके अनुसार इस तरह की गतिविधियों से सरकार की निर्णय प्रक्रिया बाधित होती है तथा रोजमर्रा की लोकतान्त्रिक व्यवस्था बाधित होती है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Jharkhand Board Class 12 Political Science क्षेत्रीय आकांक्षाएँ InText Questions and Answers

पृष्ठ 149

प्रश्न 1.
क्या इसका मतलब यह हुआ कि क्षेत्रवाद साम्प्रदायिकता के समान खतरनाक नहीं है? क्या हम यह भी कह सकते हैं कि क्षेत्रवाद अपने आप में खतरनाक नहीं?
उत्तर:
सामान्यतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को राष्ट्र विरोधी नहीं माना जाता। इसके साथ ही लोकतान्त्रिक राजनीति में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा अथवा किसी खास क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइंदगी करें। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में क्षेत्रीय राजनीति का एक अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाए और उन्हें इसमें भागीदारी भी दी जाए। दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता धार्मिक या भाषायी समुदाय पर आधारित एक संकीर्ण मनोवृत्ति है जो धार्मिक या भाषायी अधिकारों तथा हितों को राष्ट्रीय हितों के ऊपर रखती है इसलिए यह समाज विरोधी तथा राष्ट्रविरोधी मनोवृत्ति है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि क्षेत्रवाद साम्प्रदायिकता के समान खतरनाक नहीं है।

पृष्ठ 150

प्रश्न 2.
खतरे की बात हमेशा सीमांत के राज्यों के संदर्भ में ही क्यों उठाई जाती है? क्या इस सबके पीछे विदेशी हाथ ही होता है?
उत्तर:
प्रायः यह देखा गया है कि सीमांत प्रदेशों में ही क्षेत्रवाद एवं अलगाववाद की समस्या अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण वहाँ की जनता की राजनीतिक आकांक्षाओं के साथ-साथ विदेशी ताकतों का हाथ होना माना जा सकता है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब और पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में घटित होने वाली विभिन्न घटनाएँ इसका उदाहरण माना जा सकता है। कश्मीरियों द्वारा अलग से स्वतन्त्र राष्ट्र की और पंजाब द्वारा खालिस्तान की माँग के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ रहा है।

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पृष्ठ 158

प्रश्न 3.
पर यह सारी बात तो सरकार, अधिकारियों, नेताओं और आतंकवादियों के बारे में है। कश्मीरी जनता के बारे में कोई कुछ क्यों नहीं कहता? लोकतन्त्र में तो जनता की इच्छा को महत्त्व दिया जाना चाहिए। क्यों मैं ठीक कह रही हूँ न?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों का एक तबका कश्मीर को एक अलग राष्ट्र बनाना चाहता है; दूसरा कश्मीर का विलय पाकिस्तान में चाहता है तथा तीसरा तबका कश्मीर को भारत संघ का ही हिस्सा रहने देना चाहता है, लेकिन अधिक स्वायत्तता चाहता है। जम्मू और लद्दाख के लोग उपेक्षित बरताव तथा पिछड़ेपन से छुटकारा हेतु तबका, अधिक स्वायत्तता चाहते हैं। इस वजह से पूरे राज्य की स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है उतनी ही प्रबल माँग इस राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है।

जम्मू-कश्मीर पर प्रायः अलगाववादियों, आतंकवादियों एवं विभिन्न राजनीतिज्ञों की प्रशासनिक नीतियों का प्रभाव रहा है लेकिन वहाँ जनमत की इच्छा का सम्मान करते हुए जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छानुसार प्रशासनिक निर्णय लिया जाना चाहिए अर्थात् जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में जनमत संग्रह की नीति का पालन किया जाना चाहिए। जिससे इस क्षेत्र की समस्त समस्याओं का स्थायी समाधान हो सके।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित में मेल करें:

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण (i) नगालैंड/मिजोरम
(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव (ii) झारखंड / छत्तीसगढ़
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण (iii) पंजाब
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग (iv) तमिलनाडु

उत्तर:

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण (iii) पंजाब
(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव (iv) तमिलनाडु
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण (i) झारखंड / छत्तीसगढ़
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग (ii) नगालैंड/मिजोरम

प्रश्न 2.
पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन, ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आंदोलन और अलग देश बनाने की माँग करना ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिये अलग-अलग रंग भरिये और दिखाइये कि किस राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल है?
उत्तर:

  1. बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन – असम
  2. ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आन्दोलन – मेघालय
  3. अलग देश बनाने की माँग – मिजोरम

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ 1

(अलग देश बनाने की माँग नगालैण्ड व मिजोरम ने की थी। कुछ समय पश्चात् मिजोरम स्वायत्त राज्य बनने के लिए तैयार हो गया। मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर को राज्य का दर्जा दे दिया गया है।) अतः मिजोरम की माँग का समाधान हो गया है, लेकिन नगालैण्ड में अलगाववाद की समस्या का पूर्ण हल अभी तक नहीं हो पाया है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 3.
पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ौसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
पंजाब समझौता: जुलाई, 1985 में अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे पंजाब – समझौता कहा जाता है। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-

  1. मारे गये निरपराध व्यक्तियों के लिए मुआवजा: एक सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्यवाही या आन्दोलन में मारे गए लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जाएगा।
  2. सेना में भर्ती; देश के सभी नागरिकों को सेना में भर्ती का अधिकार होगा और चयन के लिए केवल योग्यता ही आधार रहेगा।
  3. सेना से निकाले हुए व्यक्तियों का पुनर्वास: सेना से निकाले हुए व्यक्तियों और उन्हें लाभकारी रोजगार दिलाने के प्रयास किए जाएंगे।
  4. विशेष सुरक्षा अधिनियम को वापस लेने पर सहमति:  पंजाब में उग्रवाद प्रभावित लोगों को मुआवजा प्रदान करने तथा उनके साथ अच्छा व्यवहार करने को तैयार हो गई तथा पंजाब से विशेष सुरक्षा अधिनियम को वापस लेने की बात पर भी सहमत हो गई।
  5. सीमा विवाद:  चण्डीगढ़ की राजधानी परियोजना क्षेत्र और सुखना ताला पंजाब को दिए जाएंगे । केन्द्र शासित प्रदेश के अन्य पंजाबी क्षेत्र पंजाब को तथा हिन्दी भाषी क्षेत्र हरियाणा को दिए जाएंगे।
    ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ौसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने का कारण नहीं बन सकते हैं क्योंकि इसमें इन राज्यों के विवादास्पद मुद्दों को नहीं छुआ गया है।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने का मुख्य कारण यह था कि इस प्रस्ताव में पंजाब सूबे के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की गई, जो कि परोक्ष रूप से एक अलग सिख राष्ट्र की माँग को बढ़ावा देती है। दूसरे यह प्रस्ताव ‘सिख वर्चस्व’ का ऐलान करता था।

प्रश्न 5.
आपकी राय में कश्मीर में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उभर आने के कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जम्मू-कश्मीर की अंदरूनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सिर उठाया है।
उत्तर:
अंदरूनी विभिन्नताएँ:
जम्मू-कश्मीर में अधिकांश रूप में अंदरूनी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। जम्मू- कश्मीर राज्य में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र – जम्मू कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं। जम्मू पहाड़ी क्षेत्र है, इसमें हिन्दू-मुस्लिम और सिक्ख अर्थात् कई धर्मों एवं भाषाओं के लोग रहते हैं। कश्मीर में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या अधिक है और यहाँ पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। जबकि लद्दाख पर्वतीय क्षेत्र है, इसमें बौद्ध, मुस्लिम की आबादी है। इतनी विभिन्नताओं के कारण यहाँ पर कई क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सिर उठाया है। यथा

  1. इसमें पहली आकांक्षा कश्मीरी पहचान की है जिसे कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है। कश्मीर के निवासी सबसे पहले अपने को कश्मीरी तथा बाद में कुछ और मानते थे
  2. राज्य में उग्रवाद और आतंकवाद को दूर करना भी यहाँ के लोगों की एक मुख्य आकांक्षा है।
  3. स्वायत्तता की बात जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को अलग-अलग ढंग से लुभाती है। यहाँ पूरे राज्य में स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है, उतनी ही प्रबल माँग राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है। जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दल हैं, जो जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की माँग करते रहते हैं। इसमें नेशनल कांफ्रेंस सबसे महत्त्वपूर्ण दल है।
  4. इसके अतिरिक्त कुछ उग्रवादी संगठन भी हैं, जो धर्म के नाम पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं

प्रश्न 6.
कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें से कौनसा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
कश्मीर की स्वायत्तता का मसला- कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर मुख्य रूप से दो पक्ष सामने आते हैं- प्रथम पक्ष वह है जो धारा 370 को समाप्त करना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष वह है जो इस राज्य को और अधिक स्वायत्तता देना चाहता हैं। यदि इन दोनों पक्षों का उचित ढंग से अध्ययन किया जाए तो प्रथम पक्ष अधिक उचित दिखाई पड़ता है जो धारा 370 को समाप्त करने के पक्ष में है। उनका तर्क है कि इस धारा के कारण यह राज्य भारत के साथ पूरी तरह नहीं मिल पाया है। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने से कई प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याएँ भी पैदा होती हैं।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 7.
असम आन्दोलन सांस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।
अथवा
ऑल असम स्टूडेंटस यूनियन (आ सू) द्वारा चलाये गये आंदोलनों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
असम आन्दोलन – 1979 से 1985 तक असम में बाहरी लोगों के खिलाफ चला, असम आंदोलन असम के सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था क्योंकि-
1. असमी लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि असम में बांग्लादेश से आए विदेशी लोगों को पहचान कर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जायेगी। यह उन्हें असमी संस्कृति पर ख़तरा दिखाई दे रहा था। अतः 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने जब यह माँग की कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए, तो इस आंदोलन को पूरे असम में समर्थन मिला।

2. असम आंदोलन के पीछे आर्थिक मसले भी जुड़े थे। असम में तेल, चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। दूसरे, भारत के अन्य राज्यों से या किसी अन्य देश से आए लोग यहाँ के रोजगार के अवसरों को हथिया रहे हैं और यहाँ की जनता उनसे वंचित हो रही है।

प्रश्न 8.
हर क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी माँग की तरफ अग्रसर नहीं होता । इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के कई क्षेत्रों में काफी समय से कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन चल रहे हैं, परन्तु सभी क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी आन्दोलन नहीं होते अर्थात् कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन भारत से अलग नहीं होना चाहते बल्कि अपने लिए अलग राज्य की मांग करते हैं, जैसे—झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का आन्दोलन, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा चलाया गया आन्दोलन तथा तेलंगाना प्रजा समिति द्वारा चलाया गया आन्दोलन इत्यादि ऐसे ही आन्दोलन रहे हैं और अपने क्षेत्र के लिए एक पृथक् राज्य के गठन के बाद ये आन्दोलन समाप्त हो गये हैं ।

प्रश्न 9.
भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से ‘विविधता में एकता’ के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्क दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न प्रकार की माँगें उठीं। तमिलनाडु में जहाँ हिन्दी भाषा के विरोध और अंग्रेजी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में बनाए रखने की माँग उठी, तो असम में विदेशियों को असम से बाहर निकालने की माँग उठी, नगालैंड और मिजोरम में अलगाववाद की माँग उठी तो आंध्रप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों में भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की माँग उठी।

इसी प्रकार उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड क्षेत्रों में प्रशासनिक सुविधा तथा आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु अलग राज्य बनाने के. आंदोलन हुए। अभी भी विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न प्रकार की माँगें उठ रही हैं जिनका मुख्य आधार क्षेत्रीय पिछड़ापन है । इससे स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय माँगों से विविधता के दर्शन होते हैं। भारत सरकार ने इन माँगों के निपटारे के लिए लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एकता का परिचय दिया है।

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प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
हजारिका का एक गीत एकता की विजय पर है; पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ कहा गया है. मेघालय अपने रास्ते गई अरुणाचल भी अलग हुई और मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने को खड़ा है इस गीत का अंत असमी लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है। करबी और मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं। संजीव बरुआ
(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कर रहा है?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य क्यों बनाए गए?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है? क्यों?
उत्तर:
(क) लेखक यहाँ पर पूर्वोत्तर राज्यों की एकता की बात कर रहा है।

(ख) सभी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य बनाए गए।

(ग) भारत के सभी क्षेत्रों पर एकता की यह बात लागू हो सकती है, क्योंकि भारत के सभी राज्यों में अलग- अलग धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं तथा देश की एकता एवं अखण्डता के लिए उनमें एकता कायम करना आवश्यक है। दूसरे, भारत के संविधान में क्षेत्रीय विभिन्नताओं और आकांक्षाओं के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है। तीसरे, देश के नेता तथा सभी राजनीतिक दल एकता के समर्थक हैं।

क्षेत्रीय आकांक्षाएँ JAC Class 12 Political Science Notes

→ क्षेत्र और राष्ट्र:
भारत में 1980 के दशक में देश के विभिन्न हिस्सों में स्वायत्तता की माँगें उठीं। लोगों ने स्वायत्तता की माँगों को लेकर संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए हथियार तक उठाये। भारत सरकार ने इन मांगों को दबाने के लिए जवाबी कार्यवाही की, जिससे अनेक बार राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया अवरुद्ध हुई।

→ भारत सरकार का नजरिया:
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया और भारत के संविधान के बारे में अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि देश में विभिन्न क्षेत्रों और भाषायी समूह को अपनी संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार होगा। भारत ने एकता की भावधारा से बँधे एक ऐसे सामाजिक जीवन के निर्माण का निर्णय लिया जिससे एक समाज को आकार देने वाली तमाम संस्कृतियों की विशिष्टता बनी रहे।

→ तनाव के दायरे:
आजादी के बाद भारत में क्षेत्रीय तनाव के विभिन्न मुद्दे उभरे जिनमें प्रमुख हैं-

  • आजादी के तुरन्त बाद जम्मू-कश्मीर का मामला सामने आया। यह सिर्फ भारत और पाकिस्तान के मध्य संघर्ष का मामला नहीं था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था।
  • ठीक इसी प्रकार पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मसले पर सहमति नहीं थी। पहले नगालैण्ड में और फिर मिजोरम में भारत से अलग होने की माँग करते हुए जोरदार आंदोलन चले।
  • दक्षिण भारत में द्रविड़ आन्दोलन से जुड़े कुछ समूहों ने एक समय अलग राष्ट्र की बात उठायी थी।
  • अलगाव के इन आन्दोलनों के अतिरिक्त देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग करते हुए जन-आन्दोलन चले। मौजूदा कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात ऐसे ही आन्दोलनों वाले राज्यों में हैं।

→ जम्मू-कश्मीर:
जम्मू-कश्मीर भारत और पाकिस्तान के मध्य एक बड़ा मुद्दा है। 1947 से पहले जम्मू-कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिन्दू शासक भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे और उन्होंने अपने स्वतन्त्र राज्य के लिए भारत और पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की। कश्मीर समस्या की प्रमुख जड़ों को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

→  राज्य में नेशनल कान्फ्रेंस के शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जन-आन्दोलन चला। शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि महाराजा पद छोड़ें, लेकिन वे पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। नेशनल कान्फ्रेंस एक धर्मनिरपेक्ष संगठन था। इसका कांग्रेस के साथ काफी समय से गठबन्धन था। राष्ट्रीय राजनीति के कई प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला के मित्र थे। इनमें नेहरू भी शामिल थे।

→ अक्टूबर, 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठ को अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में महाराज भारतीय सेना से मदद माँगने को मजबूर हुए। भारत ने सैन्य मदद उपलब्ध करवाई और कश्मीर घाटी से घुसपैठियों को खदेड़ा। इससे पहले भारत सरकार ने महाराजा से भारत संघ में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए। इस बारे में सहमति जताई गई कि स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर की नियति का फैसला जनमत सर्वेक्षण द्वारा होगा। मार्च, 1948 में शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रधानमन्त्री बने ( राज्य में सरकार के मुखिया को तब प्रधानमन्त्री कहा जाता था )। भारत, जम्मू एवं कश्मीर की स्वायत्तता को बनाए रखने पर सहमत हो गया। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दिया गया।

→ बाहरी और आन्तरिक दबाव:
जम्मू-कश्मीर की राजनीति हमेशा विवादग्रस्त एवं संघर्षयुक्त रही। इसमें बाहरी एवं आन्तरिक दोनों कारण हैं। कश्मीर समस्या का एक कारण पाकिस्तान का रवैया है। उसने हमेशा यह दावा किया है कि कश्मीर घाटी पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। 1947 में इस राज्य में पाकिस्तान ने कबायली हमला कराया। इसके परिणामस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तानी नियन्त्रण में आ गया। भारत ने दावा किया कि यह क्षेत्र का अवैध अधिग्रहण है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को आजाद कश्मीर कहा । 1947 के बाद कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का एक बड़ा मुद्दा रहा है। आन्तरिक रूप से देखें तो भारतीय संघ में कश्मीर की हैसियत को लेकर विवाद रहा। कश्मीर को संविधान में धारा 370 के अन्तर्गत विशेष स्थान दिया गया है। धारा 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता दी गई है।

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→ 1948 के बाद की राजनीति:
प्रधानमन्त्री बनने के बाद शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में सुधार हेतु अनेक कदम उठाये। उन्होंने भूमि सुधार व जन-कल्याण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाये लेकिन केन्द्र सरकार से मतभेद होने के कारण उन्हें 1953 में पद से हटा दिया गया। 1953 से लेकर 1974 तक राज्य की राजनीति पर कांग्रेस का असर रहा। विभाजित हो चुकी नेशनल कांफ्रेंस कांग्रेस के समर्थन से राज्य में कुछ समय तक सत्तासीन रही लेकिन बाद में यह कांग्रेस में मिल गयी। इस तरह राज्य की सत्ता सीधे कांग्रेस के नियन्त्रण में आ गई। इस बीच शेख अब्दुल्ला और भारत सरकार के बीच सुलह की कोशिश जारी रही। आखिरकार, 1974 में इन्दिरा गाँधी के साथ शेख अब्दुल्ला ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और वे राज्य के मुख्यमन्त्री बने।

→ विद्रोही तेवर और उसके बाद:
1984 में विधानसभा चुनाव हुए। आधिकारिक नतीजे बता रहे थे कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबन्धन को भारी बहुमत मिला है। फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। बहराल लोग यह मान रहे थे कि चुनावों में धाँधली हुई है और चुनाव परिणाम जनता की पसंद की नुमाइंदगी नहीं कर रहे। 1980 के दशक से ही यहाँ के लोगों में प्रशासनिक अक्षमता को लेकर रोष पनप रहा था। 1989 तक राज्य उग्रवादी आन्दोलन की गिरफ्त में आ चुका था। इस आन्दोलन में लोगों को अलग कश्मीर के नाम पर लामबंद किया जा रहा था। 1990 के बाद से इस राज्य के लोगों को उग्रवादियों और सेना की हिंसा भुगतनी पड़ी। 1996 में एक बार फिर इस राज्य में विधानसभा चुनाव हुए। फारुख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनी और उसने जम्मू-कश्मीर के लिए क्षेत्रीय स्वायत्तता की माँग की। जम्मू-कश्मीर में 2002 के चुनाव बड़े निष्पक्ष ढंग से हुए । नेशनल कांफ्रेंस को बहुमत नहीं मिल पाया। इस चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीपी) और कांग्रेस की गठबन्धन सरकार सत्ता में आई।

→ 2002 और इससे आगे:
गठबंधन के अनुसार मुफ्ती मोहम्मद तीन वर्षों तक सरकार के मुखिया रहे, इसके बाद गुलामनबी आजाद मुखिया बने। 2008 में कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और 2008 के नवंबर-दिसंबर में चुनाव करवाया गया। उमर अब्दुल्ला मुखिया बने। 2014 के चुनाव में पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन हुआ और मिली-जुली सरकार सत्ता में आई । 2018 में बीजेपी ने अपना सहयोग वापस ले लिया। फलस्वरूप कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया। राज्य को पुनर्गठित कर दो केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख बना दिये गये।

→ पंजाब:
1980 के दशक में पंजाब में भी बड़े बदलाव आए। इस प्रान्त की सामाजिक बनावट विभाजन के समय पहली बार बदली थी। 1966 में पंजाबी भाषी प्रान्त का निर्माण हुआ। सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में 1920 के दशक में अकाली दल का गठन हुआ था। अकाली दल ने पंजाबी सूबा के गठन का आन्दोलन चलाया। पंजाबी- भाषी सूबे में सिख बहुसंख्यक हो गये। राजनीतिक संदर्भ-पंजाबी सूबे के पुनर्गठन के बाद अकाली दल ने यहाँ 1967 और इसके बाद 1977 में सरकार बनाई। 1970 के दशक में अकालियों के एक तबके ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठायी। 1973 में आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में क्षेत्रीय स्वायत्तता की माँग उठायी गयी। 1980 में अकाली दल की सरकार बर्खास्त हो गई तो अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ौसी राज्यों के बीच पानी के बँटवारे को लेकर आन्दोलन चलाया।

→ हिंसा का चक्र:
जल्दी ही अकाली आन्दोलन का नेतृत्व नरम पंथियों के हाथों से निकल कर चरमपंथियों के हाथों में आ गया और इस आन्दोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। उग्रवादियों ने अमृतसर स्थित सिखों के तीर्थ स्थल स्वर्णमन्दिर में अपना मुख्यालय बनाया और स्वर्णमन्दिर एक हथियारबंद किले में तब्दील हो गया। 1984 के जून माह में भारत सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया । यह स्वर्णमन्दिर में की गई सैन्य कार्यवाही का कूट नाम था । कुछ और त्रासद घटनाओं ने पंजाब की समस्या को एक जटिल रास्ते पर खड़ा कर दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की 31 अक्टूबर, 1984 के दिन उनके आवास के बाहर उन्हीं के अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के कारण दिल्ली में बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए जिसमें लगभग 2000 सिख स्त्री-पुरुष एवं बच्चे मारे गये।

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→ शांति की ओर:
984 के चुनावों के बाद तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने नरमपंथी अकाली नेताओं से बातचीत की शुरुआत की। अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचरन सिंह लोंगोवाल के साथ 1985 की जुलाई में एक समझौता हुआ। इस समझौते को राजीव गाँधी लोंगोवाल समझौता अथवा पंजाब समझौता कहा जाता है । यह समझौता पंजाब में अमन कायम करने की क्रिया में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। लेकिन पंजाब में हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। केन्द्र सरकार ने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इससे सामान्य राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया बाधित हुई। 1992 में पंजाब के चुनावों में 24 प्रतिशत मतदाता मत डालने आए। 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति बहाल हुई तथा 1997 में चुनाव में लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। अब पंजाब में पुनः आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के मुद्दे प्रमुख हो गये हैं।

→ पूर्वोत्तर:
पूर्वोत्तर राज्यों में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ 1980 के दशक में एक निर्णायक मोड़ पर आ गई थीं। क्षेत्र में सात राज्य हैं। इन्हें ‘सात बहनें’ कहा जाता है। इस क्षेत्र में देश की कुल 4 फीसदी आबादी निवास करती है। लेकिन भारत के कुल क्षेत्रफल में पूर्वोत्तर के हिस्से को देखते हुए यह आबादी दोगुनी कही जाएगी। 22 किलोमीटर लंबी एक पतली सी राहदारी इस इलाके को शेष भारत से जोड़ती है अन्यथा इस क्षेत्र की सीमाएँ चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से लगती हैं और यह इलाका भारत के लिए एक तरह से दक्षिण-पूर्वी एशिया का प्रवेश द्वार है।

इस इलाके में 1947 के बाद अनेक परिवर्तन आये हैं। पूर्वोत्तर के पूरे इलाके का बड़े व्यापक स्तर पर राजनीतिक पुनर्गठन हुआ है। नगालैण्ड को 1963 में राज्य बनाया गया। मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा 1972 में राज्य बने जबकि अरुणाचल प्रदेश को 1987 में राज्य का दर्जा दिया गया। 1947 के भारत विभाजन से पूर्वोत्तर के इलाके भारत के शेष भागों से एकदम अलग-थलग पड़ गए और इसका अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ा। पूर्वोत्तर के राज्यों में राजनीति में तीन मुद्दे हावी हैं

  • स्वायत्तता की माँग,
  • अलगाव के आन्दोलन तथा
  • बाहरी लोगों का विरोध।

→ स्वायत्तता की माँग:
आजादी के वक्त मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़ दें तो यह पूरा इलाका असम कहलाता था। गैर- असमी लोगों को जब लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस इलाके से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। पूरे राज्य में असमी भाषा को लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। बड़े जनजाति समुदाय के नेता असम से अलग होना चाहते थे। इन लोगों ने ‘ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन’ का गठन किया जो 1960 में कहीं ज्यादा व्यापक ‘आल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस’ में बदल गया। इन नेताओं की माँग थी कि असम से

→ अलग एक जन:
जातीय राज्य बनाया जाए। आखिरकार एक जनजातीय राज्य की जगह असम को काट कर कई जनजातीय राज्य बने। केन्द्र सरकार ने अलग-अलग वक्त पर असम को बाँटकर मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश बनाया। 1972 तक पूर्वोत्तर का पुनर्गठन पूरा हो चुका था लेकिन स्वायत्तता की माँग खत्म नहीं हुई। उदाहरण के लिए, असम के बोडो, करबी और दिमसा जैसे समुदायों ने अपने लिए अलग राज्य की माँग की। अपनी माँग के पीछे उन्होंने जनमत तैयार करने के प्रयास किए, जन-आंदोलन चलाए और विद्रोही कार्यवाहियाँ भी कीं।
संघीय राजव्यवस्था के कुछ और प्रावधानों का उपयोग करके स्वायत्तता की मांग को सन्तुष्ट करने की कोशिश की गई और इन समुदायों को असम में ही रखा गया। करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद् के अन्तर्गत स्वायत्तता दी गई। बोडो जनजाति को हाल ही में स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया है।

→ अलगाववादी आंदोलन:
पूर्वोत्तर राज्यों में स्वायत्तता की माँग के साथ – साथ अलगाववादी ताकतों का भी बोलबाला बढ़ा। अलगाववादी देश से अलग होकर अपने को एक अलग राष्ट्र के रूप में प्रतिस्थापित करना चाहते थे। भारत के पूर्वोत्तर के राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नगालैण्ड, मिजोरम, त्रिपुरा में इस प्रकार की माँगें उठती रहती हैं।

→ बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन:
पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर अप्रवासी भारतीय आये हैं। इससे एक खास समस्या उत्पन्न हुई है। स्थानीय जनता इन्हें बाहरी समझती है और बाहरी लोगों के खिलाफ उसके मन गुस्सा है। भारत के दूसरे राज्यों अथवा किसी अन्य देश से आये लोगों को यहाँ की जनता रोजगार के अवसरों और राजनीतिक सत्ता के एतबार से एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है। स्थानीय लोग बाहर से आये लोगों के बारे में मानते हैं कि ये लोग यहाँ की जमीन हथिया रहे हैं। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है और कभी-कभी इन बातों के कारण हिंसक घटनाएँ भी होती हैं।

→ समाहार और राष्ट्रीय अखण्डता:
आजादी के छह दशक बाद भी राष्ट्रीय अखण्डता के कुछ मामलों का समाधान पूरी तरह से नहीं हो पाया। क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लगातार एक न एक रूप से उभरती रहीं। कभी कहीं से अलग राज्य बनाने की माँग उठी तो कहीं आर्थिक विकास का मसला उठा। कहीं-कहीं से अलगाववाद के स्वर उभरे। 1980 के बाद के दौर में भारत की राजनीति इन तनावों के घेरे में रही और समाज के विभिन्न तबके की माँगों में पटरी बैठा पाने की लोकतान्त्रिक राजनीति की क्षमता की परीक्षा हुई।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board Class 12 Political Science लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट InText Questions and Answers

पृष्ठ 104

प्रश्न 1.
गरीब जनता पर सचमुच भारी मुसीबत आई होगी। आखिर गरीबी हटाओ के वादे का हुआ क्या? उत्तर – श्रीमती गांधी ने 1971 के आम चुनावों में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था लेकिन इस नारे के बावजूद भी 1971-72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में सुधार नहीं हुआ और यह नारा खोखला साबित हुआ। इसी अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। इससे विभिन्न चीजों की कीमतों में तेजी आई। इस तीव्र मूल्य वृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई । बांग्लादेश के संकट से भी भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गये थे । इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। फलतः गरीबी हटाओ कार्यक्रम के लिए दिये जाने वाले अनुदान में कटौती कर दी गई और यह नारा पूर्णतः असफल साबित हुआ।

पृष्ठ 107

प्रश्न 2.
क्या ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ और ‘प्रतिबद्ध नौकरशाही’ का मतलब यह है कि न्यायाधीश और सरकारी अधिकारी शासक दल के प्रति निष्ठावान हो?
उत्तर:
प्रतिबद्ध नौकरशाही के अन्तर्गत नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों से बंधी हुई होती है और उस दल के निर्देशन में कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती; बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना किसी प्रश्न उठाए आँखें मूंद कर लागू करना होता है। जहाँ तक प्रतिबद्ध न्यायपालिका का सवाल है यह ऐसी न्यायपालिका होती है, जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफादार हो तथा सरकार के निर्देशों के अनुसार चले। इस प्रकार ऐसी व्यवस्था में न्यायपालिका व व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है और प्रशासन निरंकुश हो जाता है अर्थात् कानून बनाने एवं फैसला या निर्णय देने की शक्ति केवल एक ही संस्था या दल के पास आ जाती है। इस प्रकार की व्यवस्था प्रायः साम्यवादी देशों में पायी जाती है।

पृष्ठ 108

प्रश्न 3.
यह तो सेना से सरकार के खिलाफ बगावत करने को कहने जैसा जान पड़ता है। क्या यह बात लोकतांत्रिक है?
उत्तर:
नहीं, यह बात लोकतंत्र के खिलाफ है।

पृष्ठ 109

प्रश्न 4.
क्या राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सिफारिश के बगैर आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी? कितनी अजीब बात है!
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख किया गया है। भारत में 1975 में अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की गई जिसमें मन्त्रिमण्डल से सलाह करके आपातकालीन स्थिति की घोषणा का प्रावधान है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बिना मंत्रिमण्डल की सलाह के राष्ट्रपति को आपातकाल की घोषणा करने की सलाह दी थी, मन्त्रिमण्डल की बैठक उसके बाद हुई। इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियों में चाहें कुछ भी हुआ हो लेकिन वर्तमान में आपातकाल के प्रावधानों में सुधार कर लिया गया है। अंब आंतरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही लगाया जा सकता है। इसके लिए भी आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् को राष्ट्रपति को लिखित में देनी होगी।

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प्रश्न 5.
अरे ! सर्वोच्च न्यायालय ने भी साथ छोड़ दिया! उन दिनों सबको क्या हो गया था?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान नागरिकों की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिये गये तथा मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गये। लेकिन अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो। 1976 के अप्रेल माह में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील मान ली। इसका आशय यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिकों से जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में से एक माना गया। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बंद हो गए अर्थात् इस काल में सर्वोच्च न्यायालय ने भी जनता का साथ छोड़ दिया था।

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प्रश्न 6.
जिन चंद लोगों ने प्रतिरोध किया, उनकी बात छोड़ दें- बाकियों के बारे में सोचें कि उन्होंने क्या किया ! क्या कर रहे थे बड़े-बड़े अधिकारी, बुद्धिजीवी, सामाजिक-धार्मिक नेता और नागरिक …………..?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। जिन्होंने विरोध किया उनको जेल में डाल दिया गया, कई नेताओं और बुद्धिजीवियों को नजरबंद कर दिया गया। सरकार के विरोध में कोई भी स्वर उठाता उसको जेल में यातनाएँ दी जातीं। कुछ नेता जो गिरफ्तारी से बच गए वे भूमिगत होकर सरकार के खिलाफ मुहिम जारी रखी। कुछ ने आपातकाल के विरोध में अपनी पदवी लौटा दी। अधिकारी सरकार के प्रति वफादार बने रहे और ऐसा न करने पर उनका निलंबन कर दिया जाता था।

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प्रश्न 7.
अगर उत्तर और दक्षिण के राज्यों में मतदाताओं ने इतने अलग ढर्रे पर मतदान किया, तो हम कैसे कहें कि 1977 के चुनावों का जनादेश क्या था?
उत्तर:
1977 के चुनावों में आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हारी। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिलीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों . को 330 सीटें प्राप्त हुईं। लेकिन तत्कालीन चुनावी नतीजों पर प्रकाश डालें तो यह एहसास होता है कि कांग्रेस देश में हर जगह चुनाव नहीं हारी थी । महाराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा में उसने कई सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखा था और दक्षिण भारत के राज्यों में तो उसकी स्थिति काफी मजबूत थी। इसका मुख्य कारण यह था कि दक्षिण के राज्यों में आपातकाल के दौरान ज्यादतियाँ नहीं हुई थीं। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि चुनावों का जनादेश आपातकाल की ज्यादतियों व उसके दुरुपयोग के विरुद्ध था।

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प्रश्न 8.
मैं समझ गया! आपातकाल एक तरह से तानाशाही निरोधक टीका था। इसमें दर्द हुआ और बुखार भी आया, लेकिन अन्ततः हमारे लोकतन्त्र के भीतर क्षमता बढ़ी।
उत्तर:
आपातकाल से सबक – आपातकाल के प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं-

  1. आपातकाल का प्रथम सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र को विदा कर पाना बहुत कठिन है।
  2. दूसरे आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब आंतरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  3. तीसरे आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई।

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प्रश्न 1.
बताएँ कि आपातकाल के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत-
(क) आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गाँधी ने की।
(ख) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए।
(ग) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आपातकाल की घोषणा की गई थी।
(घ) आपातकाल के दौरान विपक्ष के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
(ङ) सी. पी. आई. ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया।
उत्तर:
(क) गलत,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही,
(ङ) सही।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकाल की घोषणा के संदर्भ में मेल नहीं खाता है-
(क) ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान
(ख) 1974 की रेल – हड़ताल
(ग) नक्सलवादी आंदोलन
(घ) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
(ङ) शाह आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष
उत्तर:
(ग) नक्सलवादी आंदोलन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(क) संपूर्ण क्रांति (i) इंदिरा गाँधी
(ख) गरीबी हटाओ (ii) जयप्रकाश नारायण
(ग) छात्र आंदोलन (iii) बिहार आंदोलन
(घ) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नांडिस

उत्तर:

(क) संपूर्ण क्रांति (ii) जयप्रकाश नारायण
(ख) गरीबी हटाओ (i) इंदिरा गाँधी
(ग) छात्र आंदोलन (iii) बिहार आंदोलन
(घ) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नांडिस

प्रश्न 4.
किन कारणों से 1980 के मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
उत्तर:
1977 के चुनावों में जनता पार्टी को जनता ने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया लेकिन जनता पार्टी के नेताओं में प्रधानमंत्री के पद को लेकर मतभेद हो गया। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए ही एकजुट रख सका। जनता पार्टी के पास किसी एक दिशा, नेतृत्व अथवा साझे कार्यक्रम का अभाव था। केवल 18 महीने में ही मोरारजी देसाई ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया जिसके कारण मोरारजी देसाई को त्यागपत्र देना पड़ा। मोरारजी देसाई के बाद चरणसिंह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री बने लेकिन चार महीने बाद कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया। अतः जनता पार्टी की सरकार में पारस्परिक तालमेल का अभाव, सत्ता की भूख तथा राजनैतिक अस्थिरता के कारण 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाए गए।

प्रश्न 5.
जनता पार्टी ने 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गई थी? इसके क्या निष्कर्ष थे?
उत्तर:
शाह आयोग का गठन ” 25 जून, 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्यवाही तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं” की जाँच के लिए किया गया था । आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जांच की और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। शाह आयोग ने अपनी जाँच के दौरान पाया कि इस अवधि में बहुत सारी ‘अति’ हुई। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों और तीसरी तथा अंतिम रिपोर्ट की सिफारिशी पर्यवेक्षणों और निष्कर्षों को स्वीकार किया ।

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प्रश्न 6.
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
उत्तर:
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके निम्नलिखित कारण बताये थे-

  1. सरकार ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा लोकतन्त्र को रोकने की कोशिश की जा रही है तथा सरकार को उचित ढंग से कार्य नहीं करने दिया जा रहा है। आन्दोलनों के कारण हिंसक घटनाएँ हो रही हैं तथा हमारी सेना तथा पुलिस को बगावत के लिए उकसाया जा रहा है। (ii) सरकार ने कहा कि विघटनकारी ताकतों का खुला खेल जारी है और साम्प्रदायिक उन्माद को हवा दी जा रही है, जिससे हमारी एकता पर खतरा मँडरा रहा है।
  2. षड्यंत्रकारी शक्तियाँ सरकार के प्रगतिशील कामों में अड़ंगे लगा रही हैं और उसे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती हैं।

प्रश्न 7.
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से संभव हुआ?
उत्तर:
1977 के चुनावों के बाद केन्द्र में पहली बार विपक्षी दल की सरकार बनने के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार रहे, इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. बड़ी विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना: आपातकाल लागू होने से आहत विपक्षी नेताओं ने आपातकाल के बाद हुए चुनाव के पहले एकजुट होकर ‘जनता पार्टी’ नामक एक नया दल बनाया। कांग्रेस विरोधी मतों के बिखराव को रोका।
  2. जगजीवनराम द्वारा त्याग-पत्र देना: चुनाव से पहले जगजीवनराम ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया तथा कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवनराम के नेतृत्व में एक नयी पार्टी – ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ बनायी तथा बाद में यह पार्टी जनता पार्टी में शामिल हो गई ।
  3. आपातकाल की ज्यादतियाँ: आपातकाल के दौरान जनता पर अनेक ज्यादतियाँ की गईं। जैसे – संजय गाँधी के नेतृत्व में अनिवार्य नसबंदी कार्यक्रम चलाया गया; प्रेस तथा समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई; हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो गई। इन सब कारणों से जनता कांग्रेस से नाराज थी और उसने कांग्रेस के विरोध में मतदान किया।
  4. जनता पार्टी का प्रचार: जनता पार्टी ने 1977 के चुनावों को आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया तथा इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों को मुद्दा बनाया।

प्रश्न 8.
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?
1. नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर
2. कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध
3. जनसंचार माध्यमों के कामकाज
4. पुलिस और नौकरशाही की कार्यवाहियाँ ।
उत्तर:

  1. आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को निलम्बित कर दिया गया तथा श्रीमती गाँधी द्वारा ‘मीसा कानून’ लागू किया गया जिसके अन्तर्गत किसी भी नागरिक को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में लिया जा सकता था।
  2. आपातकाल में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे के सहयोगी हो गये, क्योंकि सरकार ने सम्पूर्ण न्यायपालिका को सरकार के प्रति वफादार रहने के लिए कहा तथा आपातकाल के दौरान कुछ हद तक न्यायपालिका सरकार के प्रति वफादार भी रही। इस प्रकार आपातकाल के दौरान न्यायपालिका कार्यपालिका के आदेशों का पालन करने वाली संस्था बन गई थी।
  3. आपातकाल के दौरान जनसंचार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, कोई भी समाचार पत्र सरकार के खिलाफ कोई भी खबर नहीं छाप सकता था तथा जो भी खबर अखबार द्वारा छापी जाती थी उसे
  4. पहले सरकार से स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती थी।
  5. आपातकाल के दौरान पुलिस और नौकरशाही, सरकार के प्रति वफादार बनी रही, यदि किसी पुलिस अधिकारी या नौकरशाही ने सरकार के आदेशों को मानने से मना किया तो उसे या तो निलम्बित कर दिया गया या गिरफ्तार कर लिया गया। इस काल में पुलिस की ज्यादतियाँ बढ़ गई थीं तथा नौकरशाही अनुशासन के नाम पर तानाशाह हो गयी थी। रिश्वतखोरी बढ़ गयी थी।

प्रश्न 9.
भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
उत्तर:
आपातकाल का भारतीय दलीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि अधिकांश विरोधी दलों को किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं थी। आजादी के समय से लेकर 1975 तक भारत में वैसे भी कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा तथा संगठित विरोधी दल उभर नहीं पाया, वहीं आपातकाल के दौरान विरोधी दलों की स्थिति और भी खराब हुई। आपातकाल के बाद सरकार ने जनवरी, 1977 में चुनाव कराने का फैसला लिया। सभी बड़े विपक्षी दलों ने मिलकर एक नयी पार्टी – ‘ जनता पार्टी’ का गठन कर चुनाव लड़ा और सफलता पायी और सरकार बनाई। इस प्रकार कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राजनैतिक प्रणाली द्वि-दलीय हो जायेगी। लेकिन 18 माह में ही जनता पार्टी का यह कुनबा बिखर गया और पुनः दलीय प्रणाली उसी रूप में आ गई।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-
1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो- दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरंत बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई: “जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची” “डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रणव रॉय। – पार्थ चटर्जी
(क) किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो- दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो- दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई ?
उत्तर:
(क) 1977 में भारत की राजनीति दो- दलीय प्रणाली इसलिए जान पड़ती थी; क्योंकि उस समय केवल दो ही दल सत्ता के मैदान में थे, जिसमें सत्ताधारी दल कांग्रेस एवं मुख्य विपक्षी दल जनता पार्टी।

(ख) लेखकगण इस दौर को दो- दलीय प्रणाली के नजदीक इसलिए बता रहे हैं; क्योंकि कांग्रेस कई टुकड़ों. में बँट गई और जनता पार्टी में भी फूट हो गई परंतु फिर भी इन दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता संयुक्त नेतृत्व और साझे कार्यक्रम और नीतियों की बात करने लगे। इन दोनों गुटों की नीतियाँ एक जैसी थीं। दोनों में बहुत कम अंतर था । वामपंथी मोर्चे में सी. पी. एम., सी. पी. आई., फारवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी की नीति एवं कार्यक्रमों को इनसे अलग माना जा सकता है।

(ग) 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के कारण नेताओं में निराशा पैदा हुई और इस निराशा के कारण फूट पैदा हुई, क्योंकि अधिकांश कांग्रेसी नेता श्रीमती गाँधी के चमत्कारिक नेतृत्व के महापाश से बाहर निकल चुके थे, दूसरी ओर जनता पार्टी में नेतृत्व और विचारधारा को लेकर फूट पैदा हो गई थी। प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारों में आपसी होड़ मच गई।

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट JAC Class 12 Political Science Notes

→ आपातकाल की पृष्ठभूमि:
1967 के चुनावों के बाद भारतीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। श्रीमती इंदिरा गाँधी एक कद्दावर नेता के रूप में उभरीं और उनकी लोकप्रियता चरम सीमा पर पहुँच गई। इस काल में दलगत प्रतिस्पर्द्धा कहीं ज्यादा तीखी और ध्रुवीकृत हो गई तथा न्यायपालिका और सरकार के सम्बन्धों में तनाव आए। इस काल में कांग्रेस के विपक्ष में जो दल थे उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मानकर प्रयोग किया जा रहा है और राजनीति हद से ज्यादा व्यक्तिगत होती जा रही है। कांग्रेस की टूट से इंदिरा गांधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गये थे।

→ आर्थिक संदर्भ:
1971 में ‘गरीबी हटाओ’ का जो नारा दिया गया वह पूर्णतया खोखला साबित हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ा। लगभग 80 लाख शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गये। युद्ध के बाद अमरीका ने भारत की सहायता बन्द कर दी। इस अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना वृद्धि हुई जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वस्तुओं की कीमतों में जबरदस्त इजाफा हुआ।

→ गुजरात और बिहार में आंदोलन: गुजरात और बिहार में कांग्रेसी सरकार थी। इन राज्यों में हुए आन्दोलनों का प्रदेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

→ गुजरात में आंदोलन के कारण: 1974 में तेल की कीमतों व आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के विरुद्ध छात्रों ने आन्दोलन किया। इस आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शामिल हो गईं और इस आन्दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। विपक्षी दलों ने राज्य की विधानसभा के लिए दुबारा चुनाव कराने की मांग की। कांग्रेस (ओ) के प्रमुख नेता मोरारजी देसाई ने कहा कि अगर राज्य में नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए गए तो मैं भूख हड़ताल पर बैठ जाऊँगा। मोरारजी अपने कांग्रेस के दिनों में इंदिरा गांधी के मुख्य विरोधी रहे थे। विपक्षी दलों द्वारा समर्थित छात्र आंदोलन के गहरे दबाव में 1975 के जून में विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस इस चुनाव में हार गयी।

→ बिहार में आंदोलन के कारण:
1974 के मार्च माह में बिहार में इन्हीं मांगों को लेकर छात्रों द्वारा आन्दोलन छेड़ा गया। आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा। जेपी तब सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे और सामाजिक कार्यों में लगे हुए थे। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा। इस प्रकार छात्र आंदोलन ने एक राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और उसके भीतर राष्ट्रव्यापी अपील आई। बिहार के इस आन्दोलन में हर क्षेत्र के लोग जुड़ने लगे। जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में समग्र क्रान्ति का आह्वान किया ताकि उन्हीं के शब्दों में सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना की जा सके।

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→ आन्दोलन का प्रभाव:
बिहार के इस आन्दोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हुआ। जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि यह आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों में भी फैले। इस आंदोलन के साथ-साथ रेलवे कर्मचारियों ने भी राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, जिससे देश का सम्पूर्ण कामकाज ठप होने का खतरा उत्पन्न हो गया। विशेषज्ञों एवं विद्वानों का मानना था कि ये आन्दोलन राज्य सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व के खिलाफ चलाए गए। इंदिरा गांधी का मानना था कि ये आन्दोलन उनके प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित थे।

→ न्यायपालिका से संघर्ष:

  • न्यायपालिका के साथ इस दौर में सरकार और शासक दल के गहरे मतभेद पैदा हुए। इस क्रम में तीन संवैधानिक मामले उठे क्या संसद मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है? सर्वोच्च न्यायालय का जवाब था कि संसद ऐसा नहीं कर सकती।
  • दूसरा यह कि क्या संसद संविधान में संशोधन करके सम्पत्ति के अधिकार में काट-छाँट कर सकती है? इस मसले पर भी सर्वोच्च न्यायालय का यही कहना था कि सरकार संविधान में इस तरह संशोधन नहीं कर सकती कि अधिकारों की कटौती हो जाए।
  • तीसरा, संसद ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन किया कि वह नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को प्रभावकारी बनाने के लिए मौलिक अधिकारों में कमी कर सकती है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया। इससे सरकार और न्यायपालिका के मध्य संघर्ष उत्पन्न हो गया।

1973 में सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके न्यायमूर्ति ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से विवादास्पद बना रहा क्योंकि सरकार ने जिन तीन न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी इस मामले में की थी उन्होंने सरकार के इस कदम के विरुद्ध फैसला दिया।

आपातकाल की घोषणा:
12 जून, 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने लोकसभा के लिए इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला। इन दलों ने 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल प्रदर्शन किया। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। जयप्रकाश नारायण ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशों का पालन न करें। सरकार ने इन घटनाओं के मद्देनजर जवाब में 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी। श्रीमती गाँधी की सरकार ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने तुरन्त आपातकाल की उद्घोषणा कर दी।

→  परिणाम:

  • सरकार के इस फैसले से विरोध- आंदोलन एक बार रुक गया। हड़तालों पर रोक लगा दी गई अनेक विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।
  • आपातकाल की मुखालफत और प्रतिरोध की कई घटनाएँ घटीं। पहली लहर में जो राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से रह गए थे वे ‘भूमिगत’ हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलायी। इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया।
  • इंदिरा गांधी के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में संविधान में संशोधन हुआ। इस संशोधन के द्वारा प्रावधान किया गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वां संशोधन पारित हुआ इस संशोधन के माध्यम से संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किए गए। 42वें संशोधन के माध्यम से हुए अनेक बदलावों में एक था- देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 साल करना।

→ आपातकाल के संदर्भ में विवाद;
सरकार का तर्क था कि भारत में लोकतन्त्र है और इसके अनुकूल विपक्षी दलों को चाहिए कि वे निर्वाचित शासक दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। देश में लगातार गैर-संसदीय राजनीति का सहारा नहीं लिया जा सकता। इससे अस्थिरता पैदा होती है। इंदिरा गांधी ने शाह आयोग को चिट्ठी में लिखा कि षड्यंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में अड़ंगे लगा रही थीं और मुझे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थीं। आपातकाल के आलोचकों का तर्क था कि आजादी के आंदोलन से लेकर लगातार भारत में जन-आंदोलन का एक सिलसिला रहा है।

जयप्रकाश नारायण सहित विपक्ष के नेताओं का विचार था कि लोकतन्त्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। लोकतान्त्रिक कार्यप्रणाली को ठप करके आपातकाल लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की जरूरत कतई नहीं थी। दरअसल खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और स्वयं प्रधानमंत्री को था । आलोचक कहते हैं कि देश को बचाने के लिए बनाए गए संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग इंदिरा गांधी ने निजी ताकतों को बचाने के लिए किया ।

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→ आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ?:
आपातकाल को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा कि इसके जरिए वो कानून व्यवस्था को बहाल करना चाहती थी, कार्यकुशलता बढ़ाना चाहती थी और गरीबों के हित के कार्यक्रम लागू करना चाहती थी । इस उद्देश्य से सरकार ने एक बीससूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की और इसे लागू करने का अपना दृढ़ संकल्प दोहराया। आपातकाल की घोषणा के बाद, शुरुआती महीनों में मध्यवर्ग इस बात से खुश था कि विरोध- आंदोलन समाप्त हो गया और सरकारी कर्मचारियों पर अनुशासन लागू हुआ। आपातकाल के दौरान कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी। प्रेस पर कई तरह की पाबंदी लगाई गई। इसके अलावा कुछ और गंभीर आरोप लगे थे जो किसी आधिकारिक पद पर नहीं थे, लेकिन सरकारी ताकतों का इन लोगों ने इस्तेमाल किया था। आपातकाल का बुरा असर आम लोगों को भी भुगतना पड़ा। इसके दौरान पुलिस हिरासत में मौत और यातना की घटनाएँ भी सामने आईं। गरीब लोगों को मनमाने तरीके से एक जगह से उजाड़कर दूसरी जगह बसाने की घटनाएँ भी हुईं। जनसंख्या नियंत्रण के बहाने लोगों को अनिवार्य रूप से नसबंदी के लिए मजबूर किया गया।

→ आपातकाल से सबक:

  • आपातकाल से एकबारगी भारतीय लोकतन्त्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हुईं। यद्यपि पर्यवेक्षक मानते हैं कि आपातकाल के दौरान भारत लोकतान्त्रिक नहीं रह गया था, लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि थोड़े दिनों के अंदर कामकाज फिर से लोकतान्त्रिक ढर्रे पर लौट आया। इस तरह आपातकाल का एक सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र विदा कर पाना बहुत कठिन है।
  • आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब ‘अंदरूनी’ आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  • आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा संचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई। आपातकाल के बाद की राजनीति – उत्तर भारत में आपातकाल का असर ज्यादा दिखाई दिया। यहाँ विपक्षी दलों ने लोकतन्त्र बचावों के बारे पर चुनाव लड़ा। जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था। जिन सरकारों को जनता ने लोकतन्त्र विरोधी माना उन्हें मतदान के रूप में उसने भारी दण्ड दिया।

→ लोकसभा चुनाव, 1977:
1977 के चुनावों में आपातकाल का असर व्यापक रूप से दिखाई दिया। इन चुनावों में जनादेश कांग्रेस के विरुद्ध था। कांग्रेस को लोकसभा में मात्र 154 सीटें मिलीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटों पर जीती और उसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक भी सीट न पा सकी।

→ जनता सरकार:
1977 के चुनावों के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन इस पार्टी में तालमेल का अभाव था। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन पार्टी के भीतर खींचतान जारी रही। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ समय तक ही एक रख सका। जनता पार्टी बिखर गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में अपना समर्थन खो दिया। इसके बाद चरण सिंह की सरकार भी केवल 4 माह तक ही चल पायी। 1980 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त की।

→ विरासत:

  • 1969 से पहले तक कांग्रेस विविध विचारधाराओं के नेताओं व कार्यकर्ताओं को एक साथ लेकर चलती थी। अपने बदले हुए स्वभाव में कांग्रेस ने स्वयं को विशेष विचारधारा से जोड़ा। उसने अपने को देश की एकमात्र समाजवादी और गरीबों की हिमायती पार्टी बताना शुरू किया।
  • अप्रत्यक्ष रूप से 1977 के बाद पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा भारतीय राजनीति पर हावी होना शुरू हुआ। 1977 के चुनाव परिणामों पर पिछड़ी जातियों के कदम पर असर पड़ा, खासकर उत्तर भारत में।
  •  इस दौर में एक और महत्त्वपूर्ण मामला संसदीय लोकतन्त्र में जन- आंदोलन की भूमिका और उसकी सीमा को लेकर उठा स्पष्ट ही इस दौर में संस्था आधारित लोकतन्त्र में तनाव नजर आया। इस तनाव का एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि हमारी दलीय प्रणाली जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम साबित नहीं हुई।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Jharkhand Board Class 12 Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना InText Questions and Answers

पृष्ठ 83

प्रश्न 1.
फ्रांस और कनाडा में ऐसी सूरत कायम हो, तो वहाँ कोई भी लोकतंत्र के असफल होने अथवा देश के टूटने की बात नहीं कहता। हम ही आखिर लगातार इतने शक में क्यों पड़े रहते हैं?
उत्तर:
फ्रांस में लोकतंत्र 1792 में स्थापित हुआ जबकि कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र है, जिसमें सम्राट राज्य का प्रमुख होता है। कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र 1867 में बना। भारत 1947 में आजाद हुआ और उसी समय भारत में लोकतंत्र कायम हुआ। भारत में नया नया लोकतंत्र कायम हुआ था इसलिए इतनी विविधताओं वाले देश में लोकतंत्र के असफल होने या देश के टूटने का शक लगातार लगा रहता है।

पृष्ठ 86

प्रश्न 2.
इन्दिरा गाँधी के लिए स्थितियाँ सचमुच कठिन रही होंगी-पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में आखिर वे अकेली महिला थीं। ऊँचे पदों पर अपने देश में ज्यादा महिलाएँ क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनीं लेकिन प्रारम्भिक काल में उनको सिण्डीकेट और प्रभावशाली वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा अनेक चुनौतियाँ मिलीं, लेकिन पारिवारिक राजनीतिक विरासत और पर्याप्त राजनीतिक अनुभव के कारण उनको एक सामान्य महिला की अपेक्षा कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन भारत में ज्यादातर महिलाओं के समक्ष अनेक ऐसी चुनौतियाँ एवं समस्याएँ हैं जिनके कारण वे ऊँचे पदों पर नहीं आ पातीं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है। अधिकांश कानून पुरुषों द्वारा बनाए गए और महिलाओं को समाज में गैर- बराबरी का दर्जा दिया गया।
  2. लड़कों की तुलना में उनके जन्म और पालन-पोषण में नकारात्मक भेद-भाव किया जाता था।
  3. सती-प्रथा, बहुपत्नी विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, कन्या वध या भ्रूण हत्या, विधवा विवाह की मनाही, अशिक्षा आदि ने नारियों को समाज में पछाड़े रखा।
  4. भारत में पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता के कारण वे महिलाओं को सरकारी नौकरियाँ विशेषकर ऊँचे पदों पर नहीं देखना चाहते।
  5. शिक्षा के प्रचार- प्रसार, नारी जागृति तथा नारी सशक्तीकरण के कारण अब धीरे-धीरे देश के उच्च पदों पर महिलाएँ कार्य कर रही हैं, लेकिन अभी भी उनकी संख्या काफी कम है।

पृष्ठ 89

प्रश्न 3.
क्या आज गैर-कांग्रेसवाद प्रासंगिक है? क्या मौजूदा पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा ही तरीका अपनाया जा सकता है?
उत्तर:
गैर कांग्रेसवाद के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया थे और गैर-कांग्रेसवाद आज भी उतना प्रासंगिक है जितना 1960 के दशक में था। बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा तरीका अपनाया जा सकता है क्योंकि बंगाल में वाममोर्चा का एकाधिकार है जिसके कारण समाज में कुछ अलगाववादी तत्त्व सक्रिय हो गए हैं। इन सबको खत्म करने का ये तरीका कारगर हो सकता है।

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पृष्ठ 90

प्रश्न 4.
त्रिशंकु विधानसभा और गठबन्धन सरकार की इन बातों में नया क्या है? ऐसी बातें तो हम आए दिन सुनते रहते हैं।
उत्तर:
भारत में 1967 के चुनावों से गठबन्धन की राजनीति सामने आयी। त्रिशंकु विधानसभा और गठबंधन सरकार की घटना उन दिनों नई थी क्योंकि पहली बार चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था, इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। लेकिन वर्तमान समय में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बदल गया है। बहुदलीय व्यवस्था होने के कारण केन्द्र और राज्यों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता और त्रिशंकु विधान सभा या संसद का निर्माण हो रहा है। इसलिए आज गठबन्धन सरकार या त्रिशंकुं संसद आम बात हो गई है।

पृष्ठ 92

प्रश्न 5.
इसका मतलब यह है कि राज्य स्तर के नेता पहले के समय में भी ‘किंगमेकर’ थे और इसमें कोई नयी बात नहीं है। मैं तो सोचती थी कि ऐसा केवल 1990 के दशक में हुआ।
उत्तर:
पार्टी के ऐसे ताकतवर नेता जिनका पार्टी संगठन पर पूर्ण नियन्त्रण होता है उन्हें ‘किंगमेकर’ कहा जाता है प्रधानमन्त्री हो या मुख्यमन्त्री, इनकी नियुक्ति में इनकी विशेष भूमिका होती है। भारत में राज्य स्तर पर किंगमेकर्स की शुरुआत केवल 1990 के दशक में नहीं बल्कि इससे पहले भी इस प्रकार की स्थिति पायी जाती थी। भारत में पहले कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट के नाम से इंगित किया जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियन्त्रण था। मद्रास प्रान्त के कामराज, मुम्बई सिटी के एस.के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष इस संगठन में शामिल थे। लाल बहादुर शास्त्री एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमन्त्री पद पर आरूढ़ हुए।

पृष्ठ 96

प्रश्न 6.
गरीबी हटाओ का नारा तो अब से लगभग चालीस साल पहले दिया गया था। क्या यह नारा महज एक चुनावी छलावा था?
उत्तर:
गरीबी हटाओ का नारा श्रीमती गाँधी ने तत्कालीन समय व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दिया। उन्होंने विपक्षी गठबन्धन द्वारा दिये गये इन्दिरा हटाओ नारे के विपरीत लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने मशहूर नारे ‘गरीबी हटाओ’ के जरिए एक शक्ल प्रदान की। इन्दिरा गाँधी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि, ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी सम्पदा के परिसीमन, आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा प्रिवीपर्स की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया।

गरीबी हटाओ के नारे से श्रीमती गाँधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासियों, अल्पसंख्यक महिलाओं और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। लेकिन 1971 के भारत-पाक युद्ध और विश्व स्तर पर पैदा हुए तेल संकट के कारण गरीबी हटाओ का नारा कमजोर पड़ गया। 1971 में इन्दिरा गाँधी द्वारा दिया गया यह नारा महज पाँच साल के अन्दर ही असफल हो गया और 1977 में इन्दिरा गांधी को ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार यह नारा महज एक चुनावी छलावा साबित हुआ।

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पृष्ठ 99

प्रश्न 7.
यह तो कुछ ऐसा ही है कि कोई मकान की बुनियाद और छत बदल दे फिर भी कहे कि मकान वही है। पुरानी और नयी कांग्रेस में कौनसी चीज समान थी?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस के विभाजन तथा कामराज योजना के तहत कांग्रेस पार्टी की पुनर्स्थापना करने का प्रयास किया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और उनके साथ अन्य युवा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। यह पार्टी पूर्णतः अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर आश्रित थी। पुरानी कांग्रेस की तुलना में इसका सांगठनिक ढाँचा कमजोर था। अब इस पार्टी के भीतर कई गुट नहीं थे। अर्थात् अब यह कांग्रेस विभिन्न मतों और हितों को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी। इस प्रकार इन्दिरा कांग्रेस के बारे में यह कहा जा सकता है कि इसकी बुनियाद और छत बदल दी गई थी, लेकिन नाम वही था। पुरानी और नई कांग्रेस में एक बात समान थी कि दोनों को ही लोकप्रियता में समान स्थान प्राप्त था। पार्टी के सर्वोच्च नेता पर आश्रितता की नीति में भी कोई परिवर्तन नहीं आया तथा कांग्रेस की मूल विचारधारा में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।

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प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें:

(क) सिंडिकेट (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ख) दल-बदल (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(ग) नारा (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।

उत्तर:

(क) सिंडिकेट (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।
(ख) दल-बदल (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ग) नारा (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है?
(क) जय जवान, जय किसान
(ख) इन्दिरा हटाओ
(ग) गरीबी हटाओ।
उत्तर:
(क) लालबहादुर शास्त्री
(ख) विपक्षी गठबंधन
(ग) श्रीमती इन्दिरा गाँधी।

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प्रश्न 4.
1971 के ‘ग्रैंड अलायंस’ के बारे में कौनसा कथन ठीक है?
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) लाभ – पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से पार्टी में एकता और अनुशासन की भावना का विकास होगा। हानि – इससे एक व्यक्ति की तानाशाही या निरंकुशता स्थापित होने का खतरा बढ़ जाता है।

(ख) लाभ – मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से यह लाभ होगा कि इससे अधिकांश की राय का पता चलेगा तथा पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। हानि – बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की उचित बात की अवहेलना की सम्भावना बनी रहेगी। (ग) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रख सकेगा। यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक तथा निष्पक्ष है। हानि – गुप्त मतदान में क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।

(घ) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सलाह का विशेष लाभ होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के पास अनुभव होता है तथा सभी सदस्य उनका आदर करते हैं। हानि – वरिष्ठ एवं अनुभवी व्यक्ति नये विचारों एवं मूल्यों को अपनाने से कतराते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे / किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
(कं) इसको कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस के पास अनेक वरिष्ठ और करिश्माई नेता थे

(ख) यह कांग्रेस पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस दो गुटों में बँटती जा रही थी युवा तुर्क और सिंडिकेट युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा) के बीच आपसी फूट के कारण कांग्रेस पार्टी को 1967 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।

(ग) 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी. एम. के. जैसे दल अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक दलों के रूप में उभरे जिससे कांग्रेस प्रभाव व विस्तार क्षेत्र में कमी आयी तथा कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच पूर्णरूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रान्तों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर-कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद के कारण बहुत जल्दी ही आन्तरिक फूट कालान्तर में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था।

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प्रश्न 7.
1970 के दशक में इन्दिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर:
1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के कारण – 1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
1. करिश्मावादी नेता:
इन्दिरा गाँधी कांग्रेस पार्टी की करिश्मावादी नेता थीं। वह भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री की पुत्री थीं और उन्होंने स्वयं को गाँधी-नेहरू परिवार का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी बताया। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुईं।

2. प्रगतिशील कार्यक्रमों की घोषणा:
इन्दिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. गिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव जिता कर लाना आदि ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया ।

3. कुशल एवं साहसिक चुनावी रणनीति:
इंदिरा गाँधी ने एक साधारण से सत्ता संघर्ष को विचारधारात्मक संघर्ष में बदल दिया । उन्होंने अपनी वामपंथी नीतियों की घोषणा कर जनता को यह दर्शाने में सफलता पाई कि कांग्रेस का सिंडीकेट धड़ा इन नीतियों के मार्ग में बाधाएँ डाल रहा है। चुनावों में श्रीमती गाँधी को इसका लाभ मिला।

4. भूमि सुधार कानूनों का क्रियान्वयन:
श्रीमती गाँधी ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त अभियान चलाया तथा उन्होंने भू-परिसीमन के कुछ और कानून भी बनाए। जिसका प्रभाव चुनाव में उनके पक्ष में गया।

प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के सन्दर्भ में सिंडिकेट का क्या अर्थ है? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
सिंडिकेट का अर्थ- कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को एक अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट के नाम से पुकारा जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर अधिकार एवं नियन्त्रण था। सिंडिकेट के अगुआ के. कामराज थे। इसमें विभिन्न प्रान्तों के ताकतवर नेता जैसे बम्बई सिटी (अब मुम्बई) के एस. के. पाटिल, मैसूर ( अब कर्नाटक) के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। भूमिका – इन्दिरा गाँधी के पहले मन्त्रिमण्डल में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही।

इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस का विभाजन होने के बाद सिंडिकेट के नेता कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में ही रहे । चूँकि इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही, इसलिए ये ताकतवर नेता 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई? कांग्रेस के 1969 के विभाजन के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों का परीक्षण कीजिए।
अथवा
1969 में कांग्रेस में विभाजन के क्या कारण थे?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन या टूट के कारण 1969 में कांग्रेस के विभाजन एवं टूट के निम्नलिखित कारण थे:

  1. दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं के समर्थकों के मध्य कलह: 1967 के चौथे आम चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद कांग्रेस के कुछ नेता दक्षिणपंथी विचारधारा वालों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे और कुछ वामपंथी विचारधारा वाले दलों के साथ। कांग्रेस के नेताओं की यह कलह उसके विभाजन का मुख्य कारण बनी।
  2. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन को लेकर मतभेद: 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस द्वारा समर्थित उम्मीदवार एन. संजीव रेड्डी को श्रीमती गाँधी व उनके समर्थकों ने मत न देकर एक स्वतन्त्र उम्मीदवार वी. वी. गिरि को समर्थन दिया। जिससे चुनाव में वी.वी. गिरि जीत गये। यह घटना कांग्रेस पार्टी के विभाजन का प्रमुख कारण बनी।
  3. युवा तुर्क एवं सिंडिकेट के बीच कलह: 1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन का एक कारण युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा ) के बीच होने वाली कलह भी रही।
  4. वित्त विभाग, मोरारजी देसाई से वापस लेना: श्रीमती गाँधी की मोरारजी देसाई से वित्त विभाग को वापस लेने तथा बैंक राष्ट्रीयकरण के प्रस्ताव को मन्त्रिमण्डल में सर्वसम्मति से पारित कर देने की कार्यवाही ने भी कांग्रेस विभाजन को मुखरित किया।
  5. सिंडीकेट द्वारा श्रीमती गाँधी को पद से हटाने का प्रयास: 1969 में कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार के चुनाव हार जाने के बाद सिंडीकेट ने प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को पद से हटाने का प्रयास किया परन्तु वे इसमें सफल न हो सके। उपर्युक्त घटनाओं के कारण कांग्रेस में आन्तरिक कलह इस कदर बढ़ गया कि नवम्बर, 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतान्त्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं- 1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इन्दिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?
उत्तर:
(क) जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय लोकतान्त्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेता और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में कार्य करती थी।

(ख) लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सत्तर के दशक में कांग्रेस की सर्वोच्च नेता श्रीमती इन्दिरा गाँधी एक अधिनायकवादी नेता थीं। उन्होंने मनमाने ढंग से मन्त्रिमण्डल और दल का गठन किया तथा पार्टी में विचार-विमर्श प्रायः मर गया।

(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के सामने आये। 1977 के चुनावों में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।

कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना JAC Class 12 Political Science Notes

→ पण्डित नेहरू के शासन काल में देश के सभी भागों में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व बना रहा तथा कोई भी राजनीतिक पार्टी कांग्रेसी वर्चस्व को चुनौती देने में सक्षम नहीं थी। लेकिन नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होने लगीं।

→ राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती:
राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती मई, 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुई जिसे लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमन्त्री बनने के साथ ही हल कर लिया गया। शास्त्री 1964 1966 तक प्रधानमंत्री रहे। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शास्त्रीजी के निधन के उपरान्त फिर राजनीतिक उत्तराधिकार का मामला उठा। लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी को देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री और तीसरा प्रधानमन्त्री बनने का अवसर मिला । उन्होंने अपने प्रतियोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई को पराजित किया। इन्दिरा गाँधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक प्रधानमन्त्री पद पर रहीं। 1984 में उनकी हत्या कर दी गई।

→ चौथा आम चुनाव 1967:
भारतीय चुनावी राजनीति के इतिहास में 1967 के वर्ष को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। 1952 के बाद से पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का जो दबदबा कायम था वह 1967 के चुनावों में समाप्त हो गया।

→ चुनावों का सन्दर्भ:
1960 के दशक में अनेक कारणों से देश गम्भीर आर्थिक संकट में था। आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई, खाद्यान्न की कमी तथा बढ़ती बेरोजगारी से लोगों की स्थिति बदतर हो गई और लोग सरकार के विरोध में उतर आये। कांग्रेस सरकार इसे भाँप नहीं सकी। मार्क्सवादी समाजवादी दल से अलग हुए मार्क्सवादी-लेनिनवादी गुट ने सशस्त्र कृषक विद्रोह का नेतृत्व किया तथा किसानों को संगठित किया। तीसरे, इस काल में गम्भीर साम्प्रदायिक दंगे भी हुए।

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→ गैर-कांग्रेसवाद:
कांग्रेस विरोधी वोटों को चुनाव में बंटने से रोकने के लिए सभी विरोधी दलों ने एकजुट होकर सभी राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया जिसे राममनोहर लोहिया ने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नारा दिया।

चुनाव का जनादेश तथा गठबन्धन सरकारें: व्यापक जन- असन्तोष और राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इस माहौल में 1967 के चौथे आम चुनाव हुए। इन चुनावों को कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में तो बहुमत मिल गया लेकिन उसकी सीटों की संख्या में भारी गिरावट आयी। सात राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। 2 अन्य राज्यों में भी दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। मद्रास में डी.एम. के. ने सरकार बनायी तथा अन्य 8 राज्यों में गठबन्धन की सरकारें बनीं।

→ दल – बदल: 1967 से देश में राजनीति दल-बदल और ‘ आया राम-गया राम’ की राजनीति शुरू हुई, जिसकी वजह से भारतीय लोकतन्त्र को अस्थायी रूप से गहरा आघात लगा। कांग्रेस सिंडिकेट और इंडिकेट या पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस के नाम से विभाजित हो गयी।

→ कांग्रेस में विभाजन:
1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया, जिसके कई कारण थे, जैसे- दक्षिणपंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद, युवा तुर्क एवं सिंडीकेट के बीच कलह तथा मोरारजी से वित्त विभाग वापस लेना इत्यादि।

→ इंदिरा बनाम सिंडिकेट:
इंदिरा गाँधी को असली चुनौती विपक्ष से नहीं अपितु अपनी पार्टी के भीतर से मिली। उन्हें सिंडिकेट से निपटना पड़ा। ‘सिंडिकेट’ कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। इसके अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। ‘सिंडिकेट’ ने इंदिरा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी लेकिन इसके विपरीत इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का मुकाम बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे और बड़ी सावधानी से उन्होंने सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया।

इस तरह इंदिरा गाँधी ने दो चुनौतियों का सामना किया। उन्हें ‘सिंडिकेट’ के प्रभाव से स्वतंत्र अपना मुकाम बनाया और 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने जो जमीन खोयी थी उसे हासिल किया। 1967 में कांग्रेस कार्यसमिति ने दस सूत्री कार्यक्रम अपनाया। इस कार्यक्रम में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा के राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के परिसीमन, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देने के प्रावधान शामिल थे।

→ राष्ट्रपति पद का चुनाव, 1969:
सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गाँधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया। इंदिरा गाँधी ने ऐसे समय में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

→ 1971 का चुनाव और कांग्रेस का पुनर्स्थापन:
1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद यद्यपि इन्दिरा गाँधी की सरकार अल्पमत में आ गयी थी, लेकिन वह डी. एम. के. तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से टिकी रही। अब श्रीमती गाँधी की सरकार ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन, भू-परिसीमन के कानून, बैंक राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवी पर्स की समाप्ति आदि के द्वारा अपना समाजवादी रंग पेश किया तथा 1970 में लोकसभा भंग कर 1971 में चुनाव कराएं। 1971 के चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गाँधी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जीत के कई कारण थे, जैसे- श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व, समाजवादी नीतियाँ, कांग्रेसी दल पर श्रीमती गाँधी की पकड़, श्रीमती गाँधी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण तथा गरीबी हटाओ का नारा। 1971 के चुनावों में जहाँ श्रीमती गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया, वहीं उनके विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया, जिसे मतदाताओं ने पसन्द नहीं किया तथा श्रीमती गाँधी के पक्ष में मतदान किया।

→ कांग्रेस की पुनर्स्थापना:
1971 के लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य संकट उठ खड़ा हुआ। 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे को लेकर युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना। इन घटनाओं से इन्दिरा गाँधी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। विपक्ष के नेताओं तक ने उसके राज्य कौशल की प्रशंसा की। 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें गरीबों, वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा गया। पार्टी के अन्दर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश न बची। कांग्रेस को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ राज्य स्तर के चुनावों में भी भारी सफलता प्राप्त हुई।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana लघुकथा-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Rachana लघुकथा-लेखन

किसी घटना के संक्षिप्त रोचक वर्णन को लघुकथा कहते हैं। कहानी या कथा लिखना एक कला है। लघुकथा में कम-से-कम शब्दों में ही बात को इस प्रकार प्रस्तुत करना होता है कि वह पाठक के मन को चिंतन के लिए उद्वेलित कर दे। अपनी कल्पना और वर्णन – शक्ति के द्वारा लेखक कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक पाठक के लिए अपनी कल्पना और विचारों को नैतिक संदेश प्रदान करने के लिए एक कहानी के रूप में डालने की कोशिश करता है। विद्यार्थियों को पहले दी गई रूपरेखा के आधार, चित्र देखकर अथवा कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

कहानी के कुछ प्रमुख तत्व :

  • कथावस्तु
  • संवाद
  • देशकाल और वातावरण
  • भाषा-शैली
  • चरित्र-चित्रण
  • उद्देश्य

कथावस्तु – कथावस्तु से तात्पर्य कहानी में वर्णित घटनाओं और कार्य – व्यापार से है।
संवाद – कहानी के पात्रों द्वारा आपस में किए गए वार्तालाप को संवाद कहते हैं। कहानी के संवाद लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि संवाद पात्र के अनुकूल हों।
देशकाल और वातावरण – कहानी में वर्णित घटना का संबंध जिस परिस्थिति अथवा वातावरण से है, उसे एक कहानी का देशकाल अथवा परिवेश कहा जाता है।
भाषा-शैली – कथाकार अपनी भाषा शैली के द्वारा कहानी के पात्रों को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। भाषा शैली कहानी का प्राण तत्व होती है।
चरित्र-चित्रण – कहानी के पात्रों के हाव-भाव तथा कार्य-व्यापार उनके चरित्र का निर्माण करते हैं।
उद्देश्य – कहानी का अभिप्राय ही कहानी का उद्देश्य है। पाठक कहानी के अभिप्राय को समझे बिना कहानी को सही ढंग से आत्मसात नहीं कर सकता।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • परिचय कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कहानी लिखते समय मुख्य चरित्र और एक घटना का उल्लेख के साथ परिचय लिखना चाहिए।
  • परिचय के उपरांत कहानी की स्थिति के बारे में लिखना चाहिए।
  • दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करें।
  • कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार दें।
  • कहानी की भाषा सरल होनी चाहिए, जिससे पाठकों को आसानी से समझ आ जाए।
  • कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध हो और कहानी से कोई-न-कोई उपदेश मिलता हो।
  • कहानी का शीर्षक उपयुक्त एवं आकर्षक होना चाहिए।
  • कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए और अंत सहज ढंग से होना चाहिए।

संकेत बिंदुओं के आधार पर लघुकथा लेखन के कुछ उदाहरण –

1. एक बालक का अपने मित्रों के साथ बगीचे में जाना… चोरी से फल तोड़कर खाना… माली का बगीचे में आना… बच्चों का भाग जाना… एक बालक का पकड़े जाना… माली द्वारा उसे डाँटना… बालक का रोना.. माली की बात को आत्मसात करना… भविष्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना।

शीर्षक – सीख

एक दिन कुछ बालक विद्यालय से लौट रहे थे कि रास्ते में एक बगीचे में अमरूद से लदे पेड़ देखकर सभी बच्चे उसमें घुस गए। माली को वहाँ न पाकर बच्चे पेड़ पर चढ़ गए और अमरूद तोड़कर खाने लगे। एक बच्चा नीचे खड़ा बड़े बच्चों से गुहार लगा रहा था कि वे उसे भी थोड़े अमरूद तोड़ कर दे दें। पेड़ पर चढ़े एक बच्चे ने एक अमरूद उसकी ओर उछाल दिया।

अमरूद पाकर बालक बड़ा प्रसन्न हुआ और अमरूद खाने लगा। इतने में ही बालक ने ज़ोर से शोर मचाया, माली आ गया भागो…..। बच्चे पेड़ से उतरकर भागने लगे। वह छोटा बालक अमरूद खाने में लगा हुआ था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी माली ने आकर उसे धर दबोचा। माली उस बालक को पहचान गया। उससे बोला, तुम्हें बगीचे में चोरी करते हुए लज्जा नहीं आती? एक तो तुम्हारे पिता नहीं हैं ऊपर से तुम इन बच्चों के साथ गंदी आदतें सीख रहे हो।

बालक यह सुनकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। बालक को रोता देखकर माली ने समझाया, “तुम्हारी माता भविष्य के सुनहरे सपने देखती हैं। तुम्हें तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए ताकि तुम बड़े होकर अपनी माँ का हाथ बँटा सको।’

बालक समझ गया उसने माली की बात गाँठ बाँध ली। इसके बाद वह बालक कभी उस बगीचे में नज़र नहीं आया। आगे चलकर यही बालक हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के रूप में विख्यात हुए।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

2. अध्यापक का शिष्यों के साथ घूमने जाना …… अच्छी संगति के महत्व को समझाना ……. एक गुलाब का पौधा देखना …… ढेला उठाकर सूँघना …… शिष्य का ढेला सूँघना ……. अध्यापक का शिष्यों को समझाना ……. गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरना ……. पंखुड़ियों की संगति से मिट्टी से गुलाब की महक आना ……… जैसी संगति वैसे ही गुण-दोष।

शीर्षक – संगति का असर

एक अध्यापक अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे अपने शिष्यों के अच्छी संगति का महत्व समझा रहे थे। लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे। तभी अध्यापक ने फूलों से लदा एक गुलाब का पौधा देखा। उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का ढेला उठाकर ले आने को कहा। जब शिष्य ढेला उठा लाया तो अध्यापक ने उससे उस ढेले को सूँघने को कहा।

शिष्य ने ढेला सूँघा और बोला, “गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी खुशबू आ रही है।”

अध्यापक बोले, “बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे आई? दर सअसल इस मिट्टी पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ, टूट-टूटकर गिरती हैं, तो मिट्टी में भी गुलाब की महक आने लगी है। जिस प्रकार गुलाब की पंखुड़ियों की संगति के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की महक आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

3. व्यापारी का ऊँटों का व्यापार करना ……… उनके बच्चे खरीदकर बेचना ……… जंगल के पास चरने को भेजना ……… ऊँट का बच्चा शैतान होना ……… उसके गले में घंटी बाँधना ……… शेर ऊँटों को शिकार करने के लिए देखना ……… मौके की तलाश करना ……… ऊँटों का खतरा होना …….. चल पड़ना ………. बच्चे का झुंड से अलग जाना ……… शेर के द्वारा मारे जाना।

शीर्षक – मूर्खता का परिणाम

रेगिस्तान के किनारे स्थित एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। वह ऊँटों का व्यापार करता था। वह ऊँटों के बच्चों को खरीदकर उन्हें शक्तिशाली बनाकर बेच देता था। इससे वह ढेर सारा धन कमाता था।
व्यापारी ऊँटों को पास के जंगल में घास चरने के लिए भेज देता था जिससे उनके चारे का खर्च बचता था। उनमें से एक ऊँट का बच्चा बहुत शैतान था। वह प्राय: समूह से दूर चलता था और इस कारण पीछे रह जाता था। बड़े ऊँट हरदम उसे समझाते थे, परंतु वह नहीं सुनता था। इसलिए उन सबने उसकी परवाह करना छोड़ दिया।
व्यापारी को उस छोटे ऊँट से बहुत प्रेम था। इसलिए उसने उसके गले में घंटी बाँध रखी थी। जब भी वह सिर हिलाता तो उसकी घंटी बजती थी जिससे उसकी चाल एवं स्थिति का पता चल जाता था।
एक बार उस स्थान से एक शोर गुजरा जहाँ ऊँट चर रहे थे। उसे ऊँट की घंटी के द्वारा उनके होने का पता चल गया था। उसने फ़सल में से झाँककर देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि ऊँट का एक बड़ा समूह है लेकिन वह ऊँटों पर हमला नहीं कर सकता था क्योंकि समूह में ऊँट उससे बलशाली थे। इस कारण वह मौके की तलाश में वहाँ छुपकर खड़ा हो गया। समूह के एक बड़े ऊँट को खतरे का आभास हो गया। ऊँटों ने एक मंडली बनाकर जंगल से बाहर निकलना आरंभ कर दिया। शेर ने मौके की तलाश में उनका पीछा करना शुरू कर दिया। बड़े

ऊँट ने विशेषकर छोटे ऊँट को सावधान किया था। कहीं वह कोई परेशानी न खड़ी कर दे। पर छोटे ऊँट ने ध्यान नहीं दिया और वह लापरवाही से चलता रहा। छोटा ऊँट अपनी मस्ती में अन्य ऊँटों से पीछे रह गया। जब शेर ने उसको देखा तो वह उस पर झपट पड़ा। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागा, पर वह अपने आप को उस शेर से नहीं बचा पाया। उसका अंत बुरा हुआ क्योंकि उसने अपने बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं किया था।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

4. एक धनी सेठ के बेटे का आज्ञाकारी तथा होनहार होना… उसका बुरी संगत में पड़ना …….. उनके साथ उसका कक्षा छोड़कर भागना …….. उसे सिगरेट की लत लगना ……. उसके पिता का उसे सिगरेट पीते देखना पर कुछ न कहना …….. आदित्य को पश्चाताप होना …….. पिता से क्षमा माँगना ……. बुरी संगति को छोड़ना …….

संगति का प्रभाव

बनारस के पास एक छोटे-से नगर में सेठ श्याम दास रहते थे। उनका इकलौता था पुत्र था, जो बहुत ही होनहार था उसका नाम आदित्य था। विद्यालय के सभी शिक्षक आदित्य को बहुत पसंद किया करते थे क्योंकि वह आज्ञाकारी होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। उसकी कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे भी पढ़ते थे जिनकी आदत खराब थी। न मालूम कैसे धीरे-धीरे आदित्य की मित्रता उन बच्चों के साथ हो गई। अब वह भी उन बच्चों की भाँति विद्यालय से भागने लगा। उसे कक्षा छोड़कर जाना अच्छा लगने लगा। वह पहले की भाँति विद्यालय तो आता, लेकिन बीच में ही विद्यालय से बाहर निकलकर उन मित्रों के साथ सिनेमा देखता, बाज़ार घूमता और जुआ खेलता। उसे सिगरेट पीने की लत भी लग गई थी। सेठ श्याम दास इन सब बातों से बेखबर थे। वे नहीं जानते थे कि उनका प्रिय पुत्र किस प्रकार बुरी संगति में पड़ गया है।

एक दिन किसी कार्यवश वे बाज़ार निकले, तो उन्होंने देखा कि आदित्य कुछ बच्चों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर सिगरेट पी रहा है। पहले तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु पास जाकर देखा, तो समझ गए कि आदित्य अब बुरी संगति में पड़ चुका है। अपने पिता को सामने खड़ा देखकर आदित्य झेंप गया। उसे कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। बिना कुछ कहे वह अपने पिता के साथ हो लिया। रास्ते भर पिता-पुत्र में कोई बातचीत नहीं हुई। वह समझ चुका था कि उसने अपने पिता को बहुत कष्ट पहुँचाया है। घर आकर उसने अपने पिता से क्षमा माँगी और उन गलत दोस्तों का साथ छोड़ देने का प्रण लिया। उसे समझ आ गया था कि बुरे लोगों के साथ रहकर कुछ भला नहीं हो सकता।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

5. सेठ काशीराम के पास अपार दौलत होना ……… पर मन की शांति नहीं ……… एक दिन आश्रम में जाना ……… संत द्वारा प्रश्न पूछना …….. सेठ द्वारा अपनी परेशानी को बताना ……….. दोनों का आश्रम के चक्कर लगाना ………… सेठ द्वारा सुंदर वृक्ष को छूना ….. काँटा चुभना …….. सेठ का चिल्लाना ……… संत द्वारा समझाया जाना ……. ईर्ष्या, क्रोध, लोभ का त्याग करना ……… शांति का प्राप्त होना ……….

शीर्षक-शांति की प्राप्ति

सेठ काशीराम के पास अपार धन-दौलत थी। उन्हें हर तरह का आराम था लेकिन उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी। हर पल उन्हें कोई-न-कोई चिंता परेशान किए रहती थी। एक दिन वे कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी। वहाँ उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से प्रभावित होकर काशीराम आश्रम के अंदर गए और बैठ गए।

प्रवचन समाप्त होने पर सभी अपने-अपने घर को चले गए। लेकिन सेठ वहीं बैठे रहे। उन्हें देखकर संत बोले, ” कहो, तुम्हारे मन में क्या निराशा है, जो तुम्हें परेशान कर रही है।”
इस पर काशीराम बोले, “बाबा, मेरे जीवन में शांति नहीं है।”

यह सुनकर संत बोले, ” घबराओ नहीं, तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।’ संत की बात सुनकर ज्यों ही काशीराम ध्यान की मुद्रा में बैठे त्यों ही उनके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगीं और उनका ध्यान उचट गया। संत ने यह देखकर सेठ से कहा, ‘चलो, आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।’

इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। काशीराम ने एक सुंदर वृक्ष देखा तथा उसे हाथ से छुआ। हाथ लगाते ही उनके हाथ में एक काँटा चुभ गया और सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगे। यह देखकर संत वापस अपनी कुटिया में आए। कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया। कुछ देर बाद वे सेठ से बोले, “तुम्हारे हाथ में ज़रा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे अंदर ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे बड़े-बड़े काँटे छिपे हैं, तो तुम्हारा मन भला शांत कैसे हो सकता है?”

संत की बात से सेठ काशीराम को अपनी गलती का अहसास हो गया। वे संतुष्ट होकर वहाँ से चले गए। उसके बाद सेठ काशीराम ने कभी भी ईर्ष्या नहीं की, क्रोध भी त्याग दिया।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran शब्द विचार Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द विचार

परिभाषा-श्रुतिसम अर्थात सुनने में समान। जो शब्द पढ़ने और सुनने में लगभग एक समान लमते है, परंतु अर्थ की दृष्टि से भिन्नत पाई जाती हैं, वे श्रुतिसम-भिन्नर्थक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों में स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़-सी भिन्नता पाई जाती हैं। ये बोलने में लगभग एक जैसे लगते हैं, परंतु उनके अर्थ में भिन्नता अवश्य होती है। यही शब्द ‘ ग्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द’ होते हैं।
जैसे – घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास भिन्नता महसूस नहीं होती परंतु अर्थ में भिन्नता है।

घन = बादल
धन = रुपया-पैसा या संपत्ति

हिंदी भाषा में ऐसे बहुत से शब्द हैं, जिनमें से कुछ की सूची नीचे दी जा रही है :

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार 1

पमासनाही पालन

जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता तो होती है, परंतु प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है। भावगत भिन्नता पाई जाती है। इनके प्रयोग में हमें सावधानी बरतनी होती है।

  • अच्छा – सुष्ठु, शुभ, श्रेष्ठ, शोभन, सुंदर
  • अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार
  • अनुपम – अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, निराला, अनूठा
  • अधम – पतित, भ्रष्ट, नीच, निकृष्ट, खल, पामर, दुर्जन
  • अपमान – अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर
  • अंकुश – रोक, दबाव, प्रतिबंध
  • अमृत – सुधा, पीयूष, अमिय, सोम
  • अरिन – हुताशन, वहनि, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला
  • अलि – भ्रमर, भौरा, मधुकर, मधुप, मिलिंद
  • असुर – राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज, निशाचर
  • ईश्वर – ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश
  • उषा – प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशांत
  • उन्नति – उदय, वृद्धि, विकास, उत्कर्ष, उत्थान, अभ्युदय, प्रगति, उन्नयन
  • अंकुर – कोंपल, अँखुआ, कलिका
  • अँधेरा – तम, तिमिर, अंधकार, अँधियारा
  • आँसू – अश्रु, नयनजल, नेत्रनीर
  • अहंकार – अभिमान, गर्व, घमंड, मद, दर्प
  • आनंद – मोद, प्रमोद, हर्ष, आमोद, प्रसन्नता, उल्लास
  • आँख – नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन, अक्षि
  • आकाश – व्योम, गगन, अंबर, नभ, आसमान, अनंत
  • अतिधि – अभ्यागत, मेहमान, आगंतुक, पाहुन
  • अश्व – घोड़ा, हय, बाजी, घोटक, तुरंग
  • आभूषण – अलंकार, भूषण, गहना
  • इनाम – पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनंदकर
  • इच्छा – अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, आकांक्षा, लालसा
  • इंद्र – देवेंद्र, सुरेंद्र, सुरपति, पुरंदर, देवराज, शचीपति
  • उद्देश्य – अभिग्राय, आशय, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य
  • उपकार – हित, भलाई, नेकी, भला
  • कपड़ा – वस्त्र, अंबर, चीर, पट, वसन, परिधान
  • किरण – रश्मि, अंशु, मरीची, मयूख, कर
  • केश – बाल, अलक, कच, कुंतल
  • कोयल – पिक, कोकिल, श्यामा, कलकंठी, कोकिला, वसंतदूत
  • कृपा – अनुग्रह, मेहरबानी, दया, अनुकंपा
  • कमल – अरविंद, जलज, नलिन, पंकज, सरोज, राजीव, नीरज, अंबुज
  • कान – कर्ण, श्रोत्र, श्रवण
  • किनारा – तट, तीर, कूल, पुलिन
  • कृष्ण – वासुदेव, गोपाल, गिरधर, केशव
  • क्रोध – गुस्सा, रोष, कोप, आमर्ष
  • खल – अधम, कुटिल, दुष्ट, शठ
  • खून – रक्त, लहू, शोणित
  • गणेश – गणपति, भालचंद्र, लंबोदर, गजानन, विनायक
  • गंगा – भागीरथी, देवनदी, सुरसरी, मंदाकिनी, नदीश्वरी
  • गौ – गाय, सुरभि, धेनु, गऊ, दुधा
  • गोद – अंक, क्रोड, उत्सर्ग
  • गुफा – गुहा, विवर, कंदरा
  • जल – वारि, नीर, पानी, पय, तोय, सलिल, अंबु, उदक
  • जंगल – विपिन, कानन, वन, अरण्य
  • घर – गृह, सदन, निकेतन, भवन, आवास, आलय, धाम, गेह
  • चंद्रमा – शशि, विधु, चंद्र, राकेश, इंदु, चाँद, सोम, सुधाकर
  • चतुर – दक्ष, प्रवीण, निपुण, कुशल, योग्य, होशियार
  • चाँदनी – ज्योत्स्ना, चंद्रिका, कौमुदी, चंद्रमरीची
  • झंडा – ध्वज, पताका, निशान, केतु
  • तलवार – खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल
  • तरंग – लहर, उर्मि, वीचि, हिलोर
  • जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा
  • दूध – दुग्ध, पय, गोरस, क्षीर
  • तालाब – सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर
  • तारा – नक्षत्र, तारक, नखत
  • तीर – बाण, शर, सायक, इषु, नाराच, शिलिमुख
  • दास – भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक
  • दिवस – दिन, वार, वासर, दिव, अहर
  • देवता – सुर, अमर, देव, अजर
  • दुर्गा – भवानी, देवी, कालिका, अंबा, चंडिका
  • दुख – पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना
  • धनुष – धनु, कोदंड, चाप, कमान, शरासन, पिनाक, कार्मुक
  • धन – द्रव्य, अर्थ, वित्त, संपत्ति, लक्ष्मी
  • नदी – सरिता, तरंगिणी, सरित, नद, तटिनी
  • दंत – दाँत, दशन, रद, द्विज, दंश
  • नमस्कार – नमः, प्रणाम, अभिवादन, नमस्ते
  • नरक – दुर्गति, संघात, यमपुर, यमलोक, यमालय
  • पर्वत – गिरी, पहाड़, शैल, नग, अचल, महीधर
  • पुत्र – सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय
  • पुत्री – सुता, बेटी, लड़की, नंदिनी, तनया
  • नारी – स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना
  • नागर – नगरी, पत्तन, पुर, पुरी
  • निशा – यामिनी, रात, रात्रि, रजनी, शर्वरी
  • निर्मल – शुद्ध, स्वच्छ, विमल, पवित्र
  • नौका – नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी
  • पंडित – विद्वान, प्राज्ञ, बुद्धिमान, धीमान, धीर, सुधी
  • पवन – हवा, वायु, समीर, बयार, मारूत, अनिल
  • पक्षी – खग, नभचर, विहग, पंछी, विहंग, पतंग
  • पत्नी – वधु, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, भार्या
  • पति – स्वामी, नाथ, वर, कांत, प्राणनाथ, आर्य, ईश
  • पत्ता – पात, दल, पत्र, पल्लव
  • पराग – पुष्पराज, कुसुमरज, पुष्पधूलि
  • पत्थर – पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला
  • पुष्प – कुसुम, सुमन, फूल, मंजरी, प्रसून
  • पृथ्वी – भू, भूमि, धरणी, धरती, वसुधा, धरा
  • भयानक – डरावना, भयजनक, विकट, गंभीर
  • भिक्षा – भीख, याचना, माँगना, खैरात
  • प्रकाश – उजाला, ज्योति, प्रभा, विभा, आलोक
  • प्रतीक – चिहन, प्रतिमा, निशान, प्रतिभूति
  • बाग – बगीचा, वाटिका, उपवन, उद्यान, आराम
  • बिजली – विद्युत, तड़ित, दामिनी, चंचला, चपला
  • बंदर – कपि, वानर, शाखामृग, हरि
  • मदिरा – शराब, सुरा, मद्य, वारुणी
  • मित्र – सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त
  • माता – जननी, माँ, मात, मैया, अंबा
  • मुख – मुँह, मुखड़ा, आनन, वदन
  • भूख – क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा
  • मछली – अंडज, मीन, मत्स्य, शफरी
  • मृत्यु – निधन, देहांत, अंत, मौत
  • मनुष्य – मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष
  • मेघ – जलद, बादल, नीरद, घन, वारिद
  • मोर – मयूर, शिखी, शिखंडी, कलापी
  • मूर्ख – अज, अबोध, गंवार, मूढ़
  • मल्लाह – नाविक, माँझी, खेवट, कर्णधार, केवट
  • यत्न – उद्यम, प्रयास, उद्योग, प्रयत्त, पुरुषार्थ
  • लक्ष्मी – इंदिरा, कमला, रमा, हरिप्रिया, श्री
  • वन – विपिन, जंगल, कानन, अटवी, अरण्य
  • यौवन – जवानी, युवावस्था, जीवन, शिरोमणि, तरुणाई
  • युवक – जवान, युवा, तरुण
  • युद्ध – समर, लड़ाई, रण, संग्राम
  • राजा – नृप, भूपति, भूप, नरेश, सम्राट, नरेंद्र, नरपति
  • रण – संग्राम, सम, युद्ध, लड़ाई
  • शत्रु – रिपु, दुश्मन, विपक्षी, अरि, वैरी
  • शरीर – देह, काया, कलेवर, तन, वपु, अंग, गात
  • शिव – शंकर, महादेव, रुद्र, भूतनाथ, नीलकंठ, पिनाकी
  • वृक्ष – तरु, पादप, विटप, द्रुम
  • वर्ष – अब्द, साल, बरस, संवत्
  • शोभा – छवि, दीप्ति, कांति, सुषमा, आभा, छटा
  • समुद्र – सागर, उदधि, रत्नाकर, जलधि, सिंधु
  • सरस्वती – शारदा, भारती, गिरा, वाणी
  • सेना – सैन्य, दल, कटक, वाहिनी
  • सिंह – शेर, केसरी, मृंगंद्र, वनराज, मृगराज
  • स्वर्ण – कंचन, कनक, कुंदन, सोना
  • हाथ – कर, पाणि, हस्त
  • हिरन – कुरंग, मृग, सारंग, कृष्णसार
  • सूर्य – रवि, प्रभाकर, भास्कर, दिवाकर, आदित्य, सविता, दिनकर
  • सर्प – भुजंग, नाग, विषधर, व्याल
  • संसार – दुनिया, जगत्, विश्व, जग, भवन, लोक
  • संतान – संतति, अपत्य, प्रजा, प्रसूति, औलाद
  • हंस – मराल, कलहंस, मानसौकस
  • हनुमान – महावीर, पवनसुत, मारूत, कपीश, बजरंगबली, आंजनेय
  • हाथी – गज, कुंजर, गयंद, हस्ती, मतंग, करी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

विलोम शब्द

किसी शब्द के उलटे अर्थ को व्यक्त करने वाले शब्द को विलोम शब्द कहते है। भाषा में भावों-विचारों की स्पष्टता के लिए विलोम शब्द महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शब्द – विलोम

  • अंतरंग – बहिरंग
  • अक्षत – विक्षत
  • अस्तित्व – अनस्तित्व
  • अवर – प्रवर
  • अति – अल्प
  • अर्थ – अनर्थ
  • अथ – इति
  • अंत – आरंभ
  • अंधकार – प्रकाश
  • आमिष – निरामिष
  • हिंसा – अहिंसा
  • इच्छा – अनिच्छा
  • ईश – अनीश
  • उद्यम – आलस्य
  • उचित – अनुचित
  • उपेक्षा – अपेक्षा
  • उत्कर्ष – अपकर्ष
  • अल्पज्ञ – सर्वज्ञ
  • आज्ञा – अवज्ञा
  • आदि – अंत
  • आस्तिक – नास्तिक
  • आय – व्यय
  • आदर – निरादर
  • आयात – निर्यात
  • आरोह – अवरोह
  • आगत – अनागत
  • आर्य – अनार्य
  • आंतरिक – बाह्य
  • अन्याय – न्याय
  • अनुज – अग्रज
  • अनुराग – विराग
  • अभिमान – नम्रता
  • अज्ञ – प्राज्ञ
  • उपकार – अपकार
  • अवनति – उन्नति
  • अनुकूल – प्रतिकूल
  • अपेक्षा – उपेक्षा
  • अनिवार्य – ऐच्छिक
  • अमृत – विष
  • उन्नति – अवनति
  • उन्नयन – पलायन
  • आना – जाना
  • उर्वरा – ऊसर
  • आस्था – अनास्था
  • उतार – चढ़ाव
  • उत्थान – पतन
  • उदार – कृपण
  • आकाश – पाताल
  • कुरूप – सुरूप
  • खल – सज्जन
  • खरा – खोटा
  • गुण – अवगुण
  • लौकिक – अलौकिक
  • लोक – परलोक
  • लेन – देन
  • प्राचीन – नवीन
  • वादी – प्रतिवादी
  • आरंभ – अंत
  • आदान – प्रदान
  • उत्कृष्ट – निकृष्ट
  • उत्तीर्ण – अनुत्तीर्ण
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • उत्तर – प्रश्न
  • उत्तम – अधम
  • उपयुक्त – अनुपयुक्त
  • एक – अनेक
  • आलस्य – स्फूर्ति
  • आचार – अनाचार
  • आशा – निराशा
  • एकता – अनेकता
  • ऐच्छिक – आवश्यक
  • कृतज्ञ – कृतघ्न
  • क्रय – विक्रय
  • कायर – साहसी
  • धर्म – अधर्म
  • ज्येष्ठ – कनिष्ठ
  • जल – स्थल
  • उदय – अस्त
  • कीर्ति – अपकीर्ति
  • कोमल – कठोर
  • जीवित – मृत
  • जन्म – मृत्यु
  • जय – पराजय
  • जीत – हार
  • ऊपर – नीचे
  • कर्कश – मधुर
  • कनिष्ठ – ज्येष्ठ
  • कुमति – सुमति
  • कठिन – सरल
  • कपटी – निष्कपट
  • सम – विषम
  • चतुर – मूर्ख
  • काला – सफ़ेद
  • कृत्रिम – स्वाभाविक
  • उष्ण – शीत
  • गुप्त – प्रकट
  • ऋण – उत्रण
  • घटिया – बढ़िया
  • ठौर – कुठौर
  • चर – अचर
  • चेतन – जड़
  • चल – अचल
  • चंचल – स्थिर
  • उधार – नकद
  • उजाला – अँधेरा
  • उपयोगी – अनुपयोगी
  • उत्पत्ति – विनाश
  • दु:शील – सुशील
  • दुर्बल – बलवान
  • दोष – गुण
  • दायाँ – बायाँ
  • शिक्षित – अशिक्षित
  • शकुन – अपशकुन
  • वीर – कायर
  • शयन – जागरण
  • नया – पुराना
  • बुढ़ापा – यौवन
  • जटिल – सरल
  • झूठ – सच
  • दुर्जन – सज्जन
  • डर – निडर
  • डरपोक – निर्भीक
  • निकट – दूर
  • तृष्णा – संतोष
  • त्यागी – स्वार्थी
  • दानी – कृपण
  • दिन – रात
  • दयालु – निर्दयी
  • दुर्गंध – सुगंध
  • देश – विदेश
  • देव – दानव
  • धीर – अधीर
  • धनवान – निर्धन
  • स्वर्ग – नरक
  • सुरूप – कुरूप
  • सामान्य – विशेष
  • भला – बुरा
  • भारी – हलका
  • नेकी – बदी
  • विधवा – सधवा
  • विरोध – समर्थन
  • विरोधी – समर्थक
  • शांत – अशांत
  • नश्वर – अनश्वर
  • गहरा – छिछला
  • नास्तिक – आस्तिक
  • नत – उन्नत
  • नूतन – पुरातन
  • निद्रा – जागरण
  • निर्गुण – सगुण
  • रात्रि – प्रातः
  • स्वदेश – विदेश
  • स्तुति – निंदा
  • शीत – उष्ण
  • निर्यात – आयात
  • निश्चय – अनिश्चय
  • निंदा – स्तुति
  • सुख – दु:ख
  • साकार – निराकार
  • सामान्य – असामान्य
  • सदुपयोग – दुरुपयोग
  • निंदनीय – प्रशंसनीय
  • निगलना – उगलना
  • पाप – पुण्य
  • प्रत्यक्ष – परोक्ष
  • पंडित – मूर्ख
  • पराधीन – स्वाधीन
  • शुष्क – आर्द्र
  • शाप – वरदान
  • सुगंध – दुर्गध
  • सार्थक – निर्थक
  • सरल – जटिल
  • सुगम – दुर्गम
  • सकाम – निष्काम
  • स्वार्थ – परमार्थ
  • सभ्य – असभ्य
  • योगी – भोगी
  • विक्रय – क्रय
  • विद्वान – मूर्ख
  • शुद्ध – अशुद्ध
  • शुभ – अशुभ
  • शांति – अशांति
  • परतंत्र – स्वतंत्र
  • पूर्व – पश्चिम
  • पूर्ण – अपूर्ण
  • पवित्र – अपवित्र
  • सबल – निर्बल
  • प्रीति – वैर
  • परिश्रम – आलस्य
  • पक्षपात – निष्पक्ष
  • प्रसन्न – अप्रसन्न
  • पक्ष – विपक्ष
  • प्रश्न – उत्तर
  • पुरस्कार – तिरस्कार
  • बुराई – भलाई
  • बाहर – अंदर
  • सदाचार – दुराचार
  • विजय – पराजय
  • वृष्टि – अनावृष्टि
  • सुपुत्र – कुपुत्र
  • सुबोध – दुर्बोध
  • भयभीत – निर्भय
  • रुग्ण – स्वस्थ
  • स्थूल – सूक्ष्म
  • रक्षक – भक्षक
  • हर्ष – विषाद
  • प्रीति – दोष
  • सौम्य – भीषण
  • सुयोग – कुयोग
  • मधुर – कटु
  • मान – अपमान
  • राग – दूवेष
  • लघुता – गुरुता
  • लाभ – हानि
  • हार – जीत
  • स्वाधीन – पराधीन
  • स्थिर – चंचल
  • सधवा – विधवा
  • सरस – नीरस
  • सौभाग्य – दुर्भाग्य
  • योग्य – अयोग्य
  • राजा – रंक
  • मित्र – शत्रु
  • मानव – दानव
  • मृदु – कठोर
  • मूक – वाचाल
  • संधि – विग्रह
  • मलिन – निर्मल
  • मिथ्या – सत्य
  • मुख्य – गौण
  • यश – अपयश
  • सफल – असफल
  • संयोग – वियोग
  • सुलभ – दुर्लभ
  • ज्ञान – अज्ञान
  • ज्ञानी – मूर्ख
  • क्षमा – दंड
  • क्षय – अक्षय
  • संकल्प – विकल्प
  • सुर – असुर
  • सुरक्षित – असुरक्षित
  • आत्मीय – अनात्मीय

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल 

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन।
उत्तर:
(C) जलयोजन।

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है
(A) 2-20 मीटर
(B) 20-200 मीटर
(C) 200–2,000 मीटर
(D) 2,000-20,000 मीटर।
उत्तर:
(C) 200-2,000 मीटर।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सी उच्चावच महासागरों में मिलने वाली लघु आकृति नहीं है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप।
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर।

4. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिन्द महासागर
(B) अन्ध महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशान्त महासागर।
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर।

5. लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम।
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दोप्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह अथवा नीला ग्रह कहा जाता है, क्योंकि इसके धरातल पर जल का बाहुल्य है। पृथ्वी के धरातल का 71 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है। उत्तरी गोलार्द्ध के कुल क्षेत्रफल के 60.7 प्रतिशत भाग पर और दक्षिणी गोलार्द्ध के 80.9 प्रतिशत भाग पर जल है। यदि हम पृथ्वी के केवल जलीय धरातल को ध्यान में रखें तो इसका 43 प्रतिशत उत्तरी गोलार्द्ध में तथा 57 प्रतिशत दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमान्त क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय शेल्फ को महाद्वीपीय सीमान्त कहते हैं जहां महाद्वीप समाप्त होते हैं तथा महासागर आरम्भ होते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइए।
उत्तर:
संसार में सबसे गहरा गर्त कैरियाना गर्त (प्रशान्त महासागर) है। जो 11022 मीटर गहरा है। अन्ध महासागर में प्यरटो रिको गर्त तथा हिन्द महासागर में सण्डा गर्त है। प्रशान्त महासागर में क्यूराईल गर्त, बोनिन गर्त, जापान गर्त, अटाकामा गर्त तथा मिण्डानो गर्त प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
ताप प्रवणता क्या है?
उत्तर:
महासागरों में वह सीमा क्षेत्र जहां तापमान में तीव्र गिरावट आती है ताप प्रवणता कहलाता है।

प्रश्न 5.
जल चक्र की व्याख्या करो।
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, 169 जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र से मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहाँ से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है: वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 6.
समुद्र से नीचे जाने पर आप ताप की किन पर्तों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान में कमी आती है। महासागर के सतहीय एवं गहरी परतों वाले जल के बीच विभाजक क्षेत्र है। यह विभाजक रेखा समुद्री तल से करीब 100 से 400 मीटर नीचे प्रारम्भ होती है एवं कई सौ मीटर नीचे तक विस्तृत (थर्मोक्लाइन) होती है। विभाजक रेखा के इस क्षेत्र में जहां तापमान में तीव्र कमी आती है, उसे ताप प्रवणता कहा जाता है। जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। मध्य एवं निम्न अक्षांशों के महासागरों के तापमान की बनावट को सतह से तल की स्थित तीन स्तरीय प्रणाली के द्वारा समझाया जा सकता है।

  1. पहली परत यह गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है एवं इसका तापमान 20 डिग्री से० से 25 डिग्री से० के बीच होता है तथा इसकी मोटाई लगभग 500 मीटर होती है। कटिबन्धीय क्षेत्रों में यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, परन्तु मध्य अक्षांशों में केवल गर्मी में विकसित होती है।
  2. दूसरी परत को ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) परत कहा जाता है, जो कि पहली परत के नीचे उपस्थित होती है एवं गहराई के बढ़ने के साथ इसके तापमान में तीव्र गिरावट आती है। थर्मोक्लाइन की मोटाई 500 से 1,000 मीटर तक होती है।
  3. तीसरी परत बहुत अधिक ठण्डी होती है तथा गहरे समुद्री तल तक विस्तृत होती है। आर्कटिक एवं अटार्कटिक वृत्तों में, ऊपरी सतह के जल का तापमान लगभग 0 डिग्री से० होता है, इसीलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। यहां ठण्डे पानी की एक ही परत उपस्थित होती है जो कि ऊपरी सतह से लेकर महासागर के गहरे तल तक विस्तृत होती है।

प्रश्न 7.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
समुद्र जल में पाए जाने वाले समस्त लवणों का योग समुद्र की लवणता कहलाता है। महासागरीय लवणता उस अनुपात को कहते हैं जो घुले हुए लवणों की मात्रा तथा समुद्र जल की मात्रा में होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्त्व किस प्रकार अन्तर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र में मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहां से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है : वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
सागरीय जल ताप का एक उत्तम संचालक है। इसी कारण जल, स्थल की अपेक्षा देर से गर्म होता है तथा देर से ठण्डा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक समान नहीं होता। सागरीय जल के तापमान का वितरण निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करता है
1. भूमध्य रेखा से दूरी:
सागरीय जल की ऊपरी सतह का तापमान अक्षांश के साथ हटता रहता है। भूमध्य रेखा पर यह तापमान 26°C के लगभग रहता है। 40° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 14°C पाया जाता है तथा 60° अक्षांश पर 1°C। शून्य डिग्री सेल्सियस समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के गिर्द वृत्त बनाती है।

2. प्रचलित पवनें:
स्थायी पवनें समुद्र जल की ऊपरी परत को हटाती रहती हैं तथा नीचे से ठण्डा जल आ जाता है। इस उत्स्रवण (Up welling of water) की क्रिया से तापमान कम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र से स्थल की
ओर आने वाली पवनें गर्म जल इकट्ठा करके तापमान को बढ़ा देती हैं।

3. महासागरीय धाराएं:
महासागरीय धाराएं तापमान में समानता लाने का प्रयत्न करती हैं। गर्म धाराएं ठण्डे प्रदेशों में तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण गल्फस्ट्रीम के कारण ही पश्चिमी यूरोप में तापमान 5°C से अधिक रहता है। इसके विपरीत ठण्डी धाराएं तापमान को ओर भी कम कर देती हैं, ठण्डी लेब्रेडोर धारा के कारण न्यूफाऊण्डलैण्ड के निकट तापमान 2°C से कम होता है।

4. लवण मे भिन्नता:
अधिक लवण वाले जल का तापमान ऊंचा होता है क्योंकि वह अधिक गर्मी ग्रहण कर सकता है।

5. स्थल खण्डों की स्थिति:
उष्ण कटिबन्ध में स्थल के घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है परन्तु शीत कटिबन्ध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई:
समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान कम होता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15°C से घटकर 2°C रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से घटकर 1.6°C रह जाता है।

7. अंतः समुद्री रोधिकाएं (Submarine Ridges):
कम गहरे भागों में पानी के नीचे रोधिकाएं तापमान में अन्तर डालती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

महासागरीय जल  JAC Class 11 Geography Notes

→ जल तथा स्थल वितरण (Distribution of Land and Water): पृथ्वी के धरातल का तीन चौथाई। भाग (70.8%) जल से ढका हुआ है। जबकि एक चौथाई भाग (29.2%) स्थल से घिरा है।

→ प्रमुख महासागर (Oceans): प्रशान्त महासागर, अन्ध महासागर, हिन्द महासागर तथा आर्कटिक महासागर प्रमुख महासागर हैं। प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा महासागर है।

→ सागरीय धरातल (Ocean floor): सागरीय धरातल को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  • महाद्वीपीय मग्न तट
  • महाद्वीपीय ढाल
  • महासागरीय मैदान
  • महासागरीय गर्त।

→ महाद्वीपीय मग्न तट (Continental shelf):यह महाद्वीपों के चारों ओर कम गहरा तथा मंद ढलान वाला जलमग्न भाग है। इसकी रचना नदियों, लहरों द्वारा तलछट के निक्षेप से या समुद्र तल के ऊपर उठने से या  स्थल भाग के नीचे धंसने से होती है। (600 मीटर गहराई)

→ महाद्वीपीय ढाल (Continental slope): यह महाद्वीपीय मग्न तट से नीचे की ओर तीव्र ढलान है। इसकी गहराई 3660 मीटर तक है।

→ महासागरीय मैदान (Deep Sea plain): समुद्र में चौड़े तथा समतल क्षेत्र को महासागरीय मैदान कहते हैं। जो 3000 से 6000 मीटर गहरा है।

→ महासागरीय गर्त (Ocean deep): महासागरों में सबसे गहरा स्थान मैरियाना गर्त (11033 मीटर) है। महासागरों में ‘V’ आकार की घाटियां (समुद्री कैनियन) पाई जाती हैं।