Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. भारतीय संविधान में निम्न में से कौनसा मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया गया है।
(क) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(ख) स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार
(ग) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(घ) स्वतन्त्रता का अधिकार।
2. 1928 में किस समिति ने भारत में अधिकारों के घोषणा-पत्र की माँग उठायी थी।
(क) साइमन कमीशन ने
(ख) कैबिनेट मिशन ने
(ग) मोतीलाल नेहरू समिति ने
(घ) वांचू समिति ने।
3. निम्नलिखित में कौनसा कथन असत्य है?
(क) मौलिक अधिकारों की गारण्टी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है।
(ख) मौलिक अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है।
(ग) मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं।
(घ) सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है।
4. संविधान का कौनसा अनुच्छेद साफ-साफ यह कहता है कि राज्य के अधीन सेवाओं में पिछड़े हुए नागरिकों को नियुक्तियों या पदों के आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं मानता।
(क) अनुच्छेद 16 (4)
(ख) अनुच्छेद 21
(ग) अनुच्छेद 19
(घ) अनुच्छेद 14
5. निम्नलिखित में किस प्रावधान से धर्मनिरपेक्षता के जीवन को बल नहीं मिलता है।
(क) भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है।
(ख) सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के सम्बन्ध में सरकार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी।
(ग) शासकों से अलग धर्म को मानने वाले लोगों को शासकों द्वारा मान्य धर्म को ही स्वीकार करने के लिए विवश करना।
(घ) राज्य द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं में न तो किसी धर्म का प्रचार किया जायेगा और न ही कोई धार्मिक शिक्षा दी जायेगी।
6. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाने और उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा का साधन है।
(क) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(ग) समानता का अधिकार
(ख) स्वतन्त्रता का अधिकार
(घ) शोषण के विरुद्ध अधिकार।
7. जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें उसे ऐसा करने से रोकने के लिए जो आदेश जारी करती है, उसे कहते हैं।
(क) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(ग) निषेध आदेश
(ख) परमादेश
(घ) अधिकार पृच्छा।
8. किस आदेश के द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है।
(क) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(ग) परमादेश
(ख) उत्प्रेषण लेख
(घ) अधिकार पृच्छा।
9. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के पीछे वह कौनसी शक्ति है जो सरकार को यह बाध्य करेगी कि वह नीति। निर्देशक तत्त्वों को गम्भीरता से ले।
(क) संवैधानिक शक्ति
(ख) कानूनी शक्ति
(ग) नैतिक शक्ति
(घ) धार्मिक शक्ति।
10. निम्नलिखित में से कौनसा कथन असत्य है।
(क) भारतीय संविधान नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है।
(ख) संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।
(ग) नागरिकों के मौलिक अधिकार वाद – योग्य हैं।
(घ) राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व वाद – योग्य हैं।
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. दक्षिण अफ्रीका का संविधान दिसंबर ………………….. में लागू हुआ।
उत्तर:
1996
2. अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को ………………. में सूचीबद्ध कर दिया जाता है।
उत्तर:
संविधान
3. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान 1928 में ही …………………… समिति ने अधिकारों के एक घोषणापत्र की माँग उठायी थी।
उत्तर:
मोतीलाल नेहरू
4. डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का ………………. और ……………….. की संज्ञा दी।
उत्तर:
हृदय, आत्मा
5. संविधान में नीति निर्देशक तत्त्वों को …………………… के माध्यम से लागू करवाने की व्यवस्था नहीं की गई है।
उत्तर:
न्यायालय।
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये
1. मौलिक अधिकारों की गारंटी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है।
उत्तर:
सत्य
2. संसद कानून बनाकर मौलिक अधिकारों को परिवर्तित कर सकती है।
उत्तर:
असत्य
3. सरकार का कोई भी अंग मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता।
उत्तर:
सत्य
4. सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर औचित्यपूर्ण प्रतिबंध लगा सकती है।
उत्तर:
सत्य
5. बंदी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा निचली अदालत द्वारा अधिकार क्षेत्र से अतिक्रमण करने से उच्च अदालतें रोकती हैं।
उत्तर:
असत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये
1. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार |
(अ) नीति निर्देशक तत्त्व |
2. काम का अधिकार |
(ब) कानूनी अधिकार |
3. सम्पत्ति का अधिकार |
(स) 42वां संविधान संशोधन |
4. संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों मुकदमे का निर्णयकी सूची का समावेश |
(द) केशवनानंद भारती का निर्णय |
5. संविधान के ‘मूल ढांचे’ की अवधारणा अतिलघूत्तरात्मक |
(य) मूल अधिकार |
उत्तर:
1. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार |
(य) मूल अधिकार |
2. काम का अधिकार |
(अ) नीति निर्देशक तत्त्व |
3. सम्पत्ति का अधिकार |
(ब) कानूनी अधिकार |
4. संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों मुकदमे का निर्णयकी सूची का समावेश |
(स) 42वां संविधान संशोधन |
5. संविधान के ‘मूल ढांचे’ की अवधारणा अतिलघूत्तरात्मक |
(द) केशवनानंद भारती का निर्णय |
प्रश्न 1.
अधिकारों के घोषणा-पत्र से क्या आशय है?
उत्तर:
संविधान द्वारा प्रदान किये गये और संरक्षित अधिकारों की सूची को अधिकारों का घोषणा-पत्र कहते हैं।
प्रश्न 2.
अधिकारों का घोषणा-पत्र क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर:
अधिकारों का घोषणा-पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध काम करने से रोकता है और उनका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 3.
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किससे संरक्षित करता है?
उत्तर:
संविधान नागरिक के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति, निजी संगठन तथा सरकार के विभिन्न अंगों से संरक्षित करता है।
प्रश्न 4.
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों की संज्ञा किसे दी गई है?
उत्तर:
भारत के संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें सुरक्षा देनी थी । इन्हीं सूचीबद्ध अधिकारों को मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गई है।
प्रश्न 5.
सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने के उत्तरदायित्व को न्यायपालिका किस प्रकार निभाती है?
उत्तर:
विधायिका या कार्यपालिका के किसी कार्य से या किसी निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है।
प्रश्न 6.
क्या मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार हैं?
उत्तर:
नहीं, मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार नहीं हैं। सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध लगा सकती है।
प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता के अधिकार से क्या आशय है?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के अधिकार से आशय है बिना किसी अन्य की स्वतन्त्रता को नुकसान पहुँचाये और बिना कानून व्यवस्था को ठेस पहुँचाये प्रत्येक व्यक्ति अपनी चिन्तन, अभिव्यक्ति एवं कार्य करने की स्वतन्त्रता का आनन्द ले सके।
प्रश्न 8.
निवारक नजरबन्दी किसे कहते है?
उत्तर:
जब किसी व्यक्ति को, इस आशंका पर कि वह कोई गैर-कानूनी कार्य करने वाला है, गिरफ्तार कर वर्णित प्रक्रिया का पालन किये बिना कुछ समय के लिए जेल भेज दिया जाता है तो इसे निवारक नजरबन्दी कहते हैं।
प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबन्दी सरकार का किनसे निपटने का एक हथियार है?
उत्तर:
प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबन्दी सरकार के हाथ में असामाजिक तत्त्वों और राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों से निपटने का एक हथियार है।
प्रश्न 10.
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर किस आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं?
उत्तर:
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कानून व्यवस्था, शान्ति और नैतिकता के आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं।
प्रश्न 11.
धार्मिक स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार पर सरकार किन आधारों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है?
उत्तर:
सरकार लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर धार्मिक स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।
प्रश्न 12.
अल्पसंख्यक किसे कहते हैं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक वह समूह है जिसकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वह अन्य समूह से छोटा होता है।
प्रश्न 13.
संपत्ति के अधिकार को किस अनुच्छेद के अन्तर्गत एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया है?
उत्तर:
संपत्ति के अधिकार को अनुच्छेद 300 (क) के अन्तर्गत एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया है।
प्रश्न 14.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार क्या है?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह साधन है जिसके द्वारा मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सकता है और उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा की जा सकती है।
प्रश्न 15.
मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय कौन – कौनसे आदेश जारी कर सकते हैं?
उत्तर:
मूल अधिकारों की रक्षा के सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय पाँच प्रकार के आदेश जारी कर सकते हैं। ये हैं।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण,
- परमादेश,
- निषेध आदेश,
- अधिकार पृच्छा तथा
- उत्प्रेषण
प्रश्न 16.
भारत में मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय के अतिरिक्त अन्य किन-किन संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है?
उत्तर:
मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अलावा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आदि संरचनाओं का निर्माण किया गया है।
प्रश्न 17.
राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व क्या हैं?
उत्तर:
संविधान निर्माताओं ने देश में सामाजिक और आर्थिक समानता व स्वतन्त्रता की स्थापना के लिए संविधान में सरकार के लिए कुछ नीतिगत निर्देशों का प्रावधान किया है, जो वाद – योग्य नहीं हैं। इन्हीं को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व कहा जाता है।
प्रश्न 18.
नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के प्रयास में कौनसी योजनाएँ क्रियान्वित की गई हैं? किन्हीं दो योजनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
- पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करना।
- रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत काम क सीमित अधिकार प्रदान करना।
प्रश्न 19.
भारत के संविधान में लिखे किसी एक नीति-निर्देशक सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महिला व पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाये।
प्रश्न 20.
शिक्षा के अधिकार से संबंधित संशोधन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
शिक्षा के अधिकार के संशोधन का यह महत्त्व है कि जिन बच्चों को किन्हीं अभावों के कारण शिक्षा नहीं मिल पा रही थी, वह अब मिल पा रही है।
प्रश्न 21.
मौलिक अधिकारों में संशोधन किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों में संशोधन भारतीय संसद के द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 22.
भारतीय संविधान में कौनसे संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकों के कितने मौलिक कर्त्तव्यों का समावेश किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में 42वें संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा नागरिकों के दस मौलिक कर्त्तव्यों का समावेश किया गया है।
प्रश्न 23.
महाराष्ट्र के किस समाज-सुधारक की रचनाओं में इस बात की झलक मिलती है कि अधिकारों में स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही निहित हैं?
उत्तर:
महाराष्ट्र के क्रान्तिकारी समाज-सुधारक ज्योतिबा राव फुले की रचनाओं में हमें इस बात की झलक दिखाई देती है कि अधिकारों में स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही निहित हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“मौलिक अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इसीलिए उन्हें संविधान में सूचीबद्ध किया गया है और उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाये गये हैं। सके वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इसलिए संविधान स्वयं यह सुनिश्चित करता है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर
प्रश्न 2.
मौलिक अधिकार और साधारण अधिकारों में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार और साधारण अधिकारों में अन्तर।
- जहाँ साधारण अधिकारों को सुरक्षा देने और लागू करने के लिए साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है, वहाँ मौलिक अधिकारों की गारण्टी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है।
- सामान्य अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है।
प्रश्न 3.
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किससे संरक्षित करता है?
उत्तर:
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन तथा सरकार के विभिन्न अंगों से संरक्षित करता है। यथा
- किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन से संरक्षण: नागरिक के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन से खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में संविधान व्यक्ति के अधिकारों को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हो।
- सरकार से संरक्षण: सरकार के अंग विधायिका, कार्यपालिका, नौकरशाही अपने कार्यों के सम्पादन में व्यक्ति के अधिकारों का हनन कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करती है।
प्रश्न 4.
भारत में न्यायपालिका सरकार के कार्यों से व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का संरक्षण किस प्रकार करती है?
उत्तर:
भारत में सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है। विधायिका या कार्यपालिका के किसी निर्णय या कार्य से यदि मौलिक अधिकारों का हनन होता है या उन पर अनुचित प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है।
प्रश्न 5.
समता के अधिकार में कौन-कौनसे अधिकार सम्मिलित हैं?
उत्तर:
समता के अधिकार में निम्न अधिकार सम्मिलित हैं।
- कानून के समक्ष समानता
- कानून का समान संरक्षण
- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
- दुकानों, होटलों, कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों आदि में प्रवेश की समानता
- रोजगार में अवसर की समानता
- छूआछूत का अन्त
- उपाधियों का अन्त आदि।
प्रश्न 6.
अवसर की समानता के मौलिक अधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि सरकारी नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर दिये जायेंगे। कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्म-स्थान या निवास-स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जायेगा। अनुच्छेद 16 के दो अपवाद हैं।
- कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी शर्तें आवश्यक मानी जा सकती हैं।
- सरकार बच्चों, महिलाओं तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित कर सकती है।
आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि संविधान की भावना के अनुसार ‘अवसर की समानता’ के अधिकार को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है।
प्रश्न 7.
न्यायालय में निष्पक्ष मुकदमे के लिए संविधान अभियुक्त के किन अधिकारों की व्यवस्था करता है?
उत्तर:
आरोपी या अभियुक्त के अधिकार; न्यायालय में निष्पक्ष मुकदमे के लिए संविधान आरोपी के तीन अधिकारों की व्यवस्था करता है।
- किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से ज्यादा सजा नहीं मिलेगी।
- कोई भी कानून किसी भी ऐसे कार्य को जो उक्त कानून के लागू होने के पहले किया गया हो अपराध घोषित नहीं कर सकता।
- किसी भी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए नहीं कहा जा सकेगा।
प्रश्न 8.
धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को लोकतन्त्र का प्रतीक क्यों माना जाता है?
उत्तर:
धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को लोकतन्त्र का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इतिहास गवाह है कि दुनिया के अनेक देशों के शासकों और राजाओं ने अपने-अपने देश की जनता को धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार नहीं दिया । शासकों से अलग धर्म मानने वाले लोगों को या तो मार डाला गया या विवश किया गया कि वे शासकों द्वारा मान्य धर्म को स्वीकार कर लें। अतः लोकतन्त्र में अपनी इच्छा के अनुसार धर्म – पालन की स्वतन्त्रता को हमेशा एक बुनियादी सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया गया है।
प्रश्न 9.
नागरिक के दो धार्मिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- धार्मिक विश्वास का अधिकार: भारत में प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने और उसका पालन करने का अधिकार है। धार्मिक स्वतन्त्रता में अन्तःकरण की स्वतन्त्रता भी समाहित है।
- धार्मिक प्रचार का अधिकार: प्रत्येक धर्म के मानने वालों को अपने धर्म का प्रचार करने का समान अधिकार है।
प्रश्न 10.
धार्मिक स्वतन्त्रता पर सरकार किन-किन आधारों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है?
उत्तर:
धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है। इस पर कुछ प्रतिबन्ध भी हैं।
- लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर सरकार धार्मिक स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।
- कुछ सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है, जैसेसती-प्रथा और मानव-बलि जैसी कप्रथाओं पर सरकार ने प्रतिबन्ध के लिए अनेक कदम उठाये हैं।
प्रश्न 11.
“नीति-निर्देशक तत्त्व वाद – योग्य नहीं हैं।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“नीति-निर्देशक तत्त्व वाद-योग्य नहीं हैं।” इस कथन का आशय यह है कि संविधान में नीति-निर्देशक तत्त्वों का समावेश तो किया गया है लेकिन उन्हें न्यायालय के माध्यम से लागू करवाने की व्यवस्था नहीं की गई है। यदि सरकार किसी निर्देश को लागू नहीं करती तो हम न्यायालय में जाकर यह माँग नहीं कर सकते कि उसे लागू करने के लिए न्यायालय सरकार को आदेश दे।
प्रश्न 12.
नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू किये जाने के सम्बन्ध में संविधान निर्माताओं की क्या मान्यता थी?
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू किये जाने के सम्बन्ध में संविधान निर्माताओं की मान्यता थी कि।
- इन निर्देशक तत्त्वों के पीछे जो नैतिक शक्ति है, वह सरकार को बाध्य करेगी कि सरकार इन्हें गम्भीरता से ले।
- जनता इन निर्देशक तत्त्वों को लागू करने की जिम्मेदारी भावी सरकारों पर डालेगी।
प्रश्न 13.
नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में प्रमुख बातें क्या हैं?
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में तीन बातें प्रमुख हैं।
- वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
- वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।
- वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करनी चाहिए।
प्रश्न 14.
क्या संविधान में मौलिक कर्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर पड़ा है?
उत्तर:
संविधान मौलिक कर्त्तव्यों के अनुपालन के आधार पर या उनकी शर्त पर हमें मौलिक अधिकार नहीं देता । इस दृष्टि से संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।
प्रश्न 15.
नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्वों के प्रमुख उद्देश्य ये हैं।
- लोगों का कल्याण तथा आर्थिक-सामाजिक न्याय की स्थापना।
- लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाना तथा संसाधनों का समान वितरण करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देना।
प्रश्न 16.
अल्पसंख्यक किसे कहा गया है? भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के किन्हीं दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अल्पसंख्यक से आशय अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वह किसी अन्य समूह से छोटा है। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकार
- अल्पसंख्यक समूहों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रखने और उसे विकसित करने का अधिकार है।
- भाषायी या धार्मिक अल्पसंख्यक अपने शिक्षण संस्थान खोल सकते हैं। ऐसा करके वे अपनी संस्कृति को सुरक्षित और विकसित कर सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं को वित्तीय अनुदान देने के मामले में सरकार इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि उस शिक्षण संस्थान का प्रबन्ध किसी अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ में है।
प्रश्न 17.
नीति-निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकारों में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध – मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्व एक-दूसरे के पूरक हैं। यथा।
- जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
- मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, वहाँ नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं।
- कभी-कभी सरकार जब नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा भी सकते हैं।
- मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त व संरक्षित किये गये हैं, जबकि नीति-निर्देशक तत्त्व वे अधिकार हैं जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।
प्रश्न 18.
नीति-निर्देशक तत्त्वों में ऐसे कौनसे अधिकार दिये गये हैं जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में निम्नलिखित अधिकार दिये गये हैं जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता।
- पर्याप्त जीवन-यापन का अधिकार।
- महिलाओं और पुरुषों को समान काम के लिए समान मजदूरी का अधिकार।
- आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार।
- काम का अधिकार।
- बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
प्रश्न 19.
भारत में नीति-निर्देशक तत्त्वों के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकराने का मूल कारण क्या रहा तथा इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
भारत में मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच टकराहट का एक महत्त्वपूर्ण कारण- सम्पत्ति का मूल अधिकार रहा। यह समस्या तब पैदा हुई जब सरकार ने जमींदारी उन्मूलन कानून बनाने का फैसला किया। इसका विरोध इस आधार पर किया गया कि उससे सम्पत्ति के मूल अधिकार का हनन होता है। लेकिन यह सोचकर कि सामाजिक आवश्यकताएँ वैयक्तिक हित के ऊपर हैं, सरकार ने नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए संविधान का संशोधन किया। इससे एक लम्बी कानूनी लड़ाई शुरू हुई। कार्यपालिका और न्यायपालिका ने इस पर परस्पर विरोधी दृष्टिकोण अपनाया। यथा
- कार्यपालिका की मान्यता थी कि नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं क्योंकि लोक-कल्याण के मार्ग में अधिकार बाधक हैं।
- न्यायपालिका की यह मान्यता थी कि मौलिक अधिकार इतने महत्त्वपूर्ण और पावन हैं कि नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए उन्हें प्रतिबन्धित नहीं किया जा सकता।
इसने एक और विवाद को जन्म दिया कि संसद संविधान के किस अंश या प्रावधान में संशोधन कर सकती है और किसमें नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द भारती वाद में इस प्रश्न का निपटारा यह निर्णय करके दिया कि संसद संविधान के ‘मूल ढाँचे’ में कोई संशोधन नहीं कर सकती तथा सम्पत्ति का अधिकार संसद के मूल ढाँचे का तत्त्व नहीं है। अतः संसद इसमें संशोधन कर सकती है। परिणामतः 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा संसद ने सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया।
प्रश्न 20.
नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों का संविधान में कब समावेश किया गया? ये कर्त्तव्य कितने हैं? चार प्रमुख कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य वर्ष 1976 में संविधान का 42वाँ संशोधन किया गया जिसमें अन्य प्रावधानों के साथ-साथ संविधान में नागरिकों के दस कर्त्तव्यों की एक सूची का समावेश किया गया। लेकिन इन्हें लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है। प्रमुख कर्त्तव्य – नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों की सूची में चार प्रमुख कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं।
- नागरिक के रूप में हमें अपने संविधान का पालन करना चाहिए।
- सभी नागरिकों को देश की रक्षा करनी चाहिए।
- सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए।
- सभी नागरिकों को पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
प्रश्न 21.
भारतीय संविधान में वर्णित शोषण के विरुद्ध अधिकार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार शोषण के विरुद्ध अधिकार का उद्देश्य है। समाज के निर्बल वर्ग को शक्तिशाली वर्ग के शोषण से बचना। इसमें निम्न प्रावधान हैं।
- मानव के क्रय-विक्रय तथा शोषण पर प्रतिबन्ध संविधान के अनुच्छेद 23 में दास के रूप में मानव के क्रय-विक्रय तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार लेना गैर-कानूनी घोषित किया गया है। शोषण से मनाही के बावजूद देश में अभी भी बंधुआ मजदूरी के रूप में आज भी शोषण किया जा रहा है। अब इसे अपराध घोषित कर दिया गया है और यह कानूनी दण्डनीय अपराध है।
- कारखानों आदि में बच्चों को काम करने की मनाही – संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी कारखाने, खदान या अन्य किसी खतरनाक काम में नियोजित नहीं किया जायेगा। बाल-श्रम को अवैध बनाकर और शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाकर ‘शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार’ को और अर्थपूर्ण बनाया गया है।
प्रश्न 22.
शिक्षा और संस्कृति से सम्बन्धित कौनसे अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किये गये हैं?
उत्तर:
संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 तथा 30 में इन अधिकारों का वर्णन है। इन अधिकारों को संविधान में स्थान देकर अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी स्पष्ट किया गया है। यथा
- भारत के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
- धर्म, वंश, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर किसी भी नागरिक को किसी राजकीय संस्था या राजकीय सहायता प्राप्त संस्था में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
- अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार स्कूल, कॉलेज खोलने का अधिकार होगा। इस प्रकार की संस्थाओं को अनुदान देने में राज्य कोई भेदभाव नहीं करेगा।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में दिये गए स्वतन्त्रता के अधिकार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता का अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक नागरिकों को प्रदत्त स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन किया गया है। यथा (अ) नागरिक स्वतन्त्रताएँ ( अनुच्छेद 19 ) – 44वें संविधान संशोधन के पश्चात् अनुच्छेद 19 में भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित छः स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं।
1. भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता: नागरिकों को भाषण, लेख, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। समाचार-पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी। परन्तु राज्य देश की अखण्डता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान तथा विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।
2. शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को शान्तिपूर्वक एकत्र होने की स्वतन्त्रता है। लेकिन सुरक्षा और शान्ति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी राज्य द्वारा उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
3. संगठित होने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है परन्तु उसका उद्देश्य सुरक्षा व शान्ति को खतरा पहुँचाना न हो।
4. भ्रमण की स्वतन्त्रता: नागरिकों को देश की सीमाओं के भीतर कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता है परन्तु सार्वजनिक हित तथा जनजातियों की रक्षा के लिए सरकार इस स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।
5. देश के किसी भी भाग में बसने और रहने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को देश के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतन्त्रता है परन्तु सार्वजनिक हित और जनजातियों की रक्षा के लिए इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
6. कोई भी पेशा चुनने तथा व्यापार करने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता दी गई है लेकिन सार्वजनिक हित में इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। दूसरे, किसी भी व्यवसाय के लिए कुछ व्यावसायिक योग्यताएँ निर्धारित की जा सकती हैं। तीसरे, राज्य को स्वयं या किसी सरकारी कम्पनी द्वारा किसी भी व्यापार या धन्धे को अपने हाथों में ले लेने का अधिकार है।
(ब) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता: अनुच्छेद 20-21 में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। जब तक न्यायालय किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराता तब तक उसे दोषी नहीं माना जा सकता । यह भी जरूरी है कि किसी अपराध के आरोपी को स्वयं को बचाने का समुचित अवसर मिले। न्यायालय में निष्पक्ष मुकदमे के लिए संविधान निम्न अधिकारों की व्यवस्था करता है।
(क) किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो अपराध करते समय लागू न हो।
(ख) किसी व्यक्ति को उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता जो उस कानून के लिए उल्लंघन करते समय निश्चित हो।
(ग) किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक न तो मुकदमा चलाया जा सकता है और न ही दोबारा दण्डित किया जा सकता है।
(घ) किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध किसी अपराध में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। संविधान में जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता की रक्षा की व्यवस्था की गई है। यथा
किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य किसी तरीके से जीवन अथवा निजी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किये जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसन्दीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है। इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घण्टे के अन्दर निकटतम न्यायाधीश के सामने पेश करे। न्यायाधीश ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं।
इस अधिकार द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन को मनमाने ढंग से समाप्त करने के विरुद्ध ही गारण्टी नहीं मिलती बल्कि इसका दायरा और भी व्यापक है। सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले अनेक निर्णयों द्वारा इस अधिकार का दायरा बढ़ाया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार अन्तर्निहित है।
न्यायालय ने माना है कि ‘जीवन के अधिकार’ का अर्थ है व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का भी अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई व्यक्ति जिन्दा नहीं रह सकता। अनुच्छेद 20 तथा 21 में प्राप्त अधिकारों को आपात स्थिति में भी निलम्बित नहीं किया जा सकता। (स) निवारक नजरबन्दी – यदि सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति देश की कानून व्यवस्था या शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, तो वह उसे बन्दी बना सकती है।
लेकिन निवारक नजरबन्दी अधिकतम 3 महीने तक के लिए ही हो सकती है। तीन महीने के बाद ऐसे मामले समीक्षा के लिए एक सलाहकार बोर्ड के समक्ष लाए जाते हैं। प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबन्दी सरकार के हाथ में असामाजिक तत्त्वों और राष्ट्र-विद्रोही तत्त्वों से निपटने का एक हथियार है। लेकिन सरकार ने प्राय: इसका दुरुपयोग किया है।
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिये गये समानता के अधिकार की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
समानता का अधिकार भारतीय संविधान में समानता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक किया गया है। यथा-
1. कानून के समक्ष समानता तथा कानून का समान संरक्षण- संविधान के अनु. 14 में कहा गया है कि ‘राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” कानून की दृष्टि में सब व्यक्ति समान हैं।
2. भेदभाव का निषेध: अनुच्छेद 15 में भेदभाव का निषेध किया गया है। इसके अनुसार, “राज्य केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान या इनमें से किसी एक आधार पर किसी नागरिक को दुकानों, भोजनालयों, मनोरंजन की जगहों, तालाबों, पूजा स्थलों और कुओं का प्रयोग करने से वंचित नहीं कर सकेगा।” परन्तु महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं। अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए राज्य विशेष प्रकार की व्यवस्था कर सकता है।
3. रोजगार में अवसर की समानता: अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारी सेवाओं पर नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर दिये जायेंगे। कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्म-स्थान या निवास स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जायेगा। इस अनुच्छेद के कुछ अपवाद भी दिये गये हैं।
- कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी शर्तें आवश्यक मानी जा सकती हैं।
- अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने से नहीं रोकेगी।”
इस प्रकार संविधान यह स्पष्ट करता है कि सरकार बच्चों, महिलाओं तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की बेहतरी के लिए विशेष योजनाएँ या निर्णय लागू कर सकती है। वास्तव में संविधान अनुच्छेद 16 (4) की आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता। संविधान की भावना के अनुसार तो यह ‘अवसर की समानता’ के अधिकार को पूरा करने के लिए आवश्यक है।
4. अस्पृश्यता की समाप्ति: संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत का अन्त कर दिया गया है। किसी भी रूप को बरतने की मनाही की गई है। इसे दण्डनीय अपराध बना दिया गया है।
5. उपाधियों का अन्त: अनुच्छेद 18 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि
- केवल उन लोगों को छोड़कर जिन्होंने सेना या शिक्षा के क्षेत्र में गौरवपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, राज्य किसी भी व्यक्ति को कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
- भारत का नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
- कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है, लेकिन वह भारत राज्य के अधीन किसी पद को धारण किये हुए है, तो वह इस पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
प्रश्न 3.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से क्या तात्पर्य है ? मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय कितने प्रकार के लेख जारी कर सकता है? इस अधिकार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32): संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि यदि उसे प्राप्त मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप किया जाये या छीना जाये, चाहे वह सरकार ही क्यों न हो, तो वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है। विभिन्न प्रकार के लेख – म जारी कर सकते हैं। अधिकारों की रक्षा के लिए ये न्यायालय निम्न प्रकार के निर्देश, आदेश या लेख।
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण: बन्दी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है। यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैर-कानूनी या असन्तोषजनक हो, तो न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है।
2. परमादेश: यह आदेश तब जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है कि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है और इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।
3. निषेध आदेश: जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें ( उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) निषेध आदेश के माध्यम से उसे ऐसा करने से रोकती हैं।
4. अधिकार पृच्छा: जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिस पर उसका कोई कानूनी हक नहीं है, तब न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा आदेश’ के द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक देता है।
5. उत्प्रेषण लेख: जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है, तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर उत्प्रेषण लेख द्वारा उसे ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तान्तरित कर देता है।
संवैधानिक उपचारों के अधिकार का महत्त्व संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की गई है। इस अधिकार के बिना मौलिक अधिकार खोखले वायदे साबित होते । संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों को सौंपा गया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन होता है तो वह उन न्यायालयों में प्रार्थना-पत्र देकर अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है।
प्रश्न 4.
भारत में मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अतिरिक्त किन संरचनाओं का निर्माण किया गया है ? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अलावा कुछ और संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है। इनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग प्रमुख हैं। ये संस्थाएँ क्रमशः अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों के अधिकारों तथा मानवाधिकारों की रक्षा करती हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गठन-मौलिक अधिकारों और अन्य अधिकारों की रक्षा करने के लिए वर्ष 2000 में भारत सरकार ने कानून द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा मानवाधिकारों के सम्बन्ध में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले दो और सदस्य होते हैं। कार्यक्षेत्र मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें मिलने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वयं अपनी पहल या किसी पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर जाँच कर सकता है। जेलों में बन्दियों की स्थिति का अध्ययन कर सकता है; मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कर सकता है या शोध को प्रोत्साहन कर सकता है।
प्राप्त शिकायतों का स्वरूप: आयोग को प्रतिवर्ष हजारों शिकायतें मिलती हैं। इनमें से अधिकतर हिरासत में मृत्यु, हिरासत के दौरान बलात्कार, लोगों के गायब होने, पुलिस की ज्यादतियों, कार्यवाही न किये जाने, महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार आदि से सम्बन्धित होती हैं। आयोग को स्वयं मुकदमा सुनने का अधिकार नहीं है। यह सरकार या न्यायालय को अपनी जाँच के आधार पर मुकदमे चलाने की सिफारिश कर सकता है।