JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भूपृष्ठ में कितनी भूगर्भिक प्लेटें हैं?
(A) 5
(B) 6
(C) 7
(D) 8
उत्तर:
(C) 7

2. भारत का प्राचीन स्थल खण्ड कौन-सा है?
(A) उत्तरी मैदान
(B) प्रायद्वीपीय पठार
(C) हिमालय
(D) अरावली।
उत्तर:
(B) प्रायद्वीपीय पठार।

3. भारत में स्थित हिमालय पर्वत का सर्वोच्च शिखर है
(A) माऊंट एवरेस्ट
(B) कंचनजंगा
(C) K2
(D) धौलागिरि।
उत्तर:
(B) कंचनजंगा।

4. प्राचीन जलोढ़ निक्षेप को कहते हैं
(A) खादर
(B) बांगर
(C) भाबर
(D) तराई।
उत्तर:
(B) बांगर।

5. दक्षिणी भारत का सर्वोच्च शिखर है-
(A) दोदा वेटा
(B) अनाई मुदी
(C) महेन्द्रगिरि
(D) कालसूबाई।
उत्तर:
(B) अनाई मुदी।

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6. पश्चिमी तटीय मैदान के दक्षिण भाग को कहते हैं
(A) कोंकण तट
(B) कोरोमण्डल तट
(C) कनारा तट
(D) मालाबार तट।
उत्तर:
(D) मालाबार तट।

7. पितली पक्षी – आश्रय स्थल कहां है?
(A) अण्डमान द्वीप
(B) निकोबार द्वीप
(C) लक्षद्वीप
(D) मालदीव
उत्तर:
(C) लक्षद्वीप।

8. किस सीमा के साथ प्लेटें मिलती हैं?
(A) अपकारी
(B) अभिसारी
(C) परिवर्तित
(D) भूगर्भिक।
उत्तर:
(B) अभिसारी।

(D) मालाबार तट।
(B) अभिसारी
9. हिमालय पर्वत के स्थान पर कौन सा प्राचीन सागर था?
(A) टैथीज़
(B) दक्षिणी
(C) अरब
(D) हिन्द महासागर।
उत्तरl
(A) टैथीज़।

10. दरार घाटी कौन-सी है?
(A) गंगा
(B) नर्मदा
(C) चम्बल
(D) दामोदर
उत्तर:
(B) नर्मदा

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11. करेवां भू-आकृति कहाँ पाई जाती है?
(A) उत्तर-पूर्व हिमालय में
(B) हिमाचल उत्तराखण्ड, हिमालय में
(C) पूर्वी हिमालय में
(D) कश्मीर हिमालय में।
उत्तर:
(D) कश्मीर हिमालय में।

12. निम्न पर्वतमालाओं में से सबसे पहले किसका निर्माण हुआ है?

(A) विंध्याचल
(B) नर्मदा
(C) सतपुड़ा
(D) नीलगिरि
उत्तर:
(D) नीलगिरि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वृहद् स्तर पर भारत के धरातल को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 2.
भारत का सबसे प्राचीन पठार कौन-सा है?
उत्तर:
दक्कन पठार।

प्रश्न 3.
दक्कन पठार की पूर्वी सीमाओं के नाम बताएं।
उत्तर:
राजमहल पहाड़ियां।

प्रश्न 4.
भारत का प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
पूर्व कैम्ब्रेरियन युग में।

प्रश्न 5.
अरावली पर्वत किस युग में ऊपर उठे?
उत्तर:
विन्धयन युग।

प्रश्न 6.
दक्कन पठार में निर्मित लावा की सतहें कैसे बनीं?
उत्तर:
लावा बहने के कारण।

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प्रश्न 7.
भारत में पाये जाने वाली दो रिफ्ट घाटियों के नाम लिखो।
उत्तर:
नर्मदा तथा ताप्ती घाटियां।

प्रश्न 8.
अरब सागर कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
प्लायोसीन युग में।

प्रश्न 9.
उस सागर का नाम बतायें जो हिमालय के किनारे पर स्थित था।
उत्तर:
टैथीज़ सागर।

प्रश्न 10.
हिमालय किस युग में ऊपर उठे?
उत्तर:
टरशरी युग में।

प्रश्न 11.
हिमालय के उत्तर में कौन-सा भू-खण्ड स्थित है?
उत्तर:
अंगारालैण्ड।

प्रश्न 12.
टरशरी युग में हिमालय के दक्षिण में स्थित भू-खण्ड का नाम बताएं।
उत्तर:
गोंडवानालैण्ड।

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प्रश्न 13.
कश्मीर घाटी में पाई जाने वाली झील निक्षेप का नाम लिखो।
उत्तर:
करेवा।

प्रश्न 14.
दक्कन पठार की पश्चिमी सीमा का नाम बताएं।
उत्तर:
अरावली।

प्रश्न 15.
सिन्धु गार्ज तथा ब्रह्मपुत्र गार्ज के मध्य हिमालय का क्या विस्तार है?
उत्तर:
2400 किलोमीटर।

प्रश्न 16.
हिमालय में सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की कुल उंचाई बताएं।
उत्तर:
8848 मीटर।

प्रश्न 17.
भारत के उत्तरी मैदान का पूर्व-पश्चिम विस्तार बताएं।
उत्तर:
3200 किलोमीटर।

प्रश्न 18.
गंगा मैदान में तलछट की अधिकतम ऊंचाई कितनी है?
उत्तर:
2000 मीटर।

प्रश्न 19.
हिमालय के निचले भागों में पाई जाने वाली निक्षेप बताओ।
उत्तर:
जलोढ़ पंक

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प्रश्न 20.
चो के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र का नाम बताएं।
उत्तर:
होशियारपुर (पंजाब)।

प्रश्न 21.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊंचाई बताएं।
उत्तर:
600-900 मीटर।

प्रश्न 22.
उस क्षेत्र का नाम बताएं जहां बरखान पाये जाते हैं।
उत्तर:
जैसलमेर

प्रश्न 23.
प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर-पूर्व में पाये जाने वाले पठार का नाम बताएं।
उत्तर:
शिलांग पठार तथा कार्वी एंगलोंग पठार।

प्रश्न 24.
दक्कन पठार के ढलान की दिशा बताओ।
उत्तर:
दक्षिण पूर्व।

प्रश्न 25.
भारत के उस क्षेत्र का नाम बताएं जहां ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानें पाई जाती हैं।
उत्तर:
कर्नाटक

प्रश्न 26.
पश्चिमी घाट पर सबसे अधिक ऊंचाई कितनी है?
उत्तर:
1600 मीटर।

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प्रश्न 27.
पूर्वी घाट पर सबसे अधिक ऊंचाई कितनी है?
उत्तर:
900 मीटर।

प्रश्न 28.
अरब सागर में पाये जाने वाले मूंगे के द्वीपों के समूह का नाम बताएं।
उत्तर:
लक्षद्वीप समूह।

प्रश्न 29.
प्रायद्वीपीय भारत में सबसे ऊँची चोटी का नाम बताएं।
उत्तर:
अनाईमुदी (2695 मीटर)।

प्रश्न 30.
पश्चिमी तटीय मैदान के दो विभागों के नाम लिखो।
उत्तर:
कोंकण तट, मालाबार तट।

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प्रश्न 31.
यदि आपने लक्षद्वीप तक यात्रा करनी है तो किस तटीय मैदान से गुजरेंगे?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 32.
भारत में शीत मरुस्थल कहां है?
उत्तर:
लद्दाख में।

प्रश्न 33.
पश्चिमी तट पर डैल्टे क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
तीव्र गति वाली छोटी नदियां तलछट का जमाव नहीं करतीं।

प्रश्न 34.
इण्डियन प्लेट की स्थिति बताओ।
उत्तर:
भूमध्य रेखा के दक्षिण में।

प्रश्न 35.
कौन-सी भ्रंश रेखा मेघालय पठार को छोटा नागपुर पठार से अलग करती है?
उत्तर:
मालदा भ्रंश रेखा।

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प्रश्न 36.
प्रायद्वीप की अवशिष्ट पहाड़ियां बताओ।
उत्तर:
अरावली, नल्लामाला, जांबादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा, महेन्द्रगिरी ।

प्रश्न 37.
हिमालय की केन्द्रीय अक्षीय श्रेणी बताओ।
उत्तर:
बृहत् हिमालय।

प्रश्न 38.
उत्तर:
पश्चिमी हिमालय के दर्रे बताओ।
उत्तर:
बृहत् हिमालय में जोजीला, जास्कर में कोटला, पीर पंजाल में बनिहावा, लद्दाख श्रेणी में खुर्द भंगा।

प्रश्न 39.
उत्तर-पश्चिमी हिमालय में 3 तीर्थ स्थान बताओ।
उत्तर:
वैष्णो देवी, अमरनाथ गुफ़ा, चरार-ए-शरीफ़।

प्रश्न 40.
लघु हिमालय को हिमाचल में क्या कहते हैं?
उत्तर:
नागतीमा।

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प्रश्न 41.
फूलों की घाटी कहां स्थित है?
उत्तर:
बृहत् हिमालय में।

प्रश्न 42.
मालाबार तट पर कयाल का क्या प्रयोग है?
उत्तर:
मछली पकड़ना तथा नौकायन।

प्रश्न 43.
दिसम्बर, 2004 में पूर्वी तट पर कौन-सी आपदा का प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
सुनामी

प्रश्न 44.
उत्तरी मैदान की रचना कैसे हुई है?
उत्तर:
गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा जलोढ़ निक्षेप से।

प्रश्न 45.
प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधता क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
भू-उत्थान, निभज्जन व भ्रंश क्रिया के कारण।

प्रश्न 46.
गारो व खासी पहाड़ियाँ किस पर्वत श्रेणी का भाग हैं?
उत्तर:
हिमालय का। स्मरणीय तथ्य (Points to Remember):

भारत के धरातलीय भाग:

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  2. सतलुज-गंगा का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार
  4. तटीय मैदान
  5. द्वीप समूह
  6. मरुस्थल

हिमालय पर्वत की श्रेणियां तथा प्रादेशिक विभाग:

  1. ट्रांस हिमालय
  2. महान् हिमालय
  3. लघु हिमालय
  4. शिवालिक

(क) असम हिमालय
(ग) कुमायुँ हिमालय
(ख) नेपाल हिमालय
(घ) पंजाब हिमालय

हिमालय पर्वत के प्रमुख शिखर:

  1. माऊंट एवरेस्ट – 8848 मीटर
  2. गाडविन ऑस्टिन – 8611 मीटर
  3. कंचनजंगा – 8588 मीटर
  4. मकालू – 8481 मीटर
  5. धौलागिरी – 8172 मीटर
  6. नांगा पर्वत – 8126 मीटर
  7. अन्नपूर्णा – 8078 मीटर

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भांगर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राचीन जलोढ़ मिट्टी के बने ऊंचे मैदानी प्रदेशों को भांगर कहते हैं। इन उच्च प्रदेशों में नदियों की बाढ़ का जल पहुंच नहीं पाता। इस प्रदेश की मिट्टी में चीका मिट्टी, रेत तथा कंकड़ पाए जाते हैं। भारत के उत्तरी मैदान में नदियों द्वारा जलोढ़ मिट्टी के निक्षेप से भांगर प्रदेश की रचना हुई है।

प्रश्न 2.
भारत में भ्रंशन क्रिया (Faulting) के प्रमाण किन क्षेत्रों में मिलते हैं?
उत्तर:
भू-पृष्ठीय भ्रंशन के प्रमाण सामान्य रूप से दक्षिणी पठार पर पाए जाते हैं। गोदावरी, महानदी तथा दामोदर घाटियों में भ्रंशन के प्रमाण पाए जाते हैं। नर्मदा तथा ताप्ती नदी घाटी दरार घाटियां हैं। भारत के पश्चिमी तट पर मालाबार तट तथा मेकरान तट पर धरातल पर भ्रंशन क्रिया के प्रभाव देखे जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
दून किसे कहते हैं? हिमालय पर्वत से तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की समानान्तर श्रेणियों के मध्य सपाट तलछटी वाली संरचनात्मक घाटियां मिलती हैं। इन घाटियों द्वारा पर्वत श्रेणियां एक-दूसरे से अलग होती हैं। इन घाटियों को ‘दून’ (Doon) कहा जाता है। हिमालय पर्वत में इन उदाहरण अग्रलिखित हैं

  1. देहरादून (Dehra Dun)
  2. कोथरीदून (Kothri Dun)
  3. पटलीदून (Patli Dun)

कश्मीर घाटी को भी हिमालय पर्वत में एक दून की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 4.
डेल्टा किसे कहते हैं? भारत से चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
नदियों के मुहाने पर तलछट के निक्षेप से एक त्रिभुजाकार स्थल रूप बनता है जिसे डेल्टा कहते हैं। डेल्टा नदी के अन्तिम भाग में अपने भार के निक्षेप से बनने वाला भू-आकार है। यह एक उपजाऊ समतल प्रदेश होता है। भारत में चार प्रसिद्ध डेल्टा इस प्रकार हैं;

  1. गंगा नदी का डेल्टा
  2. महानदी का डेल्टा
  3. कृष्णा नदी का डेल्टा
  4. कावेरी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 5.
तराई से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हिमालय पर्वत के दामन में भाबर के मैदान के साथ-साथ तराई का संकरा मैदान स्थित है। यह मैदान लगभग 30 कि०मी० चौड़ा है। इस मैदान का अधिकतर भाग दलदली है क्योंकि भाबर प्रदेशों में लुप्त हुई नदियों का जल रिस-रिस कर इस प्रदेश को अत्यधिक आर्द्र कर देता है। इस प्रदेश में ऊंची घास तथा वन पाए जाते हैं। भाबर के दक्षिण में स्थित ये मैदान बारीक कंकड़, रेत, चिकनी मिट्टी से बना है। उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र में बड़े-बड़े फार्म बना कर कृषि की जा रही है।

प्रश्न 6.
भाबर क्या है? भाबर पट्टी के दो प्रमुख लक्षण बताओ।
उत्तर:
बाह्य हिमालय की शिवालिक श्रेणियों के दक्षिण में इनके गिरिपद प्रदेश को भाबर का मैदान कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्र से बहने वाली नदियों के मन्द बहाव के कारण यहां बजरी, कंकड़ का जमाव हो जाता है। इस क्षेत्र में पहुंच कर अनेक नदियां लुप्त हो जाती हैं। क्योंकि यह प्रदेश पारगम्य चट्टानों (Pervious Rocks) का बना हुआ है। भाबर का मैदान एक संकरी पट्टी के रूप में 8 से 16 कि०मी० की चौड़ाई तक पाया जाता है। भाबर पट्टी के प्रमुख लक्षण:

  1. यह प्रदेश पारगम्य चट्टानों का बना हुआ है जिस में छोटी-छोटी नदियों का जल भूमिगत हो जाता है।
  2. इसमें बजरी और पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों के निक्षेप जमा होते हैं।
  3. यह प्रदेश हिमालय पर्वत तथा उत्तरी मैदान के संगम पर स्थित है।

प्रश्न 7.
दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से पांच उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
दो नदियों के मध्य के मैदानी भाग को दोआब कहते हैं। नदियों द्वारा निक्षेप से पुरानी कांप मिट्टी के प्रदेश इन नदियों को एक-दूसरे से अलग करते हैं। भारतीय उप महाद्वीप में निम्नलिखित दोआब मिलते हैं

  1. गंगा-यमुना नदियों के मध्य दोआब।
  2. ब्यास – सतलुज नदियों के मध्य बिस्त जालन्धर दोआब।
  3. ब्यास- रावी के मध्य बारी दोआब।
  4. रावी – चनाब के मध्य रचना दोआब।
  5.  चनाब – झेलम के मध्य छाज दोआब।

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प्रश्न 8.
बृहत् स्तर पर भारत को कितनी भू-आकृतिक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत के तीन भू-आकृतिक विभागों के उच्चावच के लक्षणों का विकास एक लम्बे काल में हुआ है।

  1. उत्तर में हिमालय पर्वतीय श्रृंखला
  2. उत्तरी भारत का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 9.
भारतीय पठार के प्रमुख भौतिक विभागों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार की भौतिक स्थलाकृतियों में बहुत विविधता है। फिर भी इसे मोटे तौर पर अग्रलिखित भौतिक इकाइयों में बांटा जा सकता है।

  1. दक्षिणी पठारी खंड
  2. दक्कन का लावा पठार
  3. मालवा का पठार
  4. अरावली पहाड़ियां
  5. नर्मदा तथा तापी की द्रोणियां
  6. महानदी, गोदावरी तथा कावेरी की नदी घाटियां
  7. संकरे तटीय मैदान।

प्रश्न 10.
हिमालय पर्वत को किन-किन श्रेणियों में बांटा जाता है?
उत्तर:
हिमालय पर्वत में कई श्रेणियां एक-दूसरे के समानान्तर पाई जाती हैं। ये श्रेणियां एक-दूसरे से ‘दून’ नामक घाटियों द्वारा अलग-अलग हैं। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वत के केन्द्रीय अक्ष के समानान्तर तीन पर्वत श्रेणियां हैं

  1. बृहत् हिमालय (Greater Himalayas)
  2. लघु हिमालय (Lesser Himalayas)
  3. उप-हिमालय (Sub – Himalayas) या शिवालिक श्रेणी ( Shiwaliks)

उक्त पर्वत श्रेणियों को तीन अन्य नामों से भी पुकारा जाता है

  1. आन्तरिक हिमालय ( Inner Himalayas)
  2. मध्य हिमालय (Middle Himalayas)
  3. बाह्य हिमालय ( Outer Himalayas)।

प्रश्न 11.
हिमालय पर्वत में मिलने वाले ऊंचे पर्वत शिखर तथा उनकी ऊंचाई बताओ।
उत्तर:
बृहत् हिमालय में संसार के 40 ऐसे पर्वत शिखर मिलते हैं जिनकी ऊंचाई 7000 मीटर से भी अधिक है। जैसे-

  1. एवरेस्ट (Everest ) – 8848 मीटर
  2. कंचनजंगा (Kanchenjunga ) –  8598 मीटर
  3. नांगा पर्वत (Nanga Parbat ) – 8126 मीटर
  4. नंदा देवी (Nanda Devi ) – 7817 मीटर
  5. नामचा बरवा (Namcha Barwa ) – 7756 मीटर
  6. धौलागिरी ( Dhaulagiri ) – 8172 मीटर।

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प्रश्न 12.
” पश्चिमी हिमालय में पर्वत श्रेणियों की एक क्रमिक श्रृंखला पाई जाती है।” व्याख्या करो।
उत्तर: हिमालय पर्वत में कई पर्वत श्रेणियां एक-दूसरे के समानान्तर पाई जाती हैं। ये श्रेणियां एक-दूसरे से “दून” या घाटियों द्वारा अलग-अलग हैं। पश्चिमी हिमालय में ये श्रेणियां स्पष्ट क्रम से दिखाई देती हैं। पंजाब के मैदानों के पश्चात् पहली श्रेणी शिवालिक की पहाड़ियों के रूप में या बाह्य हिमालय के रूप में मिलती है। इसके पश्चात् सिन्धु नदी की सहायक नदियों की घाटियां हैं। दूसरी वेदी (Stage) के रूप में पीर पंजाल तथा धौलाधार की लघु हिमालयी श्रेणियां मिलती हैं। पीर पंजाल तथा महान् हिमालय के मध्य कश्मीर घाटी है। तीसरी वेदी के रूप में महान् हिमालय की जास्कर श्रेणी पाई जाती है। इस से आगे लद्दाख तथा कराकोरम की पर्वत श्रेणियां हैं जिसके मध्य सिन्धु घाटी मिलती है ।

प्रश्न 13.
हिमालय पर्वत श्रेणियों में पाये जाने वाले प्रमुख दर्रों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. खैबर दर्रा – यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच में है।
  2. वोलन दर्रा – यह पाकिस्तान में है। प्राचीन समय में यह व्यापारिक मार्ग रहा है
  3. जोजिला – यह कशमीर से लेह को जोड़ता है।
  4.  शिपक़िला – हिमाचल प्रदेश के किन्नौर से तिब्बत को जोड़ता है।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय पठार तथा हिमालय पर्वत के उच्चावच के लक्षणों में वैषम्य बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत तथा भारती पठार की भू-आकृतियों की इकाइयों के भौतिक लक्षणों में काफ़ी अन्तर पाए जाते

हिमालय पर्वत भारतीय पठार
(1) हिमालय पर्वत एक युवा, नवीन मोड़दार पर्वत है। (1) भारतीय पठार कठोर चट्टानों का बना प्राचीन भूखण्ड है।
(2) इन पर्वतों का निर्माण विभिन्न हलचलों द्वारा वलन क्रिया से हुआ है। (2) इस पठार का निर्माण एक उत्खण्ड (Horst) के रूप में हुआ है।
(3) हिमालय पर्वत का धरातल युवा लक्षण प्रकट करता है। (3) इस पठार का धरातल जीर्ण तथा घर्षित है।
(4) हिमालय पर्वत पर ऊंची तथा समानान्तर पर्वत श्रेणियां पाई जाती हैं। (4) इस पठार पर दरारों के कारण दरार घाटियां मिलती हैं।
(5) इन पर्वतों पर गहरे गार्ज पाए जाते हैं तथा यू-आकार श्रेणियां पाई जाती हैं। (5) इस पठार पर गहरी नदी घाटियां पाई जाती हैं।
(6) ये पर्वत एक चाप के रूप में फैले हुए हैं। (6) इस पठार का आकार तिकोना है।
(7) इन पर्वतों में संसार के ऊंचे शिखर पाए जाते हैं। (7) इस पठार पर अपरदित पहाड़ियां पाई जाती हैं।
(8) ये तलछटी चट्टानों से बने हुए हैं। (8) ये आग्नेय चट्टानों से बने हैं।
(9) इनकी रचना आज से 2760 लाख वर्ष पूर्व Mesozoic Period में हुई है। (9) इसकी रचना आज से 16000 लाख वर्ष पूर्व PreCambrian Period में हुई है।

प्रश्न 2.
तराई तथा भाबर प्रदेश में अन्तर स्पष्ट करो। Cambrian Period में हुई है।
उत्तर:

तराई (Terai) भाबर (Bhabar)
(1) भाबर प्रदेश के साथ-साथ दक्षिण में तराई क्षेत्र स्थित है। (1) शिवालिक पहाड़ियों के तटीय क्षेत्र में भाबर प्रदेश स्थित है।
(2) यह एक नम, दल-दली तथा जंगलों से ढका प्रदेश है जहां कंकड़ जमा होते हैं। (2) यह प्रवेशीय चट्टानों से बना क्षेत्र है जहां भारी पत्थर तथा कंकड़ जमा होते हैं।
(3) इसकी चौड़ाई 20 से 30 कि० मी० है। (3) इसकी चौड़ाई 8 से 16 कि० मी० है।
(4) भाबर प्रदेश से रिस-रिस कर आने वाला जल यहां नदियों का रूप धारण कर लेता है। (4) प्रवेशीय चट्टानों के कारण यहां नदियां विलीन हो जाती हैं।
(5) यह प्रदेश कृषि के उपयुक्त है। (5) यह प्रदेश कृषि के उपयुक्त नहीं है।

प्रश्न 3.
बांगर तथा खादर प्रदेश में क्या अन्तर है?
उत्तर:

बांगर (Bangar) खादर (Khaddar)
(1) पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊंचे प्रदेश को बांगर कहते हैं। (1) बाढ़ की नवीन मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं।
(2) ये प्रदेश बाढ़ के मैदान के तल से ऊंचे होते हैं। (2) यहां नदियां बाढ़ के कारण प्रति वर्ष जलोढ़ की नई परत बिछा देती हैं।
(3) ये प्रदेश चूनायुक्त कंकड़ों से बने होते हैं। (3) ये उपजाऊ चीका मिट्टी से बने प्रदेश होते हैं।
(4) ये बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। (4) ये वास्तव में नदियों के बाढ़ के मैदान हैं।
(5) कई प्रदेशों में इन्हें ‘धाया’ कहा जाता है। (5) कई प्रदेशों में इन्हें ‘बेट’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्वी और पश्चिमी तटीय मैदानों के बीच पाए जाने वाले तीन प्रमुख स्थलाकृतिक अन्तर बताइए।
उत्तर:

पश्चिमी तटीय मैदान पूर्वी तटीय मैदान
(1) यह मैदान 50 से 80 किलोमीटर चौड़ा है। यह एक संकरा मैदान है। (1) यह मैदान 80 से 100 किलोमीटर तक चौड़ा है। यह एक अधिक चौड़ा मैदान है।
(2) पश्चिमी तट पर कई लैगून झीलें पाई जाती हैं विशेषकर केरल तट पर। (2) पूर्वी तट पर लैगून कम संख्या में पाए जाते हैं।
(3) इस मैदान पर छोटी और तीव्र नदियों के कारण डेल्टे नहीं बनते। (3) इस मैदान में लम्बी और धीमी नदियों के कारण विशाल डेल्टे बनते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
” उप-महाद्वीप के वर्तमान भू-आकृतिक विभाग एक लम्बे भूगर्भिक इतिहास के दौरे में विकसित हुए हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। भारत के भू-आकृतिक खण्ड की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उत्तर: भारतीय उपमहाद्वीप की तीनों भू-आकृतिक इकाइयां इतिहास के लम्बे उतार-चढ़ाव के दौरे में विकसित हुई हैं। इनके निर्माण के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के भू-वैज्ञानिक प्रमाण दिए जाते हैं। फिर भी अतीत अपना रहस्य छिपाए हुए है। इनकी रचना प्राचीन काल से लेकर कई युगों में क्रमिक रूप में हुई है।

1. प्रायद्वीपीय पठार:
इस पठार की रचना कैम्ब्रियन पूर्व युग में हुई है। कुछ विद्वानों की धारणा है कि यह एक उत्खण्ड (HORST) है जिसका उत्थान समुद्र से हुआ है। इस पठार के पश्चिमी भाग में अरावली पर्वत का उत्थान दक्षिण में नाला मलाई पर्वतमाला का उत्थान विंध्य – महायुग में हुआ । इस स्थिर भाग में एक लम्बे समय तक भू-गर्भिक हलचलों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । कुछ भागों में धरातल पर भ्रंश पड़ने के कारण धंसाव के प्रमाण मिलते हैं । हिमालय के निर्माण के पश्चात् पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग के धंसने के कारण अरब सागर का निर्माण प्लिओसीन युग में हुआ। इस पठार को विशाल गोंडवाना महाद्वीप का भाग माना जाता है। इसका कुछ भाग अब भी उत्तरी मैदान के नीचे छिपा हुआ है। हिमालय के उत्थान के समय पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग में विस्तृत रूप से ज्वालामुखी उदगार हुए जिस से दक्कन लावा क्षेत्र (Deccan Trap) का निर्माण हुआ। पठार के पश्चिम भाग में निमज्जन से पश्चिमी घाट ऊपर उभरे। दूसरी ओर पूर्वी तट शान्त क्षेत्र रहे।

2. हिमालय पर्वत:
यह एक युवा तथा नवीन मोड़दार पर्वत है। मध्यजीवी काल तक यह पर्वत एक भू-अभिनति द्वारा घिरा हुआ था इसे ‘टैथीस सागर’ कहते हैं। टरशरी युग में टैथीस सागर में जमा तलछटों में वलन पड़ने से हिमालय पर्वत तथा इसकी श्रृंखलाओं का निर्माण हुआ। उत्तरी भू-खण्ड अंगारालैण्ड की ओर से दक्षिणी भू-खण्ड गोंडवाना लैण्ड की ओर दबाव पड़ा। दक्षिणी भू-खण्ड के उत्तर अभिमुखी दबाव ने टैथीस सागर में जमा तलछट को ऊँचा उठा दिया जिससे हिमालय पर्वत में वलनों का निर्माण हुआ।

हिमालय पर्वत में पर्वत निर्माण कार्य हलचल की पहली अंवस्था अल्प नूतन युग में, दूसरी अवस्था मध्य नूतन युग में तथा तीसरी अवस्था उत्तर अभिनूतन युग में हुई। आधुनिक प्रमाणों के आधार पर ये पर्वत निर्माणकारी हलचलें (Mountain Building), प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonics) से सम्बन्धित है। भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसकी तथा यूरेशिया प्लेट को नीचे से धक्का देने से हिमालय पर्वतमाला की उत्पत्ति हुई।

3. उत्तरी मैदान:
भारत का उत्तरी मैदान हिमालय पर्वत तथा दक्षिण पठार के मध्यवर्ती क्षेत्र में फैला है। यह मैदान एक समुद्री गर्त के भर जाने से बना है। इस गर्त में हिमालय पर्वत तथा दक्षिणी पठार से बहने वाली नदियां भारी मात्रा में मलबे के निक्षेप करती रही हैं। इस गर्त का निर्माण हिमालय पर्वत के उत्थान के समय एक अग्रगामी गर्त (Fore-deep) के रूप में हुआ। इसका निर्माण प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर अभिमुखी दबाव के कारण हिमालय पर्वत के समान हुआ। यह सम्पूर्ण क्षेत्र निक्षेप की क्रिया द्वारा लगातार पूरित होता रहा है। यह क्रिया चतुर्थ महाकल्प तक जारी है। इस प्रकार लम्बी अवधि में भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप का विकास हुआ हैं।
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प्रश्न 2.
भारत को धरातल के आधार पर विभिन्न भागों में बांटो। हिमालय पर्वत का विस्तारपूर्वक विवरण दो।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है जिसमें धरातल पर अनेक विभिन्नताएं पाई जाती हैं। भारत की धरातलीय रचना एक विशेष प्रकार की है जिसमें ऊँचे-ऊँचे पर्वत, पठार तथा विशाल मैदान सभी प्रकार के भू-आकार विद्यमान हैं। भारत के कुल क्षेत्र का धरातल के अनुसार विभाजन इस प्रकार है।
पर्वत – 10.7%
पहाड़ियां – 18.6%
पठार – 27.7%
मैदान – 43.0%

प्रायद्वीप को भारत की प्राकृतिक संरचना का केन्द्र (Core of Geology of India) माना जाता है। यह भाग सबसे पुराना है। देश के अन्य भाग बाद में इसके चारों ओर बने हैं। उत्तर में हिमालय पर्वत है जो भारत का सिरताज है। (The Himalayas adorn like a crown of India.) इनके मध्य गंगा का विशाल मैदान है जिसे भारतीय सभ्यता का पलना (Cradle of Indian Civilization) कहा जाता है। भारत को धरातल के आधार पर चार स्पष्ट तथा स्वतन्त्र भागों में बांटा जा सकता है।

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश (Northern Mountain Region)
  2. सतलुज- गंगा का मैदान (Sutlej – Ganges Plain)
  3. प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)
  4. तटीय मैदान (Coastal Plains)

1. उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र (Northern Mountain Region):
विस्तार (Extent ):
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत पश्चिम-पूर्व दिशा में एक चाप के आकार में फैला हुआ है। यह पर्वत श्रेणी 2400 किलोमीटर लम्बी है तथा 240 से 320 किलोमीटर तक चौड़ी है। ये संसार के सबसे ऊँचे पर्वत हैं जो बर्फ से ढके रहते हैं।

मुख्य विशेषताएं (Main Characteristics):
(i) ये पर्वत युवा नवीन मोड़दार (Young Fold Mountains) पर्वत हैं। अपनी अल्पायु के कारण इन्हें युवा पर्वत कहते हैं।

(ii) आज से लगभग 5 करोड़ साल पहले वहां पर टैथीज़ (Tethys) सागर था इस सागर की पेटी में जमा तलछट में मोड़ पड़ने से हिमालय पर्वत तथा इसकी श्रृंखलाएं बनीं। अब भी कुछ भागों में उठाव (Uplift) की क्रिया के कारण हिमालय पर्वत की ऊंचाई बढ़ रही है। ( “The Himalayas are still rising.”)
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(iii) हिमालय प्रदेश में एक-दूसरे के समानान्तर श्रेणियां मिलती हैं जिनके बीच घाटियां तथा पठार पाए जाते हैं। (“The Himalayas are series of parallel ranges, intersected by deep valleys and broad plateaus.”) हिमालय पर्वतमालाएं क्रमिक श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। उत्तरी मैदान से आगे पहली वेदी शिवालिक के रूप में, दूसरी वेदी पीर पंजाल तथा धौलाधार श्रेणी के रूप में (लघु हिमालय), तीसरी वेदी महान् हिमालय की जास्कर श्रेणी के रूप में तथा इससे आगे लद्दाख, कैलाश तथा कराकोरम (ट्रांस हिमालय श्रेणी) पर्वतमालाएं पाई जाती हैं।

(iv) इन श्रेणियों की तुलना धनुष की डोरी या तलवार से भी की जाती है।

(v) हिमालय पर्वत की औसत ऊंचाई 5000 मीटर है।

(vi) इसमें बहने वाली नदियां युवावस्था में हैं। तीव्र गति के कारण ‘V’ आकार की तंग तथा गहरी (‘V’ shaped narrow valley) घाटी बनाती है।

(vii) हिमालय पर्वत के पूर्व तथा पश्चिम में दो मोड़ हैं जिन्हें “दीर्घ पर्वतीय मोड़” या Hair pin bend कहा जाता है।

(viii) इन पर्वतों पर हिमानी के कार्य के प्रमाण पाए जाते हैं। जैसे – करेवा, यू-आकार घाटी तथा हिमनदियां मिलती हैं।

क्षेत्रीय विभाजन (Regional Division ): इन दीर्घ मोड़ों के बीच कश्मीर से लेकर असम तक, सिन्धु घाटी था ब्रह्मपुत्र नदियों के बीच फैले हुए हिमालय पर्वत को चार भागों में बांटा जाता है
(क) असम हिमालय: तिस्ता – ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य का भाग (720 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)
(ख) नेपाल हिमालय: काली – तिस्ता नदी के मध्य का भाग ( 800 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)
(ग) कुमायूं हिमालय: सतलुज- काली नदी के मध्य का भाग (320 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)
(घ) पंजाब हिमालय: सिन्धु – सतलुज नदी के मध्य का भाग ( 560 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)

भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वत की ऊंचाई को देख कर इसे चार भागों में बांटा जा सकता है। ये भाग एक-दूसरे के समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए हैं:

  1. ट्रांस हिमालय (Trans Himalayas)
  2. महान् हिमालय (Great Himalayas) or (Inner Himalayas)
  3. लघु हिमालय (Lesser Himalayas) or (Middle Himalayas)
  4. उप हिमालय (Sub – Himalayas) or (Outer Himalayas)

1. ट्रांस हिमालय (Trans Himalayas):
ये भारत के उत्तर-पश्चिम में ऊंची तथा विशाल पर्वतमालाएं हैं जोकि महान् हिमालय के पीछे स्थित हैं। इनकी ऊंचाई 6000 मीटर से भी अधिक है। कराकोरम (Kara Koram), लद्दाख तथा कैलाश पर्वत मुख्य पर्वत श्रेणियां हैं। K, Mt. Godwin Austin 8611 मीटर संसार में दूसरी बड़ी ऊंची चोटी है।

2. महान् हिमालय (Great Himalayas ):
पश्चिम में सिन्धु घाटी तथा पूर्व में ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच यह सबसे लम्बी पर्वत श्रेणी है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। यह अत्यन्त दुर्गम क्षेत्र है। सदा बर्फ से ढके रहने के कारण इसे हिमाद्री (Snowy Ranges ) भी कहते हैं। इस पर्वतमाला को भीतरी हिमालय ( Inner Himalayas ) भी कहते हैं। इस भाग में झीलों के भर जाने के कारण 1500 मीटर की ऊंचाई पर दो प्रसिद्ध घाटियां हैं
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(क) काठमांडू घाटी तथा
(ख) कश्मीर घाटी।
इस श्रेणी में हिमालय के ऊंचे शिखर मिलते हैं। माऊंट एवरेस्ट (Mount Everest) (8,848 मीटर) संसार में सबसे ऊंचा शिखर है।

मुख्य शिखर (High Summits): मुख्य पर्वत शिखर इस प्रकार हैं

  1. माउंट एवरेस्ट 8,848 मीटर
  2. कंचनजंगा – 8,598 मीटर
  3. मकालू – 8,481 मीटर
  4. धौलागिरि – 8, 172 मीटर
  5. नांगा पर्वत – 8, 126 मीटर
  6. अन्नपूर्णा – 8,078 मीटर
  7. नन्दा देवी – 7,817 मीटर
  8. नामचा बरवा 7,756 मीटर

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(iii) लघु हिमालय (Lesser – Himalayas):
यह हिमालय की तीसरी श्रेणी है जिसकी औसत ऊंचाई 3700 मीटर से 4580 मीटर तक है। यह पर्वत श्रेणी 75 किलोमीटर की चौड़ाई से महान् हिमालय के दक्षिण में इसके समानान्तर फैली हुई है। इसे ” मध्य हिमालय” (Middle Himalayas) भी कहते हैं। इसमें कई पर्वत श्रेणियां शामिल हैं। जैसे—कश्मीर में पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार, उत्तर प्रदेश में कुमायूं श्रेणी तथा भूटान में थिम्पू श्रेणी है। देश के कई स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान जैसे – शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग आदि इस पर्वत श्रेणी में स्थित हैं। इन पर्वतीय ढलानों पर छोटे-छोटे घास के मैदान भी मिलते हैं। जैसे – कश्मीर में गुलमर्ग तथा सोनमर्ग।

(iv) उप हिमालय (Sub Himalayas):
यह हिमालय पर्वत की दक्षिण श्रेणी है तथा इसे शिवालिक (Shiwalik) भी कहते हैं। इन्हें हिमालय पर्वत की तलहटी (Foot hills) भी कहते हैं। यह हिमालय पर्वत से नदियों द्वारा लाई हुई मिट्टी, रेत, बजरी के निक्षेप से बनी है। इनकी औसत ऊंचाई 1000 मीटर है तथा चौड़ाई 15 से 50 किलोमीटर तक है।
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शिवालिक तथा लघु हिमालय के बीच समतल लम्बाकार घाटियां मिलती हैं जिन्हें ‘दून’ (Doons) कहते हैं। जैसे- देहरादून, कोथरीदून तथा पटलीदून।

पूर्वी शाखाएं (Eastern Off-shoots ):
दूर पूर्व की ओर हिमालय पर्वतमालाएं दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं। इस भाग में पटकोई (Patkoi ), लोशाई (Lushai) तथा नागा (Naga) पर्वत श्रेणियां हैं जो दक्षिण में अराकान योमा के रूप में बर्मा (म्यनमार) तथा भारत की सीमा बनाती हैं । इसकी एक शाखा में गारो (Garo ), खासी (Khasi), जैन्तिया (Jaintia) की पहाड़ियां हैं।

पश्चिमी शाखाएं (Western Off-shoots ):
दूर पश्चिम में हिमालय पर्वत मालाएं दक्षिण पर्वत की ओर मुड़ जाती हैं। इस भाग में साल्ट रेंज (Salt Range), सुलेमान, किरथार श्रेणियां हैं । इस भाग से हिन्दुकुश पर्वत मालाएं निकल कर अफगानिस्तान तक चली गई हैं।

प्रश्न 3.
सतलुज, गंगा मैदान के विस्तार, रचना तथा विभिन्न भागों का वर्णन करो।
उत्तर:
सतलुज- गंगा का मैदान (Sutlej-Ganges Plain)
विस्तार (Extent ):
हिमालय पर्वत तथा प्रायद्वीप के बीच पूर्व-पश्चिम में फैला हुआ विशाल मैदान है। यह लगभग 3,200 किलोमीटर लम्बा तथा 150 से 300 किलोमीटर तक चौड़ा है। असम में इस मैदान की चौड़ाई सब से कम 90-100 कि० मी० है। राज महल पहाड़ियों के पास 160 कि० मी० तथा इलाहाबाद के पास 280 कि० मी० है। इसकी औसत ऊंचाई, 150 मीटर है तथा इसका क्षेत्रफल 7.5 लाख वर्ग किलोमीटर है। यह मैदान सतलुज, गंगा तथा इनकी सहायक नदियों द्वारा निक्षेप के कार्य से बना है।

रचना (Formation):
गोंडवाना लैण्ड तथा हिमालय के मध्य एक लम्बी पेटी के रूप में भूमि का भाग धंस गया था। यह मैदान हिमालय पर्वत बनने के बाद बना। यह भाग धीरे-धीरे नदियों द्वारा तलछट के निक्षेप से भरता चला गया। (The great plain is an alluvium filled trough.) एक अनुमान के अनुसार गंगा नदी प्रति वर्ष 3000 लाख टन मिट्टी इस मैदान में बिछाया करती है।

विशेषताएं (Characteristics): इस मैदान की कई विशेषताएं हैं:

  1. समतल मैदान (Dead Flat Lowland):
    यह एक समतल सपाट मैदान है। ऊंचे भाग बहुत कम हैं। इसमें सबसे ऊंचा प्रदेश अम्बाला क्षेत्र है जिसकी ऊंचाई 283 मीटर है। इस मैदान के धरातल की एक रूपता प्रभाव पूर्ण है। कहीं- कहीं नदी निक्षेप से बनी वेदिकाएं (Terraces) बल्फ तथा भांगर मिलते हैं।
  2. धीमी ढाल (Gentle Slope ): गंगा के मैदान का ढाल औसत रूप से 1/4 मीटर प्रति किलोमीटर है।
  3. तलछट की गहराई (Thickness of Alluvium): हज़ारों साल से लगातार निक्षेप के कारण लगभग 2000 मीटर गहरी मिट्टी (Silt) मिलती है। यह ध्वनि से मापे जाने वाली गहराई है।
  4. अनेक नदियां (Many Rivers ): इस मैदान में नदियों का जाल बिछा हुआ है जिसके कारण सारा मैदान छोटे- छोटे टुकड़ों, दोआबों (Doabs) में बंट गया है। नदियां चौड़ी घाटियां बनाती हैं तथा धीमी बहती हैं।
  5. उपजाऊ मिट्टी ( Fertile Soils): छारी मिट्टी बहुत उपजाऊ है। धरातल में विभिन्नता केवल ‘खादर’ या ‘बांगर’ मिट्टी के कारण ही मिलती है। पुरानी कछारी मिट्टी से बने ऊंचे प्रदेशों को बांगर प्रदेश तथा नवीन कछारी मिट्टी से बने निचले प्रदेशों को खादर प्रदेश कहते हैं। यहां बाढ़ का पानी प्रति वर्ष नई मिट्टी की परत बिछा देता हैं। कहीं-कहीं कंकड़ तथा भूर की भू-रचना भी है।

उत्तरी मैदान का विभाजन (Division of Northern Plain): उत्तरी मैदान को नदी घाटियों के अनुसार निम्न- लिखित भागों में बांटा जा सकता है
(i) भाभर तथा तराई प्रदेश:
शिवालिक पहाड़ियों के दामन में तंग पेटियों के रूप में यह मैदान है। भाभर शिवालिक के साथ-साथ एक लगातार मैदान है जो सिन्धु से तिस्ता नदी तक फैला हुआ है। सरंधर चट्टानों के कारण नदियां इस क्षेत्र में विलीन हो जाती हैं। नदियों की धीमी गति के कारण बजरी तथा कंकर के निक्षेप से ‘भाभर’ का मैदान बना है, परन्तु तराई के मैदान में दलदली प्रदेश अधिक हैं। तराई क्षेत्र में नदियां पुनः धरातल पर प्रकट हो जाती हैं।

(ii) सतलुज घाटी:
सतलुज, ब्यास, रावी आदि नदियों के निक्षेप से पंजाब और हरियाणा का मैदान बना है। इस मैदान की ढाल दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इसे पश्चिमी मैदान भी कहते हैं। दो नदियों के मध्य क्षेत्र को दोआब कहा जाता है । शिवालिक पहाड़ियों से निकलने वाली बरसाती नदियों (चो) के कारण मिट्टी कटाव की गम्भीर समस्या है। इस मैदान में ऊंचे भाग धाया तथा निचले भाग बेट कहलाते हैं।

(iii) गंगा का मैदान:
यह विशाल मैदान गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, गंडक आदि नदियों द्वारा निक्षेप से बना है। इसे गंगा की ऊपरी घाटी, मध्य घाटी तथा निचली घाटी नामक तीन भागों में बांटा जाता है। इस मैदान में पाए जाने वाले दोआब क्षेत्रों को गंगा-यमुना दोआब, रोहिलखण्ड तथा अवध प्रदेश के नाम से जाना जाता है। चम्बल घाटी में उत्खात भूमि (Bad land) की रचना हुई है।

(iv) ब्रह्मपुत्र घाटी:
इस मैदान के पूर्वी भाग में ब्रह्मपुत्र नदी असम घाटी बनाती है। समुद्र में गिरने से पहले गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियां एक विशाल डेल्टे का निर्माण करती हैं जो 80,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और संसार में सबसे बड़ा डेल्टाई प्रदेश है। इस डेल्टा के पुराने क्षेत्रों को चर (Char) तथा निचले क्षेत्रों को बिल (Bill) कहते हैं। उत्तरी भाग को पैरा- डेल्टा ( अपघर्षण क्षेत्र ) तथा दक्षिणी भाग को डेल्टा (निक्षेपण क्षेत्र) कहते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं तथा विभिन्न भागों का वर्णन करो।
अथवा
प्रायद्वीपीय पठार का भौगोलिक वर्णन करें।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)
विस्तार (Extent ):
दक्षिण पठार भारत का सबसे प्राचीन भू-खण्ड है। यह पठार तीन ओर सागरों से घिरा हुआ है। इसलिए इसे प्रायद्वीपीय पठार कहते हैं। इसका क्षेत्रफल 16 लाख वर्ग किलोमीटर है। इस प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर है। उत्तर पश्चिम में दिल्ली रिज से अरावली तथा कच्छ तक, गंगा यमुना के समानान्तर राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग पठार इसकी मूल उत्तरी सीमा है। इसका शीर्ष कन्याकुमारी है । अरावली, शिलांग पठार, राजमहल पहाड़ियां इस त्रिभुज की भुजाएं हैं।

विशेषताएं (Characteristics):
1. यह भाग प्राचीन, कठोर रवेदार चट्टानों से बना हुआ है। यह एक स्थिर भू-भाग (Stable Block) है। यह पठार क्रमिक अपरदन के कारण घिस गया है तथा यहां वृद्धावस्था के चिन्ह मिलते हैं।

2. यह भाग प्राचीन समय में गोंडवाना लैण्ड (Gondwana Land) का ही भाग था जिसमें अफ्रीका, अरब, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी अमेरिका के पठार शामिल थे।

3. इस प्रदेश का मुख्य भाग ज्वालामुखी उद्गार के कारण लावा के जमने से बना है।

4. यह प्रदेश भारत की खनिज सम्पत्ति का भण्डार है।

5. इस पठार का भीतरी भाग नदी घाटियों में कटा-छटा है। सपाट शिखर तथा गहरी द्रोणी घाटियां हैं। सीढ़ीदार ढाल,
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दरारें (Faults) प्राचीन पर्वतों के अवशेष, नीची पहाड़ियों की एक मुद्रिका, घिसे हुए पठार तथा भ्रांशित द्रोणियां मिलती हैं। यह अनाच्छादित पठार कगारों की एक श्रृंखला के रूप में उठा हुआ है।

6. यह पठार कई छोटे-छोटे भागों में बंट गया है।

7. प्रायद्वीपीय उच्च भूमि में विविधता के मुख्य कारण हैं- पृथ्वी की हलचलें, अपरदन क्रिया, उत्थान, निमज्जन, भ्रंशन तथा विभंगन क्रियाएं।

दक्षिणी पठार का विभाजन (Division of Deccan Plateau ) :
21° उत्तर तथा 24° उत्तरी अक्षांश के बीच पूर्व- पश्चिम दिशा में फैली हुई सतपुड़ा पहाड़ियों का क्रम (Line of Satpura Ranges) दक्षिणी पठार को दो भागों में बांटता

  1. मालवा का पठार (Malwa Plateau )
  2. दक्षिण का मुख्य पठार (Deccan Trap)

(i) मालवा का पठार:
पश्चिम में अरावली पर्वत, पूर्व में गंगा घाटी तथा दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत इस त्रिभुजाकार की सीमाएं बनाते हैं। अरावली पर्वत बचे-खुचे पर्वत (Relict Mountains) है। जो दिल्ली – रिज तक विस्तृत हैं। सबसे ऊंचा शिखर गुरु शिखर (Guru Shikhar ) 1,772 मीटर ऊंचा है। अरावली के पश्चिम में थार की बलुई मरुभूमि है जहां बरखान टीले मिलते हैं। इस पठार में बुन्देलखण्ड, चम्बल घाटी तथा मालवा की अस्त-व्यस्त धरातल तथा जल प्रवाह है। यह प्रदेश नीस व क्वार्टज़ाइट की प्राचीन कठोर चट्टानों का बना हुआ है। मालवा के पठार का पूर्वी भाग महादेव, मैकाल, राजमहल की पहाड़ियों के रूप में फैला हुआ है। सोन नदी के पूर्व में छोटा नागपुर का कटा छटा पठार है जो भारत का खनिज भण्डार है। यह पठार 1070 मीटर तक ऊंचा है।

(ii) दक्कन का मुख्य लावा पठार:
यह पठार नर्मदा नदी के दक्षिण में है। इसके तीन ओर पर्वत श्रेणियां हैं। पश्चिम में पश्चिमी घाट, पूर्व में पूर्वी घाट तथा उत्तर में सतपुड़ा की ओर पहाड़ियां इस पठार की सीमाएं बनाती हैं। विन्ध्य तथा सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच नर्मदा एवं ताप्ती की द्रोणियां मिलती हैं। पूर्वी घाट पश्चिमी घाट के मध्य कर्नाटक पठार है। कर्नाटक पठार के दो भाग हैं मालन्द तथा मैदान मालन्द उच्च भूमि पर बाबा बूदन पहाड़ियां हैं। पूर्व में महानदी बेसिन में छत्तीसगढ़ के मैदान प्रसिद्ध हैं। इस पठार की ढाल उत्तर-पश्चिम (North West) से दक्षिण पूर्व (South East ) की ओर है जो इस प्रदेश की नदियों की दिशा से स्पष्ट है। (It is a titled plateau with a general eastward slope.) इन नदियों ने इस पठार को कई भागों में बांट दिया है

(क) पश्चिमी घाट (Western Ghats):
यह ताप्ती घाटी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक 1500 किलोमीटर लम्बी तथा निरन्तर पर्वत श्रेणी है। इसमें केवल तीन दर्रे हैं- थाल घाट, भोरघाट तथा पालघाट । इस पर्वत की पश्चिमी ढाल पर छोटी तथा तीव्र बहने वाली नदियां हैं, परन्तु पूर्वी ढाल से उतरने वाली नदियां धीमी गति तथा अधिक लम्बाई के कारण डेल्टे (Deltas) बनाती हैं। अधिक वर्षा के कारण गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं। इस पर्वतीय भाग की औसत ऊंचाई 1000 मीटर है। इस भाग में कई भौतिक इकाइयां मेज़नुमा उच्च भूमियां लगती हैं; जैसे- अजन्ता तथा बालाघाट।

(ख) पूर्वी घाट (Eastern Ghats ):
महानदी घाटी से लेकर नीलगिरि की पहाड़ियों तक 800 किलोमीटर में फैले हुए पूर्वी घाट पठार की पूर्वी सीमा बनाते हैं। इनकी औसत ऊंचाई 500 मीटर है। ये पर्वत मालाएं पश्चिमी घाट की अपेक्षा कम ऊंची तथा अधिक कटी-छटी हैं। इस पर्वत में कई भागों के बीच Wide Gaps मिलते हैं जिनमें से कई नदियां बहती हैं। उत्तर में ये छोटा नागपुर के पठार में मिल जाते हैं तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों में । दक्षिण भाग में जावादी (Javadi), पालकोंडा ( Palkonda ), शिवराय (Shevaroy), नालामलाई (Naillamalai) की पहाड़ियां हैं।

(ग) नीलगिरि की पहाड़ियां (Nilgiri Hills):
पश्चिमी तथा पूर्वी घाट नीलगिरि की पहाड़ियों में मिल जाते हैं। ये भूखण्ड ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों से बना है। अनाई मुदी 2698 सबसे ऊंचा शिखर है। यह एक पर्वतीय गाठ (knot) है। इसके दक्षिण में अनामलाई ( Anaimalai ), पलनी (Palni) तथा कार्डामम (Cardamom) की पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 5.
भारत के तटीय मैदानों तथा द्वीपों का वर्णन करें।
उत्तर:
तटीय मैदान (Coastal Plains): दक्षिणी पठार के पूर्वी तथा पश्चिमी किनारे पर तंग तटीय मैदान हैं जिन्हें पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान कहते हैं।

  1. इन मैदानों में चावल की खेती की जाती है।
  2. तटों पर नारियल के कुंज पाए जाते हैं।
  3. मछलियां पकड़ने के उत्तम केन्द्र हैं।
  4. इन तटों पर भारत की प्रमुख बन्दरगाहें पाई जाती हैं।
  5. इन तटों पर नमक, मोनोज़ाइट खनिज, पेट्रोलियम के भण्डार प्राप्त हैं।

1. पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plain:
यह मैदान महानदी डेल्टा से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। यह 50 किलोमीटर से 500 किलोमीटर तक चौड़ा है। इस भाग में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के चौड़े तथा उपजाऊ डेल्टाई प्रदेश हैं। इस तट पर रेत के टीले (Sand Dunes) मिलते हैं जिनके कारण चिलका झील तथा पुलीकट झील का निर्माण हुआ है। इस तट को कोरोमण्डल तट भी कहते हैं।

2. पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain ):
अब अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच एक तंग मैदान है जो उत्तर दक्षिण में फैला हुआ है। इस मैदान की चौड़ाई 50 किलोमीटर तक है। इस तट पर गिरने वाली नदियां तीव्र ढाल के कारण डेल्टा नहीं बनाती हैं। इस तटीय मैदान के उत्तरी भाग (गोआ से मुम्बई तक ) को कोंकण (Konkan) तट कहते हैं । गोआ से आगे दक्षिणी भाग को मालाबार (Malabar ) तट कहते हैं। इस तट के साथ-साथ लम्बी झीलें है (Lagoons) मिलती हैं जिन्हें एक-दूसरे से मिलाकर जल मार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता

द्वीप (Islands):
हिन्द महासागर में लगभग 550 द्वीप पाए जाते हैं। इन द्वीपों के तीन समूह निम्नलिखित हैं।
(i) अंडमान-निकोबार द्वीप समूह (Andaman Nicobar Islands ):
ये द्वीप 60°N से 14°N अक्षांश के मध्य स्थित है। अंडमान द्वीप समूह में 214 द्वीप हैं जबकि निकोबार द्वीप समूह में 19 द्वीप हैं। 10° चैनल इन द्वीप समूहों को पृथक् करती हैं। ये द्वीप 500 कि० मी० उत्तर दक्षिण में फैले हुए हैं। महासागरीय तट में डूबी पहाड़ियों के शिखर द्वीप के रूप में स्थित हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान 7

(ii) बैरन द्वीप तथा नारकण्डम द्वीप (Barren Island and Norcondam Island): ये ज्वालामुखी द्वीप हैं। भारत में केवल एक सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप हैं।

(iii) लक्षद्वीप (Laskhadweep): अरब सागर में प्रवाल निक्षेपों से बने लक्षद्वीप समूह हैं। ये केरल तट से 320 कि० मी० दूर 8°N से 12°N तक फैले हुए हैं। इन्हें अटाल (Atoll) भी कहते हैं। इनकी संख्या 27 है।

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JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Jharkhand Board Class 12 History राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 30

प्रश्न 1.
ऐसे कौनसे क्षेत्र हैं जहाँ राज्य और नगर सर्वाधिक सघन रूप से बसे थे?
उत्तर:
मानचित्र – 1 को देखने से स्पष्ट होता है कि मध्य गंगा घाटी अर्थात् पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा वर्तमान बिहार और झारखण्ड वाले क्षेत्र सर्वाधिक घने बसे थे।

पृष्ठ संख्या 31 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
मगध के शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उदय के प्रमुख कारण लिखिए।
अथवा
मगध की सत्ता के विकास के लिए आरम्भिक और आधुनिक लेखकों ने क्या-क्या व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं? एक-दूसरे से कैसे भिन्न हैं?
अथवा
मगध साम्राज्य के उत्थान के दो महत्त्वपूर्ण कारण बताइये।
उत्तर:
आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मगध की सत्ता के विकास के कारक-आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मगध की सत्ता के विकास के प्रमुख कारक निम्नलिखित थे –

  • मगध का प्रदेश बहुत उपजाक था।
  • मगध में लोहे की खदानें भी सरलता से उपलब्ध थीं। लोहे से उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
  • मगध के जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग थे।
  • गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था।

आरम्भिक इतिहासकारों के अनुसार मगध की सत्ता के विकास के कारण आरम्भिक जैन और बौद्ध इतिहासकारों के अनुसार बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापद्म नन्द जैसे प्रसिद्ध तथा महत्त्वाकांक्षी शासकों की नीतियाँ मगध के विकास के लिए उत्तरदायी थीं।

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पृष्ठ संख्या 31

प्रश्न 3.
राजगीर के किले की दीवारों का निर्माण क्यों किया गया?
उत्तर:
प्रारम्भ में राजगीर मगध महाजनपद की राजधानी थी। पहाड़ियों के बीच बसा राजगीर एक किलेबन्द शहर था। किलेबन्द शहर में राजा, मन्त्रियों तथा प्रमुख अधिकारियों . के निवास स्थान बने हुए थे यहाँ अनेक सैनिक टुकड़ियाँ भी रहती थीं। इस प्रकार राजगीर (राजनीतिक), सैनिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था। अतः राजगीर की शत्रु से रक्षा के लिए शहर के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था।

पृष्ठ संख्या 32

प्रश्न 4.
सिंह शीर्ष को आज महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
अशोक द्वारा बनवाया गया सारनाथ का पाषाण स्तम्भ तत्कालीन स्थापत्यकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस स्तम्भ के शीर्ष भाग पर बनी चार शेरों की मूर्तियाँ बड़ी सजीव तथा आकर्षक हैं। शेर के नीचे के पत्थर पर चार धर्म चक्र तथा चार पशु-घोड़ा, शेर, हाथी एवं बैल चित्र अंकित हैं। अशोक के सिंह शीर्ष को भारत सरकार ने राज्य चिह्न के रूप में अपनाया है। यह हमारी शूरवीरता, शान्तिप्रियता तथा एकता का प्रतीक है। इसलिए सिंह शीर्ष को आज महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

पृष्ठ संख्या 33

प्रश्न 5.
क्या यह भी सम्भव है कि जो क्षेत्र शासकों के अधीन नहीं थे, वहाँ भी उन्होंने अभिलेख उत्कीर्ण करवाए होंगे ?
उत्तर:
प्रायः शासक उन्हीं क्षेत्रों में अभिलेख उत्कीर्ण करवाते थे, जो उनके अधीन होते थे अतः यह सम्भव नहीं है कि जो क्षेत्र शासकों के अधीन नहीं थे, वहाँ भी उन्होंने अपने अभिलेख उत्कीर्ण करवाये थे।

पृष्ठ संख्या 34

प्रश्न 6.
विभिन्न व्यावसायिक समूहों के निरीक्षण के लिए इन अधिकारियों को क्यों नियुक्त किया जाता था?
उत्तर:
मौर्य सम्राट कुशल प्रशासक थे। उन्होंने विभिन्न व्यावसायिक समूहों के निरीक्षण के लिए अनेक अधिकारियों को नियुक्त किया। अकेला एक अधिकारी समस्त व्यावसायिक गतिविधियों पर सुचारु रूप से नियन्त्रण नहीं रख सकता था। इसलिए मौर्य सम्राटों द्वारा व्यावसायिक समूहों के निरीक्षण के लिए अनेक अधिकारियों को नियुक्त किया जाता था ताकि आर्थिक गतिविधियाँ बिना किसी अवरोध के सुचारु रूप से चलती रहें तथा वाणिज्य-व्यापार का समुचित विकास होता रहे।

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पृष्ठ संख्या 34 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
मेगस्थनीज और ‘अर्थशास्त्र’ से उद्धत अंशों को पुनः पढ़िए मौर्य शासन के इतिहास लेखन में ये ग्रन्थ कितने उपयोगी हैं?
उत्तर:
मेगस्थनीज-मेगस्थनीज की पुस्तक ‘इण्डिका’ से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था तथा मौर्यकालीन सामाजिक अवस्था के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। मेगस्थनीज के विवरण से ज्ञात होता है कि नदियों की देखरेख, भूमि-मापन, शिकारियों के संचालन, कर वसूल करने आदि कार्यों के लिए अनेक अधिकारी नियुक्त किए जाते थे मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति और 6 उपसमितियों का उल्लेख किया है एक उपसमिति नौसेना, दूसरी समिति रसद विभाग, तीसरी समिति पैदल सेना, चौथी समिति अश्वारोही सेना, पाँचवीं समिति रथ सेना तथा छठी समिति हाथी सेना का प्रबन्ध करती थी। मेगस्थनीज के विवरण से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र नगर का प्रबन्ध करने के लिए 30 सदस्यों की एक परिषद् होती थी।

यह परिषद् पाँच-पाँच सदस्यों की 6 समितियों में विभक्त थी। ये 6 समितियाँ थीं –

  1. शिल्पकला समिति
  2. विदेशी यात्री समिति
  3. जनसंख्या समिति
  4. वाणिज्य समिति
  5. उद्योग समिति
  6. कर समिति

अर्थशास्त्र – चाणक्यकृत ‘अर्थशास्त्र’ से मौर्यो की शासन व्यवस्था तथा मौर्यकालीन सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। ‘अर्थशास्त्र’ में सैनिक और प्रशासनिक संगठन के बारे में विस्तृत विवरण मिलते हैं। अर्थशास्त्र से मौर्यकालीन सम्राट, मन्त्रिपरिषद् प्रशासनिक विभागों, गुप्तचर व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, सैन्य – व्यवस्था, राजकीय आय के साधनों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। इस प्रकार मेगस्थनीज और ‘अर्थशास्त्र’ मौर्यशासन के इतिहास लेखन में अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ हैं। पृष्ठ संख्या 35

प्रश्न 8.
यदि यूनानी विवरण सही है, तो बताइये कि इतनी बड़ी सेना के भरण-पोषण के लिए मौर्य शासकों को किस तरह के संसाधनों की जरूरत पड़ती होगी?
उत्तर:
यूनानी इतिहासकारों के अनुसार मौर्य सम्राट के पास 6 लाख पैदल सैनिक 30 हजार घुड़सवार तथा 9 हजार हाथी थे। इतनी बड़ी सेना के भरण-पोषण के लिए मौर्य शासकों को निम्नलिखित संसाधनों की आवश्यकता पड़ती होगी –
(1) राजस्व मौर्य सम्राटों को भूमिकर, आयात- निर्यात कर, बिक्रीकर, वनों खानों जुर्माने न्यायालय- शुल्क, व्यावसायियों पर कर आदि अनेक करों से राजस्व की प्राप्ति होती थी। विभिन्न प्रकार के जुमनों तथा सम्पत्ति की जब्ती से भी राज्य की आमदनी होती थी।

(2) सैन्य सामग्री – सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तलवार, भाले, धनुष-बाण, कवच, टोप आदि हथियार बनाए जाते थे। राजकीय कारखानों में सैन्य सामग्री, हथियारों आदि का निर्माण किया जाता था।

(3) यातायात के साधन सैनिक अभियानों में सफलता प्राप्त करने के लिए यह भी आवश्यक था कि यातायात के साधनों का विकास किया जाए। अतः मौर्य शासकों ने अनेक सड़कों का निर्माण करवाया। उनकी मरम्मत तथा रखरखाव का भी उचित प्रबन्ध किया जाता था। जल यातायात के साधनों का विकास किया गया।

(4) रसद – कृषि, उद्योग-धन्धों तथा व्यापार वाणिज्य की उन्नति को भी प्रोत्साहन दिया गया।

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पृष्ठ संख्या 36

प्रश्न 9.
राजा को किस प्रकार दर्शाया गया है?
उत्तर:
चित्र 24 में कुषाण राजा कनिष्क को ‘देवपुत्र’ के रूप में दर्शाया गया है।

प्रश्न 10.
लोग पाण्ड्य सरदारों के लिए यह उपहार क्यों लाए ? सरदार इन उपहारों का उपयोग किसलिए करते होंगे?
उत्तर:
सरदार शक्तिशाली व्यक्ति होते थे। वे विशेष अनुष्ठानों का संचालन करते थे, युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करते थे तथा विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाते थे। वे अपने अधीन लोगों से भेंट लेते थे। अतः लोग पाण्ड्य सरदारों का बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वे उनकी आक्रमणकारियों से रक्षा करते थे इसलिए वे सरदारों के लिए विभिन्न प्रकार के उपहार लाते थे सरदार इन उपहारों को अपने समर्थकों में बांट देते होंगे। सम्भव है कि वे कुछ उपहारों का स्वयं भी उपयोग करते होंगे।

पृष्ठ संख्या 37

प्रश्न 11.
इस मूर्ति में ऐसी क्या विशेषताएँ हैं जिनसे यह प्रतीत होता है कि यह एक राजा की मूर्ति है ? (चित्र के लिए देखें पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ 37 चित्र 2.5 )
उत्तर:
इस मूर्ति की निम्नलिखित विशेषताओं से प्रतीत होता है कि यह एक राजा की मूर्ति है –
(1) मूर्ति को निरकुंश एवं गौरवपूर्ण मुद्रा में दिखाया गया है।
(2) उसके एक हाथ में तलवार तथा दूसरे हाथ में म्यान है।
(3) उसकी वेशभूषा शाही है।

पृष्ठ संख्या 37 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
राजाओं ने दिव्य स्थिति का दावा क्यों किया?
उत्तर:
विदेशी राजाओं के लिए उच्च स्थिति प्राप्त करने तथा अपनी प्रजा से अपनी आज्ञाओं का पालन करवाने का एक प्रमुख साधन विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ना था। अतः लगभग प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से प्रथम शताब्दी ई. में अनेक विदेशी राजाओं ने दिव्य स्थिति का दावा प्रस्तुत किया और अपने को देवतुल्य प्रस्तुत किया।

पृष्ठ संख्या 38

प्रश्न 13.
शासकों ने सिंचाई के प्रबन्ध क्यों किए ?
उत्तर:
(1) उपज बढ़ाने के लिए शासकों ने सिंचाई के प्रबन्ध किये। इससे राज्य की आय में भी वृद्धि होती श्री भूमि कर राज्य की आय का प्रमुख साधन था।
(2) कृषि लोगों के जीवन निर्वाह का प्रमुख साधन था। इसलिए कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई के साधनों का प्रबन्ध करना आवश्यक था।
(3) कुछ राजा प्रजावत्सल होते थे अतः उन्होंने किसानों की भलाई के लिए सिंचाई का उत्तम प्रबन्ध किया।

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पृष्ठ संख्या 39

प्रश्न 14.
क्या ये सीमा चिह्न विवाद के हल के लिए पर्याप्त रहे होंगे ?
उत्तर:
निःसंदेह ये सीमाचिह्न प्राचीनकाल में सीमा सम्बन्धी विवादों के हल के लिए पर्याप्त रहे होंगे। पृष्ठ संख्या 40

प्रश्न 15.
इस अंश में वर्णित लोगों को व्यवसाय के आधार पर आप कैसे वर्गीकृत करेंगे ?
उत्तर:
इस अंश में वर्णित लोगों को व्यवसाय के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता

  • कितन
  • श्रमिक
  • फल-फूल बेचने वाले माली।

पृष्ठ संख्या 41

प्रश्न 16.
इस गाँव में कौन-कौनसी वस्तुएँ पैदा की जाती थीं?
उत्तर:
इस गाँव में खनिज पदार्थ, खदिर वृक्ष, जानवरों की खाल, घास, कोयला, फूल, दूध, मदिरा आदि वस्तुएँ पैदा की जाती थीं।

पृष्ठ संख्या 41 चर्चा कीजिए

प्रश्न 17.
यह पता कीजिए कि क्या आपके राज्य में हल से खेती, सिंचाई तथा धान की रोपाई की जाती है? और अगर नहीं तो क्या कोई वैकल्पिक व्यवस्थाएँ हैं?
उत्तर:
विद्यार्थी इसको स्वयं करें। इसके लिए विद्यार्थी, शिक्षक अथवा अभिभावक की सहायता ले सकते हैं।

पृष्ठ संख्या 43

प्रश्न 18.
तीसरी सहस्त्राब्दी ई. पूर्व में हड़प्पा सभ्यता जिस क्षेत्र में फैली, क्या वहाँ कोई नगर थे?
उत्तर:
तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व में हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत मोहनजोदड़, हड़प्या, कालीबंगा, लोथल, चन्द्रदड़ो आदि नगर थे।

पृष्ठ संख्या 44

प्रश्न 19.
लेखक ने यह सूची क्यों तैयार की थी?
उत्तर:
‘पेरिप्लस ऑफ एरीब्रियन सी’ के लेखक एक यूनानी समुद्र यात्री ने अनेक वस्तुओं की सूची तैयार की। लेखक इस सूची के माध्यम से यह बताना चाहता है कि अनेक वस्तुओं का समुद्री मार्गों द्वारा आयात-निर्यात किया जाता था। इसके लिए उसने अनेक वस्तुओं की सूची तैयार की थी। लेखक के अनुसार भारत में भारी मात्रा में पुखराज, सिक्कों, सुरमा, मूंगे, कच्चे शीशे, तौबे, टिन और सीसे का आयात किया जाता था तथा भारत से काली मिर्च, दालचीनी आदि का निर्यात किया जाता था।

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पृष्ठ संख्या 45 चर्चा कीजिए

प्रश्न 20.
व्यापार में विनिमय के लिए क्या-क्या प्रयोग होता था? उल्लिखित स्रोतों से किस प्रकार के विनिमय का पता चलता है? क्या कुछ विनिमय ऐसे भी हैं जिनका ज्ञान स्रोतों से नहीं हो पाता है?
उत्तर:
(1) व्यापार में विनिमय के लिए सिक्कों का प्रयोग व्यापार में विनिमय के लिए विभिन्न प्रकार के सिक्कों का प्रयोग किया जाता था। छठी शताब्दी ई. पूर्व में चाँदी और ताँबे के आहत सिक्कों का प्रचलन था इन सिक्कों को राजाओं ने जारी किया था। सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं ने जारी किये थे। दक्षिण भारत में रोमन सिक्के बड़ी संख्या में मिले हैं। इससे स्पष्ट है कि दक्षिण भारत का रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध था। पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के यौधेयगण राज्यों ने भी सिक्के जारी किये थे। व्यापार में यौधेय सिक्कों का भी प्रयोग किया जाता था। सोने के सबसे उत्कृष्ट सिक्के गुप्त सम्राटों ने जारी किये थे। इन सिक्कों के माध्यम से दूर देशों से व्यापार विनिमय करने में आसानी होती थी।

(2) व्यापार में विनिमय के लिए वस्तुओं का प्रयोग- व्यापार में विनिमय के लिए वस्तुओं का भी प्रयोग किया जाता था जैसे सूती कपड़े, मसाले, बहुमूल्य धातुएँ, जूट, कपास, जड़ी-बूटियाँ आदि सोने के सिक्कों के व्यापक प्रयोग से जात होता है कि बहुमूल्य वस्तुओं और भारी मात्रा में वस्तुओं का विनिमय भी किया जाता था।

पृष्ठ संख्या 46

प्रश्न 21.
क्या कुछ देवनागरी अक्षर ब्राह्मी से मिलते- जुलते हैं? क्या कुछ भिन्न भी हैं? (चित्र के लिए देखें पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ 46 )
उत्तर:
हाँ, देवनागरी का ‘द’ अक्षर ब्राह्मी के ‘द’ अक्षर से मिलता-जुलता है। ‘क’ बनावट भी ब्राह्मी अक्षर अन्य अक्षर ब्राह्मी से भिन्न हैं।

पृष्ठ संख्या 47

प्रश्न 22.
अभिलेखशास्त्रियों ने पतिवेदक शब्द का अर्थ संवाददाता बताया है। आधुनिक संवाददाता की तुलना में पतिवेदक के दायित्व कितने भिन्न रहे होंगे?
उत्तर:
आधुनिक संवाददाता की तुलना में पतिवेदक के दायित्व काफी भिन्न रहे होंगे। पतिवेदक का यह दायित्व था कि वह लोगों के समाचार सम्राट तक सदैव पहुँचाए । चाहे सम्राट कहीं भी हो, चाहे वह खाना खा रहा हो, अन्तःपुर में हो, विश्राम कक्ष में हो, गोशाला में हो या उसे पालकी में ले जाया जा रहा हो, अथवा वह वाटिका में हो, उसे लोगों के समाचार तुरन्त पहुँचाए जाएँ। परन्तु आधुनिक संवाददाता का यह दायित्व नहीं है कि उपर्युक्त परिस्थितियों में व्यक्ति तक समाचार पहुँचाए। वह अपनी सुविधानुसार लोगों तक समाचार पहुँचा सकता है। इस प्रकार पतिवेदक प्रजा तथा राज्य के बीच सन्देशवाहक का भी काम करता था।

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पृष्ठ संख्या 48 चर्चा कीजिए

प्रश्न 23.
मानचित्र 2 देखिए और अशोक के अभिलेख के प्राप्ति स्थान की चर्चा कीजिए क्या उनमें कोई एक-सा प्रारूप दिखता है?
उत्तर:
मानचित्र – 2 के अनुसार अशोक के अभिलेख प्राप्ति के स्थान निम्नलिखित हैं-

  1. मानसेहरा
  2. शहबाजगढ़ी
  3. कलसी
  4. कंदहार
  5. गिरनार
  6. जौगड़
  7. बहपुर
  8. शिशुपालगढ़
  9. सोपारा
  10. गुजर
  11. सिदपुर
  12. सारनाथ
  13. लौरिया नन्दनगढ़
  14. मास्को
  15. रुम्मिनदेई
  16. रामपुरवा

अशोक के उपर्युक्त अभिलेखों की भिन्न-भिन्न श्रेणियाँ हमें प्राप्त होती हैं इन विशेष श्रेणियों के अभिलेखों में एकरूपता दिखाई देती है।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 1.
आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न है?
उत्तर:
आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाण-
(1) लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में अनेक नगरों का उदय हुआ। इन नगरों में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियां मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। इन्हें ‘उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र’ कहा जाता है। इनका प्रयोग सम्भवतः धनी लोग करते होंगे।

(2) यहाँ से सोने, चाँदी, काँस्य, तांबे, हाथीदाँत, शीशे के बने गहनों, उपकरणों, हथियारों, बर्तनों, सीप और पक्की मिट्टी आदि के प्रमाण मिले हैं।

(3) दानात्मक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इम नगरों में बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार आदि शिल्पकार रहते थे। लौहकार लोहे का सामान बनाते थे परन्तु हड़प्पा के नगरों में लोहे के प्रयोग के प्रमाण नहीं मिले हैं।

(4) नगरों में उत्पादकों एवं व्यापारियों के संघ बने हुए जिन्हें ‘श्रेणी’ कहा जाता था ये श्रेणियों पहले कच्चा माल खरीदती थीं तथा फिर उनसे सामान तैयार कर बाजारों में बेच देती थीं। परन्तु हड़प्पा के नगरों में इन श्रेणियों के होने के प्रमाण नहीं मिलते हैं।

(5) यह सम्भव है कि शिल्पकारों ने नगरों में रहने वाले प्रतिष्ठित लोगों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए कई प्रकार के लौह उपकरणों का प्रयोग किया हो। परन्तु हड़प्पा के नगरों में लौह उपकरणों के प्रयोग का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

(6) हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने, मातृदेवी, काँसे की मूर्तियाँ बनाने, मुहरें बनाने आदि के शिल्प विकसित थे, परन्तु आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में ये प्रमाण नहीं मिलते।

प्रश्न 2.
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाजनपदों की कोई सी चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण – छठी शताब्दी ई. पूर्व भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में महाजनपद के नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है। महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित थे –

  1. अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था। परन्तु गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई ब्लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।
  2. प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जिसे प्रायः किले से घेरा जाता था किलेबन्दे राजधानियों के रख-रखाव, प्रारम्भी सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोतों की आवश्यकता होती थी।
  3. लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से संस्कृत में ब्राह्मणों द्वारा रचित धर्मशास्त्रों में शासकों तथा अन्य लोगों के लिए नियम निर्धारित किये गए और यह अपेक्षा की . जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ग से ही होंगे।
  4. किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना शासक का कर्तव्य माना जाता था।
  5. पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी एक वैध उपाय माना जाता था।
  6. धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तन्त्र संगठित कर लिया।

प्रश्न 3.
सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण इतिहासकार कैसे करते हैं?
उत्तर:
इतिहासकारों द्वारा सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करना-
(1) इतिहासकार अभिलेखों, ग्रन्थों, सिक्कों, चित्रों आदि विभिन्न प्रकार के स्रोतों का अध्ययन करते हैं तथा उनकी सहायता से सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं।

(2) साहित्यिक ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक आदि क्षेत्रों में कृषक बस्तियाँ अस्तित्व में आई और दक्कन तथा दक्षिण भारत के क्षेत्रों में चरवाहा बस्तियाँ स्थापित हुई।

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(3) पुरातात्विक स्रोतों से पता चलता है कि ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दी के दौरान मध्य दक्षिण भारत में शवों के अन्तिम संस्कार के नवीन तरीके भी ज्ञात हुए कुछ शवों के साथ लोहे के औजार और हथियार भी दफनाये जाते थे।

(4) अभिलेखों से ज्ञात होता है कि प्राकृत भाषाएँ जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं।

(5) जातक कथाओं से पता चलता है कि राजा तथा ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे। शासक अपनी प्रजा पर भारी कर लगाते थे. जिससे लोग अत्याचारों से बचने के लिए अपने घर छोड़ कर जंगलों में भाग जाते थे।

(6) किसान उपज बढ़ाने के लिए लोहे के फाल वाले हलों का प्रयोग करते थे तथा खेतों की सिंचाई के लिए कुओं, तालाबों तथा नहरों का प्रयोग करते थे।

(7) बौद्ध ग्रन्थों में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है।

(8) प्रभावती गुप्त के अभिलेख से हमें ग्रामीण प्रजा का पता चलता है।

(9) दानात्मक अभिलेखों से नगरों में रहने वाले शिल्पकारों, उत्पादकों और व्यापारियों के संघों (श्रेणियों) के बारे में जानकारी मिलती है। राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं, उसे अभिलेखों में ऑकत किया ही गया हो। उदाहरण के लिए, खेती की दैनिक प्रक्रियाएँ और दैनिक जीवन के सुख-दुःख का उल्लेख अभिलेखों में नहीं मिलता, क्योंकि प्रायः अभिलेख बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं।

प्रश्न 4.
पाण्ड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जाने वाली वस्तुओं की तुलना दंगुन गाँव (स्रोत 8) की वस्तुओं से कीजिए आपको क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं?
उत्तर:
पाण्ड्य सरदार को दी जाने वाली वस्तुएँ- पाण्ड्य सरदार को हाथी दांत, सुगन्धित लकड़ी, हिरणों के बाल से बने चंवर, मधु, चन्दन, गेरू, सुरमा, हल्दी, इलायची, मिर्च आदि वस्तुएँ भेंट की गई। इसके अतिरिक्त लोगों ने उसे नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, फूल, सुपारी, केला तथा बाघ के बच्चे, हाथी, बन्दर, भालु, मृग, मोर, कस्तुरी, जंगली मुर्गे, बोलने वाले तोते, शेर आदि भी उपहार में दिए। दंगुन गाँव की वस्तुएँ – दंगुन गाँव की वस्तुओं में घास, जानवरों की खाल, कोयला, मदिरा, नमक, खनिज पदार्थ, खदिर वृक्ष के उत्पाद, फूल, दूध आदि सम्मिलित हैं।

समानताएँ – फूल की समानता पाई जाती है।
असमानताएँ – हाथीदाँत, सुगन्धित लकड़ी, हिरणों के बाल से बने चंवर, मधु, चन्दन, गेरू, सुरमा, हल्दी, इलायची, मिर्च, नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, सुपारी, केला तथा अनेक पशु-पक्षी, घास, जानवरों की खाल, कोयला, मदिरा, नमक, खनिज पदार्थ, खंदिर वृक्ष के उत्पाद, दूध आदि वस्तुओं में असमानताएं पाई जाती हैं।

प्रश्न 5.
अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं की सूची बनाइये।
उत्तर:
अभिलेखशास्त्रियों की समस्याएँ- अभिलेखशास्त्रियों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
(1) कभी-कभी अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है, जिन्हें पढ़ पाना कठिन होता है।
(2) अभिलेख नष्ट भी हो सकते हैं, जिससे अक्षर लुत जाते हैं।
(3) अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान हो पाना भी हमेशा आसान नहीं होता क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से सम्बन्धित होते हैं।
(4) यद्यपि अभिलेख हजारों की संख्या में प्राप्त हुए हैं, परन्तु सभी के न तो अर्थ निकाले जा सके हैं और न ही उनके अनुवाद किए गए हैं।
(5) अनेक अभिलेख और भी रहे होंगे परन्तु अब उनका अस्तित्व नहीं बचा है इसलिए जो अभिलेख अभी उपलब्ध हैं, वे सम्भवतः कुल अभिलेखों के अंश मात्र हैं।
(6) अभिलेखों के सम्बन्ध में एक और मौलिक समस्या भी है। यह आवश्यक नहीं है कि जिसे हम आज राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं, उसे अभिलेखों में ऑकत किया ही गया हो। उदाहरण के लिए, खेती की दैनिक प्रक्रियाएँ और दैनिक जीवन के सुख-दुःख का उल्लेख अभिलेखों में नहीं मिलता, क्योंकि प्रायः अभिलेख बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं।
(7) अभिलेख सदैव उन्हीं व्यक्तियों के विचार व्यक्त करते हैं, जो उन्हें बनवाते थे। इन अभिलेखों में सामान्य लोगों के विचारों के विषय में जानकारी नहीं मिलती। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 6.
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इनमें से कौन- कौनसे तत्त्वों के प्रमाण मिलते हैं?
अथवा
मौर्य प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षण मौर्य साम्राज्य को भारत का प्रथम विस्तृत तथा स्वतन्त्र साम्राज्य माना जाना है क्योंकि इस साम्राज्य का अपना व्यवस्थित प्रशासन तथा नियमावली थी। इसी के आधार पर मौर्य साम्राज्य एक महान् साम्राज्य का स्वरूप धारण कर पाया। मौर्य प्रशासन में तत्कालीन समय में अनेक विशेषताएँ विद्यमान थीं। मेगस्थनीज के विवरण, कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा अशोक के अभिलेखों से हमें मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है।

मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित थे –
(1) पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र- मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे राजधानी पाटलिपुत्र तथा चार प्रान्तीय केन्द्र – तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि। इनमें से मौर्य साम्राज्य का सबसे बड़ा केन्द्र पाटलिपुत्र था; जो मौर्य साम्राज्य की राजधानी था। शेष प्रान्तीय केन्द्र थे। इन राजनीतिक केन्द्रों का उल्लेख अशोक के अभिलेखों में मिलता है।

(2) असमान प्रशासनिक व्यवस्था इतिहासकारों के अनुसार मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था समान नहीं थी। मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित क्षेत्र एक जैसे नहीं थे। ये क्षेत्र बड़े विविध और भिन्न-भिन्न प्रकार के थे-कहाँ अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र और कहाँ उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र। परन्तु यह सम्भव है कि मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र तथा उसके आस-पास के प्रान्तीय केन्द्रों पर सबसे प्रबल प्रशासनिक नियन्त्रण रहा हो।

(3) प्रशासनिक केन्द्रों का चयन प्रान्तीय केन्द्रों का चयन बड़े ध्यान से किया गया था। तक्षशिला तथा उज्जयिनी दोनों लम्बी दूरी वाले महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग पर स्थित थे। कर्नाटक में स्थित सुवर्णगिरि (अर्थात् सोने के पहाड़) सोने की खदान के लिए उपयोगी था।

(4) आवागमन को बनाए रखना साम्राज्य में संचालन के लिए स्थल और जल दोनों मार्गों से आवागमन बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक था। राजधानी पाटलिपुत्र से प्रान्तों तक जाने में कई सप्ताह या महीनों का समय लग जाता था। इस बात को ध्यान में रखते हुए यात्रियों के लिए खान-पान और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती होगी।

(5) सेना का प्रबन्ध-मौर्य सम्राटों ने एक विशाल सेना का गठन किया था यूनानी इतिहासकारों के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के पास छः लाख पैदल सैनिक, तीस हजार घुड़सवार तथा नौ हजार हाथी थे कुछ इतिहासकार इस विवरण को अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हैं। मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति तथा उपसमितियों का उल्लेख किया है।

इन उपसमितियों के कार्य निम्नलिखित थे-

  • पहली उपसमिति नौसेना का संचालन करती थी।
  • दूसरी उपसमिति यातायात एवं खान-पान का संचालन करती थी।
  • तीसरी उपसमिति का काम पैदल सैनिकों का संचालन करना था।
  • चौथी उपसमिति अश्वारोहियों का संचालन करती
  • पाँचवीं उपसमिति रथारोहियों का संचालन करती
  • छठी उपसमिति का काम हाथियों का संचालन करना था।

दूसरी उपसमिति विविध प्रकार के काम करती थी, जैसे उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था करना, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।

(6) धम्म महामात्रों की नियुक्ति-अशोक ने अपने साम्राज्य को अखण्ड बनाये रखने का प्रयास किया। ऐसा उन्होंने धम्म के प्रचार के द्वारा भी किया। धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्र नामक विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।

(7) पतिवेदकों की नियुक्ति – अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि लोगों के समाचार जानने के लिए अशोक ने ‘पतिवेदक’ नामक अधिकारी नियुक्त किए थे। अपने एक अभिलेख में अशोक कहते हैं, “लोगों के समाचार हम तक पतिवेदक सदैव पहुँचाएँ। चाहे में कहीं भी खाना खा रहा हूँ, अन्तःपुर में हूँ, या फिर पालकी में मुझे ले जाया जा रहा हो, अथवा वाटिका में हैं। मैं लोगों के विषयों का निराकरण हर स्थल पर करूंगा।” अर्थात् ये प्रतिवेदक समाचार पहुँचाने के लिए कहीं भी कभी भी सम्राट् तक सीधे पहुँच सकते थे।

प्रश्न 7.
यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री डी.सी. सरकार का वक्तव्य है : “भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिसका प्रतिबिम्ब अभिलेखों में नहीं है” : चर्चा कीजिए।
अथवा
इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्त्व पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
अभिलेखों द्वारा भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों के बारे में जानकारी बीसवीं शताब्दी के सुविख्यात अभिलेखशास्वी डी.सी. सरकार ने ठीक ही कहा है कि “भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबिम्ब अभिलेखों में नहीं है।” भारतीयों के जीवन, संस्कृति तथा गतिविधियों के बारे में अभिलेखों से निम्नलिखित जानकारी मिलती है –
(1) राज्यों की सीमाओं की जानकारी-अभिलेखों से विभिन्न शासकों के राज्यों की सीमाओं की जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे –

  • राजधानी पाटलिपुत्र
  • तक्षशिला (प्रान्तीय केन्द्र)
  • उज्जयिनी (प्रान्तीय केन्द्र)
    तोसलि (प्रान्तीय केन्द्र)
  • सुवर्णगिरि (प्रान्तीय केन्द्र)।

(2) शासकों के नाम, उपाधियाँ, वंशावली की जानकारी – अभिलेखों से हमें शासकों के नाम, उपाधियों तथा वंशावली के बारे में जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों में अशोक के लिए ‘देवानामप्रिय’ तथा ‘पियदस्सी’ (प्रियदर्शी) आदि नामों का भी प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक ‘देवानामप्रिय’ तथा ‘पियदस्सी’ के नामों से भी पुकारे जाते थे।

(3) काल निर्धारण- कई अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी उत्कीर्ण होती है। जिन अभिलेखों पर तिथि नहीं मिलती है, उनका काल-निर्धारण प्रायः पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर किया जा सकता है।

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(4) भाषाओं और लिपियों के बारे में जानकारी- प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत भाषा जनसाधारण की भाषा होती थी। अनेक अभिलेख संस्कृत, पालि, तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में भी मिलते हैं। इनसे तत्कालीन साहित्यिक प्रगति के बारे में जानकारी मिलती है। अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि प्रयुक्त की गई है। इस प्रकार मौर्य काल में प्रचलित लिपियों के बारे में जानकारी मिलती है।

(5) राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्ध की जानकारी प्राचीन भारत में भूमिदान अभिलेखों के प्रमाण मिलते हैं। भूमिदान प्रायः धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों को दिए जाते थे। इन अभिलेखों से ग्रामीण प्रजा के बारे में भी जानकारी मिलती है। भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।

(6) प्रशासन सम्बन्धी जानकारी- अशोक के अभिलेखों से मौर्य साम्राज्य के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में जानकारी मिलती है। सम्राट अशोक ने धम्म महामात्र, अन्त: महामात्र स्त्री अध्यक्ष महामात्र, पतिवेदक आदि अनेक अधिकारी नियुक्त किए थे।

(7) समकालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति की जानकारी – अभिलेखों से समकालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जानकारी मिलती है।

(8) ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी प्रयाग प्रशस्ति’ से समुद्रगुप्त की विजयों, उपलब्धियों के बारे में जानकारी मिलती है। अशोक के शिलालेखों से उसकी कलिंग की विजय के बारे में पता चलता है।

(9) शासकों के चरित्र तथा व्यक्तित्व-अभिलेखों से हमें तत्कालीन शासकों के चरित्र तथा व्यक्तित्व के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ‘प्रयाग प्रशस्ति’ से समुद्रगुप्त की चारित्रिक विशेषताओं, ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से शक शासक रुद्रदामन के चरित्र एवं व्यक्तित्व के बारे में जानकारी मिलती है।

(10) सामाजिक वर्गों की जानकारी हमें दानात्मक अभिलेखों से नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, धार्मिक गुरु, व्यापारी आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

(11) कला के स्तर की जानकारी अभिलेखों से तत्कालीन कला की उत्कृष्टता का बोध होता है।

(12) धार्मिक स्थिति की जानकारी- अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसने धम्म के प्रचार- प्रसार के लिए अनेक उपाय किये थे उसके अभिलेखों में उसके बौद्ध धर्मावलम्बी होने का पता चलता है। अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसने बाराबर की पहाड़ियों में आजीविक सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए तीन गुफाएँ दान में दी थीं। इससे अशोक की धर्म- सहिष्णुता का बोध होता है।

प्रश्न 8.
उत्तर – मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उत्तर- मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचार –
उत्तर- भारतीय प्रारम्भ से ही अधिक धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं, वे अपने जीवन की लगभग प्रत्येक स्थिति, परिस्थिति को धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं इस तथ्य का लाभ मौर्यों के पतन के उपरान्त भारत आयी अनेक आक्रमणकारी जातियों ने उठाया। इन आक्रमणकारियों को तत्कालीन ब्राह्मणवादी वैदिक व्यवस्था के चतुर्वर्ण में कोई स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा था; उदाहरण के लिए एक स्थान पर यवनों को म्लेच्छ कहा गया है।

अतः इन आक्रमणकारियों को ब्राह्मणवादी चतुर्वर्ण व्यवस्था में स्थान प्राप्त करने हेतु, भारतीयों का विश्वास जीतने हेतु स्वयं को भारतीय दिखाने हेतु तथा भारत में अपना स्थायी साम्राज्य स्थापित करने के लिए स्वयं को दैवीय सिद्ध करना आवश्यक था। यह कार्य उन्होंने अपने सिक्कों, अभिलेख लेख, साहित्य तथा विभिन्न उपाधियों के माध्यम से सम्पादित किया। उत्तर-मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचारों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –

(1) दैविक राजा:
उत्तर- मौर्यकालीन राजाओं के लिए उच्च स्थिति प्राप्त करने का एक साधन विभिन्न देवी- देवताओं के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करना था। मध्य एशिया से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने (लगभग प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से प्रथम शताब्दी ई. तक) अपने आपको दैविक राजाओं के रूप में प्रस्तुत किया। जिस प्रकार के राजधर्म (राजत्व के सिद्धान्त) को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने का प्रयास किया, उसका सर्वश्रेष्ठ प्रमाण उनके सिक्कों और मूर्तियों से प्राप्त होता है।

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(2) कुषाण शासकों का राजत्व का विचार:
(i) उत्तर- प्रदेश में मथुरा के निकट माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थीं। अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ मिली हैं। कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि इन मूर्तियों के द्वारा कुषाण शासक स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कई कुषाण शासकों ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि भी धारण की थी। सम्भवतः वे उन चीनी सम्राटों से प्रेरित हुए होंगे, जो स्वयं को ‘स्वर्गपुत्र’ कहते थे।

(ii) एक कुषाण सिक्के में कुषाण सम्राट कनिष्क को देव तुल्य प्रदर्शित किया गया है। इस सिक्के के अग्र भाग प्रकार लोहे के प्रचलन ने द्वितीय नगरीकरण, महाजनपदों के निर्माण तथा विशाल मगध साम्राज्य की स्थापना में अपना प्रत्यक्ष योगदान दिया।

(2) हल का प्रचलनकरों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए किसान उपज बढ़ाने के उपाय ढूंढ़ने लगे। उपज बढ़ाने का एक तरीका हल का प्रचलन था। हल का प्रयोग छठी शताब्दी ई. पूर्व से ही गंगा और कावेरी नदी की घाटियों के उपजाऊ कछारी क्षेत्र में होने लगा था। भारी वर्षा होने वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हलों के द्वारा उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। इसके अतिरिक्त गंगा की घाटी में धान की रोपाई की जाती थी जिससे उपज में भारी वृद्धि होने लगी परन्तु धान की रोपाई के लिए किसानों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था।

(3) लोहे के फाल वाले हलों का सीमित उपयोग- यद्यपि लोहे के फाल वाले हलों का उपयोग करने से फसलों की उपज बढ़ गई, परन्तु ऐसे हलों का उपयोग उपमहाद्वीप के केवल कुछ ही भागों तक सीमित था। पंजाब तथा राजस्थान के अर्धशुष्क इलाकों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग बीसवीं सदी में शुरू हुआ।

(4) कुदाल का उपयोग उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसान खेती के लिए कुदाल का उपयोग करते थे कुदाल का उपयोग इस प्रकार के इलाकों के लिए कहीं अधिक उपयोगी था।

(5) कुओं, तालाबों तथा नहरों से सिंचाई करना- उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों तथा कहीं- कहीं नहरों से सिंचाई करना था। व्यक्तिगत लोगों तथा कृषक समुदायों ने मिलकर सिंचाई के साधनों के विकास में योगदान दिया। व्यक्तिगत रूप से तालाबों, कुओं और नहरों आदि सिंचाई के साधनों को विकसित करने वाले लोग प्राय: राजा या प्रभावशाली लोग थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र में सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था।

(6) कृषि के नवीन तौर-तरीकों के प्रभाव-कृषि के नवीन तौर-तरीकों के निम्नलिखित प्रभाव हुए –

(i) खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ना – इससे यद्यपि खेतों की इन नयी तकनीकों से उपज तो बढ़ी, परन्तु खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ने लगे। बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों तथा बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। पालि भाषा में गहपति का उल्लेख मिलता है जिसका प्रयोग छोटे किसानों तथा जमींदारों के लिए किया जाता था।
(ii) बड़े-बड़े जमींदारों तथा ग्राम प्रधानों का प्रभुत्व- बड़े-बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली माने जाते थे जो प्रायः किसानों पर नियन्त्रण रखते थे। ग्राम प्रधान का पद प्रायः वंशानुगत होता था। प्रारम्भिक तमिल संगम साहित्य में गाँवों के रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है, जैसे कि बेल्लालर या बड़े जमींदार, हलवाहा या उल्चर और दास अणिमई। यह प्रतीत होता है कि वर्गों की यह विभिन्नता भूमि के स्वामित्व, श्रम और नई प्रौद्योगिकी के उपयोग पर आधारित होगी। ऐसी परिस्थिति में भूमि का स्वामित्व महत्वपूर्ण हो गया था।

 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ JAC Class 12 History Notes

→ उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में विकास- हड़प्पा सभ्यता के पश्चात् 1500 वर्षों के दौरान उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए। इस अवधि में ऋग्वेद की रचना हुई उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र, कर्नाटक आदि में कृषक बस्तियाँ बसीं। इस युग में शवों के अन्तिम संस्कार के नये तरीके सामने आए।

→ नये परिवर्तन – ईसा पूर्व छठी शताब्दी से नए परिवर्तनों के प्रमाण मिलते हैं। इस युग में आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास हुआ। सम्पूर्ण महाद्वीप में नये नगरों का उदय हुआ ।

→ विकास की जानकारी अभिलेखों, ग्रन्थों, सिक्कों तथा चित्रों से इस युग मेँ हुए विकास की जानकारी मिलती है।

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→ प्रिंसेप और पियदस्सी 1830 के दशक में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी | तथा खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी नामक राजा का नाम लिखा था। कुछ अभिलेखों पर अशोक भी लिखा था।

→ अभिलेख – अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। इन अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियों का उल्लेख होता है जो उन्हें बनवाते हैं।

→ जनपद – जनपद का अभिप्राय उस भूखण्ड से है, जहाँ कोई जन. (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है।

→ सोलह महाजनपद – छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में सोलह महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध एवं जैन धर्म के ग्रन्थों में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार, अवन्ति आदि महत्त्वपूर्ण महाजनपद थे। प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी।

→ मगध महाजनपद : सोलह महाजनपदों में प्रथम छठी से चौथी शताब्दी ई. पूर्व में मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। इसके शक्तिशाली होने के प्रमुख कारण थे –

  • खेती की उपज का अच्छा होना
  • यहाँ लोहे की खदानों का उपलब्ध होना
  • हाथियों का उपलब्ध होना
  • आवागमन का सस्ता और सुलभ होना
  • विभिन्न शासकों की नीतियाँ।

प्रारम्भ में राजगाह (राजगीर का प्राकृत नाम) मगध की राजधानी थी, बाद में चौथी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया।

→ मौर्य साम्राज्य का उदय-मगध के साम्राज्य का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था। उसने 321 ई. पूर्व में मगध साम्राज्य की स्थापना की। उसका साम्राज्य पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और ब्लूचिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्य साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए यूनानी राजदूत मेगस्थनीज द्वारा लिखा गया विवरण और कौटिल्य कृत ‘अर्थशास्त्र’ बड़े उपयोगी ग्रन्थ हैं।

→ अशोक अशोक को आरम्भिक भारत का सर्वप्रसिद्ध शासक माना जा सकता है। उसने कलिंग पर विजय प्राप्त की। अशोक पहला सम्राट था जिसने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए संदेश पत्थरों एवं स्तम्भों पर लिखवाये। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से ‘धम्म’ का प्रचार किया। धम्म के प्रमुख सिद्धान्त थे—बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर।

→ मौर्य साम्राज्य का प्रशासन मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे राजधानी पाटलिपुत्र तथा चार प्रान्तीय केन्द्र — तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि तथा सुवर्णगिरि मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति तथा 6 उपसमितियों का उल्लेख किया है। अशोक ने धम्म के प्रचार के लिए ‘धम्म महामात्त’ नामक अधिकारी नियुक्त किए।

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→ मौर्य साम्राज्य का महत्त्व उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों को मौर्य साम्राज्य चुनौतीपूर्ण तथा उत्साहवर्द्धक लगा। मौर्यकालीन पत्थर की मूर्तियाँ स्तम्भ आदि अद्भुत कला के प्रमाण थे। इतिहासकारों के अनुसार अशोक एक बहुत शक्तिशाली तथा परिश्रमी और विनम्र शासक थे इसलिए बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना

→ मौर्य साम्राज्य की त्रुटियाँ
(1) मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहा।
(2) मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फैल पाया था।

→ दक्षिण के राजा और सरदार-तमिलकम में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ। ये राज्य बहुत ही समृद्ध और स्थायी सिद्ध हुए प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों से इन सरदारों के बारे में जानकारी मिलती है। 15. दैविक राजा कुषाण शासकों ने उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने आपको देवी-देवताओं के साथ जुड़ने का प्रयास किया। वे मूर्तियों के द्वारा स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कई कुषाण शासक अपने नाम के
आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि लगाते थे।

→ गुप्त साम्राज्य – गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है। इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध ‘प्रयाग प्रशस्ति’ की रचना हरिषेण ने की थी हरिषेण समुद्रगुप्त के राजकवि थे।

→ सुदर्शन झील सुदर्शन झील एक कृत्रिम जलाशय था। इसका निर्माण मौर्य काल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। इसके बाद शक शासक स्द्रदामन ने इस झील की मरम्मत अपने खर्चे से करवाई थी गुप्तवंश के एक शासक ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।

→ राजा और प्रजा के बीच सम्बन्ध- हमें ‘जातक कथाओं’ तथा ‘पंचतन्त्र’ जैसे ग्रन्थों से राजा और प्रजा के बीच सम्बन्धों की जानकारी मिलती है जातक कथाओं की रचना पहली सहस्राब्दी ई. के मध्य में पालि भाषा में की गई थी। जातक कथाओं से पता चलता है कि राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे। इसके दो प्रमुख कारण थे –
(1) राजा अपने राजकोष को भरने के लिए प्रजा से बड़े-बड़े करों की माँग करते थे।
(2) चोरों और डाकुओं से प्रजा की रक्षा के प्रति शासक लोग उदासीन रहते थे। संकट से बचने के लिए किसान लोग अपने-अपने गाँव छोड़ कर जंगल की ओर भाग जाते थे।

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→ उपज बढ़ाने के उपाय भारी वर्षा होने वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हलों से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। गंगा की घाटी में धान रोपने के कारण भी उपज में भारी वृद्धि होने लगी। उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों तथा नहरों के माध्यम से सिंचाई करना था।

→ ग्रामीण समाज में विभिन्नताएँ खेती से जुड़े लोगों में उत्तरोत्तर भेद बढ़ता जा रहा था। बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता था।

→ मनुस्मृति मनुस्मृति आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि ग्रन्थ है इसकी रचना संस्कृत भाषा में दूसरी शताब्दी ई. पूर्व और दूसरी शताब्दी ई. के मध्य की गई थी।

→ हर्षचरित हर्षचरित संस्कृत में लिखी गई कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है। इसके लेखक बाणभट्ट थे जो हर्षवर्धन के राजकवि थे।

→ भूमिदान और नए सम्भ्रान्त ग्रामीण- भूमिदान प्रायः धार्मिक संस्थाओं और ब्राह्मणों को दिए गए थे। भूमिदान सम्भवतः उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था जो भूमिदान लेते थे। प्रभावती गुप्त ने भी भूमिदान किया था। उनका यह उदाहरण एक विरला ही था कुछ इतिहासकारों का मत है कि भूमिदान शासकों द्वारा कृषि को नगर क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी। कुछ इतिहासकारों का मत है कि भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत मिलता है। भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।

→ नगर एवं व्यापार नगरों का विकास छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ। प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे जैसे पाटलिपुत्र नदी मार्ग के किनारे बसा था तथा उज्जयिनी भूतल मार्ग के किनारे बसा था।

→ पाटलिपुत्र का इतिहास- पाटलिपुत्र का विकास पाटलिग्राम नामक एक गाँव से हुआ। फिर पांचवीं शताब्दी ई. पूर्व में मगध शासकों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। चौधी शताब्दी ई. पूर्व में यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया।

→ नगरीय जनसंख्या – शासक वर्ग और राजा किलेबन्द नगरों में रहते थे। इन स्थलों की खुदाई में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलाई चढ़ी है। इन्हें ‘उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र’ कहा जाता है। सम्भवतः इनका उपयोग अमीर लोग करते होंगे। हमें दानात्मक अभिलेखों से नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, व्यापारी आदि के बारे में विवरण लिखे मिलते हैं। उत्पादकों एवं व्यापारियों के संघ ‘ श्रेणी’ कहलाते थे।

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→ उपमहाद्वीप और उसके बाहर का व्यापार छठी शताब्दी ई. पूर्व से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्गों और भूमार्गों का जाल बिछ गया था और कई दिशाओं में फैल गया था। नमक, अनाज, कपड़ा, धातु से बनी वस्तुएँ, पत्थर, लकड़ी आदि अनेक वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाई जाती थीं। रोमन साम्राज्य में काली मिर्च, कपड़ों व जड़ी-बूटियों की भारी माँग थी।

→ सिक्के और राजा-चाँदी और ताँबे के आहत सिक्के सबसे पहले ढाले गए तथा प्रयोग में आए। शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्द-यूनानी शासकों ने जारी किए थे। सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण शासकों ने जारी किए थे। दक्षिण भारत के अनेक पुरास्थलों से बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत व्यापारिक दृष्टि से रोमन साम्राज्य से सम्बन्धित था। गुप्त शासकों के आरम्भिक सिक्कों में प्रयुक्त सोना अतिउत्तम था परन्तु छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के मिलने कम हो गए। इसका एक कारण तो यह है कि रोमन साम्राज्य के पतन के बाद दूरवर्ती व्यापार में कमी आई।

→ मुद्राशास्त्रमुद्राशास्त्र सिक्कों का अध्ययन है। इसके साथ ही उन पर पाए जाने वाले चित्रलिपि आदि तथा उनकी धातुओं का विश्लेषण भी ‘मुद्राशास्त्र’ के अन्तर्गत मिलता है।

→ अभिलेखों का अर्थ निकालना ब्राह्मी लिपि का प्रयोग अशोक के अभिलेखों में किया गया है। सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप ने अशोककालीन ब्राह्मी लिपि को 1838 ई. में पढ़ने में सफलता प्राप्त की। पश्चिमोत्तर के अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि प्रयुक्त हुई है। यूनानी भाषा पढ़ने वाले यूरोपीय विद्वानों ने सिक्कों में खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए अक्षरों का मेल किया।

→ अभिलेखों से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य-अशोक के एक अभिलेख में उसकी दो उपाधियों का उल्लेख मिलता है –

  • देवानांप्रिय ( देवताओं का प्रिय) तथा
  • पियदस्सी (देखने में सुन्दर )।

अभिलेख साक्ष्य की सीमा-यद्यपि कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए हैं लेकिन सभी के अर्थ नहीं निकाले जा सके हैं या प्रकाशित किए गए हैं या उनके अनुवाद किए गए हैं। इनके अतिरिक्त और अनेक अभिलेख रहे होंगे जो कालान्तर में सुरक्षित नहीं बचे हैं।

कालरेखा 1.
प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक विकास
लगभग 600-500 ई.पू. धान की रोपाई गंगा घाटी में नगरीकरण महाजनपद आहत सिक्के
लगभग 500-400 ई.पू. मगध के शासकों की सत्ता पर पकड़
लगभग 327-325 ई. पू. सिकन्दर का आक्रमण
लगभग 321 ई.पू. चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण
लगभग 272/268-231 ई.पू. अशोक का शासन
लगभग 185 ई.पू. मौर्य साम्राज्य का अन्त
लगभग 200-100 ई.पू. पश्चिमोत्तर में शक – शासन; दक्षिण भारत में चोल; चेर व पाण्ड्य; दक्कन में सातवाहन
लगभग 100-200 ई. तक पश्चिमोत्तर के शक (मध्य एशिया के लोग) शासक; रोमन व्यापार सोने के सिक्के कनिष्क का राज्यारोहण
लगभग 78 ई. सातवाहन और शक शासकों द्वारा भूमिदान के अभिलेखीय प्रमाण
लगभग 100-200 ई. गुप्त शासन का आरम्भ
लगभग 320 ई. समुद्रगुप्त
लगभग 335-375 ई. चन्द्रगुप्त द्वितीय दक्कन में वाकाटक
लगभग 375-415 ई. कर्नाटक में चालुक्यों का उदय और तमिलनाडु में पल्लवों का उदय कन्नौज के राजा हर्षवर्धन; चीनी यात्री श्वैन त्सांग की यात्रा
लगभग 500-600 ई. अरबों की सिन्ध पर विजय
लगभग 606-647 ई. धान की रोपाई गंगा घाटी में नगरीकरण महाजनपद आहत सिक्के
लगभग 712 ई. मगध के शासकों की सत्ता पर पकड़

 

JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

कालरेखा 2.
अभिलेखशास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति

अठारहवीं शताब्दी –
1784 बंगाल एशियाटिक सोसाइटी का गठन
उन्नीसवीं शताब्दी –
1810 का दशक जेम्स प्रिंसेप द्वारा अशोक के ब्राह्मी अभिलेखों का अर्थ लगाना
1838 जेम्स प्रिंसेप द्वारा अशोक के ब्राह्मी अभिलेखों का अर्थ लगाना
1877 अलेक्जेंडर कनिंघम ने अशोक के अभिलेखों के एक अंश को प्रकाशित किया
1886 दक्षिण भारत के अभिलेखों के शोधपत्र ‘एपिग्राफिआ कर्नाटिका’ का प्रथम अंक
1888 ‘एपिग्राफिआ इंडिका’ का प्रथम अंक
बीसवीं शताब्दी – डी.सी. सरकार ने इंडियन एपिग्राफी एंड इंडियन ‘एपिग्राफिकल ग्लोसरी’ प्रकाशित की।
1965-66

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 4

प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि इन औजारों का प्रयोग फसल कटाई के लिए किया जाता होगा ?
उत्तर:
पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।इसके लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे। इन औजारों को देखने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इनका प्रयोग फसलों की कटाई के लिए किया जाता होगा।
JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता - 1

पृष्ठ संख्या 4 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद किन साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हैं ?
उत्तर:
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद निम्नलिखित साक्ष्यों का प्रयोग करते हैं –
(1) जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज- जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविद आहार सम्बन्धी आदतों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। इनका अध्ययन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं। अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना तथा तिल शामिल हैं। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
(2) जानवरों की हड्डियाँ हड़प्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डियों में पशुओं भेड़, बकरी, भैंसे या सूअर की हड्डियाँ शामिल हैं। पुरा प्राणि विज्ञानियों अथवा जीव- पुरातत्त्वविदों द्वारा किए गए अध्ययनों से ज्ञात होता है कि ये सभी जानवर पालतू थे। वे मछली तथा पक्षियों की हड्डियों का भी सेवन करते थे।
(3) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों का भी सेवन करते थे।

पृष्ठ संख्या 4.

प्रश्न 3.
पुरातत्वविद वर्तमान समय की तुलनाओं से यह समझने का प्रयास करते हैं कि प्राचीन पुरावस्तुएँ किस प्रयोग में लायी जाती थीं। मैके खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से कर रहे थे। क्या यह एक उपयोगी नीति है ?
उत्तर:
पुरातत्वविद खोजों का वर्गीकरण दो सिद्धान्तों पर करते हैं –
(1) प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के आधार पर।
(2) पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर।
पुरातत्वविद मिली हुई वस्तुओं की आजकल की मिलती-जुलती चीजों से तुलना करके निष्कर्ष निकाल लेते हैं। पुरातत्वविद यह भी देखते हैं कि पुरावस्तु घर में मिली थी अथवा नाले में कब्र में या फिर भट्टी में प्रसिद्ध पुरातत्वविद मैके द्वारा खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से करते थे और निष्कर्ष निकाल लेते थे। वर्तमान समय की तकनीकी अत्यधिक उन्नत है तथा हड़प्पा सभ्यता की तकनीक अपेक्षाकृत पिछड़ी हुई और अविकसित थी अतः उसकी तुलना आज की तकनीक से करना उचित नहीं है। इस प्रकार हड़प्पा में प्राप्त वस्तुओं की तुलना आज की वस्तुओं से करना उचित नहीं है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

पृष्ठ संख्या 5

प्रश्न 4.
निचला शहर दुर्ग से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित था –
(1) निचला शहर तथा
(2) दुर्ग। निचला शहर दुर्ग से निम्न बातों में भिन्न है –

  • दुर्ग मोहनजोदड़ो नगर के पश्चिमी भाग में बना हुआ था। इसके भवन कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बने थे।
  • दुर्ग ऊँचाई पर बनाया गया था, जबकि निचला शहर नीचे बनाया गया था।
  • निचला शहर मोहनजोदड़ो के पूर्वी भाग में था। यहाँ कई भवन ऊँचे चबूतरों पर बने हुए थे जो नींव का कार्य करते थे।
  • दुर्ग में अनेक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्मारक एवं भवन स्थित थे जिनमें मालगोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे। निचले शहर में योजनाबद्ध तरीके से बने हुए भवन मिलते हैं। निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।

पृष्ठ संख्या 7

प्रश्न 5.
आँगन कहाँ है? दो सीढ़ियाँ कहाँ हैं? आवास का प्रवेशद्वार कैसा है?
उत्तर:
1. आँगन 18 क बिन्दु पर देखें।
2. सीढ़ियाँ 14 तथा 16 अंक पर हैं।
3. आवास का प्रवेश द्वार पीछे की ओर तथा दरवाजे से रहित है।

पृष्ठ संख्या 8

प्रश्न 6.
क्या दुर्ग पर मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त अन्य संरचनाएँ भी हैं ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त कुछ अन्य संरचनाएँ भी मिली हैं। मोहनजोदड़ो के दुर्ग में एक विशाल भवन मिला है जो 230 फीट लम्बा तथा 115 फीट चौड़ा है। इसमें दो आँगन, भण्डारागार तथा कुछ कमरे बने हुए हैं। डॉ. मैके के अनुसार इस विशाल भवन में शायद नगर के राज्यपाल निवास करते थे। मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार के निकट एक भवन मिला है जो 80 फीट लम्बा तथा 80 फीट चौड़ा है। इसकी छत 20 स्तम्भों पर टिकी हुई है। पृष्ठ संख्या 8 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
मोहनजोदड़ो के कौनसे वास्तुकला सम्बन्धी लक्षण नियोजन की ओर संकेत करते हैं ?
उत्तर:
(1) प्रत्येक नगर दो भागों में विभाजित था –
(i) दुर्ग
(ii) निचला शहर
(2) कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे।
(3) एक बार चबूतरों यथास्थान बनने के बाद शहर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था।
(4) ईंटें एक निश्चित अनुपात की होती थीं।
(5) मोहनजोदड़ो में नियोजित जल-निकास प्रणाली थी।
(6) सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

पृष्ठ संख्या 10 चर्चा कीजिए

प्रश्न 8.
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों पर चर्चा कीजिए ये किस सीमा तक सामाजिक भिन्नताओं को परिलक्षित करती हैं ?
उत्तर:
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों निम्नलिखित हैं-
(1) दाहकर्म – इसमें शव को जला दिया जाता है।
(2) पूर्ण समाधि – इसमें शव को पृथ्वी के नीचे गाड़ दिया जाता है।
(3) आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।

मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों से सामाजिक भिन्नताओं का पता चलता है हिन्दू धर्मावलम्बी सर्वो को जलाते हैं तथा मुसलमान एवं ईसाई शवों को दफनाते हैं। कुछ सम्प्रदायों के लोग शवों को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रकार किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति के लोगों के बीच सामाजिक मित्रता की जानकारी प्राप्त कराने में मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियाँ महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

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पृष्ठ संख्या 11 चर्चा कीजिए

प्रश्न 9.
इस अध्याय में दिखाई गई पत्थर की पुरावस्तुओं की एक सूची बनाइये। इनमें से प्रत्येक के संदर्भ में चर्चा कीजिए कि क्या इन्हें उपयोगी अथवा विलास की वस्तुएँ माना जाए। क्या इनमें ऐसी वस्तुएँ भी हैं, जो दोनों वर्गों में रखी जा सकती हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता से हमें पत्थर की अनेक पुरावस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें अवतल चक्की, मुहरें, बाट, फलक, औजार तथा हथियार, पाषाण मूर्तियाँ, लिंग, लघु चक्राकार पत्थर आदि वस्तुएँ उपयोगी जानी जाती हैं। बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण तथा मनके विलासिता की वस्तुएँ मानी जाती हैं। मनकों तथा आभूषणों को हम दोनों वर्गों में रख सकते हैं अर्थात् ये उपयोगी एवं विलासिता की वस्तुएँ मानी जा सकती हैं।

पृष्ठ संख्या 14 चर्चा कीजिए

प्रश्न 10.
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक कौनसे मार्गों से जाया जा सकता था ?
उत्तर:
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था। मेसोपोटामिया के लेखों में मेलुहा को नाविकों का देश कहा गया है। इसके अतिरिक्त हड़प्पाई मुहरों पर बने जहाजों तथा नावों के चित्रों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था।

पृष्ठ संख्या 15

प्रश्न 11.
मिट्टी के इस टुकड़े पर कितनी मुहरों की छाप दिखती है?
उत्तर:
मिट्टी के इस टुकड़े पर स्पष्टतः तीन मुहरों की छाप दिखाई देती है।

पृष्ठ संख्या 15 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए प्रयुक्त कुछ तरीकों पर चर्चा कीजिये। उनके क्या-क्या लाभ और समस्याएँ हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए निम्नलिखित साधन प्रयुक्त किये जाते हैं –

  • वायुयान वायुयान में सामान को बड़ी शीघ्रतापूर्वक दूर-दूर के स्थानों पर भेजा जा सकता है, परन्तु यह साधन बड़ा खर्चीला है और इसके द्वारा केवल सीमित मात्रा में ही सामान भेजा जा सकता है।
  • जहाज जहाज के माध्यम से विपुल मात्रा में सामान विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में भेजा जा सकता है, परन्तु इसमें काफी समय लगता है।
  • रेलगाड़ी – रेलगाड़ी के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में बड़ी मात्रा में सामान भेजा जा सकता है परन्तु इसके माध्यम से दूसरे देशों में सामान भेजना सम्भव नहीं
    है।

पृष्ठ संख्या 16 चर्चा कीजिए

प्रश्न 13.
क्या हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे ?
उत्तर:
कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि हड़प्पा में एक नहीं, बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पा एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओं में समानताओं, नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के निकट स्थापित होने से स्पष्ट है। अतः यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे कुछ विद्वानों का मत है कि उस काल में पुरोहितों का एक अलग वर्ग रहा होगा और तत्कालीन समाज में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

पृष्ठ संख्या 21 चर्चा कीजिए

प्रश्न 14.
इस अध्याय में दिए गए विषयों में से कौनसे कनिंघम को रुचिकर लगते? 1947 के बाद से कौन- कौन से प्रश्न रोचक माने गए हैं?
उत्तर:
कनिंघम की मुख्य रुचि आरम्भिक ऐतिहासिक लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। वे सांस्कृतिक महत्त्व के विषयों में अधिक रुचि लेते थे। 1947 के बाद से पुरातत्वविद सामान्यतया सांस्कृतिक उपक्रम का पता लगाने, भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को समझने तथा पुरावस्तु रूपी विधि की खोज करने और उनकी संभावित उपयोगिता को समझने का प्रयास करते हैं।

पृष्ठ संख्या 24: चर्चा कीजिए

प्रश्न 15.
हड़प्पाई अर्थव्यवस्था के वे कौन-कौनसे पहलू हैं, जिनका पुनर्निर्माण पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया गया है?
हड़प्पा
उत्तर:
निम्नलिखित पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं का पुनर्निर्माण किया जा सकता है-

  1. विभिन्न प्रकार के खाद्यान्नों की जानकारी
  2. कृषि प्रौद्योगिकी की जानकारी
  3. शिल्प-उत्पादन के विषय में जानकारी
  4. उत्पादन केन्द्रों की जानकारी
  5. मेसोपायमिया, ओमान, बहरीन आदि से व्यापारिक सम्बन्धों की जानकारी
  6. कच्चा माल प्राप्त करने की नीतियाँ
  7. स्थल मार्ग एवं जलमार्ग से व्यापार
  8. आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार की व्यवस्था
  9. व्यापार के लिए वस्तु विनिमय की प्रणाली
  10. निश्चित माप-तौल के बाटों का प्रचलन।

Jharkhand Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइये। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों के लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची निम्नलिखित है –
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद
(2) मांस तथा मछली
(3) गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, बाजरा, चावल, तिल आदि खाद्य पदार्थ।

हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों तथा जानवरों से प्राप्त मांस आदि का सेवन करते थे। ये लोग मछली का भी सेवन करते थे। हड़प्पा- स्थलों से गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाज के दाने प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा निवासी भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे। इस बात की पुष्टि हड़प्पा स्थलों से मिली इन जानवरों की हट्टियों से होती है। इसके अतिरिक्त हिरण, घड़ियाल आदि की हड्डियाँ भी मिली हैं। सम्भवतः हड़प्पा निवासी इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे। मुख्यतः हड़प्पा निवासी उपर्युक्त भोजन सामग्री को स्थानीय स्तर पर प्राप्त करते थे। आखेटक, मछुआरे, किसान तथा खाद्यान्न व्यापारी इत्यादि इन भोज्य पदार्थों को उन्हें उपलब्ध कराते थे।

भोजन सामग्री को उपलब्ध कराने वाले समूह

भोजन सामग्री की सूची समूह
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद संग्राहक
(2) मांस तथा मछली आखेटक समुदाय
(3) गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल किसान

प्रश्न 2.
पुरातत्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक- आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौनसी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर:
पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई स्थलों के उत्खनन में कई सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में कई वर्ग थे। इन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता हैं –
(1) अनेक स्थलों पर बड़े मकान तथा राजप्रासाद जैसे भवन मिले हैं वहीं दूसरी ओर एक तथा दो कमरों वाले मकान आर्थिक तथा सामाजिक भिन्नता को दर्शाते हैं।
(2) खुदाई में अनेक स्थानों पर स्वर्ण, रजत तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं के आभूषण प्राप्त हुए हैं।
(3) शवाधानों में मृतकों को दफनाते समय विभिन्न प्रकार की सामग्री रखी जाती थी। इन सामग्रियों से महिलाओं तथा पुरुषों की आर्थिक स्थिति की विभिन्नता का अंदाजा लगाया जा सकता था। शवों को दफनाने वाले गत की बनावट में भी अन्तर था।
(4) हड़प्पाई वस्त्रों में भी सामाजिक भिन्नता दिखाई देती है। जहाँ धनी लोग रेशम तथा मलमल के वस्त्रों का प्रयोग करते थे वहीं निम्न आर्थिक स्थिति वाले सूती तथा ऊनी वस्त्र का प्रयोग करते थे।

इस प्रकार प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में कई वर्ग थे। सामान्य वर्ग में कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, शिल्पकार, लुहार, जुलाहे, राजगीर, श्रमिक तथा किसान आदि लोग रहे होंगे। विशिष्ट वर्ग में राजकर्मचारी, सेनाधिकारी आदि रहे होंगे। इस प्रकार पुरातत्त्वविदों को उत्खनन में अनेक ऐसी सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर हमें सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नता का पता चलता है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 3.
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली हम इस तथ्य से पूर्णतया सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली नगर योजना की ओर संकेत करती है। इसकी पुष्टि में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) हड़प्पा के शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास आवासों का निर्माण किया गया था। मकानों से आने वाली नालियों गली की नालियों से मिल जाती थीं। प्रत्येक मकान की कम से कम एक दीवार गली से सटी होती थी ताकि मकानों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ा जा सके। इस प्रकार हर आवास गली की नालियों से जोड़ा गया था।

(2) मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और ये नाले ऐसी ईंटों से ढके रहते थे जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके। कुछ स्थानों पर इन्हें ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था।

(3) घरों की नालियाँ पहले एक होदी अथवा मलकुंड़ में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में यह जाता था। कुछ नाले बहुत लम्बे होते थे। उनमें कुछ फासले पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं। इस प्रकार नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी नगर के बाहर निकाल दिया जाता था।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइये कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची हड़प्पा निवासी मनके बनाने में निपुण थे। मनकों के निर्माण में अनेक पदार्थों का प्रयोग किया जाता था। इनके बनाने में सुन्दर लाल रंग के पत्थर कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा शंखं फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि पदार्थों का प्रयोग किया जाता था। चन्हूदड़ो में मनके बनाने का एक कारखाना था।

मनके बनाने की प्रक्रिया मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन निम्नानुसार है –

  • कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किये जाते थे। इससे ठोस पत्थरों से बनने वाले केवल ज्यामितीय आकारों के विपरीत कई विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे।
  • कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में भनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
  • पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकालकर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
  • इसके बाद पिसाई, पालिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी।

प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 26 के चित्र को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौनसी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में हमें अनेक करें प्राप्त हुई हैं। पुरातत्व विज्ञानी साधारणतया किसी समुदाय की सामाजिक तथा आर्थिक विभिन्नताओं को जानने के लिए उनकी कब्रों की जाँच करते थे। इन कब्रों से हमें हड़प्पा संस्कृति के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं। चित्र में दिखाई गई कब्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह शव उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा गया है। अधिकांश शवाधान इसी दिशा में किए जाते थे जो किसी विशेष विश्वास के द्योतक हैं।

चित्र में दिखाए गए शव के पास दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुएँ रखी गयी हैं। लोगों को यह विश्वास था कि वह वस्तुएँ मरने वाले व्यक्ति के अगले जन्म में उसके काम आएंगी। इस शव के पास मृदभांड, विभिन्न मनके, शंख, ताँबे का दर्पण तथा विभिन्न आभूषण इत्यादि रखे हुए हैं। चित्र में देखने के पश्चात् हाथों में दिखाई देने वाले कंगन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शव किसी महिला का है। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (उत्तर लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताएँ. मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा नियोजित शहरी केन्द्र था। यह हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है। मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) एक नियोजित शहरी केन्द्र-मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से अलग कर दिया था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को अन्य चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही 40 लाख श्रम दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इस प्रकार मोहनजोदड़ो के निर्माण के लिए बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी।

(3) शहर का नियोजन शहर का समस्त भवन- निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले मोहनजोदड़ो का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया होगा। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटें शामिल हैं। भले ही ईंटें धूप में सुखा कर अथवा भट्टी में पका कर बनाई गई हों, ये एक निश्चित अनुपात की होती थीं। इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थीं। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।

(4) नियोजित जल निकास प्रणाली-मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी। शहर की सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति से बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास घरों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।

(5) गृह स्थापत्य (आवासीय भवन ) – मोहनजोदड़ो के निचले शहरों में आवासीय भवन थे। इनमें से कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे। सम्भवतः आँगन खाना पकाने और कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था, विशेष रूप से गर्म और शुष्क मौसम में मोहनजोदड़ो के लोग अपनी एकान्तता को बड़ा महत्त्व देते थे। इसका प्रमाण यह है कि भूमितल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को सीधा नहीं देखा जा सकता था।
(i) स्नानघर हर घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था इसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं।
(II) सीढ़ियाँ कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई थीं।
(iii) कुएँ कुछ घरों में कुएँ थे। कुएँ प्रायः ऐसे कक्ष में बनाए गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था। इनका प्रयोग सम्भवतः राहगीरों द्वारा किया जाता था। विद्वानों के अनुसार मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।

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(6) दुर्ग- मोहनजोदड़ो नगर के दुर्ग पर ऐसी संरचनाएँ मिली हैं जिनका प्रयोग सम्भवतः विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था।
(i) मालगोदाम- इनमें एक महत्त्वपूर्ण संरचना मालगोदाम है। यह एक विशाल संरचना है जिसके ईटों से बने केवल निचले हिस्से ही बाकी रह गए हैं जबकि ऊपरी हिस्से नष्ट हो गए हैं। ये हिस्से सम्भवतः लकड़ी के बने थे।
(ii) विशाल स्नानागार – विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो के दुर्ग की एक अन्य प्रमुख विशिष्टता है। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है। यह चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है।

जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। जलाशय के किनारों पर ईंटों को जमाकर तथा जिप्सम के गारे के प्रयोग से इसे जलबद्ध किया गया है। इसके तीनों ओर कक्ष बने हुए हैं, जिनमें से एक कक्ष में एक बड़ा कुआँ है। जलाशय से जल एक बड़े नाले में बह जाता था। इसके उत्तर में एक गली के दूसरी ओर एक अपेक्षाकृत छोटी संरचना बनी हुई थी जिसमें आठ स्नानघर बनाए गए थे। एक गलियारे के दोनों ओर चार-चार स्नानघर बने थे। प्रत्येक स्नानघर से नालियों, गलियारे के साथ-साथ बने एक नाले में मिलती थीं। इस जलाशय का प्रयोग सम्भवतः किसी प्रकार के विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइये तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किये जाते होंगे?
उत्तर:
निश्चय ही हड़प्पा निवासियों की संस्कृति में पर्याप्त विभिन्नता दिखाई देती है जहाँ हड़प्पाई विभिन्न प्रकार के सुन्दर मृदभाण्ड बनाते थे, वहीं अनेक प्रकार की धातुओं तथा पत्थरों से बने मनके उनकी शिल्पकला में सम्मिलित थे। विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ, मुहरें तथा टेरा- कोटा आकृतियाँ उनकी शिल्पकला को विस्तृत बनाती हैं। हड़प्पा निवासियों को इसके लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता होती थी। इन कच्चे माल की संक्षिप्त ‘सूची निम्नलिखित है-

  • विभिन्न धातुएँ – सोना, ताँबा, काँसा, टिन, जस्ता, चाँदी।
  • पत्थर जैस्पर, कार्नीलियन, क्वार्ट्ज, स्फटिक, सेलखड़ी, पन्ना, फयॉन्स, गोमेद, मूंगा, लाजवर्द मणि।
  • अन्य सामग्री ऊन, कपास, चिकनी मिट्टी, पकी मिट्टी, अस्थियाँ शंख तथा विभिन्न प्रकार की लकड़ियाँ इत्यादि।

हड़प्पा निवासियों के शिल्प की उपर्युक्त सूची अत्यधिक विस्तृत है। स्थानीय स्तर पर ही सभी सामग्रियों का एकत्रीकरण हड़प्पा निवासियों के लिए सम्भव नहीं था अतः हड़प्पा निवासी अपनी अन्य समकालीन सभ्यताओं से उनका आयात भी करते थे। हड़प्पा निवासियों के कच्चे माल के इन स्रोतों को हम निम्नलिखित तालिका से समझ सकते हैं –

तालिका 1.1 कच्चे माल के स्रोत

कच्चा माल स्रोत
1. सोना कोलार (दक्षिण भारत), ईरान
2. ताँबा खेतड़ी (राजस्थान), ओमान
3. शंख नागेश्वर तथा बालाकोट
4. ਵਿਸ अफगानिस्तान एवं ईरान
5. कार्नीलियन भाँच (गुजरात)
6. ‘सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी
7. कपास गुजरात तथा बलूचिस्तान
8. उत्तम प्रकार की लकड़ी ‘स्थानीय स्तर पर
9. लाजवर्द मणि मेसोपोटामिया
10. चाँदी बदख्शां (अफगानिस्तान)
11. गोमेद मेसोपोटामिया, ईरान एवं
12. मूँगा अफगानिस्तान
13. पन्ना अफगानिस्तान, ईरान, राजस्थान
14. ऊन अफगानिस्तान, महाराष्ट्र, ईरान

कच्चा माल प्राप्त करने के तरीके –
मिट्टी आदि कुछ कच्चे माल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थे परन्तु पत्थर, लकड़ी तथा धातु जलोदक मैदान से बाहर के क्षेत्रों से मँगाने पड़ते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोग कच्चे माल प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय करते थे –
(1) बस्तियाँ स्थापित करना हड़प्पावासियों ने नागेश्वर तथा बालाकोट में बस्तियाँ स्थापित कीं, क्योंकि यहाँ शंख आसानी से उपलब्ध था ऐसे ही कुछ अन्य पुरास्थल थे- सुदूर अफगानिस्तान में शोर्तुधई यहाँ से अत्यन्त कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि को प्राप्त किया जाता था। इसी प्रकार लोथल कार्नीलियन (गुजरात में भड़ौच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से) और धातु ( राजस्थान से) के स्रोतों के निकट स्थित था।

(2) अभियान भेजना हड़प्पावासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कुछ क्षेत्रों में अभियान भेजते थे। वे राजस्थान के खेतड़ी आँचल में ताँबे तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजते थे इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जाता था। इन क्षेत्रों में कभी-कभी मिलने वाली हड़प्पाई पुरावस्तुएँ ऐसे सम्पकों की सूचक हैं। खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्वविदों ने गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति की संज्ञा दी है। यहाँ ताँबे की वस्तुएँ बड़े पैमाने पर मिली थीं ऐसा प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे।

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(3) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क- हड़प्यावासियों के अनेक देशों से सम्बन्ध थे। विद्वानों के अनुसार ताँबा ओमान से, चाँदी ईरान अथवा अफगानिस्तान से मँगाई जाती थी।

प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं?
उत्तर:
पुरातत्वविदों द्वारा अतीत का पुनर्निर्माण हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में ये भौतिक साक्ष्य हैं, जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा की सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं। इन वस्तुओं में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान, मुहरें आदि उल्लेखनीय हैं।
(1) हड़प्पा सभ्यता के विस्तार क्षेत्र के बारे में जानकारी उत्खनन में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, रोपड़, संघोल, बणावली, राखीगढ़ी, रंगपुर, धौलावीरा, लोथल आदि अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। इसके आधार पर पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तर भारत में गंगा घाटी
तक व्याप्त था।
(2) नियोजित शहरी केन्द्र हड़प्पा सभ्यता के शहर नियोजित केन्द्र थे। मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित था –
(1) ऊंचे टीले पर दुर्ग तथा
(2) निचले भाग में विस्तृत नगर दुर्ग के उच्च वर्ग तथा निचले भाग में सामान्य लोग रहते थे। दुर्ग में अनेक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्मारक एवं भवन स्थित थे।
(3) धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी हड़प्पा की खुदाई में मातृदेवी को अनेक मूर्तियाँ मिली हैं। इनके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी मातृदेवी की उपासना करते थे। हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है वह जानवरों से घिरा हुआ दर्शाया गया है।

इसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। खुदाई में काफी संख्या में लिंग और छल्ले मिले हैं। पुरातत्वविद इन छल्लों को योनियाँ मानते हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी शिव लिंग और योनि की पूजा करते थे। हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर वृक्ष, पशु-पक्षियों के चित्र मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी वृक्षों, पशु-पक्षियों की भी पूजा करते थे।

(4) भोजन के बारे में जानकारी- जले अनाज के दानों और बीजों की खोज से पुरातत्वविदों को हड़प्पावासियों के भोजन के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है। हड़प्पा स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि के दाने प्राप्त हुए हैं। इसी प्रकार उत्खनन में भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर की हड्डियाँ मिली हैं इनसे ज्ञात होता है। कि हड़प्पावासी गेहूं, जौ, सफेद चने, तिल, दाल, चावल और बाजरा तथा विभिन्न पशुओं के मांस का सेवन करते थे।

(5) आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी – पुरातत्वविदों को ऐसी मुहरें मिली हैं जिन पर रेखांकन है। उन्हें पकी मिट्टी से बने वृषभ की मूर्तियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। पुरातत्वविदों को कालीबंगा नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। पुरातत्वविदों को फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त होने वाले औजार भी मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि फसलों की कटाई के लिए इन औजारों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्या स्थलों से नहरों, कुओं तथा जलाशयों के अवशेष मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी नहरों, कुओं, जलाशयों आदि का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे।

(6) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि ताँबा ओमान से भी लाया जाता था। रासायनिक विश्लेषण से पता चलता है कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं। इसी प्रकार एक विशिष्ट प्रकार का पात्र अर्थात् एक बड़ हड़प्पाई मर्तबान ओमानी स्थलों से मिला है। इससे पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता का ओमान से सम्पर्क था। मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), भगान (ओमान) तथा मेलुहा नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है।

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(7) सामाजिक और आर्थिक भिन्नताओं की जानकारी – हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गर्तों में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। ये विविधताएँ सामाजिक भिन्नताओं की ओर संकेत करती हैं। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड और आभूषण मिले हैं जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि इन वस्तुओं का मृत्योपरान्त प्रयोग किया जा सकता था। पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को दो वर्गों में बाँटते हैं –

  • उपयोगी वस्तुएँ
  • विलासिता की वस्तुएँ चकियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, शाँबा आदि उपयोगी वस्तुओं के वर्ग में सम्मिलित हैं।

दूसरी ओर फयॉन्स के छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था। विलासिता की वस्तुओं का प्रयोग केवल धनी लोगों द्वारा किया जाता था। उत्खनन में दुर्ग और निचले शहर के अवशेष मिले हैं। इनके आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि दुर्ग- क्षेत्र में अधिकारी एवं शासक वर्ग के लोग तथा निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।

(8) कला-कौशल – हड़प्पा के उत्खनन में अनेक प्रकार की धातुओं से बनी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी विभिन्न धातुओं से मूर्तियाँ, आभूषण, बर्तन, औजार और हथियार बनाते थे यहाँ से मिले मनकों से ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी बहुमूल्य पत्थरों, सोने, चाँदी, ताँबे आदि से सुन्दर मनके बनाते थे।

प्रश्न 9.
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य निम्नलिखित –
(1) जटिल निर्णय लेना और उन्हें कार्यान्वित करना हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें कार्यान्वित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए जाते थे। हड़प्पाई पुरावस्तुओं में असाधारण एकरूपता दिखाई देती है जैसा कि मृदभाण्डों, मुहरों, बाटों तथा ईंटों से स्पष्ट है।

(2) श्रम संगठित करना विशिष्ट स्थानों पर बस्तियाँ स्थापित करने, ईंटें बनाने, विशाल दीवारें बनाने, विशिष्ट भवन बनाने, मालगोदाम, सार्वजनिक स्नानागार आदि बनाने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती थी। इन सब कार्यों के लिए श्रम संगठित करने का कार्य शासक- वर्ग द्वारा ही किया जाता था।

(3) नियोजित नगर- हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। इससे ज्ञात होता है कि इन नगरों तथा भवनों का निर्माण करने वाले कुशल इज्जीनियर थे प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग’ भाग तथा पूर्व में ‘नगर’ भाग होता था। यह व्यवस्था शासग वर्ग द्वारा ही की जाती थी।

(4) सड़क निर्माण नगरों की सड़कें भी एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं।

(5) नालियों की व्यवस्था-नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में नालियाँ बनी हुई थीं। ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। नगरों में सफाई और रोशनी की भी व्यवस्था थी। ये समस्त कार्य शासकों द्वारा किये जाते थे।

(6) भवन निर्माण हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, खिड़कियों, सीढ़ियों आदि की व्यवस्था थी। ईंटों की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई में एक निश्चित अनुपात होता था। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि में अनेक विशाल भवनों का भी निर्माण किया गया था। इनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार उल्लेखनीय है। इसी प्रकार हड़प्पा की गढ़ी में निर्मित विशाल अन्नागार, लोथल में निर्मित गोदीबाड़ा, धौलावीरा में निर्मित विशाल स्टेडियम और जलाशय भी उल्लेखनीय हैं।

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(7) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा ऊनी वस्व तैयार करने, मिट्टी के बर्तन बनाने, सोने-चाँदी आदि के आभूषण बनाने, औजार और हथियार बनाने, मनके बनाने, मुहरें बनाने आदि के उद्योग-धन्धे विकसित थे।

(8) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से किया जाता था। जल यातायात के लिए नौकाओं तथा छोटे जहाजों का एवं धल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत था। उनका मेसोपोटामिया, ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था।

(9) तोल तथा माप के साधन हड़प्पा सभ्यता के लोग बाटों का भी प्रयोग करते थे। उनकी तोल में 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 आदि का अनुपात है इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता काल में वस्तुओं को तोलने के लिए एक समान पद्धति के वाटों का प्रयोग किया जाता था। माप के साधन भी प्रचलित थे।

(10) बस्तियाँ स्थापित करना-शिल्प उत्पादन के लिए शंख, लाजवर्द मणि, कार्नीलियन सेलखड़ी आदि कच्चे मालों की आवश्यकता थी। इन कच्चे मालों को प्राप्त करने के लिए राज्य की ओर से अनेक बस्तियाँ स्थापित की गईं।

(11) अभियान भेजना शासक वर्ग की ओर से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए अनेक अभियान भेजे गए। उदाहरणार्थ, राजस्थान के खेतड़ी आँचल में ताँबे के लिए तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजे गए।

(12) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क – हड़प्पा सभ्यता- काल में विदेशी व्यापार भी उन्नत था हड़प्पा सभ्यता का ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे हड़प्पा के शासक ओमान से ताँबा मँगवाते थे।

 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता JAC Class 12 History Notes

→ हड़प्पा सभ्यता – सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं, जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

→ आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले की कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध र्थी इसके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं।

→ निर्वाह के तरीके विकसित हड़प्पा संस्कृति कुछ ऐसे स्थानों पर पनपी जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद तथा जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे ये लोग भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का भी सेवन करते थे। हड़प्पा स्थलों से भेड़, बकरी, भैंसे, सूअर आदि जानवरों की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। ये मछली का भी सेवन करते थे।

→ कृषि प्रौद्योगिकी हड़प्पा निवासी बैल से परिचित थे। पुरातत्वविदों की मान्यता है कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान के कई स्थलों से तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं। कालीबंगा नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों तथा धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।

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→ मोहनजोदड़ो : एकं नियोजित शहर-मोहनजोदड़ो बस्ती दो भागों में विभाजित है। एक छोटा परन्तु ऊँचाई | पर बनाया गया। दूसरा अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था, जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था। मोहनजोदड़ो का दूसरा भाग निचला शहर था जो दीवार से घेरा गया था। यहाँ कई भवनों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। पहले बस्ती का नियोजन किया गया था, फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं ये धूप में सुखाकर अथवा भट्टी में पका कर बनाई गई थीं।

→ नालों का निर्माण – सड़कों या गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड पद्धति’ में बनाया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ा गया था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य नाले ईंटों से बने थे और उन्हें ईंटों से ढका गया था।

→ गृह स्थापत्य मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। कई भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। आँगन खाना पकाने, कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था। प्रत्येक मकान में एक स्नानघर होता था। कई मकानों में कुएँ थे। मोहनजोदड़ो में 700 कुएँ थे मकानों में भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं।

→ दुर्ग- मोहनजोदड़ो में दुर्ग पर अनेक संरचनाएँ थीं जिनमें माल गोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे। माल गोदाम एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए दो सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। इसके उत्तर में एक छोटी संरचना थी जिसमें आठ स्नानागार बने हुए थे।

→ शवाधान – सामान्यतया मृतकों को गर्तों में दफनाया जाता था। मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण, शंख के छल्ले, तांबे के दर्पण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं ।

→ विलासिता की वस्तुओं की खोज-फयॉन्स (घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र सम्भवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था । महंगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में ही मिलती हैं, छोटी बस्तियों में ये विरले हीं मिलती हैं।

→ शिल्प उत्पादन के विषय में जानकारी- चन्हूदड़ो नामक बस्ती पूरी तरह से शिल्प उत्पादन में लगी हुई | थी। शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना सम्मिलित थे। मनके जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज, सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं, शंख आदि से बनाए जाते थे । | नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी हुई वस्तुओं के प्रसिद्ध केन्द्र थे। यहाँ शंख से चूड़ियाँ, करहियाँ, पच्चीकारी की वस्तुएँ बनाई जाती थीं।

→ उत्पादन केन्द्रों की पहचान – शिल्प-उत्पादन में केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद सामान्यत: इन चीजों को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरा शंख, ताँबा अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग किया गया माल तथा कूड़ा-करकट।

→ माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ- बैलगाड़ियाँ सामान तथा लोगों के लिए स्थलमार्गों द्वारा परिवहन का एक महत्त्वपूर्ण साधन थीं। सिन्धु नदी तथा इसकी उपनदियों के आस-पास बने नदी मार्गों और तटीय मार्गों का भी प्रयोग किया जाता था।

→ उपमहाद्वीप तथा उसके आगे से आने वाला माल नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख प्राप्त किये जाते थे । नीले रंग का कीमती पत्थर लाजवर्द मणि को शोर्तुघई (सुदूर अफगानिस्तान) से गुजरात में स्थित भड़ौच से कार्नीलियन, दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से सेलखड़ी और धातु राजस्थान से मंगाई जाती थी। लोथल इनके स्रोतों के निकट स्थित था। राजस्थान के खेतड़ी आँचल (ताँबे के लिए) तथा दक्षिणी भारत ( सोने के लिए) को अभियान भेजे जाते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क – पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि ताँबा सम्भवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण- पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से भी लाया जाता था। मेसोपोटामिया के लेख से ज्ञात होता है कि कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना आदि मेलुहा से प्राप्त किये जाते थे।

→ मुहरें और मुद्रांकन मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।

→ एक रहस्यमय लिपि – हड़प्पाई मुहरों पर कुछ लिखा हुआ है जो सम्भवतः मालिक के नाम और पदवी को | दर्शाता है। यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। सम्भवतः यह लिपि दाय से बायीं ओर लिखी जाती थी।

→ बाट – विनिमय बाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियन्त्रित थे। ये सामान्यतया चनाकार होते थे। इन बार्टो के निचले मानदंड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16 32 इत्यादि) थे जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे। छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था ।

→ प्राचीन सत्ता- हड़प्पाई पुरावस्तुओं में जैसे मुहरों, बाटों, ईंटों आदि में एकरूपता थी। बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इन सभी क्रियाकलापों को कोई राजनीतिक सत्ता संगठित करती थी।

→ प्रासाद तथा शासक – कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि मोहनजोदड़ो में एक विशाल भवन मिला है, वह एक राज- प्रासाद ही है। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ कई शासक थे। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ हड़प्पा सभ्यता का अन्त-लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थलों को त्याग दिया गया था। सम्भवतः उत्तरी हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई. पूर्व के बाद भी अस्तित्व में रहे। हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण थे –

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की कटाई
  • भीषण बाढ़
  • नदियों का सूख जाना
  • नदियों का मार्ग बदल लेना
  • भूमि का अत्यधिक उपयोग
  • सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्व का अन्त होना।

→ हड़प्पा सभ्यता की खोज बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरों की खोज की। राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो से कुछ मुहरें खोज निकालीं। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

→ कनिंघम का भ्रम – डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्त्विक उत्खनन आरम्भ किए, तब पुरातत्त्वविद् अपने अन्वेषणों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों (साहित्य तथा अभिलेख) का प्रयोग अधिक पसन्द करते थे। हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम के अन्वेषण के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। कनिंघम समझ नहीं पाए कि ये पुरावस्तुएँ प्राचीन थीं।

→ एक नवीन प्राचीन सभ्यता – बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा में मुहरें खोज निकालीं जो निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं एवं इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिन्धु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ नई तकनीकें तथा प्रश्न हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियाँ प्रकाश में आई तथा पंजाब और हरियाणा में किए गए अन्वेषणों से हड़प्पा स्थलों की सूची में कई नाम और जुड़ गए हैं। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, धौलावीरा की खोज इन्हीं प्रयासों का हिस्सा है। 1980 के दशक से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं।

→ अतीत को जोड़कर पूरा करने की समस्याएँ – मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि भौतिक साक्ष्यों से हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है।

→ खोजों का वर्गीकरण-वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है। दूसरा सिद्धान्त उनकी उपयोगिता के आधार पर होता है। कभी-कभी पुरातत्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है।

→ व्याख्या की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याएँ सम्भवतः सबसे अधिक धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण के प्रयासों में सामने आती हैं। कुछ वस्तुएँ धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई है। कुछ मुहरों पर पेड़-पौधे उत्कीर्ण हैं ये प्रकृति की पूजा के संकेत देते हैं। कुछ मुहरों पर एक व्यक्ति योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई। है। पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

कालरेखा 1

आरम्भिक भारतीय पुरातत्व के प्रमुख कालखंड

20 लाख वर्ष (वर्तमान से पूर्व) निम्नपुरापाषाण
80,000 मध्यपुरापाषाण
35,000 उच्चपुरापाषाण
12,000 मध्यपाषाण
10,000 नवपाषाण (आरम्भिक कृषक तथा पशुपालक)
6,000 ताम्रपाषाण (ताँबे का पहली बार प्रयोग)
2600 ई. पूर्व हड़प्पा सभ्यता
1000 ई. पूर्व आरम्भिक लौहकाल, महापाषाण शवाधान आरम्भिक ऐतिहासिक काल
600 ई. पूर्व 400 ई. पूर्व निम्नपुरापाषाण
सभी तिथियाँ अनुमानित हैं। इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीप के अलग-अलग भागों में हुए विकास की प्रक्रिया में व्यापक विविधताएँ हैं। यहाँ दी गई तिथियाँ हर चरण के प्राचीनतम साक्ष्य को इंगित करती हैं।

 

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कालरेखा 2

हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण

उन्नीसवीं शताब्दी 1875 हड़प्पाई मुहर पर कनिंघम की रिपोर्ट
बीसवीं शताब्दी
1921 माधोस्वरूप वत्स द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरम्भ
1925 मोहनजोदड़ो में उत्खननों का प्रारम्भ
1946 आर.ई. एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन
1955 एस. आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरम्भ
1960 बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर के नेतृत्व में कालीबंगन में उत्खननों का आरम्भ
1974 एम. आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में अन्वेषणों का आरम्भ
1980 जर्मन – इतालवी संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह अन्वेषणों का आरम्भ
1986 अमरीकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरम्भ
1990 आर. एस. बिष्ट द्वारा धौलावीरा में उत्खननों का आरम्भ

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल (लाख km) है
(A) 32.80
(B) 22.80
(C) 42.08
(D) 30.80.
उत्तर:
(A) 32.80.

2. कौन-सी अक्षांश रेखा भारत को दो भागों में बांटती है?
(A) भूमध्य रेखा
(B) कर्क रेखा
(C) मकर रेखा
(D) आर्कटिक वृत्त।
उत्तर:
(B) कर्क रेखा।

3. भारत का (क्षेत्रफल के अनुसार) सबसे बड़ा राज्य है
(A) महाराष्ट्र
(B) उत्तर प्रदेश
(C) राजस्थान
(D) मध्य प्रदेश।
उत्तर:
(C) राजस्थान।

4. स्वेज नहर किस वर्ष आरम्भ हुई?
(A) 1849
(B) 1859
(C) 1869
(D) 1879
उत्तर:
(C) 1869.

5. सिक्किम राज्य की राजधानी है
(A) दिसपुर
(B) शिलांग
(C) गंगटोक

6. भारत में कुल राज्य हैं-
(A) 18
(B) 24
(C) 28
(D) 30.
उत्तर:
(C) 28.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

7. क्षेत्रफल के अनुसार भारत का विश्व में स्थान है
(A) पांचदां
(B) छठा
(C) सातवां
(D) आठवां।
उत्तर:
(C) सातवां।

8. लक्षद्वीप कहां स्थित है?
(A) खाड़ी बंगाल
(B) अरब सागर
(C) हिन्द महासागर
(D) खम्बात खाड़ी
उत्तर:
(B) अरब सागर।

9. भारतीय संघ का दक्षिणतम बिन्दु है-
(A) कन्याकुमारी
(B) इन्दिरा पुआइंट
(C) रामेश्वरम
(D) बैरन द्वीप।
उत्तर:
(B) इन्दिरा पुआइंट।

10. भारत की कुल स्थल सीमा है-
(A) 12200 कि० मी०
(B) 13202 कि० मी०
(C) 14200 कि० मी०
(D) 15200 कि० मी०
उत्तर:
(D) 15200 कि० मी०।

11. भारत की प्रामाणिक देशान्तर रेखा कहां से गुज़रती है?
(A) श्रीनगर
(B) दिल्ली
(C) मिर्ज़ापुर
(D) कोलकाता।
उत्तर:
(C) मिर्ज़ापुर।

12. भारत की तट रेखा है
(A) 10500 कि० मी०
(B) 7500 कि० मी०
(C) 3500 कि० मी०
(D) 9500 कि० मी०।
उत्तर:
(B) 7500 कि० मी०

13. कर्क रेखा किस राज्य से नहीं गुजरती है?
(A) राजस्थान
(B) उड़ीसा
(C) छत्तीसगढ़
(D) त्रिपुरा
उत्तर:
(B) उड़ीसा।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

14. ग्रीष्मावकाश में आप यदि कवरत्ती जाना चाहते हैं तो किस केन्द्र शासित क्षेत्र में जाएंगे?
(A) पुड्डुचेरी
(B) लक्षद्वीप
(C) अण्डमान और निकोबार
(D) दीव और दमन।
उत्तर:
(B) लक्षद्वीप।

15. मेरे मित्र एक ऐसे देश के निवासी हैं जिस देश की सीमा भारत के साथ नहीं लगती है। आप बताइए, वह कौन-सा देश है?
(A) भूटान
(B) तज़ाकिस्तान।
(C) बांग्लादेश
(D) नेपाल
उत्तर:
(B) तज़ाकिस्तान

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कौन-सी अक्षांश रेखा भारत के केन्द्र से गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा (\(23 \frac{1}{2} \circ\) उत्तर)

प्रश्न 2.
कर्क रेखा द्वारा भारत में निर्मित दो प्रदेशों के नाम लिखो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्ध तथा शीतोष्ण कटिबन्ध

प्रश्न 3.
भारत की तट रेखा की कुल लम्बाई लिखो।
उत्तर:
7516.6 किलोमीटर।

प्रश्न 4.
कौन-सी स्ट्रेट भारत को श्रीलंका से अलग करती है?
उत्तर:
पाक स्ट्रेट।

प्रश्न 5.
कौन-सा महासागरीय मार्ग भारत को यूरोप से जोड़ता है?
उत्तर:
स्वेज़ नहर मार्ग।

प्रश्न 6.
भारत का सबसे बड़ा राज्य ( क्षेत्रफल ) कौन-सा है?
उत्तर:
राजस्थान।

प्रश्न 7.
भारत का सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
गोआ।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 8.
भारत में सबसे छोटे केन्द्र प्रशासित प्रदेश का नाम लिखें।
उत्तर:
लक्षद्वीप।

प्रश्न 9.
कौन-सा राज्य पांच राज्यों से घिरा हुआ है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 10.
भारत में कितने तटीय राज्य हैं?
उत्तर:
नौ राज्य तटीय राज्य हैं गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोआ, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा तथा पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 11.
अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में कुल कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
204.

प्रश्न 12.
लक्षद्वीप में कुल कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
36.

प्रश्न 13.
मूंगे के द्वीपों के समूह का नाम बताएं
उत्तर:
लक्षद्वीप।

प्रश्न 14.
भारत की वास्तविक शक्ति क्या है?
उत्तर:
अनेकता में एकता।

प्रश्न 15.
भारत का कुल कितना क्षेत्रफल है?
उत्तर:
32,67,263 किलोमीटर 2

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 16.
भारत उपमहाद्वीप किस अक्षांश तथा देशांतर के मध्य स्थित है?
उत्तर:
8° उत्तर से 37° उत्तर तथा 68° पूर्व से 97° पूर्व के मध्य।

प्रश्न 17.
भारत के किस राज्य से कर्क रेखा तथा प्रामाणिक रेखाएं अधिक दूरी तय करती हैं?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 18.
भारत का पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर दक्षिण विस्तार लिखो
उत्तर:
पूर्व पश्चिम विस्तार = 2933 किलोमीटर
उत्तर दक्षिण विस्तार = 3214 किलोमीटर।

प्रश्न 19.
भारत के मध्य से कौन-सी अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा

प्रश्न 20.
भारत में कर्क रेखा पर स्थित दो शहरों के नाम लिखो। अहमदाबाद तथा जबलपुर।
उत्तर:
अहमदाबाद तथा जबलपुर।

प्रश्न 21.
कौन-सी देशांतरीय रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है?
उत्तर;
\( 82 \frac{1}{2}^{\circ}\) पूर्व देशांतर।

प्रश्न 22.
\( 82 \frac{1}{2}^{\circ}\) पूर्व देशांतर पर स्थित दो शहरों के नाम लिखो।
उत्तर:
इलाहाबाद तथा राँची।

प्रश्न 23.
भारत-पाक सीमा पर स्थित राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. गुजरात
  2. राजस्थान
  3. पंजाब
  4. जम्मू तथा कश्मीर।

प्रश्न 24.
भारत तथा चीन के मध्य सीमा का नाम लिखो।
उत्तर:
मैक्मोहन लाइन।

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प्रश्न 25.
भारत-चीन सीमा पर स्थित राज्य व केन्द्र शासित राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. उत्तराखण्ड
  2. हिमाचल प्रदेश
  3. सिक्किम
  4. अरुणाचल प्रदेश
  5. लद्दाख ( केन्द्र शासित राज्य )।

प्रश्न 26
भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. पश्चिमी बंगाल
  2. असम
  3. मेघालय
  4. त्रिपुरा|

प्रश्न 27.
भारत के पश्चिमी तट पर तटीय राज्यों के नाम बतायें।
उत्तर:

  1. गुजरात
  2. महाराष्ट्र
  3. गोआ
  4. कर्नाटक
  5. केरल।

प्रश्न 28.
भारत के पूर्वी तटों पर तटीय राज्यों के नाम बतायें।
उत्तर:

  1. तमिलनाडु
  2. आंध्र प्रदेश
  3. उड़ीसा
  4. पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 29.
उत्तर-पूर्वी भारत के पहाड़ी राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. असम
  3. नागालैंड
  4. मणिपुर
  5. मिज़ोरम
  6. त्रिपुरा
  7. मेघालय।

प्रश्न 30.
किस राज्य को Land of Dawn कहते हैं?
उत्तर;
अरुणाचल प्रदेश

प्रश्न 31.
क्षेत्रफल के आधार पर भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
सातवां

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प्रश्न 32.
कौन-सी अक्षांश रेखाएं भारत का उत्तरी तथा दक्षिणी विस्तार बनाती हैं?
उत्तर:
37° उत्तर तथा 8° उत्तर।

प्रश्न 33.
इन्दिरा प्वाइंट का अक्षांश क्या है?
उत्तर:
6°04′.

प्रश्न 34.
भारत के नाम के पीछे किस समुद्र का नाम पड़ा है?
उत्तर:
हिन्द महासागर

प्रश्न 35.
भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी सिरे में कितने समय का अन्तर है?
उत्तर:
2 घण्टे।

प्रश्न 36.
उस राज्य का नाम बतायें जिसकी सबसे लम्बी तट रेखा है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 37.
उस केन्द्र प्रशासित प्रदेश का नाम बताएं जिसका क्षेत्रफल पूर्वी तट तथा पश्चिमी तट पर मिलता है?
उत्तर:
पुड्डूचेरी।

प्रश्न 38.
भारत के दो दक्षिणी पड़ोसी देशों के नाम लिखो।
उत्तर:
श्रीलंका तथा मालदीव।

प्रश्न 39.
भारत में क्रियाशील ज्वालामुखी द्वीप का नाम लिखें।
उत्तर:
निकोबार द्वीप के नज़दीक बैरन द्वीप।

प्रश्न 40.
कौन – सा चैनल निकोबार द्वीप को अण्डमान द्वीप से अलग करता है?
उत्तर:
10° चैनल।

प्रश्न 41.
अण्डमान तथा निकोबार द्वीपों का कैसे निर्माण हुआ है?
उत्तर:
जलमग्न पहाड़ियों के शिखरों के कारण।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 42.
हिन्द महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी भाग में सागरों के नाम लिखो।
उत्तर:
अरब सागर तथा खाड़ी बंगाल।

प्रश्न 43.
हिन्द महासागर के साथ कौन-से महाद्वीप हैं?
उत्तर:
अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अण्टार्कटिका।

प्रश्न 44.
क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से संसार में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
7वां तथा दूसरा।

प्रश्न 45.
भारत ने पश्चिम और पूर्व में स्थित दो-दो देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान। पूर्व में म्यनमार तथा बंगला देश।

प्रश्न 46.
तारिम बेसिन कहां स्थित है?
उत्तर:
मध्य एशिया में।

प्रश्न 47.
भारत के उत्तरी दक्षिणी अक्षांशों के नाम लिखो।
उत्तर:
37° N तथा 80° N.

प्रश्न 48.
भारत पूर्वी सिरे तथा पश्चिमी सिरे के देशांतर लिखें।
उत्तर:
97° E तथा 68°E.

प्रश्न 49.
भारत का कौन-सा राज्य सबसे घना वसा है तथा कौन-सा राज्य सबसे कम?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल तथा अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 50.
भारत का क्षेत्रफल बताइए यह विश्व के स्थलीय भाग का कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० विश्व के स्थलीय धरातल का 2.4 प्रतिशत भाग है।

प्रश्न 51.
जून 2014 को बने नए राज्य का नाम बताओ।
तेलंगाना।
उत्तर:

प्रश्न 52.
तेलंगाना की राजधानी बताओ।
उत्तर:
हैदराबाद।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 53.
संसार की छत (Roof of the world) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पामीर की गाँठ।

प्रश्न 54.
भारत के किस राज्य की तटीय सीमा रेखा की लम्बाई सबसे अधिक है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 55.
कर्क रेखा भारत के कुल कितने राज्यों से गुज़रती है?
उत्तर:
आठ।

प्रश्न 56.
भारत में कुल कितने राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश हैं?
उत्तर:
28 राज्य व 9 केन्द्र शासित प्रदेश

प्रश्न 57.
तीन भारतीय शहरों के नाम बताएं जो कर्क रेखा पर बसे हुए हैं?
उत्तर:

  1. गांधी नगर
  2. जबलपुर
  3. रांची

प्रश्न 58.
जम्मू-कश्मीर व लद्दाख कब केन्द्र शासित राज्य बने?
उत्तर:
31 अक्तूबर, 2019

प्रश्न 59.
लक्षद्वीप (केन्द्र शासित) एवं मणिपुर राज्य की राजधानियों का नाम लिखें।
उत्तर:
लक्षद्वीप – कवरति
मणिपुर – इम्फाल

प्रश्न 60.
लद्दाख (केन्द्र शासित राज्य ) की राजधानी क्या है?
उत्तर:
लेहं।

भारत के पड़ोसी देश भारत का विस्तार
1. पाकिस्तान कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि॰मी०
2. बांग्लादेश अक्षांशीय विस्तार 8°4 उत्तर से 37°6 उत्तर
3. नेपाल देशान्तरीय विस्तार 68°7′ पूर्व से 97°25’पूर्व
4. भूटान
5. श्रीलंका पूर्व-पश्चिम लम्बाई 2933 कि॰मी०
6. मालदीव उत्तर-दक्षिण लम्बाई 3214 कि॰मी०


लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उप-महाद्वीप किसे कहते हैं? इसकी व्याख्या दक्षिण एशिया की हिमालय पर्वत श्रेणी के दक्षिण स्थित देशों के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
उप-महाद्वीप एक विशाल स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई को कहा जाता है। यह स्थल खण्ड मुख्य महाद्वीप से स्पष्ट रूप से अलग होता है। इस विशालता के कारण इस भू-भाग में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्वरूपों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं। भू-भाग की सीमाएं विभिन्न स्थलाकृतियों द्वारा बनाई जाती हैं जो इसे सीमावर्ती प्रदेश से पृथक् करती हैं। भारत एक महान् देश है। इसे प्राय: भारतीय उप महाद्वीप (Indian Sub-Continent) भी कहा जाता है। हिमालय पर्वत की प्राकृतिक सीमा भारतीय उप महाद्वीप को एक परिबद्ध चरित्र देकर विलगता प्रदान करती है। यह भौगोलिक इकाई इस भूखण्ड को एशिया महाद्वीप से अलग करती है। इसमें पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान तथा मालदीव के देश स्थित हैं। इन्हें सारक (SAARC) देश भी कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 2.
क्षेत्र के आधार पर संसार के देशों में भारत की स्थिति क्या है?
उत्तर:
क्षेत्रफल के आधार पर भारत संसार में सातवां बड़ा देश है। भारत से अधिक क्षेत्रफल वाले छः देश रूस,
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति  1

Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of India extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line.
ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया हैं। भारत का क्षेत्रफल रूस को छोड़ कर पूरे यूरोप के बराबर है। यह इंग्लैण्ड से 13 गुना तथा जापान से 9 गुना बड़ा है, परन्तु रूस भारत से 7 गुना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका तीन गुना बड़ा है। भारत का पूर्व – पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण विस्तार पृथ्वी की परिधि का लगभग 1 / 12 भाग है।

प्रश्न 3.
उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित दर्रे तथा इनका महत्त्व बताओ।
उत्तर:
विदेशी उत्तर-पश्चिम में स्थित खैबर और बोलन दर्रों से होकर ही भारत में प्रवेश कर सकते थे खैबर, हिन्दुकुश पर्वत में सफेद कोह के निकट तथा बोलन, सुलेमान और किरथर पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित है। पहले तो मध्य और पश्चिम एशिया की जन-जातियां इन्हीं मार्गों द्वारा भारत में आईं और बाद में सिकंदर, अफ़गानी तथा फारसी फ़ौजों ने भी इन्हीं भागों का अनुसरण किया। व्यापार के लिए भारत पश्चिम एशिया, पूर्व अफ्रीका और दक्षिण – पूर्व एशिया से समुद्री मार्गों द्वारा जुड़ा था।

प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय पर्वत को पार करने वाले चार दरों के नाम बताओ।
उत्तर:
भारत के उत्तर में हिमालय एक पर्वतीय दीवार के रूप में आवागमन साधनों में एक रुकावट है। फिर भी इस पर्वत को पार करने के लिए कई दर्रे लाभदायक हैं, जैसे-

  1. सतलुज गार्ज से शिपकी लॉ दर्रा (भारत-तिब्बत सड़क मार्ग)।
  2. कराकोरम दर्रे से कश्मीर लेह मार्ग।
  3. सिक्किम में नाथूला दर्रा।
  4. सिक्किम में जैल्पला दर्रा (लहासा – कालिम्पोंग मार्ग )।

प्रश्न 5.
उन राज्यों और संघीय प्रदेशों के नाम बताइए जिनकी सीमा बांग्लादेश से मिलती है।
अथवा
भारत की स्थल सीमाओं का वर्णन करो। भारत के कौन-से राज्य सीमावर्ती देशों के साथ लगते हैं?

उत्तर:
1. बांग्लादेश के साथ स्थल सीमा:
भारत तथा बांग्लादेश के मध्य पूर्व में एक स्थलीय सीमा है। बांग्ला देश के पूर्व में असम, मेघालय, त्रिपुरा राज्य तथा मिज़ोरम प्रदेश की सीमाएं हैं। बांग्लादेश के पश्चिम में पश्चिमी बंगाल राज्य की सीमा है।

2. पाकिस्तान के साथ स्थल सीमा:
भारत तथा पाकिस्तान के बीच कश्मीर से लेकर खाड़ी कच्छ तक एक स्थलीय सीमा है। इस सीमा के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात राज्यों की सीमाएं मिलती हैं।

3. नेपाल के साथ स्थल सीमा:
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वतों में स्थित नेपाल देश है। इन देशों के बीच यह एक प्राकृतिक सीमा है। इस सीमा के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा सिक्किम राज्यों की सीमाएं मिलती हैं।

4. म्यनमार के साथ स्थल सीमा:
हिमालय पर्वत की पूर्वी शाखाएं भारत- बर्मा सीमा बनाती हैं। यह एक प्राकृतिक स्थलीय सीमा है। इस सीमा के साथ-साथ नागालैण्ड, मणिपुर राज्य, अरुणाचल और मिज़ोरम प्रदेश सीमाएं बनाते हैं।

5. पामीर गांठ के शीर्ष के साथ देश:
भारत की उत्तरी सीमा के शीर्ष ( पामीर गांठ) पर पांच देशों की सीमाएं आपस में मिलती हैं। इस मिलन बिन्दु पर भारत, चीन, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान की सीमाएं मिलती हैं। पामीर गांठ को ‘संसार की छत’ (Roof of the World) कहते हैं।

प्रश्न 6.
मैक्मोहन रेखा किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है? इसका निर्धारण किस सिद्धान्त पर किया गया है?
‘उत्तर:
मैक्मोहन रेखा भारत तथा चीन के मध्य सीमा रेखा है। यह सीमा रेखा हिमालय रेखा के साथ-साथ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई है। इस सीमा के पार चीन के सिक्यांग तथा तिब्बत पठार स्थित हैं। इसके उत्तर- पूर्वी भाग में म्यनमार (बर्मा), चीन एवं भारत आपस में मिलते हैं। यह सीमा रेखा अधिकांशत: प्राकृतिक है तथा ऐतिहासिक रूप से निर्धारित है। हिमालय पर्वत हमारी उत्तरी सीमा का प्रहरी है। उच्च हिमालय के शिखर भारत तथा चीन को अलग-अलग करते हैं। ये शिखर एक जल विभाजक के रूप में फैले हुए हैं तथा भारत-चीन सीमा रेखा को प्राकृतिक रूप देते हैं।

प्रश्न 7.
भारत के दक्षिण में स्थित महासागर को ‘हिन्द महासागर’ क्यों कहा जाता है? हिन्द महासागर भारत को किन देशों से जोड़ता है?
उत्तर:
हिन्द महासागर सचमुच ‘हिन्द’ (भारत) का महासागर है। यह संसार में एकमात्र महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम के कारण है। भारत की तट रेखा हिन्द महासागर के अधिकतर भाग को घेरती है। इस क्षेत्र में भारत जैसे महत्त्वपूर्ण देश का प्रभाव है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में भारत ही सबसे उन्नत देश था इस महत्त्व के कारण ही इसे हिन्द महासागर कहा जाता है। हिन्द महासागर भारत को पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण पश्चिमी एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका से स्वेज़ मार्ग द्वारा जोड़ता है। पूर्व में यह चीन, जापान तथा इण्डोनेशिया से जुड़ा हुआ है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 8.
जब अरुणाचल में सूर्योदय हो चुका होता है तब सौराष्ट्र में रात होती है। कारण बताओ।
अथवा
भारत के सबसे पूर्वी भाग अरुणाचल प्रदेश और सबसे पश्चिमी भाग गुजरात के स्थानीय समय में दो घण्टे का अन्तर क्यों है?
अथवा
भारत का देशान्तरीय विस्तार हमें किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
भारत पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग तीन हज़ार किलोमीटर की दूरी में फैला हुआ है। इसकी सबसे पश्चिमी सीमा बिन्दु सौराष्ट्र में है, जबकि पूर्वी सीमा बिन्दु अरुणाचल प्रदेश में है। इस प्रकार भारत का पूर्व – पश्चिम विस्तार 30° देशान्तर है। सूर्य को 1° देशान्तर पार करने के लिए 4 मिनट का समय लगता है। इसलिए 30° देशान्तर के लिए ( 30 x 4 120) मिनट या दो घण्टे का समय लगेगा। अरुणाचल प्रदेश पूर्व में है। वह भाग सूर्य के सामने पहले आता है, इसलिए वहां सूर्योदय पहले होता है। पश्चिम में स्थित होने के कारण सौराष्ट्र में सूर्योदय बाद में अर्थात् दो घण्टे देर से होता है।

इसलिए जब अरुणाचल में सूर्य उदय हो चुका होता है तो सौराष्ट्र में रात होती है। इसलिए अरुणाचल को ‘सूर्योदय का प्रदेश’ (Land of Dawn) भी कहते हैं । इस तथ्य से भारत की विशालता का ज्ञान होता है परन्तु आधुनिक जेट युग में दूरियां अपना महत्त्व खो चुकी हैं। आप श्रीनगर में नाश्ता करके दोपहर के खाने पर तिरुवनन्तपुरम पहुंच सकते हैं । जामनगर और गुवाहाटी के मध्य की यात्रा उतना ही समय लेगी जितनी देर में आप एक भारतीय फिल्म देखते हैं

प्रश्न 9.
‘भारत न तो दानव है और न बौना’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अथवा
‘भारत न तो संसार का सबसे बड़ा देश है और न ही सबसे छोटा ।” उदाहरण सहित व्याख्या करो – भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां स्थान है। भारत पृथ्वी के धरातल के लगभग 2.2% क्षेत्रफल में फैला हुआ है। फिर भी कई देशों का आकार भारत से बड़ा है। रूस भारत से लगभग सात गुना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग तीन गुना बड़ा है। भारत इंग्लैण्ड से 13 गुना तथा जापान से नौ गुना बड़ा है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति  2
इस प्रकार क्षेत्रफल के आधार पर भारत न बहुत बड़ा और न ही बहुत छोटा देश है । इसलिए यह कथन सही है कि ” भारत न तो दानव है और न ही बौना ।” (“India is neither a giant nor a pigmy.”)

प्रश्न 10.
” भारत को हिन्द महासागर में सर्वाधिक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है।” यह कथन कहां तक सही है?
उत्तर:
हिन्द महासागर का विस्तार 40° पूर्व से 120° पूर्व देशान्तर तक है। भारत का दक्षिणी सिरा कन्याकुमारी लगभग 80° पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। इस प्रकार भारत को हिन्द महासागर में केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। भारतीय प्रायद्वीप अरब सागर तथा खाड़ी बंगाल के मध्य में स्थित है। हिन्द महासागर में किसी भी देश की तट रेखा भारतीय तट रेखा जितनी लम्बी नहीं है। सभी समुद्री मार्ग भारत के तट को छू कर गुज़रते हैं। भारत पूर्व तथा पश्चिम दोनों दिशाओं में स्थित देशों के मध्य में स्थित है। इसलिए भारत को हिन्द महासागर में सर्वाधिक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। भारत हिन्द महासागर में है। अतः हिन्द महासागर वास्तव में “हिन्द महासागर ” है।

प्रश्न 11.
भारत का प्रायद्वीपीय आकार किस प्रकार लाभदायक है? तीन उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
अथवा
भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति के तीन प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप त्रिभुजाकार है। इससे भारत के तीन पड़ोसी सागरों तक (बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, हिन्द महासागर) पहुंच बहुत सुगम है। इस आकार के कारण मालाबार तट तथा कोरोमण्डल तट पर मत्स्य क्षेत्रों का विकास हुआ है। दोनों तटों पर कई प्राकृतिक बंदरगाहों जैसे – विशाखापट्टनम, चेन्नई, कोचीन, मुम्बई आदि का विकास हुआ है जहाँ से कई अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग गुज़रते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
क्या भारत को एक उप-महाद्वीप कहा जा सकता है?
उत्तर:
भारत – एक उप-महाद्वीप (India-A Sub-Continent):
भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां स्थान है। भारत से अधिक क्षेत्रफल वाले छः देश रूस, ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया हैं। भारत पृथ्वी के धरातल के लगभग 2.2% क्षेत्रफल में फैला हुआ है। फिर भी कई देशों का आकार भारत से बड़ा है। रूस भारत से लगभग सात गुना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग तीन गुना बड़ा है। भारत इंग्लैण्ड से 13 गुना तथा जापान से नौ गुना बड़ा है। इस प्रकार क्षेत्रफल के आधार पर भारत न बहुत बड़ा और न ही बहुत छोटा देश है। इसलिए यह कथन सही है कि भारत न तो ” दानव है और न ही बौना ।” (India is neither a giant nor a pigmy.)

उप-महाद्वीप एक विशाल स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई को कहा जाता है। यह स्थल खण्ड मुख्य महाद्वीप से स्पष्ट रूप से अलग होता है। इस विशालता के कारण इस भू-भाग में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्वरूपों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं। भू-भाग की सीमाएं विभिन्न स्थलाकृतियों द्वारा बनाई जाती हैं जो इसे सीमावर्ती प्रदेश से पृथक् करती हैं। भारत एक महान् देश है। इसे प्रायः भारतीय उप महाद्वीप ( Indian Sub – Continent) भी कहा जाता है। डॉ० क्रैसी के अनुसार भारत को यूरोप की भांति एक महाद्वीप कहलाने का अधिकार है। प्रायः ये कथन विशाल क्षेत्रफल तथा जनसंख्या के आधार पर कहे जाते हैं। ग्लोब पर एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में एक विशाल स्थलखण्ड के रूप में भारतीय उप महाद्वीप दिखाई देता है। इसे उप-महाद्वीप कहे जाने के कई कारण हैं:

1. प्राकृतिक सीमाएं:
भारत की प्राकृतिक सीमाएं इसे एक विलगता का स्वरूप प्रदान करती हैं। उत्तर में हिमालय पर्वत, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में घने वन तथा पश्चिम में थार मरुस्थल इसे मुख्य महाद्वीप से पृथक् करके उप- महाद्वीप का स्वरूप प्रदान करते हैं।

2. परिबद्ध चरित्र:
भारत चारों ओर से एशिया के मुख्य क्षेत्रों से घिरा है। इसे विशाल पर्वतों ने हज़ारों किलोमीटर तक अखंड रूप से घेर कर परिबद्ध (Enclosed) चरित्र दे दिया है। इस पर्वतीय घेरे के कारण यह एशिया के अन्य क्षेत्रों से व्यावहारिक रूप से अलग-थलग है।

3. क्षेत्रफल तथा जनसंख्या:
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत संसार का सातवां बड़ा देश है। यह देश भू-मण्डल के एक बड़े भाग में फैला हुआ है। चीन को छोड़कर यह संसार में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यहां के लोगों की शारीरिक बनावट, रहन-सहन तथा संस्कृति संसार के दूसरे प्रदेशों से भिन्न है।

4. विविधता में एकता:
भारत एक विभिन्नताओं का देश है, फिर भी भारतीय सभ्यता में एक विशिष्ट एकरूपता विद्यमान है । इस आधार पर कई लेखकों ने इस भू-भाग को एक उप महाद्वीप की संज्ञा दी है।

5. जलवायु:
जलवायु के आधार पर सम्पूर्ण देश में उष्ण मानसूनी जलवायु पाई जाती है। इस भू-भाग पर मानसून पवनें एक स्वतन्त्र रूप में उत्पन्न होती हैं। मानसून पवनों का पूर्ण रूप इसी उप-महाद्वीप पर मिलता है । सम्पूर्ण देश में ऋतुओं का एक जैसा क्रम पाया जाता है। ये पवनें इसे एशिया महाद्वीप में पृथक् प्रकार की जलवायु प्रदान करके उप- महाद्वीप का स्वरूप प्रदान करने में सहायक हैं।

6. प्राकृतिक संसाधन:
भारत में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता है। सारे देश की आर्थिकता कृषि पर आधारित है। ये साधन किसी महाद्वीप में मिलने वाले साधनों की तुलना में कम नहीं हैं। इन विशेषताओं के आधार पर भारत को एक उप महाद्वीप कहना सही है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 2.
‘भारत की सीमाएं अधिकांशतः प्राकृतिक हैं और वे ऐतिहासिक रूप से निर्धारित हैं।” उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर:
भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है। इसकी सीमाएं ऐतिहासिक हैं तथा अधिकांशतः प्राकृतिक हैं।

  1. हिन्द महासागर भारत की दक्षिणी सीमा बनाता है। समुद्र के पार हमारा निकटतम पड़ोसी देश श्रीलंका है जिसे पाक जलडमरू मध्य भारत से अलग करता है।
  2. इण्डोनेशिया निकोबार द्वीप के दक्षिण में अलग-थलग स्थित है।
  3. भारत की पूर्वी सीमा पर बंगाल की खाड़ी के पार बांग्लादेश, मलेशिया, म्यानमार, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, वियतनाम तथा लाओस स्थित हैं। यह सीमा घने जंगलों तथा पूर्वांचल की पहाड़ियों द्वारा बनी हुई है।
  4. पश्चिम की ओर अरब सागर से परे ईराक, ईरान, अरब, मिस्र, सूडान, इथोपिया, केनिया आदि देश स्थित हैं।
  5. भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वत की एक अखण्ड दीवार के परे तिब्बत, चीन, सिक्यिांग बेसिन, तज़ाकिस्तान तथा अफगानिस्तान स्थित हैं। मैक्मोहन रेखा भारत तथा चीन के मध्य एक प्राकृतिक सीमा है।
  6. भारत की उत्तरी सीमा पर नेपाल तथा भूटान स्थित हैं।
  7.  हमारी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगती है। ये देश ऐतिहासिक रूप से प्राचीन सभ्यता के समय से भारत का सहभागी रहा है। पांच नदियों का देश (पंजाब) तथा राजस्थान मरुभूमि एवं सिंध (पाकिस्तान ) ऐतिहासिक रूप से समकाली प्रदेश हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत की सीमाएं अधिकांशतः प्राकृतिक हैं तथा ऐतिहासिक रूप से निर्धारित हैं।

प्रश्न 3.
भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्त्व (Importance of the Geographical Location of India) भारत की भौगोलिक स्थिति अनेक प्रकार से सुविधाजनक तथा महत्त्वपूर्ण है

  1. केन्द्रीय स्थिति (Central Location): भारत पूर्वी गोलार्द्ध के मध्य में स्थित है। यूरोप तथा अमेरिका के पश्चिमी भाग से भारत लगभग समान दूरी पर है।
  2. व्यापारिक मार्ग (Trade Routes ): अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भी भारत की स्थिति महत्त्वपूर्ण है। यहां से अनेक व्यापारिक मार्ग (Trade Routes) वायु तथा जल मार्ग से होकर जाते हैं।
  3. कर्क रेखा से समीपता (Nearness of Tropic of Cancer): कर्क रेखा देश के मध्य से होकर गुज़रती है, इसलिए भारत समूचे रूप से एक गर्म देश है। अधिक तापमान के कारण वर्ष भर खेती की सुविधा है, इसलिए भारत एक कृषि प्रधान देश है।
  4. लम्बी तट रेखा (Long Coast Line ): लम्बी तट रेखा के कारण अनेक बन्दरगाहों की सुविधा है।
  5. सुरक्षा (Defence ): देश की प्राकृतिक सीमाएं सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  6.  हिन्द महासागर का प्रभाव (Effect of Indian Ocean): हिन्द महासागर के किनारे पर स्थित होने के कारण ही ग्रीष्म ऋतु की मानसून पवनों से वर्षा प्राप्त होती है।
  7. हिमालय पर्वत का प्रभाव (Effect of Himalayas ): हिमालय पर्वत अपनी स्थिति के कारण ही मानसून पवनों को रोक कर वर्षा करता है तथा शीत ऋतु में ठण्डी ध्रुवीय पवनों से उत्तरी भारत की रक्षा करता है।

प्रश्न 4.
भारत में बनाए गए नवीन राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश का नाम लिखें।
उत्तर:
2 जून, 2014 को आन्ध्र प्रदेश राज्य का पुनर्गठन करके दो राज्य बनाए गए। तेलंगाना तथा आन्ध्र प्रदेश । तेलंगाना भारतीय पठार के मध्यवर्ती भाग में बनाया गया नया राज्य है । इस राज्य का क्षेत्रफल 114,800 वर्ग कि०मी० है। इसमें कृष्णा तथा गोदावरी प्रमुख नदियां हैं। हैदराबाद नगर को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाया गया है जो 10 वर्षों तक ऐसे ही रहेगा। जम्मू-कश्मीर राज्य को भी 31 अक्तूबर, 2019 को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया है। जम्मू कश्मीर को दो केन्द्र शासित राज्यों लदाख व जम्मू-कश्मीर में बांट दिया गया। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर तथा लदाख की राजधानी लेह है।
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JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. इनबतूता का जन्म हुआ था-
(अ) भारत
(ब) ओमान
(स) तुर्की
(द) तैंजियर
उत्तर:
(द) तैंजियर

2. इलबतूता अनेक देशों की यात्रा करने के बाद स्वदेश वापस पहुँचा-
(अ) 1333 ई.
(ब) 1432 ई.
(स) 1354 ई.
(द) 1454 ई.
उत्तर:
(स) 1354 ई.

3. ‘रिहला’ का लेखक कौन था?
(अ) अल-बिरुनी
(ब) हसननिजामी
(स) फिरदौसी
(द) इलबतूता
उत्तर:
(द) इलबतूता

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4. फ्रांस्वा बर्नियर कहाँ का निवासी था?
(अ) ब्रिटेन
(ब) फ्रांस
(स) जर्मनी
(द) इटली
उत्तर:
(ब) फ्रांस

5. फ्रांस्वा बर्नियर भारत आया था-
(अ) सोलहवीं सदी
(ब) पन्द्रहवीं सदी
(स) सत्रहवीं सदी
(द) अठारहर्वीं सदी
उत्तर:
(स) सत्रहवीं सदी

6. इन्नबतूता के पाठक किससे पूरी तरह से अपरिचित थे-
(अ) खजूर
(ब) नारियल
(स) केला
(द) अंगूर
उत्तर:
(ब) नारियल

7. इबबतूता ने किस शहर को भारत में सबसे बड़ा बताया है-
(अ) आगरा
(ब) इलाहाबाद
(स) जौनपुर
(द) दिल्ली
उत्तर:
(द) दिल्ली

8. इलबतूता भारत की कौनसी प्रणाली की कार्यकुशलता को देखकर आशचर्यचकित हो गया था-
(अ) जल-निकास प्रणाली
(ब) डाक प्रणाली
(स) गुप्तचर प्रणाली
(द) सुरक्ष प्रणाली
उत्तर:
(ब) डाक प्रणाली

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9. ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ का रचयिता था-
(अ) मनूची
(ब) सर टॉमस रो
(स) बर्नियर
(द) विलियम हॉकिंस
उत्तर:
(स) बर्नियर

10. किताब-उल-हिन्द के लेखक कौन हैं?
(अ) इब्नबतूता
(ब) बर्नियर
(स) अल-बिरुनी
(द) अब्दुर रज्जाक
उत्तर:
(स) अल-बिरुनी

11. ख्वारिज्म में अल-बिरुनी का जन्म हुआ-
(अ) 1071 ई.
(ब) 933 ई.
(स) 1023 ई.
(द) 973 ई.
उत्तर:
(द) 973 ई.

12. अल-बिरुनी किसके साथ भारत आया?
(अ) मोहम्मद गौरी
(ब) मोहम्मद बिन कासिम
(स) महमूद गजनवी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) महमूद गजनवी

13. मोहम्मद तुगलक के कहने पर इबबतूता किस देश की यात्रा पर गया?
(अ) अफगानिस्तान
(ब) रूस
(स) नेपाल
(द) चीन
उत्तर:
(द) चीन

14. बर्नियर पेशे से क्या थे?
(अ) तोपची
(ब) चिकित्सक
(स) सुनार
(द) वैज्ञानिक
उत्तर:
(ब) चिकित्सक

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15. इब्नबतूता ने अपना यात्रा-वृत्तान्त किस भाषा में लिखा?
(अ) अरबी
(ब) फारसी
(स) हित्रू
(द) उर्दू
उत्तर:
(अ) अरबी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. यूक्लिड यूनानी ……………..
2. ख्वारिज्म ……………… में स्थित है।
3. सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण ……………. ई. में किया।
4. इनबतूता ……………. में स्थलमार्ग से …………. पहुँचा।
5. भारत में पुर्तगालियों का आगमन लगभग ……………….. ई. में हुआ।
6. बर्नियर ने अपनी प्रमुख कृति को फ्रांस के शासक ……………. को समर्पित किया था।
उत्तर:
1. गणितज्ञ
2 . उज्बेकिस्तान
3.1017
4. मध्य एशिया, सिन्ध
5. 1500
6. लुई

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शानिक और इतिहासकार था।

प्रश्न 2.
अल-बिरुनी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
अल-बिरुनी का जन्म ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था।

प्रश्न 3.
15 वीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले फारस के दूत का क्या नाम था?
उत्तर:
अब्दुर रज्जाक।

प्रश्न 4.
दसवीं शताब्दी से सत्रहवीं सदी तक भारत की यात्रा करने वाले तीन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए।
(1) अल बिरूनी
(2) इब्नबतूता
(3) फ्रांस्वा
उत्तर:
बर्नियर।

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प्रश्न 5.
‘किताब-उल-हिन्द’ का रचयिता कौन था? यह ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
(1) अल-विरुनी
(2) अरबी भाषा।

प्रश्न 6.
अल-विरुनी द्वारा जिन दो ग्रन्थों का संस्कृत में अनुवाद किया गया, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) पतंजलि का व्याकरण
(2) यूक्लिड के कार्य।

प्रश्न 7.
इब्नबतूता कहाँ का निवासी था?
उत्तर:
इब्नबतूता मोरक्को का निवासी था।

प्रश्न 8.
इब्नबतूता के भारत पहुँचने पर किस सुल्तान ने किस पद पर नियुक्त किया था?
उत्तर:
(1) मुहम्मद बिन तुगलक ने
(2) दिल्ली के काजी (न्यायाधीश) के पद पर

प्रश्न 9.
इब्नबतूता भारत कब पहुँचा और किस मार्ग से पहुंचा?
उत्तर:
इब्नबतूता 1333 ई. में स्थल मार्ग से सिन्ध पहुँचा।

प्रश्न 10.
इब्नबतूता ने अपना यात्रा वृखन्त किस भाषा में लिखा? यह यात्रा वृत्तान्त किस नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर:
(1) अरबी भाषा में
(2) रिहला।

प्रश्न 11.
अब्दुरक समरवन्दी ने भारत में किस भाग की यात्रा की थी और कब?
उत्तर:
1440 के दशक में अब्दुररज्जाक ने दक्षिण भारत की यात्रा की।

प्रश्न 12.
फ्रांस्वा बर्नियर भारत में कितने वर्ष रहा था ?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर 12 वर्ष (1656-1668 ई.) तक भारत में रहा।

प्रश्न 13.
भारतीय समाज को समझने में अल-बिरुनी को कौनसी बाधाओं का सामना करना पड़ा ?
उत्तर:
(1) संस्कृत भाषा की कठिनाई
(2) धार्मिक अवस्था, प्रथाओं में भिन्नता
(3) अभिमान

प्रश्न 14.
इब्नबतूता ने कौनसी दो वानस्पतिक उपजों का रोचक वर्णन किया है, जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे?
उत्तर:
(1) नारियल
(2) पान।

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प्रश्न 15.
इब्नबतूता के अनुसार भारत के दो बड़े शहर कौन से थे?
उत्तर:
(1) दिल्ली
(2) दौलताबाद।

प्रश्न 16.
इब्नबतूता ने भारत की किस प्रणाली की कुशलता का उल्लेख किया है?
उत्तर:
डाक प्रणाली का

प्रश्न 17.
अब्दुररज्जाक ने किस शहर के मन्दिर के शिल्प और कारीगरी को अद्भुत बताया था ?
उत्तर:
मंगलौर शहर से 9 मील के भीतर स्थित मन्दिर

प्रश्न 18.
ऐसे तीन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण किया।
उत्तर:
(1) अब्दुर रज्जाक
(2) महमूद वली बल्छी
(3) शेख अली हाजिन।

प्रश्न 19.
पेलसर्ट ने भारत की किस सामाजिक समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया?
उत्तर:
भारत की व्यापक तथा दुःखद गरीबी की समस्या।

प्रश्न 20.
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच एक प्रमुख मूल भिन्नता बताइये।
उत्तर:
भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव।

प्रश्न 21.
अल-विरुनी ने अपनी पुस्तक ‘किताब-उल- हिन्द’ किस भाषा में लिखी?
उत्तर:
अरबी में।

प्रश्न 22.
इब्नबतूता का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
तैंजियर में।

प्रश्न 23.
शरिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस्लामी कानून।

प्रश्न 24.
इब्नबतूता ने भारत के लिए कब प्रस्थान
उत्तर:
1332-33 ई. में।

प्रश्न 25.
इब्नबतूता अपने देश वापस कब पहुँचा ?
उत्तर:
1354 ई. में

प्रश्न 26.
1600 ई. के बाद भारत आने वाले दो यूरोपीय यात्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) ज्यॉँ-बैप्टिस्ट तैर्नियर
(2) मनूकी।

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प्रश्न 27.
बर्नियर का यात्रा वृत्तान्त कहाँ और कब प्रकाशित हुआ?
उत्तर:
फ्रांस में 1670-71 में

प्रश्न 28.
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद अल बिरूनी ने किस मान्यता को अस्वीकार किया ?
उत्तर:
अपवित्रता की मान्यता।

प्रश्न 29.
अल बिरूनी ने भारत में प्रचलित वर्ण- व्यवस्था के अन्तर्गत किन चार प्रमुख वर्णों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) ब्राह्मण
(2) क्षत्रिय
(3) वैश्य
(4) शूद्र।

प्रश्न 30.
जातिव्यवस्था के विषय में अल-विरुनी का विवरण किन ग्रन्थों पर आधारित था?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों पर।

प्रश्न 31.
इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली शहर में कितने दरवाजे थे? इनमें से सबसे विशाल दरवाजा कौनसा था ?
उत्तर:
(1) 28 दरवाजे
(2) बदायूँ दरवाजा।

प्रश्न 32.
अब्दुररज्जाक ने किसे ‘विचित्र देश’ बताया था?
उत्तर:
कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को।

प्रश्न 33.
बर्नियर द्वारा रचित ग्रन्थ ‘ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर’ की अपनी किन विशेषताओं के लिए विख्यात है?
अथवा
‘ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर’ क्या है?
उत्तर:
(1) गहन चिन्तन
(2) गहन प्रेक्षण
(3) आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि

प्रश्न 34.
बर्नियर के अनुसार सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जनसंख्या का कितने प्रतिशत भाग नगरों में रहता था?
उत्तर:
लगभग पन्द्रह प्रतिशत।

प्रश्न 35.
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अमीरों की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किन्हें नियुक्त करता था?
उत्तर:
दासियों को।

प्रश्न 36.
अल बिरूनी द्वारा अपनी कृतियों में जिस विशिष्ट शैली का प्रयोग किया गया, उसे स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आरम्भ में एक प्रश्न, फिर संस्कृत परम्पराओं पर आधारित वर्णन।

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प्रश्न 37.
वर्नियर के विवरणों ने किन दो पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया?
उत्तर:
(1) मॉन्टेस्क्यू
(2) कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 38.
वर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को क्या कहा है?
अथवा
बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को ‘शिविर नगर कहा है।

प्रश्न 39.
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को शिविर नगर क्यों कहा है?
उत्तर:
क्योंकि ये नगर राजकीय शिविर पर निर्भर थे।

प्रश्न 40.
मुगलकालीन भारत में कौन-कौन से प्रकार के नगर अस्तित्व में थे?
उत्तर:
मुगलकालीन भारत में उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि नगर अस्तित्व में थे।

प्रश्न 41.
इब्नबतूता के अनुसार भारत में कितने प्रकार की डाक व्यवस्था प्रचलित थी?
उत्तर:
दो प्रकार की डाक व्यवस्था –
(1) अश्व डाक व्यवस्था (उलुक) तथा
(2) पैदल डाक व्यवस्था (दावा)।

प्रश्न 42.
इब्नबतूता के अनुसार ‘ताराबबाद’ क्या था?
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था, जिसे ‘तारावबाद’ कहते थे।

प्रश्न 43.
इब्नबतूता के अनुसार भारत का सबसे बड़ा शहर कौनसा था ?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा शहर था।

प्रश्न 44.
अल-विरुनी के अनुसार भारत में वर्ण- व्यवस्था का उद्भव किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
अल बिरुनी के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से, क्षत्रिय कन्धों और हाथों से वैश्य जंघाओं से तथा शूद्र चरणों से उत्पन्न हुए।

प्रश्न 45.
अल बिरुनी किन भाषाओं का ज्ञाता था?
उत्तर:
अल बिरूनी संस्कृत, सीरियाई, फारसी, हिब्रू नामक भाषाओं का ज्ञाता था।

प्रश्न 46.
अल बिरुनी तथा इब्नबतूता किन देशों से और कब भारत आए ?
उत्तर:
अल बिरुनी 11वीं शताब्दी में उज्बेकिस्तान तथा इब्नबतूता 14वीं शताब्दी में मोरक्को से भारत आए थे।

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प्रश्न 47.
अल बिरूनी ने अपनी पुस्तक ‘किताब- उल-हिन्द’ में किन विषयों का विवेचन किया है?
अथवा
‘किताब-उल-हिन्द’ पर सक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
‘किताब-उल-हिन्द’ क्या है?
उत्तर:
धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, माप- तौल, मूर्तिकला, कानून तथा मापतन्त्र विज्ञान ।

प्रश्न 48.
इब्नबतूता के अनुसार किन देशों में किस भारतीय माल की अत्यधिक मांग थी?
उत्तर:
मध्य एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा सदन की अत्यधिक मांग थी।

प्रश्न 49.
किस डच यात्री ने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी और कब?
उत्तर:
(1) पेलसर्ट
(2) सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में

प्रश्न 50.
फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार भारत में किस स्थिति के लोग नहीं थे?
उत्तर;
फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं थे।

प्रश्न 51.
बर्नियर ने भारत के किस नगर अल्पवयस्क विधवा को सती होते हुए देखा था? उसे किनकी सहायता से चिता स्थल की ओर ले जाया गया?
उत्तर:
(1) लाहौर में
(2) तीन या चार ब्राह्मणाँ तथा एक वृद्ध महिला की सहायता से।

प्रश्न 52.
बर्नियर के अनुसार कौनसे शिल्प भारत में प्रचलित थे?
उत्तर:
गलीचे बनाना, जरी कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के वस्त्रों, रेशमी तथा सूती वस्त्रों का निर्माण।

प्रश्न 53.
अल बिरूनी के अनुसार फारस में समाज किन चार वर्गों में विभाजित था?
उत्तर:

  • घुड़सवार और शासक वर्ग
  • भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक
  • खगोलशास्वी तथा अन्य वैज्ञानिक
  • कृषक तथा शिल्पकार।

प्रश्न 54.
दुआ बरबोसा कौन था?
उत्तर:
दुआर्ते बरबोसा एक प्रसिद्ध यूरोपीय लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा ।

प्रश्न 55.
यूरोप के दो यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने भारतीय कृषकों की गरीबी का वर्णन किया है।
उत्तर:
(1) पेलसर्ट
(2) बर्नियर

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प्रश्न 56.
इब्नबतूता भारतीय डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर क्यों चकित हुआ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता के कारण व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना और उधार भेजना सम्भव हुआ, बल्कि अल्प सूचना पर माल भेजना भी सम्भव हो गया।

प्रश्न 57.
इब्नबतूता ने मोरक्को जाने से पूर्व किन देशों की यात्रा की थी?
उत्तर:
उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया कुछ भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन

प्रश्न 58.
1400 से 1800 के बीच भारत की यात्रा करने वाले विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने फारसी में अपने यात्रा-वृत्तान्त लिखे।
उत्तर:
अब्दुररजाक समरकंदी, महमूद वली बल्खी, शेख अली हाजिन

प्रश्न 59.
इब्नबतूता के अनुसार भारत की डाक- प्रणाली क्यों लाभप्रद थी?
उत्तर:
डाक प्रणाली से व्यापारियों के लिए लम्बी दूरी तक सूचना भेजना, उधार भेजना और अल्प सूचना पर माल भेजना सम्भव हो गया।

प्रश्न 60.
पेलसर्ट कौन था?
उत्तर:
पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने सत्रहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी।

प्रश्न 61.
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य के स्वरूप की दो त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगल साइट भिखारियों’ और ‘क्रूर लोगों’ का राजा था
(2) इसके शहर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे।

प्रश्न 62.
बर्नियर ने किस जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुओं का भारत में आना
(2) भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय का अस्तित्व।

प्रश्न 63.
बर्नियर ने भारत की कृषि की किन दो विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) देश के विस्तृत भू-भाग का अधिकांश भाग अत्यधिक उपजाऊ था
(2) भूमि पर खेती अच्छी होती थी।

प्रश्न 64.
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को किसकी संज्ञा दी है और क्यों?
उत्तर:
(1) शिविर नगर
(2) क्योंकि ये नगर अपने अस्तित्व के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।

प्रश्न 65.
बर्नियर के अनुसार पश्चिमी भारत में व्यापारियों के समूह क्या कहलाते थे? उनके मुखिया को क्या कहते घे?
उत्तर:
(1) पश्चिमी भारत में व्यापारियों के समूह महाजन कहलाते थे।
(2) उनके मुखिया सेठ कहलाते थे।

प्रश्न 66.
बर्नियर के अनुसार अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग में कौन-कौन लोग सम्मिलित थे?
उत्तर:

  1. चिकित्सक
  2. अध्यापक
  3. अधिवक्ता
  4. चित्रकार
  5. वास्तुविद
  6. संगीतकार
  7. सुलेखक।

प्रश्न 67.
इब्नबतूता के अनुसार दासों की सेवाओं को विशेष रूप से किस कार्य में उपयोग किया जाता था?
उत्तर:
दास पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने का कार्य करते थे।

प्रश्न 68.
इब्नबतूता के अनुसार अधिकांश दासियाँ अ किस प्रकार प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
अधिकांश दासियों को आक्रमणों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था

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प्रश्न 69.
विदेशी यात्री अब्दुरज्जाक ने कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को क्या बताया था?
उत्तर:
अब्दुरम्नांक ने कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को एक विचित्र देश’ बताया था।

प्रश्न 70.
“कृषकों को इतना निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन पेलसर्ट नामक एक डच यात्री का

प्रश्न 71.
बर्नियर ने भारत में पाई जाने वाली सती प्रथा का विवरण क्यों दिया?
उत्तर:
क्योंकि महिलाओं से किया जाने वाला बर्ताव प्रायः पश्चिमी तथा पूर्वी समाजों के बीच भिन्नता का प्रतीक माना जाता था।

प्रश्न 72.
मुहम्मद बिन तुगलक के दूत के रूप में किस विदेशी यात्री को मंगोल शासक के पास चीन जाने का आदेश दिया गया और कब दिया गया?
उत्तर:
(1) इब्नबतूता को
(2) 1342 ई. में

प्रश्न 73.
अल बिरूनी ने संस्कृत भाषा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया।
उत्तर:
(1) शब्दों तथा विभक्तियों दोनों में संस्कृति की पहुँच विस्तृत है।
(2) एक ही वस्तु के लिए कई शब्द प्रयुक्त होते हैं।

प्रश्न 74.
बर्नियर ने अपने वृतान्त में भारत को किसके रूप में दिखाया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में अथवा फिर यूरोप का विपरीत जैसा दिखाया है।

प्रश्न 75.
दासों को सामान्यतः किस कार्य के लिए प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:
दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था।

प्रश्न 76.
बर्नियर ने सती प्रथा के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
कुछ महिलाएँ प्रसन्नतापूर्वक मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्यों को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।

प्रश्न 77.
बर्नियर के अनुसार ‘शिविर नगर’ क्या थे?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार ‘शिविर नगर’ वे थे जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।

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प्रश्न 78.
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नता क्या थी?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नता भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था।

प्रश्न 79.
किस सुल्तान ने नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक से प्रसन्न होकर उसे एक लाख के तथा दो सौ दाम दिये ?
उत्तर:
मुहम्मद बिन तुगलक ने।

प्रश्न 80.
इब्नबतूता ने भारत की किन बातों का विशेष रूप से वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नबतूता ने डाक व्यवस्था, पान तथा नारियल का विशेष रूप से वर्णन अपने ग्रन्थ ‘रिहला’ में किया है।

प्रश्न 81.
इब्नबतूता ने भारत के किस शहर को सबसे बड़ा कहा है?
उत्तर:
दिल्ली।

प्रश्न 82.
बर्नियर के ग्रन्थ का क्या नाम है?
उत्तर:
ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पावर।

प्रश्न 83.
ताराबबाद किसे कहा जाता है?
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष तथा महिला गायकों के लिए बाजार होता था; जिसे तारावबाद कहा जाता था।

प्रश्न 84.
बर्नियर ने मुगल सेना के साथ कहाँ की न यात्रा की थी?
उत्तर:
कश्मीर

प्रश्न 85.
बर्नियर जब भारत आया उस समय यूरोप में कौनसा युग गतिमान था?
उत्तर:
बर्नियर भारत में सत्रहवीं शताब्दी में आया था, कि उस समय लगभग सम्पूर्ण यूरोप में पुनर्जागरण का काल था।

प्रश्न 86.
किस यात्री ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को भेंट में देने के लिए घोड़े, अँट तथा दास खरीदे ?
उत्तर:
मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने।

प्रश्न 87.
यह तर्क किसने दिया कि भारत में ही उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लगभग दसवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक के काल में लोगों के यात्राएँ करने के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
लगभग दसवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक के काल में महिलाओं और पुरुषों के यात्राएं करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे –

  1. कार्य की तलाश में
  2. आपदाओं से बचाव के लिए
  3. व्यापारियों सैनिकों, पुरोहितों और तीर्थयात्राओं के रूप में
  4. साहस की भावना से प्रेरित होकर।

प्रश्न 2.
विदेशी यात्रियों की कौनसी बात उनके यात्रा-वृत्तान्तों को अधिक रोचक बनाती है?
उत्तर:
पूर्ण रूप से भिन्न सामाजिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने के कारण ये विदेशी यात्री दैनिक गतिविधियों तथा प्रथाओं के प्रति अधिक सावधान रहते थे। देशज लेखकों के लिए ये सभी विषय सामान्य थे, जो वृत्तान्तों में उल्लिखित करने योग्य नहीं थे दृष्टिकोण में यही भिन्नता ही उनके यात्रा वृत्तान्तों को अधिक रोचक बनाती है।

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प्रश्न 3.
अल-बिरुनी के यात्रा-वृत्तान्त लिखने के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अल- विरुनी के यात्रा-वृत्तान्त लिखने के निम्नलिखित उद्देश्य थे –
(1) उन लोगों की सहायता करना जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे।
(2) ऐसे लोगों के लिए सूचना का हिन्दुओं के साथ सम्बद्ध होना चाहते थे।

प्रश्न 4.
अल-विरुनी ग्रन्थों का अनुवाद करने में क्यों सक्षम था? स्पष्ट कीजिए उसके द्वारा अनुवादित ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अल बिरूनी कई भाषाओं में दक्ष था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। इसलिए वह भाषाओं की तुलना तथा ग्रन्थों का अनुवाद करने में सक्षम रहा। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया। संग्रह करना जो उसने पतंजलि के व्याकरण ग्रन्थ का भी अरबी भाषा में अनुवाद किया। उसने अपने ब्राह्मण मित्रों के लिए यूनानी गणित यूक्लिड के कार्यों का संस्कृत में अनुवाद किया।

प्रश्न 5.
किताब-उल-हिन्द’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अल बिरूनी ने अरबी भाषा में अपनी पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जो अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इस ग्रन्थ में भारतीय धर्म और दर्शन त्योहारों, खगोल- विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक- जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है।

प्रश्न 6.
इब्नबतूता अकेला ही विश्व यात्रा पर क्यों निकल पड़ा? उस समय उसकी क्या आयु थी? वह अपने घर वापस कब पहुँचा ?
उत्तर:
इब्नबतूता के वृत्तान्त से ज्ञात होता है कि वह अपने जन्म स्थान जियर से अकेला ही अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। उसके मन में लम्बे समय से प्रसिद्ध पुण्य स्थानों को देखने की तीव्र इच्छा थी इसलिए उसने किसी कारणों में शामिल होने की प्रतीक्षा नहीं की और अकेला ही घर से निकल पड़ा। उस समय इब्नबतूता की आयु बाईस वर्ष थी। वह 1354 में अपने घर वापस पहुँच गया।

प्रश्न 7.
अल बिरूनी को भारत का यात्रा-वृत्तान्त लिखने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
(1) अल बिरूनी के अनुसार पहली कठिनाई भाषा थी। उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक ही भाषा से दूसरी में अनुवादित करना सरल नहीं था।
(2) दूसरी कठिनाई धार्मिक अवस्था और प्रथाओं में भिन्नता थी उसे इन्हें समझने के लिए वेदों, पुराणों आदि की सहायता लेनी पड़ी।
(3) अल-बिरुनी के अनुसार तौसरी कठिनाई भारतीयों का जातीय अभिमान था।

प्रश्न 8.
अपनी श्रेणी के अन्य यात्रियों से इब्नबतूता किन बातों में अलग था?
उत्तर:
इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से प्राप्त अनुभव को अपनी जानकारी का अधिक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बड़ा शौक था और उसने नये-नये देशों तथा लोगों के विषय में जानने के लिए | दूर-दूर के क्षेत्रों तक की यात्रा की 1332-33 ई. में भारत के लिए प्रस्थान करने से पूर्व वह मक्का, सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।

प्रश्न 9.
इब्नबतूता के तत्कालीन सुल्तान मुहम्मद- बिन तुगलक के साथ सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1333 में इब्नबतूता दिल्ली पहुंचा। मुहम्मद- बिन तुगलक इब्नबतूता की विद्वता से बझ प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काली अथवा न्यायाधीश नियुक्त किया। उसने इस पद पर कई वर्षों तक कार्य किया। कुछ कारणों से सुल्तान इब्नबतूता से नाराज हो गया और उसे कारागार में कैद कर दिया गया। परन्तु कुछ समय बाद सुल्तान की नाराजगी दूर हो गई और उसने 1342 में इब्नबतूता को अपने दूत के रूप में चीन के शासक के पास भेजा।

प्रश्न 10.
“इब्नबतूता एक हठीला यात्री था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता अपनी सुन का पक्का था उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था। वह लम्बी यात्राओं के दौरान होने वाली कठिनाइयों से हतोत्साहित नहीं होता था। उसने उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका में अपने निवास स्थान मोरक्को जाने से पूर्व कई वर्ष उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया के भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन की यात्रा की थी। उसके वापिस लौटने पर मोरक्को के शासक ने उसकी कहानियों को दर्ज करने के निर्देश दिए।

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प्रश्न 11.
“बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’ भूमि विहीन श्रमिक इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में जुटा रहता था कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से गुजरे योग्य उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 12.
बर्नियर ने शहरी समूहों में किन व्यावसायिक वर्गों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार शहरी समूहों में चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि व्यावसायिक वर्ग थे। कई लोग राजकीय संरक्षण पर आश्रित थे तथा कई अन्य लोग संरक्षकों या भीड़-भाड़ वाले बाजार में सामान्य लोगों की सेवा द्वारा अपना जीवनयापन करते थे।

प्रश्न 13.
इब्नबतूता के विवरण के अनुसार दासों में काफी विभेद था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता के विवरण से ज्ञात होता है कि दाखों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से बड़ा आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। अधिकतर दासों का प्रयोग घरेलू श्रम के लिए किया जाता था घरेलू श्रम करने वाले दासों, दासियों की कीमत बहुत कम होती थी।

प्रश्न 14.
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान किस प्रकार अमीरों पर दासियों द्वारा नजर रखता था?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान की यह आदत थी कि हर बड़े या छोटे अमीर के साथ एक दास को रखता जो उनकी मुखबिरी करता था। वह इन अमीरों के घरों में महिला सफाई कर्मचारियों की भी नियुक्ति करता था। दासियों के पास जो भी सूचनाएँ होती थीं, वे इन महिला सफाई कर्मचारियों को दे देती थीं। अधिकांश दासियों को हमलों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था।

प्रश्न 15.
अल बिरूनी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए।
अथवा
अल-विरुनी के विषय में आप क्या जानते हैं ? उत्तर- अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। अल बिरुनी ने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की। वह सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत आदि कई भाषाओं का ज्ञाता था। 1017 ई. में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और अल बिरूनी सहित यहाँ के कई विद्वानों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया। उसने अपना शेष जीवन गजनी में ही बिताया। 70 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 16.
गजनी में रहते हुए अल बिरूनी की भारत के प्रति रुचि कैसे विकसित हुई?
उत्तर:
आठवीं शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल- विज्ञान, गणित और चिकित्सा सम्बन्धी कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था। पंजाब के गजनवी साम्राज्य का भाग बन जाने के पश्चात् स्थानीय लोगों से हुए सम्पर्को से आपसी विश्वास और समझ का वातावरण बना। अल- विरुनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया जिससे अल बिरुनी की भारत के प्रति रुचि विकसित हुई।

प्रश्न 17.
‘हिन्दू’, ‘हिन्दुस्तान’ तथा ‘हिन्दवी’ शब्दों का प्रचलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
‘हिन्दू’ शब्द लगभग छठी पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रयुक्त होने वाले एक प्राचीन फारसी शब्द से निकला था, जिसका प्रयोग सिन्धु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था। अरबी लोगों ने इस फारसी शब्द का प्रयोग करना जारी रखा। इस क्षेत्र को ‘अल-हिन्द’ तथा यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दी’ कहा। कालान्तर में तुर्की ने सिन्धु से पूर्व में रहने वाले लोगों को ‘हिन्दू’, उनके निवास क्षेत्र को ‘हिन्दुस्तान’ तथा उनकी भाषा को ‘हिन्दवी’ की संज्ञा दी।

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प्रश्न 18.
अल बिरुनी के लेखन कार्य की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:

  1. अल बिरुनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग किया था।
  2. अल बिरूनी ने सम्भवतः अपने ग्रन्थ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखे थे।
  3. वह संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में हुए अनुवादों से परिचित था।
  4. इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री शैली के विषय में अल बिरूनी का दृष्टिकोण आलोचनात्मक था वह उनमें सुधार करना चाहता था।

प्रश्न 19.
“इब्नबतूता की यात्राएँ कठिन तथा जोखिम भरी हुई थीं।” उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में यात्रा करना अधिक कठिन, जोखिम भरा कार्य और असुरक्षित था इब्नबतूता को कई बार डाकुओं के समूहों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा था। फिर भी राजमार्ग असुरक्षित थे। जब वह मुल्तान से दिल्ली की यात्रा कर रहा था, डाकुओं ने उसके कारवाँ पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप उसके कई साथी यात्री मारे गए। जो यात्री बच गए थे, वे भी बुरी तरह से घायल हो गए थे। इनमें इब्नबतूता भी सम्मिलित था।

प्रश्न 20.
इब्नबतूता के श्रुतलेखों को लिखने के लिए नियुक्त किए गए इब्नजुजाई ने अपनी प्रस्तावना में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नजुजाई ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है कि राजा ने इब्नबतूता को निर्देश दिया कि वह अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा रोचक घटनाओं का वृतान्त लिखवाएँ। इसके साथ ही वह विभिन्न देशों के जिन शासकों से मिले, उनके महान साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ सन्तों के विषय में भी बताएँ। इस आदेश के अनुसार इब्नबतूता ने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया। इसके अतिरिक्त इब्नबतूता ने कई प्रकार के असाधारण विवरण भी दिए।

प्रश्न 21.
अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण करने वाले यात्रियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1400 से 1800 के बीच भारत आने वाले अनेक यात्रियों ने अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण किया। इनमें अब्दुररज्जाक समरकंदी, महमूद वली बल्खी तथा शेख अली हानि उल्लेखनीय हैं। अब्दुरस्ज्जाक ने 1440 के दशक में दक्षिण भारत की यात्रा की तथा महमूद वली बल्खी ने 1620 के दशक में व्यापक रूप से यात्राएं की थीं। शेख अली हाजिन ने 1740 के दशक में उत्तर भारत की यात्रा की थी।

प्रश्न 22.
बर्नियर ने भारत में जो देखा, उसकी तुलना यूरोप से की। इसका मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
बर्नियर द्वारा दी गई पूर्व और पश्चिम की तुलना का वर्णन कीजिए।
अथवा
“बर्नियर प्रायः भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से ही करता था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर प्राय: भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था वह यूरोप की सर्वश्रेष्ठता प्रतिपादित करना चाहता था यूरोपीय स्थितियों के मुकाबले में वह भारत की स्थितियों को दयनीय दर्शाना चाहता था। यही कारण है कि लगभग प्रत्येक दृष्टान्त में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। यद्यपि उसका आकलन हम्मेसटीक नहीं था, फिर भी जब उसके कार्य प्रकाशित हुए). (बर्नियर के वृत्तांत अत्यधिक प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 23.
बर्नियर द्वारा मुगल सेना के कश्मीर कूच का वर्णन कीजिए। वह अपने साथ कौनसी वस्तुएँ ले गया था? उससे क्या अपेक्षा की जाती थी?
उत्तर:
बर्नियर मुगल सेना के कश्मीर कूच के सम्बन्ध में लिखता है कि इस देश की प्रथा के अनुसार उससे दो अच्छे तुर्कमान घोड़े देखने की अपेक्षा की जाती थी। वह अपने साथ एक शक्तिशाली पारसी ऊँट तथा चालक, अपने घोड़ों के लिए एक साईस, एक खानसामा तथा एक सेवक भी रखता था। उसे एक तम्बू एक दरी, एक छोटा बिस्तर, एक तकिया, एक विछौना, चमड़े के मेजपोश कुछ अंगोछे, झोले, जाल आदि वस्तुएँ दी गई थीं उसने चावल, मीठी रोटी, नींबू, चीनी आदि वस्तुएँ अपने साथ रखी थीं।

प्रश्न 24.
संस्कृत भाषा के विषय में अल बिरूनी के विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के अनुसार संस्कृत भाषा को सीखना एक कठिन कार्य है क्योंकि अरबी भाषा की भाँति ही, शब्दों तथा विभक्तियों, दोनों में ही संस्कृत भाषा की पहुँच बहुत विस्तृत है। इसमें एक ही वस्तु के लिए कई शब्द, मूल तथा व्युत्पन्न दोनों प्रयुक्त होते हैं। इसमें एक ही शब्द का प्रयोग कई वस्तुओं के लिए होता है, जिन्हें अच्छी तरह से समझने के लिए विभिन्न विशेषक संकेत पदों के माध्यम से एक-दूसरे से पृथक किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 25.
अल बिरूनी द्वारा वर्णित फारस के चार सामाजिक वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के अनुसार प्राचीन फारस में समाज चार वर्गों में विभाजित था ये चार वर्ग थे –
(1) घुड़सवार और शासक वर्ग
(2) भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित
(3) चिकित्सक, खगोलशास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और
(4) कृषक तथा शिल्पकार अल बिरुनी यह दर्शाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि ये अन्य देशों में भी थे।

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प्रश्न 26.
“ जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को स्वीकार करने के बावजूद, अल बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी ने लिखा है कि प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। सूर्य वायु को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है अल बिरुनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। उसके अनुसार जाति-व्यवस्था में शामिल अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।

प्रश्न 27.
” जाति व्यवस्था के विषय में अल-बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्ण रूप से प्रभावित था। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति-व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी। उदाहरणार्थ, अन्त्यजों (जाति-व्यवस्था से परे रहने वाले लोग) से प्रायः यह अपेक्षा की जाती थी कि वे किसानों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम प्रदान करें ये आर्थिक तन्त्र में सम्मिलित थे।

प्रश्न 28.
अल बिरूनी द्वारा उल्लिखित भारत की वर्ण-व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी। ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। इन्हें सबसे उत्तम माना जाता था।
  2. क्षत्रिय ब्राह्मणों के बाद दूसरी जाति क्षत्रियों की थी जिनका जन्म ब्रह्मन् के कन्धों और हाथों से हुआ • था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचा नहीं था।
  3. वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। इनका जन्म ब्रह्मन् की जंघाओं से हुआ था।
  4. शूद्र इनका उद्भव ब्रह्मन् के चरणों से हुआ था।

प्रश्न 29.
“इब्नबतूता में अनजाने को जानने की लालसा कूट-कूटकर भरी हुई थी।” स्पष्ट कीजिए । अपरिचित को रेखांकित करने का उसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
इब्नबतूता ने भारत में व्यापक यात्राएँ कीं और अपरिचित को जानने का भरसक प्रयास किया। उसके वृत्तान्तों में धर्मनिष्ठ लोगों, क्रूर और दयालु शासकों, सामान्य पुरुषों तथा महिलाओं और उनके जीवन की कहानियाँ शामिल थीं। इब्नबतूता को इन कहानियों में जो भी कुछ अपरिचित लगा था, उसे उसने विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूर्ण रूप से प्रभावित हो सकें।

प्रश्न 30.
इब्नबतूता ने नारियल का वर्णन किस प्रकार किया है?.
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार नारियल के वृक्ष स्वरूप में सबसे अनोखे और प्रकृति में सबसे आश्चर्यजनक वृक्षों में से हैं। ये बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं। इनमें केवल एक अन्तर है कि नारियल से काष्ठफल प्राप्त होता तथा दूसरे से खजूर नारियल मानव सिर से मेल खाता हैं क्योंकि इसमें भी दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है। इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है वे इससे रस्सी बनाते हैं।

प्रश्न 31.
इब्नबतूता द्वारा पान का वर्णन किस प्रकार किया गया है? उसने पान का वर्णन क्यों किया? पान का किस प्रकार प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
इब्नबतूत ने पान का वर्णन इसलिए किया क्योंकि इससे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे। इब्नबतूता के अनुसार पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता था पान को अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता था। पान के प्रयोग करने की विधि यह थी कि इसे खाने से पहले सुपारी ली जाती थी। इसके छोटे- छोटे टुकड़ों को मुंह में रखकर चबाया जाता था। इसके पश्चात् पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता था।

प्रश्न 32.
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों के सम्बन्ध में जो लिखा है, उस पर प्रकाश डालिए।
अथवा
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर पनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे, परन्तु ये कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों में विनष्ट हो जाते थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भीड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। दिल्ली एक बड़ा शहर था जिसकी आबादी बहुत अधिक थी तथा यह भारत में सबसे बड़ा शहर था। दौलताबाद (महाराष्ट्र में ) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।

प्रश्न 33.
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहरों के बाजारों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहरों के बाजार चमक-दमक वाले तथा रंगीन थे जहाँ विविध प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध रहती थीं ये बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मन्दिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों एवं गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के स्थान भी निर्धारित थे।

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प्रश्न 34.
इब्नबतूता द्वारा उल्लिखित दिल्ली ( देहली) शहर की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला पनी जनसंख्या वाला शहर था। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय थी। इसके अन्दर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष थे। प्राचीरों के अन्दर अनेक भंडार गृह बने हुए थे इस शहर के अट्ठाईस द्वार थे जिन्हें ‘दरवाजा’ कहा जाता है। इनमें से ‘बदायूँ दरवाजा’ सबसे विशाल था मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी थी तथा गुल दरवाजे की बगल में एक फलों का बगीचा था।

प्रश्न 35.
इब्नबतूता के वृत्तान्त से भारतीय कृषि, व्यापार और वाणिज्य के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के अत्यधिक उत्पादनकारी होने का कारण भूमि का उपजाऊपन था। इस वजह से किसान वर्ष में दो फसलें उगाते थे। भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर एशियाई तन्त्रों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया, दोनों में बहुत मांग थी, जिससे शिल्पकार तथा व्यापारी बहुत लाभ कमाते थे भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जी तथा साटन की बहुत अधिक माँग थीं।

प्रश्न 36.
इब्नबतूता ने दौलताबाद के संगीत बाजार का क्या वृत्तान्त दिया है? अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ‘ताराववाद’ कहते थे। यहाँ अनेक दुकानें थीं जिन्हें कालीनों से सजाया गया था। दुकान के मध्य में एक झूला था, जिस पर गायिका बैठती थी। बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा था, जिसमें कालीन बिछाए गए थे। इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई थीं।

प्रश्न 37.
अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों का उल्लेख क्यों किया?
उत्तर:
हमारे विचार में इब्नबतूता ने अपने विवरण में इन गतिविधियों का वर्णन इसलिए किया था क्योंकि इस प्रकार के संगीत के बाजारों से उसके पाठक अपरिचित थे। अतः उसने इन गतिविधियों का वर्णन किया ताकि उसके पाठक इन वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें।

प्रश्न 38.
अब्दुररज्जाक ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में दक्षिण भारत का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
1440 के दशक में लिखा गया अब्दुरज्जाक का यात्रा-वृत्तान्त संवेगों और अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है। उसने केरल में कालीकट (आधुनिक कोलीकोड) बन्दरगाह पर जो देखा, उसे प्रशंसनीय नहीं माना। उसने लिखा है कि “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे, जिनकी कल्पना उसने कभी भी नहीं की थी।” इन लोगों को उसने एक ‘विचित्र देश’ बताया।

प्रश्न 39.
अब्दुररज्जाक द्वारा वर्णित मंगलौर के मन्दिर का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अब्दुररज्याक ने लिखा है कि मंगलौर से 9 मील के भीतर ही उसने एक ऐसा पूजा स्थल देखा जो सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। यह वर्गाकार था तथा चार द्वार मंडपों के साथ काँसे से ढका हुआ था प्रवेश-द्वार के द्वार-मंडप में सोने की बनी एक मूर्ति थी जो मानव- आकृति जैसी तथा आदमकद थी इसकी दोनों आँखों में काले रंग के माणिक इतनी चतुराई से लगाए गए थे कि ऐसा लगता था मानो वह देख सकती हों। यह शिल्प और कारीगरी अद्भुत थी।

प्रश्न 40.
इब्नबतूता ने भारत की डाक व्यवस्था को संचार की एक अनूठी प्रणाली क्यों बताया है?
अथवा
मध्यकालीन भारत में डाक प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना और उधार भेजना सम्भव हुआ बल्कि अल्प सूचना पर माल भेजना भी सम्भव हो गया। डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएँ सुल्तान तक इस डाक- व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं।

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प्रश्न 41.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में आने वाले तीन यूरोपीय यात्रियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सोलहवीं शताब्दी में दुआर्ते बरबोसा नामक यूरोपीय यात्री ने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा।
  2. सत्रहवीं शताब्दी में ज्यों वैप्टिस्ट तैवर्नियर नामक एक फ्रांसीसी जौहरी ने भारत की कम से कम 6 बार यात्रा की वह भारत की व्यापारिक स्थितियों से बड़ा प्रभावित था।
  3. सत्रहवीं शताब्दी में इतालवी चिकित्सक मनूकी भारत आए और यहीं बस गए।

प्रश्न 42.
फ्रांस्वा बर्नियर का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी था। यह एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। यह मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में भारत आया था। वह 1656 से 1668 ई. तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखे। प्रारम्भ में उसने मुगल सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह के चिकित्सक के रूप में कार्य किया तथा बाद में एक मुगल अमीर दानिशमन्द खान के साथ कार्य किया।

प्रश्न 43.
डच यात्री पेलसर्ट ने भारत में व्याप्त व्यापक गरीबी का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक हच यात्री भारत के लोगों में व्याप्त गरीबी को देखकर बड़ा आश्चर्यचकित था। उसने लिखा है कि “लोग इतनी अधिक और दुःखद गरीबी में रहते थे कि उनके जीवन को मात्र नितान्त अभाव के घर और कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आवास के रूप में चित्रित किया जा सकता है।” पेलसर्ट के अनुसार, “कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता था कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी कठिनाई से बचती थी।”

प्रश्न 44.
“बर्नियर का उद्देश्य यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाना तथा भारतीय स्थितियों को दयनीय बताना था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर निरन्तर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा और प्रायः यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाता रहा। वह यूरोपीय प्रथाओं, रीति-रिवाज और प्रशासनिक व्यवस्था को श्रेष्ठ दर्शाना चाहता था तथा भारतीय परिस्थितियों को दयनीय बताना चाहता था। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है। उसने भारत में जो भिताएँ अनुभव की उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया ताकि भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का लगे।

प्रश्न 45.
भूस्वामित्व के सम्बन्ध में वर्नियर के विचारों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बर्नियर के अनुसार भूमि स्वामित्व के प्रश्न पर भारत और यूरोप के बीच क्या भिन्नता थी? राजकीय भूस्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों के लिए क्यों हानिकारक था?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर निजी स्वामित्व का समर्थक था। उसके अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था उसने यह महसूस किया कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों में बांटता था और इसके अर्थव्यवस्था तथा समाज के लिए विनाशकारी परिणाम होते थे।

प्रश्न 46.
बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व राज्य के निवासियों के लिए क्यों विनाशकारी था?
उत्तर:
अनियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के कारण, भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें वृद्धि के लिए प्रयास नहीं करते थे। निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भूधारकों को पनपने से रोका। इसी वजह से कृषि का विनाश हुआ, किसानों को अत्यधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में लगातार पतन की स्थिति उत्पन्न हुई।

प्रश्न 47.
बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के कृषकों की दशा का वृत्तान्त प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत के कई ग्रामीण अंचल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत थे। यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी और इन क्षेत्रों की आबादी भी कम थी। यहाँ श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग कृषि विहीन रह जाता था। कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किये गए अत्याचारों के फलस्वरूप मर जाते थे। गरीबों को न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता था, बल्कि उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 48.
“बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना वर्णित करता है।” स्पष्ट कीजिए। उत्तर बर्नियर के अनुसार भारतीय समाज दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना था। यह वर्ग एक अत्यन्त अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग के द्वारा अधीन बनाया जाता था। शासक वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते थे गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था बर्नियर दृढ़तापूर्वक कहता है कि “भारत में मध्या की स्थिति के लोग नहीं हैं।”

प्रश्न 49.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को जिस रूप में देखा, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा भिखारियों तथा क्रूर लोगों का राजा था मुगल साम्राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित थे और इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल’ से परिपूर्ण।। इसका केवल एक ही कारण था-राजकीय भूस्वामित्व।

प्रश्न 50.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को भूमि का एकमात्र स्वामी बताया है। क्या इसकी पुष्टि मुगल साक्ष्यों धे से होती है?
उत्तर:
एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए अकबर के काल के सरकारी इतिहासकार अबुल फजल ने भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक’ बताया है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग लगती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान कुछ यूरोपीय यात्री ऐसी मांगों को लगान मानते थे परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।

प्रश्न 51.
“बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सहव शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे, जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था तथा साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे लायक उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 52.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में किस अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर लिखता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों की वृद्धि के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था क्योंकि समस्त लाभ राज्य द्वारा ही प्राप्त कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था। इसके साथ ही बनियर ने यह भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था बर्नियर ने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व का भी उल्लेख किया है।

प्रश्न 53.
बर्नियर ने यूरोपीय राजाओं को मुगल ढाँचे का अनुसरण करने पर क्या चेतावनी दी है? उसने सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार यूरोपीय राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए इतनी अच्छी प्रकार से निर्मित तथा इतने समृद्ध नहीं रह जायेंगे, जैसा कि लोग उन्हें देखते हैं वे शीघ्र ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे जैसे | कि मुगल शासक हम उन महान शहरों और नगरों को खराब वायु के कारण न रहने योग्य अवस्था में पाएँगे। विनाश की स्थिति में टीले और झाड़ियाँ अथवा पातक दलदल से भरे खेत ही रह जायेंगे।

प्रश्न 54.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में भारतीय कृषि तथा शिल्प उत्पादन की उन्नत स्थिति का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने लिखा है कि देश का अधिकांश भू- भाग अत्यधिक उपजाऊ है। उदाहरण के लिए बंगाल राज्य चावल, मकई, रेशम कपास तथा नील के उत्पादन में से आगे है। यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी गलीचों, जरी, कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के स्वों तथा विभिन्न प्रकार के रेशमी एवं सूती वस्त्रों निर्माण का कार्य करने में संलग्न रहते हैं विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी कुछ सीमा तक खो जाता है।

प्रश्न 55.
बर्नियर द्वारा उल्लिखित राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते थे, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते थे एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में कार्यरत रहते थे। एक अन्य कक्ष में सुनार कार्यरत थे। तीसरे कक्ष में चित्रकार तथा चौधे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले कार्यरत थे।

पाँचवें कक्ष में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले तथा हठे कक्ष में रेशम, जरी तथा बारीक मलमल का काम करने वाले कार्यरत थे। प्रश्न 56. बर्नियर के अनुसार ‘मुगलकालीन शहर’ ‘शिविर नगर’ थे। स्पष्ट कीजिए। जाता था। शासक वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते थे गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या नहीं था। बर्नियर दृढ़तापूर्वक कहता है कि “भारत में की स्थिति के लोग नहीं हैं।”

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प्रश्न 49.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को जिस रूप देखा, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राज भिखारियों तथा क्रूर लोगों का राजा था मुगल साम्राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित और इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से परिपूर्ण थे। इसका केवल एक ही कारण था राजकीय भूस्वामित्व।

प्रश्न 50.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को भूमि का एकमात्र स्वामी बताया है। क्या इसकी पुष्टि मुगल साक्ष्यों से होती है?
उत्तर:
एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए अकबर के काल के सरकारी इतिहासकार अबुल फजल ने भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक’ बताया है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग लगती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान कुछ यूरोपीय यात्री ऐसी माँगों को लगान मानते थे परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।

प्रश्न 51.
” बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे, जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था तथा साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे लायक उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 52.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में किस अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर लिखता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों की वृद्धि के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था क्योंकि समस्त लाभ राज्य द्वारा ही प्राप्त कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था। इसके साथ ही बनियर ने यह भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था बर्नियर ने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व का भी उल्लेख किया है।

प्रश्न 53.
बर्नियर ने यूरोपीय राजाओं को मुगल ढाँचे का अनुसरण करने पर क्या चेतावनी दी है? उसने सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार यूरोपीय राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए इतनी अच्छी प्रकार से निर्मित तथा इतने समृद्ध नहीं रह जायेंगे, जैसा कि लोग उन्हें देखते हैं वे शीघ्र ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे जैसे कि मुगल शासक हम उन महान शहरों और नगरों को खराब बायु के कारण न रहने योग्य अवस्था में पाएँगे। विनाश की स्थिति में टीले और झाड़ियाँ अथवा पातक दलदल से भरे खेत ही रह जायेंगे।

प्रश्न 54.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में भारतीय कृषि तथा शिल्प उत्पादन की उन्नत स्थिति का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने लिखा है कि देश का अधिकांश भू- भाग अत्यधिक उपजाऊ है। उदाहरण के लिए बंगाल राज्य चावल, मकई, रेशम कपास तथा नील के उत्पादन में मिल से आगे है। यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी गलीचों, जरी कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चांदी के यस्व तथा विभिन्न प्रकार के रेशमी एवं सूती वस्त्रों के निर्माण का कार्य करने में संलग्न रहते हैं। विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी भारत में आकर कुछ सीमा तक खो जाता है।

प्रश्न 55.
बर्नियर द्वारा उल्लिखित राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते थे, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते थे। एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में कार्यरत रहते थे। एक अन्य कक्ष में सुनार कार्यरत थे। तीसरे कक्ष में चित्रकार तथा पौधे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले कार्यरत थे। पाँचवें कक्ष में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले तथा हठे कक्ष में रेशम, जरी तथा बारीक मलमल का काम करने वाले कार्यरत थे।

प्रश्न 56.
बर्नियर के अनुसार ‘मुगलकालीन शहर’ “शिविर नगर’ थे स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिये। बर्नियर भारतीय शहरों को किस रूप में देखता है?
उत्तर:
बनिंवर ने ‘मुगलकालीन शहरों’ को ‘शिविर नगर’ कहा है। शिविर नगरों से उसका अभिप्राय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। उसका विचार था कि ये नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे तथा दरबार के कहीं और चले जाने के बाद ये तेजी से विलुप्त हो जाते थे। उसके अनुसार इन नगरों की सामाजिक और आर्थिक नींव व्यावहारिक नहीं होती थी और ये राजकीय संरक्षण पर आश्रित रहते थे।

प्रश्न 57.
बर्नियर के अनुसार “मुगलकालीन व्यापारी प्रायः सुदृढ़ सामुदायिक अथवा बन्धुत्व के सम्बन्धों से जुड़े होते थे।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगलकाल में व्यापार प्रायः सुदृद् सामुदायिक अथवा वन्धुत्व के सम्बन्धों में जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को ‘महाजन’ कहा जाता था और उनका मुखिया ‘सेठ’ कहलाता था। अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था, जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था।

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प्रश्न 58.
इब्नबतूता ने तत्कालीन दास-दासियों की स्थिति का क्या विवरण प्रस्तुत किया है?
अथवा
इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार पुरुष तथा महिला दास बाजारों में खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट में दिए जाते थे। दासों का प्रायः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था। ये लोग और महिलाओं को ले जाते थे पालकी या डोले में पुरुषों घरेलू श्रम में लगे हुए दासों का मूल्य बहुत कम होता था इसलिए अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दासों को रख पाने में समर्थ थे। सुल्तान की सेवा में लगी हुई कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।

प्रश्न 59.
“भारतीय महिलाओं का जीवन सती प्रथा के अलावा कई और चीजों के चारों ओर घूमता था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महिलाओं का जीवन सती प्रथा के अलावा कई और चीजों के चारों ओर घूमता भी था उनका श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन, दोनों में महत्त्वपूर्ण था। व्यापारिक घरानों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। वे कभी-कभी वाणिज्यिक विवादों को न्यायालय के सामने भी ले जाती थीं। अतः यह सम्भव नहीं लगता है कि महिलाओं को उनके घरों के विशेष स्थानों तक परिसीमित कर रखा जाता था।

प्रश्न 60.
‘बर्नियर द्वारा किया गया भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा किया गया भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है या फिर यूरोप के विपरीत देश के रूप में दर्शाया है। उसने जो भिन्नताएँ महसूस कीं, उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया जिससे भारत यूरोपीय देशों को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

प्रश्न 61.
बर्नियर ने सती प्रथा का विस्तृत विवरण देना क्यों उचित समझा ?
उत्तर:
बर्नियर भारत में प्रचलित उन सभी प्रथाओं का वर्णन करना चाहता था जिससे भारत यूरोपीय देशों की तुलना में एक निम्न कोटि का देश प्रतीत होता हो उस समय सभी समकालीन यूरोपीय यात्रियों तथा लेखकों के लिए महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार प्रायः पश्चिमी तथा पूर्वी देशों के बीच भिन्नता का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक माना जाता था इसलिए बर्नियर ने सती प्रथा का वर्णन करना उचित समझा।

प्रश्न 62.
बर्नियर ने लाहौर में एक अल्पवयस्क विधवा के सती होने का किस प्रकार विवरण दिया है?
उत्तर:
लाहौर में बर्नियर ने एक अत्यन्त सुन्दर अल्पवयस्क विधवा को सती होते हुए देखा। यह बालिका बुरी तरह से रो रही थी परन्तु उसे कुछ ब्राह्मण लोगों तथा एक वृद्ध महिला की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को बलपूर्वक सती-स्थल की ओर ले जाया गया। उसे लकड़ियों पर बिठाया गया, उसके हाथ और पैर बांध दिए गए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस निर्दोष विधवा को जीवित जला दिया गया।

प्रश्न 63.
बर्नियर के विवरणों ने फ्रांसीसी दार्शनिक मान्टेस्क्यू को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
बर्नियर के विवरणों से प्रभावित होकर फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने वर्नियर के वृतान्त का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर अपने प्रभुत्व का उपभोग करते थे, जिसे दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था।

प्रश्न 64.
बर्नियर के विवरणों से कार्ल मार्क्स किस प्रकार प्रभावित हुआ?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स ने लिखा कि भारत ( तथा अन्य एशियाई देशों में ) उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था। इससे एक ऐसे समाज का उद्भव हुआ जो बड़ी संख्या में स्वतन्त्र तथा आन्तरिक रूप से समतावादी ग्रामीण समुदायों से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर राजकीय दरबार का नियंत्रण होता था और जब तक अधिशेष की आपूर्ति बिना किसी बाधा के जारी रहती थी इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था।

प्रश्न 65.
इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली को देखकर चकित क्यों हो गया?
उत्तर:
इब्नबतूता भारत की डांक प्रणाली को देखकर चकित हो गया क्योंकि भारत की डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली यात्रा में पचास दिन लगाते थे, वहीं सुल्तान तक गुप्तचरों की खबर मात्र पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थी। इसके अतिरिक्त इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजी जा सकती श्री बल्कि अल्प सूचना पर माल भी भेजा जा सकता था।

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प्रश्न 66.
‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ में बर्नियर भारत को पश्चिमी जगत की तुलना में अल्प- विकसित व निम्न श्रेणी का दर्शाना चाहता था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर में बनिंबर की भारतीय उपमहाद्वीप की यात्राओं का वर्णन है। यह ग्रन्थ वर्नियर की गहन आलोचनात्मक चिन्तन दृष्टि का उदाहरण है, लेकिन बर्नियर का यह दृष्टिकोण पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं तथा एकपक्षीय है। बर्नियर ने मुगलकालीन इतिहास को भारत की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में न रखकर एक वैश्विक ढाँचे में ढालने का प्रयास किया। वह यूरोप के परिप्रेक्ष्य में मुगलकालीन इतिहास की तुलना निरन्तर करने का प्रयास करता रहा। बर्नियर के अनुसार यूरोप की प्रशासनिक व्यवस्था, यूरोप की सामाजिक- आर्थिक स्थिति भारत से कहीं बेहतर है। बास्तव में उसका भारत चित्रण पूरी तरह प्रतिकूलता पर आधारित है।

प्रश्न 67.
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों में क्या विशेषताएं देखीं? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों को उन्नत अवस्था में पाया। उसके अनुसार जो लोग जीवन को समग्रता से जीने की आकांक्षा रखते हैं, जिनके पास कला-कौशल, दृढ़ इच्छा-शक्ति और पर्याप्त साधन हैं, उनके लिए आगे बढ़ने हेतु भारत के शहरों में व्यापक अवसर मौजूद थे। भारतीय शहरों की आबादी धनी थी व शहरों में समृद्धि झलकती थी। परन्तु युद्ध आदि की विभीषिका का दुष्परिणाम शहरों को कभी-कभी भुगतना पड़ता था।

इब्नबतूता के अनुसार शहर के बाजार चहल-पहल तथा चमक-दमक से भरपूर विभिन्न प्रकार की व्यापारिक वस्तुओं से भरे रहते थे। भारत में दिल्ली एक विपुल आबादी वाला सबसे बड़ा शहर था महाराष्ट्र में स्थित दौलताबाद भी दिल्ली से किसी प्रकार कमतर नहीं था। बाजारों में केवल व्यापारिक गतिविधियाँ ही नहीं अन्य धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियाँ भी होती थीं। इब्नबतूता का यह वर्णन भारतीय शहरों की विकसित समृद्धि का व्यापक उदाहरण है।

प्रश्न 68.
अब्दुर रज्जाक द्वारा लिखित यात्रा वृत्तान्त संवेगों और अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है, कैसे?
उत्तर:
1440 के दशक में लिखा गया अब्दुर रजाक का यात्रा वृत्तान्त उसके शब्दों में, “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे जिनकी कल्पना मैंने कभी नहीं की।” 1440 के दशक में अब्दुर रजाक केरल के कालीकट बन्दरगाह पर पहुँचा। इन लोगों को देखकर उसके मुँह से ‘विचित्र देश का सम्बोधन निकला। लेकिन कालान्तर में अपनी पुनः भारत यात्रा के दौरान वह मंगलौर आया और यहाँ पश्चिमी पाट को पार कर उसने एक मन्दिर देखा, जिसे देखकर वह बहुत अधिक प्रभावित हुआ। मन्दिर की स्थापत्य कला को देखकर वह मन्त्रमुग्ध रह गया और ‘विचित्र देश’ की छवि उसके मस्तिष्क से निकल गई।

प्रश्न 69.
पेलसर्ट नामक डच यात्री की भारत यात्रा का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक डच यात्री ने सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। बर्नियर की ही तरह वह भी लोगों में व्यापक गरीबी देखकर अचम्भित था “लोग इतनी अधिक तथा दुःखद गरीबी में रहते हैं कि इनके जीवन को मात्र नितान्त अभाव के पर तथा कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आभास के रूप में चित्रित अथवा ठीक प्रकार से वर्णित किया जा सकता है।” राज्य को उत्तरदायी ठहराते हुए वह कहता है: ‘कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।”

प्रश्न 70.
भारतीय महिलाओं की मध्यकालीन सामाजिक स्थिति के बारे में यूरोपीय लेखकों के विचार क्या थे?
उत्तर:
विभिन्न यूरोपीय यात्री जो भारत आये उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत मध्यकालीन भारतीय महिलाओं की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इन विचारकों ने पाया कि भारतीय महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार पश्चिमी समाजों से सर्वथा भिन्न था। बर्नियर ने इस सन्दर्भ में भारत की क्रूरतम अमानवीय सती प्रथा का उदाहरण दिया है जो भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी देश में नहीं थी।

पस्तु सती प्रथा के अतिरिक्त यूरोपीय लेखकों ने महिलाओं के सामाजिक जीवन के अन्य पक्षों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया है। वे केवल घरों की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहती थीं। कृषि तथा कृषि से सम्बन्धित कार्यों जैसे पशुपालन में उनके श्रम का महत्त्व था। व्यापारिक परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भागीदारी रखती थीं। कुछ महिलाएँ प्रशासनिक कार्यों में भी भाग लेती थीं।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के 10वीं से 17वीं सदी तक के इतिहास के पुनर्निर्माण में विदेशी यात्रियों के विवरणों का क्या योगदान है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त निश्चित रूप से इतिहास के निर्माण में सहायक होते हैं। यही स्थिति हम 10वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य भी देखते हैं। इस काल में अनगिनत यात्री भारत आए तथा अपनी समझ के अनुसार भारत का विवरण प्रस्तुत किया। इस तथ्य को हम निम्न विन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) अधिकांश यात्री भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न आर्थिक तथा सामाजिक परिदृश्य से आए थे।

(2) स्थानीय लेखक भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का विवरण करने में रुचि नहीं रखते थे; जबकि इन विदेशी लेखकों ने भारत की तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष विवरण दिए हैं।

(3) 10वीं शताब्दी के आस-पास भारतीय विद्वान विदेशों के साथ सम्बन्ध बनाने तथा उनके विषय में जानने .में अधिक रूचि नहीं रखते थे। इसके फलस्वरूप ये तुलनात्मक अध्ययन करने में असमर्थ थे।

(4) विदेशी यात्रियों ने अपने विवरण में उन तथ्यों को अधिक महत्त्व दिया है; जो उन्हें विचित्र जान पड़ते थे। इससे उनके विवरण में रोचकता आ जाती है।

(5) विदेशी यात्रियों के विवरण तत्कालीन राजदरबार के क्रियाकलापों, धार्मिक विश्वास तथा स्थापना की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं। इससे इतिहास निर्माण में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है। उपर्युक्त बिन्दुओं को हम पृथक्-पृथक् यारियों के विवरण के साथ समझ सकते हैं।

ये विवरण निम्नलिखित –
1. अल बिरूनी का विवरण अल-विरुनी का विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है –

  • अल-विरुनी ने अपनी रचनाओं में भारत में व्याप्त जाति-व्यवस्था तथा वर्ण व्यवस्था का वर्णन किया है।
  • अल बिरूनी ने भारतीय समाज की रूढ़िवादिता को भी अपनी किताबों में दर्शाया है।
  • अल बिरूनी ने भारत के ज्योतिष, खगोल विज्ञान तथा गणित की विस्तारपूर्वक चर्चा की है।

2. इब्नबतूता का विवरण इससे सम्बन्धित मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार है –

  • इब्नबतूता ने भारतीय डाक प्रणाली की प्रशंसा की है तथा उससे हमें परिचित भी कराया।
  • इब्नबतूता की रचनाओं द्वारा हमें यह पता चलता है कि उस समय भारत में नारियल तथा पान की खेती का व्यापक प्रचलन था।
  • इब्नबतूता ने दासों का भी विस्तारपूर्वक विवरण दिया है; जिससे यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज तथा राजनैतिक व्यवस्था में दासों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
  • इब्नबतूता की रचनाओं में भारतीय बाजारों तथा व्यापारियों की सम्पन्नता का उल्लेख भी मिलता है। जिससे यह पता चलता है कि तत्कालीन भारत आर्थिक रूप से समृद्ध था।

3. बर्नियर का विवरण बर्नियर द्वारा रचित ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में दिया गया विवरण निम्न बिन्दुओं द्वारा किया जा सकता है-

  • बर्नियर के अनुसार भारतीयों को निजी भू-स्वामित्व का अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • बर्नियर की रचनाओं में सती प्रथा का विवरण मिलता है।
  • बर्नियर ने मुगल सेना के साथ कश्मीर यात्रा की थी तथा उस यात्रा का विस्तृत विवरण दिया है। उस विवरण से यह ज्ञात होता है कि उस समय यात्रा में किन सामानों की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समकालीन यात्रियों के विवरण इतिहास को समझने तथा उसका निर्माण करने में अत्यधिक सहायक होते हैं।

प्रश्न 2.
अल बिरूनी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन करते हुए ‘किताब-उल-हिन्द’ की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अल बिरूनी का प्रारम्भिक जीवन अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थिता ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक प्रसिद्ध केन्द्र था। अल बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की। वह एक उच्च कोटि का विद्वान था तथा सीरियाई फारसी, हिब्रू और संस्कृत भाषाओं का ज्ञाता था। यद्यपि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था, फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों की रचनाओं से परिचित था जिनका उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से अध्ययन किया था। 1017 ई. में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और यहाँ से कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया।

अल बिरुनी भी उनमें से एक था। वह एक बन्धक के रूप में गजनी आया था, परन्तु धीरे-धीरे उसकी गजनी शहर में रुचि बढ़ने लगी। उसने अपना शेष जीवन गजनी में ही बिताया। 70 वर्ष की आयु में गजनी में अल बिरुनी की मृत्यु हो गयी। भारत के प्रति रुचि बढ़ना-गजनी में रहते हुए अल- बिरनी की भारत के प्रति रुचि बढ़ने लगी। पंजाब को गलनी साम्राज्य में सम्मिलित करने के बाद स्थानीय लोगों से सम्पर्कों से आपसी विश्वास तथा समझ का वातावरण बना। अल-विरुनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया।

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‘किताब-उल-हिन्द’ की विशेषताएं –
(1) विविध विषयों का विवेचन-किताब-उल- हिन्द अरबी में लिखी गई अल बिरूनी की प्रसिद्ध रचना है इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार तौल, मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ अस्सी अध्यायों में विभाजित है।

(2) विशिष्ट शैली अल-बिहनी ने प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया है, जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन था और अन्त में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना की गई थी। यह लगभग एक ज्यामितीय संरचना है।

(3) स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता यह ग्रन्थ अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए प्रसिद्ध है।

(4) भारतीय ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों से परिचित अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी रचनाएँ भारतीय उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। अल बिरुनी संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था।

(5) समालोचनात्मक दृष्टिकोण- इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री तथा शैली के विषय में अल-बिरुनी का दृष्टिकोण समालोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।

प्रश्न 3.
इब्नबतूता के प्रारम्भिक जीवन एवं उसकी यात्राओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता का प्रारम्भिक जीवन इब्नबतूता मोरक्को का निवासी था उसका जन्म 1304 में तैंजियर नामक नगर के एक सम्मानित एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उसका परिवार इस्लामी कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था अपने परिवार की परम्परा के अनुसार इब्नबतूता ने कम आयु में ही साहित्यिक तथा शास्वारूढ़ शिक्षा प्राप्त की। उसका यात्रा वृत्तान्त ‘रिला’ के नाम से प्रसिद्ध है।

(1) इब्नबतूता की यात्राएँ – अन्य विदेशी यात्रियों के विपरीत, इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था। इब्नबतूता को यात्राएँ करने का बहुत शौक था इसलिए वह नए-नए देशों तथा लोगों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए दूर-दूर के प्रदेशों तक में गया। 1332-33 ई. में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के अनेक तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।

(2) भारत की यात्रा – मध्य एशिया के मार्ग से होते हुए इब्नबतूता 1333 ई. में स्थल मार्ग से सिन्ध पहुँचा। उसने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में सुन रखा था कि वह कला और साहित्य का उदार संरक्षक है अतः उसकी ख्याति से आकर्षित हो इब्नबतूता ने मुल्तान और कच्छ होते हुए दिल्ली को ओर प्रस्थान किया। मुहम्मद बिन तुगलक इब्नबतूता की विद्वता से बड़ा प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काजी अथवा न्यायाधीश नियुक्त किया। वह इस पद पर कई वर्ष तक रहा।

(3) चीन के राजदूत के रूप में इब्नबतूता की नियुक्ति 1342 ई. में इब्नबतूता को मंगोल शासक के पास सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया। उसने दिल्ली से चीन के लिए प्रस्थान किया और मध्य भारत के रास्ते मालाबार तट की ओर बढ़ा। मालाबार से वह मालद्वीप गया तथा वहाँ वह अठारह महीनों तक काजी के पद पर रहा। अन्ततः उसने लंका जाने का निश्चय किया। बाद में वह एक बार पुनः मालाबार तट तथा मालद्वीप गया। चीन जाने के अपने कार्य को पुनः शुरू करने से भा पहले वह बंगाल तथा असम भी गया।

प्रश्न 4.
लगभग 1500 ई. के बाद भारत की यात्रा करने वाले यूरोपीय लेखकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 1500 ई. के बाद भारत की यात्रा करने वाले यूरोपीय लेखक लगभग 1500 ई. में भारत में पुर्तगालियों के आगमन के बाद उनमें से अनेक लोगों ने भारतीय सामाजिक रीति- रिवाजों तथा धार्मिक प्रथाओं के विषय में विस्तृत वृत्तान्त लिखे। जेसुइट राबट नोबिली भी एक ऐसा ही लेखक था जिसने भारतीय ग्रन्थों का यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद भी किया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

(1) दुआतें बरबोसा- दुआर्ते बरबोसा यूरोप का एक प्रसिद्ध लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा 1600 ई. के बाद भारत में आने वाले डच अंग्रेज और फ्रांसीसी यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी थी।

(2) फ्रांसिस्को पेलसर्ट-फ्रांसिस्को पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। वह यहाँ के लोगों में व्यापक गरीबी देखकर आश्चर्यचकित था। उसने कृषकों की अत्यन्त दयनीय दशा को मार्मिक चित्रण किया है।

(3) ज्यों-बैप्टिस्ट तैवर्नियर ज्यों-बैप्टिस्ट तैवर्नियर एक फ्रांसीसी जौहरी था जिसने कम से कम छः बार भारत की यात्रा की यह विशेष रूप से भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था। उसने भारत की तुलना ईरान और ओटोमन साम्राज्य से की।

(4) मनूकी मनूकी एक इतालवी चिकित्सक था। वह कभी भी यूरोप वापस नहीं गया और भारत में ही बस गया।

(5) फ्रांस्वा बर्नियर-फ्रांस का निवासी फ्रांस्वा बनियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। वह अन्य लोगों की भांति मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में आया था। वह 1656 से 1668 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा-पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में तथा बाद में मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।

प्रश्न 5.
अल बिरुनी के यात्रा-वृत्तान्त का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी का यात्रा वृत्तान्त अल बिरूनी एक उच्च कोटि का विद्वान था। वह भारत में कई वर्षों तक रहा। उसने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताये और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। अल बिरुनी की लेखन शैली की विशेषताएँ-अल- बिरुनी की लेखन शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित किया।

  1. अल बिरूनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग
  2. उसने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं।
  3. वह संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था।
  4. इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।

अल बिरूनी द्वारा अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार करना-यद्यपि अल बिरुनी जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानता था, फिर भी उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसने लिखा कि प्रत्येक यह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। उसका कहना था कि जाति व्यवस्था में संलग्न अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी। भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का विवरण अल- बिरूनी ने भारत में प्रचलित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख अग्र प्रकार से किया है –

  • ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी। हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। हिन्दू ब्राह्मणों को मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
  • क्षत्रिय अल-विरुनी के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि क्षत्रिय ब्रह्मन् के कंधों और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचा नहीं है।
  • वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। वैश्य ब्रह्मन् की जंघाओं से उत्पन्न हुए थे।
  • शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन् के चरणों से हुआ था।

अल बिरुनी के अनुसार अन्तिम दो वर्णों में अधिक अन्तर नहीं है। परन्तु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी ये शहरों और गाँवों में मिल-जुलकर रहते हैं। जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित होना जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतया प्रभावित था। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति व्यवस्था का संचालन करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था। परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी।

प्रश्न 6.
इब्नबतूता द्वारा किए गए दिल्ली तथा दौलताबाद के वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
इब्नबतूता द्वारा वर्णित दिल्ली का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
अथवा
दिल्ली के विशेष संदर्भ में भारतीय नगरों के बारे में इब्नबतूता के वृत्तान्तों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
1. इब्नबतूता द्वारा किया गया दिल्ली का वर्णन –
(1) दिल्ली की बनावट इनवतृत के अनुसार दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला पनी जनसंख्या वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ लगभग 20 इंच के बराबर) है और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।

प्राचीरों के अन्दर खाद्य सामग्री, हथियार, बारूद, प्रक्षेपास्त्र तथा पेरेबन्दी में प्रयुक्त होने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडार गृह बने हुए थे। प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हैं जो शहर की ओर खुलती हैं तथा इन्हीं खिड़कियों के द्वारा प्रकाश भीतर आता है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है तथा ऊपरी भाग ईंटों से निर्मित है।

(2) शहर के द्वार दिल्ली शहर के 28 द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है और इनमें से बदायूँ दरवाजा सबसे विशाल है। मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी है, गुल-दरवाजे की बगल में एक फलों का बगीचा है।

(3) कब्रगाह दिल्ली शहर में एक उत्तम कब्रगाह है, जिसमें बनी कब्रों के ऊपर गुम्बद बनाई गई है और गुम्बद विहीन कब्रों पर मेहराब बने हुए हैं। कब्रगाह में कदाकार चमेली तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं और फूल सभी ऋतुओं में खिले रहते हैं।

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2. इब्नबतूता द्वारा दौलताबाद का विवरण
(1) पुरुष और महिला गायकों का बाजार- इब्नबतूता के अनुसार दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार है, जिसे ‘तारामबाद’ कहते हैं यहाँ बहुत-सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है, जो मालिक के आवास में खुलता है। दुकानें कालीनों से सुसज्जित हैं और दुकान के मध्य में झूला है, जिस पर गायिका बैठती है।

(2) विशाल गुम्बद बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा है जिसमें कालीन बिछे हुए हैं और यह खूब सजाया गया है। इसमें प्रत्येक गुरुवार प्रातः काल की उपासना के बाद संगीतकारों के प्रमुख अपने सेवकों और दासों के साथ स्थान ग्रहण करते हैं। गायिकाएँ एक के बाद एक झुंडों में उनके समक्ष आकर सूर्यास्त का गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं जिसके पश्चात् वे चले जाते हैं।

(3) मस्जिदें इब्नबतूता के अनुसार इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं जब भी कोई हिन्दू शासक इस बाजार से गुजरता था, वह गुम्बद में उत्तर कर आता था और गायिकाएँ उसके समक्ष गान प्रस्तुत करती थीं। यहाँ तक कि अनेक मुस्लिम शासक भी ऐसा ही करते थे।

प्रश्न 7.
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारत की डाक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारत की डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य विशेष उपाय करता था। लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह स्थापित किए गए थे। इब्नबतूता भारत की डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता देखकर बड़ा चकित हुआ।

इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजना और उधार भेजना सम्भव हुआ, बल्कि इससे अल्पसूचना पर माल भेजना भी आसान हो गया। इब्नबतूता के अनुसार डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएं सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं।

डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी –
(1) अश्व डाक व्यवस्था तथा
(2) पैदल डाक व्यवस्था।
(1) अश्व डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था को ‘उल्लुक’ कहा जाता था। यह हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी।
(2) पैदल डाक व्यवस्था पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील तीन चौकियाँ होती थीं, जिन्हें ‘दावा’ कहा जाता था। यह एक मील का एक तिहाई होता था। हर | तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता था, जिसके बाहर तीन मण्डप होते थे, जिनमें लोग कार्य शुरू करने के लिए तैयार बैठे रहते थे। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी, जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती थीं।

जब सन्देशवाहक शहर से यात्रा आरम्भ करता था, तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घटियाँ वाली छड़ लिए वह यथाशक्ति तेज भागता था जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते थे, तो तैयार हो जाते थे। जैसे ही सन्देशवाहक उनके निकट पहुँचता था, उनमें से एक पत्र ले लेता था और वह छड़ी हिलाते हुए पूरी शक्ति से दौड़ता था, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता। पत्र के अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती थी यह पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक तीव्र होती थी। इसका प्रयोग प्रायः खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता था, जिन्हें भारत में बहुत पसन्द किया जाता था।

प्रश्न 8.
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारतीय यात्रा- वृत्तांत का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता का भारतीय यात्रा वृत्तांत इब्नबतूता के भारतीय यात्रा वृत्तांत का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) नारियल – इब्नबतूता के अनुसार नारियल एक अनोखा तथा विस्मयकारी वृक्ष था। यह खजूर के वृक्ष जैसा दिखता था। इन दोनों वृक्षों में एक ही अन्तर था-नारियल से काष्ठफल प्राप्त होता था तथा दूसरे से खजूर नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता था। लोग नारियल के रेशे से रस्सी बनाते थे।

(2) पान इब्नबतूता के अनुसार पान को अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता था। पान का कोई वृक्ष नहीं होता था और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता था। इसे
खाने से पहले सुपारी ली जाती थी। इसके छोटे- छोटे टुकड़ों को मुँह में रखकर चनाया जाता था। इसके बाद पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता था।

(3) भारतीय शहर इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे परन्तु कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों के दौरान नष्ट हो जाते थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे। ये बाजार विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली बहुत अधिक आबादी वाला शहर था। वह भारत में सबसे बड़ा शहर था दौलताबाद (महाराष्ट्र में भी कम नहीं था तथा आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।’ शहरों में वस्त्र उद्योग उन्नत अवस्था में था। विदेशों में भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी।

(4) डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार भारतीय डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएँ सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थीं। इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी –

  • अश्व डाक व्यवस्था तथा
  • पैदल डाक व्यवस्था।

(5) महिलाएँ दासियाँ सती तथा अमिक- इब्नबतूता के अनुसार बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की तरह खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे। दासों में विभेद – इब्नबतूता के अनुसार दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।

इसके अतिरिक्त सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। घरेलू श्रम के लिए दासों का प्रयोग इब्नबतूता के अनुसार दासों का प्रायः घरेलू श्रम के लिए प्रयोग किया जाता था। ये लोग पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाते थे। घरेलू श्रम के काम में लगे हुए दासों एवं दासियों की कीमत बहुत कम होती थी। अतः अधिकांश परिवार एक-दो दास तो रखते ही थे।

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प्रश्न 9.
विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित भारतीय महिलाओं, दास-दासियों एवं सती प्रथा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
अथवा
इब्नबतूता एवं बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय महिलाओं, दास-दासियों एवं सती प्रथा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित दास- दासियों एवं सती प्रथा का विवरण –
(1) दास-दासियाँ – इब्नबतूता के अनुसार भारतीय बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की भाँति खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंटस्वरूप दिए जाते थे। सिन्ध पहुँचने पर इब्नबतूता ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे। मुल्तान पहुँचने पर उसने गवर्नर को किशमिश तथा बादाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में दिए। इब्नबतूता के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुदीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके तथा तथा दो सौ दास दिए थे।

(2) दासों में विभेद इब्नबतूता के अनुसार दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से खूब आनन्दित हुआ।

(3) अमीरों की गतिविधियों की जानकारी के लिए दासियों की नियुक्ति इनवता के अनुसार सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अपने अमीरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को नियुक्त करता था।

(4) दासों का घरेलू श्रम के लिए प्रयोग करना- इब्नबतूता के अनुसार दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था। ये लोग पालकी या डोले में महिलाओं को ले जाते थे। दासों का मूल्य, विशेष रूप से उन दासियों का मूल्य, जिनका प्रयोग घरेलू श्रम के लिए किया जाता था, बहुत कम होता था। इसी वजह से अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दास तो रखते ही थे।

(5) सती प्रथा बर्नियर के अनुसार भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। यद्यपि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से चिता में जल कर मर जाती थीं, परन्तु अनेक विधवाओं को मरने के लिए बाध्य किया जाता है। बर्नियर ने लाहौर में एक बारह वर्षीय विधवा की बलि का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “इस बालिका को उसकी इच्छा के विरुद्ध जीवित जला दिया था। यह बालिका काँपते हुए बुरी तरह रो रही थी परन्तु तीन या चार ब्राह्मणों तथा एक बूढ़ी महिला की सहायता से उस अनिच्छुक बालिका को जबरन चिता स्थल की ओर ले जाया गया, उसे लकड़ियों पर बिठाया गया और उसके हाथ तथा पैर बाँध दिए गए ताकि वह भाग न जाए। इस प्रकार इस निर्दोष बालिका को जीवित जला दिया गया।”

प्रश्न 10.
“बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के विवरणों द्वारा पश्चिमी विचारकों को प्रभावित करना बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से निम्नलिखित पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया –

(1) मान्टेस्क्यू-फ्रांस का प्रसिद्ध दार्शनिक मान्टेस्क्यू बर्नियर के विवरणों से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर असीम प्रभुत्व का उपभोग करते थे तथा प्रजा को दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजा और उनके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई से गुजारा कर पाता था।

(2) कार्ल मार्क्स प्रसिद्ध साम्यवादी विचारक कार्ल मार्क्स भी बर्नियर के विवरणों से प्रभावित हुआ। उसने उन्नीसवीं सदी के इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धान्त के रूप में और आगे बढ़ाया। उसने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भारत तथा अन्य एशियाई देशों में उपनिवेशवाद से पहले राज्य अधिशेष का अधिग्रहण कर लेता था। इसके फलस्वरूप एक ऐसे समाज का प्रादुर्भाव हुआ जो काफी स्वायत्त तथा आन्तरिक से समताण से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर से ( का नियन्त्रण होता था। जब तक अधिशेष की आपूर्ति निरन्तर जारी रहती थी इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था। यह एक निष्क्रिय प्रणाली मानी जाती थी।

ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से दूर होना- परन्तु ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’ भूमिविहीन श्रमिक इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में जुटा रहता था। इसके साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे जो कठिनाई से ही अपने गुजारे योग्य उत्पादन कर पाते थे।

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प्रश्न 11.
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई ‘पूर्व और पश्चिम की तुलना को उल्लेखित कीजिए।
अथवा
बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय यात्रा वृत्तान्त का विवेचन कीजिए।
अथवा
“बर्नियर का ग्रन्थ ‘ट्रेवल्स इन मुगल एम्पायर अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि तथा गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई ‘पूर्व और पश्चिम’ की तुलना बर्नियर प्राय: भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था। वह यूरोपीय रा संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रबल समर्थक था यूरोपीय स्थितियों के मुकाबले में वह भारत की स्थितियों को दयनीय दर्शाना चाहता था। यही कारण है कि लगभग प्रत्येक दृष्टान्त में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की अ तुलना में दयनीय बताया।

(2) भूमि स्वामित्व का प्रश्न बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर के अनुसार भूमि = पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था। उसका विचार था कि मुगल साम्राज्य में सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों में बांटता था। इसके अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए विनाशकारी परिणाम होते थे।

(3) किसानों की दयनीय दशा-बर्नियर के अनुसार ग्रामीण अंचलों में रहने वाले कृषकों की दशा बड़ी दयनीय थी। यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी और श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग भी कृषि -विहीन रह जाता था। कई श्रमिक गवर्नरों के द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण मौत के मुंह में चले जाते थे। अपने स्वामियों की माँगों को पूरा न करने के कारण अनेक किसानों को उनके गुजारा करने के साधनों से वंचित कर दिया जाता था तथा उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था।

(4) मुगल साम्राज्य का स्वरूप- बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा ‘भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। मुगल राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित थे और इसके खेत ‘झाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे। इसका मात्र एक ही कारण था राजकीय भू-स्वामित्व।

(5) एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई एक ओर वर्नियर कहता है कि भारतीय शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों के विस्तार के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था क्योंकि समस्त लाभ राज्य के खजाने में चला जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था परन्तु इसके साथ ही बर्नियर यह भी स्वीकार करता है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी माश में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले निर्यात होता था. भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय भी था।

(6) भारतीय शहर बर्नियर के अनुसार मुगलकालीन शहर ‘शिविर नगर’ थे। शिविर नगरों से उसका अभिप्राय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे उसका विचार था कि ये नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके अन्यत्र चले जाने के बाद तेजी से विलुप्त हो जाते थे।

(7) व्यावसायिक वर्ग अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम एवं वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद् संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।

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प्रश्न 12.
इब्नबतूता और अल बिरूनी के भारत यात्रा-वृत्तान्तों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता और अल बिरूनी के भारत यात्रा वृत्तान्तों की तुलना इब्नबतूता तथा अल बिरुनी के भारत यात्रा वृत्तान्तों की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है-

(1) भिन्न-भिन्न कालों से सम्बन्धित यात्रा वृत्तान्त- अल बिरुनी का या वृत्तान्त ग्यारहवीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है, जबकि इब्नबतूता का यात्रा-वृत्तान्त चौदहवीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है।

(2) विषय अल बिरूनी ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘किताब-उल-हिन्द’ में भारतीय धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, 7 भार तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया है। इब्नबतूता ने न अपनी प्रसिद्ध रचना ‘रिहला’ में भारतीय सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन, डाक व्यवस्था, भारतीय शहरों, बाजारों नारियल तथा पान, दास-दासियों, सती प्रथा, भारत की बा जलवायु लोगों के रहन-सहन, वेशभूषा, कृषि व्यापार आदि न विषयों का विवेचन किया है।

(3) भारतीय लोगों के धर्म, दर्शन और विज्ञान के के बारे में वर्णन करना अल बिरुनी संस्कृत भाषा का था। उसने यहाँ के लोगों के दर्शन, धर्म, विज्ञान और ना विचारों के ग्रन्थों का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसके द्वारा वर्णित भारत की जाति व्यवस्था का वर्णन उसके संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतया प्रभावित था। परन्तु से इब्नबतूता संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं, यहाँ के क रीति-रिवाजों, दर्शन आदि से अपरिचित थे।

(4) साहित्यिक ग्रन्थों एवं यात्राओं से अर्जित अनुभव को महत्त्वपूर्ण स्रोत मानना अल बिरूनी न साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक वाय महत्त्वपूर्ण खोत मानता था, परन्तु इब्नबतूता साहित्यिक नए ग्रन्थों के स्थान पर चाशओं से अर्जित अनुभव को महत्त्वपूर्ण नगर स्त्रोत मानता था।

(5) उद्देश्य अल बिरुनी के बाश-वृत्तान्त के उद्देश्य ये –

  • उन लोगों के लिए सहायक जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे तथा
  • ऐसे लोगों के लिए एक सूचना का संग्रह जो उनके साथ सम्बद्ध होना चाहते थे इब्नबतूता के भारत यात्रा के वृत्तान्त का उद्देश्य अपरिचित वस्तुओं, राज्यों, घटनाओं आदि से अपने देशवासियों को परिचित कराना था। वह चाहता था कि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूरी तरह से प्रभावित हो सकें। इसी कारण इब्नबतूता ने पान और नारियल डाक- व्यवस्था, भारतीय शहरों के वैभव आदि के बारे में विस्तार से लिखा।

प्रश्न 13.
एक ओर बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से निर्मित वर्णित किया है, तो दूसरी ओर उसने एक अधिक सामाजिक आर्थिक सच्चाई को भी उजागर किया है। विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारतीय समाज दरिद्र लोगों के जनसमूह के रूप में बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह के रूप में दर्शाते हुए लिखा है कि भारत के बड़े ग्रामीण अंचलों में से कई अंचल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत है। यहाँ की खेती भी अच्छी नहीं है प्रान्तीय गवर्नरों के अत्याचारों के कारण अनेक गरीब मजदूर मर जाते हैं। जब गरीब लोग अपने भू-स्वामियों की मांगों को पूरा नहीं कर पाते, तो उन्हें न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उनके बच्चों को दास भी बना लिया जाता है। विवश होकर बहुत से गरीब किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।

(1) बहुमूल्य धातुओं का भारत में आना एक अधिक जटिल सामाजिक और आर्थिक सच्चाई को दर्शाना- दूसरी ओर बर्नियर भारत में व्याप्त एक अधिक प्रसिद्ध सामाजिक और आर्थिक सच्चाई को दर्शाते हुए लिखता है कि शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों को उत्तम बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था, क्योंकि सारा मुनाफा राज्य को होता था फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले निर्यात होता था। इससे देश में सोना और चाँदी इकट्ठा होता था। बर्नियर के अनुसार भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय का भी अस्तित्व था जो लम्बी दूरी के विनिमय में संलग्न था।

(2) उपजाऊ भूमि और उन्नत शिल्प-बर्नियर ने लिखा है कि भारत का एक बड़ा भू-भाग अत्यन्त उपजाऊ है। बंगाल मित्र से न केवल चावल, मकई तथा जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में बल्कि रेशम कपास, नील आदि के उत्पादन में भी आगे है भारत के अनेक हिस्सों में खेती अच्छी होती है। यहाँ के शिल्पकार अनेक | वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न रहते हैं। ये शिल्पकार गलीचों, जरी कसीदाकारी, कढ़ाई, सोने और चांदी के वस्त्रों तथा विभिन्न प्रकार के रेशम और सूती वस्त्रों के निर्माण का कार्य करते हैं। रेशमी तथा सूती वस्त्रों का प्रयोग केवल भारत में ही नहीं होता, अपितु ये विदेशों में भी निर्यात किये जाते हैं।

(3) भारत में सोना और चाँदी का संग्रह होना- बर्नियर ने यह भी लिखा है कि सम्पूर्ण विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी का भारत में आकर कुछ सीमा तक संग्रह हो जाता है।

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प्रश्न 14.
अल बिरूनी ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था की अपवित्रता की मान्यता को क्यों अस्वीकार कर दिया? क्या जाति व्यवस्था के नियमों का पालन पूर्ण कठोरता से किया जाता था? अल बिरूनी ने भारत की वर्ण व्यवस्था का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
यद्यपि अल – विरुनी ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों द्वारा निर्मित जाति व्यवस्था को स्वीकार किया और उसकी मान्यता के लिए अन्य देशों के समुदायों में इस व्यवस्था के प्रतिरूपों के उदाहरणों को भी प्रस्तुत किया, फिर भी वह अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार न कर अल बिरुनी ने लिखा है कि, “हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी खोई हुई पवित्रता को पुनः पाने का प्रयास करती है और सफल होती है सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है।” अल-विरुनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। उसके अनुसार अपवित्रता की अवधारणा प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है।

अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में जो भी विवरण दिया है; वह पूर्णतया संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से प्रभावित है। जिन नियमों का वर्णन इन ग्रन्थों में ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था को संचालित करने हेतु किया गया है; वह वास्तविक रूप में समाज में उतनी कठोरता से लागू नहीं थी। इनमें लचीलापन था उदाहरण हेतु परित्यक्त लोग जिन्हें अंत्यज कहते थे जो इस जाति व्यवस्था में शामिल नहीं थे, आर्थिक तन्त्र में उन्हें भी शामिल किया गया था। भले ही उनसे सस्ता श्रम प्राप्त करने के लिए ऐसा किया जाता हो।
अल- विरुनी की भारत की सामाजिक व्यवस्था की जानकारी प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित थी।

इसी आधार पर अल बिरूनी ने भारत की वर्ण व्यवस्था का वर्णन निम्न प्रकार से किया है –

  • ब्राह्मण अल बिरूनी लिखता है कि ब्राह्मण सबसे सर्वोच्च वर्ण था क्योंकि हिन्दू ग्रन्थों की मान्यताओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति आदि देव ब्रह्मा के मुख से हुई और मुख का स्थान सबसे उच्च है; इसी कारण हिन्दू जाति में से सबसे उच्च माने जाते हैं।
  • क्षत्रिय क्षत्रियों की उत्पत्ति आदि देव ब्रह्मा के कन्धों व हाथों से मानी गई है। मुख के बाद द्वितीय स्थान कन्धों व याँहों का है अतः उन्हें वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों से कुछ नीचे द्वितीय स्थान पर रखा गया।
  • वैश्य वैश्य वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर व जंघा भाग से मानी गई इसलिए इन्हें तीसरे स्थान पर रखा गया।
  • शूद्र-शूद्र वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से मानी गयी है, अतः वैश्य और शूद्रों के बीच अल बिरुनी अधिक अन्तर नहीं मानता था। अल बिरुनी के अनुसार, यद्यपि वर्ग-भेद तो था फिर भी सभी लोग एक साथ एक ही शहर या गांव में समरसता के साथ रहते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. साँची का स्तूप किस राज्य में स्थित है –
(अ) उत्तर प्रदेश
(स) मध्य प्रदेश
(ब) बिहार
(द) गुजरात
उत्तर:
(स) मध्य प्रदेश

2. ऋग्वेद का संकलन कब किया गया?
(अ) 2500-2000 ई. पूर्व
(ब) 2000-1500 ई. पूर्व
(स) 1000-500 ई. पूर्व
(द) 1500 से 1000 ई. पूर्व
उत्तर:
(द) 1500 से 1000 ई. पूर्व

3. महावीर स्वामी से पहले कितने शिक्षक (तीर्थंकर) हो चुके थे?
(अ) 24
(स) 14
(ब) 20
(द) 23
उत्तर:
(द) 23

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4. बौद्धसंघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी –
(अ) महामाया
(ब) पुन्ना
(स) महाप्रजापति गोतमी
(द) सुलक्षणी
उत्तर:
(स) महाप्रजापति गोतमी

5. जिन ग्रन्थों में बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन किया गया है, उन्हें कहा जाता है –
(अ) बौद्धग्रन्थ
(स) महावंश
(ब) दीपवंश
(द) त्रिपिटक
उत्तर:
(द) त्रिपिटक

6. किस ग्रन्थ में बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम संकलित किए गए हैं?
(अ) अभिधम्मपिटक
(ब) विनयपिटक
(स) सुत्तपिटक
(द) बुद्धचरित
उत्तर:
(ब) विनयपिटक

7. अमरावती के स्तूप की खोज सर्वप्रथम कब हुई ?
(अ) 1896
(ब) 1796
(स) 1717
(द) 1817
उत्तर:
(ब) 1796

8. साँची की खोज कब हुई?
(अ) 1818 ई.
(ब) 1718 ई.
(स) 1918 ई.
(द) 1878 ई.
उत्तर:
(अ) 1818 ई.

9. किस अंग्रेज लेखक ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तान जहाँ बेगम को समर्पित किया?
(अ) जेम्स टॉड
(ब) जॉर्ज थॉमस
(स) जॉन मार्शल
(द) जरथुस्व
उत्तर:
(स) जॉन मार्शल

10. किस दार्शनिक का सम्बन्ध चूनान से है?
(अ) सुकरात
(ख) खुंगत्सी
(स) बुद्ध
(द) कनिंघम
उत्तर:
(अ) सुकरात

11. समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें कितने सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं की जानकारी मिलती है?
(अ) 10
(स) 94
(ब) 24
(द) 64
उत्तर:
(द) 64

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12. किस देश से दीपवंश एवं महावंश जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास का सम्बन्ध है-
(अ) भारत
(स) चीन
(ब) नेपाल
(द) श्रीलंका
उत्तर:
(द) श्रीलंका

13. त्रिपिटक की रचना कब हुई थी?
(अ) बुद्ध के जन्म से पूर्व
(ब) बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्
(स) बुद्ध के जीवन काल में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) बुद्ध के महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्

14. महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन निम्नलिखित में से किसमें है?
(अ) सुत्तपिटक
(ब) विनय पिटक
(स) जातक
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सुत्तपिटक

15. महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था –
(अ) कपिलवस्तु
(ब) लुम्बिनी
(स) सारनाथ
(द) बोधगया
उत्तर:
(ब) लुम्बिनी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. भोपाल की नवाब शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ………….. है।
2. शाहजहाँ बेगम की उत्तराधिकारी ……………. थीं।
3. ………… और …………… जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे।
4. महात्मा बुद्ध के दर्शन से जुड़े विषय …………. पिटक में आए।
5. ज्यादातर पुराने बौद्ध ग्रन्थ …………… भाषा में हैं।
6. बौद्ध धर्म के पूर्व एशिया में फैलने के पश्चात् …………. और ………… जैसे तीर्थयात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए।
7. वे महापुरुष जो पुरुषों और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचाते हैं उन्हें …………….. कहते हैं।
उत्तर:
1. ताज-उल- इकबाल
2. सुल्तान जहाँ बेगम
3. राजसूय, अश्वमेध
4. अभिधम्म
5. पालि
6. फा- शिएन, श्वैन त्सांग
7. तीर्थंकर

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया।

प्रश्न 2.
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन के अनुसार सम्पूर्ण संसार प्राणवान है

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प्रश्न 3.
मन्दिर स्थापत्य कला में गर्भगृह एवं शिखर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
(1) गर्भगृह- मन्दिर का चौकोर कमरा
(2) शिखर- गर्भगृह के ऊपर ढाँचा।

प्रश्न 4.
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। लोग बातचीत के द्वारा एकमत होते थे।

प्रश्न 5.
बुद्ध के जीवन से जुड़े बोधगया एवं सारनाथ नामक स्थानों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
(1) बोधगया में. बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।
(2) सारनाथ में बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था।

प्रश्न 6.
यदि आप भोपाल की यात्रा करेंगे, तो वहाँ किस बौद्धकालीन स्तूप को देखना चाहेंगे?
उत्तर:
साँची के स्तूप को।

प्रश्न 7.
महात्मा बुद्ध का बचपन का नाम क्या था?
उत्तर:
सिद्धार्थ

प्रश्न 8.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है?
उत्तर:
साँची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।

प्रश्न 9.
थेरीगाथा बौद्ध ग्रन्थ किस पिटक का हिस्सा है?
उत्तर:
सुत्तपिटक।

प्रश्न 10.
कैलाशनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
महाराष्ट्र में।

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प्रश्न 11.
महावीर स्वामी का बचपन का नाम क्या
उत्तर:
वर्धमान।

प्रश्न 12.
ऐसे तीन स्थानों का उल्लेख कीजिये, जहाँ स्तूप बनाए गए थे।
उत्तर:
(1) भरहुत
(2) साँची
(3) अमरावती।

प्रश्न 13.
साँची के स्तूप को आर्थिक अनुदान देने वाले दो शासकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) शाहजहाँ बेगम
(2) सुल्तानजहाँ बेगम।

प्रश्न 14.
बुद्ध की शिक्षाएँ किन ग्रन्थों में संकलित हैं?
उत्तर:
त्रिपिटक में

प्रश्न 15.
साँची के स्तूप को किसने संरक्षण प्रदान किया?
उत्तर:
साँची के स्तूप को भोपाल के शासकों ने संरक्षण प्रदान किया जिनमें शाहजहाँ बेगम एवं सुल्तानजहाँ बेगम प्रमुख हैं।

प्रश्न 16.
“इस देश की प्राचीन कलाकृतियों की लूट होने देना मुझे आत्मघाती और असमर्थनीय नीति लगती है।” यह कथन किस पुरातत्त्ववेत्ता का है?
उत्तर:
एच. एच. कोल।

प्रश्न 17.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी का काल विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
क्योंकि इस काल में ईरान में जरस्थुस्व, चीन में खुंगस्ती, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू एवं भारत में महावीर व बुद्ध जैसे चिन्तकों का उदय हुआ।

प्रश्न 18.
अजन्ता की गुफाएँ कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
महाराष्ट्र में

प्रश्न 19.
पौराणिक हिन्दू धर्म में किन दो प्रमुख देवताओं की पूजा प्रचलित थी?
उत्तर:
(1) विष्णु
(2) शिव।

प्रश्न 20.
सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाओं का निर्माण किस शासक ने करवाया था ?
उत्तर:
अशोक ने आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों हेतु निर्माण करवाया था।

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प्रश्न 21.
धेरी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
थेरी का अर्थ है ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।

प्रश्न 22.
बौद्ध धर्म की दो शिक्षाएँ बताइये।
उत्तर:
(1) विश्व अनित्य है।
(2) यह संसार दुःखों का घर है।

प्रश्न 23.
जैन धर्म की दो शिक्षाएँ बताइये।
उत्तर:
(1) जीवों के प्रति अहिंसा
(2) कर्मवाद और पुनर्जन्म में विश्वास।

प्रश्न 24.
बौद्ध संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम महिला कौन थी?
उत्तर:
बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी।

प्रश्न 25.
जैन धर्म के महापुरुष क्या कहलाते थे?
उत्तर:
तीर्थंकर।

प्रश्न 26.
जैन धर्म के 23वें तीर्थकर कौन थे?
उत्तर:
पार्श्वनाथ

प्रश्न 27.
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है।

प्रश्न 28.
राजसूय एवं अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किनके द्वारा कराया जाता था ?
उत्तर:
ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा

प्रश्न 29.
समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में कितने सम्प्रदायों एवं चिन्तन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है?
उत्तर:
64 सम्प्रदाय या चिन्तन परम्पराओं का।

प्रश्न 30.
कुटागारशालाओं का शाब्दिक अर्थ बताइये।
उत्तर:
नुकीली छत वाली झोंपड़ी।

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प्रश्न 31.
शिक्षक अपने दार्शनिक विचारों की चर्चा कहाँ करते थे?
उत्तर:
कुटागारशालाओं या उपवनों में।

प्रश्न 32.
महावीर स्वामी तथा बुद्ध ने किसका विरोध किया?
उत्तर:
वेदों के प्रभुत्व का।

प्रश्न 33.
चीनी यात्री फा-शिएन तथा श्वैन-त्सांग ने भारत की यात्रा क्यों की?
उत्तर:
बौद्ध ग्रन्थों की खोज के लिए।

प्रश्न 34.
प्रमुख नियतिवादी बौद्ध भिक्षु कौन थे?
उत्तर:
मक्खलि गोसाल।

प्रश्न 35.
प्रमुख भौतिकवादी बौद्ध दार्शनिक कौन थे?
उत्तर:
अजीत केसकम्बलिन।

प्रश्न 36.
महावीर स्वामी से पहले कितने तीर्थकर हो चुके थे?
उत्तर:
231

प्रश्न 37.
अमरावती के स्तूप की खोज कब हुई ?
उत्तर:
1796 ई. में

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प्रश्न 38.
विष्णु के कितने अवतारों की कल्पना की गई ?
उत्तर:
दस अवतारों की।

प्रश्न 39.
बराबर (बिहार) की गुफाओं का निर्माण किसने करवाया था ?
उत्तर:
अशोक ने।

प्रश्न 40.
अशोक ने किस सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बराबर की गुफाओं का निर्माण करवाया था?
उत्तर:
आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए।

प्रश्न 41.
कैलाशनाथ के मन्दिर कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
एलोरा (महाराष्ट्र) में।

प्रश्न 42.
कैलाशनाथ के मन्दिर का निर्माण कब करवाया गया था?
उत्तर:
आठवीं शताब्दी में।

प्रश्न 43.
यूनानी शैली से प्रभावित मूर्तियाँ किन क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
तक्षशिला और पेशावर से।

प्रश्न 44.
प्रतीकों द्वारा बुद्ध की स्थिति किस प्रकार दिखाई जाती है? दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
बुद्ध के ‘अध्यान की दशा’ को ‘रिक्त स्थान’ तथा ‘महापरिनिर्वाण’ को ‘स्तूप’ के द्वारा दिखाया जाता है।

प्रश्न 45.
ऐसे चार सामाजिक समूहों के नाम बताइये जिनमें से बुद्ध के अनुयायी आए।
उत्तर:
(1) राजा
(2) धनवान
(3) गृहपति तथा
(4) सामान्य जन

प्रश्न 46.
बुद्ध द्वारा गृह त्याग के क्या कारण थे?
उत्तर:
नगर का भ्रमण करते समय एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक लाश और संन्यासी को देख कर बुद्ध ने घर त्याग दिया।

प्रश्न 47.
लुम्बिनी एवं कुशीनगर नामक स्थानों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
लुम्बिनी में बुद्ध का जन्म हुआ। कुशीनगर में बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। ये बौद्ध धर्म के पवित्र स्थान हैं।

प्रश्न 48.
जैन धर्म के अनुसार कर्मफल से मुक्ति कैसे पाई जा सकती है ?
उत्तर:
त्याग और तपस्या के द्वारा।

प्रश्न 49.
आपकी दृष्टि में बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार के क्या कारण थे? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे।
(2) बौद्ध धर्म ने जाति प्रथा का विरोध किया, सामाजिक समानता पर बल दिया।

प्रश्न 50.
हीनयान और महायान बौद्ध सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
महायानी बुद्ध को देवता मान कर उनकी पूजा करते थे, परन्तु हीनयानी बुद्ध को अवतार नहीं मानते थे।

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प्रश्न 51.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है?
उत्तर:
साँची का स्तूप भोपाल से बीस मील दूर उत्तर- पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।

प्रश्न 52.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी में विश्व में किन प्रसिद्ध चिन्तकों का उद्भव हुआ?
उत्तर:
ईरान में जरथुस्व, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू तथा भारत में महावीर और बुद्ध का उद्भव हुआ।

प्रश्न 53.
ऋग्वेद का संकलन कब किया गया?
उत्तर:
ग्वेद का संकलन 1500 से 1000 ई. पूर्व में किया गया।

प्रश्न 54.
नियतिवादियों और भौतिकवादियों में क्या अन्तर था?
उत्तर:
नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है परन्तु भौतिकवादियों के अनुसार दान, यज्ञ या चढ़ावा निरर्थक हैं।

प्रश्न 55.
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए क्या किया जाना आवश्यक है?
उत्तर:
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 56.
जैन धर्म के पाँच व्रतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) हत्या न करना
(2) चोरी न करना
(3) झूठ न बोलना
(4) ब्रह्मचर्य
(5) धन संग्रह न करना।

प्रश्न 57.
बुद्ध के संदेश भारत के बाहर किन-किन देशों में फैले ? नाम लिखिए।
अथवा
बौद्ध धर्म का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म का प्रसार सम्पूर्ण उपमहाद्वीप मध्य एशिया, चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, थाइलैंड तथा इंडोनेशिया में हुआ।

प्रश्न 58.
नगर का भ्रमण करते समय किन को देखकर सिद्धार्थ ने घर त्यागने का निश्चय कर लिया?
उत्तर:
एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक लाश और एक संन्यासी को देखकर सिद्धार्थ ने घर त्यागने का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 59.
बौद्ध धर्म के अनुसार ‘संघ’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
युद्ध द्वारा स्थापित संघ भिक्षुओं की एक संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए।

प्रश्न 60.
संघ के भिक्षुओं की दैनिक चर्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भिक्षु सादा जीवन बिताते थे।
(2) वे उपासकों से भोजन दान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे।

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प्रश्न 61.
बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे
(2) बौद्ध धर्म सामाजिक समानता पर बल देता था।

प्रश्न 62.
‘चैत्य’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। ये टीले चैत्य कहे जाने लगे।

प्रश्न 63.
बुद्ध के जीवन से जुड़े चार स्थानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) लुम्बिनी ( बुद्ध का जन्म स्थान)
(2) बोधगया (ज्ञान प्राप्त होना)
(3) सारनाथ (प्रथम उपदेश देना)
(4) कुशीनगर (निर्वाण प्राप्त करना)।

प्रश्न 64.
स्तूप’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
कुछ पवित्र स्थानों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ गाड़ दी गई थीं। ये टीले स्तूप कहलाये।

प्रश्न 65.
किन लोगों के द्वारा स्तूपों को दान दिया जाता था?
उत्तर:
(1) राजाओं के द्वारा (जैसे सातवाहन वंश के राजा)
(2) शिल्पकारों तथा व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा
(3) महिलाओं और पुरुषों के द्वारा।

प्रश्न 66.
स्तूप की संरचना के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मिट्टी का टीला (अंड)
(2) हर्मिका (उन्जे जैसा ढाँचा)
(3) यष्टि (हर्मिका से निकला मस्तूल)
(4) वेदिका (टीले के चारों ओर बनी वेदिका)।

प्रश्न 67.
महायान मत में बोधिसत्तों की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बोधिसता परम करुणामय जीव थे जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे और इससे दूसरों की सहायता करते थे।

प्रश्न 68.
महायान मत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
महायान मत में बुद्ध और बोधिसत्तों की मूर्तियों की पूजा की जाती थी।

प्रश्न 69.
हीनयान या थेरवाद’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरानी बौद्ध परम्परा के अनुवायी स्वयं को धेरवादी कहते थे। वे पुराने, प्रतिष्ठित शिक्षकों के बताए रास्ते पर चलते थे।

प्रश्न 70.
कैलाशनाथ मन्दिर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कैलाशनाथ मन्दिर एलोरा (महाराष्ट्र) में स्थित है यह सारा ढाँचा एक चट्टान को काट कर तैयार किया गया है।

प्रश्न 71.
जैन धर्म के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए
उत्तर:
(1) जीवों के प्रति अहिंसा
(2) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होना।

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प्रश्न 72.
जैन विद्वानों ने किन भाषाओं में अपने ग्रन्थों की रचना की?
उत्तर:
जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल आदि भाषाओं में अपने ग्रन्थों की रचना की।

प्रश्न 73.
बौद्ध धर्म के दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) विश्व अनित्य है और निरन्तर बदल रहा है।
(2) विश्व आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।

प्रश्न 74.
स्तूप क्या हैं?
उत्तर:
स्तूप बुद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले हैं। इनमें बुद्ध के शरीर के अवशेष अथवा उनके द्वारा प्रयोग की गई किसी वस्तु को गाड़ा गया था।

प्रश्न 75.
चैत्य क्या थे?
उत्तर:
शवदाह के पश्चात् बौद्धों के शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े इन टीलों को चैत्य कहा जाता था।

प्रश्न 76.
ऋग्वेद में किन सूक्तियों का संग्रह है?
उत्तर:
ऋग्वेद में इन्द्र, अग्नि, सोम आदि देवताओं की स्तुति से सम्बन्धित सूक्तियों का संग्रह है।

प्रश्न 77.
नियतिवादी कौन थे?
उत्तर:
नियतिवादी वे लोग थे जो विश्वास करते थे कि सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं।

प्रश्न 78.
भौतिकवादी कौन थे?
उत्तर:
भौतिकवादी लोग यह मानते थे कि दान, यज्ञ या चढ़ावा निरर्थक हैं। इस दुनिया या दूसरी दुनिया का अस्तित्व नहीं होता।

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प्रश्न 79.
‘सन्तचरित्र’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतचरित्र किसी संत या धार्मिक महापुरुष की जीवनी है। संतचरित्र संत की उपलब्धियों का गुणगान करते हैं।

प्रश्न 80.
विनयपिटक तथा सुत्तपिटक में किन शिक्षाओं का संग्रह था ?
उत्तर:
(1) विनयपिटक में बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था।
(2) सुत्तपिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह था।

प्रश्न 81.
अभिधम्मपिटक’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अभिधम्मपिटक’ नामक ग्रन्थ में बौद्ध दर्शन से सम्बन्धित सिद्धान्तों का संग्रह था।

प्रश्न 82.
श्रीलंका के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले बौद्ध ग्रन्थों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
‘दीपवंश’ (द्वीप का इतिहास) तथा ‘महावंश’ (महान इतिहास) से श्रीलंका के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

प्रश्न 83.
स्तूप को संस्कृत में क्या कहा जाता है?
उत्तर:
स्तूप को संस्कृत में टीला कहा जाता है।

प्रश्न 84.
कौनसा अनूठा ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा
उत्तर:
थेरीगाथा ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा है।

प्रश्न 85.
बिना अलंकरण वाले प्रारम्भिक स्तूप कौन- कौनसे हैं?
उत्तर:
साँची और भरहुत स्तूप बिना अलंकरण वाले प्रारम्भिक स्तूप हैं।

प्रश्न 86.
जैन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर:
जैन धर्म के अनुसार सम्पूर्ण संसार प्राणवान है; पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है। प्रश्न 87. अमरावती का स्तूप किस राज्य में है? उत्तर- अमरावती का स्तूप गुंटूर (आन्ध्र प्रदेश) में स्थित है।

प्रश्न 88.
जेम्स फर्ग्युसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र किसे माना ?
उत्तर:
जेम्स फर्ग्युसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र साँची को माना।

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प्रश्न 89.
वराह ने किसकी रक्षा की थी?
उत्तर:
वराह ने पृथ्वी की रक्षा की थी।

प्रश्न 90.
बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप कौनसा था ?
उत्तर:
बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप अमरावती का स्तूप है।

प्रश्न 91.
भक्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
भक्ति एक प्रकार की आराधना है। इसमें उपासक एवं ईश्वर के मध्य के रिश्ते को प्रेम तथा समर्पण का रिश्ता माना जाता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध धर्म के व्यावहारिक पक्ष के बारे में सुत्तपिटक के उद्धरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) मालिक को अपने नौकरों और कर्मचारियों की पाँच प्रकार से देखभाल करनी चाहिए उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देकर उन्हें भोजन और मजदूरी देकर, बीमार पड़ने पर उनकी परिचर्या करने, उनके साथ स्वादिष्ट भोजन बाँट कर और समय-समय पर उन्हें छुट्टी देकर।
(2) कुल के लोगों को पाँच तरह से श्रमणों और ब्राह्मणों की देखभाल करनी चाहिए अनुराग द्वारा, सदैव पुस् घर खुले रखकर तथा उनकी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं दिन की पूर्ति करके।

प्रश्न 2.
बौद्ध एवं जैन धर्म में कितनी समानता थी?
उत्तर:

  1. दोनों धर्म कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद में विश्वास करते हैं।
  2. दोनों धर्म अहिंसा के सिद्धान्त में विश्वास करते की में हैं।
  3. दोनों धर्म अनीश्वरवादी हैं।
  4. दोनों धर्मों ने यज्ञों, बहुदेववाद और कर्मकाण्डों गी का विरोध किया।
  5. दोनों धर्म निर्वाण प्राप्त करने पर बल देते हैं।
  6. दोनों धर्म निवृत्तिमार्गी हैं और संसार त्याग पर बल देते हैं।

प्रश्न 3.
साँची का स्तूप यूरोप के लोगों को विशेषकर में रुचिकर क्यों लगता है?
उत्तर:
भोपाल से बीस मील उत्तर पूर्वी की ओर एक पहाड़ी की तलहटी में साँची का स्तूप स्थित है। इस स्तूप की पत्थर की वस्तुएँ, बुद्ध की मूर्तियाँ तथा प्राचीन तोरणद्वार आदि यूरोप के लोगों को विशेषकर रुचिकर लगते हैं जिनमें मेजर अलेक्जैंडर कनिंघम एक हैं। मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थान के चित्र बनाए। उन्होंने यहाँ के अभिलेखों को पढ़ा और गुम्बदनुमा ढाँचे के बीचों-बीच खुदाई की। उन्होंने इस खोज के निष्कर्षो को एक अंग्रेजी पुस्तक में लिखा।

प्रश्न 4.
साँची का पूर्वी तोरणद्वार भोपाल राज्य से बाहर जाने से कैसे बचा रहा?
उत्तर:
साँची के स्तूप का पूर्वी तोरणद्वार सबसे अच्छी दशा में था अतः फ्रांसीसियों ने सांची के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए शाहजहाँ बेगम से इसे फ्रांस ले जाने की अनुमति माँगी। अंग्रेजों ने भी इसे इंग्लैण्ड ले जाने का प्रयास किया। सौभाग्वश फ्रांसीसी और अंग्रेज दोनों ही इसकी प्रतिकृतियों से सन्तुष्ट हो गए, जो बड़ी सावधानीपूर्वक प्लास्टर से बनाई गई थीं। इस प्रकार मूल कृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही बनी रही।

प्रश्न 5.
भोपाल के शासकों ने साँची स्तूप के संरक्षण के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:

  1. भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम तथा उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची के स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान किया।
  2. सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया।
  3. जान मार्शल द्वारा साँची के स्तूप पर लिखी गई पुस्तक के प्रकाशन में भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया।
  4. साँची के स्तूप को भोपाल राज्य में बनाए रखने में शाहजहाँ बेगम ने योगदान दिया।

प्रश्न 6.
” ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी का काल विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस काल में ईरान में जरथुस्त्र, चीन में खंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू तथा भारत में महावीर, गौतम बुद्ध एवं कई अन्य चिन्तकों का उदय हुआ। उन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयास किया। उन्होंने मानव तथा विश्व व्यवस्था के बीच सम्बन्ध को भी समझने का प्रयास किया। इसी काल में गंगा घाटी में नये राज्य और शहर उभर रहे थे और सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन हो रहे थे जिन्हें ये चिन्तक समझने का प्रयास कर रहे थे।

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प्रश्न 7.
प्राचीन युग में प्रचलित यज्ञों की परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पूर्व वैदिक काल में यज्ञों की परम्परा प्रचलित थी यज्ञों के समय ऋग्वैदिक देवताओं की स्तुति सूतों का न उच्चारण किया जाता था और लोग पशु, पुत्र, स्वास्थ्य, दीर्घ आयु आदि के लिए प्रार्थना करते थे आरम्भिक यह सामूहिक नेरूप से किए जाते थे। बाद में (लगभग 1000 ई. पूर्व से 500 ई. पूर्व) कुछ यज्ञ घरों के स्वामियों द्वारा किए जाते थे राजसूष और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा ही किया करते थे।

प्रश्न 8.
वैदिक परम्परा के अन्तर्गत तथा वैदिक र परम्परा के बाहर छठी शताब्दी ई. पूर्व में उठे प्रश्नों और विवादों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के पश्चात् जीवन की सम्भावना और पुनर्जन्म के बारे ट में जानने के लिए उत्सुक थे क्या पुनर्जन्म अतीत के कर्मों । के कारण होता था? इस प्रकार के प्रश्नों पर खूब बाद- ही विवाद होता था। चिन्तक परम यथार्थ की प्रकृति को समझने और प्रकट करने में संलग्न थे। वैदिक परम्परा से बाहर के पण कुछ दार्शनिक यह प्रश्न उठा रहे थे कि सत्य एक होता है या अनेक। कुछ लोग यज्ञों के महत्त्व के बारे में विचार कर था रहे थे।

प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में चिन्तकों में होने वाले वाद-विवादों तथा चर्चाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई.पूर्व में विभिन्न सम्प्रदाय के शिक्षक एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूमकर अपने दर्शन या विश्व के विषय में अपने दृष्टिकोण को लेकर एक-दूसरे से तथा सामान्य लोगों से तर्क-वितर्क करते थे। इस प्रकार की चर्चाएँ कुटागारशालाओं या ऐसे उपवनों में होती थीं जहाँ घुमक्कड़ चिन्तक ठहरा करते थे। यदि एक शिक्षक अपने प्रतिद्वन्द्वी को अपने तर्कों से सहमत कर लेता था, तो वह अपने अनुयायियों के साथ उसका शिष्य बन जाता था।

प्रश्न 10.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में शिक्षक वैदिक धर्म के किन सिद्धान्तों पर प्रश्न उठाते थे?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में अनेक शिक्षक वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाते थे इन शिक्षकों में महावीर स्वामी तथा बुद्ध भी सम्मिलित थे। उन्होंने यह विचार भी प्रकट किया कि जीवन के दुःखों से मुक्ति का प्रयास प्रत्येक व्यक्ति स्वयं कर सकता था। यह बात ब्राह्मणवाद से बिल्कुल भिन्न थी क्योंकि ब्राह्मणवाद की यह मान्यता थी कि किसी व्यक्ति का अस्तित्व उसकी जाति और लिंग से निर्धारित होता था।

प्रश्न 11.
आत्मा की प्रकृति और सच्चे यज्ञ के बारे में उपनिषदों में क्या कहा गया है?
उत्तर:
(1) आत्मा की प्रकृति छान्दोग्य उपनिषद में आत्मा की प्रकृति के आरे में कहा गया है कि “यह आत्मा धान या यव या सरसों या बाजरे के बीज की गिरी से भी छोटी है मन के अन्दर छुपी यह आत्मा पृथ्वी से भी विशाल, क्षितिज से भी विस्तृत, स्वर्ग से भी बड़ी है। और इन सभी लोकों से भी बड़ी है।”

(2) सच्चा यज्ञ ही एक यज्ञ है। बहते यह (पवन) जो बह रहा है, निश्चय बहते यह सबको पवित्र करता है। इसलिए यह वास्तव में यज्ञ है।

प्रश्न 12.
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रसार में चीनी और भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जब बौद्ध धर्म पूर्वी एशिया में फैल गया तब फा-शिएन और श्वेन त्सांग जैसे चीनी यात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में भारत आए ये पुस्तकें वे अपने देश ले गए, जहाँ विद्वानों ने इनका अनुवाद किया। भारत के बौद्ध शिक्षक भी अनेक देशों में गए बुद्ध की शिक्षाओं का प्रसार करने हेतु वे कई ग्रन्थ अपने साथ ले गए। कई सदियों तक ये पाण्डुलिपियाँ एशिया के विभिन्न देशों में स्थित बौद्ध- विहारों में संरक्षित थीं।

प्रश्न 13.
त्रिपिटकों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बौद्धों के धार्मिक सिद्धान्त त्रिपिटकों में संकलित –

  1. विनयपिटक – इसमें संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचरण सम्बन्धी नियमों का वर्णन है।
  2. सुत्तपिटक – इसमें महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है।
  3. अभिधम्मपिटक – इसमें बौद्ध दर्शन से जुड़े विषय संकलित हैं।

प्रश्न 14.
नियतिवादियों के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। इन्हें संसार में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता।
(2) बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि वे सद्गुणों तथा तपस्या द्वारा अपने कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। मूर्ख लोग उन्हीं कार्यों को करके मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं नहीं है।

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प्रश्न 15.
भौतिकवादियों के सिद्धान्तों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं है।
(2) मनुष्य चार तत्वों से बना है जब वह मरता है, तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में जल वाला अंश जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा साँस का अंश वायु में वापिस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अंतरिक्ष का हिस्सा बन जाती हैं।
(3) दान देने का सिद्धान्त मूर्खों का सिद्धान्त है, यह खोखला झूठ है। मूर्ख हो या विद्वान् दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता।

प्रश्न 16.
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। पत्थर चट्टान, जल आदि में भी जीवन है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा का पालन करना चाहिए। मनुष्यों, जानवरों, पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़ों को नहीं मारना चाहिए।
(3) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
(4) पाँच व्रतों का पालन करना चाहिए –

  • हत्या न करना
  • चोरी नहीं करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचार्य
  • धन संग्रह न करना।

प्रश्न 17.
गौतम बुद्ध की जीवनी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
गीतम बुद्ध पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के जीवन का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वह शाक्य कबीले के सरदार के पुत्र थे। एक दिन नगर का भ्रमण करते समय सिद्धार्थ को एक रोगी, वृद्ध, मृतक तथा संन्यासी के दर्शन हुए जिससे उनका संसार के प्रति वैराग्य और बढ़ गया। अतः सिद्धार्थ महल त्याग कर सत्य की खोज में निकल गए। प्रारम्भ में उन्होंने 6 वर्ष तक कठोर तपस्या की। अन्त में उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बैठकर चिन्तन करना शुरू किया और सच्चा ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद वह अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने लगे।

प्रश्न 18.
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के उपदेशों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और निरन्तर बदल रहा है। यह आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी अथवा शाश्वत नहीं है।
(2) इस क्षणभंगुर संसार में दुःख मनुष्य के जीवन का अन्तर्निहित तत्त्व है।
(3) घोर तपस्या और विषयासक्ति के बीच मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए मनुष्य दुनिया के दुःखों से मुक्ति पा सकता है।
(4) बुद्ध की मान्यता थी कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने

प्रश्न 19.
‘बौद्ध संघ’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए ‘संघ’ की स्थापना की संघ बौद्ध भिक्षुओं की एक ऐसी संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये भिक्षु एक सादा जीवन बिताते थे। प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे, बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई। कई स्वियों जो संघ में आईं, वे धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। संघ में सभी को समान दर्जा प्राप्त था। संघ की संचालन पद्धति गणों और संघ की परम्परा पर आधारित थी।

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प्रश्न 20.
संघ में रहने वाले भिक्षुओं का जीवन कैसा था?
उत्तर:
संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षु सादा जीवन बिताते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ नहीं होता था। वे दिन में केवल एक बार उपासकों से भोजनदान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे। वे दान पर निर्भर थे, इसलिए उन्हें भिक्खु कहा जाता था। संघ में रहते हुए वे बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करते थे।

प्रश्न 21.
महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति क्यों दी?
उत्तर:
प्रारम्भ में केवल पुरुष ही बौद्ध संघ में सम्मिलित हो सकते थे परन्तु कालान्तर में अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध पर महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली पहली भिक्षुणी थी। संघ में आने वाली कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। आगे चलकर वे घेरी बनीं, जिसका अर्थ है- निर्वाण प्राप्त करने वाली महिलाएँ।

प्रश्न 22.
बुद्ध के अनुयायी किन सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थे?
उत्तर:
बुद्ध के अनुयायियों में कई सामाजिक वर्गों के लोग सम्मिलित थे। इनमें राजा, धनवान, गृहपति, व्यापारी, सामान्यजन कर्मकार, दास, शिल्पी आदि शामिल थे। इनमें स्त्री और पुरुष दोनों सम्मिलित थे। एक बार बौद्ध संघ में आ जाने पर सभी को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्षु और भिक्षुणी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्यागना पड़ता था।

प्रश्न 23.
भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए निर्धारित नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) जब कोई भिक्षु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा, तो उसे इसका प्रयोग कम से कम छः वर्षों तक करना पड़ेगा।
(2) यदि कोई भिक्षु किसी गृहस्थ के घर जाता है और उसे भोजन दिया जाता है, तो वह दो से तीन कटोरा भर ही स्वीकार कर सकता है।
(3) यदि बिहार में ठहरा हुआ भिक्षु प्रस्थान के पहले अपने बिस्तर को नहीं समेटता है, तो उसे अपराध स्वीकार करना होगा।

प्रश्न 24.
बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे।
(2) बौद्ध धर्म ने जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल दिया।
(3) बौद्ध धर्म में अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्त्व दिया गया। इससे स्त्री और पुरुष इस धर्म की ओर आकर्षित हुए।
(4) बौद्ध धर्म ने निर्बल लोगों के प्रति दयापूर्ण और मित्रतापूर्ण व्यवहार को महत्त्व दिया।

प्रश्न 25.
चैत्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अत्यन्त प्राचीनकाल से ही लोग कुछ स्थानों को पवित्र मानते थे ऐसे स्थानों पर जहाँ प्रायः विशेष वनस्पति होती थी, अनूठी चट्टानें थीं या आश्चर्यजनक प्राकृतिक सौन्दर्य था वहाँ पवित्र स्थल बन जाते थे ऐसे कुछ स्थलों पर एक छोटी-सी वेदी भी बनी रहती थी, जिन्हें कभी-कभी चैत्य कहा जाता था शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े टीले चैत्य के रूप में जाने गए।

प्रश्न 26.
बौद्ध साहित्य में वर्णित कुछ चैत्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
बौद्ध साहित्य में कई चैत्यों का उल्लेख मिलता है। इसमें बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित स्थानों का भी उल्लेख है, जैसे लुम्बिनी (जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ), बोधगया (जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया), सारनाथ (जहाँ उन्होंने उपदेश दिया) और कुशीनगर (जहाँ बुद्ध ने निब्बान प्राप्त किया। धीरे-धीरे ये समस्त स्थान पवित्र स्थल बन गए और यहाँ अनेक चैत्य बनाए गए।

प्रश्न 27.
स्तूपों का निर्माण क्यों किया जाता था?
उत्तर:
स्तूप बनाने की परम्परा बुद्ध से पहले की रही होगी। परन्तु वह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूंकि स्तूपों में ऐसे अवशेष रहते थे, जिन्हें पवित्र समझा जाता था। इसलिए समूचा स्तूप ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। अशोक ने बुद्ध को अवशेषों के हिस्से प्रत्येक महत्त्वपूर्ण नगर में बाँट कर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया था।

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प्रश्न 28.
स्तूपों की संरचना का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) स्तूप का जन्म एक गोलाई लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में अंड कहा गया।
(2) अंड के ऊपर एक ‘हर्मिका’ होती थी। वह छज्जे जैसा ढांचा होता था।
(3) हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था, जिसे ‘वष्टि’ कहते थे, जिस पर प्रायः एक छत्री लगी होती थी।
(4) टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से अलग करती थी।

प्रश्न 29.
साँची और भरहुत के स्तूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साँची और भरहुत के स्तूप बिना अलंकरण के हैं, उनमें केवल पत्थर की वेदिकाएँ तथा तोरणद्वार हैं। ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी। उपासक पूर्वी तोरणद्वार से प्रवेश करके टीले को दाई ओर देखते हुए दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे, मानो वे आकाश में सूर्य के पथ का अनुकरण कर रहे हों। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी।

प्रश्न 30.
स्तूप किन लोगों के दान से बनाए गए ?
उत्तर:
(1) स्तूपों के निर्माण के लिए कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए।
(2) कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए।
(3) साँची के एक तोरण द्वार का भाग हाथीदांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था
(4) स्तूपों के निर्माण के लिए बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।
(5) स्तूपों के निर्माण के लिए सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों के द्वारा दान दिए गए।

प्रश्न 31.
अमरावती स्तूप की खोज किस प्रकार की गई ?
उत्तर:
1796 में एक स्थानीय राजा को अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गये। उन्होंने उसके पत्थरों से एक मन्दिर बनवाने का निश्चय किया। कुछ वर्षों बाद कालिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी इस क्षेत्र से गुजरे। उन्हें वहाँ नई मूर्तियाँ मिलीं और उन्होंने उनका चित्रांकन किया। 1854 ई. में गुन्टूर के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। वे वहाँ से कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर मद्रास ले गए। उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी खोज निकाला।

प्रश्न 32.
साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
सम्भवतः अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी। 1818 में जब साँची की खोज हुई, इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे। चौथा तोरणद्वार वहीं पर गिरा हुआ था। उस समय भी यह सुझाव आया कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। दूसरी ओर अमरावती का महाचैत्व अब केवल एक छोटा- सा टीला है जिसका सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो चुका है।

प्रश्न 33.
इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत चित्र पहली बार देखने पर तो इस मूर्तिकला के अंश में फूस की झोंपड़ी तथा पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य का चित्रण दिखाई देता है परन्तु कला इतिहासकार इसे ‘वेसान्तर जातक’ से लिया गया एक दृश्य बताते हैं यह कहानी एक ऐसे दानी राजकुमार के बारे में है जो अपना सर्वस्व एक ब्राह्मण को सौंप कर स्वयं अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ वन में रहने के लिए चला गया। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्राय: इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। (पाठ्यपुस्तक का चित्र 4.13, पेज 100)

प्रश्न 34.
“कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए ‘रिक्त स्थान’ बुद्ध के ध्यान की दशा तथा ‘स्तूप’ ‘महापरिनिब्बान’ के प्रतीक बन गए। चक्र बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था। पेड़ बुद्ध के जीवन की एक पटना का प्रतीक था ऐसे प्रतीकों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि इतिहासकार इन कलाकृतियों के निर्माताओं की परम्पराओं से परिचित हो ।

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प्रश्न 35.
साँची स्तूप के तोरणद्वार के किनारे पर एक वृक्ष पकड़कर झूलती हुई महिला की मूर्ति से किस लोक परम्परा का बोध होता है?
उत्तर:
प्रारम्भ में विद्वानों को इस मूर्ति के महत्त्व के बारे में कुछ असमंजस था। इस मूर्ति से त्याग और तपस्या के भाव प्रकट नहीं होते थे। परन्तु लोक साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन के द्वारा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परा के अनुसार लोग यह मानते थे कि इस स्वी द्वारा हुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल होने लगते थे। यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इसी कारण स्तूप के अलंकरण में यह प्रयुक्त हुआ ।

प्रश्न 36.
“साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न लोक परम्पराओं से उभरे थे।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न लोक परम्पराओं से उभरे थे। उदाहरण के लिए, साँची में जानवरों के कुछ सुन्दर उत्कीर्णन पाए गए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय-बैल सम्मिलित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। इसके अतिरिक्त जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था। उदाहरणार्थ, हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

प्रश्न 37.
चित्र 4.19 पृष्ठ 102 पर चित्रित कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति से किस लोक परम्परा के बारे में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इस चित्र में हाथी महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं, जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हो कुछ इतिहासकार इस महिला को बुद्ध की माँ माया मानते हैं तो दूसरे इतिहासकार इसे एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी थी, जिन्हें प्राय: हाथियों से सम्बन्धित किया जाता है। यह भी सम्भव है कि इन उत्कीर्णित मूर्तियों को देखने वाले उपासक इसे माया और गजलक्ष्मी दोनों से ही जोड़ते थे।

प्रश्न 38.
अजन्ता की चित्रकारी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में चित्रकारी जैसे सम्प्रेषण के अन्य माध्यमों का भी प्रयोग किया जाता था। इन चित्रों में जो सबसे अच्छी दशा में बचे हुए हैं, वे गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र हैं। इनमें अजन्ता (महाराष्ट्र) की चित्रकारी अत्यन्त प्रसिद्ध है। अजन्ता के चित्रों में जातकों की कथाएँ चित्रित हैं। इनमें राजदरबार का जीवन, शोभायात्राएँ, काम करते हुए स्वी- पुरुष और त्यौहार मनाने के चित्र दिखाए गए हैं अजन्ता के कुछ चित्र अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव लगते हैं।

प्रश्न 39.
बौद्धमत में महायान के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
महायान बौद्ध धर्म के विकास का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
ईसा की प्रथम शताब्दी के पश्चात् यह विश्वास किया जाने लगा कि बुद्ध लोगों को मुक्ति दिलवा सकते थे। साथ-साथ बोधिसत्त की अवधारणा भी विकसित होने लगी। बोधिसत्तों को परम दयालु जीव माना गया जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे परन्तु वे इस पुण्य का प्रयोग दूसरों का कल्याण करने में करते थे। इस प्रकार बौद्धमत में बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों की पूजा इस परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। इस नई परम्परा को ‘महायान’ कहा गया।

प्रश्न 40.
पौराणिक हिन्दू धर्म के उदय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिन्दू धर्म में वैष्णव एवं शैव परम्पराएँ सम्मिलित हैं। वैष्णव परम्परा में विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाता है और शैव परम्परा में शैव को परमेश्वर माना जाता है। इनके अन्तर्गत एक विशेष देवता की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता था। इस प्रकार की आराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का सम्बन्ध प्रेम और समर्पण का सम्बन्ध माना जाता था। इसे भक्ति कहते हैं।

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प्रश्न 4.
‘अवतारवाद की अवधारणा’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वैष्णववाद में दस अवतारों की कल्पना की गई है यह माना जाता था कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अराजकता, अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती थी, तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे। सम्भवतः पृथक् पृथक् अवतार देश के भिन्न-भिन्न भागों में लोकप्रिय थे। इन समस्त स्थानीय देवताओं को विष्णु का रूप मान लेना एकीकृत धार्मिक परम्परा के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था।

प्रश्न 42.
“वैष्णववाद में अनेक अवतारों के इर्द- गिर्द पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई।” व्याख्या कीजिये।
अथवा
वैष्णववाद में अनेक अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा – पद्धतियाँ किस प्रकार विकसित हुई? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
वैष्णववाद में कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। ये समस्त चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनकी विशेषताओं और प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्र, आभूषणों, आयुषों (हथियार और हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से दर्शाया जाता था।

प्रश्न 43.
प्रारम्भिक मन्दिरों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) शुरू के मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाजे से उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो
सकता था।
(2) धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।
(3) मन्दिर की दीवारों पर प्रायः भित्तिचित्र उत्कीर्ण किए जाते थे।
(4) बाद में मन्दिरों में विशाल सभा स्थल, ऊंची दीवारों और तोरणों का भी निर्माण किया जाने लगा।
(5) कुछ पहाड़ियों को काट कर कुछ गुफा मन्दिर भी बनाये गये।

प्रश्न 44.
उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय विद्वान यूनानी शैली से प्रभावित भारतीय मूर्तियों से क्यों प्रभावित हुए?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय विद्वानों ने मूर्तियों की तुलना प्राचीन यूनान की कला परम्परा से की। वे बुद्ध और बोधिसतों की मूर्तियों की खोज से काफी उत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तिकला से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती- जुलती थीं। चूँकि वे विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन्हें भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।

प्रश्न 45.
कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काट कर खोखला कर कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा काफी प्राचीन थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ई. पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से बराबर ( बिहार ) की पहाड़ियों में आजीविक सम्प्रदाय के संतों के लिए बनाई गई थीं कृत्रिम गुफा बनाने का सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है। इसे पूरी पहाड़ी काटकर बनाया गया था।

प्रश्न 46.
पुरातत्त्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों के बारे में क्या सोच रखते थे?
उत्तर:
पुरातत्त्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों को उठा ले जाने के विरुद्ध थे। वे इस लूट को आत्मघाती मानते थे। उनका मानना था कि संग्रहालयों में मूर्तियों की प्लास्टर कलाकृतियाँ रखी जानी चाहिए जबकि असली कृतियाँ खोज के स्थान पर ही रखी जानी चाहिए।

प्रश्न 47.
जैन धर्म के अहिंसावादी स्वरूप के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हॉपकिन्स नामक विद्वान ने कहा था कि जैन धर्म कीट-पतंगों का भी पोषण करता है, पूर्णतया सत्य है। क्योंकि जैन धर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल दिया गया है। विश्व के अस्तित्व के लिए प्रत्येक अणु महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए जैन दार्शनिकों ने मत दिए कि व्यक्ति को मन, कर्म तथा वचन से पूर्ण अहिंसावादी होना चाहिए। मनुष्य को जाने-अनजाने में भी प्राणियों के प्रति किसी भी हिंसावादी गतिविधि का सम्पादन नहीं करना चाहिए। इसी के फलस्वरूप अनेक जैन सन्त मुँह पर पट्टी बाँधते हैं; जिससे उनके श्वास लेते समय कोई कीटाणु उनके मुँह में न चला जाए।

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प्रश्न 48.
गौतम बुद्ध एक महान् समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म का उद्भव एक क्रान्तिकारी धर्म के रूप में हुआ था। इस धर्म के प्रवर्तक मध्यमार्गी बुद्ध थे। गौतम बुद्ध की विचारधारा, उपदेश तथा कार्यप्रणाली अत्यन्त सरल थी। गौतम बुद्ध ने जातिवाद विशेषकर जन्म पर आधारित जातिवाद का घोर विरोध किया तथा जन्म के स्थान पर कर्म को व्यक्ति की पहचान बताया।

एक स्थान पर गौतम बुद्ध अपने शिष्य आनन्द से कहते हैं कि साधक की जाति क्या पूछता है कर्म पूछ गौतम बुद्ध की यह विचारधारा तत्कालीन अतिवादी तथा ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध जनसामान्य की सबसे बड़ी आवश्यकता थी। बुद्ध ने जनता की इस आवश्यकता को समझा और ऐसी कर्मकाण्डीय ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध किया; जिसमें जनसामान्य का कोई स्थान नहीं था।

प्रश्न 49.
बौद्ध संघों की स्थापना क्यों की गयी?
उत्तर:
बौद्ध धर्म की व्यापक लोकप्रियता के कारण शिष्यों की संख्या तीव्रता से बढ़ने लगी। शिष्यों में ही कुछ ऐसे शिष्य जिनका आत्मिक विकास उच्च था; वे धम्म के शिक्षक बन गये। संघ की स्थापना धम्म के शिक्षकों के की गयी संघ में सदाचरण और नैतिकता पर बल दिया जाता था। हेतु प्रारम्भ में महिलाओं का संघ में प्रवेश वर्जित था परन्तु बाद में महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी। महाप्रजापति गौतमी जो कि बुद्ध की उपमाता थीं, संघ में प्रवेश करने वाली पहली महिला थीं।

प्रश्न 50.
जैन तथा बौद्ध धर्म में क्या भिन्नताएँ हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जैन तथा बौद्ध धर्म में अनेक समानताएँ थीं परन्तु कुछ असमानताएँ भी थीं। प्रमुख भिन्नताओं का विवरण निम्नलिखित है –

  1.  जैन धर्म आत्मवादी है परन्तु बौद्ध धर्म अनात्मवादी
  2. जैनों के साहित्य को आगम कहा जाता है; बौद्धों के साहित्य को त्रिपिटक कहा जाता है।
  3. जैन धर्म अत्यधिक अहिंसावादी है बौद्ध धर्म मध्यमार्गी है।
  4. जैन धर्म के अनुसार मोक्ष मृत्यु के पश्चात् ही सम्भव है वहीं बौद्ध धर्म के अनुसार इसी जन्म में निर्वाण सम्भव है।
  5. जैन धर्म में तीर्थंकरों की उपासना होती है परन्तु बौद्ध धर्म में बुद्ध और बोधिसत्वों की आराधना की जाती है।

प्रश्न 51.
बौद्ध मूर्तिकला की प्रतीकात्मक पद्धति क्या थी? इन प्रतीकों को समझ पाना एक दुष्कर कार्य क्यों था?
उत्तर:
बौद्ध मूर्तिकला की मूर्तियों को स्पष्ट रूप से समझ पाना एक दुष्कर कार्य इसलिए है कि इतिहासकार केवल इस बात का अनुमान ही लगा सकते हैं कि मूर्ति बनाते समय मूर्तिकार का दृष्टिकोण क्या था इतिहासकारों के ‘अनुमान के अनुसार आरम्भिक मूर्तिकारों ने महात्मा बुद्ध को मनुष्य के रूप में न दिखाकर उन्हें प्रतीकों के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है। चित्र में दिखाए गए रिक्त स्थान को इतिहासकार बुद्ध की ध्यान अवस्था के रूप में बताते हैं; क्योंकि ध्यान की महादशा में अन्तर में रिक्तता की अनुभूति होती है स्तूप को महानिर्वाण की दशा के रूप में व्याख्यायित किया है।

महानिर्वाण का अर्थ है- विराट में समा जाना चक्र को बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले प्रवचन का प्रतीक माना गया है; इसके अनुसार यहीं से बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का चक्र घूमा पेड़ का अर्थ मात्र पेड़ के रूप में नहीं बल्कि वह बीज की पूर्ण परिपक्वता का प्रतीक है एक बीज जिसकी सम्भावना वृक्ष बनने की है वह अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ इसी प्रकार बुद्ध अपने जीवन में सम्पूर्णता को प्राप्त हुए।

प्रश्न 52.
साँची के प्रतीक लोक-परम्पराओं से जुड़े थे; संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में प्राप्त उत्कीर्णन में लोक परम्परा से जुड़े हुए बहुत से प्रतीकों का चिशंकन है। मूर्तियों को आकर्षक और सुन्दर दर्शाने हेतु विविध प्रतीकों जैसे हाथी, घोड़ा, बन्दर, गाय, बैल आदि जानवरों का उत्कीर्णन जीवन्त रूप से किया गया है। हाथी को शक्ति तथा ज्ञान का प्रतीक कहा गया है। इसी प्रकार एक स्वी तोरणद्वार के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही है। यह शालभंजिका की मूर्ति है, लोक परम्परा में शाल भंजिका को शुभ प्रतीक माना जाता है। वामदल और हाथियों के बीच एक महिला को एक अन्य मूर्ति में दिखाया गया है।

हाथी उस महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं; जैसे उसका अभिषेक कर रहे हैं। इस महिला को बुद्ध की माँ माना जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह महिला सौभाग्य की देवी गजलक्ष्मी है। इतिहासकारों का इस सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण है। सर्पों का उत्कीर्णन भी कई स्तम्भों पर पाया जाता है। इस प्रतीक को भी लोक परम्परा से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्रारम्भिक इतिहासकार जेम्स फर्गुसन के अनुसार साँची में वृक्षों और सर्पों की पूजा की जाती थी। वे बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञ थे, उन्होंने उत्कीर्णित मूर्तियों का अध्ययन करके अपना यह निष्कर्ष निकाला था।

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प्रश्न 53.
अतीत से प्राप्त चित्रों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बने भित्ति चित्र सम्पूर्ण विश्व के आकर्षण का केन्द्र है। चित्रकारी भी मूर्तिकला की भाँति सम्प्रेषण का एक माध्यम है। जातक की कथाओं का चित्रण बहुत ही सुन्दर ढंग से अजन्ता के चित्रों में दिखाया गया है। इन कथाओं में राजदरबार का चित्रण, शोभा यात्राएं, त्यौहारों का उत्सव और कार्य करते हुए पुरुषों और महिलाओं का चित्रांकन है। यह चित्र अत्यन्त ही सुन्दर और सजीव है हर्षोल्लास, उमंग, प्रसन्नता, प्रेम की भावनाओं की अभिव्यक्ति इतनी कुशलता से और जीवन्तता से की गई है कि यह लगता है कि चित्र बोल पड़ेंगे। कलाकारों ने इन्हें त्रिविम रूप से चित्रित किया गया है; इसके लिए आभा भेद तकनीक का प्रयोग करके इन्हें सजीवता प्रदान की है।

प्रश्न 54.
हीनयान तथा महायान में मुख्य अन्तरों को समझाइए।
उत्तर:
हीनयान तथा महायान में अनेक मूलभूत अन्तर हैं। इनमें से प्रमुख अन्तरों का विवरण निम्नलिखित है –

  1. हीनयान प्राचीन, रूढ़िवादी तथा मूल मत है जबकि महायान बौद्ध मत का संशोधित तथा सरल रूप है जो चतुर्थ बौद्ध संगीति में प्रकाश में आया।
  2. हीनयानी बुद्ध की स्तुति प्रतीकों के माध्यम से करते हैं वहीं महायानी मूर्ति पूजा में विश्वास करते हैं।
  3. हीनयान मत रूढ़िवादी है जबकि महायान अत्यधिक सरल मत है।
  4. हीनयान में बुद्ध की स्तुति की जाती है; वहीं महायान में बुद्ध के साथ-साथ बोधिसत्वों की आराधना भी की जाती है।
  5. हीनयान ज्ञान को महत्त्व देता है जबकि महायान करुणा को।

प्रश्न 55.
प्राचीन भारतीय कला की पृष्ठभूमि और महत्त्व को 19वीं सदी के यूरोपीय विद्वान प्रारम्भ में क्यों नहीं समझ सके ? उनकी समस्या का निराकरण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की धार्मिक आस्थाओं, धारणाओं, परम्पराओं आदि में अन्तर होते हैं उनके सोचने और समझने के ढंग और प्रतिमान अलग-अलग होते हैं। इसलिए यूरोपीय विद्वानों ने जब प्राचीन भारतीय मूर्तिकला की यह मूर्तियाँ जो कई हाथों, कई सिरों या अर्द्ध मानव के रूप में निर्मित थीं देखीं तो उन्हें यह विचित्र प्रतीत हुई। आराध्य देवों के यह रूप उनकी कल्पना से परे थे। फिर भी इन आरम्भिक यूरोपीय विद्वानों ने इन विभिन्न रूपों वाली आराध्य देवों की मूर्तियों को समझने हेतु प्रयास किए।

यूरोपीय विद्वानों ने प्राचीन यूनानी कला परम्परा की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर इन मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना की तथा उन्हें समझने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्होंने बौद्ध धर्म की कला परम्परा, बौद्ध धर्म की बुद्ध और बोधसत्व की मूर्तियाँ देखीं तो वे बहुत प्रोत्साहित हुए। इन मूर्तियों की उत्कृष्टता को देखकर हैरान रह गए, उन्हें लगा ये मूर्तियाँ यूनानी प्रतिमानों के अनुरूप हैं। इस प्रकार इस मूर्तिकला की अनजानी व अपरिचित पृष्ठभूमि और इसके अपरिचित महत्त्व को उन्होंने परिचित यूनानी मूर्तिकला के आधार पर समझने का प्रयास किया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं के योगदान का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं का योगदान साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की शासिकाओं के योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) साँधी के स्तूप के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान देना- भोपाल की शासिकाओं- शाहजहाँ बेगम तथा उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम की पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण में बड़ी रुचि थी। उन्होंने साँची के विश्व प्रसिद्ध स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया।

(2) जान मार्शल द्वारा रचित पुस्तक के प्रकाशन के लिए अनुदान देना जान मार्शल ने साँची स्तूप पर एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने सुल्तानजहाँ की पुरातात्विक स्थलों के प्रति रुचि को देखते हुए अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ सुल्तानजहाँ बेगम को समर्पित किया। सुल्तानजहाँ बेगम ने इस ग्रन्थ के विभिन्न खण्डों के प्रकाशन हेतु धन का अनुदान दिया।

(3) संग्रहालय और अतिथिशाला का निर्माण करवाया सुल्तानजहाँ बेगम ने स्तूप स्थल पर एक संग्रहालय तथा अतिथिशाला के निर्माण के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया।

(4) साँची के स्तूप को भोपाल राज्य में सुरक्षित रखना – उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय लोगों में साँची के स्तूप को लेकर बड़ी रुचि थी। प्रारम्भ में फ्रांसीसियों ने सबसे अच्छी दशा में बचे साँची के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने हेतु शाहजहाँ बेगम से फ्रांस ले जाने की अनुमति माँगी।

इसके बाद अंग्रेजों ने भी साँची के पूर्वी तोरणद्वार को इंग्लैण्ड ले जाने की अनुमति माँगी। परन्तु शाहजहाँ बेगम ने उन्हें साँची के स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियाँ देकर सन्तुष्ट कर दिया। इस प्रकार शाहजहाँ बेगम के प्रयासों के परिणामस्वरूप साँची के स्तूप की मूलकृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही सुरक्षित रही। इस प्रकार यह स्तूप समूह बना रहा है तो इसके पीछे भोपाल की बेगमों के विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका रही है।

प्रश्न 2.
बौद्ध ग्रन्थ किस प्रकार तैयार और संरक्षित किए जाते थे?
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथों को तैयार एवं संरक्षित करना बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध अन्य शिक्षकों की भाँति चर्चा और वार्तालाप करते हुए मौखिक शिक्षा देते थे। स्त्री, पुरुष और बच्चे इन प्रवचनों को सुनते थे और इन पर चर्चा करते थे। बुद्ध की शिक्षाओं को उनके जीवनकाल में लिखा नहीं गया। उनकी मृत्यु के बाद पांचवीं चौथी सदी ई. पूर्व में उनके शिष्यों ने वरिष्ठ श्रमणों की एक सभा वैशाली में आयोजित की। वहाँ पर ही उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया। इन संग्रहों को ‘त्रिपिटक’ कहा जाता था।

(1) त्रिपिटक त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है-भिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने के लिए ‘तीन टोकरियाँ’ त्रिपिटक तीन हैं-

  • विनयपिटक – इसमें संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए आचरण सम्बन्धी नियमों का संग्रह है।
  • सुत्तपिटक – इसमें बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है।
  • अभिधम्मपिटक इसमें बौद्धधर्म के दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन है।

प्रत्येक पिटक के अन्दर कई ग्रन्थ होते थे-बाद के युगों में बौद्ध विद्वानों ने इन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखीं।

(2) दीपवंश तथा महावंश-जब बौद्ध धर्म का श्रीलंका जैसे नए क्षेत्रों में प्रसार हुआ, तब दीपवंश ( द्वीप का इतिहास) तथा महावंश (महान इतिहास) जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास को लिखा गया। इनमें से कई रचनाओं में बुद्ध की जीवनी लिखी गई है। अधिकांश पुराने ग्रन्थ पालि में हैं। कालान्तर में संस्कृत में भी ग्रन्थों की रचना की गई।

(3) बौद्ध ग्रन्थों का संरक्षण जब बौद्ध धर्म का पूर्वी एशिया में प्रसार हुआ, तब फा-शिएन और श्वैन-त्सांग जैसे तीर्थयात्री बौद्धग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए थे। वे अनेक बौद्ध ग्रन्थ अपने देश ले गए जहाँ विद्वानों ने इनका अनुवाद किया। भारत के बौद्ध शिक्षक भी दूर-दराज के देशों में गए। बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए वे अनेक ग्रन्थ भी अपने साथ ले गए। कई शताब्दियों तक ये पांडुलिपियाँ एशिया के भिन्न-भिन्न देशों में स्थित बौद्ध- विहारों में संरक्षित थीं। पालि, संस्कृत, चीनी और तिब्बती भाषाओं में लिखे इन ग्रन्थों से आधुनिक अनुवाद तैयार किए गए हैं।

प्रश्न 3.
नियतिवादियों एवं भौतिकवादियों के विचारों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
नियतिवादियों के विचार मक्खलिगोसाल नामक व्यक्ति नियतिवादियों के प्रमुख दार्शनिक थे। नियतिवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित थे
(1) सब कुछ पूर्व निर्धारित है नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दुःख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। स्न्नों संका में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता। जैसे धागे का गोला फेंक देने पर लुढ़कते लुढ़कते अपनी पूरी लम्बाई तक खुलता जाता है, उसी प्रकार मूर्ख और विद्वान दोनों ही पूर्व निर्धारित मार्ग से होते हुए दुःखों का निदान करेंगे।

(2) कर्म – मुक्ति की निरर्थक आशा करना- नियतिवादियों का कहना है कि बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि वे अपने सद्गुणों एवं तपस्या के बल पर कर्म मुक्ति प्राप्त करेंगे। इसी प्रकार मूर्ख लोग उन्हीं कार्यों को सम्पन्न करके शनैः-शनैः कर्म मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं। परन्तु उनका यह सोचना गलत है तथा दोनों में से कोई भी कुछ नहीं कर सकता। इसलिए लोगों के भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे उन्हें भोगना ही पड़ेगा।

भौतिकवादियों के विचार अजीत केसकंबलिन नामक व्यक्ति भौतिकवादियों के प्रमुख दार्शनिक थे भौतिकवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित है-
(1) संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई वस्तु नहीं होती। इस दुनिया या दूसरी दुनिया जैसी किसी वस्तु का कोई अस्तित्व नहीं होता।
(2) मनुष्य चार तत्त्वों से बना होता है जब उसकी मृत्यु होती है, तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में, जल वाला अंश जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा साँस का अंश वायु में वापस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अन्तरिक्ष का भाग बन जाती हैं।
(3) दान देने की बात मूर्खों का सिद्धान्त है, यह सिद्धान्त असत्य है। कुछ मूर्ख एवं विद्वान दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कोई नहीं बचता।

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प्रश्न 4.
महात्मा बुद्ध की जीवनी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की जीवनी महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक और प्रवर्तक थे। बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक वन में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य गणराज्य के प्रधान थे। इनकी माता का नाम महामाया (मायादेवी) था। बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नामक एक सुन्दर कन्या से किया गया। कुछ समय बाद उनके यहाँ पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम राहुल रखा गया। परन्तु सिद्धार्थ की संसार से विरक्ति बढ़ती गई। महाभिनिष्क्रमण-नगर-दर्शन हेतु विभिन्न अवसरों पर बाहर जाते हुए सिद्धार्थ ने एक वृद्ध व्यक्ति, रोगी, मृतक एवं संन्यासी को देखा जिन्हें देखकर उन्हें संसार से विरक्ति हो गई। अन्त में 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपनी पत्नी, अपने पुत्र तथा राजकीय वैभव को छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

यह घटना ‘महाभिनिष्क्रमण’ के नाम से प्रसिद्ध है। ज्ञान की प्राप्ति प्रारम्भ में सिद्धार्थ ने वैशाली के ब्राह्मण विद्वान आलारकालाम तथा राजगृह के विद्वान् उद्रक रामपुत्त से ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया, परन्तु उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई। इसके बाद वे उरुवेल के जंगल में अपने पाँच ब्राह्मण साथियों के साथ कठोर तपस्या करने लगे, परन्तु यहाँ भी उनके हृदय को शान्ति नहीं मिली। उनका शरीर सूख सूख कर काँटा हो गया, परन्तु उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अतः उन्होंने भोजन आदि ग्रहण करना शुरू कर दिया जिससे नाराज होकर उनके पाँचों साथी सिद्धार्थ का साथ छोड़कर वहाँ से चले गए।

अन्त में सिद्धार्थ एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठ गए। सात दिन अखण्ड समाधि में लीन रहने के बाद वैशाखी पूर्णिमा की रात को उन्हें ‘ज्ञान’ प्राप्त हुआ, उन्हें सत्य के दर्शन हुए और वे ‘बुद्ध’ कहलाने लगे। इस घटना को ‘सम्बोधि’ कहा जाता है। जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ, उसे ‘बोधिवृक्ष’ कहा जाने लगा और गया ‘बोधगया’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धर्म का प्रचार ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् बुद्ध ने सारनाथ पहुँचकर उन पाँच ब्राह्मणों को उपदेश दिया, जो उन्हें छोड़कर चले आए थे। ये पाँचों ब्राह्मण बुद्ध के अनुयायी बन गए। इस घटना को ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहते हैं। इसके बाद बुद्ध ने काशी, कोशल, मगध, वज्जि प्रदेश, मल्ल, वत्स आदि में अपने धर्म की शिक्षाओं का प्रचार किया।

उनके अनुयायियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके अनुयायियों में अनेक राजा, व्यापारी, ब्राह्मण, विद्वान, सामान्यजन कर्मकार, दास, शिल्पी आदि सम्मिलित थे। महापरिनिर्वाण लगभग 45 वर्ष तक बुद्ध अपने धर्म का प्रचार करते रहे। अन्त में 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में बुद्ध का देहान्त हो गया। बौद्ध परम्परा के अनुसार यह घटना ‘महापरिनिर्वाण’ कहलाती है।

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प्रश्न 5.
बुद्ध की शिक्षाओं का विवेचन कीजिए। अथवा
उत्तर:
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। बुद्ध की शिक्षाएँ (बौद्ध धर्म के सिद्धान्त ) बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं –
(1) विश्व अनित्य है – बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और निरन्तर परिवर्तित हो रहा है। यह आत्माविहीन है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।
(2) मध्यम मार्ग – बुद्ध का कहना था कि न तो मनुष्य को घोर तपस्या करनी चाहिए, न ही अधिक भोग- विलास में लिप्त रहना चाहिए।
(3) भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक- बौद्ध धर्म की प्रारम्भिक परम्पराओं में भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक था।
(4) समाज का निर्माण मनुष्यों द्वारा किया जाना- बुद्ध मानते थे कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने
(5) व्यक्तिगत प्रवास पर बल बुद्ध के अनुसार व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था।
(6) व्यक्ति केन्द्रित हस्तक्षेप तथा सम्यक् कर्म पर बल बुद्ध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म-ज्ञान और निर्वाण के लिए आत्मकेन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक् कर्म पर बल दिया।
(7) निर्वाण बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण का अर्थ था अहं और इच्छा का समाप्त हो जाना जिससे गृह त्याग करने वालों के दुःख के चक्र का अन्त हो सकता था।
(8) चार आर्य सत्य बौद्ध धर्म के अनुसार चार था। आर्य सत्य निम्नलिखित हैं –

  • दुःख – यह संसार दुःखमय है। संसार में सर्वत्र दुःख ही दुःख है।
  • दुःख समुदय-दुःख और कष्टों का कारण तृष्णा है।
  • दु:ख निरोध- तृष्णा नष्ट कर देने से दुःखों से. मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
  • दु:ख निरोध का मार्ग-तृष्णा के विनाश के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।

(9) अष्टांगिक मार्ग-अष्टांगिक मार्ग की मुख्य आठ बातें निम्नलिखित हैं –

  • सम्यक् दृष्टि (सत्य, विश्वास या दृष्टिकोण)
  • सम्यक् संकल्प (सत्य संकल्प या विचार)
  • सम्यक् वाणी (मधुर एवं सत्य वचन बोलना )
  • सम्यक् कर्मान्त (सदाचारपूर्ण आचरण करना)
  • सम्यक् आजीव (सदाचारपूर्ण साधनों से जीविका का निर्वाह करना)
  • सम्यक् व्यायाम ( निरन्तर सद्प्रयास )
  • सम्यक् स्मृति (दुर्बलताओं की निरन्तर स्मृति)
  • सम्यक् समाधि (चित्त की एकाग्रता)।

(10) स्वावलम्बन पर बल बुद्ध का कहना था कि मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।

प्रश्न 6.
बौद्ध संघ पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
बुद्ध के अनुयायियों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बौद्ध संघ (बुद्ध के अनुयायी ) महात्मा बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई। धीरे-धीरे उनके शिष्यों का दल तैयार हो गया। उन्होंने अपने शिष्यों के लिए बौद्ध संघ की स्थापना की संघ ऐसे बौद्ध भिक्षुओं की एक संस्था थी, जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये बौद्ध भिक्षु एक सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं होता था। वे दिन में एक बार भोजन करते थे। इसके लिए वे उपासकों से भोजन दान प्राप्त करने के लिए एक कटोरा रखते थे। चूंकि वे दान पर निर्भर थे, इसलिए उन्हें भिक्षु कहा जाता था।

(1) महिलाओं को संघ में सम्मिलित करना प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे परन्तु बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई। बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी। संघ में सम्मिलित होने वाली कई स्त्रिय धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई। कालान्तर में ये धेरी बनीं, जिसका अर्थ है-ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।

(2) बुद्ध के अनुयायियों का विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित होना बुद्ध के अनुयायी विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थे। इनमें राजा, धनवान, गृहपति और सामान्य जन कर्मकार, दास, शिल्पी सभी सम्मिलित थे। संघ में सम्मिलित होने वाले सभी भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्षु बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।

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(3) संघ की संचालन पद्धति संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। इसके अन्तर्गत लोग वार्तालाप के द्वारा एकमत होने का प्रयास करते थे एकमत न होने पर मतदान द्वारा निर्णय लिया जाता था।

प्रश्न 7.
स्तूपों की खोज किस प्रकार हुई ? अमरावती तथा साँची की नियति बताइये।
अथवा
स्तूपों की खोज किस प्रकार हुई ? साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
स्तूपों की खोज बौद्ध कला में स्तूपों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साँची और अमरावती के स्तूप तत्कालीन वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
(1) साँची के स्तूप की खोज-साँची का स्तूप एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है जो मुकुट जैसा दिखाई देता है 1818 ई. में साँची की खोज हुई।

(2) अमरावती के स्तूप की खोज- 1796 ई. में स्थानीय राजा एक मन्दिर का निर्माण करना चाहते थे। उन्हें अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। उन्होंने इसके पत्थरों का प्रयोग करने का निश्चय किया। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी को इस क्षेत्र से गुजरने का अवसर मिला। यद्यपि उन्होंने यहाँ कई मूर्तियाँ प्राप्त की और उनका विस्तृत चिशंकन भी किया, परन्तु उनकी रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हुई।

(3) गुन्टूर के कमिश्नर द्वारा अमरावती की यात्रा करना- 1854 ई. में गुन्टूर (आन्ध्र प्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। उन्होंने कई मूर्तियों तथा उत्कीर्ण पत्थरों को एकत्रित किया और वे उन्हें मद्रास ले गए।

(4) अमरावती के स्तूप के उत्कीर्ण पत्थरों को विभिन्न स्थानों पर ले जाना-1850 के दशक में अमरावती के स्तूप के उत्कीर्ण पत्थरों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर ले जाया गया। कुछ उत्कीर्ण पत्थर कोलकाता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल पहुंचे, तो कुछ पत्थर मद्रास के इण्डिया ऑफिस पहुँचे। कुछ पत्थर तो लन्दन तक पहुँच गए। कई अंग्रेज अधिकारियों ने अपने बागों में अमरावती की मूर्तियाँ स्थापित कीं।

(5) साँची क्यों बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया – सम्भवतः अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी तब तक विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज की जगह पर ही संरक्षित करना बड़ा महत्त्वपूर्ण था। 1818 में सांची की खोज हुई उस समय तक भी इस स्तूप के तीन तोरणद्वार खड़े थे।

चौथा तोरण द्वार वहीं पर गिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त टीला भी अच्छी दशा में था। उस समय कुछ विदेशियों ने यह सुझाव दिन था कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। दूसरी ओर अमरावती का महाचैत्य अब केवल एक छोटा सा टीला है, जिसका सम्पूर्ण गौरव नष्ट हो चुका है।

प्रश्न 8.
पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताएँ पौराणिक हिन्दू धर्म की विशेषताओं का वर्णन अग्रानुसार
(1) पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय पौराणिक हिन्दू धर्म में भी मुक्तिदाता की कल्पना विकसित हो रही थी। इस पौराणिक हिन्दू धर्म में दो परम्पराएँ प्रमुख थीं –

  • वैष्णववाद तथा
  • शैववाद वैष्णववाद में विष्णु को सबसे प्रमुख देवता माना जाता है और शैववाद में शिव परमेश्वर माने गए हैं।

(2) अवतारवाद – वैष्णववाद में कई अवतारों के चारों ओर पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई इस परम्परा के अन्दर दस अवतारों की कल्पना की गई है। लोगों में यह मान्यता प्रचलित थी कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अराजकता, अव्यवस्था और विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी, तब संसार की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे।

(3) अवतारों को मूर्तियों में दिखाना- कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दर्शाया गया है।

(4) पुराणों की कहानियाँ – इन मूर्तियों के उत्कीर्णन का अर्थ समझने के लिए इतिहासकारों को इनसे जुड़ी हुई कहानियों से परिचित होना पड़ता है। कई कहानियाँ प्रथम सहस्राब्दी के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों में पाई जाती हैं। इनमें देवी-देवताओं की भी कहानियाँ हैं। प्रायः इन्हें संस्कृत श्लोकों में लिखा गया था। इन्हें ऊंची आवाज में पढ़ा जाता था जिसे कोई भी सुन सकता था।

यद्यपि महिलाओं और शूद्रों (हरिजनों) को वैदिक साहित्य पढ़ने – सुनने की अनुमति नहीं थी. परन्तु वे पुराणों को सुन सकते थे। पुराणों की अधिकांश कहानियाँ लोगों के आपसी मेल- मिलाप से विकसित हुई। पुजारी, व्यापारी और सामान्य स्त्री-पुरुष एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते हुए, अपने विश्वासों और विचारों का आदान-प्रदान करते थे। उदाहरण के लिए, वासुदेव कृष्ण मथुरा क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण देवता थे। कई शताब्दियों के दौरान उनकी पूजा देश के दूसरे प्रदेशों में भी प्रचलित हो गई।

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प्रश्न 9.
अतीत की समृद्ध दृश्य परम्पराओं को समझने के लिए यूरोपीय विद्वानों द्वारा किये गये प्रयासों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अतीत की समृद्ध दृश्य-परम्पराओं को समझने के प्रयास अतीत की समृद्ध दृश्य पराम्पराएँ ईंट और पत्थर से निर्मित स्थापत्य कला, मूर्तिकला और चित्रकला के रूप में हमारे सामने आई हैं। इनमें से कुछ कलाकृतियाँ नष्ट हो गई हैं। परन्तु जो बची हैं, और संरक्षित हैं वे हमें इन सुन्दर कलाकृतियों के निर्माताओं – कलाकारों, मूर्तिकारों, राजगीरों और वास्तुकारों के दृष्टिकोण से परिचित कराती हैं। परन्तु उनके दृष्टिकोण को समझना सरल नहीं है। हम कभी भी यह बात पूर्ण रूप से नहीं समझ सकते कि इन प्रतिकृतियों को देखने और पूजने वाले लोगों के लिए इनका क्या महत्त्व था।

यूरोपीय विद्वानों के प्रयास – उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वानों ने जब देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखीं तो वे उनकी पृष्ठभूमि और महत्त्व को नहीं समझ पाए। कई सिरों, हाथों वाली या मनुष्य और जानवर के रूपों को मिलाकर बनाई गई मूर्तियाँ उन्हें खराब लगती थीं और कई बार उन्हें इन मूर्तियों से घृणा होने लगती थी। प्राचीन यूनान की कला परम्परा से तुलना करना- इन प्रारम्भिक यूरोपीय विद्वानों ने ऐसी विचित्र मूर्तियों का अभिप्राय समझने के लिए उनकी तुलना प्राचीन यूनान की कला परम्परा से की। ये विद्वान् यूनानी परम्परा से परिचित थे।

यद्यपि वे प्रारम्भिक भारतीय मूर्तिकला को यूनान की कला से निम्न स्तर का मानते थे, फिर भी वे बुद्ध और बोधिसत्त की मूर्तियों की खोज से काफी प्रोत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी आदर्शों से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ अधिकतर उत्तर-पश्चिम के नगरों तक्षशिला और पेशावर में मिली थीं। इन प्रदेशों में ईसा से दो सौ वर्ष पहले भारतीय यूनानी शासकों ने अपने राज्य स्थापित किए थे। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती- जुलती थीं। चूंकि ये विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन्हें भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।

कलाकृतियों के महत्त्व को समझने के लिए लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करना मूर्तियों के महत्त्व और संदर्भ को समझने के लिए कला के इतिहासकार प्राय: लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करते हैं भारतीय मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना कर निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा यह तरीका अधिक अच्छा है। परन्तु यह बहुत सरल तरीका नहीं है।

कला – इतिहासकारों व पुराणों में इस कथा को पहचानने के लिए काफी खोजबीन की है। परन्तु उनमें काफी मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस कथा में गंगा नदी के स्वर्ग से अवतरण का चित्रण है। उनका कहना है कि चट्टान की सतह के बीच प्राकृतिक दरार शायद नदी को दर्शा रही है। यह कथा महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित है। परन्तु अन्य विद्वानों की मान्यता है कि यहाँ पर दिव्यास्य प्राप्त करने के लिए महाभारत में वर्णित अर्जुन की तपस्या का चित्रण है। उनका कहना है कि मूर्तियों के बीच एक साधु की मूर्ति केन्द्र में रखी गई है।

प्रश्न 10.
लौकिक सुखों से आगे, वर्धमान महावीर की शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्धमान महावीर की शिक्षाएँ –
(1) सारा संसार संजीव है-सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यह जैन धर्म की सबसे प्रमुख अवधारणा है। वर्धमान महावीर के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में कुछ भी निर्जीव नहीं है। यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान, जल में भी जीवन होता है। यह भगवान महावीर की गहन अन्तर्दृष्टि थी।

(2) अहिंसा-अहिंसा का सिद्धान्त जैन दर्शन का केन्द्रबिन्दु है। जीवों के प्रति दयाभाव रखना चाहिए, हमें किसी भी जानवर, मनुष्य, पेड़-पौधे, यहाँ तक कि कीट- पतंगों को भी नहीं मारना चाहिए। महावीर के अनुसार आत्मा केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि पशुओं, कीड़ों, पेड़-पौधों आदि में भी होती हैं।

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(3) जीवन चक्र और कर्मवाद जैन दर्शन के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्मानुसार निर्धारित होता है। ‘कर्मों के अनुरूप ही पुनर्जन्म होता है।

(4) तप आवागमन के बन्धन से छुटकारा पाने का एक ही मार्ग त्याग और तपस्या है। मुक्ति का प्रयास संसार को त्याग कर विहारों में निवास कर तपस्या द्वारा ही फलीभूत होगा।

(5) पंच महाव्रत- जैन धर्म में पंचमहाव्रतों का सिद्धान्त दिया गया है; जैसे कि अहिंसा, अमृषा, अस्तेय, अपरिग्रह, इन्द्रिय निग्रह।

(6) त्रि-रत्न-पंचमहाव्रत के अतिरिक्त वर्धमान महावीर ने निर्वाण प्राप्ति हेतु त्रिरत्न नामक तीन सिद्धान्तों- सत्य, विश्वास, सत्यज्ञान और सत्यकार्य को अपनाने की शिक्षा भी दी है।

(7) ईश्वर की अवधारणा से मुक्ति वर्धमान महावीर ईश्वर के अस्तित्व में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे। वह यह नहीं मानते थे कि ईश्वर ने संसार की रचना की है। जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखता है।

(8) वेदों में विश्वास जैन धर्म को मानने वाले वेदों को ईश्वरी ज्ञान नहीं मानते वे वेदों में मुक्ति हेतु दिए साधनों यह जप, तप, हवन आदि को व्यर्थ समझते हैं।

(9) जाति पाँति में अविश्वास जैन धर्म के अनुयायी जाति पाँति में विश्वास नहीं करते हैं।

(10) स्याद्वाद – जैन धर्म में स्याद्वाद प्रमुख है; कोई भी मनुष्य सम्पूर्ण सत्य के ज्ञान का दावा नहीं कर सकता। सत्यं बहुत व्यापक है, इसके अनेक पक्ष हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार मनुष्य को सत्य का आंशिक ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 11.
बौद्ध कैसे की जाती थी? महात्मा धर्म का लेखन और इनकी सुरक्षा
उत्तर:
बुद्ध तथा उनके अनुयायी लोगों में वार्तालाप व वाद-विवाद द्वारा मौखिक रूप से अपनी शिक्षाओं का प्रसार करते थे। महात्मा बुद्ध के जीवन काल में वक्तव्यों का लेखन नहीं किया गया। महात्मा बुद्ध के देह त्याग के उपरान्त पाँचवीं चौथी सदी ईसा पूर्व में उनके शिष्यों ने वैशाली में एक सभा का आयोजन किया। शिक्षाओं का संकलन पुस्तकों के रूप में किया गया; जिन्हें त्रिपिटक, जिसका अर्थ है विभिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने की तीन टोकरियाँ कहा गया। तदुपरान्त बौद्ध धर्म के विद्वानों द्वारा इन पर टिप्पणियाँ लिखी गयीं।
त्रिपिटक त्रिपिटक में तीन पिटक सम्मिलित हैं –

(1) विनयपिटक विनयपिटक में भिक्षु और भिक्षुणी जो कि बौद्ध मठों या संघों में रहते थे उनके लिए आचार संहिता थी। उन्हें किस प्रकार का आचरण करना चाहिए। इस सम्बन्ध में विनयपिटक में व्यापक नियम दिये गये हैं।

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(2) सुत्तपिटक – सुतपिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ दी गई हैं, जो उन्होंने समाज के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखते हुए दी हैं।

(3) अभिधम्मपिटक अभिधम्मपिटक में दर्शनशास्त्र से सम्बन्धित विषयों की गहन व्याख्याएँ सम्मिलित हैं।
(i) नए ग्रन्थ धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का विस्तार श्रीलंका तक फैल गया तो नए ग्रन्थों जैसे दीपवंश और महावंश नामक ग्रन्थों की रचना की गई। इन ग्रन्थों में क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित बौद्ध साहित्य प्राप्त होता है। कई रचनाओं में महात्मा बुद्ध की जीवनी का भी समावेश है।
(ii) ग्रन्थों की सुरक्षा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार जब पूर्व एशिया तक फैल गया तो इससे आकर्षित होकर फा-शिएन और श्वेन त्सांग नामक चीनी तीर्थयात्री बौद्ध ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आए।

वे इनमें से कई ग्रन्थों को अपने साथ चीन ले गए और वहाँ इसका अनुवाद चीन की भाषा में किया। भारतीय बौद्ध धर्म के प्रचारक भी देश-विदेश में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए कई ग्रन्थों को साथ ले गए। एशिया में फैले विभिन्न बौद्ध विहारों में यह पाण्डुलिपियाँ वर्षों तक संरक्षित रहीं। बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र तिब्बत के ल्हासा मठ में बौद्ध धर्म की पालि संस्कृत, चीनी, तिब्बती भाषा की तमाम पाण्डुलिपियाँ आज भी संरक्षित हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Important Questions and Answers.

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बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. कौरव और पांडव किस वंश से सम्बन्धित थे –
(अ) पांचाल
(ब) हर्यंक
(स) लिच्छवि
(द) कुरु
उत्तर:
(द) कुरु

2. वर्तमान महाभारत में श्लोक हैं –
(अ) दस हजार से अधिक
(ब) एक लाख से अधिक
(स) दो लाख से अधिक
(द) पचास हजार से अधिक
उत्तर:
(ब) एक लाख से अधिक

3. ‘धर्म सूत्र’ और ‘धर्मशास्त्र’ विवाह के कितने प्रकारों को अपनी स्वीकृति देते हैं-
(अ) चार
(स) आठ
(ब) दो
(द) सात
उत्तर:
(स) आठ

4. पितृवंशिकता में पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया था –
(अ) कन्या को शिक्षा दिलाना
(ब) कन्यादान
(द) पुत्र का विवाह
(स) पुत्र की देखभाल
उत्तर:
(ब) कन्यादान

5. किस उपनिषद् में कई लोगों को उनके मातृनामों से निर्दिष्ट किया गया था?
(अ) बृहदारण्यक
(स) कठ
(ख) प्रश्न
(द) छान्दोग्य
उत्तर:
(अ) बृहदारण्यक

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6. किन शासकों को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था?
(अ) कुषाण
(स) मौर्य
(ब) शुंग
(द) सातवाहन
उत्तर:
(द) सातवाहन

7. किस सातवाहन शासक ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण एवं क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला बताया था?
(अ) शातकर्णी प्रथम
(ब) गौतमीपुत्र शातकर्णी
(स) वसिष्ठीपुत्र शातकर्णी
(द) पुलुमावि शातकर्णी
उत्तर:
(ब) गौतमीपुत्र शातकर्णी

8. एकलव्य किस वर्ग से जुड़ा हुआ था ?
(अ) कृषक
(ब) पशुपालक
(स) व्यवसायी वर्ग
(द) निषाद वर्ग
उत्तर:
(द) निषाद वर्ग

9. महाभारत की मूल भाषा है-
(अ) प्राकृत
(ब) पालि
(स) तमिल
(द) संस्कृत
उत्तर:
(द) संस्कृत

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10. प्रसिद्ध इतिहासकार वी.एस. सुकथांकर एक प्रसिद्ध विद्वान् थे-
(अ) संस्कृत के
(ब) मराठी के
(स) हिन्दी के
(द) अंग्रेजी के
उत्तर:
(अ) संस्कृत के

11. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण से सम्बन्धित एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना किस वर्ष आरम्भ हुई?
(अ) 1905 ई. में
(ब) 1911 ई. में
(द) 1942 ई. में
(स) 1919 ई. में
उत्तर:
(स) 1919 ई. में

12. महाभारत एक है-
(अ) खण्डकाव्य
(स) उपन्यास
(ब) महाकाव्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) महाकाव्य

13. धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य था –
(अ) वेदों की शिक्षा देना
(ब) व्यापार करना
(स) न्याय करना
(द) सेवा करना
उत्तर:
(अ) वेदों की शिक्षा देना

14. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का कार्य किसके नेतृत्व में प्रारम्भ किया गया था?
(अ) रोमिला थापर
(ब) वी.एस. सुकथांकर
(स) उमा चक्रवर्ती
(द) आर.एस. शर्मा
उत्तर:
(ब) वी.एस. सुकथांकर

15. महाभारत के रचयिता किसे माना जाता है?
(अ) विशाखदत्त
(ब) बाणभट्ट
(स) कालिदास
(द) वेदव्यास
उत्तर:
(द) वेदव्यास

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. कुंती ओ निषादी नामक लघु कथा की रचना…….ने की है।
2. …………… महाभारत का उपदेशात्मक अंश है।
3. संस्कृत ग्रन्थों में, …………. शब्द का प्रयोग परिवार के लिए और ………….. का बाँधयों के बड़े समूह के लिए होता है।
4. छठी शताब्दी ई.पू. से राजवंश …………… प्रणाली का अनुसरण करते थे।
5. जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है वहाँ ………… शब्द का इस्तेमाल होता है।
6. गोत्र से बाहर विवाह करने को …………… कहते है।
7. ……………. में चाण्डालों के कर्त्तव्यों की सूची मिलती है।
8. मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के …………… तरीके हैं।
उत्तर:
1. महाश्वेता देवी
2. भगवद्गीता
3. कुल, जाति
4. पितृवंशिकता
5. मातृवंशिकता
6. बहिर्विवाह
7. मनुस्मृति
8. सात

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस राजवंश के राजाओं को उनके मातृ नाम से चिन्हित किया जाता था?
उत्तर:
सातवाहन राजवंश।

प्रश्न 2.
किस राजवंश में राजाओं के नाम से पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था।
उत्तर:
सातवाहन राजवंश।

प्रश्न 3.
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का कार्य कब व किसके नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
(1) 1919 ई. में
(2) बी. एस. सुकथांकर के नेतृत्व में

प्रश्न 4.
बहिर्विवाह पद्धति किसे कहते हैं? यह अन्तर्विवाह पद्धति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं। परन्तु अन्तर्विवाह समूह ( गोत्र, कुल, जाति) के बीच होते हैं।

प्रश्न 5.
किस राज्य में राजाओं के नाम के पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था ?
उत्तर:
सातवाहन राज्य में करना।

प्रश्न 6.
धर्मशास्त्रों के अनुसार क्षत्रियों के किन्हीं दो आदर्श कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • युद्ध करना
  • लोगों को सुरक्षा प्रदान

प्रश्न 7.
‘कुल’ और ‘जात’ में क्या भिन्नता है?
उत्तर:
कुल परिवार को तथा जात बांधवों के बड़े समूह को कहते हैं।

प्रश्न 8.
महाश्वेता देवी ने किस लघु कथा की रचना
उत्तर:
कुंती ओ निषादी।

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प्रश्न 9.
पितृवेशिकता का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र से चलती है।

प्रश्न 10.
कुल और जाति में क्या अन्तर है?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों में कुल शब्द का प्रयोग परिवार के लिए तथा जाति का प्रयोग बांधवों के बड़े समूह के लिए होता है।

प्रश्न 11.
‘अन्तर्विवाह’ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अन्तर्विवाह समूह (गोत्र, कुल या जाति) के बीच होते हैं।

प्रश्न 12.
वंश से क्या आशय है?
उत्तर:
पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज सम्मिलित रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं।

प्रश्न 13.
महाभारत का युद्ध किन दो दलों के मध्य और क्यों हुआ था?
उत्तर:
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य सत्ता पर नियन्त्रण स्थापित करने हेतु हुआ था।

प्रश्न 14.
ब्राह्मणों के अनुसार वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है। इसे सिद्ध करने के लिए वे किस मन्त्र को ‘उद्धृत करते थे?
उत्तर:
ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र को।

प्रश्न 15.
चाण्डाल कौन थे?
उत्तर:
चाण्डाल शवों की अन्त्येष्टि करते थे, मृत-पशुओं को उठाते थे।

प्रश्न 16.
‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डाल के दो कर्तव्य बताइये।
उत्तर:

  • गाँव के बाहर रहना
  • मरे हुए लोगों के वस्त्र पहनना।

प्रश्न 17.
महाभारत किस भाषा में रचित है?
उत्तर:
संस्कृत भाषा में।

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प्रश्न 18.
कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध किस वंश से था?
उत्तर:
कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध कुरुवंश से

प्रश्न 19.
इतिहास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इतिहास का अर्थ है ऐसा ही था।

प्रश्न 20.
चार वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख किस वैदिक ग्रन्थ में मिलता है?
उत्तर:
ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ में।

प्रश्न 21.
गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या की शिक्षा देने से क्यों इनकार कर दिया था?
उत्तर:
क्योंकि एकलव्य निषाद (शिकारी समुदाय)

प्रश्न 22.
आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को किस श्रेणी में रखा गया है?
उत्तर:
इतिहास की श्रेणी में

प्रश्न 23.
किस सातवाहन शासक ने अपने को ‘अनूठा ब्राह्मण’ तथा क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला बतलाया था?
उत्तर:
गौतमीपुत्र शातकर्णी।

प्रश्न 24.
दो राजवंशों के नाम लिखिए जिनके राजा ब्राह्मण थे।
उत्तर:
शुंग और कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे।

प्रश्न 25.
भीम ने किस राक्षस कन्या से विवाह किया
उत्तर:
हिडिम्बा से

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प्रश्न 26.
धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
धर्मसूत्र व धर्मशास्य नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है।

प्रश्न 27.
अधिकतर राजवंश पितृवेशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे या मातृवंशिकता प्रणाली का ?
उत्तर:
पितृवंशिकता प्रणाली का।

प्रश्न 28.
धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के सिंहासन पर क्यों आसीन नहीं हुए?
उत्तर:
क्योंकि यह नेत्रहीन थे।

प्रश्न 29.
महाभारत के अनुसार किस माता ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह दी थी?
उत्तर:
गान्धारी ने।

प्रश्न 30.
सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम किन गोत्रों से उद्भूत थे?
उत्तर:
गौतम तथा वशिष्ठ गोत्रों से।

प्रश्न 31.
हस्तिनापुर नामक गाँव में उत्खनन कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब?
उत्तर:
(1) बी.बी. लाल के नेतृत्व में
(2) 1951

प्रश्न 32.
‘सूत’ कौन थे?
उत्तर:
महाभारत की मूलकथा के रचयिता भाट सारथी ‘सूत’ कहलाते थे।

प्रश्न 33.
महाभारत की विषय-वस्तु को किन दो मुख्य भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक।

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प्रश्न 34.
किस क्षेत्र में दानशील व्यक्ति का सम्मान किया जाता था तथा कृपण व्यक्ति को घृणा का पात्र समझा जाता था?
उत्तर:
प्राचीन तमिलकम में।

प्रश्न 35.
उन दो चीनी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने लिखा है कि चाण्डालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।
उत्तर:

  • फा-शिक्षन
  • श्वैन-त्सांग।

प्रश्न 36.
मनुस्मृति के अनुसार समाज का कौनसा वर्ग पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकता था?
उत्तर:
स्त्री वर्ग।

प्रश्न 37.
प्रारम्भ में महाभारत में कितने श्लोक थे?
उत्तर:
लगभग 10,000

प्रश्न 38.
वर्तमान में महाभारत में कितने श्लोक हैं ?
उत्तर:
लगभग एक लाख श्लोक।

प्रश्न 39.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति व्यवस्था किस पर आधारित थी?
उत्तर:
जन्म पर।

प्रश्न 40.
किस शक शासक ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ?
उत्तर:
रुद्रदामन

प्रश्न 41.
लोगों को गोशों में वर्गीकृत करने की ब्राह्मणीय पद्धति कब प्रचलन में आई ?
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से।

प्रश्न 42.
मनुस्मृति के आधार पर पुरुषों के लिए सम्पत्ति अर्जन के कोई चार तरीके बताइये।
उत्तर:

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजित करके।

प्रश्न 43.
महाभारतकालीन स्वियों की विभिन्न समस्याएँ लिखिए।
उत्तर:

  • पैतृक संसाधनों में स्थियों की हिस्सेदारी न होना
  • बहुपति प्रथा का प्रचलन
  • जुएँ में स्वियों को दाँव पर लगाना।

प्रश्न 44.
वर्ग शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर्ग शब्द एक विशिष्ट सामाजिक श्रेणी का प्रतीक है।

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प्रश्न 45.
बहुपत्नी प्रथा एवं बहुपति प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की परिपाटी है, बहुपति प्रथा एक स्वी होने की पद्धति है।

प्रश्न 46.
‘धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ ग्रन्थों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत जो आचार संहिताएं तैयार कीं, वे धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ कहलाते हैं।

प्रश्न 47.
मनुस्मृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मनुस्मृति प्राचीन भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि- ग्रन्थ है। यह धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 48.
धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में विवाह के कितने प्रकारों को स्वीकृति दी गई है? इनमें कौन से विवाह ‘उत्तम’ तथा कौनसे विवाह ‘निन्दित’ माने गए हैं?
उत्तर:

  • विवाह के आठ प्रकारों को स्वीकृति दी गई है।
  • पहले चार विवाह ‘उत्तम’ तथा शेष को ‘निन्दित’ माना गया है।

प्रश्न 49.
बहिर्विवाह पद्धति की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  • अपने गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह कहते हैं।
  • इसमें ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्वियों का जीवन सावधानी से नियन्त्रित किया जाता था।

प्रश्न 50.
गोत्रों का प्रचलन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे।

प्रश्न 51.
गोत्र प्रणाली के दो नियमों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
गोत्रों के दो महत्त्वपूर्ण नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • विवाह के पश्चात् स्वियों को पति के गोत्र का माना जाता था।
  • एक ही गोत्र के सदस्यों में विवाह वर्जित था।

प्रश्न 52.
‘वर्ण’ और ‘जाति’ के कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर:

  • वर्ण मात्र चार थे, परन्तु जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
  • वर्ण व्यवस्था में अन्तर्विवाह आवश्यक नहीं है, परन्तु जाति व्यवस्था में अन्तर्विवाह अनिवार्य होता है।

प्रश्न 53.
सातवाहन शासकों का देश के किन भागों पर शासन था ?
उत्तर:
सातवाहन शासकों का पश्चिमी भारत तथा दक्यान के कुछ भागों पर शासन था।

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प्रश्न 54.
सातवाहनों में अन्तर्विवाह पद्धति प्रचलित थी। इसका उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ सातवाहन रानियाँ एक ही गोत्र से थीं। यह उदाहरण सातवाहनों में अन्तर्विवाह पद्धति को दर्शाता है।

प्रश्न 55.
कुछ रानियों ने सातवाहन राजाओं से विवाह करने के बाद भी अपने पिता के गोत्र नाम को ही कायम रखा था। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे, जो उनके पिता के गोत्र थे।

प्रश्न 56.
सातवाहन काल में माताएँ क्यों महत्त्वपूर्ण थीं?
उत्तर:
सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम ( माता के नाम से उद्भूत) से चिह्नित किया जाता था।

प्रश्न 57.
ब्राह्मणीय सामाजिक व्यवस्था में पहला दर्जा तथा सबसे निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
इस सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों को पहला दर्जा तथा शूद्रों को सबसे निम्न दर्जा प्राप्त था।

प्रश्न 58.
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त’ के अनुसार चार वर्णों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर:
ब्राह्मण की उत्पत्ति परमात्मा के मुख से क्षत्रिय की भुजाओं से वैश्य की जंघा से शूद्र की पैरों से हुई।

प्रश्न 59.
‘स्त्री धन’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे ‘स्वी धन’ कहा जाता था।

प्रश्न 60.
मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के कौनसे तरीके हैं?
उत्तर:

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजित करके
  • निवेश
  • कार्य द्वारा तथा
  • सज्जनों द्वारा दी गई भेंट को स्वीकार करके।

प्रश्न 61.
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार के कौनसे आधार थे?
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार के दो आधार थे –

  • लिंग का आधार
  • वर्ण का आधार।

प्रश्न 62.
महाकाव्य काल में सबसे धनी व्यक्ति किन वर्णों के लोग होते थे?
उत्तर:
महाकाव्य काल में ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे धनी व्यक्ति होते थे।

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प्रश्न 63.
तमिलकम के सरदारों की दानशीलता का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
तमिलकम के सरदार अपनी प्रशंसा गाने वाले चारणों एवं कवियों के आश्रयदाता थे। वे उन्हें उदारतापूर्वक दान दिया करते थे।

प्रश्न 64.
महाभारत को व्यापक स्तर पर लोगों द्वारा क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
क्योंकि महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।

प्रश्न 65.
महाभारत की विषयवस्तु को किन दो मुख्य शीर्षकों में रखा जाता है?
उत्तर:

  • आख्यान – इसमें कहानियों का संग्रह है।
  • उपदेशात्मक – इसमें सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है।

प्रश्न 66.
‘भगवद्गीता’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘भगवद्गीता’ महाभारत का सबसे महत्त्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है। इसमें कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं।

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प्रश्न 67.
सातवाहन शासकों की शासनावधि क्या थी?
उत्तर:
सातवाहन शासकों ने लगभग दूसरी शताब्दी ई. पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसवी तक शासन किया।

प्रश्न 68.
मनुस्मृति का संकलन (रचना) कब किया गया?
उत्तर:
मनुस्मृति का संकलन (रचना) लगभग 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी के बीच हुआ।

प्रश्न 69.
पितृवंशिकता के आदर्श को किसने सुदृढ़ किया?
उत्तर:
महाभारत ने पितृवंशिकता के आदर्श को सुदृद किया।

प्रश्न 70.
अधिकांश राजवंश किस प्रणाली का अनुसरण करते थे?
उत्तर:
अधिकांश राजवंश पितृवशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे।

प्रश्न 71.
सातवाहन काल में माताएँ क्यों महत्वपूर्ण थीं?
उत्तर:
सातवाहन काल में राजाओं को उनके मातृनाम से जाना जाता था।

प्रश्न 72.
‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख किन ग्रन्थों में मिलता है?
उत्तर:
धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में चारों वर्णों के लिए ‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 73.
ब्राह्मणों द्वारा ‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का पालन करवाने के लिए अपनाई गई दो नीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति को एक दैवीय व्यवस्था बतलाया।
  • वे शासकों को इन नियमों का अनुसरण करने का उपदेश देते थे।

प्रश्न 74.
अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य को कौनसा प्रण याद दिलाया ?
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने अर्जुन को वचन दिया था कि वह उनके सभी शिष्यों में अद्वितीय तीरन्दाज बनेगा।

प्रश्न 75.
किस तथ्य से यह ज्ञात होता है कि शक्तिशाली मलेच्छ राजा भी संस्कृतीय परिपाटी से परिचित थे?
उत्तर:
प्रसिद्ध शक राजा रुद्रदामन ने सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।

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प्रश्न 76.
ब्राह्मणों द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था में पहला दर्जा एवं सबसे निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
पहला दर्जा ब्राह्मणों को तथा निम्न दर्जा शूद्रों को प्राप्त था।

प्रश्न 77.
किस अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है? यह अभिलेख कब का है ?
उत्तर:

  • मन्दसौर (मध्यप्रदेश) से प्राप्त अभिलेख में।
  • यह अभिलेख लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसवी का है।

प्रश्न 78.
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत किन नये समुदायों का जाति में वर्गीकरण कर दिया गया ?
उत्तर:
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत निषाद (शिकारी समुदाय) तथा सुवर्णकार जैसे व्यावसायिक वर्ग का जातियों में वर्गीकरण कर दिया गया।

प्रश्न 79.
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों के लिए धन अर्जित करने के कोई दो तरीके बताइए।
उत्तर:

  • स्नेह के प्रतीक के रूप में।
  • माता-पिता द्वारा दिए गए उपहार के रूप में।

प्रश्न 80.
महाकाव्य काल में सबसे धनी व्यक्ति किस वर्ग के लोग होते थे?
उत्तर:
ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग के लोग सबसे धनी होते थे।

प्रश्न 81.
महाभारत में दुर्योधन के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर:
धृतराष्ट्र तथा गान्धारी।

प्रश्न 82.
मज्झिमनिकाय किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
मज्झिमनिकाय पालि भाषा में लिखा गया बौद्ध ग्रन्थ है।

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प्रश्न 83.
बौद्ध भिक्षु फा शिएन चीन से भारत कब आया था?
उत्तर:
लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसवी

प्रश्न 84.
चीनी तीर्थयात्री श्वेन त्सांग भारत कब आया
उत्तर:
लगभग सातवीं शताब्दी ईसवी।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
600 ई. पूर्व से 600 ई. तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के समकालीन समाज पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
600 ई. पूर्व से 600 ई. तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के समकालीन समाज पर निम्नलिखित प्रभाव हुए-

  • वन क्षेत्रों में कृषि का विस्तार हुआ, जिससे वहाँ रहने वाले लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन हुआ।
  • शिल्प-विशेषज्ञों के एक विशिष्ट सामाजिक समूह का उदय हुआ।
  • सम्पत्ति के असंगत वितरण से सामाजिक विषमताओं में वृद्धि हुई।

प्रश्न 2.
आरम्भिक समाज में प्रचलित आचार- व्यवहार और रिवाजों का इतिहास लिखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
(1) प्रत्येक ग्रन्थ किसी समुदाय विशेष के दृष्टिकोण से लिखा जाता था अतः यह याद रखना आवश्यक. था कि ये ग्रन्थ किसने लिखे इन ग्रन्थों में क्या लिखा गया, किनके लिए इन ग्रन्थों की रचना हुई।
(2) यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इन ग्रन्थों की रचना में किस भाषा का प्रयोग हुआ तथा इनका प्रचार- प्रसार किस प्रकार हुआ। इन ग्रन्थों का सावधानीपूर्वक प्रयोग करने से आचार व्यवहार और रिवाजों का इतिहास लिखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
परिवार के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या सभी परिवार एक जैसे होते हैं?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों में ‘कुल’ शब्द का प्रयोग परिवार के लिए होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज इकट्ठे रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं परन्तु सभी परिवार एक जैसे नहीं होते। पारिवारिक जनों की गिनती, एक-दूसरे से उनका रिश्ता और उनके क्रियाकलापों में भी भिन्नता होती है। कई बार एक ही परिवार के लोग भोजन और अन्य संसाधनों का आपस में
करते हैं। एक साथ रहते और काम मिल बाँट कर प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
परिवार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होता है जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं। तकनीकी भाषा में हम सम्बन्धियों को जातिसमूह कह सकते हैं। पारिवारिक रिश्ते ‘नैसर्गिक’ और ‘रक्त सम्बद्ध’ माने जाते हैं। कुछ समाजों में भाई-बहिन (चचेरे मौसेरे से रक्त का रिश्ता माना जाता है परन्तु अन्य समाज ऐसा नहीं मानते।

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प्रश्न 5.
नये नगरों के उद्भव से आई सामाजिक जटिलता की चुनौती का किस प्रकार समाधान किया हैं?
उत्तर:
नये नगरों में रहने वाले लोग एक-दूसरे से विचार-विमर्श करने लगे और आरम्भिक विश्वासों तथा व्यवहारों पर प्रश्न चिह्न लगाने लगे। इस चुनौती के उत्तर में ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचारसंहिताएं तैयार कीं। ब्राह्मणों तथा अन्य लोगों को इनका अनुसरण करना पड़ता था। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में किया गया। इनमें मनुस्मृति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।

प्रश्न 6.
धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के ब्राह्मण लेखकों का मानना था कि उनका दृष्टिकोण सार्वभौमिक है और उनके बनाए नियमों का सब लोगों के द्वारा पालन होना चाहिए। क्या यह सम्भव था?
उत्तर:
यह सम्भव नहीं था क्योंकि उपमहाद्वीप में फैली क्षेत्रीय विभिन्नता तथा संचार की बाधाओं के कारण से ब्राह्मणों का प्रभाव सार्वभौमिक नहीं हो सकता था। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों ने विवाह की आठ प्रणालियों को स्वीकृति दी है। इनमें से पहले चार विवाह उत्तम तथा शेष विवाह निंदित माने गए। सम्भव है कि ये विवाह प्रणालियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं, जो ब्राह्मणीय नियमों को अस्वीकार करते थे।

प्रश्न 7.
पितृवंशिकता के आदर्श को स्पष्ट कीजिए। महाभारत ने इस आदर्श को कैसे सुदृढ़ किया?
उत्तर:
पितृवशकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है। महाभारत पिता के पुत्र, में बान्धवों के दो दलों – कौरवों तथा पांडवों के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए युद्ध का वर्णन है, जिसमें पांडव विजयी हुए। इसके बाद पितृवंशिक उत्तराधिकार की उद्घोषणा की गई। महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने पितृवंशिकता के आदर्श को और सुदृढ़ किया।

प्रश्न 8.
पितृवंशिकता प्रणाली में पाई जाने वाली विभिन्नता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे, परन्तु इस प्रथा में निम्नलिखित भिन्नताएँ थीं-

  • कभी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था।
  • कभी-कभी बन्धु बान्धव सिंहासन पर अपना अधिकार जमा लेते थे।
  • कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्विर्ण जैसे प्रभावती गुप्त सिंहासन पर अधिकार कर लेती थीं।

प्रश्न 9.
ब्राह्मणीय पद्धति में लोगों को गोत्रों में किस प्रकार वर्गीकृत किया गया? क्या इन नियमों का सामान्यतः अनुसरण होता था?
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से प्रचलन में आई एक ब्राह्मणीय पद्धति ने लोगों को विशेष रूप से ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे। गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –

  • विवाह के पश्चात् स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
  • एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।

प्रश्न 10.
क्या ब्राह्मणीय पद्धति के गोत्र सम्बन्धी नियमों का सम्पूर्ण भारत में पालन किया जाता था?
उत्तर:
इन नियमों का सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में पालन नहीं होता था कुछ सातवाहन राजाओं की एक से अधिक पलियाँ थीं। सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से लिए गए थे जो उनके पिता के गोत्र थे। इससे ज्ञात होता है कि विवाह के बाद भी अपने पति कुल के गोत्र को ग्रहण करने की अपेक्षा, उन्होंने पिता का गोत्र नाम ही बनाए रखा। यह ब्राह्मणीय व्यवस्था के विपरीत था। कुछ सातवाहन रानियाँ एक ही गोत्र से थीं यह बात बहिर्विवाह पद्धति के विरुद्ध थी।

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प्रश्न 11.
अन्तर्विवाह, बहिर्विवाह, बहुपत्नी प्रथा तथा बहुपति प्रथा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्विवाह अन्तर्विवाह में वैवाहिक सम्बन्ध समूह के बीच ही होते हैं यह समूह एक गोत्र कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है।
  • बहिर्विवाह अहिर्विवाह गोत्र से बाहर विवाह करने को कहते हैं।
  • बहुपत्नी प्रथा बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी है।
  • बहुपति प्रथा बहुपति प्रथा एक स्त्री के अनेक पति होने की पद्धति है।

प्रश्न 12.
विभिन्न वर्णों के लिए धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में वर्णित आदर्श जीविका लिखिए। क्या वह जीविका आज भी विद्यमान है?
अथवा
सूत्रों तथा धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए ‘आदर्श जीविका’ से जुड़े कई नियम मिलते हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  • ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना और करवाना, दान देना तथा दान लेना था।
  • क्षत्रियों का कार्य युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना, वेदों का अध्ययन करना, यज्ञ करवाना तथा दान-दक्षिणा देना था।
  • वैश्यों का कार्य कृषि, गोपालन तथा व्यापार का कार्य करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना तथा दान-दक्षिणा देना था।
  • शूद्रों का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। यह जीविका आज विद्यमान नहीं है।

प्रश्न 13.
ब्राह्मणों ने धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में वर्णित आदर्श जीविका सम्बन्धी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
ब्राह्मणों ने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाई –

  • ब्राह्मणों ने लोगों को बताया कि वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है।
  • वे शासकों को यह उपदेश देते थे कि वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में पालन करें।
  • उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि उनको प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है।

प्रश्न 14.
महाभारत में गान्धारी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को पाण्डवों के विरुद्ध युद्ध न करने की क्या सलाह दी थी? क्या दुर्योधन ने अपनी माता की सलाह मानी थी?
उत्तर:
गान्धारी ने दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह देते हुए कहा कि युद्ध में कुछ भी शुभ नहीं होता, न धर्म और अर्थ की प्राप्ति होती है और न ही प्रसन्नता की यह भी आवश्यक नहीं कि युद्ध के अन्त में तुम्हें सफलता मिले। अतः मैं तुम्हें सलाह देती हूँ कि तुम बुद्ध करने का विचार त्याग दो। परन्तु दुर्योधन ने अपनी माता गान्धारी की सलाह नहीं मानी।

प्रश्न 15.
ब्राह्मणों द्वारा वर्ण व्यवस्था को दैवीय व्यवस्था क्यों बताया गया ?
उत्तर:
ब्राह्मणों की मान्यता थी कि वर्ण-व्यवस्था में उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है। अतः समाज में अपनी सर्वोच्च स्थिति को बनाये रखने के लिए उन्होंने वर्ण व्यवस्था को एक दैवीय व्यवस्था बताया। इसे प्रमाणित करने के लिए वे ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र को उद्धृत करते हैं। पुरुषसूक्त के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से क्षत्रिय भुजाओं से वैश्य जंघाओं से तथा शूद्र चरणों से उत्पन्न हुए।

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प्रश्न 16.
क्या सभी राजवंशों की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से ही हुई थी?
उत्तर:
शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे परन्तु अनेक महत्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थ मौर्य सम्राटों को क्षत्रिय बताते हैं, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र उन्हें ‘निम्न’ कुल का मानते हैं मौचों के उत्तराधिकारी शुंग और कण्व ब्राह्मण थे सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमीपुत्र ‘शातकर्णी ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण और क्षत्रियों के दर्प को कुचलने वाला बताया है।

प्रश्न 17.
“जाति प्रथा के भीतर आत्मसात् होना एक जटिल सामाजिक प्रक्रिया थी।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सातवाहन वंश के शासक स्वयं को ब्राह्मण वर्ग का बताते थे, जबकि ब्राह्मणीय शास्त्र के अनुसार राजा को क्षत्रिय होना चाहिए। यद्यपि सातवाहन चतुर्वर्णी व्यवस्था की मर्यादा को बनाए रखना चाहते थे, परन्तु साथ ही वे उन लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित करते थे जो इस वर्ण व्यवस्था से ही बाहर थे। इस प्रकार वे अन्तर्विवाह प्रणाली का पालन करते थे, न कि बहिर्विवाह प्रणाली का जो ब्राह्मणीय ग्रन्थों में प्रस्तावित है।

प्रश्न 18.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
ब्राह्मणीय सिद्धान्त में वर्ण की भाँति जाति भी जन्म पर आधारित थी। परन्तु वर्ण जहाँ केवल चार थे, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी। वास्तव में जिन नये समुदायों का जैसे निषादों, स्वर्णकारों आदि को चार वर्णों वाली ब्राह्मणीय व्यवस्था में शामिल करना सम्भव नहीं था, उनका जाति में वर्गीकरण कर दिया गया। कुछ जातियाँ एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से सम्बन्धित थीं। उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था।

प्रश्न 19.
मन्दसौर के अभिलेख से जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की जानकारी मिलती है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मन्दसौर के अभिलेख से ज्ञात होता है कि रेशम के बुनकरों की एक अलग श्रेणी थी। इस अभिलेख से तत्कालीन जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं पर प्रकाश पड़ता है। इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि श्रेणी के सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और कई चीजों में भी सहभागी होते थे। सामूहिक रूप से उन्होंने अपने शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य मन्दिर के निर्माण में खर्च किया।

प्रश्न 20.
मनुस्मृति में उल्लिखित विवाह के आठ प्रकारों में से किन्हीं चार प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुस्मृति में उल्लिखित विवाह के चार प्रकार –

  • इसमें पिता द्वारा कन्या का दान वेदज्ञ वर को दिया जाता था।
  • इसके अन्तर्गत पिता वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता था।
  • इसके अन्तर्गत वर कन्या के बान्धवों को यथेष्ट धन प्रदान करता था।
  • इस पद्धति में लड़का तथा लड़की काम से उत्पन्न हुई अपनी इच्छा से प्रेम विवाह कर लेते थे।

प्रश्न 21.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में चार वर्णों के अतिरिक्त अन्य समुदायों की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रन्थों ने जिस ब्राह्मणीय व्यवस्था को स्थापित किया था उसका सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में पालन नहीं किया जाता था। उस महाद्वीप में पाई जाने वाली विविधताओं के कारण यहाँ सदा से ऐसे समुदाय रहे हैं जिन पर ब्राह्मणीय व्यवस्था का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। निषाद वर्ग इसी का उदाहरण हैं। ब्राह्मणीय व्यवस्था में यायावर पशुपालकों के समुदाय को भी सन्देह की दृष्टि से देखा जाता था क्योंकि उन्हें स्थायी कृषकों के समुदाय में आसानी से समाहित नहीं किया जा सकता था।

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प्रश्न 22.
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ किन आधारों पर माना जाता था?
उत्तर:
ब्राह्मण समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ मानते थे। उनके अनुसार अनुष्ठानों के सम्पादन से जुड़े कुछ कार्य पवित्र थे। अपने को पवित्र मानने वाले लोग ‘अस्पृश्यों’ से भोजन स्वीकार नहीं करते थे कुछ कार्य ऐसे भी थे जिन्हें ‘दूषित’ माना जाता था जैसे शवों की अन्त्येष्टि करने का कार्य शवों की अन्त्येष्टि तथा मृत पशुओं को छूने वाले रा लोगों को चाण्डाल कहा जाता था। उच्च वर्ण के लोग इन  चाण्डालों का स्पर्श अथवा देखना भी अपवित्रकारी मानते इन् थे।

प्रश्न 23.
चाण्डालों के कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मनुस्मृति में चाण्डालों के कर्तव्यों का उल्लेख मिलता है। चाण्डालों को गाँव से बाहर रहना पड़ता था। वे के फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे। मृतक लोगों के अस्व तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में वे गाँवों और नगरों में ना भ्रमण नहीं कर सकते थे। उन्हें कुछ मृतकों की अन्त्येष्टि क करनी पड़ती थी तथा वधिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था। फाहियान के अनुसार उन्हें सड़कों पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी, जिससे अन्य लोग उनके दर्शन न कर सकें।

प्रश्न 24.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘मनुस्मृति’ के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए, परन्तु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था स्विय इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्वीधन’ अर्थात् ‘स्वी का धन’ कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थीं और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था।

प्रश्न 25.
‘मनुस्मृति’ के अनुसार पुरुषों और स्त्रियों के धन अर्जित करने के तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:’
‘मनुस्मृति’ के अनुसार पुरुष सात तरीकों से धन अर्जित कर सकते हैं –

  1. विरासत
  2. खोज
  3. खरीद
  4. विजय प्राप्त करके
  5. निवेश
  6. कार्य द्वारा तथा
  7. सज्जनों द्वारा दी

गई भेंट को स्वीकार करके स्त्रियाँ 6 तरीकों से धन अर्जित कर सकती हैं –

  1. वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट
  2. वधू गमन के साथ मिली भेंट
  3. स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट
  4. भ्राता, माता तथा पिता द्वारा दिए गए उपहार
  5. परवर्ती काल में मिली भेंट
  6. पति से प्राप्त भेंट।

प्रश्न 26.
“ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार का एक आधार वर्ण भी था।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार का एक आधार वर्ण भी था शूद्रों के लिए एकमात्र ‘जीविका’ तीनों उच्चवर्णों की सेवा थी परन्तु इसमें उनकी इच्छा शामिल नहीं थी। दूसरी ओर तीनों उच्चवणों के पुरुषों के लिए विभिन्न जीविकाओं की सम्भावनाएँ रहती थीं। यदि इन नियमों को वास्तव में कार्यान्वित किया जाता, तो ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे अधिक धनी व्यक्ति होते यह बात कुछ अंशों तक सामाजिक व्यवस्था से मेल खाती थी।

प्रश्न 27.
बौद्धों द्वारा ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण- व्यवस्था की आलोचनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुछ परम्पराओं में इस वर्ण व्यवस्था की आलोचना की जा रही थी। लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में बौद्ध ग्रन्थों में ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था की आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई। यद्यपि बौद्धों ने इस बात को स्वीकार किया कि समाज में विषमता विद्यमान थी, परन्तु यह भेद प्राकृतिक और स्थायी नहीं थे। उन्होंने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को मानने से इनकार कर दिया। इस प्रकार बौद्ध लोग जन्म पर आधारित वर्णीय व्यवस्था को स्वीकृति प्रदान नहीं करते।

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प्रश्न 28.
“प्राचीन तमिलकम में दानशील व्यक्ति का सम्मान किया जाता था। कृपण व्यक्ति घृणा का पात्र होता था।’ विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन तमिलकम में दानशील व्यक्ति का समाज में सम्मान किया जाता था तथा कृपण व्यक्ति घृणा का पात्र होता था। इस क्षेत्र में 2000 वर्ष पहले अनेक सरदारियाँ थीं ये सरदार अपनी प्रशंसा में गाने वाले चारणों और कवियों के आश्रयदाता होते थे। तमिल भाषा के संगम साहित्य से पता चलता है कि यद्यपि धनी और निर्धन के बीच विषमताएँ थीं, फिर भी धनी लोगों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपनी धन-सम्पत्ति का मिल बांट कर उपयोग करेंगे।

प्रश्न 29.
समाज में फैली हुई सामाजिक विषमताओं के संदर्भ में बौद्धों द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘सुत्तपिटक’ नामक बौद्ध ग्रन्थ में एक मिथक का वर्णन है जो यह बताता है कि प्रारम्भ में सभी जीव शान्तिपूर्वक रहते थे और प्रकृति से उतना ही ग्रहण करते थे, जितनी एक समय के भोजन की आवश्यकता होती थी। परन्तु कालान्तर में लोग अधिकाधिक लालची और प्रतिहिंसक हो गए। इस स्थिति में उन्होंने समाज का नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति को सौंपने का निर्णय लिया जो जिसकी प्रताड़ना की जानी चाहिए उसे प्रताड़ित कर सके और जिसे निष्कासित किया जाना चाहिए, उसे निष्कासित कर सके।

प्रश्न 30.
साहित्यकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय किन पहलुओं पर विचार करते हैं?
अथवा
साहित्यिक स्रोतों का प्रयोग करते समय इतिहासकार को किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. ग्रन्थों की भाषा क्या है? क्या यह आम लोगों की भाषा थी जैसे पालि, प्राकृत, तमिल अथवा पुरोहितों और किसी विशिष्ट वर्ग की भाषा थी जैसे संस्कृत।
  2. क्या ये ग्रन्थ ‘मन्त्र’ थे जो अनुष्ठानकर्त्ताओं द्वारा पढ़े जाते थे अथवा ‘कथाग्रन्थ’ थे जिन्हें लोग पढ़ और सुन सकते थे?’
  3. ग्रन्थों के लेखकों के बारे में जानकारी प्राप्त करना जिनके दृष्टिकोण और विचारों के आधार पर ग्रन्थ लिखे गए थे।
  4. श्रोताओं की अभिरुचि का ध्यान रखना।

प्रश्न 31.
महाभारत की भाषा का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत की भाषा- यद्यपि महाभारत की रचना अनेक भाषाओं में की गई है, परन्तु इसकी मूल भाषा संस्कृत है। परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है अतः यह सम्भव है कि महाभारत को व्यापक स्तर पर समझा जाता था।

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प्रश्न 32.
महाभारत की विषय-वस्तु का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
इतिहासकार महाभारत की विषय वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक।

‘आख्यान’ में कहानियों का संग्रह है जबकि उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदण्डों का वर्णन है। परन्तु उपदेशात्मक अंशों में भी कहानियाँ होती हैं और प्रायः आख्यानों में समाज के लिए उपदेश निहित रहता है। वास्तव में महाभारत एक भाग में नाटकीय कथानक था जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े
गए।

प्रश्न 33.
भगवद्गीता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भगवद्गीता महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है, जहाँ कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। इस ग्रन्थ में 18 अध्याय हैं। भगवद्गीता में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का समन्वय स्थापित किया गया है। अन्त में श्रीकृष्ण का उपदेश सुनकर अर्जुन अपने बान्धवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। इस युद्ध में पाण्डवों की विजय हुई।

प्रश्न 34.
“महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ है।” ‘व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शताब्दियों से इस महाकाव्य के अनेक पाठान्तर अनेक भाषाओं में लिखे गए अनेक कहानियाँ जिनका उद्भव एक क्षेत्र विशेष में हुआ और जिनका विशेष लोगों में प्रसार हुआ, वे सब इस महाकाव्य में सम्मिलित कर ली गई। इस महाकाव्य के मुख्य कथानक की अनेक पुनर्व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई। महाभारत के विभिन्न प्रसंगों को मूर्तियों तथा चित्रों में भी दर्शाया गया। इस महाकाव्य ने नाटकों एवं नृत्य कलाओं के लिए भी विषय-वस्तु प्रदान की।

प्रश्न 35.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?
उत्तर:
पूर्व वैदिक समाज के विशिष्ट परिवारों के विषय में इतिहासकारों को सुगमता के साथ सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। इतिहासकार परिवार तथा बन्धुता सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण करते हैं, यहाँ उनका अध्ययन इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इससे वैदिककालीन लोगों की विचारधारा का ज्ञान प्राप्त होता है। यहाँ महाभारत की कथा महत्त्वपूर्ण है। जिसमें बान्धवों के दो दलों, कौरव तथा पाण्डवों के मध्य भूमि तथा सत्ता को लेकर संघर्ष होता है।

दोनों एक ही कुरु वंश से सम्बन्धित थे। इनमें भीषण बुद्ध के उपरान्त पाण्डव विजयी होते हैं। इसके उपरान्त पितृवंशिक उत्तराधिकारी को उद्घोषित किया गया। लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में अधिकांश राजवंश पितृवंशीय व्यवस्था का अनुगमन करते थे। यद्यपि इस प्रणाली में कभी-कभी भिन्नता भी देखने को मिलती है। पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता है। कभी बन्धु बान्धव सिंहासन पर अपना बलात् अधिकार जमा लेते थे।

प्रश्न 36.
ब्राह्मणों द्वारा लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत करने की पद्धति कैसे प्रारम्भ हुई, इसे किस प्रकार लागू किया गया, क्या सातवाहन राजा इसके अपवाद हैं?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत करने की पद्धति लगभग 1000 ई. पू. के पश्चात् प्रारम्भ हुई। ब्राह्मणों ने लोगों का वर्गीकरण वैदिक ऋषियों के नाम पर आधारित गोत्रों के आधार पर करना प्रारम्भ कर दिया। एक ही गोत्र से सम्बन्धित सभी लोगों को उस ऋषि का वंशज समझा जाता था। गोत्र के सम्बन्ध में दो मुख्य नियम प्रचलित थे –

  • स्वियों को विवाह के पश्चात् अपने पिता का गोत्र त्यागकर अपने पति का गोत्र अपनाना पड़ता था।
  • सगोत्रीय, अर्थात् एक ही गोत्र में विवाह वर्जित था, एक गोत्र के सभी सदस्य रक्त सम्बन्धी समझे जाते थे।

सातवाहन राजाओं की रानियाँ अपने नाम के आगे अपने पिता का गोत्र लिखती थी जैसे कि गौतम और वशिष्ठ कई बार रक्त सम्बन्धियों में भी विवाह हो जाते थे। दक्षिण भारत में कहीं कहीं यह प्रथा आज भी पाई जाती है।

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प्रश्न 37.
चारों वर्णों से परे वर्णहीन ब्राह्मणीय व्यवस्था से अलग समुदायों की स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप की विशालता तथा विविधता और सामाजिक जटिलताओं के कारण कुछ ऐसे समुदाय भी अस्तित्व में थे, जिनका ब्राह्मणों द्वारा निश्चित किये गये वर्णों में कोई स्थान नहीं था। ऐसे समुदाय के लोगों को वर्णहीन कहा जाता था। इन वर्णहीन समुदायों पर ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित सामाजिक नियमों का कोई प्रभाव नहीं था। संस्कृत साहित्य में जब ऐसे समुदायों का उल्लेख होता था तो इन्हें असभ्य, बेढंगे और पशु समान कहा जाता था। जंगलों में रहने वाली एक जाति निषाद की गणना इसी वर्ग में होती थी।

शिकार करना, कन्दमूल, फल – फूल एकत्र करना आदि वनों पर आधारित उत्पाद इनके जीवन निर्वाह के साधन थे। वह समाज से पूर्ण रूप से बहिष्कृत नहीं थे। समाज के अन्य वर्गों के साथ उनका संवाद होता था। उनके बीच- विचारों और मतों का आदान-प्रदान होता था महाभारत की कई कथाओं में इसका उल्लेख है।

प्रश्न 38.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीनकाल में स्त्री और पुरुषों के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व विशेषकर पैतृक सम्पत्ति के सन्दर्भ में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। मनुस्मृति के अनुसार पैतृक सम्पत्ति का माता- पिता की मृत्यु के पश्चात् सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए, लेकिन ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी होता है। स्त्रियाँ पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकतीं। किन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्रीधन की संज्ञा दी जाती थी।

इस सम्पत्ति को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है। अधिकतर साक्ष्य भी इंगित करते हैं कि उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पहुंच रखती थीं फिर भी भूमि और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि स्वी और पुरुष के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई।

प्रश्न 39.
12वीं से 17वीं शताब्दी ई.पू. के मिलने वाले घरों के बारे में डॉ. बी.बी. लाल के किन्हीं एक अवलोकन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1951-52 में पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल ने मेरठ जिले (उ.प्र.) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। सम्भवतः यह महाभारत में उल्लेखित पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर थी। बी. बी. लाल को यहाँ आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले थे जिनमें से दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है। दूसरे स्तर (लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई.पू.) पर मिलने वाले घरों के बारे में लाल कहते हैं: “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवास गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती किन्तु मिट्टी की बनी दीवारें और कच्ची मिट्टी की ईटें अवश्य मिलती हैं। सरकण्डे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर इशारा करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकण्डों की बनी थीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।”

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प्रश्न 40.
बी. बी. लाल को उत्खनन से महाभारत काल के किस पुरास्थल के साक्ष्य मिले हैं? ये साक्ष्य कितने स्तरों तक प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:

  1. पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल ने 1951-52 में उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया।
  2. गंगा नदी के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में इस पुरास्थल का होना जहाँ कुरू राज्य था, इस ओर इंगित करता है। यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर हो सकती थी जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।
  3. बी. बी. लाल को यहाँ की आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले हैं जिनमें दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  4. दूसरे स्तर पर मिलने वाले घरों के बारे में लाल कहते हैं कि जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवासीय गृह की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती है।
  5. तीसरे स्तर पर लगभग छठी से तीसरी शताब्दी ई.पू. के साक्ष्य मिले हैं। लाल के अनुसार तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटों के बने हुए थे।

प्रश्न 41.
मंदसौर के अभिलेख से पाँचवीं शताब्दी ई. के रेशम के बुनकरों की स्थिति के विषय में क्या पता चलता है?
उत्तर:
(1) लगभग पाँचवीं शताब्दी ई. का अभिलेख मध्य प्रदेश के मंदसौर क्षेत्र से प्राप्त हुआ है। इसमें रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है जो मूलत: लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे।

(2) बाद में वे मंदसौर चले गये थे, जिसे उस समय दशपुर के नाम से जाना जाता था। यह कठिन यात्रा उन्होंने अपने बच्चों और बाँधयों के साथ सम्पन्न की।

(3) इन बुनकरों ने वहाँ के राजा की महानता के बारे में सुना था अतः वे उसके राज्य में बसना चाहते थे।

(4) यह अभिलेख जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की झलक देता है ये श्रेणियों के स्वरूप के विषय में अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। हालांकि श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी। कुछ सदस्य अन्य जीविका भी अपना लेते थे।

(5) इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और चीजों में भी सहभागी थे। सामूहिक रूप से उन्होंने शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य देवता के सम्मान में मन्दिर बनवाने पर खर्च किया।

प्रश्न 42.
मनुस्मृति के अनुसार चाण्डालों की क्या विशेषताएँ और कार्य थे? कुछ चीनी यात्रियों ने उनके बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार चाण्डालों को गाँव के बाहर रहना पड़ता था। वे फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में गाँव और नगरों में चल-फिर नहीं सकते थे। सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की उन्हें अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी तथा अधिक के रूप में भी कार्य करना होता था। चीन से आए बौद्ध भिक्षु फा शिएन का कहना है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ एक और चीनी तीर्थयात्री हवन-त्सांग के अनुसार अधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।

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प्रश्न 43.
1919 में संस्कृत विद्वान् वी.एस. शुकथांकर के नेतृत्व में किस महत्त्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान् वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का जिम्मा उठाया। आरम्भ में देश के विभिन्न भागों से विभिन्न लिपियों में लिखी गई महाभारत की संस्कृत पाण्डुलिपियों को एकत्रित किया गया। परियोजना पर काम करने वाले विद्वानों ने सभी पाण्डुलिपियों में पाए जाने वाले श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढूँढ़ा। अंततः उन्होंने उन श्लोकों का चयन किया जो लगभग सभी पाण्डुलिपियों में पाए गए थे और उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में फैले अनेक ग्रन्थ खण्डों में किया। इस परियोजना को पूरा करने में सैंतालीस वर्ष लगे।

प्रश्न 44.
महाभारत ग्रन्थ के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रक्रिया में कौनसी दो विशेष बातें उभर कर आई ?
उत्तर:
महाभारत ग्रन्थ के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रक्रिया में निम्न दो बातें उभर कर आई –
(1) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता थी। यह इस बात से ही स्पष्ट होता है कि समूचे उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पाण्डुलिपियों में यह समानता देखने में आई।

(2) कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभर कर सामने आए। इन प्रभेदों का संकलन मुख्य पाठ की पादटिप्पणियों और परिशिष्टों के रूप में किया गया। 13,000 पृष्ठों में से आधे से भी अधिक इन प्रभेदों का ब्यौरा देते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण को तैयार करने की परियोजना का वर्णन कीजिए।
अथवा
बीसवीं शताब्दी में किये गए महाभारत के संकलन के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण –
(1) बी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में एक परियोजना का आरम्भ – 1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना का आरम्भ हुआ। अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्कार तैयार करने का निश्चय किया।

(2) श्लोकों का चयन – परियोजना पर काम करने वाले विद्वानों ने उन श्लोकों का चयन किया जो लगभग सभी पांडुलिपियों में पाए गए थे। उन्होंने उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में फैले अनेक ग्रन्थ-खंडों में किया। इस परियोजना को पूरा करने में सैंतालीस वर्ष लगे।

(3) दो तथ्यों का उभर कर आना –
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में दो तथ्य विशेष रूप से उभर कर सामने आए –

(i) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता – पहला, संस्कृत के कई पाठों में अनेक अंशों में समानता थी। यह इस बात से ही स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पांडुलिपियों में यह समानता दिखाई दी।

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(ii) क्षेत्रीय प्रभेदों का उभरकर सामने आना- दूसरा तथ्य यह था कि कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभरकर सामने आएं इन प्रभेदों का संकलन मुख्य पाठ की पाद टिप्पणियों और परिशिष्टों के रूप में किया गया।

(4) प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी इन सभी प्रक्रियाओं के बारे में हमारी जानकारी मुख्यतः उन ग्रन्थों पर आधारित है जो संस्कृत में ब्राह्मणों द्वारा उन्हीं के लिए लिखे गए। उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी में इतिहासकारों ने पहली बार सामाजिक इतिहास के मुद्दों का अध्ययन करते हुए इन ग्रन्थों को ऊपरी तौर पर समझा।

उनका विश्वास था कि इन ग्रन्थों में जो कुछ भी लिखा गया है, वास्तव में उसी प्रकार से उसे व्यवहार में लाया जाता होगा। कालान्तर में विद्वानों ने पालि, प्राकृत और तमिल ग्रन्थों के माध्यम से अन्य परम्पराओं का अध्ययन किया। इन अध्ययनों से वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदर्शमूलक संस्कृत ग्रन्थ सामान्यतः आधिकारिक माने जाते थे। परन्तु इन आदर्शों पर प्रश्न भी उठाए जाते थे और कभी-कभी इनकी अवहेलना भी की जाती थी।

प्रश्न 2.
मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचवीं तथा छठी विवाह पद्धति के उद्धरण को प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
विवाह पद्धतियों के उद्धरण प्राचीन भारत में विवाह की आठ प्रकार की पद्धतियाँ प्रचलित थीं। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों ने विवाह की आठ प्रकार की पद्धतियों को मान्यता प्रदान की है। मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचव तथा छठी विवाह पद्धति के उद्धरण प्रस्तुत हैं –
(1) विवाह की पहली पद्धति इस विवाह पद्धति के अन्तर्गत कन्या का दान बहुमूल्य वस्त्रों तथा अलंकारों से विभूषित कर उसे वेदश वर को दान दिया जाए जिसे पिता ने स्वयं आमन्त्रित किया हो।

(2) विवाह की चौथी पद्धति इस विवाह पद्धति के अन्तर्गत वर की विधिपूर्वक पूजा करके कन्या का दान किया जाता था पिता वर-वधू युगल को यह कह कर सम्बोधित करता है कि “तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो। गृहस्थ जीवन में दोनों मिलकर जीवनपर्यन्त धर्माचरण करो।” इसके बाद वह वर का सम्मान कर उसे
कन्या का दान करता था।

(3) विवाह की पाँचवीं पद्धति वर को वधू की प्राप्ति तब होती है, जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बांधों को और स्वयं वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है। मनु के अनुसार इस विवाह में बान्धवों (कन्या के पिता, चाचा आदि) को कन्या के लिए यथेष्ट धन देकर स्वेच्छा से कन्या स्वीकार की जाती है।

(4) विवाह की छठी पद्धति इस पद्धति में लड़का तथा लड़की काम से उत्पन्न हुई इच्छा से प्रेम विवाह कर लेते थे। इसे गान्धर्व विवाह भी कहा जाता है। मनु ने कन्या और वर के इच्छानुसार कामुकतावश संयुक्त होने को ‘गान्धर्व विवाह’ की संज्ञा दी है। यह प्रथा प्रेम विवाह या प्रणय विवाह का सूचक है जो हिन्दू समाज में अत्यन्त प्राचीन काल से विद्यमान है।

प्रश्न 3.
क्या प्राचीन काल के भारत में केवल क्षत्रीय शासक ही शासन कर सकते थे? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
प्राचीन भारत में क्षत्रियों एवं अक्षत्रियों द्वारा शासन करना धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय वर्ग के लोग ही शासन कर सकते थे। वैदिककाल के प्रायः सभी शासक क्षत्रिय वर्ग से सम्बन्धित थे परन्तु सभी शासक क्षत्रिय नहीं होते थे। प्राचीन काल में अनेक अक्षत्रिय राजाओं ने भी शासन किया।
(1) मौर्य वंश मौर्यों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद है। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थों में मौर्यों को क्षत्रिय बताया गया है, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र मौर्यो को ‘निम्न’ कुल का मानते हैं।

(2) शुंग और कण्व वंश मौर्य वंश के बाद शुंग तथा कण्व वंश के राजाओं ने शासन किया। शुंग वंश तथा कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे। वास्तव में योग्य, शक्तिशाली तथा साधन-सम्पन्न व्यक्ति राजनीतिक सत्ता का उपयोग कर सकता था। राजत्व क्षत्रिय कुल में जन्म लेने पर शायद ही निर्भर करता था। दूसरे शब्दों में यह आवश्यक नहीं था कि केवल क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही गद्दी पर बैठ सकता था।

(3) शक वंश ब्राह्मण मध्य एशिया से आने वाले शकों को म्लेच्छ, बर्बर अथवा विदेशी मानते थे परन्तु कुछ शक राजा भी भारतीय रीति-रिवाज और परिपाटियों का अनुसरण करते थे। संस्कृत में लिखे हुए ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि लगभग दूसरी शताब्दी ईसवी में शक- शासक रुद्रदामन ने सुदर्शन झील की मरम्मत करवाई थी जिससे लोगों को बड़ी राहत मिली थी। इससे पता चलता है कि शक्तिशाली म्लेच्छ भी भारतीय राजाओं की भाँति प्रजावत्सल थे और संस्कृतीय परिपाटी से परिचित थे।

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(4) सातवाहन वंश अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार सातवाहन वंश के शासक ब्राह्मण थे। सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी ने स्वयं को ‘अनूठा ब्राह्मण’ एवं ‘क्षत्रियों के दर्प को चकनाचूर करने वाला’ बताया था। उनकी वर्ण व्यवस्था में पूर्ण आस्था थी। इसलिए उन्होंने चार वर्णों की व्यवस्था की मर्यादा को बनाये रखने का प्रयास किया।

प्रश्न 4.
ब्राह्मण किन लोगों को वर्णव्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर सामाजिक विषमता को और तीव्र कर दिया?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा अस्पृश्य लोगों को वर्ण- व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानना
(1) समाज के कुछ वर्गों को अस्पृश्य घोषित करना – ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे। उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर दिया और इस प्रकार सामाजिक विषमता को और अधिक तीव्र कर दिया।

(2) ‘अस्पृश्य’ घोषित करने के आधार ब्राह्मणों की यह मान्यता थी कि कुछ कर्म, विशेष रूप से अनुष्ठानों के सम्पादन से जुड़े हुए कर्म, पुनीत और पवित्र थे अतः अपने को पवित्र मानने वाले लोग अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे। इसके विपरीत कुछ कार्य ऐसे थे, जिन्हें विशेष रूप से ‘दूषित’ माना जाता था। शव की अन्त्येष्टि करने वालों और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा जाता था उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था। वे लोग, जो स्वयं को सामाजिक क्रम में सबसे ऊपर मानते थे, इन चाण्डालों का स्पर्श, यहाँ तक कि उन्हें देखना भी अपवित्रकारी मानते थे।

(3) चाण्डालों के कर्तव्य ‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डालों के निम्नलिखित कार्य थे –

  • चाण्डालों को गाँवों से बाहर रहना होता था।
  • वे फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे तथा मृतक लोगों के वस्त्र और लोहे के आभूषण पहनते थे।
  • रात्रि में वे गाँव और नगरों में घूम नहीं सकते थे।
  • उन्हें सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी।
  • उन्हें जल्लाद के रूप में भी कार्य करना पड़ता

(4) चीनी यात्रियों द्वारा चाण्डालों का वर्णन करना पाँचवीं शताब्दी ई. में फा-शिएन ने लिखा है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते समय करताल बजाकर अपने चाण्डाल होने की सूचना देने पड़ती थी जिससे अन्य लोग उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ इसी प्रकार लगभग सातवीं शताब्दी ई. में आने वाले चीनी यात्री श्वैन-त्सांग ने लिखा है कि जल्लाद और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था। इस प्रकार समाज में अस्पृश्यों की स्थिति शोचनीय थी। उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे।

प्रश्न 5.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर का हारना- कौरवों और पाण्डवों के बीच लम्बे समय से चली आ रही प्रतिस्पर्द्धा के फलस्वरूप दुर्योधन ने युधिष्ठिर को द्यूत क्रीड़ा के लिए आमन्त्रित किया। युधिष्ठिर अपने प्रतिद्वन्द्वी द्वारा धोखा दिए जाने के कारण इस द्यूत क्रीड़ा में सोना, हाथी, रथ, दास, सेना, कोष, राज्य तथा अपनी प्रजा की सम्पत्ति, अनुजों और फिर स्वयं को भी दाँव पर लगा कर गंवा बैठा। इसके बाद उन्होंने पांडवों की सहपत्नी द्रौपदी को भी दाँव पर लगाया और उसे भी हार गए। इससे यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल मैं पुरुष लोग अपनी पत्नियों को निजी सम्पति मानते थे।

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(2) प्राचीन काल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार- मनुस्मृति के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। परन्तु इसमें ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था। स्त्रियाँ इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की मांग नहीं कर सकती थीं।

(3) स्त्रीधन यद्यपि पैतृक संसाधन में स्त्रियाँ हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं, परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्त्रीधन’ अर्थात् ‘स्वी का धन’ कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थीं और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति’ स्त्रियों को पति की अनुमति के बिना पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को गुप्त रूप से एकत्रित करने से रोकती है।

(4) सामान्यतः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का नियन्त्रण होना- चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक कुल में हुआ था। वह एक धनाढ्य महिला थी। उसने दंगुन गाँव को एक ब्राह्मण आचार्य चनालस्वामी को दान किया था परन्तु अधिकांश साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यद्यपि उच्चवर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पैठ रखती थीं, फिर भी प्रायः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में, स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण से अधिक प्रबल हुई।

प्रश्न 6.
बी. बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर में किए गए उत्खनन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बी.बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर में उत्खनन कार्य महाभारत में अन्य प्रमुख महाकाव्यों की भाँति युद्धों, वनों राजमहलों और बस्तियों का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण है। 1951-52 ई. में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल ने मेरठ जिले (उत्तरप्रदेश) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि यह गाँव महाभारत में वर्णित हस्तिनापुर ही था। फिर भी नामों की समानता केवल एक संयोग हो सकता है, परन्तु गंगा के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में इस पुरास्थल का होना जहाँ कुरु राज्य भी था, इस ओर संकेत करता है कि शायद यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर ही था, जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।

(1) आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य-बी. बी. लाल को उत्खनन के दौरान यहाँ आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले थे जिनमें से दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(2) दूसरे स्तर के साक्ष्य दूसरे स्तर (लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई. पूर्व) पर मिलने वाले घरों के सम्बन्ध में बी.बी. लाल लिखते हैं कि “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ, वहाँ से आवास गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती परन्तु मिट्टी की बनी दीवार और कच्ची मिट्टी की ईंटें अवश्य मिलती हैं। सरकंडे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर संकेत करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकंडों की बनी धीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।”

(3) तीसरे स्तर के साक्ष्य तीसरे स्तर (लगभग छठी से तीसरी शताब्दी ई. पूर्व) के घरों के बारे में बी.बी. लाल लिखते हैं कि “तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटों के बने हुए थे। इनमें शोषकघट और ईंटों के नाले गंदे पानी के निकास के लिए प्रयुक्त किए जाते थे। वलय कूपों का प्रयोग, कुओं और मल की निकासी वाले गत दोनों ही रूपों में किया जाता था।

” महाभारत के आदिपर्वन में हस्तिनापुर के चित्रण से लाल द्वारा खोजे गए हस्तिनापुर के चित्रण से भिन्नता- महाभारत के आदिपर्वन में हस्तिनापुर का जो चित्रण किया गया है वह बी. बी. लाल के द्वारा खोजे गए हस्तिनापुर के चित्रण से बिल्कुल भिन्न है ऐसा प्रतीत होता है कि हस्तिनापुर नगर का यह चित्रण महाभारत के मुख्य कथानक में बाद में सम्भवतः ई. पूर्व छठी शताब्दी के बाद जोड़ा गया प्रतीत होता है, जब इस क्षेत्र में नगरों का विकास हुआ यह भी सम्भव है कि यह मात्र कवियों की कल्पना की उड़ान थी जिसकी पुष्टि किसी भी अन्य साक्ष्य से नहीं होती।

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प्रश्न 7.
“महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पांडवों के विवाह की है।” स्पष्ट कीजिए तथा द्रौपदी के विवाह के बारे में विभिन्न इतिहासकारों के मतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
द्रौपदी से पांडवों के विवाह की उपकथा का चुनौतीपूर्ण होना महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पांडवों के विवाह की है। यह बहुपति विवाह का उदाहरण है जो महाभारत की कथा का अभिन्न अंग है। द्रौपदी से पांडवों के विवाह के बारे में विभिन्न इतिहासकारों ने निम्नलिखित मत प्रकट किए हैं –

(1) बहुपति विवाह की प्रथा का शासकों के विशिष्ट वर्ग में विद्यमान होना वर्तमान इतिहासकारों ने यह मत प्रकट किया है कि महाभारत के लेखक (लेखकों) द्वारा बहुपति विवाह सम्बन्ध का वर्णन इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि सम्भवतः यह प्रथा शासकों के विशिष्ट वर्ग में किसी काल में विद्यमान थी किन्तु साथ ही इस प्रकरण के विभिन्न स्पष्टीकरण इस बात को भी व्यक्त करते हैं कि समय के साथ बहुपति प्रथा उन ब्राह्मणों में अमान्य हो गई, जिन्होंने कई शताब्दियों के दौरान इस ग्रन्थ का पुनर्निर्माण किया।

(2) बहुपति प्रथा का हिमालय क्षेत्र में प्रचलित होना- कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यद्यपि ब्राह्मणों की दृष्टि में बहुपति प्रथा अमान्य और अवांछित थी, फिर भी यह प्रथा हिमालय क्षेत्र में प्रचलित थी और आज भी प्रचलित है। यह भी तर्क दिया जाता है कि युद्ध के समय स्त्रियों की कमी के कारण बहुपति प्रथा को अपनाया गया था। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि बहुपति प्रथा को संकट की स्थिति में अपनाया गया था।

(3) सृजनात्मक साहित्य की अपनी कथा सम्बन्धी आवश्यकताएँ होना आरम्भिक स्रोतों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि बहुपति प्रथा न तो एकमात्र विवाह पद्धति थी और न ही यह सबसे अधिक प्रचलित थी। फिर भी महाभारत के लेखक (लेखकों) ने इस प्रथा को ग्रन्थ के प्रमुख पात्रों के साथ अभिन्न रूप से जोड़ कर क्यों देखा ? इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि सृजनात्मक साहित्य की अपनी कथा सम्बन्धी आवश्यकताएँ होती हैं जो सदैव समाज में विद्यमान वास्तविकताओं को उजागर नहीं करतीं।

प्रश्न 8.
महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी द्वारा खोजे गए विकल्पों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए महाश्वेता देवी द्वारा खोजे गए विकल्प प्रसिद्ध बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए अन्य विकल्पों की खोज की है और उन प्रश्नों की ओर ध्यान खींचा है जिन पर संस्कृत पाठ चुप है।

(1) दुर्योधन द्वारा पांडवों को छल से ‘लाक्षागृह’ मैं जलाकर मार देना- संस्कृत पाठ में दुर्योधन द्वारा पांडवों को छल से लाक्षागृह में जलाकर मार देने का उल्लेख आता है किन्तु पहले से मिली चेतावनी के कारण पांडव उस गृह में सुरंग खोदकर भाग निकलते हैं उस समय कुंती एक भोज का आयोजन करती है जिसमें ब्राह्मण आमन्त्रित होते हैं। किन्तु एक निषादी भी अपने पाँच पुत्रों के साथ उसमें आती है। भोजन करके वे गहरी नींद में सो जाते हैं और पांडवों द्वारा लगाई गई आग में वे उसी लाक्षागृह में जल कर मर जाते हैं। जब उस निषादी और उसके पुत्रों के जले हुए शव मिलते हैं तो कि पांडवों की मृत्यु हो गई है।

(2) महाश्वेता देवी की लघु कथा ‘कुंती ओ निषादी’ महाश्वेता देवी ने अपनी लघुकथा, जिसका शीर्षक ‘कुंती ओ निषादी’ है, के कथानक का प्रारम्भ वहीं से किया है, जहाँ महाभारत के इस प्रसंग का अंत होता है। उन्होंने अपनी कहानी की रचना एक वन्य प्रदेश में की है जहाँ महाभारत के युद्ध के बाद कुंती रहने लगती है। कुंती अपने अतीत के बारे में विचार करती है। वह पृथ्वी से बातें करते हुए अपनी त्रुटियों को स्वीकार करती है। प्रतिदिन वह निषादों को देखती है, जो जंगल में लकड़ी, शहद, कंदमूल आदि इकट्ठा करने आते हैं। एक निषादी प्रायः कुंती को पृथ्वी से बातें करते हुए सुनती है।

(3) निषादी द्वारा कुंती से लाक्षागृह की घटना के बारे में प्रश्न करना एक दिन आग लगने के कारण जानवर जंगल छोड़कर भाग रहे थे। कुंती ने देखा कि नियादी उन्हें घूर घूर कर देख रही थी जब निषादी ने कुंती से पूछा कि क्या उन्हें लाक्षागृह की याद है तो कुंती झेंप गई। उन्हें याद था कि उन्होंने वृद्धा निषादी तथा उसके पाँच पुत्रों को इतनी शराब पिलाई थी कि वे सब बेसुध हो गए थे जबकि वह स्वयं अपने पुत्रों के साथ बचकर लाक्षागृह से निकल गई थी।

जब कुंती ने उससे पूछा कि क्या तुम वही निषादी हो? तो उसने उत्तर दिया कि मरी हुई निषादी उसकी सास थी। साथ ही उसने यह भी कहा कि अपने अतीत पर विचार करते समय तुम्हें एक बार भी उन छ निर्दोष लोगों की याद नहीं आई जिन्हें मौत के मुंह में जाना पड़ा था, क्योंकि तुम तो अपने और अपने पुत्रों के प्राण बचाना लोग यह अनुमान लगा लेते हैं। चाहती थीं। आग की लपटें निकट आने के कारण निषादी तो अपने प्राण बचाकर निकल गई, परन्तु कुंती जहाँ खड़ी थी, वहीं रह गई।

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प्रश्न 9.
महाभारतकालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) महाभारतकालीन सामाजिक स्थिति- महाभारत काल में वर्ण व्यवस्था सुदृढ़ हो चुकी थी। समाज चार प्रमुख वर्णों में विभाजित था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चारों वर्णों में ब्राह्मणों को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता था। इस युग में पुत्री की अपेक्षा पुत्र का अधिक महत्त्व था। इस युग में सजातीय विवाहों का अधिक प्रचलन था, परन्तु अन्तर्जातीय विवाहों का भी उल्लेख मिलता है बहुपति प्रथा भी प्रचलित थी। द्रौपदी का विवाह पाँच पांडवों से हुआ था। स्वयंवर प्रथा प्रचलित थी। कुल मिलाकर स्वियों की स्थिति सन्तोषजनक थी।

(2) आर्थिक स्थिति इस युग के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि था। गेहूं, जौ, चावल, चना दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। राज्य की ओर से सिंचाई की व्यवस्था की जाती थी। पशुपालन भी आजीविका का एक अन्य मुख्य साधन था। इस युग में अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। स्वर्णकार, लुहार, कुम्हार, बढ़ई, जुलाहे, रंगरेज, चर्मकार, रथकार आदि अनेक शिल्पकार थे। वस्त्र उद्योग काफी उन्नत अवस्था में था। इस युग में वाणिज्य तथा व्यापार भी उन्नत अवस्था में था ।

(3) धार्मिक स्थिति इस युग में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। इस युग में अवतारवाद की अवधारणा प्रचलित थी। विष्णु के अवतार के रूप में राम, श्रीकृष्ण आदि की उपासना की जाती थी यज्ञों का महत्त्व भी बना हुआ था। परन्तु पशुबलि धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी।

(4) राजनीतिक स्थिति राज का पद बड़ा प्रतिष्ठित माना जाता था उसे अग्नि, सूर्य, यम, कुबेर आदि विभिन्न रूपों में प्रतिष्ठित किया गया है। लोक कल्याण और धर्मानुसार शासन करना उसके प्रमुख कर्त्तव्य थे। राजा का पद वंशानुगत था परन्तु शारीरिक दोष होने पर बड़े पुत्र को उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित किया जा सकता था। नेत्रहीन होने के कारण धृतराष्ट्र को गद्दी से वंचित रहना पड़ा था। राजा को सहयोग और सलाह देने के लिए मन्त्रिपरिषद् का गठन किया गया था। राजा के अन्य पदाधिकारियों में युवराज, सेनापति, द्वारपाल, दुर्गपाल आदि प्रमुख थे। सेना के चार प्रमुख अंग थे –

  • पैदल
  • अश्वारोही
  • गजारोही
  • रथारोही

महाभारत में कुछ गणराज्यों का भी उल्लेख मिलता है। गणराज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अपना संघ बना रखा था।

प्रश्न 10.
ब्राह्मणों ने धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों की रचना क्यों की? इसमें चार वर्गों के लिए जीविका- सम्बन्धी कौनसे नियम निर्धारित किए गए थे?
उत्तर:
(i) धर्मसूत्र में वेद विद्या के सिद्धान्त का वर्णन किया गया है। इसमें उच्च विचारों और भावों का समावेश है। धर्मसूत्र में सामाजिक नियमों का वर्णन मिलता है। धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सबसे प्राचीन है। इसमें प्राचीन विचारों के हिन्दुओं के जीवन के सभी पहलुओं के विषय में लिखा गया है। वर्तमान में भारतीय न्याय व्यवस्था में हिन्दुओं से सम्बन्धी कानून मनुस्मृति पर काफी हद तक आधारित हैं।

(ii) धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। ब्राह्मणों का यह मानना था कि यह व्यवस्था जिसमें ब्राह्मणों को पहला स्थान प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है। शूद्रों और अस्पृश्यों को सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था।

(iii) धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए आदर्श ‘जीविका’ से जुड़े कई नियम मिलते हैं। ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यह करना और करवाना था तथा उनका काम दान देना और लेना था।

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(iv) क्षत्रियों का कर्म युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना और दान-दक्षिणा देना था। अन्तिम तीन कार्य वैश्यों के लिए भी थे साथ ही उनसे कृषि, गौ पालन और व्यापार का कर्म भी अपेक्षित था शूद्रों के लिए मात्र एक ही जीविका थी – तीनों ‘उच्च’ वर्णों की सेवा करना।

(v) इन नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने दो-तीन नीतियाँ अपनाई। पहली नीति में यह बताया गया हैं कि वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति देवीय व्यवस्था है। दूसरा, वे शासकों को यह उपदेश देते थे कि वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में अनुसरण करें। तीसरे, उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है। किन्तु ऐसा करना आसान बात नहीं थी। अतः इन मानदण्डों को बहुधा महाभारत जैसे अनेक ग्रन्थों में वर्णित कहानियों के द्वारा बल प्रदान किया जाता था।

प्रश्न 11.
ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था में अस्पृश्य वर्ग की क्या स्थिति थी? मनुस्मृति में वर्णित चाण्डालों के कर्त्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर:

  1. वर्ण-व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली में ब्राह्मणों ने कुछ लोगों को अस्पृश्य घोषित किया था। ब्राह्मणों का मानना था कि कुछ कर्म, जिसमें विशेष रूप से ब्राह्मणों द्वारा सम्पन्न अनुष्ठान थे पुनीत और पवित्र होते थे। इन पवित्र कार्यों को करने वाले पवित्र लोग अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे।
  2. पवित्रता के इस पहलू के ठीक विपरीत कुछ कार्य ऐसे थे जिन्हें खासतौर से ‘दृषित’ माना जाता था। शवों की अन्त्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा जाता था। उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था।
  3. ब्राह्मण स्वयं को सामाजिक क्रम में सबसे ऊपर मानते थे, वे चाण्डालों का स्पर्श, यहाँ तक कि उन्हें देखना भी, अपवित्रकारी मानते थे।
  4. मनुस्मृति में चाण्डालों के ‘कर्तव्यों’ की सूची मिलती है। उन्हें गाँव के बाहर रहना होता था। वे फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में वे गाँव और नगरों में चल-फिर नहीं सकते थे।
  5. सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की उन्हें अंत्येष्टि करनी पड़ती थी तथा वधिक के रूप में भी कार्य करना होता था।
  6. लगभग पांचवीं शताब्दी ईसवी में चीन से आए बौद्ध भिक्षु फा शिएन का कहना है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ।
  7. लगभग सातवीं शताब्दी ईस्वी में भारत आए चीनी तीर्थयात्री श्वैन-त्सांग का कहना है कि वधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।

प्रश्न 12.
ऋग्वैदिक काल में सामाजिक जीवन, पारिवारिक जीवन, विवाह, मनोरंजन के साधन आदि की क्या विशेषताएँ थीं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऋग्वैदिक काल में भारतीय आर्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नति की वे एक सभ्य और सुसंस्कृत जीवन पद्धति का विकास कर चुके थे और दूसरी ओर संसार की अन्य जातियाँ अपनी आदिम अवस्था में ही विद्यमान थीं।

इस काल की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं –

(1) सामाजिक जीवन ऋग्वैदिककालीन आर्यों का जीवन पूर्णत: विकसित था, किन्तु ये लोग बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। सम्पूर्ण समाज चार भागों में विभाजित था। ये वर्ण कहलाते थे। ब्राह्मण धर्म-दर्शन और विचारों के अधिष्ठाता थे विद्या का पठन-पाठन इनका मुख्य कार्य था क्षत्रिय लोगों पर समाज की रक्षा का भार था। वैश्य कृषि का कार्य करते थे तथा व्यापार व कला-कौशल में दक्षता प्राप्त करके समाज की समृद्धि की चिन्ता करते थे। शूद्रों का कार्य अन्य वर्णों की सेवा करना था। ये चारों वर्ण कर्मप्रधान थे एक ही परिवार में विभिन्न वर्गों के लोग रहते थे एक वर्ण से दूसरे में परिवर्तन सम्भव था। इन वर्णों में पारस्परिक विवाह सम्पन्न होते थे।

(2) पारिवारिक जीवन परिवार पितृप्रधान हुआ करते थे। इस काल में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। पिता परिवार का मुखिया होता था। वह परिवार के सदस्यों में कार्य विभाजन करता था। पत्नी का स्थान भी महत्वपूर्ण होता था।

(3) विवाह वैदिक सभ्यता में विवाह एक धार्मिक संस्कार था। साधारणतः एक पत्नी की प्रथा प्रचलित थी। हालांकि कुलीन परिवारों में बहुपत्नी व बहुपति प्रथा के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। निकट सम्बन्धियों में विवाह नहीं होते थे। कन्याओं को स्वयंवर विवाह की अनुमति थी। साधारण परिवार की कन्याएँ भी स्वयंवर द्वारा स्वयं पति चुनती थीं।

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(4) वेश-भूषा तथा प्रसाधन-महाकाव्यकालीन लोग साधारण पोशाक ही धारण करते थे शरीर के ऊपरी भाग पर पहनने वाले वस्त्र को ऊर्ध्ववस्व तथा शरीर के निचले भाग पर धारण किए वस्त्र को अधोवस्य कहते थे। आभूषण स्वी और पुरुष दोनों ही पहनते थे। आभूषण सोने और चाँदी के होते थे जिनमें नग व मोती जड़े होते थे।

(5) मनोरंजन के साधन महाकाव्यकाल में मनोरंजन के प्रमुख साधन शिकार, नृत्य, संगीत, मल्लयुद्ध और गदायुद्ध आदि थे। जुआ भी खेला जाता था।

प्रश्न 13.
जाति प्रथा का विकास कैसा हुआ? सामाजिक विषमताओं के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही भारत में किसी न किसी रूप में जाति प्रथा प्रचलित रही है। प्रारम्भ में वर्णों के आधार पर कुल चार जातियाँ थीं— ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

जाति प्रथा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं परन्तु निम्न दो मत तर्कसंगत हैं –
(1) धर्मसूत्रों और धर्म-ग्रन्थों के आधार पर ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार, जैसेकि पुरुषसूक्त में वर्णन है कि जाति जन्म पर आधारित है, यह एक दैवीय व्यवस्था है। ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।

(2) श्रम विभाजन के आधार पर आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि जाति प्रथा का आरम्भ श्रम- विभाजन के कारण हुआ। शक्तिशाली तथा सामर्थ्यवान लोगों को देश की रक्षा का भार सौंपा गया; अतः योद्धाओं की एक विशेष जाति क्षत्रिय की उत्पत्ति हुई। आनुष्ठानिक धार्मिक कार्य और वेदाध्ययन करने वाले लोगों को ब्राह्मण कहा गया। व्यापारिक कार्यों तथा कृषि और पशुपालन जैसे कार्यों को करने वालों को वैश्य का दर्जा दिया गया। जो लोग इन सब कार्यों को करने का सामर्थ्य नहीं रखते थे उन्हें तीनों जातियों की सेवा का कार्य दिया गया और वे शूद्र कहलाए।

जाति प्रथा का सामाजिक विषमताओं में योगदान- आरम्भिक चरणों में जाति प्रथा इतनी कठोर नहीं थी क्योंकि यह जातीय भेद व्यवसायों पर आधारित था परन्तु बाद में जन्म आधारित मान्यता मिल जाने पर जाति प्रथा कठोर होती चली गई और इसके द्वारा समाज में बहुत-सी विषमताएँ उत्पन्न हुई –

  1. समाज में छुआछूत की भावना फैली। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीनों वर्ण शूद्रों को स्वयं से हीन समझने लगे, यहाँ तक कि कुछ लोगों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर दिया गया।
  2. ब्राह्मण अपने-आपको तथा क्षत्रिय स्वयं को सभी जातियों से उच्च समझते थे, इस कारण समाज में विद्वेष की भावना सम्पन्न हुई।
  3. शिक्षा का अधिकार केवल ब्राह्मणों के पास ही था, सैनिक शिक्षा क्षत्रियों तक ही सीमित रही।
  4. विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड, सामाजिक कुरीतियाँ समाज में प्रचलित हो गयीं।
  5. लोगों की राष्ट्रीय भावना में कमी आई एवं लोग अपने जातिगत स्वार्थी को पूरा करने में लग गये। इन सब कारणों से समाज की एकजुटता में कमी आई जिसका लाभ विदेशी शासकों ने उठाया।

प्रश्न 14.
महाभारत काल में लैंगिक असमानता के आधार पर सम्पत्ति के अधिकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महाभारत काल में स्वी की स्थिति तथा लैंगिक असमानता के कारण स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त युक्त नहीं थे। सम्पत्ति के अधिकारों की क्रमबद्ध व्याख्या निम्न है –

(1) वस्तु की भाँति पत्नी को निजी सम्पत्ति मानना इसका उदाहरण द्यूतक्रीड़ा के प्रकरण में मिलता है पाण्डव अपनी सारी सम्पत्ति कौरवों के साथ घृत- क्रीड़ा में चौसर के खेल में हार गए। अन्त में पाण्डवों ने अपनी साझी पत्नी द्रौपदी को भी निजी सम्पत्ति मानकर दाँव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। स्त्री को सम्पत्ति मात्र समझने के कई उदाहरण धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में प्राप्त होते हैं।

(2) मनुस्मृति के अनुसार सम्पत्ति का बँटवारा- मनुस्मृति में सम्पत्ति के बँटवारे के सम्बन्ध में वर्णित है कि माता-पिता की सम्पत्ति में उनकी मृत्यु के पश्चात् पुत्रों का समान अधिकार होता है इसलिए पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान बँटवारा करना चाहिए। माता-पिता की सम्पत्ति में पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं था।

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(3) स्त्री धन स्वियों हेतु धन की व्यवस्था स्वी धन के रूप में की गई थी। स्वी को विवाह के समय जो उपहार उसे परिवार और कुटुम्बजनों से प्राप्त होते थे; उन पर उनका अधिकार होता था उस पर पति का अधिकार भी नहीं होता था।

(4) सम्पत्ति अर्जन के पुरुषों के अधिकार – मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिये धन अर्जन के सात तरीके हैं; जैसे— विरासत, खोज, खरीद, विजित करके, निवेश, काम द्वारा तथा सज्जनों से प्राप्त भेंट

(5) उच्च वर्ग की महिलाओं की विशेष स्थिति- उच्च वर्ग की महिलाओं की स्थिति बेहतर थी। उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभुत्व रखती थीं। दक्षिण भारत में महिलाओं की स्थिति रस सम्बन्ध में और भी अच्छी थी। वाकाटक वंश की रानी चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त अत्यन्त प्रभावशाली महिला थी; उनके सम्पत्ति के अधिकारों के स्वामित्व का प्रमाण इस बात से मिलता है कि उन्होंने अपने अधिकार से एक ब्राह्मण को भूमिदान किया था।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

बहु-विकल्पी प्रश्न(Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए-
1. महाराष्ट्र राज्य में किस मृदा का अधिक विस्तार है?
(A) काली मृदा
(B) लाल मृदा
(C) जलोढ़ मृदा
(D) लेटराइट मृदा।
उत्तर:
(A) काली मृदा।

2. रेगड़ मृदा किसे कहते हैं?
(A) लाल मृदा
(B) लेटराइट मृदा
(C) काली मृदा
(D) जलोढ़ मृदा
उत्तर:
(C) काली मृदा।

3. मृदा निर्माण का प्रमुख साधन है।
(A) नदी
(B) वायु
(C) जनक सामग्री
(D) लहरें
उत्तर:
(C) जनक सामग्री।

4. मृदा की किस परत में जैव पदार्थ अधिक होते हैं?
(A) ‘क’ परत
(B) ‘ख’ परत
(C) ‘ग’ परत
(D) चट्टान
उत्तर:
(A) ‘क’ परत।

5. भारत में प्रथम मृदा सर्वेक्षण कब हुआ?
(A) 1936 में
(B) 1946 में
(C) 1956 में
(D) 1966 में।
उत्तर:
(C) 1956 में।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

6. जलोढ़ मृदा का देश के क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत पर विस्तार है?
(A) 30%
(B) 35%
(C) 40%
(D) 45%.
उत्तर:
(C) 40%.

7. नए जलोढ़क मृदा को कहते हैं
(A) तराई
(B) भाबर
(C) खादर
(D) बांगर
उत्तर;
(C) खादर।

8. ‘स्वयं जुताई मृदा’ किसे कहते हैं?
(A) जलोढ़
(B) काला
(C) लेटराइट
(D) लाल।
उत्तर:
(B) काली।

9. लेटराइट शब्द का अर्थ है।
(A) चीका
(B) ईंट
(C) तलछट
(D) पोटाश
उत्तर:
(B) ईंट

10. लवण मृदाएं अधिकतर किस राज्य में हैं?
(A) पंजाब
(B) महाराष्ट्र
(C) गुजरात
(D) केरल।
उत्तर:
(A) पंजाब।

11. किस घाटी में बीहड़ अधिक है?
(A) गंगा घाटी
(B) चम्बल घाटी
(C) उष्ण घाटी
(D) नर्मदा घाटी
उत्तर:
(B) चम्बल घाटी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

12. शिवालिक में मृदा अपरदन का मुख्य कारण है।
(A) वर्षा
(B) अति-चराई
(C) वनोन्मूलन
(D) नदी बांध|
उत्तर:
(C) वनोन्मूलन।

13. कृषि के लिए पहाड़ी क्षेत्र की ढलान कितनी है?
(A) 5-10% से कम
(B) 10–15% से कम
(C) 15-20% से कम
(D) 20-25% से कम
उत्तर:
(D) 20–25% से कम।

14. शुष्क प्रदेशों में बालू के टीलों का विस्तार कैसे रोका जा सकता है?
(A) वृक्षों की रक्षक मेखला
(B) वृक्षों की कटाई
(C) जल सिंचाई
(D) नदी बांध।
उत्तर:
(A) वृक्षों की रक्षक मेखला।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
यह सभी जीवित वस्तुओं के लिये भोजन उत्पादन करती है।

प्रश्न 2.
मिट्टी में पाये जाने वाले मुख्य आवश्यक तत्त्व लिखो।
उत्तर:
सिलीका, चीका तथा ह्यूमस।

प्रश्न 3.
मिट्टी में चीका का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह जल को सोख लेती है।

प्रश्न 4.
मृदा की तीन परतों के नाम लिखो।
उत्तर:
A स्तर, B स्तर, C स्तर

प्रश्न 5.
मृदा की परिभाषा दें।
उत्तर:
यह असंगठित पदार्थों की पतली परत होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 6.
उन तत्त्वों के नाम बतायें जिन पर मृदा की बनावट निर्भर करती है?
उत्तर:
मूल पदार्थ, धरातल, जलवायु

प्रश्न 7.
भारत में मृदा के तीन व्यापक प्रादेशिक भागों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. प्रायद्वीप की मिट्टियां।
  2. त्तरी मैदान की मिट्टियां।
  3.  हिमालय की मिट्टियां।

प्रश्न 8.
बनावट के आधार पर मृदा की तीन किस्में लिखो।
उत्तर:

  1. रेतीली मिट्टियां
  2. चीका मिट्टी
  3. दोमट मिट्टी

प्रश्न 9.
भारत में पाई जाने वाली अधिकतर व्यापक मिट्टी का नाम लिखो।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी

प्रश्न 10.
उत्तरी भारत में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी की दो मुख्य किस्में लिखो।
उत्तर:
खाद्दर तथा बांगर मिट्टी।

प्रश्न 11.
भारतीय मैदानों में विशाल क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टी का नाम लिखो।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 12.
खाद्दर तथा बांगर मिट्टी के दो स्थानीय नाम लिखें।
उत्तर:
खाद्दर मिट्टी – बैठ, बांगर मिट्टी – धाया।

प्रश्न 13.
तीन क्षेत्रों के नाम बतायें जहां पर खाद्दर मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
सतलुज बेसिन, गंगा का मैदान, यमुना बेसिन।

प्रश्न 14.
जलोढ़ मिट्टी में उत्पादित होने वाले दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर:
गेहूँ, चावल।

प्रश्न 15.
पश्चिम बंगाल के जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक किस फसल के लिये उपयोगी है?
उत्तर:
पटसन के लिये।

प्रश्न 16.
दक्कन पठार के छोर पर कौन-सी मिट्टी मिलती है?
उत्तर:
लाल मिट्टी।

प्रश्न 17.
कौन-सी मृदा प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती है?
उत्तर:
लाल मिट्टी

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प्रश्न 18.
उन दो राज्यों के नाम बतायें जहां पर लाल मिट्टी अधिकतर पाई जाती है।
उत्तर:
तमिलनाडु तथा छत्तीसगढ़।

प्रश्न 19.
उन तीन रंगों के नाम बतायें जिनसे लाल मिट्टी का निर्माण होता है।
उत्तर:
भूरा, चाकलेट तथा पीला।

प्रश्न 20.
रेगड़ मिट्टी का रंग बताओ।
उत्तर:
काला।

प्रश्न 21.
उन दो राज्यों के नाम लिखो जहां पर काली मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश

प्रश्न 22.
काली मिट्टी के दो अन्य नाम लिखो।
उत्तर:
कपास मिट्टी तथा रेगड़ मिट्टी

प्रश्न 23.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
दक्कन ट्रैप के ज्वालामुखी चट्टानों के लावा द्वारा।

प्रश्न 24.
एक फसल का नाम लिखें जिसके लिये काली मिट्टी बहुत उपयोगी है।
उत्तर:
कपास।

प्रश्न 25.
क्रिस प्रकार के जलवायु में लेटराइट मिट्टी का निर्माण होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 26.
लेटराइट मिट्टी की दो किस्में लिखो।
उत्तर:
उच्च मैदान लेटराइट मिट्टी तथा निम्न मैदान लेटराइट मिट्टी

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प्रश्न 27.
उन तीन राज्यों के नाम लिखो जहां पर लेटराइट मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा उड़ीसा

प्रश्न 28.
लेटराइट मिट्टी किस फसल के लिए सबसे अधिक उपयोगी है?
उत्तर:
बागानी फसल लगाने के लिये।

प्रश्न 29.
मरुस्थलीय मिट्टी किस प्रदेश में पाई जाती है?
उत्तर:
शुष्क मरुस्थल।

प्रश्न 30.
भारत के किस क्षेत्र में मरुस्थलीय मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
थार मरुस्थल ( राजस्थान तथा सिंध )।

प्रश्न 31.
मरुस्थलीय मिट्टी में उपज का क्या कारण है?
उत्तर:
सिंचाई

प्रश्न 32.
रेतीले मरुस्थल में पाई जाने वाली मिट्टी के दो प्रकार लिखो।
उत्तर:
तेज़ाबी तथा नमकीन।

प्रश्न 33.
उस क्षेत्र का नाम बतायें जहां पर्वतीय मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
हिमालय पर्वत।

प्रश्न 34.
पर्वतीय मिट्टी किस फसल के लिये उपयोगी है?
उत्तर:
चाय।

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प्रश्न 35.
पर्वतीय मिट्टी चाय के लिये उपयोगी क्यों है?
उत्तर:
पर्वतीय मिट्टियां तेज़ाबी होती हैं जो चाय को विशेष स्वाद देती हैं।

प्रश्न 36.
भारत के किस भाग में मृदा अपरदन के कारण अस्त-व्यस्त धरातल का निर्माण होता है?
उत्तर:
चम्बल घाटी।

प्रश्न 37.
परत अपरदन का क्या कार्य है?
उत्तर:
पहाड़ी ढलानों पर कृषि

प्रश्न 38.
चो से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चो शिवालिक की तलछटी में मौसमी नालों को कहा जाता है

प्रश्न 39.
जलोढ़ मृदाएँ कहां पाई जाती हैं? ये देश के कुल क्षेत्रफल के कितने भाग पर विस्तृत हैं?
उत्तर:
जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

प्रश्न 40.
भारत में जलोढ़ मृदाओं के क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
भारत में जलोढ़ मृदाएँ राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई गुजरात के मैदान तक फैली हुई हैं।

प्रश्न 41.
भारत में काली मृदाएँ कहां पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में काली मृदाएँ दक्कन के पठार के अधिकतर भाग पर पाई जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं।

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प्रश्न 42.
काली मृदाओं में मिलने वाले रासायनिक तत्त्व बताइये।
उत्तर:
रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूने, लौह, मैग्नीशिया और ऐलुमिना के तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 43.
भारत में लाल और काली मृदाएँ कहां पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्र की एक लम्बी पट्टी में लाल दुमट मृदा पाई जाती है। पीली और लाल मृदाएँ उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 44.
लैटेराइट का अर्थ बताइये लैटेराइट मृदाएँ किन क्षेत्रों में विकसित होती हैं?
उत्तर:
लैटेराइट लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं।

प्रश्न 45.
शुष्क मृदाओं में नमी और ह्यूमस की मात्रा कम क्यों होती है?
उत्तर:
शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और भी तीव्र गति से होने वाले वाष्पीकरण के फलस्वरूप शुष्क मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होती है।

प्रश्न 46.
लेटेराइट मिट्टी का सबसे अधिक उपयोग किस काम में होता है?
उत्तर:
भवन निर्माण।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी पर्त को मृदा कहते हैं। इस पर्त की मोटाई कुछ सें० मी० से लेकर कई मीटर तक हो सकती है। इसमें कई तत्त्व जैसे मिट्टी के बारीक कण, ह्यूमस, खनिज तथा जीवाणु मिले होते हैं। इन तत्त्वों के कारण इसमें कई परतें होती हैं। मृदा का निर्माण आधार चट्टानों के मूल पदार्थों तथा वनस्पति के सहयोग से होता है। किसी प्रदेश में यान्त्रिक तथा रासायनिक ऋतु अपक्षय द्वारा मूल चट्टानों के टूटने पर मिट्टी का निर्माण आरम्भ होता है । इसमें वनस्पति के गले – सड़े अंश के मिलने से कई भौतिक तथा रासायनिक कारकों के सहयोग से मृदा का पूर्ण विकास होता है। इस प्रकार मृदा की परिभाषा है, “Soil is the end product of the physical, chemical, biological and cultural factors which act and react together.”

प्रश्न 2.
मृदा जनन की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
मृदा जनन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा का निर्माण होता है। वातावरण के भौतिक, रासायनिक तथा जैविका तत्त्वों के योग से इस प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु चट्टानों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के क्षेत्र से प्राप्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मृदा का निर्माण होता है

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प्रश्न 3.
मृदा का मूल पदार्थ क्या है?
उत्तर:
आधार चट्टानों के रासायनिक तथा यान्त्रिक अपक्षरण से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मृदा का मूल पदार्थ कहा जाता है। इन सभी पदार्थों से मृदा का निर्माण होता है। मृदा का रंग, उपजाऊपन आदि मूल पदार्थों पर निर्भर करता है। लावा चट्टानों से बनने वाली मृदा का रंग काला होता है।

प्रश्न 4.
पर्यावरण के छः तत्त्वों के नाम बताइए जो मृदा जनन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:
मृदा जनन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा का निर्माण होता है। वातावरण के भौतिक, रासायनिक तथा जैविका तत्त्वों के योग से इस प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु, चट्टानों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के क्षेत्र से प्राप्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मृदा का निर्माण होता है। धरातल तथा भूमि की ढाल भी मृदा जनन पर प्रभाव डालते हैं।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मृदा की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर:
जलोढ़ मृदा की विशेषताएं-

  1. इसका निक्षेपण मुख्यतः नदी द्वारा होता है।
  2. इसका विस्तार नदी बेसिन तथा मैदानों तक सीमित होता है।
  3. यह अत्यधिक उपजाऊ मृदा होती है।
  4. इसमें बारीक कणों वाली मृदा पाई जाती है।
  5. इसमें काफ़ी मात्रा में पोटाश पाया जाता है, परन्तु फॉस्फोरस की कमी होती है।
  6. यह मृदा बहुत गहरी होती है।

प्रश्न 6.
भारत में उपलब्ध मिट्टी के प्रकारों में प्रादेशिक विभिन्नता के क्या कारण है?
उत्तर:
भारत की मिट्टियों में पाई जाने वाली प्रादेशिक विभिन्नता निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करती है

  1. शैल – समूह
  2. उच्चावच के धरातलीय लक्षण
  3. ढाल का रूप
  4. जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति
  5. पशु तथा कीड़े-मकौड़े।

प्रश्न 7.
पठारों तथा मैदानों की मिट्टी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पठारों तथा मैदानों की मिट्टी में मुख्य अन्तर मूल पदार्थों में पाया जाता है। पठारों में आधार चट्टानें कठोर होती हैं। इसकी मिट्टी में मूल पदार्थों की प्राप्ति इन चट्टानों से होती है। यह मिट्टी मोटे कणों वाली तथा कम उपजाऊ होती है। मैदानों में मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण कार्य से होता है। मैदानों में प्रायः जलोढ़ मिट्टी मिलती है। नदी में प्रत्येक बाढ़ के कारण महीन सिल्ट (Silt) तथा मृतिका (Clay) का निक्षेप होता रहता है।

प्रश्न 8.
चट्टानों में जंग लगने से कौन-सी मिट्टी का निर्माण होता है ? भारत में इस मिट्टी के तीन प्रमुख लक्षण बताओ।
उत्तर:
इस क्रिया से लाल मिट्टी का निर्माण होता है।

(i) विस्तार (Extent ):
भारत की सब मिट्टियों में से लाल मिट्टी विस्तार सबसे अधिक है। यह मिट्टी लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है। दक्षिणी में तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, छोटा नागपुर पठार तथा प्रायद्वीप पठार के बाहरी भागों में लाल मिट्टी का विस्तार मिलता है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics):
इस मिट्टी का निर्माण प्रायद्वीप की आधारभूत आग्नेय चट्टानों, ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों की टूट-फूट से हुआ है। इस मिट्टी का रंग लौहयुक्त चट्टानों में ऑक्सीकरण (oxidation) की क्रिया से लाल हो जाता है। वर्षा के कारण ह्यूमस नष्ट हो जाता है तथा आयरन ऑक्साइड ऊपरी सतह पर आ जाता है। इस मिट्टी में लोहा और एल्यूमीनियम की अधिकता होती है, परन्तु नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी होती है। यह मिट्टी कम गहरी तथा कम उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में ज्वार, बाजरा, कपास, दालें, तम्बाकू की कृषि होती है।

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प्रश्न 9.
समोच्च रेखा बन्धन किसे कहते हैं? मृदा को विनाश से बचाने के लिए इसका किस प्रकार प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखा बन्धन (Contour Bunding) – पर्वतीय ढलानों पर सम ऊंचाई की रेखा के साथ-साथ सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं ताकि मिट्टी के कटाव को रोका जा सके। ऐसे प्रदेश में खड़ी ढाल वाले खेतों में समान ऊंचाई की रेखा के साथ बांध या ढाल बनाई जाती है। ऐसे बांध को समोच्च रेखा बन्धन कहते हैं। इससे वर्षा के जल को रोक कर मृदा अपरदन से बचाया जा सकता है। इससे वर्षा के जल को नियन्त्रित करके बहते हुए पानी द्वारा मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
मृदा की उर्वरा शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिएं?
उत्तर:
मृदा की उर्वरा शक्ति का विकास करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं।

  1. मृदा अपरदन को रोकने के उपाय होने चाहिएं।
  2. मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए उर्वरकों और खादों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. फसलों के हेर-फेर की प्रणाली का प्रयोग करना चाहिए।
  4. कृषि की वैज्ञानिक विधियों को अपनाना चाहिए।
  5. मिट्टी के उपजाऊ तत्त्वों का संरक्षण करके रासायनिक तत्त्वों को मिलाना चाहिए।

प्रश्न 11.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषता किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
मृदा मानव के लिए बहुत मूल्यवान् प्राकृतिक सम्पदा है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएं आधारित हैं। मिट्टी पर कृषि, पशु पालन तथा वनस्पति जीवन निर्भर करता है। किसी प्रदेश का आर्थिक विकास मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करता है। कई देशों की कृषि अर्थव्यवस्था मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। संसार के प्रत्येक भाग में जनसंख्या का एक बड़ा भाग भोजन की पूर्ति के लिए मिट्टी पर निर्भर करता है।

अनुपजाऊ क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व तथा लोगों का जीवन स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई प्रदेश तथा केरल तट जलोढ़ मिट्टी से बने उपजाऊ क्षेत्र हैं। यहां उन्नत कृषि का विकास हुआ है । यह प्रदेश भारत में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला प्रदेश है। दूसरी ओर तेलंगाना में मोटे कणों वाली मिट्टी मिलती है तथा राजस्थान के शुष्क प्रदेश में रेतीली मिट्टी कृषि के अनुकूल नहीं है। इन प्रदेशों में विरल जनसंख्या पाई जाती है।

प्रश्न 12.
मृदा की उर्वरता समाप्ति के तीन कारण बताइए।
उत्तर:
मृदा एक मूल्यवान् प्राकृतिक संसाधन है। अधिक गहरी तथा उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेशों में कृषि का अधिक विकास होता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति के ह्रास के निम्नलिखित कारण हैं।

  1. कृषि भूमि पर निरन्तर कृषि करते रहने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। मृदा को उर्वरा शक्ति प्राप्त करने का पूरा समय नहीं मिलता।
  2. दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मृदा की उर्वरा शक्ति समाप्त होने लगती ह । स्थानान्तरी कृषि के कारण मृदा के उपजाऊ तत्त्वों का नाश होने लगता है। प्रतिवर्ष एक ही फसल बोने से मृदा के
  3. विशिष्ट प्रकार के खनिज कम होने लगते है।
  4. मृदा अपरदन से, वायु तथा जल द्वारा अपरदन से मृदा की उर्वरता समाप्त होती रहती है।

प्रश्न 13.
दक्षिणी पठार में पाई जाने वाली मृदा का लाल रंग क्यों है?
उत्तर:
दक्षिणी पठार के बाह्य प्रदेशों में लाल मिट्टी का अधिकतर विस्तार है। इस मिट्टी के मूल पदार्थ पठारी प्रदेश के पुराने क्रिस्टलीय तथा रूपान्तरित चट्टानों से प्राप्त होता है। इनमें ग्रेनाइट, नाईस तथा शिष्ट की चट्टानों का विस्तार है। इन चट्टानों में लोहा तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। उष्ण कटिबन्धीय जलवायु जलीकरण की क्रिया के कारण आयरन-ऑक्साइड द्वारा इस मिट्टी का रंग लाल हो जाता है।

तुलनात्मक प्रश्न ( Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
वनस्पति जाति और वनस्पति में क्या अन्तर है?
उत्तर:

वनस्पति जाति (Flora) वनस्पति (Vegetation)
(1) विभिन्न समय में किसी प्रदेश में उगने वाले पेड़पौधों के विभिन्न वर्गों को वनस्पति जाति कहा जाता है। (1) किसी प्रदेश में उगने वाले पेड़-पौधों की जातियों के समुच्चय को वनस्पति कहा जाता है।
(2) वनस्पति जातियां वातावरण के अनुसार पनपती हैं। (2) पेड़-पौधों की विभिन्न जातियां एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं।
(3) वनस्पति जातियों को एक वर्ग में रखकर उसे वनस्पति जाति का नाम दिया जाता है। जैसे-चीन तथा तिब्बत से प्राप्त होने वाले पेड़-पौधों को बोरियल कहा जाता है। (3) किसी पारिस्थितिक ढांचे में वन, पेड़-पौधे, घास एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं इसलिए इन्हें वनस्पति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
वनस्पति और वन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

वनस्पति (Vegetation) वन (Forest)
(1) किसी प्रदेश में उगने वाले पेड़-पौधों की जातियों के समूह को वनस्पति कहा जाता है। (1) पेड़-पौधों तथा झाड़ियों से घिरे हुए एक बड़े क्षेत्र को वन कहा जाता है।
(2) वनस्पति में एक वातावरण में उगने वाले पेड़पौधे और, झाड़ियों को शामिल किया जाता है। ऐसे भूदृश्य को wood land, grassland आदि नाम दिए जाते हैं। (2) घने तथा एक-दूसरे के निकट उगने वाले वृक्षों के क्षेत्र को वन कहा जाता है। वन शब्द का प्रयोग भूगोलवेत्ता तथा वन रक्षक करते हैं ताकि इनका आर्थिक मूल्यांकन किया जा सके।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 3.
संरचना, संकेन्द्रण क्षेत्र तथा रासायनिक रचना के संदर्भ में भारत की जलोढ़ तथा काली मिट्टी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

जलोढ़ मिट्टी काली मिट्टी
(1) क्षेत्र-इस मिट्टी का विस्तार उत्तरी मैदान की नदी घाटियों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों में है। (1) इस मिट्टी का विस्तार दक्षिणी भारत में लावा क्षेत्र में है जो कि गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तथा तमिलनाडु राज्यों में है।
(2) गठन-यह मिट्टी रेतीली, दोमट और चिकनी होती है। (2) यह मिट्टी गहरी तथा दानेदार, चिकनी तथा अप्रवेशी है।
(3) रचना-इस मिट्टी में पोटाश अधिक होती है पर फॉस्फोरस कम होती है। (3) इस मिट्टी में चूना, लोहा, एल्यूमीनियम और पोटाश अधिक होते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा निर्माण के मुख्य घटकों के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
मृदा निर्माण कई भौतिक तथा रासायनिक तत्त्वों पर निर्भर करता है। इन तत्त्वों के कारण मृदा प्रकारों के वितरण भिन्नता पाई जाती है। ये तत्त्व स्वतन्त्र रूप से या अलग से नहीं बल्कि एक-दूसरे के सहयोग से काम करते हैं।

1. मूल पदार्थ:
मृदा निर्माण करने वाले पदार्थों की प्राप्ति आधार चट्टानों से होती है। इन चट्टानों के अपक्षरण से मूल पदार्थ प्राप्त होते हैं। प्रायः पठारों की मिट्टी का सम्बन्ध आधार चट्टानों से होता है। मैदानी भागों में मृदा निर्माण का मूल पदार्थ नदियों द्वारा जमा किए जाते हैं। नदियों में बाढ़ के कारण प्रत्येक वर्ष मिट्टी की नई परत बिछ जाती है।

2. उच्चावच:
किसी प्रदेश का उच्चावच तथा ढाल मृदा निर्माण पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है। मैदानी भागों में गहरी मिट्टी मिलती है जबकि खड़ी ढाल वाले प्रदेशों में कम गहरी मिट्टी का आवरण होता है। पठारों पर भी मिट्टी की परत कम गहरी होती है। तेज़ ढाल वाले क्षेत्रों में अपरदन के कारण मिट्टी की ऊपरी परत बह जाती है। इस प्रकार किसी प्रदेश के धरातल तथा ढाल के अनुसार जल प्रवाह की मात्रा मृदा निर्माण को प्रभावित करती है।

3. जलवायु:
वर्षा, तापमान तथा पवनें किसी प्रदेश में मृदा निर्माण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। जलवायु के अनुसार सूक्ष्म जीव तथा प्राकृतिक वनस्पति भी मृदा पर प्रभाव डालते हैं। शुष्क प्रदेशों में वायु मिट्टी के ऊपरी परत को उड़ा ले जाती है। अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में मिट्टी कटाव अधिक होता ह।

4. प्राकृतिक वनस्पति:
किसी प्रदेश में मिट्टी का विकास प्राकृतिक वनस्पति की वृद्धि के साथ ही आरम्भ होता है। वनस्पति के गले – सड़े अंश के कारण मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। इसी कारण घास के मैदानों में उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में मृदा तथा वनस्पति के प्रकारों में गहरा सम्बन्ध पाया जाता है।

प्रश्न 2.
मिट्टी की परिभाषा दो भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण कर इन मिट्टियों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
मिट्टी (Soil) मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी पर्त को मृदा या मिट्टी कहते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि की सफलता मिट्टी के उपजाऊपन पर निर्भर है। भारत की मिट्टियों को तीन परम्परागत वर्गों में बांटा जाता है।
(A) प्रायद्वीप की मिट्टिया।
(B) उत्तरी मैदान की मिट्टियां।
(C) हिमालय प्रदेश की मिट्टियां।

(A) प्रायद्वीप की मिट्टियां (Soils of the Peninsular India):
भारतीय प्रायद्वीप की रब्बेदार चट्टानों से बनने वाली मिट्टियां निम्नलिखित प्रकार की हैं।

1. काली मिट्टी (Black Soil):
(i) विस्तार (Extent ): इस मिट्टी का विस्तार प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। यह गुजरात, महाराष्ट्र के अधिकांश भाग, मध्य प्रदेश, दक्षिणी उड़ीसा, उत्तरी कर्नाटक, दक्षिणी आंध्र प्रदेश में मिलती है। यह मिट्टी नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी तथा कृष्णा नदी की घाटियों में पाई जाती है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics):
इस मिट्टी का निर्माण लावा प्रवाह से बनी आग्नेय चट्टानों के टूटने-फूटने से हुआ है। यह अधिकतर दक्कन लावा (Deccan Trap) के क्षेत्र में मिलता है। इसलिए इसे लावा मिट्टी भी कहते हैं । इस मिट्टी का रंग काला होता है इसलिए इसे काली मिट्टी (Black Soil) भी कहते हैं । इसे रेगड़ मिट्टी (Regur Soil) भी कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है, परन्तु फॉस्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की शक्ति अधिक है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। इस मिट्टी की तुलना में इसकी ‘शर्नीज़म’ तथा अमेरिका की ‘प्रेयरी’ मिट्टी से की जाती है ।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ):
यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है। इसलिए इसे ‘कपास की मिट्टी’ (Cotton Soil) भी कहते हैं। पठारों की उच्च भूमि में कम उपजाऊ होने के कारण यहां ज्वार – बाजरा, दालों आदि की कृषि होती है। मैदानी भाग में गेहूं, कपास, तम्बाकू, मूंगफली तथा तिलहन की कृषि की जाती है।

2. लाल मिट्टी (Red Soil)
(i) विस्तार (Extent ): भारत की सब मिट्टियों में से लाल मिट्टी का विस्तार सबसे अधिक है। यह मिट्टी लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है। दक्षिणी भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, छोटानागपुर पठार तथा प्रायद्वीप पठार के बाहरी भागों में लाल मिट्टी का विस्तार मिलता है.

(ii) विशेषताएं (Characteristics): इस मिट्टी का निर्माण प्रायद्वीप की आधारभूत आग्नेय चट्टानों ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों की टूट-फूट से हुआ है। इस मिट्टी का रंग लौहयुक्त चट्टानों में ऑक्सीकरण (oxidation) की क्रिया से लाल हो जाता है। वर्षा के कारण ह्यूमस नष्ट हो जाता है तथा आयरन ऑक्साइड ऊपरी सतह पर आ जाता है। इस मिट्टी में लोहा और एल्यूमीनियम की अधिकता होती है परन्तु नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी होती है । यह मिट्टी कम गहरी तथा कम उपजाऊ होती है।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ): उच्च प्रदेशों में यह मिट्टी कम गहरी तथा अनुपजाऊ होती है। यहां केवल ज्वार – बाजरा की फसलें उगाई जाती हैं। नदी घाटियों में अधिक उपजाऊ मिट्टी में कपास, गेहूं, दालें अलसी, मोटे अनाज, तम्बाकू की कृषि की जाती है।

3. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil):
(i) विस्तार (Extent ): लैटेराइट मिट्टी का विस्तार एक विशाल क्षेत्र में लगभग 2.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर है। इस मिट्टी का विस्तार असम, राजमहल की पहाड़ियों, पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट, मध्य प्रदेश में विन्ध्याचल और सतपुड़ा पहाड़ियों के बसाल्ट क्षेत्र में है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics): इस मिट्टी का रंग ईंट (Brick) के समान लाल होता है। इस मिट्टी में लोहा, एल्यूमीनियम आदि तत्त्वों की अधिकता होती है। परन्तु नाइट्रोजन तथा वनस्पति अंश की कमी होती है। उष्ण-आर्द्र जलवायु में अपक्षालन क्रिया (Leaching of Soil) के कारण इस मिट्टी में से सिलिका की मात्रा कम रह जाती है तथा लौह पदार्थों की अधिकता हो जाती है। यह मिट्टी तुरन्त जल सोख लेती है। कणों के आधार पर यह मिट्टी दो प्रकार की है।
(क) उच्च प्रदेशों की लैटेराइट (Upland Laterite ): यह मिट्टी कम गहरी तथा कंकरीली होती है। यह कृषि के लिए उपजाऊ नहीं होती।
(ख) निचले प्रदेशों की लैटेराइट (Lowland Laterite ): यह मिट्टी बारीक कणों तथा दोमट के कारण अधिक उपजाऊ है।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ): मैदानी भागों में चाय, रबड़, कहवा, सिनकोना तथा मोरे- अनाज की कृषि की जाती है।

4. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
(i) विस्तार (Extent):
यह प्रवाहित मिट्टी है जो नदियों द्वारा डेल्टाई क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मिट्टी का विस्तार महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदी घाटियों में तथा डेल्टाई प्रदेशों में मिलता है।

(ii) विशेषताएं (Characteristics):
यह मिट्टी उत्तरी मैदान की मिट्टियों की भान्ति उपजाऊ है। इसमें पोटाश तथा चूने की अधिकता है परन्तु नाइट्रोजन की कमी है। इस मिट्टी में पटसन, चावल, गन्ना आदि फसलों की कृषि की जाती है।

(B) उत्तरी मैदान की मिट्टियां (Soils of the Northern Plain): उत्तरी मैदान की अधिकांश मिट्टियां जलोढ़ तथा नवीन हैं। यह मिट्टियां नदियों द्वारा पर्वतीय भागों से लाए गए तलछट के जमाव से बनी हैं।1. जलोढ़ मिट्टियां (Aluvial Soils):
(i) विस्तार (Extent ): इन मिट्टियों का विस्तार पश्चिम में पंजाब से लेकर असम तक मिलता है। यह मिट्टियां पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल असम तथा राजस्थान के लगभग 7.7 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में पाई जाती हैं। भारत के 43.7% क्षेत्र पर जलोढ़ मिट्टियों का विस्तार है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा 1

(ii) विशेषताएं (Characteristics): यह गहरी तथा उपजाऊ मिट्टी है। गंगा – सतलुज का मैदान इसी मिट्टी से बना हुआ है। यह मिट्टी लगभग 400 मीटर गहरी है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और जीवांश की कमी होती है परन्तु पोटॉश तथा चूना पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। उपजाऊपन तथा रचना के आधार पर जलोढ़ मिट्टियों को तीन उपविभागों में बांटा जाता है।

(क) बांगर मिट्टी (Banger Soil): यह पुरातन जलोढ़ मिट्टियां हैं। पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊंचे प्रदेश को बांगर कहते हैं, जहां बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता इसे धाया भी कहते हैं।
(ख) खादर मिट्टियां (Khadar Soils ): नदी के समीप नवीन मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं। नदियों बाढ़ कारण प्रति वर्ष जलोढ़ की नई पर्त बिछ जाने से यह अधिक उपजाऊ मिट्टी है। इसे बेट भी कहा जाता है।
(ग) नूतनतम जलोढ़ मिट्टियां (Newest Alluvial Soils): नदी डेल्टाई प्रदेशों में बारीक कणों के निक्षेप से इन मिट्टियों का विस्तार मिलता है।

(iii) फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops ): इन मिट्टियों को कांप की मिट्टी तथा दोमट मिट्टी भी कहा जाता है। इसकी तुलना संसार के उपजाऊ मैदानों से की जाती है। यह वास्तव में भारत का अन्न भण्डार है। इन मिट्टियों में गेहूं, चावल, पटसन की कृषि भी की जाती है। जल सिंचाई की सहायता से गन्ना, कपास, तम्बाकू तथा तिलहन की कृषि की जाती है।

2. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil):
इस मिट्टी का विस्तार शुष्क प्रदेशों में राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा में मिलता है। इसका क्षेत्रफल लगभग 2 लाख वर्ग कि०मी० है। यह मोटे कणों वाली बलुआही मिट्टी होती है। इसमें जल सिंचाई की सहायता से ज्वार, बाजरा, कपास की कृषि की जाती है। राजस्थान प्रदेश में इन्दिरा नहर के निर्माण से इस मिट्टी में जल सिंचाई की सहायता से अधिक उत्पादन हो सकेगा।

3. नमकीन एवं क्षारीय मिट्टियां (Saline and Alkaline Soils):
यह शुष्क प्रदेशों तथा दलदली भागों में पाई जाती है। इनका विस्तार लगभग 1 लाख वर्ग कि० मी० में है। इन्हें प्रायः थूर, ऊसर, कल्लर, रेह आदि नामों से पुकारा जाता है। इस मिट्टी में लवणों की मात्रा अधिक जमा हो जाती है जिससे यह अनुपजाऊ बन जाती है।

(C) हिमालय प्रदेश की मिट्टियां (Soils of the Himalayas ) इन मिट्टियों की पर्याप्त खोज अभी नहीं हो पाई है। अधिकांश मिट्टियां पतली, अनुपजाऊ तथा कम गहरी हैं। हिमालय प्रदेश की मिट्टियों को तीन उपविभागों में बांटा जाता है।

  1. पथरीली मिट्टी (Stony Soil): दक्षिणी स्थानों पर मोटे कणों वाली पथरीली मिट्टी मिलती है जो अनुपजाऊ है।
  2. चाय की मिट्टी (Soil of Tea): पर्वतीय ढलानों पर तथा दून घाटियों में उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिसमें चूना तथा लोहे का अंश अधिक होता है। इसमें चाय की कृषि अधिक की जाती है।
  3. लावा मिट्टी (Volcanic Soil): पर्वतीय ढलानों पर लावा से बनी मिट्टी मिलती है।

(D) पीटमय तथा जैव मृदाएँ
वनस्पति की अच्छी बढ़वार वाले तथा भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त क्षेत्रों में ये मृदाएँ पाई जाती हैं। वनस्पति की तीव्र वृद्धि के कारण इन क्षेत्रों में जैव पदार्थ भारी मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं। इससे मृदाओं में पर्याप्त मात्रा में जैव तत्त्व और ह्यूमस होता है। इसीलिए ये पीटमय और जैव मृदाएँ हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थों की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत तक हो सकती है। ये मृदाएँ सामान्यतः भारी और काले रंग की होती है। अनेक स्थानों पर ये क्षारीय भी हैं। बिहार के उत्तरी भाग, उत्तराखंड के दक्षिणी भाग, बंगाल के तटीय क्षेत्रों, उड़ीसा और तमिलनाडु में ये मृदाएँ अधिकतर पाई जाती हैं। ये मृदाएँ हल्की और कम उर्वरता का उपभोग करने वाली फसलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।

(E) वन मृदाएँ
नाम के अनुरूप ये मृदाएँ पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षत्रो में ही बनती हैं। इन मृदाओं का निर्माण पर्वतीय पर्यावरण में होता है। इस पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार इन मृदाओं का गठन और संरचना बदलती रहती है। घाटियों में ये दुमटी और गादयुक्त होती है तथा ऊपरी ढालों पर ये मोटे कणों वाली होती है। हिमालय के हिम से ढके क्षेत्रों में इन मृदाओं में अनाच्छादन होता रहता है तथा ये अम्लीय और कम ह्यूमस वाली होती हैं। निचली घाटियों में पाई जाने वाली मृदाएँ उपजाऊ होती हैं और इनमें चावल तथा गेहूँ की खेती की जाती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 3.
मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? भारत बीहड़ों की रचना तथा विवरण बताओ
उत्तर:
मृदा अपरदन जब तक मृदा निर्माण की प्रक्रियाओं और मृदा अपरदन में सन्तुलन बना रहता है, तब तक कोई समस्या नहीं पैदा होती। इस सन्तुलन के बिगड़ते ही, मृदा अपरदन एक खतरा बन जाता है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, चरागाहों में बेफिक्री से अति चराई, अवैज्ञानिक अपवाह प्रक्रियाएं तथा भूमि का अनुचित उपयोग इस सन्तुलन को बिगाड़ने के महत्त्वपूर्ण कारणों में से कुछ हैं। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक,
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा 2
दिल्ली, राजस्थान और देश के अन्य अनेक भागों में मृदा अपरदन एक समस्या रही है। पहाड़ी ढालों पर गो- पशुओं द्वारा अति चराई से मृदा अपरदन की गति तेज़ हो जाती है। मेघालय और नीलगिरि की पहाड़ियों पर आलू की खेती और हिमालय और पश्चिमी घाट पर वनों के विनाश तथा देश के विभिन्न भागों में जन- जातीय लोगों द्वारा की जाने वाली झूम कृषि के कारण मृदाओं का उल्लेखनीय क्षरण हुआ है।

बीहड़ (Ravines)

  1. चम्बल नदी की द्रोणी में बीहड़ (Ravines) बहुत विस्तृत हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर, मोरैना और भिंड ज़िलों में तथा उत्तर प्रदेश के आगरा, इटावा और जालौन जिलों में बीहड़ 6 लाख हेक्टेयर भूमि में फैले हैं।
  2. तमिलनाडु के दक्षिणी व उत्तरी अर्काट, कन्याकुमारी, तिरूचिरापल्ली, चिंगलीपुत, सेलम और कोयंबटूर जिलों में भी बीहड़ खूब हैं।
  3. पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया जिले की कंगसाबती नदी के ऊपर जलग्रहण क्षेत्रों में अनेक अवनालिकाएँ (gullies) और बीहड़ हैं। देश की लगभग 8,000 हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष बीहड़ बन जाती है।

मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव:

  1. भारत की कृषि भूमि में से 80,000 हेक्टेयर भूमि अब तक बेकार हो गई है तथा इससे भी बड़ा क्षेत्र प्रतिवर्ष मृदा अपरदन के कारण कम उत्पादक हो जाता है।
  2. मृदा अपरदन भारतीय कृषि के लिए एक राष्ट्रीय संकट बन गया है। इसके दुष्प्रभाव अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई पड़ते हैं।
  3. नदी की घाटियों में अपरदित पदार्थों के जमा होने से उनकी जल-प्रवाह क्षमता घट जाती है, इससे प्रायः बाढ़ें आती हैं तथा कृषि भूमि को क्षति पहुंचती है।
  4. उदाहरण के लिए तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली में कावेरी नदी का तल क्रमशः ऊपर उठ गया है। इसके परिणामस्वरूप सिंचाई के पुराने जल कपाट और अपवाह धाराएँ अवरुद्ध हो गई हैं।
  5. ब्रह्मपुत्र नदी के उथले होने से प्रतिवर्ष बाढ़ें आती हैं।
  6. तालाबों में गाद जमा होना, मृदा अपरदन का अन्य गंभीर परिणाम हैं। देश के विभिन्न भागों में अनेक तालाबों में प्रतिवर्ष गाद जमा हो जाती है।

मृदा अपरदन के प्रकार:
भारत में मृदा अपरदन के दो सबसे अधिक सक्रिय कारक हैं- पवन और प्रवाहित जल पवन द्वारा अपरदन गुजरात, राजस्थान और हरियाणा के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में सामान्य रूप से होता है। भारी मृदाओं की तुलना में हल्की मृदाओं पर पवन – अपरदन का अधिक प्रभाव पड़ता है। पवन द्वारा उड़ाकर लाया गया बालू समीप की कृषि भूमि पर फैलकर जमा हो जाता है और उसकी उर्वरता को नष्ट कर देता है। जल- अपरदन अपेक्षाकृत अधिक गम्भीर है।

इससे भारत के विभिन्न भाग विस्तृत रूप से प्रभावित हैं। जल अपरदन के मुख्यतः दो रूप हैं- परतदार अपरदन और अवनालिका अपरदन। समतल भूमि पर मूसलाधार वर्षा के बाद परतदार अपरदन होता है। इसमें मृदा के हटने का आसानी से पता ही नहीं चलता है। तीव्र ढालों पर सामान्यतः अवनालिका अपरदन होता है। वर्षा के द्वारा अवनालिकाएं गहरी होती जाती हैं। ये कृषि भूमि को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट देती है। इससे भूमि खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाती है।

मृदा अपरदन के कारक:
मृदा के गुण ह्रास में अनेक कारकों का योगदान रहता है। उदाहरणार्थ, जब जंगल काट दिए जाते हैं, तब मृदा में ह्यूमस की आपूर्ति ठप्प हो जाती है। यही नहीं, मृदा की ऊपरी परत को हटाने में प्रवाहित जल की क्षमता बढ़ जाती है। यदि अपवाह तन्त्र गड़बड़ा जाता है, तो जल भराव या मृदा की नमी का ह्रास होने लगता है। मृदा के अत्यधिक उपयोग से इसकी उर्वरता समाप्त हो जाती है। आर्द्र क्षेत्रों में प्रवाहित जल और शुष्क क्षेत्रों में पवन द्वारा मृदा के हटाए जाने को मृदा अपरदन कहते हैं। इसके विपरीत इसके जैव और खनिज तत्त्वों के हटाए जाने को मृदाक्षय कहते हैं। मृदा के दुरुपयोग से इसका अपक्षरण होता है।

मृदा अपरदन, क्षय और अपक्षरण में लिप्त कारक हैं- प्रवाहित जल, पवन, हिम, जीव-जन्तु और मानव । मानव वनोन्मूलन अति चराई और कृषि के अवैज्ञानिक तरीकों से मृदा के पारितन्त्र को अस्त-व्यस्त कर देता है । विरल वनस्पति वाले क्षेत्रों और तीव्र ढालों पर विशेष रूप से ऊबड़-खाबड़ भूमि पर तथा नदी भागों के साथ-साथ प्रायः बीहड़ दिखाई पड़ जाते हैं। कोसी नदी के द्वारा किया गया अपरदन कुख्यात हो गया है। राजस्थान के शुष्क प्रदेश पवन – अपरदन की चपेट में हैं। गहन कृषि और अतिचराई अपरदन और मरुस्थलीकरण की प्रक्रियाओं को तेज़ कर देते हैं

वनोन्मूलन तथा मृदा अपरदन।
वनोन्मूलन मृदा अपरदन के प्रमुख कारकों में से एक है। पौधों की जड़ें मृदा को बांधे रखकर अपरदन को रोकती हैं। पत्तियां और टहनियां गिरा कर वे मृदा में ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि करते हैं। वास्तव में सम्पूर्ण भारत में वनों का विनाश हुआ है। लेकिन देश के पहाड़ी भागों, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी घाट पर मृदा अपरदन में इसका बड़ा हाथ है।

राज्य & क्षेत्रफल 12.30
उत्तर प्रदेश 6.83
मध्य प्रदेश 4.52
राजस्थान 4.00
गुजरात 0.20
महाराष्ट्र 1.20
पंजाब 6.00
बिहार 0.60
तमिलनाडु  1.04
पश्चिम बंगाल 12.30

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 4.
मृदा अपरदन किसे कहते हैं? इसके क्या कारण हैं ? मानव ने मृदा अपरदन से बचाव के कौन- कौन से तरीके अपनाए हैं?
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion ):
भूतल की ऊपरी सतह से उपजाऊ मिट्टी का उड़ जाना या बह जाना मृदा अपरदन कहलाता है। भूतल की मिट्टी धीरे-धीरे अपना स्थान छोड़ती रहती है जिससे कृषि के अयोग्य हो जाती है। मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion) – मृदा अपरदन तीन प्रकार से होता है।

  1. धरातलीय कटाव (Sheet Erosion)
  2. नालीदार कटाव ( Guly Erosion)
  3. वायु द्वारा कटाव (Wind Erosion )

मृदा अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion):

  1. मूसलाधार वर्षा (Torrential Rain): पर्वतीय प्रदेशों की तीव्र ढलानों पर मूसलाधार वर्षा का जल मिट्टी की परत बहा कर ले जाता है। इससे यमुना घाटी में उत्खात भूमि की रचना हुई है।
  2. वनों की कटाई (Deforestation ): वनों के अन्धाधुन्ध कटाव से मृदा अपरदन बढ़ जाता है; जैसे – पंजाब में शिवालिक पहाड़ियों पर तथा मैदानी भाग में चो (Chos) द्वारा मृदा अपरदन एक गम्भीर समस्या है।
  3. स्थानान्तरी कृषि (Shifting Agriculture ): वनों को जला कर कृषि के लिए प्राप्त करने की प्रथा से झुमिंग (Jhumming) से उत्तर पूर्वी भारत में मृदा अपरदन होता है।
  4. नर्म मिट्टी (Soft Soils): कई प्रदेशों में नर्म मिट्टी के कारण मिट्टी की परत बह जाती है।
  5. अनियन्त्रित पशु चारण (Uncontrolled Cattle Grazing ): पर्वतीय ढलानों पर चरागाहों में अनियन्त्रित पशुचारण से मिट्टी के कण ढीले होकर बह जाते हैं।
  6. धूल भरी आन्धियां (Dust Storms ): मरुस्थलों के निकटवर्ती प्रदेशों में तेज़ धूल भरी आन्धियों के कारण मिट्टी का परत अपरदन होता है।

मृदा अपरदन रोकने के उपाय (Methods to Check Soil Erosion) मिट्टी के उपजाऊपन को कायम रखने के लिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। मृदा अपरदन रोकने के लिए कई प्रकार के उपाय प्रयोग किए जाते हैं।
(i) वृक्षारोपण (Afforestation ):
पर्वतीय ढलानों पर मिट्टी को संगठित रखने के लिए वृक्ष लगाए जाते हैं नदियों के ऊपरी भागों में वन क्षेत्रों का विस्तार करके मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इसी प्रकार राजस्थान मरुस्थल की सीमाओं पर वन लगाकर वायु द्वारा अपरदन रोकने के लिए उपाय किए गए हैं।

(ii) नियन्त्रित पशु चारण (Controlled Grazing ):
ढलानों पर चरागाहों में बे-रोक-टोक पशु चारण को रोका जाए ताकि घास को फिर से उगने और बढ़ने का समय मिल सके।

(iii) सीढ़ीनुमा कृषि (Terraced Agricuture ):
पर्वतीय ढलानों पर सम ऊंचाई की रेखा के साथ सीढ़ीदार खेत बनाकर वर्षा के जल को रोक कर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(iv) बांध बनाना (River Dams):
नदियों के ऊपरी भागों पर बांध बनाकर बाढ़ नियन्त्रण द्वारा मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(v) अन्य उपाय:
भूमि को पवन दिशा के समकोण पर जोतना चाहिए जिससे पवन द्वारा मिट्टी कटाव कम हो सके स्थानान्तरी कृषि को रोका जाए। वायु की गति को कम करने के लिए वृक्ष लगा कर वायु रोक (wind break) क्षेत्र बनाना चाहिए। फसलों के हेर-फेर तथा भूमि को परती छोड़ देने से मृदा अपरदन कम किया जा सकता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(A) लौह व निकल
(B) सिलिका एवं एल्यूमीनियम
(C) लौह व चांदी
(D) लौह ऑक्साइड एवं पोटाशियम।
उत्तर:
सिलिका एवं एल्यमीनियम।

2. निम्न में से कौन-सी कायान्तरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(A) परिवर्तनीय
(B) क्रिस्टलीय
(C) शान्त
(D) पल्लवन।
उत्तर:
परिवर्तनीय।

3. निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(A) स्वर्ण
(B) माइका
(C) चांदी
(D) ग्रेफाइट।
उत्तर:
माइका।

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4. निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?
(A) टोपाज़
(B) क्वार्ट्ज़
(C) हीरा
(D) फेल्डस्पार।
उत्तर:
फेल्डस्पार।

5. निम्न में से कौन-सी शैल अवसादी नहीं है?
(A) टायलाइट
(B) ब्रेशिया
(C) बोरैक्स
(D) संगमरमर।
उत्तर:
संगमरमर।

6. स्थलमण्डल के लगभग तीन-चौथाई हिस्से में कौन-सी चट्टानें पाई जाती हैं?
(A) आग्नेय
(B) अवसादी
(C) कायांतरित
(D) सभी बराबर-बराबर
उत्तर:
अवसादी।

7. निम्नलिखित में से कौन-सी अवसादी शैल है?
(A) बलुआ पत्थर
(B) अभ्रक
(C) ग्रेनाइट
(D) नीस।
उत्तर:
बलुआ पत्थर।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं ? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएं।
उत्तर:
भूपृष्ठ का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस, जैव और अजैव पदार्थों को शैल करते हैं। इनके तीन प्रमुख वर्ग हैं

  1. आग्नेय शैल
  2. अवसादी शैल
  3. कायांतरित शैल।

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प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अन्तर कैसे स्थापित करेंगे?
उत्तर:
भूपृष्ठीय शैलों के प्रमुख तीन प्रकार हैं। इनको निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया जाता है

  1. आग्नेय शैल-मैगमा तथा लावा से धनीभूत
  2. अवसादी शैल-बहि स्रोत प्रक्रियाओं से निक्षेपण।
  3. कायांतरित शैल-उपस्थित शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण।

प्रश्न 3.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या सम्बन्ध होता है।
उत्तर:
एक वर्ग की चट्टानों का दूसरे वर्ग की चट्टानों में बदलने की क्रिया को चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। इस चक्र में दो प्रकार की शक्तियां कार्य करती हैं
1. पृथ्वी की भू-गर्भ में गर्मी।

2. बाह्य शक्तियों से अपरदन। पृथ्वी पर सबसे पहले आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। विभिन्न कारकों द्वारा अपरदन से तलछट प्राप्त होने पर तथा जमाव से तलछटी चट्टानें बनती हैं! ये चट्टानें ताप, दाब तथा रासायनिक क्रिया से रूपांतरित चट्टानें बन जाती हैं। रूपांतरित चट्टानें फिर पिघल कर आग्नेय चट्टानें बन जाती हैं। अपक्षय तथा अपरदन से ये फिर तलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इस प्रकार चट्टानों के एक वर्ग से दूसरे वर्ग में परिवर्तन की क्रिया एक चक्र (Cycle) में चलती है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आग्नेय शैलें क्या हैं? आग्नेय शैलों की निर्माण पद्धति एवं लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निर्माणकारी शैलों में आग्नेय शैल सबसे प्रमुख है। आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks):
आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थों के ठण्डा व ठोस हो जाने से बनी हैं। (Igneous rocks have been formed by cooling of molten matter of the earth.) ये पृथ्वी पर सर्वप्रथम बनीं, इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं।

इग्नियस (Igneous) शब्द लैटिन शब्द इग्निस (Ignis) से बना है जिसका अर्थ अग्नि (Fire) है। पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा (Magma) है जिसका औसत तापमान 600 से 1200°C होता है। इस मैग्मा के ठोस होने तथा ग्रेनाइटीकरण की क्रिया से आग्नेय शैलें बनती हैं।आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks): उत्पत्ति के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं

  1. बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर बाहर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks) बनती हैं।
  2. भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है तो भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks) बनती हैं।

इस प्रकार लावा के ठोस होने की क्रिया तथा स्थान के आधार पर ये चट्टानें तीन प्रकार की हैं
1. ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks):
ये चट्टानें ज्वालामुखी के लावा प्रवाह (Lava flow) के कारण ज्वालामुखी चट्टानें ज्वालामुखी बनती हैं। यह पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा वायुमण्डल के सम्पर्क
बाह्य चट्टानें में आकर ठण्डा हो जाता है। गैस रहित मैग्मा को लावा कहते हैं। धरातल पर लावा शीघ्र ठण्डा हो जाता है तथा पूर्ण रूप से – डाइक – सिल – रवे (crystals) नहीं बनते। इन शैलों के रवों का आकार छोटा होता है। ये चट्टानें शीशे (glass) की भांति होती हैं। इन शैलों में रवों का विकास नहीं होता, जैसे-ऐन्डेसाइट, प्यूमिस तथा आन्तरिक चट्टानें – पातालीय चट्टानें ऑबसीडियन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल 1

उदाहरण: बसॉल्ट (Basalt) तथा गैब्रो (Gabbro) इसके अच्छे उदाहरण हैं। भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में बसॉल्ट चट्टानों के बने एक विशाल क्षेत्र को दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) कहते हैं जो 5 लाख वर्ग कि० मी० में फैला हुआ है।

2. मध्यवर्ती चट्टानें (Intermediate Rocks):
ये भीतरी चट्टानें धरातल से नीचे कुछ गहराई पर छिद्रों तथा दरारों में लावा जम जाने से बनती हैं। बाह्य तथा भीतरी चट्टानों के मध्य स्थित होने के कारण मध्यवर्ती चट्टानें कहते हैं। धरातल के समानान्तर (Horizontal) बनने वाली चट्टानों को सिल (Sill) तथा धरातल पर लम्बाकार (Vertical) बनने वाली चट्टानों को डाइक (Dyke) कहते हैं। ये भीतरी चट्टानें हैं। मैग्मा धीरे-धीरे ठण्डा होता है। इनमें छोटे-छोटे रवे बनते हैं। उदाहरण: डोलेराइट (Dolerite) चट्टान तथा माइका पेग्मेटाइट इसके उदाहरण हैं। ।

3. पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks):
ये चट्टानें अधिक गहराई पर बनती हैं। जब मैग्मा बाहर आने में असमर्थ होता है। तब लावा स्रोत में ही जम जाता है। अधिक गहराई पर लावा धीरे-धीरे ठण्डा तथा कठोर होता है तथा बड़े आकार के मोटे रवे बनते हैं। इन चट्टानों का नाम “प्लूटो” (Pluto) के नाम पर रखा गया है जिसका अर्थ “पाताल देवता” है। पृथ्वी तल पर अपरदन के पश्चात् ये चट्टानें ऊपर प्रकट होती हैं। कई प्रकार के गुम्बद (Domes) तथा बैथोलिथ (Batholith) बनते हैं।

उदाहरण: (i) ग्रेनाइट (Granite) नाम को कठोर चट्टान इसका विशेष उदाहरण है।
(ii) भारत में रांची का पठार तथा सिंहभूम प्रदेश (बिहार) में दक्कन पठार तथा राजस्थान में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

अम्ल तथा क्षारीय चट्टानें (Acid and Basic Rocks):
संरचना की दृष्टि से जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 66% से अधिक होती है, उन्हें अम्ल चट्टानें (Acid Rocks) कहते हैं, जैसे-क्वार्ट्ज तथा ग्रेनाइट। जिन शैलों में सिलिका की मात्रा कम होती है, उन्हें क्षारीय चट्टानें (Basic Rocks) कहते हैं, जैसे बसॉल्ट व गैब्रो। जिन शैलों में सिलिका अनुपस्थित होता है, उन्हें अत्यल्पसिलिक (Ultra Basic) शैल कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल की निर्माण पद्धति बताओ।
उत्तर:
अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks):
अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद (Sediments) जमाव से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते (Sedimentary Rocks are those rocks which have been formed by deposition of Sediments.) तलछट में छोटे व बड़े आकार के कण पत्थर बादल – जैविक निक्षेप होते हैं। इन कणों के एकत्र होकर नीचे बैठ जाने (settle down) से अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल 2

तलछट के साधन (Sources of Sediments): पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थ को जल, वायु, हिम नदी जमा करते रहते हैं।

तलछट जमा होने का स्थान (Places of Deposition): ये तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं या मरुस्थलों के धरातल आदि क्षेत्रों में जमा होते हैं।

रचना (Formation): इन चट्टानों की रचना कई पदों (stages) में पूर्ण होती है। तलछट की परतों के संवहन (compaction) तथा संयोजन (cementation) से अवसादी शैलों का निर्माण होता है।

  1. तलछट का निक्षेप (Deposition): यह पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण तथा उसके बाद छोटे कण (During the deposition the material is sorted out according to size.)
  2. परतों का निर्माण (Layers): लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में जमा होते हैं।
  3. ठोस होना (Solidification): ऊपरी परतों के भार के कारण परतें संगठित होने लगती हैं। सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक (Cementing agent) चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं । इस प्रकार इन दोनों क्रियाओं के सम्मिलित रूप’को शिला भवन (Lithification) कहते हैं।

अवसादी चट्टानों के प्रकार (Types of Sedimentary Rocks): तलछटी चट्टानें तीन प्रकार से बनती हैं

  1. यान्त्रिक क्रिया द्वारा (Mechanically Formed Rocks)
  2. जैविक पदार्थों द्वारा (Organically Formed Rocks)
  3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा (Chemically Formed Rocks)

अवसादी चट्टानें निर्माण के साधनों तथा जमाव के स्थान के अनुसार निम्नलिखित प्रकार की हैं
(i) यान्त्रिक क्रिया द्वारा (Mechanically Formed Rocks):
इन चट्टानों का निर्माण अपरदन व परिवहन करने वाली शक्तियों द्वारा होता है, जैसे-नदी, पवन, हिम नदी आदि। इन चट्टानों के पदार्थ यान्त्रिक रूप से प्राप्त होते हैं।

(क) बालुकामय चट्टानें (Arenaceous Rocks):
इन शैलों में बालू (Sand) व बजरी की अधिकता होती है। क्वार्टज (Quartz) इसका मुख्य निर्माणकारी खनिज है। बालू पत्थर (Sandstone) इसका मुख्य उदाहरण है। बजरी तथा कई गोल पत्थरों के परस्पर मिलने से कांग्लोमरेट का निर्माण होता है।

(ख) मृणमय चट्टानें (Argillaceous Rocks):
इन चट्टानों में चिकनी मिट्टी (Clay) के बारीक कणों की अधिकता होती है। ये चट्टानें प्रायः कीचड़ के ठोस होने से बनती हैं। शैल (Shale) इस वर्ग की सब से महत्त्वपूर्ण तथा प्रचुर मात्रा में मिलने वाली चट्टान है। यह मूलतः सिल्ट एवं मृतिका का जमाव है। यह मिट्टी के बर्तन तथा ईंटें बनाने के काम आती है। गंगा के मैदान में चिकनी तथा दोमट मिट्टी मिलती है।

(ii) जैविक अवसादी चट्टानें (Organically Formed Rocks):
इन चट्टानों का निर्माण जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के अवशेषों के दब जाने से होता है। . ये चट्टानें मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं

1. कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks):
भूमि के उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु तथा वनस्पति भूमि के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव तथा गर्मी के कारण दलदली क्षेत्रों में, वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। कार्बन की मात्रा के अनुसार पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), बिटुमिनस (Bituminous) तथा एंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण इसी प्रकार होता है। भारत में कोयला दामोदर घाटी में मिलता है।

2. चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks):
समुद्र के जीव-जन्तु समुद्र के जल से चूना ग्रहण करके अपने पिंजर (Skeleton) का निर्माण करते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं तो यह कवच तथा अस्थि पिंजर परतों के रूप में संगठित होकर । चट्टान बन जाते हैं, जैसे चूने का पत्थर (Lime Stone), खड़िया मिट्टी (Chalk), डोलोमाइट (Dolomite)। इनमें मुख्यत: कैलसाइट खनिज पाया जाता है। प्रवाल भित्तियों (Coral reefs) का निर्माण भी इसी प्रकार होता है।

3. रासायनिक चट्टानें (Chemically Formed Rocks):
जल में कई रासायनिक तत्त्व घुले होते हैं। जब जल भाप बन कर उड़ जाता है तो रासायनिक पदार्थ तहों के रूप में रहते हैं तथा कठोर चट्टानें बन जाते हैं, जैसे नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum)। इन चट्टानों के निर्माण में अधिक समय लगता है। इनका संघटन कैल्शियम सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड से होता है।

अवसादी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics):

  1. इन चट्टानों में विभिन्न परतें पाई जाती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानान्तर मिलती हैं। दो परतों के तल को अलग करने वाले तल को संस्तरण तल कहते हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जन्तु तथा वनस्पति के अवशेष (Fossils) पाए जाते हैं।
  4. जल में निर्माण के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम तथा प्रवेशीय होती हैं तथा इनका अपरदन शीघ्र होता है। अधिकतर चट्टानें क्षैतिज स्थिति में पाई जाती हैं।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग पर फैली हुई हैं, परन्तु पृथ्वी की गहराई में इनका विस्तार केवल 5% है। (The Sedimentary Rocks are important for extent, not for depth.)

अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance): परतदार चट्टानें मानव जीवन के लिए मूल्यवान् हैं।

  1. कोयला तथा पेट्रोलियम शक्ति के मुख्य साधन हैं।
  2. इन चट्टानों में सोना, टिन तथा तांबा आदि खनिज पाए जाते हैं।
  3. चिकनी मिट्टी से ईंटें, चूने से सीमेंट, बालू से कांच बनता है।
  4. चूने का पत्थर भवन निर्माण में प्रयोग होता है।
  5. कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं।
  6. तलछटी चट्टानों से बने मैदान कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 3.
रूपांतरित शैल क्या है? इसके प्रकार व निर्माण पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
रूपांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks):
Metamorphose शब्द का अर्थ है “रूप में परिवर्तन” (Change in form)। ये वे चट्टानें हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, गुण, आकार तथा खनिज बदल देती हैं। आग्नेय तथा तलछटी चट्टानों के मूल रूप में इतना परिवर्तन हो जाता है कि नवीन चट्टानों को पहचानना कठिन होता है। परिवर्तन की इस क्रिया को रूपान्तरण कहते हैं जो धरातल से हज़ारों मीटर की गहराई पर होता है। ये परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं
(1) भौतिक परिवर्तन
(2) रासायनिक परिवर्तन।

इन परिवर्तनों के होते हुए भी चट्टानों में विघटन या तोड़-फोड़ नहीं होता। यह परिवर्तन दो कारकों से होता हैपरिवर्तन के कारक (Agents of Change) : ताप,  दबाव।

(a) सम्पर्क रूपान्तरण (Contact Metamorphism): गर्म लावा के स्पर्श से आस-पास के प्रदेश की चट्टानें जब झुलस जाती हैं तब उनके रवे पूर्णतः बदल जाते हैं। जैसे-गर्म लावा के स्पर्श से चूने का पत्थर (Lime Stone), संगमरमर (Marble) बन जाता है। इसे स्थानीय रूपान्तरण (Local Metamorphism) भी कहते हैं। इसे तापीय रूपांतरण भी कहते हैं। एवरेस्ट शिखर पर ये चट्टानें पाई जाती हैं।

(b) क्षेत्रीय रूपान्तरण (Regional Metamorphism): पृथ्वी की उथल-पुथल, भूकम्प, पर्वत-निर्माण के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है। ऊपरी परतों के दबाव से निचली चट्टानों के गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर विशाल प्रदेशों में होता है। रूपान्तरण की तीव्रता जैसे-जैसे बढ़ती है, शैल स्लेट में, स्लेट शिस्ट में तथा शिस्ट नीस में रूपान्तरित हो जाती है। इसे गतिक रूपान्तरण भी कहते हैं। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

मूल चट्टान रूपान्तरित चट्टान
(1) शैल (Shale) (1) स्लेट (Slate)
(2) अभ्रक (Mica) (2) शिस्ट (Schist)
(3) ग्रेनाइट (Granite) (3) नीस (Gneiss)
(4) रेत का पत्थर (Sand stone) (4) क्वार्टजाइट (Quartzite)
(5) कोयला (Coal) (5) ग्रेफाइट (Graphite)

विशेषताएं (Characteristics):

  1. इन चट्टानों की कठोरता बढ़ जाती है।
  2. चट्टानों के खनिज पिघल कर इकट्ठे हो जाते हैं।
  3. ठोस होने के कारण अपरदन कम होता है।
  4. इन चट्टानों में रत्न, मणिक, नीलम जैसे बहुमूल्य जवाहरात मिलते हैं।
  5. इनमें खनिज मिश्रित जल के स्रोत मिलते हैं जिससे त्वचा के रोग मिट जाते हैं।
  6. गृह-निर्माण के कई पदार्थ संगमरमर, स्लेट, क्वार्टजाइट मिलते हैं।

खनिज एवं शैल JAC Class 11 Geography Notes

→ पृथ्वी की संरचना (Structure of Earth): हमारी जानकारी पृथ्वी की संरचना के बारे में सीमित है। पृथ्वी की रचना तीन परतों से हुई है-भूपर्पटी, मैंटल तथा क्रोड। सबसे बाहरी परत को भूपृष्ठ कहते हैं। ।
इसे सियाल या स्थल मण्डल भी कहते हैं। इससे निचली पर्त सीमा है, पृथ्वी के आन्तरिक भाग को क्रोड या नाइफ या बैरी स्फीयर कहते हैं।

→ शैल (Rocks): शैल आमतौर पर खनिजों के इकट्ठे होने से बनती है। एक साधारण मनुष्य के लिए शैल एक कठोर पदार्थ है। भू-पृष्ठ का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं।

→ चट्टानों की किस्में (Types of Rocks): रचना के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया गया है

  • आग्नेय चट्टानें
  • तलछटी चट्टानें
  • रूपान्तरित चट्टानें।

→ आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks): आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थों के ठण्डा व ठोस हो जाने से बनी हैं।

→ आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Ingneous Rocks): उत्पत्ति स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं

(क) बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर बाहर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks) बनती है।
(ख) भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है तो भीतरी चट्टानें बनती हैं। लावा के ठोस होने की क्रिया तथा स्थान के आधार पर आग्नेय चट्टानें तीन प्रकार की हैं

→ ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks): जब लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से ठण्डा होता है तथा धरातल पर ही ठण्डा हो जाता है तब ज्वालामुखी चट्टानें बनती हैं। उदाहरण: बेसॉल्ट।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

→ मध्यवर्ती चट्टानें (Hypabyssal Rocks): जब लावा पृथ्वी के भीतर दरारों में जम कर ठोस हो जाता है तो मध्यवर्ती चट्टानें बनती हैं, जैसे सिल तथा डाइक।

→ पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks): जब मैग्मा गहराई में धीरे-धीरे जम जाता है तो पातालीय चट्टानें बनती हैं। उदाहरण-बैथोलिथ आदि।

→ आग्नेय चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Igneous Rocks): ये चट्टानें ढेरों पर पाई जाती ! हैं। इनमें रवे होते हैं। ये ठोस तथा पिण्ड अवस्था में मिलती हैं ।

→ अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks): अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद के जमाव से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। ये तलछट नदियों, समुद्रों, झीलों में वायु, हिमनदी तथा नदियों द्वारा निक्षेप की जाती हैं।

→ तलछटी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Sedimentary Rocks): ये चट्टानें परतों में पाई जाती हैं। इन चट्टानों में जीव-जन्तु तथा वनस्पति के अवशेष पाए जाते हैं। ये चट्टानें नरम होती हैं, इन्हें आसानी से अपरदित किया जा सकता है।

→ रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks): रूपान्तरित शब्द का अर्थ है-रूप में परिवर्तन। इसलिए रूपान्तरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, आकार तथा खनिज बदल लेती हैं। उच्च तापमान के प्रभाव के कारण चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। अधिक दबाव के कारण शैल, स्लेट में बदल जाती है। ये कठोर चट्टानें हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की सम्भावना व्यक्त की थी?
(A) अल्फ्रेड वेगनर
(B) अब्राह्म आरटेलियस
(C) एनटोनियो पेलग्रिनी
(D) एडमंड हैस।
उत्तर:
अब्राह्म आरटेलियस।

2. पोलर फ्लींग बल (Polar fleeing force) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?
(A) पृथ्वी का परिक्रमण
(B) पृथ्वी का घूर्णन
(C) गुरुत्वाकर्षण
(D) ज्वारीय बल।
उत्तर:
पृथ्वी का घूर्णन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

3. इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?
(A) नाजका
(B) फिलिप्पिन
(C) अरब
(D) अंटार्कटिक।
उत्तर:
अंटार्कटिक।

4. सागरीय तल विस्तार सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न से किस अवधारणा को नहीं विचारा?
(A) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएं
(B) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(D) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु।
उत्तर:
विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण।

5. हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(A) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(B) अपसारी सीमा
(C) रूपान्तर सीमा
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण।
उत्तर:
महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

6. निम्न में से कौन-सी मुख्य प्लेट नहीं है?
(A) अफ्रीकी
(B) अंटार्कटिका
(C) यूरेशियाई
(D) अरेबियन।
उत्तर:
अरेबियन।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वैगनर ने किन-किन बलों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
प्रवाह सम्बन्धी बल (Force for drifting): वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के दो कारण थे

  1. पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल (Polar fleeing force)
  2. ज्वारीय बल (Tidal force)। ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से सम्बन्धित है। ज्वारीय बल सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से सम्बद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।

प्रश्न 2.
मैंटल में संवहन धाराओं के आरम्भ होने तथा बने रहने के क्या कारण थे?
उत्तर:
संवहन-धारा सिद्धान्त (Convectional current theory):
1930 के दशक में आर्थर होम्स (Arthur Holmes) ने मैंटल (Mantle) भाग में संवहन-धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की। ये धाराएँ रेडियो एक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है। यह उन प्रवाह बलों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास था, जिसके आधार पर समकालीन वैज्ञानिकों ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त को नकार दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त व प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त में मूलभूत अन्तर बताइए।
उत्तर:
वैगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के अनुसार प्राचीन काल में एक सुपर महाद्वीप पेंजिया के रूप में विद्यमान था। इस के विभिन्न भाग महाद्वीप गतिमान हैं। महाद्वीप विभिन्न कालों में विस्थापन के कारण विभिन्न स्थितियों में थे। परन्तु प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीपों के ठोस पिण्ड प्लेटों पर स्थित थे। पेंजिया अलग-अलग प्लेटों के ऊपर स्थित महाद्वीपों के खण्डों से बना था। महाद्वीपीय खण्ड एक या दूसरी प्लेट के भाग थे। ये प्लेटें लगातार विचरण कर रही हैं। ये भूतकाल में गतिमान थी और भविष्य में भी गतिमान रहेंगी।

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प्रश्न 2.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त की प्रमुख खोज क्या है जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:
प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त कई वैज्ञानिक खोजें हुईं। मोरगन तथा मैकेन्ज़ी द्वारा प्लेट विवर्तनिकी अवधारणा का विकास किया। ये प्लेटें दुर्बलता मण्डल पर एक इकाई के रूप में चलायमान हैं। चट्टानों के पुरा चुम्बकीय अध्ययन तथा महासागरीय तल के मानचित्रण ने कई नए तथ्यों को उजागर किया। महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार से लावा बाहर निकलता है। इस विभेदन से लावा दरारों को भर कर पर्पटी को दोनों तरफ धकेलता है जिससे महासागरीय अधस्तल का विस्तार होता है।

प्रश्न 3.
प्लेट की रूपान्तर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:
(क) रूपान्तर सीमा-इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।
(ख) अभिसरण सीमा-इस सीमा पर एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है।
(ग) अपसारी सीमा-इस सीमा पर दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं।

प्रश्न 4.
दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थल खण्ड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। उस समय भारतीय स्थल खण्ड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। उस समय भारतीय प्लेट ने एशियाई प्लेट की ओर प्रवाह किया।

प्रश्न 5.
प्लेट किसे कहते हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ठोस स्थलखण्ड के विभाजित भागों को प्लेट कहा जाता है। प्लेट बड़ी या छोटी हो सकती है। ‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूजो विल्सन ने किया था।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 6.
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त प्लेटों के स्वभाव एवं प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1960 के दशक में किया गया। हैरी हेस, विल्सन, मॉर्गन, मैकन्जी तथा पार्कट आदि विद्वानों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का भू-पटल सात बड़ी प्लेटों में बंटा हुआ है तथा ये प्लेटें लगातार गति कर रही हैं। ये प्लेटें एक दूसरे के सन्दर्भ में तथा पृथ्वी की घूर्णन-अक्ष के सन्दर्भ में निरंतर गति कर रही हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
अथवा
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वैगनर का महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त (Wegner’s Continental Drift Theory)-सन् 1912 में जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायु ज्ञाता वैगनर ने यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया। वैगनर ने महाद्वीप बहाव का सिद्धान्त प्रस्तुत किया कि प्राचीन काल में महाद्वीप एक-दूसरे से अलग खिसक गए। सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण (Proofs): वैगनर के महाद्वीपीय बहाव सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं

1. महाद्वीपों में साम्य:
अन्ध महासागरों के दोनों तटों की समानता एक आरी के दांतों (Jig-saw-fit) की तरह है। इन तटों को यदि आपस में मिला दिया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह महाद्वीप कभी एक इकाई थे। सन् 1964 में बुलर्ड (Bullard) ने कम्प्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया।

2. भू-गर्भिक प्रमाण (Geological Proofs):
मध्य अफ्रीका, मैडागास्कर, दक्षिणी भारत, ब्राज़ील तथा ऑस्ट्रेलिया के तटों पर पाई जाने वाली चट्टानों में समानता पाई जाती है। 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की पट्टी सिद्ध करता है कि यह महाद्वीप कभी गौंडवानालैंड के भाग थे। भू-वैज्ञानिक क्रियाओं के फलस्वरूप 47 करोड़ वर्ष पुरानी पर्वत पट्टी का निर्माण एक निरन्तर कटिबन्ध के रूप में हुआ था। यह रेडियो मीट्रिक काल निर्धारण विधि (Radiomitric dating) से ज्ञात हुआ।

3. जीवाश्मों का वितरण (Distribution of LAURASIA fossils):
अर्जेन्टीना, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका में पाए जाने वाले जीवाश्मों में समानता भी इस सिद्धान्त की पुष्टि करती है। उदाहरण के लिए मैसोसोरस नामक जन्तुओं के जीवाश्म गौंडवानालैंड के सभी महाद्वीपों में मिलते हैं जबकि आज के महाद्वीप एक-दूसरे से काफ़ी दूर हैं। लैमूर भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। कुछ वैज्ञानिक इन तीनों स्थल खण्डों को जोड़कर एक सतत् स्थल खण्ड लैमूरिया (Lemuria) की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं।

4. टिलाइट (Tillite):
टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं जो हिमानी निक्षेप में बनती हैं। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के निक्षेप दक्षिणी गोलार्द्ध के 6 विभिन्न स्थल खण्डों में मिलते हैं। इसी क्रम के निक्षेप भारत, अफ्रीका, फ़ॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया में मिलते हैं। टिलाइट की समानता महाद्वीपों के विस्थापन को स्पष्ट करती हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण 1

5. ग्लेशियरी प्रभावों के प्रमाण (Glacial Proofs):
महान् हिम युग के प्रभाव ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं जो सिद्ध करते हैं कि ये महाद्वीप उस समय इकटे थे।

6. पुरा जलवायवी एकरूपता:
जलवायविक प्रमाणों से पता चलता है कि दक्षिणी महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े हुए थे। यहां एक जैसी जलवायविक दशाएं थीं। आज ये महाद्वीप विभिन्न कटिबन्धों में स्थित है।

7. प्लेसर निक्षेप (Placer Deposits):
घाना तट व ब्राज़ील तट पर सोने के बड़े निक्षेप मिलते हैं। यह स्पष्ट करता है कि दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े थे।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

महासागरों और महाद्वीपों का वितरण JAC Class 11 Geography Notes

→ महाद्वीपीय संचलन सिद्धान्त: सन् 1912 में अल्फ्रेड वैगनर ने महाद्वीपीय संचालन का सिद्धान्त प्रचलित किया।

→ पेंजियायह एक महा: महाद्वीप था जो दो भागों में विभक्त हो गया-अंगारालैंड तथा गोंडवानालैंड यह घटना। एक सौ पचास (150) मिलियन वर्ष पूर्व हुई।

→ गोंडवानालैंड: पेंजिया के दक्षिणी भू-खण्ड को गोंडवानालैंड कहते हैं जिसमें दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका के महाद्वीप शामिल थे।

→ महाद्वीपीय संचलन के प्रमाण:

  • Jig-Saw-Fit
  • भू-गर्भिक संरचना
  • जीव-जन्तुओं के जीवाश्म
  • ध्रुवों का घूमना
  • प्लेट सिद्धान्त।

→ प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त: इसके अनुसार भू-मण्डल सात दृढ़ प्लेटों में विभक्त है।

→ प्रशान्त महासागरीय प्लेट: यह सबसे बड़ी प्लेट है जो भू-पृष्ठ के 20% भाग पर विस्तृत है।।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(A) भूकम्पीय तरंगें
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) ज्वालामुखी
(D) पृथ्वी का चुम्बकत्व।
उत्तर:
ज्वालामुखी।

2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(A) शील्ड
(B) मिश्र
(C) प्रवाह
(D) कुण्ड।
उत्तर:
प्रवाह।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमण्डल को वर्णित करता है?
(A) ऊपरी व निचले मैंटल
(B) भूपटल व क्रोड
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(D) मैंटल व क्रोड।
उत्तर:
भूपटल व ऊपरी मैंटल।

4. निम्न में भूकम्प तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(A) ‘P’ तरंगें
(B) ‘S’ तरंगें
(C) रेले तरंगें।
(D) ‘L’ तरंगें।
उत्तर:
‘P’ तरंगें।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूकम्प का अर्थ है पृथ्वी का कम्पन। भूकम्प के कारण ऊर्जा निकलने से तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर प्रभाव डालती हैं। इन्हें भूकम्पीय तरंगें कहते हैं।

प्रश्न 2.
भूकम्प की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
खनन, प्रवेधन, ज्वालामुखी।

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प्रश्न 3.
भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भू-गर्भ की जानकारी सम्बन्धी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:

  1. तापमान, दबाव व घनत्व में परिवर्तन दर
  2. उल्काएं
  3. गुरुत्वाकर्षण
  4. चुम्बकीय क्षेत्र
  5. भूकम्प। प्रश्न

प्रश्न 4. भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएं जिनसे होकर यह तरंगें गुज़रती हैं।
उत्तर:
इन तरंगों के संचरण से शैलों में कम्पन होती है। तरंगों से कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के समान्तर होती है तथा शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया होती है। अन्य तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कम्पन पैदा करती हैं। इनसे शैलों में उभार व गर्त बनते हैं।

प्रश्न 5.
रिक्टर स्केल से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
भूकम्प के वेग की तीव्रता को मापने के लिए चार्ल्स एफ रिक्टर द्वारा निर्मित उपकरण को रिक्टर स्केल कहते हैं। चार्ल्स एफ रिक्टर एक अमेरिकी वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 1935 में इस पैमाने को विकसित किया था। इसमें 1 से 10 तक अंक लिखे होते हैं जो भूकम्प की तीव्रता को दर्शाते हैं। 1 का अंक न्यूनतम वेग और 10 अधिकतम वेग को दर्शाता है। रिक्टर स्केल सामान्य रूप में लॉगरिथम के अनुसार काम करता है।

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प्रश्न 6.
भूकम्प विज्ञान क्या होता है?
उत्तर:
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूकम्प का अध्ययन किया जाता है, भूकंप विज्ञान (Seismology) कहलाता है और भूकम्प विज्ञान का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को भूकंप विज्ञानी कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्वेधी आकृतियाँ:
ज्वालामुखी उद्गार से लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती हैं। लावा का यह जमाव या तो धरातल पर पहुंच कर होता है या धरातल तक पहुंचने से पहले ही भूपटल के नीचे शैल परतों में ही हो जाता है। लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है

1. ज्वालामुखी शैलों (जब लावा धरातल पर पहुंच कर ठंडा होता है) और
2. पातालीय (Plutonic): शैल (जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है।) जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियां बनती हैं। ये आकृतियां अंतर्वेधी आकृतियां (Intrusive forms) कहलाती हैं।

1. बैथोलिथ (Batholiths):
यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हट जाने पर ही यह धरातल पर प्रकट होते हैं। ये विशाल क्षेत्र में फैले होते हैं और कभी-कभी इनकी गहराई भी कई कि० मीट तक होती है। ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं। इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
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2. लैकोलिथ (Lacoliths):
ये गुंबदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व क पानरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मि तती है। अंतर केवल यह होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है। कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों की बनी ऐसी ही गुंबदनुमा पहाड़ियां हैं। इनमें से अधिकतर अब अपपत्रित (Exfoliated) हो चुकी हैं व धरातल पर देखी जा सकती हैं। ये लैकोलिथ व बैथोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं।

3. लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल (Lapolith, phacolith and sills):
ऊपर उठते लावे का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाये जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहां यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी (Saucer) के आकार में जम जाए तो यह लैपोलिथ कहलाता है। कई बार अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति (Anticline) के ऊपर व अभिनति (Syncline) के तल में लावा का जमाव पाया जाता है।

ये परतनुमा/लहरदार चट्टानें एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं। (जो क्रमशः बैथोलिथ में विकसित होते हैं) यह ही फैकोलिथ कहलाते हैं। अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है-कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घने मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।

4. डाइक (Dyke):
जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भांति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है। पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में यह आकृति बहुतायत में पाई जाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप के विकास में डाइक उद्गार की वाहक समझी जाती हैं।

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प्रश्न 2.
भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
छाया क्षेत्र का उद्भव: भूकम्पलेखी यन्त्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र (Shadow zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकम्पीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकम्प का छाया क्षेत्र दूसरे भूकम्प के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है। यह देखा जाता है कि भूकम्पलेखी
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भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° के भीतर किसी भी दूरी पर ‘P’ व ‘S’ दोनों ही तरंगों का अभिलेखन करते हैं। भूकम्पलेखी, अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल ‘P’ तरंगों के पहुंचने को ही दर्ज करते हैं और ‘S’ तरंगों को अभिलेखित नहीं करते। अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र (जहां कोई भी भूकम्पीय तरंग

अभिलेखित नहीं होती) दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र (Shadow zone) हैं। 105° के परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुंचतीं। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकम्प अधिकेन्द्र के 105° से 145° तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है। अगर आपको भूकम्प अधिकेन्द्र का पता हो तो आप किसी भी भूकम्प का छाया क्षेत्र रेखांकित कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है। क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए मनुष्य के पास कोई प्रत्यक्ष (Direct) साधन नहीं है। इस संरचना के बारे में मनुष्य का ज्ञान बहुत कम गहराई तक ही सीमित है। पृथ्वी की संरचना का प्रत्यक्ष ज्ञान कुओं, खदानों तथा संछिद्रों द्वारा केवल 4 किलोमीटर की गहराई तक ही प्राप्त होता है। पृथ्वी के अन्दर वर्तमान अत्यधिक तापमान के कारण प्रत्यक्ष निरीक्षण लगभग असम्भव है। खनिज तेल की खोज के लिए मनुष्य ने लगभग 6 कि० मी० गहरी छेद (Bore hole) बनाई है।

पृथ्वी के केन्द्र की गहराई (लगभग 6400 कि० मी०) की तुलना में यह बहुत ही कम है। इसी कारण से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए अप्रत्यक्ष स्त्रोत (Indirect methods) प्रयोग किए जाते हैं। पृथ्वी की संरचना के आंकड़े केवल अनुमान से प्राप्त किए जाते हैं तथा इनके पश्चात् इन आंकड़ों की पुष्टि भूकम्प विज्ञान के कई प्रमाणों द्वारा की जाती है।

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प्रश्न 4.
भूकम्पीय तरंगें कौन-कौन सी हैं ? इनकी विशेषताओं का वर्णन करो।ये पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की विभिन्नताओं की जानकारी कैसे देती हैं?
उत्तर:
1. अनुदैर्ध्य तरंगें(Longitudinal Waves):
ये तरंगें ध्वनि तरंगों (Sound Waves) की भान्ति होती हैं। ये तरल, गैस तथा ठोस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती। ये तरंगें आगे-पीछे एक-समान गति से चलती हैं। इन्हें अभिकेन्द्र प्राथमिक तरंगें (Primary waves) या केवल P-waves भी कहा जाता है।

2. अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves):
ये तरंगें दोलन की दिशा पर समकोण बनाती हुई चलती हैं। इनकी गति धीमी होती है। ये तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं। इन्हें साधारणत: माध्यमिक तरंगें (Secondary waves) या (S-waves) भी कहा उद्गम जाता है।
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3. धरातलीय तरंगें (Surface Waves):
ये तरंगें धरातल पर अधिक प्रभावकारी होती हैं। गहराई के साथ-साथ इनकी तीव्रता कम हो जाती है। ये एक लम्बे समय में पृथ्वी के भीतरी भागों तक पहुंच पाती हैं। ये तरंगें ठोस, तरल एवं गैसीय माध्यमों की सीमाओं से गुज़रती हैं। इन्हें रैले तरंगें (Rayliegh waves) या (R-waves) भी कहा जाता है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना JAC Class 11 Geography Notes

→ भू-गर्भ का ज्ञान: पृथ्वी के भू-गर्भ की जानकारी सीमित है। भू-गर्भ का ज्ञान परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है।

→ भू-गर्भ ज्ञान के विभिन्न स्रोत: पृथ्वी का तापमान दबाव, विभिन्न परतों का घनत्व, भूकम्प तथा उल्कायें भू-गर्भ की जानकारी प्रदान करती हैं।

→ तापमान तथा दबाव: गहराई के साथ-साथ औसत रूप से तापमान प्रति 32 मीटर पर °C बढ़ जाता है। ऊपरी। चट्टानों के कारण दबाव भी बढ़ता है।

→ पृथ्वी की संरचना: पृथ्वी की संरचना तहदार है। बाहरी परत को सियाल, मध्यवर्ती परत को सीमा तथा। आन्तरिक परत को नाइफ कहा जाता है। इन परतों को भू-पृष्ठ, मैंटल, क्रोड या स्थलमण्डल, मैसोस्फीयर तथा। बैरीस्फीयर भी कहते हैं।

→ ज्वालामुखी (A Volcano): ज्वालामुखी धरातल पर एक गहरा छिद्र है जिससे भू-गर्भ से गर्म गैसें, लावा, तरल व ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं।

→ ज्वालामुखी के भाग: (i) छिद्र (ii) ज्वालामुखी नली (ii) ज्वालामुखी क्रेटर।

→ भूकम्प (An Earthquake): भू-पृष्ठ के किसी भी भाग के अचानक हिल जाने को भूकम्प कहते हैं। यह ! भू-पृष्ठ के अचानक हिलने के कारण होता है जिसके फलस्वरूप झटके अनुभव होते हैं। भूकम्प के मुख्य कारण हैं

  • ज्वालामुखीय विस्फोट
  • विवर्तनिक कारण
  • लचक शक्ति
  • स्थानीय कारण।

→ भूकम्पीय तरंगें (Earthquake Waves): ये तरंगें पृथ्वी के भीतर जिस स्थान से उत्पन्न होती हैं, उसे उद्गम केन्द्र (Focus) कहते हैं। इस केन्द्र के ऊपर धरातल पर स्थित स्थान को अभिकेन्द्र (Epicenter) कहते ! हैं। भूकम्पीय तरंगों का भूकम्प मापी यन्त्र (Sesimograph) द्वारा आलेखन किया जाता है। भूकम्पीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं

  • अनुदैर्ध्य तरंगें या प्राथमिक तरंगें (P-waves)
  • अनुप्रस्थ तरंगें या माध्यमिक तरंगें (S-waves)
  • धरातलीय तरंगें (L-waves)