JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

JAC Class 10 Hindi आत्मत्राण Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर :
कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे आत्मिक बल प्रदान करे। वह भले ही उसकी सहायता न करे, किंतु उसके आत्मविश्वास को बनाए रखे। कवि ईश्वर से अपने आप को स्वावलंबी बनाए रखने की प्रार्थना कर रहा है।

प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’-कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
कवि इस पंक्ति के माध्यम से कहना चाहता है कि वह ईश्वर से अपने आपको मुसीबतों से बचाने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। वह जीवन में प्रत्येक मुसीबत से स्वयं लड़ना चाहता है। वह संकट की घड़ी में संघर्ष करना चाहता है। वह पूर्णतः ईश्वर पर आश्रित न होकर स्वावलंबी बनना चाहता है। कवि कहता है कि वह ईश्वर से केवल आत्मिक बल चाहता है, ताकि वह अपने सभी कार्य स्वयं कर सके।

प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
अथवा
विपत्ति आने पर कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर :
कवि कहता है कि दुख की घड़ी में यदि कोई सहायक नहीं मिलता, तो भी उसे इसका कोई गम नहीं है। वह ईश्वर से केवल इतनी प्रार्थना करता है कि ऐसे समय में भी वह अपना आत्मविश्वास और पराक्रम न खोए। वह चाहता है कि ईश्वर उसे इतनी शक्ति दे कि दुख में भी उसका मन हार न माने। वह उन दुखों से लड़ने की शक्ति पाने की प्रार्थना करता है।

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प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर :
कविता के अंत में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वे उसे दुखों को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। वह सुख और दुख में एक जैसा अनुभव करे। जब उसके जीवन में सुख हो, तब भी वह विनम्र होकर ईश्वर को अपने आस-पास अनुभव करे तथा जब वह दुखों में घिर जाए, तब भी ईश्वर पर उसका विश्वास न डगमगाए। कवि प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे आत्मिक बल प्रदान करने के लिए सदैव उसके साथ रहे। वह कभी अपने पथ से विचलित न हो।

प्रश्न 5.
‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘आत्मत्राण’ शीर्षक का अर्थ बताते हुए उसका सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने ‘आत्मत्राण’ कविता में ईश्वर से आत्मिक एवं नैतिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। ‘आत्म’ से तात्पर्य अपना तथा ‘त्राण’ का अर्थ रक्षा अथवा बचाव है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसे वह शक्ति प्रदान करे, जिससे वह अपने आप अपनी रक्षा कर सके। वह जीवन के सभी संघर्षों से स्वयं जूझना चाहता है। वह ईश्वर से सहायता नहीं चाहता अपितु वह अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है। इसी आधार पर कवि ने इस कविता का नामकरण ‘आत्मत्राण’ किया है। यह नामकरण कविता के मूल भाव को व्यक्त करने में पूर्णत: सक्षम है। अतः यह शीर्षक एकदम उचित, सार्थक एवं स्टीक है।

प्रश्न 6.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं ? लिखिए।
उत्तर :
प्रायः अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है लेकिन हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के साथ-साथ मेहनत भी करते हैं। केवल प्रार्थना करने से सफलता नहीं मिलती। प्रार्थना के साथ-साथ परिश्रम करने से ही सफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम दूसरों से प्रेरणा लेते हैं। हम अपने-अपने क्षेत्र में उन्नति करते हुए अनेक लोगों से प्रेरणा लेकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। इस प्रकार लक्ष्य-प्राप्ति पर हमारी इच्छाओं की पूर्ति होती है। ईश्वर की प्रार्थना के साथ-साथ हम स्वयं पर आत्मविश्वास रखकर ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं।

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प्रश्न 7.
क्या कवि की यह प्रार्थना तम्हें अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ. तो कैसे?
उत्तर :
कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है। अन्य प्रार्थना गीतों में ईश्वर से अपना कल्याण करने की प्रार्थना की जाती है, किंतु इस प्रार्थना गीत में कवि स्वयं संघर्ष करके मुसीबतों का मुकाबला करना चाहता है। अन्य प्रार्थना गीतों में स्वयं को दीनहीन प्रदर्शित करके ईश्वर से उद्धार करने की प्रार्थना की जाती है, लेकिन इस प्रार्थना में कवि ने ईश्वर से कुछ न करने को कहा है।

वह केवल इतना चाहता है किं ईश्वर उसका आत्मिक और नैतिक बल बनाए रखे अन्य प्रार्थनाओं के विपरीत इस प्रार्थना में कवि ने अपना सारा भार ईश्वर पर नहीं डाला। कवि अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसके आस-पास रहे और उसे उसकी मात्र अनुभूति होती रहे। इस प्रार्थना की यही विशेषताएँ इसे अन्य प्रार्थना गीतों से अलग करती है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. नत शिर होकर सुख के दिन में, तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही, तो भी मन में ना मानूँ क्षय
3. तरने की हो शक्ति अनामय, मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर :
1. इन पंक्तियों में कवि कहता है कि सुख के दिनों में भी उसे किसी तरह का अभिमान न हो! वह विनम्र रहे तथा ईश्वर में उसकी आस्था पहले जैसी ही बनी रहे। कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनों में भी अपने सिर को झुकाकर अत्यंत विनम्र भाव से ईश्वर की छवि को पल-पल निहारता रहे। ईश्वर में उसका विश्वास ज़रा भी कम न हो। वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह सुख के नशे में डूबकर उन्हें कभी न भूले।

2. इन पंक्तियों में कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि कठिन परिस्थितियों में भी उसका मन हार न माने। कवि कहना चाहता है कि उसे संसार में पग-पग पर हानि उठाना स्वीकार है और यदि उसे लाभ के स्थान पर धोखा मिले, तो भी वह नहीं घबराएगा। वह केवल इतना चाहता है कि ऐसी संकट की घड़ी में भी उसका मन न हारे। यदि उसका मन हार गया तो फिर उसके जीवन में कुछ भी शेष नहीं रहेगा। अतः कवि ने यहाँ ईश्वर से मानसिक बल देने की प्रार्थना की है।

3. इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि ईश्वर उसे इतनी मानसिक दृढ़ता दे कि वह अपने दुखों को सहन कर सके। कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि यदि वह उसके दुखों के भार को कम करके उसे दिलासा न दे, तो भी उसे दुख नहीं है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से इतना दृढ़ कर दे कि वह संसाररूपी सागर को सरलता से पार कर जाए। कवि ईश्वर से सांत्वना के स्थान पर स्वयं को संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की बात कहता है।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत-संग्रह में से दो गीत छाँटिए और कक्षा में कविता-पाठ कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए। जैसे –
1. महादेवी वर्मा-क्या पूजा क्या अर्चन रे!
2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला-दलित जन पर करो करुणा।
3. इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पर हम से, भूल कर भी कोई भूल हो न
इस प्रार्थना को ढूँढ़कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है? क्या आपको दोनों में कोई अंतर भी प्रतीत होता है ? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र कर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गाया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सी०डी० लेकर सुनिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi आत्मत्राण Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘करुणामय’ किसे कहा है ? कवि ने क्या कामना की है ?
उत्तर :
कवि ने ‘करुणामय’ ईश्वर को कहा है। उसके अनुसार ईश्वर सब प्रकार से समर्थ और सर्वशक्तिमान है। ईश्वर में सबकुछ संभव कर देने की शक्ति है। कवि ने ईश्वर से कामना की है कि वह उसे जीवन में संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करे। कवि जीवन की प्रत्येक मुसीबत में और प्रत्येक द्वंद्व में ईश्वर से अपने बलबूते पर सफल होने की कामना करता है। वह जीवन में प्रत्येक क्षण, अपने प्रत्येक सुख-दुख और संघर्ष में ईश्वर को अपने आस-पास अनुभव करना चाहता है।

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प्रश्न 2.
कवि ईश्वर से दुख के समय सांत्वना के स्थान पर क्या चाहता है ?
उत्तर :
कवि कहता है कि दुख के समय ईश्वर यदि उसके हृदय को सांत्वना नहीं देता, तो भी उसे गम नहीं है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसे दुखों पर विजय पाने की शक्ति प्रदान करे। यदि दुख के क्षण में उसे कोई सहायक न भी मिले, तो भी कवि चाहता है कि उसका आत्मिक बल और पराक्रम बना रहे। वह स्वयं अपने दुखों से संघर्ष करके उन पर विजय पाना चाहता है। अभिप्राय यह है कि कवि अपनी समस्याओं व कठिनाइयों से स्वयं संघर्ष करना चाहता है; वह ईश्वर से केवल संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने के लिए कहता है।

प्रश्न 3.
अंत में कवि ने ईश्वर से क्या प्रार्थना की है?
उत्तर :
अंत में कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वह सुख और दुख-दोनों ही स्थितियों में उसे अपने आस-पास अनुभव करे। कवि कहता है कि वह सुख में भी अपने ईश्वर को नहीं भूलना चाहता। वह विनम्रता से प्रभु के दर्शन करना चाहता है। जीवन में दुखरूपी रात्रि के आने पर तथा सारे संसार द्वारा धोखा मिलने पर कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वह उस पर किसी प्रकार का संदेह न करे। कवि चाहता है कि वह दुख में भी ईश्वर पर अपने विश्वास को दृढ़ बनाए रखे।

प्रश्न 4.
‘आत्मत्राण’ कविता के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ? उसका संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘आत्मत्राण’ कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित एक श्रेष्ठ कविता है। यह मूल रूप से बाँग्ला भाषा में लिखित है। इसमें कवि ने ईश्वर से उसे आत्मिक और मानसिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। इसमें कवि ईश्वर से अपनी सहायता और कल्याण नहीं चाहता अपितु वह ईश्वर से ऐसी शक्ति को प्राप्त करना चाहता है, जिससे वह अपने जीवन के संकटों, मुसीबतों, मुश्किलों, दुर्बलताओं से लड़ सके; जिससे वह जीवनरूपी सागर से पार हो सके। कवि किसी दूसरे पर आश्रित होने की बजाय स्वावलंबी बनकर अपनी समस्याओं व दुर्बलताओं से संघर्ष करना चाहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

प्रश्न 5.
रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा-शैली पर नोट लिखिए।
उत्तर :
रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा-शैली अत्यंत सरस, सहज और सरल
विद्यमान है। इनकी शैली भावात्मक तथा आत्मकथात्मक है। इसमें प्रवाहमयता, लयात्मकता, संगीतात्मकता, चित्रात्मक आदि का समावेश है।

प्रश्न 6.
‘आत्मत्राण’ कविता की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘आत्मत्राण’ कविता रर्वींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित है। इसमें कवि ने तत्सम प्रधान सहज, सरल भाषा का प्रयोग किया है। शैली भावपूर्ण है। चित्रात्मकता एवं प्रवाहमयता का समावेश है। मुक्तक छंद का प्रयोग है। भक्ति रस तथा प्रसाद गुण है। अनुप्रास, पदमैत्री एवं स्वरमैत्री अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 7.
कवि किन पर विजय पाना चाहता है ? क्यों ?
उत्तर :
कवि दुखों पर विजय पाना चाहता है, ताकि उसका जीवन संघर्षमय बना रहे। वह अपने जीवन में निरंतर संघर्ष करना चाहता है। वह कहता है कि चाहे प्रभु उसके दुखी हृदय को सांत्वना न दें, परंतु उसे दुखों पर विजय पाने की शक्ति अवश्य प्रदान करें।

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प्रश्न 8.
‘नत शिर होकर सुख के दिन में, तब मुख पहचानूँ छिन-छिन में।’ अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर :
इस अवतरण में कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि मैं तुम्हें सुखमय दिनों में भी न भुला पाऊँ। भाषा सहज, सरल, तत्सम प्रधान है। मक्तक छंद है। शांत रस है। प्रसाद गुण है। पनरुक्ति प्रकाश, पदमैत्री अलंकारों की छटा है। प्रवाहमयता एवं भावात्मकता का समावेश है।

प्रश्न 9.
‘आत्मत्राण’ कविता के आधार पर बताइए कि हमें दुख के समय प्रभु से किस प्रकार की प्रार्थना करनी चाहिए?
उत्तर :
कविता में कवि ने लकीर से हटकर चलने की बात की है। आमतौर पर मनुष्य ईश्वर से दुख को मिटाने या उससे मुक्त होने की प्रार्थना करता है, किंतु इस कविता में कवि ऐसा कुछ नहीं चाहता। वह ईश्वर से दुख सहने की शक्ति प्रदान करने के लिए कहता है। वह अपने कष्टों को सहने के लिए आत्मिक बल की याचना करता है।

प्रश्न 10.
‘आत्मत्राण’ कविता मूल रूप में किस भाषा में लिखी गई थी? कवि ने इसमें क्या प्रार्थना की है?
उत्तर :
‘आत्मत्राण’ कविता मूल रूप से बाँग्ला भाषा में लिखी गई। इसके रचनाकार रवींद्रनाथ टैगोर हैं। बाद में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसका हिंदी में अनुवाद किया गया। इस कविता में कवि ने प्रभु से प्रार्थना की है कि वे उसे मानसिक तथा आत्मिक बल प्रदान करें, जिससे वह अपने जीवन के कष्टों का सामना कर सके।

आत्मत्राण Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-श्री रवींद्रनाथ ठाकुर भारत में नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में कवि-रूप में प्रसिद्ध हैं, इसलिए उन्हें विश्व-कवि की संज्ञा दी गई है। उनका जन्म बंगाल के एक संपन्न परिवार में 6 मई 1861 में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध घर पर ही किया गया। तीव्र प्रतिभा तथा स्वाध्याय के बल पर उन्होंने छोटी आयु में ही अनेक विषयों की जानकारी प्राप्त कर ली। प्रकृति के साथ उनका गहरा अनुराग था। उन्हें बैरिस्ट्री का अध्ययन करने के लिए विदेश भेजा गया, पर वे बिना परीक्षा दिए ही स्वदेश लौट आए।

रवींद्रनाथ की ग्रामीण जीवन में बड़ी रुचि थी। अत: उन्होंने बंगाल के गाँवों का खूब भ्रमण किया। गाँवों के लोक-जीवन से भी वे अत्यधिक प्रभावित थे। चित्रकला तथा संगीत में भी उनकी विशेष रुचि थी। सन 1913 ई० में उन्हें गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने शांति निकेतन नामक एक शैक्षिक व सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की, जो कि आज भी कार्यरत है। वर्ष 1941 में रवींद्रनाथ सदा के लिए निंद्रालीन हो गए।

रचनाएँ – रवींद्रनाथ ठाकुर की कविताओं में मानव-प्रेम, राष्ट्र-प्रेम तथा अध्यात्म-प्रेम की विशेष अभिव्यक्ति हुई है। प्रेम और सौंदर्य के प्रति भी उनका बड़ा आकर्षण रहा है। इन गुणों के कारण ही उनकी रचनाएँ विश्व विख्यात हुईं। बाँग्ला भाषा के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी साहित्य की रचना की है। उनकी प्राय: सभी रचनाओं का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं-गीतांजलि, नैवेद्य, पूरबी, क्षणिका, चित्र और सांध्य गीत आदि। कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत तथा निबंधों की भी रचना की है। इनकी प्रमुख कहानी ‘काबुलीवाला’ तथा प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोरा’ है।

भाषा-शैली – रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सरस और सहज है। इनकी भाषा में भावुकता के दर्शन अधिक होते हैं। मार्मिकता, प्रभावोत्पादकता तथा रोचकता इनकी भाषा की अन्य विशेषताएँ हैं। इनकी काव्य-भाषा में एक विशेष लय तथा ताल दिखाई देती है, जिससे इनकी भाषा में संगीतात्मकता आ गई है। इनकी कविताएँ भी गीत के समान गाई जा सकती हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर की शैली भावात्मक और आत्मकथात्मक है। इनकी शैली में गीतात्मकता भी दिखाई देती है।

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कविता का सार :

‘आत्मत्राण’ रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखी एक श्रेष्ठ कविता है। यह कविता मूल रूप से बाँग्ला भाषा में लिखी गई थी, जिसका हिंदी में : अनुवाद किया गया है। इस कविता में कवि ने ईश्वर से उसे आत्मिक और मानसिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। कवि ईश्वर से अपनी सहायता और कल्याण नहीं चाहता अपितु वह ईश्वर से ऐसी शक्ति प्राप्त करना चाहता है, जिससे वह स्वयं अपनी समस्त मुसीबतों और संकटों से लड़ सके।

कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह यह नहीं चाहता कि उसे मुसीबतों से बचाया जाए बल्कि वह यह चाहता है कि जीवन में अनेक मुसीबतें आने पर भी वह उनसे न डरे। उस समय उसमें इतना साहस आ जाए कि वह सभी मुसीबतों का डटकर मुकाबला करे। कवि कहता है कि हे करुणामय ईश्वर! आप दुखों और परेशानियों से दुखी मेरे हृदय को चाहे सांत्वना न दें, लेकिन मुझे इतनी शक्ति दें कि मैं दुखों पर विजय प्राप्त कर सकूँ।

जब मेरे जीवन में दुख आए और कोई मेरी सहायता करने वाला न मिले, तब आप मुझे इतनी शक्ति दें कि मेरा आत्मविश्वास और पराक्रम बना रहे। कवि चाहता है कि जब उसे चारों ओर हानि हो और विश्वास के स्थान पर धोखा मिले, तो ईश्वर उसके मन को दृढ़ता प्रदान करें; उसका मन कभी भी संघर्षों से घबराकर हार न माने।

कवि ईश्वर से पुन: प्रार्थना करता है कि हे ईश्वर! चाहे उसकी प्रतिदिन रक्षा न की जाए, किंतु उसे जीवनरूपी सागर को पार करने की शक्ति अवश्य प्रदान की जाए। वह कहता है कि यदि उसके दुखों के भार को कम नहीं किया जा सकता, तो उसे उन दुखों को सहन करने की शक्ति प्रदान की जाए।

कवि प्रार्थना करता है कि वह सुख के दिनों में भी ईश्वर के प्रति विनम्र बना रहे और अभिमान में डूबकर ईश्वर को न भूले। अंत में कवि कहता है कि जब वह दुखरूपी रात्रि में घिर जाए और सारा संसार उसे धोखा दे जाए, तो भी उसे अपने ईश्वर पर कोई संदेह न हो। दुख की घड़ी में भी उसका अपने ईश्वर पर विश्वास बना रहे।

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सप्रसंग व्याख्या –

1. विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।

शब्दार्थ : विपदाओं – विपत्तियों, मुसीबतों। करुणामय – दूसरों पर दया करने वाला, दया से परिपूर्ण। भय – डर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से आत्मिक एवं मानसिक बल देने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे ईश्वर! आप सब पर दया करने वाले हैं। आप सब प्रकार से समर्थ हैं। आप सबकुछ कर सकते हैं। फिर भी कवि उनसे अपने आपको विपत्तियों से बचाने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। कवि के अनुसार वह केवल इतनी प्रार्थना करना चाहता है कि जब वह मुसीबतों में घिर जाए तो वह उन विपदाओं से न डरे। वह उन कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करना चाहता है। अतः वह ईश्वर से विपदाओं से जूझने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करता है।

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2. दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय॥

शब्दार्थ : दुःख-ताप – कष्ट की पीड़ा। व्यथित – दुखी। चित्त – हृदय। सांत्वना – दिलासा। सहायक – सहायता करने वाला, मददगार। पौरुष – पराक्रम। वंचना – धोखा। क्षय – नाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनुदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से अपना कल्याण करने के स्थान पर संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि चाहे ईश्वर सांसारिक दुखों से दुखी उसके हृदय को दिलासा न दें, परंतु वह इतना अवश्य चाहता है कि उसे दुखों पर विजय पाने की शक्ति प्रदान की जाए। वह स्वयं अपने दुखों से जूझकर उन पर विजय पाना चाहता है। दुख की घड़ी में यदि उसे कोई सहायक नहीं मिलता, तो उसे इतनी शक्ति अवश्य दी जाए कि उसका आत्मिक बल और पराक्रम न डगमगाए।

कवि ईश्वर से पुनः प्रार्थना करता है कि चाहे उसे जीवन में सदा हानि उठानी पड़े और लाभ के स्थान पर धोखा मिले, तो भी वह मन से हार न माने। वह ईश्वर से ऐसी शक्ति देने की प्रार्थना करता है कि मुसीबतों से बार-बार संघर्ष करने पर भी उसका मन कभी न हारे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

3. मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय –
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

शब्दार्थ : त्राण – रक्षा, बचाव। अनुदिन – प्रतिदिन। अनामय – स्वस्थ, रोग से रहित। लघु – छोटा। सांत्वना – दिलासा। अनुनय – विनय, दया। वहन – सहन। निर्भय – निडर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से अपना कल्याण करने के स्थान पर संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : पंक्तियों के अनुसार कवि ईश्वर अपनी मुसीबतों और दुखों से प्रतिदिन रक्षा करने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। वह केवल इतना चाहता है कि वे उसे स्वस्थ मन और तन से जीवनरूपी सागर को पार करने की शक्ति प्रदान करें। कवि पुनः कहता है कि ईश्वर चाहे उसके दुखों के भार को कम करके उसे दिलासा न दें, किंतु वे उसे जीवन में आने वाले दुखों को निडरतापूर्वक सहने की शक्ति दें। वह स्वयं संघर्ष करना चाहता है, किंतु प्रत्येक क्षण ईश्वर का साथ चाहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

4. नत शिर होकर सुख के दिन में
तब मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय॥

शब्दार्थ : नत शिर – सिर को झुकाकर। तव – तुम्हारा। दुःख-रात्रि – दुख से भरी रात। वंचना – धोखा, छल। निखिल – संपूर्ण। मही – पृथ्वी। संशय – संदेह, शक।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित एवं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से आत्मिक और मानसिक शक्ति देने की प्रार्थना की है, ताकि वह अपने जीवन-संघर्षों का मुकाबला कर सके।

व्याख्या : कवि प्रार्थना करते हए कहता है कि जब उसके जीवन में सुख के दिन आए तो भी वह ईश्वर को न भले। वह पल-पल सिर झकाकर उनके दर्शन करता रहे। जब उसके जीवन में दुखरूपी रात्रि आ जाए; सारा संसार उसे धोखा दे जाए और उसकी निंदा करे, तो भी वह ईश्वर पर विश्वास रखे। वह कभी ईश्वर पर संदेह न करे। कवि चाहता है कि सुख और दुख-दोनों ही स्थितियों में उसका ईश्वर पर विश्वास बना रहे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 तोप

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 तोप Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 तोप

JAC Class 10 Hindi तोप Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
विरासत में मिली चीज़ों की बड़ी संभाल होती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
विरासत से तात्पर्य उत्तराधिकार में मिला धन एवं वस्तुएँ होती हैं। विरासत में मिली इन चीजों में हम अपने पूर्वजों की उपस्थिति को अनुभव करते हैं। इसके साथ-साथ ये हमें हमारे पूर्वजों की निरंतर याद दिलाती हैं। ये वस्तुएँ हमें बताती हैं कि हमारे पूर्वजों ने जीवन कैसा बिताया होगा। ये हमें उनकी उपलब्धियों के विषय में भी बताती हैं। विरासत में मिली चीज़ों को अपने पूर्वजों के आशीर्वाद के रूप में भी संभालकर रखा जाता है। अत: विरासत में मिली चीजों का बहुत महत्व होता है।

प्रश्न 2.
इस कविता से आपको तोप के विषय में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर :
‘तोप’ कविता हमें कंपनी बाग में रखी तोप के विषय में बताती है कि यह सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय अंग्रेजी सेना द्वारा प्रयोग की गई तोप है। इसे वर्ष में दो बार चमकाया जाता है और यह हमारी धरोहर के रूप में विद्यमान है। यह वही तोप है, जिसने अनेक देशभक्त वीरों को मौत के घाट उतार दिया था। अब यह बच्चों की घुड़सवारी करने के काम आती है। कभी कभी छोटी शैतान चिड़ियाँ इसके भीतर घुस जाया करती हैं। वे इस ओर संकेत करती हैं कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, एक न एक दिन उसे धराशायी होना ही पड़ता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 तोप

प्रश्न 3.
कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है ?
उत्तर :
कंपनी बाग में रखी तोप हमें बताती है कि अत्याचारी की ताकत कितनी भी अधिक क्यों न हो, उसे मनुष्य के संयुक्त प्रयासों और विद्रोह के सामने झुकना ही पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह हमें सिखाती है कि हमें भविष्य में कभी किसी ऐसी विदेशी कंपनी : को अपने देश में पाँव जमाने नहीं देना चाहिए, जिसकी नीयत ठीक न हो। यदि ऐसा हो गया, तो हमारा देश फिर से गुलाम हो सकता है।

प्रश्न 4.
कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दो अवसर कौन-से होंगे?
उत्तर :
ये दो अवसर संभवतः 15 अगस्त एवं 26 जनवरी होंगे। यह तोप हमें हमारे स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाती है। ये दोनों अवसर भी इसी से जुड़े हुए हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।
उत्तर :
कवि ने स्पष्ट किया है कि सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में प्रयोग की गई तोप हमारी विरासत के रूप में कंपनी बाग में विद्यमान कोई महत्व नहीं रहा। कंपनी बाग में घूमने के लिए आने वाले छोटे-छोटे लड़के अब इस पर घुड़सवारी करते हैं। कभी-कभी इस तोप पर चिड़ियाँ बैठती हैं, जो अपनी चहचहाहट से आपस में बातें करती हुई प्रतीत होती हैं।

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प्रश्न 2.
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुंह बंद।
उत्तर :
कवि यहाँ स्पष्ट करना चाहता है कि कोई कितना भी बड़ा और शक्तिशाली क्यों न हो, उसका एक न एक दिन अंत अवश्य होता है। कंपनी बाग में रखी तोप इस बात का प्रमाण थी। वह भी किसी समय शक्तिशाली तोप थी, किंतु आज वह निरर्थक हो गई है। अतः मनुष्य को अपनी शक्ति और बाहुबल पर घमंड नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे।
उत्तर :
कवि इन पंक्तियों में कंपनी बाग में रखी तोप के विषय में बताता है। कवि कहता है कि किसी समय यह तोप बहुत शक्तिशाली थी। ब्रिटिश सेना ने भारतीय देशभक्तों का दमन करने के लिए इसका प्रयोग किया था। यह तोप एक ही समय में बड़े-बड़े वीरों की धज्जियाँ उड़ाने में सक्षम थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
कवि ने इस कविता में शब्दों का सटीक और बेहतरीन प्रयोग किया है। इसकी एक पंक्ति देखिए ‘धर रखी गई है यह 1857 की तोप’।’धर’ शब्द देशज है और कवि ने इसका कई अर्थों में प्रयोग किया है। रखना’, ‘धरोहर’ और ‘संचय’ के रूप में। अर्थात कंपनी बाग के मुहाने पर यह तोप ‘धरोहर’ के रूप में रखी गई है।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं पढ़ें।

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प्रश्न 2.
‘तोप’ कविता का भाव समझते हुए इसका गद्य में रूपांतरण कीजिए।
उत्तर :
इस प्रश्न के उत्तर के लिए ‘कविता का सार’ देखें।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
कविता रचना करते समय उपयुक्त शब्दों का चयन और उनका सही स्थान पर प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। कविता लिखने का प्रयास कीजिए और इसे समझिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
तेजी से बढ़ती जनसंख्या और घनी आबादी वाली जगहों के आसपास पार्कों का होना क्यों जरूरी है ? कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न :
स्वतंत्रता सैनानियों की गाथा संबंधी पुस्तक को पुस्तकालय से प्राप्त कीजिए और पढ़कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi तोप Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कंपनी बाग के मुहाने पर क्या रखा हुआ है और क्यों?
उत्तर :
कंपनी बाग के मुहाने अर्थात प्रवेश-द्वार पर एक तोप रखी हुई है। यह सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय की है। कहा जाता है कि अपने समय में इस तोप ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को अपने बारूद से उड़ा दिया था। इसे धरोहर के रूप में रखा गया है। यह हमें हमारे गुलामी के दिनों की याद दिलाती है। साथ ही यह हमें हमारे पूर्वजों द्वारा की गई गलतियों के विषय में भी बताती है। यह तोप भविष्य में उन गलतियों को न दोहराने का संदेश देती है।

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प्रश्न 2.
कंपनी बाग में रखी तोप अब किसके काम आ रही थी?
उत्तर
कंपनी बाग में रखी तोप अब साधारण वस्तु बनकर रह गयी थी। अब वह कंपनी बाग में आने वाले बच्चों की घुड़सवारी के काम आ रही थी। जब बच्चे उस पर घुड़सवारी नहीं करते थे, तब चिड़ियाँ उस पर बैठी रहतीं। कभी-कभी शैतान चिड़ियाँ उसके भीतर घुस जाया करती थीं। कभी वह तोप शक्तिशाली हुआ करती थी, किंतु अब वह सामान्य चीज़ थी। कंपनी बाग में आने-जाने वाले लोग इसे केवल जिज्ञासावश ही देखते हैं। अब वर्तमान समय इनका महत्व समाप्त हो गया था।

प्रश्न 3.
‘तोप’ कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘तोप’ कविता बड़े ही सहज भाव से यह संदेश देना चाहती है कि शक्ति प्रदर्शन करने का जमाना अब बीत गया है। अब तो लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली का जन्म हो चुका है। अब समस्याओं के समाधान के लिए तोप नहीं बल्कि बातचीत का द्वार खुलता है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी बातचीत तोपों पर विजयी रही थी। अतः शक्ति का अनावश्यक प्रयोग न करके शांति स्थापना करना तथा शांति बनाए रखना ही कवि का एक मात्र संदेश है। यह कविता इस बात को भी प्रमाणित करती है भले ही कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, इस दिन उसे लोगों के संयुक्त प्रयासों के सम्मुख नतमस्तक होना ही पड़ता है।

प्रश्न 4.
वीरेन डंगवाल द्वारा रचित कविता किस प्रकार की है?
उत्तर :
वीरेन डंगवाल द्वारा रचित कविता ‘तोप’ एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। इस कविता के माध्यम से कवि ने आम जनमानस को संदेश देना चाहा है कि अतीत में जो गलतियाँ हुई हैं, उन्हें वर्तमान में पुनः न दोहराया जाए। हमें गलतियों से सबक सीखते हुए कुछ नवीन एवं अच्छा करने के बारे में सोचना चाहिए।

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प्रश्न 5.
कवि के अनुसार हमें विरासत में क्या मिला है?
उत्तर :
कवि के अनुसार कंपनी बाग के प्रवेश-द्वार पर रखी तोप हमारी धरोहर के रूप में आज भी हमारे सामने है। यह तोप सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता-संग्राम में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर प्रयोग की गई थी। आज वही तोप हमें विरासत के रूप में मिली है।

प्रश्न 6.
कवि के अनुसार तोप हमें किसकी याद दिलाती है?
उत्तर :
कवि के अनुसार तोप हमें हमारे पूर्वजों की कुर्बानी और उनकी शहादत की याद दिलाती है कि किस प्रकार देश और देशवासियों के लिए उन्होंने हँसते-हँसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। इसके साथ-साथ यह हमें ईस्ट इंडिया कंपनी की बर्बरता की भी याद दिलाती है।

प्रश्न 7.
कवि के मतानुसार तोप किससे और कहाँ बातचीत करती है?
उत्तर :
कवि के मतानुसार तोप कंपनी बाग में घूमने-फिरने के लिए आने वाले लोगों को देखकर उनसे बातचीत करती हुई प्रतीत होती है। ऐसा लगता है, मानों वह लोगों को अपने अतीत से अवगत करवाना चाहती है तथा देश के शहीदों के प्रति लोगों के हृदय में सम्मान जगाना चाहती है।

प्रश्न 8.
तोप को कहाँ और कैसे रखा गया है?
उत्तर :
तोप को कंपनी बाग के प्रवेश-दवार पर धरोहर के रूप में रखा गया है। यह आज भी हमारे सामने विद्यमान है। इसे बहुत सहेज कर रखा गया है। इसकी खूब देखभाल की जाती है। वर्ष में दो बार इसे चमकाया जाता है।

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प्रश्न 9.
तोप कंपनी बाग में आने वाले लोगों को क्या बताती है?
उत्तर :
तोप कंपनी बाग में आने वाले लोगों को अपने बारे में बताती है। वह लोगों के आकर्षण का केंद्र है। ऐसा लगता है जैसे वह अपने बारे में लोगों से बात करते हुए उन्हें कह रही हो कि पहले वह कितनी शक्तिशाली थी; सभी उसका लोहा मानते थे।

प्रश्न 10.
वर्तमान में तोप की क्या स्थिति है?
उत्तर :
वर्तमान में तोप की बड़ी ही दयनीय हालत है। अब वह लोगों के आकर्षण का केन्द्र नहीं रही। उसकी शक्ति एवं सुंदरता क्षीण हो चुकी है। वह अब पूर्ण रूप से निरर्थक हो गई है। अब तो बच्चे उसके ऊपर बैठकर घुड़सवारी करते हैं। कभी-कभी पक्षी भी उस पर बैठ जाते हैं।

तोप Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त सन 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर में हुआ था। इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा नैनीताल से प्राप्त की। बाद में ये उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद चले गए। पत्रकारिता में इनकी विशेष रुचि रही है। वीरेन डंगवाल पेशे से प्राध्यापक हैं। इनके लेखन कार्य के लिए इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इन्हें इनके कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ के लिए प्रतिष्ठित श्रीकांत वर्मा पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। एक अन्य रचना ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इन्होंने कई महत्वपूर्ण कवियों की अन्य भाषाओं में लिखी कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है।

रचनाएँ – वीरेन डंगवाल का काव्य जनसाधारण से जुड़ा है। इनकी कविताओं में समाज के साधारण और हाशिए पर स्थित लोगों के विलक्षण ब्योरे और दृश्य प्रस्तुत हुए हैं, जो इनकी कविताओं को विशिष्ट बनाते हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं का आधार ऐसी वस्तुओं और जीव जंतुओं को बनाया है, जिन्हें हम प्रायः देखकर अनदेखा कर देते हैं। इनकी कविताओं में प्राणी मात्र के लिए सहानुभूति का भाव है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-‘इसी दुनिया में’ और ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’।

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भाषा-शैली – वीरेन डंगवाल की भाषा-शैली अत्यंत सरल और सहज है। खड़ी बोली के सहज प्रयोग से भावाभिव्यक्ति पूर्णतः स्पष्ट है। इनकी भाषा में उर्दू, फारसी, अरबी तथा अंग्रेजी के शब्द पूरी तरह से घुल-मिल गए हैं। प्रस्तुत कविता ‘तोप’ में भी इनकी इसी भाषा-शैली के दर्शन होते हैं। इनके द्वारा प्रयुक्त उर्दू-फ़ारसी के शब्दों में जबर, बहरहाल, फ़ारिग, दरअसल आदि प्रमुख हैं। भाषा में सर्वत्र प्रवाहमयता एवं लयात्मकता विद्यमान है। जैसे –

अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।

धज्जियाँ उड़ाना तथा मुँह बंद होना जैसे मुहावरों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति तीव्र हो गई है।

कविता का सार –

‘तोप’ कविता वीरेन डंगवाल द्वारा लिखी एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। इस कविता के माध्यम से कवि ने गलतियों को न दोहराने का संदेश दिया है। कवि कहता है कि कंपनी बाग के प्रवेश-द्वार पर रखी तोप धरोहर के रूप में हमारे सामने विद्यमान है। यह वही : तोप है, जो सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों द्वारा प्रयोग की गई थी। यह तोप हमें विरासत में मिली है। इसलिए इसकी बहुत देखभाल की जाती है तथा वर्ष में दो बार इसे खूब चमकाया जाता है। यह तोप इस कंपनी बाग में आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र भी है।

ऐसा लगता है, मानो यह अपने बारे में बता रही हो कि पहले वह बड़ी शक्तिशाली थी और बड़े-बड़े वीरों की धज्जियाँ उड़ाने में सक्षम थी। कवि कहता है कि अब यह तोप पूरी तरह से निरर्थक हो गई है। अब कंपनी बाग में घूमने आए लड़के इस पर घुड़सवारी करते हैं। कभी कभी चिड़ियाँ इस पर बैठती हैं और आपस में बातें करती प्रतीत होती हैं। कई बार तो गौरैये इसके भीतर घुस जाती हैं और इससे शरारतें करती हैं।

वे गौरैये मानो कह रही हों कि कोई तोप चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, उसका मुँह एक न एक। कवि इस कविता के माध्यम से बताना चाहता है कि समय सबसे बलवान होता है। अपने समय में गर्जन करने वाले बलशाली व धन पर अभिमान करने वाले धनिक भी समय बदलने पर अपनी ताकत और अपना अभिमान खो बैठते हैं।

सिप्रसंग व्याख्या –

1. कंपनी बाग के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले
कंपनी बाग की तरह
साल में चमकाई जाती है दो बार।

शब्दार्थ : कंपनी बाग – गुलाम भारत में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ द्वारा बनाए गए बाग-बगीचों में से एक बाग। मुहाने – प्रवेश-द्वार। धर रखी – रखी गई। सम्हाल – देखभाल। विरासत – उत्तराधिकार में मिला हुआ।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ वीरेन डंगवाल द्वारा रचित कविता ‘तोप’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कंपनी बाग में रखी तोप के विषय में बताया है कि यह हमारी विरासत के रूप में विद्यमान है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कंपनी बाग के प्रवेश-द्वार पर एक तोप रखी हुई है। यह सन 1857 में अंग्रेजी सेना द्वारा प्रयोग की गई तोप है। विरासत में मिले हुए कंपनी बाग की तरह इसकी भी खूब देखभाल की जाती है। वर्ष में दो बार इसे खूब चमकाया भी जाता है। यह हमें हमारे पूर्वजों की कुर्बानी और उनके बलिदान के विषय में बताती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 तोप

2. सुबह-शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत-से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे
अपने ज़माने में

शब्दार्थ : सैलानी – दर्शनीय स्थलों पर आने वाले यात्री, पर्यटक। जबर – शक्तिशाली। सूरमा – वीर। धज्जे – धज्जियाँ, चिथड़े-चिथड़े। ज़माने – समय। प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ वीरेन डंगवाल द्वारा रचित कविता ‘तोप’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने तोप की शक्ति के बारे में बताया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कंपनी बाग में सुबह-शाम अनेक लोग घूमने-फिरने के लिए आते हैं। ऐसा लगता है, मानो यह तोप उन लोगों को बताती है कि अपने समय में यह बहुत शक्तिशाली थी। यह अपने सामने आने वाले बड़े-बड़े वीरों की धज्जियाँ उड़ा देती थी। इसने उस समय देश को आजाद करवाने का सपना देखने वाले अनेक जाँबाज़ों को मौत के घाट उतार दिया था।

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3. अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिंग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
खास कर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद। –

शब्दार्थ : बहरहाल – जैसे भी हो, हर हालत में। फ़ारिग – खाली, मुक्त। अकसर – प्रायः, आमतौर पर। गपशप – इधर-उधर की बातें करना। खास कर – विशेष कर। गौरैया – छोटी चिड़िया।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ वीरेन डंगवाल द्वारा रचित कविता ‘तोप’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने शक्तिशाली तोप की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि अब वह बिलकुल निरर्थक हो गई है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जो तोप पहले बहुत शक्तिशाली थी, अब वह निरर्थक हो गई है। अब वह कंपनी बाग में घूमने-फिरने आए छोटे-छोटे बच्चों की घुडसवारी के काम आती है। जब इस पर बच्चे घुडसवारी नहीं कर रहे होते, तब इसके ऊपर चिड़ियाँ बैठी अपनी मधुर चहचहाहट में गपशप करती दिखाई देती हैं। गौरैया चिड़िया, जो छोटी और शैतान होती है, वह इसके खुले मुँह में घुस जाती है। वे चिड़ियाँ मानो संदेश देती हैं कि कोई व्यक्ति इस तोप के समान चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, इस तोप की तरह एक न एक दिन उसका भी मुँह बंद हो जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

JAC Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर :
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी, क्योंकि वे हर उत्सव एवं संस्कार पर बड़े भाई और धर्मगुरु की तरह शुभाषीश देते थे। उनकी उपस्थिति में प्रत्येक कार्य शांति और सरलता से संपन्न होता था। लेखक के बच्चे के मुँह में अन्न का पहला दाना फ़ादर बुल्के ने डाला था। उस क्षण उनकी नीली आँखों में जो ममता और प्यार तैर रहा था, उससे लेखक को फ़ादर बुल्के की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगी।

प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है ?
उत्तर :
लेखक ने फ़ादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया है। फ़ादर बुल्के बेल्जियम के रेम्सचैपल के रहने वाले थे। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत आने का फैसला किया। भारत में उन्होंने भारतीय संस्कृति को जाना और समझा। मसीही धर्म से संबंध रखते हुए भी उन्होंने हिंदी में शोध किया। शोध का विषय था-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’। इससे उनके भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव का पता चलता है। लेखक कहता है कि जब तक रामकथा है, उस समय तक इस विदेशी भारतीय साधु को रामकथा के लिए याद किया जाएगा। इस आधार पर कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।

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प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के विदेशी होते हुए भी भारतीय थे। उन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। उन्होंने हिंदी में प्रयाग विश्वविद्यालय से शोध किया। फ़ादर बुल्के ने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिंदी में ‘नीलपंछी’ नाम से रूपांतर किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मसीही धर्म की धार्मिक पुस्तक ‘बाइबिल’ का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश तैयार किया।

उनके शोध ‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ के कुछ अध्याय ‘परिमल’ में पढ़े गए थे। उन्होंने ‘परिमल’ में भी कार्य किया। वे सदैव हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए चिंतित रहते थे। इसके लिए वे प्रत्येक मंच पर आवाज़ उठाते थे। उन्हें उन लोगों पर झुंझलाहट होती थी, जो हिंदी जानते हुए भी हिंदी का प्रयोग नहीं करते थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के का हिंदी के प्रति विशेष लगाव और प्रेम था।

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
फ़ादर कामिल बुल्के एक ऐसा नाम है, जो विदेशी होते हुए भी भारतीय है। उन्होंने अपने जीवन के 73 वर्षों में से 47 वर्ष भारत को दिए। उन 47 वर्षों में उन्होंने भारत के प्रति, हिंदी के प्रति और यहाँ के साहित्य के प्रति विशेष निष्ठा दिखाई। उनका व्यक्तित्व दूसरों को तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। उन्होंने सदैव सबके लिए एक बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य बड़ी शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका व्यक्तित्व संयम धारण किए हुए था।

किसी ने भी उन्हें कभी क्रोध में नहीं देखा था। वे सबके साथ प्यार व ममता से मिलते थे। जिससे एक बार मिलते थे, उससे रिश्ता बना लेते थे, फिर वे संबंध कभी नहीं तोड़ते थे। फ़ादर अपने से संबंधित सभी लोगों के घर, परिवार और उनकी दुख-तकलीफों की जानकारी रखते थे। दुख के समय उनके मुख से निकले दो शब्द जीवन में नया जोश भर देते थे। फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व वास्तव में देवदार की छाया के समान था। उनसे रिश्ता जोड़ने के बाद बड़े भाई के अपनत्व, ममता, प्यार और आशीर्वाद की कभी कमी नहीं होती थी।

प्रश्न 5.
लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व सबसे अलग था। उनके मन में सबके लिए अपनापन था। सबके साथ होते हुए भी वे अपने व्यवहार, अपनत्व व वात्सल्य के कारण अलग दिखाई देते थे। वे सबके साथ एक-सा व्यवहार करते थे। उनका मन करुणामय था। वे सभी जान-पहचान वालों के दुख-सुख की पूरी जानकारी रखते थे। हर किसी के दुख में दुखी होना तथा सुख में खुशी अनुभव करना उनका स्वभाव था। जब वे दिल्ली आते थे, तो समय न होने पर भी लेखक की खोज खबर लेकर वापस जाते थे। जिससे रिश्ता बना लिया, अपनी तरफ़ से उसे पूरी तरह निभाते थे। उनके व्यक्तित्व की यही बातें उन्हें ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ बनाती थीं।

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प्रश्न 6.
फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के अपनी वेशभूषा और संकल्प से संन्यासी थे, परंतु वे मन से संन्यासी नहीं थे। संन्यासी सबके होते हैं; वे किसी से विशेष संबंध बनाकर नहीं रखते। परंतु फ़ादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। वर्षों बाद मिलने पर भी उनसे अपनत्व की महक अनुभव की जा सकती थी। जब वे दिल्ली जाते थे, तो अपने जानने वाले को अवश्य मिलकर आते थे। ऐसा कोई संन्यासी नहीं करता। इसलिए वे परंपरागत संन्यासी की छवि से अलग प्रतीत होते थे।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति में लेखक फ़ादर बुल्के को याद कर रहा है। उनके अंतिम संस्कार में जितने लोग भी शामिल हुए थे, उन सभी की आँखें रो रही थीं। यदि लेखक अब उन लोगों को गिनने लगे, तो उस क्षण को याद करके उसकी अपनी आँखों में से आँसुओं की अविरल धारा बहने लगेगी। वह उस क्षण को स्मरण नहीं कर पाएगा और सबकुछ उसे धुंधला-सा प्रतीत होगा।

(ख) लेखक के फ़ादर बुल्के से अंतरंग संबंध थे। फ़ादर बुल्के से मिलना और उनसे बात करना लेखक को अच्छा लगता था। फ़ादर ने उसके हर दुख-सुख में उसका साथ निभाया था। इसलिए लेखक को लगता है कि फ़ादर बुल्के को याद करना उनके लिए एकांत में उदास शांत संगीत सुनने जैसा है, जो अशांत मन को शांति प्रदान करता है। फ़ादर ने सदैव उनके अशांत मन को शांति प्रदान की थी।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर :
फादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल नामक शहर में हुआ था। जब वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, तब उनके मन में संन्यासी बनने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत आने का मन बनाया। उनके मन में यह बात इसलिए उठी होगी, क्योंकि भारत को साधु-संतों का देश कहा जाता है। भारत आध्यात्मिकता का केंद्र है। उन्हें लगा होगा कि भारत में ही उन्हें सच्चे अर्थों में आत्मा का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

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प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि रेम्सचैपल’-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ। अभिव्यक्त होती हैं ? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं ?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था, परंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि के लिए भारत को चना। उन्होंने अपनी आयु का अधिकांश भाग भारत में बिताया था। उन्हें भारत, भारत की भाषा हिंदी तथा यहाँ के लोगों से बहुत प्यार था; परंतु वे अपनी जन्मभूमि रेम्सचैपल को कभी भूल नहीं पाए। रेम्सचैपल शहर उनके मन के एक कोने में बसा हुआ था। वे अपनी जन्मभूमि से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। जिस मिट्टी में पलकर वे बड़े हुए थे, उसकी महक वे अपने अंदर अनुभव करते थे।

इसलिए लेखक के यह पूछने पर कि कैसी है आपकी जन्मभूमि? फ़ादर बुल्के ने तत्परता से जबाव दिया कि उनकी जन्मभूमि बहुत सुंदर है। यह उत्तर उनकी आत्मा की आवाज़ थी। हमें अपनी जन्मभूमि प्राणों से बढ़कर प्रिय है। जन्मभूमि में ही मनुष्य का उचित विकास होता है। उसकी आत्मा में अपनी जन्मभूमि की मिट्टी की महक होती है। जन्मभूमि से मनुष्य का रिश्ता उसके जन्म से शुरू होकर उसके मरणोपरांत तक रहता है। जन्मभूमि ही हमें हमारी पहचान, संस्कृति तथा सभ्यता से अवगत करवाती है। हमें अपनी जन्मभूमि के लिए कृतज्ञ होना चाहिए और उसकी रक्षा और सम्मान पर कभी आँच नहीं आने देनी चाहिए।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 10.
‘मेरा देश भारत’ विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्र मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है। जिस भूमि के अन्न-जल से यह शरीर बनता एवं पुष्ट होता है, उसके प्रति अनायास ही स्नेह एवं श्रद्धा उमड़ती है। जो व्यक्ति अपने राष्ट्र की सुरक्षा एवं उसके प्रति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, वह कृतघ्न है। उसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं। उसका जीवन पशु के सदृश बन जाता है। रेगिस्तान में वास करने वाला व्यक्ति ग्रीष्म की भयंकरता के बीच जी लेता है, लेकिन अपनी मातृभूमि के प्रति दिव्य प्रेम संजोए रहता है।

शीत प्रदेश में वास करने वाला व्यक्ति काँप-काँप कर जी लेता है, लेकिन जब उसके देश पर कोई संकट आता है तो वह अपनी जन्मभूमि पर प्राण न्योछावर कर देता है। ‘यह मेरा देश है’ कथन में कितनी मधुरता है। इसमें जो कुछ है, वह सब मेरा है। जो व्यक्ति ऐसी भावना से रहित है, उसके लिए ठीक ही कहा गया है –

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है।

मेरा महान देश भारत सब देशों का मुकुट है। इसका अतीत स्वर्णिम रहा है। एक समय था, जब इसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। प्रकृति ने इसे अपने अपार वैभव, शक्ति एवं सौंदर्य से विभूषित किया है। इसके आकाश के नीचे मानवीय प्रतिभा ने अपने सर्वोत्तम वरदानों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया है। इस देश के चिंतकों ने गूढतम प्रश्न की तह में पहुँचने का सफल प्रयास किया है। मेरा देश अति प्राचीन है। इसे सिंधु देश, आर्यावर्त, हिंदुस्तान भी कहते हैं। इसके उत्तर में ऊँचा हिमालय पर्वत इसके मुकुट के समान है। उसके पार तिब्बत तथा चीन हैं। दक्षिण में समुद्र इसके पाँव धोता है। श्रीलंका द्वीप वहाँ समीप ही है।

उसका इतिहास भी भारत से संबद्ध है। पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार देश हैं। पश्चिम में पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईरान देश हैं। प्राचीन समय में तथा आज से दो हज़ार वर्ष पहले सम्राट अशोक के राज्यकाल में और उसके बाद भी गांधार (अफ़गानिस्तान) भारत का ही प्रांत था। कुछ सौ वर्षों पहले तक बाँग्लादेश, ब्रह्मदेश व पाकिस्तान भारत के ही अंग थे। इस देश पर अंग्रेजों ने आक्रमण करके यहाँ पर विदेशी राज्य स्थापित किया और इसे खूब लूटा। पर अब वे दुख भरे दिन बीत चुके हैं। हमारे देश के वीरों, सैनिकों, देशभक्तों और क्रांतिकारियों के त्याग व बलिदान से 15 अगस्त 1947 ई० को भारत स्वतंत्र होकर दिनों-दिन उन्नत और शक्तिशाली होता जा रहा है।

26 जनवरी, 1950 से भारत में नया संविधान लागू हुआ और यह ‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ बन गया। अनेक ज्वारभाटों का सामना करते हुए भी इसका सांस्कृतिक गौरव अक्षुण्ण रहा है। यहाँ गंगा, यमुना, सरयू, नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी, सोन, सतलुज, व्यास, रावी आदि पवित्र नदियाँ बहती हैं, जो इस देश को सींचकर हरा-भरा करती हैं। इनमें स्नान कर देशवासी पुण्य लाभ उठाते हैं। यहाँ बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर-ये छह ऋतुएँ क्रमशः आती हैं। इस देश में अनेक तरह की जलवायु है।

भाँति-भाँति के फल-फूल, वनस्पतियाँ, अन्न आदि यहाँ उत्पन्न होते हैं। इस देश को देखकर हृदय गदगद हो जाता है। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। यह एक विशाल देश है। इस समय इसकी जनसंख्या लगभग एक सौ पच्चीस करोड़ से अधिक हो गई है, जो संसार में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। यहाँ हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि मतों के लोग परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, बाँग्ला, तमिल, तेलुगू आदि अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं।

दिल्ली इसकी राजधानी है। वहीं संसद भी है, जिसके लोकसभा और राज्यसभा दो अंग हैं। मेरे देश के प्रमुख राष्ट्रपति’ कहलाते हैं। एक उपराष्ट्रपति भी होता है। देश का शासन प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल चलाता है। इस देश में विभिन्न राज्य या प्रदेश हैं, जहाँ विधानसभाएँ हैं। वहाँ मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल द्वारा शासन होता है। यह धर्मनिरपेक्ष देश है। यहाँ बड़े धर्मात्मा, तपस्वी, त्यागी, परोपकारी, वीर, बलिदानी महापुरुष हुए हैं। यहाँ की स्त्रियाँ पतिव्रता, सती, साध्वी, वीरता और साहस की पुतलियाँ हैं।

उन्होंने कई बार जौहर व्रत किए हैं। वे योग्य और दृढ़ शासक भी हो चुकी हैं और आज भी हैं। यहाँ के ध्रुव, प्रहलाद, लव-कुश, अभिमन्यु, हकीकतराय आदि बालकों ने अपने ऊँचे जीवनादर्शों से इस देश का नाम उज्ज्वल किया है। मेरा देश गौरवशाली है। इसका इतिहास सोने के अक्षरों में लिखा हुआ है। यह स्वर्ग के समान सभी सुखों को प्रदान करने में समर्थ है। मैं इस पर तन-मन-धन न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता हूँ। मुझे अपने देश पर और अपने भारतीय होने पर गर्व है।

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प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गरमी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
3719, रेलवे रोड
अंबाला
15 मई, 20 ……
प्रिय मित्र हडसन एंड्री
सस्नेह नमस्कार।
आशा है कि आप सब सकुशल होंगे। आपके पत्र से ज्ञात हुआ कि आपका विद्यालय ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो चुका है। हमारा विद्यालय भी 28 मई को ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो रहा है। इस बार छुट्टियों में हम पिताजी के साथ शिमला जा रहे हैं। लगभग 20 दिन तक हम शिमला में रहेंगे। वहाँ मेरे मामाजी भी रहते हैं। अतः वहाँ रहने में पूरी सुविधा रहेगी। हमने शिमला के आस पास सभी दर्शनीय स्थान देखने का निर्णय किया है। मेरे मामाजी के बड़े सुपुत्र वहाँ अंग्रेज़ी के अध्यापक हैं। उनकी सहायता एवं मार्ग दर्शन से मैं अपने अंग्रेजी के स्तर को भी बढ़ा सकूँगा।

प्रिय मित्र, यदि आप भी हमारे साथ शिमला चलें तो यात्रा का आनंद आ जाएगा। आप किसी प्रकार का संकोच न करें। मेरे माता-पिताजी भी आपको देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। आप शीघ्र ही अपने कार्यक्रम के बारे में सूचित करें। हमारा विचार जून के प्रथम सप्ताह में जाने का है। शिमला से लौटने के बाद जम्मू-कश्मीर जाने का विचार है, जहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। जम्मू के पास कटरा में वैष्णो देवी का मंदिर मेरे आकर्षण का केंद्र है। मुझे अभी तक इस सुंदर भवन को देखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। आशा है कि इस बार यह जिज्ञासा भी शांत हो जाएगी। आप अपने कार्यक्रम से शीघ्र ही सूचित करें।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से सादर नमस्कार कहें।
आपका मित्र,
विजय कुमार

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोधक छाँटकर अलग लिखिए –
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद
(ख) माँ ने बचपन से ही घोषित कर दिया था कि लड़का हथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर :
(क) और (ख) कि (ग) तो (घ) जो (ङ) लेकिन।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फ़ादर बुल्के का अंग्रेज़ी-हिंदी कोश’ उनकी एक महत्वपूर्ण देन है। इस कोश को देखिए-समझिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

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प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुई हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी, लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर :
भगिनी निवेदिता, मदर टेरेसा, एनी बेसेंट ऐसी ही विभूतियाँ थीं। इनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी, लेकिन कर्मभूमि के रूप में इन्होंने भारत को ही चुना था।

प्रश्न 3.
कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर :
हरगोविंद खुराना, लक्ष्मी मित्तल, हिंदुजा भाई इसी प्रकार के व्यक्ति हैं।

प्रश्न 4.
एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक युग भौतिकवाद का युग है। प्रत्येक मनुष्य कम समय में बहत अधिक प्राप्त कर लेना चाहता है। भारत में रहकर वह अपनी प्रतिभा और क्षमता को व्यर्थ गँवाना नहीं चाहता। उसे अनुभव होता है कि उसे अपनी क्षमता और प्रतिभा का उतना मूल्य नहीं मिल पा रहा, जितना उसे मिलना चाहिए। इसलिए वह सबकुछ प्राप्त कर लेने की चाह में पश्चिमी चकाचौंध में खो जाता है। वहाँ की चकाचौंध में भारतीय मूल्य और संस्कृति खो जाती है। मनुष्य वहाँ के रीति-रिवाजों में जीने लग जाता है। उसे देश, परिवार किसी से प्रेम नहीं रहता। उसका प्रेम स्वयं की उन्नति तक सीमित हो जाता है। वह सबकी भावनाओं के साथ खेलता है। आज इसके कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। आज की पीढ़ी को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो उन्हें पश्चिमी चकाचौंध से दूर रहने का सही मार्ग दिखाए।

यह भी जानें –

परिमल – निराला के प्रसिद्ध काव्य संकलन से प्रेरणा लेते हुए 10 दिसंबर 1944 को प्रयाग विश्वविद्यालय के साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले कुछ उत्साही युवक मित्रों द्वारा परिमल समूह की स्थापना की गई। ‘परिमल’ द्वारा अखिल भारतीय स्तर की गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं जिनमें कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक आदि पर खुली आलोचना और उन्मुक्त बहस की जाती। परिमल का कार्यक्षेत्र इलाहाबाद था। जौनपुर, मुंबई, मथुरा, पटना, कटनी में भी इसकी शाखाएँ रहीं। परिमल ने इलाहाबाद में साहित्य-चिंतन के प्रति नए दृष्टिकोण का न केवल निर्माण किया बल्कि शहर के वातावरण को एक साहित्यिक संस्कार देने का प्रयास भी किया।

फ़ादर कामिल बुल्के (1909-1982)
शिक्षा-एम०ए०, पीएच-डी० (हिंदी)
प्रमुख कृतियाँ – रामकथा : उत्पत्ति और विकास, रामकथा और तुलसीदास, मानस-कौमुदी, ईसा-जीवन और दर्शन, अंग्रेज़ी-हिंदी कोश, (1974 में पदमभूषण से सम्मानित)।

JAC Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। उन्होंने यह पाठ फ़ादर बुल्के की स्मृतियों को याद करते हुए लिखा है। फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण करना सरल नहीं है, परंतु लेखक की स्मृतियों के आधार पर फ़ादर का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया गया है –
1. परिचय – फ़ादर का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था। उनके परिवार में माता-पिता, दो भाई और एक बहन थी। इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में उनमें संन्यासी बनने की इच्छा जागृत हुई। वे संन्यासी बनकर भारत आ गए और इस तरह उनकी कर्मभूमि भारत बनी।

2. व्यक्तित्व – फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व हर किसी के हृदय में अपनी छाप छोड़ता था। उनका रंग गोरा था। उनकी दाढ़ी भूरी थी, जिसमें सफ़ेदी की झलक भी दिखाई देती थी। उनकी आँखें नीली थीं। उनके चेहरे पर तेज़ था। उनका व्यक्तित्व उन्हें भीड़ – में अलग पहचान देता था।

3. शिक्षा – रेम्सचैपल शहर में जब उन्होंने संन्यास लिया उस समय वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे। भारत आकर उन्होंने कोलकाता से बी०ए०, इलाहाबाद से एम० ए० और प्रयाग विश्वविद्यालय से हिंदी में शोधकार्य किया। शोध का विषय था – ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’।

4. अध्यापन कार्य – फादर बुल्के सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष थे। वहाँ उन्होंने अपना अंग्रेजी-हिंदी कोश लिखा, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने बाइबिल का भी अनुवाद किया।

5. शांत स्वभाव-फ़ादर बुल्के शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें कभी भी किसी ने क्रोध में नहीं देखा था। उनका शांत स्वभाव हर किसी को प्रभावित करता था।

6. ओजस्वी वाणी-फ़ादर बुल्के की वाणी ओजस्वी थी। उनके मुख से निकले दो सांत्वना के शब्द अँधेरे जीवन में रोशनी ला देते थे। उनके विचार ऐसे होते थे, जिन्हें कोई काट नहीं सकता था।

7. बड़े भाई की भूमिका में-फ़ादर बुल्के प्रत्येक व्यक्ति के लिए बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका वात्सल्य सबके लिए देवदार पेड़ की छाया के समान था। ‘परिमल’ में काम करते समय वहाँ का वातावरण एक परिवार की तरह था, जिसके बड़े सदस्य फ़ादर थे। वे बड़े भाई की तरह सबको सुझाव और राय देते थे।

8. मिलनसार-फ़ादर बुल्के मिलनसार व्यक्ति थे। वे जिससे एक बार रिश्ता बना लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। जब भी वे दिल्ली जाते, तो सबसे मिलकर आते थे; चाहे वह मिलना दो मिनट का होता था।

9. हिंदी भाषा के प्रति प्यार-फ़ादर बुल्के एक विदेशी होते हुए भी बहुत अपने थे। उनके अपनेपन का कारण था-उनका भारत, भारत की संस्कृति और भारतीय भाषा हिंदी से विशेष प्यार। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे और इसके लिए प्रयासरत भी रहते थे। उनकी हिंदी भाषा के प्रति चिंता प्रत्येक मंच पर स्पष्ट देखी जा सकती थी। उन्हें उस समय बहुत झुंझलाहट होती थी, जब हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा करते थे। उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों से विशेष प्रेम था।

10. कष्टदायी मृत्यु-फ़ादर बुल्के शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। वे दूसरों के दुख से जल्दी दुखी हो जाते थे। जिन्होंने सदैव अपने स्वभाव से मिठास बाँटी थी, उसी की मृत्यु ज़हरबाद से हुई थी। उन्हें अंतिम समय में बहुत यातना सहन करनी पड़ी थी। उन्होंने अपने जीवन के सैंतालीस साल भारत में बिताए थे। मृत्यु के समय उनकी आयु तिहत्तर वर्ष थी। 18 अगस्त 1982 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हुई।

फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। इसलिए लेखक का उनको याद करना एक उदास शांत संगीत सुनने जैसा था।

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प्रश्न 2.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ हमें क्या संदेश देता है?
उत्तर :
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ एक संस्मरण है। इसके माध्यम से लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ फादर बुल्के को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। फ़ादर बुल्के का जीवन हम भारतवासियों के लिए एक प्रेरणा है। फ़ादर बुल्के विदेशी होते हुए भी भारत, भारत की भाषा और संस्कृति से बहुत गहरे जुड़े हुए थे। उन्होंने स्वयं को सदैव एक भारतीय कहा था। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत प्रयास किए था।

हम लोगों को फ़ादर बुल्के के जीवन से यह संदेश लेना चाहिए कि जब एक विदेशी अनजान देश, अनजान लोगों और अनजान भाषा को अपना बना सकता है तो हम अपने देश, अपने लोगों और अपनी भाषा को अपना क्यों नहीं बना सकते? हमें अपने भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। अपने देश और उसकी राष्ट्रभाषा हिंदी के सम्मान की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।

प्रश्न 3.
लेखक को ‘परिमल’ के दिन क्यों याद आते थे?
अथवा
‘परिमल’ के बारे में आप क्या जानते हैं? इस संदर्भ में लेखक को फ़ादर कामिल बुल्के क्यों याद आते हैं?
उत्तर :
‘परिमल’ में काम करने वाले सभी लोग पारिवारिक रिश्ते में बंधे हुए लगते थे, जिसके बड़े सदस्य फ़ादर बुल्के थे। फ़ादर बुल्के परिमल की सभी गतिविधियों में भाग लेते थे। वे उनकी सभाओं में गंभीर बहस करते थे। उनकी रचनाओं पर खुले दिल से अपनी राय और सुझाव देते थे। लेखक को सदैव वे बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। इसलिए लेखक को परिमल के दिन याद आ रहे थे। परिमल उनका शोधग्रंथ भी पढ़ा गया था। परिमल में उन्होंने अनेक कार्य किए थे जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

प्रश्न 4.
फ़ादर बुल्के के परिवार के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का भरा-पूरा परिवार था। परिवार में दो भाई, एक बहन, माँ और पिता थे। फ़ादर बुल्के के पिता व्यवसायी थे। एक भाई पादरी था और दूसरा भाई कहीं काम करता था। उनकी बहन सख्त और जिद्दी स्वभाव की थी। उसकी शादी बहुत देर से हुई थी। उन्हें अपनी माँ से विशेष लगाव था। प्रायः वे अपनी माँ की यादों में डूब जाते थे। उनका अपने पिता और भाइयों से विशेष लगाव नहीं था। भारत आने के बाद फ़ादर दो या तीन बार ही बेल्जियम गए थे।

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प्रश्न 5.
फ़ादर बुल्के ने भारत में आकर कहाँ-कहाँ से शिक्षा प्राप्त की?
उत्तर :
फ़ादर रेम्सचैपल से संन्यासी बनकर भारत आए थे। उन्होंने दो साल तक ‘जिसेट संघ’ में रहकर पादरियों से धर्माचार की पढ़ाई की। ‘बाद में वे 9-10 सालों तक दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। उन्होंने कोलकाता से बी० ए० और इलाहाबाद से एम० ए० की पढ़ाई की। प्रयाग में डॉ० धीरेंद्र वर्मा हिंदी के विभागाध्यक्ष थे। वहीं पर फ़ादर ने अपना शोध-कार्य पूरा किया। उनके शोध का विषय था-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’। इस तरह उन्होंने भारत आकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

प्रश्न 6.
भारत से अपने लगाव के बारे में फ़ादर बुल्के क्या कहते थे?
उत्तर :
भारत से फ़ादर का स्वाभाविक लगाव था। अपने मन में आए संन्यासी के भाव को ईश्वर की इच्छा मानकर उन्होंने भारत आने का निर्णय किया। जब फ़ादर से पूछा गया कि वे भारत ही क्यों आए, तब उन्होंने कहा कि वे भारत के प्रति लगाव रखते हैं तथा अपने इसी लगाव के कारण वे भारत चले आए।

प्रश्न 7.
क्या फ़ादर बुल्के के जीवन का अनुकरण किया जा सकता है ?
उत्तर :
हाँ, फ़ादर बुल्के के जीवन का अनुकरण किया जा सकता है। वे मानव के रूप में एक दिव्य ज्योति थे, जो दूसरों को प्रकाश देने का काम करते थे। मानव सेवा उनका परम लक्ष्य था। मानव-समाज की भलाई के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। इसलिए उनके जीवन एवं व्यक्तित्व का अनुकरण करना अपने आप में एक उत्तम कार्य है।

प्रश्न 8.
लेखक किसकी याद में नतमस्तक था?
उत्तर :
लेखक फ़ादर कामिल बुल्के की याद में नतमस्तक था, जो एक ज्योति के समान प्रकाशमान थे। लेखक फ़ादर की ममता, उनके हृदय में व्याप्त करुणा तथा उनकी तपस्या का अत्यधिक सम्मान करता था। इसी कारण उसका सिर फ़ादर की याद में झुका हुआ था।

प्रश्न 9.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ किस प्रकार की विधा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है। लेखक ने इस संस्मरण में अपने अतीत के पलों को उकेरा है। उन्होंने फ़ादर बुल्के तथा उनसे जुड़ी यादों का उल्लेख किया है। उनके प्रति अपने लगाव तथा प्रेम को उजागर किया है। उन्होंने बड़े ही भावपूर्ण स्वर में कहा है कि ‘फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।’

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प्रश्न 10.
फ़ादर की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
उत्तर :
फ़ादर का जन्म बेल्जियम के रैम्सचैपल नामक शहर में हुआ था। उनकी मृत्यु 18 अगस्त, 1982 को भारत में हुई थी। उनकी मृत्यु का कारण ज़हरबाद था।

प्रश्न 11.
हिंदी साहित्य में फ़ादर बुल्के का क्या योगदान था?
अथवा
फ़ादर बुल्के ने भारत में रहते हुए हिंदी के उत्थान के लिए क्या कार्य किए?
उत्तर :
फ़ादर बल्के हिंदी प्रेमी थे। हिंदी भाषा से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। इसी उन्होंने अपना शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्याल के हिंदी विभाग से पूरा किया था। उनका सेंट जेवियर्स कॉलेज रॉची में हिंदी और संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष का कार्य भार संभालना उनके हिंदी-प्रेमी होने का पुख्ता प्रमाण है। उन्होंने पवित्र ग्रंथ बाइबिल का हिंदी में अनुवाद भी किया था।

पठित गद्याश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिविरिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और फ़ादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों।

(क) परिमल से आप क्या समझते हैं?
(i) एक सामाजिक संस्था का नाम है।
(ii) एक काव्य-रचना
(iii) एक नाटक मंडली का नाम है
(iv) साहित्यिक संस्था का नाम है
उत्तर :
(iv) साहित्यिक संस्था का नाम है।

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(ख) फ़ादर को याद करना कैसा है?
(i) खारे पानी के समान
(ii) एक उदास संगीत को सुनने के समान
(iii) नदी के जल स्नान करने के समान
(iv) समुद्र के जल पीने के समान
उत्तर :
(ii) एक उदास संगीत को सुनने के समान

(ग) किनको देखना करुणा के जल में स्नान करने के समान है?
(i) लेखक को
(ii) फ़ादर बुल्के को
(iii) पुरोहित को
(iv) बड़े भाई को
उत्तर :
(ii) फ़ादर बुल्के को

(घ) फ़ादर बुल्के की बातें क्या करने की प्रेरणा देती थी?
(i) परोपकार की
(ii) स्वच्छ रखने की
(ii) कर्म करने की
(iv) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(iii) कर्म करने की

(ङ) घर के उत्सवों में फ़ादर की क्या भूमिका रहती थी?
(i) बड़े भाई की
(ii) बड़े भाई और पुरोहित की
(iii) पुरोहित की
(iv) मुखिया की
उत्तर :
(ii) बड़े भाई और पुरोहित की

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) फ़ादर बुल्के किस भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे?
(i) उर्दू
(ii) अंग्रेजी
(iii) संस्कृत
(iv) हिंदी
उत्तर :
(iv) हिंदी

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(ख) फ़ादर ने ‘जिसेट संघ’ में दो वर्ष किस विषय की पढ़ाई की?
(i) इंजीनियरिंग की
(ii) डॉक्टर की
(iii) धर्माचार की
(iv) शिक्षण की
उत्तर :
(iii) धर्माचार की

(ग) फ़ादर की उपस्थिति किस वृक्ष की छाया के समान प्रतीत होती थी?
(i) पीपल की
(ii) देवदार की
(iii) कीकर की
(iv) बरगद की
उत्तर :
(ii) देवदार की

(घ) फ़ादर कामिल बुल्के अकसर किसकी यादों में खो जाते थे?
(i) पत्नी की
(ii) बहन की
(iii) माँ की
(iv) पुत्री की
उत्तर :
(ii) माँ की

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(ङ) फ़ादर ने किसके प्रसिद्ध नाटक का रूपांतर हिंदी में किया?
(i) नीला पंछी
(ii) ब्लूबर्ड
(iii) मातरलिंक
(iv) लहरों के राजहंस
उत्तर :
(iii) मातरलिंक

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. फ़ादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे ? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था। वह देह की इस यातना की परीक्षा की उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दें?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘फ़ादर’ शब्द से किस व्यक्ति की ओर संकेत किया गया है और उनकी मृत्यु कैसे हुई ?
3. लोगों के प्रति फ़ादर का व्यवहार कैसा था?
4. ईश्वर के प्रति फ़ादर के क्या विचार थे ?
5. ‘उम्र की आखिरी देहरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इन शब्दों का क्यों प्रयोग किया है?
उत्तर :
1. पाठ-मानवीय करुणा की दिव्य चमक, लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
2. बेल्जियम से भारत में राम-कथा पर शोध करने आए डॉ० कामिल बुल्के को ‘फ़ादर’ कहा गया है। उनकी मृत्यु गैंग्रीन से हुई थी। गैंग्रीन एक प्रकार का फोडा होता है, जिसका ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
3. फ़ादर कामिल बुल्के का लोगों के प्रति अत्यंत प्रेमपूर्ण तथा मधुर व्यवहार था। वे सबसे खुले दिल से मिलते थे। उनके मन में सबके प्रति ममता तथा अपनत्व का भाव भरा था। वे सबको सुखी देखना चाहते थे।
4. फ़ादर कामिल बुल्के की ईश्वर पर अटूट आस्था थी। वे उस परमात्मा की ही इच्छा को ही सबकुछ मानकर अपने सभी कार्य करते थे। वे परमात्मा के दिए हुए सुख-दुखों को उसकी देन मानकर स्वीकार करते थे।
5. ‘उम्र की आखिरी देहरी’ से तात्पर्य बुढ़ापे से है। लेखक ने यहाँ इन शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा है कि जब फ़ादर बुल्के सारा जीवन लोगों की भलाई करते रहे, तो उन्हें बुढ़ापे में ईश्वर ने इतनी कष्टप्रद भयंकर बीमारी उनकी कौन-सी परीक्षा लेने के लिए दी थी?

फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मज़ाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक के अनुसार फ़ादर को याद करना कैसा और क्यों है?
2. लेखक के अनुसार फ़ादर को देखना और सुनना कैसा था?
3. ‘परिमल’ क्या था? वहाँ कैसी चर्चाएँ होती थीं?
4. घर के उत्सवों में फ़ादर का क्या योगदान रहता था?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार फ़ादर कामिल बुल्के को याद करना ऐसा है, जैसे हम खामोश बैठकर उदास शांत संगीत सुन रहे हों। उन्हें स्मरण करने से उदासी घेर लेती है, परंतु उनके शांत स्वरूप का ध्यान आते ही मनोरम संगीत के स्वर गूंजने लग जाते हैं।

2. लेखक के अनुसार फ़ादर बुल्के को देखने मात्र से ऐसा लगता था, जैसे उन्हें हम किसी पवित्र सरोवर के उज्ज्वल जल में स्नान करके पवित्र हो गए हों। उनसे बातचीत करना तथा उनकी बातें सुनना कर्म करने की प्रेरणा भर देता था।

3. ‘परिमल’ एक साहित्यिक संस्था थी। इसमें समय-समय पर साहित्यिक विचार गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं, जिनमें तत्कालीन साहित्य की विभिन्न विधाओं पर चर्चा होती थी। इन गोष्ठियाँ में नए-पुराने सभी साहित्यकार अपने-अपने विचार व्यक्त करते थे।

4. घर के उत्सवों में फ़ादर बुल्के सबके साथ मिल-जुलकर उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। वे एक बड़े भाई के समान अथवा एक पारिवारिक पुरोहित के समान सबको आशीर्वाद देते थे। उनके इस व्यवहार से सभी पुलकित हो उठते थे।

3. फ़ादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन में संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गरमी, सरदी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है?

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. फ़ादर बुल्के को ‘संकल्प से संन्यासी’ कहने से लेखक का क्या अभिप्राय है?
2. रिश्तों के संबंध में फ़ादर बुल्के के क्या विचार थे ?
3. लेखक ने किस गंध के महसूस होने की बात कही है?
4. ‘यह कौन संन्यासी करता है?’ इस कथन से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर :
1. लेखक के इस कथन का अभिप्राय है कि फ़ादर बुल्के ने दृढ़ निश्चयपूर्वक संन्यास लिया था। उन्होंने किसी के कहने अथवा दबाव में आकर संन्यास नहीं लिया था। किसी लालच के वशीभूत होकर अथवा कर्म-क्षेत्र से पलायन करने के लिए भी उन्होंने संन्यास नहीं लिया था। उन्होंने स्वेच्छा से संन्यास लिया था।

2. एक संन्यासी होते हुए भी फ़ादर बुल्के रिश्तों की गरिमा समझते थे। तथा रिश्तों को निभाना जानते थे। जिसके साथ उनका कोई संबंध बन जाता था, उसे वे अंतकाल तक निभाते थे। वे रिश्ते जोड़कर तोड़ते नहीं थे।

3. लेखक कहता है कि यदि फ़ादर बुल्के से कई वर्षों बाद मुलाकात होती थी, तो भी वे बड़ी प्रगाढ़ता से मिलते थे। उनके साथ जो रिश्ते थे, उसकी गहराई की सुगंध उस मिलन से महसूस होती थी। उनका अपनापन रिश्तों को और भी अधिक मज़बूती देता था।

4. लेखक बताता है कि फ़ादर बुल्के जब कभी दिल्ली आते थे, तो वे अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर उससे मिलने अवश्य आते थे। इस प्रकार मिलने में चाहे उन्हें गरमी अथवा सरदी का सामना करना पड़ता, वे इसकी भी चिंता नहीं करते थे। उनकी इसी स्वभावगत विशेषता के कारण लेखक को कहना पड़ा कि मिलने के लिए ऐसा प्रयास कोई भी संन्यासी नहीं करता है।

4. उनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच में इसकी तकलीफ़ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते। बस इसी एक सवाल पर उन्हें झुंझलाते देखा है और हिंदी वालों द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा पर दुख करते उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुख-तकलीफ़ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दुख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. फ़ादर कामिल बुल्के को किसकी और क्यों चिंता रहती थी? इसे वे कैसे व्यक्त करते थे?
2. फ़ादर बुल्के झुंझलाते क्यों थे? उन्हें क्या दुख था?
3. लेखक ने यहाँ फ़ादर बुल्के के किस स्वभाव की विशेषता का वर्णन किया है?
4. फ़ादर बुल्के के सांत्वना भरे शब्द कैसे होते थे?
उत्तर :
1. फ़ादर बुल्के को इस बात की चिंता रहती थी कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं मिल रहा है। हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने के लिए वे जहाँ कहीं भी वक्तव्य देते थे, अपनी इस चिंता को व्यक्त करते थे तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन करने के पक्ष में उचित तर्क देते थे।

2. फ़ादर बुल्के इसी प्रश्न पर झुंझलाते थे कि हिंदी को अपने ही देश में उचित स्थान नहीं मिल पा रहा। उन्हें इस बात पर बहुत दुख था कि स्वयं हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा कर रहे हैं। हिंदी वालों द्वारा हिंदी का अनादर तथा अनदेखी करने पर वे बहुत दुखी हो जाते थे।

3. इन पंक्तियों में लेखक ने फ़ादर बुल्के के स्वभाव का उल्लेख करते हुए कहा है कि वे जब भी किसी से मिलते थे, तो एक आत्मीय के रूप में उस व्यक्ति से उसके घर-परिवार, उसके सुख-दुख आदि के बारे में पूछते थे।

4. यदि कोई दुखी व्यक्ति फ़ादर बुल्के को अपनी दुखभरी कहानी सुनाता था, तो फ़ादर उस व्यक्ति को इस प्रकार से सांत्वना देते थे कि उस व्यक्ति को लगता था मानो उसके सभी कष्ट व दुख दूर हो गए हों। लेखक को लगता है कि फ़ादर ने किसी के दुख को दूर करने वाले सांत्वना के इन शब्दों को गहरी तपस्या से ही प्राप्त किया था।

5. इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘छायादार फल-फूल, गंध से भरा’ क्यों कहा है ?
2. लेखक के लिए फ़ादर की स्मृति कैसी और क्यों है?
3. लेखक ने फ़ादर को कैसे श्रद्धांजलि दी?
4. लेखक के लिए फ़ादर बुल्के क्या थे?
उत्तर :
1. लेखक ने फ़ादर बुल्के के स्वभाव में सबके प्रति ममता, स्नेह, दया, करुणा आदि गुणों को देखकर कहा है कि वे एक ऐसे विशाल वृक्ष के समान थे जो सबको अपनी छाया, फल-फूल और सुगंध प्रदान करता रहता है; परंतु स्वयं कुछ नहीं लेता। फ़ादर सबको अपना स्नेह बाँटते रहे।

2. लेखक के लिए फ़ादर बुल्के की स्मृति पवित्र भावनाओं से युक्त है। जैसे किसी यज्ञ की पवित्र अग्नि की तपस सदा अनुभव की जा सकती है, उसी प्रकार से लेखक के मन में भी फ़ादर की पुनीत स्मृति आजीवन बनी रहेगी। उनकी मानवीय करुणा ने लेखक के मन में यह भावना जागृत की है।

3. लेखक ने अपने इस आलेख ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ के माध्यम से फ़ादर को श्रद्धांजलि दी है। लेखक उनकी पवित्र एवं करुणामय जीवन-पद्धति से प्रभावित रहा है।

4. लेखक के लिए फ़ादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा की दिव्य चमक के समान थे। वे लेखक के लिए बड़े भाई के समान मार्गदर्शक, आशीर्वाददाता तथा शुभचिंतक थे। लेखक को उन जैसा हिंदी-प्रेमी, संन्यासी होते हुए भी संबंधों को गरिमा प्रदान करने वाला, सबके सुख-दुख का साथी अन्य कोई नहीं दिखाई देता था।

मानवीय करुणा की दिव्या चमक Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-नई कविता के सशक्त कवि तथा प्रतिभावान साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन 1927 ई० हुआ था। सन 1949 ई० में इन्होंने इलाहाबाद से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने कुछ वर्ष तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में काम किया। इन्होंने ‘दिनमान’ में उपसंपादक तथा बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ में संपादक के रूप में कार्य किया था। इन्हें ‘टियों पर टंगे लोग’ कविता-संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सन 1983 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कविता-संग्रह – काठ की घंटियाँ, खूटियों पर टँगे लोग, जंगल का दर्द, कुआनो नदी।
उपन्यास – पागल कुत्तों का मसीहा, सोया हुआ जल।
कहानी संग्रह – लड़ाई।
नाटक – बकरी।
लेख-संग्रह – चरचे और चरखे।
बाल-साहित्य-लाख की नाक, बतूता का जूता, भौं-भौं, खौं-खौँ।

भाषा-शैली – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा-शैली अत्यंत सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने कहीं भी असाधारण अथवा कलिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया है। मानवीय करुणा की दिव्य चमक इनका फ़ादर कामिल बुल्के से संबंधित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने उनसे संबंधित कुछ अंतरंग प्रसंगों को उजागर किया है। फ़ादर की मृत्यु पर लेखक का यह कथन इसी ओर संकेत करता है-‘फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरे के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों?’ लेखक ने वात्सल्य, यातना, आकृति, साक्षी, वृत्त जैसे तत्सम शब्दों के साथ ही महसूस, ज़हर, छोर, सँकरी, कब्र जैसे विदेशी तथा देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है। लेखक ने भावपूर्ण शैली में फ़ादर को स्मरण करते हुए लिखा है-‘फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था।’ लेखक ने फ़ादर से संबंधित अपनी स्मृतियों को अत्यंत सहज रूप से प्रस्तुत किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

पाठ का सार :

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। यह पाठ एक संस्मरण है। लेखक ने इस पाठ में फ़ादर कामिल बुल्के से संबंधित स्मृतियों का वर्णन किया है। फादर बुल्के ने अपनी जन्मभूमि रैम्सचैपल (बेल्जियम) को छोड़कर भारत को अपनी कार्यभूमि बनाया। उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों से विशेष लगाव था। फ़ादर की मृत्यु जहरबाद से हुई थी। उनके साथ ऐसा होना ईश्वर का अन्याय था। इसका कारण यह था कि वे सारी उम्र दूसरों को अमृत सी मिठास देते रहे थे।

उनका व्यक्तित्व ही नहीं अपितु स्वभाव भी साधुओं जैसा था। लेखक उन्हें पैंतीस सालों से जानता था। वे जहाँ भी रहे, अपने प्रियजनों पर ममता लुटाते रहे। फ़ादर को याद करना, देखना और सुनना-ये सबकुछ लेखक के मन में अजीब शांत-सी हलचल मचा देते थे। उसे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं, जब वह उनके साथ काम करता था। फादर बड़े भाई की भूमिका में सदैव सहायता के लिए तत्पर रहते थे। उनका वात्सल्य सबके लिए देवदार पेड़ की छाया के समान था। लेखक को यह समझ में नहीं आता कि वह फ़ादर की बात कहाँ से शुरू करे।

फ़ादर जब भी मिलते थे, जोश में होते थे। उनमें प्यार और ममता कूट-कूटकर भरी हुई थी। किसी ने भी कभी उन्हें क्रोध में नहीं देखा था। फ़ादर बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, जब वे संन्यासी होकर भारत आ गए। उनका पूरा परिवार बेल्जियम के रैम्सचैपल में रहता था। भारत में रहते हुए वे अपनी जन्मभूमि रैम्सचैपल और अपनी माँ को प्रायः याद करते थे। वे अपने विषय में बताते थे कि उनकी माँ ने उनके बचपन में ही घोषणा कर दी थी कि यह लड़का हाथ से निकल गया है और उन्होंने अपनी माँ की बात पूरी कर दी। वे संन्यासी बनकर भारत के गिरजाघर में आ गए।

आरंभ के दो साल उन्होंने धर्माचार की पढ़ाई की। इसके बाद 9-10 साल तक दार्जिलिंग में पढ़ाई की। कलकत्ता से उन्होंने बी० ए० तथा इलाहाबाद से एम०ए० किया था। वर्ष 1950 में उन्होंने अपना शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से पूरा किया था। उनके शोधकार्य का विषय-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ था। उन्होंने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिंदी में ‘नीलपंछी’ नाम से रूपांतर किया। वे सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिंदी और संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे। यहाँ रहकर उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया। उन्होंने बाइबिल का हिंदी में अनुवाद भी किया। राँची में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था।

फादर बुल्के मन से नहीं अपितु संकल्प से संन्यासी थे। वे जिससे एक बार रिश्ता जोड़ लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। दिल्ली आकर कभी वे बिना मिले नहीं जाते थे। मिलने के लिए सभी प्रकार की तकलीफों को सहन कर लेते थे। ऐसा कोई भी संन्यासी नहीं करता था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। वे हर सभा में हिंदी को सर्वोच्च भाषा बनाने की बात करते थे। वे उन लोगों पर झुंझलाते थे, जो हिंदी भाषा वाले होते हुए भी हिंदी की उपेक्षा करते थे। उनका स्वभाव सभी लोगों की दुख-तकलीफों में उनका साथ देता था। उनके मुँह से निकले सांत्वना के दो बोल जीवन में रोशनी भर देते थे।

लेखक की जब पत्नी और पुत्र की मृत्यु हुई, उस समय फ़ादर ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “हर मौत दिखाती है जीवन को नई राह।” लेखक को फ़ादर की बीमारी का पता नहीं चला। वह उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली पहुंचा था। वे चिरशांति की अवस्था में लेटे थे। उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1982 को हुई। उन्हें कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में ले जाया गया। उनके ताबूत के साथ रघुवंश जी, जैनेंद्र कुमार, डॉ० सत्य प्रकाश, अजित कुमार, डॉ० निर्मला जैन, विजयेंद्र स्नातक और रघुवंश जी का बेटा आदि थे। साथ में मसीही समुदाय के लोग तथा पादरीगण थे।

सभी दुखी और उदास थे। उनका अंतिम संस्कार मसीही विधि से हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में रोने वालों की कमी नहीं थी। इस तरह एक छायादार व फल-फूल गंध से भरा वृक्ष हम सबसे अलग हो गया। उनकी स्मृति जीवन भर यज्ञ की पवित्र अग्नि की आँच की तरह सबके मन में बनी रहेगी। लेखक उनकी पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धा से नतमस्तक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

कठिन शब्दों के अर्थ :

देह – शरीर। यातना – कष्ट। परीक्षा – इम्तिहान। आकृति – आकार। साक्षी – गवाह। महसूस – अनुभव। निर्मल – साफ़, स्वच्छ। संकल्प – निश्चय। उत्सव – त्योहार, शुभ अवसर। आशीष – आशीर्वाद। वात्सल्य – ममता, प्यार। स्मृति – यादें। डूब जाना – खो जाना। सांत्वना – सहानुभूति। छोर – किनारा। वृत्त – घेरा। आवेश – जोश, उत्साह। जहरबाद – गैंग्रीन, एक तरह का ज़हरीला और कष्ट साध्य फोड़ा। आस्था – विश्वास, श्रद्धा। देहरी – दहलीज़। सँकरी – तंग। पादरी – ईसाई धर्म का पुरोहित या आचार्य। आतुर – अधीर, उत्सुक। निर्लिप्त – आसक्ति रहित, जो लिप्त न हो। आवेश – जोश, उत्साह। लबालब – भरा हुआ। गंध – महक। धर्माचार – धर्म का पालन या आचरण। रूपांतर – किसी वस्तु का बदला हुआ रूप। अकाट्य – जो कट न सके, जो बात काटी न जा सके। विरल – कम मिलने वाली। ताबूत – शव या मुरदा ले जाने वाला संदूक या बक्सा। करील – झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कँटीला और बिना पत्ते का पौधा। गैरिक वसन – साधुओं द्वारा धारण किए जाने वाले गेरुए वस्त्र। श्रद्धानत – प्रेम और भक्तियुक्त पूज्यभाव।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

JAC Class 10 Hindi कर चले हम फ़िदा Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है ?
उत्तर :
हाँ, इस गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। यह कविता सन् 1962 ई॰ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है, जिसमें देश की रक्षा करते हुए अपना बलिदान देने वाले सैनिक देशवासियों को कह रहे हैं कि वे तो अपना बलिदान देकर जा रहे हैं, परंतु अब देश की रक्षा का भार देशवासियों पर है। उन्होंने तो मरते-मरते भी दुश्मनों को खदेड़ना जारी रखा था। वे देश के नौजवानों को कहते हैं कि देश पर बलिदान होने का अवसर कभी-कभी ही आता है, इसलिए वे देश की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें। उनके शहीद हो जाने के बाद भी देश की रक्षार्थ बलिदानों का यह क्रम सदा जारी रहे।

प्रश्न 2.
‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’, इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में हिमालय हमारे देश की शान, गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक है। हिमालय की ऊँची चोटियों के समान ही हमारे देश की ऊँची शान है। सैनिक इसी शान को बचाए रखने के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों को न्योछावर कर देते हैं।

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प्रश्न 3.
‘कर चले हम फिदा’ कविता में धरती को दुलहन क्यों कहा गया है?
उत्तर :
कवि कहता है कि धरती एक दुलहन के समान सजी हुई है। जिस प्रकार किसी स्वयंवर में दुलहन को प्राप्त करने के लिए राजाओं में युद्ध होता है, उसी प्रकार धरतीरूपी दुलहन की रक्षा करने के लिए भी दुश्मनों से युद्ध करना होगा।

प्रश्न 4.
गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद रह जाते हैं?
उत्तर :
गीत में शब्दों और संगीत का सुंदर मिश्रण होता है। उसमें सुर, लय और ताल से एक ऐसा आकर्षण आ जाता है, जो हमें अपनी ओर आकर्षित करता है। गीतों में कोमल और मधुर शब्दों का प्रयोग होता है, जो सीधे हमारे हृदय पर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक गीत में हम अपनी ही कोमल भावनाओं को रूप लेते अनुभव करते हैं। यही कारण है कि गीत हमें न केवल प्रभावित करते हैं अपितु जीवन भर याद भी रहते हैं।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?
अथवा
‘कर चले हम फिदा’ कविता में कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन देशवासियों के लिए किया है। कवि देशवासियों और विशेषकर नवयुवकों को अपने देश की रक्षा के लिए तत्पर रहने का संदेश देता है। वह देश पर अपने प्राणों को न्योछावर कर देने की बात कहता है।

प्रश्न 6.
कवि ने इस कविता में किस काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?
उत्तर :
कवि ने सैनिकों के माध्यम से देश पर मर-मिटने के काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है। सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया है। उनके मरने के बाद भी देश पर मर-मिटने का सिलसिला निरंतर चलता रहना चाहिए। जब भी देश पर कोई संकट आए, देशवासियों को अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश को बचाना चाहिए। सैनिक कहते हैं कि देश पर प्राणों को न्योछावर करने का काफ़िला निरंतर बढ़ता रहना चाहिए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

प्रश्न 7.
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?
उत्तर :
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ मृत्यु की भी परवाह न करने की ओर सकेत करता है। गीत में देश की रक्षा के लिए देशवासियों को अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिए तैयार होने को कहा गया है।

प्रश्न 8. इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
‘कर चले हम फिदा’ अथवा ‘मनुष्यता’ कविता का प्रतिपाद्य लगभग 100 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस कविता के माध्यम से कवि ने देश के लिए अपना बलिदान देने वाले सैनिकों के हृदय की आवाज़ को सुंदर अभिव्यक्ति दी है। सैनिक अपने देश की आन, बान और शान के लिए मर-मिटते हैं। वे मरते दम तक अपने देश की रक्षा करते हैं। सैनिक देश पर मर-मिटने के लिए देशवासियों का भी आह्वान करते हैं। वे देशवासियों से कहते हैं कि उनके बाद भी देश पर बलिदान देने का काफ़िला रुकना नहीं चाहिए। देश पर आक्रमण करने वाले दुश्मनों का नाश करने के लिए देशवासियों को सदा तैयार रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए यदि उन्हें अपने प्राणों का बलिदान भी देना पड़े, तो उन्हें हँसते-हँसते प्राणों को न्योछावर कर देना चाहिए।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न
1. साँस थमती गई, नब्ज जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
2. खींच दो अपने से जमीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए ने रावन कोई
3. छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
उत्तर :
1. गीत की इन पंक्तियों में देश की रक्षा के लिए तैनात सैनिक कहते हैं कि उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की भी बलि चढ़ा दी। वे अपने अंतिम समय तक देश की रक्षा करते रहे। सीमा पर खड़े हुए जब उनकी साँसें धीरे-धीरे रुकती जा रही थीं और नाड़ी का चलना बंद होता जा रहा था, तब भी उन्होंने दुश्मन को पीछे खदेड़ने के लिए उठे कदमों को नहीं रोका। वे मृत्यु के समीप होते हुए भी देश की रक्षा करते रहे।

2. गीत की इन पंक्तियों में सैनिक देशवासियों को देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने देश में बुरी नीयत से घुसने वाले दुश्मनरूपी रावण को आने से रोकना होगा। इसके लिए चाहे हमें अपने प्राणों को ही न्योछावर क्यों न करना पड़े। जिस प्रकार से दुराचारी रावण को रोकने के लिए लक्ष्मण ने रेखा खींची थी, हमें अपने खून से वैसी ही रेखा खींचकर दुश्मनों को रोकना होगा।

3. इन पंक्तियों में सैनिक देशवासियों को उद्बोधित करते हुए कहते हैं कि भारतभूमि सीता के समान पवित्र है। यदि कोई दुश्मन इसे अपवित्र करने का प्रयास करे, तो तुम्हें राम और लक्ष्मण बनकर इसे बचाना होगा। जिस प्रकार सीता के मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले दुराचारी रावण को राम-लक्ष्मण न मार डाला था, उसी प्रकार तुम्हें भी इस देश के दुश्मनों को मौत के घाट उतारना होगा।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 1.
इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए। कट गए सर, नब्ज जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे
उत्तर :
कट गए सर – मृत्यु को प्राप्त होना। सैनिक युद्ध-क्षेत्र में अपने सर कटा देते हैं, किंतु देश की आन पर कलंक नहीं लगने देते।
नब्ज जमती गई – मृत्यु समीप होना। जब डॉक्टर मरीज़ को देखने पहुंचा, तो उसकी नब्ज जमती जा रही थी।
जान देने की रुत – बलिदान देने का उचित अवसर। जब दुश्मन हमारे देश पर आक्रमण करता है, तब सैनिकों के लिए जान देने की रुत आती है।
हाथ उठने लगे – आक्रमण होना। जब भी दुश्मन ने हमारे देश की ओर हाथ उठाया है, तो हमारे वीरों ने उसका डटकर मुकाबला किया है।

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प्रश्न 2.
ध्यान दीजिए संबोधन में बहुवचन ‘शब्द रूप’ पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता; जैसे – भाइयो, बहिनो, देवियो, सज्जनो आदि।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं पढ़ें और समझें।

योग्यता विस्तार – 

प्रश्न 1.
कैफ़ी आज़मी उर्दू भाषा के एक प्रसिद्ध कवि और शायर थे। ये पहले ग़ज़ल लिखते थे। बाद में फ़िल्मों में गीतकार और
कहानीकार के रूप में लिखने लगे। निर्माता चेतन आनंद की फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए इन्होंने यह गीत लिखा था, जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली। यदि संभव हो सके तो यह फ़िल्म देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘फ़िल्म का समाज’ पर प्रभाव विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
फ़िल्म और समाज का परस्पर गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं। काफ़ी समय से फ़िल्मों के द्वारा समाज और जागृति पैदा करने का प्रयास होता आया है। फ़िल्मों के द्वारा युवकों में वीरता, देश-प्रेम तथा परोपकार की भावना को सरलता से भरा जा सकता है। फ़िल्में वह माध्यम हैं, जो आँखों से सीधे हमारे मन और मस्तिष्क पर प्रभाव डालती हैं। फ़िल्मों में जो कुछ दिखाया जाता है, वह अधिकतर समाज में ही घटित घटनाएँ होती हैं। देश में भावात्मक एकता उत्पन्न करने और राष्ट्रीयता का विकास करने में फ़िल्मों का महत्वपूर्ण योगदान है।

समाज की अनेक कुरीतियों जैसे दहेज-प्रथा, मदिरापान, भ्रष्टाचार, बाल-विवाह, छुआछूत आदि को दूर करने के लिए फ़िल्में एक सशक्त माध्यम हैं। ‘दहेज’, ‘सुजाता’, ‘अछूत कन्या’ जैसी फ़िल्में इस दृष्टि से बहुत सफल रही हैं। जहाँ एक ओर फ़िल्मों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव है, वहीं नकारात्मक प्रभाव भी है। फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली नग्नता, कामुकता आदि का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

कम आयु के बच्चे जब फ़िल्मों में डकैती, हिंसा, बलात्कार तथा मारपीट जैसे दृश्य देखते हैं, तो वे भी कई बार वैसा ही आचरण करने लगते हैं। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी फ़िल्मों का निर्माण हो, जो समाज को कल्याण और उन्नति की ओर अग्रसर कर सकें। यदि निर्देशक ऐसी स्वस्थ फ़िल्में बनाएँगे, तो फ़िल्में देश की उन्नति के साथ समाज-सुधार में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

प्रश्न 3.
कैफ़ी आज़मी की अन्य रचनाओं को पुस्तकालय से प्राप्त कर पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। इसके साथ ही उर्दू भाषा के अन्य कवियों की रचनाओं को भी पढ़िए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा कैफ़ी आज़मी पर बनाई गई फ़िल्म देखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

परियोजना कार्य प्रश्न – 

1. सैनिक जीवन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक निबंध लिखिए।
उत्तर :
सैनिक जीवन चुनौतियों से भरा होता है। इसमें हर पल एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है। सैनिक का जीवन आरंभ से ही चुनौतीपूर्ण होता है। एक सैनिक को अपने माता-पिता और परिवार को छोड़कर आना पड़ता है। माँ के स्नेह और सुखदायी आँचल से दूर उसे हर क्षण उनकी याद सताती है। सैनिक का जीवन अस्थिर जीवन होता है। उसे सदा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर शिविरों में रहना पड़ता है। पर्वतीय क्षेत्रों में उसका जीवन और अधिक कठिन एवं चुनौतीपूर्ण हो जाता है। वहाँ न तो सही ढंग से भोजन की व्यवस्था हो पाती है और न ही रहने की कोई व्यवस्था हो पाती है।

सैनिक के जीवन में चुनौतियाँ तब और भी बढ़ जाती हैं, जब उसका विवाह हो जाता है। पत्नी और बच्चों से कोसों दूर वह उनके प्रेम के लिए तरसता रहता है। वह अपनी जान को तो मुट्ठी में रखता ही है, उसकी पत्नी और बच्चे भी उसकी चिंता में डूबे रहते हैं। एक सैनिक अपने बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था भी ठीक ढंग से करने में कठिनाई अनुभव करता है। बच्चों के सुनहरे भविष्य की क वह देश की सरहद पर रहकर करता है। कई बार सैनिक को जंगलों आदि में भी रहना पड़ता है। ऐसे समय में जंगली जानवरों का डर बना रहता है।

कर देता है, तो सैनिक को अपनी जान पर खेलकर उसका मुकाबला करना होता है। बंदूकों, तोपों और बमों के बीच में कब वह मौत का शिकार हो जाए, वह नहीं जानता। उसका तो एकमात्र उद्देश्य केवल अपने देश की रक्षा करना होता है। वह देशवासियों की रक्षा के लिए अपना सीना तान कर दुश्मनों के आगे खड़ा हो जाता है। यद्यपि वह जानता है कि हर पल वह मौत के साए में जी रहा है, किंतु वह अपनी मृत्यु की परवाह न करते हुए देश की आन, बान और शान पर मर मिटता है। निश्चित रूप से एक सैनिक का जीवन अनेक चुनौतियों से भरा होता है। वह परोपकारी होता है। अपने जीवन की बाज़ी लगाकर वह सबके जीवन की रक्षा करता है। ऐसे वीर सैनिकों के कारण ही देश की आजादी बची हुई है। देश को अपने सैनिकों पर नाज है।

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प्रश्न 2.
आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आजादी बनाए रखना’। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक / अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अपने स्कूल के किसी समारोह पर यह गीत या अन्य देशभक्तिपूर्ण गीत गाकर सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कर चले हम फ़िदा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
सैनिकों ने देशवासियों से क्या कहा है?
उत्तर :
सैनिकों ने देशवासियों से कहा है कि उन्हें दुश्मनरूपी रावण को रोकने के लिए अपने खून से लक्ष्मण-रेखा खींचनी चाहिए। जो हाथ सीता के समान पवित्र हमारे भारतवर्ष की तरफ बढ़ेंगे, उन्हें तोड़ देना चाहिए। हमने स्वयं को देश पर बलिदान कर दिया है। अब हम देश की रक्षा का भार देशवासियों पर छोड़कर जा रहे हैं। इसलिए हमारे बाद देशवासियों को वतन की रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
सैनिकों ने अपने देश की शान कैसे बचाई?
उत्तर :
सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की शान बचाई। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, परंतु देश पर आँच नहीं आने दी। उन्होंने हँसते-हँसते मृत्यु को गले लगा लिया; अपने सीनों पर गोलियाँ खाईं; मरते दम तक दुश्मनों से युद्ध करते रहे और अंततः आत्म-बलिदान देकर शहीद हो गए। उन्होंने अपने बलिदान से देश की शान को बचाए रखा।

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प्रश्न 3.
‘राम भी तम, तम्हीं लक्ष्मण साथियो’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या प्रेरणा देना चाहता है?
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह प्रेरणा देना चाहता है कि जिस प्रकार त्रेता युग में रामचंद्र और लक्ष्मण ने सीता की लाज-मर्यादा के लिए लंकापति रावण को पराजित कर दिया था, ठीक उसी तरह भारतवासियों को भी अपने देश की रक्षा करनी चाहिए। इन्हें भी अपना सर्वस्व देश के लिए अर्पित कर देना चाहिए और किसी भी कीमत पर अपने वतन की लाज को बचाना चाहिए।

प्रश्न 4.
सैनिकों ने मरते-मरते भी देश की रक्षा किस प्रकार की?
उत्तर :
सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। जब उनका अंतिम समय समीप था, तो भी उन्होंने दुश्मनों से मुकाबला करते हुए देश की रक्षा की। उस समय उनकी साँसें रुकती जा रही थीं और नाड़ी का चलना भी बंद हो रहा था, किंतु उन्होंने दुश्मनों की तरफ़ बढ़ते अपने कदमों को नहीं रोका। इस प्रकार वे दुश्मनों से लड़ते-लड़ते देश पर शहीद हो गए।

प्रश्न 5.
‘जीत का जश्न इस जश्न के बाद है’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि अपने देश पर मर-मिटने की खुशी से बढ़कर कोई खुशी नहीं है। युद्ध में जीत की खुशी तो बाद में मिलती है, उससे पहले सैनिक अपने आपको देश पर न्योछावर कर देता है। उसके लिए जीत की खुशी उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती, जितनी देश पर अपना बलिदान देने की होती है।

प्रश्न 6.
सैनिकों ने किन हाथों को तोड़ने की बात कही है?
उत्तर :
सैनिकों ने अपने देश पर आक्रमण करने वाले दुश्मन के हाथों को तोड़ने की बात कही है। वे देश पर बुरी नज़र रखने वाले दुश्मन के उन हाथों को तोड़ देना चाहते हैं, जो हमारे देश को हानि पहुँचाने के लिए उठते हैं। वे चाहते हैं कि देशवासी देश पर हमला करने वाले दुश्मनों का डटकर मुकाबला करें और उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दें।

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प्रश्न 7.
इस गीत से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
यह एक देशभक्तिपूर्ण गीत है। इस गीत से हमें अपने देश पर मर-मिटने की प्रेरणा मिलती है। गीतकार देशवासियों में देश पर सर्वस्व न्योछावर करने का भाव पैदा करना चाहता है। यह गीत हमें संकट के समय देश पर अपने आपको कुर्बान कर देने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 8.
इस गीत के माध्यम से कवि ने किसका आह्वान किया है ? और क्यों?
उत्तर :
इस गीत के माध्यम से कवि ने नवयुवकों का आह्वान किया है। कवि नवयुवकों का आह्वान करते हुए कहता है कि उन्हें देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसा समय कभी-कभी मिलता है। उन्हें अपनी जवानी देश के लिए कुर्बान कर देनी चाहिए; देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग देना चाहिए।

प्रश्न 9.
कवि ने देशवासियों को राम-लक्ष्मण कहकर क्या संदेश देना चाहा है ?
उत्तर :
कवि ने देशवासियों को राम-लक्ष्मण कहकर उनके आत्मविश्वास व वीरता को जगाने का प्रयास किया है। वह उनसे कहता है कि जिस प्रकार सीता के मान-सम्मान को कलंकित करने वाले रावण को श्रीराम ने मार डाला था, उसी प्रकार देशवासियो! तुम भी अपनी मातृभूमि पर बुरी नज़र रखने वाले शत्रुओं पर टूट पड़ो और तुम उनका पूर्णतः विनाश कर दो।

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प्रश्न 10.
कवि देशवासियों के सम्मुख यह गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ क्यों गाता है?
उत्तर :
कवि अपने देशवासियों को सैनिकों के बलिदानों से अवगत करवाना चाहता है। वह लोगों की वीरता और पौरुष को ललकारते हुए उन्हें देश पर मर-मिटने के लिए प्रोत्साहित करता है। वह अपने इस गीत के द्वारा देशवासियों के हृदय में देशभक्ति की लौ जलाना चाहता है। वह उन्हें उनकी आन का हवाला देते हुए सैनिकों की भाँति कुछ करने तथा देश के लिए मर-मिटने को तैयार रहने की बात करता है।

प्रश्न 11.
‘कर चले हम फ़िदा’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में कवि ने देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने वाले वीर सैनिकों के हृदय की आवाज़ को अभिव्यक्ति प्रदान की है। सैनिक अपने देश की आन, बान, शान के लिए मर मिटते हैं। वे मरते दम तक अपने देश की रक्षा करते हैं। मरते-मरते भी वे देशवासियों का आह्वान करते हुए उन्हें कहते हैं कि उनके बलिदान के बाद भी देश पर मर-मिटने वालों का काफ़िला रुकना नहीं चाहिए। देश पर आक्रमण करने वाले दुश्मनों का नाश करने के लिए देशवासियों को सदा तैयार रहना चाहिए और हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान दे देना चाहिए।

कर चले हम फ़िदा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – कैफ़ी आज़मी का जन्म 19 जनवरी सन 1919 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के मजमां नामक गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम अतहर हुसैन रिज़वी था। बाद में ये कैफ़ी आज़मी के नाम से प्रसिद्ध हुए। कैफ़ी आज़मी का परिवार कलाकारों का परिवार था। इनके तीनों बड़े भाई भी शायर थे। इनकी पत्नी शौकत आज़मी और बेटी शबाना आजमी प्रसिद्ध अभिनेत्रियाँ हैं। कैफ़ी आज़मी को फ़िल्मी दुनिया में काफ़ी नाम और प्रसिद्धि मिली। इनकी साहित्य सेवा के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। 10 मई सन 2002 को इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – कैफ़ी आज़मी युवावस्था से ही प्रसिद्ध शायर थे। उन्हें मुशायरों में अपनी रचनाओं पर खूब वाहवाही मिलती थी। इन्होंने कविता संग्रह के साथ-साथ अनेक फ़िल्मी गीत लिखे हैं। इनकी रचनाओं में जहाँ एक ओर सामाजिक और राजनैतिक जागरूकता हैं, वहीं हृदय की कोमलता भी है। कैफ़ी आज़मी के पाँच कविता संग्रह ‘झंकार’, ‘आखिर-ए-शब’, ‘आवारा सजदे’, ‘सरमाया’ और फ़िल्मी गीतों का संग्रह ‘मेरी आवाज़ सुनो’ प्रकाशित हुए। इनके द्वारा लिखे गीत आज पर भी मधुर और कर्णप्रिय लगते हैं।

भाषा-शैली – कैफ़ी आज़मी मूलत: उर्दू के शायर हैं। अत: इनकी भाषा में उर्दू और फ़ारसी के शब्दों का होना स्वाभाविक है। इसके साथ।
इसमें खड़ी बोली के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग मिलता है। इनकी भाषा में संगीतात्मकता, लयात्मकता तथा रोचकता विद्यमान है। भाषा। की मार्मिकता के कारण इनकी रचनाएँ सीधे हृदय को स्पर्श करने वाली हैं। इनकी भाषा की चित्रात्मकता, प्रभावोत्पादकता तथा भावानुकूलता द्रष्टव्य है। इनका एक-एक शब्द भावों को पूर्ण रूप से व्यक्त करने में सक्षम है। कैफ़ी आज़मी की शैली रोमांटिक, उद्बोधनात्मक तथा व्यंग्यपूर्ण है।

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गीत का सार :

कर चले हम फ़िदा’ कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखित एक देशभक्तिपूर्ण गीत है। इस गीत में उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपना बलिदान देने वाले सैनिकों के हृदय की आवाज़ को सुंदर अभिव्यक्ति दी है। इस गीत में सैनिकों ने देशवासियों को भी देश पर मर-मिटने की प्रेरणा दी है। सन 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखे इस गीत में सैनिक कहते हैं कि वे तो देश की रक्षा करते हुए अपना बलिदान देकर इस संसार से जा रहे हैं। अब देश की रक्षा का दायित्व देशवासियों का है। सैनिक बताते हैं कि दुश्मन से लड़ते-लड़ते जब उनकी मृत्यु समीप थी, तो भी उन्होंने दुश्मनों को खदेड़ना जारी रखा।

उन्होंने देश की शान को बचाए रखने के लिए अपना बलिदान दे दिया। नवयुवकों का आह्वान करते हुए सैनिक कहते हैं कि देश पर अपने प्राणों को न्योछावर करने का अवसर कभी-कभी ही आता है। अत: नवयुवकों को अपनी जवानी को देश की रक्षा में लगा देना चाहिए। सैनिकों की इच्छा है कि उनके शहीद होने के बाद भी देश पर बलिदान होने का सिलसिला निरंतर चलते रहना चाहिए। देश पर कुर्बान होने की खुशी जीत से भी बढ़कर है। अतः देशवासियों को मौत की परवाह न करते हुए देश की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए।

सैनिक देशवासियों को उद्बोधित करते हुए कहते हैं कि दुश्मनरूपी रावण को रोकने के लिए उन्हें अपने खून से लक्ष्मण-रेखा खींचनी होगी। सीता के समान पवित्र भारत-भूमि की तरफ बढ़ने वाले प्रत्येक हाथ को तोड़ डालना होगा। उन्होंने अपने आपको देश पर बलिदान कर दिया है, अब ऐसी ही अपेक्षा उन्हें अपने देशवासियों से भी है। अतः वे देश की रक्षा का भार देशवासियों पर छोड़कर इस संसार से जा रहे हैं।

सप्रसंग व्याख्या – 

1. कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साधियो
साँस थमती गई, नब्त्र जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शब्दार्थ : फ़िदा – न्योछावर। जानो-तन – प्राण और शरीर। हवाले – सुपुर्द। वतन – देश। थमना – रुकना। नब्ज – नाड़ी। गम – दुख।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध गीतकार कैफ़ी आज़मी के गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं। यह एक देशभक्तिपूर्ण गीत है। इसमें उन्होंने देश पर प्राणों को न्योछावर करने वाले सैनिकों के माध्यम से देशवासियों को देश पर मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक कहते हैं कि वे अपने शरीर और प्राणों को देश पर न्योछावर करके मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। अब देश की रक्षा का भार देशवासियों के कंधों पर है। दुश्मन ने आक्रमण किया, तो उन्होंने मरते दम तक उनका मुकाबला किया है। जब उनकी साँसें रुकती जा रही थी और नाड़ी का चलना बंद होता जा रहा था, तब भी उन्होंने दुश्मनों को पीछे धकेलने का कार्य जारी रखा।

सैनिक गर्व से कहते हैं कि देश की रक्षा करते हए प्राणों को न्योछावर करने का उन्हें कोई दुख नहीं है। उन्हें इस बात की खुशी है कि उन्होंने देश के मान-सम्मान के प्रतीक हिमालय को झुकने नहीं दिया। सैनिक पुनः कहते हैं कि उन्होंने अपने अंतिम समय में भी दुश्मनों का वीरता से मुकाबला किया। अब वे देश की रक्षा का भार अपने देशवासियों पर छोड़कर इस संसार से जा रहे हैं।

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2. जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इशक दोनों को रुख्वा करे
वो जबानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ : जिंदा – जीवित। मगर – लेकिन। जान – प्राण। रुत – मौसम। रोज़ – प्रतिदिन । हुस्न – सुंदरता। इश्क – प्रेम। रुस्वा – बदनाम। खू – खून।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखित गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं। इस गीत में उन्होंने सैनिकों के बलिदान के माध्यम से देशवासियों को अपने देश पर मर-मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक कहते हैं कि जीवन में आनंद लेने का समय तो बार-बार आता है, किंतु अपने देश पर प्राणों को न्योछावर करने का समय कभी-कभी ही आता है। जब भी देश पर आक्रमण हो, तो नवयुवकों को प्रेम और सुंदरता त्यागकर देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देना चाहिए। इसी में भी उसके यौवन की सार्थकता है। सैनिक पुनः नवयुवकों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि आज धरती दुलहन के समान सजी हुई है। जिस प्रकार स्वयंवर में दुलहन को प्राप्त करने के लिए राजा अपनी जान की बाजी लगा देते हैं, उसी प्रकार आज नवयुवकों को अपनी धरतीरूपी दुलहन के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने की ज़रूरत है। अब वे देश की रक्षा का दायित्व देशवासियों पर छोड़कर इस संसार से जा रहे हैं।

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3. राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्तरे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ कुर्बानियाँ – बलिदान। वीरान – सुनसान। काफ़िला – यात्रियों का समूह। जश्न – खुशी मनाना। सर से कफ़न बाँधना – मृत्यु की परवाह न करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं। इस गीत में उन्होंने सैनिकों के बलिदान
के माध्यम से देशवासियों को देश पर मर-मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक देशवासियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि वे देश पर अपने प्राणों का बलिदान करके जा रहे हैं, लेकिन उनके बाद भी यह सिलसिला चलता रहना चाहिए। जब-जब इस देश पर दुश्मनों का आक्रमण हो, तब-तब देशवासियों को बलिदान देने का क्रम बढ़ाना चाहिए। युद्ध में जीत की खुशी मिलना बाद की बात है, उससे पहले अपने आपको हँसते-हँसते देश पर बलिदान करने की खुशी होती है। उस समय जिंदगी मौत से गले मिलती प्रतीत होती है। सैनिक पुनः देशवासियों से कहते हैं कि उन्हें अपने प्राणों की परवाह न करते हुए देश की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। वे अब इस देश को उनके सुपुर्द करके इस संसार से जा रहे हैं।

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4. खींच दो अपने खं से जमीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ : खू – खून। जमीं – ज़मीन, धरती। लकीर – रेखा। तरफ़ – ओर। अगर – यदि। दामन – आँचल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं । इस गीत में उन्होंने सैनिकों के बलिदान के माध्यम से देशवासियों को देश पर मर-मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि अब उन्हें ही देश की रक्षा करनी है। यदि कोई दुश्मनरूपी रावण हमारे देश की ओर आगे बढ़े, तो तुम्हें उसे रोकने के लिए अपने खून से लक्ष्मण-रेखा खींचनी होगी। अपने देश की ओर बढ़ने वाले प्रत्येक हाथ को तोड़ देना होगा। हमारी भारत भूमि सीता के दामन के समान पवित्र है। यदि कोई दुश्मन उसे अपवित्र करने का प्रयास करे, तो तुम्हें उस दुश्मन को नष्ट करना होगा। सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि इस देश के राम और लक्ष्मण तुम ही हो। तुम्हें ही अब इस देश की रक्षा करनी है, क्योंकि अब वे इस देश की रक्षा का सारा दायित्व उन्हें सौंपकर इस संसार से जा रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ?
उत्तर :
लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया, तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए, जैसे उन्हें लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था, जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसलिए वे परेशान हो गए। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखने लगे। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर :
नवाब साहब ने बहुत नज़ाकत और सलीके से खीरा काटकर, उस पर नमक-मिर्च लगाया। फिर उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाने सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्य वस्तु खाने में शर्म अनुभव करते थे।

लेखक को डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसलिए उन्होंने खीरे को केवल सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब साहब के ऐसा करने से लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे थे। वे दिखावा पसंद इनसान थे। इसी स्वभाव के कारण उन्होंने लेखक को देखकर खीरा खाना अपना अपमान समझा।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
हम लेखक के इन विचारों से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है; क्योंकि प्रत्येक कहानी के पीछे कोई-न-कोई घटना, विचार अथवा पात्र अवश्य होता है। उदाहरण के लिए लेखक की इस कहानी ‘लखनवी-अंदाज़’ को ही ले सकते हैं, जिसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने के लिए सारा ताना-बाना बुना है। इसमें लेखक के इसी विचार की प्रमुखता है। घटना के रूप में रेलयात्रा तथा पात्र के रूप में लखनवी नवाब आ जाते हैं और कहानी बन जाती है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी बन सकती है। प्रत्येक कहानी में इन सबका होना बहुत आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
उत्तर
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? हम इस निबंध को ‘अकड़-नवाब’ नाम देना चाहते हैं, क्योंकि इस पाठ के नवाब साहब अपना सारा काम अकड़ कर करते हैं। वे किसी सहयात्री से बातचीत नहीं करते। खीरे को ऐसे काटते हैं, जैसे कोई विशेष वस्तु हो। ‘खीरा आम आदमी के खाने की वस्तु है’-यह याद आते ही वे उसे खाने के स्थान पर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं।

उनकी ये सभी हरकतें इस पाठ को ‘अकड़ नवाब’ शीर्षक देने के लिए बिलकुल सही हैं। इसके अतिरिक्त लेखक ने इस निबंध का नाम ‘लखनवी अंदाज़’ रखा है, जो लखनऊ के नवाबों के जिंदगी जीने के अंदाज़ का वर्णन करता है। लखनवी अंदाज़’ के अतिरिक्त इस निबंध का नाम ‘नवाब की सनक’ हो सकता है। इस निबंध में लेखक ने एक नवाब की सनक का वर्णन किया है।

नवाब एकांत में तो आम कार्य कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के सामने आम कार्य करते समय उन्हें शर्म महसूस होती है। इसके लिए वे आम कार्य को भी खास बनाने का बेतुका प्रयत्न करते हैं। इस निबंध के अनुसार नवाब खीरे को बड़ी नज़ाकत और सलीके से खाने के लिए तैयार करता है। लेकिन नवाब उन खीरों को लेखक के सामने नहीं खाना चाहता, इसलिए केवल से कर ही खीरे को खिड़की से बाहर फेंक देता है। यह कार्य केवल सनकी लोग ही कर सकते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है? इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
(ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं ?
उत्तर :
(क) नवाब साहब ने पहले खीरों को धोया और फिर तौलिए से उन खीरों को पोंछा। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरे के सिरे काटे और उन्हें अच्छी तरह से गोदा। उसके बाद खीरों को बहुत सावधानी से छीलकर फाँकों को तौलिए पर बड़े अच्छे ढंग से सजा दिया। नवाब साहब के पास खीरा बेचने वालों के पास से ली गई नमक-मिर्च-जीरा की पुड़िया थी। नवाब साहब ने तौलिए पर रखे खीरों की फांकों पर जीरा-नमक-मिर्च छिड़का। उन खीरों की फाँकों को देखने मात्र से ही मुँह में पानी आने लगा था। इस तरह नवाब साहब ने बड़े नज़ाकत और सलीके से खीरा खाने की तैयारी की।

(ख) हम गाजर, टमाटर, मूली आदि चीजों को खाना पसंद करते हैं। इन चीजों को पहले धोकर पोंछ लेते हैं। फिर उन्हें चाकू से साफ़ करके पतली-पतली फाँकें कर लेते हैं। इसके बाद उन पर नमक और मसाला लगाकर खाने के लिए तैयार कर लेते हैं। खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों बारे में पढ़ा-सुना होगा।

किसी एक के बारे में लिखिए। उत्तर नवाब साहब द्वारा खीरे को खाने के लिए तैयार करना और फिर उसे केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देना इसे नवाबी सनक कहा जा सकता है। इसी प्रकार हमने नवाबों की कई सनकों के बारे में सुना है। दो नवाब रेलवे स्टेशन पर गाड़ी पकड़ने के लिए जाते हैं। दोनों का एक ही डिब्बे के सामने आमना-सामना हो जाता है।

नवाबों में शिष्टाचार का बहुत महत्व होता है। इसी शिष्टाचार के कारण दोनों नवाब एक-दूसरे को डिब्बे में पहले जाने की बात करते हैं। गाड़ी चलने को तैयार हो जाती है, परंतु उन दोनों में से कोई डिब्बे में पहले चढ़ने की पहल नहीं करता। उनकी शिष्टाचार की सनक ने उनकी गाड़ी निकाल दी, परंतु दोनों अपनी जगह से टस-से-मस नहीं हुए।

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प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख करें।
उत्तर :
कभी-कभी किसी सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। उसकी सनक दूसरों को सुधरने के लिए मजबूर कर देती है। जैसे किसी को हर काम समय पर करने की आदत होती है। वह अपना सारा काम घड़ी की सुई के अनुसार करता है। आरंभ में उसकी इस आदत से लोग परेशान होते हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों को समय पर काम करने की आदत हो जाती है। इससे उनमें अनुशासन की भावना आ जाती है।

किसी-किसी व्यक्ति को सफ़ाई बहुत पसंद होती है। यदि उसके आस-पास का वातावरण बिखरा रहता है, तो वह चुपचाप सभी का काम करता रहता है; वह किसी से कुछ नहीं कहता। लोग उसको सफ़ाई-पसंद सनकी कहते हैं, परंतु वह फिर भी बिखरे हुए और गंदे सामान को साफ़ करके उचित स्थान पर रखता रहता है। उसकी इस आदत से लोगों में शर्मिंदगी का एहसास होता है और धीरे-धीरे वे भी अपनी आदतें सुधारने में लग जाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए –
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर :
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) कल्पना करना – अकर्मक क्रिया
(घ) खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) सिर काटे, झाग निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – अकर्मक क्रिया
(छ) लेट गए – अकर्मक क्रिया,
(ज) निकालना – सकर्मक क्रिया

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब-अर्ज’…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
‘नमस्ते’, ‘आइए’, ‘बैठिए’, ‘कृपया कुछ लीजिए’, ‘धन्यवाद’, ‘क्षमा करना’, ‘कृपया यह काम कर दें’ आदि कुछ शिष्टाचार सूचक कथन हैं।

प्रश्न 2.
‘खीरा…मेदे पर बोझ डाल देता है; क्या वास्तव में खीरा अपच करता है। किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर :
वास्तव में खीरा अपच खाद्य पदार्थ नहीं है; यह गरमियों में शीतलता प्रदान करता है परंतु इसका अधिक मात्रा में उपयोग करना नुकसान देता है। खाद्य पदार्थों का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है; जैसे-मौसम, व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, खाद्य पदार्थ के प्रति लगाव आदि। सरदी के मौसम में ठंडी वस्तुओं का कम प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

सबसे अधिक प्रभाव बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है। ऐसे ही गरमियों में गरमाहट देने वाली वस्तु का प्रयोग कम किया जाता है, क्योंकि वे शरीर के तापमान को बढ़ा देती हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सरदी में हम गर्म वस्तुओं तथा गरमी में ठंडी वस्तुओं का प्रयोग अधिक करते हैं। बरसात के दिनों में ऐसी वस्तुओं के प्रयोग से बचा जाता है, जो बद-बादी होती हैं।

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प्रश्न 3.
खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं, जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा करें।
उत्तर :
हमारे क्षेत्र में खाद्य पदार्थों से संबंधित बहुत-सी मान्यताएँ प्रचलित हैं। गरमियों में लू से बचने के लिए हम नींबू पानी, आम पन्ना, की लस्सी तथा बेल के शरबत का प्रयोग करते हैं। सरदियों में ठंड से बचने के लिए गुड़-शक्कर, मूंगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

प्रश्न 4.
पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढ़कर पढ़िए और संभव हो तो फ़िल्म भी देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस पाठ के माध्यम से बताना चाहता है कि बिना पात्रों, घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन-शैली का वर्णन किया है। लेखक को रेलगाड़ी के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। नवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है, लेकिन लेखक के सामने खीरा खाने में उसे संकोच होता है।

इसलिए अपने नवाबी अंदाज़ में लज़ीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है। नवाब के इस व्यवहार से लगता है कि वे आम लोगों जैसे कार्य एकांत में करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं किसी के देख लेने से उनकी शान में फर्क न आ जाए। आज का समाज भी ऐसी ही दिखावा पसंद संस्कृति का आदी हो गया है।

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प्रश्न 2.
लेखक ने नवाब की असुविधा और संकोच के लिए क्या अनुमान लगाया ?
उत्तर :
लेखक जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए बैठे थे। उनके सामने दो खीरे रखे थे। लेखक को देखकर उन्हें असुविधा और संकोच हो रहा था। लेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखे। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में उन्हे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उनके लिए असुविधा और संकोच का कारण बन रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक को खीरे खाने से इनकार करने पर अफ़सोस क्यों हो रहा था?
उत्तर :
नवाब साहब ने साधारण से खीरों को इस तरह से सँवारा कि वे खास हो गए थे। खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया, परंतु वह पहले ही खीरा खाने से इनकार कर चुका था। अब उसे अपना आत्म-सम्मान बचाना था। इसलिए नवाब साहब के दोबारा पूछने पर लेखक ने मेदा (आमाशय) कमज़ोर होने का बहाना बनाया।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरा खाने का कौन-सा रईसी तरीका अपनाया? इससे लेखक के ज्ञान-चक्षु कैसे खुले?
उत्तर :
नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण-सा खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खीरे को किसी कीमती वस्तु की तरह तैयार किया। उस लजीज खीरे को देखकर लेखक के मुँह में पानी आ गया। इसके बाद नवाब साहब खीरे की फाँक को उठाया और नाक तक ले जाकर सूंघा। खीरे की महक से उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने उस पानी को गटका और खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।

इस तरह उन्होंने सारा खीरा बाहर फेंक दिया और लेखक को गर्व से देखा। उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे वे लेखक से कह रहे हों कि नवाबों के खीरा खाने का यह खानदानी रईसी तरीका है। यह तरीका देखकर लेखक सोचने लगा कि बिना खीरा खाए, केवल सूंघकर उसकी महक और स्वाद की कल्पना से तृप्ति का डकार आ सकता है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से ‘नई कहानी’ क्यों नहीं बन सकती। इसी सोच ने लेखक के ज्ञान-चक्षु खोल दिए।

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प्रश्न 5.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज’ पाठ व्यंग्य प्रधान है। इस पाठ का मूल उद्देश्य यह दर्शाना है कि बिना पात्र, विचार, घटना के कहानी नहीं लिखी जा सकती है। साथ ही लेखक ने उन लोगों पर करारा व्यंग्य भी किया है, जो दिखावे तथा बनावटीपन में विश्वास रखते हैं।

प्रश्न 6.
नवाब साहब को देखते ही लेखक उसके प्रति व्यंग्य से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
लेखक के मन में पहले से ही नवाबों के प्रति व्यंग्य की धारणा बनी हुई थी कि वे अपनी आन-बान-शान को अत्यधिक महत्व देते हैं। वे खाने-पीने के बहुत शौकीन होते हैं। वे औरों के समक्ष स्वयं को सदाचारी तथा शिष्ट बनाकर प्रस्तुत करते हैं। उसे नवाब द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कार्य उसे मात्र दिखावा लग रहा था, इसलिए लेखक नवाब साहब के प्रति व्यंग्य से भर जाता है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर यशपाल की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यशपाल ने अपनी रचना में सहज स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लेखक ने उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है।

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प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज़’ किस प्रकार की रचना है?
अथवा
‘लखनवी अंदाज’ को रोचक कहानी बनाने वाली कोई दो बातें लिखिए।
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज़’ पतनशील सामंती-वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करके नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध रखता है। आज के समाज में दिखावटी संस्कृति को देखा जा सकता है।

पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। नवाब साहब ने करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्जी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के ख्याल से अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

(क) लखनऊ स्टेशन पर विक्रेता किसका इस्तेमाल का तरीका जानते हैं?
(i) सेब
(ii) खीरा
(iii) ककड़ी
(iv) पपीता
उत्तर :
(ii) खीरा

(ख) खीरे किसके पास थे?
(i) ट्रेन में बैठे ग्राहक के
(ii) यात्री लेखक के
(iii) नवाब साहब के
(iv) भिखारी के
उत्तर :
(iii) नवाब साहब के

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(ग) खीरा विक्रेता खीरे के साथ और क्या हाजिर करता था?
(i) काला नमक
(ii) चूरन
(iii) नींबू
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च
उत्तर :
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च

(घ) लेखक कनखियों से देखकर किसके बारे में सोच रहे थे?
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में
(ii) खीरे विक्रेता के बारे में
(iii) खीरे के स्वाद के बारे में
(iv) नवाब साहब की पोशाक के बारे में
उत्तर :
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में

(ङ) नवाब साहब की भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से क्या स्पष्ट था?
(i) खीरे को काटकर फेंकना चाहते थे।
(ii) खीरों को केवल सूंघना चाहते थे।
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।
(iv) लेखक को भी खीरे का स्वाद बताना चाहते थे।
उत्तर :
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(i) निम्न वर्ग पर
(ii) उच्च वर्ग पर
(iii) सफ़ेदपोश नेताओं पर
(iv) पतनशील सामंती वर्ग
उत्तर :
(iv) पतनशील सामंती वर्ग

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(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या करने की है?
(i) सोने की
(ii) कल्पना करने की
(iii) फल काटने की
(iv) रोने की धोने की
उत्तर :
(ii) कल्पना करने की

(ग) लखनऊ के खीरे की क्या विशेषता थी?
(i) लजीज
(ii) देसी
(iii) बासी
(iv) कषैला
उत्तर :
(i) लजीज

(घ) लेखक ने खीरे को क्या माना है?
(i) बहुमूल्य फल
(ii) अपदार्थ वस्तु
(iii) सुपाच्य वस्तु
(iv) स्वादिष्ट सब्जी
उत्तर :
(ii) अपदार्थ वस्तु

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ से क्या आशय है ?
3. लेखक ट्रेन की कौन-सी क्लास में यात्रा कर रहा था और क्यों?
4. ‘ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी।’ इस पंक्ति से लेखक ट्रेन की किस स्थिति की ओर संकेत कर रहा था?
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक किस क्लास में यात्रा करने की राय दे रहा था? उस क्लास में यात्रा करने से क्या हानि थी?
उत्तर :
1. पाठ-लखनवी अंदाज, लेखक-यशपाल।
2. जो साधारण ट्रेन प्रमुख नगर के आस-पास के क्षेत्रों में जाती है, उस ट्रेन को ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ कहते हैं। प्रमुख नगर में आस … पास से आने-जाने वाले दैनिक यात्री तथा अन्य लोग इस ट्रेन का लाभ उठाते हैं।
3. लेखक ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा था। द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में भीड़ नहीं होती तथा आराम से यात्रा की जा सकती थी। इसमें बैठने के लिए खिड़की के पास स्थान मिल जाता था, जिससे बाहर के दृश्य भी देखे जा सकते थे। लेखक एकांत में किसी कहानी का प्लाट भी सोचना चाहता था।
4. ट्रेन के इस वर्णन से लेखक संकेत कर रहा है कि ट्रेन में पुराने जमाने का भाप का इंजन लगा हुआ था, जो ट्रेन को चलाने से पहले फंकार-सी मारता था। यह फूंकार उसमें से भाप निकलने के कारण होती थी।
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करने की सलाह दे रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करने की – मुख्य हानि यह थी कि इसके लिए पैसे अधिक खर्च करने पड़ते थे।

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2. गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक जब प्लेटफार्म प ट्रेन की क्या स्थिति थी? लेखक ने क्या किया?
2. लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या हुआ?
3. लेखक ने डिब्बे में किसे और किस स्थिति में देखा?
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में क्या सोचा?
उत्तर :
1. लेखक जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो ट्रेन चल पड़ी थी। लेखक ने चलती हुई ट्रेन में सेकंड क्लास का एक छोटा-सा डिब्बा देखा। वह उस डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़ गया।
2. लेखक का अनुमान था कि जिस डिब्बे में वह चढ़ रहा है, वह खाली है। किंतु उसके अनुमान के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ था।
3. लेखक ने डिब्बे की एक बर्थ पर लखनवी नवाब जैसे एक भद्र पुरुष को पालथी मारकर बैठे हुए देखा। उन सज्जन के सामने तौलिए पर दो ताज़े और मुलायम खीरे रखे हुए थे।
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में सोचा कि उसके डिब्बे में अचानक कूद आने से उन सज्जन की एकांत साधना में विघ्न पड़ गया है। उसे लगा कि शायद ये सज्जन भी उसकी तरह ही किसी कहानी की रूप-रेखा बनाने में डूबे हुए हों अथवा उन्हें उसके द्वारा यह देखे जाने पर संकोच हो रहा हो कि वे खीरे जैसी मामूली वस्तु खा रहे हैं।

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3. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफ़र करता देखे।… अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफ़ेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. लेखक की पुरानी आदत क्या थी और क्यों?
2. लेखक किस बात का अनुमान करने लगा?
3. लेखक के अनुसार नवाब साहब सेकंड क्लास में सफ़र क्यों कर रहे थे ?
4. नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
उत्तर :
1. लेखक की पुरानी आदत थी कि वह जब अकेला अथवा खाली होता था, तो अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करने लग जाता था। वह एक लेखक था, इसलिए कल्पना के आधार पर अपनी रचनाएँ करता था। खाली समय में इन्हीं कल्पनाओं में डूबा रहता था कि अब क्या नया लिखा जाए।

2. लेखक नवाब साहब के संकोच और असुविधा के कारण का अनुमान करने लगा। वह सोचने लगा कि नवाब साहब अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। अधिक किराया खर्च न करना पड़े, इसलिए कुछ बचत करने के विचार से उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा। अब उन्हें यह अच्छा नहीं लग रहा होगा कि शहर का कोई दूसरा सज्जन उन्हें इस प्रकार द्वितीय श्रेणी में यात्रा करते हुए देखे।

3. लेखक का विचार था कि एकांत में यात्रा करने के उद्देश्य से नवाब साहब ने सेकंड क्लास में यात्रा करना उचित समझा होगा। इसके अतिरिक्त प्रथम श्रेणी में किराया भी अधिक लगता है। सेकंड क्लास में एकांत भी मिल जाएगा और किराए की भी बचत हो जाएगी।

4. लेखक के विचार में नवाब साहब ने अकेले में सफ़र काटने के लिए खीरे खरीद लिए होंगे। अब वे खीरे इसलिए नहीं खा रहे थे, क्योंकि उन्हें लेखक के सामने खीरे जैसी मामूली वस्तु खाने में संकोच हो रहा था।

4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बार फेंकते गए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. ‘सतृष्ण आँखों’ से देखने का क्या तात्पर्य है ? यहाँ कौन ऐसा कर रहा था?
2. नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास क्यों लिया?
3. नवाब साहब ने खीरे की फाँक का क्या किया?
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद कैसे लिया?
उत्तर :
1. जिन आँखों में किसी चीज़ को पाने की चाह होती है, उन्हें ‘सतृष्ण आँखें’ कहते हैं। यहाँ नवाब साहब कटे हुए खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खा लेने की इच्छा से देख रहे थे, परंतु वे इन्हें खा नहीं सकते थे।
2. नवाब साहब खिड़की के बाहर देखकर लंबी साँस इसलिए ले रहे थे, क्योंकि वे चाहकर भी खीरा खा नहीं पा रहे थे।
3. नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की फाँकों में से एक फाँक उठाई और उसे अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद उन्होंने उस फाँक को सँघा। उन्हें इससे इतना आनंद आया कि उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया और पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। इसके बाद उन्होंने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खाकर नहीं, बल्कि उन फाँकों को सूंघकर लिया। सूंघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक देते थे।

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5. नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों- यह है खानदानी रईसों का तरीका! नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
2. नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया?
3. लेखक को नवाब साहब की किस बात पर अपना सिर झुकाना पड़ा?
4. लेखक किस बात पर विचार कर रहा था?
5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया ?
6. नवाब साहब का खीरा खाने का ढंग किस तरह अलग था?
7. नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?
8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए क्या किया है?
उत्तर :
1. नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर उन्होंने खीरों को खिड़की के बाहर धोया और उन्हें तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिर काटा और उन्हें गोदकर उनका झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीलकर वे उनकी फाँकों को तौलिए पर सजाते गए और उन पर जीरा मिला नमक व लाल मिर्च छिड़क दी।

2. नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा। फाँक को सूंघने से मिले आनंद से उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया, जिसे वे गटक गए। इसके बाद उन्होंने वह फाँक खिड़की से बाहर फेंक दी। ऐसा ही उन्होंने खीरे की अन्य फाँकों के साथ किया। नवाब साहब ने इस प्रकार से खीरे का इस्तेमाल किया।

3. लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के इस्तेमाल की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा कि किस प्रकार से अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता और कोमलता प्रदर्शित करते हुए नवाब साहब ने खीरे का मात्र सूंघकर आनंद लिया था।

4. लेखक विचार कर रहा था कि जिस प्रकार से नवाब साहब ने मात्र सूंघकर खीरे का आनंद लिया है, क्या इससे पेट की संतुष्टि हो सकती है?

5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताया कि खीरा होता तो स्वादिष्ट है, परंतु आसानी से पचता नहीं है। इसके सेवन से आमाशय पर बोझ पड़ता है, इसलिए वे खीरा नहीं खाते हैं।

6. नवाब साहब ने बड़े ही सलीके से कटे हुए तथा नमक-मिर्च लगे खीरे की फाँकों को उठाया, उसे सूंघा तथा खाने की बजाय उसे एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंक दिया। तत्पश्चात वे ऐसा दर्शाने लगे जैसे खीरा खाने से उनका पेट भर गया हो।

7. नवाब साहब रसास्वादन के माध्यम से तृप्त होने के विचित्र तरीके से अपनी अमीरी को प्रकट करना चाहते थे।

8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को सूंघा तथा एक-एक करके बाहर फेंकते रहे तथा खीरा न खाने का कारण यह बताया कि वह आमाशय पर बोझ डालता है।

लखनवी अंदाज़ भगत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – हिंदी के यशस्वी उपन्यासकार, कहानी लेखक एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 1903 ई० में जाब के फ़िरोज़पुर छावनी में हआ था। इनके पिताजी हीरालाल हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के भुंपल गाँव के निवासी थे, जहाँ वे छोटी-सी दुकान चलाते थे। इनकी माता प्रेमा देवी एक अनाथालय में अध्यापिका थीं। माता स्वयं को शाम चौरासी के मंत्रियों की वंशज मानती थीं। संभवतः यही कारण है कि प्रेमा देवी नौकरी करके अलग रहने लगी थीं। पति की मृत्यु के पश्चात उनका कांगड़ा आना जाना प्रायः समाप्त हो गया था।

यशपाल की प्रारंभिक शिक्षा कांगड़ा में हुई थी। माता उन्हें दयानंद सरस्वती का सच्चा सिपाही बनाना चाहती थी, इसलिए इन्हें पढ़ने के लिए गुरुकुल कांगड़ी में भेजा गया। लेकिन अस्वस्थता के कारण इन्हें गुरुकुल कांगड़ी छोड़ना पड़ा। इसके बाद इन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी० ए० किया। यहीं पर रहते हुए यशपाल क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में इन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

इन्होंने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ काम किया और अनेक बार जेल भी गए। चंद्रशेखर के बलिदान के पश्चात यशपाल ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के कमांडर-इन-चीफ बने और अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वर्ष 1936 के पश्चात इनकी रुचि साम्यवादी विचारधारा में बढ़ी और इन्होंने लखनऊ से ‘विप्लव’ नामक पत्रिका निकालना प्रारंभ किया।

साम्यवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए यशपाल ने निरंतर संघर्ष किया। यशपाल की शादी जेल में ही हुई थी। इन्होंने अनेक बार विदेशों में भ्रमण किया और अपने संस्मरण लिखे। ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’, ‘राह बीती’ तथा ‘स्वार्गोद्यान बिन साँप’ इनके यात्रा वर्णन हैं। दिसंबर 1952 में इन्होंने वियाना में हुए विश्व शांति कांग्रेस में भाग लिया था। सन 1976 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ – यशपाल मुख्यतः उपन्यासकार हैं। अमिता’, ‘दिव्या’, ‘झूठा सच’, ‘देशद्रोही’, ‘दादा कामरेड’ तथा ‘मेरी तेरी उसकी बात’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। इन्होंने दो सौ से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। इनके प्रमुख कहानी-संग्रह ‘ज्ञान-दान’, ‘तर्क का तूफ़ान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘फूलों का कुर्ता’ आदि हैं। इनके निबंध ‘विप्लव’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। इनके प्रसिद्ध निबंध संग्रह हैं-‘बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है’, ‘देखा सोचा-समझा’, ‘मार्क्सवाद’, ‘गांधीवाद की शव परीक्षा’, ‘राम राज्य की कथा’, ‘चक्कर क्लब’, ‘बात-बात में बात’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘जग का मुजरा’ आदि।

भाषा-शैली – यशपाल ने अपनी रचनाओं में सहज एवं स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लखनवी अंदाज़’ इनकी पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है।

भाषा उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की है; जैसे – ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थीं।’ अन्यत्र भी इन्होंने सेकंड क्लास, सफ़ेदपोश, किफ़ायत, गुमान, मेदा, तसलीम, नफ़ासत, नज़ाकत, एवस्ट्रेक्ट, सकील जैसे विदेशी शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। कहीं-कहीं उदर, तृप्ति, प्लावित, स्फुरण जैसे तत्सम शब्द भी दिखाई दे जाते हैं।

इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है; जैसे-नवाब साहब की यह स्थिति – ‘नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया।’ लेखक ने अपनी सहज भाषा-शैली में रचना को रोचक बना दिया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

पाठ का सार :

‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक सिद्ध करना चाहता है कि बिना पात्रों व कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती, परंतु एक स्वतंत्र रचना का निरूपण किया जा सकता है। इसमें लेखक ने नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध नहीं रखता। आज के समाज में इस दिखावटी संस्कृति को सहज देखा जा सकता है। लेखक एकांत में नई कहानी पर सोच-विचार करना चाहता था। इसलिए सेकंड क्लास का किराया ज्यादा होते हुए भी उसी का टिकट लिया।

सेकंड क्लास में कोई नहीं बैठता था। गाड़ी छटने वाली थी, इसलिए वह दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ गया। जिस डिब्बे को वह खाली समझ रहा था, वहाँ पहले से ही नवाबी नस्ल के एक सज्जन पुरुष विराजमान थे। लेखक का उस डिब्बे में आना उन सज्जन को अच्छा नहीं लगा। नवाब के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे थे। नवाब ने लेखक से बातचीत करना पसंद नहीं किया।

लेखक नवाब के बारे में अनुमान लगाने लगा कि उसे उसका आना क्यों अच्छा नहीं लगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। लेखक ने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने दोनों खीरों को धोया; तौलिए से पोंछकर चाकू से दोनों सिरों को काटकर खीरे का झाग निकाला। वे खीरे को बड़े सलीके और नजाकत से संवार रहे थे। उन्होंने खीरों पर नमक-मिर्च लगाया। नवाब साहब का मुंह देखकर ऐसा लग रहा था कि खीरे की फांक देखकर। उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट देखकर खीरा खाने का लेखक का मन हो रहा था, परंतु वह पहले इनकार कर चुका था।

इसलिए नवाब के दोबारा पूछने पर आत्मसम्मान के कारण उन्होंने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने खीरे की फाँक उठाई, फाँक को होंठों तक ले गए। उसे सूंघा। खीरे के स्वाद के कारण मुँह में पानी भर गया था। परंतु नवाब। साहब ने फाँक को सँघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। नवाब साहब ने सभी फांकों को बारी-बारी से सूघा और खिड़की से बाहर फेंका दिया। बाद में नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और गर्व से लेखक की ओर देखा।

ऐसा लग रहा था, जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का ढंग है। लेखक यह सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब कहते हैं कि खीरा खाने में तो अच्छा लगता है, परंतु अपच होने के कारण मैदे पर भारी पड़ता है। लेखक को लगता है कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है, तो बिना घटना-पात्रों और विचार के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती?

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

कठिन शब्दों के अर्थ :

मुफस्सिल – केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान। सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति, सज्जन पुरुष। किफ़ायत – मितव्यता। आदाब अर्ज़ – अभिवादन करना। गुमान – भ्रम। एहतियात – सावधानी। बुरक देना – छिड़क देना। स्फुरण – फड़कना, हिलना। प्लावित – पानी भर जाना। पनियाती – रसीली। मेदा – आमाशय। तसलीम – सम्मान में। खम – झुकाना। तहज़ीब – शिष्टता। लज़ीज – मजेदार, स्वादिष्ट। नफ़ासत – स्वच्छता। नज़ाकत – कोमलता। गौर करना – विचार करना। नफ़ीस – बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट – सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो। सकील – आसानी से न पचने वाला। उदर – पेट। तृप्ति – संतुष्टि। इस्तेमाल – प्रयोग। रईस – अमीर। सुगंध – खुशबू, महक। पैसेंजर – यात्री। नस्ल – जाति। ठाली बैठना – खाली बैठना।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

JAC Class 10th Sanskrit भूकम्पविभीषिका Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिये)
(क) कस्य दारुण विभीषिका गुर्जरक्षेत्रं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती?
(किसकी दारुण विभीषिका ने गुजरात क्षेत्र को ध्वंसावशेषों में परिणित कर दिया?)
(ख) कीदृशानि भवनानि धाराशायीनि जातानि?
(कैसे भवन धराशायी हो जाते हैं?)
(ग) दुर्वार-जलधाराभिः किमुपस्थितम्?
(कठिनाई से रोके जाने वाली जल धाराओं ने क्या उपस्थित कर दिया?)
(घ) कस्य उपशमनस्य स्थिरोपायः नास्ति?
(किसको शान्त करने का स्थिर उपाय नहीं है?)
(ङ) कीदृशाः प्राणिनः भूकम्पेन निहन्यन्ते ?
(कैसे प्राणी भूकम्प द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं ?)
उत्तराणि :
(क) भूकम्पस्य (भूकम्प की)
(ख) बहुभूमिकानि (बहुमञ्जिले)
(ग) महाप्लावनदृश्यम् (महान बाढ़ के दृश्य को)
(घ) भूकम्पस्य (भूकम्प के)
(ङ) विवशा (मजबूर)

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) समस्तराष्ट्र कीदृक् उल्लासे मग्नम् आसीत् ?
(सारा राष्ट्र कैसे उल्लास में मग्न था ?)
उत्तरम् :
समस्तराष्ट्रं नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नम् आसीत्।।
(सम्पूर्ण राष्ट्र नाच-गान और वादनों के उल्लास में डूबा हुआ था।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(ख) भूकम्पस्य केन्द्रभूतं किं जनपदः आसीत् ?
(भूकम्प का केन्द्रस्थित जनपद कौन-सा था ?)
उत्तरम् :
भूकम्पस्य केन्द्रभूतं कच्छजनपदः आसीत्।
(भूकम्प का केन्द्रस्थित भुज जनपद था।)

(ग) पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते ?
(पृथ्वी के स्खलन से क्या पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
पृथिव्याः स्खलनात् बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव पतन्ति। विद्युद्दीपस्तम्भाः पतन्ति। गृहसोपानमार्गाः विशीर्यन्ते।
भूमिः फालद्वये विभक्ता भवति। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वारजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपतिष्ठति। (पृथ्वी के अपने स्थान से खिसकने (हिलने) से बहुमंजिले मकान पलभर में गिर जाते हैं। बिजली के खम्भे गिर जाते हैं। घरों की सीढ़ियाँ टूटकर बिखर जाती हैं। भूमि दो भागों में बँट जाती है। पृथ्वी के भीतरी भाग से निकलने वाली अनियंत्रित जलधाराओं से बाढ़ जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है।)।

(घ) समग्रो विश्वः कैः आतङ्कितः दृश्यते ?
(सम्पूर्ण विश्व किनसे आतङ्कित दिखाई देता है ?)।
उत्तरम् :
समग्रो विश्वः भूकम्पैः आतङ्कितः दृश्यते।
(सम्पूर्ण संसार भूकम्पों से आतङ्कित दिखाई देता है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(ङ) केषां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते ?
(किनके विस्फोटों से भी भूकम्प पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते। (ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प पैदा होता है।)

प्रश्न 3.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती।।
(भूकम्प की विभीषिका ने विशेषतः कच्छ जिले को ध्वंसावशेषों में परिवर्तित कर दिया।)
उत्तरम् :
भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं केषु परिवर्तितवती ?
(भूकम्प की विभीषिका ने विशेषतः कच्छ जिले को किसमें परिवर्तित कर दिया ?)

(ख) वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
(वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी के गर्भ में पत्थर की शिलाओं के रगड़ने से कम्पन पैदा होता है।)
उत्तरम् :
के कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भ, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते ?
(कौन कहते हैं कि पृथ्वी के गर्भ में पत्थर की शिलाओं की रगड़ से कंपन पैदा होता है ?)

(ग) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते।
(विवश प्राणी आकाश में चींटी की तरह मारे जाते हैं।)
उत्तरम् :
विवशाः प्राणिनः कस्मिन् स्थाने (कुत्र) पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते ?
(विवश प्राणी किस स्थान पर (कहाँ) चींटी की तरह मारे जाते हैं ?)

(घ) एतादृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता।
(ऐसी भयानक घटना गढ़वाल क्षेत्र में घटी थी।)
उत्तरम् :
कीदृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता ?
(कैसी भयानक घटना गढ़वाल क्षेत्र में घटी थी ?)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(ङ) तदिदानीम् भूकम्पकारणं विचारणीयं तिष्ठति।
(तो अब भूकम्प का कारण विचारणीय है।)
उत्तरम् :
तदिदानीम् किं विचारणीयं तिष्ठति ?
(तो अब क्या विचारणीय है ?)

प्रश्न 4.
‘भूकम्पविषये’ पञ्चवाक्यमितम् अनुच्छेदं लिखत – (भूकम्प के विषय में पाँच वाक्यों का अनुच्छेद लिखिये-)
उत्तरम् :
भूकम्पेन प्रकृतेः सन्तोलनं नश्यति। प्रकृतेः असन्तोलनस्य भीषणः परिणामः भवति। भूकम्पेन बहुभूमिकानि भवनानि क्षणमात्रेण ध्वस्तानि भवन्ति। पतितेषु भवनेषु बहवः प्राणिनः मृत्युं प्राप्नुवन्ति। एवं भूकम्पेन भीषणा क्षतिः भवति। (भूकम्प से प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। प्रकृति के असंतुलन का भीषण परिणाम होता है। भूकम्प से बहुमंजिले मकान पलभर में गिर जाते हैं। गिरे हुए मकानों में बहुत-से प्राणी मर जाते हैं। इस प्रकार भूकम्प से भयंकर हानि होती है।)

प्रश्न 5.
कोष्ठकेष दत्तेष धातष निर्देशानसारं परिवर्तनं विधाय रिक्तस्थानानि परयत –
(कोष्ठक में दी हुई धातुओं में निर्देश के अनुसार परिवर्तन करके रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
(क) समग्रं भारतं उल्लासे मग्नः ……………. (अस् + लट् लकारे)
(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं …………. (कृ + क्तवतु + ङीप्)
(ग) क्षणेनैव प्राणिनः गृहविहीनाः ………….. (भू + लङ्, प्रथमपुरुष, बहुवचन)
(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्याम् ………. (भू + लट्, प्रथमपुरुष, बहुवचन)
(ङ) मानवाः ……………….. यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयं न वा? (पृच्छ + लट्, प्रथमपुरुष, बहुवचन)
(च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे ……………… (सम् + आ + विश् + विधिलिङ्, प्रथमपुरुष, एकवचन)
उत्तरम् :
(क) अस्ति
(ख) कृतवती
(ग) अभवन्
(घ) भवन्ति
(ङ) पृच्छन्ति
(च) समाविशे

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 6.
(अ) सन्धिं/सन्धिविच्छेदं च कुरुत (सन्धि तथा सन्धि-विच्छेद कीजिए।)
(अ) परसवर्णसन्धिनियमानुसारम् (परसवर्ण सन्धि के नियमानुसार)
(क) किञ्च = ………..+ च।
(ख) ………… = नगरम् + तु।
(ग) विपन्नञ्च = ……….. + ……….।
(घ) ………… = किम् + नु।
(ङ) भुजनगरन्तु = …………… + ………..।
(च) ………… = सम् + चयः।
उत्तर :
(क) किञ्च = किं + च।
(ख) नगरन्तु = नगरम् + तु।
(ग) विपन्नञ्च = विपन्नम् + च।
(घ) किन्नु = किम् + नु।
(ङ) भुजनगरन्तु = भुजनगरम् + तु।
(च) सञ्चयः = सम् + चयः।

(आ) विसर्गसन्धिनियमानसारम (विसर्गसन्धि के नियमानुसार)
(क) शिशवस्तु = …….. + …….।
(ख)………… = विस्फोटैः + अपि।
(ग) सहस्रशोऽन्ये =……….+ अन्ये।
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + ……।
(ङ) ……… = भूकम्पः + जायते।
(च) वामनकल्य एव = …….. + ……..।
उत्तरम् :
(क) शिशवस्तु = शिशवः + तु।
(ख) विस्फोटैरपि = विस्फोट: + अपि।
(ग) सहस्रशोऽन्ये = सहस्रशः + अन्ये।
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + अयम्।
(ङ) भूकम्पो जायते = भूकम्प: + जायते।
(च) वामनकल्प एव = वामनकल्पः + एव।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 7.
(अ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे विलोमपदानि, तयोः संयोगं करुत
(‘क’ स्तम्भ में दिए गए पदों को ‘ख’ स्तम्भ में दिए गए उनके विलोम पदों से मिलाइए-)
(क) – (ख)
सम्पन्नम् – प्रविशन्तीभिः
ध्वस्तभवनेषु – सुचिरेणैव
निस्सरन्तीभिः – विपन्नम्
निर्माय – नवनिर्मितभवनेषु
क्षणेनैव – विनाश्य
उत्तर :
(क) – (ख)
सम्पन्नम् – विपन्नम्
ध्वस्तभवनेषु – नवनिर्मितभवनेषु
निस्सरन्तीभिः – प्रविशन्तीभिः
निर्माय – विनाश्य
क्षणेनैव – सुचिरेणैव

(आ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे समानार्थकपदानि तयोः संयोगं कुरुत- (माध्यमिक परीक्षा, 2013) (‘क’ स्तम्भ में पद दिए हुए हैं और ‘ख’ स्तम्भ में उनके समानार्थी पद हैं, उन दोनों का मेल कीजिए-)
(क) – (ख)
पर्याकुलम् – नष्टाः
विशीर्णाः – क्रोधयुक्ताम्
उगिरन्तः – संत्रोट्य
विदार्य – व्याकुलम्
प्रकुपिताम् – प्रकटयन्तः
उत्तर :
(क) – (ख)
पर्याकुलम् – व्याकुलम्
विशीर्णाः – नष्टाः
उगिरन्तः – प्रकटयन्तः
विदार्य – संत्रोट्य
प्रकुपिताम् – क्रोधयुक्ताम्

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प्रश्न 8.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य प्रकृति-प्रत्ययोः विभागं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार प्रकृति-प्रत्यय को पृथक् कीजिए-)
यथा – परिवर्तितवती – परि + वृत् + क्तवतु + ङीप् (स्त्री)

  • धृतवान् – …………. + …………..
  • हसन् …………. + …………..
  • विशीर्णा – वि + श + क्त + ………..
  • प्रचलन्ती – …………. + ………….. + शतृ + ङीप् (स्त्री)
  • हतः – …………. + …………..

उत्तरम् :

  • धृतवान् ‘- धृ + क्तवतु
  • हसन् – हस् + शत्र
  • विशीर्णा – वि + शृ + क्त + टाप् (स्त्री)
  • प्रचलन्ती – प्र + चल् + शतृ + ङीप् (स्त्री)
  • हतः – हन् + क्त

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(आ) पाठात् विचित्य समस्तपदानि लिखत – (पाठ से चुनकर समस्त पद लिखिए-)
(क) महत् च तत् कम्पनम् = …………
(ख) दारुणा च सा विभीषिका = …………
(ग) ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = …………
(घ) प्राक्तने च तस्मिन् युगे = ………
(ङ) महत् च तत् राष्ट्र तस्मिन् = …………
उत्तरम् :
(क) महाकम्पनम्
(ख) दारुणविभीषिका
(ग) ध्वस्तभवनेषु
(घ) प्राक्तनयुगे
(ङ) महाराष्ट्रे।

JAC Class 10th Sanskrit भूकम्पविभीषिका Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
भारतराष्ट्र नृत्य-गीत-वादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् –
(अ) प्रसन्नतायाम्
(ब) प्रमादे
(स) भग्न
(द) दुखे
उत्तरम् :
(अ) प्रसन्नतायाम्

प्रश्न 2.
विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः।
(अ) विभीषिका
(ब) नष्य
(स) विशेषेण
(द) भूकम्पस्य
उत्तरम् :
(ब) नष्य

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प्रश्न 3.
फालद्वये विभक्ता
(अ) संपुज्य
(ब) धराः
(स) विभाजिता
(द) निस्सरन्तीभिः
उत्तरम् :
(स) विभाजिता

प्रश्न 4.
द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।
(अ) सहस्रमिताः
(ब) सहायतार्थम्
(स) मृतप्रायाः
(द) प्राणान्.
उत्तरम् :
(द) प्राणान्.

प्रश्न 5.
इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छभूकम्पस्य।
(अ) भीषण
(ब) ऋजु
(स) दुर्बलः
(द) कटु
उत्तरम् :
(अ) भीषण

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प्रश्न 6.
तदैव भयावहकम्पनं धराया
(अ) प्रकम्पते
(ब) प्रथिव्याः
(स) कथयन्ति
(द) संघर्षण
उत्तरम् :
(ब) प्रथिव्याः

प्रश्न 7.
विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति- .
(अ) कथम्
(ब) सञ्चयम्
(स) वदन्ति
(द) सर्वमेव
उत्तरम् :
(स) वदन्ति

प्रश्न 8.
ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।
(अ) नदीवेगेन
(ब) ग्रामाः
(स) पर्वताः
(द) उत्पादयन्ति
उत्तरम् :
(द) उत्पादयन्ति

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 9.
यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम
(अ) ईश्वरीयः
(ब) उपशमनस्य
(स) कोऽपि
(द) तथापि
उत्तरम् :
(अ) ईश्वरीयः

प्रश्न 10.
अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।
(अ) तटबन्धम्
(ब) वस्तुतः
(स) मित्र
(घ) रिपुः
उत्तरम् :
(ब) वस्तुतः

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
भूकम्पेन भुजनगरं कीदृशं जातम् ?
(भुजनगर भूकम्प से कैसा हो गया?)
उत्तरम् :
खण्ड-खण्डम् (टुकड़े-टुकड़े)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 2.
कीदृशानि भवनानि धराशायीनि जातानि ?
(कैसे भवन धराशायी हो गये ?)
उत्तरम् :
बहुभूमिकानि (बहुमंजिले)।

प्रश्न 3.
भूकम्पेन क्षणेन कति मानवाः मृताः ?
(भूकम्प से क्षणभर में कितने मनुष्य मर गये ?)
उत्तरम् :
सहस्रमिताः (हजारों)।

प्रश्न 4.
ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः मानवाः किं कुर्वन् आसन् ?
(ध्वस्त भवनों में पीड़ित मनुष्य क्या कर रहे थे ?)
उत्तरम् :
करुणक्रन्दनम् (करुण क्रन्दन)।

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प्रश्न 5.
बृहत्यः पाषाणशिलाः कस्मात् कारणात् त्रुट्यन्ति ?
(विशाल पत्थर की शिलाएँ किस कारण से टूटती हैं ?)
उत्तरम् :
संघर्षणवशात् (घर्षण के कारण)।

प्रश्न 6.
पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते ?
(पृथ्वी के स्खलन से क्या होता है ?)
उत्तरम् :
महाविनाशम् (महाविनाश)।

प्रश्न 7.
अग्निः शिलादिसञ्चयं किं करोति ?
(आग शिला आदि संचय का क्या करती है ?)
उत्तरम् :
क्वथयति (उबाल देती है)।

प्रश्न 8.
गगनं केन आवृणोति? (आकाश किससे ढक जाता है ?)
उत्तरम् :
धूमभस्माभ्याम् (धुआँ और राख से)।

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प्रश्न 9.
प्रकृतेः असन्तुलनवशात् किं सम्भवति ?
(प्रकृति के असन्तुलन के कारण क्या होता है ?)
उत्तरम् :
भूकम्पः (पृथ्वी का हिलना)।

प्रश्न 10.
एकस्मिन् स्थले किं न पुञ्जीकरणीयम् ?
(एक जगह पर क्या एकत्रित नहीं करना चाहिए ?)
उत्तरम् :
नदीजलम् (नदियों का पानी)।

प्रश्न 11.
भूकम्पावसरे भारतराष्ट्र केषाम् उल्लासे मग्नमासीत् ?
(भूकम्प के अवसर पर भारत राष्ट्र किसके उल्लास में डूबा हुआ था ?)
उत्तरम् :
गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि (गणतन्त्र दिवस समारोह में)।

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प्रश्न 12.
भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका कस्मिन् जनपदे आसीत् ?
(भूकम्प की भयंकर घटना किस जिले में थी ?)
उत्तरम् :
कच्छजनपदे (कच्छ जिले में)।

प्रश्न 13.
कति फाले विभक्ता भूमिः ?
(भूमि कितने भागों में बँट गई ?)
उत्तरम् :
फालद्वये (दो भागों में)।

प्रश्न 14.
भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुरजलधाराभिः किं दृश्यम् उपस्थितम् ?
(धरती के भीतरी भाग से ऊपर निकलती अनियंत्रित जलधाराओं से क्या दृश्य उपस्थित हो गया ?)
उत्तरम् :
महाप्लावनम् (भयंकर बाढ़ का)।

प्रश्न 15.
कच्छजनपदे कस्य भैरवविभीषिका आसीत् ?
(कच्छजनपद में किसकी भयंकर विभीषिका थी ?)
उत्तरम् :
भूकम्पस्य (भूकम्प की)।

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प्रश्न 16.
कस्याः अन्तर्गर्भे बृहत्यः पाषाणशिलाः विद्यमानाः भवन्ति ?
(किसके भीतरी भाग में पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाएँ मौजूद होती हैं ?)
उत्तरम् :
पृथिव्याः (धरती के)।

प्रश्न 17.
ग्रामाः नगराणि च कस्मिन् समाविशन्ति ?
(गाँव और नगर किसमें समाविष्ट हो जाते हैं ?)
उत्तरम् :
लावारसोदरे (लावे के अन्दर)।

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प्रश्न 18.
केषां विस्फोटैः भूकम्पः जायते ?
(किनके विस्फोट से भूकंप पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
ज्वालामुखपर्वतानाम् (ज्वालामुखी पहाड़ों के)।

प्रश्न 19.
अद्यापि विज्ञानगर्वितः मानवः कीदृशः अस्ति ?
(आज भी विज्ञान से गर्वित मानव कैसा है ?)
उत्तरम् :
वामनकल्पः (बौना-सा)।

प्रश्न 20.
केषां प्रकोपः भूकम्पः अस्ति ?
(भूकम्प किनका प्रकोप है ?)
उत्तरम् :
देवानाम् (देवताओं का)।

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पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 21.
भूकम्पेन कच्छजनपदस्य का दशा अभवत् ?
(भूकम्प से कच्छ जिले की क्या स्थिति हो गई ?)
उत्तरम् :
भूकम्पेन कच्छ जनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितम्।
(भूकम्प से कच्छ जिला खण्डहरों में बदल गया।)

प्रश्न 22.
सहस्रमिता: प्राणिनः कथं मृताः ?
(हजारों प्राणी कैसे मर गये ?)
उत्तरम् :
भूकम्पस्य विभीषिकया सहस्रमिताः प्राणिनः मृताः।
(भूकम्प की विभीषिका से हजारों प्राणी मर गये।)

प्रश्न 23.
भूकम्पात् किं भवति ?
(भूकम्प से क्या होता है ?)
उत्तरम् :
भूकम्पात् अपार-जन-धन-हानिः भवति।
(भूकम्प से अपार जन और धन की हानि होती है।)

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प्रश्न 24.
पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निः किं करोति?
(धरती के गर्भ में स्थित आग क्या करती है ?)
उत्तरम् :
पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निः खनिजमृत्तिकाशिलादि सञ्चयं क्वथयति।
(पृथ्वी के गर्भ में स्थित आग खनिज-मिट्टी की शिलाओं के संचय को उबालती है।)

प्रश्न 25.
मानवः वामनकल्पः कुत्र भवति ? (मनुष्य बौने के समान कहाँ होता है ?)
प्रकत्याः समक्षं मानवः वामनकल्पः एव भवति।
(प्रकृति के समक्ष मानव बौना-सा ही होता है।)

प्रश्न 26.
भूकम्पेन गुर्जरराज्यं कीदृशम् अभवत् ?
(भूकम्प से गुजरात राज्य कैसा हो गया ?)
उत्तरम् :
भूकम्पेन गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तं क्रन्दनविकलं च जातम्।
(भूकम्प से गुजरात राज्य चारों ओर से व्याकुल, अस्त-व्यस्त तथा क्रन्दन से व्याकुल हो गया।)

प्रश्न 27.
महाप्लावनदृश्यं कथम् उपस्थितम्? (महाप्लावन का दृश्य कैसे उपस्थित हो गया ?)
उत्तरम् :
भूमिगर्भाद् उपरि निस्सरन्तीभिः दुरिजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।
(भूमि के गर्भ से ऊपर निकलती कठिनाई से रोकने योग्य जल की धाराओं से महाप्लावन का दृश्य उपस्थित हो गया।)

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प्रश्न 28.
कश्मीरप्रान्ते कदा महाकम्पनम् आगतम् ?
(कश्मीर प्रान्त में महाभूकम्प कब आया ?)
उत्तरम् :
कश्मीरप्रान्ते पञ्चोत्तरद्विसहस्रख्रीष्टाब्दे भूकम्पम् आगतम्।
(कश्मीर प्रान्त में 2005 ई. में भूकम्प आया।)

प्रश्न 29.
भूकम्पः कैः अपि जायते ?
(भूकम्प किनसे भी पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
भूकम्पः ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटः अपि जायते।
(भूकम्प ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी पैदा होता है।)

प्रश्न 30.
कस्य स्थिरोपायो न दृश्यते ?
(किसका स्थायी उपचार नहीं दिखाई देता ?)
उत्तरम् :
भूकम्पोपशमनस्य कोऽपि स्थिरोपायः न दृश्यते।
(भूकम्प शान्ति का कोई स्थिर उपाय नहीं दिखाई देता।)

प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. गुर्जरराज्ये एकोत्तरद्विसहस्त्रख्रीष्टाब्दे भूकम्पः जातः।
(गुजरात में 2001 ई. में भूकम्प आया।)
2. भूकम्पेन बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि।
(भूकम्प से बहुमञ्जिले मकान क्षणभर में धराशायी हो गए।)
3. भूकम्पेन फालद्वये भूमिः विभक्ता।
(भूकम्प से धरती दो भागों में विभक्त हो गई।)
4. जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।
(जल की धाराओं से महान् बाढ़ का दृश्य पैदा हो गया।)
5. सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव भूकम्पेन मृताः।
(हजारों प्राणी क्षणभर में ही भूकम्प से मारे गए।)
6. ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः क्रन्दन्ति स्म।
(ध्वस्त भवनों में पीड़ित (लोग) क्रन्दन कर रहे थे।)
7. शिशवः ईश्वरकृपया जीवनं धारितवन्तः।
(बच्चे ईश्वर की कृपा से जीवन धारण किए हुए थे।)
8. कश्मीरप्रान्ते पञ्चोत्तरद्विसहस्त्रख्रीष्टाब्दे धरायाः महत्कम्पनं जातम्।।
(कश्मीर प्रान्त में 2005 ई. में धरती का महान् कम्पन हुआ।)
9. कश्मीरे धरायाः महत्कम्पनात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः।
(कश्मीर में धरती के महान् कम्पन से लाखों लोग असमय में काल के ग्रास बन गए।)
10. महाकम्पनेन महाविनाशदृश्यम् समुत्पद्यते।
(महाकम्पन से महाविनाश का दृश्य पैदा हो जाता है।)
उत्तराणि :
1. गुर्जरराज्ये कदा भूकम्पः जातः ?
2. भूकम्पेन कानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि ?
3. केन फालद्वये भूमिः विभक्ता ?
4. काभिः महाप्लावनदृश्यमुपस्थितम् ?
5. कति प्राणिनः क्षणेनैव भूकम्पेन मृताः ?
6. केषु सम्पीडिताः क्रन्दन्ति स्म ?
7. शिशवः कया जीवनं धारितवन्तः ?
8. कश्मीरप्रान्ते कदा धरायाः महत्कम्पनं जातम् ?
9. कश्मीरे जनाः अकालकालकवलिताः ?
10. केन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते ?

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पाठसार लेखनम –

प्रश्न :
‘भूकम्पविभीषिका’ इति पाठस्य सारांश: हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
ईसवी सन् 2001 में गणतन्त्र दिवस समारोह में जिस समय सम्पूर्ण भारत देश तल्लीन था, उस समय अनायास ही धरती हिलने के भयंकर त्रास ने सारे ही गुजरात प्रदेश को विशेष रूप से कच्छ नाम के जनपद को खण्डहरों में बदल दिया था। केन्द्र बना भुजनामक नगर तो मिट्टी के खिलौने की तरह चकनाचूर हो गया था। अनेक मंजिलों वाले भवन तो क्षणमात्र में ही धराशायी हो गये। जल की धाराओं से महान् बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो गया।

हजारों की संख्या में जीवधारी क्षण मात्र में ही मारे गये। घरों के नष्ट हो जाने पर पीड़ित हजारों की संख्या में दूसरे सहयोग के लिये अति करुण क्रन्दन कर रहे थे। हे विधाता! भूख से सूखे गले वाले मरणासन्न कुछ बच्चे भगवान् की कृपा से दो-तीन दिन तक ही प्राणों को धारण कर सके। कच्छ क्षेत्र में उत्पन्न भूकम्प की भयानक आपत्ति की यह स्थिति थी। ईशवी सन् 2005 में भी कश्मीर प्रदेश और पाकिस्तान देश में महान् भूकम्प आया।

जिसमें लाखों की संख्या में मानव असमय में ही मर गये। ‘धरती किस कारण से हिलती है। वैज्ञानिक इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में विद्यमान विशाल पत्थर की चट्टानें जिस समय आपस में टकराने से दुकड़े-टुकड़े हो जाती है उस समय भयंकर विचलन होता है। विचलन से उत्पन्न कम्पन्न उसी समय पृथ्वी के बाहरी तल पर आकर महान् कम्पन पैदा करता है। जिसके कारण अतिविनाश का दृश्य उत्पन्न हो जाता है।

ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प होता है। ऐसा भूगर्भ रहस्य वेत्ताओं ने कहा है। भूकम्प दैवी प्रकोप है। परन्तु इसका कोई स्थायी शान्ति का कोई उपचार नजर नहीं आता है। प्रकृति के सामने आज भी मनुष्य बौना है। परंतु फिर भी भूकम्प के रहस्य को जानने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि बहुमञ्जिले भवनों का निर्माण नहीं करना चाहिये। पानी के बाँधों का निर्माण करके बड़ी मात्रा में नदी के जल को एक जगह संग्रह नहीं करना चाहिये। नहीं तो सन्तुलन के अभाव में भूकम्प सम्भव है।

भूकम्पविभीषिका Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रकृति ने जहाँ हमें अनेक प्रकार के भौतिक सुख-साधन उपलब्ध कराए हैं, वहीं अनेक आपदाएँ भी प्रदान की हैं। कभी किसी महामारी की आपदा, बाढ़ तथा सूखे की आपदा या तूफान के रूप में भयंकर प्रलय। ये सभी आपदाएँ देखते-ही-देखते महाविनाश करके मानव-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। इन्हीं भयङ्कर आपदाओं में से एक है- भूकम्प। भूकम्प में पृथ्वी अकस्मात् काँपने लगती है। फलस्वरूप विशालकाय निर्माण, बहुमंजिले भवन, सड़कें और बिजली के खम्भे आदि गिरकर महाविनाश का कारण बनते हैं। प्रस्तुत पाठ इसी आपदा पर आधारित है। इस पाठ के माध्यम से बताया गया है कि किसी भी आपदा में बिना किसी घबराहट के, हिम्मत के साथ किस प्रकार हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

मूलपाठः,शब्दार्थाः, सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

1. एकोत्तरद्विसहस्रनीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्र नृत्य-गीत-वादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं, विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः।

शब्दार्थाः – एकोत्तर द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे = 2001 ईस्वीये वर्षे (सन् 2001 ईग्वी वर्ष में)। गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि = गणतन्त्रदिवसोत्सवे (गणतन्त्र दिवस समारोह में)। यदा = यस्मिन् काले जब)। समग्रमपि भारतराष्ट्रम् = सम्पूर्णोऽपि भारतदेशः (सारा भारत राष्ट्र)। नृत्य-गीत-वादित्राणाम् = नर्तनस्य, गानस्य वाद्यवादनस्य च (नाच-गाने और बाजे बजाने के)। उल्लासे = प्रसन्नतायाम् (खुशी में)। मग्नमासीत् = तल्लीनः निमग्नः, व्यापृतः वा अवर्तत (डूबा हुआ था)। तदा = तस्मिन् काले (तब)। अकस्मादेव = अनायासमेव (अचानक ही)। गुर्जर-राज्यम् = गुजराताख्यं प्रान्तम् (गुजरात प्रान्त)। पर्याकुलम् = परितः व्याकुलम् (चारों ओर से बेचैन)। विपर्यस्तम् = अस्तव्यस्तम् (अस्तव्यस्त)। क्रन्दनविकलम् = चीत्कारेण व्याकुलम् (क्रन्दन, रुदन से बेचैन)।

विपन्नम् = विपत्तियुक्तम्, विपत्तिग्रस्तम् (मुसीबत में)। जातम् = अभवत्, अजायत (हो गया, पड़ गया)। भूकम्पस्य = धरादोलनस्य (धरती हिलने की)। दारुण = भयङ्करः (भयानक)। विभीषिका = त्रासः (भयंकर घटना ने)। समस्तमपि = सम्पूर्णमपि (सारे)। गुर्जरक्षेत्रम् = गुजरातप्रदेशम् (गुजरात प्रान्त को)। विशेषेण च = विशेषरूपेण च (और विशेष रूप से)। कच्छजनपदम् = कच्छाख्यं जनपदम् (कच्छ जिले को)। ध्वंसावशेषु = नाशोपरान्त-अवशिष्टेषु भग्नावशिष्टेषु (विनाश के बाद बचे हुए खंडहरों में)। परिवर्तितवती = परिणितम् अकरोत् (बदल दिया, परिणत कर दिया)। भूकम्पस्य = धरादोलनस्य (धरती हिलने के)। केन्द्रभूतम् = मध्येस्थितम् (मध्य में या केन्द्र स्थित)। भुजनगरं तु = भुजनामकं पुरं तु (भुजनगर तो)।

मृत्तिका-क्रीडनकमिव = (मिट्टी के खिलौने की तरह)। खण्डखण्डम् = विखण्डितम् (टुकड़े-टुकड़े)। जातम् = अभवत् (हो गया)। बहुभूमिकानि भवनानि = बहव्यः भूमिकाः येषु तानि भवनानि, अनेकतलगृहाणि (बहुमंजिले मकान)। क्षणेनैव = क्षणमात्रकालेन एव (क्षणभर में ही)। धराशायीनि जातानि = पृथिव्यां पतितानि (धरती पर गिर गए)। उत्खाताः = उत्पाटिताः (उखड़ गए)। विधुदीपस्तम्भाः = दामिनी-दीप-यूपाः (बिजली के खंभे)। विशीर्णाः = नष्टाः (टूट गए)। गृहसोपान-मार्गाः = भवनस्य आरोहणपद्धत्यः (झीने, सीढ़ियाँ)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ भूकम्प की विभीषिका को दर्शाता है।

हिन्दी-अनुवादः – सन् 2001 ईस्वी वर्ष में जब सारा भारत राष्ट्र गणतन्त्र दिवस समारोह में नाचने, गाने और बजाने की खुशी में डूबा हुआ था तब अचानक ही गुजरात नामक प्रदेश चारों ओर से बेचैन, अस्तव्यस्त, क्रन्दन-रुदन से व्याकुल तथा विपत्तिग्रस्त हो गया। भूकम्प की भयंकर घटना ने सम्पूर्ण गुजरात प्रान्त को विशेष रूप से कच्छ जिले को भग्नावशेषों-खण्डहरों में बदल दिया। धरती हिलने के मध्य भाग में (केन्द्र में) स्थित भुज नामक नगर तो मिट्टी के खिलौने की तरह टुकड़े-टुकड़े हो गया। बहु-मंजिले मकान क्षण-भर में ही धराशायी हो गए अर्थात् गिर गए। बिजली के खम्भे उखड़ गए (और) झीने टूटकर बिखर गए अर्थात् मकानों में ऊपर जाने के लिए बनी सीढ़ियों के टुकड़े-टुकड़े हो गए।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

2. फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुरजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्व इम्पीडिताः सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव ! क्षत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।

शब्दार्थाः – फालद्वये = खण्डद्वये, द्वयोः खण्डयोः (दो भागों में)। विभक्ता = विभाजिता (बँटी हुई)। भूमिः = धरा (धरती)। भूमिग दुपरि = पृथिव्या गर्भात् (धरती के अन्दर से)। निस्सरन्तीभिः = निर्गच्छन्तीभिः (निकलती हुई)। दुर्वार = दुःखेन निवारयितुं योग्यम् (अनियन्त्रित, जिनको रोकना कठिन है; न रोके जाने योग्य)। जलधाराभिः = तोयधाराभिः (पानी की धाराओं से)। महाप्लावनदृश्यम् = महत्प्लावनस्य दृश्यम् (भयंकर बाढ़ का दृश्य)। उपस्थितम् = प्रस्तुतम्, उपस्थितोऽजायत् (उपस्थित हो गया था)। सहस्रमिताः = सहस्रसंख्यकाः, सहस्रपरिमिताः (हजारों की संख्या में)। प्राणिनस्तु = जीवधारिणः तु (प्राणी तो)। क्षणेनैव = पलमात्रेण एव (पलभर में ही)। मृताः = हताः (मारे गए)।

ध्वस्तभवनेषु = विनष्टावासेषु, गृहेषु (गिरे हुए भवनों में)। सम्पीडिताः = पीडिताः (पीडित)। सहस्रशोऽन्ये = सहस्रसंख्यकाः अपरे (हजारों दूसरे)। सहायतार्थम् = सहयोगार्थम् (सहायता के लिए)। करुणकरुणम् = अतिकरुणया (करुणामय)। क्रन्दन्ति स्म = क्रन्दनं कुर्वन्ति स्म (क्रन्दन कर रहे थे)। हा दैव ! = हा विधातः ! (हाय विधाता)। क्षुत्क्षामकण्ठाः = क्षुधाक्षामः कण्ठाः येषाम् ते, बुभुक्षया दुर्बलस्वरः (भूख से दुर्बल स्वर वाले)। मृतप्रायाः = मरणासन्नाः (मरणासन्न)। केचन् = केचिद् (कुछ)। शिशवस्तु = बालाः तु (छोटे बच्चे तो)। ईश्वरकृपया एव = भगवत्कृपया एव (ईश्वर की कृपा से ही)। द्वित्राणि दिनानि = द्वे त्रीणि दिनानि वा (दो या तीन दिन)। जीवनम् =प्राणान् (प्राणों को)। धारितवन्तः =धृतवन्तः (धारण किया)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से लिया गया है। गद्यांश में भूकम्प द्वारा किये गये विनाश का चित्रण है।

हिन्दी-अनुवादः – धरती दो भागों में बँट गई। बैंटी हुई धरती के अन्दर से निकलती हुई न रोके जाने योग्य पानी की धाराओं से भयंकर बाढ़ का-सा दृश्य उपस्थित हो गया था। हजारों की संख्या में जीवधारी (प्राणी) तो पल-भर में ही मारे गए। गिरे हुए (ध्वस्त) भवनों में पीड़ित हजारों दूसरे सहयोग के लिए (सहायता के लिए) करुणापूर्ण क्रन्दन कर रहे थे। हाय विधाता ! भूख से दुर्बल कण्ठ (स्वर) वाले मरणासन्न कुछ बालक तो ईश्वर की कृपा से ही दो-तीन दिन प्राणों (जीवन) को धारण किए रहे अर्थात् जीवित रहे।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

3. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छभूकम्पस्य। पञ्चोत्तरद्विसहस्त्रनीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीरप्रान्ते पाकिस्तानदेशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाणशिला यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम, संस्खलनजन्यं कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धराया उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।

शब्दार्थाः – इयम् = एषा (यह ऐसी)। कच्छभूकम्पस्य = कच्छक्षेत्रे आगतस्य धरादोलनस्य (कच्छ क्षेत्र में आए भूकम्प की)। भैरवविभीषिका = भीषणा आपदा (भयंकर घटना, भयावह आपदा)। आसीत् = अवर्तत (थी)। पञ्चोत्तरद्विसहस्रख्रीष्टाब्दे = 2005 ईस्वीये वर्षे (सन् 2005 ई. वर्ष में)। अपि = (भी)। कश्मीरप्रान्ते = शारदादेशे (कश्मीर में)। पाकिस्तानदेशे च = (पाकिस्तान देश में, और पाकिस्तान में)। धरायाः = भुवः, (पृथ्वी का)। महत्कम्पनम् = प्रभूतं महद्दोलनमजायत (बहुत अधिक कम्पन हुआ)। यस्मात् कारणात् = यस्मात् हेतोः (जिस कारण से, जिससे)।

लक्षपरिमिताः = शतसहस्रमिताः, शतसहस्रसंख्यकाः (लाखों की संख्या में)। जनाः = मनुष्याः, मानवाः (लोग)। अकालकालकवलिताः = असमये एव दिवंगताः (अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए, असमय ही मर गये)। पृथ्वी = धरा (धरती)। कस्मात् = केन कारणेन (किस कारण से)। प्रकम्पते = दोलायते (हिलती है)। वैज्ञानिकाः = विज्ञानवेत्तारः (मौसम विज्ञान के जानकार)। इति विषये = अस्मिन् सन्दर्भे (इस विषय में)। कथयन्ति = वदन्ति (बोलते हैं, कहते हैं)। यत् = (कि)। पृथिव्याः अन्तर्गर्भे = धरायाः निम्नभागे, आन्तरिकभागे वा (पृथ्वी के केन्द्र भाग में)।

विद्यमानाः = उपस्थिताः (विद्यमान, मौजूद)। बृहत्यः = विशाला: (बड़ी-बड़ी)। पाषाण-शिलाः = प्रस्तर या भीतरी पट्टिकाः (पत्थर की शिलाएँ)। यदा = यस्मिन् काले (जब)। संघर्षणवशात् = परस्परघर्षणात् (आपस में टकराने से)। त्रुटयन्ति = भञ्जन्ति, खण्डखण्डं भवन्ति (टुकड़े-टुकड़े होती हैं)। तदा = तस्मिन् काले (तब)। भीषणं = भयंकरम् (भयंकर)। संस्खलनम् = विचलनम् (खिसकना, दूर हटना)। जायते = भवति (होता है)। संस्खलनजन्यम् = विचलनात् उत्पन्नम् (खिसकने से उत्पन्न)।

कम्पनञ्च = दोलनञ्च (हिलना, काँपना)। तदैव = तस्मिन्नेव काले (उसी समय, तभी)। भयावहकम्पनम् = भयंकरम् दोलनम् (भयानक कंपन)। धरायाः = पृथिव्याः (धरती के)। उपरितलमप्यागत्य = बाह्य तलं प्राप्य (ऊपर के तल पर आकर)। महाकम्पनम् = महद्दोलनम् (अत्यधिक कम्पन)। जनयति = उत्पन्नं करोति (पैदा करता है)। येन = येन कारणेन (जिससे)। महाविनाशदृश्यम् = (महाविनाश का दृश्य)। समुत्पद्यते = प्रादुर्भवति, उद्भवति (पैदा होता है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में सन् 2005 ईसवी में आये भूकम्प की भयानक विभीषिका का चित्रण है।

हिन्दी-अनुवादः- यह कच्छक्षेत्र में आई भूकम्प की भयंकर आपदा (घटना) थी। सन् 2005 ई. में भी कश्मीर प्रान्त में और पाकिस्तान देश में पृथ्वी का बहुत अधिक कम्पन हुआ, जिससे लाखों की संख्या में लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए अर्थात् असमय में ही मर गए। धरती किस कारण से काँपती है। मौसम विज्ञान के जानकार इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के आन्तरिक (भीतरी) भाग में विद्यमान बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएँ जब आपस में टकराने से टूटती हैं (टुकड़े-टुकड़े होती हैं) तब भयंकर स्खलन होता है। स्खलन से कम्पन उत्पन्न होता है। तभी भयानक कम्पन पृथ्वी के ऊपरी तल पर आकर अत्यधिक कम्पन उत्पन्न करता है, जिससे अत्यधिक विनाश का दृश्य पैदा होता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

4. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुरगत्या धरां पर्वतं वा विदार्य बहिनिष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियस-ताप-मात्राया अष्टशताङ्कता मुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति। निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुदगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।।

शब्दार्थाः – ज्वालामुखपर्वतानाम् = अग्न्याननगिरीणाम् (ज्वालामुखी पर्वतों के)। विस्फोटैरपि = विस्फोटै: अपि (विस्फोटों से भी)। भूकम्पो जायते = धरादोलनं भवति (धरती में कम्पन होता है) (इति = ऐसा)। भूकम्प-विशेषज्ञाः = भुवः कम्पन-रहस्यस्य ज्ञातारः (भूमि के काँपने के रहस्य को जानने वाले)। कथयन्ति = वदन्ति, आहुः, ब्रुवन्ति (कहते हैं)। पृथिव्याः = धरायाः (धरती के)। गर्भे = आन्तरिक-भागे (भीतरी भाग में)। विद्यमानः = स्थितः (उपस्थित)। अग्निः = अनलः, पावकः, हुताशनम् (आग)। यदा = यस्मिन् काले (जब)। खनिज = उत्खननात् प्राप्तं द्रव्यम् (खनिज)। मृत्तिका = मृद् (मिट्टी)। शिलादिसञ्चयम् = प्रस्तरपट्टिकादीनां संग्रहम् (शिला आदि के संचय को)। क्वथयति = उत्तप्तं करोति (उबालती है, तपाती है)। तदा = ततः (तब)। तत्सर्वमेव = तत्सम्पूर्णं, सकलमेव (वह सब ही)।

लावारसताम् = खनिद्रव-रसत्वम्, लावाद्रवत्वम् (लावा द्रवत्व को)। उपेत्य = प्राप्य (प्राप्त करके)। दुर्वारगत्या = अनियन्त्रित-वेगेन (अनियन्त्रित वेग से)। धराम् = पृथिवीम् (धरती को)। वा = अथवा। पर्वतम् = गिरिम् (पहाड़ को)। विदार्य = विदीर्णं कृत्वा (फाड़कर)। बहिर्निष्क्रामति = बहिर् निस्सरति, उपर्यागच्छति (बाहर निकलता है)। तदा = तस्मिन् काले (तब, उस समय)। गगनम् = आकाशमण्डलम् (आकाश)। धूमभस्मावृतं जायते = धूमेन, भस्मेन च आवृतं भवति (धुआँ और राख से ढक जाता है)। सेल्सियसतापमात्रायाः = तापस्य परिमाणमस्य सेल्सियसः (ताप के परिमाण की मात्रा का सेल्सियस)। अष्टशताकताम् = अष्टशत-अङ्कपर्यन्तम् (800 डिग्री तक)। उपगतो = उपेतः (प्राप्त हुआ)। अयम् = एषः (यह)। लावारसः = खनिद्रवप्रवाहः (लावा)। यदा = यस्मिन् काले (जिस समय)।

नदीवेगेन = तटिनी गत्या (नदी के वेग से)। प्रवहति = द्रवति (बहता है)। तदा = तरिमन् काले (उस समय)। पार्श्वस्थ = (समीप)। स्थिता: ग्रामाः = निकटस्थग्रामाः (पास या समीप में स्थित, आस-पास के)। ग्रामाः नगराणि वा = वसत्यः, पुराणि वा (गाँव अथवा नगर)। तदुदरे = तत् कुक्षौ, जठरे (उसके पेट में)। क्षणेनैव = पलमात्रेणैव (क्षणमात्र में ही)। समाविशन्ति = अन्तः गच्छन्ति, समाविष्टाः भवन्ति (समा जाते हैं)। निहन्यन्ते = म्रियन्ते (मारे जाते हैं)। विवशाः प्राणिनश्च = अवशाः जीव-जन्तवः (बेबस जीव-जन्तु)। ज्वालामुगिरन्तः = अग्निं प्रकटयन्तः वमन्तः (आग उगलते हुए)। एते पर्वताः = इमे गिरयः (ये पर्वत)। अपि = (भी)। भीषणम् = भयंकरम् (भयावह)। भूकम्पं जनयन्ति = धरादोलनं उत्पादयन्ति (भूकम्प को पैदा करते हैं)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में भूकम्प के कारणों का उल्लेख किया गया है। ज्वालामुखी पर्वत का विस्फोट इनमें से प्रमुख है।

हिन्दी-अनुवादः – ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी धरती काँपती (हिलती) है, ऐसा भूमि के काँपने के रहस्य को जानने वाले कहते हैं। धरती के गर्भ में स्थित आग जब खनिज, मिट्टी, शिला आदि के संचय (समूह) को उबालती (तपाती) है, तब वह सब ही लावा-द्रवत्व को प्राप्त होकर अनियन्त्रित वेग (गति) से धरती अथवा पहाड़ को फाड़कर (चीरकर) बाहर निकलता है। उस समय आकाश धुएँ और राख से ढक जाता है। ताप के परिमाण की मात्रा 800° सेल्सियस तक पहुँचा हुआ यह लावा जब नदी के वेग से बहता है, उस समय आस-पास के गाँव अथवा शहर उसके पेट में (गर्भ में) क्षणमात्र में समाविष्ट (विलीन) हो जाते हैं। विवश (बेबस) जीव-जन्तु मारे जाते हैं। आग उगलते हुए ये पर्वत भी भयंकर भूकम्प को पैदा करते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

5 यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृति-समक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्ध निर्माय बृहन्मानं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

शब्दार्थाः – भूकम्पः = धरादोलनम् (धरती का हिलना)। दैवः = ईश्वरीय (दैवीय)। प्रकोपः = प्रकृष्टः कोप: (अत्यधिक कोप है)। तस्य = (उसके)। उपशमनस्य = शान्तेः (शान्त करने का)। कोऽपि = कश्चिदपि (कोई भी)। स्थिरोपायो = स्थायी उपचारः (स्थायी इलाज)। न दृश्यते = न लक्ष्यते (दिखाई नहीं देता है)। प्रकृतिसमक्षम् = प्रकृत्याः, निसर्गस्य सम्मुखे (प्रकृति के सामने)। अद्यापि = अधुनापि, इदानीमपि (आज भी)। मानवः = मनुष्यः (मनुष्य)। वामनकल्प एव = ह्रस्वकायः सदृशः ह्रस्वः (बौने की तरह ही)। (अस्ति = है।) तथापि = पुनरपि (फिर भी)। भूकम्परहस्यज्ञाः = धरादोलनरहस्यविदः (धरती हिलने के रहस्य को जानने वाले)। कथयन्ति = ब्रुवन्ति, आहुः (कहते हैं)। यत् = कि। बहुभूमिकभवननिर्माणम् = अनेकतलोपेतानां गृहाणां सर्जनम् [अनेक तलों से (मंजिलों से) युक्त घरों का निर्माण)। न करणीयः = न कर्त्तव्यम् (नहीं करना चाहिए)।

तटबन्धम् = जलबंधम् (बाँध)। निर्माय = निर्माणं कृत्वा (बनाकर)। बृहन्मात्रम् = विशालमात्रम् (बहुत मात्रा में)। नदीजलमपि = सरित्तोयमपि (नदी का पानी भी)। एकस्मिन् स्थले = एकस्मिन्नेव स्थाने (एक ही स्थान पर)। न पुञ्जीकरणीयम् = नैकत्र करणीयम्, संग्रहणीयम् (इकट्ठा नहीं करना चाहिए)। अन्यथा = नहीं तो। असन्तुलनवशात् = सन्तुलनाभावात् (सन्तुलन के अभाव में)। भूकम्पः = धरादोलनम् (धरती का हिलना)। सम्भवति = सम्भाव्यमस्ति (सम्भव होता है)। वस्तुतः = यथार्थतः (वास्तव में)। शान्तानि एव = प्रशान्तान्येव (प्रशान्त ही)। पञ्चतत्त्वानि = पृथिव्यादिनि पञ्चतत्त्वानि (धरती आदि पाँच तत्त्व)।

क्षितिजलपावकसमीरगगनानि = पृथ्वी, आपः, अग्निः, वायुः, आकाशादीनि (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश आदि)। भूतलस्य = धरातलस्य (पृथ्वीतल की)। योगक्षेमाभ्यां = अप्राप्तस्य प्राप्तिः, योगः प्राप्तस्य रक्षणम् (क्षेमः) ताभ्याम् (अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा)। कल्पन्ते = रचयन्ति (रचना करते हैं)। अशान्तानि = शमनाभावे (शान्ति के अभाव में)। खलु = वस्तुतः (वास्तव में)। तान्येव = अमूनि एव (वे ही)। महाविनाशम् = महाप्रलयं (महान् विनाश को)। उपस्थापयन्ति = उपस्थितं कुर्वन्ति (उपस्थित करते हैं)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में भूकम्प के अन्य कारणों को दर्शाया है।

हिन्दी-अनुवादः – यद्यपि धरती का हिलना एक ईश्वरीय प्रकोप है, तथापि उसको शान्त करने का कोई स्थायी उपचार दिखाई नहीं देता है। प्रकृति के सामने आज भी मनुष्य बौने के समान ही है। फिर भी धरती हिलने के रहस्य को जानने वाले (लोग) कहते हैं कि हमें बहुमंजिले मकान नहीं बनाने चाहिए (और) बाँधों का निर्माण करके अत्यधिक मात्रा में नदी का जल भी एक जगह इकट्ठा नहीं करना चाहिए, नहीं तो असन्तुलन होने के कारण या सन्तुलन के अभाव में धरती का हिलना सम्भव है। वास्तव में पाँचों प्रशान्त तत्त्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश पृथ्वी तल के योग (अप्राप्त की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त की रक्षा) की रचना करते हैं; अर्थात् उपर्युक्त पाँचों तत्त्वों के शान्तिपूर्ण सन्तुलन में ही पृथ्वी की कुशलता निहित है। अशान्त होने पर वास्तव में वे ही तत्त्व पृथ्वी पर महाविनाश उपस्थित कर देते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

JAC Class 10th Sanskrit शिशुलालनम् Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिए)
(क) कुशलवौ कम् उपसृत्य प्रणमतः ?
(कुश और लव किसके पास जाकर प्रणाम करते हैं?)
(ख) तपोवन वासिनः कुशस्य मातरं केन नाम्ना आह्वयन्ति?
(तपोवनवासी कुश की माता को किस नाम से बुलाते हैं?)
(ग) वयोऽनुरोधात् कः लालनीयः भवति?
(उम्र के कारण कौन लाड़ करने योग्य होता है?)
(घ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः लव कुशयोः गुरुः?
(किस संबंध से वाल्मीकि लव-कुश के गुरु हैं?)
(ङ) कुत्र लवकुशयोः पितुः नाम न व्यवह्रियते?
(लव-कुश के पिता का नाम कहाँ व्यवहार में नहीं लाया जाता ?)
उत्तरम्
(क) रामम्
(ख) देवी
(ग) शिशुजन: (बच्चे)
(घ) उपनयनोपदेशेन (यज्ञोपवीत संस्कार (दीक्षा) के कारण
(ङ) तपोवने (तपोवन में)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत् ?
(राम के लिए कुश और लव को गले लगाने का स्पर्श कैसा था ?)
उत्तरम् :
रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
(राम के लिए कुश-लव को गले लगाने का स्पर्श हृदयग्राही था।)

(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुं कथयति ?
(राम लव-कुश को कहाँ बैठने के लिए कहते हैं ?)
उत्तरम् :
रामः लवकुशौ आसनार्धमुपवेशयितुं कथयति।
(राम लव-कुश को आधे आसन पर बैठने के लिए कहते हैं।)

(ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते ?
(बालभाव के कारण चन्द्रमा कहाँ शोभा देता है ?)
उत्तरम् :
बालभावात् हिमकरः पशुपति-मस्तके विराजते।
(बालभाव के कारण चन्द्रमा शिव के शिर पर शोभा देता है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः ?
(कुश और लव के वंश का कर्ता कौन है ?)
उत्तरम् :
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता सहस्रदीधितिः। (कुश-लव के वंश का कर्ता सूर्य है।)

(ङ) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति ?
(कुश-लव की माता को वाल्मीकि किस नाम से पुकारते हैं ?)
उत्तरम् :
कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः ‘वधूः’ इति नाम्ना आह्वयति।
(कुश-लव की माता को वाल्मीकि ‘बह के नाम से पुकारते हैं।)

प्रश्न 3.
रेखाङ्कितपदेषु विभक्ति तत्कारणंच उदाहरणानुसारं निर्दिशत –
(रेखाङ्कित पदों में विभक्ति-कारण का उदाहरणानुसार निर्देश कीजिए)
यथा – राजन् ! अलम् अतिदाक्षिण्येन। (महाराज ! अधिक दक्षता मत करो।)
उत्तरम् :
तृतीया विभक्ति। ‘अलम्’ के योग में तृतीया।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति। (राम लवकुश को आधे आसन पर बैठाते हैं।)
उत्तरम् :
द्वितीया। ‘उप’ योगे (उप + विश्) के योग में।

(ख) धिङ्माम् एवं भृतम्। (इस प्रकार के मुझको धिक्कार है।)
उत्तरम् :
द्वितीया। ‘धिक्’ के योग में।

(ग) अङ्क-व्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्। (गोदी में बने आसन पर बैठिए।)
उत्तरम् :
द्वितीया। अधिशीङ्स्थासां कर्म
(‘अधि’ उपसर्गपूर्वक शी, स्था तथा आस् धातु के योग में द्वितीया।)

(घ) अलम् अतिविस्तरेण। (अधिक विस्तार मत करो।)
उत्तरम् :
तृतीया। ‘अलम्’ के योग में तृतीया।

(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।।
उत्तरम् :
‘उप’ उपसर्ग के योग में ‘राम’ में द्वितीया।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 4.
यथानिर्देशम् उत्तरम्त् –
(निर्देशानुसार उत्तरम् दीजिए)
(क) ‘जानाम्यहं तस्य नामधेयम्’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृ पदं किम्?
(इस वाक्य में कर्ता क्या है?)
उत्तरम् :
अहम् (मैं)।

(ख) ‘किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था’ अस्मात् वाक्यात् ‘हर्षिता’ इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं चित्वा
लिखत।
(‘क्या नाराज हुई इस तरह कहते हो अथवा स्वाभाविक, इस वाक्य से ‘हर्षिता’ पद का विलोम लिखिए।)
उत्तरम् :
कुपिता (नाराज)

(ग) विदूषकः (उपसृत्य) ‘आज्ञापयतु भवान्’ अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(‘आज्ञापयतु भवान्’ में भवान् पद किसके लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तरम् :
रामाय (राम के लिए)।

(घ) ‘तस्मादङ्क-व्यवह्नितम् अध्यासाताम् सिंहासनम्’ अत्र क्रियापदं किम्’?
(‘तस्मादङ्क’ आदि वाक्य में क्रिया पद क्या है?)
उत्तरम् :
अध्यासाताम् (विराजिए)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

(ङ) ‘वयसस्तु न किञ्चिदान्तरम्’ अत्र ‘आयुषः’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘वयसस्तु’ आदि वाक्य में आयुषः के अर्थ में क्या शब्द प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तरम् :
वयसः (आयु का)।

प्रश्न 5.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति –
(निम्नलिखित वाक्यों को कौन किससे कहता है -)
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम् 1.1

प्रश्न 6.
(अ) मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत
[मञ्जूषा (बॉक्स) में से दो पर्यायवाची शब्द चुनकर पदों के सामने लिखिए-]
शिवः, शिष्टाचारः, शशिः, चन्द्रशेखरः, सुतः, इदानीम्, अधुना, पुत्रः, सूर्यः, सदाचारः, निशाकरः, भानुः।
(क) हिमकरः
(ख) सम्प्रति
(ग) समुदाचारः
(घ) पशुपतिः
(ङ) तनयः
(च) सहस्रदीधितिः।
उत्तरम् :
(क) हिमकरः = शशिः, निशाकरः
(ख) सम्प्रति = अधुना, इदानीम्
(ग) समुदाचारः = शिष्टाचारः, सदाचारः
(घ) पशुपतिः = चन्द्रशेखरः, शिवः
(ङ) तनयः = सुतः, पुत्रः
(च) सहस्रदीधितिः = सूर्यः, भानुः।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

(आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत (विशेषण-विशेष्य पदों को जोड़िए) –
विशेषणपदानि – विशेष्यपदानि
यथा – श्लाघ्या – कथा
1. उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
2. अतिदीर्घः (ख) स्पर्शः
3. समरूपः (ग) कुशलवयोः
4. हृदयग्राही (घ) प्रवास:
5. कुमारयोः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः।
उत्तरम् :
1. उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
2. अतिदीर्घः (घ) प्रवास:
3. समरूपः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः।
4. हृदयग्राही (ख) स्पर्शः
5. कुमारयोः (ग) कुशलवयोः

प्रश्न 7.
(क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत (निम्नलिखित पदों में सन्धि कीजिए)
(क) द्वयोः + अपि
(ख) द्वौ + अपि
(ग) क: + अत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम्
(ङ) इति + आत्मानम्।
उत्तरम् :
(क) द्वयोरपि,
(ख) द्वावपि,
(ग) कोऽत्र,
(घ) अनभिज्ञोऽहम्,
(ङ) इत्यात्मानम्।

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(ख) अधोलिखितपदेषु सन्धिविच्छेदं कुरुत –
(निम्नलिखित पदों का सन्धि-विच्छेद कीजिए)
(क) अहमप्येतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात्
(ग) समानाभिजनौ
(घ) खल्वेतत्
उत्तरम् :
(क) अहमप्येतयोः = अहम + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात् = वयः + अनुरोधात्
(ग) समानाभिजनौ = समान + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत् = खलु + एतत्।

JAC Class 10th Sanskrit शिशुलालनम् Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च।
(अ) उपगम्य
(ब) प्रविशतः
(स) तापसी
(द) कुशलवौ
उत्तरम् :
(अ) उपगम्य

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 2.
राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
(अ) रामस्य समीपम्
(ब) प्रणम्य
(स) सिंहासनम्
(द) महाराजस्य
उत्तरम् :
(ब) प्रणम्य

प्रश्न 3.
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव।
(अ) भवतोः
(ब) परिष्वज्य
(स) राजासनम्
(द) बालको
उत्तरम् :
(द) बालको

प्रश्न 4.
एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि।
(अ) भवतोः
(ब) अयम्।
(स) कौतूहलेन
(द) क्षत्रियकुल
उत्तरम् :
(ब) अयम्।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 5.
समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
(अ) आयुसः
(ब) वंशयोः
(स) कथम्
(द) सोदयौँ
उत्तरम् :
(अ) आयुसः

प्रश्न 6.
आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि।
(अ) युज्यते
(ब) श्रोता
(स) निर्दिश्य
(द) निवेदयामि
उत्तरम् :
(द) निवेदयामि

प्रश्न 7.
अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
(अ) सम्बन्धेन
(ब) पितरम्
(स) उपनयन
(द) जननी
उत्तरम् :
(ब) पितरम्

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 8.
न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
(अ) अमुष्य
(ब) कश्चित्
(स) व्यवहरति
(द) वयस्य
उत्तरम् :
(अ) अमुष्य

प्रश्न 9.
एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति ?
(अ) विचिन्त्य
(ब) कुपिता
(स) प्रपात
(द) कथयति
उत्तरम् :
(द) कथयति

प्रश्न 10.
किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ?
(अ) क्रुद्धा
(ब) तपस्विनी
(स) स्वापत्यमेव
(घ) निर्भर्त्सयति
उत्तरम् :
(अ) क्रुद्धा

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
विदूषकः कान् मार्ग दर्शयति ?
(विदूषक किनको मार्गदर्शन करता है?)
उत्तरम् :
लवकुशौ।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 2.
कुशलवी कम् उपसृत्य प्रणमतः ?
(कुश और लव किसके पास जा कर प्रणाम करते हैं ?)
उत्तरम् :
रामम्।

प्रश्न 3.
रामः सौन्दर्यावलोकजनितेन कुतूहलेन कं पृच्छति ?
(राम सौन्दर्य देखने से उत्पन्न आश्चर्य से किसको पूछते हैं ?)
उत्तरम् :
कुशलवौ (लव-कुश को)।

प्रश्न 4.
कुशस्य समुदाचारः कीदृशः ?
(कुश का सदाचार कैसा है ?)
उत्तरम् :
उदात्तरम्यः (अत्यन्त रमणीय)।

प्रश्न 5.
कुशः स्वपितुः किं नाम न्यवेदयत् ?
(कुश ने अपने पिता का क्या नाम बताया ?)
उत्तरम् :
निरनुक्रोशः (निर्दयी)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 6.
कशलवयोः जनकस्य निरनुक्रोशः इति नाम केन कतम् ?
(लवकुश के पिता का नाम निर्दयी किसने रखा ?)
उत्तरम् :
अम्बया (सीतया)।

प्रश्न 7.
लवकुशयोः जननीं ‘वधूः’ शब्देन कः आह्वयति ?
(लव-कुश की माँ को ‘वधू’ शब्द से कौन बुलाता है ?)
उत्तरम् :
वाल्मीकिः।

प्रश्न 8.
रामस्य कुमारयोः च कुटुम्बवृत्तान्तः कीदृशः ?
(राम और कुमारों का कुटुम्ब-वृत्तान्त कैसा है ?)
उत्तरम् :
समरूपः (समान)।

प्रश्न 9.
रामेण कः सम्माननीयः नाट्यांशानुसारम् ?
(नाट्यांश के अनुसार राम के द्वारा क्या सम्माननीय है ?)
उत्तरम् :
मुनिनियोगः (मुनि का कार्य)।

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प्रश्न 10.
रामः किं श्रोतुम् इच्छति ?
(राम क्या सुनना चाहते हैं ?)
उत्तरम् :
सुहृद्जनसाधारणम् (सामान्य सुहद्जनों को)।

प्रश्न 11.
अतिथिजन-समुचितः कः आचारः ?
(अतिथि जनोचित क्या आचार बताया है ?)
उत्तरम् :
कण्ठाश्लेषः (गले लगना)।

प्रश्न 12.
रामः कुत्र स्थितः आसीत् ?
(राम कहाँ बैठे थे ?)
उत्तरम् :
सिंहासनस्य / सिंहासने (सिंहासन पर)।

प्रश्न 13.
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः आसीत् ?
(कुश और लव के वंश का कर्ता (पूर्वज) कौन था ?)
उत्तरम् :
सहस्रदीधितिः (सूर्य)।

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प्रश्न 14.
रामः कशलवौ केन (कथ) पच्छति ?
(राम कश लव को किससे (कैसे) पछते हैं ?)
उत्तरम् :
कुतूहलेन (आश्चर्य से)।

प्रश्न 15.
कुशलवयोः गुरोः नाम किम् आसीत् ?
(कुश और लव के गुरु का नाम क्या था ?)
उत्तरम् :
वाल्मीकिः (वाल्मीकि)।

प्रश्न 16.
वाल्मीकिः कुशलवयोः केन सम्बन्धेन गुरु आसीत् ?
(वाल्मीकि लव-कुश के किस सम्बन्ध से गुरु थे ?)
उत्तरम् :
उपनयनोपदेशेन (यज्ञोपवीत संस्कार से)।

प्रश्न 17.
लवः स्वमातुः कति नामानि कथयति?
(लव अपनी माँ के कितने नाम बताता है ?)
उत्तरम् :
द्वे (दो)।

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प्रश्न 18.
तपोवनवासिनः कुशलवयोः मातरं केन नाम्ना आवयन्ति ?
(तपोवन के वासी कुश-लव की माता को किस नाम से बुलाते हैं ?)
उत्तरम् :
‘देवी’ इति (देवी)।

प्रश्न 19.
कस्य वेला सञ्जाता ?
(किसका समय हो गया ?)
उत्तरम् :
रामायणगानस्य (रामायण-गान का)।

प्रश्न 20.
लवकुशौ कः त्वरयति ?
(लव कुश को जल्दी कौन कराता है ?)
उत्तरम् :
उपाध्यायदूतः (गुरुंजी का दूत)।
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 21.
यदा रामः कुशलवौ आसनार्धम् उपवेष्टुं निर्दिशति तदा तौ किम् अकथयताम् ?
(जब राम ने कुश और लव को आधे आसन पर बैठने का निर्देश दिया तब उन्होंने क्या कहा ?)
उत्तरम् :
तदा तौ अकथयताम् – ‘राजासनम् खलु एतत्, न युक्तम् अध्यासितुम्।’
(तब उन्होंने कहा – ‘यह राजा का आसन है, बैठना उचित नहीं’।)

प्रश्न 22.
कौतूहलेन रामः किम् अपृच्छत् ? (आश्चर्य से राम ने क्या पूछा ?)
उत्तरम् :
क्षत्रियकुलपितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतो वंशस्य कर्ता ?।
(क्षत्रिय ‘कुल’ के पितामहों, सूर्य और चन्द्र में से तुम्हारे वंश का कर्ता/पूर्वज कौन है?)

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प्रश्न 23.
कुशलवयोः पितुः नाम कः जानाति ?
(लवकुश के पिता का नाम कौन जानता है ?)
उत्तरम् :
नाट्यांशानुसारं स्वपितुः नाम कुश: जानाति।
(नाट्यांश के अनुसार अपने पिता का नाम कुश जानता है।)

प्रश्न 24.
नाट्यांशानुसारं कुतूहलेनाविष्टो रामः किं वेदितुम् ऐच्छत् ?
(नाट्यांश के अनुसार आश्चर्यचकित राम क्या जानना चाहते थे ?)
उत्तरम् :
कुतूहलेनाविष्टः रामः कुशलवयोः मातरं नामतः वेदितुम् ऐच्छत्।
(आश्चर्यचकित राम लव-कुश की माता को नाम से जानना चाहते थे।)

प्रश्न 25.
रामायणस्य सन्दर्भः कीदृशः ?
(रामायण का सन्दर्भ कैसा है ?)
उत्तरम् :
रामायणस्य सन्दर्भः वसुमती प्रथममवतीर्णः गिरां सन्दर्भः।
(रामायण का सन्दर्भ पृथ्वी पर पहली बार अवतीर्ण हुआ वाणी का सन्दर्भ है।)

प्रश्न 26.
कुशलवौ केनोपदिश्यमानमार्गों प्रविशतः ?
(कुश और लव किसके द्वारा मार्ग-निर्देश किए जाते हुए प्रवेश करते हैं?)
उत्तरम् :
कुशलवौ विदूषकेणोपदिश्यमानमार्गों प्रविशतः।
(कुश और लव विदूषक द्वारा मार्ग-निर्देश किए जाते हुए प्रवेश करते हैं।)

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प्रश्न 27.
रामस्य कौतूहलः केन जनितः आसीत् ?
(राम का आश्चर्य किससे उत्पन्न हुआ ?)
उत्तरम् :
रामस्य कौतूहल: कुशलवयोः सौन्दर्यावलोकजनितः आसीत्।
(राम का आश्चर्य कुश और लव के सौन्दर्य से उत्पन्न था।)

प्रश्न 28.
रामेण तपोवनस्य किं माहात्म्यम् मतम् ?
(राम ने तपोवन का क्या माहात्म्य माना ?)
उत्तरम् :
यतः तपोवने कुशलवयोः जनकस्य कोऽपि नाम न व्यवहरति।
(क्योंकि तपोवन में लव-कुश के पिता का कोई नाम नहीं लेता है।)

प्रश्न 29.
रामानुसारः प्रवासः कीदृशः भवति ?
(राम के अनुसार प्रवास कैसा होता है ?)
उत्तरम् :
रामानुसारः प्रवासः अतिदीर्घः दारुणश्च।
(राम के अनुसार प्रवास अत्यन्त लम्बा और कठोर है।)

प्रश्न 30.
रामायणस्य कविः कीदृशः ?
(रामायण का कवि कैसा है ?)
उत्तरम् :
रामायणस्य कवि पुराण: व्रतनिधिः च।
(रामायण का कवि पुरातन और तपोनिधि है।)

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अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)

1. भवति ……… केतकच्छदत्वम् ॥
मञ्जूषा – पशुपति, लालनीयः, वयोऽनुरोधात्, मकरः।

गुणमहतामपि (i) ……… शिशुजनः (ii)……….एव भवति। बालभावात् (iii) ……… अपि (iv) …. मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
उत्तरम् :
(i) वयोऽनुरोधात् (ii) लालनीयः (iii) हिमकरः (iv) पशुपति।

2. भवन्तौ ……….. परिकरः ॥
मञ्जूषा – पुराणः, सरसिरुहनाभस्य, वसुमतीम्, श्लाघ्या कथा।

भवन्तौ गायन्तौ (i) ……….. प्रतिनिधिः कविः अपि (ii)……….. प्रथमम् अवतीर्ण: गिराम् अयं सन्दर्भ: (iii) ………. च इयं (iv) ……… सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
उत्तरम् :
(i) पुराण: (ii) वसुमतीम् (iii) सरसिरुहनाभस्य (iv) श्लाघ्या कथा।

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प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृतय प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ प्रविशतः।
(विदूषक द्वारा मार्ग दर्शाए हुए तपस्वी कुश और लव प्रवेश करते हैं।)
2. रामः कुशलवौ आसनार्धमुपवेशयति।
(राम कुश और लव को आधे आसन पर बैठाते हैं।)
3. शिशुजनो वयोऽनुरोधात् गुणवतामपि लालनीयः भवति।
(बच्चे उम्र के कारण गुणवानों के द्वारा भी लाड़ करने योग्य होते हैं।)
4. हिमकरः बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
(चन्द्रमा बालभाव से शिव के सिर पर केतकी के छत्र की शोभा प्राप्त करता है।)
5. आवयोः गुरोः नाम भगवान् वाल्मीकिः।
(हम दोनों के गुरु का नाम भगवान् वाल्मीकि है 1)
6. सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं भर्स्यति।
(वह बेचारी मेरे द्वारा किए गए अपराध के कारण अपनी सन्तान की इस प्रकार भर्त्सना करती है।)
7. अलम् अति-विस्तेरण।
(अधिक विस्तार मत करो।)
8. तपोवनवासिनः देवीति नाम्नाह्वयन्ति।
(तपोवनवासी ‘देवी’ इस नाम से बुलाते हैं।)
9. उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
(उपाध्याय का दूत हमसे जल्दी करवाता है।)।
10. अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः।
(मनुष्यों का यह सरस्वती अवतार अनोखा है।)
उत्तरम् :
1. विदषकेन उपदिश्यमानमार्गों को प्रविशतः ?
2. रामः कुशलवौ कत्र उपवेशयति ?
3. शिशुजनः कस्मात् गुणवतामपि लालनीयः भवति ?
4. हिमकरः कस्मात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति ?
5. युवयोः गुरोः नाम किम् ?
6. सा तपस्विनी केन कारणेन स्वापत्यमेवं भर्त्सयति ?
7. अलम् कः ?
8. के देवीति नाम्नाह्वयन्ति ?
9. क; युष्मान् त्वरयति ?
10. कीदृशोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः।

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भावार्थ-लेखनम् –

अधोलिखित पद्यांशानां संस्कृते भावार्थं लिखत –

1. भवति शिशुजनो ……………………… पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।

भावार्थ – अत्यधिक सदाचारस्यापि ना आवश्यकता। सद्गुणोपेतेभ्योऽपि आयुसः कारणात् अल्पवयो बालकः अपि लालनमर्हति। यतः शिशुभावात् एवं शशिः शिवस्य शिरसि केतकपुष्प निर्मितस्य आभूषणस्य शोभां प्राप्नोति।

2. भवन्तौ गायन्तौ ……………………………… सोऽयं परिकरः॥

भावार्थ – रामः कथयति – मह्यमसि महर्षेः निश्चितं कार्यम् आदरणीयमेव। यतः युवाम् उभौ अस्याः कथायाः गायकौ, पुरातनः तपोनिधि: वाल्मीकि, अस्याः कथायाः कवयिता, पृथिवीं सर्व प्रथममवतरितः एषा वाणी कमलनाभस्य विष्णो, एषा प्रशंसनीया कथा, असौ च संयोगः यत् निश्चयमेव श्रोतागणं पावनमानन्दितं च करिष्यति।

मित्र! मनुष्याणाम् अद्भुतः एषः शारदायाः अवतारः तर्हि अहम् सामान्य मित्राणि, जनसामान्यं च श्रोतुमीहे अतः समित्रानन्दन! सभ्यान् अस्माकं समीपं गमयताम्। अहमपि अनयोः चिरात् आसनेन श्रमम् विहार विधाय दूरं करोमि। (एवं पर्वे निष्क्रामन्ति)

अधोलिखितसूक्तीनां भावबोधं हिन्द्या, आंग्लभाषया संस्कृतभाषया वा लिखत।
(निम्नलिखित सूक्तियों का भाव हिन्दी, अंग्रेजी अथवा संस्कृत भाषा में लिखिए।)

(i) भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधात् गुणमहताम् अपि लालनीयः।
भावार्थ – शिशवः अल्पायुत्वात् गुणवताम् अपि लालनीया भवन्ति।
(बच्चे अल्पायु होने के कारण गुणवान् लोगों के भी लाड़ करने योग्य होते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

(ii) अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च।
भावार्थ – सुविधानाम् अभावत्वात् गृहाबहिर्वासः कष्टप्रदः भवति अतः अति दीर्घः भवति।
(सुविधाओं के अभाव में घर से बाहर रहना बड़ा कष्टदायक होता है। अतः लम्बा होता है।)

(iii) न युक्त स्त्रीगतमनुयोक्तुम्।
भावार्थ – परकीयैः स्त्रीजनैः सह सम्बन्धवर्धनं न उचितम्।
(पराई स्त्रियों के साथ सम्बन्ध बढ़ाना उचित नहीं।)

शिशुलालनम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ संस्कृत-साहित्य के इसी प्रसिद्ध नाटक ‘कुंदमाला’ के पंचम अंक का सम्पादित रूप है। नाटक में राम द्वारा अपने पुत्रों कुश, लव को पहचानने की कौतूहलवर्द्धक परिकल्पना है। नाट्यांश में श्रीराम अपने पुत्रों कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अति शालीनतापूर्वक मना कर देते हैं। सिंहासनारूढ़ श्रीराम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठा कर आनन्दित होते हैं। नाट्यांश में शिशु के दुलार का मार्मिक एवं मनोहर चित्रण किया गया है। इसी कारण से इसे ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक दिया गया है।

मूलपाठः,शब्दार्थाः, अन्वयः,सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

(सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ)

विदूषकः – इत इत आर्यो !
कुशलवी – (रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य ?
रामः – युष्मदर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजन-समुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः। (आसनार्धमुपवेशयति)
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मादङ्क – व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्। (अङ्कमुपवेशयति)
उभौ – (अनिच्छां नाटयतः) राजन् ! अलमतिदाक्षिण्येन।
रामः – अलमतिशालीनतया।

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।

शब्दार्थाः – सिंहासनस्थः रामः = राघवः राज्यासने स्थितः (सिंहासन पर बैठे श्रीराम), ततः = तदा (तब), प्रविशतः = प्रवेशं कुरुतः (प्रवेश करते हैं), विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गों = विदूषकेन निर्दिश्यमानपद्धतिः (विदूषक द्वारा राह बताए गए हुए), तापसौ = तपस्विनौ धृततापसवेषौ (तपस्वी), कुशलवौ = कुश: च लवः च (कुश और लव), इत इत आर्यो = अत्र-अत्र एतम् श्रीमन्तौ श्रेष्ठौ (इधर-इधर श्रेष्ठजनो!), रामस्य समीपम् = रामं समया (राम के समीप), उपसृत्य = उपगम्य (निकट जाकर), प्रणम्य = अभिवाद्य च (और प्रणाम करके), अपि कुशलं = किं मंगलं (क्या कुशल है), महाराजस्य = भूभृताम् (महाराज की),

युष्मदर्शनात् = युवयोः दर्शनात् (तुम्हारे दर्शन से), कुशलमिव = मंगलम् इव (कुशल-सा ही है), भवतोः = युवयोः (आप दोनों का), किं वयमत्र = अपि अत्र वयम् (क्या यहाँ हम), कुशलप्रश्नस्य = मंगलपृच्छायाः (कुशल पूछने के), भाजनम् एव = पात्रम् एव (पात्र ही हैं), न पुनरतिथिजनसमुचितस्य = न वयम् अभ्यागताय समीचीनस्य योग्यस्य (क्या हम अतिथि के लिए उचित के), कण्ठाश्लेषस्य – कण्ठे आश्लेषस्य, आलिङ्गनस्य (गले लगाने के पात्र नहीं हैं), परिष्वज्य = आलिङ्गनं कृत्वा (आलिंगन करके), अहो = आश्चर्य (अरे), हृदयग्राही स्पर्शः = हृदयेन ग्राह्यः स्वीकार्यः स्पर्शः (हृदय द्वारा ग्रहण करने योग्य स्पर्श),

आसनार्द्धम् = अर्द्धासने, पार्वे (आधे आसन पर), उपवेशयति = स्थापयति, आसयति (बैठाते हैं), राजासनम् = सिंहासनं, नृपासनम् (राजा का आसन है), खल्वेतत् = वस्तुतः निश्चितं इदम् (वास्तव में निश्चित ही यह), न युक्तमध्यासितुम् = नोचितम् उपवेष्टुम् (बैठना उचित नहीं), सव्यवधानं = व्यवधानेन सहितम् (रुकावट सहित), चारित्रलोपाय = आचरणनाशाय (आचरण लोप के लिए बाधा नहीं अर्थात् सिंहासन पर बैठने से तुम्हारे चरित्र की कोई हानि नहीं होगी), तस्मात् = अतः (इसलिए), अङ्क = क्रोडे (गोद में), व्यवहितम् = सम्पादितम् (बनाए हुए), अध्यास्यताम् = उपविश्यताम् (बैठो), सिंहासनम् = राजासनम् (सिंहासन पर), अङ्कमुपवेशयति = क्रोडे आसयति (गोदी में बैठाते हैं)। अनिच्छां नाटयतः = अनिच्छायाः अभिनयं कुरुतः (अनिच्छा का अभिनय करते हैं), राजन् = नृप! (हे राजन्), अलमति-दाक्षिण्येन = अत्यधिककौशलस्य आवश्यकता न वर्तते, अत्यधिक कौशलं मा कुरु [अत्यधिक दक्षता या कुशलता की आवश्यकता नहीं, अधिक दक्षता या कौशल मत करो (दिखाओ)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालाभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।

अन्वयः – गुणमहतामपि वयोऽनुरोधात् शिशुजनः लालनीयः एव भवति। बालभावात् हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक केतकच्छदत्वं व्रजति।

शब्दार्थाः – गुणमहतामपि = सद्गुणेषु उत्कृष्टेभ्यः अपि (महान् गुणवान् लोगों के लिए भी), वयोऽनुरोधात् = आयुस: कारणात्, अल्पवयोऽपि (कम उम्र का बालक भी, उम्र के कारण, अल्पायु होने के कारण), शिशुजनः = बालकः (शिशु या बालक), लालनीयः एव भवति = लालनस्य योग एव भवति, लालनमर्हति (लाड़ के योग्य होता है), यतः = (क्योंकि), बालभावात् हि = शिशुभावात् एव (बालभाव के कारण ही), हिमकरः अपि = शशिः, चन्द्रः अपि (चन्द्रमा भी), पशुपति-मस्तक = शिवस्य शिरसि, शेखरे (भगवान् शिव के मस्तक पर), केतकच्छदत्वम् = केतकपुष्प निर्मितस्य शेखरस्य आभूषणताम् (केवड़ा के फूलों से बने जूड़े पर लगे आभूषण की शोभा को), व्रजति =गच्छति, प्राप्नोति (प्राप्त होता है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ दिङ्नाग द्वारा रचित ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में लेखक कुश और लव के साथ श्रीराम का संवाद, व्यवहार एवं सदाचार वर्णन करता है।

हिन्दी-अनुवादः – (श्रीराम सिंहासन पर बैठे हैं। तभी विदूषक द्वारा राह बताए हुए तपस्वी का वेश धारण किए हुए कुश और लव प्रवेश करते हैं।)

विदूषक-इधर-इधर (आइए) आर्य !

कुशलव – (राम के समीप जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज की कुशल है अर्थात् क्या महाराज सकुशल हैं ?
राम – आप दोनों के दर्शन से कुशल-सा ही है। क्या यहाँ हम आप कुशल समाचार पूछने के ही पात्र हैं? तो क्या हम अतिथियों के लिए उचित आलिङ्गन (गले लगने) योग्य नहीं हैं। (आलिङ्गन करके) अरे हृदय से स्वीकार्य स्पर्श है। (आधे आसन पर बैठाते हैं।)
दोनों – यह तो निश्चित ही राजसिंहासन है, बैठना उचित नहीं है।
राम – यह (आपके) चरित्र विनाश का व्यवधान नहीं है अर्थात् इस पर बैठने से आपके चरित्र का विनाश नहीं होगा। इसलिए गोद में बने हुए सिंहासन पर बैठे। (गोदी में बैठाते हैं।)
दोनों (लवकुश) – (अनिच्छा का अभिनय करते हैं) महाराज ! अत्यधिक उदारता मत करें।
राम – अधिक शालीनता की आवश्यकता नहीं है। “महान गुणवान् लोगों के लिए भी अल्पायु बाल उम्र के कारण लाड़ के योग्य होता है। (क्योंकि) बालभाव के कारण ही चन्द्रमा भगवान शिव के सिर पर केवड़ा के फूलों से बने जूड़े पर लगे आभूषण की शोभा को प्राप्त होता है।”

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

2. रामः – एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि-क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः
को वा भवतोवंशस्य कर्ता ?
लवः – भगवन् सहस्रदीधितिः।
रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ ?
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम् ?
लवः – भ्रातरावावां सोदयौं।
रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः।
वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
लवः – आवां यमलौ।
रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम् ?
लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि गुरुचरणवन्दनायाम्
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः। किं नामधेयो भवतोगुरुः ?

शब्दार्थाः – एषः = अयम् (यह), भवतोः = युवयोः कुशलवयोः (आप दोनों कुश और लव का), सौन्दर्यावलोकजनितेन = सुन्दरतादर्शनोद्भूतेन (सुन्दरता के देखने के कारण), कौतूहलेन = आश्चर्येण (कुतूहल से/के कारण), पृच्छामि = प्रष्टुमिच्छामि (पूछता हूँ), क्षत्रियकुल = क्षात्रकुलोद्भूतयोः पितुः पित्रोः (क्षत्रिय कुल में उत्पन्न दादा/पूर्वज), सूर्यचन्द्रयोः = दिनकरनिशाकरयोः (सूर्य-चन्द्र), वंशयोः = कुलयोः अन्वयोः (वंशों में से), भवतोः = युवयोः (आप दोनों के), वंशस्य = अन्वयस्य, कुलस्य (कुल का), कर्ता = जनयिता (पैदा करने वाला), को = कः (कौन हैं अर्थात् आप सूर्यवंशी हैं या चन्द्रवंशी), भगवान् सहस्त्रदीधितिः = सहस्ररश्मिः भगवान् सूर्यः (हजार किरणों वाले सूर्य), कथम् = किम् (क्या),

अस्मत् = अस्माकम् (हमारे), समान = तुल्यः, सदृशः (समान), अभिजनौ = समानकुलोत्पन्नौ (एक कुल में पैदा होने वाले), संवृतौ = संजातौ (हो गए), किं = अपि (क्या), द्वयोरपि = उभयोरपि (दोनों का भी), एकमेव = समानमेव (एक ही), प्रतिवचनम् = उत्तरम्म् (उत्तरम् है), भ्रातरावावाम् = आवाम् उभौ एव बन्धू (हम दोनों ही भाई हैं), सोदयौँ = सहोदरौ (सगे भाई हैं), समरूप = रूपः समानः (रूप समान, एक जैसा), शरीरसन्निवेशः = अंगरचनाविन्यासः (शरीर की बनावट भी समान है), वयसस्तु = आयुसः तु, अवस्थायाः तु (आयु का), न किञ्चिद् अन्तरम् = किञ्चिदपि न्यूनाधिक्यम् (कोई अन्तर नहीं), आवां यमलौ = आवाम् उभौ एव युगलौ (हम दोनों ही जुड़वाँ हैं), सम्प्रति = इदानीम् (अब),

युज्यते = उचितम्, समीचीनम् (ठीक है, उचित है), किं नामधेयम् = किम् अभिधानम् (क्या नाम है), आर्यस्य = श्रीमतः श्रेष्ठ-जनस्य (आर्य की), वन्दनायाम् = निवेदने, सेवायाम् (सेवा में), लव इत्यात्मानं = लवनाम्ना स्वम् (‘लव’ नाम से अपने को), श्रावयामि = कथयामि/निवेदयामि (सुनाता हूँ, निवेदन करता हूँ, कहता हूँ, अर्थात् मेरा नाम लव है)। कुशं निर्दिश्य = कुशं प्रति संकेतं कृत्वा (कुश की ओर इशारा करके), आर्योऽपि = अग्रजोऽपि (भैया भी), गुरुचरणवन्दनायाम् = आयुवृद्धानाम् चरणसेवायाम् (गुरुचरणों की सेवा में), अहमपि = अहम् अपि (मैं भी), कुश इत्यात्मानम् = ‘कुश’ इति स्वाभिधानम् (‘कुश’ ऐसा अपना नाम निवेदन करता हूँ), अहो = आश्चर्यम् (अरे आश्चर्य है), उदात्तरम्यः = अत्यन्तरमणीयः (अत्यधिक मनोहर है), समुदाचारः = शिष्टाचारः (शिष्टाचार), किं नामधेयो भवतोर्गुरुः = युवयोः गुरोः किमभिधानम् (आपके गुरुजी का क्या नाम है ?)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ दिङ्नाग द्वारा रचित ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में नाटककार लव और कुश के साथ राम का संवाद प्रस्तुत करता है। यहाँ राम कुश और लव से परिचय पूछते हैं। उन दोनों के वंश, गुरु, पिता और माता आदि के विषय में जानना चाहते हैं।

हिन्दी-अनुवादः – राम – यह आप दोनों (कुश-लव) की सुन्दरता को देखने से उत्पन्न कुतूहल के कारण पूछता हूँ कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न (तुम्हारे) पितामहों (पूर्वजों) का सूर्य एवं चन्द्र वंशों में से कौन जन्मदाता है अर्थात् आप सूर्यवंशी हैं अथवा चन्द्रवंशी।

लव – हजार किरणों वाले भगवान् सूर्य।
राम – क्या (आप) हमारे समान कुल में ही पैदा होने वाले हैं ?
विदूषक – क्या आप दोनों का एक ही उत्तरम् है ?
लव – हम दोनों भाई हैं, सहोदर हैं।
राम – रूप और अंग विन्यास (शारीरिक गठन) तो समान ही है। उम्र का तो कोई अन्तर नहीं है अर्थात् न्यूनाधिक नहीं है।
लव – हम दोनों जुड़वाँ भाई हैं।
राम – अब ठीक है। क्या नाम है ?
लव – श्रीमान् की सेवा में मैं अपने को ‘लव’ सुनाता (कहता हूँ) (कुश की ओर संकेत करके) भैया भी गुरुचरणों की सेवा में ……….
कुश – मैं भी ‘कुश’ अपना नाम निवेदन करता हूँ।
राम – आश्चर्य है, अत्यधिक शिष्टाचार है। आपके गुरुजी का क्या नाम है ?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

3. लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन ?
लवः – उपनयनोपदेशेन।
रामः – अहमत्रभवतो: जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
लवः – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो माहात्म्यम्।
कुशः – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
रामः – कथ्यताम्।
कुशः – निरनुक्रोशो नाम ……..
रामः – वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति ?
कुशः – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ?
कुशः – यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति-निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्सयति।
रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभैर क्षरैर्निर्भर्त्तयति। (सवाष्पमवलोकयति)

शब्दार्थाः – ननु भगवान् वाल्मीकिः = भगवान् प्रचेतात्मजः वाल्मीकिः (भगवान् वाल्मीकि), केन सम्बन्धेन = केन प्रकारेण (किस सम्बन्ध से), उपनयनोपदेशेन = उपनयन (यज्ञोपवीत) उपदेशेन (संस्कारेण), [उपनयन = (संस्कार दीक्षा या) उपनयन की दीक्षा देने के कारण], अहमत्रभवतोः = अहम् युवयोः (मैं तुम दोनों के), ज को), नामतः = नाम्नः (नाम से), वेदितुमिच्छामि = ज्ञातुम् इच्छामि (जानना चाहता हूँ), न हि जानाम्यस्य नामधेयम् = (अहम्) एतस्य (जनकस्य) अभिधानं न जानामि [(क्योंकि मैं इनका) (पिताजी का) नाम नहीं जानता हूँ], अस्मिन् तपोवने = एतस्मिन् आश्रमे (इस तपोवन में), कश्चित् = कोऽपि (कोई भी), तस्य = अमुष्य मे जनकस्य (उन मेरे पिताजी का), नाम न व्यवहरति = अभिधानं न आचरति (नाम का प्रयोग नहीं करता है), अहो माहात्म्यम् = अहो आश्रमस्य महनीयता (अरे! आश्रम की महानता), जानाम्यहं तस्य नामधेयम् = अहम् अमुष्य अभिधानं जानामि (मैं उनका नाम जानता हूँ), कथ्यताम् = उद्यताम् तावत् (तो बताओ), निरनुक्रोशो नाम = निर्दयः (दयारहित नाम), वयस्य = (मित्र !),

अपूर्व खलु नामधेयम् = निश्चितरूपेण न श्रुतं पूर्वमभिधानम् (यह नाम पहले सुना हुआ नहीं है), विचिन्त्य = विचार्य (सोच कर), एवं तावत् पृच्छामि = तावत् त्वाम् इत्थम् पृच्छामि (तो तुमसे इस प्रकार पूछना चाहता हूँ), निरनुक्रोश इति कः एवं भणति = क एवं भणति ? (निर्दय ऐसा कौन कहता है), अम्बा = माता (माँ), किं कुपिता = किं क्रुद्धा सती (क्या नाराज होकर), एवं भणति = इत्थं कथयति (ऐसा कहती है), उत प्रकृतिस्था = अथवा स्वाभाविकरूपेण (अथवा स्वाभाविक रूप से), यदि आवयोः बालभावजनितं = चेत् नौ वात्सल्येन उद्भूतम् (यदि हमारे बालभाव से उत्पन्न), किञ्चिदविनयम् = काचिद् धृष्टताम्, उद्दण्डताम् (किसी उद्दण्डता को), पश्यति = ईक्षते (देखती हैं), तदा = तर्हि (तो, तब), एवम् = इत्थम् (इस प्रकार), अधिक्षिपति = आक्षिपति, आक्षेपं करोति, अधिक्षेपं करोति (फटकारती है), निरनुक्रोशस्य = निर्दयस्य (निर्दय के), पुत्रौ = आत्मजौ (बेटे), मा चापलम् इति = अलं चापल्येन (चपलता मत करो), एतयोः = अनयोः (इन दोनों के),

पितुर्निरनुक्रोश: नामधेयम् = जनकस्य निर्दय इति अभिधानम्, नाम (पिता का निर्दय नाम है), [तदा-तर्हि(तो)] एतयोः = अनयोः (इन दोनों की), जननी = माता (माताजी), तेनावमानिता = अमुना अपमानं कृत्वा तिरस्कृता (उसके द्वारा अपमानित की गई, तिरस्कार की हुई), निर्वासिता = निष्काषिता भवेत् (निकाली गई होगी), तदैव एतेन = तदैव अनेन (तभी इस), वचनेन = कथनेन (कथन से), सा = असौ (वह), दारको = पुत्रौ (पुत्रों को), निर्भर्सयति = तर्जयति (फटकारती है), स्वगतम् = आत्मगतम् (अपने आप से, मन ही मन), धिङ्मामेवंभूतम् = धिक्कारम् माम्, मयासैहैव एव घटितम् (धिक्कार है मुझे, मेरे साथ ही ऐसा घटित हुआ है), सा तपस्विनी = असा तपस्विनी (वह बेचारी), मत्कृतेनापराधेन = मया विहितेन अपराधेन (मेरे द्वारा किए गए अपराध से), स्वापत्यमेव = आत्मनः सन्ततिम्, प्रजाम् एव (अपनी सन्तान को ही), मन्युगभैरक्षरैः = क्रोधाविष्टैः वचनैः (क्रोधपूर्ण शब्दों से), निर्भर्त्सयति = तर्जयति (फटकारती है), सवाष्यमवलोकयति = सास्त्रम् पश्यति (अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखता है)।

सन्दर्भ – प्रसङ्गश्च -यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ दिङ्नाग कृत ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में श्रीराम कुश और लव में उनके गुरु का नाम, सम्बंध और पिता का नाम पूछना चाहते हैं। कुश पिता का नाम निरनुक्रोश (निर्दय) ऐसा बताकर उसके प्रति अपनी क्रोध भावना को प्रकट करता है। संवाद से राम के प्रति सीता का भी कोप-भाव प्रकट होता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

हिन्दी-अनुवादः –

लव – निश्चय ही प्रचेतापुत्र वाल्मीकि।
राम – किस सम्बन्ध से ?
लव – उपनयन संस्कार की दीक्षा देने के कारण (सम्बन्ध से)।
राम – आप दोनों के पिताजी को नाम से जानना चाहता हूँ।
लव – इनका नाम (मैं) नहीं जानता। इस तपोवन में कोई उनके नाम का प्रयोग नहीं करता है।
अरे! आश्रम की (कितनी) महानता है।
कुश – मैं उनका नाम जानता हूँ।
राम – कहिए।
कुश – निर्दय नाम …….।
राम – मित्र, निश्चय ही पहले कभी न सुना हुआ नाम है।
विदूषक – (सोच कर) तो (तुमसे) इस प्रकार पूछना चाहता हूँ (मैं यों पूछना चाहता हूँ) कि ‘निर्दय’ (ऐसा नाम) कौन कहता है ?
कुश – माताजी।
विदूषक – क्या क्रोधित होकर कहती हैं या स्वाभाविक रूप से ?
कश – यदि हम दोनों की बालभाव के कारण उत्पन्न किसी ढीठता को देखती हैं तब इस प्रकार फटकारती हैं –
“निर्दयी के बेटो चपलता मत करो।”
विदूषक – इन दोनों के पिता का यदि ‘निर्दयी’ नाम है (तो निश्चय ही) इनकी माता उसने तिरस्कृत करके निर्वासित की है (इसलिए) इन वचनों से बच्चों (पुत्रों) को फटकारती है।
राम – (मन ही मन) इस प्रकार के मुझको धिक्कार है। वह बेचारी मेरे द्वारा किए हुए अपराध के कारण अपनी सन्तान को क्रोध भरे वचनों से फटकारती है। (अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखते हैं।)

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4 रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयो मतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः ?
विदूषकः – (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी ?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव ?
लवः – तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।
रामः – अपि च इतस्तावद् वयस्य ! मुहूर्तमात्रम्।
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
रामः – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः ?

शब्दार्थाः – अयं = एषः (यह), प्रवासः = परदेशवासः (परदेश में रहना), अतिदीर्घः = अत्यधिकं दूरम् (बहुत लम्बा), दारुणश्च = निष्ठुरः, भयानकः च (और कठोर है), विदूषकमवलोक्य = विदूषकं दृष्ट्वा (विदूषक को देखकर), जनान्तिकम् = एकतः मुखं कृत्वा, मुखं परिवर्त्य (एक ओर मुँह मोड़कर), कुतूहलेनाविष्टः = सकुतूहलम् (कुतूहल के साथ), अनयोः = एतयोः (इनकी), मातरम् = जननीम् (माँ को), नामतः = नाम्नः, अभिधानात् (नाम से), वेदितमिच्छामि = ज्ञातुमीहे (जानना चाहता हूँ), स्त्रीगतम् = स्त्रीविषयकः (स्त्री के विषय में), अनुयोक्तम् = अन्वेष्टुम् (छानबीन करना), न युक्तम् = नोचितम् (उचित नहीं), विशेषतः = विशेषरूपेण (विशेष रूप से), तपोवने = तपस्थले, तपोभूमौ, आश्रमे (तपोवन में), तत् = तदा (तब), कोऽत्राभ्युपायः = अस्मिन् विषये कः उपचारः, उपायः (इस विषय में क्या उपाय है), जनान्तिकम् = मुखं परिवर्त्य (मुँह फेरकर), अहं पुनः पृच्छामि = अहं पुनः पृष्टुम् इच्छामि (मैं फिर पूछता हूँ, पूछना चाहता हूँ),

प्रकाशम् = स्पष्टरूपेण (खुले में), युवयोः = भवतोः (आप दोनों की), जननी = माता (माताजी का), किं नामधेया = अभिधाना (क्या नाम है, किस नाम की हैं), तस्याः = अमुष्याः (उसके), द्वे नामनी = द्वे अभिधाने स्तः (दो नाम हैं), कथमिव = केन प्रकारेण (किस प्रकार, कैसे), तपोवनवासिनः = तपोभूमौ वास्तव्याः (तपोवन में वास करने वाले), ताम् = (उसे), देवीति नाम्ना (देवी नाम से), आह्वयन्ति = आह्वानं कुर्वन्ति, आकारयन्ति (बुलाते हैं), भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति = महर्षिः प्राचेतसः ‘वधूः’ इति (नाम्ना आह्वयति) (और प्रचेतापुत्र महर्षि वाल्मीकि उसे ‘बहू’ कहकर बुलाते हैं), अपि च = किमन्यत् (और क्या), वयस्य = मित्र ! (मित्र !), तावत् = तर्हि (तो), मुहूर्त्तमात्रम् = क्षणमात्रम् इतः (आयाहि) (क्षणभर इधर आइए), उपसृत्य = उपगम्य, समीपं गत्वा (पास जाकर), आज्ञापयतु = आज्ञां देहि (आज्ञा दें), भवान् = श्रीमान् (आप), अपि = किम् (क्या), अनयोः = एतयोः (इन दोनों), कुमारयोः = किशोरयोः (कुमारों का), अस्माकं च = (और हमारा), कुटुम्बवृत्तान्तः = परिवारस्य विवरणम् (परिवार का वृत्तान्त), समरूपः एव = समानमेव (समान रूप है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ दिङ्नाग कृत ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में श्रीराम कुश-लव की माँ का नाम जानना चाहते हैं, परन्तु तपोवन में नारी का परिचय पूछना उचित नहीं है। अंत में रुक जाते हैं।

हिन्दी-अनुवादः –

राम – यह परदेशवास भी अत्यन्त लम्बा और कठोर है। (विदूषक को देखकर एक ओर मुख मोड़कर) कुतूहल के साथ इन दोनों की माँ को नाम से जानना चाहता हूँ (परन्तु) स्त्री के विषय में खोजबीन (छानबीन) करना उचित नहीं। विशेष रूप से तपोवन में, तब यहाँ (इस विषय में) क्या उपाय है ?

विदूषक – (मुँह मोड़कर) मैं फिर पूछता हूँ। (खुले में) आप दोनों की माताजी का क्या नाम है ?
लव – उनके दो नाम हैं।
विदूषक – कैसे ?
लव – तपोवन में निवास करने वाले उसे ‘देवी’ बुलाते हैं और प्रचेतापुत्र महर्षि वाल्मीकि उसे ‘बहू’ कहकर बुलाते हैं।
राम – तो क्या मित्र ! क्षणभर इधर आइए।
विदूषक – (पास जाकर) आज्ञा दें आप।
राम – क्या इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृत्तान्त समान ही है?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

5. (नेपथ्ये)
इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते ?
उभौ – राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः – मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि

भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः।।

वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः; तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः, प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि।

(इति निष्क्रान्ताः सर्वे)

शब्दार्थाः – इयती = एतावती (इतनी), वेला = समयः, कालः (समय), सजाता = अजायत, अभवत् (हो गई), नियोगः = निश्चितं कार्यम् करणीयम् (कर्त्तव्य), किमर्थम् = कस्मै (किसलिए), न विधीयते = न क्रियते (नहीं किया जाता है), राजन् = महाराज !, नराधिप ! (हे महाराज), उपाध्यायदूतो = गुरोः दूतः (गुरुजी का दूत), अस्मान् = नः (हमें), त्वरयति = त्वरां, विधातुं प्रेरयति शीघ्रतां कारयति (जल्दी करा रहा है), मयापि = अहम् अपि (मैं भी), सम्माननीय एव = सम्मान योग्यं मन्यै एव (सम्मान के योग्य मानता हूँ), मुनिनियोगः = मुनेः कार्यम् (मुनि के कार्य को), तथाहि = यतः (क्योंकि)।

भवन्तौ ………………………………………………. परिकरः ।।

अन्वयः – भवन्तौ गायन्तौ पुराण: व्रतनिधिः कविः अपि वसुमी प्रथमं अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः सरसिरुहनाभस्य च इयं श्लाघ्याकथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।

शब्दार्थाः – भवन्तौ = युवाम् (आप दोनों), गायन्तौ = गानं कुर्वन्तौ (गायन करते हुए, गान करने वाले हैं), पुराण: = पुरातनः पुराणानाम् (प्राचीन), व्रतनिधिः = तपोनिधिः तपः पुंजः (तपस्वी), कविः अपि = कवयितापि (कवि भी), वसुमती = पृथिवीम्, भूमिम् (धरती पर), प्रथमम् = सर्वप्रथमम् (पहली बार), अवतीर्णः = अवतरितः (अवत गिराम् = वाणीम् (वाणी का), अयम् = एषः (यह), सन्दर्भः = काव्यम् (काव्य), सरसिरुहनाभस्य = कमलनाभस्य (विष्णु का), च इयम् = च एषा (और यह), श्लाघ्या = सराहनीया (सराहनीय, प्रशंसनीय), कथा = वृत्तान्तः (कथा है), सः च = असौ च (और वह), परिकरः = संयोगः, सम्बन्धः (संयोग), नियतम् = निश्चयमेव (निश्चय ही), श्रोतारं = श्रोतागणम् (श्रोताओं को), पुनाति रमयति च = पावनं, आनन्दितं च करोति (पवित्र और आनन्दित करता है, करने वाला है)। वयस्य! = मित्र ! (मित्र),

मानवानाम् = मनुष्याणाम् (मानव जाति का), अयम् = एषः (यह), सरस्वती-अवतारः = शारदायाः साक्षादवतारः (सरस्वती का अवतार है), अपूर्वः = अद्भुतः, न पूर्वदृष्टः एव अस्ति (अद्भुत, पहले न देखा हुआ है), तदहम् = तर्हि अहम् (तो मैं), सुहृद्जनसाधारणं = सामान्यसुहृदः, मित्राणि (सामान्य मित्रों को), श्रोतुमिच्छामि = श्रवणायोत्सुकोऽस्मि (सुनने का इच्छुक हूँ, सुनना चाहता हूँ), सभासदः = सांसदाः (सभासद), सन्निधीयन्ताम् = समीपम् आयान्तु (समीप आएँ), सौमित्रः = सुमित्रानन्दनः लक्ष्मणः (सुमित्रासुत लक्ष्मण), अस्मदन्तिकम् = अस्माकं समीपे (हमारे समीप), प्रेष्यताम् = गमयताम् (भेजा जाये, पहुँचाया जाये), अहमपि = (मैं भी), एतयोः = अनयोः (इन दोनों के), चिरासनपरिखेदम् = चिरात् आसनेन श्रमम् (बहुत देर तक बैठे रहने से हुई थकावट को), विहरणम् कृत्वा = विहारम् कृत्वा, विधाय (चहल-कदमी करके), अपनयामि = दूरं करोमि, विदधामि (दूर करता हूँ)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

सन्दर्भः प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ दिङ्नाग कृत ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में महर्षि वाल्मीकि और उनकी रामायण की प्रशंसा की गई है।

हिन्दी-अनुवादः – (नेपथ्य में) इतना समय (व्यतीत) हो गया। रामायण गाने के निर्धारित कार्य को क्यों नहीं किया जा रहा है ?

दोनों – महाराज ! गुरुजी का दूत (हमें) शीघ्रता करा रहा है। राम- मैं भी मुनि के कार्य को सम्मान योग्य मानता हूँ। क्योंकि आप दोनों (कुश और लव) इस (रामायण) कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराणमुनि (भगवान् वाल्मीकि) इस भी हैं, धरती पर पहली बार अवतरित होने वाला स्पष्ट वाणी वाला यह काव्य है, कमलनाभ विष्णु की यह प्रशंसनीय कथा है। इस प्रकार निश्चित ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करता है।

मित्र ! मानव जाति में यह सरस्वती का, जो पहले देखा हुआ नहीं है ऐसा अद्भुत अवतार है तो मैं सामान्य सुहृद्जनों को सुनना चाहता हूँ। सभासदों को पास आने दो। लक्ष्मण (सुमित्रानन्दन) को मेरे समीप भेज दो। मैं भी इन दोनों के बहुत देर से बैठे हुओं के परिश्रम को चहल-कदमी करके दूर करता हूँ।

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

निर्देश – संवाद-लेखन का उद्देश्य विद्यार्थियों को संस्कृत में सम्भाषण क्षमता को प्रेरित करना एवं मूल्यांकन करना है। ताकि विद्यार्थी संस्कृत के माध्यम से वार्तालाप करने में सक्षम हो सकें और अपने भावों को संस्कृत में व्यक्त कर सकें। वार्तालाप पूर्णरूपेण संस्कृत में ही लिखा जाएगा तथा उत्तर भी संस्कृत में ही अपेक्षित है अर्थात् वार्तालाप को संस्कृत में ही लिखना है। यहाँ उत्तर में वाक्यों का हिन्दी अर्थ दिया गया है। वह केवल समझने के लिए है, उत्तर-पुस्तिका में नहीं लिखना है।

संवाद अथवा वार्तालाप दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य होता है। इसकी दो प्रमुख शैलियाँ हैं – (i) प्रश्नात्मक संवाद (ii) आदेशात्मक संवाद। संवाद में उत्तर सदैव ही प्रश्नानुसार होने चाहिए। जिस शैली और वाच्य में प्रश्न पूछा गया हो, उसी शैली और वाच्य में उत्तर दिया जाना चाहिए। संवाद में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रश्नोत्तर निर्माण का अच्छा अभ्यास होना चाहिए। साथ ही परस्पर सम्भाषण का अभ्यास भी करना चाहिए। इस प्रश्न को अच्छी तरह हल करने के लिए विद्यार्थियों को निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए –
1. पूरे संवाद को ध्यान से पढ़ना चाहिए।
2. प्रथम प्रश्न का उत्तर लिखने से पहले दूसरे प्रश्न को अवश्य पढ़ लेना चाहिए, क्योंकि संवाद में प्रश्नों के उत्तर प्रायः अगले प्रश्न के अन्दर ही मिल जाते हैं।
3. उत्तर देते समय वाक्य को लम्बा नहीं रखना चाहिए।
4. उत्तर प्रश्न के अनुसार ही होना चाहिए अर्थात् अपेक्षित उत्तर ही होना चाहिए।
5. संवाद-लेखन में लिंग-वचन का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है।
6. यदि संवाद बड़े और छोटे व्यक्ति के मध्य हों तो छोटे व्यक्ति का संवाद आज्ञात्मक नहीं होना चाहिए।
7. वार्तालाप के काल का ध्यान भी रखना आवश्यक है।
8. मञ्जूषा में दिए गये शब्दों के चयन के समय कर्ता-क्रिया, संज्ञा-सर्वनाम तथा विशेषण-विशेष्य आदि के समुचित समन्वय को भी ध्यान में अवश्य रखना चाहिए।
9. मंजूषा के शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़कर ही प्रयोग करना चाहिए।
10. आदेशात्मक-संवाद में उत्तर प्रायः वर्तमान काल या भूतकाल में होते हैं, अतः तदनुसार ही उत्तर देना चाहिए।

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

1. मञ्जूषातः उपयुक्तपदानि गृहीत्वा अध्ययनविषये पितापुत्रयोः संवादं पूरयतु
मञ्जूषा – अध्यापकः, विषये, गणिते, व्यवस्थां, स्थानान्तरणम्, अध्ययनं, समीचीनं, काठिन्यम्।
पिता – रमेश! तव ……………कथं प्रचलति?
रमेशः – हे पितः! अध्ययनं तु…………….प्रचलति।
पिता – कोऽपि विषयः एतादृशः अस्ति यस्मिन् त्वं …………… अनुभवसि?
रमेशः – आम्! …………. मम स्थितिः सम्यक् नास्ति। यतोहि अस्माकं विद्यालये इदानीं गणितस्य ………… नास्ति।
पिता – त्वं पूर्वं तु माम् अस्मिन् ……………… न उक्तवान् !
रमेशः – पूर्वं तु अध्यापक-महोदयः आसीत् परं एकमासात् पूर्वमेव तस्य …………….अन्यत्र अभवत्।
पिता – अस्तु। अहं तव कृते गृहे एव गणिताध्यापकस्य ……………. करिष्यामि।
रमेशः – धन्यवादाः।
उदाहरणार्थ – समाधानम्: –
पिता – रमेश! तव अध्ययनं कथं प्रचलति? (रमेश! तेरा अध्ययन (पढ़ाई) कैसा चल रहा है ?)
रमेशः – हे पितः! अध्ययनं तु समीचीनं प्रचलति। (पिताजी! अध्ययन तो ठीक चल रहा है।)
पिता – कोऽपि विषयः एतादृशः अस्ति यस्मिन् त्वं काठिन्यम् अनुभवसि? (कोई भी विषय ऐसा है, जिसमें तुम्हें कठिनाई अनुभव हो रही हो?)
रमेशः – आम्! गणिते मम स्थितिः सम्यक् नास्ति। यतोहि अस्माकं विद्यालये इदानीं गणितस्य अध्यापकः नास्ति। (हाँ! गणित में मेरी स्थिति ठीक नहीं है। क्योंकि हमारे विद्यालय में इस समय गणित का अध्यापक नहीं है।)
पिता – त्वं पर्वं तमाम अस्मिन विषये न उक्तवान ! (तुमने पहले तो मुझसे इस विषय के बारे में नहीं कहा।)
रमेशः – पूर्वं तु अध्यापक-महोदयः आसीत् परं एकमासात् पूर्वमेव तस्य स्थानान्तरणम् अन्यत्र अभवत्। (पहले तो अध्यापक महोदय थे, लेकिन एक महीने पूर्व ही उनका स्थानान्तरण दूसरी जगह हो गया।)
पिता – अस्तु। अहं तव कृते गृहे एव गणिताध्यापकस्य व्यवस्थां करिष्यामि। (हो! मैं तुम्हारे लिए घर पर ही गणित अध्यापक की व्यवस्था करूँगा।)
रमेशः – धन्यवादाः। (धन्यवाद।)

2. मञ्जूषायां प्रदत्तपदैः ‘जयपुरभ्रमणम्’ इति विषये मित्रयोः परस्परं वार्तालापं पूरयतु।
मञ्जूषा – मित्रैः, जयपुरं, कार्यक्रमः, दर्शनीयम्, यात्रानुभवविषये, द्रक्ष्यामः
विनोदः – अंकित ! श्वः भवान् कुत्र गमिष्यति?
अंकितः – अहं ……………..गमिष्यामि।
विनोदः – तत्र किमपि कार्यं वर्तते? अथवा …… एवं गच्छति?
अंकितः – कार्यं नास्ति, अहं तु …………….. सह भ्रमणार्थं गच्छामि।
विनोदः – जयपुरे कुत्र-कुत्र भ्रमणस्य …………….. अस्ति?
अंकितः – वयं तत्र आमेर-दुर्ग, जयगढ़दर्ग, गोविन्ददेव-मन्दिरं च ……….
विनोदः – तत्र नाहरगढ़-दुर्गमपि पश्यतु। तदपि …………….. अस्ति।
अंकितः – यदि समयः अवशिष्टः भविष्यति तर्हि निश्चयेन तत्र गमिष्यामः।
विनोदः – बाढू मित्र ! नमस्ते! इदानीम् अहं गच्छामि। सोमवासरे आवां पुनः मिलिष्यावः। तदा वार्तालापं करिष्यावः।
उत्तरम् :
विनोदः – अंकित! श्वः भवान् कुत्र गमिष्यति? (अंकित कल आप कहाँ जाओगे?)
अंकितः – अहं जयपुरं गमिष्यामि। (मैं जयपुर जाऊँगा।)
विनोदः – तत्र किमपि कार्यं वर्तते? अथवा भ्रमणार्थम् एव गच्छति? (वहाँ कोई भी कार्य है अथवा घूमने के लिए ही जाना है।)
अंकितः – कार्यं नास्ति, अहं तु मित्रैः सह भ्रमणार्थं गच्छामि। (कार्य नहीं है, मैं तो मित्रों के साथ घूमने के लिए जाता हूँ।)
विनोदः – जयपुरे कुत्र-कुत्र भ्रमणस्य कार्यक्रमः अस्ति? (जयपुर में कहाँ-कहाँ घूमने का कार्यक्रम है?)
अंकित: – वयं तत्र आमेर-दुर्गं, जयगढ़दुर्ग, गोविन्ददेव-मन्दिरं च द्रक्ष्यामः।
(हम सब वहाँ आमेर किला, जयगढ़ किला और गोविन्द मन्दिर देखेंगे।)
विनोदः – तत्र नाहरगढ़-दुर्गमपि पश्यतु। तदपि दर्शनीयम् अस्ति। (वहाँ नाहरगढ़ किला भी देखो, वह भी देखने योग्य है।)
अंकित: – यदि समयः अवशिष्टः भविष्यति तर्हि निश्चयेन तत्र गमिष्यामः।
(यदि समय शेष रहेगा तो निश्चित रूप से वहाँ जायेंगे।)
विनोदः – बाढ़ मित्र ! नमस्ते! इदानीम् अहं गच्छामि। सोमवासरे आवां पुनः मिलिष्यावः। तदा यात्रानुभवविषये वार्तालापं करिष्यावः। (ठीक ! मित्र नमस्ते। इस समय मैं जाता हूँ। सोमवार को हम दोनों फिर मिलेंगे। तब यात्रा विषय के बारे में बातचीत करेंगे।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

3. मञ्जूषायाः उपयुक्तपदानि गृहीत्वा गुरुशिष्ययोः मध्ये क्रीडायाः विषये संवादं पूरयत।
[मञ्जूषाः अध्ययनम्, क्रीडने बहुलाभम्, आवश्यकता, अधुना, करोषि, क्रीडाङ्गणे, क्रीडायै]
अध्यापकः – प्रवीण! त्वम् अत्र किं ………….. ?
प्रवीणः – हे गुरो! अहम् ………….. किमपि न करोमि।
अध्यापकः – तर्हि गच्छ। तव मित्राणि तत्र ………….. क्रीडन्ति, तैः सह क्रीड।
प्रवीणः – मम………….. रुचिः नास्ति। अतः अहं न क्रीडामि।
अध्यापकः – स्वस्थशरीरस्य स्वस्थमनसः च कृते क्रीडायाः अस्माकं जीवने महती…………..भवति।
प्रवीणः – यदि अहं क्रीडायां ध्यानं दास्यामि तर्हि मम ………….. बाधितं भविष्यति।
अध्यापकः – एतद् समीचीनं नास्ति। क्रीडायै स्वल्पसमयम् एव प्रयच्छ। अल्पसमयः अपि शरीराय………… प्रदास्यति।
प्रवीणः – बाढ़म् श्रीमन् ! इतः आरभ्य अहं कञ्चित् समयं ………….. अपि दास्यामि।
उत्तरम् :
अध्यापकः – प्रवीण! त्वम् अत्र किं करोषि ? (प्रवीण! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?)
प्रवीणः – हे गुरो! अहम् अधुना किमपि न करोमि। (हे गुरु ! मैं अब कुछ भी नहीं कर रह)
अध्यापकः – तर्हि गच्छ। तव मित्राणि तत्र क्रीडाङ्गणे क्रीडन्ति, तैः सह क्रीड। (तो जाओ! तुम्हारे मित्र वहाँ खेल के मैदान में खेल रहे हैं। उनके साथ खेलो।)
प्रवीणः – मम क्रीडते रुचिः नास्ति। अतः अहं न क्रीडामि। (मेरी खेलने में रुचि नहीं है। इसलिए मैं नहीं खेलता हूँ।)
अध्यापकः – स्वस्थशरीरस्य स्वस्थमनसः च कृते क्रीडायाः अस्माकं जीवनं महती आवश्यकता भवति। (स्वस्थ शरीर का स्वस्थ मन और खेल का हमारे जीवन के लिए बहुत महत्व है।)
प्रवीणः – यदि अहं क्रीडायां ध्यानं दास्यामि तर्हि मम अध्ययनं बाधितं भविष्यति। (यदि मैं खेल में ध्यान दूंगा, तो मेरी पढ़ाई (अध्ययन) में बाधा होगी।)
अध्यापकः – एतद् समीचीनं नास्ति। क्रीडायै स्वल्पसमयम् एव प्रयच्छ। अल्पसमयः अपि शरीरस्य बहुलाभम् प्रदास्यति। (यह ठीक नहीं है। खेलने के लिए थोड़ा समय ही दो। थोड़ा समय भी शरीर को बहुत लाभ देगा।)
प्रवीणः – बाढ़म् श्रीमान् ! इतः आरभ्य अहं कञ्चित् समयं क्रीडायै अपि दास्यामि। (श्रीमान् जी ठीक है! अब प्रारम्भ करके मैं कुछ समय खेलने के लिए भी दूंगा।)

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4. मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया मातापुत्रयोः मध्ये वार्तालापं पूरयतु।
मञ्जूषाः – वस्तूनि, आपणं, सायंकाले, विद्यालयस्य, मातुलः, भोजनं, त्वं
माता – राघव! ……………किं करोषि?
राघवः – अहं मम …………… गृहकार्यं करोमि।
माता – पुत्र! गृहकार्यानन्तरम् …………… गत्वा ततः दुग्धं शाकफलानि च आनय।
राघवः – अहं …………… पुस्तकं क्रेतुम् आपणं गमिष्यामि तदा दुग्धं शाकफलानि च आनेष्यामि।
माता – सायंकाले न, त्वं तु पूर्वमेव गत्वा आनय।
राघवः – शीघ्रं किमर्थम्?
माता – अद्य तव …………… आगमिष्यति, अतः …………….. समयात् पूर्वमेव पक्ष्यामि।
राघवः – मातुल: आगमिष्यति चेत् अहम् इदानीम् एव गत्वा …………… क्रीत्वा आगच्छामि।
उत्तरम् :
माता – राघव! त्वं किं करोषि? (राघव! तुम क्या कर रहे हो?)
राघवः – अहं मम विद्यालयस्य गृहकार्यं करोमि। (मैं अपने विद्यालय का गृहकार्य कर रहा हूँ।)
माता – पुत्र! गृहकार्यानन्तरम् आपणं गत्वा ततः दुग्धं शाकफलानि च आनय। (पुत्र! गृहकार्य के बाद बाजार जाकर वहाँ से दूध, सब्जी और फल ले आओ।)
राघवः – अहं सायंकाले पुस्तकं क्रेतुम् आपणं गमिष्यामि तदा दुग्धं शाकफलानि च आनेष्यामि। (मैं सायं के समय पुस्तक खरीदने बाजार जाऊँगा, तब दूध, सब्जी और फल ले आऊँगा।)
माता – सायंकाले न, त्वं तु पूर्वमेव गत्वा आनय। (सायं के समय नहीं, तुम तो पहले ही जाकर लाओ।)
राघवः – शीघ्रं किमर्थम? (जल्दी किसलिए?)
माता – अद्य तव मातुलः आगमिष्यति, अतः भोजनं समयात् पूर्वमेव पक्ष्यामि। (आज तुम्हारे मामा आयेंगे, इसलिए खाना समय से पहले पकाऊँगी।)
राघवः – मातुल: आगमिष्यति चेत् अहम् इदानीम् एव गत्वा वस्तूनि क्रीत्वा आगच्छामि। (मामाजी आयेंगे ठीक, मैं इस समय ही जाकर वस्तुएँ खरीदकर आता हूँ।)

5. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित पद चुनकर अधोलिखित संवाद पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – गातुम्, इच्छन्ति, वयं, महोदये, परन्तु, यदि, शोभनम्, आवश्यकता।
अध्यापिका – बालाः ! किं भवन्तः किञ्चित् प्रष्टुम्: (i) ……………. ?
बालाः – महोदये ! (ii) ……………… तु गातुम् इच्छामः।
अध्यापिका – गातुम इच्छन्ति ! (ii) ……………….. अहं त (iv) ………………. न समर्था।
बालाः – (v) ……………….. ! वयं गास्यामः समूहगानम्। (vi) ……………. भवती अपि।
अध्यापिका – (vii) ……………… ! अहम् अपि गास्यामि। गीतं किम् अस्ति ? किं वाद्ययन्त्राणाम् अपि (viii) ……………… अस्ति।
बालाः – वाद्ययन्त्राणि यदि सन्ति, शोभनम्। अन्यथा एतानि विना एव गास्यामः। गीतं तु ‘पोङ्गल’ इति उत्सवेन सम्बद्धम् अस्ति।
अध्यापिका – एवं ! तदा गायामः।
बालाः – (सस्वरं गायन्ति)
उत्तरम् :
अध्यापिका – बालाः ! किं भवन्तः किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छन्ति ? (बच्चो ! क्या आप कुछ पूछना चाहती हैं ?)
बालाः – महोदये ! वयं तु गातुम् इच्छामः। (महोदया ! हम तो गाना चाहती हैं।)
अध्यापिका – गातुम् इच्छन्ति ! परन्तु अहं तु गातुम् न समर्था। – (गाना चाहती हैं ! लेकिन मैं तो गाने में समर्थ नहीं हूँ।)
बालाः – महोदये ! वयं गास्यामः समूहगानम्। यदि भवती अपि। (महोदया ! हम गायेंगे समूहगान। यदि आप भी।)
अध्यापिका – शोभनम् ! अहम् अपि गास्यामि। गीतं किम् अस्ति ? किं वाद्ययन्त्राणाम् अपि आवश्यकता अस्ति ? (अच्छा ! मैं भी गाऊँगी। गीत क्या है ? क्या वाद्य यन्त्रों की भी आवश्यकता है ?)
बालाः – वाद्ययन्त्राणि यदि सन्ति, शोभनम्। अन्यथा एतानि विना एव गास्यामः। गीतं तु ‘पोङ्गलः’ इति उत्सवेन सम्बद्धम् अस्ति। (वाद्ययन्त्र (बाजे) यदि हैं तो अच्छा है। अन्यथा इनके बिना ही गायेंगे (सही)। गीत तो ‘पोंगल’ उत्सव से सम्बद्ध है।)
अध्यापिका – एवम् ! तदा गायामः। (यह बात है ! तो गाते हैं।)
बालाः – (सस्वरं गायन्ति) (सस्वर गाते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

6. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित पद चुनकर निम्नलिखित संवाद पूरा करो।)
मञ्जूषा – अवश्यमेव, आचारः, पाठशालाम्, एका, पञ्चदश, स्नेहशीलः, तव, अध्येतुम्, पाठशालायाम्, गच्छसि।
कृष्णः – त्वं कुत्र (i) ………………..?
राधा – अहम् (ii) ………………. गच्छामि।
कृष्णः – (iii) ………….” पाठशालायां कति शिक्षकाः ?
राधा – मम पाठशालायाम् (iv) “………….. शिक्षकाः।
कृष्णः – तव (v) ………. शिक्षिका न अस्ति ?
राधा – (vi) …………….. शिक्षिका अस्ति।
कृष्णः – शिक्षकाणां (vii) ………………. कीदृशः अस्ति ?
राधा – (viii) …………….. ।
उत्तरम् :
कृष्णः – त्वं कुत्र गच्छसि ? (तुम कहाँ जा रही हो ?)
राधा – अहं पाठशालां गच्छामि। (मैं पाठशाला जा रही हूँ।)
कृष्णः – तव पाठशालायां कति शिक्षकाः ? (तुम्हारी पाठशाला में कितने शिक्षक हैं ?)
राधा – मम पाठशालायां पञ्चदश शिक्षकाः। (मेरी पाठशाला में पन्द्रह शिक्षक हैं।)
कृष्णः – तव पाठशालायां शिक्षिका न अस्ति ? (तुम्हारी पाठशाला में शिक्षिका नहीं है ?)
एका शिक्षिका अस्ति। (एक शिक्षिका है।)
कृष्णः – शिक्षकाणां आचारः कीदृशः अस्ति ? (शिक्षकों का व्यवहार कैसा है ?)
राधा – स्नेहशीलः। (प्रेमपूर्णः)

7. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं सख्योः संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्न दो सखियों के संवाद को पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – वाता, भोजनं, चिकित्सकः, इच्छामि, सेवार्थं, गृहे, चिकित्सालये, व्याकुला, श्रोष्यति, तत्र।
रमा – प्रिय सखि लते ! किमर्थं (i) ……………. असि ?
लता – मम पिता अतीव रुग्णः। राजकीय (ii)……………. प्रवेशितः।
रमा – एवम्! ? किं तव माता (iii) ……………. नास्ति?
लता – मम माता अपि (iv)……………. चिकित्सालयं गता।
रमा – तर्हि त्वं मया सह चल। मम गृहे (v) ……………. कुरु।
लता – भोजनं न (vi)…………….। रमाणु मम पिता अपि तस्मिन्नेव चिकित्सालये (vii) ………….. अस्ति।
लता – (अहं चिकित्सालये तेन सह (viii) ………………… करिष्यामि।
उत्तरम् :
रमा – प्रिय सखि लते ! किमर्थं व्याकुला असि ? (प्यारी सखी लता, किसलिए व्याकुल है ?)
लता – मम पिता अतीव रुग्णः। राजकीय चिकित्सालये प्रवेशितः। (मेरे पिताजी बहुत बीमार हैं। सरकारी अस्पताल में भर्ती कराए हैं।)
रमा – एवम् ! किं तव माता गृहे नास्ति ? (क्या तुम्हारी माँ घर पर नहीं है ?)
लता – मम माता अपि सेवार्थं चिकित्सालयं गता। (मेरी माताजी भी सेवा के लिए अस्पताल गईं।)
रमा – तर्हि त्वं मया सह चल। मम गृहे भोजनं कुरु। (तो तुम मेरे साथ चलो। मेरे घर पर भोजन करो।)
लता – भोजनं न इच्छामि। (भोजन की इच्छा नहीं है।)
रमा – शृणु मम पिता अपि तस्मिन्नेव चिकित्सालये चिकित्सकः अस्ति। (सुन, मेरे पिताजी भी उसी अस्पताल में डॉक्टर हैं।)
लता – अहं चिकित्सालये तेन सह वार्ता करिष्यामि। (मैं अस्पताल में उनसे बात करूँगी।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

8. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं ‘नागरिकनाविकयोः संवादं’ पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्नलिखित ‘नागरिक-नाविक संवाद’ की पूर्ति कीजिए।)
मञ्जूषा – तारकानि, नौका, नक्षत्र-विद्याम्, त्रिचतुर्थांशः, चतुर्थांशः, गणना, जीवनस्य, उदरं, सम्पूर्णमेव, तरणम्।
नागरिकः – भोः नाविक ! (i) ………….. जानासि ?
नाविकः – नहि नहि अहं तु प्रतिदिनं (ii) ………….. दृष्ट्वा नमामि।
नागरिकः – (हसन्) भो मूर्ख ! तव जीवनस्य (iii) ……………. नष्टः। गणितं पठितवान् किम् ?
नाविकः – (iv) ……………. जानामि न तु गणितम्।
नागरिकः – अरे तव (v) ……………. अर्धं व्यर्थः गतः। वृक्षविज्ञानं जानासि ?
नाविकः – न जानामि। कथमपि (vi)…………….. चालयामि (vii)…………….. च पालयामि।
नागरिकः – हा हन्त! तव जीवनस्य (viii) ……………. व्यर्थः गतः।।
नाविकः – श्रीमान् वायु प्रकोपः उत्पन्नः। अहं तु कुर्दित्वा तरामि। किं त्वं तरणं जानासि ?
उत्तरम् :
नागरिकः – भो नाविक! नक्षत्रविद्यां जानासि ? (अरे नाविक ! क्या तुम नक्षत्र विद्या को जानते हो ?)
नाविकः – नहि नहि अहं तु प्रतिदिनं तारकानि दृष्ट्वा नमामि। (नहीं नहीं मैं तो नित्य तारों को देखकर नमस्कार करता हूँ।)
नागरिकः – (हसन्) भो मूर्ख ! तव जीवनस्य चतुर्थांश: नष्टः। गणितं पठितवान् किम् ?
(हँसकर) अरे मूर्ख तेरे जीवन का चौथाई भाग नष्ट हो गया। क्या गणित पढ़ा है?]
नाविकः – गणनां जानामि न तु गणितम्। (गिनती तो जानता हूँ गणित नहीं।)
नागरिकः – अरे तव जीवनस्य अर्धंः व्यर्थः गतः। वृक्षविज्ञानं जानासि ? (अरे तेरे जीवन का आधा बेकार गया वृक्ष विज्ञान जानते हो?)
नाविकः – न जानामि। कथमपि नौकां चालयामि उदरं च पालयामि। (नहीं जानता ! जैसे तैसे नौका चलाता हूँ और पेट पालता हूँ।)
नागरिकः – हा हन्त ! तव जीवनस्य त्रिचतुर्थांशः व्यर्थः गतः। (अरे खेद है ! तेरे जीवन का तीन-चौथाई भाग व्यर्थ गया।)
नाविकः – श्रीमान्, वायु प्रकोपः उत्पन्नः। अहं तु कूर्दयित्वा तरामि। किं त्वं तरणं जानासि ? (श्रीमान् तूफान आ गया है। मैं तो कूद कर तैर जाता हूँ। क्या तुम तैरना जानते हो ?)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

9. निम्नलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषाः अस्माभिः, नावगच्छामि, हीरकं, तेन, उपहारः, प्रत्यागताः कर्त्तव्यं, कर्त्तव्यबोधः, मूल्यवान्, तदर्थम्।]
गौरवः – निधे ! मम पितृमहोदयाः ह्यः विदेशात् (i) …………….।
निधिः – शोभनम् ! ततः (ii) ………….. किम् आनीतम् ?
गौरवः – एकः अतीव मूल्यवान् (iii) …………….।
निधिः – किमपि स्वर्णं (iv) ……………. वा ?
गौरवः – नहि ततोऽपि अधिकं मूल्यवान् (v) …………….
निधिः – कर्तव्यबोधः इति ? किम् (vi) …………….।
गौरवः – एष बोधः यत् (vii) ……………. देशनिन्दां त्यक्त्वा तदर्थं (viii) ………… पालनीयम्।
निधिः – सत्यम्। वय सत्यम्। वयं भारतीयाः केवलं निन्दामः।
उत्तरम् :
गौरवः – निधे ! मम पितृमहोदयाः ह्यः विदेशात् प्रत्यागताः। (निधि, मेरे पिताजी कल ‘विदेश से लौट आये।)
निधिः – शोभनम् ! ततः तेन किम् आनीतम् ? (अच्छा, वहाँ से वे क्या लाये ?)
गौरवः – एकः अतीव मूल्यवान् उपहारः। (एक बेशकीमती उपहार।)
निधिः – किमपि स्वर्णं हीरकं वा ? (क्या कोई सोना या हीरा ?)
गौरवः – नहि, ततोऽपि अधिकं मूल्यवान् कर्त्तव्यबोधः। (नहीं, उससे भी अधिक कीमती ‘कर्त्तव्यबोध’।
निधिः – कर्त्तव्यबोधः इति किम् ? नावगच्छामि। (कर्त्तव्यबोध क्या है ? नहीं जानता।)
गौरवः – एष बोधः यत् अस्माभिः देशनिन्दां त्यक्त्वा तदर्थं कर्त्तव्यं पालनीयम्। (यह बोध कि हमें देश की निन्दा त्यागकर उसके लिए कर्त्तव्य-पालन करना चाहिए।)
निधिः – सत्यम्, वयं भारतीयाः केवलं निन्दामः। (सच, हम भारतीय केवल निन्दा करते हैं।)

10. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं ‘मातापत्रयोः संवादं पुरयत।।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्नलिखित ‘माता और पुत्र के संवाद’ की पूर्ति कीजिए।)
[मञ्जूषा – धनं, शर्करां, विना, पीतवान्, अम्ब, द्विदलं च, करोषि, दुग्धं, प्रक्षालयामि, आनयामि।]
माता – कनक ! किं (i) ………… त्वम् ?
कनक – पाठं पठामि (ii)…………….।
माता – दुग्धं पीतवान् ?
कनक – (iii) ……………. नैव पीतम्।
माता – तर्हि दुग्धं (iv) ……………….. आपणं गच्छसि किम् ?
कनक – अम्ब ! किम् (v) ……………. ततः ?
माता – आपणं गत्वा लवणं (vi)……………. तण्डुलान् गुडं (vii)…….. आनय। कनक तर्हि शीघ्रं (viii) ……………. स्यूतं च ददातु अम्ब !
उत्तरम् :
माता – कनक! किं करोषि त्वम् ? (कनक! तुम क्या कर रहे हो ?)
कनक – पाठं पठामि अम्ब ! (माँ! पाठ पढ़ रहा हूँ।)
माता – दुग्धं पीतवान् ? (दूध पिया?)
कनक – दुग्धं नैव पीतम्। (दूध नहीं पिया।)
माता – तर्हि दुग्धं पीत्वा आपणं गच्छसि किम् ? (तो दूध पीकर बाजार जा रहे हो क्या ?)
कनक – अम्ब ! किम् आनयामि ततः? (माँ! वहाँ से क्या लाऊँ ?)
माता – आपणं गत्वा लवणं, शर्करां, तण्डुलान्, गुडं, द्विदलं च आनय। (बाजार जाकर नमक, चीनी, चावल, गुड़ और दाल ले आओ।)
कनक – तर्हि शीघ्रं धनं स्यूतं च ददातु, अम्ब ! (तो जल्दी ही धन और थैला दे दो माँ।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

11. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में प्रदत्त पदों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
[मञ्जूषा – अद्य, प्रदर्शनी, भवत्याः, अनुजः, कलानिकेतने, जानामि, सौभाग्यम्, करिष्यामः, एकाकी, स्वागतम्।]
प्रभा – शोभने ! कुत्र गच्छसि ?
शोभना – चित्र (i)……………. द्रष्टुम् (ii)…………….।
प्रभा – (iii) ……………. कलानिकेतनस्य प्राङ्गणे चित्र प्रदर्शनी प्रदर्शिता।
शोभना – अहं (iv)…………….। अद्य अहमपि (v)……………. गृहम् आगमिष्यामि। प्रभा मम (vi) …………….। भवत्याः स्वागतम्। किम् एकाकी एव आगमिष्यसि ?
शोभना – न न ! मम माता (vii) ……………. च अपि भविष्यतः।।
प्रभा – एवम्। प्रथमं मम गृहम् आगच्छतु। ततः मिलित्वा चलिष्यामः।
शोभना – एवमेव (viii) …………….। उत्तरम् प्रभा – शोभने! कुत्र गच्छसि ? (शोभना, कहाँ जा रही हो ?)
शोभना – चित्रप्रदर्शनी द्रष्टुं कलाकेन्द्रे। (चित्र प्रदर्शनी देखने कला केन्द्र में 1)
प्रभा – अद्य कलानिकेतनस्य प्राङ्गणे चित्रप्रदर्शनी प्रदर्शिता। (आज कलानिकेतन के प्राङ्गण में चित्र प्रदर्शनी दिखाई गई।)
शोभना – अहं जानामि। अद्य अहमपि भवत्याः गृहम् आगमिष्यामि। (मैं जानती हूँ। आज मैं भी आपके घर आऊँगी।)
प्रभा – मम सौभाग्यम्। भवत्याः स्वागतम्। किम् एकाकी एव आगमिष्यसि। (मेरा सौभाग्य। आपका स्वागत। क्या अकेली ही आओगी ?)
शोभना – न, न ! मम माता अनुजः च अपि भविष्यतः। (न, न ! मेरी माताजी और छोटा भाई भी (दोनों) होंगे।)
प्रभा – एवम्। प्रथमं मम गृहम् आगच्छतु। ततः मिलित्वा चलिष्यामः। (ऐसा है। पहले मेरे घर आओ। वहाँ से मिलकर चलेंगे।)
शोभना – एवमेव करिष्यामः। (ऐसा ही करेंगे।)

12. मजूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखित गौरवसौरभयोः संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्दों को चुनकर निम्न गौरव और सौरभ दोनों के संवाद को पूरा कीजिए।)
मम्जूषा – त्वया, भविष्यति, उत्सवः, अवश्यमेव, विद्यालयम्, बालकाः, करिष्यसि, किम्, पितृजनाः, मङ्गलाचरणम्।।
गौरवः – किं त्वं श्वः (i) ………….. गमिष्यसि ?
सौरभः – मम विद्यालये श्वः (ii) ……….. अस्ति। अत: (iii) ………. अहं विद्यालयं गमिष्यामि।
गौरवः – किम् अन्येऽपि (iv)……………. आगमिष्यन्ति ?
सौरभः – न केवलं बालकाः अपितु तेषां (v) ………… अपि आगमिष्यन्ति।
गौरवः – त्वम् उत्सवे किं किं (vi) …………….।
सौरभः – अहं (vii) ……………. पठिष्यामि।
गौरवः – (viii)……………. तत्र क्रीडाः अपि भविष्यन्ति ?
सौरभः – आम्। तत्र अनेकाः क्रीडाः भविष्यन्ति।
उत्तरम् :
गौरवः – किं त्वं श्वः विद्यालयं गमिष्यसि ? (क्या तुम कल स्कूल जाओगे ?)
सौरभः – मम विद्यालये श्वः उत्सवः अस्ति। अतः अवश्यमेव अहं विद्यालयं गमिष्यामि। (मेरे विद्यालय में कल उत्सव है। अतः अवश्य ही मैं विद्यालय को जाऊँगा।)
गौरवः – किम् अन्येऽपि बालकाः आगमिष्यन्ति ? (क्या अन्य बालक भी आयेंगे ?)
सौरभः – न केवलं बालकाः अपितु तेषां पितृजनाः अपि आगमिष्यन्ति। (न केवल बालक अपितु उनके पितृजन भी आयेंगे।)
गौरवः – त्वम् उत्सवे किं किं करिष्यसि ? (तुम उत्सव में क्या-क्या करोगे ?)
सौरभः – अहं मङ्गलाचरणं पठिष्यामि। (मैं मंगलाचरण पढूँगा।)
गौरवः – किं तत्र क्रीडाः अपि भविष्यन्ति ? (क्या वहाँ खेलकद होंगे ?)
सौरभः – आम्, तत्र अनेकाः क्रीडाः भविष्यन्ति। (हाँ, वहाँ अनेक खेल होंगे।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

13. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं ‘मातापुत्रयोः संवादं’ पूरयत।
(मंजूषा से उचितं शब्द चुनकर निम्नलिखित ‘माता और पुत्र दोनों के संवाद’ को पूरा कीजिए।)
[मञ्जूषा – नैव, दीपावली, स्वयमेव, रचयसि, तिमिराच्छन्नं, सन्ध्यासमयः, तान् अत्रानय, दीपकाः, स्वस्ति।]
पुत्रः – मातः किं त्वमद्य पक्वान्नं मिष्ठान्नं च (i) …………….?
माता – पुत्र किं त्वं न जानासि यत् अद्य (ii) ……………. उत्सवः अस्ति ?
पुत्रः – (ii) ……………. तु। कथय, दीपमालिकायाः उत्सवः कीदृशः भवति ?
माता – अस्तु, त्वं (iv)……………. ज्ञास्यसि। अधुना (v) ……………. सञ्जातः नभः च (vi) ……………. अस्ति।
पुत्रः – ततः किम् ?
माता – गृहे (vii) ………… सन्ति। त्वं तान् (viii) ………..। अहं तान् प्रज्वालयामि।
पुत्रः – यदाज्ञापयति माता।
माता – स्वस्ति अस्तु ते।
उत्तरम् :
पुत्रः – मातः किं त्वम् अद्य पक्वान्नं मिष्ठान्नं च रचयसि ? (माताजी क्या तुम आज पकवान और मिष्ठान्न बना रही हो ?)
माता – पुत्र किं त्वं न जानासि यत् अद्य दीपावली उत्सवः अस्ति ? (बेटा क्या तुम नहीं जानते कि आज दीपावली उत्सव है ?)
पुत्र – नैव तु। कथय, दीपमालिकायाः उत्सवः कीदृशः भवति ? (नहीं तौ। कहो, दीपावली का उत्सव कैसा होता है ?)
माता – अस्तु, त्वं स्वयमेव ज्ञास्यसि। अधुनां सन्ध्यासमयः सम्जातः नभः च तिमिराच्छन्नं अस्ति। (खैर, तुम स्वयं ही जान जाओगे। अब संध्या समय हो गया और आकाश अंधेरै से टक गया है।)
पुत्रः – ततः किम् ? (तब क्या ?)
माता – गृहे दीपकाः सन्ति। त्वं तान् अत्र आनय। अहं तान् प्रज्वालयामि। (घर में दीपक है। तुम उन्हें यहाँ ले आओ। मैं उन्हें जलाती हूँ।)
पुत्रः – यथाज्ञापयति माता। (जो आज्ञा माँ)
माता – स्वस्ति अस्तु ते। (तेरा कल्याण हो।)

14. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिये गए शब्दों की सहायता से पूर्ण करके पुनः लिखिए।)
[धनेशः नीरेशः च विद्यालयस्य अल्पाहारगृहे उपविष्टौ, दशवर्षीयः रामेश्वरः आगम्य चायपात्राणि स्थापयति।]
(धनेश और नीरेश विद्यालय के अल्पाहारगृह में बैठे हुए थे। दसवर्षीय रामेश्वर आकर चाय-पात्रों को रखता है।)
मञ्जूषा – सफलतां, अवश्यम्, इच्छामि, पटनातः, सप्ताहः, दिवङ्गता, त्यक्त्वा, करवाणि, पठितुं, दुष्टैः, भवता।
धनेशः – अरे ! कदा प्रभृति अत्र कार्यं करोषि ? पूर्वं तु न अवलोकितः।
रामेश्वरः – (i) ……………….. एव जातः।
धनेशः – एवं सप्ताहः अभवत्। कुतः आगतः त्वम् ?
रामेश्वरः – (ii) ………………।
धनेशः – त्वं मध्ये एव पठनं (iii) ……………… कथं पटनातः इह आगतः ?
रामेश्वरः – किं (iv) ……………… ? मम अभागिनो जनकः पूर्वं (v) ……………… हतः। अधुना मम माता अपि (vi) ……………..। अनाथः अहं कथं निहिं कुर्याम् ?
धनेशः – किं त्वं (vii) ……….. नेच्छसि ?
रामेश्वरः – (viii) ……………… परं विद्या नास्ति मम भाग्ये।
उत्तरम् :
धनेशः – अरे ! कदा प्रभृति अत्र कार्यं करोषि ? पूर्वं तु न अवलोकितः। (अरे ! कब से यहाँ कार्य कर रहे हो ? पहले तो नहीं देखा।)
रामेश्वरः – सप्ताहः एव जातः। (सप्ताह ही हुआ है।)
धनेशः – एवं सप्ताहः अभवत्। कुतः आगतः त्वम् ? (इस प्रकार एक सप्ताह हो गया। कहाँ से आये हो तुम ?)
रामेश्वरः – पटनातः (पटना से)।
धनेशः – त्वं मध्ये एव पठनं त्यक्त्वा कथं पटनातः इह आगतः ? (तुम बीच में ही पढ़ाई छोड़कर क्यों पटना से यहाँ आ गये ?)
रामेश्वरः – किं करवाणि ? मम अभागिनो जनकः पूर्व दुष्टैः हतः। अधुना मम माता अपि दिवंगता। अनाथः अहं कथं निहिं कुर्याम् ? (क्या करूँ ? मुझ अभागे के पिताजी पहले दुष्टों द्वारा मार दिये गये। अब मेरी माताजी भी दिवंगत हो गयीं। मैं अनाथ कैसे निर्वाह करूँ ?)
धनेशः – किं त्वं पठितुं नेच्छसि ? (क्या तू पढ़ना नहीं चाहता ?)
रामेश्वरः – अवश्यम् इच्छामि, परं विद्या नास्ति मम भाग्ये। (अवश्य चाहता हूँ, परन्तु विद्या मेरे भाग्य में नहीं है।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

15. मञ्जूषातः चितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित पदों को चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा करो।)
[मञ्जूषा – कृषकाः, तदा, प्रष्टुम्, आम्, भानुः, जानीमः, यदा, नृत्यन्ति, कदा, महोदये !]
अध्यापिका – वसन्त ! किं त्वं किञ्चित् (i) …………….. इच्छसि ?
वसन्तः – (ii) ………….. महोदये ! अहं प्रष्टुम् इच्छामि यत् कोकिलः कदा गायति ?
अध्यापिका – कोकिलः (iii) ……………… गायति (iv) …………… वसन्तागमनं भवति। सुमेधे ! कथय तमः (v) ……………… नश्यति ?
सुमेधा – (vi) ……………… ! यदा (vii) ……………… उदयति, तमः तदा नश्यति।
अध्यापिका – अति शोभनम्। मयूराः कदा (viii) ……………… ?
भास्करः – अहं वदामि। यदा मेघाः गर्जन्ति तदा।
अध्यापिका – शोभनम् ! कथयत, कृषका: कदा नृत्यन्ति ?
सर्वेः – वयं जानीमः। यदा वृष्टिः भवति, कृषकाः नृत्यन्ति।
उत्तरम् :
अध्यापिका – वसन्त ! किं त्वं किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छसि ? (वसन्त ! क्या तुम कुछ पूछना चाहते हो ?)
वसन्तः – आम् महोदये ! अहं प्रष्टुम् इच्छामि यत् कोकिलाः कदा गायति ? (हाँ महोदया ! मैं पूछना चाहता हूँ कि कोयल कब गाती है ?)
अध्यापिका – कोकिलाः यदा गायति, तदा वसन्तागमनं भवति। सुमेधे ! कथय, तमः कदा नश्यति ? (कोयल जब गाती है, तब वसन्त का आगमन होता है। सुमेधा ! कहो, अँधेरा कब नष्ट होता है ?)
सुमेधा – महोदये ! यदा भानुः उदयति, तमः तदा नश्यति। (महोदया ! जब सूर्य उदय होता है, तब अँधेरा नष्ट होता है।)
अध्यापिका – अति शोभनम्। मयूराः कदा नृत्यन्ति ? (बहुत अच्छा। मोर कब नाचते हैं ?)
भास्करः – अहं वदामि। यदा मेघाः गर्जन्ति तदा। (मैं बताता हूँ। जब मेघ गर्जते हैं तब।)
अध्यापिका – शोभनम् ! कथयत, कृषकाः कदा नृत्यन्ति ? (सुन्दर, कहो किसान कब नाचते हैं ?)
सर्वे – वयं जानीमः। यदा वृष्टिः भवति, कृषकाः नृत्यन्ति। (हम जानते हैं। जब वर्षा होती है, किसान नाचते हैं।)

16. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्द चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा करें।)
मञ्जूषा – शोभनम्, अगच्छः, छात्राणाम्, ज्ञातम्, अकरोत्, अनिवार्यः, अहम्, अस्तु, प्रार्थनाम्, पुनः परीक्षाम्।।
स्वातिः – सखि ! किं त्वं ह्यः विद्यालयं (i) ……………… ?
शोणम् – स्वाते ! (ii) ……………… तु ह्यः भ्रातुः विवाहम् अगच्छम्।.
स्वातिः – किन अजानाः त्वं यत् संस्कृताध्यापिका ह्यः (iii) ……………… लघुपरीक्षाम् (iv) ……………..।
शोणम् – मया (v) ……………… आसीत्, परं भ्रातुः विवाहः अपि (vi) ……………… आसीत्।।
स्वातिः – (vii) ……………. त्वं श्वः अवश्यम् अध्यापिकां क्षमा याचस्व (viii) ……………. च कुरु यत् सा पुनः परीक्षां नयतु।
शोणम् – शोभनम् इदं मया अवश्यं कर्त्तव्यम्।
उत्तरम् :
स्वातिः – सखि ! किं त्वं ह्यः विद्यालयं अगच्छ: ? (सखि ! क्या तुम कल विद्यालय गयी थीं ?)
शोणम् – स्वाते ! अहं तु ह्यः भ्रातुः विवाहे अगच्छम्। (स्वाति ! मैं तो कल भाई के विवाह में गयी थी।)
स्वातिः – किं न अजानाः त्वं यत् संस्कृताध्यापिका ह्यः छात्राणाम् लघुपरीक्षाम् अकरोत्। (क्या तुम नहीं जानतीं कि संस्कृत अध्यापिका ने कल छात्राओं की लघु परीक्षा की।)
शोणम् – मया ज्ञातम् आसीत्, परं भ्रातुः विवाहः अपि अनिवार्यः आसीत्। (मुझे ज्ञात था, परन्तु भाई का विवाह भी अनिवार्य था।)
स्वातिः – अस्तु, त्वं श्वः अवश्यम् अध्यापिकां क्षमा याचस्व प्रार्थनां च कुरु यत् सा पुनः परीक्षां नयतु। (खैर, तुम कल अवश्य अध्यापिका से क्षमा माँग लो और प्रार्थना करो कि वह पुनः परीक्षा ले लें।)
शोणम् – शोभनम्, इदं मया अवश्यं कर्त्तव्यम्। (सुन्दर, यह मुझे अवश्य करना चाहिए।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

17. मञ्जूषातः पदानि विचित्य अधोलिखितं संवादं पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(मंजूषा से शब्दों को चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – बान्धवेभ्यः, दीपावली, नवीनानि, शाटिकाम्, वितरिष्यामः, लक्ष्मीपूजनम्, गत्वा, मिष्टान्नम्, क्रीत्वा, दास्यसि।
सुखदा – सखि, किं जानासि, अद्य कः उत्सवः अस्ति ?
नम्रता – अद्य (i) ……………… अस्ति। सुखदा तदा तु अद्य वयं (ii) ……………… वस्त्राणि धारयामः।
नम्रता – मम माता अपि नवीनां (iii) ……………… धारयिष्यन्ति। सुखदा अहं पित्रा सह विपणिं (iv) ……………… क्रीडनकानि (v) ……… च क्रेष्यामि।
नम्रता – त्वं मिष्टान्नं (vi) ……………… किं करिष्यसि ?
सुखदा – वयं मिष्टान्न परिवाराय (vii) ……………य दास्यामः।
नम्रता – किं मित्रेभ्यः किञ्चित् न (viii) ……………… ?
उत्तरम् :
सुखदा – सखि, किं जानासि, अद्य कः उत्सवः अस्ति ? (सखि ! जानती हो, आज क्या त्योहार है ?)
नम्रता – अद्य दीपावली अस्ति। (आज दीपावली है।)
सुखदा – तदा तु अद्य वयं नवीनानि वस्त्राणि धारयामः। (तब तो आज हम नये वस्त्र पहनते हैं।)
नम्रता – मम माता अपि नवीनां शाटिकां धारयिष्यति। (मेरी माताजी भी नयी साड़ी पहनेंगी।)
सुखदा – अहं पित्रा सह विपणिं गत्वा क्रीडनकानि मिष्टान्नं च क्रेष्यामि। (मैं पिताजी के साथ बाजार जाकर खिलौने और मिठाई खरीदूँगी।)
नम्रता – त्वं मिष्टान्नं क्रीत्वा किं करिष्यसि ? (तुम मिठाई खरीदकर क्या करोगी?)
सुखदा – वयं मिष्टान्न परिवाराय बान्धवेभ्यः च दास्यामः। (हम मिठाई परिवार के लिए और बान्धवों को देंगे।)
नम्रता – किं मित्रेभ्यः किञ्चित् न दास्यसि ? (क्या मित्रों के लिए कुछ नहीं दोगी ?)

18. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषा प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वां पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिए गए पदों की सहायता से पूरा करके पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – प्राणरक्षा, उपायः, बृहदाकारः शुष्कं, गमिष्यामः, त्वम्, व्याकुलाः, बकः, शनैः शनैः, आपदि। |
बकः – अयि भो मण्डूकाः ! शृणुत। अस्य जलाशयस्य जलं शीघ्रमेव (i) ……………. भविष्यति।
मण्डूकाधिपतिः – हा हन्त ! कथम् अस्माकं (ii) ……………… भविष्यति ?
बकः – इदानीं भवतः प्राणरक्षार्थम् एक एव (iii) ………………।
मण्डूकाधिपतिः – शीघ्रं कथय। अस्माकं प्राणा: (iv) ……………… भवन्ति।
बकः – अत्र समीपे एव एकः (v) …………. जलाशयः। तस्य जलं कदापि न शुष्यति। तत्र गन्तव्यम्।
मण्डूकाधिपतिः – भो मित्र ! कथं वयं तत्र (vi) ………………।
बकः – मित्रस्य कर्त्तव्यं (vii) ……………… मित्ररक्षा। अतः अहम् एव युष्मान् तत्र नेष्यामिः।
मण्डूकाधिपतिः – ननु सत्यं किम्। वयं तु बहवः (viii) ……………… एक एव।
उत्तरम् :
बकः – अयि भो मण्डूकाः ! शृणुत। अस्य जलाशयस्य जलं शीघ्रमेव शुष्कं भविष्यति। (अरे मेढको ! सुनो। इस तालाब का पानी शीघ्र ही सूख जाएगा।)
मण्डूकाधिपतिः – हा हन्त ! कथम् अस्माकं प्राणरक्षा भविष्यति ? (अरे खेद है ! हमारे प्राणों की रक्षा कैसे होगी ?)
बकः – इदानीं भवतः प्राणरक्षार्थम् एक एव उपायः। (अब आपकी प्राण-रक्षा के लिए एक ही उपाय है।)
मण्डूकाधिपतिः – शीघ्रं कथय। अस्माकं प्राणाः व्याकुलाः भवन्ति। (जल्दी कहो। हमारे प्राण व्याकुल हो रहे हैं।)
बकः -अत्र समीपे एव एकः बृहदाकारः जलाशयः। तस्य जलं कदापि न शुष्यति। तत्र गन्तव्यम्। (यहाँ समीप ही एक विशाल जलाशय है। उसका जल कभी नहीं सूखता। वहाँ जाना चाहिए।)
मण्डूकाधिपतिः – भो मित्र ! कथं वयं तत्र गमिष्यामः ? (हे मित्र ? हम वहाँ कैसे जाएँगे?)
बकः – मित्रस्य कर्त्तव्यम् आपदि मित्ररक्षा। अत: अहमेव युष्मान् तत्र नेष्यामि। (मित्र का कर्तव्य है- आपत्ति में मित्र की रक्षा। अतः मैं ही तुम्हें वहाँ ले जाऊँगा।)
मण्डूकाधिपति – ननु सत्यं किम् ? वयं तु बहवः त्वम् एक एव। (अरे सच क्या ? हम तो बहुत हैं और तुम एक ही हो।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

19. निम्नलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिए गए पदों की सहायता से पूरा करके पुनः उत्तर-पुसि लिखें।)
मञ्जूषा – मूर्खाणां, कार्याणि, अनुभवात्, परस्य, आत्मनः, महान्, बुद्धिमान्, शिक्षते, मूर्खः, मूर्खतमः।।
राघवः – भो रमणीक ! भवान् कथम् ईदृशः (i) ………………….. जातः ?
रमणीकः – (ii) ………………….. कृपया एव।
राघवः – भोः कथं मूर्खाणां कृपया भयान् (iii) ………………….. जात: ?
रमणीकः – आम् ! अहं मूर्खः कृतानि (iv) ………………….. अपश्यं तानि अत्यजत्।
राघवः. – एवम्। परेषाम् (v) ………………….. शिक्षां गृहीत्वा भवान् बुद्धिमान् जातः किम् ?
रमणीकः – सत्यम् ! यः परेषां अनुभवात् (vi) ………………….. सः एव बुद्धिमान्।
राघवः – कः तावत् (vii) ………………….. ?
रमणीकः – यः (viii) ………………….. अनुभवात् न शिक्षते, पुनः आमूलात् प्रयत्नं करोति।
उत्तरम् :
राघवः – भो रमणीक ! भवान् कथम् ईदृशः महान् जातः ? (अरे रमणीक ! आप कैसे ऐसे महान् हो गये ?)
रमणीकः – मूर्खाणां कृपया एव। (मूों की कृपा से ही।)
राघवः – भोः ! कथं मूर्खाणां कृपया भवान् बुद्धिमान् जातः। (अरे ! मूों की कृपा से आप कैसे बुद्धिमान् हो गये।)
रमणीकः – आम्। अहं मूर्खः कृतानि कार्याणि अपश्यं तानि अत्यजत्। (हाँ ! मैंने मों द्वारा किये गये कार्यों को देखा, उन्हें त्याग दिया।)
राघवः – एवम्। परेषाम् अनुभवात् शिक्षां गृहीत्वा भवान् बुद्धिमान् जातः किम् ? (यह बात है/ऐसा। आप दूसरों के अनुभव से सीख ग्रहण करके बुद्धिमान् हुए हो क्या ?)
रमणीकः – सत्यम्। यः परेषाम् अनुभवात् शिक्षते सः एव बुद्धिमान्। (सच ! जो दूसरों के अनुभव से सीखता है वह ही बुद्धिमान् है।)
राघवः – कः तावत् मूर्खः ? (तो मूर्ख कौन है ?)
रमणीकः – यः परस्य अनुभवात् न शिक्षते, पुनः आमूलात् प्रयत्नं करोति। (जो दूसरे के अनुभव से नहीं शिक्षा लेता है और आरम्भ से प्रयत्न करता है।)

20. निम्नलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मञ्जूषा में दिये हुए पदों की सहायता से पूर्ण करके पुनः लिखिए।)
मञ्जूषा – कासरोगी, सत्यम्, कासति, कुक्कुराः, चौराणां, गुणाः, दधिसेवनम्, गुणः, सम्यक्, तत्कथम्।
रुग्णः – भो वैद्य ! औषधं यच्छ, परन्तु अहं (i) …………………… न त्यक्ष्यामि।
वैद्यः – चिन्ता मा अस्तु। दधिसेवने बहवः (ii) …………………..।
रुग्णः – किं (iii) ………………….. इदम् ? के च ते गुणाः ?
वैद्यः – (iv) ………….. ……… यदि दधि सेवते, तस्य गृहं चौरा: न प्रविशन्ति।
रुग्णः – दधिसेवनेन सह (v) ………………….. कः सम्बन्धः ?
वैद्यः – दधिसेवी कासरोगी सर्वां रात्रिं (vi) …………….. एव, जागर्ति कुतः चौरभयम्।
रुग्णः – कस्तावत् अन्यः (vii) ………………….. ?
वैद्यः – (viii) ………………….. त न दशान्त। …………… तं न दशन्ति।
उत्तरम् :
रुग्णः – भो वैद्य ! औषधं यच्छ, परन्तु अहं दधिसेवनं न त्यक्ष्यामि। (अरे वैद्य जी ! दवाई दीजिये, परन्तु मैं दही खाना नहीं छोडूंगा।)
वैद्यः – चिन्ता मा अस्तु। दधिसेवने बहवः गुणाः। (चिन्ता मत करो। दही सेवन करने में बहुत से गुण हैं।)
रुग्णः – किं सत्यम् इदम् ? के च ते गुणाः ? (क्या यह सच है ? वे गुण कौन से हैं ?)
वैद्यः – कासरोगी यदि दधि सेवते, तस्य गृहं चौरा: न प्रविशन्ति। (खाँसी का रोगी यदि दही सेवन करता है तो उसके घर में चोर नहीं प्रवेश करते।)
रुग्णः – दधिसेवनेन सह चौराणां कः सम्बन्धः ? (दही के सेवन के साथ चोरों का क्या सम्बन्ध है ?)
वैद्यः – दधिसेवी कासरोगी सर्वां रात्रि कासति एव, जाई कुतः चौरभयम्। (दही-सेवन करने वाला खाँसी का रोगी सारी रात खाँसता है, जागता है, फिर चोर का डर कहाँ से।)
रुग्णः – कस्तावत् अन्यः गुणः ? (तो और कौन-सा गुण है ?)
वैद्यः – कुक्कुराः तं न दशन्ति। (कुत्ते उसको नहीं खाते।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

21. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा अधोलिखितं संवादं पूरयत।
(मञ्जूषा से उचित पद चुनकर निम्नलिखित संवाद को पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – शोभनम्, गच्छामि, ह्यः, जनकः, पीडितः, प्रतिश्यायेन, अधुना, इदानीम्, मुग्धे !, श्वः।
ईशा – त्वं (i) ……… ……… विद्यालयं कथं न अगच्छः ?
मुग्धा – ह्यः मम (ii) ………………….. अस्वस्थः आसीत्।
ईशा – तव जनक: केन रोगेण (iii) ………………….. आसीत् ?
मुग्धा – सः (iv) ………………….. पीडितः आसीत्।
ईशा – (v) ………………….. सः स्वस्थः अस्ति न वा ?
मुग्धा – (vi) …………………. सः स्वस्थः अस्ति।
ईशा – (vii) ………. ……. किं त्वं श्व: विद्यालयम् आगमिष्यसि ?
मुग्धा – अहम् (viii) ………………….. अवश्यं विद्यालयम् आगमिष्यामि।
उत्तरम् :
ईशा – त्वं ह्यः विद्यालयं कथं न अगच्छः ? (तू कल विद्यालय क्यों नहीं गयी ?)
मुग्धा – ह्यः मम जनकः अस्वस्थः आसीत्। (कल मेरे पिताजी बीमार थे।)
ईशा – तव जनकः केन रोगेण पीडितः आसीत् ? (तुम्हारे पिताजी किस रोग से पीड़ित थे ?)
मुग्धा – सः प्रतिश्यायेन पीडितः आसीत्। (वे प्रतिश्याय (सर्दी-जुकाम) से पीड़ित थे।)
ईशा – इदानीं सः स्वस्थः अस्ति न वा ? (अब वे स्वस्थ हैं या नहीं ?)
मुग्धा – अधुना सः स्वस्थः अस्ति। (अब वे स्वस्थ हैं।)
ईशा – मुग्धे ! किं त्वं श्वः विद्यालयम् आगमिष्यसि ? (मुग्धे ! क्या तुम कल विद्यालय आओगी ?)
मुग्धा – अहम् श्वः अवश्यं विद्यालयम् आगमिष्यामि। (कल मैं अवश्य विद्यालय आऊँगी।)

22. मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा द्वयोः सख्योः संवादं पूरयत।
(मंजूषा से उचित शब्दों को चुनकर दो सखियों के वार्तालाप को पूरा कीजिए।)
मञ्जूषा – स्थानान्तरणवशात्, कक्षायाम्, तव, विद्यालयात्, वससि, आगता, अहं, नवमकक्षा।।
मेघाः – स्वागतं ते अस्यां (i) …………………..।
सुधाः – धन्यवादाः।
मेघाः – प्रियसखि ! किं (ii) ………………….. नाम ?
सुधाः – मम नाम सुधा अस्ति। मेघाः -सुधे ! कस्मात् (iii) ………………….. आगता अस्मि ?
सुधाः – अहं जयपुरनगरस्य केन्द्रीय विद्यालयात् आगता अस्मि।
मेघाः – अहमपि (iv) ………………….. पर्यन्तं तत्रैव अपठम्। पितु (iv) ………………….. अत्र आगता।
सुधाः – अहमपि अननैव कारणेन अत्र (vi) ………….।
मेघाः – अधुना त्वं कुत्र (vii) ………………….. ?
सुधाः – अधुना (viii) …………. जवाहरनगरे वसामि।
उत्तरम् :
मेघाः – स्वागतं ते अस्यां कक्षायाम्। (तुम्हारा इस कक्षा में स्वागत है।)
सुधाः – धन्यवादाः। (धन्यवाद)
मेघाः – प्रिय सखि ! किं तव नाम ? (प्रिय सखी ! तुम्हारा क्या नाम है ?)
सुधाः – मम नाम सुधा अस्ति। (मेरा नाम सुधा है।)।
मेघाः – सुधे ! कस्मात् विद्यालयात् आगता अस्मि ? (सुधा ! किस विद्यालय से आई हो ?)
सुधाः – अहं जयपुरनगरस्य केन्द्रीय विद्यालयात् आगता अस्मि। (मैं जयपुर नगर के केन्द्रीय विद्यालय से आई हूँ।)
मेघाः – अहमपि नवमकक्षा पर्यन्त तत्रैव अपठम्। पितुः स्थानान्तरणवशात् अत्र आगता। (मैं भी नवीं कक्षा तक वहाँ ही पढ़ी। पिताजी के स्थानान्तरण के कारण यहाँ आई।)
सुधाः – अहमपि अनेनैव कारणेन अत्र आगता। (मैं भी इसी कारण से यहाँ आई हूँ।)
मेघाः – अधुना त्वं कुत्र वससि ? (अब तुम कहाँ रहती हो ?)
सुधाः – अधुना अहम् जवाहरनगरे वसामि। (अब मैं जवाहरनगर में रहती हूँ)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

23. मञ्जूषातः चितानि पदानि गृहीत्वा ‘मित्र संभाषणम्’ इति विषय रिक्तस्थानानि पूरयित्वा लिखत –
(मंजूषा से उचित पदों को लेकर ‘मित्र संभाषण’ इस विषय पर रिक्त स्थान को पूरा करके लिखिए।)
[मञ्जूषा – विद्यालयम्, भवतः, गोविन्दः, कुतः, आगच्छामि, अहम्, सप्तवादने, पठति। ]
(i) ………………. नाम किम् ?
(ii) मम नाम …………………..।
(iii) भवान् ………………….. आगच्छति ?
(iv) अहं गृहतः ……………….।
(v) भवान् कदा ………………….. गच्छति।
(vi) अहं प्रातः ………………….. विद्यालयं गच्छामि।
(vii) विद्यालये किं किं………………..।
(viii) ………….. गणितं, विज्ञानं, संस्कृतमित्यादिविषयान् पठामि।।
उत्तरम् :
(i) भवतः नाम किम् ? (आपका नाम क्या है ?)
(ii) मम नाम गोविन्दः। (मेरा नाम गोविन्द है।)
(iii) भवान् कुतः आगच्छति ? (आप कहाँ से आए हो?)
(iv) अहं गृहतः आगच्छामि। (मैं घर से आ रहा हूँ।)
(v) भवान् कदा विद्यालयम् गच्छति। (आप कब विद्यालय जाते हो?)
(vi) अहं प्रातः सप्तवादने विद्यालयं गच्छामि। (मैं प्रातः सात बजे विद्यालय को जाता हूँ।)
(vii) विद्यालये किं किं पठति। (विद्यालय में क्या-क्या पढ़ते हो ?)
(viii) अहं गणितं, विज्ञानं, संस्कृतमित्यादिविषयान् पठामि।
(मैं गणित, विज्ञान, संस्कृत आदि विषयों को पढ़ता हूँ।)

24. मञ्जूषातः उचितानि पदानि गृहीत्वा ‘धूम्रपान निवारणाय’ इति विषये गुरुशिष्ययोः संवादं पूरयत –
(मंजूषा से उचित पदों को लेकर ‘धूम्रपान निवारणाय’ इस विषय पर गुरु-शिष्य के संवाद को पूरा करो।)
मञ्जूषा – गन्तुम्, अस्य, तुभ्यं, धूम्रपानं, स्वास्थ्य, प्रेरणीया, मया, दुर्व्यसनस्य।
सोहनः – गुरुवर ! अहं पश्यामि विद्यालये केचन छात्रा ………………… कुर्वन्ति।
गुरुः – वत्स ! धूम्रपानं ……………… विनाशकमस्ति।
सोहनः – गुरुवर ! कोऽस्य ………………….. निवारणोपायः।
गुरुः – पुत्र ! जन-जागतिरेवे ………………. दुर्व्यसनस्य निवारणोपायः।
सोहनः – गुरुवर ! ……… किं करणीयम् ?
गुरुः – त्वया छात्राः ………… यत् अस्माभिः धूम्रपान न करणीयम्।
सोहनः – गुरुवर ! ………… किं करणीयम्।
गुरुः – वत्स ! महत्वपूर्ण विषयोपरि वार्ता कर्तुं ………… धन्यवादं ददामि।
उत्तरम् :
सोहनः – गुरुवर ! अहं पश्यामि विद्यालये केचन छात्रा धूम्रपानं कुर्वन्ति। (गुरुजी ! मैं विद्यालय के कुछ छात्रों को धूम्रपान करते देखता हूँ।)
गुरुः – वत्स ! धूम्रपानं स्वास्थ्य विनाशकमस्ति। (बेटा ! धूम्रपान स्वास्थ्य का विनाश करने वाला है।)
सोहनः – गुरुवर ! कोऽस्य दुर्व्यसनस्य निवारणोपायः। (गुरुजी ! कोई इस दुर्व्यसन को दूर करने का उपाय है।)
गुरुः – पुत्र ! जन-जागतिरेव अस्य दुर्व्यसनस्य निवारणोपायः। (पुत्र! जन-जाग्रति ही इसके निवारण का उपाय है।)
सोहनः – गुरुवर ! मया किं करणीयम् ? (गुरुवर ! मुझे क्या करना चाहिए ?)
गुरुः – त्वया छात्राः प्रेरणीयाः यत् अस्माभिः धूम्रपानं न करणीयम्। (तुम छात्रों को प्रेरणा दी कि उन्हें धूम्रपान नहीं करना चाहिए।)
सोहनः – गुरुवर। एवमेव करोमि। अधुना अहं गन्तम् इच्छामि। (गुरुजी! ऐसा ही करता हूँ। अब मैं जाना चाहता हूँ।)
गुतः – वत्स ! महत्वपूर्ण विषयोपरि वातां कर्तुं तुभ्यं धन्यवादं ददामि। (बेटे ! महत्वपूर्ण विषय पर वार्तालाप करने के लिए तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना संकेत आधारित वार्तालाप लेखनम्

25. अधोलिखितं संवादं मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखत।
(निम्नलिखित संवाद को मंजूषा में दिये हुए पदों की सहायता से पूरा करके पुनः लिखिए।)
मञ्जूषा – मैट्रोयानेन, अगच्छ:, आवाम्, विद्यालयः, चलिष्यामि, अवश्यमेव, दृष्ट्या, तस्मिन्।
रमा – लतिके ! तव (i) ………………….. दिल्ली नगरस्य छविः अद्यत्वे केन प्रतीयते ?
लतिका – मम विचारे तु (ii) …………………..।
रमा – किं त्वं कदापि तस्मिन् (iii) ………………….. ?
लतिका – अनेकशः (iv) ………………….. तु तेनैव प्रतिदिनं मया गम्यते।
रमा – लतिके ! अहम् अपि त्वया सह (v) ………………….. यात्रां कर्तुमिच्छामि।
लतिका – सखि ! द्वितीये शनिवासरे अवकाशे (vi) ………………….. तेन प्रगतिक्षेत्रे गमिष्यामः।
रमा – अहम् अपि (vii) …………………..।
लतिका – आम, त्वां तत्र (viii) ………………….. नेष्यामि।
उत्तरम् :
रमा – लतिके ! तव दृष्ट्या दिल्लीनगरस्य छविः अद्यत्वे केन प्रतीयते ? (लतिका ! तेरी दृष्टि से दिल्ली नगर की छवि आज किससे प्रतीत होती है ?)
लतिका – मम विचारे तु मैट्रोयानेन। (मेरे विचार से तो मैट्रोयान से।)
रमा – किं त्वं कदापि तस्मिन् अगच्छः ? (क्या तुम कभी उसमें गयी हो ?)
लतिका – अनेकशः, विद्यालयः तु तेनैव प्रतिदिनं मया गम्यते। (अनेक बार, विद्यालय तो उसी के द्वारा रोजाना मेरे द्वारा जाया जाता है।)
रमा – लतिके ! अहम् अपि त्वया सह तस्मिन् यात्रां कर्तुमिच्छामि। (लतिका ! मैं भी तेरे साथ उसमें यात्रा करना चाहती हूँ।)
लतिका – सखि ! द्वितीये शनिवासरे अवकाशे आवां तेन प्रगतिक्षेत्रे गमिष्यावः। (सखि ! दूसरे शनिवार के अवकाश में हम दोनों उस प्रगति क्षेत्र में जाएँगी।)
रमा – अहम् अपि चलिष्यामि। (मैं भी चलूँगी।)
लतिका – आम्, त्वां तत्र अवश्यमेव नेष्यामि। (हाँ, तुम्हें वहाँ अवश्य ही ले चलूँगी।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः

JAC Class 10th Sanskrit सूक्तयः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत। (एक शब्द में उत्तर लिखिये)
(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति? (पिता पुत्र के लिये बचपन में क्या देता है?)
उत्तरम् :
विद्याधनम् (विद्यारूपी धन)।

(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति? (मूढ़ कैसी वाणी त्यागता है?)
उत्तरम् :
धर्मप्रदाम् (धर्म प्रदान करने वाली)।

(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः? (इस लोक में कैसे व्यक्ति आँखों वाले कहलाते हैं?)
उत्तरम् :
विद्वान्सः (विद्वान लोग)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(घ) प्राणेभ्योऽपि कः रक्षणीयः? (प्राणों से भी कौन रक्षा करने योग्य है?)
उत्तरम् :
सदाचारः (सदाचरण)।

(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात्?
(अपना श्रेय चाहने वाले व्यक्ति को कैसा कर्म नहीं करना चाहिये?)
उत्तरम् :
परेभ्योऽहितम् (दूसरों के लिये अहित)।

(च) वाचि किं भवेत्? (वाणी कैसी हो?)
उत्तरम् :
धर्मप्रदा।

प्रश्न 2.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत (मोटे पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिये।)
यथा – विमूढधीः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते?
कः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
(क) संसारे विद्वांसः ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते।
उत्तरम् :
संसारे के ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते?

(ख) जनकेन सुताय शैशवे विद्याधनं दीयते।
उत्तरम् :
जनकेन कस्मै शैशवे विद्याधनं दीयते?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(ग) तत्वार्थस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः।
उत्तरम् :
कस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः?

(घ) धैर्यवान् लोके परिभवं न प्राप्नोति।
उत्तरम् :
धैर्यवान् कुत्र परिभवं न प्राप्नोति?

(ङ) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः परेषाम् अनिष्टं न कुर्यात्।
उत्तरम् :
आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः केषाम् अनिष्टं न कुर्यात्।

प्रश्न 3.
पाठात् चित्वा अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वयम् उचित पदं क्रमेण पूरयत –
(पाठ से छाँटकर उचित पद के क्रम से निम्नलिखित श्लोकों के अन्वयों की पूर्ति कीजिए-)
(क) पिता ………… बाल्ये महत् विद्याधनम् यच्छति अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः ……….. ।
उत्तरम् :
पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनम् यच्छति अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः कृतज्ञता ।

(ख) येन ………… यत् प्रोक्तं तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं ………… भवेत्, सः ……….. इति ……… ।
उत्तरम :
येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं शक्यो भवेत. सः विवेक इति ईरितः ।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(ग) य आत्मनः श्रेयः …………. सुखानि च इच्छति, परेभ्य अहितं ………… कदापि च न ………. ।
उत्तरम् :
यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्य अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात् ।

प्रश्न 4.
अधोलिखितम् उदाहरणद्वयं पठित्वा अन्येषां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत – (निम्न दो उदाहरणों को पढ़कर अन्य प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः 1

प्रश्न 5.
मञ्जूषायाः तद्भावात्मकसूक्ती: विचित्य अधोलिखितकथनानां समक्षं लिखत – (मंजूषा से उस भाव की सूक्ति छाँटकर निम्न कथनों के सामने लिखिए-)
(क) विद्याधनं महत। …………….
(ख) आचारः प्रथमो धर्मः ……………
(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम्। ………………
[मञ्जूषा – आचरेण तु संयुक्तः सम्पूर्ण फल भाग्भवेत्। मनसि एक वचसि एक कर्मणि एकं महात्मनाम्। विद्याधनं सर्वधन प्रधानम्। सं वो मनांसि जानताम्। विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्। आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षाः]
उत्तर :
(क) विद्याधनं महत।
(i) विद्याधनं सर्वधन प्रधानम्।
(ii) विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्।

(ख) आचारः प्रथमो धर्मः
(i) आचरेण तु संयुक्तः सम्पूर्ण फल भाग्भवेत्।
(ii) आचार प्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम्।
(i) मनसि एक वचसि एक कर्मणि एकं महात्मनाम्
(ii) सं वो मनांसि जानताम्।

प्रश्न 6.
(अ) अधोलिखितानां शब्दानां पुरतः उचितं विलोम शब्द कोष्ठकात् चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के सामने उचित विलोम शब्द कोष्ठक से छाँटकर लिखिए-)
(क) पक्वः ……………. । (परिपक्व, अपक्व, क्वथितः)
(ख) विमूढधीः …………… । (सुधी, निधिः मन्दधी:)
(ग) कातरः ……………. । (अकरुणः, अधीरः, अकातरः)
(घ) कृतज्ञता ……………. (कृपणता, कृतघ्नता, कातरता)
(ङ) आलस्यम् ……………. । (उद्विग्नता, विलासिता, उद्योगः)
(च) परुषा ……………. । (पौरुषी, कोमला, कठोरा)
उत्तरम् :
(क) अपक्व
(ख) सुधी
(ग) अकातरः
(घ) कृतघ्नता
(ङ) उद्योगः
(च) कोमला।

(आ) अधोलिखितानां शब्दानां त्रयः समानार्थकाः शब्दाः मञ्जूषायाः चित्वा लिखन्ताम्।
(निम्न शब्दों के तीन समानार्थक शब्द मंजूषा से छाँटकर लिखिए-)
JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः 2
उत्तरम् :
(क) प्रभूतम् – भूरि, विपुलम्, बहु
(ख) श्रेयः – शुभम्, शिवम्, कल्याणम्
(ग) चित्तम् – मनः, मानसम्, चेतः
(घ) सभा – परिषद्, संसद, सभा
(ङ) चक्षुष – लोचनम्, नेत्रम्, नयनम्
(च) मुखम् – ‘ आननम्, वदनम्, वक्त्रम्

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 7.
अधस्तात् समास विग्रहाः दीयन्ते तेषां समस्त पदानि पाठाधारण दीयन्ताम्।
(नीचे समास विग्रह दिए हैं, उनके समस्त पद पाठ के आधार पर दीजिए-)
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः 3

JAC Class 10th Sanskrit सूक्तयः Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
(अ) दीप्ति
(ब) अशनम्
(स) महत्
(द) ददाति
उत्तरम् :
(द) ददाति

प्रश्न 2.
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता –
(अ) विद्या
(ब) तस्य
(ब) तस्य
(स) जनक
(द) उक्तिः
उत्तरम् :
(स) जनक

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 3.
अवकता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि –
(अ) वक्रता
(ब) ऋजुता
(स) सुचि
(द) वृत्त
उत्तरम् :
(ब) ऋजुता

प्रश्न 4.
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः –
(अ) यथार्थरूपेण
(ब) यदात्मनः
(स)
(द) इत्याहुः
उत्तरम् :
(अ) यथार्थरूपेण

प्रश्न 5.
त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
(अ) परित्यज्य
(ब) विमूढ़धीः
(स) तथ्यतः
(द) अपक्वं
उत्तरम् :
(अ) परित्यज्य

प्रश्न 6.
विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः –
(अ) जिह्वः
(ब) नेत्रवंतः
(स) अन्येषाम्
(द) चक्षुर्नामनी
उत्तरम् :
(ब) नेत्रवंतः

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 7.
यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
(अ) तेन
(ब) परिणामम्
(स) परिणति
(द) विवेक
उत्तरम् :
(स) परिणति

प्रश्न 8.
वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री सभायामप्यकातर:
(अ) प्रतिभाशालिनः
(ब) अकातरः
(स) नपरिभूयते
(द) धृतिमान्
उत्तरम् :
(द) धृतिमान्

प्रश्न 9.
य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च –
(अ) कल्याणम्
(ब) इच्छति
(स) परेभ्य
(द) कदापि
उत्तरम् :
(अ) कल्याणम्

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 10.
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः –
(अ) तस्मात्
(ब) प्रज्ञानां
(स) प्राणेभ्यः
(घ) सदाचारम्
उत्तरम् :
(ब) प्रज्ञानां

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
पिता पुत्राय किं यच्छति?
(पिता पुत्र के लिये क्या देता है?
उत्तरम् :
विद्याधनम् (विद्यारूपी धन)।

प्रश्न 2.
पिता कस्मै विद्याधनं यच्छति?
(पिता किसके लिये विद्या धन देता है?)
उत्तरम् :
पुत्राय (पुत्र के लिये)।

प्रश्न 3.
यथा अवक्रता चित्ते तथैव कुत्रापि भवेत्।
(जैसी सरलता चित्त में होती है वैसी ही कहाँ होनी चाहिए?)
उत्तरम् :
वाचि (वाणी में)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 4.
चित्ते वाचि च किं गुणः भवेत्?
(चित्त और वाणी में क्या गुण होना चाहिये?)
उत्तरम् :
अवक्रता (सरलता)।

प्रश्न 5.
बुद्धिमन्तः पुरुषाः कीदृशीं वाणी वदन्ति?
(बुद्धिमान लोग कैसी वाणी बोलते हैं?)
उत्तरम् :
धर्मप्रदाम् (धर्मयुक्त)।

प्रश्न 6.
कीदृशीं वाचं न वदेत्?
(कैसी वाणी नहीं बोलनी चाहिये।)
उत्तरम् :
परुषाम् (कठोर)।

प्रश्न 7.
अस्मिन् लोके चक्षुमन्तः के?
(इस लोक में नेत्रों वाला कौन हैं?)
उत्तरम् :
विद्वांस (विद्वान लोग)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 8.
विद्वांसः एव अस्मिन् लोके के प्रकीर्दिना?
(विद्वान लोग ही इस लोक में क्या कहलाता है?)
उत्तरम् :
चक्षुष्मन्तः (आँखों वाले)।

प्रश्न 9.
येन तत्वार्थ निर्णयः कर्तुं शक्यो भवेत् सः किं कथ्यते?
(जिसके द्वारा यथार्थ निर्णय किया जाना समर्थ है, वह क्या कहलाता है?)
उत्तरम् :
विवेकः।

प्रश्न 10.
विवेकः कीदृशः निर्णयं कर्तुं शक्यो भवेत?
(विवेक कैसा निर्णय करने में समर्थ होता है?)
उत्तरम् :
तत्वार्थ (यथार्थ)।

प्रश्न 11.
वाक्पटुः मंत्री कैः न परिभूयते?
(वाक्पटु मंत्री किनसे पराजित नहीं होता?)
उत्तरम् :
परैः (शत्रुओं से)।

प्रश्न 12.
मन्त्रिपदस्थस्य एकं गुणं लिखत।
(मन्त्रि पद पर स्थित व्यक्ति का एक गुण लिखिये।)
उत्तरम् :
वाक्पटुता।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 13.
यः आत्मनः श्रेयः इच्छति तेन परेभ्यः किं न करणीय?
(अपना भला चाहता है, उसे अन्य व्यक्तियों के साथ क्या नहीं करना चाहिये?)
उत्तरम् :
अहितम् (अहित)।

प्रश्न 14.
अहितं कर्म केभ्यः न कुर्यात्।
(अहित कर्म किसके लिये नहीं करना चाहिये।)
उत्तरम् :
परेभ्यः (अन्यों के लिये)।

प्रश्न 15.
कः प्रथमः धर्मः? (प्रथम धर्म क्या है?)
उत्तरम् :
आचारः।

प्रश्न 16.
विशेषतः प्राणेभ्योऽपि किं रक्षेत्?
(विशेषतः प्राणों से भी किसकी रक्षा करनी चाहिये?)
उत्तरम् :
सदाचारम्।

पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 17.
के प्रति कृतज्ञो भवेत् ?
(किसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये?)
उत्तरम् :
पितरं प्रति। (पिता के प्रति।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 18.
समत्वं किमुच्यते? (समत्व क्या कहलाता है?)
उत्तरम् :
मनसि वाचि च अवक्रता समत्वमिति कथ्यते।
(मन और वाणी में सरलता भी समत्व कहलाता है।)

प्रश्न 19.
परुषां वाचं त्यक्त्वा कीदृशी वाणी वदेत्?
(कठोर वाणी को त्यागकर कैसी वाणी बोलनी चाहिये?
उत्तरम् :
परुषां वाचं त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं वदेत्।
(कठोर वचनों को त्यागकर धर्मप्रद वाणी बोलनी चाहिए।)

प्रश्न 20.
चक्षुर्नामनी के मते ? (चक्षुर्नामनी क्या माने जाते हैं?)
उत्तरम् :
वदने ये नेत्रे ते तु चक्षुर्नामनी मते।
(चेहरे पर जो नेत्र हैं वे तो नाम मात्र की आँखें हैं।)

प्रश्न 21.
मन्त्री कैः गुणैरुपेतो भवेत्।
(मन्त्री किन गुणों से युक्त होना चाहिये?)
उत्तरम् :
मन्त्री वाक्पटुता, धैर्य सभायां वीरतादिभिः गुणैरुपेतो भवेत् ।
(मंत्री वाक्पटुता, धैर्य, सभा में वीरता आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।)

प्रश्न 22.
‘कथमपि’ इति पदस्य हेतोः किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘कथमपि’ पद के लिये किस पद का प्रयोग किया है?)
उत्तरम् :
केनापि प्रकारेण (कैसे भी या किसी प्रकार से)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 23.
मानवः संसारे किं लब्धम् इच्छति?
(मानव संसार में क्या प्राप्त करना चाहता है?)
उत्तरम् :
मानवः संसारे श्रेयः सुखानि च लब्धुम् इच्छति।
(मानव संसार में कल्याण और सुख प्राप्त करना चाहता है?)

प्रश्न 24.
कस्मात् रक्षेत् सदाचारम्? (किसलिये सदाचार की रक्षा करनी चाहिये?)
उत्तरम् :
आचार: प्रथमः धर्मः तस्मात् सदाचारं रक्षेत्।
(आचार पहला धर्म है, अतः सदाचार की रक्षा करनी चाहिये।)

प्रश्न 25.
का उक्तिः कृतज्ञता? (क्या कथन कृतज्ञता है?)
उत्तरम् :
‘पिताऽस्य किं तपस्तेपे’ इति उक्तिः कृतज्ञता।
(पिता ने इसके लिये कितना तप किया, यह उक्ति ही कृतज्ञता है)

प्रश्न 26.
चित्ते वाचि च अवक्रता कस्य समत्वं भवति?
(चित्त और वाणी में सरलता किसका समत्व होता है?)
उत्तरम् :
तत्महात्मनः तथ्यतः समत्वमिति कथ्यते।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 27.
ये परुषां वाणीं वदन्ति ते कीदृशः मनाः ?
(जो कठोर वाणी बोलते हैं वे कैसे लोग हैं?)
उत्तरम् :
ये जनाः परुषां वाणी वदन्ति ते मूढधियः भवन्ति।
(जो छ । कठोर वाणी बोलते हैं वे विमूढ़मति होते हैं।)

प्रश्न 28.
अन्येषां ये वदने नेत्रे ते के मते ?
(अन्य लोगों के चेहरे पर जो आँखें हैं वह क्या माने गये हैं?)
उत्तरम् :
अन्येषां ये वदने नेत्रे ते तु चक्षुर्नामनी मते।
(दूसरों के चेहरे पर जो नेत्र हैं वे तो मात्र आँखें ही मानी गई हैं।)

प्रश्न 29.
मंत्री कीदृशः भवेत्? (मन्त्री कैसा होना चाहिये?)
उत्तरम् :
मन्त्री: वाक्पटुः धैर्यवान् सभायामपि अकातरः भवेत्।
(मन्त्री वाक्पटु, धैर्यवान् और सभा में भी वीर या साहसी होना चाहिये)।

प्रश्न 30.
यः अन्येभ्योः अहितं न करोति सः किं लभते?
(दूसरों के लिये जो अहित नहीं करता वह क्या पाता है?)
उत्तरम् :
यो अन्येभ्यः अहितं न करोति स: श्रेयः प्रभूतानि सुखानि लभते।
(जो अन्यों के लिये अहित नहीं करता, वह श्रेय और बहुत से सुख प्राप्त करता है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 31.
आचारः प्रथमः धर्मः इति केषां वचः?
(आचार प्रथम धर्म है, यह किसका वचन है?)
उत्तरम् :
आचार: प्रथमः धर्मः इति विदुषां वचः।
(आचार प्रमुख धर्म है, यह विद्वानों का वचन है।)

अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा पूरयत।
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति मंजूषा से उचित पद चुनकर कीजिए ।)

1. पिता यच्छति पुत्राय ………………………………. इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥
मञ्जूषा – पिता, तत्, तपः, विद्याधनं।
बाल्ये (i)…… पुत्राय महत् (ii)……यच्छति। अस्य पिता किं (iii)…… तेपे इति उक्तिः (iv)……कृतज्ञता।
उत्तरम् :
(i) पिता (ii) विद्याधनं (iii) तपः (iv) तत् ।

2. अवकता यथा चित्ते ……………. समत्वमिति तथ्यतः।
मञ्जूषा – महात्मनः, अवक्रता, इति, वाचि।।
यथा (i)…… चित्ते तथा यदि (ii)…… भवेत् तदैव (अवक्रता) (iii)…… तथ्यतः समत्वम् (iv)……आहुः। उत्तरम् : (i) अवक्रता (ii) वाचि (iii) महात्मनः (iv) इति।

3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां …………………………………… विमूढधीः।
मञ्जूषा – त्यक्त्वा, विमूढधीः, फलं, फलम्।
यो (i)…… धर्मप्रदां वाचं (i)…… परुषामभ्युदीरयेत सः पक्वं (iii)…… परित्यज्यं अपक्वं (iii)……भुङ्क्ते।
उत्तरम् :
(i) विमूढधी: (ii) त्यक्त्वा (iii) फलम् (iv) फलं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

4. विद्वास एवं ……………………………………………………….. चक्षुर्नामनी मते ॥
मञ्जूषा – चक्षुर्नामनी, लोके, अन्येषां, चक्षुष्मन्तः।
अस्मिन् (i)…… विद्वान्सः एव (ii)…… प्रकीर्तिताः। (iii)……वदने तु ये (iv)….. मते।
उत्तरम् :
(i) लोके (ii) चक्षुष्मन्तः (iii) अन्येषां (iv) चक्षुर्नामनी।

5. यत् प्रोक्तं येन केनापि ………………………….. विवेक इतीरितः॥
मञ्जूषा – शक्यो, तत्वार्थ, विवेक, केनापि। येन (i) ……… यत् प्रोक्तम् तस्य (ii) ……….. निर्णयः येन कर्तुं (iii) ………. भवेत् सः (iii)…… इति ईरितः।
उत्तरम् :
(i) केनापि (ii) तत्वार्थ (iii) शक्यो (iv) विवेक।

6. वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री ……………………………….. परैर्न परिभूयते।।
मञ्जूषा – धैर्यवान्, परैः, केनापि, अकातरः।
वाक्पटुः (i) …………. सभायाम् अपि (ii) ………… सः (iii)…… प्रकारेण (iv)…… न परिभूयते।
उत्तरम् :
(i) धैर्यवान् (ii) अकातरः (iii) केनापि (iv) परैः।

7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः …………………….. परेभ्यः कदापि च ।
मणूणा – परेभ्यः, सुखानि, कलापि, आत्मना यः (i)…… श्रेयः प्रभूतानि (ii)…… च इच्छति, (iii)…… अहितं कर्म (iv)…… च न कुर्यात्।
उत्तरम् :
(i) आत्मनः (ii) सुखानि (iii) परेभ्यः (iv) कदापि।

8. आचारः प्रथमो धर्मः …………………… प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।।
आचारः (i) ……….. धर्मः इति एतद् (i) ………. वचः तस्मात् (iii)…… सदाचारं प्राणेभ्योऽपि (iii) ………..।
उत्तरम् :
(i) प्रथमो (ii) विदुषां (iii) विशेषतः (iv) रक्षेत्।

प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. पितापुत्राय बाल्ये विद्याधनं यच्छति। (पिता पुत्र को बचपन में विद्या ही धन देता है।)
2. अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेत् । (सरलता जैसी चित्त में होती है, वैसी वाणी में होनी चाहिए।)
3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां चः वदति। (धर्मनिष्ठ विद्या को त्याग कर जो कठोर वाणी बोलता है।)
4. विमूढधीः भुङ्क्तेऽपक्वं फलम्। (मूर्ख व्यक्ति कच्चा फल खाते हैं।)
5. विद्वान एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तितः। (विद्वान ही संसार में नेत्रवान कहलाते हैं।)
6. वाक्पटुः मन्त्री परैर्नः परिभूयते। (वाक्पटु मंत्री शत्रुओं द्वारा अपमानित नहीं होता है।) ।
7. यः इच्छति प्रभूतानि सुखानि न कुर्यात् अहितं परेभ्यः। (जो बहुत से सुख चाहता है, उसे दूसरों के लिये अहित कार्य नहीं करने चाहिये।)
8. आचारः परमोधर्मः। (आचार परम धर्म है।)
9. तस्मात् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।
10. तदेवाहुः महात्मन् समत्वमिति तथ्यतः। (वही महापुरुष का यथार्थ समत्व कहलाता है।)
11. पिता पुत्राय विद्याधनं ददाति।
12. तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः।
13. भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।
14. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः।
15. स केनापि प्रकारेण परैः न परिभूयते।
उत्तराणि :
1. पिता पुत्राय कदा विद्याधने यच्छति?
2. अवक्रता यथा चित्ते तथा कस्याम् भवेत् ?
3. कीदृशीं वाणी त्यक्त्वा यः पुरुषां य वदति?
4. कः भुङ्क्तेऽपक्वं फलम्।
5. के एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिता?
6. कीदृशः मन्त्री परैः नः परिभूयते?
7. यः इच्छति प्रभूतानि सुखानि किं न कुर्यात् परेभ्यः?
8. कः परमोधर्म:?
9. तस्मात् प्राणेभ्योऽपि विशेषतः किम् रक्षेत्?
10. तदेवाहुः कस्य समत्वमिति तथ्यत:?
11. पिता कस्मै विद्याधनं ददाति?
12. तदेवाहुः कान् समत्वमिति तथ्यतः?
13. भुङ्क्तेऽपक्वं कः?
14. के एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः?
15. स केनापि प्रकारेण कैः न परिभूयते?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

भावार्थ-लेखनम –

अधोलिखित पद्यांश संस्कृते भावार्थं लिखत –

1. पिता यच्छति पुत्राय …………………………… इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥

संस्कृत व्याख्या: – बाल्यकाले जनक : स्व-आत्मजाय श्रेष्ठं ज्ञान धनं ददाति। अमुष्य जनकः किं तपस्यां कृतवान् इति कथनं एव तस्योपकारः कृतज्ञता वा।

2. अवक्रता यथा चित्ते ………………………. समत्वमिति तथ्यतः।।

संस्कृत व्याख्या: – येन प्रकारेण ऋजुता मनसि भवति तेनैव प्रकारेण चेत् वाच्याम् स्यात् तदैव ऋजुता महापुरुषस्य यथार्थरूपेण समता इति उच्यते।

3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं ………………… भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।।

संस्कृत व्याख्या: – यः मूर्खः धार्मिकभावोत्पादिकां वाणी परित्यज्य कटुकां वाणी कठोर वचनानि वा वदति असौ तु पक्वं फलं त्यक्त्वा अपक्वं फलमेव परिणामेव भुनक्ति।

4. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् …………………………. चक्षुर्नामनी मते।।

संस्कृत व्याख्या:- एतस्मिन् संसारे, समाजे वा प्राज्ञा एव यथार्थतः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते, अपरेषाम् आनने तु नाममात्रस्यैव नेत्रे स्त: मन्यते वा।

5. यत् प्रोक्तं येन ………………….. विवेक इतीरितः॥

संस्कृत व्याख्याः – येन केनापि यत्किञ्चित् अकथत् अमुष्य समता यथार्थतः परिणति कर्तुं निर्णय वा कर्तुम् समर्थः यः च कर्तुं शक्नोति असावेव विचारशीलता विवेकः वा कथ्यते।

6. वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री …………………………………….. परैर्न परिभूयते।।

संस्कृत व्याख्याः – वाण्यां भाषणे वा चतुरः यश्च धृतिमान्, संसदि चापि यः साहसी वीरः प्रगल्भो वा असौ पुरुषः कथमपि अरिभिः नाभिभूयते अर्थात् सः कदापि न पराजयते।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः ……………………….. परेभ्यः कदापि च ।।

संस्कृत व्याख्या: – यः (मानवः) स्वकीयं कल्याणम् बहूनि सुखानि च ईहते सः अन्येभ्यः अहित कार्य न कुर्यात्। अर्थात् तेन अन्येभ्यः अहित कार्य कदापि न कर्त्तव्यम्।

8. आचारः प्रथमो धर्मः ……………………. प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।।

संस्कृत व्याख्या: – सदाचारः सदाचरणं वा मानवस्य प्रमुखो धर्म कर्त्तव्य वा। एवं प्राज्ञानां वचनानि। अनेन प्रकारेण सद्व्यवहारं सदाचरणं वा प्राणपणेनापि रक्षणीयम् भवति।

सूक्तयः Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – यह पाठ मूलत: तमिल भाषा के ‘तिरक्कुरल’ नामक ग्रंथ से लिया गया है। यह ग्रन्थ तमिल भाषा का वेद कहलाता है। इसके रचनाकार ‘तिरुवल्लुवर’ हैं। प्रथम शताब्दी इसका रचना काल स्वीकार किया गया है। धर्म, अर्थ और काम का प्रतिपाद्य है यह ग्रंथ। यह तीन भागों में विभक्त है। तिरु शब्द श्रीवाचक है अर्थात् तिरु का अर्थ है ‘श्री’। अतः तिरक्कुरल शब्द का अभिप्राय होता है- श्री से युक्त वाणी। इस ग्रंथ में मानवों के लिये जीवनोपयोपी सत्य को सरल और सुबोधगम्य पद्यों द्वारा प्रतिपादित किया गया है।

मूलपाठः, अन्वयः,शब्दार्थाः, सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

1. पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥1॥

अन्वयः – बाल्ये पिता पुत्राय महत् विद्याधनं यच्छति। अस्य पिता किं तपः तेपे इति उक्तिः तत् कृतज्ञता।

शब्दार्थाः – बाल्ये = बाल्यकाले (बचपन में). पिता = जनकः (पिता ने), पत्राय = आत्मजस्य कते (पत्र के लिये), महत् = श्रेष्ठं (उत्तम, महान), विद्याधनं = ज्ञान रूपं धनं (विद्या धन), यच्छति = ददाति (देता है), तस्य = अमुष्य (उसका), पिता = जनक (पिता), किं तपः तेपे = कि तपस्यां कृतवान (क्या तपस्या की), इति उक्तिः = एवं कथनं (ऐसा कहना), तत् कृतज्ञता = तस्य उपकृति (उसका अहसान है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सूक्तयः’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि कहता है कि पिता ही बाल्यकाल में शिक्षक होता है, जिसका मानव को कृतज्ञ होना चाहिये।

हिन्दी-अनुवादः – बाल्यकाल में पिता ही पुत्र को महान् विद्यारूपी धन प्रदान करता है। पिता इसके लिये कितनी तपस्या करता है। यह उसका अहसान है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

2. अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः।।2।।

अन्वयः – यथा अवक्रता चित्ते तथा यदि वाचि भवेत् तदैव (अवक्रता) महात्मनः तथ्यतः समत्वम् इति आहुः।

शब्दार्थाः – यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार), अवकता = ऋजुता, सरलता (सीधापन), चित्ते = यदि (यदि), वाधि = वाच्याम, वाण्याम् अपि (वाणी में भी), भवेत् – स्यात् (हो), अवकता – सरलता, ऋजुता (सीधापन), यदात्मनः = महापुरुषस्य (महात्मा को), तथ्यता – यथार्थरूपेण (वास्तव में), समत्वम् – समता (समानता), इत्याहुः = इत्युच्यते (इस प्रकार कहलाती है।)

सन्दर्भः प्रसङ्गश्च – यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया गया है। यह पाठ मूलतः तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ के संस्कृत अनुवाद से लिया गया है। इस पद्य में अवक्रता और समता भाव के महत्व को प्रतिपादित किया है।

हिन्दी-अनुवादः – सरलता जैसे मन में हो वैसी ही वाणी में भी होनी चाहिये। वास्तव में यही महापुरुष या महान् आत्मा का समत्व कहलाता है।

3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।।3।।

अन्वयः – यो विमूढ़धीः धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषामभ्युदीरयेत सः पक्वं फलम् परित्यज्यं अपक्वं फलं भुङ्क्ते।

शब्दार्थाः – यः = यो जनः (जो व्यक्ति), विमूढधीः = मूर्खः, बुद्धिहीनः (मूर्ख या बुद्धिहीन, अज्ञानी), धर्मप्रदां = धार्मिकभावोत्पादिकां (धर्म भाव पैदा करने वाली), वाचं = वाणीम् (वाणी को), त्यक्त्वा = परित्यज्य (त्यागकर), परुषाम् = कटुकं, कर्कशां (कठोर), अभ्युदीरयेत = प्रयुज्यते, वदति (बोलता है, प्रयोग करता है) सः = असौ (वह), पक्वं फलं = (पके फल से), परित्यज्य = त्यक्त्वा (त्यागकर) अपक्वं = न पक्वं (कच्चे) फलम् = परिणामं (फल को) भुक्ते = खादति। –

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया गया है। यह पाठ मूलतः तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ इस काव्य के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस श्लोक में धर्मप्रदा वाणी का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

हिन्दी-अनुवादः – धर्म प्रदान करने वाली वाणी को त्याग कर जो कठोर वाणी बोलता है वह मूढ़मति पके हुए फल . को त्याग कर कच्चे फल को ही खाता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

4. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते।। 4।।

अन्वयः – अस्मिन् लोके विद्वान्सः एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः। अन्येषां वदने तु ये चक्षुर्नामनी मते ।

शब्दार्थाः – अस्मिन् लोके = एतस्मिन् संसारे, समाजे वा (संसार या समाज में), विद्वांस एव = प्राज्ञः एव (विद्वान् ही) चक्षषमन्तः = नेत्रवंतः (नेत्रों वाले), प्रकीर्तिता = मताः, कथ्यन्ते (कहलाते हैं) अन्येषाम् = अपरेषां (दूसरे) मुखे = आनने (मुँह, पर तो), चक्षुर्नामनी = नाममात्र चक्षु (नाममात्र की आँख), मते = मन्वते (मानी जाती है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया गया है। यह पाठ मूलतः तमिल कवि तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस पद्य में कवि ने विद्वानों को ही नेत्रों वाला बताया गया है।

हिन्दी-अनुवादः – विद्वान लोगों को ही इस लोक में आँखों वाला कहा गया है। अन्य के मुख (आनन) पर जो आँखें होती हैं, वे तो नाम की आँखें मानी गई हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

5. यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः॥5॥

अन्वयः – येन केनापि यत् प्रोक्तम् तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं शक्यो भवेत् सः विवेक इति ईरितः।।

शब्दार्थाः – येन केनापि यत् प्रोक्तम् = यः कश्चित् यदकथयत् (जिस किसी से जो कहा), तस्य = अमुष्य (उसका), तत्वार्थ = यथार्थ (जैसा का तैसा), निर्णयः = परिणति (निर्णय करना) येन कर्तुं शक्यो भवेत् = यः कर्तुम् शक्नोति (जो कर सकता है), सः = असौ (वह), विवेक = ज्ञानं (सोच-समझ), इति ईरितः = इति कथ्यते (ऐसा कहलाता है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च- यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सूक्तयः’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ तमिल कवि तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ के संस्कृतानुवाद से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि तत्वार्थ निर्णय विवेक से ही सम्भव है।

हिन्दी-अनुवादः – जिस किसी के द्वारा जो कहा गया है वह उसका यथार्थ निर्णय है, वह करने में समर्थ होना चाहिये, वह विवेक कहलाता है।

6. वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री सभायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते ।।6।।

अन्वयः – वाक्पटुः धैर्यवान् सभायाम् अपि अकातरः सः केनापि प्रकारेण परैः न परिभूयते।

शब्दार्थाः – वाक्पटु = वाचि, सम्भाषणे वा पटुः (बातचीत में चतुर), धैर्यवान् = धृतिमान् (धैर्य रखने वाला), सभायामपि = संसदि अपि (सभा में भी), अकातरः = वीरः, साहसी च (वीर और साहसी), सः = असौ (वह), केनापिप्रकारेण = कथमपि (ये भी), परैः = शत्रुभिः, अरिभिः (शत्रुओं द्वारा), नपरिभूयते = नाभिभूतये पराभूत (पराजित नहीं होगा)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह पद्य ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया है। मूलतः यह तमिल कवि रचित तिरुक्कुरल ग्रंथ के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि जिसका मंत्री वाक्कुशल, धैर्यवान व सभा में निर्भय होता है, वह शत्रुओं से कभी भी पराजित नहीं होता।

हिन्दी-अनुवादः – वाणी में चतुरता, धैर्ययुक्त, सभा में भी जो साहसी हो, ऐसा मंत्री किसी भी प्रकार से शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च ।।7।।

अन्वयः – यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात्।

शब्दार्थाः – यः = यो (जो), आत्मनः = स्वकीयं (अपने), श्रेयः = कल्याणम् (कल्याण को) (तथा), प्रभूतानि = बहूनि (बहुत से), सुखानि = सुखसाधनानि (सुखों को), इच्छति = ईहते (चाहता है), सः = उसे, परेभ्य = अन्येभ्यो (दूसरों का), अहितं = नुकसान (हानि), कार्यम् = करणीयम् (काम), कदापि न कुर्यात् = कदापि न कर्त्तव्यम् (कभी नहीं करना चाहिये।)

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तयः’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ तमिल ल्लुवरकृत ‘तिरुकुरुल’ के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि जो मनुष्य अपना भला चाहता है उसे दूसरों का अहित नहीं करना चाहिये।

हिन्दी-अनुवादः – जो व्यक्ति अपना भला तथा बहुत सारे सुख चाहता है उसे दृ मरे के लिये कभी कोई अहित कर्म नहीं करना चाहिये।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

8. आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।।8।।

अन्वयः – आचारः प्रथमो धर्मः इति एतद् विदुषां वचः तस्मात् विशेषतः सदाचारं प्राणेभ्योऽपि रक्षेत्।

शब्दार्थाः – आचारः = सदाचारः (आचरण), प्रथमः धर्मः = प्रमुखो धर्मः (पहला धर्म है), इति = एव (इस प्रकार), विदुषां – प्रज्ञानां (विद्वान में), वचन = वचनानि, (उक्ति), तस्मात् = अनेन कारणेन (इसी वजह से), सदाचारम् = सद्व्यवहारं (सदाचार की), प्राणेभ्यः = प्राणपणेन (प्राणों की बाजी लगाकर), रक्षेत् = त्रायेत (रक्षा करनी चाहिये)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तयः’ इस ग्रन्थ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः तमिल कवि तिरुवल्लुवर विरचित ‘तिरुकुरुल’ के संस्कृत-अनुवाद से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि आचार को प्रथम धर्म कहते हुए सदाचार का महत्व कहता है।

हिन्दी-अनुवादः – सदाचार पहला धर्म है। यह विद्वानों का वचन है, इसलिये विशेष रूप से प्राणों की बाजी लगाकर भी सदाचार की रक्षा करनी चाहिये।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 सुभाषितानि

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 सुभाषितानि Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 सुभाषितानि

JAC Class 10th Sanskrit सुभाषितानि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) मुनष्याणां महान रिपुः कः? (मनुष्यों का महान् शत्रु कौन है?)
(ख) गुणी किं वेत्ति? (गुणी क्या जानता है?)
(ग) केषां सम्पत्तौ च विपत्तौ च एकरूपता? (सम्पत्ति और विपत्ति में समान कौन होते हैं?)
(घ) पशुना अपि कीदृशः ग्रहयते? (पशु द्वारा कैसे ग्रहण किया जाता है?)
(ङ) उदयसमये अस्तसमये च कः रक्तः भवति? (उदय और अस्त के समान कौन लाल रहता है)
उत्तराणि-
(क) आलस्यम् (आलस्य)
(ख) गुणम् (गुण को)
(ग) महताम् (महापुरुषों के)
(घ) उदीरितः (कहा हुआ)
(ङ) सविता (सूर्य)

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) केन समः बन्धुः नास्ति ? (किसके समान भाई नहीं है ?)
उत्तरम् :
उद्यमेन समः बन्धुः नास्ति। (परिश्रम के समान भाई नहीं है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

(ख) वसन्तस्य गुणं कः जानाति ? (वसन्त के गुण को कौन जानती है ?)
उत्तरम् :
पिको वसन्तस्य गुणं जानाति। (कोयल वसन्त के गुण जानती है।)

(ग) बुद्धयः कीदृश्यः भवन्ति ? (बुद्धियाँ किस प्रकार की होती हैं ?)
उत्तरम् :
परेङ्गितज्ञानफला: हि बुद्धयः। (बुद्धियाँ अर्थात् बुद्धिमान् लोग दूसरे के संकेत से बात को समझने वाले होते हैं।)

(घ) नराणां प्रथमः शत्रुः कः ? (मनुष्यों का पहला शत्रु कौन है ?)
उत्तरम् :
नराणां क्रोधो हि प्रथमः शत्रुः। (मनुष्यों का निश्चित रूप से क्रोध पहला शत्रु है।)।

(ङ) सुधियः सख्यं केन सह भवति ? (बुद्धिमानों की मित्रता किसके साथ होती है ?)
उत्तरम् :
सुधियः सख्यं सुधीभिः सह भवति। (बुद्धिमानों की मित्रता बुद्धिमानों के साथ होती है।)

(च) अस्माभिः कीदृशः वृक्षः सेवितव्यः ? (हमें कैसे वृक्ष का सेवन करना चाहिए?)
उत्तरम् :
अस्माभिः फलच्छाया-समन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः। (हमें फल-छाया से युक्त महावृक्ष का सेवन करना
चाहिए।)

प्रश्न 3.
अधोलिखिते अन्वयद्वये रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत (निम्नलिखित दो अन्वयों के रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए।)
(क) यः ………… उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्य ……….. सः ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि अस्ति, तं कथं ………… परितोषयिष्यति ?
उत्तरम् :
यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्य अपगमे सः ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि अस्ति, तं कथं जनः परितोषयिष्यति?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

(ख) ……… खलु संसारे ……… निरर्थकं नास्ति। अश्वः चेत् ……… वीरः, खरः ……… (वीरः) (भवति)। उत्तरम-विचित्रे खलु संसारे किञ्चित् निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् धावने वीरः, खरः भारस्य वहने (वीरः) (भवति)।

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां वाक्यानां कृते समानार्थकान् श्लोकांशान् पाठात् चित्वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों के लिए समान अर्थ वाले श्लोकों के अंश पाठ से चुनकर लिखिए)
(क) विद्वान् स एव भवति यः अनुक्तम् अपि तथ्यं जानाति।
(विद्वान वह होता है जो बिना कहे तथ्य को भी जान लेता है।)।
(ख) मनुष्यः समस्वभावै: जनैः सह मित्रतां करोति।
(मनुष्य समान स्वभाव वाले व्यक्तियों के साथ मित्रता करता है।)
(ग) परिश्रमं कुर्वाणः नरः कदापि दुःखं न प्राप्नोति।
(परिश्रम करता हुआ मनुष्य कभी दुःख नहीं पाता है।)
(घ) महान्तः जनाः सर्वदैव समप्रकृतयः भवन्ति।
(महान् पुरुष सदा ही समान स्वभाव के होते हैं।)
उत्तरम् :
(क) अनुक्तमप्यूहति पण्डितोजनः।
(ख) समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्।
(ग) नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।
(घ) सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं परिवर्तनं विधाय वाक्यानि रचयत –
(निर्देशानुसार परिवर्तन करके वाक्य-रचना कीजिए)
(क) गुणी गुणं जानाति। (बहुवचने)
(ख) पशुः उदीरितम् अर्थं गृह्णाति। (कर्मवाच्ये)
(ग) मृगाः मृगैः सह अनुव्रजन्ति। (एकवचने)
(घ) कः छायां निवारयति ? (कर्मवाच्ये)
(ङ) तेन एव वह्निना शरीरं दह्यते। (कर्तृवाच्ये)।
उत्तरम :
(क) गुणिनः गुणान् जानन्ति।
(ख) पशुना उदीरितः अर्थः गृह्यते।
(ग) मृगः मृगेण सह अनुव्रजति।
(घ) केन छाया निवार्यते।
(ङ) तेमै नैव क्रोधः शरीरं दह्यते।

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प्रश्न 6.
(अ) सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत (सन्धि/सन्धि-विच्छेद कीजिए)
(क) न + अस्ति + उद्यमसमः
(ख) तस्यापगमे
(ग) अनुक्तम् + अपि + ऊहति
(घ) गावश्च
(ङ) नास्ति
(च) रक्तः + च + अस्तमये
(छ) योजकस्तत्र।
उत्तरम् :
(क) न + अस्ति + उद्यमसमः = नास्त्युद्यमसमः
(ख) तस्य + अपगमे = तस्यापगमे
(ग) अनुक्तम् + अपि + ऊहति = अनुक्तमप्यूहति
(घ) गावः + च = गावश्च
(ङ) न + अस्ति = नास्ति
(च) रक्तः + च + अस्तमये = रक्तश्चास्तमये
(छ) योजकः + तत्र = योजकस्तत्र।

(आ) समस्तपदं/विग्रहं लिखत –

(क) उद्यमसमः
(ख) शरीरे स्थितः
(ग) निर्बल:
(घ) देहस्य विनाशनाय
(ङ) महावृक्षः
(च) समानं शीलं
व्यसनं येषां तेषु
(छ) अयोग्यः।
उत्तरम् :
(क) उद्यमेन सदृश:
(ख) शरीरस्थितः
(ग) निर्गत: बलः येषाम्
(ङ) महान चासौ वृक्षः
(च) समानशील – व्यसनेषु
(छ) नः योग्यः।

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प्रश्न 7.
(अ) अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत –
(निम्नलिखित पदों के विलोम पद पाठ से चुनकर लिखिए।)
(क) प्रसीदति ……………….
(ख) मूर्खः …………………..
(ग) बली ………………..
(घ) सुलभः ……………..
(ङ) सम्पत्तौ ………………
(च) अस्ते ………………
(छ) सार्थकम् ………………..
उत्तरम् :
विलोम पद –
(क) अवसीदति (दुःख पाता है)
(ख) पण्डितः (विद्वान्)
(ग) निर्बलः (कमजोर)
(घ) दुर्लभः (दुष्प्राप्य)
(ङ) विपत्तौ (संकट में)
(च) उदये (उदय होने पर)
(छ) निरर्थकम् (व्यर्थ)

(आ) संस्कृतेन वाक्यप्रयोगं कुरुत (संस्कृत में वाक्य प्रयोग कीजिए)

(क) वायसः ……………..
(ख) निमित्तम् …………….
(ग) सूर्यः …………..
(घ) पिकः ……………
(ङ) वहिनः ………….
उत्तर-
(क) वसन्तस्य गुणं वायसः न जानाति।
(ख) यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति सः तस्य अपगमे प्रसीदति।
(ग) सूर्यः प्रात:काले पूर्वस्यां दिशि उदेति।
(घ) पिकः मधुरस्वरेण कूजति।
(ङ) वह्निः काष्ठं दहति।

परियोजनाकार्यम्।

(क) उद्यमस्य महत्त्वं वर्णयन् पञ्चश्लोकान् लिखत। (उद्यम का महत्त्व वर्णन करते हुए पाँच श्लोक लिखिए।)
अथवा
कापि कथा या भवद्भिः पठिता स्यात् यस्याम् उद्यमस्य महत्त्वं वर्णितं तां स्वभाषया लिखत।
(आपने कोई ऐसी कहानी पढ़ी हो जिसमें परिश्रम के महत्त्व का वर्णन किया गया हो, तो उसे अपनी भाषा मेंलिखें।)
नोट- छात्र अपनी पढ़ी हुई कोई ऐसी कहानी अपनी भाषा में स्वयं लिखें।
उत्तरम् :
1. उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः , दैवेन देयमिति कापुरुषाः वदन्ति।
दैवं निहित्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या, यत्नेकृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्र दोषः।।

2. उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।

3. उद्यमः साहसं धैर्य, बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते, तत्र दैवः सहायकृत्।।

4. न दैवमिति संचिन्त्य त्यजेदुद्योगमात्मनः।
अनुद्योगेन कस्तैलं, तिलेभ्यः प्राप्तुमर्हति।।

5. गच्छन् पिपीलिका याति, योजनानां शतान्यपि।।
अगच्छन् वैनतेयोऽपि, पदमेकं न गच्छति।।

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(ख) निमित्तमुद्दिश्य यः प्रकुप्यति ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति। यदि भवता कदापि ईदृशः अनुभवः कृतः तर्हि स्वभाषया लिखत।
(किसी कारण से जो नाराज होता है वह उसके समाप्त हो जाने पर प्रसन्न होता है। यदि आपने कभी ऐसा अनुभव किया है तो अपनी भाषा में लिखिए।)
उत्तरम् संकेत :
छात्र अपने अनुभव को स्वयं अपनी भाषा में लिखें।

योग्यताविस्तार –

1. तत्पुरुष समास –

समस्तपदम् – समास-विग्रहः

  • शरीरस्थः – शरीरे स्थितः
  • गृहस्थः – गृहे स्थितः
  • मनस्स्थः – मनसि स्थितः
  • तटस्थ: – तटे स्थितः
  • कूपस्थः – कूपे स्थितः
  • वृक्षस्थः – वृक्षे स्थितः

2. अव्ययीभाव समास –

  • विमानस्थः – विमाने स्थितः
  • निर्गुणम् – गुणानाम् अभाव:
  • निर्मक्षिकम् – मक्षिकाणाम् अभाव:
  • निर्जलम् – जलस्य अभावः
  • निराहारम् – आहारस्य अभावः

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3. पर्यायवाचि पदानि –

शब्दाः – पर्यायवाचिपदानि

  • शत्रु: – रिपुः, अरिः, वैरिः।
  • मित्रम् – सखा, बन्धुः, सुहृद्।
  • वह्निः – अग्निः, अनलः, पावकः।
  • सुधियः – विद्वांसः, विज्ञाः, अभिज्ञाः।
  • अश्वः – तुरगः, हयः, घोटकः।
  • गजः – करी, हस्ती, दन्ती, नागः।
  • वृक्षः – द्रुमः, तरुः, महीरुहः।
  • सविता – सूर्यः, मित्रः, दिवाकरः, भास्करः।

JAC Class 10th Sanskrit सुभाषितानि Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
(अ) शत्रुः
(ब) आस्य
(स) महान्
(द) अवसीदति
उत्तरम् :
(अ) शत्रुः

प्रश्न 2.
गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो –
(अ) निर्गुणः
(ब) जानाति
(स) बलं
(द) नाति
उत्तरम् :
(ब) जानाति

प्रश्न 3.
निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति –
(अ) प्रकुति
(ब) ध्रुवम्
(स) परितोषयिष्यति
(द) कोपं करोति
उत्तरम् :
(द) कोपं करोति

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प्रश्न 4.
दीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते –
(अ) कथितः
(ब) दीरितः
(स) वहन्ति
(द) बोधिताः
उत्तरम् :
(द) बोधिताः

प्रश्न 5.
क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां –
(अ) देहविनाशनाय
(ब) काष्ठगतः
(स) मनुष्याणां
(द) शरीरं
उत्तरम् :
(अ) देहविनाशनाय

प्रश्न 6.
मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति
(अ) हरिणैः
(ब) सिंह
(स) मूर्खाः
(द) सख्यम्
उत्तरम् :
(अ) हरिणैः

प्रश्न 7.
अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।
(अ) क्षरम्
(ब) मूल
(स) न वर्तते
(द) योजकः
उत्तरम् :
(स) न वर्तते

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प्रश्न 8.
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता –
(अ) धनिकः
(ब) अभ्युदये
(स) सविता
(द) अस्तमये
उत्तरम् :
(ब) अभ्युदये

प्रश्न 9.
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम् –
(अ) सारे
(ब) अश्वः
(स) लोके
(द) अस्ति
उत्तरम् :
(स) लोके

प्रश्न 10.
अश्वचेद धावने वीरः भारस्य वहने खरः।।
(अ) गौः
(ब) श्वानः
(स) अश्वः
(द) गर्दभः
उत्तरम् :
(द) गर्दभः

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
शरीरस्थः महान् रिपुः कः अस्ति ? (शरीर में स्थित महान् शत्रु कौन है ?)
उत्तरम् :
आलस्यम् (आलस्य)।

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प्रश्न 2.
वसन्तं कः जानाति ? (वसन्त को कौन जानता है ?)
उत्तरम् :
पिकः (कोयल)।

प्रश्न 3.
सिंहस्य बलं कः जानाति ? (सिंह की शक्ति को कौन जानता है?)
उत्तरम् :
करी (हाथी)।

प्रश्न 4.
वायसः कस्य गुणं न वेत्ति ? (कौआ किसके गुण नहीं जानता ?)
उत्तरम् :
वसन्तस्य (वसन्त के)।

प्रश्न 5.
कः न परितोषयिष्यति ?
(कौन सन्तुष्ट नहीं होगा।)
उत्तरम् :
अकारणद्वेषी
(बिना कारण द्वेष करने वाला)।

प्रश्न 6.
कस्य अपगमे मनुष्यः प्रसीदति ?
(किसके दूर होने पर मनुष्य प्रसन्न हो जाता है ?)
उत्तरम् :
प्रकोपस्य (नाराजगी के)।

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प्रश्न 7.
हयाः कीदृशाः भारं वहन्ति ?
(घोड़े कैसे बोझा ढोते हैं ?)
उत्तरम् :
बोधिताः (समझाये हुए)।

प्रश्न 8.
‘परेङ्गितज्ञानम्’ इति पदयोः विशेष्यः कः ?
(‘परेङ्गितज्ञानम्’ इन पदों में विशेष्य क्या है ?)
उत्तरम् :
ज्ञानम्।

प्रश्न 9.
क्रोधः कुत्र स्थितः भवति ?
(क्रोध कहाँ स्थित होता है ?)
उत्तरम् :
शरीरे (शरीर में)।

प्रश्न 10.
शरीरगतः वह्निः कः भवति ?
(शरीर में स्थित आग क्या होती है ?)
उत्तरम् :
क्रोधः।

प्रश्न 11.
समान-शील-व्यसनेषु मध्ये किं भवति ?
(समान चरित्र और स्वभाव वालों के मध्य क्या होता है ?)
उत्तरम् :
सख्यम् (दोस्ती)।

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प्रश्न 12.
सुधीभिः सङ्गं के अनुव्रजन्ति ?
(विद्वानों के साथ कौन चलते हैं ?)
उत्तरम् :
सुधियः (विद्वान् लोग)।

प्रश्न 13.
कीदृशः पुरुषः संसारे न भवति ?
(कैसा पुरुष संसार में नहीं होता ?)
उत्तरम् :
अयोग्यः।

प्रश्न 14.
संसारः कीदृशः अस्ति ?
(संसार कैसा है ?)
उत्तरम् :
विचित्रः (अनोखा)।

प्रश्न 15.
खरः कस्मिन् कार्ये वीरः ?
(गधा किस काम में वीर है ?)
उत्तरम् :
भारवहने (बोझा ढोने में)।

प्रश्न 16.
उद्यमः केन समः अस्ति ?
(परिश्रम किसके समान है ?)
उत्तरम् :
बन्धुना (बन्धु के)।

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प्रश्न 17.
आलस्यं केषां रिपुः अस्ति ?
(आलस्य किनका शत्रु है ?)
उत्तरम् :
मनुष्याणाम् (मनुष्यों का)।

प्रश्न 18.
गुणं कः वेत्ति ?
(गुण को कौन जानता है ?)
उत्तरम् :
गुणी।

प्रश्न 19.
निर्बलः किं न जानाति ?
(निर्बल क्या नहीं जानता है ?)
उत्तरम् :
बलम् (बल को)।

प्रश्न 20.
मनुष्यः किम् उद्दिश्य प्रकुप्यति ?
(मनुष्य किसे उद्देश्य करके अत्यधिक क्रोधित होता है ?)
उत्तरम् :
निमित्तम् (प्रयोजन)।

प्रश्न 21.
प्रकोपे अपगमे मनुष्यः किं अनुभवति ?
(प्रकोप / नाराजगी के दूर होने पर मनुष्य कैसा अनुभव करता है ?)
उत्तरम् :
प्रसीदति (प्रसन्न होता है।)

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प्रश्न 22.
उदीरितोऽर्थः केन गृह्यते?
(कहने पर अर्थ किसके द्वारा ग्रहण किया जाता है ?)
उत्तरम् :
पशुना (पशु द्वारा)।

प्रश्न 23.
बुद्धयः कीदृशाः भवन्ति ?
(बुद्धियाँ अर्थात् बुद्धिमान् लोग कैसे होते हैं ?)
उत्तरम् :
परेङ्गितज्ञानफलाः (दूसरे के संकेत से समझने वाले)।

प्रश्न 24.
क्रोधः केषां प्रथमः शत्रुः ?
(क्रोध किनका प्रथम शत्रु है ?)
उत्तरम् :
नराणाम् (मनुष्यों का)।

प्रश्न 25.
काष्ठगतः वह्निः कं दहते ?
(काष्ठ में स्थित आग किसे जलाती है ?)
उत्तरम् :
काष्ठम् (लकड़ी को)।

प्रश्न 26.
मृगैः सह के अनुव्रजन्ति ?
(मृगों के साथ पीछे-पीछे कौन चलते हैं ?)
उत्तरम् :
मृगाः (मृग)।

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प्रश्न 27.
तुरगाः कैः सङ्गमनुव्रजन्ति ?
(घोड़े किसके संग जाते हैं ?)
उत्तरम् :
तुरङ्गैः सह (घोड़ों के साथ)।

प्रश्न 28.
कः सेवितव्यः ?
(किसका सेवन करना चाहिए ?)
उत्तरम् :
महावृक्षः (विशाल पेड़)।

प्रश्न 29.
फलहीनात् अपि वृक्षात् किं प्राप्यते ?
(फलहीन वृक्ष से भी क्या प्राप्त किया जाता है ?)
उत्तरम् :
छाया (छाया अथवा आश्रय)।

प्रश्न 30.
कीदृशम् अक्षरं नास्ति ?
(कैसा अक्षर नहीं होता ?)
उत्तरम् :
अमन्त्रम् (मन्त्रहीन)।

प्रश्न 31.
अनौषधं किं नास्ति ?
(औषधीय गुणों से युक्त क्या नहीं है ?)
उत्तरम् :
मूलम् (जड़)।

प्रश्न 32.
सविता उदये कीदृशः भवति ?
(सूर्य उदय होने पर कैसा होता है ?)
उत्तरम् :
रक्तः (लाल)।

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प्रश्न 33.
सम्पत्तौ विपत्तौ च केषाम् एकरूपता?
(सुख-दुःख में कौन एक रूप रहते हैं ?)
उत्तरम् :
महताम् (महापुरुष)।

प्रश्न 34.
अश्वः कस्मिन् कार्ये वीरः?
(घोड़ा किस कार्य में वीर है ?)
उत्तरम् :
धावने (दौड़ने में)।

प्रश्न 35.
भारस्य वहने कः वीरः भवति ?
(बोझा ढोने में कौन वीर है ?)
उत्तरम् :
खरः (गधा)।

पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 36.
किं कृत्वा मनुष्यः नावसीदति ?
(क्या करके मनुष्य दुःखी नहीं होता ?)
उत्तरम् :
उद्यमं कृत्वा मनुष्यः नावसीदति।
(परिश्रम करके मनुष्य दुःखी नहीं होता।)

प्रश्न 37.
अकारणद्वेषि मनुष्यः किं न अनुभवति ?
(अकारण द्वेष करने वाला मनुष्य क्या अनुभव नहीं करता है ?)
उत्तरम् :
अकारणद्वेषि जनः परितोषं न अनुभवति।
(अकारण द्वेष करने वाला मनुष्य सन्तोष का अनुभव नहीं करता।)

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प्रश्न 38.
परेङ्गितज्ञानफलाः के भवन्ति ?
(दूसरे के संकेत से समझने वाले कौन होते हैं ?) .
उत्तरम् :
बुद्धिमन्तः जनाः परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति।
(बुद्धिमान् लोग दूसरे के संकेत मात्र से समझने वाले होते हैं ?)

प्रश्न 39.
क्रोधः नराणां कीदृशः शत्रुः ?
(क्रोध मनुष्यों का कैसा शत्रु है ?)
उत्तरम् :
क्रोधो नराणां देहस्थितः शत्रुः।
(क्रोध मनुष्यों का शरीर में स्थित शत्रु है।)

प्रश्न 40.
मूर्खाः कैः सह अनुव्रजन्ति ?
(मूर्ख किनका अनुसरण करते हैं ?)
उत्तरम् :
मूर्खाः मूखैः सह अनुव्रजन्ति।
(मूर्ख मूल् का अनुसरण करते हैं।

प्रश्न 41.
महावृक्षाः कस्मात् सेवितव्यः ?
(महावृक्ष की सेवा किस कारण से करनी चाहिए ?)
उत्तरम् :
महावृक्षः सेवितव्यः यतः यदि दैवात् फलं नास्ति, तर्हि छाया केनापि न निवार्यते ?
(महावृक्ष की सेवा करनी चाहिए क्योंकि यदि भाग्यवश फल न हो तो छाया को कौन रोकता है ?)

प्रश्न 42.
अस्तंगते सूर्यः कीदृशः भवति ?
(अस्त होने पर सूर्य कैसा होता है ?)
उत्तरम् :
अस्तंगते सूर्यः रक्तः भवति।
(अस्त होने पर सूर्य लाल होता है।)

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प्रश्न 43.
श्लोके महापुरुषाणां तुलना केन सह कृता ?
(श्लोक में महापुरुषों की तुलना किससे की है ?)
उत्तरम् :
सवित्रा सह (सूर्य के साथ)।।

प्रश्न 44.
धावने कः वीरः भवति ?
(दौड़ने में कौन वीर होता है ?)
उत्तरम् :
धावने अश्वः वीरः भवति।
(दौड़ने में घोड़ा वीर होता है।)

प्रश्न 45.
आलस्यं मनुष्याणां कीदृशः रिपुः ?
(आलस्य मनुष्य का कैसा शत्रु है ?)
उत्तरम् :
आलस्यं मनुष्याणां शरीरस्थः महान् रिपुः।
(आलस्य मनुष्यों का शरीर में स्थित महान् शत्रु है।)

प्रश्न 46.
बलंकः वेत्ति को वा न वेत्ति ?
(बल को कौन जानता है अथवा कौन नहीं जानता?)।
उत्तरम् :
बली बलं जानाति न वेत्ति निर्बलः।
(बलवान् बल को जानता है निर्बल नहीं जानता।)

प्रश्न 47.
मनुष्यः कदा प्रसीदति ? (मनुष्य कब प्रसन्न होता है ?)।
उत्तरम् :
कोपस्य निमित्तम् अपगमे मनुष्यः प्रसीदति।
(क्रोध का कारण दूर हो जाने पर मनुष्य प्रसन्न होता है।)

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प्रश्न 48.
अनुक्तमपि कः ऊहति ?
(बिना कहे कौन समझ लेता है ?)
उत्तरम् :
पण्डितो जनः अनुक्तमपि ऊहति।
(विद्वान् व्यक्ति बिना कहे ही समझ लेता है।)

प्रश्न 49.
क्रोधः शरीरं कथं दहते ?
(क्रोध शत्रु को कैसे जलाता है ?)
उत्तरम् :
यथा काष्ठगतः वहिनः काष्ठं दहते तथैव देहस्थितः क्रोधः शरीरं दहते।।
(जैसे लकड़ी में स्थित आग लकड़ी को जला देती है वैसे ही शरीर में स्थित क्रोध शरीर को जला देता है।)

प्रश्न 50.
सख्यं केषु भवति ?
(मित्रता किन में होती है ?)
उत्तरम् :
सख्यं समान शील-व्यसनेषु मध्ये भवति।
(मित्रता समान चरित्र और स्वभाव वालों के मध्य होती है।)

प्रश्न 51.
अस्माभिः कीदृशः वृक्षः सेवितव्यः?
(हमें कैसे वृक्ष की सेवा करनी चाहिए ?)
उत्तरम् :
फलच्छाया समन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः।
(फल और छाया से युक्त महावृक्ष की सेवा करनी चाहिए।)

प्रश्न 52.
महापुरुषाः एकरूपाः कदा भवन्ति ?
(महापुरुष कब एकरूप होते हैं ?)
उत्तरम् :
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महताम् एकरूपता भवति।
(सम्पत्ति और विपत्ति में महापुरुषों की एकरूपता होती है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

प्रश्न 53.
विचित्रे संसारे किं वैशिष्ट्यम् ?
(विचित्र संसार में क्या विशिष्टता है ?)
उत्तरम् :
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चित् निरर्थकम्।
(विचित्र संसार में निश्चित ही कुछ निरर्थक नहीं है।)

अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा पूरयत।
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति मंजूषा से उचित पद चुनकर कीजिए।)

1. आलस्यं हि मनुष्याणां ……………………… यं नावसीदति।।
मञ्जूषा – कृत्वा, आलस्यम्, शरीरस्थो, बन्धुः।

हि मनुष्याणां (i)…….. महान् रिपुः (ii)…….. (अस्ति)। उद्यमसमः (iii)…….. न अस्ति यं (iv)…….. (मानवः) न अवसीदति।
उत्तरम् :
(i) शरीरस्थो (ii) आलस्यम् (iii) बन्धुः (iv) कृत्वा।

2. गुणी गुणं वेत्ति ……………………… बलं न मूषकः।।
मञ्जूषा – निर्गुणः, सिंहस्य, वसन्तस्य, बलं।

गुणी गुणं वेत्ति, (i)…….. (गुणं) न वेत्ति। बली (ii)…….. वेत्ति, निर्बलः (बलं) न वेत्ति। (iii)……..गुणं पिकः (वेत्ति), वायसः न (वेत्ति), (iv)…….. बलं करी (वेत्ति) मूषकः न।
उत्तरम् :
(i) निर्गुणः (ii) बलं (iii) वसन्तस्य (iv) सिंहस्य।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

3. निमित्तमुद्दिश्य हि …………………………………… परितोषयिष्यति।।
मञ्जूषा – प्रसीदति, प्रकुप्यति, अकारणद्वेषि, कथं।

यः निमित्तम् उद्दिश्य (i)…….., सः तस्य अपगमे ध्रुवं (ii)……..। यस्य मनः (iii)…….. (अस्ति), तं जनः (iv) …….. परितोषयिष्यति।
उत्तरम् :
(i) प्रकुप्यति (ii) प्रसीदति (iii) अकारणद्वेषि (iv) कथं।

4. उदीरितोऽर्थः पशुनापि ………………………… हि बुद्धयः।।
मञ्जूषा – परेङ्गितज्ञानफलाः, बोधिताः, ऊहति, उदीरितः।

पशुना अपि (i)…….. अर्थ: गृह्यते, हयाः नागाः च (ii)…….. (भारं) वहन्ति। (परञ्च) पण्डितः जनः अनुक्तम् अपि (iii)…….. (यतः) बुद्धयः (iv)……. भवन्ति।
उत्तरम् :
(i) उदीरितः (ii) बोधिताः (iii) ऊहति (iv) परेङ्गितज्ञानफलाः।

5. क्रोधो हि शत्रुः ……………………………. वह्निर्दहते शरीरम्।।
मञ्जूषा – देहस्थितः, देहविनाशनाय, वह्निः, शरीरं।

नराणां (i)…….. प्रथमः शत्रुः (ii)…….. क्रोधः। यथा काष्ठगतः स्थित: (iii)…….. काष्ठम् एव दहते (तथैव शरीरस्थः क्रोधः) (iv) …….. दहते।
उत्तरम :
(i) देहविनाशनाय (ii) देहस्थितः (iii) वहिनः (iv) शरीरं।।

6. मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, ……………………………………….. व्यसनेषु सख्यम्।।
मञ्जूषा – सुधियः, संगम्, तुरगाः, सख्यम्।

मृगाः मृगैः (i)…….. गावश्च गोभिः (सह), (ii)…….. तुरङ्गैः (सह), मूर्खा: मूखैः (सह), (iii)…….. सुधीभिः (सह), अनुव्रजन्ति। (iv)……..समानशील-व्यसनेषु (भवति)। उत्तरम् : (i) संगम् (ii) तुरगाः (iii) सुधियः (iv) सख्यम्।

7. सेवितव्यो महावृक्षः …………………………… केन निवार्यते।।
मञ्जूषा – नास्ति, समन्वितः, सेवितव्यः, केन।

फलच्छाया (i)…….. महावृक्षः (ii)……..। दैवात् यदि फलं (iii)…….., (वृक्षस्य) छाया (ii)….. निवार्यते।
उत्तरम् :
(i) समन्वितः (ii) सेवितव्यः (iii) नास्ति (iv) केन।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

8. अमन्त्रमक्षरं नास्ति, …………………. योजकस्तत्र दुर्लभः।।
मञ्जूषा – अक्षरं, अयोग्यः, मूलं, दुर्लभः।

अमन्त्रम् (i)…….. नास्ति, अनौषधं (ii) …….. नास्ति, (iii) …….. पुरुषः नास्ति, तत्र योजकः (एव) (iii)…….. (अस्ति )।
उत्तरम् :
(i) अक्षरं (ii) मूलं (iii) अयोग्य: (iv) दुर्लभः।

9. सम्पत्तौ च विपत्ती …………………. रक्तश्चास्तमये तथा।।
मञ्जूषा – रक्तः भवति, सम्पत्ती, उदये। महताम्

(i)…….. विपत्तौ च एकरूपता (ii) ……..। (यथा) सविता (iii)…….. रक्तः (भवति) तथा (एव) अस्तमये (अपि) च (iii)…….. भवति।
उत्तरम् :
(i) सम्पत्तौ (ii) भवति (iii) उदये (iv) रक्तः।

10. विचित्रे खलु संसारे …………… ……… भारस्य वहने खरः।।
मञ्जूषा – संसारे, खरः निरर्थक, धावने। (अस्मिन्) विचित्रे
(i) …….. खलु किञ्चित् (ii)…….. न। अश्वः चेत् (iii)…….. वीरः (तर्हि), भारस्य वहने (iv)…….. (वीरः) अस्ति।
उत्तरम् :
(i) संसारे (ii) निरर्थकं (iii) धावने (iv) खरः।

प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. मनुष्याणां आलस्यं हि महान् रिपुः। (आलस्य मनुष्यों का महान् शत्रु है।)
2. नास्ति उद्यमसमः बन्धुः। (परिश्रम के समान कोई बन्धु नहीं।)
3. पिको वसन्तस्य गुणं वेत्ति। (कोयल वसन्त के गुण को जानती है।)
4. करी सिंहस्य बलं वेत्ति। (हाथी सिंह के बल को जानता है।)
5. अकारणद्वेषि मनः परितोषं न याति। (अकारण द्वेषी मन वाला (मनुष्य) सन्तोष को प्राप्त नहीं होता।)
6. उदीरितोऽर्थः पशुना अपि गृह्यते। (कहे हुए के अभिप्राय को तो पशु भी ग्रहण कर लेता है।)
7. हयाश्च नागाश्च बोधिताः भारं वहन्ति। (घोड़े और हाथी समझाने पर भार वहन करते हैं।)
8. क्रोधः नराणां प्रथमः शत्रुः। (क्रोध मनुष्यों का प्रथम शत्रु है।)
9. काष्ठगतः वह्निः इव क्रोधः शरीरं दहते। (काष्ठगत अग्नि की तरह क्रोध शरीर को जला देता है।)
10. समान-शील-व्यसनेषु सख्यं भवति। (समान शील और व्यसन वालों में मित्रता होती है।)
उत्तराणि :
1. केषाम् आलस्यं हि महान् रिपुः ?
2. नास्ति केन समः बन्धुः ?
3. पिकः कस्य गुणं वेत्ति ?
4. कः सिंहस्य बलं वेत्ति ?
5. कीदृशं मनः परितोषं न याति।
6. उदीरितोऽर्थः केन अपि गृह्यते ?
7. के बोधिताः भारं वहन्ति ?
8. कः नराणां प्रथमः शत्रुः ?
9. कः इव कोधः शरीरं दहते ?
10. केषु सख्यं भवति ?

भावार्थ-लेखनम् –

अधोलिखित पद्यांश संस्कृते भावार्थ लिखत –

1. आलस्यं हि मनुष्याणां ………. ………………. कृत्वा यं नावसीदति।।

भावार्थ – निश्चयेन निरुद्यमम् मानवानाम् देहे स्थितः महान् शत्रुः। परिश्रमेण सदृशः (अन्यः कोऽपि)सम्बन्धी नास्ति। यं विधाय (सम्पाद्य) मानवः कदापि न दुःखमनुभवति।

2. गुणी गुणं वेत्ति न ………………………………………….. सिंहस्य बलं न मूषकः।।

भावार्थ – गुणवान् मनुष्य एव वैशिष्ठ्यम् जानाति। गुणहीनः जनः वैशिष्ठ्यम् न जानाति। बलवान् एव शक्तिं जानाति बलहीनः शक्तिं न जानाति। ऋतुराजस्य मधुमासस्य महत्वं कोकिलः एव जानाति न तु काकः जानाति। केसरिणः शक्तिं गजः एव जानाति आखुः न जानाति।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

3. निमित्तमुद्दिश्य हि यः ……………… जनस्तं परितोषयिष्यति।।।

भावार्थ – यो मनुष्यः कारणम् लक्ष्यं कृत्वा (आधृत्य) अपि कोपं करोति असौ तस्य कारणे समाप्ते निश्चितमेव कोपं विस्मृत्य प्रसन्नः भवति परञ्च यस्य चित्तः विनैव प्रयोजनं वैरं विद्धाति। अमुम् मनुष्यं लोकः केन प्रकारेण परितोषं प्रदातुं शक्नोति?

4. उदीरितोऽर्थः पशुनापि ………….. परेगितज्ञानफला हि बुद्धयः।।

भावार्थ – श्वापदेन अपि उक्तः अभिप्रायः ज्ञायते प्राप्यते वा। अश्वाः गजाः चापि अनुबोधिता भार वहनं कुर्वन्ति परन्तु प्राज्ञस्तु मनुष्यः तु अनुपदिष्टः एव अनुमन्यते अवगच्छति वा यतः मतिमन्तः परेण इङ्गितं बिना एव परिणाम जानन्ति।

5. क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो …………………. वह्निदहते शरीरम्।।

भावार्थ – मनुष्याणां शरीरं विनष्टुं प्रथमः रिपुः शरीरे एव स्थितः मन्युः भवति। येन प्रकारेण इन्धने स्थितः अग्निः इन्धनम् एव ज्वालयति तेनैव प्रकारेण देहे स्थितः कोपः मानवस्य कलेवरं देहं वा ज्वालयति।।

6. मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, …………………. समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्।।

भावार्थ – हरिणाः हरिणैः सह, धेनवः धेनुभिः सार्धम् अश्वाः हयैः साकमेव, वालिशाः वालिशैः समम् विद्वांसः विद्वद्भिः सार्धम् अनुगमनं कुर्वन्ति यतः मैत्री तु समान आचारवदभि समान स्वभावैः सहैव सम्भवति।

7. सेवितव्यो महावृक्षः …………………………… छाया केन निवार्यते।।

भावार्थ – फलैः छायया च उपेतं सम्पन्नं वा विशालं तरुमेव सेवेत यतः भाग्यवशात् चेत् फलं नापि भवतु तदा वृक्षस्य छायां को निवारयति (छाया तु प्राप्यते एव।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

8. अमन्त्रमक्षरं नास्ति ,…………………….. योजकस्तत्र दुर्लभः।।

भावार्थ – किञ्चिदपि वर्णं विवेकहीनं मन्त्रणा रहितं वा न भवति, कश्चिदपि मूलः औषधगुणैः विना न भवति न कोऽपि मनुष्यः योग्यता विहीनः भवति। एतेषु विषयेषु समन्वयकः संयोजकः वा दुष्प्राप्य भवति।

9. सम्पत्तौ च विपत्तौ ……………………. रक्तश्चास्तमये तथा।।

भावार्थ – महापुरुषाणां समृद्धौ अभ्युदये वा संकटे च समानमेव स्थितिः भवति। येन प्रकारेण सूर्यः उदिते सति लोहितः भवति। तेनैव प्रकारणं अस्तंगते च लोहितः भवति।

10. विचित्रे खलु संसारे ……………………….. भारस्य वहने खरः।।

भावार्थ – एतस्मिन् विविध रूपात्मके संसारे निश्चितमेव किञ्चिदपि निरर्थकं न भवति। यथा तुरगः धोरणे अर्थात् धावनकलायां कुशलः भवति तथा गर्दभः भारं बोढुं सक्षमः भवति।

अधोलिखितानां सूक्तीनां भावबोधनं सरलसंस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित सूक्तियों का भावबोधन सरल संस्कृत भाषा में लिखिए।)

(i) आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
भावार्थ – मनुष्याणाम् शरीरे स्थितम् आलस्यं तेषां महान् शत्रुः भवति।
(मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य उनका महान् शत्रु होता है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

(ii) नास्त्युद्यमसमो बन्धुः।
भावार्थ – परिश्रमेण तुल्यः न कोऽपि अन्यः कल्याणकारकः बन्धुः यतः श्रमं कृत्वा मनुष्यः कदापि दुःखं न अनुभवति।
(परिश्रम के समान कोई अन्य कल्याणकारी बन्धु नहीं है, क्योंकि मेहनत करके मनुष्य कभी दुःख का अनुभव नहीं करता अर्थात् पछताता नहीं।)

(iii) गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः।
भावार्थ – गुणवान् व्यक्ति एव गुणं जानाति गुणहीनः जनः गुणं न जानाति।
(गुणवान् व्यक्ति ही गुण को जानता है, गुणहीन व्यक्ति गुण को नहीं जानता।)

(iv) निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।
भावार्थ – यः मनुष्यः प्रयोजनं विचार्य क्रुद्ध्यति स मनुष्य: निश्चितम् एव क्रोधे दूरंगते प्रसन्नः भवति।
(जो मनुष्य प्रयोजन को विचार कर क्रोध करता है वह मनुष्य निश्चित ही क्रोध के दूर हट जाने पर प्रसन्न हो जाता है।)

(v) परेगितज्ञानफलाः हि बुद्धयः।
भावार्थ – बुद्धिमन्तः जनाः अन्येषां सङ्केतेन एव ज्ञान-फलं प्राप्नुवन्ति।
(बुद्धिमान् मनुष्य दूसरों के संकेत से ही ज्ञानरूपी फल को प्राप्त करते हैं।)

(vi) क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणाम्।
भावार्थ – मानवानां प्रथमः प्रमुखः वा अरिः क्रोधः भवति।
(मानवों का प्रथम अर्थात् मुख्य शत्रु क्रोध होता है।)

(vii) समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्।
भावार्थ – ये जनाः चरित्रेण स्वभावेन च सदृशाः सन्ति अर्थात् समानस्तरीयाः सन्ति तैः सह एव मैत्री सम्भवति।
(जो लोग चरित्र और स्वभाव से समान हैं अर्थात् समान स्तर के होते हैं उनके साथ ही दोस्ती सम्भव होती है।)

(viii) सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।
भावार्थ – महापुरुषाः धीराः वा सुखेषु दुःखेषु च समानभावेन एव तिष्ठन्ति।
(महापुरुष अथवा धीर पुरुष सुख और दुःखों में समान भाव ही रहते हैं।)

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(ix) दिते सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा।
भावार्थ – यथा सूर्यः प्रातःकाले उदये ताम्रवर्णः भवति। सायंकाले च अपि ताम्रः एव भवति, तथैव महापुरुषाः पि दुःखेषसुखेषु वा प्रसन्नाः एव भवन्ति।
(जैसे सूर्य प्रातःकाल उदय होने पर लाल रंग का होता है और सायंकाल में भी लाल ही होता है, उसी प्रकार महापुरुष भी दु:खों या सुखों में प्रसन्न ही रहते हैं।)

सुभाषितानि Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय : ‘सु’ उपसर्गपूर्वक ‘भाष्’ (बोलना) धातु में ‘क्त’ प्रत्यय जुड़कर ‘सुभाषित’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ है – अच्छी तरह बोला हुआ अर्थात् सत्य, कल्याणकारी। संस्कृत साहित्य में यत्र-तत्र-सर्वत्र उदात्त भावों एवं सार्वभौम सत्य को व्यक्त करने वाली ये अमृतवाणियाँ प्रचुर रूप में विद्यमान हैं। इन्हीं अमृतमय वाणियों को संस्कृत में सुभाषित कहा गया है। प्रस्तुत पाठ में विभिन्न संस्कृत-ग्रन्थों से ऐसे ही दस सुभाषितों का संकलन किया गया है। इनमें परिश्रम की महत्ता, क्रोध के दुष्प्रभाव, सभी वस्तुओं की उपादेयता और बुद्धि की विशेषता आदि जीवनोपयोगी जीवन-मूल्यों का वर्णन है। व्यावहारिक जीवन में इनका प्रयोग करके व्यक्ति न केवल अपना, अपितु प्राणिमात्र का कल्याण कर सकता है।

मूलपाठः, अन्वयः,शब्दार्थाःसप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

1 आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।1।।

अन्वयः – हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः आलस्यम् (अस्ति)। उद्यमसमः बन्धुः न अस्ति यं कृत्वा (मानव:) न अवसीदति।

शब्दार्थाः – हि = निश्चयेन (निश्चित ही)। आलस्यम् = निरुद्यमम् (आलस्य)। (अस्ति = है)। मनुष्याणाम् = मानवानाम् (मनुष्यों के)। शरीरस्थः = देहेस्थितः (शरीर में स्थित)। महान् रिपुः = महान् शत्रुः (बड़ा शत्रु)। उद्यमसमः = परिश्रमेण सदृशः, तुल्यः (परिश्रम के समान)। बन्धुः = भ्राता (भाई)। नास्ति = न वर्तते (नहीं है)। यं कृत्वा = यं विधाय, यं सम्पाद्य (जिसे करके)। मानवः = मनुष्यः (पुरुष)। न अवसीदति = दुःखं न अनुभवति (दुःखी नहीं होता)।

संदर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक शेमुषी के ‘सुभाषितानि’ पाठ से उद्धत है। इस श्लोक भर्तृहरि के नीति शतक से संकलित है। इस श्लोक में कवि ने आलस्य को मानव का शरीर में ही रहने वाला अर्थात् निकटतम शत्रु के रूप में वर्णन किया है।

हिन्दी-अनुवादः – कवि कहता है कि निश्चित ही आलस्य मनुष्यों के शरीर में स्थित महान् शत्रु है। परिश्रम के समान कोई बन्धु नहीं है, जिसे करके (मनुष्य) दुःखी नहीं होता।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

2 गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो, बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः, करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ।।2।।

अन्वयः – गुणी गुणं वेत्ति, निर्गुणः (गुणं) न वेत्ति। बली बलं वेत्ति, निर्बलः (बलं) न वेत्ति। वसन्तस्य गुणं पिक: (वेत्ति), वायसः न (वेत्ति), सिंहस्य बलं करी (वेत्ति) मूषकः न।

शब्दार्थाः – गुणी = गुणवान् एव (गुणवान् ही)। गणम् = वैशिष्ट्यम् (विशेषता या गुण को)। वेत्ति = जानाति (जानता है)। निर्गुणः = गुणहीनः (गुणहीन व्यक्ति)। गुणं न वेत्ति = गुणं, वैशिष्ट्यं न जानाति (गुण नहीं जानता)। बली = बलवान् एव, (बलवान् ही)। बलं वेत्ति = शक्तिं जानाति (ताकत को जानता है)। निर्बलः = बलहीन: (बलरहित)। बलं = शक्तिम् (ताकत को)। वसन्तस्य गुणं = ऋतुराजस्य वैशिष्ट्यम् (वसन्त के गुण को)। पिकः एव = (कोयल ही)। वेत्ति = जानाति (जानती है)। वायसः = काकः (कौवा)। न वेत्ति = न जानाति (नहीं जानता)। सिंहस्य बलम् = केसरिणः शक्तिं (सिंह के बल को)। करी = गजः (हाथी)। वेत्ति = जानाति (जानता है)। मूषकः = आखुः (चूहा)। न वेत्ति = न जानाति (नहीं जानता)।

संदर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी शेमुषी पाठ्य-पुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक मूलतः भर्तृहरिकृत नीति शतक से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि गुणवान् ही गुण को और बलवान ही बल को जान सकता है जैसे वसन्त को कोयल जान सकती है न कि कौआ।

3 निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति, ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।
अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै, कथं जनस्तं परितोषयिष्यति ।। 3।।

अन्वयः – यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति, सः तस्य अपगमे ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मन: अकारणद्वेषि (अस्ति), तं जनः कथं परितोषयिष्यति।

शब्दार्थाः – यः = यो मनुष्यः, (जो मनुष्य)। निमित्तम् = कारणम् (कारण को)। उद्दिश्य = लक्ष्यं कृत्वा आधृत्य (लक्ष्य करके या आधार कर)। प्रकुप्यति = अतिकोपं करोति (अत्यधिक क्रोध करता है)। सः = असौ (वह)। तस्य = अमुष्य (उसके)। अपगमे = समाप्ते (समाप्त होने पर)। ध्रुवम् = निश्चितमेव (अवश्य ही)। प्रसीदति = प्रसन्नः भवति (प्रसन्न होता है)। यस्य मनः = यस्य चित्तः (जिसका मन)। अकारणद्वेषि = विनैव कारणं, हेतुम् द्वेषी, ईष्यालुः, अकारण द्वेषं करोति इति अकारणद्वेषि तद्वद् मनः यस्य सः (अकारण ही द्वेष करने वाला मन है जिसका जो कि बिना कारण के द्वेष करने वाला है)। तम् = अमुम् (उसको)। जनः = लोकः (लोग)। कथम् = कस्मात्, (किसलिए)। परितोषयिष्यति = परितोषं दास्यति, (सन्तुष्ट करेगा)।

सन्दर्भ: – प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक मूलत: भर्तृहरिकृत नीति शतक से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि अकारण क्रोध के विषय में भी भर्त्सना करते हुए कहता

हिन्दी-अनुवादः – कवि कहता है कि जो मनुष्य कारण को आधार बनाकर अर्थात् किसी कारणवश अत्यधिक क्रोध करता है, वह उस कारण के समाप्त हो जाने पर अवश्य ही प्रसन्न हो जाता है (परन्तु) जिसका मन बिना किसी कारण के द्वेष करने वाला होता है उसको लोक कैसे सन्तुष्ट करेगा ?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

4. उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते, हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
अनुक्तमप्यूहति पण्डितोजनः, परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ।।4।।

अन्वयः – पशुना अपि उदीरितः अर्थः गृह्यते, हयाः नागाः च बोधिताः (भारं) वहन्ति। (परञ्च) पण्डितः जनः अनुक्तम् अपि ऊहति (यतः) बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति।

शब्दार्थाः – पशुना अपि = श्वापदेन अपि (पशु द्वारा भी)। उदीरितः = उक्तः, कथितः (कहा हुआ)। अर्थः गृह्यते – अभिप्रायः प्राप्यते (अर्थ को ग्रहण कर लिया जाता है)। हयाः = अश्वाः (घोड़े)। नागा: = गजाः, हस्तिनः (हाथी)। बोधिता: = उपदिष्टाः, अनुबोधिताः (बताये या समझाये हुए)। भारं = (बोझ को)। वहन्ति = वहनं कुर्वन्ति, नयन्ति (ढोते हैं)। (परञ्च = परन्तु)। पण्डितः जनः = प्राज्ञः, विद्वान् मनुष्यः (विद्वान् व्यक्ति)। अनुक्तमपि = अनुपदिष्टमपि (बिना कहे ही)। ऊहति = निर्धारयति, अनुमन्यते (अनुमान लगाता है)। (यतः = क्योंकि) बुद्धयः = बुद्धिमन्तः, मतिमन्तः (बुद्धिमान् लोग)। परेगितज्ञानफलाः = परेण इङ्गितं ज्ञानम्, इङ्गितं ज्ञानमेव फलं यस्याः सा, ताः अन्यैः कृतैः सङ्केतैः लब्धज्ञानाः (सङ्केतरूपी ज्ञानजन्य फल वाले)। भवन्ति = सन्ति (होते हैं)।

सन्दर्भ:-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी शेमुषी पाठ्यपुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह श्लोक भर्तृहरि रचित नीति शतक से सङ्कलित है। श्लोक में कवि कहता है कि सभी प्राणी अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार ग्रहण करते हैं।

हिन्दी-अनुवादः – पशु भी कहे हुए के आशय को ग्रहण कर लेता है। हाथी-घोड़े भी बताए जाने पर बोझा ढोते हैं, परन्तु विद्वान् मनुष्य बिना कहे ही अनुमान लगा लेते हैं (समझ लेते हैं) क्योंकि बुद्धिमान् लोग सङ्केतरूपी ज्ञानजन्य फल वाले होते हैं।

5. क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां, देहस्थितो देहविनाशनाय।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः, स एव वह्निर्दहते शरीरम् ।।5।।

अन्वयः – नराणां देहविनाशनाय प्रथमः शत्रुः देहस्थितः क्रोधः। यथा काष्ठगतः स्थितः वह्निः काष्ठम् एव दहते (तथैव शरीरस्थः क्रोधः) शरीरं दहते।

शब्दार्थाः – नराणां = मनुष्याणाम् (मनुष्यों के)। देहविनाशनाय = शरीरस्य विनाशाय, शरीरं विनष्टुम् (शरीर का विनाश करने के लिए)। प्रथमः शत्रुः = प्रमुखः रिपुः (पहला शत्रु)। देहस्थितः = शरीरस्थः (शरीर में स्थित)। क्रोधः = मन्युः (क्रोध है)। यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार से)। काष्ठगतः = इन्धने स्थितः (लकड़ियों में रहने वाली)। वह्निः = अग्निः (आग)। काष्ठम् एव = इन्धनमेव (लकड़ी को ही)। दहते = ज्वलयति (जलाती है)। तथैव शरीरस्थः क्रोधः = तेनैव प्रकारेण देहस्थः कोपः (उसी प्रकार देह में स्थित क्रोध)। शरीरं = देहम्, कलेवरम् (शरीर को)। दहते = ज्वालयति (जला देता है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक शेमुषी के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है मूलत: यह श्लोक कवि भर्तहरि रचित नीति शतक से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि लकड़ी में स्थित आग की तरह मनुष्य के शरीर में क्रोध होता है जो शरीर को जला देता है।

हिन्दी-अनुवादः – मनुष्यों के शरीर का विनाश करने के लिए पहला शत्रु शरीर में स्थित क्रोध है। लकड़ियों में रहने वाली अग्नि जैसे लकड़ी को जला देती है उसी प्रकार देह में स्थित क्रोध शरीर को जला देता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

6. मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, गावश्च गोभिः तुरगास्तुरङ्गैः।।
मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीभिः, समान-शील-व्यसनेषु सख्यम् ।।6।।

अन्वयः – मृगाः मृगैः संगम् गावश्च गोभिः (सह), तुरगाः तुरङ्गैः (सह), मूर्खाः मूर्खः (सह), सुधियः सुधीभिः (सह), अनुव्रजन्ति। सख्यम् समानशील-व्यसनेषु (भवति)।

शब्दार्थाः – मृगाः = हरिणाः (हिरन)। मृगैः = हरिणैः (हिरनों के)। सङ्गम् = सह, साकम्, सार्धम्, समम् (साथ)। गावश्च = धेनवश्च (और गायें)। गोभिः = धेनुभिः (गायों के)। सह = सार्धम् (साथ)। तुरगाः = अश्वाः (घोड़े)। तुरङ्गैः सह = अश्वैः, हयैः सार्धम् (घोड़ों के साथ)। मूर्खाः = बालिशाः (मूर्ख)। मूखैः = बालिशैः (मूों के)। सह = समम् (साथ)। सुधियः = विद्वांसः (विद्वान् लोग, मनीषी लोग)। सुधीभिः सह = विद्वद्भिः सार्धम् (विद्वानों के साथ)। अनुव्रजन्ति = अनुगच्छन्ति, अनुसरन्ति (पीछे-पीछे जाते हैं, अनुगमन करते हैं)। सख्यम् = मैत्री (मित्रता)। समान-शील-व्यसनेषु = तुल्याचरणेषु स्वभावेषु च (समान आचरण और स्वभाव वालों में)। भवति = होती है।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक शेमुषी के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक कवि भर्तृहरि कृत नीति शतक से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि मैत्री तो समान शील, समान आचरण एवं व्यसन वालों में ही होती है।

हिन्दी-अनुवादः – हरिण हरिणों के साथ और गायें गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूों के साथ (और) विद्वान् विद्वानों के साथ अनुगमन करते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

7. सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
यदि दैवात् फलं नास्ति, छाया केन निवार्यते ।।7।।

अन्वयः – फलच्छाया समन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः। दैवात् यदि फलं नास्ति, (वृक्षस्य) छाया केन निवार्यते।

शब्दार्थाः – फलैः छाया च = (फलों और छाया से)। समन्वितः = युक्तः, उपेतः (युक्त)। महावृक्षः = विशालतरुः (विशाल पेड़)। सेवितव्यः = आश्रयितव्यः (आश्रय लेना चाहिए)। दैवात् = भाग्यवशात्, दिष्ट्या (भाग्य से)। यदि = चेत् (यदि)। फलं नास्ति = परिणाम, फलं न भवति, प्राप्नोति (फल नहीं होता है)। वृक्षस्य = (वृक्ष की)। छाया केन निवार्यते = छायां कः निवारयति (छाया को कौन रोक सकता है)। (छाया तु प्राप्यते एव = छाया तो मिलती ही है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी शेमुषी पाठ्यपुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक भर्तृहरि के नीति शतक से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि महावृक्ष के बहाने से कहता है कि मनुष्य को महापुरुष की सेवा करनी चाहिए क्योंकि वह हित ही करता है।

हिन्दी अनुवादः – फलों और छाया से युक्त विशाल पेड़ का ही आश्रय लेना चाहिए। भाग्य से यदि फल (परिणाम) न मिले तो छाया को कौन रोक सकता है अर्थात् छाया तो मिलती ही है।

8 अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः ।।8।।

अन्वयः – अमन्त्रम् अक्षरं नास्ति, अनौषधं मूलं नास्ति, अयोग्यः पुरुषः नास्ति, तत्र योजक: (एव) दुर्लभः (अस्ति)।

शब्दार्थाः – अमन्त्रम् = न मन्त्रम्, विवेकहीनं (मन्त्रहीन)। अक्षरम् = वर्णम् (अक्षर)। नास्ति = न वर्तते (नहीं है)। अनौषधम् = न औषधम्, औषधीयगुणविहीनम् (औषधीय गुणों से रहित)। मूलम् = अधोभागम्, आधारम् (जड़)। नास्ति = न विद्यते (नहीं है)। अयोग्यः = न योग्यः, (अज्ञानी)। पुरुषः = मनुष्यः, मानवः (मनुष्य)। नास्ति = न भवति (नहीं होता है)। तत्र = एतेषु विषयेषु (इन विषयों में)। योजकः = समन्वयकः, संयोजकः (समझने वाला, जोड़ने वाला ही)। दुर्लभः = दुष्प्राप्यः, दुष्करेण लभ्यः (दुर्लभ है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक मूलतः नीतिशतक से लिया गया है। इस पद्य में कवि कहता है कि इस जगत् में कुछ भी व्यर्थ नहीं होता, केवल संयोजक की अपेक्षा की जाती है।

हिन्दी-अनुवादः – न मनन करने योग्य (विवेकहीन) कोई अक्षर नहीं है। औषधीय गुणों से रहित कोई जड़ नहीं है। (कोई) मनुष्य अज्ञानी नहीं है। वहाँ (इन विषयों में तो) जोड़ने वाले (संयोजक) की आवश्यकता है अर्थात् वहाँ जोड़ने वाला ही दुष्प्राप्य है।।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

9. सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।
उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा ।।9।।

अन्वयः – महताम् सम्पत्तौ विपत्तौ च एकरूपता भवति। (यथा) सविता उदये रक्तः (भवति) तथा (एव) अस्तमये (अपि) च रक्तः भवति।

शब्दार्थाः – महताम् = महापुरुषाणाम् (महापुरुषों की)। सम्पत्तौ = समृद्धौ, अभ्युदये (समृद्धि में, ऐश्वर्य में)। विपत्तौ = आपत्तौ, संकटे (विपत्ति आने पर, संकट में)। च एकरूपता = समानमेव (एक जैसा)। भवति = आचरणम् स्थितिर्वा भवति (व्यवहार या स्थिति होती है)। यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार से)। सविता = सूर्यः (सूर्य)। उदये = उदिते सति (उदय होने पर)। रक्तः = लोहितः, शोण: (लाल)। भवति = (होता है)। तथा एव = तेनैव प्रकारेण (उसी प्रकार)। अस्तमये च = अस्तं गते च (और अस्त होने पर)। रक्तः = शोणः, लोहितः (लाल)। भवति = होता है।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक मूलतः भर्तृहरि रचित नीति शतक से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि महापुरुषों के स्वभाव का वर्णन करता है। महापुरुष सुख और दुःख में एक रूप (समान) रहते हैं।

हिन्दी-अनुवादः – महापुरुषों की स्थिति समृद्धि एवं संकट में एक जैसी होती है। जिस प्रकार सूर्य उदय होने पर लाल होता है और अस्त होने पर भी लाल ही होता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 6 सुभाषितानि

10. विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः ।।10।।

अन्वयः – (अस्मिन्) विचित्रे संसारे खलु किञ्चित् निरर्थकं न। अश्वः चेत् धावने वीरः (तर्हि), भारस्य वहने खरः (वीरः) अस्ति।

शब्दार्थाः – (अस्मिन् = इस)। विचित्रे = विविधरूपात्मके, अद्भुते (अद्भुत)। संसारे = विश्वे, लोके (संसार में)। खलु = निश्चितमेव (निश्चित ही)। किञ्चित् निरर्थकम् = किञ्चित् व्यर्थम् (अनुपयोगी)। न = न (वर्तते) (नहीं है)। अश्वः = हयः, तुरगः (घोड़ा)। चेत् = यदि। धावने = धावनकलायाम् (दौड़ने की कला में)। वीरः = समर्थः, सक्षमः, कुशलः (योग्य है)। तर्हि, = तो। भारस्य वहने = भारं वोढुम् (बोझा ढोने में)। खरः = गर्दभः (गधा)। वीरः = समर्थः, सक्षमः (योग्य)। अस्ति = भवति (है)।।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सुभाषितानि’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक कवि भर्तृहरि रचित नीति शतक से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि इस संसार में कुछ भी निरर्थक नहीं है।

कुछ भी अनुपयोगी नहीं है। घोड़ा यदि दौड़ने की कला में कुशल (योग्य) है, तो गधा भार ढोने में योग्य होता है।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions रचना चित्राधारित वर्णनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit Rachana चित्राधारित वर्णनम्

परिचय – ‘चित्राधारितवर्णनम्’ चित्रों के आधार पर लिखा जाने वाला अनुच्छेद या कथांश होता है अर्थात् चित्र-वर्णन में कोई भी सामान्य चित्र देकर उसका वर्णन करने को कहा जाता है। यह वर्णन मंजूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से करना होता है। इस प्रकार इस प्रश्न का उत्तर लिखने के लिए शब्दों के वाक्य-प्रयोग का गहन और निरन्तर अभ्यास छात्रों द्वारा किया जाना चाहिए।

सामान्य निर्देश – चित्र-वर्णन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. चित्र-वर्णन में एक ही भाव अथवा विचार प्रस्तुत करना चाहिए।
  2. भूमिका एवं उपसंहार नहीं होना चाहिए।
  3. विषय का प्रारम्भ शीघ्र ही करना चाहिए।
  4. वाक्य आपस में सम्बद्ध होने चाहिए।
  5. विशेषतः वाक्यों में रोचकता होनी चाहिए।
  6. भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहयुक्त होनी चाहिए।
  7. वाक्य बहुत बड़े नहीं होने चाहिए।
  8. वाक्य अधिक छोटे भी नहीं होने चाहिए।
  9. चित्र का वर्णन मंजूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से ही करना चाहिए।
  10. मंजूषा के शब्दों का प्रयोग चित्र के अनुसार ही करना चाहिए।
  11. चित्र को ध्यान में रखकर शब्दों के लिंग, वचन और पुरुष में परिवर्तन किया जा सकता है।
  12. चित्र-वर्णन में उसका केन्द्रीय भाव अथवा शिक्षा आवश्यकतानुसार प्रारम्भ या अन्त में देना चाहिए।

यहाँ पर चित्र-वर्णन के कुछ उदाहरण देकर उन्हें हल करके समझाया गया है। इनके गहन अध्ययन के द्वारा ही इनके लेखन में निपुणता प्राप्त की जा सकती है।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

1. निम्नाङ्कितं चित्रं दृष्ट्वा प्रदत्तसंकेतपदानां साहाय्येन स्वविद्यालयस्य विषये षष्ठवाक्यानि लिखतु।
(निम्नांकित चित्र को देखकर दिये गये संकेत पदों की सहायता से अपने विद्यालय के विषय में छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – ग्रामस्य मध्ये, विंशतिः, कक्षाः, षोडश अध्यापकाः, उद्यानम्, क्रीडाङ्गणम् मध्यान्तरे, क्रीडन्ति, अतीवसुन्दरः।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 1
उत्तरम् :
1. अयम् विद्यालयः ग्रामस्य मध्ये स्थितः अस्ति। (यह विद्यालय गाँव के बीच में स्थित है।)
2. विद्यालये विंशति कक्षाः सन्ति। (विद्यालय में बीस कमरे हैं।)
3. अस्मिन् विद्यालये षोडश अध्यापकाः सन्ति। (इस विद्यालय में सोलह अध्यापक हैं।)
4. मम विद्यालस्य एकम् क्रीडाङ्गणम् अपि अस्ति। (मेरे विद्यालय का एक खेल मैदान भी है।)
5. बालकाः मध्यान्तरे क्रीडन्ति। (बालक मध्यावकाश में खेलते हैं।)
6. मम विद्यालयः अतीव सुन्दरः अस्ति। (मेरा विद्यालय अत्यन्त सुन्दर है।)

2. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया अस्माकं जीवने वृक्षाणाम् उपयोगिता’ इति विषये षष्ठवाक्यानि लिखतु। (चित्र देखकर मन्जूषा में दिये गये शब्दों की सहायता से ‘हमारे जीवन में वृक्षों की उपयोगिता’ इस विषय पर छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – अस्मिन् युगे, उपयोगिता, प्राणवायुं, पर्यावरणं, दृश्यते, फलानि, प्राप्नुम; छाया, काष्ठानि, खगाः, वृक्षाणां कर्तनं नैव।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 2
उत्तरम् :
1. अस्मिन् युगे वृक्षाणाम् अत्यधिकं महत्वं अस्ति। (इस युग में वृक्षों का अत्यधिक महत्व है।)
2. वृक्षाः अस्मभ्यम् प्राणवायुं प्रयच्छन्ति। (वृक्ष हमारे लिए प्राणवायु (आक्सीजन) देते हैं।)
3. वृक्षैः पर्यावरणं शुद्धं भवति। (वृक्षों द्वारा पर्यावरण शुद्ध होता है।)
4. वृक्षाः अस्मभ्यम् छाया यच्छन्ति। (वृक्ष हमारे लिए छाया देते हैं।)
5. खगाः वृक्षेषु तिष्ठन्ति। (पक्षी वृक्षों पर बैठते हैं।)
6. जनाः वृक्षाणां कर्तनं नैव कुर्यः। (मनुष्यों को वृक्ष नहीं काटना चाहिए।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

3. निम्नाङ्कितं चित्रं दृष्ट्वा प्रदत्तसंकेतपदैः षष्ठवाक्यानि लिखत। (नीचे अङ्कित चित्र देखकर दिये गये संकेत पदों से छ: वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – राजमार्गस्य चित्रम्, वाहनानि, शीघ्रं गृहं, भारयुक्तवस्तूनि, प्रेषयितुं, शक्नुवन्ति, दुर्घटनाः सावधानेन, चालयामः, सम्भावनाः।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 3
उत्तरम् :
1. इदम् राजमार्गस्य चित्रम् अस्ति। (यह सड़क (राजमार्ग) का चित्र है।)
2. राजमार्गे अनेकानि वाहनानि चलन्ति। (राजमार्ग पर अनेक वाहन चलते हैं।)
3. राजमार्गे वाहनेन वयं शीघ्रं गृहं गच्छामः। (राजमार्ग पर वाहन के द्वारा हम शीघ्र घर को जाते हैं।)
4. जनाः राजमार्गे वाहनैः भारयुक्तवस्तूनि नयन्ति। (मनुष्य राजमार्ग पर वाहनों द्वारा भारी वस्तुओं को ले जाते हैं।)
5. जनाः अनेकानि वस्तूनि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति। (मनुष्य अनेक वस्तुएँ भेज सकते हैं।)
6. प्रतिदिनं राजमार्गे दुर्घटनाः भवन्ति। (प्रत्येक दिन राजमार्ग पर दुर्घटनाएँ होती हैं।)

4. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया ‘धेनु-महिमा’ इति विषयोपरि संस्कृत षष्ठवाक्यादि लिखत। (निम्न चित्र को देखकर मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘धेनु-महिमा’ इस विषय पर संस्कृत में छः वाक्य लिखिए)
मञ्जूषा – दुग्धदातृषु, द्वौ शृंगौ, वसिष्ठ ऋषिः, घासं, अमृतोपमम्, स्वभावेन।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 4
उत्तर :
(i) धेनुः अस्मभ्यं महदुपयोगी पशुः अस्तिः।।
(ii) अस्या महत्त्वं शास्त्रेषु वर्णितम्।
(ii) अमृतोपम् दुग्धदातृषु अस्मान् पोषयति।
(iv) धेनुः तृणानि स्वीकृत्य अमृतोपमं दुग्धं प्रयच्छति।
(v) अस्या गोमयेन अद्यापि ग्रामेषु गृहाणि लिम्प्यन्ते शुद्धयन्ते च।
(vi) अस्माभि सर्वेरपि सरलस्वभावेन धेनुः सर्वदा पूज्येत।
(गाय हमारे लिए बहुत उपयोगी पशु है। इसका महत्व शात्रों में वर्णित है। अमृत के समान दूध देकर हमारा पोषण करती है। गाय घास (तिनके) स्वीकार करके (खाकर) अमृत के समान दूध देती है। इसके गोबर से आज भी गाँवों में घरों को लीपकर शुद्ध किया जाता है। हमें भी सरल स्वभाव गाय की सदा पूजा करनी चाहिए।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

5. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया ‘काकस्य चातुर्यम्’ इति कथां लिखत। (निम्न चित्र को देखकर मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘कौआ की चतुराई’ इस कहानी को लिखो।)
मञ्जूषा – एकः काकः, पिपासितः, घटे, न्यूनं जलं, प्रस्तर-खण्डान्, उपरि आगच्छति, पिपासा शान्ता।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 5
उत्तर :
(i) एकदा अत्यन्तपिपासितः एकः काकः जलं पातुम् इतस्ततः गच्छति।।
(ii) भ्रमता तेन एक: घटः दृष्टः।
(iii) घटे न्यूनं जलम् आसीत्।
(iv) सः मनसि विचार्य एकैकशः प्रस्तरखण्डान् आनयति घटे च पातयति।
(v) तेन जलं शनैः शनैः उपरि आगच्छति।
(vi) एवं तस्य पिपासा शान्ता भवति।
(एक बार अत्यन्त प्यासा एक कौआ जल पीने हेतु इधर-उधर जाता है। भ्रमण करते हुए उसने एक घड़ा देखा। घर में पानी कम था। वह मन में विचार कर एक-एक कंकड़ लाता है और घड़े में गिराता है। उससे पानी धीरे-धीरे ऊपर न जाता है। इस प्रकार उसकी प्यास शान्त हो जाती है।)

6. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया ‘पर्यावरण-प्रदूषणम्’ इति विषयोपरि संस्कृति षष्ठवाक्यानि लिखत। (निम्न चित्र को देखकर मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘पर्यावरण-प्रदूषणम्’ इस विषय पर संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।)
[मञ्जूषा – पर्यावरणम्, महानगरमध्ये, वाहनानि, धूमं मुञ्चति, दूषितं, ध्वनि-प्रदूषणं, वायुमण्डलं, शुचिः।]
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 6
उत्तर :
(i) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति।
(ii) अहर्निशं लौहचक्रस्य संचरणात् वाहनानां बाहुल्यात् च महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते।
(iii) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
(iv) महानगरमध्ये ध्वनि-प्रदूषण अपि कर्णौ स्फोटयति।
(v) शुचिः पर्यावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति।
(vi) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
(अब वायुमण्डल अत्यधिक प्रदूषित है। दिन-रात लौहचक्र के घूमने से तथा वाहनों के बहुतायत के कारण महानगरों में चलना कठिन है। मोटर गाड़ी काजल की तरह मलिन धुआँ छोड़ती हैं। महानगर के मध्य में ध्वनि प्रदूषण कानों को फोड़ता है। शुद्ध पर्यावरण में क्षणभर घूमना भी लाभदायक है। पर्यावरण का संरक्षण ही प्रकृति की आराधना है।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

7. अधोदत्तं चित्रं पश्यत। शब्दसूची-सहायतया चित्रम् आधृत्य संस्कृतेन षष्ठवाक्यानि उत्तरपुस्तिकायां लिखत। (नीचे दिए गए चित्र को देखिए। शब्द-सूची की सहायता से चित्र के आधार पर संस्कृत में छः वाक्य उत्तर
पुस्तिका में लिखिए।)
[मञ्जूषा – चित्रं, पितुः, राष्ट्रपिता, नाम, प्रदेशे, अभवत्, स्वतंत्रता-आन्दोलनेन, सत्यस्य, अहिंसायाः, अकरोत्, महापुरुषः]
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 7
उत्तर :
(i) इदं चित्रं महात्मागान्धीमहोदयस्य अस्ति।
(ii) गान्धीमहोदयस्य नाम मोहनदासकरमचन्दगान्धी आसीत्।
(iii) मोहनस्य पितुः नाम करमचन्दः मातुः नाम च पुतलीबाई आसीत्।
(iv) तस्य स्वतंत्रता – आन्दोलनेन भारतं स्वतंत्रम् अभवत्।
(v) सः सत्यस्य अहिंसायाः च उपदेशम् अकरोत्।
(vi) गांधी महोदयः अस्माकं राष्ट्रपिता अस्ति।
(यह चित्र महात्मा गाँधी महोदय का है। गाँधी महोदय का नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। मोहन के पिता का नाम करमचन्द और माता का नाम पुतलीबाई था। उनके स्वतंत्रता आन्दोलन से भारत स्वतंत्र हो गया। उन्होंने सत्य और अहिंसा का उपदेश किया। गांधीजी हमारे राष्ट्रपिता हैं।)

8. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया द्वयोर्विवादे तृतीयस्य सिद्धिः’ इति कथां लिखत। (निम्न चित्र को देखकर मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘द्वयोर्विवादे तृतीयस्य सिद्धिः’ कथा को लिखिए।)
मञ्जूषा – विवदमानौ, द्वौ बिडालौ, उद्याने गतवन्तौ, वानरः, विभक्तुं, एकां रोटिकां, लघुगुरुं, सर्वां खादति।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 8
उत्तर :
(i) एकदा द्वौ बिडालौ कस्मिंश्चिद् गृहात् एकां रोटिकां अलभताम्।
(ii) तां विभक्तुं विवदमानौ एकस्मिन् उद्याने गतवन्तौ।
(iii) तौ विवदमानौ बिडालौ दृष्ट्वा एक: वानरः तत्र आगतः।
(iv) सः रोटिकां खादितुम् इच्छन् विभक्तुम् अकथयत्।
(v) वानरः रोटिकां लघुगुरुं करोति।
(vi) गुरुं पुनः लघु करोति। एवं शनैः शनैः सर्वां खादति।
(एक दिन दो बिलावों ने किसी घर से एक रोटी प्राप्त की। बाँटने के लिए झगड़ते हुए वे एक बाग में गये। उन झगड़ते हुए बिलावों को देखकर एक बन्दर वहाँ आ गया। उसने रोटी को खाने की इच्छा करते हुए बाँटने के लिए कहा। बन्दर रोटी को छोटी बड़ी कर देता है। बड़े को फिर छोटा कर देता है। इस प्रकार धीरे-धीरे सारी खा जाता है।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

9. अधः प्रदत्तं चित्रम् आधृत्य मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया षष्ठ संस्कृतवाक्यानि उत्तरपुस्तिकायां लिखत। (नीचे दिए चित्र के आधार पर मंजूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।)
मञ्जूषा – श्यामपट्टः, अध्यापकः, बालकाः, चित्रम्, काष्ठासनेषु, स्थिताः, प्रातः काले, उत्थापयन्ति।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 9
उत्तर :
(i) अस्मिन् चित्रे एकः अध्यापकः पाठयति।
(ii) कक्षे एकं चित्रं पुस्तकमंजूषा च अस्ति।
(iii) बालकाः पाठनसमये सावधानं भवन्ति।
(iv) अध्यापकस्य पार्वे श्यामपट्टः अस्ति सम्मुखे च पुस्तकम्।
(v) सर्वे बालकाः काष्ठासनेषु स्थिताः सन्ति।
(vi) बालकाः प्रात:काले उत्थापयन्ति। – (इस चित्र में एक अध्यापक पढ़ा रहा है। कमरे में एक चित्र और पुस्तक मंजूषा है। पढ़ने के समय बालक सावधान हो जाते हैं। अध्यापक के बगल में श्यामपट्ट है और सामने पुस्तक है। सभी बालक बेन्चों या कुर्सियों पर बैठे हैं। बालक प्रातःकाल उठते हैं।)

10. अधः प्रदत्तं चित्रम् आधृत्य मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दसहायतया षष्ठ संस्कृतवाक्यानि लिखत। (नीचे दिए चित्र के आधार पर मंजूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से छः संस्कृत के वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – आश्रमपदम्, शिष्याः, साधवः, नदीतटे, स्नानम्, वटुकाः, शृण्वन्ति, उटजेषु, निवसन्ति, बहवः।
JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 10
उत्तर :
(i) इदम् आश्रमपदम् अस्ति।
(ii) आश्रमः नदीतटे स्थितः।
(iii) अत्र वटुकाः गुरोः उपदेशं ध्यानेन शृण्वन्ति।
(iv) साधवः शिष्याः च नद्याः जले स्नानं कर्वन्ति।
(v) आश्रमे अनेका उटजाः सन्ति।
(vi) गुरुः, शिष्याः साधवः च उटजेषु निवसन्ति।
(यह आश्रम-स्थल है। आश्रम नदी के किनारे है। यहाँ विद्यार्थी गुरु के उपदेश को ध्यान से सुनते हैं। साधु और शिष्य नदी के जल में स्नान करते हैं। आश्रम में अनेक कुटियाँ हैं। गुरु, शिष्य और साधु कुटियों में रहते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

अभ्यासः

11. चित्रं दृष्ट्वा शब्दसूचीसहायतया संस्कृते षष्ठवाक्यानि लिखत। (चित्र को देखकर शब्द-सूची की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।) .
मञ्जूषा – वृक्षाः, मेधैः, कृषकः, महिला, कर्षति, क्षेत्रं, गगनं, आच्छादितम्, सिञ्चति, वपति, बीजं, अन्नं, आनयति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 11

12. अधः स्थं चित्रमवलोक्य मञ्जूषायां प्रदत्तानां शब्दानां सहायतया ‘लुब्धकः कुक्कुरः’ इति कथां लिखत। (नीचे के चित्र को देखकर मंजूषा में दिए हुए शब्दों की सहायता से ‘लुब्धकः कुक्कुरः’ इस कहानी को लिखिए।)
[मञ्जूषा – प्रतिबिम्बम्, विचिन्त्य, लुब्धकः कुक्कुरः, अपरः कुक्कुरः, नद्यास्तटे, नदी प्रविश्य, मम पार्वे, न कर्तव्यः।]

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 12

13. चित्रं दृष्ट्वा शब्दसूचीसहायतया संस्कृते षष्ठवाक्यानि लिखत। (चित्र को देखकर शब्द-सूची की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – नदी, रजकः, क्षालयति, वस्त्राणि, तरति, शुष्यन्ति, शिलापट्टके, पर्वतः, ग्रामे, गर्दभस्य, पृष्ठे, धृत्वा, नयति,
ग्रामीणाः, तम्, अन्नादिकं, प्रयच्छन्ति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 13

14. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया षष्ठ संस्कृतवाक्यानि लिखत। (चित्र को देखकर मञ्जूषा में दिए शब्दों की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – श्यामपट्टः, गणितस्य, अध्यापिका, बालकः, लिखितम्, प्रश्नाः, घटिका यन्त्रानुसारम्, समयः, नववादनः, सा, लिखति, स्व, पुस्तिकासु, पृच्छति, उत्तरं ददाति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 14

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

15. षष्ठषु संस्कृतवाक्येषु मञ्जूषाप्रदत्तपदसहायतया अधः दत्तं चित्रवर्णनं कुरुत। (छः संस्कृत वाक्यों में मञ्जूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से नीचे दिए गए चित्र का वर्णन कीजिए।)
मञ्जूषा – एकः, चतस्रः शाखाः, हरितैः, पत्रैः, पूर्णः, शुकः, सारिका, कोकिला, चटका, काष्ठछेदकः, स्कन्धं, तिष्ठन्ति, मण्डलाकारे, परितः, गीतं, नृत्य, कक्षासु, गमिष्यन्ति।

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16. षष्ठषु संस्कृतवाक्येषु मञ्जूषापदसहायतया निम्नलिखितं चित्रवर्णनं कुरुत। (छ: संस्कृत वाक्यों में मञ्जूषा के शब्दों की सहायता से निम्नलिखित चित्र का वर्णन कीजिए।)
मञ्जूषा – जलौघः, गृहाणि, ग्रामस्य, जलनिमग्नानि, क्षेत्राणि, जलम्, अजशावकः, गृहस्य उपरिष्टात् तले, स्थिताः, दुःखिताः, नौकया, स्थानेषु, नयन्ति, वितरणं, भोजनं, वस्त्राणाम्।

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17. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया ‘सिंहमूषिकयोः’ कथां लिखत। (नीचे चित्र देखकर मंजूषा में दिये शब्दों की सहायता से ‘सिंहमूषिकयोः’ कथा को लिखिए।)
मञ्जूषा – तेन कारणेन, क्षमस्व माम्, एका मूषिका, गृहीतवान्, शयानस्य, पाशबद्धः, पाशं छित्त्वा, दयार्द्रः सिंहः।

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JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

18. षष्ठ संस्कृतवाक्येषु मञ्जूषापदसहायतया अधः चित्रवर्णनं कुरुत। (छः संस्कृत वाक्यों में मञ्जूषा के शब्दों की सहायता से निम्न चित्र का वर्णन कीजिए।)
मञ्जूषा – परीक्षादिवसः, श्यामपट्टे, घटिकायन्त्रम्, भित्तौ, सपाद-अष्टवादनम्, परीक्षायाः, दृश्यते, यदा, घण्टाध्वनिः, अध्यापकमहोदयः, उत्तरपुस्तिकाः, प्रश्नपत्राणि वितरति, उत्तराणि।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 18

19. अधः स्थं चित्रम् अवलोक्य मञ्जूषादत्तपदानां सहायतया सोमशर्मपितुः कथाम्’ लिखत। (नीचे स्थित चित्र को देखकर मंजूषा में दिए हुए शब्दों की सहायता से ‘सोमशर्मपितुः कथाम्’ लिखिए।)
मञ्जूषा – भिक्षाटने, खट्वां निधाय, नागदन्ते, कृपणः ब्राह्मणः, धनमर्जित्वा, दुर्भिक्षकाले, येन भग्नः, अजाद्वयम्।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 19

20. चित्रं दृष्ट्वा शब्दसूचीसहायतया संस्कृते षष्ठवाक्यानि लिखत।
(चित्र को देखकर शब्द-सूची की सहायता से संस्कृत में छ: वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा- सागरतटस्य, नारिकेलवृक्षौ, नौकाः, जलपोताः, सागरे, विशालः, तरंगयति, नौकया, जनाः, मत्स्याखेट, वहन्ति, शुक्तयः, शंखाः, मौक्तिकादयः, वस्तूनि प्राप्यन्ते।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 20

21. चित्रं दृष्ट्वा शब्दसूचीसहायतया संस्कृते षष्ठवाक्यानि लिखत। (चित्र को देखकर शब्द-सूची की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – छात्राः, शिक्षकाः, पुस्तकालयः, तरणतालः, कक्षाः, क्रीडाक्षेत्रं, परितः, उद्यानं, अनुशासनं, पठन्ति, विद्यालयः,
पुस्तकानि, अभ्यासः।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 21

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

22. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तपदानां सहायतया ‘स्वर्णाण्डदा कुक्कुटी’ इति कथां लिखत।
(निम्न चित्र को देखकर मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘स्वर्णाण्डदा कुक्कुटी’ कहानी लिखिए।)
मञ्जूषा – महदुःखम्, व्यदारयत्, कर्त्तव्यः, एकः कृषकः, स्वर्णाण्डं, कुक्कुटपालनं, लुब्धः, ग्रहीतुमैच्छत्।।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 22

23. अधः प्रदत्तं चित्रम् आधृत्य मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दसहायतया षष्ठ संस्कृतवाक्यानि लिखत। (नीचे दिए गए चित्र के आधार पर मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – उद्यानं, वृक्षाः, लताः, पुष्पाणि, तडागः, जलयंत्रं, उत्पतति, उद्यानपालकः, वसंतऋतौ, कोकिलः, कूजन्ति।

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24. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तपदानां सहायतया ‘गजपिपीलिकयोः कथाम्’ लिखत। (निम्न चित्र को देखकर मञ्जूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘गजपिपीलिकयोः कथाम्’ कथा लिखिए।)
[मञ्जूषा – एक: गजः, एका पिपीलिका, तुच्छं मत्वा, नो चेत्, शुण्डाग्रं, सत्ता, हेतुमिच्छति, मर्दयिष्यामि।]

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 24

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

25. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया षष्ठ संस्कृतवाक्यानि लिखत।
(चित्र को देखकर मञ्जूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से संस्कृत में छ: वाक्य लिखिए ।)
मञ्जूषा – वर्षा, विद्यालयः, मेघाः, छत्रं, कक्षा, मार्गेषु, प्रवहति, घोरगर्जनं, पुनः पुनः, वज्रपातः, सदृशः शब्दः, वर्षावकाशः।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम् 25

अभ्यास-उत्तरमाला

11. (i) गगनं मेघैः आच्छादितम् । (ii) कृषक: हलं कर्षति । (iii) महिला क्षेत्रं गच्छति । (iv सन्ति । (v) कृषकः, क्षेत्र जलेन सिञ्चति । (vi) तदा सः क्षेत्रे बीजवपनं करोति।
(आकाश मेघों से ढका हुआ है । किसान हल जोतता है । औरत खेत पर जा रही है । बगल में वृक्ष हैं । किसान खेत को जल से सींचता है। फिर वह खेत में बीज बोता है।)

12. (i) एकस्मिन् ग्रामे एक: लुब्धः कुक्कुरः आसीत्। (ii) एकदा सः नद्याः तटे अगच्छत्। (iii) नद्याः जले प्रतिबिम्बं दृष्ट्वा सः मनसि अचिन्तयत् यद् अयम् अपरः कुक्कुरः। (iv) नदीं प्रविश्य अहम् अस्य कुक्कुरस्य अपि रोटिकाम् अपहरामि । (v) एवं मम पार्वे द्वे रोटिके भविष्यतः। (vi) यथा मुखं स्फारयति स्म तथैव तस्य रोटिका अपि जले पतति।

(एक गाँव में एक लोभी कुत्ता था। एक दिन वह नदी के किनारे गया। नदी के जल में परछाईं देखकर मन में सोचने लगा कि यह दूसरा कुत्ता है। नदी में घुसकर मैं इस कुत्ते की भी रोटी छीन लेता हूँ। इस प्रकार मेरे पास दो रोटियाँ हो जायेंगी। जैसे ही मुँह खोलता है वैसे ही रोटी भी जल में गिर जाती है।

13. (i) एका नदी प्रवहति पार्वे पर्वतः च अस्ति। (ii) एकः रजकः नद्याः जले शिलापट्टके वस्त्राणि क्षालयति। (iii) एकस्यां रज्ज्वां वस्त्राणि शुष्यन्ति । (iv) नद्यां बालकः तरति। (v) रजक: स्वच्छवस्त्राणि गर्दभपृष्ठे धृत्वा गृहं नयति। (vi) तदा सः वस्त्राणि ग्रामीणानां गृहेषु नयति।

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

14. अधः चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तपदानां सहायतया गजपिपीलिकयोः कथाम्’ लिखत। (निम्न चित्र को देखकर मञ्जूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘गजपिपीलिकयोः कथाम्’ कथा लिखिए।)
मञ्जूषा – एक: गजः, एका पिपीलिका, तुच्छं मत्वा, नो चेत्, शुण्डाग्रं, सत्ता, हेतुमिच्छति, मर्दयिष्यामि।

15. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया षष्ठ
(चित्र को देखकर मञ्जूषा में दिए गए शब्दों की सहायता से संस्कृत में छः वाक्य लिखिए।)
मञ्जूषा – वर्षा, विद्यालयः, मेघाः, छत्रं, कक्षा, मार्गेषु, प्रवहति, घोरगर्जनं, पुनः पुनः, वज्रपातः, सदृशः शब्दः, वर्षावकाशः।

अभ्यास-उत्तरमाला

11.  (i) गगनं मेघैः आच्छादितम्। (ii) कृषक: हलं कर्षति। (iii) महिला क्षेत्रं गच्छति। (iv) पार्वे वृक्षाः सन्ति। (v) कृषकः, क्षेत्रं जलेन सिञ्चति। (vi) तदा सः क्षेत्रे बीजवपनं करोति।
(आकाश मेघों से ढका हुआ है। किसान हल जोतता है। औरत खेत पर जा रही है। बगल में वृक्ष हैं। किसान खेत को जल से सींचता है। फिर वह खेत में बीज बोता है।)

12.  (i) एकस्मिन् ग्रामे एक: लुब्धः कुक्कुरः आसीत्। (ii) एकदा सः नद्याः तटे अगच्छत्। (iii) नद्याः जले प्रतिबिम्बं दृष्ट्वा सः मनसि अचिन्तयत् यद् अयम् अपरः कुक्कुरः। (iv) नदी प्रविश्य अहम् अस्य कुक्कुरस्य अपि रोटिकाम् अपहरामि। (v) एवं मम पार्वे द्वे रोटिके भविष्यतः। (vi) यथा मुखं स्फारयति स्म तथैव तस्य रोटिका अपि जले पतति।

(एक गाँव में एक लोभी कुत्ता था। एक दिन वह नदी के किनारे गया। नदी के जल में परछाईं देखकर मन में सोचने लगा कि यह दूसरा कुत्ता है। नदी में घुसकर मैं इस कुत्ते की भी रोटी छीन लेता हूँ। इस प्रकार मेरे पास दो रोटियाँ हो जायेंगी। जैसे ही मुँह खोलता है वैसे ही रोटी भी जल में गिर जाती है।

13. (i) एका नदी प्रवहति पार्वे पर्वतः च अस्ति। (ii) एकः रजकः नद्याः जले शिलापट्टके वस्त्राणि क्षालयति। (iii) एकस्यां रज्ज्वां वस्त्राणि शुष्यन्ति। (iv) नद्यां बालकः तरति। (v) रजक: स्वच्छवस्त्राणि गर्दभपृष्ठे धृत्वा गृहं नयति। (vi) तदा सः वस्त्राणि ग्रामीणानां गृहेषु नयति।

(एक नदी बह रही है और बगल में पहाड़ है। एक धोबी नदी के जल में शिलापट्ट पर वस्त्र धो रहा है। एक रस्सी पर कपड़े सूख रहे हैं। नदी में बालक तैर रहा है। धोबी स्वच्छ वस्त्रों को गधे की पीठ पर रखकर घर ले जाता है। तब वह वस्त्रों को ग्रामीणों के घरों पर ले जाता है।)

14. (i) एतस्मिन् चित्रे एका गणितस्य अध्यापिका गणितं पाठयति। (i) घटिकायन्त्रानुसारं नववादनः समयः अस्ति। (iii) बालकाः प्रश्नान् लेखितुम् उत्सुकाः सन्ति। (iv) अध्यापिकायाः पार्वे श्यामपट्टः अस्ति। (v) सा प्रश्नान्। श्यामपट्टे लिखति। (vi) बालकाः तान् प्रश्नान् स्व उत्तरपुस्तिकायां लिखन्ति।

(इस चित्र में गणित की एक अध्यापिका गणित पढ़ा रही है। घड़ी के अनुसार नौ बजे का समय है। बालक प्रश्न लिखने के लिए उत्सुक हैं। अध्यापिका की बगल में श्यामपट्ट है। वह प्रश्नों को श्यामपट्ट पर लिखती है। बालक उन प्रश्नों को अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

15. (i) एकः हरितैः पत्रैः पूर्णः वृक्षः तिष्ठति। (ii) वृक्षे चतस्रः शाखाः सन्ति। (iii) वृक्षस्य शाखाषु शुकः, सारिका, कोकिला, चटका, काष्ठछेदकः च पञ्च खगाः उपविशन्ति। (iv) बालकाः बालिकाश्च विशालं स्कन्धं परितः मण्डलाकारे तिष्ठन्ति। (v) बालक-बालिकाः समूहेषु तिष्ठन्ति। (vi) एका बालिका गीतं गायति।

(एक हरे पत्रों से भरा वृक्ष खड़ा है। वृक्ष में चार शाखाएँ हैं। वृक्ष की शाखाओं पर तोता, मैना, कोयल, गौरैया और कठफोड़ा पाँच पक्षी बैठे हैं। बालक और बालिकाएँ विशाल पेड़ के चारों ओर गोल घेरा बनाकर खड़े हैं। बालक-बालिकाएँ समूहों में बैठ जाते हैं। एक बालिका गीत गाती है।)

16. (i) ग्रामं परितः जलौघः। (ii) ग्रामस्य गृहाणि, क्षेत्राणि च जलनिमग्नानि सन्ति। (iii) सर्वत्र जलम् एव प्रवहति अन्यत् किमपि न दृश्यते। (iv) एका बालिका, एकः बालकः एकः अजशावकः च गृहस्य उपरिष्टात् तले स्थिताः अतीव दुःखिताः। (v) जनाः नौकाभिः तान् सुरक्षितस्थानेषु नयन्ति। (vi) नगरे जलौघपीडितेभ्यः शिविरम् अस्ति।

(गाँव के चारों ओर जल-समूह है। गाँव के घर और खेत जल में डूबे हुए हैं। सब जगह जल ही बह रहा है और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। एक लड़की, एक लड़का, एक बकरी का बच्चा घर के ऊपरी तल पर बैठे हुए अत्यन्त दुःखी हैं। लोग नावों से उनको सुरक्षित स्थानों पर ले जाते हैं। नगर में बाढ़ पीड़ितों के लिए शिविर हैं।)

17. (i) एकस्मिन् वने एका मूषिका एकः सिंहश्च निवसतः स्म। (ii) शयानस्य सिंहस्य उपरि मूषिका अभ्रमत् तेन कारणेन सिंह जागृतः। सः मूषिकां गृहीतवान्। (iii) मूषिका अवदत- ‘श्रीमन् ! अपराधं क्षमस्व मां मुञ्चतु। अहं ते (iv) दयाद्रः सिहः हसन् एव ताम् अत्यजत्। (v) एकदा वने सिहः पाशवद्धः अभवत्। (vi) मूषिका पाशं छित्वा सिंहः मुक्तम् अकरोत्।

(एक वन में एक चुहिया और एक सिंह रहते थे। सोते सिंह के ऊपर चुहिया घूमने लगी जिसके कारण शेर जाग गया। उसने चुहिया को पकड़ लिया। चुहिया बोली- ‘श्रीमन्! अपराध क्षमा करें। मुझे छोड़ दें। मैं तुम्हारा उपकार करूंगी।’ एक दिन वन में शेर जाल में फंस गया। चुहिया ने जाल काटकर सिंह को मुक्त कर दिया।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

18. (i) अद्य परीक्षादिवसः दृश्यते। (ii) भित्तौ घटिकायन्त्रं सपाद अष्टवादनं दर्शयति। (iii) परीक्षायाः समयः जातः। (iv) कक्षे श्यामपट्टे भारतवर्षस्य मानचित्रम् अपि दृश्यते। (v) यदा घण्टाध्वनिः भवति बालकाः कक्षासु प्रविशन्ति। (vi) अध्यापकमहोदयः उत्तरपुस्तिकानि प्रश्नपत्राणि च वितरति।

(आज परीक्षा दिवस दिखाई देता है। दीवार पर घड़ी सवा आठ बजा रही है। परीक्षा का समय हो गया है। कमरे में श्यामपट्ट पर भारत का मानचित्र भी दिखाई दे रहा है। जब घंटा ध्वनि होती है, छात्र कक्षा में प्रवेश करते हैं। अध्यापक महोदय उत्तरपुस्तिकाएँ और प्रश्नपत्र बाँटते हैं।)

19. (i) कस्मिंश्चित् नगरे एकः कृपणः ब्राह्मणः भिक्षाटनं कृत्वा उदरं पालयति स्म। (ii) भिक्षाटने सक्तून् प्राप्नोति, किञ्चित् खादति शेषान् घटे स्थापयति। (iii) पूर्णे घटे तं नागदन्ते अवलम्ब्य तस्य अधः खट्वां निधाय बद्धदृष्टिः अवलोकयति स्म। (iv) सः चिन्तयति यत् दुर्भिक्षकाले एतद् विक्रीय अजाद्वयं क्रेष्यामि। उत्तरोत्तरं व्यापारं कृत्वा धनम् अर्जित्वा विवाहं करिष्यामि। (v) मम पुत्रः भविष्यति यस्य नाम ‘सोमशर्मा’ इति करिष्यामि। (vi) क्रुद्धः अहं पत्नी पादेन ताडयिष्यामि एवं चिन्तयन् असौ पादेन घटम् अताडयत् येन भग्नः।

(किसी नगर में एक कंजस ब्राह्मण भिक्षाटन करके पेट पालता था। भिक्षा में सत्त प्राप्त करता है. कछ खा लेता है. शेष को घड़े में रख देती हैं। घड़ा पूरा होने पर खूटी से लटकाकर उसके नीचे खाट डालकर टकटकी लगाये देखता रहता था। वह सोचता है कि अकाल में इसे बेचकर दो बकरियाँ खरीदूँगा। उत्तरोत्तर व्यापार करके धन अर्जित करूँगा और विवाह करूँगा। मेरा बेटा होगा जिसका नाम ‘सोम शर्मा’ रखूगा। नाराज हुआ मैं पत्नी की लात मारूँगा। ऐसा सोचते हुए उसने पैर से घड़े में लात मारी, जिससे टूटा हुआ घड़ा नीचे गिर गया।)

20. (i) इदं विशालसागरतटस्य चित्रम् अस्ति। (ii)अत्र विशालसागरः तरंगयति। (iii) अत्र द्वे पर्णकुटीरे स्तः। (iv) सागरतटे नारिकेलवृक्षौ स्तः। (v) समुद्रे नौकाः जलपोताः च सन्ति। (vi) नौकया जनाः मत्स्याखेटं कुर्वन्ति।

(यह सागर तट का चित्र है। यहाँ विशाल सागर तरंगित हो रहा है। यहाँ दो पर्णकुटियाँ हैं। सागर तट पर नारियल के दो वृक्ष हैं। समुद्र में नावें और जलयान हैं। नाव से लोग मछलियाँ पकड़ते हैं।)

21. (i) अद्य बालदिवसः अस्ति। (ii) विद्यालयस्य एकस्मिन् भागे बालभवनम् अस्ति। (iii) क्रीडाङ्गणे छात्राः कन्दुकेन क्रीडन्ति, धावन्ति आनन्दं च अनुभवन्ति। (iv) बालदिवसे सर्वे छात्राः आनन्दम् अनुभवन्ति। (v) बालदिवसे क्रीडाप्रतियोगिता वाद-विवादप्रतियोगिता च भवतः। (vi) बालदिवसे बालसभायाः आयोजनं भवति।

(आज बालदिवस है। विद्यालय के एक भाग में बालभवन है। खेल के मैदान में छात्र गेंद से खेलते हैं, दौड़ते हैं और आनन्द का अनुभव करते हैं। बालदिवस पर सभी छात्र आनन्द का अनुभव करते हैं। बालदिवस पर खेल प्रतियोगिता और वाद-विवाद प्रतियोगिता होती हैं। बालदिवस पर बाल-सभा का आयोजन होता है।)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

22. (i) एकस्मिन् ग्रामे एकः लुब्धः कृषकः प्रतिवसति स्म। (ii) तस्य कुक्कुटेषु एका कुक्कुटी नित्यमेक स्वर्णाण्डं प्रसूते स्म। (iii) सां एकदा एव सर्वाणि अण्डानि ग्रहीतुमैच्छत्। (iv) सः तस्य उदरं व्यदारयत्। (v) परञ्च नासीत् तत्र एकमपि अण्डम्। (vi) कृषक: महददुःखमनुभवन् सपश्चात्तापम् अवदत-‘अति लोभो न कर्तव्यः।’

(व में एक लोभी किसान रहता था। उसके मुर्गों में एक मुर्गी नित्य एक सोने का अण्डा देती थी। वह एक दिन ही सारे अण्डे प्राप्त करना चाहता था। उसने उसका पेट फाड़ डाला। परन्तु वहाँ एक भी अण्डा नहीं था। किसान बहुत दुःख का अनुभव करता हुआ पश्चात्ताप के साथ बोला-“अधिक लोभ नहीं करना चाहिए।”)

23. (i) इदम् एकं उद्यानम् अस्ति। (ii) उद्याने अनेके वृक्षाः पादपाः लताः च सन्ति। (iii) पादपेषु पुष्पाणि विकसन्ति। (iv) अत्र एकः तडागः अस्ति। (v) उद्याने एक जलयन्त्रम् अस्ति। (vi) जलयन्त्रात् जलं उत्पतति।

(यह एक बाग है। उद्यान में अनेक पेड़, पौधे और बेल हैं। पौधों में फूल खिल रहे हैं। यहाँ एक तालाब है। बाग में एक फब्बारा है। फब्बारे से जल उछलता है।)

24. (i) एकदा एका पिपीलिका गच्छति स्म। (ii) मार्गे एकः गजः तां दृष्ट्वा अकथयत्- “रे पिपीलिके ! मम मार्गात् दूरी भव नो चेत् अहं त्वां मर्दयिष्यामि।” (iii) पिपीलिका कथयति – “भो गज ! मां तुच्छं मत्वा कथं मर्दयसि ?” (iv) एकदा सैव पिपीलिका गजस्य शुण्डाग्रं प्राविशत् तम् अदशत् च। (v) अतीव पीडितः गज क्रन्दति-“न जाने कः जीव: मम प्राणान् हर्तुम् इच्छति?” (vi) पिपीलिका अवदत्-“अहं सैव पिपीलिका यांत्वं तुच्छजीवं मन्यसे। संसारे कोऽपि न तुच्छ: न च उच्चः।

(एक बार एक चींटी जा रही थी। मार्ग में एक हाथी ने उसे देखकर कहा- ‘अरे चींटी मेरे रास्ते से दूर हो जा, नहीं तो मैं तुम्हें कुचल दूँगा।’ चींटी कहती है – ‘अरे हाथी, मुझे तुच्छ मानकर कैसे मर्दन करता है? ‘ एक दिन वह चींटी हाथी की सँड़ में घुस गई और उसे काट लिया। अत्यन्त पीड़ित हाथी कहता है- ‘न जाने कौन जीव मेरे प्राण हरण करना चाहता है।’ चींटी ने कहा-“मैं वही चींटी हूँ जिसको तू तुच्छ जीव मानता है। संसार में कोई तुच्छ या उच्च नहीं होता।”)

JAC Class 10 Sanskrit रचना चित्राधारित वर्णनम्

25. (i) अस्मिन् चित्रे अनवरतवेगेन वर्षा भवति अतः गगनं मेधैः आच्छन्नमस्ति। (ii) समीपमेव एकस्य विद्यालयस्य भवनम् अस्ति। (iii) विद्यालयाद् बहिरेका महिला द्वौ भगिनी-भ्रातरौ च छत्रं धारयतः। (iv) कक्षाकक्षेषु छात्राः न सन्ति। (v) वर्षासमये मार्गेषु जलं वहति। (vi) मेघाः पुनः-पुनः घोरं गर्जनं कुर्वन्ति।

(इस चित्र में लगातार वर्षा हो रही है अत: आकाश मेघों से ढका हुआ है। पास में ही एक विद्यालय भवन है। विद्यालय से बाहर एक महिला और दो भाई-बहिन छाता धारण किए हैं। कक्षा कक्षों में छात्र नहीं हैं। वर्षा के समय मार्गों पर जल बहता है। बादल बार-बार गर्जना करते हैं।)