JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः

JAC Class 10th Sanskrit सूक्तयः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत। (एक शब्द में उत्तर लिखिये)
(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति? (पिता पुत्र के लिये बचपन में क्या देता है?)
उत्तरम् :
विद्याधनम् (विद्यारूपी धन)।

(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति? (मूढ़ कैसी वाणी त्यागता है?)
उत्तरम् :
धर्मप्रदाम् (धर्म प्रदान करने वाली)।

(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः? (इस लोक में कैसे व्यक्ति आँखों वाले कहलाते हैं?)
उत्तरम् :
विद्वान्सः (विद्वान लोग)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(घ) प्राणेभ्योऽपि कः रक्षणीयः? (प्राणों से भी कौन रक्षा करने योग्य है?)
उत्तरम् :
सदाचारः (सदाचरण)।

(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात्?
(अपना श्रेय चाहने वाले व्यक्ति को कैसा कर्म नहीं करना चाहिये?)
उत्तरम् :
परेभ्योऽहितम् (दूसरों के लिये अहित)।

(च) वाचि किं भवेत्? (वाणी कैसी हो?)
उत्तरम् :
धर्मप्रदा।

प्रश्न 2.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत (मोटे पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिये।)
यथा – विमूढधीः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते?
कः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
(क) संसारे विद्वांसः ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते।
उत्तरम् :
संसारे के ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते?

(ख) जनकेन सुताय शैशवे विद्याधनं दीयते।
उत्तरम् :
जनकेन कस्मै शैशवे विद्याधनं दीयते?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(ग) तत्वार्थस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः।
उत्तरम् :
कस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः?

(घ) धैर्यवान् लोके परिभवं न प्राप्नोति।
उत्तरम् :
धैर्यवान् कुत्र परिभवं न प्राप्नोति?

(ङ) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः परेषाम् अनिष्टं न कुर्यात्।
उत्तरम् :
आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः केषाम् अनिष्टं न कुर्यात्।

प्रश्न 3.
पाठात् चित्वा अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वयम् उचित पदं क्रमेण पूरयत –
(पाठ से छाँटकर उचित पद के क्रम से निम्नलिखित श्लोकों के अन्वयों की पूर्ति कीजिए-)
(क) पिता ………… बाल्ये महत् विद्याधनम् यच्छति अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः ……….. ।
उत्तरम् :
पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनम् यच्छति अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः कृतज्ञता ।

(ख) येन ………… यत् प्रोक्तं तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं ………… भवेत्, सः ……….. इति ……… ।
उत्तरम :
येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं शक्यो भवेत. सः विवेक इति ईरितः ।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(ग) य आत्मनः श्रेयः …………. सुखानि च इच्छति, परेभ्य अहितं ………… कदापि च न ………. ।
उत्तरम् :
यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्य अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात् ।

प्रश्न 4.
अधोलिखितम् उदाहरणद्वयं पठित्वा अन्येषां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत – (निम्न दो उदाहरणों को पढ़कर अन्य प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः 1

प्रश्न 5.
मञ्जूषायाः तद्भावात्मकसूक्ती: विचित्य अधोलिखितकथनानां समक्षं लिखत – (मंजूषा से उस भाव की सूक्ति छाँटकर निम्न कथनों के सामने लिखिए-)
(क) विद्याधनं महत। …………….
(ख) आचारः प्रथमो धर्मः ……………
(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम्। ………………
[मञ्जूषा – आचरेण तु संयुक्तः सम्पूर्ण फल भाग्भवेत्। मनसि एक वचसि एक कर्मणि एकं महात्मनाम्। विद्याधनं सर्वधन प्रधानम्। सं वो मनांसि जानताम्। विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्। आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षाः]
उत्तर :
(क) विद्याधनं महत।
(i) विद्याधनं सर्वधन प्रधानम्।
(ii) विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्।

(ख) आचारः प्रथमो धर्मः
(i) आचरेण तु संयुक्तः सम्पूर्ण फल भाग्भवेत्।
(ii) आचार प्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम्।
(i) मनसि एक वचसि एक कर्मणि एकं महात्मनाम्
(ii) सं वो मनांसि जानताम्।

प्रश्न 6.
(अ) अधोलिखितानां शब्दानां पुरतः उचितं विलोम शब्द कोष्ठकात् चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के सामने उचित विलोम शब्द कोष्ठक से छाँटकर लिखिए-)
(क) पक्वः ……………. । (परिपक्व, अपक्व, क्वथितः)
(ख) विमूढधीः …………… । (सुधी, निधिः मन्दधी:)
(ग) कातरः ……………. । (अकरुणः, अधीरः, अकातरः)
(घ) कृतज्ञता ……………. (कृपणता, कृतघ्नता, कातरता)
(ङ) आलस्यम् ……………. । (उद्विग्नता, विलासिता, उद्योगः)
(च) परुषा ……………. । (पौरुषी, कोमला, कठोरा)
उत्तरम् :
(क) अपक्व
(ख) सुधी
(ग) अकातरः
(घ) कृतघ्नता
(ङ) उद्योगः
(च) कोमला।

(आ) अधोलिखितानां शब्दानां त्रयः समानार्थकाः शब्दाः मञ्जूषायाः चित्वा लिखन्ताम्।
(निम्न शब्दों के तीन समानार्थक शब्द मंजूषा से छाँटकर लिखिए-)
JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः 2
उत्तरम् :
(क) प्रभूतम् – भूरि, विपुलम्, बहु
(ख) श्रेयः – शुभम्, शिवम्, कल्याणम्
(ग) चित्तम् – मनः, मानसम्, चेतः
(घ) सभा – परिषद्, संसद, सभा
(ङ) चक्षुष – लोचनम्, नेत्रम्, नयनम्
(च) मुखम् – ‘ आननम्, वदनम्, वक्त्रम्

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

प्रश्न 7.
अधस्तात् समास विग्रहाः दीयन्ते तेषां समस्त पदानि पाठाधारण दीयन्ताम्।
(नीचे समास विग्रह दिए हैं, उनके समस्त पद पाठ के आधार पर दीजिए-)
उत्तरम् :
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JAC Class 10th Sanskrit सूक्तयः Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
(अ) दीप्ति
(ब) अशनम्
(स) महत्
(द) ददाति
उत्तरम् :
(द) ददाति

प्रश्न 2.
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता –
(अ) विद्या
(ब) तस्य
(ब) तस्य
(स) जनक
(द) उक्तिः
उत्तरम् :
(स) जनक

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प्रश्न 3.
अवकता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि –
(अ) वक्रता
(ब) ऋजुता
(स) सुचि
(द) वृत्त
उत्तरम् :
(ब) ऋजुता

प्रश्न 4.
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः –
(अ) यथार्थरूपेण
(ब) यदात्मनः
(स)
(द) इत्याहुः
उत्तरम् :
(अ) यथार्थरूपेण

प्रश्न 5.
त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
(अ) परित्यज्य
(ब) विमूढ़धीः
(स) तथ्यतः
(द) अपक्वं
उत्तरम् :
(अ) परित्यज्य

प्रश्न 6.
विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः –
(अ) जिह्वः
(ब) नेत्रवंतः
(स) अन्येषाम्
(द) चक्षुर्नामनी
उत्तरम् :
(ब) नेत्रवंतः

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प्रश्न 7.
यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
(अ) तेन
(ब) परिणामम्
(स) परिणति
(द) विवेक
उत्तरम् :
(स) परिणति

प्रश्न 8.
वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री सभायामप्यकातर:
(अ) प्रतिभाशालिनः
(ब) अकातरः
(स) नपरिभूयते
(द) धृतिमान्
उत्तरम् :
(द) धृतिमान्

प्रश्न 9.
य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च –
(अ) कल्याणम्
(ब) इच्छति
(स) परेभ्य
(द) कदापि
उत्तरम् :
(अ) कल्याणम्

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प्रश्न 10.
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः –
(अ) तस्मात्
(ब) प्रज्ञानां
(स) प्राणेभ्यः
(घ) सदाचारम्
उत्तरम् :
(ब) प्रज्ञानां

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
पिता पुत्राय किं यच्छति?
(पिता पुत्र के लिये क्या देता है?
उत्तरम् :
विद्याधनम् (विद्यारूपी धन)।

प्रश्न 2.
पिता कस्मै विद्याधनं यच्छति?
(पिता किसके लिये विद्या धन देता है?)
उत्तरम् :
पुत्राय (पुत्र के लिये)।

प्रश्न 3.
यथा अवक्रता चित्ते तथैव कुत्रापि भवेत्।
(जैसी सरलता चित्त में होती है वैसी ही कहाँ होनी चाहिए?)
उत्तरम् :
वाचि (वाणी में)।

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प्रश्न 4.
चित्ते वाचि च किं गुणः भवेत्?
(चित्त और वाणी में क्या गुण होना चाहिये?)
उत्तरम् :
अवक्रता (सरलता)।

प्रश्न 5.
बुद्धिमन्तः पुरुषाः कीदृशीं वाणी वदन्ति?
(बुद्धिमान लोग कैसी वाणी बोलते हैं?)
उत्तरम् :
धर्मप्रदाम् (धर्मयुक्त)।

प्रश्न 6.
कीदृशीं वाचं न वदेत्?
(कैसी वाणी नहीं बोलनी चाहिये।)
उत्तरम् :
परुषाम् (कठोर)।

प्रश्न 7.
अस्मिन् लोके चक्षुमन्तः के?
(इस लोक में नेत्रों वाला कौन हैं?)
उत्तरम् :
विद्वांस (विद्वान लोग)।

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प्रश्न 8.
विद्वांसः एव अस्मिन् लोके के प्रकीर्दिना?
(विद्वान लोग ही इस लोक में क्या कहलाता है?)
उत्तरम् :
चक्षुष्मन्तः (आँखों वाले)।

प्रश्न 9.
येन तत्वार्थ निर्णयः कर्तुं शक्यो भवेत् सः किं कथ्यते?
(जिसके द्वारा यथार्थ निर्णय किया जाना समर्थ है, वह क्या कहलाता है?)
उत्तरम् :
विवेकः।

प्रश्न 10.
विवेकः कीदृशः निर्णयं कर्तुं शक्यो भवेत?
(विवेक कैसा निर्णय करने में समर्थ होता है?)
उत्तरम् :
तत्वार्थ (यथार्थ)।

प्रश्न 11.
वाक्पटुः मंत्री कैः न परिभूयते?
(वाक्पटु मंत्री किनसे पराजित नहीं होता?)
उत्तरम् :
परैः (शत्रुओं से)।

प्रश्न 12.
मन्त्रिपदस्थस्य एकं गुणं लिखत।
(मन्त्रि पद पर स्थित व्यक्ति का एक गुण लिखिये।)
उत्तरम् :
वाक्पटुता।

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प्रश्न 13.
यः आत्मनः श्रेयः इच्छति तेन परेभ्यः किं न करणीय?
(अपना भला चाहता है, उसे अन्य व्यक्तियों के साथ क्या नहीं करना चाहिये?)
उत्तरम् :
अहितम् (अहित)।

प्रश्न 14.
अहितं कर्म केभ्यः न कुर्यात्।
(अहित कर्म किसके लिये नहीं करना चाहिये।)
उत्तरम् :
परेभ्यः (अन्यों के लिये)।

प्रश्न 15.
कः प्रथमः धर्मः? (प्रथम धर्म क्या है?)
उत्तरम् :
आचारः।

प्रश्न 16.
विशेषतः प्राणेभ्योऽपि किं रक्षेत्?
(विशेषतः प्राणों से भी किसकी रक्षा करनी चाहिये?)
उत्तरम् :
सदाचारम्।

पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 17.
के प्रति कृतज्ञो भवेत् ?
(किसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये?)
उत्तरम् :
पितरं प्रति। (पिता के प्रति।)

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प्रश्न 18.
समत्वं किमुच्यते? (समत्व क्या कहलाता है?)
उत्तरम् :
मनसि वाचि च अवक्रता समत्वमिति कथ्यते।
(मन और वाणी में सरलता भी समत्व कहलाता है।)

प्रश्न 19.
परुषां वाचं त्यक्त्वा कीदृशी वाणी वदेत्?
(कठोर वाणी को त्यागकर कैसी वाणी बोलनी चाहिये?
उत्तरम् :
परुषां वाचं त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं वदेत्।
(कठोर वचनों को त्यागकर धर्मप्रद वाणी बोलनी चाहिए।)

प्रश्न 20.
चक्षुर्नामनी के मते ? (चक्षुर्नामनी क्या माने जाते हैं?)
उत्तरम् :
वदने ये नेत्रे ते तु चक्षुर्नामनी मते।
(चेहरे पर जो नेत्र हैं वे तो नाम मात्र की आँखें हैं।)

प्रश्न 21.
मन्त्री कैः गुणैरुपेतो भवेत्।
(मन्त्री किन गुणों से युक्त होना चाहिये?)
उत्तरम् :
मन्त्री वाक्पटुता, धैर्य सभायां वीरतादिभिः गुणैरुपेतो भवेत् ।
(मंत्री वाक्पटुता, धैर्य, सभा में वीरता आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।)

प्रश्न 22.
‘कथमपि’ इति पदस्य हेतोः किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘कथमपि’ पद के लिये किस पद का प्रयोग किया है?)
उत्तरम् :
केनापि प्रकारेण (कैसे भी या किसी प्रकार से)।

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प्रश्न 23.
मानवः संसारे किं लब्धम् इच्छति?
(मानव संसार में क्या प्राप्त करना चाहता है?)
उत्तरम् :
मानवः संसारे श्रेयः सुखानि च लब्धुम् इच्छति।
(मानव संसार में कल्याण और सुख प्राप्त करना चाहता है?)

प्रश्न 24.
कस्मात् रक्षेत् सदाचारम्? (किसलिये सदाचार की रक्षा करनी चाहिये?)
उत्तरम् :
आचार: प्रथमः धर्मः तस्मात् सदाचारं रक्षेत्।
(आचार पहला धर्म है, अतः सदाचार की रक्षा करनी चाहिये।)

प्रश्न 25.
का उक्तिः कृतज्ञता? (क्या कथन कृतज्ञता है?)
उत्तरम् :
‘पिताऽस्य किं तपस्तेपे’ इति उक्तिः कृतज्ञता।
(पिता ने इसके लिये कितना तप किया, यह उक्ति ही कृतज्ञता है)

प्रश्न 26.
चित्ते वाचि च अवक्रता कस्य समत्वं भवति?
(चित्त और वाणी में सरलता किसका समत्व होता है?)
उत्तरम् :
तत्महात्मनः तथ्यतः समत्वमिति कथ्यते।

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प्रश्न 27.
ये परुषां वाणीं वदन्ति ते कीदृशः मनाः ?
(जो कठोर वाणी बोलते हैं वे कैसे लोग हैं?)
उत्तरम् :
ये जनाः परुषां वाणी वदन्ति ते मूढधियः भवन्ति।
(जो छ । कठोर वाणी बोलते हैं वे विमूढ़मति होते हैं।)

प्रश्न 28.
अन्येषां ये वदने नेत्रे ते के मते ?
(अन्य लोगों के चेहरे पर जो आँखें हैं वह क्या माने गये हैं?)
उत्तरम् :
अन्येषां ये वदने नेत्रे ते तु चक्षुर्नामनी मते।
(दूसरों के चेहरे पर जो नेत्र हैं वे तो मात्र आँखें ही मानी गई हैं।)

प्रश्न 29.
मंत्री कीदृशः भवेत्? (मन्त्री कैसा होना चाहिये?)
उत्तरम् :
मन्त्री: वाक्पटुः धैर्यवान् सभायामपि अकातरः भवेत्।
(मन्त्री वाक्पटु, धैर्यवान् और सभा में भी वीर या साहसी होना चाहिये)।

प्रश्न 30.
यः अन्येभ्योः अहितं न करोति सः किं लभते?
(दूसरों के लिये जो अहित नहीं करता वह क्या पाता है?)
उत्तरम् :
यो अन्येभ्यः अहितं न करोति स: श्रेयः प्रभूतानि सुखानि लभते।
(जो अन्यों के लिये अहित नहीं करता, वह श्रेय और बहुत से सुख प्राप्त करता है।)

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प्रश्न 31.
आचारः प्रथमः धर्मः इति केषां वचः?
(आचार प्रथम धर्म है, यह किसका वचन है?)
उत्तरम् :
आचार: प्रथमः धर्मः इति विदुषां वचः।
(आचार प्रमुख धर्म है, यह विद्वानों का वचन है।)

अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा पूरयत।
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति मंजूषा से उचित पद चुनकर कीजिए ।)

1. पिता यच्छति पुत्राय ………………………………. इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥
मञ्जूषा – पिता, तत्, तपः, विद्याधनं।
बाल्ये (i)…… पुत्राय महत् (ii)……यच्छति। अस्य पिता किं (iii)…… तेपे इति उक्तिः (iv)……कृतज्ञता।
उत्तरम् :
(i) पिता (ii) विद्याधनं (iii) तपः (iv) तत् ।

2. अवकता यथा चित्ते ……………. समत्वमिति तथ्यतः।
मञ्जूषा – महात्मनः, अवक्रता, इति, वाचि।।
यथा (i)…… चित्ते तथा यदि (ii)…… भवेत् तदैव (अवक्रता) (iii)…… तथ्यतः समत्वम् (iv)……आहुः। उत्तरम् : (i) अवक्रता (ii) वाचि (iii) महात्मनः (iv) इति।

3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां …………………………………… विमूढधीः।
मञ्जूषा – त्यक्त्वा, विमूढधीः, फलं, फलम्।
यो (i)…… धर्मप्रदां वाचं (i)…… परुषामभ्युदीरयेत सः पक्वं (iii)…… परित्यज्यं अपक्वं (iii)……भुङ्क्ते।
उत्तरम् :
(i) विमूढधी: (ii) त्यक्त्वा (iii) फलम् (iv) फलं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

4. विद्वास एवं ……………………………………………………….. चक्षुर्नामनी मते ॥
मञ्जूषा – चक्षुर्नामनी, लोके, अन्येषां, चक्षुष्मन्तः।
अस्मिन् (i)…… विद्वान्सः एव (ii)…… प्रकीर्तिताः। (iii)……वदने तु ये (iv)….. मते।
उत्तरम् :
(i) लोके (ii) चक्षुष्मन्तः (iii) अन्येषां (iv) चक्षुर्नामनी।

5. यत् प्रोक्तं येन केनापि ………………………….. विवेक इतीरितः॥
मञ्जूषा – शक्यो, तत्वार्थ, विवेक, केनापि। येन (i) ……… यत् प्रोक्तम् तस्य (ii) ……….. निर्णयः येन कर्तुं (iii) ………. भवेत् सः (iii)…… इति ईरितः।
उत्तरम् :
(i) केनापि (ii) तत्वार्थ (iii) शक्यो (iv) विवेक।

6. वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री ……………………………….. परैर्न परिभूयते।।
मञ्जूषा – धैर्यवान्, परैः, केनापि, अकातरः।
वाक्पटुः (i) …………. सभायाम् अपि (ii) ………… सः (iii)…… प्रकारेण (iv)…… न परिभूयते।
उत्तरम् :
(i) धैर्यवान् (ii) अकातरः (iii) केनापि (iv) परैः।

7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः …………………….. परेभ्यः कदापि च ।
मणूणा – परेभ्यः, सुखानि, कलापि, आत्मना यः (i)…… श्रेयः प्रभूतानि (ii)…… च इच्छति, (iii)…… अहितं कर्म (iv)…… च न कुर्यात्।
उत्तरम् :
(i) आत्मनः (ii) सुखानि (iii) परेभ्यः (iv) कदापि।

8. आचारः प्रथमो धर्मः …………………… प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।।
आचारः (i) ……….. धर्मः इति एतद् (i) ………. वचः तस्मात् (iii)…… सदाचारं प्राणेभ्योऽपि (iii) ………..।
उत्तरम् :
(i) प्रथमो (ii) विदुषां (iii) विशेषतः (iv) रक्षेत्।

प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. पितापुत्राय बाल्ये विद्याधनं यच्छति। (पिता पुत्र को बचपन में विद्या ही धन देता है।)
2. अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेत् । (सरलता जैसी चित्त में होती है, वैसी वाणी में होनी चाहिए।)
3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां चः वदति। (धर्मनिष्ठ विद्या को त्याग कर जो कठोर वाणी बोलता है।)
4. विमूढधीः भुङ्क्तेऽपक्वं फलम्। (मूर्ख व्यक्ति कच्चा फल खाते हैं।)
5. विद्वान एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तितः। (विद्वान ही संसार में नेत्रवान कहलाते हैं।)
6. वाक्पटुः मन्त्री परैर्नः परिभूयते। (वाक्पटु मंत्री शत्रुओं द्वारा अपमानित नहीं होता है।) ।
7. यः इच्छति प्रभूतानि सुखानि न कुर्यात् अहितं परेभ्यः। (जो बहुत से सुख चाहता है, उसे दूसरों के लिये अहित कार्य नहीं करने चाहिये।)
8. आचारः परमोधर्मः। (आचार परम धर्म है।)
9. तस्मात् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।
10. तदेवाहुः महात्मन् समत्वमिति तथ्यतः। (वही महापुरुष का यथार्थ समत्व कहलाता है।)
11. पिता पुत्राय विद्याधनं ददाति।
12. तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः।
13. भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।
14. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः।
15. स केनापि प्रकारेण परैः न परिभूयते।
उत्तराणि :
1. पिता पुत्राय कदा विद्याधने यच्छति?
2. अवक्रता यथा चित्ते तथा कस्याम् भवेत् ?
3. कीदृशीं वाणी त्यक्त्वा यः पुरुषां य वदति?
4. कः भुङ्क्तेऽपक्वं फलम्।
5. के एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिता?
6. कीदृशः मन्त्री परैः नः परिभूयते?
7. यः इच्छति प्रभूतानि सुखानि किं न कुर्यात् परेभ्यः?
8. कः परमोधर्म:?
9. तस्मात् प्राणेभ्योऽपि विशेषतः किम् रक्षेत्?
10. तदेवाहुः कस्य समत्वमिति तथ्यत:?
11. पिता कस्मै विद्याधनं ददाति?
12. तदेवाहुः कान् समत्वमिति तथ्यतः?
13. भुङ्क्तेऽपक्वं कः?
14. के एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः?
15. स केनापि प्रकारेण कैः न परिभूयते?

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

भावार्थ-लेखनम –

अधोलिखित पद्यांश संस्कृते भावार्थं लिखत –

1. पिता यच्छति पुत्राय …………………………… इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥

संस्कृत व्याख्या: – बाल्यकाले जनक : स्व-आत्मजाय श्रेष्ठं ज्ञान धनं ददाति। अमुष्य जनकः किं तपस्यां कृतवान् इति कथनं एव तस्योपकारः कृतज्ञता वा।

2. अवक्रता यथा चित्ते ………………………. समत्वमिति तथ्यतः।।

संस्कृत व्याख्या: – येन प्रकारेण ऋजुता मनसि भवति तेनैव प्रकारेण चेत् वाच्याम् स्यात् तदैव ऋजुता महापुरुषस्य यथार्थरूपेण समता इति उच्यते।

3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं ………………… भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।।

संस्कृत व्याख्या: – यः मूर्खः धार्मिकभावोत्पादिकां वाणी परित्यज्य कटुकां वाणी कठोर वचनानि वा वदति असौ तु पक्वं फलं त्यक्त्वा अपक्वं फलमेव परिणामेव भुनक्ति।

4. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् …………………………. चक्षुर्नामनी मते।।

संस्कृत व्याख्या:- एतस्मिन् संसारे, समाजे वा प्राज्ञा एव यथार्थतः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते, अपरेषाम् आनने तु नाममात्रस्यैव नेत्रे स्त: मन्यते वा।

5. यत् प्रोक्तं येन ………………….. विवेक इतीरितः॥

संस्कृत व्याख्याः – येन केनापि यत्किञ्चित् अकथत् अमुष्य समता यथार्थतः परिणति कर्तुं निर्णय वा कर्तुम् समर्थः यः च कर्तुं शक्नोति असावेव विचारशीलता विवेकः वा कथ्यते।

6. वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री …………………………………….. परैर्न परिभूयते।।

संस्कृत व्याख्याः – वाण्यां भाषणे वा चतुरः यश्च धृतिमान्, संसदि चापि यः साहसी वीरः प्रगल्भो वा असौ पुरुषः कथमपि अरिभिः नाभिभूयते अर्थात् सः कदापि न पराजयते।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः ……………………….. परेभ्यः कदापि च ।।

संस्कृत व्याख्या: – यः (मानवः) स्वकीयं कल्याणम् बहूनि सुखानि च ईहते सः अन्येभ्यः अहित कार्य न कुर्यात्। अर्थात् तेन अन्येभ्यः अहित कार्य कदापि न कर्त्तव्यम्।

8. आचारः प्रथमो धर्मः ……………………. प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।।

संस्कृत व्याख्या: – सदाचारः सदाचरणं वा मानवस्य प्रमुखो धर्म कर्त्तव्य वा। एवं प्राज्ञानां वचनानि। अनेन प्रकारेण सद्व्यवहारं सदाचरणं वा प्राणपणेनापि रक्षणीयम् भवति।

सूक्तयः Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – यह पाठ मूलत: तमिल भाषा के ‘तिरक्कुरल’ नामक ग्रंथ से लिया गया है। यह ग्रन्थ तमिल भाषा का वेद कहलाता है। इसके रचनाकार ‘तिरुवल्लुवर’ हैं। प्रथम शताब्दी इसका रचना काल स्वीकार किया गया है। धर्म, अर्थ और काम का प्रतिपाद्य है यह ग्रंथ। यह तीन भागों में विभक्त है। तिरु शब्द श्रीवाचक है अर्थात् तिरु का अर्थ है ‘श्री’। अतः तिरक्कुरल शब्द का अभिप्राय होता है- श्री से युक्त वाणी। इस ग्रंथ में मानवों के लिये जीवनोपयोपी सत्य को सरल और सुबोधगम्य पद्यों द्वारा प्रतिपादित किया गया है।

मूलपाठः, अन्वयः,शब्दार्थाः, सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

1. पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥1॥

अन्वयः – बाल्ये पिता पुत्राय महत् विद्याधनं यच्छति। अस्य पिता किं तपः तेपे इति उक्तिः तत् कृतज्ञता।

शब्दार्थाः – बाल्ये = बाल्यकाले (बचपन में). पिता = जनकः (पिता ने), पत्राय = आत्मजस्य कते (पत्र के लिये), महत् = श्रेष्ठं (उत्तम, महान), विद्याधनं = ज्ञान रूपं धनं (विद्या धन), यच्छति = ददाति (देता है), तस्य = अमुष्य (उसका), पिता = जनक (पिता), किं तपः तेपे = कि तपस्यां कृतवान (क्या तपस्या की), इति उक्तिः = एवं कथनं (ऐसा कहना), तत् कृतज्ञता = तस्य उपकृति (उसका अहसान है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सूक्तयः’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि कहता है कि पिता ही बाल्यकाल में शिक्षक होता है, जिसका मानव को कृतज्ञ होना चाहिये।

हिन्दी-अनुवादः – बाल्यकाल में पिता ही पुत्र को महान् विद्यारूपी धन प्रदान करता है। पिता इसके लिये कितनी तपस्या करता है। यह उसका अहसान है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

2. अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः।।2।।

अन्वयः – यथा अवक्रता चित्ते तथा यदि वाचि भवेत् तदैव (अवक्रता) महात्मनः तथ्यतः समत्वम् इति आहुः।

शब्दार्थाः – यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार), अवकता = ऋजुता, सरलता (सीधापन), चित्ते = यदि (यदि), वाधि = वाच्याम, वाण्याम् अपि (वाणी में भी), भवेत् – स्यात् (हो), अवकता – सरलता, ऋजुता (सीधापन), यदात्मनः = महापुरुषस्य (महात्मा को), तथ्यता – यथार्थरूपेण (वास्तव में), समत्वम् – समता (समानता), इत्याहुः = इत्युच्यते (इस प्रकार कहलाती है।)

सन्दर्भः प्रसङ्गश्च – यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया गया है। यह पाठ मूलतः तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ के संस्कृत अनुवाद से लिया गया है। इस पद्य में अवक्रता और समता भाव के महत्व को प्रतिपादित किया है।

हिन्दी-अनुवादः – सरलता जैसे मन में हो वैसी ही वाणी में भी होनी चाहिये। वास्तव में यही महापुरुष या महान् आत्मा का समत्व कहलाता है।

3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।।3।।

अन्वयः – यो विमूढ़धीः धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषामभ्युदीरयेत सः पक्वं फलम् परित्यज्यं अपक्वं फलं भुङ्क्ते।

शब्दार्थाः – यः = यो जनः (जो व्यक्ति), विमूढधीः = मूर्खः, बुद्धिहीनः (मूर्ख या बुद्धिहीन, अज्ञानी), धर्मप्रदां = धार्मिकभावोत्पादिकां (धर्म भाव पैदा करने वाली), वाचं = वाणीम् (वाणी को), त्यक्त्वा = परित्यज्य (त्यागकर), परुषाम् = कटुकं, कर्कशां (कठोर), अभ्युदीरयेत = प्रयुज्यते, वदति (बोलता है, प्रयोग करता है) सः = असौ (वह), पक्वं फलं = (पके फल से), परित्यज्य = त्यक्त्वा (त्यागकर) अपक्वं = न पक्वं (कच्चे) फलम् = परिणामं (फल को) भुक्ते = खादति। –

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया गया है। यह पाठ मूलतः तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ इस काव्य के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस श्लोक में धर्मप्रदा वाणी का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

हिन्दी-अनुवादः – धर्म प्रदान करने वाली वाणी को त्याग कर जो कठोर वाणी बोलता है वह मूढ़मति पके हुए फल . को त्याग कर कच्चे फल को ही खाता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

4. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते।। 4।।

अन्वयः – अस्मिन् लोके विद्वान्सः एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः। अन्येषां वदने तु ये चक्षुर्नामनी मते ।

शब्दार्थाः – अस्मिन् लोके = एतस्मिन् संसारे, समाजे वा (संसार या समाज में), विद्वांस एव = प्राज्ञः एव (विद्वान् ही) चक्षषमन्तः = नेत्रवंतः (नेत्रों वाले), प्रकीर्तिता = मताः, कथ्यन्ते (कहलाते हैं) अन्येषाम् = अपरेषां (दूसरे) मुखे = आनने (मुँह, पर तो), चक्षुर्नामनी = नाममात्र चक्षु (नाममात्र की आँख), मते = मन्वते (मानी जाती है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह श्लोक हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया गया है। यह पाठ मूलतः तमिल कवि तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस पद्य में कवि ने विद्वानों को ही नेत्रों वाला बताया गया है।

हिन्दी-अनुवादः – विद्वान लोगों को ही इस लोक में आँखों वाला कहा गया है। अन्य के मुख (आनन) पर जो आँखें होती हैं, वे तो नाम की आँखें मानी गई हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

5. यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः॥5॥

अन्वयः – येन केनापि यत् प्रोक्तम् तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं शक्यो भवेत् सः विवेक इति ईरितः।।

शब्दार्थाः – येन केनापि यत् प्रोक्तम् = यः कश्चित् यदकथयत् (जिस किसी से जो कहा), तस्य = अमुष्य (उसका), तत्वार्थ = यथार्थ (जैसा का तैसा), निर्णयः = परिणति (निर्णय करना) येन कर्तुं शक्यो भवेत् = यः कर्तुम् शक्नोति (जो कर सकता है), सः = असौ (वह), विवेक = ज्ञानं (सोच-समझ), इति ईरितः = इति कथ्यते (ऐसा कहलाता है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च- यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘सूक्तयः’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ तमिल कवि तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरक्कुरल’ के संस्कृतानुवाद से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि तत्वार्थ निर्णय विवेक से ही सम्भव है।

हिन्दी-अनुवादः – जिस किसी के द्वारा जो कहा गया है वह उसका यथार्थ निर्णय है, वह करने में समर्थ होना चाहिये, वह विवेक कहलाता है।

6. वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री सभायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते ।।6।।

अन्वयः – वाक्पटुः धैर्यवान् सभायाम् अपि अकातरः सः केनापि प्रकारेण परैः न परिभूयते।

शब्दार्थाः – वाक्पटु = वाचि, सम्भाषणे वा पटुः (बातचीत में चतुर), धैर्यवान् = धृतिमान् (धैर्य रखने वाला), सभायामपि = संसदि अपि (सभा में भी), अकातरः = वीरः, साहसी च (वीर और साहसी), सः = असौ (वह), केनापिप्रकारेण = कथमपि (ये भी), परैः = शत्रुभिः, अरिभिः (शत्रुओं द्वारा), नपरिभूयते = नाभिभूतये पराभूत (पराजित नहीं होगा)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह पद्य ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के सूक्तयः पाठ से लिया है। मूलतः यह तमिल कवि रचित तिरुक्कुरल ग्रंथ के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि जिसका मंत्री वाक्कुशल, धैर्यवान व सभा में निर्भय होता है, वह शत्रुओं से कभी भी पराजित नहीं होता।

हिन्दी-अनुवादः – वाणी में चतुरता, धैर्ययुक्त, सभा में भी जो साहसी हो, ऐसा मंत्री किसी भी प्रकार से शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च ।।7।।

अन्वयः – यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात्।

शब्दार्थाः – यः = यो (जो), आत्मनः = स्वकीयं (अपने), श्रेयः = कल्याणम् (कल्याण को) (तथा), प्रभूतानि = बहूनि (बहुत से), सुखानि = सुखसाधनानि (सुखों को), इच्छति = ईहते (चाहता है), सः = उसे, परेभ्य = अन्येभ्यो (दूसरों का), अहितं = नुकसान (हानि), कार्यम् = करणीयम् (काम), कदापि न कुर्यात् = कदापि न कर्त्तव्यम् (कभी नहीं करना चाहिये।)

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तयः’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ तमिल ल्लुवरकृत ‘तिरुकुरुल’ के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इस श्लोक में कवि कहता है कि जो मनुष्य अपना भला चाहता है उसे दूसरों का अहित नहीं करना चाहिये।

हिन्दी-अनुवादः – जो व्यक्ति अपना भला तथा बहुत सारे सुख चाहता है उसे दृ मरे के लिये कभी कोई अहित कर्म नहीं करना चाहिये।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 9 सूक्तयः

8. आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।।8।।

अन्वयः – आचारः प्रथमो धर्मः इति एतद् विदुषां वचः तस्मात् विशेषतः सदाचारं प्राणेभ्योऽपि रक्षेत्।

शब्दार्थाः – आचारः = सदाचारः (आचरण), प्रथमः धर्मः = प्रमुखो धर्मः (पहला धर्म है), इति = एव (इस प्रकार), विदुषां – प्रज्ञानां (विद्वान में), वचन = वचनानि, (उक्ति), तस्मात् = अनेन कारणेन (इसी वजह से), सदाचारम् = सद्व्यवहारं (सदाचार की), प्राणेभ्यः = प्राणपणेन (प्राणों की बाजी लगाकर), रक्षेत् = त्रायेत (रक्षा करनी चाहिये)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह पद्य हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘सूक्तयः’ इस ग्रन्थ से उद्धृत है। यह पाठ मूलतः तमिल कवि तिरुवल्लुवर विरचित ‘तिरुकुरुल’ के संस्कृत-अनुवाद से सङ्कलित है। इस श्लोक में कवि आचार को प्रथम धर्म कहते हुए सदाचार का महत्व कहता है।

हिन्दी-अनुवादः – सदाचार पहला धर्म है। यह विद्वानों का वचन है, इसलिये विशेष रूप से प्राणों की बाजी लगाकर भी सदाचार की रक्षा करनी चाहिये।

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