Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ
बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )
प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कौन – सा परिवर्तन तेज़ गति से होता है?
(A) दरार
(B) वलन
(C) भूकम्प
(D) भूमण्डलीय तापन
उत्तर:
(C) भूकम्प।
2. किस आपदा का सम्बन्ध मानवीय क्रियाओं से है?
(A) भूकम्प
(B) ज्वालामुखी
(C) पर्यावरण प्रदूषण
(D) टारनेडो
उत्तर:
(C) पर्यावरण प्रदूषण।
3. पहला भू- शिखर सम्मेलन कब हुआ ?
(A) 1974
(B) 1984 में
(C) 1994 में
(D) 1998 में।
उत्तर:
(C) 1994 में।
4. पहला भू- शिखर सम्मेलन कहां हुआ था?
(A) रियो डी जनेरो
(B) टोकियो
(C) न्यूयार्क
(D) लन्दन।
उत्तर:
(A) रियो डी जनेरो।
5. सुनामी त्रासदी कब हुई?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2003 में
(D) 2004 में।
उत्तर:
(D) 2004 में।
6. भू-स्खलन किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायु मण्डलीय
(B) भौमिक
(C) जलीय
(D) जैविक
उत्तर:
(B) भौमिक।
7. भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष किस दर से खिसक रही है?
(A) 1 सें० मी०
(B) 2 सें० मी०
(C) 3 सें० मी०
(D) 4 सें० मी०
उत्तर:
(A) 1 सें० मी।
8. दक्षिणी भारत में भ्रंश रेखा का विकास कहां हुआ है?
(A) कोयना के निकट
(B) लातूर के निकट
(C) अहमदाबाद के निकट
(D) भोपाल के निकट
उत्तर:
(B) लातूर के निकट।
9. भूकम्प से समुद्र में उठने वाली लहरों को क्या कहते हैं?
(A) लहरें
(B) दरार
(C) सुनामी
(D) ज्वार।
उत्तर:
(C) सुनामी
10. तूफ़ान महोर्मि का मुख्य कारण है
(A) सुनामी
(B) ज्वार
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(D) मानसून।
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात।
11. भारत में कितना क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है?
(A) 1 करोड़ हेक्टेयर
(B) 2 करोड़ हेक्टेयर
(C) 3 करोड़ हेक्टेयर
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर
उत्तर:
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर।
12. भारत के कुल क्षेत्र का कितने % भाग सूखाग्रस्त रहता है?
(A) 9%
(B) 12 %
(C) 19%
(D) 25 %.
उत्तर:
(C) 19 %.
13. भारत में आपदा प्रबन्धन नियम कब बनाया गया?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2005 में
(D) 2006 में।
उत्तर:
(C) 2005 में।
14. भूकम्प किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीव – मण्डलीय।
उत्तर:
(B) भौमिकी .
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Quesrtion)
प्रश्न 1.
भारत में प्रभाव डालने वाले प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
बाढ़ें, सूखा, भूकम्प तथा भू-स्खलन।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
आकस्मिक भूगर्भिक हलचलें।
प्रश्न 3.
वर्तमान समय में भारत में आये विनाशकारी भूचाल का नाम लिखो।
उत्तर:
भुज, गुजरात – 26 जनवरी, 2001.
प्रश्न 4.
भू विभिन्न भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 5.
भूकम्प मापक यन्त्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
सिज़्मोग्राफ।
प्रश्न 6.
भूकम्प की तीव्रता किस पैमाने पर मापी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर पैमाने पर।
प्रश्न 7.
लाटूर भूकम्प (महाराष्ट्र ) का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर खिसकना।
प्रश्न 8.
भूकम्प किस सिद्धान्त से सम्बन्धित है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टानिक।
प्रश्न 9.
रिक्टर पैमाने पर कितने विभाग होते हैं?
उत्तर:
1-9 तक।
प्रश्न 10.
कोएना भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में अत्यधिक जलदाब।
प्रश्न 11.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा की कमी के कारण खाद्यान्नों की कमी होना।
प्रश्न 12.
भारत में सूखे का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
अनिश्चित वर्षा।
प्रश्न 13.
भारत में कितना क्षेत्रफल भाग बाढ़ों तथा सूखे से प्रभावित है?
उत्तर:
सूखे से 10% भाग तथा बाढ़ों से 12% भाग।
प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून वर्षा तथा चक्रवात।
प्रश्न 15.
दक्षिणी प्रायद्वीप में बाढ़ें कम हैं। क्यों?
उत्तर:
मौसमी नदियों के कारण।
प्रश्न 16.
भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई जलभृत भाग किसी ढलान से अचानक नीचे गिरते हैं।
प्रश्न 17.
तीन प्रदेशों के नाम लिखो जो चक्रवातों से प्रभावित हैं।
उत्तर:
उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु
प्रश्न 18.
भूकम्प के आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।
प्रश्न 19.
भारत में अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखिए।
उत्तर:
बीकानेर
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Quesrtion)
प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएं वे भूगर्भिक हलचलें हैं जो अचानक ही भू-तल पर परिवर्तन लाकर जन और धन व सम्पत्ति की हानि करती हैं। सूखा, बाढ़ें, चक्रवात, भू-स्खलन, भूकम्प विभिन्न प्रकार की मुख्य प्राकृतिक आपदाएं हैं।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जन-धन की हानि का वर्णन करो।
उत्तर:
विश्व में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं से एक लाख व्यक्तियों की जानें जाती हैं तथा 20,000 करोड़ रुपये की सम्पत्ति की हानि होती है। यह मानवीय विकास के लिए एक रुकावट है। U.NO. के अनुसार 1990-99 के दशक को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा का दशक घोषित किया गया प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त विश्व के प्रमुख 10 देशों में से भारत एक देश है। प्रति वर्ष 6 करोड़ लोग इनसे प्रभावित होते हैं। विश्व की 50% प्राकृतिक आपदाएं भारत में अनुभव की जाती हैं। फिर भी भारत में इन आपदाओं से सुरक्षा के लिए एक व्यापक प्रबन्ध किया गया है जिसमें भूकम्पीय स्टेशन, चक्रवात, बाढ़ें, राडार, जल प्रवाह के बारे में सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं तथा सुरक्षा के प्रबन्ध किए जाते हैं।
प्रश्न 3.
भू-स्खलन से क्या अभिप्राय है? इनके प्रभाव बताओ।
उत्तर- भू-स्खलन (Landslides ):
भूमि के किसी भाग के अचानक फिसल कर पहाड़ी से नीचे गिर जाने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। कई बार भूमिगत जल चट्टानों में भर कर उनका भार बढ़ा देता है। यह जल भृत चट्टानें ढलान के साथ नीचे फिसल जाती हैं। इनके कई प्रकार होते हैं।
- सलम्प (Slumps ): जब चट्टानें थोड़ी दूरी से गिरती हैं।
- राक सलाइड (Rockslide ): जब चट्टानें अधिक दूरी से अधिक भार में गिरती हैं।
- राक फाल (Rockfall): जब किसी भृत से चट्टानें टूट कर गिरती हैं।
कारण (Causes):
- जब वर्षा का जल या पिघलती हिम एक सनेहक (Lubricant ) के रूप में कार्य करता है।
- तीव्र ढलान के कारण।
- भूकम्प के कारण।
- किसी सहारे के हट जाने पर।
- भ्रंशन या खदानों के कारण।
- ज्वालामुखी विस्फोट के कारण।
प्रभाव (Effects):
- भवन, सड़कें, पुल आदि का नष्ट होना।
- चट्टानों के नीचे दबकर लोगों की मृत्यु हो जाना।
सड़क मार्गों का अवरुद्ध हो जाना।
- नदियों के मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ें आना।
- 1957 में कश्मीर में भू-स्खलन से राष्ट्रीय मार्ग बन्द हो गया था।
- गत वर्षों में टेहरी गढ़वाल में बादल फटने से भू-स्खलन हुआ।
प्रश्न 4.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों पर नोट लिखो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones) :
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात खाड़ी बंगाल तथा अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। चक्रवात पवनों का एक भँवर होता है जो मूसलाधार वर्षा प्रदान करता है। ये प्रायः अक्तूबर-नवम्बर के महीनों में चलते हैं। इनकी दिशा परिवर्तनशील होती है। ये प्रायः पश्चिम की ओर तथा उत्तर-पश्चिम, उत्तर पूर्व की ओर चलते हैं। इनका प्रभाव तमिलनाडु आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा के तटों पर होता है।
प्रभाव (Effects):
- ये चक्रवात मूसलाधार वर्षा, तेज़ पवनें तथा घने मेघ लाते हैं। औसत रूप से 50 सें०मी० वर्षा एक दिन में होती है।
- ये चक्रवात जन-धन हानि व्यापक रूप से करते हैं।
- खाड़ी बंगाल में निम्न वायु दाब केन्द्र बनने से ये चक्रवात उत्पन्न होते हैं।
- ये चक्रवात एक दिन में पूर्वी तट से गुज़र कर प्रायद्वीप को पार करके पश्चिमी तट पर पहुँच जाते हैं।
- गोदावरी, कृष्णा, कावेरी डेल्टाओं में भारी हानि होती है।
- सुन्दरवन डेल्टा तथा बंगला देश में भी भारी हानि होती है।
प्रश्न 5.
(i) प्राकृतिक आपदायें किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर आन्तरिक हलचलों द्वारा अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। इनसे मानव पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। इन्हें प्राकृतिक आपदायें कहते हैं।
(ii) कुछ सामान्य आपदाओं के नाम बताएं।
उत्तर;
सामान्य आपदाएं इस प्रकार हैं- ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, सागरकम्प, सूखा, बाढ़, चक्रवात, मृदा अपरदन, अपवाहन, पंकप्रवाह, हिमधाव।
(iii) संकट किसे कहते हैं ?
उत्तर;
अंग्रेज़ी भाषा में प्राकृतिक आपदाओं को प्राकृतिक संकट भी कहा जाता है। फ्रैंच भाषा में डेस (Des) का अर्थ बुरा (bad) तथा (Aster) का अर्थ सितारे (Stars) से है। मानवीय जीवन और अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचाने वाली प्राकृतिक आपदाओं को संकट और महाविपत्ति कहते हैं।
(iv) भूकम्प का परिमाण क्या होता है?
उत्तर:
भूकम्प की शक्ति को रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है, जिसे परिमाण कहते हैं । यह भूकम्प द्वारा विकसित भूकम्पीय उर्जा की माप होती है।
(v) भूकम्प की तीव्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प द्वारा होने वाली हानि की माप को तीव्रता कहते हैं।
(vi) भारत के अधिक तथा अत्यधिक भूकम्पीय खतरे वाले क्षेत्रों के नाम बताएं पूर्वी भारत,
उत्तर:
भूकम्प की दृष्टि से भारत के अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्रों के नाम हैं- हिमालय पर्वत, उत्तर- कच्छ रत्नागिरी के आस-पास का पश्चिमी तटीय तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह। अधिक खतरे वाले क्षेत्र हैं- गंगा का मैदान, पश्चिमी राजस्थान।
(vii) चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आधारभूत आवश्यकताएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
-जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है तब उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात उष्मा का इंजन है तथा इसे सागरीय तल से उष्मा मिलती है।
(viii) चक्रवात की गति और सामान्य अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
चक्रवात की गति 150 km तथा अवधि एक सप्ताह तक होती है।
(ix) भारत के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के नाम बताएं।
उत्तर:
- गंगा बेसिन, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल
- असाम में ब्रह्मपुत्र घाटी
- उड़ीसा प्रदेश।
(x) भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधार शैलों का भारी मात्रा में तेज़ी से खिसकना भू-स्खलन कहलाता है। तीव्र पर्वतीय ढलानों पर भूकम्प के कारण अचानक शैलें खिसक जाती हैं।
(xi) आपदा प्रबन्धन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आपदाओं से सुरक्षा के उपाय, तैयारी तथा प्रभाव को कम करने की क्रिया को आपदा प्रबन्धन कहते हैं। इसमें राहत कार्यों की व्यवस्था भी शामिल की जाती है।
प्रश्न 6.
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आए भू-स्खलन से निपटने के लिए आप कौन-से सुझाव देंगे?
उत्तर:
- अधिक भू-स्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा प्रतिबंधित करने चाहिए।
- इस क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियन्त्रण होना चाहिए।
- स्थानान्तरी कृषि वाली उत्तर पूर्वी राज्यों (क्षेत्रों) में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर खेती करनी चाहिए।
प्रश्न 7.
सूखे से बचाव के उपाय के कोई तीन कारण लिखें, जिनको हम अपनाकर सूखे के प्रभाव से बच सकते हैं?
उत्तर:
- सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचना चाहिए।
- जल सिंचाई की लघु परियोजनाओं पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
- नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए।
प्रश्न 8.
उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा का वर्णन करो।
उत्तर:
जून, 2013 में उत्तराखण्ड में हुई भारी वर्षा तथा बाढ़ के कारण अत्यन्त तबाही हुई। इसके कारण चल रही चाल धाम यात्रा को रोकना पड़ा 15-16 जून को अलकनंदा तथा मंदाकनी नदियों में बाढ़ के कारण नदियों ने अपने मार्ग बदल लिए। केदारनाथ धाम मन्दिर में झुके हज़ारों व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गए। बहुत से लोगों का विचार है कि बादलों के फटने से यह आपदा आई। भूस्खलन के कारण सड़क मार्ग बन्द हो गए। वायु सेना ने आपदा में फंसे लोगों की बचाया। सन् 2014 में केदारनाथ यात्रा का मार्ग खोल दिया गया है।
प्रश्न 9.
सुभेद्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुभेद्यता किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र में नुकसान पहुँचाने का भय है, जिससे वह व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करते हुए इसके कारणों तथा प्रभाव का उल्लेख करो।
उत्तर:
सूखा (Drought): सूखा एक प्राकृतिक विपदा है। जब किसी विस्तृत क्षेत्र में खाद्यान्नों का अभाव हो जाता है तो उसे सूखा कहते हैं (Drought is defined as widespread and extreme scarcity of food.) इसके प्रभाव से जनसंख्या का अधिकांश भाग भुखमरी का शिकार हो जाता है । भारत तथा संसार के कई भागों में सूखा भयानक रूप में पड़ता रहा है जिससे लाखों लोग मृत्यु का शिकार हो जाते थे आधुनिक समय में सन् 1943 में बंगाल के अकाल से 15 लाख व्यक्ति भुखमरी से मर गए। आजकल यातायात के तीव्र साधनों द्वारा शीघ्र ही सहायता पहुंच जाने के कारण सूखा तथा अकाल पहले जैसे नहीं रहे।
इतिहास (History): भारत एक विशाल देश है जिसका क्षेत्रफल लगभग 33 करोड़ हेक्टेयर है तथा औसत वार्षिक वर्षा 117 सें०मी० तक है। अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था मानसून पवनों पर निर्भर करती है। मानसून वर्षा बहुत अनिश्चित तथा अनियमित है। वर्षा की परिवर्तिता (Variablity) के कारण भारत के किसी-न-किसी भाग में सूखे की हालत बनी ही रहती है। औसत रूप से भारत में प्रत्येक पांच वर्षों में एक वर्ष सूखे का होता है।
(On an average, one year in every five years is a drought year.) भारत में 1966, 1968, 1973, 1979 में भयंकर सूखा पड़ा। 1984-85 से 1987-88 तक निरन्तर तीन वर्ष सूखा पड़ने से भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में कमी रही। 1987-88 के सूखे का प्रभाव 15 राज्यों तथा 6 संघ राज्यों पर पड़ा। इसके प्रभाव से 267 ज़िलों तथा 3 लाख गांवों में 28 करोड़ लोग तथा 17 करोड़ पशु प्रभाव ग्रस्त हुए। पिछले 100 वर्षों के इतिहास में भारत में सन् 1877, 1899, 1918, 1972 तथा 1987 के वर्षों में भयानक सूखा पड़ा।
प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी०:
वर्ष |
प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी० |
देश के क्षेत्रफल का $\%$ भाग |
1877 |
20 |
61 |
1899 |
19 |
63 |
1918 |
22 |
70 |
1972 |
14 |
44 |
1987 |
16 |
50 |
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र (Drought Areas in India) – सामान्य स्थिति में भारत के 16% क्षेत्र तथा 12% जनसंख्या पर सूखे का प्रभाव पड़ता है। सूखे का अधिक प्रभाव उन क्षेत्रों पर पड़ता है जहां वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक (Co-efficient of Variability of Rainfall) 20% से अधिक है । निम्नलिखित क्षेत्र प्रायः सूखाग्रस्त रहते हैं-
क्षेत्र |
राज्य |
क्षेत्रफल |
वार्षिक वर्षा |
1. मरुस्थलीय तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेश |
राजस्थान, हरियाणा (दक्षिण-पश्चिमी) |
60 लाख |
10 सें॰मी० |
2. पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित प्रदेश |
मध्य प्रदेश, गुजरात |
37 , |
15 सें॰मी० |
3. अन्य क्षेत्र |
मध्यवर्ती महाराष्ट्र कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण तमिलनाडु, कच्छ, बिहार, कालाहांडी (उड़ीसा), रायलसीमा (आन्ध्र प्रदेश) |
10, |
20 सें॰मी० |
भारत में सामान्यतः सूखे की स्थिति निम्नलिखित क्षेत्रों में होती है।
- जब वार्षिक वर्षा 100 सें०मी० से कम हो।
- वर्षा की परिवर्तिता 75% से अधिक हो।
- जहां कुल क्षेत्रफल के 30% से कम भाग में जल सिंचाई प्राप्त हो।
- जहां 20% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो तो सामान्य सूखा पड़ता है।
- जहां 40% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो वहां स्थायी रूप से सूखा रहता है।
सूखे के कारण (Causes of Droughts ):
1. मानसून पवनों का कमज़ोर पड़ना (Weak Monsoons ):
भारत में अधिकतर कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर (Rainfed) है। ग्रीष्मकालीन मानसून पवनों के कमज़ोर पड़ने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानसून पवनें जब निश्चित समय से देर से आरम्भ होती हैं तो फ़सलें नष्ट हो जाती हैं। सन् 1987 में मानसून पवनें सारे देश में 1 जुलाई की अपेक्षा 27 जुलाई को आरम्भ हुईं तथा देश के 35 जलवायु खण्डों में 25 में सामान्य से कम वर्षा हुई। इस से अधिकतर क्षेत्रों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. वार्षिक वर्षा का कम होना (Low Rainfall):
भारत के 12% क्षेत्रफल में वार्षिक वर्षा 60 सें०मी० से कम है। इन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनी रहती है। एक अनुमान है कि भारत का 1/3 कृषि क्षेत्र वर्षा की कमी के कारण सूखाग्रस्त रहता है।
3. सिंचाई साधनों का कम होना (Inadequate means of Irrigation):
सिंचाई साधनों की कमी के कारण भी कई प्रदेशों में कृषि को नियमित जल न मिलने से सूखा पड़ता है।
4. पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance):
औद्योगिक विकास, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है। इससे वर्षा अनियमित, अनिश्चित तथा संदिग्ध होती जा रही है।
5. वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall):
कई प्रदेशों में वर्षा बहुत संदिग्ध है। विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की अधिक परिवर्तिता सूखे का कारण बनती है। उदाहरण के लिए हिसार नगर में अगस्त मास की औसत वर्षा 12.37 सें०मी० है। परन्तु सन् 1925 में इस मास में यहां केवल 2.03 सें०मी०, सन् 1926 से 56.36 सें०मी० वर्षा हुई। प्रायः जहां वर्षा का परिवर्तिता का गुणांक 40% से अधिक है वहां सदा सूखे की स्थिति रहती है।
6. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): शीत ऋतु के शुष्क होने के कारण भी सूखे की स्थिति बन जाती है।
7. नदियों का अभाव (Absence of Rivers ): कई प्रदेशों में नदियों के अभाव से भी सूखे में वृद्धि होती है।
8. लम्बी शुष्क ऋतु तथा उच्च तापमान (Long dry Speeds):
कई बार लम्बे समय तक शुष्क मौसम चलता रहता है। साथ-ही-साथ उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण भी अधिक हो जाता है जिससे सूखा भयंकर रूप धारण कर लेता है।
सूखे के प्रभाव (Effects of Drought ):
- कृषि (Agriculture): सूखे के कारण अधिकांश भागों में फसलों की बुआई देर से आरम्भ होती है। कई विशाल क्षेत्रों में बुआई बिल्कुल नहीं होती। इससे कृषि उत्पादन कम हो जाता है। 1987 में निर्धारित लक्ष्य में खाद्यान्नों का उत्पादन 60 लाख टन कम था।
- कृषि मज़दूर (Agricultural Labour ): ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी बढ़ जाती है। छोटे किसानों तथा कृषि मज़दूरों को कोई काम नहीं मिलता। भूमि मज़दूर भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
- खरीफ की फसल (Kharif Crop ): खरीफ की फसल जून – जुलाई में बोई जाती है। सूखे की हालत में इस फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे खाद्यान्न, तिलहन, दालों का उत्पादन कम हो जाता है।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Effect on Economy ): सूखे की स्थिति में कीमतें बढ़ जाती हैं तथा अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- पशुओं का चारा (Fodder for Cattle ): सूखे के कारण चारे की कमी होती है तथा हज़ारों पशु भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
- पानी की कमी (Shortage of Water ): पीने के पानी की कमी हो जाती है । जल सिंचाई तथा जल विद्युत् उत्पादन के लिए पानी की कमी हो जाती है। कई क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर नीचा हो जाता है।
सूखे से बचाव के उपाय (Measures to Control Drought): सरकार तथा जनता ने सूखे से बचाव के लिए निम्न उपाय किए हैं।
- सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
- फसलों के हेर-फेर की विधि द्वारा ऐसी फसलों की कृषि की जाती है जो सूखे को सहार सकें शुष्क कृषि पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
- जल सिंचाई की लघु योजनाओं पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
- नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
- शुष्क भागों में, ट्रिकल (Trickle) जल सिंचाई विधि का प्रयोग किया जा रहा है।
- सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पीने का पानी तथा पशुओं के लिए चारे का उचित प्रबन्ध किया जा रहा है।
प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करो। बाढ़ों के कारणों का उल्लेख करते हुए इनसे होने वाली क्षति का वर्णन करो। बाढ़ नियन्त्रण के उपाए बताओ।
उत्तर:
बाढ़ समस्या (Flood Problem):
सूखे की भान्ति बाढ़ भी एक प्राकृतिक विपदा है क्षेत्रों से धन-जन की हानि होती है। कई बार प्रत्येक वर्ष भारत के किसी-न-किसी भाग में बाढ़ों द्वारा विस्तृत एक भाग में भयानक सूखे की स्थिति है तो दूसरे भाग में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्या अधिक गम्भीर हो जाती है। भारत में बाढ़ें एक मौसमी समस्या है जब मानसून की अनियमित वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है। जब नदी के किनारों के ऊपर से पानी बह कर समीपवर्ती क्षेत्रों में दूर-दूर तक फैल जाता है तो इसे बाढ़ का नाम दिया जाता है।
भारत ‘नदियों का देश’ है जहां अनेक छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। ये नदियां वर्षा ऋतु में भरपूर बहती हैं, परन्तु शुष्क ऋतु में इनमें बहुत कम जल होता है। निरन्तर भारी वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। वर्षा की तीव्रता तथा वर्षाकाल की अवधि अधिक होने से बाढ़ों को सहायता मिलती है। मानसून के पूर्व आरम्भ या देर तक समाप्त होने से
बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में मई-जून के मास में बाढ़ें साधारण बात है। उत्तरी भारत की नदियों में वर्षा ऋतु में बढ़ें आती हैं। नर्मदा नदी में अचानक बाढ़ें (flash floods ) आती हैं। तटीय भागों में चक्रवातों के कारण मई तथा अक्तूबर मास में भयानक बाढ़ें आती हैं। सन् 1990 में मई मास में आन्ध्र प्रदेश में खाड़ी बंगाल के चक्रवात से भारी क्षति हुई जिसमें लगभग 1000 व्यक्ति मर गए।
बाढ़ग्रस्त क्षेत्र (Flood Affected Areas):
भारत में मैदानी भाग तथा नदी घाटियों में अधिक बाढ़ें आती हैं। देश का लगभग 1/8 भाग बाढ़ों से प्रभावित रहता है। 60 प्रतिशत बाढ़ें अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती हैं। असम, बिहार, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल राज्य स्थायी रूप से बाढ़ग्रस्त रहते हैं। इन प्रदेशों में अधिक वर्षा तथा बड़ी-बड़ी नदियों के कारण बाढ़ समस्या गम्भीर है। एक अनुमान के अनुसार देश में 78 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्रति वर्ष बाढ़ें आती हैं। नदी घाटियों के अनुसार बाढ़ क्षेत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जाता है।
1. हिमालय क्षेत्र की नदियां (The Rivers of the Himalayas):
इस भाग में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र दो प्रमुख नदियां हैं जिनमें प्रत्येक वर्ष बाढ़ें आती हैं। गंगा घाटी में यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी जैसी सहायक नदियां शामिल हैं। इन नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है। इनकी ढलान तीव्र होती है तथा इन नदियों के मार्ग में परिवर्तन होता रहता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विस्तृत क्षेत्रों में बाढ़ों से भारी क्षति पहुंचती है। देश में बाढ़ों से कुल क्षति का 33% भाग उत्तर प्रदेश में तथा 27% भाग बिहार में होता है। कोसी नदी को बाढ़ों के कारण “शोक की नदी” (River of Sorrow) कहा जाता है।
ब्रह्मपुत्र नदी असम, मेघालय तथा बंगलादेश में बाढ़ों से हानि पहुंचाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहां अधिक वर्षा तथा रेत व मिट्टी के जमाव से बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। भूकम्प के आने के कारण नदियां अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा बाढ़ समस्या अधिक गम्भीर हो जाती हैं। दामोदर घाटी में दामोदर नदी के कारण भयंकर बाढ़ें आती रही हैं । इस नदी को ‘बंगाल का शोक’ भी कहा जाता था परन्तु दामोदर घाटी योजना के पूरा होने के बाद बाढ़ समस्या कम हो गई है।
2. उत्तर-पश्चिमी भारत (North-Western India):
इस भाग में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं। यहां जेहलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास तथा रावी नदियों के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। बरसाती नदियों में भी बाढ़ें आती हैं।
3. मध्य भारत (Central India ):
इस भाग में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा शामिल हैं। यहां ताप्ती, नर्मदा तथा चम्बल नदियों में कभी-कभी बाढ़ें आती हैं। यहां अधिक वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं।
4. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Region ):
इस क्षेत्र में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के कारण बाढ़ें आती हैं। कई बार ज्वार-भाटा के कारण डेल्टाई क्षेत्रों में रेत और मिट्टी के जमाव से भी बाढ़ें आती हैं।
बाढ़ों के कारण (Causes of Floods): भारत एक उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी देश है। यहां मानसूनी वर्षा के अधिक होने से बाढ़ की समस्या गम्भीर हो जाती है। बाढ़ें निम्नलिखित कारणों से आती हैं।
- भारी वर्षा (Heavy Rainfall): किसी भाग में एक दिन में निरन्तर वर्षा की मात्रा 15 सें० मी० से अधिक होने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- चक्रवात (Cyclones): भारत के पूर्वी तट पर खाड़ी बंगाल के तीव्र गति के चक्रवातों से भयानक बाढ़ें आती हैं। जैसे – मई, 1990 में आन्ध्र प्रदेश में चक्रवातों द्वारा निरन्तर वर्षा से नदी क्षेत्रों में बाढ़ उत्पन्न होने से भारी हानि हुई।
- वनों की कटाई (Deforestation ): नदियों के ऊपरी भागों में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से अचानक बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं। शिवालिक की पहाड़ियों, असम, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार में वृक्षों की कटाई के कारण बाढ़ की समस्या गम्भीर है।
- नदी तल का ऊंचा उठना (Rising of the River Bed ): रेत तथा बजरी जमाव से नदी तल ऊंचा उठ जाता है जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का जल फैल जाता है।
- अपर्याप्त जल प्रवाह (Inadequate Drainage ): कई निम्न क्षेत्रों में जल प्रवाह प्रबन्ध न होने से बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं।
बाढ़ों से क्षति (Damage due to Floods)”:
बाढ़ों से कृषि क्षेत्र में फसलों की हानि होती है। मकानों, संचार साधनों तथा रेलों, सड़कों को क्षति पहुंचती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई बीमारियां फैल जाती हैं। देश में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है जिसमें से 25 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलें नष्ट हो जाती हैं। प्रति वर्ष औसत रूप से करोड़ जनसंख्या पर बाढ़ से क्षति का प्रभाव पड़ता है। लगभग 30 हज़ार पशुओं की हानि होती है। एक अनुमान है कि औसत रूप से प्रति वर्ष 505 व्यक्तियों की बाढ़ के कारण मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार देश में लगभग ₹1500 करोड़े की आर्थिक क्षति पहुंचती है। सन् 1990 में देश में कुल क्षति ₹ 41.25 करोड़ की थी तथा 50 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त 162 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। ₹28 करोड़ की फसलें नष्ट हुईं। 862 जानें गईं तथा 1,22,498 पशु मारे गये।
बाढ़ों की रोकथाम (Flood Control):
भारत में प्राचीन समय से बाढ़ों की रोकथाम के लिए उपाय किए जाते हैं। प्रायः नदियों के साथ-साथ तटबंध बनाकर बाढ़ नियन्त्रण किया जाता था। सन् 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियन्त्रण योजना शुरू की गई। इस योजना के अधीन बाढ़ नियन्त्रण के लिए कई उपाय किए गए।
- नदियों के जल सम्बन्धी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
- नदियों के साथ तटबन्ध बनाये गये। देश में लगभग 15,467 कि० मि० लम्बे तटबन्धों का निर्माण किया गया।
- निम्न क्षेत्रों में लगभग 30,199 कि० मी० लम्बी जल प्रवाह नलिकायें बनाई गई हैं।
- 762 नगरों तथा 4,700 गांवों को बाढ़ों से सुरक्षित किया गया है।
- कई नदियों पर जलाशय बन कर बाढ़ों पर नियन्त्रण किया गया है; जैसे- दामोदर घाटी बहुमुखी योजना तथा भाखड़ा नंगल योजना ।
- देश में बाढ़ों का पूर्व अनुमान लगाने के लिए (Flood Forecasting) 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
- नदियों के ऊपरी भागों में वन रोपण किया गया है।
- सातवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 2710 करोड़ बाढ़ नियन्त्रण पर व्यय किए गए जबकि आठवीं पंचवर्षीय योजना पर ₹9470 करोड़ के व्यय का अनुमान है।
- केरल तट पर सागरीय प्रभाव से बचाव के लिए 42 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारों का निर्माण किया गया तथा कर्नाटक तट पर 73 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारें बनाई गईं।
- देश में बाढ़ के पूर्व निर्माण संगठन (Flood Fore-casting Organisation) की स्थापना की गई है। इसके अधीन 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं जिनकी संख्या इस शताब्दी के अन्त तक 300 हो जाएगी।
- महानदी घाटी में हीराकुड बांध, दामोदर घाटी में कई बांध, सतलुज नदी पर भाखड़ा डैम, ब्यास नदी पर पौंग डैम तथा ताप्ती नदी पर डकई बांध बनाकर बाढ़ों की रोकथाम की गई है।
प्रश्न 3.
भूकम्प की परिभाषा दो भारत में भूकम्प क्षेत्रों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
भूकम्प (Earthquake ):
पृथ्वी के किसी भाग के अचानक हिलने को भूकम्प कहते हैं। इस हलचल से भूपृष्ठ पर झटके (Tremors) अनुभव किए जाते हैं। भूकम्पीय तरंगें सभी दिशाओं में लहरों की भान्ति आगे बढ़ती हैं। ये तरंगें उद्गम (Focus ) से आरम्भ होती हैं। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं – P- Waves, S- Waves, L-Waves.
भूकम्प के कारण (Causes of Earthquake ):
भूकम्प के सामान्य कारण ज्वालामुखी विस्फोट, भू-हलचलें, चट्टानों का लचीलापन तथा स्थानीय कारण है। आधुनिक युग में भूकम्पों को टेकटानिक प्लेटों से सम्बन्धित किया गया है। भारत में सामान्य रूप से भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट आपस में टकराती हैं। ये एक दूसरे के नीचे धँसने का यत्न करती हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में इनका सम्बन्ध वलन व भ्रंशन क्रिया से है। दक्षिणी भारत एक स्थिर भूखण्ड है तथा भूकम्प बहुत कम होते हैं। भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर पैमाने से मापी जाती है जिसका मापक 1 से 9 तक होता है। अधिक तीव्र भूकम्प भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुभव किए जाते हैं।
1. हिमालयाई क्षेत्र (Himalayan Zone ):
इस क्षेत्र में क्रियाशील भूकम्प जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में आते हैं जिनसे बहुत हानि होती है। यह भूकम्प भारतीय प्लेट तथा यूरेशियम प्लेट के आपसी टकराव के कारण उत्पन्न होते हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष 5 सें० मी० की गति से उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। यहां 1905 में कांगड़ा में, 1828 में कश्मीर में, 1936 में क्वेटा में तथा 1950 में असम में भयानक भूकम्प अनुभव किए गए।
2. सिन्धु-गंगा प्रदेश (Indo-Gangetion Zone ):
इस क्षेत्र में सामान्य तीव्रता के भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। इनकी तीव्रता 6 से 6.5 तक होती है। परन्तु इन सघन बसे क्षेत्रों में बहुत हानि होती है।
3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Zone):
यह एक स्थिर क्षेत्र है परन्तु फिर भी यहां भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। 1967 में कोयना, 1993 में लातूर, 2001 में भुज के भूकम्प बहुत विनाशकारी थे। कोयना भूकम्प कोयला डैम के जलाशय में जल के अत्यधिक दबाव के कारण आया। परन्तु वर्तमान भूकम्प भारतीय प्लेट की उतर की ओर गति के कारण आए हैं।
4. अन्य भूकम्पीय क्षेत्र (Other Sesonic Zones)
- बिहार – नेपाल क्षेत्र
- उत्तर-पश्चिमी हिमालय
- गुजरात क्षेत्र
- कोयना क्षेत्र।
भारत के प्रमुख विनाशकारी भूकम्प
केन्द्र |
तीव्रता |
वर्ष |
कच्छ |
8.0 |
1819 |
कच्छ |
7.5 |
1869 |
मेघालय |
8.7 |
1865 |
बंगाल |
8.5 |
1885 |
असम |
8.0 |
1897 |
कांगड़ा |
8.0 |
1905 |
असम |
8.7 |
1950 |
कोयना |
6.3 |
1967 |
हिमाचल प्रदेश |
7.5 |
1973 |
लातूर |
6.0 |
1993 |
भुज |
8.0 |
2001 |
भूकम्प के परिणाम:
केवल बसे हुए क्षेत्रों के आने वला भूकम्प ही आपदा या संकट बनता है। भूकम्प का प्रभाव सदैव विध्वंसक होता है। भूकम्प के कारण प्राकृतिक पर्यावरण में कई तरह से परिवर्तन हो जाते हैं। भूकम्पीय तरंगों से धरातल में दरारें पड़ जाती हैं जिनसे कभी-कभी पानी के फव्वारे छूटने लगते हैं। इसके साथ बड़ी भारी मात्रा में रेत बाहर आ जाता है तथा इससे रेत के बांध बन जाते हैं। क्षेत्र के अपवाह तन्त्र में उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं। नदियों के मार्ग बदल जाने से बाढ़ आ जाती है।
पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन हो जाते हैं तथा इनके साथ भारी मात्रा में चट्टानी मलबा नीचे आ जाता है। इससे बृहतक्षरण होता है। हिमानियाँ फट जाती हैं तथा इनके हिमधाव सुदूर स्थित स्थानों पर बिखर जाते हैं। नए जल प्रपातों और सरिताओं की उत्पत्ति भी हो जाती है। भूकम्पीय आपदाओं से मनुष्य निर्मित भवन बच नहीं पाते हैं। सड़कें, रेलमार्ग, पुल और टेलीफोन की लाइनें टूट जाती हैं। गगनचुम्बी भवनों और सघन जनसंख्या वाले कस्बों और नगरों पर भूकम्पों का सबसे बुरा असर होता है।
सुनामी लहरें (Tsunami Tidal Waves):
समुद्री तली पर भूकम्प उत्पन्न होने से 30 मीटर तक ऊंची ज्वारीय लहरें (सुनामी) उत्पन्न होती है। 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में इण्डोनेशिया के निकट उत्पन्न भूकम्प के कारण भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इनका प्रभाव इण्डोनेशिया, थाइलैण्ड, म्यानमार, भारत तथा श्रीलंका के तटों पर अनुभव किया गया। इन भयंकर लहरों के कारण इन क्षेत्रों में लगभग 2 लाख लोगों की जानें गईं तथा करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति की हानि हुई है।
यह पृथ्वी के इतिहास में सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा थी भूकम्प के प्रभाव को कम करना भूकम्प के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका हैं । इसकी निरन्तर खोज-खबर रखना तथा लोगों को इसके आने की सम्भावना की सूचना देना इससे आशंकित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सकता है। भूकम्प से अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्र में भूकम्प रोधी भवन बनाने की आवश्यकता है। भूकम्प की आशंका वाले क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प रोधी भवन और मकान बनाने की सलाह दी जा सकती है।
प्रश्न 4.
चक्रवात किसे कहते हैं? चक्रवातों द्वारा क्षति का वर्णन करो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones):
600 कि०मी० या इससे अधिक व्यास वाले चक्रवात, पृथ्वी के वायुमण्डलीय तूफानों में सबसे अधिक विनाशक और भयंकर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप संसार में चक्रवातों द्वारा सबसे अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र हैं। संसार में आने वाले चक्रवातों में से 6 प्रतिशत यही आते हैं।
उत्पत्ति: जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव के क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है, तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात ऊष्मा का इंजिन है तथा इसे सागरीय तल से ऊष्मा मिलती है। संघनन के बाद मुक्त ऊष्मा, चक्रवात के लिए गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) में बदल जाती है।
चक्रवात की उत्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं।
- महासागरीय तल का तापमान 26° से अधिक।
- बन्द समदाब रेखाओं का आविर्भाव।
- निम्न वायुदाब, 1,000 मि。बा० से कम होना।
- चक्रीय गति के क्षेत्रफल, प्रारम्भ में इनके अर्धव्यास 30 से 50 कि०मी० फिर क्रमश: 100-200 कि०मी० और 1,000 कि०मी० तक भी बढ़ जाते हैं।
- ऊर्ध्वाधर रूप में पवन की गति का प्रारम्भ में 6 कि०मी० की ऊंचाई तक बढ़ना तथा इसके बाद और भी ऊंचा उठाना।
ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना:
- ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में बहुत अधिक दाब प्रवणता (14-17 मि०बा० / 100 कि०मी०) होती है। कुछ चक्रवातों में यह इससे भी अधिक ऊंची अर्थात् 60 मि० बा० / 100 कि०मी० होती है।
- पवन पट्टी केन्द्र से 10 से 150 कि०मी० या कभी – कभी इससे भी अधिक दूरी में फैली होती है। धरातल पर पवन का चक्रवातीय परिसंचरण होता है। तथा ऊंचाई पर यह प्रति चक्रवातीय बन जाता है।
- ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की क्रोड कोष्ण होती है। चक्रवात का केन्द्र सामान्यतः मेघ विहीन होता है। इसे चक्रवात की आंख कहते हैं। चक्रवात की आंख बहुत ऊंचाई तक फैले ऊर्ध्वाधर बादलों से घिरी होती है।
- ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात से सामान्यतः 50 सें०मी० से अधिक वर्षा होती है। कभी-कभी वर्षा 100 सें०मी० से भी अधिक हो जाती है।
- चक्रवात अपने पूरे तन्त्र के साथ लगभग 20 कि०मी० प्रति घंटा औसत गति से आगे बढ़ता है। जैसे-जैसे चक्रवात स्थल पर बढ़ता जाता है, समुद्री जल के अभाव में इसकी ऊर्जा घटती जाती है। इससे चक्रवात समाप्त हो जाता है। चक्रवात की जीवन अवधि 5 से 7 दिनों की होती है।
चक्रवातों द्वारा क्षति:
प्रभंजन की गति वाली पवनों, प्रभंजन की लहरों तथा मूसलाधार वर्षा से उत्पन्न बाढ़ों के कारण ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। अधिकतर तूफ़ान अत्यन्त तेज़ पवनों और तूफ़ानी लहरों के द्वारा भारी क्षति पहुंचाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल पर अत्यन्त तीव्रता से बहने वाला वर्षा जल अपने सामने आने वाली हर वस्तु को अपनी चपेट में लेकर भारी नुकसान करता है। तूफ़ानी लहरों की तीव्रता, पवन की गति, दाब प्रवणता, समुद्र की तली की स्थलाकृतियों तथा तटरेखा की बनावट पर निर्भर करती है। अनेक क्षेत्रों में चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था के बावजूद, ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात धन-जन को अपार क्षति पहुंचाते हैं।
क्षेत्र: अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में तूफ़ानों की संख्या कहीं अधिक है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अधिकतर तूफान अक्तूबर और नवम्बर के महीनों में आते हैं। मानसून ऋतु का प्रारंभिक भाग भी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ऊष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की उत्पत्ति के अनुकूल है। मानसून ऋतु में अधिकतर चक्रवात 10° उ० तथा 15° उ० अक्षांशों के मध्य ही उत्पन्न होते हैं। जून में बंगाल की खाड़ी के लगभग सभी तूफ़ान 92° पू० देशांतर के पश्चिम में 16° उ० और 21° उ० अक्षांश के मध्य जन्म लेते हैं। जुलाई में खाड़ी के तूफ़ानों का जन्म 18° 3० अक्षांश के उत्तर में तथा 90° पू० देशान्तर के पश्चिम में होता है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जुलाई के सभी तूफ़ान पश्चिमी पथ का अनुसरण करते हैं। ये सामान्यत: 20° उ० तथा 25° उ० अक्षांशों के मध्य तक ही सीमित रहते हैं तथा हिमालय की गिरिपद पहाड़ियों की ओर अपेक्षाकृत बहुत कम मुड़ते हैं।
क्षति का प्रभाव कम करना:
अधिकतर चक्रवातीय क्षति, तेज़ पवनों, मूसलाधार वर्षा और समुद्र में उठने वाली ऊँची तूफ़ानी, ज्वारीय लहरों के द्वारा होती है। पवनों की तुलना में चक्रवातीय वर्षा के कारण आई बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है। आज चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होने से तथा पर्याप्त और सामयिक कार्यवाही से चक्रवात से मरने वालों की संख्या में कमी आई है। अन्य उपाय जैसे : चक्रवातों के आने के समय सुरक्षा के लिए आय स्थलों के तटबंधों, बांधों, जलाशयों के निर्माण से और तट पर वन रोपण से भी बहुत सहायता मिलती है। फ़सलों और गो- पशुओं बी से भी लोगों को क्षति पूर्ति में काफ़ी मदद मिलती है। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के द्वारा चक्रवात के पथ के बारे में चेतावनी देना अब सम्भव हो गया है। कम्प्यूटर द्वारा बनाए गए मॉडलों की सहायता से चक्रवात की पवनों की दिशा और तीव्रता तथा इसके पथ की दिशा की काफ़ी हद तक सही भविष्यवाणी की जा सकती है।
प्रश्न 5.
आपदा प्रबन्धन पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन ( Disaster Management ):
आपदा प्रबन्धन में निवारक और संरक्षी उपाय, तैयारी तथा मानवों पर आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए राहत कार्यों की व्यवस्था तथा आपदा प्रवण क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक पक्ष शामिल किए जाते हैं। आपदा प्रबन्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रभाव चरण, पुनर्वास और पुनर्निर्माण चरण तथा समन्वित दीर्घकालीन विकास और तैयारी चरण। प्रभाव चरण के तीन अंग हैं।
- आपदा की भविष्यवाणी करना,
- आपदा के प्रेरक कारकों की बारीकी से खोजबीन, तथा
- आपदा आने के बाद प्रबन्धन के कार्य जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा का अध्ययन करके बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है।
उपग्रहों के द्वारा चक्रवातों के मार्ग, गति आदि की खोज-खबर ली जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पूर्व चेतावनी तथा लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के प्रयत्न शुरू किए जा सकते हैं। आपदा के लिए ज़िम्मेदार कारकों की बारीकी से की गई खोजबीन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, भोजन, वस्त्र और पेय जल की आपूर्ति के लिए कार्यदल नियुक्त किए जा सकते हैं। आपदाएँ मृत्यु और विनाश के चिह्न छोड़ जाती हैं। प्रभावित लोगों को चिकित्सा सुविधा और अन्य विभिन्न प्रकार की सहायता की ज़रूरत होती है। दीर्घकालीन विकास के चरण के अन्तर्गत विविध प्रकार के निवारक और सुरक्षापायों की योजना बना लेनी चाहिए। संसार के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यूनेस्को ने 1990-2000 के दौरान प्राकृतिक आपदा राहत दशक मनाया था। संसार के अन्य देशों के साथ भारत ने भी दशक के दौरान अक्तूबर में विश्व आपदा राहत दिवस मनाया था। इस अवसर पर भूकंप, बाढ़ और चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लोगों के लिए भारत सरकार ने जो करणीय और अकरणीय कर्म प्रचारित किए थे, वे बहुत उपयोगी हैं।
प्रश्न 6.
सुनामी से क्या अभिप्राय हैं? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है? 26 दिसम्बर, 2004 को हुए सुनामी संकट के प्रभाव बताओ।
उत्तर:
सुनामी (Tsunami ):
सुनामी एक जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘तटीय तरंगें’, ‘Tsu’ शुद्ध का अर्थ है-तट तथा ‘Nami’ शब्द का अर्थ है ‘तरंगें ‘। इसे प्रायः ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves) भी कहा जाता है।
सुनामी अचानक ही ऊंचा उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे जल में हलचल होती है। इसकी ऊंचाई प्रायः 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस दशा में उत्पन्न होती है जब सागरीय तली में भूकम्पीय क्रिया के कारण हल चल होती है तथा महासागर में सतह के जल का लम्बरूप में विस्थापन होता है। हिन्द महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम अनुभव की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशान्त महासागर में घटित होती हैं।
सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami ):
पृथ्वी आंतरिक दृष्टि से एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूकम्प विवर्तनिक प्लेटों (Tectomic plates) की सीमाओं पर उत्पन्न होते हैं। सुनामी अधिकतर प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone) के भूकम्प के कारण उत्पन्न होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र हैं दो प्लेटें एक दूसरे में विलीन (converge) होती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे खिसक जाती है। समुद्र अधस्तल का विस्तारण होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूकम्प को जन्म देती है।
26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004 ):
प्रात: 7.58 बजे के समय पर, काले रविवार (Black Sunday) को 26 दिसम्बर, 2004 को क्रिस्मस से एक दिन बाद सुनामी त्रासदी घटी यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिन्द महासागर के तटीय प्रदेशों से टकराई। इस लहर के कारण इण्डोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख व्यक्ति इस त्रासदी का शिकार हो गए। महासागरी तली पर उत्पन्न एक भूकम्प उत्पन्न हुआ जिसका अधिकेंदर सुमात्रा (इण्डोनेशिया) ने 257 कि०मी० दक्षिण पूर्व में था। यह भूकम्प रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था।
इन लहरों के ऊंचे उठने से जल की एक ऊंची दीवार उत्पन्न हो गई। आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् त्रासदी के रूप में अंकित की जाएगी। सन् 1900 के पश्चात् यह चौथा बड़ा भूकम्प था। इस भूकम्प के कारण उत्पन्न सुनामी लहरों से हीरोशिमा बम्ब की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ। इसलिए इसे भूकम्प प्रेरित प्रलयकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारतीय तथा बर्मा की प्लेटों के मिलन स्थान पर घटी जहां लगभग 1000 कि०मी० प्लेट सीमा खिसक गई।
इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊंचा उठ गया तथा ऊपरी जल हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया । इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घण्टा थी । इसे अपने उद्गम स्थान से भारतीय तट तक पहुंचने में दो घण्टे का समय लगा। इस त्रासदी ने तटीय प्रदेशों के इतिहास तथा भूगोल को बदल कर रख दिया है।
सुनामी त्रासदी के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster ):
हिन्द महासागर के तटीय देशों इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, म्यांमार, भारत, श्रीलंका तथा मालदीव में विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में सब से अधिक प्रभावित तमिलनाडु, पांडिचेरी, आन्ध्र प्रदेश, केरल राज्य थे अण्डमान तथा निकोबार द्वीप में इस लहर का सब से अधिक प्रभाव पड़ा। इण्डोनेशिया में लगभग 1 लाख व्यक्ति, थाइलैंड में 10,000 व्यक्ति, श्रीलंका में 30,000 व्यक्ति तथा भारत में 15,000 व्यक्ति इस प्रलय के शिकार हुए।
भारत में सब से अधिक क्षति तमिलनाडु के नागापट्टनम जिले में हुई जहां जल नगर में 1.5 कि०मी० अन्दर तक घुस गया। संचार, परिवहन साधन तथा विद्युत् सप्लाई में विघ्न पड़ा बहुत से श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के पुलिन (Beach) पर सागर जल में वह गए। विनाशकारी तट लौटती लहरें हज़ारों लोगों को वहा कर ले गईं। मैरीन पुलिन (एशिया के सब से बड़े पुलिन) पर 3 कि०मी० लम्बे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की लपेट में आ गए। यहां लाखों रुपयों के चल-अंचल संसाधनों की बर्बादी हुई।
कल्पाक्कम अणु शक्ति घर में जल प्रवेश करने से अणु शक्ति के रीएक्टरों को बन्द करना पड़ा। मामलापुरम के विश्व प्रसिद्ध मन्दिर को तूफ़ानी लहरों से बहुत क्षति हुई।
सब से अधिक मौतें अण्डमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर जो कि भूकम्प के अधिकेन्द्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सब से अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौ सेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का बहुत-सा क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया है। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया तथा यहां पुनः मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश के आपदाओं के शब्द कोश में एक नया शद्ध सुनामी आपदा जुड़ गया है। अमेरिकन वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से डगमगा गई और उसका परिभ्रमण तेज़ हो गया जिससे दिन हमेशा के लिए एक सैकिंड कम हो गया। सुनामी लहरें सचमुच प्रकृति का कहर हैं।