JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल 

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन।
उत्तर:
(C) जलयोजन।

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है
(A) 2-20 मीटर
(B) 20-200 मीटर
(C) 200–2,000 मीटर
(D) 2,000-20,000 मीटर।
उत्तर:
(C) 200-2,000 मीटर।

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3. निम्नलिखित में से कौन-सी उच्चावच महासागरों में मिलने वाली लघु आकृति नहीं है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप।
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर।

4. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिन्द महासागर
(B) अन्ध महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशान्त महासागर।
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर।

5. लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम।
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दोप्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह अथवा नीला ग्रह कहा जाता है, क्योंकि इसके धरातल पर जल का बाहुल्य है। पृथ्वी के धरातल का 71 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है। उत्तरी गोलार्द्ध के कुल क्षेत्रफल के 60.7 प्रतिशत भाग पर और दक्षिणी गोलार्द्ध के 80.9 प्रतिशत भाग पर जल है। यदि हम पृथ्वी के केवल जलीय धरातल को ध्यान में रखें तो इसका 43 प्रतिशत उत्तरी गोलार्द्ध में तथा 57 प्रतिशत दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है।

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प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमान्त क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय शेल्फ को महाद्वीपीय सीमान्त कहते हैं जहां महाद्वीप समाप्त होते हैं तथा महासागर आरम्भ होते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइए।
उत्तर:
संसार में सबसे गहरा गर्त कैरियाना गर्त (प्रशान्त महासागर) है। जो 11022 मीटर गहरा है। अन्ध महासागर में प्यरटो रिको गर्त तथा हिन्द महासागर में सण्डा गर्त है। प्रशान्त महासागर में क्यूराईल गर्त, बोनिन गर्त, जापान गर्त, अटाकामा गर्त तथा मिण्डानो गर्त प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
ताप प्रवणता क्या है?
उत्तर:
महासागरों में वह सीमा क्षेत्र जहां तापमान में तीव्र गिरावट आती है ताप प्रवणता कहलाता है।

प्रश्न 5.
जल चक्र की व्याख्या करो।
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, 169 जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र से मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहाँ से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है: वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

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प्रश्न 6.
समुद्र से नीचे जाने पर आप ताप की किन पर्तों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान में कमी आती है। महासागर के सतहीय एवं गहरी परतों वाले जल के बीच विभाजक क्षेत्र है। यह विभाजक रेखा समुद्री तल से करीब 100 से 400 मीटर नीचे प्रारम्भ होती है एवं कई सौ मीटर नीचे तक विस्तृत (थर्मोक्लाइन) होती है। विभाजक रेखा के इस क्षेत्र में जहां तापमान में तीव्र कमी आती है, उसे ताप प्रवणता कहा जाता है। जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। मध्य एवं निम्न अक्षांशों के महासागरों के तापमान की बनावट को सतह से तल की स्थित तीन स्तरीय प्रणाली के द्वारा समझाया जा सकता है।

  1. पहली परत यह गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है एवं इसका तापमान 20 डिग्री से० से 25 डिग्री से० के बीच होता है तथा इसकी मोटाई लगभग 500 मीटर होती है। कटिबन्धीय क्षेत्रों में यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, परन्तु मध्य अक्षांशों में केवल गर्मी में विकसित होती है।
  2. दूसरी परत को ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) परत कहा जाता है, जो कि पहली परत के नीचे उपस्थित होती है एवं गहराई के बढ़ने के साथ इसके तापमान में तीव्र गिरावट आती है। थर्मोक्लाइन की मोटाई 500 से 1,000 मीटर तक होती है।
  3. तीसरी परत बहुत अधिक ठण्डी होती है तथा गहरे समुद्री तल तक विस्तृत होती है। आर्कटिक एवं अटार्कटिक वृत्तों में, ऊपरी सतह के जल का तापमान लगभग 0 डिग्री से० होता है, इसीलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। यहां ठण्डे पानी की एक ही परत उपस्थित होती है जो कि ऊपरी सतह से लेकर महासागर के गहरे तल तक विस्तृत होती है।

प्रश्न 7.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
समुद्र जल में पाए जाने वाले समस्त लवणों का योग समुद्र की लवणता कहलाता है। महासागरीय लवणता उस अनुपात को कहते हैं जो घुले हुए लवणों की मात्रा तथा समुद्र जल की मात्रा में होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्त्व किस प्रकार अन्तर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र में मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहां से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है : वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
सागरीय जल ताप का एक उत्तम संचालक है। इसी कारण जल, स्थल की अपेक्षा देर से गर्म होता है तथा देर से ठण्डा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक समान नहीं होता। सागरीय जल के तापमान का वितरण निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करता है
1. भूमध्य रेखा से दूरी:
सागरीय जल की ऊपरी सतह का तापमान अक्षांश के साथ हटता रहता है। भूमध्य रेखा पर यह तापमान 26°C के लगभग रहता है। 40° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 14°C पाया जाता है तथा 60° अक्षांश पर 1°C। शून्य डिग्री सेल्सियस समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के गिर्द वृत्त बनाती है।

2. प्रचलित पवनें:
स्थायी पवनें समुद्र जल की ऊपरी परत को हटाती रहती हैं तथा नीचे से ठण्डा जल आ जाता है। इस उत्स्रवण (Up welling of water) की क्रिया से तापमान कम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र से स्थल की
ओर आने वाली पवनें गर्म जल इकट्ठा करके तापमान को बढ़ा देती हैं।

3. महासागरीय धाराएं:
महासागरीय धाराएं तापमान में समानता लाने का प्रयत्न करती हैं। गर्म धाराएं ठण्डे प्रदेशों में तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण गल्फस्ट्रीम के कारण ही पश्चिमी यूरोप में तापमान 5°C से अधिक रहता है। इसके विपरीत ठण्डी धाराएं तापमान को ओर भी कम कर देती हैं, ठण्डी लेब्रेडोर धारा के कारण न्यूफाऊण्डलैण्ड के निकट तापमान 2°C से कम होता है।

4. लवण मे भिन्नता:
अधिक लवण वाले जल का तापमान ऊंचा होता है क्योंकि वह अधिक गर्मी ग्रहण कर सकता है।

5. स्थल खण्डों की स्थिति:
उष्ण कटिबन्ध में स्थल के घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है परन्तु शीत कटिबन्ध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई:
समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान कम होता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15°C से घटकर 2°C रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से घटकर 1.6°C रह जाता है।

7. अंतः समुद्री रोधिकाएं (Submarine Ridges):
कम गहरे भागों में पानी के नीचे रोधिकाएं तापमान में अन्तर डालती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

महासागरीय जल  JAC Class 11 Geography Notes

→ जल तथा स्थल वितरण (Distribution of Land and Water): पृथ्वी के धरातल का तीन चौथाई। भाग (70.8%) जल से ढका हुआ है। जबकि एक चौथाई भाग (29.2%) स्थल से घिरा है।

→ प्रमुख महासागर (Oceans): प्रशान्त महासागर, अन्ध महासागर, हिन्द महासागर तथा आर्कटिक महासागर प्रमुख महासागर हैं। प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा महासागर है।

→ सागरीय धरातल (Ocean floor): सागरीय धरातल को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  • महाद्वीपीय मग्न तट
  • महाद्वीपीय ढाल
  • महासागरीय मैदान
  • महासागरीय गर्त।

→ महाद्वीपीय मग्न तट (Continental shelf):यह महाद्वीपों के चारों ओर कम गहरा तथा मंद ढलान वाला जलमग्न भाग है। इसकी रचना नदियों, लहरों द्वारा तलछट के निक्षेप से या समुद्र तल के ऊपर उठने से या  स्थल भाग के नीचे धंसने से होती है। (600 मीटर गहराई)

→ महाद्वीपीय ढाल (Continental slope): यह महाद्वीपीय मग्न तट से नीचे की ओर तीव्र ढलान है। इसकी गहराई 3660 मीटर तक है।

→ महासागरीय मैदान (Deep Sea plain): समुद्र में चौड़े तथा समतल क्षेत्र को महासागरीय मैदान कहते हैं। जो 3000 से 6000 मीटर गहरा है।

→ महासागरीय गर्त (Ocean deep): महासागरों में सबसे गहरा स्थान मैरियाना गर्त (11033 मीटर) है। महासागरों में ‘V’ आकार की घाटियां (समुद्री कैनियन) पाई जाती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन-सी दशा अर्हक है?
(A) सभी महीनों में उच्च वर्षा
(B) सबसे ठण्डे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिन्दु से अधिक
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक
(D) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे।
उत्तर:
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक।

2. जलवायु के वर्गीकरण से सम्बन्धित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है
(A) अनुप्रयुक्त
(B) व्यवस्थित
(C) जननिक
(D) आनुभाविक।
उत्तर:
(D) आनुभाविक।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

3. भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा
(A) “AF”
(B) “BSh”
(C) “Cfb”
(D) “Am”
उत्तर:
(D) “Am”

4. निम्नलिखित में से कौन-सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना जाता है-जाएगा?
(A) 1990
(B) 1998
(C) 1885
(D) 1950
उत्तर:
(B) 1998

5. नीचे लिखे गए चार जलवायु के समूहों में से कौन आई दशाओं को प्रदर्शित करता है?
(A) A-B-C-E
(B) A-C-D-E
(C) B-C-D-E
(D) A-C-D-F
उत्तर:
(D) A-C-D-F

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

6. विश्व में उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु किन अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°-20°
(B) 15°-30°
(C) 15°-35°
(D) 30°-40°
उत्तर:
(B)15°-30°.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की। उन्होंने वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आंकड़ों का प्रयोग किया।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जननिक वर्गीकरण जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास हैं। परन्तु, आनुभविक वर्गीकरण प्रेक्षित किए गए विशेष रूप से तापमान एवं वर्षण से सम्बन्धित आंकड़ों पर आधारित होता है।

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प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु (Af)
  2. समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु (cfb)

प्रश्न 4.
सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएं प्रचलित होगी?
उत्तर:
सौर कलंकों की संख्या बढ़ने से मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफ़ानों की संख्या बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
A एवं B प्रकार को जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु:
यह जलवायु उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु है, जो मकर रेखा और कर्क रेखा के बीच पाई जाती है। यहाँ वार्षिक तापांतर बहुत कम होता है। तापमान समान रूप से ऊँचा रहता है (30°C) मानसून क्षेत्रों में सीत ऋतु, शुष्क होती है।

B प्रकार की जलवायु:
यह शुष्क जलवायु है जहां न्यून वर्षा होती है। यह जलवायु 15° -60° उत्तर व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य मिलती है। यहां उत्तरती पवनों के कारण वर्षा कम होती है। महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में भी वर्षा कम होती है इसमें स्टैपी तथा अर्द्ध मरुस्थली जलवायु मिलती हैं। ग्रीष्म काल में तापमान ऊँचे रहते हैं।

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प्रश्न 6.
C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएंगे?
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु में उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित वन पाए जाते हैं। मानसून क्षेत्रों में पर्णपाती वन तथा घास के मैदान पाए जाते हैं।
C प्रकार की जलवायु में शीतोष्ण कटिबन्धीय बन पाए जाते हैं। शुष्क क्षेत्रों में लम्बी जड़ों वाले मोटे पत्तों वाले वृक्ष पाए जाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Question)

प्रश्न-ग्रीन हाउस गैसों से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न 1.
ग्रीन हाउस गैसों की सूची तैयार करो।
उत्तर:

ग्रीन हाउस प्रभाव

भू-पृष्ठ से वायुमंडल के अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होने की संकल्पना को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं, जिसे सामान्यतः सूर्यातप (लघु तरंगें) वायुमंडली प्रभाव भी कहते हैं। स्पष्टतया वायुमंडल का प्रभाव एक शीशे की भान्ति काम करता है, जो आने वाली सौर ऊर्जा की लघु तरंगों को अपने से होकर गुज़रने देता है, लेकिन बाहर जाने वाले पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों को रोकता कांच है। इस प्रकार यह भू-पृष्ठीय तापमान को उस तापमान से कांच ऊँचा रखता है, जो इस प्रक्रिया के अभाव में होता है। आप स्वयं एक ग्रीन हाउस का निर्माण कर सकते हैं।

खिड़कियां बन्द करके अपनी कार को दो घंटे के लिए धूप में खड़ी कर पृथ्वी दीजिए। अब कार के अंदर के तापमान का अनुभव कीजिए। यह बाहर के तापमान से अधिक होगा। शीत ऋतु में, ग्रीन लघु तरंगों दीर्घ तरंगों के रूप का अवशोषण में ऊष्मा विकिरण हाउस में कांच की छत की पारदर्शिता का उपयोग लघु तरंगों को ट्रैप करके टमाटर उगाने के लिए किया जा सकता है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन 1

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन JAC Class 11 Geography Notes

→ जलवायु (Climate): किसी स्थान पर एक लम्बे समय की वायुमण्डलीय दशाओं (35 वर्ष के कुल योग। को जलवायु कहते हैं। यह एक लम्बे समय का औसत मौसम होता है।

→ जलवायु के तत्त्व (Elements of Climate): जलवायु के निम्नलिखित तत्त्व हैं

  • अक्षांश
  • समुद्र तल से ऊंचाई
  • जल व स्थल का वितरण
  • वायु दाब
  • प्रचलित पवनें
  • सागरीय धाराएं
  • पर्वतीय अवरोध।

→ जलवायु वर्गीकरण (Classification of Climate): यह जलवायु का एक क्रमबद्ध वर्णन है जिससे। सुगम रूप से विश्लेषण किया जा सके।

→ विभिन्न वर्गीकरण (Different Classification): जलवायु वर्गीकरण का प्रथम प्रयास यूनानी विद्वानों द्वारा किया गया। उन्होंने तापमान के आधार पर पृथ्वी को तीन भागों में बांटा है।

  • उष्ण कटिबन्ध
  • शीतोष्ण कटिबन्ध
  • शीत कटिबन्ध।

विभिन्न वर्गीकरण विभिन्न विद्वानों-कोपन, थार्नवेट तथा टिवार्था द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. मानव के लिए वायुमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(A) जलवाष्प
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) ऑक्सीजन।
उत्तर:
(D) ऑक्सीजन।

2. निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल द्रव से गैस में बदल जाता है?
(A) संघनन
(B) वाष्पीकरण
(C) वाष्पोत्सर्जन
(D) अवक्षेपण।
उत्तर:
(B) वाष्पीकरण।

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है?
(A) सापेक्ष आर्द्रता
(B) निरपेक्ष आर्द्रता
(C) विशिष्ट आर्द्रता
(D) संतृप्त हवा।
उत्तर:
(D) संतृप्त हवा।

4. निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊंचा बादल कौन-सा है?
(A) पक्षाभ
(B) मेघवर्षी
(C) स्तरी
(D) कपासी।
उत्तर:
(A) पक्षाभ।

5. भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
(A) पर्वतीय वर्षा
(B) चक्रवातीय वर्षा
(C) पर्वतीय वर्षा
(D) वाताग्रीय वर्षा।
उत्तर:
(B) पर्वतीय वर्षा।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिएप्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखो।
उत्तर:
किसी क्षेत्र पर वायु मण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वर्षण कहा जाता है। वर्षण मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं:

  1. वर्षा
  2. हिम वर्षा
  3. ओलावृष्टि
  4. ओस प्रश्न

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प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity):
किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। ग्रहण करने की क्षमता दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।
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प्रश्न 3.
ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर:
ऊंचाई के साथ जब हवा ऊपर उठती है तो वह फैलती है तथा तापमान गिर जाता है। आर्द्रता संघनित हो जाती है तथा वर्षा के रूप में गिरती है। इस प्रकार ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 4.
बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
वायु में धूलि कणों पर लदे जल बिन्दुओं के समूह को बादल कहते हैं। जल कण बादलों के रूप में तैरते रहते हैं। ऊंचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ-जो 10000 मीटर तक ऊंचे होते हैं। जैसे पक्षाभ, कपासी मेघ।
  2. मध्यम,स्तरीय मेघ-3000-6000 मीटर तक ऊंचे जैसे कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ-3000 मीटर से कम ऊंचे जैसे वर्षा मेघ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
प्रश्न 1.
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संसार में वर्षा का वितरण समान नहीं है। भूपृष्ठ पर होने वाली कुछ वर्षा का 19 प्रतिशत महाद्वीपों पर तथा 81 प्रतिशत महासागरों पर प्राप्त होता है। संसार की औसत वार्षिक वर्षा 975 मिलीमीटर है।

  1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेंटीमीटर है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय भागों में अधिक वर्षा होती है।
  2. सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में 100 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है। यह क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में स्थित हैं तथा मध्यवर्ती पर्वतों पर मिलते हैं।
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र-महाद्वीपों के मध्यवर्ती भाग तथा शीतोष्ण कटिबन्ध के पूर्वी तटों पर 25 से 100 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
  4. वर्षा विहीन प्रदेश-गर्म मरुस्थल, ध्रुवीय प्रदेश तथा वृष्टि छाया प्रदेशों में 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

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प्रश्न 2.
संघनन कैसे होता है? संघनन के विभिन्न रूप क्या हैं? ओस और तुषार बनने की प्रक्रिया बताओ।
उत्तर:
संघनन (Condensation):
जिस क्रिया द्वारा वायु के जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं। जल-कणों के वाष्प का गैस से तरल अवस्था में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं। (“Change of water-vapour into water is called condensation.”) वायु का तापमान कम होने से उस वायु की वाष्प धारण करने की शक्ति कम हो जाती है। कई बार तापमान इतना कम हो जाता है कि वायु जल-वाष्प को सहार नहीं सकती और जल-वाष्प तरल रूप में वर्षा के रूप में गिरता है। इस क्रिया के उत्पन्न होने के कई कारण हैं

  1. जब वायु लगातार ऊपर उठ कर ठण्डी हो जाए।
  2. जब नमी से लदी वायु किसी पर्वत के सहारे ऊंची उठ कर ठण्डी हो जाए।
  3. जब गर्म तथा ठण्डी वायु-राशियां आपस में मिलती हैं।

संघनन के परिणाम कई रूपों में प्रकट होते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
1. कोहरा (Fog):
वायु में अनेक प्रकार के जल-कण मिट्टी व रेत के कणों पर तैरते रहते हैं। कोहरा एक प्रकार का बादल है जो धरातल के निकट वायु में धूल के कणों पर लटके हुए जल-बिन्दुओं से बनता है। (“Fog is condensed vapour hanging in the air.”) ठण्डे धरातल या ठण्डी वायु के सम्पर्क से नमी से भरी हुई वायु जल्दी ठण्डी हो जाती है। वायु में उड़ते रहने वाले धूलि-कणों पर जल-वाष्प का कुछ भाग जल-बिन्दुओं के रूप में जमा हो जाता है जिससे वातावरण धुंधला हो जाता है तथा 200 मीटर से अधिक दूरी की वस्तु दिखाई नहीं देती और वायुयानों की उड़ानें स्थगित करनी पड़ती हैं।

यह प्राय: साफ़ तथा शान्त मौसम में, शीत ऋतु की लम्बी रातों के कारण बनता है जबकि धरातल पूरी तरह ठण्डा हो जाता है। इसे भूमि का कोहरा (Ground Fog) भी कहते हैं। नदियों, झीलों व समुद्रों के समीप के प्रदेशों में भी कोहरा मिलता है। औद्योगिक नगरों में धुएं के साथ उड़ी हुई राख पर जल-बिन्दु टिकने से कोहरा छाया रहता है। ऐसी धुएं मिली धुंध को Smog कहते हैं। न्यूफाउंडलैण्ड (Newfound-land) के तट पर खाड़ी की गर्म धारा तथा लैब्रेडोर की ठण्डी धारा मिलने के कारण कोहरा छाया रहता है।

2. धुन्ध (Mist):
हल्के कोहरे को धुन्ध कहते हैं। (“A thin fog is called Mist.) कोहरे तथा धुन्ध में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि दोनों एक जैसी दशाओं में बनते हैं। कोहरे की अपेक्षा धुन्ध में संघनता कम होती है तथा दो कि० मी० तक की दूरी पर भी वस्तुएं दिखाई पड़ जाती हैं। कोहरे में शुष्कता अधिक होती है, परन्तु धुन्ध में नमी अधिक होती है। जल की बूंदें बड़े आकार की होती हैं। शीत ऋतु में शीतोष्ण कटिबन्ध में धुन्ध एक साधारणसी बात है। सूर्य निकलने या तेज़ हवाओं के कारण धुन्ध जल्दी समाप्त हो जाती है।

3. मेघ (Clouds):
वायु के ठण्डे होने से या संघनन के कारण बादल बनते हैं। मुक्त वायु में धूलि-कणों पर लदे जल-बिन्दुओं के समूह को मेघ कहते हैं। वायु के ठण्डा होने से जल-वाष्प जल-कणों का रूप धारण कर लेते हैं। छोटे-छोटे कण आपस में मिल कर बड़े कणों की रचना करते हैं। ये इतने भारी नहीं होते कि वर्षा के रूप में नीचे गिरें। ये जल-कण वायु में तैरते रहते हैं तथा धूल के वाष्प-ग्राही कणों पर द्रव के रूप में जम जाते हैं। इन कणों के पुँज को मेघ कहते हैं। ज्योंही ये कण बड़ा रूप धारण कर लेते हैं तथा वायु से भारी हो जाते हैं तो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आ जाते हैं। मेघ 12,000 मीटर तक की ऊँचाई तक मिलते हैं क्योंकि इससे ऊपर जल-वाष्प नहीं होते।

बादलों के प्रकार (Types of Clouds)-ऊँचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ (High Clouds)-6,000 से 10,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-पक्षाभ, स्तरी तथा कपासी मेघ।
  2. मध्यम स्तरीय मेघ (Medium Clouds)-3,000 से 6,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-मध्य कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ (Low Clouds)-3,000 मीटर तक ऊंचे मेघ जिनमें स्तरीय कपासी मेघ, वर्षा स्तरी मेघ, कपासी मेघ, कपासी वर्षा मेघ शामिल हैं।

4. ओले (Hail Stones):
जब संघनन की क्रिया 0°C या 32°F से कम तापमान पर होती है तो जल-वाष्प हिम कणों में बदल जाते हैं। कई बार तूफान (Thunder Storm) के कारण होने वाली वर्षा में ये हिम-कण ठोस ओलों के रूप में गिरते हैं। नीचे से ऊपर जाने वाली धाराएं जल-कणों को बार-बार हिमकणों के सम्पर्क में लाती हैं तथा उनका आकार बड़ा हो जाता है। धाराओं के वेग के कम होने से ये नीचे गिरने लगते हैं।

5. हिम (Snow):
जब संघनन हिमांक (Freezing point = 32°F) से कम तापमान पर होता है तो जल-कण हिम में बदल जाते हैं और हिमपात (Snowfall) होता है। ठंडी तथा कम नमी वाली वायु द्वारा ही हिमपात होता है। अत्यन्त ठण्डे प्रदेशों में, ऊँचे पर्वतीय भागों में तथा टुण्ड्रा प्रदेश की समस्त वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

6. ओस (Dew):
पृथ्वी तल तथा कई वस्तुओं पर संघनित जल की छोटी-छोटी बूंदों को ओस कहते हैं। यह भूतल पर पेड़-पौधों, घास, टीन या स्लेट पर टिकी होती है। रात को धरातल विकिरण (Rapid radiation) के कारण बहुत ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु जल्दी ही संतृप्त हो जाती है।

जब इसका तापमान ओसांक से भी कम हो जाता है, तब संघनन होता है और कुछ जल–वाष्प जल-बूंदों के रूप में कई वस्तुओं पर बैठ जाता है। ओस के निर्माण के लिए ओसांक 0°C तापमान से ऊपर होना चाहिए। पंजाब में जनवरी में साफ आसमान के कारण रात को अधिक ओस पड़ती है। ओस बनने के लिए अनुकूल ये हैं

  1. लम्बी रातें (Long Nights)
  2. स्वच्छ व निर्मल आकाश (Clear Sky)
  3. शान्त वायुमण्डल का होना (Calm Atmosphere)
  4. वनस्पति का होना (Presence of Vegetation)
  5. उच्च सापेक्ष आर्द्रता (High Relative Humidity)

7. पाला (Frost):
जब संघनन की क्रिया हिमांक 0°C (32°F) से कम तापमान पर हो तो जलवाष्प ओस की बूंदों के रूप में नहीं गिरता. अपितु छोटे-छोटे सफेद हिम कणों के रूप में पृथ्वी तल पर परत के रूप में फैल जाता है। इसे पाला कहते हैं। इस प्रकार धरातल पर अधिक विस्तार में हिम कणों के जमाव को पाला कहते हैं।

शीत ऋतु में रात को घास, पेड़-पौधों, भूतल तथा जल की सतह पर हिम की परत के रूप में पाला जम जाता है। पर्वतीय घाटियों में वायु बहाव (Air Drainage) के कारण रात को पाला जम जाता है। मध्य अक्षांशों में शीत ऋतु में पाला साधारणसी बात है। पंजाब में कई बार जनवरी मास में पाला पड़ता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

वायुमंडल में जल JAC Class 11 Geography Notes

→ आर्द्रता (Humidity): वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। वायुमण्डल के कुल भार का 2% भाग जलवाष्प के रूप में मौजूद है। यह जलवाष्प महासागरों, समुद्रों, झीलों, नदियों आदि के जल से वाष्पीकरण द्वारा प्राप्त होता है।

→ ओसांक (Dew Point): संतृप्त वायु के ठण्डे होने से जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाता है। जिस तापमान पर किसी वायु का जलवाष्प जल रूप में बदलना शुरू हो जाता है उस तापमान को ओसांक कहते हैं। संघनन (Condensation)-जिस क्रिया द्वारा वायु के जलवाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं।

→ संघनन के रूप (Forms of Condensation)

  • पाला तथा हिम।
  • ओस, कोहरा, धुंध।
  • बादल।

→ निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity): किसी समय किसी तापमान पर वायु में जितनी नमी मौजूद हो उसे वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।

→ सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity): किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। किसी ताप पर विद्यमान वाष्प की मात्रा उसी ताप पर वायु का वाष्प ग्रहण करने की क्षमता। दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।

→ वृष्टि (Precipitation): किसी क्षेत्र पर वायुमण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वृष्टि कहा जाता है। वृष्टि मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं!

  • वर्षा
  • हिम वर्षा
  • ओला वृष्टि
  • ओस
  • पाला
  • सहिम वृष्टि।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

→ वर्षा (Rainfall): वायु में आर्द्रता ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का मुख्य कारण संतृप्त वायु का ठण्डा होना है। वर्षा की क्रिया कई पदों में होती है

  • संघनन।
  • बादलों का बनना।
  • मेघ से जल कणों का बनना। इस प्रकार जल कणों का पृथ्वी पर गिरना वर्षा कहलाता है।

→ वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall):

  • संवहनीय वर्षा-संवाहिक धाराओं के कारण संवहनीय वर्षा होती है।
  • पर्वतीय वर्षा- इस प्रकार की वर्षा किसी पर्वत के सहारे उठती हुई नम पवनों के कारण होती है। सम्मुख। ढलान पर अधिक वर्षा होती है, विमुख ढाल पर कम वर्षा होती है तथा यह वर्षा छाया प्रदेश होता है।
  • चक्रवातीय वर्षा- यह वर्षा गर्म तथा शीत वायु राशियों के मिलने से चक्रवातों के कारण होती है।

→ वर्षा का वितरण (Distribution of Rainfall): वर्षा के वितरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  • अक्षांश
  • समुद्र से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • महासागरीय धाराएं
  • ऊँचाई
  • पर्वतों की दिशा।

→ विश्व में वर्षा का वितरण

  1. भू-मध्य रेखीय प्रदेश भारी वर्षा वाले क्षेत्र
  2. व्यापारिक पवन पेटियां पूर्वी तटीय भागों पर वर्षा
  3. उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश – कम वर्षा वाले क्षेत्र (मरुस्थल)
  4. भूमध्य सागरीय प्रदेश – शीतकालीन वर्षा क्षेत्र
  5. ध्रुवीय क्षेत्र – इस प्रदेश में हिमपात होता है।।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कौन – सा परिवर्तन तेज़ गति से होता है?
(A) दरार
(B) वलन
(C) भूकम्प
(D) भूमण्डलीय तापन
उत्तर:
(C) भूकम्प।

2. किस आपदा का सम्बन्ध मानवीय क्रियाओं से है?
(A) भूकम्प
(B) ज्वालामुखी
(C) पर्यावरण प्रदूषण
(D) टारनेडो
उत्तर:
(C) पर्यावरण प्रदूषण।

3. पहला भू- शिखर सम्मेलन कब हुआ ?
(A) 1974
(B) 1984 में
(C) 1994 में
(D) 1998 में।
उत्तर:
(C) 1994 में।

4. पहला भू- शिखर सम्मेलन कहां हुआ था?
(A) रियो डी जनेरो
(B) टोकियो
(C) न्यूयार्क
(D) लन्दन।
उत्तर:
(A) रियो डी जनेरो।

5. सुनामी त्रासदी कब हुई?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2003 में
(D) 2004 में।
उत्तर:
(D) 2004 में।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

6. भू-स्खलन किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायु मण्डलीय
(B) भौमिक
(C) जलीय
(D) जैविक
उत्तर:
(B) भौमिक।

7. भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष किस दर से खिसक रही है?
(A) 1 सें० मी०
(B) 2 सें० मी०
(C) 3 सें० मी०
(D) 4 सें० मी०
उत्तर:
(A) 1 सें० मी।

8. दक्षिणी भारत में भ्रंश रेखा का विकास कहां हुआ है?
(A) कोयना के निकट
(B) लातूर के निकट
(C) अहमदाबाद के निकट
(D) भोपाल के निकट
उत्तर:
(B) लातूर के निकट।

9. भूकम्प से समुद्र में उठने वाली लहरों को क्या कहते हैं?
(A) लहरें
(B) दरार
(C) सुनामी
(D) ज्वार।
उत्तर:
(C) सुनामी

10. तूफ़ान महोर्मि का मुख्य कारण है
(A) सुनामी
(B) ज्वार
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(D) मानसून।
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

11. भारत में कितना क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है?
(A) 1 करोड़ हेक्टेयर
(B) 2 करोड़ हेक्टेयर
(C) 3 करोड़ हेक्टेयर
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर
उत्तर:
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर।

12. भारत के कुल क्षेत्र का कितने % भाग सूखाग्रस्त रहता है?
(A) 9%
(B) 12 %
(C) 19%
(D) 25 %.
उत्तर:
(C) 19 %.

13. भारत में आपदा प्रबन्धन नियम कब बनाया गया?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2005 में
(D) 2006 में।
उत्तर:
(C) 2005 में।

14. भूकम्प किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीव – मण्डलीय।
उत्तर:
(B) भौमिकी .

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Quesrtion)

प्रश्न 1.
भारत में प्रभाव डालने वाले प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
बाढ़ें, सूखा, भूकम्प तथा भू-स्खलन।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
आकस्मिक भूगर्भिक हलचलें।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में भारत में आये विनाशकारी भूचाल का नाम लिखो।
उत्तर:
भुज, गुजरात – 26 जनवरी, 2001.

प्रश्न 4.
भू विभिन्न भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखो।
उत्तर:

प्रश्न 5.
भूकम्प मापक यन्त्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
सिज़्मोग्राफ।

प्रश्न 6.
भूकम्प की तीव्रता किस पैमाने पर मापी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर पैमाने पर।

प्रश्न 7.
लाटूर भूकम्प (महाराष्ट्र ) का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर खिसकना।

प्रश्न 8.
भूकम्प किस सिद्धान्त से सम्बन्धित है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टानिक।

प्रश्न 9.
रिक्टर पैमाने पर कितने विभाग होते हैं?
उत्तर:
1-9 तक।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 10.
कोएना भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में अत्यधिक जलदाब।

प्रश्न 11.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा की कमी के कारण खाद्यान्नों की कमी होना।

प्रश्न 12.
भारत में सूखे का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
अनिश्चित वर्षा।

प्रश्न 13.
भारत में कितना क्षेत्रफल भाग बाढ़ों तथा सूखे से प्रभावित है?
उत्तर:
सूखे से 10% भाग तथा बाढ़ों से 12% भाग।

प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून वर्षा तथा चक्रवात।

प्रश्न 15.
दक्षिणी प्रायद्वीप में बाढ़ें कम हैं। क्यों?
उत्तर:
मौसमी नदियों के कारण।

प्रश्न 16.
भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई जलभृत भाग किसी ढलान से अचानक नीचे गिरते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 17.
तीन प्रदेशों के नाम लिखो जो चक्रवातों से प्रभावित हैं।
उत्तर:
उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु

प्रश्न 18.
भूकम्प के आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।

प्रश्न 19.
भारत में अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखिए।
उत्तर:
बीकानेर

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Quesrtion)

प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएं वे भूगर्भिक हलचलें हैं जो अचानक ही भू-तल पर परिवर्तन लाकर जन और धन व सम्पत्ति की हानि करती हैं। सूखा, बाढ़ें, चक्रवात, भू-स्खलन, भूकम्प विभिन्न प्रकार की मुख्य प्राकृतिक आपदाएं हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जन-धन की हानि का वर्णन करो।
उत्तर:
विश्व में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं से एक लाख व्यक्तियों की जानें जाती हैं तथा 20,000 करोड़ रुपये की सम्पत्ति की हानि होती है। यह मानवीय विकास के लिए एक रुकावट है। U.NO. के अनुसार 1990-99 के दशक को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा का दशक घोषित किया गया प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त विश्व के प्रमुख 10 देशों में से भारत एक देश है। प्रति वर्ष 6 करोड़ लोग इनसे प्रभावित होते हैं। विश्व की 50% प्राकृतिक आपदाएं भारत में अनुभव की जाती हैं। फिर भी भारत में इन आपदाओं से सुरक्षा के लिए एक व्यापक प्रबन्ध किया गया है जिसमें भूकम्पीय स्टेशन, चक्रवात, बाढ़ें, राडार, जल प्रवाह के बारे में सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं तथा सुरक्षा के प्रबन्ध किए जाते हैं।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन से क्या अभिप्राय है? इनके प्रभाव बताओ।
उत्तर- भू-स्खलन (Landslides ):
भूमि के किसी भाग के अचानक फिसल कर पहाड़ी से नीचे गिर जाने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। कई बार भूमिगत जल चट्टानों में भर कर उनका भार बढ़ा देता है। यह जल भृत चट्टानें ढलान के साथ नीचे फिसल जाती हैं। इनके कई प्रकार होते हैं।

  1. सलम्प (Slumps ): जब चट्टानें थोड़ी दूरी से गिरती हैं।
  2. राक सलाइड (Rockslide ): जब चट्टानें अधिक दूरी से अधिक भार में गिरती हैं।
  3. राक फाल (Rockfall): जब किसी भृत से चट्टानें टूट कर गिरती हैं।

कारण (Causes):

  1. जब वर्षा का जल या पिघलती हिम एक सनेहक (Lubricant ) के रूप में कार्य करता है।
  2. तीव्र ढलान के कारण।
  3. भूकम्प के कारण।
  4. किसी सहारे के हट जाने पर।
  5. भ्रंशन या खदानों के कारण।
  6. ज्वालामुखी विस्फोट के कारण।

प्रभाव (Effects):

  1. भवन, सड़कें, पुल आदि का नष्ट होना।
  2. चट्टानों के नीचे दबकर लोगों की मृत्यु हो जाना।

सड़क मार्गों का अवरुद्ध हो जाना।

  1. नदियों के मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ें आना।
  2. 1957 में कश्मीर में भू-स्खलन से राष्ट्रीय मार्ग बन्द हो गया था।
  3. गत वर्षों में टेहरी गढ़वाल में बादल फटने से भू-स्खलन हुआ।

प्रश्न 4.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों पर नोट लिखो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones) :
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात खाड़ी बंगाल तथा अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। चक्रवात पवनों का एक भँवर होता है जो मूसलाधार वर्षा प्रदान करता है। ये प्रायः अक्तूबर-नवम्बर के महीनों में चलते हैं। इनकी दिशा परिवर्तनशील होती है। ये प्रायः पश्चिम की ओर तथा उत्तर-पश्चिम, उत्तर पूर्व की ओर चलते हैं। इनका प्रभाव तमिलनाडु आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा के तटों पर होता है।

प्रभाव (Effects):

  1. ये चक्रवात मूसलाधार वर्षा, तेज़ पवनें तथा घने मेघ लाते हैं। औसत रूप से 50 सें०मी० वर्षा एक दिन में होती है।
  2. ये चक्रवात जन-धन हानि व्यापक रूप से करते हैं।
  3. खाड़ी बंगाल में निम्न वायु दाब केन्द्र बनने से ये चक्रवात उत्पन्न होते हैं।
  4. ये चक्रवात एक दिन में पूर्वी तट से गुज़र कर प्रायद्वीप को पार करके पश्चिमी तट पर पहुँच जाते हैं।
  5. गोदावरी, कृष्णा, कावेरी डेल्टाओं में भारी हानि होती है।
  6. सुन्दरवन डेल्टा तथा बंगला देश में भी भारी हानि होती है।

प्रश्न 5.
(i) प्राकृतिक आपदायें किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर आन्तरिक हलचलों द्वारा अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। इनसे मानव पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। इन्हें प्राकृतिक आपदायें कहते हैं।

(ii) कुछ सामान्य आपदाओं के नाम बताएं।
उत्तर;
सामान्य आपदाएं इस प्रकार हैं- ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, सागरकम्प, सूखा, बाढ़, चक्रवात, मृदा अपरदन, अपवाहन, पंकप्रवाह, हिमधाव।

(iii) संकट किसे कहते हैं ?
उत्तर;
अंग्रेज़ी भाषा में प्राकृतिक आपदाओं को प्राकृतिक संकट भी कहा जाता है। फ्रैंच भाषा में डेस (Des) का अर्थ बुरा (bad) तथा (Aster) का अर्थ सितारे (Stars) से है। मानवीय जीवन और अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचाने वाली प्राकृतिक आपदाओं को संकट और महाविपत्ति कहते हैं।

(iv) भूकम्प का परिमाण क्या होता है?
उत्तर:
भूकम्प की शक्ति को रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है, जिसे परिमाण कहते हैं । यह भूकम्प द्वारा विकसित भूकम्पीय उर्जा की माप होती है।

(v) भूकम्प की तीव्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प द्वारा होने वाली हानि की माप को तीव्रता कहते हैं।

(vi) भारत के अधिक तथा अत्यधिक भूकम्पीय खतरे वाले क्षेत्रों के नाम बताएं पूर्वी भारत,
उत्तर:
भूकम्प की दृष्टि से भारत के अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्रों के नाम हैं- हिमालय पर्वत, उत्तर- कच्छ रत्नागिरी के आस-पास का पश्चिमी तटीय तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह। अधिक खतरे वाले क्षेत्र हैं- गंगा का मैदान, पश्चिमी राजस्थान।

(vii) चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आधारभूत आवश्यकताएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
-जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है तब उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात उष्मा का इंजन है तथा इसे सागरीय तल से उष्मा मिलती है।

(viii) चक्रवात की गति और सामान्य अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
चक्रवात की गति 150 km तथा अवधि एक सप्ताह तक होती है।

(ix) भारत के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के नाम बताएं।
उत्तर:

  1. गंगा बेसिन, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल
  2. असाम में ब्रह्मपुत्र घाटी
  3. उड़ीसा प्रदेश।

(x) भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधार शैलों का भारी मात्रा में तेज़ी से खिसकना भू-स्खलन कहलाता है। तीव्र पर्वतीय ढलानों पर भूकम्प के कारण अचानक शैलें खिसक जाती हैं।

(xi) आपदा प्रबन्धन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आपदाओं से सुरक्षा के उपाय, तैयारी तथा प्रभाव को कम करने की क्रिया को आपदा प्रबन्धन कहते हैं। इसमें राहत कार्यों की व्यवस्था भी शामिल की जाती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 6.
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आए भू-स्खलन से निपटने के लिए आप कौन-से सुझाव देंगे?
उत्तर:

  1. अधिक भू-स्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा प्रतिबंधित करने चाहिए।
  2. इस क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियन्त्रण होना चाहिए।
  3. स्थानान्तरी कृषि वाली उत्तर पूर्वी राज्यों (क्षेत्रों) में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर खेती करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
सूखे से बचाव के उपाय के कोई तीन कारण लिखें, जिनको हम अपनाकर सूखे के प्रभाव से बच सकते हैं?
उत्तर:

  1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचना चाहिए।
  2. जल सिंचाई की लघु परियोजनाओं पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
  3. नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए।

प्रश्न 8.
उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा का वर्णन करो।
उत्तर:
जून, 2013 में उत्तराखण्ड में हुई भारी वर्षा तथा बाढ़ के कारण अत्यन्त तबाही हुई। इसके कारण चल रही चाल धाम यात्रा को रोकना पड़ा 15-16 जून को अलकनंदा तथा मंदाकनी नदियों में बाढ़ के कारण नदियों ने अपने मार्ग बदल लिए। केदारनाथ धाम मन्दिर में झुके हज़ारों व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गए। बहुत से लोगों का विचार है कि बादलों के फटने से यह आपदा आई। भूस्खलन के कारण सड़क मार्ग बन्द हो गए। वायु सेना ने आपदा में फंसे लोगों की बचाया। सन् 2014 में केदारनाथ यात्रा का मार्ग खोल दिया गया है।

प्रश्न 9.
सुभेद्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुभेद्यता किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र में नुकसान पहुँचाने का भय है, जिससे वह व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करते हुए इसके कारणों तथा प्रभाव का उल्लेख करो।
उत्तर:
सूखा (Drought): सूखा एक प्राकृतिक विपदा है। जब किसी विस्तृत क्षेत्र में खाद्यान्नों का अभाव हो जाता है तो उसे सूखा कहते हैं (Drought is defined as widespread and extreme scarcity of food.) इसके प्रभाव से जनसंख्या का अधिकांश भाग भुखमरी का शिकार हो जाता है । भारत तथा संसार के कई भागों में सूखा भयानक रूप में पड़ता रहा है जिससे लाखों लोग मृत्यु का शिकार हो जाते थे आधुनिक समय में सन् 1943 में बंगाल के अकाल से 15 लाख व्यक्ति भुखमरी से मर गए। आजकल यातायात के तीव्र साधनों द्वारा शीघ्र ही सहायता पहुंच जाने के कारण सूखा तथा अकाल पहले जैसे नहीं रहे।

इतिहास (History): भारत एक विशाल देश है जिसका क्षेत्रफल लगभग 33 करोड़ हेक्टेयर है तथा औसत वार्षिक वर्षा 117 सें०मी० तक है। अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था मानसून पवनों पर निर्भर करती है। मानसून वर्षा बहुत अनिश्चित तथा अनियमित है। वर्षा की परिवर्तिता (Variablity) के कारण भारत के किसी-न-किसी भाग में सूखे की हालत बनी ही रहती है। औसत रूप से भारत में प्रत्येक पांच वर्षों में एक वर्ष सूखे का होता है।

(On an average, one year in every five years is a drought year.) भारत में 1966, 1968, 1973, 1979 में भयंकर सूखा पड़ा। 1984-85 से 1987-88 तक निरन्तर तीन वर्ष सूखा पड़ने से भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में कमी रही। 1987-88 के सूखे का प्रभाव 15 राज्यों तथा 6 संघ राज्यों पर पड़ा। इसके प्रभाव से 267 ज़िलों तथा 3 लाख गांवों में 28 करोड़ लोग तथा 17 करोड़ पशु प्रभाव ग्रस्त हुए। पिछले 100 वर्षों के इतिहास में भारत में सन् 1877, 1899, 1918, 1972 तथा 1987 के वर्षों में भयानक सूखा पड़ा।

प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी०:

वर्ष प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी० देश के क्षेत्रफल का $\%$ भाग
1877 20 61
1899 19 63
1918 22 70
1972 14 44
1987 16 50

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 1

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र (Drought Areas in India) – सामान्य स्थिति में भारत के 16% क्षेत्र तथा 12% जनसंख्या पर सूखे का प्रभाव पड़ता है। सूखे का अधिक प्रभाव उन क्षेत्रों पर पड़ता है जहां वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक (Co-efficient of Variability of Rainfall) 20% से अधिक है । निम्नलिखित क्षेत्र प्रायः सूखाग्रस्त रहते हैं-

क्षेत्र राज्य क्षेत्रफल वार्षिक वर्षा
1. मरुस्थलीय तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान, हरियाणा (दक्षिण-पश्चिमी) 60 लाख 10 सें॰मी०
2. पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित प्रदेश मध्य प्रदेश, गुजरात 37 , 15 सें॰मी०
3. अन्य क्षेत्र मध्यवर्ती महाराष्ट्र कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण तमिलनाडु, कच्छ, बिहार, कालाहांडी (उड़ीसा), रायलसीमा (आन्ध्र प्रदेश) 10, 20 सें॰मी०

भारत में सामान्यतः सूखे की स्थिति निम्नलिखित क्षेत्रों में होती है।

  1. जब वार्षिक वर्षा 100 सें०मी० से कम हो।
  2. वर्षा की परिवर्तिता 75% से अधिक हो।
  3. जहां कुल क्षेत्रफल के 30% से कम भाग में जल सिंचाई प्राप्त हो।
  4. जहां 20% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो तो सामान्य सूखा पड़ता है।
  5. जहां 40% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो वहां स्थायी रूप से सूखा रहता है।

सूखे के कारण (Causes of Droughts ):
1. मानसून पवनों का कमज़ोर पड़ना (Weak Monsoons ):
भारत में अधिकतर कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर (Rainfed) है। ग्रीष्मकालीन मानसून पवनों के कमज़ोर पड़ने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानसून पवनें जब निश्चित समय से देर से आरम्भ होती हैं तो फ़सलें नष्ट हो जाती हैं। सन् 1987 में मानसून पवनें सारे देश में 1 जुलाई की अपेक्षा 27 जुलाई को आरम्भ हुईं तथा देश के 35 जलवायु खण्डों में 25 में सामान्य से कम वर्षा हुई। इस से अधिकतर क्षेत्रों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

2. वार्षिक वर्षा का कम होना (Low Rainfall):
भारत के 12% क्षेत्रफल में वार्षिक वर्षा 60 सें०मी० से कम है। इन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनी रहती है। एक अनुमान है कि भारत का 1/3 कृषि क्षेत्र वर्षा की कमी के कारण सूखाग्रस्त रहता है।

3. सिंचाई साधनों का कम होना (Inadequate means of Irrigation):
सिंचाई साधनों की कमी के कारण भी कई प्रदेशों में कृषि को नियमित जल न मिलने से सूखा पड़ता है।

4. पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance):
औद्योगिक विकास, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है। इससे वर्षा अनियमित, अनिश्चित तथा संदिग्ध होती जा रही है।

5. वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall):
कई प्रदेशों में वर्षा बहुत संदिग्ध है। विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की अधिक परिवर्तिता सूखे का कारण बनती है। उदाहरण के लिए हिसार नगर में अगस्त मास की औसत वर्षा 12.37 सें०मी० है। परन्तु सन् 1925 में इस मास में यहां केवल 2.03 सें०मी०, सन् 1926 से 56.36 सें०मी० वर्षा हुई। प्रायः जहां वर्षा का परिवर्तिता का गुणांक 40% से अधिक है वहां सदा सूखे की स्थिति रहती है।

6. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): शीत ऋतु के शुष्क होने के कारण भी सूखे की स्थिति बन जाती है।

7. नदियों का अभाव (Absence of Rivers ): कई प्रदेशों में नदियों के अभाव से भी सूखे में वृद्धि होती है।

8. लम्बी शुष्क ऋतु तथा उच्च तापमान (Long dry Speeds):
कई बार लम्बे समय तक शुष्क मौसम चलता रहता है। साथ-ही-साथ उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण भी अधिक हो जाता है जिससे सूखा भयंकर रूप धारण कर लेता है।

सूखे के प्रभाव (Effects of Drought ):

  1. कृषि (Agriculture): सूखे के कारण अधिकांश भागों में फसलों की बुआई देर से आरम्भ होती है। कई विशाल क्षेत्रों में बुआई बिल्कुल नहीं होती। इससे कृषि उत्पादन कम हो जाता है। 1987 में निर्धारित लक्ष्य में खाद्यान्नों का उत्पादन 60 लाख टन कम था।
  2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labour ): ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी बढ़ जाती है। छोटे किसानों तथा कृषि मज़दूरों को कोई काम नहीं मिलता। भूमि मज़दूर भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
  3. खरीफ की फसल (Kharif Crop ): खरीफ की फसल जून – जुलाई में बोई जाती है। सूखे की हालत में इस फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे खाद्यान्न, तिलहन, दालों का उत्पादन कम हो जाता है।
  4. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Effect on Economy ): सूखे की स्थिति में कीमतें बढ़ जाती हैं तथा अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. पशुओं का चारा (Fodder for Cattle ): सूखे के कारण चारे की कमी होती है तथा हज़ारों पशु भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
  6. पानी की कमी (Shortage of Water ): पीने के पानी की कमी हो जाती है । जल सिंचाई तथा जल विद्युत् उत्पादन के लिए पानी की कमी हो जाती है। कई क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर नीचा हो जाता है।

सूखे से बचाव के उपाय (Measures to Control Drought): सरकार तथा जनता ने सूखे से बचाव के लिए निम्न उपाय किए हैं।

  1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
  2. फसलों के हेर-फेर की विधि द्वारा ऐसी फसलों की कृषि की जाती है जो सूखे को सहार सकें शुष्क कृषि पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
  3. जल सिंचाई की लघु योजनाओं पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
  4. नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
  5. शुष्क भागों में, ट्रिकल (Trickle) जल सिंचाई विधि का प्रयोग किया जा रहा है।
  6. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पीने का पानी तथा पशुओं के लिए चारे का उचित प्रबन्ध किया जा रहा है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करो। बाढ़ों के कारणों का उल्लेख करते हुए इनसे होने वाली क्षति का वर्णन करो। बाढ़ नियन्त्रण के उपाए बताओ।
उत्तर:
बाढ़ समस्या (Flood Problem):
सूखे की भान्ति बाढ़ भी एक प्राकृतिक विपदा है क्षेत्रों से धन-जन की हानि होती है। कई बार प्रत्येक वर्ष भारत के किसी-न-किसी भाग में बाढ़ों द्वारा विस्तृत एक भाग में भयानक सूखे की स्थिति है तो दूसरे भाग में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्या अधिक गम्भीर हो जाती है। भारत में बाढ़ें एक मौसमी समस्या है जब मानसून की अनियमित वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है। जब नदी के किनारों के ऊपर से पानी बह कर समीपवर्ती क्षेत्रों में दूर-दूर तक फैल जाता है तो इसे बाढ़ का नाम दिया जाता है।

भारत ‘नदियों का देश’ है जहां अनेक छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। ये नदियां वर्षा ऋतु में भरपूर बहती हैं, परन्तु शुष्क ऋतु में इनमें बहुत कम जल होता है। निरन्तर भारी वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। वर्षा की तीव्रता तथा वर्षाकाल की अवधि अधिक होने से बाढ़ों को सहायता मिलती है। मानसून के पूर्व आरम्भ या देर तक समाप्त होने से
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बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में मई-जून के मास में बाढ़ें साधारण बात है। उत्तरी भारत की नदियों में वर्षा ऋतु में बढ़ें आती हैं। नर्मदा नदी में अचानक बाढ़ें (flash floods ) आती हैं। तटीय भागों में चक्रवातों के कारण मई तथा अक्तूबर मास में भयानक बाढ़ें आती हैं। सन् 1990 में मई मास में आन्ध्र प्रदेश में खाड़ी बंगाल के चक्रवात से भारी क्षति हुई जिसमें लगभग 1000 व्यक्ति मर गए।

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र (Flood Affected Areas):
भारत में मैदानी भाग तथा नदी घाटियों में अधिक बाढ़ें आती हैं। देश का लगभग 1/8 भाग बाढ़ों से प्रभावित रहता है। 60 प्रतिशत बाढ़ें अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती हैं। असम, बिहार, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल राज्य स्थायी रूप से बाढ़ग्रस्त रहते हैं। इन प्रदेशों में अधिक वर्षा तथा बड़ी-बड़ी नदियों के कारण बाढ़ समस्या गम्भीर है। एक अनुमान के अनुसार देश में 78 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्रति वर्ष बाढ़ें आती हैं। नदी घाटियों के अनुसार बाढ़ क्षेत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जाता है।

1. हिमालय क्षेत्र की नदियां (The Rivers of the Himalayas):
इस भाग में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र दो प्रमुख नदियां हैं जिनमें प्रत्येक वर्ष बाढ़ें आती हैं। गंगा घाटी में यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी जैसी सहायक नदियां शामिल हैं। इन नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है। इनकी ढलान तीव्र होती है तथा इन नदियों के मार्ग में परिवर्तन होता रहता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विस्तृत क्षेत्रों में बाढ़ों से भारी क्षति पहुंचती है। देश में बाढ़ों से कुल क्षति का 33% भाग उत्तर प्रदेश में तथा 27% भाग बिहार में होता है। कोसी नदी को बाढ़ों के कारण “शोक की नदी” (River of Sorrow) कहा जाता है।

ब्रह्मपुत्र नदी असम, मेघालय तथा बंगलादेश में बाढ़ों से हानि पहुंचाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहां अधिक वर्षा तथा रेत व मिट्टी के जमाव से बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। भूकम्प के आने के कारण नदियां अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा बाढ़ समस्या अधिक गम्भीर हो जाती हैं। दामोदर घाटी में दामोदर नदी के कारण भयंकर बाढ़ें आती रही हैं । इस नदी को ‘बंगाल का शोक’ भी कहा जाता था परन्तु दामोदर घाटी योजना के पूरा होने के बाद बाढ़ समस्या कम हो गई है।

2. उत्तर-पश्चिमी भारत (North-Western India):
इस भाग में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं। यहां जेहलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास तथा रावी नदियों के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। बरसाती नदियों में भी बाढ़ें आती हैं।

3. मध्य भारत (Central India ):
इस भाग में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा शामिल हैं। यहां ताप्ती, नर्मदा तथा चम्बल नदियों में कभी-कभी बाढ़ें आती हैं। यहां अधिक वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं।

4. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Region ):
इस क्षेत्र में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के कारण बाढ़ें आती हैं। कई बार ज्वार-भाटा के कारण डेल्टाई क्षेत्रों में रेत और मिट्टी के जमाव से भी बाढ़ें आती हैं।

बाढ़ों के कारण (Causes of Floods): भारत एक उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी देश है। यहां मानसूनी वर्षा के अधिक होने से बाढ़ की समस्या गम्भीर हो जाती है। बाढ़ें निम्नलिखित कारणों से आती हैं।

  1. भारी वर्षा (Heavy Rainfall): किसी भाग में एक दिन में निरन्तर वर्षा की मात्रा 15 सें० मी० से अधिक होने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  2. चक्रवात (Cyclones): भारत के पूर्वी तट पर खाड़ी बंगाल के तीव्र गति के चक्रवातों से भयानक बाढ़ें आती हैं। जैसे – मई, 1990 में आन्ध्र प्रदेश में चक्रवातों द्वारा निरन्तर वर्षा से नदी क्षेत्रों में बाढ़ उत्पन्न होने से भारी हानि हुई।
  3. वनों की कटाई (Deforestation ): नदियों के ऊपरी भागों में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से अचानक बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं। शिवालिक की पहाड़ियों, असम, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार में वृक्षों की कटाई के कारण बाढ़ की समस्या गम्भीर है।
  4. नदी तल का ऊंचा उठना (Rising of the River Bed ): रेत तथा बजरी जमाव से नदी तल ऊंचा उठ जाता है जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का जल फैल जाता है।
  5. अपर्याप्त जल प्रवाह (Inadequate Drainage ): कई निम्न क्षेत्रों में जल प्रवाह प्रबन्ध न होने से बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं।

बाढ़ों से क्षति (Damage due to Floods)”:
बाढ़ों से कृषि क्षेत्र में फसलों की हानि होती है। मकानों, संचार साधनों तथा रेलों, सड़कों को क्षति पहुंचती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई बीमारियां फैल जाती हैं। देश में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है जिसमें से 25 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलें नष्ट हो जाती हैं। प्रति वर्ष औसत रूप से करोड़ जनसंख्या पर बाढ़ से क्षति का प्रभाव पड़ता है। लगभग 30 हज़ार पशुओं की हानि होती है। एक अनुमान है कि औसत रूप से प्रति वर्ष 505 व्यक्तियों की बाढ़ के कारण मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार देश में लगभग ₹1500 करोड़े की आर्थिक क्षति पहुंचती है। सन् 1990 में देश में कुल क्षति ₹ 41.25 करोड़ की थी तथा 50 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त 162 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। ₹28 करोड़ की फसलें नष्ट हुईं। 862 जानें गईं तथा 1,22,498 पशु मारे गये।

बाढ़ों की रोकथाम (Flood Control):
भारत में प्राचीन समय से बाढ़ों की रोकथाम के लिए उपाय किए जाते हैं। प्रायः नदियों के साथ-साथ तटबंध बनाकर बाढ़ नियन्त्रण किया जाता था। सन् 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियन्त्रण योजना शुरू की गई। इस योजना के अधीन बाढ़ नियन्त्रण के लिए कई उपाय किए गए।

  1. नदियों के जल सम्बन्धी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
  2. नदियों के साथ तटबन्ध बनाये गये। देश में लगभग 15,467 कि० मि० लम्बे तटबन्धों का निर्माण किया गया।
  3. निम्न क्षेत्रों में लगभग 30,199 कि० मी० लम्बी जल प्रवाह नलिकायें बनाई गई हैं।
  4. 762 नगरों तथा 4,700 गांवों को बाढ़ों से सुरक्षित किया गया है।
  5. कई नदियों पर जलाशय बन कर बाढ़ों पर नियन्त्रण किया गया है; जैसे- दामोदर घाटी बहुमुखी योजना तथा भाखड़ा नंगल योजना ।
  6. देश में बाढ़ों का पूर्व अनुमान लगाने के लिए (Flood Forecasting) 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
  7. नदियों के ऊपरी भागों में वन रोपण किया गया है।
  8. सातवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 2710 करोड़ बाढ़ नियन्त्रण पर व्यय किए गए जबकि आठवीं पंचवर्षीय योजना पर ₹9470 करोड़ के व्यय का अनुमान है।
  9. केरल तट पर सागरीय प्रभाव से बचाव के लिए 42 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारों का निर्माण किया गया तथा कर्नाटक तट पर 73 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारें बनाई गईं।
  10. देश में बाढ़ के पूर्व निर्माण संगठन (Flood Fore-casting Organisation) की स्थापना की गई है। इसके अधीन 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं जिनकी संख्या इस शताब्दी के अन्त तक 300 हो जाएगी।
  11. महानदी घाटी में हीराकुड बांध, दामोदर घाटी में कई बांध, सतलुज नदी पर भाखड़ा डैम, ब्यास नदी पर पौंग डैम तथा ताप्ती नदी पर डकई बांध बनाकर बाढ़ों की रोकथाम की गई है।

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प्रश्न 3.
भूकम्प की परिभाषा दो भारत में भूकम्प क्षेत्रों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
भूकम्प (Earthquake ):
पृथ्वी के किसी भाग के अचानक हिलने को भूकम्प कहते हैं। इस हलचल से भूपृष्ठ पर झटके (Tremors) अनुभव किए जाते हैं। भूकम्पीय तरंगें सभी दिशाओं में लहरों की भान्ति आगे बढ़ती हैं। ये तरंगें उद्गम (Focus ) से आरम्भ होती हैं। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं – P- Waves, S- Waves, L-Waves.

भूकम्प के कारण (Causes of Earthquake ):
भूकम्प के सामान्य कारण ज्वालामुखी विस्फोट, भू-हलचलें, चट्टानों का लचीलापन तथा स्थानीय कारण है। आधुनिक युग में भूकम्पों को टेकटानिक प्लेटों से सम्बन्धित किया गया है। भारत में सामान्य रूप से भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट आपस में टकराती हैं। ये एक दूसरे के नीचे धँसने का यत्न करती हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में इनका सम्बन्ध वलन व भ्रंशन क्रिया से है। दक्षिणी भारत एक स्थिर भूखण्ड है तथा भूकम्प बहुत कम होते हैं। भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर पैमाने से मापी जाती है जिसका मापक 1 से 9 तक होता है। अधिक तीव्र भूकम्प भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुभव किए जाते हैं।
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1. हिमालयाई क्षेत्र (Himalayan Zone ):
इस क्षेत्र में क्रियाशील भूकम्प जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में आते हैं जिनसे बहुत हानि होती है। यह भूकम्प भारतीय प्लेट तथा यूरेशियम प्लेट के आपसी टकराव के कारण उत्पन्न होते हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष 5 सें० मी० की गति से उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। यहां 1905 में कांगड़ा में, 1828 में कश्मीर में, 1936 में क्वेटा में तथा 1950 में असम में भयानक भूकम्प अनुभव किए गए।

2. सिन्धु-गंगा प्रदेश (Indo-Gangetion Zone ):
इस क्षेत्र में सामान्य तीव्रता के भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। इनकी तीव्रता 6 से 6.5 तक होती है। परन्तु इन सघन बसे क्षेत्रों में बहुत हानि होती है।

3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Zone):
यह एक स्थिर क्षेत्र है परन्तु फिर भी यहां भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। 1967 में कोयना, 1993 में लातूर, 2001 में भुज के भूकम्प बहुत विनाशकारी थे। कोयना भूकम्प कोयला डैम के जलाशय में जल के अत्यधिक दबाव के कारण आया। परन्तु वर्तमान भूकम्प भारतीय प्लेट की उतर की ओर गति के कारण आए हैं।

4. अन्य भूकम्पीय क्षेत्र (Other Sesonic Zones)

  1. बिहार – नेपाल क्षेत्र
  2. उत्तर-पश्चिमी हिमालय
  3. गुजरात क्षेत्र
  4. कोयना क्षेत्र।

भारत के प्रमुख विनाशकारी भूकम्प

केन्द्र तीव्रता वर्ष
कच्छ 8.0 1819
कच्छ 7.5 1869
मेघालय 8.7 1865
बंगाल 8.5 1885
असम 8.0 1897
कांगड़ा 8.0 1905
असम 8.7 1950
कोयना 6.3 1967
हिमाचल प्रदेश 7.5 1973
लातूर 6.0 1993
भुज 8.0 2001

भूकम्प के परिणाम:
केवल बसे हुए क्षेत्रों के आने वला भूकम्प ही आपदा या संकट बनता है। भूकम्प का प्रभाव सदैव विध्वंसक होता है। भूकम्प के कारण प्राकृतिक पर्यावरण में कई तरह से परिवर्तन हो जाते हैं। भूकम्पीय तरंगों से धरातल में दरारें पड़ जाती हैं जिनसे कभी-कभी पानी के फव्वारे छूटने लगते हैं। इसके साथ बड़ी भारी मात्रा में रेत बाहर आ जाता है तथा इससे रेत के बांध बन जाते हैं। क्षेत्र के अपवाह तन्त्र में उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं। नदियों के मार्ग बदल जाने से बाढ़ आ जाती है।

पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन हो जाते हैं तथा इनके साथ भारी मात्रा में चट्टानी मलबा नीचे आ जाता है। इससे बृहतक्षरण होता है। हिमानियाँ फट जाती हैं तथा इनके हिमधाव सुदूर स्थित स्थानों पर बिखर जाते हैं। नए जल प्रपातों और सरिताओं की उत्पत्ति भी हो जाती है। भूकम्पीय आपदाओं से मनुष्य निर्मित भवन बच नहीं पाते हैं। सड़कें, रेलमार्ग, पुल और टेलीफोन की लाइनें टूट जाती हैं। गगनचुम्बी भवनों और सघन जनसंख्या वाले कस्बों और नगरों पर भूकम्पों का सबसे बुरा असर होता है।

सुनामी लहरें (Tsunami Tidal Waves):
समुद्री तली पर भूकम्प उत्पन्न होने से 30 मीटर तक ऊंची ज्वारीय लहरें (सुनामी) उत्पन्न होती है। 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में इण्डोनेशिया के निकट उत्पन्न भूकम्प के कारण भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इनका प्रभाव इण्डोनेशिया, थाइलैण्ड, म्यानमार, भारत तथा श्रीलंका के तटों पर अनुभव किया गया। इन भयंकर लहरों के कारण इन क्षेत्रों में लगभग 2 लाख लोगों की जानें गईं तथा करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति की हानि हुई है।

यह पृथ्वी के इतिहास में सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा थी भूकम्प के प्रभाव को कम करना भूकम्प के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका हैं । इसकी निरन्तर खोज-खबर रखना तथा लोगों को इसके आने की सम्भावना की सूचना देना इससे आशंकित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सकता है। भूकम्प से अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्र में भूकम्प रोधी भवन बनाने की आवश्यकता है। भूकम्प की आशंका वाले क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प रोधी भवन और मकान बनाने की सलाह दी जा सकती है।

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प्रश्न 4.
चक्रवात किसे कहते हैं? चक्रवातों द्वारा क्षति का वर्णन करो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones):
600 कि०मी० या इससे अधिक व्यास वाले चक्रवात, पृथ्वी के वायुमण्डलीय तूफानों में सबसे अधिक विनाशक और भयंकर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप संसार में चक्रवातों द्वारा सबसे अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र हैं। संसार में आने वाले चक्रवातों में से 6 प्रतिशत यही आते हैं।
उत्पत्ति: जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव के क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है, तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात ऊष्मा का इंजिन है तथा इसे सागरीय तल से ऊष्मा मिलती है। संघनन के बाद मुक्त ऊष्मा, चक्रवात के लिए गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) में बदल जाती है।

चक्रवात की उत्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं।

  1. महासागरीय तल का तापमान 26° से अधिक।
  2. बन्द समदाब रेखाओं का आविर्भाव।
  3. निम्न वायुदाब, 1,000 मि。बा० से कम होना।
  4. चक्रीय गति के क्षेत्रफल, प्रारम्भ में इनके अर्धव्यास 30 से 50 कि०मी० फिर क्रमश: 100-200 कि०मी० और 1,000 कि०मी० तक भी बढ़ जाते हैं।
  5. ऊर्ध्वाधर रूप में पवन की गति का प्रारम्भ में 6 कि०मी० की ऊंचाई तक बढ़ना तथा इसके बाद और भी ऊंचा उठाना।

ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना:

  1. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में बहुत अधिक दाब प्रवणता (14-17 मि०बा० / 100 कि०मी०) होती है। कुछ चक्रवातों में यह इससे भी अधिक ऊंची अर्थात् 60 मि० बा० / 100 कि०मी० होती है।
  2. पवन पट्टी केन्द्र से 10 से 150 कि०मी० या कभी – कभी इससे भी अधिक दूरी में फैली होती है। धरातल पर पवन का चक्रवातीय परिसंचरण होता है। तथा ऊंचाई पर यह प्रति चक्रवातीय बन जाता है।
  3. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की क्रोड कोष्ण होती है। चक्रवात का केन्द्र सामान्यतः मेघ विहीन होता है। इसे चक्रवात की आंख कहते हैं। चक्रवात की आंख बहुत ऊंचाई तक फैले ऊर्ध्वाधर बादलों से घिरी होती है।
  4. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात से सामान्यतः 50 सें०मी० से अधिक वर्षा होती है। कभी-कभी वर्षा 100 सें०मी० से भी अधिक हो जाती है।
  5. चक्रवात अपने पूरे तन्त्र के साथ लगभग 20 कि०मी० प्रति घंटा औसत गति से आगे बढ़ता है। जैसे-जैसे चक्रवात स्थल पर बढ़ता जाता है, समुद्री जल के अभाव में इसकी ऊर्जा घटती जाती है। इससे चक्रवात समाप्त हो जाता है। चक्रवात की जीवन अवधि 5 से 7 दिनों की होती है।

चक्रवातों द्वारा क्षति:
प्रभंजन की गति वाली पवनों, प्रभंजन की लहरों तथा मूसलाधार वर्षा से उत्पन्न बाढ़ों के कारण ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। अधिकतर तूफ़ान अत्यन्त तेज़ पवनों और तूफ़ानी लहरों के द्वारा भारी क्षति पहुंचाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल पर अत्यन्त तीव्रता से बहने वाला वर्षा जल अपने सामने आने वाली हर वस्तु को अपनी चपेट में लेकर भारी नुकसान करता है। तूफ़ानी लहरों की तीव्रता, पवन की गति, दाब प्रवणता, समुद्र की तली की स्थलाकृतियों तथा तटरेखा की बनावट पर निर्भर करती है। अनेक क्षेत्रों में चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था के बावजूद, ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात धन-जन को अपार क्षति पहुंचाते हैं।

क्षेत्र: अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में तूफ़ानों की संख्या कहीं अधिक है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अधिकतर तूफान अक्तूबर और नवम्बर के महीनों में आते हैं। मानसून ऋतु का प्रारंभिक भाग भी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ऊष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की उत्पत्ति के अनुकूल है। मानसून ऋतु में अधिकतर चक्रवात 10° उ० तथा 15° उ० अक्षांशों के मध्य ही उत्पन्न होते हैं। जून में बंगाल की खाड़ी के लगभग सभी तूफ़ान 92° पू० देशांतर के पश्चिम में 16° उ० और 21° उ० अक्षांश के मध्य जन्म लेते हैं। जुलाई में खाड़ी के तूफ़ानों का जन्म 18° 3० अक्षांश के उत्तर में तथा 90° पू० देशान्तर के पश्चिम में होता है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जुलाई के सभी तूफ़ान पश्चिमी पथ का अनुसरण करते हैं। ये सामान्यत: 20° उ० तथा 25° उ० अक्षांशों के मध्य तक ही सीमित रहते हैं तथा हिमालय की गिरिपद पहाड़ियों की ओर अपेक्षाकृत बहुत कम मुड़ते हैं।

क्षति का प्रभाव कम करना:
अधिकतर चक्रवातीय क्षति, तेज़ पवनों, मूसलाधार वर्षा और समुद्र में उठने वाली ऊँची तूफ़ानी, ज्वारीय लहरों के द्वारा होती है। पवनों की तुलना में चक्रवातीय वर्षा के कारण आई बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है। आज चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होने से तथा पर्याप्त और सामयिक कार्यवाही से चक्रवात से मरने वालों की संख्या में कमी आई है। अन्य उपाय जैसे : चक्रवातों के आने के समय सुरक्षा के लिए आय स्थलों के तटबंधों, बांधों, जलाशयों के निर्माण से और तट पर वन रोपण से भी बहुत सहायता मिलती है। फ़सलों और गो- पशुओं बी से भी लोगों को क्षति पूर्ति में काफ़ी मदद मिलती है। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के द्वारा चक्रवात के पथ के बारे में चेतावनी देना अब सम्भव हो गया है। कम्प्यूटर द्वारा बनाए गए मॉडलों की सहायता से चक्रवात की पवनों की दिशा और तीव्रता तथा इसके पथ की दिशा की काफ़ी हद तक सही भविष्यवाणी की जा सकती है।

प्रश्न 5.
आपदा प्रबन्धन पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन ( Disaster Management ):
आपदा प्रबन्धन में निवारक और संरक्षी उपाय, तैयारी तथा मानवों पर आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए राहत कार्यों की व्यवस्था तथा आपदा प्रवण क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक पक्ष शामिल किए जाते हैं। आपदा प्रबन्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रभाव चरण, पुनर्वास और पुनर्निर्माण चरण तथा समन्वित दीर्घकालीन विकास और तैयारी चरण। प्रभाव चरण के तीन अंग हैं।

  1. आपदा की भविष्यवाणी करना,
  2. आपदा के प्रेरक कारकों की बारीकी से खोजबीन, तथा
  3. आपदा आने के बाद प्रबन्धन के कार्य जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा का अध्ययन करके बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है।

उपग्रहों के द्वारा चक्रवातों के मार्ग, गति आदि की खोज-खबर ली जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पूर्व चेतावनी तथा लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के प्रयत्न शुरू किए जा सकते हैं। आपदा के लिए ज़िम्मेदार कारकों की बारीकी से की गई खोजबीन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, भोजन, वस्त्र और पेय जल की आपूर्ति के लिए कार्यदल नियुक्त किए जा सकते हैं। आपदाएँ मृत्यु और विनाश के चिह्न छोड़ जाती हैं। प्रभावित लोगों को चिकित्सा सुविधा और अन्य विभिन्न प्रकार की सहायता की ज़रूरत होती है। दीर्घकालीन विकास के चरण के अन्तर्गत विविध प्रकार के निवारक और सुरक्षापायों की योजना बना लेनी चाहिए। संसार के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यूनेस्को ने 1990-2000 के दौरान प्राकृतिक आपदा राहत दशक मनाया था। संसार के अन्य देशों के साथ भारत ने भी दशक के दौरान अक्तूबर में विश्व आपदा राहत दिवस मनाया था। इस अवसर पर भूकंप, बाढ़ और चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लोगों के लिए भारत सरकार ने जो करणीय और अकरणीय कर्म प्रचारित किए थे, वे बहुत उपयोगी हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 6.
सुनामी से क्या अभिप्राय हैं? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है? 26 दिसम्बर, 2004 को हुए सुनामी संकट के प्रभाव बताओ।
उत्तर:
सुनामी (Tsunami ):
सुनामी एक जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘तटीय तरंगें’, ‘Tsu’ शुद्ध का अर्थ है-तट तथा ‘Nami’ शब्द का अर्थ है ‘तरंगें ‘। इसे प्रायः ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves) भी कहा जाता है।
सुनामी अचानक ही ऊंचा उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे जल में हलचल होती है। इसकी ऊंचाई प्रायः 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस दशा में उत्पन्न होती है जब सागरीय तली में भूकम्पीय क्रिया के कारण हल चल होती है तथा महासागर में सतह के जल का लम्बरूप में विस्थापन होता है। हिन्द महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम अनुभव की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशान्त महासागर में घटित होती हैं।

सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami ):
पृथ्वी आंतरिक दृष्टि से एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूकम्प विवर्तनिक प्लेटों (Tectomic plates) की सीमाओं पर उत्पन्न होते हैं। सुनामी अधिकतर प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone) के भूकम्प के कारण उत्पन्न होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र हैं दो प्लेटें एक दूसरे में विलीन (converge) होती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे खिसक जाती है। समुद्र अधस्तल का विस्तारण होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूकम्प को जन्म देती है।
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26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004 ):
प्रात: 7.58 बजे के समय पर, काले रविवार (Black Sunday) को 26 दिसम्बर, 2004 को क्रिस्मस से एक दिन बाद सुनामी त्रासदी घटी यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिन्द महासागर के तटीय प्रदेशों से टकराई। इस लहर के कारण इण्डोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख व्यक्ति इस त्रासदी का शिकार हो गए। महासागरी तली पर उत्पन्न एक भूकम्प उत्पन्न हुआ जिसका अधिकेंदर सुमात्रा (इण्डोनेशिया) ने 257 कि०मी० दक्षिण पूर्व में था। यह भूकम्प रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था।

इन लहरों के ऊंचे उठने से जल की एक ऊंची दीवार उत्पन्न हो गई। आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् त्रासदी के रूप में अंकित की जाएगी। सन् 1900 के पश्चात् यह चौथा बड़ा भूकम्प था। इस भूकम्प के कारण उत्पन्न सुनामी लहरों से हीरोशिमा बम्ब की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ। इसलिए इसे भूकम्प प्रेरित प्रलयकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारतीय तथा बर्मा की प्लेटों के मिलन स्थान पर घटी जहां लगभग 1000 कि०मी० प्लेट सीमा खिसक गई।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 7

इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊंचा उठ गया तथा ऊपरी जल हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया । इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घण्टा थी । इसे अपने उद्गम स्थान से भारतीय तट तक पहुंचने में दो घण्टे का समय लगा। इस त्रासदी ने तटीय प्रदेशों के इतिहास तथा भूगोल को बदल कर रख दिया है।

सुनामी त्रासदी के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster ):
हिन्द महासागर के तटीय देशों इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, म्यांमार, भारत, श्रीलंका तथा मालदीव में विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में सब से अधिक प्रभावित तमिलनाडु, पांडिचेरी, आन्ध्र प्रदेश, केरल राज्य थे अण्डमान तथा निकोबार द्वीप में इस लहर का सब से अधिक प्रभाव पड़ा। इण्डोनेशिया में लगभग 1 लाख व्यक्ति, थाइलैंड में 10,000 व्यक्ति, श्रीलंका में 30,000 व्यक्ति तथा भारत में 15,000 व्यक्ति इस प्रलय के शिकार हुए।

भारत में सब से अधिक क्षति तमिलनाडु के नागापट्टनम जिले में हुई जहां जल नगर में 1.5 कि०मी० अन्दर तक घुस गया। संचार, परिवहन साधन तथा विद्युत् सप्लाई में विघ्न पड़ा बहुत से श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के पुलिन (Beach) पर सागर जल में वह गए। विनाशकारी तट लौटती लहरें हज़ारों लोगों को वहा कर ले गईं। मैरीन पुलिन (एशिया के सब से बड़े पुलिन) पर 3 कि०मी० लम्बे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की लपेट में आ गए। यहां लाखों रुपयों के चल-अंचल संसाधनों की बर्बादी हुई।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 5
कल्पाक्कम अणु शक्ति घर में जल प्रवेश करने से अणु शक्ति के रीएक्टरों को बन्द करना पड़ा। मामलापुरम के विश्व प्रसिद्ध मन्दिर को तूफ़ानी लहरों से बहुत क्षति हुई।

सब से अधिक मौतें अण्डमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर जो कि भूकम्प के अधिकेन्द्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सब से अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौ सेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का बहुत-सा क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया है। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया तथा यहां पुनः मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश के आपदाओं के शब्द कोश में एक नया शद्ध सुनामी आपदा जुड़ गया है। अमेरिकन वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से डगमगा गई और उसका परिभ्रमण तेज़ हो गया जिससे दिन हमेशा के लिए एक सैकिंड कम हो गया। सुनामी लहरें सचमुच प्रकृति का कहर हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए-
1. प्रकाश की क्या गति है?
(A) 3 लाख कि०मी० प्रति सै०
(B) 5000 कि०मी० प्रति सै०
(C) 10 कि०मी० प्रति सै०
(D) 100 कि०मी० प्रति सै०।
उत्तर:
(A) 3 लाख कि०मी० प्रति सै०।

2. सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को क्या कहते हैं?
(A) तापमान
(B) ऊर्जा
(C) सूर्यातप
(D) सौर विकिरण।
उत्तर:
(C) सूर्यातप।

3. सूर्य से आने वाले ताप का कितने प्रतिशत भाग पृथ्वी पर पहुंचता है?
(A) 51%
(B) 47%
(C) 65%
(D) 44%
उत्तर:
(A) 51%

4. सूर्यातप को नापने की कौन-सी इकाई प्रयोग की जाती है?
(A) डिग्री फार्नहाइट
(B) प्रतिशत
(C) कैलोरी
(D) डिग्री सैंटीग्रेड।
उत्तर:
(C) कैलोरी।

5. कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् किस दिन चमकती हैं?
(A) 21 मार्च
(B) 23 सितम्बर
(C) 22 दिसम्बर
(D) 21 जून।
उत्तर:
(D) 21 जून।

6. वायुमण्डल के बाह्य संस्तर तक पहुंचने वाले सूर्यातप का कितना भाग पृथ्वी के धरातल तक पहुंच पाता है?
(A) 49 प्रतिशत
(B) 51 प्रतिशत
(C) 27 प्रतिशत
(D) 14 प्रतिशत।
उत्तर:
(B) 51 प्रतिशत

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

7. पृथ्वी के धरातल द्वारा विकिरित ऊर्जा को कहते हैं
(A) सूर्यातप
(B) सौर विकिरण
(C) तापमान
(D) पार्थिव या भौमिक विकिरण
उत्तर:
(D) पार्थिव या भौमिक विकिरण।

8. वायुमण्डल मुख्यतः गर्म होता है:
(A) सीधे ही सूर्य की किरणों द्वारा
(B) पार्थिव विकिरण द्वारा
(C) पृथ्वी के भीतर की ऊष्मा द्वारा
(D) ज्वालामुखी क्रिया द्वारा।
उत्तर:
(B) पार्थिव विकिरण द्वारा।

9. सामान्यतः तापमान कम होता जाता है
(A) विषुवत रेखा से उत्तर की ओर
(B) विषुवत रेखा से दक्षिण की ओर
(C) विषुवत रेखा के दोनों ओर
(D) ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर ।
उत्तर:
(C) विषुवत रेखा के दोनों ओर।

10. स्थल तथा महासागरों के बीच तापमान का अन्तर अधिक होता है :
(A) उत्तरी गोलार्द्ध में
(B) दक्षिणी गोलार्द्ध में
(C) ध्रुवों के निकट
(D) ग्रीष्म ऋतु में
उत्तर:
(A) उत्तरी गोलार्द्ध में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठंडी’ व्याख्या करो।
उत्तर:
पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग सम्पूर्ण भाग सूर्य से प्राप्त करती है। इसके बदले पृथ्वी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को अन्तरिक्ष में वापस विकरित कर देती है। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर ताप सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 2.
‘पृथ्वी के अलग-अलग भागों से प्राप्त ताप की मात्रा समान नहीं होती’ क्यों?
उत्तर:
स्थल तथा जल में गर्म होने तथा ठण्डा होने की दर में विभिन्नता है। कोई भी भाग अधिक देर तक गर्म नहीं रहता तथा कोई भी भाग अधिक देर तक ठण्डा नहीं रहता। इसलिए विभिन्न भागों में तापमान की मात्रा समान नहीं होती।

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प्रश्न 3.
तापमान की अलग-अलग भागों में भिन्नता के प्रभाव बताओ।
उत्तर:

  1. इस विभिन्नता के कारण वायुमण्डल के दाब में भिन्नता होती है।
  2. इसी कारण पवनों के द्वारा ताप का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है।

प्रश्न 4.
पार्थिव विकिरण तथा सूर्यातप में अन्तर बताओ।
उत्तर:
सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सूर्यातप कहते हैं या आगामी सौर विकिरण (Insolation) कहते हैं। यह अधिकतर लघु तरंगों द्वारा प्राप्त होती है। पृथ्वी के धरातल से विकिरण हुई ऊर्जा को पार्थिव विकिरण कहते हैं। यह दीर्घ तरंगों द्वारा अन्तरिक्ष में वापस चली जाती है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी के गोलाभ आकार का क्या प्रभाव है?
उत्तर:
पृथ्वी का आकार गोलाभ (Geoid) है। सूर्य की किरणें इस कारण वायुमण्डल के ऊपरी भाग पर तिरछी पड़ती हैं। इससे पृथ्वी सौर ऊर्जा का बहुत कम अंश प्राप्त करती है।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल की ऊपरी सतह को कितनी सौर ऊर्जा प्राप्त होती है?.
उत्तर:
गोलाभ पृथ्वी के कारण वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर औसत रूप से 0.5 कैलोरी प्रति वर्ग सैं०मी० प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त होती है। इसमें थोड़ा सा परिवर्तन होता रहता है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी द्वारा 3 जनवरी की अपेक्षा 4 जुलाई को अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। क्यों ?
उत्तर:
सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर अर्थात् 15 करोड़ 20 लाख कि०मी० दूर होती है। इसे अपसौर (Aphelion) कहते हैं। 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट 14 करोड़ 70 लाख कि०मी० दूर होती है। इसे उप सौर (Perihelion) कहते हैं। इसलिए पृथ्वी द्वारा प्राप्त वार्षिक सूर्यातप (insolation ) 3 जनवरी की अपेक्षा 4 जुलाई को अधिक होता है।

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प्रश्न 8.
सूर्यातप में विभिन्नता लाने वाले कारक लिखो।
उत्तर:

  1. पृथ्वी का धुरी पर घूमना
  2. सूर्य की किरणों का नति कोण
  3. दिन की अवधि
  4. वायुमण्डल की पारदर्शिता
  5. स्थल विन्यास

प्रश्न 9.
आकाश में रंगों की विभिन्नता क्यों है?
उत्तर:
पृथ्वी की सतह की ओर विकीर्ण के कारण सूर्य उदय एवं अस्त होने के समय सूर्य लाल दिखाई देता है। वायुमण्डल के प्रकाश के प्रकीर्णन (Scattering) के कारण नीला रंग दिखाई देता है।

प्रश्न 10.
पृथ्वी का एलिबडो किसे कहते हैं?
उत्तर:
सूर्य से ताप विकिरण का 30% सीधे रूप में परावर्तित हो कर अन्तरिक्ष में वापस चला जाता है। इसे पृथ्वी का एलिबडो कहते हैं।

प्रश्न 11.
सौर कलंक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सूर्य की सतह पर काले रंग के गहरे व उथले बनते-बिगड़ते धब्बों को सौर कलंक कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सूर्यातप क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर पहुंचने वाले सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। यह ऊर्जा लघु तरंगों के रूप में 3 लाख कि० मी० प्रति सेकण्ड की दर से पृथ्वी पर पहुंचती है। पृथ्वी पर सौर विकिरण का केवल 2 अरबवां भाग ही पहुंचता है।

प्रश्न 2.
ऊष्मा तथा तापमान में क्या अन्तर है?
उत्तर:
दोनों शब्द एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। ऊष्मा वास्तव में ऊर्जा का रूप है जो वस्तुओं को गर्म करती है। तापमान ऊष्मा की मात्रा का माप है। ऊष्मा के बढ़ने या घटने से तापमान बढ़ता या घटता है।

प्रश्न 3.
सूर्यातप तथा किसी स्थान के तापमान में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सूर्यातप एक प्रकार की ऊर्जा है। सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा या ऊष्मा को सूर्यातप कहते हैं। यह लघु तरंगों के रूप में पृथ्वी के तल को गर्म करती है। किसी स्थान के तापमान से अभिप्राय उस स्थान पर धरातल से एक मीटर ऊपर वायु में ऊष्मा की मात्रा है। यह वायुमण्डल का तापमान है। वायु धरातल द्वारा छोड़ी गई ऊर्जा के विकिरण से गर्म होती है।

प्रश्न 4.
तापमान के क्षैतिज वितरण से क्या अर्थ है?
उत्तर:
तापमान का क्षैतिज वितरण अक्षांशों के अनुसार तापमान घटता-बढ़ता रहता है। अक्षांशों के अनुसार तापमान के वितरण को क्षैतिज वितरण कहते हैं। यह वितरण समताप रेखाओं द्वारा प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 5.
तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वायुमण्डल मुख्यतः नीचे से ऊपर की ओर गर्म होता है। इसलिए ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। तापमान कम होने की दर 1°C प्रति 165 मीटर है। इसे सामान्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate) कहते हैं।

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प्रश्न 6.
विभिन्न अक्षांश सूर्यातप भिन्न मात्रा में क्यों प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा सूर्य किरणों के आपात् कोण तथा दिन की अवधि पर निर्भर करती है। पृथ्वी की वार्षिक गति तथा पृथ्वी के अक्ष के झुकाव कारण भिन्न अक्षांशों पर सूर्य किरणों का कोण भिन्न-भिन्न होता है तथा दिन की अवधि भी समान नहीं होती । भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है तथा दिन की अवधि भी बढ़ती जाती है। इसलिए भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है। एक ही अक्षांश पर सूर्यातप की मात्रा सब स्थानों पर बराबर होती है।

प्रश्न 7.
दैनिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान पर उस दिन के उच्चतम तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को उस स्थान का दैनिक तापान्तर कहते हैं। यह तटीय प्रदेशों में कम होता है। दैनिक तापान्तर अन्दरूनी भागों तथा मरुस्थलीय प्रदेशों में अधिक होता है।

प्रश्न 8.
वार्षिक तापान्तर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी वर्ष के सबसे गर्म तथा ठण्डे महीनों के औसत मासिक तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं। प्रायः जुलाई मास को सबसे गर्म तथा जनवरी मास को सबसे ठण्डा मास लिया जाता है। सबसे अधिक वार्षिक तापान्तर साइबेरिया में वर्खोयांस्क में 38°C होता है।

प्रश्न 9.
किसी स्थान के तापमान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तापमान किसी पदार्थ में ताप की मात्रा का सूचक है। किसी स्थान पर छाया में भू-तल में फुट की ऊंची वायु की मापी हुई गर्मी को उस स्थान का तापमान कहा जाता है। प्रत्येक स्थान पर तापमान समान नहीं पाया जाता है। धरातल पर तापमान का वितरण विभिन्न संघटकों द्वारा नियन्त्रित होता है।

प्रश्न 10.
तापमान प्रतिलोम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊंचाई के बढ़ने के साथ-साथ 1°C प्रति 165 मीटर की दर से तापमान कम होता जाता है, परन्तु कई बार स्थानीय या अस्थाई रूप से ऊंचाई के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में जब ठण्डी वायु धरातल के निकट और गर्म वायु इसके ऊपर हो तो इसे तापमान प्रतिलोम कहते हैं।

प्रश्न 11.
सूर्यातप का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
सूर्यातप का महत्त्व (Importance of Insolation ) :
यद्यपि पृथ्वी के धरातल पर प्राप्त होने वाला सूर्यातप बहुत थोड़ा है फिर भी यह कई प्रकार से महत्त्वपूर्ण है-

  1. कई भौतिक क्रियाएं सूर्यातप पर निर्भर करती हैं।
  2. सूर्यातप के कारण पवनें तथा समुद्री धाराएं चलती हैं ।
  3. सूर्यातप ऋतु परिवर्तन का आधार है ।
  4. इसी सूर्यातप के कारण पृथ्वी मानव निवास के योग्य ग्रह है
  5. वायुमण्डलीय गतियां तथा वायुराशियाँ सूर्यातप पर ही निर्भर करती हैं।

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प्रश्न 12.
वायुमण्डल पर ग्रीन हाऊस के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
वायुमण्डल भू-तल से विकिरण द्वारा गर्म होता है। वायुमण्डल की तुलना एक शीशे के घर या ग्रीन हाऊस से की जाती है जहां ध्रुवीय क्षेत्र में फूल तथा सब्जियां उगाई जाती हैं। शीशे के घर के अन्दर सौर ताप प्रवेश कर सकता है परन्तु बाहर नहीं जा सकता इसलिए शीशे का घर अन्दर से गर्म होता है, वायुमण्डल भी एक छाते की भान्ति कार्य करके पृथ्वी को गर्म रखता है।

दिन के समय यह सूर्य को पूरी शक्ति से बचा कर तापमान बढ़ने नहीं देता तथा रात को भू-तल से विकिरण को बाहर नहीं जाने देता। पृथ्वी पर औसत तापमान 15°C रहता है। यह वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण है जो कि विकिरण को सोख कर एक छत का कार्य करती है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस बढ़ने से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है। पिछली शताब्दी में भारत में 1955 का वर्ष सब से अधिक गर्म रहा है।

प्रश्न 13.
ग्लोबल वार्मिंग से क्या अभिप्राय है? इसके क्या कारण हैं? इसके प्रभाव बताओ।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होना। जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक जलने (कोयला, गैस, तेल) के कारण, अधिक कृषि, अधिक औद्योगीकरण के कारण, तीव्रगामी परिवहन साधनों के प्रयोग तथा वनों की अत्यधिक कटाई से वायुमण्डल के संघटन में एक असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। इन क्रियाओं से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है। इसके ग्रीन हाऊस प्रभाव से पृथ्वी का औसत तापमान 0.5°C बढ़ गया है।

एक अनुमान है कि सन् 2040 तक विश्व तापमान में 2°C की वृद्धि हो जाएगी विभिन्न क्रियाओं के कारण वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की कमी हो रही है। इस से पराबैंगनी किरण पृथ्वी पर पहुंच कर तापमान में वृद्धि कर रही है। इसके प्रभाव से ध्रुवीय प्रदेशों की हिम पिघलने से समुद्र तल ऊंचा हो रहा है। कई तटीय प्रदेशों के जलमग्न होने का भय है।

प्रश्न 14.
ऊंचाई के साथ तापमान में होने वाले ह्रास की व्याख्या करो
उत्तर:
विभिन्न निरीक्षणों से पता चलता है कि वायुमण्डल में ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। तापमान कम होने की दर 1°C प्रति 165 मीटर है। इसे सामान्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate) कहते हैं। इस तथ्य के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  1. वायुमण्डल प्रत्यक्ष रूप से धरातल द्वारा छोड़ी गई ऊष्मा से गर्म होता है। सूर्य का प्रभाव अप्रत्यक्ष होता है। धरातल के समीप वाली परत सबसे अधिक गर्म होती है, ऊंचाई पर परतें बाद में गर्म होती हैं।
  2. धरातल के समीप वायु में धूल-कण तथा जल वाष्प अधिक मात्रा में रहते हैं जो अधिक गर्मी ग्रहण कर लेते हैं। परन्तु वायुमण्डल की ऊपरी परतों में हल्की तथा स्वच्छ वायु कम मात्रा में गर्मी ग्रहण करती है। तापमान के कम होने की दर स्थानीय अवस्थाओं के कारण बदलती रहती है। रात के समय, महाद्वीपीय क्षेत्रों में ताप घटने की दर तीव्र होती है।

प्रश्न 15.
समताप रेखाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समताप रेखाएं ( Isotherms):
‘Iso’ शब्द का अर्थ है समान और ‘Therm’ शब्द का अर्थ है तापमान। इसलिए Isotherm का अर्थ है Lines of equal temperature या सम – तापमान रेखाएं। [Isotherms are lines joining the places of same (equal) temperature reduced to sea-level.]

धरातल पर समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं। इस तापक्रम को समुद्र-तल पर घटा कर दिखाया जाता है। इस प्रकार ऊंचाई के प्रभाव को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है। यह कल्पना जाती है कि सभी स्थान समुद्र तल पर स्थित हैं। यदि कोई स्थान 1650 मीटर ऊंचा है और उसका वास्तविक तापमान 20°C है तो उस स्थान का समुद्र तल पर तापमान 20°C + 10°C = 30°C क्योंकि प्रति 165 मीटर पर 1°C तापमान कम हो जाता है।

प्रश्न 16.
किसी स्थान का तापमान किस प्रकार अक्षांश पर निर्भर है?
उत्तर:
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए तापमान लगातार कम होता जाता है। किसी भी अक्षांश पर तापमान सूर्य की किरणों के कोण पर निर्भर है। लम्ब किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा थोड़े स्थान को घेरती हैं। अतः प्रति इकाई क्षेत्र प्राप्त ऊष्मा अधिक होती है। तिरछी किरणें वायुमण्डल में अधिक दूरी तय करती हैं तथा इनकी बहुत-सी गर्मी जलवाष्प अथवा धूलकणों द्वारा सोख ली जाती है। भूमध्य रेखा पर सारा वर्ष सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा इन प्रदेशों में उच्च तापमान पाए जाते हैं। ध्रुवों की ओर तिरछी किरणों के कारण कम तापमान पाए जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 17.
तापमान तथा ऊंचाई में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊंचाई (Altitude ):
समुद्र तल से ऊंचाई के साथ तापमान घटता है। ताप के कम होने की दर 1°F प्रति 300 फुट या 0.6°C प्रति 100 मीटर है। वायुमण्डल धरातल द्वारा छोड़ी गई गर्मी (Radiation) से गर्म होता है। इसलिए निचली परतें पहले गर्म होती हैं तथा ऊपरी परतें बाद में पर्वत मैदानों की अपेक्षा ठण्डे होते हैं (Mountains are cooler than plains.) ऊंचाई के अनुसार वायु का दबाव सघनता, जलवाष्प तथा धूल कणों की कमी होती है।

इसलिए ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र की शुद्ध तथा विरल वायु गर्मी को लीन नहीं कर सकती पर्वतीय प्रदेशों की कठोर चट्टानें शीघ्र ही गर्मी छोड़ देती हैं जो कि बिना रोक-टोक वायुमण्डल से बाहर निकल जाती हैं। इस प्रकार जो स्थान जितना ही ऊंचा होगा, उतना ही ठण्डा होगा।

प्रश्न 18.
भौमिक विकिरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल द्वारा सौर ऊर्जा दीर्घ तरंगों के रूप में वापस लौट जाती है, इसे भौमिक विकिरण कहते हैं। इसीलिए वायुमण्डल नीचे से ऊपर की ओर गर्म होता है। भौमिक विकिरण ही वायुमण्डल को गर्म करने का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 19.
ऊष्मा बजट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर औसत तापमान एक समान रहता है। पृथ्वी का औसत तापमान 15°C है। सूर्यातप तथा भौमिक विकिरण के कारण पृथ्वी के ताप में सन्तुलन रहता है, पृथ्वी जितनी मात्रा में सौर ऊर्जा प्राप्त करती है, उतनी ही मात्रा में ऊर्जा भौमिक विकिरण द्वारा अन्तरिक्ष में लौट जाती है। इसे ऊष्मा बजट कहते हैं

प्रश्न 20.
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर मानव बस्तियाँ हैं परन्तु उत्तरी ढलानों पर वन पाए जाते हैं। क्यों?
उत्तर:
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानें सूर्य की ओर झुकी रहती हैं, तथा अधिक गर्म होती हैं। परन्तु उत्तरी ढलानें सूर्य से परे झुकी होती हैं तथा ठण्डी होती हैं। इसलिए दक्षिणी ढलानों पर कृषि होती है तथा मानव बस्तियां हैं। परन्तु तिब्बत की ओर उत्तरी ढलान ठंडी है तथा यहां वन पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
दैनिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान के एक दिन (24 घण्टे) के अधिकतम तापमान तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को दैनिक तापान्तर कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
सूर्यातप किसे कहते हैं? सूर्यातप का वितरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
सूर्य वायुमण्डल को गर्मी तथा प्रकाश प्रदान करने वाला मुख्य तथा मूल स्रोत है। सूर्य का व्यास पृथ्वी से सौ गुना बड़ा है। सूर्य के धरातल पर 10,000°F से भी अधिक तापक्रम है। इस विशाल तेज पिण्ड से सभी दिशाओं में ताप तरंगें फैलती हैं। सूर्य ताप प्रकाश की गति से (186,000 मील या 3000,000 कि० मी० प्रति सेकण्ड की दर से) वायुमण्डल में से गुज़रता है।

पृथ्वी पर सूर्यातप का केवल दो अरबवां भाग ही (1/2000,000,000) प्राप्त होता है। अनुमानतः पृथ्वी प्रति मिनट 1.94 Calories गर्मी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्राप्त करती है। इसे सौर स्थिरांक (Solar Constant) कहते हैं। इस प्रकार धरातल पर प्राप्त होने वाले सौर्य विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। (Insolation means incoming Solar Radiation on the Surface of the Earth.) सूर्यातप तीन शब्दों के जोड़ से बना है:

सूर्यातप (Insolation)= In + sol + ation
In = In coming
Sol = solar
ation = Radiation

सूर्यातप का महत्त्व (Importance of Insolation): यद्यपि पृथ्वी के धरातल पर प्राप्त होने वाला सूर्यातप बहुत थोड़ा है फिर भी यह कई प्रकार से महत्त्वपूर्ण है

  1. कई भौतिक क्रियाएं सूर्यातप पर निर्भर करती हैं।
  2. सूर्यातप के कारण पवनें तथा समुद्री धाराएं चलती हैं।
  3. सूर्यातप ऋतु परिवर्तन का आधार है।
  4. इसी सूर्यातप के कारण पृथ्वी मानव निवास के योग्य ग्रह हैं।
  5. वायुमण्डलीय गतियां तथा वायु राशियाँ सूर्यातप पर ही निर्भर करती हैं।

सूर्यातप वितरण के प्रमुख घटक (Major Factors affecting the distribution of Insolation)
प्रमुख घटक (Major Factors): पृथ्वी के हर स्थान पर सूर्यातप की मात्रा समान नहीं है। सूर्यातप की मात्रा निम्नलिखित प्रमुख घटकों पर निर्भर करती है

1. सौर विकिरण की तीव्रता (Intensity of Insolation ):
सौर विकिरण की तीव्रता सूर्य किरणों के आपात् कोण पर निर्भर करती है। पृथ्वी की गोल सतह पर सूर्य की किरणों का कोण हर स्थान पर भिन्न-भिन्न होता है। यह कोण भूमध्य रेखा पर लम्ब और ध्रुवों की ओर कम होता जाता है। इस प्रकार सूर्य की तिरछी व लम्ब किरणों के कारण सूर्यातप की मात्रा में अन्तर पाया जाता है। लम्ब किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा एक छोटे क्षेत्र में प्रभाव डालती हैं तथा प्रति इकाई क्षेत्र अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है।

लम्बवत् किरणों को वायुमण्डल का थोड़ा भाग पार करना पड़ता है। इसलिए वायुमण्डल में मिली गैसें जल वाष्प द्वारा अवशोषण, प्रकीर्णन तथा परावर्तन से सूर्यातप की मात्रा कम नष्ट होती है। इसके विपरीत तिरछी किरणें अधिक स्थान घेरती हैं तथा वायुमण्डल का अधिक भाग पार करती हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रति इकाई क्षेत्र प्राप्त सूर्यातप की मात्रा कम होती है तथा तिरछी किरणों के ताप का अधिक भाग वायुमण्डल में नष्ट हो जाता है।

निम्नलिखित तालिका से भी यह स्पष्ट हो जाता है:

सूर्य की किरणों का आपतन कोण (Angle of Sun’s Rays) वायुमण्डल में सूर्य की किरणों की लम्बाई (Length of Sun’s Rays in Atmosphere) तीव्रता (Intensity)
90° 1.00 78
60° 1.15 55
30° 2.00 31
45.00 0

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान  1

2. दिन की अवधि (Length of Day ):
पृथ्वी के अक्ष के झुके होने के कारण हर स्थान पर दिन-रात की लम्बाई समान नहीं होती है। भूमध्य रेखा से दूर जाने पर ग्रीष्म काल में दिन बड़े हो जाते हैं और शीत काल में रातें बड़ी हो जाती हैं। दिन की अवधि बढ़ने का अर्थ है कि लम्बे समय तक सूर्यातप का प्राप्त होना। दिन की अवधि कम होने से सूर्यातप की मात्रा कम हो जाती है। परन्तु पृथ्वी पर सूर्यातप की मात्रा के वितरण पर इन दोनों घटकों का सम्मिलित प्रभाव पड़ता है उच्च अक्षांशों में दिन की अवधि अधिक होते हुए भी सूर्यातप की मात्रा कम होती है क्योंकि सूर्य की किरणें अधिक तिरछी पड़ती हैं जैसा कि निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है:

विभिन्न अक्षांशों पर दिन की अधिकतम अवधि (Length of Longest day at different Latitudes)
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3. वायुमण्डल की मोटाई (Thickness of Atmosphere ):
वायुमण्डल के मोटे आवरण में से गुज़रते समय सूर्यातप का 49% भाग मार्ग में नष्ट हो जाता है। वायुमण्डल की मोटाई निम्नलिखित रूप से सूर्यातप की मात्रा पर प्रभाव डालती है।
(क) प्रकीर्णन (Scattering): सूर्यातप का कुछ भाग अणुओं तथा धूल कणों द्वारा बिखेर दिया जाता है जिसके कारण आकाश नीला प्रतीत होता है।
(ख) परावर्तन (Reflection ): धूल कण, जलवाष्प तथा कुछ सूर्यातप अन्तरिक्ष में लौट जाता है।
(ग) अवशोषण (Absorption ): जलवाष्प तथा गैसों द्वारा काफ़ी मात्रा में सूर्यातप जज़ब कर लिया जाता है।
जो सूर्यातप पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष में लौट जाता है उसका कुछ अंश आकाश के नीले तथा मन्द प्रकाश के रूप में उपयोगी है। उच्च अक्षांशों में यह मन्द प्रकाश (Diffused day light) पूर्ण अन्धकार नहीं होने देता।

वायुमण्डल में नष्ट होने वाले सूर्यातप की मात्रा मान लो कि वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाला ताप 100 इकाई है। इसमें से केवल 51 इकाई ताप ही पृथ्वी पर पहुंचता है। इसमें 49 इकाई ताप वायुमण्डल तथा अन्तरिक्ष में लौट जाता है। शून्य में परावर्तन हुई उस ऊष्मा को एल्बेडो (Albedo of the earth) कहते हैं।
वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त ऊष्मा
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पृथ्वी की सतह पर प्राप्त ऊष्मा 100 – 49 = 51%
इस प्रकार सूर्यातप का केवल 51% भाग ही पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होता है। यह ताप पृथ्वी से दीर्घ किरणों द्वारा विकिरण के माध्यम से वायुमण्डल को गर्म करता है।

अन्य घटक (Minor Factors):
4.  जल एवम् स्थल का वितरण (Distribution of land and water ):
पानी की अपेक्षा स्थल भाग अधिक तथा शीघ्र गर्म हो जाते हैं तथा शीघ्र ही ठण्डे हो जाते हैं। जल का आक्षिक ताप (Specific Heat) स्थल के आक्षिक ताप से 2 गुना अधिक है। महासागरों में सूर्य की किरणों को अधिक गहराई तक जल को गर्म करना पड़ता है। जल गतिशील भी है। इसलिए जल-भागों को गर्म करने के लिए अधिक ताप की आवश्यकता होती है। इसी कारण ग्रीष्म ऋतु में महाद्वीप अधिक गर्म हो जाते हैं जबकि शीतकाल में महासागर अधिक गर्म होते हैं।

5. धरातल का स्वभाव (Nature of the Surface ): धरातल में विभिन्नता के कारण ताप के अवशोषण तथा परावर्तन की महत्ता भिन्न-भिन्न होती है। जैसे विभिन्न भूतलों पर सौर किरणों का परावर्तन अग्रलिखित प्रकार से होता है
वनस्पति – 7%
रेत – 13%
जल – 30%
बर्फ़ – 80%
इसी कारण हिम से ढका भूतल कम ताप ग्रहण करता है जबकि मरुस्थल में रेतीली भूमि अधिक ताप प्राप्त करती है।

6. पृथ्वी से सूर्य की दूरी (Distance between Earth and Sun):
पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य दूरी सदा समान नहीं रहती। उत्तरायण (Aphelion) के समय यह दूरी 940 लाख मील होती है तथा दक्षिणायन (Perihelion) के समय यह दूरी 915 लाख मील होती है। इस प्रकार उत्तरायण के समय तथा दक्षिणायन के समय सूर्यातप में 7% का अन्तर पड़ जाता है।

7. सौर कलंकों की संख्या (Number of Sun Spots ):
सौर कलंकों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है । अधिक संख्या के कारण सूर्यातप की मात्रा अधिक प्राप्त होती है।

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प्रश्न 2.
तापमान के क्षैतिज वितरण को कौन-से संघटक नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
तापमान किसी पदार्थ में ताप की मात्रा का सूचक है। किसी स्थान पर छाया में भूतल 4 फुट की ऊंची वायु की मापी हुई गर्मी को उस स्थान का तापमान कहा जाता है। प्रत्येक स्थान पर तापमान समान नहीं पाया जाता है। धरातल पर तापमान का वितरण निम्नलिखित संघटकों द्वारा नियन्त्रित होता है:

1. भूमध्य रेखा से दूरी (Distance from the Equator):
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए तापमान लगातार कम होता जाता है। किसी भी अक्षांश पर तापमान सूर्य की किरणों के कोण पर निर्भर है। लम्ब किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा थोड़े स्थान को घेरती हैं। अतः प्रति इकाई क्षेत्र प्राप्त ऊष्मा अधिक होती है। तिरछी किरणें वायुमण्डल में से अधिक दूरी तय करती हैं तथा इनकी बहुत-सी गर्मी जलवाष्प अथवा धूलकणों द्वारा सोख ली जाती है। भूमध्य रेखा पर सारा वर्ष सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा इन प्रदेशों में उच्च तापमान पाए जाते हैं। ध्रुवों की ओर तिरछी किरणों के कारण कम तापमान पाए जाते हैं।

2. समुद्र तल से ऊंचाई (Altitude):
समुद्र तल से ऊंचाई के साथ तापमान घटता है। ताप के कम होने की दर 1°F प्रति 300 फुट या 0.6°C प्रति 100 मीटर है। वायुमण्डल धरातल द्वारा छोड़ी गई गर्मी (Radiation) से गर्म होता है। इसलिए निचली परतें पहले गर्म होती हैं तथा ऊपरी परतें बाद में पर्वत मैदानों की अपेक्षा ठण्डे होते हैं (Mountains are cooler than plains)। ऊंचाई के अनुसार वायु का दबाव सघनता, जलवाष्प तथा धूल के कणों की कमी होती है। इसलिए ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र की शुद्ध तथा विरल वायु गर्मी को लीन नहीं कर सकती पर्वतीय प्रदेशों की कठोर चट्टानें शीघ्र ही गर्मी छोड़ देती हैं जो कि बिना रोक-टोक वायुमण्डल से बाहर निकल जाती हैं। इस प्रकार जो स्थान जितना ही ऊंचा होगा, उतना ही ठण्डा होगा।

3. समुद्र से दूरी (Distance from the Sea) समुद्र का प्रभाव जलवायु के लिए समकारी होता है। समुद्र के समीप के प्रदेशों में सम (Equable) जलवायु होती है। परन्तु भीतरी (Inland) या समुद्र से दूर प्रदेशों में कठोर (Extreme) जलवायु मिलती है। जल स्थल की अपेक्षा धीरे-धीरे गर्म तथा ठण्डा होता है इसलिए तटीय प्रदेशों में जल समीर (Sea Breeze) के कारण दिन का ताप अधिक नहीं होता है। स्थल समीर (Land Breeze) के कारण रात का ताप अधिक कम नहीं होता। इसलिए इनके प्रभाव से गर्मी तथा सर्दी दोनों ही अधिक नहीं होतीं। परन्तु समुद्र तट से अधिक दूर जाने पर, स्थल के प्रभाव के कारण ग्रीष्म ऋतु अधिक गर्म तथा शीत ऋतु अधिक ठण्डी होती है।

4. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds):
प्रचलित पवनें किसी प्रदेश के तापमान तथा वर्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। समुद्र की ओर से आने वाली पवनें जलवायु को सम तथा आर्द्र रखती हैं। (A wind from the sea lowers the summer temperature and raises the winter temperature.) परन्तु स्थल की ओर से आने वाली पवनें स्थल के प्रभाव के कारण किसी प्रदेश की जलवायु को कठोर तथा शुष्क बनाती हैं। (A Wind from the land lowers the winter temperature and raises the summer temperature.) समुद्र से आने वाली पश्चिमी पवनों (Westerlies) के कारण शीत ऋतु में इंग्लैण्ड का औसत तापमान 20°F – 30°F ऊंचा रहता है।

5. समुद्री धाराएं (Ocean Currents ):
समुद्री धाराओं का प्रभाव उन पवनों द्वारा होता है जो इन धाराओं के ऊपर से गुज़रती हैं। गर्म धाराओं के ऊपर से गुज़रने वाली पवनें तटीय प्रदेशों के तापक्रम को ऊँचा कर देती हैं तथा वर्षा में सहायक होती हैं। शीत ऋतु का तापमान बढ़ जाने से जलवायु सम हो जाती है । परन्तु ठण्डी धाराओं के ऊपर से गुज़रने वाली पवनों के प्रभाव से तटीय प्रदेश ठण्डे तथा शुष्क होते हैं। (Warm currents raise and cold currents lower the temperature of coastal areas.)
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6. पर्वतों की दिशा (Direction of Mountains):
किसी देश में पर्वतों की स्थिति तथा दिशा तापमान तथा वर्षा पर प्रभाव डालती है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें रोक नहीं पाता जिससे राजस्थान शुष्क रहता है। यदि हिमालय पर्वत मानसून पवनों के आड़े स्थित न होता तो उत्तरी भारत भी मरुस्थल होता । पर्वतों के सम्मुख ढाल पर वर्षा होती है परन्तु त्रिमुख ढाल वर्षा छाया (Rain Shadow) में होने के कारण शुष्क रहते हैं ।

7. भूमि की उलान (Slope of the Land):
सूर्यमुखी ढाल सूर्य त्रिमुखी ढालों की अपेक्षा गर्म होती है। उत्तरी ढाल की अपेक्षा दक्षिणी ढाल पर सूर्य की किरणें अधिक सीधी पड़ती हैं। दक्षिणी ढाल उत्तर से आने वाली ठण्डी हवाओं से सुरक्षित रहती है। उत्तरी अधिक देर तक छाया में रहती है परन्तु दक्षिणी ढाल पर सूर्य अधिक देर तक चमकता है। हिमालय पर्वत के तिब्बत की ओर ढाल वाले प्रदेश ठण्डे हैं परन्तु भारत की ओर ढाल वाले प्रदेश गर्म हैं।
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8. भू-तल का स्वभाव (Nature of the Soil):
मैदानों की चिकनी मिट्टी प्रायः बारीक होती है तथा शनै: शनै: गर्म तथा ठण्डी होती है परन्तु रेत जल्दी ही गर्म तथा ठण्डी हो जाती है । इसी कारण मरुस्थलों में दिन को अधिक गर्मी तथा रात को अधिक सर्दी होती है ।

9. मेघ और वर्षा (Clouds and Rainfall):
जिन प्रदेशों में बादल छाए रहते हैं, वहां जलवायु सम रहती है। और अधिक वर्षा होती है। मेघ सूर्य की किरणों को दिन के समय रोकते हैं। सूर्य के ताप को लीन कर लेते हैं। मेघरहित (Cloudless) आकाश के कारण दिन को तापक्रम ऊँचा हो जाता है। ये रात को पृथ्वी द्वारा छोड़ी हुई गर्मी को बाहर नहीं जाने देते । वर्षा के कारण भी तापमान कम हो जाता है।

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प्रश्न 3.
तापमान कटिबन्ध से क्या अभिप्राय है? अक्षांशों के आधार पर ताप-कटिबन्धों का वर्णन करो अक्षांशों के आधार पर तापमान का क्षैतिज वितरण
उत्तर:
अक्षांशों के आधार पर तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature Based on Latitudes):
विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्यातप की प्राप्ति कम होती जाती है क्योंकि सौर – ताप की किरणों में अधिकाधिक तिरछापन आता रहता है। इस प्रकार भूतल पर तापमान का क्षैतिज वितरण अक्षांशों के अनुसार घटता-बढ़ता है। यद्यपि विषुवत् रेखा पर वर्ष पर्यन्त सूर्य लगभग लम्बवत् रहता है, किन्तु यहां आकाश अधिकांश अवधि के लिए मेघाच्छादित रहता है तथा वर्षा प्रचुर मात्रा में होती है। अतः सूर्यातप का अधिकांश भाग परावर्तित हो जाता है तथा पर्याप्त मात्रा में ऊष्मा वाष्पीकरण में व्यय हो जाती है।

इन कारणों से उच्चतम तापमान कभी भी विषुवत् रेखीय प्रदेशों में नहीं पाया जाता संसार के उच्चतम तापमान कर्क एवं मकर रेखाओं के निकट पाए जाते हैं क्योंकि यहां आकाश सदैव मेघ – विहीन तथा स्वच्छ रहता है, जिससे सूर्य शक्ति बिना किसी अवरोध के यहां पहुंचती है तथा यहां की भूमि को प्रचण्ड रूप से उष्ण कर देती है। मकर रेखा की अपेक्षा कर्क रेखा पर स्थल का विस्तार अधिक होने के कारण वहां तापमान उच्च रहते हैं। इस प्रकार के संसार के उच्चतम तापमान कर्क रेखा पर ही पाए जाते हैं।

अतः संसार की तापीय मध्य रेखा (Thermal or Heat Equator) कर्क रेखा के साथ-साथ पाई जाती है। विषुवत्रेखा से ध्रुवों की ओर तापमान के घटने की दर को ताप प्रवणता (Temperature Gradient) कहते हैं। यह ताप प्रवणता कर्क एवं मकर रेखाओं के बीच के भू-भाग में अति न्यून होती है। इस प्रकार आयतन का क्षैतिज वितरण विषुवत् रेखा से दूरी अर्थात् अक्षांशों का अनुसरण करता पाया जाता है। प्राचीन यूनानी (Greek) विचारकों ने अक्षांशों के आधार पर पृथ्वी के तल को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त किया है:

ताप कटिबन्ध (Temperature Zone):
1. उष्ण कटिबन्ध (Torrid or Hot Zone):
उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा \(\left(23 \frac{1}{2}^{\circ} \text { North }\right)\) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा \(\left(23 \frac{1}{2}^{\circ} \text { South }\right)\) के बीच विस्तृत भू-भाग में सौर किरणें वर्ष भर में एक बार अवश्य ही ऊर्ध्वाधर (Vertical) पड़ती हैं। परन्तु इस भू-भाग से दूर सूर्य कभी भी ऊर्ध्वाधर नहीं होता। दूसरे शब्दों में, सूर्य इस भू-भाग में वर्ष पर्यन्त लगभग लम्बवत् रहता है। इस भू-भाग में दिन एवं रात्रि की अवधि में भी बहुत कम अन्तर होता है। अतः इस भू-खण्ड में सदैव प्रचण्ड रूप से उष्णता रहती है, जिससे इसे उष्ण कटिबन्ध (Hot or Torrid Zone) कहते हैं।
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2. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperature Zones):
कर्क रेखा एवं उत्तरी ध्रुववृत्त \(\left(66 \frac{1}{2}\right)^{\circ}\) उत्तरी अक्षांश Article Circle,\( \left(66 \frac{1}{2}^{\circ} \text { North }\right)\) तथा मकर रेखा, \(23 \frac{1}{2} \circ\)दक्षिण (Tropic of copricorn) से अंटार्कटिक वृत्त \(66\frac{1}{2} \circ\) दक्षिणी मध्य के भू-भाग में सूर्य की किरणें सदा तिरछी पड़ती हैं। इसके परिणामस्वरूप शीतकाल में बहुत निम्न तापमान तथा ग्रीष्म काल में दरमियाने तापमान रहते हैं। इन क्षेत्रों को उत्तरी शीत ऊष्ण कटिबन्ध (North Temperature Zone) तथा दक्षिणी शीत-उष्ण कटिबन्ध (South Temperature Zone) कहते हैं।

3. शीत कटिबन्ध ( Frigid Zone ):
उत्तरी ध्रुव तथा उत्तरी ध्रुवीय वृत्त, दक्षिणी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुवीय वृत्त के मध्य स्थित भागों को क्रमवार उत्तरी शीत खण्ड तथा दक्षिणी शीत खण्ड कहते हैं। इन भागों में सारा वर्ष सूर्य की किरणें बहुत तिरछी पड़ती हैं। इसलिए तापमान बहुत कम रहते हैं तथा कठोर शीत पड़ती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

बह-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
(A) होल्मस
(B) वैगनर
(C) टेलर
(D) काण्ट।
उत्तर:
(B) वैगनर।

2. आरम्भ में सभी स्थल खण्ड एक बड़े भू-भाग के रूप में जुड़े थे जिसे कहते हैं
(A) गोंडवाना लैंड
(B) लारेशिया
(C) पेंजिया
(D) पेन्थालासा।
उत्तर:
(C) पेंजिया।

3. प्रशान्त महासागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित प्लेट को कहते हैं
(A) कोकोस प्लेट
(B) नाज़का प्लेट
(C) भारतीय प्लेट
(D) फिलीपाइन प्लेट।
उत्तर:
(B) नाज़का प्लेट।

4. वेगनर ने विस्थापन सिद्धान्त कब प्रस्तुत किया?
(A) 1911
(B) 1912
(C) 1913
(D) 1914
उत्तर:
(B) 1912

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

5. गोंडवाना लैंड पेंजिया से कब अलग हुआ?
(A) 4.5 करोड़ वर्ष पूर्व
(B) 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व।
(C) 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व
(D) 7.5 करोड़ वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(B) 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व।

6. कौन-सा महाद्वीप गोंडवाना लैंड का भाग नहीं था?
(A) अफ्रीका
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) अंटार्कटिका
(D) एशिया।
उत्तर:
(D) एशिया।

7. जलोढ़ में स्वर्ण निक्षेप कहां मिले हैं?
(A) घाना तट
(B) ऑस्ट्रेलिया तट
(C) चिल्ली तट
(D) गियाना तट।
उत्तर:
(A) घाना तट।

8. मध्यवर्ती महासागरीय कटक किस महासागर में है?
(A) हिन्द महासागर
(B) प्रशान्त महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) अन्ध महासागर।
उत्तर:
(D) अन्ध महासागर।

9. किस स्तर पर भू-प्लेटें विपरीत दिशा में खिसकती हैं?
(A) अभिसरण क्षेत्र
(B) अपसरण क्षेत्र
(C) रूपान्तर क्षेत्र
(D) ज्वालामुखी क्षेत्र।
उत्तर:
(C) रूपान्तर क्षेत्र।

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10. संवहन धाराओं की संकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) वेगनर
(B) होम्स
(C) टेलर
(D) ट्रिवार्था।
उत्तर:
(B) होम्स।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
किसने और कब महाद्वीपीय संचलन सिद्धान्त प्रस्तुत किया?
उत्तर:
अल्फ्रेड वैगनर ने 1912 ई० में।

प्रश्न 2.
मूल महाद्वीप का क्या नाम था? यह कब बना?
उत्तर:
पेंजिया-काल्पनिक कल्प में 280 मिलियन वर्ष पूर्व।

प्रश्न 3.
पेंजिया से पृथक् होने वाले उत्तरी महाद्वीप का नाम लिखो।
उत्तर:
लारेशिया।

प्रश्न 4.
पेंजिया से पृथक् होने वाले दक्षिणी महाद्वीप का नाम लिखो।
उत्तर:
गोंडवानालैंड।

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प्रश्न 5.
गोंडवानालैंड में शामिल भू-खण्डों के नाम लिखो।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका।

प्रश्न 6.
अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका में स्वर्ण निक्षेप कहां पाये जाते हैं?
उत्तर:
घाना तथा ब्राज़ील में।

प्रश्न 7.
ध्रुवों के घूमने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न युगों में ध्रुवों की स्थिति का बदलना।

प्रश्न 8.
समुद्र के अधस्तल के विस्तारण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
महासागरीय द्रोणी का फैलना तथा चौड़ा होना।

प्रश्न 9.
प्लेटों के संचलन का क्या कारण है?
उत्तर:
तापीय संवहन क्रिया।

प्रश्न 10.
संवहन क्रिया सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1928 में आर्थर होम्स ने।

प्रश्न 11.
स्थलमण्डल पर कुल कितनी प्लेटें हैं?
उत्तर:
7.

प्रश्न 12.
सबसे बड़ी भू-प्लेट कौन-सी है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागरीय प्लेट।

प्रश्न 13.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट का आपसी टकराव।

प्रश्न 14.
पेंजिया शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:
सम्पूर्ण पृथ्वी।

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प्रश्न 15.
पैंथालासा शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:
जल ही जल।

प्रश्न 16.
प्लेट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था?
उत्तर:
टूजो विल्सन।

प्रश्न 17.
प्लेटों में गति का क्या कारण है?
उत्तर:
प्लेटों में गति का कारण तापीय संवहन क्रिया है।

प्रश्न 18.
‘टेक्टोनिकोज’ किस भाषा का शब्द है? इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ निर्माण है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पेंजिया किसे कहते हैं? इसकी उत्पत्ति कब हुई? इसमें मिलने वाले भू-खण्ड बताओ। पेंजिया के टूटने की क्रिया बताओ।
उत्तर:
विश्व के सभी भू-खण्ड पेंजिया नामक एक महा-महाद्वीपीय से विलग होकर बने हैं, यह बात अल्फ्रेड वैगनर ने 1912 में कही। पेंजिया नामक यह महाद्वीप 28 करोड़ वर्ष पूर्व, कार्बनी कल्प के अन्त में अस्तित्व में आया। मध्य जुरैसिक कल्प तक यानि 15 करोड़ वर्ष पूर्व, पेंजिया उत्तरी महाद्वीप लॉरेशिया तथा दक्षिणी महाद्वीप गोंडवानालैंड में विभक्त हो गया था।

लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व अर्थात् क्रिटेशस कल्प के अन्त में गोंडवानालैंड फिर से खंडित हुआ और इससे कई अन्य महाद्वीपों जैसे दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका की रचना हुई। भारत इससे टूटकर स्वतंत्र रूप से एक अलग पथ पर उत्तर-पूर्व की ओर अग्रसर हुआ।

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प्रश्न 2.
Jig-saw-fit से क्या अभिप्राय है? अन्ध-महासागर के दोनों तटों पर मिलने वाली समानताएं बताओ। इससे क्या निष्कर्ष निकलता है?
उत्तर:
Jig-saw- fit का अर्थ है कि अन्ध महासागर का पूर्वी तथा पश्चिमी तट किसी समय एक साथ जुड़े हुए थे। इन तटों पर कई समानताएं हैं।

  1. गिन्नी की खाड़ी ब्राज़ील के तट के साथ जोड़ी जा सकती है। अफ्रीका का पश्चिमी भाग खाड़ी मैक्सिको में जोड़ा जा सकता है। पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका का पूर्वी तट तथा ग्रीनलैंड अफ्रीका जोड़े जा सकते हैं।
  2. पूर्वी तट पर घाना में तथा पश्चिमी तट पर ब्राज़ील में अमेरिका स्वर्ण निक्षेप पाये जाते हैं।
  3. गोंडवानालैंड के सभी भू-खण्डों में हिमानी निक्षेप मिलते हैं। इन समानताओं से निष्कर्ष निकलता है कि ये महाद्वीप किसी प्राचीन भू-वैज्ञानिक काल में इकट्ठे थे।

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प्रश्न 3.
ध्रुवों के घूमने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ध्रुवों का घूमना (Polar Wandering):
पहले महाद्वीप पेंजिया के रूप में परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, इसका सबसे शक्तिशाली प्रमाण पुरा चुम्बकत्व से प्राप्त हुआ है। मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसाद में उपस्थित चुम्बकीय प्रवृत्ति वाले खनिज जैसे मैग्नेटाइट, हेमेटाइट, इल्मेनाइट और पाइरोटाइट इसी प्रवृत्ति के कारण उस समय के चुंबकीय क्षेत्र के समानान्तर एकत्र हो गए। यह गुण शैलों में स्थाई चुम्बकत्व के रूप में रह जाता है।

चुम्बकीय ध्रुव की स्थिति में कालिक परिवर्तन होता रहा है, जो शैलों में स्थाई चुम्बकत्व के रूप में अभिलेखित किया जाता है। वैज्ञानिक विधियों द्वारा पुराने शैलों में हुए ऐसे परिवर्तनों को जाना जा सकता है, जिनसे भूवैज्ञानिक काल में ध्रुवों की बदलती हुई स्थिति की जानकारी होती है। इसे ही ध्रुवों का घूमना कहते हैं। धूवों का घूमना यह स्पष्ट करता है कि महाद्वीपों का समय-समय पर संचलन होता रहा है और वे अपनी गति की दिशा भी बदलते रहे हैं।

प्रश्न 4.
अपसरण क्षेत्र तथा अभिसरण क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अपसरण क्षेत्र-ये वे सीभाएं हैं जहां प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं। भूगर्भ से मैग्मा बाहर आता है। ये महासागरीय कटकों के साथ-साथ देखा जाता है। इन सीमाओं के साथ ज्वालामुखी तथा भूकम्प मिलते हैं। इसका उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है जहां से अमेरिकी प्लेटें तथा यूरेशियम व अफ्रीकी प्लेटें अलग होती हैं। अभिसरण क्षेत्र-ये वे सीमाएं हैं जहां एक प्लेट का किनारा दूसरे के ऊपर चढ़ जाता है। इनसे गहरी खाइयों तथा वलित श्रेणियों की रचना होती है।

ज्वालामुखी तथा गहरे भूकम्प उत्पन्न होते हैं। रूपांतर सीमा-जहां न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही विनाश होता है, उसे रूपांतर सीमा कहते हैं। इसका कारण है कि इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं। रूपांतर भ्रंश (Transform faults) दो प्लेट को अलग करने वाले तल हैं जो सामान्यतः मध्य-महासागरीय कटकों से लंबवत स्थिति में पाए जाते हैं।

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प्रश्न 5.
समुद्र अधस्तल के विस्तारण का क्या महाद्वीपीय अर्थ है ?
उत्तर:
मध्यवर्ती महासागरीय कटक महासागर के अधस्तल पर स्थित दरारें हैं। इनसे लावा बाहर निकलता है। पिघला हुआ पदार्थ एक नये धरातल की रचना करता है। यह अधस्तल कटक से दूर फैलता है। इस प्रकार महासागरीय द्रोणी चौड़ी हो जाती है। इसे समुद्र अधस्तल मैंटल विस्तारण कहते हैं।
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प्रश्न 6.
महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटों का वर्णन करो।
उत्तर:
कुछ महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटें निम्नलिखित हैं

  1. कोकोस (Cocoas) प्लेट: यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  2. नाजका प्लेट (Nazca plate): यह दक्षिण अमेरिका व प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  3. अरेबियन प्लेट (Arabian plate): इसमें अधिकतर साऊदी अरब का भू-भाग सम्मिलित है।
  4. फिलिपाइन प्लेट (Philippine plate): यह एशिया महाद्वीप और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  5. कैरोलिन प्लेट (Caroline plate): यह न्यू गिनी के उत्तर में फिलिपियन वे इंडियन प्लेट के बीच स्थित है।
  6. फ्यूजी प्लेट (Fuji plate): यह ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त और इसकी क्रियाविधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
प्लेट विवर्तन की अवधारणा का वर्णन करें।
उत्तर:
भूमण्डलीय प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त के अनुसार स्थलमण्डल मध्यम दृढ़ प्लेटों में विभक्त है। ये प्लेटें निरन्तर संचलन कर रही हैं और उनकी गति-दिशा सापेक्ष है। प्लेटों के सीमान्त (Plate Boundaries): प्लेटों की सापेक्ष संचलन के आधार पर तीन विभिन्न प्रकार की प्लेट-सीमाएं या सीमान्त क्षेत्रों की रचना होती है:

  1. अपसरण अथवा विस्तारण क्षेत्र या सीमान्त
  2. अभिसरण क्षेत्र या सीमान्त; तथा
  3. विभंग क्षेत्र अथवा रूपान्तर भ्रंश।

1. अपसरण क्षेत्र (Zones of Divergence):
वे सीमाएं हैं, जहां प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं और पृथक्करण की इस प्रक्रिया में भूगर्भ से मैग्मा बाहर आता है। सामान्यतः ऐसा रैखिक महासागरी कटकों के साथ-साथ देखा जाता है, जहां नए महासागरीय अधस्तल के रूप में नवीन स्थलमण्डल का निर्माण हो रहा है। ऐसे सीमान्तों की विशिष्टता सक्रिय ज्वालामुखी उद्भव तथा उथले उद्गम केन्द्रों वाले भूकम्प हैं।

2. अभिसरण क्षेत्र (Zones of Convergence):
वे सीमाएं हैं, जहां एक प्लेट का किनारा दूसरे के ऊपर चढ जाता है, जिससे नीचे की प्लेट मैंटल में फिसल कर इसी में विलीन हो जाती है। इस प्रक्रिया को प्रविष्ठन (Subduction) कहते हैं। इन सीमाओं पर ज्वालामुखी उद्भव तथा उथले से गहरे उद्गम केन्द्रों वाले भूकम्पों की उत्पत्ति के अतिरिक्त गहरी महासागरीय खाइयों, द्रोणियों तथा वलित पर्वत श्रेणियों की रचना होती है।

3. रूपांतर (Transform faults):
भ्रंश पर न तो भूपर्पटी का निर्माण होता है और न विनाश। यहां स्थलमण्डलीय प्लेटें एक-दूसरे के विपरीत दिशा में साथ-साथ खिसकती हैं।

प्लेट संचलन के कारण (Causes of Plate Movement)
1. तापीय संवहन:
आर्थर होम्स ने 1928 में यह बताया कि अधोपर्पटी संवहन धाराएं तापीय संवहन की क्रियाविधि आरम्भ करती हैं, जो प्लेटों के संचलन के लिए प्रेरक बल के रूप में काम करता है।

2. उष्ण धाराएं:
उष्ण धाराएं ऊपर उठती हैं। जैसे ही वे भूपृष्ठ पर पहुंचती हैं, वे ठण्डी हो जाती हैं और नीचे की ओर चलने लगती हैं। इस प्रकार यह संवहनी संचलन भूपर्पटी प्लेटों को गतिशील कर देता है।

3. प्लेटों का तैरना:
संचलन के कारण स्थल मण्डल की प्लेटें, जो नीचे के अधिक गतिशील एस्थेनोस्फीयर पर तैर रही हैं, निरन्तर गति में रहती हैं।

4. ज्वालामुखी क्रिया:
अतीत में हुई ज्वालामुखी क्रिया के छोटे केन्द्र, जो बहुधा किसी सक्रिय प्लेट सीमा से दूर स्थलमण्डल पर स्थित हैं, संवहन धाराओं के प्रभाव का संकेत देते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के ये केन्द्र तप्त स्थल कहलाते हैं।

5. ज्वालामुखी:
डब्ल्यू० जैसन मॉर्गन ने 1971 में तप्त स्थल की परिकल्पना की। उनके अनुसार मैंटल में मैग्मा का स्रोत अपने स्थान पर स्थिर रहता है, जबकि इसके ऊपर स्थित स्थलमण्डलीय प्लेटें निरन्तर संचलित होती हैं। इस प्रकार किसी तप्त स्थल के ऊपर ज्वालामुखियों की रचना होती है, लेकिन वे उसके बाद मैग्मा-स्रोत से दूर खिसक जाते हैं और मृत हो जाते हैं। ये मृत ज्वालामुखी एक श्रृंखला की रचना करते हैं, जो प्लेट संचलन के अभिलेख हैं।

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प्लेट सीमाएं (Plate Boundaries):
प्लेट सीमाएं पृथ्वी के सर्वाधिक विशिष्ट संरचनात्मक लक्षण हैं। प्लेट सीमाओं की पहचान कठिन नहीं है। ये प्रमुख स्थलाकृतिक लक्षणों से चिन्हित हैं। स्थलमण्डल, सात मुख्य प्लेटों और अनेक छोटी उप-प्लेटों में विभक्त है। मुख्य प्लेटों की बहिर्रेखा नवीन पर्वत तंत्रों, महासागरीय कटकों तथा खाइयों से बनी है। ये प्लेटें निम्नलिखित हैं

  1. प्रशान्त प्लेट;
  2. यूरेशियन प्लेट;
  3. इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट;
  4. अफ्रीकन प्लेट;
  5. उत्तरी अमेरिकन प्लेट;
  6. दक्षिण अमेरिकन प्लेट;
  7. अंटार्कटिक प्लेट;

मुख्य विशेषताएं:

  1. इनमें से सर्वाधिक नवीन प्रशान्त प्लेट है जो लगभग पूरी तरह महासागरीय पटल से बनी है और भूपृष्ठ के 20 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है।
  2. कोई भी प्लेट केवल महाद्वीपीय पटल से निर्मित नहीं है। (3) प्लेटों की मोटाई में अन्तर महासागरों के नीचे 70 कि०मी० से लेकर महाद्वीपों के नीचे 150 कि०मी०
  3. तक है।
  4. प्लेट स्थाई लक्षण नहीं है। इनकी आकृति तथा आकार में अन्तर होता रहता है। वे प्लेटें जो महाद्वीपीय पटल से नहीं बनी हैं, प्रविष्ठन का शिकार हो सकती हैं।
  5. कोई भी प्लेट टूट सकती है अथवा अन्य प्लेट के साथ जुड़ सकती है। (6) प्रत्येक विवर्तनिक प्लेट दृढ़ है और एक इकाई के रूप में संचलन करती है।
  6. लगभग सभी विवर्तनिक क्रियाएं प्लेट सीमाओं पर होती हैं, यही कारण है कि भू-वैज्ञानिक तथा भूगोलवेत्ता प्लेट सीमाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं।

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प्रश्न 2.
भारतीय प्लेट की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय, प्लेट का संचलन (Movement of the Indian Plate):
इंडियन प्लेट में प्रायद्वीप भारत और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपीय भाग सम्मिलित हैं। हिमालय पर्वत श्रेणियों के साथ-साथ पाया जाने वाला प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone), इसकी उत्तरी सीमा निर्धारित करता है जो महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण (Continentcontinent convergence) के रूप में हैं। (अर्थात् दो महाद्वीप प्लेटों की सीमा है) यह पूर्व दिशा में म्यांमार के राकिन्योमा पर्वत से होते हुए एक चाप के रूप में जावा खाई तक फैला हुआ है। इसकी पूर्वी सीमा एक विस्तारित तल (Spreading site) है, जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्व में दक्षिणी पश्चिमी प्रशान्त महासागर में महासागरीय कटक के रूप में है।

इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर श्रेणियों का अनुसरण करती है। यह आगे मकरान तट के साथ-साथ होती हुई दक्षिण-पूर्वी चागोस द्वीप समूह (Chagos archipelago) के साथ-साथ लाल सागर द्रोणी (जो विस्तारण तल है) में जा मिलती है। भारतीय तथा आर्कटिक प्लेट की सीमा भी महासागरीय कटक से निर्धारित होती है। जो एक अपसारी सीमा (Divergent boundary) है और यह लगभग पूर्व-पश्चिम दिशा में होती हुई न्यूज़ीलैंड के दक्षिण में विस्तारित तल में मिल जाती है।

हिमालय पर्वत का उत्थान: भारत एक वृहत् द्वीप था, जो ऑस्ट्रेलियाई तट से दूर एक विशाल महासागर में स्थित था।

  1. लगभग 22.5 करोड़ वर्ष पहले तक टेथीस सागर इसे एशिया महाद्वीप से अलग करता था।
  2. ऐसा माना जाता है कि लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले, जब पैंजिया विभक्त हुआ तब भारत ने उत्तर दिशा की ओर खिसकना आरम्भ किया।
  3. लगभग 4 से 5 करोड़ वर्ष पहले भारत एशिया से टकराया व परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत का उत्थान हुआ।
  4. 7.1 करोड़ वर्ष पहले से आज तक की भारत की स्थिति आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पहले यह उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50″ दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। इन दो प्रमुख प्लेटों को टिथीस सागर अलग करता था और तिब्बतीय खंड, एशियाई स्थलखण्ड के करीब था।
  5. इंडियन प्लेट के एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना घटी-वह थी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण होना। ऐसा लगभग 6 करोड़ वर्ष पहले आरम्भ हुआ और एक लम्बे समय तक यह जारी रहा । याद रहे कि यह उपमहाद्वीप तब भी भूमध्यरेखा के निकट था।
  6.  लगभग 4 करोड़ वर्ष पहले और इसके पश्चात् हिमालय की उत्पत्ति आरम्भ हुई। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रक्रिया अभी भी जारी है और हिमालय की ऊँचाई अब भी बढ़ रही है।

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JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान Textbook Exercise Questions and Answers.

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बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. हिमालय के किस भाग में करेवा मिलते हैं?
(A) उत्तर-पूर्व
(B) पूर्वी
(C), हिमाचल-उत्तराखण्ड
(D) कश्मीर हिमालय।
उत्तर:
(D) कश्मीर हिमालय।

2. लोकटक झील किस राज्य में स्थित है?
(A) केरल
(B) मनीपुर
(C) उत्तराखण्ड
(D) राजस्थान।
उत्तर:
(B) मनीपुर।

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3. अण्डमान द्वीप तथा निकोबार द्वीप को कौन-सी रेखा पृथक् करती है?
(A) 11° चैनल
(B) 10° चैनल
(C) खाड़ी मनार
(D) अण्डमान सागर।
उत्तर:
(B) 10° चैनल।

4. किन पहाड़ियों में दोदा बेटा शिखर है?
(A) नीलगिरि
(B) कार्दमम
(C) अनामलाई
(D) नलामलाई।
उत्तर:
(A) नीलगिरि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1. यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो, तो वह कौन-से तटीय मैदान से होकर जाएगा और क्यों?
उत्तर:
लक्षद्वीप समूह अरब सागर में स्थित है। वहां जाने के लिए मालाबार तटीय मैदान से होकर जाना पड़ता है। लक्षद्वीप केरल तट से केवल 280 कि० मी० दूर है। इसलिए मालाबार तट (केरल तट) इसके निकटतम है।

प्रश्न 2.
भारत में ठण्डा मरुस्थल कहां स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम बताओ।
उत्तर:
जम्मू कश्मीर राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित लद्दाख एक ठण्डा मरुस्थल है, जहां वर्षा बहुत कम है तथा वर्षा हिमपात के रूप में है। यहां कराकोरम, महान् हिमालय-जॉस्कर व लद्दाख पर्वत श्रेणियां हैं।

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प्रश्न 3.
पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टी मात्र है। यहां नर्मदा व तापी प्रमुख नदियां हैं जो अरब सागर में गिरती हैं। इस प्रदेश की तीव्र ढलान है तथा नदियां सागर में गिरने से पहले तलछट बहा कर ले जाती हैं। इसलिए तलछट का निक्षेप नहीं होता। यहां डेल्टा के स्थान पर ज्वार नद मुख की रचना होती है।

प्रश्न 4.
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
अरब सागर के द्वीप समूह

अरब सागर के द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह
(1) यहां लक्षद्वीप तथा मिनिकाय द्वीप प्रमुख द्वीप समूह हैं। (1) यहां अण्डमान-निकोबार द्वीप प्रमुख द्वीप है।
(2) यहां कुल 36 द्वीप हैं। (2) यहां कुल 572 द्वीप हैं।
(3) यहां \(11^{\circ}\)  चैनल द्वीपों को दो भागों में बांटती है। (3) यहां \(10^{\circ}\)  चैनल द्वीपों को दो भागों में बांटती है।
(4) ये द्वीप प्रवाल निक्षेप से बने हैं। (4) ये द्वीप जलमग्न पर्वतों का भाग हैं।
(5) अमीनी द्वीप सबसे बड़ा द्वीप है। (5) बैरन द्वीप भारत का एकमात्र ज्वालामुखी द्वीप है।
(6) दक्षिण में कनानोरे द्वीप है। (6) दक्षिण में भारत का दक्षिणतम बिन्दु इन्दिरा पुआइंट

प्रश्न 5.
नदी घाटी मैदान में पाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलावृत्तियां कौन-सी हैं?
उत्तर:
नदी घाटी मैदान में बालुरोधिका, विसर्प गोखर झीलें तथा गुंफित नदियां पाई जाती हैं।

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प्रश्न 6.
यदि आप बद्रीनाथ से सुंदरवन डैल्टा तक गंगा नदी के साथ-साथ चलते हैं, तो आपके रास्ते में कौन-सी स्थलाकृतियां आएंगी?
उत्तर:
गंगा नदी का उद्गम बद्रीनाथ के निकट है तथा सुंदरवन में गंगा नदी खाड़ी बंगाल में गिरती है। इसके मार्ग में भाभर का मैदान, तराई का मैदान, बांगर तथा खादर प्रदेश, गंगा का ऊपरी मैदान, मध्यवर्ती मैदान तथा डैल्टा पाए जाते हैं।
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प्रश्न 7.
हिमालय पर्वत पर पश्चिम से पूर्व की ओर स्थित शिखर बताओ।
उत्तर:
पश्चिम से पूर्व की ओर प्रमुख हिमालय शिखर है

  1. नांगा पर्वत
  2. K,2
  3. कामेट
  4. नन्दा देवी
  5. धौलागिरी
  6. अन्नापूर्णा
  7. मकालू
  8. माऊंट एवरेस्ट
  9. कंचनजंगा
  10. नामचा बरवा।

 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान  JAC Class 11 Geography Notes

→ भारत-विषमताओं का देश (Country of Contrasts): भारत विषमताओं का देश है। यहां धरातल तथा जल-प्रवाह में अनेक विषमताएं मिलती हैं।

→ धरातलीय विभाग (Physical Divisions): वृहद् स्तर पर भारत को तीन भागों में बाँटा जाता है

  • उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  • उत्तरी मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार।

→ भू-संरचना (Geology): वर्तमान भू-रचना एक लम्बे समय में विकसित हुई है। वर्तमान प्रायद्वीपीय पठार भारतीय टैक्टोनिक प्लेट पर स्थित है।

→ हिमालय पर्वत (Himalayan Mountains): यह युवा नवीन मोड़दार पर्वत हैं। आज से 270 मिलियन वर्ष पहले मैसोज़ोयिक युग में यहां टैथीज़ सागर स्थित था। इस सागर के निक्षेपों में मोड़ पड़ने से टरशरी युग में ,
हिमालय पर्वत बने। हिमालय पर्वत अब भी ऊंचे उठ रहे हैं।

→ उत्तरी भारतीय मैदान-यह मैदान हिमालय पर्वत के साथ-साथ एक अग्र गर्त में तलछट के निक्षेप से बना है। !

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

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बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple choice questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत के विस्तार के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
(A) 8°4 N-35° 5’N
(B) 8°4′ N-37° 6’N
(C) 8°4′ N-37° 5’N
(D) 6°45′ N-35° 6’N
उत्तर:
(B) 8°4N-37°6’N

2. भारत के साथ किस देश की स्थल सीमा सबसे लम्बी है?
(A) बांग्ला देश
(B) पाकिस्तान
(C) चीन
(D) म्यानमार।
उत्तर:
(A) बांग्ला देश।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

3. कौन-सा देश भारत से अधिक बड़ा है?
(A) चीन
(B) फ्रांस
(C) मिस्त्र
(D) ईरान।
उत्तर:
(A) चीन।

4. भारत की प्रामाणिक देशांतर रेखा कौन-सी है?
(A) 60° 30’E
(B) 75° 30’E
(C) 82° 30’E
(D) 90° 30’E
उत्तर:
(C) 82° 30’E.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों का लगभग 30 शब्दों में उत्तर दो
प्रश्न 1.
क्या भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता है? यदि हां तो आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है जिसका देशान्तरीय विस्तार 29° है। (68° से 97° पूर्व)। भारत में केवल एक ही प्रामाणिक रेखा (\(82 \frac{1}{2}^{\circ}\)पूर्व) है। यह भारत के मध्य में से गुज़रती है। कई देशों में एक से अधिक प्रामाणिक देशान्तर रेखाएं हैं क्योंकि उनका विस्तार अधिक है।

प्रायः 15° अक्षांश के पश्चात् एक प्रामाणिक देशान्तर रेखा होती है। भारत में विस्तार की दृष्टि से दो प्रामाणिक देशान्तर रेखाएं होनी चाहिए। भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी भागों में दो घण्टे के समय का अन्तर है। यदि 75° देशान्तर (पश्चिमी भाग) में हो तथा 90° देशान्तर (पूर्वी भाग) में हो तो यह समय का अन्तर कम हो सकता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 2.
भारत की लम्बी तट रेखा के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:

  1. भारत की लम्बी तट रेखा उत्तम तथा सुरक्षित बन्दरगाहें प्रदान करती है।
  2. लम्बी तट रेखा के कारण भारत का मत्स्य क्षेत्र विशाल है।
  3. लम्बी तट रेखा के कारण भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक है।
  4. इस लम्बी तट रेखा (7517 कि० मी० लम्बी) पर विभिन्न प्रकार के संसाधन मिलते हैं।
  5. इस तट रेखा पर कई बन्दरगाहों पर जलयान निर्माण केन्द्र स्थित हैं।

प्रश्न 3.
भारत का देशान्तरीय फैलाव इसके लिए किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
भारत का पूर्व-पश्चिम देशान्तरीय विस्तार 30° है। इसके प्रभाव से भारत के पूर्वी भाग (अरुणाचल प्रदेश) तथा पश्चिमी भाग (गुजरात) के समय में दो घण्टे (30° x 4 = 120 मिनट) का अन्तर मिलता है। इससे भारत की विशालता का पता चलता है। इतने विशाल क्षेत्र के लिए भारत में एक मानक रेखां \(\)प\frac{1}{2}^{\circ}\(\)प E ली जाती है तथा भारत में पूर्वी-पश्चिमी भागों के समय में अधिक अन्तर नहीं होता।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 4.
जबकि पूर्व में नागालैंड में सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, फिर कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियां एक ही समय क्यों दिखाती हैं?
उत्तर:
किसी स्थान का स्थानिक समय सूर्य की ऊंचाई से सम्बन्धित है। दोपहर के समय वहां की घडियों में 12 बजे का समय होता है। परन्तु प्रामाणिक समय एक मानक देशान्तरीय रेखा के समय से लिया जाता है जो सारे देश में समान होता है। यह समय इलाहाबाद के निकट 82°E देशान्तर से लिया जाता है। यद्यपि कोहिमा तथा नई दिल्ली में सूर्य की ऊंचाई भिन्न होती है तथा स्थानिक समय (Local Time) भिन्न होता है, परन्तु इन दोनों नगरों का प्रामाणिक समय एक समान होता है तथा घड़ियों में एक ही समय होता है।

(ग) क्रिया कलाप
(Project Work)

प्रश्न 1.
एक ग्राफ पेपर पर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, गोवा, केरल तथा ह रियाणा के जिलों की संख्या को आलेखित करें। क्या जिलों की संख्या का राज्यों के क्षेत्रफल से कोई सम्बन्ध है?
उत्तर:
क्रम सं०
राज्य जिलों की संख्या क्षेत्रफल (वर्ग कि० मी०) मध्य प्रदेश3,08,000 कर्नाटक

राज्य ज़िलों की संख्या क्षेत्रफल ( वर्ग कि० मी०)
1. मध्य प्रदेश 45 1,91,791
2. कर्नाटक 28 22,429
3. मेघालय 7 3,702
4. गोवा 2 38,863
5. केरल 14 44,212
6. हरियाणा 19 3,08,000

जिन राज्यों के जिलों की संख्या अधिक है वहां कुल क्षेत्रफल अधिक है, तथा प्रत्येक जिले का औसत क्षेत्रफल अधिक है। परन्तु जिन राज्यों में जिलों की संख्या कम है वहां क्षेत्रफल भी कम है।

प्रश्न 2.
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा तथा राजस्थान में कौनसा सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला तथा कौन-सा न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है?
उत्तर:
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 9

प्रश्न 3.
तटीय सीमाओं से संलग्न राज्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर:

  1. पश्चिमी तट पर स्थित राज्य-गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल।
  2. पूर्वी तट पर स्थित राज्य-तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 4.
पश्चिम से पूर्व की ओर स्थलीय सीमा वाले राज्यों का क्रम तैयार करें।
उत्तर:
राजस्थान, पंजाब, जम्मू-कश्मीर (केन्द्र शासित), लद्दाख (केन्द्र शासित), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, सिक्किम, मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिज़ोरम। इस प्रकार देश में 20 राज्यों की स्थलीय सीमाएं हैं। जिसमें दो केन्द्र शासित राज्य हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 5.
उन केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों की सूची बनाइए जिनकी स्थिति तटवर्ती है।
उत्तर:

  1. दमन-दीव
  2. दादर-नगर हवेली
  3. लक्षद्वीप
  4. पुड्डूचेरी
  5. अण्डमान निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रफल और जनसंख्या में अन्तर की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:

प्रदेश क्षेत्रफल (वर्ग कि० मी०) जनसंख्या जनसंख्या घनत्व व्यक्ति प्रति व० कि० मी०
1. दिल्ली 1483 1,67,53,235 11,297
2. अण्डमान निकोबार 8249 3,79,944 46

दिल्ली राजधानी क्षेत्र में जनसंख्या अण्डमान निकोबार की तुलना में लगभग 44.6 गुणा अधिक है तथा जनसंख्या घनत्व 245 गुणा अधिक है। परन्तु अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में दिल्ली की तुलना में क्षेत्रफल 6 गुणा अधिक है।

प्रश्न 7.
एक ग्राफ पेपर पर दंड आरेख द्वारा केन्द्र शासित क्षेत्रों के क्षेत्रफल व जनसंख्या को आलेखित कीजिए।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 12

भारत – स्थिति  JAC Class 11 Geography Notes

→ स्थिति (Location): भारतीय उपमहाद्वीप उत्तरी गोलार्द्ध के उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित है। यह एक स्वतन्त्र धरातलीय भू-भाग है तथा एशिया की मुख्य भूमि से अलग होता है। उत्तर में पर्वतीय दीवार इसे विशेष चरित्र प्रदान करती है।

→ देश (Countries): भारतीय उप-महाद्वीप में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका तथा मालदीव शामिल हैं। इन्हें SAARC देश कहते हैं।

→ विस्तार (Extent): भारतीय उपमहाद्वीप 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर अक्षांश तथा 68° 7′ पूर्व से 97° 25′ पूर्व देशान्तर तक फैला हुआ है। कर्क रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है।

→ आकार (Size): भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर, पाकिस्तान-7,96,095 वर्ग किलोमीटर तथा बांग्लादेश का क्षेत्रफल 1,48, 393 वर्ग किलोमीटर है। भारत विश्व में सातवां बड़ा देश है। यह त्रिकोणी |
आकार का देश है। इसकी पूर्व से पश्चिम तक 2933 किलोमीटर लम्बाई तथा उत्तर-दक्षिण तक 3214। किलोमीटर लम्बाई है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

→ प्रामाणिक समय (Standard Time): 82° पूर्व देशान्तर इलाहाबाद तथा मिर्जापुर नगरों के मध्य से गुजरती है जहां से भारत का प्रामाणिक समय मापा जाता है। पाकिस्तान में 75° पूर्व तथा बांग्लादेश में 90° , पूर्व देशान्तर से प्रामाणिक समय मापा जाता है। भारत का प्रामाणिक समय ब्रिटेन से 5- घण्टे आगे है। यह समय | पाकिस्तान से – घण्टे आगे तथा बांग्लादेश से – घण्टे पीछे है।

→ सीमाएं (Frontiers): कन्याकुमारी (8° 04′ उत्तर) भारतीय स्थल भूमि का सबसे दक्षिणी छोर है। इन्दिरा प्वाईंट (6° 04′ उत्तर) (निकोबार द्वीप) भारत का सबसे दक्षिणी छोर है। भारत की स्थल सीमा 15,200 | किलोमीटर तथा तट रेखा 7,516 किलोमीटर लम्बी है। उत्तर में मैक्मोहन लाइन भारत तथा चीन के मध्य सीमा। बनाती है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में पाक सट्रेट (भारत तथा श्रीलंका के मध्य) तथा पश्चिम में। राजस्थान इसके पड़ोसी देशों के साथ सीमा बनाता है।

→ हिन्द महासागर (Indian Ocean): भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर 80° पूर्व उत्तर देशांतर में कन्याकुमारी के साथ स्थित है। भारत हिन्द महासागर के मध्य केन्द्रीय स्थिति रखता है। भारत का दक्षिण-पश्चिम एशिया, अफ्रीका, पूर्वी एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका से स्वेज नहर द्वारा सम्पर्क स्थापित है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 1
→ राजनीतिक विभाग (Political Division): भारत में 28 राज्य तथा 9 केन्द्र प्रशासित प्रदेश हैं। राजस्थान । सबसे बड़ा राज्य तथा गोआ सबसे छोटा राज्य है। (क्षेत्रफल के आधार पर) 2000 ई० में चार नये राज्यों का निर्माण हुआ-उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 10

केन्द्र प्रशासित प्रदेश

राज्य/ केन्द्र प्रशासित प्रदेश क्षेत्रफल वर्ग किलोमीटर जनसंख्या राजधानी
1.   अण्डमान तथा निकोबार द्वीप 8249 3,79,944 पोर्ट ब्लेयर
2.   चण्डीगढ़ 114 10,54,686 चण्डीगढ़
3.   दादरा तथा नगर हवेली 491 342,853 सिलवासा
4.   दमन तथा दियू 112 2,42,911 दमन
5.   लक्षद्वीप 32 64,429 कावारती
6.   पाण्डिचेरी 480 12,44,464 पाण्डिचेरी
7.   दिल्ली सम्पूर्ण भारत 1,483 1,67,53,235 दिल्ली
8.   जम्मू-कश्मीर 32,87,263 1,21,01,93,422 नई दिल्ली
9.   लद्दाख 125535 12267032 श्रीनगर

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. निम्नलिखित में से पृथ्वी की संरचना का मुख्य स्त्रोत क्या है?
(A) भूकम्पीय तरंगें
(B) ज्वालामुखी
(C) पृथ्वी का तापमान
(D) पृथ्वी का घनत्व।
उत्तर:
भूकम्पीय तरंगें।

2. भू-पृष्ठ का घनत्व बताओ
(A) 17.2
(B) 5.68
(C) 2.75
(D) 5.53.
उत्तर:
(C) 2.75.

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

3. पृथ्वी की अभ्यान्तर परत को क्या कहा जाता है?
(A) सियाल
(B) सीमा
(C) नाइफ
(D) मैंटल।
उत्तर:
(C) नाइफ।

4. अभ्यान्तर में अधिकतम घनत्व का मुख्य कारण क्या है?
(A) अधिक गहराई
(B) अधिक तापमान
(C) तरल पदार्थ
(D) निक्कल तथा लौह धातुएं।
उत्तर:
निक्कल तथा लौह धातुएं।

5. पृथ्वी के भीतरी भाग में तापमान की वृद्धि की औसत दर क्या है?
(A) 1°C प्रति कि०मी०
(B) 12°C प्रति कि० मी०
(C) 1°C प्रति 30 मीटर
(D) 10°C प्रति 100 मीटर।
उत्तर:
(C) 1°C प्रति 30 मीटर।

6. निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य पृथ्वी की आन्तरिक बनावट पर सर्वाधिक प्रकाश डालता है?
(A) गहरी खदानों का खोदा जाना
(B) कुओं का खोदा जाना
(C) भूकम्पीय तरंगें
(D) ज्वालामुखी उद्भेदन।
उत्तर:
(C) भूकम्पीय तरंगें।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

7. कौन-सी भूकम्पीय तरंगें पृथ्वी से 2900 किलोमीटर की गहराई के पश्चात् लुप्त हो जाती हैं?
(A) प्राथमिक
(B) गौण
(C) धरातलीय
(D) अनुदैर्ध्य।
उत्तर:
(B) गौण।

8. भूकम्पीय तरंगों को रेखांकित करने वाला यन्त्र
(A) थर्मोग्राफ
(B) सिस्मोग्राफ
(C) हाइग्रोग्राफ
(D) बैरोग्राफ।
उत्तर:
(B) सिस्मोग्राफ।

9. भूपर्पटी में विकसित थरथराहट को कहते हैं
(A) भूसंचरण
(B) पृथ्वी की गति
(C) भूकम्प
(D) पृथ्वी की कामुकता।
उत्तर:
(C) भूकम्प।

10. भूकम्पों के कारण समुद्रों में विकसित विशाल तरंगें होती हैं
(A) समुद्री तरंगें
(B) ज्वारीय तरंगें
(C) सुनामी तरंगें
(D) धरातलीय तरंगें।
उत्तर:
सुनामी तरंगें।

11. पृथ्वी की त्रिज्या कितनी है?
(A) 5370 कि०मी०
(B) 6370 कि०मी०
(C) 7370 कि०मी०
(D) 8370 कि०मी०।
उत्तर:
(B) 6370 कि०मी०।

12. दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खानें कितनी गहरी हैं?
(A) 3-4 कि०मी०
(B) 4-5 कि०मी०
(C) 5-6 कि०मी०
(D) 6-7 कि०मी०
उत्तर:
(A) 3-4 कि०मी०

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

13. सबसे गहरा प्रवेधन कितना गहरा है?
(A) 10 कि०मी०
(B) 11 कि०मी०
(C) 12 कि०मी०
(D) 13 कि०मी०
उत्तर:
(C) 12 कि०मी०

14. प्राकृतिक भूकम्प किस भू-भाग में आते हैं?
(A) स्थल खण्ड
(B) मैंटल
(C) नाईफ्
(D) क्रोड ।
उत्तर:
(A) स्थल खण्ड

15.’P’ व ‘S’ तरंगों के छाया क्षेत्र का अधि केन्द्र से विस्तार है ।
(A) 105-145°
(B) 115-1550
(C) 125-165°
(D) 135-175°
उत्तर:
(A) 105-145°

16. भूकंप की तीव्रता का माप किस वैज्ञानिक के नाम पर है?
(A) कान्ट
(B) लाप्लेस
(C) मरकैली
(D) ऑटो शिमिड।
उत्तर:
(C) मरकैली

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगों के प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. प्राथमिक तरंगें
  2. माध्यमिक तरंगें
  3. धरातलीय तरंगें ।

प्रश्न 2.
धात्विक क्रोड के दो प्रमुख पदार्थ बताओ ।
उत्तर:
निकिल, लोहा

प्रश्न 3.
पृथ्वी की तीन परतों के नाम लिखो
उतर:
सियाल, सीमा, नाइफ

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 4.
पृथ्वी की संरचना की जानकारी के प्रत्यक्ष साधन बताओ ।
उत्तर:
खानें, कुएं, छिद्र

प्रश्न 5.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तापमान वृद्धि की औसत दर क्या है?
उत्तर:
1°C प्रति 32 मीटर।

प्रश्न 6.
पृथ्वी की संरचना की जानकारी प्रदान करने वाले परोक्ष साधन कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. दबाव
  3. परतों का घनत्व
  4. भूकम्पीय तरंगें
  5. उल्काएं।

प्रश्न 7.
भूकम्पीय तरंगों के अध्ययन करने वाले यन्त्र का क्या नाम है?
उत्तर:
सीस्मोग्राफ (Seismograph)।

प्रश्न 8. कितनी गहराई के पश्चात् ‘S’ तरंगें लुप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
2900km.

प्रश्न 9.
कौन-सी तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं?
उत्तर:
अनुप्रस्थ तरंगें।

प्रश्न 10.
किन प्रमाणों से पता चलता है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग का तापमान अधिक है?
उत्तर:

  1. ज्वालामुखी
  2. गर्म जल के झरने
  3. खानों से।

प्रश्न 11.
सियाल (Sial) किन दो शब्दों के संयोग से बना है?
उत्तर:
सियाल शब्द सिलिका तथा एल्यूमीनियम (Si+Al) के संयोग से बना है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 12.
सीमा (Sima) किन दो शब्दों के संयोग से बना है?
उत्तर:
सीमा शब्द सिलिका तथा मैग्नीशियम (Si+Mg) के संयोग से बना है।

प्रश्न 13.
निफे (Nife) शब्द किन दो शब्दों के संयोग से बना है?
उत्तर:
निफे शब्द निकिल तथा फैरस (Ni+Fe) के संयोग से बना है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी की केन्द्रीय परत को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अभ्यान्तर या क्रोड या गुरुमण्डल।

प्रश्न 15.
पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?
उत्तर:
5.53.

प्रश्न 16.
सबसे धीमी गति वाली तरंगें कौन-सी हैं?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें।

प्रश्न 17.
पृथ्वी के अभ्यान्तर का घनत्व कितना है?
उत्तर:
13.

प्रश्न 18.
अभ्यान्तर का घनत्व सबसे अधिक क्यों है?
उत्तर:
अभ्यान्तर में निकिल तथा लोहे के कारण।

प्रश्न 19.
Volcano ज्वाला शब्द यूनानी भाषा के किस शब्द से बना है?
उत्तर:
यूनानी शब्द ‘Vulan’ का अर्थ-पाताल देवता है।

प्रश्न 20.
पृथ्वी के अन्दर पिघले पदार्थ को क्या कहते हैं?
उत्तर:
मैग्मा।

प्रश्न 21.
जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल से बाहर आ जाता है तो उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
लावा।

प्रश्न 22.
ज्वालामुखी के तीन प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त ज्वालामुखी
  3. मृत ज्वालामुखी।

प्रश्न 23.
भारत में सक्रिय ज्वालामुखी का नाम बताएं।
उत्तर:
अण्डमान द्वीप के निकट बैरन द्वीप।

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प्रश्न 24.
ज्वालामुखी शंकु किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी के मुख से निकले पदार्थ मुख के आस-पास जमा हो जाते हैं। धीरे-धीरे ये शंकु का रूप धारण कर लेते हैं। इन्हें ज्वालामुखी शंकु कहते हैं।

प्रश्न 25.
क्रेटर किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी के केन्द्र में कटोरे के समान या कीपाकार गर्त को क्रेटर कहते हैं।

प्रश्न 26.
काल्डेरा किसे कहते हैं?
उत्तर:
विशाल क्रेटर को काल्डेरा कहते हैं।

प्रश्न 27.
भूकम्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी का अचानक हिलना।

प्रश्न 28.
भूकम्प आने के तीन कारण लिखो।
उत्तर:

  1. ज्वालामुखी विस्फोट
  2. विवर्तनिक कारण
  3. लचक शक्ति।

प्रश्न 29.
उद्गम केन्द्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के अन्दर जहां भूकम्प उत्पन्न होता है, उसे उद्गम केन्द्र कहते हैं।

प्रश्न 30.
अधिकेन्द्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूकम्प केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल पर स्थिर बिन्दु या स्थान को अधिकेन्द्र कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 31.
आग का गोला (Ring of fire) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
परिप्रशान्त महासागरीय पेटी।

प्रश्न 32.
संसार की तीन प्रमुख ज्वालामुखी पेटियों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. प्रशांत महासागरीय पेटी
  2. अन्ध महासागरीय पेटी
  3. मध्य महाद्वीपीय पेटी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सियाल (Sial) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है। इसमें सिलिका तथा एल्यूमीनियम के अंश अधिक मात्रा में हैं। इन दोनों धातुओं के संयोग के कारण इस परत को सियाल (Sial = Silica + Aluminium) कहते हैं। इस परत की औसत गहराई 60 km. है। इस परत का घनत्व 2.75 है। इस परत से महाद्वीपों का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 2.
सीमा (Sima ) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सियाल से निचली परत को सीमा कहा जाता है। इस परत से सिलिका तथा मैग्नीशियम धातुएं अधिक मात्रा में मिलती हैं। इसलिए इस परत को सीमा (Sima = Silica + Magnesium) कहा जाता है। इस परत की मोटाई 2800 km है। इसका औसत घनत्व 4.75 है। महासागरीय तल इसी परत से बना हुआ है।

प्रश्न 3.
निफे (Nife) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह पृथ्वी की सबसे निचली तथा केन्द्रीय परत है। यह सबसे भारी परत है जिसका घनत्व 13 है। इसमें निकिल तथा फैरस (लोहा) धातुएं अधिक हैं। इसलिए इसे (Nife = Nickle + Ferrous) कहा जाता है। इस परत की मोटाई 3500 km. 1

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 4.
पृथ्वी की तीन मौलिक परतों के नाम, गहराई, विस्तार तथा घनत्व बताओ।
उत्तर:
पृथ्वी का निर्माण करने वाली तीन मूल परतें हैं जिनकी रचना भिन्न घनत्व वाले पदार्थों से हुई है

  1. भू-पृष्ठ (Crust),
  2. मैण्टल (Mantle, )
  3. क्रोड (Core)
परत क्षेत्र मोटाई कुल का \% घनत्व
(1) भू-पृष्ठ सियाल 60 कि॰ मी० 0.5 2.75
(2) मैण्टल सीमा 2840 कि॰ मी० 16.5 5.68
(3) क्रोड नाइफ 3500 कि॰ मी० 83.0 17.2

प्रश्न 5.
सिस्मोग्राफ किसे कहते हैं? इसका प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता है?
उत्तर:
सिस्मोग्राफ (Seismograph) एक यन्त्र है जिसके द्वारा भूकम्पीय तरंगें तथा तीव्रता मापी जाती है। इस यन्त्र में लगी एक सूई द्वारा ग्राफ पेपर पर भूकम्पीय तरंगों को रेखांकित किया जाता है। इस यन्त्र द्वारा भूकम्प का उद्गम (Focus), भूकम्पीय तरंगों की गति, मार्ग तथा तीव्रता का ज्ञान होता है।

प्रश्न 6.
भूकम्पीय तरंगों के मुख्य प्रकार बताओ। कौन-सी तरंगें धीमी गति वाली हैं तथा कौन-सी तरंगें तेज़ गति वाली हैं?

  1. प्राथमिक या अनुदैर्ध्य तरंगें।
  2. गौण या अनुप्रस्थ तरंगें
  3. धरातलीय या लम्बी तरंगें।

धरातलीय तरंगें सब से धीमी गति से चलती हैं। प्राथमिक तरंगें सब से तेज़ गति से चलती हैं।

प्रश्न 7.
गुरुत्वाकर्षण तथा चुम्बकीय क्षेत्र किस प्रकार भूकम्प सम्बन्धी सूचना देते हैं?
उत्तर:
अन्य अप्रत्यक्ष स्रोतों में गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र व भूकम्प सम्बन्धी क्रियाएं शामिल हैं। पृथ्वी के धरातल पर भी विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं होता है। यह (गुरुत्वाकर्षण बल) ध्रुवों पर अधिक एवं भूमध्यरेखा पर कम होता है। पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर कम और भूमध्य रेखा पर अधिक होता है । गुरुत्व का मान पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार भी बदलता है । पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण भी इस भिन्नता को प्रभावित करता है।

अलग-अलग स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता अनेक अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है। इस भिन्नता को गुरुत्व विसंगति (Gravity anomaly ) कहा जाता है गुरुत्व विसंगति हमें भूपर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है। चुम्बकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी में चुम्बकीय पदार्थ के वितरण की जानकारी देते हैं । भूकम्पीय गतिविधियां भी पृथ्वी की आन्तरिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है ।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 8.
उल्काएं पृथ्वी की आन्तरिक बनावट के विषय में जानकारी देने में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर:
कभी-कभी जलते हुए पदार्थ आकाश से पृथ्वी की ओर गिरते दिखाई देते हैं। इन्हें उल्का (Meteorites) कहते हैं। यह सौर मण्डल का एक भाग है। इनके अध्ययन से पता चलता है कि इनके निर्माण में लोहा और निकिल की प्रधानता है। पृथ्वी की रचना उल्काओं से मिलती-जुलती है तथा पृथ्वी का आंतरिक क्रोड भी भारी पदार्थों (लोहा + निकिल ) से बना हुआ है।

प्रश्न 9.
गुरुमण्डल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गुरुमण्डल (Barysphere):
पृथ्वी के केन्द्रीय भाग या आन्तरिक क्रोड को गुरुमण्डल कहते हैं। इसकी औसत गहराई 4980 से 6400 मी० है। यह अत्यधिक भारयुक्त खनिज पदार्थों से बना हुआ है। इसका औसत घनत्व 13 से अधिक है। इसमें लोहा तथा निकिल पदार्थों की अधिकता है। इस भाग को अभ्यान्तर (Core) भी कहा जाता है।

प्रश्न 10.
ज्वालामुखी किसे कहते हैं? ज्वालामुखी के विभिन्न भाग बताओ।
उत्तर:
ज्वालामुखी (Volcano):
ज्वालामुखी क्रिया एक अन्तर्जात क्रिया है जो भू-गर्भ से सम्बन्धित है। ज्वालामुखी धरातल पर एक गहरा प्राकृतिक छिद्र है जिससे भू-गर्भ से गर्म गैसें, लावा, तरल व ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं। सबसे पहले एक छिद्र की रचना होती है जिसे ज्वालामुखी (Volcano) कहते हैं। इस छिद्र से निकलने वाले लावा पदार्थों के चारों ओर फैलने तथा ठण्डा होकर ठोस होने से एक उच्च भूमि का निर्माण होता है जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। एक लम्बे समय में कई बार निकासन, शीतलन तथा ठोसीकरण की क्रिया से ज्वालामुखी का निर्माण होता है।

ज्वालामुखी के भाग (Parts of a Volcano):

  1. ज्वालामुखी निकास-एक छेद जिस से लावा का निष्कासन होता है ज्वालामुखी निकास कहलाता है।
  2. विवर-ज्वालामुखी विकास के चारों ओर एक तश्तरीनुमा गर्त को विवर कहते हैं।
  3. कैल्डेरा–विस्फोट से बने खड़ी दीवारों वाले कंड को कैलडेरा कहते हैं।

प्रश्न 11.
भूकम्पों के विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर भूकम्प निम्नलिखित प्रकार के हैं

  1. विवर्तनिक भूकम्प-सामान्यतः विवर्तनिक (Tectonic) भूकम्प ही अधिक आते हैं। ये भूकम्प भ्रंश तल के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण उत्पन्न होते हैं।
  2. ज्वालामुखी भूकम्प-एक विशिष्ट वर्ग के विवर्तनिक भूकम्प को ही ज्वालामुखीजन्य (Volcanic) भूकम्प समझा जाता है। ये भूकम्प अधिकांशतः सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं।
  3. नियात भूकम्प-खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यधिक खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है, जिससे हल्के झटके महसूस किये जाते हैं। इन्हें नियात (Collapse) भूकम्प कहा जाता है।
  4. विस्फोट भूकम्प-कभी-कभी परमाणु व रासायनिक विस्फोट से भी भूमि में कम्पन होती है। इस तरह के झटकों को विस्फोट (Explosion) भूकम्प कहते हैं।
  5. बांध जनित भूकम्प-जो भूकम्प बड़े बांध वाले क्षेत्रों में आते हैं, उन्हें बांध जनित (Reservoir induced) भूकम्प कहा जाता है।

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प्रश्न 12.
सुनामी किसे कहते हैं? इनके विनाशकारी प्रभाव की एक उदाहरण दो।
उत्तर:
सुनामी (Tsunami):
कई बार भूकम्प के कारण सागरीय लहरें बहुत ऊंची उठ जाती हैं। जापान में इन्हें सुनामी कहते हैं। ये तूफानी लहरें तटीय प्रदेशों में जान-माल की हानि करती हैं। सन् 1883 में क्राकटोआ विस्फोट से जो भूकम्प आया जिससे 15 मीटर ऊंची लहरें उठीं तथा पश्चिमी जावा में 36,000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। 26 दिसम्बर, 2004 को इण्डोनेशिया के निकट केन्द्रित भूकम्प से हिन्दमहासागर में 30 मीटर ऊंची सुनामी लहरों से लगभग 3 लाख व्यक्तियों की जानें गईं। इण्डोनेशिया, थाइलैंड, अण्डमान द्वीप, तमिलनाडु तट तथा श्रीलंका के तटीय भागों में प्रलय समान तबाही हुई।

प्रश्न 13.
दुर्बलता मण्डल क्या है?
उत्तर:
दुर्बलता मण्डल (Asthenosphere) ऊपरी मैंटल परत का एक भाग है। यह 650 कि० मी० गहरा है। यह परत ठोस तथा लचीले गुट रखती है। इस परत का अनुमान प्रसिद्ध भूकम्प वैज्ञानिक गुट्नबर्ग ने लगाया था। यहां भूकम्पीय लहरों की गति कम होती है। Asthenosphere का अर्थ है दुर्बलता।

प्रश्न 14.
पृथ्वी के धरातल का विन्यास किन प्रक्रियाओं का परिणाम है?
उत्तर:
पृथ्वी पर भू-आकृतियों का विकास बहिर्जात एवं अन्तर्जात क्रियाओं का परिणाम है। दोनों प्रक्रियाएं निरन्तर कार्य करती हैं तथा भू-आकृतियों को जन्म देती हैं।

प्रश्न 15.
पृथ्वी की संरचना की जानकारी के प्रत्यक्ष साधनों के नाम लिखो।
उत्तर:
पृथ्वी की संरचना की जानकारी के प्रत्यक्ष साधन निम्नलिखित है

  1. धरातलीय चट्टानें : धरातलीय चट्टानें सुगमता से प्राप्त होती हैं तथा इन से भू-गर्भ की जानकारी मिलती है।
  2. खनन क्षेत्र : दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खानों की गहराई 3-4 किलोमीटर तक है जहां तक जाना सम्भव है।
  3. विभिन्न परियोजनाएं : गहरे समुद्र में गहराई से पदार्थ प्राप्त करने की योजनाएं भी प्रत्यक्ष साधन हैं।
  4. ज्वालामुखी उद्गार : ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है तो पृथ्वी की संरचना की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 16.
उन दो वैज्ञानिक परियोजनाओं का वर्णन करो जिनसे पृथ्वी के भूगर्भ की जानकारी प्राप्त होगी।
उत्तर:
पृथ्वी के वैज्ञानिक ऐसी दो परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।

  1. गहरे समुद्र में प्रवेश परियोजना (Deep ocean drilling project).
  2. समन्नित महासागरीय परिवेधन परियोजना (Integrated ocean drilling project) आज तक सबसे गहरा प्रवेधक (Drill) आर्कटिक महासागर के कोला (Kola) क्षेत्र में 12km की गहराई तक किया गया है।

प्रश्न 17.
भूकम्प की माप किस पैमाने पर की जाती है?
उत्तर:
भूकम्पों की माप-भूकम्पीय घटनाओं का मापन भूकम्पीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकम्पीय तीव्रता की मापनी ‘रिक्टर स्केल’ (Richter scale) के नाम से जानी जाती है। भूकम्पीय तीव्रता भूकम्प के दौरान ऊर्जा विमोचन से सम्बन्धित है। इस मापनी के अनुसार भूकम्प की तीव्रता 0 से 10 तक होती है। तीव्रता गहनता (Intensity scale) ‘हानि की तीव्रता’ मापनी इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली (Mercalli) के नाम पर है। यह मापनी झटकों से हुई प्रत्यक्ष हानि द्वारा निर्धारित की गई है। इसका गहनता का विस्तार 1 से 12 तक है।

तुलनात्मक प्रश्न
(Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
अनुदैर्ध्य तथा अनुप्रस्थ तरंगों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal waves) अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse waves)
(1) इन तरंगों में कण आगे बढ़ने की दिशा में चलते हैं। (1) ये तरंगें दोलन की दिशा पर समकोण चलती हैं।
(2) इन्हें प्राथामिक तरंगें, ध्वनि तरंगें या P-waves कहा जाता है। (2) इन्हें द्वितीयक या S-waves भी कहा जाता है।
(3) इनकी गति कुछ तेज़ होती है। (3) इसकी गति धीमी होती है।
(4) ये तरल, गैस तथा ठोस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती हैं। (4) ये केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं।
अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal waves) अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse waves)

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प्रश्न 2.
भू-पृष्ठ तथा अभ्यान्तर में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

भू-पृष्ठ (Crust) अभ्यान्तर (Core)
(1) यह पृथ्वी की बाहरी परत है। (1) यह पृथ्वी की भीतरी परत है।
(2) यह सबसे हल्की परत है। (2) यह सब से भारी परत है।
(3) इस परत का औसत घनत्व $2.75$ है। (3) इस परत का औसत घनत्व $17.2$ है।
(4) यह पृथ्वी के $0.5 \%$ भाग को घेरे हुए है। (4) यह पृथ्वी के $83 \%$ भाग को घेरे हुए है।
(5) इसमें सिलिका तथा एल्यूमीनियम की अधिकता है। (5) इसमें निकल तथा लोहे की अधिकता है।

प्रश्न 3.
मैग्मा तथा लावा में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

मैग्मा (Magma) लावा (Lava)
(1) पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघले हुए गर्म घोल को मैग्मा कहते हैं। (1) जब उद्भेदन के कारण मैग्मा धरती के बाहर आकर ठण्डा तथा ठोस रूप धारण कर लेता है तो उसे लावा कहते हैं।
(2) इसमें जल व अन्य गैसें भी मिली होती हैं। (2) इसमें जल व गैसों के अंश नहीं होते।
(3) यह पृथ्वी के भीतरी भागों में ऊपरी मैंटल में उत्पन्न होता है। (Magma is hot Sticky molten material.) (3) यह पृथ्वी के धरातल पर वायुमण्डल के सम्पर्क से ठण्डा व ठोस होता है। (The Solidifed magma is called Lava.)

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का वर्णन करो। इसकी प्रत्येक पर्त का विवरण दो। अपने कथन के पक्ष में विवेकपूर्ण तर्क दो।
अथवा
पृथ्वी की भूपर्पटी, मैंटल व क्रोड का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (Structure of the Earth):
पृथ्वी के भू-गर्भ के बारे में विद्वानों ने अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए हैं। कुछ विद्वानों ने पृथ्वी के भू-गर्भ को ठोस अवस्था माना है तो कुछ ने इसे गैसीय अथवा तरल अवस्था में माना है। भू-गर्भ की जानकारी प्राप्त करने के लिए मनुष्य के पास कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं है। भीतरी भाग में अत्यधिक तापमान एक बड़ी रुकावट है। पृथ्वी की सबसे गहरी खान केवल 4 km गहरी है। इसीलिए भू-गर्भ की जानकारी के सभी साधन अप्रत्यक्ष (Indirect ) हैं तथा केवल अनुमान ही हैं।

पृथ्वी की विभिन्न परतें (Different Layers of the Earth): वान्डर ग्राट (Vander Gracht) के अनुसार, पृथ्वी की आन्तरिक संरचना निम्नलिखित परतों में हुई है:
1. बाहरी सियाल परत ( Sial):
यह पृथ्वी की ऊपरी परत है। इस परत में सिलिका तथा एल्यूमीनियम का अंश अधिक है। यह सबसे हल्की परत है जिसका घनत्व 2.7 के बीच है। इस परत की औसत गहराई 45 कि० मी० तक है। इससे अधिकतर महाद्वीपों का निर्माण हुआ है। (Sial = Silica + Aluminium)

पृथ्वी की परतें (Layers of the Earth)

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2. बाहरी सिलिकेट परत:
भूपर्पटी की इस परत का विस्तार महासागरों के नीचे है। इसमें अधिकतर तलछटी चट्टानें तथा ग्रेनाइट का विस्तार है। इसकी गहराई 45 से 100 कि०मी० तक है। इसका घनत्व 2.75-2.90 तक है

3. आन्तरिक सिलिकेट परत:
सियाल से निचली परत को आन्तरिक सिलिकेट परत कहा जाता है। बाहरी तथा आन्तरिक परत के बीच के अन्तराल को कॉनरैड अन्तराल कहा जाता है। इस परत का घनत्व 3.10 से 4.75 तक है। इसकी गहराई 1700 कि० मी० तक है। इसमें सिलिकेट तथा मैग्नीशियम की अधिकता होती है।

4. सिलिकेट तथा मिश्रित धातु परत (Sima ):
सियाल के नीचे दूसरी मुख्य परत को सीमा कहा जाता है। इसमें सिलिका तथा मैग्नीशियम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। (Sima = Silica + Magnesium) इस परत की मोटाई 1700 कि० मी० से 2900 कि०मी० है तथा इसका घनत्व 4.75 से 5 तक है। सियाल तथा सीमा को पृथक् करने वाले अन्तराल को मोहरोविसिक अन्तराल कहते हैं। इसकी रचना बैसाल्ट चट्टानों से हुई है।

5. धात्विक नाभि (Nife ):
यह सबसे निचली केन्द्रीय तथा भारी परत है। इसमें निकिल तथा फैरस अधिक मात्रा में पाया जाता है (Nife = Nickle + Ferrous) । इस परत का घनत्व 4.75 से 11 तक है। इस परत की गहराई 2900-4980 कि०मी० है। इस परत को बाह्य धात्विक क्रोड भी कहा जाता है।
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6. धात्विक क्रोड (Core):
इस परत में भारी धातुओं की अधिकता है। इसलिए इसका घनत्व 13 से 17 तक है। इसकी गहराई 4980-6400 कि० मी० तक है। इस परत को गुरुमण्डल (Bary sphere) भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
भूकम्प किसे कहते हैं? यह कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:
भूकम्प (Earthquake):
भूपृष्ठ के किसी भी भाग के अचानक हिल जाने को भूकम्प कहते हैं। (An earthquake is a sudden movement on the crust of the earth.) इस प्रकार भूकम्प धरातल का कम्पन तथा दोलन है जिसके द्वारा चट्टानें ऊपर नीचे सरकती हैं। यह एक आकस्मिक एवं अस्थायी गति है। भूकम्प अपने केन्द्र से चारों ओर तरंगों के माध्यम से आगे बढ़ता है। भूकम्प के कारण – प्राचीन काल में लोग भूकम्प को भगवान् का कोप मानते थे, परन्तु वैज्ञानिकों के अनुसार भूकम्प के निम्नलिखित कारण हैं

  1. ज्वालामुखी उद्गार (Volcanic Eruption ): ज्वालामुखी विस्फोट में शक्ति होती है जिससे विस्फोट स्थान के समीपवर्ती क्षेत्र कांप उठते हैं। सन् 1883 में क्राकटोआ विस्फोट से दूर-दूर तक भूकम्प अनुभव किए गए।
  2. विवर्तनिक कारण (Tectonic Causes ): पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण धरातल पर चट्टानों में मोड़ तथा दरारें पड़ जाती हैं । दरारों के सहारे हलचल होती है और भूकम्प आते हैं।
  3. पृथ्वी का सिकुड़ना (Contraction of Earth): तापमान कम होने से पृथ्वी सिकुड़ती है तथा चट्टानों में हलचल के कारण भूकम्प आते हैं ।
  4. लचक शक्ति (Elasticity of Rocks): जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है।
  5. सामान्य कारण (General Causes ): पर्वतीय भागों में भूस्खलन कार्स्ट प्रदेशों में गुफ़ाओं की छतों के धंसने से, तूफानी लहरों के कारण तथा अणु बमों के विस्फोट से साधारण भूकम्प उत्पन्न होते हैं ।

प्रश्न 3.
ज्वालामुखी स्थलाकृति के मुख्य लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
ज्वालामुखी क्रिया (Vulcanicity ) वह क्रिया है जिससे गर्म पदार्थ धरातल के नीचे या बाहर प्रकट होते हैं। ज्वालामुखी पृथ्वी की भीतरी शक्तियों (Internal Forces) में से एक है। ज्वालामुखी के मुख से निकले पदार्थ मुख के आस-पास जमा हो जाते हैं। धीरे-धीरे ये शंकु (Cone) का रूप धारण कर लेते हैं। इन्हें ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cones) कहते हैं। ज्वालामुखी स्थल के रूप
1. क्रेटर (Crater):
ज्वालामुखी के छिद्र के ऊपर गर्त बन जाता है। यह कटोरे के समान या कीपाकार (Funnel Shaped) होता है। क्रेटर में जल भर जाने से झील की रचना होती है। जैसे U.S.A. की क्रेटर लेक (Crater Lake) तथा महाराष्ट्र की लोनार झील।

2. काल्डेरा (Caldera ): विशाल क्रेटर को काल्डेरा कहते हैं। तीव्र विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग उड़ जाता है या क्रेटर के धंस जाने से इसका विस्तार बढ़ जाता है। जापान का काल्डेरा इतना बड़ा है कि इसे “Volcano of a Hundred Villages” कहते हैं।
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3. राख शंकु (Ash Cone): यह कम ऊंचे शंकु होते हैं जिनकी रचना धूल तथा राख से होती है। इनके किनारे अवतल (Concave) ढाल वाले होते हैं। इसे सिंडर शंकु (Cinder Cone) भी कहते हैं।
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4. शील्ड शंकु (Shield Cones): इनका निर्माण पैठिक लावा (Basic Lava) से होता है। पैठिक लावा हल्का तथा पतला होता है। इसमें सिलिका की मात्रा कम होती है। यह लावा दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार लम्बे तथा कम ऊंचे शंकु का निर्माण होता है। जैसे हवाई द्वीप समूह के ज्वालामुखी शंकु।

5. गुम्बद शंकु (Lava Dome ): इनका निर्माण एसिड लावा से होता है। यह लावा काफ़ी गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है। इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। यह मुख के निकट ही जल्दी जम कर गुम्बद बन जाता है। इस प्रकार तीव्र ढाल वाले ऊंचे शंकु का निर्माण होता है। फ्रांस में पाई डी डोम (Puy de dome) 1500 मीटर ऊंचा है।
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6. लावा डॉट (Volcanic Plugs ):
जब शंकु पूरी तरह नष्ट हो जाता है तो नली व छिद्र ठोस लावा से भर जाते हैं। यह नली एक डॉट या प्लग की तरह दिखाई देती है। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में लैसेन चोटी (Lassen Peak)।
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7. मिश्रित शंकु (Composite Cones): ये सबसे बड़े व ऊंचे शंकुओं में गिने जाते हैं। इसका निर्माण लावा, राख तथा दूसरे पदार्थों के बारी-बारी जमा होने से होता है। यह जमाव समानान्तर
परतों में होता है। इटली का स्ट्रॉम्बोली (Stromboli) इसका मुख्य उदाहरण है जिसमें प्रति घण्टा के बाद उद्गार होता है। इसे रूम क्रेटर सागर का प्रकाश स्तम्भ (Light house of the Mediterranean) कहते हैं। जापान का फ्यूजीयामा पर्वत इसका सुन्दर उदाहरण है। ढलानों पर बनने वाले छोटे-छोटे शंकुओं को परजीवी शंकु (Parastic Cone) कहते हैं।
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8. बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र (Flood basalt provinces): ये ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जो बहुत दूर तक बह निकलता है। संसार के कुछ भाग हजारों वर्ग कि० मी० घने लावा प्रवाह से ढके हैं। इनमें लावा मैग्मा प्रवाह क्रमानुसार होता है और कुछ प्रवाह 50 मीटर से भी।

अधिक मोटे हो जाते हैं। कई बार अकेला प्रवाह सैंकड़ों कि० मी० दूर तक फैल जाता है। भारत का दक्कन ट्रैप, जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार पर ज्यादातर भाग पाया जाता है, वृहत् बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि आज की अपेक्षा, आरंभ में एक अधिक वृहत् क्षेत्र इस प्रवाह से ढका था।

9. मध्य-महासागरीय कटक ज्वालामुखी-इन ज्वालामुखियों का उद्गार महासागरों में होता है। मध्य महासागरीय कटक एक श्रृंखला है जो 70,000 कि० मी० से अधिक लंबी है और जो सभी महासागरीय बेसिनों में फैली है। इस कटक के मध्यवर्ती भाग में लगातार उद्गार होता रहता है। अगले अध्याय में हम इसे विस्तारपूर्वक पढ़ेंगे।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

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बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जैव विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) जन्तु
(B) पौधे
(C) पौधे और प्राणी
(D) सभी जीवधारी।
उत्तर:
(D) सभी जीवधारी।

2. असुरक्षित प्रजातियां कौन-सी हैं?
(A) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(B) बाघ व शेर
(C) जिनकी संख्या अत्यधिक हो
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
उत्तर:
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।

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3. राष्ट्रीय पार्क (National parks) और अभ्यारण्य (Sanctuaries) किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं?
(A) मनोरंजन
(B) पालतू जीवों के लिए
(C) शिकार के लिए
(D) संरक्षण के लिए।
उत्तर:
(D) संरक्षण के लिए।

4. जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं
(A) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(B) शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(C) ध्रुवीय क्षेत्र
(D) महासागरीय क्षेत्र।
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र।

5. निम्न में से किस देश में अर्थ सम्मेलन (Earth summit) हुआ था?
(A) यू० के० (U.K.)
(B) ब्राज़ील
(C) मैक्सिको
(D) चीन।
उत्तर:
(B) ब्राज़ील

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव के लिये पौधे किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
पौधे मनुष्य को कई प्रकार की फसलें, प्रोटीन देते हैं यह जनसंख्या के पोषण के लिये एक प्राकृतिक साधन हैं।

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प्रश्न 2.
मानव के लिये जन्तुओं के महत्त्व का संक्षिप्त का वर्णन करो।
उत्तर:
मानव के आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के पदार्थ मिलते हैं। इतिहास के प्रारम्भिक काल में मानव पशु पालन पर निर्भर था। असंख्य पशु प्राकृतिक वनस्पति खा कर मांस तथा डेयरी पदार्थ प्रदान करते हैं, जिससे मानव जनसंख्या का पोषण होता है।

प्रश्न 3.
जैव विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैविक विविधता का अस्तित्व तीन विभिन्न स्तरों पर निम्नलिखित हैं

  1. प्रजातीय विविधता (Species Diversity): जो आकृतिक, शरीर क्रियात्मक तथा आनुवंशिक लक्षणों द्वारा प्रतिबिम्बित होती है।
  2. आनुवांशिक विविधता (Genetic Diversity): जो प्रजाति के भीतर आनुवंशिक या अन्य परिवर्तनों से युक्त होती है।
  3. पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosyotem Diversity): विविधता, जो विभिन्न जैव भौगोलिक क्षेत्रों जैसेझील, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख आदि द्वारा प्रतिबिम्बित होती है। इस पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित रखना एक महान् चुनौती है।

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प्रश्न 4.
जैव विविधता क्या है?
उत्तर:
जैव विविधता दो शब्दों के मेल से बना है (Bio) बायो का अर्थ है जीव तथा (Diversity) का अर्थ है विविधता। साधारण शब्दों में, किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव विविधता कहते हैं।

प्रश्न 5.
हॉट-स्पॉट (Hot Spot) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है उन्हें हॉट-स्पॉट कहते हैं। यहां प्रजातियों की संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 6.
भारत के चार ‘जीवमण्डल निचय’ के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नन्दा देवी,
  2. नीलगिरि,
  3. मानस,
  4. सुन्दरवन।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1.
प्रकृति को बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर:
जैव विविधता का महत्त्व (Importance of biodiversity):
जैव विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार मानव समुदायों ने भी आनुवांशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक, विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। जैव विविधता के चार प्रमुख योगदान हैं

  1. पारिस्थितिक (Ecological)
  2. आर्थिक (Economic)
  3. नैतिक (Ethical)
  4. वैज्ञानिक (Scientific)।

1. जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका (Ecological role of biodiversity):
पारितन्त्र में विभिन्न प्रजातियां कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितन्त्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती है और न ही बनी रह सकती है। अर्थात्, प्रत्येक जीव अपनी ज़रूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।

  1. जीव व प्रजातियां ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं।
  2. कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं।
  3. पारितन्त्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं।
  4. इसके अतिरिक्त प्रजातियां वायुमण्डलीय गैस को स्थिर करती हैं
  5. जलवायु को नियन्त्रित करने में सहायक होती हैं।

ये पारितन्त्रीय क्रियाएं मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएं हैं। पारितन्त्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की सम्भावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजातियों की क्षति से तन्त्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवांशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितन्त्र में पर्यावरण के बदलावों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, जिस पारितन्त्र में जितनी प्रकार की प्रजातियां होंगी, वह पारितन्त्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।

2. जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका (Ecological role of biodiversity):
सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव विविधता एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण भाग ‘ फसलों की विविधता (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव विविधता भी कहा जाता है। जैव विविधता को संसाधनों के उन भण्डारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियां और सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में है। जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी है। साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बंटवारे को लेकर उत्पन्न नये विवादों का भी जनक है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि हैं। कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।

3. जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका (Scientific role of biodiversity):
जैव विविधता इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरम्भ कैसे हुआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा। जीवन कैसे चलता है और पारितन्त्र, जिसमें हम भी एक प्रजाति हैं, उसे बनाये रखने में प्रत्येक प्रजाति की क्या भूमिका है, इन्हें हम जैव विविधता से समझ सकते हैं। हम सभी को यह तथ्य समझना चाहिए कि हम स्वयं जियें और दूसरी प्रजातियों को भी जीने दें।

4. जैव विविधता की नैतिक भूमिका (Ethical role of biodiversity):
यह समझना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है। अत: कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है। जैव विविधता का स्तर अन्य जीवित प्रजातियों के साथ हमारे सम्बन्ध का एक अच्छा पैमाना है। वास्तव में, जैव विविधता की अवधारणा कई मानव संस्कृतियों का अभिन्न अंग है।

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प्रश्न 2.
जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन को। इसे रोकने के उपाय भी बताओ।
उत्तर:
जैव विविधता की हानि (Loss of biodiversity) पिछले कुछ दशकों से, जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र, जो विश्व के कुछ क्षेत्र का मात्र एक चौथाई भाग है, यहां संसार की तीन चौथाई जनसंख्या रहती है। अधिक जनसंख्या की ज़रूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्णकटिबन्धीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50 प्रतिशत प्रजातियां पाई जाती हैं और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमण्डल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।

1. प्राकृतिक आपदाएं:
प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी, उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पति जात को क्षति पहुंचाते हैं और परिणामस्वरूप सम्बन्धित प्रभावित प्रदेशों की जैव विविधता में बदलाव आता है।

2. कीटनाशक:
कीटनाशक और अन्य, जैसे-हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) और विषैली भारी धातु (Toxic heavy metals) संवेदनशील और कमज़ोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।

3. विदेशज प्रजातियां:
वे प्रजातियां, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तन्त्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियां’ (Exotic species) कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितन्त्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ।

4. अवैध शिकार:
पिछले कुछ दशकों के दौरान, कुछ जन्तुओं जैसे-बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिंक और पक्षियों का, उनके सींग, सूंड व खालों के लिए निर्दयतापूर्वक अवैध शिकार किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।

जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of biodiversity):
मानव के अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है। जीवन का हर रूप एक-दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। यदि पौधों और प्राणियों की प्रजातियां संकटापन्न होती हैं, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है और अन्तोत्गत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।

आज यह अति अनिवार्य है कि मानव को पर्यावरण-मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जाए और विकास की ऐसी व्यावहारिक गतिविधियां अपनाई जाएं, जो दूसरे जीवों के साथ समन्वित हों और सतत् पोषणीय (Sustainable) हों। इस तथ्य के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है कि संरक्षण तभी सम्भव और दीर्घकालिक होगा, जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी। इसके लिए स्थानीय स्तर पर संस्थागत संरचनाओं का विकास आवश्यक है। केवल प्रजातियों का संरक्षण और आवास स्थान की सुरक्षा ही अहम समस्या नहीं है, बल्कि संरक्षण की प्रक्रिया को जारी रखना भी उतना ही ज़रूरी है।

सन् 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो (Rio-de-Janeiro) में हुए जैव विविधता के सम्मेलन (Earth summit) में लिए गए संकल्पों का भारत अन्य 155 देशों सहित हस्ताक्षरी है। विश्व संरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैं

  1. संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिएं।
  2. प्रजातियों को विलुप्ती से बचाने के लिए उचित योजनाएं प्रबन्धन अपेक्षित हैं।
  3. खाद्यान्नों की किस्में, चारे सम्बन्धी पौधों की किस्में, इमारती पेड़, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करनी चाहिए।
  4. प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को रेखांकित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
  5. प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
  6. वन्य जीवों व पौधों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप हो।

भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने और विस्तार करने के लिए, वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 (Wild life protection act, 1972), पास किया है, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय पार्क (National Parks), अभ्यारण्य (Sanctuaries) स्थापित किये गए तथा जैव संरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) घोषित किये गए। वे देश, जो उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित हैं, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है। उन्हें ‘महा विविधता केन्द्र’ (Mega diversity centres) कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं : मैक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, जायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया और आस्ट्रेलिया। इन देशों में समृद्ध महा-विविधिता के केन्द्र स्थित हैं।

ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव विविधता हॉट-स्पॉट (Hotspots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं। पादप महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही किसी पारितन्त्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर हॉटस्पॉट रहने वाले भोजन, जलाने के लिए लकड़ी, कृषि भूमि और इमारती लकड़ी आदि के लिए वहां पाई जाने वाली प्रजाति समृद्ध पारितन्त्रों पर ही निर्भर है।

उदाहरण के लिए मेडागास्कर में, जहां 85 प्रतिशत पौधे व प्राणी संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं पाए जाते-वहां के रहने वाले संसार के सर्वाधिक गरीबों में से एक है और वे जीवित खेती के लिए जंगलों को काटकर और (Slash and burn) पायी गयी कृषि भूमि पर निर्भर हैं। अन्य हॉट-स्पॉट, जो समृद्ध देशों में पाए जाते हैं, वहां कुछ अन्य प्रकार की समस्याएं हैं। हवाई द्वीप जहां विशेष प्रकार की पादप व जन्तु प्रजातियां मिलती हैं, वह विदेशज प्रजातियों के आगमन और भूमि विकास के कारण असुरक्षित हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

जैव-विविधता एवं संरक्षण  JAC Class 11 Geography Notes

→ पौधे और जीव-जन्तु (Plants and animals): पौधे तथा जीव-जन्तु मानव के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

→ जैविक विविधता (Biodiversity): विश्व में पौधों तथा जीव-जन्तुओं में अत्यधिक विविधता पाई जाती |

→ जैविक विविधता के स्तर (Levels of Bio-diversity):

  • प्रजातीय विविधता
  • आनुवांशिक विविधता
  • पारिस्थितिक तंत्र विविधता।

→ जैविक विविधता का ह्रास (Loss of Biodiversity): संसाधनों की बढ़ती मांग के कारण कुछ प्रजातियां समाप्त हो गई हैं।

→ जैविक विविधता का संरक्षण (Conservation of Biodiversity) विकास की निरंतरता बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण आवश्यक है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जैवमण्डल में सम्मिलित हैं
(A) केवल पौधे
(B) केवल प्राणी
(C) सभी जैव व अजैव जीव
(D) सभी जीवित जीव।
उत्तर:
(D) सभी जीवित जीव।

2. उष्ण कटिबन्धीय वन (Tropical) बायोम में वृक्षों की औसत ऊंचाई है
(A) 25-35 मीटर
(B) 50-55 मीटर
(C) 10-15 मीटर
(D) 10 मीटर से कम।
उत्तर:
(C) 10-15 मीटर।

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3. उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?
(A) प्रेयरी
(B) स्टैपी
(C) सवाना
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) सवाना।

4. चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर क्या बनाती है?
(A) आयरन कार्बोनेट
(B) आयरन ऑक्साइड
(C) आयरन नाइट्राइट
(D) आयरन सल्फेट।
उत्तर:
(B) आयरन ऑक्साइड।

5. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट्स
(C) एमिनोएसिड
(D) विटामिन्स।
उत्तर:
(B) कार्बोहाइड्रेटस।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पारितन्त्र क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
पारितन्त्र के प्रकार (Types of Ecosystems): प्रमुख पारितन्त्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं।

  1. स्थलीय (Terrestrial) पारितन्त्र
  2. जलीय (Aquatic) पारितन्त्र।

स्थलीय पारितन्त्र को पुनः बायोम (Biomes) में विभक्त किया जा सकता है। बायोम, पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है, जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विभिन्न बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय सम्बन्धी तत्त्व करते हैं। अत: विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्त:सम्बन्धों के कुल योग को ‘बायोम कहते हैं। इसमें वर्षा, तापमान, आर्द्रता व मिट्टी सम्बन्धी अवयव भी शामिल हैं।

संसार के कुछ प्रमुख पारितन्त्र : वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल और टुण्ड्रा (Tundra) पारितन्त्र हैं। जलीय पारितन्त्र को समुद्री पारितन्त्र व ताज़े जल के पारितन्त्र में बाँटा जाता है। समुद्री पारितन्त्र में महासागरीय, तटीय ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति (Coral reef), पारितन्त्र सम्मिलित हैं। ताज़े जल के पारितन्त्र में झीलें, तालाब, सरिताएँ, कच्छ व दलदल (Marshes and bogs) शामिल हैं।

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प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इकोलोजी (ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों (Oikos) ‘ओइकोस’ और (logy) ‘लोजी’ से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ ‘घर तथा ‘लोजी’ का अर्थ विज्ञान या अध्ययन से है। शाब्दिक अर्थानुसार इकोलोजी-पृथ्वी के पौधों, मनुष्यों, जन्तुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं के ‘घर के रूप में अध्ययन है। एक-दूसरे पर आश्रित होने के कारण ही ये एक साथ रहते हैं।

जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल (Ernst haeckel) जिन्होंने सर्वप्रथम सन् 1869 में ओइकोलोजी (Oekologie) शब्द का प्रयोग किया, पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं। जीवधारियों (जैविक) व अजैविक (भौतिक पर्यावरण) घटकों के पारस्परिक सम्पर्क के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं। अत: जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण के अन्तःसम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।

प्रश्न 3.
बायोम क्या है?
उत्तर:
बायोम के प्रकार (Types of Biomes) पिछले भागों से आप जान गए हैं कि बायोम का अर्थ क्या है? आओ, हम अब संसार के कुछ प्रमुख बायोम पहचानें और उन्हें रेखांकित करें। संसार के पाँच प्रमुख बायोम इस प्रकार हैं : वन बायोम, मरुस्थलीय बायोम, घासभूमि बायोम, जलीय बायोम और उच्च प्रदेशीय बायोम।।

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प्रश्न 4.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला:
किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक स्रोत से दूसरे में ऊर्जा अन्तरण की साधारण प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला कहते हैं। उदाहरण के लिए पौधे अपने भोजन व विकास के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। हरे पौधे उपभोक्ता के लिए भोजन के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं। वास्तव में खाद्य श्रृंखला सूर्यतप ऊर्जा का प्रवाह चक्र है। जैसे-एक घास भूमि में शाकाहारी जीव हिरण अपना भोजन घास से प्राप्त करता है। दूसरे प्रकाश संश्लेषण स्तर पर मांसाहारी जीव, जैसे-शेर भोजन के लिए हिरण भोजनभोजन पर निर्भर है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला में निम्न से उच्च | प्राथमिक प्राथमिक द्वितीय स्तरों की ओर खाद्य के रूप में ऊर्जा का प्रवाह होता है।
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चराई खाद्य श्रृंखला:
चराई खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर पर प्रवाहित होती है। शाकाहारियों Fig. Food Chain में भोजन के रूप में लिए गए पदार्थों का कुछ अंश उनकेसर्वाहारी शरीर में एकत्रित हो जाता है, शेष ऊर्जा शारीरिक कार्यों के दौरान नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार एक माँसाहारी, मांसाहारी जब अपना शिकार खाता है, तो उससे प्राप्त कुछ ऊर्जा ही) शाकाहारी इसके शरीर में संचित होती है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला के जीवाणु अगले पोषण स्तर पर बहुत कम ऊर्जा रूपांतरण  करते हैं, क्योंकि हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है।

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पिरामिड आकृति की खाद्य श्रृंखला दिखाती है कि बहुत से पेड़-पौधे व झाड़ियाँ आदि जिराफ को भोजन व ऊर्जा Fig. Ecological Pyramid प्रदान करते हैं। पौधों की तुलना में जिराफ की संख्या बहुत कम होती है और शेरों की संख्या जिराफ से भी कम है। दूसरे शब्दों में, शीर्ष पर कुछ जीवों के जिन्दा रहने के लिए आधार पर या पहले पोषण स्तर पर विस्तृत जैविक पदार्थ अनिवार्य हैं। खाद्य श्रृंखला के जीवों की यह परस्पर निर्भरता पौधों व जन्तुओं के एक-एक समुदाय को सन्तुलित करने में सहायक होती है। इसीलिए, पर्यावरण में अधिक शाकाहारी व कम मांसाहारी हैं।

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प्रश्न 5.
खाद्य जाल से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर-खाद्य जाल (Food Web):
किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य श्रृंखला सरल रूप में नहीं मिलती। जब कई खाद्य श्रृंखलाएं एक-दूसरे से घुल-मिल कर एक जटिल रूप धारण करती हैं तो उसे खाद्य जाल कहते हैं। इस प्रकार खाद्य जाल अनेक स्त्रोतों से ऊर्जा के अन्तरण की एक जटिल प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए प्रत्येक जीव कई जीवों से भिन्न-भिन्न प्रकार का भोजन खा सकता है। अगले स्तर पर अनेक जीवों द्वारा उस जीव को खाया जा सकता है। इस प्रकार जीवों के परस्पर सम्बन्ध जटिल हो जाते हैं तथा अनेक प्रक्रियाएं हो सकती हैं।

प्राथमिक उत्पादक पौधे आदि सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं तथा उच्च स्तर के जीवों के लिये भोजन प्रदान करते हैं। परन्तु ऊर्जा अन्तरण के प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा की काफ़ी मात्रा कम हो जाती है। एक खाद्य श्रृंखला में विभिन्न जीवों का सम्बन्ध व ऊर्जा अन्तरण को पिरामिड से प्रदर्शित किया जा सकता है। इस पिरामिड में मनुष्य का सर्वोपरि स्थान है। इस पिरामिड का आधार चौड़ा होता है तथा प्राथमिक उत्पादक का स्तर होता है। आधार से शीर्ष की ओर संख्या घटती जाती है व खाद्य के रूप में प्राप्त ऊर्जा भी घटती जाती है। परिणामस्वरूप अधिकतर खाद्य श्रृंखलाएं चार या पांच स्तरों तक ही सीमित होती हैं। इस पिरामिड को सांख्यिक पिरामिड भी कहते हैं।

पौधे पर जीवित रहने वाला एक कीड़ा (Beetle) एक मेंढक का भोजन है, जो (मेंढक) साँप का भोजन है और साँप एक बाज़ द्वारा खा लिया जाता है। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहलाती है। खाद्य श्रृंखला की प्रक्रिया में एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा के रूपान्तरण को ऊर्जा प्रवाह (Flow of energy) कहते हैं। खाद्य श्रृंखलाएं पृथक् अनुक्रम न होकर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। उदाहरणार्थ-एक चूहा, जो अन्न पर निर्भर है, वह अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का भोजन है और तृतीयक माँसाहारी अनेक द्वितीयक जीवों से अपने भोजन की पूर्ति करते हैं।

इस प्रकार प्रत्येक माँसाहारी जीव एक से अधिक प्रकार के शिकार पर निर्भर है। परिणामस्वरूप खाद्य श्रृंखलाएं आसपास में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़े होने (अर्थात् जीवों की खाद्य श्रृंखलाओं के विकल्प उपलब्ध होने पर) को खाद्य जाल (Food web) कहा जाता है। सामान्यतः दो प्रकार की खाद्य श्रृंखलाएं पाई जाती हैं-चराई खाद्य श्रृंखला (Grazing food chain) और अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus food chain) चराई खाद्य श्रृंखला पौधों (उत्पादक) से आरम्भ होकर माँसाहारी (तृतीयक उपभोक्ता) तक जाती है, जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर हैं। हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसमें श्वसन, उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। खाद्य श्रृंखला में तीन से पाँच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है। अपरद खाद्य श्रृंखला चराई खाद्य श्रृंखला से प्राप्त मृत पदार्थों पर निर्भर है और इसमें कार्बनिक पदार्थ का अपघटन सम्मिलित है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जैव भू-रासायनिक चक्र क्या है? वायुमण्डल के नाइट्रोजन का भौमीकरण कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
जैव भू-रसायन चक्र (Biogeo-chemical Cycle):
सूर्य ऊर्जा का मूल स्त्रोत है जिस पर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमण्डल में प्रकाश संश्लेषण-क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरम्भ करती है, जो हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन व कार्बनिक यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धरती पर पहुँचने वाले सूर्यातप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में काम आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधे की श्वसन-विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थाई रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है।

पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार के जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिकीय अन्तर्सम्बन्धों पर जीवित हैं। जीवधारी बहुतलता व विविधता में ही ज़िन्दा रह सकते हैं। इसमें (अर्थात्, जीवित रहने की प्रक्रिया में) विधिवत प्रवाह जैसे-ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। इनकी उपलब्धता संसार के विभिन्न भागों में भिन्न है। यह भिन्नता क्षेत्रीय होने के साथ-साथ सामयिक (अर्थात् वर्ष के 12 महीनों में भी भिन्न है) भी है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमण्डल व जलमण्डल की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन लगभग एक जैसा अर्थात् बदलाव रहित रहा है।

रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्त्वों के अवशोषण से आरम्भ होता है और उनके वाय, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरम्भ होता है। ये चक्र मुख्यतः सौर ताप से संचालित होते हैं। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycles) कहे जाते हैं। बायो (Bio) का अर्थ है जीव तथा ‘जीयो’ (Geo) का तात्पर्य पृथ्वी पर उपस्थित चट्टानें, मिट्टी, वायु व जल से है। जैव भू-रासायनिक चक्र दो प्रकार के हैं-एक गैसीय (Gaseous cycle) और दूसरा तलछटी चक्र (Sedimentary cycle), गैसीय चक्र में पदार्थ का मुख्य भण्डार/स्रोत वायुमण्डल व महासागर हैं। तलछटी चक्र के प्रमुख भण्डार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी, तलछट व अन्य चट्टानें हैं।

नाइट्रोजन चक्र (The Nitrogen Cycle): वायुमण्डल की संरचना का प्रमुख घटक नाइट्रोजन वायुमण्डलीय गैसों का 79 प्रतिशत भाग है। विभिन्न कार्बनिक यौगिक जैसे-एमिनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन व वर्णक (Pigment) आदि में यह एक महत्त्वपूर्ण घटक है। (वायु में स्वतन्त्र रूप से पाई जाने वाली नाइट्रोजन को अधिकांश जीव प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं) केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के जीव जैसे-कुछ मृदा जीवाणु व ब्लू ग्रीन एलगी (Blue green algae) ही इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। सामान्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती है। नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक (Biological) है, अर्थात् जीव ही ग्रहण कर सकते हैं।

स्वतन्त्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व सम्बन्धित पौधों की जड़ें व रन्ध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमण्डल में पहुँचती है। वायुमण्डल में भी बिजली चमकने (Lightening) व कोसमिक रेडियेशन (Cosmic radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है, महासागरों में कुछ समुद्री जीव भी इसका यौगिकीकरण करते हैं। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन के इस तरह यौगिक रूप में उपलब्ध होने पर हरे पौधे में इसका स्वांगीकरण (Nitrogen assimilation) होता है। शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका (नाइट्रोजन) कुछ भाग उनमें चला जाता है।

फिर मृत पौधों व जानवरों के नाइट्रोजनी अपशिष्ट (Excretion of nitrogenous wastes) मिट्टी, में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन-यौगिकीकरण हो जाता है। कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट को पुनः स्वतन्त्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी नाइट्रीकरण (De-nitrification) कहा जाता है। (इस तरह नाइट्रोजन चक्र चलता रहता है)

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प्रश्न 2.
पारिस्थितिक सन्तुलन क्या है? इसके असन्तुलन को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological balance)-किसी पारितन्त्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी सम्भव है, जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। क्रमश: परिवर्तन भी हो, लेकिन ऐसा प्राकृतिक अनुक्रमण (Natural succession) के द्वारा ही होता है। इसे पारितन्त्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थायी सन्तुलन के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। यह सन्तुलन निश्चित प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा व आपसी सहयोग से होता है। कुछ प्रजातियों के ज़िन्दा रहने के संघर्ष से भी पर्यावरण सन्तुलन प्राप्त किया जाता है। सन्तुलन इस बात पर भी निर्भर करता है कि कुछ प्रजातियाँ अपने भोजन व जीवित रहने के लिए दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहती हैं (जिससे प्रजातियों की संख्या निश्चित रहती है और सन्तुलन बना रहता है

उदाहरण: इसके उदाहरण विशाल घास के मैदानों में मिलते हैं, जहाँ शाकाहारी जन्तु (हिरण, जेबरा व भैंस आदि) अत्यधिक संख्या में होते हैं। दूसरी तरफ माँसाहारी (बाघ, शेर और कोयोटस आदि) अधिक नहीं होते और शाकाहारियों के शिकार पर निर्भर होते हैं, अतः इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है।

असन्तुलन के कारण: पौधों के पारिस्थितिक सन्तुलन में बदलाव के कारण हैं
1. वनों की प्रारम्भिक प्रजातियों में कोई खलल जैसे: स्थानान्तरी कृषि में वनों को साफ करने से प्रजातियों के वितरण में बदलाव लाता है। यह परिवर्तन प्रतिस्पर्धा के कारण है, जहाँ द्वितीय वन प्रजातियों जैसे-घास, बाँस और चीड़
आदि के वृक्ष प्रारम्भिक प्रजातियों के स्थान पर उगते हैं और प्रारम्भिक (Original) बनों की संरचना को बदल देते हैं। यही अनुक्रमण (Succession) कहलाता है।

2. पारिस्थितिक असन्तुलन के कारण: नई प्रजातियों का आगमन, प्राकृतिक विपदाएं और मानव जनित कारक भी हैं।

3. मनुष्य के हस्तक्षेप से पादप समुदाय का सन्तुलन प्रभावित होता है, जो अन्तोगत्वा पूरे पारितन्त्र के सन्तुलन को प्रभावित करता है। इस असन्तुलन से कई अन्य द्वितीय अनुक्रमण आते हैं।

4. प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है। इसने पर्यावरण के वास्तविक रूप को लगभग नष्ट कर दिया है और सामान्य पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पर्यावरण असन्तुलन से ही प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-बाढ़ भूकम्प, बीमारियाँ, और कई जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं। विशेष आवास स्थानों में पौधों व प्राणी समुदायों में घनिष्ठ अन्तर्सम्बन्ध पाए जाते हैं। निश्चित स्थानों पर जीवों में विविधता वहाँ के पर्यावरणीय कारकों का संकेतक है। इन कारकों का समुचित ज्ञान व समझ ही पारितन्त्र के संरक्षण व बचाव के प्रमुख आधार हैं।

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प्रश्न 3.
विश्व में मिलने वाले प्रमुख बायोमों का वर्णन करो।
उत्तर:
स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र विश्व के प्रमुख बायोम हैं-उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय सवाना, भूमध्यसागरीय गुल्म वन, पर्णपाती वन, घास भूमि, मरुस्थल, टैगा एवं टुंड्रा।
1. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन विस्तार:
यह बायोम विषुवतरेखीय क्षेत्रों में स्थित है, जहाँ वार्षिक वर्षा 140 से०मी० से अधिक है। यह पृथ्वी के धरातल का लगभग 8 प्रतिशत भाग घेरे हुए है, लेकिन आधे से अधिक वनस्पतिजात तथा प्राणिजात को संजोए है। वनस्पति-वनस्पति जीवन में काफ़ी भिन्नता है, जो प्रत्येक हेक्टेयर भूमि पर वृक्षों की 200 से अधिक प्रजातियों के रूप में देखी जा सकती है। यहाँ की गर्म तथा आर्द्र जलवायु में चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष उगते हैं, जिनका विशिष्ट स्तरण होता है। इनमें एक सबसे ऊपर का स्तर होता है, जिसके नीचे पेड-पौधों का दो से तीन स्तर होता है। सबसे लंबे पेड़ ऊपर से एक खुला वितान आवरण बनाते हैं, लेकिन निचले शिखर-स्तर भूमि तक सूर्य प्रकाश को नहीं पहुँचने देते।

प्रकाश पाने की होड़ में वृक्षों और पौधों पर चढ़ती बेलें आपस में गुंथ कर फंदा जैसा बनाती हैं। इन बेलों को कठलता या लियाना कहते हैं। पशु जीवन का बाहुल्य है और उसमें काफ़ी भिन्नता है। इनमें भूमि पर तथा वृक्षों पर रहने वाले दोनों जीव शामिल हैं। जानवरों में बंदर, सांप, चींटी भक्षक, उष्णकटिबंधीय पक्षी, चमगादड़, विशाल मांसाहारी जानवर तथा नदियों में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ शामिल हैं। सभी ज्ञात कीटों की प्रजातियों में से लगभग 70 से 80 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में मिलती है।

2. उष्णकटिबंधीय सवाना:
उष्णकटिबंध की सीमाओं पर, जहाँ वर्षा मौसमी है, मोटी घास और बिखरे हुए वृक्ष पाए जाते हैं, जिन्हें सवाना कहते हैं। यहां एक के बाद एक आई और शुष्क मौसम का क्रम चलता रहता है। पौधे एवं पशु शुष्कता सहन करने वाले होते हैं और अधिक भिन्नता नहीं रखते । यह बायोम सर्वाधिक प्रकार के खुरवाले शाकाहारी पशुओं की प्रजातियों, जैसे जेबरा, जिराफ, हाथी तथा अनेक प्रकार के हिरनों का पोषण करती है। ऑस्ट्रेलिया के सवाना मैदानों में कंगारू पाया जाता है।

3. भूमध्यसागरीय गुल्म वन:
इस बायोम को बांज वन या चैपेरल भी कहते हैं। यहाँ की विशेषता अल्प मात्रा में होने वाली शीत ऋतु की वर्षा है। इसके पश्चात् वर्ष के शेष भाग में शुष्क मौसम रहता है। समुद्र की आई एवं ठंडी हवा के प्रभाव से तापमान सामान्य रहता है। इस बायोम में चौड़ी पत्ती वाली सदाबहार वनस्पति मिलती है। यह बायोम अग्निरोधी रेज़िनी पौधों तथा शुष्कता अनुकूलित पशुओं में बनी है।

4. पर्णपाती वन:
ये वन उत्तरी मध्यवर्ती यूरोप, पूर्वी एशिया तथा पूर्वी संयुक्त राज्य के शीतोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यहां वार्षिक वर्षा 75 से 150 से०मी० तक होती है। शरद ऋतु आते ही अधिकांश पेड़ और झाड़ियाँ पत्ते गिराकर पर्णविहीन हो जाते हैं। इस वनस्पति में चौड़ी पत्ती वाले कठोर लकड़ी के वृक्ष जैसे बांस, एल्म, भुर्ज, मैपिल तथा हिकरी आते हैं। प्राणिजगत् में मेढक, कछुए, सैलामैंडर, सांप, छिपकली, गिलहरी, खरगोश, हिरण, भालू, रैकून, लोमड़ी तथा गायक पक्षी शामिल हैं।

5. घासभूमि:
कनाडा तथा संयुक्त राज्य के प्रेरीज, दक्षिणी अमेरिका के पम्पास, यूरोप व एशिया के स्टेपीज़ तथा अफ्रीका के वेल्ड्स प्रमुख घास भूमियाँ हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा 25 से 75 से०मी० है। शीत ऋतु में बर्फानी तूफान आते हैं और गर्मियों की शुष्कता असहनीय हो सकती है। समय-समय पर आग लगने से बड़ी हानि होती है। यहाँ पौधों की मुख्य प्रजाति छोटी एवं ऊँची घास है। पशु प्रजातियों में भरत पक्षी, बिलकारी उल्लू, दुनुकी सींग वाले बाहरसिंगा, बैज़र, काइयोट, जैकरैबिट, तथा गौर शामिल हैं।

6. मरुस्थल:
अत्यधिक कम वर्षा तथा उच्च वाष्पन की दर मरुस्थलों की विशेषताएँ हैं। तेज़ धरातलीय प्रवाह के कारण कम वर्षा से प्राप्त जल भी पौधों को प्राप्त नहीं होता। दिन अत्यधिक गर्म तथा रात ठंडी होती है। तापमान का मौसमी उतार-चढाव काफ़ी होता है। मरुस्थलों में पेड़-पौधे तथा जीव-जंतु कम होते हैं। विभिन्न प्रकार के एकेशिया, कैक्टस, यूफोर्बियाज़ तथा अन्य गूदेदार पौधे मरुस्थली वनस्पति में शामिल हैं। चींटियाँ, टिड्डियाँ, ततैये, बिच्छू, मकड़ी, छिपकली, रटल सांप तथा अनेक कीट-भक्षी पक्षी जैसे-बतासी और अबाबील, बटेर, बत्तख, मरू चूहे, खरगोश, लोमड़ी, गीदड़ तथा विभिन्न बिल्लियाँ सामान्य मरुभूमि पशु हैं।

7. टैगा:
उत्तरी शंकुधारी वन, जिन्हें टैगा कहते हैं, में पौधों का वर्धन काल केवल 150 दिन के लगभग है। क्योंकि यहाँ की भौतिक दशाएँ परिवर्तनशील हैं, इसलिए यहाँ जीवों को तापमान के उतार-चढ़ाव का प्रतिरोधी होना पड़ता है। चीड़, देवदार, फर, हेम्लॉक तथा स्यूस यहाँ की प्रमुख वनस्पतियाँ हैं। कुछ क्षेत्रों में वनस्पति इतनी घनी है कि वनों के धरातल तक बहुत कम प्रकाश पहुँच पाता है। आर्द्र क्षेत्रों में काई तथा पर्ण या पांग बहुतायत से उगते हैं। यह बायोम एल्क, तित्तिरी, हिरण, खरगोश, गिलहरी, प्यूमास, वनविडाल तथा कीटों की अनेक प्रजातियों के लिए अनुकूल आवास है।

8. टुंड्रा
ये वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ से ढंके रहते हैं तथा जहाँ मृदा सालों भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान तथा कम प्रकाश जीवन को सीमित करने वाले कारक हैं। हिमपात कम होता है। वनस्पति इतनी बिखरी हुई है कि इसे आर्कटिक मरुस्थल भी कहते हैं। यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, प्रतृण, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं। हिमशीतित मृदा का मौसमी पिघलाव भूमि के कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

पृथ्वी पर जीवन  JAC Class 11 Geography Notes

→ जैव-मण्डल (Biosphere): जैव मण्डल वह भाग है जहां सभी प्रकार के जीवन (मानव, वनस्पति तथा जन्तु) पाये जाते हैं। स्थल-मण्डल, जल-मण्डल तथा वायुमण्डल के सम्पर्क क्षेत्र में एक पतली परत को जैव मण्डल कहते हैं।
→ पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-systems): स्थल आकृतियां, वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं में अन्तः क्रिया को । पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं। इसमें जैविक तथा अजैविक दो प्रकार के घटक होते हैं।

→ ऊर्जा प्रवाह (Energy flow): इस तन्त्र में ऊर्जा तथा खनिज एक चक्र में प्रवाह करते हैं। पौधे प्रकाश ! संश्लेषण क्रिया द्वारा और ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। एक स्तर से दूसरे स्तर से ऊर्जा परिवर्तन से एक खाद्य शृंखला बनती है।

→ मानवीय प्रभाव (Human Effect): मानव ने प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा हस्तक्षेप से पारिस्थितिक | सन्तुलन को बिगाड़ दिया है। अति पशु चारण, वनों की कटाई तथा स्थानांतरित कृषि से कई समस्याएं उत्पन्न | हो गई हैं।

→ मानवीय अनुक्रिया (Human Response): मानव वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वातावरण में मनुष्य की भूमिका को मानवीय अनुक्रिया कहते हैं। मानव को भौतिक