JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए-
1. प्रकाश की क्या गति है?
(A) 3 लाख कि०मी० प्रति सै०
(B) 5000 कि०मी० प्रति सै०
(C) 10 कि०मी० प्रति सै०
(D) 100 कि०मी० प्रति सै०।
उत्तर:
(A) 3 लाख कि०मी० प्रति सै०।

2. सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को क्या कहते हैं?
(A) तापमान
(B) ऊर्जा
(C) सूर्यातप
(D) सौर विकिरण।
उत्तर:
(C) सूर्यातप।

3. सूर्य से आने वाले ताप का कितने प्रतिशत भाग पृथ्वी पर पहुंचता है?
(A) 51%
(B) 47%
(C) 65%
(D) 44%
उत्तर:
(A) 51%

4. सूर्यातप को नापने की कौन-सी इकाई प्रयोग की जाती है?
(A) डिग्री फार्नहाइट
(B) प्रतिशत
(C) कैलोरी
(D) डिग्री सैंटीग्रेड।
उत्तर:
(C) कैलोरी।

5. कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् किस दिन चमकती हैं?
(A) 21 मार्च
(B) 23 सितम्बर
(C) 22 दिसम्बर
(D) 21 जून।
उत्तर:
(D) 21 जून।

6. वायुमण्डल के बाह्य संस्तर तक पहुंचने वाले सूर्यातप का कितना भाग पृथ्वी के धरातल तक पहुंच पाता है?
(A) 49 प्रतिशत
(B) 51 प्रतिशत
(C) 27 प्रतिशत
(D) 14 प्रतिशत।
उत्तर:
(B) 51 प्रतिशत

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7. पृथ्वी के धरातल द्वारा विकिरित ऊर्जा को कहते हैं
(A) सूर्यातप
(B) सौर विकिरण
(C) तापमान
(D) पार्थिव या भौमिक विकिरण
उत्तर:
(D) पार्थिव या भौमिक विकिरण।

8. वायुमण्डल मुख्यतः गर्म होता है:
(A) सीधे ही सूर्य की किरणों द्वारा
(B) पार्थिव विकिरण द्वारा
(C) पृथ्वी के भीतर की ऊष्मा द्वारा
(D) ज्वालामुखी क्रिया द्वारा।
उत्तर:
(B) पार्थिव विकिरण द्वारा।

9. सामान्यतः तापमान कम होता जाता है
(A) विषुवत रेखा से उत्तर की ओर
(B) विषुवत रेखा से दक्षिण की ओर
(C) विषुवत रेखा के दोनों ओर
(D) ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर ।
उत्तर:
(C) विषुवत रेखा के दोनों ओर।

10. स्थल तथा महासागरों के बीच तापमान का अन्तर अधिक होता है :
(A) उत्तरी गोलार्द्ध में
(B) दक्षिणी गोलार्द्ध में
(C) ध्रुवों के निकट
(D) ग्रीष्म ऋतु में
उत्तर:
(A) उत्तरी गोलार्द्ध में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठंडी’ व्याख्या करो।
उत्तर:
पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग सम्पूर्ण भाग सूर्य से प्राप्त करती है। इसके बदले पृथ्वी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को अन्तरिक्ष में वापस विकरित कर देती है। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर ताप सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 2.
‘पृथ्वी के अलग-अलग भागों से प्राप्त ताप की मात्रा समान नहीं होती’ क्यों?
उत्तर:
स्थल तथा जल में गर्म होने तथा ठण्डा होने की दर में विभिन्नता है। कोई भी भाग अधिक देर तक गर्म नहीं रहता तथा कोई भी भाग अधिक देर तक ठण्डा नहीं रहता। इसलिए विभिन्न भागों में तापमान की मात्रा समान नहीं होती।

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प्रश्न 3.
तापमान की अलग-अलग भागों में भिन्नता के प्रभाव बताओ।
उत्तर:

  1. इस विभिन्नता के कारण वायुमण्डल के दाब में भिन्नता होती है।
  2. इसी कारण पवनों के द्वारा ताप का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है।

प्रश्न 4.
पार्थिव विकिरण तथा सूर्यातप में अन्तर बताओ।
उत्तर:
सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सूर्यातप कहते हैं या आगामी सौर विकिरण (Insolation) कहते हैं। यह अधिकतर लघु तरंगों द्वारा प्राप्त होती है। पृथ्वी के धरातल से विकिरण हुई ऊर्जा को पार्थिव विकिरण कहते हैं। यह दीर्घ तरंगों द्वारा अन्तरिक्ष में वापस चली जाती है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी के गोलाभ आकार का क्या प्रभाव है?
उत्तर:
पृथ्वी का आकार गोलाभ (Geoid) है। सूर्य की किरणें इस कारण वायुमण्डल के ऊपरी भाग पर तिरछी पड़ती हैं। इससे पृथ्वी सौर ऊर्जा का बहुत कम अंश प्राप्त करती है।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल की ऊपरी सतह को कितनी सौर ऊर्जा प्राप्त होती है?.
उत्तर:
गोलाभ पृथ्वी के कारण वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर औसत रूप से 0.5 कैलोरी प्रति वर्ग सैं०मी० प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त होती है। इसमें थोड़ा सा परिवर्तन होता रहता है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी द्वारा 3 जनवरी की अपेक्षा 4 जुलाई को अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। क्यों ?
उत्तर:
सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर अर्थात् 15 करोड़ 20 लाख कि०मी० दूर होती है। इसे अपसौर (Aphelion) कहते हैं। 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट 14 करोड़ 70 लाख कि०मी० दूर होती है। इसे उप सौर (Perihelion) कहते हैं। इसलिए पृथ्वी द्वारा प्राप्त वार्षिक सूर्यातप (insolation ) 3 जनवरी की अपेक्षा 4 जुलाई को अधिक होता है।

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प्रश्न 8.
सूर्यातप में विभिन्नता लाने वाले कारक लिखो।
उत्तर:

  1. पृथ्वी का धुरी पर घूमना
  2. सूर्य की किरणों का नति कोण
  3. दिन की अवधि
  4. वायुमण्डल की पारदर्शिता
  5. स्थल विन्यास

प्रश्न 9.
आकाश में रंगों की विभिन्नता क्यों है?
उत्तर:
पृथ्वी की सतह की ओर विकीर्ण के कारण सूर्य उदय एवं अस्त होने के समय सूर्य लाल दिखाई देता है। वायुमण्डल के प्रकाश के प्रकीर्णन (Scattering) के कारण नीला रंग दिखाई देता है।

प्रश्न 10.
पृथ्वी का एलिबडो किसे कहते हैं?
उत्तर:
सूर्य से ताप विकिरण का 30% सीधे रूप में परावर्तित हो कर अन्तरिक्ष में वापस चला जाता है। इसे पृथ्वी का एलिबडो कहते हैं।

प्रश्न 11.
सौर कलंक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सूर्य की सतह पर काले रंग के गहरे व उथले बनते-बिगड़ते धब्बों को सौर कलंक कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सूर्यातप क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर पहुंचने वाले सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। यह ऊर्जा लघु तरंगों के रूप में 3 लाख कि० मी० प्रति सेकण्ड की दर से पृथ्वी पर पहुंचती है। पृथ्वी पर सौर विकिरण का केवल 2 अरबवां भाग ही पहुंचता है।

प्रश्न 2.
ऊष्मा तथा तापमान में क्या अन्तर है?
उत्तर:
दोनों शब्द एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। ऊष्मा वास्तव में ऊर्जा का रूप है जो वस्तुओं को गर्म करती है। तापमान ऊष्मा की मात्रा का माप है। ऊष्मा के बढ़ने या घटने से तापमान बढ़ता या घटता है।

प्रश्न 3.
सूर्यातप तथा किसी स्थान के तापमान में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सूर्यातप एक प्रकार की ऊर्जा है। सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा या ऊष्मा को सूर्यातप कहते हैं। यह लघु तरंगों के रूप में पृथ्वी के तल को गर्म करती है। किसी स्थान के तापमान से अभिप्राय उस स्थान पर धरातल से एक मीटर ऊपर वायु में ऊष्मा की मात्रा है। यह वायुमण्डल का तापमान है। वायु धरातल द्वारा छोड़ी गई ऊर्जा के विकिरण से गर्म होती है।

प्रश्न 4.
तापमान के क्षैतिज वितरण से क्या अर्थ है?
उत्तर:
तापमान का क्षैतिज वितरण अक्षांशों के अनुसार तापमान घटता-बढ़ता रहता है। अक्षांशों के अनुसार तापमान के वितरण को क्षैतिज वितरण कहते हैं। यह वितरण समताप रेखाओं द्वारा प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 5.
तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वायुमण्डल मुख्यतः नीचे से ऊपर की ओर गर्म होता है। इसलिए ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। तापमान कम होने की दर 1°C प्रति 165 मीटर है। इसे सामान्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate) कहते हैं।

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प्रश्न 6.
विभिन्न अक्षांश सूर्यातप भिन्न मात्रा में क्यों प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा सूर्य किरणों के आपात् कोण तथा दिन की अवधि पर निर्भर करती है। पृथ्वी की वार्षिक गति तथा पृथ्वी के अक्ष के झुकाव कारण भिन्न अक्षांशों पर सूर्य किरणों का कोण भिन्न-भिन्न होता है तथा दिन की अवधि भी समान नहीं होती । भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है तथा दिन की अवधि भी बढ़ती जाती है। इसलिए भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है। एक ही अक्षांश पर सूर्यातप की मात्रा सब स्थानों पर बराबर होती है।

प्रश्न 7.
दैनिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान पर उस दिन के उच्चतम तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को उस स्थान का दैनिक तापान्तर कहते हैं। यह तटीय प्रदेशों में कम होता है। दैनिक तापान्तर अन्दरूनी भागों तथा मरुस्थलीय प्रदेशों में अधिक होता है।

प्रश्न 8.
वार्षिक तापान्तर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी वर्ष के सबसे गर्म तथा ठण्डे महीनों के औसत मासिक तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं। प्रायः जुलाई मास को सबसे गर्म तथा जनवरी मास को सबसे ठण्डा मास लिया जाता है। सबसे अधिक वार्षिक तापान्तर साइबेरिया में वर्खोयांस्क में 38°C होता है।

प्रश्न 9.
किसी स्थान के तापमान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तापमान किसी पदार्थ में ताप की मात्रा का सूचक है। किसी स्थान पर छाया में भू-तल में फुट की ऊंची वायु की मापी हुई गर्मी को उस स्थान का तापमान कहा जाता है। प्रत्येक स्थान पर तापमान समान नहीं पाया जाता है। धरातल पर तापमान का वितरण विभिन्न संघटकों द्वारा नियन्त्रित होता है।

प्रश्न 10.
तापमान प्रतिलोम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊंचाई के बढ़ने के साथ-साथ 1°C प्रति 165 मीटर की दर से तापमान कम होता जाता है, परन्तु कई बार स्थानीय या अस्थाई रूप से ऊंचाई के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में जब ठण्डी वायु धरातल के निकट और गर्म वायु इसके ऊपर हो तो इसे तापमान प्रतिलोम कहते हैं।

प्रश्न 11.
सूर्यातप का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
सूर्यातप का महत्त्व (Importance of Insolation ) :
यद्यपि पृथ्वी के धरातल पर प्राप्त होने वाला सूर्यातप बहुत थोड़ा है फिर भी यह कई प्रकार से महत्त्वपूर्ण है-

  1. कई भौतिक क्रियाएं सूर्यातप पर निर्भर करती हैं।
  2. सूर्यातप के कारण पवनें तथा समुद्री धाराएं चलती हैं ।
  3. सूर्यातप ऋतु परिवर्तन का आधार है ।
  4. इसी सूर्यातप के कारण पृथ्वी मानव निवास के योग्य ग्रह है
  5. वायुमण्डलीय गतियां तथा वायुराशियाँ सूर्यातप पर ही निर्भर करती हैं।

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प्रश्न 12.
वायुमण्डल पर ग्रीन हाऊस के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर:
वायुमण्डल भू-तल से विकिरण द्वारा गर्म होता है। वायुमण्डल की तुलना एक शीशे के घर या ग्रीन हाऊस से की जाती है जहां ध्रुवीय क्षेत्र में फूल तथा सब्जियां उगाई जाती हैं। शीशे के घर के अन्दर सौर ताप प्रवेश कर सकता है परन्तु बाहर नहीं जा सकता इसलिए शीशे का घर अन्दर से गर्म होता है, वायुमण्डल भी एक छाते की भान्ति कार्य करके पृथ्वी को गर्म रखता है।

दिन के समय यह सूर्य को पूरी शक्ति से बचा कर तापमान बढ़ने नहीं देता तथा रात को भू-तल से विकिरण को बाहर नहीं जाने देता। पृथ्वी पर औसत तापमान 15°C रहता है। यह वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण है जो कि विकिरण को सोख कर एक छत का कार्य करती है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस बढ़ने से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है। पिछली शताब्दी में भारत में 1955 का वर्ष सब से अधिक गर्म रहा है।

प्रश्न 13.
ग्लोबल वार्मिंग से क्या अभिप्राय है? इसके क्या कारण हैं? इसके प्रभाव बताओ।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होना। जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक जलने (कोयला, गैस, तेल) के कारण, अधिक कृषि, अधिक औद्योगीकरण के कारण, तीव्रगामी परिवहन साधनों के प्रयोग तथा वनों की अत्यधिक कटाई से वायुमण्डल के संघटन में एक असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। इन क्रियाओं से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है। इसके ग्रीन हाऊस प्रभाव से पृथ्वी का औसत तापमान 0.5°C बढ़ गया है।

एक अनुमान है कि सन् 2040 तक विश्व तापमान में 2°C की वृद्धि हो जाएगी विभिन्न क्रियाओं के कारण वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की कमी हो रही है। इस से पराबैंगनी किरण पृथ्वी पर पहुंच कर तापमान में वृद्धि कर रही है। इसके प्रभाव से ध्रुवीय प्रदेशों की हिम पिघलने से समुद्र तल ऊंचा हो रहा है। कई तटीय प्रदेशों के जलमग्न होने का भय है।

प्रश्न 14.
ऊंचाई के साथ तापमान में होने वाले ह्रास की व्याख्या करो
उत्तर:
विभिन्न निरीक्षणों से पता चलता है कि वायुमण्डल में ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। तापमान कम होने की दर 1°C प्रति 165 मीटर है। इसे सामान्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate) कहते हैं। इस तथ्य के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  1. वायुमण्डल प्रत्यक्ष रूप से धरातल द्वारा छोड़ी गई ऊष्मा से गर्म होता है। सूर्य का प्रभाव अप्रत्यक्ष होता है। धरातल के समीप वाली परत सबसे अधिक गर्म होती है, ऊंचाई पर परतें बाद में गर्म होती हैं।
  2. धरातल के समीप वायु में धूल-कण तथा जल वाष्प अधिक मात्रा में रहते हैं जो अधिक गर्मी ग्रहण कर लेते हैं। परन्तु वायुमण्डल की ऊपरी परतों में हल्की तथा स्वच्छ वायु कम मात्रा में गर्मी ग्रहण करती है। तापमान के कम होने की दर स्थानीय अवस्थाओं के कारण बदलती रहती है। रात के समय, महाद्वीपीय क्षेत्रों में ताप घटने की दर तीव्र होती है।

प्रश्न 15.
समताप रेखाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समताप रेखाएं ( Isotherms):
‘Iso’ शब्द का अर्थ है समान और ‘Therm’ शब्द का अर्थ है तापमान। इसलिए Isotherm का अर्थ है Lines of equal temperature या सम – तापमान रेखाएं। [Isotherms are lines joining the places of same (equal) temperature reduced to sea-level.]

धरातल पर समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं। इस तापक्रम को समुद्र-तल पर घटा कर दिखाया जाता है। इस प्रकार ऊंचाई के प्रभाव को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है। यह कल्पना जाती है कि सभी स्थान समुद्र तल पर स्थित हैं। यदि कोई स्थान 1650 मीटर ऊंचा है और उसका वास्तविक तापमान 20°C है तो उस स्थान का समुद्र तल पर तापमान 20°C + 10°C = 30°C क्योंकि प्रति 165 मीटर पर 1°C तापमान कम हो जाता है।

प्रश्न 16.
किसी स्थान का तापमान किस प्रकार अक्षांश पर निर्भर है?
उत्तर:
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए तापमान लगातार कम होता जाता है। किसी भी अक्षांश पर तापमान सूर्य की किरणों के कोण पर निर्भर है। लम्ब किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा थोड़े स्थान को घेरती हैं। अतः प्रति इकाई क्षेत्र प्राप्त ऊष्मा अधिक होती है। तिरछी किरणें वायुमण्डल में अधिक दूरी तय करती हैं तथा इनकी बहुत-सी गर्मी जलवाष्प अथवा धूलकणों द्वारा सोख ली जाती है। भूमध्य रेखा पर सारा वर्ष सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा इन प्रदेशों में उच्च तापमान पाए जाते हैं। ध्रुवों की ओर तिरछी किरणों के कारण कम तापमान पाए जाते हैं।

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प्रश्न 17.
तापमान तथा ऊंचाई में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊंचाई (Altitude ):
समुद्र तल से ऊंचाई के साथ तापमान घटता है। ताप के कम होने की दर 1°F प्रति 300 फुट या 0.6°C प्रति 100 मीटर है। वायुमण्डल धरातल द्वारा छोड़ी गई गर्मी (Radiation) से गर्म होता है। इसलिए निचली परतें पहले गर्म होती हैं तथा ऊपरी परतें बाद में पर्वत मैदानों की अपेक्षा ठण्डे होते हैं (Mountains are cooler than plains.) ऊंचाई के अनुसार वायु का दबाव सघनता, जलवाष्प तथा धूल कणों की कमी होती है।

इसलिए ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र की शुद्ध तथा विरल वायु गर्मी को लीन नहीं कर सकती पर्वतीय प्रदेशों की कठोर चट्टानें शीघ्र ही गर्मी छोड़ देती हैं जो कि बिना रोक-टोक वायुमण्डल से बाहर निकल जाती हैं। इस प्रकार जो स्थान जितना ही ऊंचा होगा, उतना ही ठण्डा होगा।

प्रश्न 18.
भौमिक विकिरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल द्वारा सौर ऊर्जा दीर्घ तरंगों के रूप में वापस लौट जाती है, इसे भौमिक विकिरण कहते हैं। इसीलिए वायुमण्डल नीचे से ऊपर की ओर गर्म होता है। भौमिक विकिरण ही वायुमण्डल को गर्म करने का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 19.
ऊष्मा बजट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर औसत तापमान एक समान रहता है। पृथ्वी का औसत तापमान 15°C है। सूर्यातप तथा भौमिक विकिरण के कारण पृथ्वी के ताप में सन्तुलन रहता है, पृथ्वी जितनी मात्रा में सौर ऊर्जा प्राप्त करती है, उतनी ही मात्रा में ऊर्जा भौमिक विकिरण द्वारा अन्तरिक्ष में लौट जाती है। इसे ऊष्मा बजट कहते हैं

प्रश्न 20.
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर मानव बस्तियाँ हैं परन्तु उत्तरी ढलानों पर वन पाए जाते हैं। क्यों?
उत्तर:
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानें सूर्य की ओर झुकी रहती हैं, तथा अधिक गर्म होती हैं। परन्तु उत्तरी ढलानें सूर्य से परे झुकी होती हैं तथा ठण्डी होती हैं। इसलिए दक्षिणी ढलानों पर कृषि होती है तथा मानव बस्तियां हैं। परन्तु तिब्बत की ओर उत्तरी ढलान ठंडी है तथा यहां वन पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
दैनिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान के एक दिन (24 घण्टे) के अधिकतम तापमान तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को दैनिक तापान्तर कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
सूर्यातप किसे कहते हैं? सूर्यातप का वितरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
सूर्य वायुमण्डल को गर्मी तथा प्रकाश प्रदान करने वाला मुख्य तथा मूल स्रोत है। सूर्य का व्यास पृथ्वी से सौ गुना बड़ा है। सूर्य के धरातल पर 10,000°F से भी अधिक तापक्रम है। इस विशाल तेज पिण्ड से सभी दिशाओं में ताप तरंगें फैलती हैं। सूर्य ताप प्रकाश की गति से (186,000 मील या 3000,000 कि० मी० प्रति सेकण्ड की दर से) वायुमण्डल में से गुज़रता है।

पृथ्वी पर सूर्यातप का केवल दो अरबवां भाग ही (1/2000,000,000) प्राप्त होता है। अनुमानतः पृथ्वी प्रति मिनट 1.94 Calories गर्मी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्राप्त करती है। इसे सौर स्थिरांक (Solar Constant) कहते हैं। इस प्रकार धरातल पर प्राप्त होने वाले सौर्य विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। (Insolation means incoming Solar Radiation on the Surface of the Earth.) सूर्यातप तीन शब्दों के जोड़ से बना है:

सूर्यातप (Insolation)= In + sol + ation
In = In coming
Sol = solar
ation = Radiation

सूर्यातप का महत्त्व (Importance of Insolation): यद्यपि पृथ्वी के धरातल पर प्राप्त होने वाला सूर्यातप बहुत थोड़ा है फिर भी यह कई प्रकार से महत्त्वपूर्ण है

  1. कई भौतिक क्रियाएं सूर्यातप पर निर्भर करती हैं।
  2. सूर्यातप के कारण पवनें तथा समुद्री धाराएं चलती हैं।
  3. सूर्यातप ऋतु परिवर्तन का आधार है।
  4. इसी सूर्यातप के कारण पृथ्वी मानव निवास के योग्य ग्रह हैं।
  5. वायुमण्डलीय गतियां तथा वायु राशियाँ सूर्यातप पर ही निर्भर करती हैं।

सूर्यातप वितरण के प्रमुख घटक (Major Factors affecting the distribution of Insolation)
प्रमुख घटक (Major Factors): पृथ्वी के हर स्थान पर सूर्यातप की मात्रा समान नहीं है। सूर्यातप की मात्रा निम्नलिखित प्रमुख घटकों पर निर्भर करती है

1. सौर विकिरण की तीव्रता (Intensity of Insolation ):
सौर विकिरण की तीव्रता सूर्य किरणों के आपात् कोण पर निर्भर करती है। पृथ्वी की गोल सतह पर सूर्य की किरणों का कोण हर स्थान पर भिन्न-भिन्न होता है। यह कोण भूमध्य रेखा पर लम्ब और ध्रुवों की ओर कम होता जाता है। इस प्रकार सूर्य की तिरछी व लम्ब किरणों के कारण सूर्यातप की मात्रा में अन्तर पाया जाता है। लम्ब किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा एक छोटे क्षेत्र में प्रभाव डालती हैं तथा प्रति इकाई क्षेत्र अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है।

लम्बवत् किरणों को वायुमण्डल का थोड़ा भाग पार करना पड़ता है। इसलिए वायुमण्डल में मिली गैसें जल वाष्प द्वारा अवशोषण, प्रकीर्णन तथा परावर्तन से सूर्यातप की मात्रा कम नष्ट होती है। इसके विपरीत तिरछी किरणें अधिक स्थान घेरती हैं तथा वायुमण्डल का अधिक भाग पार करती हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रति इकाई क्षेत्र प्राप्त सूर्यातप की मात्रा कम होती है तथा तिरछी किरणों के ताप का अधिक भाग वायुमण्डल में नष्ट हो जाता है।

निम्नलिखित तालिका से भी यह स्पष्ट हो जाता है:

सूर्य की किरणों का आपतन कोण (Angle of Sun’s Rays) वायुमण्डल में सूर्य की किरणों की लम्बाई (Length of Sun’s Rays in Atmosphere) तीव्रता (Intensity)
90° 1.00 78
60° 1.15 55
30° 2.00 31
45.00 0

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2. दिन की अवधि (Length of Day ):
पृथ्वी के अक्ष के झुके होने के कारण हर स्थान पर दिन-रात की लम्बाई समान नहीं होती है। भूमध्य रेखा से दूर जाने पर ग्रीष्म काल में दिन बड़े हो जाते हैं और शीत काल में रातें बड़ी हो जाती हैं। दिन की अवधि बढ़ने का अर्थ है कि लम्बे समय तक सूर्यातप का प्राप्त होना। दिन की अवधि कम होने से सूर्यातप की मात्रा कम हो जाती है। परन्तु पृथ्वी पर सूर्यातप की मात्रा के वितरण पर इन दोनों घटकों का सम्मिलित प्रभाव पड़ता है उच्च अक्षांशों में दिन की अवधि अधिक होते हुए भी सूर्यातप की मात्रा कम होती है क्योंकि सूर्य की किरणें अधिक तिरछी पड़ती हैं जैसा कि निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है:

विभिन्न अक्षांशों पर दिन की अधिकतम अवधि (Length of Longest day at different Latitudes)
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3. वायुमण्डल की मोटाई (Thickness of Atmosphere ):
वायुमण्डल के मोटे आवरण में से गुज़रते समय सूर्यातप का 49% भाग मार्ग में नष्ट हो जाता है। वायुमण्डल की मोटाई निम्नलिखित रूप से सूर्यातप की मात्रा पर प्रभाव डालती है।
(क) प्रकीर्णन (Scattering): सूर्यातप का कुछ भाग अणुओं तथा धूल कणों द्वारा बिखेर दिया जाता है जिसके कारण आकाश नीला प्रतीत होता है।
(ख) परावर्तन (Reflection ): धूल कण, जलवाष्प तथा कुछ सूर्यातप अन्तरिक्ष में लौट जाता है।
(ग) अवशोषण (Absorption ): जलवाष्प तथा गैसों द्वारा काफ़ी मात्रा में सूर्यातप जज़ब कर लिया जाता है।
जो सूर्यातप पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष में लौट जाता है उसका कुछ अंश आकाश के नीले तथा मन्द प्रकाश के रूप में उपयोगी है। उच्च अक्षांशों में यह मन्द प्रकाश (Diffused day light) पूर्ण अन्धकार नहीं होने देता।

वायुमण्डल में नष्ट होने वाले सूर्यातप की मात्रा मान लो कि वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाला ताप 100 इकाई है। इसमें से केवल 51 इकाई ताप ही पृथ्वी पर पहुंचता है। इसमें 49 इकाई ताप वायुमण्डल तथा अन्तरिक्ष में लौट जाता है। शून्य में परावर्तन हुई उस ऊष्मा को एल्बेडो (Albedo of the earth) कहते हैं।
वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त ऊष्मा
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पृथ्वी की सतह पर प्राप्त ऊष्मा 100 – 49 = 51%
इस प्रकार सूर्यातप का केवल 51% भाग ही पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होता है। यह ताप पृथ्वी से दीर्घ किरणों द्वारा विकिरण के माध्यम से वायुमण्डल को गर्म करता है।

अन्य घटक (Minor Factors):
4.  जल एवम् स्थल का वितरण (Distribution of land and water ):
पानी की अपेक्षा स्थल भाग अधिक तथा शीघ्र गर्म हो जाते हैं तथा शीघ्र ही ठण्डे हो जाते हैं। जल का आक्षिक ताप (Specific Heat) स्थल के आक्षिक ताप से 2 गुना अधिक है। महासागरों में सूर्य की किरणों को अधिक गहराई तक जल को गर्म करना पड़ता है। जल गतिशील भी है। इसलिए जल-भागों को गर्म करने के लिए अधिक ताप की आवश्यकता होती है। इसी कारण ग्रीष्म ऋतु में महाद्वीप अधिक गर्म हो जाते हैं जबकि शीतकाल में महासागर अधिक गर्म होते हैं।

5. धरातल का स्वभाव (Nature of the Surface ): धरातल में विभिन्नता के कारण ताप के अवशोषण तथा परावर्तन की महत्ता भिन्न-भिन्न होती है। जैसे विभिन्न भूतलों पर सौर किरणों का परावर्तन अग्रलिखित प्रकार से होता है
वनस्पति – 7%
रेत – 13%
जल – 30%
बर्फ़ – 80%
इसी कारण हिम से ढका भूतल कम ताप ग्रहण करता है जबकि मरुस्थल में रेतीली भूमि अधिक ताप प्राप्त करती है।

6. पृथ्वी से सूर्य की दूरी (Distance between Earth and Sun):
पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य दूरी सदा समान नहीं रहती। उत्तरायण (Aphelion) के समय यह दूरी 940 लाख मील होती है तथा दक्षिणायन (Perihelion) के समय यह दूरी 915 लाख मील होती है। इस प्रकार उत्तरायण के समय तथा दक्षिणायन के समय सूर्यातप में 7% का अन्तर पड़ जाता है।

7. सौर कलंकों की संख्या (Number of Sun Spots ):
सौर कलंकों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है । अधिक संख्या के कारण सूर्यातप की मात्रा अधिक प्राप्त होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 2.
तापमान के क्षैतिज वितरण को कौन-से संघटक नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
तापमान किसी पदार्थ में ताप की मात्रा का सूचक है। किसी स्थान पर छाया में भूतल 4 फुट की ऊंची वायु की मापी हुई गर्मी को उस स्थान का तापमान कहा जाता है। प्रत्येक स्थान पर तापमान समान नहीं पाया जाता है। धरातल पर तापमान का वितरण निम्नलिखित संघटकों द्वारा नियन्त्रित होता है:

1. भूमध्य रेखा से दूरी (Distance from the Equator):
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए तापमान लगातार कम होता जाता है। किसी भी अक्षांश पर तापमान सूर्य की किरणों के कोण पर निर्भर है। लम्ब किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा थोड़े स्थान को घेरती हैं। अतः प्रति इकाई क्षेत्र प्राप्त ऊष्मा अधिक होती है। तिरछी किरणें वायुमण्डल में से अधिक दूरी तय करती हैं तथा इनकी बहुत-सी गर्मी जलवाष्प अथवा धूलकणों द्वारा सोख ली जाती है। भूमध्य रेखा पर सारा वर्ष सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा इन प्रदेशों में उच्च तापमान पाए जाते हैं। ध्रुवों की ओर तिरछी किरणों के कारण कम तापमान पाए जाते हैं।

2. समुद्र तल से ऊंचाई (Altitude):
समुद्र तल से ऊंचाई के साथ तापमान घटता है। ताप के कम होने की दर 1°F प्रति 300 फुट या 0.6°C प्रति 100 मीटर है। वायुमण्डल धरातल द्वारा छोड़ी गई गर्मी (Radiation) से गर्म होता है। इसलिए निचली परतें पहले गर्म होती हैं तथा ऊपरी परतें बाद में पर्वत मैदानों की अपेक्षा ठण्डे होते हैं (Mountains are cooler than plains)। ऊंचाई के अनुसार वायु का दबाव सघनता, जलवाष्प तथा धूल के कणों की कमी होती है। इसलिए ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र की शुद्ध तथा विरल वायु गर्मी को लीन नहीं कर सकती पर्वतीय प्रदेशों की कठोर चट्टानें शीघ्र ही गर्मी छोड़ देती हैं जो कि बिना रोक-टोक वायुमण्डल से बाहर निकल जाती हैं। इस प्रकार जो स्थान जितना ही ऊंचा होगा, उतना ही ठण्डा होगा।

3. समुद्र से दूरी (Distance from the Sea) समुद्र का प्रभाव जलवायु के लिए समकारी होता है। समुद्र के समीप के प्रदेशों में सम (Equable) जलवायु होती है। परन्तु भीतरी (Inland) या समुद्र से दूर प्रदेशों में कठोर (Extreme) जलवायु मिलती है। जल स्थल की अपेक्षा धीरे-धीरे गर्म तथा ठण्डा होता है इसलिए तटीय प्रदेशों में जल समीर (Sea Breeze) के कारण दिन का ताप अधिक नहीं होता है। स्थल समीर (Land Breeze) के कारण रात का ताप अधिक कम नहीं होता। इसलिए इनके प्रभाव से गर्मी तथा सर्दी दोनों ही अधिक नहीं होतीं। परन्तु समुद्र तट से अधिक दूर जाने पर, स्थल के प्रभाव के कारण ग्रीष्म ऋतु अधिक गर्म तथा शीत ऋतु अधिक ठण्डी होती है।

4. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds):
प्रचलित पवनें किसी प्रदेश के तापमान तथा वर्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। समुद्र की ओर से आने वाली पवनें जलवायु को सम तथा आर्द्र रखती हैं। (A wind from the sea lowers the summer temperature and raises the winter temperature.) परन्तु स्थल की ओर से आने वाली पवनें स्थल के प्रभाव के कारण किसी प्रदेश की जलवायु को कठोर तथा शुष्क बनाती हैं। (A Wind from the land lowers the winter temperature and raises the summer temperature.) समुद्र से आने वाली पश्चिमी पवनों (Westerlies) के कारण शीत ऋतु में इंग्लैण्ड का औसत तापमान 20°F – 30°F ऊंचा रहता है।

5. समुद्री धाराएं (Ocean Currents ):
समुद्री धाराओं का प्रभाव उन पवनों द्वारा होता है जो इन धाराओं के ऊपर से गुज़रती हैं। गर्म धाराओं के ऊपर से गुज़रने वाली पवनें तटीय प्रदेशों के तापक्रम को ऊँचा कर देती हैं तथा वर्षा में सहायक होती हैं। शीत ऋतु का तापमान बढ़ जाने से जलवायु सम हो जाती है । परन्तु ठण्डी धाराओं के ऊपर से गुज़रने वाली पवनों के प्रभाव से तटीय प्रदेश ठण्डे तथा शुष्क होते हैं। (Warm currents raise and cold currents lower the temperature of coastal areas.)
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6. पर्वतों की दिशा (Direction of Mountains):
किसी देश में पर्वतों की स्थिति तथा दिशा तापमान तथा वर्षा पर प्रभाव डालती है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें रोक नहीं पाता जिससे राजस्थान शुष्क रहता है। यदि हिमालय पर्वत मानसून पवनों के आड़े स्थित न होता तो उत्तरी भारत भी मरुस्थल होता । पर्वतों के सम्मुख ढाल पर वर्षा होती है परन्तु त्रिमुख ढाल वर्षा छाया (Rain Shadow) में होने के कारण शुष्क रहते हैं ।

7. भूमि की उलान (Slope of the Land):
सूर्यमुखी ढाल सूर्य त्रिमुखी ढालों की अपेक्षा गर्म होती है। उत्तरी ढाल की अपेक्षा दक्षिणी ढाल पर सूर्य की किरणें अधिक सीधी पड़ती हैं। दक्षिणी ढाल उत्तर से आने वाली ठण्डी हवाओं से सुरक्षित रहती है। उत्तरी अधिक देर तक छाया में रहती है परन्तु दक्षिणी ढाल पर सूर्य अधिक देर तक चमकता है। हिमालय पर्वत के तिब्बत की ओर ढाल वाले प्रदेश ठण्डे हैं परन्तु भारत की ओर ढाल वाले प्रदेश गर्म हैं।
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8. भू-तल का स्वभाव (Nature of the Soil):
मैदानों की चिकनी मिट्टी प्रायः बारीक होती है तथा शनै: शनै: गर्म तथा ठण्डी होती है परन्तु रेत जल्दी ही गर्म तथा ठण्डी हो जाती है । इसी कारण मरुस्थलों में दिन को अधिक गर्मी तथा रात को अधिक सर्दी होती है ।

9. मेघ और वर्षा (Clouds and Rainfall):
जिन प्रदेशों में बादल छाए रहते हैं, वहां जलवायु सम रहती है। और अधिक वर्षा होती है। मेघ सूर्य की किरणों को दिन के समय रोकते हैं। सूर्य के ताप को लीन कर लेते हैं। मेघरहित (Cloudless) आकाश के कारण दिन को तापक्रम ऊँचा हो जाता है। ये रात को पृथ्वी द्वारा छोड़ी हुई गर्मी को बाहर नहीं जाने देते । वर्षा के कारण भी तापमान कम हो जाता है।

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प्रश्न 3.
तापमान कटिबन्ध से क्या अभिप्राय है? अक्षांशों के आधार पर ताप-कटिबन्धों का वर्णन करो अक्षांशों के आधार पर तापमान का क्षैतिज वितरण
उत्तर:
अक्षांशों के आधार पर तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature Based on Latitudes):
विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्यातप की प्राप्ति कम होती जाती है क्योंकि सौर – ताप की किरणों में अधिकाधिक तिरछापन आता रहता है। इस प्रकार भूतल पर तापमान का क्षैतिज वितरण अक्षांशों के अनुसार घटता-बढ़ता है। यद्यपि विषुवत् रेखा पर वर्ष पर्यन्त सूर्य लगभग लम्बवत् रहता है, किन्तु यहां आकाश अधिकांश अवधि के लिए मेघाच्छादित रहता है तथा वर्षा प्रचुर मात्रा में होती है। अतः सूर्यातप का अधिकांश भाग परावर्तित हो जाता है तथा पर्याप्त मात्रा में ऊष्मा वाष्पीकरण में व्यय हो जाती है।

इन कारणों से उच्चतम तापमान कभी भी विषुवत् रेखीय प्रदेशों में नहीं पाया जाता संसार के उच्चतम तापमान कर्क एवं मकर रेखाओं के निकट पाए जाते हैं क्योंकि यहां आकाश सदैव मेघ – विहीन तथा स्वच्छ रहता है, जिससे सूर्य शक्ति बिना किसी अवरोध के यहां पहुंचती है तथा यहां की भूमि को प्रचण्ड रूप से उष्ण कर देती है। मकर रेखा की अपेक्षा कर्क रेखा पर स्थल का विस्तार अधिक होने के कारण वहां तापमान उच्च रहते हैं। इस प्रकार के संसार के उच्चतम तापमान कर्क रेखा पर ही पाए जाते हैं।

अतः संसार की तापीय मध्य रेखा (Thermal or Heat Equator) कर्क रेखा के साथ-साथ पाई जाती है। विषुवत्रेखा से ध्रुवों की ओर तापमान के घटने की दर को ताप प्रवणता (Temperature Gradient) कहते हैं। यह ताप प्रवणता कर्क एवं मकर रेखाओं के बीच के भू-भाग में अति न्यून होती है। इस प्रकार आयतन का क्षैतिज वितरण विषुवत् रेखा से दूरी अर्थात् अक्षांशों का अनुसरण करता पाया जाता है। प्राचीन यूनानी (Greek) विचारकों ने अक्षांशों के आधार पर पृथ्वी के तल को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त किया है:

ताप कटिबन्ध (Temperature Zone):
1. उष्ण कटिबन्ध (Torrid or Hot Zone):
उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा \(\left(23 \frac{1}{2}^{\circ} \text { North }\right)\) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा \(\left(23 \frac{1}{2}^{\circ} \text { South }\right)\) के बीच विस्तृत भू-भाग में सौर किरणें वर्ष भर में एक बार अवश्य ही ऊर्ध्वाधर (Vertical) पड़ती हैं। परन्तु इस भू-भाग से दूर सूर्य कभी भी ऊर्ध्वाधर नहीं होता। दूसरे शब्दों में, सूर्य इस भू-भाग में वर्ष पर्यन्त लगभग लम्बवत् रहता है। इस भू-भाग में दिन एवं रात्रि की अवधि में भी बहुत कम अन्तर होता है। अतः इस भू-खण्ड में सदैव प्रचण्ड रूप से उष्णता रहती है, जिससे इसे उष्ण कटिबन्ध (Hot or Torrid Zone) कहते हैं।
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2. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperature Zones):
कर्क रेखा एवं उत्तरी ध्रुववृत्त \(\left(66 \frac{1}{2}\right)^{\circ}\) उत्तरी अक्षांश Article Circle,\( \left(66 \frac{1}{2}^{\circ} \text { North }\right)\) तथा मकर रेखा, \(23 \frac{1}{2} \circ\)दक्षिण (Tropic of copricorn) से अंटार्कटिक वृत्त \(66\frac{1}{2} \circ\) दक्षिणी मध्य के भू-भाग में सूर्य की किरणें सदा तिरछी पड़ती हैं। इसके परिणामस्वरूप शीतकाल में बहुत निम्न तापमान तथा ग्रीष्म काल में दरमियाने तापमान रहते हैं। इन क्षेत्रों को उत्तरी शीत ऊष्ण कटिबन्ध (North Temperature Zone) तथा दक्षिणी शीत-उष्ण कटिबन्ध (South Temperature Zone) कहते हैं।

3. शीत कटिबन्ध ( Frigid Zone ):
उत्तरी ध्रुव तथा उत्तरी ध्रुवीय वृत्त, दक्षिणी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुवीय वृत्त के मध्य स्थित भागों को क्रमवार उत्तरी शीत खण्ड तथा दक्षिणी शीत खण्ड कहते हैं। इन भागों में सारा वर्ष सूर्य की किरणें बहुत तिरछी पड़ती हैं। इसलिए तापमान बहुत कम रहते हैं तथा कठोर शीत पड़ती है।

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