JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जैवमण्डल में सम्मिलित हैं
(A) केवल पौधे
(B) केवल प्राणी
(C) सभी जैव व अजैव जीव
(D) सभी जीवित जीव।
उत्तर:
(D) सभी जीवित जीव।

2. उष्ण कटिबन्धीय वन (Tropical) बायोम में वृक्षों की औसत ऊंचाई है
(A) 25-35 मीटर
(B) 50-55 मीटर
(C) 10-15 मीटर
(D) 10 मीटर से कम।
उत्तर:
(C) 10-15 मीटर।

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3. उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?
(A) प्रेयरी
(B) स्टैपी
(C) सवाना
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) सवाना।

4. चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर क्या बनाती है?
(A) आयरन कार्बोनेट
(B) आयरन ऑक्साइड
(C) आयरन नाइट्राइट
(D) आयरन सल्फेट।
उत्तर:
(B) आयरन ऑक्साइड।

5. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट्स
(C) एमिनोएसिड
(D) विटामिन्स।
उत्तर:
(B) कार्बोहाइड्रेटस।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पारितन्त्र क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
पारितन्त्र के प्रकार (Types of Ecosystems): प्रमुख पारितन्त्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं।

  1. स्थलीय (Terrestrial) पारितन्त्र
  2. जलीय (Aquatic) पारितन्त्र।

स्थलीय पारितन्त्र को पुनः बायोम (Biomes) में विभक्त किया जा सकता है। बायोम, पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है, जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विभिन्न बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय सम्बन्धी तत्त्व करते हैं। अत: विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्त:सम्बन्धों के कुल योग को ‘बायोम कहते हैं। इसमें वर्षा, तापमान, आर्द्रता व मिट्टी सम्बन्धी अवयव भी शामिल हैं।

संसार के कुछ प्रमुख पारितन्त्र : वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल और टुण्ड्रा (Tundra) पारितन्त्र हैं। जलीय पारितन्त्र को समुद्री पारितन्त्र व ताज़े जल के पारितन्त्र में बाँटा जाता है। समुद्री पारितन्त्र में महासागरीय, तटीय ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति (Coral reef), पारितन्त्र सम्मिलित हैं। ताज़े जल के पारितन्त्र में झीलें, तालाब, सरिताएँ, कच्छ व दलदल (Marshes and bogs) शामिल हैं।

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प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इकोलोजी (ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों (Oikos) ‘ओइकोस’ और (logy) ‘लोजी’ से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ ‘घर तथा ‘लोजी’ का अर्थ विज्ञान या अध्ययन से है। शाब्दिक अर्थानुसार इकोलोजी-पृथ्वी के पौधों, मनुष्यों, जन्तुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं के ‘घर के रूप में अध्ययन है। एक-दूसरे पर आश्रित होने के कारण ही ये एक साथ रहते हैं।

जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल (Ernst haeckel) जिन्होंने सर्वप्रथम सन् 1869 में ओइकोलोजी (Oekologie) शब्द का प्रयोग किया, पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं। जीवधारियों (जैविक) व अजैविक (भौतिक पर्यावरण) घटकों के पारस्परिक सम्पर्क के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं। अत: जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण के अन्तःसम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।

प्रश्न 3.
बायोम क्या है?
उत्तर:
बायोम के प्रकार (Types of Biomes) पिछले भागों से आप जान गए हैं कि बायोम का अर्थ क्या है? आओ, हम अब संसार के कुछ प्रमुख बायोम पहचानें और उन्हें रेखांकित करें। संसार के पाँच प्रमुख बायोम इस प्रकार हैं : वन बायोम, मरुस्थलीय बायोम, घासभूमि बायोम, जलीय बायोम और उच्च प्रदेशीय बायोम।।

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प्रश्न 4.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला:
किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक स्रोत से दूसरे में ऊर्जा अन्तरण की साधारण प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला कहते हैं। उदाहरण के लिए पौधे अपने भोजन व विकास के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। हरे पौधे उपभोक्ता के लिए भोजन के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं। वास्तव में खाद्य श्रृंखला सूर्यतप ऊर्जा का प्रवाह चक्र है। जैसे-एक घास भूमि में शाकाहारी जीव हिरण अपना भोजन घास से प्राप्त करता है। दूसरे प्रकाश संश्लेषण स्तर पर मांसाहारी जीव, जैसे-शेर भोजन के लिए हिरण भोजनभोजन पर निर्भर है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला में निम्न से उच्च | प्राथमिक प्राथमिक द्वितीय स्तरों की ओर खाद्य के रूप में ऊर्जा का प्रवाह होता है।
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चराई खाद्य श्रृंखला:
चराई खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर पर प्रवाहित होती है। शाकाहारियों Fig. Food Chain में भोजन के रूप में लिए गए पदार्थों का कुछ अंश उनकेसर्वाहारी शरीर में एकत्रित हो जाता है, शेष ऊर्जा शारीरिक कार्यों के दौरान नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार एक माँसाहारी, मांसाहारी जब अपना शिकार खाता है, तो उससे प्राप्त कुछ ऊर्जा ही) शाकाहारी इसके शरीर में संचित होती है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला के जीवाणु अगले पोषण स्तर पर बहुत कम ऊर्जा रूपांतरण  करते हैं, क्योंकि हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है।

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पिरामिड आकृति की खाद्य श्रृंखला दिखाती है कि बहुत से पेड़-पौधे व झाड़ियाँ आदि जिराफ को भोजन व ऊर्जा Fig. Ecological Pyramid प्रदान करते हैं। पौधों की तुलना में जिराफ की संख्या बहुत कम होती है और शेरों की संख्या जिराफ से भी कम है। दूसरे शब्दों में, शीर्ष पर कुछ जीवों के जिन्दा रहने के लिए आधार पर या पहले पोषण स्तर पर विस्तृत जैविक पदार्थ अनिवार्य हैं। खाद्य श्रृंखला के जीवों की यह परस्पर निर्भरता पौधों व जन्तुओं के एक-एक समुदाय को सन्तुलित करने में सहायक होती है। इसीलिए, पर्यावरण में अधिक शाकाहारी व कम मांसाहारी हैं।

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प्रश्न 5.
खाद्य जाल से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर-खाद्य जाल (Food Web):
किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य श्रृंखला सरल रूप में नहीं मिलती। जब कई खाद्य श्रृंखलाएं एक-दूसरे से घुल-मिल कर एक जटिल रूप धारण करती हैं तो उसे खाद्य जाल कहते हैं। इस प्रकार खाद्य जाल अनेक स्त्रोतों से ऊर्जा के अन्तरण की एक जटिल प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए प्रत्येक जीव कई जीवों से भिन्न-भिन्न प्रकार का भोजन खा सकता है। अगले स्तर पर अनेक जीवों द्वारा उस जीव को खाया जा सकता है। इस प्रकार जीवों के परस्पर सम्बन्ध जटिल हो जाते हैं तथा अनेक प्रक्रियाएं हो सकती हैं।

प्राथमिक उत्पादक पौधे आदि सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं तथा उच्च स्तर के जीवों के लिये भोजन प्रदान करते हैं। परन्तु ऊर्जा अन्तरण के प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा की काफ़ी मात्रा कम हो जाती है। एक खाद्य श्रृंखला में विभिन्न जीवों का सम्बन्ध व ऊर्जा अन्तरण को पिरामिड से प्रदर्शित किया जा सकता है। इस पिरामिड में मनुष्य का सर्वोपरि स्थान है। इस पिरामिड का आधार चौड़ा होता है तथा प्राथमिक उत्पादक का स्तर होता है। आधार से शीर्ष की ओर संख्या घटती जाती है व खाद्य के रूप में प्राप्त ऊर्जा भी घटती जाती है। परिणामस्वरूप अधिकतर खाद्य श्रृंखलाएं चार या पांच स्तरों तक ही सीमित होती हैं। इस पिरामिड को सांख्यिक पिरामिड भी कहते हैं।

पौधे पर जीवित रहने वाला एक कीड़ा (Beetle) एक मेंढक का भोजन है, जो (मेंढक) साँप का भोजन है और साँप एक बाज़ द्वारा खा लिया जाता है। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहलाती है। खाद्य श्रृंखला की प्रक्रिया में एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा के रूपान्तरण को ऊर्जा प्रवाह (Flow of energy) कहते हैं। खाद्य श्रृंखलाएं पृथक् अनुक्रम न होकर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। उदाहरणार्थ-एक चूहा, जो अन्न पर निर्भर है, वह अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का भोजन है और तृतीयक माँसाहारी अनेक द्वितीयक जीवों से अपने भोजन की पूर्ति करते हैं।

इस प्रकार प्रत्येक माँसाहारी जीव एक से अधिक प्रकार के शिकार पर निर्भर है। परिणामस्वरूप खाद्य श्रृंखलाएं आसपास में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़े होने (अर्थात् जीवों की खाद्य श्रृंखलाओं के विकल्प उपलब्ध होने पर) को खाद्य जाल (Food web) कहा जाता है। सामान्यतः दो प्रकार की खाद्य श्रृंखलाएं पाई जाती हैं-चराई खाद्य श्रृंखला (Grazing food chain) और अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus food chain) चराई खाद्य श्रृंखला पौधों (उत्पादक) से आरम्भ होकर माँसाहारी (तृतीयक उपभोक्ता) तक जाती है, जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर हैं। हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसमें श्वसन, उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। खाद्य श्रृंखला में तीन से पाँच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है। अपरद खाद्य श्रृंखला चराई खाद्य श्रृंखला से प्राप्त मृत पदार्थों पर निर्भर है और इसमें कार्बनिक पदार्थ का अपघटन सम्मिलित है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जैव भू-रासायनिक चक्र क्या है? वायुमण्डल के नाइट्रोजन का भौमीकरण कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
जैव भू-रसायन चक्र (Biogeo-chemical Cycle):
सूर्य ऊर्जा का मूल स्त्रोत है जिस पर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमण्डल में प्रकाश संश्लेषण-क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरम्भ करती है, जो हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन व कार्बनिक यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धरती पर पहुँचने वाले सूर्यातप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में काम आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधे की श्वसन-विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थाई रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है।

पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार के जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिकीय अन्तर्सम्बन्धों पर जीवित हैं। जीवधारी बहुतलता व विविधता में ही ज़िन्दा रह सकते हैं। इसमें (अर्थात्, जीवित रहने की प्रक्रिया में) विधिवत प्रवाह जैसे-ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। इनकी उपलब्धता संसार के विभिन्न भागों में भिन्न है। यह भिन्नता क्षेत्रीय होने के साथ-साथ सामयिक (अर्थात् वर्ष के 12 महीनों में भी भिन्न है) भी है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमण्डल व जलमण्डल की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन लगभग एक जैसा अर्थात् बदलाव रहित रहा है।

रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्त्वों के अवशोषण से आरम्भ होता है और उनके वाय, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरम्भ होता है। ये चक्र मुख्यतः सौर ताप से संचालित होते हैं। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycles) कहे जाते हैं। बायो (Bio) का अर्थ है जीव तथा ‘जीयो’ (Geo) का तात्पर्य पृथ्वी पर उपस्थित चट्टानें, मिट्टी, वायु व जल से है। जैव भू-रासायनिक चक्र दो प्रकार के हैं-एक गैसीय (Gaseous cycle) और दूसरा तलछटी चक्र (Sedimentary cycle), गैसीय चक्र में पदार्थ का मुख्य भण्डार/स्रोत वायुमण्डल व महासागर हैं। तलछटी चक्र के प्रमुख भण्डार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी, तलछट व अन्य चट्टानें हैं।

नाइट्रोजन चक्र (The Nitrogen Cycle): वायुमण्डल की संरचना का प्रमुख घटक नाइट्रोजन वायुमण्डलीय गैसों का 79 प्रतिशत भाग है। विभिन्न कार्बनिक यौगिक जैसे-एमिनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन व वर्णक (Pigment) आदि में यह एक महत्त्वपूर्ण घटक है। (वायु में स्वतन्त्र रूप से पाई जाने वाली नाइट्रोजन को अधिकांश जीव प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं) केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के जीव जैसे-कुछ मृदा जीवाणु व ब्लू ग्रीन एलगी (Blue green algae) ही इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। सामान्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती है। नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक (Biological) है, अर्थात् जीव ही ग्रहण कर सकते हैं।

स्वतन्त्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व सम्बन्धित पौधों की जड़ें व रन्ध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमण्डल में पहुँचती है। वायुमण्डल में भी बिजली चमकने (Lightening) व कोसमिक रेडियेशन (Cosmic radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है, महासागरों में कुछ समुद्री जीव भी इसका यौगिकीकरण करते हैं। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन के इस तरह यौगिक रूप में उपलब्ध होने पर हरे पौधे में इसका स्वांगीकरण (Nitrogen assimilation) होता है। शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका (नाइट्रोजन) कुछ भाग उनमें चला जाता है।

फिर मृत पौधों व जानवरों के नाइट्रोजनी अपशिष्ट (Excretion of nitrogenous wastes) मिट्टी, में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन-यौगिकीकरण हो जाता है। कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट को पुनः स्वतन्त्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी नाइट्रीकरण (De-nitrification) कहा जाता है। (इस तरह नाइट्रोजन चक्र चलता रहता है)

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प्रश्न 2.
पारिस्थितिक सन्तुलन क्या है? इसके असन्तुलन को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological balance)-किसी पारितन्त्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी सम्भव है, जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। क्रमश: परिवर्तन भी हो, लेकिन ऐसा प्राकृतिक अनुक्रमण (Natural succession) के द्वारा ही होता है। इसे पारितन्त्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थायी सन्तुलन के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। यह सन्तुलन निश्चित प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा व आपसी सहयोग से होता है। कुछ प्रजातियों के ज़िन्दा रहने के संघर्ष से भी पर्यावरण सन्तुलन प्राप्त किया जाता है। सन्तुलन इस बात पर भी निर्भर करता है कि कुछ प्रजातियाँ अपने भोजन व जीवित रहने के लिए दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहती हैं (जिससे प्रजातियों की संख्या निश्चित रहती है और सन्तुलन बना रहता है

उदाहरण: इसके उदाहरण विशाल घास के मैदानों में मिलते हैं, जहाँ शाकाहारी जन्तु (हिरण, जेबरा व भैंस आदि) अत्यधिक संख्या में होते हैं। दूसरी तरफ माँसाहारी (बाघ, शेर और कोयोटस आदि) अधिक नहीं होते और शाकाहारियों के शिकार पर निर्भर होते हैं, अतः इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है।

असन्तुलन के कारण: पौधों के पारिस्थितिक सन्तुलन में बदलाव के कारण हैं
1. वनों की प्रारम्भिक प्रजातियों में कोई खलल जैसे: स्थानान्तरी कृषि में वनों को साफ करने से प्रजातियों के वितरण में बदलाव लाता है। यह परिवर्तन प्रतिस्पर्धा के कारण है, जहाँ द्वितीय वन प्रजातियों जैसे-घास, बाँस और चीड़
आदि के वृक्ष प्रारम्भिक प्रजातियों के स्थान पर उगते हैं और प्रारम्भिक (Original) बनों की संरचना को बदल देते हैं। यही अनुक्रमण (Succession) कहलाता है।

2. पारिस्थितिक असन्तुलन के कारण: नई प्रजातियों का आगमन, प्राकृतिक विपदाएं और मानव जनित कारक भी हैं।

3. मनुष्य के हस्तक्षेप से पादप समुदाय का सन्तुलन प्रभावित होता है, जो अन्तोगत्वा पूरे पारितन्त्र के सन्तुलन को प्रभावित करता है। इस असन्तुलन से कई अन्य द्वितीय अनुक्रमण आते हैं।

4. प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है। इसने पर्यावरण के वास्तविक रूप को लगभग नष्ट कर दिया है और सामान्य पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पर्यावरण असन्तुलन से ही प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-बाढ़ भूकम्प, बीमारियाँ, और कई जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं। विशेष आवास स्थानों में पौधों व प्राणी समुदायों में घनिष्ठ अन्तर्सम्बन्ध पाए जाते हैं। निश्चित स्थानों पर जीवों में विविधता वहाँ के पर्यावरणीय कारकों का संकेतक है। इन कारकों का समुचित ज्ञान व समझ ही पारितन्त्र के संरक्षण व बचाव के प्रमुख आधार हैं।

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प्रश्न 3.
विश्व में मिलने वाले प्रमुख बायोमों का वर्णन करो।
उत्तर:
स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र विश्व के प्रमुख बायोम हैं-उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय सवाना, भूमध्यसागरीय गुल्म वन, पर्णपाती वन, घास भूमि, मरुस्थल, टैगा एवं टुंड्रा।
1. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन विस्तार:
यह बायोम विषुवतरेखीय क्षेत्रों में स्थित है, जहाँ वार्षिक वर्षा 140 से०मी० से अधिक है। यह पृथ्वी के धरातल का लगभग 8 प्रतिशत भाग घेरे हुए है, लेकिन आधे से अधिक वनस्पतिजात तथा प्राणिजात को संजोए है। वनस्पति-वनस्पति जीवन में काफ़ी भिन्नता है, जो प्रत्येक हेक्टेयर भूमि पर वृक्षों की 200 से अधिक प्रजातियों के रूप में देखी जा सकती है। यहाँ की गर्म तथा आर्द्र जलवायु में चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष उगते हैं, जिनका विशिष्ट स्तरण होता है। इनमें एक सबसे ऊपर का स्तर होता है, जिसके नीचे पेड-पौधों का दो से तीन स्तर होता है। सबसे लंबे पेड़ ऊपर से एक खुला वितान आवरण बनाते हैं, लेकिन निचले शिखर-स्तर भूमि तक सूर्य प्रकाश को नहीं पहुँचने देते।

प्रकाश पाने की होड़ में वृक्षों और पौधों पर चढ़ती बेलें आपस में गुंथ कर फंदा जैसा बनाती हैं। इन बेलों को कठलता या लियाना कहते हैं। पशु जीवन का बाहुल्य है और उसमें काफ़ी भिन्नता है। इनमें भूमि पर तथा वृक्षों पर रहने वाले दोनों जीव शामिल हैं। जानवरों में बंदर, सांप, चींटी भक्षक, उष्णकटिबंधीय पक्षी, चमगादड़, विशाल मांसाहारी जानवर तथा नदियों में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ शामिल हैं। सभी ज्ञात कीटों की प्रजातियों में से लगभग 70 से 80 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में मिलती है।

2. उष्णकटिबंधीय सवाना:
उष्णकटिबंध की सीमाओं पर, जहाँ वर्षा मौसमी है, मोटी घास और बिखरे हुए वृक्ष पाए जाते हैं, जिन्हें सवाना कहते हैं। यहां एक के बाद एक आई और शुष्क मौसम का क्रम चलता रहता है। पौधे एवं पशु शुष्कता सहन करने वाले होते हैं और अधिक भिन्नता नहीं रखते । यह बायोम सर्वाधिक प्रकार के खुरवाले शाकाहारी पशुओं की प्रजातियों, जैसे जेबरा, जिराफ, हाथी तथा अनेक प्रकार के हिरनों का पोषण करती है। ऑस्ट्रेलिया के सवाना मैदानों में कंगारू पाया जाता है।

3. भूमध्यसागरीय गुल्म वन:
इस बायोम को बांज वन या चैपेरल भी कहते हैं। यहाँ की विशेषता अल्प मात्रा में होने वाली शीत ऋतु की वर्षा है। इसके पश्चात् वर्ष के शेष भाग में शुष्क मौसम रहता है। समुद्र की आई एवं ठंडी हवा के प्रभाव से तापमान सामान्य रहता है। इस बायोम में चौड़ी पत्ती वाली सदाबहार वनस्पति मिलती है। यह बायोम अग्निरोधी रेज़िनी पौधों तथा शुष्कता अनुकूलित पशुओं में बनी है।

4. पर्णपाती वन:
ये वन उत्तरी मध्यवर्ती यूरोप, पूर्वी एशिया तथा पूर्वी संयुक्त राज्य के शीतोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यहां वार्षिक वर्षा 75 से 150 से०मी० तक होती है। शरद ऋतु आते ही अधिकांश पेड़ और झाड़ियाँ पत्ते गिराकर पर्णविहीन हो जाते हैं। इस वनस्पति में चौड़ी पत्ती वाले कठोर लकड़ी के वृक्ष जैसे बांस, एल्म, भुर्ज, मैपिल तथा हिकरी आते हैं। प्राणिजगत् में मेढक, कछुए, सैलामैंडर, सांप, छिपकली, गिलहरी, खरगोश, हिरण, भालू, रैकून, लोमड़ी तथा गायक पक्षी शामिल हैं।

5. घासभूमि:
कनाडा तथा संयुक्त राज्य के प्रेरीज, दक्षिणी अमेरिका के पम्पास, यूरोप व एशिया के स्टेपीज़ तथा अफ्रीका के वेल्ड्स प्रमुख घास भूमियाँ हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा 25 से 75 से०मी० है। शीत ऋतु में बर्फानी तूफान आते हैं और गर्मियों की शुष्कता असहनीय हो सकती है। समय-समय पर आग लगने से बड़ी हानि होती है। यहाँ पौधों की मुख्य प्रजाति छोटी एवं ऊँची घास है। पशु प्रजातियों में भरत पक्षी, बिलकारी उल्लू, दुनुकी सींग वाले बाहरसिंगा, बैज़र, काइयोट, जैकरैबिट, तथा गौर शामिल हैं।

6. मरुस्थल:
अत्यधिक कम वर्षा तथा उच्च वाष्पन की दर मरुस्थलों की विशेषताएँ हैं। तेज़ धरातलीय प्रवाह के कारण कम वर्षा से प्राप्त जल भी पौधों को प्राप्त नहीं होता। दिन अत्यधिक गर्म तथा रात ठंडी होती है। तापमान का मौसमी उतार-चढाव काफ़ी होता है। मरुस्थलों में पेड़-पौधे तथा जीव-जंतु कम होते हैं। विभिन्न प्रकार के एकेशिया, कैक्टस, यूफोर्बियाज़ तथा अन्य गूदेदार पौधे मरुस्थली वनस्पति में शामिल हैं। चींटियाँ, टिड्डियाँ, ततैये, बिच्छू, मकड़ी, छिपकली, रटल सांप तथा अनेक कीट-भक्षी पक्षी जैसे-बतासी और अबाबील, बटेर, बत्तख, मरू चूहे, खरगोश, लोमड़ी, गीदड़ तथा विभिन्न बिल्लियाँ सामान्य मरुभूमि पशु हैं।

7. टैगा:
उत्तरी शंकुधारी वन, जिन्हें टैगा कहते हैं, में पौधों का वर्धन काल केवल 150 दिन के लगभग है। क्योंकि यहाँ की भौतिक दशाएँ परिवर्तनशील हैं, इसलिए यहाँ जीवों को तापमान के उतार-चढ़ाव का प्रतिरोधी होना पड़ता है। चीड़, देवदार, फर, हेम्लॉक तथा स्यूस यहाँ की प्रमुख वनस्पतियाँ हैं। कुछ क्षेत्रों में वनस्पति इतनी घनी है कि वनों के धरातल तक बहुत कम प्रकाश पहुँच पाता है। आर्द्र क्षेत्रों में काई तथा पर्ण या पांग बहुतायत से उगते हैं। यह बायोम एल्क, तित्तिरी, हिरण, खरगोश, गिलहरी, प्यूमास, वनविडाल तथा कीटों की अनेक प्रजातियों के लिए अनुकूल आवास है।

8. टुंड्रा
ये वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ से ढंके रहते हैं तथा जहाँ मृदा सालों भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान तथा कम प्रकाश जीवन को सीमित करने वाले कारक हैं। हिमपात कम होता है। वनस्पति इतनी बिखरी हुई है कि इसे आर्कटिक मरुस्थल भी कहते हैं। यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, प्रतृण, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं। हिमशीतित मृदा का मौसमी पिघलाव भूमि के कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं।

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पृथ्वी पर जीवन  JAC Class 11 Geography Notes

→ जैव-मण्डल (Biosphere): जैव मण्डल वह भाग है जहां सभी प्रकार के जीवन (मानव, वनस्पति तथा जन्तु) पाये जाते हैं। स्थल-मण्डल, जल-मण्डल तथा वायुमण्डल के सम्पर्क क्षेत्र में एक पतली परत को जैव मण्डल कहते हैं।
→ पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-systems): स्थल आकृतियां, वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं में अन्तः क्रिया को । पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं। इसमें जैविक तथा अजैविक दो प्रकार के घटक होते हैं।

→ ऊर्जा प्रवाह (Energy flow): इस तन्त्र में ऊर्जा तथा खनिज एक चक्र में प्रवाह करते हैं। पौधे प्रकाश ! संश्लेषण क्रिया द्वारा और ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। एक स्तर से दूसरे स्तर से ऊर्जा परिवर्तन से एक खाद्य शृंखला बनती है।

→ मानवीय प्रभाव (Human Effect): मानव ने प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा हस्तक्षेप से पारिस्थितिक | सन्तुलन को बिगाड़ दिया है। अति पशु चारण, वनों की कटाई तथा स्थानांतरित कृषि से कई समस्याएं उत्पन्न | हो गई हैं।

→ मानवीय अनुक्रिया (Human Response): मानव वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वातावरण में मनुष्य की भूमिका को मानवीय अनुक्रिया कहते हैं। मानव को भौतिक

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