JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(A) लौह व निकल
(B) सिलिका एवं एल्यूमीनियम
(C) लौह व चांदी
(D) लौह ऑक्साइड एवं पोटाशियम।
उत्तर:
सिलिका एवं एल्यमीनियम।

2. निम्न में से कौन-सी कायान्तरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(A) परिवर्तनीय
(B) क्रिस्टलीय
(C) शान्त
(D) पल्लवन।
उत्तर:
परिवर्तनीय।

3. निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(A) स्वर्ण
(B) माइका
(C) चांदी
(D) ग्रेफाइट।
उत्तर:
माइका।

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4. निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?
(A) टोपाज़
(B) क्वार्ट्ज़
(C) हीरा
(D) फेल्डस्पार।
उत्तर:
फेल्डस्पार।

5. निम्न में से कौन-सी शैल अवसादी नहीं है?
(A) टायलाइट
(B) ब्रेशिया
(C) बोरैक्स
(D) संगमरमर।
उत्तर:
संगमरमर।

6. स्थलमण्डल के लगभग तीन-चौथाई हिस्से में कौन-सी चट्टानें पाई जाती हैं?
(A) आग्नेय
(B) अवसादी
(C) कायांतरित
(D) सभी बराबर-बराबर
उत्तर:
अवसादी।

7. निम्नलिखित में से कौन-सी अवसादी शैल है?
(A) बलुआ पत्थर
(B) अभ्रक
(C) ग्रेनाइट
(D) नीस।
उत्तर:
बलुआ पत्थर।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं ? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएं।
उत्तर:
भूपृष्ठ का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस, जैव और अजैव पदार्थों को शैल करते हैं। इनके तीन प्रमुख वर्ग हैं

  1. आग्नेय शैल
  2. अवसादी शैल
  3. कायांतरित शैल।

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प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अन्तर कैसे स्थापित करेंगे?
उत्तर:
भूपृष्ठीय शैलों के प्रमुख तीन प्रकार हैं। इनको निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया जाता है

  1. आग्नेय शैल-मैगमा तथा लावा से धनीभूत
  2. अवसादी शैल-बहि स्रोत प्रक्रियाओं से निक्षेपण।
  3. कायांतरित शैल-उपस्थित शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण।

प्रश्न 3.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या सम्बन्ध होता है।
उत्तर:
एक वर्ग की चट्टानों का दूसरे वर्ग की चट्टानों में बदलने की क्रिया को चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। इस चक्र में दो प्रकार की शक्तियां कार्य करती हैं
1. पृथ्वी की भू-गर्भ में गर्मी।

2. बाह्य शक्तियों से अपरदन। पृथ्वी पर सबसे पहले आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। विभिन्न कारकों द्वारा अपरदन से तलछट प्राप्त होने पर तथा जमाव से तलछटी चट्टानें बनती हैं! ये चट्टानें ताप, दाब तथा रासायनिक क्रिया से रूपांतरित चट्टानें बन जाती हैं। रूपांतरित चट्टानें फिर पिघल कर आग्नेय चट्टानें बन जाती हैं। अपक्षय तथा अपरदन से ये फिर तलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इस प्रकार चट्टानों के एक वर्ग से दूसरे वर्ग में परिवर्तन की क्रिया एक चक्र (Cycle) में चलती है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आग्नेय शैलें क्या हैं? आग्नेय शैलों की निर्माण पद्धति एवं लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निर्माणकारी शैलों में आग्नेय शैल सबसे प्रमुख है। आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks):
आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थों के ठण्डा व ठोस हो जाने से बनी हैं। (Igneous rocks have been formed by cooling of molten matter of the earth.) ये पृथ्वी पर सर्वप्रथम बनीं, इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं।

इग्नियस (Igneous) शब्द लैटिन शब्द इग्निस (Ignis) से बना है जिसका अर्थ अग्नि (Fire) है। पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा (Magma) है जिसका औसत तापमान 600 से 1200°C होता है। इस मैग्मा के ठोस होने तथा ग्रेनाइटीकरण की क्रिया से आग्नेय शैलें बनती हैं।आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks): उत्पत्ति के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं

  1. बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर बाहर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks) बनती हैं।
  2. भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है तो भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks) बनती हैं।

इस प्रकार लावा के ठोस होने की क्रिया तथा स्थान के आधार पर ये चट्टानें तीन प्रकार की हैं
1. ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks):
ये चट्टानें ज्वालामुखी के लावा प्रवाह (Lava flow) के कारण ज्वालामुखी चट्टानें ज्वालामुखी बनती हैं। यह पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा वायुमण्डल के सम्पर्क
बाह्य चट्टानें में आकर ठण्डा हो जाता है। गैस रहित मैग्मा को लावा कहते हैं। धरातल पर लावा शीघ्र ठण्डा हो जाता है तथा पूर्ण रूप से – डाइक – सिल – रवे (crystals) नहीं बनते। इन शैलों के रवों का आकार छोटा होता है। ये चट्टानें शीशे (glass) की भांति होती हैं। इन शैलों में रवों का विकास नहीं होता, जैसे-ऐन्डेसाइट, प्यूमिस तथा आन्तरिक चट्टानें – पातालीय चट्टानें ऑबसीडियन।

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उदाहरण: बसॉल्ट (Basalt) तथा गैब्रो (Gabbro) इसके अच्छे उदाहरण हैं। भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में बसॉल्ट चट्टानों के बने एक विशाल क्षेत्र को दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) कहते हैं जो 5 लाख वर्ग कि० मी० में फैला हुआ है।

2. मध्यवर्ती चट्टानें (Intermediate Rocks):
ये भीतरी चट्टानें धरातल से नीचे कुछ गहराई पर छिद्रों तथा दरारों में लावा जम जाने से बनती हैं। बाह्य तथा भीतरी चट्टानों के मध्य स्थित होने के कारण मध्यवर्ती चट्टानें कहते हैं। धरातल के समानान्तर (Horizontal) बनने वाली चट्टानों को सिल (Sill) तथा धरातल पर लम्बाकार (Vertical) बनने वाली चट्टानों को डाइक (Dyke) कहते हैं। ये भीतरी चट्टानें हैं। मैग्मा धीरे-धीरे ठण्डा होता है। इनमें छोटे-छोटे रवे बनते हैं। उदाहरण: डोलेराइट (Dolerite) चट्टान तथा माइका पेग्मेटाइट इसके उदाहरण हैं। ।

3. पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks):
ये चट्टानें अधिक गहराई पर बनती हैं। जब मैग्मा बाहर आने में असमर्थ होता है। तब लावा स्रोत में ही जम जाता है। अधिक गहराई पर लावा धीरे-धीरे ठण्डा तथा कठोर होता है तथा बड़े आकार के मोटे रवे बनते हैं। इन चट्टानों का नाम “प्लूटो” (Pluto) के नाम पर रखा गया है जिसका अर्थ “पाताल देवता” है। पृथ्वी तल पर अपरदन के पश्चात् ये चट्टानें ऊपर प्रकट होती हैं। कई प्रकार के गुम्बद (Domes) तथा बैथोलिथ (Batholith) बनते हैं।

उदाहरण: (i) ग्रेनाइट (Granite) नाम को कठोर चट्टान इसका विशेष उदाहरण है।
(ii) भारत में रांची का पठार तथा सिंहभूम प्रदेश (बिहार) में दक्कन पठार तथा राजस्थान में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

अम्ल तथा क्षारीय चट्टानें (Acid and Basic Rocks):
संरचना की दृष्टि से जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 66% से अधिक होती है, उन्हें अम्ल चट्टानें (Acid Rocks) कहते हैं, जैसे-क्वार्ट्ज तथा ग्रेनाइट। जिन शैलों में सिलिका की मात्रा कम होती है, उन्हें क्षारीय चट्टानें (Basic Rocks) कहते हैं, जैसे बसॉल्ट व गैब्रो। जिन शैलों में सिलिका अनुपस्थित होता है, उन्हें अत्यल्पसिलिक (Ultra Basic) शैल कहते हैं।

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प्रश्न 2.
अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल की निर्माण पद्धति बताओ।
उत्तर:
अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks):
अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद (Sediments) जमाव से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते (Sedimentary Rocks are those rocks which have been formed by deposition of Sediments.) तलछट में छोटे व बड़े आकार के कण पत्थर बादल – जैविक निक्षेप होते हैं। इन कणों के एकत्र होकर नीचे बैठ जाने (settle down) से अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है।

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तलछट के साधन (Sources of Sediments): पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थ को जल, वायु, हिम नदी जमा करते रहते हैं।

तलछट जमा होने का स्थान (Places of Deposition): ये तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं या मरुस्थलों के धरातल आदि क्षेत्रों में जमा होते हैं।

रचना (Formation): इन चट्टानों की रचना कई पदों (stages) में पूर्ण होती है। तलछट की परतों के संवहन (compaction) तथा संयोजन (cementation) से अवसादी शैलों का निर्माण होता है।

  1. तलछट का निक्षेप (Deposition): यह पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण तथा उसके बाद छोटे कण (During the deposition the material is sorted out according to size.)
  2. परतों का निर्माण (Layers): लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में जमा होते हैं।
  3. ठोस होना (Solidification): ऊपरी परतों के भार के कारण परतें संगठित होने लगती हैं। सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक (Cementing agent) चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं । इस प्रकार इन दोनों क्रियाओं के सम्मिलित रूप’को शिला भवन (Lithification) कहते हैं।

अवसादी चट्टानों के प्रकार (Types of Sedimentary Rocks): तलछटी चट्टानें तीन प्रकार से बनती हैं

  1. यान्त्रिक क्रिया द्वारा (Mechanically Formed Rocks)
  2. जैविक पदार्थों द्वारा (Organically Formed Rocks)
  3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा (Chemically Formed Rocks)

अवसादी चट्टानें निर्माण के साधनों तथा जमाव के स्थान के अनुसार निम्नलिखित प्रकार की हैं
(i) यान्त्रिक क्रिया द्वारा (Mechanically Formed Rocks):
इन चट्टानों का निर्माण अपरदन व परिवहन करने वाली शक्तियों द्वारा होता है, जैसे-नदी, पवन, हिम नदी आदि। इन चट्टानों के पदार्थ यान्त्रिक रूप से प्राप्त होते हैं।

(क) बालुकामय चट्टानें (Arenaceous Rocks):
इन शैलों में बालू (Sand) व बजरी की अधिकता होती है। क्वार्टज (Quartz) इसका मुख्य निर्माणकारी खनिज है। बालू पत्थर (Sandstone) इसका मुख्य उदाहरण है। बजरी तथा कई गोल पत्थरों के परस्पर मिलने से कांग्लोमरेट का निर्माण होता है।

(ख) मृणमय चट्टानें (Argillaceous Rocks):
इन चट्टानों में चिकनी मिट्टी (Clay) के बारीक कणों की अधिकता होती है। ये चट्टानें प्रायः कीचड़ के ठोस होने से बनती हैं। शैल (Shale) इस वर्ग की सब से महत्त्वपूर्ण तथा प्रचुर मात्रा में मिलने वाली चट्टान है। यह मूलतः सिल्ट एवं मृतिका का जमाव है। यह मिट्टी के बर्तन तथा ईंटें बनाने के काम आती है। गंगा के मैदान में चिकनी तथा दोमट मिट्टी मिलती है।

(ii) जैविक अवसादी चट्टानें (Organically Formed Rocks):
इन चट्टानों का निर्माण जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के अवशेषों के दब जाने से होता है। . ये चट्टानें मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं

1. कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks):
भूमि के उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु तथा वनस्पति भूमि के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव तथा गर्मी के कारण दलदली क्षेत्रों में, वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। कार्बन की मात्रा के अनुसार पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), बिटुमिनस (Bituminous) तथा एंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण इसी प्रकार होता है। भारत में कोयला दामोदर घाटी में मिलता है।

2. चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks):
समुद्र के जीव-जन्तु समुद्र के जल से चूना ग्रहण करके अपने पिंजर (Skeleton) का निर्माण करते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं तो यह कवच तथा अस्थि पिंजर परतों के रूप में संगठित होकर । चट्टान बन जाते हैं, जैसे चूने का पत्थर (Lime Stone), खड़िया मिट्टी (Chalk), डोलोमाइट (Dolomite)। इनमें मुख्यत: कैलसाइट खनिज पाया जाता है। प्रवाल भित्तियों (Coral reefs) का निर्माण भी इसी प्रकार होता है।

3. रासायनिक चट्टानें (Chemically Formed Rocks):
जल में कई रासायनिक तत्त्व घुले होते हैं। जब जल भाप बन कर उड़ जाता है तो रासायनिक पदार्थ तहों के रूप में रहते हैं तथा कठोर चट्टानें बन जाते हैं, जैसे नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum)। इन चट्टानों के निर्माण में अधिक समय लगता है। इनका संघटन कैल्शियम सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड से होता है।

अवसादी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics):

  1. इन चट्टानों में विभिन्न परतें पाई जाती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानान्तर मिलती हैं। दो परतों के तल को अलग करने वाले तल को संस्तरण तल कहते हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जन्तु तथा वनस्पति के अवशेष (Fossils) पाए जाते हैं।
  4. जल में निर्माण के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम तथा प्रवेशीय होती हैं तथा इनका अपरदन शीघ्र होता है। अधिकतर चट्टानें क्षैतिज स्थिति में पाई जाती हैं।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग पर फैली हुई हैं, परन्तु पृथ्वी की गहराई में इनका विस्तार केवल 5% है। (The Sedimentary Rocks are important for extent, not for depth.)

अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance): परतदार चट्टानें मानव जीवन के लिए मूल्यवान् हैं।

  1. कोयला तथा पेट्रोलियम शक्ति के मुख्य साधन हैं।
  2. इन चट्टानों में सोना, टिन तथा तांबा आदि खनिज पाए जाते हैं।
  3. चिकनी मिट्टी से ईंटें, चूने से सीमेंट, बालू से कांच बनता है।
  4. चूने का पत्थर भवन निर्माण में प्रयोग होता है।
  5. कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं।
  6. तलछटी चट्टानों से बने मैदान कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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प्रश्न 3.
रूपांतरित शैल क्या है? इसके प्रकार व निर्माण पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
रूपांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks):
Metamorphose शब्द का अर्थ है “रूप में परिवर्तन” (Change in form)। ये वे चट्टानें हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, गुण, आकार तथा खनिज बदल देती हैं। आग्नेय तथा तलछटी चट्टानों के मूल रूप में इतना परिवर्तन हो जाता है कि नवीन चट्टानों को पहचानना कठिन होता है। परिवर्तन की इस क्रिया को रूपान्तरण कहते हैं जो धरातल से हज़ारों मीटर की गहराई पर होता है। ये परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं
(1) भौतिक परिवर्तन
(2) रासायनिक परिवर्तन।

इन परिवर्तनों के होते हुए भी चट्टानों में विघटन या तोड़-फोड़ नहीं होता। यह परिवर्तन दो कारकों से होता हैपरिवर्तन के कारक (Agents of Change) : ताप,  दबाव।

(a) सम्पर्क रूपान्तरण (Contact Metamorphism): गर्म लावा के स्पर्श से आस-पास के प्रदेश की चट्टानें जब झुलस जाती हैं तब उनके रवे पूर्णतः बदल जाते हैं। जैसे-गर्म लावा के स्पर्श से चूने का पत्थर (Lime Stone), संगमरमर (Marble) बन जाता है। इसे स्थानीय रूपान्तरण (Local Metamorphism) भी कहते हैं। इसे तापीय रूपांतरण भी कहते हैं। एवरेस्ट शिखर पर ये चट्टानें पाई जाती हैं।

(b) क्षेत्रीय रूपान्तरण (Regional Metamorphism): पृथ्वी की उथल-पुथल, भूकम्प, पर्वत-निर्माण के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है। ऊपरी परतों के दबाव से निचली चट्टानों के गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर विशाल प्रदेशों में होता है। रूपान्तरण की तीव्रता जैसे-जैसे बढ़ती है, शैल स्लेट में, स्लेट शिस्ट में तथा शिस्ट नीस में रूपान्तरित हो जाती है। इसे गतिक रूपान्तरण भी कहते हैं। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

मूल चट्टान रूपान्तरित चट्टान
(1) शैल (Shale) (1) स्लेट (Slate)
(2) अभ्रक (Mica) (2) शिस्ट (Schist)
(3) ग्रेनाइट (Granite) (3) नीस (Gneiss)
(4) रेत का पत्थर (Sand stone) (4) क्वार्टजाइट (Quartzite)
(5) कोयला (Coal) (5) ग्रेफाइट (Graphite)

विशेषताएं (Characteristics):

  1. इन चट्टानों की कठोरता बढ़ जाती है।
  2. चट्टानों के खनिज पिघल कर इकट्ठे हो जाते हैं।
  3. ठोस होने के कारण अपरदन कम होता है।
  4. इन चट्टानों में रत्न, मणिक, नीलम जैसे बहुमूल्य जवाहरात मिलते हैं।
  5. इनमें खनिज मिश्रित जल के स्रोत मिलते हैं जिससे त्वचा के रोग मिट जाते हैं।
  6. गृह-निर्माण के कई पदार्थ संगमरमर, स्लेट, क्वार्टजाइट मिलते हैं।

खनिज एवं शैल JAC Class 11 Geography Notes

→ पृथ्वी की संरचना (Structure of Earth): हमारी जानकारी पृथ्वी की संरचना के बारे में सीमित है। पृथ्वी की रचना तीन परतों से हुई है-भूपर्पटी, मैंटल तथा क्रोड। सबसे बाहरी परत को भूपृष्ठ कहते हैं। ।
इसे सियाल या स्थल मण्डल भी कहते हैं। इससे निचली पर्त सीमा है, पृथ्वी के आन्तरिक भाग को क्रोड या नाइफ या बैरी स्फीयर कहते हैं।

→ शैल (Rocks): शैल आमतौर पर खनिजों के इकट्ठे होने से बनती है। एक साधारण मनुष्य के लिए शैल एक कठोर पदार्थ है। भू-पृष्ठ का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं।

→ चट्टानों की किस्में (Types of Rocks): रचना के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया गया है

  • आग्नेय चट्टानें
  • तलछटी चट्टानें
  • रूपान्तरित चट्टानें।

→ आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks): आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थों के ठण्डा व ठोस हो जाने से बनी हैं।

→ आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Ingneous Rocks): उत्पत्ति स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं

(क) बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर बाहर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य चट्टानें (Extrusive Rocks) बनती है।
(ख) भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks): जब मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है तो भीतरी चट्टानें बनती हैं। लावा के ठोस होने की क्रिया तथा स्थान के आधार पर आग्नेय चट्टानें तीन प्रकार की हैं

→ ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks): जब लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से ठण्डा होता है तथा धरातल पर ही ठण्डा हो जाता है तब ज्वालामुखी चट्टानें बनती हैं। उदाहरण: बेसॉल्ट।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

→ मध्यवर्ती चट्टानें (Hypabyssal Rocks): जब लावा पृथ्वी के भीतर दरारों में जम कर ठोस हो जाता है तो मध्यवर्ती चट्टानें बनती हैं, जैसे सिल तथा डाइक।

→ पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks): जब मैग्मा गहराई में धीरे-धीरे जम जाता है तो पातालीय चट्टानें बनती हैं। उदाहरण-बैथोलिथ आदि।

→ आग्नेय चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Igneous Rocks): ये चट्टानें ढेरों पर पाई जाती ! हैं। इनमें रवे होते हैं। ये ठोस तथा पिण्ड अवस्था में मिलती हैं ।

→ अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks): अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद के जमाव से बनी चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। ये तलछट नदियों, समुद्रों, झीलों में वायु, हिमनदी तथा नदियों द्वारा निक्षेप की जाती हैं।

→ तलछटी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Sedimentary Rocks): ये चट्टानें परतों में पाई जाती हैं। इन चट्टानों में जीव-जन्तु तथा वनस्पति के अवशेष पाए जाते हैं। ये चट्टानें नरम होती हैं, इन्हें आसानी से अपरदित किया जा सकता है।

→ रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks): रूपान्तरित शब्द का अर्थ है-रूप में परिवर्तन। इसलिए रूपान्तरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, आकार तथा खनिज बदल लेती हैं। उच्च तापमान के प्रभाव के कारण चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। अधिक दबाव के कारण शैल, स्लेट में बदल जाती है। ये कठोर चट्टानें हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की सम्भावना व्यक्त की थी?
(A) अल्फ्रेड वेगनर
(B) अब्राह्म आरटेलियस
(C) एनटोनियो पेलग्रिनी
(D) एडमंड हैस।
उत्तर:
अब्राह्म आरटेलियस।

2. पोलर फ्लींग बल (Polar fleeing force) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?
(A) पृथ्वी का परिक्रमण
(B) पृथ्वी का घूर्णन
(C) गुरुत्वाकर्षण
(D) ज्वारीय बल।
उत्तर:
पृथ्वी का घूर्णन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

3. इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?
(A) नाजका
(B) फिलिप्पिन
(C) अरब
(D) अंटार्कटिक।
उत्तर:
अंटार्कटिक।

4. सागरीय तल विस्तार सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न से किस अवधारणा को नहीं विचारा?
(A) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएं
(B) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(D) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु।
उत्तर:
विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण।

5. हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(A) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(B) अपसारी सीमा
(C) रूपान्तर सीमा
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण।
उत्तर:
महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण।

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6. निम्न में से कौन-सी मुख्य प्लेट नहीं है?
(A) अफ्रीकी
(B) अंटार्कटिका
(C) यूरेशियाई
(D) अरेबियन।
उत्तर:
अरेबियन।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वैगनर ने किन-किन बलों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
प्रवाह सम्बन्धी बल (Force for drifting): वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के दो कारण थे

  1. पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल (Polar fleeing force)
  2. ज्वारीय बल (Tidal force)। ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से सम्बन्धित है। ज्वारीय बल सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से सम्बद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।

प्रश्न 2.
मैंटल में संवहन धाराओं के आरम्भ होने तथा बने रहने के क्या कारण थे?
उत्तर:
संवहन-धारा सिद्धान्त (Convectional current theory):
1930 के दशक में आर्थर होम्स (Arthur Holmes) ने मैंटल (Mantle) भाग में संवहन-धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की। ये धाराएँ रेडियो एक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है। यह उन प्रवाह बलों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास था, जिसके आधार पर समकालीन वैज्ञानिकों ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त को नकार दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त व प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त में मूलभूत अन्तर बताइए।
उत्तर:
वैगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के अनुसार प्राचीन काल में एक सुपर महाद्वीप पेंजिया के रूप में विद्यमान था। इस के विभिन्न भाग महाद्वीप गतिमान हैं। महाद्वीप विभिन्न कालों में विस्थापन के कारण विभिन्न स्थितियों में थे। परन्तु प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीपों के ठोस पिण्ड प्लेटों पर स्थित थे। पेंजिया अलग-अलग प्लेटों के ऊपर स्थित महाद्वीपों के खण्डों से बना था। महाद्वीपीय खण्ड एक या दूसरी प्लेट के भाग थे। ये प्लेटें लगातार विचरण कर रही हैं। ये भूतकाल में गतिमान थी और भविष्य में भी गतिमान रहेंगी।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त की प्रमुख खोज क्या है जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:
प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त कई वैज्ञानिक खोजें हुईं। मोरगन तथा मैकेन्ज़ी द्वारा प्लेट विवर्तनिकी अवधारणा का विकास किया। ये प्लेटें दुर्बलता मण्डल पर एक इकाई के रूप में चलायमान हैं। चट्टानों के पुरा चुम्बकीय अध्ययन तथा महासागरीय तल के मानचित्रण ने कई नए तथ्यों को उजागर किया। महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार से लावा बाहर निकलता है। इस विभेदन से लावा दरारों को भर कर पर्पटी को दोनों तरफ धकेलता है जिससे महासागरीय अधस्तल का विस्तार होता है।

प्रश्न 3.
प्लेट की रूपान्तर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:
(क) रूपान्तर सीमा-इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।
(ख) अभिसरण सीमा-इस सीमा पर एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है।
(ग) अपसारी सीमा-इस सीमा पर दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं।

प्रश्न 4.
दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थल खण्ड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। उस समय भारतीय स्थल खण्ड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। उस समय भारतीय प्लेट ने एशियाई प्लेट की ओर प्रवाह किया।

प्रश्न 5.
प्लेट किसे कहते हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ठोस स्थलखण्ड के विभाजित भागों को प्लेट कहा जाता है। प्लेट बड़ी या छोटी हो सकती है। ‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूजो विल्सन ने किया था।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 6.
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त प्लेटों के स्वभाव एवं प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1960 के दशक में किया गया। हैरी हेस, विल्सन, मॉर्गन, मैकन्जी तथा पार्कट आदि विद्वानों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का भू-पटल सात बड़ी प्लेटों में बंटा हुआ है तथा ये प्लेटें लगातार गति कर रही हैं। ये प्लेटें एक दूसरे के सन्दर्भ में तथा पृथ्वी की घूर्णन-अक्ष के सन्दर्भ में निरंतर गति कर रही हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
अथवा
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वैगनर का महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त (Wegner’s Continental Drift Theory)-सन् 1912 में जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायु ज्ञाता वैगनर ने यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया। वैगनर ने महाद्वीप बहाव का सिद्धान्त प्रस्तुत किया कि प्राचीन काल में महाद्वीप एक-दूसरे से अलग खिसक गए। सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण (Proofs): वैगनर के महाद्वीपीय बहाव सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं

1. महाद्वीपों में साम्य:
अन्ध महासागरों के दोनों तटों की समानता एक आरी के दांतों (Jig-saw-fit) की तरह है। इन तटों को यदि आपस में मिला दिया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह महाद्वीप कभी एक इकाई थे। सन् 1964 में बुलर्ड (Bullard) ने कम्प्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया।

2. भू-गर्भिक प्रमाण (Geological Proofs):
मध्य अफ्रीका, मैडागास्कर, दक्षिणी भारत, ब्राज़ील तथा ऑस्ट्रेलिया के तटों पर पाई जाने वाली चट्टानों में समानता पाई जाती है। 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की पट्टी सिद्ध करता है कि यह महाद्वीप कभी गौंडवानालैंड के भाग थे। भू-वैज्ञानिक क्रियाओं के फलस्वरूप 47 करोड़ वर्ष पुरानी पर्वत पट्टी का निर्माण एक निरन्तर कटिबन्ध के रूप में हुआ था। यह रेडियो मीट्रिक काल निर्धारण विधि (Radiomitric dating) से ज्ञात हुआ।

3. जीवाश्मों का वितरण (Distribution of LAURASIA fossils):
अर्जेन्टीना, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका में पाए जाने वाले जीवाश्मों में समानता भी इस सिद्धान्त की पुष्टि करती है। उदाहरण के लिए मैसोसोरस नामक जन्तुओं के जीवाश्म गौंडवानालैंड के सभी महाद्वीपों में मिलते हैं जबकि आज के महाद्वीप एक-दूसरे से काफ़ी दूर हैं। लैमूर भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। कुछ वैज्ञानिक इन तीनों स्थल खण्डों को जोड़कर एक सतत् स्थल खण्ड लैमूरिया (Lemuria) की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं।

4. टिलाइट (Tillite):
टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं जो हिमानी निक्षेप में बनती हैं। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के निक्षेप दक्षिणी गोलार्द्ध के 6 विभिन्न स्थल खण्डों में मिलते हैं। इसी क्रम के निक्षेप भारत, अफ्रीका, फ़ॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया में मिलते हैं। टिलाइट की समानता महाद्वीपों के विस्थापन को स्पष्ट करती हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण 1

5. ग्लेशियरी प्रभावों के प्रमाण (Glacial Proofs):
महान् हिम युग के प्रभाव ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं जो सिद्ध करते हैं कि ये महाद्वीप उस समय इकटे थे।

6. पुरा जलवायवी एकरूपता:
जलवायविक प्रमाणों से पता चलता है कि दक्षिणी महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े हुए थे। यहां एक जैसी जलवायविक दशाएं थीं। आज ये महाद्वीप विभिन्न कटिबन्धों में स्थित है।

7. प्लेसर निक्षेप (Placer Deposits):
घाना तट व ब्राज़ील तट पर सोने के बड़े निक्षेप मिलते हैं। यह स्पष्ट करता है कि दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े थे।

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महासागरों और महाद्वीपों का वितरण JAC Class 11 Geography Notes

→ महाद्वीपीय संचलन सिद्धान्त: सन् 1912 में अल्फ्रेड वैगनर ने महाद्वीपीय संचालन का सिद्धान्त प्रचलित किया।

→ पेंजियायह एक महा: महाद्वीप था जो दो भागों में विभक्त हो गया-अंगारालैंड तथा गोंडवानालैंड यह घटना। एक सौ पचास (150) मिलियन वर्ष पूर्व हुई।

→ गोंडवानालैंड: पेंजिया के दक्षिणी भू-खण्ड को गोंडवानालैंड कहते हैं जिसमें दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका के महाद्वीप शामिल थे।

→ महाद्वीपीय संचलन के प्रमाण:

  • Jig-Saw-Fit
  • भू-गर्भिक संरचना
  • जीव-जन्तुओं के जीवाश्म
  • ध्रुवों का घूमना
  • प्लेट सिद्धान्त।

→ प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त: इसके अनुसार भू-मण्डल सात दृढ़ प्लेटों में विभक्त है।

→ प्रशान्त महासागरीय प्लेट: यह सबसे बड़ी प्लेट है जो भू-पृष्ठ के 20% भाग पर विस्तृत है।।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(A) भूकम्पीय तरंगें
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) ज्वालामुखी
(D) पृथ्वी का चुम्बकत्व।
उत्तर:
ज्वालामुखी।

2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(A) शील्ड
(B) मिश्र
(C) प्रवाह
(D) कुण्ड।
उत्तर:
प्रवाह।

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमण्डल को वर्णित करता है?
(A) ऊपरी व निचले मैंटल
(B) भूपटल व क्रोड
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(D) मैंटल व क्रोड।
उत्तर:
भूपटल व ऊपरी मैंटल।

4. निम्न में भूकम्प तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(A) ‘P’ तरंगें
(B) ‘S’ तरंगें
(C) रेले तरंगें।
(D) ‘L’ तरंगें।
उत्तर:
‘P’ तरंगें।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूकम्प का अर्थ है पृथ्वी का कम्पन। भूकम्प के कारण ऊर्जा निकलने से तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर प्रभाव डालती हैं। इन्हें भूकम्पीय तरंगें कहते हैं।

प्रश्न 2.
भूकम्प की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
खनन, प्रवेधन, ज्वालामुखी।

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प्रश्न 3.
भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भू-गर्भ की जानकारी सम्बन्धी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:

  1. तापमान, दबाव व घनत्व में परिवर्तन दर
  2. उल्काएं
  3. गुरुत्वाकर्षण
  4. चुम्बकीय क्षेत्र
  5. भूकम्प। प्रश्न

प्रश्न 4. भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएं जिनसे होकर यह तरंगें गुज़रती हैं।
उत्तर:
इन तरंगों के संचरण से शैलों में कम्पन होती है। तरंगों से कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के समान्तर होती है तथा शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया होती है। अन्य तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कम्पन पैदा करती हैं। इनसे शैलों में उभार व गर्त बनते हैं।

प्रश्न 5.
रिक्टर स्केल से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
भूकम्प के वेग की तीव्रता को मापने के लिए चार्ल्स एफ रिक्टर द्वारा निर्मित उपकरण को रिक्टर स्केल कहते हैं। चार्ल्स एफ रिक्टर एक अमेरिकी वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 1935 में इस पैमाने को विकसित किया था। इसमें 1 से 10 तक अंक लिखे होते हैं जो भूकम्प की तीव्रता को दर्शाते हैं। 1 का अंक न्यूनतम वेग और 10 अधिकतम वेग को दर्शाता है। रिक्टर स्केल सामान्य रूप में लॉगरिथम के अनुसार काम करता है।

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प्रश्न 6.
भूकम्प विज्ञान क्या होता है?
उत्तर:
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूकम्प का अध्ययन किया जाता है, भूकंप विज्ञान (Seismology) कहलाता है और भूकम्प विज्ञान का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को भूकंप विज्ञानी कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्वेधी आकृतियाँ:
ज्वालामुखी उद्गार से लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती हैं। लावा का यह जमाव या तो धरातल पर पहुंच कर होता है या धरातल तक पहुंचने से पहले ही भूपटल के नीचे शैल परतों में ही हो जाता है। लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है

1. ज्वालामुखी शैलों (जब लावा धरातल पर पहुंच कर ठंडा होता है) और
2. पातालीय (Plutonic): शैल (जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है।) जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियां बनती हैं। ये आकृतियां अंतर्वेधी आकृतियां (Intrusive forms) कहलाती हैं।

1. बैथोलिथ (Batholiths):
यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हट जाने पर ही यह धरातल पर प्रकट होते हैं। ये विशाल क्षेत्र में फैले होते हैं और कभी-कभी इनकी गहराई भी कई कि० मीट तक होती है। ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं। इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 1

2. लैकोलिथ (Lacoliths):
ये गुंबदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व क पानरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मि तती है। अंतर केवल यह होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है। कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों की बनी ऐसी ही गुंबदनुमा पहाड़ियां हैं। इनमें से अधिकतर अब अपपत्रित (Exfoliated) हो चुकी हैं व धरातल पर देखी जा सकती हैं। ये लैकोलिथ व बैथोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं।

3. लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल (Lapolith, phacolith and sills):
ऊपर उठते लावे का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाये जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहां यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी (Saucer) के आकार में जम जाए तो यह लैपोलिथ कहलाता है। कई बार अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति (Anticline) के ऊपर व अभिनति (Syncline) के तल में लावा का जमाव पाया जाता है।

ये परतनुमा/लहरदार चट्टानें एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं। (जो क्रमशः बैथोलिथ में विकसित होते हैं) यह ही फैकोलिथ कहलाते हैं। अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है-कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घने मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।

4. डाइक (Dyke):
जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भांति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है। पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में यह आकृति बहुतायत में पाई जाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप के विकास में डाइक उद्गार की वाहक समझी जाती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 2.
भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
छाया क्षेत्र का उद्भव: भूकम्पलेखी यन्त्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र (Shadow zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकम्पीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकम्प का छाया क्षेत्र दूसरे भूकम्प के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है। यह देखा जाता है कि भूकम्पलेखी
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 2
भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° के भीतर किसी भी दूरी पर ‘P’ व ‘S’ दोनों ही तरंगों का अभिलेखन करते हैं। भूकम्पलेखी, अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल ‘P’ तरंगों के पहुंचने को ही दर्ज करते हैं और ‘S’ तरंगों को अभिलेखित नहीं करते। अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र (जहां कोई भी भूकम्पीय तरंग

अभिलेखित नहीं होती) दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र (Shadow zone) हैं। 105° के परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुंचतीं। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकम्प अधिकेन्द्र के 105° से 145° तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है। अगर आपको भूकम्प अधिकेन्द्र का पता हो तो आप किसी भी भूकम्प का छाया क्षेत्र रेखांकित कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है। क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए मनुष्य के पास कोई प्रत्यक्ष (Direct) साधन नहीं है। इस संरचना के बारे में मनुष्य का ज्ञान बहुत कम गहराई तक ही सीमित है। पृथ्वी की संरचना का प्रत्यक्ष ज्ञान कुओं, खदानों तथा संछिद्रों द्वारा केवल 4 किलोमीटर की गहराई तक ही प्राप्त होता है। पृथ्वी के अन्दर वर्तमान अत्यधिक तापमान के कारण प्रत्यक्ष निरीक्षण लगभग असम्भव है। खनिज तेल की खोज के लिए मनुष्य ने लगभग 6 कि० मी० गहरी छेद (Bore hole) बनाई है।

पृथ्वी के केन्द्र की गहराई (लगभग 6400 कि० मी०) की तुलना में यह बहुत ही कम है। इसी कारण से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए अप्रत्यक्ष स्त्रोत (Indirect methods) प्रयोग किए जाते हैं। पृथ्वी की संरचना के आंकड़े केवल अनुमान से प्राप्त किए जाते हैं तथा इनके पश्चात् इन आंकड़ों की पुष्टि भूकम्प विज्ञान के कई प्रमाणों द्वारा की जाती है।

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प्रश्न 4.
भूकम्पीय तरंगें कौन-कौन सी हैं ? इनकी विशेषताओं का वर्णन करो।ये पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की विभिन्नताओं की जानकारी कैसे देती हैं?
उत्तर:
1. अनुदैर्ध्य तरंगें(Longitudinal Waves):
ये तरंगें ध्वनि तरंगों (Sound Waves) की भान्ति होती हैं। ये तरल, गैस तथा ठोस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती। ये तरंगें आगे-पीछे एक-समान गति से चलती हैं। इन्हें अभिकेन्द्र प्राथमिक तरंगें (Primary waves) या केवल P-waves भी कहा जाता है।

2. अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves):
ये तरंगें दोलन की दिशा पर समकोण बनाती हुई चलती हैं। इनकी गति धीमी होती है। ये तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं। इन्हें साधारणत: माध्यमिक तरंगें (Secondary waves) या (S-waves) भी कहा उद्गम जाता है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 3

3. धरातलीय तरंगें (Surface Waves):
ये तरंगें धरातल पर अधिक प्रभावकारी होती हैं। गहराई के साथ-साथ इनकी तीव्रता कम हो जाती है। ये एक लम्बे समय में पृथ्वी के भीतरी भागों तक पहुंच पाती हैं। ये तरंगें ठोस, तरल एवं गैसीय माध्यमों की सीमाओं से गुज़रती हैं। इन्हें रैले तरंगें (Rayliegh waves) या (R-waves) भी कहा जाता है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना JAC Class 11 Geography Notes

→ भू-गर्भ का ज्ञान: पृथ्वी के भू-गर्भ की जानकारी सीमित है। भू-गर्भ का ज्ञान परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है।

→ भू-गर्भ ज्ञान के विभिन्न स्रोत: पृथ्वी का तापमान दबाव, विभिन्न परतों का घनत्व, भूकम्प तथा उल्कायें भू-गर्भ की जानकारी प्रदान करती हैं।

→ तापमान तथा दबाव: गहराई के साथ-साथ औसत रूप से तापमान प्रति 32 मीटर पर °C बढ़ जाता है। ऊपरी। चट्टानों के कारण दबाव भी बढ़ता है।

→ पृथ्वी की संरचना: पृथ्वी की संरचना तहदार है। बाहरी परत को सियाल, मध्यवर्ती परत को सीमा तथा। आन्तरिक परत को नाइफ कहा जाता है। इन परतों को भू-पृष्ठ, मैंटल, क्रोड या स्थलमण्डल, मैसोस्फीयर तथा। बैरीस्फीयर भी कहते हैं।

→ ज्वालामुखी (A Volcano): ज्वालामुखी धरातल पर एक गहरा छिद्र है जिससे भू-गर्भ से गर्म गैसें, लावा, तरल व ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं।

→ ज्वालामुखी के भाग: (i) छिद्र (ii) ज्वालामुखी नली (ii) ज्वालामुखी क्रेटर।

→ भूकम्प (An Earthquake): भू-पृष्ठ के किसी भी भाग के अचानक हिल जाने को भूकम्प कहते हैं। यह ! भू-पृष्ठ के अचानक हिलने के कारण होता है जिसके फलस्वरूप झटके अनुभव होते हैं। भूकम्प के मुख्य कारण हैं

  • ज्वालामुखीय विस्फोट
  • विवर्तनिक कारण
  • लचक शक्ति
  • स्थानीय कारण।

→ भूकम्पीय तरंगें (Earthquake Waves): ये तरंगें पृथ्वी के भीतर जिस स्थान से उत्पन्न होती हैं, उसे उद्गम केन्द्र (Focus) कहते हैं। इस केन्द्र के ऊपर धरातल पर स्थित स्थान को अभिकेन्द्र (Epicenter) कहते ! हैं। भूकम्पीय तरंगों का भूकम्प मापी यन्त्र (Sesimograph) द्वारा आलेखन किया जाता है। भूकम्पीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं

  • अनुदैर्ध्य तरंगें या प्राथमिक तरंगें (P-waves)
  • अनुप्रस्थ तरंगें या माध्यमिक तरंगें (S-waves)
  • धरातलीय तरंगें (L-waves)

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

(क) बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है?
(A) 46 लाख वर्ष
(B) 4600 मिलियन वर्ष
(C),13.7 अरब वर्ष
(D) 13.7 खरब वर्ष।
उत्तर:
4600 मिलियन वर्ष।

2. निम्न में कौन-सी अवधि सबसे लम्बी है?
(A) 531197 (Eons)
(B) महाकल्प (Era)
(C) कल्प (Period)
(D) युग (Epoch)
उत्तर:
इओन (Eons)

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

3. निम्न में कौन-सा तत्त्व वर्तमान वायुमण्डल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है?
(A) सौर पवन
(B) गैस उत्सर्जन
(C) विभेदन
(D) प्रकाश संश्लेषण।
उत्तर:
विभेदन।

4. निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन-से हैं?
(A) पृथ्वी व सूर्य के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(B) सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(C) वे ग्रह जो गैसीय हैं।
(D) बिना उपग्रह वाले ग्रह।
उत्तर:
सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह।

5. पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरम्भ हुआ?
(A) 1 अरब 37 करोड़ वर्ष पहले
(B) 460 करोड़ वर्ष पहले
(C) 38 लाख वर्ष पहले
(C) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले।
उत्तर”:
460 करोड़ वर्ष पहले।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

6. निम्न में से कौन-सा सौर परिवार का सदस्य नहीं है?
(A) सूर्य
(B) उपग्रह
(C) ग्रह
(C) तारे।
उत्तर:
तारे।

(स्व) लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों हैं?
उत्तर: पार्थिव ग्रह आरम्भ में चट्टानी ग्रह थे। ये ग्रह जनक तारे के निकट थे। यहां अधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हुईं। ये ग्रह आकार में छोटे थे। इनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम थी तथा यह चट्टानी रूप में थे।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी दिए गए तर्कों में निम्न वैज्ञानिकों के मूलभूत अन्तर बताइए।
(क) कान्त व लाप्लेस
(ख) चैम्बरलेन व मोल्टन।
उत्तर:
कान्त व लाप्लेस के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल (नीहारिका) से हुई परन्तु चैम्बरलेन व मोल्टन के अनुसार द्वैतारक सिद्धान्त के अनुसार एक भ्रमणशील तारे के सूर्य से टकराने से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 3.
विभेदन प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उल्काओं के अध्ययन से हमें इस बात का पता चलता है। बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से ग्रह बनें। पृथ्वी की रचना भी इसी प्रक्रम के अनुरूप हुई है। भारी पदार्थ (जैसे लोहा), पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन (Differentiation) कहा जाता है। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक पर्तों में अलग हो गया जैसे पर्पटी, प्रावार, क्रोड़ आदि।

प्रश्न 4.
प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था?
उत्तर:
क्या आप जानते हैं कि प्रारम्भ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमण्डल विरल था जो हाइड्रोजन व हीलियम से बना था। यह आज की पृथ्वी के वायुमण्डल से बहुत अलग था। अत: कुछ ऐसी घटनाएँ एवं क्रियाएँ अवश्य हुई होंगी जिनके कारण चट्टानी, वीरान और गर्म पृथ्वी एक ऐसे सुन्दर ग्रह में परिवर्तित हुई जहाँ बहुत-सा पानी तथा जीवन के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध हुआ।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 5.
पृथ्वी के वायुमण्डल को निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें कौन-सी थीं?
उत्तर:
पृथ्वी के ठण्डा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत-सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमण्डल का उद्भव हुआ। आरम्भ में वायुमण्डल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में और स्वतन्त्र ऑक्सीजन बहुत कम थी। वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आईं, इसे गैस उर्ल्सजन (Degassing) कहा जाता है।

(ग) निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1. बिग
बैंग सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा करते हुए वर्णन करो।
अथवा
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति सम्बन्धी बिग बैंग सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धान्त (Big Bang Theory):
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ही नहीं वरन् पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी समस्याओं को समझने का प्रयास किया। आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी सर्वमान्य सिद्धान्त बिग बैंग सिद्धान्त (Big bang theory) है। इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expending universe hypothesis) भी कहा जाता है। 1920 ई० में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएं एक-दूसरे से दूर हो रही हैं।

प्रयोग: आप प्रयोग कर जान सकते हैं कि ब्रह्मांड विस्तार का क्या अर्थ है। एक गुब्बारा लें और उस पर कुछ निशान लगाएँ जिनको आकाशगंगाएं मान लें। जब आप इस गुब्बारे को फुलाएँगे, गुब्बारे पर लगे ये निशान गुब्बारे के फैलने के साथ-साथ एक-दूसरे से दूर जाते प्रतीत होंगे। इसी प्रकार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी भी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है।

यद्यपि आप यह पाएँगे कि गुब्बारे पर लगे चिह्नों के बीच की दूरी के अतिरिक्त चिह्न स्वयं भी बढ़ रहे हैं। जबकि यह तथ्य के अनुरूप नहीं है। वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है, परन्तु प्रेक्षण आकाशगंगाओं के विस्तार को नहीं सिद्ध करते। अत: गुब्बारे का उदाहरण आंशिक रूप से ही मान्य है। बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ है।

  1. आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनन्त था।
  2. बिग बैंग की प्रक्रिया में इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार की विस्फोट प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ।
  3. वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है।
  4. विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट (Bang) के बाद एक सैकेंड के अल्पांश के अन्तर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरम्भिक तीन (3) मिनट के अन्तर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।
  5. बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 केल्विन तक गिर गया और आण्विक पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में  3
आलोचना: ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हॉयल (Hoyle) ने इसका विकल्प ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ (Steady state concept) के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार सम्बन्धी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धान्त के ही पक्षधर हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 2.
पृथ्वी के विकास सम्बन्धी अवस्थाओं को बताते हुए हर अवस्था का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर:
पृथ्वी के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएं मानी जाती हैं
1. तश्तरी का निर्माण:
तारे नीहारिका के अन्दर गैस के गुन्थित झुण्ड हैं। इस गुन्थित झुण्डों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating disc) विकसित हुई।

2. ग्रहाणुओं का निर्माण:
अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरम्भ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए।

3. संघट्टन की क्रिया:
संघट्टन की क्रिया द्वारा बड़े पिण्ड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिण्डों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।

4. ग्रहों का निर्माण: अन्तिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिण्ड ग्रहों के रूप में बने।

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास JAC Class 11 Geography Notes

→ सौर मण्डल (Solar System): सौर मण्डल में ग्रह, उपग्रह, अवान्तर ग्रह, धूमकेतु, उल्का पिण्ड आदि शामिल हैं।

→ आन्तरिक ग्रह (Inner Planets): पृथ्वी, बुध, शुक्र तथा मंगल आन्तरिक ग्रह हैं तथा सूर्य के निकट

→ नीहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis): 1755 में एमैनुल कांत नामक जर्मन दार्शनिक ने यह परिकल्पना की कि सौर मण्डल की उत्पत्ति एक घूमते गैस के बादल, नीहारिका से हुई है।
फ्रांसीसी गणितज्ञ लाप्लास ने भी इस सिद्धान्त का प्रस्ताव किया।

→ संघट्ट (टक्कर) परिकल्पना (Collision Hypothesis): इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान् सर जेम्स जींस तथा हैरोल्ड जैफ्रोज़ ने सूर्य तथा एक गुज़रते तारे की टक्कर का सिद्धान्त पेश किया। टूटे हुए ग्रहाणुओं से ।
मिलकर ग्रहों की रचना हुई।

→ चन्द्रमा (Moon) एक उपग्रह: पृथ्वी का एक ही उपग्रह चन्द्रमा है। इसका जन्म पृथ्वी के साथ ही हुआ था। यह चन्द्रमा से प्राप्त शैलों के विकिरणमितिक काल निर्धारण से पता चलता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Geography Important Questions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Geography Important Questions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Geography Important Questions: भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

Jharkhand Board Class 11th Geography Important Questions: भारत : भौतिक पर्यावरण

JAC Board Class 11th Geography Important Questions in English Medium

JAC Board Class 11th Geography Important Questions: Fundamentals of Physical Geography

  • Chapter 1 Geography as a Discipline Important Questions
  • Chapter 2 The Origin and Evolution of the Earth Important Questions
  • Chapter 3 Interior of the Earth Important Questions
  • Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents Important Questions
  • Chapter 5 Minerals and Rocks Important Questions
  • Chapter 6 Geomorphic Processes Important Questions
  • Chapter 7 Landforms and their Evolution Important Questions
  • Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere Important Questions
  • Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature Important Questions
  • Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems Important Questions
  • Chapter 11 Water in the Atmosphere Important Questions
  • Chapter 12 World Climate and Climate Change Important Questions
  • Chapter 13 Water (Oceans) Important Questions
  • Chapter 14 Movements of Ocean Water Important Questions
  • Chapter 15 Life on the Earth Important Questions
  • Chapter 16 Biodiversity and Conservation Important Questions

JAC Board Class 11th Geography Important Questions: India Physical Environment

  • Chapter 1 India – Location Important Questions
  • Chapter 2 Structure and Physiography Important Questions
  • Chapter 3 Drainage System Important Questions
  • Chapter 4 Climate Important Questions
  • Chapter 5 Natural Vegetation Important Questions
  • Chapter 6 Soils Important Questions
  • Chapter 7 Natural Hazards and Disasters Important Questions

JAC Class 11 Geography Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Geography Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Geography Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Geography Part 1 Fundamentals of Physical Geography (भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत भाग-1)

Jharkhand Board Class 11th Geography Part 2 India Physical Environment (भारत : भौतिक पर्यावरण भाग-2)

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JAC Board Class 11th Geography Part 1 Fundamentals of Physical Geography

  • Chapter 1 Geography as a Discipline
  • Chapter 2 The Origin and Evolution of the Earth
  • Chapter 3 Interior of the Earth
  • Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents
  • Chapter 5 Minerals and Rocks
  • Chapter 6 Geomorphic Processes
  • Chapter 7 Landforms and their Evolution
  • Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere
  • Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature
  • Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems
  • Chapter 11 Water in the Atmosphere
  • Chapter 12 World Climate and Climate Change
  • Chapter 13 Water (Oceans)
  • Chapter 14 Movements of Ocean Water
  • Chapter 15 Life on the Earth
  • Chapter 16 Biodiversity and Conservation

JAC Board Class 11th Geography Part 2 India Physical Environment

  • Chapter 1 India – Location
  • Chapter 2 Structure and Physiography
  • Chapter 3 Drainage System
  • Chapter 4 Climate
  • Chapter 5 Natural Vegetation
  • Chapter 6 Soils
  • Chapter 7 Natural Hazards and Disasters

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 विकास 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. विकास का व्यापकतम अर्थ है।
(अ) समाज का आधुनिकीरण
(ब) समाज का पश्चिमीकरण
(स) आर्थिक विकास की दर में वृद्धि
(द) सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करना।
उत्तर:
(द) सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करना।

2. विकास की कीमत जो पर्यावरण को चुकानी पड़ी है।
(अ) वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन
(ब) बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों से विस्थापन
(स) संस्कृति का विनाश
(द) गरीबी में वृद्धि
उत्तर:
(अ) वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन

3. सरदार सरोवर परियोजना के तहत बनने वाले बांधों के निर्माण के खिलाफ आंदोलन चल रहा है।
(अ) चिपको आंदोलन
(ब) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(स) गंगा बचाओ आंदोलन
(द) यमुना बचाओ आंदोलन
उत्तर:
(ब) नर्मदा बचाओ आन्दोलन

4. किसी देश के अविकसित होने का सूचक नहीं है।
(अ) लोग भोजन के अभाव में भूख से मरते हैं।
(ब) लोग आश्रय के अभाव में ठंड से मरते हैं।
(स) अभाव और वंचनाओं की मुक्ति।
(द) बच्चे विद्यालय जाने के बजाय काम कर रहे हैं।
उत्तर:
(स) अभाव और वंचनाओं की मुक्ति।

5. विकास का मॉडल सर्वाधिक निर्भर है।
(अ) वायु पर
(ब) नदियों पर
(स) ऊर्जा पर
(द) वर्षा पर
उत्तर:
(स) ऊर्जा पर

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 विकास

6. ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ सम्बन्धित है।
(अ) टिहरी बाँध परियोजना से
(ब) सरदार सरोवर से
(स) मनेरी झाली परियोजना से
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) सरदार सरोवर से

7. निम्न में से विस्थापन का परिणाम नहीं होता है।
(अ) संस्कृति का विनाश
(ब) दरिद्रता में वृद्धि
(स) आजीविका का खोना
(द) जीवन – स्तर का उन्नत होना
उत्तर:
(द) जीवन – स्तर का उन्नत होना

8. औद्योगीकरण व्याख्या करता है।
(अ) विकास के व्यापक अर्थ की
(ब) विकास के संकीर्ण अर्थ की
(स) विकास के वास्तविक अर्थ की
(द) विकास के गलत अर्थ की
उत्तर:
(ब) विकास के संकीर्ण अर्थ की

9. अधिकांश निवासियों के निम्न जीवन स्तर वाला देश कहा जायेगा।
(अ) विकसित
(ब) अतिविकसित
(स) विकासशील
(द) अविकसित
उत्तर:
(द) अविकसित

10. विकास के कारण निम्न में से किसे नुकसान नहीं पहुँचा है।
(अ) पर्यावरण को
(ब) विस्थापितों को
(स) धनी वर्ग को
(द) वन्य जीवों को
उत्तर:
(द) वन्य जीवों को

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. विकास शब्द अपने व्यापकतम अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का ………………… है।
उत्तर:
वाहक

2. 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्रता प्राप्त देशों को अक्सर अविकसित या ………………….. देश कहा जाता था।
उत्तर:
विकासशील

3. आरंभिक वर्षों में विकास की अवधारणा में जोर आर्थिक उन्नति और समाज को आधुनिकीकरण के रूप में …………………. देशों के स्तर पर पहुँचने का था।
उत्तर:
पश्चिमी

4. विकास की वजह से अनेक देशों में ………………… को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचा है।
उत्तर:
पर्यावरण

5. विगत वर्षों में दुनिया में अमीर और गरीब के बीच की दूरी …………………. ही गई है।
उत्तर:
बढ़ती।

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये

1. विकास को अब व्यापक अर्थ में ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे।
उत्तर:
सत्य

2. पर्यावरणवाद की जड़ें औद्योगीकरण के खिलाफ 19वीं सदी में विकसित हुए विद्रोह में देखी जा सकती हैं।
उत्तर:
सत्य

3. जिन लोगों के जीवन पर विकास योजनाओं का तत्काल असर पड़ता है, प्रायः उनसे पूर्ण सलाह ली जाती है तथा उनके हितों का ध्यान रखा जाता है।
उत्तर:
असत्य

4. संसाधनों के अविवेकशील उपयोग का अमीरों पर तात्कालिक और तीखा प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:
असत्य

5. विकास का काम समाज के व्यापक नजरिये के अनुसार ही होता है।
उत्तर:
असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. अविकसित या विकासशील देश (अ) विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की एक श्रृंखला
2. भारत (ब) बड़ी संख्या में लोगों का अपने घरों व क्षेत्रों से विस्थापन
3. बड़े बाँधों का निर्माण तथा औद्योगिक गतिविधियाँ (स) ओगोनी लोगों के अस्तित्व के लिए आंदोलन
4. केन सारो वीवा (द) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम
5. मानव विकास प्रतिवेदन (य) एशियाई व अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देश

उत्तर:

1. अविकसित या विकासशील देश (य) एशियाई व अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देश
2. भारत (अ) विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की एक श्रृंखला
3. बड़े बाँधों का निर्माण तथा औद्योगिक गतिविधियाँ (ब) बड़ी संख्या में लोगों का अपने घरों व क्षेत्रों से विस्थापन
4. केन सारो वीवा (स) ओगोनी लोगों के अस्तित्व के लिए आंदोलन
5. मानव विकास प्रतिवेदन (द) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास किसे कहते हैं?
उत्तर:
विकास को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे।

प्रश्न 2.
अविकसित या विकासशील देशों से क्या आशय है?
उत्तर:
20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में एशिया- अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों को अक्सर अविकसित या विकासशील देश कहा जाता है। क्योंकि यहाँ के लोगों का जीवनस्तर निम्न तथा शिक्षा, चिकित्सा व अन्य सुविधाओं का अभाव है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 विकास

प्रश्न 3.
विकासशील देशों के किस बोध ने उन्हें विकास परियोजनाएँ शुरू करने की प्रेरणा दी?
उत्तर:
अपने संसाधनों का उपयोग राष्ट्रीय हित में करने के बोध ने विकासशील देशों को विकास परियोजनाएँ शुरू करने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 4.
आरंभिक वर्षों में विकास की अवधारणा में किस बात पर जोर दिया गया?
उत्तर:
आरंभिक वर्षों में विकास की अवधारणा में जोर आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण के रूप में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुँचने पर था।

प्रश्न 5.
विकास के कोई दो नकारात्मक प्रभाव बताइये।
उत्तर:

  1. विकासशील जगत में गरीबी एक समस्या बनकर उभरी
  2. दुनिया में अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ी है।

प्रश्न 6.
पर्यावरण संगठन क्या प्रयास करते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण संगठन पर्यावरण को बिगड़ने से बचाने के उद्देश्यों की रोशनी में सरकार की औद्योगिक एवं विकास नीतियों को बदलने के लिए दबाव डालने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7.
विकास की कीमत किन लोगों को चुकानी पड़ती है?
उत्तर:
विकास की कीमत अति दरिद्रों और आबादी के असुरक्षित हिस्से को चुकानी पड़ती है।

प्रश्न 8.
विकास के प्रारंभिक मॉडल का कोई एक दोष बताइए।
उत्तर:
विकास का प्रारंभिक मॉडल पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाला है।

प्रश्न 9.
विकासशील देशों ने अपना विकास कार्य आरम्भ कैसे किया?
उत्तर:
विकासशील देशों ने अपना विकास कार्य विकसित देशों की मदद और कर्ज के जरिये प्रारम्भ किया।

प्रश्न 10.
भारत में विकास का क्या मॉडल चुना गया?
उत्तर:
भारत में विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में विविध क्षेत्रों में बड़ी परियोजनाओं का मॉडल चुना गया।

प्रश्न 11.
आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ क्यों पिघल रही है?
उत्तर:
वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से।

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प्रश्न 12.
आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने का क्या परिणाम हो सकता है?
उत्तर:
इन ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने से समुद्र तटीय क्षेत्र डूब सकते हैं।

प्रश्न 13.
विकास की रणनीतियों का चयन किनके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
राजनीतिक नेता तथा उच्च पदासीन नौकरशाहों के द्वारा।

प्रश्न 14.
विकास के कोई दो पक्ष लिखिए।
उत्तर:

  1. आर्थिक विकास
  2. सामाजिक विकास।

प्रश्न 15
बड़ी परियोजनाओं के फलस्वरूप किस वर्ग के लोग विस्थापित होते हैं?
उत्तर:
बड़ी परियोजनाओं के फलस्वरूप प्रायः गरीब, आदिवासी व दलित लोग विस्थापित होते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकासशील देश किसे कहा जाता है?
अथवा
अविकसित या विकासशील देश किन देशों को कहा गया और क्यों ?
उत्तर:
1950 और 1960 के दशक में एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों ने राजनीतिक आजादी हासिल की थी। औपनिवेशिक शासन में इनके संसाधनों का उपयोग उपनिवेशवादियों के फायदे के लिए किये जाने के कारण अधिकतर देश निर्धन बना दिये गए थे। उनके निवासियों का जीवन स्तर निम्न था। शिक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधाएँ कम थीं। इसीलिए इन देशों को प्रायः ‘अविकसित’ या ‘विकासशील’ कहा जाता था।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक शासन के अधीन राष्ट्र पिछड़े हुए क्यों रह गये?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान शासक राष्ट्रों ने शासित राष्ट्रों के संसाधनों का उपयोग अपने लाभ के लिए किया तथा उन्होंने शासित राष्ट्रों के हितों की कोई परवाह नहीं की। इस कारण औनिवेशिक शासन के अधीन शासित राष्ट्र पिछड़े हुए रह गये।

प्रश्न 3.
नव स्वतंत्र हुए अविकसित या विकासशील देशों की सबसे महत्त्व चुनौती क्या थी?
उत्तर:
नव स्वतंत्र हुए एशिया व अफ्रीका के अविकसित या विकासशील देशों के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की निहायत जरूरी समस्याओं का समाधान करना था जिसे उनकी बहुसंख्यक आबादी भुगत रही थी।

प्रश्न 4.
अविकसित या विकासशील देशों को विकास परियोजनाएँ बनाने की प्रेरणा किससे मिली?
उत्तर:
अविकसित या विकासशील देशों के नेताओं का मानना था कि वे पिछड़े इसलिए हैं कि औपनिवेशिक शासन में उनके संसाधनों का उपयोग उनके फायदे के लिए नहीं उपनिवेशवादियों के फायदे के लिए होता था । स्वतंत्रता के द्वारा वे अपने संसाधनों का उपयोग अपने राष्ट्रीय हित में सर्वश्रेष्ठ तरीके से करके पिछड़ेपन को दूर कर सकते हैं। इस बोध ने इन देशों को विकास परियोजनाएँ शुरू करने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 5.
विकासशील देशों ने विकास का कौनसा मॉडल अपनाया?
उत्तर:
विकासशील देशों ने औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकीकरण एवं विस्तार के जरिए तेज आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया था। उनका मानना था कि इस तरह के सामाजिक और आर्थिक बदलाव को शुरू करने में केवल राज्य सत्ता ही सक्षम माध्यम है। विकसित देशों की मदद और कर्ज के जरिये अनेक देशों ने विकास की महत्वाकांक्षी योजनाओं का सूत्रपात किया।

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प्रश्न 6.
लोगों के विस्थापित होने से संस्कृति का विनाश कैसे होता है?
उत्तर:
जब लोग विस्थापित किये जाते हैं तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन-पद्धति खो बैठते हैं। लम्बी अवधि में उनकी जीवन-पद्धति बदल जाती है। इस प्रकार लोगों के विस्थापित होने से संस्कृति का विनाश होता है।

प्रश्न 7.
पारिस्थितिकीय संकट क्या है?
उत्तर:
हमारे चारों ओर पारिस्थितिकी का निर्माण करने वाले घटक, जैसे- जल, वायु, वन, वन्यजीव आदि का विनाश जब मानवजनित या अन्य किसी कारण से होता है, तो यह विनाश होना ही पारिस्थितिकीय संकट कहलाता है।

प्रश्न 8.
भारत में विकास परियोजनाओं के क्या लक्ष्य रखे गये थे?
उत्तर:
भारत में विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत जो अनेक वृहद् परियोजनाएँ लागू की गईं, उनके निम्नलिखित लक्ष्य रखे गये थे

  1. यह बहुआयामी रणनीति आर्थिक रूप से प्रभावकारी होगी तथा देश की सम्पदा में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी।
  2. सम्पन्नता की वृद्धि धीरे-धीरे रिसकर समाज के सबसे गरीब तबके तक रिसकर पहुँचेगी और असमानता को कम करने में सहायक होगी।
  3. विकास की प्रक्रिया समाज को अधिक आधुनिक और प्रगतिशील बनायेगी और उसे उन्नति के पथ पर ले जाएगी।

प्रश्न 9.
विकास के परिप्रेक्ष्य में क्या महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
विकास के परिप्रेक्ष्य में निम्न बातों को देखना महत्त्वपूर्ण है।

  1. विकास के क्रम में लोगों के अधिकारों का सम्मान होना चाहिए।
  2. विकास के लाभ का उचित वितरण होना चाहिए।
  3. विकास की प्राथमिकताओं के बारे में निर्णय सहमति से लिये जाएं।

प्रश्न 10.
नर्मदा पर सरदार सरोवर परियोजना के तहत बनने वाले बड़े बांधों के समर्थकों के क्या तर्क हैं? उत्तर- बड़े बांधों के समर्थकों के तर्क ये हैं।

  1. बड़े बाँधों से बिजली पैदा होगी।
  2. इससे काफी बड़े क्षेत्र में जमीन की सिंचाई में मदद मिलेगी।
  3. इससे सौराष्ट्र व कच्छ के रेगिस्तानी क्षेत्र को पेयजल भी उपलब्ध होगा।

प्रश्न 11.
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर परियोजना के तहत बनने वाले बड़े बाँधों के विरोध में नर्मदा बचाओ आन्दोलन के नेताओं के क्या तर्क हैं?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के नेता बड़े बांधों के विरोध में निम्न तर्क देते हैं।

  1. इन बांधों के बनने से अपनी जमीन के डूबने और उसके कारण अपनी आजीविका के छिनने से दस लाख से अधिक लोगों के विस्थापन की समस्या पैदा हो गई है।
  2. इन बांधों से विशाल जंगली भू-भाग बांध में डूब जायेगा जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ेगा।

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प्रश्न 12.
विकास के मॉडल की प्रमुख आलोचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
विकास की ‘ऊपर से नीचे’ की रणनीति के महत्त्वपूर्ण प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास के मॉडल की आलोचनाएँ या विकास की ‘ऊपर से नीचे की रणनीति के महत्त्वपूर्ण

  1. महँगा विकास: विकास का यह मॉडल विकासशील देशों के लिए काफी मँहगा साबित हुआ है। इसमें वित्तीय लागत बहुत अधिक रही और अनेक देश दीर्घकालीन कर्ज से दब गए। विकास की उपलब्धि लिए गए कर्ज के अनुरूप नहीं रही।
  2. विस्थापन जनित सामाजिक समस्याओं का उदय-बड़े बांधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ। विस्थापन का परिणाम आजीविका खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में सामने आया। इससे परम्परागत कौशल नष्ट हुआ तथा संस्कृति का भी विनाश हुआ। ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षों को जन्म दिया है।
  3. धीमी गति: विकास की गति धीमी रही। दरिद्रता, बेकारी, अज्ञानता या शिक्षा की कमी, रोगों का फैलना जैसी समस्यायें आज भी एशिया और अफ्रीका के देशों में विद्यमान हैं।
  4. पर्यावरण पर दुष्प्रभाव: विकास की वजह से अनेक देशों में पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुँचा है। वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन, वायु प्रदूषण में वृद्धि, ऊर्जा का उत्तरोत्तर बढ़ता उपयोग आदि ने अनेक समस्यायें पैदा की हैं।

प्रश्न 13.
वर्तमान में विकास की व्यापक अवधारणा को अपनाने की क्यों आवश्यकता महसूस की गई है?
उत्तर:
वर्तमान में निम्नलिखित कारणों से विकास की व्यापक अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता महसूस की गई है।

  1. विकास के संकीर्ण अवधारणा वाले मॉडल का आर्थिक उन्नति पर अत्यधिक ध्यान होने से अनेक प्रकार की समस्यायें बढ़ीं, जैसे गरीब और अमीर की खाई में वृद्धि हुई, पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ा, अनेक लोगों को विस्थापनजनित अनेक सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  2. विकास के संकीर्ण अवधारणा वाले मॉडल को अपनाने से आर्थिक उन्नति भी हमेशा सन्तोषजनक नहीं रही है।
  3. असमानताओं में गंभीर कमी नहीं आई है।
  4. गरीबी लगातार एक समस्या बनी हुई है।

उक्त कारणों से विकास को अब व्यापक अर्थ में एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे।

प्रश्न 14.
विकास को मापने के किसी एक वैकल्पिक तरीके को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
‘मानव विकास प्रतिवेदन’ और ‘मानव विकास सूचकांक’ को समझाइये।
उत्तर:
मानव विकास प्रतिवेदन: विकास को मापने के लिए अब ‘आर्थिक उन्नति के सूचकांक की दर’ के स्थान पर वैकल्पिक तरीके खोजे जा रहे हैं। इसी तरह का एक प्रयास ‘मानव विकास प्रतिवेदन’ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) वार्षिक तौर पर प्रकाशित करता है। इस प्रतिवेदन में साक्षरता और शैक्षिक स्तर, आयु संभाविता और मातृ- मृत्यु दर जैसे विभिन्न सामाजिक संकेतकों के आधार पर देशों का दर्जा निर्धारित किया जाता है। इस उपाय को मानव विकास सूचकांक कहा गया है। इस अवधारणा के अनुसार विकास को ऐसी प्रक्रिया होना चाहिए, जो अधिकाधिक लोगों को उनके जीवन में अर्थपूर्ण तरीके से विकल्पों को चुनने की अनुमति दे तथा सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करे।

प्रश्न 15.
विस्थापन क्या है? इसका क्या परिणाम होता है?
उत्तर:
विस्थापन से आशय: बड़े बांधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों, खनन कार्य आदि के कारण जब लोगों को अपना घर व क्षेत्र छोड़ना पड़ता है, तो यह उनका विस्थापन कहलाता है। आता है। विस्थापन के परिणाम – विस्थापन के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित हैं।

  1. विस्थापन का परिणाम विस्थापित लोगों की आजीविका खोने और उनकी दरिद्रता में वृद्धि के रूप में सामने
  2. विस्थापन के कारण लोगों का परम्परागत कौशल नष्ट हो जाता है क्योंकि विस्थापन के कारण ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होकर शहरी और ग्रामीण गरीबों की विशाल आबादी का हिस्सा बन जाते हैं और लंबी अवधि में अर्जित उनका परम्परागत कौशल नष्ट हो जाता है।
  3. विस्थापन के कारण उनकी संस्कृति का भी विनाश होता है क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन-पद्धति खो बैठते हैं।
  4. ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षों को जन्म दिया है।

प्रश्न 16.
विकास के संकुचित अर्थ पर आधारित विकास के मॉडल की सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
विकास के संकुचित अर्थ पर आधारित विकास के मॉडल की सीमाएँ – विकास के संकुचित अर्थ पर आधारित विकास के मॉडल की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. इस मॉडल से मानव और पर्यावरण दोनों के लिहाज से भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
  2. विकास नीतियों के कारण जो कीमत चुकानी पड़ी है उसका और विकास के फायदों का वितरण लोगों के. बीच असमान रूप से हुआ है।
  3. अधिकतर देशों में विकास की ‘ऊपर से नीचे’ की रणनीतियाँ अपनायी गयी हैं अर्थात् नीतियों के निर्धारण और उनके क्रियान्वयन के सभी फैसले राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के उच्चतर स्तरों पर होते हैं।
  4. जिन लोगों के जीवन पर विकास योजनाओं का तत्काल प्रभाव पड़ता है, उनसे सलाह नहीं ली जाती है।
  5. न तो सदियों से हासिल लोगों के अनुभवों और ज्ञान व कौशल का उपयोग किया जाता है और न ही उनके हितों का ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 17.
स्वतंत्रता के बाद भारत ने विकास का क्या मॉडल चुना?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत ने विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की एक श्रृंखला बनायी। इनमें निम्न प्रयास किये गये

  1. इन योजनाओं में भाखड़ा नांगल बांध, देश के विभिन्न हिस्सों में इस्पात संयंत्रों की स्थापना, खनन, उर्वरक उत्पादन, कृषि तकनीकों में सुधार जैसी अनेक परियोजनाएँ चलायी गईं।
  2. इन पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा देश की सम्पदा में वृद्धि और लोगों की दशा सुधारने के प्रयत्न किये गये।
  3. विज्ञान तथा तकनीकी को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे नये शैक्षणिक संस्थान स्थापित किये गये। इन सबके माध्यम से समाज की प्रगति की उम्मीद की गई।

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प्रश्न 18.
विकास की विकेन्द्रित पद्धति के क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
विकास की विकेन्द्रित पद्धति के लाभ;

  1. विकास की विकेन्द्रित पद्धति के अन्तर्गत लोगों को अत्यधिक प्रभावित करने वाले मसलों पर लोगों से परामर्श किया जाता है। इससे समुदाय को हानि पहुँचा सकने वाली परियोजनाओं को रद्द करना संभव होता है।
  2. योजना बनाने और नीतियों के निर्धारण में लोगों के लिए अपनी जरूरतों के मुताबिक संसाधनों के उपयोग की भी गुंजाइश बनती है। जैसे सड़क कहाँ बने, बसों या मेट्रों का मार्ग कौनसा हो, मैदान व विद्यालय कहाँ पर हो आदि।
  3. विकास की विकेन्द्रित पद्धति में लोगों के पीढ़ियों से संग्रहित ज्ञान व अनुभवों की अनदेखी नहीं होती है, बल्कि यह परम्परागत और आधुनिक स्रोतों से मिलने वाली तमाम तरह की तकनीकों के रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल को संभव बनाती है।

प्रश्न 19.
विकास से होने वाली हानि को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:
विकास से होने वाली हानि को कम करने के लिए निम्न प्रयास किये जा सकते हैं।

  1. प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने और ऊर्जा के फिर से प्राप्त हो सकने वाले स्रोतों का यथासंभव उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। वर्षा जल संचयन, सौर एवं जैव गैस संयंत्र, लघु पनबिजली परियोजना, जैव कचरे से खाद बनाने हेतु कंपोस्ट – गड्ढे बनाना आदि इस दिशा में संभव प्रयासों के कुछ उदाहरण हैं। इन गतिविधियों को स्थानीय स्तर पर लागू करें क्योंकि इनके लिए जन सहभागिता की अधिक आवश्यकता होगी।
  2. बड़े बांधों के स्थान पर छोटे बांध बनाए जाएं, जिनमें कम निवेश की आवश्यकता होती है और विस्थापन भी मामूली होता है। ऐसे छोटे बांध स्थानीय जनसंख्या के लिए अधिक लाभकारी हो सकते हैं।
  3. विकास लक्ष्यों को तय करने में लोकतांत्रिक तरीका अपनाया जाये तथा जनता की इन्हें तय करने में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाये।

प्रश्न 20.
पर्यावरणवाद से आप क्या समझते हैं? समझाइये।
उत्तर:
पर्यावरणवाद: पर्यावरणविदों द्वारा पर्यावरण को बचाने के लिए वे जो तर्क दिये जा रहे हैं, उन्हें सम्मिलित रूप से पर्यावरणवाद कहा जाता है।
पर्यावरणविदों के तर्क: पर्यावरणविदों का कहना है कि मानव को पारिस्थितिकी के सुर में सुर मिलाते हुए जीना सीखना चाहिए और पर्यावरण में अपने तात्कालिक हितों के लिए छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए। उनका मानना है कि पृथ्वी का जिस सीमा तक उपभोग हो रहा है और प्राकृतिक साधनों को जिस तरह नष्ट किया जा रहा है, उससे हम आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल उजाड़ धरती, जहरीली नदियाँ और प्रदूषित हवा ही छोड़कर जायेंगे।

  1. पर्यावरण आन्दोलन: पर्यावरणवाद या पर्यावरण आन्दोलन की जड़ें औद्योगीकरण के खिलाफ 19वीं सदी में विकसित हुए विद्रोह में देखी जा सकती हैं।
  2. पर्यावरण आन्दोलन के संगठन: वर्तमान में पर्यावरण आन्दोलन एक विश्वव्यापी मामला बन गया है। विश्व भर में इसके हजारों गैर सरकारी संगठन तथा ‘ग्रीन पार्टियाँ’ इसके गवाह हैं। कुछ पर्यावरण संगठनों में ग्रीन पीस और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड शामिल हैं।
  3. पर्यावरण संगठनों के कार्य: ये पर्यावरण समूह पर्यावरण उद्देश्यों की रोशनी में सरकार की औद्योगिक एवं विकास नीतियों को बदलने के लिए दबाव डालने का प्रयास करते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? समझाइये।
उत्तर:
विकास की अवधारणा से आशय: औद्योगिक क्रांति तथा औद्योगीकरण के बाद से विकास के विचार ने महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। अधिकांश यूरोपीय राष्ट्रों ने विकास प्रक्रिया प्रारंभ की तथा 20वीं शताब्दी में ‘विकसित इटली राष्ट्रों’ का दर्जा प्राप्त किया। इस प्रकार 20वीं सदी में अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, रूस, इजरायल, जापान, तथा कनाडा आदि को विकसित राष्ट्र माना गया। भारत सहित एशिया और अफ्रीका के अनेक राष्ट्र जो द्वितीय महायुद्ध के बाद औपनिवेशिक दासता से स्वतंत्र हुए थे, उन्हें अविकसित या विकासशील राष्ट्र कहा गया।

इनमें अधिकतर देश कंगाल बना दिये गए थे और उनके निवासियों का जीवन स्तर निम्न था । शिक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधाएँ कम थीं। इस प्रकार ये देश गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता, अशिक्षा, कमजोर स्वास्थ्य आदि बुनियादी सुविधाओं के अभाव की गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे थे। इन राष्ट्रों ने अपने संसाधनों का उपयोग अपने राष्ट्रीय हित में सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने की दृष्टि से विकास परियोजनाएँ बनाना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार विकास की कोई एक सार्वजनिक परिभाषा नहीं दी जा सकती है।

व्यापक अर्थ में विकास की अवधारणा: व्यापकतम अर्थ में विकास उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है।
संकीर्ण अर्थ में विकास की अवधारणा: विकास शब्द का प्रयोग प्रायः आर्थिक विकास की दर में वृद्धि और समाज का आधुनिकीकरण जैसे संकीर्ण अर्थों में भी होता रहता है। विकास की अवधारणा विगत वर्षों में काफी बदली है।

(अ) प्रारंभिक वर्षों में अपनायी गयी विकास की अवधारणा: प्रारंभिक वर्षों में विकास की जो अवधारणा अपनायी गई उससे आशय रहा है। आर्थिक उन्नति और समाज का आधुनिकीकरणं। इस अर्थ में विकास सामान्यतः एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य है। परम्परागत समाज का आधुनिक समाज में रूपान्तरण। साथ ही इसका सम्बन्ध आर्थिक उन्नति से है क्योंकि आर्थिक विकास ही विकास की वह प्रथम शर्त है जिससे समाज में बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत शैक्षिक विकास, नागरिक स्वतंत्रताएँ तथा राजनीतिक भागीदारी भी सन्निहित हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए एशिया और अफ्रीका के देशों ने विकास की इस अवधारणा को अपनाते हुए विकास का जो मॉडल अपनाया, वह विकास सम्बन्धी उद्देश्यों को पूरा करने में पूर्णतः सफल नहीं रहा। इसकी सीमाओं को देखते हुए अब विकास की व्यापक अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता महसूस की गई है।

(ब) विकास की व्यापक अवधारणा- विकास को अब व्यापक अर्थ में एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे। विकास की व्यापक अवधारणा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. इसमें मानव विकास प्रतिवेदन तथा मानव विकास सूचकांक के द्वारा विकास का मापन किया जाता है। इसके अन्तर्गत साक्षरता और शैक्षिक स्तर, आयु संभाविता और मातृ- मृत्यु दर जैसे विभिन्न सामाजिक संकेतकों के आधार पर देशों का दर्जा निर्धारित किया जाता है।
  2. इस अवधारणा के अन्तर्गत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जो अधिकाधिक लोगों को उनके जीवन में अर्थपूर्ण तरीके से विकल्पों को चुनने की अनुमति देती है।
  3. इसकी पूर्ण शर्त है। बुनियादी जरूरतों की पूर्ति । इनकी पूर्ति के वगैर किसी व्यक्ति के लिए गरिमामय जीवन गुजारना और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना असंभव है।
  4. इस प्रक्रिया में विकास से प्रभावित लोगों के अनेक अधिकारों की मांग की गई हैं।
  5. इसमें विकास सम्बन्धी निर्णय लेने और उसके क्रियान्वयन में जनता की सहभागिता पर विशेष बल दिया गया है।
  6. यह एक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षित रखने और ऊर्जा के फिर से प्राप्त हो सकने वाले स्रोतों के यथासंभव उपयोग करने के प्रयासों पर बल देती है।

प्रश्न 2.
एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने विकास के जिस मॉडल को अपनाया उसे स्पष्ट कीजिए। उसकी सीमाओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
एशिया व अफ्रीका के नव-स्वतंत्र राष्ट्रों के विकास का मॉडल
1950 और 1960 के दशक में, जब अधिकतर एशियाई व अफ्रीकी देशों ने औपनिवेशिक शासन से आजादी हासिल की तब उनके सामने प्रमुख चुनौती गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की समस्याओं का समाधान करना था जिसे उनकी बहुसंख्यक आबादी भुगत रही थी। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए इन देशों ने अपने संसाधनों का उपयोग अपने राष्ट्रीय हित में सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने के लिए विकास परियोजनाएँ क्रियान्वित कीं।

एशिया: अफ्रीकी देशों का विकास का मॉडल एशिया तथा अफ्रीका के नव-स्वतंत्र राष्ट्रों ने विकास के मॉडल में आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण पर बल दिया। विकासशील देशों ने औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकीकरण और विस्तार के माध्यम से तेज आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया था। दूसरे, इस मॉडल में राज्य सत्ता या सरकार के माध्यम से सामाजिक तथा आर्थिक बदलाव के लिए विकास की महत्वाकांक्षीय योजनाओं का सूत्रपात किया गया। तीसरे, विकास की महत्वाकांक्षी योजनाएँ विकसित देशों की मदद और कर्ज के माध्यम से चालू की गईं। लक्ष्य – विकास की इन योजनाओं के प्रमुख लक्ष्य थे

  1. बहुआयामी विकास की रणनीति आर्थिक रूप से प्रभावकारी होगी और देश की सम्पदा में वृद्धि होगी।
  2. सम्पदा में वृद्धि से आने वाली सम्पन्नता धीरे-धीरे समाज के गरीब तबके तक पहुँच जायेगी और असमानता को कम करने में सहायक होगी।
  3. यह विश्वास किया गया कि विकास की प्रक्रिया समाज को अधिक आधुनिक और प्रगतिशील बनाएगी और उसे उन्नति के पथ पर ले जाएगी। विकास के मॉडल की आलोचनाएँ (सीमाएँ ) विकास का जो मॉडल भारत तथा अन्य एशिया- अफ्रीका के राष्ट्रों द्वारा अपनाया गया उसकी निम्नलिखित प्रमुख आलोचनाएँ की गई हैं।

1. अत्यधिक महंगा विकास:
विकासशील देशों में जिस तरीके से विकास मॉडल को अपनाया गया है, वह इनके लिए काफी मंहगा साबित हुआ है। इसमें वित्तीय लागत बहुत अधिक रही और अनेक देश दीर्घकालीन कर्ज से दब गए। अफ्रीका अभी तक अमीर देशों से लिए गए भारी कर्ज तले कराह रहा है। विकास के रूप में उपलब्धि, लिए गए कर्ज के अनुरूप नहीं रही।

2. मानव और समाज को हानि:
विकास के इस मॉडल के कारण बहुत बड़ी मानवीय व सामाजिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। इस विकास के अन्तर्गत हुए बड़े बांधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ। विस्थापन का परिणाम आजीविका खोने और गरीबी में वृद्धि के रूप में सामने आया। विस्थापित ग्रामीण लोग गरीबों की विशाल आबादी में शामिल हो गए और लम्बी अवधि में अर्जित ‘परम्परागत कौशल नष्ट होते गए। विस्थापन से संस्कृति का भी विनाश हुआ क्योंकि विस्थापित लोग नई जगह पर जाकर रहने लग गए और वहाँ जाकर अपनी सामुदायिक जीवन-पद्धति को खो बैठे। ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षों को भी जन्म दिया है।

3. पर्यावरण को हानि:
विकास की वजह से अनेक देशों में पर्यावरण को भी काफी ज्यादा नुकसान पहुँचा है। विकास के कारण तटीय वनों के नष्ट होने से और समुद्रतट के निकट वाणिज्यिक उद्यमों के स्थापित होने के कारण दक्षिणी और दक्षिणी – पूर्वी एशिया के तटों पर सुनामी ने कहर ढाया। विकास के कारण ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है जिससे समुद्र जल की सतह उठ रही है। इससे तटीय क्षेत्रों के डूब जाने का खतरा पैदा हो रहा है।

विकास के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है जिसके कारण अनेक रोगों का विस्तार हो रहा है:
विकास के कारण संसाधनों का अविवेकपूर्ण उपयोग किया गया जिसका वंचितों पर तात्कालिक और अधिक तीखा प्रभाव पड़ा। जलावन, जड़ी-बूटी और आहार आदि के रूप में जंगल के संसाधनों का अपने गुजारे के लिए विविध प्रकार से उपयोग करने वाले गरीबों पर जंगलों के नष्ट होने का बुरा असर पड़ा।
विकास के इस मॉडल में ऊर्जा के लिए कोयला और पैट्रोलियम के उपयोग पर बल दिया गया। इनके स्रोतों का पुनः प्राप्त करना संभव नहीं है। इनके समाप्त हो जाने पर आगामी पीढ़ियाँ प्रभावित होंगी।

4. विकास के लाभ का असमान वितरण:
विकास की नीतियों के कारण जो कीमत चुकानी पड़ी है उसका; और विकास के लाभों का वितरण भी लोगों के बीच असमान रूप से हुआ है। इसके कारण असमानता में कमी नहीं आई है तथा गरीब और अमीर की खाई और बढ़ गई है।

5. ऊपर से नीचे की रणनीतियाँ:
अधिकतर देशों में विकास की ‘ऊपर से नीचे’ की रणनीतियाँ अपनाई गई हैं अर्थात् विकास की प्राथमिकताओं व रणनीतियों का चयन और परियोजनाओं के वास्तविक क्रियान्वयन के सभी फैसले आम तौर पर राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के उच्चतर स्तरों पर होते हैं। जिन लोगों के जीवन पर विकास योजनाओं का तत्काल असर होता है, उनसे तनिक भी सलाह नहीं ली जाती है। इससे न तो सदियों से हासिल उनके अनुभवों और ज्ञान का उपयोग हो पाता है और न उनके हितों का ध्यान रखा जाता है।

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प्रश्न 3.
विकास की व्यापक अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकास की व्यापक अवधारणा: विकास की आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण के अर्थ से सम्बद्ध संकुचित अवधारणा की आलोचनाओं व सीमाओं को देखते हुए अब इस बात को उत्तरोत्तर स्वीकृति मिल रही है कि विकास की व्यापक अवधारणा को अपनाया जाये।

विकास की व्यापक अवधारणा से आशय: इस अवधारणा के अन्तर्गत विकास को व्यापक अर्थ में एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे और अधिकाधिक लोगों को उनके जीवन में अर्थपूर्ण तरीके से विकल्पों को चुनने की अनुमति दे।

विकास की व्यापक अवधारणा को मापने के वैकल्पिक तरीके: मानव विकास सूचकांक अब विकास को केवल आर्थिक उन्नति के सूचकांक की दर के जरिये मापना अपर्याप्त माना जा रहा है और इसके मापने के वैकल्पिक तरीके खोजे जा रहे हैं। इसी तरह का एक प्रयास ‘मानव विकास प्रतिवेदन’ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) वार्षिक तौर पर प्रकाशित करता है। इस प्रतिवेदन में साक्षरता और शैक्षिक स्तर, आयु संभाविता और मातृ-मृत्यु दर जैसे विभिन्न सामाजिक संकेतकों के आधार पर देश का दर्जा निर्धारित किया जाता है। इस उपाय को मानव विकास सूचकांक कहा गया।

बुनियादी आवश्यकता पर आधारित दृष्टिकोण: विकास की पूर्व शर्त है कि आहार, शिक्षा, स्वास्थ्य; आश्रय कपड़ा ‘जैसी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हो। बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के बगैर किसी व्यक्ति के लिए गरिमामय जीवन गुजारना और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना असंभव है। अभाव अथवा वंचनाओं से मुक्ति ही किसी व्यक्ति की पसंदगी और इच्छाओं की पूर्ति की कुंजी है।

न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास हेतु वैकल्पिक तरीकों पर बल: विकास के पुरातन मॉडल तथा संकीर्ण अवधारणा की सीमाओं तथा ‘ऊपर से नीचे’ की अपनायी गयी रणनीतियों के कारण विकास, परियोजनाओं से लाभ उठाने वाले सत्ताधारी तबकों द्वारा तैयार और लागू की जाने वाली प्रक्रिया बन गया है। इस स्थिति ने न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास के बारे में वैकल्पिक तरीके से सोचने और उसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। यथा

1. अधिकारों के दावे: विकास की संकीर्ण अवधारणा के अन्तर्गत विकास के अधिकांश लाभों को तो ताकतवर लोगों ने हथिया लिया है और विकास की कीमत अति दरिद्र और आबादी के असुरक्षित हिस्से को चुकानी पड़ी है। चाहे यह कीमत पारिस्थितिकी तंत्र में हानि के कारण से हो या विस्थापन और आजीविका खोने के कारण। इस स्थिति से निजात पाने के लिए विकास की वैकल्पिक व्यापक अवधारणा के अन्तर्गत नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है। ये दावे निम्नलिखित हैं।

  1. लोकतंत्र में लोगों को यह अधिकार है कि उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में उनसे सलाह ली जाए।
  2. लोगों को आजीविका का अधिकार है जिसका दावा वे सरकार से अपनी आजीविका के स्रोत पर खतरा पैदा होने पर कर सकते हैं।
  3. आदिवासी और आदिम समुदाय, जिनका सामुदायिक जीवन और पर्यावरण के साथ सम्बन्ध विशेष प्रकार का होता है, को नैसर्गिक संसाधनों पर अधिकार होना चाहिए। यह समुदाय संसाधनों के उपयोग के परम्परागत अधिकारों का दावा कर सकते हैं।
  4. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का यह कर्तव्य है कि वे जनसमूह के विभिन्न तबकों की प्रतिस्पर्द्धात्मक मांगों को पूरा करने के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य की दावेदारियों के बीच संतुलन कायम करें।

2. लोकतांत्रिक सहभागिता:
लोकतंत्र में संसाधनों को लेकर विरोध या बेहतर जीवन के बारे में विभिन्न विचारों के द्वन्द्व का हल विचार-विमर्श और सभी के अधिकारों के प्रति सम्मान के जरिए होता है। इन्हें ऊपर से थोपा नहीं जा सकता। इस दृष्टि से यदि बेहतर जीवन हासिल करने में समाज का हर व्यक्ति साझीदार है, तो विकास की योजनाएँ बनाने और उसके कार्यान्वयन के तरीके ढूँढ़ने में भी हरेक व्यक्ति को शामिल करने की आवश्यकता है। इसके दो लाभ हैं प्रथमतः, आपको योजना बनाते समय विशेष जरूरतों का ज्ञान होगा और दूसरे, निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी से सभी तबके अधिकार सम्पन्न बनेंगे। निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करने का एक प्रस्तावित रास्ता विकास योजनाओं के बारे में निर्णय स्थानीय निर्णयकारी संस्थाओं को लेने देना है।

इससे निम्नलिखित दो बांतें सुनिश्चित होंगी:

  1. अत्यधिक प्रभावित करने वाले मसलों पर लोगों से परामर्श होगा और समुदाय को हानि पहुँचा सकने वाली परियोजनाओं को रद्द करना संभव होगा।
  2. योजना बनाने और नीतियों के निर्धारण में संलग्नता से लोगों के लिए अपनी जरूरतों के मुताबिक संसाधनों के उपयोग की भी संभावना बनती है। सड़क कहाँ बने, स्थानीय बसों या मेट्रो का मार्ग कौनसा हो, मैदान या विद्यालय कहाँ पर हो। किसी गाँव को चेक डैम की जरूरत है या इंटरनेट कैफे की, इस तरह के निर्णय उन्हीं लोगों द्वारा लिए जाने चाहिए। इस प्रकार विकास की विकेन्द्रित पद्धति परम्परागत और आधुनिक स्रोतों से मिलने वाली तमाम तरह की तकनीकों के रचनात्मक तरीके के प्रयोग को संभव बनाती है।

3. विकास और जीवन शैली:
विकास का वैकल्पिक मॉडल विकास की मंहगी, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली प्रौद्योगिकी से संचालित सोच से दूर होने की कोशिश करता है। इसका मानना है कि विकास को लोगों के जीवन की गुणवत्ता से नापा जाना चाहिए, जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शांति और बुनियादी जरूरतों के पूरा होने में झलकती है। इस हेतु निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए

  1. एक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने और ऊर्जा के फिर से प्राप्त हो सकने वाले स्रोतों का यथासंभव उपयोग करने के प्रयास किए जाने चाहिए। वर्षा जल संचयन, सौर एवं जैव गैस संयंत्र, लघु पन बिजली परियोजना, जैव कचरे से खाद बनाने हेतु कंपोस्ट – गड्ढे बनाना आदि इस दिशा में संभव प्रयासों के कुछ उदाहरण हैं। इन गतिविधियों को स्थानीय स्तर पर लागू करना और इसलिए लोगों की अधिक संलग्नता आवश्यक होगी।
  2. बड़े सुधार को प्रभावी बनाने के लिए बड़ी परियोजनाएँ ही एकमात्र तरीका नहीं हैं। उदाहरण के लिए-बड़े बांधों के स्थान पर छोटे बांध बनाए जा सकते हैं, जिनमें बहुत कम निवेश की जरूरत होती है तथा विस्थापन बहुत कम होता है। ऐसे छोटे बांध आबादी के लिए भी अधिक फायदेमंद हो सकते हैं।
  3. हमें अपने जीवन स्तर को बदलकर उन साधनों की आवश्यकताओं को भी कम करने की जरूरत है, जिनका नवीकरण नहीं हो सकता।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter  9 शांति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक युग की सबसे बड़ी माँग है।
(अ) परमाणु शस्त्रीकरण को बढ़ावा देकर शक्ति संतुलन स्थापित करना।
(ब) आतंकवाद को बढ़ावा देना।
(स) विश्व शांति की स्थापना करना।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) विश्व शांति की स्थापना करना।

2. विश्व शांति के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधा है।
(अ) निःशस्त्रीकरण
(ब) आतंकवाद
(स) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(द) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
उत्तर:
(ब) आतंकवाद

3. विश्व शांति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने का उपाय है।
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
(ब) युद्ध
(स) साम्प्रदायिकता
(द) शस्त्रीकरण
उत्तर:
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन

4. निम्न में से कौनसा शांति का तत्व नहीं है।
(अ) अहिंसा
(ब) करुणा
(स) सहयोग
(द) बंधुत्व की भावना का अभाव
उत्तर:
(द) बंधुत्व की भावना का अभाव

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5. निम्न में से कौनसा विचारक युद्ध को महिमा मंडित करने वाला था?
(अ) महात्मा गांधी
(ब) मार्टिन लूथर किंग
(स) फ्रेडरिक नीत्शे
(द) गौतम बुद्ध
उत्तर:
(स) फ्रेडरिक नीत्शे

6. भारत में प्रमुख शांतिवादी विचारक रहे हैं।
(अ) सुभाष चंद्र बोस
(ब) महात्मा गाँधी
(स) भगतसिंह
(द) चन्द्रशेखर आजाद
उत्तर:
(ब) महात्मा गाँधी

7. हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु बम गिराये।
(अ) अमेरिका ने
(ब) जर्मनी ने
(स) फ्रांस ने
(द) इंग्लैण्ड ने
उत्तर:
(अ) अमेरिका ने

8. जातिभेद हिंसा का उदाहरण है।
(अ) युद्धजनित हिंसा
(ब) विचारजनित हिंसा
(स) संरचनात्मक हिंसा
(द) आतंकवाद
उत्तर:
(स) संरचनात्मक हिंसा

9. युद्ध जनित विनाश को और अधिक भीषण बनाने में योगदान है-
(अ) उन्नत तकनीक का
(ब) हिंसक विचारों का
(स) हथियारों का
(द) उपर्युक्त सभी का
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी का

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10. निम्न में से वर्तमान में जिस प्रकार की अशांति सर्वाधिक आम हो गई है, वह
(अ) साम्प्रदायिक हिंसा
(ब) पड़ोसी देशों में युद्ध
(स) विश्व युद्ध
(द) आतंकवाद
उत्तर:
(द) आतंकवाद

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. ………………… की अनुपस्थिति की भारी कीमत चुकाने के बाद मानवता ने इसका महत्त्व पहचाना है।
उत्तर:
शांति

2. शांति की परिभाषा अवसर ………………….. की अनुपस्थिति के रूप में की जाती है।
उत्तर:
युद्ध

3. न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और ………………….. के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करके ही प्राप्त की जा सकती है।
उत्तर:
संघर्ष

4. चूंकि युद्ध का आरंभ लोगों के दिमाग में होता है, इसलिए शांति के बचाव भी लोगों के ……………….. में ही रचे जाने चाहिए।
उत्तर:
दिमाग

5. शांतिवादी का मकसद लड़ाकुओं की क्षमता को कम करके आंकना नहीं, …………………. के अहिंसक स्वरूप पर बल देना है।
उत्तर:
प्रतिरोध

निम्नलिखित में सत्य / असत्य कथन छाँटिये

1. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधीजी द्वारा सत्याग्रह का प्रयोग प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप का एक प्रमुख उदाहरण है।
उत्तर:
सत्य

2. जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे शांति को महिमामंडित करने वाला विचारक था।
उत्तर:
असत्य

3. हिंसा प्राय: समाज की मूल संरचना में ही रची-बसी है।
उत्तर:
सत्य

4. शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल की जा सकती है।
उत्तर:
असत्य

5. गाँधीजी के अनुसार अहिंसा अतिशय सक्रिय शक्ति है, जिसमें कायरता और कमजोरी का कोई स्थान नहीं है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. फ्रेडरिक नीत्शे (अ) इटली के समाज – सिद्धान्तकार
2. विल्फ्रेडो पैरेटो (ब) शीतयुद्ध
3. क्यूबाई मिसाइल संकट (स) नस्लवाद और साम्प्रदायिकता
4. संरचनात्मक हिंसा का उदाहरण (द) शांति कायम करने का एक तरीका
5. विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक (य) एक जर्मन दार्शनिक

उत्तर:

1. फ्रेडरिक नीत्शे (य) एक जर्मन दार्शनिक
2. विल्फ्रेडो पैरेटो (अ) इटली के समाज – सिद्धान्तकार
3. क्यूबाई मिसाइल संकट (ब) शीतयुद्ध
4. संरचनात्मक हिंसा का उदाहरण (स) नस्लवाद और साम्प्रदायिकता
5. विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक (द) शांति कायम करने का एक तरीका

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शांतिवाद क्या है?
उत्तर:
शांतिवाद विवादों से सुलझाने के औजार के बतौर युद्ध या हिंसा के बजाय शांति का उपदेश देता है।

प्रश्न 2.
जर्मन दार्शनिक नीत्शे का क्या मानना था?
उत्तर:
जर्मन दार्शनिक नीत्शे का मानना था कि सिर्फ संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, इसलिए युद्धं श्रेष्ठ है।

प्रश्न 3.
शांति लगातार बहुमूल्य क्यों बनी हुई है?
उत्तर:
शांति लगातार बहुमूल्य बनी हुई है क्योंकि शांति की अनुपस्थिति में मानवता ने भारी कीमत चुकाई है।

प्रश्न 4.
शांति को परिभाषित कीजिये अथवा शांति क्या है?
उत्तर:
शांति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव-कल्याण की स्थापना हेतु आवश्यक नैतिक व भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं। हिंसा ।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

प्रश्न 5.
संरचनात्मक हिंसा के किन्हीं दो रूपों के नाम लिखिये।
उत्तर:
संरचनात्मक हिंसा के दो रूप ये हैं।

  1. जाति-भेद आधारित हिंसा व शोषण
  2. वर्ग-भेद आधारित

प्रश्न 6.
रंगभेदी हिंसा का कोई एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
दक्षिणी अफ्रीका की गोरी सरकार की 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार।

प्रश्न 7.
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्षों के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये ही प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 8.
शांतिवादियों का मकसद ( उद्देश्य ) क्या है?
उत्तर:
शांतिवादियों का उद्देश्य है। प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप पर बल देना। वैसे संघर्षों का एक प्रमुख तरीका सविनय नागरिक अवज्ञा है।

प्रश्न 9.
शांतिवादी उत्पीड़न से लड़ने के लिए किसकी वकालत करते हैं?
उत्तर:
शांतिवादी उत्पीड़न से लड़ने के लिए सत्य और प्रेम को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं।

प्रश्न 10.
गांधीजी के अहिंसा सम्बन्धी विचार को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
गांधीजी के लिए अहिंसा का अर्थ कल्याण और अच्छाई का सकारात्मक और सक्रिय क्रियाकलाप है। इसमें किसी को चोट न पहुँचाने का विचार भी शामिल है।

प्रश्न 11.
शांति के मार्ग में आने वाली दो बाधायें लिखिये।
उत्तर:
आतंकवाद, शस्त्रीकरण।

प्रश्न 12.
शांति स्थापना के कोई दो उपाय लिखिये।
उत्तर:
युद्धों को रोकना, संरचनात्मक हिंसा के रूपों को खत्म करना।

प्रश्न 13.
द्वितीय विश्व युद्ध का अन्त किस घटना के साथ हुआ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध का अन्त अमरीका द्वारा जापान के दो नगरों हिरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम गिराने के साथ हुआ।

प्रश्न 14.
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् किन दो देशों ने सैन्य बल नहीं रखने का निर्णय लिया?
उत्तर:
जापान, कोस्टारिका।

प्रश्न 15.
विश्व में परमाणविक हथियार से मुक्त क्षेत्र कितने हैं?
उत्तर:
छ: क्षेत्र

प्रश्न 16.
क्यूबाई मिसाइल संकट कब हुआ था और इसका प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
क्यूबाई मिसाइल संकट 1962 में हुआ था। इसका कारण अमरीकी जासूसी विमानों द्वारा क्यूबा में सोवियत संघ की आणविक मिसाइलों को खोजना था।

प्रश्न 17.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कौनसी दो महाशक्तियाँ उभरीं?
अथवा
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् कि दो महाशक्तियों में प्रतिस्पर्द्धा का दौर चला?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद:

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2. सोवियत संघ नामक दो महाशक्तियाँ उभरी और उनके बीच प्रतिस्पर्द्धा का दौर चला।

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प्रश्न 18.
आज जीवन किस कारण अत्यधिक असुरक्षित है?
उत्तर:
आतंकवादी गतिविधियों के बढ़ने के कारण।

प्रश्न 19.
संरचनात्मक हिंसा को समाप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना।

प्रश्न 20.
शांति की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
मानव कल्याण की स्थापना के लिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हिंसा की समाप्ति और शांति की स्थापना के कोई दो उपाय सुझाइए।
उत्तर:
हिंसा की समाप्ति और शांति की स्थापना के लिये ये दो उपाय किये जाने चाहिए

  1. सर्वप्रथम लोगों के सोचने-समझने के तरीकों में बदलाव लाना चाहिए। इसके लिए करुणा, हैं।
  2. समाज में संरचनात्मक हिंसा के रूपों को समाप्त कर सह अस्तित्व वाले समाज का निर्माण किया जाये।

प्रश्न 2.
शांति के बारे में नकारात्मक सोच वाले दो विचारकों के विचारों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:

  1. नीत्शे का मानना था कि सिर्फ संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  2. विल्फ्रेडो पैरेटो का दावा था कि अधिकतर समाजों में शासक वर्ग का निर्माण सक्षम और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए शक्ति का प्रयोग करने के लिए तैयार लोगों से होता है।

प्रश्न 3.
आज लोग शांति का गुणगान क्यों करते हैं?
उत्तर:
आज लोग शांति का गुणगान निम्न कारणों से करते हैं।

  1. वे इसे अच्छा विचार मानते हैं।
  2. शांति की अनुपस्थिति की भारी कीमत चुकाने के बाद मानवता ने इसका महत्व पहचाना है।
  3. आज जीवन अतीत के किसी भी समय से कहीं अधिक असुरक्षित है क्योंकि हर जगह के लोग आतंकवाद के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
संरचनात्मक हिंसा के कोई पाँच उदाहरण लिखिये।
उत्तर:
संरचनात्मक हिंसा से उत्पन्न कुछ प्रमुख उदाहरण ये हैं।

  1. जातिभेद
  2. वर्गभेद
  3. पितृसत्ता
  4. उपनिवेशवाद
  5. नस्लवाद
  6. साम्प्रदायिकता।

प्रश्न 5.
परम्परागत जाति-व्यवस्था के दुष्परिणाम को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
परम्परागत जाति-व्यवस्था कुछ खास समूह के लोगों को अस्पृश्य मानकर बरताव करती थी। छुआछूत के प्रचलन ने उन्हें सामाजिक बहिष्कार और अत्यधिक वंचना का शिकार बना रखा था।

प्रश्न 6.
वर्ग-व्यवस्था से उत्पन्न हिंसा को समझाइये
उत्तर:
वर्ग आधारित सामाजिक व्यवस्था ने भी असमानता और उत्पीड़न को जन्म दिया है। विकासशील देशों की अधिकांश कामकाजी जनसंख्या असंगठित क्षेत्र से सम्बद्ध है, जिसमें मजदूरी और काम की दशा बहुत खराब है।

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प्रश्न 7.
पितृ सत्ता की अभिव्यक्ति किस प्रकार की हिंसाओं में होती है?
उत्तर:
पितृ सत्ता से स्त्रियों को अधीन बनाने तथा उनके साथ भेदभाव के रूप सामने आते हैं। इसकी अभिव्यक्ति कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों को अपर्याप्त पोषण, बाल-विवाह, अशिक्षा, पत्नी को पीटना, दहेज- अपराध, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार में होती है।

प्रश्न 8.
रंगभेद से जनित हिंसा को एक उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
रंगभेद में एक समूचे नस्लगत समूह या समुदाय का दमन करना शामिल रहता है। उदाहरण के लिए दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार ने 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत जनसंख्या के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया।

प्रश्न 9.
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्ष के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये प्राप्त की जा सकती है। इसमें हर तबके के लोगों के बीच अत्यधिक सम्पर्क को प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
लोगों के दिमाग में शांति के विचार कैसे लाये जा सकते हैं?
उत्तर:
लोगों के दिमाग में शांति के विचार लाने के लिए करुणा जैसे अनेक पुरातन आध्यात्मिक सिद्धान्त और ध्यान जैसे अभ्यास बिल्कुल उपयुक्त हैं। आधुनिक नीरोगकारी तकनीक और मनोविश्लेषण जैसी चिकित्सा पद्धतियाँ भी यह काम कर सकती हैं।

प्रश्न 11.
शांति कैसे समाज की उपज हो सकती है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा को निर्मूल करने के लिए अनिवार्य है और शांति, ऐसे ही समाज की उपज हो सकती है।

प्रश्न 12.
क्या विश्व शांति बनाए रखने के लिए हिंसा जरूरी है?
उत्तर:
नहीं, विश्व शांति बनाए रखने के लिए हिंसा जरूरी नहीं है, बिना हिंसा के भी शांति स्थापित की जा सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून ने सभी राज्यों को अन्य राज्यों के आक्रमण के विरुद्ध आत्मरक्षा का अधिकार दिया है। यह आत्मरक्षा प्रत्येक देश अन्य देश के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाकर, परस्पर सामाजिक-आर्थिक सहयोग द्वारा कर सकता है।

प्रश्न 13.
शांति को बेकार या महत्वहीन बताने वाले विचारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:

  1. जर्मन दार्शनिक विचारक फ्रेडरिक नीत्शे ने शांति को महत्त्व नहीं दिया क्योंकि उसका मानना था कि सिर्फ संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
  2. अनेक विचारकों ने शांति को बेकार बताया है और संघर्ष की प्रशंसा व्यक्तिगत बहादुरी और सामाजिक जीवन्तता के वाहक के तौर पर की है।
  3. विल्फ्रेडो पेरेटो का दावा था कि अधिकतर समाजों में शासक वर्ग का निर्माण सक्षम और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करने के लिए तैयार लोगों से होता है।

प्रश्न 14.
क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है?
उत्तर:
हिंसा कभी भी शांति को प्रोत्साहित नहीं कर सकती। कई बार यह तर्क दिया जाता है कि तानाशाहों या लोगों को उत्पीड़न करने वाले शासकों को हटाने के लिए हिंसा का प्रयोग उचित है। लेकिन व्यवहार में अच्छे उद्देश्य की पूर्ति के लिए भी हिंसा का प्रयोग हानिकारक होता है क्योंकि हिंसा से जन और धन की हानि होती है। इसके अतिरिक्त एक बार शुरू होने के पश्चात् हिंसा में वृद्धि हो सकती है और उस पर नियंत्रण करना कठिन हो जाता है। अतः हिंसा के परिणाम सदा बुरे होते हैं।

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प्रश्न 15.
” हिंसा प्राय: समाज की मूल संरचना में रची-बसी है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक संस्थाएँ और प्रथाएँ जैसे जाति प्रथा, वर्ग-भेद, पितृसत्ता, लिंगभेद आदि असमानता को बढ़ाते हैं। इन आधारों पर उच्च वर्ग अन्य वर्गों से भेदभाव पूर्ण व्यवहार करते हैं। शोषित वर्ग द्वारा चुनौती या विरोध करने पर हिंसा पैदा होती है। इस प्रकार हिंसा प्राय: समाज की मूल संरचना में रची-बसी होती है क्योंकि लगभग प्रत्येक समाज में इस प्रकार के भेदभाव व असमानताएँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 16.
आज की दुनिया में शांति इतनी कमजोर क्यों है?
उत्तर:
आज की दुनिया में शांति पर खतरे का सायां निरन्तर छाया हुआ है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. आतंकवाद: आज विश्व में जीवन अतीत के किसी भी समय से कहीं अधिक असुरक्षित है क्योंकि हर जगह के लोग आतंकवाद के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं और इस खतरे का साया हमेशा मौजूद है।
  2. आक्रामक राष्ट्रों या महाशक्ति का स्वार्थपूर्ण आचरण: आधुनिक काल में दबंग राष्ट्रों ने अपनी संप्रभुता का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन किया है और क्षेत्रीय सत्ता संरचना तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को भी अपनी प्राथमिकताओं और धारणाओं के आधार पर बदलना चाहा है। इसके लिए उन्होंने सीधी सैनिक कार्यवाही का भी सहारा लिया है और विदेशी क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। ऐसे आचरण का ज्वलंत उदाहरण अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका का ताजा हस्तक्षेप है। इससे उभरे युद्ध में बहुत-सी जानें गई हैं।
  3. नस्ल – संहार; वैश्विक समुदाय नस्ल संहार अर्थात् किसी समूचे जन- समूह के व्यवस्थित संहार का मूक दर्शक बना रहता है। यह खासकर रवांडा में साफ तौर पर दिखा।

प्रश्न 17.
क्या वर्तमान में शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त है?
उत्तर:
यद्यपि आतंकवाद, ताकतवर आक्रामक शब्दों के स्वार्थपूर्ण आचरण, आधुनिक हथियारों एवं उन्नत तकनीक का दक्ष और निर्मम प्रयोग, नस्ल संहार आदि की घटनाओं के कारण ऐसा लगता है कि वर्तमान में शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त हो चुका है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि शांति एक चुका हुआ सिद्धान्त है। शांति आज भी विश्व में महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त बना हुआ है। इसे निम्न उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है।

  • दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान और कोस्टारिका जैसे देशों ने सैन्यबल नहीं रखने का फैसला किया हुआ है।
  • विश्व के अनेक हिस्सों में परमाणविक हथियार से मुक्त क्षेत्र बने हैं, जहाँ आणविक हथियारों को विकसित और तैनात करने पर एक अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त समझौते के तहत पाबंदी लगी है। आज इस तरह के छः क्षेत्र हैं जिनमें ऐसा हुआ है। ये हैं
    1. दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र,
    2. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र,
    3. दक्षिण – पूर्व एशिया,
    4. अफ्रीका,
    5. दक्षिण प्रशांत क्षेत्र और
    6. मंगोलिया।
  • सोवियत संघ के विघटन से अति शक्तिशाली देशों के बीच सैनिक व परमाणविक प्रतिद्वन्द्विता पर पूर्ण विराम लग गया है और अन्तर्राष्ट्रीय शांति के लिए प्रमुख खतरा समाप्त हो गया है।
  • समकालीन युग में एक शांति आंदोलन जारी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से राजनैतिक और भौगोलिक अवरोधों के बावजूद दुनिया में बड़े पैमाने पर इसने अनुयायी पैदा किए हैं। इस आंदोलन को विभिन्न तबके के लोगों ने बढ़ावा दिया है तथा इसका लगातार विस्तार हो रहा है। इसने शांति अध्ययन नामक ज्ञान की एक नई शाखा का सृजन किया है।

प्रश्न 18.
शांति आंदोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
शांति आंदोलन: वर्तमान काल में शांति को बढ़ावा देने के लक्ष्य को लेकर होने वाली अनेक लोकप्रिय पहलकदमियों को प्राय: शांति आंदोलन कहा जाता है। दोनों विश्वयुद्ध के कारण हुए विध्वंस ने इस आंदोलन को प्रेरित किया और तभी से यह जोर पकड़ता गया है। राजनैतिक और भौगोलिक अवरोधों के बावजूद दुनिया में बड़े पैमाने पर इसने अनुयायी पैदा किए हैं।

इसके अनुयायी: शांति आंदोलन को विभिन्न तबके के लोगों ने बढ़ावा दिया है। इन लोगों में लेखक, वैज्ञानिक, शिक्षक, पत्रकार, पुजारी, राजनेता और मजदूर सभी शामिल हैं। विस्तार: इसका लगातार विस्तार हुआ है। महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण सुरक्षा जैसे अन्य आंदोलनों के समर्थकों से पारस्परिक फायदेमंद जुड़ाव होने से यह और सघन हुआ है। इस आंदोलन ने शांति अध्ययन नामक ज्ञान की एक नई शाखा का भी सृजन किया है तथा इण्टरनेट जैसे माध्यम का इसने कारगर इस्तेमाल भी किया है।

प्रश्न 19.
शांतिवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
शांतिवाद: शांतिवाद विवादों को सुलझाने के औजार के बतौर युद्ध यां हिंसा के बजाय शांति का उपदेश देता है। इसमें विचारों की अनेक छवियाँ शामिल हैं। इसके दायरे में कूटनीति को अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में प्राथमिकता देने से लेकर किसी भी हालत में हिंसा और ताकत के इस्तेमाल के पूर्ण निषेध तक आते हैं शांतिवाद सिद्धान्तों पर भी आधारित हो सकता है और व्यावहारिकता पर भी। यथा

  1. सैद्धान्तिक शांतिवाद: सैद्धान्तिक शान्तिवाद का जन्म इस विश्वास से होता है कि युद्ध, सुविचारित घातक हथियार, हिंसा या किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती नैतिक रूप से गलत है।
  2. व्यावहारिक शांतिवाद: व्यावहारिक शांतिवाद ऐसे किसी चरम सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता है। यह मानता है कि विवादों के समाधान में युद्ध से बेहतर तरीके भी हैं या फिर यह समझता है कि युद्ध पर लागत ज्यादा आती है और फायदे कम होते हैं।

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प्रश्न 20.
अहिंसा के बारे में गांधीजी के विचारों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
अहिंसा के बारे में गांधीजी के विचार:
1. नकारात्मक अर्थ:
नकारात्मक अर्थ में गांधीजी के लिए अहिंसा का अर्थ शारीरिक चोट, मानसिक चोट या आजीविका की क्षति से बाज आना भर नहीं है। इसका अर्थ किसी को नुकसान पहुँचाने के विचार तक को छोड़ देना है। गांधीजी का मानना था कि “यदि मैंने किसी की हानि पहुँचाने में किसी किसी अन्य की सहायता की अथवा किसी हानिकर कार्य से लाभान्वित हुआ तो मैं हिंसा का दोषी होऊंगा।” इ अर्थ में हिंसा के बारे में उनके विचार संरचनात्मक हिंसा को समाप्त करने के पक्ष में थे।

2. सकारात्मक अर्थ:
सकारात्मक अर्थ में अहिंसा के सम्बन्ध में गांधीजी का कहना है कि अहिंसा को सजग संवेदना के माहौल की अपेक्षा होती है। उनके लिए अहिंसा का अर्थ कल्याण और अच्छाई का सकारात्मक और सक्रिय क्रियाकलाप है। अहिंसा में कायरता और कमजोरी को कोई स्थान नहीं है।

प्रश्न 21.
शांतिवादी किसी न्यायपूर्ण संघर्ष में भी हिंसा के इस्तेमाल के खिलाफ नैतिक रूप से क्यों खड़े होते हैं?
उत्तर:
शांतिवादियों का मत है कि अच्छे मकसद से भी हिंसा का सहारा लेना आत्मघाती हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में अतिवादी हिंसक आंदोलन प्रायः संस्थागत रूप धारण करता है और राजनीतिक व्यवस्था का पूर्ण अंग बन जाता है। उदाहरण के लिए नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने हिंसात्मक साधनों का प्रयोग कर अल्जीरिया के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया।

उसने अपने देश को फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों के बोझ से 1962 में मुक्त तो कराया, लेकिन उसका शासन जल्दी ही निरंकुशवाद में परिणत हो गया। इसकी प्रतिक्रिया वहाँ इस्लामी रूढ़िवाद के उभार के रूप में हुई। इसीलिए शांतिवादी किसी न्यायपूर्ण संघर्ष में भी हिंसा के प्रयोग का विरोध करते हैं । वे उत्पीड़न से लड़ने के लिए उत्पीड़नकारियों का दिल-दिमाग जीतने के लिए प्रेम और सत्य को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शांति को परिभाषित कीजिए। इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शांति का अर्थ: शांति आज विश्व का लोकप्रिय विचार है। इसकी कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार दी गई
1. शांति की परिभाषा अक्सर युद्ध की अनुपस्थिति के रूप में की जाती है।
यह परिभाषा सरल है, लेकिन भ्रामक भी है। सामान्य रूप से हम युद्ध को देशों के बीच हथियारबंद संघर्ष समझते हैं। बोस्निया में इस तरह का संघर्ष नहीं था; लेकिन इससे शांति का उल्लंघन तो हुआ ही था। इससे यह स्पष्ट होता है कि यद्यपि प्रत्येक युद्ध शांति को भंग करता है, लेकिन शांति का हर अभाव केवल युद्ध के कारण ही हो यह आवश्यक नहीं। युद्ध न होने पर भी शांति हो, यह आवश्यक नहीं है।

2. शांति को युद्ध, दंगा, नरसंहार, कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार समेत सभी प्रकार के हिंसक संघर्ष के अभाव के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
यह परिभाषा पहली परिभाषा की तुलना में अधिक विस्तृत है लेकिन संरचनात्मक हिंसा के रूपों की इसमें उपेक्षा की गई है। जबकि संरचनात्मक हिंसा के चलते भी समाज में शांति स्थापित नहीं हो पाती है। संरचनात्मक भेदभावों के रूप हैं जातिभेद, वर्गभेद, पितृसत्ता, उपनिवेशवाद, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता। इन संरचनात्मक हिंसाओं का शिकार व्यक्ति जिन मनोवैज्ञानिक और भौतिक नुकसानों से गुजरता है, वे उसके भीतर शिकायतों को पैदा करते हैं। ये शिकायतें पीढ़ियों तक कायम रहती हैं। ऐसे समूह कभी – कभी किसी घटना या टिप्पणी से भी उत्तेजित होकर संघर्षों के ताज़ा दौर की शुरुआत कर सकते हैं। अतः न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्ष के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के जरिये ही प्राप्त की जा सकती है।

3. शांति को संतुष्ट लोगों के समरस सहअस्तित्व के रूप में समझा जा सकता है। संतुष्ट लोगों के समरस सहअस्तित्वपूर्ण न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा को समाप्त करके ही की जा सकती है शांति ऐसे ही समाज की उपज हो सकती है।

4. शांति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव कल्याण की स्थापना के लिए जरूरी नैतिक और भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं- चूंकि शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल नहीं की जा सकती। यह कोई अन्तिम स्थिति नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है।

शांति का महत्त्व: शांति के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. जीवन की सुरक्षा संभव:
राज्य का पहला और प्रमुख कार्य है लोगों के जीवन की रक्षा करना। लोगों के जीवन की रक्षा केवल शांतिपूर्ण वातावरण में ही संभव है। यदि किसी समाज में शांति का वातावरण नहीं होगा तो उसके सदस्य निरन्तर रूप से जीवन की असुरक्षा से भयभीत रहेंगे। जहाँ शक्ति का शासन है, शक्ति ही कानून है, वहाँ न तो शांति हो सकती है और न जीवन की सुरक्षा।

2. व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास संभव:
प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीविका हेतु कोई न कोई कार्य करता है। व्यक्ति अपने जीविका उत्पादन के विभिन्न कार्यों को तभी कुशलता के साथ सम्पन्न कर सकते हैं जब समाज में शान्ति
हो। जब हिंसा, उपद्रवों का वातावरण होता है तो लोग घर के अन्दर ही रहना पसंद करते हैं और वे स्वतंत्रतापूर्वक, निर्भय होकर, ठीक प्रकार से अपनी जीविका पूर्ति के कर्तव्यों को नहीं कर पाते हैं। इसलिए समाज के विकास के लिए, व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए, समाज के उपयोगी कार्यों को करने के लिए समाज में शांति का होना आवश्यक है।

3. विविध प्रकार की सांसारिक गतिविधियों के कुशल संचालन के लिए आवश्यक:
समस्त व्यापारिक गतिविधियों, औद्योगीकरण, कृषिगत गतिविधियाँ आदि सभी केवल शांतिमय वातावरण में ही संचालित हो सकती हैं। जहाँ कानून-व्यवस्था का अभाव हो, अशान्ति का वातावरण हो या हिंसा का वातावरण हो, ये सभी गतिविधियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं।

4. समृद्धि का पूरक:
शांति और समृद्धि परस्पर पूरक हैं। जहाँ शांति नहीं है, वहाँ समृद्धि नहीं आ सकती। अशान्ति के वातावरण में विकास के सभी कार्य पिछड़ जाते हैं। सरकारी मशीनरी को अपना सारा ध्यान शांति एवं व्यवस्था की स्थापना में लगा देना पड़ता है। एक देश जिसे निरन्तर साम्प्रदायिक दंगों, हिंसक संघर्षों, जातीय संघर्षों तथा सामाजिक वैमनस्य का सामना करना पड़ता है, वह विकास की आशा नहीं कर सकता क्योंकि सरकार की आय का अधिकांश भाग शांति व्यवस्था की स्थापना में ही खर्च हो जाता है। अतः स्पष्ट है कि शांति समृद्धि और विकास लाती है।

5. विदेशी व्यापार में वृद्धि: विदेशी व्यापार शांति के समय में ही फलता-फूलता है। यदि दो राष्ट्र हथियारों की प्रतियोगिता या शीत युद्ध में रत हैं, उनके बीच पारस्परिक व्यापार रुक जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच अधिकांश व्यापार इसीलिए अवरुद्ध है क्योंकि दोनों के बीच शांति के सम्बन्ध नहीं हैं। विदेशी व्यापार मित्रवत सम्बन्धों में ही विकसित होता है और मित्रवत सम्बन्ध परस्पर शांति के सम्बन्धों में ही संभव है।

6. मानवता का विकास: जब युद्ध होता है, तब मानवता पीड़ित होती है और शांतिकाल में विकसित होती है। मानवता का विकास शांति को बढ़ावा देता है। समस्त वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कार, खोजें, जीवन की सुविधाएँ शांतिमय वातावरण और परस्पर सहयोग के कारण ही संभव हुई हैं। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि शांति हमारी इसी पीढ़ी के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी आवश्यक है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

प्रश्न 2.
संरचनात्मक हिंसा क्या है? संरचनात्मक हिंसा के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संरचनात्मक हिंसा का अर्थ-हिंसा प्रायः समाज की मूल संरचना में ही रची-बसी है। जब हिंसा सामाजिक संस्थाओं से समाज में निहित रीति-रिवाजों से, समाज द्वारा मान्य संस्थाओं से प्रकट होती है, तो उसे संरचनात्मक हिंसा कहते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में जाति प्रथा के तहत जाति आधारित असमानताएँ समाज में मान्य तथा स्वीकृत होती हैं और उच्च जातियाँ तथाकथित निम्न जातियों को दबाती हैं, तो यह स्थिति हिंसा को जन्म देती है। जब एक उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों पर आक्रमण करते हैं, उनके घरों को जलाते हैं, उन्हें उत्पीड़ित करते हैं, तो यह संरचनात्मक हिंसा का स्पष्ट उदाहरण है।

जब एक स्त्री द्वितीय स्तर की नागरिक समझी जाती है और उसे समाज में पुरुष के साथ समानता का दर्जा नहीं दिया जाता है तथा उसका शोषण तथा उत्पीड़न किया जाता है, तो यह भी एक संरचनात्मक हिंसा है। इस प्रकार वह हिंसा जो समाज की संरचना के कारण प्रकट होती है, संरचनात्मक हिंसा कहलाती है। संरचनात्मक हिंसा के रूप: संरचनात्मक हिंसा के अनेक रूप हैं। इनका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

1. भारत में परम्परागत जाति व्यवस्था:
भारत में परम्परागत जाति व्यवस्था कुछ खास समूह के लोगों को अस्पृश्य मानकर बरताव करती थी। आजाद भारत के संविधान द्वारा गैर-कानूनी करार दिये जाने तक छुआछूत के प्रचलन ने उन्हें सामाजिक बहिष्कार और अत्यधिक वंचना का शिकार बना रखा था । भयावह रीति-रिवाजों के इन जख्मों से उबरने के लिए देश अभी तक संघर्ष कर रहा है।

2. वर्ग व्यवस्था:
विश्व में हर समाज में वर्ग-व्यवस्था विद्यमान है और वर्गों के आधार पर समाज में स्तरीकरण पाया जाता है। वर्ग-व्यवस्था ने भी काफी असमानता और उत्पीड़न को जन्म दिया है। विकासशील देशों की कामकाजी आबादी असंगठित क्षेत्र से सम्बद्ध है, जिसमें मेहनताना और काम की दशा बहुत खराब है। विकसित देशों में भी निम्न वर्गीय लोगों की अच्छी-खासी आबादी मौजूद है। कुछ वर्ग गरीबी के कारण झुग्गी-झोंपड़ियों या गंदी बस्तियों
में रहते हैं और बेरोजगारी, अशिक्षा, भूख और बीमारी का सामना करते रहते हैं। वर्गों के बीच ऐसी असमानता समाज की समरसता और शांति को भंग कर देती है।

3. पितृसत्ता आधारित भेदभाव:
प्रायः सभी पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था में सबसे बड़ा पुरुष सदस्य परिवार का मुखिया होता है। पितृसत्ता पर आधारित ऐसे सामाजिक संगठन की परिणति स्त्रियों को व्यवस्थित रूप से अधीन बनाने और उनके साथ भेदभाव करने में होती है। इसकी अभिव्यक्ति कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों को अपर्याप्त पोषण और शिक्षा न देना, बाल-विवाह, पत्नी को पीटना, दहेज से सम्बंधित अपराध, कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार और घर की इज्जत के नाम पर हत्या में होती है। भारत में निम्न लिंगानुपात पितृसत्तात्मक विध्वंस का मर्मस्पर्शी सूचक है। हम उस स्थिति में समाज में शांति की आशा कैसे कर सकते हैं जब संसार की लगभग आधी आबादी भेदभाव, उत्पीड़न तथा समान अधिकारों से वंचित हो।

4. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद:
साम्राज्यवाद और उपानिवेशवाद भी संरचनात्मक हिंसा का एक रूप है। द्वितीय महायुद्ध तक उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद ने विदेशी शासन के रूप में लोगों पर प्रत्यक्ष और लम्बे समय तक गुलामी थोप दी थी । यद्यपि वर्तमान में यह लगभग असंभव है लेकिन इजरायली प्रभुत्व के खिलाफ चालू फिलिस्तीनी संघर्ष दिखाता है कि इसका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। इसके अलावा, यूरोपीय उपनिवेशवादी देशों के पूर्ववर्ती उपनिवेशों को अभी भी बहुआयामी शोषण के उन प्रभावों से पूरी तरह उबरना शेष है, जिसे उन्होंने औपनिवेशिक काल में झेला।

5. रंगभेद और साम्प्रदायिकता:
रंगभेद और साम्प्रदायिकता में एक समूचे नस्लगत समूह या समुदाय पर लांछन लगाना और उनका दमन करना शामिल रहता है। कई बार इसका उपयोग मानव विरोधी कुकृत्यों को जायज ठहराने में किया जाता रहा है। 1865 तक अमेरिका में अश्वेत लोगों को गुलाम बनाने की प्रथा, हिटलर के समय जर्मनी में यहूदियों को कत्लेआम तथा दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार की 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार करने वाली रंगभेद की नीति इसके उदाहरण हैं।

पश्चिमी देशों में नस्ली भेदभाव गोपनीय तौर पर अभी भी जारी है। अब इसका प्रयोग प्रायः एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विभिन्न देशों के आप्रवासियों के खिलाफ होता है। साम्प्रदायिकता को नस्लवाद का दक्षिण एशियाई प्रतिरूप माना जा सकता है जहाँ शिकार अल्पसंख्यक धार्मिक समूह होते हैं। हिंसा का शिकार व्यक्ति जिन मनोवैज्ञानिक और भौतिक नुकसानों से गुजरता है वे उसके भीतर शिकायतें पैदा करती हैं। ये शिकायतें पीढ़ियों तक कायम रहती हैं।

ऐसे समूह कभी: कभी किसी घटना या टिप्पणी से भी उत्तेजित होकर संघर्षों के ताजा दौर की शुरुआत कर सकते हैं। दक्षिण एशिया में विभिन्न समुदायों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ लम्बे समय से मन में रखी पुरानी शिकायतों के उदाहरण हमारे पास हैं, जैसे 1947 में भारत के विभाजन के दौरान भड़की हिंसा से उपजी शिकायतें।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

प्रश्न 3.
हिंसा को कैसे समाप्त किया जा सकता है? क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है?
उत्तर;
हिंसा की समाप्ति: शांति को प्रोत्साहित करने के लिए यह आवश्यक है कि समाजों से हिंसा को समाप्त किया जाये । हिंसा की समाप्ति के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए-
1. लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव:
एक शांतिपूर्ण दुनिया की ओर बदलाव के लिए लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनिसेफ) के संविधान ने उचित ही टिप्पणी की है कि “चूंकि युद्ध का आरंभ लोगों के दिमाग में होता है, इसलिए शांति के बचाव भी लोगों के दिमाग में ही रचे जाने चाहिए।”

गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि “सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते हैं। यदि मन रूपान्तरित हो जाए तो क्या दुष्कर्म बने रह सकते हैं?” इस तरह के प्रयास के लिए करुणा जैसे अनेक पुरातन आध्यात्मिक सिद्धान्त और ध्यान जैसे अभ्यास बिल्कुल उपयुक्त हैं। आधुनिक नीरोगकारी तकनीक और मनोविश्लेषण जैसी चिकित्सा पद्धतियाँ भी यह काम कर सकती हैं।

2. संरचनात्मक हिंसा की समाप्ति:
हिंसा का आरंभ महज किसी व्यक्ति के दिमाग में नहीं होता; इसकी जड़ें कतिपय सामाजिक संरचनाओं में भी निहित होती हैं। इसलिए हिंसा की समाप्ति के लिए यह आवश्यक है कि सामाजिक संरचनाओं में निहित हिंसा के कारणों को समाप्त किया जाये। इसके लिए सामाजिक भेदभावों, सामाजिक असमानताओं, जाति आधारित उत्पीड़न तथा दबाव, प्रजातिगत भेदभाव को समाप्त करने के प्रयास किये जाने चाहिए ताकि समाज में सामाजिक समानता, आर्थिक और राजनीतिक समानता, लैंगिक समानता, विभिन्न धर्मों व समुदायों के बीच सौहार्द्र कायम किया जा सके। न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की रचना संरचनात्मक हिंसा को निर्मूल करने के लिए आवश्यक है। शांति, जिसे संतुष्ट लोगों के समरस सह-अस्तित्व के रूप में समझा जाता है, ऐसे ही समाज की उपज हो सकती है।

3. हिंसा की समाप्ति तथा शांति की स्थापना स्थायी नहीं ह:
शांति एक बार में हमेशा के लिए हासिल नहीं की जा सकती। शांति कोई अंतिम स्थिति नहीं बल्कि ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव कल्याण की स्थापना के लिए जरूरी नैतिक और भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं हिंसा से शांति की स्थापना नहीं की जा सकती कुछ लोगों का विचार है कि शक्ति का प्रयोग करके, हिंसा के द्वारा हिंसा को समाप्त किया जा सकता है।

उनका कहना है कि यदि आप शांति चाहते हैं तो हमें युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। वे इस आधार पर अपने विचारों के समर्थन में तर्क देते हैं कि राज्य कानून तोड़ने वालों तथा अपराधियों को दंडित करने के लिए तथा हिंसा को समाप्त करने के लिए समाज में राज्य सर्वाधिक भौतिक शक्ति का प्रयोग करता है।

यह तर्क दिया जाता है कि तानाशाहों और उत्पीड़क शासकों को हिंसा और शक्ति के द्वारा जबरन हटाकर भी जनता को निरन्तर नुकसान होने से रोका जा सकता है। या फिर उत्पीड़ित लोगों के मुक्ति संघर्षों को हिंसा के कुछ इस्तेमाल के बावजूद न्यायपूर्ण ठहराया जा सकता है। लेकिन उक्त विचार कुछ विचारकों के ही हैं, सभी के नहीं। अधिकांश विद्वान और विचारकों का मत है कि हिंसा के द्वारा शांति की स्थापना नहीं की जा सकती। हिंसा के द्वारा हिंसा की समाप्ति हमेशा अल्प अवधि के लिए ही होती है। हिंसा के द्वारा शांति की स्थापना नहीं की जा सकती, इस कथन के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं।

1. राज्य का आधार शक्ति नहीं, इच्छा है:
टी. एच. ग्रीन ने लिखा है कि राज्य का आधार लोगों की इच्छा है। अतः राज्य हिंसा और शक्ति पर आधारित नहीं है। राज्य शक्ति का उपयोग केवल कुछ अपराधियों तथा कानून तोड़ने वालों के विरुद्ध करता है, न कि जनता के विरुद्ध। जब आम जनता सरकार के विरुद्ध हो जाती है, तो उसकी सेना भी हथियार डाल देती है। क्रांतियाँ इसकी उदाहरण हैं।

2. हिंसा के द्वारा हिंसा की समाप्ति अल्प होती है:
जब हिंसा के द्वारा हिंसा को समाप्त किया जाता है, तो यह थोड़े समय के लिए हो सकती है, स्थायी नहीं। जब शत्रु या विपक्षी यह देखता है कि वह इस समय कमजोर है, वह झुक जाता है और हमेशा इस अवसर की तलाश में रहता है कि इसका बदला ले सके। जिस व्यक्ति के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग किया जाता है, वह हिंसा उसके मस्तिष्क में उससे बदला लेने की भावना पैदा कर देती है। इस प्रकार हिंसा द्वारा हिंसा की समाप्ति या शांति की स्थापना अल्पकालिक होती है।

3. हिंसा की प्रवृत्ति नियंत्रण से बाहर हो जाने की है:
चाहे हिंसा का मकसद कितना ही अच्छा क्यों न रहा हो, लेकिन अपनी नियंत्रण से बाहर हो जाने की प्रवृत्ति के कारण यह आत्मघाती होती है। एक बार शुरू हो जाने पर इसकी प्रवृत्ति नियंत्रण से बाहर हो जाने की होती है और इसके कारण यह अपने पीछे मौत और बर्बादी की एक श्रृंखला छोड़ जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि हिंसा हिंसा को बढ़ाती है, न कि कम करती है।

4. हिंसा हृदय परिवर्तन के द्वारा समाप्त की जानी चाहिए:
शांतिवादियों का मकसद लड़ाकुओं की हिंसा को कम करके आंकना नहीं, प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप पर बल देना है। वैसे संघर्षों का एक प्रमुख तरीका सविनय अवज्ञा है और उत्पीड़न की संरचना की नींव हिलाने में इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल होता रहा है। भारतीय स्वतंत्रता आदोलन के दौरान गांधीजी द्वारा सत्याग्रह का प्रयोग इसका प्रमुख उदाहरण है। नागरिक अवज्ञा के दबाव में अन्यायपूर्ण संरचनाएँ भी रास्ता दे सकती हैं। कभी-कभार वे अपनी विसंगतियों के बोझ से ध्वस्त भी हो सकती हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में कौनसी बात धर्म निरपेक्षता के विचार से संगत है।
(अ) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ब) राज्य द्वारा किसी खास धर्म के साथ गठजोड़ बनाना।
(स) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबन्धन समितियों की नियुक्ति करना।
(द) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
उत्तर:
(द) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।

2. निम्न में से कौनसी विशेषता पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता की नहीं है।
(अ) राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति।
(ब) धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति।
(स) विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता पर बल देना।
(द) एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर बल देना।
उत्तर:
(अ) राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति।

3. निम्न में से कौनसी विशेषता भारतीय धर्म निरपेक्षता की है
(अ) धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति ।
(ब) राज्य धार्मिक सुधारों हेतु दखल नहीं दे सकता।
(स) व्यक्ति और उसके अधिकारों को ही महत्त्व देना।
(द) अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर ध्यान देना।
उत्तर:
(द) अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर ध्यान देना।

4. निम्न में से कौनसी भारतीय धर्म निरपेक्षता की आलोचना नहीं है।
(अ) धर्म-विरोधी
(स) सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण
(ब) पश्चिम से आयातित
(द) अल्पसंख्यकवाद।
उत्तर:
(स) सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

5. धर्म निरपेक्षता की संकल्पना के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
(अ) व्यक्तिगत समानता
(स) अंतः धार्मिक समानता
(ब) अंतर – धार्मिक समानता
(द) अन्तर- धार्मिक व अंत: धार्मिक समानता
उत्तर:
(द) अन्तर- धार्मिक व अंत: धार्मिक समानता

6. धर्म निरपेक्षता विरोध करती है।
(अ) स्वतंत्रता का
(ब) समानता का
(स) धार्मिक वर्चस्व का
(द) राज्य सत्ता का
उत्तर:
(स) धार्मिक वर्चस्व का

7. धर्म निरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में धर्म है।
(अ) एक निजी मामला
(स) चर्च का मामला
(ब) सरकार का मामला
(द) न्यायालय का मामला
उत्तर:
(अ) एक निजी मामला

8. भारतीय धर्म निरपेक्षता राज्य को अनुमति देती है।
(अ) धार्मिक भेदभाव की
(स) धार्मिक सुधार की
(ब) धार्मिक आयोजनों की
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) धार्मिक सुधार की

9. धर्म निरपेक्षता बढ़ावा देती हैं।
(अ) धर्मों में समानता को
(ब) धर्मतांत्रिक राज्य को
(स) अस्पृश्यता को
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) धर्मों में समानता को

10. धर्म निरपेक्ष राज्य सत्ता के लिये जरूरी है।
(अ) धर्म में हस्तक्षेप
(स) धर्म का विरोध
(ब) एक राज्य धर्म
(द) धर्म से सम्बन्ध विच्छेद
उत्तर:
(द) धर्म से सम्बन्ध विच्छेद

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

11. धर्मनिरपेक्ष राज्यों में निम्न में से कौनसा शामिल नहीं होना चाहिए।
(अ) धार्मिक स्वतंत्रता
(ब) धार्मिक भेदभाव
(सं) अन्तर – धार्मिक समानता
(द) अंत: धार्मिक समानता
उत्तर:
(ब) धार्मिक भेदभाव

12. सभी धर्म निरपेक्ष राज्यों में कौनसी बात सामान्य है।
(अ) वे धर्मतांत्रिक हैं।
(ब) वे किसी खास धर्म की स्थापना करते हैं।
(स) वे न तो धर्मतांत्रिक हैं और न किसी खास धर्म की स्थापना करते हैं।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(स) वे न तो धर्मतांत्रिक हैं और न किसी खास धर्म की स्थापना करते हैं।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. भारत में धर्मनिरपेक्षता का विचार ………………… वाद विवादों और परिचर्चाओं में सदैव मौजूद रहा है।
उत्तर:
सार्वजनिक

2. पड़ौसी देश, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ……………….. की स्थिति ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
उत्तर:
धार्मिक अल्पसंख्यकों

3. धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त …………………. वर्चस्व का विरोध करता है।
उत्तर:
अंतर – धार्मिक

4. धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त …………………. वर्चस्व का भी विरोध करता है।
उत्तर:
अंतः धार्मिक

5. धर्म और राज्य सत्ता के बीच संबंध विच्छेद ……………………. राज्यसत्ता के लिए जरूरी है।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्ष

6. भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्थित ………………… सुधार की गुंजाइश भी है और अनुकूलता भी।
उत्तर:
धार्मिक

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये

1. भारतीय धर्मनिरपेक्षता का संबंध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं है, अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है।
उत्तर:
सत्यं

2. भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश नहीं है।
उत्तर:
असत्य

3. भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने अन्तः धार्मिक और अंतर- धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित नहीं किया है।
उत्तर:
असत्य

4. भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी कायम रखने के सिद्धान्त पर चलती है जो हस्तक्षेप की गुंजाइश भी बनाती है।
उत्तर:
सत्य

5. धर्मनिरपेक्षता के अमेरिकी मॉडल में धर्म और राज्य सत्ता के संबंध विच्छेद को पारस्परिक निषेध के रूप में समझा जाता है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों (अ) धर्मनिरपेक्षता का उत्पीड़न
2. अन्तर धार्मिक वर्चस्व एवं अंतः धार्मिक वर्चस्व दोनों (ब) धर्म के अन्दर वर्चस्ववाद का विरोध करना
3. देश के कुछ हिस्सों में हिन्दू महिलाओं का मंदिरों (स) धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल में प्रवेश वर्जित
4. धर्म और राज्यसत्ता के संबंध विच्छेद को परस्पर निषेध के रूप में समझना (द) भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मॉडल
5. वह धर्मनिरेपक्षता जो धर्म और राज्य के बीच पूर्ण (य) धर्मों के बीच वर्चस्ववाद

उत्तर:

1. पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों (य) धर्मों के बीच वर्चस्ववाद
2. अन्तर धार्मिक वर्चस्व एवं अंतः धार्मिक वर्चस्व दोनों (अ) धर्मनिरपेक्षता का उत्पीड़न
3. देश के कुछ हिस्सों में हिन्दू महिलाओं का मंदिरों (ब) धर्म के अन्दर वर्चस्ववाद का विरोध करना
4. धर्म और राज्यसत्ता के संबंध विच्छेद को परस्पर निषेध के रूप में समझना (स) धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल में प्रवेश वर्जित
5. वह धर्मनिरेपक्षता जो धर्म और राज्य के बीच पूर्ण (द) भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मॉडल


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
धर्मतांत्रिक राज्य किसे कहा जाता है?
उत्तर;
धर्मतांत्रिक राज्य उस राज्य को कहते हैं जो किसी धर्म विशेष को राज्य का धर्म घोषित कर उसे संरक्षण प्रदान करता है।

प्रश्न 2.
धार्मिक भेदभाव रोकने का कोई एक रास्ता बताइये।
उत्तर:
हमें आपसी जागरूकता के साथ एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।

प्रश्न 3.
धर्म निरपेक्षता कैसा समाज बनाना चाहती है?
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता अंतर- धार्मिक तथा अंतः धार्मिक दोनों प्रकार के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 4.
किसी धार्मिक समूह के वर्चस्व को रोकने के लिए राष्ट्र को किस बात से बचना चाहिए?
उत्तर:
राष्ट्र को किसी भी धर्म के साथ किसी भी प्रकार के गठजोड़ से बचना चाहिए।

प्रश्न 5.
धर्म निरपेक्षता किस बात को बढ़ावा देती है?
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देती है

प्रश्न 6.
भारत में धर्म निरपेक्षता का विकास किस बात को ध्यान में रखकर हुआ है?
उत्तर:
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को ध्यान में रखकर।

प्रश्न 7.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य धर्म से कैसा सम्बन्ध रखता है?
उत्तर:
इसमें राज्य धर्म के सैद्धान्तिक दूरी रखते हुए उसमें हस्तक्षेप की गुंजाइश रखता है।

प्रश्न 8.
सभी धर्म निरपेक्ष राज्यों में कौनसी चीज सामान्य है?
उत्तर:
सभी धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो धर्मतांत्रिक हैं और न किसी खास धर्म की स्थापना करते हैं।

प्रश्न 9.
“हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर छोड़ने के लिए विवश किया गया। वे दो दशक के बाद भी अपने घर नहीं लौट सके हैं।” यह कथन क्या दर्शाता है?
उत्तर:
यह कथन अन्तर: धार्मिक वर्चस्व और एक धार्मिक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के उत्पीड़न को दर्शाता है।

प्रश्न 10.
धर्म निरपेक्षता के दो पहलू कौनसे हैं?
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता के दो पहलू हैं।

  1. अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का विरोध और
  2. अंतः धार्मिक वर्चस्व का विरोध।

प्रश्न 11.
अन्तर- धार्मिक वर्चस्व से क्या आशय है?
उत्तर:
अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का आशय है। नागरिकों के एक धार्मिक समूह द्वारा दूसरे समूह को बुनियादी आजादी से वंचित करना।

प्रश्न 12.
अंत: धार्मिक वर्चस्व से क्या आशय है?
उत्तर:
अंतः धार्मिक वर्चस्व से आशय है धर्म के अन्दर छिपा वर्चस्व

प्रश्न 13.
धर्मतांत्रिक राष्ट्र किस बात के लिए कुख्यात रहे हैं?
उत्तर:
धर्मतांत्रिक राष्ट्र अपनी श्रेणीबद्धता, उत्पीड़न और दूसरे धार्मिक समूह के सदस्यों को धार्मिक स्वतंत्रता न देने के लिए कुख्यात रहे हैं।

प्रश्न 14.
किन्हीं दो धर्मतांत्रिक राष्ट्रों के उदाहरण दीजिये।
उत्तर:

  1. मध्यकालीन यूरोप में पोप की राज्य सत्ता और
  2. आधुनिक काल में अफगानिस्तान में तालिबानी राज्य सत्ता धर्मतांत्रिक राष्ट्रों के उदाहरण हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 15.
आधुनिक काल में विद्यमान ऐसा राज्य कौनसा है जो धर्मतांत्रिक न होते हुए भी किसी खास धर्म के साथ गठजोड़ बनाये हुए है? थी।
उत्तर:
पाकिस्तान यद्यपि धर्मतांत्रिक राष्ट्र नहीं है, लेकिन सुन्नी इस्लाम उसका आधिकारिक राज्य धर्म है।

प्रश्न 16.
20वीं सदी में तुर्की में किस शासक ने धर्म निरपेक्षता पर अमल किया?
उत्तर:
मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने।

प्रश्न 17.
मुस्तफा कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप कैसा था?
उत्तर:
मुस्तफा कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता धर्म में सक्रिय हस्तक्षेप के जरिए उसके दमन की हिमायत करती

प्रश्न 18.
जवाहर लाल नेहरू की धर्म निरपेक्षता का स्वरूप कैसा था?
उत्तर:
नेहरू की धर्म निरपेक्षता थी। सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में धर्म निरपेक्षता की स्थिति को लेकर कौनसे मामले काफी पेचीदा हैं?
उत्तर:

  1. एक ओर तो यहाँ प्रायः हर राजनेता धर्म निरपेक्षता की शपथ लेता है, हर राजनीतिक दल धर्म निरपेक्ष होने की घोषणा करता है।
  2. दूसरी ओर, तमाम तरह की चिंताएँ और संदेह धर्म निरपेक्षता को घेरे रहते हैं। पुरोहितों, धार्मिक राष्ट्रवादियों, कुछ राजनीतिज्ञों तथा शिक्षाविदों द्वारा धर्म निरपेक्षता का विरोध किया जाता है।

प्रश्न 2.
धर्म निरपेक्षता क्या है?
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता एक ऐसा नियामक सिद्धान्त है जो अन्तर- धार्मिक और अंतः धार्मिक, दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है। यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 3.
धर्मों के बीच वर्चस्ववाद से क्या आशय है?
अन्तर:
धार्मिक वर्चस्व को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
उत्तर:
धर्मों के बीच वर्चस्ववाद अर्थात् अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का आशय यह है कि किसी देश या समाज में बहुसंख्यक धर्मावलम्बी अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों या किसी एक अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों को उनकी धार्मिक पहचान के कारण उत्पीड़ित करते हैं। दूसरे शब्दों में, नागरिकों के एक धार्मिक समूह को दुनिया की स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है।

प्रश्न 4.
धर्म के अन्दर वर्चस्व ( अन्तः धार्मिक वर्चस्व ) से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी देश में जब एक धर्म कई धार्मिक सम्प्रदायों में विभाजित हो जाता है और वे धार्मिक सम्प्रदाय परस्पर अपने से भिन्न मत रखने वाले सम्प्रदाय के सदस्यों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं, तो यह अन्तः धार्मिक वर्चस्ववाद कहा जाता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 5.
धार्मिक भेदभाव रोकने के कोई तीन व्यक्तिगत रास्ते बताइये।
उत्तर:

  1. हम आपसी जागरूकता के लिए मिलकर काम करें।
  2. हम शिक्षा के द्वारा लोगों की सोच बदलने का प्रयास करें।
  3. हम साझेदारी और पारस्परिक सहायता के व्यक्तिगत उदाहरण द्वारा विभिन्न सम्प्रदायों के संदेहों को दूर करें।

प्रश्न 6.
एक राष्ट्र को किसी धार्मिक समूह के वर्चस्व को कैसे रोकना चाहिए?
उत्तर:
एक राष्ट्र को किसी धार्मिक समूह के वर्चस्व को रोकने हेतु निम्न प्रयास करने चाहिए

  1. प्रथमत: संगठित धर्म और राज्य सत्ता के बीच सम्बन्ध विच्छेद होना चाहिए।
  2. दूसरे, उसे किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से परहेज करना होगा।
  3. तीसरे, उसे शांति, धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी, अन्तर- धार्मिक तथा अन्तः धार्मिक समानता के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए।

प्रश्न 7.
धर्म निरपेक्षता की यूरोपीय या अमेरिकी मॉडल की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की यूरोपीय या अमेरिकी मॉडल की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. राज्यसत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और धर्म राज्यसत्ता के मामलों में दखल नहीं देगा। दोनों के अपने अलग-अलग क्षेत्र व सीमाएँ हैं।
  2. राज्य किसी धार्मिक संस्था को मदद नहीं देगा।

प्रश्न 8.
धर्म निरपेक्षता के भारतीय मॉडल की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय मॉडल की विशेषताएँ :

  1. भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं, अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है।
  2. भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है।

प्रश्न 9.
भारतीय राज्य धार्मिक सुधारों की पहल करते हुए और धर्म से पूरी तरह सम्बन्ध विच्छेद किये बिना किस आधार पर धर्म निरपेक्ष होने का दावा करता है?
उत्तर:
धार्मिक सुधारों की पहल करते हुए और धर्म से पूरी तरह सम्बन्ध विच्छेद किये बिना भी भारतीय राज्य का धर्म निरपेक्ष चरित्र वस्तुतः इसी वजह से बरकरार है कि वह न तो धर्मतांत्रिक है और न ही किसी धर्म को राजधर्म मानता है। इसके परे, इसने धार्मिक समानता के लिए अत्यन्त परिष्कृत नीति अपनाई है।

प्रश्न 10.
क्या भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यकवादी है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नहीं, भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यकवादी नहीं है क्योंकि भारत में अल्पसंख्यकों को जो विशेषाधिकार दिये गये हैं, वे उनके धर्म की सुरक्षा तथा बहुसंख्यक धार्मिक समूहों के वर्चस्व को रोकने के लिए दिये गये हैं, न कि उनके वर्चस्व को स्थापित करने के लिए।

प्रश्न 11.
धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी नहीं है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी नहीं है- हमारे अधिकांश दुःख-दर्द मानव निर्मित हैं, इसलिए उनका अन्त हो सकता है। लेकिन हमारे कुछ कष्ट मानव निर्मित नहीं हैं। धर्म, कला और दर्शन ऐसे दुःख-दर्दों के सटीक प्रत्युत्तर हैं। धर्म निरपेक्षता इस तथ्य को स्वीकार करती है और इसीलिए धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी नहीं है।

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प्रश्न 12.
धर्म निरपेक्ष होने के लिए किसी राज्य सत्ता को क्या-क्या करना होगा?
उत्तर:
धर्म निरपेक्ष होने के लिए किसी राज्य सत्ता को निम्नलिखित बातों को अपनाना होगाv

  1. धर्म निरपेक्ष होने के लिए राज्य सत्ता को धर्मतांत्रिक होने से इनकार करना होगा अर्थात् संगठित धर्म और राज्यसत्ता के बीच सम्बन्ध विच्छेद होना चाहिए।
  2. उसे किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से परहेज करना होगा।
  3. धर्म निरपेक्ष राज्य को ऐसे सिद्धान्तों और लक्ष्यों के लिए अवश्य प्रतिबद्ध होना चाहिए जो अंशत: ही सही, गैर-धार्मिक स्रोतों से निकलते हैं। ऐसे लक्ष्यों में शांति; धार्मिक स्वतंत्रता; धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्ज़ना से आजादी; और साथ ही अन्तर- धार्मिक व अंत: धार्मिक समानता शामिल रहनी चाहिए।

प्रश्न 13.
धर्म निरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल- धर्म निरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित

  1. राज्य सत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और धर्म राज्यसत्ता के मामलों में दखल नहीं देगा। दोनों के अपने अलग-अलग क्षेत्र हैं और अलग-अलग सीमाएँ हैं।
  2. राज्य किसी धार्मिक संस्था को मदद नहीं देगा। वह धार्मिक समुदायों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं को वित्तीय सहयोग नहीं देगा।
  3. जब तक धार्मिक समुदायों की गतिविधियाँ देश के कानून द्वारा निर्मित व्यापक सीमा के अन्दर होती हैं, वह इन गतिविधियों में व्यवधान पैदा नहीं कर सकता।
  4. पश्चिमी धर्म निरपेक्षता स्वतंत्रता और समानता की व्यक्तिवादी ढंग से व्याख्या करती है। यह व्यक्तियों की स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों की बात करती है। इसमें समुदाय आधारित अधिकारों अथवा अल्पसंख्यक अधिकारों की कोई गुंजाइश नहीं है।
  5. इसमें राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई जगह नहीं है।

प्रश्न 14.
भारतीय राज्य धर्म और राज्य के बीच पूरी तरह सम्बन्ध विच्छेद किये बिना अपनी धर्म निरपेक्षता का दावा किस आधार पर करती है? भारतीय धर्म निरपेक्षता में धर्म और राज्यसत्ता के मध्य सम्बन्धों के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
अथवा.
धर्म निरपेक्षता के भारतीय मॉडल को समझाइये।
अथवा
भारतीय धर्म निरपेक्षता की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारतीय धर्म निरपेक्षता का स्वरूप: भारतीय राज्य का धर्म निरपेक्ष चरित्र वस्तुतः इसी वजह से बरकरार है कि वह न तो धर्मतांत्रिक है और न किसी धर्म को राजधर्म मानता है। इस सिद्धान्त को मानते हुए इसने विभिन्न धर्मों व पंथों के बीच समानता हासिल करने के लिए परिष्कृत नीति अपनायी है। इसी नीति के चलते वह अमेरिका शैली में धर्म से विलग भी हो सकता है या जरूरत पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. धर्म के साथ निषेधात्मक सम्बन्ध: भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक सम्बन्ध भी बना सकता है। यह बात अस्पृश्यता पर प्रतिबंध जैसी कार्यवाहियों में झलकती है।
  2. धर्म के साथ जुड़ाव के सम्बन्ध: भारतीय राज्य धर्म के साथ जुड़ाव की सकारात्मक विधि भी चुन सकता है। इसीलिए संविधान तमाम धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी खुद की शिक्षण संस्थाएँ खोलने और चलाने का अधिकार देता है जिन्हें राज्य सत्ता की ओर से सहायता भी मिल सकती है।
  3. शांति, स्वतंत्रता और समानता पर बल: भारतीय राज्य शांति, स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए वह धर्म के साथ निषेधात्मक सम्बन्ध बनाने या जुड़ाव के सम्बन्ध बनाने की कोई भी रणनीति अपना सकता है।
  4. सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति: भारतीय धर्म निरपेक्षता तमाम धर्मों में सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति देती है। ऐसा हस्तक्षेप हर धर्म के कुछ खास पहलुओं के प्रति असम्मान प्रदर्शित करता है। जैसे धर्म के स्तर पर मान्य जातिगत विभाजन को अस्वीकार करना।

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प्रश्न 15.
धर्म निरपेक्ष राज्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धर्म निरपेक्ष राज्य की विशेषताएँ। धर्म निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. धर्म निरपेक्ष राज्य में राज्य सत्ता और धर्म में पृथकता होती है। दोनों के अपने अलग-अलग कार्यक्षेत्र होते हैं।
  2. धर्म निरपेक्ष राज्य किसी विशेष धर्म को न तो राजकीय धर्म मानता है और न किसी विशेष धर्म को संरक्षण प्रदान करता है।
  3. धर्म निरपेक्ष राज्य में सभी धर्मों को कानून के समक्ष समान समझा जाता है। किसी धर्म का दूसरे धर्म पर वर्चस्व स्थापित नहीं होता और न ही राज्य दूसरे धर्मों की तुलना में किसी विशेष धर्म को प्राथमिकता देता है।
  4. धर्म निरपेक्ष राज्य के लोग धार्मिक स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं। किसी व्यक्ति पर किसी विशेष धर्म को लादा नहीं जाता। प्रत्येक व्यक्ति को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि वह किसी भी धर्म को माने और पूजा की कोई भी विधि अपना सकता है।
  5. सामान्यतः राज्य तब तक लोगों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता जब तक कि किसी धार्मिक समुदाय की गतिविधि या धार्मिक संस्थाएँ कानून के विरुद्ध कार्य न करें तथा शांति व्यवस्था की समस्या खड़ी न करें।
  6. राज्य समाज में व्याप्त विविध धर्मों के बीच कोई भेदभाव नहीं करता है।
  7. राज्य धर्म के आधार पर सरकारी सेवाओं में अवसरों को प्रदान करने तथा अधिकार प्रदान करने के सम्बन्ध में व्यक्तियों के बीच कोई भेदभावपूर्ण कानून नहीं बना सकता है।
  8. धर्म निरपेक्ष राज्य में व्यक्ति को एक नागरिक होने के नाते अधिकार प्रदान किये जाते हैं, न कि किसी धार्मिक समुदाय का सदस्य होने के नाते।

प्रश्न 16.
भारत में राजपत्रित अवकाशों की सूची को ध्यान से पढ़ें। क्या यह भारत में धर्म निरपेक्षता का उदाहरण प्रस्तुत करती है? तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:

  1. भारत में उपर्युक्त राजपत्रित अवकाशों की सूची में सभी धर्मों – हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिक्ख, जैन तथा बौद्ध धर्मों के प्रमुख त्यौहारों को छुट्टी प्रदान कर प्रत्येक धर्मावलम्बी को अपना त्यौहार स्वतंत्रतापूर्वक मनाने का समान अवसर दिया गया है।
  2. दूसरे, सभी धर्मों के त्यौहारों पर सभी धर्मावलम्बियों को छुट्टी प्रदान की गई है ताकि सभी लोग एक-दूसरे के त्यौहारों में शरीक हो सकें। इस प्रकार सभी धर्मावलम्बियों को समान महत्त्व दिया गया है। यह भारतीय धर्म निरपेक्षता का स्पष्ट उदाहरण है।

प्रश्न 17.
धर्म निरपेक्षता के बारे में नेहरू के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता के बारे में नेहरू के विचार – नेहरू स्वयं किसी धर्म का अनुसरण नहीं करते थे। लेकिन उनके लिए धर्म निरपेक्षता का मतलब धर्म के प्रति विद्वेष नहीं था। उनके लिए धर्म निरपेक्षता का अर्थ था।

  1. सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण।
  2. वे ऐसा धर्म निरपेक्ष राष्ट्र चाहते थे जो सभी धर्मों की हिफाजत करे, अन्य धर्मों की कीमत पर किसी एक धर्म की तरफदारी न करे और खुद किसी धर्म को राज्य धर्म के बतौर स्वीकार न करे।
  3. वे धर्म और राज्य के बीच पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद के पक्ष में भी नहीं थे। उनके विचार के अनुसार, समाज में सुधार के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्य सत्ता धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है।
  4. उनके लिए धर्म निरपेक्षता का मतलब था तमाम किस्म की साम्प्रदायिकता का पूर्ण विरोध।
  5. उनके लिए धर्म निरपेक्षता सिद्धान्त का मामला भर नहीं था, वह भारत की एकता और अखंडता की एकमात्र गांरटी भी था। इसलिए बहुसंख्यक समुदाय की साम्प्रदायिकता की आलोचना में वे खास तौर पर कठोरता बरतते थे क्योंकि इससे राष्ट्रीय एकता पर खतरा उत्पन्न होता था।

प्रश्न 18.
धर्मों के बीच वर्चस्ववाद को दर्शाने वाले कोई तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
धर्मों के बीच वर्चस्ववाद को दर्शाने वाले तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं।

  1. 1984 में दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में लगभग चार हजार सिख मारे गये। पीड़ितों के परिवारजनों का मानना है कि दोषियों को आज तक सजा नहीं मिली है।
  2. हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर छोड़ने के लिए विवश किया गया। वे दो दशकों के बाद भी अपने घर नहीं लौट सके हैं।
  3. सन् 2002 में गुजरात में लगभग 2000 मुसलमान मारे गए। इन परिवारों के जीवित बचे हुए बहुत से सदस्य अभी भी अपने गाँव वापस नहीं जा सके हैं, जहाँ से वे उजाड़ दिए गए थे।
    इन सभी उदाहरणों में हर मामले में किसी एक धार्मिक समुदाय को लक्ष्य किया गया है और उसके लोगों को उनकी धार्मिक पहचान के कारण सताया गया है; उन्हें बुनियादी आजादी से वंचित किया गया है।

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प्रश्न 19.
अंतः धार्मिक वर्चस्व को सोदाहरण समझाइये। धर्म के अन्दर वर्चस्व को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
उत्तर:

  1. एक ही धर्म के अन्दर एक वर्ग – विशेष का बोलबाला ( वर्चस्व ) होने की स्थिति अन्तः धार्मिक वर्चस्व की स्थिति कहलाती है।
  2. जब कोई धर्म एक संगठन में बदलता है तो आम तौर पर इसका सर्वाधिक रूढ़िवादी हिस्सा इस पर हावी हो जाता है जो किसी किस्म की असहमति बर्दाश्त नहीं करता। अमेरिका के कुछ हिस्सों में धार्मिक रूढ़िवाद बड़ी समस्या बन गया है जो देश के अन्दर भी शांति के लिए खतरा पैदा कर रहा है और बाहर भी । हिन्दू धर्म में कुछ तबके भेदभाव से स्थायी तौर पर पीड़ित रहे हैं। मसलन, दलितों को हिन्दू मंदिरों में प्रवेश से हमेशा रोका जाता है। देश के कुछ हिस्सों में हिन्दू महिलाओं का भी मंदिरों में प्रवेश वर्जित है।
  3. कई धर्म संप्रदायों में टूट जाते हैं और निरन्तर आपसी हिंसा और भिन्न मत रखने वाले अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं। उपर्युक्त तीनों ही उदाहरण धर्म के अन्दर वर्चस्व के हैं।

प्रश्न 20.
अल्पसंख्यकवाद से क्या आशय है? क्या भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेषाधिकारों के रूप में देखा जाना चाहिए?
उत्तर:
अल्पसंख्यकवाद: भारतीय धर्मनिरपेक्षता की एक आलोचना अल्पसंख्यकवाद कहकर की जाती है। इसका आशय यह है कि भारतीय राज्य सत्ता अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है और उन्हें विशेष सुविधाएँ प्रदान करती है। इस प्रकार भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म के आधार पर भेदभाव करती है। लेकिन यह आलोचना त्रुटिपरक है। क्योंकि अपने महत्त्वपूर्ण हितों की पूर्ति किसी व्यक्ति का प्राथमिक अधिकार होता है और जो बात व्यक्तियों के लिए सही . है, वह समुदायों के लिए भी सही होगी।

इस आधार पर अल्पसंख्यकों के सर्वाधिक मौलिक हितों की क्षति नहीं होनी चाहिए और संवैधानिक कानून द्वारा उसकी हिफाजत की जानी चाहिए। भारतीय संविधान में ठीक इसी तरीके से इस पर विचार किया गया है। जिस हद तक अल्पसंख्यकों के अधिकार उनके मौलिक हितों की रक्षा करते हैं, उस हद तक वे न्यायसंगत हैं। अल्पसंख्यकों को जो विशेष अधिकार दिये जा रहे हैं, उसका उद्देश्य उन्हें समान अवसर प्रदान करने की विधान है, न कि उन्हें विशेष अधिकार देना। उनके लिए यह वैसे ही सम्मान और गरिमा से भरा बरताव है जो दूसरों के साथ किया जा रहा है। इसका मतलब यही है कि अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेष सुविधा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय धर्म निरपेक्षता और पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारतीय धर्म निरपेक्षता और पश्चिमी धर्म निरपेक्षता में अन्तर – यद्यपि सभी धर्म निरपेक्ष राज्यों में कुछ विशेषताएँ कॉमन होती हैं जैसे-

  1. राज्य धर्म पर आधारित नहीं है।
  2. राज्य किसी विशेष धर्म को न तो अंगीकर करता है और न उसे स्थापित करता है तथा
  3. राज्य और धर्म में पृथकता होती है।

लेकिन राज्य धर्म से किस सीमा तक दूरी रखता है, यह प्रत्येक धर्म निरपेक्ष राज्य में भिन्न-भिन्न होता है। भारतीय धर्म निरपेक्ष मॉडल और अमेरिकी मॉडल पर आधारित पाश्चात्य धर्म निरपेक्ष मॉडल में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

1. धर्म और राज्य सत्ता की पृथकता:
पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता के अन्तर्गत राज्य और धर्म के बीच पूर्ण पृथकता है। इस विच्छेद को पारस्पिक निषेध के रूप में समझा जाता है। इसका अर्थ है- राज्य सत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और धर्म राज्य सत्ता के मामलों में दखल नहीं देगा। दोनों के अपने अलग-अलग कार्य व क्षेत्र हैं। राज्य सत्ता की कोई नीति पूर्णतः धार्मिक तर्क के आधार पर निर्मित नहीं हो सकती। लेकिन भारत में इस तरह की पूर्ण और पारस्परिक पृथकता नहीं है।

भारतीय राज्य सैद्धान्तिक दूरी की नीति का पालन करता है। इसी आधार पर राज्य ने हिन्दुओं में स्त्रियों और दलितों के शोषण का विरोध किया है। इसने भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किये जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया है।

2. धार्मिक संस्थाओं को सहायता:
पाश्चात्य, धर्म निरपेक्षता के अन्तर्गत, राज्य धार्मिक संस्थाओं को मदद नहीं दे सकता, वह धार्मिक समुदायों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं को वित्तीय सहयोग नहीं दे सकता। वे अपने कार्यों की व्यवस्था स्वयं के व्यक्तिगत प्रयासों से ही करते हैं। इसी के साथ-साथ राज्य धार्मिक संस्थाओं के कार्यों में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जब तक कि वे कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करती हैं।

लेकिन भारत में राज्य धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक मदद देता है। वह धार्मिक समुदायों और अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं को आर्थिक सहयोग दे सकता है । यह उनके कार्यों में हस्तक्षेप कर सकता है और उनसे कुछ निश्चित नियमों तथा विनियमों को पालन करने के लिए कह सकता है।

3. धर्म की स्वतंत्रता:
पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता स्वतंत्रता और समानता की व्यक्तिवादी ढंग से व्याख्या करती है। इसका अभिप्राय है कि राज्य केवल व्यक्तियों, नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को ही मान्यता देता है। यह अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता नहीं देता।

लेकिन भारत में राज्य न केवल व्यक्तियों, नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी मान्यता देता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी स्वयं की संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम रखने का अधिकार है तथा वे शांतिपूर्ण ढंग से अपने धर्म का प्रचार भी कर सकती हैं।

4. राज्य समर्थित धार्मिक सुधार:
पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि यह राज्यसत्ता और धर्मसत्ता के बीच अटल विभाजन में विश्वास करती है। इसलिए राज्य धर्म के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। लेकिन भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य समर्थित धार्मिक सुधारों की वकालत करती है तथा सैद्धान्तिक दूरी के सिद्धान्त को अपनाती है। इसीलिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है। भारतीय राज्य ने बाल विवाह के उन्मूलन और अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म के द्वारा लगाए गए निषेध को खत्म करने हेतु कानून बनाए हैं।

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प्रश्न 2.
धर्म निरपेक्षवाद से क्या आशय है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षवाद का अर्थ: सामान्य अर्थ में धर्म निरपेक्षवाद एक ऐसा वातावरण है जहाँ कानून की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं अर्थात् कानून सभी धर्मों के साथ समान रूप से व्यवहार करता है; लोग धार्मिक स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं तथा जहाँ राज्य के प्रशासन और मानव जीवन के ऊपर किसी धर्म का वर्चस्व नहीं है। राज्य सत्ता और धर्म को अलग-अलग रखा जाता है और प्रशासन धार्मिक नियमों के अनुसार नहीं चलता बल्कि वह सरकार द्वारा पारित कानूनों के अनुसार चलता है। एक समाज जिसमें ऐसा वातावरण पाया जाता है, उसे धर्म निरपेक्ष समाज कहा जाता है और एक राज्य जिसमें ऐसा वातावरण पाया जाता है उसे धर्म निरपेक्ष राज्य कहा जाता है। धर्म निरपेक्षवाद की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

1. डोनाल्ड स्मिथ के शब्दों में, “धर्म निरपेक्ष राज्य वह राज्य है जिसके अन्तर्गत धर्म-विषयक, व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है, जो व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय धर्म को बीच में नहीं लाता है, जो संवैधानिक रूप से किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है और न किसी धर्म की उन्नति का प्रयत्न करता है और न ही किसी धर्म के मामले में हस्तक्षेप करता है। ”

2. श्री लक्ष्मीकांत मैत्र के अनुसार, ” धर्म निरपेक्ष राज्य से अभिप्राय यह है कि ऐसा राज्य धर्म या धार्मिक समुदाय के आधार पर किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भेदभाव नहीं करता है। इसका अभिप्राय यह है कि राज्य की ओर से . किसी विशिष्ट धर्म को मान्यता प्राप्त नहीं होगी।” उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि धर्म निरपेक्ष राज्य से अभिप्राय एक ऐसे राज्य से है जिसका अपना कोई धर्म नहीं होता और जो धर्म के आधार पर व्यक्तियों में कोई भेदभाव नहीं करता। इसका अर्थ एक अधर्मी या धर्म विरोधी या नास्तिक राज्य से नहीं है बल्कि एक ऐसे राज्य से है जो धार्मिक मामलों में तटस्थ रहता है क्योंकि यह धर्म को व्यक्ति की निजी वस्तु मानता है।

धर्म निरपेक्षवाद की विशेषताएँ: धर्म निरपेक्षवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. धर्मों के बीच वर्चस्ववाद का विरोध;
धर्म निरपेक्षता को सर्वप्रमुख रूप से ऐसा सिद्धान्त समझा जाना चाहिए जो विभिन्न धर्मों के बीच किसी भी धर्म के वर्चस्ववाद का विरोध करता है अर्थात् यह अन्तर- धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। यह समाज में विद्यमान विभिन्न धर्मों के बीच समानता पर बल देता है तथा सभी धर्मों की आजादी को बढ़ावा देता है। दूसरे शब्दों में

  • सभी धर्म समान स्तर पर आधारित हैं और समाज में उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है।
  • दूसरे धर्मों पर किसी एक धर्म के वर्चस्व का यह विरोध करता है तथा वे एक-दूसरे को समान आदर देते हैं।
  • धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति का दूसरों पर वर्चस्व नहीं होना चाहिए।

2. धर्म के अन्दर वर्चस्व का विरोध:
धर्म निरपेक्षता का दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है। धर्म के अन्दर छुपे वर्चस्व का विरोध करना अर्थात् अन्तः धार्मिक वर्चस्व का विरोध करना। जब कोई धर्म एक संगठन में बदलता है तो आम तौर पर इसका सर्वाधिक रूढ़िवादी हिस्सा इस पर हावी हो जाता है जो किसी किस्म की असहमति बर्दाश्त नहीं करता। अमेरिका के कुछ हिस्सों में धार्मिक रूढ़िवाद बड़ी समस्या बन गया है जो देश के अन्दर भी शांति के लिए खतरा पैदा कर रहा है. और बाहर भी।

हिन्दू धर्म में कुछ तबके भेदभाव से स्थायी रूप से पीड़ित रहे हैं। मसलन, दलितों को हिन्दू मन्दिरों में प्रवेश से रोका जाता रहा है। कई धर्म सम्प्रदायों में टूट जाते हैं और निरन्तर आपसी हिंसा तथा भिन्न मत रखने वाले अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं। ये स्थितियाँ धर्म के अन्दर वर्चस्ववाद की हैं। धर्म निरपेक्षवाद धर्म के अन्दर वर्चस्ववाद के सभी रूपों का विरोध करता है।

3. धर्म निरपेक्ष राज्य: धर्म निरपेक्षतावाद धर्म निरपेक्ष समाज के साथ-साथ धर्म निरपेक्ष राज्य का समर्थन करता है। धर्म निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं।

  • राज्य सत्ता किसी खास धर्म के प्रमुखों द्वारा संचालित नहीं होनी चाहिए।
  • धार्मिक संस्थाओं और राज्य सत्ता की संस्थाओं के बीच सम्बन्ध विच्छेद अवश्य होना चाहिए।
  • राज्य सत्ता को किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से दूर रहना आवश्यक है।
  • राज्य सत्ता को शांति, धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी, अन्तर-1 – धार्मिक समानता और अन्तः धार्मिक समानता के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए।

4. अन्य विशेषताएँ: धर्म निरपेक्षवाद की निम्न अन्य प्रमुख विशेषताएँ बतायी जा सकती हैं।

  • राज्य को व्यक्तियों के धार्मिक मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि उसकी गतिविधियाँ कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के बाहर न हों, शांति व्यवस्था व देश की एकता व अखंडता के लिए खतरा न हों।
  • समाज में सभी व्यक्तियों को किसी भी धर्म को अपनाने, उसके प्रति विश्वास रखने तथा इच्छानुसार पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
धर्म निरपेक्षता के भारतीय मॉडल की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता का भारतीय मॉडल: भारतीय धर्म निरपेक्षता पश्चिमी धर्म निरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
1. अन्तर-धार्मिक समानता:
भारतीय धर्म निरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर बल नहीं देती है। यह अन्तर- धार्मिक समानता पर अधिक बल देती है। भारत में पहल से ही अन्तर- धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति मौजूद थी। पश्चिमी आधुनिकता के आगमन ने भारतीय चिंतन में समानता की अवधारणा को सतह पर ला दिया जिसने समुदाय के अन्दर समानता पर बल देने की ओर अग्रसर किया और अन्तर सामुदायिकता के विचार को उद्घाटित किया। इस प्रकार धार्मिक विविधता,

‘अन्तर – धार्मिक सहिष्णुता’ और ‘अन्तर – सामुदायिक समानता’ ने परस्पर अन्तःक्रिया कर भारतीय धर्म निरपेक्षता की ‘अन्तर- धार्मिक समानता’ की विशिष्टता को निर्मित किया। ‘ अन्तर- धार्मिक समानता’ की प्रमुख विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

  • राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और न ही वह किसी विशेष धर्म को औपचारिक रूप से बढ़ावा देगा अर्थात् भारतीय राज्य न तो धर्मतांत्रिक है और न ही वह किसी धर्म को राजधर्म मानता है।
  • राज्य की दृष्टि में सभी धर्म एकसमान हैं। वह सभी धर्मों को समान संरक्षण प्रदान करता है।
  • कानून की दृष्टि में सभी धर्मों के व्यक्ति समान हैं। धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।
  • सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है।

2. व्यक्तियों तथा अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: भारतीय धर्म निरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है। इस विशेषता के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है।

  • हर व्यक्ति को अपने पसंद का धर्म मानने तथा अपनी पसंद के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता है। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म में विश्वास रखने, धार्मिक कार्य करने तथा प्रचार करने का अधिकार है; लेकिन यह स्वतंत्रता कानून के दायरे में रहते हुए प्राप्त है अर्थात् जब इस स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए कोई व्यक्ति कानून एवं व्यवस्था व नैतिकता को खतरे में डालेगा तो राज्य उसकी इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकता है।
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों को भीं अपनी खुद की संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम रखने का अधिकार है। सभी धर्मों को दान द्वारा इकट्ठे किये गए धन से संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार है। सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म सम्बन्धी मामलों का प्रबन्ध करने का अधिकार है और वे चल तथा अचल सम्पत्ति प्राप्त कर सकते हैं।
  • सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने एवं उनका प्रबन्ध करने का अधिकार है।
  • सरकार शिक्षा संस्थाओं को अनुदान देते समय धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगी। किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा या उसकी सहायता से चलाई जाने वाली शिक्षा संस्था में प्रवेश देने से धर्म के आधार पर इनकार नहीं किया जायेगा।

3. राज्य समर्थित धार्मिक सुधा: भारतीय धर्म निरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की काफी गुंजाइश है और अनुकूलता भी। इसीलिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है। भारतीय राज्य ने बाल-विवाह के उन्मूलन और अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म द्वारा लगाए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून बनाए हैं।

4. धर्मों में राज्यसत्ता के सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति: भारतीय राज्यसत्ता ने धार्मिक समानता हासिल क़रने के लिए अत्यन्त परिष्कृत नीति अपनाई है। इसी नीति के चलते व अमेरिकी शैली में धर्म से पृथक् भी हो सकती है और आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकती है। यथा

  • भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक सम्बन्ध भी बना सकता है। यह बात अस्पृश्यता पर प्रतिबन्ध जैसी कार्यवाहियों में झलकती है।
  • भारतीय राज्य धर्मों से जुड़ाव की सकारात्मक विधि भी अपना सकता है। इसीलिए, भारतीय संविधान तमाम धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने खुद की शिक्षण संस्थाएँ खोलने और चलाने का अधिकार देता है जिन्हें राज्य सत्ता की ओर से सहायता भी मिल सकती है।

शांति, स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय राज्य सत्ता ये तमाम जटिल रणनीतियाँ अपना सकती है। इस प्रकार भारतीय धर्म निरपेक्षता तमाम धर्मों में राज्य सत्ता के सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति देती है । ऐसा हस्तक्षेप हर धर्म के कुछ खास पहलुओं के प्रति असम्मान प्रदर्शित करता है तथा यह संगठित धर्मों के कुछ पहलुओं के प्रति एक जैसा सम्मान दर्शाने की अनुमति भी देता है ।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 4.
भारतीय धर्म निरपेक्षता की आलोचना किन आधारों पर की जाती है? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की आलोचनाएँ: भारतीय धर्म निरपेक्षता की निम्नलिखित आलोचनाएँ की जाती हैं।
1. धर्म विरोधी:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की एक प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि यह धर्म विरोधी है। इसके समर्थन में आलोचक निम्नलिखित तर्क देते हैं।

  1. यह संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है।
  2. यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा पैदा करती है।

लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि ‘संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व का विरोध’ धर्म विरोधी होने का पर्याय नहीं है। दूसरे यह धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देती है। इसलिए यह धार्मिक पहचान को खतरा पैदा करने के स्थान पर उसकी हिफाजत करती है। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता की धर्म विरोधी होने की आलोचना निराधार है। हाँ, यह धार्मिक पहचान के मतांध, हिंसक, दुराग्रही और अन्य धर्मों के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाले रूपों पर अवश्य चोट करती है।

2. पश्चिम से आयातित:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की दूसरी आलोचना यह है कि यह ईसाइयत से जुड़ी हुई है अर्थात् पश्चिमी चीज है और इसीलिए भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त है।
धर्म और राज्य का पारस्परिक निषेध जिसे पश्चिमी धर्म निरपेक्ष समाजों का आदर्श माना जाता है; भारतीय धर्म निरपेक्ष राज्य सत्ता की प्रमुख विशेषता नहीं है। भारतीय धर्म निरपेक्ष राज्य सत्ता समुदायों के बीच शांति को बढ़ावा देने के लिए धर्म से सैद्धान्तिक दूरी बनाए रखने की नीति पर चलती है और खास समुदायों की रक्षा के लिए वह उनमें हस्तक्षेप भी कर सकती है।

इस प्रकार यह धर्म निरपेक्षता न तो पूरी तरह से ईसाइयत से जुड़ी है और न शुद्ध पश्चिम से आयातित है, बल्कि यह पश्चिमी और गैर-पश्चिमी दोनों की अन्तःक्रिया से उपजी है जो भारतीय परिस्थितियों के लिए सर्वथा उपयुक्त है। अतः पश्चिम से आयातित होने की आलोचना भी निराधार है।

3. अल्पसंख्यकवाद:
भारतीय धर्म निरपेक्षता पर अल्पसंख्यकवाद का आरोप इस आधार पर मढ़ा जाता है कि यह अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है। लेकिन ये अल्पसंख्यक अधिकार, उनके विशेषाधिकार नहीं हैं, बल्कि उनके मौलिक हितों की रक्षा करने तक ही सीमित हैं। ये अधिकार अल्पसंख्यक धर्म वालों को वैसा ही सम्मान और गरिमा भरा बरताव प्रदान करने के लिए हैं जैसा कि दूसरों के साथ किया जा रहा है। अतः अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेष सुविधाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इस प्रकार भारतीय धर्म निरपेक्षता की अल्पसंख्यकवाद होने की आलोचना भी निराधार है।

4. अतिशय हस्तक्षेपकारी:
एक अन्य आलोचना यह की जाती है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता उत्पीड़नकारी है और समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता में अतिशय हस्तक्षेप करती है। लेकिन यह भारतीय धर्म निरपेक्षता के बारे में गलत समझ है। यद्यपि यह सही है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म और राज्य के पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद के विचार को नहीं स्वीकार करती है और सैद्धान्तिक हस्तक्षेप को मानती है। लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि यह अतिशय हस्तक्षेपकारी व उत्पीड़नकारी है। यह भी सही है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता राज्य सत्ता समर्थित धार्मिक सुधार की इजाजत देती है। लेकिन इसे उत्पीड़नकारी हस्तक्षेप के समान नहीं माना जा सकता। यह धर्म के विकास के लिए है, न कि धर्म के उत्पीड़न के लिए।

5. वोट बैंक की राजनीति:
एक आलोचना यह की जाती हैं कि भारतीय धर्म निरपेक्षता वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है। अनुभवजन्य राजनीति के दावे के रूप में यह पूर्णतः असत्य भी नहीं है। लेकिन लोकतंत्र में राजनेताओं के लिए वोट पाना जरूरी है। यह उनके काम का अंग है और लोकतांत्रिक राजनीति बड़ी हद तक ऐसी ही है। लोगों के किसी समूह के पीछे लगने या उनका वोट पाने की खातिर कोई नीति बनाने का वादा करने के लिए राजनेताओं को दोष देना उचित नहीं है। यदि अल्पसंख्यकों का वोट पाने वाले धर्म निरपेक्ष राजनेता उनकी मांग पूरी करने में समर्थ होते हैं, तो यह धर्म निरपेक्षता की सफलता होगी, क्योंकि धर्म निरपेक्षता अल्पसंख्यकों के हितों की भी रक्षा करती है।

6. एक असंभव परियोजना:
भारतीय धर्म निरपेक्षता की एक अन्य आलोचना यह की जाती है कि यह एक ऐसी समस्या का हल ढूँढ़ना चाहती है जिसका समाधान है ही नहीं। यह समस्या है। गहरे धार्मिक मतभेद वाले लोग कभी भी एक साथ शांति से नहीं रह सकते। लेकिन यह आलोचना त्रुटिपरक है क्योंकि भारतीय सभ्यता का इतिहास दिखाता है कि इस तरह साथ-साथ रहना बिल्कुल संभव है। ऑटोमन साम्राज्य इसका स्पष्ट उदाहरण है। इसके प्रत्युत्तर में आलोचक यह तर्क दे सकते हैं कि आज ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि अब समानता लगातार प्रभावी सांस्कृतिक मूल्य बनती जा रही है। इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि भारतीय धर्म निरपेक्षता एक असंभव परियोजना का अनुसरण नहीं वरन् भविष्य की दुनिया को प्रतिबिंब प्रस्तुत करना है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन भारत में बाहरी व्यक्ति है ?
(अ) रीता जो भारत में जन्मे अपने पिता और ब्रिटिश माँ के साथ रहती है।
(ब) जानकी जो भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए मारीशस से आई है।
(स) जयपुर का रहने वाला एक लड़का रहीम जो आस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहा है।
(द) शांति भूषण जो अमेरिका में भारतीय उच्चायोग में भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं।
उत्तर:
(ब) जानकी जो भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए मारीशस से आई है।

2. निम्न में किस आधार पर भारत की नागरिकता ग्रहण नहीं की जा सकती
(अ) वह व्यक्ति जिसका जन्म भारत में हुआ है।
(ब) भारत में निवास कर रहा वह व्यक्ति जिसके माता-पिता का जन्म भारत
(स) वह व्यक्ति जिसके माता-पिता संविधान लागू होने से कम से कम पांच
(द) वह विदेशी व्यक्ति जो शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत में रह रहा है।
उत्तर:
(द) वह विदेशी व्यक्ति जो शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत में रह रहा है।

3. निम्नलिखित में से किसे अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ेगी
(अ) जगन सिंह, जिसे डकैती डालते हुए पकड़ा गया।
(ब) मनोरमा, जिसे ब्रिटेन में अध्ययन के लिए शोधवृत्ति मिली है।
(स) सुरेश, जो छुट्टियाँ मनाने स्विट्जरलैंड गया है।
(द) अशोक मेहता, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया गया है।
उत्तर:
(द) अशोक मेहता, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया गया है।

4. टी. एच. मार्शल नागरिकता में कितने प्रकार के अधिकारों को शामिल मानते हैं-
(अ) चार
(ब) तीन
(स) दो
(द) पाँच
उत्तर:
(ब) तीन

5. टी. एच. मार्शल की नागरिकता सम्बन्धी धारणा मिलती-जुलती है-
(अ) उदारवाद से
(ब) मार्क्सवाद से
(स) राष्ट्रवाद से
(द) आदर्शवाद से
उत्तर:
(अ) उदारवाद से

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

6. भारतीय नागरिकता अधिनियम कब बनाया गया
(अ) 1955 में
(ब) 1951 में
(स) 1954 में
(द) 1952 में
उत्तर:
(अ) 1955 में

7. आदर्श नागरिकता के मार्ग में प्रमुख बाधा है-
(अ) संकीर्णता
(ब) उग्र राष्ट्रीयता
(स) अज्ञानता
(द) उक्त सभी
उत्तर:
(द) उक्त सभी

8. ‘नागरिकता और सामाजिक वर्ग’ के लेखक हैं-
(अ) टी. एच. मार्शल
(ब) डेविड हेल्ड
(स) रिची
(द) जॉन लॉक
उत्तर:
(अ) टी. एच. मार्शल

9. मार्शल टी. एच. ने नागरिकता में निम्न में से किस प्रकार के अधिकारों को शामिल नहीं किया
(अ) नागरिक अधिकार
(ब) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(स) राजनीतिक अधिकार
(द) सामाजिक अधिकार
उत्तर:
(ब) संवैधानिक उपचारों का अधिकार

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

10. संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक दक्षिणी राज्यों में काले और गोरे लोगों के भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ आंदोलन के प्रमुख ‘नेता थे-
(अ) मार्टिन लूथर किंग जूनियर
(ब) टी. एच. मार्शल
(स) ओल्गाटेलिस
(द) रॉबर्ट मुगावे।
उत्तर:
(अ) मार्टिन लूथर किंग जूनियर

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. नागरिकता की परिभाषा किसी राजनीतिक समुदाय की ……………… और ……………… सदस्यता के रूप में की गई है।
उत्तर:
पूर्ण, समान

2. शरणार्थी और …………………… प्रवासियों को कोई राष्ट्र पूर्ण सदस्यता देने के लिए तैयार नहीं है।
उत्तर:
अवैध

3. नागरिकता सिर्फ राज्यसत्ता और उसके सदस्यों के बीच के संबंधों का निरूपण नहीं बल्कि यह ………………….. आपसी संबंधों के बारे में भी ह।
उत्तर:
नागरिकों

4. किसी राष्ट्र की संपूर्ण और समान सदस्यता का अर्थ है कि सभी अमीर-गरीब नागरिकों को कुछ ……………….. अधिकार और सुविधाएँ मिलें।
उत्तर:
बुनियादी

5. देश के सभी नागरिकों को ‘पूर्ण और समान सदस्यता’ से संबंधित विवादों का समाधान बल प्रयोग के बजाय …………………. और ……………….. से हो।
उत्तर:
संधि-वार्ता, विचार-विमर्श

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये-

1. अवांछित आगन्तुकों को नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्य सत्ताएँ ताकत का प्रयोग करती हैं।
उत्तर:
सत्य

2. नागरिकता के नए आवेदकों को अनुमति देने की कसौटी हर देश में समान होती है।
उत्तर:
असत्य

3. नागरिकता प्रदान करने में फ्रांस में धर्म या जातीय मूल जैसे तत्त्व को वरीयता दी जाती है।
उत्तर:
असत्य

4. इजरायल ऐसा देश है जो धर्मनिरपेक्ष और समावेशी होने का दावा करता है।
उत्तर:
असत्य

5. समान नागरिकता की अवधारणा का अर्थ यही है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करना सरकारी नीतियों का मार्गदर्शक सिद्धान्त हो।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. ‘नागरिकता और सामाजिक वर्ग’ पुस्तक (अ) सर्वोच्च न्यायालय का 1985 का एक निर्णय
2. संविधान के अनु. 21 में जीने के अधिकार में आजीविका का अधिकार भी शामिल है। (ब) भारत
3. एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश (स) राज्यविहीन शरणार्थी लोग
4. शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने को मजबूर लोग (द) इजरायल
5. नागरिकता देने में धर्म या जातीय मूल तत्त्व को वरीयता देने वाला देश (य) टी. एच. मार्शल

उत्तर:

1. ‘नागरिकता और सामाजिक वर्ग’ पुस्तक (य) टी. एच. मार्शल
2. संविधान के अनु. 21 में जीने के अधिकार में आजीविका का अधिकार भी शामिल है। (अ) सर्वोच्च न्यायालय का 1985 का एक निर्णय
3. एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश (ब) भारत
4. शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने को मजबूर लोग (स) राज्यविहीन शरणार्थी लोग
5. नागरिकता देने में धर्म या जातीय मूल तत्त्व को वरीयता देने वाला देश (द) इजरायल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नागरिकता की परिभाषा किस रूप में की गई है?
उत्तर:
नागरिकता की परिभाषा किसी राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में की गई है।

प्रश्न 2.
भारत में नागरिकता कैसे हासिल की जा सकती है?
उत्तर:
भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राजक्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता हासिल की जा सकती है।

प्रश्न 3.
लोगों के विस्थापित होने या शरणार्थी होने के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए गए हैं।
उत्तर:
युद्ध, उत्पीड़न तथा अकाल।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 4.
ऐसे लोगों का उदाहरण दीजिए जो अपने ही देश या पड़ौसी देश में शरणार्थी बनने के लिए विवश किए
उत्तर:
सूडान के डरफर क्षेत्र के शरणार्थी, फिलिस्तीनी, बर्मी तथा बांग्लादेशी शरणार्थी।

प्रश्न 5.
शरणार्थियों की जांच करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने क्या कदम उठाया है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ ने शरणार्थियों की जांच करने एवं उनकी मदद करने हेतु उच्चायुक्त नियुक्त किया है।

प्रश्न 6.
एक देश में भ्रमण हेतु आया हुआ अन्य देश का नागरिक क्या कहलाता है?
उत्तर:
विदेशी।

प्रश्न 7.
भारत में किस प्रकार की नागरिकता है?
उत्तर:
इकहरी नागरिकता।

प्रश्न 8.
नागरिकता में समाज के प्रति क्या दायित्व है?
उत्तर:
नागरिकता में समाज के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व शामिल है।

प्रश्न 9.
शहरों की गंदी बस्तियों की कोई दो समस्यायें लिखिये।
उत्तर:

  1. शौचालय, जलापूर्ति और सफाई की समस्या
  2. जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा की समस्या।

प्रश्न 10.
झोंपड़पट्टियों के निवासी किस प्रकार अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं?
उत्तर:
झोंपड़पट्टियों के निवासी अपने श्रम से अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान में नागरिकता की कौनसी धारणा को अपनाया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में नागरिकता की लोकतांत्रिक और समावेशी धारणा को अपनाया गया है।

प्रश्न 12.
नागरिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए हुए किसी एक संघर्ष का नाम लिखिये।
उत्तर:
1789 की फ्रांसीसी क्रांति।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 13.
शरणार्थियों के किन्हीं दो रूपों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:

  1. युद्ध या अकाल से विस्थापित लोग।
  2. यूरोप या अमेरिका में चोरी-छिपे घुसने के प्रयास में तत्पर लोग।

प्रश्न 14.
मार्शल ने नागरिकता में कौन-कौनसे तीन अधिकार शामिल किये थे?
उत्तर:
मार्शल नागरिकता में तीन प्रकार के अधिकारों को शामिल करते हैं, वे हैं

  1. नागरिक अधिकार
  2. राजनैतिक अधिकार
  3. सामाजिक अधिकार।

प्रश्न 15.
उन दो परिस्थितियों का उल्लेख कीजिये जिनमें नागरिकता समाप्त हो जाती है।
उत्तर:

  1. दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार करने पर।
  2. वह उस देश से बाहर लगातार निश्चित वर्षों तक, जैसे सात वर्ष तक निवास करता रहा हो।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में नागरिकता किन-किन आधारों पर प्राप्त की जा सकती है?
अथवा
भारत में नागरिकता किस प्रकार हासिल की जा सकती है?
उत्तर:
भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीयकरण या किसी भू-क्षेत्र के राज क्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता हासिल की जा सकती है।

प्रश्न 2.
किसी राज्य की नागरिकता हेतु दो शर्तें बताइये।
उत्तर:
किसी राज्य की नागरिकता हेतु निम्न दो शर्तों का होना आवश्यक होता है।

  1. यदि कोई विदेशी एक निश्चित अवधि तक विदेश में रहता है तो उसका देशीयकरण कर उसे उस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  2. यदि कोई स्त्री अन्य देश के नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसे अपने पति के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 3.
कोई नागरिक अपनी नागरिकता का स्वेच्छा से त्याग किस प्रकार कर सकता है?
उत्तर:
अनेक देश अपने नागरिकों को यह अधिकार प्रदान करते हैं कि यदि वे अपनी इच्छा के अनुसार वहाँ नागरिकता छोड़कर किसी दूसरे अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करना चाहें तो वे सरकार की अनुमति लेकर ऐसा कर सकते हैं। इसके लिये नागरिकों को सरकार के पास आवेदन करना होता है। जर्मनी में नागरिकता की समाप्ति के लिये इस प्रकार का नियम प्रचलित है।

प्रश्न 4.
नागरिकों के प्रमुख राजनीतिक अधिकार कौन-कौनसे हैं? उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
नागरिकों के प्रमुख राजनीतिक अधिकार ये हैं।

  1. मत देने का अधिकार।
  2. विधायिका की सदस्यता हेतु प्रत्याशी बनने का अधिकार।
  3. राजकीय पद धारण करने का अधिकार।
  4. कानून के समक्ष समानता का अधिकार।

प्रश्न 5.
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाये रखने में राज्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
नागरिकों की स्वतन्त्रता को बनाये रखने के लिए राज्य को केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिये।

प्रश्न 6.
एक आदर्श नागरिक लोकतंत्र को किस प्रकार मजबूती प्रदान कर सकता है?
उत्तर:
एक आदर्श नागरिक निम्न उपायों से लोकतंत्र को मजबूती प्रदान कर सकता है।

  1. प्रत्येक नागरिक को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य ही करना चाहिये।
  2. प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह देश एवं सरकार के प्रति आस्था रखे एवं वफादार रहे और किसी भी तरह का देशद्रोहिता का कार्य न करे।

प्रश्न 7.
नागरिक और बाहरी व्यक्ति में क्या अन्तर है?
उत्तर:
नागरिक और बाहरी व्यक्ति में अन्तर: नागरिक वह व्यक्ति है जो किसी देश या राज्य का सदस्य होता है, वह उसके प्रति निष्ठावान होता है तथा नागरिक और राजनैतिक अधिकारों का उपभोग करता है। वह देश के शासन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। बाहरी व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो किसी देश में अस्थाई रूप से निवास करता है। उसे उस देश के राजनैतिक व नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। वह देश के शासन में भाग नहीं लेता।

प्रश्न 8.
जन्मजात और देशीयकृत नागरिक में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जन्मजात और देशीयकृत नागरिक में अन्तर: जन्मजात नागरिक वह व्यक्ति कहलाता है जो उस देश में पैदा होता है या उसके माता-पिता उस देश के नागरिक होते हैं, जिसमें वह निवास कर रहा है। देशीयकृत नागरिक वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य देश की नागरिकता कुछ आवश्यक शर्तों को प्राप्त करता है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 9.
राज्य प्रदत्त नागरिकता कैसे प्राप्त की जाती है?
उत्तर:
नागरिकता सामान्यतः जन्म के आधार पर प्रदान की जाती है और जब यह राज्य द्वारा प्रदान की जाती है तो उसे देशीयकरण नागरिकता कहा जाता है। राज्य द्वारा नागरिकता अनेक तरीकों से प्राप्त की जा सकती है। यथा

  1. एक स्त्री विवाह के बाद अपने पति की नागरिकता प्राप्त कर लेती है।
  2. एक गोद लिया बच्चा, गोद लेने के बाद अपने नये माता-पिता की नागरिकता प्राप्त कर लेता है।
  3. यदि कोई विदेशी एक राज्य में लम्बी अवधि से रह रहा है तथा अपने मूल राज्य में लौटने का उसका कोई इरादा नहीं है, तो वह नागरिकता के लिए प्रार्थना पत्र दे सकता है। उस विदेशी को कुछ निश्चित औपचारिकताओं के बाद तथा कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
  4. सरकारी नौकरी करने या सम्पत्ति खरीदने के आधार पर भी किसी बाहरी व्यक्ति को राज्य नागरिकता प्रदान कर सकता है।
  5. कुछ क्षेत्र के हस्तांतरण के बाद भी प्रकृतिस्थ नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 10.
दोहरी नागरिकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दोहरी नागरिकता: सामान्यतः एक व्यक्ति एक समय में केवल एक ही राज्य का नागरिक हो सकता है। लेकिन एक नागरिक को दोहरी नागरिकता की आवश्यकता होती है। जब एक व्यक्ति रक्त सम्बन्ध के सिद्धान्त के आधार पर एक राज्य की प्रकृतिस्थ नागरिकता प्राप्त करता है और क्षेत्र के सिद्धान्त के आधार पर दूसरे राज्य की नागरिकता प्राप्त करता है। इस प्रकार वह जन्म से दोहरी नागरिकता प्राप्त करता है। ऐसी स्थिति में जब वह व्यक्ति वयस्क होता है तो उसे उन दो नागरिकताओं में किसी एक को चुनना पड़ता है। इसके बाद उसकी दोहरी नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 11.
सार्वभौमिक नागरिकता से क्या आशय है?
उत्तर:
सार्वभौमिक नागरिकता: सार्वभौमिक नागरिकता की धारणा का आशय यह है कि सभी व्यक्ति, जो किसी राज्य में रहते हैं, राज्य द्वारा स्वीकार किये जाने चाहिए और उन्हें उस राज्य का नागरिक घोषित किया जाना चाहिए तथा सभी व्यक्ति समाज के पूर्ण तथा समान सदस्य के रूप में होने चाहिए तथा उन्हें समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति जो राज्य में रह रहा है, चाहे वह वहाँ जन्म से रह रहा हो या दूसरे राज्य का आप्रवासी हो, चाहे वह यहाँ विधिक और आधिकारिक तौर पर आया आप्रवासी हो, चाहे गैर-कानूनी रूप से आया घुसपैठिया हो, वह नागरिकता के अधिकार और स्तर का अधिकारी होना चाहिए। तब विश्व में कहीं भी कोई भी व्यक्ति शरणार्थी या राज्यविहीन नहीं होगा। लेकिन यह व्यावहारिक नहीं है।

प्रश्न 12.
वैश्विक नागरिकता से क्या आशय है?
उत्तर:
वैश्विक नागरिकता: वैश्वीकरण की अवधारणा के विकास के साथ-साथ वैश्विक नागरिकता की अवधारणा का विकास हो रहा है। वैश्विक नागरिकता की अवधारणा में राज्य की सीमाओं तथा पासपोर्ट की आवश्यकता की बाधायें नहीं रहेंगी। विश्व के सभी भागों के लोग संचार के इंटरनेट, टेलीविजन और सेलफोन के साधनों के कारण परस्पर अन्तर्सम्बन्धित महसूस करते हैं। इस प्रकार एक व्यक्ति अपने आपको न केवल एक विशेष समाज का सदस्य महसूस करता है, बल्कि वह सम्पूर्ण विश्व का सदस्य भी महसूस करता है। इस प्रकार किसी विशेष राज्य की नागरिकता विश्व की नागरिकता में बदल दी जानी चाहिए। वैश्विक नागकिरता पूरे विश्व की सदस्यता के रूप में मिलनी चाहिए।

लेकिन यह अवधारणा अव्यावहारिक है क्योंकि कोई भी राज्य अपनी संप्रभुता को त्यागना नहीं चाहता। वैश्विक नागरिकता की अवधारण को व्यावहारिक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय नागरिकता को वैश्विक नागरिकता के साथ इस समझ के साथ जोड़ा जाये कि हम आज अन्तर्सम्बद्ध विश्व में रहते हैं। साथ ही हमें विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहिए तथा राष्ट्रीय सीमाओं के पार के लोगों और सरकारों के साथ काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

प्रश्न 13.
एक आदर्श नागरिक के लिये कौनसे गुण आपकी दृष्टि में आवश्यक हैं?
अथवा
एक आदर्श नागरिक के गुणों का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
उत्तर:
आदर्श नागरिक के गुण-एक आदर्श नागरिक में निम्नलिखित गुण होने आवश्यक हैं।

  1. एक अच्छे नागरिक को शिक्षित होना चाहिए ताकि उसे अपने अधिकारों व कर्तव्यों का ज्ञान हो सके।
  2. एक अच्छे नागरिक में समाज सेवा, दूसरों की सहायता, परस्पर प्रेम तथा सहनशीलता आदि गुण होने चाहिए।
  3. अच्छे नागरिक को दूसरे नागरिकों, समाज तथा राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए।
  4. एक अच्छा नागरिक अपने देश के प्रति वफादार, देशभक्त व निष्ठावान होता है।

प्रश्न 14.
एक नागरिक और एक विदेशी में चार अन्तर लिखिये।
उत्तर:
एक नागरिक और एक विदेशी में अन्तर: एक नागरिक और एक विदेशी में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित

  1. एक नागरिक उस राज्य का स्थायी निवासी होता है जिसमें वह रह रहा है, जबकि विदेशी दूसरे राज्य का स्थायी निवासी होता है।
  2. नागरिकों को राजनैतिक, नागरिक व सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, विदेशियों को नहीं।
  3. नागरिक अपने राज्य के प्रति भक्तिभाव रखता है, जबकि विदेशी उस राज्य के प्रति वफादार होता है जिसका कि वह नागरिक है।
  4. युद्ध के समय विदेशियों को राज्य की सीमा से बाहर जाने के लिए कहा जा सकता है, परन्तु नागरिकों को नहीं।

प्रश्न 15.
” लोकतंत्र के सफल संचालन के लिये नागरिकों का जागरूक होना जरूरी है। ” संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए नागरिकों का जागरूक होना जरूरी है। उदाहरण के लिए प्रतिवाद करने का अधिकार हमारे संविधान में नागरिकों के लिए सुनिश्चित की गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पक्ष है, बशर्ते कि वह प्रतिवाद दूसरे लोगों या राज्य के जीवन या सम्पत्ति को हानि न पहुँचाये। यदि नागरिक इस सम्बन्ध में जागरूक होंगे तो वे समूह बनाकर, प्रदर्शन कर, मीडिया का उपयोग कर, राजनीतिक दलों से अपील कर या अदालत में जाकर जनमत और सरकारी नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। अदालतें उस पर निर्णय दे सकती हैं या समाधान के लिए सरकार से आग्रह कर सकती हैं। इससे समाज में समय-समय पर उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सर्वमान्य समाधान निकल सकता है।

प्रश्न 16.
“नागरिकता राज्य सत्ता और उसके सदस्यों के बीच विधिक संबंधों का निरूपण है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नागरिकों के विधिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
नागरिकों के विधिक कर्तव्य: नागरिकों के विधिक कर्तव्य हैं जो राज्य द्वारा पारिभाषित, मान्य तथा लागू किये जाते हैं तथा जिनका उल्लंघन करने पर नागरिक दंड का भागी बनता है। नागरिकों के प्रमुख विधिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं।
1. कानूनों का पालन करना: राज्य शांति व्यवस्था तथा जीवन की सुरक्षा हेतु कानून बनाता है जो कि व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं। नागरिक का यह पहला कर्तव्य है कि वह राज्य द्वारा निर्मित कानूनों का पालन करे। वे व्यक्ति जो कानूनों का उल्लंघन करेंगे, उन्हें राज्य द्वारा दंडित किया जा सकता है। कानूनों का पालन करके नागरिक राज्य को उसके उद्देश्यों को पूरा करने में सहयोग करते हैं।

2. करों का भुगतान करना:
सरकार को अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। सरकार धन की प्राप्ति हेतु कर लगाती है। अत: नागरिकों का यह कानूनी कर्तव्य है कि वे अपने हिस्से के करों का भुगतान ईमानदारी से करें। करों को ईमानदारी से न चुकाने पर राज्य द्वारा दण्ड भी दिया जा सकता है।

3. राज्य के प्रति वफादारी:\
राज्य प्रत्येक नागरिक को अनेक प्रकार के अधिकार प्रदान करता है; कई प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्रदान करता है तथा बाहरी आक्रमणों व प्राकृतिक विपदाओं से उनकी रक्षा करता है। अतः प्रत्येकं नागरिक से राज्य के प्रति निष्ठा व भक्ति की आशा की जाती है। प्रत्येक नागरिक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह देशद्रोह न करे तथा देश की रक्षा हेतु हर संभव प्रयत्न करे।

4. सैनिक सेवा में भाग लेना:
नागरिकों का यह भी कर्तव्य है कि आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा हेतु सेना में भर्ती हो । राज्य की रक्षा हेतु नागरिकों से यह आशा की जाती है कि वे प्रत्येक चीज का त्याग करने, यहाँ तक कि अपने जीवन को न्यौछावर करने के लिए तैयार रहें।

5. राजनीतिक अधिकारों का उचित प्रयोग:
प्रत्येक नागरिक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह अपने मत देने के अधिकार का सदुपयोग करे। यदि इस अधिकार का प्रयोग करके बुरे व्यक्तियों का चुनाव किया जायेगा तो वे शक्ति का दुरुपयोग करेंगे तथा पूरा समाज इसे भुगतेगा |

6. संविधान का आदर करना:
प्रशासन संविधान के अनुसार कार्य करता है। निर्वाचित व्यक्ति व मंत्रीगण संविधान की शपथ लेते हैं। इसलिए सभी नागरिकों को भी संविधान के प्रति आदर प्रदर्शित करना चाहिए।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 17.
आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य अपने नागरिकों को कौन-कौन से राजनैतिक अधिकार प्रदान करते
उत्तर:
आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य अपने नागरिकों को निम्नलिखित राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं।

  1. मतदान का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार प्रदान किया जाता है। इसके द्वारा वे समय-समय पर होने वाले चुनावों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। ये प्रतिनिधि ही सरकार का निर्माण करते हैं तथा शासन को चलाते हैं।
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार: लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को निर्वाचन में खड़ा होने का भी अधिकार है। निर्वाचित होने के बाद व्यक्ति नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में सरकार का निर्माण करते हैं।
  3. सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरियाँ पाने का अधिकार है।
  4. कानून के समक्ष समानता का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान किया जाता है।
  5. अभिव्यक्ति या धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को अभिव्यक्ति तथा धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता का अधिकार भी प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 18.
“नागरिकता राज्यसत्ता और उसके सदस्यों के बीच विधिक सम्बन्धों के निरूपण के साथ-साथ नागरिकों के आपसी सम्बन्धों का भी निरूपण है ।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नागरिकता एक तरफ जहाँ राज्य सत्ता और उसके सदस्यों के बीच विधिक सम्बन्धों, जैसे कानूनों का पालन करने, करों का भुगतान करने, राज्य के प्रति वफादारी, सैनिक सेवा में भाग लेना, राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग तथा संविधान के आदर, आदि का निरूपण है। लेकिन इसके साथ ही साथ यह नागरिकों के आपसी सम्बन्धों के बारे में भी है। यथा

  1. इसमें नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति और समाज के प्रति निश्चित दायित्व शामिल हैं।
  2. इसमें समुदाय के सहजीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल होता है।
  3. नागरिकों को देश के सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों का उत्तराधिकारी और न्यासी भी माना जाता है।

प्रश्न 19.
भारत में नागिरकता किस प्रकार मिलती है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीयकरण या किसी भू-क्षेत्र के राजक्षेत्र में शामिल होने से नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। यथा

  • संविधान लागू होने के पश्चात् भारत में पैदा होने वाला प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक होगा।
  • संविधान लागू होने के पश्चात् भारत के बाहर पैदा हुआ वह व्यक्ति भारत का नागरिक होगा, यदि जन्म के समय उसका पिता वंशक्रम से भारत का नागरिक रहा हो।
  • पंजीकरण के द्वारा निम्नलिखित व्यक्ति भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
    1. भारत में उत्पन्न व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन पत्र देने के छ: महीने पहले से भारत में आमतौर पर निवास करते रहे हों।
    2. भारत में पैदा हुए व्यक्ति जो भारत के बाहर किसी अन्य देश में आमतौर पर निवास करते रहे हों।
    3. भारतीय नागरिकों की पत्नियाँ।
    4. भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
  •  कोई भी विदेशी व्यक्ति भारतीय सरकार को कुछ निर्धारित शर्तों का पालन करके आवेदन करके भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। इसे देशीयकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 20.
नागरिकता किन-किन कारणों से खो जाती है? कोई चार कारण लिखिये।
अथवा
किसी नागरिक की नागरिकता कैसे समाप्त हो सकती है?
उत्तर:
नागरिकता की समाप्ति के कारण: किसी नागरिक की नागरिकता की समाप्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. देशद्रोह या निरंतर विद्रोही गतिविधियाँ: यदि कोई नागरिक देश के साथ गद्दारी करते हुए संविधान का अनादर करे तथा देश की शांति व्यवस्था को लगातार भंग करे तो उसे देश की नागरिकता से वंचित किया जा सकता है।
  2. किसी भू-भाग के पृथक् होने पर: यदि किसी देश का कोई भाग किसी समझौते या संधि द्वारा अलग हो जाए, तो वहाँ के सभी नागरिक दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करेंगे व उन्हें पहले देश की नागरिकता छोड़नी होगी।
  3. विदेश में सरकारी अधिकारी के रूप में नियुक्ति: जब कोई व्यक्ति किसी विदेशी सरकार की सेवा में पद ग्रहण करता है, तो उसकी मूल नागरिकता समाप्त हो सकती है।
  4. विदेशी से विवाह: यदि कोई भारतीय स्त्री किसी विदेशी से विवाह करती है, तो वह भारतीय नागरिकता छोड़कर अपने पति के देश की नागरिकता ग्रहण कर सकती है।
  5. विदेश में स्थायी निवास: यदि कोई भारतीय नागरिक विदेश में स्थायी रूप में जाकर रहने लगे, तब वह अपने देश की नागरिकता खो देता है।

प्रश्न 21.
“नागरिक आज जिन अधिकारों का प्रयोग करते हैं, उन सभी को संघर्ष के बाद हासिल किया गया है।” ऐसे कुछ संघर्षों का उदाहरण दीजिए। यथा
उत्तर:
नागरिक आज जिन अधिकारों का प्रयोग करते हैं, उन सभी को संघर्ष के बाद हासिल किया गया है।

  1. यूरोप में राजतंत्रों के विरुद्ध संघर्ष:
    अनेक यूरोपीय देशों में जनता ने अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए कुछ प्रारंभिक संघर्ष शक्तिशाली राजतंत्रों के खिलाफ छेड़े थे। उनमें कुछ हिंसक संघर्ष भी थे, जैसे – 1789 की फ्रांसीसी क्रांति।
  2. एशिया व अफ्रीका में संघर्ष:
    एशिया और अफ्रीका के अनेक उपनिवेशों में समान नागरिकता की माँग औपनिवेशिक शासकों से स्वतंत्रता हासिल करने के संघर्ष का भाग रही। दक्षिण अफ्रीका में समान नागरिकता पाने के लिए अफ्रीका की अश्वेत आबादी को सत्तारूढ़ गोरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ लम्बा संघर्ष करना पड़ा जो 1990 के दशक के आरंभ तक जारी रहा।
  3. महिला व दलित आंदोलन:
    वर्तमान में विश्व के अनेक हिस्सों में महिला और दलित आंदोलन भी इस संघर्ष का एक भाग हैं।

प्रश्न 22.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपाय लिखिये।
उत्तर:
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपाय: आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए अग्रलिखित उपाय किये जा सकते हैं।

  1. उचित शिक्षा: आदर्श नागरिकता के मार्ग की प्रमुख बाधा अज्ञानता है। इस बाधा को दूर करने के लिए नागरिकों को मानवीय मूल्य पर आधारित उचित शिक्षा दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। उचित शिक्षा से उनके विचारों में परिपक्वता आयेगी तथा अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का ज्ञान होगा।
  2. आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति: आदर्श नागरिकता के मार्ग की एक अन्य बाधा व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाना है। इसलिए देश में ऐसी आर्थिक व्यवस्था होनी चाहिए जिससे नागरिकों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति सुचारु रूप से हो सके।
  3. राष्ट्रीय चरित्र का विकास: किसी भी राष्ट्र के व्यक्ति आदर्श नागरिक तभी बन सकते हैं जबकि उस राष्ट्र का राष्ट्रीय चरित्र उच्च कोटि का हो। अर्थात् लोग राष्ट्र को अपने स्वार्थों से ऊँचा स्थान दें तथा सभी प्रकार की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर सोचें।
  4. विश्व बंधुत्व की भावना: आदर्श नागरिकता के मार्ग की एक अन्य बाधा उग्र राष्ट्रीयता की भावना है। यह नागरिकों की मनोवृत्ति संकीर्ण बनाती है। इस बाधा को दूर करने के लिए आवश्यक है कि वसुधैव कुटुम्बकम् एवं विश्व बंधुत्व की भावना को स्वीकार कर लिया जाये।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नागरिक’ कौन होता है? भारतीय संविधान नागरिक के बारे में क्या कहता है? भारत में नागरिकता ग्रहण करने की पद्धतियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
‘नागरिक’ से आशय: नागरिक वह व्यक्ति है जो किसी राज्य का सदस्य होता है, उसके प्रति निष्ठावान होता है, उसे नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं और वह देश के शासन में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी न किसी रूप में, भागीदार होता है।

भारत का संविधान एवं नागरिक: भारत के संविधान का भाग 2 केवल उन वर्गों के लोगों के बारे में उल्लेख करता है जो संविधान के लागू होने के समय अर्थात् 26 जनवरी, 1950 को भारतीय नागरिक माने गये। नागरिकता से संबंधित शेष बातों की व्यवस्था भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 में की गई है।

1. संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता: संविधान के प्रारंभ पर निम्नलिखित व्यक्तियों को अधिवास द्वारा नागरिकता प्रदान की गई।
संविधान के अनुच्छेद 5 के अनुसार इस संविधान के आरंभ पर प्रत्येक व्यक्ति, जिसका भारत में अधिवास (Domicile) है, भारत का नागरिक होगा, यदि

  • वह भारत में जन्मा हो। अथवा
  • उसके माता-पिता में से कोई भी भारत में जन्मा हो ।
  • जो संविधान के प्रारंभ होने से ठीक पहले कम से कम पांच वर्षों तक भारत का साधारण तौर से निवासी रहा हो।

इस प्रकार भारत में अधिवास (निवास) द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिए दो शर्तें पूरी होनी चाहिए – प्रथम, यह कि व्यक्ति का भारत में अधिवास हो; और दूसरा, यह कि वह व्यक्ति उक्त वर्णित तीन शर्तों में से एक शर्त पूरी कर रहा. हो।

2. भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ:
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार भारत में निम्नलिखित पांच प्रकार से नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।

  • जन्म से नागरिकता:
    संविधान लागू होने के पश्चात् भारत में पैदा होने वाला प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक होगा। लेकिन यदि उसके जन्म के समय उसके पिता को ऐसे मुकदमों या कानूनी प्रक्रियाओं से विमुक्ति प्राप्त थी, जो भारत में कूटनीतिक राजदूतों को प्रदान की जाती है या उसका पिता एक विदेशी शत्रु है और उसका जन्म ऐसे स्थान में होता है, जो उस समय शत्रु के कब्जे में है, तो ऐसा व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा।
  • वंश क्रम द्वारा नागरिकता की प्राप्ति;
    कोई ऐसा व्यक्ति जो 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत के बाहर पैदा हुआ हो, भारत का नागरिक होगा, यदि उसके जन्म के समय में उसका पिता वंशक्रम से भारत का नागरिक रहा हो।

3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति-व्यक्तियों के कुछ वर्ग जिन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं है, निर्धारित अधिकारियों के समक्ष पंजीकरण करवा कर उसे ग्रहण कर सकते हैं। पंजीकरण द्वारा निम्नलिखित व्यक्ति नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।

  • भारत में उत्पन्न व्यक्ति जो रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन पत्र देने के छः महीने पहले से भारत में आमतौर से निवास करते रहे हों।
  • भारत में पैदा हुए व्यक्ति जो भारत के बाहर किसी अन्य देश में आमतौर से निवास करते रहे हों।
  • भारतीय नागरिकों की पत्नियाँ।
  • भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।

4. देशीयकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति:
कोई भी विदेशी व्यक्ति भारतीय सरकार को देशीयकरण के लिए आवेदन करके भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकता है। देशीयकरण का अर्थ है। कुछ शर्तों का पालन करके किसी देश की नागरिकता लेना। हो। देशीयकरण द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्ति के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है।

  • वह किसी ऐसे देश का नागरिक न हो जहाँ भारतीय देशीयकरण द्वारा नागरिक बनने से रोक दिये जाते हों।
  • उसने अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर दिया हो और केन्द्रीय सरकार को इस बात की सूचना दे दी
  • वह देशीयकरण के लिए आवेदन करने की तिथि से पहले 12 वर्ष तक या तो भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो।
  • उपर्युक्त 12 वर्षों के पहले के कुल 7 वर्षों में से कम-से-कम 4 वर्ष तक उसने भारत में निवास किया हो या भारत सरकार की नौकरी में रहा हो।
  • वह अच्छे चरित्र का व्यक्ति हो।
  • वह राज्यनिष्ठा की शपथ ग्रहण करे।
  • उसे भारतीय संविधान द्वारा मान्य भाषा का सम्यक् ज्ञान हो।
  • देशीयकरण के प्रमाणपत्र की प्राप्ति के उपरान्त उसका भारत में निवास करने या भारत सरकार की नौकरी में रहने का इरादा हो।

5. क्षेत्र के समावेशन के आधार पर नागरिकता: यदि कोई नया क्षेत्र भारत का भाग बन जाता है, तो भारत सरकार उस क्षेत्र के लोगों को नागरिकता दे देगी।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 2.
भारतीय नागरिकता की समाप्ति कितने प्रकार से हो सकती है?
उत्तर:
भारतीय नागरिकता की समाप्ति: भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार भारतीय नागरिकता की समाप्ति निम्नलिखित तीन प्रकार से हो सकती है।
1. नागरिकता का परित्याग: कोई भी वयस्क भारतीय नागरिक, जो किसी दूसरे देश का भी नागरिक है, भारतीय नागरिकता को त्याग सकता है। इसके लिए उसे एक घोषणा करनी होगी और इस घोषणा के पंजीकृत हो जाने पर वह भारत का नागरिक नहीं रह जायेगा।

2. दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार करने पर यदि भारत का कोई भी नागरिक अपनी इच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता को स्वीकार कर लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाती है।

3. नागरिकता से वंचित किया जाना: भारत की केन्द्र सरकार किसी भी भारतीय नागरिक को उसकी नागरिकता से वंचित कर सकती है। देशीयकरण, पंजीकरण, अधिवास और निवास के आधार पर बने हुए किसी भी नागरिक को भारत सरकार एक आदेश जारी करके उसको नागरिकता से वंचित कर सकती है, बशर्ते कि उसे यह समाधान हो जाये कि लोकहित के लिए यह उचित नहीं है कि उसे भारत का नागरिक बने रहने दिया जाये। था। केन्द्र सरकार इस प्रकार का आदेश तभी जारी करेगी जब उसे इस बात का समाधान हो जाये कि

  • पंजीकरण या देशीयकरण कपट से, मिथ्या निरूपण से या किसी सारवान तथ्य को छिपाकर प्राप्त किया गया
  • उस व्यक्ति ने व्यवहार या भाषण द्वारा अपने को भारतीय संविधान के प्रति निष्ठाहीन दिखाया है।
  • किसी ऐसे युद्ध में, जिसमें भारत युद्धरत रहा हो, अवैध रूप से दुश्मन से व्यापार या संचार किया हो।
  • वह अपने पंजीकरण या देशीयकरण से पांच वर्ष की अवधि के अन्दर कम से कम दो वर्ष के लिए दण्डित किया गया हो।
  • यदि वह भारत से बाहर लगातार 7 वर्षों तक सामान्यतयां निवास करता रहा हो।

प्रश्न 3.
नागरिकता का अर्थ स्पष्ट करते हुये बताइये कि जन्मजात नागरिकता किन स्थितियों में प्राप्त होती
अथवा
नागरिकता से क्या आशय है? नागरिकता प्राप्त करने की विधियों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
नागरिकता का अर्थ: नागरिकता वह वैज्ञानिक व्यवस्था है जिसके द्वारा नागरिक को राज्य की ओर से सामाजिक और राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं तथा उसे राज्य तथा दूसरे नागरिकों के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता है। इस प्रकार नागरिकता एक कानून सम्मत पद है। गैटिल के अनुसार, “नागरिकता किसी व्यक्ति की उस स्थिति को कहते हैं जिसके अनुसार वह अपने राज्य में साधारण और राजनीतिक अधिकारों का भोग करता है तथा अपने कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार रहता है।” नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ किसी भी राज्य में नागरिकता प्राप्त करने की दो विधियाँ होती हैं।
(अ) जन्मजात नागरिकता
(ब) देशीयकरण द्वारा प्राप्त नागरिकता

(अ) जन्मजात नागरिकता: जन्मजात नागरिकता निम्नलिखित स्थितियों में प्राप्त होती है।

  1. रक्त या वंश के आधार पर:
    रक्त या वंश के आधार पर बच्चा जन्म लेते ही उस देश का नागरिक समझा जाता है, जिस देश के उसके माता-पिता नागरिक होते हैं, चाहे बच्चे का जन्म उसके माता-पिता के देश में हुआ हो या विदेश में । जर्मनी, फ्रांस आदि अनेक देशों में यही नियम मान्य है।
  2. जन्म स्थान के आधार पर:
    जन्म स्थान के आधार पर बच्चा उस देश का नागरिक समझा जाता है जहाँ उसका जन्म होता है, चाहे उसके माता-पिता किसी अन्य देश के नागरिक हों। अर्जेंटाइना में इसी नियम का पालन किया जाता है।
  3. मिश्रित नियम: इस नियम के अनुसार यदि किसी देश के नागरिकों की सन्तान का जन्म विदेश में होता है। अथवा विदेश के नागरिकों का जन्म उस देश में होता है, जहाँ उस देश के माता-पिता उस समय निवास कर रहे हैं तो दोनों ही स्थितियों में वह बच्चा उस देश का नागरिक होता है जहाँ उसका जन्म होता है। इंग्लैण्ड, अमेरिका तथा भारत में इसी नियम को अपनाया गया है।

(ब) देशीयकरण द्वारा प्राप्त नागरिकता: देशीयकरण द्वारा निम्नलिखित उपायों से नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।

  1. निवास: यदि कोई विदेशी एक निश्चित अवधि तक विदेश में रहता है तो उसका देशीयकरण कर उस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। निवास की अवधि भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न रखी गई है। भारत में यह 10 वर्ष रखी गयी है।
  2. विवाह: यदि कोई स्त्री अन्य देश के नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसे अपने पति के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। अधिकांश देशों में यह विधि प्रचलित है।
  3. गोद लेने पर: यदि किसी देश का नागरिक किसी अन्य देश में उत्पन्न बालक को गोद ले लेता है तो वह बालक अपने देश की नागरिकता खोकर नये देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है।
  4. सरकारी पद: यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य देश में कोई सरकारी पद प्राप्त कर लेता है तो वह उस राज्य की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। रूस में यह नियम प्रचलित है।
  5. सम्पत्ति क्रय द्वारा: यदि कोई व्यक्ति किसी देश में भूमि आदि अचल सम्पत्ति खरीद लेता है तो उसे उस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  6. विजय द्वारा: जब कोई देश युद्ध में अन्य देश पर विजय प्राप्त करके उसे अपने में मिला लेता है तो उस देश के नागरिकों को विजेता देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  7. वैधता: यदि किसी नागरिक के किसी विदेशी महिला से अवैध सन्तान उत्पन्न हो जाये तो माता-पिता के आपस में नियमानुसार विवाह कर लेने पर सन्तान को पिता के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  8. योग्यता या विद्वता: कुछ देशों में कुछ प्रमुख विद्वानों को अपने देश की नागरिकता प्रदान कर दी जाती है अथवा उनके निवास की अवधि में रियायत कर दी जाती है, जैसे – 10 वर्ष के स्थान पर 1 वर्ष।

प्रश्न 4.
सार्वभौमिक नागरिकता की अवधारणा की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
सार्वभौमिक नागरिकता: सार्वभौमिक नागरिकता से आशय यह है कि किसी देश की पूर्ण एवं समान सदस्यता उन सबको उपलब्ध होनी चाहिए, जो सामान्यतः उस देश में रहते या काम करते हैं या जो नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। किसी देश में रहने वाले सभी व्यक्तयों से यहाँ आशय यह है कि वे व्यक्ति उस देश में चाहे शरणार्थियों के रूप में रहे हों या अवैध आप्रवासियों के रूप में, यदि वे उस देश की नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं, तो उन्हें उस देश की नागरिकता प्रदान करने से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य में रह रहा है, उसे उस राज्य की नागरिकता के लिए मान्यता देनी चाहिए।

लेकिन किसी भी राज्य द्वारा सार्वभौमिक नागरिकता प्रदान नहीं की जा रही है। सूडान के डरफन क्षेत्र के शरणार्थी, फिलिस्तीनी, बर्मी या बंगलादेशी शरणार्थी जैसे अनेक उदाहरण हैं जो अपने ही देश या पड़ौसी देश में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किये गये हैं और ये राज्यविहीन हैं, जिन्हें किसी देश की नागरिकता प्राप्त नहीं है। वे शिविरों या अवैध प्रवासियों के रूप में रहने को मजबूर हैं। प्रायः वे कानूनी रूप से कार्य नहीं कर सकते, संपत्ति अर्जित नहीं कर सकते। ऐसे लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए कुछ विद्वानों ने सार्वभौमिक नागरिकता की अवधारणा प्रतिपादित की। सार्वभौमिक नागरिकता की अवधारणा की अव्यावहारिकता – यद्यपि सार्वभौमिक नागरिकता की अवधारणा एक प्रभावित करने वाला विचार है, लेकिन निम्नलिखित कारणों से यह व्यावहारिक नहीं है।

  1. प्रत्येक राज्य यह निर्धारित करता है कि उसकी जनसंख्या, क्षेत्र, रोजगार के अवसरों, व्यापार तथा व्यवसाय को ध्यान में रखते हुए कितने लोगों को राज्य में प्रवेश दिया जाना चाहिए। कोई भी राज्य लोगों की अनियंत्रित भीड़ को देश की अर्थव्यवस्था व आर्थिक विकास की दृष्टि से स्वीकार नहीं कर सकता।
  2. प्रत्येक राज्य को यह निर्धारित करना पड़ता है कि किस प्रकार को आप्रवासी उसकी अर्थव्यवस्था, सामाजिक वातावरण तथा संस्कृति के विकास के लिए उचित होंगे। कोई भी राज्य प्रत्येक प्रकार के आप्रवासियों – शिक्षित, अशिक्षित, कुशल और अकुशल- को आने की अनुमति देकर राज्य स्वयं की सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ना नहीं चाहता।
  3. राज्य को कानून और व्यवस्था को भी ध्यान में रखना पड़ता है। यदि वह अनियंत्रित शरणार्थियों को प्रवेश देने की स्वीकृति दे देगा तो उसके यहाँ कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है।
  4. आप्रवासियों का अनियंत्रित प्रवेश और उनको नागरिकता प्रदान करना सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक पहचान तथा आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव डाल सकता है।

अनेक देश यद्यपि वैश्विक और समावेशी नागरिकता का समर्थन करते हैं लेकिन वे नागरिकता देने की शर्तें भी निर्धारित करते हैं। ये शर्तें आमतौर पर देश के संविधान और कानूनों में लिखी होती हैं और अवांछित आगंतुकों को नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्य सत्ताएँ ताकत का प्रयोग करती हैं। राज्यकृत नागरिकता सभी अवैध लोगों को नागरिकता प्रदान करने में असमर्थ रहती है। इसलिए सार्वभौमिक नागरिकता की अवधारणा प्रभावित करती है और इस समस्या का हल भी सुझाती है, लेकिन संप्रभु राज्य की अवधारणा से मिलने वाली नागरिकता के चलते यह अवधारणा अव्यावहारिक है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 5.
शरणार्थियों द्वारा कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार इनकी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है?
अथवा
वैश्विक नागरिकता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वैश्विक नागरिकता की अवधारणा: आज हम एक ऐसे विश्व में रहते हैं जो आपस में जुड़ा हुआ है। संचार के इंटरनेट, टेलीविजन और सेलफोन जैसे नये साधनों ने विश्व के विभिन्न हिस्सों की हलचलों को हमारे तत्काल सम्पर्क के दायरे में ला दिया है। टेलीविजन के पर्दे पर विनाश और युद्धों को देखने से विश्व के विभिन्न देशों के लोगों में साझे सरोकार और सहानुभूति विकसित होने में मदद मिली है। विश्व नागरिकता के समर्थकों का मत है कि चाहे विश्व- कुटुम्ब और वैश्विक समाज अभी विद्यमान नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार लोग आज एक-दूसरे से जुड़ा महसूस करते हैं।

इसलिए विश्व नागरिकता की अवधारणा की दिशा में सक्रिय हुआ जा सकता है। विश्व नागरिकता में विश्व के सभी व्यक्ति एक परिवार के सदस्य की तरह होते हैं। राज्यों की सीमाओं की बाधाएँ वैश्विक नागरिकता के अन्तर्गत समाप्त हो जायेंगी और विभिन्न राज्यों में व्यक्तियों तथा वस्तुओं का स्वतंत्र आवागमन होगा। अतः एक राज्य की नागरिकता पूरे विश्व में आने-जाने तथा सभी जगह समान अधिकारों की प्राप्ति के लिए पर्याप्त होगी। लोग यह महसूस करेंगे कि वे किसी व्यक्तिगत समाजों के सदस्य नहीं हैं, बल्कि एक वैश्विक समाज के सदस्य हैं।

शरणार्थियों से आशय: शरणार्थी वे व्यक्ति हैं जिन्हें किसी भी देश की नागरिकता प्राप्त नहीं है या वे राज्यविहीन व्यक्ति हैं। युद्ध, उत्पीड़न, अकाल या अन्य कारणों से लोग विस्थापित होते हैं। अगर कोई देश उन्हें स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होता और वे अपने घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन और शरणार्थी हो जाते हैं। अनेक देशों में युद्ध या उत्पीड़न से पलायन करने वाले लोगों को अंगीकार करने की नीति है। लेकिन वे भी लोगों की अनियंत्रित भीड़ को स्वीकार करना सुरक्षा के संदर्भ में देश को जोखिम में डालना नहीं चाहेंगे। भारत में यद्यपि उत्पीड़ित लोगों को आश्रय उपलब्ध कराने की नीति अपनायी गयी है, लेकिन भारत राष्ट्र की सभी सीमाओं से पड़ौसी देशों के लोगों का प्रवेश हुआ है और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। इनमें से अनेक लोग वर्षों या पीढ़ियों तक राज्यहीन व्यक्तियों के रूप में पड़े रहते हैं। शिविरों या अवैध प्रवासी के रूप में। ये हैं।

शरणार्थियों या राज्यविहीन व्यक्तियों की समस्यायें: राज्यविहीन व्यक्तियों या शरणार्थियों की प्रमुख समस्यायें

  1. वे शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने को मजबूर किये जाते हैं।
  2. उन्हें कोई भी सामाजिक-राजनैतिक अधिकार नहीं मिले होते।
  3. प्राय: वे कानूनी तौर पर काम नहीं कर सकते या अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं सकते या सम्पत्ति अर्जित नहीं कर सकते।

वैश्विक नागरिकता की अवधारणा और शरणार्थियों की समस्याओं का समाधान यद्यपि अभी तक वैश्विक नागरिकता की अवधारणा का विचार अन्तर्राष्ट्रीय जगत में स्वीकार नहीं किया जा सका है, लेकिन यदि यह स्वीकार कर लिया जाता है तो यह शरणार्थियों की अनेक समस्याओं का समाधान कर देगा तथा उनके लिए लाभकारी रहेगा। यथा

  1. वैश्विक नागरिकता की अवधारणा के कारण संसार का कोई भी व्यक्ति राज्यविहीन या शरणार्थी नहीं रहेगा।
  2. शरणार्थी अधिकारों के वंचन से पीड़ित नहीं होंगे।
  3. पूरे विश्व के लोगों में राज्य की सीमाओं के आर-पार मानव जाति की सहायता करने का भाव विकसित होगा।
  4. वैश्विक नागरिकता अनेक वैश्विक समस्याओं, जैसे- आतंकवाद, पर्यावरण को खतरा, कुछ राज्यों में जनाधिक्य की समस्या तथा कुछ राज्यों में भोजन तथा स्वास्थ्य की समस्यायें आदि को हल करने में लाभप्रद होगी।

 

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. व्यक्ति के उच्चतम विकास हेतु परमावश्यक है।
(अ) अधिकार
(ब) सम्पत्ति
(स) न्याय व्यवस्था
(द) कानून
उत्तर:
(अ) अधिकार

2. राज्य द्वारा मान्य और कानून द्वारा रक्षित अधिकार कहे जाते हैं।
(अ) प्राकृतिक अधिकार
(ब) वैधानिक अधिकार
(स) नैतिक अधिकार
(द) परम्परागत अधिकार
उत्तर:
(ब) वैधानिक अधिकार

3. निर्वाचित होने का अधिकार निम्नांकित में से किस श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
(अ) सामाजिक अधिकार
(ब) आर्थिक अधिकार
(स) राजनैतिक अधिकार
(द) धार्मिक अधिकार
उत्तर:
(स) राजनैतिक अधिकार

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4. ‘अधिकार वह माँग है जिसे समाज स्वीकार करता है तथा राज्य लागू करता है।” यह कथन किसका है।
(अ) लास्की
(ब) ग्रीन
(स) बोसांके
(द) वाइल्ड
उत्तर:
(स) बोसांके

5. प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा के अन्तर्गत निम्न में से कौनसा अधिकार प्राकृतिक नहीं माना गया है।
(अ) काम का अधिकार
(ब) जीवन का अधिकार
(स) स्वतंत्रता का अधिकार
(द) संपत्ति का अधिकार
उत्तर:
(अ) काम का अधिकार

6. मानव अधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि-
(अ) अधिकार प्रकृति प्रदत्त हैं।
(ब) अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं।
(स) अधिकार जन्मजात हैं।
(द) मनुष्य होने के नाते सभी मनुष्य अधिकारों को पाने के अधिकारी हैं।
उत्तर:
(द) मनुष्य होने के नाते सभी मनुष्य अधिकारों को पाने के अधिकारी हैं।

7. आज प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की जरूरत के प्रति चेतना ने कौनसे अधिकारों की मांग पैदा की है?
(अ) स्वच्छ हवा तथा शुद्ध जल जैसे अधिकारों की मांग
(ब) आजीविका के अधिकार तथा बच्चों के अधिकारों की मांग
(स) स्वतंत्रता व समानता के अधिकारों की मांग
(द) सम्पत्ति व सांस्कृतिक अधिकारों की मांग
उत्तर:
(अ) स्वच्छ हवा तथा शुद्ध जल जैसे अधिकारों की मांग

8. निम्नलिखित में कौनसा अधिकार राजनैतिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है?
(अ) वोट देने का अधिकार
(ब) काम पाने का अधिकार
(स) चुनाव लड़ने का अधिकार
(द) राजनैतिक दल बनाने का अधिकार
उत्तर:
(ब) काम पाने का अधिकार

9. निम्नलिखित में कौनसा अधिकार आर्थिक अधिकार है?
(अ) स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच का अधिकार
(ब) विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार
(स) असहमति प्रकट करने का अधिकार
(द) बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हेतु पर्याप्त मजदूरी का अधिकार
उत्तर:
(द) बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हेतु पर्याप्त मजदूरी का अधिकार

10. नागरिकों का सांस्कृतिक अधिकार है।
(अ) काम पाने का अधिकार
(ब) स्वतंत्रता का अधिकार
(स) अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार
(द) चुनाव लड़ने का अधिकार
उत्तर:
(स) अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार

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11. निम्न में कौनसा अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है।
(अ) आजीविका का अधिकार
(ब) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
(स) समानता का अधिकार
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. अधिकार उन बातों का द्योतक है जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए ……………….. समझते हैं।
उत्तर:
आवश्यक

2. ……………… हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं।
उत्तर:
अधिकार

3. विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आयी हैं, त्यों-त्यों उन ………………… लगातार बढ़ती गई है, जिनका लोगों ने दावा किया है।
उत्तर:
मानवाधिकारों

4. हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार शब्द से ज्यादा …………………. शब्द का प्रयोग हो रहा है।
उत्तर:
मानवाधिकार

5. ………………… में उन अधिकारों का उल्लेख रहता है, जो बुनियादी महत्त्व के माने जाते हैं।
उत्तर:
संविधान।

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. अधिकार सिर्फ यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है।
उत्तर:
सत्य

2. हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बगैर काम करे।
उत्तर:
सत्य

3. धार्मिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी और राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं।
उत्तर:
असत्य

4. लोकतांत्रिक समाज वोट देने तथा प्रतिनिधि चुनने के दायित्वों को पूरा करने के लिए आर्थिक अधिकार मुहैया करा रहे हैं।
उत्तर:
असत्य

5. अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार राजनैतिक अधिकार के अन्तर्गत आता है।
उत्तर:
असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. मत देने का अधिकार (अ) सांस्कृतिक अधिकार
2. रोजगार पाने का अधिकार (ब) संयुक्त राष्ट्र संघ
3. अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए (स) आर्थिक अधिकार संस्थाएँ बनाने का अधिकार
4. मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा (द) प्राकृतिक अधिकार
5. अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं। (य) राजनैतिक अधिकार

उत्तर:

1. मत देने का अधिकार (य) राजनैतिक अधिकार
2. रोजगार पाने का अधिकार (स) आर्थिक अधिकार
3. अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए (अ) सांस्कृतिक अधिकार
4. मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा (ब) संयुक्त राष्ट्र संघ
5. अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं। (द) प्राकृतिक अधिकार

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव अधिकारों के घोषणा पत्र से क्या आशय है ?
उत्तर:
मानव अधिकारों का संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र अधिकारों के उन दावों को मान्यता देने का प्रयास है। विश्व समुदाय गरिमा और आत्मसम्मानपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक मानता है।

प्रश्न 2.
अधिकार किस सत्ता को सीमित करते हैं?
उत्तर:
अधिकार राज्य की सत्ता को सीमित करते हैं।

प्रश्न 3.
राजनीतिक अधिकार किन्हें प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 4.
किन्हीं दो राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दो प्रमुख राजनीतिक अधिकार हैं।

  1. मतदान करने एवं उम्मीदवार बनने का अधिकार
  2. सरकारी पद ग्रहण करने व सरकार की आलोचना का अधिकार।

प्रश्न 5.
मत देने और प्रतिनिधि चुनने का अधिकार किन अधिकारों के अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्गत।

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प्रश्न 6.
एक आर्थिक और एक सामाजिक अधिकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
काम प्राप्त करने का अधिकार एक आर्थिक अधिकार है जबकि शिक्षा का अधिकार एक सामाजिक अधिकार

प्रश्न 7.
वयस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक निश्चित उम्र के पश्चात् मत देने के लिए प्रदत्त अधिकार को वयस्क मताधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को कब स्वीकार और लागू
उत्तर:
10 दिसम्बर, 1948 को।

प्रश्न 9.
संविधान में कौनसे अधिकारों का उल्लेख रहता है?
उत्तर:
संविधान में बुनियादी महत्व के अधिकारों का उल्लेख रहता है।

प्रश्न 10.
मानवाधिकारों की अवधारणा का प्रयोग किसलिए किया जाता रहा है?
उत्तर:
नस्ल, जाति, धर्म और लिंग पर आधारित असमानताओं को चुनौती देने के लिए।

प्रश्न 11.
भारत में संविधान में वर्णित अधिकारों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
मूल अधिकार।

प्रश्न 12.
मानव अधिकार का आशय स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो लोगों के चहुँमुखी विकास एवं कल्याण के लिए अति आवश्यक होते

प्रश्न 13.
उस सिद्धान्त का नाम लिखिये जो अधिकारों को रीति-रिवाज एवं परम्पराओं की उपज मानता है।
उत्तर:
ऐतिहासिक सिद्धान्त।

प्रश्न 14.
किस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार कानून का परिणाम है?
उत्तर:
वैधानिक सिद्धान्त के अनुसार।

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प्रश्न 15.
अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धान्त की क्या मान्यता है?
उत्तर:
एक आदर्श व्यक्तित्व के विकास हेतु अधिकारों की आवश्यकता है।

प्रश्न 16.
काम के अधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
काम के अधिकार से तात्पर्य है। प्रत्येक व्यक्ति को उचित पारिश्रमिक पर आजीविका के साधन उपलब्ध

प्रश्न 17.
मानवाधिकारों के दावों की सफलता किस कारक पर सर्वाधिक निर्भर करती है?
उत्तर:
मानवाधिकारों के दावों की सफलता सरकारों और कानून के समर्थन पर सर्वाधिक निर्भर करती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अधिकार क्या हैं?
उत्तर:
अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए व्यक्ति द्वारा समाज से किये जाने वाले वे दावे ( माँगें) हैं, जिन्हें समाज सामाजिक हित की दृष्टि से मान्यता प्रदान कर देता है और राज्य उनके संरक्षण की मान्यता दे देता है।

प्रश्न 2.
अधिकार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:

  1. अधिकार व्यक्तियों को सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये लोगों की प्रतिभा और दक्षता को विकसित करने में सहयोग देते हैं।

प्रश्न 3.
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा के अनुसार व्यक्ति के अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। वे व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हैं। परिणामतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता।

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प्रश्न 4.
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्तकारों ने कौनसे अधिकार प्राकृतिक बताए हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार थे।

  1. जीवन का अधिकार,
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. सम्पत्ति का अधिकार।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता था?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रयोग राज्यों या सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्तियों के प्रयोग का विरोध करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 6.
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता क्या है?
उत्तर:
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में हर मनुष्य विशिष्ट और समान महत्त्व का है तथा सभी मनुष्य समान हैं, इसलिए सबको स्वतंत्र रहने तथा अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु समान अवसर मिलने चाहिए।

प्रश्न 7.
” विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आई हैं, त्यों-त्यों मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है जिनका लोगों ने दावा किया है?” इस कथन को कोई एक उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आज हम प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की चुनौती का सामना कर रहे हैं, इस चुनौती के प्रति सजगता के चलते हमने जिन नये मानवाधिकारों की मांगें पैदा की हैं, वे हैं – स्वच्छ हवा, शुद्ध जल और टिकाऊ विकास के अधिकारों की मांग। इससे स्पष्ट होता है कि समाज में बढ़ते खतरों के प्रति सजगता ने मानवाधिकारों की सूची में वृद्धि की है।

प्रश्न 8.
मानवाधिकारों का क्या महत्व है?
उत्तर:
मानव अधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि सब लोग, मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र उन दावों को मानव-अधिकारों के रूप में मान्यता प्रदान करता है, जिन्हें विश्व समुदाय सामूहिक रूप से गरिमा और आत्म- – सम्मानपूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक मानता है। पूरे विश्व के उत्पीड़ित लोग मानवाधिकारों की अवधारणा का प्रयोग उन कानूनों को चुनौती देने का कार्य कर रहे हैं, जो उन्हें समान अवसरों और अधिकारों से वंचित करते हैं। इस प्रकार मानव अधिकार मनुष्य के अच्छे जीवन जीने के लिए एक गारन्टी प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 9.
“मेरा अधिकार राजसत्ता को खास तरीके से काम करने के कुछ वैधानिक दायित्व सौंपता है ।” इस कथन को एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि कोई समाज यह महसूस करता है कि जीने के अधिकार का अर्थ अच्छे स्तर के जीवन का अधिकार है, तो वह राजसत्ता से ऐसी नीतियों के अनुपालन की अपेक्षा करता है कि वह स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण और अन्य आवश्यक निर्धारकों का प्रावधान करे। इससे स्पष्ट होता है कि मेरा अधिकार यहाँ राजसत्ता को खास तरीके से काम करने के लिए कुछ वैधानिक दायित्व सौंपता है।

प्रश्न 10.
नागरिकों के प्रमुख राजनैतिक अधिकार कौन-कौनसे हैं ? उल्लेख करो।
उत्तर:
नागरिकों के प्रमुख राजनीतिक अधिकार ये हैं।

  1. मत देने तथा प्रतिनिधि चुनने का अधिकार,
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार,
  3. राजनैतिक दल बनाने का अधिकार तथा
  4. किसी भी राजनैतिक दल का सदस्य बनने का अधिकार।

प्रश्नं 11.
चार ऐसे अधिकारों का उल्लेख कीजिए जो बुनियादी अधिकार के रूप में मान्य हैं।
उत्तर:

  1. जीवन का अधिकार,
  2. स्वतंत्रता का अधिकार,
  3. समान व्यवहार का अधिकार और
  4. राजनीतिक भागीदारी का अधिकार बुनियादी अधिकारों के रूप में मान्य हैं।

प्रश्न 12.
“अधिकार हमारे सम्मान और गरिमामय जीवन बसर करने के लिए आवश्यक हैं। ” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अधिकार उन बातों का द्योतक है जिन्हें लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए आवश्यक समझते हैं। उदाहरण के लिए, आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है क्योंकि यह व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता देता है। इसी प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है। चाहे यह लेखन के क्षेत्र में हो अथवा नृत्य, संगीत या किसी अन्य रचनात्मक क्रियाकलाप में

प्रश्न 13.
स्पष्ट कीजिये कि अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं?
उत्तर:
अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने में सहयोग देते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा का अधिकार हमारी तर्क शक्ति विकसित करने में मदद करता है, हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ-बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। यदि कोई कार्यकलाप हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक है तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए, नशीली दवाएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तथा धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए इनके सेवन के अधिकार को मान्य नहीं किया जा सकता। अतः स्पष्ट है कि अधिकार वे दावे ही हो सकते हैं जो हमारी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने में सहयोग देते हैं।

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प्रश्न 14.
अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
अधिकारों का प्राकृतिक सिद्धान्त: प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्तकारों के अनुसार अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें ये अधिकार जन्म से प्राप्त हैं। परिणामतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये थे

  1. जीवन का अधिकार,
  2. स्वतंत्रता का अधिकार और
  3. संपत्ति का अधिकार। हम इन अधिकारों का दावा करें या न करें, व्यक्ति होने के नाते हमें ये प्राप्त हैं।

प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा का प्रयोग राज्यों अथवा सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्ति के प्रयोग का विरोध करने तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 15.
मानवीय गरिमा के बारे में कांट के विचारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मानवीय गरिमा- कांट का कहना है कि अन्य प्राणियों से अलग प्रत्येक मनुष्य की एक गरिमा होती है और मनुष्य होने के नाते उसके साथ इसी के अनुकूल बर्ताव किया जाना चाहिए। कांट के लिए, लोगों के साथ गरिमामय बर्ताव करने का अर्थ था- उनके साथ नैतिकता से पेश आना। यह विचार उन लोगों के लिए संबल था जो लोग सामाजिक ऊँच- नीच के खिलाफ और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।

प्रश्न 16.
कांट के मानवीय गरिमा के विचार ने अधिकार की कौनसी अवधारणा प्रस्तुत की?
उत्तर:
कांट के मानवीय गरिमा के विचार ने अधिकार की एक नैतिक अवधारणा प्रस्तुत की। इस अवधारणा में निम्न बातों पर बल दिया गया है।

  1. हमें दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करते हैं।
  2. हमें यह निश्चित करना चाहिए कि हम दूसरों को अपनी स्वार्थसिद्धि का साधन नहीं बनायेंगे।
  3. हमें लोगों के साथ उस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए जैसा कि हम निर्जीव वस्तुओं के साथ करते हैं।
  4. हमें लोगों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वे मनुष्य हैं।

प्रश्न 17.
प्राकृतिक अधिकारों तथा मौलिक अधिकारों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों तथा मौलिक अधिकारों में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं।

  1. मौलिक अधिकारों का वर्णन प्रत्येक देश के संविधान में होता है, लेकिन प्राकृतिक अधिकारों का नहीं।
  2. मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि प्राकृतिक अधिकार नहीं।
  3. मौलिक अधिकार राज्य में उपलब्ध होते हैं, लेकिन प्राकृतिक अधिकार प्राकृतिक अवस्था में ही संभव हो सकते हैं।

प्रश्न 18.
विविध समाजों में बढ़ते खतरों और चुनौतियों के कारण मानवाधिकारों के नए दावे किये जा रहे हैं। ये दावे किस बात की अभिव्यक्ति करते हैं?
उत्तर:
विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नये खतरे व चुनौतियाँ उभरती हैं, त्यों-त्यों लोगों ने नवीन मानवाधिकारों की मांग की है। उदाहरण के लिए आज प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की आवश्यकता व उसके प्रति बढ़ती जागरूकता ने स्वच्छ हवा, शुद्ध जल और टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की मांगें पैदा की हैं। ये दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक आक्रोश के भाव को अभिव्यक्त करते हैं और वे समस्त मानव समुदाय हेतु अधिकारों के प्रयोग और विस्तार के लिए एकजुट होने का आह्वान करते हैं।

प्रश्न 19.
क्या कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा किया जा सकता है?
उत्तर:
मानवाधिकारों की सफलता बहुत कुछ सरकारों और कानून के समर्थन पर निर्भर करती है। इसी कारण अधिकारों की कानूनी मान्यता को इतना महत्त्व दिया गया है। और इस महत्त्व को देखते हुए कुछ विद्वानों ने ‘अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित किया है, जिन्हें राज्य मान्यता दे। ‘ कानूनी मान्यता से यद्यपि हमारे अधिकारों को समाज में एक दर्जा मिलता है; तथापि कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता ।

प्रश्न 20.
अधिकारों के चार प्रमुख लक्षण लिखिये।
उत्तर:
अधिकारों के चार प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।

  1. अधिकार एक विवेकसंगत और न्यायसंगत दावा है अधिकार समाज में कुछ कार्य करने के लिए मनुष्य या मनुष्य समूह द्वारा किया गया वह विवेकसंगत और न्यायसंगत दावा है जिसे समाज द्वारा अधिकार के रूप में मान्य किया जाता है।
  2. अधिकार केवल समाज में ही संभव है-अधिकार केवल समाज में ही संभव है। समाज से बाहर कोई अधिकार संभव नहीं है।
  3. अधिकार समाज द्वारा प्रदत्त- मनुष्य का कोई दावा या माँग तभी अधिकार बनता है जब उसे समाज मान्यता प्रदान कर देता है। समाज की स्वीकृति के बिना कोई माँग (दावा) अधिकार का रूप नहीं ले सकती।
  4. अधिकार में सबका हित निहित है-समाज व्यक्ति के किसी दावे को सामाजिक हित की दृष्टि से ही स्वीकार कर उसे अधिकार का रूप प्रदान करता है। अतः प्रत्येक अधिकार में समाज का हित निहित होता है।

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प्रश्न 21.
आधुनिक राज्य अपने नागिरकों को कौन-कौनसे राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं?
उत्तर:
आधुनिक राज्य अपने नागरिकों को निम्न राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं।

  1. मत देने का अधिकार: आधुनिक प्रजातांत्रिक राज्यों में अपने नागिरकों को वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है जिसके माध्यम से वे अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करते हैं और उन प्रतिनिधियों द्वारा शासन-कार्य किया जाता है।
  2. निर्वाचित होने का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य सभी नागरिकों को कुछ निश्चित अर्हताएँ पूरी करने के बाद निर्वाचित होने का अधिकार प्रदान करते हैं। इसी अधिकार के माध्यम से व्यक्ति देश की उन्नति में सक्रिय रूप से भाग ले सकता है।
  3. सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार: आधुनिक राज्य अपने नागरिकों को योग्यता के आधार पर सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करते हैं।
  4. राजनैतिक दल बनाने व उसका सदस्य बनने का अधिकार: आधुनिक उदारवादी लोकतांत्रिक राज्य अपने नागिरकों को राजनैतिक दल बनाने या किसी राजनैतिक दल का सदस्य बनने का अधिकार भी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 22.
राजनीतिक अधिकारों की दो विशेषताएँ बताइये तथा प्रमुख राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिये हैं।
उत्तर:
राजनीतिक अधिकारों की विशेषताएँ।

  1. राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते
  2. राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं।
  3. राजनीतिक अधिकार व नागरिक स्वतंत्रताएँ मिलकर लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव का निर्माण करते हैं।

प्रमुख राजनैतिक अधिकार: प्रमुख राजनैतिक अधिकार तथा नागरिक स्वतंत्रताएँ ये हैं-मत देने तथा प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने का अधिकार । प्रमुख नागरिक स्वतंत्रताएँ हैं। विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच का अधिकार, प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार।

प्रश्न 23.
आर्थिक अधिकार किसे कहते हैं? लोकतांत्रिक देश आर्थिक अधिकारों को किस तरह से मुहैया करा रहे हैं?
उत्तर:
आर्थिक अधिकार: आर्थिक अधिकार वे अधिकार हैं जिनके द्वारा व्यक्ति भोजन, वस्त्र, आवास तथा स्वास्थ्य जैसी अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करते हैं। इन बुनियादी जरूरतों को पूरा किये बिना राजनीतिक अधिकारों का कोई मूल्य नहीं है। करते हैं। लोकतांत्रिक समाज विभिन्न तरीकों से लोगों की इन आवश्यकताओं व अधिकारों को पूरा कर रहे हैं। यथा

  1. कुछ देशों में नागरिक, खासकर निम्न आय वाले नागरिक, आवास और चिकित्सा जैसी सुविधाएँ राज्य से प्राप्त।
  2. कुछ अन्य देशों में बेरोजगार व्यक्ति कुछ न्यूनतम भत्ता पाते हैं; ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें।
  3. भारत में सरकार ने अन्य कार्यवाहियों के साथ-साथ ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरूआत की है।

प्रश्न 24.
अधिकार हमारे ऊपर क्या जिम्मेदारियाँ डालते हैं?
उत्तर:
अधिकार हम सब पर निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ डालतें हैं।

  1. अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी निजी जरूरतों और हितों की ही न सोचें, बल्कि कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए हितकर हैं।
  2. अधिकार मुझसे यह अपेक्षा करते हैं कि मैं अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करूँ।
  3. टकराव की स्थिति में हमें अपने अधिकारों को संतुलित करना होता है।
  4. नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के बारे में सतर्क तथा जागरूक रहना चाहिए।

प्रश्न 25.
नागरिक अधिकार तथा राजनीतिक अधिकार में अन्तर बताइये प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
नागरिक अधिकार: नागरिक अधिकार वे अधिकार हैं जो कि व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता से संबंधित हैं वे व्यक्ति के सामाजिक विकास या समाज से व्यक्ति के सम्बन्धों से भी संबंधित होते हैं। ये मूलभूत तथा आवश्यक अधिकार हैं तथा गैर-लोकतांत्रिक राज्यों में भी ये नागरिकों को प्राप्त होते हैं। नागरिक अधिकारों के उदाहरण हैं। जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच का अधिकार तथा प्रतिवाद करने तथा असहमति व्यक्त करने का अधिकार आदि।

राजनीतिक अधिकार: राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। ये अधिकार सामान्यतः लोकतांत्रिक राज्यों में ही नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं। राजनीतिक अधिकारों के उदाहरण हैं- मत देने का अधिकार, प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, राजनैतिक दल बनाने का अधिकार आदि।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अधिकार हमारे ऊपर क्या जिम्मेदारियाँ डालते हैं? उदाहरण सहित विवेचन कीजिये।
उत्तर:
अधिकार और जिम्मेदारियाँ
अधिकार न केवल राज्य पर यह जिम्मेदारी डालते हैं कि वह खास तरीके से काम करे, बल्कि हम सब पर भी यह जिम्मेदारी डालते हैं। इनका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

1. सबके हित सम्बन्धी चीजों की रक्षा करना:
अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी निजी जरूरतों और हितों की ही न सोचें, बल्कि कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए हितकर हैं। उदाहरण के लिए, ओजोन परत की हिफाजत करना, वायु और जल प्रदूषण कम से कम करना, नए वृक्ष लगाकर और जंगलों की कटाई रोक कर हरियाली बरकरार रखना, पारिस्थितिकीय संतुलन कायम रखना आदि ऐसी चीजें हैं, जो हम सबके लिए अनिवार्य हैं। ये सबके हित की बातें हैं, जिनका पालन हमें अपनी और भावी पीढ़ियों की हिफाजत की दृष्टि से अवश्य करना चाहिए।

2. अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करना:
अधिकार यह अपेक्षा करते हैं कि मैं अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करूँ अगर मैं यह कहता हूँ कि मुझे अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार मिलना ही चाहिए तो मुझे दूसरों को भी यही अधिकार देना होगा। अगर मैं अपनी पसंद के कपड़े पहनने में, संगीत सुनने में दूसरों का हस्तक्षेप नहीं चाहता, तो मुझे भी दूसरों की पसंदगी में दखलंदाजी से बचना होगा। मेरे अधिकार में मेरा यह कर्त्तव्य निहित है कि मैं दूसरों को इसी तरह के अधिकार का उपभोग करने दूँ।

अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए मैं दूसरों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता। मैं स्वतंत्र भाषण देने के अधिकार का प्रयोग अपने पड़ोसी की हत्या के लिए भीड़ को उकसाने के लिए नहीं कर सकता। इससे उसके जीवन के अधिकार में बाधा पहुँचेगी और मेरा यह दायित्व है कि मैं अपने अधिकार का प्रयोग अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करते हुए ही कर सकता हूँ। दूसरे शब्दों में, मेरे अधिकार सबके लिए बराबर और एक ही अधिकार के सिद्धान्त से सीमाबद्ध हैं।

3. टकराव की स्थिति में अपने अधिकारों को संतुलित करना:
मेरे अधिकार में ही मेरा यह दायित्व निहित है कि टकराव की स्थिति में मैं अपने अधिकारों को संतुलित करूँ। उदाहरण के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मेरा अधिकार मुझे तस्वीर लेने की अनुमति देता है, लेकिन अगर मैं अपने घर में नहाते हुए किसी व्यक्ति की उसकी इजाजत के बिना तस्वीर ले लूँ और उसे इंटरनेट पर डाल दूँ, तो यह उसकी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसलिए मुझे मेरे अधिकार को उस स्थिति में सीमित कर लेना चाहिए जब वह किसी दूसरे के अधिकार में दखलंदाजी करता हो।

4. अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के प्रति जागरूक रहना:
नागरिकों का यह दायित्व है कि वे अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के प्रति जागरूक रहें। आजकल कई सरकारें राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों की स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगा रही हैं। नागरिकों के अधिकारों और भलाई की रक्षा के लिए जरूरी मान कर राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन किया जा सकता है। लेकिन किसी बिंदु पर सुरक्षा के लिए आवश्यक मान कर थोपे गए प्रतिबंध अपने आप में लोगों के अधिकारों के लिए खतरा बन जायें तो ? क्या उसे लोगों की चिट्ठियाँ देखने या फोन टेप करने की इजाजत दी जा सकती है? क्या सच कबूल करवाने के लिए उसे यातना का सहारा लेने दिया जाना चाहिए?

ऐसी स्थितियों में यह प्रश्न उठता है कि संबद्ध व्यक्ति समाज के लिए खतरा तो नहीं पैदा कर रहा है? गिरफ्तार लोगों को भी कानूनी सलाह की इजाजत या न्यायालय के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिए। इसलिए लोगों की नागरिक स्वतंत्रता में कटौती करते समय हमें अत्यन्त सावधान होने की आवश्यकता है क्योंकि इनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। सरकारें निरंकुश हो सकती हैं, वे लोगों के कल्याण की जड़ खोद सकती हैं। इसलिए हमें अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने में सतर्क तथा जागरूक रहना चाहिए क्योंकि यह जागरूकता ही लोकतांत्रिक समाज की नींव का निर्माण करती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 2.
अधिकार किसे कहते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकार का अर्थ तथा परिभाषा: व्यक्ति की उन मांगों को अधिकार कहते हैं जो उसने अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समाज के समक्ष रखीं और समाज ने उन्हें समाज के हित की दृष्टि से उचित मानते हुए मान्यता दे दी। कुछ विद्वान अधिकारों के लिए सामाजिक मान्यता के साथ-साथ राज्य की मान्यता को भी आवश्यक मानते हैं। क्योंकि अधिकारों की सफलता के लिए राज्य का संरक्षण अर्थात् कानूनी संरक्षण अति आवश्यक है।

इसलिए वे अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें राज्य ने मान्य किया हो। लेकिन कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता। कभी-कभी राज्य द्वारा असंरक्षित लेकिन समाज द्वारा मान्य मांगें भी अधिकार कहलाती हैं। जैसे काम पाने का अधिकार राज्य ने भले ही स्वीकार न किया हो, परन्तु समाज द्वारा मान्य होने पर वह अधिकार कहलायेगा। है।” अधिकार की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. बोसांके के अनुसार, “एक अधिकार समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तथा राज्य द्वारा प्रवर्तित व्यक्ति का एक दावा
  2. लास्की के अनुसार, ” अधिकार सामाजिक जीवन की वे दशाएँ हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का सर्वोत्तम विकास नहीं कर सकता।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अधिकारों का अर्थ उन सुविधाओं, स्वतंत्रताओं तथा अवसरों का होना है जो कि एक व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक हैं तथा जो समाज द्वारा मान्य तथा राज्य द्वारा संरक्षित हैं।

अधिकारों की विशेषताएँ अधिकारों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई जा सकती हैं।
1. अधिकार एक दावा है:
अधिकार समाज में कुछ कार्य करने के लिए मनुष्य या मनुष्य समूह द्वारा किया गया एक दावा है। यह दावा समाज के प्रति किया जाता है। मनुष्य समाज के समक्ष अपनी आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपनी मांगें प्रस्तुत करता है।

2. अधिकार केवल समाज में ही संभव हैं: समाज से बाहर कोई अधिकार संभव नहीं है। अधिकार केवल समाज में ही संभव हैं।

3. अधिकार समाज द्वारा प्रदत्त होते हैं: मनुष्य की कोई मांग या दावा तभी अधिकार बनता है जब उसे समाज मान्यता प्रदान कर देता है। कोई दावा या मांग जो समाज द्वारा स्वीकृत नहीं की जाती है, अधिकार नहीं बन सकती।

4. अधिकार विवेकसंगत और न्यायसंगत दावा है:
व्यक्ति का केवल वही दावा समाज द्वारा अधिकार के रूप में मान्य होता है जो न्यायसंगत तथा विवेकसंगत होता है। यदि समाज इस बात से सहमत हो जाता है कि व्यक्ति द्वारा किया गया दावा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा समाज के हित के लिए आवश्यक हैं या समाज के लिए हानिकारक नहीं है, तभी समाज उस दावे को अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान करता है। कोई भी अन्यायपरक तथा अविवेकीय दावा समाज द्वारा अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता।

5. अधिकार में सबका हित निहित है:
अधिकार में सबका कल्याण निहित है। समाज किसी दावे को सबके हित की दृष्टि से ही स्वीकार करता है और अधिकार का उपभोग समाज के हित में ही करना होता है। ऐसा कोई भी अधिकार व्यक्ति को प्रदान नहीं किया जा सकता जो कि समाज के लिए हानिकारक हो या लोगों के कल्याण के विरुद्ध हो । एक अधिकार का उपभोग सामाजिक हित पर प्रतिबन्ध लगाकर नहीं किया जा सकता।

6. अधिकार सीमित हैं:
समाज में किसी व्यक्ति को निरपेक्ष अधिकार (Absolute right) नहीं दिया जा सकता। उस पर युक्तियुक्त सीमाएँ समाज के हित में हमेशा लगी होती हैं। किसी व्यक्ति को अधिकारों के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती। किसी व्यक्ति को यह अनुमति भी नहीं दी जा सकती कि वह अपने अधिकार का उपभोग करने में दूसरों को हानि पहुँचाये।

7. अधिकार सबको समान रूप से प्रदान किये जाते हैं:
अधिकार सार्वभौमिक हैं तथा वे समाज के सभी लोगों को समानता के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। जो स्वतंत्रताएँ एक को प्रदान की जाती हैं, वे ही स्वतंत्रताएँ अन्य लोगों को भी प्रदान की जाती हैं। अधिकारों के प्रदान करने में जाति, रंग, वंश, जन्म तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।

8. अधिकार विकासशील हैं:
अधिकार हमेशा के लिए समान रूप में नहीं रहते। वे देश, काल और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं। समाज व्यक्ति के दावों को लोगों के विचार, समय और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुरूप मान्यता प्रदान करता है। इसलिए अधिकारों की कोई निश्चित और स्थायी सूची नहीं बनाई जा सकती है। विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नयी चुनौतियाँ तथा आवश्यकताएँ उभरती हैं, त्यों-त्यों उनका सामना करने के लिए लोगों द्वारा समाज के समक्ष नये दावे प्रस्तुत किये जाते हैं। इस प्रकार अधिकारों की सूची वर्तमान काल में निरन्तर बढ़ती जा रही है।

9. अधिकारों में कर्त्तव्य निहित हैं:
अधिकार और कर्त्तव्य एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रत्येक मेरे अधिकार में मेरा कर्त्तव्य भी निहित है, उसके प्रति अन्य लोगों के कर्त्तव्य तथा राज्य के कर्त्तव्य भी निहित हैं।

10. अधिकार राज्य द्वारा संरक्षित हैं:
एक अधिकार तभी सफल हो सकता है जब राज्य के कानूनों द्वारा उसकी सुरक्षा की जाये। अधिकारों की सफलता में राज्य व उसके कानून के महत्त्व को देखते हुए यह भी कहा जाता है कि एक अधिकार वह दावा है जिसे राज्य संरक्षित करे तथा लागू करे। राज्य ही अधिकारों को मान्यता देता है, परिभाषित करता है, लागू करता है तथा उनकी सुरक्षा करता है। राज्य उन व्यक्तियों को दंडित करता है जो दूसरों के अधिकारों के विरुद्ध कार्य करते हैं। राज्य के बाहर अधिकारों का प्रवर्तन संभव नहीं है। अतः स्पष्ट है कि अधिकार वे सुविधाएँ, स्वतंत्रताएँ और अवसर हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा समाज हित के लिए समाज द्वारा व्यक्ति को प्रदान किये गए हैं तथा वे राज्य द्वारा संरक्षित हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 3.
अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए उसके विभिन्न स्वरूपों/प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा: अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा के लिए पूर्व प्रश्न का उत्तर देखें । अधिकार के विभिन्न स्वरूप ( प्रकार ) अधिकार के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।
1. राजनैतिक तथा नागरिक अधिकार:
अधिकांशतः लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनैतिक अधिकारों का घोषणा- पत्र बनाने से अपनी शुरुआत करती हैं। राजनैतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। इनमें वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने जैसे अधिकार शामिल हैं। राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं या नागरिक अधिकारों से जुड़े होते हैं। नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ है। स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार। इस प्रकार नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकार मिलकर किसी सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियाद का निर्माण करते हैं।

2. आर्थिक अधिकार:
राजनीतिक भागीदारी का अपना अधिकार पूरी तरह से हम तभी अमल में ला सकते हैं जब भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य जैसी हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी हों। इसीलिये लोकतांत्रिक समाज इन दायित्वों को स्वीकार कर रहे हैं और आर्थिक अधिकार मुहैया कर रहे हैं। कुछ देशों में नागरिक, खासकर निम्न आय वाले नागरिक, आवास और चिकित्सा जैसी सुविधायें राज्य से प्राप्त करते हैं। कुछ अन्य देशों में बेरोजगार व्यक्ति कुछ न्यूनतम भत्ता पाते हैं, ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें। भारत में, सरकार ने ग्रामीण और शहरी गरीबों की मदद के लिये अन्य कार्यवाहियों के साथ हाल में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरूआत की है।

3. सांस्कृतिक अधिकार:
अधिकाधिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के साथ नागरिकों के सांस्कृतिक दावों को भी मान्यता दे रही हैं। अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिये संस्थाएँ बनाने के अधिकार को बेहतर जिन्दगी जीने के लिये आवश्यक माना जा। इस प्रकार लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है रहा है।

4. बुनियादी अधिकार:
कुछ मूल अधिकार जैसे- जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समान व्यवहार का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार, ऐसे बुनियादी अधिकार के रूप में मान्य हैं, जिन्हें प्राथमिकता देनी ही है।