JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

(क) बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. धरातल पर वायुदाब 1000 मिलीबार है। धरातल से 1 कि० मी० की ऊंचाई पर वायुदाब क्या होगा?
(A) 700 मिलीबार
(B) 900 मिलीबार
(C) 1,100 मिलीबार
(D) 1,300 मिलीबार।
उत्तर:
(B) 900 मिलीबार।

2. अन्तःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहां होता है?
(A) भूमध्य रेखा के निकट
(B) कर्क रेखा के निकट
(C) मकर रेखा के निकट
(D) आर्कटिक वृत्त के निकट।
उत्तर:
(A) भूमध्य रेखा के निकट।

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3. उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(A) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(C) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(D) समदाब रेखाओं के समानान्तर।
उत्तर:
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत।

4. किस वातान के आने पर मेघों का क्रम पक्षाभ मेघ से स्तरी मेघ होता है?
(A) अधिविष्ट वाताग्र
(B) शीत वाताग्र
(C) उष्ण वाताग्र
(D) अचर वाताग्र।
उत्तर:
(C) उष्ण वाताग्र।

5. वायुराशियों के निर्माण के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-से हैं?
(A) भूमध्यरेखीय वन
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग
(C) हिमालय पर्वत
(D) दक्खन पठार।
उत्तर:
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग।

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6. समुद्र तल पर वायु दाब कितना पाया जाता है?
(A) 1010 मिलीबार
(B) 1011 मिलीबार
(C) 1013 मिलीबार
(D) 1012 मिलीबार।
उत्तर:
(C) 1013 मिलीबार।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिएप्रश्न
1. पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताओ।
उत्तर:
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले बल-वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है, जो पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। अतः पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं।

  1. दाब प्रवणता प्रभाव,
  2. घर्षण बल,
  3. तथा कोरिऑलिस बल।

इसके अतिरिक्त, गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।
1. दाब-प्रवणता बल:
वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहाँ समदाब रेखाएँ पास-पास हों, वहाँ दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।

2. घर्षण बल:
यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि०मी० ऊँचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है।
3. कोरिऑलिस बल
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। सन् 1844 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इस बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित (deflect) हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है, तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और भूमध्यरेखा पर अनुपस्थित है।

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प्रश्न 2.
उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) से क्या अभिप्राय है? हेडले कोष्ठ तथा फैरल कोष्ठ में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
ऊष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र-उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब होने से अन्तः- उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्णकटिबन्धों से आने वाली पवनें इस निम्न दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। अभिसरित वायु संवहन कोष्ठों के साथ ऊपर उठती हैं। यह क्षोभमण्डल के ऊपर 14 किमी० की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती हैं और फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती हैं। इसके परिणामस्वरूप लगभग 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है। इस एकत्रित वायु का अवतलन होता है और यह उपोष्ण उच्चदाब बनाता है।

अवतलन का एक कारण यह है कि जब वायु 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश पर पहुंचती है तो यह ठंडी हो जाती है। धरातल के निकट वायु का अपसरण होता है और यह भूमध्यरेखा की ओर पूर्वी पवनों के रूप में बहती है। भूमध्यरेखा के दोनों तरफ से प्रवाहित होने वाली पूर्वी पवनें अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (ITCZ) पर मिलती हैं। पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ (Cell) कहते हैं। उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठ को हेडले कोष्ठ (Hadley cell) कहा जाता है।

मध्य अक्षांशीय वायु परिसंचरण में ध्रुवों से प्रवाहित होती ठण्डी पवनों का अवतलन होता है और उपोष्ण उच्चदाब कटिबन्धीय क्षेत्रों से आती गर्म हवा ऊपर उठती है। धरातल पर ये पवनें पछुआ पवनों के नाम से जानी जाती हैं और यह कोष्ठ फैरल कोष्ठ के नाम से जाने जाते हैं। ध्रुवीय अक्षांशों पर ठण्डी सघन वायु का ध्रुवों पर अवतलन होता है और मध्य अक्षांशों की ओर ध्रुवीय पवनों के रूप में प्रवाहित होती हैं। इस कोष्ठ को ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है। ये तीन कोष्ठ वायमण्डल के सामान्य परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं। तापीय ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों में स्थानान्तर सामान्य परिसंचरण को बनाये रखता है।

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प्रश्न 3.
भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर-पृथ्वी की सतह से 2-3 कि०मी० की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमण्डल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं और दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल | से नियन्त्रित होतो हैं । जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो, तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से सन्तुलित हो जाता है और फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं। ये पवनें भूविक्षेपी (Geostrophic) पवनों के नाम से जानी जाती हैं।
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निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएं।
उत्तर:
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले बल-वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है, जो पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। अतः पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं

  1. दाब प्रवणता प्रभाव,
  2. घर्षण बल,
  3. तथा कोरिऑलिस बल।

इसके अतिरिक्त, गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।
1. दाब-प्रवणता बल:
वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहां समदाब रेखाएं पास-पास हों, वहां दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।

2. घर्षण बल:
यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि०मी० ऊंचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है।

3. कोरिऑलिस बल:
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। सन् 1844 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इस बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित (deflect) हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है, तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और भूमध्य रेखा पर अनुपस्थित है।

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प्रश्न 2.
पृथ्वी पर वायु मण्डलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करो। 30° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दाब के कारण बताओ।।
उत्तर:
वायु दबाव की नक्षत्रीय बांट-पृथ्वी पर वायु दबाव की बांट सरल तथा लगातार नहीं है। कई कारणों से बाधाएं तथा विभिन्नताएं उत्पन्न हो जाती हैं। “धरातल पर पूर्व-पश्चिम दिशा में अक्षांशों के समानान्तर लगभग एक ही चौड़ाई के बराबर क्षेत्रों को वायु दबाव की पेटियां (Pressure Belts) कहा जाता है।” धरातल पर वायु दाब की कुल 7 पेटियां हैं। धरातल पर उच्च वायु दबाव (High Pressure) की चार पेटियां तीन निम्न वायु दबाव (Low Pressure) पेटियों को अलग-अलग करती हैं

1. भूमध्य रेखीय निम्न वायु दबाव पेटी (Equatorial Low Pressure Belt):
यह कम वायु दबाव पेटी भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° उत्तर तथा 5° दक्षिण अक्षांश तक फैली हुई है। इस खण्ड में सारा वर्ष अधिक गर्मी के कारण हवा गर्म होकर संवाहिक धाराओं (Convectional Currents) के रूप में ऊपर उठती रहती है। इस प्रकार वायु दबाव कम हो जाता है। एक शान्त मण्डल (Belt of Calms) स्थापित हो जाता है जिसे डोल ड्रमस् (Dol Drums) भी कहते हैं।

2. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दबाव पेटियां (Sub-tropical High Pressure Belts):
कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट 30°_35° अक्षांशों के बीच दो उच्च वायु दबाव पेटियां पाई जाती हैं। इस प्रकार यहां भूमध्य रेखा से आने वाली पवनें नीचे उतरती हैं, इन नीचे उतरती हुई पवनों (Descending Winds) के कारण उच्च दबाव (High Pressure) स्थापित हो जाता है तथा एक शान्त मण्डल बन जाता है। इन्हें अश्व अक्षांश (Horse Latitudes) भी कहते हैं।
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3. उप-ध्रुवीय कम वायु दबाव पेटियां (Sub-polar Low Pressure Belts):
यह कम दबाव की पेटियां 60° से 65° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के बीच स्थित हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इन्हें Arctic Low तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इन्हें Antarctic Low कहते हैं। स्थिति के कारण इन्हें शीतोष्ण निम्न वायु दबाव (Temperate Low) भी कहते हैं। इस कम वायु दबाव के कई कारण हैं

(i) दैनिक गति (Rotation): पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों को वायु भूमध्य रेखा की ओर खिसक जाती है। ध्रुवों पर अधिक सर्दी के कारण कम दबाव उच्च दबाव में बदल जाता है तथा ध्रुवों से कुछ दूरी पर 60° के निकट कम वायु दबाव हो जाता है।

(ii) चक्रवात (Cyclones): ध्रुवों से आने वाली वायु पृथ्वी के तल के साथ रगड़ खा कर बहुत बड़े चक्रवातों का रूप धारण कर लेती है। यह चक्रवात भी कम वायु भार के केन्द्र (Low pressure cells) बन जाते हैं।

(iii) समुद्री धाराएं (Ocean Currents): गर्म समुद्री धाराओं के कारण कम वायु दाब होता है।

(iv) वायुमण्डल की मोटाई भी बहुत कम होती है।

4. ध्रुवीय उच्च दबाव पेटियां (Polar High Pressure Belts): उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव पर लगातार अधिक सर्दी तथा स्थायी बर्फ के कारण उच्च वायु भार होता है। दक्षिणी ध्रुव पर Antarctic महाद्वीप के कारण अधिक दबाव होता है, परन्तु उत्तरी ध्रुव पर Arctic महासागर होने के कारण इतना अधिक दबाव नहीं होता।

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प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के किस भाग में मूसलाधार वर्षा तथा उच्च वेग की पवनें चलती हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
1. स्थिति (Location):
ये चक्रवात भूमध्य रेखा के दोनों ओर उष्ण कटिबन्ध में चलते हैं इसलिए इन्हें उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहा जाता है। इनका क्षेत्र व्यापारिक पवनों की पेटी में 5°—20° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के मध्य होता है।

2. उत्पत्ति (Origin):
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का विकास तापीय (Thermal) है।

  • इनकी निम्नलिखित मुख्य विशेषताओं से इनकी उत्पत्ति का पता चलता है
    1. ये ग्रीष्म काल में पाए जाते हैं।
    2. ये पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं।
    3. इनका क्षेत्र 5°- 20° अक्षांश तक है।
    4. इनका विस्तार सामान्य महासागरों पर होता है।
  • उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर इनकी उत्पत्ति अग्रलिखित अवस्थाओं में होती है
    1. शान्त वायु (Calm Air)
    2. संतृप्त वायु मण्डल (Saturated Atmosphere)
    3. उच्च ताप (Abundant Heat)
    4. संवहनीय धाराएं (Convection Currents)

कुछ विद्वानों के अनुसार दो विभिन्न प्रकार की वायु राशियों के मिलने से एक गर्त (Depression) का निर्माण होता है। ये वायु राशियां एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। ये चक्रवात भूमध्य रेखीय अभिसरण क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं। वायु मण्डलीय आर्द्रता की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) इनके विकास में सहायक होती हैं। स्थानीय संवहनीय धाराओं के कारण इनका विकास होता है। अभिसरण क्षेत्र के उत्तर-दक्षिण खिसकने से पूर्वी पवनों की व्यवस्था एक चक्रीय रूप धारण करके उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बन जाती है। पृथ्वी की परिभ्रमण (Rotation) के कारण वायु समूह बिखर जाते हैं तथा चक्रीय अवस्था में गोलाकार हो जाते हैं।
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3. आकार तथा विस्तार (Shape and Size): ये चक्रवात आकार एवं विस्तार में छोटे होते हैं। इनका व्यास लगभग 100 कि०मी० होता है। ये अण्डाकार (ellipitcal) होते हैं। पूर्णतया विकसित चक्रवात का व्यास 1000 कि०मी० तक होता है।

4. गति (Speed): इन चक्रवातों की गति सागरों पर अधिक होती है। स्थल भागों पर प्राकृतिक बाधाओं तथा घर्षण के कारण इनकी गति कम होती है। कहीं-कहीं इनकी गति 150 कि०मी० प्रति घण्टा होती है। यह चक्रवात महासागरों तथा तटों का बहुत प्रलयकारी होते हैं।

5. मार्ग तथा प्रवाह (Track and Movement): ये चक्रवात व्यापारिक पवनों के साथ-साथ पूर्व पश्चिम दिशा में चलते हैं। ये चक्रवात नमी के समाप्त हो जाने पर स्थल के भीतर नहीं पहुंच पाते वरन् तट के निकट ही समाप्त हो जाते हैं। इन चक्रवातों का मार्ग एक वक्राकार होता है। यह मार्ग इस प्रकार है

  1. यह चक्रवात 5° से 15° अक्षांश के मध्य व्यापारिक पवनों के साथ पश्चिम की ओर चलते हैं।
  2. 15° से 30° के मध्य इनका पथ अनिश्चित होता है।
  3. 30 अक्षांश पार करने का इनका पथ पूर्व की ओर होता है।

6. रचना तथा मौसम (Structure and Weather):
इन चक्रवातों के केन्द्र में निम्न वायु दबाव होता है। इस केन्द्र को आंधी की आंख (Eye of Cyclone) कहते हैं। इसकी समभार रेखाएं अण्डाकार होती हैं। दाब प्रवणता तीव्र होने के कारण तेज़ गति से पवनें चलती हैं। इन चक्रवातों के साथ कोई प्रति चक्रवात नहीं होता। केन्द्रीय भाग में संतृप्त मूसलाधार वर्षा करती है। चक्रवात के विभिन्न भागों में मौसम इस प्रकार होता है।

  1. चक्रवात के आगम से पूर्व वायु अशांत हो जाती है तथा पक्षाभ (Cirrus Clouds) छाए रहते हैं।
  2. सूर्य व चन्द्रमा के चारों ओर प्रवाह मण्डल (Halo) उत्पन्न हो जाता है।
  3. चक्रवात के निकट आने पर तीव्र आंधी व गर्ज के साथ भारी वर्षा होती है।

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ JAC Class 11 Geography Notes

→ वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure): वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहां की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार।

→ वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Pressure): वायुमण्डलीय दाब निम्नलिखित तत्त्वों के कारण स्थान-स्थान पर तथा समय-समय पर बदलता रहता है। वे तत्त्व हैं

  • तापमान
  • ऊंचाई
  • जल वाष्प
  • दैनिक गति।

→ वायु दाब का मापक (Measurement of Pressure): वायुदाब को मापने वाले यन्त्र को बैरोमीटर कहते हैं।

→ मापने की इकाइयां (Units of Measurement): वायुमण्डलीय दाब को मापने के लिये तीन इकाइयों का प्रयोग होता है

  • इंच
  • सेंटीमीटर
  • मिलीबार।

→ समदाब रेखाएं (Isobars): Iso शब्द का अर्थ है-सभान और Bar का अर्थ है-दाब। इसलिये Isobars का अर्थ है-समदाब रेखाएं। धरातल पर समान वायु दबाव वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाओं को समदाब | रेखाएं कहते हैं।

→ दाब प्रवणता (Pressure Gradient): समदाब रेखाओं के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। यह दो समदाब रेखाओं पर समकोण बनाती हुई होती है। यह दाब प्रवणता वायु दिशा तथा वायु वेग को प्रदर्शित । करती है। वायुदाब

→ पेटियों का वितरण (Distribution of Pressure Belts): “धरातल पर पूर्व-पश्चिम दिशा में । अक्षांशों के समानान्तर लगभग एक ही चौड़ाई के बराबर क्षेत्रों को वायु दबाव की पेटियां कहा जाता है।” पृथ्वी के धरातल पर कुल सात वायु दबाव पेटियां हैं। चार उच्च दबाव की तथा तीन निम्न दबाव पेटियां हैं

  • भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी-5° उत्तर तथा 5° दक्षिण अक्षांश के मध्य।
  • उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दाब पेटी-30°- 35° अक्षांशों के मध्य।
  • उप-ध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियां- 60° – 65° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य।
  • ध्रुवीय उच्च दाब पेटियां-उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव के आस-पास।

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