JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. मृदा का निर्माण किस क्रिया द्वारा होता है?
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) परिवहन
(D) निक्षेप।
उत्तर:
अपक्षय।

2. मृदा में संयोजन के लिए कौन-सी क्रिया शक्ति नहीं है?
(A) जल
(B) ऊर्जा
(C) पवन
(D) अपरदन।
उत्तर:
अपरदन।

3. मृदा के निर्माण के रूप से महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) जनक पदार्थ
(B) जलवायु
(C) जीव पदार्थ
(D) स्थलाकृति।
उत्तर:
जनक पदार्थ।

4. क्षारीय मृदा का निर्माण किन क्षेत्रों में होता है?
(A) अधिक वर्षा वाले
(B) कम वर्षा वाले
(C) मूसलाधार वर्षा
(D) मरुस्थल में।
उत्तर:
कम वर्षा वाले।

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5. सबसे ऊपरी मृदा स्तर है
(A) अ
(B) ब
(C) स
(D) ओ।
उत्तर:

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. कण
  2. ह्यूमस
  3. खनिज

प्रश्न 2.
मिट्टी में निर्माणकारी सक्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
जलवायु तथा जैव पदार्थ।

प्रश्न 3.
मिट्टी में निर्माणकारी निष्क्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
वनस्पति, मल पदार्थ, भू-आकृति ।

प्रश्न 4.
मिट्टी में पाए जाने वाले वनस्पति अंश को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ह्यूमस।

प्रश्न 5.
मिट्टी के किस संस्तर में ह्यूमस अधिक होता है?
उत्तर:
अ’ संस्तर में ।

प्रश्न 6.
संस्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिट्टी की क्षैतिज परतों को संस्तर कहते हैं।

प्रश्न 7.
मिट्टी के भौतिक गुण बताओ।
उत्तर:

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

प्रश्न 8.
अम्लीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा कम होती है

प्रश्न 9.
क्षारीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा अधिक होती है।

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प्रश्न 10.
अनावरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों को अपरदन द्वारा नंगा करना।

प्रश्न 11.
अनावरण में सहायक दो क्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपरदन तथा अपक्षरण।

प्रश्न 12.
पदार्थों के संचलन में कौन-से दो बल सहायक हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण तथा ढाल।

प्रश्न 13.
पृथ्वी के अन्दर से निकलने वाली ऊर्जा के स्रोत बताओ।
उत्तर:
रेडियोधर्मी क्रियाएँ, घर्षण ज्वारीय घर्षण, पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी उष्मा।

प्रश्न 14.
अनाच्छदन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहिर्जनिक क्रियाओं द्वारा धरातल पर निरावृत करना या आवरण हटाना।

प्रश्न 15.
अपक्षय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपक्षय से अभिप्राय मौसम एवं जलवायु द्वारा यान्त्रिक विखंडन एवं रासायनिक अपघटन की क्रियाएं शामिल हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा तथा इसमें मिले तत्त्व बताओ।
उत्तर:
मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। यह एक धरातलीय पदार्थ है जिसमें स्पष्ट परत पाई जाती है। मिट्टी का निर्माण चट्टानों के पूर्ण तथा वनस्पति के गले – सड़े अंश से बनता है। इसमें कई तत्त्व मिले होते हैं- कण-मिट्टी के कण बारीक होते हैं जो आधार चट्टानों से भौतिक व रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त होते हैं ह्यूमस – यह मिट्टी का उपजाऊ अंश है जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल – सड़ जाने से प्राप्त होता है । खनिज – चट्टानों के अपक्षरण से कई खनिज मिट्टी में मिल जाते हैं, जैसे- लोहा, चूना आदि।

प्रश्न 2.
मिट्टी के भौतिक गुण लिखो।
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में तीन भौतिक गुण होते हैं-

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

ये गुणमिट्टी की आधार चट्टानों पर निर्भर करते हैं। रंग से मिट्टी के निर्माण का ज्ञान होता है। गठन से मिट्टी के कणों का पता चलता है। मिट्टी की संरचना से कणों की व्यवस्था का पता चलता है।

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प्रश्न 3.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material): आधार चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा संगठन मूल पदार्थों के गुणों अनुसार होता है।

प्रश्न 4.
मिट्टी के महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
मिट्टी एक प्राकृतिक सम्पत्ति है। मानव जाति सारे विश्व में मिट्टी पर ही निवास करती है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएं आधारित हैं। मिट्टी कृषि का आधार है जो मानव को भोजन प्रदान करती है। पशुपालन, वन उद्योग मिट्टी पर आधारित हैं। प्राचीन सभ्यताएं नदी घाटियों में उपजाऊ मिट्टी के कारण ही पनप सकीं। मिट्टी मानवीय व्यवसाय का आधार है। जनसंख्या का घनत्व तथा वितरण मिट्टी के उपजाऊपन तथा उत्पादकता पर निर्भर करता है । मिट्टी का मानवीय सभ्यता पर सदैव महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहेगा।

प्रश्न 5.
ह्यूमस क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है? मिट्टी के निर्माण में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ह्यूमस (Humus ):
मिट्टी में पाये जाने वाले मृत जैव पदार्थ को ह्यूमस कहते हैं जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल-सड़ जाने से प्राप्त होता है। वृक्ष, झाड़ियां, घास जैसी वनस्पति तथा जीवाणु इसके निर्माण में सहायक होते हैं। ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु तथा जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। आर्द्र जलवायु में काफ़ी संख्या में जीवाणु होते हैं तथा वे ह्यूमस पर ही जिन्दा रहते हैं, परन्तु ठण्डी जलवायु में कम जीवाणुओं के कारण ह्यूमस मिट्टी में जमा रहता है। ह्यूमस मिट्टी निर्माण तथा मिट्टी के उपजाऊपन पर प्रभाव डालता है। ह्यमस जीवाणुओं को जीवन प्रदान करके उन्हें मिट्टी निर्माण में सहायक बनाता है। ह्यूमस के कारण धरातल तथा मिट्टी का रंग बदल जाता है। ह्यूमस खनिजों के अपक्षरण में सहायक है तथा मिट्टी निर्माण की क्रिया को तेज़ करता है।

प्रश्न 6.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है? मिट्टी के निर्माण में मूल पदार्थों का क्या योगदान है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material):
आधार चट्टानों के भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण से प्राप्त होने पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इस पदार्थ में विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं जो आधार शैलों की रचना करते हैं। मिट्टी निर्माण क्रिया में मूल पदार्थ एक निष्क्रिय (Passive ) घटक है। मूल पदार्थ खनिज ही मिट्टी के निर्माण, भौतिक तथा रासायनिक अपक्षरण पर प्रभाव डालते हैं।

मिट्टी का संघटन (texture) मूल पदार्थ पर ही निर्भर करता है। मूल पदार्थ अधिकतर तलछटी शैलों से ही प्राप्त होते हैं क्योंकि भू-पृष्ठ पर तलछटी शैलों का विस्तार अधिक है। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा अपक्षरण की दर मूल पदार्थों के गुणों के अनुसार होती है। नदी तल जलोढ़ों के अपक्षरण से ही जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 7.
मिट्टी के कौन-से कार्य हैं जिनके लिए संरक्षण की ज़रूरत है?
उत्तर:
मिट्टी एक सम्पदा या संसाधन है। मिट्टी के उपजाऊपन पर कृषि तथा उत्पादकता निर्भर करती है। मिट्टी के नष्ट होने से उत्पादकता कम हो जाती है। उपजाऊ मिट्टी ही देश को खाद्य पदार्थ तथा कच्चे औद्योगिक माल प्रदान करती है। इसलिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेश ही घनी जनसंख्या के प्रदेश होते हैं।

प्रश्न 8.
ध्रुवीय प्रदेशों में पाले द्वारा अपक्षरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पाला (Frost):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है । इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ (Scree) के रूप में जमा हो जाता है । हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है । चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

प्रश्न 9.
ऑक्सीकरण तथा कार्बोनेटीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(a) ऑक्सीकरण (Oxidation ): चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है।

(b) कार्बोनेटीकरण (Carbonation ): जल में विलय कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं। प्रश्न

प्रश्न 10.
आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय मिट्टी में ह्यूमस का अभाव क्यों होता है?
उत्तर:
ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु में जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। ह्यूमस ही जीवाणुओं को जिन्दा रखता है। आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु में जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है। वे इस प्रदेश की मिट्टी में काफी अधिक क्रियाशील होते हैं। ये जीवाणु मिट्टी में से ह्यूमस समाप्त कर देते हैं। इसी कारण इन आर्द्र- ऊष्ण प्रदेशों की मिट्टी में ह्यूमस का अभाव होता है।

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प्रश्न 11.
पृथ्वी पर सम्भाव्यता किस प्रकार स्थिर रखी जा सकती है?
उत्तर:
भू-तल संवेदनशील है। मानव अपने निर्वाह के लिए इस पर निर्भर करता है तथा इसका व्यापक एवं सघन उपयोग करता है। अतः इसके सन्तुलन को बनाए रखते हुए तथा भविष्य के लिए इसकी सम्भाव्यता को कम किए बिना इसके प्रभावकारी उपयोग के लिए इसकी प्रकृति को समझना परमावश्यक है। लगभग सभी जीवों का धरातल के पर्यावरण के अनुवाह में योगदान होता है। मनुष्यों ने संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। हमें इनका उपयोग करना चाहिए, किन्तु भविष्य में जीवन निर्वाह के लिए इसकी पर्याप्त सम्भाव्यता को बचाये रखना चाहिए।

धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लम्बी अवधि (सैकड़ों-हज़ारों- वर्षों) में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरुपयोग एवं कुप्रयोग के कारण इसकी सम्भाव्यता (विभव) में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है। यदि उन प्रक्रियाओं, जिन्होंने धरातल को विभिन्न आकार दिया और अभी दे रही हैं, तथा उन पदार्थों की प्रकृति जिनसे यह निर्मित है, को समझ लिया जाए तो निश्चित रूप से मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव को कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

प्रश्न 12.
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं किन बलों पर निर्भर करती हैं?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं (Physical Weathering Processes): भौतिक या यान्त्रिक अपक्षय- प्रक्रियाएं कुछ अनुप्रयुक्त बलों (Forces) पर निर्भर करती हैं। ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. गुरुत्वाकर्षक बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव एवं अपरूपण प्रतिबल (Shear stress),
  2. तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण (Expansion) बल,
  3. शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियन्त्रित जल का दबाव। इनमें से कई बल धरातल एवं विभिन्न धरातल पदार्थों के अन्दर अनुप्रयुक्त होती हैं जिसका परिणाम शैलों का विभंग (Fracture ) होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने (Release) के कारण होता है। ये प्रक्रियाएं लघु एवं मंद होती हैं परन्तु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रान्ति (Fatigue) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुंचा सकती हैं।

प्रश्न 13.
रेगोलिथ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व की विविध दृश्य – भूमियों का निर्माण मुख्यतः शैलों पर अपक्षय की क्रिया से हुआ है। ‘शैल अपक्षय’ शब्दावली का प्रयोग, रासायनिक अपघटन तथा भौतिक विघटन को बताने के लिए किया जाता है। आधार – शैलों के ऊपर अदृढ़ पदार्थों की एक परत हो सकती है, इसे रेगोलिथ या आवरण- प्रस्तर कहते हैं। रेगोलिथ ऐसी शब्दावली है, जिसका प्रयोग मोटे तौर पर आधार – शैल के ऊपर बिखरे अपेक्षाकृत अदृढ़ अथवा कोमल पदार्थों के किसी भी परत के लिए किया जाता है। जब रेगोलिथ का निर्माण ठीक इसके नीचे स्थित आधार – शैलों के अपघटन तथा विघटन से होता है तब इसे अपशिष्ट रेगोलिथ कहते हैं। नदियों, हिमानियों, पवनों द्वारा परिवहित रेगोलिथ, जिसका निक्षेपण कहीं ओर कर दिया जाता है, परिवहित रेगोलिथ कहलाता है।

प्रश्न 14.
मृदा निर्माण के लिए उत्तरदायी कारकों और उनकी प्रक्रियाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मृदा निर्माण के कारक सभी मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं अपक्षय से जुड़ी हैं। लेकिन कई अन्य कारक अपक्षय के अंतिम उत्पाद को प्रभावित करते हैं। इनमें से पांच प्राथमिक कारक हैं। ये अकेले अथवा सम्मिलित रूप से विभिन्न प्रकार की मृदाओं के विकास के लिए उत्तरदायी हैं।

मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं (Processes of Soil Formation): मृदा निर्माण में अनेक प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं और किसी सीमा तक मृदा परिच्छेदिका को प्रभावित कर सकती हैं। ये प्रक्रियाएं हैं:

  1. अवक्षालन: यह मृत्तिका अथवा अन्य महीन कणों का यांत्रिक विधि से स्थान परिवर्तन है, जिसमें वे मृदा परिच्छेदिका में नीचे ले जाए जाते हैं।
  2. संपोहन: यह मृदा परिच्छेदिका के निचले संस्तरों में ऊपर से बहाकर लाए गए पदार्थों का संचयन है।
  3. केलूवियेशन: यह निक्षालन के समान पदार्थ का नीचे की ओर संचलन है, परन्तु जैविक संकुल यौगिकी के प्रभाव में।
  4. निक्षालन: इसमें घोल रूप में पदार्थों को किसी संस्तर से हटाकर नीचे की ओर ले जाना है।

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प्रश्न 15.
मृदा भौतिक, रासायनिक तथा जैविक क्रियाओं का परिणाम है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
मृदा अपक्षयित एवं अपरदित शैल पदार्थों तथा जैविक अवशेषों के संश्लिष्ट मिश्रण का उत्पाद है। अपक्षय द्वारा संगठित पदार्थ (शैल) असंगठित पदार्थ में बदल जाते हैं। पौधों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के अपघटन से जैविक रसायन (ह्यूमस) मुक्त होते हैं। असंगठित पदार्थों के साथ इनकी अंतः क्रियाएं विभिन्न प्रकार की मृदाओं का निर्माण करती हैं। इन परिवर्तनों में संयोजन, ह्रास, रूपांतरण तथा स्थान परिवर्तन शामिल हैं।

जल ( वर्षा, सिंचाई), जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण, सूर्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा, पवन और जल से प्राप्त अवसाद, लवण एवं जैविक अवशेष संयोजन कार्य करते हैं। ह्रास के कारण हैं: मृदा जल में घुलनशील रसायन, अपरदित छोटे आकार के टुकड़े, पौधों के कटने और चराए जाने से पोषक तत्त्वों को हटाया जाना, जल की हानि, कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन की क्षति तथा नाइट्रोजन की अनाइट्रीकरण से हुई हानि रूपांतरण का कारण अनेक रासायनिक एवं जैविक प्रतिक्रियाएं हैं, जो जैविक पदार्थों को अपघटित करती हैं।

जल तथा जीव मृदा में संचलन करके विभिन्न गहराइयों पर पदार्थों का स्थान परिवर्तन करते हैं। जैविक मृदा का निर्माण पौधों के अपशिष्टों के संचयन से होता है, जो छिछले एवं स्थिर जल के अल्प ऑक्सीजन वाले पर्यावरण द्वारा सुरक्षित रखे जाते हैं। भूपृष्ठ का वह पदार्थ मृदा नहीं है, जो वनस्पति – जीवन को पोषित नहीं करता है, जैसे- पथरीली या चट्टानी भूमि तथा ग्रेट साल्ट लेक का लवणमय धरातल।

प्रश्न 16.
भू-आकृतिक कारक तथा भू-आकृतिक प्रक्रिया में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रकृति के किसी भी बहिर्जनिक तत्त्व (जैसे- जल, हिम, वायु इत्यादि), जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण (Acquire) तथा परिवहन करने में सक्षम है, को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है। जब प्रकृति के ये तत्त्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील हो जाते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं तथा भू-आकृतिक कारक विशेषकर बहिर्जनिक, को यदि स्पष्ट रूप से अलग-अलग न कहा जाए तो इन्हें एक ही समझना होगा क्योंकि ये दोनों एक ही होते हैं।

एक प्रक्रिया एक बल होता है जो धरातल के पदार्थों के साथ अनुप्रयुक्त होने पर प्रभावी हो जाता है। एक कारक (Agent) एक गतिशील माध्यम (जैसे- प्रवाहित जल, हिमनदी, हवा, लहरें एवं धाराएं इत्यादि) है जो धरातल के पदार्थों को हटाता, ले जाता तथा निक्षेपित करता है। इस प्रकार प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमनदी, हवा, लहरों, धाराओं इत्यादि को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है।

प्रश्न 17.
पटल विरूपण से क्या अभिप्राय: है? इसमें कौन-सी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं?
उत्तर:
पटल विरूपण (Diastrophism ): सभी प्रक्रियाएं जो भू-पर्पटी को संचलित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं, पटल विरूपण के अन्तर्गत आती हैं। इनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं

  1. तीक्ष्ण वलयन के माध्यम से पर्वत निर्माण तथा भू-पर्पटी की लम्बी एवं संकीर्ण पट्टियों को प्रभावित करने वाली पर्वतनी (Orogenic) प्रक्रियाएं
  2. धरातल के बड़े भाग के उत्थापन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना सम्बन्धी (Epeirogenic) प्रक्रियाएं,
  3. अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न भूकम्प,
  4. पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका प्लेट विवर्तनिक/पर्वतनी (Orogeny) की प्रक्रिया में भू-पर्पटी वलयन के रूप में तीक्ष्णता से विकृत हो जाती है।

महाद्वीप रचना के कारण साधारण विकृति हो सकती है। पर्वतनी पर्वत निर्माण प्रक्रिया है, जबकि महाद्वीप रचना महाद्वीप निर्माण-प्रक्रिया है। पर्वतनी, महाद्वीप रचना (Epeirogeny), भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिक की प्रक्रियाओं से भू-पर्पटी में भ्रंश तथा विभंग हो सकता है। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापक्रम (PVT) में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तर प्रेरित होता है ।

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प्रश्न 18.
विघटन एवं अपघटन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विघटन – भौतिक प्रक्रिया में विघटन से चट्टानें टूटती हैं। अपघटन: रासायनिक क्रिया में अपघटन के कारण जब चट्टानों पर पानी पड़ता है तो चट्टानें नर्म पड़ने से कमज़ोर हो जाती हैं जिसके कारण ये टूटती हैं।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी तथा शैल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-

मिट्टी (Soil) शैल (Rock)
(1) चट्टानों के अपक्षय तथा जैविक पदार्थों से प्राप्त होने वाले टूटे-फूटे कणों की परत को मिट्टी कहते हैं। (1) शैल प्राकृतिक रूप से ठोस जैव एवं अजैव पदार्थ हैं जो भू-पृष्ठ का निर्माण करते हैं।
(2) मिट्टी के विभिन्न संस्तर होते हैं। (2) शैल के संस्तर नहीं होते।
(3) मिट्टी की गहराई 2-3 मीटर तक सीमित होती है। (3) पृथ्वी के भीतरी भागों तक शैलें पाई जाती हैं।
(4) मिट्टी चट्टानों की टूट-फूट से प्राप्त चूर्ण से बनती है। (4) शैल कई खानिज पदार्थों के मिलने से बनती है।
मिट्टी (Soil) शैल (Rock)

प्रश्न 2.
अपरदन तथा अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

अपरदन (Erosion) अपक्षय (Weathering)
(1) भू-तल पर खुरचने, कांट-छांट तथा मलबे को परिवहन करने के कार्य को अपरदन कहते हैं। (1) इसमें रासायनिक क्रियाओं द्वारा अपघटन से चट्टानें टूटफूट जाती हैं।
(2) अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है। (2) इससे चट्टानों का रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन नहीं होता है।
(3) अपरदन गतिशील कारकों द्वारा जैसे-जल, हिमनदी, वायु आदि से होता है। (3) इस अपक्षय के उदाहरण ऊष्ण प्रदेशों में मिलते हैं।
(4) अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। (4) रासायनिक अपक्षय में कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताओ।
उत्तर:

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
(1) इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानों के विघटन से चट्टानें चूर-चूर हो जाती हैं। (1) चट्टानों के अपघटन तथा विघटन के द्वारा अपने मूल स्थान पर तोड़-फोड़ करने की क्रिया को अपक्षय कहते हैं।
(2) इससे चट्टानों के खनिजों में कोई परिवर्तन नहीं होता। (2) अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है।
(3) यह अपक्षय शुष्क तथा शीत प्रदेशों में अधिक होता है । (3) अपक्षय सूर्यातप, पाला तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
(4) भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला, वर्षा तथा वायु हैं। (4) अपक्षय चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में सहायता करता है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अपक्षय किसे कहते हैं? अपक्षय कितने प्रकार से होता है? गर्म तथा ठण्डे प्रदेशों में होने वाले यांत्रिक अपक्षय की प्रक्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपक्षय (Weathering):
पृथ्वी की बाहरी स्थिर शक्तियों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर विखंडन तथा अपघटन की क्रिया को अपक्षरण कहते हैं। इसमें चट्टानों के टूटने, भरने तथा घुलने की क्रियाएं होती हैं। [“Weathering includes the breaking up of Rocks (disintegration and decomposition) by the elements of weather.”] अपक्षरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  1. चट्टानों की संरचना:  कोमल चट्टानें शीघ्र टूट जाती हैं परन्तु कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।
  2. भूमि का ढाल: तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में अपक्षरण अधिक होती है। चट्टानों का संगठन कमज़ोर हो जाता है।
  3. शैल सन्धि: सन्धियाँ शैलों में जल के घुलने तथा भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण में सहायक होती हैं।
  4. वनस्पति: वनस्पति के ढके धरातल सुरक्षित रहते हैं। परन्तु वनस्पति रहित प्रदेशों में अपक्षरण अधिक होता है।
  5. जलवायु: आर्द्र जलवायु में रासायनिक अपक्षरण तथा शुष्क जलवायु में यान्त्रिक अपक्षरण होता है।

अपक्षरण के रूप (Types of Weathering):
(i) भौतिक अपक्षरण (Physical Weathering): यान्त्रिक साधनों द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-टूट कर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को भौतिक अपक्षरण कहते हैं। इस अपक्षरण से चट्टानों का विघटन ( Disintegration) होता है।

1. सूर्यताप (Temperature ):
सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एक दम गर्म होकर फैलती हैं तथा त को तेज़ी से ठण्डी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने तथा सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें (Cracks) तथा सन्धियां (Joints) पड़ जाती हैं तथा चट्टानें टूटती हैं और चूर-चूर हो जाती हैं। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्यताप द्वारा अपक्षरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  1. मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक तथा शीघ्र अपक्षरण होता है।
  2. काले रंग की चट्टानों पर अधिक अपक्षरण होता है।
  3. पर्वतीय ढलानों तथा मरुस्थलों में अपक्षरण महत्त्वपूर्ण है ।

2. पाला (Frost ):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में जल भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं । यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ Scree के रूप में जमा हो जाता है। हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

3. वर्षा (Rainfall):
वर्षा का जल बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है तथा कई प्रभाव डालता है।
(a) मिट्टी कटाव (Soil Erosion ): ढलान भूमि पर नदी घाटियों से वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले जाता है तथा मिट्टी कटाव की समस्या उत्पन्न होती है।

(b) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land ): मूसलाधार वर्षा के कारण जल नालियां (Gullies) तथा खाइयां (Ravines) बनाकर बंजर व अस्त-व्यस्त धरातल बना देता है, जैसे- भारत में चम्बल घाटी में।

(c) मिट्टी के स्तम्भ ( Earth Pillars ): वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है परन्तु कठोर चट्टान एक टोपी (Cap) का कार्य करती है तथा मिट्टी के स्तम्भ खड़े रहते हैं। जैसे इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमालय के स्पीती (Spiti) प्रदेश में।

(d) भू- फिसलन (Land Slides): वर्षा का जल चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी कर देता है तथा चट्टानें ढलान की ओर फिसल जाती हैं। अधिक वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भू- फिसलन के कारण सड़कें रुक जाती हैं।

4. वायु (Wind):
हवा का अपक्षय मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों या वनस्पति रहित प्रदेशों में होता है। रेत से लदी वायु एक रेगमार (Sand paper) की भांति चट्टानों को चूर-चूर कर देती है।
(a) मरुस्थलों में से गुज़रने वाली रेलगाड़ियों को हर साल रंग (Paint) करना पड़ता है।
(b) टैलीग्राफ की तारें वायु के प्रहार से घिस जाती हैं।
(c) समुद्र तट की ओर साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं जैसे दानेदार शीशे (Frosted glass) हों।
(d) चट्टानों का आकार अद्भुत हो जाता है। जैसे राजस्थान में माऊंट आबू के निकट Toad Rock |

(ii) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering): ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों व रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली पड़ जाती हैं पर अलग-अलग नहीं होतीं। इसे अपघटन (Decomposition) कहते हैं। यह रासायनिक अपक्षय कई प्रकार से होता है।
1. ऑक्सीकरण (Oxidation):
चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है। ऑक्सीजन की कमी के कारण न्यूनीकरण (Reduction) की क्रिया आरम्भ हो जाती है। इस क्रिया से लोहे का लाल रंग हरे या आसमानी धूसर रंग में बदल जाता है।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation ):
जल में विलय कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं।

3. जलयोजन (Hydration):
हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें भीतर ही भीतर पिस कर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Kaolin) का जन्म इसी प्रकार फैल्सपार (Felspar) चट्टानों के अपघटन से हुआ है ।

4. घोलीकरण (Solution ):
पानी कई खनिजों को घुला देता है। यह खनिज घुल कर चट्टानों से बह जाते हैं। जैसे चूना मिट्टी में से घुल कर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटेराइट ( Laterite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

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प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के बृहत्-क्षरण (Mass Wasting) की व्याख्या करो।
उत्तर:
बृहत्-क्षरण (Mass Wasting ):
गुरुत्वाकर्षण बल निरन्तर मृदा, रेगोलिथ तथा आधार – शैलों पर क्रियाशील रहता है। जहां भी धरातल ढलुआ होता है, गुरुत्वाकर्षण बल ढाल से नीचे की ओर पृष्ठ के समानांतर संचलित होता है। प्रत्येक कण ढालों के साथ ऊपर से नीचे लुढ़कने या सरकने की प्रवृत्ति रखता है और ऐसा होता भी है, जब अनुढाल बल घर्षण अधिक हो जाता है। बृहत्-क्षरण के प्रकार (Types of Mass Wasting ): बृहत्-क्षरण के रूप प्रलयकारी अवसर्पण से लेकर जल-संतृप्त मृदा के मंद प्रवाह तक हो सकते हैं। इसके विभिन्न प्रकार हैं:

  1. शैलों का गिरना,
  2. लरज़ कर गिर पड़ना,
  3. स्खलन,
  4. प्रवाह।

1. मृदा सर्पण (Soil Crecp):
पर्वतीय ढालों का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने पर अक्सर इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि मृदा लंबे काल से पर्वत ढाल के सहारे अति मंद गति से नीचे की ओर निरन्तर संचलित हो रही है। इस घटना को मृदा सर्पण कहते हैं। यह अपरूपण का प्रभाव है, जो शैलों में अनगिनत संधि विभागों और संस्तरणों या विदलन पृष्ठों के साथ – साथ वितरित हैं।
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2. मृदा प्रवाह (Earth Flow):
आर्द्र जलवायु वाले पर्वतीय तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जल-संतृप्त मिश्रित मृदा तथा मृत्तिका खनिजों में धनी रेगोलिथ मृदा-प्रवाह का रूप लेते हैं। मृदा प्रवाह एक प्रकार का बृहत्-क्षरण है, जिसमें भूपदार्थ का आचरण सुघट्य ठोस जैसा होता है। वृक्ष विहीन टुंड्रा प्रदेश में मृदा प्रवाह का आर्कटिक प्रकार अंग्रेज़ी में सॉलीफ्लक्शन कहलाता है परन्तु हिन्दी में यह मृदा सर्पण ही कहलाता है।
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3. पंक प्रवाह (Mud Flow):
यदि खनिज पदार्थों के अनुपात में जल की मात्रा अधिक होती है, तो यह बृहत्-क्षरण पंक प्रवाह का रूप ले लेता है। यह नदी मार्गों में तेज़ी के साथ यात्रा करता है। पंक प्रवाह उच्च पर्वतों पर भी उत्पन्न होता है, जहां सर्दियों में एकत्र हिम पिघल कर मृत्तिका समृद्ध अपक्षयित शैल को उठा लेता है।

4. शैल स्खलन (Land Slide ):
सीधे शैल- भृगु के किनारे भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया शैल को अदृढ़ बना देती है। जब गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें नीचे लाता है, तो इसे शैलपात का नाम दिया जाता है। गिरते हुए शैल खंड टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं और ऐसी ढाल का निर्माण करते हैं, जिस पर अदृढ़ पदार्थ बिखरे पड़े रहते हैं, जिन्हें शैल मलबा जुड़े हुए खंडों का संचालन पात क्षेत्र स्तर का नीचे की ओर मुड़ना बाड़, स्मृति पत्थर और तार के स्तम्भों का झुकना टूटी हुई शेष दीवारें मृदा सर्पण क्षेत्र कगार स्खलन आधार शैल क्षेत्र पात कहते हैं। एक शैल खंड का अकेले धरातल पर नीचे लुढ़कना शैल स्खलन कहलाता है। जब कोई अकेला शैल खंड अपने क्षैतिज अक्ष पर पीछे की ओर सर्पिल होकर एक वक्र विभंग’ तल पर लुढ़कता है तो उसे अवसर्पण कहते हैं।
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JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. निम्नलिखित में से कौन-सी शैल आग्नेय शैल है?
(A) कोयला
(B) क्वार्ट्ज़
(C) बेसाल्ट
(D) संगमरमर।
उत्तर:
(C) बेसाल्ट।

2. संगमरमर किस प्रकार की शैल है?
(A) आग्नेय
(B) तलछटी
(C) परिवर्तित
(D) अवसादी।
उत्तर:
(C) परिवर्तित।

3. आग्नेय चट्टानों में निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता है?
(A) परतें
(B) कण
(C) तलछट
(D) रवे।
उत्तर:
(D) रवे।

4. निम्नलिखित में से कौन-सी रूपान्तरित चट्टान है?
(A) संगमरमर
(B) बेसाल्ट
(C) पीट
(D) बलुआ पत्थर।
उत्तर:
(A) संगमरमर।

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5. निम्नलिखित में से कौन-सी चट्टान संगमरमर का मूल रूप है?
(A) बेसाल्ट
(B) ग्रेनाइट
(C) चूने का पत्थर
(D) शैल।
उत्तर:
चूने का पत्थर।

6. भूपर्पटी का निर्माण करने वाले पदार्थों को कहते हैं
(A) चट्टानें
(B) खनिज
(C) धातुएं
(D) लावा।
उत्तर:
(A) चट्टानें।

7. भूपर्पटी के नीचे पाए जाने वाले अत्यन्त गर्म तथा पिघले हुए पदार्थ को कहते हैं
(A) लावा
(B) मैग्मा
(C) रायोलाइट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
मैग्मा।

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8. आग्नेय चट्टानों की रचना होती है
(A) अधिक दबाव से
(B) मैग्मा तथा लावा के ठोस बनने से
(C) टूटे हुए रवों के मिल जाने से
(D) नदियों के निक्षेप से।
उत्तर:
(B) मैग्मा तथा लावा के ठोस बनने से।

9. पहले से बनी चट्टानों के असंगठित तथा टूटे हुए रवों से बनती हैं
(A) अवसादी चट्टानें
(B) जैव चट्टानें
(C) आग्नेय चट्टानें
(D) रूपांतरित चट्टानें।
उत्तर:
अवसादी चट्टानें।

10. निम्नलिखित में से कौन-सी रूपान्तरित चट्टान है?
(A) ग्रेनाइट
(B) ग्रेफाइट
(C) ग्रिट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
ग्रेफाइट।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थलमण्डल में पाये जाने वाझले दो तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर:
सिलिकॉन तथा एल्यूमीनियम।

प्रश्न 2.
चट्टान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थलमण्डल के कठोर खनिज।

प्रश्न 3.
चट्टानों के रंग तथा कठोरता किन तत्त्वों पर निर्भर करते हैं?
उत्तर:
खनिजों की रचना।

प्रश्न 4.
चट्टानों से प्रभावित एक वस्तु का नाम लिखो।
उत्तर:
भू-आकार।

प्रश्न 5.
चट्टानों की तीन मुख्य किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. आग्नेय चट्टानें
  2. अवसादी या तलछटी चट्टानें
  3. रूपांतरित चट्टानें।

प्रश्न 6.
IGNEOUS शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह लेटिन शब्द Ignis से बना है। (अर्थ अग्नि है)।

प्रश्न 7.
लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से क्यों ठण्डा हो जाता है?
उत्तर:
वायुमण्डल के सम्पर्क में होने के कारण।

प्रश्न 8.
बाह्य आग्नेय चट्टान की एक उदाहरण दो।
उत्तर:
बसॉल्ट।

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प्रश्न 9.
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों के दो प्रकार लिखो।
उत्तर:
बाह्य तथा भीतरी चट्टानें।

प्रश्न 10.
उत्पत्ति के आधार पर आग्नेय चट्टानें कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी चट्टानें तथा पातालीय चट्टानें।

प्रश्न 11.
पातालीय शब्द कहां से बना?
उत्तर:
यह शब्द (Pluto) से बना जिसका अर्थ पाताल देवता है।

प्रश्न 12.
बसॉल्ट में रवे क्यों नहीं होते?
उत्तर:
लावा के तेज़ी से ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 13.
पातालीय चट्टानों की एक उदाहरण दें।
उत्तर:
ग्रेनाइट।

प्रश्न 14, ग्रेनाइट में बड़े रवे क्यों होते हैं?
उत्तर:
मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 15.
Sedimentary शब्द किस शब्द से बना है?
उत्तर;
Sadimentum शब्द से, जिसका अर्थ है नीचे बैठना।

प्रश्न 16.
अवसादी चट्टानों के लिये निक्षेप करने वाले कार्यकर्ता बताओ।
उत्तर:
नदी, वायु, ग्लेशियर।

प्रश्न 17.
तलछट को कठोर बनाने में किस तत्त्व का योगदान है?
उत्तर:
सिलिका, कैल्साइट आदि संयोजक पदार्थ।

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प्रश्न 18.
बनावट के आधार पर अवसादी चट्टानों की तीन किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:

  1. यांत्रिक क्रिया द्वारा
  2. रासायनिक क्रिया द्वारा
  3. जैविक क्रिया द्वारा।

प्रश्न 19.
कार्बन प्रधान चट्टान की एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कोयला।

प्रश्न 20.
कोयले की विभिन्न किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:
पीट लिग्नाइट, बिटुमिनस तथा एंथ्रासाइट।

प्रश्न 21.
चूना प्रधान चट्टानों की दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चाक तथा चूने का पत्थर।

प्रश्न 22.
अवसादी चट्टानों में पाये जाने वाले दो फ़ॉसिल ईंधन बताएं।
उत्तर:
कोयला तथा पेट्रोलियम।

प्रश्न 23.
रासायनिक क्रिया द्वारा निर्मित दो चट्टानों के नाम लिखो।
उत्तर:
जिप्सम तथा चट्टानी नमक।

प्रश्न 24.
रूपांतरित शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
रूप में परिवर्तन।

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प्रश्न 25.
चट्टानें अपना रंग तथा रचना क्यों बदल लेती हैं?
उत्तर:
ताप तथा दबाव के कारण।

प्रश्न 26.
चट्टानें कितनी प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
तीन:

  1. अवसादी
  2. आग्नेय
  3. कायान्तरित।

प्रश्न 27.
पैंसिल का सिक्का किस चट्टान से बनता है?
उत्तर:
ग्रेफाइट।

प्रश्न 28.
किन चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें कहा जाता है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानें।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थल मण्डल किसे कहते हैं? स्थल मण्डल की कितनी गहराई तक चट्टानें पाई जाती हैं?
उत्तर:
स्थल मण्डल (Lithosphere) का अर्थ है चट्टानों का परिमण्डल। पृथ्वी की बाहरी ठोस पर्त को भूपर्पटी (Crust) कहते हैं। यह क्षेत्र चट्टानों का बना हुआ है। धरातल से लगभग 16 कि०मी० की गहराई तक स्थल मण्डल में चट्टानें पाई जाती हैं।

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प्रश्न 2.
शैल (Rock) की परिभाषा दो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं। (“Any natural, solid organic or inorganic material out of which the crust is formed is called a Rock.”) शैल ग्रेनाइट की भान्ति कठोर या पंक की भान्ति नरम भी हो सकती है। भू-पृष्ठ शैलों का बना हुआ है। शैल की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। कुछ शैल ऐसे भी हैं जिनमें एक ही प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। खनिज पदार्थों की विभिन्न मात्रा के कारण ही हर शैल की कोमलता या कठोरता, रंग-रूप, गुण व शक्ति अलग-अलग होती है।

प्रश्न 3.
खनिज की परिभाषा दें।
उत्तर:
शैलों की रचना पदार्थों के इकट्ठा होने से होती है। खनिज प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला एक अजैव तत्त्व (Inorganic element) या यौगिक (Compound) है। इसकी एक निश्चित रासायनिक रचना होती है। इसके संघटन में आण्विक संरचना पाई जाती है। इसके भौतिक गुण भी निश्चित होते हैं । अतः खनिज प्रकृति में पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ हैं। ये पदार्थ तत्त्व भी हो सकते हैं और यौगिक भी।

प्रश्न 4.
शैल निर्माणकारी खनिज किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर लगभग 2000 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं, परन्तु इनमें से केवल 12 खनिज ही मुख्य रूप से भू-पृष्ठ की शैलों का निर्माण करते हैं। इन खनिजों को शैल निर्माणकारी खनिज ( Rock forming Minerals) कहते हैं। इन खनिजों में सिलिकेट सब से महत्त्वपूर्ण एवं प्रधान होता है । इन शैलों में सबसे सामान्य खनिज क्वार्टज़ (Quartz) पाया जाता है।

प्रश्न 5.
खनिज कितने तत्त्वों से बनते हैं? मुख्य तत्त्व कौन-से हैं? सिलिका तथा चूने के कार्बोनेट में कौनतत्त्व हैं?
उत्तर:
सामान्य खनिज 8 मुख्य तत्त्वों (Elements) से बनते हैं। इनमें से सिलिकेट, कार्बोनेट, ऑक्साइड तत्त्वों की मात्रा अधिक है। भू-पटल के खनिजों में 87% खनिज सिलिकेट हैं । सिलिका में 2 तत्त्व हैं – सिलिकॉन तथा ऑक्सीजन । चूने के कार्बोनेट में 3 तत्त्व हैं – कैल्शियम, कार्बन, ऑक्सीजन ।

प्रश्न 6.
‘चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं ।’ व्याख्या करें।
उत्तर:
चट्टानें पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। इसमें पाये जाने वाले खनिज तथा इनसे बनी मिट्टी प्राकृतिक वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पतियों के अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति व समय के बारे में जानकारी देते हैं। इसलिये कहा जाता है, ” चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं तथा जीवावशेष उसके अक्षर हैं।” (“Rocks are the pages of Earth History and Fossils are the writing on it.”)

प्रश्न 7.
पृथ्वी की पर्पटी में कौन से प्रमुख तत्त्व हैं?
उत्तर:
पृथ्वी विभिन्न तत्त्वों से बनी हुई है। इनकी बाहरी परत पर ये तत्त्व ठोस रूप में और आंतरिक परत में ये गर्म एवं पिघली हुई अवस्था में पाये जाते हैं। पृथ्वी के सम्पूर्ण पर्पटी का लगभग 98 प्रतिशत भाग आठ तत्त्वों, जैसे ऑक्सीजन, सिलिकान, एल्यूमीनियम, लोहा, कैल्शियम, सोडियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम से बना है तथा शेष भाग टाइटेनियम, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, मैंगनीज, सल्फर, कार्बन, निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है।

सारणी पृथ्वी के पर्पटी के प्रमुख तत्त्व:

पदार्थ वज्रन के अनुसार $(\%)$
1. ऑक्सीजन 46.60
2. सिलिकन 27.72
3. एल्यूमीनियम 8.13
4. लौह 5.00
5. कैल्शियम 3.63
6. सोडियम 2.83
7. पोटैशियम 2.59
8. मैग्नीशियम 2.09
9. अन्य 1.41

प्रश्न 8.
धात्विक तथा अधात्विक खनिजों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
धात्विक खनिज-इनमें धातु तत्त्व होते हैं, तथा इनको तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
(क) बहुमूल्य धातु-स्वर्ण, चांदी, प्लैटिनम आदि।
(ख) लौह धातु-लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलायी जाने वाली अन्य धातुएं।
(ग) अलौहिक धातु-इनमें ताम्र, सीसा, जिंक, टिन, एल्यूमीनियम आदि धातु शामिल होते हैं।
अधात्विक खनिज-इनमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं। गंधक, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज हैं। सीमेंट अधात्विक खनिजों का मिश्रण है।

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प्रश्न 9.
रवों (Crystals) का निर्माण किस तत्त्व पर निर्भर करता है?
उत्तर:
पिघले हुए लावा के ठण्डा होने से रवों का निर्माण होता है । रवों का आकार छोटा या बड़ा हो सकता है। रवों का आकार मैग्मा के शीतलन (rate of cooling of magma) की क्रिया पर निर्भर करता है। धरातल पर शीघ्र ही ठण्डा होने के कारण धरातल पर बनने वाले रवों का आकार छोटा होता है। इनका गठन कांच जैसा होता है, जैसे बेसॉल्ट। मैग्मा के शीतलन की क्रमिक क्रिया से बड़े-बड़े रवों का निर्माण होता है। मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने से पातालीय चट्टानों में बड़े आकार के रवों या मोटे दोनों वाले गठन का निर्माण होता है, जैसे ग्रेनाइट।

प्रश्न 10.
दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) से क्या अभिप्राय है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में बसाल्ट चट्टानों से ढके हुये विशाल क्षेत्र को दक्कन ट्रैप कहते हैं। इस क्षेत्र का विस्तार लगभग 5,00,000 वर्ग कि०मी० है। इन चट्टानों के अपक्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण हुआ है जिसे ‘रेगर’ (Regur) मिट्टी कहते हैं। यह मिट्टी कपास की कृषि के लिये उत्तम है।

प्रश्न 11.
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टान क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानें पृथ्वी पर सबसे प्राचीन चट्टानें हैं। आरम्भ में पृथ्वी पर मूल पदार्थ मैग्मा (Magma) पिघली हुई अवस्था में था। इस मैग्मा के ठण्डा तथा ठोस होने से आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। इस प्रकार पृथ्वी पर सर्वप्रथम बनने के कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary rocks) कहा जाता है। इसके पश्चात् दूसरी चट्टानों का निर्माण आग्नेय चट्टानों से प्राप्त तलछट से हुआ।

प्रश्न 12.
तलछटी चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) सुरक्षित रहते हैं जबकि आग्नेय चट्टानों में नहीं। क्यों?
उत्तर:
जीवावशेष वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के बचे-खुचे भाग होते हैं। तलछटी चट्टानें परतों में पाई जाती हैं। इन परतों के बीच ये जीवावशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति के समय का ज्ञान देते हैं । आग्नेय चट्टानों में पर्ते नहीं पाई जातीं । आग्नेय चट्टानों के निर्माण में गर्म मैग्मा के कारण ये अवशेष झुलस जाते हैं तथा नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
खनिज संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
खनिज संसाधनों को पाँच प्रमुख निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है

  1. लौह धातु-खनिज जिसमें लोहे का अंश होता है। जैसे-लोहा अयस्क, निकल, कोबाल्ट आदि।
  2. अलौह धातु-खनिज जिसमें लौह अयस्क के अलावा धातुएं पाई जाती हैं। जैसे-तांबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट।
  3. बहुमूल्य खनिज-ऐसे खनिज जिनका आर्थिक मूल्य उच्च होता है। जैसे–सोना, चाँदी आदि।
  4. अधात्विक खनिज-यह वे खनिज हैं जिसमें धातुएं नहीं पाई जाती हैं। जैसे-अभ्रक, नमक, पोटाश, सल्फर आदि।
  5. ऊर्जा खनिज-ऐसे खनिज जो ऊर्जा उपलब्ध करवाते हैं। जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
खनिजों का आर्थिक महत्त्व बताओ।
उत्तर:
खनिज संसाधनों को चार प्रमुख वर्गों में बांटा जा सकता है आवश्यक संसाधन, ऊर्जा संसाधन, धातु संसाधन तथा औद्योगिक संसाधन इनमें से सर्वाधिक आधारभूत वर्ग, आवश्यक संसाधन वर्ग है, जिसमें मृदा तथा जल शामिल है। ऊर्जा संसाधन को जीवाश्मी ईंधन (कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयले, शैल तेल तथा तारकोल, बालू) तथा परमाणु ईंधन (यूरेनियम, थोरियम एवं भूतापीय ऊर्जा ) में विभक्त किया जा सकता है धात्विक संसाधनों में, संरचनात्मक धातुओं जैसे लोहा, एल्यूमीनियम एवं टिटैनियम से लेकर अलंकारी एवं औद्योगिक धातुएं जैसे- सोना, प्लैटिनम तथा सैलियम शामिल हैं।

औद्योगिक खनिजों में 30 से अधिक वस्तुएं (पण्य) सम्मिलित हैं जैसे- नमक, एस्बेस्टास तथा बालू खनिज निक्षेपों की दो भू-वैज्ञानिक विशेषताएं हैं जो आधुनिक सभ्यता के लिए चुनौती उपस्थित करती हैं। प्रथम लगभग सभी संसाधन नवीकरण योग्य नहीं हैं। भू-वैज्ञानिक क्रियाएं, जिनके द्वारा इनका निर्माण होता है, बहुत धीरे-धीरे काम करती हैं, जबकि इनके दोहन की दर इससे काफ़ी अधिक है। खनिज निक्षेपों को उनके उपभोग की दर के बराबर पैदा करने की हमारी योग्यता तथा क्षमता होने की कोई संभावना नहीं है। द्वितीय खनिज निक्षेपों की महत्ता स्थानबद्ध है। हम यह निर्धारित नहीं कर सकते कि कहां इनका दोहन किया जाए। प्रकृति हमारे लिए यह निर्णय उसी समय लेती है, जबकि इनका निक्षेपण होता है

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
आग्नेय चट्टानों तथा तलछटी चट्टानों में अन्तर बताओ
उत्तर:

आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks) तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
1. रूप-ये चट्टानें ढेरों (Bulks) में पाई जाती हैं। 1. ये चट्टानें परतों (Layers) में पाई जाती हैं।
2. कारण-इन चट्द्रानों में चपढे तल वाले रवे (Crystals) मिलते हैं। 2. इन चट्टानों में विभिन्न आकार के गोल कण (Particles) मिलते हैं।
3. रचना-ये चट्टानें लावा (Magma) के ठण्डा व ठोस होने से बनती हैं । 3. ये चट्टानें तलछट (Sediments) की परतों के निरन्तर जमाव से बनती हैं।
4. कठोरता-ये चट्यनें कठोर होती हैं। 4. ये चट्टानें नर्म होती हैं।
5. अवशेष-इनमें जीव-अवशेष (Fossils) नहीं पाए जाते । 5. इन चट्टानों में जीव अवशेष सुरक्षित रहते हैं।
6. निर्माण काल-सर्व-प्रथम बनने के कारण इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं। 6. आग्नेय चट्टानों के क्षय के बाद में बनने के कारण इन्हें गौण चट्टानें (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
7. अपरदन-इन चट्टानों पर ॠतु प्रहार कम होता है। 7. ये चट्टानें ऋतु प्रहार से शीघ्र टूट जाती हैं।
8. खण्ड-इनमें जोड़ (Joints) पाए जाते हैं। 8. इनमें जोड़ नहीं पाए जाते।
9. आग्नेय चद्टानें अप्रवेशीय (Imprevious) होती हैं। 9. ये अधिकतर प्रवेशीय (Previous) होती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. इनमें से किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?
(A) बिहार
(B) पश्चिम बंगाल
(C) असम
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(A) बिहार।

2. उत्तराखंड के किस जिले में मालपा भू-स्खलन आपदा घटित हुई थी?
(A) बागेश्वर
(B) चंपावत
(C) अल्मोड़ा
(D) पिथोरागढ़।
उत्तर:
(D) पिथोरागढ़।

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3. इनमें से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
(A) असम
(B) पश्चिम बंगाल
(C) केरल
(D) तमिलनाडु।
उत्तर:
(D) तमिलनाडु।

4. इनमें से किस नदी में मजौली तटीय द्वीप स्थित है?
(A) गंगा
(B) ब्रह्मपुत्र
(C) गोदावरी
(D) सिन्धु।
उत्तर:
(B) ब्रह्मपुत्र।

5. बर्फानी तूफ़ान किस तरह की प्राकृतिक आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) जलीय
(C) भौमिकी
(D) जीव मण्डलीय।
उत्तर:
(A) वायुमण्डलीय।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर:
प्रायः संकट और आपदा दोनों शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे की जगह कर लेते हैं। संकट में प्रायः धन-जन या दोनों के नुकसान की सम्भावना होती है। जब यह घटना तीव्रता से होती है तथा बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि होती है तो इसे आपदा कहते हैं।

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प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी सात राज्यों में तथा हिमालय पर्वत के साथ भूकम्प अधिक आते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि इण्डियन प्लेट प्रति वर्ष एक सें० मी० की गति से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। इसलिए इण्डियन प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट के टकराव के कारण हिमालय पर्वत की चाप के साथ-साथ भूकम्प अधिक आते हैं।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय तूफ़ान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियां अनुकूल हैं?
उत्तर:

  1. उष्ण-आर्द्र वायु का उपलब्ध होना।
  2. कोरियोलिस बल का तीव्र होना।
  3. क्षोभ मण्डल में अस्थिरता।
  4. मज़बूत ऊर्ध्वाधर वायु की अनुपस्थिति।

प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़ पश्चिमी भारत की बाढ़ से अलग क्यों होती है?
उत्तर:
पूर्वी भारत में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहां जल नदियों की क्षमता से अधिक मात्रा में बहता है तथा बाढ़ के रूप में फैल जाता है। पश्चिमी भारत में वर्षा की अचानक तथा अधिक तीव्रता के कारण कई क्षेत्र जल मग्न हो जाते हैं।

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प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
इन क्षेत्रों में वर्षा की अनिश्चितता अधिक है। वर्षा की परिवर्तिता 40% से अधिक है। इसलिए बार-बार लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दोप्रश्न 1.
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा के निवारण के कुछ उपाय बताए।
अथवा
भारत के विभिन्न भू-स्खलन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन-भू-स्खलन द्वारा चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरता है। भू-स्खलन मुख्य रूप से स्थानीय कारणों से उत्पन्न होते हैं। इसलिए भू-स्खलन के बारे में आंकड़े एकत्र करना और इसकी सम्भावना का अनुमान लगाना न सिर्फ मुश्किल अपितु काफ़ी महंगा पड़ता है। प्रमुख क्षेत्र-इसके घटने को प्रभावित करने वाले कारकों, जैसे- भूविज्ञान, भूआकृतिक कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानव क्रियाकलापों के आधार पर भारत को विभिन्न भू-स्खलन क्षेत्रों में बांटा गया है।

1. अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र: ज्यादा अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएं, अंडमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र, जिसमें सड़क और बांध निर्माण इत्यादि आते हैं, अत्यधिक भू-स्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में रखे जाते हैं।

2. अधिक सुभेद्यता क्षेत्र: हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर-पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं।

3. मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र: पार हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्पिती, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं, जहां कभी-कभी भू-स्खलन होता है। इसके अलावा झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खाद्यानों और भूमि धंसने से भू-स्खलन होता रहता है।

4. अन्य क्षेत्र: भारत के अन्य क्षेत्र विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग जिले को छोड़कर), असम (कार्बी अनलोंग को छोड़कर) और दक्षिण प्रांतों के तटीय क्षेत्र भू-स्खलन युक्त हैं।
निवारण-भू-स्खलन से निपटने के उपाय अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होने चाहिएं।

  1. अधिक भू-स्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बांध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  2. इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियन्त्रण होना चाहिए।
  3. सकारात्मक कार्य जैसे-बृहत स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा और जल बहाव को कम करने के लिए बांध का निर्माण भू-स्खलन के उपायों के पूरक हैं।
  4. स्थानान्तरी कृषि वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।

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प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इनके निवारण उपाय बताएं।
उत्तर:
सूखा ऐसी स्थिति है जब लम्बे समय तक कम वर्षा, अधिक वाष्पीकरण के कारण भूतल पर जल की कमी हो जाए। भारत में सूखां ग्रस्त क्षेत्र-भारतीय कृषि काफ़ी हद तक मानसून वर्षा पर निर्भर करती रही है। भारतीय जलवायु तन्त्र में सूखा और बाढ़ महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19 प्रतिशत भाग और जनसंख्या का 12 प्रतिशत हिस्सा हर वर्ष सूखे से प्रभावित होता है।

देश का लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र सूखे से प्रभावित हो सकता है जिससे 5 करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं। यह प्रायः देखा गया है कि जब देश के कुछ भागों में बाढ़ कहर ढा रही होती है, उसी समय दूसरे भाग सूखे से जूझ रहे होते हैं। यह मानसून में परिवर्तनशीलता और इसके व्यवहार में अनिश्चितता का परिणाम है। सूखे का प्रभाव भारत में बहुत व्यापक है, परन्तु कुछ क्षेत्र जहां ये बार-बार पड़ते हैं और जहां उनका असर अधिक है सूखे की तीव्रता के आधार पर अग्रलिखित क्षेत्रों में बांटा गया है

1. अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
राजस्थान में ज्यादातर भाग, विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित है। इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं, जहां 90 मिलीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।

2. अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
इसमें राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के ज्यादातर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आन्ध्र प्रदेश के अंदरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड का दक्षिणी भाग और उड़ीसा का आन्तरिक भाग शामिल है।

3. मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र:
इस वर्ग में राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के बचे हुए जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार तथा कर्नाटक पठार शामिल हैं।

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प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
आपदाओं की उत्पत्ति का सम्बन्ध मानव क्रियाकलापों से भी है। कुछ मानवीय गतिविधियां तो सीधे रूप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं। भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, सी०एफ०सी० (क्लोरोफ्लोरो कार्बन) गैसें वायुमण्डल में छोड़ना तथा ग्रीन हाऊस गैसें, ध्वनि, वायु, जल तथा मिट्टी सम्बन्धी पर्यावरण प्रदूषण आदि आपदाएं इसके उदाहरण हैं। कुछ मानवीय गतिविधियां परोक्ष रूप से भी आपदाओं को बढ़ावा देती हैं। वनों को काटने की वजह से भू-स्खलन और बाढ़, भंगुर ज़मीन पर निर्माण कार्य और अवैज्ञानिक भूमि उपयोग कुछ उदाहरण हैं।

यह सर्वमान्य है कि पिछले कुछ सालों से मानवकृत आपदाओं की संख्या और परिणाम, दोनों में ही वृद्धि हुई है और कई स्तर पर ऐसी घटनाओं से बचने के भरसक प्रयत्न किए जा रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान की स्थापना, 1993 में रियो डि जनेरो, ब्राजील में भू- शिखर सम्मेलन (Earth Summit) और मई, 1994 में यॉकोहामा, जापान में आपदा प्रबन्ध पर विश्व संगोष्ठी आदि, विभिन्न स्तरों पर इस दिशा में उठाए जाने वाले ठोस कदम हैं।
प्रत्येक आपदा, अपने नियन्त्रणकारी सामाजिक-पर्यावरणीय घटकों, सामाजिक अनुक्रिया, जो यह उत्पन्न करते हैं तथा जिस ढंग से प्रत्येक सामाजिक वर्ग इससे निपटता है, अद्वितीय होती है।

मानव पारिस्थितिक तन्त्र के साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करता था। इसलिए इन आपदाओं से नुकसान कम होता था। तकनीकी विकास ने मानव को, पर्यावरण को प्रभावित करने की बहुत क्षमता प्रदान कर दी है। परिणामतः मनुष्य ने आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों में गहन क्रियाकलाप शुरू कर दिया है और इस प्रकार आपदाओं की सुभेद्यता को बढ़ा दिया है। अधिकांश नदियों के बाढ़-मैदानों में भू-उपयोग तथा भूमि की कीमतों के कारण तथा तटों पर बड़े नगरों एवं बन्दरगाहों, जैसे मुम्बई तथा चेन्नई आदि के विकास ने इन क्षेत्रों को चक्रवातों, प्रभंजनों तथा सुनामी आदि के लिए सुभेद्य बना दिया है। पिछले 60 वर्षों में 12 गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं से विभिन्न देशों में मरने वालों की संख्या बहुत अधिक हैं।

 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ   JAC Class 11 Geography Notes

→ अस्थिर पृथ्वी (Unstable Earth): भू-तल स्थिर नहीं है। आंतरिक तथा बाहरी शक्तियां भू-तल पर परिवर्तन लाती रहती हैं। भारत में प्रतिवर्ष एक बड़ी संख्या में लोग प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो जाते हैं।

→ प्राकृतिक आपदाएं (Natural Hazards): भारतीय प्रमुख आपदाएं भूकम्प, बाढ़े, सूखा तथा भू-स्खलन हैं।

→ भारत की स्थिति (India’s Position ): भारत विश्व में प्रमुख दस देशों में से एक है जो प्राकृतिक | आपदाओं से प्रभावित होते हैं। यहां प्रति वर्ष छ: करोड़ लोग इन आपदाओं से प्रभावित होते हैं।

→ भूकम्प (Earthquakes ): भारत का लगभग 54% भाग भूकम्प से प्रभावित होता है। कच्छ प्रदेश, हिमालय पर्वत, उत्तरर-पूर्वी भाग तथा अण्डमान द्वीप भूकम्प क्षेत्र में शामिल हैं। गत दो शताब्दियों में भारत में 27 बड़े-बड़े भूकम्प आये हैं। भूकम्प से बचाव के लिए विशेष प्रकार के ढांचों का निर्माण करना चाहिए। कच्छ प्रदेश में, भुज में 26 जनवरी, 2001 को विनाशकारी भूकम्प से 30 हज़ार (30,000) व्यक्तियों की जानें गईं। दो करोड़ लोग प्रभावित हुए। 50% मकानों को हानि पहुंची तथा 50 हज़ार करोड़ की सम्पत्ति नष्ट हुई।

→ बाढ़ तथा सूखा (Floods and Droughts ): भारत में मानसून तथा अनिष्टता के कारण सूखा तथा बाढ़े आती हैं जो कृषि को हानि पहुंचाती हैं। दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल (कुल का 16%) सूखाग्रस्त तथा चार करोड़ हेक्टेयर (कुल का 12%) क्षेत्रफल बाढ़ग्रस्त है।

→ भू-स्खलन (Landslides ): भूमि के किसी जलभृत भाग के अचानक फिसल कर नीचे गिरने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। भू-स्खलन भारी वर्षा, भूकम्प के कारण होते हैं। ये प्राय: सड़क मार्गों में अवरोध पैदा करते हैं ।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. हिमालय के किस भाग में करेवा मिलते हैं?
(A) उत्तर-पूर्व
(B) पूर्वी
(C), हिमाचल-उत्तराखण्ड
(D) कश्मीर हिमालय।
उत्तर:
(D) कश्मीर हिमालय।

2. लोकटक झील किस राज्य में स्थित है?
(A) केरल
(B) मनीपुर
(C) उत्तराखण्ड
(D) राजस्थान।
उत्तर:
(B) मनीपुर।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

3. अण्डमान द्वीप तथा निकोबार द्वीप को कौन-सी रेखा पृथक् करती है?
(A) 11° चैनल
(B) 10° चैनल
(C) खाड़ी मनार
(D) अण्डमान सागर।
उत्तर:
(B) 10° चैनल।

4. किन पहाड़ियों में दोदा बेटा शिखर है?
(A) नीलगिरि
(B) कार्दमम
(C) अनामलाई
(D) नलामलाई।
उत्तर:
(A) नीलगिरि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1. यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो, तो वह कौन-से तटीय मैदान से होकर जाएगा और क्यों?
उत्तर:
लक्षद्वीप समूह अरब सागर में स्थित है। वहां जाने के लिए मालाबार तटीय मैदान से होकर जाना पड़ता है। लक्षद्वीप केरल तट से केवल 280 कि० मी० दूर है। इसलिए मालाबार तट (केरल तट) इसके निकटतम है।

प्रश्न 2.
भारत में ठण्डा मरुस्थल कहां स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम बताओ।
उत्तर:
जम्मू कश्मीर राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित लद्दाख एक ठण्डा मरुस्थल है, जहां वर्षा बहुत कम है तथा वर्षा हिमपात के रूप में है। यहां कराकोरम, महान् हिमालय-जॉस्कर व लद्दाख पर्वत श्रेणियां हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

प्रश्न 3.
पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टी मात्र है। यहां नर्मदा व तापी प्रमुख नदियां हैं जो अरब सागर में गिरती हैं। इस प्रदेश की तीव्र ढलान है तथा नदियां सागर में गिरने से पहले तलछट बहा कर ले जाती हैं। इसलिए तलछट का निक्षेप नहीं होता। यहां डेल्टा के स्थान पर ज्वार नद मुख की रचना होती है।

प्रश्न 4.
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
अरब सागर के द्वीप समूह

अरब सागर के द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह
(1) यहां लक्षद्वीप तथा मिनिकाय द्वीप प्रमुख द्वीप समूह हैं। (1) यहां अण्डमान-निकोबार द्वीप प्रमुख द्वीप है।
(2) यहां कुल 36 द्वीप हैं। (2) यहां कुल 572 द्वीप हैं।
(3) यहां \(11^{\circ}\)  चैनल द्वीपों को दो भागों में बांटती है। (3) यहां \(10^{\circ}\)  चैनल द्वीपों को दो भागों में बांटती है।
(4) ये द्वीप प्रवाल निक्षेप से बने हैं। (4) ये द्वीप जलमग्न पर्वतों का भाग हैं।
(5) अमीनी द्वीप सबसे बड़ा द्वीप है। (5) बैरन द्वीप भारत का एकमात्र ज्वालामुखी द्वीप है।
(6) दक्षिण में कनानोरे द्वीप है। (6) दक्षिण में भारत का दक्षिणतम बिन्दु इन्दिरा पुआइंट

प्रश्न 5.
नदी घाटी मैदान में पाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलावृत्तियां कौन-सी हैं?
उत्तर:
नदी घाटी मैदान में बालुरोधिका, विसर्प गोखर झीलें तथा गुंफित नदियां पाई जाती हैं।

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प्रश्न 6.
यदि आप बद्रीनाथ से सुंदरवन डैल्टा तक गंगा नदी के साथ-साथ चलते हैं, तो आपके रास्ते में कौन-सी स्थलाकृतियां आएंगी?
उत्तर:
गंगा नदी का उद्गम बद्रीनाथ के निकट है तथा सुंदरवन में गंगा नदी खाड़ी बंगाल में गिरती है। इसके मार्ग में भाभर का मैदान, तराई का मैदान, बांगर तथा खादर प्रदेश, गंगा का ऊपरी मैदान, मध्यवर्ती मैदान तथा डैल्टा पाए जाते हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान 1

प्रश्न 7.
हिमालय पर्वत पर पश्चिम से पूर्व की ओर स्थित शिखर बताओ।
उत्तर:
पश्चिम से पूर्व की ओर प्रमुख हिमालय शिखर है

  1. नांगा पर्वत
  2. K,2
  3. कामेट
  4. नन्दा देवी
  5. धौलागिरी
  6. अन्नापूर्णा
  7. मकालू
  8. माऊंट एवरेस्ट
  9. कंचनजंगा
  10. नामचा बरवा।

 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान  JAC Class 11 Geography Notes

→ भारत-विषमताओं का देश (Country of Contrasts): भारत विषमताओं का देश है। यहां धरातल तथा जल-प्रवाह में अनेक विषमताएं मिलती हैं।

→ धरातलीय विभाग (Physical Divisions): वृहद् स्तर पर भारत को तीन भागों में बाँटा जाता है

  • उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  • उत्तरी मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार।

→ भू-संरचना (Geology): वर्तमान भू-रचना एक लम्बे समय में विकसित हुई है। वर्तमान प्रायद्वीपीय पठार भारतीय टैक्टोनिक प्लेट पर स्थित है।

→ हिमालय पर्वत (Himalayan Mountains): यह युवा नवीन मोड़दार पर्वत हैं। आज से 270 मिलियन वर्ष पहले मैसोज़ोयिक युग में यहां टैथीज़ सागर स्थित था। इस सागर के निक्षेपों में मोड़ पड़ने से टरशरी युग में ,
हिमालय पर्वत बने। हिमालय पर्वत अब भी ऊंचे उठ रहे हैं।

→ उत्तरी भारतीय मैदान-यह मैदान हिमालय पर्वत के साथ-साथ एक अग्र गर्त में तलछट के निक्षेप से बना है। !

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple choice questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत के विस्तार के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
(A) 8°4 N-35° 5’N
(B) 8°4′ N-37° 6’N
(C) 8°4′ N-37° 5’N
(D) 6°45′ N-35° 6’N
उत्तर:
(B) 8°4N-37°6’N

2. भारत के साथ किस देश की स्थल सीमा सबसे लम्बी है?
(A) बांग्ला देश
(B) पाकिस्तान
(C) चीन
(D) म्यानमार।
उत्तर:
(A) बांग्ला देश।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

3. कौन-सा देश भारत से अधिक बड़ा है?
(A) चीन
(B) फ्रांस
(C) मिस्त्र
(D) ईरान।
उत्तर:
(A) चीन।

4. भारत की प्रामाणिक देशांतर रेखा कौन-सी है?
(A) 60° 30’E
(B) 75° 30’E
(C) 82° 30’E
(D) 90° 30’E
उत्तर:
(C) 82° 30’E.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों का लगभग 30 शब्दों में उत्तर दो
प्रश्न 1.
क्या भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता है? यदि हां तो आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है जिसका देशान्तरीय विस्तार 29° है। (68° से 97° पूर्व)। भारत में केवल एक ही प्रामाणिक रेखा (\(82 \frac{1}{2}^{\circ}\)पूर्व) है। यह भारत के मध्य में से गुज़रती है। कई देशों में एक से अधिक प्रामाणिक देशान्तर रेखाएं हैं क्योंकि उनका विस्तार अधिक है।

प्रायः 15° अक्षांश के पश्चात् एक प्रामाणिक देशान्तर रेखा होती है। भारत में विस्तार की दृष्टि से दो प्रामाणिक देशान्तर रेखाएं होनी चाहिए। भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी भागों में दो घण्टे के समय का अन्तर है। यदि 75° देशान्तर (पश्चिमी भाग) में हो तथा 90° देशान्तर (पूर्वी भाग) में हो तो यह समय का अन्तर कम हो सकता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 2.
भारत की लम्बी तट रेखा के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:

  1. भारत की लम्बी तट रेखा उत्तम तथा सुरक्षित बन्दरगाहें प्रदान करती है।
  2. लम्बी तट रेखा के कारण भारत का मत्स्य क्षेत्र विशाल है।
  3. लम्बी तट रेखा के कारण भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक है।
  4. इस लम्बी तट रेखा (7517 कि० मी० लम्बी) पर विभिन्न प्रकार के संसाधन मिलते हैं।
  5. इस तट रेखा पर कई बन्दरगाहों पर जलयान निर्माण केन्द्र स्थित हैं।

प्रश्न 3.
भारत का देशान्तरीय फैलाव इसके लिए किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
भारत का पूर्व-पश्चिम देशान्तरीय विस्तार 30° है। इसके प्रभाव से भारत के पूर्वी भाग (अरुणाचल प्रदेश) तथा पश्चिमी भाग (गुजरात) के समय में दो घण्टे (30° x 4 = 120 मिनट) का अन्तर मिलता है। इससे भारत की विशालता का पता चलता है। इतने विशाल क्षेत्र के लिए भारत में एक मानक रेखां \(\)प\frac{1}{2}^{\circ}\(\)प E ली जाती है तथा भारत में पूर्वी-पश्चिमी भागों के समय में अधिक अन्तर नहीं होता।

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प्रश्न 4.
जबकि पूर्व में नागालैंड में सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, फिर कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियां एक ही समय क्यों दिखाती हैं?
उत्तर:
किसी स्थान का स्थानिक समय सूर्य की ऊंचाई से सम्बन्धित है। दोपहर के समय वहां की घडियों में 12 बजे का समय होता है। परन्तु प्रामाणिक समय एक मानक देशान्तरीय रेखा के समय से लिया जाता है जो सारे देश में समान होता है। यह समय इलाहाबाद के निकट 82°E देशान्तर से लिया जाता है। यद्यपि कोहिमा तथा नई दिल्ली में सूर्य की ऊंचाई भिन्न होती है तथा स्थानिक समय (Local Time) भिन्न होता है, परन्तु इन दोनों नगरों का प्रामाणिक समय एक समान होता है तथा घड़ियों में एक ही समय होता है।

(ग) क्रिया कलाप
(Project Work)

प्रश्न 1.
एक ग्राफ पेपर पर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, गोवा, केरल तथा ह रियाणा के जिलों की संख्या को आलेखित करें। क्या जिलों की संख्या का राज्यों के क्षेत्रफल से कोई सम्बन्ध है?
उत्तर:
क्रम सं०
राज्य जिलों की संख्या क्षेत्रफल (वर्ग कि० मी०) मध्य प्रदेश3,08,000 कर्नाटक

राज्य ज़िलों की संख्या क्षेत्रफल ( वर्ग कि० मी०)
1. मध्य प्रदेश 45 1,91,791
2. कर्नाटक 28 22,429
3. मेघालय 7 3,702
4. गोवा 2 38,863
5. केरल 14 44,212
6. हरियाणा 19 3,08,000

जिन राज्यों के जिलों की संख्या अधिक है वहां कुल क्षेत्रफल अधिक है, तथा प्रत्येक जिले का औसत क्षेत्रफल अधिक है। परन्तु जिन राज्यों में जिलों की संख्या कम है वहां क्षेत्रफल भी कम है।

प्रश्न 2.
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा तथा राजस्थान में कौनसा सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला तथा कौन-सा न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है?
उत्तर:
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प्रश्न 3.
तटीय सीमाओं से संलग्न राज्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर:

  1. पश्चिमी तट पर स्थित राज्य-गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल।
  2. पूर्वी तट पर स्थित राज्य-तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 4.
पश्चिम से पूर्व की ओर स्थलीय सीमा वाले राज्यों का क्रम तैयार करें।
उत्तर:
राजस्थान, पंजाब, जम्मू-कश्मीर (केन्द्र शासित), लद्दाख (केन्द्र शासित), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, सिक्किम, मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिज़ोरम। इस प्रकार देश में 20 राज्यों की स्थलीय सीमाएं हैं। जिसमें दो केन्द्र शासित राज्य हैं।

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प्रश्न 5.
उन केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों की सूची बनाइए जिनकी स्थिति तटवर्ती है।
उत्तर:

  1. दमन-दीव
  2. दादर-नगर हवेली
  3. लक्षद्वीप
  4. पुड्डूचेरी
  5. अण्डमान निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रफल और जनसंख्या में अन्तर की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:

प्रदेश क्षेत्रफल (वर्ग कि० मी०) जनसंख्या जनसंख्या घनत्व व्यक्ति प्रति व० कि० मी०
1. दिल्ली 1483 1,67,53,235 11,297
2. अण्डमान निकोबार 8249 3,79,944 46

दिल्ली राजधानी क्षेत्र में जनसंख्या अण्डमान निकोबार की तुलना में लगभग 44.6 गुणा अधिक है तथा जनसंख्या घनत्व 245 गुणा अधिक है। परन्तु अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में दिल्ली की तुलना में क्षेत्रफल 6 गुणा अधिक है।

प्रश्न 7.
एक ग्राफ पेपर पर दंड आरेख द्वारा केन्द्र शासित क्षेत्रों के क्षेत्रफल व जनसंख्या को आलेखित कीजिए।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 12

भारत – स्थिति  JAC Class 11 Geography Notes

→ स्थिति (Location): भारतीय उपमहाद्वीप उत्तरी गोलार्द्ध के उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित है। यह एक स्वतन्त्र धरातलीय भू-भाग है तथा एशिया की मुख्य भूमि से अलग होता है। उत्तर में पर्वतीय दीवार इसे विशेष चरित्र प्रदान करती है।

→ देश (Countries): भारतीय उप-महाद्वीप में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका तथा मालदीव शामिल हैं। इन्हें SAARC देश कहते हैं।

→ विस्तार (Extent): भारतीय उपमहाद्वीप 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर अक्षांश तथा 68° 7′ पूर्व से 97° 25′ पूर्व देशान्तर तक फैला हुआ है। कर्क रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है।

→ आकार (Size): भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर, पाकिस्तान-7,96,095 वर्ग किलोमीटर तथा बांग्लादेश का क्षेत्रफल 1,48, 393 वर्ग किलोमीटर है। भारत विश्व में सातवां बड़ा देश है। यह त्रिकोणी |
आकार का देश है। इसकी पूर्व से पश्चिम तक 2933 किलोमीटर लम्बाई तथा उत्तर-दक्षिण तक 3214। किलोमीटर लम्बाई है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति

→ प्रामाणिक समय (Standard Time): 82° पूर्व देशान्तर इलाहाबाद तथा मिर्जापुर नगरों के मध्य से गुजरती है जहां से भारत का प्रामाणिक समय मापा जाता है। पाकिस्तान में 75° पूर्व तथा बांग्लादेश में 90° , पूर्व देशान्तर से प्रामाणिक समय मापा जाता है। भारत का प्रामाणिक समय ब्रिटेन से 5- घण्टे आगे है। यह समय | पाकिस्तान से – घण्टे आगे तथा बांग्लादेश से – घण्टे पीछे है।

→ सीमाएं (Frontiers): कन्याकुमारी (8° 04′ उत्तर) भारतीय स्थल भूमि का सबसे दक्षिणी छोर है। इन्दिरा प्वाईंट (6° 04′ उत्तर) (निकोबार द्वीप) भारत का सबसे दक्षिणी छोर है। भारत की स्थल सीमा 15,200 | किलोमीटर तथा तट रेखा 7,516 किलोमीटर लम्बी है। उत्तर में मैक्मोहन लाइन भारत तथा चीन के मध्य सीमा। बनाती है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में पाक सट्रेट (भारत तथा श्रीलंका के मध्य) तथा पश्चिम में। राजस्थान इसके पड़ोसी देशों के साथ सीमा बनाता है।

→ हिन्द महासागर (Indian Ocean): भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर 80° पूर्व उत्तर देशांतर में कन्याकुमारी के साथ स्थित है। भारत हिन्द महासागर के मध्य केन्द्रीय स्थिति रखता है। भारत का दक्षिण-पश्चिम एशिया, अफ्रीका, पूर्वी एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका से स्वेज नहर द्वारा सम्पर्क स्थापित है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 1
→ राजनीतिक विभाग (Political Division): भारत में 28 राज्य तथा 9 केन्द्र प्रशासित प्रदेश हैं। राजस्थान । सबसे बड़ा राज्य तथा गोआ सबसे छोटा राज्य है। (क्षेत्रफल के आधार पर) 2000 ई० में चार नये राज्यों का निर्माण हुआ-उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 1 भारत – स्थिति 10

केन्द्र प्रशासित प्रदेश

राज्य/ केन्द्र प्रशासित प्रदेश क्षेत्रफल वर्ग किलोमीटर जनसंख्या राजधानी
1.   अण्डमान तथा निकोबार द्वीप 8249 3,79,944 पोर्ट ब्लेयर
2.   चण्डीगढ़ 114 10,54,686 चण्डीगढ़
3.   दादरा तथा नगर हवेली 491 342,853 सिलवासा
4.   दमन तथा दियू 112 2,42,911 दमन
5.   लक्षद्वीप 32 64,429 कावारती
6.   पाण्डिचेरी 480 12,44,464 पाण्डिचेरी
7.   दिल्ली सम्पूर्ण भारत 1,483 1,67,53,235 दिल्ली
8.   जम्मू-कश्मीर 32,87,263 1,21,01,93,422 नई दिल्ली
9.   लद्दाख 125535 12267032 श्रीनगर

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जैव विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) जन्तु
(B) पौधे
(C) पौधे और प्राणी
(D) सभी जीवधारी।
उत्तर:
(D) सभी जीवधारी।

2. असुरक्षित प्रजातियां कौन-सी हैं?
(A) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(B) बाघ व शेर
(C) जिनकी संख्या अत्यधिक हो
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
उत्तर:
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।

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3. राष्ट्रीय पार्क (National parks) और अभ्यारण्य (Sanctuaries) किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं?
(A) मनोरंजन
(B) पालतू जीवों के लिए
(C) शिकार के लिए
(D) संरक्षण के लिए।
उत्तर:
(D) संरक्षण के लिए।

4. जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं
(A) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(B) शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(C) ध्रुवीय क्षेत्र
(D) महासागरीय क्षेत्र।
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र।

5. निम्न में से किस देश में अर्थ सम्मेलन (Earth summit) हुआ था?
(A) यू० के० (U.K.)
(B) ब्राज़ील
(C) मैक्सिको
(D) चीन।
उत्तर:
(B) ब्राज़ील

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव के लिये पौधे किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
पौधे मनुष्य को कई प्रकार की फसलें, प्रोटीन देते हैं यह जनसंख्या के पोषण के लिये एक प्राकृतिक साधन हैं।

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प्रश्न 2.
मानव के लिये जन्तुओं के महत्त्व का संक्षिप्त का वर्णन करो।
उत्तर:
मानव के आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के पदार्थ मिलते हैं। इतिहास के प्रारम्भिक काल में मानव पशु पालन पर निर्भर था। असंख्य पशु प्राकृतिक वनस्पति खा कर मांस तथा डेयरी पदार्थ प्रदान करते हैं, जिससे मानव जनसंख्या का पोषण होता है।

प्रश्न 3.
जैव विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैविक विविधता का अस्तित्व तीन विभिन्न स्तरों पर निम्नलिखित हैं

  1. प्रजातीय विविधता (Species Diversity): जो आकृतिक, शरीर क्रियात्मक तथा आनुवंशिक लक्षणों द्वारा प्रतिबिम्बित होती है।
  2. आनुवांशिक विविधता (Genetic Diversity): जो प्रजाति के भीतर आनुवंशिक या अन्य परिवर्तनों से युक्त होती है।
  3. पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosyotem Diversity): विविधता, जो विभिन्न जैव भौगोलिक क्षेत्रों जैसेझील, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख आदि द्वारा प्रतिबिम्बित होती है। इस पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित रखना एक महान् चुनौती है।

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प्रश्न 4.
जैव विविधता क्या है?
उत्तर:
जैव विविधता दो शब्दों के मेल से बना है (Bio) बायो का अर्थ है जीव तथा (Diversity) का अर्थ है विविधता। साधारण शब्दों में, किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव विविधता कहते हैं।

प्रश्न 5.
हॉट-स्पॉट (Hot Spot) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है उन्हें हॉट-स्पॉट कहते हैं। यहां प्रजातियों की संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 6.
भारत के चार ‘जीवमण्डल निचय’ के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नन्दा देवी,
  2. नीलगिरि,
  3. मानस,
  4. सुन्दरवन।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1.
प्रकृति को बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर:
जैव विविधता का महत्त्व (Importance of biodiversity):
जैव विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार मानव समुदायों ने भी आनुवांशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक, विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। जैव विविधता के चार प्रमुख योगदान हैं

  1. पारिस्थितिक (Ecological)
  2. आर्थिक (Economic)
  3. नैतिक (Ethical)
  4. वैज्ञानिक (Scientific)।

1. जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका (Ecological role of biodiversity):
पारितन्त्र में विभिन्न प्रजातियां कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितन्त्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती है और न ही बनी रह सकती है। अर्थात्, प्रत्येक जीव अपनी ज़रूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।

  1. जीव व प्रजातियां ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं।
  2. कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं।
  3. पारितन्त्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं।
  4. इसके अतिरिक्त प्रजातियां वायुमण्डलीय गैस को स्थिर करती हैं
  5. जलवायु को नियन्त्रित करने में सहायक होती हैं।

ये पारितन्त्रीय क्रियाएं मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएं हैं। पारितन्त्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की सम्भावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजातियों की क्षति से तन्त्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवांशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितन्त्र में पर्यावरण के बदलावों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, जिस पारितन्त्र में जितनी प्रकार की प्रजातियां होंगी, वह पारितन्त्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।

2. जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका (Ecological role of biodiversity):
सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव विविधता एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण भाग ‘ फसलों की विविधता (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव विविधता भी कहा जाता है। जैव विविधता को संसाधनों के उन भण्डारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियां और सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में है। जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी है। साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बंटवारे को लेकर उत्पन्न नये विवादों का भी जनक है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि हैं। कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।

3. जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका (Scientific role of biodiversity):
जैव विविधता इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरम्भ कैसे हुआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा। जीवन कैसे चलता है और पारितन्त्र, जिसमें हम भी एक प्रजाति हैं, उसे बनाये रखने में प्रत्येक प्रजाति की क्या भूमिका है, इन्हें हम जैव विविधता से समझ सकते हैं। हम सभी को यह तथ्य समझना चाहिए कि हम स्वयं जियें और दूसरी प्रजातियों को भी जीने दें।

4. जैव विविधता की नैतिक भूमिका (Ethical role of biodiversity):
यह समझना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है। अत: कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है। जैव विविधता का स्तर अन्य जीवित प्रजातियों के साथ हमारे सम्बन्ध का एक अच्छा पैमाना है। वास्तव में, जैव विविधता की अवधारणा कई मानव संस्कृतियों का अभिन्न अंग है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन को। इसे रोकने के उपाय भी बताओ।
उत्तर:
जैव विविधता की हानि (Loss of biodiversity) पिछले कुछ दशकों से, जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र, जो विश्व के कुछ क्षेत्र का मात्र एक चौथाई भाग है, यहां संसार की तीन चौथाई जनसंख्या रहती है। अधिक जनसंख्या की ज़रूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्णकटिबन्धीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50 प्रतिशत प्रजातियां पाई जाती हैं और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमण्डल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।

1. प्राकृतिक आपदाएं:
प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी, उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पति जात को क्षति पहुंचाते हैं और परिणामस्वरूप सम्बन्धित प्रभावित प्रदेशों की जैव विविधता में बदलाव आता है।

2. कीटनाशक:
कीटनाशक और अन्य, जैसे-हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) और विषैली भारी धातु (Toxic heavy metals) संवेदनशील और कमज़ोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।

3. विदेशज प्रजातियां:
वे प्रजातियां, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तन्त्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियां’ (Exotic species) कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितन्त्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ।

4. अवैध शिकार:
पिछले कुछ दशकों के दौरान, कुछ जन्तुओं जैसे-बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिंक और पक्षियों का, उनके सींग, सूंड व खालों के लिए निर्दयतापूर्वक अवैध शिकार किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।

जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of biodiversity):
मानव के अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है। जीवन का हर रूप एक-दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। यदि पौधों और प्राणियों की प्रजातियां संकटापन्न होती हैं, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है और अन्तोत्गत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।

आज यह अति अनिवार्य है कि मानव को पर्यावरण-मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जाए और विकास की ऐसी व्यावहारिक गतिविधियां अपनाई जाएं, जो दूसरे जीवों के साथ समन्वित हों और सतत् पोषणीय (Sustainable) हों। इस तथ्य के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है कि संरक्षण तभी सम्भव और दीर्घकालिक होगा, जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी। इसके लिए स्थानीय स्तर पर संस्थागत संरचनाओं का विकास आवश्यक है। केवल प्रजातियों का संरक्षण और आवास स्थान की सुरक्षा ही अहम समस्या नहीं है, बल्कि संरक्षण की प्रक्रिया को जारी रखना भी उतना ही ज़रूरी है।

सन् 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो (Rio-de-Janeiro) में हुए जैव विविधता के सम्मेलन (Earth summit) में लिए गए संकल्पों का भारत अन्य 155 देशों सहित हस्ताक्षरी है। विश्व संरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैं

  1. संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिएं।
  2. प्रजातियों को विलुप्ती से बचाने के लिए उचित योजनाएं प्रबन्धन अपेक्षित हैं।
  3. खाद्यान्नों की किस्में, चारे सम्बन्धी पौधों की किस्में, इमारती पेड़, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करनी चाहिए।
  4. प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को रेखांकित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
  5. प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
  6. वन्य जीवों व पौधों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप हो।

भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने और विस्तार करने के लिए, वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 (Wild life protection act, 1972), पास किया है, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय पार्क (National Parks), अभ्यारण्य (Sanctuaries) स्थापित किये गए तथा जैव संरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) घोषित किये गए। वे देश, जो उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित हैं, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है। उन्हें ‘महा विविधता केन्द्र’ (Mega diversity centres) कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं : मैक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, जायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया और आस्ट्रेलिया। इन देशों में समृद्ध महा-विविधिता के केन्द्र स्थित हैं।

ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव विविधता हॉट-स्पॉट (Hotspots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं। पादप महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही किसी पारितन्त्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर हॉटस्पॉट रहने वाले भोजन, जलाने के लिए लकड़ी, कृषि भूमि और इमारती लकड़ी आदि के लिए वहां पाई जाने वाली प्रजाति समृद्ध पारितन्त्रों पर ही निर्भर है।

उदाहरण के लिए मेडागास्कर में, जहां 85 प्रतिशत पौधे व प्राणी संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं पाए जाते-वहां के रहने वाले संसार के सर्वाधिक गरीबों में से एक है और वे जीवित खेती के लिए जंगलों को काटकर और (Slash and burn) पायी गयी कृषि भूमि पर निर्भर हैं। अन्य हॉट-स्पॉट, जो समृद्ध देशों में पाए जाते हैं, वहां कुछ अन्य प्रकार की समस्याएं हैं। हवाई द्वीप जहां विशेष प्रकार की पादप व जन्तु प्रजातियां मिलती हैं, वह विदेशज प्रजातियों के आगमन और भूमि विकास के कारण असुरक्षित हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

जैव-विविधता एवं संरक्षण  JAC Class 11 Geography Notes

→ पौधे और जीव-जन्तु (Plants and animals): पौधे तथा जीव-जन्तु मानव के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

→ जैविक विविधता (Biodiversity): विश्व में पौधों तथा जीव-जन्तुओं में अत्यधिक विविधता पाई जाती |

→ जैविक विविधता के स्तर (Levels of Bio-diversity):

  • प्रजातीय विविधता
  • आनुवांशिक विविधता
  • पारिस्थितिक तंत्र विविधता।

→ जैविक विविधता का ह्रास (Loss of Biodiversity): संसाधनों की बढ़ती मांग के कारण कुछ प्रजातियां समाप्त हो गई हैं।

→ जैविक विविधता का संरक्षण (Conservation of Biodiversity) विकास की निरंतरता बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण आवश्यक है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जैवमण्डल में सम्मिलित हैं
(A) केवल पौधे
(B) केवल प्राणी
(C) सभी जैव व अजैव जीव
(D) सभी जीवित जीव।
उत्तर:
(D) सभी जीवित जीव।

2. उष्ण कटिबन्धीय वन (Tropical) बायोम में वृक्षों की औसत ऊंचाई है
(A) 25-35 मीटर
(B) 50-55 मीटर
(C) 10-15 मीटर
(D) 10 मीटर से कम।
उत्तर:
(C) 10-15 मीटर।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

3. उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?
(A) प्रेयरी
(B) स्टैपी
(C) सवाना
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) सवाना।

4. चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर क्या बनाती है?
(A) आयरन कार्बोनेट
(B) आयरन ऑक्साइड
(C) आयरन नाइट्राइट
(D) आयरन सल्फेट।
उत्तर:
(B) आयरन ऑक्साइड।

5. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट्स
(C) एमिनोएसिड
(D) विटामिन्स।
उत्तर:
(B) कार्बोहाइड्रेटस।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पारितन्त्र क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
पारितन्त्र के प्रकार (Types of Ecosystems): प्रमुख पारितन्त्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं।

  1. स्थलीय (Terrestrial) पारितन्त्र
  2. जलीय (Aquatic) पारितन्त्र।

स्थलीय पारितन्त्र को पुनः बायोम (Biomes) में विभक्त किया जा सकता है। बायोम, पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है, जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विभिन्न बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय सम्बन्धी तत्त्व करते हैं। अत: विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्त:सम्बन्धों के कुल योग को ‘बायोम कहते हैं। इसमें वर्षा, तापमान, आर्द्रता व मिट्टी सम्बन्धी अवयव भी शामिल हैं।

संसार के कुछ प्रमुख पारितन्त्र : वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल और टुण्ड्रा (Tundra) पारितन्त्र हैं। जलीय पारितन्त्र को समुद्री पारितन्त्र व ताज़े जल के पारितन्त्र में बाँटा जाता है। समुद्री पारितन्त्र में महासागरीय, तटीय ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति (Coral reef), पारितन्त्र सम्मिलित हैं। ताज़े जल के पारितन्त्र में झीलें, तालाब, सरिताएँ, कच्छ व दलदल (Marshes and bogs) शामिल हैं।

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प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इकोलोजी (ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों (Oikos) ‘ओइकोस’ और (logy) ‘लोजी’ से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ ‘घर तथा ‘लोजी’ का अर्थ विज्ञान या अध्ययन से है। शाब्दिक अर्थानुसार इकोलोजी-पृथ्वी के पौधों, मनुष्यों, जन्तुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं के ‘घर के रूप में अध्ययन है। एक-दूसरे पर आश्रित होने के कारण ही ये एक साथ रहते हैं।

जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल (Ernst haeckel) जिन्होंने सर्वप्रथम सन् 1869 में ओइकोलोजी (Oekologie) शब्द का प्रयोग किया, पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं। जीवधारियों (जैविक) व अजैविक (भौतिक पर्यावरण) घटकों के पारस्परिक सम्पर्क के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं। अत: जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण के अन्तःसम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।

प्रश्न 3.
बायोम क्या है?
उत्तर:
बायोम के प्रकार (Types of Biomes) पिछले भागों से आप जान गए हैं कि बायोम का अर्थ क्या है? आओ, हम अब संसार के कुछ प्रमुख बायोम पहचानें और उन्हें रेखांकित करें। संसार के पाँच प्रमुख बायोम इस प्रकार हैं : वन बायोम, मरुस्थलीय बायोम, घासभूमि बायोम, जलीय बायोम और उच्च प्रदेशीय बायोम।।

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प्रश्न 4.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला:
किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक स्रोत से दूसरे में ऊर्जा अन्तरण की साधारण प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला कहते हैं। उदाहरण के लिए पौधे अपने भोजन व विकास के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। हरे पौधे उपभोक्ता के लिए भोजन के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं। वास्तव में खाद्य श्रृंखला सूर्यतप ऊर्जा का प्रवाह चक्र है। जैसे-एक घास भूमि में शाकाहारी जीव हिरण अपना भोजन घास से प्राप्त करता है। दूसरे प्रकाश संश्लेषण स्तर पर मांसाहारी जीव, जैसे-शेर भोजन के लिए हिरण भोजनभोजन पर निर्भर है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला में निम्न से उच्च | प्राथमिक प्राथमिक द्वितीय स्तरों की ओर खाद्य के रूप में ऊर्जा का प्रवाह होता है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन 1

चराई खाद्य श्रृंखला:
चराई खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर पर प्रवाहित होती है। शाकाहारियों Fig. Food Chain में भोजन के रूप में लिए गए पदार्थों का कुछ अंश उनकेसर्वाहारी शरीर में एकत्रित हो जाता है, शेष ऊर्जा शारीरिक कार्यों के दौरान नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार एक माँसाहारी, मांसाहारी जब अपना शिकार खाता है, तो उससे प्राप्त कुछ ऊर्जा ही) शाकाहारी इसके शरीर में संचित होती है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला के जीवाणु अगले पोषण स्तर पर बहुत कम ऊर्जा रूपांतरण  करते हैं, क्योंकि हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है।

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पिरामिड आकृति की खाद्य श्रृंखला दिखाती है कि बहुत से पेड़-पौधे व झाड़ियाँ आदि जिराफ को भोजन व ऊर्जा Fig. Ecological Pyramid प्रदान करते हैं। पौधों की तुलना में जिराफ की संख्या बहुत कम होती है और शेरों की संख्या जिराफ से भी कम है। दूसरे शब्दों में, शीर्ष पर कुछ जीवों के जिन्दा रहने के लिए आधार पर या पहले पोषण स्तर पर विस्तृत जैविक पदार्थ अनिवार्य हैं। खाद्य श्रृंखला के जीवों की यह परस्पर निर्भरता पौधों व जन्तुओं के एक-एक समुदाय को सन्तुलित करने में सहायक होती है। इसीलिए, पर्यावरण में अधिक शाकाहारी व कम मांसाहारी हैं।

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प्रश्न 5.
खाद्य जाल से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर-खाद्य जाल (Food Web):
किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य श्रृंखला सरल रूप में नहीं मिलती। जब कई खाद्य श्रृंखलाएं एक-दूसरे से घुल-मिल कर एक जटिल रूप धारण करती हैं तो उसे खाद्य जाल कहते हैं। इस प्रकार खाद्य जाल अनेक स्त्रोतों से ऊर्जा के अन्तरण की एक जटिल प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए प्रत्येक जीव कई जीवों से भिन्न-भिन्न प्रकार का भोजन खा सकता है। अगले स्तर पर अनेक जीवों द्वारा उस जीव को खाया जा सकता है। इस प्रकार जीवों के परस्पर सम्बन्ध जटिल हो जाते हैं तथा अनेक प्रक्रियाएं हो सकती हैं।

प्राथमिक उत्पादक पौधे आदि सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं तथा उच्च स्तर के जीवों के लिये भोजन प्रदान करते हैं। परन्तु ऊर्जा अन्तरण के प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा की काफ़ी मात्रा कम हो जाती है। एक खाद्य श्रृंखला में विभिन्न जीवों का सम्बन्ध व ऊर्जा अन्तरण को पिरामिड से प्रदर्शित किया जा सकता है। इस पिरामिड में मनुष्य का सर्वोपरि स्थान है। इस पिरामिड का आधार चौड़ा होता है तथा प्राथमिक उत्पादक का स्तर होता है। आधार से शीर्ष की ओर संख्या घटती जाती है व खाद्य के रूप में प्राप्त ऊर्जा भी घटती जाती है। परिणामस्वरूप अधिकतर खाद्य श्रृंखलाएं चार या पांच स्तरों तक ही सीमित होती हैं। इस पिरामिड को सांख्यिक पिरामिड भी कहते हैं।

पौधे पर जीवित रहने वाला एक कीड़ा (Beetle) एक मेंढक का भोजन है, जो (मेंढक) साँप का भोजन है और साँप एक बाज़ द्वारा खा लिया जाता है। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहलाती है। खाद्य श्रृंखला की प्रक्रिया में एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा के रूपान्तरण को ऊर्जा प्रवाह (Flow of energy) कहते हैं। खाद्य श्रृंखलाएं पृथक् अनुक्रम न होकर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। उदाहरणार्थ-एक चूहा, जो अन्न पर निर्भर है, वह अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का भोजन है और तृतीयक माँसाहारी अनेक द्वितीयक जीवों से अपने भोजन की पूर्ति करते हैं।

इस प्रकार प्रत्येक माँसाहारी जीव एक से अधिक प्रकार के शिकार पर निर्भर है। परिणामस्वरूप खाद्य श्रृंखलाएं आसपास में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़े होने (अर्थात् जीवों की खाद्य श्रृंखलाओं के विकल्प उपलब्ध होने पर) को खाद्य जाल (Food web) कहा जाता है। सामान्यतः दो प्रकार की खाद्य श्रृंखलाएं पाई जाती हैं-चराई खाद्य श्रृंखला (Grazing food chain) और अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus food chain) चराई खाद्य श्रृंखला पौधों (उत्पादक) से आरम्भ होकर माँसाहारी (तृतीयक उपभोक्ता) तक जाती है, जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर हैं। हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसमें श्वसन, उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। खाद्य श्रृंखला में तीन से पाँच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है। अपरद खाद्य श्रृंखला चराई खाद्य श्रृंखला से प्राप्त मृत पदार्थों पर निर्भर है और इसमें कार्बनिक पदार्थ का अपघटन सम्मिलित है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जैव भू-रासायनिक चक्र क्या है? वायुमण्डल के नाइट्रोजन का भौमीकरण कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
जैव भू-रसायन चक्र (Biogeo-chemical Cycle):
सूर्य ऊर्जा का मूल स्त्रोत है जिस पर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमण्डल में प्रकाश संश्लेषण-क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरम्भ करती है, जो हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन व कार्बनिक यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धरती पर पहुँचने वाले सूर्यातप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में काम आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधे की श्वसन-विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थाई रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है।

पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार के जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिकीय अन्तर्सम्बन्धों पर जीवित हैं। जीवधारी बहुतलता व विविधता में ही ज़िन्दा रह सकते हैं। इसमें (अर्थात्, जीवित रहने की प्रक्रिया में) विधिवत प्रवाह जैसे-ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। इनकी उपलब्धता संसार के विभिन्न भागों में भिन्न है। यह भिन्नता क्षेत्रीय होने के साथ-साथ सामयिक (अर्थात् वर्ष के 12 महीनों में भी भिन्न है) भी है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमण्डल व जलमण्डल की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन लगभग एक जैसा अर्थात् बदलाव रहित रहा है।

रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्त्वों के अवशोषण से आरम्भ होता है और उनके वाय, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरम्भ होता है। ये चक्र मुख्यतः सौर ताप से संचालित होते हैं। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycles) कहे जाते हैं। बायो (Bio) का अर्थ है जीव तथा ‘जीयो’ (Geo) का तात्पर्य पृथ्वी पर उपस्थित चट्टानें, मिट्टी, वायु व जल से है। जैव भू-रासायनिक चक्र दो प्रकार के हैं-एक गैसीय (Gaseous cycle) और दूसरा तलछटी चक्र (Sedimentary cycle), गैसीय चक्र में पदार्थ का मुख्य भण्डार/स्रोत वायुमण्डल व महासागर हैं। तलछटी चक्र के प्रमुख भण्डार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी, तलछट व अन्य चट्टानें हैं।

नाइट्रोजन चक्र (The Nitrogen Cycle): वायुमण्डल की संरचना का प्रमुख घटक नाइट्रोजन वायुमण्डलीय गैसों का 79 प्रतिशत भाग है। विभिन्न कार्बनिक यौगिक जैसे-एमिनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन व वर्णक (Pigment) आदि में यह एक महत्त्वपूर्ण घटक है। (वायु में स्वतन्त्र रूप से पाई जाने वाली नाइट्रोजन को अधिकांश जीव प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं) केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के जीव जैसे-कुछ मृदा जीवाणु व ब्लू ग्रीन एलगी (Blue green algae) ही इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। सामान्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती है। नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक (Biological) है, अर्थात् जीव ही ग्रहण कर सकते हैं।

स्वतन्त्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व सम्बन्धित पौधों की जड़ें व रन्ध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमण्डल में पहुँचती है। वायुमण्डल में भी बिजली चमकने (Lightening) व कोसमिक रेडियेशन (Cosmic radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है, महासागरों में कुछ समुद्री जीव भी इसका यौगिकीकरण करते हैं। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन के इस तरह यौगिक रूप में उपलब्ध होने पर हरे पौधे में इसका स्वांगीकरण (Nitrogen assimilation) होता है। शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका (नाइट्रोजन) कुछ भाग उनमें चला जाता है।

फिर मृत पौधों व जानवरों के नाइट्रोजनी अपशिष्ट (Excretion of nitrogenous wastes) मिट्टी, में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन-यौगिकीकरण हो जाता है। कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट को पुनः स्वतन्त्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी नाइट्रीकरण (De-nitrification) कहा जाता है। (इस तरह नाइट्रोजन चक्र चलता रहता है)

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प्रश्न 2.
पारिस्थितिक सन्तुलन क्या है? इसके असन्तुलन को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological balance)-किसी पारितन्त्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी सम्भव है, जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। क्रमश: परिवर्तन भी हो, लेकिन ऐसा प्राकृतिक अनुक्रमण (Natural succession) के द्वारा ही होता है। इसे पारितन्त्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थायी सन्तुलन के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। यह सन्तुलन निश्चित प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा व आपसी सहयोग से होता है। कुछ प्रजातियों के ज़िन्दा रहने के संघर्ष से भी पर्यावरण सन्तुलन प्राप्त किया जाता है। सन्तुलन इस बात पर भी निर्भर करता है कि कुछ प्रजातियाँ अपने भोजन व जीवित रहने के लिए दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहती हैं (जिससे प्रजातियों की संख्या निश्चित रहती है और सन्तुलन बना रहता है

उदाहरण: इसके उदाहरण विशाल घास के मैदानों में मिलते हैं, जहाँ शाकाहारी जन्तु (हिरण, जेबरा व भैंस आदि) अत्यधिक संख्या में होते हैं। दूसरी तरफ माँसाहारी (बाघ, शेर और कोयोटस आदि) अधिक नहीं होते और शाकाहारियों के शिकार पर निर्भर होते हैं, अतः इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है।

असन्तुलन के कारण: पौधों के पारिस्थितिक सन्तुलन में बदलाव के कारण हैं
1. वनों की प्रारम्भिक प्रजातियों में कोई खलल जैसे: स्थानान्तरी कृषि में वनों को साफ करने से प्रजातियों के वितरण में बदलाव लाता है। यह परिवर्तन प्रतिस्पर्धा के कारण है, जहाँ द्वितीय वन प्रजातियों जैसे-घास, बाँस और चीड़
आदि के वृक्ष प्रारम्भिक प्रजातियों के स्थान पर उगते हैं और प्रारम्भिक (Original) बनों की संरचना को बदल देते हैं। यही अनुक्रमण (Succession) कहलाता है।

2. पारिस्थितिक असन्तुलन के कारण: नई प्रजातियों का आगमन, प्राकृतिक विपदाएं और मानव जनित कारक भी हैं।

3. मनुष्य के हस्तक्षेप से पादप समुदाय का सन्तुलन प्रभावित होता है, जो अन्तोगत्वा पूरे पारितन्त्र के सन्तुलन को प्रभावित करता है। इस असन्तुलन से कई अन्य द्वितीय अनुक्रमण आते हैं।

4. प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है। इसने पर्यावरण के वास्तविक रूप को लगभग नष्ट कर दिया है और सामान्य पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पर्यावरण असन्तुलन से ही प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-बाढ़ भूकम्प, बीमारियाँ, और कई जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं। विशेष आवास स्थानों में पौधों व प्राणी समुदायों में घनिष्ठ अन्तर्सम्बन्ध पाए जाते हैं। निश्चित स्थानों पर जीवों में विविधता वहाँ के पर्यावरणीय कारकों का संकेतक है। इन कारकों का समुचित ज्ञान व समझ ही पारितन्त्र के संरक्षण व बचाव के प्रमुख आधार हैं।

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प्रश्न 3.
विश्व में मिलने वाले प्रमुख बायोमों का वर्णन करो।
उत्तर:
स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र विश्व के प्रमुख बायोम हैं-उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय सवाना, भूमध्यसागरीय गुल्म वन, पर्णपाती वन, घास भूमि, मरुस्थल, टैगा एवं टुंड्रा।
1. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन विस्तार:
यह बायोम विषुवतरेखीय क्षेत्रों में स्थित है, जहाँ वार्षिक वर्षा 140 से०मी० से अधिक है। यह पृथ्वी के धरातल का लगभग 8 प्रतिशत भाग घेरे हुए है, लेकिन आधे से अधिक वनस्पतिजात तथा प्राणिजात को संजोए है। वनस्पति-वनस्पति जीवन में काफ़ी भिन्नता है, जो प्रत्येक हेक्टेयर भूमि पर वृक्षों की 200 से अधिक प्रजातियों के रूप में देखी जा सकती है। यहाँ की गर्म तथा आर्द्र जलवायु में चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष उगते हैं, जिनका विशिष्ट स्तरण होता है। इनमें एक सबसे ऊपर का स्तर होता है, जिसके नीचे पेड-पौधों का दो से तीन स्तर होता है। सबसे लंबे पेड़ ऊपर से एक खुला वितान आवरण बनाते हैं, लेकिन निचले शिखर-स्तर भूमि तक सूर्य प्रकाश को नहीं पहुँचने देते।

प्रकाश पाने की होड़ में वृक्षों और पौधों पर चढ़ती बेलें आपस में गुंथ कर फंदा जैसा बनाती हैं। इन बेलों को कठलता या लियाना कहते हैं। पशु जीवन का बाहुल्य है और उसमें काफ़ी भिन्नता है। इनमें भूमि पर तथा वृक्षों पर रहने वाले दोनों जीव शामिल हैं। जानवरों में बंदर, सांप, चींटी भक्षक, उष्णकटिबंधीय पक्षी, चमगादड़, विशाल मांसाहारी जानवर तथा नदियों में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ शामिल हैं। सभी ज्ञात कीटों की प्रजातियों में से लगभग 70 से 80 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में मिलती है।

2. उष्णकटिबंधीय सवाना:
उष्णकटिबंध की सीमाओं पर, जहाँ वर्षा मौसमी है, मोटी घास और बिखरे हुए वृक्ष पाए जाते हैं, जिन्हें सवाना कहते हैं। यहां एक के बाद एक आई और शुष्क मौसम का क्रम चलता रहता है। पौधे एवं पशु शुष्कता सहन करने वाले होते हैं और अधिक भिन्नता नहीं रखते । यह बायोम सर्वाधिक प्रकार के खुरवाले शाकाहारी पशुओं की प्रजातियों, जैसे जेबरा, जिराफ, हाथी तथा अनेक प्रकार के हिरनों का पोषण करती है। ऑस्ट्रेलिया के सवाना मैदानों में कंगारू पाया जाता है।

3. भूमध्यसागरीय गुल्म वन:
इस बायोम को बांज वन या चैपेरल भी कहते हैं। यहाँ की विशेषता अल्प मात्रा में होने वाली शीत ऋतु की वर्षा है। इसके पश्चात् वर्ष के शेष भाग में शुष्क मौसम रहता है। समुद्र की आई एवं ठंडी हवा के प्रभाव से तापमान सामान्य रहता है। इस बायोम में चौड़ी पत्ती वाली सदाबहार वनस्पति मिलती है। यह बायोम अग्निरोधी रेज़िनी पौधों तथा शुष्कता अनुकूलित पशुओं में बनी है।

4. पर्णपाती वन:
ये वन उत्तरी मध्यवर्ती यूरोप, पूर्वी एशिया तथा पूर्वी संयुक्त राज्य के शीतोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यहां वार्षिक वर्षा 75 से 150 से०मी० तक होती है। शरद ऋतु आते ही अधिकांश पेड़ और झाड़ियाँ पत्ते गिराकर पर्णविहीन हो जाते हैं। इस वनस्पति में चौड़ी पत्ती वाले कठोर लकड़ी के वृक्ष जैसे बांस, एल्म, भुर्ज, मैपिल तथा हिकरी आते हैं। प्राणिजगत् में मेढक, कछुए, सैलामैंडर, सांप, छिपकली, गिलहरी, खरगोश, हिरण, भालू, रैकून, लोमड़ी तथा गायक पक्षी शामिल हैं।

5. घासभूमि:
कनाडा तथा संयुक्त राज्य के प्रेरीज, दक्षिणी अमेरिका के पम्पास, यूरोप व एशिया के स्टेपीज़ तथा अफ्रीका के वेल्ड्स प्रमुख घास भूमियाँ हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा 25 से 75 से०मी० है। शीत ऋतु में बर्फानी तूफान आते हैं और गर्मियों की शुष्कता असहनीय हो सकती है। समय-समय पर आग लगने से बड़ी हानि होती है। यहाँ पौधों की मुख्य प्रजाति छोटी एवं ऊँची घास है। पशु प्रजातियों में भरत पक्षी, बिलकारी उल्लू, दुनुकी सींग वाले बाहरसिंगा, बैज़र, काइयोट, जैकरैबिट, तथा गौर शामिल हैं।

6. मरुस्थल:
अत्यधिक कम वर्षा तथा उच्च वाष्पन की दर मरुस्थलों की विशेषताएँ हैं। तेज़ धरातलीय प्रवाह के कारण कम वर्षा से प्राप्त जल भी पौधों को प्राप्त नहीं होता। दिन अत्यधिक गर्म तथा रात ठंडी होती है। तापमान का मौसमी उतार-चढाव काफ़ी होता है। मरुस्थलों में पेड़-पौधे तथा जीव-जंतु कम होते हैं। विभिन्न प्रकार के एकेशिया, कैक्टस, यूफोर्बियाज़ तथा अन्य गूदेदार पौधे मरुस्थली वनस्पति में शामिल हैं। चींटियाँ, टिड्डियाँ, ततैये, बिच्छू, मकड़ी, छिपकली, रटल सांप तथा अनेक कीट-भक्षी पक्षी जैसे-बतासी और अबाबील, बटेर, बत्तख, मरू चूहे, खरगोश, लोमड़ी, गीदड़ तथा विभिन्न बिल्लियाँ सामान्य मरुभूमि पशु हैं।

7. टैगा:
उत्तरी शंकुधारी वन, जिन्हें टैगा कहते हैं, में पौधों का वर्धन काल केवल 150 दिन के लगभग है। क्योंकि यहाँ की भौतिक दशाएँ परिवर्तनशील हैं, इसलिए यहाँ जीवों को तापमान के उतार-चढ़ाव का प्रतिरोधी होना पड़ता है। चीड़, देवदार, फर, हेम्लॉक तथा स्यूस यहाँ की प्रमुख वनस्पतियाँ हैं। कुछ क्षेत्रों में वनस्पति इतनी घनी है कि वनों के धरातल तक बहुत कम प्रकाश पहुँच पाता है। आर्द्र क्षेत्रों में काई तथा पर्ण या पांग बहुतायत से उगते हैं। यह बायोम एल्क, तित्तिरी, हिरण, खरगोश, गिलहरी, प्यूमास, वनविडाल तथा कीटों की अनेक प्रजातियों के लिए अनुकूल आवास है।

8. टुंड्रा
ये वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ से ढंके रहते हैं तथा जहाँ मृदा सालों भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान तथा कम प्रकाश जीवन को सीमित करने वाले कारक हैं। हिमपात कम होता है। वनस्पति इतनी बिखरी हुई है कि इसे आर्कटिक मरुस्थल भी कहते हैं। यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, प्रतृण, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं। हिमशीतित मृदा का मौसमी पिघलाव भूमि के कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

पृथ्वी पर जीवन  JAC Class 11 Geography Notes

→ जैव-मण्डल (Biosphere): जैव मण्डल वह भाग है जहां सभी प्रकार के जीवन (मानव, वनस्पति तथा जन्तु) पाये जाते हैं। स्थल-मण्डल, जल-मण्डल तथा वायुमण्डल के सम्पर्क क्षेत्र में एक पतली परत को जैव मण्डल कहते हैं।
→ पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-systems): स्थल आकृतियां, वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं में अन्तः क्रिया को । पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं। इसमें जैविक तथा अजैविक दो प्रकार के घटक होते हैं।

→ ऊर्जा प्रवाह (Energy flow): इस तन्त्र में ऊर्जा तथा खनिज एक चक्र में प्रवाह करते हैं। पौधे प्रकाश ! संश्लेषण क्रिया द्वारा और ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। एक स्तर से दूसरे स्तर से ऊर्जा परिवर्तन से एक खाद्य शृंखला बनती है।

→ मानवीय प्रभाव (Human Effect): मानव ने प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा हस्तक्षेप से पारिस्थितिक | सन्तुलन को बिगाड़ दिया है। अति पशु चारण, वनों की कटाई तथा स्थानांतरित कृषि से कई समस्याएं उत्पन्न | हो गई हैं।

→ मानवीय अनुक्रिया (Human Response): मानव वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वातावरण में मनुष्य की भूमिका को मानवीय अनुक्रिया कहते हैं। मानव को भौतिक

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे सम्बन्धित है?
(A) ज्वार
(C) धाराएं
(B) तरंग
(D) ऊपर में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) ज्वार।

2. निम्नलिखित में से कौन-सी गर्म धारा नहीं है?
(A) खाड़ी की धारा
(B) केलीफ़ोर्निया की धारा
(C) मोज़म्बीक धारा
(D) उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा।
उत्तर:
(B) केलीफ़ोर्निया की धारा।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

3. कालाहारी मरुस्थल के पश्चिम में बहने वाली धारा कौन-सी है?
(A) कनारी
(B) बेंगुएला
(C) इरमिंजर
(D) गल्फ स्ट्रीम।
उत्तर:
(B) बेंगुएला।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:
प्रश्न 1.
महासागरीय धाराएं क्या हैं?
उत्तर:
महासागरीय धारा जल की एक राशि का एक नि चत दिशा में लम्बी दूरी तक सामान्य संचलन है। सागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।

प्रश्न 1.
तरंग का वेग कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
संचलन करती हुई तरंग का वेग निम्न विधि से निश्चित किया जा सकता है
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 1
दो क्रमिक शृंगों अथवा गर्तों के मध्य की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं। किसी निश्चित बिन्दू से ये निकलने वाले दो क्रमिक तरंगों के बीच के समय को तरंग आवर्त काल कहते हैं।

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प्रश्न 2.
ठण्डी एवं गर्म महासागरीय धाराओं में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
महासागरीय धाराएं सामान्यतः दो प्रकार की होती हैं-गर्म धाराएं तथा ठण्डी धाराएं। गर्म धाराएं ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के निम्न अक्षांशों से शीतोष्ण कटिबन्धीय तथा उप ध्रुवीय क्षेत्रों के उच्च अक्षांशों की ओर प्रवाहित होती हैं। ठण्डी धाराएं उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहती हैं।

प्रश्न 3.
महासागरीय धारा का वेग कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
जल के धरातल के ऊपर से बहती हुई हवा, उसके तल पर कर्षण बल का प्रयोग करती है, जिससे धरातलीय जल स्तर गतिमान हो उठता है। कर्षण बल से धाराओं की उत्पत्ति होती है। कर्षण बल तथा पवनों के वेग से धाराओं की वेग का पता चलता है।

प्रश्न 4.
यदि महासागरीय धाराएं न होती तो विश्व का क्या हुआ होता?
उत्तर:
महासागरीय धाराओं के अभाव से विश्व की जलवायु, व्यापार तथा समुद्री जीवों पर बहुत प्रभाव पड़ता। यूरोप की जलवायु सुहावनी न होती। शीतोष्ण कटिबन्ध में वर्षा कम होती। महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर मरुस्थल न होते। यूरोप का तट व्यापार के लिए वर्ष भर खुला न रहता। कई प्रदेशों में मत्स्य क्षेत्रों का विकास न होता।

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प्रश्न 2.
जल धाराएं तापमान को कैसे प्रभावित करती है? उत्तर पश्चिमी यूरोप के तटीय क्षेत्रों में तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
समुद्री धाराओं के प्रभाव (Effects of Ocean Currents): समुद्री धाराएं आसपास के क्षेत्रों में मानव जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है।

जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)
जलवायु (Climate): जिन तटों पर गर्म या ठण्डी धाराएं चलती हैं वहां की जलवायु क्रमश: गर्म या ठण्डी हो जाती है।
तापक्रम (Temperature): धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या शीत ले जाती हैं। गर्म धारा के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापक्रम ऊंचा हो जाता है तथा जलवायु कम हो जाती है। ठण्डी धारा के कारण शीतकाल में तापक्रम बहुत नीचा हो जाता है तथा जलवायु विषम व कठोर हो जाती है।
उदाहरण (Examples):

  1. लैब्रेडोर (Labrador) की ठण्डी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट तथा क्यूराइल (Kurile) की ठण्डी धारा के प्रभाव से साइबेरिया का पूर्वी तट शीतकाल में बर्फ से जमा रहता है।
  2. खाड़ी की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूह तथा नार्वे के तटीय भागों का तापक्रम ऊंचा रहता है और जल शीतकाल में भी नहीं जमता। जलवायु सुहावनी तथा सम रहती है।

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प्रश्न 3.
तरंगों तथा धाराओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:

तरंगें धाराएं
(1) तरंगों का आकार जल की गहराई पर निर्भर करता है। (1) धाराएं जल की विशाल राशियां होती हैं।
(2) ये बनती तथा बिगड़ती रहती हैं एवं अस्थायी होती हैं। (2) धाराएं स्थाई होती हैं तथा एक ही दिशा में गतिमान होती हैं।
(3) तरंगें जल की ऊपरी सतह पर चलती हैं। (3) धाराओं का प्रभाव अधिक गहराई तक होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
महासागरीय जल-धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं? इनके स्वभाव और उत्पत्ति को निर्धारित करने वाले कारक बताओ।
उत्तर:
समुद्री धाराएं (Ocean Currents)-सागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर एक विशेष दिशा में जल के लगातार प्रवाह को समुद्री धारा कहते हैं। (“Regular movement of water from one part of the ocean to another is called an ocean current.”) समुद्री धाराओं में जल नदियों की भांति आगे बढ़ता है। इनके किनारे स्थिर जल वाले होते हैं। इन्हें समुद्री नदियां भी कहते हैं। (“An ocean current is like a river in the ocean.”) धाराओं के उत्पन्न होने के कारण (Causes)-समुद्री धाराओं के उत्पन्न होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

1. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds):
वायु अपनी अपार शक्ति के कारण जल को गति प्रदान करती है। धरातल पर चलने वाली पवनें (Planetary Winds) लगातार एक ही दिशा में चलने के कारण धाराओं को जन्म देती हैं। संसार की मुख्य धाराएं स्थायी पवनों की दिशा के अनुसार चलती हैं। (Ocean currents are wind determined.) मौसमी पवनें (Seasonal Winds) भी धाराओं की दिशा व उत्पत्ति में लायक होती हैं।
उदाहरण (Examples):

  1. व्यापारिक पवनें (Trade winds): द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराएं (Equatorial Currents) पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं।
  2. पश्चिमी पवनों (Westerlies): के प्रभाव से खाड़ी की धारा (Gulf Stream) तथा कयूरोसिवो (Kuroshio) धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

2. तापक्रम में भिन्नता (Difference in Temperature):
गर्म जल हल्का होकर फैलता है तथा उसकी ऊँचाई बढ़ जाती है। ठण्डा जल भारी होने के कारण नीचे बैठ जाता है। कम ताप के कारण ठंडा जल सिकुड़ कर भारी हो जाता है। इस प्रकार समुद्र जल की सतह समान नहीं रहती तथा धाराएं चलती हैं।

3. खारेपन में भिन्नता (Difference in Salinity):
अधिक खारा जल भारी होने के कारण, तल के नीचे की ओर बहता है। कम खारा जल हल्का होने के कारण तल पर ही बहता है।
उदाहरण (Examples):

  1. रूम सागर से अधिक खारे जल की धारा तल के नीचे अन्ध महासागर की ओर बहती है।
  2. बाल्टिक सागर (Baltic Sea) से कम खारे जल की धारा तल पर उत्तरी सागर (North Sea) की ओर बहती है।

4. वाष्पीकरण तथा वर्षा की मात्रा (Evaporation and Rainfall):
अधिक वाष्पीकरण से जल भारी तथा अधिक खारा हो जाता है और तल नीचा हो जाता है परन्तु वर्षा अधिक होने से जल हल्का हो जाता है और उसका तल ऊंचा हो जाता है। इस प्रकार ऊंचे तल से नीचे तल की ओर धाराएं चलती हैं।

5. पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation):
फैरल के सिद्धान्त (Ferral’s Law) के अनुसार धाराएं उत्तरी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं। पृथ्वी की गति के कारण धाराओं का प्रवाह गोलाकार बन जाता है। उदाहरण (Examples): धाराओं का चक्कर उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा के अनुकूल (Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anticlockwise) चलता है।

6. तटों के आकार (Shape of Coasts):
तटों के आकार धाराओं के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर देते हैं। समुद्र जल तटों से टकराकर धाराओं के रूप में बहने लगता है। धाराएं तट के सहारे मुड़ जाती हैं। यदि स्थल प्रदेश न होते तो पृथ्वी के गिर्द एक.महान् भूमध्य रेखीय धारा (Great Equatorial Current) चलती है। उदाहरण (Examples): ब्राज़ील (Brazil) के नुकीले तट पर केप सेन-रॉक अन्तरीप (Cape San Roque) से टकराकर भूमध्य रेखीय धारा ब्राजील की धारा के रूप में बहती है।

7. ऋतु परिवर्तन (Seasons):
मौसम के अनुसार हवाओं की दिशा में परिवर्तन होने के कारण धाराओं की दिशा भी बदल जाती है। हिन्द महासागर में ग्रीष्म ऋतु में (S.W. Monsoon Drift) तथा शीत ऋतु में (N.E. Monsoon Drift) बहती है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

महासागरीय जल संचलन JAC Class 11 Geography Notes

→ महासागरीय जल की गतियां (Movements of Ocean Water): महासागरीय जल सदा गतिशील रहता है। इसकी तीन गतियां हैं

  • तरंगें
  • धाराएं
  • ज्वार-भाटा।

→ महासागरीय जल का तापमान (Temperature in Oceans): महासागरीय जल का तापमान गहराई के साथ घटता रहता है। औसत रूप से भू-मध्य रेखा पर वार्षिक तापमान 26°C तथा ध्रुवीय प्रदेशों में 0°C रहता
है। तैरते हुए हिमखण्डों को हिम शैल कहते हैं, जो अधिकतर ग्रीन लैंड के निकट पाये जाते हैं।

→ महासागरों में लवणता (Salinity in Oceans): समुद्र जल में पाये जाने वाले समस्त लवणों के योग को समुद्र की लवणता कहते हैं। औसत लवणता 35 प्रति हजार ग्राम है। सबसे अधिक लवणता कर्क रेखा तथा मकर । रेखा के निकट 37 प्रति हजार ग्राम है। वैन झील में 330 तथा मृत सागर में 238 लवणता है।

→ महासागरीय धाराएं (Ocean Currents): महासागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर एक विशेष दिशा में जल के लगातार प्रवाह को सागरीय धारा कहते हैं। यह प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती हैं। गर्म धाराएं भू-मध्य रेखा से ध्रुवों की ओर तथा ठण्डी धाराएं ध्रुवों से भू-मध्य रेखा की ओर चलती हैं।

→ अन्ध महासागर की धाराएं (Currents of Atlantic Ocean): उत्तरी अन्धमहासागर में धाराएं घड़ी की सूइयों की दिशा में चक्र पूरा करती हैं परन्तु दक्षिणी अन्ध महासागर में घड़ी की सूइयों की विपरीत दिशा में | चक्र पूरा करती हैं। खाड़ी की गर्म धारा पश्चिमी यूरोप की जलवायु को सुहावना बनाती है। इसे यूरोप की जीवन रेखा भी कहते हैं। अधिकतर मरुस्थल ठण्डी धाराओं वाले तटों पर स्थित हैं।

→ प्रशान्त महासागर की धाराएं (Currents of Pacific Ocean): एशिया के तट पर क्यूराइल तथा क्यूरोशिया धारा बहती है। दक्षिणी अमेरिका के तट पर पेरू की ठण्डी धारा के कारण अटाकामा मरुस्थल | स्थित है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल 

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन।
उत्तर:
(C) जलयोजन।

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है
(A) 2-20 मीटर
(B) 20-200 मीटर
(C) 200–2,000 मीटर
(D) 2,000-20,000 मीटर।
उत्तर:
(C) 200-2,000 मीटर।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सी उच्चावच महासागरों में मिलने वाली लघु आकृति नहीं है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप।
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर।

4. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिन्द महासागर
(B) अन्ध महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशान्त महासागर।
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर।

5. लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम।
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दोप्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह अथवा नीला ग्रह कहा जाता है, क्योंकि इसके धरातल पर जल का बाहुल्य है। पृथ्वी के धरातल का 71 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है। उत्तरी गोलार्द्ध के कुल क्षेत्रफल के 60.7 प्रतिशत भाग पर और दक्षिणी गोलार्द्ध के 80.9 प्रतिशत भाग पर जल है। यदि हम पृथ्वी के केवल जलीय धरातल को ध्यान में रखें तो इसका 43 प्रतिशत उत्तरी गोलार्द्ध में तथा 57 प्रतिशत दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है।

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प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमान्त क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय शेल्फ को महाद्वीपीय सीमान्त कहते हैं जहां महाद्वीप समाप्त होते हैं तथा महासागर आरम्भ होते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइए।
उत्तर:
संसार में सबसे गहरा गर्त कैरियाना गर्त (प्रशान्त महासागर) है। जो 11022 मीटर गहरा है। अन्ध महासागर में प्यरटो रिको गर्त तथा हिन्द महासागर में सण्डा गर्त है। प्रशान्त महासागर में क्यूराईल गर्त, बोनिन गर्त, जापान गर्त, अटाकामा गर्त तथा मिण्डानो गर्त प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
ताप प्रवणता क्या है?
उत्तर:
महासागरों में वह सीमा क्षेत्र जहां तापमान में तीव्र गिरावट आती है ताप प्रवणता कहलाता है।

प्रश्न 5.
जल चक्र की व्याख्या करो।
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, 169 जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र से मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहाँ से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है: वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

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प्रश्न 6.
समुद्र से नीचे जाने पर आप ताप की किन पर्तों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान में कमी आती है। महासागर के सतहीय एवं गहरी परतों वाले जल के बीच विभाजक क्षेत्र है। यह विभाजक रेखा समुद्री तल से करीब 100 से 400 मीटर नीचे प्रारम्भ होती है एवं कई सौ मीटर नीचे तक विस्तृत (थर्मोक्लाइन) होती है। विभाजक रेखा के इस क्षेत्र में जहां तापमान में तीव्र कमी आती है, उसे ताप प्रवणता कहा जाता है। जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। मध्य एवं निम्न अक्षांशों के महासागरों के तापमान की बनावट को सतह से तल की स्थित तीन स्तरीय प्रणाली के द्वारा समझाया जा सकता है।

  1. पहली परत यह गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है एवं इसका तापमान 20 डिग्री से० से 25 डिग्री से० के बीच होता है तथा इसकी मोटाई लगभग 500 मीटर होती है। कटिबन्धीय क्षेत्रों में यह परत पूरे वर्ष उपस्थित होती है, परन्तु मध्य अक्षांशों में केवल गर्मी में विकसित होती है।
  2. दूसरी परत को ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) परत कहा जाता है, जो कि पहली परत के नीचे उपस्थित होती है एवं गहराई के बढ़ने के साथ इसके तापमान में तीव्र गिरावट आती है। थर्मोक्लाइन की मोटाई 500 से 1,000 मीटर तक होती है।
  3. तीसरी परत बहुत अधिक ठण्डी होती है तथा गहरे समुद्री तल तक विस्तृत होती है। आर्कटिक एवं अटार्कटिक वृत्तों में, ऊपरी सतह के जल का तापमान लगभग 0 डिग्री से० होता है, इसीलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। यहां ठण्डे पानी की एक ही परत उपस्थित होती है जो कि ऊपरी सतह से लेकर महासागर के गहरे तल तक विस्तृत होती है।

प्रश्न 7.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
समुद्र जल में पाए जाने वाले समस्त लवणों का योग समुद्र की लवणता कहलाता है। महासागरीय लवणता उस अनुपात को कहते हैं जो घुले हुए लवणों की मात्रा तथा समुद्र जल की मात्रा में होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्त्व किस प्रकार अन्तर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
महासागरों से जल वाष्पित होकर वायुमण्डल द्वारा उठा लिया जाता है। संघनित होकर यह जल भू-पृष्ठ पर वर्षा, ओले, हिम आदि के रूप में लौट आता है। वर्षण का कुछ भाग पेड़-पौधों तथा भूमि को भिगोने के पश्चात् भू-पृष्ठ पर बहकर नदी-नालों में चला जाता है। यह जल ही है, जो कभी अपरदन भी करता है और जिसका बाढ़ उत्पन्न करने में मुख्य योगदान है। वर्षण का वह भाग, जो भूमि द्वारा सोख लिया जाता है, उसका कुछ अंश पौधों के वर्धन में और कुछ वाष्पन में उपयोग कर लिया जाता है।

कुछ जल पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों में चला जाता है, और झरनों के रूप में बाहर आता है तथा शुष्क मौसम में नदीनालों को संपोषित रखता है। नदियां अंततः समुद्र में मिलती हैं, और इस प्रकार जल फिर वहीं पहुंच जाता है, जहां से जल-चक्र आरम्भ हुआ था। कभी न समाप्त होने वाले परिसंचरण के कारण ही इस प्रक्रिया को जलचक्र कहते हैं। जल चक्र की गणितीय अभिव्यक्ति निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है : वर्षण = जलप्रवाह + वाष्पनवाष्पोत्सर्जन।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
सागरीय जल ताप का एक उत्तम संचालक है। इसी कारण जल, स्थल की अपेक्षा देर से गर्म होता है तथा देर से ठण्डा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक समान नहीं होता। सागरीय जल के तापमान का वितरण निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करता है
1. भूमध्य रेखा से दूरी:
सागरीय जल की ऊपरी सतह का तापमान अक्षांश के साथ हटता रहता है। भूमध्य रेखा पर यह तापमान 26°C के लगभग रहता है। 40° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 14°C पाया जाता है तथा 60° अक्षांश पर 1°C। शून्य डिग्री सेल्सियस समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के गिर्द वृत्त बनाती है।

2. प्रचलित पवनें:
स्थायी पवनें समुद्र जल की ऊपरी परत को हटाती रहती हैं तथा नीचे से ठण्डा जल आ जाता है। इस उत्स्रवण (Up welling of water) की क्रिया से तापमान कम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र से स्थल की
ओर आने वाली पवनें गर्म जल इकट्ठा करके तापमान को बढ़ा देती हैं।

3. महासागरीय धाराएं:
महासागरीय धाराएं तापमान में समानता लाने का प्रयत्न करती हैं। गर्म धाराएं ठण्डे प्रदेशों में तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण गल्फस्ट्रीम के कारण ही पश्चिमी यूरोप में तापमान 5°C से अधिक रहता है। इसके विपरीत ठण्डी धाराएं तापमान को ओर भी कम कर देती हैं, ठण्डी लेब्रेडोर धारा के कारण न्यूफाऊण्डलैण्ड के निकट तापमान 2°C से कम होता है।

4. लवण मे भिन्नता:
अधिक लवण वाले जल का तापमान ऊंचा होता है क्योंकि वह अधिक गर्मी ग्रहण कर सकता है।

5. स्थल खण्डों की स्थिति:
उष्ण कटिबन्ध में स्थल के घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है परन्तु शीत कटिबन्ध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई:
समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान कम होता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15°C से घटकर 2°C रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से घटकर 1.6°C रह जाता है।

7. अंतः समुद्री रोधिकाएं (Submarine Ridges):
कम गहरे भागों में पानी के नीचे रोधिकाएं तापमान में अन्तर डालती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

महासागरीय जल  JAC Class 11 Geography Notes

→ जल तथा स्थल वितरण (Distribution of Land and Water): पृथ्वी के धरातल का तीन चौथाई। भाग (70.8%) जल से ढका हुआ है। जबकि एक चौथाई भाग (29.2%) स्थल से घिरा है।

→ प्रमुख महासागर (Oceans): प्रशान्त महासागर, अन्ध महासागर, हिन्द महासागर तथा आर्कटिक महासागर प्रमुख महासागर हैं। प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा महासागर है।

→ सागरीय धरातल (Ocean floor): सागरीय धरातल को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  • महाद्वीपीय मग्न तट
  • महाद्वीपीय ढाल
  • महासागरीय मैदान
  • महासागरीय गर्त।

→ महाद्वीपीय मग्न तट (Continental shelf):यह महाद्वीपों के चारों ओर कम गहरा तथा मंद ढलान वाला जलमग्न भाग है। इसकी रचना नदियों, लहरों द्वारा तलछट के निक्षेप से या समुद्र तल के ऊपर उठने से या  स्थल भाग के नीचे धंसने से होती है। (600 मीटर गहराई)

→ महाद्वीपीय ढाल (Continental slope): यह महाद्वीपीय मग्न तट से नीचे की ओर तीव्र ढलान है। इसकी गहराई 3660 मीटर तक है।

→ महासागरीय मैदान (Deep Sea plain): समुद्र में चौड़े तथा समतल क्षेत्र को महासागरीय मैदान कहते हैं। जो 3000 से 6000 मीटर गहरा है।

→ महासागरीय गर्त (Ocean deep): महासागरों में सबसे गहरा स्थान मैरियाना गर्त (11033 मीटर) है। महासागरों में ‘V’ आकार की घाटियां (समुद्री कैनियन) पाई जाती हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन-सी दशा अर्हक है?
(A) सभी महीनों में उच्च वर्षा
(B) सबसे ठण्डे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिन्दु से अधिक
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक
(D) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे।
उत्तर:
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक।

2. जलवायु के वर्गीकरण से सम्बन्धित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है
(A) अनुप्रयुक्त
(B) व्यवस्थित
(C) जननिक
(D) आनुभाविक।
उत्तर:
(D) आनुभाविक।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

3. भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा
(A) “AF”
(B) “BSh”
(C) “Cfb”
(D) “Am”
उत्तर:
(D) “Am”

4. निम्नलिखित में से कौन-सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना जाता है-जाएगा?
(A) 1990
(B) 1998
(C) 1885
(D) 1950
उत्तर:
(B) 1998

5. नीचे लिखे गए चार जलवायु के समूहों में से कौन आई दशाओं को प्रदर्शित करता है?
(A) A-B-C-E
(B) A-C-D-E
(C) B-C-D-E
(D) A-C-D-F
उत्तर:
(D) A-C-D-F

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

6. विश्व में उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु किन अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°-20°
(B) 15°-30°
(C) 15°-35°
(D) 30°-40°
उत्तर:
(B)15°-30°.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की। उन्होंने वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आंकड़ों का प्रयोग किया।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जननिक वर्गीकरण जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास हैं। परन्तु, आनुभविक वर्गीकरण प्रेक्षित किए गए विशेष रूप से तापमान एवं वर्षण से सम्बन्धित आंकड़ों पर आधारित होता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु (Af)
  2. समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु (cfb)

प्रश्न 4.
सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएं प्रचलित होगी?
उत्तर:
सौर कलंकों की संख्या बढ़ने से मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफ़ानों की संख्या बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
A एवं B प्रकार को जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु:
यह जलवायु उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु है, जो मकर रेखा और कर्क रेखा के बीच पाई जाती है। यहाँ वार्षिक तापांतर बहुत कम होता है। तापमान समान रूप से ऊँचा रहता है (30°C) मानसून क्षेत्रों में सीत ऋतु, शुष्क होती है।

B प्रकार की जलवायु:
यह शुष्क जलवायु है जहां न्यून वर्षा होती है। यह जलवायु 15° -60° उत्तर व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य मिलती है। यहां उत्तरती पवनों के कारण वर्षा कम होती है। महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में भी वर्षा कम होती है इसमें स्टैपी तथा अर्द्ध मरुस्थली जलवायु मिलती हैं। ग्रीष्म काल में तापमान ऊँचे रहते हैं।

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प्रश्न 6.
C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएंगे?
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु में उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित वन पाए जाते हैं। मानसून क्षेत्रों में पर्णपाती वन तथा घास के मैदान पाए जाते हैं।
C प्रकार की जलवायु में शीतोष्ण कटिबन्धीय बन पाए जाते हैं। शुष्क क्षेत्रों में लम्बी जड़ों वाले मोटे पत्तों वाले वृक्ष पाए जाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Question)

प्रश्न-ग्रीन हाउस गैसों से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न 1.
ग्रीन हाउस गैसों की सूची तैयार करो।
उत्तर:

ग्रीन हाउस प्रभाव

भू-पृष्ठ से वायुमंडल के अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होने की संकल्पना को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं, जिसे सामान्यतः सूर्यातप (लघु तरंगें) वायुमंडली प्रभाव भी कहते हैं। स्पष्टतया वायुमंडल का प्रभाव एक शीशे की भान्ति काम करता है, जो आने वाली सौर ऊर्जा की लघु तरंगों को अपने से होकर गुज़रने देता है, लेकिन बाहर जाने वाले पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों को रोकता कांच है। इस प्रकार यह भू-पृष्ठीय तापमान को उस तापमान से कांच ऊँचा रखता है, जो इस प्रक्रिया के अभाव में होता है। आप स्वयं एक ग्रीन हाउस का निर्माण कर सकते हैं।

खिड़कियां बन्द करके अपनी कार को दो घंटे के लिए धूप में खड़ी कर पृथ्वी दीजिए। अब कार के अंदर के तापमान का अनुभव कीजिए। यह बाहर के तापमान से अधिक होगा। शीत ऋतु में, ग्रीन लघु तरंगों दीर्घ तरंगों के रूप का अवशोषण में ऊष्मा विकिरण हाउस में कांच की छत की पारदर्शिता का उपयोग लघु तरंगों को ट्रैप करके टमाटर उगाने के लिए किया जा सकता है।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन 1

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन JAC Class 11 Geography Notes

→ जलवायु (Climate): किसी स्थान पर एक लम्बे समय की वायुमण्डलीय दशाओं (35 वर्ष के कुल योग। को जलवायु कहते हैं। यह एक लम्बे समय का औसत मौसम होता है।

→ जलवायु के तत्त्व (Elements of Climate): जलवायु के निम्नलिखित तत्त्व हैं

  • अक्षांश
  • समुद्र तल से ऊंचाई
  • जल व स्थल का वितरण
  • वायु दाब
  • प्रचलित पवनें
  • सागरीय धाराएं
  • पर्वतीय अवरोध।

→ जलवायु वर्गीकरण (Classification of Climate): यह जलवायु का एक क्रमबद्ध वर्णन है जिससे। सुगम रूप से विश्लेषण किया जा सके।

→ विभिन्न वर्गीकरण (Different Classification): जलवायु वर्गीकरण का प्रथम प्रयास यूनानी विद्वानों द्वारा किया गया। उन्होंने तापमान के आधार पर पृथ्वी को तीन भागों में बांटा है।

  • उष्ण कटिबन्ध
  • शीतोष्ण कटिबन्ध
  • शीत कटिबन्ध।

विभिन्न वर्गीकरण विभिन्न विद्वानों-कोपन, थार्नवेट तथा टिवार्था द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. मानव के लिए वायुमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(A) जलवाष्प
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) ऑक्सीजन।
उत्तर:
(D) ऑक्सीजन।

2. निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल द्रव से गैस में बदल जाता है?
(A) संघनन
(B) वाष्पीकरण
(C) वाष्पोत्सर्जन
(D) अवक्षेपण।
उत्तर:
(B) वाष्पीकरण।

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है?
(A) सापेक्ष आर्द्रता
(B) निरपेक्ष आर्द्रता
(C) विशिष्ट आर्द्रता
(D) संतृप्त हवा।
उत्तर:
(D) संतृप्त हवा।

4. निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊंचा बादल कौन-सा है?
(A) पक्षाभ
(B) मेघवर्षी
(C) स्तरी
(D) कपासी।
उत्तर:
(A) पक्षाभ।

5. भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
(A) पर्वतीय वर्षा
(B) चक्रवातीय वर्षा
(C) पर्वतीय वर्षा
(D) वाताग्रीय वर्षा।
उत्तर:
(B) पर्वतीय वर्षा।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिएप्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखो।
उत्तर:
किसी क्षेत्र पर वायु मण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वर्षण कहा जाता है। वर्षण मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं:

  1. वर्षा
  2. हिम वर्षा
  3. ओलावृष्टि
  4. ओस प्रश्न

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प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity):
किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। ग्रहण करने की क्षमता दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।
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प्रश्न 3.
ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर:
ऊंचाई के साथ जब हवा ऊपर उठती है तो वह फैलती है तथा तापमान गिर जाता है। आर्द्रता संघनित हो जाती है तथा वर्षा के रूप में गिरती है। इस प्रकार ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 4.
बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
वायु में धूलि कणों पर लदे जल बिन्दुओं के समूह को बादल कहते हैं। जल कण बादलों के रूप में तैरते रहते हैं। ऊंचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ-जो 10000 मीटर तक ऊंचे होते हैं। जैसे पक्षाभ, कपासी मेघ।
  2. मध्यम,स्तरीय मेघ-3000-6000 मीटर तक ऊंचे जैसे कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ-3000 मीटर से कम ऊंचे जैसे वर्षा मेघ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
प्रश्न 1.
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संसार में वर्षा का वितरण समान नहीं है। भूपृष्ठ पर होने वाली कुछ वर्षा का 19 प्रतिशत महाद्वीपों पर तथा 81 प्रतिशत महासागरों पर प्राप्त होता है। संसार की औसत वार्षिक वर्षा 975 मिलीमीटर है।

  1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेंटीमीटर है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय भागों में अधिक वर्षा होती है।
  2. सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में 100 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है। यह क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में स्थित हैं तथा मध्यवर्ती पर्वतों पर मिलते हैं।
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र-महाद्वीपों के मध्यवर्ती भाग तथा शीतोष्ण कटिबन्ध के पूर्वी तटों पर 25 से 100 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
  4. वर्षा विहीन प्रदेश-गर्म मरुस्थल, ध्रुवीय प्रदेश तथा वृष्टि छाया प्रदेशों में 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

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प्रश्न 2.
संघनन कैसे होता है? संघनन के विभिन्न रूप क्या हैं? ओस और तुषार बनने की प्रक्रिया बताओ।
उत्तर:
संघनन (Condensation):
जिस क्रिया द्वारा वायु के जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं। जल-कणों के वाष्प का गैस से तरल अवस्था में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं। (“Change of water-vapour into water is called condensation.”) वायु का तापमान कम होने से उस वायु की वाष्प धारण करने की शक्ति कम हो जाती है। कई बार तापमान इतना कम हो जाता है कि वायु जल-वाष्प को सहार नहीं सकती और जल-वाष्प तरल रूप में वर्षा के रूप में गिरता है। इस क्रिया के उत्पन्न होने के कई कारण हैं

  1. जब वायु लगातार ऊपर उठ कर ठण्डी हो जाए।
  2. जब नमी से लदी वायु किसी पर्वत के सहारे ऊंची उठ कर ठण्डी हो जाए।
  3. जब गर्म तथा ठण्डी वायु-राशियां आपस में मिलती हैं।

संघनन के परिणाम कई रूपों में प्रकट होते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
1. कोहरा (Fog):
वायु में अनेक प्रकार के जल-कण मिट्टी व रेत के कणों पर तैरते रहते हैं। कोहरा एक प्रकार का बादल है जो धरातल के निकट वायु में धूल के कणों पर लटके हुए जल-बिन्दुओं से बनता है। (“Fog is condensed vapour hanging in the air.”) ठण्डे धरातल या ठण्डी वायु के सम्पर्क से नमी से भरी हुई वायु जल्दी ठण्डी हो जाती है। वायु में उड़ते रहने वाले धूलि-कणों पर जल-वाष्प का कुछ भाग जल-बिन्दुओं के रूप में जमा हो जाता है जिससे वातावरण धुंधला हो जाता है तथा 200 मीटर से अधिक दूरी की वस्तु दिखाई नहीं देती और वायुयानों की उड़ानें स्थगित करनी पड़ती हैं।

यह प्राय: साफ़ तथा शान्त मौसम में, शीत ऋतु की लम्बी रातों के कारण बनता है जबकि धरातल पूरी तरह ठण्डा हो जाता है। इसे भूमि का कोहरा (Ground Fog) भी कहते हैं। नदियों, झीलों व समुद्रों के समीप के प्रदेशों में भी कोहरा मिलता है। औद्योगिक नगरों में धुएं के साथ उड़ी हुई राख पर जल-बिन्दु टिकने से कोहरा छाया रहता है। ऐसी धुएं मिली धुंध को Smog कहते हैं। न्यूफाउंडलैण्ड (Newfound-land) के तट पर खाड़ी की गर्म धारा तथा लैब्रेडोर की ठण्डी धारा मिलने के कारण कोहरा छाया रहता है।

2. धुन्ध (Mist):
हल्के कोहरे को धुन्ध कहते हैं। (“A thin fog is called Mist.) कोहरे तथा धुन्ध में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि दोनों एक जैसी दशाओं में बनते हैं। कोहरे की अपेक्षा धुन्ध में संघनता कम होती है तथा दो कि० मी० तक की दूरी पर भी वस्तुएं दिखाई पड़ जाती हैं। कोहरे में शुष्कता अधिक होती है, परन्तु धुन्ध में नमी अधिक होती है। जल की बूंदें बड़े आकार की होती हैं। शीत ऋतु में शीतोष्ण कटिबन्ध में धुन्ध एक साधारणसी बात है। सूर्य निकलने या तेज़ हवाओं के कारण धुन्ध जल्दी समाप्त हो जाती है।

3. मेघ (Clouds):
वायु के ठण्डे होने से या संघनन के कारण बादल बनते हैं। मुक्त वायु में धूलि-कणों पर लदे जल-बिन्दुओं के समूह को मेघ कहते हैं। वायु के ठण्डा होने से जल-वाष्प जल-कणों का रूप धारण कर लेते हैं। छोटे-छोटे कण आपस में मिल कर बड़े कणों की रचना करते हैं। ये इतने भारी नहीं होते कि वर्षा के रूप में नीचे गिरें। ये जल-कण वायु में तैरते रहते हैं तथा धूल के वाष्प-ग्राही कणों पर द्रव के रूप में जम जाते हैं। इन कणों के पुँज को मेघ कहते हैं। ज्योंही ये कण बड़ा रूप धारण कर लेते हैं तथा वायु से भारी हो जाते हैं तो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आ जाते हैं। मेघ 12,000 मीटर तक की ऊँचाई तक मिलते हैं क्योंकि इससे ऊपर जल-वाष्प नहीं होते।

बादलों के प्रकार (Types of Clouds)-ऊँचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ (High Clouds)-6,000 से 10,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-पक्षाभ, स्तरी तथा कपासी मेघ।
  2. मध्यम स्तरीय मेघ (Medium Clouds)-3,000 से 6,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-मध्य कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ (Low Clouds)-3,000 मीटर तक ऊंचे मेघ जिनमें स्तरीय कपासी मेघ, वर्षा स्तरी मेघ, कपासी मेघ, कपासी वर्षा मेघ शामिल हैं।

4. ओले (Hail Stones):
जब संघनन की क्रिया 0°C या 32°F से कम तापमान पर होती है तो जल-वाष्प हिम कणों में बदल जाते हैं। कई बार तूफान (Thunder Storm) के कारण होने वाली वर्षा में ये हिम-कण ठोस ओलों के रूप में गिरते हैं। नीचे से ऊपर जाने वाली धाराएं जल-कणों को बार-बार हिमकणों के सम्पर्क में लाती हैं तथा उनका आकार बड़ा हो जाता है। धाराओं के वेग के कम होने से ये नीचे गिरने लगते हैं।

5. हिम (Snow):
जब संघनन हिमांक (Freezing point = 32°F) से कम तापमान पर होता है तो जल-कण हिम में बदल जाते हैं और हिमपात (Snowfall) होता है। ठंडी तथा कम नमी वाली वायु द्वारा ही हिमपात होता है। अत्यन्त ठण्डे प्रदेशों में, ऊँचे पर्वतीय भागों में तथा टुण्ड्रा प्रदेश की समस्त वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

6. ओस (Dew):
पृथ्वी तल तथा कई वस्तुओं पर संघनित जल की छोटी-छोटी बूंदों को ओस कहते हैं। यह भूतल पर पेड़-पौधों, घास, टीन या स्लेट पर टिकी होती है। रात को धरातल विकिरण (Rapid radiation) के कारण बहुत ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु जल्दी ही संतृप्त हो जाती है।

जब इसका तापमान ओसांक से भी कम हो जाता है, तब संघनन होता है और कुछ जल–वाष्प जल-बूंदों के रूप में कई वस्तुओं पर बैठ जाता है। ओस के निर्माण के लिए ओसांक 0°C तापमान से ऊपर होना चाहिए। पंजाब में जनवरी में साफ आसमान के कारण रात को अधिक ओस पड़ती है। ओस बनने के लिए अनुकूल ये हैं

  1. लम्बी रातें (Long Nights)
  2. स्वच्छ व निर्मल आकाश (Clear Sky)
  3. शान्त वायुमण्डल का होना (Calm Atmosphere)
  4. वनस्पति का होना (Presence of Vegetation)
  5. उच्च सापेक्ष आर्द्रता (High Relative Humidity)

7. पाला (Frost):
जब संघनन की क्रिया हिमांक 0°C (32°F) से कम तापमान पर हो तो जलवाष्प ओस की बूंदों के रूप में नहीं गिरता. अपितु छोटे-छोटे सफेद हिम कणों के रूप में पृथ्वी तल पर परत के रूप में फैल जाता है। इसे पाला कहते हैं। इस प्रकार धरातल पर अधिक विस्तार में हिम कणों के जमाव को पाला कहते हैं।

शीत ऋतु में रात को घास, पेड़-पौधों, भूतल तथा जल की सतह पर हिम की परत के रूप में पाला जम जाता है। पर्वतीय घाटियों में वायु बहाव (Air Drainage) के कारण रात को पाला जम जाता है। मध्य अक्षांशों में शीत ऋतु में पाला साधारणसी बात है। पंजाब में कई बार जनवरी मास में पाला पड़ता है।

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वायुमंडल में जल JAC Class 11 Geography Notes

→ आर्द्रता (Humidity): वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। वायुमण्डल के कुल भार का 2% भाग जलवाष्प के रूप में मौजूद है। यह जलवाष्प महासागरों, समुद्रों, झीलों, नदियों आदि के जल से वाष्पीकरण द्वारा प्राप्त होता है।

→ ओसांक (Dew Point): संतृप्त वायु के ठण्डे होने से जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाता है। जिस तापमान पर किसी वायु का जलवाष्प जल रूप में बदलना शुरू हो जाता है उस तापमान को ओसांक कहते हैं। संघनन (Condensation)-जिस क्रिया द्वारा वायु के जलवाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं।

→ संघनन के रूप (Forms of Condensation)

  • पाला तथा हिम।
  • ओस, कोहरा, धुंध।
  • बादल।

→ निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity): किसी समय किसी तापमान पर वायु में जितनी नमी मौजूद हो उसे वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।

→ सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity): किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। किसी ताप पर विद्यमान वाष्प की मात्रा उसी ताप पर वायु का वाष्प ग्रहण करने की क्षमता। दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।

→ वृष्टि (Precipitation): किसी क्षेत्र पर वायुमण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वृष्टि कहा जाता है। वृष्टि मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं!

  • वर्षा
  • हिम वर्षा
  • ओला वृष्टि
  • ओस
  • पाला
  • सहिम वृष्टि।

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→ वर्षा (Rainfall): वायु में आर्द्रता ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का मुख्य कारण संतृप्त वायु का ठण्डा होना है। वर्षा की क्रिया कई पदों में होती है

  • संघनन।
  • बादलों का बनना।
  • मेघ से जल कणों का बनना। इस प्रकार जल कणों का पृथ्वी पर गिरना वर्षा कहलाता है।

→ वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall):

  • संवहनीय वर्षा-संवाहिक धाराओं के कारण संवहनीय वर्षा होती है।
  • पर्वतीय वर्षा- इस प्रकार की वर्षा किसी पर्वत के सहारे उठती हुई नम पवनों के कारण होती है। सम्मुख। ढलान पर अधिक वर्षा होती है, विमुख ढाल पर कम वर्षा होती है तथा यह वर्षा छाया प्रदेश होता है।
  • चक्रवातीय वर्षा- यह वर्षा गर्म तथा शीत वायु राशियों के मिलने से चक्रवातों के कारण होती है।

→ वर्षा का वितरण (Distribution of Rainfall): वर्षा के वितरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  • अक्षांश
  • समुद्र से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • महासागरीय धाराएं
  • ऊँचाई
  • पर्वतों की दिशा।

→ विश्व में वर्षा का वितरण

  1. भू-मध्य रेखीय प्रदेश भारी वर्षा वाले क्षेत्र
  2. व्यापारिक पवन पेटियां पूर्वी तटीय भागों पर वर्षा
  3. उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश – कम वर्षा वाले क्षेत्र (मरुस्थल)
  4. भूमध्य सागरीय प्रदेश – शीतकालीन वर्षा क्षेत्र
  5. ध्रुवीय क्षेत्र – इस प्रदेश में हिमपात होता है।।