JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. मृदा का निर्माण किस क्रिया द्वारा होता है?
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) परिवहन
(D) निक्षेप।
उत्तर:
अपक्षय।

2. मृदा में संयोजन के लिए कौन-सी क्रिया शक्ति नहीं है?
(A) जल
(B) ऊर्जा
(C) पवन
(D) अपरदन।
उत्तर:
अपरदन।

3. मृदा के निर्माण के रूप से महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) जनक पदार्थ
(B) जलवायु
(C) जीव पदार्थ
(D) स्थलाकृति।
उत्तर:
जनक पदार्थ।

4. क्षारीय मृदा का निर्माण किन क्षेत्रों में होता है?
(A) अधिक वर्षा वाले
(B) कम वर्षा वाले
(C) मूसलाधार वर्षा
(D) मरुस्थल में।
उत्तर:
कम वर्षा वाले।

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5. सबसे ऊपरी मृदा स्तर है
(A) अ
(B) ब
(C) स
(D) ओ।
उत्तर:

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. कण
  2. ह्यूमस
  3. खनिज

प्रश्न 2.
मिट्टी में निर्माणकारी सक्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
जलवायु तथा जैव पदार्थ।

प्रश्न 3.
मिट्टी में निर्माणकारी निष्क्रिय घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
वनस्पति, मल पदार्थ, भू-आकृति ।

प्रश्न 4.
मिट्टी में पाए जाने वाले वनस्पति अंश को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ह्यूमस।

प्रश्न 5.
मिट्टी के किस संस्तर में ह्यूमस अधिक होता है?
उत्तर:
अ’ संस्तर में ।

प्रश्न 6.
संस्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिट्टी की क्षैतिज परतों को संस्तर कहते हैं।

प्रश्न 7.
मिट्टी के भौतिक गुण बताओ।
उत्तर:

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

प्रश्न 8.
अम्लीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा कम होती है

प्रश्न 9.
क्षारीय मिट्टी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस मिट्टी में चूने की मात्रा अधिक होती है।

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प्रश्न 10.
अनावरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों को अपरदन द्वारा नंगा करना।

प्रश्न 11.
अनावरण में सहायक दो क्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपरदन तथा अपक्षरण।

प्रश्न 12.
पदार्थों के संचलन में कौन-से दो बल सहायक हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण तथा ढाल।

प्रश्न 13.
पृथ्वी के अन्दर से निकलने वाली ऊर्जा के स्रोत बताओ।
उत्तर:
रेडियोधर्मी क्रियाएँ, घर्षण ज्वारीय घर्षण, पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी उष्मा।

प्रश्न 14.
अनाच्छदन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहिर्जनिक क्रियाओं द्वारा धरातल पर निरावृत करना या आवरण हटाना।

प्रश्न 15.
अपक्षय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपक्षय से अभिप्राय मौसम एवं जलवायु द्वारा यान्त्रिक विखंडन एवं रासायनिक अपघटन की क्रियाएं शामिल हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा तथा इसमें मिले तत्त्व बताओ।
उत्तर:
मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। यह एक धरातलीय पदार्थ है जिसमें स्पष्ट परत पाई जाती है। मिट्टी का निर्माण चट्टानों के पूर्ण तथा वनस्पति के गले – सड़े अंश से बनता है। इसमें कई तत्त्व मिले होते हैं- कण-मिट्टी के कण बारीक होते हैं जो आधार चट्टानों से भौतिक व रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त होते हैं ह्यूमस – यह मिट्टी का उपजाऊ अंश है जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल – सड़ जाने से प्राप्त होता है । खनिज – चट्टानों के अपक्षरण से कई खनिज मिट्टी में मिल जाते हैं, जैसे- लोहा, चूना आदि।

प्रश्न 2.
मिट्टी के भौतिक गुण लिखो।
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में तीन भौतिक गुण होते हैं-

  1. रंग
  2. गठन
  3. संरचना।

ये गुणमिट्टी की आधार चट्टानों पर निर्भर करते हैं। रंग से मिट्टी के निर्माण का ज्ञान होता है। गठन से मिट्टी के कणों का पता चलता है। मिट्टी की संरचना से कणों की व्यवस्था का पता चलता है।

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प्रश्न 3.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material): आधार चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा संगठन मूल पदार्थों के गुणों अनुसार होता है।

प्रश्न 4.
मिट्टी के महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
मिट्टी एक प्राकृतिक सम्पत्ति है। मानव जाति सारे विश्व में मिट्टी पर ही निवास करती है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएं आधारित हैं। मिट्टी कृषि का आधार है जो मानव को भोजन प्रदान करती है। पशुपालन, वन उद्योग मिट्टी पर आधारित हैं। प्राचीन सभ्यताएं नदी घाटियों में उपजाऊ मिट्टी के कारण ही पनप सकीं। मिट्टी मानवीय व्यवसाय का आधार है। जनसंख्या का घनत्व तथा वितरण मिट्टी के उपजाऊपन तथा उत्पादकता पर निर्भर करता है । मिट्टी का मानवीय सभ्यता पर सदैव महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहेगा।

प्रश्न 5.
ह्यूमस क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है? मिट्टी के निर्माण में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ह्यूमस (Humus ):
मिट्टी में पाये जाने वाले मृत जैव पदार्थ को ह्यूमस कहते हैं जो जैव पदार्थों तथा वनस्पति के गल-सड़ जाने से प्राप्त होता है। वृक्ष, झाड़ियां, घास जैसी वनस्पति तथा जीवाणु इसके निर्माण में सहायक होते हैं। ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु तथा जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। आर्द्र जलवायु में काफ़ी संख्या में जीवाणु होते हैं तथा वे ह्यूमस पर ही जिन्दा रहते हैं, परन्तु ठण्डी जलवायु में कम जीवाणुओं के कारण ह्यूमस मिट्टी में जमा रहता है। ह्यूमस मिट्टी निर्माण तथा मिट्टी के उपजाऊपन पर प्रभाव डालता है। ह्यमस जीवाणुओं को जीवन प्रदान करके उन्हें मिट्टी निर्माण में सहायक बनाता है। ह्यूमस के कारण धरातल तथा मिट्टी का रंग बदल जाता है। ह्यूमस खनिजों के अपक्षरण में सहायक है तथा मिट्टी निर्माण की क्रिया को तेज़ करता है।

प्रश्न 6.
मूल पदार्थ से क्या अभिप्राय है? मिट्टी के निर्माण में मूल पदार्थों का क्या योगदान है?
उत्तर:
मूल पदार्थ (Parent Material):
आधार चट्टानों के भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण से प्राप्त होने पदार्थों को मूल पदार्थ कहते हैं। इस पदार्थ में विभिन्न प्रकार के खनिज शामिल होते हैं जो आधार शैलों की रचना करते हैं। मिट्टी निर्माण क्रिया में मूल पदार्थ एक निष्क्रिय (Passive ) घटक है। मूल पदार्थ खनिज ही मिट्टी के निर्माण, भौतिक तथा रासायनिक अपक्षरण पर प्रभाव डालते हैं।

मिट्टी का संघटन (texture) मूल पदार्थ पर ही निर्भर करता है। मूल पदार्थ अधिकतर तलछटी शैलों से ही प्राप्त होते हैं क्योंकि भू-पृष्ठ पर तलछटी शैलों का विस्तार अधिक है। मिट्टी का रंग, रूप, संरचना तथा अपक्षरण की दर मूल पदार्थों के गुणों के अनुसार होती है। नदी तल जलोढ़ों के अपक्षरण से ही जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 7.
मिट्टी के कौन-से कार्य हैं जिनके लिए संरक्षण की ज़रूरत है?
उत्तर:
मिट्टी एक सम्पदा या संसाधन है। मिट्टी के उपजाऊपन पर कृषि तथा उत्पादकता निर्भर करती है। मिट्टी के नष्ट होने से उत्पादकता कम हो जाती है। उपजाऊ मिट्टी ही देश को खाद्य पदार्थ तथा कच्चे औद्योगिक माल प्रदान करती है। इसलिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेश ही घनी जनसंख्या के प्रदेश होते हैं।

प्रश्न 8.
ध्रुवीय प्रदेशों में पाले द्वारा अपक्षरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पाला (Frost):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है । इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ (Scree) के रूप में जमा हो जाता है । हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है । चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

प्रश्न 9.
ऑक्सीकरण तथा कार्बोनेटीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(a) ऑक्सीकरण (Oxidation ): चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है।

(b) कार्बोनेटीकरण (Carbonation ): जल में विलय कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं। प्रश्न

प्रश्न 10.
आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय मिट्टी में ह्यूमस का अभाव क्यों होता है?
उत्तर:
ह्यूमस का निर्माण स्थानीय जलवायु में जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। ह्यूमस ही जीवाणुओं को जिन्दा रखता है। आर्द्र- ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु में जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है। वे इस प्रदेश की मिट्टी में काफी अधिक क्रियाशील होते हैं। ये जीवाणु मिट्टी में से ह्यूमस समाप्त कर देते हैं। इसी कारण इन आर्द्र- ऊष्ण प्रदेशों की मिट्टी में ह्यूमस का अभाव होता है।

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प्रश्न 11.
पृथ्वी पर सम्भाव्यता किस प्रकार स्थिर रखी जा सकती है?
उत्तर:
भू-तल संवेदनशील है। मानव अपने निर्वाह के लिए इस पर निर्भर करता है तथा इसका व्यापक एवं सघन उपयोग करता है। अतः इसके सन्तुलन को बनाए रखते हुए तथा भविष्य के लिए इसकी सम्भाव्यता को कम किए बिना इसके प्रभावकारी उपयोग के लिए इसकी प्रकृति को समझना परमावश्यक है। लगभग सभी जीवों का धरातल के पर्यावरण के अनुवाह में योगदान होता है। मनुष्यों ने संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। हमें इनका उपयोग करना चाहिए, किन्तु भविष्य में जीवन निर्वाह के लिए इसकी पर्याप्त सम्भाव्यता को बचाये रखना चाहिए।

धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लम्बी अवधि (सैकड़ों-हज़ारों- वर्षों) में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरुपयोग एवं कुप्रयोग के कारण इसकी सम्भाव्यता (विभव) में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है। यदि उन प्रक्रियाओं, जिन्होंने धरातल को विभिन्न आकार दिया और अभी दे रही हैं, तथा उन पदार्थों की प्रकृति जिनसे यह निर्मित है, को समझ लिया जाए तो निश्चित रूप से मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव को कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

प्रश्न 12.
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं किन बलों पर निर्भर करती हैं?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएं (Physical Weathering Processes): भौतिक या यान्त्रिक अपक्षय- प्रक्रियाएं कुछ अनुप्रयुक्त बलों (Forces) पर निर्भर करती हैं। ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. गुरुत्वाकर्षक बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव एवं अपरूपण प्रतिबल (Shear stress),
  2. तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण (Expansion) बल,
  3. शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियन्त्रित जल का दबाव। इनमें से कई बल धरातल एवं विभिन्न धरातल पदार्थों के अन्दर अनुप्रयुक्त होती हैं जिसका परिणाम शैलों का विभंग (Fracture ) होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने (Release) के कारण होता है। ये प्रक्रियाएं लघु एवं मंद होती हैं परन्तु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रान्ति (Fatigue) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुंचा सकती हैं।

प्रश्न 13.
रेगोलिथ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व की विविध दृश्य – भूमियों का निर्माण मुख्यतः शैलों पर अपक्षय की क्रिया से हुआ है। ‘शैल अपक्षय’ शब्दावली का प्रयोग, रासायनिक अपघटन तथा भौतिक विघटन को बताने के लिए किया जाता है। आधार – शैलों के ऊपर अदृढ़ पदार्थों की एक परत हो सकती है, इसे रेगोलिथ या आवरण- प्रस्तर कहते हैं। रेगोलिथ ऐसी शब्दावली है, जिसका प्रयोग मोटे तौर पर आधार – शैल के ऊपर बिखरे अपेक्षाकृत अदृढ़ अथवा कोमल पदार्थों के किसी भी परत के लिए किया जाता है। जब रेगोलिथ का निर्माण ठीक इसके नीचे स्थित आधार – शैलों के अपघटन तथा विघटन से होता है तब इसे अपशिष्ट रेगोलिथ कहते हैं। नदियों, हिमानियों, पवनों द्वारा परिवहित रेगोलिथ, जिसका निक्षेपण कहीं ओर कर दिया जाता है, परिवहित रेगोलिथ कहलाता है।

प्रश्न 14.
मृदा निर्माण के लिए उत्तरदायी कारकों और उनकी प्रक्रियाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मृदा निर्माण के कारक सभी मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं अपक्षय से जुड़ी हैं। लेकिन कई अन्य कारक अपक्षय के अंतिम उत्पाद को प्रभावित करते हैं। इनमें से पांच प्राथमिक कारक हैं। ये अकेले अथवा सम्मिलित रूप से विभिन्न प्रकार की मृदाओं के विकास के लिए उत्तरदायी हैं।

मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं (Processes of Soil Formation): मृदा निर्माण में अनेक प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं और किसी सीमा तक मृदा परिच्छेदिका को प्रभावित कर सकती हैं। ये प्रक्रियाएं हैं:

  1. अवक्षालन: यह मृत्तिका अथवा अन्य महीन कणों का यांत्रिक विधि से स्थान परिवर्तन है, जिसमें वे मृदा परिच्छेदिका में नीचे ले जाए जाते हैं।
  2. संपोहन: यह मृदा परिच्छेदिका के निचले संस्तरों में ऊपर से बहाकर लाए गए पदार्थों का संचयन है।
  3. केलूवियेशन: यह निक्षालन के समान पदार्थ का नीचे की ओर संचलन है, परन्तु जैविक संकुल यौगिकी के प्रभाव में।
  4. निक्षालन: इसमें घोल रूप में पदार्थों को किसी संस्तर से हटाकर नीचे की ओर ले जाना है।

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प्रश्न 15.
मृदा भौतिक, रासायनिक तथा जैविक क्रियाओं का परिणाम है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
मृदा अपक्षयित एवं अपरदित शैल पदार्थों तथा जैविक अवशेषों के संश्लिष्ट मिश्रण का उत्पाद है। अपक्षय द्वारा संगठित पदार्थ (शैल) असंगठित पदार्थ में बदल जाते हैं। पौधों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के अपघटन से जैविक रसायन (ह्यूमस) मुक्त होते हैं। असंगठित पदार्थों के साथ इनकी अंतः क्रियाएं विभिन्न प्रकार की मृदाओं का निर्माण करती हैं। इन परिवर्तनों में संयोजन, ह्रास, रूपांतरण तथा स्थान परिवर्तन शामिल हैं।

जल ( वर्षा, सिंचाई), जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण, सूर्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा, पवन और जल से प्राप्त अवसाद, लवण एवं जैविक अवशेष संयोजन कार्य करते हैं। ह्रास के कारण हैं: मृदा जल में घुलनशील रसायन, अपरदित छोटे आकार के टुकड़े, पौधों के कटने और चराए जाने से पोषक तत्त्वों को हटाया जाना, जल की हानि, कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन की क्षति तथा नाइट्रोजन की अनाइट्रीकरण से हुई हानि रूपांतरण का कारण अनेक रासायनिक एवं जैविक प्रतिक्रियाएं हैं, जो जैविक पदार्थों को अपघटित करती हैं।

जल तथा जीव मृदा में संचलन करके विभिन्न गहराइयों पर पदार्थों का स्थान परिवर्तन करते हैं। जैविक मृदा का निर्माण पौधों के अपशिष्टों के संचयन से होता है, जो छिछले एवं स्थिर जल के अल्प ऑक्सीजन वाले पर्यावरण द्वारा सुरक्षित रखे जाते हैं। भूपृष्ठ का वह पदार्थ मृदा नहीं है, जो वनस्पति – जीवन को पोषित नहीं करता है, जैसे- पथरीली या चट्टानी भूमि तथा ग्रेट साल्ट लेक का लवणमय धरातल।

प्रश्न 16.
भू-आकृतिक कारक तथा भू-आकृतिक प्रक्रिया में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रकृति के किसी भी बहिर्जनिक तत्त्व (जैसे- जल, हिम, वायु इत्यादि), जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण (Acquire) तथा परिवहन करने में सक्षम है, को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है। जब प्रकृति के ये तत्त्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील हो जाते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं तथा भू-आकृतिक कारक विशेषकर बहिर्जनिक, को यदि स्पष्ट रूप से अलग-अलग न कहा जाए तो इन्हें एक ही समझना होगा क्योंकि ये दोनों एक ही होते हैं।

एक प्रक्रिया एक बल होता है जो धरातल के पदार्थों के साथ अनुप्रयुक्त होने पर प्रभावी हो जाता है। एक कारक (Agent) एक गतिशील माध्यम (जैसे- प्रवाहित जल, हिमनदी, हवा, लहरें एवं धाराएं इत्यादि) है जो धरातल के पदार्थों को हटाता, ले जाता तथा निक्षेपित करता है। इस प्रकार प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमनदी, हवा, लहरों, धाराओं इत्यादि को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है।

प्रश्न 17.
पटल विरूपण से क्या अभिप्राय: है? इसमें कौन-सी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं?
उत्तर:
पटल विरूपण (Diastrophism ): सभी प्रक्रियाएं जो भू-पर्पटी को संचलित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं, पटल विरूपण के अन्तर्गत आती हैं। इनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं

  1. तीक्ष्ण वलयन के माध्यम से पर्वत निर्माण तथा भू-पर्पटी की लम्बी एवं संकीर्ण पट्टियों को प्रभावित करने वाली पर्वतनी (Orogenic) प्रक्रियाएं
  2. धरातल के बड़े भाग के उत्थापन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना सम्बन्धी (Epeirogenic) प्रक्रियाएं,
  3. अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न भूकम्प,
  4. पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका प्लेट विवर्तनिक/पर्वतनी (Orogeny) की प्रक्रिया में भू-पर्पटी वलयन के रूप में तीक्ष्णता से विकृत हो जाती है।

महाद्वीप रचना के कारण साधारण विकृति हो सकती है। पर्वतनी पर्वत निर्माण प्रक्रिया है, जबकि महाद्वीप रचना महाद्वीप निर्माण-प्रक्रिया है। पर्वतनी, महाद्वीप रचना (Epeirogeny), भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिक की प्रक्रियाओं से भू-पर्पटी में भ्रंश तथा विभंग हो सकता है। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापक्रम (PVT) में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तर प्रेरित होता है ।

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प्रश्न 18.
विघटन एवं अपघटन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विघटन – भौतिक प्रक्रिया में विघटन से चट्टानें टूटती हैं। अपघटन: रासायनिक क्रिया में अपघटन के कारण जब चट्टानों पर पानी पड़ता है तो चट्टानें नर्म पड़ने से कमज़ोर हो जाती हैं जिसके कारण ये टूटती हैं।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
मिट्टी तथा शैल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-

मिट्टी (Soil) शैल (Rock)
(1) चट्टानों के अपक्षय तथा जैविक पदार्थों से प्राप्त होने वाले टूटे-फूटे कणों की परत को मिट्टी कहते हैं। (1) शैल प्राकृतिक रूप से ठोस जैव एवं अजैव पदार्थ हैं जो भू-पृष्ठ का निर्माण करते हैं।
(2) मिट्टी के विभिन्न संस्तर होते हैं। (2) शैल के संस्तर नहीं होते।
(3) मिट्टी की गहराई 2-3 मीटर तक सीमित होती है। (3) पृथ्वी के भीतरी भागों तक शैलें पाई जाती हैं।
(4) मिट्टी चट्टानों की टूट-फूट से प्राप्त चूर्ण से बनती है। (4) शैल कई खानिज पदार्थों के मिलने से बनती है।
मिट्टी (Soil) शैल (Rock)

प्रश्न 2.
अपरदन तथा अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

अपरदन (Erosion) अपक्षय (Weathering)
(1) भू-तल पर खुरचने, कांट-छांट तथा मलबे को परिवहन करने के कार्य को अपरदन कहते हैं। (1) इसमें रासायनिक क्रियाओं द्वारा अपघटन से चट्टानें टूटफूट जाती हैं।
(2) अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है। (2) इससे चट्टानों का रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन नहीं होता है।
(3) अपरदन गतिशील कारकों द्वारा जैसे-जल, हिमनदी, वायु आदि से होता है। (3) इस अपक्षय के उदाहरण ऊष्ण प्रदेशों में मिलते हैं।
(4) अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। (4) रासायनिक अपक्षय में कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताओ।
उत्तर:

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
(1) इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानों के विघटन से चट्टानें चूर-चूर हो जाती हैं। (1) चट्टानों के अपघटन तथा विघटन के द्वारा अपने मूल स्थान पर तोड़-फोड़ करने की क्रिया को अपक्षय कहते हैं।
(2) इससे चट्टानों के खनिजों में कोई परिवर्तन नहीं होता। (2) अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है।
(3) यह अपक्षय शुष्क तथा शीत प्रदेशों में अधिक होता है । (3) अपक्षय सूर्यातप, पाला तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
(4) भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला, वर्षा तथा वायु हैं। (4) अपक्षय चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में सहायता करता है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
अपक्षय किसे कहते हैं? अपक्षय कितने प्रकार से होता है? गर्म तथा ठण्डे प्रदेशों में होने वाले यांत्रिक अपक्षय की प्रक्रियाएं बताओ।
उत्तर:
अपक्षय (Weathering):
पृथ्वी की बाहरी स्थिर शक्तियों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर विखंडन तथा अपघटन की क्रिया को अपक्षरण कहते हैं। इसमें चट्टानों के टूटने, भरने तथा घुलने की क्रियाएं होती हैं। [“Weathering includes the breaking up of Rocks (disintegration and decomposition) by the elements of weather.”] अपक्षरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  1. चट्टानों की संरचना:  कोमल चट्टानें शीघ्र टूट जाती हैं परन्तु कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।
  2. भूमि का ढाल: तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में अपक्षरण अधिक होती है। चट्टानों का संगठन कमज़ोर हो जाता है।
  3. शैल सन्धि: सन्धियाँ शैलों में जल के घुलने तथा भौतिक एवं रासायनिक अपक्षरण में सहायक होती हैं।
  4. वनस्पति: वनस्पति के ढके धरातल सुरक्षित रहते हैं। परन्तु वनस्पति रहित प्रदेशों में अपक्षरण अधिक होता है।
  5. जलवायु: आर्द्र जलवायु में रासायनिक अपक्षरण तथा शुष्क जलवायु में यान्त्रिक अपक्षरण होता है।

अपक्षरण के रूप (Types of Weathering):
(i) भौतिक अपक्षरण (Physical Weathering): यान्त्रिक साधनों द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-टूट कर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को भौतिक अपक्षरण कहते हैं। इस अपक्षरण से चट्टानों का विघटन ( Disintegration) होता है।

1. सूर्यताप (Temperature ):
सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एक दम गर्म होकर फैलती हैं तथा त को तेज़ी से ठण्डी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने तथा सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें (Cracks) तथा सन्धियां (Joints) पड़ जाती हैं तथा चट्टानें टूटती हैं और चूर-चूर हो जाती हैं। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्यताप द्वारा अपक्षरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  1. मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक तथा शीघ्र अपक्षरण होता है।
  2. काले रंग की चट्टानों पर अधिक अपक्षरण होता है।
  3. पर्वतीय ढलानों तथा मरुस्थलों में अपक्षरण महत्त्वपूर्ण है ।

2. पाला (Frost ):
पर्वतों व ठण्डे प्रदेशों में पाला अपक्षरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में जल भर जाता है। यह जल सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/10 गुना बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस दबाव से चट्टानें टूटती रहती हैं । यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ Scree के रूप में जमा हो जाता है। हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

3. वर्षा (Rainfall):
वर्षा का जल बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है तथा कई प्रभाव डालता है।
(a) मिट्टी कटाव (Soil Erosion ): ढलान भूमि पर नदी घाटियों से वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले जाता है तथा मिट्टी कटाव की समस्या उत्पन्न होती है।

(b) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land ): मूसलाधार वर्षा के कारण जल नालियां (Gullies) तथा खाइयां (Ravines) बनाकर बंजर व अस्त-व्यस्त धरातल बना देता है, जैसे- भारत में चम्बल घाटी में।

(c) मिट्टी के स्तम्भ ( Earth Pillars ): वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है परन्तु कठोर चट्टान एक टोपी (Cap) का कार्य करती है तथा मिट्टी के स्तम्भ खड़े रहते हैं। जैसे इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमालय के स्पीती (Spiti) प्रदेश में।

(d) भू- फिसलन (Land Slides): वर्षा का जल चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी कर देता है तथा चट्टानें ढलान की ओर फिसल जाती हैं। अधिक वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भू- फिसलन के कारण सड़कें रुक जाती हैं।

4. वायु (Wind):
हवा का अपक्षय मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों या वनस्पति रहित प्रदेशों में होता है। रेत से लदी वायु एक रेगमार (Sand paper) की भांति चट्टानों को चूर-चूर कर देती है।
(a) मरुस्थलों में से गुज़रने वाली रेलगाड़ियों को हर साल रंग (Paint) करना पड़ता है।
(b) टैलीग्राफ की तारें वायु के प्रहार से घिस जाती हैं।
(c) समुद्र तट की ओर साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं जैसे दानेदार शीशे (Frosted glass) हों।
(d) चट्टानों का आकार अद्भुत हो जाता है। जैसे राजस्थान में माऊंट आबू के निकट Toad Rock |

(ii) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering): ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों व रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली पड़ जाती हैं पर अलग-अलग नहीं होतीं। इसे अपघटन (Decomposition) कहते हैं। यह रासायनिक अपक्षय कई प्रकार से होता है।
1. ऑक्सीकरण (Oxidation):
चट्टानों के लोहे के खनिज के साथ ऑक्सीजन मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है तथा भुर भुर कर नष्ट हो जाती हैं। यह क्रिया लोहे को जंग लगने के समान है। ऑक्सीजन की कमी के कारण न्यूनीकरण (Reduction) की क्रिया आरम्भ हो जाती है। इस क्रिया से लोहे का लाल रंग हरे या आसमानी धूसर रंग में बदल जाता है।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation ):
जल में विलय कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) तथा जल मिलकर चूने का पत्थर जिप्सम संगमरमर को घुला डालते हैं। चट्टानों के नष्ट होने के कारण गुफायें बनती हैं।

3. जलयोजन (Hydration):
हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें भीतर ही भीतर पिस कर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Kaolin) का जन्म इसी प्रकार फैल्सपार (Felspar) चट्टानों के अपघटन से हुआ है ।

4. घोलीकरण (Solution ):
पानी कई खनिजों को घुला देता है। यह खनिज घुल कर चट्टानों से बह जाते हैं। जैसे चूना मिट्टी में से घुल कर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटेराइट ( Laterite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

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प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के बृहत्-क्षरण (Mass Wasting) की व्याख्या करो।
उत्तर:
बृहत्-क्षरण (Mass Wasting ):
गुरुत्वाकर्षण बल निरन्तर मृदा, रेगोलिथ तथा आधार – शैलों पर क्रियाशील रहता है। जहां भी धरातल ढलुआ होता है, गुरुत्वाकर्षण बल ढाल से नीचे की ओर पृष्ठ के समानांतर संचलित होता है। प्रत्येक कण ढालों के साथ ऊपर से नीचे लुढ़कने या सरकने की प्रवृत्ति रखता है और ऐसा होता भी है, जब अनुढाल बल घर्षण अधिक हो जाता है। बृहत्-क्षरण के प्रकार (Types of Mass Wasting ): बृहत्-क्षरण के रूप प्रलयकारी अवसर्पण से लेकर जल-संतृप्त मृदा के मंद प्रवाह तक हो सकते हैं। इसके विभिन्न प्रकार हैं:

  1. शैलों का गिरना,
  2. लरज़ कर गिर पड़ना,
  3. स्खलन,
  4. प्रवाह।

1. मृदा सर्पण (Soil Crecp):
पर्वतीय ढालों का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने पर अक्सर इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि मृदा लंबे काल से पर्वत ढाल के सहारे अति मंद गति से नीचे की ओर निरन्तर संचलित हो रही है। इस घटना को मृदा सर्पण कहते हैं। यह अपरूपण का प्रभाव है, जो शैलों में अनगिनत संधि विभागों और संस्तरणों या विदलन पृष्ठों के साथ – साथ वितरित हैं।
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2. मृदा प्रवाह (Earth Flow):
आर्द्र जलवायु वाले पर्वतीय तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जल-संतृप्त मिश्रित मृदा तथा मृत्तिका खनिजों में धनी रेगोलिथ मृदा-प्रवाह का रूप लेते हैं। मृदा प्रवाह एक प्रकार का बृहत्-क्षरण है, जिसमें भूपदार्थ का आचरण सुघट्य ठोस जैसा होता है। वृक्ष विहीन टुंड्रा प्रदेश में मृदा प्रवाह का आर्कटिक प्रकार अंग्रेज़ी में सॉलीफ्लक्शन कहलाता है परन्तु हिन्दी में यह मृदा सर्पण ही कहलाता है।
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3. पंक प्रवाह (Mud Flow):
यदि खनिज पदार्थों के अनुपात में जल की मात्रा अधिक होती है, तो यह बृहत्-क्षरण पंक प्रवाह का रूप ले लेता है। यह नदी मार्गों में तेज़ी के साथ यात्रा करता है। पंक प्रवाह उच्च पर्वतों पर भी उत्पन्न होता है, जहां सर्दियों में एकत्र हिम पिघल कर मृत्तिका समृद्ध अपक्षयित शैल को उठा लेता है।

4. शैल स्खलन (Land Slide ):
सीधे शैल- भृगु के किनारे भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया शैल को अदृढ़ बना देती है। जब गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें नीचे लाता है, तो इसे शैलपात का नाम दिया जाता है। गिरते हुए शैल खंड टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं और ऐसी ढाल का निर्माण करते हैं, जिस पर अदृढ़ पदार्थ बिखरे पड़े रहते हैं, जिन्हें शैल मलबा जुड़े हुए खंडों का संचालन पात क्षेत्र स्तर का नीचे की ओर मुड़ना बाड़, स्मृति पत्थर और तार के स्तम्भों का झुकना टूटी हुई शेष दीवारें मृदा सर्पण क्षेत्र कगार स्खलन आधार शैल क्षेत्र पात कहते हैं। एक शैल खंड का अकेले धरातल पर नीचे लुढ़कना शैल स्खलन कहलाता है। जब कोई अकेला शैल खंड अपने क्षैतिज अक्ष पर पीछे की ओर सर्पिल होकर एक वक्र विभंग’ तल पर लुढ़कता है तो उसे अवसर्पण कहते हैं।
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