Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. मुस्लिम लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने की घोषणा की थी –
(क) 16 अगस्त, 1948
(ख) 16 अगस्त, 1946
(ग) 12 अगस्त, 1942
(घ) 15 अगस्त, 1944
उत्तर:
(ख) 16 अगस्त, 1946
2. ‘पाकिस्तान’ नाम के प्रस्ताव को सर्वप्रथम जिसने प्रस्तुत किया था, वह था-
(क) चौधरी रहमत अली
(ख) चौधरी मोहम्मद अली
(ग) चौधरी इनायत अली
(घ) चौधरी लियाकत अली
उत्तर:
(क) चौधरी रहमत अली
3. शुद्धि आन्दोलन चलाने वाली संस्था थी –
(क) ब्रह्म समाज
(ग) हिन्दू महासभा
(ख) आर्य समाज
(घ) कॉंग्रेस पार्टी
उत्तर:
(ख) आर्य समाज
4. भारत विभाजन से लगभग कितने लोगों को उजड़ कर दूसरी जगह जाने को मजबूर होना पड़ा –
(क) लगभग दो करोड़ से ज्यादा
(ख) लगभग डेढ़ करोड़
(ग) चार करोड़ से ज्यादा
(घ) पचास लाख से ज्यादा
उत्तर:
(ख) लगभग डेढ़ करोड़
5. भारत विभाजन के समय जो नस्ली सफाया हुआ, वह कारगुजारी थी –
(क) धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की
(ख) सरकारी निकार्यों की
(ग) अंग्रेजों की
(घ) सेना की
उत्तर:
(क) धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की
6. “मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़ा हुआ कर्ज चुका रहा हूँ।” यह किसने कहा था –
(क) अब्दुल रज्जाक ने
(ख) अब्दुल लतीफ ने
(ग) मोहम्मद अली ने
(घ) शौकत अली ने
उत्तर:
(ख) अब्दुल लतीफ ने
7. अब्दुल लतीफ के अब्बा की मदद की थी –
(क) एक हिन्दू ने
(ख) एक सिख ने
(ग) एक हिन्दू माई ने
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) एक हिन्दू माई ने
8. औपनिवेशिक भारत में हिन्दू और मुसलमान दो पृथक् राष्ट्र थे। यह सोच थी-
(क) रहमत अली की
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना की
(ग) लियाकत अली की
(घ) मौलाना आजाद की
उत्तर:
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना की
9. काँग्रेस और मुस्लिम लीग का लखनऊ समझौता कब हुआ था?
(क) 1915 में
(ख) 1916 में
(ग) 1919 में
(घ) 1917 में
उत्तर:
(ख) 1916 में
10. होलोकॉस्ट क्या है?
(क) बँटवारा
(ख) संघर्ष
(ग) मित्रता
(घ) संगठन
उत्तर:
(क) बँटवारा
11. मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई थी?
(क) 1904 में
(ख) 1906 में
(ग) 1912 में.
(घ) 1984 में
उत्तर:
(ख) 1906 में
12. 1937 में के प्रान्तीय चुनावों में कांग्रेस को निम्न में से कितने प्रान्तों में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था ?
(क) 4
(ग) 6
(ख) 5
(घ) 7
उत्तर:
(ख) 5
13. पाकिस्तान नाम सर्वप्रथम दिया था
(क) मोहम्मद अली जिन्ना ने
(ख) मोहम्मद इकबाल ने
(ग) खान अब्दुल गफ्फार खान ने
(घ) चौधरी रहमत अली ने
उत्तर:
(घ) चौधरी रहमत अली ने
14. पंजाब में हिन्दू मुस्लिम एवं सिक्ख भू-स्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनैतिक पार्टी थी –
(क) हिन्दू महासभा
(ग) मुस्लिम लीग
(ख) कांग्रेस
(घ) यूनियनिस्ट पार्टी
उत्तर:
(घ) यूनियनिस्ट पार्टी
15. सीमान्त गांधी कहा जाता था –
(क) जिन्ना को
(ख) महात्मा गाँधी को
(ग) खान अब्दुल गफ्फार खान को
(घ) सुशीला नायर को
उत्तर:
(ग) खान अब्दुल गफ्फार खान को
16. गाँधीजी के दिल्ली आगमन को “बड़ी लम्बी और कठोर गर्मी के बाद बरसात की फुहारों के आने” जैसा महसूस किया था –
(क) जवाहर लाल नेहरू
(ख) शाहिद अहमद देहलवी ने
(ग) जिन्ना से
(घ) खान अब्दुल गफ्फार खान ने
उत्तर:
(ख) शाहिद अहमद देहलवी ने
17. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त किसने दिया था?
(क) रहमत अली
(ग) महात्मा गाँधी
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना
18. “लव इज स्ट्रांगर देन हेट, ए रिमेम्बरेंस ऑफ 1947” नामक संस्मरण के लेखक हैं –
(क) डॉ. सुखदेव सिंह
(ख) डॉ. रवीन्द्र
(घ) महात्मा गाँधी
(ग) जिन्ना
उत्तर:
(क) डॉ. सुखदेव सिंह
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. विभाजन की वजह से लाखों लोग …………… खनकर रह गए।
2. पत्रकार आर. एम. मर्फी के अनुसार हिन्दू काले, कायर ……………. तथा शाकाहारी होते हैं।
3. …………….. में नात्सी जर्मनी में लोगों को मारने के लिए सरकारी मुहिम चली थी।
4. ……………… समझौता दिसम्बर 1916 में हुआ था।
5. ……………….. लखनक समझौता ……………… और ……………… के बीच हुआ था।
6. कुछ विद्वानों के अनुसार देश का बँटवारा एक ऐसी साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था जो ……………… वीं शताब्दी के प्रारस्भिक दशकों में शुरू हुई।
7. ………………. का तात्पर्य है वह राजनीति जो धार्मिकसमुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है।
8. बहु-धार्मिक देश में ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ शब्दों का अर्थ भी ………………. के करीब-करीब हो सकता है।
9. मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ………………. में हुआ था।
उत्तर:
1. शरणार्थी
2. बहु-ईश्वरवादी
3. 1947- 48
4. लखनऊ
5. कांग्रेस, मुस्लिम लीग
6. 20
7. साम्प्रदायिकता
8 साम्प्रदायिकता
9. ढाका
10. 1915
11. 1937
12. यूनियनिस्ट
13. 1942
14. प्रत्यक्ष कार्यवाही।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सीमान्त गाँधी किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान।
प्रश्न 2.
सर्वप्रथम उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में मुस्लिम राज्य की माँग किसने की थी?
उत्तर:
मुहम्मद इकबाल ने।
प्रश्न 3.
1971 में बंगाली मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान से अलग होने का फैसला लेकर जिला के किस सिद्धान्त को नकार दिया था?
उत्तर:
द्विराष्ट्र सिद्धान्त को।
प्रश्न 4.
नोआखली वर्तमान में किस देश में स्थित है?
उत्तर:
बांग्लादेश में।
प्रश्न 5.
उन दो नेताओं के नाम लिखिये जो अन्त तक भारत के विभाजन का विरोध करते रहे।
उत्तर:
(1) महात्मा गाँधी
(2) खान अब्दुल गफ्फार खान।
प्रश्न 6.
स्वतन्त्रतापूर्व का ‘संयुक्त प्रान्त’ वर्तमान में कौन-से राज्य के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश।
प्रश्न 7.
जर्मन होलोकास्ट और भारत के विभाजन में क्या अन्तर था?
उत्तर:
जर्मनी में भीषण विनाशलीला हेतु नाजी सरकार उत्तरदायी थी, भारत के विभाजन के लिए धार्मिक नेता उत्तरदायी थे।
प्रश्न 8.
आर्य समाज का मुख्य नारा क्या था?
उत्तर:
शुद्धि आन्दोलन।
प्रश्न 9.
“मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़ा हुआ कर्ज चुका रहा हूँ।” यह किसने कहा था और किससे कहा था?
उत्तर:
(1) अब्दुल लतीफ ने
(2) शोधकर्ता से।
प्रश्न 10.
1947 के बँटवारे को लोग किन नामों से पुकारते हैं?
उत्तर:
‘मार्शल लॉ’, ‘मारामारी’, ‘रौला’ एवं ‘हुल्लड़’।
प्रश्न 11.
जर्मन होलोकास्ट’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नाजी शासन के दौरान जर्मनी में गैर-जर्मन लोगों का संहार।
प्रश्न 12.
किस अधिनियम में सर्वप्रथम मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई ?
उत्तर:
1909 के मिण्टये मार्ले सुधारों में।
प्रश्न 13.
कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता कब हुआ?
उत्तर:
दिसम्बर, 1916 में।
प्रश्न 14.
लखनऊ समझौता किस-किसके बीच हुआ?
उत्तर:
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच
प्रश्न 15.
हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच किन बातों से साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
- मस्जिद के सामने संगीत
- गोरक्षा आन्दोलन
- शुद्धि आन्दोलन।
प्रश्न 16.
हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच मुसलमानों की किन गतिविधियों से दोनों सम्प्रदायों में तनाव उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
(1) तबलीग (प्रचार) और
(2) तंजीम (संगठन) के विस्तार से
प्रश्न 17.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1906 ई. में।
प्रश्न 18.
मुस्लिम लीग की स्थापना कहाँ हुई?
उत्तर:
ढाका में।
प्रश्न 19.
हिन्दू महासभा की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1915
प्रश्न 20.
मुस्लिम लीग ने ‘पाकिस्तान’ का प्रस्ताव कब पास किया था?
उत्तर:
23 मार्च, 1940 को
प्रश्न 21.
‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा’ इस गीत की रचना किसने की थी?
उत्तर:
मुहम्मद इकबाल ने।
प्रश्न 22.
सर्वप्रथम ‘पाकिस्तान’ का उल्लेख किसने किया था?
उत्तर:
केम्ब्रिज के एक मुस्लिम छात्र चौधरी रहमत अली ने
प्रश्न 23.
1930 के मुस्लिम लीग के अधिवेशन में किसने ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की स्थापना पर जोर दिया था?
उत्तर:
मुहम्मद इकबाल ने।
प्रश्न 24.
ब्रिटिश सरकार ने केबिनेट मिशन दिल्ली कब भेजा ? इसमें कितने सदस्य थे?
उत्तर:
(1) मार्च 1946 में
(2) तीन सदस्य।
प्रश्न 25.
सीमान्त गाँधी’ या ‘फ्रंटियर गाँधी’ किन्हें कहा जाता था?
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान
‘प्रश्न 26.
मुस्लिम लीग द्वारा ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ कब मनाने की घोषणा की गई थी?
उत्तर:
16 अगस्त, 1946 को
प्रश्न 27.
गाँधीजी द्वारा दिल्ली में दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने पर किसने कहा था कि ” अब दिल्ली बच जायेगी।”
उत्तर:
शाहिद अहमद देहलवी ने
प्रश्न 28.
‘पंजाबी सेंचुरी’ के रचयिता कौन थे ?
उत्तर:
प्रकाश टण्डन।
प्रश्न 29.
‘द अदर साइड ऑफ वाइलेंस’ की रचना किसने की थी?
उत्तर:
उर्वशी बुटालिया ने।
प्रश्न 30.
‘मुहब्बत नफरत से ज्यादा ताकतवर होती है 1947 की यादें’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह।
प्रश्न 31.
भारत के बँटवारे के दौरान के महाध्वंस और यूरोप के नात्सी महाध्वंस में प्रमुख अन्तर क्या है?
उत्तर:
भारत के बँटवारे का महाध्वंस धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी था जबकि यूरोपीय महाध्वंस सरकार की कारगुजारी था।
प्रश्न 32.
विभाजन की स्मृतियों, घृणाओं और छवियों की आज क्या भूमिका है?
उत्तर:
विभाजन की स्मृतियाँ छवियाँ आज भी सरहद के दोनों तरफ के लोगों के इतिहास व सम्बन्धों को तय करती हैं।
प्रश्न 33.
किसी धार्मिक जुलूस के द्वारा नमाज के समय मस्जिद के बाहर संगीत बजाए जाने से हिन्दू- मुस्लिम हिंसा क्यों हो सकती थी?
उत्तर:
नमाज के समय मस्जिद के सामने संगीत बजाने को रूढ़िवादी मुसलमान अपनी नमाज या इबादत में खलल मानते हैं।
प्रश्न 34.
साम्प्रदायिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सांप्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष तरह से राजनीतिकरण है जो धार्मिक समुदायों में झगड़े पैदा करवाने की कोशिश करती है।
प्रश्न 35.
1937 के चुनावों के बाद जिन्ना की प्रमुख जिद क्या थी?
उत्तर:
जिला की जिद थी कि मुस्लिम लीग को ही मुसलमानों का एकमात्र प्रवक्ता माना जाये।
प्रश्न 36.
1937 के चुनावों के बाद संयुक्त प्रान्त में काँग्रेस पार्टी ने गठबंधन सरकार बनाने के बारे में मुस्लिम लीग के प्रस्ताव को खारिज क्यों कर दिया था?
उत्तर:
संयुक्त प्रान्त में कॉंग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त था तथा जमींदारी प्रथा के सम्बन्ध में दोनों के विचारों में अन्तर था।
प्रश्न 37.
मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप में मुस्लिम- बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की मांग का प्रस्ताव कब पेश किया?
उत्तर:
23 मार्च, 1940 को
प्रश्न 38.
1945 में अँग्रेजों के एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाने के प्रस्ताव पर वार्ता जिन्ना की किस जिद के कारण टूट गई?
उत्तर:
जिन्ना इस बात पर अड़े रहे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार मुस्लिम लीग का होगा।
प्रश्न 39.
किस मिशन के प्रस्ताव को लीग और काँग्रेस द्वारा स्वीकार नहीं करने पर विभाजन कमोबेश अनिवार्य हो गया था?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने पर विभाजन कमोबेश अनिवार्य हो गया था।
प्रश्न 40.
कैबिनेट मिशन योजना की असफलता के बाद मुस्लिम लीग ने क्या कार्यवाही की ?
उत्तर:
लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को मनवाने हेतु 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने का फैसला किया।
प्रश्न 41.
सन् 1947 में भारत विभाजन के दो कारण लिखिये।
उत्तर:
(1) अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’
(2) कैबिनेट मिशन की विफलता।
प्रश्न 42.
द्विराष्ट्र सिद्धान्त का क्या अर्थ है?
उत्तर:
द्विराष्ट्र सिद्धान्त का अर्थ है कि हिन्दू और मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र (देश) हैं वे एक साथ नहीं रह सकते।
प्रश्न 43.
मुस्लिम लीग ने क्रिप्स प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार किया?
उत्तर:
मुस्लिम लीग के अनुसार इस प्रस्ताव में उसकी प्रमुख माँग पाकिस्तान के निर्माण का कहीं भी जिक्र नहीं था।
प्रश्न 44.
अब्दुल लतीफ खाँ शोधार्थी की मदद क्यों करते थे?
उत्तर:
एक हिन्दू बूढ़ी माई ने अब्दुल लतीफ खाँ के वालिद की दंगाइयों से जान बचाई थी।
प्रश्न 45.
हिन्दू महासभा के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखिए।
उत्तर:
हिन्दू महासभा की स्थापना 1915 में हिन्दू समाज में एक ता पैदा करने के उद्देश्य से की गई।
प्रश्न 46.
यूनियनिस्ट पार्टी क्या थी?
उत्तर:
यह पंजाब में हिन्दू-मुस्लिम और सिख भू- स्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक राजनीतिक पार्टी थी।
प्रश्न 47.
मुस्लिम लीग के 1930 में अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण में मोहम्मद इकबाल ने क्या माँग की थी?
उत्तर:
पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत, शिथिल भारतीय संघ के अन्दर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना करना।
प्रश्न 48.
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का अंग्रेजों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अंग्रेजों को संभावित सत्ता हस्तान्तरण के बारे में भारतीय पक्षों के साथ बातचीत के लिए तैयार होना पड़ा।
प्रश्न 49.
अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों के लिए किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हुई?
उत्तर:
(1) भारतीय अंग्रेजी साहित्य, विज्ञान, गणित तथा तकनीकी विषयों के ज्ञान से परिचित हुए। (2) इसने राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया।
प्रश्न 50.
मार्च, 1947 में काँग्रेस हाईकमान ने किस प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी थी?
उत्तर:
पंजाब को मुस्लिम बहुल और हिन्दू/ सिख बहुल दो हिस्सों में बाँटने के प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी देना।
प्रश्न 51.
भारत विभाजन के समय साम्प्रदायिक दंगों के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग होता है?
उत्तर:
मॉर्शल लॉ, मारामारी, रौला या हुल्लड़ आदि।
प्रश्न 52.
दिल्ली में गाँधीजी के अनशन में आश्चर्यजनक बात क्या थी?
उत्तर:
दिल्ली अनशन में आश्चर्यजनक बात यह थी कि पाकिस्तान से आए शरणार्थी चाहे वे हिन्दू हों या सिख, अनशन में साथ बैठते थे।
प्रश्न 53.
समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने 1947 के दंगों में हुई विनाशलीला को देखते हुए इसे महाध्वंस (होलोकास्ट) क्यों कहा है?
उत्तर:
वे इस सामूहिक जनसंहार की भयानकता को उजागर करना चाहते हैं।
प्रश्न 54.
थुआ गाँव का हादसा क्या था?
उत्तर:
थुआ गाँव की 90 स्वियों ने शत्रुओं के हाथों में पड़ने की बजाय कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी।
प्रश्न 55.
डॉ. खुशदेवसिंह क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह ने धर्मपुर (हिमाचल प्रदेश) में रहते हुए हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को भोजन और आश्रय प्रदान किया।
प्रश्न 56.
आर्य समाज का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
आर्य समाज वैदिक ज्ञान का पुनरुत्थान कर उसको विज्ञान की आधुनिक शिक्षा से जोड़ना चाहता था।
प्रश्न 57.
अविभाजित भारत में दूसरी बार प्रान्तीय चुनाव कब हुए?
उत्तर:
1946 ई. में।
प्रश्न 58.
गुरुद्वारा शीशगंज में गाँधीजी ने किस बात को शर्मनाक बताया?
उत्तर:
गाँधीजी ने इस बात को शर्मनाक बताया कि दिल्ली का दिल कहलाने वाले चाँदनी चौक में उन्हें एक भी मुसलमान दिखाई नहीं दिया।
प्रश्न 59.
किस मिशन के प्रस्ताव को कांग्रेस व मुस्लिम लीग द्वारा स्वीकार न किये जाने के कारण विभाजन अनिवार्य- सा हो गया था ?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन प्रस्ताव।
प्रश्न 60.
उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य की स्थापना की माँग किसने की थी और कब की थी?
उत्तर:
1930 में मोहम्मद इकबाल ने।
प्रश्न 61.
केबिनेट मिशन की दो सिफारिशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) एक शिथिल त्रिस्तरीय महासंघ का निर्माण करना।
(2) संविधान सभा का चुनाव करना।
प्रश्न 62.
साम्प्रदायिक दंगों से पीड़ित लोगों को सान्त्वना देने के लिए गाँधीजी ने किन स्थानों की यात्रा की?
उत्तर:
गांधीजी ने नोआखली (वर्तमान बांग्लादेश), बिहार, कोलकाता तथा दिल्ली की यात्राएं कीं।
प्रश्न 63.
“हमारे लिए इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि चाँदनी चौक में एक भी मुसलमान नहीं है।” यह किसका कथन था?
उत्तर:
यह कथन गाँधीजी का था।
प्रश्न 64.
दिल्ली में गाँधीजी के अनशन का असर “आसमान की बिजली जैसा रहा”, यह कथन किसका था?
उत्तर:
यह कथन मौलाना आजाद का था।
प्रश्न 65.
‘प्रेम घृणा से अधिक शक्तिशाली होता है : 1947 की यादें’ नामक पुस्तक में किसके संस्मरण संकलित है?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह के।
प्रश्न 66.
कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन की सिफारिशों को क्यों स्वीकार नहीं किया?
उत्तर:
कांग्रेस की माँग थी कि प्रान्तों को अपनी इच्छा का समूह चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
प्रश्न 67.
मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की सिफारिशों को क्यों नहीं माना?
उत्तर:
मुस्लिम लीग की माँग थी कि प्रान्तों की समूहबद्धता अनिवार्य होनी चाहिए।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
1947 में विभाजन के दौरान हुई भीषण विनाशलीला को ‘महाध्वंस’ (होलोकॉस्ट) क्यों कहा कि जाता है?
उत्तर:
कुछ प्रेक्षकों ने विभाजन के दौरान हुई हत्याओं, बलात्कार, आगजनी तथा लूटपाट को ‘महाध्वंस’ लम (होलोकास्ट) की संज्ञा दी है। वे इस शब्द के द्वारा – सामूहिक जनसंहार की भयानकता को उजागर करना चाहते हैं। यह हादसा इतना भीषण था कि ‘विभाजन’ या ‘बँटवारे’ से उसके समस्त पहलू सामने नहीं आते। जहाँ नाजी जर्मनी में महाध्वंस सरकार के द्वारा किया गया, वहाँ भारत में यह महाध्वंस धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।
प्रश्न 2.
हिन्दू महासभा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हिन्दू महासभा की स्थापना 1915 में हुई। यह एक हिन्दू पार्टी थी जो कमोबेश उत्तर भारत तक सीमित रही यह पार्टी हिन्दुओं के बीच जाति एवं सम्प्रदाय के फर्कों को खत्म कर पैदा करने की कोशिश करती थी अस्मिता को मुस्लिम अस्मिता के करने का प्रयास करती थी। हिन्दू समाज में एकता हिन्दू महासभा, हिन्दू विरोध में परिभाषित
प्रश्न 3.
कैबिनेट मिशन के प्रमुख सुझाव क्या थे?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन के प्रमुख सुझाव निम्नलिखित –
(1) इस कैबिनेट मिशन ने तीन महीने तक भारत का दौरा किया और एक ढीले-ढाले त्रिस्तरीय महासंघ का सुझाव दिया। इसमें भारत एकीकृत ही रहने वाला था जिसकी केन्द्रीय सरकार काफी कमजोर होती और उसके पास केवल विदेश, रक्षा और संचार का जिम्मा होता।
(2) संविधान सभा का चुनाव करते हुए मौजूदा प्रान्तीय सभाओं को तीन हिस्सों में समूहबद्ध किया जाना था हिन्दू बहुल प्रान्तों को समूह ‘क’ पश्चिमोत्तर मुस्लिम बहुल प्रान्तों को समूह ‘ख’ और पूर्वोत्तर (असम सहित ) के मुस्लिम बहुल प्रान्तों को समूह ‘ग’ में रखा गया था।
(3) प्रान्तों के इन खण्डों या समूहों को मिला कर क्षेत्रीय इकाइयों का गठन किया जाना था माध्यमिक स्तर की कार्यकारी और विधायी शक्तियाँ उनके पास ही रहने वाली थी।
प्रश्न 4.
साम्प्रदायिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता उस राजनीति को कहा जाता है, जो धार्मिक समुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है। ऐसी राजनीति धार्मिक पहचान को बुनियादी और अटल मानती है। साम्प्रदायिकता किसी चिह्नित ‘गैर’ के विरुद्ध घृणा की राजनीति को पोषित करती है। मुस्लिम साम्प्रदायिकता हिन्दुओं को ‘गैर’ बताकर उनका विरोध करती है तथा हिन्दू साम्प्रदायिकता मुसलमानों को गैर बताकर उनका विरोध करती है। साम्प्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष प्रकार से राजनीतिकरण है।
प्रश्न 5.
बँटवारे में औरतों की बरामदगी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घंटवारे के दौरान स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए, उनका अपहरण किया गया, उन्हें बार-बार खरीदा- बेचा गया तथा अनजान परिस्थितियों में अजनबियों के साथ एक नया जीवन बसर करने के लिए विवश किया गया। बहुत सी स्त्रियों को जबरदस्ती घर बिठा ली गई तथा उन्हें उनके नये परिवारों से छीनकर पुनः पुराने परिवारों या स्थानों पर भेज दिया गया। इस अभियान में लगभग 30,000 स्त्रियों को बरामद किया गया, इनमें से 22,000 मुस्लिम स्त्रियों को भारत से तथा 8,000 हिन्दू स्त्रियों को पाकिस्तान से निकाला गया।
प्रश्न 6.
डॉ. खुशदेवसिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह एक सिक्ख डॉक्टर थे तथा तपेदिक के विशेषज्ञ थे वे विभाजन के दौरान धर्मपुर (हिमाचल प्रदेश) में नियुक्त थे। उन्होंने दिन-रात लगकर असंख्य प्रवासी मुसलमानों सिक्खों हिन्दुओं को बिना किसी भेदभाव के भोजन, आश्रय और सुरक्षा प्रदान की। उन पर लोगों का ऐसा ही विश्वास था जैसा दिल्ली और कई जगह के मुसलमानों को गाँधीजी पर था।
प्रश्न 7.
” बँटवारे के समय हुई हिंसा से पीड़ित लोग तिनकों में अपनी जिन्दगी दोबारा खड़ी करने के लिए मजबूर हो गये।” इस कथन के सन्दर्भ में एक मार्मिक चित्रण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन के सन्दर्भ की मार्मिक चित्रण को हम निम्न उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं-
- भारत विभाजन में कई लाख लोग मारे गये और न जाने कितनी महिलाओं का बलात्कार एवं अपहरण हुआ।
- करोड़ों लोग उजड़ गये। कुछ रातों-रात अजनबी जमीन पर शरणार्थी बनकर रह गए।
- लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को भारत और पाकिस्तान के मध्य रातों-रात खड़ी कर दी गई सीमा के इस या उस पार जाना पड़ा। जैसे ही उन्होंने इस ‘छाया सीमा’ से ठोकर खाई, वे बेघर बार हो गये।
- पलक झपकते ही उनकी धन सम्पत्ति हाथ से जाती रही।
- उनके मित्र तथा रिश्तेदार बिछड़ गए। वे अपनी मकानों, खेतों तथा कारोबार से वंचित हो गए।
प्रश्न 8.
1920 व 1930 ई. के दशकों में कौन- कौनसे मुद्दे हिन्दू व मुसलमानों के मध्य तनाव का कारण बने?
अथवा
20 वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिता के पक्की होने के अन्य कारण क्या थे?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिताएँ कई अन्य कारणों से भी ज्यादा पक्की हुई. 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे मुसलमानों को ‘मस्जिद के सामने संगीत’, गो-रक्षा आन्दोलन, और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें (यानी कि नव-मुसलमानों को फिर से हिन्दू बनाना) जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया। दूसरी ओर हिन्दू 1923 के बाद तबलीग (प्रचार) और तंजीम के विस्तार से उत्तेजित हुए। जैसे-जैसे मध्यमवर्गीय प्रचारक और साम्प्रदायिक कार्यकर्ता अपने समुदायों में लोगों को दूसरे समुदायों के खिलाफ लामबंद करते हुए, ज्यादा एकजुटता बनाने लगे, देश के विभिन्न भागों में दंगे फैलते हुए।
प्रश्न 9.
संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में काँग्रेस ने मुस्लिम लीग के गठबंधन प्रस्ताव को क्यों खारिज कर दिया?
उत्तर:
प्रथमतः, संयुक्त प्रांत में काँग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था। लीग वहाँ गठबंधन सरकार बनाना चाहती थी जिसे काँग्रेस ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि काँग्रेस को बहुमत के लिए दूसरे दल के साथ गठबंधन की आवश्यकता नहीं थी। दूसरे, इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि काँग्रेस पार्टी जमींदारी प्रथा को खत्म करना चाहती थी और मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन करती हुई प्रतीत होती थी। तीसरे, मुस्लिम लीग मुसलमानों की एकमात्र प्रवक्ता होने पर बल दे रही थी।
प्रश्न 10.
पाकिस्तान का नाम का प्रस्ताव सर्वप्रथम किसने रखा था? लिखिए।
उत्तर”
पाकिस्तान अथवा पाकस्तान (पंजाब, अफगानिस्तान, कश्मीर, सिन्ध और बिलोचिस्तान) नाम सबसे पहले कैम्ब्रिज में पढ़ने वाले पंजाबी मुसलमान छात्र चौधरी रहमत अली ने 1933 और 1935 में लिखित अपने दो पचों में गढ़ा। रहमत अली इस नई इकाई के लिए अलग राष्ट्रीय हैसियत चाहता था। 1930 के दशक में किसी ने भी उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। यहाँ तक कि मुस्लिम लीग तथा अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी उसके इस विचार को खारिज कर दिया था।
प्रश्न 11.
पाकिस्तान का प्रस्ताव कब रखा गया? क्या सभी मुस्लिम नेता पाकिस्तान निर्माण या विभाजन के पक्ष में थे?
उत्तर:
23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था बल्कि इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री सिकन्दर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली में अपने भाषण में कहा था कि “वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जंगह हिन्दू राज होगा।”
प्रश्न 12.
क्या ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ गीत के लेखक मो. इकबाल अलग पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्षीय भाषण में मो. इकबाल ने ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की आवश्यकता पर जोर दिया था। अपने भाषण में इकबाल एक नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत शिथिल भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे। इससे स्पष्ट होता है कि मो. इकबाल विभाजन के पक्ष में नहीं थे।
प्रश्न 13.
क्या मुस्लिम नेताओं और स्वयं जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से उठाया था? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
प्रारम्भ में मुस्लिम नेताओं तथा स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से नहीं उठाया था क्योंकि जिना इस माँग को एक सौदेबाजी के पैंतरे के रूप में प्रयोग कर रहे थे। उनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा काँग्रेस को मिलने वाली रिवायतों पर रोक लगाने तथा मुसलमानों के लिए और रियायतें हासिल करना था। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण अंग्रेजों को स्वतन्त्रता के बारे में औपचारिक वार्ताएँ कुछ समय के लिए टालनी पड़ीं।
प्रश्न 14.
1945 में दोबारा शुरू हुई वार्ताएँ क्यों टूट गई?
उत्तर:
(1) अँग्रेज इस बात पर सहमत हुए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाई जाएगी, जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराव और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के।
(2) लेकिन यह वार्ता टूट गई। जिना इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव
प्रश्न 8.
1920 व 1930 ई. के दशकों में कौन- कौनसे मुद्दे हिन्दू व मुसलमानों के मध्य तनाव का कारण बने?
अथवा
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिता के पक्की होने के अन्य कारण क्या थे?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिताएँ कई अन्य कारणों से भी ज्यादा पक्की हुई. 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे मुसलमानों को ‘मस्जिद के सामने संगीत’, गो-रक्षा आन्दोलन, और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें (यानी कि नव-मुसलमानों को फिर से हिन्दू बनाना) जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया। दूसरी ओर हिन्दू 1923 के बाद तबलीग (प्रचार) और तंजीम के विस्तार से उत्तेजित हुए। जैसे-जैसे मध्यमवर्गीय प्रचारक और साम्प्रदायिक कार्यकर्ता अपने समुदायों में लोगों को दूसरे समुदायों के खिलाफ लामबंद करते हुए ज्यादा एकजुटता बनाने लगे, देश के विभिन्न भागों में दंगे फैलते हुए।
प्रश्न 9.
संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में काँग्रेस ने मुस्लिम लीग के गठबंधन प्रस्ताव को क्यों खारिज कर दिया ?
उत्त:
प्रथमत:, संयुक्त प्रांत में काँग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था। लीग वहाँ गठबंधन सरकार बनाना चाहती थी जिसे काँग्रेस ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि काँग्रेस को बहुमत के लिए दूसरे दल के साथ गठबंधन की आवश्यकता नहीं थी। दूसरे, इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि काँग्रेस पार्टी जमींदारी प्रथा को खत्म करना चाहती थी और मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन करती हुई प्रतीत होती थी। तीसरे, मुस्लिम लीग मुसलमानों की एकमात्र प्रवक्ता होने पर बल दे रही थी।
प्रश्न 10.
पाकिस्तान का नाम का प्रस्ताव सर्वप्रथम किसने रखा था? लिखिए।
उत्तर:
पाकिस्तान अथवा पाकस्तान (पंजाब, अफगानिस्तान, कश्मीर, सिन्ध और बिलोचिस्तान) नाम सबसे पहले कैम्ब्रिज में पढ़ने वाले पंजाबी मुसलमान छात्र चौधरी रहमत अली ने 1933 और 1935 में लिखित अपने दो पचों में गढ़ा। रहमत अली इस नई इकाई के लिए अलग राष्ट्रीय हैसियत चाहता था। 1930 के दशक में किसी ने भी उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। यहाँ तक कि मुस्लिम लीग तथा अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी उसके इस विचार को खारिज कर दिया था।
प्रश्न 11.
पाकिस्तान का प्रस्ताव कब रखा गया? क्या सभी मुस्लिम नेता पाकिस्तान निर्माण या विभाजन के पक्ष में थे?
उत्तर:
23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था बल्कि इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री सिकन्दर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली में अपने भाषण में कहा था कि “वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जंगह हिन्दू राज होगा।”
प्रश्न 12.
क्या ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ गीत के लेखक मो. इकबाल अलग पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्षीय भाषण में मो. इकबाल ने ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की आवश्यकता पर जोर दिया था। अपने भाषण में इकबाल एक नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत शिथिल भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे। इससे स्पष्ट होता है कि मो. इकबाल विभाजन के पक्ष में नहीं थे।
प्रश्न 13.
क्या मुस्लिम नेताओं और स्वयं जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से उठाया था? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
प्रारम्भ में मुस्लिम नेताओं तथा स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से नहीं उठाया था क्योंकि जिन्ना इस माँग को एक सौदेबाजी के पैंतरे के रूप में प्रयोग कर रहे थे। उनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा काँग्रेस को मिलने वाली रिवायतों पर रोक लगाने तथा मुसलमानों के लिए और रियायतें हासिल करना था। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण अंग्रेजों को स्वतन्त्रता के बारे में औपचारिक वार्ताएं कुछ समय के लिए टालनी पड़ीं।
प्रश्न 14.
1945 में दोबारा शुरू हुई वार्ताएँ क्यों टूट गई?
उत्तर:
(1) अँग्रेज इस बात पर सहमत हुए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाई जाएगी, जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराव और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के।
(2) लेकिन यह वार्ता टूट गई। जिना इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार मुस्लिम लीग के अलावा और किसी को नहीं है। उनका कहना था कि अगर मुस्लिम सदस्य किसी फैसले का विरोध करते हैं तो उसे कम से कम दो-तिहाई सदस्यों की सहमति से ही पारित किया जाना चाहिए।
प्रश्न 15.
उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल का उत्तरी- पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य से क्या आशय था?
उत्तर:
1930 ई. में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण देते हुए उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल ने उत्तरी- पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य की आवश्यकता पर जोर दिया था परन्तु इस भाषण में इकबाल एक नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे।
प्रश्न 16.
विभाजन के लिए भारत को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया था ? नाम लिखिए।
उत्तर:
विभाजन के लिए भारत को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया, जो निम्नलिखित हैं – समूह ‘क’-हिन्दू बहुल प्रान्त समूह ‘ख’- पश्चिमोत्तर मुस्लिम बहुल प्रान्त समूह ‘ग’ असम सहित पूर्वोत्तर के मुस्लिम प्रान्त।
प्रश्न 17.
यूनियनिस्ट पार्टी क्या थी? इसके प्रमुख नेता का नाम बताइए कैबिनेट मिशन योजना से अपना समर्थन वापस लेने के पश्चात् मुस्लिम लीग ने क्या कार्यवाही की?
उत्तर:
यूनियनिस्ट पार्टी पंजाब में हिन्दू, मुस्लिम एवं सिख भूस्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टी थी। यह पार्टी 1923 से 1947 के मध्य बहुत अधिक शक्तिशाली थी। इस पार्टी के प्रमुख नेता, सिकन्दर हयात खान थे जो पंजाब के प्रधानमन्त्री भी रहे थे। कैबिनेट मिशन योजना से अपना समर्थन वापस लेने के पश्चात् मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को वास्तविकता प्रदान करने के लिए 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने का फैसला किया।
प्रश्न 18.
उर्दू के प्रतिभाशाली कहानीकार सआदत हसन मंटो ने अपने लेखन के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
सआदत हसन मंटो ने लिखा है, “लम्बे अर्से तक मैं देश के बँटवारे से अपनी उथल-पुथल के नतीजों को स्वीकार करने से इनकार करता रहा महसूस तो मैं अब भी यही करता पर मुझे लगता है कि आखिरकार मैंने अपने आप पर तरस खाए या हताश हुए बगैर उस खौफनाक सच्चाई को मंजूर कर लिया है। इस प्रक्रिया में मैंने इंसान के बनाए हुए लहू के इस समंदर से अनोखी आय (चमक) वाले मोतियों को निकालने की कोशिश की।”
प्रश्न 19.
विभाजन के बारे में बहुत सी कहानी, कविता और फिल्में लिखी व बनाई गई हैं, उनमें से कुछ का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विभाजन से सम्बन्धित यहाँ पर हम विभिन्न भाषाओं के लेखकों तथा उनकी रचनाओं के नाम दे रहे हैं।
उर्दू-सआदत हसन मंटो, राजेन्दर सिंह बेदी, इंतेजार हुसैन, फैज अहमद फैज दास।
हिन्दी-भीष्म साहनी (तमस), कमलेश्वर, राही मासूम रजा (नीम का पेड़)।
पंजाबी-संत सिंह सेखो, अमृता प्रीतम
बंगला-नरेन्द्रनाथ मित्रा, सैयद वली उल्ला, दिनेश
प्रश्न 20.
काँग्रेस ने भारत विभाजन को किस उद्देश्य से स्वीकार किया?
अथवा
क्या भारत का विभाजन अपरिहार्य था ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(1) कैबिनेट मिशन की असफलता के बाद विभाजन कमोबेश अपरिहार्य हो गया था। महात्मा गाँधी और खान अब्दुल गफ्फार खान को छोड़कर शेष सभी कांग्रेसी नेता विभाजन को अब अवश्यंभावी परिणाम मान चुके थे।
(2) लोग द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही का फैसला लेने से कलकत्ता में दंगे भड़क गये थे जिन्होंने देश की शान्ति भंग कर दी थी। शीघ्र शान्ति की स्थापना हेतु कांग्रेस नेताओं को बँटवारे के लिए अपनी सहमति देनी पड़ी।
प्रश्न 21.
1946 के प्रान्तीय चुनावों में काँग्रेस और मुस्लिम लीग की स्थिति में क्या अन्तर आया?
उत्तर:
(1) 1946 के प्रान्तीय चुनावों में सामान्य सीटों पर तो काँग्रेस को एकतरफा सफलता मिली। 91.3 प्रतिशत गैर मुस्लिम वोट काँग्रेस के खाते में गये।
(2) मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भी ऐसी ही बेजोड़ सफलता मिनी मध्य प्रान्त में उसने सभी 30 आरक्षित सीटें जीतीं और मुस्लिम वोटों में से 86.6 प्रतिशत उसके उम्मीदवारों को मिले। सभी प्रान्तों की कुल 509 आरक्षित सीटों में से 442 सीटें मुस्लिम लीग के पास गई।
प्रश्न 22.
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मानने से क्यों इन्कार कर दिया था?
उत्तर:
(1) कांग्रेस चाहती थी कि प्रान्तों को अपनी इच्छा का समूह चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। कांग्रेस इस बात से भी असन्तुष्ट थी कि प्रारम्भ में प्रान्तों की समूहबद्धता अनिवार्य होगी परन्तु संविधान बन जाने के बाद उनके पास समूहों से निकलने का अधिकार होगा। (2) मुस्लिम लीग की माँग थी कि प्रान्तों की समूहबद्धता अनिवार्य हो जिसमें समूह ‘ख’ तथा ‘ग’ के पास भविष्य में संघ से अलग होने का अधिकार होना चाहिए।
प्रश्न 23.
” अंग्रेजों द्वारा 1909 ई. में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों का साम्प्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कुछ विद्वानों का तर्क है कि अंग्रेजों द्वारा 1909 ई. में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों (जिनका 1919 में विस्तार किया गया) का साम्प्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा पृथक् चुनाव क्षेत्रों की व्यवस्था से मुसलमान विशेष चुनाव क्षेत्रों में अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे। इस व्यवस्था में राजनेताओं को लालच रहता था कि वह सामुदायिक नारों का प्रयोग करें एवं अपने धार्मिक समुदाय के व्यक्तियों को अनुचित लाभ पहुँचाएँ। इसी प्रकार से उभरती हुई आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था में धार्मिक अस्मिताओं का सक्रिय प्रयोग होने लगा। अब सामुदायिक अस्मिताओं का सम्बन्ध केवल विश्वास एवं आस्था के अन्तर से नहीं था बल्कि अब धार्मिक अस्मिताएँ समुदायों के मध्य बढ़ रहे विरोधों से जुड़ गई। यद्यपि भारतीय राजनीति पर पृथक् चुनाव क्षेत्रों का बहुत प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 24.
क्या कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार किया? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
प्रारम्भ में कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया लेकिन यह समझौता अधिक दिनों तक नहीं चल पाया, कांग्रेस चाहती थी कि प्रान्तों को अपनी इच्छा का समूह चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। कांग्रेस कैबिनेट मिशन के इस स्पष्टीकरण से भी सन्तुष्ट नहीं थी कि प्रारम्भ में यह समूहबद्धता अनिवार्य होगी लेकिन एक बार संविधान बन जाने के उपरान्त उनके पास समूहों से, निकलने का अधिकार प्राप्त होगा और परिवर्तित परिस्थितियों में नए चुनाव कराए जाएँगे। अन्ततः कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को अस्वीकार कर लिया।
प्रश्न 25.
मार्च, 1947 से लगभग साल भर तक देश में रक्तपात चलता रहा।” इसका क्या कारण था?
उत्तर:
लगभग साल भर तक देश में रक्तपात चलते रहने का प्रमुख कारण यह था कि शासन की संस्थाएँ बिखर चुकी थीं। शासन-तन्त्र पूरी तरह नष्ट हो चुका था। अंग्रेज अधिकारी निर्णय लेना नहीं चाहते थे और हस्तक्षेप करने में संकोच कर रहे थे किसी को भी ज्ञात नहीं था कि सत्ता किसके हाथ में है और पीड़ित लोग कहाँ शिकायत करें। भारतीय दलों के अधिकांश नेता स्वतन्त्रता के बारे में जारी वार्ताओं में व्यस्त थे। अंग्रेज भारत छोड़ने की तैयारी में लगे थे।
प्रश्न 26.
1947 के विभाजन में क्षेत्रीय विविधताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- विभाजन का सबसे खूनी और विनाशकारी रूप पंजाब में देखा गया
- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) के बहुत सारे परिवार पचास के दशक तथा साठ के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में भी पाकिस्तान जाकर बसते रहे।
- बंगाल में लोगों का पलायन अधिक लम्बे समय तक चलता रहा। लोग अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के आर-पार जाते रहे।
- पंजाब और बंगाल में स्त्रियों और लड़कियों पर अत्याचार किए गए।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आपके अनुसार क्या भारत विभाजन आवश्यक था? विस्तार से उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारत विभाजन की माँग के प्रति काँग्रेस और गाँधीजी के रवैये की विवेचना कीजिए। आखिरकार विभाजन की माँग क्यों स्वीकार कर ली गई?
उत्तर:
भारत विभाजन की माँग के प्रति काँग्रेस और गाँधीजी का रवैया – कैबिनेट मिशन योजना तक तो काँग्रेस और गाँधीजी दोनों का दृष्टिकोण भारत विभाजन के प्रति नकारात्मक था। वे किसी भी कीमत पर भारत को विभाजन नहीं चाहते थे।
विभाजन की माँग को स्वीकार करने के कारण –
काँग्रेस द्वारा भारत विभाजन की माँग को निम्न कारणों से स्वीकार कर लिया गया –
(1) ब्रिटिश सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति-1909 में ब्रिटिश सरकार ने सांप्रदायिक चुनाव पद्धति लागू कर भारत विभाजन के बीज बोए और फिर वह निरन्तर जिन्ना व मुस्लिम लीग को प्रश्रय देते रहे और जिन्ना की हठ को स्वीकार करते हुए, माउंटबेटन योजना में विभाजन की घोषणा कर दी। इस प्रकार विभाजन की स्थिति अचानक स्वतंत्रता व सत्ता हस्तांतरण के साथ आयी। उस समय उसे स्वीकार करने के अलावा कोई अन्य विकल्प काँग्रेस के पास नहीं रह गया था।
(2) साम्प्रदायिक तनाव-920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं के कारण साम्प्रदायिक तनावों में वृद्धि हुई। मुसलमान मस्जिद के सामने संगीत, गोरक्षा आन्दोलन, आर्य समाज द्वारा संचालित शुद्धि आन्दोलन आदि से नाराज थे। दूसरी ओर हिन्दू तबलीग (प्रचार) और तंजीम (संगठन) के विस्तार से नाराज थे। इससे साम्प्रदायिक तनाव को प्रोत्साहन मिला।.
(3) पाकिस्तान की माँग-23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए स्वायत्ता की माँग का प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
(4) अंतरिम सरकार की विफलता-अंतरिम सरकार में सम्मिलित मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों ने कदम-कदम पर रुकावटें पैदा कर उसे विफल कर दिया।
(5) 1946 के चुनावों में लीग को आरक्षित सीटों पर मिली अच्छी सफलता-1946 में दुबारा हुए प्रांतीय चुनावों में कुल 509 आरक्षित सीटों में से 442 मुस्लिम लीग के पास गई थीं। अब वह मुस्लिम मतदाताओं के बीच सबसे प्रभुत्वशाली पार्टी के रूप में उभरी थी।
(6) ब्रिटिश सरकार की धमकी-20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड एटली ने घोषणा की कि जून, 1948 तक अंग्रेज भारत छोड़ देंगे।
(7) साम्प्रदायिक दंगे-मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी। उस दिन कलकत्ता में भीषण दंगा भड़क उठा जिसमें हजारों लोग मारे गए।
प्रश्न 2.
दिल्ली अब बच जायेगी।” 1947 के साम्प्रदायिक दंगों के संदर्भ में गाँधीजी के लिए कहे गए उक्त कथन की सत्यता सिद्ध कीजिये।
अथवा
सांप्रदायिक सौहार्द बनाने में गाँधीजी के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वतंत्रता प्राप्त होने के साथ भड़के सांप्रदायिक दंगों में गाँधीजी ने कैसे अकेली फौज की तरह कार्य किया? लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ-साथ सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे हिन्दू और मुसलमान दोनों आपसी भाई चारे को भूल गए। इस सारी उथल-पुथल में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए एक आदमी की बहादुराना कोशिशें आखिरकार रंग लाने लगीं।
(1) अहिंसा का सहारा-77 साल के बुजुर्ग गांधीजी ने अपने जीवनपर्यन्त सिद्धान्त को एक बार फिर आजमाया और अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।
(2) गाँधीजी की पदयात्रा- गाँधीजी पूर्वी बंगाल के नोआखली (वर्तमान बांग्लादेश) से बिहार तक के गाँवों में उसके बाद कलकत्ता व दिल्ली के दंगों में झुलसी झोंपड़- पट्टियों की यात्रा पर निकल पड़े।
(3) गांधीजी पूर्वी बंगाल में-अक्टूबर, 1946 में पूर्वी बंगाल के मुसलमान हिन्दुओं को अपना निशाना बना रहे थे। गाँधी वहाँ पैदल गाँव-गाँव घूमे और स्थानीय मुसलमानों को समझाया कि ये हिन्दुओं को न मारें तथा उनकी रक्षा करें।
(4) गाँधीजी दिल्ली में दिल्ली में गाँधीजी ने दोनों समुदायों को भरोसा दिलाया तथा पारस्परिक विश्वास और भरोसा कायम रखने की सलाह दी।
(5) गाँधीजी शीशगंज गुरुद्वारे में 28 नवम्बर, 1947 को गुरुनानक जयंती के अवसर पर गुरुद्वारा शीशगंज में सिखों की एक सभा को संबोधित करने गये तो उन्होंने देखा कि दिल्ली का दिल कहलाने वाले चाँदनी चौक में एक भी मुसलमान सड़क पर नहीं था।
गाँधीजी अनशन पर मुसलमानों को शहर से बाहर खदेड़ने की सोच से तंग आकर उन्होंने अनशन शुरू किया। इस अनशन में उनके साथ पाकिस्तान से आए शरणार्थी हिन्दू व सिख भी बैठते थे।
मौलाना आजाद ने लिखा है कि “इस अनशन का असर ‘आसमानी बिजली’ की तरह हुआ।” लोगों को मुसलमानों के सफाए की बात में निरर्थकता दिखाई देने लगी। मगर हिंसा का यह नंगा नाच आखिरकार गाँधीजी के बलिदान के साथ ही खत्म हुआ। इस प्रकार हम देखते हैं कि जो कार्य एक फौज नहीं कर सकती थी उसे बुजुर्ग गाँधीजी ने अपने अकेले दम पर करके दिखाया। इसलिए उन्हें एक अकेली फौज कहकर सम्मानित किया गया।
प्रश्न 3.
शोधकर्ता के सामने लाहौर विश्वविद्यालय में जो घटनाएँ घटित हुई उनका वर्णन करते हुए बताइए कि इन घटनाओं से क्या निष्कर्ष निकला?
उत्तर:
शोधकर्ता पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर में विभाजन के समय हुए दंगों के विषय पर शोध करने गया था। वह भारतीय नागरिक था लेकिन वह स्वयं को दक्षिण एशियाई नागरिक मानता था। उसके मन में हिन्दुस्तान या पाकिस्तान का कोई भेदभाव नहीं था। शोध करते समय उसके सामने तीन घटनाएँ घटित हुईं जिनसे अलग-अलग निष्कर्ष निकलते हैं। प्रथम घटना” मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़े हुए कर्ज को चुका रहा हूँ।”
शोधकर्ता विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुस्तकालय में जाया करता था तो वहाँ अब्दुल लतीफ नामक धर्मनिष्ठ अधेड़ आयु का व्यक्ति उसकी बहुत मदद करता था। जब शोधकर्ता ने उससे मदद देने के आरे में जानकारी चाही तो उसका जवाब सुनकर शोधकर्ता अवाक् रह गया। अब्दुल लतीफ जानते थे कि शोधकर्ता भारतीय है जहाँ बँटवारे में उसका पूरा खानदान खत्म हो गया था सिवाय उसके पिता के उसके पिता की जान एक बुजुर्ग हिन्दू महिला ने बचाई थी इसलिए वह अपने को ऋणी मानते हुए शोधकर्ता की मदद कर रहा था।
इस घटना से पता चलता है कि अब्दुल लतीफ एक दयालु और एहसानमंद व्यक्ति था जिसके मन में भारत के प्रति नफरत नहीं थी। यह घटना बताती है कि अब्दुल लतीफ मजहब के बजाय इंसानी रिश्ते को महत्व देने वाला व्यक्ति था। वह मजहबी दंगों को सिर्फ एक पागलपन मानता था। दूसरी घटना “बरसों हो गए, मैं किसी पंजाबी मुसलमान से नहीं मिला।”
शोधकर्ता के सामने दूसरी घटना लाहौर के एक यूथ हॉस्टल के मैनेजर के साथ घटी जिसने भारतीय होने के कारण शोधकर्ता को हॉस्टल में स्थान देने से मना कर दिया लेकिन शोधकर्ता को चाय पिलाई और अपने साथ दिल्ली में घटी घटना सुनाई। जब वह एक सरदार पहाड़गंज का पता पूछता है तो सरदार उसे रुकने को कहता है।
मैनेजर उसकी आवाज से डर गया कि अब यह सरदार मुझे खत्म कर देगा क्योंकि उसने अपना नाम इकबाल अहमद तथा निवासी लाहौर बताया था लेकिन उसका डर सही नहीं था। सरदार ने आते ही उसे अपनी बाँहों में कसकर भींच लिया और वह भीगी आँखों से बोला “बरसों हो गए, मैं किसी पंजाबी मुसलमान से नहीं मिला। मैं मिलने को तरस रहा था पर यहाँ पंजाबी बोलने वाले मुसलमान मिलते ही नहीं।” इस घटना से पता चलता है कि विभाजन के बाद भी हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे से मिलने के लिए आतुर रहते थे।
तीसरी घटना-“ना, नहीं तुम कभी हमारे नहीं हो सकते।” शोधकर्ता को लाहौर में एक व्यक्ति मिला जो धोखे से उसे पाकिस्तानी समझ कर उसे वहीं रहने की जिद करने लगा लेकन शोधकर्ता ने बताया कि वह पाकिस्तानी नहीं है, हिन्दुस्तानी है यह सुनते ही उसके मुँह से न चाहते हुए ये शब्द निकले, “ना, नहीं तुम कभी हमारे नहीं हो सकते। तुम्हारे लोगों (भारतीयों) ने हमारे पूरे गाँव को 1947 में साफ कर दिया था। हम कट्टर दुश्मन हैं और हमेशा रहेंगे।” यह घटना बताती है कि तीसरा व्यक्ति मजहब को महत्त्व दे रहा था, उसके अन्दर भारत के प्रति अपार घृणा थी। उसमें इंसानियत का जज्बा (भावना नहीं था।
प्रश्न 4.
“देश के विभाजन के दौरान जहाँ दोनों तरफ मारकाट मची थी वहीं पर कुछ लोग पीड़ितों की मदद करके मानवता और सद्भावना की मिसाल कायम कर रहे थे।” अपनी पाठ्यपुस्तक में से पढ़ी हुई किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए।
अथवा
डॉ. खुशदेव सिंह मानवता व सद्भावना की जिन्दा मिसाल थे। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
देश में बँटवारे के समय दंगों के दौरान जहाँ लोग निर्दोषों का खून बहा रहे थे वहीं दूसरी तरफ डॉ. खुशदेव सिंह जैसे लोग बिना जाति और मजहब का विचार किए पीड़ितों की सेवा में जी-जान से जुटे थे पीड़ितों को राहत पहुँचाना ही उनका मजहब था और ईमान था इतिहासकारों ने अगणित कहानियाँ उजागर की हैं कि किस तरह बहुत सारे लोग बँटवारे के समय एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। ये आपसी हमदर्दी और साझेदारी नए मौकों के खुलने और सदमों पर विजय की कहानियाँ हैं। डॉ. खुशदेव सिंह की कहानी भी इसी प्रकार की कहानी है –
डॉ.खुशदेव सिंह – डॉ. खुशदेव सिंह हमारे सामने एक बेहतरीन मिसाल हैं। डॉ. खुशदेव सिंह एक सिख डॉक्टर थे जो तपेदिक (टी.बी. रोग के विशेषज्ञ थे। वे उस समय धर्मपुर में तैनात थे जो आजकल हिमाचल प्रदेश में है। दिन- रात लगकर डॉ. सिंह ने असंख्य प्रवासी मुसलमानों, सिखों और हिन्दुओं को बिना किसी भेदभाव के एक कोमल स्पर्श, भोजन, आश्रय और सुरक्षा प्रदान की।
धर्मपुर के लोगों में उनके इंसानी जज्बे और सहृदयता के प्रति गहरी आस्था और विश्वास पैदा हो गया था। उन पर लोगों को वैसा ही भरोसा था जैसा दिल्ली और कई जगह के मुसलमानों को गाँधीजी पर था। एक मुस्लिम मुहम्मद उमर ने अपनी चिट्ठी में डॉ. खुशदेव सिंह को लिखा था, “पूरी विनम्रता से मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुझे आपके अलावा किसी की शरण में सुरक्षा दिखाई नहीं देती। इसलिए मेहरबानी करके आप मुझे अपने अस्पताल में एक सीट दे दीजिए।”
डॉ. खुशदेव सिंह के संस्मरण – डॉ. खुशदेव सिंह द्वारा किए गए अथक प्रयासों के बारे में उनके संस्मरणों लव इज स्ट्रांगर दैन हेट ए रिमेम्बेरेन्स ऑफ 1947 ( मुहब्बत नफरत से ज्यादा ताकतवर होती है-1947 की यादें) से पता चलता है। यहाँ डॉक्टर साहब ने अपने कामों को बयान करते हुए लिखा है कि यह ” एक इंसान होने के नाते बिरादर इंसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए मेरी एक छोटी सी कोशिश थी।”
उन्होंने 1949 में कराची की दो संक्षिप्त यात्राओं का गर्व से जिक्र किया है। उनके पुराने दोस्तों और धर्मपुर में उनसे मदद लेने वालों को कराची हवाई अड्डे पर उनके साथ कुछ यादगार घंटे बिताने का मौका मिला। पहले से उन्हें जानने वाले 6 पुलिस कांस्टेबल उन्हें लेकर हवाई जहाज तक गए और जहाज पर चढ़ते हुए उन्हें सलामी दी। “मैंने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया। मेरी आँखों में आँसू छलक आए थे।”
प्रश्न 5.
भारत विभाजन को गृहयुद्ध या महाध्वंस क्यों कहा गया है? यह महाध्वंस नात्सी महाध्वंस से किस रूप में भिन्न है?
उत्तर:
भारत विभाजन – गृहयुद्ध तथा महाध्वंस के रूप में –
भारत विभाजन के दौरान जो चौतरफा हिंसा हुई, उसमें कई लाख लोग मारे गये न जाने कितनी औरतों का बलात्कार और अपहरण हुआ। मोटे रूप से इसमें मरने वालों की संख्या दो लाख से पाँच लाख तक रही तथा लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को एक सरहद से दूसरी सरहद में जाना पड़ा इसे एक सामान्य विभाजन, एक व्यवस्थित संवैधानिक फैसला तथा आपसी रजामंदी के आधार पर इलाके और सम्पत्तियों का सामान्य बँटवारा भर नहीं कहा जा सकता।
गृहयुद्ध – कुछ इतिहासकारों ने इसे 16 माह का गृहयुद्ध कहा है। उनका तर्क रहा है कि पाले के दोनों तरफ पूरी की पूरी जनसंख्या का दुश्मनों की तरह सफाया कर देने के लिए सुनियोजित कोशिशें की जा रही थीं और इसके लिए संगठित गिरोह कमर कसे खड़े थे। जिन्दा बच जाने वाले लोग इस विभाजन के दौर को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं- माशल-ला (मार्शल लॉ)’. ‘मारामारी’, ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’।
महाध्वंस (होलोकॉस्ट) – विभाजन के दौरान हुई हत्याओं, बलात्कार, आगजनी और लूटपाट को देखते हुए समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने इसके लिए ‘मराध्वंस’ शब्द का उल्लेख करते हुए इस सामूहिक जनसंहार की भयानकता को रेखांकित किया है। एक दृष्टि से देखें तो भारत विभाजन की इस भीषणता को ‘महाध्वंस’ शब्द से ही समझा जा सकता है क्योंकि यह हादसा इतना जघन्य था कि ‘विभाजन’, ‘बंटवारे’ जैसे शब्दों से उसके सारे पहलू सामने नहीं आते। इससे यह भी समझने में मदद मिलती है कि यूरोपीय महाध्वंस (नात्सी जर्मन महाध्वंस) की तरह हमारे समकालीन सरोकारों में भी विभाजन का इतना ज्यादा जिक्र क्यों आता है?
यूरोपीय महाध्वंस और भारत-विभाजन के महाध्वंस में अन्तर यूरोपीय महाध्वंस और भारत विभाजन के महाध्वंस में एक गुणात्मक अन्तर सरकारी भूमिका को लेकर था। 1947-49 में विभाजन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में जनसफाए की कोई सरकारी मुहिम नहीं चली थी जबकि नारसी जर्मनी के महाध्वंस में सरकार मुख्य भूमिका निभा रही थी। वहाँ लोगों को मारने के लिए नियन्त्रण और संगठन की तमाम आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन भारत विभाजन के समय जो नस्ली सफाया हुआ वह सरकारी निकायों की नहीं बल्कि धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।
प्रश्न 6.
सांप्रदायिकता से क्या अभिप्राय है? क्या भारत-पाक बँटवारा प्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक तनावों का ही परिणाम है?
उत्तर:
सांप्रदायिकता से आशय सांप्रदायिकता उस राजनीति को कहा जाता हैं जो धार्मिक समुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है। यथा –
(1) ऐसी राजनीति धार्मिक पहचान को बुनियादी और अटल मानती है सांप्रदायिक राजनीतिज्ञ शर्मिक पहचान को मजबूत बनाना चाहते हैं। वे इसे लोगों की एक स्वाभाविक अस्मिता मानकर पेश करते हैं, मानो लोग ऐसी पहचान लेकर पैदा हुए हों, मानो ये अस्मिताएँ इतिहास और समय के दौर से गुजरते हुए बदलती नहीं हैं।
(2) सांप्रदायिकता किसी भी समुदाय में एकता पैदा करने के लिए आंतरिक अन्तरों को दबाती है उस समुदाय की एकता पर जोर देती है और उस समुदाय को किसी न किसी अन्य समुदाय के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करती है।
(3) सांप्रदायिकता किसी चिह्नित ‘गैर’ के विरुद्ध घृणा की राजनीति को पोषित करती है। उदाहरण के लिए मुस्लिम सांप्रदायिकता हिन्दुओं को ‘गैर’ बताकर उनका विरोध करती है और ऐसे ही हिन्दू सांप्रदायिकता मुसलमानों को गैर बताकर उनके विरुद्ध डटी रहती है। इस पारस्परिक घृणा से हिंसा की राजनीति को बढ़ावा मिलता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सांप्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष तरह से राजनीतिकरण है जो धार्मिक समुदायों में परस्पर घृणा फैलाकर झगड़े पैदा करवाने की कोशिश करता है तथा हिंसा की राजनीति को बढ़ावा देता है किसी भी बहुधार्मिक देश में ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ शब्दों का अर्थ भी सांप्रदायिकता के करीब-करीब हो सकता है। ऐसे देश में यदि कोई व्यक्ति किसी धार्मिक समुदाय को राष्ट्र मानता है, तो वह विरोध और झगड़ों के बीज बो रहा है।
प्रश्न 7.
“भारत का बँटवारा एक साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था।” इस कथन की समालोचना कीजिए।
उत्तर:
भारत का बँटवारा एक साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु कुछ विद्वानों की मान्यता है कि भारत का बँटवारा एक ऐसी साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था, जो बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में शुरू हुई। इसकी पुष्टि अग्रलिखित तथ्यों से होती है –
(1) मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् निर्वाचन क्षेत्र अंग्रेजों द्वारा 1909 में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों का सांप्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा पृथक् चुनाव क्षेत्रों की वजह से मुसलमान विशेष चुनाव क्षेत्रों में अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे। इस व्यवस्था में राजनीतिज्ञों ने सामुदायिक नारों का इस्तेमाल किया तथा अपने धार्मिक समुदाय के व्यक्तियों को नाजायज तरीके से लाभ पहुँचाने की कोशिश की। इससे धार्मिक अस्मिताओं का क्रियाशील प्रयोग होने लगा। इस प्रकार सांप्रदायिक चुनावी राजनीति ने इन धार्मिक अस्मिताओं को अधिक गहरा तथा पक्का किया और अब धार्मिक अस्मिताएँ समुदायों के बीच हो रहे विरोधों से जुड़ गई।
(2) अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो नीति-ब्रिटिश साम्राज्य को स्थायी रूप से बनाये रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति अपनाई ।
(3) 1920-30 के दशक में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव-कुछ इतिहासकारों का मत है कि 1920-30 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से हिन्दू-मुसलमानों में तनाव उभरे। जैसे- मुसलमानों को ‘मस्जिद के सामने संगीत’, ‘गो-रक्षा आन्दोलन’ और आर्य समाज की ‘शुद्धि’ की कोशिशें जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया तो हिन्दू 1923 के बाद के तबलीग (प्रचार) और तंजीम (संगठन) के विस्तार से उत्तेजित हुए।
जैसे-जैसे मध्यवर्गीय प्रचारक और सांप्रदायिक कार्यकर्ता अपने-अपने समुदायों में लोगों को दूसरे समुदाय के खिलाफ एकजुट करते हुए ज्यादा एकजुटता बनाने लगे, वैसे-वैसे देश के विभिन्न भागों में दंगे फैलते गए, समुदायों के बीच भेदभाव गहरे होते गए और हिंसात्मक गतिविधियों में वृद्धि होने लगी।
(4) साम्प्रदायिक दंगे-मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी। उस दिन कलकत्ता में भीषण दंगा भड़क उठा जिसमें हजारों लोग मारे गए। इससे भी साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला।
भारत-पाक बँटवारा प्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक तनावों का परिणाम नहीं से हुआ इस सबके बावजूद यह कहना गलत है कि बँटवारा केवल सीधे-सीधे बढ़ते हुए सांप्रदायिक तनावों की वजह ‘क्योंकि सांप्रदायिक कलह तो 1947 से पहले भी होती थी, पर इसके कारण लाखों लोगों के घर नहीं उजड़े। अतः पहले की साम्प्रदायिक राजनीति और विभाजन में गुणात्मक अन्तर है। बँटवारे के पीछे ब्रिटिश शासन के आखिरी दशक की घटनाएँ उत्तरदायी रही हैं।
प्रश्न 8.
भारत के विभाजन में ब्रिटिश शासन के अन्तिम दशक के कौन-कौन से कारकों को प्रमुख उत्तरदायी माना जाता है?
उत्तर:
भारत के विभाजन के उत्तरदायी कारक- ब्रिटिश शासन के अन्तिम दशक में निम्नलिखित घटनाओं व कारकों को भारत के विभाजन के लिए उत्तरदायी माना जाता है –
(1) 1937 के प्रांतीय चुनाव और कॉंग्रेस मंत्रालय- प्रांतीय संसदों के गठन के लिए 1937 में पहली बार चुनाव कराए गए। इन चुनावों में कांग्रेस के परिणाम अच्छे रहे। उसने 11 में से 7 प्रांतों में अपनी सरकारें बनाई। मुसलमानों के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस और लीग दोनों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इन चुनावों के बाद मंत्रिमण्डल के निर्माण में काँग्रेस ने जिस तरह मुस्लिम लीग की उपेक्षा की, उसने पाकिस्तान के निर्माण की नींव रख दी।
(2) काँग्रेस के मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम की असफलता-1937 के चुनावों के बाद काँग्रेस को अपने ‘मुस्लिम जनसम्पर्क’ कार्यक्रम में कोई खास सफलता नहीं मिल पायी थी।
(3) मुस्लिम लीग का पाकिस्तान प्रस्ताव, 1940-पाकिस्तान की स्थापना की माँग धीरे-धीरे ठोस रूप ले रही थी। 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। यह भारत के विभाजन या पृथक् पाकिस्तान राष्ट्र की माँग नहीं थी, बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत किन्तु शिथिल भारत- संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना की माँग थी।
(4) 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन और भारत-की स्वतंत्रता के लिए वार्तायें आरम्भ 1942 के शुरू हुए विशाल भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को भारत की स्वतंत्रता के बारे में भारतीयों से बातें करने के लिए झुकना पड़ा और उसके अफसरों को संभावित सत्ता हस्तान्तरण के बारे में भारतीय पक्षों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार होना पड़ा। सत्ता के हस्तान्तरण का पेचीदा प्रश्न ही विभाजन का प्रमुख कारक
बना।
(5) जिन्ना की हठधर्मिता-1945 में वार्ताओं के दौरान अंग्रेज इस बात पर सहमत हुए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनायी जायेगी जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराय और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के उनकी राय में यह पूर्ण स्वतंत्रता की ओर शुरुआती कदम था लेकिन सत्ता हस्तान्तरण के बारे में जिना की इस हठधर्मिता के कारण वार्ता टूट गई क्योंकि वे इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार मुस्लिम लीग के अलावा और किसी को नहीं है।
(6) कैबिनेट मिशन की असफलता मार्च, 1946 में ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने लीग की माँग का अध्ययन करने एवं स्वतंत्र भारत के लिए एक उचित राजनीतिक रूपरेखा सुझाने के लिए कैबिनेट मिशन दिल्ली भेजा, जिसने भारत का दौरा कर एक ढीले-ढाले त्रिस्तरीय महासंघ का सुझाव दिया। काँग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों दलों ने इसे अस्वीकृत कर दिया।
(7) काँग्रेस द्वारा विभाजन को स्वीकार करना-यह एक बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव था क्योंकि इसके बाद विभाजन कमोबेश अपरिहार्य हो गया था। काँग्रेस के ज्यादातर नेता इसे शासद मगर अवश्यंभावी परिणाम मान चुके थे। गाँधीजी और खान अब्दुल गफ्फार खान ही अब केवल विभाजन के विरोधी रह गये थे। मार्च, 1947 में काँग्रेस हाईकमान ने पंजाब को मुस्लिम बहुल हिन्दू- सिख बहुल दो हिस्सों में बाँटने के प्रस्ताव की मंजूरी दे दी।
प्रश्न 9.
1937 में प्रान्तीय चुनाव व कांग्रेस की भूमिका पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
1937 में प्रान्तीय चुनाव व कांग्रेस की भूमिका प्रान्तीय संसदों के गठन के लिए 1937 में पहली बार चुनाव कराये गए। इन चुनावों में मताधिकार केवल 10 से 12 प्रतिशत लोगों के पास था। इन चुनावों में कांग्रेस की स्थिति अच्छी रही। उसने 11 प्रान्तों में से 5 प्रान्तों में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और 7 प्रान्तों में अपनी सरकार बनाई। मुसलमानों के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा परन्तु मुस्लिम लीग को भी इन क्षेत्रों में बहुत अच्छी सफलता नहीं मिली। उसे इस चुनाव में सम्पूर्ण मुस्लिम वोट का केवल 44 प्रतिशत हिस्सा ही मिला। उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त में उसे एक सीट भी नहीं मिली। पंजाब की 84 आरक्षित सीटों में उसे केवल 2 प्राप्त हुई और सिन्ध में से 13 प्राप्त हुई।
संयुक्त प्रान्त में मुस्लिम लीग द्वारा कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रयास संयुक्त प्रान्त में मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी। परन्तु यहाँ कांग्रेस का सम्पूर्ण बहुमत था इसलिए उसने मुस्लिम लीग की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम लीग की यह मान्यता थी कि मुस्लिम हितों का प्रतिनिधित्व एक मुस्लिम दल ही कर सकता है और कांग्रेस एक हिन्दू दल है। मुहम्मद अली जिन्ना इस जिद्द पर अड़े हुए थे कि मुस्लिम लीग को मुसलमानों का एकमात्र प्रवक्ता माना जाए। परन्तु जिन्ना की इस बात से बहुत कम लोग सहमत थे।
कांग्रेस मंत्रालयों द्वारा इस खाई को गहरा करना – कांग्रेस मंत्रालयों ने भी इस खाई को और गहरा कर दिया। संयुक्त प्रान्त में पार्टी ने गठबन्धन सरकार बनाने के सम्बन्ध में मुस्लिम लीग के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया था क्योंकि मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन कर रही थी जबकि कांग्रेस जमींदारी प्रथा को समाप्त करना चाहती थी।
कांग्रेस को मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम में सफलता न मिलना – कांग्रेस को अपने मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम में भी सफलता नहीं मिली। इस प्रकार कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष और एडियल बयानों से रूढ़िवादी मुसलमान और मुसलमान भू-स्वामी तो चिन्ता में ही पड़ गए, कांग्रेस मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने में भी सफल नहीं हो पाई। मौलाना आजाद ने 1937 में यह प्रश्न किया था कि कांग्रेस के सदस्यों को मुस्लिम लीग में शामिल होने की छूट तो नहीं है परन्तु उन्हें हिन्दू महासभा में शामिल होने से नहीं रोका जाता है। उनका कहना था कि कम से कम मध्य प्रान्त (वर्तमान मध्य प्रदेश) में यही स्थिति थी।