Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. इनबतूता का जन्म हुआ था-
(अ) भारत
(ब) ओमान
(स) तुर्की
(द) तैंजियर
उत्तर:
(द) तैंजियर
2. इलबतूता अनेक देशों की यात्रा करने के बाद स्वदेश वापस पहुँचा-
(अ) 1333 ई.
(ब) 1432 ई.
(स) 1354 ई.
(द) 1454 ई.
उत्तर:
(स) 1354 ई.
3. ‘रिहला’ का लेखक कौन था?
(अ) अल-बिरुनी
(ब) हसननिजामी
(स) फिरदौसी
(द) इलबतूता
उत्तर:
(द) इलबतूता
4. फ्रांस्वा बर्नियर कहाँ का निवासी था?
(अ) ब्रिटेन
(ब) फ्रांस
(स) जर्मनी
(द) इटली
उत्तर:
(ब) फ्रांस
5. फ्रांस्वा बर्नियर भारत आया था-
(अ) सोलहवीं सदी
(ब) पन्द्रहवीं सदी
(स) सत्रहवीं सदी
(द) अठारहर्वीं सदी
उत्तर:
(स) सत्रहवीं सदी
6. इन्नबतूता के पाठक किससे पूरी तरह से अपरिचित थे-
(अ) खजूर
(ब) नारियल
(स) केला
(द) अंगूर
उत्तर:
(ब) नारियल
7. इबबतूता ने किस शहर को भारत में सबसे बड़ा बताया है-
(अ) आगरा
(ब) इलाहाबाद
(स) जौनपुर
(द) दिल्ली
उत्तर:
(द) दिल्ली
8. इलबतूता भारत की कौनसी प्रणाली की कार्यकुशलता को देखकर आशचर्यचकित हो गया था-
(अ) जल-निकास प्रणाली
(ब) डाक प्रणाली
(स) गुप्तचर प्रणाली
(द) सुरक्ष प्रणाली
उत्तर:
(ब) डाक प्रणाली
9. ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ का रचयिता था-
(अ) मनूची
(ब) सर टॉमस रो
(स) बर्नियर
(द) विलियम हॉकिंस
उत्तर:
(स) बर्नियर
10. किताब-उल-हिन्द के लेखक कौन हैं?
(अ) इब्नबतूता
(ब) बर्नियर
(स) अल-बिरुनी
(द) अब्दुर रज्जाक
उत्तर:
(स) अल-बिरुनी
11. ख्वारिज्म में अल-बिरुनी का जन्म हुआ-
(अ) 1071 ई.
(ब) 933 ई.
(स) 1023 ई.
(द) 973 ई.
उत्तर:
(द) 973 ई.
12. अल-बिरुनी किसके साथ भारत आया?
(अ) मोहम्मद गौरी
(ब) मोहम्मद बिन कासिम
(स) महमूद गजनवी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) महमूद गजनवी
13. मोहम्मद तुगलक के कहने पर इबबतूता किस देश की यात्रा पर गया?
(अ) अफगानिस्तान
(ब) रूस
(स) नेपाल
(द) चीन
उत्तर:
(द) चीन
14. बर्नियर पेशे से क्या थे?
(अ) तोपची
(ब) चिकित्सक
(स) सुनार
(द) वैज्ञानिक
उत्तर:
(ब) चिकित्सक
15. इब्नबतूता ने अपना यात्रा-वृत्तान्त किस भाषा में लिखा?
(अ) अरबी
(ब) फारसी
(स) हित्रू
(द) उर्दू
उत्तर:
(अ) अरबी
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. यूक्लिड यूनानी ……………..
2. ख्वारिज्म ……………… में स्थित है।
3. सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण ……………. ई. में किया।
4. इनबतूता ……………. में स्थलमार्ग से …………. पहुँचा।
5. भारत में पुर्तगालियों का आगमन लगभग ……………….. ई. में हुआ।
6. बर्नियर ने अपनी प्रमुख कृति को फ्रांस के शासक ……………. को समर्पित किया था।
उत्तर:
1. गणितज्ञ
2 . उज्बेकिस्तान
3.1017
4. मध्य एशिया, सिन्ध
5. 1500
6. लुई
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शानिक और इतिहासकार था।
प्रश्न 2.
अल-बिरुनी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
अल-बिरुनी का जन्म ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था।
प्रश्न 3.
15 वीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले फारस के दूत का क्या नाम था?
उत्तर:
अब्दुर रज्जाक।
प्रश्न 4.
दसवीं शताब्दी से सत्रहवीं सदी तक भारत की यात्रा करने वाले तीन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए।
(1) अल बिरूनी
(2) इब्नबतूता
(3) फ्रांस्वा
उत्तर:
बर्नियर।
प्रश्न 5.
‘किताब-उल-हिन्द’ का रचयिता कौन था? यह ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
(1) अल-विरुनी
(2) अरबी भाषा।
प्रश्न 6.
अल-विरुनी द्वारा जिन दो ग्रन्थों का संस्कृत में अनुवाद किया गया, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) पतंजलि का व्याकरण
(2) यूक्लिड के कार्य।
प्रश्न 7.
इब्नबतूता कहाँ का निवासी था?
उत्तर:
इब्नबतूता मोरक्को का निवासी था।
प्रश्न 8.
इब्नबतूता के भारत पहुँचने पर किस सुल्तान ने किस पद पर नियुक्त किया था?
उत्तर:
(1) मुहम्मद बिन तुगलक ने
(2) दिल्ली के काजी (न्यायाधीश) के पद पर
प्रश्न 9.
इब्नबतूता भारत कब पहुँचा और किस मार्ग से पहुंचा?
उत्तर:
इब्नबतूता 1333 ई. में स्थल मार्ग से सिन्ध पहुँचा।
प्रश्न 10.
इब्नबतूता ने अपना यात्रा वृखन्त किस भाषा में लिखा? यह यात्रा वृत्तान्त किस नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर:
(1) अरबी भाषा में
(2) रिहला।
प्रश्न 11.
अब्दुरक समरवन्दी ने भारत में किस भाग की यात्रा की थी और कब?
उत्तर:
1440 के दशक में अब्दुररज्जाक ने दक्षिण भारत की यात्रा की।
प्रश्न 12.
फ्रांस्वा बर्नियर भारत में कितने वर्ष रहा था ?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर 12 वर्ष (1656-1668 ई.) तक भारत में रहा।
प्रश्न 13.
भारतीय समाज को समझने में अल-बिरुनी को कौनसी बाधाओं का सामना करना पड़ा ?
उत्तर:
(1) संस्कृत भाषा की कठिनाई
(2) धार्मिक अवस्था, प्रथाओं में भिन्नता
(3) अभिमान
प्रश्न 14.
इब्नबतूता ने कौनसी दो वानस्पतिक उपजों का रोचक वर्णन किया है, जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे?
उत्तर:
(1) नारियल
(2) पान।
प्रश्न 15.
इब्नबतूता के अनुसार भारत के दो बड़े शहर कौन से थे?
उत्तर:
(1) दिल्ली
(2) दौलताबाद।
प्रश्न 16.
इब्नबतूता ने भारत की किस प्रणाली की कुशलता का उल्लेख किया है?
उत्तर:
डाक प्रणाली का
प्रश्न 17.
अब्दुररज्जाक ने किस शहर के मन्दिर के शिल्प और कारीगरी को अद्भुत बताया था ?
उत्तर:
मंगलौर शहर से 9 मील के भीतर स्थित मन्दिर
प्रश्न 18.
ऐसे तीन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण किया।
उत्तर:
(1) अब्दुर रज्जाक
(2) महमूद वली बल्छी
(3) शेख अली हाजिन।
प्रश्न 19.
पेलसर्ट ने भारत की किस सामाजिक समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया?
उत्तर:
भारत की व्यापक तथा दुःखद गरीबी की समस्या।
प्रश्न 20.
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच एक प्रमुख मूल भिन्नता बताइये।
उत्तर:
भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव।
प्रश्न 21.
अल-विरुनी ने अपनी पुस्तक ‘किताब-उल- हिन्द’ किस भाषा में लिखी?
उत्तर:
अरबी में।
प्रश्न 22.
इब्नबतूता का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
तैंजियर में।
प्रश्न 23.
शरिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस्लामी कानून।
प्रश्न 24.
इब्नबतूता ने भारत के लिए कब प्रस्थान
उत्तर:
1332-33 ई. में।
प्रश्न 25.
इब्नबतूता अपने देश वापस कब पहुँचा ?
उत्तर:
1354 ई. में
प्रश्न 26.
1600 ई. के बाद भारत आने वाले दो यूरोपीय यात्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) ज्यॉँ-बैप्टिस्ट तैर्नियर
(2) मनूकी।
प्रश्न 27.
बर्नियर का यात्रा वृत्तान्त कहाँ और कब प्रकाशित हुआ?
उत्तर:
फ्रांस में 1670-71 में
प्रश्न 28.
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद अल बिरूनी ने किस मान्यता को अस्वीकार किया ?
उत्तर:
अपवित्रता की मान्यता।
प्रश्न 29.
अल बिरूनी ने भारत में प्रचलित वर्ण- व्यवस्था के अन्तर्गत किन चार प्रमुख वर्णों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) ब्राह्मण
(2) क्षत्रिय
(3) वैश्य
(4) शूद्र।
प्रश्न 30.
जातिव्यवस्था के विषय में अल-विरुनी का विवरण किन ग्रन्थों पर आधारित था?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों पर।
प्रश्न 31.
इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली शहर में कितने दरवाजे थे? इनमें से सबसे विशाल दरवाजा कौनसा था ?
उत्तर:
(1) 28 दरवाजे
(2) बदायूँ दरवाजा।
प्रश्न 32.
अब्दुररज्जाक ने किसे ‘विचित्र देश’ बताया था?
उत्तर:
कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को।
प्रश्न 33.
बर्नियर द्वारा रचित ग्रन्थ ‘ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर’ की अपनी किन विशेषताओं के लिए विख्यात है?
अथवा
‘ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर’ क्या है?
उत्तर:
(1) गहन चिन्तन
(2) गहन प्रेक्षण
(3) आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि
प्रश्न 34.
बर्नियर के अनुसार सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जनसंख्या का कितने प्रतिशत भाग नगरों में रहता था?
उत्तर:
लगभग पन्द्रह प्रतिशत।
प्रश्न 35.
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अमीरों की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किन्हें नियुक्त करता था?
उत्तर:
दासियों को।
प्रश्न 36.
अल बिरूनी द्वारा अपनी कृतियों में जिस विशिष्ट शैली का प्रयोग किया गया, उसे स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आरम्भ में एक प्रश्न, फिर संस्कृत परम्पराओं पर आधारित वर्णन।
प्रश्न 37.
वर्नियर के विवरणों ने किन दो पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया?
उत्तर:
(1) मॉन्टेस्क्यू
(2) कार्ल मार्क्स।
प्रश्न 38.
वर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को क्या कहा है?
अथवा
बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को ‘शिविर नगर कहा है।
प्रश्न 39.
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को शिविर नगर क्यों कहा है?
उत्तर:
क्योंकि ये नगर राजकीय शिविर पर निर्भर थे।
प्रश्न 40.
मुगलकालीन भारत में कौन-कौन से प्रकार के नगर अस्तित्व में थे?
उत्तर:
मुगलकालीन भारत में उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि नगर अस्तित्व में थे।
प्रश्न 41.
इब्नबतूता के अनुसार भारत में कितने प्रकार की डाक व्यवस्था प्रचलित थी?
उत्तर:
दो प्रकार की डाक व्यवस्था –
(1) अश्व डाक व्यवस्था (उलुक) तथा
(2) पैदल डाक व्यवस्था (दावा)।
प्रश्न 42.
इब्नबतूता के अनुसार ‘ताराबबाद’ क्या था?
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था, जिसे ‘तारावबाद’ कहते थे।
प्रश्न 43.
इब्नबतूता के अनुसार भारत का सबसे बड़ा शहर कौनसा था ?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा शहर था।
प्रश्न 44.
अल-विरुनी के अनुसार भारत में वर्ण- व्यवस्था का उद्भव किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
अल बिरुनी के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से, क्षत्रिय कन्धों और हाथों से वैश्य जंघाओं से तथा शूद्र चरणों से उत्पन्न हुए।
प्रश्न 45.
अल बिरुनी किन भाषाओं का ज्ञाता था?
उत्तर:
अल बिरूनी संस्कृत, सीरियाई, फारसी, हिब्रू नामक भाषाओं का ज्ञाता था।
प्रश्न 46.
अल बिरुनी तथा इब्नबतूता किन देशों से और कब भारत आए ?
उत्तर:
अल बिरुनी 11वीं शताब्दी में उज्बेकिस्तान तथा इब्नबतूता 14वीं शताब्दी में मोरक्को से भारत आए थे।
प्रश्न 47.
अल बिरूनी ने अपनी पुस्तक ‘किताब- उल-हिन्द’ में किन विषयों का विवेचन किया है?
अथवा
‘किताब-उल-हिन्द’ पर सक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
‘किताब-उल-हिन्द’ क्या है?
उत्तर:
धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, माप- तौल, मूर्तिकला, कानून तथा मापतन्त्र विज्ञान ।
प्रश्न 48.
इब्नबतूता के अनुसार किन देशों में किस भारतीय माल की अत्यधिक मांग थी?
उत्तर:
मध्य एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा सदन की अत्यधिक मांग थी।
प्रश्न 49.
किस डच यात्री ने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी और कब?
उत्तर:
(1) पेलसर्ट
(2) सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में
प्रश्न 50.
फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार भारत में किस स्थिति के लोग नहीं थे?
उत्तर;
फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं थे।
प्रश्न 51.
बर्नियर ने भारत के किस नगर अल्पवयस्क विधवा को सती होते हुए देखा था? उसे किनकी सहायता से चिता स्थल की ओर ले जाया गया?
उत्तर:
(1) लाहौर में
(2) तीन या चार ब्राह्मणाँ तथा एक वृद्ध महिला की सहायता से।
प्रश्न 52.
बर्नियर के अनुसार कौनसे शिल्प भारत में प्रचलित थे?
उत्तर:
गलीचे बनाना, जरी कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के वस्त्रों, रेशमी तथा सूती वस्त्रों का निर्माण।
प्रश्न 53.
अल बिरूनी के अनुसार फारस में समाज किन चार वर्गों में विभाजित था?
उत्तर:
- घुड़सवार और शासक वर्ग
- भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक
- खगोलशास्वी तथा अन्य वैज्ञानिक
- कृषक तथा शिल्पकार।
प्रश्न 54.
दुआ बरबोसा कौन था?
उत्तर:
दुआर्ते बरबोसा एक प्रसिद्ध यूरोपीय लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा ।
प्रश्न 55.
यूरोप के दो यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने भारतीय कृषकों की गरीबी का वर्णन किया है।
उत्तर:
(1) पेलसर्ट
(2) बर्नियर
प्रश्न 56.
इब्नबतूता भारतीय डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर क्यों चकित हुआ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता के कारण व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना और उधार भेजना सम्भव हुआ, बल्कि अल्प सूचना पर माल भेजना भी सम्भव हो गया।
प्रश्न 57.
इब्नबतूता ने मोरक्को जाने से पूर्व किन देशों की यात्रा की थी?
उत्तर:
उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया कुछ भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन
प्रश्न 58.
1400 से 1800 के बीच भारत की यात्रा करने वाले विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने फारसी में अपने यात्रा-वृत्तान्त लिखे।
उत्तर:
अब्दुररजाक समरकंदी, महमूद वली बल्खी, शेख अली हाजिन
प्रश्न 59.
इब्नबतूता के अनुसार भारत की डाक- प्रणाली क्यों लाभप्रद थी?
उत्तर:
डाक प्रणाली से व्यापारियों के लिए लम्बी दूरी तक सूचना भेजना, उधार भेजना और अल्प सूचना पर माल भेजना सम्भव हो गया।
प्रश्न 60.
पेलसर्ट कौन था?
उत्तर:
पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने सत्रहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी।
प्रश्न 61.
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य के स्वरूप की दो त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगल साइट भिखारियों’ और ‘क्रूर लोगों’ का राजा था
(2) इसके शहर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे।
प्रश्न 62.
बर्नियर ने किस जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुओं का भारत में आना
(2) भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय का अस्तित्व।
प्रश्न 63.
बर्नियर ने भारत की कृषि की किन दो विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) देश के विस्तृत भू-भाग का अधिकांश भाग अत्यधिक उपजाऊ था
(2) भूमि पर खेती अच्छी होती थी।
प्रश्न 64.
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को किसकी संज्ञा दी है और क्यों?
उत्तर:
(1) शिविर नगर
(2) क्योंकि ये नगर अपने अस्तित्व के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।
प्रश्न 65.
बर्नियर के अनुसार पश्चिमी भारत में व्यापारियों के समूह क्या कहलाते थे? उनके मुखिया को क्या कहते घे?
उत्तर:
(1) पश्चिमी भारत में व्यापारियों के समूह महाजन कहलाते थे।
(2) उनके मुखिया सेठ कहलाते थे।
प्रश्न 66.
बर्नियर के अनुसार अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग में कौन-कौन लोग सम्मिलित थे?
उत्तर:
- चिकित्सक
- अध्यापक
- अधिवक्ता
- चित्रकार
- वास्तुविद
- संगीतकार
- सुलेखक।
प्रश्न 67.
इब्नबतूता के अनुसार दासों की सेवाओं को विशेष रूप से किस कार्य में उपयोग किया जाता था?
उत्तर:
दास पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने का कार्य करते थे।
प्रश्न 68.
इब्नबतूता के अनुसार अधिकांश दासियाँ अ किस प्रकार प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
अधिकांश दासियों को आक्रमणों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था
प्रश्न 69.
विदेशी यात्री अब्दुरज्जाक ने कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को क्या बताया था?
उत्तर:
अब्दुरम्नांक ने कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को एक विचित्र देश’ बताया था।
प्रश्न 70.
“कृषकों को इतना निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन पेलसर्ट नामक एक डच यात्री का
प्रश्न 71.
बर्नियर ने भारत में पाई जाने वाली सती प्रथा का विवरण क्यों दिया?
उत्तर:
क्योंकि महिलाओं से किया जाने वाला बर्ताव प्रायः पश्चिमी तथा पूर्वी समाजों के बीच भिन्नता का प्रतीक माना जाता था।
प्रश्न 72.
मुहम्मद बिन तुगलक के दूत के रूप में किस विदेशी यात्री को मंगोल शासक के पास चीन जाने का आदेश दिया गया और कब दिया गया?
उत्तर:
(1) इब्नबतूता को
(2) 1342 ई. में
प्रश्न 73.
अल बिरूनी ने संस्कृत भाषा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया।
उत्तर:
(1) शब्दों तथा विभक्तियों दोनों में संस्कृति की पहुँच विस्तृत है।
(2) एक ही वस्तु के लिए कई शब्द प्रयुक्त होते हैं।
प्रश्न 74.
बर्नियर ने अपने वृतान्त में भारत को किसके रूप में दिखाया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में अथवा फिर यूरोप का विपरीत जैसा दिखाया है।
प्रश्न 75.
दासों को सामान्यतः किस कार्य के लिए प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:
दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था।
प्रश्न 76.
बर्नियर ने सती प्रथा के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
कुछ महिलाएँ प्रसन्नतापूर्वक मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्यों को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।
प्रश्न 77.
बर्नियर के अनुसार ‘शिविर नगर’ क्या थे?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार ‘शिविर नगर’ वे थे जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।
प्रश्न 78.
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नता क्या थी?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नता भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था।
प्रश्न 79.
किस सुल्तान ने नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक से प्रसन्न होकर उसे एक लाख के तथा दो सौ दाम दिये ?
उत्तर:
मुहम्मद बिन तुगलक ने।
प्रश्न 80.
इब्नबतूता ने भारत की किन बातों का विशेष रूप से वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नबतूता ने डाक व्यवस्था, पान तथा नारियल का विशेष रूप से वर्णन अपने ग्रन्थ ‘रिहला’ में किया है।
प्रश्न 81.
इब्नबतूता ने भारत के किस शहर को सबसे बड़ा कहा है?
उत्तर:
दिल्ली।
प्रश्न 82.
बर्नियर के ग्रन्थ का क्या नाम है?
उत्तर:
ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पावर।
प्रश्न 83.
ताराबबाद किसे कहा जाता है?
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष तथा महिला गायकों के लिए बाजार होता था; जिसे तारावबाद कहा जाता था।
प्रश्न 84.
बर्नियर ने मुगल सेना के साथ कहाँ की न यात्रा की थी?
उत्तर:
कश्मीर
प्रश्न 85.
बर्नियर जब भारत आया उस समय यूरोप में कौनसा युग गतिमान था?
उत्तर:
बर्नियर भारत में सत्रहवीं शताब्दी में आया था, कि उस समय लगभग सम्पूर्ण यूरोप में पुनर्जागरण का काल था।
प्रश्न 86.
किस यात्री ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को भेंट में देने के लिए घोड़े, अँट तथा दास खरीदे ?
उत्तर:
मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने।
प्रश्न 87.
यह तर्क किसने दिया कि भारत में ही उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लगभग दसवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक के काल में लोगों के यात्राएँ करने के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
लगभग दसवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक के काल में महिलाओं और पुरुषों के यात्राएं करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे –
- कार्य की तलाश में
- आपदाओं से बचाव के लिए
- व्यापारियों सैनिकों, पुरोहितों और तीर्थयात्राओं के रूप में
- साहस की भावना से प्रेरित होकर।
प्रश्न 2.
विदेशी यात्रियों की कौनसी बात उनके यात्रा-वृत्तान्तों को अधिक रोचक बनाती है?
उत्तर:
पूर्ण रूप से भिन्न सामाजिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने के कारण ये विदेशी यात्री दैनिक गतिविधियों तथा प्रथाओं के प्रति अधिक सावधान रहते थे। देशज लेखकों के लिए ये सभी विषय सामान्य थे, जो वृत्तान्तों में उल्लिखित करने योग्य नहीं थे दृष्टिकोण में यही भिन्नता ही उनके यात्रा वृत्तान्तों को अधिक रोचक बनाती है।
प्रश्न 3.
अल-बिरुनी के यात्रा-वृत्तान्त लिखने के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अल- विरुनी के यात्रा-वृत्तान्त लिखने के निम्नलिखित उद्देश्य थे –
(1) उन लोगों की सहायता करना जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे।
(2) ऐसे लोगों के लिए सूचना का हिन्दुओं के साथ सम्बद्ध होना चाहते थे।
प्रश्न 4.
अल-विरुनी ग्रन्थों का अनुवाद करने में क्यों सक्षम था? स्पष्ट कीजिए उसके द्वारा अनुवादित ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अल बिरूनी कई भाषाओं में दक्ष था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। इसलिए वह भाषाओं की तुलना तथा ग्रन्थों का अनुवाद करने में सक्षम रहा। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया। संग्रह करना जो उसने पतंजलि के व्याकरण ग्रन्थ का भी अरबी भाषा में अनुवाद किया। उसने अपने ब्राह्मण मित्रों के लिए यूनानी गणित यूक्लिड के कार्यों का संस्कृत में अनुवाद किया।
प्रश्न 5.
किताब-उल-हिन्द’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अल बिरूनी ने अरबी भाषा में अपनी पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जो अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इस ग्रन्थ में भारतीय धर्म और दर्शन त्योहारों, खगोल- विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक- जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है।
प्रश्न 6.
इब्नबतूता अकेला ही विश्व यात्रा पर क्यों निकल पड़ा? उस समय उसकी क्या आयु थी? वह अपने घर वापस कब पहुँचा ?
उत्तर:
इब्नबतूता के वृत्तान्त से ज्ञात होता है कि वह अपने जन्म स्थान जियर से अकेला ही अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। उसके मन में लम्बे समय से प्रसिद्ध पुण्य स्थानों को देखने की तीव्र इच्छा थी इसलिए उसने किसी कारणों में शामिल होने की प्रतीक्षा नहीं की और अकेला ही घर से निकल पड़ा। उस समय इब्नबतूता की आयु बाईस वर्ष थी। वह 1354 में अपने घर वापस पहुँच गया।
प्रश्न 7.
अल बिरूनी को भारत का यात्रा-वृत्तान्त लिखने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
(1) अल बिरूनी के अनुसार पहली कठिनाई भाषा थी। उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक ही भाषा से दूसरी में अनुवादित करना सरल नहीं था।
(2) दूसरी कठिनाई धार्मिक अवस्था और प्रथाओं में भिन्नता थी उसे इन्हें समझने के लिए वेदों, पुराणों आदि की सहायता लेनी पड़ी।
(3) अल-बिरुनी के अनुसार तौसरी कठिनाई भारतीयों का जातीय अभिमान था।
प्रश्न 8.
अपनी श्रेणी के अन्य यात्रियों से इब्नबतूता किन बातों में अलग था?
उत्तर:
इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से प्राप्त अनुभव को अपनी जानकारी का अधिक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बड़ा शौक था और उसने नये-नये देशों तथा लोगों के विषय में जानने के लिए | दूर-दूर के क्षेत्रों तक की यात्रा की 1332-33 ई. में भारत के लिए प्रस्थान करने से पूर्व वह मक्का, सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।
प्रश्न 9.
इब्नबतूता के तत्कालीन सुल्तान मुहम्मद- बिन तुगलक के साथ सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1333 में इब्नबतूता दिल्ली पहुंचा। मुहम्मद- बिन तुगलक इब्नबतूता की विद्वता से बझ प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काली अथवा न्यायाधीश नियुक्त किया। उसने इस पद पर कई वर्षों तक कार्य किया। कुछ कारणों से सुल्तान इब्नबतूता से नाराज हो गया और उसे कारागार में कैद कर दिया गया। परन्तु कुछ समय बाद सुल्तान की नाराजगी दूर हो गई और उसने 1342 में इब्नबतूता को अपने दूत के रूप में चीन के शासक के पास भेजा।
प्रश्न 10.
“इब्नबतूता एक हठीला यात्री था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता अपनी सुन का पक्का था उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था। वह लम्बी यात्राओं के दौरान होने वाली कठिनाइयों से हतोत्साहित नहीं होता था। उसने उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका में अपने निवास स्थान मोरक्को जाने से पूर्व कई वर्ष उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया के भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन की यात्रा की थी। उसके वापिस लौटने पर मोरक्को के शासक ने उसकी कहानियों को दर्ज करने के निर्देश दिए।
प्रश्न 11.
“बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’ भूमि विहीन श्रमिक इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में जुटा रहता था कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से गुजरे योग्य उत्पादन कर पाते थे।
प्रश्न 12.
बर्नियर ने शहरी समूहों में किन व्यावसायिक वर्गों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार शहरी समूहों में चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि व्यावसायिक वर्ग थे। कई लोग राजकीय संरक्षण पर आश्रित थे तथा कई अन्य लोग संरक्षकों या भीड़-भाड़ वाले बाजार में सामान्य लोगों की सेवा द्वारा अपना जीवनयापन करते थे।
प्रश्न 13.
इब्नबतूता के विवरण के अनुसार दासों में काफी विभेद था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता के विवरण से ज्ञात होता है कि दाखों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से बड़ा आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। अधिकतर दासों का प्रयोग घरेलू श्रम के लिए किया जाता था घरेलू श्रम करने वाले दासों, दासियों की कीमत बहुत कम होती थी।
प्रश्न 14.
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान किस प्रकार अमीरों पर दासियों द्वारा नजर रखता था?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान की यह आदत थी कि हर बड़े या छोटे अमीर के साथ एक दास को रखता जो उनकी मुखबिरी करता था। वह इन अमीरों के घरों में महिला सफाई कर्मचारियों की भी नियुक्ति करता था। दासियों के पास जो भी सूचनाएँ होती थीं, वे इन महिला सफाई कर्मचारियों को दे देती थीं। अधिकांश दासियों को हमलों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था।
प्रश्न 15.
अल बिरूनी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए।
अथवा
अल-विरुनी के विषय में आप क्या जानते हैं ? उत्तर- अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। अल बिरुनी ने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की। वह सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत आदि कई भाषाओं का ज्ञाता था। 1017 ई. में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और अल बिरूनी सहित यहाँ के कई विद्वानों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया। उसने अपना शेष जीवन गजनी में ही बिताया। 70 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 16.
गजनी में रहते हुए अल बिरूनी की भारत के प्रति रुचि कैसे विकसित हुई?
उत्तर:
आठवीं शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल- विज्ञान, गणित और चिकित्सा सम्बन्धी कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था। पंजाब के गजनवी साम्राज्य का भाग बन जाने के पश्चात् स्थानीय लोगों से हुए सम्पर्को से आपसी विश्वास और समझ का वातावरण बना। अल- विरुनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया जिससे अल बिरुनी की भारत के प्रति रुचि विकसित हुई।
प्रश्न 17.
‘हिन्दू’, ‘हिन्दुस्तान’ तथा ‘हिन्दवी’ शब्दों का प्रचलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
‘हिन्दू’ शब्द लगभग छठी पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रयुक्त होने वाले एक प्राचीन फारसी शब्द से निकला था, जिसका प्रयोग सिन्धु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था। अरबी लोगों ने इस फारसी शब्द का प्रयोग करना जारी रखा। इस क्षेत्र को ‘अल-हिन्द’ तथा यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दी’ कहा। कालान्तर में तुर्की ने सिन्धु से पूर्व में रहने वाले लोगों को ‘हिन्दू’, उनके निवास क्षेत्र को ‘हिन्दुस्तान’ तथा उनकी भाषा को ‘हिन्दवी’ की संज्ञा दी।
प्रश्न 18.
अल बिरुनी के लेखन कार्य की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
- अल बिरुनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग किया था।
- अल बिरूनी ने सम्भवतः अपने ग्रन्थ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखे थे।
- वह संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में हुए अनुवादों से परिचित था।
- इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री शैली के विषय में अल बिरूनी का दृष्टिकोण आलोचनात्मक था वह उनमें सुधार करना चाहता था।
प्रश्न 19.
“इब्नबतूता की यात्राएँ कठिन तथा जोखिम भरी हुई थीं।” उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में यात्रा करना अधिक कठिन, जोखिम भरा कार्य और असुरक्षित था इब्नबतूता को कई बार डाकुओं के समूहों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा था। फिर भी राजमार्ग असुरक्षित थे। जब वह मुल्तान से दिल्ली की यात्रा कर रहा था, डाकुओं ने उसके कारवाँ पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप उसके कई साथी यात्री मारे गए। जो यात्री बच गए थे, वे भी बुरी तरह से घायल हो गए थे। इनमें इब्नबतूता भी सम्मिलित था।
प्रश्न 20.
इब्नबतूता के श्रुतलेखों को लिखने के लिए नियुक्त किए गए इब्नजुजाई ने अपनी प्रस्तावना में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नजुजाई ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है कि राजा ने इब्नबतूता को निर्देश दिया कि वह अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा रोचक घटनाओं का वृतान्त लिखवाएँ। इसके साथ ही वह विभिन्न देशों के जिन शासकों से मिले, उनके महान साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ सन्तों के विषय में भी बताएँ। इस आदेश के अनुसार इब्नबतूता ने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया। इसके अतिरिक्त इब्नबतूता ने कई प्रकार के असाधारण विवरण भी दिए।
प्रश्न 21.
अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण करने वाले यात्रियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1400 से 1800 के बीच भारत आने वाले अनेक यात्रियों ने अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण किया। इनमें अब्दुररज्जाक समरकंदी, महमूद वली बल्खी तथा शेख अली हानि उल्लेखनीय हैं। अब्दुरस्ज्जाक ने 1440 के दशक में दक्षिण भारत की यात्रा की तथा महमूद वली बल्खी ने 1620 के दशक में व्यापक रूप से यात्राएं की थीं। शेख अली हाजिन ने 1740 के दशक में उत्तर भारत की यात्रा की थी।
प्रश्न 22.
बर्नियर ने भारत में जो देखा, उसकी तुलना यूरोप से की। इसका मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
बर्नियर द्वारा दी गई पूर्व और पश्चिम की तुलना का वर्णन कीजिए।
अथवा
“बर्नियर प्रायः भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से ही करता था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर प्राय: भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था वह यूरोप की सर्वश्रेष्ठता प्रतिपादित करना चाहता था यूरोपीय स्थितियों के मुकाबले में वह भारत की स्थितियों को दयनीय दर्शाना चाहता था। यही कारण है कि लगभग प्रत्येक दृष्टान्त में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। यद्यपि उसका आकलन हम्मेसटीक नहीं था, फिर भी जब उसके कार्य प्रकाशित हुए). (बर्नियर के वृत्तांत अत्यधिक प्रसिद्ध हुए।
प्रश्न 23.
बर्नियर द्वारा मुगल सेना के कश्मीर कूच का वर्णन कीजिए। वह अपने साथ कौनसी वस्तुएँ ले गया था? उससे क्या अपेक्षा की जाती थी?
उत्तर:
बर्नियर मुगल सेना के कश्मीर कूच के सम्बन्ध में लिखता है कि इस देश की प्रथा के अनुसार उससे दो अच्छे तुर्कमान घोड़े देखने की अपेक्षा की जाती थी। वह अपने साथ एक शक्तिशाली पारसी ऊँट तथा चालक, अपने घोड़ों के लिए एक साईस, एक खानसामा तथा एक सेवक भी रखता था। उसे एक तम्बू एक दरी, एक छोटा बिस्तर, एक तकिया, एक विछौना, चमड़े के मेजपोश कुछ अंगोछे, झोले, जाल आदि वस्तुएँ दी गई थीं उसने चावल, मीठी रोटी, नींबू, चीनी आदि वस्तुएँ अपने साथ रखी थीं।
प्रश्न 24.
संस्कृत भाषा के विषय में अल बिरूनी के विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के अनुसार संस्कृत भाषा को सीखना एक कठिन कार्य है क्योंकि अरबी भाषा की भाँति ही, शब्दों तथा विभक्तियों, दोनों में ही संस्कृत भाषा की पहुँच बहुत विस्तृत है। इसमें एक ही वस्तु के लिए कई शब्द, मूल तथा व्युत्पन्न दोनों प्रयुक्त होते हैं। इसमें एक ही शब्द का प्रयोग कई वस्तुओं के लिए होता है, जिन्हें अच्छी तरह से समझने के लिए विभिन्न विशेषक संकेत पदों के माध्यम से एक-दूसरे से पृथक किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न 25.
अल बिरूनी द्वारा वर्णित फारस के चार सामाजिक वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के अनुसार प्राचीन फारस में समाज चार वर्गों में विभाजित था ये चार वर्ग थे –
(1) घुड़सवार और शासक वर्ग
(2) भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित
(3) चिकित्सक, खगोलशास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और
(4) कृषक तथा शिल्पकार अल बिरुनी यह दर्शाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि ये अन्य देशों में भी थे।
प्रश्न 26.
“ जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को स्वीकार करने के बावजूद, अल बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी ने लिखा है कि प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। सूर्य वायु को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है अल बिरुनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। उसके अनुसार जाति-व्यवस्था में शामिल अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।
प्रश्न 27.
” जाति व्यवस्था के विषय में अल-बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्ण रूप से प्रभावित था। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति-व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी। उदाहरणार्थ, अन्त्यजों (जाति-व्यवस्था से परे रहने वाले लोग) से प्रायः यह अपेक्षा की जाती थी कि वे किसानों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम प्रदान करें ये आर्थिक तन्त्र में सम्मिलित थे।
प्रश्न 28.
अल बिरूनी द्वारा उल्लिखित भारत की वर्ण-व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी। ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। इन्हें सबसे उत्तम माना जाता था।
- क्षत्रिय ब्राह्मणों के बाद दूसरी जाति क्षत्रियों की थी जिनका जन्म ब्रह्मन् के कन्धों और हाथों से हुआ • था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचा नहीं था।
- वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। इनका जन्म ब्रह्मन् की जंघाओं से हुआ था।
- शूद्र इनका उद्भव ब्रह्मन् के चरणों से हुआ था।
प्रश्न 29.
“इब्नबतूता में अनजाने को जानने की लालसा कूट-कूटकर भरी हुई थी।” स्पष्ट कीजिए । अपरिचित को रेखांकित करने का उसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
इब्नबतूता ने भारत में व्यापक यात्राएँ कीं और अपरिचित को जानने का भरसक प्रयास किया। उसके वृत्तान्तों में धर्मनिष्ठ लोगों, क्रूर और दयालु शासकों, सामान्य पुरुषों तथा महिलाओं और उनके जीवन की कहानियाँ शामिल थीं। इब्नबतूता को इन कहानियों में जो भी कुछ अपरिचित लगा था, उसे उसने विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूर्ण रूप से प्रभावित हो सकें।
प्रश्न 30.
इब्नबतूता ने नारियल का वर्णन किस प्रकार किया है?.
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार नारियल के वृक्ष स्वरूप में सबसे अनोखे और प्रकृति में सबसे आश्चर्यजनक वृक्षों में से हैं। ये बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं। इनमें केवल एक अन्तर है कि नारियल से काष्ठफल प्राप्त होता तथा दूसरे से खजूर नारियल मानव सिर से मेल खाता हैं क्योंकि इसमें भी दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है। इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है वे इससे रस्सी बनाते हैं।
प्रश्न 31.
इब्नबतूता द्वारा पान का वर्णन किस प्रकार किया गया है? उसने पान का वर्णन क्यों किया? पान का किस प्रकार प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
इब्नबतूत ने पान का वर्णन इसलिए किया क्योंकि इससे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे। इब्नबतूता के अनुसार पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता था पान को अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता था। पान के प्रयोग करने की विधि यह थी कि इसे खाने से पहले सुपारी ली जाती थी। इसके छोटे- छोटे टुकड़ों को मुंह में रखकर चबाया जाता था। इसके पश्चात् पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता था।
प्रश्न 32.
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों के सम्बन्ध में जो लिखा है, उस पर प्रकाश डालिए।
अथवा
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर पनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे, परन्तु ये कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों में विनष्ट हो जाते थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भीड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। दिल्ली एक बड़ा शहर था जिसकी आबादी बहुत अधिक थी तथा यह भारत में सबसे बड़ा शहर था। दौलताबाद (महाराष्ट्र में ) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
प्रश्न 33.
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहरों के बाजारों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहरों के बाजार चमक-दमक वाले तथा रंगीन थे जहाँ विविध प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध रहती थीं ये बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मन्दिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों एवं गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के स्थान भी निर्धारित थे।
प्रश्न 34.
इब्नबतूता द्वारा उल्लिखित दिल्ली ( देहली) शहर की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला पनी जनसंख्या वाला शहर था। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय थी। इसके अन्दर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष थे। प्राचीरों के अन्दर अनेक भंडार गृह बने हुए थे इस शहर के अट्ठाईस द्वार थे जिन्हें ‘दरवाजा’ कहा जाता है। इनमें से ‘बदायूँ दरवाजा’ सबसे विशाल था मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी थी तथा गुल दरवाजे की बगल में एक फलों का बगीचा था।
प्रश्न 35.
इब्नबतूता के वृत्तान्त से भारतीय कृषि, व्यापार और वाणिज्य के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के अत्यधिक उत्पादनकारी होने का कारण भूमि का उपजाऊपन था। इस वजह से किसान वर्ष में दो फसलें उगाते थे। भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर एशियाई तन्त्रों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया, दोनों में बहुत मांग थी, जिससे शिल्पकार तथा व्यापारी बहुत लाभ कमाते थे भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जी तथा साटन की बहुत अधिक माँग थीं।
प्रश्न 36.
इब्नबतूता ने दौलताबाद के संगीत बाजार का क्या वृत्तान्त दिया है? अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ‘ताराववाद’ कहते थे। यहाँ अनेक दुकानें थीं जिन्हें कालीनों से सजाया गया था। दुकान के मध्य में एक झूला था, जिस पर गायिका बैठती थी। बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा था, जिसमें कालीन बिछाए गए थे। इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई थीं।
प्रश्न 37.
अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों का उल्लेख क्यों किया?
उत्तर:
हमारे विचार में इब्नबतूता ने अपने विवरण में इन गतिविधियों का वर्णन इसलिए किया था क्योंकि इस प्रकार के संगीत के बाजारों से उसके पाठक अपरिचित थे। अतः उसने इन गतिविधियों का वर्णन किया ताकि उसके पाठक इन वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें।
प्रश्न 38.
अब्दुररज्जाक ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में दक्षिण भारत का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
1440 के दशक में लिखा गया अब्दुरज्जाक का यात्रा-वृत्तान्त संवेगों और अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है। उसने केरल में कालीकट (आधुनिक कोलीकोड) बन्दरगाह पर जो देखा, उसे प्रशंसनीय नहीं माना। उसने लिखा है कि “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे, जिनकी कल्पना उसने कभी भी नहीं की थी।” इन लोगों को उसने एक ‘विचित्र देश’ बताया।
प्रश्न 39.
अब्दुररज्जाक द्वारा वर्णित मंगलौर के मन्दिर का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अब्दुररज्याक ने लिखा है कि मंगलौर से 9 मील के भीतर ही उसने एक ऐसा पूजा स्थल देखा जो सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। यह वर्गाकार था तथा चार द्वार मंडपों के साथ काँसे से ढका हुआ था प्रवेश-द्वार के द्वार-मंडप में सोने की बनी एक मूर्ति थी जो मानव- आकृति जैसी तथा आदमकद थी इसकी दोनों आँखों में काले रंग के माणिक इतनी चतुराई से लगाए गए थे कि ऐसा लगता था मानो वह देख सकती हों। यह शिल्प और कारीगरी अद्भुत थी।
प्रश्न 40.
इब्नबतूता ने भारत की डाक व्यवस्था को संचार की एक अनूठी प्रणाली क्यों बताया है?
अथवा
मध्यकालीन भारत में डाक प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना और उधार भेजना सम्भव हुआ बल्कि अल्प सूचना पर माल भेजना भी सम्भव हो गया। डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएँ सुल्तान तक इस डाक- व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं।
प्रश्न 41.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में आने वाले तीन यूरोपीय यात्रियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- सोलहवीं शताब्दी में दुआर्ते बरबोसा नामक यूरोपीय यात्री ने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा।
- सत्रहवीं शताब्दी में ज्यों वैप्टिस्ट तैवर्नियर नामक एक फ्रांसीसी जौहरी ने भारत की कम से कम 6 बार यात्रा की वह भारत की व्यापारिक स्थितियों से बड़ा प्रभावित था।
- सत्रहवीं शताब्दी में इतालवी चिकित्सक मनूकी भारत आए और यहीं बस गए।
प्रश्न 42.
फ्रांस्वा बर्नियर का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी था। यह एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। यह मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में भारत आया था। वह 1656 से 1668 ई. तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखे। प्रारम्भ में उसने मुगल सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह के चिकित्सक के रूप में कार्य किया तथा बाद में एक मुगल अमीर दानिशमन्द खान के साथ कार्य किया।
प्रश्न 43.
डच यात्री पेलसर्ट ने भारत में व्याप्त व्यापक गरीबी का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक हच यात्री भारत के लोगों में व्याप्त गरीबी को देखकर बड़ा आश्चर्यचकित था। उसने लिखा है कि “लोग इतनी अधिक और दुःखद गरीबी में रहते थे कि उनके जीवन को मात्र नितान्त अभाव के घर और कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आवास के रूप में चित्रित किया जा सकता है।” पेलसर्ट के अनुसार, “कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता था कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी कठिनाई से बचती थी।”
प्रश्न 44.
“बर्नियर का उद्देश्य यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाना तथा भारतीय स्थितियों को दयनीय बताना था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर निरन्तर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा और प्रायः यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाता रहा। वह यूरोपीय प्रथाओं, रीति-रिवाज और प्रशासनिक व्यवस्था को श्रेष्ठ दर्शाना चाहता था तथा भारतीय परिस्थितियों को दयनीय बताना चाहता था। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है। उसने भारत में जो भिताएँ अनुभव की उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया ताकि भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का लगे।
प्रश्न 45.
भूस्वामित्व के सम्बन्ध में वर्नियर के विचारों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बर्नियर के अनुसार भूमि स्वामित्व के प्रश्न पर भारत और यूरोप के बीच क्या भिन्नता थी? राजकीय भूस्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों के लिए क्यों हानिकारक था?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर निजी स्वामित्व का समर्थक था। उसके अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था उसने यह महसूस किया कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों में बांटता था और इसके अर्थव्यवस्था तथा समाज के लिए विनाशकारी परिणाम होते थे।
प्रश्न 46.
बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व राज्य के निवासियों के लिए क्यों विनाशकारी था?
उत्तर:
अनियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के कारण, भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें वृद्धि के लिए प्रयास नहीं करते थे। निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भूधारकों को पनपने से रोका। इसी वजह से कृषि का विनाश हुआ, किसानों को अत्यधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में लगातार पतन की स्थिति उत्पन्न हुई।
प्रश्न 47.
बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के कृषकों की दशा का वृत्तान्त प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत के कई ग्रामीण अंचल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत थे। यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी और इन क्षेत्रों की आबादी भी कम थी। यहाँ श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग कृषि विहीन रह जाता था। कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किये गए अत्याचारों के फलस्वरूप मर जाते थे। गरीबों को न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता था, बल्कि उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था।
प्रश्न 48.
“बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना वर्णित करता है।” स्पष्ट कीजिए। उत्तर बर्नियर के अनुसार भारतीय समाज दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना था। यह वर्ग एक अत्यन्त अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग के द्वारा अधीन बनाया जाता था। शासक वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते थे गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था बर्नियर दृढ़तापूर्वक कहता है कि “भारत में मध्या की स्थिति के लोग नहीं हैं।”
प्रश्न 49.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को जिस रूप में देखा, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा भिखारियों तथा क्रूर लोगों का राजा था मुगल साम्राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित थे और इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल’ से परिपूर्ण।। इसका केवल एक ही कारण था-राजकीय भूस्वामित्व।
प्रश्न 50.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को भूमि का एकमात्र स्वामी बताया है। क्या इसकी पुष्टि मुगल साक्ष्यों धे से होती है?
उत्तर:
एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए अकबर के काल के सरकारी इतिहासकार अबुल फजल ने भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक’ बताया है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग लगती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान कुछ यूरोपीय यात्री ऐसी मांगों को लगान मानते थे परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।
प्रश्न 51.
“बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सहव शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे, जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था तथा साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे लायक उत्पादन कर पाते थे।
प्रश्न 52.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में किस अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर लिखता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों की वृद्धि के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था क्योंकि समस्त लाभ राज्य द्वारा ही प्राप्त कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था। इसके साथ ही बनियर ने यह भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था बर्नियर ने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व का भी उल्लेख किया है।
प्रश्न 53.
बर्नियर ने यूरोपीय राजाओं को मुगल ढाँचे का अनुसरण करने पर क्या चेतावनी दी है? उसने सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार यूरोपीय राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए इतनी अच्छी प्रकार से निर्मित तथा इतने समृद्ध नहीं रह जायेंगे, जैसा कि लोग उन्हें देखते हैं वे शीघ्र ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे जैसे | कि मुगल शासक हम उन महान शहरों और नगरों को खराब वायु के कारण न रहने योग्य अवस्था में पाएँगे। विनाश की स्थिति में टीले और झाड़ियाँ अथवा पातक दलदल से भरे खेत ही रह जायेंगे।
प्रश्न 54.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में भारतीय कृषि तथा शिल्प उत्पादन की उन्नत स्थिति का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने लिखा है कि देश का अधिकांश भू- भाग अत्यधिक उपजाऊ है। उदाहरण के लिए बंगाल राज्य चावल, मकई, रेशम कपास तथा नील के उत्पादन में से आगे है। यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी गलीचों, जरी, कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के स्वों तथा विभिन्न प्रकार के रेशमी एवं सूती वस्त्रों निर्माण का कार्य करने में संलग्न रहते हैं विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी कुछ सीमा तक खो जाता है।
प्रश्न 55.
बर्नियर द्वारा उल्लिखित राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते थे, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते थे एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में कार्यरत रहते थे। एक अन्य कक्ष में सुनार कार्यरत थे। तीसरे कक्ष में चित्रकार तथा चौधे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले कार्यरत थे।
पाँचवें कक्ष में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले तथा हठे कक्ष में रेशम, जरी तथा बारीक मलमल का काम करने वाले कार्यरत थे। प्रश्न 56. बर्नियर के अनुसार ‘मुगलकालीन शहर’ ‘शिविर नगर’ थे। स्पष्ट कीजिए। जाता था। शासक वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते थे गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या नहीं था। बर्नियर दृढ़तापूर्वक कहता है कि “भारत में की स्थिति के लोग नहीं हैं।”
प्रश्न 49.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को जिस रूप देखा, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राज भिखारियों तथा क्रूर लोगों का राजा था मुगल साम्राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित और इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से परिपूर्ण थे। इसका केवल एक ही कारण था राजकीय भूस्वामित्व।
प्रश्न 50.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को भूमि का एकमात्र स्वामी बताया है। क्या इसकी पुष्टि मुगल साक्ष्यों से होती है?
उत्तर:
एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए अकबर के काल के सरकारी इतिहासकार अबुल फजल ने भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक’ बताया है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग लगती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान कुछ यूरोपीय यात्री ऐसी माँगों को लगान मानते थे परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।
प्रश्न 51.
” बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे, जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था तथा साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे लायक उत्पादन कर पाते थे।
प्रश्न 52.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में किस अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर लिखता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों की वृद्धि के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था क्योंकि समस्त लाभ राज्य द्वारा ही प्राप्त कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था। इसके साथ ही बनियर ने यह भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था बर्नियर ने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व का भी उल्लेख किया है।
प्रश्न 53.
बर्नियर ने यूरोपीय राजाओं को मुगल ढाँचे का अनुसरण करने पर क्या चेतावनी दी है? उसने सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार यूरोपीय राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए इतनी अच्छी प्रकार से निर्मित तथा इतने समृद्ध नहीं रह जायेंगे, जैसा कि लोग उन्हें देखते हैं वे शीघ्र ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे जैसे कि मुगल शासक हम उन महान शहरों और नगरों को खराब बायु के कारण न रहने योग्य अवस्था में पाएँगे। विनाश की स्थिति में टीले और झाड़ियाँ अथवा पातक दलदल से भरे खेत ही रह जायेंगे।
प्रश्न 54.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में भारतीय कृषि तथा शिल्प उत्पादन की उन्नत स्थिति का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने लिखा है कि देश का अधिकांश भू- भाग अत्यधिक उपजाऊ है। उदाहरण के लिए बंगाल राज्य चावल, मकई, रेशम कपास तथा नील के उत्पादन में मिल से आगे है। यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी गलीचों, जरी कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चांदी के यस्व तथा विभिन्न प्रकार के रेशमी एवं सूती वस्त्रों के निर्माण का कार्य करने में संलग्न रहते हैं। विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी भारत में आकर कुछ सीमा तक खो जाता है।
प्रश्न 55.
बर्नियर द्वारा उल्लिखित राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते थे, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते थे। एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में कार्यरत रहते थे। एक अन्य कक्ष में सुनार कार्यरत थे। तीसरे कक्ष में चित्रकार तथा पौधे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले कार्यरत थे। पाँचवें कक्ष में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले तथा हठे कक्ष में रेशम, जरी तथा बारीक मलमल का काम करने वाले कार्यरत थे।
प्रश्न 56.
बर्नियर के अनुसार ‘मुगलकालीन शहर’ “शिविर नगर’ थे स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिये। बर्नियर भारतीय शहरों को किस रूप में देखता है?
उत्तर:
बनिंवर ने ‘मुगलकालीन शहरों’ को ‘शिविर नगर’ कहा है। शिविर नगरों से उसका अभिप्राय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। उसका विचार था कि ये नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे तथा दरबार के कहीं और चले जाने के बाद ये तेजी से विलुप्त हो जाते थे। उसके अनुसार इन नगरों की सामाजिक और आर्थिक नींव व्यावहारिक नहीं होती थी और ये राजकीय संरक्षण पर आश्रित रहते थे।
प्रश्न 57.
बर्नियर के अनुसार “मुगलकालीन व्यापारी प्रायः सुदृढ़ सामुदायिक अथवा बन्धुत्व के सम्बन्धों से जुड़े होते थे।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगलकाल में व्यापार प्रायः सुदृद् सामुदायिक अथवा वन्धुत्व के सम्बन्धों में जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को ‘महाजन’ कहा जाता था और उनका मुखिया ‘सेठ’ कहलाता था। अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था, जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था।
प्रश्न 58.
इब्नबतूता ने तत्कालीन दास-दासियों की स्थिति का क्या विवरण प्रस्तुत किया है?
अथवा
इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार पुरुष तथा महिला दास बाजारों में खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट में दिए जाते थे। दासों का प्रायः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था। ये लोग और महिलाओं को ले जाते थे पालकी या डोले में पुरुषों घरेलू श्रम में लगे हुए दासों का मूल्य बहुत कम होता था इसलिए अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दासों को रख पाने में समर्थ थे। सुल्तान की सेवा में लगी हुई कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।
प्रश्न 59.
“भारतीय महिलाओं का जीवन सती प्रथा के अलावा कई और चीजों के चारों ओर घूमता था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महिलाओं का जीवन सती प्रथा के अलावा कई और चीजों के चारों ओर घूमता भी था उनका श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन, दोनों में महत्त्वपूर्ण था। व्यापारिक घरानों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। वे कभी-कभी वाणिज्यिक विवादों को न्यायालय के सामने भी ले जाती थीं। अतः यह सम्भव नहीं लगता है कि महिलाओं को उनके घरों के विशेष स्थानों तक परिसीमित कर रखा जाता था।
प्रश्न 60.
‘बर्नियर द्वारा किया गया भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा किया गया भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है या फिर यूरोप के विपरीत देश के रूप में दर्शाया है। उसने जो भिन्नताएँ महसूस कीं, उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया जिससे भारत यूरोपीय देशों को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
प्रश्न 61.
बर्नियर ने सती प्रथा का विस्तृत विवरण देना क्यों उचित समझा ?
उत्तर:
बर्नियर भारत में प्रचलित उन सभी प्रथाओं का वर्णन करना चाहता था जिससे भारत यूरोपीय देशों की तुलना में एक निम्न कोटि का देश प्रतीत होता हो उस समय सभी समकालीन यूरोपीय यात्रियों तथा लेखकों के लिए महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार प्रायः पश्चिमी तथा पूर्वी देशों के बीच भिन्नता का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक माना जाता था इसलिए बर्नियर ने सती प्रथा का वर्णन करना उचित समझा।
प्रश्न 62.
बर्नियर ने लाहौर में एक अल्पवयस्क विधवा के सती होने का किस प्रकार विवरण दिया है?
उत्तर:
लाहौर में बर्नियर ने एक अत्यन्त सुन्दर अल्पवयस्क विधवा को सती होते हुए देखा। यह बालिका बुरी तरह से रो रही थी परन्तु उसे कुछ ब्राह्मण लोगों तथा एक वृद्ध महिला की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को बलपूर्वक सती-स्थल की ओर ले जाया गया। उसे लकड़ियों पर बिठाया गया, उसके हाथ और पैर बांध दिए गए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस निर्दोष विधवा को जीवित जला दिया गया।
प्रश्न 63.
बर्नियर के विवरणों ने फ्रांसीसी दार्शनिक मान्टेस्क्यू को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
बर्नियर के विवरणों से प्रभावित होकर फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने वर्नियर के वृतान्त का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर अपने प्रभुत्व का उपभोग करते थे, जिसे दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था।
प्रश्न 64.
बर्नियर के विवरणों से कार्ल मार्क्स किस प्रकार प्रभावित हुआ?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स ने लिखा कि भारत ( तथा अन्य एशियाई देशों में ) उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था। इससे एक ऐसे समाज का उद्भव हुआ जो बड़ी संख्या में स्वतन्त्र तथा आन्तरिक रूप से समतावादी ग्रामीण समुदायों से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर राजकीय दरबार का नियंत्रण होता था और जब तक अधिशेष की आपूर्ति बिना किसी बाधा के जारी रहती थी इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था।
प्रश्न 65.
इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली को देखकर चकित क्यों हो गया?
उत्तर:
इब्नबतूता भारत की डांक प्रणाली को देखकर चकित हो गया क्योंकि भारत की डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली यात्रा में पचास दिन लगाते थे, वहीं सुल्तान तक गुप्तचरों की खबर मात्र पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थी। इसके अतिरिक्त इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजी जा सकती श्री बल्कि अल्प सूचना पर माल भी भेजा जा सकता था।
प्रश्न 66.
‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ में बर्नियर भारत को पश्चिमी जगत की तुलना में अल्प- विकसित व निम्न श्रेणी का दर्शाना चाहता था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर में बनिंबर की भारतीय उपमहाद्वीप की यात्राओं का वर्णन है। यह ग्रन्थ वर्नियर की गहन आलोचनात्मक चिन्तन दृष्टि का उदाहरण है, लेकिन बर्नियर का यह दृष्टिकोण पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं तथा एकपक्षीय है। बर्नियर ने मुगलकालीन इतिहास को भारत की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में न रखकर एक वैश्विक ढाँचे में ढालने का प्रयास किया। वह यूरोप के परिप्रेक्ष्य में मुगलकालीन इतिहास की तुलना निरन्तर करने का प्रयास करता रहा। बर्नियर के अनुसार यूरोप की प्रशासनिक व्यवस्था, यूरोप की सामाजिक- आर्थिक स्थिति भारत से कहीं बेहतर है। बास्तव में उसका भारत चित्रण पूरी तरह प्रतिकूलता पर आधारित है।
प्रश्न 67.
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों में क्या विशेषताएं देखीं? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों को उन्नत अवस्था में पाया। उसके अनुसार जो लोग जीवन को समग्रता से जीने की आकांक्षा रखते हैं, जिनके पास कला-कौशल, दृढ़ इच्छा-शक्ति और पर्याप्त साधन हैं, उनके लिए आगे बढ़ने हेतु भारत के शहरों में व्यापक अवसर मौजूद थे। भारतीय शहरों की आबादी धनी थी व शहरों में समृद्धि झलकती थी। परन्तु युद्ध आदि की विभीषिका का दुष्परिणाम शहरों को कभी-कभी भुगतना पड़ता था।
इब्नबतूता के अनुसार शहर के बाजार चहल-पहल तथा चमक-दमक से भरपूर विभिन्न प्रकार की व्यापारिक वस्तुओं से भरे रहते थे। भारत में दिल्ली एक विपुल आबादी वाला सबसे बड़ा शहर था महाराष्ट्र में स्थित दौलताबाद भी दिल्ली से किसी प्रकार कमतर नहीं था। बाजारों में केवल व्यापारिक गतिविधियाँ ही नहीं अन्य धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियाँ भी होती थीं। इब्नबतूता का यह वर्णन भारतीय शहरों की विकसित समृद्धि का व्यापक उदाहरण है।
प्रश्न 68.
अब्दुर रज्जाक द्वारा लिखित यात्रा वृत्तान्त संवेगों और अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है, कैसे?
उत्तर:
1440 के दशक में लिखा गया अब्दुर रजाक का यात्रा वृत्तान्त उसके शब्दों में, “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे जिनकी कल्पना मैंने कभी नहीं की।” 1440 के दशक में अब्दुर रजाक केरल के कालीकट बन्दरगाह पर पहुँचा। इन लोगों को देखकर उसके मुँह से ‘विचित्र देश का सम्बोधन निकला। लेकिन कालान्तर में अपनी पुनः भारत यात्रा के दौरान वह मंगलौर आया और यहाँ पश्चिमी पाट को पार कर उसने एक मन्दिर देखा, जिसे देखकर वह बहुत अधिक प्रभावित हुआ। मन्दिर की स्थापत्य कला को देखकर वह मन्त्रमुग्ध रह गया और ‘विचित्र देश’ की छवि उसके मस्तिष्क से निकल गई।
प्रश्न 69.
पेलसर्ट नामक डच यात्री की भारत यात्रा का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक डच यात्री ने सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। बर्नियर की ही तरह वह भी लोगों में व्यापक गरीबी देखकर अचम्भित था “लोग इतनी अधिक तथा दुःखद गरीबी में रहते हैं कि इनके जीवन को मात्र नितान्त अभाव के पर तथा कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आभास के रूप में चित्रित अथवा ठीक प्रकार से वर्णित किया जा सकता है।” राज्य को उत्तरदायी ठहराते हुए वह कहता है: ‘कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।”
प्रश्न 70.
भारतीय महिलाओं की मध्यकालीन सामाजिक स्थिति के बारे में यूरोपीय लेखकों के विचार क्या थे?
उत्तर:
विभिन्न यूरोपीय यात्री जो भारत आये उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत मध्यकालीन भारतीय महिलाओं की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इन विचारकों ने पाया कि भारतीय महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार पश्चिमी समाजों से सर्वथा भिन्न था। बर्नियर ने इस सन्दर्भ में भारत की क्रूरतम अमानवीय सती प्रथा का उदाहरण दिया है जो भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी देश में नहीं थी।
पस्तु सती प्रथा के अतिरिक्त यूरोपीय लेखकों ने महिलाओं के सामाजिक जीवन के अन्य पक्षों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया है। वे केवल घरों की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहती थीं। कृषि तथा कृषि से सम्बन्धित कार्यों जैसे पशुपालन में उनके श्रम का महत्त्व था। व्यापारिक परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भागीदारी रखती थीं। कुछ महिलाएँ प्रशासनिक कार्यों में भी भाग लेती थीं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के 10वीं से 17वीं सदी तक के इतिहास के पुनर्निर्माण में विदेशी यात्रियों के विवरणों का क्या योगदान है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त निश्चित रूप से इतिहास के निर्माण में सहायक होते हैं। यही स्थिति हम 10वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य भी देखते हैं। इस काल में अनगिनत यात्री भारत आए तथा अपनी समझ के अनुसार भारत का विवरण प्रस्तुत किया। इस तथ्य को हम निम्न विन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) अधिकांश यात्री भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न आर्थिक तथा सामाजिक परिदृश्य से आए थे।
(2) स्थानीय लेखक भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का विवरण करने में रुचि नहीं रखते थे; जबकि इन विदेशी लेखकों ने भारत की तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष विवरण दिए हैं।
(3) 10वीं शताब्दी के आस-पास भारतीय विद्वान विदेशों के साथ सम्बन्ध बनाने तथा उनके विषय में जानने .में अधिक रूचि नहीं रखते थे। इसके फलस्वरूप ये तुलनात्मक अध्ययन करने में असमर्थ थे।
(4) विदेशी यात्रियों ने अपने विवरण में उन तथ्यों को अधिक महत्त्व दिया है; जो उन्हें विचित्र जान पड़ते थे। इससे उनके विवरण में रोचकता आ जाती है।
(5) विदेशी यात्रियों के विवरण तत्कालीन राजदरबार के क्रियाकलापों, धार्मिक विश्वास तथा स्थापना की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं। इससे इतिहास निर्माण में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है। उपर्युक्त बिन्दुओं को हम पृथक्-पृथक् यारियों के विवरण के साथ समझ सकते हैं।
ये विवरण निम्नलिखित –
1. अल बिरूनी का विवरण अल-विरुनी का विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है –
- अल-विरुनी ने अपनी रचनाओं में भारत में व्याप्त जाति-व्यवस्था तथा वर्ण व्यवस्था का वर्णन किया है।
- अल बिरूनी ने भारतीय समाज की रूढ़िवादिता को भी अपनी किताबों में दर्शाया है।
- अल बिरूनी ने भारत के ज्योतिष, खगोल विज्ञान तथा गणित की विस्तारपूर्वक चर्चा की है।
2. इब्नबतूता का विवरण इससे सम्बन्धित मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार है –
- इब्नबतूता ने भारतीय डाक प्रणाली की प्रशंसा की है तथा उससे हमें परिचित भी कराया।
- इब्नबतूता की रचनाओं द्वारा हमें यह पता चलता है कि उस समय भारत में नारियल तथा पान की खेती का व्यापक प्रचलन था।
- इब्नबतूता ने दासों का भी विस्तारपूर्वक विवरण दिया है; जिससे यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज तथा राजनैतिक व्यवस्था में दासों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
- इब्नबतूता की रचनाओं में भारतीय बाजारों तथा व्यापारियों की सम्पन्नता का उल्लेख भी मिलता है। जिससे यह पता चलता है कि तत्कालीन भारत आर्थिक रूप से समृद्ध था।
3. बर्नियर का विवरण बर्नियर द्वारा रचित ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में दिया गया विवरण निम्न बिन्दुओं द्वारा किया जा सकता है-
- बर्नियर के अनुसार भारतीयों को निजी भू-स्वामित्व का अधिकार प्राप्त नहीं है।
- बर्नियर की रचनाओं में सती प्रथा का विवरण मिलता है।
- बर्नियर ने मुगल सेना के साथ कश्मीर यात्रा की थी तथा उस यात्रा का विस्तृत विवरण दिया है। उस विवरण से यह ज्ञात होता है कि उस समय यात्रा में किन सामानों की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समकालीन यात्रियों के विवरण इतिहास को समझने तथा उसका निर्माण करने में अत्यधिक सहायक होते हैं।
प्रश्न 2.
अल बिरूनी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन करते हुए ‘किताब-उल-हिन्द’ की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अल बिरूनी का प्रारम्भिक जीवन अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थिता ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक प्रसिद्ध केन्द्र था। अल बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की। वह एक उच्च कोटि का विद्वान था तथा सीरियाई फारसी, हिब्रू और संस्कृत भाषाओं का ज्ञाता था। यद्यपि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था, फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों की रचनाओं से परिचित था जिनका उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से अध्ययन किया था। 1017 ई. में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और यहाँ से कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया।
अल बिरुनी भी उनमें से एक था। वह एक बन्धक के रूप में गजनी आया था, परन्तु धीरे-धीरे उसकी गजनी शहर में रुचि बढ़ने लगी। उसने अपना शेष जीवन गजनी में ही बिताया। 70 वर्ष की आयु में गजनी में अल बिरुनी की मृत्यु हो गयी। भारत के प्रति रुचि बढ़ना-गजनी में रहते हुए अल- बिरनी की भारत के प्रति रुचि बढ़ने लगी। पंजाब को गलनी साम्राज्य में सम्मिलित करने के बाद स्थानीय लोगों से सम्पर्कों से आपसी विश्वास तथा समझ का वातावरण बना। अल-विरुनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया।
‘किताब-उल-हिन्द’ की विशेषताएं –
(1) विविध विषयों का विवेचन-किताब-उल- हिन्द अरबी में लिखी गई अल बिरूनी की प्रसिद्ध रचना है इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार तौल, मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ अस्सी अध्यायों में विभाजित है।
(2) विशिष्ट शैली अल-बिहनी ने प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया है, जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन था और अन्त में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना की गई थी। यह लगभग एक ज्यामितीय संरचना है।
(3) स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता यह ग्रन्थ अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए प्रसिद्ध है।
(4) भारतीय ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों से परिचित अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी रचनाएँ भारतीय उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। अल बिरुनी संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था।
(5) समालोचनात्मक दृष्टिकोण- इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री तथा शैली के विषय में अल-बिरुनी का दृष्टिकोण समालोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।
प्रश्न 3.
इब्नबतूता के प्रारम्भिक जीवन एवं उसकी यात्राओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता का प्रारम्भिक जीवन इब्नबतूता मोरक्को का निवासी था उसका जन्म 1304 में तैंजियर नामक नगर के एक सम्मानित एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उसका परिवार इस्लामी कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था अपने परिवार की परम्परा के अनुसार इब्नबतूता ने कम आयु में ही साहित्यिक तथा शास्वारूढ़ शिक्षा प्राप्त की। उसका यात्रा वृत्तान्त ‘रिला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
(1) इब्नबतूता की यात्राएँ – अन्य विदेशी यात्रियों के विपरीत, इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था। इब्नबतूता को यात्राएँ करने का बहुत शौक था इसलिए वह नए-नए देशों तथा लोगों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए दूर-दूर के प्रदेशों तक में गया। 1332-33 ई. में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के अनेक तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।
(2) भारत की यात्रा – मध्य एशिया के मार्ग से होते हुए इब्नबतूता 1333 ई. में स्थल मार्ग से सिन्ध पहुँचा। उसने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में सुन रखा था कि वह कला और साहित्य का उदार संरक्षक है अतः उसकी ख्याति से आकर्षित हो इब्नबतूता ने मुल्तान और कच्छ होते हुए दिल्ली को ओर प्रस्थान किया। मुहम्मद बिन तुगलक इब्नबतूता की विद्वता से बड़ा प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काजी अथवा न्यायाधीश नियुक्त किया। वह इस पद पर कई वर्ष तक रहा।
(3) चीन के राजदूत के रूप में इब्नबतूता की नियुक्ति 1342 ई. में इब्नबतूता को मंगोल शासक के पास सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया। उसने दिल्ली से चीन के लिए प्रस्थान किया और मध्य भारत के रास्ते मालाबार तट की ओर बढ़ा। मालाबार से वह मालद्वीप गया तथा वहाँ वह अठारह महीनों तक काजी के पद पर रहा। अन्ततः उसने लंका जाने का निश्चय किया। बाद में वह एक बार पुनः मालाबार तट तथा मालद्वीप गया। चीन जाने के अपने कार्य को पुनः शुरू करने से भा पहले वह बंगाल तथा असम भी गया।
प्रश्न 4.
लगभग 1500 ई. के बाद भारत की यात्रा करने वाले यूरोपीय लेखकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 1500 ई. के बाद भारत की यात्रा करने वाले यूरोपीय लेखक लगभग 1500 ई. में भारत में पुर्तगालियों के आगमन के बाद उनमें से अनेक लोगों ने भारतीय सामाजिक रीति- रिवाजों तथा धार्मिक प्रथाओं के विषय में विस्तृत वृत्तान्त लिखे। जेसुइट राबट नोबिली भी एक ऐसा ही लेखक था जिसने भारतीय ग्रन्थों का यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद भी किया।
(1) दुआतें बरबोसा- दुआर्ते बरबोसा यूरोप का एक प्रसिद्ध लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा 1600 ई. के बाद भारत में आने वाले डच अंग्रेज और फ्रांसीसी यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी थी।
(2) फ्रांसिस्को पेलसर्ट-फ्रांसिस्को पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। वह यहाँ के लोगों में व्यापक गरीबी देखकर आश्चर्यचकित था। उसने कृषकों की अत्यन्त दयनीय दशा को मार्मिक चित्रण किया है।
(3) ज्यों-बैप्टिस्ट तैवर्नियर ज्यों-बैप्टिस्ट तैवर्नियर एक फ्रांसीसी जौहरी था जिसने कम से कम छः बार भारत की यात्रा की यह विशेष रूप से भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था। उसने भारत की तुलना ईरान और ओटोमन साम्राज्य से की।
(4) मनूकी मनूकी एक इतालवी चिकित्सक था। वह कभी भी यूरोप वापस नहीं गया और भारत में ही बस गया।
(5) फ्रांस्वा बर्नियर-फ्रांस का निवासी फ्रांस्वा बनियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। वह अन्य लोगों की भांति मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में आया था। वह 1656 से 1668 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा-पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में तथा बाद में मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।
प्रश्न 5.
अल बिरुनी के यात्रा-वृत्तान्त का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी का यात्रा वृत्तान्त अल बिरूनी एक उच्च कोटि का विद्वान था। वह भारत में कई वर्षों तक रहा। उसने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताये और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। अल बिरुनी की लेखन शैली की विशेषताएँ-अल- बिरुनी की लेखन शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित किया।
- अल बिरूनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग
- उसने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं।
- वह संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था।
- इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।
अल बिरूनी द्वारा अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार करना-यद्यपि अल बिरुनी जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानता था, फिर भी उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसने लिखा कि प्रत्येक यह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। उसका कहना था कि जाति व्यवस्था में संलग्न अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी। भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का विवरण अल- बिरूनी ने भारत में प्रचलित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख अग्र प्रकार से किया है –
- ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी। हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। हिन्दू ब्राह्मणों को मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
- क्षत्रिय अल-विरुनी के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि क्षत्रिय ब्रह्मन् के कंधों और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचा नहीं है।
- वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। वैश्य ब्रह्मन् की जंघाओं से उत्पन्न हुए थे।
- शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन् के चरणों से हुआ था।
अल बिरुनी के अनुसार अन्तिम दो वर्णों में अधिक अन्तर नहीं है। परन्तु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी ये शहरों और गाँवों में मिल-जुलकर रहते हैं। जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित होना जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतया प्रभावित था। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति व्यवस्था का संचालन करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था। परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी।
प्रश्न 6.
इब्नबतूता द्वारा किए गए दिल्ली तथा दौलताबाद के वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
इब्नबतूता द्वारा वर्णित दिल्ली का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
अथवा
दिल्ली के विशेष संदर्भ में भारतीय नगरों के बारे में इब्नबतूता के वृत्तान्तों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
1. इब्नबतूता द्वारा किया गया दिल्ली का वर्णन –
(1) दिल्ली की बनावट इनवतृत के अनुसार दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला पनी जनसंख्या वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ लगभग 20 इंच के बराबर) है और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।
प्राचीरों के अन्दर खाद्य सामग्री, हथियार, बारूद, प्रक्षेपास्त्र तथा पेरेबन्दी में प्रयुक्त होने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडार गृह बने हुए थे। प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हैं जो शहर की ओर खुलती हैं तथा इन्हीं खिड़कियों के द्वारा प्रकाश भीतर आता है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है तथा ऊपरी भाग ईंटों से निर्मित है।
(2) शहर के द्वार दिल्ली शहर के 28 द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है और इनमें से बदायूँ दरवाजा सबसे विशाल है। मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी है, गुल-दरवाजे की बगल में एक फलों का बगीचा है।
(3) कब्रगाह दिल्ली शहर में एक उत्तम कब्रगाह है, जिसमें बनी कब्रों के ऊपर गुम्बद बनाई गई है और गुम्बद विहीन कब्रों पर मेहराब बने हुए हैं। कब्रगाह में कदाकार चमेली तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं और फूल सभी ऋतुओं में खिले रहते हैं।
2. इब्नबतूता द्वारा दौलताबाद का विवरण
(1) पुरुष और महिला गायकों का बाजार- इब्नबतूता के अनुसार दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार है, जिसे ‘तारामबाद’ कहते हैं यहाँ बहुत-सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है, जो मालिक के आवास में खुलता है। दुकानें कालीनों से सुसज्जित हैं और दुकान के मध्य में झूला है, जिस पर गायिका बैठती है।
(2) विशाल गुम्बद बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा है जिसमें कालीन बिछे हुए हैं और यह खूब सजाया गया है। इसमें प्रत्येक गुरुवार प्रातः काल की उपासना के बाद संगीतकारों के प्रमुख अपने सेवकों और दासों के साथ स्थान ग्रहण करते हैं। गायिकाएँ एक के बाद एक झुंडों में उनके समक्ष आकर सूर्यास्त का गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं जिसके पश्चात् वे चले जाते हैं।
(3) मस्जिदें इब्नबतूता के अनुसार इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं जब भी कोई हिन्दू शासक इस बाजार से गुजरता था, वह गुम्बद में उत्तर कर आता था और गायिकाएँ उसके समक्ष गान प्रस्तुत करती थीं। यहाँ तक कि अनेक मुस्लिम शासक भी ऐसा ही करते थे।
प्रश्न 7.
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारत की डाक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारत की डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य विशेष उपाय करता था। लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह स्थापित किए गए थे। इब्नबतूता भारत की डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता देखकर बड़ा चकित हुआ।
इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजना और उधार भेजना सम्भव हुआ, बल्कि इससे अल्पसूचना पर माल भेजना भी आसान हो गया। इब्नबतूता के अनुसार डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएं सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं।
डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी –
(1) अश्व डाक व्यवस्था तथा
(2) पैदल डाक व्यवस्था।
(1) अश्व डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था को ‘उल्लुक’ कहा जाता था। यह हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी।
(2) पैदल डाक व्यवस्था पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील तीन चौकियाँ होती थीं, जिन्हें ‘दावा’ कहा जाता था। यह एक मील का एक तिहाई होता था। हर | तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता था, जिसके बाहर तीन मण्डप होते थे, जिनमें लोग कार्य शुरू करने के लिए तैयार बैठे रहते थे। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी, जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती थीं।
जब सन्देशवाहक शहर से यात्रा आरम्भ करता था, तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घटियाँ वाली छड़ लिए वह यथाशक्ति तेज भागता था जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते थे, तो तैयार हो जाते थे। जैसे ही सन्देशवाहक उनके निकट पहुँचता था, उनमें से एक पत्र ले लेता था और वह छड़ी हिलाते हुए पूरी शक्ति से दौड़ता था, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता। पत्र के अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती थी यह पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक तीव्र होती थी। इसका प्रयोग प्रायः खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता था, जिन्हें भारत में बहुत पसन्द किया जाता था।
प्रश्न 8.
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारतीय यात्रा- वृत्तांत का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता का भारतीय यात्रा वृत्तांत इब्नबतूता के भारतीय यात्रा वृत्तांत का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) नारियल – इब्नबतूता के अनुसार नारियल एक अनोखा तथा विस्मयकारी वृक्ष था। यह खजूर के वृक्ष जैसा दिखता था। इन दोनों वृक्षों में एक ही अन्तर था-नारियल से काष्ठफल प्राप्त होता था तथा दूसरे से खजूर नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता था। लोग नारियल के रेशे से रस्सी बनाते थे।
(2) पान इब्नबतूता के अनुसार पान को अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता था। पान का कोई वृक्ष नहीं होता था और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता था। इसे
खाने से पहले सुपारी ली जाती थी। इसके छोटे- छोटे टुकड़ों को मुँह में रखकर चनाया जाता था। इसके बाद पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता था।
(3) भारतीय शहर इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे परन्तु कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों के दौरान नष्ट हो जाते थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे। ये बाजार विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली बहुत अधिक आबादी वाला शहर था। वह भारत में सबसे बड़ा शहर था दौलताबाद (महाराष्ट्र में भी कम नहीं था तथा आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।’ शहरों में वस्त्र उद्योग उन्नत अवस्था में था। विदेशों में भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी।
(4) डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार भारतीय डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएँ सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थीं। इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी –
- अश्व डाक व्यवस्था तथा
- पैदल डाक व्यवस्था।
(5) महिलाएँ दासियाँ सती तथा अमिक- इब्नबतूता के अनुसार बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की तरह खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे। दासों में विभेद – इब्नबतूता के अनुसार दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।
इसके अतिरिक्त सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। घरेलू श्रम के लिए दासों का प्रयोग इब्नबतूता के अनुसार दासों का प्रायः घरेलू श्रम के लिए प्रयोग किया जाता था। ये लोग पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाते थे। घरेलू श्रम के काम में लगे हुए दासों एवं दासियों की कीमत बहुत कम होती थी। अतः अधिकांश परिवार एक-दो दास तो रखते ही थे।
प्रश्न 9.
विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित भारतीय महिलाओं, दास-दासियों एवं सती प्रथा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
अथवा
इब्नबतूता एवं बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय महिलाओं, दास-दासियों एवं सती प्रथा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित दास- दासियों एवं सती प्रथा का विवरण –
(1) दास-दासियाँ – इब्नबतूता के अनुसार भारतीय बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की भाँति खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंटस्वरूप दिए जाते थे। सिन्ध पहुँचने पर इब्नबतूता ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे। मुल्तान पहुँचने पर उसने गवर्नर को किशमिश तथा बादाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में दिए। इब्नबतूता के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुदीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके तथा तथा दो सौ दास दिए थे।
(2) दासों में विभेद इब्नबतूता के अनुसार दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से खूब आनन्दित हुआ।
(3) अमीरों की गतिविधियों की जानकारी के लिए दासियों की नियुक्ति इनवता के अनुसार सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अपने अमीरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को नियुक्त करता था।
(4) दासों का घरेलू श्रम के लिए प्रयोग करना- इब्नबतूता के अनुसार दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था। ये लोग पालकी या डोले में महिलाओं को ले जाते थे। दासों का मूल्य, विशेष रूप से उन दासियों का मूल्य, जिनका प्रयोग घरेलू श्रम के लिए किया जाता था, बहुत कम होता था। इसी वजह से अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दास तो रखते ही थे।
(5) सती प्रथा बर्नियर के अनुसार भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। यद्यपि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से चिता में जल कर मर जाती थीं, परन्तु अनेक विधवाओं को मरने के लिए बाध्य किया जाता है। बर्नियर ने लाहौर में एक बारह वर्षीय विधवा की बलि का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “इस बालिका को उसकी इच्छा के विरुद्ध जीवित जला दिया था। यह बालिका काँपते हुए बुरी तरह रो रही थी परन्तु तीन या चार ब्राह्मणों तथा एक बूढ़ी महिला की सहायता से उस अनिच्छुक बालिका को जबरन चिता स्थल की ओर ले जाया गया, उसे लकड़ियों पर बिठाया गया और उसके हाथ तथा पैर बाँध दिए गए ताकि वह भाग न जाए। इस प्रकार इस निर्दोष बालिका को जीवित जला दिया गया।”
प्रश्न 10.
“बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के विवरणों द्वारा पश्चिमी विचारकों को प्रभावित करना बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से निम्नलिखित पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया –
(1) मान्टेस्क्यू-फ्रांस का प्रसिद्ध दार्शनिक मान्टेस्क्यू बर्नियर के विवरणों से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर असीम प्रभुत्व का उपभोग करते थे तथा प्रजा को दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजा और उनके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई से गुजारा कर पाता था।
(2) कार्ल मार्क्स प्रसिद्ध साम्यवादी विचारक कार्ल मार्क्स भी बर्नियर के विवरणों से प्रभावित हुआ। उसने उन्नीसवीं सदी के इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धान्त के रूप में और आगे बढ़ाया। उसने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भारत तथा अन्य एशियाई देशों में उपनिवेशवाद से पहले राज्य अधिशेष का अधिग्रहण कर लेता था। इसके फलस्वरूप एक ऐसे समाज का प्रादुर्भाव हुआ जो काफी स्वायत्त तथा आन्तरिक से समताण से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर से ( का नियन्त्रण होता था। जब तक अधिशेष की आपूर्ति निरन्तर जारी रहती थी इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था। यह एक निष्क्रिय प्रणाली मानी जाती थी।
ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से दूर होना- परन्तु ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’ भूमिविहीन श्रमिक इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में जुटा रहता था। इसके साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे जो कठिनाई से ही अपने गुजारे योग्य उत्पादन कर पाते थे।
प्रश्न 11.
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई ‘पूर्व और पश्चिम की तुलना को उल्लेखित कीजिए।
अथवा
बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय यात्रा वृत्तान्त का विवेचन कीजिए।
अथवा
“बर्नियर का ग्रन्थ ‘ट्रेवल्स इन मुगल एम्पायर अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि तथा गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई ‘पूर्व और पश्चिम’ की तुलना बर्नियर प्राय: भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था। वह यूरोपीय रा संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रबल समर्थक था यूरोपीय स्थितियों के मुकाबले में वह भारत की स्थितियों को दयनीय दर्शाना चाहता था। यही कारण है कि लगभग प्रत्येक दृष्टान्त में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की अ तुलना में दयनीय बताया।
(2) भूमि स्वामित्व का प्रश्न बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर के अनुसार भूमि = पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था। उसका विचार था कि मुगल साम्राज्य में सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों में बांटता था। इसके अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए विनाशकारी परिणाम होते थे।
(3) किसानों की दयनीय दशा-बर्नियर के अनुसार ग्रामीण अंचलों में रहने वाले कृषकों की दशा बड़ी दयनीय थी। यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी और श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग भी कृषि -विहीन रह जाता था। कई श्रमिक गवर्नरों के द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण मौत के मुंह में चले जाते थे। अपने स्वामियों की माँगों को पूरा न करने के कारण अनेक किसानों को उनके गुजारा करने के साधनों से वंचित कर दिया जाता था तथा उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था।
(4) मुगल साम्राज्य का स्वरूप- बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा ‘भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। मुगल राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित थे और इसके खेत ‘झाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे। इसका मात्र एक ही कारण था राजकीय भू-स्वामित्व।
(5) एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई एक ओर वर्नियर कहता है कि भारतीय शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों के विस्तार के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था क्योंकि समस्त लाभ राज्य के खजाने में चला जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था परन्तु इसके साथ ही बर्नियर यह भी स्वीकार करता है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी माश में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले निर्यात होता था. भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय भी था।
(6) भारतीय शहर बर्नियर के अनुसार मुगलकालीन शहर ‘शिविर नगर’ थे। शिविर नगरों से उसका अभिप्राय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे उसका विचार था कि ये नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके अन्यत्र चले जाने के बाद तेजी से विलुप्त हो जाते थे।
(7) व्यावसायिक वर्ग अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम एवं वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद् संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।
प्रश्न 12.
इब्नबतूता और अल बिरूनी के भारत यात्रा-वृत्तान्तों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता और अल बिरूनी के भारत यात्रा वृत्तान्तों की तुलना इब्नबतूता तथा अल बिरुनी के भारत यात्रा वृत्तान्तों की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है-
(1) भिन्न-भिन्न कालों से सम्बन्धित यात्रा वृत्तान्त- अल बिरुनी का या वृत्तान्त ग्यारहवीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है, जबकि इब्नबतूता का यात्रा-वृत्तान्त चौदहवीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है।
(2) विषय अल बिरूनी ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘किताब-उल-हिन्द’ में भारतीय धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, 7 भार तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया है। इब्नबतूता ने न अपनी प्रसिद्ध रचना ‘रिहला’ में भारतीय सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन, डाक व्यवस्था, भारतीय शहरों, बाजारों नारियल तथा पान, दास-दासियों, सती प्रथा, भारत की बा जलवायु लोगों के रहन-सहन, वेशभूषा, कृषि व्यापार आदि न विषयों का विवेचन किया है।
(3) भारतीय लोगों के धर्म, दर्शन और विज्ञान के के बारे में वर्णन करना अल बिरुनी संस्कृत भाषा का था। उसने यहाँ के लोगों के दर्शन, धर्म, विज्ञान और ना विचारों के ग्रन्थों का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसके द्वारा वर्णित भारत की जाति व्यवस्था का वर्णन उसके संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतया प्रभावित था। परन्तु से इब्नबतूता संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं, यहाँ के क रीति-रिवाजों, दर्शन आदि से अपरिचित थे।
(4) साहित्यिक ग्रन्थों एवं यात्राओं से अर्जित अनुभव को महत्त्वपूर्ण स्रोत मानना अल बिरूनी न साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक वाय महत्त्वपूर्ण खोत मानता था, परन्तु इब्नबतूता साहित्यिक नए ग्रन्थों के स्थान पर चाशओं से अर्जित अनुभव को महत्त्वपूर्ण नगर स्त्रोत मानता था।
(5) उद्देश्य अल बिरुनी के बाश-वृत्तान्त के उद्देश्य ये –
- उन लोगों के लिए सहायक जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे तथा
- ऐसे लोगों के लिए एक सूचना का संग्रह जो उनके साथ सम्बद्ध होना चाहते थे इब्नबतूता के भारत यात्रा के वृत्तान्त का उद्देश्य अपरिचित वस्तुओं, राज्यों, घटनाओं आदि से अपने देशवासियों को परिचित कराना था। वह चाहता था कि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूरी तरह से प्रभावित हो सकें। इसी कारण इब्नबतूता ने पान और नारियल डाक- व्यवस्था, भारतीय शहरों के वैभव आदि के बारे में विस्तार से लिखा।
प्रश्न 13.
एक ओर बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से निर्मित वर्णित किया है, तो दूसरी ओर उसने एक अधिक सामाजिक आर्थिक सच्चाई को भी उजागर किया है। विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारतीय समाज दरिद्र लोगों के जनसमूह के रूप में बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह के रूप में दर्शाते हुए लिखा है कि भारत के बड़े ग्रामीण अंचलों में से कई अंचल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत है। यहाँ की खेती भी अच्छी नहीं है प्रान्तीय गवर्नरों के अत्याचारों के कारण अनेक गरीब मजदूर मर जाते हैं। जब गरीब लोग अपने भू-स्वामियों की मांगों को पूरा नहीं कर पाते, तो उन्हें न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उनके बच्चों को दास भी बना लिया जाता है। विवश होकर बहुत से गरीब किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।
(1) बहुमूल्य धातुओं का भारत में आना एक अधिक जटिल सामाजिक और आर्थिक सच्चाई को दर्शाना- दूसरी ओर बर्नियर भारत में व्याप्त एक अधिक प्रसिद्ध सामाजिक और आर्थिक सच्चाई को दर्शाते हुए लिखता है कि शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों को उत्तम बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था, क्योंकि सारा मुनाफा राज्य को होता था फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले निर्यात होता था। इससे देश में सोना और चाँदी इकट्ठा होता था। बर्नियर के अनुसार भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय का भी अस्तित्व था जो लम्बी दूरी के विनिमय में संलग्न था।
(2) उपजाऊ भूमि और उन्नत शिल्प-बर्नियर ने लिखा है कि भारत का एक बड़ा भू-भाग अत्यन्त उपजाऊ है। बंगाल मित्र से न केवल चावल, मकई तथा जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में बल्कि रेशम कपास, नील आदि के उत्पादन में भी आगे है भारत के अनेक हिस्सों में खेती अच्छी होती है। यहाँ के शिल्पकार अनेक | वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न रहते हैं। ये शिल्पकार गलीचों, जरी कसीदाकारी, कढ़ाई, सोने और चांदी के वस्त्रों तथा विभिन्न प्रकार के रेशम और सूती वस्त्रों के निर्माण का कार्य करते हैं। रेशमी तथा सूती वस्त्रों का प्रयोग केवल भारत में ही नहीं होता, अपितु ये विदेशों में भी निर्यात किये जाते हैं।
(3) भारत में सोना और चाँदी का संग्रह होना- बर्नियर ने यह भी लिखा है कि सम्पूर्ण विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी का भारत में आकर कुछ सीमा तक संग्रह हो जाता है।
प्रश्न 14.
अल बिरूनी ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था की अपवित्रता की मान्यता को क्यों अस्वीकार कर दिया? क्या जाति व्यवस्था के नियमों का पालन पूर्ण कठोरता से किया जाता था? अल बिरूनी ने भारत की वर्ण व्यवस्था का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
यद्यपि अल – विरुनी ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों द्वारा निर्मित जाति व्यवस्था को स्वीकार किया और उसकी मान्यता के लिए अन्य देशों के समुदायों में इस व्यवस्था के प्रतिरूपों के उदाहरणों को भी प्रस्तुत किया, फिर भी वह अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार न कर अल बिरुनी ने लिखा है कि, “हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी खोई हुई पवित्रता को पुनः पाने का प्रयास करती है और सफल होती है सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है।” अल-विरुनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। उसके अनुसार अपवित्रता की अवधारणा प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है।
अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में जो भी विवरण दिया है; वह पूर्णतया संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से प्रभावित है। जिन नियमों का वर्णन इन ग्रन्थों में ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था को संचालित करने हेतु किया गया है; वह वास्तविक रूप में समाज में उतनी कठोरता से लागू नहीं थी। इनमें लचीलापन था उदाहरण हेतु परित्यक्त लोग जिन्हें अंत्यज कहते थे जो इस जाति व्यवस्था में शामिल नहीं थे, आर्थिक तन्त्र में उन्हें भी शामिल किया गया था। भले ही उनसे सस्ता श्रम प्राप्त करने के लिए ऐसा किया जाता हो।
अल- विरुनी की भारत की सामाजिक व्यवस्था की जानकारी प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित थी।
इसी आधार पर अल बिरूनी ने भारत की वर्ण व्यवस्था का वर्णन निम्न प्रकार से किया है –
- ब्राह्मण अल बिरूनी लिखता है कि ब्राह्मण सबसे सर्वोच्च वर्ण था क्योंकि हिन्दू ग्रन्थों की मान्यताओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति आदि देव ब्रह्मा के मुख से हुई और मुख का स्थान सबसे उच्च है; इसी कारण हिन्दू जाति में से सबसे उच्च माने जाते हैं।
- क्षत्रिय क्षत्रियों की उत्पत्ति आदि देव ब्रह्मा के कन्धों व हाथों से मानी गई है। मुख के बाद द्वितीय स्थान कन्धों व याँहों का है अतः उन्हें वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों से कुछ नीचे द्वितीय स्थान पर रखा गया।
- वैश्य वैश्य वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर व जंघा भाग से मानी गई इसलिए इन्हें तीसरे स्थान पर रखा गया।
- शूद्र-शूद्र वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से मानी गयी है, अतः वैश्य और शूद्रों के बीच अल बिरुनी अधिक अन्तर नहीं मानता था। अल बिरुनी के अनुसार, यद्यपि वर्ग-भेद तो था फिर भी सभी लोग एक साथ एक ही शहर या गांव में समरसता के साथ रहते थे।