JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

JAC Class 9 Hindi मेघ आए Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
बादलों के आने पर प्रकृति प्रसन्नता से भरकर जिस प्रकार नाच उठती है उससे अनेक गतिशील क्रियाएँ प्रकट होती हैं। हवा नाचती- गाती आगे-आगे चली। पेड़ झुककर गरदन उचकाए झाँकने लगे। धूल रूपी आँधी घाघरा उठाकर भाग चली। नदी बाँकी चितवन उठा कर ठिठकी और उसका घूँघट सरका। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की। लता किवाड़ की ओर से अकुलाई और बोली। तालाब हर्षाया और परात-भर कर पानी लाया। बादल क्षितिज रूपी अटारी तक आए और बिजली कौंधी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं ?
धूल, पेड़, नदी, लता, ताल।
उत्तर :

  1. धूल – गाँव की घाघरा उठाकर भागने वाली छोटी लड़कियों का।
  2. पेड़ – गाँव के जाने-अनजाने आदमियों का।
  3. नदी – गाँव की युवतियों का।
  4. लता – विरहिनी प्रियतमा का।
  5. ताल – घर का कोई सदस्य या पुराना वफादार नौकर।

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प्रश्न 3.
लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ?
उत्तर :
लता ने विरहिनी, प्रियतमा, नायिका या पत्नी के रूप में बादल रूपी प्रियतम की ओर लाज-भरी आँखों से देखा था, जिसमें उलाहना भरा हुआ था कि वे बहुत दिनों बाद आए। गाँव में प्रियतमा का अपने प्रियतम से सबके सामने खुले रूप में मिलने का रिवाज प्रायः नहीं होता।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।
(ख) बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
उत्तर :
(क) धरती मानो बादलों से कह रही हो कि क्षमा करो। अभी तक यह समझ रहे थे कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर आए बादल बरसेंगे नहीं, पर अब यह भ्रम टूट गया है। इससे यह ध्वनि भी उत्पन्न होती है कि तुम्हारे कभी न आने का जो भ्रम बना हुआ था, वह अब टूट गया है।
(ख) नदी अपने प्रवाह को थोड़ा रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई। नदी रूपी गाँव की नदी रूपी युवती ने अपने मुँह पर घूँघट सरका लिया और तिरछी नज़रों से सजे-सँवरे बादलों की ओर देखने लगी।

प्रश्न 5.
मेघरूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर:
मेघ रूपी मेहमान के आने से सारे वातावरण में तरह-तरह के परिवर्तन हुए। मेघ के आगमन पर बयार नाचने-गाने लगी अर्थात् हवा चलनी आरंभ हो गई। पेड़ मेघों को देखने के लिए गरदन ऊपर उठाकर झाँकने लगे। नदी भी एक पल के लिए रुककर मुख पर घूँघट डालकर तिरछी नजरों से मेघों को देखने की चेष्टा करने लगी। लता तो किवाड़ की आड़ में छिपकर मेघों को देर से आने का उपालंभ देने लगी। ताल खुशी से भरकर मेघों के स्वागत में अपना जल अर्पित करने को तैयार हो गए।

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प्रश्न 6.
मेघों के लिए बन-ठन के, सँवर के आने की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर:
दामाद की तरह मेघ गाँव में लंबे समय के बाद लौटा था। वह सज-सँवर कर, बन-ठन कर लौटा था, क्योंकि वह गाँव के सभी अपनों- परायों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालना चाहता था।

प्रश्न 7.
कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोज कर लिखिए।
उत्तर :
(क) जिन अंशों में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं –

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन उचकाए
धूल भागी घाघरा उठाए
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

(ख) जिन अंशों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं –

गाती बयार
बाँकी चितवन
बूढ़े पीपल
अकुलाई लता
क्षितिज अटारी

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प्रश्न 8.
कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नगर में रहने वाला विशिष्ट अतिथि (दामाद) जब गाँव पहुँचा तो उसका सबने मिलजुल कर स्वागत किया। गाँव से बाहर लगे बूढ़े बरगद ने आगे बढ़कर उसका अभिनंदन किया, उससे प्रेम-भरी बातचीत की। ताल द्वारे उसके पाँव धोने के लिए परात में पानी लाया गया। प्रियतमा एकदम उसके सामने नहीं आई, बल्कि किवाड़ के पीछे छिपी रही और उसने मंद स्वर में देर से आने का उलाहना दिया।

प्रश्न 9.
कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान के (दामाद) आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर :
कवि ने आकाश में बादल और गाँव में दामाद आने का जो रूपक प्रकट किया है वह अति स्वाभाविक और प्रभावशाली है। नगर में रहने वाला कोई युवक जब दामाद के रूप में गाँव में जाता है तो वह सज-सँवर कर, बन-ठन कर जाता है। बादल भी वैसे ही बड़े बन-ठन कर गाँव पहुँचे। बादलों के आगे-आगे तो गति से बहती हवा चलती है और घरों की खिड़कियाँ दरवाजे स्वयं खुलने लगते हैं। दामाद के गाँव में पहुँचते ही छोटे-छोटे बच्चे उन्हें पहचान कर नाचते-कूदते उससे आगे-आगे भागते हुए उनके आगमन की पूर्व सूचना देने लगते हैं। गली-मोहल्ले के लोग खिड़कियों-दरवाजों से उत्सुकतापूर्वक उसकी झलक पाने की चेष्टा करने लगते हैं।

बादल आने पर पेड़ तेज़ हवा में झूमने लगते हैं, झुकने लगते हैं। आँधी चलने लगती है। दामाद के आने से गाँव के लोग झुककर गर्दन उचका कर उसे देखने का प्रयत्न करते हैं। छोटी-छोटी लकड़ियाँ प्रसन्नता की अधिकता के कारण अपने कपड़े समेट घर की ओर दौड़ पड़ती हैं। युवा नारियाँ बाँकी चितवन से घूँघट सरकाकर उधर देखने लगती हैं। जैसे ही बादल गाँव में पहुँचता है वैसे ही पीपल का बूढ़ा पेड़ उसे आशीर्वाद देते और स्वागत करते हुए उससे कहता है कि पूरे एक वर्ष बाद गाँव में आए हो। दामाद से भी घर के बड़े-बूढ़े देर से आने की प्रेम-भरी शिकायत करते हैं और उसका स्वागत करते हैं।

बादल आने पर आँगन में लगी बेल ओट में सरक जाती है तो दामाद के आने से लाज-भरी प्रियतमा अकुलाकर दरवाजों की ओट में हो जाती है। घर का कोई सदस्य दामाद के पैर धोने के लिए परात में पानी भर लाता है। आकाश में छाए बादल बरसकर अपने आगमन का उद्देश्य पूरा कर देते हैं, तो मिलन की घड़ी में दामाद और प्रियतमा की आँखें भी रिमझिम बरसने लगती हैं।

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प्रश्न 10.
काव्य-सौंदर्य लिखिए –
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
उत्तर :
नगर की ओर से बादल बहुत बन-ठन कर दामाद की तरह गाँव में पधारे और उनके पधारने से सब प्रसन्नता से भर उठे। कवि ने रूपक के प्रयोग से अति सुंदर चित्र – योजना की है। अनुप्रास अलंकार, मानवीकरण और उत्प्रेक्षा का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से प्रकट हुआ है। तद्भव और देशज शब्दावली के प्रयोग ने कथन को सहजता प्रदान की है। प्रसाद गुण विद्यमान है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
वर्षा के आने पर अपने आस-पास के वातावरण में हुए परिवर्तन को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
आकाश में छाए बादलों को देख लोग प्रसन्नता से खिल उठते हैं। ठंडी हवा बहने के कारण वातावरण की गर्मी कम हो जाती है। छोटे-बच्चे वर्षा के स्वागत में नाचने-गाने लगते हैं। घरों की छतों पर औरतें धूप में सूखने के लिए डाले कपड़े इकट्ठा करने लगती हैं। जैसे ही बूँदें गिरती हैं मिट्टी की सौंधी-सौंधी गंध वातावरण में फैल जाती है। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहाने के लिए आँगन में आ जाते हैं।

वर्षा तेज़ होते ही गलियाँ पानी से भरने लगती हैं और कुछ ही मिनटों बाद वे बरसाती नालों की तरह भर-भरकर बहने लगती हैं। उस बहते पानी में कई घरों से, वे सामान भी बह कर गली में तैरने लगते हैं। जो समयाभाव के कारण संभलने से रह गए होते थे। वर्षा की बौछारों से सारे पेड़-पौधे नहा जाते हैं। महीनों से उन पर जमी धूल-मिट्टी बह जाती है और वे हरे-भरे रूप को पाकर साफ़-स्वच्छ हो जाते हैं। सारे खेत अपनी हरियाली से मोहक लगने लगते हैं। गर्मी से झुलसे पशुओं पर भी संतोष के भाव दिखाई देते हैं।

प्रश्न 12.
कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है ? पता लगाइए।
उत्तर :
पीपल के पेड़ की आयु काफी लंबी होती है, वे प्रायः गाँव की सीमा पर ही दूर से आने वालों को अपनी छाया से सुख प्रदान करते हैं। सघन छाया और फैलाव के कारण वे पशु-पक्षियों तथा यात्रियों को ही सुख – आराम नहीं देते, बल्कि अपनी लंबी आयु और उपयोगिता के कारण लोगों के हृदय में पवित्रता और सम्मान के प्रतीक भी माने जाते हैं। लोग उसके सामने श्रद्धा से झुकते हैं, उसकी पूजा करते हैं। कवि ने पीपल को इसीलिए बड़ा बुजुर्ग कहा है।

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प्रश्न 13.
कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं, लिखिए।
उत्तर
दामाद को आज भी भारतीय परिवारों में वैसा ही विशेष सम्मान प्राप्त है जैसा पहले था, पर अब सम्मान का स्वरूप बदल गया है। लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया है। अब दामाद मेहमान-सा प्रतीत नहीं होता बल्कि वह परिवार का बेटा ही लगता है जिसके आगमन पर किसी आडंबर की आवश्यकता अनुभव नहीं होती। अपने-अपने काम में अतिव्यस्तता भी इस परंपरा में परिवर्तन का एक कारण हो सकता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 14.
कविता में आए मुहावरों को छाँटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :

  1. बन-ठन के – सज-सँवर कर-अरे, सुबह-सवेरे बन-ठन कर कहाँ की तैयारी है? क्या तुम्हें स्कूल नहीं जाना ?
  2. झुक-झाँक करना ताक-झाँक करना – पड़ोसियों के घर इस तरह झुक-झाँक करना तुम्हें शोभा नहीं देता।
  3. सुध लेना – याद करना- अरे मोहन, कभी गाँव में बूढ़े माँ-बाप की सुध लेने चले जाया करो।
  4. गाँठ खुलना- भेद खुलना- रिश्वत तो गुप्ता जी वर्षों से ले रहे थे पर गाँठ अब खुली है
  5. बाँध टूटना – हौसला चूक जाना-वर्षों से बेचारी अपने एकमात्र पुत्र की गंभीर बीमारी को किसी प्रकार झेल रही थी पर उसकी मौत ने तो बाँध तोड़ दिया और वह फूट-फूट कर रो पड़ी।

प्रश्न 15.
कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
बन-ठन के सँवर के’, ‘पाहुन’, ‘घाघरा’, ‘बाँकी चितवन’, ‘ठिठकी’, ‘घूँघट सरके’, ‘जुहार’, ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’, ‘हरसाया’, ‘अटारी’, ‘ढरके’।

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प्रश्न 16.
मेघ आए कविता की भाषा सरल और सहज है-उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने आंचलिक भाषा में सजी-सँवरी कविता को मुख्य रूप से खड़ी बोली में रचा है जिसमें ग्रामीण परिवेश अति सुंदर ढंग से प्रकट हुआ है। भाषा अति सरल, सरस और सहज है। गतिशील बिंब योजना तो मन को मोह लेने वाली है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आँखों के सामने मेघ रूपी दामाद गाँव में पधार गया हो जिस कारण हर प्राणी क्रियाशील हो उठा है। प्रतीकात्मकता का सहज-स्वाभाविक रूप अति सार्थक और सटीक है। बूढ़ा पीपल, धूल, अकुलाई लता, नदी, ताल आदि में प्रतीकात्मकता है। चित्रात्मकता का रूप तो अद्भुत है –
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।

कवि ने संवादात्मकता का प्रयोग करते हुए नाटकीयता की सृष्टि करने में सफलता प्राप्त की है –
(क) बरस बाद सुधि लीन्हीं –
(ख) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।

कवि की भाषा में मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है जिसने कथन को गतिशीलता प्रदान की है, जैसे-
(क) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
(ख) पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
(ग) बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
(घ) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
(ङ) बाँध टूटा झर-झर मिलन

कवि ने ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग कर भावों को स्वाभाविकता प्रदान की है। तद्भव तथा देशज शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का प्रयोग सहजता से हुआ है, जैसे-क्षितिज, दामिनी, क्षमा, अश्रु, मेघ आदि।

JAC Class 9 Hindi मेघ आए Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
शहरी पाहुन के आगमन पर गाँव में उमंग-उल्लास के रूप को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
जब शहरी पाहुन सज-संवर कर गाँव में आता है तो चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। उसके आगमन की खबर तेजी से फैल जाती है। गली-गली में दरवाज़े और खिड़कियाँ उसे उत्सुकतावश देखने के लिए खुल जाते हैं। लोग गरदन उचकाकर उसे देखने लगते हैं और गाँव की नारियाँ शरमाकर घूँघट सरकाकर तिरछी दृष्टि से उसे देखती हैं। प्रिया भी अपने पाहुन को घर आया देख प्रसन्न हो जाती है, परंतु दरवाज़े की ओट में छिपकर वह पाहुन को उपालंभ भी देती है। किंतु उसके हृदय के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं। अतिथि और प्रियतमा का मिलन हो जाता है और उनके नेत्रों से प्रसन्नता के आँसू छलक पड़ते हैं।

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प्रश्न 2.
बादलों की तुलना किसके साथ की गई है और कैसे ?
उत्तर :
कवि ने बादलों की तुलना शहरी मेहमान के साथ की गई है। जिस प्रकार शहरी मेहमान बन-सँवर कर आते हैं उसी प्रकार बादल भी बन-सँवर आए हैं और सारे आकाश में फैल गए हैं। गाँव के लोग बादलों को देखने के लिए अपने खिड़की-दरवाज़े उसी प्रकार खोल रहे हैं, जिस प्रकार शहरी मेहमान को देखने की उत्सुकता में लोग अपने घरों के खिड़की-दरवाज़े खोलते हैं।

प्रश्न 3.
‘मिलन के अश्रु ढलके’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
मिलन के अश्रु ढलके से कवि का अभिप्राय है कि धरती रूपी नायिका को यह भ्रम था कि बादल नहीं आएँगे। परंतु जब बादल रूपी मेहमान बन-सँवर कर आता है तब धरती रूपी नायिका का भ्रम दूर हो जाता है। धरती और मेघ का मिलन देखकर बादल ज़ोर-ज़ोर से बरसने लगते हैं अर्थात् नायिका और नायक के मिलन पर आँखों से खुशी के आँसू बहने लगते हैं।

प्रश्न 4.
बादलों के मेहमान बनकर आने पर उनका स्वागत किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
गाँव में बादल एक साल बाद मेहमान की भाँति बन-सँवर कर आए हैं। उन्हें देखकर सारा गाँव खुशी से नाच उठता है। सभी अपने- अपने ढंग से बादल रूपी मेहमान के स्वागत की तैयारी में लग जाते हैं। गाँव के सबसे बूढ़े पेड़ पीपल ने बादलों का स्वागत झुककर वंदना करते हुए किया।जब घर में मेहमान आते हैं उनका स्वागत घर के बड़े लोग करते हैं। तालाब में लहरें उठने लगती हैं और वह भी अपने जल से मेहमान के चरण धोने के लिए तत्पर है। मेहमान की नायिका उसे यह ताना देती है कि वह एक साल बाद आया है। उसने तो उसके आने की उम्मीद छोड़ दी थी, अर्थात् धरती भी मेघों से मिलने को बेचैन थी और वह अपनी बेचैनी किसी को दिखाती नहीं है। इसलिए, वह आड़ में छिपकर अपने मेहमान का स्वागत करती है।

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प्रश्न 5.
बादल कहाँ तक फैल गए हैं उनके सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर
बादल आकर क्षितिज तक फैल गए हैं। उनमें से बिजली चमक रही है। बिजली की चमक देखकर ऐसा लगता है, मानो बादल रूपी मेहमान क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।

प्रश्न 6.
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
प्रस्तुत अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मेघों के आने से प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार से प्राकृतिक उपादानों को नया रूप प्रदान किया है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएँ आरोपित कर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द – योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता और सरसता से परिपूर्ण है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : बन-ठन के – सज-सँवर कर। बयार – हवा। पाहुन – मेहमान। मेघ – बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘क्षितिज’ में संकलित ‘मेघ आए’ कविता से अवतरित है। इसके रचयिता ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। इस कविता में कवि ने मेघ के आने की तुलना गाँव में आने वाले शहरी मेहमान से की है। जिस प्रकार मेहमान के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण होता उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती की प्रसन्नता का वर्णन है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि आज बादल आज गाँव में आने वाले शहरी मेहमान की भाँति सज-सँवर कर आए हैं। वर्षा के आगमन की प्रसन्नता में हवा चलने लगी है अर्थात् मेहमान के आने की खबर सारे गाँव में फैल गई है। लोग बादलों को देखने के लिए उसी प्रकार अपने दरवाज़े- खिड़कियाँ खोल रहे हैं, जिस प्रकार गाँव के लोग शहर के मेहमान की झलक पाने के लिए उतावले होते हैं। कवि ने यहाँ मेघों और शहरी मेहमान की तुलना करके बड़ा सुंदर दृश्य उपस्थित किया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गाँव में कौन आया है ?
(ख) मेघ किस प्रकार से आते हैं ?
(ग) गाँव में बादलों का कैसा स्वागत होता है ?
(घ) हवा बादलों का स्वागत कैसे करती है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) गाँव में मेघ रूपी मेहमान आया है।
(ख) बादल बहुत बन-सँवर कर आते हैं। वे आकाश में चारों ओर छा गए हैं। आकाश पूरी तरह से बादलों से ढक गया है। (ग) गाँव में बादलों का स्वागत एक मेहमान की तरह होता है। उनके आने की खबर सारे गाँव में फैल जाती है। लोग बादलों को मेहमान की तरह अपने खिड़की-दरवाजे खोलकर देखने लग जाते हैं।
(घ) हवा बादलों को उड़ाकर आगे-आगे ले जाती है। यह ऐसा लगता है, जैसे हवा बादलों के आगे-आगे खुशी से नाचती हुई चल रही है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने का सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश व उपमा अलंकार की सुंदर घटा बिखरी है। मेघों का पाहुन की भाँति बन-सँवर कर आना मानवीकरण अलंकार की सृष्टि करता है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। प्रकृति के आलंबन और मानवीकरण रूप का वर्णन है। भाषा सरल, सरस तथा प्रवाहमयी है।

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2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : उचकाए – उठाकर। बाँकी चितवन – तिरछी दृष्टि। ठिठकी – ठहर कर। मेघ – बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनमोहक रूप का वर्णन करता है। कवि ने मेघों को गाँव में आने वाले पाहुन के रूप में माना है तथा प्राकृतिक उपादानों के परिवर्तनशील सौंदर्य को चित्रित किया है

व्याख्या : कवि मेघों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि मेघ गाँव में आने वाले पाहुन की भाँति बन-सँवर कर आ गए हैं। मेघों के रूप-सौंदर्य को देखने के लिए पेड़ गर्दन उचकाकर झाँकने लगे हैं। कवि प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण करते हुए कह रहा है कि मेघों के आने पर आँधी चलने लगी है। धूल शरमाकर अपना घाघरा उठाकर भाग खड़ी हुई है, नदी अपने प्रवाह को रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई है। नदी ने अपने मुख पर घूँघट सरका लिया है और वह तिरछी नार से सजे-सँवरे मेघों को देख रही है। यहाँ कवि ने वर्णन किया है कि जब गाँव में कोई शहरी मेहमान आता है तो गाँव के वातावरण में जो परिवर्तन होते हैं, ठीक वैसे ही परिवर्तन प्रकृति में दिखाई दे रहे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) पेड़ों में क्या परिवर्तन हुआ है ?
(ख) पेड़ झुककर क्या देखने लगे ?
(ग) नदी को कवि ने कैसे चित्रित किया है ?
(घ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) पेड़ गरदन उचकाए अर्थात् शाखाएँ दाएँ-बाएँ हिलाकर मेघों को देखने लगे हैं।
(ख) तो हवा के चलने से पेड़ झुक रहे हैं जो कवि को ऐसा लगता है मानो पेड़ बादलों का रूप-सौंदर्य देखने के लिए झुक रहे हैं। वे बादलों का स्वागत और अभिनंदन कर रहे हैं।
(ग) नदी को कवि ने एक ऐसी नायिका के रूप में चित्रित किया है जो मेहमान को देखने आई है और घूँघट खिसकाकर, नारी सुलभ लज्जा तथा जिज्ञासा के कारण तिरछी दृष्टि से बादल रूपी मेहमान को देख रही है।
(घ) मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार की अनुपम छटा बिखेरी है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएँ करवाकर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता तथा सरसता से परिपूर्ण है।

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3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
“बरस बाद सुधि लीन्हीं’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : जुहार – आदर के साथ झुककर किया गया नमस्कार। बरस वर्ष। सुधि – याद। लीन्हीं ली। अकुलाई व्याकुल। ओट – आड़। किवार – किवाड़, दरवाजा। हरसाया – हर्ष से भरा। ताल तालाब। मेघ – बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उभरे प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनमोहक वर्णन किया है। कवि ने मेघों को पाहुन मानकर धरती के प्राकृतिक उपादानों को उनका स्वागत करते हुए चित्रित किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि जिस प्रकार मेहमान के घर आने पर गाँव में बड़े जोर-शोर से उसका स्वागत किया जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती पर भी उनका भव्य स्वागत हो रहा है। बूढ़े पीपल के वृक्ष ने आगे बढ़कर मेघ को झुककर नमस्कार किया। विरह के कारण व्याकुल लता ने किवाड़ की आड़ में छिपकर मेघ रूपी पाहुन को उलाहना दिया कि एक बरस के बाद तुम्हें हमारी याद आई अर्थात् एक वर्ष की प्रतीक्षा के बाद तुम आए हो।

हर्ष से भरा हुआ तालाब भी मेघ के स्वागत के लिए पानी से परात भरकर ले आया है। धरती पर मेघों का स्वागत उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार गाँव में पाहुन का स्वागत होता है। गाँव के लोग उसे नमस्कार करते हैं। नायिका उसे देर से आने का उपालंभ देती है। परिवार का कोई सदस्य उसके चरण धोने के लिए परात में पानी लाता है। ठीक उसी प्रकार की क्रियाएँ मेघों के आने पर हुई हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) बूढ़े पीपल ने ही सबसे पहले जुहार क्यों की ?
(ख) बूढ़े पीपल ने बादलों का स्वागत कैसे किया ?
(ग) लता ने बादलों को क्या कहा ?
(घ) बादलों के आने पर ताल की क्या स्थिति है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) गाँव में प्रवेश करने से पहले मेघों को सबसे पहले पीपल का पेड़ ही मिला था। युगों से गाँव में सबसे पहले बुजुर्गों द्वारा पाहुन के स्वागत की परंपरा रही है।
(ख) बूढ़ा पीपल बादलों को झुककर नमस्कार करता है।
(ग) बादलों के विरह में व्याकुल लता के किवाड़ की आड़ में छिपकर उन्हें उलाहना देते हुए कहा कि एक वर्ष के बाद तुम्हें हमारी याद आई है।
(घ) बादलों के आने की प्रसन्नता में तालाब उनका स्वागत करते हुए पानी से परात को भरकर ले आता है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में उत्पन्न परिवर्तनों का बड़ा सजीव अंकन किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार का सुंदर वर्णन है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। लता द्वारा किवाड़ की आड़ से मेघ से बात करने में उपालंभ का भाव प्रकट हुआ है। शब्द-योजना सटीक एवं सजीव है। भाषा सरल, सरस तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

शब्दार्थ : क्षितिज – जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं। वह स्थान। गहराई – बादल छा गए। दामिनी – बिजली। दमकी भरम – भ्रम, भुलावा। अश्रु आँसू। ढरके गिरे।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ में से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनोरम चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अब मेघ क्षितिज रूपी अटारी पर पहुँच गए हैं। मेघों के आ जाने पर बिजली चमक उठी है अर्थात मेहमान को देखकर नायिका का तन-मन आभा से भर उठा है। धरती रूपी नायिका मानो मेघों से कह रही है कि क्षमा कर दो। अभी तक हम समझ रहे थे कि मेघ नहीं बरसेंगे, पर अब यह भ्रम टूट गया है। मेघों और धरती के बीच की रुकावट समाप्त हो गई। मेघ झर-झर कर बरसने लगे। धरती और मेघों का मिलन हो गया है। इसी प्रकार अतिथि और नायिका का भी मिलन हो गया है। उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। आज मेघ भी अतिथि की भाँति बन-सँवर कर आकाश में छा गए हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) बादल कहाँ तक फैल गए हैं ?
(ख) बादलों के आने पर क्षितिज के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ग) क्या भ्रम था जो अब दूर हो गया है ?
(घ) ‘मिलन के अश्रु ढलके’ से क्या तात्पर्य है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) बादल क्षितिज रूपी अटारी तक फैल गए थे।
(ख) बादल क्षितिज तक फैल गए हैं और बिजली चमक रही है जो ऐसा लगता है मानो बादल रूपी मेहमान के क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।
(ग) धरती को यह भ्रम था कि बादल नहीं बरसेंगे, किंतु अब उनके बरसने से धरती का यह भ्रम दूर हो गया है।
(घ) मेघों और धरती के बीच की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं तो मेघ झर-झर कर बरसने लग जाते हैं। धरती और मेघों के मिलन के यह प्रेमाश्रु हैं।
(ङ) कवि ने मेघों और धरती के मिलन का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक तथा मानवीकरण का सहज और सुंदर प्रयोग सराहनीय है। लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। चित्रात्मकता ने सुंदर अभिव्यक्ति में सहायता दी है

मेघ आए Summary in Hindi

कवि-परिचय :

आधुनिक हिंदी कविता में श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की अपनी अलग ही पहचान है। इन्होंने कवि होने के साथ-साथ पत्रकारिता को अपना कर्मक्षेत्र बनाया था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने जीवनयापन के लिए अनेक कष्ट उठाए थे। ये कुछ समय के लिए आकाशवाणी से भी संबद्ध रहे थे। संपादक के रूप में उनकी प्रतिभा ‘दिनमान’ और बाल – पत्रिका ‘पराग’ में उभरी थी। सन् 1983 ई० में इनका निधन हो गया था।

सक्सेना जी ने कविता के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी गति दिखाई है। उनकी प्रसिद्ध काव्य- कृतियाँ काठ की घंटियाँ, एक सूनी नाव, बाँस का पुल, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द, कुआनो नदी, खूँटियों पर टंगे लोग हैं। इन्हें ‘दिनमान’ में ‘चरचे और चरखे’ के लिए प्रसिद्धि मिली थी। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

सक्सेना जी की कविता में जीवनाभूति के विविध रंग दृष्टिगोचर होते हैं। उन्होंने ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवन में व्याप्त सुख-दुःख का बड़ा सफल उद्घाटन किया है। मानव मन की गुत्थियों के उलझाव को व्यक्त करने में भी इनकी कविता सफल रही है। आशा और विजय का संदेश इनकी कविताओं की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। उनके काव्य की विविधता यह प्रमाणित करती है कि उनमें लोकोन्मुखता है।

इसलिए वे लोकजीवन को अपने लोकगीतों में प्रस्तुत करते रहे। गाँव में व्याप्त दरिद्रता का भी उन्होंने यथार्थ और मार्मिक चित्र अंकित किया है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने बच्चों से लेकर प्रबुद्ध जनों तक के लिए साहित्य की रचना की। उन्होंने काव्य में सत्य की गहरी चोट है। उनकी कविताएँ भीतर तक कुरेदती हैं। उनकी कविता में अंधेरा और अकेलापन भी रोशनी की तरफ चलने का संकेत देता है –

अंधेरे को सूँघकर मैंने देखा है उसमें सूरज की गंध आती है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता में क्रांति का स्वर भी है। वे शोषित-दलित वर्ग के लिए ‘धूल’ के माध्यम से चेतावनी देते हैं जिससे उसे अपनी शक्ति का एहसास हो। कवि ने लीक पर चलने वाले अर्थात् परंपरावादियों का विरोध किया है। कवि ने अपना रास्ता अपनी ही कुदाली से बनाने की प्रेरणा दी है। बनी बनाई लकीर पर चलना कमजोरी का प्रतीक है। संघर्ष द्वारा बनाया गया रास्ता ही जीवनोपयोगी होता है। नए पथ पर नए जीवन मूल्यों का निर्माण करने के लिए प्रकृति की स्वच्छंदता, अल्हड़ता, जीवनधर्म तथा रचनात्मक शक्ति का सहारा लेना चाहिए। वे कहते हैं –

लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।

इनकी भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने अलंकृत अथवा असाधारण भाषा का प्रयोग नहीं किया है। वे अपनी बात सीधी-सादी भाषा में कह देते हैं। इन्होंने मुख्य रूप से मुक्तक रचनाएँ लिखी हैं। नए अप्रस्तुतों और बिंबों की रचना उनके काव्य की विशेषता है। चित्रात्मकता इनके काव्य की अन्य विशेषता है,। विषय-वस्तु की दृष्टि से इनके काव्य में जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। प्रेम-प्रसंगों के साथ ही कवि ने समसामयिक जीवन की विसंगतियों का भी यथार्थ अंकन किया है। इस कारण ये शिल्प-विधान की अपेक्षा विषय-वस्तु को अधिक महत्व देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए

कविता का सार :

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘मेघ आए’ प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त कविता है। इसमें कवि ने मेघों की तुलना गाँव में सज-संवरकर आने वाले दामाद के साथ की है। जिस प्रकार दामाद के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती के प्राकृतिक उपादान उमंग में झूम उठते हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए उमंग, उत्साह तथा उपालंभ आदि भावों को बड़े सजीव ढंग से चित्रमयता के साथ वर्णित किया है। मेघ रूपी बादलों के आगे-आगे हवा नाचते-गाते हुए बढ़ती है।

गली-मुहल्ले की खिड़कियाँ एक-एक कर खुलने लगती हैं ताकि बने-ठने मेघों को देख सकें। पेड़ झुक-झुक कर गरदन उचकाकर उसे देखने लगे तो धूल शर्माते हुए घाघरा उठा कर आँधी के साथ भाग चली। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। गाँव का तालाब पानी-भरी परात लेकर प्रसन्नता से भर उठा। जब मेघ बरसने लगे तो धरती और बादलों का आपसी मिलन हो गया।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुस्वार, अनुनासिक –

हिंदी में अनुस्वार और अनुनासिक का प्रायः प्रयोग किया जाता है।
अनुस्वार का उच्चारण इ इ, ण्, च, म् के समान होता है। जैसे – कंघी (कड्घी), गंजा (गज्जा), घंटी (घण्टी), संत (सल), पंप (पम्प) अनुस्वार के साथ मिलती-जुलती एक ध्वनि अनुनासिक भी है, जिसका रूप ‘ज’ है। इन दोनों में भेद केवल यह है कि जनस्वार की ध्वनि कठोर होती है और अनुनासिक की कोमल। अनुस्वार का उच्चारण नाक से होता है और अनुनासिक का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है। जैसे-हँस और हंस। हँस का अर्थ है-हँसना और हंस का अर्थ है-एक प्रकार का पक्षी।

हिंदी मानक लिपि में बिंदु –

(क) पंचमाक्षों (ङ, उ, ण, न, म) का जब अपने वर्ग के वर्णों के साथ संयोग होता है तब उनके स्थान पर अनुस्वार (-लिखा जाता है । जैसे –

  • दन्त = दंत
  • चज्वल = चंचल
  • ठण्डा = ठंडा
  • कड्यी = कंघी
  • पम्प = पंप
  • कन्द्रा = कंधा

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

(ख) य, र, ल, व, श, ष, स, ह के साथ अनुस्वार ही लगता है। जैसे -संयोग, संरक्षण, संसार, संशय, शंका, लंपट, बंदना, संबाद. हुंकार, हंता, रंक, रंज, लंका आदि।
(ग) यदि वर्ण के ऊपर मात्रा लगी हो, तो अनुनासिक (-) का उच्चारण होने पर भी अनुस्वार की बिंदी ही लगेरी। जैंसे-मैं, हैं, बेंमल्ला, सौंफ आदि।
अनुस्वार के प्रयोग संबंधी अन्य उदाहरण –

पुराना रूप – मानक रूप

  • चन्दन – चंदन
  • प्रशान्त – प्रशांत
  • किन्तु – किंतु
  • हिन्दी – हिंदी
  • अन्त – अंत
  • पण्डा – पंडा
  • इन्द्र – इंद्र
  • प्रबन्ध – प्रबंध
  • अन्तर – अंतर
  • सम्बन्धी – संबंधी
  • निरन्तर – निरंतर
  • हिन्दू – हिंदू
  • चिह्न – चिह्न
  • गन्दा – गंदा
  • क्रन्दन – क्रंदन
  • सन्ध्या – संध्या
  • सुन्दर – सुंदर
  • दन्त – दंत
  • अन्तर – अंतर
  • केन्द्र – कैंद्र
  • निन्दनीय – निंदनीय
  • आरम्भ – आरंभ
  • आनन्द – आनंद
  • ठण्डक – एंडक
  • अभिनन्दन – अभिनंद्न
  • सम्भावना – संभावन
  • इप्टरनेशनल – इंटरनेशनल
  • सम्पादक मण्डल – संपादक मंडल
  • प्रेमचन्द – प्रेमचंद
  • सन्दिग्ध – संदिन्ध
  • सन्देह – संदेह
  • अन्दर – अंदर
  • तुरन्त – तुरंत
  • इन्तज़ार – इंतजार
  • सम्भव – संभव
  • सन्देहास्पद – संदेहास्पद्
  • शान्ति – शांति
  • स्वतन्त्र – स्वतंत्र
  • गणतन्त्र – गणतंत्र
  • अम्बाला – अंबाला
  • चण्डीगढ़ – चंडीगढ़
  • मुम्बई – मुंबई
  • हिन्दुस्तान – हिंदुस्तान
  • गान्धी – गांधी
  • सन्दीपन – संदीपन
  • क्रान्ति – क्रांति
  • श्रद्धार्जलि – श्रद्धाजाल
  • दुर्गन्ध – दुर्गंध
  • सन्धि – संधि
  • सन्तोष – संतोष
  • अम्बर – अंबर
  • अझ्ग – अंग
  • कुन्तल – कुंतल
  • अम्भोज – अंभोज
  • निशान्त – निशांत
  • उत्कण्ठा – उत्कंठा
  • पउ्चबाण – पंचबाण
  • लम्बोदर – लंबोदर
  • चन्द्रमा – चंद्रमा
  • कालिन्दी – कालिंदी
  • दन्तच्छद – दंतच्छद
  • नरेन्द्र – नरेंद्र
  • इन्दिरा – इंदिरा
  • सन्तान – संतान
  • वसुन्धरा – वसुंधरा
  • बन्दर – बंदर
  • देहान्त – देहांत
  • कुन्दन – कुंदन
  • किंवदन्ती – किंवर्दंती
  • दम्पति – दंपति
  • पन्द्रह – पंद्रह
  • सम्पत्ति – संपत्ति
  • अनन्त – अनंत
  • इन्द्रियां – इंद्रियाँ
  • पाण्डव – पांडव
  • छन्द – छंद
  • तम्बू – तंबू
  • मन्दिर – मंदिर
  • क्रान्ति – क्रांति
  • अनुकम्पा – अनुकंपा
  • दयानन्द – द्यानंद
  • कवीन्द्र – कवींद्र
  • सम्पदाय – संप्रदाय
  • सम्भावित – संभावित
  • पीताम्बर – पीतांबर
  • परमानन्द – परमानंद्
  • मन्दाकिनी – मंदाकिनी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुनासिकता के अशुद्ध प्रयोग संबंधी कुछ शुद्ध उदाहरण –

अशुद्ध – शुद्ध

  • आंगन – आँगन
  • उंगली – उँगली
  • कांटा – काँटा
  • पांव – पाँव
  • चांद – चाँद
  • गांव – गाँव
  • बहुएं – बहुएँ
  • अशुद्ध – शुद्ध
  • खांसी – खाँसी
  • टांक – टाँक
  • फंसा – फँसा
  • संभल – सँभल
  • सांप – साँप
  • नदियां – नदियाँ

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

आगत ध्वनियाँ :

अर्धचंद्राकार –

आजकल अंग्रेज़ी भाषा के प्रभाव से हिंदी में ‘आ’ आगत ध्वनि का प्रयोग किया जाने लगा है। जो ‘आ’ और ‘ओ’ के बीच की ध्वनि है। जैसे –

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 1

यदि हिंदी में ‘ऑ’ आगत ध्वनि का प्रयोग न किया जाए तब शब्दों की अभिव्यक्ति में दोष उत्पन्न होने की पूरी संभावना हो सकती है। जैसे –

  • हाल – हालचाल
  • बाल – शरीर के बाल
  • काल – समय
  • काफ़ी – पर्याप्त
  • डाल – डालना
  • हॉल – एक बड़ा कमरा
  • बॉल – गेंद
  • कॉल – बुलाना
  • कॉफ़ी – एक पेय
  • डॉल – गुड़िया

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

JAC Class 9 Hindi सवैये Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर :
ब्रजभूमि के प्रति कवि का अगाध प्रेम है। वह हर जन्म में ब्रजक्षेत्र में ही रहना चाहता है। वह इस जन्म में तो ब्रजभूमि से जुड़ा ही हुआ है और चाहता है कि उसे अगले जन्मों में चाहे कोई भी जीवन मिले वह बार-बार ब्रज में ही आए। यदि वह मनुष्य का जीवन प्राप्त करे तो वह ब्रजक्षेत्र के गोकुल गाँव के ग्वालों में रहे। यदि वह पशु की योनि प्राप्त करते तो नंद बाबा की गऊओं के साथ मिलकर चरनेवाली गाय बने। यदि वह निर्जीव पत्थर भी बने तो उस गोवर्धन पर्वत पर ही स्थान पाए जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को भंग करने के लिए उठा लिया था। यदि वह पक्षी के रूप में जन्म ले तो वह यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर ही बसेरा करे।

प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर :
कवि ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है ताकि वह श्रीकृष्ण की प्रिय भूमि और लीला – स्थली के प्रति अपने हृदय की अनन्यता को प्रकट कर सके। उसे ब्रज के कण-कण में श्रीकृष्ण समाए हुए प्रतीत होते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर :
लकड़ी के एक डंडे को हाथ में धारण कर और शरीर पर काला कंबल ओढ़कर ग्वाले श्रीकृष्ण के साथ गौएँ चराने जाया करते थे। कवि के हृदय में उस ‘लकुटी’ और ‘कामरिया’ के प्रति अनन्य समर्पण भाव है जिस कारण वह उन पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।

प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सखी ने गोपी से श्रीकृष्ण जैसी वेशभूषा और रूप धारण करने का आग्रह किया है। सिर पर मोर पंख, गले में गुंज माला, तन पर पीतांबर और हाथ में लाठी लेकर ग्वालों के साथ घूमने के लिए कहा है। ऐसा करके वे श्रीकृष्ण की स्मृतियों को ताजा बनाए रखना चाहती हैं।

प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर :
रसखान के हृदय में श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अगाध प्रेम है। उसे ब्रजक्षेत्र के कण-कण में श्रीकृष्ण की छवि झलकती हुई दिखाई देती है। वह सदा उस छवि को अपनी आँखों के सामने ही पाना चाहता है। मानसिक छवियाँ ऐसा अहसास कराती हैं मानो वास्तविकता ही सामने विद्यमान हो। इसलिए कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने-आप को क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी आकर्षक मुसकान के अचूक प्रभाव से स्वयं को नियंत्रित रखने में विवश पाती हैं।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा सुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर :
(क) रसखान ब्रजक्षेत्र की काँटोंभरी करील की झाड़ियों को सुंदर महलों से श्रेष्ठ मानते हैं और उन्हें ही पाना चाहते हैं ताकि श्रीकृष्ण के क्षेत्र के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को प्रकट कर सकें।
(ख) गोपियाँ श्रीकृष्ण के मुख की मंद-मंद मुसकान पर इतनी मुग्ध हो चुकी हैं कि वे अपने मन की अवस्था को नियंत्रण में रख ही नहीं सकतीं। उन्हें प्रतीत होता है कि उनकी मुसकान उनसे सँभाली नहीं जाएगी।

प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर :
गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के प्रति सौत भावना है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीकृष्ण उनकी अपेक्षा बाँसुरी को अधिक प्रेम करते हैं इसलिए वह सदा उनके होंठों पर टिकी रहती है। गोपियाँ श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को अपनाना चाहती हैं पर अपनी सौत रूपी बाँसुरी को होंठों पर नहीं रखना चाहतीं। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली की सुंदर योजना की गई है। गोपियों का हठ-भाव अति आकर्षक है। प्रसाद गुण तथा अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।

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प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका के सहायता से विद्यार्थी इन्हें स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता –

सूरदास द्वारा रचिंत कृष्ण के रूप-सौदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर :
छात्र इसे स्वयं करें।

यह भी जानें –

सवैया छंद – यह एक वर्णिक छंद है जिसमें 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ब्रजभाषा का बहुप्रचलित छंद रहा है।
आठ सिद्धियाँ – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व – ये आठ अलौकिक शक्तियाँ आठ सिद्धियाँ कहलाती हैं।
नव (नौ) निधियाँ – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व- ये कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं।

JAC Class 9 Hindi सवैये Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसखान के काव्य की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
रसखान की कविता का लक्ष्य श्रीकृष्ण एवं गोपियों की प्रेम-लीलाओं का वर्णन करना रहा है। यत्र-तत्र उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप का भी मनोहारी चित्रण किया है –
धूर भरे अति सोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेल खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी।
रसखान ने श्रीकृष्ण तथा ब्रज के प्रति अपनी अगाध निष्ठा का भी परिचय दिया है –
मानुस हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

प्रश्न 2.
रसखान की काव्य- भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
रसखान की भाषा ब्रजभाषा है। ब्रजभाषा अपनी पूरी मधुरता के साथ इनके काव्य में प्रयुक्त हुई है। अलंकारों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा को सजीव बना दिया है। रसखान जाति से मुसलमान होते हुए भी हिंदी के परम अनुरागी थे। उनके हिंदी प्रेम एवं सफल काव्य पर मुग्ध होकर ठीक ही कहा गया है, “रसखान की भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सौंदर्य की त्रिवेणी का प्रवाह सतत बना रहा और उनकी भाषा का मधुर, सरल, सरस और स्वाभाविक प्रकार पाठकों को अपने साथ बहाने में सफल रहा।’

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प्रश्न 3.
कवि मनुष्य के रूप में कहाँ जन्म लेना चाहता है और क्यों ?
उत्तर :
कवि श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने श्रीकृष्ण और उनकी भूमि के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि वे अगले जन्म मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहना चाहते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ रहे थे और ग्वालों को उनकी निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

प्रश्न 4.
कवि तीनों लोकों का राज्य क्यों त्याग देने को तैयार है ?
उत्तर :
कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और कंबल के बदले में त्याग देने को तैयार है जो ब्रज क्षेत्र के ग्वाले गऊओं को चराते समय श्रीकृष्ण धारण किया करते थे। वह ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वह उन्हें परम सुख की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण व ब्रजक्षेत्र से जोड़े रखता है।

प्रश्न 5.
गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वांग भरने को तैयार हो जाती है। गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से अपना श्रृंगार करना चाहती है। वह श्रीकृष्ण का मोर पंख का मुकुट अपने सिर पर धारण करना चाहती है और गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह श्रीकृष्ण की तरह पीले वस्त्र पहनकर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।

प्रश्न 6.
गोपी अपने होंठों पर मुरली क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर :
गोपी अपने होंठों की श्रृंगार करते समय श्रीकृष्ण की मुरली अपने होंठों पर इसलिए नहीं रखना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है। मुरली सदा श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहती थी। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपना शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती है।

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प्रश्न 7.
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा बजाई बाँसुरी की तान को क्यों सुनना नहीं चाहती ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा बजाई बाँसुरी की तान इसलिए नहीं सुनना चाहती क्योंकि उसकी बाँसुरी की तान में जादू-सा प्रभाव है। वह इसे सुनकर अपनी सुध-बुध खोकर श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे चल देती है परंतु आज वह अपने पर नियंत्रण रखना चाहती है। इसलिए कानों में अँगुली डालकर बैठी है, जिससे उसे बाँसुरी की तान न सुनाई दे।

प्रश्न 8.
गोपी स्वयं को किस कारण विवश अनुभव करती है ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। जिसके कारण गोपियाँ अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती हैं और विवश होकर श्रीकृष्ण के पास चली जाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पाती हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के भक्ति – प्रेम में डूबी गोपी की विवशता का वर्णन किया है कि वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबकर अपनी सुध-बुध खो बैठती है।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
उत्तर :
कवि रसखान ने श्रीकृष्ण और ब्रजक्षेत्र के प्रति अपने प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए सभी प्रकार का सुख त्याग देने की बात की है। वह ब्रज क्षेत्र में उगी करील की कँटीली झाड़ियों पर करोड़ों सोने के महल न्योछावर करने को तैयार हैं। उन्हें केवल ब्रज क्षेत्र में किसी भी रूप में स्थान चाहिए। इसमें ब्रजभाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 10.
कवि रसखान की भक्ति-पद्धति का परिचय दीजिए।
उत्तर :
रसखान की भक्ति अनेक पद्धतियों और सिद्धांतों का संयोग है। इन्होंने किसी भी बात की परवाह न करते हुए कृष्ण-भक्ति में स्वयं को डुबो दिया। इन्हें अपने भक्ति – क्षेत्र में जो अच्छा लगा, इन्होंने उसे अपना लिया। रसखान पर सगुण और निर्गुण दोनों का प्रभाव है। उन्होंने संतों के समान अपने आराध्य के गुणों का बखान किया है। इन्होंने दैन्यभाव को प्रकट किया है। इनकी भक्ति में समर्पण – भाव है। इनके काव्य में अनुभूति की गहनता है।

प्रश्न 11.
कवि रसखान किस चीज को पाने के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते थे ?
उत्तर :
कवि रसखान हर अवस्था में ब्रज क्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते थे। उनके लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है। वे ब्रज- क्षेत्र में उसी करील की झाड़ियों पर करोड़ों महलों को न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटते। ब्रज क्षेत्र में रहनेवाले सूरज को पाने के लिए वे तीनों लोकों का राज्य भी त्यागने को तत्पर रहते हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं कालिंदी कूल कदंब की डारन ॥

शब्दार्थ : मानुष – मनुष्य। हौं – मैं। बसौं – रहना, बसना। ग्वारन – ग्वाले। कहा बस $-$ बस में न होना। नित $-$ सदा, नित्य। धेनु – गाय। मँझारन – बीच में। पाहन – पत्थर, चट्टान। गिरि – पर्वत। पुरंदर – इंद्र। खग – पक्षी। कालिंदी – यमुना नदी। कूल – किनारा। डारन – डालियाँ।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ सवैये से लिया गया है जिसके रचयिता श्रीकृष्ण भक्त रसखान हैं। कवि कामना करता है कि अगले जन्म में वह चाहे किसी रूप में धरती पर वापिस आए पर वह ब्रज क्षेत्र में ही स्थान प्राप्त करे।

व्याख्या : रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य का जीवन प्राप्त करूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहूँ। यदि मैं पशु बनूँ और मेरी इच्छा पूर्ण हो तो मैं नंद बाबा की गऊओं में गाय बनकर सदा चरूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो उसी गोवर्धन पर्वत पर स्थान प्राप्त करूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए छत्र के समान धारण कर लिया था। यदि मैं पक्षी बनूँ तो यमुना के किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूँ। भाव है कि कवि किसी भी अवस्था में ब्रजक्षेत्र को त्यागना नहीं चाहता, वह वहीं रहना चाहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि मनुष्य रूप में कहाँ और क्यों जीवन पाना चाहता है ?
(ख) निर्जीव रूप में भी कवि जगह क्यों पाना चाहता है ?
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बनकर क्यों रहना चाहता है ?
(घ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि अगले जन्म में कौन-सा पशु बनना चाहता है ?
(च) कवि गोकुल में किनके साथ रहना चाहता है ?
(छ) कवि किसके पशु चराने की कामना करता है ?
उत्तर :
(क) कवि अगले जन्म में मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहना चाहता है क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ रहे थे और ग्वालों को उनकी निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
(ख) कवि पत्थर बनकर निर्जीव रूप में गोवर्धन पर्वत पर जगह पाना चाहता है जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी अंगुली पर उठा लिया था।
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बनकर रहना चाहता है ताकि वह उन स्थलों को देख सके जहाँ श्रीकृष्ण विहार करते थे।
(घ) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण की लीला – स्थली पर ही रहना चाहता है जिससे उसके प्रति अपनी अनन्यता प्रकट कर सके। कवि ने ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली का सहज प्रयोग किया है। सवैया छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस विद्यमान है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है।
(ङ) कवि अगले जन्म में नंद बाबा की गायों में एक गाय बनना चाहता है जिससे वह श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त कर सके।
(च) कवि गोकुल में ग्वालों के साथ रहना चाहता है। वह श्रीकृष्ण के बाल सखा के रूप में ब्रजभूमि पर निवास करना चाहता है।
(छ) कवि नंद बाबा के पशु चराने की कामना करता है।

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2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ-चराइ बिसारौं,
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

शब्दार्थ : या – इस। लकुटी – लकड़ी, लाठी। कामरिया – कंबल। तिहूँ – तीनों । तजि – छोड़; त्याग। आठहुँ सिद्धि – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व और वाशित्व नामक आठ अलौकिक शक्तियाँ। नवौ निधि – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व नामक कुबेर की नौ निधियाँ। गाइ – गाय। बिसारौं – भुला दूँ। तड़ाग – तालाब। निहारौं – देख़ँ। कोटिक – करोड़ों। कलधौत – सोने-चाँदी के महल। करील – कँटीली झाड़ियाँ। वारौौ – न्योछावर करूँ।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ ‘सवैये’ से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रज क्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।

व्याख्या : रसखान कहते हैं कि मैं ब्रज क्षेत्र में श्रीकृष्ण के ग्वालों की गऊओं को चराने के लिए प्रयुक्त इस लाठी और उनके द्वारा ओढ़े जाने वाले काले कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य त्याग दूँ। मैं नंद बाबा की गऊओं को चराने के बदले आठों सिद्धियाँ और नौ निधियों के सुख भी भुला दूँ। मैं ब्रज क्षेत्र के वनों, बागों और तालाबों को अपनी आँखों से कब निहार पाऊँगा ? मैं ब्रज क्षेत्र में उगी करील की कँटीली झाड़ियों पर करोड़ों महल को न्योछावर कर दूँ। भाव है कि रसखान ब्रज क्षेत्र के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते हैं। उनके लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि तीनों लोकों का राज्य किसके बदले त्याग देने को तैयार है ?
(ख) कवि अपनी आँखों से क्या निहारना चाहता है ?
(ग) ब्रज की कँटीली करील झाड़ियों पर कवि क्या न्योछावर कर देना चाहता है ?
(घ) प्रस्तुत सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने किन आठ सिद्धियों की बात की है ?
(च) नौ निधियों के नाम लिखिए।
(छ) कवि ने किसके प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया है ?
उत्तर :
(क) कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और काले कंबल के बदले त्याग देने को तैयार है जो श्रीकृष्ण ब्रज के ग्वाले की गऊओं को चराते समय धारण किया करते थे।
(ख) कवि अपनी आँखों से ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है।
(ग) ब्रज-क्षेत्र की कँटीली झाड़ियाँ भी कवि के लिए इतनी मूल्यवान हैं कि वह उनके बदले करोड़ों महलों को उन पर न्योछावर कर देना चाहता है।
(घ) रसखान ने सवैया में श्रीकृष्ण और ब्रज क्षेत्र के प्रति अपने मन के प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए अपने सब प्रकार के सुख त्याग देने और उस आनंद को पाने की इच्छा प्रकट की है। ब्रजभाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द-शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।
(ङ) कवि ने जिन आठ सिद्धियों की बात की है, वे हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व, वशित्वा।
(च) नौ निधियों के नाम हैं- महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, खर्व।
(छ) कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रजक्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।

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3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहाँ गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सो तेरे कहें सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

शब्दार्थ : मोरपखा – मोरपंख। गुंज – घुंघची। गरें – गले। पहिरौंगी – पहनूँगी। पितंबर – पीत (पीला) वस्त्र। लकुटी – लाठी। ग्वारनि – ग्वालिन। स्वाँग – रूप धरना, नकल करना। अधरा – होंठ।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया भक्तिकाल के कवि रसखान द्वारा रचित है। इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निस्स्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।

गोपियाँ श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वाँग भरने को तैयार हो जाती हैं। रसखान जी वर्णन करते हैं कि गोपिका कहती हैं- मैं श्रीकृष्ण के सिर पर रखा हुआ मोरपंख अपने सिर पर धारण कर लूँगी। श्रीकृष्ण के गले में शोभा पानेवाली गुंजों की माला को अपने गले में पहन लूँगी। पीत वस्त्र ओढ़कर तथा श्रीकृष्ण की तरह लाठी हाथ में लेकर, गायों के पीछे ग्वालों के साथ-साथ घूमा करूँगी। रसखान जी कहते हैं कि गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वे श्रीकृष्ण मेरे मन को प्रिय हैं तुम्हारी कसम ! मैं उनके लिए सब प्रकार के रूप धर लूँगी। परंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहनेवाली इस मुरली को मैं अपने होंठों पर कभी भी नहीं रखूँगी। यहाँ गोपी की सौतिया डाह चित्रित हुई है जो श्रीकृष्ण के लिए सब कुछ कर सकती है पर मुरली को अपना दुश्मन मानते हुए उसे अपने होंठों पर नहीं लगा सकती।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
(ख) गोपी कैसा स्वांग धारण करना चाहती है ?
(ग) गोपी मुरली को अपने होंठों पर क्यों नहीं रखना चाहती है ?
(घ) इस पद का भाव तथा काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ङ) किसके प्रेम को किसके प्रति प्रकट किया गया है ?
(च) अपने होंठों पर बाँसुरी कौन, क्यों नहीं रखना चाहता है ?
(छ) मुरलीधर कौन है ?
(ज) ‘मोरपखा’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से शृंगार करना चाहती है। वह अपने सिर पर उनका मोरपंख का मुकुट धारण करना चाहती है तथा गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह पीले वस्त्र पहनकर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।
(ख) वह श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उनके कहे अनुसार सब प्रकार का स्वांग धारण करने के लिए तैयार है।
(ग) श्रीकृष्ण के होंठों से लगे रहनेवाली मुरली को गोपी अपने होंठों से इसलिए नहीं लगाना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है जो सदा श्रीकृष्ण के होंठों से लगी रहती है। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपनी शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती।
(घ) गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। गोपियों का श्रीकृष्ण का स्वांग भरना पर मुरली को होंठों से न लगाना उनकी सौतिया डाह को चित्रित करता है। अनुप्रास और यमक अलंकार की छटा दर्शनीय है। ब्रजभाषा है। सवैया छंद है। माधुर्य गुण है। संगीतात्मकता विद्यमान है। श्रृंगार रस है। भक्ति रस का सुंदर परिपाक है। भाषा सरस तथा प्रवाहमयी है।
(ङ) इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निःस्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।

(च) गोपी अपने होंठों पर बाँसुरी नहीं रखना चाहती। वह बाँसुरी को अपनी सौत मानती है। उसे लगता है कि श्रीकृष्ण बाँसुरी को अधिक प्रेम करते हैं और गोपी के प्रति उनके हृदय में प्रेम का भाव नहीं है। गोपी को उन्होंने बाँसुरी के कारण भुला-सा दिया है।
(छ) मुरलीधर श्रीकृष्ण हैं जो यमुना किनारे कदंब की छाया में मग्न होकर मुरली बजाते थे।
(ज) मोरपखा मोर के पंखों से बना मुकुट है जिसे श्रीकृष्ण अपने सिर पर धारण करते हैं।

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4. काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥

शब्दार्थ : काननि – कानों में। मुरली – बाँसुरी। मंद – धीमी। अटा – अटारी, अट्टालिका, कोठा। टेरि – आवाज़ लगाना, पुकारना। सिगरे – सारे। वा – उस।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ ‘सवैये’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता कृष्ण-भक्त कवि रसखान हैं। श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। गोपियाँ स्वयं को इनके सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।

व्याख्या : रसखान कहते हैं कि कोई गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की मोहक तान के जादुई प्रभाव को प्रकट करते हुए कहती है कि हे सखी! जब श्रीकृष्ण बाँसुरी की मधुर धुन को धीमे-धीमे स्वर में बजाएँगे तब मैं अपने कानों को अँगुली से बंद कर लूँगी ताकि बाँसुरी की मधुर तान मुझ पर अपना जादुई प्रभाव न डाल सके। फिर चाहे वह रस की खान रूपी कृष्ण अट्टालिका पर चढ़कर मोहनी तान बजाते रहे तो भी कोई बात नहीं, वह चाहे गोधन नामक लोकगीत गाते रहें पर मुझ पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हे ब्रज के सभी लोगो ! मैं पुकार – पुकारकर कह रही हूँ कि तब कोई हमें कितना भी समझाए पर मैं समझ नहीं पाऊँगी, मैं अपने आपको सँभाल नहीं पाऊँगी। हे री माँ, उनके मुख की मुसकान हमसे नहीं सँभाली जाती; नहीं सँभाली जाती; नहीं सँभाली जाती। भाव है कि गोपियाँ तो मानो श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान पर अपने-आप को खो चुकी हैं। उनका हृदय अब उनके बस में नहीं है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) किसका प्रभाव गोपी पर अचूक है ?
(ख) गोपी श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई बाँसुरी की तान को क्यों नहीं सुनना चाहती ?
(ग) गोपी को किनकी कोई परवाह नहीं ?
(घ) गोपी अपने-आपको किस कारण विवश अनुभव करती है ?
(ङ) कृष्ण अपनी किन विशेषताओं के कारण गोपियों को प्रिय लगते हैं ?
(च) ‘गोधन’ से क्या तात्पर्य है ?
(छ) ‘माई री ‘ का प्रयोग क्यों किया गया है ?
(ज) ‘न जैहै, न जैहै’ की आवृत्ति क्या प्रदर्शित करती है ?
(झ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। गोपियाँ स्वयं को इनके सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।
(ख) गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से बचने के लिए बाँसुरी की धुन नहीं सुनना चाहती।
(ग) गोपी को कोई परवाह नहीं है कि कोई इसके बारे में क्या कहेगा।
(घ) श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान और उनकी बाँसुरी की तान के कारण गोपी अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती और वह स्वयं को विवश अनुभव करती है।
(ङ) कृष्ण अपनी निम्नलिखित विशेषताओं के कारण गोपियों को प्रिय लगते हैं –
(क) मोहक रूप छटा (ख) बाँसुरी वादन (ग) लोक-गीतों का मधुर स्वर में गायन (घ) मधुर मुसकान।
(च) ‘गोधन’ एक लोकगीत है जिसे ग्वाले अपनी गायों को चराते समय गाते हैं।
(छ) ‘माई री ‘ का प्रयोग सामान्य रूप से आश्चर्य, दुःख, पीड़ा आदि भावों को अभिव्यक्त करने के लिए किया गया है। लड़कियाँ और औरतें प्रायः इस उद्गारात्मक शब्द का प्रयोग करती हैं।
(ज) ‘न जैहै, न जैहै’ की आवृत्ति गोपी के द्वारा की जानेवाली ज़िद और उन्माद की स्थिति को प्रदर्शित करती है।
(झ) श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई जानेवाली बाँसुरी की मोहक तान और उनके मुख पर आई मुसकान ने गोपियों को विवश कर दिया है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनका हृदय अब उनके बस में नहीं है। ब्रजभाषा की कोमल-कांत शब्दावली ने कवि के कथन को सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने सरलता से भावों को प्रकट किया है। चाक्षुक बिंब योजना की गई है। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। सवैया छंद है।

सवैये Summary in Hindi

कवि-परिचय :

रसखान कृष्ण-भक्ति काव्य के सुप्रसिद्ध कवि हैं जिनका जन्म सन् 1548 ई० में राजवंश से संबंधित दिल्ली के एक समृद्ध पठान परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण भक्तजन इन्हें ‘रसखान’ कहने लगे थे। इनकी भक्ति भावना के कारण गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था और तब ये ब्रजभूमि में जा बसे थे। ये जीवनभर वहीं रहे थे और सन् 1628 ई० के लगभग इनका देहावसान हो गया था। रसखान रीतिकालीन कवि थे। ये प्रेमी स्वभाव के थे। वैष्णवों के सत्संग और उपदेशों के कारण इनका प्रेम लौकिक से अलौकिक हो गया था। ये श्रीकृष्ण और उनकी लीलाभूमि ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता पर मुग्ध थे। ॐ रसखान के द्वारा दो रचनाएँ प्राप्त हुई हैं – ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेम वाटिका’। ‘रसखान रचनावली’ के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है।

रसखान की कविता में भक्ति की प्रधानता है। इन्हें श्रीकृष्ण से संबंधित प्रत्येक वस्तु प्रिय थी। उनका रूप-सौंदर्य, वेशभूषा, बाँसुरी और बाल क्रीड़ाएँ इनकी कविता का आधार हैं। ये ब्रजक्षेत्र, यमुना तट, वन-बाग, पशु-पक्षी, नदी-पर्वत आदि के प्रति गहरे प्रेम का भाव रखते थे। इन्हें श्रीकृष्ण के बिना संसार में कुछ भी प्रिय नहीं था। इनके प्रेम में गहनता और तन्मयता की अधिकता है जिस कारण वे प्रत्येक पाठक को गहरा प्रभावित करते हैं। इनकी भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सुंदरता का सहज समन्वित रूप दिखाई देता है। इनके प्रेम में निश्छल प्रेम और करुण हृदय के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप के सुंदर – सहज सवैये लिखे हैं।

रसखान की भाषा उनके भावों के समान ही अति कोमल है जिसमें ज़रा सा भी बनावटीपन नहीं है। ये अपनी मधुर, सरस और प्रवाहमयी भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके काव्य में शब्द इतने सरल और मोहक रूप में प्रयुक्त किए गए हैं कि वे झरने के प्रवाह के समान निरंतर पाठक को रस में सराबोर आगे बढ़ जाते हैं। उन्होंने अलंकारों का अनावश्यक बोझ अपनी कविता पर नहीं डाला। मुहावरों का स्वाभाविक ॐ प्रयोग विशेष सुंदरता प्रदान करने में समर्थ सिद्ध हुआ है। इन्होंने कविता की रचना के लिए परंपरागत पद शैलियों का अनुसरण नहीं किया। मुक्तक छंद शैली का प्रयोग इन्हें प्रिय है। कोमल-कांत ब्रजभाषा में रचित रसखान की कविता स्वाभाविकता के गुण से परिपूर्ण है। इन्हें दोहा, कवित्त और सवैया छंदों पर पूरा अधिकार है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

सवैयों का सार :

कृष्ण भक्त रसखान श्रीकृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यदि मैं मनुष्य रूप में जन्म लूँ तो मैं ब्रजक्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच जन्म लूँ। यदि मैं पशु रूप में पैदा होऊँ तो मैं नंद बाबा की गऊओं के झुंड में चरनेवाली गाय बनूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत पर जगह पाऊँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए उठाया था। यदि मैं पक्षी का जीवन प्राप्त करूँ तो यमुना किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूँ।

श्रीकृष्ण के काले कंबल और गऊओं को चराने के लिए प्रयुक्त लाठी के बदले मैं तीनों लोकों का राज्य त्याग दूँ। आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ, नंद बाबा की गऊओं को चराने में भुला दूँ। मैं अपनी आँखों से ब्रज के वन और बाग निहारता रहूँ और करोड़ों महलों को ब्रज की काँटेदार झाड़ियों पर न्योछावर कर दूँ।

श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में गोपियाँ स्वयं उनकी वेशभूषा में रहने की इच्छा करती हैं। सिर पर मोरपंख, गले में गुंज माल और पीले वस्त्र पहन वे ग्वालों के साथ घूमने की इच्छा करती हैं। वे वही सब कुछ करना चाहती हैं जो श्रीकृष्ण को प्रिय है पर वे बाँसुरी को अपने होंठों पर रखना पसंद नहीं करतीं। गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान के अचूक प्रभाव से स्वयं को विवश मानती हैं और स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

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JAC Class 9 Hindi दुःख का अधिकार Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है ?
उत्तर :
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें पता चलता है कि उस व्यक्ति का समाज में क्या स्तर है और वह किस वर्ग से संबंधित है।

प्रश्न 2.
खरबूजे बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था ?
उत्तर :
खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए नहीं खरीद रहा था, क्योंकि उसके जवान बेटे को मरे हुए एक ही दिन हुआ था और वह सूतक में ही खरबूजे बेचने आ गई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 3.
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा ?
उत्तर :
उस स्त्री को रोते देखकर लेखक के मन में व्यथा-सी उठी, परंतु अभिजात वर्ग के होने के कारण वह उसके पास बैठकर उसके रोने का कारण न जान सका।

प्रश्न 4.
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर :
उस स्त्री का लड़का सुबह मुँह – अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। तभी गीली मेड़ की ठंडक में विश्राम करते हुए साँप पर उसका पैर पड़ गया। साँप ने उसे डँस लिया, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता ?
उत्तर :
बुढ़िया का बेटा मर गया था, जिसके कारण लोगों को लगा कि अब बुढ़िया उधार नहीं चुका सकेगी। इसलिए कोई भी बुढ़िया को उधार नहीं देता।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है ?
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है। पोशाक को देखकर पता चलता है कि अमुक व्यक्ति उच्च वर्ग का है अथवा निम्न वर्ग का। पोशाक मनुष्य का समाज में स्तर निर्धारित करती है। पोशाक से ही मनुष्य की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है।

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प्रश्न 2.
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है ?
उत्तर :
पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है, जब हम अपने स्तर से नीचे के लोगों की भावनाओं को समझना चाहते हैं। उस समय हमें लगता है कि हम समाज के भय से उनके साथ बैठकर उनका दुख-दर्द नहीं जान सकते। इस प्रकार पोशाक दो विभिन्न वर्गों में व्यवधान बनकर खड़ी हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया ?
उत्तर :
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया, क्योंकि उसकी पोशाक उसे फुटपाथ पर रोती हुई निम्न वर्ग की स्त्री के पास बैठने से रोक रही थी। लेखक के मन में उस स्त्री को रोते देखकर दुख तो हो रहा था, परंतु अपनी उच्च वर्ग की पोशाक के कारण वह फुटपाथ पर बैठकर उस स्त्री के रोने का कारण नहीं पूछ पा रहा था।

प्रश्न 4.
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था ?
उत्तर :
भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में तरकारी आदि की खेती करके परिवार का पालन-पोषण करता था। इन दिनों उसने खरबूज़े बोये हुए थे, जिन्हें टोकरी में डालकर वह स्वयं अथवा उसकी माँ बाज़ार में बेचा करते थे

प्रश्न 5.
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी ?
उत्तर :
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने इसलिए चल पड़ी क्योंकि उसके पास जो जमा-पूँजी तथा गहने आदि थे, वह सब उसके मृत लड़के के क्रिया-कर्म में खर्च हो गए थे। उसके पोता-पोती भूख से तड़प रहे थे तथा बहू बुखार से तप रही थी। उसे कहीं से उधार मिलने की आशा नहीं थी। खाने-पीने और बहू के लिए दवा का प्रबंध करने के लिए पैसों की ज़रूरत थी, जिन्हें वह खरबूज़े बेचकर प्राप्त कर सकती थी।

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प्रश्न 6.
बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई ?
उत्तर :
रोती हुई बुढ़िया को देखकर लेखक को अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी संभ्रांत महिला की याद आ गई, जो अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी तथा उसे पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर हरदम उसकी सेवा के लिए उसके सिरहाने बैठे रहते थे, जबकि इस बुढ़िया को अगले दिन ही बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ा। लेखक इस तुलना के फलस्वरूप अत्यंत व्यथित हो गया।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री को घृणा की दृष्टि से देखकर कह रहे थे कि जवान लड़के को मरे पूरा दिन भी नहीं हुआ और यह बेशर्म दुकान लगाकर बैठी है। दूसरा व्यक्ति उस स्त्री की नीयत खोटी बता रहा था, तो तीसरा उसे संबंधों से बढ़कर रोटी को महत्व देने वाली बता रहा था। पंसारी लाला उसे दूसरों का धर्म – ईमान खराब करने वाली कह रहा था, जो सूतक का ध्यान रखे बिना ही खरबूज़े बेचने बैठ गई है। इस तरह सभी अपने-अपने ढंग से उसे प्रताड़ित कर रहे थे।

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प्रश्न 2.
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला ?
उत्तर :
आस-पास की दुकानों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि इस बुढ़िया का तेईस वर्ष का जवान बेटा था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती भी हैं। उसका पुत्र शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में फल तरकारियाँ आदि बोकर परिवार का पालन-पोषण करता था। बाज़ार में फुटपाथ पर बैठकर वह अथवा उसकी माँ खरबूजे बेचा करते थे। परसों वह सुबह मुँह-अँधेरे बेलों से पके खरबूजे चुन रहा था कि उसका पैर मेड़ पर ठंडक में विश्राम कर रहे साँप पर पड़ गया। साँप ने उसे डॅस लिया था। बाद में ओझा से इलाज करवाने व नाग देवता की पूजा करने पर भी वह मर गया।

प्रश्न 3.
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर :
वृद्धा के बेटे को साँप ने काट लिया था, जिसके कारण वह अचेत हो गया। लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने ओझा को बुलाया। उसने झाड़-फूँक करने के बाद नाग देवता की पूजा भी की। पूजा का प्रबंध करने के लिए घर में जो कुछ आटा और अनाज था, वह उसने दक्षिणा में दे दिया। ओझा प्रयत्न करता रहा, किंतु वह अपने प्रयास में सफल न हुआ। अंत में सर्प के विष से उसके लड़के का सारा शरीर काला पड़ गया और वह चल बसा। वृद्धा के सभी प्रयास विफल हो गए थे।

प्रश्न 4.
लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया ?
उत्तर :
बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी संभ्रांत महिला के बारे में सोचने लगा। वह माता अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ नहीं सकी थी। उसे बार-बार मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में हरदम उसके सिरहाने बैठे रहते थे। मूर्छा न आने की अवस्था में उसकी आँखों से आँसू बहते रहते थे। लेखक को लगा कि यह बुढ़िया भी इसी प्रकार से पुत्र की मृत्यु से दुखी होकर रो रही है, परंतु आर्थिक मजबूरी के कारण पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन खरबूजे बेचने आ बैठी है।

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प्रश्न 5.
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ पूरी तरह से उचित है। लेखक ने बताया है कि दुख सभी को दुखी करता है, चाहे वह अमीर हो या गरीब। लेखक के पंड़ोस की संभ्रांत महिला पुत्र-शोक से दुखी होकर अढ़ाई महीने तक पलंग से ही उठ नहीं पाई थी। वह रोती रहती थी या उसे मूर्छा पड़ जाती थी। उसका इलाज करने के लिए दो-दो डॉक्टर थे। सारा शहर उसके पुत्र की मृत्यु से दुखी था। इसके विपरीत गरीब बुढ़िया अपने पुत्र की मृत्यु के अगले दिन ही बाजार में खरबूज़े बेचने के लिए मजबूर थी और चाह कर भी उसके मरने का मातम नहीं मना सकती थी, क्योंकि उसे अपने भूखे पोते-पोती का पेट भरना था और बीमार बहू के लिए दवा लानी थी। इस प्रकार वह इतनी अभागी थी कि उसे मृत पुत्र का दुख मनाने का भी अधिकार नहीं थी।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिरजाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर :
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि मनुष्य की पहचान उसकी पोशाक से होती है। पहनी हुई पोशाक से ही पता चलता है कि व्यक्ति उच्च श्रेणी का है अथवा नहीं। पोशाक ही उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का ज्ञान करवाती है। इसलिए जिस प्रकार कटी हुई पतंग एकदम से ज़मीन पर नहीं गिरती, उसी प्रकार से उच्च वर्ग की पोशाक पहने वाला व्यक्ति भी सरलता से निम्न वर्ग के व्यक्ति के पास बैठने का प्रयास नहीं करता। उसकी अभिजात्य वर्ग की पोशाक उसे फटेहाल व्यक्ति के पास बैठने से रोकती है। उसे यही चिंता रहती है कि फटेहाल व्यक्ति के पास उसे बैठा देखकर दुनिया क्या कहेगी ?

प्रश्न 2.
इनके लिए बेटा-बेटी, खसम – लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में लेखक उस व्यक्ति की विचारधारा को व्यक्त करता है, जो पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन खरबूज़े बेचने आई बुढ़िया के संबंध में यह वाक्य कहता है। उस व्यक्ति के विचार में इन नीच लोगों को किसी के मरने का दुख नहीं होता। ये किसी भी संबंध को नहीं मानते। इनके लिए पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी तथा धर्म – ईमान का कोई महत्व नहीं होता। ये लोग केवल रोटी के लिए ही जीते हैं। इनका सबकुछ रोटी का टुकड़ा ही है। इसलिए यह बुढ़िया बेटे के मरने के एक दिन बाद ही खरबूज़े बेचने आ गई है।

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प्रश्न 3.
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक उन अभावग्रस्त अभागे लोगों की दशा का वर्णन कर रहा है, जिनके पास अपने किसी सगे व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाने का समय भी नहीं है। वे निरंतर अपना पेट भरने की चिंता में लगे रहते हैं। उनकी अभावग्रस्त जिंदगी उन्हें अपने किसी संबंधी के मर जाने पर उसका दुख मनाने का अधिकार भी नहीं देती, जबकि हर किसी को दुखी होने का तो अधिकार है ही।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो –
(i) कड्या, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(i) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(iii) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(iv) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(v) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिला, में, मैं।
ध्यान दो कि झ ञ, ण, न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ आपने ऊपर देखीं इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे-अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में ‘न्, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ्’।
(.) यह चिह्न है अनुस्वार का और (.) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमश: बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है। अनुनासिक का स्वर के साथ।
उत्तर :
विद्यार्थी इसे ध्यान से पढ़ कर याद रखें।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए –
ईमान, बदन, अंदाज़ा, बेचैनी, गम, दर्जा, ज़मीन, जमाना, बरकत।
उत्तर :

  • ईमान – धर्म।
  • बदन – शरीर अंदाज़ा अनुमान।
  • बेचैनी – व्याकुलता।
  • गम – दुख।
  • दर्ज़ा – वर्ग।
  • ज़मीन – धरती।
  • ज़माना – युग।
  • बरकत – लाभ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण: बेटा-बेटी
उत्तर :
खसम – लुगाई, पोता-पोती, झाड़ना-फूँकना, दान-दक्षिणा, छन्नी- ककना, चूनी भूसी, दुअन्नी – चवन्नी।

प्रश्न 4.
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए –
बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
उत्तर :

  1. बंद दरवाज़े खोल देना – कुछ भी करने की आज़ादी। अच्छी पोशाक पहनने वाले को कहीं भी आने-जाने से रोका नहीं जाता, उसके लिए सभी रास्ते खुले होते हैं।
  2. निर्वाह करना – गुज़ारा करना। बुढ़िया और उसके परिवार का निर्वाह खरबूज़े आदि बेचकर होता था।
  3. भूख से बिलबिलाना – भूख के कारण तड़पना घर में खाने-पीने की सामग्री न होने के कारण बुढ़िया के पोते-पोतियाँ भूख से बिलबिला रहे थे।
  4. कोई चारा न होना- कोई उपाय न होना। बुढ़िया के पास इसके अतिरिक्त कोई और चारा नहीं था कि वह बाज़ार में खरबूजे बेचने जाती।
  5. शोक से द्रवित हो जाना – दुख देखकर करुणा से पिघल जाना। लेखक खरबूज़े बेचने वाली बुढ़िया के शोक से द्रवित था। किसी के दुख को देखकर स्वयं भी दुखी होने का भाव इस वाक्यांश से व्यक्त होता है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(i) छन्नी- ककना, अढ़ाई – मास, पास-पड़ोस, दुअन्नी चवन्नी, मुँह-अंधेरे, झाड़ना – फूँकना
(ii) फफक-फफककर, बिलख-बिलखकर, तड़प-तड़पकर, लिपट लिपटकर।
उत्तर :
(i) छन्नी- ककना – राम ने अपनी बेटी की शादी के लिए घर का छन्नी- ककना तक बेच दिया।
अढ़ाई – मास – हमारी वार्षिक परीक्षाएँ अढ़ाई – मास बाद शुरू होनी हैं।
पास-पड़ोस – रीना के पास-पड़ोस में कोई परचून की दुकान नहीं है।
दुअन्नी – चवन्नी – आजकल दुअन्नी – चवन्नी में चाय नहीं मिलती, इसके लिए पाँच रुपए देने पड़ते हैं।
मुँह – अंधेरे- विनोद और शारदा प्रतिदिन सुबह मुँह – अंधेरे ही घूमने जाते हैं।
झाड़ना-फूँकना – गीता डॉक्टर से इलाज करने की बजाय ओझा से झाड़ना – फूँकना करवाने में अधिक विश्वास रखती है।

(ii) फफक-फफककर – अपने पिताजी की मृत्यु का समाचार सुनते ही विशाल फफक-फफककर रोने लगा।
बिलख-बिलखकर – अध्यापक की डाँट पड़ते ही सुमन बिलख-बिलखकर रो पड़ी।
तड़प-तड़पकर – कार से टक्कर लगते ही सुखबीर ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया।
लिपट लिपटकर – साबिरा अपने पति की लाश से लिपट लिपटकर रोने लगी।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(क) 1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
2. भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर :
(क) 1. राजेश विद्यालय से आते ही पेट दर्द से तड़फड़ाने लगा।
2. सलमा के लिए तो बाज़ार से मिठाई लानी ही होगी।
3. चाहे उसका घर-बार ही क्यों न बिक जाए, लेकिन उसे बेटी की शादी तो करनी ही है।
4. माँ-बाप की प्रसन्नता के लिए उसे विवाह करना ही होगा।

(ख) 1. जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा।
2. जो जैसा होता है, वैसा ही करता है।
3. सुरेश जो एक बार यहाँ आया तो फिर नहीं गया।
4. रश्मि जो एक दफे नाराज़ हुई तो फिर खुश न हुई।

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योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए। यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए। पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं ? उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi दुःख का अधिकार Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘दुःख का अधिकार’ कहानी का मूल भाव क्या है ?
उत्तर :
‘दुःख का अधिकार’ कहानी में लेखक ने समाज में फैले अंधविश्वासों, जातिभेद, वर्गभेद आदि पर कटाक्ष किया है। लेखक के अनुसार किसी अपने के मरने का दुख सबको समान रूप से होता है; परंतु उच्च वर्ग जहाँ इस शोक को अपनी सुविधा के अनुसार कई दिनों तक मना सकता है, वहीं निम्न वर्ग के अभागे लोगों के पास अपने पुत्र की मृत्यु तक का शोक मनाने के लिए समय नहीं होता क्योंकि उन्हें पेट की आग रोटी कमाने के लिए विवश कर देती है। इस कहानी में लेखक के पड़ोस की संभ्रांत महिला पुत्र शोक में अढ़ाई महीने तक बिस्तर से नहीं उठ सकी थी, जबकि भगवाना की मृत्यु के एक दिन बाद ही उसकी माँ को परिवार के लिए रोटी जुटाने हेतु खरबूजे बेचने बाज़ार में आना पड़ा।

प्रश्न 2.
पड़ोस की दुकानों पर बैठे अथवा बाज़ार में खड़े लोगों को भगवाना की माँ से घृणा क्यों थी ?
उत्तर :
पड़ोस की दुकानों पर बैठे अथवा बाज़ार में खड़े लोगों को भगवाना की माँ से इसलिए घृणा हो रही थी क्योंकि कल ही उसका पुत्र भगवाना साँप के काटने से मरा था और आज वह बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई थी। उन्हें लगता था कि उसे सूतक के दिनों में घर में रहना चाहिए था। जिन लोगों को उसके पुत्र के मरने का पता नहीं है, वे यदि उससे खरबूज़े खरीदेंगे तो उनका ईमान-धर्म नष्ट हो जाएगा। वे उसे बेहया मानते हैं।

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प्रश्न 3.
परचून की दुकान पर बैठे लाला ने भगवाना की माँ के संबंध में क्या कहा ?
उत्तर :
परचून की दुकान पर बैठे लाला ने पुत्र की मृत्यु के अगले दिन भगवाना की माँ को खरबूज़े बेचते हुए देखकर कहा कि इन लोगों को किसी के मरने – जीने की कोई चिंता नहीं होती है, फिर भी इन्हें दूसरों के धर्म-ईमान का तो ध्यान रखना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है। इस बीच छूत – छात का पूरा ध्यान रखा जाता है, परंतु यह तो यहाँ बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई है। यहाँ हज़ारों लोग आते-जाते हैं। इनमें से किसी को क्या पता कि इसके घर सूतक है। यदि किसी ने इससे खरबूज़े लेकर खा लिए, तो उसका धर्म-ईमान ही नष्ट हो जाएगा। इन लोगों ने तो अँधेर मचा रखा है।

प्रश्न 4.
पोशाकें मनुष्य को कैसे बाँटती हैं और उसके लिए बंद दरवाजे कैसे खोलती हैं ?
उत्तर :
पोशाक मनुष्य के स्तर को प्रकट करती है। यदि कोई मनुष्य अच्छी, महँगी और चमकदार पोशाक पहनता है तो उसे सभ्य, उच्च वर्गीय और अमीर समझा जाता है। जब कोई व्यक्ति साधारण या फटे-पुराने वस्त्र पहनता है, तो उसे गरीब अथवा निम्न वर्ग का माना जाता है। इस तरह पोशाक के आधार पर मनुष्य के स्तर और आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाकर उसे वर्गों में बाँटा जाता है।

पोशाक मनुष्य के लिए बंद दरवाजे खोलने का काम करती है। जब कोई मनुष्य साधारण कपड़े पहनकर किसी बड़े व्यक्ति से मिलने जाता है, तो चौकीदार उसे बाहर से ही भगा देता है। यदि कोई महँगे, अच्छे और शानदार कपड़े पहनकर बड़े आदमी से मिलने जाता है, तो चौकीदार भागकर उसकी गाड़ी का दरवाजा खोलता है और आने वाले व्यक्ति को सलाम करता है। इस प्रकार पोशाक व्यक्ति के लिए बंद दरवाज़े खोलने का काम करती है।

प्रश्न 5.
लेखक की पोशाक बुढ़िया से उसका दुख का कारण जानने में कैसे रुकावट बन गई ?
उत्तर :
लेखक उच्च वर्ग से संबंध रखता था और उसने अच्छी पोशाक पहन रखी थी। लेकिन उसकी अच्छी पोशाक फुटपाथ पर फटेहाल रोती हुई बुढ़िया के पास बैठकर रोने का कारण जानने में रुकावट पैदा कर रही थी। वह अपनी पोशाक के कारण यह साहस नहीं कर पा रहा था कि वह बुढ़िया के पास बैठकर उसके दुख को बाँट सके। वह यही सोच रहा था कि उसे फटेहाल बुढ़िया के पास बैठा देखकर लोग क्या कहेंगे।

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प्रश्न 6.
जिंदा आदमी और मुर्दा आदमी की परिस्थितियों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
जिंदा आदमी और मुर्दा आदमी की परिस्थितियों में बहुत अंतर है। एक निर्धन जिंदा आदमी बिना कुछ खाए-पिए रह सकता है; फटे- पुराने कपड़े पहनकर अपना तन ढक सकता है। वह अपना जीवन किसी भी तरह गुज़ार सकता है, परन्तु मुर्दा आदमी को बिना कफ़न के विदा नहीं किया जा सकता। समाज और बिरादरी के डर से उसके लिए हमें नए कपड़े लाने पड़ते हैं। मुर्दे को नंगा विदा करना हमारे धर्म के भी विरुद्ध माना जाता है। इसलिए जिंदा और मुर्दा आदमी की परिस्थिति में अंतर है।

प्रश्न 7.
भगवाना की माँ को अपने हाथों के छन्नी- ककना क्यों बेचने पड़े ?
उत्तर :
भगवाना के इलाज में घर की जमा-पूँजी समाप्त हो गई थी, लेकिन वह फिर भी नहीं बचा। अब उसके मरने पर उसे नंगा तो विदा नहीं किया जा सकता था। उसके लिए कपड़े की दुकान से नया कपड़ा लाना था। इसलिए भगवाना की माँ ने अपने हाथ के मामूली से गहने छन्नी- ककना बेच दिए ताकि उसके बेटे का क्रिया-क्रम धर्मानुसार हो सके।

प्रश्न 8.
पुत्र के मरने के बाद बुढ़िया जिस साहस से खरबूजे बेचने आई थी, वह बाज़ार में आकर क्यों टूट गया ?
उत्तर :
जवान बेटे के मरने के अगले दिन बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए आ गई थी। अब उसके घर में कमाने वाला कोई नहीं था। जवान बहू और पोते को पालने के लिए पैसों की आवश्यकता थी, इसलिए वह साहस करके बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए आ गई। परंतु बाज़ार में लोगों की चुभती आँखों और जली-कटी बातों ने उसका साहस तोड़ दिया। वह एक ओर बैठकर मुँह छिपाकर रोने लगी।

प्रश्न 9.
लेखक ने दुख मनाने के लिए सहूलियत की बात क्यों की ?
उत्तर :
समाज में रहने वाले छोटे-बड़े सभी व्यक्तियों को दुख मनाने की सहूलियत होनी चाहिए। दुख को प्रकट करने का अवसर मिलने पर दुखी व्यक्ति का मन हल्का हो जाता है; उस पर दुख का भार कम हो जाता है। जिस प्रकार रोने से मन हल्का हो जाता है, उसी प्रकार मृत्यु पर शोक मनाने से दुख कम हो जाता है। इसलिए लेखक ने दुख मनाने के लिए सहूलियत की बात की है।

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प्रश्न 10.
क्या दुखी होने का अधिकार सबके लिए समान है ?
उत्तर :
गरीब व्यक्ति परिवार के पालन-पोषण के लिए अपने परिवार की किसी जवान मौत के दुख को धकेलकर काम के लिए चला जाता है; उसके पास दुख मनाने का समय नहीं होता। वहीं दूसरी ओर अमीर व्यक्ति के पास समाज, रिश्तेदार आदि सभी एकत्रित होकर उसका दुख कम करने में लगे रहते हैं। उसके पास दुख मनाने का समय भी होता है और धन भी। इसलिए सबके लिए दुखी होने का अधिकार समान नहीं है।

प्रश्न 11.
बुढ़िया के पुत्र भगवाना की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
भगवाना बुढ़िया का इकलौता पुत्र था। एक दिन सुबह मुँह – अँधेरे वह खेत से खरबूज़े तोड़ रहा था। मध्यम रोशनी होने के कारण कुछ चीजें स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही थीं। वहीं पास में खेत की गीली मेड़ की तरावट में एक साँप विश्राम कर रहा था। खरबूज़े तोड़ते-तोड़ते अचानक भगवाना का पैर साँप के ऊपर जा पड़ा और साँप ने उसे काट लिया। इस प्रकार साँप के काटने से भगवाना की मृत्यु हुई।

प्रश्न 12.
बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए क्यों आई थी ?
उत्तर :
अपने परिवार की दयनीय स्थिति को देखते हुए बुढ़िया खरबूज़े बेचने बाज़ार में आई थी। पहले यह कार्य उसका पुत्र करता था। अब उनके पास कोई अन्य उपाय नहीं था। पुत्र के निधन के बाद बुढ़िया को उधार देने वाला भी कोई नहीं था। घर में बच्चे भूख से और भगवाना की पत्नी बुखार से तड़प रही थी। इन सभी विकट स्थितियों का ध्यान करते हुए बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने आई थी।

प्रश्न 13.
पोशाकें मनुष्य को किस प्रकार बाँटती हैं ?
उत्तर
पोशाकें मनुष्य को विभिन्न श्रेणियों में बाँटती हैं। यह मानव को स्थिति के अनुसार न चलाकर पोशाक के आधार पर अन्य लोगों से अलग करती है। पोशाक ही अमीर-गरीब का भेद स्पष्ट करती है। फटेहाली गरीबी का परिचायक बन जाती है, जबकि सुंदर व रंग-बिरंगे कपड़े अमीर तथा उच्चवर्गीय लोगों के परिचायक बन जाते हैं। आज समाज में पोशाकें इसी प्रकार मनुष्य को बाँटने का काम कर रही हैं।

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प्रश्न 14.
पाठ में लेखक ने ‘जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है’ कहकर समाज पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर :
पाठ में लेखक ने ‘जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है’ कहकर समाज की उस परंपरा एवं रूढ़िवादिता पर व्यंग्य किया है, जिसमें जीवित व्यक्ति को चाहे जीवन भर तन ढँकने के लिए कोई कपड़ा न मिला हो, लेकिन मरने के बाद उसे नया कपड़ा कफ़न के रूप में अवश्य दिया जाता है। लेखक जानना चाहता है कि समाज को जिंदा व्यक्ति से अधिक मरे व्यक्ति की चिंता क्यों है?

प्रश्न 15.
लेखक को फुटपाथ पर बैठने से कौन और क्यों रोक रहा था ?
उत्तर :
लेखक को फुटपाथ पर बैठने से उसकी पोशाक रोक रही थी, क्योंकि उसने उच्चवर्ग की कीमती पोशाक पहन रखी थी। यह पोशाक लेखक को फुटपाथ पर रुकने तक की इज़ाजत नहीं दे रही थी, बैठने की बात तो दूर की थी। लेखक की पोशाक फुटपाथ पर बैठे लोगों तथा उसके बीच के फासले को स्पष्ट कर रही थी। इसी कारण लेखक फुटपाथ पर नहीं बैठा।

दुःख का अधिकार Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक युग के सुप्रसिद्ध कथाकार यशपाल का जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को फिरोज़पुर छावनी में हुआ था। इनके पिता का नाम हीरालाल तथा माता का नाम प्रेम देवी था। इनके पूर्वज कांगड़ा जिले के निवासी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई थी। बाद में यशपाल फिरोज़पुर आकर पढ़ने लगे और यहीं से इन्होंने सन् 1921 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन आर्य समाज के प्रचारक के रूप में प्रारंभ किया तथा इनका मासिक वेतन आठ रुपए था।

सन् 1922 में इन्होंने नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। यहीं इनकी भेंट सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह तथा सुखदेव से हुई। इसके बाद यशपाल क्रांतिकारियों के विभिन्न दलों से जुड़ गए। लाहौर और रोहतक में इन्होंने बम बनाने का कार्य भी किया था। 7 अगस्त, 1936 को बरेली जेल में इनका विवाह प्रकाशवती से संपन्न हुआ। इन्होंने सात बार विदेश यात्राएँ भी की थीं। इन्हें अनेक उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। 26 दिसंबर सन् 1976 को इनका देहावसान हुआ।

रचनाएँ – यशपाल ने साहित्य रचना कॉलेज जीवन से ही प्रारंभ कर दी थी। इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक, यात्रा – विवरण, संस्मरण आदि गद्य की समस्त विधाओं में साहित्यिक रचनाएँ की हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास – दादा कामरेड, देशद्रोही, दिव्या, पार्टी कामरेड, मनुष्य के रूप, अमिता, झूठा सच, बारह घंटे, अप्सरा का श्राप, क्यों फँसे, मेरी तेरी उसकी बात आदि।
नाटक – नशे – नशे की बात, रूप की परख, गुडबाई दर्देदिल।
यात्रा विवरण – लोहे की दीवार के दोनों ओर, राहबीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप।
आत्मकथा – सिंहावलोकन।
निबंध – चक्कर क्लब, न्याय का संघर्ष, मार्क्सवाद, रामराज्य की कथा, जग का मुजरा।
संपादन – विप्लव।
कहानी-संग्रह – पिंजरे की उड़ान, वो दुनिया, तर्क का तूफान, ज्ञानदान, अभिशप्त, भस्मावृत चिनगारी, फूलों का कुरता, धर्मयुद्ध, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूँ, उत्तमी की माँ, ओ भैरवी, सच बोलने की भूल आदि।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

पाठ का सार :

‘दुःख का अधिकार’ कहानी के लेखक यशपाल हैं। इस कहानी में लेखक ने बताया है कि हमारे देश में कुछ ऐसे अभागे लोग भी हैं, जिन्हें दुख मनाने का भी अधिकार नहीं है। समाज में हमारी पोशाक देखकर हमारा स्तर निर्धारित किया जाता है। ऊँची और अच्छी पोशाक वाले निम्न व मामूली पोशाक वालों के साथ संबंध नहीं बना सकते। जैसे कटी हुई पतंग एकदम ज़मीन पर नहीं गिरती है, वैसे ही अच्छी पोशाक वाले मामूली अथवा गंदी पोशाक पहनने वालों की तरफ नहीं झुकते हैं। बाज़ार में फुटपाथ पर कुछ खरबूज़े टोकरी में और कुछ ज़मीन पर रखकर एक अधेड़ उम्र की औरत कपड़े से मुँह छिपाए सिर घुटनों पर रखकर रो रही थी। वह खरबूज़े बेचने के लिए लाई थी, परंतु उन्हें कोई खरीद नहीं रहा था। आस-पास की दुकानों पर बैठे लोग घृणा से उस स्त्री के संबंध में बातें कर रहे थे। लेखक उस स्त्री से उसके रोने का कारण जानना चाहता था, परंतु अपनी पोशाक का लिहाज़ कर वह फुटपाथ पर उसके साथ न बैठ सका।

वहीं एक आदमी कह रहा था कि क्या ज़माना आ गया है! जवान लड़के को मरे एक दिन भी नहीं हुआ कि यह बेहया दुकान लगाकर बैठी है। दूसरा कह रहा था कि जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी बरकत देता है। तीसरे का कहना था कि इन लोगों के लिए संबंध कुछ नहीं रोटी ही सबकुछ हैं। परचून की दुकान पर बैठे लाला ने कहा कि इन लोगों को दूसरे के धर्म-ईमान की भी चिंता नहीं है। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और यह आज ही खरबूजे बेचने आ गई है। आस-पास के दुकानदारों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि उस अधेड़ स्त्री का तेईस वर्ष का बेटा था। घर में बहू और पोता-पोती भी हैं।

लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में तरकारियाँ बोता था, जिससे परिवार का पालन-पोषण होता था। वह परसों सुबह मुँह- अँधेरे बेलों से खरबूजे चुन रहा था कि उसका पैर साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डँस लिया। ओझा से इलाज करवाने तथा नाग देवता की पूजा करने के बाद भी अधेड़ स्त्री के पुत्र भगवाना का शरीर काला पड़ गया और वह मर गया। उसका क्रिया-कर्म करने में इनकी सारी जमा-पूँजी समाप्त हो गई। बच्चे भूख से बिलख रहे थे; बहू को बुखार हो गया था; बुढ़िया को कोई उधार देने वाला भी नहीं था।

वह रोते- बिलखते बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई थी। कल जिसका बेटा चल बसा, मज़बूरी में उसे आज बाजार में खरबूजे बेचने पड़ रहे हैं। लेखक को याद आया कि पिछले साल उसके पड़ोस में एक स्त्री अपने पुत्र की मृत्यु के शोक में अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। पुत्र-वियोग में बार-बार उसे मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। सारा शहर उसके पुत्र-शोक से दुखी था। आज इस बुढ़िया के पास शोक मनाने की सुविधा भी नहीं है और उसे यह अधिकार भी नहीं है कि वह दुखी हो सके। यह सब सोचते हुए लेखक चला जा रहा था, राह चलते ठोकरें खाता हुआ।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पोशाक – पहनावा।
  • दर्ज़ा – स्तर, हैसियत।
  • अनुभूति – अनुभव, तजुर्बा।
  • अड़चन – रुकावट, बाधा।
  • डलिया – टोकरी।
  • अधेड़ – ढलती अवस्था।
  • घृणा – नफ़रत।
  • व्यथा – दुख।
  • उपाय – तरीका।
  • बेहया – बेशर्म, निर्लज्ज।
  • नीयत – इरादा, मन में रहने वाला भाव, मंशा।
  • बरकत – लाभ।
  • खसम – पति।
  • लुगाई – पत्नी।
  • परचून की दुकान – पंसारी की दुकान।
  • सूतक – घर में पैदा होने वाले बच्चे अथवा घर में किसी के मरने पर परिवार वालों को लगने वाला अशौच। इस दशा में कुछ निश्चित दिनों तक छूत का ध्यान रखते हैं।
  • कछियारी – खेतों में तरकारी आदि की खेती करना।
  • निर्वाह – गुज़ारा।
  • तरावर – ठंडक।
  • दफे – बार।
  • छन्नी-ककना – मामूली गहने।
  • संभ्रांत – सम्मानित, प्रतिष्ठित, उच्च वर्ग की।
  • द्रवित – दया से पसीजना।
  • गम – दुख।
  • शोक – दुख।
  • सहूलियत – सुविधा।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran शब्द और पद Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द और पद

शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग करने पर वह पद बन जाता है। एक से अधिक पद जुड़कर एक ही व्याकरणिक इकाई का काम करने पर पदबंध कहलाते हैं।

शब्द का वर्गीकरण इस प्रकार है –

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद 1

प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
शब्द वर्णों के मेल से बनाई गई भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। जैसे – राम, रावण, मारना।

प्रश्न 2.
शब्द का प्रत्यक्ष रूप किसे कहते हैं ?
उत्तर :
भाषा में जब शब्द कर्ता में बिना परसर्ग के आता है तो वह अपने मूल रूप में आता है। इसे शब्द का प्रत्यक्ष रूप कहते हैं। जैसे – वह, लड़का, मैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 3.
कोशीय शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस शब्द का अर्थ शब्दकोश से प्राप्त हो जाए, उसे कोशीय शब्द कहते हैं। जैसे- मनुष्य, घोड़ा।

प्रश्न 4.
व्याकरणिक शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्याकरणिक शब्द उस शब्द को कहते हैं, जो व्याकरणिक कार्य करता है। जैसे-‘मुझसे आजकल विद्यालय नहीं जाया जाता।’ इस वाक्य में ‘जाता’ शब्द व्याकरणिक शब्द है।

प्रश्न 5.
पद किसे कहते हैं ?
अथवा
शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने पर क्या कहलाता है ?
उत्तर :
जब किसी शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग किया जाता है तब वह पद बन जाता है। जैसे- राम, रावण, मारा शब्द है। इनमें विभक्तियों, परसर्ग, प्रत्यय आदि को जोड़कर पद बन जाता है। जैसे- श्रीराम ने रावण को मारा।

प्रश्न 6.
पद के कितने और कौन-कौन से भेद हैं ?
उत्तर :
पद के पाँच भेद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 7.
शब्द और पद में क्या अंतर है ?
उत्तर :
शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है और वाक्य के बाहर रहता है, परंतु जब शब्द वाक्य के अंग के रूप में प्रयोग किया जाता है तो इसे पद कहते हैं। जैसे- ‘लड़का, मैदान, खेलना’ शब्द हैं। इन शब्दों से यह वाक्य बनाने पर – ‘लड़के मैदान में खेलते हैं।’- ये पद बन जाते हैं।

प्रश्न 8.
पदबंध किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पदबंध का शाब्दिक अर्थ है – पदों में बँधा हुआ। जब एक से अधिक पद मिलकर एक इकाई के रूप में व्याकरणिक कार्य करते हैं तो वे पदबंध कहलाते हैं। जैसे चिड़िया सोने के पिंजरे में बंद है। इस वाक्य में सोने का पिंजरा पदबंध है। पदबंध वाक्यांश मात्र होते हैं, काव्य नहीं। पदबंध में एक से अधिक पदों का योग होता है और ये पद आपस में जुड़े होते हैं। शब्द के सभी भेद स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 9.
शब्द और शब्दावली वर्गीकरण निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है –
उत्तर :
(क) अर्थ की दृष्टि से वर्गीकरण –
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित चार भेद किए जाते हैं –
(i) एकार्थी – जिन शब्दों का प्रयोग केवल एक अर्थ में ही होता है, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं। जैसे –
पुस्तक, पेड़, घर, घोड़ा, पत्थर आदि।
(ii) अनेकार्थी – जो शब्द एक से अधिक अर्थ बताने में समर्थ हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं। इन शब्दों का प्रयोग जिस संदर्भ में किया जाएगा, ये उसी के अनुसार अर्थ देंगे। जैसे –
काल – समय, मृत्यु।
अर्क – सूर्य, आक का पौधा।
(iii) पर्यायवाची या समानार्थी – जिन शब्दों के अर्थों में समानता हो, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं
जैसे – कमल – जलज, नीरज, अंबुज, सरोज।
आदमी – नर, मनुष्य, मानव।
(iv) विपरीतार्थी – विपरीत अर्थ प्रकट करने वाले शब्दों को विपरीतार्थी अथवा विलोम शब्द कहते हैं। जैसे –
आशा-निराशा हँसना – रोना

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

(ख) उत्पत्ति की दृष्टि से वर्गीकरण –
इतिहास की दृष्टि से शब्दों के पाँच भेद हैं –
(i) तत्सम – तत्सम शब्द का अर्थ है – तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात उसके समान जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों के समान ही हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम कहते हैं। इनका प्रयोग हिंदी में भी उसी रूप में किया जाता है, जिस रूप में संस्कृत में किया जाता है। जैसे- नेत्र, जल, पवन, सूर्य, आत्मा, माता, भवन, नयन, आशा, सर्प, पुत्र, हास, कार्य, यदि आदि।

(ii) तद्भव – तद्भव शब्द का अर्थ है तत् ( उससे) + भव ( पैदा हुआ) जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों से बिगड़ कर हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव कहते हैं, जैसे- दुध से दुग्ध, घोटक से घोड़ा, आम्र से आम, अंधे से अंधा, कर्म से काम, माता से माँ, सर्प से साँप, सप्त से सात, रत्न से रतन, भक्त से भगत।

(iii) देशज – देशज का अर्थ होता है देश + ज अर्थात देश में जन्मा। लोकभाषाओं से आए हुए शब्द देशज कहलाते हैं। कदाचित ये शब्द बोलचाल से बने हैं। जैसे – पेड़, खिड़की, अटकल, तेंदुआ, लोटा, डिबिया, जूता, खोट, फुनगी आदि।

(iv) विदेशज – जो शब्द विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, उन्हें विदेशज कहते हैं।
अंग्रेज़ी – डॉक्टर, नर्स, स्टेशन, प्लेटफ़ॉर्म, पेंसिल, बटन, फ़ीस, मोटर, कॉलेज, ट्रेन, ट्रक, कार, बस, स्कूटर, फ्रीज़ आदि।
फ़ारसी – दुकान, ईमान, ज़हर, किशमिश, उम्मीद, फ़र्श, जहाज़, कागज़, ज़मींदार, बीमार, सब्ज़ी, दीवार आदि।
अरबी – कीमत, फ़ैसला, कायदा, तरफ़, नहर, कसरत, नशा, वकील, वज़न, कानून, तकदीर, खराब, कत्ल, फौज़ नज़र, खत आदि।
तुर्की – तगमा, तोप, लाश, चाकू, उर्दू, कैंची, बेग़म, गलीचा, बावर्ची, बहादुर, चम्मच, कैंची, कुली, कुरता आदि।
पुर्तगाली – तंबाकू, पेड़ा, गिरिजा, कमीज़, तौलिया, बालटी, मेज़, कमरा, अलमारी, संतरा, साबुन, चाबी, आलपीन, कप्तान आदि।
फ्रांसीसी – कारतूस, कूपन, अंग्रेज़।

(v) संकर – दो भाषाओं के शब्दों के मिश्रण से बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं।
यथा – जाँचकर्ता – जाँच (हिंदी) कर्ता (संस्कृत)
सज़ाप्राप्त – सज़ा (फ़ारसी) प्राप्त (संस्कृत)
रेलगाड़ी – रेल (अंग्रेज़ी) गाड़ी (हिंदी)
उद्गम के आधार पर शब्दों की एक और कोटि हिंदी शब्दावली में पाई जाती है जिसे अनुकरणात्मक या ध्वन्यात्मक कहते हैं।
यथा – हिनहिनाना, चहचहाना, खड़खड़ाना, भिनभिनाना आदि।

(ग) रचना की दृष्टि से वर्गीकरण –
प्रयोग के आधार पर शब्दों के भेद तीन प्रकार के होते हैं –

(i) मूल अथवा रूढ़ शब्द – जो शब्द किसी अन्य शब्द के संयोग से नहीं बनते हैं और अपने आप में पूर्ण होते हैं उन्हें रूढ़ अथवा मूल शब्द कहते हैं। ये शब्द किसी विशेष अर्थ के लिए रूढ़ या प्रसिद्ध हो जाते हैं। इनके खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते।
जैसे – घड़ा, घोड़ा, काला, जल, कमल, कपड़ा, घास, दिन, घर, किताब, मुँह।

(ii) यौगिक – दो शब्दों के संयोग से जो सार्थक शब्द बनते हैं, उन्हें यौगिक कहते हैं। दूसरे शब्दों में यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं जिनमें रूढ़ शब्द के अतिरिक्त प्रत्यय, उपसर्ग या एक अन्य रूढ़ शब्द अवश्य होता है अर्थात ये दो अंशों को जोड़ने से बनते हैं, जिनमें एक शब्द आवश्यक रूप से रूढ़ होता है। जैसे – नमकीन – इसमें नमक रूढ़ तथा ईन प्रत्यय है।
जैसे – गतिमान, विचारवान, पाठशाला, विद्यालय, प्रधानमंत्री, गाड़ीवान, पानवाला, घुड़सवार, बैलगाड़ी, स्नानघर, अनपढ़, बदचलन।

(iii) योगरूढ़ – दो शब्दों के योग से बनने पर भी किसी एक निश्चित अर्थ में रूढ़ हो जाने वाले शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं।
जैसे – चारपाई, तिपाई, जलज (जल + ज = कमल), दशानन (दस + आनन = रावण), जलद (जल + द = बादल), जलधि (जल + धि समुद्र)।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

(घ) रूपांतरण की दृष्टि से शब्दों के भेद –

(i) विकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया – ये चार प्रकार के शब्द विकारी कहलाते हैं। इनमें लिंग, वचन एवं कारक आदि के कारण विकारी उत्पन्न हो जाता है।

(ii) अविकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न नहीं होता और जो अपने मूल में बने रहते हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्द को अव्यय भी कहा जाता है। क्रिया-विशेषण, समुच्चयबोधक, संबंधसूचक तथा विस्मयादिबोधक – ये चार प्रकार के शब्द अविकारी कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण इधर समुच्चयबोधक और संबंधसूचक के ऊपर विस्मयादिबोधक ओह।

(ङ) प्रयोग की दृष्टि से –
प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण निम्नलिखित दो वर्गों में किया जाता है –
(i) सामान्य शब्द – आम जन-जीवन में प्रयोग होने वाले शब्द सामान्य शब्द कहलाते हैं; जैसे- दाल, भात, खाट, लोटा, सुबह, हाथ, पाँव, घर, मैदान।

(ii) पारिभाषिक शब्द – जो शब्द ज्ञान – विज्ञान अथवा विभिन्न व्यवसायों में विशेष अर्थों में प्रयोग किए जाते हैं, पारिभाषिक शब्द कहलाते हैं।
इन्हें तकनीकी शब्द भी कहते हैं, जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, रसायन, समाजशास्त्र, अधीक्षक।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 10.
शब्द पद कब बन जाता है ? उदाहरण देकर तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
शब्द को जब व्याकरण के नियमों के अनुसार वाक्य में प्रयोग करते हैं तब वह पद बन जाता है, जैसे- राम, रावण, मारा शब्द हैं। इनसे बना वाक्य – राम ने रावण को मारा- पद है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

JAC Class 9 Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘इस विजन में…….अधिक है’ -पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ?
उत्तर
कवि नगरीय संस्कृति के प्रति वैसे सहज भाव नहीं रखता, जैसे ग्रामीण आंचल की सुंदरता के प्रति उस के हृदय में है। नगरों में प्रत्येक वस्तु व्यापारिक दृष्टि से देखी परखी जाती है। वहाँ के जीवन में पाखंड और स्वार्थ की छाया सदा ही बनी रहती है। वहाँ का प्रेम भी बनावटी ही होता है। इसलिए कवि के हृदय में ऐसी संस्कृति के प्रति आक्रोश छिपा हुआ है।

प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा ?
उत्तर :
कवि सरसों को सयानी कहकर यह बताना चाहता है कि उसके पीले-पीले फूलों से सारे खेत दूर-दूर तक पीले रंग में रंगे हुए दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति ने उसके हाथ पीले कर देने का निश्चय कर लिया है और वह विवाह मंडप में सजी सँवरी धारी है।

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प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सजे-सँवरे चने के पास ही दुबले-पतले शरीर और लचीली कमर वाली अलसी अपने सिर पर नीले फूलों को सजाकर खड़ी है। वह चंचलता से परिपूर्ण है। शरारत-भरे स्वर में कहती है कि जो उसे छू देगा, वह उसे अपना हृदय दान में दे देगी।

प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?
उत्तर :
कवि ने अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया है क्योंकि वह यह जिद्द कर रही है कि जो कोई उसे छू देगा वह उसी को अपना हृदय दे देगी, उसी की हो जाएगी।

प्रश्न 5.
‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ?
उत्तर :
कवि अति कल्पनाशील है। शाम का समय है और आकाश में संध्या का सूर्य जगमगाने लगा है जिसका प्रतिबिंब पोखर के जल में बन रहा है। पोखर का जल धीरे-धीरे लहरियाँ ले रहा है जिस कारण सूर्य का प्रतिबिंब हिल-हिल कर लंबे गोल खंभे के समान प्रतीत हो रहा है। कवि ने उसे ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ कहकर अपनी सूक्ष्म कल्पना का परिचय दिया है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर :
छोटा-सा एक बलिश्त के बराबर हरा ठिगना चना अपने सिर पर छोटे गुलाबी फूल का मुरैठा बाँध कर सज-धज कर खड़ा है। उसका सौंदर्य अनुपम है। कवि उसकी सुंदरता पर मुग्ध होकर एकटक उसे निहारता है।

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प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है ?
उत्तर :
श्री केदारनाथ अग्रवाल के द्वारा रचित कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ वास्तव में प्रकृति के मानवीकरण का अनूठा रूप है। कवि ने सारी प्रकृति पर ही मानवीय भावनाओं का आरोप कर दिया है। बीते भर का चना गुलाबी फूलों की पगड़ी लपेटे खेत में सज-सँवर कर खड़ा है तो दुबले-पतले शरीर वाली हठीली अलसी अपने सिर पर नीले फूलों को सजाकर खड़ी है जो किसी को भी अपना दिल दे देने को तैयार है। सरसों जवान हो चुकी है जो पीले फूलों से सज-सँवर कर ब्याह मंडप में पधार गई है। प्रकृति का अनुराग-आँचल हिल रहा है। पोखर के किनारे पानी में अधडूबे पत्थर भी पानी पी रहे हैं। चित्रकूट की भूमि बाँझ है जिस पर काँटेदार कुरूप पेड़ खड़े हैं।

प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है और चारों तरफ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर :
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’- इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर :
कवि के शब्द- चयन और वाक्य संरचना में नाटकीयता का समावेश हुआ है जिससे उसके हृदय में छिपे भाव एक खास अंदाज में प्रकट हुए हैं। जब वह युवा हो चुकी सरसों के लिए कहता है-‘और सरसों की न पूछो तो उससे यह स्पष्ट रूप से ध्वनित होता है कि अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया कि सरसों बड़ी हो गई है और विवाह के योग्य हो चुकी है। हम सामान्य बोलचाल में इस प्रकार की शैली का प्रयोग तभी और वहीं करते हैं जब हम किसी बात पर पूरी तरह विश्वस्त हो जाते हैं। उस बात की सच्चाई पर हमें तनिक भी अविश्वास या संशय नहीं होता।

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प्रश्न 10.
काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है ?
उत्तर :
कविता में वर्णित काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया चालाक, मौकापरस्त और चुस्त व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है जो उचित अवसर मिलते ही अपना स्वार्थ पूरा कर दूर भाग जाता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
हठीली, लचीली, सयानी, फाग, फागुन, पोखर, लहरियाँ, झपाटे, उजली, चटुल, रेल की पटरी, ट्रेन का टाइम, सुग्गे, टें टें टें दें, टिस्टों टिरटों, चुप्पे-चुप्पे।

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प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :
1. बीते के बराबर – छोटा।
वाक्य – अरे, इस राकेश को तो देखो! यह है तो बीते के बराबर, पर बातें कितनी बड़ी-बड़ी करता है।
2. हाथ पीले करना – विवाह करना।
वाक्य – हर माता-पिता को अपनी जवान बेटी के हाथ पीले करने की चिंता अवश्य होती है।
3. प्यास बुझना – संतोष होना, इच्छा पूरी होना।
वाक्य – शिष्य ने जैसे ही अपने गुरु जी को देखा उसकी आँखों की प्यास बुझ गई।
4. टूट पड़ना – हमला करना।
वाक्य – हमारे खिलाड़ी तो विपक्षी टीम के गोल पर टूट पड़े और एक के बाद एक लगातार चार गोल ठोक दिए।
5. जुगुल जोड़ी = प्रेम करने वाली जोड़ी
वाक्य – भक्त के हृदय में राधा-कृष्ण की जुगुल जोड़ी सदा बसी ही रहती है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न :
प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
देहात का दृश्य
अरहर कल्लों से भरी हुई फलियों से झुकती जाती है,
उस शोभासागर में कमला ही कमला बस लहराती है।
सरसों दानों की लड़ियों से दोहरी – सी होती जाती है,
भूषण का भार सँभाल नहीं सकती है कटि बलखाती है है
चोटी उस की हिरनखुरी के फूलों से गुँथ कर सुंदर,
अन- आमंत्रित आ पोलंगा है इंगित करता हिल – हिल कर।
हैं मसें भींगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है,
यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
लोने – लोने वे घने चने क्या बने बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा घुँघरू पर ताल बजाते हैं।
हैं जलाशयों के ढालू भीटों पर शोभित तृण शालाएँ,
जिनमें तप करती कनक वरण हो जाग बेलि-अहिबालाएँ।
हैं कंद धरा में दाब कोष ऊपर तक्षक बन झूम रहे,
अलसी के नील गगन में मधुकर दृग-तारों से घूम
रहे। मेथी में थी जो विचर रही तितली सो सोए में सोई,
उस की सुगंध – मादकता में सुध-बुध खो देते सब कोई।

शब्दार्थ : हिरनखुरी – बरसाती लता। भीटा – बरसाती लता। भीटा – दूह, टीले के शक्ल की ज़मीन

प्रश्न :
1. इस कविता के मुख्य भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
2. इन पंक्तियों में कवि ने किस-किसका मानवीकरण किया है ?
3. इस कविता को पढ़कर आपको किस मौसम का स्मरण हो आता है ?
4. मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध कहाँ और क्यों खो बैठे?
उत्तर
1. कवि ने फरवरी – मार्च महीनों में कच्ची-पक्की फसलों से भरे खेतों का सुंदर चित्रण करते हुए माना है कि प्रकृति ने धरती पर अपार सोना बरसाया है। अरहर की फलियाँ अपने भार से झुकी जाती हैं। सरसों दानों के भार से दोहरी होती जा रही है। हिरनखुरी के फूलों से गुँथी वह सुंदर लगती है। गेहूँ की बालियाँ लगनी आरंभ हो गई हैं। मटर और चने की फसलें इठलाने लगी हैं। अलसी और मेथी अपने रंग-गंध से तितलियों को अपनी ओर खींच रही हैं। प्रकृति का रंग तो खेतों के कण-कण में समाया हुआ है।
2. कवि ने इस कविता में अरहर, सरसों, मटर, चने और गेहूँ का मानवीकरण किया है।
3. इस कविता को पढ़कर बसंत ऋतु का स्मरण हो आता है।
4. अलसी पर मधुकर और मेथी पर तितली ने घूमते हुए अपनी सूझ-बूझ खो दी। वे प्रकृति की सुंदरता पर अपने आप को खो बैठे हैं।

एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा कवि केदारनाथ अग्रवाल पर बनाई गई फ़िल्म देखें।

JAC Class 9 Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने खेत में खड़े हरे चने और अलसी के सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
चना एक बीते के बराबर है। उसका रंग हरा तथा कद ठिगना है। वह सिर पर गुलाबी फूल का साफा-सा बाँधे, सजा खड़ा है। अलसी हठीली, शरीर से पतली तथा लचीली है। वह नीले रंग के फूल सिर पर चढ़ाकर यह कह रही है कि जो भी मुझे छुएगा, मैं उसको अपना हृदय दान दे दूँगी।

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प्रश्न 2.
‘देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है……..अंचल हिल रहा है’, पंक्तियों के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इन पंक्तियों के द्वारा कवि प्रकृति के सौंदर्य का मानवी क्रियाओं का आरोप करने का अनुरागमयी चित्रण करना चाहता है।

प्रश्न 3.
कवि ने किस भूमि को प्रेम की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि कहा है और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने व्यापारिक नगरों से दूर ग्राम्य – प्रकृति को (एकांत को) प्रेम की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि कहा है। प्रकृति की निश्छल गोद में प्रेम सहज व स्वाभाविक रूप में पनपता है।

प्रश्न 4.
इस कविता में ‘एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ किसके लिए प्रयुक्त किया गया है ?
उत्तर :
डूबते सूरज की परछाईं के लिए।

प्रश्न 5.
पोखर के सौंदर्य का वर्णन इस कविता के आधार पर कीजिए।
उत्तर :
पोखर में लहरें उठ रही हैं। उसके नीले जल के तले भूरी घास उगी हुई है। वह घास भी लहरों के साथ हिल-डुल रही है। उसमें डूबते सूरज परछाई एक खंभे के सदृश आँखों को आकर्षक लगती है। उसके तट पर कई पत्थर पड़े हैं। वे चुपचाप पानी का सेवन कर रहे हैं।

प्रश्न 6.
भाव स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी।
हाथ पीले कर लिए हैं,
ब्याह – मंडल में पधारी।
उत्तर :
इस कथन के द्वारा कवि ने सरसों के गदराए हुए रूप का वर्णन किया है। चारों ओर उसका पीलापन अपना प्रभाव दिखा रहा है। उसे देखकर कवि कल्पना करता है मानो कोई युवती हाथ पीले करके ब्याह मंडप में पधार चुकी है।

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प्रश्न 7.
तालाब में खड़ा बगुला नींद में होने का नाटक क्यों करता है ?
उत्तर :
बगुला एक ढोंगी पक्षी है। वह मछलियों को देखते ही नींद में होने का ढोंग करता है। जब मछली निकट आती है तो अवसर मिलते ही वह मछली को चोंच में भरकर निगल जाता है। बगुले के ढोंग के कारण ही मछलियाँ उसके नजदीक जाती हैं और उसका आहार बन जाती हैं। इसलिए बगुला तालाब में नींद में होने का नाटक करता है।

प्रश्न 8.
कवि ने चित्रकूट के क्षेत्र की जीवंतता का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियों में प्राकृतिक सुंदरता नहीं है। वहाँ की बंजर भूमि पर इधर-उधर रींवा के काँटेदार तथा कुरूप पेड़ दिखाई देते हैं। परंतु जगह-जगह पक्षियों ने सारे क्षेत्र को जीवंत बना रखा है। कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें तथा सारस की टिरटों-टिस्टों की आवाज़ों से सारा वन क्षेत्र गूँज रहा है, जिससे वहाँ का वातावरण जीवंत बन गया है।

प्रश्न 9.
कवि किसकी प्रेम-कहानी सुनना चाहता है ?
उत्तर :
कवि अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाना चाहता है। इसलिए वह सारस पक्षी के साथ उड़कर हरे-भरे खेत में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम-कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके।

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प्रश्न 10.
और सारसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं।
ब्याह – मंडप में पधारी,
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए कहा है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है। इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। ‘हाथ पीले करना’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. देख आया चंद्र गहना
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है।

शब्दार्थ : बीते – (बित्ता) अंगूठे के सिर से कनिष्ठा के सिरे तक लंबाई की नाप। ठिगना – छोटे कद का। मुरैठा – साफा, पगड़ी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री केदारनाथ अग्रवाल हैं। इसमें उन्होंने ग्राम्य प्रकृति का बड़ा अनुरागमय चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि चंद्र गहना को देख आया है। अब वह खेत की मेंड़ पर अकेला बैठकर उस सारे दृश्य को सजीव रूप में अनुभव कर रहा है। खेतों में उगा हरा तथा ठिगना चना जो एक बीते ( बित्ता) के बराबर है, उसने अपने सिर पर छोटे गुलाबी फूल का मुरैठा (साफा, पगड़ी) बाँध रखा है। इस तरह वह सजकर खड़ा है। कवि ने खेत में उत्पन्न चने के पौधे का बड़ा सजीव एवं मनोहारी चित्र प्रस्तुत किया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि कहाँ बैठा हुआ था ? उसके साथ कौन था ?
(ख) कवि ने खेत में किसे देखा ?
(ग) चने की शोभा वर्णित कीजिए।
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि चंद्र गहना से लौटते समय एक खेत की मेड़ पर बैठा हुआ था। उसके साथ कोई नहीं था, वह बिल्कुल अकेला था। (ख) कवि ने खेत में हरे-भरे चने को देखा था।
(ग) हरा-भरा चना ठिगना है। उसकी शोभा प्रकृति ने सुंदर ढंग से बढ़ाई है। उस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल लगे हैं जो उसके सिर पर गुलाबी पगड़ी के समान प्रतीत होते हैं।
(घ) कवि ने खेत में उगे चने की अद्भुत सुंदरता को प्रकट करते हुए मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। तद्भव और तत्सम शब्दावली का मिला-जुला प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करने में सफल हुआ है। चाक्षुक बिंब विद्यमान है। अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसाद गुण कथन को सरलता और सहजता प्रदान करने में सहायक हुए हैं। मुक्त छंद का प्रयोग है।

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2. पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली।
देह की पतली कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
कह रही है, जो छुए यह,
दूँ हृदय का दान उसको।

शब्दार्थ : अलसी तीसी, एक तिलहन का पौधा जिस पर नीला फूल आता है।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यावतरण श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित किया गया है। इसमें ग्राम्य- शोभा का बड़ा सुंदर चित्रण हुआ है।

व्याख्या : कवि कहता है कि चने के खेतों के बीच में हठीली अलसी उगी हुई है। यह अलसी शरीर से दुबली-पतली तथा लचीली कमर वाली है। उसने अपने सिर पर फूले हुए नीले फूल धारण किए हैं। वह मानो यह कह रही है जो भी मेरे इन फूलों को छुएगा, मैं उसको अपने हृदय का दान दे दूँगी। कवि ने अलसी का बड़ा सहज-सजीव चित्रण किया है। यहाँ खिली हुई अलसी में एक प्रेमिका के व्यवहार की आकर्षक कल्पना है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अलसी को कौन-सा विशेषण दिया है ?
(ख) अलसी की सुंदरता का वर्णन कीजिए।
(ग) अलसी क्या कहना चाहती है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने अलसी को ‘हठीली’ विशेषण दिया है।
(ख) अलसी अति सुंदर है। उसकी देह दुबली-पतली है, कमर लचीली है तथा उसके सिर पर नीले रंग के छोटे-छोटे फूल शोभा दे रहे हैं।
(ग) अलसी कहना चाहती है कि जो भी उसके फूलों को छुएगा वह उसे अपना हृदय दान में दे देगी।
(घ) कवि ने खड़ी बोली में खेत में उगी अलसी के कोमल – सुंदर पौधों का सजीव चित्रण किया है। भाषा में चित्रात्मकता का गुण है। अभिधा शब्दशक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। मानवीकरण अलंकार का प्रयोग सराहनीय है।

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3. और सरसों की न पूछो –
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी,
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।

शब्दार्थ : सयानी जवान कन्या। हाथ पीले करना विवाह करना। फाग – होली के दिनों में गाया जाने वाला गीत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ग्राम्य – प्रकृति एवं वहाँ की उपज का बड़ा अनुरागमय चित्रण किया है। यहाँ खिली हुई पीली सरसों का बड़ा मोहक चित्र अंकित किया गया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि सरसों की मोहकता के विषय में तो पूछो ही नहीं। वह अत्यंत आकर्षक रूप धारण किए हुए है। सरसों अब जवान हो गई है। ऐसा लगता है कि जैसे वह अपना हाथ पीला करके ब्याह मंडप में पधार चुकी है। अभिप्राय यह है कि सरसों में फूल लग गए हैं। ऐसा लगता है जैसे फागुन होली का गीत गा रहा हो। सरसों के खेत का बड़ा मोहक वर्णन है और साथ ही उसमें एक युवती की कल्पना है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में कौन सयानी हो गई है ?
(ख) शादी के मंडप में कौन पधारी है ?
(ग) फागुन का महीना क्या गा रहा है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में सरसों अब सयानी हो गई है।
(ख) शादी के मंडप में सरसों पधारी है।
(ग) फागुन का महीना फाग गा रहा है जो होली के अवसर पर गाया जाता है।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए माना है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए – सँवारे मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। ‘हाथ पीले करना’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोगं सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।

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4. देखता हूं मैं: स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग – अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से,
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।

शब्दार्थ : स्वयंवर – विवाह का एक आयोजन जिसमें कन्या स्वयं अपने लिए वर चुनती है। विजन जंगल, सूना प्रदेश।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यावतरण ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से लिया गया है। इस कविता में केदारनाथ अग्रवाल ने ग्राम्य प्रकृति तथा वहाँ के खेतों के सौंदर्य का चित्रण अनुरागमयी शैली में किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि प्रकृति एवं खेतों के भरपूर सौंदर्य को देखकर मुझे ऐसा लगता है, जैसे स्वयंवर हो रहा हो अर्थात् इस ग्राम्य शोभा ने ऐसा रूप धारण कर लिया है जिसे देखकर एक ऐसे आयोजन का दृश्य आँखों के सामने तैर जाता है जिसमें कोई कन्या स्वयं अपने लिए वर का चुनाव करती है। प्रकृति रूपी नायिका का प्रेमपूर्ण अंचल हिल-डुलकर उसके भीतर प्रिय मिलन की तीव्र इच्छा को प्रकट कर रहा है। नगरों के पाखंडपूर्ण, स्वार्थमय, व्यापारिक जीवन की तुलना में यहाँ प्रेम की प्रिय भूमि कहीं अधिक उपजाऊ है। अभिप्राय यह है कि प्रकृति के अंचल में चलनेवाले प्रेम व्यवहार में स्थायित्व अधिक है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) किसका स्वयंवर हो रहा है ?
(ख) कवि ने किसके आँचल हिलने का वर्णन किया है ?
(ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन कैसा है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने माना है कि ग्रामीण शोभा रूपी आँचल में सरसों का स्वयंवर हो रहा है।
(ख) कवि ने प्रकृति रूपी नायिका के प्रेमपूर्ण आँचल हिलने का वर्णन किया है।
(ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन पाखंडपूर्ण, स्वार्थमय और व्यापारिक है।
(घ) कवि ने अवतरण में खेतों का चित्रात्मक और अनुरागमयी रूप अंकित किया है। अतुकांत छंद में रचित पंक्तियों में लयात्मकता विद्यमान है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक रूप सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।

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5. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।

शब्दार्थ पोखर – तालाब।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित की गई हैं, जिसमें कवि ने गाँव की प्रकृति की सुंदरता का सहज चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि ग्राम्य प्रकृति का अनुरागपूर्ण चित्रण करता हुआ कहता है- मेरे पाँव के तले (निकट) एक सरोवर है, जिसमें लहरें उठ रही हैं। उस सरोवर के नीले तल में जो भूरी घास उग आई है, वह भी लहरियाँ ले रही है अर्थात् जल के साथ हिल-डुल रही है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि के पैरों के पास क्या है ?
(ख) पोखर की गहराई में क्या उगा हुआ है ?
(ग) तल में घास किस प्रकार का व्यवहार कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि के पैरों के पास एक पोखर है जो पानी से भरा हुआ है।
(ख) पोखर की गहराई में घास उगी हुई है जो भूरे रंग की है।
(ग) पोखर के जल के हिलने से घास भी लहरियाँ लेती हुई प्रतीत होती हैं।
(घ) अवतरण में पोखर का सजीव चित्रण किया गया है। तल में उगी हुई घास भी जल के हिलने से लहरियाँ लेने लगती है। चित्रात्मकता विद्यमान है। अनुप्रास का सहज प्रयोग किया गया है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द- शक्ति विद्यमान है।

6. एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!

शब्दार्थ : चकमकाना चकाचौंध पैदा करना।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित किया गया है। कवि ने गाँव की प्राकृतिक सुंदरता का सुंदर वर्णन किया है। खेतों के पास जल से भरा एक पोखर है जिसमें जल लहरा रहा है।

व्याख्या : कवि ग्राम्य प्रकृति का अनुरागमय चित्रण करता हुआ कहता है कि पोखर के पानी में डूबते हुए सूर्य का प्रतिबिंब इस प्रकार बन रहा है जैसे वह चाँदी का एक बड़ा-सा गोल खंभा हो। हलके-हलके हिलते पानी के कारण उसका आकार लंबा प्रतीत होता है और चमकीला होने के कारण वह चाँदी की तरह चमक रहा है। उसे देखने से आँखें चौंधिया रही हैं। उसकी ओर दृष्टि टिकती नहीं है। पोखर के किनारे पर कई पत्थर पड़े हैं। हवा के कारण पानी की छोटी-छोटी लहरें इन पत्थरों से स्पर्श कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो ये पत्थर प्यासे हों और मौन भाव से पानी पी रहे हों। पता नहीं, ये पत्थर कब से पानी पी रहे हैं पर फिर भी इनकी प्यास नहीं बुझ रही। पता नहीं इनकी प्यास कब बुझेगी ? क्या ये सदा इसी तरह प्यासे ही रहेंगे।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा किसे कहा है ?
(ख) पत्थर कहाँ पड़े हैं ?
(ग) पत्थर क्या करते प्रतीत हो रहे हैं ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा सूर्य के प्रतिबिंब को कहा है जो पोखर के जल में बिंबित हो रहा है। पानी के हिलने के कारण वह निरंतर हिलकर लंबे खंभे-सा प्रतीत हो रहा है।
(ख) पत्थर पोखर के किनारे पड़े हैं जो जल को स्पर्श कर रहे हैं।
(ग) कवि को प्रतीत होता है कि वे पत्थर पोखर के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।
(घ) कवि ने कल्पना की है कि पोखर के जल में आँख को चकमकाता सूर्य का प्रतिबिंब बड़े से गोल खंभे के रूप में दिखाई दे रहा है और किनारे पर पड़े पत्थर ऐसे लगते हैं जैसे पोखर के जल को पीकर अपनी प्यास को बुझाना चाह रहे हों। पता नहीं उनकी प्यास कभी बुझेगी भी या नहीं। शब्द अति सरल हैं। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और चित्रात्मकता ने कवि के भावों को सजीवता प्रदान की है। उपमा, स्वाभावोक्ति और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।

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7. चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान – निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है !

शब्दार्थ : ध्यान – निद्रा – ध्यान रूपी नींद

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से उद्धृत किया गया है। इस कविता में ग्राम्य प्रकृति का बड़ा मधुर एवं अनुरागमय चित्रण हुआ है।

व्याख्या : यहाँ कवि सरोवर का वर्णन करता हुआ कहता है कि कोई बगुला चुपचाप अपनी एक टाँग जल में डुबोए खड़ा है। वह चंचल मछली को देखते ही अपनी निद्रा का ध्यान त्यागकर झट से मछली को चोंच से पकड़कर गले में डाल देता है अर्थात् मछली को निगल जाता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) पोखर के जल में एक टाँग पर कौन खड़ा है ?
(ख) बगुला अपनी नींद को कब त्यागता प्रतीत होता है ?
(ग) तालाब में खड़ा बगुला क्या वास्तव में ही नींद में होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) पोखर के जल में एक टाँग पर बगुला खड़ा है।
(ख) बगुला अपनी नींद को तब त्यागता प्रतीत होता है, जब कोई चंचल मछली जल में उसके निकट से गुज़रती है।
(ग) बगुला वास्तव में नींद में नहीं होता। वह बिना हिले-डुले मछलियों को यह अहसास कराता है कि जल में ऐसा कोई खतरा नहीं जो उन्हें क्षति पहुँचा सके। किसी प्रकार के संकट की संभावना न होने के कारण ही मछलियाँ तैरती हुई बगुले के निकट आ जाती हैं।
(घ) कवि ने बगुले की ढोंगी वृत्ति का चित्रण है। वस्तुतः बगुला भोला – सा बनकर सरोवर के तट पर खड़ा हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे यह किसी को हानि नहीं पहुँचाना चाहता, पर अवसर मिलते ही वह मछली को चोंच में भरकर निगल जाता है। बगुले के माध्यम से यहाँ ढोंगी व्यक्ति के स्वभाव का चित्रण हुआ है।

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8. एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन।
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में !

शब्दार्थ : श्वेत- सफेद। चटुल – चंचल। गगन – आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित की गई हैं। इस कविता में कवि ने ग्राम्य प्रकृति का बड़ा अनुरागमय चित्रण किया है।

व्याख्या : यहाँ मछली का भक्षण करने वाली एक चिड़िया का शब्द – चित्र कवि के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। एक चिड़िया जिसका मस्तक काला है, वह अपने सफेद पंखों को फड़फड़ाते हुए अचानक सरोवर में भरे हुए जल के ऊपर टूट पड़ती है तथा एक चंचल सफेद मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर कहीं दूर आकाश में उड़ जाती है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) चिड़िया का रूप कैसा है ?
(ख) कवि ने चिड़िया को चतुर क्यों कहा है ?
(ग) चिड़िया उड़ कर कहाँ जाती है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) चिड़िया सफेद पंखों वाली है जिसके माथे का काला रंग है। वह तेजी से झपटने की क्षमता रखती है। उसकी चोंच पीली है।
(ख) कवि ने चिड़िया को चतुर कहा है क्योंकि वह जल की गहराई से ही अपनी पीली चोंच में मछली को झपटकर ले जाती है और पल-भर में ही आकाश की ऊँचाई में दूर उड़ जाती है।
(ग) चिड़िया उड़कर आकाश में चली जाती है।
(घ) कवि ने काले माथे, पीली चोंच और सफेद रंग की चिड़िया की निपुणता और चपलता का वर्णन किया है। गतिशील बिंब – योजना और सुंदर रंग- योजना ने सहज रूप से चित्रात्मकता को प्रकट किया है। अनुप्रास का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कवि के कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है।

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9. औ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी,
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ।
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़,
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।

शब्दार्थ : टाइम समय। स्वच्छंद – समय। स्वच्छंद – स्वतंत्र। बाँझ भूमि – बंजर भूमि। रींवा काँटेदार पेड़ विशेष।

प्रसंग : ये पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से अवतरित की गई हैं। कवि ग्राम्य प्रकृति का चित्र खींचता हुआ कहता है कि पोखर के निकट ही पहाड़ियाँ हैं जिनकी शोभा भिन्न प्रकार की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यहीं से, जहाँ भूमि कुछ ऊँची है जहाँ से रेल की पटरी जा रही है। यह समय किसी गाड़ी के आने-जाने का नहीं है। अतः कवि यहाँ स्वच्छंदतापूर्वक भ्रमण कर सकता है। उसे कहीं जाना नहीं है। चित्रकूट की अनगढ़ी पहाड़ियाँ जो अधिक ऊँची नहीं हैं, दूर दिशा तक फैली हुई हैं। वहाँ की बंजर भूमि पर इधर-उधर रींवा के काँटेदार तथा कुरूप पेड़ खड़े दिखाई देते हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि उस स्थान पर स्वयं को स्वच्छंद क्यों मानता है ?
(ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ कैसी हैं ?
(ग) काँटेदार कुरूप पौधे कहाँ पर हैं ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि स्वयं को उस ऊँची भूमि पर स्वच्छंद मानता है क्योंकि उस समय उसके पास करने के लिए कुछ भी नहीं है। वहाँ से गुजरती रेल की पटरी पर भी तब कोई गाड़ी गुजरने वाली नहीं है
(ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ चौड़ी और अनगढ़ हैं। उनकी ऊँचाई अधिक नहीं है और वे दूर-दूर तक फैली हुई हैं।
(ग) चित्रकूट की अनगढ़ पथरीली बाँझ भूमि पर रींवा के काँटेदार कुरूप पेड़ इधर-उधर उगे हुए हैं।
(घ) कवि ने चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी और कम ऊँची पहाड़ियों पर उगे रींवा के काँटेदार कुरूप पेड़ों का वर्णन करने के साथ-साथ अपने अकेलेपन का उल्लेख किया है। कवि ने बोलचाल की सामान्य शब्दावली का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से किया है। ‘रेल’, ‘ट्रेन’, ‘टाइम’ आदि विदेशी शब्दावली के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसाद गुण का सुंदर प्रयोग कथन की सरलता का आधार है। मुक्त छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

10. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें दें,
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों,
मन होता है
उड़ जाऊँ मैं,
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।

शब्दार्थ : वनस्थली – जंगल। सुग्गा – तोता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ग्राम्य प्रकृति का बड़ा मनोहारी चित्र अंकित किया है। चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियों में चाहे प्राकृतिक सुंदरता कम हो पर जगह-जगह पक्षियों ने सारे क्षेत्र को जीवंत बना रखा है।

व्याख्या : कवि का कथन है- मीठा-मीठा रस टपकता हुआ तोते का टें टें टें टें का स्वर जंगल के हृदय को चीरता हुआ-सा सुनाई पड़ता है। कभी उठता तथा कभी गिरता हुआ सारस की टिरटों-टिरटों की-सी आवाज़ सुनाई देने लगती है। कवि का मन चाहता है कि वह भी अपने पैरों को फैलाकर सारस के संग उड़कर वहाँ जा पहुँचे, जहाँ प्रेमियों की जोड़ी रहती है। वहाँ पहुँचकर मौन रूप से प्रेम की कहानी सुन ले उनके प्रेम में निश्छलता का भाव होगा इसलिए उसने प्रकृति के प्रांगण में चलने वाली निश्छल प्रेम कहानी सुनने की तीव्र इच्छा प्रकट की है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने किस-किस पक्षी की आवाज़ कविता में सुनाई है ?
(ख) कवि की इच्छा क्या है ?
(ग) कवि किसकी प्रेम कहानी सुनना चाहता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें टें टें तथा सारस के स्वर टिरटों टिरटों की आवाजें सुनाई हैं जो सारे वनक्षेत्र में गूँज रही हैं।
(ख) कवि की इच्छा है कि वह भी सारस पक्षी के साथ उड़ जाए और स्वच्छंद उड़ान भरे।
(ग) कवि सारस पक्षी के साथ उड़कर उन हरे-भरे खेतों में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके।
(घ) कवि ने अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाने की कामना की है। उनकी मधुर आवाज़ उनके हृदय के भावों को प्रकट करने में सक्षम है। ‘टें टें टें टें’ तथा ‘टिरटों टिरटों’ से श्रव्य बिंब की सृष्टि हुई है। दृश्य बिंब ने गाँव के सुंदर क्षेत्र को प्रकट करने में सफलता पाई है। अतुकांत छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता विद्यमान है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।

चंद्र गहना से लौटती बेर Summary in Hindi

कवि-परिचय :

श्री केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक युग के चर्चित कवियों में से एक हैं। उनका जन्म 1 अप्रैल, सन् 1911 को बाँदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी० ए० करने के बाद आगरा विश्वविद्यालय से एल०एल०बी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने बाँदा में वकालत करनी आरंभ की। अग्रवाल जी ने जहाँ वकालत के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की, वहीं वे काव्य – साधना में भी संलग्न रहे। हिंदी के प्रगतिशील आंदोलन के साथ वे बराबर जुड़े रहे। उनका काव्य यथार्थ की भूमि को आधार बनाकर खड़ा हुआ। वे वर्गहीन समाज के समर्थक रहे। यही कारण है कि दीन-दुखियों के प्रति उनकी सहज सहानुभूति रही। इनका देहावसान सन् 2000 में हुआ।

नींद के बादल, युग की गंगा, लोक तथा आलोक, फूल नहीं रंग बोलते हैं, आग का आईना, हे मेरी तुम, मार प्यार की थापें, कहे केदार खरी-खरी, पंख और पतवार आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। काव्यगत विशेषताएँ – अग्रवाल जी अपने समकालीन प्रगतिवादी कवियों से प्रेरणा लेकर काव्य-क्षेत्र में आगे बढ़े। उनकी खड़ी बोली में रचे गये कवित्त, सवैये लखनऊ की माधुरी पत्रिका में प्रकाशित हुए।

‘नींद के बादल’ उनका पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह में उनकी प्रणय संबंधी कविताओं की प्रधानता है। दूसरे काव्य संग्रह ‘युग की गंगा’ में सामान्य जन-जीवन तथा प्रकृति के मार्मिक चित्र अंकित हुए हैं। तीसरे संग्रह ‘लोक तथा आलोक’ में प्रगतिवाद की झलक मिलती है। प्रगतिवादी रचनाओं में उन्होंने पूँजीपतियों की शोषण वृत्ति का यथार्थ चित्र अंकित किया है। प्रकृति-संबंधी कविताओं में बड़े गतिशील चित्र अंकित हुए हैं।

अग्रवाल जी की भाषा प्रायः सरल एवं सुबोध है। शब्दचयन प्रायः कलात्मक एवं भावानुरूप है। शैलीकार के रूप में उन्होंने मुक्त छंद और गीति छंद का सफल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में शब्दों का सौंदर्य है, ध्वनियों की धारा है और स्थापत्य की कला है। संगीतात्मकता तो इनके काव्य की अनूठी विशेषता है। लोकभाषा और ग्रामीण जीवन से जुड़े बिंबों को प्रस्तुत करने में इन्हें अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। इनकी कविता में शिल्प की जटिलता नहीं है। वे अपने भावों को सहज रूप से व्यक्त कर देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

कविता का सार :

कवि का प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग-भाव पाठक को सहसा अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता रखता है। वह चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा था। उसका किसान मन बार-बार प्रकृति के रंगों में रंगा जा रहा था। खेत-खलिहान उसके मन से बाहर निकलते ही नहीं। उसे प्रकृति के साधारण रंगों में भी असाधारण शोभा दिखाई देती है। वह शहरी विकास की तेज गति के बीच भी उस सौंदर्य को अपनी कोमल भावनाओं और संवेदनाओं को सुरक्षित रखना चाहता है। खेत की मेड़ पर बैठे हुए उसे खेत में उगा चना ऐसे लगता है जैसे पौधों ने फूलों की पगड़ियाँ बाँधी हुई हों, वे सज-संवर कर खड़े हों।

पास ही नीले फूलों से सजी अलसी के पौधे शोभा दे रहे हैं। पीली-पीली सरसों तो मानो अपना विवाह रचाने के लिए मंडप में पधार रही हो। पोखर में छोटी-छोटी लहरियाँ उठ रही हैं। एक बगुला मछलियों की ताक में शांत भाव से एक टाँग पर खड़ा है। मछली दिखते ही उसकी ध्यान-निद्रा टूटती है। पक्षियों की तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। चित्रकूट की अनगढ़ कम चौड़ी पर ऊँची पहाड़ियों में इधर-उधर कंटीले पेड़-पौधे दिखाई देते हैं। कवि चाहता है कि सारस पक्षियों के जोड़े के साथ हरे-भरे खेतों में उनकी प्रेम-कथा को सुने। कवि कविता के माध्यम से प्राकृतिक चित्रों को अंकित करने में सफल रहा है।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4

Page-179

Question 1.
Two circles of radii 5 cm and 3 cm intersect at two points and the distance between their centres is 4 cm. Find the length of the common chord.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 - 1
Answer:
OP = 5 cm, PS = 3 cm and OS = 4 cm.
We know that if two circles intersect at two points then their centres lie on the perpendicular bisector of the common chord.
So, OS is perpendicular bisector of PQ.
⇒ PQ = 2PR and ∠PRO = ∠PRS = 90°
Let RS be x ⇒ OR = 4 – x
In ∆POR,
OP2 = OR2 + PR2
⇒ 52 = (4 – x)2 + PR2
⇒ 25 = 16 + x2 – 8x + PR2
⇒ PR2 = 9 – x2 + 8x …(i)

In ∆PRS,
PS2 – PR2 + RS2
⇒ 32 = PR2 + x2
⇒ PR2 = 9 – x2 …(ii)
Equating (i) and (ii),
9 – x2 + 8x = 9 – x2
⇒ 8x = 0
⇒ x = 0
Putting the value of x in (i), we get
PR2 – 9 – 02
⇒ PR = 3 cm
Length of the Chord PQ = 2PR = 2 × 3 = 6 cm

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4

Question 2.
If two equal chords of a circle intersect within the circle, prove that the segments of one chord are equal to corresponding segments of the other chord.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 - 2
Answer:
Given: AB and CD are chords intersecting at E.
AB = CD
To prove: AE = DE and CE = BE
Construction: OM ⊥ AB and ON ⊥ CD. OE is joined.
Proof: OM bisects AB (OM ⊥ AB)
⇒ AM = MB = \(\frac{1}{2}\) AB
ON bisects Cp (ON ⊥ CD)
⇒ DN = CN = \(\frac{1}{2}\) CD
As AB = CD
thus, AM = ND …….(i)
and MB = CN ……..(ii)

In ∆OME and ∆ONE,
∠OME = ∠ONE = 90° (Perpendiculars)
OE = OE (Common)
OM = ON (AB = CD and thus equidistant from the centre)
∆OME ≅ ∆ONE by RHS congruence criterion.
ME = EN by CPCT …(iii)
Adding (i) and (ii), we get
AM + ME = ND + EN
⇒ AE = ED
Subtracting (iii) from (ii), we get
MB – ME = CN – EN
⇒ EB = CE

Question 3.
If two equal chords of a circle intersect within the circle, prove that the line joining the point of intersection to the centre makes equal angles with the chords.
Answer:
Given: AB and CD are chords intersecting at E.
AB = CD, PQ is the diameter.
To prove: ∠BEQ = ∠CEQ
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 - 3
Construction: OM ⊥ AB and ON ⊥ CD. OE is joined.
In ∆OEM and ∆OEN,
OM = ON (AB = CD and Equal chords are equidistant from the centre)
OE = OE (Common)
∠OME = ∠ONE = 90° (Perpendiculars)
∆OEM = ∆OEN (by RHS congruence criterion)
Thus, ∠OME = ∠ONE (by CPCT)
⇒ ∠BEQ = ∠CEQ

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4

Question 4.
If a line intersects two concentric circles (circles with the same centre) with centre O at A, B, C and D, prove that AB = CD (see Fig).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 - 4
Answer:
OM ⊥ AD is drawn from O.
So, OM bisects AD (perpendicular from centre to the chord bisects the chord)
⇒ AM = MD …(i)
Also, OM bisects BC as OM ⊥ BC.
⇒ BM = MC …(ii)
Subtracting (ii) from (i), we get
AM – BM = MD – MC
⇒ AB = CD

Question 5.
Three girls Reshma, Salma and Mandip are playing a game by standing on a circle of radius 5 m drawn in a park. Reshma throws a ball to Salma, Salma to Mandip, Mandip to Reshma. If the distance between Reshma and Salma and between Salma and Mandip is 6 m e ach, what is the distance between Reshma and Mandip?
Answer:
Let A, B and C represent the positions of Reshma, Salma and Mandip respectively.
AB = 6 m and BC = 6 m Radius OA = 5 m
BM ⊥ AC is drawn.
ABC is an isosceles triangle as AB = BC, M is mid-point of AC. BM is perpendicular bisector of AC and thus it passes through the centre of the circle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 - 5
Let, AM = y and OM = x then BM = (5 – x).
Applying Pythagoras theorem in ∆OAM,
OA2 = OM2 + AM2
⇒ 52 = x2 + y2 …(i)
Applying Pythagoras theorem in ∆AMB,
AB2= BM2 +AM2
⇒ 62 = (5-x)2 + y2 …(ii)
Subtracting (i) from (ii), we get
36 – 25 = (5 – x)2 – x2
⇒ 11 = 25 – 10x
⇒ 10x = 14
⇒ x = \(\frac{7}{5}\)

Substituting the value of x in (i), we get
y2 + \(\frac{49}{25}\) =25
⇒ y2 = 25 – \(\frac{49}{25}\)
⇒ y2 = \(\frac{625-49}{25}\)
⇒ y2 = \(\frac{576}{25}\)
⇒ y = \(\frac{24}{5}\)

Thus,
AC = 2 × AM = 2 × y
= 2 × \(\frac{24}{5}\) m = \(\frac{48}{5}\) m = 9.6 m
Distance between Reshma and Mandip is 9.6 m.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4

Question 6.
A circular park of radius 20 m is situated in a colony. Three boys Ankur, Syed and David are sitting at equal distance on its boundary each having a toy telephone in his hands to talk each other. Find the length of the string of each phone.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.4 - 6
Answer:
Let A, B and C represent the positions of Ankur, Syed and David respectively. All three boys at equal distances thus, ABC is an equilateral triangle.
AD ⊥ BC is drawn.
Now, AD is median of ∆ABC and it passes through the centre O.
Also, O is the centroid of the ∆ABC.
OA is the radius of the triangle.
OA = \(\frac{2}{3}\) AD
Let the side of the triangle be a metres
then BD = \(\frac{a}{2}\) m.
Applying Pythagoras theorem in ∆ABD,
AB2 = BD2 + AD2
⇒ AD2 = AB2 – BD2
⇒ AD2 = a2 – (\(\frac{a}{2}\))2
⇒ AD2 = \(\frac{3 a^2}{4}\)
⇒ AD = \(\frac{\sqrt{3} a}{2}\)
OA = \(\frac{2}{3}\) AD
⇒ 20m = \(\frac{2}{3}\) × \(\frac{\sqrt{3} a}{2}\)
⇒ a = \(20 \sqrt{3} \)m
∴ Length of the string is \(20 \sqrt{3} \)m

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Page-184

Question 1.
In the figure, A, B and C are three points on a circle with centre O such that ∠BOC = 30° and ∠AOB = 60°. If D is a point on the circle other than the arc ABC, find ∠ADC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 1
Answer:
Here, ∠AOC = ∠AOB + ∠BOC
∠AOC = 60° + 30°
⇒ ∠AOC = 90°
We know that angle subtended by an arc at centre is double the angle subtended by it at any point on the remaining part of the circle.
∠ADC = \(\frac{1}{2}\) ∠AOC = \(\frac{1}{2}\) × 90° = 45°

Page-185

Question 2.
A chord of a circle is equal to the radius of the circle. Find the angle subtended by the chord at a point on the minor arc and also at a point on the nugor arc.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 2
Answer:
Given: Chord AB is equal to the radius of the circle.
In ∆OAB, OA = OB = AB = radius of the circle.
Thus, AOAB is an equilateral triangle.
∠AOB = 60°
also, ∠ACB = \(\frac{1}{2}\) ∠AOB = \(\frac{1}{2}\) × 60° = 30°
ACBD is a cyclic quadrilateral,
∠ACB + ∠ADB = 180° (Opposite angles of cyclic quadrilateral)
⇒ ∠ADB = 180° – 30° = 150°
Thus, angle subtend by the chord at a point on the minor arc and also at a point on the major arc are 150° and 30° respectively.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Question 3.
In Fig, ∠PQR = 100°, where P, Q and R are points on a circle with centre O. Find ∠OPR.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 3
Answer:
Reflex ∠POR = 2 × ∠PQR = 2 × 100° = 200°
∴ ∠POR = 360° – 200° = 160°
In ∆OPR,
OP = OR (radii of the circle)
∠OPR = ∠ORP
(Angles opposite to equal sides)
Now,
∠OPR + ∠ORP +∠POR = 180°
(Sum of the angles in a triangle)
⇒ ∠OPR + ∠OPR + 160° = 180°
⇒ 2∠OPR= 180°- 160°
⇒ ∠OPR =10°

Question 4.
In Fig, ∠ABC = 69°, ∠ ACB = 31°, find ∠BDC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 14
Answer:
∠BAC = ∠BDC (Angles in the same segment of the circle)
In ∆ABC,
∠BAC + ∠ABC+ ∠ACB =180° (Sum of the angles of a triangle)
⇒ ∠BAC + 69°+ 31° = 180°
⇒ ∠BAC = 180°- 100°
⇒ ∠BAC = 80°
Thus, ∠BDC = 80°

Question 5.
In Fig, A, B, C and D are four points on a circle. AC and BD intersect at a point E such that ∠BEC = 130° and ∠ECD = 20°. Find ∠ BAC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 5
Answer:
∠BAC = ∠CDE
(Angles in the segment of the circle)
In ∆CDE,
∠CEB = ∠CDE + ∠DCE (Exterior angles of the triangle)
=> 130° = ∠CDE + 20°
⇒ ∠CDE =110°
Thus, ∠BAC = 110°

Question 6.
ABCD is a cyclic quadrilateral whose diagonals intersect at a point E. If ∠DBC = 70°, ∠BAC is 30°, find ∠BCD. Further, if AB = BC, find ∠ECD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 6
Answer:
For chord CD,
∠CBD = ∠CAD (Angles in same segment)
∴ ∠CAD = 70°
∠BAD = ∠BAC + ∠CAD
= 30° + 70° = 100°
∠BCD + ∠BAD = 180° (Opposite angles of a cyclic quadrilateral)
⇒ ∠BCD + 100° = 180°
⇒ ∠BCD = 80°
In ∆ABC, AB = BC (given)
∠BCA = ∠CAB (Angles opposite to equal sides of a triangle)
∴ ∠BCA = 30°
Also, ∠BCD = 80°
∴ ∠BCA + ∠ACD = 80°
⇒ 30° + ∠ACD = 80°
∠ACD = 50°
i.e. ∠ECD = 50°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Question 7.
If diagonals of a cyclic quadrilateral are diameters of the circle through the vertices of the quadrilateral, prove that it is a rectangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 7
Answer:
Given: ABCD is a cyclic quadrilateral, whose diagonals AC and BD are diameters of the circle passing through A, B, C and D.
To prove: ABCD is a rectangle
Proof: In AAOD and ACOB AO = CO (Radii of a circle)
OD = OB (Radii of a circle)
∠AOD = ∠COB (Vertically opposite angles)
∴ ∆AOD ≅ ∆COB (By SAS axiom)
∴ ∠AOD S ∠OCB (By CPCT )
∴ AD || BC Similarly AB || CD Hence quadrilateral ABCD is a parallelogram.
∠ABC = ∠BCD = ∠CDA = ∠DAB = 90°
(Angles in the semi-circle)
Thus, ABCD is a parallelogram with each internal angle as 90°. So, ABCD is a rectangle.

Question 8.
If the non-parallel sides of a trapezium are equal, prove that it is cyclic.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 8
Answer:
Given: ABCD is a trapezium where non-parallel sides AD and BC are equal.
Construction: DM and CN are perpendiculars drawn on AB from D and C respectively.
To prove: ABCD is cyclic trapezium.
Proof: In ∆DAM and ∆CBN,
AD = BC (Given)
∠AMD = ∠BNC = 90° (By construction) DM = CN (Distance between the parallel lines)
∆DAM ≅ ∆CBN by RHS congruence criterion.
Now, ∠A = ∠B by CPCT
Also, ∠B + ∠C = 180° (sum of the co-interior angles)
⇒ ∠A + ∠C = 180°

In trapezium ABCD,
∠A + ∠B + ∠C + ∠D = 360°
=> 180° + ∠B + ∠D = 360°
⇒ ∠B + ∠D = 360° – 180°
= 180°
Thus, ABCD is a cyclic trapezium as sum of the pair of opposite angles is 180°.

Page-186

Question 9.
Two circles intersect at two points B and C. Through B, two line segments ABD and PBQ are drawn to intersect the circles at A, D and P, Q respectively (see Fig). Prove that ∠ACP = ∠QCD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 9
Answer:
Chords AP and DQ are joined.
For chord AP,
∠PBA = ∠ACP
(Angles in the same segment) …(i)
For chord DQ,
∠DBQ = ∠QCD
(Angles in same segment) …(ii)
ABD and PBQ are line segments intersecting at B.
∠PBA = ∠DBQ
(Vertically opposite angles) …(iii)
By the equations (i), (ii) and (iii),
∠ACP = ∠QCD

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5

Question 10.
If circles are drawn taking two sides of a triangle as diameters, prove that the point of intersection of these circles lie on the third side.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 10
Answer:
Given: Two circles are drawn on the sides AB and AC of the triangle ΔABC as diameters. The circles intersected at D.
Construction: AD is joined.
To prove: D lies on BC. We have to prove that BDC is a straight line.
Proof: ∠ADB = ∠ADC = 90° (Angle in the semi circle)
Now, ∠ADB + ∠ADC = 90° + 90° = 180°
⇒ BDC is straight line.
Thus, D lies on the side BC.

Question 11.
ABC and ADC are two right triangles with common hypotenuse AC. Prove that ∠CAD = ∠CBD.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 11
Answer:
Given: AC is the common hypotenuse.
∠ABC = ∠ADC = 90°.
To prove: ∠CAD = ∠CBD
Proof: Since, ∠ABC and ∠ADC are 90°.
These angles are in the semi circle. Thus, both the triangles are lying in the semi circle and AC is the diameter of the circle.
⇒ Points A, B, C and D are concyclic.
Thus, CD is the chord.
⇒ ∠CAD = ∠CBD (Angles in the same segment of the circle)

Question 12.
Prove that a cyclic parallelogram is a rectangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.5 - 12
Answer:
Given: ABCD is a cyclic parallelogram.
To prove: ABCD is rectangle.
Proof: ∠1 + ∠2 = 180° (Opposite angles of a cyclic parallelogram)
also, opposite angles of a parallelogram are equal.
Thus,
∠1 = ∠2
⇒ ∠1 + ∠1 = 180°
⇒ ∠1 = 90°
One of the interior angles of the parallelogram is right angle. Thus, ABCD is a rectangle.

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

JAC Class 9th Sanskrit गोदोहनम् Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत – (एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) मल्लिका पूजार्थ सखीभिः सह कुत्र गच्छति स्म? (मल्लिका पूजा के लिए सखियों के साथ कहाँ गई थी?)
उत्तरम् :
काशीविश्वनाथमन्दिरम्। (काशी विश्वनाथ मंदिर में)

(ख) उमायाः पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म? (उमा के दादाजी द्वारा कितने लीटर दूध की अपेक्षा की गई थी?) उत्तरम् :
त्रिंशत-सेटकमितम्। (तीसलीटर)

(ग) कुम्भकारः घटान् किमर्थं रचयति? (कुम्हार घड़े किसलिए बनाता है?)
उत्तरम् :
जीविकाहेतोः (आजीविका के लिए)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(घ) कानि चन्दनस्य जिह्वालोलुपतां वर्धन्ते स्म? (चन्दन के रसना लोभ को कौन बढ़ा रहे थे?)
उत्तरम् :
मोदकानि (लड्)।

(ङ) नन्दिन्याः पादप्रहारैः कः रक्तरञ्जितः अभवत्? (नन्दिनी की लातों से कौन खून से लथपथ हो गया?)
उत्तरम् :
चन्दनः (चन्दन)।

2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत-(पूरे वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्त धेनो कथम् अकुरुताम्? (मल्लिका और चन्दन ने गाय का क्या किया?)
उत्तरम् :
तौ दुग्धदोहनं विहाय मासपर्यन्तं धेनोः सेवाम् एव अकुरुताम्। (उन दोनों ने दूध दोहना त्यागकर महीने भर तक गाय की सेवा की।

(ख) कालः कस्य रसं पिबति? (समय किसका रस पीता है?)
उत्तरम् :
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कर्मणः, आदानस्य, प्रदानस्य च रसं काल: पिवति। (शीघ्र ही कार्य न करने वाले, लेन-देन न करने वाले कर्म का रस समय पी जाता है।)

(ग) घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः किं वदति? (मल्लिका जब घड़ों के मूल्य के लिए अपने आभूषण देना चाहती है तो कुम्हार क्या कहता है?)
उत्तरम् :
कुम्भकारोऽवदत्-पुत्रिके नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वां आभूषणविहीनां कर्तुम्। (कुम्हार ने कहा- पुत्री मैं यह पापकर्म नहीं करूँगा किसी प्रकार भी मैं तुम्हें आभूषण रहित नहीं करूँगा।)

(घ) मल्लिकया किं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणं ज्ञातम्? (मल्लिका क्या देखकर गाय के प्रहार का वास्तविक कारण जान गई।)
उत्तरम् :
चन्दनं रक्तरंजितं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणम् ज्ञातम्। (चन्दन को लहूलुहान देखकर गाय के लात मारने का वास्तविक कारण जान गई।)

(ङ) मासपर्यन्तं धेनो: अदोहनस्य किं कारणमासीत? (महीने भर तक गाय को न दोहने का क्या कारण था?)
उत्तरम् :
प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थायपानः चेत् यत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अतः अदोहनं कृतम्। (प्रतिदिन दोहन करके रखते हैं तो सुरक्षित नहीं रहता। अतः दूध नहीं दुहा गया।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

3. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों को आधार बनाकर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) मल्लिका सखीभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म।
उत्तरम् :
मल्लिकाः काभिः सह धर्मयात्रायै गच्छतिस्म?

(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव स्व प्रातराशस्य प्रबन्धम् अकरोत।
उत्तरम् :
चन्दनः दुग्ध दोहनं कृत्वा एव कस्य प्रबन्धम् अकरोत?

(ग) मोदकानि पूजा निमित्तानि रचितानि आसन्।
उत्तरम् :
कानि पूजा निमित्तानि रचितानि आसन्?

(घ) मल्लिका स्वपतिं चतुरतमं मन्यते।
उत्तरम् :
मल्लिका स्वपतिं कीदृशं मन्यते?

(ङ) नन्दिनी पादाभ्याम् ताडयित्वा चन्दनं रक्तरंजितं करोति?
उत्तरम् :
का पादाभ्याम् ताडयित्वा चन्दनं रक्तरंजितं करोति।

4. मञ्जूषायाः सहायतया भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत-(मंजूषा की सहायता से भावार्थ में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
[गृह व्यवस्थायै, उत्पादयेत्, समर्थकः, धर्मयात्रायाः मंगल कामनाम् कल्याण कारिणः।]
यदा चन्दनः स्वपत्न्या काशी विश्वनाथं प्रति…….विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्य पत्नी तं………. कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते………कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात्…..भवन्तु। मार्गे काचिदपि वाधा तव कृते समस्यां न……..। एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारी स्वतन्त्रतायाः.. आसीत्।
उत्तरम् :
यदा चन्दनः स्वपत्न्या काशी विश्वनाथं प्रति धर्मयात्रायैः विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्य पत्नी तं गृहव्यवस्थायै कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते मंगल कामनाम् कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् कल्याणकारिणः भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधा तव कृते समस्यां न उत्पादयेत्। एतेन सिध्यति यत्। चन्दनः नारी स्वतन्त्रतायाः समर्थकः आसीत्।

5. घटनाक्रमानुसारं लिखत-(घटनाक्रम के अनुसार लिखिए-)
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति।
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति ।
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
उत्तरम् :
(क) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(ख) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथ मन्दिरं प्रति गच्छति।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकता विषये चन्दनं सूचयति।
(घ) चन्दन: उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुम् मासपर्यन्तं दोहनं न करोति।
(ङ) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रा समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
(च) उभौ नन्दिन्याः सर्वविध परिचर्यां कुरुतः।
(छ) उत्सव दिवसे यदा दोग्धुं दोग्धु प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति ।
(ज) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

6. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति इति प्रदत्त स्थाने लिखत-
(निम्न वाक्यों को कौन किससे कहता है, यह दिये हुए स्थान पर लिखिए-)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम् 1

7. पाठस्य आधारेण प्रदत्तपदानां सन्धि/सन्धिविच्छेद वा कुरुत –
(पाठ के आधार पर दिये हुए शब्दों की सन्धि/सन्धि विच्छेद कीजिए-)
उत्तरम्
(क) शिवास्ते – शिवाः + ते
(ख) मनःहरः – मनोहरः
(ग) सप्ताहान्ते – सप्ताह + अन्ते
(घ) नेच्छामि – न + इच्छामि
(ङ) अत्युत्तमः – अति + उत्तमः

8. पाठधारेण अधोलिखित पदानां प्रकृति-प्रत्ययं च संयोज्य/विभज्य वा लिखत –
उत्तरम् :
(क) करणीयम् – कृ + अनीयर् .
(ख) वि + क्री + ल्यप् – विक्रीय
(ग) पठितम् – पठ् + क्त
(घ) ताडय् + क्तवा – ताडयित्वा
(ङ) दोग्धुम् – दुह् + तुमुन्

JAC Class 9th Sanskrit गोदोहनम् Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
‘गोदोहनम्’ इति पाठस्य रचयिता कः? (‘गोदोहनम्’ पाठ का रचयिता कौन है?)
उत्तरम् :
कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदयः ‘गोदोहनम्’ पाठस्य रचयिता अस्ति। (कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय ‘गोदोहनम्’ पाठ के रचयिता हैं।)

प्रश्न: 2.
‘गोदोहनम्’ पाठः कस्मात् पुस्तकात् सङ्कलितः? (‘गोदोहनम्’ पाठ किस पुस्तक से संकलित है?)
उत्तरम् :
‘गोदोहनम्’ पाठः ‘चतुर्दूहम्’ इति एकांकि संग्रहात् सङ्कलितः। (‘गोदोहनम्’ पाठ ‘चतुर्दूहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।)

प्रश्न: 3.
‘गोदोहनम्’ इति पाठस्य नायकः कः? (‘गोदोहनम्’ पाठ का नायक कौन है?)
उत्तरम् :
‘गोदोहनम्’ पाठस्य नायकः चन्दनः अस्ति। (‘गोदोहनम्’ पाठ का नायक चन्दन है।)

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प्रश्न: 4.
का एषा मल्लिका? (यह मल्लिका कौन है?)
उत्तरम् :
एषा मल्लिका ‘गोदोहनम्’ इति एकाङ्कस्य नायिका अस्ति। (यह मल्लिका ‘गोदोहनम्’ एकांकी की नायिका है।)

प्रश्न: 5.
मल्लिका मोदकानि रचयन्ती किं करोति? (मल्लिका लड्डु बनाती हुई क्या कहती है?)
उत्तरम् :
मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति। (मल्लिका लड्डु बनाती हुई मन्दस्वर से शिवस्तुति करती है।)

प्रश्न: 6.
कीदृशः चन्दनः स्वगृहं प्रविशति? (कैसा चन्दन घर में प्रवेश करता है?)
उत्तरम् :
मोदकगन्धमनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः स्वगृहं प्रविशति। (लड्ड की सुगन्ध का अनुभव करता हुआ चन्दन अपने घर में प्रवेश करता है।)

प्रश्नः 7.
मोदकानि अवलोक्य चन्दनः किं करोति? (लड्डुओं को देखकर चन्दन क्या करता है?)
उत्तरम् :
मोदकानि अवलोक्य ‘आस्वादयामि तावत्’ इति उक्त्वा मोदकं ग्रहीतुम् इच्छति। (लड्डुओं को देखकर ‘तो चख लूँ’ कहकर लड्ड लेना चाहता है।)

प्रश्न: 8.
मल्लिकया मोदकानि केन प्रयोजनेन निर्माणितानि? (मल्लिका ने लड्ड किस प्रयोजन से बनाये थे?)
उत्तरम् :
मल्लिकया मोदकानि पूजानिमित्तानि निर्मितानि आसन्। (मल्लिका ने लड्ड पूजा के निमित्त बनाये थे।)

प्रश्न: 9.
मल्लिका कुत्र गच्छति स्म? (मल्लिका कहाँ जा रही थी?)
उत्तरम् :
मल्लिका सखिभिः सह गंगास्नानं कर्तुं काशी विश्वनाथस्य यात्रां सम्पादयितुं गच्छति स्म। (मल्लिका सखियों के साथ गंगा स्नान के लिये काशी विश्वनाथ की यात्रा पर जा रही थी।)

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प्रश्न: 10.
मल्लिकया सह चन्दनस्य गमनं कस्मान्नोचितमासीत्? (मल्लिका के साथ चन्दन का जाना किसलिए उचित नहीं था?)
उत्तरम् :
मल्लिका स्वसखिभिः सह गच्छति स्म अतः तया सह तस्यागमनस्य औचित्यं नासीत्। (मल्लिका अपनी सहेलियों के साथ जा रही थी अत: उसके साथ चन्दन का जाना उचित नहीं था।)

प्रश्न: 11.
यात्रां गच्छन्ती मल्लिका चन्दनं कस्मिन् कार्ये नियुक्तवती? (यात्रा पर जाती मल्लिका ने चन्दन को किस कार्य में नियुक्त किया?).
उत्तरम् :
सा नियुक्तवती यत् त्वं तावत् गृह व्यवस्थां धेनो दुग्धदोहन व्यवस्थां च परिपालय। (उसने नियुक्त किया कि तुम तब तक घर की व्यवस्था और गाय के दूध दोहने के कार्य का पालन करो।)

प्रश्न: 12
धर्मयात्रा प्रस्थाने चन्दनेन मल्लिकायै का कामना कृता? (तीर्थयात्रा पर प्रस्थान करने पर चन्दन ने मल्लिका के लिए क्या कामना की?)
उत्तरम् :
धर्मयात्रा प्रस्थाने चन्दनः मल्लिकायै अकामयत् यत् शिवास्ते सन्तु पन्थानः। (धर्मयात्रा पर प्रस्थान करने पर चन्दन ने मल्लिका के लिए कामना की कि तुम्हारे मार्ग मंगलमय हों।)

प्रश्न: 13.
ग्रामप्रमखस्य महोत्सवाय त्रिंशत सेटकमितं दग्धस्य व्यवस्था केन करणीया आसीत? (ग्राम प्रमुख के महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध की व्यवस्था किसको करनी थी?)
उत्तरम् :
ग्रामप्रमुखस्य महोत्सवाय त्रिंशत सेटकमितं दुग्धस्य व्यवस्था चन्दनेन करणीया आसीत्। (ग्राम प्रमुख के महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध की व्यवस्था चन्दन को करनी थी।)

प्रश्न: 14.
चन्दनः स्त्रीवेष धृत्वा दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्या समीपं कस्मात् आगच्छत्? (चन्दन स्त्रीवेष धारण कर दूध पात्र हाथ में लेकर नन्दिनी के समीप किसलिए गया।)
उत्तरम् :
नित्यमेव मल्लिका एव दुग्धं दोग्धि अतः सा तं मल्लिका इति ज्ञात्वा दुग्धं दद्यात्। (रोजाना मल्लिका ही दूध निकालती थी अतः वह उसे मल्लिका जानकर दूध दे दे।)

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प्रश्न: 15.
मल्लिका कस्याः मातलानी आसीत? (मल्लिका किसकी मामी लगती थी?)
उत्तरम् :
मल्लिका उमायाः मातलानी आसीत्। (मल्लिका उमा की मामी लगती थी।)

प्रश्न: 16.
उमायाः गृहे किमदुग्धमपेक्षते स्म? (उमा के घर पर कितने दूध की अपेक्षा की जा रही थी?)
उत्तरम् :
उमायाः गृहे त्रिंशत सेटकपरिमितं दुग्धमपेक्षते स्मः? (उमा के घर पर तीस लीटर दूध की अपेक्षा थी।)

प्रश्नः 17.
चन्दनेन त्रिंशत सेटकमित दुग्धस्य व्यवस्था कथं चिन्तिता? (चन्दन ने तीस लीटर दूध की व्यवस्था कैसे सोची?)
उत्तरम् :
प्रतिदिनं दोहनं न कृत्वा उत्सव दिवसे एव समग्र दुग्धं धोक्ष्यावः। (प्रतिदिन दोहन न करके उत्सव के दिन ही पूरा दूध दोहन करके।)

प्रश्न: 18.
मल्लिकाचन्दनौ नन्दिनी कथं तोषितः? (मल्लिका और चन्दन नन्दिनी को कैसे सन्तुष्ट करते हैं?)
उत्तरम् :
मल्लिकाचन्दनौ नन्दिनी नीराजनेरापि तोषयतः। (मल्लिका और चन्दन उसे नीराजन से भी सन्तुष्ट करते हैं।)

प्रश्न: 19.
कुम्भकारः कस्य हेतोः घटान् रचयति? (कुम्हार किस प्रयोजन से घड़े बनाता है?)
उत्तरम् :
कुम्भकारः जीविकाहेतोः घटान् रचयति। (कुम्हार आजीविका हेतु घड़े बनाता है।)

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प्रश्न: 20.
जीवनमिदम कीदशमक्तंभकारेण देवेशेन? (यह जीवन देवेश कम्भकार ने कैसा बताया है?)
उत्तरम् :
जीवनमिदं क्षणभङ्करं यथा एष मृत्तिकायाः घटः। (यह जीवन क्षणभंगुर है, जैसे यह मिट्टी का घड़ा।)

प्रश्न: 21.
घटानां मूल्यं देवेशेन कुंभकारेण किं कथितम्? (घड़ों का मूल्य देवेश कुंभकार ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
घटानां मूल्यं पञ्चशतोत्तर रुप्यकाणि देवेशेन उक्तम्। (घड़ों का मूल्य पाँच सौ से ऊपर रुपये देवेश ने बताये।)

प्रश्न: 22.
गोदोहनात् पूर्वम् चन्दनः गां प्रति कथम् आचरति? (गाय दोहने से पूर्व चन्दन गाय के प्रति कैसा व्यवहार करता है?)
उत्तरम् :
चन्दनः धेनुं प्रणम्य मङ्गलाचरण विधाय मल्लिकाम् आह्वयति। (चन्दन गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण करके मल्लिका को आवाज लगाता है।)

प्रश्न: 23.
यदा चन्दनः धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुमिच्छति तदा धेनुः किं करोति? (जब चन्दन गाय के समीप जाकर दोहता है तब गाय क्या करती है?)
उत्तरम् :
यदा चन्दनः धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुमिच्छति तदा सा पृष्ठपादेन प्रहरति। (जब चन्दन गाय के पास जाकर दोहने का प्रयत्न करता है तो गाय पीछे के पैरों से लात मारती है।)

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प्रश्न: 24.
चन्दनः कथं चीत्करोति? (चन्दन चीत्कार क्यों करता है?)
उत्तरम् :
धेनोः पादप्रहारेण ताडितः चन्दनः रक्तरञ्जितः सन् चीत्करोति। (गाय के प्रहार से ताडित हुआ रक्तरंजित चन्दन चीखता है।)

प्रश्न: 25.
धेनुः दोहनाम् अनुमति कथं न ददाति? (गाय दोहने की अनुमति क्यों नहीं देती?)
उत्तरम् :
तस्याः दुग्धं शुष्कं जातम्। (उसका दूध सूख गया था।)

रेखांकितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
मल्लिका मोदकानि रचयन्ती शिवस्तुतिं करोति। (मल्लिका लड्डु बनाती हुई शिवस्तुति करती है।)
उत्तरम् :
मल्लिका कानि रचयन्ती शिवस्तुतिं करोति? (मल्लिका क्या बनाती हुई शिव स्तुति करती है?)

प्रश्न: 2.
शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। (शीघ्र ही पूजन करो।)
उत्तरम् :
शीघ्रमेव किं सम्पादय? (शीघ्र ही क्या करो।)

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प्रश्न: 3.
अहं श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि। (मैं कल प्रातः काशीविश्वनाथ मन्दिर की ओर जाऊँगी।)
उत्तरम् :
अह श्वः प्रातः कं प्रति गमिष्यामि? (मैं कल किसकी ओर जाऊँगी?)

प्रश्न: 4.
वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। (हम सप्ताह के अन्त में लौटेंगे।)
उत्तरम् :
वयं कदा प्रत्यागमिष्यामः? (हम कब लौटेंगे?)

प्रश्नः 5.
मल्लिका त धर्मयात्रायै गता। (मल्लिका तो तीर्थयात्रा पर गई।)
उत्तरम् :
मल्लिका कस्यै गता? (मल्लिका किसके लिए गई?)

प्रश्नः 6.
स: नन्दिन्याः समीपं गच्छति। (वह नन्दिनी के समीप जाता है।)
उत्तरम् :
सः कस्याः समीपं गच्छति? (वह किसके समीप जाता है?)

प्रश्नः 7.
तत्र त्रिंशत सेटकमितं दुग्धमपेक्षते। (वहाँ तीस लीटर दूध की अपेक्षा है।)
उत्तरम् :
तत्र कियत् दुग्धम् अपेक्षते? (वहाँ कितना दूध अपेक्षित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्नः 8.
एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया? (यह व्यवस्था आपको करनी है।)
उत्तरम् :
एषा व्यवस्था कैः करणीया? (यह व्यवस्था किसको करनी है?)

प्रश्न: 9.
प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति। (प्रसन्न वह गाय की बहुत सेवा करता है।)
उत्तरम् :
प्रसन्न सः कस्याः बहुसेवां करोति? (प्रसन्न वह किसकी बहुत सेवा करता है?)

प्रश्न: 10.
मासान्ते दुग्धस्य आवश्यकता भवति। (महीने के अन्त में दूध की जरूरत है।)
उत्तरम् :
दुग्धस्य आवश्यकता कदा भवति? (दूध की जरूरत कब है?)

प्रश्न: 11.
क्रमेण सप्त दिनानि व्यतीतानि। (क्रमशः सात दिन बीत गये।)।
उत्तरम् :
क्रमेण कति दिनानि व्यतीतानि? (क्रमशः कितने दिन बीत गये?)

प्रश्न: 12.
सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति। (सप्ताह के अन्त में मल्लिका लौट आती है।)
उत्तरम् :
सप्ताहान्ते का प्रत्यागच्छति? (सप्ताह के अन्त में कौन लौट आती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 13.
द्वावेव धेनोः सेवायाम् निरतौ भवतः। (दोनों गाय की सेवा में संलग्न हो जाते हैं।)
उत्तरम् :
द्वावेव कस्याः सेवायाम् निरतौ भवतः? (दोनों किसकी सेवा में संलग्न हो जाते हैं ?)

प्रश्न: 14.
कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः। (कभी सींगों पर तेल लगाते हैं।)
उत्तरम् :
कदाचित् कयोः तैलं लेपयतः? (कभी किसको तेल का लेप करते हैं?)

प्रश्न: 15.
रात्रौ नीराजनेन तोषयतः। (रात को दीपक जलाकर सन्तुष्ट करते हैं।)
उत्तरम् :
रात्रौ केन तोषयतः? (रात को किससे सन्तुष्ट करते हैं?)

प्रश्न: 16.
घटरचनायां लीनः गायति। (घड़ा बनाने में तल्लीन गाता है।)
उत्तरम् :
कस्यां लीनः गायति? (किसमें तल्लीन गाता है?)

प्रश्न: 17.
जीवनं मृत्तिका घट इव भङ्गुरः। (जीवन घड़े की तरह भंगुर है।)
उत्तरम् :
जीवन क इव भगुरः? (जीवन किसकी तरह भंगुर है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न: 18.
पञ्चदश घटान् इच्छामि। (पन्द्रह घड़े चाहता हूँ।)
उत्तरम् :
कति घटान् इच्छानि? (कितने घड़े चाहता हूँ?)

प्रश्न: 19.
विक्रणाय एव एतेघटा:? (ये घड़े बेचने के लिए ही हैं।)
उत्तरम् :
कस्मै एक एते घटाः? (ये घड़े किसके लिए हैं ?)

प्रश्न: 20.
मल्लिका स्व आभूषणं दातुम् इच्छति। (मल्लिका अपना आभूषण देना चाहती है।)
उत्तरम् :
मल्लिका किं दातुम् इच्छति ? (मल्लिका क्या देना चाहती है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

योग्यताविस्तारः

‘गोदोहनम्’ एकांकी में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान् और सुखी बनने की इच्छा से अपनी गाय से एक महीने तक दूध निकालना बन्द कर देता है, ताकि महीने भर के ध को एक साथ निकालकर बेचकर धनवान् बन सके। इस प्रकार एक मास पश्चात् जब वह गाय को दुहने का प्रयास करता है तब अत्यधिक दूध का तो कहना ही क्या। उसे दूध की एक बूंद भी नहीं मिलती, एक साथ दूध के स्थान पर उसे मिलते हैं गाय के पैरों से प्रहार जिससे आहत और रक्तरजित होने पर वह जमीन पर गिर पड़ता है। इस घटना से वहाँ उपस्थित सभी यह समझ जाते हैं कि यथासमय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।

उपायं चिन्तयेत् प्राज्ञस्तथापायं च चिन्तयेत्।
पश्यतो बकमूर्खस्य नकुलेन हताः बकाः॥

बुद्धिमान व्यक्ति उपाय पर विचार करते हुए अपाय अर्थात् उपाय से होने वाली हानि के विषय में भी सोचे हानिरहित उपाय ही कार्य सिद्ध करता है। अपाय युक्त उपाय नहीं जैसे कि अपने बच्चो को साँप द्वारा खाए जाते हुए देखकर एक बगुले ने नेवले. का प्रबन्ध साँप को खाने के लिए किया जो कि साँप को खाने के साथ-साथ सभी बगुलों को भी बच्चों सहित खा गया। अतः ऐसा उपाय सदैव हानिकारक होता है, जिसके अपाय पर विचार न किया जाए।

“अविवेकः परमापदां पदम्”

गोदोहनम् – एकाङ्की पढ़ाते समय आधुनिक परिवेश से जोड़ें तथा छात्रों को समझाएँ कि कोई भी कार्य यदि नियत समय पर न करके कई दिनों के पश्चात् एक साथ करने के लिए संगृहीत किया जाता रहता है तो उससे होने वाला लाभ-हानि में परिवर्तित हो सकता है।

अतः हमें सदैव अपने सभी कार्य यथासमय करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। पाठ की कथा नाटकीयता के साथ ही छात्रों को यह भी बताएँ कि इस नाटक से तात्कालिक समाज का परिचय भी मिलता है कि घर की व्यवस्था स्त्री-पुरुष मिलकर ही करते थे तथा स्त्री को स्वतन्त्र निर्णय लेने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त था।

गोदोहनम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – यह नाट्यांश कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से संक्षिप्त एवं सम्पादित कर उद्धृत किया गया है। इस नाटक में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान् और सुखी होने का इच्छुक है। वह महीने भर तक गाय का दूध दोहना छोड़ देता है ताकि महीने के अन्त में गाय के शरीर में सञ्चित पर्याप्त दूध एक बार में ही निकाल लिया जाये और उसे बेचट र्याप्त सम्पत्ति अर्जित करने में समर्थ हो सके।

परन्तु महीने के अन्त में जब वह दूध दोहने लगा तो उसे दूध की एक बूंद भी नहीं मिली। दूध के स्थान पर वह गाय के प्रहारों से लहूलुहान हो गया तथा समझ गया कि दैनिक कार्य यदि महीने भर तक इकट्ठा करके किये जायें तो लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। इस घटना से यह शिक्षा मिलती है कि यथा समय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।

मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंगहिन्दी-अनुवादः, सप्रसंग संस्कृत-व्यारव्याःअवबोधन कार्यम्च

(प्रथम दृश्यम्)

1. (मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)

चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः (विलोक्य) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्। (मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम्) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थ क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्?
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।

शब्दार्थाः – मल्लिका = मल्लिका (मल्लिका), मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डुओं का), रचयन्ती = निर्माणं कुर्वन्ती, मन्दस्वरेण = शनैः शनै निम्न स्वरेण वा (धीरे-धीरे अथवा नीचे स्वर में), शिव = महेशस्य (शिव की), स्तुति करोति = स्तुतिं गायति (स्तुति करती है), ततः = तत्पश्चात् (तब), मोदकगन्धम् = लड्डुकानां (लड्डुओं की), गन्धम् = सुवासम् (सुगन्धि का), अनुभवन् = अनुभवं कुर्वन् (महसूस करता हुआ), प्रसन्नमना = प्रसन्नचित्तः (खुश हुआ), चन्दनः प्रविशति = चन्दनः प्रवेशं करोति (चन्दन प्रवेश करता है), अहा! = (अरे), सुगन्धस्तु = सुरभिस्तु (सुगन्ध तो), मनोहरः = मनमोहका (मन को मोहने वाली),

विलोक्य = दृष्ट्वा (देखकर), अये = अरे, मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डू), रच्यन्ते = निर्मीयन्ते (बनाये जा रहे हैं), प्रसन्नो भूत्वा = प्रसीदितः सन् (प्रसन्न होकर), आस्वादयामि तावत् = तदा स्वादं गृह्णामि (तो चखता हूँ), मोदकं = लड्डुकम् (लड्डू को), गृहीतुम् इच्छति = ग्रहीतुमीहते (लेना चाहता है), सक्रोधम् = सकोपम् (नाराजी के साथ), विरम-विरम = तिष्ठ-तिष्ठ (ठहर-ठहर), मा स्पर्श = स्पर्श मा कुरु (छुओ मत), एतानि = इमानि (इनि), मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डुओं को),

किमर्थम् = कस्मात् (किसलिए, कैसे), क्रुध्यसि = प्रकुपसि (क्रोध करते हो), तव = ते (तेरे), हस्त = कर (हाथ के), निर्मितानि = रचितानि (बने हुए), मोदकानि = लड्डुकानि (लड्डुओं को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), अहं जिह्वा-लोलुपताम् = अहं रसनायाः लिप्साम् (मैं जीभ की लिप्सा को), नियन्त्रयितुम् = संयन्तुम् (काबू करने में), अक्षमः अस्मि = असमर्थोऽस्मि (असमर्थ हूँ), किम् = असि (क्या), त्वम् = भवति (आप), न जानासि = न जानाति (नहीं जानती हो), इदम् = एतत् (यह), नाथ = स्वामिन् (स्वामी), .. सम्यग् = सुष्ठुः (अच्छी तरह), जानामि = जानती हूँ), परम् = परञ्च (लेकिन, परन्तु), एतानि मोदकानि = इमानि लड्डुकानि (ये लड्डू), पूजानिमित्तानि सन्ति = पूजनाय रचितानि (पूजा के लिए बनाये गये हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से सङ्कलित है।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में नायिका मल्लिका को लड्डु बनाते हुए दिखाया है। जिन्हें चन्दन चखना चाहता है तथा मल्लिका ‘ये भगवान की पूजा के लिए हैं’ ऐसा कहकर रोक देती है।
हिन्दी-अनुवाद – (मल्लिका लड़ बनाती हुई मन्दस्वर से शिवजी की स्तुति करती है, न्ध का अनुभव करता हुआ. प्रसन्नचित्त चन्दन प्रवेश करता है।)
चन्दन – अहा! सुगन्ध तो मनमोहक है। (देखकर) अरे क्या लड्डू बनाये जा रहे हैं? (प्रसन्न होकर) तो चखता हूँ। (लड्डू लेना चाहता है)
मल्लिका – (क्रोधसहित) रुको, रुको! मत छुओ इन लड्डुओं को।
चन्दन – नाराज क्यों हो रही हो। तुम्हारे हाथ के बने लड्डुओं को देखकर जीभ के लालच को काबू में करने में असमर्थ हूँ, क्या तुम इसे जानती हो?
मल्लिका – अच्छी तरह जानती हूँ स्वामी ! परन्तु ये लड्ड पूजा के प्रयोजन से बनाये हैं। संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुत नाट्यांशः अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। एषः पाठः कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि संग्रहात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)
प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे नायिका मल्लिका मोदकानि रचयन्ती दर्शिता। चन्दनः नायकः तानि स्प्रष्टुम् इच्छति परञ्च मल्लिका ‘एतानि मोदकानि पूजा निमित्तानि सन्ति’ इत्युक्त्वा वारयति। (इस नाट्यांश में नायिका मल्लिका लड्ड बनाती दिखाई गई है। चन्दन नायक उन्हें छूना चाहता है परन्तु मल्लिका उसे “ये लड्ड पूजा के लिए बनाये हैं” ऐसा कहकर रोक देती है।)
व्याख्या – (मल्लिका लड्डकानि निर्माणं कुर्वन्ती शनैः-शनैः निम्नस्वरेण वा महेशस्य स्तुतिं गायति। तत्पश्चात् लड्डकानां सुवासस्य अनुभवं कुर्वन् प्रसन्नचित्तः चन्दनः प्रवेशं करोति।) (मल्लिका लड्ड बनाती हुई मन्द स्वर में शिवजी की आरती गाती है। तब लड्डुओं की सुगन्ध का अनुभव करता हुआ प्रसन्नचित्त चन्दन प्रवेश करता है।)
चन्दनः – सुरभिः तु मनमोहका। (दृष्ट्वा) अये! लड्डकानि निर्मीयन्ते? (प्रसीदितः सन्) तदा स्वाद गृहणामि। . (लड्डुकम् ग्रहीतुमीहते)। (सुगन्धि तो मन को मोह लेने वाली है। (देखकर) अरे ! लड्डु बनाये जा रहे हैं? (प्रसन्नचित्त होते हुए) तो चखता हूँ। (लड्ड लेना चाहता है।))
मल्लिका – (सकोपम्) तिष्ठ! तिष्ठ! स्पर्श मा कुरु इमानि लड्डूकानि। ((नाराज हुई) रुको, रुको! छुओ मत इन लड्डुओं को।)
चन्दनः – कस्मात् प्रकुपसि? ते कर-रचितानि लड्डुकानि अवलोक्य अहं रसनायाः लिप्सां संयमपितुं असमर्थो अस्मि। अपि भवती न जानानि एतत् ? (नाराज क्यों होती हो। तुम्हारे हाथ के बने लड्ड देखकर मैं जीभ की लालसा को काबू में करने में असमर्थ हूँ। क्या आप इसे नहीं जानती?)
मल्लिका – स्वामिन् ! सुष्ठु जानामि अहम्। परञ्च इमानि लड्डकानि पूजनाय रचितानि। (स्वामी! अच्छी तरह जानती हूँ मैं, परन्तु ये लड्ड पूजा के लिए बनाये गये हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका मोदकानि रचयन्ती किं करोति? (मल्लिका लड्डू बनाती हुई क्या करती है?)
(ख) मोदकानां सुगन्धः कीदृशी आसीत् ? (लड्डुओं की सुगन्ध कैसी थी?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मोदकानि कि निमित्तानि निर्मितानि? (लड्डू किस निमित्त बनाये गये थे?)
(ख) मल्लिका किं कुर्वती आसीत् ? (मल्लिका क्या कर रही थी?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘असमर्थः’ इति पदस्य पर्यायवाचि पदं गद्यांशात् लिखत।
(‘असमर्थ पद का समानार्थी पद गद्यांश से लिखिए।)
(ख) “एतानि मोदकानि’ इति पदयोः विशेषण विशेष्य पदं निर्दिशत।
(‘एतानि मोदकानि’ इन पदों में विशेषण-विशेष्य पद बताइये।)
उत्तराणि :
(1) (क) शिव स्तुतिम् (शिव की स्तुति)।
(ख) मनोहरः (मन को हरने वाली)।

(2) (क) मोदकानि पूजा निमित्तानि निर्मितानि। (लड्डू पूजा के निमित्त बनाये गये थे।)
(ख) मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति। (मल्लिका लड्डू बनाती हुई मन्द स्वर से शिव स्तुति गाती है।)

(3) (क) अक्षमः (असमर्थः) ।
(ख) विशेषणपदम्-एतानि (ये) विशेष्यम्-मोदकानि ।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

2. चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादया प्रसादं च देहि।
मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्थां, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्था: – तर्हि = तदा (तो), शीघ्रमेव = क्षिप्रमेव (जल्दी ही), पूजनं = पूजाकार्यम् (पूजा के), सम्पादय = सम्पन्न कुरु (सम्पन्न करो), भोः = अरे (अजी), अत्र पूजनं = अत्र पूजाकार्यम् न (यहाँ फूजा कार्य नहीं), भविष्यति = सम्पाद्यते (होगा), अहं स्वसखिभि = अहं स्व सहचरीभिः (मैं अपनी सहेलियों के), सह = सार्धम् (साथ), स्वः प्रातः = आगामि-दिवसे (कल), प्रातः = प्रभाते (सुबह), काशीविश्वनाथ-मन्दिरं प्रति गमिष्यामि = काशीविश्वनाथ मन्दिरं यास्यामि (काशी विश्वनाथ मन्दिर जाऊँगी), तत्र = तत्रस्थाने (वहाँ), गङ्गा-स्नानम् = भागीरथी-अवगाहनम् (गंगा स्नान),

धर्मयात्राञ्च = तीर्थयात्रा च (और तीर्थयात्रा), वयं करिष्यामः = सम्पादयिष्यामः वयम् (हम करेंगे), सखिभिः सह = सहचरीभिः साकम् ? (सहेलियों के साथ), न मया सह! = न-मया सार्धम् (मेरे साथ नहीं), विषादं नाटयति = खेदस्य अभि नयं करोति (खेद का अभिनय करता है), आम् = (हाँ) चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी कपिला आद्याः (चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि), सर्वाः = सकलाः (सभी), गच्छन्ति = यानि (जा रही हैं),

अतः मया सह = मत्सार्धम् (मेरे साथ), तवागमनस्य = ते गन्तुं (तुम्हारा जाना), औचित्यं नास्ति = नोचितम् (उचित नहीं है), वयं सप्ताहन्ते = वयं सप्तदिनानि अतीत्य (हम सात दिन बाद), प्रत्यागमिष्यामः = प्रत्यायाष्यामः (लौटेंगे), तावत् गृह व्यवस्थाम् = तावत् गृहस्य व्यवस्थाम् (घर की व्यवस्था को), धेनोः दुग्ध दोहन व्यवस्थांच = गावः पयो दोग्धं च प्रबन्धम् (गाय का दूध दोहने की व्यवस्था), परिपालय = सम्पादय (प्रबन्ध या व्यवस्था करना)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पाठ कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर जाने की तैयारी करते हुए घोषणा करती है। हिन्दी-अनुवाद .. चन्दन – तो शीघ्र ही पूजा सम्पन्न कर लो और प्रसाद दे दो।

मल्लिका – अरे! यहाँ पूजन नहीं होगा। मैं अपनी सहेलियों के साथ कल प्रातः काशी विश्वनाथ मन्दिर जाऊँगी वहाँ हम गंगा-स्नान और तीर्थयात्रा करेंगे। चन्दन – सखियों के साथ ! मेरे साथ नहीं ! (दुःख का अभिनय करता है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

मल्लिका – हाँ, चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सभी जा रही हैं। अत: मेरे साथ तुम्हारा आना उचित नहीं है। हम सप्ताह के अन्त में लौट आयेंगे। तब तक घर की व्यवस्था को और गाय के दोहने की व्यवस्था का पालन करना। संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतो नाट्यांशोऽस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। प्रस्तुतः पाठः कृष्णचन्द्रत्रिपाठी महाभाग रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पाठ कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी महाभाग द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम् ‘ एकाङ्की-संग्रह से सङ्कलित है।)

प्रसङ्ग – अस्मिन् नाट्यांशे मल्लिका स्व सखिभिः सह तीर्थयात्रां गमनाय सज्जां कुर्वन्ती घोषयति। (इस नाट्यांश में मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर जाने की तैयारी करती हुई घोषणा करती है।)

व्याख्याः – चन्दन- तदा क्षिप्रमेव पूजाकार्य सम्पन्नं कुरु। नैवेद्यं यच्छ। (तो शीघ्र ही पूजा का कार्य पूरा करो। प्रसाद दे दो।)

मल्लिका – अरे! अत्र पूजाकार्यं न सम्पाद्यते। अहं सहचरीभिः सार्धं आगामि-दिवसे प्रभाते एव काशीविश्वनाथ मन्दिरं यास्यामि, तत्स्थाने भागीरथी-अवगाहनं तीर्थयात्रां च सम्पादयिष्यामः। (अरे, यहाँ पूजन नहीं किया जायेगा। मैं अपनी सहेलियों के साथ कल प्रातः काल ही काशीविश्वनाथ के मन्दिर जायेंगे, वहाँ गंगा में स्नान करेंगे तथा तीर्थयात्रा सम्पन्न करेंगे। )

चन्दनः – सहचरीभिः साकम्? न मया सार्धम्। खेदस्य अभिनयं करोति। (क्या सहेलियों के साथ? मेरे साथ नहीं? (खेद का अभिनय करता है।))

मल्लिका – आम्! चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी कपिलाद्याः सकला: यान्ति अत: मत्सार्धं ते गन्तु नोचितम्। वयं सप्त दिनानि अतीत्य प्रत्यायास्यामः। तावत् गृहस्थ व्यवस्थां, गावः पयोदोग्धुं च प्रबन्धं सम्पादय। (हाँ, चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सभी जा रही हैं। अत: मेरे साथ आपको जाना उचित नहीं है। हम सात दिन व्यतीत कर आयेंगे, तब तक गृहस्थ का प्रबन्ध और गाय का दूध दोहने का प्रबन्ध करना।)

अवबोधन कार्यम

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका सखिभिः सह कुत्र गमिष्यति? (मल्लिका सखियों के साथ कहाँ जायेगी?)
(ख) मल्लिका कदा प्रत्यागमिष्यति? (मल्लिका कब लौटेगी?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका काशी गत्वा किं करिष्यति? (मल्लिका काशी जाकर क्या करेगी?)
(ख) प्रस्थानकाले मल्लिका चन्दनं किं कथयति? (चलते समय मल्लिका चन्दन से क्या कहती है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘न मया सह’ अत्र ‘मया’ सर्वनाम पदं कस्य संज्ञापदस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(‘न मया सह’ यहाँ ‘मया’ सर्वनाम पद किस संज्ञा पद के स्थान पर प्रयोग किया गया है?)
(ख) ‘विषादं नाटयति’ इति वाक्ये ‘नाटयति’ क्रियापदस्य कर्ता कः?
(‘विषादं नाटयति’ वाक्य में ‘नाटयति’ क्रियापद का कर्ता कौन है?)
उत्तराणि :
(1) (क) काशीविश्वनाथमन्दिरम्। (काशी विश्वनाथ मन्दिर।)
(ख) सप्ताहान्ते (सप्ताह बाद)।
(2) (क) मल्लिका काशी गत्वा गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च करिष्यति। (मल्लिका काशी जाकर गंगा स्नान और धर्म यात्रा करेगी।)
(ख) मल्लिका कथयति-वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत् गृहव्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहन-व्यवस्था च ….. परिपालय। (मल्लिका कहती है-हम सप्ताह के अन्त में लौटेंगे, तब तक घर की व्यवस्था और गाय के
दूध दोहने की व्यवस्था का पालन करना।) (क) चन्दनेन (चन्दन)। (ख) चन्दनः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(द्वितीय दृश्यम्)

3. चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानि तु गङ्गास्नानार्थ काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?

शब्दार्था: – अस्तु = भवतु (खैर), गच्छ = यादि (जाओ), सखिभिः सह = सहचरीभिः सार्धम् (सहेलियों के साथ), धर्मयात्रया = तीर्थयात्रा गमनेन (तीर्थयात्रा पर जाने से), आनन्दिता च भव = आत्मानम् सानन्दं कुरु (अपने को.आमन्त्रित करो), अहं सर्वमपि = अहं सकलमपि (मैं सभी को), पालयिष्यामि = सम्पादयिष्यामि (कर लूँगा), ते = तव (तेरे), पन्थान = मार्गाः (मार्ग), शिवाः = शुभाः (शुभ), सन्तु = भवन्तु (हों), मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता = मल्लिका तु तीर्थयात्रायै गता (मल्लिका तो तीर्थयात्रा के लिए गई),

अस्तु = भवतु (खैर), दुग्धदोहनं कृत्वा = पयोदुग्ध्वा (दूध निकालकर), ततः = तदा (तब), स्वप्रातराशस्य = आत्मनः प्रभात भोजनस्य (अपने कलेवा, नास्ते का), प्रबंन्धं = व्यवस्था (प्रबध), करिष्यामि = सम्पादयिष्यामि (करूँगा), स्त्रीवेष – नारीपरिधानम् (स्त्री का वेष), धृत्वा = धारयित्वा (धारण कर), दुग्धपात्रहस्तः = पयः पात्रं करे नीत्वा (दूध का बर्तन हाथ में लेकर), नन्दिन्याः = धेनोः (गाय के), समीपम् = समक्षं (समीप), गच्छति = भगति (जाता है),

मातुलानि! = मातृ-भ्रातृ-जाये मातुः भ्रातुः जाये वा (मामीजी), उमे! अहं तु मातुलः = अहन्तु तव मातृ-भ्राता (मैं तो तेरा मामा हूँ), तवते (तेरी) मातुलानि = मातृ-भ्रातृ-जाया (मामी जी), तु गङ्गास्नानार्थं = भागीरथी-अवगाहनाय (गंगाजी स्नान करने के लिए), काशींगता अस्ति = काशी तीर्थयात्रा (काशी तीर्थ को गई है), कथय = ब्रूहि (कहा), किं ते = किं तव (तुम्हारा क्या), प्रियं करवाणि = शुभं करवै (प्रिय करूं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।
प्रसंग – इस नाट्यांश में मल्लिका के गंगास्नान चले जाने पर चन्दन की व्यवस्था के विषय में बताया है।

हिन्दी-अनुवाद

चन्दन – (खैर, जाओ, सखियों के साथ तीर्थयात्रा से आनन्दित हो। मैं सब सम्पन्न कर लूँगा। तुम्हारी राहें शुभ अर्थात् कल्याणकारी हों।)
चन्दन – (मल्लिका तो तीर्थयात्रा के लिए गयी। खैर दूध दोहकर तब अपने कलेवे का प्रबन्ध करूँगा। (स्त्री वेष धारण कर दूध का बर्तन हाथ में लिए हुए नन्दिनी के समीप जाता है।)
उमा – (मामी जी, मामी जी।)
चन्दन – (अरी उमा! मैं तो मामा हूँ। तेरी मामी जी तो गंगा स्नान के लिए काशी गई हुई हैं। कहो मैं तुम्हारा क्या भला (इच्छित) करूँ?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भः – प्रस्तुतः नाट्यांशः अस्माकम् ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। प्रस्तुतः पाठः कृष्णचन्द त्रिपाठी रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितः। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी कृत् चतुर्ग्रह एकांकी संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – अस्मिन् नाट्यांशे मल्लिकायां तीर्थयात्रां गते चन्दनस्य व्यवस्थाया वर्णनम् अस्ति। (इस नाट्यांश में मल्लिका के यात्रा पर चले जाने पर चन्दन की व्यवस्था का वर्णन है।)

व्याख्या: –

चन्दनः – भवतु । याहि। सहचरीभिः सार्धम्, तीर्थयात्रागमनेन आत्मानम् सानन्दं कुरु। अहम् सकलम् अपि सम्पाद यिष्यामि। तव मार्गाः शुभाः भवन्त। (खैर! जाओ! सहेलियों के साथ तीर्थयात्रा से अपने को आनन्दित करो, मैं सब कुछ सम्पन्न कर लूँगा। तुम्हारे मार्ग शुभ हों।)

चन्दनः – मल्लि तु तीर्थयात्रायै याता। भवतु। पयो दुग्ध्वा आत्मनः प्रभातभोजनस्य व्यवस्थां विधास्यामि। (नारी परिधानं धारयित्वा पयः पात्रं करे नीत्वा नन्दिन्याः धेनोः समक्षं याति।) (मल्लिका तो तीर्थयात्रा के लिए गई। खैर, दूध दुहकर अपने कलेवा की व्यवस्था करूँगा। (औरत के कपड़े पहनकर दूध का बर्तन हाथ में लेकर नन्दिनी गाय के पास जाता है।))
उमा – मातृ-भ्रातु-जाये! मातुभ्रातुः जाये! (मामी जी, मामी जी!)
चन्दनः – उमे! अहं तु ते मातृ-भ्राता। ते मातृ-भ्रातु जाया तु भागीरथी अवगाहनाय काशीतीर्थं गता। ब्रूहि, किं तव शुभं करवै? (उमा, मैं तो मामा हूँ। तेरी मामी जी तो गंगास्नान के लिए काशीतीर्थ गई हुई हैं। कहो मैं तुम्हारा क्या भला करूँ।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका कुत्र गता? (मल्लिका कहाँ गई?)
(ख) चन्दनस्य धेनोः नाम किम् आसीत् ? (चन्दन की गाय का नाम क्या था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः मल्लिका प्रति किं वरं वितरति? (चन्दन मल्लिका को क्या आशीष देता है?)
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा किं करिष्यति? (चन्द दूध दोहकर क्या करेगा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘नन्दिन्याः समीपं गच्छति’ अत्र गच्छति क्रियायाः कर्तृपदं लिखत।
(‘नन्दिन्याः समीपं गच्छति’ यहाँ गच्छति क्रिया का कर्ता लिखिए।)
(ख) ‘दूरम्’ इति पदस्य विलोमपदं नाट्यांशात् लिखत? (‘दूरम्’ पद का विलोम पद नाट्यांश से लिखिए?)
उत्तराणि :
(1) (क) धर्मयात्रायै। (धर्म यात्रा के लिए)।
(ख) नन्दिनी।

(2) (क) शिवास्ते सन्तु पन्थानः। (तुम्हारे मार्ग शुभ हों।)
(ख) स्व प्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यति। (अपने. कलेवा का प्रबन्ध करेगा।)

(3) (क) चन्दनः।
(ख) समीपम् (पास)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

4. उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम्! शोभनम्। दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्थाः – मातुल = मातुल! (मामाजी), पितामहः = पितुर्जनक (दादाजी), कथयति = सूचयति (कहते हैं), मासानन्तरम् = व्यतीतेमासे (एक माह पश्चात्), अस्मत् गृहे = अस्माकम् आवासे (हमारे घर), महोत्सवः = महत्पर्व (महान उत्सव), भविष्यति = प्रवर्तिष्यते (होगा), तत्र = तस्मिन् (उसमें), त्रिंशत-सेटकमितं (तीस लीटर) दुग्धम् अपेक्षते = दुग्धस्य आवश्यकता भविष्यति (दूध की आवश्यकता होगी), एषा व्यवस्था = अस्य प्रबन्धं (इसका इन्तजाम),

भवद्भिः करणीया = भवन्त कुर्मुः (आपको करना है), प्रसन्नमनसा = प्रसन्नचित्तेन (प्रसन्नचित्त से), त्रिशत-सेटककपरिमितं. दुग्धम् = त्रिंशत-सेटकपरिमितं पयः (तीस लीटर दूध), शोभनम् = सुन्दरम् (अच्छा), दुग्धव्यवस्था = पयसः प्रबन्धं (दूध की व्यवस्था), भविष्यति एव = विधास्यते एव (हो ही जायेगी), इति पितामहं प्रति = इति पितुर्जनकं (ऐसा दादाजी से), त्वया वक्तव्यम् = त्वम् कथयेत् (तुम कह देना), धन्यवाद मातुल! = धन्यो भवान् मातुल (मामाजी आप धन्य हैं), याम्यधुना = गच्छामि इदानीम् (अब जा रही हूँ), सा निर्गता = असौ निष्क्रान्ता (वह निकल गई)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।

प्रसंग-इस नाट्यांश में मामा चन्दन को उमा महोत्सव के लिए दूध की आवश्यकता बताते हुए कहती है।

हिन्दी अनुवादः

उमा – मामाजी, दादाजी कहते हैं कि एक महीने बाद हमारे घर में एक बड़ा उत्सव होगा। वहाँ तीस लीटर दूध की आवश्यकता होगी। यह व्यवस्था आपको करनी है।

चन्दन – (प्रसन्नचित्त) तीस लीटर दूध! बहुत अच्छा, दूध का प्रबन्ध होना ही है, ऐसा दादाजी से आपको कह देना चाहिए।

उमा – धन्यवाद मामाजी, अब जाती हूँ! (वह निकल गई) संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयम् कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचितात ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि संग्रहात् संकलितः। (यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकाङ्की संग्रह से संकलित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रसङ्गः – नाट्यांशे अस्मिन् मातुलम् चन्दनम् उमा महोत्सवे दुग्धस्य मात्रायाः विषये तस्य व्यवस्थायै च कथयति। (इस नाट्यांश में मामा चन्दन को उमा महोत्सव में दूध की मात्रा के विषय में और उसकी व्यवस्था के विषय में कहती है।)

व्याख्या:

मातुलः – मातुल! मम पितुर्जनकः सूचयति यत् व्यतीतेमासे अस्माकं आवासे एकं महत् पर्व प्रवतिष्यते। तस्मिन् उत्सवे त्रिंशत सेटकमितस्य पयसः आवश्यकता भविष्यति। अस्य प्रबन्धं भवन्तु एव कुर्युः। (मामाजी! मेरे दादाजी सूचित करते हैं कि एक माह पश्चात् हमारे घर पर एक बड़ा उत्सव होगा। उस उत्सव तीस लीटर दूध की आवश्यकता होगी। इसका प्रबन्ध आपको करना है।)

चन्दनः – (प्रसन्नचित्तेन) त्रिंशत सेटकमितं पयः? सुन्दरम्। पयसः प्रबन्धं विधास्यते एव इति पितुर्जनकं त्वं कथयेत्। ((प्रसन्न मन से) तीस लीटर दूध! बहुत अच्छा। दूध का प्रबन्ध कर ही दिया जायेगा ऐसा तुम दादी से कह देना।)

उमा – धन्यो भवान्, मातुल! गच्छामि इदानीम् (असौ निष्क्रान्ता) (धन्य हैं आप, मामाजी! अब मैं जाती हूँ। (वह निकल गई))

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) उत्सवाय दुग्धस्य व्यवस्था केन करणीया? (उत्सव के लिए दूध की व्यवस्था किसके द्वारा की जानी है?)
(ख) महोत्सवाय किमद् दुग्धम् अपेक्षितम्? (महोत्सव के लिए कितना दूध अपेक्षित है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) उमा चन्दनाय किं निवेदयति? (उमा चन्दन से क्या निवेदन करती है?)
(ख) चन्दनः दुग्धस्य विषये उमायै किं कथयति? (चन्दन दूध के विषय में उमा से क्या कहता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘निर्गता’ इति पदे उपसर्ग लिखत? (‘निर्गता’ पद में उपसर्ग लिखिये?)
(ख) ‘गृहे महोत्सवः भविष्यति’ अत्र भविष्यति क्रियापदस्य कर्तृपदं लिखत।
(‘गृहे महोत्सवः भविष्यति’ यहाँ भविष्यति क्रिया का कर्ता कौन है?)
उत्तराणि :
(1) (क) चन्दनेन। (चन्दन द्वारा)।
(ख) त्रिंशत-सेटका (तीस लीटर)।

(2) (क) मातुल! मासान्तरे अस्मद् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत्-सेटकं दुग्धम् अपेक्षित। व्यवस्था भवद्भिः एव करणीया। (मामाजी! महीनेभर बाद हमारे घर पर महोत्सव होगा, वहाँ तीस लीटर दूध की अपेक्षा है। प्रबन्ध आपको करना है।)
(ख) दुग्धस्य व्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं त्वया वक्तव्यम्। (दूध की व्यवस्था हो ही जायेगी, ऐसा दादाजी से तुम कह देना।)

(3) (क) निर् उपसर्ग।
(ख) ‘महोत्सवः’ इति कर्ता।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(तृतीय दृश्यम्)

5. चन्दनः – (प्रसन्नो भूत्वा, अङ्गलिषु गणयन्) अहो! सेटक-त्रिशतकानि पयासि! अनेन हुभनं लप्स्ये।
(नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति).

चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्ध सुरक्षितं न तिष्ठति। इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि।
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति)

शब्दार्थाः – पन्नो भत्वा = प्रफल्ल सन (प्रसन्न होकर), अङलिष गणयन = अली पर्वस गणनां कर्वन (अँगलियों पर गिनते हुए), सेटक-त्रिंशतकानि पयांसि = सेटक त्रिशतकम् दुग्धं (तीस लीटर दूध), अनेन तु = एतेन तु (इससे तो), बहुधनं लप्स्ये = प्रभूतं धनं प्राप्स्यामि (बहुत धन प्राप्त कर लूँगा), नन्दिनीं दृष्ट्वा = नन्दिनीत्यभिधां धेनुम् अवलोक्य (नन्दिनी नामक गाय को देखकर), भो नन्दिनि! = भोः नन्दिनि (अरी नन्दिनी), तव कृपया तु = ते अनुकम्पयातु (तेरी कृपा से तो),

अहं धनिकः भविष्यामि = अहं धनवान् भविष्यामि (मैं धनवान हो जाऊँगा), प्रसन्नः सः = प्रसीदितोऽसौ (वह खुश हुआ), धेनोः = गावः (गाय की), बहु = प्रभूतं (बहुत), सेवाम् = सपर्या (सेवा), करोति = विदधाति (करता है), चिन्तयति = विचारयति (सोचता है), मासान्ते एव = मासान्तरमेव (महीने के बाद ही), दुग्धस्य = पयसि (दूध की), आवश्यकता = अपेक्षितानि (आवश्यकता होगी), यदि प्रतिदिनम् = अहरहः (प्रत्येक दिन), दोहनं करोमि = (गां दुग्धं दोदिभ) गाय का दूध दोहता हूँ, तर्हि = तदा (तव), दुग्धम् = पयः (दूध),

सुरक्षितं न तिष्ठति = असुरक्षितो भविष्यति (सुरक्षित नहीं रहेगा), इदानीम् = अधुना (अब), किं करवाणि = किं कुर्याम् (क्या करूँ?), भवतु नाम = अस्तु (खैर), मासान्ते एव = मास काले एव (महीने भर बाद ही), सम्पूर्णतया = सम्पूर्णम् एव (सारा ही), दुग्ध दोहनं करोमि = दोहनयामि (दोहन कर लूँगा), एवं क्रमेण = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), सप्ताहान्ते = सप्ताहनमेक (एक सप्ताह), व्यतीतानि = व्यतीतोऽभवत् (बीत गया), सप्ताहान्ते = सप्त दिनान्तरे (सात दिन बाद), मल्लिका प्रत्यागच्छति = मल्लिका प्रत्यायाति निवर्तते वा (लौट रही है)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – इस नाट्यांश में चन्दन तीस लीटर दूध की व्यवस्था के विषय में सोचता है कि गाय को रोजना दोहने की अपेक्षा महीने के अन्त में ही दोह लूँगा ताकि एक साथ तीस लीटर दूध उपलब्ध हो सके।

हिन्दी अनुवादः

चन्दन – (प्रसन्न होकर उँगलियों पर गिनते हुए) अरे! तीस लीटर दूध! उससे तो बहुत-सा धन प्राप्त कर लूँगा। (नन्दिनी को देखकर) अरी नन्दिनी ! तेरी कृपा से तो मैं धनवान हो जाऊँगा (प्रसन्न हुआ वह गाय की बहुत सेवा करता है।)
चन्दन – (सोचता है) महीने के अन्त में ही दूध की आवश्यकता होती है। यदि प्रत्येक दिन दूध निकालता हूँ तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। अब क्या करूँ? अच्छा तो महीने के अन्त में ही पूरा दूध दोह लूँगा।
(इस प्रकार क्रमशः सात दिन व्यतीत हो जाते हैं, सप्ताह के अन्त में मल्लिका लौट आती है।)

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संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ पाठात् उद्धृतः। अयं पाठः कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितः अस्ति। (यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्ण चन्द्र त्रिपाठी रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकांकी संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन चन्दनः त्रिंशत सेटकमितस्य दुग्धस्य व्यवस्थाया विषये चिन्तयति। धेनुं प्रतिदिनं दोहनात तु मासान्ते दोहनवरम् येन एकदा सेटकत्रिंशतकम् दुग्धं प्राप्तं भविष्यति । (इस नाट्यांश में चन्दन तीस लीटर दूध की व्यवस्था के विषय में सोचता है। गाय को रोजाना दोहने की अपेक्षा महीने के अन्त में दोहना उचित रहेगा, जिससे एक दिन ही तीस लीटर दूध प्राप्त हो जायेगा।)

चन्दनः – (प्रफुल्लः सन्, अङ्गुली पर्वसु गणनां करोति।) अरे! त्रिंशत सेटकमितं दुग्ध! एतेन तु प्रभूतं वित्तं प्राप्स्यमि। (नन्दिनीत्याभिद्यां ध धेनुमवलोक्य) भो नन्दिनि! तेऽनुकम्पया तु अहं धनवान् भविष्यामि। प्रसीदितोऽसौ गावः प्रभूतं सपर्यां विदधाति। ((प्रसन्न होकर अँगुलियों पर गिनती करता है।) अरे तीस लीटर दूध! इससे तो बहुत धन प्राप्त होगा। (नन्दिनी नामक गाय को देखकर) अरी नन्दिनी! तेरी कृपा से तो मैं धनवान हो जाऊँगा।)

चन्दनः – (विचारयति) मासान्तरम् एव पयसि अपेक्षितानि यदि अहरहः गां दुग्धं दोह्नि तदा पयः असुरक्षितो भविष्यति अधुना किं कुर्याम्। अस्तु, मासकाले एव धोक्ष्यामि सम्पूर्ण सेटक त्रिशतकं दुग्धम्। ((सोचता है) अनेन प्रकारेण सप्ताहनमेकं व्यतीतम्। सप्त दिनान्तरे मल्लिका निवर्तते महीने बाद दूध की आवश्यकता होगी। यदि नित्य गाय का दूध दोहता हूँ तो दूध असुरक्षित होगा। अब क्या करूँ। खैर, महीने का समय बीतने पर पूरा तीस लीटर दूध एक साथ दोह लूँगा। इस प्रकार सप्ताह व्यतीत हो गया। सात दिन के बाद मल्लिका लौटती है।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) दुग्धस्य गणितं केषु करोति? (दूध का हिसाब किन पर करता है?)
(ख) दुग्धस्य आवश्यकता कदा भविष्यति? (दूध की आवश्यकता कब होगी?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः नन्दिनी किं कथयति? (चन्दन नन्दिनी से क्या कहता है?)
(ख) दुग्धस्य विक्रयं श्रुत्वा चन्दनः आश्चर्यं किमचिन्तयत?
(दूध के विक्रय को सुनकर चन्दन ने आश्चर्य से क्या सोचा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘भूत्वा’ इति पदे मूलधातु-निर्देशं कुरुत्। (भूत्वा’ पद में मूल धातु का निर्देश करो।)
(ख) ‘प्रत्यागच्छति’ क्रियापदस्य कर्तृपदं लिखत। (‘प्रत्यागच्छति’ क्रिया का कर्तृपद लिखो।)
उत्तराणि :
(1) (क) दुग्धस्य आवश्यकता मासान्ते भविष्यति। (दूध की आवश्यकता महीने के अंत में होगी।)।
(ख) नन्दिनि ! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (नन्दिनि! तेरी कृपा से तो मैं धनवान् हो जाऊँगा।)

(2) (क) नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (नन्दिनि! तेरी कृपा से तो मैं धनवान् हो जाऊँगा।)
(ख) ‘अनेन तु बहुधनं लप्स्ये।’ इति अचिन्तयत्। (‘इससे तो बहुत धन मिलेगा’ यह सोचता है।)

(3) (क) भू धातुः।
(ख) मल्लिका (सा)।

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6. मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्। (चन्दनः मोदकानि खादति वदति च)
चन्दनः – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम्) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम्?

शब्दार्थाः-प्रविश्य = प्रवेशं कृत्वा (प्रवेश करके), स्वामिन् = नाथ (स्वामी), प्रत्यागता अहम् = अहं प्रत्यावृता (मैं लौट आई), आस्वादय प्रसादम् = नैवेद्यं स्वादयतु (प्रसाद चखना), चन्दनः मोदकानि = चन्दनः लड्डकानि (चन्दन लड्डुओं को), खादति = अत्ति (खाता है), वदति च = कथयति च (और कहता है), मल्लिके! = मल्लिके! (अरी मल्लिका), तव = ते (तेरी), यात्रा = तीर्थयात्रा तु (तीर्थयात्रा तो),

सम्यक् सफला जाता = सुसम्पन्न अभवत् (अच्छी तरह पूरी हो गई), काशीविश्वनाथस्य कृपया = काशीविश्वनाथस्य अनुकम्पया (काशीविश्वनाथ की कृपा से), प्रियं निवेदयामि = एकं सुखदं वृत्तं कथयामि (एक शुभ समाचार सुनाता हूँ), साश्चर्यम् = सविस्मयम् (आश्चर्य के साथ), एवम् = इत्यम् (ऐसे), धर्मयात्रातिरिक्तं = तीर्थयात्राम् अतिरिच्य (तीर्थयात्रा से भी बढ़कर), प्रियतरं किम् = एमस्मादसि शोभनम् किम् (इनसे भी अधिक सुन्दर क्या है)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।
प्रसंग – इस नाट्यांश में मल्लिका यात्रा से लौट आई है तथा अपने पति के साथ संवाद करती है।
मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं लौट आई हूँ। प्रसाद चखो। (चन्दन लड्डू खाता है और बोलता
चन्दन – मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो अच्छी तरह सफल हो गई। काशी विश्वनाथ की कृपा से प्रिय निवेदन करता हूँ।
मल्लिका – (आश्चर्य के साथ) ऐसी बात है। धर्मयात्रा के अतिरिक्त और क्या अधिक प्रिय हो सकता है?

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति । पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-विरचितात् ‘चतुर्दूहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन् मल्लिका तीर्थयात्रां समाप्य प्रत्यागच्छति स्वपतिं च संवदति। (इस नाट्वांश में मल्लिका तीर्थयात्रा समाप्त कर लौट आई है। अपने पति से संवाद करती है।

व्याख्याः-

मल्लिका – (प्रवेशं कृत्वा) नाथ! अहं प्रत्यावृता। नैवेद्यस्य स्वादयतु। (चन्दनः लड्डकानि अत्ति कथयति च।) (प्रवेश करके) स्वामी! मैं लौट आई। प्रसाद चखो। (चन्दन लड्डू खाता है और कहता है।)
चन्दन – मल्लिके! ते तीर्थयात्रा तु सुसम्पन्ना अभवत् ? काशी विश्वनाथस्य अनुकम्पया एक सुखदवृत्तं कथयामि। (अरी मल्लिका? तेरी तीर्थ यात्रा तो अच्छी तरह पूरी हो गई न? काशी विश्वनाथ जी की कृपा से एक सुखद समाचार सुनाता हूँ।)
मल्लिका – (सविस्मयम्) इत्थम्। तीर्थयात्रामतिरिच्य किं एतस्माद् अपि शोभनतरम्? (आश्चर्य के साथ) इस प्रकार तीर्थयात्रा से बढ़कर, इससे भी अधिक और क्या सुखद समाचार होगा?)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कः मोदकं खादति (कौन लड्डू खाता है?)
(ख) ‘आस्वादय प्रसादम्’ इति केनोक्तम्? (‘आस्वादय प्रसादम्’ यह किसने कहा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)”
(क) गृहं प्रविश्य मल्लिका चन्दनं किम कथयत्? (घर में प्रवेश करके मल्लिका ने चन्दन से क्या कहा?)
(ख) चन्दनः मल्लिकां किम् अपृच्छत् ? (चन्दन से मल्लिका ने क्या पूछा?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) नाट्यांश ‘खादति’ क्रियायाः कर्तृपदं किम्? (नाट्यांश में ‘खादति’ क्रिया का कर्ता कौन है?)
(ख) ‘प्रियतरम्’ इत्यत्र प्रत्ययं पृथक् कृत्वा लिखत। (‘प्रियतरम्’ यहाँ प्रत्यय को अलग करके लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) चन्दनः (चन्दन)।
(ख) मल्लिकया (मल्लिका द्वारा)।

(2) (क) ‘स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्। (स्वामी मैं आ गई। प्रसाद चखिये।)
(ख) ‘मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? इति चन्दनेन पृष्टम्। (मल्लिके! तुम्हारी यात्रा तो अच्छी तरह सफल हो गई? ऐसा चन्दन ने पूछाः।)

(3) (क) चन्दनः।
(ख) तरम्-प्रत्यय।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

7. चन्दनः – ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति ।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः।
चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्याव:। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः।

शब्दार्थाः – मल्लिका प्रति = (मल्लिका से)! ग्रामप्रमुखस्य = ग्राम प्रधानस्य (ग्राम प्रधान के), गृहे = आवासे (घर पर), मासान्ते = मासान्तरम् (महीने भर बाद), महोत्सवः = महत्वपूर्णम् आयोजनः (महत्वपूर्ण आयोजन), भविष्यति = आयोज्यते (होगा), तत्र = तस्मिन् आयोजने (उस आयोजन में), त्रिंशत सेटकमितं = (तीस लीटर), दुग्धम् = पयः (दूध), दातव्यम् = दद्याम् (देंगे), किन्तु = परं च (परन्तु), एतावन्मात्रम् = इयन्मात्राम् (इतनी मात्रा में), दुग्धम् = पयः (दूध), कुतः = कथम् (कैसे या कहाँ से), प्राप्स्याम = लप्स्यामः (प्राप्त करेंगे),

विचारय मल्लिके! = मल्लिके त्वं चिन्तय (मल्लिका तुम सोचो), प्रतिदिनम् = नित्यम् यदिवयं (यदि हम रोजाना), दोहनं कृत्वा = दुग्धा (दोहन कर), दुग्धं = पयः (दूध को), स्थापयामः = सञ्चयं करिष्याम (इकट्ठा करेंगे), चेत् तत् = तदा तु (तब तो), सुरक्षितं न तिष्ठति = असुरक्षितं भविष्यति (असुरक्षित होगा) अत एव (अत:), दुग्ध दोहनं न क्रियते = गां दुग्धं न दुग्ध्वा (दूध न दोहकर), उत्सवदिवसे = आयोजनस्य दिवसे एव (उत्सव के दिन ही),

समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः = सम्पूर्णस्य पयसः दोहनं करिष्यामः (सम्पूर्ण दूध क दोह लेंगे), स्वामिन् = नाथ! (स्वामी), त्वं चतुरतमः = भवान् पटुतम (आप सबसे अधिक चतुर हैं), अत्युत्तमः विचारः = भवत् चिन्तनं तु श्रेष्ठः (आपका चिन्तन तो श्रेष्ठ है।), अधुना = इदानीम् (अब), दुग्ध दोहनम् विहाय = पयः न दुग्ध (दूध न दोहकर), नन्दियाः = धेनो (गाय की), सेवाम् = सपर्यामेव (सेवा ही), करिष्यावः = विधास्याव (करेंगे), अनेन = एवं (इससे), अधिकाधिकं दुग्धं = प्रभूततरं पयः (अधिकतम दूध), मासान्ते = मासस्य अन्ते उत्सव दिवसे (महीने के अन्त के उत्सव दिवस पर), प्राप्स्यावः = लप्स्यावः (प्राप्त कर लेंगे)।

हिन्दी-अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन महीने के अन्त में ग्राममुखिया के घर पर होने वाले महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध की व्यवस्था के लिये योजना बनाता है।

चन्दन – (मल्लिका के प्रति) गाँव के मुखिया के घर पर महीने के अन्त में महान् उत्सव होगा। वहाँ तीस लीटर दूध हमें देना है। मल्लिका – किन्तु इतना दूध कहाँ से प्राप्त करेंगे?
चन्दन – सोचो मल्लिका! हर रोज दूध दुहकर रख देंगे परन्तु वह सुरक्षित नहीं रहेगा। अतः दूध का दोहन न किया जाये। उत्सव के दिन ही सारा दूध दोह लेंगे।
मल्लिका – स्वामी! तुम तो सबसे अधिक चतुर हो। बहुत उत्तम विचार है। अब दूध दोहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। इससे अधिक-से-अधिक दूध महीने के अन्त में प्राप्त कर लेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुव्यूहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे चन्दन: मासान्ते ग्रामप्रधानस्य गृहे प्रवृत्तमानाय उत्सवाय त्रिंशत सेटकमितं दुग्ध-प्रदानाय योजनां. रचयति। (प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन महीने के अन्त में ग्राम प्रधान के घर पर होने वाले महोत्सव के लिए तीस लीटर दूध देने की योजना बनाता है।

व्याख्या:

चन्दनः – (मल्लिकां प्रति) प्रिये! मासानन्तरं ग्रामप्रधानस्य आवासे महत्वपूर्णः आयोजनं आयोज्यते। तस्मिन् आयोजने वयं त्रिंशत सेटकपरिमितं पयः दद्याम। (चन्दन (मल्लिका से) प्रिये एक महीने बाद गाँव के प्रमुख के घर पर एक महान् उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। उस आयोजन में हमें तीस लीटर दूध देना है।)
मल्लिका – परञ्च इयत् मात्रां पयः कथं लप्स्यामः? (परन्तु इतनी मात्रा में दूध कैसे प्राप्त करेंगे?)
चन्दनः – मल्लिके! त्वं चिन्तय। यदि वयं नित्यं पयः दुग्धा सञ्चयं करिष्यामः तदा तु असुरक्षितं भविष्यति। इति विचिन्त्य वयं प्रतिदिनं गां न दुग्ध्वा आयोजनस्य दिवसे एव सम्पूर्णस्य पयसः दोहनं करिष्यामः। (मल्लिका, तू सोच। यदि हम रोजाना दूध दोह कर संचय करेंगे तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। यह सोचकर हम प्रतिदिन गाय का दूध न निकाल कर आयोजन के दिन ही सारा दूध दोह लेंगे।)
मल्लिकाः – नाथ! भवान् तु पटुतम। भवतो विचारः तु श्रेष्ठः। इदानीं तु पयः न दुग्ध्वा नन्दिन्याः सपर्याम् एव विधास्वावः। एवम् प्रभूततरं पयः उत्सवदिवसे लप्स्यावः। (स्वामी, आप तो बहुत चतुर हैं। आपका विचार उत्तम है। अब तो गाय का दूध न दोहकर नन्दिनी की मात्र सेवा करेंगे। इस प्रकार बहुत सारा दूध उत्सव के दिन प्राप्त हो जायेगा।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) महोत्सवः कस्य गृहे आसीत्? (महोत्सव किसके घर में था?)
(ख) चन्दनः कदा सर्व दुग्धं धोक्ष्यति? (चन्दन सारा दूध कब दोहेगा?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनेन ग्रामप्रमुखाय कियत् दुग्धं देयम् आसीत् ? (चन्दन को ग्राम मुखिया के लिए कितना दूध देना है?)
(ख) मल्लिकया चन्दनः कथं परामृष्टः? (मल्लिका ने चन्दन को क्या परामर्श दिया?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘लप्स्यावः’ इति क्रियापद स्थाने नाट्यांशे किं क्रियापदं प्रयुक्तम्?
(‘लप्स्यावः’ क्रियापद के स्थान पर नाट्यांश में कौन सा क्रियापद प्रयुक्त किया है?)
(ख). ‘चेत् तत् संरक्षितं न तिष्ठति’ अत्र ‘तत्’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(‘चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति’ यहाँ ‘तत्’ सर्वनाम का प्रयोग किसके लिए हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) ग्रामप्रमुखस्य (ग्राम-प्रधान के लिए।)
(ख) उत्सवदिवसे (उत्सव वाले दिन)।

(2) (क) चन्दनेन ग्रामप्रमुखाय त्रिंशत-सेटकमितं दुग्धं देयम् आसीत्। (चन्दन को ग्राम-प्रमुख के लिए तीस लीटर दूध देना था।)
(ख) अधुना दुग्ध दोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। (अब दूध दोहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा करेंगे।)

(3) (क) प्राप्स्यावः (प्राप्त करेंगे)।
(ख) दुग्धम् (दूध)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

8. (द्वावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः। अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः। कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः)

चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकारं प्रति चलावः। दुग्धार्थ पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः। (द्वावेव निर्गतौ)

शब्दार्था: – द्वावेव = मल्लिका चन्दनौ उभौ एव (मल्लिका और चन्दन दोनों ही), धेनोः = गावः (गाय की), सेवायाम् = सपर्यायाम् (सेवा में), निरतौ भवतः = संलग्नौ आस्ताम् (लग गये), अस्मिन् क्रमे = एतस्मिन्नेव प्रसङ्गे (इसी प्रसंग में), घासादिकं गुडादिकं च = शष्पादिकं गुडादिकं च (घास और गुड़ आदि), भोजयतः = खादयतः (खिलाते हैं), कदाचित् = कदाचन (कभी), विषाणयोः = श्रृंगयोः (सींगों पर),

तैलं लेपयतः = स्नेहलेपनं कुरुतः (तेल आदि चिकना लेप करते हैं), तिलकं = पुण्ड्रकं (तिलक), धारयतः = (लगाते हैं), रात्रौ = निशायाम् (रात में), नीराजनेनापि = दीप प्रदानेन (दीपक जलाकर), तोषयतः = सन्तुष्टं कुरुतः (सन्तुष्ट करते हैं), मल्लिके! आगच्छत = मल्लिका आयाति (मल्लिका आओ), कुम्भकारं प्रति चलावः = कुम्भकारस्य गृहं प्रति गच्छावः (कुम्हार के घर चलते हैं), दुग्धार्थम् = दुग्धस्य कृते (दूध के लिए), पात्र-प्रबन्धोऽपि = समुचित भाजनस्य, भाण्डस्य व्यवस्थापि (समुचित पात्र की व्यवस्था भी), करणीयः = कर्त्तव्या (करनी है), द्वावेव = उभावेव (दोनों ही), निर्गतौ = निष्क्रान्तौ (निकल गये)। हिन्दी-अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम् पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन और मल्लिका को नन्दिनी गाय की पूजार्चना एवं सेवा तथा अलंकृत करते हुए बताया
हिन्दी अनुवादः (चन्दन और मल्लिका) दोनों ही गाय की सेवा में संलग्न हो जाते हैं अर्थात् जुट जाते हैं। इसी क्रम में उसे घास तथा गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी सींगों पर तेल मलते हैं, तिलक लगाते हैं तथा रात में दीपक जलाते हुए सन्तुष्ट करते हैं।

चन्दन – मल्लिका, आओ। कुम्हार के पास चलते हैं। दूध के लिए बर्तन की व्यवस्था भी तो करनी है। (दोनों निकल जाते हैं।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे मल्लिकाचन्दनौ नन्दिन्याः सपर्यां कुर्वन्तौ दर्शितौ। (प्रस्तुत नाट्यांश में मल्लिका और चन्दन नन्दिनी की सेवा करते हुए दिखाये गये हैं।)

व्याख्याः – (मल्लिका चन्दनश्च उभौ एव गावः सपर्यायां संलग्नौ आस्ताम्। एतस्मिन् एव प्रसङ्गे शास्पादिक गुडादिकं च खादयतः। कदाचन शृंगयोः स्नेह-लेपन कुरुतः कदाचित् पुण्डूक धारयत निशायां च दीप प्रदानेन सन्तुष्टं कुरुतः। ((मल्लिका और चन्दन दोनों ही गाय की सेवा में लगे हुए है।) इसी क्रम में घास आदि गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी सींगों को चिकनाई से लेप करते हैं। कभी तिलक करते हैं तथा रात में दीपक रखकर सन्तुष्ट करते हैं।)

चन्दनः – मल्लिके! आयाहि। कुम्भकारस्य गृहं प्रति गच्छावः। पयसः कृते समुचितं भाजनस्य भाण्डस्य वा असि व्यवस्था कर्त्तव्या। (उभावेव निष्क्रान्तौ।) (मल्लिका! आओ। कुम्हार के घर की ओर चलते हैं। दूध के लिये समुचित पात्र की भी व्यवस्था करनी है। (दोनों निकलते हैं।))

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) द्वावेव कस्य सेवायां निरतौ भवतः? (दोनों किसकी सेवा में तल्लीन हो गये?)
(ख) धेनोः विषाणयोः किं लेपयतः? (गाय के सींगों पर क्या लेपते हैं?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कुम्भकारं प्रति तौ कस्मात् गच्छतः? (कुम्हार के पास वे दोनों क्यों जाते हैं?)
(ख) धेनुं तौ किं खादयत:? (गाय को वे दोनों क्या खिलाते हैं?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-‘)
(क) ‘दिवसे’ इति पदस्य विलोमपदम् नाट्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘दिवसे’ इस पद का विलोम पद नाट्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘स्नानेन’ इति पदस्य स्थाने नाट्यांशे किं. पदं प्रयुक्तम्?
(‘स्नानेन’ पद के स्थान पर किस पद का प्रयोग नाट्यांश में किया गया है।)
उत्तराणि :
(1) (क) नन्दिन्याः (नन्दिनी की)।
(ख) तैलम् (तेल)।

(2) (क) दुग्धार्थ पात्र-प्रबन्धाय कुम्भकार प्रति गच्छावः।
(दूध के पात्रों के प्रबन्ध के लिए कुम्हार के पास जाते
(ख) धेनुं तौ घासादिकं गुडं च भोजयतः। (गाय को घासादि व गुड़ आदि खिलाते हैं।)

(3) (क) रात्रौ (रात में)।
(ख) नीराजनेन (दीपक की आरती से)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

(चतुर्थं दृश्यम्)

9. कुम्भकारः – (घटरचनायां लीन: गायति)
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम्।
जीवनं भङ्गरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघटः।।

चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान्। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि।

शब्दार्थाः – घटरचनायां = मृत्पात्र निर्माणे तल्लीनः (घड़ा बनाने में रत) गायति (गाता है), यथा एषः = यथा अयम् (जैसे यह), मृत्तिका घटः = मृणपात्र/मृद्घटः (मिट्टी का घड़ा), भङ्गुरः = भजनशीलः (नाशवान, फूटने वाला है), तथैव = तथा एव (वैसे ही), सर्वम् = सम्पूर्णम् (सारा), जीवनम् = जीवितम् असि (जीवन भी), क्षणिकः = (क्षणमात्र रहने वाला है), ज्ञात्वा अपि = इति ज्ञानन् असि (ऐसा जानते हुए भी), जीविका हेतो = आजीविकार्थम् (आजीविका के लिए), घटान् अहम् = कलशान् अहम् (घड़ों को मैं), रचयामि = निर्माणं करोति (रचना कर रहा हूँ),

नमस्करोति तात! = नमाम्यहं बन्धो (नमस्कार बन्धु), पञ्चदश घटान् इच्छामि = पञ्चदश कलशान् ईहे (पंद्रह घड़े चाहता हूँ), किं दास्यामि = अपि प्रदास्यामि (क्या दे दोगे?), कथं न = कस्मात् न (क्यों नहीं), विक्रयणाय एव एते = इमे घटाः विक्रेतुमेव सन्ति (ये घड़े बेचने के लिए ही हैं), गृह्मण घटान् = आत्मीय कुरु कलशान् (घड़ों को अपनाओ), पञ्चशतोत्ररुप्यकाणि च देहि = पञ्चशतोत्तर रूप्यकाणि यच्छ (पाँच सौ से अधिक रुपये दो)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन गाय के शरीर में एकत्रित दूध को रखने के लिए कुम्हार के पास घड़े खरीदने जाता है तथा उनकी कीमत ज्ञात करता है।

हिन्दी अनुवाद –

कुम्भकार – (घड़ा बनाने में व्यस्त हुआ गाता है) जिस तरह यह मिट्टी का घड़ा क्षण भंगुर है उसी प्रकार यह सारा जीवन क्षणभंगुर है, इसको जानकर भी मैं घड़ों का निर्माण करता हूँ। हे तात! मैं आपको नमस्कार करना चाहता हूँ, पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। क्या दोगे?
देवेशः – क्यों नहीं? बेचने के लिए ही तो हैं ये। घड़े ले लो और पांच सौ रुपये दो। संस्कत-व्याख्याः
सन्दर्भ: – नाट्याशोऽयम् अस्माकं शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्दूहम्’ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुते नाट्यांशे चन्दनः धेनोः शरीरात् संकलितं दुग्धं सुरक्षितं रक्षितुं कुम्भकारस्य समीपे घटान् क्रेतुम् गच्छति तेषां मूल्यं च जानाति। (प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन गाय के शरीर से एकत्रित दूध को सुरक्षित रखने के लिए कुम्हार के पास घड़े खरीदने जाता है और उनका मूल्य ज्ञात करता है।)

व्याख्या:

घटनिर्माताः – (मृत्पात्र निर्माणे तल्लीनः सन् गायति।) यथा अयं मृद्घटः भञ्जनशीलः अस्ति तथा एव सम्पूर्ण
जीवन अपि क्षणिकः इति ज्ञात्वा अपि अहं आजीविकार्थं कलशानां निर्माणं करोमि। ((घड़ा 42 संस्कृत प्रभा, कक्षा )
बनाने में तल्लीन होकर गाता है। जैसे यह मिट्टी का घड़ा फूटने वाला है वैसे ही यह सम्पूर्ण जीवन भी क्षणिक है, यह जानते हुए भी मैं आजीविका के लिए कलशों (घड़ों) का निर्माण करता हूँ।)
चन्दनः – नमाम्यहं बन्धो! पञ्चदश कलशान् ईहे। अपि प्रदास्यसि? (नमस्कार बन्धु! पन्द्रह घड़े चाहिये।
क्या दोगे?) देवेशः कस्मात् न, इमे घटाः विक्रेतुम् एव सन्ति। आत्मीय कुरु कलशान्। पञ्चशतोत्तर रूप्यकाणि
यच्छ। (क्यों नहीं, ये घड़े बेचने के लिए ही तो हैं। घड़ों को अपना बनायें और पाँच सौ से
अधिक रुपये दे जाओ।) अवबोधन कार्यम् प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कुम्भकारः कस्यां लीनः गायति? (कुम्हार किसमें लीन हुआ गाता है?)
(ख) कुम्भकारः कस्य हेतोः घटं रचयत? (कुम्हार किस के हेतु घड़ा बनाता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कुम्भकारः जीवन-रहस्यं कथं जानाति? (कुम्हार जीवन के रहस्य को कैसे जानता है?)
(ख) चन्दनः कति घटान् इच्छति? (चन्दन कितने घड़े चाहता है?)

प्रश्न 3. यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘गायति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘गायति’ क्रियापद का कर्त्तापद नाट्यांश से चुनकर लिखो।)
(ख) ‘यथैषः’ पदे सन्धिविच्छेदं कुरुत। (‘यथैषः’ पद में सन्धि विच्छेद करो।)
उत्तराणि :
(1) (क) घटरचनायाम् (घड़ा बनाने में)।
(ख) जीविकाहेतोः (जीविका के लिए)।

(2) (क) जीवनं भगुरं सर्वं यथैवः मृत्तिका घटः। (पूरा जीवन मिट्टी के घड़े की तरह क्षणभंगुर है।)
(ख) चन्दनः पञ्चदश घटान् इच्छति। (चन्दन पन्द्रह घड़े चाहता है।)

(3) (क) कुम्भकारः (कुम्हार)।
(ख) यथा + एषः।

10. चन्दनः – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते।
देवेशः – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।

शब्दार्थाः – साधु = उत्तम (बहुत अच्छा), परं = परञ्च (परन्तु), मूल्यं तु = राशि तु (मूल्य तो), दुग्धं विक्रीय = पयः विक्रयणे (दूध बिकने पर ही), दातुं शक्यते = देया एव भविष्यति (दिया जा सकता है), क्षम्यतां पुत्र! = क्षमस्व वत्स (बेटा क्षमा करो), मूल्यं विना = मूल्यन्तरेण (बिना मूल्य के), एकमपि घट न दास्यामि = एकमपि कलशं न दातुं शक्नोमि (एक भी घड़ा नहीं दे सकता), स्वाभूषणं = आत्मनः अलङ्कराणि (अपने आभूषण), दातुमिच्छति = दातुमीहते (देना चाहती है), तात! यदि अधुनैव = तात! चेत् इदानीमेव (तात! यदि अभी), मूल्यम् आवश्यकम् = मूल्यं देयम् (कीमत देनी है), तर्हि = तदा (तो),

गृहाण एतद् आभूषणम् = स्वीकरोतु इदम् अलंकारम् (यह आभूषण स्वीकार कीजिए), पुत्रिके = वत्से (बेटी), नाहं पापकर्म करोमि = अहम् एवं पापकर्म कर्तु न क्षमः (मैं ऐसा पाप नहीं कर सकता), कथमपि = केनापि प्रकारेण (किसी प्रकार), त्वाम् = भवती (आपको), आभूषणविहीनाम् = अनाभूषिताम् (आभूषणरहित) कर्तुम्, नेच्छामि = विधातुं न ईहे (करना नहीं चाहता), यथाभिलषितान् घटान् = यथेच्छम् मृत्पात्राणि (इच्छानुसार घड़े) नयतु (ले जाओ), दुग्धं = पयांसि (दूध), विक्रीय एव = विक्रय एव (बेचकर ही), घटमूल्यम् ददातु = घटवित्तं ददातु (घड़े की राशि/मूल्य दे देना), धन्योऽसि = धन्यवादा) (धन्य हो), तात! धन्योऽसि = भवान् धन्य (आप धन्य हैं)।

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्दूहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन देवेश कुम्भकार से घड़े खरीदने जाता है लेकिन देवेश बिना मूल्य के घड़े नहीं देता परन्तु फिर वह दूध बिकने पर मूल्य लेने को तैयार हो जाता है। दोनों कुम्हार को धन्यवाद देकर आ जाते हैं।

हिन्दी अनुवादः

चन्दन – बहुत अच्छा! परन्तु मूल्य तो मैं दूध बेचकर ही दे सकता हूँ।
देवेश – क्षमा कीजिए बेटा, बिना मूल्य के तो एक भी घड़ा नहीं दूंगा।
मल्लिका – अपने आभूषणों को देना चाहती है। तात! यदि म की अभी आवश्यकता है तो लो ये आभूषण।
देवेश – बेटी ! मैं ऐसा पाप कर्म नहीं करूँगा। किसी भी तरह . तुम्हें आभूषणरहित नहीं करना चाहता।
जितनी इच्छा है उतने घड़े ले जाओ। दूध बेचकर ही घड़ों का मूल्य दे देना। धन्य हो तुम तात! तुम धन्य हो।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। ((यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्दूहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।))

प्रसङ्गः – नाट्यांशेऽस्मिन् चन्दनः घटान् क्रेतुं देवेशं कुम्भकारं प्रति गच्छति। देवेश मूल्यं विना घटान् न ददाति परञ्चासौ दुग्धे विक्रय मूल्यं ग्रहीतं स्वीकरोति। उभौ कम्भकाराय धन्यवादं वितीर्य गहमागच्छतः। (इस नाट्यांश में चन्दन घड़े खरीदने देवेश कुम्हार के पास जाता है। देवेश बिना मूल्य घड़े नहीं देता है। परन्तु वह दूध बिकने पर मूल्य लेना स्वीकार कर लेता है। दोनों कुम्हार को धन्यवाद देकर घर आ जाते हैं।)

व्याख्याः

चन्दनः – सुष्ठु, परञ्च राशिस्तु पयो विक्रयणे एव देया एव भविष्यति। (ठीक है, परन्तु राशि तो बिकने पर ही देना सम्भव होगा।)

देवेश – क्षमस्व वत्स, मूल्यमन्तरेण तु एकम् अपि कलशं न दातुं शक्नोमि। (क्षमा कीजिए बेटा! मूल्य के बिना तो एक भी घड़ा नहीं दे सकता।)
मल्लिका – (आत्मनः अलङ्काराणि दातम ईहते) तात् चेत् इदानीम् अपि मूल्यम् देयमेव तदा स्वीकरोत् इदम् अलङ्कारम्’। (अपने आभूषण देना चाहती है।) तात! यदि अभी मूल्य देना है तो लो ये गहने।)
देवेश – वत्से! अहं एवं पातकं न कर्तुं क्षमः। केनाप प्रकारेण भवतीम् अहम् अनाभूषितां विद्यातुम् ईहे। यथेच्छम् मृत् पात्राणि नयत। पयांसि विक्रीय एव वित्तं यच्छतु। (बेटी, मैं ऐसा पाप नहीं करना चाहता। किसी प्रकार भी मैं आपको आभूषणरहित नहीं करना चाहता। इच्छानुसार जितने चाहो उतने घड़े ले जाओ। दूध बिकने पर ही राशि दे देना।)
द्वावेव – धन्यवादा. भवान् धन्यस्त्वम्। (धन्यवाद, आप धन्य हैं।)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका घटमूल्याय किदातुम् इच्छति? (मल्लिका घड़ों के मूल्य के लिए क्या देना चाहती है?)
(ख) कुम्भकारस्य किं नाम आसीत् ? (कुम्हार का क्या नाम था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः घटमूल्यं प्रदातुं किं कथयति? (चन्दन घड़ों के मूल्य देने के लिए क्या कहता है?)
(ख) मल्लिका यदा आभूषणं ददाति तदा देवेशः किं कथयति?
(मल्लिका जब आभूषण देती है तब देवेश क्या कहता है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘धन्योऽसि’ इति पदस्य सन्धि-विच्छेदं कुरुत। (‘धन्योऽसि’ पद का सन्धि-विच्छेद कीजिए।)
(ख) ‘पापकर्म’ इत्यनयो पदयो विशेषण पदं चिन्नुत? (‘पापकर्म’ इन पदों में विशेषण पद चुनिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) आभूषणम् (आभूषण)।
(ख) देवेशः।

(2) (क) ‘घटमूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दास्यामि’ इति कथयति। (घड़ों का मूल्य तो दूध बेचकर ही दूंगा।)
(ख) नाहं पापकर्म करोमि। न त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम् इच्छामि। (मैं पाप नहीं करता। तुम्हें आभूषण विहीन नहीं करना चाहता।)

(3) (क) धन्यः + असि।
(ख) ‘पाप’ इति विशेषण पदम्।

(पञ्चमं दृश्यम्)

11. (मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति। दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः)
चन्दनः – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयास करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आश्चर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)

शब्दार्थाः – मासानन्तरम् = मास पश्चात् (महीने भर बाद), सन्ध्याकाल = सायं समय (साँझ का समय), एकत्र = एकस्मिन्नेव स्थाने (एक जगह), नूतन घटा सन्ति = नवीनाः घटाः स्थिताः सन्ति (नये घड़े रखे हुए हैं), दुग्ध क्रेतारः = पयस: ग्राहकाः (दूध लेने वाले), अन्ये च ग्रामवासिनः = अन्ये च ग्राम्याः (और दूसरे ग्रामीण), अपरत्र आसीनाः = अपर स्थाने उपविष्टम् (दूसरे स्थान पर बैठे हैं), धेनुं = गाव (गाय को), प्रणम्य = नत्वा/अभिवाद्य (प्रणाम करके),

मङ्गलाचरणं विधाय = स्वस्तिवाचनं कृत्वा (मंगलाचरण करके), मल्लिकाम् आह्वति = मल्लिकाम् आकारयति (मल्लिका को बुलाता है), आयामि नाथ = आगच्छामि स्वामिन् (आई स्वामी), दोहनम् आरभस्व तावत् = दुग्धं दोग्धुम् प्रारम्भं कुरु (दूध दोहना आरम्भ करो तब तक), यदि = तावत् (जैसे ही/जब), धेनोः समीपम् = गाव समया (गाय के समीप), गत्वा = प्राप्य (पहुँचकर), दोग्धुम् इच्छति = दोहनं वाञ्छति (दोहना चाहता है), तदा धेनुः = तावत् गौ (तब तक गाय), पृष्ठपादेन = पश्चपादेन (पीछे के पैर से), प्रहरति = प्रहारं करोति (प्रहार करती है),

चन्दनः च पात्रेण सह पतति = चन्दन: च पात्रेन सहितं धरायां लुण्ठति (और चन्दन बर्तन के साथ गिर जाता है।), दुग्धं देहि = पयः यच्छ (दूध दो), किं जातं ते = तुभ्यं किम् अभवत् तुझे क्या हो गया), पुनः प्रयासं करोति = पुनरपि प्रयतते (फिर से प्रयत्न करता है), नन्दिनी च (और नन्दिनी) पुनःपुनः = मुहुर्मुहुः (बार-बार), पादप्रहारेण = पादाघातेन (लात से), ताडयित्वा = ताडयति (मारती है), चन्दनं रक्तरञ्जितं च करोति = चन्दनं शोणितेन रक्तं करोति (चन्दन को रक्तरंजित करती है), चीत्कारं कुर्वन् पतति = क्रन्दनं कुर्वन् लुण्ठति (चीखता हुआ लुढ़क जाता है।), सर्वे आश्चर्येण = सर्वे सविस्मयम् (सभी आश्चर्य के साथ), चन्दनम् अन्योऽन्यं च = चन्दनम् परस्परं च (चन्दन को और आपस में एक-दूसरे को), पश्यन्ति = अवलोकयन्ति (देखते हैं)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन जैसे ही तीस दिन से रुकी हुई गाय का दूध निकालने बैठता है वैसे ही गाय दूध के बजाय पाद प्रहार करने लगती है तथा चन्दन को लहूलुहान कर देती है।

हिन्दी अनुवाद – (महीने भर पश्चात् सन्ध्या का समय खाली नये घड़े इकट्ठे रखे हैं। दूध खरीदने वाले तथा दूसरे
ग्रामवासी दूसरी ओर बैठे हैं।

चन्दन – (गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण करके मल्लिका को बुलाता है। मल्लिका जल्दी आ जाओ।
मल्लिका – आ रही हूँ। स्वामी! तब तक दूध दोहना आरम्भ कीजिये।
चन्दन – (जब गाय के समीप जाकर दोहना चाहता है, तब गाय पीछे के पैरों से प्रहार करती है अर्थात लात मारती है। चन्दन पात्र समेत गिर जाता है। नन्दिनी दूध दे। तुझे क्या हो गया? (फिर से प्रयास करता है) (नन्दिनी बार-बार पाद प्रहार से प्रताड़ित कर चन्दन को लहू-लुहान कर देती है।) अरे मारा गया (चीखता हुआ गिर जाता है।) सभी अचम्भे से चन्दन को तथा आपस में देखते हैं।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुव्यूहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे चन्दनः यावत् त्रिंशत दिवसात् निरुद्धां गां दोग्धुं गच्छति तावत् धेनुः पाद-प्रहारैः चन्दनं रक्त रञ्जितं करोति। (प्रस्तुत नाट्यांश में चन्दन जब तक तीस दिन से रुकी हुई गाय को दोहने के लिए जाता है वैसे ही गाय लातों से उसे लहूलुहान कर देती है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

व्याख्या: –

(मास पश्चात् सायं समयः एकस्मिन्नेव स्थाने नवीना घटाः स्थिताः सन्ति। पयस: ग्राहकाः अन्ये च ग्राम्याः अपर स्थाने उपविष्टाः सन्ति। ((महीने के पश्चात्, सायंकाल, एक स्थान पर नये घड़े रखे हुए हैं। दूध के ग्राहक और दूसरे ग्रामीण दूसरे स्थान पर बैठे हैं।))

चन्दनः – (गां नत्वा, स्वस्तिवाचनं कृत्वा मल्लिकाम् आकारयति) मल्लिके शीघ्रम् आयाहि। ((गाय को प्रणाम कर मंगलाचरण करके मल्लिका को बुलाता है। मल्लिका जल्दी आओ।)
मल्लिका – आगच्छामि स्वामिन्। दुग्धं दोग्धुम् प्रारंभं कुरु। (आ रही हूँ स्वामी। दूध दोहना आरम्भ करो।)
चन्दनः – (यावत् गां समया प्राप्य दोहनम् वाञ्छति तावत् गौ पश्चपादेन प्रहारं करोति। चन्दनः भाण्डेन सहितं धरायां लुंठति नन्दिनि! पयः यच्छ। तुभ्यं किम् अभवत्? (पुनरसि प्रयतते। नन्दिनी च मुहर्मुहुः पादाघातेन ताडयति, चन्दनः शोणितेन रक्तः भवति।) अरे! अहं प्रिये? क्रन्दनं कुर्वन् लुण्ठति। सर्वे सविस्मयं चन्दनं परस्परं चावलोकयन्ति। ((जैसे ही गाय के पास पहुँचकर दोहना चाहता है वैसे ही गाय पीछे के पैर से लात मारती है। चन्दन पात्र सहित धरती पर लुढ़क जाता है) नन्दिनी, दूध दो। तुम्हें क्या हो गया? (फिर प्रयत्न करता है और नन्दिनी बार-बार लात मारती है, चन्दन खून से लाल हो जाता है।) अरे मैं मर गया (अरे मैं मर रहा हूँ) चिल्लाते हुए धरती पर लुढ़क जाता है। सभी अचम्भे से चन्दन को तथा एक-दूसरे को (आपस में) देखते हैं।))

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-) .
(क) धेनुः चन्दनं केन प्रहरति? (गाय चन्दन पर किससे प्रहार करती है?)
(ख) चन्दनस्य समीपे के तिष्ठन्ति? (चन्दन के पास कौन खड़े हैं?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मल्लिका चन्दनस्य आह्वानं कथम् उत्तरति? (मल्लिका चन्दन के आह्वान का उत्तर कैसे देती है?)
(ख) चन्दनस्य गृहे एकत्र के सन्ति? (चन्दन के घर में एक जगह क्या है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘किं जातं ते?’ अत्र ‘ते’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
नाम पद किसके लिए प्रयोग किया गया है।)
(ख) नाट्यांशे ‘पतति’ क्रियापदस्य कर्तृपदं अन्विष्य लिखत।
(नाट्यांश में ‘पतति’ क्रियापद का कर्ता ढूँढ़कर लिखिये।)
उत्तराणि :
(1) (क) पृष्ठपादेन (पीछे के पैर से)।
(ख) दुग्ध क्रेतारः। (दूध खरीदने वाले।)

(2) (क) सा उत्तरति-आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्। (वह उत्तर देती है-आ रही हूँ स्वामी। दूध दोहना आरम्भ तो करो।)
(ख) देवेशस्य गृहे एकत्र रिक्ता नूतन घटाः सन्ति। (चन्दन के घर में एक जगह खाली नये घड़े रखे हैं।)

(3) (क) ‘धेनवे’ (गाय के लिए)।
(ख) चन्दनः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

12. मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम्? कथं त्वं रक्तरजित:?
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्।
(मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।)
मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडम् अनुभवति। अत एव ताडयति।
चन्दनः – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम्। सत्यमेव उक्तम्

शब्दार्थाः – चीत्कारं = क्रन्दनम् (चीख को), श्रुत्वा = आकर्ण्य (सुनकर), झटिति प्रविश्य = शीघ्रमेव प्रवेशं कृत्वा (शीघ्र ही प्रवेश करके), नाथ! किं जातम् = स्वामिन् ! किम् अभवत् ? (स्वामी क्या हो गया?), कथं त्वं रक्तरन्जितः = भवान् शोणितेन शोणः कथं जाता (आप खून से लथपथ कैसे हो गये।), धेनुः = गौ (गाय), दोग्धुम् = पयप्रदानस्य (दोहनाय) (दूध देने की), अनुमतिमेव = स्वीकृतिमेव (स्वीकृति ही) न ददाति (नहीं देती है), दोहन प्रक्रियाम् = यदा अहं दोहन आरभे (जैसे ही मैंने दूध दोहना आरम्भ किया),

ताडयति माम् = तथा सा माम् अताडयत (मुझे मारा), मल्लिका धेनुं स्नेहेन = मल्लिका गाव अति स्नेहेन (मल्लिका गाय को अत्यन्त स्नेह से), वात्सल्येन च = वत्सलतया च (और वात्सल्य के साथ), आकार्य = संबोध्य (संबोधन करके), दोग्धुं प्रयतते = दोहनाय प्रयासं करोति (दोहने का प्रयत्न करती है), किन्तु = परञ्च (परन्तु), धेनु = गौ (गाय), दुग्ध हीना एव = पयोविहीना एव (बिना दूध है),

इति अवगच्छति = इति सा जानाति (ऐसा यह जान जाती है), चन्दनं प्रति (चन्दन से) नाथ! = स्वामिन्! (स्वामी) आवाम्, अत्यनुचितं कृतम् = अत्यम् असमीचीनमेव कृतम् (हम दोनों ने अनुचित ही किया), यत् (कि) मासपर्यन्तं = मासावधौ (महीने भर), धेनोः दोहनं न कृतम् = आवां धेनुं न दुग्धवन्तौ (हमने गाय को नहीं दुहा), सा पीडम् अनुभवति = अतः पादाघातैः आघातयति (पैरों से आघात करती है), देवि! मयापि ज्ञातं यत् = देवि! अहमपि ज्ञातवान् यत् (हे देवि! मैं भी जान गया कि),

अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत् = वयं पूर्णतः असमीचीनमेव कृतवन्तः (हमने पूरी तरह अनुचित ही किया है), यत् पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम् = सम्पूर्ण मासकाले आवां धेनुं न दुग्धवन्तौ (कि पूरे महीने भी हमने गाय को नहीं दुहा), अत एव दुग्धं शुष्क जातम् = अत एव पयः शुष्को भवत् (इसलिए दूध सूख गया), सत्यमेव उक्तम् = समुचितमेव कथितम् (ठीक ही कहा गया है)। हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।

प्रसंग – यहाँ चन्दन गाय को दोहने का प्रयत्न करता है परन्तु गाय उसे अनुमति नहीं देती है। मल्लिका इसका कारण जानती है तथा कहती है “महीनेभर दोहन रुक गया। अत: गाय का दूध सूख गया है। इसी कारण से यह अस्वीकार कर रही

हिन्दी अनुवादः

मल्लिका – चीख को सुनकर शीघ्र प्रवेश करके) स्वामी! क्या हुआ? तुम लहू-लुहान कैसे हो? चन्दन गाय दोहने की आज्ञा ही नहीं दे रही है। दूध निकालने की प्रक्रिया जैसे ही आरम्भ करता हूँ वह मुझे मारने लगती है। (मल्लिका गाय को प्यार से और बच्चे का सा प्यार करके बुलाकर दोहन का प्रयत्न करती है परन्तु गाय दूधरहित है, यह जान जाती है।

मल्लिका – (चन्दन से) स्वामी! हमने बड़ा अनुचित किया है कि महीनेभर बाद गाय को दुहा है। वह पीड़ा का अनुभव करती है। इसीलिए मारती है। चन्दन – देवी! मैंने भी जान लिया कि हमने सब प्रकार से अनुचित ही किया है, पूरे महीने तक दूध दोहन नहीं किया, इसलिए दूध सूख गया। सच ही कहा है।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भः – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (यह नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रसङ्गः – अत्र चन्दनः गां दोग्धुं प्रयतते परञ्च धेनुः तु अनुमतिमेव न ददाति। मल्लिका अस्य कारणं जानाति कथयति च यन्मास पर्यन्तं दोहनम् अवरुद्धम् अतः धेनोः दुग्धं शुष्कं जातम् तेनैव कारणेन सा अस्वीकरोति। (यहाँ चन्दन गाय को दोहने का प्रयत्न करता है परन्तु गाय उसे अनुमति नहीं देती है। मल्लिका इसका कारण जानती है और कहती है कि महीने भर दोहन रुक गया। अतः गाय का दूध सूख गया है। इसी कारण से वह अस्वीकार करती है।)

व्याख्याः

मल्लिका – (क्रन्दनं आकर्ण्य शीघ्रमेव प्रवेशं कृत्वा) स्वामिन्! किमभवत् ? भवान् शोणितेन शोणः कथं जातः? (चीख को सुनकर शीघ्र ही प्रवेश करके।) स्वामी! क्या हुआ? आप खून से लाल कैसे हो गये?)
चन्दनः – गौः एषः पयः प्रदानस्य स्वीकृतिमेव न ददाति। यथा अहं दोग्धुम् आरम्भे तथा एव समाम् अताडयत्। (मल्लिका गामति स्नेहेन वत्सलतया च संबोध्य दोहनाय प्रयासं करोति। परञ्च गौ तु पयोविहीना इति सा जानाति) (यह गाय दूध देने की इजाजत ही नहीं देती है। जैसे ही मैं दूध दोहना आरंभ करता हूँ वैसे ही उसने मुझे मारा। (मल्लिका गाय को अति प्रेम से तथा वात्सल्य के साथ बुलाकर दोहने का प्रयास करती है। परन्तु गाय तो दूधरहित है, इसे वह जानती है।)

मल्लिका – चन्दनं कथयति! स्वामिन आवाम अमीचीनमेव कतवन्तौ. यतः मासावधौ आवाम धेनं न दग्धवन्तौ। सा पीडिताभवेत्। अत एव पादाघातैः आघातपति। (चन्दन से कहती है, नाथ! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया क्योंकि महीने भर हमने गाय को नहीं दुहा। वह पीड़ित रही। इसलिए लातों से मारती है।)

चन्दनः – देवि! अहम् अपि ज्ञातवान् यत् वयं पूर्णतः असमीचीनमेव कृतवन्त। सम्पूर्णे मासकाले आवां धेनुं न दुग्धवन्तौ अतएव पयः शुष्कोऽभवत्। समुचितमेव कथितम्। (देवि! मैं भी जान गया कि हम दोनों ने सर्वथा अनुचित ही किया है। पूरे महीने भर हमने गाय को नहीं दुहा, इसलिए दूध सूख गया। सच ही कहा है-)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) रक्तरञ्जितः कोऽभवत्? (रक्तरंजित कौन हो गया?)
(ख) मल्लिका धेनुं कथं दोग्धुं प्रयतते? (मल्लिका गाय को कैसे दोहने का यत्न करती है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) चन्दनः स्वस्य त्रुटि कथं स्वीकरोति? (चन्दन अपनी गलती कैसे स्वीकार करता है?)
(ख) धेनुः कीदृशं व्यवहारं करोति? (गाय कैसा व्यवहार करती है?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘उचितम्’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘उचितम्’ पद का विलोम पद नाट्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘अनुमतिं न ददाति’ अत्र ददाति क्रियापदस्य कर्तृपदं नाट्यांशात् अन्विष्य लिखत।
(‘अनुमति न ददाति’ यहाँ ददाति क्रियापद का कर्ता नाट्यांश से ढूँढ़कर लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) चन्दनः।
(ख) स्नेहेन वात्सल्येन च (प्यार एवं वात्सल्य से)।

(2) (क) मयापि ज्ञातं यत् अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतम् यत् पूर्ण मास पर्यन्तं दोहनं न कृतम्। (मुझे पता चल गया कि हमने भी गलती की है कि पूरे महीने दूध नहीं दोहा।)
(ख) दोहन प्रक्रियाम् आरम्भमाणम् एव ताडयति। (दोहन प्रक्रिया आरम्भ करते ही मारती है।)

(3) (क) अनुचितम्।
(ख) धेनुः (नन्दिनी) गाय।

13. कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम्।।
मल्लिका – आम् भर्तः! सत्यमेव। मयापि पठितं यत्
सुविचार्यविधातव्यकार्यकल्याणकाक्षिणा।
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः।।
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत्।

सर्वे – दिनस्य कार्य तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्।
(जवनिका पतनम्) (सर्वे मिलित्वा गायन्ति।)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्।।

शब्दार्थाः – अद्यतनीयं = अद्यदिवसपर्यन्तम् करणीयम् (आज का काम) यत कार्य (जो कार्य है), तत् अद्य एवं विधीयताम् = तद् अद्य एव सम्पादनीयम् (वह आज ही सम्पन्न कर देना चाहिए), विपरीते गतिर्यस्य = यः विरुद्ध कार्य करोति अर्थात अद्य करणीय कार्य अद्य न कृत्वा आगामिनं दिवसं नयति (जो विरुद्ध कार्य करता है अर्थात् आज जो कार्य करना है उसे अगले दिन को ले जाता है), सः ध्रुवं कष्टं लभते = स: निश्चितम् एव कष्टं प्राप्नोति (वह अवश्य ही कष्ट पाता है।), आम् भर्त = ओम् स्वामिन् (हाँ स्वामी), सत्यमेव = ऋतमेव (सच ही है),

मया अपि पठितं यत् = अहमपि एवं पठितवान् यत (मैंने भी ऐसा पढ़ा है कि-), कल्याणकाक्षिणा = ये जनाः स्वस्य भद्रम् इच्छन्ति (जो लोग अपना कल्याण चाहते हैं) (तैः = उनके द्वारा), सुविचार्य = सम्यक् विचिन्त्य एव (अच्छी तरह सोच-विचार कर ही), कार्य विधातव्यम् = कर्त्तव्यम् (कार्य करना चाहिए), यः = यः जनः (जो व्यक्ति), अविचार्य = अविवेकेण (बिना सोचे-विचारे), करोति = सम्पादयति (करता है), सः मानवः निसीदति = सः मनुष्यः दुःखं लभते (वह मनुष्य दुःख पाता है), किन्तु = परञ्च (किन्तु/परन्तु), प्रत्यक्षत यातु = सम्मुखे तु (प्रत्यक्ष तो),

एतत् = इदम् (यह), अद्यैव (आज ही), अनुभूतम् = दृष्टम्। (देखा है या अनुभव किया है), दिनस्य कार्यम् = यस्य दिवसस्य कार्यमस्ति (जिस दिन का काम हो), तस्मिन् दिने एव = मानवेन तस्मिन्नेव दिवसे करणीयम् (मनुष्य को उसी दिन कर लेना चाहिए), यः एवं न करोति = यः जनः अनेन प्रकारेण न करोति (जो व्यक्ति इस प्रकार से नहीं करता), सः ध्रुवं कष्ट लभते = स: निश्चप्रचमेव पीडाम् अनुभवति (वह निश्चित ही कष्ट पाता है।), जवनिकापातम् = आवरणम् पतति (पर्दा गिरता है), सर्वे मिलित्वा गायन्ति = सर्वे समवेत स्वरेण गायन्ति (सभी समवेत स्वरों में गाते हैं),

य: मनुष्य (जो मनुष्य) आदानस्य = ग्रहणस्य (ग्रहण करने), प्रदानस्य = दानस्य (दान के), कर्तव्यस्य कर्मणः = करणीयस्य कार्यस्य (करने योग्य कार्य को), क्षिप्रम् एव = शीघ्रमेव (जल्दी ही), क्रियमाणस्य = कर्ता भवति (करने वाला होता है अर्थात क्रियमाण कार्य को तत्काल करता है)), तद् रसम् = तस्य फलं . (उसका परिणाम), कालः पिबति = समय: आचमनि भुक्ते वा (काल पी जाता है)।

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हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – यह नाट्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी-रचित ‘चतुर्म्यहम्’ एकाङ्की-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश चन्दन तथा मल्लिका अपने किए हुए पर पश्चाताप करते हुए शिक्षा प्रदान करते हैं कि कोई भी कार्य समय पर ही अवश्य करना चाहिए।
हिन्दी-अनुवाद – आज तक का जो कार्य है उसे आज ही कर लेना चाहिए। इससे उल्टा होने पर तो वह निश्चित
रूप से कष्ट ही पाता है।
मल्लिका – हाँ स्वामी ! सच ही तो है। मैंने भी पढ़ा है कि।
(अपना) भला चाहने वाले व्यक्ति को अच्छी तरह विचार करके ही कार्य करना चाहिए। जो मनुष्य यह बिना विचार करता है वह दुखी होता है।” परन्तु प्रत्यक्ष तो मैंने आज ही अनुभव किया है। सर्वे (सभी) दिन का काम उसी दिन कर लेना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चित ही दुख पाता है।
(पर्दा गिरता है) (सभी मिलकर गाते हैं। शीघ्र ही जो आदान-प्रदान (लेन-देन) और करने योग्य कर्मों को नहीं करता है, उसके रस को
समय पीता है। (अतः वह नीरस हो जाता है, सूख जाता है, गाय के दूध की तरह।)

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – नाट्यांशोऽयम् अस्माकं ‘शेमुषी’ इति पाठ्यपुस्तकस्य गोदोहनम्’ इति पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं श्रीकृष्णचन्द्र -रचितात् ‘चतुर्म्यहम्’ इति एकाङ्कि-संग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। (प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘गोदोहनम्’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित एकांकी संग्रह ‘चतुर्म्यहम्’ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुत नाट्यांशे मल्लिकाचन्दनौ स्व-कृत्यं प्रति पश्चातापं कुरुतः। तौ शिक्षेते यत् कालात् पूर्वं किमपि कार्यं न कुर्यात्। (प्रस्तुत नाट्यांश में मल्लिका और चन्दन अपने किये हुए पर पछताते हैं तथा दोनों शिक्षा देते हैं-समय से पहले कोई कार्य नहीं करना चाहिए।)

व्याख्या: –
चन्दनः – यत् कार्यम् अद्य करणीयम् अस्ति तत् अद्य एव सम्पादनीय यः विरुद्ध कार्यं करोति अर्थात् अद्य करणीयं कार्यम् अद्य न कृत्वा आगामिनं दिवसं नयति सः निश्चितम् एव कष्टं प्राप्नोति। (जो कार्य आज करना है वह आज ही कर लेना चाहिए। जो (इसके) विपरीत कार्य करता है अर्थात् आज करने योग्य कार्य को आज न करके अगले दिन के लिए ले जाता है, वह निश्चित ही कष्ट
पाता है।)
मल्लिका – ओम् स्वामिन् ! ऋतम् एव। अहम् अपि एवं पठितवान् –
“यो जनाः स्वस्य भद्रम् इच्छन्ति तैः करणीयं सम्यक् विचिन्त्य एव कर्त्तव्यम् यः जनः अविवेकेन सम्पादयति सः मनुष्यः दु:खं लभते।” परञ्च सम्मुखे तु अध एव दृष्टम्। (हाँ स्वामी, सच ही है। मैंने भी ऐसा पढ़ा है.-“जो मनुष्य अपना भला चाहते हैं, उन्हें करने योग्य कार्य अच्छी प्रकार विचार करके ही करना चाहिए। जो मनुष्य बिना विचारे (अविवेकपूर्ण) करता है, वह निश्चय ही कष्ट का अनुभव करता है। परन्तु
प्रत्यक्ष तो आज ही देखा है।) .

सर्वे – यस्य दिवसस्य कार्यम् अस्ति मानवेन तस्मिन् एव दिवसे करणीयम्। यो जनः अनेन प्रकारेण न करोति अस्मै निश्चप्रचमेव पीडाम् अनुभवति। (आवरणम् पतति) (सर्वे समवेत स्वरेण गायन्ति-“यः मनुष्य ग्रहणस्य दानस्य करणीयस्य कार्यस्य सम्पादनं शीघ्रम् तत्कालमेव न करोति तस्य रसं फलं वा समय: आचयति। (जिस दिन का कार्य है उसे उसी दिन कर लेना चाहिए जो मनुष्य इस प्रकार नहीं करता वह निश्चित रूप से पीड़ा का अनुभव करता है (पर्दा गिरता है)। सभी मिलकर एक स्वर में गाते हैं-“जो मनुष्य लेन-देन और करने योग्य कर्म का (सम्पादन) शीघ्र ही न करे, समय उसके रस को पीता है।”)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्याणकांक्षिणा कार्यं कथं विधातव्यम् ? (भला चाहने वाले को काम कैसे करना चाहिए?)
(ख) अन्ते सर्वे मिलित्वा किं कुर्वन्ति? (अन्त में सभी मिलकर क्या करते हैं?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) यः अविचार्य कार्यं करोति सः किं फलं प्राप्नोति?
(जो बिना बिचारे काम करता है, वह क्या फल प्राप्त करता है?)
(ख) कालः कस्य रसं पिबति? (समय किसका रस पीता है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘कालः पिबति तद्रसम्’ अत्र कर्तृपदम् किम्? (‘कालः पिबति तद्रसम्’ यहाँ कर्तृ पद क्या है?)
(ख) ‘प्रसीदति’ इति क्रियापदस्य विलोमार्थकं पद नाट्यांशात चित्वा लिखत। (‘प्रसीदति क्रिया का विलोम नाट्यांश से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) सुविचार्य। (अच्छी तरह विचार कर)।
(ख) गायन्ति (गाते हैं)।

(2) (क) यः मानवः अविचार्य कार्यं करोति सः विषीदति। (जो बिना विचारे कार्य करता है वह दुख पाता है।)
(ख) आदानस्य प्रदानस्य कर्त्तव्यस्य च कर्मणः क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य तद्रस्य कालः पिबति। (लेन-देन करने योग्य कर्म को शीघ्र न करने वाले का रस काल पीता है।)

(3) (क) कालः (समय)।
(ख) विषीदति (दुखी होता है।)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

Page-191

Question 1.
Construct an angle of 90° at the initial point of a given ray and justify the construction.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 1
Answer:
Steps of construction:
Step 1: A ray YZ is drawn.
Step 2: With Y as a centre and any radius, an arc CD is drawn cutting YZ at C.
Step 3: With C as a centre and the same radius, mark a point B on the arc ABC. Step 4: With B as a centre and the same radius, mark a point A on the arc CD. Step 5: With A and B as centres, draw two arcs intersecting each other with the same radius at X.
Step 6: X and Y are joined and a ray YX making an angle 90° with YZ is formed.

Justification for construction:
We constructed ∠BYZ = 60° and also ∠AYB = 60°.
Thus, ∠AYZ = 120°.
Also, bisector of ∠AYB is constructed such that:
∠AYB = ∠XYA + ∠XYB
⇒ ∠XYB = \(\frac{1}{2}\) ∠AYB (∠XYA = ∠XYB as XY bisects ∠AYB)
⇒ ∠XYB = \(\frac{1}{2}\) × 60°
⇒ ∠XYB = 30°
Now,∠XYZ = ∠BYZ + ∠XYB
= 60° + 30° = 90°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

Question 2.
Construct an angle of 45° at the initial point of a given ray and justify the construction.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 2
Answer:
Steps of construction:
Step 1: A ray OY is drawn.
Step 2: With O as a centre and any radius, an arc AD is drawn cutting OY at A.
Step 3: With A as a centre and the same ‘ radius, mark a point B on the arc AC.
Step 4: With B as a centre and the same radius, mark a point C on the arc AD.
Step 5: With C and B as centres, draw two arcs intersecting each other with the same radius at X.
Step 6: X and O are joined and a ray making an angle 90° with OY is formed.
Step 7: With A and E as centres, two arcs are marked intersecting each other at E and the bisector of ∠XOY is drawn such that ∠EOY = 45°.

Justification for construction:
By construction,
∠XOY = 90°
We constructed the bisector of ∠XOY as ∠EOY.
Thus,
∠EOY = \(\frac{1}{2}\) ∠XOY
ZEOY = \(\frac{1}{2}\) × 90° = 45°

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

Question 3.
Construct the angles of the following measurements:
(i) 30° (ii) 22.5° (iii) 15°
Answer:
(i) 30°
Steps of construction:
Step 1 : A ray OY is drawn.
Step 2: With O as a centre and any radius, an arc AC is drawn cutting OY at A.
Step 3: With A as centre and the same radius, mark a point B on arc AC.
Step 4: With A and B as centres, two arcs are marked intersecting each other at X and join OX.
Thus, Z∠XOY is the required angle making 30° with OY.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 3

(ii) 22.5°
Steps of construction:
Step 1: An angle ∠XOY = 90° is drawn.
Step 2: Bisector of ∠XOY is drawn such that ∠BOY = 45° is constructed.
Step 3: Again, ∠BOY is bisected such that ∠AOY is formed.
Thus, ∠AOY is the required angle making 22.5° with OY.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 4

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

(iii) 15°
Steps of construction:
Step 1: An angle ∠AOY = 60° is drawn.
Step 2: Bisector of ∠AOY is drawn such that ∠BOY = 30° is constructed.
Step 3: With C and D as centres, two arcs are marked intersecting each other at X and the bisector of ∠BOY is drawn.
Thus, ∠XOY is the required angle making 15° with OY.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 5

Question 4.
Construct the following angles and verify by measuring them by a protractor:
(i) 75° (ii) 105° (iii) 135°
Answer:
(i) 75°
Steps of construction:
Step 1: A ray OY is drawn.
Step 2: An arc BAE is drawn with O as a centre and OE as radius.
Step 3: With E as a centre, and the same radius, mark point A on the arc BAE.
Step 4: With A as centre and the same radius, mark a point C on the arc BAE.
Step 5: With A and C as centres, arcs are made to intersect at X and ∠XOY = 90° is made.
Step 6: With A and F as centres, arcs are made to intersect at D.
Step 7: OD is joined and and ∠DOY = 75° is constructed.
Thus, ∠DOY is the required angle making 75° with OY.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 6

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

(ii) 105°
Steps of construction:
Step 1: A ray OY is drawn.
Step 2: An arc is drawn with O as a centre.
Step 3: With E as a centre and the same radius mark point A on the arc BAE.
Step 4: With A as centre and the same radius, mark a point C on the arc BAE.
Step 5: With A and C as centres, arcs are made to intersect at D and ∠DOY = 90° is made. Join DO to intersect EAC at M.
Step 6: With C and M as centres, arcs are made to intersect at X.
Step 7: OX is joined and and ∠XOY = 105° is constructed.
Thus, ∠XOY is the required angle making 105° with OY.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 7

(iii) 135°
Steps of construction:
Step 1: A ray OY is drawn.
Step 2: An arc is drawn with O as a centre to intersect OY at E and YO produced to B.
Step 3: With E as a centre and the same radius mark point A on the arc BAE.
Step 4: With A as centre and the same radius, mark a point C on the arc BAE.
Step 5: With A and C as centres, arcs are made to intersect at X and ∠XOY = 90° is made.
Step 6: With M and B as centres, arcs are made to intersect at P or bisector of ∠XOB is constructed.
Step 7: OP is joined and ∠POY = 135° is constructed.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 8

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1

Question 5.
Construct an equilateral triangle, given its side and justify the construction.
Ans. Steps of construction:
Step 1: A line segment AB = 4 cm is drawn.
Step 2: With A and B as centres, two arcs DG and EH are made.
Step 3: With D and E as centres, arcs with previous radius are made to cut the previous arcs respectively and forming angle of 60° each.
Step 4: Lines from A and B are extended to meet each other at C.
Thus, ABC is the required triangle formed.
Justification:
By construction,
AB = 4 cm, ∠A = 60° and ∠B = 60° We know that,
∠A + ∠B + ∠C = 180° (Sum of the angles of a triangle)
⇒ 60° + 60° + ∠C = 180°
⇒ 120° + ∠C = 180°
⇒ ∠C = 60°
BC = CA = 4 cm (Sides opposite to equal angles are equal)
AB = BC = CA = 4 cm ∠A = ∠B = ∠C = 60°
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.1 - 9

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6

Page-186

Question 1.
Prove that the line of centres of two intersecting circles subtends equal angles at the two points of intersection.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 1
Answer:
Given: Two intersecting circles, in which OO’ is the line of centres and P and Q are two points of intersection.
To prove: ∠OPO’ = ∠OQO’
Construction: Join PO, QO, PO’ and QO’.
Proof: In APOO’ and AQOO,’
we have PO = QO [Radii of the same circle]
PO’ = QO'[Radii of the same circle]
OO’ = OO’ [Common]
APOO’ = AQOO’ [SSS axiom]
⇒ ∠OPO’ ≅ ∠OQO’ [CPCT]
Hence, the line of centres of two intersecting circles subtends equal angles at the two points of intersection. Proved.

Question 2.
Two chords AB and CD of lengths 5 cm and 11 cm respectively of a circle are parallel to each other and are on opposite sides of its centre. If the distance between AB and CD is 6 cm, find the radius of the circle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 2
Answer:
Let O be the centre of the circle and let its radius be r cm.
Draw OM ⊥ AB and OL ⊥ CD.
Then, AM = \(\frac{1}{2}\) AB = \(\frac{5}{2}\) cm
[As perpendicular from centre to the chord bisects the chord]
Similarly, CL = \(\frac{1}{2}\) CD = \(\frac{11}{2}\) cm
Now, LM = 6 cm
Let OL = x cm.
Then OM = (6 – x) cm Join OA and OC.
Then OA = OC = r cm.
Now, from right-angled ∆OMA and ∆OLC, we have
OA2 = OM2 + AM2
and OC2 = OL2 + CL2
[By Pythagoras Theorem]
r2 = (6 – x)2 + \(\frac{5}{2}\)2
and r2 = x2 + \(\frac{11}{2}\)2
⇒ (6 – x)2 + \(\frac{5}{2}\)2 = x2 + \(\frac{11}{2}\)2
⇒ 36 +x2 – 12x + \(\frac{25}{4}\) = x2 + \(\frac{121}{4}\)
⇒ -12x = \(\frac{121}{4}\) – \(\frac{25}{4}\) – 36
⇒ -12x = \(\frac{96}{4}\) – 36
⇒ -12x = 24 – 36
⇒ -12x = -12
⇒ x = 1

Substituting x = 1 in (i), we get
r2 = (6 – x)2 + \(\frac{5}{2}\)2
r2 = (6 – 1)2 + \(\frac{5}{2}\)2
⇒ r2 = (5)2 + \(\frac{5}{2}\)2 = 25 + \(\frac{25}{4}\)
⇒ r2 = \(\frac{125}{4}\)
⇒ r = \(\frac{5 \sqrt{5}}{2}\) cm
Hence, radius r = \(\frac{5 \sqrt{5}}{2}\) cm

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6

Question 3.
The lengths of two parallel chords of a circle are 6 cm and 8 cm. If the smaller chord is at distance 4 cm from the centre, what is the distance of the other chord from the centre?
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 3
Answer:
Let PQ and RS be two parallel chord of a circle with centre O.
We have, PQ = 8 cm and RS = 6 cm.
Draw perpendicular bisector OL of RS which meets PQ of M.
Since, PQ || RS, therefore, OM is also perpendicular bisector of PQ.
Also, OL = 4 cm
RL = \(\frac{1}{2}\) RS [As perpendicular from centre to the chord bisects the chord]
= \(\frac{1}{2}\) (6)
= 3 cm
Similarly, PM = \(\frac{1}{2}\) PQ
In ORL, we have
OR2 = RL2 + OL2 [Pythagoras theorem]
⇒ OR2 = 32 + 42 = 9 + 16
⇒ OR2 = 25
⇒ OP = 5 cm
∴ OR = OP [Radii of the circle]
⇒ OP = 5 cm
Now, in ∆OPM
OM2 = OP2 – PM2 [Pythagoras theorem]
⇒ OM2 = 52 – 42 = 25 – 16 = 9
OM = \( \sqrt{9} \) = 3 cm
Hence, the distance of the other chord from the centre is 3 cm.

Question 4.
Let the vertex of an angle ABC be located outside a circle and let the sides of the angle intersect equal chords AD and CE with the circle. Prove that ∠ABC is equal to half the difference of the angles subtended by the chords AC and DE at the centre.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 4
Answer:
Given: Two equal chords AD and CE of a circle with centre O meet at B when produced.
To prove: ∠ABC = \(\frac{1}{2}\) (∠AOC – ∠DOE)
Proof: Let ∠AOC = x, ∠DOE = y, and ∠AOD = ∠EOC = z [Equal chords subtends equal angles at the centre]
∴ x + y + 2z = 360° …(i)
OA = OD ⇒ ∠OAD = ∠ODA
[Angles opposite to equal sides]
∴ In ∆OAD, we have
∠OAD + ∠ODA + z = 180°
⇒ 2 ∠OAD = 180° – z [.’. ∠OAD = ∠ODA]
⇒ ∠OAD = 90° – \(\frac{z}{2}\) …(ii)
Similarly, ∠OCE = 90° – – …(iii)
⇒ ∠ODB = ∠OAD + ∠AOD
[Exterior angle property]
⇒ ∠ODB = 90° – \(\frac{z}{2}\) + z [From (ii)]
⇒ ∠ODB = 90° + \(\frac{z}{2}\) …(iv)
Also, ∠OEB = ∠OCE + ∠COE
[Exterior angle property]
⇒ ∠OEB = 90° – \(\frac{z}{2}\) + z [From (iii)]
⇒ ∠OEB = 90° + \(\frac{z}{2}\) …(v)
In ∆DOE,
OD = OE [Radii of the circle]
⇒ ∠ODE = ∠OED [Angles oposite to equal sides are equal]
Also,
∠ODE + ∠OED + ∠DOE = 180°
[Angle sum property]
⇒ ∠ODE + ∠OED + y = 180°
⇒ 2∠ODE = 180° – y
⇒ ∠ODE = 90° – \(\frac{y}{2}\)
⇒ ∠ODE = ∠OED = 90° – \(\frac{y}{2}\) …(vi)
Now, ∠BED = ∠BEO – ∠OED
= 90 + \(\frac{z}{2}\) – 90 + \(\frac{y}{2}\) [From (v) and (vi)]
= \(\frac{1}{2}\)(y + z)
Also, ∠BDE = ∠BDO – ∠ODE
= 90 + \(\frac{z}{2}\) – 90° + \(\frac{y}{2}\) [From (iv) and (vi)]
= \(\frac{1}{2}\)(y + z)

In ∆BDE,
∠BDE + ∠BED + ∠B = 180°
[Angle sum property]
=> \(\frac{1}{2}\) (y+ z) + \(\frac{1}{2}\) (y + z) + ∠ABC = 180°
⇒ y + z + ∠ABC = 180°
⇒ ∠ABC = 180 – y – z …(vii)
Consider,
\(\frac{1}{2}\)(∠AOC – ∠DOE) = \(\frac{1}{2}\)(x – y)
= \(\frac{1}{2}\)[360° – y – 2z – y] From (i)
= 180° – (y + z) …(viii)
From (vii) and (viii)
∠ABC = \(\frac{1}{2}\) (∠AOC – ∠DOE)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6

Question 5.
Prove that the circle drawn with any side of a rhombus as diameter, passes through the point of intersection of its diagonals.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 5
Answer:
Given: A rhombus ABCD whose diagonals intersect each other at O.
To prove: A circle with AB as diameter passes through O.
Proof: ∠AOB = 90°
[Diagonals of a rhombus bisect each other at 90°]
⇒ ∆AOB is a right triangle right angled at O.
⇒ AB is the hypotenuse of right ∆AOB.
⇒ If we draw a circle with AB as diameter, then it will pass through O because angle in semicircle is 90° and ∠AOB = 90°.

Question 6.
ABCD is a parallelogram. The circle through A, B and C intersect CD (produced if necessary) at E. Prove that AE = AD.
Answer:
Given: ABCD is a parallelogram.
To Prove: AE = AD.
Construction: Draw a circle which passes through ABC and intersect CD produced E.
Proof: As ABCD is a parallelogram,
∠B = ∠ADC …(i)
[Opposite angles of parallelogram]
Also, ∠ADC + ∠ADE = 180°
[Linear Pair]
⇒ ∠B + ∠ADE = 180° …(ii) [From (i)]
Also, ∠B + ∠E = 180° …(iii) [Opposite angles of cyclic quadrilateral]
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 6
From (ii), (iii)
∠B = 180° – ∠ADE = 180° – ∠E
⇒ 180° – ∠ADE = 180° – ∠E
⇒ ∠ADE = ∠E
In ∆ADE, AD = AE [Sides opposite to equal angles]
Similarly, we can prove for fig. (ii).

Question 7.
AC and BD are chords of a circle which bisect each other. Prove that (i) AC and BD are diameters, (ii) ABCD is rectangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 7
Answer:
Given: A circle with chords AC and BD which bisect each other at O.
To Prove: (i) AC and BD are diameters (ii) ABCD is a rectangle.
Proof: In ∆OAB and ∆OCD, we have
OA = OC [Given]
OB = OD [Given]
∠AOB = ∠COD
[Vertically opposite angles]
∠∆AOB = ∆COD [SAS congruence]
∠ABO = ∠CDO [CPCT]
and angles ∠ABO, ∠CDO are alternate interior angles
∴ AB || DC …(i)
Similarly, we can prove BC || AD …(ii)
Hence, ABCD is a parallelogram.
[As opposite sides are parallel]
⇒ ∠A = ∠C [Opposite angles of parallelogram]
and ∠B = ∠D
Also, as ABCD is cyclic
⇒ ∠A + ∠C = 180°
[Opposite angles of cyclic quadrilateral]
⇒ ∠A + ∠A = 180°
⇒ 2∠A = 180°
⇒ ∠A = 90°
So, ABCD is a parallelogram in which one angle is 90°
⇒ ABCD is a rectangle
⇒ ∠ABC = 90° and ∠BCD = 90°.
⇒ AC and BD are diameters.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6

Question 8.
Bisectors of angles A, B and C of a triangle ABC intersect its circumcircle at D, E and F respectively. Prove that the angles of the triangle DEF are
90° – \(\frac{1}{2}\) A, 90° – \(\frac{1}{2}\) B and 90° – \(\frac{1}{2}\) C.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 8
Answer:
Given: AABC and its circumcircle. AD, BE, CF are bisectors of ∠A, ∠B, ∠C respectively.
Construction: Join DE, EF and FD.
Proof: We know that angles in the same segment are equal.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 9

Page-187

Question 9.
Two congruent circles intersect each other at points A and B. Through A any line segment PAQ is drawn so that P, Q lie on the two circles. Prove that BP = BQ.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 10
Answer:
Given: Two congruent circles which intersect at A and B. PAQ is a line through A.
To Prove: BP = BQ.
Construction: Join AB.
Proof: AB is a common chord of both the circles.
As the circles are congruent,
arc ADB = arc AEB
⇒ ∠APB = ∠AQB [Angles subtended by equal arcs]
So, in APBQ, BP = BQ [Sides opposite to equal angles are equal]

Question 10.
If any triangle ABC, if the angle bisector of ∠A and perpendicular bisector of BC intersect, prove that they intersect on the circumcircle of the triangle ABC.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 11
Answer:
(i) Let bisector of ∠A meet the circumcircle of ∆ABC at M.
Join BM and CM.
∴ ∠MBC = ∠MAC [Angles in same segment]
and ∠BCM = ∠BAM [Angles in the same segment]
But ∠BAM = ∠CAM [∴ AM is bisector of ∠A]
∴ ∠MBC = ∠BCM So, MB = MC [Sides opposite to equal angles are equal].
⇒ M lies on the perpendicular bisector of BC
Hence, angle bisector of ∠A and perpendicular bisector of BC intersect on the circumcircle of ∆ABC.

(ii) Let M be a point on the perpendicular bisector of BC which lie on circumcircle of ∆ABC
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 10 Circles Ex 10.6 - 12
Join AM,
∴ M lies on perpendicular bisector of BC.
∴ BM = CM
∠MBC = ∠MCB [Angle opposite to equal sides are equal]
But ∠MBC = ∠MAC [Angles in the same segment]
and ∠MCB = ∠BAM [Angles in the same segment]
So, from (i)
∠BAM = ∠CAM AM is bisector of ∠A
⇒ bisector of ∠A and perpendicular bisector of BC intersect at M which lies on circumcircle of ∆ABC.