Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
JAC Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर :
चश्मेवाला सेनानी नहीं था और न ही वह नेताजी की फ़ौज में था; फिर भी लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते थे। इसका कारण यह रहा होगा कि चश्मेवाले में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। वह अपनी शक्ति के अनुसार देश के निर्माण में पूरा योगदान देता था। कैप्टन के कस्बे में चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति लगी हुई थी। मूर्तिकार उस मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था। कैप्टन ने जब यह देखा, तो उसे बहुत दुख हुआ। उसके मन में देश के नेताओं के प्रति सम्मान और आदर था। इसलिए वह जब तक जीवित रहा, उसने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर रखा। उसकी इसी भावना के कारण लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते थे।
प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है? अथवा क्या प्रदर्शित करता है?
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
उत्तर :
(क) हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे, क्योंकि वे चौराहे पर लगी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन की मृत्यु हुई थी, किसी ने भी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसलिए जब हालदार साहब कस्बे से गुजरने लगे, तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना कर दिया था।
(ख) हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रे, तो न चाहते हुए भी उनकी नज़र नेताजी की मूर्ति की ओर चली गई। मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ, क्योंकि उस पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। यह देखकर हालदार साहब को उम्मीद हुई कि आज के बच्चे कल देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।
(ग) नेताजी की मूर्ति पर बच्चे के हाथ से बना सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब भावुक हो गए। पहले उन्हें ऐसा लग रहा था कि अब नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं रहा। इसलिए उन्होंने ड्राइवर को वहाँ रुकने से मना कर दिया था। परंतु जब उन्होंने मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखा, तो उनका मन भावुक हो गया। उन्होंने नम आँखों से नेताजी की मूर्ति को प्रणाम किया।
प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए-“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी :
सब कुछ होम देने वालों पर हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।”
उत्तर :
उपरोक्त वाक्य से लेखक का आशय है कि उस देश के लोगों का क्या होगा, जो अपने देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने वालों पर हँसते हैं। देश के लिए अपना घर-परिवार-जवानी, यहाँ तक कि अपने प्राण तक देने वालों पर लोग हँसते हैं; उनका मजाक उड़ाते हैं। दूसरों का मजाक उड़ाने वाले ऐसे लोग स्वार्थी होते हैं। ये छोटे से लाभ के लिए भी देश का अहित करने से पीछे नहीं हटते।
प्रश्न 4.
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
पानवाले की दुकान चौराहे पर नेताजी की मूर्ति के सामने थी। पानवाले का रंग काला था। वह शरीर से मोटा था। उसकी आँखें हँसती हुई थीं। उसकी तोंद निकली हुई थी। जब वह किसी बात पर हँसता था, तो उसकी तोंद गेंद की तरह ऊपर-नीचे उछलती थी। वह स्वभाव से खुशमिज़ाज़ था। बार-बार पान खाने से उसके दाँत लाल-काले हो गए थे। वह कोई भी बात करने से पहले मुँह में रखे पान को नीचे की ओर थूकता था। यह उसकी आदत बन चुकी थी। पानवाले के पास हर किसी की पूरी जानकारी रहती थी, जिसे वह बड़े रसीले अंदाज़ से दूसरे के सामने प्रस्तुत करता था।
प्रश्न 5.
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर :
हालदार साहब के मन में नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाले के प्रति आदर था। जब उन्हें पता चला कि चश्मा लगाने वाला कोई कैप्टन था, तो उन्हें लगा कि वह नेताजी का कोई साथी होगा। परंतु पानवाला उसका मजाक उड़ाते हुए बोला कि वह एक लँगड़ा व्यक्ति है, वह फ़ौज में कैसे जा सकता है! पानवाले द्वारा कैप्टन की हँसी उड़ाना उचित नहीं था एक वही व्यक्ति था, जिसने नेताजी की मूर्ति के अधूरे व्यक्तित्व को पूरा किया था।
नेताजी के प्रति उसके आदर-भाव ने ही पूरे कस्बे की इज्जत बचा रखी थी। पानवाले के मन में देश और देश के नेताओं के प्रति सम्मान नहीं था। उसे केवल अपना पान बेचने के लिए कोई-न-कोई मुद्दा चाहिए था। यदि ऐसे लोग देश के लिए कुछ कर नहीं सकते, तो उन्हें किसी की हँसी उड़ाने का भी अधिकार नहीं है। कैप्टन जैसे भी व्यक्तित्व का स्वामी था, उससे उसकी देश के प्रति कर्तव्य भावना कम नहीं होती थी। पानवाले को कैप्टन की हँसी नहीं उड़ानी चाहिए थी।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला-साहब! कैप्टन मर गया।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर :
(क) हालदार साहब द्वारा चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को निहारने से पता चलता है कि उनके मन में देश के नेताओं के प्रति आदर और सम्मान की भावना थी। नेताजी की मूर्ति उन्हें देश के निर्माण में सहयोग देने के लिए प्रेरित करती थी। इससे उनकी देशभक्ति की भावना का पता चलता है।
(ख) पानवाला जब भी कोई बात कहता था, उससे पहले वह मुँह का पान नीचे अवश्य थूकता था। पानवाले को कैप्टन के मरने का दुख था। इसलिए उसकी आँखें नम थीं। इससे पता चलता है कि पानवाले के मन में कैप्टन के प्रति आदर की भावना थी।
(ग) मूर्तिकार नेताजी की मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था। बिना चश्मे वाली मूर्ति कैप्टन को बहुत आहत करती थी। इसलिए वह मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगा देता था। जब भी मूर्ति से चश्मा उतारा जाता था, वह उसी समय उस पर दूसरा चश्मा लगा देता था। इससे पता चलता है कि कैप्टन में देश के नेताओं के प्रति आदर और सम्मान की भावना थी।
प्रश्न 7.
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर :
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात देखा नहीं था, तब तक वे सोचते होंगे कि कैप्टन रौबदार व्यक्तित्व वाला इनसान है। उनके मानस पटल पर एक गठीले बदन के पुरुष की छवि अंकित होगी, जिसकी मूंछे बड़ी-बड़ी हों। उसकी चाल में फौजियों जैसी मज़बूती और ठहराव होगा। चेहरे पर तेज़ होगा। उसका पूरा व्यक्तित्व ऐसा होगा, जिसे देखकर दूसरा व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इस तरह हालदार साहब के दिल और दिमाग पर एक फौजी की तसवीर अंकित होगी।
प्रश्न 8.
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है –
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?
उत्तर :
(क) कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी-न-किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने के पीछे यह उद्देश्य रहता है कि लोग उस व्यक्ति के व्यक्तित्व से शिक्षा लें। लोगों में देश के प्रति उत्तरदायित्व की भावना जागृत हो। उस मूर्ति को देखकर लोग भी देश के लिए कुछ करने का दृढ़ संकल्प लें।
(ख) हम अपने क्षेत्र के चौराहे पर लाल बहादुर शास्त्री की प्रतिमा लगवाना चाहेंगे। वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपनी मेहनत से देश के प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने आम व्यक्ति को यह अनुभव करवाया था कि उसकी भी देश के निर्माण में अहम भूमिका है। लाल बहादुर शास्त्री आम व्यक्ति की आवाज़ थे, इसलिए उनकी मूर्ति आम व्यक्ति को कुछ करने की प्रेरणा देगी।
(ग) चौराहे पर लगी मूर्ति के प्रति हमारे और दूसरे लोगों के मन में आदर और सम्मान की भावना होनी चाहिए। हमें दूसरे लोगों को भी मूर्ति वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व से परिचित करवाना चाहिए। इसके लिए समय-समय पर वहाँ पर देशभक्ति के समागम होने चाहिए, जिससे आम व्यक्ति में देशभक्ति की भावना प्रबल हो। उस मूर्ति के सामने से जब भी निकलें, उसके आगे नतमस्तक हों। उनके द्वारा किए गए कार्यों को याद करके उन्हें अमल में लाने का प्रयत्न करें।
प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फ़ौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर :
हम अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे कई कार्यों को उचित ढंग से कर सकते हैं, जिससे देश-प्रेम का परिचय मिलता है। पानी हमारे लिए अनमोल धरोहर है। हमें इसका उचित प्रयोग करना चाहिए। पानी की टंकी को खुला न छोड़ें। पानी के प्रयोग के बाद तुरंत टंकी बंद कर देनी चाहिए। हमें बिजली का उचित प्रयोग करना चाहिए। व्यर्थ बिजली का प्रयोग हमारे जीवन को अंधकारमय बना सकता है।
इसलिए जितना संभव हो, बिजली का उतना ही प्रयोग करना चाहिए। घरों में बिजली के पंखे, ट्यूबें खुली नहीं छोड़नी चाहिए। जब ज़रूरत न हो, तो इन्हें बंद कर देना चाहिए। पेट्रोल का उचित प्रयोग करने के लिए, जहाँ तक संभव हो निजी यातायात के साधनों का प्रयोग कम करना चाहिए। इसके स्थान पर सार्वजनिक यातायात के साधनों का अधिक प्रयोग करना चाहिए। इससे मनुष्य के धन की भी बचत होती है तथा पर्यावरण भी कम प्रदूषित होता है। ऐसे हमारे जीवन-जगत से जुड़े कई कार्य हैं, जिन्हें अमल में लाकर हम अपने देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर :
मान लीजिए कि कोई ग्राहक आ गया और उसे चौड़े फ्रेम वाला चश्मा चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाएगा। इसलिए ग्राहक को मूर्ति वाला चश्मा दे दिया और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा दिया।
प्रश्न 11.
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर :
एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द आने से वाक्य प्रभावशाली बन जाता है। दूसरी भाषाओं के कुछ ऐसे शब्द होते हैं, जिन्हें हम अपनी मातृभाषा की तरह ही प्रयोग करते हैं। इस प्रकार के प्रयोग से वाक्य कहना, सुनना और समझना सरल हो जाता है। यदि उपरोक्त वाक्य एक ही भाषा में कहा जाता, तो यह सुनने वाले पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ता। दो या तीन भाषाओं के एक साथ प्रयोग से भाषा का नया स्वरूप बनता है, जोकि भाषा को लचीला बनाता है।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए –
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रते रहे।
उत्तर :
(क) भी – बाज़ार जा रहे हो तो मेरे लिए भी फल लेते आना।
(ख) ही – शिक्षा ही मानव को ऊँचा उठाती है।
(ग) यानी – यानी खाना खाया तो था, परंतु वह लजीज़ नहीं था।
(घ) भी – क्या कहा! तुम भी फ़िल्म देखने जा रहे हो।
(ङ) तक – पिछले दो सालों से उसने मुझे चिट्ठी तक नहीं लिखी।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए –
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ़ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर :
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता था।
(ख) पानवाले के द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले के द्वारा साफ़ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर के द्वारा ज़ोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी के द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब के द्वारा चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।
प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए जैसे-अब चलते हैं। अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर :
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।
पाठेतर सक्रियता –
प्रश्न 1.
लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया –
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्व और प्रोत्साहन दे
सकते हैं, लिखिए।
उत्तर :
(क) नगरपालिका चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति स्थापित करना चाहती थी। लेकिन मूर्ति बनाने का बजट सीमित था, इसलिए मूर्ति बनाने का कार्य स्थानीय स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को दिया गया। मास्टर मोतीलाल को जब यह कार्य मिला, तो उन्हें बहुत खुशी हुई। उन्होंने नगरपालिका के सदस्यों को विश्वास दिलाया कि वे एक महीने के अंदर मूर्ति तैयार कर देंगे। इस प्रकार का कार्य मिलने से कलाकार में नया उत्साह जागृत हुआ। उन्हें ऐसा लगा कि नगरपालिका ने उनकी कला को प्रोत्साहन देने के लिए यह कार्य उन्हें सौंपा है। इसलिए उन्होंने अपनी बात के अनुसार एक महीने में मूर्ति पूरी कर दी।
(ख) हमें अपने क्षेत्र के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों को समय-समय पर प्रोत्साहन देना चाहिए। हम उन्हें अपनी कला दिखाने के लिए नए-नए अवसर दे सकते हैं। किसी त्योहार या राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर इन लोगों को अपनी कला दिखाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इनके प्रदर्शन के अनुरूप इन्हें प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुधरे और वे अपनी कला में निखार लाए। क्षेत्र के धनवान इन लोगों की कला को आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करके इन्हें आगे बढ़ने का अवसर दे सकते हैं।
प्रश्न 2.
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।
उत्तर :
श्रीमान,
प्रधानाचार्य,
केंद्रीय विद्यालय,
दिल्ली कैंट।
विषय : विद्यालय परिसर एवं कक्षा के लिए सुझाव हेतु पत्र
मान्यवर,
आपको विदित है कि हमारे विद्यालय में अनेक ऐसे विद्यार्थी हैं, जो किसी-न-किसी तरह की शारीरिक दिव्यांगता से युक्त हैं। उन्हें विद्यालय में प्रथम अथवा द्वितीय तल पर स्थित कक्षाओं में जाने तथा प्रसाधन कक्षों का प्रयोग करने में बहुत कठिनाई होती है। आपसे प्रार्थना है कि शारीरिक रूप से असमर्थ ऐसे विद्यार्थियों की कक्षाएँ निचले तल पर लगाई जाएँ तथा सीढ़ियों के साथ-साथ रैंप भी बनाए जाएँ, जिससे उन्हें आने-जाने में तकलीफ़ न हो। इसी के अनुरूप उनके लिए पुस्तकालय, प्रसाधन कक्षों आदि में भी समुचित व्यवस्था की जाए।
आशा है आप हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर समुचित प्रबंध करवाएँगे।
धन्यवाद
भवदीय
राघव मेनन
विद्यार्थी, कक्षा-दसवीं
दिनांक : 15 मार्च, 20…
प्रश्न 3.
कैप्टन फेरी लगाता था। फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी ज़रूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर :
फेरीवाले हमारी जिंदगी का एक अभिन्न अंग हैं। ये हमारी दौड़ती-भागती जिंदगी को आराम देते हैं। फेरीवाले घर पर ही हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर देते हैं। गली में कई फेरीवाले आते हैं; जैसे-सब्जीवाले, फलवाले, रोज़ाना काम में आने वाली वस्तुएँ बेचने वाले आदि। इन्होंने हमारे जीवन को सुगम बना दिया है। हमें छोटी-से-छोटी चीज़ घर बैठे मिल जाती है। इससे हमारे समय की बचत होती है। हम अपना बचा हुआ समय किसी उपयोगी कार्य में लगा सकते हैं। जहाँ कुछ फेरीवाले हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैं, वहीं कुछ फेरीवाले समस्या भी उत्पन्न कर देते हैं।
कई कॉलोनियाँ शहर से दूर होती हैं, इसलिए वहाँ के लोगों को अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए इन फेरीवालों पर निर्भर रहना पड़ता है। ये फेरीवाले उन लोगों की ज़रूरतों का फ़ायदा उठाते हुए मनमाने मूल्यों पर वस्तु बेचते हैं। कई बार तो अधिक पैसे लेकर गंदा और घटिया माल बेच देते हैं। कई फेरीवाले अपराधिक तत्वों से मिलकर उन्हें ऐसे घरों की जानकारी देते हैं, जहाँ दिन में केवल बच्चे और बूढ़े होते हैं। फेरीवालों की मनमानी रोकने के लिए उन्हें नगरपालिका से जारी मूल्य-सूची दी जानी चाहिए। फेरीवालों के पास पहचान-पत्र और वस्तु बेचने का लाइसेंस होना चाहिए।
प्रश्न 4.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 5.
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर :
नगरपालिका ने हमारे घर के आस-पास रोशनी का उचित प्रबंध किया है; टूटी हुई सड़कों को ठीक करवाया है; कूड़ा-कर्कट डालने के लिए बड़े-बड़े डिब्बे रखवाए हैं; सरकारी पानी की टंकी लगवाई है। नगरपालिका के करवाए कार्यों का उचित उपयोग हो, इसके लिए हमें इन सबकी देखभाल करनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि कोई भी सड़कों पर कूड़ा-कर्कट न फेंकें। पानी की टंकी को बेकार में खुला मत छोड़ें। अपने आस-पास के क्षेत्र की सफ़ाई का पूरा ध्यान रखें, जिससे स्वच्छ वातावरण में ताज़गी का अनुभव हो।
नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है –
देश-प्रेम
देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है।
देश-प्रेम यदि वास्तव में अंत:करण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है। यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा।
जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते हैं कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि बस-बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझे? उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो। प्रेम हिसाब-किताब नहीं है।
हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं। हिसाब-किताब से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है। हित-चिंतन और हित-साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है, उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता।
– आचार्य रामचंद्र शुक्ल
JAC Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ का संदेश क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ का उद्देश्य देश-प्रेम का वर्णन करना है। देश का निर्माण कोई अकेला नहीं कर सकता। जब-जब देश का निर्माण होता है, उसमें कुछ नाम प्रसिद्ध हो जाते हैं और कुछ गुमनामी के अँधेरे में खो जाते हैं। प्रस्तुत पाठ में भी यही दर्शाया गया है कि नगरपालिका वाले कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति लगवाते हैं। मूर्तिकार नेताजी की मूर्ति का चश्मा बनाना भूल जाता है। उस कस्बे में कैप्टन नाम का चश्मे बेचने वाला व्यक्ति है।
उसे बिना चश्मे के नेताजी का व्यक्तित्व अधूरा लगता है, इसलिए वह उस मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगवा देता है। सब लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं। उसके मरने के बाद नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के चौराहे पर लगी रहती है। बिना चश्मे की मूर्ति हालदार साहब को भी दुखी कर देती है। वे ड्राइवर से चौराहे पर बिना रुके आगे बढ़ने को कहते हैं, लेकिन अचानक उनकी नज़र मूर्ति पर पड़ती है।
उस पर किसी बच्चे द्वारा सरकंडे का बनाया चश्मा लगा हुआ था। यह दृश्य हालदार साहब को देशभक्ति की भावना से भर देता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि देश के निर्माण में करोड़ों गुमनाम व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान देते हैं। इस योगदान में बड़े ही नहीं अपितु बच्चे भी शामिल होते हैं। यही पाठ का उद्देश्य है।
प्रश्न 2.
लेखक ने कस्बे का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर :
लेखक ने ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में जिस कस्बे का वर्णन किया है, वह बहुत बड़ा नहीं है। वह कस्बा आम कस्बों जैसा है। उसमें कुछ मकान पक्के थे। एक बाज़ार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल था और एक लड़कियों का स्कूल था। एक छोटा-सा सीमेंट का कारखाना था। दो ओपन एयर सिनेमाघर थे। कस्बे में एक नगरपालिका थी।
प्रश्न 3.
नेताजी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता था ?
उत्तर :
नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते थे, तो उन्हें नेताजी का आजादी के दिनों वाला जोश याद आने लगता था। उन्हें नेताजी के वे नारे याद आते थे, जो लोगों में उत्साह भर देते थे, जैसे-‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’। उनकी मूर्ति देखकर लोगों को प्रतीत होता था कि कोई उन्हें देश के नवनिर्माण के लिए पुकार रहा है।
प्रश्न 4.
नेताजी का चश्मा हर बार कैसे बदल जाता था?
उत्तर :
हालदार साहब जब भी कस्बे में से गुजरते थे, तो वे चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को देखते थे। उन्हें हर बार नेताजी का चश्मा अलग दिखता था। पूछने पर पान वाले ने बताया कि मूर्ति का चश्मा कैप्टन बदलता है। कैप्टन को बिना चश्मे वाली नेताजी की मूर्ति आहत करती थी, इसलिए उसने उस मूर्ति पर चश्मा लगा दिया। अब यदि कोई ग्राहक उससे नेताजी की मूर्ति पर लगे चश्मे जैसा चश्मा माँगता, तो वह मूर्ति से चश्मा उतारकर ग्राहक को दे देता था। उसके बदले में वह मूर्ति पर नया चश्मा लगा देता था। इस प्रकार हालदार साहब को नेताजी का चश्मा हर बार बदला हुआ मिलता था।
प्रश्न 5.
हालदार साहब चश्मे वाले की देशभक्ति के प्रति क्यों नतमस्तक थे?
उत्तर :
नगरपालिका वालों ने चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति लगाने की योजना बनाई। उन लोगों ने मूर्ति बनाने का कार्य कस्बे के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को दे दिया। मोतीलाल जी ने भी एक महीने में मूर्ति बना दी। मूर्ति बनाते समय उससे एक भूल हो गई कि वह नेताजी का चश्मा बनाना भूल गया। चश्मे के बिना नेताजी की मूर्ति अधूरी थी। इस अधूरेपन को कैप्टन चश्मे वाला मूर्ति पर चश्मा लगाकर पूरा करता है। हालदार साहब उसकी इस देशभक्ति की भावना के आगे नतमस्तक थे।
प्रश्न 6.
कैप्टन चश्मे वाले का व्यक्तित्व हालदार साहब की सोच से किस प्रकार अलग था?
उत्तर :
हालदार साहब को जब यह पता चला कि कैप्टन चश्मेवाले ने नेताजी की मूर्ति के अधूरेपन को अपने ढंग से पूरा किया है, तो वे कैप्टन की देशभक्ति के आगे नतमस्तक थे। कैप्टन नाम सुनते ही उनके दिल और दिमाग पर एक फ़ौजी की छवि अंकित हो गई। परंतु जब उन्होंने वास्तव में कैप्टन चश्मेवाले को देखा, तो हैरान रह गए। कैप्टन चश्मेवाला एक दुबला-पतला बूढ़ा था। उसकी एक टाँग नहीं थी। उसके सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा था। उसके एक हाथ में छोटी-सी संदूकची थी और दूसरे हाथ में एक बाँस पर लटके हुए चश्मे थे। इस प्रकार कैप्टन चश्मेवाले का व्यक्तित्व हालदार साहब की सोच से भिन्न था।
प्रश्न 7.
कस्बे में नगरपालिका क्या काम करवाती थी?
उत्तर :
कस्बे में नगरपालिका कुछ-न-कुछ काम करवाती रहती थी। वह सड़कें पक्की करवाती थी; पेशाबघर बनवाती थी; कबूतरों के लिए छतरी तथा कवि-सम्मेलन भी करवाती थी।
प्रश्न 8.
‘नेताजी का चश्मा’ कहानी किसके बारे में है और यह प्रतिमा किसने लगवाई?
उत्तर :
‘नेताजी का चश्मा’ कहानी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा के बारे में है, जो नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड अधिकारी ने बाज़ार के मुख्य चौराहे पर लगवा दी थी। यह प्रतिमा संगमरमर की बनी हुई थी।
प्रश्न 9.
कस्बे का चौराहा आते ही हालदार साहब क्या करने लगते थे?
उत्तर :
कस्बे का चौराहा आते ही हालदार साहब आदतवश मूर्ति की ओर टकटकी लगाकर देखने लगते थे। वे यह सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि इस कस्बे के लोग कितने देशभक्त हैं, जो नेताजी की मूर्ति को प्रतिदिन एक नया चश्मा पहना देते हैं।
प्रश्न 10.
कैप्टन कौन था? वह क्या कार्य करता था ?
उत्तर :
कैप्टन एक बहुत ही बूढ़ा, कमज़ोर तथा अपाहिज व्यक्ति था। वह चश्मे बेचने का काम करता था। उसकी अपनी कोई दुकान नहीं थी। वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था।
पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –
दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुज़रते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल दुर्दमनीय हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया, क्यों भई! क्या बात है?
यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है? पानवाले के खुद के मुँह में पान हुँसा हुआ था। वह एक काला-मोटा और खुशमिज़ाज आदमी था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों-ही-आँखों में हँसा। उसकी तोंद थिरकी। पीछे घूमकर उसने दुकान के नीचे पान थूका और अपनी लाल-काली बत्तीसी दिखाकर बोला, कैप्टन चश्मेवाला करता है।
(क) कस्बे में से गुज़रते हुए हालदार साहब को कौन-सी आदत पड़ गई थी?
(i) चौराहे पर रुकना
(ii) पान खाना
(iii) मूर्ति को ध्यान से देखना
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(iv) ये सभी
(ख) पानवाला कैसा था?
(i) कमज़ोर और चिड़चिड़ा
(ii) बातूनी और गुस्सैल
(iii) काला, मोटा और खुशमिज़ाज
(iv) गोरा और लंबा
उत्तर :
(iii) काला, मोटा और खुशमिज़ाज
(ग) मूर्ति का चश्मा हर बार कौन बदल देता था?
(i) पानवाला
(ii) हालदार साहब
(iii) कस्बे के लोग
(iv) चश्मेवाला कैप्टन
उत्तर :
(iv) चश्मेवाला कैप्टन
(घ) किसका प्रश्न सुनकर पानवाला हँसा?
(i) कैप्टन
(ii) मूर्तिकार
(iii) हालदार साहब
(iv) राहगीर
उत्तर :
(iii) हालदार साहब
(ङ) चौराहे पर किसकी मूर्ति लगी थी?
(i) तिलक
(ii) नेताजी
(iii) सरदार
(iv) लाला लाजपत राय
उत्तर :
(ii) नेताजी
उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –
पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) लोग चश्मेवाले को कैप्टन क्यों कहते थे?
(i) क्योंकि वह एक सेनानी था।
(ii) क्योंकि वह एक नाविक था।
(iii) क्योंकि वह सच्चा देशभक्त था।
(iv) क्योंकि वह धूर्त राजनेता था।
उत्तर :
(ii) क्योंकि वह सच्चा देशभक्त था।
(ख) नेताजी की प्रतिमा किससे निर्मित थी?
(i) बुरादे से
(ii) लकड़ी से
(iii) मिट्टी से
(iv) संगमरमर से
उत्तर :
(iv) संगमरमर से
(ग) हालदार साहब की आँखें क्यों भर आईं?
(i) कैप्टन चश्मेवाले को याद करके
(ii) नेताजी की प्रतिमा पर सरकंडे का चश्मा लगा देखकर
(iii) पानवाले के चश्मे को याद करके
(iv) कस्बे के लोगों को याद करके
उत्तर :
(ii) नेताजी की प्रतिमा पर सरकंडे का चश्मा लगा देखकर
(घ) ‘नेताजी का चश्मा’ गद्य पाठ के लेखक कौन हैं?
(i) प्रकाश जी
(ii) स्वयं प्रकाश
(iii) महादेवी वर्मा
(iv) यशपाल
उत्तर :
(ii) स्वयं प्रकाश
महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज्यादा होने के कारण काफ़ी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. वह पूरी बात कौन-सी थी, जिसका पता नहीं था?
3. ऊहापोह की स्थिति क्यों बनी रही?
4. मोतीलाल जी कौन थे और उन्हें क्या काम सौंपा गया?
5. ‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ से क्या आशय है?
उत्तर :
1. पाठ-नेताजी का चश्मा; लेखक-स्वयं प्रकाश।
2. शहर के प्रमुख बाज़ार के चौराहे पर नगरपालिका ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगवानी थी। लेकिन मूर्ति बनवाने का कार्य मोतीलालजी को क्यों दिया गया, इस बात का किसी को पता नहीं था।
3. ऊहापोह की स्थिति इसलिए बनी रही, क्योंकि नगरपालिका के अधिकारियों को यह समझ में नहीं आ रहा था कि मूर्ति कहाँ से और किससे बनवाई जाए तथा इस पर कितना व्यय होगा? इसके लिए वे विभिन्न संस्थाओं से पत्र-व्यवहार करते रहे, लेकिन कोई निर्णय नहीं कर पाए।
4. मोतीलाल जी स्थानीय हाई स्कूल में ड्राइंग के मास्टर थे। जब कहीं से मूर्ति बनवाने का प्रबंध नहीं हुआ, तो नगरपालिका ने उन्हें मूर्ति बनानेका काम दे दिया।
5. नगरपालिका ने एक निश्चित समय में शहर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर नेताजी की मूर्ति लगानी थी। इसलिए उन्होंने ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को यह कार्य सौंप दिया। उन्होंने विश्वास दिलाया कि वे एक महीने में मूर्ति तैयार कर देंगे।
2. इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कौन-सा प्रयास सफल था और कैसे?
2. कहाँ क्या खटक रहा था और क्यों?
3. मूर्ति देखकर हालदार साहब ने क्या लक्षित किया?
4. हालदार साहब के चेहरे पर कौतुकभरी मुसकान फैलने का क्या कारण था?
उत्तर :
1. नगरपालिका ने शहर के हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी से नेताजी की संगमरमर की जो मूर्ति बनवाई थी, वह एक सफल प्रयास था। मूर्ति सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे और फ़ौजी वरदी में थे।
2. नेताजी की मूर्ति में उनकी आँखों पर संगमरमर का बना हुआ चश्मा नहीं था। उसके स्थान पर सामान्य और सचमुच का चश्मा पहना दिया गया था। यही देखने पर खटकता था।
3. हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर रुककर पानवाले से पान लेकर खाने लगे, तब उन्होंने लक्षित किया कि मूर्ति पर संगमरमर का बना हुआ चश्मा न होकर सचमुच का काले फ्रेम का चश्मा लगा हुआ है।
4. हालदार साहब के चेहरे पर कौतुकभरी मुसकान फैलने का कारण काले फ्रेम का चश्मा था, जो नेताजी की मूर्ति पर लगाया गया था।
3. हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुज़रते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल दुर्दमनीय हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया, क्यों भई! क्या बात है? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?
पानवाले के खुद के मुँह में पान हुँसा हुआ था। वह एक काला मोटा और खुशमिज़ाज़ आदमी था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों-ही-आँखों में हँसा। उसकी तोंद थिरकी। पीछे घूमकर उसने दुकान के नीचे पान थूका और अपनी लाल-काली बत्तीसी दिखाकर बोला, कैप्टन चश्मेवाला करता है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. हालदार साहब की क्या आदत थी?
2. हालदार साहब को किस बात पर आश्चर्य हुआ?
3. हालदार साहब ने अपने कौतूहल के समाधान के लिए क्या किया?
4. पानवाले ने हालदार साहब को किस प्रकार उत्तर दिया?
उत्तर :
1. हालदार साहब जब भी इस कस्बे से निकलते थे, तो मुख्य बाज़ार के चौराहे पर अवश्य रुकते थे। वे चौराहे के पानवाले से पान लेकर खाते थे और चौराहे पर लगी हुई नेताजी की संगमरमर की मूर्ति को ध्यान से देखते थे।
2. हालदार साहब को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वे जब भी इधर से गुज़रते हैं, तो हर बार नेताजी की मूर्ति का चश्मा बदला होता है। उन्हें इसी बात पर आश्चर्य था कि हर बार चश्मा कैसे बदल जाता है ?
3. हालदार साहब ने अपने कौतूहल के समाधान के लिए पानवाले से पूछा कि नेताजी की मूर्ति का चश्मा हर बार कैसे बदल जाता है?
4. पानवाला एक काला, मोटा और खुशमिजाज़ व्यक्ति था। जब हालदार साहब ने मूर्ति के चश्मे के बदलते रहने की बात पूछी, तो उस समय उसके मुँह में पान था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों-ही-आँखों में हँसा और उसकी तोंद थिरकने लगी। उसने अपने मुँह का पान पीछे घूमकर दुकान के नीचे थूका और हालदार साहब को बताया कि मूर्ति के चश्मे को कैप्टन बदलता है।
4. हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
1. हालदार साहब को क्या अच्छा नहीं लगा था?
2. कैप्टन के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
3. कैप्टन क्या काम करता था?
4. हालदार साहब को कैप्टन देशभक्त क्यों लगा?
उत्तर :
1. हालदार साहब को पानवाले के द्वारा एक देशभक्त व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा।
2. कैप्टन एक बहुत ही बूढ़ा, कमज़ोर-सा लँगड़ा व्यक्ति था। उसने अपने सिर पर गांधी टोपी पहनी हुई थी। उसने अपनी आँखों पर काला चश्मा लगाया हुआ था। उसके एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टॅगे हुए बहुत-से चश्मे थे।
3. कैप्टन चश्मे बेचने का काम करता था। उसकी अपनी कोई दुकान नहीं थी। वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था।
4. चश्मे बेचने वाला कैप्टन नेताजी की संगमरमर की मूर्ति को बिना चश्मे के देखकर उस पर सचमुच के चश्मों के फ्रेम लगाता था। यह जानकर हालदार साहब को लगा कि वह आज़ाद हिंद फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही अथवा नेताजी का कोई देशभक्त सहयोगी होगा।
5. पान वाले के लिए एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली। यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा ‘मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल’ वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने-भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए-काँचवाला- यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा। या बनाते-बनाते “कुछ और बारीकी’ के चक्कर में चष्ठमा टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उफ….!
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
1. पानवाले के लिए क्या बात मज़ेदार थी और क्यों?
2. हालदार साहब की दृष्टि में कस्बे का अध्यापक ‘बेचारा’ क्यों था?
3. हालदार साहब ने नेताजी की प्रतिमा पर चश्मा न होने की क्या-क्या संभावनाएँ व्यक्त की?
उत्तर :
(क) मूर्तिकार द्वारा नेताजी की मूर्ति बनाते हुए उनका चश्मा बनाना भूल जाना, पान वाले के लिए एक मजेदार बात थी। पानवाले के बिना चश्मे वाली नेताजी की मूर्ति से कोई आपत्ति नहीं थी। कैप्टन को नेताजी की बिना चश्मेवाली मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए वह उसमें चश्मे का फ्रेम लगा देता था।
(ख) हालदार साहब की दृष्टि में कस्बे का अध्यापक बेचारा था। क्योंकि उसने कम समय और कम लागत में नेताजी की मूर्ति एक महीने में बनाकर लगा दी थी। संगमरमर की मूर्ति में काँचवाला चश्मा लगाने के लिए उसके पास समय नहीं रहा होगा।
(ग) हालदार साहब सोच रहे थे कि मूर्तिकार ने पत्थर की मूर्ति पर पारदर्शी चश्मा बनाने की कोशिश की होगी परंतु सफल नहीं हो पाया होगा, चश्मे की बारीकी पर ध्यान देते हुए चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा।
नेताजी का चश्मा Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
जीवन – सुप्रसिद्ध कहानीकार स्वयं प्रकाश का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर नगर में सन् 1947 ई० को हुआ था। इन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के पश्चात औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्य किया। सेवानिवृत्ति के बाद वे भोपाल में रहकर ‘वसुधा’ नामक पत्रिका का संपादन करने लगे हैं। इन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया है।
रचनाएँ – स्वयं प्रकाश एक सशक्त कथाकार हैं। अब तक इनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं-‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘संधान’ आदि। इन्होंने उपन्यास भी लिखे हैं, जिनमें ईंधन’ तथा ‘बीच में विनय’ अत्यंत प्रसिद्ध हैं।
भाषा-शैली – स्वयं प्रकाश का कथा साहित्य मध्यवर्गीय जीवन की सफल झाँकियाँ प्रस्तुत करता है। ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी में लेखक ने देश के नेताओं के प्रति आम आदमी तथा बच्चों की श्रद्धा का सजीव अंकन किया है। लेखक की भाषा सहज तथा बोधगम्य है, जिसमें तत्सम शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है; जैसे – प्रयास, आहत, लक्षित, उपलब्ध, दुर्दमनीय आदि।
इसी प्रकार से कंपनी, सिलसिला, बस्ट, कमसिन, चश्मा, आइडिया, ओरिजिनल जैसे विदेशी तथा गिराक, तोंद, सरकंडे जैसे देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इनकी शैली अत्यंत प्रभावपूर्ण, चित्रात्मक, संवादात्मक, भावपूर्ण तथा वर्णनात्मक है। पानवाले का यह शब्द चित्र उसे साक्षात आकार प्रदान कर देता है-‘वह एक काला मोटा और खुशमिजाज़ आदमी था।’
इसी प्रकार से कैप्टन की रूपरेखा इन शब्दों से स्पष्ट होती है-‘एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे।’ इन आम बोलचाल के शब्दों में लेखक ने अपनी बात अत्यंत प्रभावी रूप से व्यक्त की है।
पाठ का सार :
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक ‘स्वयं प्रकाश’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने देश के उन गुमनाम नागरिकों के महत्वपूर्ण योगदान का वर्णन किया है, जो देश के निर्माण में अपने-अपने ढंग से सक्रिय हैं। कैप्टन चश्मे वाले की देश-भक्ति भी उसके कस्बे तक सीमित थी। हालदार साहब कंपनी के काम से एक कस्बे में से हर पंद्रह दिन के बाद गुजरा करते थे। कस्बा सामान्य कस्बों जैसा था, जिसमें कुछ पक्के और कुछ कच्चे घर थे। लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल था। एक नगरपालिका थी।
नगरपालिका समय-समय पर कस्बे के विकास के लिए कार्य करती थी। एक बार नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति लगवाने का निश्चय किया। मूर्ति बनाने का कार्य कस्बे के स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल को दिया गया। मोतीलाल जी ने एक महीने में नेताजी की छाती तक की संगमरमर की मूर्ति तैयार कर दी। नगरपालिका ने वह मूर्ति चौराहे पर लगा दी।
नेताजी की मूर्ति को देखकर लोगों में देश के लिए कुछ करने का उत्साह पैदा होता था। इस तरह नगरपालिका का लोगों में देश-भावना जागृत करने का यह प्रयास सफल तथा सराहनीय था। लेकिन मूर्ति देखने वालों को मूर्ति में एक कमी लगती थी। मूर्ति का चश्मा पत्थर का नहीं था, वह असली था। शायद मूर्ति बनाने वाला नेताजी का चश्मा बनाना भूल गया, इसलिए मूर्ति पर असली चश्मा लगा। दिया गया था।
हालदार साहब जब पहली बार कस्बे से गुज़रे, तो उन्हें लोगों का यह प्रयास अच्छा लगा। उन्हें लगा कि लोगों में अपने नेताओं के प्रति आदर-सम्मान है। अगले दो-तीन बार वहाँ से गुजरने पर हालदार साहब को मूर्ति पर अलग चश्मा लगा मिलता था। यह देखकर वे आश्चर्यचकित थे। उन्होंने अपनी जिज्ञासा कम करने के लिए चौराहे पर बैठे पानवाले से पूछा कि हर बार मूर्ति का चश्मा कैसे बदल जाता है? पानवाले ने बताया कि नेताजी का चश्मा कैप्टन बदल देता है।
जब कोई ग्राहक नेताजी की मूर्ति पर लगा चश्मा चाहता है, तो कैप्टन मूर्ति से चश्मा उतार कर ग्राहक को दे देता है और मूर्ति पर नया चश्मा लगा देता है। कैप्टन को नेताजी की चश्मे के बिना मूर्ति बुरी लगती थी। उसे चश्मे के बिना नेताजी का व्यक्तित्व अधूरा प्रतीत होता था, इसलिए वह अपने पास से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर लगा देता था। पानवाले ने हालदार साहब को यह भी बताया कि मूर्तिकार मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था।
हालदार साहब को पानवाले को यह बात बहुत बुरी लगी। हालदार साहब कैप्टन चश्मे वाले से बहुत प्रभावित हुए थे, जिसने अपनी देशभक्ति से मूर्ति के अधूरेपन को पूरा किया था। उन्होंने पानवाले से कैप्टन के विषय में पूछा कि क्या वह नेताजी की फ़ौज का कोई सिपाही था। इस पर पानवाला मुसकरा पड़ा और बोला कि वह एक लँगड़ा है। वह फ़ौज में कैसे जा सकता है ? पानवाला हालदार साहब को कैप्टन दिखाता है। कैप्टन एक पतला-सा बूढ़ा व्यक्ति था। उसके पास एक संदूकची थी और एक बाँस था, जिस पर तरह-तरह के चश्मे टँगे थे।
वह एक फेरी लगाने वाला था। जिस ढंग से पानवाले ने कैप्टन का परिचय दिया, वह ढंग हालदार साहब को बहुत बुरा लगा था। वे कैप्टन के विषय में बहुत कुछ जानना चाहते थे, परंतु पानवाला कुछ और बताने को तैयार नहीं था। हालदार साहब अगले दो साल तक कस्बे से गुजरते रहे और नेताजी की मूर्ति के बदलते चश्मे देखते रहे। एक बार हालदार साहब उधर से गुजरे, तो उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया। उस दिन अधिकांश बाजार बंद था।
अगली बार फिर हालदार साहब वहाँ से गुज़रे, तो उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया। हालदार साहब ने पानवाले से पूछा कि नेताजी का चश्मा कहाँ गया? पानवाले ने उदास होकर बताया कि चश्मे वाला कैप्टन मर गया। हालदार साहब यह सुनकर चले गए। कैप्टन के मरने के बाद हालदार साहब यह सोचने लगे कि उस देश का भविष्य क्या होगा, जिसकी जनता देश का निर्माण करने वालों पर हँसती है।
हालदार पंद्रह दिन बाद फिर उस कस्बे से गुजरे। उन्होंने पहले ही सोच लिया था कि वे चौराहे पर रुककर मूर्ति की तरफ़ नहीं देखेंगे। वे नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति नहीं देख सकते थे। परंतु जैसे ही वे नेताजी की मूर्ति के सामने से गुजरे, यह देखकर हैरान रह गए कि मूर्ति पर किसी बच्चे द्वारा बनाया सरकंडे का चश्मा रखा हुआ था। हालदार भावुक हो गए। उन्होंने बच्चों की भावना का सम्मान करने के लिए मूर्ति के सामने अटेंशन खड़े होकर नेताजी को प्रणाम किया।
कठिन शब्दों के अर्थ :
प्रतिमा – मूर्ति। मूर्तिकार – मूर्ति बनाने वाला। बस्ट – छाती। कमसिन – कम उमर का। रियल – असली। आइडिया – विचार। कौतुक – हैरानी, जिज्ञासा। प्रयास – कोशिश। चेंज करना – बदलना। सराहनीय – प्रशंसनीय। लक्षित – बतलाया हुआ, निर्दिष्ट। दुर्दमनीय – जिसका दमन न हो सके। प्रफुल्लता – प्रसन्नता।