JAC Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 4 Linear Equations in Two Variables

Linear Equation In One Variable:
An equation of the form ax + b = 0, where a and bare real numbers with a = 0 and ‘x’ is a variable, is called a linear equation in one variable.
Here ‘a’ is called coefficient of x and ‘b’ is called a constant term. i.e. 3x + 5 = 0, 7x – 2 = 0 etc.

Linear Equation In Two Variables:
An equation of the form ax + by + c = 0 where a, b, c are real numbers and a and b both are not to be zero, and x, y are variables, is called a linear equation in two variables, here ‘a’ is called coefficient of x, ‘b’ is called coefficient of y and ‘c’ is called constant term.
Any pair of values of x and y which satisfies the equation ax + by + c = 0, is called a solution of it.

Graph Of A Linear Equation:
→ In order to draw the graph of a linear equation in one variable we may follow the following algorithm.
Step I: Obtain the linear equation.
Step II: If the equation is of the form ax = b, a ≠ 0, then plot the point \(\left(\frac{\mathrm{b}}{\mathrm{a}}, 0\right)\) and one more point \(\left(\frac{b}{a}, \alpha\right)\) where α is any real number. If the equation is of the form ay = b, a ≠ 0, then plot the point \(\left(0, \frac{b}{a}\right)\) and \(\left(\beta, \frac{b}{a}\right)\) where β is any real number.
Step III: Join the points plotted in step II to obtain the required line. Note: If equation is in the form ax = b then we get a line parallel to y-axis and if equation is in form ay = b then we get a line parallel to x-axis.
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→ In order to draw the graph of a linear equation ax + by + c = 0, we may follow the following algorithm.
Step I: Obtain the linear equation ax + by + c = 0.
Step II: Express y in terms of x i.e. y = \(-\frac{a}{b} x-\frac{c}{b}\) or x in terms of y i.e. x = \(-\frac{b}{a} y-\frac{c}{a}\).
Step III: Put any two or three values for x or y and calculate the corresponding values of y or x respectively from the expression obtained in Step II. Let us suppose that we get the points as (α1, β1),(α2, β2), (α3, β3).
Step IV: Plot the points (α1, β1), (α2, β2), (α3, β3) on graph paper.
Step V: Join the points marked in step IV. The line obtained is the graph of the equation ax + by + c = 0.

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Different Forms Of A Line:
→ Slope of a Line: If a line makes an angle θ with positive direction of x-axis, then tangent of this angle is called the slope of a line, it is denoted by m i.e. m = tan θ.
→ Slope-intercept form is y = mx + c where m is the slope of line and c is intercept made by line with y-axis.
→ The equation of a line passing through origin is y = mx. When c = 0, the line always passes through origin.
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→ Intercept form of line is \(\frac{x}{a}+\frac{y}{b}=1\), where a and b are the intercepts on positive direction of x-axis and y-axis respectively made by the line.
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Solution Of Linear Equation In One Variable:
Let ax + b = 0 be the equation then ax = – b
⇒ x= \(-\frac{b}{a}\) is a solution.

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

JAC Class 9 Hindi नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गयाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया ?
उत्तर :
मैना सेनापति ‘हे’ को कहती है कि जिन लोगों ने आपके विरुद्ध शस्त्र उठाए थे, दोषी तो वे लोग थे। इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए इस मकान की रक्षा कीजिए। वह उन्हें अपने और उनकी पुत्री मेरी के साथ अपने प्रेम-संबंधों की याद दिलाती है और कहती है कि वह मेरी की मृत्यु से बहुत दुखी हुई थी। उसने मेरी की यादगार के रूप में उसका एक पत्र भी संभालकर रखा हुआ था। उसने जनरल ‘हे’ को उनके घर आने-जाने तथा उसके परिवार से संबंधों की याद दिलाकर भी मकान की रक्षा के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 2.
मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी पर अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे। क्यों ?
उत्तर :
मैना जड़ पदार्थ मकान को इसलिए बचाना चाहती थी क्योंकि उस मकान ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया था तथा यह मकान उसे बहुत प्रिय था। अंग्रेज़ इस मकान को इसलिए नष्ट करना चाहते हैं क्योंकि वे नाना साहब को पकड़ नहीं सके हैं। वे नाना साहब से संबंधित प्रत्येक वस्तु को नष्ट कर देना चाहते थे।

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प्रश्न 3.
सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया भाव के क्या कारण रहे थे ?
उत्तर :
सर टामस ‘हे’ ने जब मैना को पहचाना कि यह तो नाना साहब की पुत्री है तो उसके मन में इस छोटी-सी बालिका के प्रति दया का भाव उत्पन्न हो गया। वह नाना साहब के घर आता-जाता रहता था। उसके नाना साहब के घर के साथ पारिवारिक संबंध थे। मैना और उनकी पुत्री मेरी की परस्पर अच्छी मित्रता थी। वह मैना को भी मेरी के समान ही स्नेह करता था। इन सब बातों को सोचकर उसे मैना पर दया आ गई थी और उसने मैना को कहा था कि मैं तुम्हारी रक्षा का प्रयत्न करूँगा।

प्रश्न 4.
मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भर कर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी ?
उत्तर :
पाषाण हृदय वाले जनरल अउटरम ने मैना की अंतिम इच्छा कि वह उस प्रासाद पर बैठकर जी भरकर रोना चाहती है, इसलिए पूरी न होने दी क्योंकि उसे भय था कि कहीं वह भी नाना साहब की तरह भाग न जाए। पहले भी महल की तलाशी लेने पर उसे मैना कहीं नहीं मिली थी। इसलिए उसने उसे फौरन हथकड़ी पहना दी।

प्रश्न 5.
बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर :
मैना एक निडर, स्वाभिमानी, स्वदेश प्रेमी, स्पष्टवादी तथा भावुक बालिका है। इसके चरित्र की इन विशेषताओं को हम अपनाना चाहेंगे। इससे हमारा व्यक्तित्व निखरता है और हमें अपने देश के प्रति आत्म- बलिदान की प्रेरणा मिलती है। हम निडरतापूर्वक प्रत्येक स्थिति का सामना कर सकते हैं।

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प्रश्न 6.
‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितंबर को लिखा था – ‘ बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।’ इस वाक्य में ‘भारत सरकार’ से क्या आशय है ?
उत्तर :
इस वाक्य में भारत सरकार से आशय भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी ?
उत्तर :
‘इस प्रकार के लेखों से स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वालों को अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिए आत्म- बलिदान देने की प्रेरणा प्राप्त हुई होगी। अनेक भारतवासी ऐसे लेखों को पढ़कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े होंगे। उन्होंने निडरतापूर्वक विदेशी शक्तियों का डटकर मुकाबला किया होगा।

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि मैना के बलिदान की इस खबर को आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो समाचार तैयार करें और कक्षा में भावपूर्ण शैली में पढ़ें।
उत्तर :
इतिहासकार महादेव चिटनवीस से आज ज्ञात हुआ कि स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के सेनानी नाना साहब की पुत्री मैना को कानपुर के किले में जीवित जला कर भस्म कर दिया। मैना को अंग्रेज़ी सेना के जनरल अउटरम ने नाना साहब के धराशायी महल के पास से बंदी बनाया था। छह सितंबर को हॉउस ऑफ़ लार्ड्स में सर टामस की अध्यक्षता में नाना के परिवारजनों तथा संबंधियों को मार डालने का क्रूरता भरा निर्णय लिया गया था। भीषण अग्नि में शांत भाव से जलती बालिका मैना को वहाँ उपस्थित लोगों ने देवी समझकर प्रणाम किया।

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प्रश्न 9.
इस पाठ में रिपोर्ताज के प्रारंभिक रूप की झलक मिलती है लेकिन आज अखबारों में अधिकांश खबरें रिपोर्ताज की शैली में लिखी जाती हैं। आप –
(क) कोई दो खबरें किसी अखबार से काटकर अपनी कॉपी में चिपकाइए तथा कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
(ख) अपने आस-पास का किसी घटना का वर्णन रिपोर्ताज शैली में कीजिए।
उत्तर :
(क) 1. हिमाचल में मछली फार्म में जहर फैलने से सैकड़ों मछलियों की मौत हिमाचल प्रदेश के मछली फार्म में जहर फैलने की वजह से सैकड़ों हिमालयी मछलियों के मारे जाने की खबर मिली है। बताया गया है कि ये मछलियाँ दुर्लभ प्रजाति की थीं। मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी तारा चंद ने इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी।

उल्लेखनीय है कि हिमाचल के धमवाड़ी सरकारी मछली फार्म में लगभग 3000 छोटी मछलियाँ मरी पाई गईं, जबकि 400 वयस्क मछलियों के मारे जाने की भी खबर मिली है। तारा चंद ने बताया कि मरी हुई मछलियों की जाँच करने से पाया गया है कि मछली- टैंक में जहरीले रासायनिक पदार्थ के फैलने की वजह से इन मछलियों की मौत हुई है। उल्लेखनीय है कि राज्य की राजधानी शिमला से 140 किलोमीटर दूरी पर स्थित पब्बर घाटी पर सरकार द्वारा मछली फार्म संचालित किए जाते हैं, जिन्हें हैचरी बोला जाता है।

2. यहाँ किसी भी हिंदी समाचार पत्र से कोई समाचार काटकर चिपकाइए।
(ख) वह रात अति डरावनी थी, मूसलाधार बारिश में पूरी मुंबई गले तक डूब चुकी थी। लोग घरों तक पहुँचने की जद्दोजहद में अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे।
सारे संपर्क टूट गए थे। मैं तीसरे माले की अपनी बालकनी से प्रकृति का तांडव देख रही थी। बेटे और पति से बड़ी मुश्किल से बात हो पाई थी। पास के रिश्तेदारों के यहाँ उन्हें रुकने को कहने के बाद मैं घर में अकेली थी। हमेशा जगमगाती मुंबई आज अंधकार में डूबी थी। मैंने टॉर्च की रोशनी में देखा कि पास के नाले में भरा कचरा पानी के साथ पूरे मोहल्ले में फैल गया है।

इस दृश्य को मैं कई दिनों तक भुला नहीं पाई। धीरे-धीरे बारिश का प्रकोप थमा और जीवन सामान्य होने लगा। मैंने ठान लिया था कि मुझे क्या करना है। मैंने तीन कचरा पेटी खरीदीं और नाले के सामने रखवा दीं। आस-पास के हर घर में जाकर अपील की कि कचरा नाले में नहीं कचरापेटी में ही डालें। सोसायटी के अध्यक्ष से कहकर नाले की पूरी सफाई करवाई। काफी लोगों ने समझा, तो कुछ ने मजाक बनाया। जानबूझकर कचरा नाले में डाल देते। उनसे उलझने की जगह मैं खुद जाकर कचरा उठाकर पेटी में डाल आती। अब सभी लोग कचरा सही जगह पर डालते हैं और साफ-सुथरी कॉलोनी में रहने पर गर्व महसूस करते हैं।
ऐसी ही कोई न कोई पहल हम सब कर सकते हैं।

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प्रश्न 10.
आप किसी ऐसे बालक/बालिका के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए जिसने कोई बहादुरी का काम किया हो।
उत्तर :
पिछले सप्ताह मेरी कक्षा एक पिकनिक ट्रिप पर गई थी। हमारे साथ शीतल मैडम और गुप्ता सर भी थे। हम तीस बच्चे स्कूल की वैन में गए थे। हम बहुत प्रसन्न थे और अपने साथ खेलने और खाने का बहुत-सा सामान ले गए थे। वैन से उतरते ही हम सब झील के किनारे चले गए। झील में किनारे के पास ही एक सुंदर फूल लगा था जिसे संदीप ने तोड़ना चाहा। सब बच्चों ने उसे ऐसा न करने को कहा पर वह माना ही नहीं।

वहाँ थोड़ी ढलान और फिसलन थी। जैसे ही उसने पाँव बढ़ाया वह फ़िसल गया और झील में जा गिरा। हम सब ज़ोर-ज़ोर से चीखने-चिल्लाने लगे। हममें से किसी को भी तैरना नहीं आता था। संदीप गोते खा रहा था। पास ही भैंस चराने वाला एक लड़का अपनी भैंसों को चरा रहा था। हमारी चीख-पुकार सुनकर वह भागा हुआ आया। उसने कपड़ों समेत झील में छलांग लगा दी और डूबते संदीप को झील से बाहर खींच लाया।

तब तक गुप्ता सर भी दूर से भागते हुए हमारे पास पहुँच गए। उन्होंने उस लड़के को शाबाशी दी और एक सौ रुपए इनाम देने की बहुत कोशिश की, पर उसने इनाम नहीं लिया। हम सब बच्चों ने उसकी बहुत प्रशंसा की, पर वह तो सिर नीचा कर चुपचाप बैठा रहा। उसकी बहादुरी के कारण ही संदीप डूबने से बच गया।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 11.
भाषा और वर्तनी का स्वरूप बदलता रहता है। इसी पाठ में हिंदी गद्य का प्रारंभिक रूप व्यक्त हुआ है जो लगभग 75-80 वर्ष पहले प्रचलित था। इस पाठ के किसी पसंदीदा अनुच्छेद को वर्तमान मानक हिंदी रूप में लिखिए।
उत्तर :
मानक रूप – अपना सारा जीवन युद्ध में बिताकर अंत में वृद्धावस्था में सर टामस हे एक मामूली मराठी बालिका के सौंदर्य पर मोहित होकर अपना कर्तव्य ही भूल गए। हमारे मत से नाना के पुत्र, कन्या तथा अन्य कोई भी संबंधी जहाँ कहीं मिलें, मार दिए जाएँ। यह भी जानें –

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पाठेतर सक्रियता –

अपने साथियों के साथ मिलकर बहादुर बच्चों के बारे में जानकारी देने वाली पुस्तकों की सूची बनाइए।
इन पुस्तकों को पढ़िए- ‘ भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाएँ’ – राजम कृष्णन, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली। ‘सन् 1857 की कहानियाँ’ – ख्वाजा हसन निज़ामी, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें –
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
आजाद भारत में दुर्गा भाभी को उपेक्षा और आदर दोनों मिले। सरकारों ने उन्हें पैसों से तोलना चाहा। कई वर्ष पहले पंजाब में उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51 हज़ार रुपये भेंट किए। भाभी ने वे रुपये वहीं वापस कर दिए। कहा – “ जब हम आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय किसी व्यक्तिगत लाभ या उपलब्धि की अपेक्षा नहीं थी।

केवल देश की स्वतंत्रता ही हमारा ध्येय था। उस ध्येय पथ पर हमारे कितने ही साथी अपना सर्वस्व निछावर कर गए, शहीद हो गए। मैं चाहती हूँ कि मुझे जो 51 हज़ार रुपये दिए गए हैं, उस धन से यहाँ शहीदों का एक बड़ा स्मारक बना दिया जाए, जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो, क्योंकि देश की नई पीढ़ी को इसकी बहुत आवश्यकता है।”

मुझे याद आता है सन् 1937 का ज़माना, जब कुछ क्रांतिकारी साथियों ने गाज़ियाबाद तार भेजकर भाभी से चुनाव लड़ने की प्रार्थना की थी। भाभी ने तार से उत्तर दिया – “चुनाव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। अतः लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।”

मुल्क के स्वाधीन होने के बाद की राजनीति भाभी को कभी रास नहीं आई। अनेक शीर्ष नेताओं से निकट संपर्क होने के बाद भी वे संसदीय राजनीति से दूर ही बनी रहीं। शायद इसलिए अपने जीवन का शेष हिस्सा नई पीढ़ी के निर्माण के लिए अपने विद्यालय को उन्होंने समर्पित कर दिया।

1. स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी का सम्मान किस प्रकार किया गया ?
2. दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपये लेने से इंकार क्यों कर दिया ?
3. दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से दूर क्यों रहीं ?
4. आजादी के बाद उन्होंने अपने को किस प्रकार व्यस्त रखा ?
5. दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता आप अपनाना चाहेंगे ?
उत्तर :
1. अनेक सरकारों ने उन्हें पैसे से तोलना चाहा। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार दरबारा सिंह ने उन्हें इक्यावन हज़ार रुपये भेंट किए थे।
2. दुर्गा भाभी ने पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा भेंट स्वरूप दिए गए रुपये इसलिए वापस कर दिए थे क्योंकि वे व्यक्तिगत लाभ नहीं लेना चाहती थीं।
3. दुर्गा भाभी को चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे दलगत राजनीति से दूर रहना चाहती थीं, इसलिए अनेक बड़े-बड़े नेताओं से निकट संपर्क होते हुए भी संसदीय राजनीति से दूर रहीं।
4. आजादी के बाद उन्होंने स्वयं को नयी पीढ़ी के निर्माण में लगा दिया तथा अपना सारा समय अपने विद्यालय को समर्पित कर दिया।
5. दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व से हम उनकी यह विशेषता अपनाना चाहेंगे कि मनुष्य को कोई भी कार्य अपने व्यक्तिगत लाभ अथवा उपलब्धि के लिए न करके समाज के कल्याण के लिए करना चाहिए।

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यह भी जानें –

हिंदू – पंच – अपने समय की चर्चित पत्रिका हिंदू पंच का प्रकाशन सन् 1926 में कलकत्ता से हुआ। इसके संपादक थे – ईश्वरीदत्त शर्मा सन् 1930 में इसका ‘बलिदान’ अंक निकला जिसे अंग्रेज़ सरकार ने तत्काल जब्त कर लिया। चाँद के ‘फाँसी’ अंक की तरह यह भी आजादी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस अंक में देश और समाज के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले व्यक्तियों के बारे में बताया गया है।

JAC Class 9 Hindi नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेजों ने क्या किया ?
उत्तर :
कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेज़ों ने अपना सैनिक दल बिठूर भेज दिया। बिठूर आकर उन्होंने नाना साहब का राजमहल लूट लिया। इस लूट में उन्हें बहुत थोड़ी संपत्ति मिली थी। उन्होंने तोप के गोलों से नाना साहब का महल नष्ट करने का निश्चय किया। सैनिकों ने जब वहाँ तोपें लगाईं तो नाना साहब की पुत्री मैना ने सेनापति ‘हे’ से ऐसा न करने की प्रार्थना की, किंतु जनरल अउटरम की आज्ञा से नाना साहब का महल मिट्टी में मिला दिया गया और मैना को कानपुर के एक किले में लाकर जलाकर भस्म कर दिया गया।

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प्रश्न 2.
सर टामस हे की रिपोर्ट पर ‘हाउस ऑफ़ लाईस’ ने क्या टिप्पणी की थी ?
उत्तर :
सर टामस हे की रिपोर्ट पर हाउस ऑफ़ लार्ड्स में बहुत आलोचना हुई थी। इस संबंध में टाइम्स ने लिखा था कि ‘हे’ के लिए निश्चय ही यह कलंक की बात है। जिस नाना ने अंग्रेज़ नर-नारियों का संहार किया उसकी कन्या के लिए वे क्षमा- दान की माँग कर रहे हैं। लगता है, अपना सारा जीवन युद्ध में बिताकर अंत में वृद्धावस्था में वे एक मामूली महाराष्ट्रीयन बालिका के सौंदर्य पर मुग्ध होकर अपना कर्तव्य भूल गए हैं। हमारे विचार में नाना का जो भी संबंधी मिले, उसे मार डाला जाए तथा जिस कन्या की ‘हे’ ने क्षमादान की अपील की है, उसे ‘हे’ के सामने फाँसी पर लटका दिया जाए।

प्रश्न 3.
धुंधुपंत नाना साहब से क्या गलती हुई थी और उस ग़लती का परिणाम किसे भुगतना पड़ा ?
उत्तर :
धुंधुपत नाना साहब सन् 1857 ई० के विद्रोह के नेताओं में से एक थे। नाना साहब कानपुर में असफल हो गए थे। वे जल्दी से वहाँ : से भाग निकले थे परंतु जल्दी-जल्दी में वे अपनी पुत्री मैना को अपने साथ नहीं ले सके थे। उनकी इस छोटी सी ग़लती का परिणाम छोटी बच्ची को भुगतना पड़ा। उस छोटी बच्ची मैना को अंग्रेजों की क्रूरता का शिकार होना पड़ा था।

प्रश्न 4.
अंग्रेज़ी सरकार ने सेनापति टामस ‘हे’ को क्या आदेश दिया था ?
उत्तर :
अंग्रेज़ी सरकार सन् 1857 के संग्राम में भाग लेने वालों के विरुद्ध क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर रही थी। नाना साहब के असफल होने पर और वहाँ से सुरक्षित निकल जाने पर अंग्रेज़ों ने उनके महल पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजी सरकार ने सेनापति टामस ‘हे’ को आदेश दिया कि नाना साहब के संबंधी, पुत्र और कन्या जो भी मिले उसे मार डाला जाए। नाना साहब की पुत्री को फाँसी देने का आदेश दिया गया था परंतु अंग्रेजों ने उसे जिंदा जला दिया।

प्रश्न 5.
सेनापति टामस ‘हे’ और नाना साहब की पुत्री मैना के मध्य हुए संवाद को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नाना साहब का महल नष्ट करने के लिए अंग्रेज़ों की तरफ से सेनापति टामस ‘हे’ आए थे। मैना ने उन्हें पहचान लिया कि वे उसकी सहेली के पिता थे। मैना ने उनसे मकान को नष्ट करने से पहले मकान के द्वारा किया गया अपराध पूछा। सेनापति ‘हे’ ने कहा कि वह नाना साहब का निवास स्थान था। हमें उनसे संबंधित सभी वस्तुओं को नष्ट करने का आदेश मिला था। मैना सेनापति ‘हे’ को अपना परिचय उनकी पुत्री मेरी की सखी के रूप में दिया था। साथ ही जड़ पदार्थ मकान को नष्ट न करने की प्रार्थना की।

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प्रश्न 6.
सेनापति ‘हे’ मैना की बातें सुनकर असमंजस में क्यों पड़ जाता है ?
उत्तर :
सेनापति ‘हे’ नाना साहब का महल नष्ट करने आया था परंतु मैना की बातें सेनापति ‘हे’ पर गहरा प्रभाव डालती हैं। वह महल को नष्ट नहीं करना चाहता था परंतु उसे अंग्रेज़ सरकार से आदेश मिला था जिसे वह ठुकरा नहीं सकता था। वह मैना को अपनी पुत्री मेरी के समान प्यार करता था। वह असमंजस में पड़ जाता है कि वह सरकार का आदेश का पालन करे या मैना की बात मानकर महल की रक्षा करे।

प्रश्न 7.
प्रधान सेनापति जनरल अउटरम सेनापति ‘हे’ पर क्यों क्रोधित हुआ ?
उत्तर :
सेनापति ‘हे’ को आदेश दिया गया था कि नाना साहब से संबंधित सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया जाए परंतु सेनापति ‘हे’ ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि मैना उनकी पुत्री मेरी की सहेली थी। वे उसकी रक्षा करने का प्रयत्न करते हैं। उसी समय जनरल अउटरम वहाँ पहुँच जाता है और सेनापति ‘हे’ को आदेश का पालन नहीं करते हुए देखकर वह उस पर बिगड़ जाता है।

प्रश्न 8.
सेनापति ‘हे’ ने नाना साहब के महल को बचाने के लिए क्या प्रयास किए?
उत्तर :
सेनापति ‘हे’ ने अंग्रेज़ी सरकार के आदेश का उल्लंघन करते हुए जनरल अउटरम से प्रार्थना करता है कि नाना साहब के महल को नष्ट न किया जाए। जनरल अउटरम उसकी प्रार्थना को ठुकरा देता है। सेनापति ‘हे’ गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग को एक तार भेजता है। गवर्नर जनरल भी उसकी प्रार्थना को ठुकरा देते हैं। सेनापति ‘हे’ नाना साहब के महल को बचाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं।

प्रश्न 9.
अंत में मैना कहाँ बैठी थी और उसकी अंतिम इच्छा क्या थी ?
उत्तर :
जनरल अउटरम ने नाना साहब के महल को नष्ट कर दिया था। वहाँ उसे मैना कहीं नहीं मिली थी। सितंबर 1857 को आधी रात के समय मैना साफ़ कपड़े पहने हुए महल की राख की पास बैठी रो रही थी। अंग्रेज़ों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। वह मरने से नहीं डर रही थी। वह केवल कुछ देर के लिए अपने पिता के महल की राख के पास बैठकर रोना चाहती थी परंतु अंग्रेजों ने उसकी इच्छा पूरी नहीं की।

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प्रश्न 10.
अंग्रेज़ों ने मैना के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उत्तर :
अंग्रेजों ने मैना को उसके महल में से गिरफ्तार कर लिया। उसे कानपुर के किले में बंद कर दिया। मैना को फाँसी की सजा सुनाई गई थी, परंतु अंग्रेज़ों ने उसे कानपुर के किले में आग में जलाकर भस्म कर दिया। अंग्रेजों ने उस छोटी बच्ची को जिंदा जलाकर नाना साहब से अपना बदला लिया था।

प्रश्न 11.
मैना के मरने का समाचार किसने दिया और मरते समय वह कैसी लग रही थी ?
उत्तर :
मैना के मरने का समाचार महाराष्ट्रीय इतिहास वेत्ता महादेव चिटनवीस ने अपने पत्र ‘बाखर’ में छापा था। उसमें लिखा था, ‘अंग्रेज़ों ने कानपुर के किले में भीषण हत्याकांड किया और मैना को जिंदा आग में जलाकर भस्म कर दिया। भीषण अग्नि में जलते समय मैना शांत और सरल मूर्ति लग रही थी। वहाँ उपस्थित लोगों ने उसे देवी समझकर प्रणाम किया।’

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. सन् 1857 के विद्रोही नेता धुंधुपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ . न ले जा सके। देवी मैना बिठूर में पिता के महल में रहती थी, पर विद्रोह का दमन करने के बाद अंग्रेज़ों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. विद्रोह कब हुआ था ?
2. 1857 के विद्रोही नेता का क्या नाम था ?
3. नाना साहब कानपुर में किसको और क्यों छोड़कर चले गए थे ?
4. अंग्रेज़ों ने किसे अग्नि में भस्म कर दिया था ?
उत्तर :
1. विद्रोह सन् 1857 में हुआ था।
2. सन् 1857 के विद्रोही नेता का नाम धुंधपंत नाना साहब था।
3. सन् 1857 के विद्रोह में नाना साहब असफल हो गए थे, इसलिए वे वहाँ से जल्दी में भागने लगे। इसी जल्दबाजी में वे कानपुर में अपनी पुत्री देवी मैना को छोड़ गए, जो उनके महल में उनके साथ रहती थी।
4. अंग्रेज़ों ने नाना साहब की पुत्री देवी मैना को बड़ी ही क्रूरता से आग में जलाकर भस्म कर दिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

2. कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेज़ों का सैनिक दल बिठूर की ओर गया। बिठूर में नाना साहब का राजमहल लूट लिया गया, पर उसमें बहुत थोड़ी संपत्ति अंगरेजों के हाथ लगी। इसके बाद अंग्रेज़ों ने तोप के गोलों से नाना साहब का महल भस्म कर देने का निश्चय किया। सैनिक दल ने जब वहाँ तोपें लगाईं, उस समय महल के बरामदे में एक अत्यंत सुंदर बालिका उठकर खड़ी हो गई।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. अंग्रेज़ों के सैनिक भीषण हत्याकांड के पश्चात् कहाँ गए ?
2. अंग्रेज़ों ने नाना साहब के राजमहल के साथ क्या किया ?
3. अंग्रेज़ों ने क्या निश्चय किया ?
4. नाना साहब के महल को तोपों से उड़ाते समय क्या हुआ ?
उत्तर
1. कानपुर में भीषण हत्याकांड के बाद अंग्रेज़ों के सैनिक दल बिठूर की ओर गए।
2. अंग्रेज़ों ने बिठूर में नाना साहब के राजमहल को लूट लिया। इसके पश्चात अंग्रेज़ों ने तोप के गोलों से उनका राजमहल भस्म करने का निश्चय किया।
3. अंग्रेज़ों ने नाना साहब के महल को तोप से उड़ा देने का निश्चय किया।
4. अंग्रेज़ों ने नाना साहब के महल को तोप से उड़ाने का निश्चय करने के बाद वहाँ पर तोपें लगवा दीं। उसी समय महल के बरामदे में एक सुंदर बालिका उठकर खड़ी हो गई।

3. मैं जानती हूँ कि आप जनरल ‘हे’ हैं। आपकी प्यारी कन्या मेरी में और मुझ में बहुत प्रेम संबंध था। कई वर्ष पूर्व मेरी मेरे पास बराबर आती थी और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे यहाँ आते थे और मुझे अपनी पुत्री के ही समान प्यार करते थे। मालूम होता है कि आप वे सब बातें भूल गए हैं। मेरी की मृत्यु से मैं बहुत दुखी हुई थी, उसकी एक चिट्ठी मेरे पास अब तक है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) यह शब्द किसने, किसे और क्यों कहे ?
(ख) जनरल ‘हे’ कौन था ? वह यहाँ किसलिए आया था ?
(ग) मेरी की सखी जनरल ‘हे’ को क्या समझाना चाहती थी और क्यों ?
(घ) मेरी की सखी ने मेरी का पत्र क्यों संभालकर रखा हुआ था ?
(ङ) जनरल ‘हे’ के मन में मैना ने क्या भाव भरने का प्रयत्न किया था ?
उत्तर :
(क) यह शब्द धुंधुपंत नाना साहब की पुत्री मैना ने अंग्रेज़ सेनापति जनरल ‘हे’ से कहे थे। जब जनरल ‘हे’ सरकार की आज्ञा से नाना साहब का महल तोपों से गिराना चाहता था तो मैना उनसे यह महल न गिराने का अनुरोध करते हुए उन्हें अपना परिचय देती है।
(ख) जनरल ‘हे’ एक अंग्रेज़ अधिकारी था। वह वहाँ नाना साहब का महल गिराने आया था।
(ग) मेरी की सखी मैना जनरल ‘हे’ को यह समझाना चाहती है कि उसका तथा उनकी पुत्री मैरी का आपस में बहुत प्रेम – भाव था। वे उनके घर आते रहते थे तथा मेरी भी उनके घर आती थी। वे उसे भी अपनी पुत्री के समान स्नेह देते थे। इस प्रकार उनके तथा मैना के परिवार के आपस में अच्छे संबंध थे, इसलिए उन्हें उनका महल नष्ट नहीं करना चाहिए।
(घ) मैना का मेरी के साथ बहुत प्रेम-भाव था। वे आपस में मिलती-जुलती रहती थीं। मेरी की मृत्यु से मैना बहुत दु:खी हुई थी। मेरी की यादगार के रूप में मैना ने मेरी का एक पत्र संभालकर रखा हुआ था।
(ङ) मैना ने जनरल ‘हे’ के मन में अपने प्रति प्रेम और सहानुभूति के भाव भरने चाहे थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

4. बड़े दुःख का विषय है कि भारत सरकार आज तक इस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी जिस पर समस्त अंग्रेज जाति का भीषण क्रोध है। जब तक हम लोगों के शरीर में रक्त रहेगा, तब तक कानपुर में अंग्रेज़ों के हत्याकांड का बदला लेना हम लोग न भूलेंगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) यह कथन किसने, कब और क्यों कहा ?
(ख) भारत सरकार किसे कहा गया है ? वह असफल क्यों रही ?
(ग) नाना साहब को दुर्दात क्यों कहा गया है ? अंग्रेज़ों को उन पर क्रोध क्यों है ?
(घ) कानपुर में कैसा हत्याकांड हुआ था ? यह घटना कब की है ?
(ङ) अंग्रेज़ सरकार को किसने भड़काया और उकसाया था ?
उत्तर :
(क) यह समाचार लंदन से प्रकाशित ‘टाइम्स’ के 6 सितंबर, सन् 1857 के अंक में छपा था। कानपुर में धुंधुपंत नाना साहब द्वारा अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध किए गए विद्रोह के कारण यह समाचार प्रकाशित हुआ था। अंग्रेज़ सेना नाना को पकड़ नहीं सकी थी।
(ख) भारत सरकार तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार को कहा गया है। वह सरकार नाना साहब द्वारा किए गए विद्रोह को दबा नहीं सकी थी और नाना साहब को भी पकड़ने में असमर्थ रही थी। इसलिए ‘टाइम्स’ ने इस सरकार को असफल कहा था।
(ग) नाना साहब को दुर्गांत इसलिए कहा गया है क्योंकि अंग्रेज़ सरकार के सैनिक नाना साहब के विद्रोह का दमन नहीं कर सके थे और न ही वे नाना साहब को पकड़ सके। नाना साहब द्वारा किए गए विद्रोह और अंग्रेज़ों की हत्याओं के कारण ही अंग्रेज़ों को उन पर क्रोध है।
(घ) कानपुर में अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध हुए नाना साहब के विद्रोह में अनेक अंग्रेज़ मारे गए थे। इसके बाद बदला लेने के लिए अंग्रेज़ सैनिकों ने कानपुर में अनेक भारतीयों को मार दिया था। यह घटना सन् 1857 ई० के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की है।
(ङ) अंग्रेज़ सरकार को भारत सरकार के विरुद्ध समाचार पत्र ‘टाइम्स’ ने भड़काया और उकसाया था।

नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया Summary in Hindi

लेखिका – परिचय :

जीवन परिचय – चपला देवी द्विवेदी युग की लेखिका मानी जाती हैं। इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं है।

रचनाएँ – चपला देवी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में रिपोर्ताज लिखे थे। ‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध रिपोर्ताज है। उनकी अन्य रचनाओं के संबंध में हिंदी साहित्य का इतिहास मौन है।

भाषा-शैली – चपला देवी द्वारा रचित रिपोर्ताज इस शैली का प्रारंभिक रूप है। इसमें लेखिका ने तत्कालीन प्रचलित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इसमें क्रूरता, विद्रोह, दमन, वासस्थान, अल्पवयस, भग्नावशिष्ट आदि तत्सम प्रधान शब्दों के अतिरिक्त महल, बरामदा, चिट्ठी, फिक्र, तार आदि विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। संवादात्मकता ने इस रिपोर्ताज की रोचकता में वृद्धि की है, जैसे-सेनापति ने उससे पूछा – ‘क्या चाहती है ?”

बालिका ने शुद्ध अंग्रेज़ी भाषा में उत्तर दिया – ‘क्या आप कृपा कर इस महल की रक्षा करेंगे ?”
सेनापति – ‘क्यों, तुम्हारा इसमें क्या उद्देश्य है ?’
बालिका – ‘आप ही बताइए कि यह मकान गिराने में आपका क्या उद्देश्य है ?”
कहीं-कहीं विवरणात्मक शैली के दर्शन होते हैं, जैसे – ‘कल कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकांड हो गया। नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गई। भीषण अग्नि में शांत और सरल मूर्ति उस अनुपमा बालिका को जलती देख, सबने उसे देवी समझकर प्रणाम किया।’
इस प्रकार लेखिका ने सहज, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी भाषा – शैली में अपने भावों को व्यक्त किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

पाठ का सार :

‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ चपला देवी द्वारा रचित रिपोर्ताज है, जिसमें लेखिका ने सन् 1857 ई० की क्रांति के नेता धुंधुपंत नाना साहब की पुत्री मैना को अंग्रेजों द्वारा जलाकर मार डालने की लोमहर्षक घटना का हृदयस्पर्शी वर्णन किया गया है। कानपुर में भीषण नरसंहार करने के बाद अंग्रेज़ों की सेना ने बिठूर जाकर नाना साहब का राजमहल लूट लिया।

इसके बाद उन्होंने तोप के गोलों से महल को उड़ाने की तैयारी की तो महल के बरामदे में एक बहुत सुंदर बालिका आकर खड़ी हो गई तथा अंग्रेज सेनापति को महल पर तोप के गोले बरसाने से मना किया। उस छोटी-सी बालिका पर अंग्रेज सेनापति को दया आ गई और उसने उस बालिका से पूछा कि वह क्या चाहती है? उस बालिका ने सेनापति को अंग्रेज़ी भाषा में ही उत्तर दिया कि वह इस महल की रक्षा करना चाहती है क्योंकि जिन्होंने आप के विरुद्ध शस्त्र उठाए थे वे दोषी हो सकते हैं परंतु इस जड़ पदार्थ मकान ने तो आप का कुछ नहीं बिगाड़ा है। सेनापति ने उत्तर दिया कि वह अपने कर्तव्य से बँधा हुआ है, इसलिए उसे यह मकान गिराना ही होगा।

तब वह बालिका उस अंग्रेज सेनापति को बताती है कि वह जानती है कि वे जनरल ‘हे’ हैं। उनकी पुत्री मैरी से उसकी मित्रता थी। मैरी की मृत्यु से वह बहुत दुखी हुई थी। मैरी का एक पत्र आज भी उसके पास सुरक्षित है। तब सेनापति ने उस बालिका को पहचान लिया कि वह नाना साहब की पुत्री मैना है। वह उसे बचाने का प्रयत्न करने की बात कहता है। तभी वहाँ जनरल अउटरम आकर नाना साहब के महल को तोप से उड़ाने के लिए कहता है।

सेनापति ‘हे’ नाना साहब के महल को किसी प्रकार से बचाने के लिए उनसे पूछता है तो अउटरम स्पष्ट कह देता है कि गवर्नर जनरल की आज्ञा के बिना यह संभव नहीं है। सेनापति ‘हे’ गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग से इस विषय में तार भेजकर अनुरोध करता है। लॉर्ड केनिंग का उत्तर आता है कि ‘लंदन के मंत्रिमंडल का यह मत है कि नाना का स्मृति चिह्न तक मिटा दिया जाए।’ उसी क्षण जनरल अउटरम की आज्ञा से नाना का राजमहल तोप के गोले बरसा कर मिट्टी में मिला दिया जाता है।

इस संदर्भ में लंदन से प्रकाशित ‘टाइम्स’ पत्र में छठी सितंबर को एक लेख में नाना साहब को पकड़ सकने में अंग्रेजी सेना की असमर्थता पर खेद व्यक्त किया गया और ‘हाउस ऑफ लाईस’ की सभा में सर टामस ‘हे’ की इस रिपोर्ट की निंदा की गई कि नाना की कन्या पर दया की जाए। उन्होंने नाना के परिवारजनों तथा संबंधियों को मार डालने तथा मैना को फाँसी पर लटकाने का आदेश दिया।

सन् 1857 ई० के सितंबर महीने की आधी रात के समय चाँदनी में स्वच्छ उज्ज्वल वस्त्र पहनकर एक बालिका नाना साहब के धराशायी महल के ढेर पर बैठी रो रही थी। वहीं पास में जनरल अउटरम और उसकी सेना भी ठहरी हुई थी। बालिका के रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ पहुँच गया और उसने उसे पहचान लिया कि यह तो नाना की पुत्री मैना है। उसने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसे कानपुर के किले में लाकर कैद कर दिया गया। बाद में महाराष्ट्रीय इतिहासकार महादेव चिटनवीस के समाचार पत्र ‘बाखर’ में यह प्रकाशित हुआ कि कल कानपुर के किले में नाना साहब की पुत्री मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गई। भीषण अग्नि में भी शांत भाव से उस बालिका को जलती देखकर सबने उसे देवी समझ कर प्रणाम किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी, मैना को भस्म कर दिया गया

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • विद्रोही – बाग़ी
  • दमन – बगावत को बलपूर्वक रोकना
  • निरीह – बेचारा, चुपचाप पड़ा रहनेवाला
  • पाषाण – पत्थर
  • अल्पवयस – कम उम्र
  • विध्वंस – नष्ट, नाश
  • दुर्दांत – जिसे दबाना बहुत कठिन हो
  • प्रासाद – महल
  • विद्रोह – राज्य को उलटने के लिए बलवा करना, बगावत
  • कूरता – निर्दयता, निष्ठुरता
  • निरपराध – जिसने कोई अपराध न किया हो, निर्दोष
  • द्रवीभूत – दया से पसीजा हुआ
  • वास स्थान – रहने का स्थान
  • फिक्र – चिंता
  • भग्नावशिष्ट – खंडहर
  • आर्त – दुखी

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

JAC Class 9 Hindi साँवले सपनों की याद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर :
बचपन में सालिम अली एयरगन से खेला करते थे। एक दिन उनकी एयरगन से निकली गोली से एक नीले कंठवाली गौरैया घायल होकर गिर पड़ी। इस घायल गौरैया की दयनीय दशा देखकर सालिम अली को बहुत दुख हुआ। उन्होंने एयरगन न चलाने का फ़ैसला किया और पक्षियों की सेवा करने का निश्चय किया। इस प्रकार एक घायल गौरैया ने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया और वे पक्षी प्रेमी बन गए।

प्रश्न 2.
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं ?
उत्तर :
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री को बताया होगा कि यदि हम ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से नहीं बचाएँगे तो यहाँ का समस्त पर्यावरण दूषित हो जाएगा। पेड़-पौधे सूख जाएँगे। वर्षा नहीं होगी। हरियाली नष्ट हो जाएगी। पक्षियों का चहचहाना सुनाई नहीं देगा। पक्षी किसी दूसरे स्थान पर चले जाएँगे। पशुओं की भी हानि होगी। इस प्रकार से यह सुंदर वैली उजाड़ हो जाएगी। यह सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें नम हो गई होंगी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 3.
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरी छत पर बैठनेवाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है??
उत्तर :
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि लॉरेंस को प्रकृति से गहरा लगाव था। वे एक अच्छे ‘बर्ड वाचर’ थे। वे पक्षियों के कलरव से प्रेरणा प्राप्त कर कविताएँ लिखते थे। उनकी प्रकृति संबंधी कविताएँ विशेष प्रसिद्ध हैं। वे अपनी छत पर बैठी हुई गौरैया को अकसर देखा करते थे। इसी कारण उनकी पत्नी ने यह कहा कि मेरी छत पर बैठी गौरैया लॉरेंस के बारे में अधिक बता सकती है।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) वो लॉरेंस की तरह नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
उत्तर :
लेखक को लगता है कि जिस प्रकार सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कवि डी० एच० लॉरेंस प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे और मानते थे कि ‘मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।’ इसलिए ‘हमारा प्रकृति की ओर लौटना ज़रूरी है।’ उसी प्रकार सालिम अली भी प्रकृति से बहुत लगाव रखते थे। वे प्रकृति की दुनिया में अथाह सागर बनकर उभरे थे। इसलिए वे प्राकृतिक जीवन के प्रतिनिधि बन गए थे।

(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ?
उत्तर :
लेखक का कथन है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस मरे हुए व्यक्ति को यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने शरीर की गरमी और अपने दिल की धड़कनें देकर जीवित करना चाहे तो यह संभव नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी साँसें देकर किसी मरे हुए व्यक्ति को जीवित नहीं कर सकता। जो पक्षी मर जाता है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता। वह फिर से अपना कलरव नहीं कर सकता।

(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि सालिम अली को प्रकृति से बहुत प्रेम था। उन्होंने प्रकृति का बहुत सूक्ष्मता से निरीक्षण किया था। वे दूरबीन से प्रकृति के प्रत्येक हृदय का आनंद लेते थे। एकांत के क्षणों में भी वे प्रकृति को अपनी दूरबीन रहित आँखों से निहारते रहते थे। इसी प्रकृति – प्रेम ने उन्हें पक्षियों का प्रेमी भी बना दिया था। जैसे सागर बहुत गहरा होता है उसी प्रकार सालिम अली का प्रकृति – प्रेम भी बहुत गहरा था।

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प्रश्न 5.
इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
(क) सरल भाषा – इस पाठ में लेखक ने बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग किया है, जैसे – ‘आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं हैं। कौन बचा हैं जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा।’

(ख) शब्द प्रयोग – इस पाठ में लेखक ने तत्सम तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। जैसे- अग्रसर, अंतहीन, पलायन, नैसर्गिक, परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, एहसास, तलाश, साइलेंट वैली, आबशारों आदि। इन शब्दों के द्वारा लेखक ने दृश्यों के शब्द – चित्र भी उपस्थित कर दिए हैं जैसे “सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ अग्रसर है।’

(ग) काव्यात्मकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली काव्यात्मक भी हो गई है, जैसे- ‘एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-
खाबड़ जमीन पर जनमे मिथक का नाम है, सालिम अली’।

(घ) रोचकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली अत्यंत रोचक है। वृंदावन में श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रसंग भाषा-शैली की रोचकता का सुंदर उदाहरण है, जैसे- ‘पता नहीं इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँड़े फोड़े थे।’
इस प्रकार इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली सहज, चित्रात्मक तथा रोचक है।

प्रश्न 6.
इस पाठ में लेखक सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस पाठ में लेखक ने सालिम अली को एक सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक तथा समर्पित ‘बर्ड वाचर’ के रूप में प्रस्तुत किया है। बचपन में उनकी एयरगन से एक गौरैया घायल हो गई थी, जिसका दर्द देखकर उनके मन में पक्षी – प्रेम उत्पन्न हो गया था। उसके बाद वे जीवनभर दूरबीन लेकर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की खोज करते रहे और ‘एक गौरैया का गिरना’ शीर्षक पुस्तक में पक्षियों से संबंधित अपने अनुभवों को लिखा।

वे प्रकृति – प्रेमी भी थे। उन्हें प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करने में अपार आनंद आता था। उन्हें पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बहुत चिंता रहती थी। इसलिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा से बचाने का अनुरोध किया था। वे निरंतर लंबी-लंबी यात्राएँ करके पक्षियों पर खोज करते थे। उनकी आँखों पर सदा दूरबीन चढ़ी रहती थी जिसे उनकी मृत्यु के बाद ही उतारा गया था। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी।

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प्रश्न 7.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक सालिम अली की मृत्यु पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेखक को लगता है कि सालिम अली की यायावरी से परिचित लोग अभी भी यही सोच रहे हैं कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में निकले हैं और अभी गले में दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। लेखक की आँखें भी नम हैं और वह सोचता है ‘सालिम अली, तुम लौटोगे ना।’

लेखक का यह स्वप्न तब भंग हो जाता है जब वह देखता है कि सालिम अली उस हुजूम में सबसे आगे हैं जो मौत की खामोशवादी की ओर अग्रसर हो रहा है जहाँ जाकर वह प्रकृति में विलीन हो जाएगा। सालिम अली को ले जाने वाले अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटा नहीं सकते। अब तो बस उसकी यादें ही शेष हैं। इस प्रकार इस पाठ का शीर्षक ‘साँवले सपनों की याद’ सार्थक है।

रचना और अभिव्यक्ति – 

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर :
पर्यावरण को बचाने के लिए हमें अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए। अपनी गली-मोहल्ले को साफ़-सुथरा रखना चाहिए। कूड़ा एक स्थान पर जमा करना चाहिए। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तालाबों, झीलों तथा नदियों में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों को कम प्रयोग में लाना चाहिए। वातावरण को शुद्ध बनाकर रखना चाहिए।

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पाठेतर सक्रियता –

अपने घर या विद्यालय के नज़दीक आपको अकसर किसी पक्षी को देखने का मौका मिलता होगा। उस पक्षी का नाम, भोजन, खोने का तरीका, रहने की जगह और अन्य पक्षियों से संबंध आदि के आधार पर एक चित्रात्मक विवरण तैयार करें।
आपकी और आपके सहपाठियों की मातृभाषा में पक्षियों से संबंधित बहुत से लोकगीत होंगे। उन भाषाओं के लोकगीतों का एक संकलन तैयार करें। आपकी मदद के लिए एक लोकगीत दिया जा रहा है –

अरे अरे श्यामा चिरइया झरोखवै मति बोलहु।
मोरी चिरई ! अरी मोरी चिरई ! सिरकी भितर बनिजरवा।
जगाई लइ आवउ, मनाइ लइ आवड ॥1॥
कवने बरन उनकी सिरकी कवने रँग बरदी।
बहिनी ! कवने बरन बनिजरवा जगाइ लै आई मनाइ लै आई ॥2॥
जरद बरन उनकी सिरकी उजले रंग बरदी।
सँवर बरन बनिजरवा जगाइ लै आवउ मनाइ लै आवउ ॥3॥

विभिन्न भाषाओं में प्राप्त पक्षियों से संबंधित लोकगीतों का चयन करके एक संगीतात्मक प्रस्तुति दें।
टी०वी० के विभिन्न चैनलों जैसे- एनिमल किंगडम, डिस्कवरी चैनल, एनिमल प्लेनेट आदि पर दिखाए जानेवाले कार्यक्रमों को देखकर किसी एक कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त करें।
एन०सी०ई० आर०टी० का श्रव्य कार्यक्रम सुनें – डॉ० सालिम अली
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें –

प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली का जन्म 12 नवंबर, सन् 1896 में हुआ और मृत्यु 20 जून, सन् 1987 में उन्होंने फॉल ऑफ़ ए स्पैरो नाम से अपनी आत्मकथा लिखी है जिसमें पक्षियों से संबंधित रोमांचक किस्से हैं। एक गौरैया का गिरना शीर्षक से इसका हिंदी अनुवाद नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है।
डी० एच० लॉरेंस (1885-1930) 20वीं सदी के अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासकार। उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं, विशेषकर प्रकृति संबंधी कविताएँ उल्लेखनीय हैं। प्रकृति से डी०एच० लॉरेंस का गहरा लगाव था और सघन संबंध भी। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। वे यह भी मानते थे कि हमारा प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है।

JAC Class 9 Hindi साँवले सपनों की याद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है ?
उत्तर :
सालिम अली की अंतिम यात्रा के समय लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ वहाँ एकत्र हो गई थी। इस भीड़ में सबसे आगे सालिम अली का जनाज़ा चल रहा था। सब लोग चुपचाप उनके पीछे-पीछे मौत की वादी की ओर अग्रसर हो रहे थे। सालिम अली इस संसार के भीड़-भाड़ एवं तनाव से युक्त वातावरण से आज़ाद हो गए थे। वे उस वन – पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर मौत की गोद में चला गया हो। अब कोई उन्हें अपने जिस्म की गरमी तथा दिल की धड़कन देकर भी लौटा नहीं सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 2.
वृंदावन की आज की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर
आज भी वृंदावन जाएँ तो यमुना नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की वृंदावन में की गई अनेक लीलाओं की याद करा देता है। सूर्य निकलने से पहले ही वृंदावन की गलियों से लोग निकलकर यमुना की ओर जाते हैं तो लगता है कि श्रीकृष्ण कहीं से निकलकर बाँसुरी बजाने लगेंगे और सब उस बंसी की तान पर मस्त होकर जहाँ के वहाँ रह जाएँगे। आज भी वृंदावन का वातावरण श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादू से भरा हुआ है।

प्रश्न 3.
सालिम अली ने वर्षों पहले क्या कहा था ?
उत्तर :
वर्षों पहले सामिल अली ने कहा था कि आदमी को पक्षी को आदमी की नज़र की अपेक्षा पक्षियों की नज़र से देखना चाहिए इससे आदमी को पक्षियों के विषय में जानने में मदद मिलेगी। ऐसे ही आदमी प्रकृति को भी अपनी नज़र से देखता है इसलिए उसे जगलों, पहाड़ों, झरनों और आबशारों की असली सुंदरता का पता नहीं है। इन सबको जानने के लिए स्वयं को उसकी तरह अनुभव करना पड़ता है तब हमें पक्षियों और प्रकृति से अनोखा संगीत सुनाने को मिल सकता है।

प्रश्न 4.
‘बर्ड वाचर’ से क्या अभिप्राय है ? इस पाठ में लेखक ने किसे बर्ड वाचर कहा है ?
उत्तर :
‘बर्ड वाचर’ से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसे पक्षियों से प्रेम होता है। वह पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन करता है तथा उनके संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है। वह पक्षियों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने के लिए तैयार रहता है। इस पाठ में लेखक ने ‘बर्ड वाचर’ सालिम अली को कहा है। सालिम अली ने अपनी सारी उम्र पक्षियों की तलाश और हिफ़ाज़त के लिए समर्पित कर दी थी।

प्रश्न 5.
सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
उत्तर :
सालिम अली अपनी दृष्टि से प्रकृति के जादू को बाँध लेते थे। उनके लिए प्रकृति में चारों ओर एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया फैली हुई थी। सालिम अली उन लोगों में से थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने को कायल होते थे। प्रकृति की दुनिया उन्होंने अपने लिए बड़ी मेहनत से बनाई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 6.
‘सालिम अली ने स्वयं को प्रकृति के लिए अर्पित कर दिया था।’ इसमें उनका साथ किसने दिया ?
उत्तर :
सालिम अली का संपूर्ण जीवन प्रकृति के नए-नए दृश्यों की खोज और पक्षियों की खोज में बीता है। उन्होंने अपने आस-पास प्रकृति की दुनिया बड़ी मेहनत से बनाई थी। इस दुनिया को बनाने में उनकी जीवन-साथी तहमीना ने बहुत सहायता की थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।

प्रश्न 7.
लॉरेंस कौन था ? उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी से लोगों ने क्या कहा ?
उत्तर :
लॉरेंस बीसवीं सदी के अंग्रेज़ी के उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति-प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव और सघन संबंध था। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। वह यह मानते थे कि मनुष्य का प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है। लॉरेंस की मृत्यु के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा से कहा कि वे लॉरेंस के विषय में कुछ लिखें। परंतु फ्रीडा ने यह कहकर इनकार कर दिया कि उसके लिए लॉरेंस पर लिखना कठिन है। उनके बारे में कुछ पता करना है तो छत पर बैठी गौरैया से पूछ लें अर्थात जो उनकी कविता के प्रेरणा स्रोत हैं आप लोगों को उनसे बात करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
प्रकृति की दुनिया में सालिम का क्या स्थान था ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :
सालिम अली के लिए प्रकृति की दुनिया ही उनका जीवन थी। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन प्रकृति और उसमें रहनेवाले पक्षियों की नई-नई खोजों को समर्पित कर दिया। वे हिमालय या लद्दाख की बरफीली जमीनों पर जीनेवाले पक्षियों के अस्तित्व की चिंता करते थे। वे प्रकृति के ज्ञान का अथाह सागर थे। उन्होंने प्रकृति का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने प्रकृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था। क्षण प्रतिक्षण प्रकृति के होनेवाले विनाश को लेकर भी चिंतित थे। वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। उन्हें प्रकृति का प्रतिपल परिवर्तित रूप प्रभावित करता था।

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प्रश्न 9.
सालिम अली को जाननेवालों का उनके संबंध में क्या विचार था ?
उत्तर :
सालिम अली को निकट से जाननेवाले लोगों का मानना है कि वे कहीं नहीं गए। अभी उनकी मृत्यु नहीं हुई है। वे अपने प्रिय पक्षियों की खोज और हिफ़ाज़त के लिए कहीं गए हुए हैं। उनके साथ उनकी दूरबीन है। जो उन्हें पक्षियों की नित नई गतिविधियों से परिचित कराएगी। वे कुछ दिनों में वापिस लौट आएँगे और सबको अपनी यात्रा के अनुभव और खोजों के परिणाम को बताएँगे।

प्रश्न 10.
‘साँवले सपनों की याद’ किस प्रकार की विधा है ? लेखक ने इस पाठ में क्या कहा है?
उत्तर :
‘साँवले सपनों की याद’ जाबिर हुसैन द्वारा रचित एक संस्मरण है। उनका यह संस्मरण प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली के जीवन से संबंधित है। इस संस्मरण में लेखक ने सालिम अली के जीवन को एक किताब की भाँति खोलकर रख दिया उन्होंने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को इस संस्मरण में प्रकट किया है।

प्रश्न 11.
सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को बचाने के लिए क्या किया ?
उत्तर :
सालिम अली ने अपने अथाह परिश्रमों से केरल की साइलेंट वैली को बचाने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया और समझाया कि किस प्रकार प्रकृति विनाश के गर्त में डूबने जा रही है।

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प्रश्न 12.
जाबिर हुसैन की भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
जाबिर हुसैन की भाषा-शैली सरल, सहज तथा भावानुकूल है। इनकी भाषा जनसाधारण के निकट थी। इन्होंने अपने लेखों में उर्दू के शब्दों का बहुत प्रयोग किया है। छोटे-छोटे वाक्य तथा उनमें छिपे गंभीर भाव इनकी सफलता का आधार हैं। इनकी शैली में चित्रात्मकता देखी जा सकती है। प्रकृति का वर्णन करने में इनका कवि हृदय मुखरित हो पड़ता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वे उस वन- पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली कौन से हुजूम में किसकी तरह चल रहे हैं ?
(ख) सालिम अली का अंतिम सफर कैसा था ?
(ग) साँवले सपनों का हुजूम किसकी वादी की ओर बढ़ रहा था ?
(घ) इन पंक्तियों में लेखक ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों के हुजूम में सैलानियों की तरह चल रहे हैं। यह सफ़र उनके सभी सफ़रों से भिन्न है।
(ख) सालिम अली भीड़-भाड़ की जिंदगी तथा तनाव भरे वातावरण से मुक्त हो रहे थे। वे वन के उस पक्षी की तरह विलीन हो रहे थे जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में सो गया हो।
(ग) साँवले सपनों का हुजूम मौत की खामोश वादी की ओर बढ़ रहा है।
(घ) इन पंक्तियों में लेखक ने सालिम अली के अंतिम सफ़र (मृत्यु) के विषय में अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं।

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2. पता नहीं यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटना क्रम की याद दिला देगा। हर सुबह सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) वृंदावन जाने पर नदी का साँवला पानी किस घटनाक्रम की याद करा देगा ?
(ख) लेखक ने वृंदावन की वाटिका का वर्णन किस प्रकार किया है ?
(ग) ‘नदी का साँवला पानी’ पाठ में लेखक किस नदी की बात कर रहे है ?
(घ) ‘भीड़ को चीरकर सामने आएगा’ में लेखक किसके आने की प्रतीक्षा में हैं ?
उत्तर :
(क) वृंदावन जाने पर नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की नदी किनारे की गई लीलाओं की याद करा देगा।
(ख) लेखक के अनुसार वृंदावन में वाटिका का वातावरण आज भी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की जादुई धुन से भरा है। प्रतिदिन संध्या समय जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देता है, तो लगता है जैसे कुछ ही पलों में वह कहीं से आएगा और बाँसुरी की जादुई धुन पूरी वाटिका में छा जाएगी।
(ग) इस पाठ में लेखक यमुना नदी के विषय में कह रहे हैं।
(घ) ‘भीड़ को चीरकर सामने आएगा’ इन पंक्ति में लेखक श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा में हैं।

3. उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूनेवाली उनकी नज़ारों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ़ एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया पसरी थी। यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) ‘बर्ड वाचर’ कौन है ? उन्हें यह नाम क्यों दिया गया ?
(ख) सालिम अली की नज़रों में कैसा जादू था ?
(ग) सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
(घ) सालिम अली बिना दूरबीन कब होते थे ?
उत्तर :
(क) सालिम अली को ‘बर्ड वाचर’ की संज्ञा दी जाती है। यह नाम उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि उन्हें पक्षियों से बहुत प्रेम था। उन्होंने पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया तथा उनके बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई।
(ख) सालिम अली की नज़रों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था जो प्रकृति को अपने वश में कर लेते हैं। वे प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं।
(ग)
सालिम अली के लिए प्रकृति हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया थी, जिसे उन्होंने स्वयं अपने परिश्रम से गढ़ा था।
(घ) सालिम अली एकांत के क्षणों में बिना दूरबीन होते थे।

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4. जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली ही बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गौरैया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ़ ले जाती रही। जिंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली किनके लिए और क्यों पहेली बनी रहे ?
(ख) सालिम अली को किस घटना ने नई नई खोजों के लिए प्रेरणा दी ?
(ग) लॉरेंस कौन था ?
(घ) सालिम अली जीवनभर क्या करते रहे ?
(ङ) ‘डिगा देना’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली जटिल प्राणियों के लिए एक पहेली बन गए थे क्योंकि वे अत्यंत सीधे-साधे व्यक्ति होते हुए भी उनके लिए महान थे।
(ख) सालिम अली ने बचपन में अपनी एयरगन से नीले कंठवाली एक गौरैया को घायल कर दिया था। इस घटना से उनके मन में पक्षियों के प्रति प्रेमभाव उमड़ पड़ा और वे नए-नए पक्षियों की खोज में लग गए।
(ग) लॉरेंस बीसवीं सदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति – प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव था।
वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।
(घ) सालिम अली जीवनभर पक्षियों के जीवन से संबंधित नई-नई खोजें करते रहे।
(ङ) ‘डिगा देना’ से तात्पर्य है- अपने लक्ष्य और सिद्धांतों से दूर हो जाना।

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5. सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली का प्रकृति की दुनिया में क्या स्थान था ?
(ख) सालिम अली के स्वभाव की क्या विशेषता थी ?
(ग) सालिम अली के परिचितों का सालिम अली के संबंध में क्या विचार हैं ?
(घ) सालिम अली पक्षियों की खोज कैसे करते थे ?
(ङ) ‘टापू बनने’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली का प्रकृति की दुनिया में महत्त्वपूर्ण स्थान था। वे एक अथाह सागर के समान थे। उन्होंने प्रकृति का बहुत ही गंभीरता के साथ अध्ययन किया था। वे प्रकृति का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते थे। प्रकृति का प्रतिपल परिवर्तित रूप उन्हें प्रभावित करता था।
(ख) सालिम अली भ्रमणशील स्वभाव के व्यक्ति थे। वे निरंतर घूमते रहते थे। वे एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठते थे। वे घूम-घूम कर पक्षियों के संबंध में खोज करते थे।
(ग) सालिम अली के संबंध में उनके परिचितों का यह विचार है कि उनकी अभी मृत्यु नहीं हुई है। वे आज भी पक्षियों की खोज में कहीं गए हैं और थोड़ी देर में अपने गले में लंबी दूरबीन लटकाए हुए लौट आएँगे और अपनी खोज के परिणामों को बताएँगे।
(घ) सालिम अली पक्षियों की खोज करने के लिए विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे। वे अपनी आँखों पर दूरबीन लगाकर आकाश में पक्षियों को तलाश करते रहते थे। जब उन्हें कोई नई प्रजाति का पक्षी मिल जाता था तो उससे संबंधित विवरण तैयार कर लेते थे। इस प्रकार वे पक्षियों की खोज में लगे रहते थे।
(ङ) ‘टापू बनने’ से तात्पर्य है – एक सीमित क्षेत्र में स्वयं को समेटकर जीवन-यापन करना।

साँवले सपनों की याद Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन – जाबिर हुसैन का जन्म बिहार के नालंदा जिले के नौनहीं राजगीर में सन् 1945 ई० को हुआ था। इन्हें अध्ययन में विशेष रुचि थी। अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य में उपाधियाँ प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया था। इन्होंने राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य किया है। ये सन् 1977 में बिहार के मुँगेर विधानसभा क्षेत्र से सदस्य चुने गए। इन्हें बिहार के मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया था। सन 1995 ई० में इन्हें बिहार विधान परिषद का सभापति बनाया गया। राजनीति के साथ-साथ इन्हें लेखन में भी रुचि थी। इन्हें हिंदी, अंग्रेज़ी तथा उर्दू भाषाओं पर समान अधिकार है।

रचनाएँ – इन्होंने अपनी रचनाओं में आम आदमी के संघर्षरत जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान की है। इनकी मुख्य रचनाएँ हैं – एक नदी रेतभरी, जो आगे हैं, अतीत का चेहरा, लोगां, डोला बीबी का मज़ार।

भाषा-शैली – जाबिर हुसैन की भाषा-शैली अत्यंत सहज तथा रोचक है। प्रस्तुत पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ डायरी शैली में रचित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी संवेदना को व्यक्त किया है। लेखक ने अपनी भाषा में उर्दू के प्रचलित शब्दों का बहुत उपयोग किया है। जैसे – परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, माहौल, एहसास, शोख, मेहनत, महसूस। कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी मिलता है; जैसे- अग्रसर, संभव, अंतहीन, विलीन, वाटिका, क्षितिज, प्रतिरूप।

लेखक ने ऊबड़-खाबड़, भांडे, सोता आदि देशज शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है। इनकी भाषा शैली कहीं-कहीं काव्यात्मक भी हो जाती है जैसे- ‘अब तो वो उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो ज़िंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।’ इनकी शैली में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं वे शब्दों के माध्यम से वातावरण को सजीव कर देते हैं जैसे – ‘पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भांडे फोड़े थे और दूध – छाछ से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह में विश्राम किया था।’ इस प्रकार कह सकते हैं कि लेखक की भाषा-शैली, अत्यंत रोचक, सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

पाठ का सार :

जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली से संबंधित संस्मरण है। इसमें लेखक ने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। सालिम अली अपने अंतिम सफ़र पर जा रहे हैं। वे उस वन – पक्षी के समान प्रकृति में विलीन होने जा रहे हैं, जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर सदा के लिए खामोश हो गया हो। जैसे मौत की गोद में गए हुए पक्षी को कोई अपना जीवन देकर भी नहीं जीवित कर सकता वैसे ही अब सालिम अली को भी जीवित नहीं किया जा सकता। सालिम अली पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर झूम उठता था।

लेखक कहता है कि न मालूम कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी, गोपियों को अपनी शरारतों से तंग किया था, माखन – भरे भाँड़े फोड़े थे, दूध- छाछ पिया था, कुंजों में विश्राम किया था और अपनी बंसी की तान से वृंदावन को संगीतमय कर दिया था। आज भी वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी का जादू छाया हुआ है। लेखक सालिम अली के संबंध में बताता है कि वह कमज़ोर कायावाला व्यक्ति अब सौ वर्ष में का होने ही वाला था कि कैंसर की बीमारी से चल बसा। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक पक्षियों की खोज और सेवा में लगे रहे। उन जैसा ‘बर्ड वायर’ शायद ही कोई अन्य हो। वे सदा प्रकृति को हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया के समान अपने आस-पास देखते थे। उनके इस कार्य में उनकी जीवन-साथी तहमीना भी उनके साथ थी।

सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था। आज सालिम अली और चौधरी चरण सिंह दोनों ही नहीं हैं। लेखक को चिंता है कि अब पर्यावरण के संभावित खतरों से हिमालय और लद्दाख की बरफ़ीली जमीनों पर जीनेवाले पक्षियों की रक्षा कौन करेगा ? सालिम अली ने ‘फ़ॉल आत्मकथा लिखी थी।

डी० एच० लॉरेंस की मृत्यु के बाद जब कुछ लोगों ने उसकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अपने पति के बारे में कुछ लिखने ४ माफ अ स्पैरो’ नाम से अपनी का अनुरोध किया तो उसने उत्तर दिया था कि छत पर बैठनेवाली गौरैया उसके पति के बारे में उससे अधिक जानती है। बचपन में सालिम अली ने अपनी एयरगन से एक गौरैया को घायल कर दिया था। उसी ने उन्हें आजीवन पक्षियों का सेवक बना दिया। वे उन्हें ही खोजते रहे। लंबी दूरबीन लटकाए जगह-जगह घूमते हुए वे पक्षियों की तलाश करते रहे। अपने खोजपूर्ण नतीजे अपनी रचनाओं के द्वारा देते रहे। लेखक की आँखें उनके जाने पर भीग गई हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • सुनहरे – सोने जैसे रंगवाले
  • हुजूम – भीड़
  • अग्रसर – आगे बढ़नेवाला
  • अंतहीन – जिसका अंत नहीं होता
  • माहौल – वातावरण
  • विलीन – नष्ट, लुप्त
  • हरारत – गरमी, ताप
  • मिथक – प्राचीन पुरा कथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है
  • हिफ़ाज़त – सुरक्षा
  • शब्दों का जामा पहनाना – शब्दों के द्वारा व्यक्त करना
  • नैसर्गिक – स्वाभाविक, प्रकृतिजन्य
  • अथाह – जिसकी कोई थाह न हो
  • परिंदे – पक्षी
  • वादी – घाटी
  • सैलानी – घुमक्कड़, घूमते रहनेवाला
  • सफ़र – यात्रा
  • पलायन – भागना, दूसरी जगह जाना
  • जिस्म – शरीर
  • एहसास – अनुभूति
  • वाटिका – बगीची
  • शती – सौ वर्ष
  • मुमकिन – संभव
  • जटिल – दुरूह, दुर्बोध
  • प्रतिरूप – प्रतिनिधि, नमूना
  • यायावरी – घुमक्कड़ी, घूमते-फिरते रहना, खानाबदोशी

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) किस वर्ष हुई ?
(अ) 1975
(ब) 1978
(स) 1956
(द) 1972
उत्तर:
(द) 1972

2. निम्नलिखित में से कौन-सी संधि अस्त्र नियंत्रण संधि थी
(अ) अस्त्र परिसीमन संधि – 2 ( SALT – II)
(ब) सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि (स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी – SIART)
(स) परमाणु अप्रसार संधि (NPT)
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

3. जैविक हथियार संधि कब की गई ?
(अ) 1975
(ब) 1992
(स) 1972
(द) 1968
उत्तर:
(स) 1972

4. सुरक्षा की अवधारणा कितने प्रकार की है ?
(अ) तीन
(ब) चार
(स) दो
(द) एक
उत्तर:
(स) दो

5. परमाणु अप्रसार संधि जिस सन् में हुई वह है-
(अ) 1968
(ब) दो
(स) 1972
(द) एक
उत्तर:
(अ) 1968

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6. निम्न में से किस संधि ने अमरीका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोक:
(अ) जैविक हथियार संधि
(ब) एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि
(स) रासायनिक हथियार संधि
(द) परमाणु अप्रसार संधि
उत्तर:
(ब) एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि

7. अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों ने हमला किया
(अ) 11 सितंबर, 2001
(ब) 10 अक्टूबर, 2001
(स) 11 नवम्बर, 2002
(द) 9 दिसम्बर, 2002
उत्तर:
(अ) 11 सितंबर, 2001

8. भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया
(अ) 1974 में
(ब) 1975 में
(स) 1978 में
(द) 1980 में
उत्तर:
(अ) 1974 में

9. पाकिस्तान ने भारत पर अब तक कुल कितनी बार हमला किया है?
(अ) तीन
(ब) दो
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(अ) तीन

10. क्योटो के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कब किया गया?.
(अ) 1998
(ब) 1997
(स) 1991
(द) 1992
उत्तर:
(ब) 1997

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. सुरक्षा की ………………………. धारणा में माना जाता है कि किसी देश की सुरक्षा को ज्यादातर खतरा उसकी सीमा के बाहर से होता है।
उत्तर:
परंपरागत

2. सुरक्षा – नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे ………………………….. कहा जाता है।
उत्तर:
अपरोध

3. …………………….. सुरक्षा नीति का एक तत्त्व शक्ति संतुलन है।
उत्तर:
परम्परागत

4. जैविक हथियार संधि पर ………………………. से ज्यादा देशों ने संधि पर हस्ताक्षर किए।
उत्तर:
155

5. …………………………संधि ने परमाणविक आयुधों को हासिल कर सकने वाले देशों की संख्या कम की।
उत्तर:
परमाणु अप्रसार

6. सुरक्षा की …………………… धारणा को ‘मानवता की सुरक्षा’ अथवा ……………………………. कहा जाता है।
उत्तर:
अपारंपरिक, विश्व- रक्षा

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है। खतरे से आजादी।

प्रश्न 2.
सुरक्षा की कितनी धारणाएँ हैं?
उत्तर:
सुरक्षा की दो धारणाएँ हैं। पारंपरिक और अपारंपरिक।

प्रश्न 3.
लोग पलायन क्यों करते हैं? कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर:
लोग आजीविका हेतु पलायन करते हैं।

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प्रश्न 4.
भारत के किन दो पड़ौसी देशों के पास परमाणु हथियार हैं?
उत्तर:
भारत के दो पड़ौसी देशों – पाकिस्तान और चीन के पास परमाणु हथियार हैं।

प्रश्न 5.
आतंकवाद सुरक्षा के लिए खतरे की किस श्रेणी में आता है?
उत्तर:
अपरम्परागत श्रेणी में।

प्रश्न 6.
एन. पी. टी. का पूरा नाम क्या है? यह किस वर्ष में हुई?
उत्तर:
एन. पी. टी. का पूरा नाम है। न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी । यह सन् 1968 में हुई।

प्रश्न 7.
सैन्य शक्ति का आधार क्या है?
उत्तर:
सैन्य – शक्ति का आधार आर्थिक और प्रौद्योगिकी की ताकत है।

प्रश्न 8.
ओसामा बिन लादेन किस आतंकवादी समूह का था?
उत्तर:
अल-कायदा।

प्रश्न 9.
पारम्परिक सुरक्षा की धारणा के अन्तर्गत ‘अपरोध’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पारम्परिक सुरक्षा की धारणा के अन्तर्गत ‘अपरोध’ का अर्थ है – युद्ध की आशंका को रोकना।

प्रश्न 10.
पारम्परिक बाह्य सुरक्षा नीति के कोई दो तत्त्व लिखिये।
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन और गठबंधन बनाना।

प्रश्न 11.
एशिया- अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों में आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली किसी एक समस्या का नाम लिखिये।
उत्तर:
अलगाववादी आंदोलन|

प्रश्न 12.
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को ‘मानवता की सुरक्षा’ अथवा ‘विश्व- रक्षा’ कहा जाता है।

प्रश्न 13.
मानवता की सुरक्षा का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
मानवता की सुरक्षा का प्राथमिक लक्ष्य व्यक्तियों की संरक्षा है।

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प्रश्न 14.
व्यापकतम अर्थ में मानवता की रक्षा से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यापकतम अर्थ में मानवता की रक्षा से आशय ‘अभाव से मुक्ति’ और ‘भय से मुक्ति’ है।

प्रश्न 15.
युद्ध के सिवाय मानव सुरक्षा के किन्हीं अन्य चार खतरों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानव सुरक्षा के खतरे निम्नलिखित हैं।

  1. पर्यावरण ह्रास
  2. ग्रीन हाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन
  3. नाभिकीय युद्ध का भय
  4. बढ़ती हुई जनसंख्या।

प्रश्न 16.
सुरक्षा के खतरे के किन्हीं दो नये स्रोतों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:

  1. वैश्विक ताप वृद्धि
  2. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद।

प्रश्न 17.
किन्हीं दो शक्तियों के नाम लिखें जो सैनिक शक्ति का आधार हैं।
उत्तर:
आर्थिक शक्ति एवं, तकनीकी शक्ति।

प्रश्न 18.
सुरक्षा के मुख्य दो रूपों के नाम लिखिये।
उत्तर:
सुरक्षा के दो रूप हैं।

  1. पारम्परिक सुरक्षा और
  2. अपारंपरिक सुरक्षा।

प्रश्न 19.
पारम्परिक सुरक्षा से क्या आशय है?
उत्तर:
पारम्परिक सुरक्षा में यह स्वीकार किया गया है कि हिंसा का प्रयोग जहाँ तक हो सके कम से कम होना

प्रश्न 20.
अपारम्परिक सुरक्षा से क्या आशय है?
उत्तर:
अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा सैन्य खतरों से सम्बन्धित न होकर मानवीय अस्तित्व को चोट पहुँचाने वाले व्यापक खतरों से है।

प्रश्न 21.
परम्परागत सुरक्षा और अपरम्परागत सुरक्षा में एक अंतर लिखें।
उत्तर:
परम्परागत सुरक्षा का दृष्टिकोण संकुचित है जबकि अपरम्परागत सुरक्षा का दृष्टिकोण व्यापक है।

प्रश्न 22.
निःशस्त्रीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
निशस्त्रीकरण से अभिप्राय हथियारों के निर्माण या उनको हासिल करने पर अंकुश लगाना है।

प्रश्न 23.
विश्व तापन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विश्व तापन से अभिप्राय विश्व स्तर पर पारे में लगातार होने वाली वृद्धि है, जिसके कारण विश्व का वातावरण गर्म होता जा रहा है।

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प्रश्न 24.
निरस्त्रीकरण के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. जैविक हथियार संधि
  2. रासायनिक हथियार संधि।

प्रश्न 25.
आतंकवाद के कोई दो रूप लिखिये।
उत्तर:
आतंकवाद के दो रूप हैं।

  1. विमान अपहरण करके आतंकवाद फैलाना।
  2. भीड़ भरी जगहों पर विस्फोट करना।

प्रश्न 26.
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के दो पक्ष बताइये।
उत्तर:
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के दो पक्ष हैं।

  1. मानवता की सुरक्षा और
  2. विश्व सुरक्षा।

प्रश्न 27.
सुरक्षा नीति के दो घटक बताइये।
उत्तर:

  1. सैन्य क्षमता को मजबूत करना।
  2. अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना।

प्रश्न 28.
ऐसी दो संधियों के नाम बताइये जो अस्त्र नियंत्रण से सम्बन्धित हैं।
उत्तर:

  1. सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि
  2. परमाणु अप्रसार संधि।

प्रश्न 29.
विश्व सुरक्षा का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विश्व सुरक्षा से आशय है- पृथ्वी के बढ़ते तापमान, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स ‘जैसे असाध्य रोगों पर रोक लगाना।

प्रश्न 30.
क्षेत्रीय सुरक्षा से क्या आशय है?
उत्तर:
क्षेत्रीय सुरक्षा से आशय है। सशस्त्र विद्रोहियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों से किसी भू भाग तथा उसके निवासियों के जान-माल की रक्षा करना।

प्रश्न 31.
राष्ट्रीय सुरक्षा, सुरक्षा की किस अवधारणा से जुड़ी हुई है?
उत्तर:
सुरक्षा की पारम्परिक अवधारणा से।

प्रश्न 32.
आतंकवाद का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आतंकवाद का अभिप्राय है। राजनीतिक हिंसा, जिसका निशाना नागरिक होते हैं ताकि समाज में दहशत पैदा की जा सके।

प्रश्न 33.
मानवाधिकार की पहली कोटि कौन-सी है?
उत्तर:
राजनैतिक अधिकारों की।

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प्रश्न 34.
केमिकल वीपन्स कन्वेंशन (CWC) संधि पर कितने देशों ने हस्ताक्षर किये थे?
उत्तर:
181 देशों ने।

प्रश्न 35.
अस्त्र नियंत्रण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अस्त्र नियंत्रण का आशय है हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कानून का पालन करना।

प्रश्न 36.
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को ‘मानवता की सुरक्षा’ अथवा ‘विश्व – रक्षा’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि सुरक्षा की जरूरत सिर्फ राज्य ही नहीं व्यक्तियों और समुदायों अपितु समूची मानवता को है।

प्रश्न 37.
परम्परागत धारणा के अनुसार सुरक्षा के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
दो – बाह्य सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा।

प्रश्न 38.
मानवाधिकार को कितने कोटियों में रखा गया है?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 39.
राजनैतिक अधिकारों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति और सभा करने की आजादी।

प्रश्न 40.
सहयोगमूलक सुरक्षा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपरम्परागत खतरों के लिए सैन्य संघर्ष की बजाय आपसी सहयोग अपनाना।

प्रश्न 41.
‘क्योटो प्रोटोकॉल’ क्या है?
उत्तर:
‘क्योटो प्रोटोकॉल’ में वैश्विक तापवृद्धि पर काबू पाने तथा ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के संबंध में दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

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प्रश्न 42.
क्योटो प्रोटोकॉल पर कितने देशों ने हस्ताक्षर किए हैं?
उत्तर:
160

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है। खतरे से आजादी संकीर्ण दृष्टिकोण के अनुसार इसका अभिप्राय व्यक्तिगत मूल्यों की सुरक्षा से है और व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार इसका अभिप्राय बड़े और गंभीर खतरों से सुरक्षा है।

प्रश्न 2.
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली दो कठिनाइयाँ लिखें।
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली दो कठिनाइयाँ ये हैं।

  1. महाशक्तियों में अस्त्र-शस्त्रों के आधुनिकीकरण के प्रति मोह विद्यमान है।
  2. महाशक्तियों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना भी अभी बनी हुई है।

प्रश्न 3.
‘सुरक्षा’ की धारणा अपने आप में भुलैयादार धारणा है। कैसे?
उत्तर:
‘सुरक्षा’ की धारणा अपने आप में भुलैयादार है क्योंकि इसकी धारणा हर सदी में एकसमान नहीं होती है। विश्व के सारे नागरिकों के लिए सुरक्षा के मायने अलग-अलग होते हैं। विकासशील देशों को बेरोजगार, भुखमरी तथा आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन से खुद की सुरक्षा करनी होती है तो विकसित देशों को पर्यावरण प्रदूषण, वैश्विक तापवृद्धि जैसे समस्याओं से स्वयं की सुरक्षा करनी होती है।

प्रश्न 4.
आतंकवाद क्या है?
उत्तर:
आतंकवाद का अर्थ है। राजनीतिक हिंसा, जिसका निशाना नागरिक होते हैं। ताकि समाज में दहशत पैदा की जा सके। इसकी चिर-परिचित तकनीकें हैं। विमान अपहरण, भीड़भरी जगहों, जैसे रेलवे स्टेशनों, होटल, बाजार, धर्मस्थल आदि जगहों में बम लगाकर विस्फोट करना।

प्रश्न 5.
आतंकवादी दहशत क्यों पैदा करते हैं?
उत्तर:
आतंकवादी सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए दहशत पैदा करते हैं। दूसरे, उन्हें दहशत पैदा करने के लिए ही अपने संगठन से धन व अन्य सुविधायें मिलती हैं।

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प्रश्न 6.
पारम्परिक सुरक्षा से क्या आशय है?
उत्तर;
पारम्परिक सुरक्षा:
पारम्परिक सुरक्षा में यह स्वीकार किया गया है कि हिंसा का प्रयोग जहाँ तक हो सके कम से कम होना चाहिए। युद्ध के लक्ष्य और साधन दोनों का इससे सम्बन्ध है। यह न्याय युद्ध की परम्परा का विस्तार, निःशस्त्रीकरण, अस्त्र- नियंत्रण और विश्वास बहाली के उपायों पर आधारित है।

प्रश्न 7.
सुरक्षा की परम्परागत तथा गैर-परम्परागत धारणाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सुरक्षा की परम्परागत धारणा में सिर्फ भूखण्ड तथा उसमें रहने वाले लोगों की जान-माल की रक्षा करना तथा सशस्त्र सैन्य हमलों को रोकना है जबकि अपरम्परागत धारणा में भू-भाग, प्राणियों और सम्पत्ति की सुरक्षा के साथ- साथ पर्यावरण तथा मानवाधिकारों की सुरक्षा भी शामिल है।

प्रश्न 8.
अमरीका तथा सोवियत संघ जैसी महाशक्तियों ने अस्त्र- नियंत्रण का सहारा क्यों लिया?
उत्तर:
मरीका तथा सोवियत संघ सामूहिक संहार के अस्त्र यानी परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थीं इसलिए दोनों ने अस्त्र-नियंत्रण का सहारा लिया।

प्रश्न 9.
अस्त्र नियंत्रण का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
अस्त्र नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। उदाहरण के लिए सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि – 2, सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि इत्यादि संधियाँ अस्त्र नियंत्रण के उदाहरण हैं.

प्रश्न 10.
एंटी बैलेस्टिक संधि कब और क्यों की गई?
उत्तर:
सन् 1972 में एंटी बैलेस्टिक संधि की गई। इस संधि ने अमरीका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। इस संधि में दोनों देशों को सीमित संख्या में ऐसी रक्षा प्रणाली तैनात करने की अनुमति थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया।

प्रश्न 11.
अपरोध नीति क्या है?
उत्तर:
युद्ध की आशंका को रोकने की सुरक्षा नीति को अपरोध नीति कहा जाता है। इसके अन्तर्गत एक पक्ष द्वारा . युद्ध से होने वाले विनाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत दिये जाते हैं ताकि दूसरा पक्ष सहम कर हमला करने से रुक जाये।

प्रश्न 12.
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में किस खतरे को सर्वाधिक खतरनाक माना जाता है?
उत्तर:
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इसका स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है।

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प्रश्न 13.
बायोलॉजिकल वैपन्स कन्वेंशन, 1972 द्वारा क्या निर्णय लिया गया?
उत्तर:
सन् 1972 की जैविक हथियार संधि (बायोलॉजिकल वैपन्स कन्वेंशन) ने जैविक हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया। 155 से अधिक देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं जिनमें विश्व की सभी महाशक्तियाँ शामिल हैं।.

प्रश्न 14.
आपकी दृष्टि में बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में कौनसे विकल्प हो सकते हैं? कोई दो स्पष्ट कीजिए।
अथवा
किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में सुरक्षा के कितने विकल्प होते हैं?
उत्तर:
किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं।

  1. आत्म-समर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किये मान लेना।
  2. युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहम कर हमला करने से रुक जाये।
  3. यदि युद्ध ठन जाये तो अपनी रक्षा करना।

प्रश्न 15.
बाहरी सुरक्षा हेतु गठबंधन बनाने से क्या आशय है?
उत्तर:
गठबंधन बनाना:
गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि से एक औपचारिक रूप मिलता है जिसमें यह स्पष्ट होता है कि खतरा किससे है? गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 16.
एक उदाहरण देकर यह स्पष्ट कीजिये कि राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं।
उत्तर:
राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, अमरीका ने 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ इस्लामी उग्रवादियों को समर्थन दिया, लेकिन 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद उसने उन्हीं इस्लामी उग्रवादियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

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प्रश्न 17.
निरस्त्रीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
निरस्त्रीकरण-निरस्त्रीकरण सुरक्षा की इस धारणा पर आधारित है कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हो। निरस्त्रीकरण की मांग होती है कि सभी राज्य चाहे उनका आकार, ताकत और प्रभाव कुछ भी हो कुछ ख़ास किस्म के हथियारों से बाज आयें।

प्रश्न 18.
आप वर्तमान विश्व में सुरक्षा को किससे खतरा मानते हैं? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
हम वर्तमान विश्व में सुरक्षा को खतरा निम्न दो कारणों को मानते हैं।

  1. वैश्विक ताप वृद्धि: वर्तमान में विश्व में वैश्विक ताप वृद्धि सम्पूर्ण मानव जाति के लिए खतरा है।
  2. प्रदूषण: पर्यावरण में तीव्रता से बढ़ रहे प्रदूषण से विश्व की सुरक्षा के समक्ष एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

प्रश्न 19.
सुरक्षा के पारंपरिक तरीके के रूप में अस्त्र नियंत्रण को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अस्त्र नियंत्रण के अन्तर्गत हथियारों के संबंध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। जैसे, सन् 1972 की एंटी बैलिस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमरीका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा- कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका।

प्रश्न 20.
मानवाधिकारों को कितनी कोटियों में रखा गया है?
उत्तर:
मानवाधिकारों को तीन कोटियों (श्रेणियों) में रखा गया है। ये हैं।

  1. राजनैतिक अधिकार, जैसे अभिव्यक्ति और सभा करने की स्वतंत्रता।
  2. आर्थिक और सामाजिक अधिकार।
  3. उपनिवेशीकृत जनता अथवा जातीय और मूलवासी अल्पसंख्यकों के अधिकार।

प्रश्न 21.
आपकी दृष्टि में मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में कौन-कौनसी सुरक्षा को शामिल करेंगे?
उत्तर:
मानवतावादी सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में हम युद्ध, जनसंहार, आतंकवाद, अकाल, महामारी, प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा के साथ-साथ ‘अभाव से मुक्ति’ और ‘भय से मुक्ति’ को भी शामिल करेंगे।

प्रश्न 22.
आप भारत की सुरक्षा नीति के दो घटक बताइये।
उत्तर:
भारत की सुरक्षा नीति के दो घटक ये हैं-

  1. सैन्य क्षमता को मजबूत करना – अपने चारों तरफ परमाणु हथियारों से लैस देशों को देखते हुए भारत ने 1974 तथा 1998 में परमाणु परीक्षण कर अपनी सैन्य क्षमता का विकास किया है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करना – भारत ने अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कायदों एवं संस्थाओं को मजबूत करने की नीति अपनायी है।

प्रश्न 23.
‘आंतरिक रूप से विस्थापित जन’ से क्या आशय है?
उत्तर:
जो लोग राजनीतिक उत्पीड़न, जातीय हिंसा आदि किसी कारण से अपना घर-बार छोड़कर अपने ही देश या राष्ट्र की सीमा के भीतर ही रह रहे हैं, उन्हें ‘आंतरिक रूप से विस्थापित जन’ कहा जाता है। जैसे कश्मीर घाटी छोड़ने वाले कश्मीरी पंडित।

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प्रश्न 24.
युद्ध और शरणार्थी समस्या के आपसी सम्बन्ध पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
युद्ध और शरणार्थी समस्या के बीच आपस में सकारात्मक सम्बन्ध है क्योंकि युद्ध या सशस्त्र संघर्षों के कारण ही शरणार्थी की समस्या बढ़ती है। उदाहरण के लिए सन् 1990 के दशक में कुल 60 जगहों से शरणार्थी प्रवास करने को मजबूर हुए और इनमें से तीन को छोड़कर शेष सभी के मूल में सशस्त्र संघर्ष था।

प्रश्न 25.
परमाणु अप्रसार संधि, 1968 की एक अस्त्र नियंत्रण संधि के रूप में व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
परमाणु अप्रसार संधि, 1968 इस अर्थ में एक अस्त्र नियंत्रक संधि थी क्योंकि इसने परमाणविक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानूनों के दायरे में ला दिया। जिन देशों ने सन् 1967 से पहले परमाणु हथियार बना लिये थे उन्हें इस संधि के अन्तर्गत इस हथियारों को रखने की अनुमति दी गई। लेकिन अन्य देशों को ऐसे हथियारों को हासिल करने के अधिकार से वंचित किया गया।

प्रश्न 26.
शक्ति संतुलन को कैसे बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने के अनेक साधन हैं।

  1. शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति को बढ़ाना एवं आर्थिक और प्रौद्योगिकी विकास महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. राष्ट्रों द्वारा सैनिक या सुरक्षा संधियाँ कर गठबंधन कर शक्ति सन्तुलन बनाए रखा जा सकता है।
  3. ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना कर भी राष्ट्रों द्वारा शक्ति सन्तुलन बनाए रखा जा सकता है।
  4. कई बार एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र में हस्तक्षेप कर वहां अपनी मित्र सरकार बनाकर भी शक्ति सन्तुलन स्थापित करते हैं।
  5. शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण द्वारा भी शक्ति सन्तुलन बनाए रखा जा सकता है।

प्रश्न 27.
सुरक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा का अर्थ- सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी मानव का अस्तित्व और किसी देश का जीवन खतरों से भरा होता है लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं कि हर तरह के खतरे को सुरक्षा पर खतरा माना जाये अतः सुरक्षा के अर्थ को दो दृष्टिकोणों से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. संकीर्ण दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तिगत मूल्यों की सुरक्षा अर्थात् समाज में प्रत्येक मनुष्य की अपनी सोच व मूल्य होते हैं। जब इन मूल्यों को बचाने का प्रयास किया जाता है तो यह सुरक्षा का संकीर्ण दृष्टिकोण कहलाता है।
  2. व्यापक दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार सुरक्षा का सम्बन्ध बड़े तथा गंभीर खतरों से है। इसमें वे खतरे सम्मिलित होते हैं जिन्हें रोकने के उपाय नहीं किये गये तो हमारे केन्द्रीय मूल्यों को अपूरणीय हानि पहुँचेगी।

प्रश्न 28.
अमेरिका और सोवियत संघ ने नियंत्रण से जुड़ी जिन संधियों पर हस्ताक्षर किये उन्हें संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
अमेरिका और सोवियत संघ ने अस्त्र – नियंत्रण की कई संधियों पर हस्ताक्षर किये जिसमें सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि – 2 ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन ट्रीटी – SALT-II) और सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि ( स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी-(START) शामिल हैं। परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी – NPT (1968) भी एक अर्थ में अस्त्र नियंत्रण संधि ही थी क्योंकि इसने परमाण्विक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानून के दायरे में ला खड़ा किया। सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमेरिका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करने से रोका।

प्रश्न 29.
सुरक्षा की दृष्टि से निरस्त्रीकरण के महत्त्व को बताइए।
उत्तर:
वर्तमान में विश्व शांति तथा सुरक्षा की दृष्टि से निरस्त्रीकरण का बहुत महत्त्व है। आज यह अनुभव किया गया है कि राष्ट्रों की मारक क्षमता को कम करने वाला निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण न कि मारक क्षमता बढ़ाने वाले तथा आतंक संतुलन बनाने वाली शस्त्र दौड़, आज के युग में अधिक प्रभावशाली व लाभकारी शक्ति संतुलन का साधन है। एक व्यापक निःशस्त्रीकरण संधि, परमाणु निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण, 1972 की जैविक हथियार संधि, 1992 की रासायनिक हथियार संधि तथा 181 देशों के CWC संधि पर हस्ताक्षर, इस संतुलन को सुदृढ़ करने के लिये अधिक सहायक हो सकते हैं।

प्रश्न 30.
सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में विश्वास बहाली के उपायों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में यह बात भी मानी गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली के उपाय अग्र हैं।
उत्तर:
युद्ध और शरणार्थी समस्या के बीच आपस में सकारात्मक सम्बन्ध है क्योंकि युद्ध या सशस्त्र संघर्षों के कारण ही शरणार्थी की समस्या बढ़ती है। उदाहरण के लिए सन् 1990 के दशक में कुल 60 जगहों से शरणार्थी प्रवास करने को मजबूर हुए और इनमें से तीन को छोड़कर शेष सभी के मूल में सशस्त्र संघर्ष था।

प्रश्न 25.
परमाणु अप्रसार संधि, 1968 की एक अस्त्र नियंत्रण संधि के रूप में व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
परमाणु अप्रसार संधि, 1968 इस अर्थ में एक अस्त्र नियंत्रक संधि थी क्योंकि इसने परमाणविक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानूनों के दायरे में ला दिया। जिन देशों ने सन् 1967 से पहले परमाणु हथियार बना लिये थे उन्हें इस संधि के अन्तर्गत इस हथियारों को रखने की अनुमति दी गई। लेकिन अन्य देशों को ऐसे हथियारों को हासिल करने के अधिकार से वंचित किया गया।

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प्रश्न 26.
शक्ति संतुलन को कैसे बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने के अनेक साधन हैं।

  1. शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति को बढ़ाना एवं आर्थिक और प्रौद्योगिकी विकास महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. राष्ट्रों द्वारा सैनिक या सुरक्षा संधियाँ कर गठबंधन कर शक्ति सन्तुलन बनाए रखा जा सकता है।
  3. ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना कर भी राष्ट्रों द्वारा शक्ति सन्तुलन बनाए रखा जा सकता है।
  4. कई बार एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र में हस्तक्षेप कर वहां अपनी मित्र सरकार बनाकर भी शक्ति सन्तुलन स्थापित करते हैं।
  5. शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण द्वारा भी शक्ति सन्तुलन बनाए रखा जा सकता है।

प्रश्न 27.
सुरक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा का अर्थ- सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी मानव का अस्तित्व और किसी देश का जीवन खतरों से भरा होता है लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं कि हर तरह के खतरे को सुरक्षा पर खतरा माना जाये अतः सुरक्षा के अर्थ को दो दृष्टिकोणों से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. संकीर्ण दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तिगत मूल्यों की सुरक्षा अर्थात् समाज में प्रत्येक मनुष्य की अपनी सोच व मूल्य होते हैं। जब इन मूल्यों को बचाने का प्रयास किया जाता है तो यह सुरक्षा का संकीर्ण दृष्टिकोण कहलाता है।
  2. व्यापक दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार सुरक्षा का सम्बन्ध बड़े तथा गंभीर खतरों से है। इसमें वे खतरे सम्मिलित होते हैं जिन्हें रोकने के उपाय नहीं किये गये तो हमारे केन्द्रीय मूल्यों को अपूरणीय हानि पहुँचेगी।

प्रश्न 28.
अमेरिका और सोवियत संघ ने नियंत्रण से जुड़ी जिन संधियों पर हस्ताक्षर किये उन्हें संक्षेप में लिखिये।
उत्तर;
अमेरिका और सोवियत संघ ने अस्त्र – नियंत्रण की कई संधियों पर हस्ताक्षर किये जिसमें सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि – 2 ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन ट्रीटी – SALT-II) और सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि ( स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी-(START) शामिल हैं। परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी – NPT (1968) भी एक अर्थ में अस्त्र नियंत्रण संधि ही थी क्योंकि इसने परमाण्विक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानून के दायरे में ला खड़ा किया। सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमेरिका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करने से रोका।

प्रश्न 29.
सुरक्षा की दृष्टि से निरस्त्रीकरण के महत्त्व को बताइए।
उत्तर:
वर्तमान में विश्व शांति तथा सुरक्षा की दृष्टि से निरस्त्रीकरण का बहुत महत्त्व है। आज यह अनुभव किया गया है कि राष्ट्रों की मारक क्षमता को कम करने वाला निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण न कि मारक क्षमता बढ़ाने वाले तथा आतंक संतुलन बनाने वाली शस्त्र दौड़, आज के युग में अधिक प्रभावशाली व लाभकारी शक्ति संतुलन का साधन है। एक व्यापक निःशस्त्रीकरण संधि, परमाणु निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण, 1972 की जैविक हथियार संधि, 1992 की रासायनिक हथियार संधि तथा 181 देशों के CWC संधि पर हस्ताक्षर, इस संतुलन को सुदृढ़ करने के लिये अधिक सहायक हो सकते हैं।

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प्रश्न 30.
सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में विश्वास बहाली के उपायों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में यह बात भी मानी गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली के उपाय अग्र हैं।

  1. विश्वास बहाली से दोनों देशों के बीच हिंसा को कम किया जा सकता है।
  2. विश्वास बहाली से दोनों देशों के बीच सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है।
  3. ऐसे में दोनों देश एक-दूसरे को सैनिक साजो-सामान की जानकारी व अपने सैनिक मकसद के बारे में जानकारी देते हैं
  4. इस प्रक्रिया से दोनों देशों के बीच गलतफहमी से बचा जा सकता है।

प्रश्न 31.
आपकी दृष्टि में सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा क्या है?
अथवा
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा क्या है? संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
अपारंपरिक धारणा का अर्थ- सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में न केवल सैन्य खतरों को बल्कि इसमें मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले अन्य व्यापक खतरों और आशंकाओं को भी शामिल किया गया है। इसमें राज्य ही नहीं बल्कि व्यक्तियों और संप्रदायों या कहें कि संपूर्ण मानवता की सुरक्षा होती है।

प्रश्न 32.
परम्परागत सुरक्षा के किन्हीं चार तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
परम्परागत सुरक्षा के चार तत्त्व निम्नलिखित हैं।

  1. परम्परागत खतरे: सुरक्षा की परम्परागत धारणा में सैन्य खतरों को किसी भी देश के लिए सर्वाधिक घातक माना जाता है। इसका स्रोत कोई अन्य देश होता है जो सैनिक हमले की धमकी देकर देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता तथा अखण्डता को प्रभावित करता है।
  2.  युद्ध: युद्ध से साधारण लोगों के जीवन पर भी खतरा मंडराता है क्योंकि युद्ध में जन सामान्य को भी काफी नुकसान पहुँचता है।
  3.  शक्ति सन्तुलन: प्रत्येक सरकार दूसरे देशों से अपने शक्ति सन्तुलन को लेकर अत्यधिक संवेदनशील रहती है।
  4. गठबंधन: इसमें विभिन्न देश सैनिक हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए मिलजुलकर कदम उठाते हैं।

प्रश्न 33.
आतंकवाद से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आतंकवाद-आतंकवाद का आशय राजनीतिक खून-खराबे से है जो जानबूझकर बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में व्याप्त आतंकवाद है और उसके निशाने पर कई देशों के नागरिक हैं। कोई राजनीतिक स्थिति पसंद न होने पर आतंकवादी समूह उसे बल-प्रयोग या बल-प्रयोग की धमकी देकर बदलना चाहते हैं। जनमानस को आतंकित करने के लिए नागरिकों को निशाना बनाया जाता है। आतंकवाद की चिर-परिचित तकनीकें हैं। विमान अपहरण, भीड़ भरी जगहों, जैसे रेलगाड़ी, होटल, बाजार, धर्म स्थल आदि जगहों पर बम लगाना सितम्बर सन् 2001 में आतंकवादियों ने अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला बोला। इस घटना के बाद लगभग सभी देश आतंकवाद पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं।

प्रश्न 34.
मानव अधिकारों के हनन की स्थिति में क्या संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तक्षेप करना चाहिए?
उत्तर:
मानव अधिकारों की हनन की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं, इस सम्बन्ध में विवाद है।

  1. कुछ देशों का तर्क है कि राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र अन्तर्राष्ट्रीय जगत् को अधिकार देता है कि वह मानवाधिकारों की रक्षा के लिए हथियार उठाये अर्थात् राष्ट्र संघ को इस क्षेत्र में दखल देना चाहिए।
  2. कुछ देशों का तर्क है यह संभव है कि मानवाधिकार हनन का मामला ताकतवर देशों के हितों से निर्धारित होता है और इसी आधार पर यह निर्धारित होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार उल्लंघन के लिए मामले में कार्रवाई करेगा और किसमें नहीं? इससे ताकतवर देशों को मानवाधिकार के बहाने उसके अंदरूनी मामलों में दखल देने का आसान रास्ता मिल जायेगा।

प्रश्न 35.
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी भी देश के लिए खतरनाक क्यों माना जाता है?
उत्तर:
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी भी देश के लिए खतरनाक माना जाता है क्योंकि इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा मुल्क होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्रवाई से आम नागरिकों के जीवन को भी खतरा होता है। युद्ध में सिर्फ सैनिक ही घायल नहीं होते हैं अपितु आम नागरिकों को भी हानि उठानी पड़ती है। अक्सर निहत्थे और आम नागरिकों को जंग का निशाना बनाया जाता है; उनका और उनकी सरकार का हौंसला तोड़ने की कोशिश होती है।

प्रश्न 36.
हर सरकार दूसरे देश से अपने शक्ति संतुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति – संतुलन परंपरागत सुरक्षा नीति का एक तत्त्व है। हर देश के पड़ोस में छोटे या बड़े मुल्क होते हैं इससे भविष्य के खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए कोई पड़ोसी देश संभवतः यह जाहिर ना करे कि वह हमले की तैयारी कर रहा है अथवा हमले का कोई प्रकट कारण भी ना हो। तथापि यह देखकर कि कोई देश बहुत ताकतवर है यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में वह हमलवार हो सकता है। इस वजह से हर सरकार दूसरे देश से अपने शक्ति संतुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है।

प्रश्न 37.
सरकारें दूसरे देशों से शक्ति-संतुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने हेतु किस प्रकार की कोशिशें करती हैं? यथा-
उत्तर:
सरकारें दूसरे देशों से शक्ति-संतुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने हेतु जी-तोड़ कोशिशें करती हैं।

  1. वो नजदीक देश जिनके साथ किसी मुद्दे पर मतभेद हो या अतीत में युद्ध हो चुका हो उनके साथ शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में करने के लिए अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न किया जाता है।
  2. सैन्य शक्ति के साथ आर्थिक और प्रौद्योगिकी की ताकत को बढ़ाने पर भी जोर दिया जाता है क्योंकि सैन्य- शक्ति का यही आधार है।

प्रश्न 38.
गठबंधन बनाना पारंपरिक सुरक्षा नीति का चौथा तत्त्व है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पारंपरिक सुरक्षा नीति का चौथा तत्त्व है गठबंधन बनाना गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं जो सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। गठबंधन लिखित रूप में होते हैं उनको औपचारिक रूप मिलता है और ऐसे गठबंधनों को यह बात स्पष्ट रहती है कि उन्हें खतरा किस देश से है। किसी देश अथवा गठबंधन की तुलना में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं। राष्ट्रीय हितों के बदलने के साथ ही गठबंधन भी बदल जाते हैं।

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प्रश्न 39.
संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व: राजनीति में ऐसी केन्द्रीय सत्ता है जो सर्वोपरि है। यह सोचना बस एक लालचमात्र है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व:
राजनीति में ऐसी केन्द्रीय सत्ता है जो सर्वोपरि है यह सोचना बस एक लालचमात्र है क्योंकि अपनी बनावट के अनुरूप संयुक्त राष्ट्रसंघ अपने सदस्य देशों का दास है ओर इसके सदस्य दशों का दास है ओर इसके सदस्य देश जितनी सत्ता इसको सौंपते और स्वीकारते हैं उतनी ही सत्ता इसे हासिल होती है। अतः विश्व- राजनीति में हर देश को अपनी सुरक्षा ही सत्ता इसे हासलि होती है। अतः विश्व – राजनीति में हर देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी होती है।

प्रश्न 40.
एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ यूरोपीय देशों के मुकाबले किन दो मायनों में विशिष्ट थीं?
उत्तर:
एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ यूरोपीय देशों के मुकाबले निम्न दो मायनों में विशिष्ट थीं।

  1. इन देशों को अपने पड़ोसी देश से सैन्य हमले की आशंका थी।
  2. इन्हें अंदरूनी सैन्य संघर्ष की भी चिंता करनी थी।

प्रश्न 41.
नव-स्वतंत्र देशों के सामने पड़ोसी देशों से युद्ध और आंतरिक संघर्ष की सबसे बड़ी चुनौती थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नव-स्वतंत्र देशों के सामने सीमापार से खतरे के साथ ही पड़ोसी देशों से भी खतरा था। साथ ही भीतर से भी खतरे की आशंका थी अनेक नव-स्वतंत्र देश संयुक्त राज्य अमरीका या सोवियत संघ अथवा औपनिवेशिक ताकतों से कहीं ज्यादा अपने पड़ोसी देशों से आशंकित थे। इनके बीच सीमा रेखा और भूक्षेत्र अथवा आबादी पर नियंत्रण को लेकर या एक-एक करके सभी सवालों पर झगड़े हुए।

अलग राष्ट्र बनाने पर तुले अंदर के अलगावादी आंदोलनों से भी इन देशों को खतरा था। कोई पड़ोसी देश यदि ऐसे अलगाववादी आंदोलन को हवा दे अथवा उसकी सहायता करे तो दो पड़ोसी देशों के बीच तनाव की स्थिति बन जाती थी । इस प्रकार पड़ोसी देशों से युद्ध और आंतरिक संघर्ष नवस्वतंत्र देशों के सामने सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती थे।

प्रश्न 42.
‘न्याय-युद्ध’ की यूरोपीय परंपरा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा की परंपरागत धारणा में यह माना गया है कि जितना हो सके हिंसा का इस्तेमाल सीमित होना चाहिए। युद्ध के लक्ष्य और दोनों से इसका संबंध है। न्याय-युद्ध की यूरोपीय परम्परा को आज पूरा विश्व मानता है। इस परंपरा के अनुसार किसी भी देश को युद्ध उचित कारणों अर्थात् आत्मरक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए। इस दृष्टिकोण का मानना है कि।

  1. किसी भी देश को युद्ध में युद्ध साधनों का सीमित इस्तेमाल करना चाहिए।
  2. युद्धरत सेना को संघर्षविमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्मसमर्पण करने वाले शत्रु को मारना नहीं चाहिए।
  3. सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए आवश्यक हो और हिंसा का सहारा एक सीमा तक लेना चाहिए। बल प्रयोग तभी किया जाये जब बाकी के उपाय असफल हो गए हों।

प्रश्न 43.
भारत ने परमाणु परीक्षण करने के फैसले को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर सत्यापित कैसे किया?
उत्तर:
भारतीय सुरक्षा नीति का पहला घटक सैन्य शक्ति को मजबूत करना है क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों से हमले होते रहे हैं। पाकिस्तान ने तीन तथा चीन ने भारत पर एक बार हमला किया है। दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के चारों तरफ परमाणु हथियारों से लैस देश है। ऐसे में भारतीय सरकार ने परमाणु परीक्षण करने के भारत के फैसले को उचित ठहराते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया था। भारत ने सन् 1974 में पहला तथा 1998 में दूसरा परमाणु परीक्षण किया था।

प्रश्न 44.
अप्रवासी और शरणार्थी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अप्रवासी उन्हें कहा जाता है जो अपनी इच्छा से स्वदेश छोड़ते हैं और शरणार्थी हम उन्हें कहते हैं जो युद्ध. प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण स्वदेश छोड़ने पर मजबूर होते हैं

प्रश्न 45.
1990 के दशक में विश्व सुरक्षा की धारणा उभरने की क्या वजहें हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विश्वव्यापी खतरे जैसे वैश्विक तापवृद्धि, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा एड्स और बर्ड फ्लू जैसी महामारियों को ध्यान में रखते हुए 1990 के दशक में विश्व सुरक्षा की धारणा उभरी। क्योंकि कोई भी देश इन समस्याओं का समाधान अकेले नहीं कर सकता। ऐसा भी हो सकता है कि किन्हीं स्थितियों में किसी एक देश को इन समस्याओं की मार बाकियों की अपेक्षा ज्यादा झेलनी पड़े।

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प्रश्न 46.
भारत को अपनी परिस्थिति के अनुसार परम्परागत या अपरम्परागत सुरक्षा, किसे वरीयता देनी चाहिए?
उत्तर:
भारत को दोनों प्रकार की सुरक्षा को वरीयता देनी चाहिए।

  1. परम्परागत सुरक्षा के कारण : स्वतंत्रता के बाद भारत ने अनेक युद्ध लड़े तथा भारत के अनेक आंतरिक भाग में अलगाववादी गतिविधियाँ व्याप्त हैं।
  2. अपरम्परागत सुरक्षा के कारण: भारत एक विकासशील देश है और इसके साथ इसमें गरीबी, बेकारी, साम्प्रदायिकता, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन भी व्याप्त है।

प्रश्न 47.
वैश्विक गरीबी असुरक्षा का स्रोत है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्विक गरीबी निर्धनता असुरक्षा का स्रोत है। वैश्विक गरीबी का आशय है आर्थिक विकास में कमी, राष्ट्रीय आय में कमी और यह विकासशील या विकसित देशों के जीवनस्तर को प्रभावित करती हैं। दुनिया की आधी आबादी का विकास सिर्फ 6 देशों में होता है भारत, चीन, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और इंडोनेशिया, जिन्हें विकासशील देश माना जाता है और अनुमान है कि अगले 50 सालों में दुनिया के गरीब देशों में जनसंख्या तीन गुना बढ़ेगी।

विश्व स्तर पर यह विषमता दुनिया के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच की खाई में योगदान करती है। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मौजूद गरीबी के कारण अधिकाधिक लोग बेहतर जीवन की तलाश में उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में प्रवास कर रहे हैं। उपर्युक्त कारणों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक घर्षण पैदा किया क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानून अप्रवासी और शरणार्थी में भेद करते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा: सुरक्षा की पारम्परिक धारणा को दो भागों में विभाजित किया गया है।
(अ) बाहरी सुरक्षा की धारणा और
(ब) आन्तरिक सुरक्षा की धारणा। यथा।
(अ) बाहरी सुरक्षा की धारणा: सैन्य खतरा-
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता,  तंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता तथा जन-धन की हानि का खतरा पैदा करता है। सैन्य खतरे अर्थात् युद्ध से बचने के उपाय- सरकार के पास सैन्य खतरे से बचने के प्रमुख उपाय होते हैं।

  1. आत्मसमर्पण करना
  2. अपरोध की नीति अपनाना
  3. रक्षा नीति अपनाना
  4. शक्ति सन्तुलन की स्थापना करना तथा
  5. गठबन्धन बनाने की नीति अपनाना।

(ब) आंतरिक सुरक्षा की धारणा:
दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ‘सुरक्षा के आंतरिक पक्ष पर दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त थे। लेकिन एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों को बाह्य सुरक्षा के साथ-साथ अन्दरूनी सैन्य संघर्ष की भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि ये देश सीमा पार से अपने पड़ौसी देशों से सैन्य हमले की आशंका से ग्रस्त थे तो दूसरी तरफ अलग राष्ट्र बनाने पर तुले अन्दर के अलगाववादी आंदोलनों से भी इन देशों को खतरा था।

प्रश्न 2.
सुरक्षा के पारंपरिक तरीके कौन-कौन से हैं? उनमें से प्रत्येक की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अथवा
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा को स्पष्ट कीजिये तथा सुरक्षा के पारम्परिक तरीकों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा- सुरक्षा की पारम्परिक अवधारणा में निम्न तरीकों पर बल दिया गया है।

  • न्याय युद्ध की परम्परा का विस्तार- सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा ‘न्याय युद्ध’ की यूरोपीय परम्परा का विस्तार है। इसकी प्रमुख बातें ये हैं-
    1. किसी देश को युद्ध आत्म-रक्षा अथवा दूसरों से जन-संहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए।
    2. साधनों का सीमित प्रयोग करना चाहिए।
    3. निहत्थे व्यक्ति या आत्मसमर्पण वाले शत्रु को नहीं मारना चाहिए तथा
    4. बल प्रयोग तभी किया जाये जब अन्य उपाय असफल हो गये हों।
  • निरस्त्रीकरण: देशों के बीच सहयोग में सुरक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है। निरस्त्रीकरण। इसमें कुछ खास किस्म के हथियारों का त्याग करने पर बल दिया जाता है।
  • अस्त्र – नियंत्रण – अस्त्र- नियंत्रण के अन्तर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको प्राप्त करने के सम्बन्ध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की ‘एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि’, ‘साल्ट-2’ तथा ‘परमाणु अप्रसार संधि 1968 ‘ इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
  •  विश्वास बहाली का उपाय: विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाएँ। विश्वास बहाली की प्रक्रिया के अन्तर्गत सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्विता वाले देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद, अपनी सैन्य योजनाओं, सैन्य बलों के स्वरूप तथा उनके तैनाती के स्थानों आदि प्रकार की सूचनाओं और विचारों का नियमित आदान-प्रदान करने का फैसला करते हैं।

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प्रश्न 3.
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा सिर्फ सैन्य खतरों से ही संबद्ध नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले व्यापक खतरों और आशंकाओं को शामिल किया जाता है। इसके दो प्रमुख पक्ष हैं।
1. मानवता की सुरक्षा तथा
2. विश्व सुरक्षा। यथा।

1. मानवता की सुरक्षा:
मानवता की सुरक्षा की धारणा व्यक्तियों की रक्षा पर बल देती है। मानवता की रक्षा का विचार जन – सुरक्षा को राज्यों की सुरक्षा से बढ़कर मानता है। मानवता की सुरक्षा और राज्य की सुरक्षा परस्पर पूरक होने चाहिए लेकिन व्यक्तियों की रक्षा किनसे की जाय, इस सम्बन्ध में तीन प्रकार के दृष्टिकोण सामने आये हैं। यथा।

(अ) संकीर्ण अर्थ: इस दृष्टिकोण के पैरोकारों का जोर व्यक्तियों और समुदायों को अंदरूनी खून-खराबे से बचाना है।

(ब) व्यापक अर्थ: व्यापक अर्थ लेने वाले समर्थक विद्वानों का तर्क है कि खतरों की सूची में हिंसक खतरों के साथ-साथ अकाल, महामारी और आपदाओं को भी शामिल किया जाये ।

(स) व्यापकतम अर्थ: व्यापकतम अर्थ में युद्ध, जनसंहार, आतंकवाद, अकाल, महामारी, प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा के साथ-साथ ‘अभाव से मुक्ति’ और ‘भय से मुक्ति’ पर बल दिया गया है।

2. विश्व – सुरक्षा:
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा का दूसरा पक्ष है। विश्व सुरक्षा विश्वव्यापी खतरे, वैश्विक ताप वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स तथा बर्ड फ्लू जैसी समस्याओं की प्रकृति वैश्विक है, इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

प्रश्न 4.
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में सुरक्षा के प्रमुख खतरों पर एक निबंध लिखिये।
उत्तर:
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में खतरे के नये स्त्रोत: सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के संदर्भ में खतरों की बदलती प्रकृति पर जोर दिया जाता है। ऐसे खतरों के प्रमुख नये स्त्रोत निम्नलिखित हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद: जब आतंकवाद का कोई संगठन एक से अधिक देशों में व्याप्त हो जाता है, तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के निशाने पर कई देशों के नागरिक हैं। आतंकवाद की चिर-परिचित तकनीकें हैं। विमान अपहरण करना, भीड़-भरी जगहों में बम लगाना।
  2. मानवाधिकारों का हनन: मानवता की सुरक्षा का एक नया स्रोत राष्ट्रीय सरकारों द्वारा मानवाधिकारों का हनन है।
  3. वैश्विक निर्धनता: मानवता की सुरक्षा के लिए वैश्विक गरीबी एक बड़ा खतरा है।
  4. र्थिक असमानता: विश्व स्तर पर आर्थिक असमानता पूरे विश्व को उत्तरी गोलार्द्ध व दक्षिणी गोलार्द्ध में विभाजित करती है । दक्षिणी गोलार्द्ध में यह आर्थिक असमानता और अधिक व्याप्त है।
  5. आप्रवासी, शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की समस्या – आप्रवासी, शरणार्थी तथा आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों की समस्याएँ भी सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के अन्तर्गत आती हैं।
  6. महामारियाँ: एड्स, बर्ड- ड-फ्लू, सार्स जैसी महामारियों के फैलाव को रोकने में किसी एक देश की सफलता अथवा असफलता का प्रभाव दूसरे देशों में होने वाले संक्रमण पर पड़ता है।

प्रश्न 5.
सुरक्षा पर मंडराते अनेक अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए क्या किया जाना आवश्यक है?
उत्तर:
सुरक्षा के अपारंपरिक खतरों से निपटने के उपाय : सहयोगात्मक सुरक्षा सुरक्षा पर मंडराते अनेक अपारंपरिक खतरों, जैसे- अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, वैश्विक ताप वृद्धि, वैश्विक गरीबी, वैश्विक असमानता, महामारियाँ, मानवाधिकारों के हनन तथा शरणार्थी समस्या आदि-से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की रणनीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। इन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. राज्यस्तरीय द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, महादेशीय और वैश्विक सहयोग: इन अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए विभिन्न देश द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, महादेशीय या वैश्विक स्तर पर सहयोग की रणनीति बना सकते हैं।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सुरक्षात्मक रणनीतियाँ: सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ, जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ व उसकी विभिन्न एजेन्सियाँ, अन्तर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन, बहुराष्ट्रीय व्यावसायिक संगठन और निगम तथा जानी-मानी हस्तियाँ शामिल हो सकती हैं।
  3. बल-प्रयोग-सहयोगमूलक सुरक्षा में भी अंतिम उपाय के रूप में बल-प्रयोग किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी उन सरकारों से निपटने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे सकती है जो अपनी ही जनता को मार रही हो अथवा उसके दुःख-दर्द की उपेक्षा कर रही हो। लेकिन बल-प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से और सामूहिक रूप में किया जाए।

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प्रश्न 6.
भारत की ‘सुरक्षा रणनीति’ के विभिन्न घटकों का उल्लेख कीजिये।
अथवा
भारत की सुरक्षा नीति के प्रमुख घटकों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत की सुरक्षा नीति के प्रमुख घटक: भारत की सुरक्षा नीति के चार बड़े घटक हैं और अलग-अलग समयों में इन्हीं घटकों के हेर-फेर से सुरक्षा की रणनीति बनायी गई है। यथा

  1. सैन्य क्षमता को मजबूत करना: भारत की सुरक्षा नीति का पहला घटक है। सैन्य क्षमता को मजबूत करना क्योंकि भारत पर पड़ौसी देशों के सैन्य – आक्रमण होते रहे हैं। भारत ने परमाणु परीक्षण के औचित्य में भी राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना: भारत की सुरक्षा नीति का दूसरा घटक है- अपने हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना। इस हेतु भारत ने एशियाई एकता, उपनिवेशीकरण का विरोध, निरस्त्रीकरण, नव अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के समर्थ की नीतियाँ अपनाई हैं।
  3. देश की आंतरिक सुरक्षा: समस्याओं से निपटना: भारत सरकार ने देश की आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं से निबटने के लिए लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है।
  4. गरीबी और असमानता को दूर करने के प्रयास: भारत सरकार ने बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और अभाव से निजात दिलाने के निरन्तर प्रयास किये हैं ताकि नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो।

प्रश्न 7.
शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने वाले साधनों का विवेचन कीजिये।
उत्तर;
शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने वाले साधन: शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने वाले प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं।

  1. मुआवजा या क्षतिपूर्ति: साधारणतया इसका अर्थ उस देश की भूमि को बाँटने या समामेलन से लिया जाता है जो शक्ति सन्तुलन के लिए खतरा होती है।
  2. शस्त्रीकरण तथा निःशस्त्रीकरण: प्रत्येक राष्ट्र अपने पक्ष में शक्ति सन्तुलन बनाए रखने के लिए शस्त्रीकरण पर अधिक जोर देता है। वर्तमान में शस्त्रीकरण के साथ-साथ निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र – नियंत्रण को भी महत्त्व दिया जाने लगा है।
  3. गठबंधन: एक गठबंधन समझौते के बाद विरोधी राष्ट्रों के समूह के बीच भी एक प्रति गठबंधन समझौता होता है। इसीलिए इसे गठबंधनों और प्रतिगठबंधनों का नाम दिया जाता है।
  4. हस्तक्षेप: कई बार कोई बड़ा देश किसी छोटे देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करके वहाँ पर अपनी मित्र – सरकार स्थापित कर देता है।
  5. फूट डालो और राज करो: ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को भी शत्रु को कमजोर करने का एक बड़ा महत्त्वपूर्ण शक्ति संतुलन का साधन माना जाता है।
  6. बफर राज्य-शक्ति प्राप्त करके और इसे बनाए रखने का एक अन्य तरीका है। ऐसे तटस्थ (बफर) राज्य की स्थापना करना जो कमजोर हो और दो बड़े प्रतिद्वन्द्वी देशों के बीच में स्थित हो।
  7. सन्तुलनधारी राज्य: संतुलनधारी राज्य वह देश होता है जो दूसरे देशों की प्रतिद्वन्द्विता से दूर रहता है और एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी देश उसकी सहायता पाने की इच्छा रखते हैं। ऐसा देश प्राय: शक्ति संतुलन हेतु कमजोर राष्ट्र का साथ देता है।

प्रश्न 8.
निरस्त्रीकरण से आप क्या समझते हैं? आधुनिक युग में इसकी आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए इसके मार्ग की बाधाओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण का अर्थ: निःशस्त्रीकरण से हथियारों की सीमा निश्चित करने या उन पर नियंत्रण करने या उन्हें कम करने का विचार प्रकट होता है। इसका लक्ष्य उपस्थित हथियारों के प्रभाव व संख्या को घटा देना है। मॉर्गेन्थो के शब्दों में, “नि:शस्त्रीकरण कुछ या सब शस्त्रों में कटौती या उनको समाप्त करना है ताकि शस्त्रीकरण की दौड़ का अन्त हो।” निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता या महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. विश्व शांति और सुरक्षा की स्थापना की दृष्टि से निःशस्त्रीकरण आवश्यक है।
  2. इससे विश्व के राष्ट्र अपने धन को आर्थिक विकास के कार्यों में लगा सकते हैं।
  3. निःशस्त्रीकरण को अपनाने पर उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का अन्त होगा।
  4. विदेशी हस्तक्षेप को रोकने के लिए आवश्यक है कि सभी देश मिलकर निःशस्त्रीकरण पर बल दें।
  5. बढ़ते हुए सैनिकीकरण को रोकने के लिए निःशस्त्रीकरण बहुत आवश्यक है।
  6. नि:शस्त्रीकरण सैनिक गठबन्धनों को रोकता एवं समाप्त करता है।
  7. परमाणु युद्ध के बचाव के लिए भी निःशस्त्रीकरण आवश्यक है।

निःशस्त्रीकरण के मार्ग की बाधाएँ: निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधायें निम्नलिखित हैं।

  1. विश्व व्यवस्था राष्ट्रों में परस्पर अविश्वास का होना।
  2. प्रत्येक राष्ट्र द्वारा राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि महत्त्व देना।
  3. विश्व में प्रत्येक राष्ट्र की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति बढ़ती आशंका।
  4. वर्चस्व स्थापित करने की भावना।
  5. नि:शस्त्रीकरण से बड़े देशों की कंपनियों के हथियारों के व्यापार को संकट का सामना करना पड़ता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

प्रश्न 9.
शरणार्थी से आप क्या समझते हैं? शरणार्थी समस्या का प्रमुख कारण क्या है? संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में शरणार्थियों की सुरक्षा व उनके अधिकारों की रक्षा के क्या प्रयास किये गये हैं?
उत्तर:
शरणार्थी से आशय:
शरणार्थी वे व्यक्ति हैं जो युद्ध, प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण अपने देश को छोड़ने पर मजबूर होते हैं और दूसरे देश में पलायन कर जाते हैं। शरणार्थी समस्या का प्रमुख कारण – शरणार्थी समस्या का प्रमुख कारण सशस्त्र संघर्ष और युद्ध है। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में सशस्त्र संघर्ष और युद्ध के कारण लाखों लोग शरणार्थी बने। शरणार्थी सुरक्षा एजेन्सियाँ – शरणार्थियों की सुरक्षा व उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में निम्नलिखित अभिकरण कार्य कर रहे हैं।

  1. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त ने आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों की. सुरक्षा और सहायता का समग्र उत्तरदायित्व ग्रहण किया है। सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में यह नागरिकों को सुरक्षित मार्ग से सुरक्षित ठिकानों पर पहुँचाता है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रास समिति: अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रास समिति जो खतरे की स्थिति में नागरिकों को निकालना, बंदियों की रिहाई, संरक्षित क्षेत्र बनाना, युद्ध विराम के लिए व्यवस्था करना आदि कार्य करती है।
  3. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन भी महिलाओं और बच्चों की सहायता करते हैं।
  4. डॉक्टर्स विदआऊट वार्ड्स और वर्ल्ड काउंसिल ऑफ चर्च्स भी देशीय विस्थापितों की सहायता करते हैं।

प्रश्न 10.
विश्वास बहाली की प्रक्रिया द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाए इस कथन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में यह बात स्वीकार की गई है विश्वास बहाली के माध्यम से देशों के बीच हिंसाचार को कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया: विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्विता वाले देश सूचनाओं तथा विचारों के नियमित आदान-प्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। इस प्रकार ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी देश को इस बात का भरोसा दिलाते हैं कि उनकी तरफ से किसी भी प्रकार से हमले की योजना नहीं बनायी जा रही है।

एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि उनके पास किस प्रकार के सैन्य बल हैं तथा इन बलों को कहाँ तैनात किया जा रहा है। इस प्रकार संक्षेप में कहें तो विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाएँ। सुरक्षा की परंपरागत धारणा मुख्य रूप से सैन्य बल के प्रयोग अथवा सैन्य बलके प्रयोग की आशंका से संबंध है।

प्रश्न 11.
सुरक्षा की दृष्टि से खतरे के नए स्रोत पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
खतरे के नए स्रोत: सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के दो पक्ष हैं मानवता की सुरक्षा और विश्व सुरक्षा ये दोनों सुरक्षा के संदर्भ में खतरों की बदलती प्रकृति पर जोर देते हैं।
1.आतंकवाद:
आतंकवाद का आशय राजनीतिक खून-खराबे से है जो जानबूझकर और बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को निशाना बनाता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद कई देशों में व्याप्त है तथा कई देशों के निर्दोष नागरिक इसके निशाने पर है। कोई राजनीतिक संदर्भ या स्थिति नापसंद हो तो आतंकवादी समूह उसे बल प्रयोग अथवा बल-प्रयोग की धमकी देकर बदलने का प्रयत्न करते हैं। जनमानस को आतंकित करने के लिए नागरिकों को निशाना बनाया जाता है और आतंकवाद नागरिकों के असंतोष का इस्तेमाल राष्ट्रीय सरकारों अथवा संघर्षों में शामिल अन्य पक्ष के खिलाफ करता है। विमान-अपहरण अथवा भीड़ भरी जगहों जैसे रेलगाड़ी, होटल, बाजार या ऐसी ही जगहों पर बम लगाना आदि आतंकवाद के उदाहरण हैं।

2. मानवाधिकार:
मानवाधिकार को तीन कोटियों में रखा गया है। पहली कोटि राजनीतिक अधिकारों की है जैसे अभिव्यक्ति और सभा करने की आजादी । दूसरी कोटि आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की है। अधिकारों की तीसरी कोटि में उपनिवेशीकृत जनता अथवा जातीय और मूलवासी अल्पसंख्यकों के अधिकार आते हैं। इन वर्गीकरण को लेकर सहमति तो हैं लेकिन इस बात पर सहमति नहीं बन पायी है कि इनमें से किस कोटि के अधिकारों को सार्वभौम मानवाधिकारों की संज्ञा दी जाए या इन अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को क्या करना चाहिए?

3. वैश्विक निर्धनता:
खतरे का एक ओर स्रोत वैश्विक निर्धनता है। विश्व की जनसंख्या फिलहाल 760 करोड़ है और यह आँकड़ा 21वीं सदी के मध्य तक 1000 करोड़ हो जाएगी। अनुमान है कि अगले 50 सालों में दुनिया के सबसे गरीब देशों में जनसंख्या तीन गुना बढ़ेगी जबकि इसी अवधि में अनेक धनी देशों की जनसंख्या घटेगी। प्रति व्यक्ति उच्च आय और जनसंख्या की कम वृद्धि के कारण धनी देश अथवा सामाजिक समूहों को और धनी बनाने में मदद मिलती है जबकि प्रति व्यक्ति निम्न आय और जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एक साथ मिलकर गरीब देशों और सामाजिक समूहों को और गरीब बनाते हैं।

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प्रश्न 12.
विश्व स्तर पर असमानता से किस प्रकार के खतरे उत्पन्न होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विश्वस्तर पर अमीरी-गरीबी की यह असमानता उत्तरी गोलार्द्ध के देशों को दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से अलग करती है। दक्षिण गोलार्द्ध के देशों में असमानता अच्छी-खासी बढ़ी है। यहाँ कुछ देशों ने आबादी की रफ्तार को काबू कर आय को बढ़ाने में सफलता प्राप्त की है परंतु बाकी के देश ऐसा नहीं कर पाए हैं। उदाहरण के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा सशस्त्र संघर्ष अफ्रीका के सहारा मरुस्थल के दक्षिणवर्ती देशों में होते हैं। यह इलाका दुनिया का सबसे गरीब इलाका है। 21वीं सदी के शुरुआती समय में इस इलाके के युद्धों में शेष दुनिया की तुलना में कहीं ज्यादा लोग मारे गए। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मौजूद गरीबी के कारण अधिकाधिक लोग बेहतर जीवन खासकर आर्थिक अवसरों की तलाश में उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में प्रवास कर रहे हैं।

इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक मतभेद उठ खड़ा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कायदे कानून अप्रवासी और शरणार्थी में भेद करते हैं। विश्व का शरणार्थी – मानचित्र विश्व के संघर्ष – मानचित्र से लगभग हू-ब-हू मिलता है क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में सशस्त्र संघर्ष और युद्ध के कारण लाखों लोग शरणार्थी बने और सुरक्षित जगह की तलाश में निकले हैं। 1990 से 1995 के बीच 70 देशों के मध्य कुल 93 युद्ध हुए और इसमें लगभग साढ़े 55 लाख लोग मारे गए। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति, परिवार और कभी-कभी पूरे समुदाय को सर्वव्याप्त भय अथवा आजीविका, पहचान और जीवन- यापन के परिवेश के नाश के कारण जन्मभूमि छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

प्रश्न 13.
महामारियों के फैलाव से विश्व में किस प्रकार के खतरे उत्पन्न होते हैं ? निबंध लिखिए।
उत्तर:
एचआईवी-एड्स, बर्ड फ्लू और सार्स (सिवियर एक्यूट रेसपिटॅरी सिंड्रोम – SARS) जैसी महामारियाँ अप्रवास, व्यवसाय, पर्यटन और सैन्य अभियानों के जरिए बड़ी तेजी से विभिन्न देशों में फैली हैं। इन बीमारियों के फैलाव को रोकने में किसी एक देश की सफलता अथवा असफलता का प्रभाव दूसरे देशों में होने वाले संक्रमण पर पड़ता है। एक अनुमान है कि 2003 तक पुरी दुनिया में 4 करोड़ लोग एचआईवी-एड्स से संक्रमित हो चुके थे।

इसमें दो- तिहाई लोग अफ्रीका में रहते हैं जबकि शेष के 50 फीसदी दक्षिण एशिया में। उत्तरी अमरीका तथा दूसरे औद्योगिक देशों में उपचार की नई विधियों के कारण 1990 के दशक के उत्तरार्ध के वर्षों में एचआईवी एड्स से होने वाली मृत्यु की दर में तेजी से कमी आयी है परंतु अफ्रीका जैसे गरीब इलाके के लिए ये उपचार कीमत को देखते हुए आकाश- कुसुम कहे जाएँगे जबकि अफ्रीका को ज्यादा गरीब बनाने में एचआईवी-एड्स महत्त्वपूर्ण घटक साबित हुआ है।

एबोला वायरस, हैन्टावायरस और हेपेटाइटिस – सी जैसी कुछ नयी महामारियाँ उभरी हैं जिनके बारे में खास जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। टीबी, मलेरिया, डेंगू बुखार और हैजा जैसी पुरानी महामारियों ने औषधि प्रतिरोधक रूप धारण कर लिया है और इससे इनका उपचार कठिन हो गया है। जानवरों में महामारी फैलने से भारी आर्थिक दुष्प्रभाव होते हैं 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध के सालों से ब्रिटेन ने ‘मेड-काऊ’ महामारी के फैलने के कारण अरबों डॉलर का नुकसान उठाया है और बर्ड फ्लू के कारण कई दक्षिण एशियाई देशों को मुर्ग-निर्यात बंद करना पड़ा। ऐसी महामारियाँ बताती हैं कि देशों के बीच पारस्परिक निर्भरता बढ़ रही हैं और राष्ट्रीय सीमाएँ पहले की तुलना में कम सार्थक रह गई हैं। इन महामारियों का संकेत है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने की जरूरत है।

प्रश्न 14.
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा भी सुरक्षा की पारंपरिक धारणा समान स्थानीय संदर्भों के अनुकूल परिवर्तनशील है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा की धारणा में विस्तार करने का यह मतलब नहीं होता कि हम हर तरह के कष्ट या बीमारी को सुरक्षा विषयक चर्चा के दायरे में शामिल कर सकते हैं। ऐसा करने पर सुरक्षा की धारणा में संगति नहीं रह जाती। ऐसे में हर चीज सुरक्षा का मसला हो सकती है। इसी वजह से किसी मसले को सुरक्षा का मसला कहलाने के लिए एक सर्व स्वीकृत न्यूनतम मानक पर खरा उतरना जरूरी है। उदाहरण के लिए यदि किसी मसले से संदर्भों के अस्तित्व को खतरा हो जाए तो उसे सुरक्षा का मसला कहा जा सकता है चाहे इस खतरे की प्रकृति कुछ भी हो।

उदाहरण के लिए मालदीव को वैश्विक तापवृद्धि से खतरा हो सकता है क्योंकि समुद्रतल के ऊँचा उठने से इसका ज्यादातर हिस्सा डूब जाएगा जबकि दक्षिणी अफ्रीकी देशों में एचआईवी-एड्स से गंभीर खतरा है क्योंकि यहाँ हर 6 वयस्क व्यक्ति में 1 इस रोग से पीड़ित है। 1994 की खांडा की तुन्सी जनजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडराया क्योंकि प्रतिद्वन्द्वी हुतु जनजाति ने कुछ हफ्तों में लगभग 5 लाख तुन्सी लोगों को मार डाला। इससे पता चलता है कि सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा भी सुरक्षा की पारंपरिक धारणा के समान संदर्भों के अनुकूल परिवर्तनशील है।

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प्रश्न 15.
लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक आदर्श नहीं अपितु लोकतांत्रिक शासन जनता को ज्यादा सुरक्षा मुहैया कराने का साधन भी है। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को इस तरह विकसित करने का प्रयास किया है जिससे बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और अभाव से निजात मिले और नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो। हालांकि ये प्रयास ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं। हमारा देश अभी भी गरीब है और आर्थिक असमानता व्यापक रूप से व्याप्त है। फिर भी, लोकतांत्रिक राजनीति से ऐसे अवसर नागरिकों को उपलब्ध हो जाते हैं जिसके द्वारा गरीब और वंचित नागरिक अपनी आवाज उठा सके और अपने हक के लिए सरकार से माँग कर सकें। लोकतांत्रिक सरकार लोकतंत्र की रीति से निर्वाचित होती है जिसके कारण सरकार के ऊपर दबाव होता है कि वह आर्थिक संवृद्धि को मानवीय विकास का सहगामी बनाए। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक आदर्श नहीं है; लोकतांत्रिक शासन जनता को ज्यादा सुरक्षा मुहैया कराने का साधन भी है।

प्रश्न 16.
पारंपरिक और अपारंपरिक धारणा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

पारंपरिक धारणा अपारंपरिक धारणा
(1) पारंपरिक सुरक्षा सैन्य उपयोग के खतरे से संबंधित है। (1) अपारंपरिक सुरक्षा सैन्य खतरों से इतर है। इसमें वो शामिल हैं जो मानव अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।
(2) इस सुरक्षा के लिए पारंपरिक खतरे की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के मुख्य मूल्यों को खतरे में डालते हैं। (2) गैर पारंपरिक सुरक्षा राज्य की तुलना में मानव को खतरे में डालती है।
(3) पारंपरिक अवधारणा के तहत सैन्य बल पर जोर दिया जाता है। (3) अपारंपरिक सुरक्षा में सैन्य बल का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में किया जाता है।
(4) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में माना जाता है कि किसी देश की सुरक्षा को ज्यादातर खतरा उसकी सीमा के बाहर से होता है। (4) अपारंपरिक धारणा में खतरा सामान्य वातावरण है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. 1857 के विद्रोह से पूर्व दिल्ली के कोतवाल थे-
(क) गंगाधर नेहरू
(ख) अरुण नेहरू
(ग) मोतीलाल नेहरू
(घ) जवाहरलाल नेहरू
उत्तर:
(क) गंगाधर नेहरू

2. अखिल भारतीय जनगणना का प्रयास भारत में प्रथम बार हुआ-
(क) 1772 में
(ख) 1872 में
(ग) 1786 में
(घ) 1881 में
उत्तर:
(ख) 1872 में

3. शाहजहाँनाबाद को बसाया था-
(क) अकबर ने
(ख) औरंगजेब ने
(ग) शाहजहाँ ने
(घ) हुमायूँ ने
उत्तर:
(ग) शाहजहाँ ने

4. ब्रिटिश काल में पहला हिल स्टेशन बना-
(क) शिमला
(ख) दार्जिलिंग
(ग) नैनीताल
(घ) मनाली
उत्तर:
(क) शिमला

5. आगरा, दिल्ली तथा लाहौर की एक सामान्य विशेषता थी-
(क) तीनों शहर मिली-जुली संस्कृति के लिए जाने जाते थे।
(ख) तीनों शहर सूफी सन्तों तथा भक्तों को खूब प्रिय थे।
(ग) तीनों शहर सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में मुगल शासन के महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे।
(घ) तीनों शहर मुस्लिम आबादी वाले थे।
उत्तर:
(ग) तीनों शहर सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में मुगल शासन के महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे।

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6. भारत में रेलवे की शुरुआत हुई
(क) 1856 में
(ग) 1855 में
(ख) 1853 में
(घ) 1851 में
उत्तर:
(ख) 1853 में

7. कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाया गया-
(क) 1911 में
(ख) 1916 में
(ग) 1908 में
(घ) 1899 में
उत्तर:
(क) 1911 में

8. प्लासी का युद्ध लड़ा गया था-
(क) 1755 में
(ख) 1757 में
(ग) 1765 में
(घ) 1857 में
उत्तर:
(ख) 1757 में

9. दक्षिण भारत के दो शहरों मदुराई और कांचीपुरम की मुख्य विशेषता थी-
(क) ये दोनों नगर हमलावरों से सुरक्षित थे।
(ख) इनमें मुख्य केन्द्र मन्दिर तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र होते थे।
(ग) इनमें विश्व के प्रमुख धर्मों के त्यौहार मनाए जाते थे।
(घ) समाज के लोग इन शहरों में साहित्यिक चर्चा किया करते थे।
उत्तर:
(ख) इनमें मुख्य केन्द्र मन्दिर तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र होते थे।

10. औपनिवेशिक शहरों में प्राय: निम्न तीन शहर शामिल किए जाते थे-
(क) दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता
(ख) दिल्ली, मद्रास, कलकत्ता
(ग) मद्रास, कलकत्ता, बम्बई
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) मद्रास, कलकत्ता, बम्बई

11. मद्रास, कलकत्ता एवं बम्बई तीनों शहरों की एक सामान्य विशेषता थी-
(क) तीनों व्यापारिक राजधानी थे
(ख) तीनों मूलतः मत्स्य ग्रहण एवं बुनाई के गाँव थे
(ग) तीनों शहरों को अंग्रेजों ने बसाया था
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) तीनों मूलतः मत्स्य ग्रहण एवं बुनाई के गाँव थे

12. मिर्जा गालिब थे-
(क) चित्रकार
(ग) कवि
(ख) शायर
(घ) फिल्मकार
उत्तर:
(ख) शायर

13. निम्न में से किस शहर का सम्बन्ध राइटर्स बिल्डिंग से है?
(क) बम्बई
(ग) कलकत्ता
(ख) दिल्ली
(घ) मद्रास
उत्तर:
(ग) कलकत्ता

14. कासल क्या था?
(क) एक दुर्ग
(ग) एक बस्ती
(ख) एक शहर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) एक दुर्ग

15.
विनोदिनी दासी कौन थीं?
(क) चित्रकार
(ख) रंगकर्मी
(ग) वास्तुकार
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ख) रंगकर्मी

16. फोर्ट सेंट जार्ज कहाँ स्थित है?
(क) मद्रास
(ख) दिल्ली
(ग) कलकत्ता
(घ) बम्बई
उत्तर:
(क) मद्रास

17. किस भारतीय शहर का सम्बन्ध फोर्ट विलियम से है?
(क) दिल्ली
(ग) मद्रास
(ख) कलकत्ता
(घ) जयपुर
उत्तर:
(ख) कलकत्ता

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18. नवशास्त्रीय स्थापत्य शैली का उदाहरण है-
(क) टाउन हॉल
(ख) लाल किला
(ग) विक्टोरिया टर्मिनल
(च) ताजमहल
उत्तर:
(क) टाउन हॉल

19. सात टापुओं का शहर है-
(क) बम्बई
(ग) मद्रास
(ख) कलकत्ता
(घ) दिल्ली
उत्तर:
(क) बम्बई

20. लॉटरी कमेटी का सम्बन्ध है-
(क) पुरातत्त्व व्यवस्था से
(ख) सैनिक व्यवस्था से
(ग) प्रशासनिक व्यवस्था से
(घ) नगर नियोजन से
उत्तर:
(घ) नगर नियोजन से

21. गारेर मठ क्या था?
(क) एक मैदान
(ग) एक बस्ती
(ख) एक शहर
(घ) एक पक्षी
उत्तर:
(क) एक मैदान

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1853 में बम्बई से ………………….. “तक रेलवे लाइन बिछाई गई।
2. 1896 में बम्बई के ………………….. -होटल में पहली बार फिल्म दिखाई गई।
3. कलकत्ता की जगह दिल्ली को ………………….. में राजधानी बनाया गया।
4. 1857 में बम्बई में पहली स्पिनिंग और ………………….. मिल की स्थापना की गई।
5. ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा ………………… में कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
6. एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना ………………….. में ………………….. की गई।
7. ………………… में बम्बई को ब्रिटेन के राजा ने कम्पनी को दे दिया।
8. ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को ………………. कहा जाता है।
9. ………………….. कहा का तात्पर्य एक छोटे स्थायी बाजार है।
10. पुर्तगालियों ने 1510 में ……………… तथा डचों ने 1605 में ………………. में आधार स्थापित कर लिए थे।
11. मद्रास, बम्बई और कलकत्ता का आधुनिक नाम क्रमश: …………………. , …………………… और …………………. है।
12. प्लासी का युद्ध ……………. में हुआ था।
13. सर्वे ऑफ इण्डिया का गठन ……………. ने किया गया था।
14. कपडों जबकि …………… अपने स्टील उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
15 ……………… की स्थापना गुरखा युद्ध के दौरान की गई थी।
उत्तरमाला –
1. ठाणे
2. वाटसन्स
3. 1911
4 बीविंग
5. 1773
6. सर विलियम जोन्स, 1784
7. 1661
8. कस्बा
9. गंज
10. पणजी, मछलीपट्टनम
11. चेन्नई, मुम्बई और कोलकाता
12. 1757
13. 1878
14. कानपुर, जमशेदपुर
15. शिमला।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्लासी का युद्ध कब और किसके बीच हुआ?
उत्तर:
1757 ई. में प्लासी का युद्ध अंग्रेजों और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुआ।

प्रश्न 2.
गेटवे ऑफ इण्डिया कब और कहाँ बनाया गया?
उत्तर:
गेटवे ऑफ इण्डिया 1911 में बम्बई में बनाया

प्रश्न 3.
औपनिवेशिक भारत में स्थापित दो हिल स्टेशनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) शिमला
(2) माउंट आबू

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प्रश्न 4.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करने का प्रमुख उद्देश्य क्या था? उत्तर- यूरोपीय कम्पनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के कारण सुरक्षा बनाये रखना।

प्रश्न 5.
अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास किस वर्ष में किया गया था?
उत्तर:
सन् 1872 ई. में

प्रश्न 6.
भारत के मद्रास, कलकत्ता और बम्बई तीनों शहर मूलत: किस प्रकार के गाँव थे?
उत्तर:
ये तीनों शहर मत्स्य ग्रहण और बुनाई के गाँव थे।

प्रश्न 7.
इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एजेन्ट मद्रास में किस सन् में बस गये?
उत्तर:
सन् 1639 में।

प्रश्न 8.
इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने मद्रास, कलकत्ता और बम्बई में किस प्रकार के कार्यालय स्थापित किये?
उत्तर:
व्यापारिक और प्रशासनिक कार्यालय।

प्रश्न 9.
भारत में मुगलकाल में शाही प्रशासन और सत्ता के तीन महत्त्वपूर्ण केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) आगरा
(2) दिल्ली और
(3) लाहौर।

प्रश्न 10.
दक्षिण भारत के ऐसे दो नगरों के नाम लिखिए जिनमें मुख्य केन्द्र मन्दिर होता था।
उत्तर:
मदुरई और कांचीपुरम

प्रश्न 11.
18वीं सदी के अन्त तक स्थल आधारित साम्राज्यों का स्थान कैसे साम्राज्यों ने ले लिया?
उत्तर:
जल आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने।

प्रश्न 12.
भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1853 में भारत में रेलवे की शुरुआत हुई। प्रश्न 13, 19वीं सदी के मध्य तक भारत में कौनसे दो औद्योगिक शहर थे?
उत्तर:
(1) कानपुर,
(2) जमशेदपुर।

प्रश्न 14.
कलकत्ता में किन लोगों ने बाजारों के आस-पास ब्लैक टाउन में परम्परागत ढंग से दालानी मकान बनवाए?
उत्तर:
अमीर भारतीय एजेन्टों और बिचौलियों ने।

प्रश्न 15.
कलकत्ता में मजदूर वर्ग के लोग कहाँ रहते में।
उत्तर:
शहर के विभिन्न इलाकों की कच्ची झोंपड़ियों

प्रश्न 16.
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों के लिए किस नाम से नए शहरी इलाके विकसित किये गये?
उत्तर:
सिविल लाइन्स’ के नाम से

प्रश्न 17.
सिविल लाइन्स में किनको बसाया गया?
उत्तर:
केवल गोरों को।

प्रश्न 18.
पहला हिल स्टेशन कब और कौनसा बनाया गया?
उत्तर:
पहला हिल स्टेशन 1815-16 में शिमला में स्थापित किया गया।

प्रश्न 19.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कलकत्ता और बम्बई में अपने व्यापारिक केन्द्र कब स्थापित किये?
उत्तर:
(1) 1661 में बम्बई में
(2) 1690 में कलकत्ता में।

प्रश्न 20.
1800 ई. तक जनसंख्या की दृष्टि से कौनसे भारतीय शहर विशालतम शहर बन गए थे?
उत्तर:
(1) मद्रास
(2) कलकत्ता
(3) बम्बई।

प्रश्न 21.
भारत में दशकीय जनगणना कब से एक नियमित व्यवस्था बन गई थी?
उत्तर:
पहला हिल-स्टेशन 1815-16 में शिमला में स्थापित किया गया।

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प्रश्न 22.
1900 से 1940 के मध्य 40 वर्षों की अवधि में भारतीय शहरी आबादी में कितनी वृद्धि हुई?
उत्तर:
दस प्रतिशत से बढ़कर लगभग 13 प्रतिशत हो गई।

प्रश्न 23
19वीं शताब्दी में भारत में कौनसे रेलवे नगर अस्तित्व में आए?
उत्तर;
जमालपुर, वाल्टेयर तथा बरेली।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों ने अपनी किन बस्तियों की किलेबन्दी की थी?
उत्तर:
बम्बई, मद्रास और कलकत्ता की।

प्रश्न 25.
औपनिवेशिक काल के दो औद्योगिक शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) कानपुर
(2) जमशेदपुर।

प्रश्न 26.
चमड़े की चीजों तथा ऊनी और सूती वस्त्रों के निर्माण के लिए कौनसा औद्योगिक नगर प्रसिद्ध था?
उत्तर:
कानपुर। था?

प्रश्न 27.
जमशेदपुर किसके उत्पादन के लिए प्रसिद्ध
उत्तर:
स्टील उत्पादन के लिए।

प्रश्न 28.
राइटर्स बिल्डिंग कहाँ पर स्थित थी?
उत्तर:
कलकत्ता में।

प्रश्न 29.
इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एजेंट कलकत्ता में किस वर्ष बसे?
उत्तर:
1690 ई. में।

प्रश्न 30.
अंग्रेजों द्वारा स्थापित दो हिल स्टेशनों के नाम बताइये ये कब स्थापित किये गए?
उत्तर:
1818 में माउण्ट आबू तथा 1835 में दार्जिलिंग।

प्रश्न 31.
सेनेटोरियम के रूप में किनका विकास किया गया था?
उत्तर:
हिल स्टेशनों का।

प्रश्न 32.
कौनसा हिल स्टेशन भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ (प्रधान सेनापति) का भी अधिकृत वास बन गया था?
उत्तर:
शिमला।

प्रश्न 33.
भारत के नये शहरों में यातायात के कौनसे साधन थे?
उत्तर:
घोड़ागाड़ी, ट्राम तथा बस।

प्रश्न 34.
भारतीय शहरों में किस नये वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ?
उत्तर:
मध्य वर्ग’ का ।

प्रश्न 35.
भारतीय शहरों में किन लोगों की माँग बढ़ रही थी?
उत्तर:
वकीलों, डॉक्टरों, शिक्षकों, क्लकों, इंजीनियरों, लेखाकारों की।

प्रश्न 36.
आमार कथा (मेरी कहानी) की रचना किसने की थी?
उत्तर:
विनोदिनी दास ने

प्रश्न 37.
मद्रास में ‘व्हाइट टाउन’ का केन्द्र कौन
उत्तर:
फोर्ट सेंट जार्ज।

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प्रश्न 38.
कलकत्ता को किन तीन गाँवों को मिलाकर बनाया गया था?
उत्तर:
(1) सुतानाती
(2) कोलकाता
(3) गोविन्दपुर।

प्रश्न 39.
कलकत्ता का किला क्या कहलाता था?
उत्तर:
फोर्ट विलियम।

प्रश्न 40.
‘स्वास्थ्यकर नगर’ और ‘अस्वास्थ्यकर नगर’ कौनसे होते थे?
उत्तर:
व्हाइट टाउन’ स्वास्थ्यकर तथा ‘ब्लैक टाउन’ अस्वास्थ्यकर कहलाते थे।

प्रश्न 41.
लार्ड वेलेजली भारत के गवर्नर जनरल कब बने?
उत्तर:
1798 ई. में।

प्रश्न 42.
लार्ड वेलेजली ने कलकत्ता में अपने लिए रहने के लिए जो महल बनवाया, वह क्या कहलाता था?
उत्तर:
गवर्नमेंट हाउस

प्रश्न 43.
ग्रामीण क्षेत्रों के लोग किस प्रकार जीवन- यापन करते थे?
उत्तर:
खेती, जंगलों में संग्रहण तथा पशुपालन द्वारा।

प्रश्न 44.
ग्रामीण क्षेत्रों से कस्बों तथा शहरों को अलग दिखाने वाली एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
कस्बों तथा शहरों की किलेबन्दी की जाती थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की नहीं। –

प्रश्न 45.
जनगणना के आँकड़ों का एक महत्त्व बताइए। उत्तर- जनगणना शहरीकरण के इतिहास का अध्ययन करने का बहुमूल्य स्रोत है।

प्रश्न 46.
आरम्भ में अधिकांश लोग जनगणना को सन्देह की दृष्टि से क्यों देखते थे?
उत्तर:
क्योंकि लोगों का मानना था कि सरकार नए कर लागू करने के लिए जाँच करवा रही है।

प्रश्न 47.
बगीचा पर’ का सम्बन्ध किस औपनिवेशिक शहर से था?
उत्तर:
कलकत्ता।

प्रश्न 48.
प्रारम्भ में बम्बई कितने टापुओं का इलाका था?
उत्तर:
सात टापुओं का।

प्रश्न 49.
बम्बई में नव-शास्त्रीय (नव क्लासिकल शैली) में निर्मित दो इमारतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) बम्बई का टाउन हाल
(2) एल्फिंस्टन सर्कल।

प्रश्न 50.
बम्बई में नव-गॉथिक शैली में निर्मित चार इमारतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) बम्बई सचिवालय
(2) बम्बई विश्वविद्यालय
(3) उच्च न्यायालय
(4) बम्बई टर्मिनस रेलवे स्टेशन।

प्रश्न 51.
नव-गॉथिक शैली में निर्मित सर्वोत्कृष्ट इमारत कौनसी थी जो बम्बई में निर्मित थी?
उत्तर:
विक्टोरिया टर्मिनस रेलवे स्टेशन

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प्रश्न 52.
मद्रास में इण्डो सारसेनिक स्थापत्य शैली में निर्मित भवन का नाम लिखिए।
उत्तर:
मद्रास ला कोर्टस।

प्रश्न 53.
बम्बई में निर्मित ‘गेटवे ऑफ इण्डिया’ किस शैली का प्रतीक है?
उत्तर:
गुजराती शैली का।

प्रश्न 54.
राजा जार्ज पंचम और उनकी पत्नी मेरी के स्वागत के लिए कौनसी इमारत बनाई गई थी और कब?
उत्तर:
(1) गेटवे ऑफ इण्डिया
(2) 1911 में।

प्रश्न 55.
भारत में सबसे पहली रेल किन शहरों के बीच चलाई गई और कब?
उत्तर:
(1) बम्बई से ठाणे तक
(2) 1853 में।

प्रश्न 56.
बम्बई, मद्रास और कलकत्ता विश्वविद्यालयों की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
1857 में।

प्रश्न 57.
अंग्रेजों ने कलकत्ता की जगह दिल्ली को कब राजधानी बनाया?
उत्तर;
1911 में

प्रश्न 58.
फोर्ट विलियम पर टिप्पणी लिखिए। उत्तर- फोर्ट विलियम कलकत्ता का एक प्रसिद्ध दुर्ग था। इसका निर्माण ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने करवाया था।

प्रश्न 59
6वीं तथा 17वीं सदी में मुगलों द्वारा बनाए गए शहर किन बातों के लिए प्रसिद्ध थे? उत्तर-ये शहर जनसंख्या के केन्द्रीकरण, अपने विशाल भवनों तथा शाही शोभा व समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 60.
मुगल राजधानियों दिल्ली और आगरे के राजनीतिक प्रभुत्व की समाप्ति के बाद किन क्षेत्रीय राजधानियों का महत्त्व बढ़ गया था?
उत्तर- लखनऊ, हैदराबाद, सारंगपट्म, पूना, नागपुर, बड़ौदा, तंजौर

प्रश्न 61.
पेठ और पुरम में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पेठ तमिल शब्द है जिसका अर्थ होता है बस्ती जबकि पुरम शब्द गाँव के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 62.
अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र सर्वप्रथम किसे बनाया था?
उत्तर:
सूरत।

प्रश्न 63.
कलकत्ता में अंग्रेजों की सत्ता की प्रतीक इमारत कौनसी थी?
उत्तर:
गवर्नमेंट हाऊस।

प्रश्न 64.
लॉटरी कमेटी का सम्बन्ध किस औपनिवेशिक शहर से था?
उत्तर:
कलकत्ता।

प्रश्न 65.
बम्बई सचिवालय का डिजाइन किसने बनाया था?
उत्तर:
एच. एस. टी. क्लेयर विलकिन्स ने।

प्रश्न 66.
मद्रास, कलकत्ता और बम्बई में कौनसे इलाके ब्रिटिश आबादी के रूप में जाने जाते थे?
उत्तर:
मद्रास, कलकत्ता और बम्बई में क्रमश: फोर्ट सेंट जार्ज, फोर्ट विलियम और फोर्ट इलाके ब्रिटिश आबादी के रूप में प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 67.
आजकल बम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता किन नामों से पुकारे जाते हैं?
उत्तर:
आजकल बम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता क्रमशः मुम्बई, चेन्नई तथा कोलकाता नाम से पुकारे जाते हैं।

प्रश्न 68.
पुर्तगालियों तथा डचों ने कब और कहाँ अपने व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की?
उत्तर:
पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी में तथा डचों ने 1605 में मछलीपट्नम में अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।

प्रश्न 69.
अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों ने कब और कहाँ व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये?
उत्तर:
अंग्रेजों ने 1639 में मद्रास में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी में अपने व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की।

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प्रश्न 70.
भारत के एक आधुनिक औद्योगिक देश न बनने का क्या कारण था?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की पक्षपातपूर्ण औपनिवेशिक नीति के कारण।

प्रश्न 71.
‘राइटर्स बिल्डिंग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राइटर्स बिल्डिंग कम्पनी का एक मुख्य प्रशासकीय कार्यालय था क्लर्क ‘राइटर्स’ कहलाते थे।

प्रश्न 72.
‘दि मार्बल पैलेस’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
किसी शहरी सम्भ्रान्त वर्ग के एक भारतीय परिवार ने कलकत्ता में दि मार्बल पैलेस नामक एक अत्यंत भव्य इमारत बनवाई थी।

प्रश्न 73.
अंग्रेजों के लिए ‘सिविल लाइन्स’ में किन इमारतों का निर्माण किया गया?
उत्तर:
चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदानों, चर्च आदि का निर्माण किया गया।

प्रश्न 74.
चितपुर बाजार कहाँ स्थित था?
उत्तर:
चितपुर बाजार कलकत्ता में ब्लैक टाउन और व्हाइट टाउन की सीमा पर स्थित था।

प्रश्न 75.
ब्लैक टाउन में भारतीयों द्वारा बनवाये गए मन्दिर को अंग्रेज क्या कहते थे?
उत्तर:
ब्लैक पगौडा।

प्रश्न 76.
‘व्हाइट टाउन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जिस शहरी इलाके में अंग्रेज (गोरे लोग ) रहते थे, वह ‘व्हाइट टाउन’ कहलाता था।

प्रश्न 77.
‘ब्लैक टाउन’ किसे कहते थे?
उत्तर:
जिस शहरी इलाके में भारतीय (काले लोग ) रहते थे, वह ‘ब्लैक टाउन’ कहलाता था।

प्रश्न 78.
प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने बम्बई में किस शैली में किस होटल का निर्माण करवाया था?
उत्तर:
गुजराती शैली में ताजमहल होटल का।

प्रश्न 79.
कस्बा और गंज में क्या अन्तर था?
उत्तर:
कस्बा ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को तथा गंज एक छोटे स्थानीय बाजार को कहा जाता था।

प्रश्न 80.
अंग्रेजों की नजर में ‘ब्लैक टाउन’ कैसे थे?
उत्तर:
अंग्रेजों की नजर में ‘ब्लैक टाउन’ अराजकता तथा हो-हल्ला के केन्द्र व गन्दगी और बीमारियों के स्त्रोत थे।

प्रश्न 81.
अंग्रेजों द्वारा हिल स्टेशनों की स्थापना किस उद्देश्य से की गई थी?
अथवा
अंग्रेजी शासन काल में पहाड़ी शहरों (हिल स्टेशनों) का विकास क्यों किया गया?
उत्तर:
हिल स्टेशन अंग्रेज सैनिकों को ठहराने, सीमाओं की चौकसी करने और शत्रु के विरुद्ध आक्रमण करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान थे।

प्रश्न 82.
किस गवर्नर जनरल ने अपनी काउंसिल कहाँ स्थानान्तरित की थी और कब?
उत्तर:
1864 में गवर्नर जनरल जान लारेन्स ने अपनी काउंसिल शिमला में स्थानान्तरित की थी।

प्रश्न 83.
मद्रास के नये ‘ब्लैक टाउन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नये ‘ब्लैक टाउन’ में भारतीय लोग रहते थे। यहाँ आड़ी-टेढ़ी संकरी गलियों में अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे।

प्रश्न 84.
लार्ड वेलेजली ने शहर में मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सरकार की जिम्मेदारियों का उल्लेख किसमें किया था?
उत्तर:
1803 में ‘कलकत्ता मिनट्स’ में

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प्रश्न 85.
अंग्रेज ‘बस्ती’ का प्रयोग किस रूप में ‘करते थे?
उत्तर:
गरीबों की कच्ची झोंपड़ियों के रूप में।

प्रश्न 86.
बम्बई अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र क्यों था?
उत्तर:
एक प्रमुख बन्दरगाह होने के नाते।

प्रश्न 87.
19वीं शताब्दी के अन्त तक भारत का आधा निर्यात तथा आयात किस शहर से होता था?
उत्तर:
बम्बई से

प्रश्न 88.
अम्बई से व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु कौनसी थी?
उत्तर:
अफीम

प्रश्न 89.
व्यापार की उन्नति के कारण कौनसा भारतीय शहर ‘भारत का सरताज शहर’ कहलाता था?
उत्तर:
बम्बई।

प्रश्न 90.
एशियाटिक सोसायटी ऑफ बाम्बे’ का कार्यालय कहाँ है?
उत्तर:
बम्बई के टाउनहाल में।

प्रश्न 91.
बम्बई की उस इमारत का नाम लिखिए जो ग्रीको-रोमन स्थापत्य शैली से प्रभावित है।
उत्तर:
एल्फिंस्टन सर्कल।

प्रश्न 92.
औपनिवेशिक शहरों में इमारतें बनाने के लिए कौनसी स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया गया?
उत्तर:
(1) नवशास्त्रीय
(2) नव-गॉथिक शैली
(3) इण्डो-सारसेनिक शैली।

प्रश्न 93.
नव-गॉथिक स्थापत्य शैली की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
ऊँची उठी हुई छलें, नोकदार मेहराबें, बारीक साज-सज्जा

प्रश्न 94.
इण्डो-सारसेनिक स्थापत्य शैली क्या थी?
उत्तर;
इण्डो-सारसेनिक स्थापत्य शैली में भारतीय और यूरोपीय दोनों शैलियों के तत्त्व थे।

प्रश्न 95.
चॉल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बम्बई में जगह की कमी एवं भीड़भाड़ के कारण एक विशेष प्रकार की इमारतें बनायी गयीं जिन्हें चॉल कहा गया।

प्रश्न 96.
स्थापत्य शैलियों से क्या पता चलता है? उत्तर-स्थापत्य शैलियों से अपने समय के सौन्दर्यात्मक आदशों एवं उनमें निहित विविधताओं का पता चलता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में स्थल आधारित साम्राज्यों का स्थान जल आधारित शक्तिशाली यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
18वीं शताब्दी के अन्त तक जल आधारित शक्तिशाली यूरोपीय साम्राज्यों ने प्रमुख स्थान प्राप्त कर लिया। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद की शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को निर्धारित करने लगीं। अब मद्रास, कोलकाता तथा मुम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह शहर नई आर्थिक राजधानियों के रूप में प्रकट हुए। ये औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र भी बन गए। अब नये भवनों और संस्थानों का विकास हुआ।

प्रश्न 2.
तर्क सहित सिद्ध कीजिये कि औपनिवेशिक शहरों का सामाजिक जीवन वर्तमान शहरों में भी दिखाई पड़ता है?
उत्तर;
औपनिवेशिक शहरों की भाँति वर्तमान शहरों में भी घोड़गाड़ी, ट्रामों, बसों का यातायात के साधनों के रूप में प्रयोग किया जाता है। उनहाल सार्वजनिक पार्क, रंगशाला, सिनेमाहाल आदि लोगों के मिलने-जुलने के स्थान हैं। वर्तमान शहरों में ‘मध्य वर्ग’ का काफी प्रभाव है। वर्तमान शहरों में स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, लाइब्रेरी आदि शिक्षा के केन्द्र बने हुए हैं। स्वियों में भी जागृति आई है।

प्रश्न 3.
‘चाल’ से आप क्या समझते हैं? इनकी विशेषता लिखिए।
उत्तर:
शहर में जगह की कमी और भीड़भाड़ के कारण बम्बई में एक खास तरह की इमारतें बनाई गई, जिन्हें ‘चाल’ का नाम दिया गया। ये इमारतें बहुमंजिला होती थीं, जिनमें एक-एक कमरे वाली आवासीय इकाइयाँ बनाई जाती थीं। इमारत के सारे कमरों के सामने एक खुला बरामदा या गलियारा होता था और बीच में दालान होता था। इस प्रकार की इमारतों में बहुत थोड़ी सी जगह में बहुत सारे परिवार रहते थे। सभी लोग एक-दूसरे के सुख- दुःख में भागीदार होते थे।

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प्रश्न 4.
अंग्रेजों ने भारत में भवन निर्माण के लिए यूरोपीय शैली को किस कारण चुना? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर:
(1) इसमें एक अनजान देश में जाना- पहचाना सा भू-दृश्य रचने की और उपनिवेश में घर जैसा अनुभव करने की अंग्रेजों की चाहत दिखाई पड़ती थी।
(2) अंग्रेजों को लगता था कि यूरोपीय शैली उनकी श्रेष्ठता, अधिकार और सत्ता का प्रतीक होगी।
(3) वे सोचते थे कि यूरोपीय ढंग की दिखने वाली इमारतों से औपनिवेशिक शासकों और भारतीय प्रजा के बीच फर्क और फासला साफ दिखने लगेगा।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों ने मद्रास (चेन्नई) के आसपास अपना वर्चस्व कैसे स्थापित किया?
उत्तर:
1611 में अंग्रेजों ने मछलीपट्नम में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। लेकिन जल्दी ही उन्होंने मद्रास को अपना केन्द्र बनाया, जिसका पट्टा वहाँ के जा ने 1639 में उन्हें दे दिया। राजा ने उन्हें उस स्थान की किलेबन्दी करने, सिक्के ढालने तथा प्रशासन की अनुमति दे दी। यहाँ पर अंग्रेजों ने अपनी फैक्ट्री के इर्द-गिर्द एक किला बनाया, जिसका नाम फोर्ट सेंट जार्ज रखा गया 1761 में फ्रांसीसियों की हार के बाद मद्रास और सुरक्षित हो गया।

प्रश्न 6.
दक्षिण भारत की परिस्थितियाँ अंग्रेजों के लिए अधिक अनुकूल थीं, क्यों? लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत में अंग्रेजों का मुकाबला किसी ताकतवर राज्य से नहीं हुआ 1665 में तालीकोटा के युद्ध के बाद विजयनगर साम्राज्य नष्ट-भ्रष्ट हो गया और उसके स्थान पर छोटे-छोटे राज्य स्थापित हो गये, जैसे- बीदर, बरार, गोलकुण्डा आदि। इन राज्यों को अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति के द्वारा डरा-धमका कर या लालच देकर अपने अधीन कर लिया। केवल मैसूर के राज्य से ही उन्हें टक्कर लेनी पड़ी।

प्रश्न 7.
नक्शे हमें क्या बताते हैं और क्या छिपाते है?
उत्तर:
1878 में भारत में सर्वे ऑफ इण्डिया का गठन किया गया। उस समय के नक्शों से हमें काफी जानकारी उपलब्ध होती है, साथ ही हमें अंग्रेजों की भेदभावपूर्ण सोच का भी पता लग जाता है। उदाहरण के लिए, नक्शे में गरीबों की बस्तियों को चिह्नित नहीं किया गया। इसका अर्थ यह लगाया गया कि नक्शे में रिक्त स्थान अन्य योजनाओं के लिए उपलब्ध हैं। जब इन योजनाओं को शुरू किया गया तो गरीबों की बस्तियों को वहाँ से हटा दिया गया।

प्रश्न 8.
औपनिवेशिक काल में ग्रामीण इलाकों एवं कस्बों के चरित्र में अन्तर बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण इलाकों एवं कस्बों के चरित्र में भिन्नता के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं-
(1) ग्रामीण इलाकों के लोग खेती, पशुपालन एवं जंगलों में संग्रहण द्वारा अपनी जीविका का निर्वाह करते हैं। इसके विपरीत कस्बों में शासक, व्यापारी, प्रशासक व शिल्पकार आदि रहते थे।
(2) कस्बों एवं शहरों की प्रायः किलेबन्दी की जाती थी। यह किलेबन्दी उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से अलग करती थी।
(3) कस्बों पर ग्रामीण जनता का प्रभुत्व रहता था। वे खेती से प्राप्त होने वाले करों एवं अधिशेष के आधार पर निर्भर रहते थे।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन दक्षिण भारत के शहरों की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) दक्षिण भारत के नगर मदुरई तथा कांचीपुरम प्रमुख केन्द्र थे।
(2) दक्षिण भारत के अनेक नगरों में बन्दरगाह होते थे।
(3) ये व्यापार के मुख्य केन्द्रों के कारण विकसित हुए थे।
(4) दक्षिण भारत के शहरों में धार्मिक उत्सव अत्यधिक धूम-धाम के साथ मनाए जाते थे।

प्रश्न 10.
कस्बा एवं गंज के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कस्बा – कस्बा ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को कहा जाता है जो सामान्यतः स्थानीय विशिष्ट वस्तुओं का केन्द्र होता है।
गंज-गंज एक छोटे स्थायी बाजार को कहा जाता है। कस्बा और गंज दोनों कपड़ा, फल, सब्जी एवं दुग्ध उत्पादों से सम्बन्ध थे। ये विशिष्ट परिवारों एवं सेना के लिए सामग्री उपलब्ध करवाते थे।

प्रश्न 11.
अमेरिका के गृहयुद्ध और स्वेज नहर के खुलने का भारत की आर्थिक गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
अमेरिकी गृह युद्ध ने भारत में ‘रैयत’ समुदाय के जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
सन् 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध शुरू होने के कारण वहाँ से कपास का निर्यात बन्द हो गया। इससे भारतीय कपास की माँग बढ़ी, जिसकी खेती मुख्य रूप से दक्कन में होती थी। 1869 में स्वेज नहर को व्यापार के लिए खोल दिया गया, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था के साथ-साथ बम्बई की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई। बम्बई की सरकार और भारतीय व्यापारियों ने बम्बई को ‘भारत का सरताज शहर’ घोषित कर दिया।

प्रश्न 12.
18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में औपनिवेशिक सरकार ने नगरों के लिए मानचित्र तैयार करने पर ध्यान क्यों दिया ?
अथवा
औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र तैयार करने पर विशेष ध्यान क्यों दिया?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार की मान्यता थी कि किसी शहर की बनावट और भूदृश्य को समझने के लिए मानचित्र आवश्यक होते हैं। इस जानकारी के आधार पर वे इलाके पर अधिक नियन्त्रण स्थापित कर सकते थे। शहरों के मानचित्रों से हमें उस स्थान पर पहाड़ियों, नदियों व हरियाली का पता चलता है। ये समस्त बातें रक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए योजना तैयार करने में बड़ी उपयोगी सिद्ध होती हैं। मकानों की सघनता, सड़कों की स्थिति आदि से इलाके की व्यावसायिक सम्भावनाओं की जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 13.
जनगणना से प्राप्त आँकड़ों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
(1) ये आँकड़े शहरीकरण का अध्ययन करने के लिए एक बहुमूल्य स्रोत हैं।
(2) बीमारियों से होने वाली मृत्युओं की सारणियों, आयु, लिंग, जाति व व्यवसाय के अनुसार लोगों को गिनने की व्यवस्था से संख्याओं का एक विशाल भण्डार मिलता है।
(3) जनगणना के माध्यम से आबादी के बारे में सामाजिक जानकारियों को सुगम्य आँकड़ों में बदला जा सकता था।

प्रश्न 14.
औपनिवेशिक भारत में जनगणना सम्बन्धी भ्रमों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) आबादी के विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए अलग-अलग श्रेणियाँ बनाई गई थीं। कई बार यह वर्गीकरण अतार्किक होता था।
(2) लोग जनगणना आयुक्तों को गलत जवाब दे देते थे।
(3) प्राय: लोग स्वयं भी जनगणना के कार्य में सहायता देने से इनकार कर देते थे। ऊँची जाति के लोग अपने परिवार की स्त्रियों के बारे में जानकारी देने से संकोच करते थे बीमारियों से सम्बन्धित आँकड़ों को कठिन था।
(4) मृत्यु दर तथा एकत्रित करना बहुत

प्रश्न 15.
” अठारहवीं शताब्दी में औपनिवेशिक शहर अंग्रेजों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रतिबिम्बित करते थे।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में राजनीतिक सत्ता और संरक्षण भारतीय शासकों के स्थान पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारियों के हाथों में आ गई दुभाषिए, बिचौलिए, व्यापारी और माल आपूर्तिकर्ता के रूप में काम करने वाले भारतीयों का भी इन नये शहरों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। नदी या समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों और घाटियों का विकास हुआ। समुद्र किनारे गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय, बीमा एजेंसियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना हुई।

प्रश्न 16.
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने शहरी इलाकों में ‘सिविल लाइन्स’ नामक इलाके क्यों विकसित किये?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज शासकों ने अनुभव किया कि अंग्रेजों को भारतीयों (देशियों) के खतरे से दूर, अधिक सुरक्षित व पृथक् बस्तियों में रहना चाहिए। अत: उन्होंने पुराने कस्बों के चारों ओर चरागाहों और खेतों को साफ कर ‘सिविल लाइन्स’ नामक नये शहरी इलाके विकसित किये। ‘सिविल लाइन्स’ में केवल गोरे लोगों को बसाया गया। चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदान, चर्च आदि से लैस छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल थीं।

प्रश्न 17.
हिल स्टेशनों की अंग्रेजों के लिए क्या उपयोगिता थी?
उत्तर:
(1) हिल स्टेशन अंग्रेज सैनिकों को ठहराने, सीमाओं की चौकसी करने और शत्रु के विरुद्ध आक्रमण करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान थे।
(2) हिल स्टेशनों की जलवायु अंग्रेजों के लिए स्वास्थ्यप्रद थी।
(3) यहाँ अंग्रेज सैनिक हैजा, मलेरिया आदि बीमारियों से मुक्त रह सकते थे।
(4) ये हिल स्टेशन सेनेटोरियम के रूप में भी विकसित किये गए थे। यहाँ सैनिकों को विश्राम करने एवं इलाज कराने के लिए भेजा जाता था।

प्रश्न 18.
“औपनिवेशिक शहरों में नये सामाजिक समूह बने तथा लोगों की पुरानी पहचानें महत्त्वपूर्ण नहीं रहीं।” व्याख्या कीजिये ।
अथवा
औपनिवेशिक शहरों में ‘मध्य वर्ग’ के विकास का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में औपनिवेशिक शहरों में समस्त वर्गों के लोग आने लगे शहरों में क्लकों, डॉक्टरों, इन्जीनियरों वकीलों, शिक्षकों तथा लेखाकारों की माँग बढ़ती जा रही थी। परिणामस्वरूप शहरों में ‘मध्य वर्ग’ का विकास हुआ। मध्य वर्ग के लोग सुशिक्षित थे तथा इनकी स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी तक अच्छी पहुँच थी। वे समाज और सरकार के बारे में समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और सार्वजनिक सभाओं में अपने विचार व्यक्त कर सकते थे।

प्रश्न 19.
इतिहासकारों को जनगणना जैसे स्रोतों का प्रयोग करते समय सावधानी क्यों रखनी चाहिए?
उत्तर:
इतिहासकारों को जनगणना जैसे स्रोतों का प्रयोग करते समय सावधानी इसलिए रखनी चाहिए क्योंकि जनगणना के आँकड़े भ्रामक भी हो सकते हैं। इन आँकड़ों का प्रयोग करने से पहले हमें इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि आँकड़े किसने इकट्ठा किए हैं तथा उन्हें क्यों व कैसे इकट्ठा किया गया था।

प्रश्न 20.
अंग्रेजों ने बंगाल में अपने शासन के शुरू से ही नगर नियोजन का कार्यभार अपने हाथों में क्यों लिया?
उत्तर- अंग्रेज व्यापारी नवाब सिराजुद्दौला की सम्प्रभुता से असन्तुष्ट थे। उसने उनसे माल गोदाम के रूप में प्रयोग किये जाने वाला छोटा किला छीन लिया था। प्लासी के युद्ध में विजय के उपरान्त अंग्रेजों ने कलकत्ता में ऐसा किला बनाने का निश्चय किया जिस पर आसानी से आक्रमण न किया जा सके।

प्रश्न 21.
नवाब सिराजुद्दौला ने कलकत्ता नगर पर हमला क्यों किया?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारी नवाब सिराजुद्दौला की सम्प्रभुता पर लगातार सवाल उठा रहे थे। वे न तो कस्टम ड्यूटी चुकाना चाहते थे और न ही उनके द्वारा तय की गई कारोबार की शर्तों पर काम करना चाहते थे। इसलिए नवाब सिराजुद्दौला ने 1756 ई. में कलकत्ता पर हमला करके अंग्रेजों द्वारा बनाए गए किले पर अपना अधिकार कर लिया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

प्रश्न 22.
अठारहवीं शताब्दी में शहरों में स्त्रियों में आई जागरूकता का रूढ़िवादी लोग विरोध क्यों करने लगे?
उत्तर:
रूढ़िवादियों को भय था कि यदि स्त्रियाँ पढ़ लिख गई, तो वे संसार में क्रान्ति ला देंगी तथा सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का आधार खतरे में पड़ जायेगा। कुछ महिला सुधारक भी स्त्रियों को माँ और पत्नी की परम्परागत भूमिकाओं में ही देखना चाहते थे। उनका कहना था फि स्त्रियों को पर की चारदीवारी के भीतर ही रहना चाहिए। वे परम्परागत पितृसत्तात्मक रीति-रिवाजों, कानूनों को परिवर्तित करने के प्रयासों से असन्तुष्ट थे।

प्रश्न 23.
‘नव-गॉथिक शैली’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
ऊँची उठी हुई छर्ने, नोकदार मेहराबें और बारीक साज-सज्जा ‘नव- गाँधिक शैली’ की विशेषताएँ थीं। बम्बई सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय, बम्बई उच्च न्यायालय आदि भव्य इमारतें समुद्र किनारे इसी शैली में बनाई गई। यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी के घंटाघर का निर्माण प्रेमचन्द रायचन्द के धन से किया गया था। इसका नाम उनकी माँ के नाम पर राजाबाई टावर रखा गया। परन्तु नव-गॉथिक शैली का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण विक्टोरिया टर्मिनस रेलवे स्टेशन है।

प्रश्न 24.
नवशास्त्रीय या नियोक्लासिकल स्थापत्य कला पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण नवशास्त्रीय स्थापत्य शैली की विशेषता थी। यह शैली मूल रूप से प्राचीन रोम की भवन निर्माण शैली से निकली थी। 1833 में बम्बई का टाउन हाल इसी शैली के अनुसार बनाया गया था। 1860 के दशक में अनेक व्यावसायिक इमारतों के समूह को ‘एल्फिन्स्टन सर्कल’ कहा जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर हार्निमान सर्कल रख दिया गया था। इसमें पहली मंजिल पर ढके हुए तोरणपथ का रचनात्मक ढंग से प्रयोग किया गया।

प्रश्न 25.
भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई और इसके क्या प्रभाव हुए?
अथवा
1853 में रेलवे के आरम्भ की शहरीकरण की प्रक्रिया में क्या भूमिका रही?
अथवा
1853 में रेलवे की स्थापना से किस प्रकार नगरों का भाग्य बदल गया? कोई दो परिवर्तन बताइये।
उत्तर:
(1) भारत में रेलवे की शुरुआत 1853 में हुई। अब आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र परम्परागत शहरों से दूर जाने लगा क्योंकि ये शहर पुराने मार्गों और नदियों के निकट थे।
(2) प्रत्येक रेलवे स्टेशन कच्चे माल का संग्रह केन्द्र और आयातित माल का वितरण केन्द्र बन गया था।
(3) रेलवे नेटवर्क के विस्तार के साथ रेलवे वर्कशाप, रेलवे कालोनियों भी बनने लगीं और जमालपुर, बरेली और वाल्टेयर जैसे रेलवे नगर अस्तित्व में आए।

प्रश्न 26.
अंग्रेजों ने ब्लैक टाउनों में सफाई व्यवस्था पर ज्यादा ध्यान कब व क्यों दिया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब ब्लैक टाउन (काले इलाके में हैजा और प्लेग जैसी महामारियाँ फैली और हजारों लोग मौत का शिकार हुए तब अंग्रेज अफसरों को स्वच्छता व सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा कठोर कदम उठाने पड़े। उनको इस बात का डर था कि कहीं ये बीमारियाँ ब्लैक टाउन से ह्वाइट टाउन में भी न फैल जायें। 1960-70 के दशकों से साफ-सफाई के बारे में कड़े प्रशासकीय उपाय लागू किए गए और भारतीय शहरों में निर्माण गतिविधियों पर अंकुश लगाया गया।

प्रश्न 27.
आमार कथा (मेरी कहानी ) क्या है और किसके द्वारा लिखी गई ?
अथवा
विनोदिनी दास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विनोदिनी दास बंगाली रंगमंच की एक प्रसिद्ध अदाकारा थीं। ‘स्टार थियेटर’, कलकत्ता की स्थापना ( 1883 ) के पीछे उनका मुख्य हाथ था 1910 से 1913 के बीच उन्होंने ‘आमार कथा’ के नाम से किस्तों में अपनी आत्मकथा लिखी। वे एक जबरदस्त व्यक्तित्व वाली महिला थीं। उन्होंने समाज में औरतों की समस्याओं पर केन्द्रित कई भूमिकाएँ निभाई। वे अभिनेत्री, संस्था निर्मात्री और लेखिका के रूप में कई भूमिकाएँ एक साथ निभाती

प्रश्न 28.
अंग्रेजों ने जहाँ पर भी किले बनाए, उनके चारों ओर खुले मैदान क्यों छोड़े और इसके पीछे क्या दलील दी ?
उत्तर:
अंग्रेजों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम के इर्द- गिर्द एक विशाल जगह खाली छोड़ दी। खाली मैदान रखने का उद्देश्य यह था कि किले की ओर बढ़ने वाली शत्रु की सेना पर किले से बेरोक-टोक गोलीबारी की जा सके। जब अंग्रेजों को कलकत्ता में अपनी उपस्थिति स्थायी दिखाई देने लगी, तो वे फोर्ट से बाहर मैदान के किनारे पर भी आवासीय इमारतें बनाने लगे।

प्रश्न 29.
“कलकत्ता के लिए जो पैटर्न तैयार किया गया था, उसे बहुत सारे शहरों में दोहराया गया।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज विद्रोहियों के गढ़ों को अपने लिए सुरक्षित बनाने लगे। उन्होंने दिल्ली में लाल किले पर अपना कब्जा करके वहाँ अपनी सेना तैनात कर दी। उन्होंने किले के पास बनी इमारतों को साफ करके भारतीय मोहल्लों और किले के बीच काफी फासला बना दिया। इसके पीछे उन्होंने यह दलील दी कि अगर . कभी शहर के लोग फिरंगी-राज के खिलाफ खड़े हो जाएँ तो उन पर गोली चलाने के लिए खुली जगह जरूरी थी।

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प्रश्न 30.
कलकत्ता नगर नियोजन में लाटरी कमेटी के कार्यों की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘लाटरी कमेटी’ क्या थी? इसकी कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1817 में कलकत्ता में एक कमेटी बनाई गई जो सरकार की मदद से नगर नियोजन का कार्य करती थी। यह कमेटी नगर सुधार के लिए धन की व्यवस्था जनता के बीच लाटरी बेचकर करती थी, इसलिए इसका नाम ‘लाटरी कमेटी’ पड़ा। लाटरी कमेटी ने एक नक्शा बनवाया, जिससे कलकत्ता शहर की एक सम्पूर्ण तस्वीर सामने आ सके। कमेटी की प्रमुख गतिविधियों में शहर के हिन्दुस्तानी आबादी वाले हिस्से में सड़क निर्माण और नदी के किनारे से अवैध कब्जे हटाना शामिल था।

प्रश्न 31.
औपनिवेशिक काल में कस्बों का स्वरूप गाँवों से भिन्न था फिर भी इनके बीच की पृथकता अनिश्चित होती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- औपनिवेशिक काल में लोग ग्रामीण इलाकों में खेती, जंगलों में संग्रहण या पशुपालन द्वारा जीवन निर्वाह करते थे। इसके विपरीत कस्बों में शिल्पकार, व्यापारी, प्रशासक एवं शासक रहते थे। कस्बों पर ग्रामीण जनता का प्रभुत्व रहता था तथा वे खेती से प्राप्त करों एवं अधिशेष के आधार पर फलते-फूलते थे प्रायः कस्बों व शहरों की किलेबन्दी की जाती थी जो उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से अलग करती थी फिर भी कस्बों एवं गाँवों के मध्य की पृथकता अनिश्चित होती थी।

किसान तीर्थयात्रा करने के लिए लम्बी दूरियाँ तय करते थे एवं कस्बों से होकर गुजरते थे। दूसरी ओर लोगों और माल का कस्बे से गाँवों की ओर गमन होता रहता था। व्यापारी और फेरीवाले कस्बों से माल गाँव ले जाकर बेचते थे इससे बाजारों का फैलाव और उपभोग की नई शैलियों का उदय होता था। इसके अतिरिक्त जब कस्बों पर आक्रमण होते थे तो लोग प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में शरण लेते थे।

प्रश्न 32.
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से शहरों का रूप परिवर्तन क्यों एवं किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से शहरों के रूप परिवर्तन का एक नया चरण प्रारम्भ हुआ। व्यापारिक गतिविधियों के अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने के कारण सत्रहवीं शताब्दी में विकसित हुए शहर- सूरत, मछलीपट्टनम व ढाका पतनोन्मुख हो गए। 1757 ई. में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों के मध्य हुए प्लासी के बुद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई। मद्रास, बम्बई व कलकत्ता ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन एवं सत्ता के केन्द्र भी बन गये। नए भवनों एवं संस्थानों का उदय हुआ एवं शहरी केन्द्रों को नए तरीके से पूर्णतः व्यवस्थित किया गया। इन शहरों में नये नये रोजगारों का सृजन हुआ, जिससे लोग इन शहरों में बसने लगे। लगभग 1800 ई. तक ये शहर जनसंख्या की दृष्टि से भारत के विशाल शहर बन गए।

प्रश्न 33.
प्रारम्भिक वर्षों में औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र बनाने पर विशेष ध्यान क्यों दिया?
उत्तर:
प्रारम्भिक वर्षों में औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कारणों से मानचित्र बनाने पर विशेष ध्यान दिया-
(i) सरकार का मानना था कि किसी स्थान की बनावट एवं भूदृश्य को समझने के लिए मानचित्र आवश्यक होते हैं। इस जानकारी के आधार पर वे शहरी प्रदेश पर नियन्त्रण बनाये रख सकते थे।

(ii) जब शहरों का विस्तार होने लगा तो न केवल उनके विकास की योजना तैयार करने के लिए बल्कि शहर को विकसित करने एवं अपनी सत्ता मजबूत बनाने के लिए भी मानचित्र बनाये जाने लगे।

(ii) शहरों के मानचित्रों से हमें उसकी पहाड़ियों, नदियों एवं हरियाली का पता चलता है। यह जानकारी रक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए योजना बनाने में बहुत काम आती

प्रश्न 34.
किन सरकारी नीतियों ने भारतीयों के भीतर उपनिवेशवाद विरोधी और राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा दिया?
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी में शहरों में सरकारी दखलन्दाजी और सख्त हो गई। इस आधार पर और अधिक तेजी से झुग्गी-झोंपड़ियों को हटाना शुरू किया गया। दूसरे इलाकों की अपेक्षा ब्रिटिश आबादी वाले हिस्सों को तेजी से विकसित किया जाने लगा। ‘स्वास्थ्यकर’ और ‘अस्वास्थ्यकर’ के नए विभेद के कारण ‘हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन वाले नस्ली विभाजन को और बल मिला। इन सरकारी नीतियों के विरुद्ध जनता के प्रतिरोध ने भारतीयों के भीतर उपनिवेशवाद विरोधी और राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा दिया।

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प्रश्न 35.
बम्बई स्थित होटल ताजमहल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बम्बई स्थित प्रसिद्ध होटल ताजमहल का निर्माण प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने करवाया था। यह परम्परागत गुजराती शैली में निर्मित है। यह इमारत न केवल भारतीय उद्यमशीलता का प्रतीक है अपितु अंग्रेजों के स्वामित्व एवं नियन्त्रण वाले नस्ली क्लबों और होटलों के लिए चुनौती भी थी।

प्रश्न 36.
फोर्ट सेण्ट जॉर्ज के विषय में आप क्या जानते हैं? क्या यह व्हाइट टाउन का केन्द्र बिन्दु था?
उत्तर:
मद्रास स्थित फोर्ट सेंट जॉर्ज औपनिवेशिक शासन का मुख्य केन्द्र था। यहाँ फोर्ट सेंट व्हाइट टाउन का केन्द्र था। यहाँ अधिकांशतः यूरोपीय रहते थे इसकी दीवारों तथा बुर्जों ने इसे एक खास प्रकार की घेराबन्दी का रूप दे दिया था। किले के भीतर रहने का निर्णय रंग तथा धर्म के आधार पर किया जाता था। भारतीयों के साथ कम्पनी के कर्मचारियों अथवा उनके परिवार के सदस्यों को विवाह की अनुमति नहीं थी। यूरोपीय ईसाई होने के कारण डच तथा पुर्तगालियों को वहाँ रहने की छूट थी। व्हाइट टाउन का केन्द्रबिन्दु इस किले का विकास गोरे विशेषकर अंग्रेजों की जरूरतों एवं सुविधाओं के अनुसार किया गया था।

प्रश्न 37.
लॉर्ड वेलेजली की नगर योजना के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
लॉर्ड वेलेजली 1798 ई. में बंगाल का गवर्नर जनरल बना। यह अपनी नगर योजना के लिये भी जाना जाता है। वेलेजली ने कलकत्ता में अपने लिये एक गवर्नमेण्ट
हाउस नाम का एक शानदार महल बनवाया था। यह भवन अंग्रेजी सत्ता का प्रतीक था। लॉर्ड वेलेजली कलकत्ता में आ जाने के पश्चात् यहाँ की भीड़-भाड़, अत्यधिक हरियाली, गंदे तालाब तथा साँध से परेशान हो गया। वेलेजली को इन सब तत्त्वों से चिढ़ थी तथा अंग्रेजों का यह भी विचार था कि भारत की उष्णकटिबन्धीय जलवायु बीमारियों तथा महामारियों के अधिक अनुकूल है अतः वेलेजली ने शहर को अधिक स्वास्थ्यपरक बनाने के लिए अधिक खुले स्थान रखने का निर्णय लिया। 1803 ई. में वेलेजली ने नगर नियोजन की आवश्यकता पर एक प्रशासकीय आदेश जारी किया। अतः कहा जा सकता है कि वेलेजली अपनी सहायक सन्धि के कारण जितना कुख्यात है उससे अधिक विख्यात वह स्वास्थ्यपरक नगर नियोजन के लिये है।

प्रश्न 38.
इमारतें और स्थापत्य शैलियाँ क्या बताती हैं?
उत्तर:
स्थापत्य शैलियों से अपने समय के सौन्दर्यात्मक आदर्शों और उनमें निहित विविधताओं का पता चलता है। इमारतें उन लोगों की सोच और नजर के बारे में भी बताती हैं जो उन्हें बना रहे थे इमारतों के जरिये सभी शासक अपनी ताकत को अभिव्यक्त करना चाहते थे। स्थापत्य शैलियों से केवल प्रचलित रुचियों का ही पता नहीं चलता, वे उनको बदलती भी हैं। वे नई शैलियों को लोकप्रियता प्रदान करती हैं और संस्कृति की रूपरेखा तय करती हैं।

प्रश्न 39.
‘बंगला’ भवन निर्माण शैली में किस बात का द्योतक है? इसकी रूपरेखा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंग्रेजों ने अपनी जरूरतों के मुताबिक भवन निर्माण में भारतीय शैलियों को भी अपना लिया था। ‘बंगला’ इसका स्पष्ट उदाहरण है बंगला बम्बई और पूरे देश में सरकारी अफसरों के लिए बनाए जाने वाला भवन था। औपनिवेशिक बंगला एक बड़ी जमीन पर बना होता था। इसमें परम्परागत ढलवाँ छत होती थी और चारों तरफ बरामदा होता था। बंगले के परिसर में घरेलू नौकरों के लिए अलग से क्वार्टर होते थे।

प्रश्न 40.
पूर्व औपनिवेशिक काल के शहरी केन्द्रों की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
(1) ये शहर जनसंख्या के केन्द्रीकरण, अपने विशाल भवनों तथा अपनी शाही शोभा और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे।
(2) मनसबदार और जागीरदार सामान्यतः इन शहरों में अपने आवास रखते थे।
(3) इन शहरी केन्द्रों में सम्राट और कुलीन वर्ग की ‘उपस्थिति के कारण, यहाँ शिल्पकार, राजकोष, सम्राट का किलेबन्द महल होता था तथा नगर एक दीवार से घिरा होता था।
(4) नगरों के भीतर उद्यान, मस्जिदें, मन्दिर, मकबरे, महाविद्यालय, बाजार तथा सराय स्थित होती थीं।

प्रश्न 41.
ब्रिटिश भारत में निर्मित भवनों में किन- किन स्थापत्य शैलियों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत में निर्मित भवनों में ‘नव-गॉधिक शैली’, ‘नवशास्त्रीय’ तथा ‘इण्डोसारसेनिक’ स्थापत्य शैलियों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। ऊँची उठी हुई छलें, नोकदार मेहरावें तथा बारीक साज-सज्जा नव-गॉथिक शैली की विशेषताएँ हैं। बड़े- बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण नवशास्त्रीय शैली की विशेषताएँ हैं, इण्डोसारसेनिक शैली गुम्बदों, छतरियों, मेहराबों से प्रभावित थी।

प्रश्न 42.
लॉटरी कमेटी क्या थी? इसके अन्तर्गत कलकत्ता के नगर नियोजन के लिए कौन-कौनसे कदम उठाए गए?
उत्तर:
गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली के पश्चात् नगर नियोजन का कार्य सरकार की सहायता से लॉटरी कमेटी ने जारी रखा। लॉटरी कमेटी का यह नाम इसलिए पड़ा कि यह कमेटी नगर सुधार के लिए पैसे की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर करती थी।
लॉटरी कमेटी द्वारा नगर नियोजन के लिए उठाए गए कदम –
(i) लॉटरी कमेटी ने कलकत्ता शहर का नया मानचित्र बनाया ताकि कलकत्ता को नया रूप दिया जा सके।
(ii) लॉटरी कमेटी की प्रमुख गतिविधियों में शहर में हिन्दुस्तानी जनसंख्या वाले भाग में सड़कें बनवाना एवं नदी किनारे से अवैध कब्जे हटाना सम्मिलित था।
(iii) कलकत्ता शहर के भारतीय हिस्से को साफ- सुथरा बनाने के लिए कमेटी ने बहुत सी झोंपड़ियों को साफ कर दिया एवं गरीब मजदूरों को वहाँ से बाहर निकाल दिया। उन्हें कलकत्ता के बाहरी किनारे पर निवास हेतु जगह दी गई।

प्रश्न 43.
कौन-कौनसी सरकारी नीतियों ने कलकत्ता में भारतीयों के भीतर उपनिवेशवाद विरोधी एवं राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा दिया?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के प्रारम्भ के साथ ही कलकत्ता शहर में सरकारी हस्तक्षेप बहुत अधिक सख्त हो चुका था। वित्त पोषण (फण्डिंग) सहित नगर नियोजन के समस्त आयामों को अंग्रेज सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। इस आधार पर और तीव्र गति से शुग्गी-झोंपड़ियों को हटाना प्रारम्भ किया गया। दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा ब्रिटिश आबादी वाले हिस्सों का तेजी से विकास किया जाने लगा। स्वास्थ्यकर एवं अस्वास्थ्यकर के नये विभेद के कारण व्हाइट और ब्लैक टाउन वाले नस्ली विभाजन को और बल मिला। कलकत्ता नगर निगम में मौजूद भारतीय प्रतिनिधियों ने शहर के यूरोपीय आबादी वाले क्षेत्रों के विकास पर आवश्यकता से अधिक ध्यान दिये जाने की आलोचना की। इन सरकारी नीतियों के विरुद्ध जनता के प्रतिरोध ने कलकत्ता में भारतीयों के भीतर उपनिवेशवाद विरोधी एवं राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा दिया।

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प्रश्न 44.
बम्बई का वाणिज्यिक शहर के रूप में किस प्रकार विकास हुआ? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी के अन्त तक भारत का आधार आयात तथा निर्यात वाणिज्य शहर बम्बई से होता था। इस समय व्यापार की मुख्य वस्तु अफीम तथा नील थी। यहाँ से ईस्ट इण्डिया कम्पनी चीन को अफीम का निर्यात किया करती थी। इस व्यापार से शुद्ध भारतीय पूँजीपति वर्ग का निर्माण हुआ। पारसी, मारवाड़ी, कोंकणी, मुसलमान, गुजराती, ईरानी, आर्मेनियाई, यहूदी, बोहरे तथा बनिये इत्यादि यहाँ के मुख्य व्यापारी वर्ग से सम्बन्धित थे 1869 ई. में स्वेज नहर को व्यापार के लिये खोला गया था इससे बम्बई के व्यापारिक सम्बन्ध शेष विश्व के साथ अत्यधिक मजबूत हुए। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक बम्बई में भारतीय व्यापारी कॉटन मिल जैसे नवीन उद्योगों में अत्यधिक धन का निवेश कर रहे थे।

प्रश्न 45
औपनिवेशिक शहरों में स्त्रियों के सामाजिक जीवन में आए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में महिलाओं के लिए नए अक्सर थे। वे पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं तथा पुस्तकों के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त कर रही थीं। सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ रही थी। वे नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका, रंगकर्मी और फिल्म कलाकार के रूप में शहरों के नये व्यवसायों में प्रविष्ट होने लगीं। परन्तु घर से निकलकर सार्वजनिक स्थानों में जाने वाली महिलाओं का सम्मान नहीं था।

प्रश्न 46.
मद्रास का कौनसा क्षेत्र व्हाइट टाउन कां केन्द्रक बन गया था?
उत्तर:
मद्रास में स्थित फोर्ट सेन्ट जार्ज व्हाइट टाउन .का केन्द्रक बन गया था। यहाँ अधिकतर यूरोपीय लोग रहते ‘थे। किले के अन्दर रहने का निर्णय रंग और धर्म के आधार पर किया जाता था। कम्पनी के लोगों को भारतीयों के साथ विवाह करने की अनुमति नहीं थी। संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी यूरोपीय लोग शासक थे और मद्रास शहर का विकास शहर में रहने वाले गोरे लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया जा रहा था।

प्रश्न 47.
मद्रास में स्थित ब्लैक टाउन का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मद्रास में ब्लैक टाउन किले के बाहर स्थित था। यहाँ आबादी को सीधी पंक्तियों में बसाया गया था। कुछ समय बाद उत्तर की दिशा में दूर जाकर एक नवा ब्लैक टाउन बसाया गया। इसमें भारतीय बुनकरों, कारीगरों, बिचौलियों, दुभाषियों को रखा गया। इसमें भारतीय लोग रहते थे। यहाँ मंदिर और बाजार के आस-पास आवासीय मकान बनाए गए थे। शहर के बीच से गुजरने वाली आड़ी-टेड़ी संकरी गलियों में अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे।

प्रश्न 48.
कोलकाता में नगर नियोजन को क्यों प्रोत्साहन दिया गया?
उत्तर:
कोलकाता में 1817 में हैजा फैल गया तथा 1896 में प्लेग ने शहर को अपनी चपेट में ले लिया। इस स्थिति में अंग्रेजों ने लोलकाता में नगर नियोजन पर बल दिया। घनी आबादी के इलाकों को अस्वच्छ माना जाता था। इसलिए कामकाजी लोगों की झोंपड़ियों तथा वस्तियों को वहाँ से हटा दिया गया। मजदूरों, फेरीवालों कारागरों और बेरोजगारों को दूर वाले इलाकों में ढकेल दिया गया। आग लगने की आशंका को ध्यान में रखते हुए फँस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया।

प्रश्न 49.
मुम्बई में यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण क्यों किया गया?
उत्तर:
(1) यूरोपीय शैली की इमारतों में भारत जैसे अपरिचित देश में जाना पहिचाना सा भू-दृश्य रचने की और उपनिवेश में भी पर जैसा महसूस करने की अंग्रेजों की आकांक्षा प्रकट होती थी।
(2) अंग्रेजों की मान्यता थी कि यूरोपीय शैली उनकी श्रेष्ठता, अधिकार और सत्ता का प्रतीक थी
(3) वे सोचते थे कि यूरोपीय शैली में निर्मित इमारतों से अंग्रेज शासकों और भारतीय लोगों के बीच अन्तर साफ दिखाई देगा।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक भारत के प्रमुख बन्दरगाहों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
औपनिवेशिक भारत के प्रमुख बन्दरगाह
(1) बन्दरगाहों की किलेबन्दी-अठारहवीं शताब्दी तक भारत में मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे। यहाँ जो बस्तियों बसों, वे चीजों के संग्रह के लिए बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन बस्तियों में अपने कारखाने अर्थात् वाणिज्यिक कार्यालय स्थापित किये। कम्पनी ने सुरक्षा के उद्देश्य से इन बस्तियों की किलाबन्दी की। मद्रास में फोर्ट सेन्ट जार्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और बम्बई में फोर्ट नामक किले बनाये गए।

(2) यूरोपीयों और भारतीयों के लिए अलग-अलग बस्तियों की व्यवस्था-यूरोपीय व्यापारी किलों के अन्दर रहते थे, जबकि भारतीय व्यापारी, कारीगर, कामगार आदि इन किलों के बाहर अलग बस्तियों में रहते थे। जिस बस्ती में यूरोपीय लोग रहते थे वह ‘व्हाइट टाउन’ (गोरा शहर ) तथा जिस बस्ती में भारतीय लोग रहते थे, वह ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) के नाम से पुकारे जाते थे।

(3 ) देहाती एवं दूरस्थ इलाकों का बन्दरगाहों से जुड़ना-उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में रेलवे के विकास ने इन शहरों को शेष भारत से जोड़ दिया। परिणामस्वरूप ऐसे देहाती तथा दूरस्थ इलाके भी इन बन्दरगाहों से जुड़ गए जहाँ से कच्चा माल तथा मजदूर आते थे।

(4) कारखानों की स्थापना- कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में कारखानों की स्थापना करना भी आसान था। इसका कारण यह था कि कच्चा माल निर्यात के लिए इन शहरों में आता था तथा यहाँ सस्ता श्रम उपलब्ध था। 1850 के दशक के बाद भारतीय व्यापारियों और उद्यमियों ने बम्बई में सूती कपड़े की मिलें स्थापित कीं। कलकत्ता के बाहरी इलाके में यूरोपियन लोगों ने जूट मिलों की स्थापना की। परन्तु इन शहरों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से फैक्टरी उत्पादन पर आधारित नहीं थी।

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(5) भारत का औद्योगिक देश न बन पाना 19वीं शताब्दी में भारत में केवल कानपुर तथा जमशेदपुर ही औद्योगिक शहर थे। कानपुर में चमड़े की चीजें तथा ऊनी और सूती कपड़े बनते थे, जबकि जमशेदपुर स्टील उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
भारत कभी भी एक आधुनिक औद्योगिक देश नहीं बन पाया क्योंकि ब्रिटिश सरकार की पक्षपातपूर्ण नीति ने भारत के औद्योगिक विकास को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया। यद्यपि कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास बड़े शहरों के रूप में तो विख्यात हुए, परन्तु इससे औपनिवेशिक भारत की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में कोई क्रान्तिकारी वृद्धि नहीं हुई।

प्रश्न 2.
सन् 1800 के पश्चात् हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। इसके लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शहरीकरण- ग्रामीण एवं कृषि करने वाले लोगों का गाँवों से शहरों की ओर अच्छे रोजगार अथवा काम की तलाश में पलायन करना या सामान्य गमनागमन शहरीकरण कहलाता है। यह कस्बों एवं शहरों में कुल जनसंख्या के बढ़ते हुए आनुपातिक सन्तुलन को भी इंगित करता है। कुल जनसंख्या में शहरी जनसंख्या के अनुपात से शहरीकरण के विकास की गति का मापन होता है 1800 ई. के पश्चात् हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। सम्पूर्ण उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों तक देश की कुल जनसंख्या में शहरी जनसंख्या का अनुपात लगभग स्थिर रहा। इसमें केवल 3 प्रतिशत को ही बढ़ोत्तरी हुई। सन् 1900 से 1940 के मध्य शहरी जनसंख्या 10 प्रतिशत बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई।

शहरीकरण की गति के स्थिर रहने के पीछे निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-
1. छोटे कस्बों के पास आर्थिक रूप से विकसित होने के पर्याप्त अवसर नहीं थे परन्तु दूसरी तरफ कलकत्ता, बम्बई और मद्रास का विस्तार तेजी से हुआ।
2. कलकता, अम्बई व मद्रास औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के केन्द्र होने के कारण भारतीय सूती कपड़े जैसे निर्यात होने वाले उत्पादों के संग्रहण केन्द्र थे। लेकिन इंग्लैण्ड में हुई औद्योगिक क्रान्ति के बाद इस प्रवाह की दिशा परिवर्तित हो गई। भारत से अब तैयार माल की अपेक्षा कच्चे माल का निर्यात होने लगा।

3. 1853 ई. में औपनिवेशिक सरकार ने भारत में रेलवे की शुरुआत की, इसने भारतीय शहरों को पूर्ण रूप से परिवर्तित कर दिया। प्रत्येक रेलवे स्टेशन कच्चे माल के संग्रह और आयातित वस्तुओं के वितरण का केन्द्र बन गया। उदाहरण के लिए गंगा के किनारे स्थित मिर्जापुर दक्कन से आने वाली कंपास एवं सूती वस्त्रों के संग्रह का केन्द्र था जो बम्बई तक जाने वाली रेलवे लाइन के निर्माण के पश्चात् अपनी पुरानी पहचान को खोने लगा था। भारत में रेलवे नेटवर्क के विस्तार के पश्चात् रेलवे वर्कशॉप्स और रेलवे कॉलोनियों की स्थापना होना भी प्रारम्भ हो गया। फलस्वरूप जमालपुर, बरेली व वाल्टेयर जैसे रेलवे नगरों का जन्म हुआ।

प्रश्न 3.
अंग्रेजों ने हिल स्टेशनों की स्थापना क्यों की थी?
अथवा
हिल स्टेशनों की अंग्रेजों के लिए क्या उपयोगिता थी?
उत्तर:
हिल स्टेशनों की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य हिल स्टेशनों की स्थापना और बसावट का सम्बन्ध सबसे पहले ब्रिटिश सेना की जरूरतों से था। सिमला (शिमला) की स्थापना गुरखा युद्ध (1815-16) के दौरान, माउंट आबू की स्थापना अंग्रेज-मराठा युद्ध (1818) के कारण की गई तथा दार्जिलिंग को 1835 में सिक्किम के राजाओं से छीना गया। ये हिल स्टेशन फौजियों को ठहराने, सरहद की चौकसी करने और दुश्मन के खिलाफ हमला बोलने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान थे।

हिल स्टेशनों की उपयोगिता-यूरोपियनों के लिए हिल स्टेशन अग्रलिखित कारणों से उपयोगी थे-
(1) स्वास्थ्यवर्द्धक तथा ठण्डी जलवायु-भारतीय पहाड़ों की मृदु और ठण्डी जलवायु को फायदे की चीज माना जाता था, खासतौर से अंग्रेज गर्मियों के मौसम को बीमारी पैदा करने वाला मानते थे। उन्हें गर्मियों के कारण हैजा व मलेरिया की सबसे ज्यादा आशंका रहती थी।

(2) सेना की सुरक्षा – सेना की भारी भरकम मौजूदगी के कारण ये स्थान पहाड़ियों में एक छावनी के रूप में बदल गये। हिल स्टेशनों को सेनीटोरियम के रूप में भी विकसित किया गया, जहाँ सिपाही विश्राम करने व इलाज कराने के लिए जाते थे।

(3) यूरोप की जलवायु से मिलती-जुलती जलवायु हिल स्टेशनों की जलवायु यूरोप की ठण्डी जलवायु से मिलती-जुलती थी, इसलिए नए शासकों को वहाँ की जलवायु बहुत पसन्द थी 1864 में वायसराय जॉन लारेंस ने अधिकृत रूप से अपनी काउंसिल शिमला में स्थापित कर दी और इस प्रकार गर्मी में राजधानियाँ बदलने के सिलसिले पर रोक लगा दी। शिमला भारतीय सेना के कमाण्डर इन चीफ का भी अधिकृत आवास बन गया।

(4) अंग्रेजों व यूरोपियन के लिए आदर्श स्थान -हिल स्टेशन ऐसे अंग्रेजों व यूरोपियन के लिए भी आदर्श स्थान थे। अलग-अलग मकानों के बाद एक-दूसरे से सटे विला और बागों के बीच कॉटेज बनाए जाते थे। एंग्लिकन चर्च और शैक्षणिक संस्थान आंग्ल आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते थे। सामाजिक दावत, चाय बैठक, पिकनिक, रात्रिभोज मेले, रेस और रंगमंच जैसी घटनाओं के रूप में यूरोपियों का सामाजिक जीवन भी एक खास किस्म का था।

(5) पर्वतीय सैरगाहें रेलवे के आने से पर्वतीय सैरगाहें बहुत तरह के लोगों की पहुँच में आ गई। उच्च व मध्यम वर्गीय लोग, महाराजा, वकील और व्यापारी सैर- सपाटे के लिए वहाँ जाने लये।

(6) औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण हिल स्टेशन औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे। पास के इलाकों में चाय और काफी के बागानों की स्थापना से मैदानी इलाकों से बड़ी संख्या में मजदूर वहाँ रोजगार हेतु आने लगे ।

प्रश्न 4.
कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) शहर के नगर नियोजन पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
अथवा
कलकत्ता नगर के विकास में अंग्रेजों की भूमिका का वर्णन कीजिये।
अथवा
औपनिवेशिक काल में कलकत्ता में नगर नियोजन के इतिहास की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये ।
उत्तर:
कलकत्ता में नगर नियोजन का विकास क्रम कलकत्ता में नगर नियोजन के विकास क्रम को अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) फोर्ट विलियम और मैदान का निर्माण तथा मैदान के किनारे आवासीय इमारतें बनाना- कलकत्ता को- सुतानाती, कोलकाता और गोविन्दपुर- इन तीन गाँवों को मिलाकर बनाया गया था। कम्पनी ने गोविन्दपुर गाँव की जमीन को साफ करने के लिए वहाँ के व्यापारियों और बुनकरों को हटवा दिया। फोर्ट विलियम के इर्द-गिर्द एक विशाल खाली जगह छोड़ दी गई, जिसे स्थानीय लोग मैदान या ‘गारेर मठ’ कहने लगे।

(2) गवर्नमेंट हाउस का निर्माण- 1798 में गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली ने कलकत्ता में अपने लिए ‘गवर्नमेंट हाउस’ के नाम से एक महल बनवाया। यह इमारत अंग्रेजी सत्ता का प्रतीक थी।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

(3) जन स्वास्थ्य की दृष्टि से नगर नियोजन की आवश्यकता पर बल वेलेजली ने हिन्दुस्तानी आबादी वाले भीड़भाड़ भरे गन्दे तालाबों और निकासी की खस्ता हालत को देखते हुए यह माना कि ऐसी अस्वास्थ्यकर बस्तियों से बीमारियाँ फैलती हैं। फलतः वेलेजली ने 1803 में नगर नियोजन की आवश्यकता पर एक प्रशासकीय आदेश जारी किया। बहुत सारे बाजारों, घाटों, कब्रिस्तानों और चर्मशोधन इकाइयों को हटा दिया गया। इस प्रकार ‘जन-स्वास्थ्य’ शहरों की सफाई और नगर नियोजन परियोजनाओं का मुख्य विचार बन गया।

(4) लॉटरी कमेटी द्वारा नगर नियोजन कार्य को गति प्रदान करना – वेलेजली के जाने के बाद नगर नियोजन का काम सरकार की मदद से लॉटरी कमेटी ने जारी रखा। लॉटरी कमेटी ने शहर का एक नक्शा बनवाया, जिससे कलकत्ता की पूरी तस्वीर सामने आ सके। इसके अतिरिक्त कमेटी ने शहर के हिन्दुस्तानी हिस्से में सड़क निर्माण कराया, नदी किनारे से ‘अवैध कब्जे हटाये तथा बहुत सारी झोंपड़ियों को साफ कर दिया और गरीब लोगों को वहाँ से हटाकर कलकत्ता के बाहरी किनारे पर जगह दी गई।

(5) महामारी की आशंका से नगर नियोजन कार्य में तीव्र गति – अगले कुछ दशकों में प्लेग, हैजा आदि महामारियों की आशंका से नगर नियोजन की अवधारणा को बल मिला। कलकत्ता को और अधिक स्वास्थ्यकर बनाने के लिए कामकाजी लोगों की झोंपड़ियों या बस्तियों को तेजी से हटाया गया और यहाँ के गरीब मजदूर वाशिंदों को पुनः दूर वाले इलाकों में ढकेल दिया गया। फूँस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया।

(6) नगर नियोजन के सारे आयामों को सरकार द्वारा अपने हाथ में लेना 19वीं सदी में और ज्यादा तेजी से झुग्गियों को हटाया गया तथा दूसरे इलाकों की कीमत पर ब्रिटिश आबादी वाले हिस्सों को तेजी से विकसित किया गया।

(7) ह्वाइट और ब्लैक टाउन वाले नस्ली विभाजन को बढ़ावा-‘ स्वास्थ्यकर’ और ‘अस्वास्थ्यकर’ के नये विभेद के सहारे ‘डाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन वाले नस्ली विभाजन को और बल मिला तथा शहर के यूरोपीय आबादी वाले इलाकों के विकास पर आवश्यकता से अधिक ध्यान दिया गया।

प्रश्न 5.
तर्क सहित सिद्ध कीजिए कि औपनिवेशिक शहरों का सामाजिक जीवन वर्तमान शहरों में भी दिखाई पड़ता है।
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों का सामाजिक जीवन वर्तमान शहरों में भी दिखाई देता है। इस बात के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत हैं-
(i) वर्गभेद – औपनिवेशिक शहरों में वर्गभेद स्पष्ट दिखाई देता था। एक ओर व्हाइट टाउन थे जहाँ गोरे लोग ही रह सकते थे दूसरी ओर ब्लैक टाउन में मात्र भारतीय ही रहते थे। व्हाइट टाउन में समस्त सुविधाएँ थीं, वहीं ब्लैक टाउन आवश्यक सुविधाओं एवं स्वच्छता से विहीन थे। यही स्थिति वर्तमान शहरों में देखने को मिल रही है। धनवान लोगों की कालोनियों में पर्याप्त नागरिक सुविधाएँ व स्वच्छता देखने को मिलती है।

(ii) यातायात के साधनों का विकास औपनिवेशिक शहरों में यातायात के साधनों का पर्याप्त विकास हुआ जिस कारण लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। वर्तमान शहरों में भी यही स्थिति देखने को मिलती है। लोग यातायात के साधनों के विकास के कारण शहर के केन्द्र से दूर जाकर बस रहे हैं।

(ii) मनोरंजन तथा मिलने-जुलने के नये सार्वजनिक स्थल औपनिवेशिक शहरों की तरह वर्तमान शहरों में टाउन हॉल सार्वजनिक पार्क, रंगशाला एवं सिनेमा हॉल जैसे सार्वजनिक स्थानों का निर्माण हुआ है, जिससे शहरों में लोगों को मिलने-जुलने तथा मनोरंजन के नये अवसर मिलने लगे हैं। शहरों में नये सामाजिक समूह बने हैं।

(iv) मध्यम वर्ग का विस्तार औपनिवेशिक शहरों की तरह वर्तमान में सभी वर्गों के लोग शहरों में आने लगे हैं। क्लकों, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, एकाउण्टेन्ट्स की माँग बढ़ने लगी है परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग बढ़ता जा रहा है। उनके पास स्कूल, कॉलेज तथा लाइब्रेरी जैसे नये शिक्षा केन्द्रों तक अच्छी पहुँच है।

(v) महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन औपनिवेशिक शहरों में महिलाओं के लिए नये अवसर थे। वर्तमान शहरों में भी महिलाओं के लिए नये अवसर मौजूद हैं। आज महिलाएँ घर की चारदीवारी से निकलकर समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के द्वारा स्वयं को अभिव्यक्त कर रही हैं।

(vi) मेहनतकश, गरीबों अथवा कामगारों में वृद्धि- औपनिवेशिक शहरों की तरह वर्तमान शहरों में भी ग्रामीण क्षेत्रों से लोग रोजगार की तलाश में लगातार शहरों की ओर आ रहे हैं।

प्रश्न 6.
मद्रास शहर के नगर नियोजन की विवेचना कीजिए।
अथवा
मद्रास में बसावट और पृथक्करण पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
स्थापना- अंग्रेज व्यापारियों ने 1639 में एक व्यापारिक चौकी मद्रासपट्म में स्थापित की फ्रेंच इंस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ प्रतिद्वंद्विता के कारण (1746- 63) अंग्रेजों को मद्रास की किलेबन्दी करनी पड़ी।
(1 ) फोर्ट सेंट जार्ज एवं हाइट टाउन का निर्माण- अंग्रेजों ने मद्रास में अपना किला बनाया जो ‘फोर्ट सेन्ट जार्ज’ कहलाता था। इसमें ज्यादातर यूरोपीय रहते थे। मद्रास शहर का विकास शहर में रहने वाले थोड़े से गोरों की जरूरतों और सुविधाओं के हिसाब से किया जा रहा।

(2) ब्लैक टाउन का विकास ब्लैक टाउन को किले के बाहर बसाया गया। इस आबादी को भी सीधी कतारों में बसाया गया जो कि औपनिवेशिक नगरों की खास विशेषता थी नये ब्लैक टाउन में बुनकरों, कारीगरों, बिचौलियों और दुभाषियों को बसाया गया, जो कम्पनी के व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। वहाँ मन्दिर और बाजार के आसपास रिहायशी मकान बनाए गए। आड़ी-टेढ़ी गलियों में अलग- अलग जातियों के मोहल्ले थे। चिन्ताद्रीपेठ इलाका केवल बुनकरों के लिए था। वाशरमेन पेठ में रंगसाज और धोबी रहते थे। दुबाश एजेन्ट और व्यापारी के रूप में कार्य करते थे, इसमें सम्पन्न लोग थे। ये लोग भारतीयों एवं यूरोपियनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।

(3) स्थानीय वाशिंदे व नौकरी-शुरू में कम्पनी में कार्य करने वालों में लगभग सारे वेल्लालार होते थे। वह एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी। ब्राह्मण भी इसी तरह के पदों के लिए जोर लगाने लगे। तेलुगू कोमाटी समुदाय एक शक्तिशाली व्यावसायिक समूह था पेरियार और बनियार गरीब कामगार वर्ग था माइलापुर और ट्रिप्लीकेन हिन्दू धार्मिक केन्द्र थे ट्रिप्लीकेन में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती थी सानधोम और वहाँ का चर्च रोमन कैथोलिक समुदाय का केन्द्र था।

(4) यूरोपीय लोगों द्वारा गार्डन हाउसेज का निर्माण- जैसे-जैसे अंग्रेजी सत्ता मजबूत होती गई, यूरोपीय निवासी किले के बाहर जाकर गार्डन हाउसेज का निर्माण करने लगे।

(5) सम्पन्न भारतीयों द्वारा उपशेहरी इलाकों का निर्माण धीरे-धीरे सम्पन्न भारतीय भी अंग्रेजों की तरह रहने लगे थे। परिणामस्वरूप मद्रास के इर्द-गिर्द स्थित गाँवों की जगह बहुत सारे नये उपशहरी इलाकों ने ले ली।

(6) गरीब लोगों का काम के नजदीक वाले गाँवों में निवास- गरीब लोग अपने काम की जगह से नजदीक पड़ने वाले गाँवों में बस गये। बढ़ते शहरीकरण के कारण इन गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के भीतर आ गए। इस तरह मद्रास एक अर्द्धग्रामीण-सा शहर दिखने लगा।

प्रश्न 7.
बम्बई एक आधुनिक नगर और भारत की वाणिज्यिक राजधानी कैसे बना? इस पर प्रकाश डालिए।
अथवा
बम्बई शहर के नगर नियोजन की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
मुम्बई का उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिये कि अंग्रेजों ने नगर नियोजन के माध्यम से अपने औपनिवेशिक सपने को कैसे पूरा किया?
अथवा
बम्बई नगर नियोजन तथा भवन निर्माण के मुख्य चरणों की व्याख्या कीजिये मुख्य रूप से नवशास्त्रीय ( नियोक्लासिकल) शैली में बनी इमारतों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
प्रारम्भ में बम्बई सात टापुओं का इलाका था। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, इन टापुओं को एक-दूसरे से जोड़ दिया गया और इन टापुओं के जुड़ने पर एक विशाल शहर अस्तित्व में आया।

(1) औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी अम्बई औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी थी। पश्चिमी तट पर एक प्रमुख बन्दरगाह होने के नाते यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था। 19वीं सदी के अन्त तक भारत का आधा आयात-निर्यात बम्बई से ही होता था। इस व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु अफीम थी। अफीम के व्यापार में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ भारतीय व्यापारी और बिचौलियों की भी प्रमुख भूमिका थी। इससे भारतीय पूँजीपति वर्ग का विकास हुआ। बाद में अमेरिकी गृहयुद्ध के कारण भारतीय कपास की बढ़ती माँग और बढ़ती कीमतों तथा स्वेज नहर के खुलने से बम्बई का वाणिज्यिक विकास हुआ और बम्बई को भारत का ‘सरताज शहर’ घोषित किया गया।

(2) विशाल इमारतें तथा उनका स्थापत्य अंग्रेजों ने अनेक भव्य और विशाल इमारतों का निर्माण कराया। इनकी स्थापत्य शैली यूरोपीय शैली पर आधारित थी। धीरे-धीरे भारतीयों ने भी यूरोपीय स्थापत्य शैली को अपना लिया। अंग्रेजों ने अनेक बंगले बनवाये।
(i) अंग्रेजों ने नव-गॉथिक शैली में इमारतों का निर्माण कराया। विक्टोरिया टर्मिनस रेलवे स्टेशन इस शैलीका बेहतरीन उदाहरण है। इसके अतिरिक्त बम्बई विश्वविद्यालय, सचिवालय और उच्च न्यायालय जैसी भव्य इमारतों का निर्माण कराया गया।
(ii) नवशास्त्रीय शैली में ‘एल्फिंस्टन सर्कल’ का निर्माण किया गया।
(iii) बीसवीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय और यूरोपीय 4 शैली को मिलाकर एक नयी शैली का विकास हुआ जो ‘इण्डोसारसेनिक’ कहलाती थी यह शैली गुम्बदों, छतरियों, जालियों और मेहराबों से प्रभावित थी गुजराती शैली में बने गेट वे ऑफ इण्डिया तथा होटल ताज प्रमुख इमारतें हैं।

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(3) चाल – बम्बई शहर में जगह की कमी तथा भीड़-भाड़ की वजह से विशेष प्रकार की इमारतें भी बनाई गई, जिन्हें ‘चाल’ कहा जाता था। ये बहुमंजिला इमारतें होती थीं, जिनमें एक-एक कमरेवाली आवासीय इकाइयाँ बनाई जाती थीं।

प्रश्न 8.
औपनिवेशिक काल में भारत में सार्वजनिक भवनों के निर्माण के लिए कौन-कौनसी स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया गया?
अथवा
ब्रिटिश काल में इण्डो-सारसेनिक स्थापत्य कला की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सार्वजनिक भवनों के लिए स्थापत्य शैलियाँ औपनिवेशिक काल में सार्वजनिक भवनों के लिए मोटे तौर पर तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया गया।
(1) नवशास्त्रीय या नियोक्लासिकल शैली-बड़े- बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण इस शैली की विशेषता थी। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए उसे खासतौर से अनुकूल माना जाता था। अंग्रेजों को लगता था कि जिस शैली में शाही रोम की भव्यता दिखाई देती थी, उसे शाही भारत के वैभव की अभिव्यक्ति के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि यह शैली मूल रूप से प्राचीन रोम की भवन निर्माण शैली से निकली थी और इसे यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान पुनर्जीवित, संशोधित और लोकप्रिय किया गया था।

इस स्थापत्य शैली के भूमध्यसागरीय उद्गम के कारण उसे उष्णकटिबंधीय मौसम के अनुकूल भी माना गया। 1833 में बम्बई का ‘टाउन हॉल’ इसी शैली के अनुसार बनाया गया था। 1860 में व्यावसायिक इमारतों के समूह को ‘एल्फिंस्टन सर्कल’ कहा जाता था। यह इमारत इटली की इमारतों से प्रेरित थी। इसमें पहली मंजिल पर ढँके हुए तोरण पथ का रचनात्मक ढंग से इस्तेमाल किया गया। दुकानदारों व पैदल चलने वालों को तेज धूप और बरसात से बचाने के लिए यह सुधार काफी उपयोगी था ।

(2) नव-गॉथिक शैली- एक अन्य स्थापत्य शैली जिसका काफी प्रयोग किया गया, वह थी- नव- गाँधिक शैली ऊँची उठी हुई छरों, नोकदार मेहराबें और बारीक साज-सज्जा इस शैली की खासियत थी। इस शैली की इमारतों का जन्म गिरजाघरों से हुआ था, जो मध्यकाल में यूरोप में काफी बनाए गए थे। 19वीं सदी के मध्य इंग्लैण्ड में इसे दुबारा अपनाया गया बम्बई सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय की इमारतें इसी शैली में बनाई गई नव-गॉथिक शैली का सबसे बेहतरीन उदाहरण ‘विक्टोरिया टर्मिनस’ है, जो ग्रेट इंडियन पेनिन्स्युलर रेलवे कम्पनी का स्टेशन और मुख्यालय हुआ करता था।

(3) इंडो-सारासेनिक शैली 20वीं सदी के प्रारम्भ में एक नयी मिश्रित स्थापत्य शैली विकसित हुई, जिसमें भारतीय और यूरोपीय, दोनों तरह की शैलियों के तत्व थे। इस शैली को ‘इंडो-सारासेनिक शैली’ का नाम दिया गया था। 1911 में बना ‘गेट वे ऑफ इण्डिया’ परम्परागत गुजराती शैली का प्रसिद्ध उदाहरण था उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने इसी शैली में ‘ताजमहल होटल’ बनवाया था। बम्बई के ज्यादातर ‘भारतीय’ इलाकों में सजावट एवं भवन निर्माण और साज-सज्जा में इसी शैली का बोलबाला था।

प्रश्न 9.
औपनिवेशिक भारत की स्थापत्य शैलियों से किन तथ्यों के बारे में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
औपनिवेशिक भारत की स्थापत्य शैलियों से विभिन्न तथ्यों की जानकारी
औपनिवेशिक भारत की स्थापत्य शैलियों से निम्नलिखित तथ्यों के बारे में जानकारी मिलती है-
(1) सौन्दर्यात्मक आदर्शों एवं उनमें निहित विविधताओं का बोध होना स्थापत्य शैलियों से अपने समय के सौन्दर्यात्मक आदर्शों और उनमें निहित विविधताओं का पता चलता है।

(2) भवन-निर्माताओं के दृष्टिकोण की प्रतीक ये इमारतें उन लोगों की सोच और दृष्टिकोण के बारे में भी बताती हैं, जो उन्हें बना रहे थे इमारतों के जरिये शासक अपनी ताकत का इजहार करना चाहते थे तथा इन इमारतों से उस समय की सत्ता को किस रूप में देखा जा रहा था, इसका भी ज्ञान होता है। इस प्रकार एक विशिष्ट युग की स्थापत्य शैली को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि उस समय सत्ता को किस तरह देखा जा रहा था।

(3) प्रचलित रुचियों की जानकारी एवं नवीन शैलियों को लोकप्रियता प्रदान करना- स्थापत्य शैलियों से प्रचलित रुचियों का तो पता लगता ही है, साथ ही संजीव पास बुक्स यह भी पता लगता है कि इन शैलियों ने उन रुचियों को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा संस्कृति की रूपरेखा तय की है, जैसे बहुत सारे भारतीय भी यूरोपीय स्थापत्य शैलियों को आधुनिकता व सभ्यता का प्रतीक मानते हुए उन्हें अपनाने लगे थे तथा बहुतों ने उनके आधुनिक तत्वों को स्थानीय परम्पराओं के तत्वों में समाहित कर दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त से हमें औपनिवेशिक आदर्शों से भिन्न क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय अभिरुचियों को परिभाषित करने के प्रयास दिखाई देते हैं। इस तरह स्थापत्य शैलियों को देखकर हम इस बात को भी समझ सकते हैं कि शाही और राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय और क्षेत्रीय के बीच सांस्कृतिक टकराव और राजनीतिक खींचतान किस तरह शक्ल ले रही थी।

प्रश्न 10.
औपनिवेशिक शासन किस प्रकार बेहिसाब आँकड़ों और जानकारियों के संग्रह पर आधारित था?
अथवा
औपनिवेशिक शहरों के अध्ययन में सहायक तत्त्वों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन में संग्रहित आँकड़े व जानकारियाँ ( औपनिवेशिक शहरों के अध्ययन में सहायक तत्त्व )
औपनिवेशिक शासन बेहिसाब आँकड़ों और जानकारियों के संग्रह पर आधारित था। यथा-
(1) व्यापारिक गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा रखना-अंग्रेजों ने अपने व्यावसायिक मामलों को चलाने के लिए व्यापारिक गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा रखा था। (2) शहरों का नियमित सर्वेक्षण तथा उनके सांख्यिकीय आँकड़े एकत्रित करना – वे बढ़ते शहरों में जीवन की गति और दिशा पर नजर रखने के लिए नियमित रूप से सर्वेक्षण करते थे। वे सांख्यिकीय आँकड़े इकट्ठा करते थे और विभिन्न प्रकार की सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित करते थे।

(3) मानचित्र तैयार करना- प्रारम्भिक वर्षों में ही औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र तैयार करने पर ध्यान दिया। उसका मानना था कि किसी जगह की बनावट और भू-दृश्य को समझने के लिए नक्शे जरूरी होते हैं। इस जानकारी के सहारे वे इलाके पर ज्यादा बेहतर नियंत्रण कायम कर सकते थे। जब शहर बढ़ने लगे तो न केवल उनकी विकास की योजना तैयार करने के लिए बल्कि व्यवसाय को विकसित करने और अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए भी नक्शे बनाये जाने लगे। शहरों के नक्शों से हमें उस स्थान पर पहाड़ियों, नदियों व हरियाली का पता चलता है। ये सारी चीजें रक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए योजना तैयार करने में बहुत काम आती हैं। इसके अतिरिक्त पाटों की जगहों, मकानों की समनता तथा गुणवत्ता तथा सड़कों की स्थिति आदि से इलाके की व्यावसायिक सम्भावनाओं का पता लगाने और कराधान की रणनीति बनाने में मदद मिलती थी।

(4) नगर निगमों की गतिविधियों से उत्पन्न रिकाईस – 19वीं सदी में शहरों के रख-रखाव के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए आंशिक लोक प्रतिनिधित्व से लैस नगर निगम जैसी संस्था की स्थापना की गई। नगर- निगमों की गतिविधियों से नए तरह के रिकार्ड्स पैदा हुए, जिन्हें नगरपालिका रिकार्ड रूम में सम्भाल कर रखा जाने
लगा।

(5) जनगणना आँकड़े शहरों के फैलाव पर नजर रखने के लिए नियमित रूप से लोगों की गिनती की जाती थी। 19वीं सदी के मध्य तक विभिन्न क्षेत्रों में कई जगह स्थानीय स्तर पर जनगणना की जा चुकी थी। अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 में किया गया। इसके बाद, 1881 से हर दस साल में जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई। भारत में शहरीकरण का अध्ययन करने के लिए जनगणना से निकले आँकड़े एक बहुमूल्य स्रोत हैं। इस प्रकार जनगणना, नगरपालिका जैसे संस्थानों के सर्वेक्षण, मानचित्रों और अन्य रिकार्डों के सहारे औपनिवेशिक शहरों का पुराने शहरों के मुकाबले ज्यादा विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है।

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प्रश्न 11.
औपनिवेशिक काल में भारत में जनगणना की प्रक्रिया में क्या भ्रम थे? जनगणनाओं के सावधानी से अध्ययन करने पर क्या दिलचस्प रुझान सामने आते हैं? उत्तर- औपनिवेशिक भारत में जनगणना से सम्बन्धित भ्रम यद्यपि भारत में शहरीकरण का अध्ययन करने के लिए जनगणना से निकले आँकड़े एक बहुमूल्य स्रोत हैं, तथापि इस प्रक्रिया में भी कई भ्रम थे यथा-

(1) वर्गीकरण सम्बन्धी भ्रम- जनगणना आयुक्तों ने आबादी के विभिन्न तबकों का वर्गीकरण करने के लिए अलग-अलग श्रेणियाँ बना दी थीं। कई बार यह वर्गीकरण निहायत अतार्किक होता था और लोगों की परिवर्तनशील तथा परस्पर काटती पहचानों को पूरी तरह नहीं पकड़ पाता था।

(2) स्वयं लोगों द्वारा सहयोग न करना- प्राय: लोग स्वयं भी इस प्रक्रिया में सहयोग करने से इनकार कर देते थे या जनगणना आयुक्तों को गलत जवाब दे देते थे। काफी समय तक वे जनगणना कार्यों को सन्देह की दृष्टि से देखते रहे। उन्हें लगता था कि सरकार नये टैक्स लागू करने के लिए जाँच करवा रही है।

(3) औरतों के बारे में जानकारी देने में हिचकिचाना – ऊँची जाति के लोग अपने घर की औरतों के बारे में पूरी जानकारी देने से हिचकिचाते थे। महिलाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे घर के भीतरी हिस्से में दुनिया से कट कर रहें। उनके बारे में सार्वजनिक जाँच को सही नहीं माना जाता था।

(4) पहचान सम्बन्धी दावों का भ्रामक होना- जनगणना अधिकारियों ने यह भी पाया कि बहुत सारे लोग ऐसी पहचानों का दावा करते थे जो ऊँची हैसियत की मानी जाती थीं। उदाहरण के लिए, शहरों में ऐसे लोग भी थे जो फेरी लगाते थे या काम न होने पर मजदूरी करने लगते थे। इस तरह के बहुत सारे लोग जनगणना कर्मचारियों के सामने स्वयं को प्रायः व्यापारी बताते थे क्योंकि उन्हें मजदूर की तुलना में व्यापारी ज्यादा सम्मानप्रद लगता था।

(5) मृत्युदर और बीमारियों से सम्बन्धित आँकड़ों को इकट्ठा करना लगभग असम्भव था मृत्यु दर और बीमारियों से सम्बन्धित आंकड़ों को इकट्ठा करना भी लगभग असम्भव था। बीमार पड़ने की जानकारी भी लोग प्रायः नहीं देते थे। बहुत बार इलाज भी गैर लाइसेंसी डॉक्टरों से करा लिया जाता था। ऐसे में बीमारी या मौत की घटनाओं का सटीक हिसाब लगाना सम्भव नहीं था। जनगणनाओं का सावधानी से अध्ययन करने पर कुछ दिलचस्प रुझान जनगणनाओं का सावधानी से अध्ययन करने पर निम्नलिखित दिलचस्प रुझान सामने आते हैं-

(1) सन् 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की रफ्तार धीमी रही। पूरी 19वीं सदी और 20वीं सदी के पहले दो दशकों तक देश की कुल आबादी में शहरी आबादी का हिस्सा बहुत मामूली तथा स्थिर रहा। यह लगभग 10 प्रतिशत रहा।
(2) 1900 से 1940 के बीच 40 सालों के दरमियान शहरी आबादी 10 प्रतिशत से बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई थी।
(3) नए व्यावसायिक एवं प्रशासनिक केन्द्रों के रूप में बम्बई, मद्रास और कलकत्ता शहर पनपे लेकिन दूसरे तत्कालीन शहर कमजोर भी हुए।

प्रश्न 5.
” भारत छोड़ो आन्दोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ गाँधीजी का तीसरा बड़ा आन्दोलन था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात् महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला किया। अगस्त, 1942 ई. में शुरू किए गए इस आन्दोलन को ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ के नाम से जाना गया। भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के कारण-
(i) अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति- सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। महात्मा गाँधी व जवाहरलाल नेहरू दोनों ही हिटलर व नात्सियों के आलोचक थे। तदनुरूप उन्होंने फैसला किया कि यदि अंग्रेज बुद्ध समाप्त होने के पश्चात् भारत को स्वतन्त्रता देने पर सहमत हों तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में सहायता दे सकती है। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इस घटनाक्रम ने अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित किया।

(ii) क्रिप्स मिशन की असफलता द्वितीय विश्व युद्ध में कांग्रेस व गाँधीजी का समर्थन प्राप्त करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल ने अपने एक मन्त्री सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। क्रिप्स के साथ वार्ता में कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि यदि धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन कांग्रेस का समर्थन चाहता है तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद् में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए। इसी बात पर वार्ता टूट गयी। क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात् गाँधीजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने का फैसला किया। भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ-9 अगस्त, 1942 ई. को गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हो गया।

अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया तथा सभाओं, जुलूसों व समाचार-पत्रों पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए गए। इसके बावजूद देशभर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों एवं तोड़फोड़ की कार्यवाहियों के माध्यम से आन्दोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत होकर अपनी गतिविधियों को चलाते रहे। आन्दोलन का अन्त-अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति कठोर रवैया अपनाया फिर भी इस विद्रोह का दमन करने में साल भर से अधिक समय लग गया।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत की सबसे बड़ी नदी कौन-सी है?
(A) यमुना
(B) गंगा
(C) ब्रह्मपुत्र
(D) गोदावरी।
उत्तर:
(B) गंगा।

2. वृक्ष की शाखाओं के समान कौन-सा जल प्रवाह है?
(A) केन्द्रभिमुख
(B) आरीय
(C) द्रुमाकृतिक
(D) जालीनुमा।
उत्तर:
(C) द्रुमाकृतिक।

3. गंगा तथा यमुना का संगम स्थान कहां है?
(A) कानपुर
(B) वाराणसी
(C) पटना
(D) इलाहाबाद।
उत्तर:
(D) इलाहाबाद।

4. सुन्दर वन डेल्टा किन नदियों द्वारा बनता है?
(A) गंगा
(B) कावेरी
(C) गोदावरी
(D) नर्मदा।
उत्तर:
(A) गंगा।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

5. ट्रांस – हिमालयाई नदी कौन-सी है?
(A) गंगा
(B) चम्बल
(C) सतलुज
(D) ब्यास।
उत्तर:
(C) सतलुज।

6. प्रायद्वीपीय भारत की नदियां कहां से निकलती हैं?
(A) विन्ध्याचल
(B) पश्चिमी घाट
(C) पूर्वी घाट
(D) सतपुड़ा।
उत्तर:
(B) पश्चिमी घाट

7. किस नदी को दक्षिण की गंगा कहते हैं?
(A) महानदी
(B) गोदावरी
(C) कृष्णा
(D) कावेरी ।
उत्तर:
(B) गोदावरी।

8. किस नदी पर शिव समुद्रम जलप्रपात स्थित है?
(A) महानदी
(B) गोदावरी
(C) कावेरी
(D) नर्मदा।
उत्तर:
(C) कावेरी।

9. उड़ीसा राज्य में कौन-सी झील स्थित है?
(A) चिल्का
(B) सांभर
(C) वैवनाद
(D) कोलेरु।
उत्तर:
(A) चिल्का।

10. नर्मदा नदी का उद्गम कहां है ?
(A) सतपुड़ा
(B) अमरकण्टक
(C) ब्रह्मगिरि
(D) गोबिन्दसागर।
उत्तर:
(B) अमरकण्टक।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

11. प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी है
(A) नर्मदा
(B) गोदावरी
(C) कृष्णा
(D) महानदी।
उत्तर:
(B) गोदावरी।

12. कौन-सी नदी दरार घाटी में बहती है?
(A) दामोदर
(B) कृष्णा
(C) तुंगभद्रा
(D) तापी।
उत्तर:
(D) तापी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के दो जल-प्रवाह तन्त्र बताएं।
उत्तर:
हिमालय नदियां तथा प्रायद्वीपीय नदियां ।

प्रश्न 2.
सिन्धु नदी का कुल बेसिन क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर:
1,165,000 वर्ग किलोमीटर

प्रश्न 3.
दरार घाटियों में बहने वाली दो नदियों के नाम लिखो।
उत्तर:
नर्मदा, ताप्ती।

प्रश्न 4.
प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य विभाजक का नाम लिखो।
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

प्रश्न 5.
उत्तरी भारत तथा प्रायद्वीपीय नदियों के मध्य जल विभाजन का नाम बताएं।
उत्तर:
विंध्या – सतपुड़ा श्रेणी।

प्रश्न 6.
सिन्धु नदी का उद्गम बताएं।
उत्तर:
मानसरोवर झील (तिब्बत)।

प्रश्न 7.
सिन्धु नदी की कुल लम्बाई कितनी है?
उत्तर:
2880 किलोमीटर।

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प्रश्न 8.
गंगा की सहायक नदी का नाम बताओ जो दक्षिण से मिलती है।
उत्तर:
सोन नदी।

प्रश्न 9.
एक ट्रांस हिमालयी नदी का नाम बताएं जो सिन्धु नदी की सहायक नदी है।
उत्तर:
सतलुज।

प्रश्न 10.
भारतीय पठार की नदी का नाम लिखो जो अरब सागर की ओर बहती है।
उत्तर:
नर्मदा तथा ताप्ती।

प्रश्न 11.
प्रायद्वीपीय भारत की एक नदी बताओ जो ज्वारनदमुख बनाती है।
उत्तर:
नर्मदा।

प्रश्न 12.
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी का नाम लिखो।
उत्तर:
गोदावरी

प्रश्न 13.
कृष्णा नदी का स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
महाबलेश्वर।

प्रश्न 14.
भारत में गंगा नदी का कुल कितना बेसिन क्षेत्रफल है?
उत्तर:
8,61,404 वर्ग किलोमीटर

प्रश्न 15.
बांग्लादेश में गंगा नदी को क्या नाम दिया गया है?
उत्तर:
पदमा।

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प्रश्न 16.
उन नदियों के नाम लिखो जो हिमालय नदी तंत्र बनाती हैं?
उत्तर:
सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र।

प्रश्न 17.
प्रायद्वीपीय भारत की बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के नाम लिखो।
उत्तर:
महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 18.
एक ट्रांस हिमालय नदी का नाम लिखो।
उत्तर:
सतलुज।

प्रश्न 19.
पूर्ववर्ती जल प्रवाह की एक नदी का नाम लिखें।
उत्तर:
सिन्धु।

प्रश्न 20.
प्राचीन समय में कौन-सी नदी पंजाब से असम की ओर बहती थी?
उत्तर:
सिन्ध – ब्रह्म नदी।

प्रश्न 21.
जेहलम नदी का स्रोत बताएं।
उत्तर:
बुल्लर झील।

प्रश्न 22.
गंगा नदी द्वारा निर्मित डेल्टे का नाम लिखो।
उत्तर:
सुन्दरवन।

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प्रश्न 23.
किस नदी को तिब्बत में सांग- पो कहा जाता है?
उत्तर:
ब्रह्मपुत्र नदी।

प्रश्न 24.
किस नदी को दक्षिण की गंगा कहते हैं?
उत्तर:
कावेरी

प्रश्न 25.
जबलपुर के निकट नर्मदा नदी कौन-सा जल प्रवाह बनाती है?
उत्तर:
मार्बल रॉक।

प्रश्न 26.
प्राचीन समय में हरियाणा के शुष्क क्षेत्र में बहने वाली नदी का नाम लिखो।
उत्तर:
सरस्वती।

प्रश्न 27.
जोग जल प्रपात कहां पर स्थित है?
उत्तर:
शरबती नदी पर (कर्नाटक)।

प्रश्न 28.
अरावली से निकलने वाली नदी का नाम लिखो।
उत्तर:
साबरमती।

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प्रश्न 29.
खम्बात की खाड़ी में गिरने वाली नदी का नाम लिखो।
उत्तर:
माही।

प्रश्न 30.
नदियों के चार प्रमुख अपवाह प्रारूप बताओ।
उत्तर:

  1. वृक्षाकार
  2. अपकेन्द्रीय
  3. जालीनुमा
  4. अभिकेन्द्रीय।

प्रश्न 31.
जल ग्रहण क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ से विशाल नदी जल बहा कर लाती है।

प्रश्न 32.
जलविभाजक किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो अपवाह द्रोणियों को अलग करने वाली सीमा।

प्रश्न 33.
अरब सागर तथा खाड़ी बंगाल में भारत की नदियों का कितने-कितने % जल गिरता है?
उत्तर:
अरब सागर – 23%,
खाड़ी बंगाल – 73%.

प्रश्न 34.
20000 वर्ग कि० मी० से अधिक अपवाह क्षेत्र वाली नदियों के नाम लिखो।
उत्तर:
गंगा, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, तापी, नर्मदा, माही, पेन्नार, साबरमती, बारांक

प्रश्न 35.
ब्रह्मपुत्र नदी को बंगला देश में किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
मेघना।

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प्रश्न 36.
बंगला देश में गंगा को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पदमा।

प्रश्न 37.
किस नदी को बिहार का शोक कहा जाता है?
उत्तर:
कोसी।

प्रश्न 38.
प्रायद्वीपीय भारत का सबसे बड़ा नदी तन्त्र कौन-सा है?
उत्तर:
गोदावरी।

स्मरणीय तथ्य (Points to Remember)

  • उत्तरी भारत की नदियां:
    1. सिन्धु
    2. सतलुज
    3. ब्यास
    4. रावी
    5. चेनाव
    6. जेहलम
    7. गंगा
    8. यमुना
    9. घाघरा
    10. गण्डक
    11. कोसी
    12.  ब्रह्मपुत्र
  • दक्षिणी भारत की नदियां:
    1. नर्मदा
    2. ताप्ती
    3. महानदी
    4. गोदावरी
    5. कृष्णा
    6. कावेरी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अपवाह किसे कहते हैं?
उत्तर:
निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
अपवाह तन्त्र की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
अपवाह तन्त्र- निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल-प्रवाह के जाल को अपवाह तन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपवाह तन्त्र को प्रभावित करने वाले कारक बताइये।
उत्तर:
किसी क्षेत्र का अपवाह तन्त्र उस क्षेत्र की भूवैज्ञानिक समयाविधि, चट्टानों की प्रकृति एवं संरचना, स्थलाकृति, ढाल, प्रवाहित जल की मात्रा तथा बहाव की अवधि का परिणाम है।

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प्रश्न 4.
वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह अपवाह प्रतिरूप जो कि पेड़ की शाखाओं के अनुरूप होता है उसे वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 5.
अरीय अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जब नदियां किसी पर्वत से निकल कर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो इसे अरीय अपवाह प्रतिरूप के नाम से जाना जाता है। अमरकंटक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदियां इस अपवाह प्रतिरूप का अनुसरण करती हैं।

प्रश्न 6.
जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब मुख्य नदियां एक-दूसरे के समानान्तर प्रवाहित होती हों तथा सहायक नदियां उनसे समकोण पर मिलती हों तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप हों तो ऐसे अपवाह को जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप कहते हैं।

प्रश्न 7.
उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों को कितने वर्गों में बांटा जाता है?
उत्तर:
भारत का जल प्रवाह देश की भू-संरचना पर निर्भर करता है। इस आधार पर देश की नदियों को दो वर्गों में बांटा जाता है।

  1. हिमालय की नदियां
  2. प्रायद्वीपीय नदियां।

प्रश्न 8.
हिमालय के तीन प्रमुख नदी तन्त्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिमालय की नदियों का विकास एक लम्बे समय में हुआ है। हिमालय की नदियों को तीन मुख्य तन्त्रों (System) में बांटा जाता है।

  1. सिन्धु तन्त्र (Indus System)
  2. गंगा तन्त्र (Ganges System)
  3.  ब्रह्मपुत्र तन्त्र (Brahmaputra System)।

प्रश्न 9.
गार्ज ( महाखंड ) क्या है? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पर्वतीय भागों में बहुत गहरे तथा तंग नदी मार्गों को गार्ज कहते हैं। इसे महाखंड भी कहा जाता है। इसके किनारे खड़ी ढाल वाले होते हैं तथा लगातार ऊपर उठते रहते हैं। इसका तल लगातार गहरा होता जाता है। हिमालय पर्वत में ऐसे कई गार्ज मिलते हैं।
जैसे – सिन्धु, सतलुज, गार्ज, ब्रह्मपुत्र ( दिहांग ) गार्ज।

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प्रश्न 10.
गंगा की दो शीर्ष नदियों (Head Streams) के नाम बताइए जो देव प्रयाग में मिलती हैं।
उत्तर:
गंगा नदी उत्तर प्रदेश के हिमालयी क्षेत्र से निकलती है तथा दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है। देव प्रयाग में इसमें दो शीर्ष नदियां – अलकनन्दा और भागीरथी आ कर मिलती हैं। इसके बाद इनका नाम गंगा पड़ता है

प्रश्न 11.
प्रायद्वीप भारत की प्रमुख नदियों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रायद्वीप की कुछ नदियां पूर्व की ओर बहती हुई खाड़ी बंगाल में गिरती हैं। इनमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेनार महत्त्वपूर्ण नदियां हैं। कुछ नदियां पश्चिम की ओर बह कर अरब सागर में गिरती हैं। इसमें नर्मदा, ताप्ती प्रमुख नदियां हैं।

प्रश्न 12.
डेल्टा किसे कहते हैं? भारत से चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
नदियों के मुहाने पर तलछट के निक्षेप से एक त्रिभुजाकार स्थल रूप बनता है जिसे डेल्टा कहते हैं। डेल्टा नदी के अन्तिम भाग में अपने भार के निक्षेप से बनने वाला भू-आकार है। यह एक उपजाऊ समतल प्रदेश होता है। भारत में चार प्रसिद्ध डेल्टा इस प्रकार हैं:

  1. गंगा नदी का डेल्टा
  2. कृष्णा नदी का डेल्टा
  3. महानदी का डेल्टा
  4. कावेरी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 13.
गोदावरी को वृद्ध गंगा या दक्षिण गंगा क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
गोदावरी नदी प्रायद्वीप की सबसे बड़ी नदी है। इसका एक विशाल अपवहन क्षेत्र है जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा तथा आन्ध्र प्रदेश में फैला हुआ है। विशाल आकार और विस्तार के कारण इसकी तुलना गंगा नदी से की जाती है। जिस प्रकार उत्तरी भारत में गंगा नदी महत्त्वपूर्ण है उसी प्रकार दक्षिणी भारत में गोदावरी नदी का महत्त्व है। गंगा नदी की तरह इसकी भी अनेक सहायक नदियां हैं।

प्रश्न 14.
पश्चिमी तट पर नदियां डेल्टा क्यों नहीं बनाती हैं जबकि वे बड़ी मात्रा में तलछट बहा कर लाती हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती प्रमुख नदियां हैं। ये नदियां काफ़ी मात्रा में तलछट बहा कर ले जाती हैं। परन्तु ये डेल्टा नहीं बनातीं। इस तट पर मैदान की चौड़ाई बहुत कम है। प्रदेश की तीव्र ढाल है। नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं। इसलिए तलछट का निक्षेप नहीं होता । संकरे मैदान के कारण नदियों के अन्तिम भाग की लम्बाई कम है जिससे डेल्टे का निर्माण नहीं होता।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रायद्वीपीय भारत की पूर्व तथा पश्चिम की अोर बहने वाली नदियों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

पूर्व की ओर बहने वाली नदियां पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां
(1) महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं। (1) नर्मदा तथा ताप्ती नदियां पश्चिम की ओर बहती हैं।
(2) ये नदियां डेल्टा बनाती हैं। (2) ये नदियां डेल्टा नहीं बनाती हैं।
(3) ये नदियां खाड़ी बंगाल में गिरती हैं। (3) ये नदियां अरब सागर में गिरती हैं

प्रश्न 2.
पूर्ववर्ती अपवाह तथा अनुवर्ती अपवाह में अन्तर बताओ।
उत्तर:

पूर्ववर्ती अपवाह (Antecedent Drainage) (1) किसी क्षेत्र में उत्थान के पश्चात् नवीन ढाल के अनुसार बहने वाली अपवाह को अनुवर्ती अपवाह कहते हैं।
(1) किसी क्षेत्र में जब नदी उत्थान से पूर्व के ढाल के अनुसार मूल दिशा में बहती रहती है तो उसे पूर्ववर्ती अपवाह कहते हैं। (2) ये नदियां उत्थान के पश्चात् जन्म लेती हैं।
(2) ये नदियां उन मोड़दार पर्वतों की अपेक्षा पुरानी होती हैं जिन पर ये बहती हैं। (3) ये नदियां गार्ज नहीं बनातीं।
(3) ये नदियां गहरे गार्ज बनाती हैं। (4) दक्षिणी पठार की पूर्व की ओर बहने वाली नदियां अनुवर्ती नदियां हैं।
(4) ट्रांस हिमालयी नदियां सिन्धु- सतलुज पूर्ववर्ती अपवाह के उदाहरण हैं। (1) किसी क्षेत्र में उत्थान के पश्चात् नवीन ढाल के अनुसार बहने वाली अपवाह को अनुवर्ती अपवाह कहते हैं।

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प्रश्न 3.
हिमालय एवं प्रायद्वीपीय पठार की नदियों के मध्य अपवाह लक्षणों एवं जलीय विशेषताओं में कौन- सी महत्त्वपूर्ण भिन्नताएं हैं? अपने उत्तर की पुष्टि उपयुक्त उदाहरण देते हुए कीजिए।
उत्तर:

हिमालय की नदियां प्रायद्वीप की नदियां
(1) हिमालय की नदियां अधिक लम्बी हैं। (1) प्रायद्वीप की नदियां इतनी अधिक लम्बी नहीं हैं।
(2) हिमालय की नदियों की संख्या अधिक है। (2) प्रायद्वीप की नदियों की संख्या कम है।
(3) हिमालय की नदियों के बेसिन काफ़ी बड़े हैं तथा अपवहन-क्षेत्र बहुत बड़े हैं। (3) प्रायद्वीप की नदियों के बेसिन तथा अपवहन-क्षेत्र छोटे हैं।
(4) हिमालय की नदियों के जल के दो स्रोत हैं-वर्षा तथा हिमनदियों से पिघलता हुआ जल। इसलिए ये बारहमासी नदियां हैं। (4) प्रायद्वीप की नदियां मुख्यतया वर्षा पर निर्भर करती हैं इसलिए ये मानसूनी नदियां हैं।
(5) हिमालय की नदियां गहरे गार्ज बनाती हैं। (5) प्रायद्वीप नदियां उथली घाटियों में बहती हैं।
(6) हिमालय की नदियां गहरे विसर्प बनाती हैं तथा मार्ग भी बदल लेती हैं। (6) प्रायद्वीप की नदियों का मार्ग सीधा होता है।
(7) हिमालय की नदियां पूर्ववर्ती नदियां हैं। (7) प्रायद्वीप की नदियां अनुवर्ती नदियां हैं।
(8) हिमालय की नदियां जहाज़रानी तथा सिंचाई के अनुकूल हैं। (8) प्रायद्वीप की नदियां जहाज़रानी और जल सिंचाई के अनुकूल नहीं हैं।
(9) ये नदियां जलोढ़ आधार के कारण घाटी के अपरदन में लगी हुई हैं। (9) ये नदियां दृढ़ आधार के कारण अधिक अपरदन नहीं कर सकतीं।सकतीं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के विभिन्न जल प्रवाहों का वर्णन करो तथा भारत की मुख्य नदियों पर प्रकाश डालो। भारत का जल प्रवाह (Drainage System of India ):
जल प्रवाह किसी देश की भू-संरचना तथा ढलान पर निर्भर करता है। भारत की धार्मिक, सामाजिक रूप-रेखा पर नदियों का विशेष प्रभाव रहा है। भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा इसकी आर्थिक व्यवस्था में नदियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसलिए भारत को नदियों का देश (Land of Rivers) भी कहा जाता है। विन्ध्याचल पर्वत, उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत के जल प्रवाह की विभाजन सीमा माना जाता है। इस प्रकार धरातल के अनुसार भारत में जल प्रवाह को दो भागों में बांटा जाता है।

  1. उत्तरी भारत के विशाल मैदान का जल प्रवाह।
  2. दक्षिण भारत के जल प्रवाह।

1. उत्तरी भारत का जल प्रवाह (Drainage System of Northern India)
उत्तरी भारत के जल प्रवाह पर हिमालय पर्वत का विशेष प्रभाव है। अधिकांश नदियां हिमालय पर्वत से ही निकलती हैं। ये नदियां बर्फीले पर्वतों से निकलने के कारण वर्ष भर बहती हैं। कई नदियां हिमालय पर्वत से भी पुरानी हैं। पर्वतीय भागों में अनेक तंग गहरी घाटियां बनाती हैं, परन्तु मैदानी भाग में निक्षेप का कार्य अधिक करती हैं। वर्षा ऋतु में भयानक बाढ़ें आती हैं। इन नदियों द्वारा निक्षेप से ही विशाल मैदान का निर्माण हुआ है। उत्तरी मैदान को गंगा का वरदान कहा जाता है। (The northern plain is a gift of the Ganges.) इस जल प्रवाह का विस्तार पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में असम प्रदेश तक है। इस जल प्रवाह को तीन भागों में बांटा जाता है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र 1

  1. सिन्धु जल प्रवाह क्रम।
  2. गंगा जल प्रवाह क्रम।
  3. ब्रह्मपुत्र जल प्रवाह क्रम

1. सिन्धु जल प्रवाह क्रम (The Indus Drainage System):
सिन्धु नदी के जल प्रवाह में सतलुज, ब्यास तथा रावी मुख्य नदियां हैं जो भारत में हैं परन्तु झेलम, चिनाब तथा सिन्धु नदियां पाकिस्तान में हैं।
(i) सतलुज (The Sutlej): यह नदी कैलाश पर्वत के निकट मानसरोवर झील के समीप राक्षस ताल से निकलती हैं जो 4,630 मीटर ऊंचा है। पर्वतीय भाग में एक तंग गहरी घाटी बनाने के बाद रोपड़ नामक स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं। हरिके पत्तन के स्थान पर ब्यास नदी इसमें मिल जाती है। 160 किलोमीटर की दूरी तक भारत- पाकिस्तान सीमा बनाती है। इसकी कुल लम्बाई 1,448 किलोमीटर है। शिवालिक की पहाड़ियों की तंग घाटी में इस नदी पर एक प्रसिद्ध बांध भाखड़ा डैम बनाया गया है।

(ii) ब्यास (The Beas): यह नदी रोहतांग दर्रे के ऊपर से ब्यास कुण्ड से निकलती है जो 4,062 मीटर ऊंचा है। शिवालिक की पहाड़ियों को पार कर मीरथल नामक स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं। इसकी कुल लम्बाई 460 किलोमीटर है। इस नदी का पूरा भाग पंजाब की सीमा के अन्दर है।

(iii) रावी (The Ravi): यह नदी चम्बा के निकट धौलाधार पर्वत श्रेणी से निकलती है। माधोपुर के निकट मैदानी भाग में प्रवेश करती है। यह नदी 720 किलोमीटर लम्बी है। भारत तथा पाकिस्तान के बीच एक प्राकृतिक सीमा रेखा है। इस नदी पर थीन बांध ( Thein Dam) योजना का कार्य चल रहा है।

2. गंगा जल प्रवाह क्रम (The Ganga Drainage System):
इसमें हिमालय पर्वत से उतरने वाली नदियां गंगा, यमुना, शारदा, गण्डक, घाघरा तथा कोसी शामिल हैं। विन्ध्याचल, सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली नदियां चम्बल, बेतवा, केन तथा सोन भी गंगा के जल प्रवाह से मिल जाती हैं। गंगा नदी इस जल प्रवाह की मुख्य नदी है। (The Ganges is the master stream of this system.)

(i) गंगा (The Ganges):
गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है। भारत की धार्मिक तथा सांस्कृतिक रूप-रेखा पर इसका विशेष प्रभाव है। (The story of the Ganges from her source of the sea, from old times to new, is the story of India’s civilization and culture.) यह नदी हिमालय पर्वत में गोमुख हिमनदी से निकलती है। इस स्थान पर इसे गंगोत्री कहते हैं। इसका विकास भागीरथी तथा अलकनन्दा नदियों द्वारा होता है। 290 किलोमीटर पर्वतीय प्रदेश से निकल कर हरिद्वार के निकट मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इलाहाबाद के निकट इसमें यमुना नदी आकर मिल जाती है।

यह स्थान संगम के नाम से प्रसिद्ध है। इससे आगे उत्तर की ओर से गोमती, घाघरा, गण्डक और कोसी की सहायक नदियां इसमें मिलती हैं। दक्षिण की ओर से सोन नदी आकर मिलती है। खाड़ी बंगाल में गिरने से पहले एक विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं। गंगा का डेल्टा ‘सुन्दर वन’ विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। उद्गम से लेकर डेल्टा तक इसकी लम्बाई 2525 किलोमीटर है। किनारे पर हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, कोलकाता आदि महत्त्वपूर्ण नगर बसे हैं।

(ii) यमुना (The Yamuna ):
यह यमनोत्री हिम नदी से निकल कर गंगा के समानान्तर बहती है। इसकी कुल लम्बाई 1375 किलोमीटर है। पर्वतीय भाग को पार कर उत्तरी मैदान में एक विशाल चाप बनाती हुई इलाहाबाद में गंगा नदी में मिल जाती है। भगवान् कृष्ण की लीला भूमि मथुरा, वृन्दावन, गोकुल आदि इसी के तट पर स्थित है। दक्षिण की ओर से चम्बल नदी विन्ध्याचल पर्वत से निकल कर इटावा के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। इसके अतिरिक्त केन तथा बेतवा नदियां यमुना की सहायक नदियां हैं

(iii) घाघरा (The Ghaghra ):
इसे ‘सरयू’ नदी भी कहते हैं । नेपाल (हिमालय) से निकल कर मैदानी भाग में बहती हुई पटना के निकट गंगा नदी में मिलती है। अयोध्या नगरी इस नदी के तट पर स्थित है। शारदा नदी इसकी मुख्य सहायक नदी है।

(iv) गण्डक (The Gandak ):
यह नदी नेपाल (हिमालय) से निकलती है। मैदानी भाग में उत्तर प्रदेश तथा बिहार की सीमा बनाती है। इस नदी ने कई बार अपना मार्ग परिवर्तन किया है। यह नदी पटना के निकट गंगा में मिल जाती है। इस नदी में भीषण बाढ़ें आती रहती हैं।

(v) कोसी (The Kosi ):
यह नदी हिमालय पर्वत में कंचनजुंगा पर्वत से निकलती है। पर्वतीय प्रदेश को पार कर चतरा नामक स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। यह नदी मार्ग परिवर्तन तथा भयानक बाढ़ों के कारण धन-जन को बहुत हानि पहुंचाती है। इसलिए इसे “बिहार की शोक नदी” (River of sorrow of Bihar) कहते हैं ।

3. ब्रह्मपुत्र जल प्रवाह क्रम (The Brahmputra Drainage System):
यह नदी 2880 किलोमीटर लम्बी है तथा भारत की सबसे लम्बी नदी है। मानसरोवर झील के पूर्व में कैलाश पर्वत के समीप से निकल कर हिमालय पर्वत के समानान्तर बहती हुई तिब्बत प्रदेश में बहती है। इसे 1440 किलोमीटर लम्बे मार्ग में सांपो ( Tsangpo) नदी कहते हैं । हिमालय के पूर्वी मोड़ को काट कर दिहांग गार्ज (Gorge) में से असम घाटी में प्रवेश करती है। यह एक विशाल नदी है जिसमें भयानक बाढ़ें आती हैं। बांग्ला देश में यह पद्मा नदी से मिलकर खाड़ी बंगाल में विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं। डिब्रूगढ़ (Dibrugarh ) से लेकर खाड़ी बंगाल तक इसमें किश्तियां चलाई जा सकती हैं।

2. दक्षिणी भारत का जल प्रवाह (The Drainage System of Southern India):
दक्षिणी भारत बहुत प्राचीन भू-खण्ड है। इसलिए इस प्रदेश की नदियां बहुत प्राचीन हैं। दक्षिणी भाग एक पठार है जो चारों ओर ढालुआ है। इसलिए यहां से पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर की ओर नदियां बहती हैं। अधिकांश नदियां पूर्व की ओर बहती हुई खाड़ी बंगाल में गिरती हैं। केवल नर्मदा, ताप्ती पश्चिम की ओर बहती हैं। पश्चिमी घाट के पर्वत दक्षिणी भारत की नदियों को दो भागों में बांटते हैं।

  1. अरब सागर में गिरने वाली नदियां तथा
  2. खाड़ी बंगाल में गिरने वाली नदियां।

दक्षिणी भारत की नदियां नीचे पर्वतों से निकलती हैं जहां हिमपात नहीं होता। इसलिए इनको केवल वर्षा काल में ही जल प्राप्त होता है। दक्षिणी पठार की नदियां छोटी तथा कम संख्या में हैं। इन नदियों में वर्षा ऋतु में अचानक बाढ़ें आ जाती हैं। इन नदियों की घाटियां चौड़ी और उथली हैं तथा कम मात्रा में कटाव करती हैं। इनका मार्ग ऊंचा – नीचा, पथरीला होने के कारण, इनमें जहाज़ नहीं चलाए जा सकते हैं। इन नदियों से नहरें निकालना कठिन है। ये नदियां अनेक जल प्रपात बनाती हैं जो जल-विद्युत् विकास को सुविधा प्रदान करते हैं।

1. अरब सागर में गिरने वाली नदियां (The Rivers falling into Arabian Sea)
(i) नर्मदा (The Narmada):
यह नदी मध्य प्रदेश में अमर कण्टक नामक स्थान से निकलती है। इसके उत्तर में विंध्याचल तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणियां हैं। 1300 किलोमीटर लम्बी नदी, एक तंग रिफ्ट घाटी (Rift Valley) में बहती है। तीव्र गति से बहने के कारण यह नदी डेल्टा नहीं बनाती है। मध्य प्रदेश में संगमरमर की चट्टानों में रमणीक गार्ज बहुत प्रसिद्ध हैं। नर्मदा की सहायक नदियों की कमी है।

(ii) ताप्ती (The Tapti):
यह नदी महादेव पहाड़ियों में बेतुल से निकलती है। यह नदी 724 किलोमीटर लम्बी है। नर्मदा नदी के समानान्तर बहने के पश्चात् खाड़ी खम्बात (Gulf of Cambay) में गिरती हैं। इसके मुहाने पर सूरत नगर स्थित है। नर्मदा नदी तथा ताप्ती दोनों नदियां एक दरार घाटी (Rift Valley) में बहती हैं। इसके अतिरिक्त अरब सागर में गिरने वाली महत्त्वपूर्ण नदियां, लूनी, साबरमती तथा माही हैं।

2. खाड़ी बंगाल में गिरने वाली नदियां (The Rivers falling into Bay of Bengal)
(i) दामोदर नदी (The Damodar ):
530 किलोमीटर लम्बी नदी छोटा नागपुर पठार से निकलती है। बाढ़ों तथा मार्ग परिवर्तन के कारण इसे “शोक नदी ? (River of sorrow) कहते हैं। दामोदर घाटी परियोजना के कारण इससे अब आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी।

(ii) महानदी (The Mahanadi ):
यह नदी 857 किलोमीटर लम्बी है। अमरकण्टक पर्वत श्रेणी से निकल कर उड़ीसा राज्य में बहती हुई एक उपजाऊ मैदान तथा डेल्टा बनाती है। डेल्टा क्षेत्र में इस नदी से नहरों द्वारा जल सिंचाई की जाती है।

(iii) गोदावरी (The Godavari ):
1,440 किलोमीटर लम्बी नदी, पश्चिमी घाट में नासिक क्षेत्र से निकल कर आन्ध्र प्रदेश में पूर्व की ओर बहती है। पूर्वी घाट को पार करते समय एक तंग गहरी घाटी बनाती हैं। इस नदी का डेल्टा बड़ा उपजाऊ है।

(iv) कृष्णा (The Krishna ):
यह नदी 1, 400 किलोमीटर लम्बी है। यह नदी पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर से निकलती है। इसको दो मुख्य सहायक नदियां उत्तर में भीमा नदी तथा दक्षिण में तुंगभद्रा नदी है।

(v) कावेरी (The Cauvery ):
यह 800 किलोमीटर लम्बी नदी ब्रह्म गिर पहाड़ियों से निकल कर खाड़ी बंगाल में गिरती है। यह नदी जल सिंचाई, परिवहन तथा जल विद्युत् के लिए उपयोगी है। यह नदी कई जल प्रपात बनाती है। शिवसुन्द्रम् जल प्रपात जल  विद्युत् विकास के लिए उपयोगी है। इसका डेल्टा बहुत विशाल उपजाऊ मैदानी है शीतकाल की वर्षा के कारण इस नदी में सारा वर्ष जल रहता है। कावेरी का जल ग्रहण क्षेत्र केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में विस्तृत है।

 

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भूपृष्ठ में कितनी भूगर्भिक प्लेटें हैं?
(A) 5
(B) 6
(C) 7
(D) 8
उत्तर:
(C) 7

2. भारत का प्राचीन स्थल खण्ड कौन-सा है?
(A) उत्तरी मैदान
(B) प्रायद्वीपीय पठार
(C) हिमालय
(D) अरावली।
उत्तर:
(B) प्रायद्वीपीय पठार।

3. भारत में स्थित हिमालय पर्वत का सर्वोच्च शिखर है
(A) माऊंट एवरेस्ट
(B) कंचनजंगा
(C) K2
(D) धौलागिरि।
उत्तर:
(B) कंचनजंगा।

4. प्राचीन जलोढ़ निक्षेप को कहते हैं
(A) खादर
(B) बांगर
(C) भाबर
(D) तराई।
उत्तर:
(B) बांगर।

5. दक्षिणी भारत का सर्वोच्च शिखर है-
(A) दोदा वेटा
(B) अनाई मुदी
(C) महेन्द्रगिरि
(D) कालसूबाई।
उत्तर:
(B) अनाई मुदी।

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6. पश्चिमी तटीय मैदान के दक्षिण भाग को कहते हैं
(A) कोंकण तट
(B) कोरोमण्डल तट
(C) कनारा तट
(D) मालाबार तट।
उत्तर:
(D) मालाबार तट।

7. पितली पक्षी – आश्रय स्थल कहां है?
(A) अण्डमान द्वीप
(B) निकोबार द्वीप
(C) लक्षद्वीप
(D) मालदीव
उत्तर:
(C) लक्षद्वीप।

8. किस सीमा के साथ प्लेटें मिलती हैं?
(A) अपकारी
(B) अभिसारी
(C) परिवर्तित
(D) भूगर्भिक।
उत्तर:
(B) अभिसारी।

(D) मालाबार तट।
(B) अभिसारी
9. हिमालय पर्वत के स्थान पर कौन सा प्राचीन सागर था?
(A) टैथीज़
(B) दक्षिणी
(C) अरब
(D) हिन्द महासागर।
उत्तरl
(A) टैथीज़।

10. दरार घाटी कौन-सी है?
(A) गंगा
(B) नर्मदा
(C) चम्बल
(D) दामोदर
उत्तर:
(B) नर्मदा

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11. करेवां भू-आकृति कहाँ पाई जाती है?
(A) उत्तर-पूर्व हिमालय में
(B) हिमाचल उत्तराखण्ड, हिमालय में
(C) पूर्वी हिमालय में
(D) कश्मीर हिमालय में।
उत्तर:
(D) कश्मीर हिमालय में।

12. निम्न पर्वतमालाओं में से सबसे पहले किसका निर्माण हुआ है?

(A) विंध्याचल
(B) नर्मदा
(C) सतपुड़ा
(D) नीलगिरि
उत्तर:
(D) नीलगिरि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वृहद् स्तर पर भारत के धरातल को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 2.
भारत का सबसे प्राचीन पठार कौन-सा है?
उत्तर:
दक्कन पठार।

प्रश्न 3.
दक्कन पठार की पूर्वी सीमाओं के नाम बताएं।
उत्तर:
राजमहल पहाड़ियां।

प्रश्न 4.
भारत का प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
पूर्व कैम्ब्रेरियन युग में।

प्रश्न 5.
अरावली पर्वत किस युग में ऊपर उठे?
उत्तर:
विन्धयन युग।

प्रश्न 6.
दक्कन पठार में निर्मित लावा की सतहें कैसे बनीं?
उत्तर:
लावा बहने के कारण।

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प्रश्न 7.
भारत में पाये जाने वाली दो रिफ्ट घाटियों के नाम लिखो।
उत्तर:
नर्मदा तथा ताप्ती घाटियां।

प्रश्न 8.
अरब सागर कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
प्लायोसीन युग में।

प्रश्न 9.
उस सागर का नाम बतायें जो हिमालय के किनारे पर स्थित था।
उत्तर:
टैथीज़ सागर।

प्रश्न 10.
हिमालय किस युग में ऊपर उठे?
उत्तर:
टरशरी युग में।

प्रश्न 11.
हिमालय के उत्तर में कौन-सा भू-खण्ड स्थित है?
उत्तर:
अंगारालैण्ड।

प्रश्न 12.
टरशरी युग में हिमालय के दक्षिण में स्थित भू-खण्ड का नाम बताएं।
उत्तर:
गोंडवानालैण्ड।

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प्रश्न 13.
कश्मीर घाटी में पाई जाने वाली झील निक्षेप का नाम लिखो।
उत्तर:
करेवा।

प्रश्न 14.
दक्कन पठार की पश्चिमी सीमा का नाम बताएं।
उत्तर:
अरावली।

प्रश्न 15.
सिन्धु गार्ज तथा ब्रह्मपुत्र गार्ज के मध्य हिमालय का क्या विस्तार है?
उत्तर:
2400 किलोमीटर।

प्रश्न 16.
हिमालय में सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की कुल उंचाई बताएं।
उत्तर:
8848 मीटर।

प्रश्न 17.
भारत के उत्तरी मैदान का पूर्व-पश्चिम विस्तार बताएं।
उत्तर:
3200 किलोमीटर।

प्रश्न 18.
गंगा मैदान में तलछट की अधिकतम ऊंचाई कितनी है?
उत्तर:
2000 मीटर।

प्रश्न 19.
हिमालय के निचले भागों में पाई जाने वाली निक्षेप बताओ।
उत्तर:
जलोढ़ पंक

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प्रश्न 20.
चो के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र का नाम बताएं।
उत्तर:
होशियारपुर (पंजाब)।

प्रश्न 21.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊंचाई बताएं।
उत्तर:
600-900 मीटर।

प्रश्न 22.
उस क्षेत्र का नाम बताएं जहां बरखान पाये जाते हैं।
उत्तर:
जैसलमेर

प्रश्न 23.
प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर-पूर्व में पाये जाने वाले पठार का नाम बताएं।
उत्तर:
शिलांग पठार तथा कार्वी एंगलोंग पठार।

प्रश्न 24.
दक्कन पठार के ढलान की दिशा बताओ।
उत्तर:
दक्षिण पूर्व।

प्रश्न 25.
भारत के उस क्षेत्र का नाम बताएं जहां ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानें पाई जाती हैं।
उत्तर:
कर्नाटक

प्रश्न 26.
पश्चिमी घाट पर सबसे अधिक ऊंचाई कितनी है?
उत्तर:
1600 मीटर।

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प्रश्न 27.
पूर्वी घाट पर सबसे अधिक ऊंचाई कितनी है?
उत्तर:
900 मीटर।

प्रश्न 28.
अरब सागर में पाये जाने वाले मूंगे के द्वीपों के समूह का नाम बताएं।
उत्तर:
लक्षद्वीप समूह।

प्रश्न 29.
प्रायद्वीपीय भारत में सबसे ऊँची चोटी का नाम बताएं।
उत्तर:
अनाईमुदी (2695 मीटर)।

प्रश्न 30.
पश्चिमी तटीय मैदान के दो विभागों के नाम लिखो।
उत्तर:
कोंकण तट, मालाबार तट।

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प्रश्न 31.
यदि आपने लक्षद्वीप तक यात्रा करनी है तो किस तटीय मैदान से गुजरेंगे?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 32.
भारत में शीत मरुस्थल कहां है?
उत्तर:
लद्दाख में।

प्रश्न 33.
पश्चिमी तट पर डैल्टे क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
तीव्र गति वाली छोटी नदियां तलछट का जमाव नहीं करतीं।

प्रश्न 34.
इण्डियन प्लेट की स्थिति बताओ।
उत्तर:
भूमध्य रेखा के दक्षिण में।

प्रश्न 35.
कौन-सी भ्रंश रेखा मेघालय पठार को छोटा नागपुर पठार से अलग करती है?
उत्तर:
मालदा भ्रंश रेखा।

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प्रश्न 36.
प्रायद्वीप की अवशिष्ट पहाड़ियां बताओ।
उत्तर:
अरावली, नल्लामाला, जांबादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा, महेन्द्रगिरी ।

प्रश्न 37.
हिमालय की केन्द्रीय अक्षीय श्रेणी बताओ।
उत्तर:
बृहत् हिमालय।

प्रश्न 38.
उत्तर:
पश्चिमी हिमालय के दर्रे बताओ।
उत्तर:
बृहत् हिमालय में जोजीला, जास्कर में कोटला, पीर पंजाल में बनिहावा, लद्दाख श्रेणी में खुर्द भंगा।

प्रश्न 39.
उत्तर-पश्चिमी हिमालय में 3 तीर्थ स्थान बताओ।
उत्तर:
वैष्णो देवी, अमरनाथ गुफ़ा, चरार-ए-शरीफ़।

प्रश्न 40.
लघु हिमालय को हिमाचल में क्या कहते हैं?
उत्तर:
नागतीमा।

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प्रश्न 41.
फूलों की घाटी कहां स्थित है?
उत्तर:
बृहत् हिमालय में।

प्रश्न 42.
मालाबार तट पर कयाल का क्या प्रयोग है?
उत्तर:
मछली पकड़ना तथा नौकायन।

प्रश्न 43.
दिसम्बर, 2004 में पूर्वी तट पर कौन-सी आपदा का प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
सुनामी

प्रश्न 44.
उत्तरी मैदान की रचना कैसे हुई है?
उत्तर:
गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा जलोढ़ निक्षेप से।

प्रश्न 45.
प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधता क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
भू-उत्थान, निभज्जन व भ्रंश क्रिया के कारण।

प्रश्न 46.
गारो व खासी पहाड़ियाँ किस पर्वत श्रेणी का भाग हैं?
उत्तर:
हिमालय का। स्मरणीय तथ्य (Points to Remember):

भारत के धरातलीय भाग:

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  2. सतलुज-गंगा का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार
  4. तटीय मैदान
  5. द्वीप समूह
  6. मरुस्थल

हिमालय पर्वत की श्रेणियां तथा प्रादेशिक विभाग:

  1. ट्रांस हिमालय
  2. महान् हिमालय
  3. लघु हिमालय
  4. शिवालिक

(क) असम हिमालय
(ग) कुमायुँ हिमालय
(ख) नेपाल हिमालय
(घ) पंजाब हिमालय

हिमालय पर्वत के प्रमुख शिखर:

  1. माऊंट एवरेस्ट – 8848 मीटर
  2. गाडविन ऑस्टिन – 8611 मीटर
  3. कंचनजंगा – 8588 मीटर
  4. मकालू – 8481 मीटर
  5. धौलागिरी – 8172 मीटर
  6. नांगा पर्वत – 8126 मीटर
  7. अन्नपूर्णा – 8078 मीटर

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भांगर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राचीन जलोढ़ मिट्टी के बने ऊंचे मैदानी प्रदेशों को भांगर कहते हैं। इन उच्च प्रदेशों में नदियों की बाढ़ का जल पहुंच नहीं पाता। इस प्रदेश की मिट्टी में चीका मिट्टी, रेत तथा कंकड़ पाए जाते हैं। भारत के उत्तरी मैदान में नदियों द्वारा जलोढ़ मिट्टी के निक्षेप से भांगर प्रदेश की रचना हुई है।

प्रश्न 2.
भारत में भ्रंशन क्रिया (Faulting) के प्रमाण किन क्षेत्रों में मिलते हैं?
उत्तर:
भू-पृष्ठीय भ्रंशन के प्रमाण सामान्य रूप से दक्षिणी पठार पर पाए जाते हैं। गोदावरी, महानदी तथा दामोदर घाटियों में भ्रंशन के प्रमाण पाए जाते हैं। नर्मदा तथा ताप्ती नदी घाटी दरार घाटियां हैं। भारत के पश्चिमी तट पर मालाबार तट तथा मेकरान तट पर धरातल पर भ्रंशन क्रिया के प्रभाव देखे जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
दून किसे कहते हैं? हिमालय पर्वत से तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की समानान्तर श्रेणियों के मध्य सपाट तलछटी वाली संरचनात्मक घाटियां मिलती हैं। इन घाटियों द्वारा पर्वत श्रेणियां एक-दूसरे से अलग होती हैं। इन घाटियों को ‘दून’ (Doon) कहा जाता है। हिमालय पर्वत में इन उदाहरण अग्रलिखित हैं

  1. देहरादून (Dehra Dun)
  2. कोथरीदून (Kothri Dun)
  3. पटलीदून (Patli Dun)

कश्मीर घाटी को भी हिमालय पर्वत में एक दून की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 4.
डेल्टा किसे कहते हैं? भारत से चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
नदियों के मुहाने पर तलछट के निक्षेप से एक त्रिभुजाकार स्थल रूप बनता है जिसे डेल्टा कहते हैं। डेल्टा नदी के अन्तिम भाग में अपने भार के निक्षेप से बनने वाला भू-आकार है। यह एक उपजाऊ समतल प्रदेश होता है। भारत में चार प्रसिद्ध डेल्टा इस प्रकार हैं;

  1. गंगा नदी का डेल्टा
  2. महानदी का डेल्टा
  3. कृष्णा नदी का डेल्टा
  4. कावेरी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 5.
तराई से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हिमालय पर्वत के दामन में भाबर के मैदान के साथ-साथ तराई का संकरा मैदान स्थित है। यह मैदान लगभग 30 कि०मी० चौड़ा है। इस मैदान का अधिकतर भाग दलदली है क्योंकि भाबर प्रदेशों में लुप्त हुई नदियों का जल रिस-रिस कर इस प्रदेश को अत्यधिक आर्द्र कर देता है। इस प्रदेश में ऊंची घास तथा वन पाए जाते हैं। भाबर के दक्षिण में स्थित ये मैदान बारीक कंकड़, रेत, चिकनी मिट्टी से बना है। उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र में बड़े-बड़े फार्म बना कर कृषि की जा रही है।

प्रश्न 6.
भाबर क्या है? भाबर पट्टी के दो प्रमुख लक्षण बताओ।
उत्तर:
बाह्य हिमालय की शिवालिक श्रेणियों के दक्षिण में इनके गिरिपद प्रदेश को भाबर का मैदान कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्र से बहने वाली नदियों के मन्द बहाव के कारण यहां बजरी, कंकड़ का जमाव हो जाता है। इस क्षेत्र में पहुंच कर अनेक नदियां लुप्त हो जाती हैं। क्योंकि यह प्रदेश पारगम्य चट्टानों (Pervious Rocks) का बना हुआ है। भाबर का मैदान एक संकरी पट्टी के रूप में 8 से 16 कि०मी० की चौड़ाई तक पाया जाता है। भाबर पट्टी के प्रमुख लक्षण:

  1. यह प्रदेश पारगम्य चट्टानों का बना हुआ है जिस में छोटी-छोटी नदियों का जल भूमिगत हो जाता है।
  2. इसमें बजरी और पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों के निक्षेप जमा होते हैं।
  3. यह प्रदेश हिमालय पर्वत तथा उत्तरी मैदान के संगम पर स्थित है।

प्रश्न 7.
दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से पांच उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
दो नदियों के मध्य के मैदानी भाग को दोआब कहते हैं। नदियों द्वारा निक्षेप से पुरानी कांप मिट्टी के प्रदेश इन नदियों को एक-दूसरे से अलग करते हैं। भारतीय उप महाद्वीप में निम्नलिखित दोआब मिलते हैं

  1. गंगा-यमुना नदियों के मध्य दोआब।
  2. ब्यास – सतलुज नदियों के मध्य बिस्त जालन्धर दोआब।
  3. ब्यास- रावी के मध्य बारी दोआब।
  4. रावी – चनाब के मध्य रचना दोआब।
  5.  चनाब – झेलम के मध्य छाज दोआब।

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प्रश्न 8.
बृहत् स्तर पर भारत को कितनी भू-आकृतिक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत के तीन भू-आकृतिक विभागों के उच्चावच के लक्षणों का विकास एक लम्बे काल में हुआ है।

  1. उत्तर में हिमालय पर्वतीय श्रृंखला
  2. उत्तरी भारत का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 9.
भारतीय पठार के प्रमुख भौतिक विभागों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार की भौतिक स्थलाकृतियों में बहुत विविधता है। फिर भी इसे मोटे तौर पर अग्रलिखित भौतिक इकाइयों में बांटा जा सकता है।

  1. दक्षिणी पठारी खंड
  2. दक्कन का लावा पठार
  3. मालवा का पठार
  4. अरावली पहाड़ियां
  5. नर्मदा तथा तापी की द्रोणियां
  6. महानदी, गोदावरी तथा कावेरी की नदी घाटियां
  7. संकरे तटीय मैदान।

प्रश्न 10.
हिमालय पर्वत को किन-किन श्रेणियों में बांटा जाता है?
उत्तर:
हिमालय पर्वत में कई श्रेणियां एक-दूसरे के समानान्तर पाई जाती हैं। ये श्रेणियां एक-दूसरे से ‘दून’ नामक घाटियों द्वारा अलग-अलग हैं। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वत के केन्द्रीय अक्ष के समानान्तर तीन पर्वत श्रेणियां हैं

  1. बृहत् हिमालय (Greater Himalayas)
  2. लघु हिमालय (Lesser Himalayas)
  3. उप-हिमालय (Sub – Himalayas) या शिवालिक श्रेणी ( Shiwaliks)

उक्त पर्वत श्रेणियों को तीन अन्य नामों से भी पुकारा जाता है

  1. आन्तरिक हिमालय ( Inner Himalayas)
  2. मध्य हिमालय (Middle Himalayas)
  3. बाह्य हिमालय ( Outer Himalayas)।

प्रश्न 11.
हिमालय पर्वत में मिलने वाले ऊंचे पर्वत शिखर तथा उनकी ऊंचाई बताओ।
उत्तर:
बृहत् हिमालय में संसार के 40 ऐसे पर्वत शिखर मिलते हैं जिनकी ऊंचाई 7000 मीटर से भी अधिक है। जैसे-

  1. एवरेस्ट (Everest ) – 8848 मीटर
  2. कंचनजंगा (Kanchenjunga ) –  8598 मीटर
  3. नांगा पर्वत (Nanga Parbat ) – 8126 मीटर
  4. नंदा देवी (Nanda Devi ) – 7817 मीटर
  5. नामचा बरवा (Namcha Barwa ) – 7756 मीटर
  6. धौलागिरी ( Dhaulagiri ) – 8172 मीटर।

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प्रश्न 12.
” पश्चिमी हिमालय में पर्वत श्रेणियों की एक क्रमिक श्रृंखला पाई जाती है।” व्याख्या करो।
उत्तर: हिमालय पर्वत में कई पर्वत श्रेणियां एक-दूसरे के समानान्तर पाई जाती हैं। ये श्रेणियां एक-दूसरे से “दून” या घाटियों द्वारा अलग-अलग हैं। पश्चिमी हिमालय में ये श्रेणियां स्पष्ट क्रम से दिखाई देती हैं। पंजाब के मैदानों के पश्चात् पहली श्रेणी शिवालिक की पहाड़ियों के रूप में या बाह्य हिमालय के रूप में मिलती है। इसके पश्चात् सिन्धु नदी की सहायक नदियों की घाटियां हैं। दूसरी वेदी (Stage) के रूप में पीर पंजाल तथा धौलाधार की लघु हिमालयी श्रेणियां मिलती हैं। पीर पंजाल तथा महान् हिमालय के मध्य कश्मीर घाटी है। तीसरी वेदी के रूप में महान् हिमालय की जास्कर श्रेणी पाई जाती है। इस से आगे लद्दाख तथा कराकोरम की पर्वत श्रेणियां हैं जिसके मध्य सिन्धु घाटी मिलती है ।

प्रश्न 13.
हिमालय पर्वत श्रेणियों में पाये जाने वाले प्रमुख दर्रों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. खैबर दर्रा – यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच में है।
  2. वोलन दर्रा – यह पाकिस्तान में है। प्राचीन समय में यह व्यापारिक मार्ग रहा है
  3. जोजिला – यह कशमीर से लेह को जोड़ता है।
  4.  शिपक़िला – हिमाचल प्रदेश के किन्नौर से तिब्बत को जोड़ता है।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय पठार तथा हिमालय पर्वत के उच्चावच के लक्षणों में वैषम्य बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत तथा भारती पठार की भू-आकृतियों की इकाइयों के भौतिक लक्षणों में काफ़ी अन्तर पाए जाते

हिमालय पर्वत भारतीय पठार
(1) हिमालय पर्वत एक युवा, नवीन मोड़दार पर्वत है। (1) भारतीय पठार कठोर चट्टानों का बना प्राचीन भूखण्ड है।
(2) इन पर्वतों का निर्माण विभिन्न हलचलों द्वारा वलन क्रिया से हुआ है। (2) इस पठार का निर्माण एक उत्खण्ड (Horst) के रूप में हुआ है।
(3) हिमालय पर्वत का धरातल युवा लक्षण प्रकट करता है। (3) इस पठार का धरातल जीर्ण तथा घर्षित है।
(4) हिमालय पर्वत पर ऊंची तथा समानान्तर पर्वत श्रेणियां पाई जाती हैं। (4) इस पठार पर दरारों के कारण दरार घाटियां मिलती हैं।
(5) इन पर्वतों पर गहरे गार्ज पाए जाते हैं तथा यू-आकार श्रेणियां पाई जाती हैं। (5) इस पठार पर गहरी नदी घाटियां पाई जाती हैं।
(6) ये पर्वत एक चाप के रूप में फैले हुए हैं। (6) इस पठार का आकार तिकोना है।
(7) इन पर्वतों में संसार के ऊंचे शिखर पाए जाते हैं। (7) इस पठार पर अपरदित पहाड़ियां पाई जाती हैं।
(8) ये तलछटी चट्टानों से बने हुए हैं। (8) ये आग्नेय चट्टानों से बने हैं।
(9) इनकी रचना आज से 2760 लाख वर्ष पूर्व Mesozoic Period में हुई है। (9) इसकी रचना आज से 16000 लाख वर्ष पूर्व PreCambrian Period में हुई है।

प्रश्न 2.
तराई तथा भाबर प्रदेश में अन्तर स्पष्ट करो। Cambrian Period में हुई है।
उत्तर:

तराई (Terai) भाबर (Bhabar)
(1) भाबर प्रदेश के साथ-साथ दक्षिण में तराई क्षेत्र स्थित है। (1) शिवालिक पहाड़ियों के तटीय क्षेत्र में भाबर प्रदेश स्थित है।
(2) यह एक नम, दल-दली तथा जंगलों से ढका प्रदेश है जहां कंकड़ जमा होते हैं। (2) यह प्रवेशीय चट्टानों से बना क्षेत्र है जहां भारी पत्थर तथा कंकड़ जमा होते हैं।
(3) इसकी चौड़ाई 20 से 30 कि० मी० है। (3) इसकी चौड़ाई 8 से 16 कि० मी० है।
(4) भाबर प्रदेश से रिस-रिस कर आने वाला जल यहां नदियों का रूप धारण कर लेता है। (4) प्रवेशीय चट्टानों के कारण यहां नदियां विलीन हो जाती हैं।
(5) यह प्रदेश कृषि के उपयुक्त है। (5) यह प्रदेश कृषि के उपयुक्त नहीं है।

प्रश्न 3.
बांगर तथा खादर प्रदेश में क्या अन्तर है?
उत्तर:

बांगर (Bangar) खादर (Khaddar)
(1) पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊंचे प्रदेश को बांगर कहते हैं। (1) बाढ़ की नवीन मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं।
(2) ये प्रदेश बाढ़ के मैदान के तल से ऊंचे होते हैं। (2) यहां नदियां बाढ़ के कारण प्रति वर्ष जलोढ़ की नई परत बिछा देती हैं।
(3) ये प्रदेश चूनायुक्त कंकड़ों से बने होते हैं। (3) ये उपजाऊ चीका मिट्टी से बने प्रदेश होते हैं।
(4) ये बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। (4) ये वास्तव में नदियों के बाढ़ के मैदान हैं।
(5) कई प्रदेशों में इन्हें ‘धाया’ कहा जाता है। (5) कई प्रदेशों में इन्हें ‘बेट’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्वी और पश्चिमी तटीय मैदानों के बीच पाए जाने वाले तीन प्रमुख स्थलाकृतिक अन्तर बताइए।
उत्तर:

पश्चिमी तटीय मैदान पूर्वी तटीय मैदान
(1) यह मैदान 50 से 80 किलोमीटर चौड़ा है। यह एक संकरा मैदान है। (1) यह मैदान 80 से 100 किलोमीटर तक चौड़ा है। यह एक अधिक चौड़ा मैदान है।
(2) पश्चिमी तट पर कई लैगून झीलें पाई जाती हैं विशेषकर केरल तट पर। (2) पूर्वी तट पर लैगून कम संख्या में पाए जाते हैं।
(3) इस मैदान पर छोटी और तीव्र नदियों के कारण डेल्टे नहीं बनते। (3) इस मैदान में लम्बी और धीमी नदियों के कारण विशाल डेल्टे बनते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
” उप-महाद्वीप के वर्तमान भू-आकृतिक विभाग एक लम्बे भूगर्भिक इतिहास के दौरे में विकसित हुए हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। भारत के भू-आकृतिक खण्ड की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उत्तर: भारतीय उपमहाद्वीप की तीनों भू-आकृतिक इकाइयां इतिहास के लम्बे उतार-चढ़ाव के दौरे में विकसित हुई हैं। इनके निर्माण के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के भू-वैज्ञानिक प्रमाण दिए जाते हैं। फिर भी अतीत अपना रहस्य छिपाए हुए है। इनकी रचना प्राचीन काल से लेकर कई युगों में क्रमिक रूप में हुई है।

1. प्रायद्वीपीय पठार:
इस पठार की रचना कैम्ब्रियन पूर्व युग में हुई है। कुछ विद्वानों की धारणा है कि यह एक उत्खण्ड (HORST) है जिसका उत्थान समुद्र से हुआ है। इस पठार के पश्चिमी भाग में अरावली पर्वत का उत्थान दक्षिण में नाला मलाई पर्वतमाला का उत्थान विंध्य – महायुग में हुआ । इस स्थिर भाग में एक लम्बे समय तक भू-गर्भिक हलचलों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । कुछ भागों में धरातल पर भ्रंश पड़ने के कारण धंसाव के प्रमाण मिलते हैं । हिमालय के निर्माण के पश्चात् पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग के धंसने के कारण अरब सागर का निर्माण प्लिओसीन युग में हुआ। इस पठार को विशाल गोंडवाना महाद्वीप का भाग माना जाता है। इसका कुछ भाग अब भी उत्तरी मैदान के नीचे छिपा हुआ है। हिमालय के उत्थान के समय पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग में विस्तृत रूप से ज्वालामुखी उदगार हुए जिस से दक्कन लावा क्षेत्र (Deccan Trap) का निर्माण हुआ। पठार के पश्चिम भाग में निमज्जन से पश्चिमी घाट ऊपर उभरे। दूसरी ओर पूर्वी तट शान्त क्षेत्र रहे।

2. हिमालय पर्वत:
यह एक युवा तथा नवीन मोड़दार पर्वत है। मध्यजीवी काल तक यह पर्वत एक भू-अभिनति द्वारा घिरा हुआ था इसे ‘टैथीस सागर’ कहते हैं। टरशरी युग में टैथीस सागर में जमा तलछटों में वलन पड़ने से हिमालय पर्वत तथा इसकी श्रृंखलाओं का निर्माण हुआ। उत्तरी भू-खण्ड अंगारालैण्ड की ओर से दक्षिणी भू-खण्ड गोंडवाना लैण्ड की ओर दबाव पड़ा। दक्षिणी भू-खण्ड के उत्तर अभिमुखी दबाव ने टैथीस सागर में जमा तलछट को ऊँचा उठा दिया जिससे हिमालय पर्वत में वलनों का निर्माण हुआ।

हिमालय पर्वत में पर्वत निर्माण कार्य हलचल की पहली अंवस्था अल्प नूतन युग में, दूसरी अवस्था मध्य नूतन युग में तथा तीसरी अवस्था उत्तर अभिनूतन युग में हुई। आधुनिक प्रमाणों के आधार पर ये पर्वत निर्माणकारी हलचलें (Mountain Building), प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonics) से सम्बन्धित है। भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसकी तथा यूरेशिया प्लेट को नीचे से धक्का देने से हिमालय पर्वतमाला की उत्पत्ति हुई।

3. उत्तरी मैदान:
भारत का उत्तरी मैदान हिमालय पर्वत तथा दक्षिण पठार के मध्यवर्ती क्षेत्र में फैला है। यह मैदान एक समुद्री गर्त के भर जाने से बना है। इस गर्त में हिमालय पर्वत तथा दक्षिणी पठार से बहने वाली नदियां भारी मात्रा में मलबे के निक्षेप करती रही हैं। इस गर्त का निर्माण हिमालय पर्वत के उत्थान के समय एक अग्रगामी गर्त (Fore-deep) के रूप में हुआ। इसका निर्माण प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर अभिमुखी दबाव के कारण हिमालय पर्वत के समान हुआ। यह सम्पूर्ण क्षेत्र निक्षेप की क्रिया द्वारा लगातार पूरित होता रहा है। यह क्रिया चतुर्थ महाकल्प तक जारी है। इस प्रकार लम्बी अवधि में भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप का विकास हुआ हैं।
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प्रश्न 2.
भारत को धरातल के आधार पर विभिन्न भागों में बांटो। हिमालय पर्वत का विस्तारपूर्वक विवरण दो।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है जिसमें धरातल पर अनेक विभिन्नताएं पाई जाती हैं। भारत की धरातलीय रचना एक विशेष प्रकार की है जिसमें ऊँचे-ऊँचे पर्वत, पठार तथा विशाल मैदान सभी प्रकार के भू-आकार विद्यमान हैं। भारत के कुल क्षेत्र का धरातल के अनुसार विभाजन इस प्रकार है।
पर्वत – 10.7%
पहाड़ियां – 18.6%
पठार – 27.7%
मैदान – 43.0%

प्रायद्वीप को भारत की प्राकृतिक संरचना का केन्द्र (Core of Geology of India) माना जाता है। यह भाग सबसे पुराना है। देश के अन्य भाग बाद में इसके चारों ओर बने हैं। उत्तर में हिमालय पर्वत है जो भारत का सिरताज है। (The Himalayas adorn like a crown of India.) इनके मध्य गंगा का विशाल मैदान है जिसे भारतीय सभ्यता का पलना (Cradle of Indian Civilization) कहा जाता है। भारत को धरातल के आधार पर चार स्पष्ट तथा स्वतन्त्र भागों में बांटा जा सकता है।

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश (Northern Mountain Region)
  2. सतलुज- गंगा का मैदान (Sutlej – Ganges Plain)
  3. प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)
  4. तटीय मैदान (Coastal Plains)

1. उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र (Northern Mountain Region):
विस्तार (Extent ):
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत पश्चिम-पूर्व दिशा में एक चाप के आकार में फैला हुआ है। यह पर्वत श्रेणी 2400 किलोमीटर लम्बी है तथा 240 से 320 किलोमीटर तक चौड़ी है। ये संसार के सबसे ऊँचे पर्वत हैं जो बर्फ से ढके रहते हैं।

मुख्य विशेषताएं (Main Characteristics):
(i) ये पर्वत युवा नवीन मोड़दार (Young Fold Mountains) पर्वत हैं। अपनी अल्पायु के कारण इन्हें युवा पर्वत कहते हैं।

(ii) आज से लगभग 5 करोड़ साल पहले वहां पर टैथीज़ (Tethys) सागर था इस सागर की पेटी में जमा तलछट में मोड़ पड़ने से हिमालय पर्वत तथा इसकी श्रृंखलाएं बनीं। अब भी कुछ भागों में उठाव (Uplift) की क्रिया के कारण हिमालय पर्वत की ऊंचाई बढ़ रही है। ( “The Himalayas are still rising.”)
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(iii) हिमालय प्रदेश में एक-दूसरे के समानान्तर श्रेणियां मिलती हैं जिनके बीच घाटियां तथा पठार पाए जाते हैं। (“The Himalayas are series of parallel ranges, intersected by deep valleys and broad plateaus.”) हिमालय पर्वतमालाएं क्रमिक श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। उत्तरी मैदान से आगे पहली वेदी शिवालिक के रूप में, दूसरी वेदी पीर पंजाल तथा धौलाधार श्रेणी के रूप में (लघु हिमालय), तीसरी वेदी महान् हिमालय की जास्कर श्रेणी के रूप में तथा इससे आगे लद्दाख, कैलाश तथा कराकोरम (ट्रांस हिमालय श्रेणी) पर्वतमालाएं पाई जाती हैं।

(iv) इन श्रेणियों की तुलना धनुष की डोरी या तलवार से भी की जाती है।

(v) हिमालय पर्वत की औसत ऊंचाई 5000 मीटर है।

(vi) इसमें बहने वाली नदियां युवावस्था में हैं। तीव्र गति के कारण ‘V’ आकार की तंग तथा गहरी (‘V’ shaped narrow valley) घाटी बनाती है।

(vii) हिमालय पर्वत के पूर्व तथा पश्चिम में दो मोड़ हैं जिन्हें “दीर्घ पर्वतीय मोड़” या Hair pin bend कहा जाता है।

(viii) इन पर्वतों पर हिमानी के कार्य के प्रमाण पाए जाते हैं। जैसे – करेवा, यू-आकार घाटी तथा हिमनदियां मिलती हैं।

क्षेत्रीय विभाजन (Regional Division ): इन दीर्घ मोड़ों के बीच कश्मीर से लेकर असम तक, सिन्धु घाटी था ब्रह्मपुत्र नदियों के बीच फैले हुए हिमालय पर्वत को चार भागों में बांटा जाता है
(क) असम हिमालय: तिस्ता – ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य का भाग (720 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)
(ख) नेपाल हिमालय: काली – तिस्ता नदी के मध्य का भाग ( 800 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)
(ग) कुमायूं हिमालय: सतलुज- काली नदी के मध्य का भाग (320 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)
(घ) पंजाब हिमालय: सिन्धु – सतलुज नदी के मध्य का भाग ( 560 कि० मी० लम्बा क्षेत्र)

भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वत की ऊंचाई को देख कर इसे चार भागों में बांटा जा सकता है। ये भाग एक-दूसरे के समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए हैं:

  1. ट्रांस हिमालय (Trans Himalayas)
  2. महान् हिमालय (Great Himalayas) or (Inner Himalayas)
  3. लघु हिमालय (Lesser Himalayas) or (Middle Himalayas)
  4. उप हिमालय (Sub – Himalayas) or (Outer Himalayas)

1. ट्रांस हिमालय (Trans Himalayas):
ये भारत के उत्तर-पश्चिम में ऊंची तथा विशाल पर्वतमालाएं हैं जोकि महान् हिमालय के पीछे स्थित हैं। इनकी ऊंचाई 6000 मीटर से भी अधिक है। कराकोरम (Kara Koram), लद्दाख तथा कैलाश पर्वत मुख्य पर्वत श्रेणियां हैं। K, Mt. Godwin Austin 8611 मीटर संसार में दूसरी बड़ी ऊंची चोटी है।

2. महान् हिमालय (Great Himalayas ):
पश्चिम में सिन्धु घाटी तथा पूर्व में ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच यह सबसे लम्बी पर्वत श्रेणी है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। यह अत्यन्त दुर्गम क्षेत्र है। सदा बर्फ से ढके रहने के कारण इसे हिमाद्री (Snowy Ranges ) भी कहते हैं। इस पर्वतमाला को भीतरी हिमालय ( Inner Himalayas ) भी कहते हैं। इस भाग में झीलों के भर जाने के कारण 1500 मीटर की ऊंचाई पर दो प्रसिद्ध घाटियां हैं
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(क) काठमांडू घाटी तथा
(ख) कश्मीर घाटी।
इस श्रेणी में हिमालय के ऊंचे शिखर मिलते हैं। माऊंट एवरेस्ट (Mount Everest) (8,848 मीटर) संसार में सबसे ऊंचा शिखर है।

मुख्य शिखर (High Summits): मुख्य पर्वत शिखर इस प्रकार हैं

  1. माउंट एवरेस्ट 8,848 मीटर
  2. कंचनजंगा – 8,598 मीटर
  3. मकालू – 8,481 मीटर
  4. धौलागिरि – 8, 172 मीटर
  5. नांगा पर्वत – 8, 126 मीटर
  6. अन्नपूर्णा – 8,078 मीटर
  7. नन्दा देवी – 7,817 मीटर
  8. नामचा बरवा 7,756 मीटर

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(iii) लघु हिमालय (Lesser – Himalayas):
यह हिमालय की तीसरी श्रेणी है जिसकी औसत ऊंचाई 3700 मीटर से 4580 मीटर तक है। यह पर्वत श्रेणी 75 किलोमीटर की चौड़ाई से महान् हिमालय के दक्षिण में इसके समानान्तर फैली हुई है। इसे ” मध्य हिमालय” (Middle Himalayas) भी कहते हैं। इसमें कई पर्वत श्रेणियां शामिल हैं। जैसे—कश्मीर में पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार, उत्तर प्रदेश में कुमायूं श्रेणी तथा भूटान में थिम्पू श्रेणी है। देश के कई स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान जैसे – शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग आदि इस पर्वत श्रेणी में स्थित हैं। इन पर्वतीय ढलानों पर छोटे-छोटे घास के मैदान भी मिलते हैं। जैसे – कश्मीर में गुलमर्ग तथा सोनमर्ग।

(iv) उप हिमालय (Sub Himalayas):
यह हिमालय पर्वत की दक्षिण श्रेणी है तथा इसे शिवालिक (Shiwalik) भी कहते हैं। इन्हें हिमालय पर्वत की तलहटी (Foot hills) भी कहते हैं। यह हिमालय पर्वत से नदियों द्वारा लाई हुई मिट्टी, रेत, बजरी के निक्षेप से बनी है। इनकी औसत ऊंचाई 1000 मीटर है तथा चौड़ाई 15 से 50 किलोमीटर तक है।
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शिवालिक तथा लघु हिमालय के बीच समतल लम्बाकार घाटियां मिलती हैं जिन्हें ‘दून’ (Doons) कहते हैं। जैसे- देहरादून, कोथरीदून तथा पटलीदून।

पूर्वी शाखाएं (Eastern Off-shoots ):
दूर पूर्व की ओर हिमालय पर्वतमालाएं दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं। इस भाग में पटकोई (Patkoi ), लोशाई (Lushai) तथा नागा (Naga) पर्वत श्रेणियां हैं जो दक्षिण में अराकान योमा के रूप में बर्मा (म्यनमार) तथा भारत की सीमा बनाती हैं । इसकी एक शाखा में गारो (Garo ), खासी (Khasi), जैन्तिया (Jaintia) की पहाड़ियां हैं।

पश्चिमी शाखाएं (Western Off-shoots ):
दूर पश्चिम में हिमालय पर्वत मालाएं दक्षिण पर्वत की ओर मुड़ जाती हैं। इस भाग में साल्ट रेंज (Salt Range), सुलेमान, किरथार श्रेणियां हैं । इस भाग से हिन्दुकुश पर्वत मालाएं निकल कर अफगानिस्तान तक चली गई हैं।

प्रश्न 3.
सतलुज, गंगा मैदान के विस्तार, रचना तथा विभिन्न भागों का वर्णन करो।
उत्तर:
सतलुज- गंगा का मैदान (Sutlej-Ganges Plain)
विस्तार (Extent ):
हिमालय पर्वत तथा प्रायद्वीप के बीच पूर्व-पश्चिम में फैला हुआ विशाल मैदान है। यह लगभग 3,200 किलोमीटर लम्बा तथा 150 से 300 किलोमीटर तक चौड़ा है। असम में इस मैदान की चौड़ाई सब से कम 90-100 कि० मी० है। राज महल पहाड़ियों के पास 160 कि० मी० तथा इलाहाबाद के पास 280 कि० मी० है। इसकी औसत ऊंचाई, 150 मीटर है तथा इसका क्षेत्रफल 7.5 लाख वर्ग किलोमीटर है। यह मैदान सतलुज, गंगा तथा इनकी सहायक नदियों द्वारा निक्षेप के कार्य से बना है।

रचना (Formation):
गोंडवाना लैण्ड तथा हिमालय के मध्य एक लम्बी पेटी के रूप में भूमि का भाग धंस गया था। यह मैदान हिमालय पर्वत बनने के बाद बना। यह भाग धीरे-धीरे नदियों द्वारा तलछट के निक्षेप से भरता चला गया। (The great plain is an alluvium filled trough.) एक अनुमान के अनुसार गंगा नदी प्रति वर्ष 3000 लाख टन मिट्टी इस मैदान में बिछाया करती है।

विशेषताएं (Characteristics): इस मैदान की कई विशेषताएं हैं:

  1. समतल मैदान (Dead Flat Lowland):
    यह एक समतल सपाट मैदान है। ऊंचे भाग बहुत कम हैं। इसमें सबसे ऊंचा प्रदेश अम्बाला क्षेत्र है जिसकी ऊंचाई 283 मीटर है। इस मैदान के धरातल की एक रूपता प्रभाव पूर्ण है। कहीं- कहीं नदी निक्षेप से बनी वेदिकाएं (Terraces) बल्फ तथा भांगर मिलते हैं।
  2. धीमी ढाल (Gentle Slope ): गंगा के मैदान का ढाल औसत रूप से 1/4 मीटर प्रति किलोमीटर है।
  3. तलछट की गहराई (Thickness of Alluvium): हज़ारों साल से लगातार निक्षेप के कारण लगभग 2000 मीटर गहरी मिट्टी (Silt) मिलती है। यह ध्वनि से मापे जाने वाली गहराई है।
  4. अनेक नदियां (Many Rivers ): इस मैदान में नदियों का जाल बिछा हुआ है जिसके कारण सारा मैदान छोटे- छोटे टुकड़ों, दोआबों (Doabs) में बंट गया है। नदियां चौड़ी घाटियां बनाती हैं तथा धीमी बहती हैं।
  5. उपजाऊ मिट्टी ( Fertile Soils): छारी मिट्टी बहुत उपजाऊ है। धरातल में विभिन्नता केवल ‘खादर’ या ‘बांगर’ मिट्टी के कारण ही मिलती है। पुरानी कछारी मिट्टी से बने ऊंचे प्रदेशों को बांगर प्रदेश तथा नवीन कछारी मिट्टी से बने निचले प्रदेशों को खादर प्रदेश कहते हैं। यहां बाढ़ का पानी प्रति वर्ष नई मिट्टी की परत बिछा देता हैं। कहीं-कहीं कंकड़ तथा भूर की भू-रचना भी है।

उत्तरी मैदान का विभाजन (Division of Northern Plain): उत्तरी मैदान को नदी घाटियों के अनुसार निम्न- लिखित भागों में बांटा जा सकता है
(i) भाभर तथा तराई प्रदेश:
शिवालिक पहाड़ियों के दामन में तंग पेटियों के रूप में यह मैदान है। भाभर शिवालिक के साथ-साथ एक लगातार मैदान है जो सिन्धु से तिस्ता नदी तक फैला हुआ है। सरंधर चट्टानों के कारण नदियां इस क्षेत्र में विलीन हो जाती हैं। नदियों की धीमी गति के कारण बजरी तथा कंकर के निक्षेप से ‘भाभर’ का मैदान बना है, परन्तु तराई के मैदान में दलदली प्रदेश अधिक हैं। तराई क्षेत्र में नदियां पुनः धरातल पर प्रकट हो जाती हैं।

(ii) सतलुज घाटी:
सतलुज, ब्यास, रावी आदि नदियों के निक्षेप से पंजाब और हरियाणा का मैदान बना है। इस मैदान की ढाल दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इसे पश्चिमी मैदान भी कहते हैं। दो नदियों के मध्य क्षेत्र को दोआब कहा जाता है । शिवालिक पहाड़ियों से निकलने वाली बरसाती नदियों (चो) के कारण मिट्टी कटाव की गम्भीर समस्या है। इस मैदान में ऊंचे भाग धाया तथा निचले भाग बेट कहलाते हैं।

(iii) गंगा का मैदान:
यह विशाल मैदान गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, गंडक आदि नदियों द्वारा निक्षेप से बना है। इसे गंगा की ऊपरी घाटी, मध्य घाटी तथा निचली घाटी नामक तीन भागों में बांटा जाता है। इस मैदान में पाए जाने वाले दोआब क्षेत्रों को गंगा-यमुना दोआब, रोहिलखण्ड तथा अवध प्रदेश के नाम से जाना जाता है। चम्बल घाटी में उत्खात भूमि (Bad land) की रचना हुई है।

(iv) ब्रह्मपुत्र घाटी:
इस मैदान के पूर्वी भाग में ब्रह्मपुत्र नदी असम घाटी बनाती है। समुद्र में गिरने से पहले गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियां एक विशाल डेल्टे का निर्माण करती हैं जो 80,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और संसार में सबसे बड़ा डेल्टाई प्रदेश है। इस डेल्टा के पुराने क्षेत्रों को चर (Char) तथा निचले क्षेत्रों को बिल (Bill) कहते हैं। उत्तरी भाग को पैरा- डेल्टा ( अपघर्षण क्षेत्र ) तथा दक्षिणी भाग को डेल्टा (निक्षेपण क्षेत्र) कहते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं तथा विभिन्न भागों का वर्णन करो।
अथवा
प्रायद्वीपीय पठार का भौगोलिक वर्णन करें।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)
विस्तार (Extent ):
दक्षिण पठार भारत का सबसे प्राचीन भू-खण्ड है। यह पठार तीन ओर सागरों से घिरा हुआ है। इसलिए इसे प्रायद्वीपीय पठार कहते हैं। इसका क्षेत्रफल 16 लाख वर्ग किलोमीटर है। इस प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर है। उत्तर पश्चिम में दिल्ली रिज से अरावली तथा कच्छ तक, गंगा यमुना के समानान्तर राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग पठार इसकी मूल उत्तरी सीमा है। इसका शीर्ष कन्याकुमारी है । अरावली, शिलांग पठार, राजमहल पहाड़ियां इस त्रिभुज की भुजाएं हैं।

विशेषताएं (Characteristics):
1. यह भाग प्राचीन, कठोर रवेदार चट्टानों से बना हुआ है। यह एक स्थिर भू-भाग (Stable Block) है। यह पठार क्रमिक अपरदन के कारण घिस गया है तथा यहां वृद्धावस्था के चिन्ह मिलते हैं।

2. यह भाग प्राचीन समय में गोंडवाना लैण्ड (Gondwana Land) का ही भाग था जिसमें अफ्रीका, अरब, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी अमेरिका के पठार शामिल थे।

3. इस प्रदेश का मुख्य भाग ज्वालामुखी उद्गार के कारण लावा के जमने से बना है।

4. यह प्रदेश भारत की खनिज सम्पत्ति का भण्डार है।

5. इस पठार का भीतरी भाग नदी घाटियों में कटा-छटा है। सपाट शिखर तथा गहरी द्रोणी घाटियां हैं। सीढ़ीदार ढाल,
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दरारें (Faults) प्राचीन पर्वतों के अवशेष, नीची पहाड़ियों की एक मुद्रिका, घिसे हुए पठार तथा भ्रांशित द्रोणियां मिलती हैं। यह अनाच्छादित पठार कगारों की एक श्रृंखला के रूप में उठा हुआ है।

6. यह पठार कई छोटे-छोटे भागों में बंट गया है।

7. प्रायद्वीपीय उच्च भूमि में विविधता के मुख्य कारण हैं- पृथ्वी की हलचलें, अपरदन क्रिया, उत्थान, निमज्जन, भ्रंशन तथा विभंगन क्रियाएं।

दक्षिणी पठार का विभाजन (Division of Deccan Plateau ) :
21° उत्तर तथा 24° उत्तरी अक्षांश के बीच पूर्व- पश्चिम दिशा में फैली हुई सतपुड़ा पहाड़ियों का क्रम (Line of Satpura Ranges) दक्षिणी पठार को दो भागों में बांटता

  1. मालवा का पठार (Malwa Plateau )
  2. दक्षिण का मुख्य पठार (Deccan Trap)

(i) मालवा का पठार:
पश्चिम में अरावली पर्वत, पूर्व में गंगा घाटी तथा दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत इस त्रिभुजाकार की सीमाएं बनाते हैं। अरावली पर्वत बचे-खुचे पर्वत (Relict Mountains) है। जो दिल्ली – रिज तक विस्तृत हैं। सबसे ऊंचा शिखर गुरु शिखर (Guru Shikhar ) 1,772 मीटर ऊंचा है। अरावली के पश्चिम में थार की बलुई मरुभूमि है जहां बरखान टीले मिलते हैं। इस पठार में बुन्देलखण्ड, चम्बल घाटी तथा मालवा की अस्त-व्यस्त धरातल तथा जल प्रवाह है। यह प्रदेश नीस व क्वार्टज़ाइट की प्राचीन कठोर चट्टानों का बना हुआ है। मालवा के पठार का पूर्वी भाग महादेव, मैकाल, राजमहल की पहाड़ियों के रूप में फैला हुआ है। सोन नदी के पूर्व में छोटा नागपुर का कटा छटा पठार है जो भारत का खनिज भण्डार है। यह पठार 1070 मीटर तक ऊंचा है।

(ii) दक्कन का मुख्य लावा पठार:
यह पठार नर्मदा नदी के दक्षिण में है। इसके तीन ओर पर्वत श्रेणियां हैं। पश्चिम में पश्चिमी घाट, पूर्व में पूर्वी घाट तथा उत्तर में सतपुड़ा की ओर पहाड़ियां इस पठार की सीमाएं बनाती हैं। विन्ध्य तथा सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच नर्मदा एवं ताप्ती की द्रोणियां मिलती हैं। पूर्वी घाट पश्चिमी घाट के मध्य कर्नाटक पठार है। कर्नाटक पठार के दो भाग हैं मालन्द तथा मैदान मालन्द उच्च भूमि पर बाबा बूदन पहाड़ियां हैं। पूर्व में महानदी बेसिन में छत्तीसगढ़ के मैदान प्रसिद्ध हैं। इस पठार की ढाल उत्तर-पश्चिम (North West) से दक्षिण पूर्व (South East ) की ओर है जो इस प्रदेश की नदियों की दिशा से स्पष्ट है। (It is a titled plateau with a general eastward slope.) इन नदियों ने इस पठार को कई भागों में बांट दिया है

(क) पश्चिमी घाट (Western Ghats):
यह ताप्ती घाटी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक 1500 किलोमीटर लम्बी तथा निरन्तर पर्वत श्रेणी है। इसमें केवल तीन दर्रे हैं- थाल घाट, भोरघाट तथा पालघाट । इस पर्वत की पश्चिमी ढाल पर छोटी तथा तीव्र बहने वाली नदियां हैं, परन्तु पूर्वी ढाल से उतरने वाली नदियां धीमी गति तथा अधिक लम्बाई के कारण डेल्टे (Deltas) बनाती हैं। अधिक वर्षा के कारण गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं। इस पर्वतीय भाग की औसत ऊंचाई 1000 मीटर है। इस भाग में कई भौतिक इकाइयां मेज़नुमा उच्च भूमियां लगती हैं; जैसे- अजन्ता तथा बालाघाट।

(ख) पूर्वी घाट (Eastern Ghats ):
महानदी घाटी से लेकर नीलगिरि की पहाड़ियों तक 800 किलोमीटर में फैले हुए पूर्वी घाट पठार की पूर्वी सीमा बनाते हैं। इनकी औसत ऊंचाई 500 मीटर है। ये पर्वत मालाएं पश्चिमी घाट की अपेक्षा कम ऊंची तथा अधिक कटी-छटी हैं। इस पर्वत में कई भागों के बीच Wide Gaps मिलते हैं जिनमें से कई नदियां बहती हैं। उत्तर में ये छोटा नागपुर के पठार में मिल जाते हैं तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों में । दक्षिण भाग में जावादी (Javadi), पालकोंडा ( Palkonda ), शिवराय (Shevaroy), नालामलाई (Naillamalai) की पहाड़ियां हैं।

(ग) नीलगिरि की पहाड़ियां (Nilgiri Hills):
पश्चिमी तथा पूर्वी घाट नीलगिरि की पहाड़ियों में मिल जाते हैं। ये भूखण्ड ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों से बना है। अनाई मुदी 2698 सबसे ऊंचा शिखर है। यह एक पर्वतीय गाठ (knot) है। इसके दक्षिण में अनामलाई ( Anaimalai ), पलनी (Palni) तथा कार्डामम (Cardamom) की पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 5.
भारत के तटीय मैदानों तथा द्वीपों का वर्णन करें।
उत्तर:
तटीय मैदान (Coastal Plains): दक्षिणी पठार के पूर्वी तथा पश्चिमी किनारे पर तंग तटीय मैदान हैं जिन्हें पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान कहते हैं।

  1. इन मैदानों में चावल की खेती की जाती है।
  2. तटों पर नारियल के कुंज पाए जाते हैं।
  3. मछलियां पकड़ने के उत्तम केन्द्र हैं।
  4. इन तटों पर भारत की प्रमुख बन्दरगाहें पाई जाती हैं।
  5. इन तटों पर नमक, मोनोज़ाइट खनिज, पेट्रोलियम के भण्डार प्राप्त हैं।

1. पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plain:
यह मैदान महानदी डेल्टा से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। यह 50 किलोमीटर से 500 किलोमीटर तक चौड़ा है। इस भाग में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के चौड़े तथा उपजाऊ डेल्टाई प्रदेश हैं। इस तट पर रेत के टीले (Sand Dunes) मिलते हैं जिनके कारण चिलका झील तथा पुलीकट झील का निर्माण हुआ है। इस तट को कोरोमण्डल तट भी कहते हैं।

2. पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain ):
अब अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच एक तंग मैदान है जो उत्तर दक्षिण में फैला हुआ है। इस मैदान की चौड़ाई 50 किलोमीटर तक है। इस तट पर गिरने वाली नदियां तीव्र ढाल के कारण डेल्टा नहीं बनाती हैं। इस तटीय मैदान के उत्तरी भाग (गोआ से मुम्बई तक ) को कोंकण (Konkan) तट कहते हैं । गोआ से आगे दक्षिणी भाग को मालाबार (Malabar ) तट कहते हैं। इस तट के साथ-साथ लम्बी झीलें है (Lagoons) मिलती हैं जिन्हें एक-दूसरे से मिलाकर जल मार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता

द्वीप (Islands):
हिन्द महासागर में लगभग 550 द्वीप पाए जाते हैं। इन द्वीपों के तीन समूह निम्नलिखित हैं।
(i) अंडमान-निकोबार द्वीप समूह (Andaman Nicobar Islands ):
ये द्वीप 60°N से 14°N अक्षांश के मध्य स्थित है। अंडमान द्वीप समूह में 214 द्वीप हैं जबकि निकोबार द्वीप समूह में 19 द्वीप हैं। 10° चैनल इन द्वीप समूहों को पृथक् करती हैं। ये द्वीप 500 कि० मी० उत्तर दक्षिण में फैले हुए हैं। महासागरीय तट में डूबी पहाड़ियों के शिखर द्वीप के रूप में स्थित हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान 7

(ii) बैरन द्वीप तथा नारकण्डम द्वीप (Barren Island and Norcondam Island): ये ज्वालामुखी द्वीप हैं। भारत में केवल एक सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप हैं।

(iii) लक्षद्वीप (Laskhadweep): अरब सागर में प्रवाल निक्षेपों से बने लक्षद्वीप समूह हैं। ये केरल तट से 320 कि० मी० दूर 8°N से 12°N तक फैले हुए हैं। इन्हें अटाल (Atoll) भी कहते हैं। इनकी संख्या 27 है।

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JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Jharkhand Board Class 12 History राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 30

प्रश्न 1.
ऐसे कौनसे क्षेत्र हैं जहाँ राज्य और नगर सर्वाधिक सघन रूप से बसे थे?
उत्तर:
मानचित्र – 1 को देखने से स्पष्ट होता है कि मध्य गंगा घाटी अर्थात् पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा वर्तमान बिहार और झारखण्ड वाले क्षेत्र सर्वाधिक घने बसे थे।

पृष्ठ संख्या 31 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
मगध के शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उदय के प्रमुख कारण लिखिए।
अथवा
मगध की सत्ता के विकास के लिए आरम्भिक और आधुनिक लेखकों ने क्या-क्या व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं? एक-दूसरे से कैसे भिन्न हैं?
अथवा
मगध साम्राज्य के उत्थान के दो महत्त्वपूर्ण कारण बताइये।
उत्तर:
आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मगध की सत्ता के विकास के कारक-आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मगध की सत्ता के विकास के प्रमुख कारक निम्नलिखित थे –

  • मगध का प्रदेश बहुत उपजाक था।
  • मगध में लोहे की खदानें भी सरलता से उपलब्ध थीं। लोहे से उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
  • मगध के जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग थे।
  • गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था।

आरम्भिक इतिहासकारों के अनुसार मगध की सत्ता के विकास के कारण आरम्भिक जैन और बौद्ध इतिहासकारों के अनुसार बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापद्म नन्द जैसे प्रसिद्ध तथा महत्त्वाकांक्षी शासकों की नीतियाँ मगध के विकास के लिए उत्तरदायी थीं।

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पृष्ठ संख्या 31

प्रश्न 3.
राजगीर के किले की दीवारों का निर्माण क्यों किया गया?
उत्तर:
प्रारम्भ में राजगीर मगध महाजनपद की राजधानी थी। पहाड़ियों के बीच बसा राजगीर एक किलेबन्द शहर था। किलेबन्द शहर में राजा, मन्त्रियों तथा प्रमुख अधिकारियों . के निवास स्थान बने हुए थे यहाँ अनेक सैनिक टुकड़ियाँ भी रहती थीं। इस प्रकार राजगीर (राजनीतिक), सैनिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था। अतः राजगीर की शत्रु से रक्षा के लिए शहर के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था।

पृष्ठ संख्या 32

प्रश्न 4.
सिंह शीर्ष को आज महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
अशोक द्वारा बनवाया गया सारनाथ का पाषाण स्तम्भ तत्कालीन स्थापत्यकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस स्तम्भ के शीर्ष भाग पर बनी चार शेरों की मूर्तियाँ बड़ी सजीव तथा आकर्षक हैं। शेर के नीचे के पत्थर पर चार धर्म चक्र तथा चार पशु-घोड़ा, शेर, हाथी एवं बैल चित्र अंकित हैं। अशोक के सिंह शीर्ष को भारत सरकार ने राज्य चिह्न के रूप में अपनाया है। यह हमारी शूरवीरता, शान्तिप्रियता तथा एकता का प्रतीक है। इसलिए सिंह शीर्ष को आज महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

पृष्ठ संख्या 33

प्रश्न 5.
क्या यह भी सम्भव है कि जो क्षेत्र शासकों के अधीन नहीं थे, वहाँ भी उन्होंने अभिलेख उत्कीर्ण करवाए होंगे ?
उत्तर:
प्रायः शासक उन्हीं क्षेत्रों में अभिलेख उत्कीर्ण करवाते थे, जो उनके अधीन होते थे अतः यह सम्भव नहीं है कि जो क्षेत्र शासकों के अधीन नहीं थे, वहाँ भी उन्होंने अपने अभिलेख उत्कीर्ण करवाये थे।

पृष्ठ संख्या 34

प्रश्न 6.
विभिन्न व्यावसायिक समूहों के निरीक्षण के लिए इन अधिकारियों को क्यों नियुक्त किया जाता था?
उत्तर:
मौर्य सम्राट कुशल प्रशासक थे। उन्होंने विभिन्न व्यावसायिक समूहों के निरीक्षण के लिए अनेक अधिकारियों को नियुक्त किया। अकेला एक अधिकारी समस्त व्यावसायिक गतिविधियों पर सुचारु रूप से नियन्त्रण नहीं रख सकता था। इसलिए मौर्य सम्राटों द्वारा व्यावसायिक समूहों के निरीक्षण के लिए अनेक अधिकारियों को नियुक्त किया जाता था ताकि आर्थिक गतिविधियाँ बिना किसी अवरोध के सुचारु रूप से चलती रहें तथा वाणिज्य-व्यापार का समुचित विकास होता रहे।

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पृष्ठ संख्या 34 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
मेगस्थनीज और ‘अर्थशास्त्र’ से उद्धत अंशों को पुनः पढ़िए मौर्य शासन के इतिहास लेखन में ये ग्रन्थ कितने उपयोगी हैं?
उत्तर:
मेगस्थनीज-मेगस्थनीज की पुस्तक ‘इण्डिका’ से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था तथा मौर्यकालीन सामाजिक अवस्था के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। मेगस्थनीज के विवरण से ज्ञात होता है कि नदियों की देखरेख, भूमि-मापन, शिकारियों के संचालन, कर वसूल करने आदि कार्यों के लिए अनेक अधिकारी नियुक्त किए जाते थे मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति और 6 उपसमितियों का उल्लेख किया है एक उपसमिति नौसेना, दूसरी समिति रसद विभाग, तीसरी समिति पैदल सेना, चौथी समिति अश्वारोही सेना, पाँचवीं समिति रथ सेना तथा छठी समिति हाथी सेना का प्रबन्ध करती थी। मेगस्थनीज के विवरण से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र नगर का प्रबन्ध करने के लिए 30 सदस्यों की एक परिषद् होती थी।

यह परिषद् पाँच-पाँच सदस्यों की 6 समितियों में विभक्त थी। ये 6 समितियाँ थीं –

  1. शिल्पकला समिति
  2. विदेशी यात्री समिति
  3. जनसंख्या समिति
  4. वाणिज्य समिति
  5. उद्योग समिति
  6. कर समिति

अर्थशास्त्र – चाणक्यकृत ‘अर्थशास्त्र’ से मौर्यो की शासन व्यवस्था तथा मौर्यकालीन सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। ‘अर्थशास्त्र’ में सैनिक और प्रशासनिक संगठन के बारे में विस्तृत विवरण मिलते हैं। अर्थशास्त्र से मौर्यकालीन सम्राट, मन्त्रिपरिषद् प्रशासनिक विभागों, गुप्तचर व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, सैन्य – व्यवस्था, राजकीय आय के साधनों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। इस प्रकार मेगस्थनीज और ‘अर्थशास्त्र’ मौर्यशासन के इतिहास लेखन में अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ हैं। पृष्ठ संख्या 35

प्रश्न 8.
यदि यूनानी विवरण सही है, तो बताइये कि इतनी बड़ी सेना के भरण-पोषण के लिए मौर्य शासकों को किस तरह के संसाधनों की जरूरत पड़ती होगी?
उत्तर:
यूनानी इतिहासकारों के अनुसार मौर्य सम्राट के पास 6 लाख पैदल सैनिक 30 हजार घुड़सवार तथा 9 हजार हाथी थे। इतनी बड़ी सेना के भरण-पोषण के लिए मौर्य शासकों को निम्नलिखित संसाधनों की आवश्यकता पड़ती होगी –
(1) राजस्व मौर्य सम्राटों को भूमिकर, आयात- निर्यात कर, बिक्रीकर, वनों खानों जुर्माने न्यायालय- शुल्क, व्यावसायियों पर कर आदि अनेक करों से राजस्व की प्राप्ति होती थी। विभिन्न प्रकार के जुमनों तथा सम्पत्ति की जब्ती से भी राज्य की आमदनी होती थी।

(2) सैन्य सामग्री – सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तलवार, भाले, धनुष-बाण, कवच, टोप आदि हथियार बनाए जाते थे। राजकीय कारखानों में सैन्य सामग्री, हथियारों आदि का निर्माण किया जाता था।

(3) यातायात के साधन सैनिक अभियानों में सफलता प्राप्त करने के लिए यह भी आवश्यक था कि यातायात के साधनों का विकास किया जाए। अतः मौर्य शासकों ने अनेक सड़कों का निर्माण करवाया। उनकी मरम्मत तथा रखरखाव का भी उचित प्रबन्ध किया जाता था। जल यातायात के साधनों का विकास किया गया।

(4) रसद – कृषि, उद्योग-धन्धों तथा व्यापार वाणिज्य की उन्नति को भी प्रोत्साहन दिया गया।

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पृष्ठ संख्या 36

प्रश्न 9.
राजा को किस प्रकार दर्शाया गया है?
उत्तर:
चित्र 24 में कुषाण राजा कनिष्क को ‘देवपुत्र’ के रूप में दर्शाया गया है।

प्रश्न 10.
लोग पाण्ड्य सरदारों के लिए यह उपहार क्यों लाए ? सरदार इन उपहारों का उपयोग किसलिए करते होंगे?
उत्तर:
सरदार शक्तिशाली व्यक्ति होते थे। वे विशेष अनुष्ठानों का संचालन करते थे, युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करते थे तथा विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाते थे। वे अपने अधीन लोगों से भेंट लेते थे। अतः लोग पाण्ड्य सरदारों का बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वे उनकी आक्रमणकारियों से रक्षा करते थे इसलिए वे सरदारों के लिए विभिन्न प्रकार के उपहार लाते थे सरदार इन उपहारों को अपने समर्थकों में बांट देते होंगे। सम्भव है कि वे कुछ उपहारों का स्वयं भी उपयोग करते होंगे।

पृष्ठ संख्या 37

प्रश्न 11.
इस मूर्ति में ऐसी क्या विशेषताएँ हैं जिनसे यह प्रतीत होता है कि यह एक राजा की मूर्ति है ? (चित्र के लिए देखें पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ 37 चित्र 2.5 )
उत्तर:
इस मूर्ति की निम्नलिखित विशेषताओं से प्रतीत होता है कि यह एक राजा की मूर्ति है –
(1) मूर्ति को निरकुंश एवं गौरवपूर्ण मुद्रा में दिखाया गया है।
(2) उसके एक हाथ में तलवार तथा दूसरे हाथ में म्यान है।
(3) उसकी वेशभूषा शाही है।

पृष्ठ संख्या 37 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
राजाओं ने दिव्य स्थिति का दावा क्यों किया?
उत्तर:
विदेशी राजाओं के लिए उच्च स्थिति प्राप्त करने तथा अपनी प्रजा से अपनी आज्ञाओं का पालन करवाने का एक प्रमुख साधन विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ना था। अतः लगभग प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से प्रथम शताब्दी ई. में अनेक विदेशी राजाओं ने दिव्य स्थिति का दावा प्रस्तुत किया और अपने को देवतुल्य प्रस्तुत किया।

पृष्ठ संख्या 38

प्रश्न 13.
शासकों ने सिंचाई के प्रबन्ध क्यों किए ?
उत्तर:
(1) उपज बढ़ाने के लिए शासकों ने सिंचाई के प्रबन्ध किये। इससे राज्य की आय में भी वृद्धि होती श्री भूमि कर राज्य की आय का प्रमुख साधन था।
(2) कृषि लोगों के जीवन निर्वाह का प्रमुख साधन था। इसलिए कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई के साधनों का प्रबन्ध करना आवश्यक था।
(3) कुछ राजा प्रजावत्सल होते थे अतः उन्होंने किसानों की भलाई के लिए सिंचाई का उत्तम प्रबन्ध किया।

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पृष्ठ संख्या 39

प्रश्न 14.
क्या ये सीमा चिह्न विवाद के हल के लिए पर्याप्त रहे होंगे ?
उत्तर:
निःसंदेह ये सीमाचिह्न प्राचीनकाल में सीमा सम्बन्धी विवादों के हल के लिए पर्याप्त रहे होंगे। पृष्ठ संख्या 40

प्रश्न 15.
इस अंश में वर्णित लोगों को व्यवसाय के आधार पर आप कैसे वर्गीकृत करेंगे ?
उत्तर:
इस अंश में वर्णित लोगों को व्यवसाय के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता

  • कितन
  • श्रमिक
  • फल-फूल बेचने वाले माली।

पृष्ठ संख्या 41

प्रश्न 16.
इस गाँव में कौन-कौनसी वस्तुएँ पैदा की जाती थीं?
उत्तर:
इस गाँव में खनिज पदार्थ, खदिर वृक्ष, जानवरों की खाल, घास, कोयला, फूल, दूध, मदिरा आदि वस्तुएँ पैदा की जाती थीं।

पृष्ठ संख्या 41 चर्चा कीजिए

प्रश्न 17.
यह पता कीजिए कि क्या आपके राज्य में हल से खेती, सिंचाई तथा धान की रोपाई की जाती है? और अगर नहीं तो क्या कोई वैकल्पिक व्यवस्थाएँ हैं?
उत्तर:
विद्यार्थी इसको स्वयं करें। इसके लिए विद्यार्थी, शिक्षक अथवा अभिभावक की सहायता ले सकते हैं।

पृष्ठ संख्या 43

प्रश्न 18.
तीसरी सहस्त्राब्दी ई. पूर्व में हड़प्पा सभ्यता जिस क्षेत्र में फैली, क्या वहाँ कोई नगर थे?
उत्तर:
तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व में हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत मोहनजोदड़, हड़प्या, कालीबंगा, लोथल, चन्द्रदड़ो आदि नगर थे।

पृष्ठ संख्या 44

प्रश्न 19.
लेखक ने यह सूची क्यों तैयार की थी?
उत्तर:
‘पेरिप्लस ऑफ एरीब्रियन सी’ के लेखक एक यूनानी समुद्र यात्री ने अनेक वस्तुओं की सूची तैयार की। लेखक इस सूची के माध्यम से यह बताना चाहता है कि अनेक वस्तुओं का समुद्री मार्गों द्वारा आयात-निर्यात किया जाता था। इसके लिए उसने अनेक वस्तुओं की सूची तैयार की थी। लेखक के अनुसार भारत में भारी मात्रा में पुखराज, सिक्कों, सुरमा, मूंगे, कच्चे शीशे, तौबे, टिन और सीसे का आयात किया जाता था तथा भारत से काली मिर्च, दालचीनी आदि का निर्यात किया जाता था।

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पृष्ठ संख्या 45 चर्चा कीजिए

प्रश्न 20.
व्यापार में विनिमय के लिए क्या-क्या प्रयोग होता था? उल्लिखित स्रोतों से किस प्रकार के विनिमय का पता चलता है? क्या कुछ विनिमय ऐसे भी हैं जिनका ज्ञान स्रोतों से नहीं हो पाता है?
उत्तर:
(1) व्यापार में विनिमय के लिए सिक्कों का प्रयोग व्यापार में विनिमय के लिए विभिन्न प्रकार के सिक्कों का प्रयोग किया जाता था। छठी शताब्दी ई. पूर्व में चाँदी और ताँबे के आहत सिक्कों का प्रचलन था इन सिक्कों को राजाओं ने जारी किया था। सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं ने जारी किये थे। दक्षिण भारत में रोमन सिक्के बड़ी संख्या में मिले हैं। इससे स्पष्ट है कि दक्षिण भारत का रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध था। पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के यौधेयगण राज्यों ने भी सिक्के जारी किये थे। व्यापार में यौधेय सिक्कों का भी प्रयोग किया जाता था। सोने के सबसे उत्कृष्ट सिक्के गुप्त सम्राटों ने जारी किये थे। इन सिक्कों के माध्यम से दूर देशों से व्यापार विनिमय करने में आसानी होती थी।

(2) व्यापार में विनिमय के लिए वस्तुओं का प्रयोग- व्यापार में विनिमय के लिए वस्तुओं का भी प्रयोग किया जाता था जैसे सूती कपड़े, मसाले, बहुमूल्य धातुएँ, जूट, कपास, जड़ी-बूटियाँ आदि सोने के सिक्कों के व्यापक प्रयोग से जात होता है कि बहुमूल्य वस्तुओं और भारी मात्रा में वस्तुओं का विनिमय भी किया जाता था।

पृष्ठ संख्या 46

प्रश्न 21.
क्या कुछ देवनागरी अक्षर ब्राह्मी से मिलते- जुलते हैं? क्या कुछ भिन्न भी हैं? (चित्र के लिए देखें पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ 46 )
उत्तर:
हाँ, देवनागरी का ‘द’ अक्षर ब्राह्मी के ‘द’ अक्षर से मिलता-जुलता है। ‘क’ बनावट भी ब्राह्मी अक्षर अन्य अक्षर ब्राह्मी से भिन्न हैं।

पृष्ठ संख्या 47

प्रश्न 22.
अभिलेखशास्त्रियों ने पतिवेदक शब्द का अर्थ संवाददाता बताया है। आधुनिक संवाददाता की तुलना में पतिवेदक के दायित्व कितने भिन्न रहे होंगे?
उत्तर:
आधुनिक संवाददाता की तुलना में पतिवेदक के दायित्व काफी भिन्न रहे होंगे। पतिवेदक का यह दायित्व था कि वह लोगों के समाचार सम्राट तक सदैव पहुँचाए । चाहे सम्राट कहीं भी हो, चाहे वह खाना खा रहा हो, अन्तःपुर में हो, विश्राम कक्ष में हो, गोशाला में हो या उसे पालकी में ले जाया जा रहा हो, अथवा वह वाटिका में हो, उसे लोगों के समाचार तुरन्त पहुँचाए जाएँ। परन्तु आधुनिक संवाददाता का यह दायित्व नहीं है कि उपर्युक्त परिस्थितियों में व्यक्ति तक समाचार पहुँचाए। वह अपनी सुविधानुसार लोगों तक समाचार पहुँचा सकता है। इस प्रकार पतिवेदक प्रजा तथा राज्य के बीच सन्देशवाहक का भी काम करता था।

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पृष्ठ संख्या 48 चर्चा कीजिए

प्रश्न 23.
मानचित्र 2 देखिए और अशोक के अभिलेख के प्राप्ति स्थान की चर्चा कीजिए क्या उनमें कोई एक-सा प्रारूप दिखता है?
उत्तर:
मानचित्र – 2 के अनुसार अशोक के अभिलेख प्राप्ति के स्थान निम्नलिखित हैं-

  1. मानसेहरा
  2. शहबाजगढ़ी
  3. कलसी
  4. कंदहार
  5. गिरनार
  6. जौगड़
  7. बहपुर
  8. शिशुपालगढ़
  9. सोपारा
  10. गुजर
  11. सिदपुर
  12. सारनाथ
  13. लौरिया नन्दनगढ़
  14. मास्को
  15. रुम्मिनदेई
  16. रामपुरवा

अशोक के उपर्युक्त अभिलेखों की भिन्न-भिन्न श्रेणियाँ हमें प्राप्त होती हैं इन विशेष श्रेणियों के अभिलेखों में एकरूपता दिखाई देती है।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 1.
आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न है?
उत्तर:
आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाण-
(1) लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में अनेक नगरों का उदय हुआ। इन नगरों में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियां मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। इन्हें ‘उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र’ कहा जाता है। इनका प्रयोग सम्भवतः धनी लोग करते होंगे।

(2) यहाँ से सोने, चाँदी, काँस्य, तांबे, हाथीदाँत, शीशे के बने गहनों, उपकरणों, हथियारों, बर्तनों, सीप और पक्की मिट्टी आदि के प्रमाण मिले हैं।

(3) दानात्मक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इम नगरों में बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार आदि शिल्पकार रहते थे। लौहकार लोहे का सामान बनाते थे परन्तु हड़प्पा के नगरों में लोहे के प्रयोग के प्रमाण नहीं मिले हैं।

(4) नगरों में उत्पादकों एवं व्यापारियों के संघ बने हुए जिन्हें ‘श्रेणी’ कहा जाता था ये श्रेणियों पहले कच्चा माल खरीदती थीं तथा फिर उनसे सामान तैयार कर बाजारों में बेच देती थीं। परन्तु हड़प्पा के नगरों में इन श्रेणियों के होने के प्रमाण नहीं मिलते हैं।

(5) यह सम्भव है कि शिल्पकारों ने नगरों में रहने वाले प्रतिष्ठित लोगों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए कई प्रकार के लौह उपकरणों का प्रयोग किया हो। परन्तु हड़प्पा के नगरों में लौह उपकरणों के प्रयोग का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

(6) हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने, मातृदेवी, काँसे की मूर्तियाँ बनाने, मुहरें बनाने आदि के शिल्प विकसित थे, परन्तु आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में ये प्रमाण नहीं मिलते।

प्रश्न 2.
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाजनपदों की कोई सी चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण – छठी शताब्दी ई. पूर्व भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में महाजनपद के नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है। महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित थे –

  1. अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था। परन्तु गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई ब्लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।
  2. प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जिसे प्रायः किले से घेरा जाता था किलेबन्दे राजधानियों के रख-रखाव, प्रारम्भी सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोतों की आवश्यकता होती थी।
  3. लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से संस्कृत में ब्राह्मणों द्वारा रचित धर्मशास्त्रों में शासकों तथा अन्य लोगों के लिए नियम निर्धारित किये गए और यह अपेक्षा की . जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ग से ही होंगे।
  4. किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना शासक का कर्तव्य माना जाता था।
  5. पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी एक वैध उपाय माना जाता था।
  6. धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तन्त्र संगठित कर लिया।

प्रश्न 3.
सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण इतिहासकार कैसे करते हैं?
उत्तर:
इतिहासकारों द्वारा सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करना-
(1) इतिहासकार अभिलेखों, ग्रन्थों, सिक्कों, चित्रों आदि विभिन्न प्रकार के स्रोतों का अध्ययन करते हैं तथा उनकी सहायता से सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं।

(2) साहित्यिक ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक आदि क्षेत्रों में कृषक बस्तियाँ अस्तित्व में आई और दक्कन तथा दक्षिण भारत के क्षेत्रों में चरवाहा बस्तियाँ स्थापित हुई।

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(3) पुरातात्विक स्रोतों से पता चलता है कि ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दी के दौरान मध्य दक्षिण भारत में शवों के अन्तिम संस्कार के नवीन तरीके भी ज्ञात हुए कुछ शवों के साथ लोहे के औजार और हथियार भी दफनाये जाते थे।

(4) अभिलेखों से ज्ञात होता है कि प्राकृत भाषाएँ जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं।

(5) जातक कथाओं से पता चलता है कि राजा तथा ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे। शासक अपनी प्रजा पर भारी कर लगाते थे. जिससे लोग अत्याचारों से बचने के लिए अपने घर छोड़ कर जंगलों में भाग जाते थे।

(6) किसान उपज बढ़ाने के लिए लोहे के फाल वाले हलों का प्रयोग करते थे तथा खेतों की सिंचाई के लिए कुओं, तालाबों तथा नहरों का प्रयोग करते थे।

(7) बौद्ध ग्रन्थों में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है।

(8) प्रभावती गुप्त के अभिलेख से हमें ग्रामीण प्रजा का पता चलता है।

(9) दानात्मक अभिलेखों से नगरों में रहने वाले शिल्पकारों, उत्पादकों और व्यापारियों के संघों (श्रेणियों) के बारे में जानकारी मिलती है। राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं, उसे अभिलेखों में ऑकत किया ही गया हो। उदाहरण के लिए, खेती की दैनिक प्रक्रियाएँ और दैनिक जीवन के सुख-दुःख का उल्लेख अभिलेखों में नहीं मिलता, क्योंकि प्रायः अभिलेख बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं।

प्रश्न 4.
पाण्ड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जाने वाली वस्तुओं की तुलना दंगुन गाँव (स्रोत 8) की वस्तुओं से कीजिए आपको क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं?
उत्तर:
पाण्ड्य सरदार को दी जाने वाली वस्तुएँ- पाण्ड्य सरदार को हाथी दांत, सुगन्धित लकड़ी, हिरणों के बाल से बने चंवर, मधु, चन्दन, गेरू, सुरमा, हल्दी, इलायची, मिर्च आदि वस्तुएँ भेंट की गई। इसके अतिरिक्त लोगों ने उसे नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, फूल, सुपारी, केला तथा बाघ के बच्चे, हाथी, बन्दर, भालु, मृग, मोर, कस्तुरी, जंगली मुर्गे, बोलने वाले तोते, शेर आदि भी उपहार में दिए। दंगुन गाँव की वस्तुएँ – दंगुन गाँव की वस्तुओं में घास, जानवरों की खाल, कोयला, मदिरा, नमक, खनिज पदार्थ, खदिर वृक्ष के उत्पाद, फूल, दूध आदि सम्मिलित हैं।

समानताएँ – फूल की समानता पाई जाती है।
असमानताएँ – हाथीदाँत, सुगन्धित लकड़ी, हिरणों के बाल से बने चंवर, मधु, चन्दन, गेरू, सुरमा, हल्दी, इलायची, मिर्च, नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, सुपारी, केला तथा अनेक पशु-पक्षी, घास, जानवरों की खाल, कोयला, मदिरा, नमक, खनिज पदार्थ, खंदिर वृक्ष के उत्पाद, दूध आदि वस्तुओं में असमानताएं पाई जाती हैं।

प्रश्न 5.
अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं की सूची बनाइये।
उत्तर:
अभिलेखशास्त्रियों की समस्याएँ- अभिलेखशास्त्रियों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
(1) कभी-कभी अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है, जिन्हें पढ़ पाना कठिन होता है।
(2) अभिलेख नष्ट भी हो सकते हैं, जिससे अक्षर लुत जाते हैं।
(3) अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान हो पाना भी हमेशा आसान नहीं होता क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से सम्बन्धित होते हैं।
(4) यद्यपि अभिलेख हजारों की संख्या में प्राप्त हुए हैं, परन्तु सभी के न तो अर्थ निकाले जा सके हैं और न ही उनके अनुवाद किए गए हैं।
(5) अनेक अभिलेख और भी रहे होंगे परन्तु अब उनका अस्तित्व नहीं बचा है इसलिए जो अभिलेख अभी उपलब्ध हैं, वे सम्भवतः कुल अभिलेखों के अंश मात्र हैं।
(6) अभिलेखों के सम्बन्ध में एक और मौलिक समस्या भी है। यह आवश्यक नहीं है कि जिसे हम आज राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं, उसे अभिलेखों में ऑकत किया ही गया हो। उदाहरण के लिए, खेती की दैनिक प्रक्रियाएँ और दैनिक जीवन के सुख-दुःख का उल्लेख अभिलेखों में नहीं मिलता, क्योंकि प्रायः अभिलेख बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं।
(7) अभिलेख सदैव उन्हीं व्यक्तियों के विचार व्यक्त करते हैं, जो उन्हें बनवाते थे। इन अभिलेखों में सामान्य लोगों के विचारों के विषय में जानकारी नहीं मिलती। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

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प्रश्न 6.
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इनमें से कौन- कौनसे तत्त्वों के प्रमाण मिलते हैं?
अथवा
मौर्य प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षण मौर्य साम्राज्य को भारत का प्रथम विस्तृत तथा स्वतन्त्र साम्राज्य माना जाना है क्योंकि इस साम्राज्य का अपना व्यवस्थित प्रशासन तथा नियमावली थी। इसी के आधार पर मौर्य साम्राज्य एक महान् साम्राज्य का स्वरूप धारण कर पाया। मौर्य प्रशासन में तत्कालीन समय में अनेक विशेषताएँ विद्यमान थीं। मेगस्थनीज के विवरण, कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा अशोक के अभिलेखों से हमें मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है।

मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित थे –
(1) पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र- मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे राजधानी पाटलिपुत्र तथा चार प्रान्तीय केन्द्र – तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि। इनमें से मौर्य साम्राज्य का सबसे बड़ा केन्द्र पाटलिपुत्र था; जो मौर्य साम्राज्य की राजधानी था। शेष प्रान्तीय केन्द्र थे। इन राजनीतिक केन्द्रों का उल्लेख अशोक के अभिलेखों में मिलता है।

(2) असमान प्रशासनिक व्यवस्था इतिहासकारों के अनुसार मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था समान नहीं थी। मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित क्षेत्र एक जैसे नहीं थे। ये क्षेत्र बड़े विविध और भिन्न-भिन्न प्रकार के थे-कहाँ अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र और कहाँ उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र। परन्तु यह सम्भव है कि मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र तथा उसके आस-पास के प्रान्तीय केन्द्रों पर सबसे प्रबल प्रशासनिक नियन्त्रण रहा हो।

(3) प्रशासनिक केन्द्रों का चयन प्रान्तीय केन्द्रों का चयन बड़े ध्यान से किया गया था। तक्षशिला तथा उज्जयिनी दोनों लम्बी दूरी वाले महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग पर स्थित थे। कर्नाटक में स्थित सुवर्णगिरि (अर्थात् सोने के पहाड़) सोने की खदान के लिए उपयोगी था।

(4) आवागमन को बनाए रखना साम्राज्य में संचालन के लिए स्थल और जल दोनों मार्गों से आवागमन बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक था। राजधानी पाटलिपुत्र से प्रान्तों तक जाने में कई सप्ताह या महीनों का समय लग जाता था। इस बात को ध्यान में रखते हुए यात्रियों के लिए खान-पान और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती होगी।

(5) सेना का प्रबन्ध-मौर्य सम्राटों ने एक विशाल सेना का गठन किया था यूनानी इतिहासकारों के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के पास छः लाख पैदल सैनिक, तीस हजार घुड़सवार तथा नौ हजार हाथी थे कुछ इतिहासकार इस विवरण को अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हैं। मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति तथा उपसमितियों का उल्लेख किया है।

इन उपसमितियों के कार्य निम्नलिखित थे-

  • पहली उपसमिति नौसेना का संचालन करती थी।
  • दूसरी उपसमिति यातायात एवं खान-पान का संचालन करती थी।
  • तीसरी उपसमिति का काम पैदल सैनिकों का संचालन करना था।
  • चौथी उपसमिति अश्वारोहियों का संचालन करती
  • पाँचवीं उपसमिति रथारोहियों का संचालन करती
  • छठी उपसमिति का काम हाथियों का संचालन करना था।

दूसरी उपसमिति विविध प्रकार के काम करती थी, जैसे उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था करना, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।

(6) धम्म महामात्रों की नियुक्ति-अशोक ने अपने साम्राज्य को अखण्ड बनाये रखने का प्रयास किया। ऐसा उन्होंने धम्म के प्रचार के द्वारा भी किया। धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्र नामक विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।

(7) पतिवेदकों की नियुक्ति – अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि लोगों के समाचार जानने के लिए अशोक ने ‘पतिवेदक’ नामक अधिकारी नियुक्त किए थे। अपने एक अभिलेख में अशोक कहते हैं, “लोगों के समाचार हम तक पतिवेदक सदैव पहुँचाएँ। चाहे में कहीं भी खाना खा रहा हूँ, अन्तःपुर में हूँ, या फिर पालकी में मुझे ले जाया जा रहा हो, अथवा वाटिका में हैं। मैं लोगों के विषयों का निराकरण हर स्थल पर करूंगा।” अर्थात् ये प्रतिवेदक समाचार पहुँचाने के लिए कहीं भी कभी भी सम्राट् तक सीधे पहुँच सकते थे।

प्रश्न 7.
यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री डी.सी. सरकार का वक्तव्य है : “भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिसका प्रतिबिम्ब अभिलेखों में नहीं है” : चर्चा कीजिए।
अथवा
इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्त्व पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
अभिलेखों द्वारा भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों के बारे में जानकारी बीसवीं शताब्दी के सुविख्यात अभिलेखशास्वी डी.सी. सरकार ने ठीक ही कहा है कि “भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबिम्ब अभिलेखों में नहीं है।” भारतीयों के जीवन, संस्कृति तथा गतिविधियों के बारे में अभिलेखों से निम्नलिखित जानकारी मिलती है –
(1) राज्यों की सीमाओं की जानकारी-अभिलेखों से विभिन्न शासकों के राज्यों की सीमाओं की जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे –

  • राजधानी पाटलिपुत्र
  • तक्षशिला (प्रान्तीय केन्द्र)
  • उज्जयिनी (प्रान्तीय केन्द्र)
    तोसलि (प्रान्तीय केन्द्र)
  • सुवर्णगिरि (प्रान्तीय केन्द्र)।

(2) शासकों के नाम, उपाधियाँ, वंशावली की जानकारी – अभिलेखों से हमें शासकों के नाम, उपाधियों तथा वंशावली के बारे में जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों में अशोक के लिए ‘देवानामप्रिय’ तथा ‘पियदस्सी’ (प्रियदर्शी) आदि नामों का भी प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक ‘देवानामप्रिय’ तथा ‘पियदस्सी’ के नामों से भी पुकारे जाते थे।

(3) काल निर्धारण- कई अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी उत्कीर्ण होती है। जिन अभिलेखों पर तिथि नहीं मिलती है, उनका काल-निर्धारण प्रायः पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर किया जा सकता है।

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(4) भाषाओं और लिपियों के बारे में जानकारी- प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत भाषा जनसाधारण की भाषा होती थी। अनेक अभिलेख संस्कृत, पालि, तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में भी मिलते हैं। इनसे तत्कालीन साहित्यिक प्रगति के बारे में जानकारी मिलती है। अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि प्रयुक्त की गई है। इस प्रकार मौर्य काल में प्रचलित लिपियों के बारे में जानकारी मिलती है।

(5) राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्ध की जानकारी प्राचीन भारत में भूमिदान अभिलेखों के प्रमाण मिलते हैं। भूमिदान प्रायः धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों को दिए जाते थे। इन अभिलेखों से ग्रामीण प्रजा के बारे में भी जानकारी मिलती है। भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।

(6) प्रशासन सम्बन्धी जानकारी- अशोक के अभिलेखों से मौर्य साम्राज्य के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में जानकारी मिलती है। सम्राट अशोक ने धम्म महामात्र, अन्त: महामात्र स्त्री अध्यक्ष महामात्र, पतिवेदक आदि अनेक अधिकारी नियुक्त किए थे।

(7) समकालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति की जानकारी – अभिलेखों से समकालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जानकारी मिलती है।

(8) ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी प्रयाग प्रशस्ति’ से समुद्रगुप्त की विजयों, उपलब्धियों के बारे में जानकारी मिलती है। अशोक के शिलालेखों से उसकी कलिंग की विजय के बारे में पता चलता है।

(9) शासकों के चरित्र तथा व्यक्तित्व-अभिलेखों से हमें तत्कालीन शासकों के चरित्र तथा व्यक्तित्व के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ‘प्रयाग प्रशस्ति’ से समुद्रगुप्त की चारित्रिक विशेषताओं, ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से शक शासक रुद्रदामन के चरित्र एवं व्यक्तित्व के बारे में जानकारी मिलती है।

(10) सामाजिक वर्गों की जानकारी हमें दानात्मक अभिलेखों से नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, धार्मिक गुरु, व्यापारी आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

(11) कला के स्तर की जानकारी अभिलेखों से तत्कालीन कला की उत्कृष्टता का बोध होता है।

(12) धार्मिक स्थिति की जानकारी- अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसने धम्म के प्रचार- प्रसार के लिए अनेक उपाय किये थे उसके अभिलेखों में उसके बौद्ध धर्मावलम्बी होने का पता चलता है। अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसने बाराबर की पहाड़ियों में आजीविक सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए तीन गुफाएँ दान में दी थीं। इससे अशोक की धर्म- सहिष्णुता का बोध होता है।

प्रश्न 8.
उत्तर – मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उत्तर- मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचार –
उत्तर- भारतीय प्रारम्भ से ही अधिक धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं, वे अपने जीवन की लगभग प्रत्येक स्थिति, परिस्थिति को धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं इस तथ्य का लाभ मौर्यों के पतन के उपरान्त भारत आयी अनेक आक्रमणकारी जातियों ने उठाया। इन आक्रमणकारियों को तत्कालीन ब्राह्मणवादी वैदिक व्यवस्था के चतुर्वर्ण में कोई स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा था; उदाहरण के लिए एक स्थान पर यवनों को म्लेच्छ कहा गया है।

अतः इन आक्रमणकारियों को ब्राह्मणवादी चतुर्वर्ण व्यवस्था में स्थान प्राप्त करने हेतु, भारतीयों का विश्वास जीतने हेतु स्वयं को भारतीय दिखाने हेतु तथा भारत में अपना स्थायी साम्राज्य स्थापित करने के लिए स्वयं को दैवीय सिद्ध करना आवश्यक था। यह कार्य उन्होंने अपने सिक्कों, अभिलेख लेख, साहित्य तथा विभिन्न उपाधियों के माध्यम से सम्पादित किया। उत्तर-मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचारों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –

(1) दैविक राजा:
उत्तर- मौर्यकालीन राजाओं के लिए उच्च स्थिति प्राप्त करने का एक साधन विभिन्न देवी- देवताओं के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करना था। मध्य एशिया से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने (लगभग प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से प्रथम शताब्दी ई. तक) अपने आपको दैविक राजाओं के रूप में प्रस्तुत किया। जिस प्रकार के राजधर्म (राजत्व के सिद्धान्त) को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने का प्रयास किया, उसका सर्वश्रेष्ठ प्रमाण उनके सिक्कों और मूर्तियों से प्राप्त होता है।

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(2) कुषाण शासकों का राजत्व का विचार:
(i) उत्तर- प्रदेश में मथुरा के निकट माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थीं। अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ मिली हैं। कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि इन मूर्तियों के द्वारा कुषाण शासक स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कई कुषाण शासकों ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि भी धारण की थी। सम्भवतः वे उन चीनी सम्राटों से प्रेरित हुए होंगे, जो स्वयं को ‘स्वर्गपुत्र’ कहते थे।

(ii) एक कुषाण सिक्के में कुषाण सम्राट कनिष्क को देव तुल्य प्रदर्शित किया गया है। इस सिक्के के अग्र भाग प्रकार लोहे के प्रचलन ने द्वितीय नगरीकरण, महाजनपदों के निर्माण तथा विशाल मगध साम्राज्य की स्थापना में अपना प्रत्यक्ष योगदान दिया।

(2) हल का प्रचलनकरों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए किसान उपज बढ़ाने के उपाय ढूंढ़ने लगे। उपज बढ़ाने का एक तरीका हल का प्रचलन था। हल का प्रयोग छठी शताब्दी ई. पूर्व से ही गंगा और कावेरी नदी की घाटियों के उपजाऊ कछारी क्षेत्र में होने लगा था। भारी वर्षा होने वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हलों के द्वारा उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। इसके अतिरिक्त गंगा की घाटी में धान की रोपाई की जाती थी जिससे उपज में भारी वृद्धि होने लगी परन्तु धान की रोपाई के लिए किसानों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था।

(3) लोहे के फाल वाले हलों का सीमित उपयोग- यद्यपि लोहे के फाल वाले हलों का उपयोग करने से फसलों की उपज बढ़ गई, परन्तु ऐसे हलों का उपयोग उपमहाद्वीप के केवल कुछ ही भागों तक सीमित था। पंजाब तथा राजस्थान के अर्धशुष्क इलाकों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग बीसवीं सदी में शुरू हुआ।

(4) कुदाल का उपयोग उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसान खेती के लिए कुदाल का उपयोग करते थे कुदाल का उपयोग इस प्रकार के इलाकों के लिए कहीं अधिक उपयोगी था।

(5) कुओं, तालाबों तथा नहरों से सिंचाई करना- उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों तथा कहीं- कहीं नहरों से सिंचाई करना था। व्यक्तिगत लोगों तथा कृषक समुदायों ने मिलकर सिंचाई के साधनों के विकास में योगदान दिया। व्यक्तिगत रूप से तालाबों, कुओं और नहरों आदि सिंचाई के साधनों को विकसित करने वाले लोग प्राय: राजा या प्रभावशाली लोग थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र में सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था।

(6) कृषि के नवीन तौर-तरीकों के प्रभाव-कृषि के नवीन तौर-तरीकों के निम्नलिखित प्रभाव हुए –

(i) खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ना – इससे यद्यपि खेतों की इन नयी तकनीकों से उपज तो बढ़ी, परन्तु खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ने लगे। बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों तथा बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। पालि भाषा में गहपति का उल्लेख मिलता है जिसका प्रयोग छोटे किसानों तथा जमींदारों के लिए किया जाता था।
(ii) बड़े-बड़े जमींदारों तथा ग्राम प्रधानों का प्रभुत्व- बड़े-बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली माने जाते थे जो प्रायः किसानों पर नियन्त्रण रखते थे। ग्राम प्रधान का पद प्रायः वंशानुगत होता था। प्रारम्भिक तमिल संगम साहित्य में गाँवों के रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है, जैसे कि बेल्लालर या बड़े जमींदार, हलवाहा या उल्चर और दास अणिमई। यह प्रतीत होता है कि वर्गों की यह विभिन्नता भूमि के स्वामित्व, श्रम और नई प्रौद्योगिकी के उपयोग पर आधारित होगी। ऐसी परिस्थिति में भूमि का स्वामित्व महत्वपूर्ण हो गया था।

 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ JAC Class 12 History Notes

→ उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में विकास- हड़प्पा सभ्यता के पश्चात् 1500 वर्षों के दौरान उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए। इस अवधि में ऋग्वेद की रचना हुई उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र, कर्नाटक आदि में कृषक बस्तियाँ बसीं। इस युग में शवों के अन्तिम संस्कार के नये तरीके सामने आए।

→ नये परिवर्तन – ईसा पूर्व छठी शताब्दी से नए परिवर्तनों के प्रमाण मिलते हैं। इस युग में आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास हुआ। सम्पूर्ण महाद्वीप में नये नगरों का उदय हुआ ।

→ विकास की जानकारी अभिलेखों, ग्रन्थों, सिक्कों तथा चित्रों से इस युग मेँ हुए विकास की जानकारी मिलती है।

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→ प्रिंसेप और पियदस्सी 1830 के दशक में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी | तथा खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी नामक राजा का नाम लिखा था। कुछ अभिलेखों पर अशोक भी लिखा था।

→ अभिलेख – अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। इन अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियों का उल्लेख होता है जो उन्हें बनवाते हैं।

→ जनपद – जनपद का अभिप्राय उस भूखण्ड से है, जहाँ कोई जन. (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है।

→ सोलह महाजनपद – छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में सोलह महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध एवं जैन धर्म के ग्रन्थों में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार, अवन्ति आदि महत्त्वपूर्ण महाजनपद थे। प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी।

→ मगध महाजनपद : सोलह महाजनपदों में प्रथम छठी से चौथी शताब्दी ई. पूर्व में मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। इसके शक्तिशाली होने के प्रमुख कारण थे –

  • खेती की उपज का अच्छा होना
  • यहाँ लोहे की खदानों का उपलब्ध होना
  • हाथियों का उपलब्ध होना
  • आवागमन का सस्ता और सुलभ होना
  • विभिन्न शासकों की नीतियाँ।

प्रारम्भ में राजगाह (राजगीर का प्राकृत नाम) मगध की राजधानी थी, बाद में चौथी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया।

→ मौर्य साम्राज्य का उदय-मगध के साम्राज्य का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था। उसने 321 ई. पूर्व में मगध साम्राज्य की स्थापना की। उसका साम्राज्य पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और ब्लूचिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्य साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए यूनानी राजदूत मेगस्थनीज द्वारा लिखा गया विवरण और कौटिल्य कृत ‘अर्थशास्त्र’ बड़े उपयोगी ग्रन्थ हैं।

→ अशोक अशोक को आरम्भिक भारत का सर्वप्रसिद्ध शासक माना जा सकता है। उसने कलिंग पर विजय प्राप्त की। अशोक पहला सम्राट था जिसने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए संदेश पत्थरों एवं स्तम्भों पर लिखवाये। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से ‘धम्म’ का प्रचार किया। धम्म के प्रमुख सिद्धान्त थे—बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर।

→ मौर्य साम्राज्य का प्रशासन मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे राजधानी पाटलिपुत्र तथा चार प्रान्तीय केन्द्र — तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि तथा सुवर्णगिरि मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति तथा 6 उपसमितियों का उल्लेख किया है। अशोक ने धम्म के प्रचार के लिए ‘धम्म महामात्त’ नामक अधिकारी नियुक्त किए।

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→ मौर्य साम्राज्य का महत्त्व उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों को मौर्य साम्राज्य चुनौतीपूर्ण तथा उत्साहवर्द्धक लगा। मौर्यकालीन पत्थर की मूर्तियाँ स्तम्भ आदि अद्भुत कला के प्रमाण थे। इतिहासकारों के अनुसार अशोक एक बहुत शक्तिशाली तथा परिश्रमी और विनम्र शासक थे इसलिए बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना

→ मौर्य साम्राज्य की त्रुटियाँ
(1) मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहा।
(2) मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फैल पाया था।

→ दक्षिण के राजा और सरदार-तमिलकम में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ। ये राज्य बहुत ही समृद्ध और स्थायी सिद्ध हुए प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों से इन सरदारों के बारे में जानकारी मिलती है। 15. दैविक राजा कुषाण शासकों ने उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने आपको देवी-देवताओं के साथ जुड़ने का प्रयास किया। वे मूर्तियों के द्वारा स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कई कुषाण शासक अपने नाम के
आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि लगाते थे।

→ गुप्त साम्राज्य – गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है। इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध ‘प्रयाग प्रशस्ति’ की रचना हरिषेण ने की थी हरिषेण समुद्रगुप्त के राजकवि थे।

→ सुदर्शन झील सुदर्शन झील एक कृत्रिम जलाशय था। इसका निर्माण मौर्य काल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। इसके बाद शक शासक स्द्रदामन ने इस झील की मरम्मत अपने खर्चे से करवाई थी गुप्तवंश के एक शासक ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।

→ राजा और प्रजा के बीच सम्बन्ध- हमें ‘जातक कथाओं’ तथा ‘पंचतन्त्र’ जैसे ग्रन्थों से राजा और प्रजा के बीच सम्बन्धों की जानकारी मिलती है जातक कथाओं की रचना पहली सहस्राब्दी ई. के मध्य में पालि भाषा में की गई थी। जातक कथाओं से पता चलता है कि राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे। इसके दो प्रमुख कारण थे –
(1) राजा अपने राजकोष को भरने के लिए प्रजा से बड़े-बड़े करों की माँग करते थे।
(2) चोरों और डाकुओं से प्रजा की रक्षा के प्रति शासक लोग उदासीन रहते थे। संकट से बचने के लिए किसान लोग अपने-अपने गाँव छोड़ कर जंगल की ओर भाग जाते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

→ उपज बढ़ाने के उपाय भारी वर्षा होने वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हलों से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। गंगा की घाटी में धान रोपने के कारण भी उपज में भारी वृद्धि होने लगी। उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों तथा नहरों के माध्यम से सिंचाई करना था।

→ ग्रामीण समाज में विभिन्नताएँ खेती से जुड़े लोगों में उत्तरोत्तर भेद बढ़ता जा रहा था। बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता था।

→ मनुस्मृति मनुस्मृति आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि ग्रन्थ है इसकी रचना संस्कृत भाषा में दूसरी शताब्दी ई. पूर्व और दूसरी शताब्दी ई. के मध्य की गई थी।

→ हर्षचरित हर्षचरित संस्कृत में लिखी गई कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है। इसके लेखक बाणभट्ट थे जो हर्षवर्धन के राजकवि थे।

→ भूमिदान और नए सम्भ्रान्त ग्रामीण- भूमिदान प्रायः धार्मिक संस्थाओं और ब्राह्मणों को दिए गए थे। भूमिदान सम्भवतः उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था जो भूमिदान लेते थे। प्रभावती गुप्त ने भी भूमिदान किया था। उनका यह उदाहरण एक विरला ही था कुछ इतिहासकारों का मत है कि भूमिदान शासकों द्वारा कृषि को नगर क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी। कुछ इतिहासकारों का मत है कि भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत मिलता है। भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।

→ नगर एवं व्यापार नगरों का विकास छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ। प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे जैसे पाटलिपुत्र नदी मार्ग के किनारे बसा था तथा उज्जयिनी भूतल मार्ग के किनारे बसा था।

→ पाटलिपुत्र का इतिहास- पाटलिपुत्र का विकास पाटलिग्राम नामक एक गाँव से हुआ। फिर पांचवीं शताब्दी ई. पूर्व में मगध शासकों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। चौधी शताब्दी ई. पूर्व में यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया।

→ नगरीय जनसंख्या – शासक वर्ग और राजा किलेबन्द नगरों में रहते थे। इन स्थलों की खुदाई में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलाई चढ़ी है। इन्हें ‘उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र’ कहा जाता है। सम्भवतः इनका उपयोग अमीर लोग करते होंगे। हमें दानात्मक अभिलेखों से नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, व्यापारी आदि के बारे में विवरण लिखे मिलते हैं। उत्पादकों एवं व्यापारियों के संघ ‘ श्रेणी’ कहलाते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

→ उपमहाद्वीप और उसके बाहर का व्यापार छठी शताब्दी ई. पूर्व से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्गों और भूमार्गों का जाल बिछ गया था और कई दिशाओं में फैल गया था। नमक, अनाज, कपड़ा, धातु से बनी वस्तुएँ, पत्थर, लकड़ी आदि अनेक वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाई जाती थीं। रोमन साम्राज्य में काली मिर्च, कपड़ों व जड़ी-बूटियों की भारी माँग थी।

→ सिक्के और राजा-चाँदी और ताँबे के आहत सिक्के सबसे पहले ढाले गए तथा प्रयोग में आए। शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्द-यूनानी शासकों ने जारी किए थे। सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण शासकों ने जारी किए थे। दक्षिण भारत के अनेक पुरास्थलों से बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत व्यापारिक दृष्टि से रोमन साम्राज्य से सम्बन्धित था। गुप्त शासकों के आरम्भिक सिक्कों में प्रयुक्त सोना अतिउत्तम था परन्तु छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के मिलने कम हो गए। इसका एक कारण तो यह है कि रोमन साम्राज्य के पतन के बाद दूरवर्ती व्यापार में कमी आई।

→ मुद्राशास्त्रमुद्राशास्त्र सिक्कों का अध्ययन है। इसके साथ ही उन पर पाए जाने वाले चित्रलिपि आदि तथा उनकी धातुओं का विश्लेषण भी ‘मुद्राशास्त्र’ के अन्तर्गत मिलता है।

→ अभिलेखों का अर्थ निकालना ब्राह्मी लिपि का प्रयोग अशोक के अभिलेखों में किया गया है। सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप ने अशोककालीन ब्राह्मी लिपि को 1838 ई. में पढ़ने में सफलता प्राप्त की। पश्चिमोत्तर के अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि प्रयुक्त हुई है। यूनानी भाषा पढ़ने वाले यूरोपीय विद्वानों ने सिक्कों में खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए अक्षरों का मेल किया।

→ अभिलेखों से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य-अशोक के एक अभिलेख में उसकी दो उपाधियों का उल्लेख मिलता है –

  • देवानांप्रिय ( देवताओं का प्रिय) तथा
  • पियदस्सी (देखने में सुन्दर )।

अभिलेख साक्ष्य की सीमा-यद्यपि कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए हैं लेकिन सभी के अर्थ नहीं निकाले जा सके हैं या प्रकाशित किए गए हैं या उनके अनुवाद किए गए हैं। इनके अतिरिक्त और अनेक अभिलेख रहे होंगे जो कालान्तर में सुरक्षित नहीं बचे हैं।

कालरेखा 1.
प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक विकास
लगभग 600-500 ई.पू. धान की रोपाई गंगा घाटी में नगरीकरण महाजनपद आहत सिक्के
लगभग 500-400 ई.पू. मगध के शासकों की सत्ता पर पकड़
लगभग 327-325 ई. पू. सिकन्दर का आक्रमण
लगभग 321 ई.पू. चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण
लगभग 272/268-231 ई.पू. अशोक का शासन
लगभग 185 ई.पू. मौर्य साम्राज्य का अन्त
लगभग 200-100 ई.पू. पश्चिमोत्तर में शक – शासन; दक्षिण भारत में चोल; चेर व पाण्ड्य; दक्कन में सातवाहन
लगभग 100-200 ई. तक पश्चिमोत्तर के शक (मध्य एशिया के लोग) शासक; रोमन व्यापार सोने के सिक्के कनिष्क का राज्यारोहण
लगभग 78 ई. सातवाहन और शक शासकों द्वारा भूमिदान के अभिलेखीय प्रमाण
लगभग 100-200 ई. गुप्त शासन का आरम्भ
लगभग 320 ई. समुद्रगुप्त
लगभग 335-375 ई. चन्द्रगुप्त द्वितीय दक्कन में वाकाटक
लगभग 375-415 ई. कर्नाटक में चालुक्यों का उदय और तमिलनाडु में पल्लवों का उदय कन्नौज के राजा हर्षवर्धन; चीनी यात्री श्वैन त्सांग की यात्रा
लगभग 500-600 ई. अरबों की सिन्ध पर विजय
लगभग 606-647 ई. धान की रोपाई गंगा घाटी में नगरीकरण महाजनपद आहत सिक्के
लगभग 712 ई. मगध के शासकों की सत्ता पर पकड़

 

JAC Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

कालरेखा 2.
अभिलेखशास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति

अठारहवीं शताब्दी –
1784 बंगाल एशियाटिक सोसाइटी का गठन
उन्नीसवीं शताब्दी –
1810 का दशक जेम्स प्रिंसेप द्वारा अशोक के ब्राह्मी अभिलेखों का अर्थ लगाना
1838 जेम्स प्रिंसेप द्वारा अशोक के ब्राह्मी अभिलेखों का अर्थ लगाना
1877 अलेक्जेंडर कनिंघम ने अशोक के अभिलेखों के एक अंश को प्रकाशित किया
1886 दक्षिण भारत के अभिलेखों के शोधपत्र ‘एपिग्राफिआ कर्नाटिका’ का प्रथम अंक
1888 ‘एपिग्राफिआ इंडिका’ का प्रथम अंक
बीसवीं शताब्दी – डी.सी. सरकार ने इंडियन एपिग्राफी एंड इंडियन ‘एपिग्राफिकल ग्लोसरी’ प्रकाशित की।
1965-66

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 4

प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि इन औजारों का प्रयोग फसल कटाई के लिए किया जाता होगा ?
उत्तर:
पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।इसके लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे। इन औजारों को देखने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इनका प्रयोग फसलों की कटाई के लिए किया जाता होगा।
JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता - 1

पृष्ठ संख्या 4 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद किन साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हैं ?
उत्तर:
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद निम्नलिखित साक्ष्यों का प्रयोग करते हैं –
(1) जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज- जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविद आहार सम्बन्धी आदतों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। इनका अध्ययन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं। अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना तथा तिल शामिल हैं। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
(2) जानवरों की हड्डियाँ हड़प्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डियों में पशुओं भेड़, बकरी, भैंसे या सूअर की हड्डियाँ शामिल हैं। पुरा प्राणि विज्ञानियों अथवा जीव- पुरातत्त्वविदों द्वारा किए गए अध्ययनों से ज्ञात होता है कि ये सभी जानवर पालतू थे। वे मछली तथा पक्षियों की हड्डियों का भी सेवन करते थे।
(3) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों का भी सेवन करते थे।

पृष्ठ संख्या 4.

प्रश्न 3.
पुरातत्वविद वर्तमान समय की तुलनाओं से यह समझने का प्रयास करते हैं कि प्राचीन पुरावस्तुएँ किस प्रयोग में लायी जाती थीं। मैके खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से कर रहे थे। क्या यह एक उपयोगी नीति है ?
उत्तर:
पुरातत्वविद खोजों का वर्गीकरण दो सिद्धान्तों पर करते हैं –
(1) प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के आधार पर।
(2) पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर।
पुरातत्वविद मिली हुई वस्तुओं की आजकल की मिलती-जुलती चीजों से तुलना करके निष्कर्ष निकाल लेते हैं। पुरातत्वविद यह भी देखते हैं कि पुरावस्तु घर में मिली थी अथवा नाले में कब्र में या फिर भट्टी में प्रसिद्ध पुरातत्वविद मैके द्वारा खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से करते थे और निष्कर्ष निकाल लेते थे। वर्तमान समय की तकनीकी अत्यधिक उन्नत है तथा हड़प्पा सभ्यता की तकनीक अपेक्षाकृत पिछड़ी हुई और अविकसित थी अतः उसकी तुलना आज की तकनीक से करना उचित नहीं है। इस प्रकार हड़प्पा में प्राप्त वस्तुओं की तुलना आज की वस्तुओं से करना उचित नहीं है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

पृष्ठ संख्या 5

प्रश्न 4.
निचला शहर दुर्ग से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित था –
(1) निचला शहर तथा
(2) दुर्ग। निचला शहर दुर्ग से निम्न बातों में भिन्न है –

  • दुर्ग मोहनजोदड़ो नगर के पश्चिमी भाग में बना हुआ था। इसके भवन कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बने थे।
  • दुर्ग ऊँचाई पर बनाया गया था, जबकि निचला शहर नीचे बनाया गया था।
  • निचला शहर मोहनजोदड़ो के पूर्वी भाग में था। यहाँ कई भवन ऊँचे चबूतरों पर बने हुए थे जो नींव का कार्य करते थे।
  • दुर्ग में अनेक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्मारक एवं भवन स्थित थे जिनमें मालगोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे। निचले शहर में योजनाबद्ध तरीके से बने हुए भवन मिलते हैं। निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।

पृष्ठ संख्या 7

प्रश्न 5.
आँगन कहाँ है? दो सीढ़ियाँ कहाँ हैं? आवास का प्रवेशद्वार कैसा है?
उत्तर:
1. आँगन 18 क बिन्दु पर देखें।
2. सीढ़ियाँ 14 तथा 16 अंक पर हैं।
3. आवास का प्रवेश द्वार पीछे की ओर तथा दरवाजे से रहित है।

पृष्ठ संख्या 8

प्रश्न 6.
क्या दुर्ग पर मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त अन्य संरचनाएँ भी हैं ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त कुछ अन्य संरचनाएँ भी मिली हैं। मोहनजोदड़ो के दुर्ग में एक विशाल भवन मिला है जो 230 फीट लम्बा तथा 115 फीट चौड़ा है। इसमें दो आँगन, भण्डारागार तथा कुछ कमरे बने हुए हैं। डॉ. मैके के अनुसार इस विशाल भवन में शायद नगर के राज्यपाल निवास करते थे। मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार के निकट एक भवन मिला है जो 80 फीट लम्बा तथा 80 फीट चौड़ा है। इसकी छत 20 स्तम्भों पर टिकी हुई है। पृष्ठ संख्या 8 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
मोहनजोदड़ो के कौनसे वास्तुकला सम्बन्धी लक्षण नियोजन की ओर संकेत करते हैं ?
उत्तर:
(1) प्रत्येक नगर दो भागों में विभाजित था –
(i) दुर्ग
(ii) निचला शहर
(2) कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे।
(3) एक बार चबूतरों यथास्थान बनने के बाद शहर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था।
(4) ईंटें एक निश्चित अनुपात की होती थीं।
(5) मोहनजोदड़ो में नियोजित जल-निकास प्रणाली थी।
(6) सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

पृष्ठ संख्या 10 चर्चा कीजिए

प्रश्न 8.
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों पर चर्चा कीजिए ये किस सीमा तक सामाजिक भिन्नताओं को परिलक्षित करती हैं ?
उत्तर:
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों निम्नलिखित हैं-
(1) दाहकर्म – इसमें शव को जला दिया जाता है।
(2) पूर्ण समाधि – इसमें शव को पृथ्वी के नीचे गाड़ दिया जाता है।
(3) आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।

मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों से सामाजिक भिन्नताओं का पता चलता है हिन्दू धर्मावलम्बी सर्वो को जलाते हैं तथा मुसलमान एवं ईसाई शवों को दफनाते हैं। कुछ सम्प्रदायों के लोग शवों को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रकार किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति के लोगों के बीच सामाजिक मित्रता की जानकारी प्राप्त कराने में मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियाँ महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

पृष्ठ संख्या 11 चर्चा कीजिए

प्रश्न 9.
इस अध्याय में दिखाई गई पत्थर की पुरावस्तुओं की एक सूची बनाइये। इनमें से प्रत्येक के संदर्भ में चर्चा कीजिए कि क्या इन्हें उपयोगी अथवा विलास की वस्तुएँ माना जाए। क्या इनमें ऐसी वस्तुएँ भी हैं, जो दोनों वर्गों में रखी जा सकती हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता से हमें पत्थर की अनेक पुरावस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें अवतल चक्की, मुहरें, बाट, फलक, औजार तथा हथियार, पाषाण मूर्तियाँ, लिंग, लघु चक्राकार पत्थर आदि वस्तुएँ उपयोगी जानी जाती हैं। बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण तथा मनके विलासिता की वस्तुएँ मानी जाती हैं। मनकों तथा आभूषणों को हम दोनों वर्गों में रख सकते हैं अर्थात् ये उपयोगी एवं विलासिता की वस्तुएँ मानी जा सकती हैं।

पृष्ठ संख्या 14 चर्चा कीजिए

प्रश्न 10.
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक कौनसे मार्गों से जाया जा सकता था ?
उत्तर:
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था। मेसोपोटामिया के लेखों में मेलुहा को नाविकों का देश कहा गया है। इसके अतिरिक्त हड़प्पाई मुहरों पर बने जहाजों तथा नावों के चित्रों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था।

पृष्ठ संख्या 15

प्रश्न 11.
मिट्टी के इस टुकड़े पर कितनी मुहरों की छाप दिखती है?
उत्तर:
मिट्टी के इस टुकड़े पर स्पष्टतः तीन मुहरों की छाप दिखाई देती है।

पृष्ठ संख्या 15 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए प्रयुक्त कुछ तरीकों पर चर्चा कीजिये। उनके क्या-क्या लाभ और समस्याएँ हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए निम्नलिखित साधन प्रयुक्त किये जाते हैं –

  • वायुयान वायुयान में सामान को बड़ी शीघ्रतापूर्वक दूर-दूर के स्थानों पर भेजा जा सकता है, परन्तु यह साधन बड़ा खर्चीला है और इसके द्वारा केवल सीमित मात्रा में ही सामान भेजा जा सकता है।
  • जहाज जहाज के माध्यम से विपुल मात्रा में सामान विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में भेजा जा सकता है, परन्तु इसमें काफी समय लगता है।
  • रेलगाड़ी – रेलगाड़ी के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में बड़ी मात्रा में सामान भेजा जा सकता है परन्तु इसके माध्यम से दूसरे देशों में सामान भेजना सम्भव नहीं
    है।

पृष्ठ संख्या 16 चर्चा कीजिए

प्रश्न 13.
क्या हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे ?
उत्तर:
कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि हड़प्पा में एक नहीं, बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पा एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओं में समानताओं, नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के निकट स्थापित होने से स्पष्ट है। अतः यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे कुछ विद्वानों का मत है कि उस काल में पुरोहितों का एक अलग वर्ग रहा होगा और तत्कालीन समाज में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

पृष्ठ संख्या 21 चर्चा कीजिए

प्रश्न 14.
इस अध्याय में दिए गए विषयों में से कौनसे कनिंघम को रुचिकर लगते? 1947 के बाद से कौन- कौन से प्रश्न रोचक माने गए हैं?
उत्तर:
कनिंघम की मुख्य रुचि आरम्भिक ऐतिहासिक लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। वे सांस्कृतिक महत्त्व के विषयों में अधिक रुचि लेते थे। 1947 के बाद से पुरातत्वविद सामान्यतया सांस्कृतिक उपक्रम का पता लगाने, भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को समझने तथा पुरावस्तु रूपी विधि की खोज करने और उनकी संभावित उपयोगिता को समझने का प्रयास करते हैं।

पृष्ठ संख्या 24: चर्चा कीजिए

प्रश्न 15.
हड़प्पाई अर्थव्यवस्था के वे कौन-कौनसे पहलू हैं, जिनका पुनर्निर्माण पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया गया है?
हड़प्पा
उत्तर:
निम्नलिखित पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं का पुनर्निर्माण किया जा सकता है-

  1. विभिन्न प्रकार के खाद्यान्नों की जानकारी
  2. कृषि प्रौद्योगिकी की जानकारी
  3. शिल्प-उत्पादन के विषय में जानकारी
  4. उत्पादन केन्द्रों की जानकारी
  5. मेसोपायमिया, ओमान, बहरीन आदि से व्यापारिक सम्बन्धों की जानकारी
  6. कच्चा माल प्राप्त करने की नीतियाँ
  7. स्थल मार्ग एवं जलमार्ग से व्यापार
  8. आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार की व्यवस्था
  9. व्यापार के लिए वस्तु विनिमय की प्रणाली
  10. निश्चित माप-तौल के बाटों का प्रचलन।

Jharkhand Board Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइये। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों के लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची निम्नलिखित है –
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद
(2) मांस तथा मछली
(3) गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, बाजरा, चावल, तिल आदि खाद्य पदार्थ।

हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों तथा जानवरों से प्राप्त मांस आदि का सेवन करते थे। ये लोग मछली का भी सेवन करते थे। हड़प्पा- स्थलों से गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाज के दाने प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा निवासी भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे। इस बात की पुष्टि हड़प्पा स्थलों से मिली इन जानवरों की हट्टियों से होती है। इसके अतिरिक्त हिरण, घड़ियाल आदि की हड्डियाँ भी मिली हैं। सम्भवतः हड़प्पा निवासी इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे। मुख्यतः हड़प्पा निवासी उपर्युक्त भोजन सामग्री को स्थानीय स्तर पर प्राप्त करते थे। आखेटक, मछुआरे, किसान तथा खाद्यान्न व्यापारी इत्यादि इन भोज्य पदार्थों को उन्हें उपलब्ध कराते थे।

भोजन सामग्री को उपलब्ध कराने वाले समूह

भोजन सामग्री की सूची समूह
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद संग्राहक
(2) मांस तथा मछली आखेटक समुदाय
(3) गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल किसान

प्रश्न 2.
पुरातत्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक- आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौनसी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर:
पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई स्थलों के उत्खनन में कई सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में कई वर्ग थे। इन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता हैं –
(1) अनेक स्थलों पर बड़े मकान तथा राजप्रासाद जैसे भवन मिले हैं वहीं दूसरी ओर एक तथा दो कमरों वाले मकान आर्थिक तथा सामाजिक भिन्नता को दर्शाते हैं।
(2) खुदाई में अनेक स्थानों पर स्वर्ण, रजत तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं के आभूषण प्राप्त हुए हैं।
(3) शवाधानों में मृतकों को दफनाते समय विभिन्न प्रकार की सामग्री रखी जाती थी। इन सामग्रियों से महिलाओं तथा पुरुषों की आर्थिक स्थिति की विभिन्नता का अंदाजा लगाया जा सकता था। शवों को दफनाने वाले गत की बनावट में भी अन्तर था।
(4) हड़प्पाई वस्त्रों में भी सामाजिक भिन्नता दिखाई देती है। जहाँ धनी लोग रेशम तथा मलमल के वस्त्रों का प्रयोग करते थे वहीं निम्न आर्थिक स्थिति वाले सूती तथा ऊनी वस्त्र का प्रयोग करते थे।

इस प्रकार प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में कई वर्ग थे। सामान्य वर्ग में कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, शिल्पकार, लुहार, जुलाहे, राजगीर, श्रमिक तथा किसान आदि लोग रहे होंगे। विशिष्ट वर्ग में राजकर्मचारी, सेनाधिकारी आदि रहे होंगे। इस प्रकार पुरातत्त्वविदों को उत्खनन में अनेक ऐसी सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर हमें सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नता का पता चलता है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 3.
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली हम इस तथ्य से पूर्णतया सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली नगर योजना की ओर संकेत करती है। इसकी पुष्टि में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) हड़प्पा के शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास आवासों का निर्माण किया गया था। मकानों से आने वाली नालियों गली की नालियों से मिल जाती थीं। प्रत्येक मकान की कम से कम एक दीवार गली से सटी होती थी ताकि मकानों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ा जा सके। इस प्रकार हर आवास गली की नालियों से जोड़ा गया था।

(2) मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और ये नाले ऐसी ईंटों से ढके रहते थे जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके। कुछ स्थानों पर इन्हें ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था।

(3) घरों की नालियाँ पहले एक होदी अथवा मलकुंड़ में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में यह जाता था। कुछ नाले बहुत लम्बे होते थे। उनमें कुछ फासले पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं। इस प्रकार नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी नगर के बाहर निकाल दिया जाता था।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइये कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची हड़प्पा निवासी मनके बनाने में निपुण थे। मनकों के निर्माण में अनेक पदार्थों का प्रयोग किया जाता था। इनके बनाने में सुन्दर लाल रंग के पत्थर कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा शंखं फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि पदार्थों का प्रयोग किया जाता था। चन्हूदड़ो में मनके बनाने का एक कारखाना था।

मनके बनाने की प्रक्रिया मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन निम्नानुसार है –

  • कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किये जाते थे। इससे ठोस पत्थरों से बनने वाले केवल ज्यामितीय आकारों के विपरीत कई विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे।
  • कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में भनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
  • पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकालकर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
  • इसके बाद पिसाई, पालिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी।

प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 26 के चित्र को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौनसी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में हमें अनेक करें प्राप्त हुई हैं। पुरातत्व विज्ञानी साधारणतया किसी समुदाय की सामाजिक तथा आर्थिक विभिन्नताओं को जानने के लिए उनकी कब्रों की जाँच करते थे। इन कब्रों से हमें हड़प्पा संस्कृति के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं। चित्र में दिखाई गई कब्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह शव उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा गया है। अधिकांश शवाधान इसी दिशा में किए जाते थे जो किसी विशेष विश्वास के द्योतक हैं।

चित्र में दिखाए गए शव के पास दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुएँ रखी गयी हैं। लोगों को यह विश्वास था कि वह वस्तुएँ मरने वाले व्यक्ति के अगले जन्म में उसके काम आएंगी। इस शव के पास मृदभांड, विभिन्न मनके, शंख, ताँबे का दर्पण तथा विभिन्न आभूषण इत्यादि रखे हुए हैं। चित्र में देखने के पश्चात् हाथों में दिखाई देने वाले कंगन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शव किसी महिला का है। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (उत्तर लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताएँ. मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा नियोजित शहरी केन्द्र था। यह हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है। मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) एक नियोजित शहरी केन्द्र-मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से अलग कर दिया था।

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(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को अन्य चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही 40 लाख श्रम दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इस प्रकार मोहनजोदड़ो के निर्माण के लिए बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी।

(3) शहर का नियोजन शहर का समस्त भवन- निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले मोहनजोदड़ो का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया होगा। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटें शामिल हैं। भले ही ईंटें धूप में सुखा कर अथवा भट्टी में पका कर बनाई गई हों, ये एक निश्चित अनुपात की होती थीं। इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थीं। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।

(4) नियोजित जल निकास प्रणाली-मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी। शहर की सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति से बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास घरों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।

(5) गृह स्थापत्य (आवासीय भवन ) – मोहनजोदड़ो के निचले शहरों में आवासीय भवन थे। इनमें से कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे। सम्भवतः आँगन खाना पकाने और कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था, विशेष रूप से गर्म और शुष्क मौसम में मोहनजोदड़ो के लोग अपनी एकान्तता को बड़ा महत्त्व देते थे। इसका प्रमाण यह है कि भूमितल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को सीधा नहीं देखा जा सकता था।
(i) स्नानघर हर घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था इसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं।
(II) सीढ़ियाँ कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई थीं।
(iii) कुएँ कुछ घरों में कुएँ थे। कुएँ प्रायः ऐसे कक्ष में बनाए गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था। इनका प्रयोग सम्भवतः राहगीरों द्वारा किया जाता था। विद्वानों के अनुसार मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।

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(6) दुर्ग- मोहनजोदड़ो नगर के दुर्ग पर ऐसी संरचनाएँ मिली हैं जिनका प्रयोग सम्भवतः विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था।
(i) मालगोदाम- इनमें एक महत्त्वपूर्ण संरचना मालगोदाम है। यह एक विशाल संरचना है जिसके ईटों से बने केवल निचले हिस्से ही बाकी रह गए हैं जबकि ऊपरी हिस्से नष्ट हो गए हैं। ये हिस्से सम्भवतः लकड़ी के बने थे।
(ii) विशाल स्नानागार – विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो के दुर्ग की एक अन्य प्रमुख विशिष्टता है। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है। यह चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है।

जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। जलाशय के किनारों पर ईंटों को जमाकर तथा जिप्सम के गारे के प्रयोग से इसे जलबद्ध किया गया है। इसके तीनों ओर कक्ष बने हुए हैं, जिनमें से एक कक्ष में एक बड़ा कुआँ है। जलाशय से जल एक बड़े नाले में बह जाता था। इसके उत्तर में एक गली के दूसरी ओर एक अपेक्षाकृत छोटी संरचना बनी हुई थी जिसमें आठ स्नानघर बनाए गए थे। एक गलियारे के दोनों ओर चार-चार स्नानघर बने थे। प्रत्येक स्नानघर से नालियों, गलियारे के साथ-साथ बने एक नाले में मिलती थीं। इस जलाशय का प्रयोग सम्भवतः किसी प्रकार के विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइये तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किये जाते होंगे?
उत्तर:
निश्चय ही हड़प्पा निवासियों की संस्कृति में पर्याप्त विभिन्नता दिखाई देती है जहाँ हड़प्पाई विभिन्न प्रकार के सुन्दर मृदभाण्ड बनाते थे, वहीं अनेक प्रकार की धातुओं तथा पत्थरों से बने मनके उनकी शिल्पकला में सम्मिलित थे। विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ, मुहरें तथा टेरा- कोटा आकृतियाँ उनकी शिल्पकला को विस्तृत बनाती हैं। हड़प्पा निवासियों को इसके लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता होती थी। इन कच्चे माल की संक्षिप्त ‘सूची निम्नलिखित है-

  • विभिन्न धातुएँ – सोना, ताँबा, काँसा, टिन, जस्ता, चाँदी।
  • पत्थर जैस्पर, कार्नीलियन, क्वार्ट्ज, स्फटिक, सेलखड़ी, पन्ना, फयॉन्स, गोमेद, मूंगा, लाजवर्द मणि।
  • अन्य सामग्री ऊन, कपास, चिकनी मिट्टी, पकी मिट्टी, अस्थियाँ शंख तथा विभिन्न प्रकार की लकड़ियाँ इत्यादि।

हड़प्पा निवासियों के शिल्प की उपर्युक्त सूची अत्यधिक विस्तृत है। स्थानीय स्तर पर ही सभी सामग्रियों का एकत्रीकरण हड़प्पा निवासियों के लिए सम्भव नहीं था अतः हड़प्पा निवासी अपनी अन्य समकालीन सभ्यताओं से उनका आयात भी करते थे। हड़प्पा निवासियों के कच्चे माल के इन स्रोतों को हम निम्नलिखित तालिका से समझ सकते हैं –

तालिका 1.1 कच्चे माल के स्रोत

कच्चा माल स्रोत
1. सोना कोलार (दक्षिण भारत), ईरान
2. ताँबा खेतड़ी (राजस्थान), ओमान
3. शंख नागेश्वर तथा बालाकोट
4. ਵਿਸ अफगानिस्तान एवं ईरान
5. कार्नीलियन भाँच (गुजरात)
6. ‘सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी
7. कपास गुजरात तथा बलूचिस्तान
8. उत्तम प्रकार की लकड़ी ‘स्थानीय स्तर पर
9. लाजवर्द मणि मेसोपोटामिया
10. चाँदी बदख्शां (अफगानिस्तान)
11. गोमेद मेसोपोटामिया, ईरान एवं
12. मूँगा अफगानिस्तान
13. पन्ना अफगानिस्तान, ईरान, राजस्थान
14. ऊन अफगानिस्तान, महाराष्ट्र, ईरान

कच्चा माल प्राप्त करने के तरीके –
मिट्टी आदि कुछ कच्चे माल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थे परन्तु पत्थर, लकड़ी तथा धातु जलोदक मैदान से बाहर के क्षेत्रों से मँगाने पड़ते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोग कच्चे माल प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय करते थे –
(1) बस्तियाँ स्थापित करना हड़प्पावासियों ने नागेश्वर तथा बालाकोट में बस्तियाँ स्थापित कीं, क्योंकि यहाँ शंख आसानी से उपलब्ध था ऐसे ही कुछ अन्य पुरास्थल थे- सुदूर अफगानिस्तान में शोर्तुधई यहाँ से अत्यन्त कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि को प्राप्त किया जाता था। इसी प्रकार लोथल कार्नीलियन (गुजरात में भड़ौच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से) और धातु ( राजस्थान से) के स्रोतों के निकट स्थित था।

(2) अभियान भेजना हड़प्पावासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कुछ क्षेत्रों में अभियान भेजते थे। वे राजस्थान के खेतड़ी आँचल में ताँबे तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजते थे इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जाता था। इन क्षेत्रों में कभी-कभी मिलने वाली हड़प्पाई पुरावस्तुएँ ऐसे सम्पकों की सूचक हैं। खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्वविदों ने गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति की संज्ञा दी है। यहाँ ताँबे की वस्तुएँ बड़े पैमाने पर मिली थीं ऐसा प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे।

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(3) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क- हड़प्यावासियों के अनेक देशों से सम्बन्ध थे। विद्वानों के अनुसार ताँबा ओमान से, चाँदी ईरान अथवा अफगानिस्तान से मँगाई जाती थी।

प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं?
उत्तर:
पुरातत्वविदों द्वारा अतीत का पुनर्निर्माण हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में ये भौतिक साक्ष्य हैं, जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा की सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं। इन वस्तुओं में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान, मुहरें आदि उल्लेखनीय हैं।
(1) हड़प्पा सभ्यता के विस्तार क्षेत्र के बारे में जानकारी उत्खनन में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, रोपड़, संघोल, बणावली, राखीगढ़ी, रंगपुर, धौलावीरा, लोथल आदि अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। इसके आधार पर पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तर भारत में गंगा घाटी
तक व्याप्त था।
(2) नियोजित शहरी केन्द्र हड़प्पा सभ्यता के शहर नियोजित केन्द्र थे। मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित था –
(1) ऊंचे टीले पर दुर्ग तथा
(2) निचले भाग में विस्तृत नगर दुर्ग के उच्च वर्ग तथा निचले भाग में सामान्य लोग रहते थे। दुर्ग में अनेक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्मारक एवं भवन स्थित थे।
(3) धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी हड़प्पा की खुदाई में मातृदेवी को अनेक मूर्तियाँ मिली हैं। इनके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी मातृदेवी की उपासना करते थे। हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है वह जानवरों से घिरा हुआ दर्शाया गया है।

इसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। खुदाई में काफी संख्या में लिंग और छल्ले मिले हैं। पुरातत्वविद इन छल्लों को योनियाँ मानते हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी शिव लिंग और योनि की पूजा करते थे। हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर वृक्ष, पशु-पक्षियों के चित्र मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी वृक्षों, पशु-पक्षियों की भी पूजा करते थे।

(4) भोजन के बारे में जानकारी- जले अनाज के दानों और बीजों की खोज से पुरातत्वविदों को हड़प्पावासियों के भोजन के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है। हड़प्पा स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि के दाने प्राप्त हुए हैं। इसी प्रकार उत्खनन में भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर की हड्डियाँ मिली हैं इनसे ज्ञात होता है। कि हड़प्पावासी गेहूं, जौ, सफेद चने, तिल, दाल, चावल और बाजरा तथा विभिन्न पशुओं के मांस का सेवन करते थे।

(5) आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी – पुरातत्वविदों को ऐसी मुहरें मिली हैं जिन पर रेखांकन है। उन्हें पकी मिट्टी से बने वृषभ की मूर्तियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। पुरातत्वविदों को कालीबंगा नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। पुरातत्वविदों को फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त होने वाले औजार भी मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि फसलों की कटाई के लिए इन औजारों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्या स्थलों से नहरों, कुओं तथा जलाशयों के अवशेष मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी नहरों, कुओं, जलाशयों आदि का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे।

(6) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि ताँबा ओमान से भी लाया जाता था। रासायनिक विश्लेषण से पता चलता है कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं। इसी प्रकार एक विशिष्ट प्रकार का पात्र अर्थात् एक बड़ हड़प्पाई मर्तबान ओमानी स्थलों से मिला है। इससे पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता का ओमान से सम्पर्क था। मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), भगान (ओमान) तथा मेलुहा नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है।

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(7) सामाजिक और आर्थिक भिन्नताओं की जानकारी – हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गर्तों में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। ये विविधताएँ सामाजिक भिन्नताओं की ओर संकेत करती हैं। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड और आभूषण मिले हैं जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि इन वस्तुओं का मृत्योपरान्त प्रयोग किया जा सकता था। पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को दो वर्गों में बाँटते हैं –

  • उपयोगी वस्तुएँ
  • विलासिता की वस्तुएँ चकियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, शाँबा आदि उपयोगी वस्तुओं के वर्ग में सम्मिलित हैं।

दूसरी ओर फयॉन्स के छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था। विलासिता की वस्तुओं का प्रयोग केवल धनी लोगों द्वारा किया जाता था। उत्खनन में दुर्ग और निचले शहर के अवशेष मिले हैं। इनके आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि दुर्ग- क्षेत्र में अधिकारी एवं शासक वर्ग के लोग तथा निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।

(8) कला-कौशल – हड़प्पा के उत्खनन में अनेक प्रकार की धातुओं से बनी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी विभिन्न धातुओं से मूर्तियाँ, आभूषण, बर्तन, औजार और हथियार बनाते थे यहाँ से मिले मनकों से ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी बहुमूल्य पत्थरों, सोने, चाँदी, ताँबे आदि से सुन्दर मनके बनाते थे।

प्रश्न 9.
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य निम्नलिखित –
(1) जटिल निर्णय लेना और उन्हें कार्यान्वित करना हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें कार्यान्वित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए जाते थे। हड़प्पाई पुरावस्तुओं में असाधारण एकरूपता दिखाई देती है जैसा कि मृदभाण्डों, मुहरों, बाटों तथा ईंटों से स्पष्ट है।

(2) श्रम संगठित करना विशिष्ट स्थानों पर बस्तियाँ स्थापित करने, ईंटें बनाने, विशाल दीवारें बनाने, विशिष्ट भवन बनाने, मालगोदाम, सार्वजनिक स्नानागार आदि बनाने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती थी। इन सब कार्यों के लिए श्रम संगठित करने का कार्य शासक- वर्ग द्वारा ही किया जाता था।

(3) नियोजित नगर- हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। इससे ज्ञात होता है कि इन नगरों तथा भवनों का निर्माण करने वाले कुशल इज्जीनियर थे प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग’ भाग तथा पूर्व में ‘नगर’ भाग होता था। यह व्यवस्था शासग वर्ग द्वारा ही की जाती थी।

(4) सड़क निर्माण नगरों की सड़कें भी एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं।

(5) नालियों की व्यवस्था-नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में नालियाँ बनी हुई थीं। ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। नगरों में सफाई और रोशनी की भी व्यवस्था थी। ये समस्त कार्य शासकों द्वारा किये जाते थे।

(6) भवन निर्माण हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, खिड़कियों, सीढ़ियों आदि की व्यवस्था थी। ईंटों की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई में एक निश्चित अनुपात होता था। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि में अनेक विशाल भवनों का भी निर्माण किया गया था। इनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार उल्लेखनीय है। इसी प्रकार हड़प्पा की गढ़ी में निर्मित विशाल अन्नागार, लोथल में निर्मित गोदीबाड़ा, धौलावीरा में निर्मित विशाल स्टेडियम और जलाशय भी उल्लेखनीय हैं।

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(7) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा ऊनी वस्व तैयार करने, मिट्टी के बर्तन बनाने, सोने-चाँदी आदि के आभूषण बनाने, औजार और हथियार बनाने, मनके बनाने, मुहरें बनाने आदि के उद्योग-धन्धे विकसित थे।

(8) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से किया जाता था। जल यातायात के लिए नौकाओं तथा छोटे जहाजों का एवं धल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत था। उनका मेसोपोटामिया, ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था।

(9) तोल तथा माप के साधन हड़प्पा सभ्यता के लोग बाटों का भी प्रयोग करते थे। उनकी तोल में 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 आदि का अनुपात है इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता काल में वस्तुओं को तोलने के लिए एक समान पद्धति के वाटों का प्रयोग किया जाता था। माप के साधन भी प्रचलित थे।

(10) बस्तियाँ स्थापित करना-शिल्प उत्पादन के लिए शंख, लाजवर्द मणि, कार्नीलियन सेलखड़ी आदि कच्चे मालों की आवश्यकता थी। इन कच्चे मालों को प्राप्त करने के लिए राज्य की ओर से अनेक बस्तियाँ स्थापित की गईं।

(11) अभियान भेजना शासक वर्ग की ओर से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए अनेक अभियान भेजे गए। उदाहरणार्थ, राजस्थान के खेतड़ी आँचल में ताँबे के लिए तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजे गए।

(12) सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क – हड़प्पा सभ्यता- काल में विदेशी व्यापार भी उन्नत था हड़प्पा सभ्यता का ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे हड़प्पा के शासक ओमान से ताँबा मँगवाते थे।

 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता JAC Class 12 History Notes

→ हड़प्पा सभ्यता – सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं, जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

→ आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले की कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध र्थी इसके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं।

→ निर्वाह के तरीके विकसित हड़प्पा संस्कृति कुछ ऐसे स्थानों पर पनपी जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद तथा जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे ये लोग भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का भी सेवन करते थे। हड़प्पा स्थलों से भेड़, बकरी, भैंसे, सूअर आदि जानवरों की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। ये मछली का भी सेवन करते थे।

→ कृषि प्रौद्योगिकी हड़प्पा निवासी बैल से परिचित थे। पुरातत्वविदों की मान्यता है कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान के कई स्थलों से तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं। कालीबंगा नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों तथा धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ मोहनजोदड़ो : एकं नियोजित शहर-मोहनजोदड़ो बस्ती दो भागों में विभाजित है। एक छोटा परन्तु ऊँचाई | पर बनाया गया। दूसरा अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था, जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था। मोहनजोदड़ो का दूसरा भाग निचला शहर था जो दीवार से घेरा गया था। यहाँ कई भवनों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। पहले बस्ती का नियोजन किया गया था, फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं ये धूप में सुखाकर अथवा भट्टी में पका कर बनाई गई थीं।

→ नालों का निर्माण – सड़कों या गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड पद्धति’ में बनाया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ा गया था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य नाले ईंटों से बने थे और उन्हें ईंटों से ढका गया था।

→ गृह स्थापत्य मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। कई भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। आँगन खाना पकाने, कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था। प्रत्येक मकान में एक स्नानघर होता था। कई मकानों में कुएँ थे। मोहनजोदड़ो में 700 कुएँ थे मकानों में भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं।

→ दुर्ग- मोहनजोदड़ो में दुर्ग पर अनेक संरचनाएँ थीं जिनमें माल गोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे। माल गोदाम एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए दो सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। इसके उत्तर में एक छोटी संरचना थी जिसमें आठ स्नानागार बने हुए थे।

→ शवाधान – सामान्यतया मृतकों को गर्तों में दफनाया जाता था। मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण, शंख के छल्ले, तांबे के दर्पण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं ।

→ विलासिता की वस्तुओं की खोज-फयॉन्स (घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र सम्भवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था । महंगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में ही मिलती हैं, छोटी बस्तियों में ये विरले हीं मिलती हैं।

→ शिल्प उत्पादन के विषय में जानकारी- चन्हूदड़ो नामक बस्ती पूरी तरह से शिल्प उत्पादन में लगी हुई | थी। शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना सम्मिलित थे। मनके जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज, सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं, शंख आदि से बनाए जाते थे । | नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी हुई वस्तुओं के प्रसिद्ध केन्द्र थे। यहाँ शंख से चूड़ियाँ, करहियाँ, पच्चीकारी की वस्तुएँ बनाई जाती थीं।

→ उत्पादन केन्द्रों की पहचान – शिल्प-उत्पादन में केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद सामान्यत: इन चीजों को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरा शंख, ताँबा अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग किया गया माल तथा कूड़ा-करकट।

→ माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ- बैलगाड़ियाँ सामान तथा लोगों के लिए स्थलमार्गों द्वारा परिवहन का एक महत्त्वपूर्ण साधन थीं। सिन्धु नदी तथा इसकी उपनदियों के आस-पास बने नदी मार्गों और तटीय मार्गों का भी प्रयोग किया जाता था।

→ उपमहाद्वीप तथा उसके आगे से आने वाला माल नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख प्राप्त किये जाते थे । नीले रंग का कीमती पत्थर लाजवर्द मणि को शोर्तुघई (सुदूर अफगानिस्तान) से गुजरात में स्थित भड़ौच से कार्नीलियन, दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से सेलखड़ी और धातु राजस्थान से मंगाई जाती थी। लोथल इनके स्रोतों के निकट स्थित था। राजस्थान के खेतड़ी आँचल (ताँबे के लिए) तथा दक्षिणी भारत ( सोने के लिए) को अभियान भेजे जाते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क – पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि ताँबा सम्भवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण- पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से भी लाया जाता था। मेसोपोटामिया के लेख से ज्ञात होता है कि कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना आदि मेलुहा से प्राप्त किये जाते थे।

→ मुहरें और मुद्रांकन मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।

→ एक रहस्यमय लिपि – हड़प्पाई मुहरों पर कुछ लिखा हुआ है जो सम्भवतः मालिक के नाम और पदवी को | दर्शाता है। यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। सम्भवतः यह लिपि दाय से बायीं ओर लिखी जाती थी।

→ बाट – विनिमय बाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियन्त्रित थे। ये सामान्यतया चनाकार होते थे। इन बार्टो के निचले मानदंड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16 32 इत्यादि) थे जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे। छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था ।

→ प्राचीन सत्ता- हड़प्पाई पुरावस्तुओं में जैसे मुहरों, बाटों, ईंटों आदि में एकरूपता थी। बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इन सभी क्रियाकलापों को कोई राजनीतिक सत्ता संगठित करती थी।

→ प्रासाद तथा शासक – कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि मोहनजोदड़ो में एक विशाल भवन मिला है, वह एक राज- प्रासाद ही है। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ कई शासक थे। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ हड़प्पा सभ्यता का अन्त-लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थलों को त्याग दिया गया था। सम्भवतः उत्तरी हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई. पूर्व के बाद भी अस्तित्व में रहे। हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण थे –

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की कटाई
  • भीषण बाढ़
  • नदियों का सूख जाना
  • नदियों का मार्ग बदल लेना
  • भूमि का अत्यधिक उपयोग
  • सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्व का अन्त होना।

→ हड़प्पा सभ्यता की खोज बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरों की खोज की। राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो से कुछ मुहरें खोज निकालीं। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

→ कनिंघम का भ्रम – डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्त्विक उत्खनन आरम्भ किए, तब पुरातत्त्वविद् अपने अन्वेषणों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों (साहित्य तथा अभिलेख) का प्रयोग अधिक पसन्द करते थे। हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम के अन्वेषण के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। कनिंघम समझ नहीं पाए कि ये पुरावस्तुएँ प्राचीन थीं।

→ एक नवीन प्राचीन सभ्यता – बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा में मुहरें खोज निकालीं जो निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं एवं इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिन्धु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

→ नई तकनीकें तथा प्रश्न हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियाँ प्रकाश में आई तथा पंजाब और हरियाणा में किए गए अन्वेषणों से हड़प्पा स्थलों की सूची में कई नाम और जुड़ गए हैं। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, धौलावीरा की खोज इन्हीं प्रयासों का हिस्सा है। 1980 के दशक से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं।

→ अतीत को जोड़कर पूरा करने की समस्याएँ – मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि भौतिक साक्ष्यों से हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है।

→ खोजों का वर्गीकरण-वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है। दूसरा सिद्धान्त उनकी उपयोगिता के आधार पर होता है। कभी-कभी पुरातत्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है।

→ व्याख्या की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याएँ सम्भवतः सबसे अधिक धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण के प्रयासों में सामने आती हैं। कुछ वस्तुएँ धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई है। कुछ मुहरों पर पेड़-पौधे उत्कीर्ण हैं ये प्रकृति की पूजा के संकेत देते हैं। कुछ मुहरों पर एक व्यक्ति योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई। है। पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

कालरेखा 1

आरम्भिक भारतीय पुरातत्व के प्रमुख कालखंड

20 लाख वर्ष (वर्तमान से पूर्व) निम्नपुरापाषाण
80,000 मध्यपुरापाषाण
35,000 उच्चपुरापाषाण
12,000 मध्यपाषाण
10,000 नवपाषाण (आरम्भिक कृषक तथा पशुपालक)
6,000 ताम्रपाषाण (ताँबे का पहली बार प्रयोग)
2600 ई. पूर्व हड़प्पा सभ्यता
1000 ई. पूर्व आरम्भिक लौहकाल, महापाषाण शवाधान आरम्भिक ऐतिहासिक काल
600 ई. पूर्व 400 ई. पूर्व निम्नपुरापाषाण
सभी तिथियाँ अनुमानित हैं। इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीप के अलग-अलग भागों में हुए विकास की प्रक्रिया में व्यापक विविधताएँ हैं। यहाँ दी गई तिथियाँ हर चरण के प्राचीनतम साक्ष्य को इंगित करती हैं।

 

JAC Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कालरेखा 2

हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण

उन्नीसवीं शताब्दी 1875 हड़प्पाई मुहर पर कनिंघम की रिपोर्ट
बीसवीं शताब्दी
1921 माधोस्वरूप वत्स द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरम्भ
1925 मोहनजोदड़ो में उत्खननों का प्रारम्भ
1946 आर.ई. एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन
1955 एस. आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरम्भ
1960 बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर के नेतृत्व में कालीबंगन में उत्खननों का आरम्भ
1974 एम. आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में अन्वेषणों का आरम्भ
1980 जर्मन – इतालवी संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह अन्वेषणों का आरम्भ
1986 अमरीकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरम्भ
1990 आर. एस. बिष्ट द्वारा धौलावीरा में उत्खननों का आरम्भ

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल (लाख km) है
(A) 32.80
(B) 22.80
(C) 42.08
(D) 30.80.
उत्तर:
(A) 32.80.

2. कौन-सी अक्षांश रेखा भारत को दो भागों में बांटती है?
(A) भूमध्य रेखा
(B) कर्क रेखा
(C) मकर रेखा
(D) आर्कटिक वृत्त।
उत्तर:
(B) कर्क रेखा।

3. भारत का (क्षेत्रफल के अनुसार) सबसे बड़ा राज्य है
(A) महाराष्ट्र
(B) उत्तर प्रदेश
(C) राजस्थान
(D) मध्य प्रदेश।
उत्तर:
(C) राजस्थान।

4. स्वेज नहर किस वर्ष आरम्भ हुई?
(A) 1849
(B) 1859
(C) 1869
(D) 1879
उत्तर:
(C) 1869.

5. सिक्किम राज्य की राजधानी है
(A) दिसपुर
(B) शिलांग
(C) गंगटोक

6. भारत में कुल राज्य हैं-
(A) 18
(B) 24
(C) 28
(D) 30.
उत्तर:
(C) 28.

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7. क्षेत्रफल के अनुसार भारत का विश्व में स्थान है
(A) पांचदां
(B) छठा
(C) सातवां
(D) आठवां।
उत्तर:
(C) सातवां।

8. लक्षद्वीप कहां स्थित है?
(A) खाड़ी बंगाल
(B) अरब सागर
(C) हिन्द महासागर
(D) खम्बात खाड़ी
उत्तर:
(B) अरब सागर।

9. भारतीय संघ का दक्षिणतम बिन्दु है-
(A) कन्याकुमारी
(B) इन्दिरा पुआइंट
(C) रामेश्वरम
(D) बैरन द्वीप।
उत्तर:
(B) इन्दिरा पुआइंट।

10. भारत की कुल स्थल सीमा है-
(A) 12200 कि० मी०
(B) 13202 कि० मी०
(C) 14200 कि० मी०
(D) 15200 कि० मी०
उत्तर:
(D) 15200 कि० मी०।

11. भारत की प्रामाणिक देशान्तर रेखा कहां से गुज़रती है?
(A) श्रीनगर
(B) दिल्ली
(C) मिर्ज़ापुर
(D) कोलकाता।
उत्तर:
(C) मिर्ज़ापुर।

12. भारत की तट रेखा है
(A) 10500 कि० मी०
(B) 7500 कि० मी०
(C) 3500 कि० मी०
(D) 9500 कि० मी०।
उत्तर:
(B) 7500 कि० मी०

13. कर्क रेखा किस राज्य से नहीं गुजरती है?
(A) राजस्थान
(B) उड़ीसा
(C) छत्तीसगढ़
(D) त्रिपुरा
उत्तर:
(B) उड़ीसा।

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14. ग्रीष्मावकाश में आप यदि कवरत्ती जाना चाहते हैं तो किस केन्द्र शासित क्षेत्र में जाएंगे?
(A) पुड्डुचेरी
(B) लक्षद्वीप
(C) अण्डमान और निकोबार
(D) दीव और दमन।
उत्तर:
(B) लक्षद्वीप।

15. मेरे मित्र एक ऐसे देश के निवासी हैं जिस देश की सीमा भारत के साथ नहीं लगती है। आप बताइए, वह कौन-सा देश है?
(A) भूटान
(B) तज़ाकिस्तान।
(C) बांग्लादेश
(D) नेपाल
उत्तर:
(B) तज़ाकिस्तान

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कौन-सी अक्षांश रेखा भारत के केन्द्र से गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा (\(23 \frac{1}{2} \circ\) उत्तर)

प्रश्न 2.
कर्क रेखा द्वारा भारत में निर्मित दो प्रदेशों के नाम लिखो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्ध तथा शीतोष्ण कटिबन्ध

प्रश्न 3.
भारत की तट रेखा की कुल लम्बाई लिखो।
उत्तर:
7516.6 किलोमीटर।

प्रश्न 4.
कौन-सी स्ट्रेट भारत को श्रीलंका से अलग करती है?
उत्तर:
पाक स्ट्रेट।

प्रश्न 5.
कौन-सा महासागरीय मार्ग भारत को यूरोप से जोड़ता है?
उत्तर:
स्वेज़ नहर मार्ग।

प्रश्न 6.
भारत का सबसे बड़ा राज्य ( क्षेत्रफल ) कौन-सा है?
उत्तर:
राजस्थान।

प्रश्न 7.
भारत का सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
गोआ।

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प्रश्न 8.
भारत में सबसे छोटे केन्द्र प्रशासित प्रदेश का नाम लिखें।
उत्तर:
लक्षद्वीप।

प्रश्न 9.
कौन-सा राज्य पांच राज्यों से घिरा हुआ है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 10.
भारत में कितने तटीय राज्य हैं?
उत्तर:
नौ राज्य तटीय राज्य हैं गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोआ, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा तथा पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 11.
अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में कुल कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
204.

प्रश्न 12.
लक्षद्वीप में कुल कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
36.

प्रश्न 13.
मूंगे के द्वीपों के समूह का नाम बताएं
उत्तर:
लक्षद्वीप।

प्रश्न 14.
भारत की वास्तविक शक्ति क्या है?
उत्तर:
अनेकता में एकता।

प्रश्न 15.
भारत का कुल कितना क्षेत्रफल है?
उत्तर:
32,67,263 किलोमीटर 2

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प्रश्न 16.
भारत उपमहाद्वीप किस अक्षांश तथा देशांतर के मध्य स्थित है?
उत्तर:
8° उत्तर से 37° उत्तर तथा 68° पूर्व से 97° पूर्व के मध्य।

प्रश्न 17.
भारत के किस राज्य से कर्क रेखा तथा प्रामाणिक रेखाएं अधिक दूरी तय करती हैं?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 18.
भारत का पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर दक्षिण विस्तार लिखो
उत्तर:
पूर्व पश्चिम विस्तार = 2933 किलोमीटर
उत्तर दक्षिण विस्तार = 3214 किलोमीटर।

प्रश्न 19.
भारत के मध्य से कौन-सी अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा

प्रश्न 20.
भारत में कर्क रेखा पर स्थित दो शहरों के नाम लिखो। अहमदाबाद तथा जबलपुर।
उत्तर:
अहमदाबाद तथा जबलपुर।

प्रश्न 21.
कौन-सी देशांतरीय रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है?
उत्तर;
\( 82 \frac{1}{2}^{\circ}\) पूर्व देशांतर।

प्रश्न 22.
\( 82 \frac{1}{2}^{\circ}\) पूर्व देशांतर पर स्थित दो शहरों के नाम लिखो।
उत्तर:
इलाहाबाद तथा राँची।

प्रश्न 23.
भारत-पाक सीमा पर स्थित राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. गुजरात
  2. राजस्थान
  3. पंजाब
  4. जम्मू तथा कश्मीर।

प्रश्न 24.
भारत तथा चीन के मध्य सीमा का नाम लिखो।
उत्तर:
मैक्मोहन लाइन।

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प्रश्न 25.
भारत-चीन सीमा पर स्थित राज्य व केन्द्र शासित राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. उत्तराखण्ड
  2. हिमाचल प्रदेश
  3. सिक्किम
  4. अरुणाचल प्रदेश
  5. लद्दाख ( केन्द्र शासित राज्य )।

प्रश्न 26
भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. पश्चिमी बंगाल
  2. असम
  3. मेघालय
  4. त्रिपुरा|

प्रश्न 27.
भारत के पश्चिमी तट पर तटीय राज्यों के नाम बतायें।
उत्तर:

  1. गुजरात
  2. महाराष्ट्र
  3. गोआ
  4. कर्नाटक
  5. केरल।

प्रश्न 28.
भारत के पूर्वी तटों पर तटीय राज्यों के नाम बतायें।
उत्तर:

  1. तमिलनाडु
  2. आंध्र प्रदेश
  3. उड़ीसा
  4. पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 29.
उत्तर-पूर्वी भारत के पहाड़ी राज्य बताओ।
उत्तर:

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. असम
  3. नागालैंड
  4. मणिपुर
  5. मिज़ोरम
  6. त्रिपुरा
  7. मेघालय।

प्रश्न 30.
किस राज्य को Land of Dawn कहते हैं?
उत्तर;
अरुणाचल प्रदेश

प्रश्न 31.
क्षेत्रफल के आधार पर भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
सातवां

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प्रश्न 32.
कौन-सी अक्षांश रेखाएं भारत का उत्तरी तथा दक्षिणी विस्तार बनाती हैं?
उत्तर:
37° उत्तर तथा 8° उत्तर।

प्रश्न 33.
इन्दिरा प्वाइंट का अक्षांश क्या है?
उत्तर:
6°04′.

प्रश्न 34.
भारत के नाम के पीछे किस समुद्र का नाम पड़ा है?
उत्तर:
हिन्द महासागर

प्रश्न 35.
भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी सिरे में कितने समय का अन्तर है?
उत्तर:
2 घण्टे।

प्रश्न 36.
उस राज्य का नाम बतायें जिसकी सबसे लम्बी तट रेखा है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 37.
उस केन्द्र प्रशासित प्रदेश का नाम बताएं जिसका क्षेत्रफल पूर्वी तट तथा पश्चिमी तट पर मिलता है?
उत्तर:
पुड्डूचेरी।

प्रश्न 38.
भारत के दो दक्षिणी पड़ोसी देशों के नाम लिखो।
उत्तर:
श्रीलंका तथा मालदीव।

प्रश्न 39.
भारत में क्रियाशील ज्वालामुखी द्वीप का नाम लिखें।
उत्तर:
निकोबार द्वीप के नज़दीक बैरन द्वीप।

प्रश्न 40.
कौन – सा चैनल निकोबार द्वीप को अण्डमान द्वीप से अलग करता है?
उत्तर:
10° चैनल।

प्रश्न 41.
अण्डमान तथा निकोबार द्वीपों का कैसे निर्माण हुआ है?
उत्तर:
जलमग्न पहाड़ियों के शिखरों के कारण।

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प्रश्न 42.
हिन्द महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी भाग में सागरों के नाम लिखो।
उत्तर:
अरब सागर तथा खाड़ी बंगाल।

प्रश्न 43.
हिन्द महासागर के साथ कौन-से महाद्वीप हैं?
उत्तर:
अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अण्टार्कटिका।

प्रश्न 44.
क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से संसार में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
7वां तथा दूसरा।

प्रश्न 45.
भारत ने पश्चिम और पूर्व में स्थित दो-दो देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान। पूर्व में म्यनमार तथा बंगला देश।

प्रश्न 46.
तारिम बेसिन कहां स्थित है?
उत्तर:
मध्य एशिया में।

प्रश्न 47.
भारत के उत्तरी दक्षिणी अक्षांशों के नाम लिखो।
उत्तर:
37° N तथा 80° N.

प्रश्न 48.
भारत पूर्वी सिरे तथा पश्चिमी सिरे के देशांतर लिखें।
उत्तर:
97° E तथा 68°E.

प्रश्न 49.
भारत का कौन-सा राज्य सबसे घना वसा है तथा कौन-सा राज्य सबसे कम?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल तथा अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 50.
भारत का क्षेत्रफल बताइए यह विश्व के स्थलीय भाग का कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० विश्व के स्थलीय धरातल का 2.4 प्रतिशत भाग है।

प्रश्न 51.
जून 2014 को बने नए राज्य का नाम बताओ।
तेलंगाना।
उत्तर:

प्रश्न 52.
तेलंगाना की राजधानी बताओ।
उत्तर:
हैदराबाद।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 53.
संसार की छत (Roof of the world) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पामीर की गाँठ।

प्रश्न 54.
भारत के किस राज्य की तटीय सीमा रेखा की लम्बाई सबसे अधिक है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 55.
कर्क रेखा भारत के कुल कितने राज्यों से गुज़रती है?
उत्तर:
आठ।

प्रश्न 56.
भारत में कुल कितने राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश हैं?
उत्तर:
28 राज्य व 9 केन्द्र शासित प्रदेश

प्रश्न 57.
तीन भारतीय शहरों के नाम बताएं जो कर्क रेखा पर बसे हुए हैं?
उत्तर:

  1. गांधी नगर
  2. जबलपुर
  3. रांची

प्रश्न 58.
जम्मू-कश्मीर व लद्दाख कब केन्द्र शासित राज्य बने?
उत्तर:
31 अक्तूबर, 2019

प्रश्न 59.
लक्षद्वीप (केन्द्र शासित) एवं मणिपुर राज्य की राजधानियों का नाम लिखें।
उत्तर:
लक्षद्वीप – कवरति
मणिपुर – इम्फाल

प्रश्न 60.
लद्दाख (केन्द्र शासित राज्य ) की राजधानी क्या है?
उत्तर:
लेहं।

भारत के पड़ोसी देश भारत का विस्तार
1. पाकिस्तान कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि॰मी०
2. बांग्लादेश अक्षांशीय विस्तार 8°4 उत्तर से 37°6 उत्तर
3. नेपाल देशान्तरीय विस्तार 68°7′ पूर्व से 97°25’पूर्व
4. भूटान
5. श्रीलंका पूर्व-पश्चिम लम्बाई 2933 कि॰मी०
6. मालदीव उत्तर-दक्षिण लम्बाई 3214 कि॰मी०


लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उप-महाद्वीप किसे कहते हैं? इसकी व्याख्या दक्षिण एशिया की हिमालय पर्वत श्रेणी के दक्षिण स्थित देशों के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
उप-महाद्वीप एक विशाल स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई को कहा जाता है। यह स्थल खण्ड मुख्य महाद्वीप से स्पष्ट रूप से अलग होता है। इस विशालता के कारण इस भू-भाग में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्वरूपों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं। भू-भाग की सीमाएं विभिन्न स्थलाकृतियों द्वारा बनाई जाती हैं जो इसे सीमावर्ती प्रदेश से पृथक् करती हैं। भारत एक महान् देश है। इसे प्राय: भारतीय उप महाद्वीप (Indian Sub-Continent) भी कहा जाता है। हिमालय पर्वत की प्राकृतिक सीमा भारतीय उप महाद्वीप को एक परिबद्ध चरित्र देकर विलगता प्रदान करती है। यह भौगोलिक इकाई इस भूखण्ड को एशिया महाद्वीप से अलग करती है। इसमें पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान तथा मालदीव के देश स्थित हैं। इन्हें सारक (SAARC) देश भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
क्षेत्र के आधार पर संसार के देशों में भारत की स्थिति क्या है?
उत्तर:
क्षेत्रफल के आधार पर भारत संसार में सातवां बड़ा देश है। भारत से अधिक क्षेत्रफल वाले छः देश रूस,
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति  1

Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of India extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line.
ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया हैं। भारत का क्षेत्रफल रूस को छोड़ कर पूरे यूरोप के बराबर है। यह इंग्लैण्ड से 13 गुना तथा जापान से 9 गुना बड़ा है, परन्तु रूस भारत से 7 गुना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका तीन गुना बड़ा है। भारत का पूर्व – पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण विस्तार पृथ्वी की परिधि का लगभग 1 / 12 भाग है।

प्रश्न 3.
उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित दर्रे तथा इनका महत्त्व बताओ।
उत्तर:
विदेशी उत्तर-पश्चिम में स्थित खैबर और बोलन दर्रों से होकर ही भारत में प्रवेश कर सकते थे खैबर, हिन्दुकुश पर्वत में सफेद कोह के निकट तथा बोलन, सुलेमान और किरथर पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित है। पहले तो मध्य और पश्चिम एशिया की जन-जातियां इन्हीं मार्गों द्वारा भारत में आईं और बाद में सिकंदर, अफ़गानी तथा फारसी फ़ौजों ने भी इन्हीं भागों का अनुसरण किया। व्यापार के लिए भारत पश्चिम एशिया, पूर्व अफ्रीका और दक्षिण – पूर्व एशिया से समुद्री मार्गों द्वारा जुड़ा था।

प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय पर्वत को पार करने वाले चार दरों के नाम बताओ।
उत्तर:
भारत के उत्तर में हिमालय एक पर्वतीय दीवार के रूप में आवागमन साधनों में एक रुकावट है। फिर भी इस पर्वत को पार करने के लिए कई दर्रे लाभदायक हैं, जैसे-

  1. सतलुज गार्ज से शिपकी लॉ दर्रा (भारत-तिब्बत सड़क मार्ग)।
  2. कराकोरम दर्रे से कश्मीर लेह मार्ग।
  3. सिक्किम में नाथूला दर्रा।
  4. सिक्किम में जैल्पला दर्रा (लहासा – कालिम्पोंग मार्ग )।

प्रश्न 5.
उन राज्यों और संघीय प्रदेशों के नाम बताइए जिनकी सीमा बांग्लादेश से मिलती है।
अथवा
भारत की स्थल सीमाओं का वर्णन करो। भारत के कौन-से राज्य सीमावर्ती देशों के साथ लगते हैं?

उत्तर:
1. बांग्लादेश के साथ स्थल सीमा:
भारत तथा बांग्लादेश के मध्य पूर्व में एक स्थलीय सीमा है। बांग्ला देश के पूर्व में असम, मेघालय, त्रिपुरा राज्य तथा मिज़ोरम प्रदेश की सीमाएं हैं। बांग्लादेश के पश्चिम में पश्चिमी बंगाल राज्य की सीमा है।

2. पाकिस्तान के साथ स्थल सीमा:
भारत तथा पाकिस्तान के बीच कश्मीर से लेकर खाड़ी कच्छ तक एक स्थलीय सीमा है। इस सीमा के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात राज्यों की सीमाएं मिलती हैं।

3. नेपाल के साथ स्थल सीमा:
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वतों में स्थित नेपाल देश है। इन देशों के बीच यह एक प्राकृतिक सीमा है। इस सीमा के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा सिक्किम राज्यों की सीमाएं मिलती हैं।

4. म्यनमार के साथ स्थल सीमा:
हिमालय पर्वत की पूर्वी शाखाएं भारत- बर्मा सीमा बनाती हैं। यह एक प्राकृतिक स्थलीय सीमा है। इस सीमा के साथ-साथ नागालैण्ड, मणिपुर राज्य, अरुणाचल और मिज़ोरम प्रदेश सीमाएं बनाते हैं।

5. पामीर गांठ के शीर्ष के साथ देश:
भारत की उत्तरी सीमा के शीर्ष ( पामीर गांठ) पर पांच देशों की सीमाएं आपस में मिलती हैं। इस मिलन बिन्दु पर भारत, चीन, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान की सीमाएं मिलती हैं। पामीर गांठ को ‘संसार की छत’ (Roof of the World) कहते हैं।

प्रश्न 6.
मैक्मोहन रेखा किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है? इसका निर्धारण किस सिद्धान्त पर किया गया है?
‘उत्तर:
मैक्मोहन रेखा भारत तथा चीन के मध्य सीमा रेखा है। यह सीमा रेखा हिमालय रेखा के साथ-साथ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई है। इस सीमा के पार चीन के सिक्यांग तथा तिब्बत पठार स्थित हैं। इसके उत्तर- पूर्वी भाग में म्यनमार (बर्मा), चीन एवं भारत आपस में मिलते हैं। यह सीमा रेखा अधिकांशत: प्राकृतिक है तथा ऐतिहासिक रूप से निर्धारित है। हिमालय पर्वत हमारी उत्तरी सीमा का प्रहरी है। उच्च हिमालय के शिखर भारत तथा चीन को अलग-अलग करते हैं। ये शिखर एक जल विभाजक के रूप में फैले हुए हैं तथा भारत-चीन सीमा रेखा को प्राकृतिक रूप देते हैं।

प्रश्न 7.
भारत के दक्षिण में स्थित महासागर को ‘हिन्द महासागर’ क्यों कहा जाता है? हिन्द महासागर भारत को किन देशों से जोड़ता है?
उत्तर:
हिन्द महासागर सचमुच ‘हिन्द’ (भारत) का महासागर है। यह संसार में एकमात्र महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम के कारण है। भारत की तट रेखा हिन्द महासागर के अधिकतर भाग को घेरती है। इस क्षेत्र में भारत जैसे महत्त्वपूर्ण देश का प्रभाव है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में भारत ही सबसे उन्नत देश था इस महत्त्व के कारण ही इसे हिन्द महासागर कहा जाता है। हिन्द महासागर भारत को पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण पश्चिमी एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका से स्वेज़ मार्ग द्वारा जोड़ता है। पूर्व में यह चीन, जापान तथा इण्डोनेशिया से जुड़ा हुआ है।

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प्रश्न 8.
जब अरुणाचल में सूर्योदय हो चुका होता है तब सौराष्ट्र में रात होती है। कारण बताओ।
अथवा
भारत के सबसे पूर्वी भाग अरुणाचल प्रदेश और सबसे पश्चिमी भाग गुजरात के स्थानीय समय में दो घण्टे का अन्तर क्यों है?
अथवा
भारत का देशान्तरीय विस्तार हमें किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
भारत पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग तीन हज़ार किलोमीटर की दूरी में फैला हुआ है। इसकी सबसे पश्चिमी सीमा बिन्दु सौराष्ट्र में है, जबकि पूर्वी सीमा बिन्दु अरुणाचल प्रदेश में है। इस प्रकार भारत का पूर्व – पश्चिम विस्तार 30° देशान्तर है। सूर्य को 1° देशान्तर पार करने के लिए 4 मिनट का समय लगता है। इसलिए 30° देशान्तर के लिए ( 30 x 4 120) मिनट या दो घण्टे का समय लगेगा। अरुणाचल प्रदेश पूर्व में है। वह भाग सूर्य के सामने पहले आता है, इसलिए वहां सूर्योदय पहले होता है। पश्चिम में स्थित होने के कारण सौराष्ट्र में सूर्योदय बाद में अर्थात् दो घण्टे देर से होता है।

इसलिए जब अरुणाचल में सूर्य उदय हो चुका होता है तो सौराष्ट्र में रात होती है। इसलिए अरुणाचल को ‘सूर्योदय का प्रदेश’ (Land of Dawn) भी कहते हैं । इस तथ्य से भारत की विशालता का ज्ञान होता है परन्तु आधुनिक जेट युग में दूरियां अपना महत्त्व खो चुकी हैं। आप श्रीनगर में नाश्ता करके दोपहर के खाने पर तिरुवनन्तपुरम पहुंच सकते हैं । जामनगर और गुवाहाटी के मध्य की यात्रा उतना ही समय लेगी जितनी देर में आप एक भारतीय फिल्म देखते हैं

प्रश्न 9.
‘भारत न तो दानव है और न बौना’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अथवा
‘भारत न तो संसार का सबसे बड़ा देश है और न ही सबसे छोटा ।” उदाहरण सहित व्याख्या करो – भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां स्थान है। भारत पृथ्वी के धरातल के लगभग 2.2% क्षेत्रफल में फैला हुआ है। फिर भी कई देशों का आकार भारत से बड़ा है। रूस भारत से लगभग सात गुना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग तीन गुना बड़ा है। भारत इंग्लैण्ड से 13 गुना तथा जापान से नौ गुना बड़ा है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति  2
इस प्रकार क्षेत्रफल के आधार पर भारत न बहुत बड़ा और न ही बहुत छोटा देश है । इसलिए यह कथन सही है कि ” भारत न तो दानव है और न ही बौना ।” (“India is neither a giant nor a pigmy.”)

प्रश्न 10.
” भारत को हिन्द महासागर में सर्वाधिक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है।” यह कथन कहां तक सही है?
उत्तर:
हिन्द महासागर का विस्तार 40° पूर्व से 120° पूर्व देशान्तर तक है। भारत का दक्षिणी सिरा कन्याकुमारी लगभग 80° पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। इस प्रकार भारत को हिन्द महासागर में केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। भारतीय प्रायद्वीप अरब सागर तथा खाड़ी बंगाल के मध्य में स्थित है। हिन्द महासागर में किसी भी देश की तट रेखा भारतीय तट रेखा जितनी लम्बी नहीं है। सभी समुद्री मार्ग भारत के तट को छू कर गुज़रते हैं। भारत पूर्व तथा पश्चिम दोनों दिशाओं में स्थित देशों के मध्य में स्थित है। इसलिए भारत को हिन्द महासागर में सर्वाधिक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। भारत हिन्द महासागर में है। अतः हिन्द महासागर वास्तव में “हिन्द महासागर ” है।

प्रश्न 11.
भारत का प्रायद्वीपीय आकार किस प्रकार लाभदायक है? तीन उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
अथवा
भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति के तीन प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप त्रिभुजाकार है। इससे भारत के तीन पड़ोसी सागरों तक (बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, हिन्द महासागर) पहुंच बहुत सुगम है। इस आकार के कारण मालाबार तट तथा कोरोमण्डल तट पर मत्स्य क्षेत्रों का विकास हुआ है। दोनों तटों पर कई प्राकृतिक बंदरगाहों जैसे – विशाखापट्टनम, चेन्नई, कोचीन, मुम्बई आदि का विकास हुआ है जहाँ से कई अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग गुज़रते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
क्या भारत को एक उप-महाद्वीप कहा जा सकता है?
उत्तर:
भारत – एक उप-महाद्वीप (India-A Sub-Continent):
भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां स्थान है। भारत से अधिक क्षेत्रफल वाले छः देश रूस, ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया हैं। भारत पृथ्वी के धरातल के लगभग 2.2% क्षेत्रफल में फैला हुआ है। फिर भी कई देशों का आकार भारत से बड़ा है। रूस भारत से लगभग सात गुना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग तीन गुना बड़ा है। भारत इंग्लैण्ड से 13 गुना तथा जापान से नौ गुना बड़ा है। इस प्रकार क्षेत्रफल के आधार पर भारत न बहुत बड़ा और न ही बहुत छोटा देश है। इसलिए यह कथन सही है कि भारत न तो ” दानव है और न ही बौना ।” (India is neither a giant nor a pigmy.)

उप-महाद्वीप एक विशाल स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई को कहा जाता है। यह स्थल खण्ड मुख्य महाद्वीप से स्पष्ट रूप से अलग होता है। इस विशालता के कारण इस भू-भाग में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्वरूपों में विभिन्नताएं पाई जाती हैं। भू-भाग की सीमाएं विभिन्न स्थलाकृतियों द्वारा बनाई जाती हैं जो इसे सीमावर्ती प्रदेश से पृथक् करती हैं। भारत एक महान् देश है। इसे प्रायः भारतीय उप महाद्वीप ( Indian Sub – Continent) भी कहा जाता है। डॉ० क्रैसी के अनुसार भारत को यूरोप की भांति एक महाद्वीप कहलाने का अधिकार है। प्रायः ये कथन विशाल क्षेत्रफल तथा जनसंख्या के आधार पर कहे जाते हैं। ग्लोब पर एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में एक विशाल स्थलखण्ड के रूप में भारतीय उप महाद्वीप दिखाई देता है। इसे उप-महाद्वीप कहे जाने के कई कारण हैं:

1. प्राकृतिक सीमाएं:
भारत की प्राकृतिक सीमाएं इसे एक विलगता का स्वरूप प्रदान करती हैं। उत्तर में हिमालय पर्वत, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में घने वन तथा पश्चिम में थार मरुस्थल इसे मुख्य महाद्वीप से पृथक् करके उप- महाद्वीप का स्वरूप प्रदान करते हैं।

2. परिबद्ध चरित्र:
भारत चारों ओर से एशिया के मुख्य क्षेत्रों से घिरा है। इसे विशाल पर्वतों ने हज़ारों किलोमीटर तक अखंड रूप से घेर कर परिबद्ध (Enclosed) चरित्र दे दिया है। इस पर्वतीय घेरे के कारण यह एशिया के अन्य क्षेत्रों से व्यावहारिक रूप से अलग-थलग है।

3. क्षेत्रफल तथा जनसंख्या:
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत संसार का सातवां बड़ा देश है। यह देश भू-मण्डल के एक बड़े भाग में फैला हुआ है। चीन को छोड़कर यह संसार में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यहां के लोगों की शारीरिक बनावट, रहन-सहन तथा संस्कृति संसार के दूसरे प्रदेशों से भिन्न है।

4. विविधता में एकता:
भारत एक विभिन्नताओं का देश है, फिर भी भारतीय सभ्यता में एक विशिष्ट एकरूपता विद्यमान है । इस आधार पर कई लेखकों ने इस भू-भाग को एक उप महाद्वीप की संज्ञा दी है।

5. जलवायु:
जलवायु के आधार पर सम्पूर्ण देश में उष्ण मानसूनी जलवायु पाई जाती है। इस भू-भाग पर मानसून पवनें एक स्वतन्त्र रूप में उत्पन्न होती हैं। मानसून पवनों का पूर्ण रूप इसी उप-महाद्वीप पर मिलता है । सम्पूर्ण देश में ऋतुओं का एक जैसा क्रम पाया जाता है। ये पवनें इसे एशिया महाद्वीप में पृथक् प्रकार की जलवायु प्रदान करके उप- महाद्वीप का स्वरूप प्रदान करने में सहायक हैं।

6. प्राकृतिक संसाधन:
भारत में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता है। सारे देश की आर्थिकता कृषि पर आधारित है। ये साधन किसी महाद्वीप में मिलने वाले साधनों की तुलना में कम नहीं हैं। इन विशेषताओं के आधार पर भारत को एक उप महाद्वीप कहना सही है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 1 भारत – स्थिति

प्रश्न 2.
‘भारत की सीमाएं अधिकांशतः प्राकृतिक हैं और वे ऐतिहासिक रूप से निर्धारित हैं।” उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर:
भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है। इसकी सीमाएं ऐतिहासिक हैं तथा अधिकांशतः प्राकृतिक हैं।

  1. हिन्द महासागर भारत की दक्षिणी सीमा बनाता है। समुद्र के पार हमारा निकटतम पड़ोसी देश श्रीलंका है जिसे पाक जलडमरू मध्य भारत से अलग करता है।
  2. इण्डोनेशिया निकोबार द्वीप के दक्षिण में अलग-थलग स्थित है।
  3. भारत की पूर्वी सीमा पर बंगाल की खाड़ी के पार बांग्लादेश, मलेशिया, म्यानमार, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, वियतनाम तथा लाओस स्थित हैं। यह सीमा घने जंगलों तथा पूर्वांचल की पहाड़ियों द्वारा बनी हुई है।
  4. पश्चिम की ओर अरब सागर से परे ईराक, ईरान, अरब, मिस्र, सूडान, इथोपिया, केनिया आदि देश स्थित हैं।
  5. भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वत की एक अखण्ड दीवार के परे तिब्बत, चीन, सिक्यिांग बेसिन, तज़ाकिस्तान तथा अफगानिस्तान स्थित हैं। मैक्मोहन रेखा भारत तथा चीन के मध्य एक प्राकृतिक सीमा है।
  6. भारत की उत्तरी सीमा पर नेपाल तथा भूटान स्थित हैं।
  7.  हमारी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगती है। ये देश ऐतिहासिक रूप से प्राचीन सभ्यता के समय से भारत का सहभागी रहा है। पांच नदियों का देश (पंजाब) तथा राजस्थान मरुभूमि एवं सिंध (पाकिस्तान ) ऐतिहासिक रूप से समकाली प्रदेश हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत की सीमाएं अधिकांशतः प्राकृतिक हैं तथा ऐतिहासिक रूप से निर्धारित हैं।

प्रश्न 3.
भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्त्व (Importance of the Geographical Location of India) भारत की भौगोलिक स्थिति अनेक प्रकार से सुविधाजनक तथा महत्त्वपूर्ण है

  1. केन्द्रीय स्थिति (Central Location): भारत पूर्वी गोलार्द्ध के मध्य में स्थित है। यूरोप तथा अमेरिका के पश्चिमी भाग से भारत लगभग समान दूरी पर है।
  2. व्यापारिक मार्ग (Trade Routes ): अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भी भारत की स्थिति महत्त्वपूर्ण है। यहां से अनेक व्यापारिक मार्ग (Trade Routes) वायु तथा जल मार्ग से होकर जाते हैं।
  3. कर्क रेखा से समीपता (Nearness of Tropic of Cancer): कर्क रेखा देश के मध्य से होकर गुज़रती है, इसलिए भारत समूचे रूप से एक गर्म देश है। अधिक तापमान के कारण वर्ष भर खेती की सुविधा है, इसलिए भारत एक कृषि प्रधान देश है।
  4. लम्बी तट रेखा (Long Coast Line ): लम्बी तट रेखा के कारण अनेक बन्दरगाहों की सुविधा है।
  5. सुरक्षा (Defence ): देश की प्राकृतिक सीमाएं सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  6.  हिन्द महासागर का प्रभाव (Effect of Indian Ocean): हिन्द महासागर के किनारे पर स्थित होने के कारण ही ग्रीष्म ऋतु की मानसून पवनों से वर्षा प्राप्त होती है।
  7. हिमालय पर्वत का प्रभाव (Effect of Himalayas ): हिमालय पर्वत अपनी स्थिति के कारण ही मानसून पवनों को रोक कर वर्षा करता है तथा शीत ऋतु में ठण्डी ध्रुवीय पवनों से उत्तरी भारत की रक्षा करता है।

प्रश्न 4.
भारत में बनाए गए नवीन राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश का नाम लिखें।
उत्तर:
2 जून, 2014 को आन्ध्र प्रदेश राज्य का पुनर्गठन करके दो राज्य बनाए गए। तेलंगाना तथा आन्ध्र प्रदेश । तेलंगाना भारतीय पठार के मध्यवर्ती भाग में बनाया गया नया राज्य है । इस राज्य का क्षेत्रफल 114,800 वर्ग कि०मी० है। इसमें कृष्णा तथा गोदावरी प्रमुख नदियां हैं। हैदराबाद नगर को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाया गया है जो 10 वर्षों तक ऐसे ही रहेगा। जम्मू-कश्मीर राज्य को भी 31 अक्तूबर, 2019 को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया है। जम्मू कश्मीर को दो केन्द्र शासित राज्यों लदाख व जम्मू-कश्मीर में बांट दिया गया। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर तथा लदाख की राजधानी लेह है।
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JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. इनबतूता का जन्म हुआ था-
(अ) भारत
(ब) ओमान
(स) तुर्की
(द) तैंजियर
उत्तर:
(द) तैंजियर

2. इलबतूता अनेक देशों की यात्रा करने के बाद स्वदेश वापस पहुँचा-
(अ) 1333 ई.
(ब) 1432 ई.
(स) 1354 ई.
(द) 1454 ई.
उत्तर:
(स) 1354 ई.

3. ‘रिहला’ का लेखक कौन था?
(अ) अल-बिरुनी
(ब) हसननिजामी
(स) फिरदौसी
(द) इलबतूता
उत्तर:
(द) इलबतूता

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

4. फ्रांस्वा बर्नियर कहाँ का निवासी था?
(अ) ब्रिटेन
(ब) फ्रांस
(स) जर्मनी
(द) इटली
उत्तर:
(ब) फ्रांस

5. फ्रांस्वा बर्नियर भारत आया था-
(अ) सोलहवीं सदी
(ब) पन्द्रहवीं सदी
(स) सत्रहवीं सदी
(द) अठारहर्वीं सदी
उत्तर:
(स) सत्रहवीं सदी

6. इन्नबतूता के पाठक किससे पूरी तरह से अपरिचित थे-
(अ) खजूर
(ब) नारियल
(स) केला
(द) अंगूर
उत्तर:
(ब) नारियल

7. इबबतूता ने किस शहर को भारत में सबसे बड़ा बताया है-
(अ) आगरा
(ब) इलाहाबाद
(स) जौनपुर
(द) दिल्ली
उत्तर:
(द) दिल्ली

8. इलबतूता भारत की कौनसी प्रणाली की कार्यकुशलता को देखकर आशचर्यचकित हो गया था-
(अ) जल-निकास प्रणाली
(ब) डाक प्रणाली
(स) गुप्तचर प्रणाली
(द) सुरक्ष प्रणाली
उत्तर:
(ब) डाक प्रणाली

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

9. ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ का रचयिता था-
(अ) मनूची
(ब) सर टॉमस रो
(स) बर्नियर
(द) विलियम हॉकिंस
उत्तर:
(स) बर्नियर

10. किताब-उल-हिन्द के लेखक कौन हैं?
(अ) इब्नबतूता
(ब) बर्नियर
(स) अल-बिरुनी
(द) अब्दुर रज्जाक
उत्तर:
(स) अल-बिरुनी

11. ख्वारिज्म में अल-बिरुनी का जन्म हुआ-
(अ) 1071 ई.
(ब) 933 ई.
(स) 1023 ई.
(द) 973 ई.
उत्तर:
(द) 973 ई.

12. अल-बिरुनी किसके साथ भारत आया?
(अ) मोहम्मद गौरी
(ब) मोहम्मद बिन कासिम
(स) महमूद गजनवी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) महमूद गजनवी

13. मोहम्मद तुगलक के कहने पर इबबतूता किस देश की यात्रा पर गया?
(अ) अफगानिस्तान
(ब) रूस
(स) नेपाल
(द) चीन
उत्तर:
(द) चीन

14. बर्नियर पेशे से क्या थे?
(अ) तोपची
(ब) चिकित्सक
(स) सुनार
(द) वैज्ञानिक
उत्तर:
(ब) चिकित्सक

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

15. इब्नबतूता ने अपना यात्रा-वृत्तान्त किस भाषा में लिखा?
(अ) अरबी
(ब) फारसी
(स) हित्रू
(द) उर्दू
उत्तर:
(अ) अरबी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. यूक्लिड यूनानी ……………..
2. ख्वारिज्म ……………… में स्थित है।
3. सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण ……………. ई. में किया।
4. इनबतूता ……………. में स्थलमार्ग से …………. पहुँचा।
5. भारत में पुर्तगालियों का आगमन लगभग ……………….. ई. में हुआ।
6. बर्नियर ने अपनी प्रमुख कृति को फ्रांस के शासक ……………. को समर्पित किया था।
उत्तर:
1. गणितज्ञ
2 . उज्बेकिस्तान
3.1017
4. मध्य एशिया, सिन्ध
5. 1500
6. लुई

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शानिक और इतिहासकार था।

प्रश्न 2.
अल-बिरुनी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
अल-बिरुनी का जन्म ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था।

प्रश्न 3.
15 वीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले फारस के दूत का क्या नाम था?
उत्तर:
अब्दुर रज्जाक।

प्रश्न 4.
दसवीं शताब्दी से सत्रहवीं सदी तक भारत की यात्रा करने वाले तीन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए।
(1) अल बिरूनी
(2) इब्नबतूता
(3) फ्रांस्वा
उत्तर:
बर्नियर।

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प्रश्न 5.
‘किताब-उल-हिन्द’ का रचयिता कौन था? यह ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
(1) अल-विरुनी
(2) अरबी भाषा।

प्रश्न 6.
अल-विरुनी द्वारा जिन दो ग्रन्थों का संस्कृत में अनुवाद किया गया, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) पतंजलि का व्याकरण
(2) यूक्लिड के कार्य।

प्रश्न 7.
इब्नबतूता कहाँ का निवासी था?
उत्तर:
इब्नबतूता मोरक्को का निवासी था।

प्रश्न 8.
इब्नबतूता के भारत पहुँचने पर किस सुल्तान ने किस पद पर नियुक्त किया था?
उत्तर:
(1) मुहम्मद बिन तुगलक ने
(2) दिल्ली के काजी (न्यायाधीश) के पद पर

प्रश्न 9.
इब्नबतूता भारत कब पहुँचा और किस मार्ग से पहुंचा?
उत्तर:
इब्नबतूता 1333 ई. में स्थल मार्ग से सिन्ध पहुँचा।

प्रश्न 10.
इब्नबतूता ने अपना यात्रा वृखन्त किस भाषा में लिखा? यह यात्रा वृत्तान्त किस नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर:
(1) अरबी भाषा में
(2) रिहला।

प्रश्न 11.
अब्दुरक समरवन्दी ने भारत में किस भाग की यात्रा की थी और कब?
उत्तर:
1440 के दशक में अब्दुररज्जाक ने दक्षिण भारत की यात्रा की।

प्रश्न 12.
फ्रांस्वा बर्नियर भारत में कितने वर्ष रहा था ?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर 12 वर्ष (1656-1668 ई.) तक भारत में रहा।

प्रश्न 13.
भारतीय समाज को समझने में अल-बिरुनी को कौनसी बाधाओं का सामना करना पड़ा ?
उत्तर:
(1) संस्कृत भाषा की कठिनाई
(2) धार्मिक अवस्था, प्रथाओं में भिन्नता
(3) अभिमान

प्रश्न 14.
इब्नबतूता ने कौनसी दो वानस्पतिक उपजों का रोचक वर्णन किया है, जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे?
उत्तर:
(1) नारियल
(2) पान।

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प्रश्न 15.
इब्नबतूता के अनुसार भारत के दो बड़े शहर कौन से थे?
उत्तर:
(1) दिल्ली
(2) दौलताबाद।

प्रश्न 16.
इब्नबतूता ने भारत की किस प्रणाली की कुशलता का उल्लेख किया है?
उत्तर:
डाक प्रणाली का

प्रश्न 17.
अब्दुररज्जाक ने किस शहर के मन्दिर के शिल्प और कारीगरी को अद्भुत बताया था ?
उत्तर:
मंगलौर शहर से 9 मील के भीतर स्थित मन्दिर

प्रश्न 18.
ऐसे तीन विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण किया।
उत्तर:
(1) अब्दुर रज्जाक
(2) महमूद वली बल्छी
(3) शेख अली हाजिन।

प्रश्न 19.
पेलसर्ट ने भारत की किस सामाजिक समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया?
उत्तर:
भारत की व्यापक तथा दुःखद गरीबी की समस्या।

प्रश्न 20.
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच एक प्रमुख मूल भिन्नता बताइये।
उत्तर:
भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव।

प्रश्न 21.
अल-विरुनी ने अपनी पुस्तक ‘किताब-उल- हिन्द’ किस भाषा में लिखी?
उत्तर:
अरबी में।

प्रश्न 22.
इब्नबतूता का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
तैंजियर में।

प्रश्न 23.
शरिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस्लामी कानून।

प्रश्न 24.
इब्नबतूता ने भारत के लिए कब प्रस्थान
उत्तर:
1332-33 ई. में।

प्रश्न 25.
इब्नबतूता अपने देश वापस कब पहुँचा ?
उत्तर:
1354 ई. में

प्रश्न 26.
1600 ई. के बाद भारत आने वाले दो यूरोपीय यात्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) ज्यॉँ-बैप्टिस्ट तैर्नियर
(2) मनूकी।

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प्रश्न 27.
बर्नियर का यात्रा वृत्तान्त कहाँ और कब प्रकाशित हुआ?
उत्तर:
फ्रांस में 1670-71 में

प्रश्न 28.
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद अल बिरूनी ने किस मान्यता को अस्वीकार किया ?
उत्तर:
अपवित्रता की मान्यता।

प्रश्न 29.
अल बिरूनी ने भारत में प्रचलित वर्ण- व्यवस्था के अन्तर्गत किन चार प्रमुख वर्णों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) ब्राह्मण
(2) क्षत्रिय
(3) वैश्य
(4) शूद्र।

प्रश्न 30.
जातिव्यवस्था के विषय में अल-विरुनी का विवरण किन ग्रन्थों पर आधारित था?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों पर।

प्रश्न 31.
इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली शहर में कितने दरवाजे थे? इनमें से सबसे विशाल दरवाजा कौनसा था ?
उत्तर:
(1) 28 दरवाजे
(2) बदायूँ दरवाजा।

प्रश्न 32.
अब्दुररज्जाक ने किसे ‘विचित्र देश’ बताया था?
उत्तर:
कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को।

प्रश्न 33.
बर्नियर द्वारा रचित ग्रन्थ ‘ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर’ की अपनी किन विशेषताओं के लिए विख्यात है?
अथवा
‘ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर’ क्या है?
उत्तर:
(1) गहन चिन्तन
(2) गहन प्रेक्षण
(3) आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि

प्रश्न 34.
बर्नियर के अनुसार सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जनसंख्या का कितने प्रतिशत भाग नगरों में रहता था?
उत्तर:
लगभग पन्द्रह प्रतिशत।

प्रश्न 35.
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अमीरों की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किन्हें नियुक्त करता था?
उत्तर:
दासियों को।

प्रश्न 36.
अल बिरूनी द्वारा अपनी कृतियों में जिस विशिष्ट शैली का प्रयोग किया गया, उसे स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आरम्भ में एक प्रश्न, फिर संस्कृत परम्पराओं पर आधारित वर्णन।

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प्रश्न 37.
वर्नियर के विवरणों ने किन दो पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया?
उत्तर:
(1) मॉन्टेस्क्यू
(2) कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 38.
वर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को क्या कहा है?
अथवा
बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को ‘शिविर नगर कहा है।

प्रश्न 39.
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को शिविर नगर क्यों कहा है?
उत्तर:
क्योंकि ये नगर राजकीय शिविर पर निर्भर थे।

प्रश्न 40.
मुगलकालीन भारत में कौन-कौन से प्रकार के नगर अस्तित्व में थे?
उत्तर:
मुगलकालीन भारत में उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि नगर अस्तित्व में थे।

प्रश्न 41.
इब्नबतूता के अनुसार भारत में कितने प्रकार की डाक व्यवस्था प्रचलित थी?
उत्तर:
दो प्रकार की डाक व्यवस्था –
(1) अश्व डाक व्यवस्था (उलुक) तथा
(2) पैदल डाक व्यवस्था (दावा)।

प्रश्न 42.
इब्नबतूता के अनुसार ‘ताराबबाद’ क्या था?
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था, जिसे ‘तारावबाद’ कहते थे।

प्रश्न 43.
इब्नबतूता के अनुसार भारत का सबसे बड़ा शहर कौनसा था ?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा शहर था।

प्रश्न 44.
अल-विरुनी के अनुसार भारत में वर्ण- व्यवस्था का उद्भव किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
अल बिरुनी के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से, क्षत्रिय कन्धों और हाथों से वैश्य जंघाओं से तथा शूद्र चरणों से उत्पन्न हुए।

प्रश्न 45.
अल बिरुनी किन भाषाओं का ज्ञाता था?
उत्तर:
अल बिरूनी संस्कृत, सीरियाई, फारसी, हिब्रू नामक भाषाओं का ज्ञाता था।

प्रश्न 46.
अल बिरुनी तथा इब्नबतूता किन देशों से और कब भारत आए ?
उत्तर:
अल बिरुनी 11वीं शताब्दी में उज्बेकिस्तान तथा इब्नबतूता 14वीं शताब्दी में मोरक्को से भारत आए थे।

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प्रश्न 47.
अल बिरूनी ने अपनी पुस्तक ‘किताब- उल-हिन्द’ में किन विषयों का विवेचन किया है?
अथवा
‘किताब-उल-हिन्द’ पर सक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
‘किताब-उल-हिन्द’ क्या है?
उत्तर:
धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, माप- तौल, मूर्तिकला, कानून तथा मापतन्त्र विज्ञान ।

प्रश्न 48.
इब्नबतूता के अनुसार किन देशों में किस भारतीय माल की अत्यधिक मांग थी?
उत्तर:
मध्य एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा सदन की अत्यधिक मांग थी।

प्रश्न 49.
किस डच यात्री ने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी और कब?
उत्तर:
(1) पेलसर्ट
(2) सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में

प्रश्न 50.
फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार भारत में किस स्थिति के लोग नहीं थे?
उत्तर;
फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं थे।

प्रश्न 51.
बर्नियर ने भारत के किस नगर अल्पवयस्क विधवा को सती होते हुए देखा था? उसे किनकी सहायता से चिता स्थल की ओर ले जाया गया?
उत्तर:
(1) लाहौर में
(2) तीन या चार ब्राह्मणाँ तथा एक वृद्ध महिला की सहायता से।

प्रश्न 52.
बर्नियर के अनुसार कौनसे शिल्प भारत में प्रचलित थे?
उत्तर:
गलीचे बनाना, जरी कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के वस्त्रों, रेशमी तथा सूती वस्त्रों का निर्माण।

प्रश्न 53.
अल बिरूनी के अनुसार फारस में समाज किन चार वर्गों में विभाजित था?
उत्तर:

  • घुड़सवार और शासक वर्ग
  • भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक
  • खगोलशास्वी तथा अन्य वैज्ञानिक
  • कृषक तथा शिल्पकार।

प्रश्न 54.
दुआ बरबोसा कौन था?
उत्तर:
दुआर्ते बरबोसा एक प्रसिद्ध यूरोपीय लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा ।

प्रश्न 55.
यूरोप के दो यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने भारतीय कृषकों की गरीबी का वर्णन किया है।
उत्तर:
(1) पेलसर्ट
(2) बर्नियर

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प्रश्न 56.
इब्नबतूता भारतीय डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर क्यों चकित हुआ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता के कारण व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना और उधार भेजना सम्भव हुआ, बल्कि अल्प सूचना पर माल भेजना भी सम्भव हो गया।

प्रश्न 57.
इब्नबतूता ने मोरक्को जाने से पूर्व किन देशों की यात्रा की थी?
उत्तर:
उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया कुछ भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन

प्रश्न 58.
1400 से 1800 के बीच भारत की यात्रा करने वाले विदेशी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने फारसी में अपने यात्रा-वृत्तान्त लिखे।
उत्तर:
अब्दुररजाक समरकंदी, महमूद वली बल्खी, शेख अली हाजिन

प्रश्न 59.
इब्नबतूता के अनुसार भारत की डाक- प्रणाली क्यों लाभप्रद थी?
उत्तर:
डाक प्रणाली से व्यापारियों के लिए लम्बी दूरी तक सूचना भेजना, उधार भेजना और अल्प सूचना पर माल भेजना सम्भव हो गया।

प्रश्न 60.
पेलसर्ट कौन था?
उत्तर:
पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने सत्रहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी।

प्रश्न 61.
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य के स्वरूप की दो त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगल साइट भिखारियों’ और ‘क्रूर लोगों’ का राजा था
(2) इसके शहर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे।

प्रश्न 62.
बर्नियर ने किस जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुओं का भारत में आना
(2) भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय का अस्तित्व।

प्रश्न 63.
बर्नियर ने भारत की कृषि की किन दो विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर:
(1) देश के विस्तृत भू-भाग का अधिकांश भाग अत्यधिक उपजाऊ था
(2) भूमि पर खेती अच्छी होती थी।

प्रश्न 64.
बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को किसकी संज्ञा दी है और क्यों?
उत्तर:
(1) शिविर नगर
(2) क्योंकि ये नगर अपने अस्तित्व के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।

प्रश्न 65.
बर्नियर के अनुसार पश्चिमी भारत में व्यापारियों के समूह क्या कहलाते थे? उनके मुखिया को क्या कहते घे?
उत्तर:
(1) पश्चिमी भारत में व्यापारियों के समूह महाजन कहलाते थे।
(2) उनके मुखिया सेठ कहलाते थे।

प्रश्न 66.
बर्नियर के अनुसार अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग में कौन-कौन लोग सम्मिलित थे?
उत्तर:

  1. चिकित्सक
  2. अध्यापक
  3. अधिवक्ता
  4. चित्रकार
  5. वास्तुविद
  6. संगीतकार
  7. सुलेखक।

प्रश्न 67.
इब्नबतूता के अनुसार दासों की सेवाओं को विशेष रूप से किस कार्य में उपयोग किया जाता था?
उत्तर:
दास पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने का कार्य करते थे।

प्रश्न 68.
इब्नबतूता के अनुसार अधिकांश दासियाँ अ किस प्रकार प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
अधिकांश दासियों को आक्रमणों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था

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प्रश्न 69.
विदेशी यात्री अब्दुरज्जाक ने कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को क्या बताया था?
उत्तर:
अब्दुरम्नांक ने कालीकट बन्दरगाह पर बसे हुए लोगों को एक विचित्र देश’ बताया था।

प्रश्न 70.
“कृषकों को इतना निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन पेलसर्ट नामक एक डच यात्री का

प्रश्न 71.
बर्नियर ने भारत में पाई जाने वाली सती प्रथा का विवरण क्यों दिया?
उत्तर:
क्योंकि महिलाओं से किया जाने वाला बर्ताव प्रायः पश्चिमी तथा पूर्वी समाजों के बीच भिन्नता का प्रतीक माना जाता था।

प्रश्न 72.
मुहम्मद बिन तुगलक के दूत के रूप में किस विदेशी यात्री को मंगोल शासक के पास चीन जाने का आदेश दिया गया और कब दिया गया?
उत्तर:
(1) इब्नबतूता को
(2) 1342 ई. में

प्रश्न 73.
अल बिरूनी ने संस्कृत भाषा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया।
उत्तर:
(1) शब्दों तथा विभक्तियों दोनों में संस्कृति की पहुँच विस्तृत है।
(2) एक ही वस्तु के लिए कई शब्द प्रयुक्त होते हैं।

प्रश्न 74.
बर्नियर ने अपने वृतान्त में भारत को किसके रूप में दिखाया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में अथवा फिर यूरोप का विपरीत जैसा दिखाया है।

प्रश्न 75.
दासों को सामान्यतः किस कार्य के लिए प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:
दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था।

प्रश्न 76.
बर्नियर ने सती प्रथा के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
कुछ महिलाएँ प्रसन्नतापूर्वक मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्यों को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।

प्रश्न 77.
बर्नियर के अनुसार ‘शिविर नगर’ क्या थे?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार ‘शिविर नगर’ वे थे जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।

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प्रश्न 78.
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नता क्या थी?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नता भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था।

प्रश्न 79.
किस सुल्तान ने नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक से प्रसन्न होकर उसे एक लाख के तथा दो सौ दाम दिये ?
उत्तर:
मुहम्मद बिन तुगलक ने।

प्रश्न 80.
इब्नबतूता ने भारत की किन बातों का विशेष रूप से वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नबतूता ने डाक व्यवस्था, पान तथा नारियल का विशेष रूप से वर्णन अपने ग्रन्थ ‘रिहला’ में किया है।

प्रश्न 81.
इब्नबतूता ने भारत के किस शहर को सबसे बड़ा कहा है?
उत्तर:
दिल्ली।

प्रश्न 82.
बर्नियर के ग्रन्थ का क्या नाम है?
उत्तर:
ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पावर।

प्रश्न 83.
ताराबबाद किसे कहा जाता है?
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष तथा महिला गायकों के लिए बाजार होता था; जिसे तारावबाद कहा जाता था।

प्रश्न 84.
बर्नियर ने मुगल सेना के साथ कहाँ की न यात्रा की थी?
उत्तर:
कश्मीर

प्रश्न 85.
बर्नियर जब भारत आया उस समय यूरोप में कौनसा युग गतिमान था?
उत्तर:
बर्नियर भारत में सत्रहवीं शताब्दी में आया था, कि उस समय लगभग सम्पूर्ण यूरोप में पुनर्जागरण का काल था।

प्रश्न 86.
किस यात्री ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को भेंट में देने के लिए घोड़े, अँट तथा दास खरीदे ?
उत्तर:
मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने।

प्रश्न 87.
यह तर्क किसने दिया कि भारत में ही उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लगभग दसवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक के काल में लोगों के यात्राएँ करने के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
लगभग दसवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक के काल में महिलाओं और पुरुषों के यात्राएं करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे –

  1. कार्य की तलाश में
  2. आपदाओं से बचाव के लिए
  3. व्यापारियों सैनिकों, पुरोहितों और तीर्थयात्राओं के रूप में
  4. साहस की भावना से प्रेरित होकर।

प्रश्न 2.
विदेशी यात्रियों की कौनसी बात उनके यात्रा-वृत्तान्तों को अधिक रोचक बनाती है?
उत्तर:
पूर्ण रूप से भिन्न सामाजिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने के कारण ये विदेशी यात्री दैनिक गतिविधियों तथा प्रथाओं के प्रति अधिक सावधान रहते थे। देशज लेखकों के लिए ये सभी विषय सामान्य थे, जो वृत्तान्तों में उल्लिखित करने योग्य नहीं थे दृष्टिकोण में यही भिन्नता ही उनके यात्रा वृत्तान्तों को अधिक रोचक बनाती है।

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प्रश्न 3.
अल-बिरुनी के यात्रा-वृत्तान्त लिखने के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अल- विरुनी के यात्रा-वृत्तान्त लिखने के निम्नलिखित उद्देश्य थे –
(1) उन लोगों की सहायता करना जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे।
(2) ऐसे लोगों के लिए सूचना का हिन्दुओं के साथ सम्बद्ध होना चाहते थे।

प्रश्न 4.
अल-विरुनी ग्रन्थों का अनुवाद करने में क्यों सक्षम था? स्पष्ट कीजिए उसके द्वारा अनुवादित ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अल बिरूनी कई भाषाओं में दक्ष था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। इसलिए वह भाषाओं की तुलना तथा ग्रन्थों का अनुवाद करने में सक्षम रहा। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया। संग्रह करना जो उसने पतंजलि के व्याकरण ग्रन्थ का भी अरबी भाषा में अनुवाद किया। उसने अपने ब्राह्मण मित्रों के लिए यूनानी गणित यूक्लिड के कार्यों का संस्कृत में अनुवाद किया।

प्रश्न 5.
किताब-उल-हिन्द’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अल बिरूनी ने अरबी भाषा में अपनी पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जो अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इस ग्रन्थ में भारतीय धर्म और दर्शन त्योहारों, खगोल- विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक- जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है।

प्रश्न 6.
इब्नबतूता अकेला ही विश्व यात्रा पर क्यों निकल पड़ा? उस समय उसकी क्या आयु थी? वह अपने घर वापस कब पहुँचा ?
उत्तर:
इब्नबतूता के वृत्तान्त से ज्ञात होता है कि वह अपने जन्म स्थान जियर से अकेला ही अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। उसके मन में लम्बे समय से प्रसिद्ध पुण्य स्थानों को देखने की तीव्र इच्छा थी इसलिए उसने किसी कारणों में शामिल होने की प्रतीक्षा नहीं की और अकेला ही घर से निकल पड़ा। उस समय इब्नबतूता की आयु बाईस वर्ष थी। वह 1354 में अपने घर वापस पहुँच गया।

प्रश्न 7.
अल बिरूनी को भारत का यात्रा-वृत्तान्त लिखने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
(1) अल बिरूनी के अनुसार पहली कठिनाई भाषा थी। उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक ही भाषा से दूसरी में अनुवादित करना सरल नहीं था।
(2) दूसरी कठिनाई धार्मिक अवस्था और प्रथाओं में भिन्नता थी उसे इन्हें समझने के लिए वेदों, पुराणों आदि की सहायता लेनी पड़ी।
(3) अल-बिरुनी के अनुसार तौसरी कठिनाई भारतीयों का जातीय अभिमान था।

प्रश्न 8.
अपनी श्रेणी के अन्य यात्रियों से इब्नबतूता किन बातों में अलग था?
उत्तर:
इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से प्राप्त अनुभव को अपनी जानकारी का अधिक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बड़ा शौक था और उसने नये-नये देशों तथा लोगों के विषय में जानने के लिए | दूर-दूर के क्षेत्रों तक की यात्रा की 1332-33 ई. में भारत के लिए प्रस्थान करने से पूर्व वह मक्का, सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।

प्रश्न 9.
इब्नबतूता के तत्कालीन सुल्तान मुहम्मद- बिन तुगलक के साथ सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1333 में इब्नबतूता दिल्ली पहुंचा। मुहम्मद- बिन तुगलक इब्नबतूता की विद्वता से बझ प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काली अथवा न्यायाधीश नियुक्त किया। उसने इस पद पर कई वर्षों तक कार्य किया। कुछ कारणों से सुल्तान इब्नबतूता से नाराज हो गया और उसे कारागार में कैद कर दिया गया। परन्तु कुछ समय बाद सुल्तान की नाराजगी दूर हो गई और उसने 1342 में इब्नबतूता को अपने दूत के रूप में चीन के शासक के पास भेजा।

प्रश्न 10.
“इब्नबतूता एक हठीला यात्री था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता अपनी सुन का पक्का था उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था। वह लम्बी यात्राओं के दौरान होने वाली कठिनाइयों से हतोत्साहित नहीं होता था। उसने उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका में अपने निवास स्थान मोरक्को जाने से पूर्व कई वर्ष उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया के भागों, भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन की यात्रा की थी। उसके वापिस लौटने पर मोरक्को के शासक ने उसकी कहानियों को दर्ज करने के निर्देश दिए।

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प्रश्न 11.
“बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’ भूमि विहीन श्रमिक इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में जुटा रहता था कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से गुजरे योग्य उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 12.
बर्नियर ने शहरी समूहों में किन व्यावसायिक वर्गों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार शहरी समूहों में चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि व्यावसायिक वर्ग थे। कई लोग राजकीय संरक्षण पर आश्रित थे तथा कई अन्य लोग संरक्षकों या भीड़-भाड़ वाले बाजार में सामान्य लोगों की सेवा द्वारा अपना जीवनयापन करते थे।

प्रश्न 13.
इब्नबतूता के विवरण के अनुसार दासों में काफी विभेद था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता के विवरण से ज्ञात होता है कि दाखों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से बड़ा आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। अधिकतर दासों का प्रयोग घरेलू श्रम के लिए किया जाता था घरेलू श्रम करने वाले दासों, दासियों की कीमत बहुत कम होती थी।

प्रश्न 14.
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान किस प्रकार अमीरों पर दासियों द्वारा नजर रखता था?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान की यह आदत थी कि हर बड़े या छोटे अमीर के साथ एक दास को रखता जो उनकी मुखबिरी करता था। वह इन अमीरों के घरों में महिला सफाई कर्मचारियों की भी नियुक्ति करता था। दासियों के पास जो भी सूचनाएँ होती थीं, वे इन महिला सफाई कर्मचारियों को दे देती थीं। अधिकांश दासियों को हमलों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था।

प्रश्न 15.
अल बिरूनी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए।
अथवा
अल-विरुनी के विषय में आप क्या जानते हैं ? उत्तर- अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। अल बिरुनी ने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की। वह सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत आदि कई भाषाओं का ज्ञाता था। 1017 ई. में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और अल बिरूनी सहित यहाँ के कई विद्वानों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया। उसने अपना शेष जीवन गजनी में ही बिताया। 70 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 16.
गजनी में रहते हुए अल बिरूनी की भारत के प्रति रुचि कैसे विकसित हुई?
उत्तर:
आठवीं शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल- विज्ञान, गणित और चिकित्सा सम्बन्धी कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था। पंजाब के गजनवी साम्राज्य का भाग बन जाने के पश्चात् स्थानीय लोगों से हुए सम्पर्को से आपसी विश्वास और समझ का वातावरण बना। अल- विरुनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया जिससे अल बिरुनी की भारत के प्रति रुचि विकसित हुई।

प्रश्न 17.
‘हिन्दू’, ‘हिन्दुस्तान’ तथा ‘हिन्दवी’ शब्दों का प्रचलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
‘हिन्दू’ शब्द लगभग छठी पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रयुक्त होने वाले एक प्राचीन फारसी शब्द से निकला था, जिसका प्रयोग सिन्धु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था। अरबी लोगों ने इस फारसी शब्द का प्रयोग करना जारी रखा। इस क्षेत्र को ‘अल-हिन्द’ तथा यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दी’ कहा। कालान्तर में तुर्की ने सिन्धु से पूर्व में रहने वाले लोगों को ‘हिन्दू’, उनके निवास क्षेत्र को ‘हिन्दुस्तान’ तथा उनकी भाषा को ‘हिन्दवी’ की संज्ञा दी।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 18.
अल बिरुनी के लेखन कार्य की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:

  1. अल बिरुनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग किया था।
  2. अल बिरूनी ने सम्भवतः अपने ग्रन्थ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखे थे।
  3. वह संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में हुए अनुवादों से परिचित था।
  4. इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री शैली के विषय में अल बिरूनी का दृष्टिकोण आलोचनात्मक था वह उनमें सुधार करना चाहता था।

प्रश्न 19.
“इब्नबतूता की यात्राएँ कठिन तथा जोखिम भरी हुई थीं।” उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में यात्रा करना अधिक कठिन, जोखिम भरा कार्य और असुरक्षित था इब्नबतूता को कई बार डाकुओं के समूहों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा था। फिर भी राजमार्ग असुरक्षित थे। जब वह मुल्तान से दिल्ली की यात्रा कर रहा था, डाकुओं ने उसके कारवाँ पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप उसके कई साथी यात्री मारे गए। जो यात्री बच गए थे, वे भी बुरी तरह से घायल हो गए थे। इनमें इब्नबतूता भी सम्मिलित था।

प्रश्न 20.
इब्नबतूता के श्रुतलेखों को लिखने के लिए नियुक्त किए गए इब्नजुजाई ने अपनी प्रस्तावना में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नजुजाई ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है कि राजा ने इब्नबतूता को निर्देश दिया कि वह अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा रोचक घटनाओं का वृतान्त लिखवाएँ। इसके साथ ही वह विभिन्न देशों के जिन शासकों से मिले, उनके महान साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ सन्तों के विषय में भी बताएँ। इस आदेश के अनुसार इब्नबतूता ने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया। इसके अतिरिक्त इब्नबतूता ने कई प्रकार के असाधारण विवरण भी दिए।

प्रश्न 21.
अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण करने वाले यात्रियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1400 से 1800 के बीच भारत आने वाले अनेक यात्रियों ने अल बिरूनी और इब्नबतूता के पदचिन्हों का अनुसरण किया। इनमें अब्दुररज्जाक समरकंदी, महमूद वली बल्खी तथा शेख अली हानि उल्लेखनीय हैं। अब्दुरस्ज्जाक ने 1440 के दशक में दक्षिण भारत की यात्रा की तथा महमूद वली बल्खी ने 1620 के दशक में व्यापक रूप से यात्राएं की थीं। शेख अली हाजिन ने 1740 के दशक में उत्तर भारत की यात्रा की थी।

प्रश्न 22.
बर्नियर ने भारत में जो देखा, उसकी तुलना यूरोप से की। इसका मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
बर्नियर द्वारा दी गई पूर्व और पश्चिम की तुलना का वर्णन कीजिए।
अथवा
“बर्नियर प्रायः भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से ही करता था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर प्राय: भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था वह यूरोप की सर्वश्रेष्ठता प्रतिपादित करना चाहता था यूरोपीय स्थितियों के मुकाबले में वह भारत की स्थितियों को दयनीय दर्शाना चाहता था। यही कारण है कि लगभग प्रत्येक दृष्टान्त में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। यद्यपि उसका आकलन हम्मेसटीक नहीं था, फिर भी जब उसके कार्य प्रकाशित हुए). (बर्नियर के वृत्तांत अत्यधिक प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 23.
बर्नियर द्वारा मुगल सेना के कश्मीर कूच का वर्णन कीजिए। वह अपने साथ कौनसी वस्तुएँ ले गया था? उससे क्या अपेक्षा की जाती थी?
उत्तर:
बर्नियर मुगल सेना के कश्मीर कूच के सम्बन्ध में लिखता है कि इस देश की प्रथा के अनुसार उससे दो अच्छे तुर्कमान घोड़े देखने की अपेक्षा की जाती थी। वह अपने साथ एक शक्तिशाली पारसी ऊँट तथा चालक, अपने घोड़ों के लिए एक साईस, एक खानसामा तथा एक सेवक भी रखता था। उसे एक तम्बू एक दरी, एक छोटा बिस्तर, एक तकिया, एक विछौना, चमड़े के मेजपोश कुछ अंगोछे, झोले, जाल आदि वस्तुएँ दी गई थीं उसने चावल, मीठी रोटी, नींबू, चीनी आदि वस्तुएँ अपने साथ रखी थीं।

प्रश्न 24.
संस्कृत भाषा के विषय में अल बिरूनी के विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के अनुसार संस्कृत भाषा को सीखना एक कठिन कार्य है क्योंकि अरबी भाषा की भाँति ही, शब्दों तथा विभक्तियों, दोनों में ही संस्कृत भाषा की पहुँच बहुत विस्तृत है। इसमें एक ही वस्तु के लिए कई शब्द, मूल तथा व्युत्पन्न दोनों प्रयुक्त होते हैं। इसमें एक ही शब्द का प्रयोग कई वस्तुओं के लिए होता है, जिन्हें अच्छी तरह से समझने के लिए विभिन्न विशेषक संकेत पदों के माध्यम से एक-दूसरे से पृथक किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 25.
अल बिरूनी द्वारा वर्णित फारस के चार सामाजिक वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के अनुसार प्राचीन फारस में समाज चार वर्गों में विभाजित था ये चार वर्ग थे –
(1) घुड़सवार और शासक वर्ग
(2) भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित
(3) चिकित्सक, खगोलशास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और
(4) कृषक तथा शिल्पकार अल बिरुनी यह दर्शाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि ये अन्य देशों में भी थे।

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प्रश्न 26.
“ जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को स्वीकार करने के बावजूद, अल बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी ने लिखा है कि प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। सूर्य वायु को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है अल बिरुनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। उसके अनुसार जाति-व्यवस्था में शामिल अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।

प्रश्न 27.
” जाति व्यवस्था के विषय में अल-बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्ण रूप से प्रभावित था। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति-व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी। उदाहरणार्थ, अन्त्यजों (जाति-व्यवस्था से परे रहने वाले लोग) से प्रायः यह अपेक्षा की जाती थी कि वे किसानों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम प्रदान करें ये आर्थिक तन्त्र में सम्मिलित थे।

प्रश्न 28.
अल बिरूनी द्वारा उल्लिखित भारत की वर्ण-व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी। ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। इन्हें सबसे उत्तम माना जाता था।
  2. क्षत्रिय ब्राह्मणों के बाद दूसरी जाति क्षत्रियों की थी जिनका जन्म ब्रह्मन् के कन्धों और हाथों से हुआ • था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचा नहीं था।
  3. वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। इनका जन्म ब्रह्मन् की जंघाओं से हुआ था।
  4. शूद्र इनका उद्भव ब्रह्मन् के चरणों से हुआ था।

प्रश्न 29.
“इब्नबतूता में अनजाने को जानने की लालसा कूट-कूटकर भरी हुई थी।” स्पष्ट कीजिए । अपरिचित को रेखांकित करने का उसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
इब्नबतूता ने भारत में व्यापक यात्राएँ कीं और अपरिचित को जानने का भरसक प्रयास किया। उसके वृत्तान्तों में धर्मनिष्ठ लोगों, क्रूर और दयालु शासकों, सामान्य पुरुषों तथा महिलाओं और उनके जीवन की कहानियाँ शामिल थीं। इब्नबतूता को इन कहानियों में जो भी कुछ अपरिचित लगा था, उसे उसने विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूर्ण रूप से प्रभावित हो सकें।

प्रश्न 30.
इब्नबतूता ने नारियल का वर्णन किस प्रकार किया है?.
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार नारियल के वृक्ष स्वरूप में सबसे अनोखे और प्रकृति में सबसे आश्चर्यजनक वृक्षों में से हैं। ये बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं। इनमें केवल एक अन्तर है कि नारियल से काष्ठफल प्राप्त होता तथा दूसरे से खजूर नारियल मानव सिर से मेल खाता हैं क्योंकि इसमें भी दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है। इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है वे इससे रस्सी बनाते हैं।

प्रश्न 31.
इब्नबतूता द्वारा पान का वर्णन किस प्रकार किया गया है? उसने पान का वर्णन क्यों किया? पान का किस प्रकार प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
इब्नबतूत ने पान का वर्णन इसलिए किया क्योंकि इससे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे। इब्नबतूता के अनुसार पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता था पान को अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता था। पान के प्रयोग करने की विधि यह थी कि इसे खाने से पहले सुपारी ली जाती थी। इसके छोटे- छोटे टुकड़ों को मुंह में रखकर चबाया जाता था। इसके पश्चात् पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता था।

प्रश्न 32.
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों के सम्बन्ध में जो लिखा है, उस पर प्रकाश डालिए।
अथवा
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर पनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे, परन्तु ये कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों में विनष्ट हो जाते थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भीड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। दिल्ली एक बड़ा शहर था जिसकी आबादी बहुत अधिक थी तथा यह भारत में सबसे बड़ा शहर था। दौलताबाद (महाराष्ट्र में ) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।

प्रश्न 33.
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहरों के बाजारों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहरों के बाजार चमक-दमक वाले तथा रंगीन थे जहाँ विविध प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध रहती थीं ये बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मन्दिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों एवं गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के स्थान भी निर्धारित थे।

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प्रश्न 34.
इब्नबतूता द्वारा उल्लिखित दिल्ली ( देहली) शहर की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला पनी जनसंख्या वाला शहर था। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय थी। इसके अन्दर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष थे। प्राचीरों के अन्दर अनेक भंडार गृह बने हुए थे इस शहर के अट्ठाईस द्वार थे जिन्हें ‘दरवाजा’ कहा जाता है। इनमें से ‘बदायूँ दरवाजा’ सबसे विशाल था मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी थी तथा गुल दरवाजे की बगल में एक फलों का बगीचा था।

प्रश्न 35.
इब्नबतूता के वृत्तान्त से भारतीय कृषि, व्यापार और वाणिज्य के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के अत्यधिक उत्पादनकारी होने का कारण भूमि का उपजाऊपन था। इस वजह से किसान वर्ष में दो फसलें उगाते थे। भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर एशियाई तन्त्रों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया, दोनों में बहुत मांग थी, जिससे शिल्पकार तथा व्यापारी बहुत लाभ कमाते थे भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जी तथा साटन की बहुत अधिक माँग थीं।

प्रश्न 36.
इब्नबतूता ने दौलताबाद के संगीत बाजार का क्या वृत्तान्त दिया है? अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया?
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ‘ताराववाद’ कहते थे। यहाँ अनेक दुकानें थीं जिन्हें कालीनों से सजाया गया था। दुकान के मध्य में एक झूला था, जिस पर गायिका बैठती थी। बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा था, जिसमें कालीन बिछाए गए थे। इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई थीं।

प्रश्न 37.
अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों का उल्लेख क्यों किया?
उत्तर:
हमारे विचार में इब्नबतूता ने अपने विवरण में इन गतिविधियों का वर्णन इसलिए किया था क्योंकि इस प्रकार के संगीत के बाजारों से उसके पाठक अपरिचित थे। अतः उसने इन गतिविधियों का वर्णन किया ताकि उसके पाठक इन वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें।

प्रश्न 38.
अब्दुररज्जाक ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में दक्षिण भारत का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
1440 के दशक में लिखा गया अब्दुरज्जाक का यात्रा-वृत्तान्त संवेगों और अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है। उसने केरल में कालीकट (आधुनिक कोलीकोड) बन्दरगाह पर जो देखा, उसे प्रशंसनीय नहीं माना। उसने लिखा है कि “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे, जिनकी कल्पना उसने कभी भी नहीं की थी।” इन लोगों को उसने एक ‘विचित्र देश’ बताया।

प्रश्न 39.
अब्दुररज्जाक द्वारा वर्णित मंगलौर के मन्दिर का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अब्दुररज्याक ने लिखा है कि मंगलौर से 9 मील के भीतर ही उसने एक ऐसा पूजा स्थल देखा जो सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। यह वर्गाकार था तथा चार द्वार मंडपों के साथ काँसे से ढका हुआ था प्रवेश-द्वार के द्वार-मंडप में सोने की बनी एक मूर्ति थी जो मानव- आकृति जैसी तथा आदमकद थी इसकी दोनों आँखों में काले रंग के माणिक इतनी चतुराई से लगाए गए थे कि ऐसा लगता था मानो वह देख सकती हों। यह शिल्प और कारीगरी अद्भुत थी।

प्रश्न 40.
इब्नबतूता ने भारत की डाक व्यवस्था को संचार की एक अनूठी प्रणाली क्यों बताया है?
अथवा
मध्यकालीन भारत में डाक प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना और उधार भेजना सम्भव हुआ बल्कि अल्प सूचना पर माल भेजना भी सम्भव हो गया। डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएँ सुल्तान तक इस डाक- व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं।

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प्रश्न 41.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में आने वाले तीन यूरोपीय यात्रियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सोलहवीं शताब्दी में दुआर्ते बरबोसा नामक यूरोपीय यात्री ने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा।
  2. सत्रहवीं शताब्दी में ज्यों वैप्टिस्ट तैवर्नियर नामक एक फ्रांसीसी जौहरी ने भारत की कम से कम 6 बार यात्रा की वह भारत की व्यापारिक स्थितियों से बड़ा प्रभावित था।
  3. सत्रहवीं शताब्दी में इतालवी चिकित्सक मनूकी भारत आए और यहीं बस गए।

प्रश्न 42.
फ्रांस्वा बर्नियर का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी था। यह एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। यह मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में भारत आया था। वह 1656 से 1668 ई. तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखे। प्रारम्भ में उसने मुगल सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह के चिकित्सक के रूप में कार्य किया तथा बाद में एक मुगल अमीर दानिशमन्द खान के साथ कार्य किया।

प्रश्न 43.
डच यात्री पेलसर्ट ने भारत में व्याप्त व्यापक गरीबी का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक हच यात्री भारत के लोगों में व्याप्त गरीबी को देखकर बड़ा आश्चर्यचकित था। उसने लिखा है कि “लोग इतनी अधिक और दुःखद गरीबी में रहते थे कि उनके जीवन को मात्र नितान्त अभाव के घर और कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आवास के रूप में चित्रित किया जा सकता है।” पेलसर्ट के अनुसार, “कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता था कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी कठिनाई से बचती थी।”

प्रश्न 44.
“बर्नियर का उद्देश्य यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाना तथा भारतीय स्थितियों को दयनीय बताना था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर निरन्तर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा और प्रायः यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाता रहा। वह यूरोपीय प्रथाओं, रीति-रिवाज और प्रशासनिक व्यवस्था को श्रेष्ठ दर्शाना चाहता था तथा भारतीय परिस्थितियों को दयनीय बताना चाहता था। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है। उसने भारत में जो भिताएँ अनुभव की उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया ताकि भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का लगे।

प्रश्न 45.
भूस्वामित्व के सम्बन्ध में वर्नियर के विचारों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बर्नियर के अनुसार भूमि स्वामित्व के प्रश्न पर भारत और यूरोप के बीच क्या भिन्नता थी? राजकीय भूस्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों के लिए क्यों हानिकारक था?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर निजी स्वामित्व का समर्थक था। उसके अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था उसने यह महसूस किया कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों में बांटता था और इसके अर्थव्यवस्था तथा समाज के लिए विनाशकारी परिणाम होते थे।

प्रश्न 46.
बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व राज्य के निवासियों के लिए क्यों विनाशकारी था?
उत्तर:
अनियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के कारण, भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें वृद्धि के लिए प्रयास नहीं करते थे। निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भूधारकों को पनपने से रोका। इसी वजह से कृषि का विनाश हुआ, किसानों को अत्यधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में लगातार पतन की स्थिति उत्पन्न हुई।

प्रश्न 47.
बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के कृषकों की दशा का वृत्तान्त प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत के कई ग्रामीण अंचल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत थे। यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी और इन क्षेत्रों की आबादी भी कम थी। यहाँ श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग कृषि विहीन रह जाता था। कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किये गए अत्याचारों के फलस्वरूप मर जाते थे। गरीबों को न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता था, बल्कि उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था।

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प्रश्न 48.
“बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना वर्णित करता है।” स्पष्ट कीजिए। उत्तर बर्नियर के अनुसार भारतीय समाज दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना था। यह वर्ग एक अत्यन्त अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग के द्वारा अधीन बनाया जाता था। शासक वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते थे गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था बर्नियर दृढ़तापूर्वक कहता है कि “भारत में मध्या की स्थिति के लोग नहीं हैं।”

प्रश्न 49.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को जिस रूप में देखा, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा भिखारियों तथा क्रूर लोगों का राजा था मुगल साम्राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित थे और इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल’ से परिपूर्ण।। इसका केवल एक ही कारण था-राजकीय भूस्वामित्व।

प्रश्न 50.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को भूमि का एकमात्र स्वामी बताया है। क्या इसकी पुष्टि मुगल साक्ष्यों धे से होती है?
उत्तर:
एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए अकबर के काल के सरकारी इतिहासकार अबुल फजल ने भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक’ बताया है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग लगती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान कुछ यूरोपीय यात्री ऐसी मांगों को लगान मानते थे परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।

प्रश्न 51.
“बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सहव शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे, जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था तथा साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे लायक उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 52.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में किस अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर लिखता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों की वृद्धि के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था क्योंकि समस्त लाभ राज्य द्वारा ही प्राप्त कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था। इसके साथ ही बनियर ने यह भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था बर्नियर ने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व का भी उल्लेख किया है।

प्रश्न 53.
बर्नियर ने यूरोपीय राजाओं को मुगल ढाँचे का अनुसरण करने पर क्या चेतावनी दी है? उसने सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार यूरोपीय राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए इतनी अच्छी प्रकार से निर्मित तथा इतने समृद्ध नहीं रह जायेंगे, जैसा कि लोग उन्हें देखते हैं वे शीघ्र ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे जैसे | कि मुगल शासक हम उन महान शहरों और नगरों को खराब वायु के कारण न रहने योग्य अवस्था में पाएँगे। विनाश की स्थिति में टीले और झाड़ियाँ अथवा पातक दलदल से भरे खेत ही रह जायेंगे।

प्रश्न 54.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में भारतीय कृषि तथा शिल्प उत्पादन की उन्नत स्थिति का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने लिखा है कि देश का अधिकांश भू- भाग अत्यधिक उपजाऊ है। उदाहरण के लिए बंगाल राज्य चावल, मकई, रेशम कपास तथा नील के उत्पादन में से आगे है। यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी गलीचों, जरी, कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के स्वों तथा विभिन्न प्रकार के रेशमी एवं सूती वस्त्रों निर्माण का कार्य करने में संलग्न रहते हैं विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी कुछ सीमा तक खो जाता है।

प्रश्न 55.
बर्नियर द्वारा उल्लिखित राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते थे, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते थे एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में कार्यरत रहते थे। एक अन्य कक्ष में सुनार कार्यरत थे। तीसरे कक्ष में चित्रकार तथा चौधे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले कार्यरत थे।

पाँचवें कक्ष में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले तथा हठे कक्ष में रेशम, जरी तथा बारीक मलमल का काम करने वाले कार्यरत थे। प्रश्न 56. बर्नियर के अनुसार ‘मुगलकालीन शहर’ ‘शिविर नगर’ थे। स्पष्ट कीजिए। जाता था। शासक वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते थे गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या नहीं था। बर्नियर दृढ़तापूर्वक कहता है कि “भारत में की स्थिति के लोग नहीं हैं।”

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प्रश्न 49.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को जिस रूप देखा, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राज भिखारियों तथा क्रूर लोगों का राजा था मुगल साम्राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित और इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से परिपूर्ण थे। इसका केवल एक ही कारण था राजकीय भूस्वामित्व।

प्रश्न 50.
बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को भूमि का एकमात्र स्वामी बताया है। क्या इसकी पुष्टि मुगल साक्ष्यों से होती है?
उत्तर:
एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए अकबर के काल के सरकारी इतिहासकार अबुल फजल ने भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक’ बताया है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग लगती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान कुछ यूरोपीय यात्री ऐसी माँगों को लगान मानते थे परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।

प्रश्न 51.
” बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा प्रस्तुत भारतीय ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे, जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था तथा साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे लायक उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 52.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में किस अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
बर्नियर लिखता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों की वृद्धि के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था क्योंकि समस्त लाभ राज्य द्वारा ही प्राप्त कर लिया जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था। इसके साथ ही बनियर ने यह भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था बर्नियर ने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व का भी उल्लेख किया है।

प्रश्न 53.
बर्नियर ने यूरोपीय राजाओं को मुगल ढाँचे का अनुसरण करने पर क्या चेतावनी दी है? उसने सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार यूरोपीय राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए इतनी अच्छी प्रकार से निर्मित तथा इतने समृद्ध नहीं रह जायेंगे, जैसा कि लोग उन्हें देखते हैं वे शीघ्र ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे जैसे कि मुगल शासक हम उन महान शहरों और नगरों को खराब बायु के कारण न रहने योग्य अवस्था में पाएँगे। विनाश की स्थिति में टीले और झाड़ियाँ अथवा पातक दलदल से भरे खेत ही रह जायेंगे।

प्रश्न 54.
बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में भारतीय कृषि तथा शिल्प उत्पादन की उन्नत स्थिति का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने लिखा है कि देश का अधिकांश भू- भाग अत्यधिक उपजाऊ है। उदाहरण के लिए बंगाल राज्य चावल, मकई, रेशम कपास तथा नील के उत्पादन में मिल से आगे है। यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी गलीचों, जरी कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चांदी के यस्व तथा विभिन्न प्रकार के रेशमी एवं सूती वस्त्रों के निर्माण का कार्य करने में संलग्न रहते हैं। विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी भारत में आकर कुछ सीमा तक खो जाता है।

प्रश्न 55.
बर्नियर द्वारा उल्लिखित राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते थे, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते थे। एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में कार्यरत रहते थे। एक अन्य कक्ष में सुनार कार्यरत थे। तीसरे कक्ष में चित्रकार तथा पौधे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले कार्यरत थे। पाँचवें कक्ष में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले तथा हठे कक्ष में रेशम, जरी तथा बारीक मलमल का काम करने वाले कार्यरत थे।

प्रश्न 56.
बर्नियर के अनुसार ‘मुगलकालीन शहर’ “शिविर नगर’ थे स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिये। बर्नियर भारतीय शहरों को किस रूप में देखता है?
उत्तर:
बनिंवर ने ‘मुगलकालीन शहरों’ को ‘शिविर नगर’ कहा है। शिविर नगरों से उसका अभिप्राय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। उसका विचार था कि ये नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे तथा दरबार के कहीं और चले जाने के बाद ये तेजी से विलुप्त हो जाते थे। उसके अनुसार इन नगरों की सामाजिक और आर्थिक नींव व्यावहारिक नहीं होती थी और ये राजकीय संरक्षण पर आश्रित रहते थे।

प्रश्न 57.
बर्नियर के अनुसार “मुगलकालीन व्यापारी प्रायः सुदृढ़ सामुदायिक अथवा बन्धुत्व के सम्बन्धों से जुड़े होते थे।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगलकाल में व्यापार प्रायः सुदृद् सामुदायिक अथवा वन्धुत्व के सम्बन्धों में जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को ‘महाजन’ कहा जाता था और उनका मुखिया ‘सेठ’ कहलाता था। अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था, जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था।

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प्रश्न 58.
इब्नबतूता ने तत्कालीन दास-दासियों की स्थिति का क्या विवरण प्रस्तुत किया है?
अथवा
इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
इब्नबतूता के अनुसार पुरुष तथा महिला दास बाजारों में खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट में दिए जाते थे। दासों का प्रायः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था। ये लोग और महिलाओं को ले जाते थे पालकी या डोले में पुरुषों घरेलू श्रम में लगे हुए दासों का मूल्य बहुत कम होता था इसलिए अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दासों को रख पाने में समर्थ थे। सुल्तान की सेवा में लगी हुई कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।

प्रश्न 59.
“भारतीय महिलाओं का जीवन सती प्रथा के अलावा कई और चीजों के चारों ओर घूमता था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महिलाओं का जीवन सती प्रथा के अलावा कई और चीजों के चारों ओर घूमता भी था उनका श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन, दोनों में महत्त्वपूर्ण था। व्यापारिक घरानों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। वे कभी-कभी वाणिज्यिक विवादों को न्यायालय के सामने भी ले जाती थीं। अतः यह सम्भव नहीं लगता है कि महिलाओं को उनके घरों के विशेष स्थानों तक परिसीमित कर रखा जाता था।

प्रश्न 60.
‘बर्नियर द्वारा किया गया भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा किया गया भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है या फिर यूरोप के विपरीत देश के रूप में दर्शाया है। उसने जो भिन्नताएँ महसूस कीं, उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया जिससे भारत यूरोपीय देशों को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

प्रश्न 61.
बर्नियर ने सती प्रथा का विस्तृत विवरण देना क्यों उचित समझा ?
उत्तर:
बर्नियर भारत में प्रचलित उन सभी प्रथाओं का वर्णन करना चाहता था जिससे भारत यूरोपीय देशों की तुलना में एक निम्न कोटि का देश प्रतीत होता हो उस समय सभी समकालीन यूरोपीय यात्रियों तथा लेखकों के लिए महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार प्रायः पश्चिमी तथा पूर्वी देशों के बीच भिन्नता का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक माना जाता था इसलिए बर्नियर ने सती प्रथा का वर्णन करना उचित समझा।

प्रश्न 62.
बर्नियर ने लाहौर में एक अल्पवयस्क विधवा के सती होने का किस प्रकार विवरण दिया है?
उत्तर:
लाहौर में बर्नियर ने एक अत्यन्त सुन्दर अल्पवयस्क विधवा को सती होते हुए देखा। यह बालिका बुरी तरह से रो रही थी परन्तु उसे कुछ ब्राह्मण लोगों तथा एक वृद्ध महिला की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को बलपूर्वक सती-स्थल की ओर ले जाया गया। उसे लकड़ियों पर बिठाया गया, उसके हाथ और पैर बांध दिए गए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस निर्दोष विधवा को जीवित जला दिया गया।

प्रश्न 63.
बर्नियर के विवरणों ने फ्रांसीसी दार्शनिक मान्टेस्क्यू को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
बर्नियर के विवरणों से प्रभावित होकर फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने वर्नियर के वृतान्त का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर अपने प्रभुत्व का उपभोग करते थे, जिसे दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था।

प्रश्न 64.
बर्नियर के विवरणों से कार्ल मार्क्स किस प्रकार प्रभावित हुआ?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स ने लिखा कि भारत ( तथा अन्य एशियाई देशों में ) उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था। इससे एक ऐसे समाज का उद्भव हुआ जो बड़ी संख्या में स्वतन्त्र तथा आन्तरिक रूप से समतावादी ग्रामीण समुदायों से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर राजकीय दरबार का नियंत्रण होता था और जब तक अधिशेष की आपूर्ति बिना किसी बाधा के जारी रहती थी इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था।

प्रश्न 65.
इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली को देखकर चकित क्यों हो गया?
उत्तर:
इब्नबतूता भारत की डांक प्रणाली को देखकर चकित हो गया क्योंकि भारत की डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली यात्रा में पचास दिन लगाते थे, वहीं सुल्तान तक गुप्तचरों की खबर मात्र पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थी। इसके अतिरिक्त इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजी जा सकती श्री बल्कि अल्प सूचना पर माल भी भेजा जा सकता था।

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प्रश्न 66.
‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ में बर्नियर भारत को पश्चिमी जगत की तुलना में अल्प- विकसित व निम्न श्रेणी का दर्शाना चाहता था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर में बनिंबर की भारतीय उपमहाद्वीप की यात्राओं का वर्णन है। यह ग्रन्थ वर्नियर की गहन आलोचनात्मक चिन्तन दृष्टि का उदाहरण है, लेकिन बर्नियर का यह दृष्टिकोण पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं तथा एकपक्षीय है। बर्नियर ने मुगलकालीन इतिहास को भारत की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में न रखकर एक वैश्विक ढाँचे में ढालने का प्रयास किया। वह यूरोप के परिप्रेक्ष्य में मुगलकालीन इतिहास की तुलना निरन्तर करने का प्रयास करता रहा। बर्नियर के अनुसार यूरोप की प्रशासनिक व्यवस्था, यूरोप की सामाजिक- आर्थिक स्थिति भारत से कहीं बेहतर है। बास्तव में उसका भारत चित्रण पूरी तरह प्रतिकूलता पर आधारित है।

प्रश्न 67.
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों में क्या विशेषताएं देखीं? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इब्नबतूता ने भारतीय शहरों को उन्नत अवस्था में पाया। उसके अनुसार जो लोग जीवन को समग्रता से जीने की आकांक्षा रखते हैं, जिनके पास कला-कौशल, दृढ़ इच्छा-शक्ति और पर्याप्त साधन हैं, उनके लिए आगे बढ़ने हेतु भारत के शहरों में व्यापक अवसर मौजूद थे। भारतीय शहरों की आबादी धनी थी व शहरों में समृद्धि झलकती थी। परन्तु युद्ध आदि की विभीषिका का दुष्परिणाम शहरों को कभी-कभी भुगतना पड़ता था।

इब्नबतूता के अनुसार शहर के बाजार चहल-पहल तथा चमक-दमक से भरपूर विभिन्न प्रकार की व्यापारिक वस्तुओं से भरे रहते थे। भारत में दिल्ली एक विपुल आबादी वाला सबसे बड़ा शहर था महाराष्ट्र में स्थित दौलताबाद भी दिल्ली से किसी प्रकार कमतर नहीं था। बाजारों में केवल व्यापारिक गतिविधियाँ ही नहीं अन्य धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियाँ भी होती थीं। इब्नबतूता का यह वर्णन भारतीय शहरों की विकसित समृद्धि का व्यापक उदाहरण है।

प्रश्न 68.
अब्दुर रज्जाक द्वारा लिखित यात्रा वृत्तान्त संवेगों और अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है, कैसे?
उत्तर:
1440 के दशक में लिखा गया अब्दुर रजाक का यात्रा वृत्तान्त उसके शब्दों में, “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे जिनकी कल्पना मैंने कभी नहीं की।” 1440 के दशक में अब्दुर रजाक केरल के कालीकट बन्दरगाह पर पहुँचा। इन लोगों को देखकर उसके मुँह से ‘विचित्र देश का सम्बोधन निकला। लेकिन कालान्तर में अपनी पुनः भारत यात्रा के दौरान वह मंगलौर आया और यहाँ पश्चिमी पाट को पार कर उसने एक मन्दिर देखा, जिसे देखकर वह बहुत अधिक प्रभावित हुआ। मन्दिर की स्थापत्य कला को देखकर वह मन्त्रमुग्ध रह गया और ‘विचित्र देश’ की छवि उसके मस्तिष्क से निकल गई।

प्रश्न 69.
पेलसर्ट नामक डच यात्री की भारत यात्रा का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक डच यात्री ने सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। बर्नियर की ही तरह वह भी लोगों में व्यापक गरीबी देखकर अचम्भित था “लोग इतनी अधिक तथा दुःखद गरीबी में रहते हैं कि इनके जीवन को मात्र नितान्त अभाव के पर तथा कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आभास के रूप में चित्रित अथवा ठीक प्रकार से वर्णित किया जा सकता है।” राज्य को उत्तरदायी ठहराते हुए वह कहता है: ‘कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।”

प्रश्न 70.
भारतीय महिलाओं की मध्यकालीन सामाजिक स्थिति के बारे में यूरोपीय लेखकों के विचार क्या थे?
उत्तर:
विभिन्न यूरोपीय यात्री जो भारत आये उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत मध्यकालीन भारतीय महिलाओं की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इन विचारकों ने पाया कि भारतीय महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार पश्चिमी समाजों से सर्वथा भिन्न था। बर्नियर ने इस सन्दर्भ में भारत की क्रूरतम अमानवीय सती प्रथा का उदाहरण दिया है जो भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी देश में नहीं थी।

पस्तु सती प्रथा के अतिरिक्त यूरोपीय लेखकों ने महिलाओं के सामाजिक जीवन के अन्य पक्षों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया है। वे केवल घरों की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहती थीं। कृषि तथा कृषि से सम्बन्धित कार्यों जैसे पशुपालन में उनके श्रम का महत्त्व था। व्यापारिक परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भागीदारी रखती थीं। कुछ महिलाएँ प्रशासनिक कार्यों में भी भाग लेती थीं।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के 10वीं से 17वीं सदी तक के इतिहास के पुनर्निर्माण में विदेशी यात्रियों के विवरणों का क्या योगदान है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त निश्चित रूप से इतिहास के निर्माण में सहायक होते हैं। यही स्थिति हम 10वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य भी देखते हैं। इस काल में अनगिनत यात्री भारत आए तथा अपनी समझ के अनुसार भारत का विवरण प्रस्तुत किया। इस तथ्य को हम निम्न विन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) अधिकांश यात्री भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न आर्थिक तथा सामाजिक परिदृश्य से आए थे।

(2) स्थानीय लेखक भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का विवरण करने में रुचि नहीं रखते थे; जबकि इन विदेशी लेखकों ने भारत की तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष विवरण दिए हैं।

(3) 10वीं शताब्दी के आस-पास भारतीय विद्वान विदेशों के साथ सम्बन्ध बनाने तथा उनके विषय में जानने .में अधिक रूचि नहीं रखते थे। इसके फलस्वरूप ये तुलनात्मक अध्ययन करने में असमर्थ थे।

(4) विदेशी यात्रियों ने अपने विवरण में उन तथ्यों को अधिक महत्त्व दिया है; जो उन्हें विचित्र जान पड़ते थे। इससे उनके विवरण में रोचकता आ जाती है।

(5) विदेशी यात्रियों के विवरण तत्कालीन राजदरबार के क्रियाकलापों, धार्मिक विश्वास तथा स्थापना की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं। इससे इतिहास निर्माण में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है। उपर्युक्त बिन्दुओं को हम पृथक्-पृथक् यारियों के विवरण के साथ समझ सकते हैं।

ये विवरण निम्नलिखित –
1. अल बिरूनी का विवरण अल-विरुनी का विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है –

  • अल-विरुनी ने अपनी रचनाओं में भारत में व्याप्त जाति-व्यवस्था तथा वर्ण व्यवस्था का वर्णन किया है।
  • अल बिरूनी ने भारतीय समाज की रूढ़िवादिता को भी अपनी किताबों में दर्शाया है।
  • अल बिरूनी ने भारत के ज्योतिष, खगोल विज्ञान तथा गणित की विस्तारपूर्वक चर्चा की है।

2. इब्नबतूता का विवरण इससे सम्बन्धित मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार है –

  • इब्नबतूता ने भारतीय डाक प्रणाली की प्रशंसा की है तथा उससे हमें परिचित भी कराया।
  • इब्नबतूता की रचनाओं द्वारा हमें यह पता चलता है कि उस समय भारत में नारियल तथा पान की खेती का व्यापक प्रचलन था।
  • इब्नबतूता ने दासों का भी विस्तारपूर्वक विवरण दिया है; जिससे यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज तथा राजनैतिक व्यवस्था में दासों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
  • इब्नबतूता की रचनाओं में भारतीय बाजारों तथा व्यापारियों की सम्पन्नता का उल्लेख भी मिलता है। जिससे यह पता चलता है कि तत्कालीन भारत आर्थिक रूप से समृद्ध था।

3. बर्नियर का विवरण बर्नियर द्वारा रचित ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में दिया गया विवरण निम्न बिन्दुओं द्वारा किया जा सकता है-

  • बर्नियर के अनुसार भारतीयों को निजी भू-स्वामित्व का अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • बर्नियर की रचनाओं में सती प्रथा का विवरण मिलता है।
  • बर्नियर ने मुगल सेना के साथ कश्मीर यात्रा की थी तथा उस यात्रा का विस्तृत विवरण दिया है। उस विवरण से यह ज्ञात होता है कि उस समय यात्रा में किन सामानों की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समकालीन यात्रियों के विवरण इतिहास को समझने तथा उसका निर्माण करने में अत्यधिक सहायक होते हैं।

प्रश्न 2.
अल बिरूनी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन करते हुए ‘किताब-उल-हिन्द’ की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अल बिरूनी का प्रारम्भिक जीवन अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थिता ख्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक प्रसिद्ध केन्द्र था। अल बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की। वह एक उच्च कोटि का विद्वान था तथा सीरियाई फारसी, हिब्रू और संस्कृत भाषाओं का ज्ञाता था। यद्यपि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था, फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों की रचनाओं से परिचित था जिनका उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से अध्ययन किया था। 1017 ई. में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और यहाँ से कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया।

अल बिरुनी भी उनमें से एक था। वह एक बन्धक के रूप में गजनी आया था, परन्तु धीरे-धीरे उसकी गजनी शहर में रुचि बढ़ने लगी। उसने अपना शेष जीवन गजनी में ही बिताया। 70 वर्ष की आयु में गजनी में अल बिरुनी की मृत्यु हो गयी। भारत के प्रति रुचि बढ़ना-गजनी में रहते हुए अल- बिरनी की भारत के प्रति रुचि बढ़ने लगी। पंजाब को गलनी साम्राज्य में सम्मिलित करने के बाद स्थानीय लोगों से सम्पर्कों से आपसी विश्वास तथा समझ का वातावरण बना। अल-विरुनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया।

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‘किताब-उल-हिन्द’ की विशेषताएं –
(1) विविध विषयों का विवेचन-किताब-उल- हिन्द अरबी में लिखी गई अल बिरूनी की प्रसिद्ध रचना है इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार तौल, मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ अस्सी अध्यायों में विभाजित है।

(2) विशिष्ट शैली अल-बिहनी ने प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया है, जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन था और अन्त में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना की गई थी। यह लगभग एक ज्यामितीय संरचना है।

(3) स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता यह ग्रन्थ अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए प्रसिद्ध है।

(4) भारतीय ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों से परिचित अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी रचनाएँ भारतीय उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। अल बिरुनी संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था।

(5) समालोचनात्मक दृष्टिकोण- इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री तथा शैली के विषय में अल-बिरुनी का दृष्टिकोण समालोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।

प्रश्न 3.
इब्नबतूता के प्रारम्भिक जीवन एवं उसकी यात्राओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता का प्रारम्भिक जीवन इब्नबतूता मोरक्को का निवासी था उसका जन्म 1304 में तैंजियर नामक नगर के एक सम्मानित एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उसका परिवार इस्लामी कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था अपने परिवार की परम्परा के अनुसार इब्नबतूता ने कम आयु में ही साहित्यिक तथा शास्वारूढ़ शिक्षा प्राप्त की। उसका यात्रा वृत्तान्त ‘रिला’ के नाम से प्रसिद्ध है।

(1) इब्नबतूता की यात्राएँ – अन्य विदेशी यात्रियों के विपरीत, इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था। इब्नबतूता को यात्राएँ करने का बहुत शौक था इसलिए वह नए-नए देशों तथा लोगों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए दूर-दूर के प्रदेशों तक में गया। 1332-33 ई. में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के अनेक तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।

(2) भारत की यात्रा – मध्य एशिया के मार्ग से होते हुए इब्नबतूता 1333 ई. में स्थल मार्ग से सिन्ध पहुँचा। उसने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में सुन रखा था कि वह कला और साहित्य का उदार संरक्षक है अतः उसकी ख्याति से आकर्षित हो इब्नबतूता ने मुल्तान और कच्छ होते हुए दिल्ली को ओर प्रस्थान किया। मुहम्मद बिन तुगलक इब्नबतूता की विद्वता से बड़ा प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काजी अथवा न्यायाधीश नियुक्त किया। वह इस पद पर कई वर्ष तक रहा।

(3) चीन के राजदूत के रूप में इब्नबतूता की नियुक्ति 1342 ई. में इब्नबतूता को मंगोल शासक के पास सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया। उसने दिल्ली से चीन के लिए प्रस्थान किया और मध्य भारत के रास्ते मालाबार तट की ओर बढ़ा। मालाबार से वह मालद्वीप गया तथा वहाँ वह अठारह महीनों तक काजी के पद पर रहा। अन्ततः उसने लंका जाने का निश्चय किया। बाद में वह एक बार पुनः मालाबार तट तथा मालद्वीप गया। चीन जाने के अपने कार्य को पुनः शुरू करने से भा पहले वह बंगाल तथा असम भी गया।

प्रश्न 4.
लगभग 1500 ई. के बाद भारत की यात्रा करने वाले यूरोपीय लेखकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 1500 ई. के बाद भारत की यात्रा करने वाले यूरोपीय लेखक लगभग 1500 ई. में भारत में पुर्तगालियों के आगमन के बाद उनमें से अनेक लोगों ने भारतीय सामाजिक रीति- रिवाजों तथा धार्मिक प्रथाओं के विषय में विस्तृत वृत्तान्त लिखे। जेसुइट राबट नोबिली भी एक ऐसा ही लेखक था जिसने भारतीय ग्रन्थों का यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद भी किया।

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(1) दुआतें बरबोसा- दुआर्ते बरबोसा यूरोप का एक प्रसिद्ध लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा 1600 ई. के बाद भारत में आने वाले डच अंग्रेज और फ्रांसीसी यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी थी।

(2) फ्रांसिस्को पेलसर्ट-फ्रांसिस्को पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। वह यहाँ के लोगों में व्यापक गरीबी देखकर आश्चर्यचकित था। उसने कृषकों की अत्यन्त दयनीय दशा को मार्मिक चित्रण किया है।

(3) ज्यों-बैप्टिस्ट तैवर्नियर ज्यों-बैप्टिस्ट तैवर्नियर एक फ्रांसीसी जौहरी था जिसने कम से कम छः बार भारत की यात्रा की यह विशेष रूप से भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था। उसने भारत की तुलना ईरान और ओटोमन साम्राज्य से की।

(4) मनूकी मनूकी एक इतालवी चिकित्सक था। वह कभी भी यूरोप वापस नहीं गया और भारत में ही बस गया।

(5) फ्रांस्वा बर्नियर-फ्रांस का निवासी फ्रांस्वा बनियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। वह अन्य लोगों की भांति मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में आया था। वह 1656 से 1668 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा-पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में तथा बाद में मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।

प्रश्न 5.
अल बिरुनी के यात्रा-वृत्तान्त का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी का यात्रा वृत्तान्त अल बिरूनी एक उच्च कोटि का विद्वान था। वह भारत में कई वर्षों तक रहा। उसने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताये और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। अल बिरुनी की लेखन शैली की विशेषताएँ-अल- बिरुनी की लेखन शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित किया।

  1. अल बिरूनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग
  2. उसने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं।
  3. वह संस्कृत, पालि तथा प्राकृत ग्रन्थों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था।
  4. इन ग्रन्थों की लेखन सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।

अल बिरूनी द्वारा अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार करना-यद्यपि अल बिरुनी जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानता था, फिर भी उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसने लिखा कि प्रत्येक यह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। उसका कहना था कि जाति व्यवस्था में संलग्न अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी। भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का विवरण अल- बिरूनी ने भारत में प्रचलित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख अग्र प्रकार से किया है –

  • ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी। हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। हिन्दू ब्राह्मणों को मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
  • क्षत्रिय अल-विरुनी के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि क्षत्रिय ब्रह्मन् के कंधों और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचा नहीं है।
  • वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। वैश्य ब्रह्मन् की जंघाओं से उत्पन्न हुए थे।
  • शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन् के चरणों से हुआ था।

अल बिरुनी के अनुसार अन्तिम दो वर्णों में अधिक अन्तर नहीं है। परन्तु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी ये शहरों और गाँवों में मिल-जुलकर रहते हैं। जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित होना जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरुनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतया प्रभावित था। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति व्यवस्था का संचालन करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था। परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी।

प्रश्न 6.
इब्नबतूता द्वारा किए गए दिल्ली तथा दौलताबाद के वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
इब्नबतूता द्वारा वर्णित दिल्ली का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
अथवा
दिल्ली के विशेष संदर्भ में भारतीय नगरों के बारे में इब्नबतूता के वृत्तान्तों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
1. इब्नबतूता द्वारा किया गया दिल्ली का वर्णन –
(1) दिल्ली की बनावट इनवतृत के अनुसार दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला पनी जनसंख्या वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ लगभग 20 इंच के बराबर) है और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।

प्राचीरों के अन्दर खाद्य सामग्री, हथियार, बारूद, प्रक्षेपास्त्र तथा पेरेबन्दी में प्रयुक्त होने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडार गृह बने हुए थे। प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हैं जो शहर की ओर खुलती हैं तथा इन्हीं खिड़कियों के द्वारा प्रकाश भीतर आता है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है तथा ऊपरी भाग ईंटों से निर्मित है।

(2) शहर के द्वार दिल्ली शहर के 28 द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है और इनमें से बदायूँ दरवाजा सबसे विशाल है। मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी है, गुल-दरवाजे की बगल में एक फलों का बगीचा है।

(3) कब्रगाह दिल्ली शहर में एक उत्तम कब्रगाह है, जिसमें बनी कब्रों के ऊपर गुम्बद बनाई गई है और गुम्बद विहीन कब्रों पर मेहराब बने हुए हैं। कब्रगाह में कदाकार चमेली तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं और फूल सभी ऋतुओं में खिले रहते हैं।

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2. इब्नबतूता द्वारा दौलताबाद का विवरण
(1) पुरुष और महिला गायकों का बाजार- इब्नबतूता के अनुसार दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार है, जिसे ‘तारामबाद’ कहते हैं यहाँ बहुत-सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है, जो मालिक के आवास में खुलता है। दुकानें कालीनों से सुसज्जित हैं और दुकान के मध्य में झूला है, जिस पर गायिका बैठती है।

(2) विशाल गुम्बद बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा है जिसमें कालीन बिछे हुए हैं और यह खूब सजाया गया है। इसमें प्रत्येक गुरुवार प्रातः काल की उपासना के बाद संगीतकारों के प्रमुख अपने सेवकों और दासों के साथ स्थान ग्रहण करते हैं। गायिकाएँ एक के बाद एक झुंडों में उनके समक्ष आकर सूर्यास्त का गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं जिसके पश्चात् वे चले जाते हैं।

(3) मस्जिदें इब्नबतूता के अनुसार इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं जब भी कोई हिन्दू शासक इस बाजार से गुजरता था, वह गुम्बद में उत्तर कर आता था और गायिकाएँ उसके समक्ष गान प्रस्तुत करती थीं। यहाँ तक कि अनेक मुस्लिम शासक भी ऐसा ही करते थे।

प्रश्न 7.
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारत की डाक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारत की डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य विशेष उपाय करता था। लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह स्थापित किए गए थे। इब्नबतूता भारत की डाक व्यवस्था की कार्यकुशलता देखकर बड़ा चकित हुआ।

इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजना और उधार भेजना सम्भव हुआ, बल्कि इससे अल्पसूचना पर माल भेजना भी आसान हो गया। इब्नबतूता के अनुसार डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएं सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं।

डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी –
(1) अश्व डाक व्यवस्था तथा
(2) पैदल डाक व्यवस्था।
(1) अश्व डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था को ‘उल्लुक’ कहा जाता था। यह हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी।
(2) पैदल डाक व्यवस्था पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील तीन चौकियाँ होती थीं, जिन्हें ‘दावा’ कहा जाता था। यह एक मील का एक तिहाई होता था। हर | तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता था, जिसके बाहर तीन मण्डप होते थे, जिनमें लोग कार्य शुरू करने के लिए तैयार बैठे रहते थे। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी, जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती थीं।

जब सन्देशवाहक शहर से यात्रा आरम्भ करता था, तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घटियाँ वाली छड़ लिए वह यथाशक्ति तेज भागता था जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते थे, तो तैयार हो जाते थे। जैसे ही सन्देशवाहक उनके निकट पहुँचता था, उनमें से एक पत्र ले लेता था और वह छड़ी हिलाते हुए पूरी शक्ति से दौड़ता था, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता। पत्र के अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती थी यह पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक तीव्र होती थी। इसका प्रयोग प्रायः खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता था, जिन्हें भारत में बहुत पसन्द किया जाता था।

प्रश्न 8.
इब्नबतूता द्वारा वर्णित भारतीय यात्रा- वृत्तांत का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता का भारतीय यात्रा वृत्तांत इब्नबतूता के भारतीय यात्रा वृत्तांत का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) नारियल – इब्नबतूता के अनुसार नारियल एक अनोखा तथा विस्मयकारी वृक्ष था। यह खजूर के वृक्ष जैसा दिखता था। इन दोनों वृक्षों में एक ही अन्तर था-नारियल से काष्ठफल प्राप्त होता था तथा दूसरे से खजूर नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता था। लोग नारियल के रेशे से रस्सी बनाते थे।

(2) पान इब्नबतूता के अनुसार पान को अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता था। पान का कोई वृक्ष नहीं होता था और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता था। इसे
खाने से पहले सुपारी ली जाती थी। इसके छोटे- छोटे टुकड़ों को मुँह में रखकर चनाया जाता था। इसके बाद पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता था।

(3) भारतीय शहर इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे परन्तु कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों के दौरान नष्ट हो जाते थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे। ये बाजार विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली बहुत अधिक आबादी वाला शहर था। वह भारत में सबसे बड़ा शहर था दौलताबाद (महाराष्ट्र में भी कम नहीं था तथा आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।’ शहरों में वस्त्र उद्योग उन्नत अवस्था में था। विदेशों में भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी।

(4) डाक व्यवस्था इब्नबतूता के अनुसार भारतीय डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की सूचनाएँ सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के द्वारा केवल पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थीं। इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी –

  • अश्व डाक व्यवस्था तथा
  • पैदल डाक व्यवस्था।

(5) महिलाएँ दासियाँ सती तथा अमिक- इब्नबतूता के अनुसार बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की तरह खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे। दासों में विभेद – इब्नबतूता के अनुसार दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।

इसके अतिरिक्त सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। घरेलू श्रम के लिए दासों का प्रयोग इब्नबतूता के अनुसार दासों का प्रायः घरेलू श्रम के लिए प्रयोग किया जाता था। ये लोग पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाते थे। घरेलू श्रम के काम में लगे हुए दासों एवं दासियों की कीमत बहुत कम होती थी। अतः अधिकांश परिवार एक-दो दास तो रखते ही थे।

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प्रश्न 9.
विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित भारतीय महिलाओं, दास-दासियों एवं सती प्रथा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
अथवा
इब्नबतूता एवं बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय महिलाओं, दास-दासियों एवं सती प्रथा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित दास- दासियों एवं सती प्रथा का विवरण –
(1) दास-दासियाँ – इब्नबतूता के अनुसार भारतीय बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की भाँति खुले आम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंटस्वरूप दिए जाते थे। सिन्ध पहुँचने पर इब्नबतूता ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे। मुल्तान पहुँचने पर उसने गवर्नर को किशमिश तथा बादाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में दिए। इब्नबतूता के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुदीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके तथा तथा दो सौ दास दिए थे।

(2) दासों में विभेद इब्नबतूता के अनुसार दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से खूब आनन्दित हुआ।

(3) अमीरों की गतिविधियों की जानकारी के लिए दासियों की नियुक्ति इनवता के अनुसार सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अपने अमीरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को नियुक्त करता था।

(4) दासों का घरेलू श्रम के लिए प्रयोग करना- इब्नबतूता के अनुसार दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था। ये लोग पालकी या डोले में महिलाओं को ले जाते थे। दासों का मूल्य, विशेष रूप से उन दासियों का मूल्य, जिनका प्रयोग घरेलू श्रम के लिए किया जाता था, बहुत कम होता था। इसी वजह से अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दास तो रखते ही थे।

(5) सती प्रथा बर्नियर के अनुसार भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। यद्यपि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से चिता में जल कर मर जाती थीं, परन्तु अनेक विधवाओं को मरने के लिए बाध्य किया जाता है। बर्नियर ने लाहौर में एक बारह वर्षीय विधवा की बलि का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “इस बालिका को उसकी इच्छा के विरुद्ध जीवित जला दिया था। यह बालिका काँपते हुए बुरी तरह रो रही थी परन्तु तीन या चार ब्राह्मणों तथा एक बूढ़ी महिला की सहायता से उस अनिच्छुक बालिका को जबरन चिता स्थल की ओर ले जाया गया, उसे लकड़ियों पर बिठाया गया और उसके हाथ तथा पैर बाँध दिए गए ताकि वह भाग न जाए। इस प्रकार इस निर्दोष बालिका को जीवित जला दिया गया।”

प्रश्न 10.
“बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के विवरणों द्वारा पश्चिमी विचारकों को प्रभावित करना बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से निम्नलिखित पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया –

(1) मान्टेस्क्यू-फ्रांस का प्रसिद्ध दार्शनिक मान्टेस्क्यू बर्नियर के विवरणों से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर असीम प्रभुत्व का उपभोग करते थे तथा प्रजा को दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजा और उनके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई से गुजारा कर पाता था।

(2) कार्ल मार्क्स प्रसिद्ध साम्यवादी विचारक कार्ल मार्क्स भी बर्नियर के विवरणों से प्रभावित हुआ। उसने उन्नीसवीं सदी के इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धान्त के रूप में और आगे बढ़ाया। उसने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भारत तथा अन्य एशियाई देशों में उपनिवेशवाद से पहले राज्य अधिशेष का अधिग्रहण कर लेता था। इसके फलस्वरूप एक ऐसे समाज का प्रादुर्भाव हुआ जो काफी स्वायत्त तथा आन्तरिक से समताण से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर से ( का नियन्त्रण होता था। जब तक अधिशेष की आपूर्ति निरन्तर जारी रहती थी इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था। यह एक निष्क्रिय प्रणाली मानी जाती थी।

ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से दूर होना- परन्तु ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’ भूमिविहीन श्रमिक इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में जुटा रहता था। इसके साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे जो कठिनाई से ही अपने गुजारे योग्य उत्पादन कर पाते थे।

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प्रश्न 11.
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई ‘पूर्व और पश्चिम की तुलना को उल्लेखित कीजिए।
अथवा
बर्नियर द्वारा वर्णित भारतीय यात्रा वृत्तान्त का विवेचन कीजिए।
अथवा
“बर्नियर का ग्रन्थ ‘ट्रेवल्स इन मुगल एम्पायर अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि तथा गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई ‘पूर्व और पश्चिम’ की तुलना बर्नियर प्राय: भारत में जो देखता था, उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था। वह यूरोपीय रा संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रबल समर्थक था यूरोपीय स्थितियों के मुकाबले में वह भारत की स्थितियों को दयनीय दर्शाना चाहता था। यही कारण है कि लगभग प्रत्येक दृष्टान्त में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की अ तुलना में दयनीय बताया।

(2) भूमि स्वामित्व का प्रश्न बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर के अनुसार भूमि = पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था। उसका विचार था कि मुगल साम्राज्य में सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों में बांटता था। इसके अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए विनाशकारी परिणाम होते थे।

(3) किसानों की दयनीय दशा-बर्नियर के अनुसार ग्रामीण अंचलों में रहने वाले कृषकों की दशा बड़ी दयनीय थी। यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी और श्रमिकों के अभाव में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग भी कृषि -विहीन रह जाता था। कई श्रमिक गवर्नरों के द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण मौत के मुंह में चले जाते थे। अपने स्वामियों की माँगों को पूरा न करने के कारण अनेक किसानों को उनके गुजारा करने के साधनों से वंचित कर दिया जाता था तथा उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था।

(4) मुगल साम्राज्य का स्वरूप- बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा ‘भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। मुगल राज्य के शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब वायु’ से दूषित थे और इसके खेत ‘झाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे। इसका मात्र एक ही कारण था राजकीय भू-स्वामित्व।

(5) एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई एक ओर वर्नियर कहता है कि भारतीय शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों के विस्तार के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था क्योंकि समस्त लाभ राज्य के खजाने में चला जाता था। इसलिए उत्पादन सर्वत्र पतनोन्मुख था परन्तु इसके साथ ही बर्नियर यह भी स्वीकार करता है कि सम्पूर्ण विश्व से बड़ी माश में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले निर्यात होता था. भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय भी था।

(6) भारतीय शहर बर्नियर के अनुसार मुगलकालीन शहर ‘शिविर नगर’ थे। शिविर नगरों से उसका अभिप्राय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे उसका विचार था कि ये नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके अन्यत्र चले जाने के बाद तेजी से विलुप्त हो जाते थे।

(7) व्यावसायिक वर्ग अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम एवं वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद् संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।

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प्रश्न 12.
इब्नबतूता और अल बिरूनी के भारत यात्रा-वृत्तान्तों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इब्नबतूता और अल बिरूनी के भारत यात्रा वृत्तान्तों की तुलना इब्नबतूता तथा अल बिरुनी के भारत यात्रा वृत्तान्तों की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है-

(1) भिन्न-भिन्न कालों से सम्बन्धित यात्रा वृत्तान्त- अल बिरुनी का या वृत्तान्त ग्यारहवीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है, जबकि इब्नबतूता का यात्रा-वृत्तान्त चौदहवीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित है।

(2) विषय अल बिरूनी ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘किताब-उल-हिन्द’ में भारतीय धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, 7 भार तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया है। इब्नबतूता ने न अपनी प्रसिद्ध रचना ‘रिहला’ में भारतीय सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन, डाक व्यवस्था, भारतीय शहरों, बाजारों नारियल तथा पान, दास-दासियों, सती प्रथा, भारत की बा जलवायु लोगों के रहन-सहन, वेशभूषा, कृषि व्यापार आदि न विषयों का विवेचन किया है।

(3) भारतीय लोगों के धर्म, दर्शन और विज्ञान के के बारे में वर्णन करना अल बिरुनी संस्कृत भाषा का था। उसने यहाँ के लोगों के दर्शन, धर्म, विज्ञान और ना विचारों के ग्रन्थों का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसके द्वारा वर्णित भारत की जाति व्यवस्था का वर्णन उसके संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतया प्रभावित था। परन्तु से इब्नबतूता संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं, यहाँ के क रीति-रिवाजों, दर्शन आदि से अपरिचित थे।

(4) साहित्यिक ग्रन्थों एवं यात्राओं से अर्जित अनुभव को महत्त्वपूर्ण स्रोत मानना अल बिरूनी न साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक वाय महत्त्वपूर्ण खोत मानता था, परन्तु इब्नबतूता साहित्यिक नए ग्रन्थों के स्थान पर चाशओं से अर्जित अनुभव को महत्त्वपूर्ण नगर स्त्रोत मानता था।

(5) उद्देश्य अल बिरुनी के बाश-वृत्तान्त के उद्देश्य ये –

  • उन लोगों के लिए सहायक जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे तथा
  • ऐसे लोगों के लिए एक सूचना का संग्रह जो उनके साथ सम्बद्ध होना चाहते थे इब्नबतूता के भारत यात्रा के वृत्तान्त का उद्देश्य अपरिचित वस्तुओं, राज्यों, घटनाओं आदि से अपने देशवासियों को परिचित कराना था। वह चाहता था कि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूरी तरह से प्रभावित हो सकें। इसी कारण इब्नबतूता ने पान और नारियल डाक- व्यवस्था, भारतीय शहरों के वैभव आदि के बारे में विस्तार से लिखा।

प्रश्न 13.
एक ओर बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से निर्मित वर्णित किया है, तो दूसरी ओर उसने एक अधिक सामाजिक आर्थिक सच्चाई को भी उजागर किया है। विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारतीय समाज दरिद्र लोगों के जनसमूह के रूप में बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह के रूप में दर्शाते हुए लिखा है कि भारत के बड़े ग्रामीण अंचलों में से कई अंचल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत है। यहाँ की खेती भी अच्छी नहीं है प्रान्तीय गवर्नरों के अत्याचारों के कारण अनेक गरीब मजदूर मर जाते हैं। जब गरीब लोग अपने भू-स्वामियों की मांगों को पूरा नहीं कर पाते, तो उन्हें न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उनके बच्चों को दास भी बना लिया जाता है। विवश होकर बहुत से गरीब किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।

(1) बहुमूल्य धातुओं का भारत में आना एक अधिक जटिल सामाजिक और आर्थिक सच्चाई को दर्शाना- दूसरी ओर बर्नियर भारत में व्याप्त एक अधिक प्रसिद्ध सामाजिक और आर्थिक सच्चाई को दर्शाते हुए लिखता है कि शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों को उत्तम बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था, क्योंकि सारा मुनाफा राज्य को होता था फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले निर्यात होता था। इससे देश में सोना और चाँदी इकट्ठा होता था। बर्नियर के अनुसार भारत में एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय का भी अस्तित्व था जो लम्बी दूरी के विनिमय में संलग्न था।

(2) उपजाऊ भूमि और उन्नत शिल्प-बर्नियर ने लिखा है कि भारत का एक बड़ा भू-भाग अत्यन्त उपजाऊ है। बंगाल मित्र से न केवल चावल, मकई तथा जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में बल्कि रेशम कपास, नील आदि के उत्पादन में भी आगे है भारत के अनेक हिस्सों में खेती अच्छी होती है। यहाँ के शिल्पकार अनेक | वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न रहते हैं। ये शिल्पकार गलीचों, जरी कसीदाकारी, कढ़ाई, सोने और चांदी के वस्त्रों तथा विभिन्न प्रकार के रेशम और सूती वस्त्रों के निर्माण का कार्य करते हैं। रेशमी तथा सूती वस्त्रों का प्रयोग केवल भारत में ही नहीं होता, अपितु ये विदेशों में भी निर्यात किये जाते हैं।

(3) भारत में सोना और चाँदी का संग्रह होना- बर्नियर ने यह भी लिखा है कि सम्पूर्ण विश्व के सभी भागों में संचलन के बाद सोना और चाँदी का भारत में आकर कुछ सीमा तक संग्रह हो जाता है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 14.
अल बिरूनी ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था की अपवित्रता की मान्यता को क्यों अस्वीकार कर दिया? क्या जाति व्यवस्था के नियमों का पालन पूर्ण कठोरता से किया जाता था? अल बिरूनी ने भारत की वर्ण व्यवस्था का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
यद्यपि अल – विरुनी ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों द्वारा निर्मित जाति व्यवस्था को स्वीकार किया और उसकी मान्यता के लिए अन्य देशों के समुदायों में इस व्यवस्था के प्रतिरूपों के उदाहरणों को भी प्रस्तुत किया, फिर भी वह अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार न कर अल बिरुनी ने लिखा है कि, “हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी खोई हुई पवित्रता को पुनः पाने का प्रयास करती है और सफल होती है सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है।” अल-विरुनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। उसके अनुसार अपवित्रता की अवधारणा प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है।

अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में जो भी विवरण दिया है; वह पूर्णतया संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से प्रभावित है। जिन नियमों का वर्णन इन ग्रन्थों में ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था को संचालित करने हेतु किया गया है; वह वास्तविक रूप में समाज में उतनी कठोरता से लागू नहीं थी। इनमें लचीलापन था उदाहरण हेतु परित्यक्त लोग जिन्हें अंत्यज कहते थे जो इस जाति व्यवस्था में शामिल नहीं थे, आर्थिक तन्त्र में उन्हें भी शामिल किया गया था। भले ही उनसे सस्ता श्रम प्राप्त करने के लिए ऐसा किया जाता हो।
अल- विरुनी की भारत की सामाजिक व्यवस्था की जानकारी प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित थी।

इसी आधार पर अल बिरूनी ने भारत की वर्ण व्यवस्था का वर्णन निम्न प्रकार से किया है –

  • ब्राह्मण अल बिरूनी लिखता है कि ब्राह्मण सबसे सर्वोच्च वर्ण था क्योंकि हिन्दू ग्रन्थों की मान्यताओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति आदि देव ब्रह्मा के मुख से हुई और मुख का स्थान सबसे उच्च है; इसी कारण हिन्दू जाति में से सबसे उच्च माने जाते हैं।
  • क्षत्रिय क्षत्रियों की उत्पत्ति आदि देव ब्रह्मा के कन्धों व हाथों से मानी गई है। मुख के बाद द्वितीय स्थान कन्धों व याँहों का है अतः उन्हें वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों से कुछ नीचे द्वितीय स्थान पर रखा गया।
  • वैश्य वैश्य वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर व जंघा भाग से मानी गई इसलिए इन्हें तीसरे स्थान पर रखा गया।
  • शूद्र-शूद्र वर्ण की उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से मानी गयी है, अतः वैश्य और शूद्रों के बीच अल बिरुनी अधिक अन्तर नहीं मानता था। अल बिरुनी के अनुसार, यद्यपि वर्ग-भेद तो था फिर भी सभी लोग एक साथ एक ही शहर या गांव में समरसता के साथ रहते थे।