JAC Class 12 History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. भारतीय संविधान कब अस्तित्व में आया था?
(क) 26 जनवरी, 1949
(ख) 26 जनवरी, 1930
(ग) 26 जनवरी, 1950
(घ) 26 जनवरी, 1948
उत्तर:
(ग) 26 जनवरी, 1950

2. संविधान सभा के अध्यक्ष थे –
(क) डॉ. भीमराव अम्बेडकर
(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ग) जवाहर लाल नेहरू
(घ) पट्टाभि सीतारमैया
उत्तर:
(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

3. संविधान सभा के कुल कितने सत्र हुए थे –
(क) 11
(ग) 21
(ख) 19
(घ) 17
उत्तर:
(क) 11

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4. संविधान सभा के कितने प्रतिशत सदस्य काँग्रेस के भी सदस्य थे –
(क) 95 प्रतिशत
(ख) 75 प्रतिशत
(ग) 82 प्रतिशत
(घ) 62 प्रतिशत
उत्तर:
(ग) 82 प्रतिशत

5. भारतीय संविधान सभा को कब से कब तक के मध्य सूत्रबद्ध किया गया –
(क) दिसम्बर, 1946 से दिसम्बर, 1949 के बीच
(ख) जनवरी 1947 से अक्टूबर 1949 के बीच
(ग) दिसम्बर, 1945 से दिसम्बर, 1948 के बीच
(घ) सितम्बर, 1946 से दिसम्बर, 1949 के बीच
उत्तर:
(क) दिसम्बर, 1946 से दिसम्बर, 1949 के बीच

6. संविधान पर तीन साल तक चली बहस के बाद हस्ताक्षर किए गए –
(क) दिसम्बर, 1949 में
(ख) दिसम्बर, 1948 में
(ग) अक्टूबर, 1949 में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) दिसम्बर, 1949 में

7. संविधान सभा के कितने दिन बैठकों में गए –
(क) 169 दिन
(ग) 175 दिन
(ख) 165 दिन
(घ) 140 दिन
उत्तर:
(ख) 165 दिन

8. रॉयल इण्डियन नेवी के सिपाहियों ने विद्रोह किया था –
(क) 1946 के बसंत में
(ख) 1942 के बसंत में
(ग) 1947 के बसंत में
(घ) 1944 के बसंत में
उत्तर:
(क) 1946 के बसंत में

9. संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे –
(क) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) सरदार पटेल
उत्तर:
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर

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10. विश्व का सबसे बड़ा संविधान निम्न में से किस देश का है?
(क) चीन
(ग) रूस
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
(घ) भारत
उत्तर:
(घ) भारत

11. संविधान सभा का उद्देश्य प्रस्ताव किसने पढ़ा था?
(क) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ख) जवाहर लाल नेहरू
(ग) गोविन्द वल्लभ पंत
(घ) महात्मा गाँधी
उत्तर:
(ख) जवाहर लाल नेहरू

12. “हम सिर्फ नकल करने वाले नहीं हैं।” यह कथन किसका है?
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) वल्लभ भाई पटेल
(घ) भीमराव अम्बेडकर
उत्तर:
(क) जवाहरलाल नेहरू

13. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन में गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट के तहत निम्न में से किस वर्ष में प्रान्तीय संसद के चुनाव हुए थे?
(क) 1935
(ग) 1946
(ख) 1937
(घ) 1947
उत्तर:
(क) 1935

14. ” अंग्रेज तो चले गए, लेकिन जाते-जाते शरारत क बीज बो गए।” संविधान सभा में यह किसने कहा था?
(क) नेहरू ने
(ख) सरदार पटेल ने
(ग) जी.बी. पंत ने
(घ) जिन्ना ने
उत्तर:
(ख) सरदार पटेल ने

15. निम्न में से संविधान सभा के किस सदस्य को लगता था कि पृथक निर्वाचिका आत्मघाती साबित होगी?
(क) बेगम ऐजाज रसूल
(ख) भीमराव अम्बेडकर
(ग) एन. जी. रंगा
(घ) जे.बी. पन्त
उत्तर:
(क) बेगम ऐजाज रसूल

16. राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान किस राजनेता ने दमित जातियों के लिए पृथक् निर्वाचिकाओं की माँग की थी ?
(क) भीमराव अम्बेडकर
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(च) सुभाषचन्द्र बोस
उत्तर:
(क) भीमराव अम्बेडकर

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17. महात्मा गाँधी समर्थक थे-
(क) हिन्दुस्तानी भाषा के
(ख) हिन्दी के
(ग) उर्दू के
(घ) संस्कृत के
उत्तर:
(क) हिन्दुस्तानी भाषा के

18. “दक्षिण में हिन्दी का विरोध बहुत अधिक है।” यह कथन किसका है?
(क) दुर्गाबाई
(ख) बेगम एजाज रसूल
(घ) सन्तनम
(ग) पं. नेहरू
उत्तर:
(क) दुर्गाबाई

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. संविधान सभा में कुल ……………. सदस्य थे।
2. ……………. को मुस्लिम लीग द्वारा ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ‘का ऐलान किया।
3. संविधान सभा का अधिवेशन ……………. को शुरू हुआ।
4. ……………. के दिन पाकिस्तान स्वतन्त्र हुआ तथा ……………. में जश्न हुआ।
5. भारत के संविधान को दिसम्बर नवम्बर ……………. के बीच सूत्रबद्ध किया गया।
6. बिर्रिश राज के दौरान उपमहाद्वीप का लगभग-क. ……………. भू-भाग नवाबों और रजवाड़ों के नियन्न्नण में था।
7. 13 दिसम्बर, 1946 को ……………. ने संविधान सभा के सामने उद्देश्र प्रस्ताव पेश किया।
8. गणराज्य शब्द में ……………. शब्द पहले से ही निहित होता है।
9. गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट के अन्तर्गत 1937 में चुनाव हुए तो कांगेस की सरकार 11 में से ……………. प्रान्तों में बनी।
10. ……………. के अनुसार जनसंख्या की दृष्टि से हरिजन अल्पसंख्यक नहीं है।
11. अनुच्छेद ……………. पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के सारे अधिकार अपने हाथ में लेने का अधिकार है।
12. ……………. द्वारा सदन को यह बताया गया कि दक्षिण में हिन्दी का विरोध बहुत ज्यादा है।
उत्तर:
1. 300
2. 16 अगस्त, 1946
3. 9 दिसम्बर, 1946
4. 14 अगस्त, 1947 कराची
5. 1946, 19496. एक तिहाई
7. जवाहरलाल नेहरू
8. लोकतान्त्रिक
9. 8
10. नागप्पा
11. 356
12. दुर्गाबाई

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को

प्रश्न 2.
भारत को स्वतंत्रता कब मिली?
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को

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प्रश्न 3.
रॉयल इंडियन नेवी के सिपाहियों ने विद्रोह कब और कहाँ किया ?
उत्तर:
1946 में बम्बई तथा अन्य शहरों में।

प्रश्न 4.
संविधान सभा में कितने सदस्य थे?
उत्तर:
तीन सौ।

प्रश्न 5.
संविधान सभा के तीन प्रमुख सदस्यों के नाम लिखिए जिनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।
उत्तर:
(1) पं. जवाहरलाल नेहरू
(2) बॅ. राजेन्द्र प्रसाद
(3) वल्लभभाई पटेल।

प्रश्न 6.
सरकारें सरकारी कागजों से नहीं बनतीं। सरकार जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति होती है? यह कथन किसका था?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू का।

प्रश्न 7.
पृथक निर्वाचिका का समर्थन करने वाले एक सदस्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
समर्थन करने वाले सदस्य मद्रास के बी. पोकर बहादुर थे।

प्रश्न 8.
पृथक् निर्वाचिका का विरोध करने वाले एक सदस्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
आर.वी. धुलेकर।

प्रश्न 9.
“अंग्रेज तो चले गए, मगर जाते-जाते शरारत के बीज बो गए।” यह कथन किसका था?
उत्तर:
सरदार वल्लभ भाई पटेल का ।

प्रश्न 10.
एन. जी. रंगा के अनुसार कौन लोग असली अल्पसंख्यक थे?
उत्तर:
आदिवासी ।

प्रश्न 11.
किस अनुच्छेद के अनुसार गवर्नर की सिफारिश पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के समस्त अधिकार अपने हाथ में लेने का अधिकार था ?
उत्तर:
अनुच्छेद 356

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प्रश्न 12.
महात्मा गाँधी किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाना चाहते थे?
उत्तर:
हिन्दुस्तानी भाषा को।

प्रश्न 13.
दो सदस्यों के नाम लिखिए जिन्होंने शक्तिशाली केन्द्र की हिमायत की थी?
उत्तर:
(1) डॉ. भीमराव अम्बेडकर तथा
(2) बालकृष्ण शर्मा।

प्रश्न 14.
किस आदिवासी नेता ने विधायिका में आदिवासियों को पृथक् निर्वाचिका का अधिकार दिए जाने की माँग की थी?
उत्तर:
जयपाल सिंह ने।

प्रश्न 15.
पृथक् निर्वाचिका का विरोध करने वाले दो सदस्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(2) गोविन्द वल्लभ पंत ।

प्रश्न 16.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद किसकी सलाह पर डॉ. अम्बेडकर को केन्द्रीय विधिमन्त्री बनाया गया था ?
उत्तर:
महात्मा गाँधी की सलाह पर

प्रश्न 17.
इस भूमिका में डॉ. अम्बेडकर ने किसके रूप में काम किया?
उत्तर:
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में।

प्रश्न 18.
भारत के राष्ट्रीय ध्वज में किन रंगों की तीन बराबर चौड़ाई वाली पट्टियाँ हैं ?
उत्तर:
केसरिया, सफेद तथा गहरे हरे रंग की । प्रश्न 19. संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे? उत्तर- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ।

प्रश्न 20.
संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर।

प्रश्न 21.
कौनसी सूची के विषय केवल राज्य सरकार के अन्तर्गत आते हैं?
उत्तर:
राज्य सूची के।

प्रश्न 22.
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
26 जनवरी, 1930 को भारत में पहली बार स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया था। अतः 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया।

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प्रश्न 23.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं ?
उत्तर:
(1) न्याय
(2) स्वतन्त्रता
(3) समानता तथा
(4) अल्पसंख्यकों, पिछड़े तथा जनजातीय लोगों के लिए रक्षात्मक प्रावधान।

प्रश्न 24
विभाजित नवजात भारत राष्ट्र के सामने दो गंभीर समस्याएँ क्या थीं?
उत्तर:
(1) बर्बर हिंसा को समाप्त कर सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करना।
(2) देशी रियासतों के एकीकरण की समस्या।

प्रश्न 25.
भारत में हुए विभिन्न आन्दोलनों का एक अहम पहलू कौनसा था ?
उत्तर:
हिन्दू-मुस्लिम एकता।

प्रश्न 26.
संविधान सभा के सदस्यों को कैसे चुना गया?
उत्तर:
प्रान्तीय संसदों से संविधान सभा के सदस्यों को चुना गया।

प्रश्न 27.
नयी संविधान सभा में कौनसा दल प्रभावशाली था?
उत्तर:
कांग्रेस।

प्रश्न 28.
भारतीय संविधान के संवैधानिक सलाहकार कौन थे?
उत्तर:
बी.एन. राव ।

प्रश्न 29.
ब्रिटिश शासन में किन सुधारों के तहत प्रान्तीय विधायिकाओं में सीमित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था लागू की गयी थी?
उत्तर:
मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत।

प्रश्न 30.
मद्रास की दक्षायणी वेलायुधान देश के कमजोर वर्ग के लिए क्या चाहती थी?
उत्तर:
मद्रास की दक्षायणी वेलायुधान देश के कमजोर वर्गों हेतु नैतिक सुरक्षा का आवरण चाहती थी।

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प्रश्न 31.
क्या संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर हुआ था ?
उत्तर:
नहीं, संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था।

प्रश्न 32.
संविधान सभा के सदस्यों को किसने चुना
उत्तर:
1945-46 में भारत के प्रांतों के निर्वाचित सांसदों ने संविधान सभा के सदस्यों को चुना ।

प्रश्न 33.
विभाजन के बाद बनी नई संविधान सभा में कौनसा दल सर्वाधिक प्रभावशाली था?
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस नामक राजनैतिक दल

प्रश्न 34.
संविधान सभा में किन छह सदस्यों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही?
उत्तर:
(1) जवाहर लाल नेहरू
(2) वल्लभ भाई पटेल
(3) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(4) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
(5) के. एम. मुंशी और
(6) अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर।

प्रश्न 35.
संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव कब और किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसम्बर, 1946 को सभा के सामने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

प्रश्न 36.
संविधान के मसविदे में कितनी सूचियाँ बनायी गई थीं, उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
संविधान के मसविदे में तीन सूचियाँ –
(1) केन्द्रीय सूची
(2) राज्य सूची और
(3) समवर्ती सूची बनाई गई थीं।

प्रश्न 37.
केन्द्रीय सूची के विषय किस सरकार के अधीन हैं?
उत्तर:
केन्द्रीय सूची के विषय केवल केन्द्र सरकार के अधीन हैं।

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प्रश्न 38.
संविधान के कोई दो केन्द्रीय अभिलक्षण लिखिये।
उत्तर:
(1) वयस्क मताधिकार
(2) धर्मनिरपेक्षता पर बल

प्रश्न 39.
संविधान क्या है?
उत्तर:
संविधान एक कानूनी दस्तावेज है, जिसके माध्यम से किसी भी देश का शासन चलाया जाता है।

प्रश्न 40.
भारत का संविधान कब बन कर तैयार हुआ?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ।

प्रश्न 41.
संविधान की प्रस्तावना का अर्थ समझाते हुए उसका महत्त्व बताइये।
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना के द्वारा संविधान का परिचय कराया जाता है, प्रस्तावना इसे सरकार को मार्ग- दर्शन प्राप्त होता है।

प्रश्न 42.
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द कब जोड़ा गया ?
उत्तर:
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द 1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया।

प्रश्न 43.
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं, वह किसी भी धर्म को राजधर्म घोषित नहीं करेगा।

प्रश्न 44.
महिलाओं के लिए न्याय की माँग किसने की थी?
उत्तर:
बम्बई की हंसा मेहता

प्रश्न 45.
हंसा मेहता ने महिलाओं के लिए किस प्रकार के न्याय की मांग की थी?
उत्तर:
हंसा मेहता ने महिलाओं के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय की मांग की थी।

प्रश्न 46.
हिन्दुस्तानी भाषा के प्रश्न पर महात्मा गाँधी को क्या लगता था?
उत्तर:
महात्मा गाँधी को लगता था कि हिन्दुस्तानी भाषा विविध समुदायों के मध्य संचार की आदर्श भाषा हो सकती है।

प्रश्न 47.
हमारे संविधान ने सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान कर रखी है। इस धार्मिक स्वतंत्रता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसका अर्थ है कि व्यक्ति स्वेच्छा से किसी भी धर्म को अपना सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है।

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प्रश्न 48.
देशी रियासतों का एकीकरण किसके नेतृत्व में हुआ?
उत्तर:
देशी रियासतों का एकीकरण लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के कुशल नेतृत्व में सम्पन्न हुआ। प्रश्न 49 समानता का अधिकार क्या है ? उत्तर- इस अधिकार के तहत कानून की दृष्टि में सभी समान होंगे। सरकारी नौकरी पाने का सभी को समान अवसर मिलेगा।

प्रश्न 50.
भारतीय संविधान के आधारभूत सिद्धान्त व मान्यताएँ क्या थीं?
उत्तर:
संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य होगा, जिसमें वयस्क मताधिकार के आधार पर एक संसदीय प्रणाली होगी।

प्रश्न 51.
संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव किसने पेश किया था?
उत्तर:
संविधान सभा में पं. जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव के साथ-साथ राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव भी पेश किया था।

प्रश्न 52.
शाही भारतीय सेना के सिपाहियों ने कब विद्रोह किया?
उत्तर:
1946 ई. के बसंत में

प्रश्न 53.
पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर गोविन्द बल्लभ पंत ने क्या कहा था?
उत्तर:
गोविन्द वल्लभ पंत के अनुसार पृथक् निर्वाचिका अल्पसंख्यकों के लिए आत्मघाती होगी।

प्रश्न 54.
आप कैसे कह सकते हैं कि सारे मुसलमान पृथक् निर्वाचिका के पक्ष में नहीं थे?
उत्तर:
बेगम एजाज रसूल के अनुसार पृथक् निर्वाचिका आत्मघाती साबित होगी क्योंकि इससे अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से कट जाएँगे।

प्रश्न 55.
संविधान सभा की भाषा समिति ने राष्ट्रभाषा के सवाल पर क्या सुझाव दिया?
उत्तर;
भाषा समिति ने सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भारत की राजकीय भाषा होगी।

प्रश्न 56.
संविधान निर्माण सभा के प्रमुख चार सदस्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  • जवाहरलाल नेहरू
  • सरदार पटेल
  • मौलाना अबुल कलाम आजाद।

प्रश्न 57.
संविधान सभा की प्रथम बैठक कब आयोजित की गई ?
उत्तर:
संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को आयोजित की गई।

प्रश्न 58.
भारत को कैब स्वतन्त्रता प्राप्त हुई ?
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले त्रिगुट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) पं. जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव को प्रस्तुत करते हुए स्वतन्त्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की।
(2) सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कई महत्त्वपूर्ण रिपोर्टों के प्रारूप लिखने में विशेष सहायता की।
(3) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और संविधान सभा में चर्चा को रचनात्मक बनाए रखा।

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प्रश्न 2.
हमारा संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया? सकारण उत्तर दीजिये।
उत्तर:
हमारा संविधान नवम्बर, 1949 को बनकर तैयार हो गया था लेकिन उसे 2 महीने बाद 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। इसके पीछे यह कारण निहित है कि काँग्रेस के 1929 के दिसम्बर में लाहौर में आयोजित अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस मनाने की घोषणा की। 26 जनवरी 1930 को औपनिवेशिक भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

प्रश्न 3.
राज्य के नीति-निर्देशक तत्व न्यायिक अयोग्यता रखते हैं, क्यों?
उत्तर:
भारत के संविधान के भाग संख्या 4 में नागरिकों के लिए कुछ गारंटी दी गई हैं लेकिन ये न्याय योग्य नहीं हैं। इन्हें राज्य के नीति-निर्देशक तत्व कहा जाता है। इन्हें लागू करना पूर्णतः राज्य की इच्छा पर निर्भर करता है। इन्हें लागू करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता और न ही नागरिक उन्हें लागू करवाने हेतु न्यायालय की शरण में जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान की रूपरेखा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत की संविधान सभा का गठन 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत हुआ। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इस सभा के अध्यक्ष बनाए गए। उद्देश्य स्वतंत्र भारत के लिए एक था भारतीय संविधान सभा के संविधान सभा का प्रमुख संविधान का निर्माण करना अधिवेशन के 9 दिसम्बर, 1946 से 26 नवम्बर, 1949 तक कुल 11 सत्र हुए। मूल संविधान 395 धाराओं 22 भागों और आठ अनुसूचियों में बँटा हुआ है, जिसमें 90 हजार शब्द हैं।

प्रश्न 5.
संविधान सभा ने सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व किया तो भी यह एक ही पार्टी का समूह बनकर क्यों रह गयी ?
उत्तर:
संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव 1946 ई. के प्रान्तीय चुनावों के आधार पर किया गया था। संविधान सभा में भारत के ब्रिटिश प्रान्तों द्वारा भेजे गये सदस्यों के अतिरिक्त रियासतों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित थे। मुस्लिम लीग ने स्वतन्त्रता के पूर्व की संविधान सभा की बैठकों का बहिष्कार किया जिसके कारण इस दौर में संविधान सभा एक ही पार्टी का समूह बनकर रह गई थी। संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे।

प्रश्न 6.
आप कैसे कह सकते हैं कि समस्त मुसलमान पृथक निर्वाचिका की माँग के समर्थन में नहीं थे?
उत्तर:
बेगम ऐजाज रसूल के संविधान सभा में दिए गए भाषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि समस्त मुसलमान पृथक् निर्वाचिका के समर्थन में नहीं थे बेगम ऐजाज रसूल को लगता था कि पृथक् निर्वाचिका आत्मघाती सिद्ध होगी। क्योंकि इससे अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से कट जायेंगे।

प्रश्न 7.
संविधान में केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए किए गए किन्हीं तीन प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर;

  • केन्द्रीय सूची में बहुत अधिक विषय रखे गये।
  • खनिज पदार्थों एवं आधारभूत उद्योगों पर केन्द्र सरकार का ही नियन्त्रण रखा गया।
  • अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल की सिफारिश पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के समस्त अधिकार अपने हाथ में लेने का अधिकार दिया गया।

प्रश्न 8.
संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से कैसे प्रभावित होती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • जब संविधान सभा में बहस होती थी तो विभिन्न पक्षों के तर्क समाचार-पत्रों में छपते थे तथा समस्त प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी। इस तरह प्रेस में होने वाली इस आलोचना तथा जवाबी आलोचना से किसी मुद्दे पर बनने वाली सहमति या असहमति पर गहरा प्रभाव पड़ता था।
  • सामूहिक सहभागिता बनाने के लिए देश की जनता के सुझाव भी आमन्त्रित किये जाते थे।
  • कई भाषायी अल्पसंख्यक अपनी मातृभाषा की रक्षा की माँग करते थे।
  • धार्मिक अल्पसंख्यक अपने विशेष हित सुरक्षित करवाना चाहते थे और दलित जाति के लोग शोषण के अन्त की माँग करते हुए राजकीय संस्थाओं में आरक्षण चाहते थे।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान निर्माण से पहले के वर्ष काफी उथल-पुथल वाले थे क्यों ?
अथवा
“संविधान निर्माण के पूर्व के वर्ष उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे थे।” उदाहरण देकर इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को मिली आजादी के साथ ही देश को दो टुकड़ों में बाँट दिया गया। लोगों के मस्तिष्क में 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की यादें अभी भी जीवित थीं, जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सबसे बड़ा जन आन्दोलन था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा विदेशी सहायता से देश को स्वतंत्र कराने के प्रयास लोगों को बखूबी याद थे। 1946 के बसंत में बम्बई तथा अन्य शहरों में रॉयल इण्डियन नेवी (शाही भारतीय नौसेना) के सिपाहियों द्वारा किया जाने वाला विद्रोह भी उल्लेखनीय था।

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प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता के समय देशी रियासतों की समस्याओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
नवजात राष्ट्र के सामने देशी रजवाड़ों के एकीकरण की समस्या बहुत ही गंभीर थी। विवेचना कीजिये।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत का लगभग एक-तिहाई भू-भाग ऐसे नवाबों और रजवाड़ों के नियन्त्रण में था, जो ब्रिटिश ताज की अधीनता स्वीकार कर चुके थे। उन्हें काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद इन राजाओं और नवाबों की संवैधानिक स्थिति बहुत विचित्र हो गई थी। एक प्रेक्षक ने कहा था कि कुछ शासक तो अनेक टुकड़ों में बटे भारत में स्वतन्त्र सत्ता का सपना देख रहे थे।

प्रश्न 11.
एक शक्तिशाली केन्द्र सरकार के पक्ष में नेहरूजी ने जो बयान दिया था उसे लिखिए।
उत्तर:
नेहरूजी शक्तिशाली केन्द्र के पक्ष में थे। उन्होंने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को लिखे पत्र में कहा था, “अब जबकि विभाजन एक हकीकत बन चुका है…… एक दुर्बल केन्द्रीय शासन व्यवस्था देश के लिए हानिकारक सिद्ध होगी क्योंकि ऐसा केन्द्र शान्ति स्थापित करने में आम सरोकारों के बीच समन्वय स्थापित करने में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश के लिए आवाज उठाने में सक्षम नहीं होगा।”

प्रश्न 12.
संविधान निर्माण से पूर्व के कुछ आन्दोलनों का महत्त्वपूर्ण पहलू किस तरह से व्यापक हिन्दू-मुस्लिम एकता को धारण किए हुए था? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान निर्माण से पूर्व के कुछ आन्दोलनों का एक अहम पहलू व्यापक हिन्दू-मुस्लिम एकता इन जन आन्दोलनों का एक अहम पहलू था। इसके विपरीत काँग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों प्रमुख राजनैतिक दल धार्मिक सौहार्द और सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने के लिए सुलह-सफाई की कोशिशों में असफल होते जा रहे थे। अगस्त, 1946 में कलकत्ता में शुरू हुई हिंसा के साथ उत्तरी और पूर्वी भारत में लगभग साल भर चलने वाले दंगा- फसाद भड़क उठे ।

प्रश्न 13.
एक शक्तिशाली केन्द्र के विषय में के. सन्तनम के विचार लिखिए।
उत्तर:
एक शक्तिशाली केन्द्र के विषय में के. सन्तनम ने कहा कि न केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को मजबूत बनाने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण आवश्यक है। यदि केन्द्र के पास आवश्यकता से अधिक जिम्मेदारियाँ होंगी तो वह प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पाएगा। उसके कुछ दायित्वों को राज्यों को सौंपने से केन्द्र अधिक मजबूत हो सकता है।

प्रश्न 14.
भारतीय संविधान सभा की भाषा समिति राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर क्या सुझाव दिया?
उत्तर:
राष्ट्रभाषा के सवाल पर संविधान सभा की भाषा समिति ने सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भारत की राजकीय भाषा होगी। परन्तु इस फार्मूले को समिति ने घोषित नहीं किया था। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए। पहले 15 वर्षों तक राजकीय कार्यों में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा।

प्रश्न 15.
अगस्त 1947 का अवसर अनेक मुसलमानों, हिन्दुओं और सिक्खों के लिए निर्मम चुनाव का क्षण किस तरह से था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता दिवस पर आनन्द व उम्मीद का वातावरण था परन्तु भारत के बहुत से मुसलमानों और पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं तथा सिखों के लिए यह एक निर्मम क्षण था उन्हें मृत्यु अथवा अपनी पीढ़ियों की पुरानी जगह छोड़ने के बीच चुनाव करना था। करोड़ों की संख्या में शरणार्थी इधर से उधर जा रहे थे। मुसलमान पूर्वी व पश्चिमी पाकिस्तान की ओर तो हिन्दू व सिख पश्चिमी बंगाल एवं पूर्वी पंजाब की ओर बड़े जा रहे थे। उन लोगों में अनेक कभी मंजिल तक ही नहीं पहुँच सके और बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

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प्रश्न 16.
एक शक्तिशाली केन्द्र सरकार के पक्ष में नेहरूजी ने संविधान सभा में क्या बयान दिया? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान सभा में केन्द्र व राज्य सरकारों के अधिकारों को लेकर काफी बहस हुई शक्तिशाली केन्द्र के पक्ष में नेहरूजी ने अपने विचार प्रकट किये थे। उन्होंने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को लिखे पत्र में कहा था- ” अब जबकि विभाजन एक हकीकत बन चुका है। एक कमजोर केन्द्रीय शासन व्यवस्था देश के लिए हानिकारक सिद्ध होगी क्योंकि ऐसा केन्द्र शान्ति स्थापित करने में आम सरोकारों के मध्य समन्वय स्थापित करने में और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश के लिए आवाज उठाने में सक्षम नहीं होगा। इसलिए राज्यों से केन्द्र को अधिक ताकतवर बनाना ही ठीक होगा।”

प्रश्न 17.
17 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को नेहरूजी ने संविधान सभा में जो भाषण दिया था उसके एक महत्त्वपूर्ण अंश की संक्षिप्त व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
14 अगस्त, 1947 को मध्य रात्रि में नेहरूजी ने संविधान सभा में भाषण देते हुए कहा था –
“बहुत समय पहले हमने नियति से साक्षात्कार किया था और अब समय आ चुका है कि हम अपने उस संकल्प को न केवल पूर्ण रूप से या समग्रता में बल्कि उल्लेखनीय रूप से साकार करें अर्द्धरात्रि के इस क्षण में जब दुनिया सो रही है, भारत जीवन और स्वतंत्रता की ओर जाग रहा है।”

प्रश्न 18.
उद्देश्य प्रस्ताव का स्वागत करते हुए आदिवासी प्रतिनिधि जयपाल सिंह ने जो विचार प्रकट किए उन्हें संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अगर भारतीय समाज में कोई ऐसा समूह है –
जिसके साथ सही व्यवहार नहीं किया गया है तो वह मेरा समूह है जिसे पिछले 6000 वर्षों से अपमानित किया जा रहा है और उपेक्षा का शिकार हो रहा है। आदिवासी कबीले संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं लेकिन उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है। उन्हें उनके चरागाहों व जंगलों से बचत कर दिया गया है। हम आपके साथ मेलजोल चाहते हैं। आदिवासियों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था जरूरी है।

प्रश्न 19.
नई संविधान सभा में काँग्रेस प्रभावशाली क्यों थी?
उत्तर:

  1. प्रांतीय चुनावों में काँग्रेस ने सामान्य चुनाव क्षेत्रों में भारी जीत प्राप्त की।
  2. यद्यपि मुस्लिम लीग को अधिकांश आरक्षित मुस्लिम सीटें मिल गई थीं, लेकिन लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार कर दिया था और वह पाकिस्तान की माँग जारी रखे हुए थी।
  3. प्रारम्भ में समाजवादी भी संविधान सभा से परे रहे क्योंकि वे उसे अँग्रेजों की बनाई संस्था मानते थे। वे मानते थे कि इस सभा का वाकई स्वायत्त होना असम्भव है।
  4. संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य काँग्रेस पार्टी के ही सदस्य थे।

प्रश्न 20.
भारतीय संविधान की रूपरेखा को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत के संविधान हेतु संविधान सभा का गठन त 1946 ई. के कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत हुआ। इस त संविधान सभा में 300 सदस्य थे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को इस न संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया था। भारतीय संविधान को 9 दिसम्बर, 1946 से 26 नवम्बर, 1949 के मध्य सूत्रबद्ध किया गया। संविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 दिन बैठकों में गए मूल संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियाँ थीं जिनके बाद में कई संशोधन हो चुके हैं। यह विश्व का सबसे लम्बा संविधान है जो 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया।

प्रश्न 21.
नेहरूजी ने अपने उद्देश्य प्रस्ताव में अमेरिकी व फ्रांसीसी संविधान सभाओं से हमको प्रेरणा लेने की बात कही है। क्यों?
उत्तर:
नेहरूजी ने अपने उद्देश्य प्रस्ताव में अमेरिकी व फ्रांसीसी संविधान सभाओं का उल्लेख करते हुए कहा ” कि जिस प्रकार उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए संविधान के निर्माण का कार्य पूर्ण किया है उसी प्रकार हम भी उन संविधान सभाओं की तरह ही अपना संविधान बनाकर ही दम लेंगे चाहे इसके मार्ग में कितनी ही परेशानियाँ एवं रुकावटें आएँ हम भी उनकी ही तरह एक कालजयी संविधान का निर्माण करेंगे जो हमारी जनता के स्वभाव के अनुकूल होकर उनकी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगा। हमारा संविधान भी उन संविधानों की तरह ही लोकतन्त्रात्मक, धर्मनिरपेक्ष एवं आर्थिक-सामाजिक न्याय को स्थापना करने वाला होगा।

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प्रश्न 22.
नेहरू ने अमेरिकी संविधान निर्माताओं और फ्रांसीसी संविधान निर्माताओं का उल्लेख उद्देश्य प्रस्ताव में किसलिए किया?
उत्तर:
नेहरू ने अमेरिका संविधान निर्माण की प्रक्रिया के सम्बन्ध में कहा कि अमेरिकी राष्ट्र निर्माताओं ने एक ऐसा संविधान रचा जो डेढ़ सदी से भी ज्यादा समय से कसौटी पर खरा उतर रहा है। उन्होंने संविधान पर आधारित एक महान् राष्ट्र गढ़ा। दूसरे, नेहरू ने उस संविधान सभा का उल्लेख किया जो स्वतंत्रता के इतने सारे संघर्ष लड़ने वाले पेरिस के भव्य एवं खूबसूरत शहर में जुटी थी उस संविधान सभा ने अनेक मुश्किलों का सामना किया।

प्रश्न 23.
” संविधान सभा अंग्रेजों की बनाई हुई है और वह अंग्रेजों की योजना को साकार करने का काम कर रही है।” सोमनाथ लाहिड़ी के इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी का कहना था कि संविधान सभा अंग्रेजों की बनाई हुई है और वह अंग्रेजों की योजना को साकार करने का काम कर रही है न केवल ब्रिटिश योजना ने भावी संविधान बना दिया है, बल्कि इससे यह भी संकेत मिलता है कि मामूली से मामूली मतभेद के लिए भी संघीय न्यायालय जाना होगा।

प्रश्न 24.
भारतीय संविधान में विषयों की तीन सूचियों और अनुच्छेद 356 का उल्लेख करें।
अथवा
संविधान के अनुसार केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बँटवारा किस प्रकार किया गया?
अथवा
संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा
राज्य सूची के विषय में आप क्या जानते हैं ? समवर्ती सूची पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संविधान के मसविदे में समस्त विषयों की तीन सूचियाँ बनाई गई हैं। ये हैं –
(1) केन्द्रीय या संघ सूची
(2) राज्य सूची और
(3) समवर्ती सूची यथा
(1) केन्द्रीय सूची में दिए गए विषय केवल केन्द्र सरकार के अधीन रखे गए हैं। राज्य सूची
(2) अन्तर्गत रखे गये हैं। के विषय केवल राज्य सरकारों के
(3) समवर्ती सूची में दिए गए केन्द्र और राज्य दोनों की साझा जिम्मेदारी है।
अनुच्छेद 356 में गवर्नर की सिफारिश पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के समस्त अधिकार अपने हाथ में लेने का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 25.
केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने वाले प्रावधानों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) अन्य संघों की तुलना में केन्द्रीय सूची में बहुत ज्यादा विषयों को केवल केन्द्रीय नियन्त्रण में रखा गया है।
(2) समवर्ती सूची में भी प्रान्तों की इच्छाओं की उपेक्षा करते हुए बहुत ज्यादा विषय रखे गये हैं तथा राज्य की तुलना में केन्द्र को वरीयता दी गई है।
(3) खनिज पदार्थों तथा प्रमुख उद्योगों पर भी केन्द्र सरकार को ही नियन्त्रण दिया गया है।
(4) अनुच्छेद 356 में गवर्नर की सिफारिश पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के सारे अधिकार अपने हाथ में लेने का अधिकार दिया गया है।

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प्रश्न 26.
संविधान में राजकोषीय संघवाद की क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
(1) कुछ करों (जैसे सीमा शुल्क और कम्पनी कर) से होने वाली सारी आय केन्द्र सरकार के पास रखी गई है।
(2) कुछ अन्य मामलों में (जैसे- आय कर और आबकारी शुल्क) में होने वाली आय राज्य और केन्द्र सरकार के बीच बाँट दी गई है।
(3) कुछ अन्य मामलों (जैसे- राज्य स्तरीय शुल्क) से होने वाली आय पूरी तरह राज्यों को सौंप दी गई है। (4) राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी कुछ अधिभार और कर वसूलने का अधिकार दिया गया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान सभा में पृथक् निर्वाचिका की माँग किसके लिए की गई थी? यह माँग किसने उठाई तथा इसका क्या परिणाम रहा?
उत्तर:
पृथक निर्वाचिका की माँग अल्पसंख्यकों के लिए विभिन्न नेताओं ने समय-समय पर संविधान सभा में अपने तर्क देते हुए उठाई थी, उनकी माँग का विरोध भी किया गया।

(1) बी. पोकर बहादुर की माँग-27 अगस्त, 1947 को पास के थी. पोकर बहादुर ने पृथक् निर्वाचिका बनाए रखने के पक्ष में एक प्रभावशाली भाषण दिया। बहादुर कहा कि अल्पसंख्यक सब जगह होते हैं, हम उन्हें चाहकर भी हटा नहीं सकते। हमें जरूरत एक ऐसे ढाँचे की है जिसके भीतर अल्पसंख्यक भी औरों के साथ सद्भाव से रह सकें और समुदायों के बीच मतभेद कम से कम हों।

(2) एन. जी. रंगा का बयान-रंगा ने कहा था कि तथाकथित पाकिस्तानी प्रान्तों में रहने वाले हिन्दू, सिख यहाँ तक कि मुसलमान भी अल्पसंख्यक नहीं हैं। असली अल्पसंख्यक तो यहाँ की जनता है।

(3) जयपाल सिंह का बयान-जयपाल सिंह आदिवासी नेता थे। उन्होंने कहा कि आदिवासी कबीले संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं लेकिन उन्हें संरक्षण की जरूरत है। वे विधायिका में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण की व्यवस्था चाहते थे।

(4) डॉ. अम्बेडकर की माँग डॉ. अम्बेडकर ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान पृथक् निर्वाचिका की माँग की थी।

(5) नागप्पा का बयान मद्रास के सदस्य जे. नागप्पा ने पृथक निर्वाचिका की माँग उठाई।

(6) के. जे. खाण्डेलकर का बयान-खाण्डेलकर ने कहा था—“हमें हजारों साल तक दबाया गया है। इस हद तक दबाया गया कि हमारे दिमाग, हमारी देह काम नहीं करती और अब हमारा हृदय भी भावशून्य हो चुका है।

” पृथक् निर्वाचिका का विरोध –
(1) पं. गोविन्द वल्लभ पंत के विचार-यह प्रस्ताव न केवल राष्ट्र के लिए बल्कि अल्पसंख्यकों के लिए भी खतरनाक है। उनका मानना था कि पृथक निर्वाचिका अल्पसंख्यकों के लिए आत्मघाती साबित होगी, जो उन्हें कमजोर बना देगी और शासन में उन्हें प्रभावी हिस्सेदारी नहीं मिल पायेगी।

(2) बेगम एजाज रसूल के विचार बेगम एजज रसूल को लगता था कि पृथक निर्वाचिका आत्मघाती साबित होगी क्योंकि इससे अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से कट जाएँगे।

(3) महात्मा गाँधी द्वारा विरोध-गाँधीजी ने यह कहते हुए अपना विरोध प्रकट किया था कि पृथक् निर्वाचिका की माँग करने से ये समुदाय शेष समुदायों से हमेशा के लिए कट जाएँगे। संविधान सभा का सुझाव-संविधान सभा ने अंततः यह सुझाव दिया कि अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए, हिन्दू मन्दिरों के द्वार सभी जातियों के लिए खोल दिए जाएँ और निचली जातियों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियाँ में आरक्षण दिया जाए।

प्रश्न 2.
संविधान निर्माण से पूर्व के वर्ष भारत के लिए बहुत उथल-पुथल बाल थे।” उपर्युक्त कथन के समर्थन में उदाहरण सहित अपना तर्क लिखिए।
उत्तर:
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि संविधान निर्माण से पूर्व के वर्ष भारत के लिए बहुत उथल-पुथल वाले थे। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं –
(1) 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र तो हो गया, परन्तु इसके साथ ही इसे दो भागों भारत व पाकिस्तान के रूप में विभाजित भी कर दिया गया।

(2) लोगों की याद में 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन अभी भी जीवित था जो ब्रिटिश औपनिवेशिक राज्य के विरुद्ध सम्भवतः सबसे व्यापक जनान्दोलन था

(3) विदेशी सहायता से सशस्त्र संघर्ष द्वारा के ता पाने के लिए सुभाष चन्द्र बोस द्वारा किए गए प्रयत्न भी लोगों को याद थे।

(4) सन् 1946 में बम्बई व देश के अन्य शहरों में रॉयल्स इण्डिया नेवी (शाही भारतीय नौसेना) के सिपाहियों का विद्रोह भी लोगों को बार-बार आन्दोलित कर रहा था। लोगों की सहानुभूति इन सिपाहियों के साथ थी।

(5) 1940 के दशक के अन्तिम वर्षों में देश के विभिन्न भागों में किसानों व मजदूरों के आन्दोलन भी हो रहे थे।

(6) हिन्दू मुस्लिम एकता विभिन्न जनान्दोलनों का एक महत्त्वपूर्ण पहलू था। इसके विपरीत कांग्रेस व मुस्लिम लीग दोनों ही मुख्य राजनीतिक दल धार्मिक सद्भावना और सामाजिक तालमेल स्थापित करने में सफल नहीं हो पा रहे थे।

(7) 16 अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने की घोषणा से कलकत्ता में हिंसा भड़क उठी।

(8) देश के भारत व पाकिस्तान के रूप में विभाजन की घोषणा के पश्चात् असंख्य लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लगे। जिससे शरणार्थियों की समस्या खड़ी हो गई थी।

(9) 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता दिवस पर आनन्द और उम्मीद का वातावरण था। लेकिन भारत के मुसलमानों व पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं व सिखों के लिए यह एक निर्मम क्षण था। मुसलमान पूर्वी व पश्चिमी पाकिस्तान की ओर तो हिन्दू और सिख पश्चिमी बंगाल तथा पूर्वी पंजाब की ओर बढ़ रहे थे।

(10) नवजात राष्ट्र के समक्ष एक और समस्या देशी रियासतों को लेकर थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के शासन काल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप का लगभग एक-तिहाई भू-भाग ऐसे नवाबों और रजवाड़ों के नियन्त्रण में था जो ब्रिटिश ताज की अधीनता स्वीकार कर चुके थे

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प्रश्न 3.
संविधान सभा में पृथक् निर्वाचिकाओं की माँग के जवाब में सरदार पटेल, धुलेकर तथा गोविन्द वल्लभ पंत आदि प्रमुख कांग्रेसी सदस्यों ने अनेक दलीलें प्रस्तुत कीं। इन दलीलों के पीछे कौनसी चिन्ता काम कर रही थी? अन्त में क्या सहमति बनी?
उत्तर:
पृथक् निर्वाचिकाओं की मांग के विरोध में दी गई समस्त दलीलों के पीछे एक एकीकृत राज्य के निर्माण की चिन्ता काम कर रही थी। वह इस प्रकार थी –
(1) व्यक्ति को नागरिक बनाना तथा प्रत्येक समूह को राष्ट्र का अंग बनाना-राजनीतिक एकता और राष्ट्र की स्थापना करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को राज्य के नागरिक के सांचे में ढालना था, हर समूह को राष्ट्र भीतर समाहित किया जाना था।

(2) नागरिकों में राज्य के प्रति निष्ठा का होना- संविधान नागरिकों को अधिकार देगा परन्तु नागरिकों को भी राज्य के प्रति अपनी निष्ठा का वचन लेना होगा।

(3) सभी समुदायों के सदस्यों को राज्य के सामान्य सदस्यों के रूप में काम करना-समुदायों को सांस्कृतिक इकाइयों के रूप में मान्यता दी जा सकती थी और उन्हें सांस्कृतिक अधिकारों का आश्वासन दिया जा सकता था मगर राजनीतिक रूप से सभी समुदायों के सदस्यों को राज्य के सामान्य सदस्य के रूप में काम करना था अन्यथा उनकी निष्ठाएँ विभाजित होतीं। पंत ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि, “हमारे भीतर यह आत्मघाती और अपमानजनक आदत बनी हुई है कि हम कभी नागरिक के रूप में नहीं सोचते बल्कि समुदाय के रूप में ही सोच पाते हैं…….। हमें याद रखना चाहिए कि महत्व केवल नागरिक का होता है। सामाजिक पिरामिड का आधार भी और उसकी चोटी भी नागरिक ही होता है।”

(4) एक शक्तिशाली राष्ट्र व शक्तिशाली राज्य की स्थापना-जब सामुदायिक अधिकारों का महत्त्व रेखांकित किया जा रहा था, उस समय भी बहुत सारे राष्ट्रवादियों में यह भय सिर उठाने लगा था कि इससे निष्ठाएँ खण्डित होंगी और एक शक्तिशाली राष्ट्र व शक्तिशाली राज्य की स्थापना नहीं हो पायेगी।

(5) कुछ मुसलमान भी पृथक् निर्वाचिका की मांग के समर्थन में नहीं-सारे मुसलमान भी पृथक् निर्वाचिका की मांग के समर्थन में नहीं थे। उदाहरण के लिए बेगम एजाज रसूल को लगता था कि पृथक निर्वाचिका आत्मघाती साबित होगी क्योंकि इससे अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से कट जायेंगे।

पृथक् निर्वाचिका की माँग पर निर्णय सन् 1949 तक संविधान सभा के ज्यादातर सदस्य इस बात पर सहमत हो गए थे कि पृथक् निर्वाचिका का प्रस्ताव अल्पसंख्यकों के हितों के खिलाफ जाता है। इसकी बजाय मुसलमानों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि राजनीतिक व्यवस्था में उनको एक निर्णायक आवाज मिल सके।

प्रश्न 4.
संविधान सभा के ऐसे दो महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों का उल्लेख कीजिए जिन पर संविधान सभा में काफी हद तक सहमति थी।
उत्तर:
व्यापक सहमति वाले महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण – भारतीय संविधान गहन विवादों और परिचर्चाओं से गुजरते हुए बना उसके कई प्रावधान लेन-देन की प्रक्रिया के जरिए बनाए गए थे उन पर सहमति तब बन पाई जब सदस्यों ने दो विरोधी विचारों के बीच की जमीन तैयार कर ली लेकिन संविधान के कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण भी हैं, जिन पर संविधान सभा में काफी हद तक सहमति थी। यथा –

(1) वयस्क मताधिकार संविधान का एक केन्द्रीय अभिलक्षण वयस्क मताधिकार है। इस पर संविधान सभा में प्रायः आम सहमति थी यह सहमति प्रत्येक वयस्क भारतीय को मताधिकार देने पर थी। इसके पीछे एक खास किस्म का भरोसा था जिसके पूर्व उदाहरण अन्य देश के इतिहास में नहीं थे। दूसरे लोकतंत्रों में पूर्ण वयस्क मताधिकार धीरे-धीरे कई चरणों से गुजरते हुए, लोगों को मिला। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में शुरू-शुरू में मताधिकार केवल सम्पत्ति रखने वाले पुरुषों को ही दिया गया, फिर पढ़े-लिखे पुरुषों को इस विशेष वर्ग में शामिल किया गया। लम्बे व कटु संघर्षो के बाद श्रमिक व किसान वर्ग के पुरुषों को मताधिकार मिल पाया। ऐसा अधिकार पाने के लिए महिलाओं को और भी लम्बा संघर्ष करना पड़ा।

(2) धर्मनिरपेक्षता पर बल – हमारे संविधान का दूसरा महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण था-
धर्मनिरपेक्षता पर बल। संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता के गुण तो नहीं गाए गए थे परन्तु संविधान व समाज को चलाने के लिए भारतीय सन्दर्भों में उसके मुख्य अभिलक्षणों का जिक्र आदर्श रूप में किया गया था। ऐसा मूल अधिकारों की श्रृंखला को रचने के जरिये किया गया, विशेषकर ‘धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार’ (अनुच्छेद 25-28), ‘सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार’ (अनुच्छेद 29-30) एवं ‘समानता का अधिकार’ (अनुच्छेद 14, 16, 17)।

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यथा –
(1) राज्य ने सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार की गारन्टी दी और उन्हें हितैषी संस्थाएँ बनाने का अधिकार भी दिया। और सरकारी स्कूलों व
(2) राज्य ने अपने आपको विभिन्न धार्मिक समुदायों से दूर रखने की कोशिश की कॉलेजों में अनिवार्य धार्मिक शिक्षा पर रोक लगा दी।
(3) सरकार ने रोजगार में धार्मिक भेदभाव को अवैध ठहराया।
(4) राज्य धार्मिक समुदायों से जुड़े सामाजिक सुधार मुं कार्यक्रमों के लिए अवश्य कुछ कानूनी गुंजाइश अर्थात् राज्य ने उसमें दखल देने की गुंजाइश रखी। ऐसा करके ही अस्पृश्यता पर कानूनी रोक लग पायी और इसी कारण इ व्यक्तिगत एवं पारिवारिक कानूनों में परिवर्तन हो पाये।
(5) भारतीय राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता में राज्य व धर्म के बीच पूर्ण विच्छेद नहीं रहा। संविधान सभा ने इन दोनों के बीच एक विवेकपूर्ण फासला बनाने की कोशिश की है।

प्रश्न 5.
संविधान सभा के क्रियाकलापों में किन- किन सदस्यों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी? उनकी भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संविधान सभा के कुल 300 सदस्यों में से 6 सदस्यों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी। इनके नाम है –

  1. पं. जवाहरलाल नेहरू
  2. सरदार वल्लभ भाई पटेल
  3. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  4. डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर
  5. के.एम. मुंशी
  6. अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर।

(1) पं. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 13 दिसम्बर, 1946 को एक निर्णायक प्रस्ताव ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत किया था। यह एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था जिसमें स्वतन्त्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी थी तथा यह फ्रेमवर्क सुझाया गया था जिसके तहत संविधान का कार्य आगे बढ़ना था। पं. नेहरू ने संविधान सभा में झण्डा प्रस्ताव भी पेश किया था। नेहरू ने कहा था कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज केसरिया, सफेद एवं गहरे हरे रंग की तीन बराबर पट्टियों वाला तिरंगा झण्डा होगा जिसके मध्य में गहरे नीले रंग का चक्र होगा।

(2) जवाहरलाल नेहरू के विपरीत वल्लभ भाई पटेल की भूमिका परदे के पीछे की थी उन्होंने अनेक प्रतिवेदनों के प्रारूप लिखे।

(3) भारत के प्रथम राष्ट्रपति तथा संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सभा की चर्चाओं को रचनात्मक दिशा की ओर ले जाते थे। वे इस बात का भी ध्यान रखते थे कि सभी सदस्यों को अपनी बात रखने का अवसर मिले।

(4) कांग्रेस के इस त्रिगुट के अतिरिक्त प्रसिद्ध विधिवेत्ता एवं अर्थशास्त्री डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर भी संविधान सभा के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे भीमराव रामजी अम्बेडकर पर संविधान में संविधान के प्रारूप को पारित करवाने की जिम्मेदारी थी।

(5) संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर के साथ-साथ दो अन्य प्रसिद्ध वकील कार्य कर रहे थे, इनमें से एक गुजरात के के.एम. मुंशी तो द्वितीय मद्रास के अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर थे।

(6) संविधान सभा में इन छः सदस्यों के अतिरिक्त दो प्रशासनिक अधिकारी भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे थे। इनमें से एक बी. एन. राव संविधान सभा अथवा भारत के संवैधानिक सलाहकार थे। संविधान सभा में एस.एन. मुखर्जी की स्थिति भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण थी। वे संविधान सभा में मुख्य योजनाकार की भूमिका निभा रहे थे।

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प्रश्न 6.
संविधान सभा के गठन का विवेचन कीजिये।
अथवा
संविधान सभा के निर्माण और कार्यप्रणाली की म चर्चा कीजिये।
अथवा
संविधान सभा कैसे घटित हुई थी?
उत्तर:
संविधान सभा का गठन संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक 3 मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था। 1945-46 की सर्दियों में भारत के प्रान्तों में चुनाव हुए थे। इसके पश्चात् में प्रान्तीय संसदों ने संविधान सभा के सदस्यों को चुना।

(1) नई संविधान सभा में कांग्रेस का प्रभावशाली या होना नई संविधान सभा में कांग्रेस प्रभावशाली थी। रू प्रान्तीय चुनावों में कांग्रेस ने सामान्य चुनाव क्षेत्रों में भारी क विजय प्राप्त की और मुस्लिम लीग को अधिकांश आरक्षित मुस्लिम सीटें मिल गई। परन्तु मुस्लिम लीग ने संविधान गा सभा का बहिष्कार उचित समझा और एक अन्य संविधान बनाकर उसने पाकिस्तान के निर्माण की माँग जारी रखी। प्रारम्भ में समाजवादी भी संविधान सभा से दूर रहे क्योंकि वे उसे अंग्रेजों के द्वारा बनाई हुई संस्था मानते थे। इन सभी कारणों से संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य के कांग्रेस पार्टी के ही सदस्य थे।

(2) कांग्रेस में मतभेद – सभी कांग्रेस सदस्य एकमत ते नहीं थे कई निर्णायक मुद्दों पर उनके भिन्न-भिन्न मत थे। सर कई कांग्रेसी समाजवाद से प्रेरित थे तो कई जमींदारी के समर्थक थे। कई कांग्रेसी समाजवाद से प्रेरित थे तो कई अन्य जमींदारी के समर्थक थे कुछ साम्प्रदायिक दलों के निकट थे, तो कुछ पक्के धर्मनिरपेक्ष थे राष्ट्रीय आन्दोलन के कारण कांग्रेसी बाद-विवाद करना और मतभेदों पर बातचीत कर समझौतों की खोज करना सीख गए थे। संविधान सभा में भी कांग्रेस सदस्यों ने इसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाया।

(3) संविधान सभा में हुई चर्चाओं का जनमत से प्रभावित होना-संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से भी प्रभावित होती थीं। जब संविधान सभा में बहस होती थी, तो विभिन्न पक्षों के तर्क समाचार-पत्रों में भी प्रकाशित होते थे और समस्त प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी। इस प्रकार की आलोचना और जवाबी आलोचना में किसी मुद्दे पर बनने वाली सहमति या असहमति पर गहरा प्रभाव पड़ता था।

(4) सामूहिक सहभागिता-सामूहिक सहभागिता बनाने के लिए जनता के सुझाव भी मांगे जाते थे। कई भाषाई अल्पसंख्यक अपनी मातृभाषा की रक्षा की मांग करते थे। धार्मिक अल्पसंख्यक अपने विशेष हित सुरक्षित करवाना चाहते थे और दलित वर्गों के लोग शोषण के अन्त की माँग करते हुए सरकारी संस्थाओं में आरक्षण चाहते थे।

प्रश्न 7.
संविधान सभा में विभिन्न सदस्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
संविधान सभा में विभिन्न सदस्यों की भूमिका संविधान सभा में तीन सौ सदस्य थे। इनमें निम्नलिखित 6 सदस्यों की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण रही –
(1) पं. जवाहरलाल नेहरू-पं. जवाहरलाल नेहरू ने सविधान सभा में 13 दिसम्बर, 1946 को एक निर्णायक प्रस्ताव ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ को प्रस्तुत किया था। इसमें उन्होंने स्वतन्त्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की थी। उन्होंने यह प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज केसरिया, सफेद और गहरे रंग की तीन बराबर चौड़ाई वाली पट्टियों का तिरंगा झंडा होगा जिसके बीच में गहरे नीले रंग का चक्र होगा।

(2) सरदार वल्लभ भाई पटेल- सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मुख्य रूप से परदे के पीछे कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण रिपोर्टों के प्रारूप लिखने में विशेष सहायता की और कई परस्पर विरोधी विचारों के बीच सहमति उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(3) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। उनकी ये जिम्मेदारियाँ थीं कि संविधान सभा में चर्चा रचनात्मक दिशा ले और सभी सदस्यों को अपनी बात कहने का अवसर मिले।

(4) डॉ. भीमराव अम्बेडकर डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक प्रख्यात विधिवेत्ता तथा अर्थशास्त्री थे। वह संविधान सभा के सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद महात्मा गांधी की सलाह पर डॉ. अम्बेडकर को केन्द्रीय विधिमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया था। इस भूमिका में उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उनके पास सभा में संविधान के प्रारूप को पारित करवाने की जिम्मेदारी थी।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

(5) के. एम. मुंशी डॉ. अम्बेडकर के साथ दो अन्य वकील भी कार्य कर रहे थे। एक गुजरात के के. एम. मुंशी थे तथा दूसरे मद्रास के अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर। इन- दोनों ने संविधान के प्रारूप पर महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए।

(6) दो प्रशासनिक अधिकारी-उपरोक्त 6 सदस्यों को दो प्रशासनिक अधिकारियों ने महत्त्वपूर्ण सहायता दी। इनमें से एक बी. एन. राव थे। वह भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे और उन्होंने अन्य देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन करके कई चर्चा- पत्र तैयार किए थे। दूसरे अधिकारी एस.एन. मुखर्जी थे। इनकी भूमिका मुख्य योजनाकार की थी। मुखर्जी जटिल प्रस्तावों को स्पष्ट वैधिक भाषा में व्यक्त करने की क्षमता रखते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Jharkhand Board Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 262

प्रश्न 1.
यह बताइये कि जोतदार जमींदारों की सत्ता का किस प्रकार प्रतिरोध किया करते थे?
उत्तर:
जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनें जोतते थे। वे अपना राजस्व भी पूरा जमा नहीं करते थे और राजस्व को बकाया रखते थे। यदि जमींदार गाँव की लगान को बढ़ाने के लिए प्रयत्न करते थे, तो वे उनका घोर प्रतिरोध करते थे। वे जमींदारी अधिकारियों को अपने कर्त्तव्यों का पालन करने से रोकते थे।

वे जमींदार को राजस्व के भुगतान में जान- बूझकर देरी करा देते थे जमींदार के कारिंदों द्वारा डराये – धमकाए जाने पर वे फौजदारी थाने ( पुलिस थाने में जमींदार के कारिंदों के खिलाफ शिकायत करते थे कि उन्होंने उनका अपमान किया है। इस प्रकार राजस्व का बकाया बढ़ता जाता था तथा जोतदार छोटे-छोटे रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे। इस तरह जोतदार जमींदार की सत्ता का प्रतिरोध किया करते थे।

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प्रश्न 2.
चित्र संख्या 10.5 ( पाठ्यपुस्तक की) के साथ दिये गये पाठ को सावधानीपूर्वक पढ़िये और तीर के निशानों के साथ-साथ उपयुक्त स्थलों पर ये शब्द भरिए लगान, राजस्व, ब्याज, उधार (ऋण), उपज।
उत्तर:
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पृष्ठ संख्या 265

प्रश्न 3.
जिस लहजे में साक्ष्य ( पाठ्यपुस्तक का स्रोत- 2 ) अभिलिखित किया गया है, उससे आप रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के प्रति रिपोर्ट लिखने वाले के रुख के बारे में क्या सोचते हैं? आँकड़ों के जरिए रिपोर्ट में क्या दर्शाने की कोशिश की गई है? क्या इन दो वर्षों के आँकड़ों से आपके विचार से, किसी भी समस्या के बारे में दीर्घकालीन निष्कर्ष निकालना सम्भव होगा?
उत्तर:
(1) पाँचवीं रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के प्रति रिपोर्ट लिखने वाले के रुख के बारे में पता चलता है कि जमींदारों की लापरवाही के कारण राजस्व समय पर वसूल नहीं किया जाता था जिसके परिणामस्वरूप बहुत-सी जमीनें नीलाम करनी पड़ती थीं।
(2) आँकड़ों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि नीलामी में राजस्व की राशि कम प्राप्त होती थी।
(3) दो वर्षों के आँकड़ों के आधार पर किसी भी समस्या के बारे में दीर्घकालीन निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

पृष्ठ संख्या 265 चर्चा कीजिए

प्रश्न 4.
आपने जमींदारों के हाल के बारे में अभी जो कुछ पड़ा है उसकी तुलना अध्याय-8 में दिए गए विवरण से कीजिए।
उत्तर:
यहाँ जमींदारों में अत्यधिक भिन्नता है। इस अध्याय में वर्णित जमींदार औपनिवेशिक प्रवृत्ति के हैं जबकि अध्याय- 8 में वर्णित जमींदार प्रजातान्त्रिक प्रवृत्ति के थे।

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पृष्ठ संख्या 267

प्रश्न 5.
पृष्ठ 267 पर दिए गए चित्र को देखिए और यह पता लगाइए कि होजेज ने राजमहल की पहाड़ियों को किसलिए रमणीय माना था ?
उत्तर:
विलियम होजेज द्वारा यह चित्र 1782 में तैयार किया गया। होजेज स्वच्छंदतावादी चित्रकार था । उसके विचार से प्रकृति की पूजा करनी चाहिए। उसे सपाट और समतल भूखण्डों की तुलना में विविधतापूर्ण, ऊँची- नीची ऊबड़-खाबड़ जमीन में सुन्दरता के दर्शन हुए. इसलिए होजेज ने इन दृश्यों को मनमोहक और रमणीय माना था। यहाँ कलाकार ने स्वयं को प्रकृति के अत्यधिक निकट पाया।

पृष्ठ संख्या 268

प्रश्न 6.
चित्र 10.8 और 10.9 को देखिए। इन चित्रों द्वारा जनजातीय मनुष्य और प्रकृति के बीच के सम्बन्धों को किस प्रकार दर्शाया गया है; वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुस्तक में दिखाए गए दोनों चित्रों को देखने से यह प्रतीत होता है कि जनजातियों का जीवन जंगल से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों की छाँह में आराम करते थे। उनका पूरा जीवन ही जंगल से प्राप्त होने वाले पदार्थों पर आधारित था। वे पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे यह जंगल की भूमि उनकी पहचान तथा जीवन का आधार थी। इस प्रकार जनजातीय लोगों तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित था।

पृष्ठ संख्या 270

प्रश्न 7.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 270 के चित्र संख्या 10.10 की तुलना पृष्ठ संख्या 272 के चित्र संख्या 10.12 से कीजिए।
उत्तर:
पृष्ठ संख्या 270 के चित्र संख्या 10.10 में दिखाए गए गाँव के दृश्य में गाँव शान्तिपूर्ण, नीरव और रमणीय दिखाई पड़ता है और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है। यह बाहरी संसार के प्रभाव से मुक्त है। जबकि चित्र संख्या 10.12 यह प्रदर्शित करता है कि संथाल लोग शान्तिप्रिय होने के साथ-साथ अपनी अस्मिता को बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने को भी तैयार रहते थे। इस चित्र में संथालों को अंग्रेजी सैनिकों से युद्ध करते हुए दिखाया गया है। यह चित्र अंग्रेजों के अत्याचारपूर्ण एवं बर्बरतापूर्ण कार्यों को दर्शाता है।

पृष्ठ संख्या 273

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आप ‘इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज’ के पाठक हैं। पाठ्यपुस्तक के चित्र संख्या 10.12, 10.13 और 10.14 में चित्रित दृश्यों के प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? इन चित्रों से आपके मन में संथालों की क्या क्या छवि बनती है?
उत्तर:
(1) चित्र 10.12 में संथालों को ब्रिटिश सैनिकों से युद्ध करते हुए दिखाया गया है। इसमें अनेक संथाल घायल अवस्था में हैं तथा कुछ मरे हुए दिखाई देते हैं। यह चित्र ब्रिटिश सैनिकों के अत्याचारपूर्ण एवं बर्बरतापूर्ण कार्यों को उजागर करता है।

(2) चित्र 10.13 में संथालों के गाँव जलते हुए दिखाए गए हैं। इसमें संथालों को अपने आवश्यक सामान के साथ गाँवों से पलायन करते हुए दिखाया गया है। इस चित्र के माध्यम से ब्रिटिश सरकार अपनी शक्ति और मिध्याभिमान को प्रदर्शित करना चाहती थी।

(3) चित्र 10.14 में संचालों को बन्दी बनाकर जेल ले जाते हुए दिखाया गया है। संथाल जंजीरों से बंधे हुए और अंग्रेज सिपाही उन्हें चारों ओर से घेरे हुए हैं।

(4) यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने संथालों को अनेक सुविधाएँ प्रदान की थीं, परन्तु संथालों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित करने के लिए विद्रोह कर दिया। इस स्थिति में ब्रिटिश सरकार द्वारा संथालों के विद्रोह को कुचलने के लिए की गई सैनिक कार्यवाही उचित प्रतीत होती है।

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पृष्ठ संख्या 275 चर्चा कीजिए

प्रश्न 9.
बुकानन का वर्णन विकास के सम्बन्ध में उसके विचारों के बारे में क्या बतलाता है? उद्धरणों से उदाहरण देते हुए अपनी दलील पेश कीजिए। यदि आप एक पहाड़िया बनवासी होते तो उसके इन विचारों के प्रति आपकी प्रतिक्रिया क्या होती ?
उत्तर:
बुकानन ने राजमहल की पहाड़ियों का रोचक वर्णन किया है। परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का एक कर्मचारी था। उसने वाणिज्यिक दृष्टि से मूल्यवान पत्थरों तथा खनिजों को खोजने का प्रयास किया। उसने लौह खनिज और अवरक, ग्रेनाइट तथा साल्टमीटर से सम्बन्धित सभी स्थानों का पता लगाया। उसने राजमहल की पहाड़ियों में उगाई जाने वाली धान की फसलों का भी वर्णन किया है परन्तु उसके अनुसार इस क्षेत्र में प्रगति की तथा विस्तृत और उन्नत खेती की कमी थी।

उसने सुझाव देते हुए लिखा है कि यहाँ टसर और लाख के लिए बड़े-बड़े बागान लगाए जा सकते थे परन्तु प्रगति के सम्बन्ध में बुकानन पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित था। इसलिए वह पहाड़िया वनवासियों की जीवन-शैली का आलोचक था। उसकी मान्यता थी कि वनों को कृषि भूमि में बदलना ही होगा। यदि मैं एक पहाड़िया बनवासी होता तो बुकानन के विचारों के प्रति मेरी प्रतिक्रिया विपरीत होती।

पृष्ठ संख्या 276

प्रश्न 10.
लेखक द्वारा प्रयुक्त भाषा या शब्दावली से अक्सर उसके पूर्वाग्रहों का पता चल जाता है। स्रोत 7 को सावधानीपूर्वक पढ़िए और उन शब्दों को छाँटिए जिनसे लेखक के पूर्वाग्रहों का पता चलता है। चर्चा कीजिये कि उस इलाके का रैयत उसी स्थिति का किन शब्दों में वर्णन करता होगा?
उत्तर:
‘नेटिव ओपीनियन’ नामक समाचार पत्र में लेखक द्वारा प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों से उसके पूर्वाग्रहों का पता चलता है –
(1) जासूस (गुप्तचर ) – लेखक ने रैयत को जासूस कहा है जो गाँवों की सीमाओं पर यह देखने के लिए जासूसी करते हैं कि क्या कोई सरकारी अधिकारी आ रहा है।
(2) अपराधी लेखक ने निर्दोष रैयत को अपराधी बताया है जो अपराधियों को समय रहते उनके आने की सूचना दे देते हैं।
(3) हमला करना – लेखक के अनुसार वनवासी ऋणदाताओं पर हमला करके ऋणपत्र तथा दस्तावेज छीन लेते थे।
इस प्रकार लेखक ने रैयत का वर्णन जासूसों अपराधियों एवं हमलावरों के रूप में किया है जिससे लेखक के पूर्वाग्रहों का पता चलता है। परन्तु उस इलाके का रैयत इन शब्दों का कभी प्रयोग नहीं करता और वनवासियों को निरपराधी, शान्तिप्रिय और मानवीय व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है।

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पृष्ठ संख्या 280

प्रश्न 11.
पाठ्यपुस्तक के चित्र 10.17 के तीन भाग हैं, जिनमें कपास ढोने के विभिन्न साधन दर्शाए गए सड़क हैं। चित्र में कपास के बोझ से दबे जा रहे बैलों, पर पड़े शिलाखण्डों और नौका पर लदी गाँठों के विशाल ढेर को देखिए। कलाकार इन तस्वीरों के माध्यम से क्या दर्शाना चाहता है?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के चित्र संख्या 10.17 के द्वारा कलाकार यह बताना चाहता है कि रेलमार्ग प्रारम्भ होने से पहले कपास ढोने के लिए परिवहन के जितने साधन उपलब्ध थे, उनका पूरी तरह उपयोग किया जा रहा था तथा उन सभी साधनों अर्थात् सड़क मार्ग तथा नदी मार्ग द्वारा अधिक से अधिक कपास ढोकर संग्रहण केन्द्र तक पहुँचायी जाती थी।
इस प्रकार संग्रहित की गई कपास का निर्यात पूर्ण रूप से ब्रिटेन को होता था।

पृष्ठ संख्या 282

प्रश्न 12.
रेवत अपनी अर्जी में क्या शिकायत कर रहा है? ऋणदाता द्वारा किसान से ले जाई जाने वाली फसल उसके खाते में क्यों नहीं चढ़ाई जाती? किसानों को कोई रसीद क्यों नहीं दी जाती? यदि आप ऋणदाता होते तो इन व्यवहारों के लिए क्या-क्या कारण देते?
उत्तर:
(1) रैयत अपनी अर्जी में कलेक्टर अहमदनगर को शिकायत कर रहा है कि साहूकार उन पर अत्याचार कर रहे हैं। उन्हें कपड़ा और अनाज देकर कड़ी शर्तों पर बंधपत्र लिखवाया जाता है तथा नकद मूल्य की अपेक्षा उन्हें सामान 25 से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर दिया जाता है। किसानों के खेत की उपज ले जाते समय साहूकार आश्वासन देता है कि उपज की कीमत उसके खाते में चढ़ा दी जायेगी, लेकिन वे ऐसा नहीं करते तथा उन्हें कोई रसीद भी नहीं देते हैं।

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(2) ऋणदाता बेईमान प्रवृत्ति के थे तथा किसानों का अधिक से अधिक शोषण करना चाहते थे इसलिए वे किसान की उपज की कीमत उसके खाते में नहीं चढ़ाते थे और न ही किसान को कोई रसीद देते थे। किसान की उपज की कीमत उसके खाते में इस कारण नहीं चढ़ाता होगा कि उसका अधिक समय तक शोषण किया जा सके। इसीलिए उसे रसीद भी नहीं दी जाती होगी।

(3) यदि हम ऋणदाता होते तो यही कहते कि हम रैयत को सही कीमत पर सामान आदि देते हैं, उसे रसीद भी देते हैं, जब हम अपना उधार वापस मांगते हैं तो किसान आनाकानी करता है और हमारी झूठी शिकायत करता है।

पृष्ठ संख्या 283

प्रश्न 13.
उन सभी वचनबद्धताओं की सूची बनाइए जो किसान इस (स्रोत 8 ) दस्तावेज में दे रहा है। ऐसा कोई दस्तावेज हमें किसान और ऋणदाता के बीच के सम्बन्धों के बारे में क्या बताता है? इससे किसान और बैलों (जो पहले उसी के थे) के बीच के सम्बन्धों में क्या अन्तर आएगा?
उत्तर:
वचनबद्धताओं की सूची जो किसान द्वारा दी गई –

  • मैंने अपनी लोहे के धुरों वाली 2 गाड़ियाँ साज-सामान एवं चार बैलों सहित आपको कर्जा चुकाने के रूप में बेची हैं।
  • मैंने इस दस्तावेज के तहत उन्हीं दो गाड़ियों और चार बैलों को आपसे किराये (भाड़े पर लिया है।
  • मैं हर माह आपको चार रुपये प्रतिमाह की दर से किराया दूँगा तथा आपसे आपकी लिखावट में रसीद प्राप्त करूंगा।
  • रसीद न मिलने पर मैं यह दलील नहीं दूंगा कि किराया नहीं चुकाया गया है।

यह दस्तावेज हमें यह बताता है कि ऋणदाता किसानों का पूर्ण रूप से शोषण कर रहे थे। अब किसान अपने बैलों तथा गाड़ियों का मालिक नहीं रह गया था। किसान तथा बैलों के बीच के सम्बन्धों में यह अन्तर आयेगा कि पहले किसान स्वयं बैलों का मालिक था तथा बैलों और उसके बीच आत्मीय सम्बन्ध थे अब बैल उसके नहीं थे बल्कि साहूकार के हो गए थे। इस कारण वह बैलों से अधिक से अधिक काम लेना चाहेगा जिससे उसका किराया वसूल हो सके।

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उत्तर दीजिए ( लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था?
अथवा
ग्रामीण बंगाल में जोतदारों के उत्कर्ष का वर्णन कीजिये।
अथवा
अठारहवीं शताब्दी के अन्त में ‘जोतदारों’ की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में जहाँ जमींदार संकट से जूझ रहे थे, वहीं धनी किसानों का एक वर्ग जोतदार के रूप में ताकतवर बनकर उभर रहा था। बुकानन के एक विवरण में हमें दिनाजपुर के ऐसे ही जोतदारों का वर्णन मिलता है। इन जोतदारों ने बड़े रकवों पर अपना कब्जा कर रखा था तथा बटाई पर खेती करवाते थे बटाईदार अपने हल-बैल लाकर खेती करते थे तथा जोतदार को फसल की आधी पैदावार देते थे।

जमींदारों की तुलना में जोतदार अधिक ताकतवर हो गये थे। वे गाँवों में रहते थे तथा किसानों पर उनका सीधा नियंत्रण था। जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाये जाने पर वे उनका घोर प्रतिरोध करते थे तथा लगान वसूलने में बाधा डालते थे जो रैवत उनके सीधे नियन्त्रण में थे, उनको अपने पक्ष में एकजुट रखते थे तथा राजस्व के भुगतान में जान-बूझकर देरी करा देते थे। राजस्व अदा न करने पर जब जमींदारी नीलाम होती थी तो अक्सर जोतदार ही इन्हें खरीद लेते थे उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक ताकतवर थे। कुछ जगहों पर जोतदारों को ‘हवलदार’ कहते थे तथा कहीं पर ये ‘गाँटीदार’ या ‘मंडल’ कहलाते थे जोतदारों के उदय से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना लाजिमी था।

प्रश्न 2.
जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियन्त्रण बनाए रखते थे?
अथवा
अगर आप एक जमींदार होते, तो अपनी जमींदारी पर किस प्रकार नियन्त्रण बनाए रखते?
उत्तर:
अपनी जमींदारियों पर नियन्त्रण बनाए रखने के लिए जमींदार लोग कई प्रकार के हथकण्डे अपनाते थे, जो इस प्रकार
(1) फर्जी बिक्री द्वारा – जब राजस्व जमा न कराने पर जमींदारी को कम्पनी द्वारा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के एजेन्ट ऊँची बोली लगाकर सम्पत्ति खरीद लेते तथा खरीद राशि अदा न करने पर उसकी दुबारा बोली लगाई जाती थी, फिर जमींदार के एजेन्ट ही बोली लगाते तथा खरीद राशि अदा नहीं करते। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती। अन्त में वह सम्पदा नौची कीमत पर पूर्व जमींदार को बेच दी जाती।

(2) सम्पत्ति स्त्रियों के नाम करना – कम्पनी ने यह नियम बनाया था कि स्त्रियों के नाम की सम्पत्ति को उनसे छीना नहीं जायेगा इसलिए बर्दवान के राजा ने अपनी जमींदारी बचाने के लिए अपनी जमींदारी का कुछ हिस्सा अपनी माँ को दे दिया।

(3) बाहरी व्यक्ति को अधिकार न करने देना- यदि कभी कोई बाहरी व्यक्ति जमींदारी को खरीद लेता था तो पुराने जमींदार के ‘लठियाल’ उसको मार-पीट कर भगा देते थे और उसे जमींदारी पर अधिकार नहीं करने देते थे।

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(4) रैयत का लगाव – रैयत भी पूर्व जमींदार को अपना अन्नदाता मानती थी तथा स्वयं को उसकी प्रजा । वे बाहरी व्यक्ति का प्रतिरोध करते थे और जमींदारी की नीलामी को अपना अपमान महसूस करते थे।

प्रश्न 3.
पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई ?
उत्तर:
पहाड़िया लोग बाहरी लोगों से आशंकित रहते थे। वे बाहरी लोगों का अपने इलाके में प्रवेश का प्रतिरोध करते थे। जब बुकानन राजमहल की पहाड़ियों में गया तो उसने पाया कि पहाड़िया लोग उससे बात करने को भी तैयार नहीं थे तथा कई स्थानों पर तो पहाड़िया लोग अपने गाँव छोड़कर ही भाग जाते थे। बुकानन जहाँ कहीं भी गया, उसने पहाड़िया लोगों का अपने प्रति व्यवहार शत्रुतापूर्ण ही पाया। पहाड़िया लोग बराबर उन मैदानों पर आक्रमण करते रहते धे जहाँ किसान एक स्थान पर बसकर कृषि कार्य करते थे। पहाड़िया लोगों द्वारा ये आक्रमण अधिकतर अपने आपको विशेष रूप से अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किये जाते थे।

इसके साथ ही ये हमले मैदानों में बसे हुए समुदाय पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने का एक माध्यम भी थे। मैदानी भागों में रहने वाले जमींदारों को प्रायः पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देकर शान्ति खरीदनी पड़ती थी। इसी प्रकार व्यापारी लोग भी इन पहाड़ी व्यक्तियों द्वारा नियन्त्रित मार्गों का प्रयोग करने के लिए उन्हें कुछ पथकर दिया करते थे। पहाड़िया लोगों की मान्यता धी कि गोरे लोग उनसे उनके जंगल और जमीनें छीन कर उनकी जीवन शैली और जीवित रहने के साधनों को नष्ट कर देना चाहते थे। अतः वे बाहरी लोगों के प्रति आशकित रहते थे।

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प्रश्न 4.
संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
उत्तर:
संथाल लोग बंगाल के जमींदारों के यहाँ भाड़े पर काम करने आते थे। कम्पनी के अधिकारियों ने उन्हें राजमहल की पहाड़ियों में बसने का निमन्त्रण दिया। संचाल उस क्षेत्र में बसकर जंगलों को साफ करके स्थायी खेती करने लगे। उनकी बस्तियों और जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी। 1832 तक जमीन के काफी बड़े भाग को ‘दामिन-इ-कोह’ के नाम से सीमांकित करके इसे संभाल – भूमि घोषित कर दिया गया। शीघ्र ही संथालों का भ्रम टूट गया। उन्हें यह महसूस होने लगा कि जिस भूमि पर वे खेती कर रहे हैं, वह उनके हाथ से निकलती जा रही है।

इसके प्रमुख कारण थे –

  • सरकार ने संथालों की भूमि पर भारी कर लगा दिया था।
  • साहूकार बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा रहे थे और ऋण न चुकाने पर उनकी कृषि भूमि पर कब्जा कर रहे थे तथा
  • जमींदार लोग उनके इलाके पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।

1850 के दशक तक संथाल लोग यह अनुभव करने लगे थे कि अपने लिए एक आदर्श संसार का निर्माण करने के लिए, जहाँ उनका अपना शासन हो, जमींदारों, साहूकारों तथा औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय आ गया है। अन्त में 1855-56 में संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

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प्रश्न 5.
बक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे?
उत्तर:
दक्कन के रैयत (किसान) ऋणदाताओं के प्रति निम्न कारणों से क्रुद्ध थे –

  • ऋणदाताओं ने रैयत को ऋण देने से इनकार कर दिया था
  • रैयत समुदाय इस बात से अधिक नाराज था कि ऋणदाता संवेदनहीन हो गए हैं तथा उनकी दयनीय स्थिति पर वे कोई तरस नहीं खा रहे हैं।
  • प्रायः न चुकाई गई शेष राशि पर सम्पूर्ण ब्याज को मूलधन के रूप में नये बंधपत्रों में सम्मिलित कर लिया जाता था और उस पर नये सिरे से ब्याज लगने लगता था।
  • ऋणदाता बन्धपत्रों में जाली आंकड़े भर लेते थे वे किसानों की फसल को नीची कीमतों पर खरीदते थे तथा अन्त में वे किसानों की धन-सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेते थे।
  • रैयत से ऋण के पेटे भारी ब्याज लगाया जाता था।
  • ऋण चुकता होने पर भी उन्हें रसीद नहीं दी जाती थी।
  • ऋणदाताओं ने गाँव की पारम्परिक प्रथाओं का उल्लंघन करना शुरू कर दिया तथा मूलधन से अधिक ब्याज लेना शुरू कर दिया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) –

प्रश्न 6.
इस्तमरारी बन्दोबस्त के बाद बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई?
अथवा
स्थायी भूमि प्रबन्ध के पश्चात् बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई?
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 ई. में बंगाल के गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया। इस व्यवस्था के अनुसार जमींदार को एक निश्चित राजस्व की राशि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को देनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे, उनकी जमींदारियाँ नीलाम कर दी जाती थीं। अतः इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू होने के बाद 75% से अधिक “जमींदारियाँ नौलाम की गई क्योंकि जमींदार समय पर राजस्व की राशि जमा कराने में असफल रहे थे।

जमींदारी के नीलाम होने के कारण जमींदारों द्वारा राजस्व जमा न कराने तथा उनकी जमींदारी नीलाम होने के पीछे कई कारण थे –
(1) ऊँचा राजस्व निर्धारण – राजस्व की प्रारम्भिक माँग बहुत ऊँची थी, ऐसा इसलिए किया गया कि आगे चलकर आय में वृद्धि हो जाने पर भी राजस्य नहीं बढ़ाया जा सकता था। इस हानि को पूरा करने के लिए दरें ऊँची रखी गर्यो इसके लिए यह दलील दी गई कि जैसे ही कृषि का उत्पादन बढ़ेगा, वैसे ही धीरे-धीरे जमींदारों का बोझ कम होता जायेगा।

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(2) उपज की नीची कीमतें राजस्व की यह ऊँची माँग 1790 के दशक में रखी गई जब कृषि की उपज की कीमतें नीची थीं। ऐसे में कृषकों के लिए राजस्व चुकाना बहुत मुश्किल था जब जमींदार किसानों से ही लगान वसूल नहीं कर सकता था तो वह आगे कम्पनी को अपनी निर्धारित राजस्व राशि कैसे अदा कर सकता था।

(3) असमान दरे – राजस्व की दरें असमान थीं, फसल अच्छी हो या खराब, राजस्व समय पर जमा कराना आवश्यक था। यदि राजस्व निश्चित दिन के सूर्यास्त तक जमा नहीं कराया जाता तो जमींदारी को नीलाम किया जा सकता था।

(4) जमींदार की शक्ति सीमित होना इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ में जमींदार की शक्ति को रैयत से राजस्व एकत्र करने तथा अपनी जमींदारी का प्रबन्ध करने तक ही सीमित कर दिया। राजस्व एकत्र करने के लिए जमींदार का एक अधिकारी, जिसे अमला कहते थे, गाँव में आता था।

लेकिन राजस्व संग्रहण एक गम्भीर समस्या थी कभी-कभी खराब फसल और नीची कीमतों के कारण किसानों को देय राशि का भुगतान करना कठिन हो जाता था कभी-कभी रैयत जान-बूझकर भी भुगतान में देरी कर देते थे, क्योंकि जमींदार उन पर अपनी ताकत का प्रयोग नहीं कर सकता था। जमींदार उन बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था मगर न्यायिक प्रक्रिया बहुत लम्बी चलती थी 1798 में अकेले बर्दवान जिले में ही राजस्व भुगतान के बकाया से सम्बन्धित 30,000 से अधिक बद लम्बित थे।

(5) जोतदारों का उदव इसी बीच जोतदारों (धनी किसानों) के वर्ग का उदय हुआ यह वर्ग गाँवों में रहता था और रैयत पर अपना नियन्त्रण रखता था। यह वर्ग जान- बूझकर रैयत को राजस्व का भुगतान न करने के लिए प्रोत्साहित करता था, क्योंकि जब समय पर राजस्व जमा नहीं होता तो जमींदारी नीलाम की जाती थी और यह जोतदार ही उस जमींदारी को खरीद लेते थे।

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प्रश्न 7.
पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस प्रकार भिन्न थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों की आजीविका और संथालों की आजीविका में भिन्नता बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों के आसपास रहने वाले पहाड़िया लोगों और संचालों की आजीविका के प्रमुख अन्तर को अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –

(1) पहाड़ियों की आजीविका जंगलों पर आधारित थी, जबकि संथालों की आजीविका कृषि पर आधारित थी पहाड़िया लोगों का जीवन पूरी तरह से जंगल पर निर्भर था। वे जंगल की उपज से अपना जीवन निर्वाह करते थे। कुछ पहाड़िया लोग शिकार करके अपना जीवनयापन करते थे वे जंगलों से खाने के लिए महुआ के फूल इकट्ठा करते थे तथा बेचने के लिए रेशम के कोया और राल तथा काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे वे इमली के पेड़ की पनी छाँव में अपनी झोंपड़ी बनाते थे तथा आम की छाँव में बैठकर आराम करते थे। दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार से प्रोत्साहित होकर संथालों ने अपना खानाबदोश जीवन छोड़कर जब राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसना शुरू किया तो उन्होंने वहाँ जंगलों को साफ कर स्थायी कृषि करना प्रारम्भ कर दिया और कृषि उत्पाद ही संथालों की आजीविका के आधार थे।

(2) पहाड़िया झूम कृषि करते थे और संथाल स्थायी कृषि पहाड़िया लोग जंगलों को जलाकर जमीन को साफ करके ‘झूम’ खेती करते थे। वे कुदाल 1 के द्वारा जमीन को थोड़ा खुरचकर विभिन्न प्रकार की दालें तथा ज्वार बाजरा पैदा कर उन्हें अपने खाने के काम में लेते धे एक स्थान पर कुछ वर्षों तक खेती करने के बाद वे उस जमीन को परती छोड़कर अन्य स्थान पर चले जाते थे जिससे जमीन की खोई उर्वरता पुनः प्राप्त हो सके। दूसरी तरफ संथाल जंगलों को साफ कर स्थायी कृषि करते थे। यही कारण है कि ‘दामिन-ई-कोह’ नामक राजमहल की पहाड़ियों के तलहटी क्षेत्र में कुछ ही वर्षों में संचालों के गाँवों और उनकी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। वे हल से जमीन को जोतकर कृषि करते थे।

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(3) पहाड़िया परती भूमि को चरागाह के रूप में उपयोग लेते थे, संथालों ने उन्हें खेतों में बदल दिया – परती जमीन पर उगी हुई घास आदि पहाड़िया लोगों के पशुओं के लिए चरागाह का कार्य करती थी, जबकि संथालों ने पहाड़ियों के चरागाहों को धान के खेत के रूप में बदल दिया तथा वे वाणिज्यिक खेती भी करते थे तथा साहूकारों से लेन-देन भी करते थे।

(4) कृषि उत्पादों में अन्तर पहाड़िया लोग झूम खेती कर ज्वार, बाजरा तथा दालें उपजते थे, जबकि संथाल लोग कपास, धान, तम्बाकू, सरसों तथा अन्य व्यापारिक फसलें उगाते थे।

(5) खानाबदोश व स्थायी जीवन सम्बन्धी अन्तर- पहाड़िया लोग खानाबदोश जीवन जीते थे। इसके अतिरिक्त ये मैदानी इलाकों के किसानों के पशुओं व अनाज को लूटकर ले जाते थे वे मैदानी जमींदारों से कुछ खिराज लेते थे और उसके बदले में उनके क्षेत्र में आक्रमण नहीं करते थे, लेकिन ये राय अस्थायी आधार होते थे। दूसरी तरफ संथाल ‘दामिन-इ-कोह’ क्षेत्र में स्थायी रूप से असकर, गाँवों में रहते थे तथा स्थायी कृषि करते थे। वे व्यापारियों तथा साहूकारों के साथ लेन-देन करने लगे थे।

(6) कृषि के साधनों में अन्तर पहाड़िया लोग शूम कृषि के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे, इसलिए यदि कुदाल को पहाड़िया जीवन का प्रतीक माना जाए तो हल को संथालों की शक्ति का प्रतीक मानना पड़ेगा; क्योंकि संथाल लोग स्थायी कृषि के लिए हल का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 8.
अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
अमेरिकी गृहयुद्ध का भारत में रैयत समुदाय पर प्रभाव अमेरिका में गृहयुद्ध शुरू होने से पूर्व ब्रिटेन में जितना कपास का आयात होता था, उसका 75% अमेरिका से आता था। इस प्रकार ब्रिटेन पूरी तरह अमेरिकी कपास पर निर्भर था। इंग्लैण्ड के सूती वस्त्रों के निर्माता इस बात से परेशान थे कि यदि अमेरिका से आयात बन्द हो गया तो हमारे व्यापार का क्या होगा।

से अमेरिकी गृहयुद्ध से भारत में कपास में तेजी उत्पादन में वृद्धि और रैयत समुदाय को राहत – 1861 ई. में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ने से भारत में रैयत समुदाय पर अग्रलिखित प्रभाव पड़े –

(i) अमेरिकी गृहयुद्ध से वहाँ कपास उत्पादन व निर्यात में कमी 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध शुरू हो जाने से वहाँ कपास का उत्पादन कम हो गया तथा कपास के आयात में भारी कमी आ गई। 1861 में जहाँ 20 लाख गाँठें ब्रिटेन में आयात की गई थीं, वहाँ 1862 में सिर्फ पचपन हजार गाँठों का ही आयात हो पाया।

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(ii) अमेरिकी गृहयुद्ध के कारण ब्रिटेन में वहाँ से कपास न आने पर भारत में कपास उत्पादन को प्रोत्साहन ब्रिटेन द्वारा भारत से कपास आयात करने का प्रावधान किया गया। इसके लिए ब्रिटेन की सरकार ने यम्बई सरकार को अधिक कपास उपजाने के लिए प्रोत्साहित किया। बम्बई के कपास निर्यातकों ने कपास की आपूर्ति का आकलन करने के लिए कपास उत्पादक जिलों का दौरा कर किसानों को कपास उगाने हेतु प्रोत्साहित किया।

(iii) किसानों को ऋणदाताओं द्वारा अग्रिम राशि देना ऋणदाताओं ने किसानों को अधिक कपास उगाने हेतु अग्रिम ऋण देना शुरू कर दिया क्योंकि कपास की कीमतों में इजाफा हो रहा था। दक्कन में इसका काफी प्रभाव पड़ा तथा किसानों को कपास उगाई जाने वाले प्रति एकड़ के लिए 100 रुपये अग्रिम राशि दी गई। साहूकार लम्बी अवधि के लिए देने को तैयार थे, क्योंकि जब बाजार में तेजी आती है तो कर्ज आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

(iv) अमेरिकी गृहयुद्ध काल में भारत में कपास उत्पादन में वृद्धि – जब तक अमेरिका में गृहयुद्ध चलता रहा, दक्कन में कपास का उत्पादन बढ़ता गया। 1860 से 1864 के दौरान कपास उगाने वाले एकड़ों की संख्या दो गुनी हो गई 1862 में यह स्थिति आई कि ब्रिटेन में जितना कपास आयात होता था, उसका 90% भाग अकेले भारत से जाता था

(v) कपास में आई तेजी से धनी किसानों को लाभ अमेरिकी गृहयुद्ध के कारण आई कपास की तेजी से सभी किसानों को लाभ नहीं हुआ, जो धनी किसान थे उन्हें ही लाभ मिला। अधिकांश किसान कर्ज के बोझ से और अधिक दब गये।

(vi) अमेरिकी गृहयुद्ध के समाप्त होने पर भारत से कपास निर्यात में कमी आना तथा रैयत समुदाय की कठिनाइयों में वृद्धि – 1865 में अमेरिका का गृहयुद्ध समाप्त हो गया और वहाँ कपास का उत्पादन फिर से होने लगा और ब्रिटेन के भारतीय कपास के निर्यात में निरन्तर गिरावट आती गई। साहूकारों ने कपास की गिरती कीमत को देखते हुए किसानों को ऋण देने से मना कर दिया तथा अपने उधार की वसूली पर जोर देने लगे। एक तरफ ऋण मिलना बन्द हो गया, दूसरी ओर राजस्व की माँग बढ़ा दी गई रैयत के लिए राजस्व जमा कराना मुश्किल हो गया। इसके फलस्वरूप रैयत की कठिनाइयाँ बढ़ती चली गई।

प्रश्न 9.
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
सरकारी स्रोतों के उपयोग की समस्याएँ किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग सम्बन्धी प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित हैं –
(1) सरकारी रिपोर्टों का एकपक्षीय होना किसानों के इतिहास लेखन में सरकारी स्रोतों का उपयोग बहुत ही छानबीन करके करना चाहिए क्योंकि सरकारी रिपोर्ट ज्यादातर एकपक्षीय ही पाई गई हैं। इसलिए अन्य उपलब्ध स्रोतों से उनकी तुलना करके ही सही तथ्यों तक पहुंचा जा सकता है।

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(2) सरकारी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति – सरकारी स्त्रोतों में वर्णित विवरण सरकार के दृष्टिकोण को ही प्रस्तुत करते हैं।

(3) दूसरे पक्ष को दोषी ठहराना – औपनिवेशिक सरकार ने कभी भी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं किया। उनकी जांच रिपोटों में दूसरे पक्ष को ही दोषी ठहराया गया। उदाहरण के लिए, जब दक्कन में किसानों ने बढ़े हुए राजस्व के विरुद्ध विद्रोह किया तो सरकार ने दंगे का कारण बड़े हुए राजस्व की दर को न मानकर साहूकारों और ऋणदाताओं को विद्रोह के लिए उत्तरदायी ठहराया।

(4) अपनी दमनकारी नीति को न्यायोचित बताना – पहाड़िया लोगों का उन्मूलन करने के लिए जो क्रूरतापूर्ण नीति अपनाई गई, उसके पीछे ब्रिटिश सरकार ने अपने तथ्यों में पहाड़ियों को बर्बर, असभ्य और जंगली घोषित करके उनके दमन को उचित बताया जबकि पहाड़िया आदिवासी थे और बाहरी जगत से अपना सम्पर्क कम से कम रखना चाहते थे।

(5) संथालों के विरुद्ध की गई कार्यवाही को उचित बताना संथालों का विद्रोह भी इसी तथ्य को इंगित करता है। पहले पहाड़ियों का उन्मूलन करने तथा कृषि का विस्तार करने हेतु ब्रिटिश सरकार ने उन्हें छूट देकर बसने हेतु प्रोत्साहित किया। जब उनकी प्रगति होने संगी तो उनके ऊपर भारी कर लगाने शुरू किये संथालों द्वारा इस अन्याय के विरुद्ध किये गये विद्रोह को सरकार ने नृशंसता से कुचला और अपने कृत्य को उचित बताते हुए इंग्लैण्ड के अखबारों में खबरें तथा चित्र प्रकाशित करवाये।

(6) सरकारी सरोकार को व्यक्त करना – दक्कन दंगा आयोग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट भी सरकारी सरोकार को ही प्रतिबिम्बित करती है। दक्कन दंगा आयोग से विशेष रूप से यह पता लगाने को कहा गया था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर विद्रोह का कारण था सम्पूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद आयोग ने सूचित किया कि सरकारी माँग किसानों के गुस्से की वजह नहीं थी। इसमें सारा दोष साहूकारों और ऋणदाताओं का ही था। इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि औपनिवेशिक सरकार यह मानने को कदापि तैयार नहीं थी कि जनता में असंतोष या क्रोध कभी सरकारी कार्यवाही के कारण उत्पन्न हुआ था।

इस तरह सरकारी रिपोर्टों के आधार पर किसानों का सही इतिहास नहीं लिखा जा सकता। सरकारी रिपोर्ट इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, लेकिन उनका प्रयोग करते समय उन्हें सावधानीपूर्वक काम में लेना चाहिए। समाचार-पत्रों, गैर-सरकारी स्रोतों, वैधिक अभिलेखों और यथासम्भव मौखिक साक्ष्यों के साथ उनका भली प्रकार मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच कर फिर उनका उपयोग करना चाहिए।

उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन JAC Class 12 History Notes

→ बंगाल और वहाँ के जमींदार – ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की शुरुआत सबसे पहले बंगाल में हुई। वहाँ ग्रामीण समाज को पुनर्व्यवस्थित करने तथा भूमि सम्बन्धी अधिकारों की नयी व्यवस्था तथा नयी राजस्व प्रणाली स्थापित करने के प्रयत्न किए गए।

→ इस्तमरारी बन्दोबस्त के तहत बर्दवान में की गई नीलामी की एक घटना – 1793 में बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया। इसमें ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को अदा करनी होती थी। जमींदार से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह कम्पनी को नियमित रूप से यह राशि अदा करेगा जो जमींदार समय पर राजस्व अदा नहीं करते थे, उनकी जमींदारियाँ नीलाम कर दी जाती थीं। ऐसी ही एक नीलामी की घटना 1797 में बर्दवान में हुई ।

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→ अदा न किए गए राजस्व की समस्या – इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू होने के बाद लगभग 75% से अधिक जमींदारियाँ नीलाम की गई। ब्रिटिश अधिकारियों का मानना था कि इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू होने से सारी समस्याएँ। हल हो जायेंगी। लेकिन उनकी सोच बेकार हो गई। कारण यह रहा कि बंगाल में बार बार अकाल पड़े, पैदावार कम होती गई। जमींदारों द्वारा समय पर राजस्व जमा नहीं कराया गया जिससे उनकी जमींदारियाँ नीलाम की जाने
लगीं।

→ राजस्व राशि के भुगतान में जमींदारों द्वारा चूक करना-ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों का मानना था कि राजस्व माँग निर्धारित होने से जमींदार स्वयं को सुरक्षित समझकर अपनी सम्पदाओं का विकास करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू होने के बाद कुछ दशकों में जमींदारों द्वारा राजस्व जमा करने में कोताही की जाने लगी और राजस्व की बकाया रकमें बढ़ती गई इस कोताही के कई कारण थे –

  • कम्पनी द्वारा राजस्व की माँग को ऊंचे स्तर पर रखा गया।
  • यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई उस समय उपज की कीमतें नीची थीं, जिससे किसानों के लिए जमींदार को लगान चुकाना मुश्किल था ।
  • राजस्व की दर असमान थी फसल चाहे अच्छी हो या खराब, राजस्व का भुगतान एक निश्चित समय पर ही करना आवश्यक था।
  • जमींदार की शक्ति को सीमित कर दिया गया। उसका कार्य केवल राजस्व वसूलना तथा जमींदारी का प्रबन्ध करना रह गया।

→ जोतदारों का उदय – गाँवों में जोतदारों के एक नये वर्ग का उदय हो गया। यह धनी किसानों से बना था। ये धनी किसान गाँवों में ही रहते थे तथा गरीब किसानों पर अपना नियंत्रण रखते थे ये जमींदार द्वारा लगान बढ़ाने का प्रतिरोध करते थे तथा जमींदारी अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोकते थे उत्तरी बंगाल में जोतदारों की ताकत बहुत बढ़ गई थी जमींदार की सम्पदा नीलाम होने पर कई बार जोतदार ही उसे खरीद लेते थे।

→ जमींदारों की ओर से प्रतिरोध – ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों की सत्ता समाप्त नहीं हुई थी, वे अपनी भू-सम्पदा बचाने के लिए कई हथकण्डे अपनाते थे –

  • फर्जी बिक्री द्वारा जमींदार के एजेन्ट ही नीलामी में भाग लेकर उसे खरीद लेते थे।
  • स्वियों के नाम सम्पत्ति कर दी जाती थी क्योंकि कम्पनी ने ऐसा नियम बनाया था कि स्वियों की सम्पदा को छीना नहीं जायेगा।
  • बाहरी व्यक्ति द्वारा जमींदारी खरीद लेने पर उसे मारपीट कर भगा दिया जाता था।
  • किसान पुराने जमींदार को अपना अन्नदाता मानते थे और जमींदारी की नीलामी को खुद का अपमान मानते थे जिससे जमींदार आसानी से विस्थापित नहीं किए जा सकते थे।
  • 19वीं सदी के प्रारम्भ में कीमतों में मंदी की स्थिति समाप्त होने से जमींदारों ने अपनी सत्ता को पुनः सुदृढ़ बना लिया था। लेकिन 1930 की मंदी में पुनः जमींदार कमजोर हो गये और जोतदार शक्तिशाली हो गए।

→ पाँचवीं रिपोर्ट- सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में कई रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, उन्हीं में से एक रिपोर्ट जो ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत प्रशासन के बारे में थी, ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ कहलाती है। यह रिपोर्ट कम्पनी के कुशासन, अव्यवस्थित प्रशासन, कम्पनी के अधिकारियों के लोभ-लालच और भ्रष्टाचार की घटनाओं को दर्शाती थी।

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18वीं सदी के अन्तिम दशकों में ब्रिटिश सरकार ने कम्पनी को बाध्य किया था कि वह भारत के प्रशासन के बारे में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट भेजे। कम्पनी के कामकाज की जाँच के लिए कई समितियाँ नियुक्त की गई। पाँचवीं रिपोर्ट एक ऐसी ही रिपोर्ट है जो एक प्रवर समिति द्वारा तैयार की गई थी और जो भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के स्वरूप पर ब्रिटिश संसद में गम्भीर वाद-विवाद का आधार बनी। इसमें परम्परागत जमींदारी सत्ता के पतन का अतिरंजित वर्णन है।

II. कुदाल और हल – 19वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में राजमहल की पहाड़ियों में पहाड़िया और संचालों के बीच संघर्ष हुआ पहाड़िया कुदाल से झूम खेती करते थे और संथाल हल जोतकर स्थायी खेती कुदाल और हल इसी के प्रतीक हैं।

(1) राजमहल की पहाड़ियों में पहाड़िया लोगों की स्थिति – उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के वर्षों में बुकानन द्वारा इस क्षेत्र का दौरा किया गया। उसके वर्णन के अनुसार, यहाँ के निवासी पहाड़िया कहलाते थे जो बाहरी व्यक्तियों के प्रति आशंकित रहते थे ये जंगल की भूमि को साफ कर शूम खेती करते थे और कुदाल से जमीन को खुरच अपने खाने लायक अनाज व दालें पैदा कर लेते थे। जंगल से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध था। वे इसे अपनी निजी भूमि मानते थे। यह जमीन व जंगल उनकी पहचान थी। वे बाहरी लोगों के प्रवेश का विरोध करते थे तथा कई बार मैदानों में आकर लूटपाट भी कर लेते थे अंग्रेज इन पहाड़ियों को असभ्य और बर्बर मानकर इनका उन्मूलन करना चाहते थे।

(2) संथाल अगुआ बाशिंदे-सन् 1800 ई. के लगभग संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में आगमन हुआ। इससे पूर्व वे बंगाल में भाड़े के मजदूर के रूप में काम करने आते थे अंग्रेजों ने इन्हें राजमहल की पहाड़ियों में बसने के लिए तैयार कर लिया। 1832 में जमीन के काफी बड़े भू-भाग को ‘दामिन-इ-कोह’ के रूप में सीमांकित करके उसे संथाल भूमि घोषित कर दिया गया। दामिन-इ-कोह के सीमांकन के बाद संथालों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। संथालों और पहाड़िया लोगों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें संथाल विजयी रहे।

उन्होंने पहाड़िया लोगों को पहाड़ियों के भीतर की ओर चले जाने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें ऊपरी पहाड़ियों के चट्टानी और अधिक बंजर इलाकों तथा भीतरी शुष्क भागों तक सीमित कर दिया गया। इससे उनके रहन-सहन पर बुरा प्रभाव पड़ा और वे आगे चलकर गरीब हो गये। संथालों ने स्थायी कृषि शुरू की, लेकिन सरकार संथालों की जमीन पर भारी कर लगाने लगी; साहूकार लोग ऊँची ब्याज पर ऋण दे रहे थे और कर्ज अदा न किए जाने पर उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे थे। तीसरे, जमींदार लोग उनके इलाके पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे। फलतः 1850 तक संथालों ने ब्रिटिश राज्य के प्रति विद्रोह करने का मानस बनाया। 1855-56 के संथाल विद्रोह के बाद संथाल परगने का निर्माण किया गया।

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III. देहात में विद्रोह (बम्बई दक्कन ) उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य भारत के विभिन्न प्रान्तों में किसानों द्वारा साहूकारों तथा अनाज के व्यापारियों के विरुद्ध अनेक विद्रोह किए गए। ऐसा ही एक विद्रोह 1875 में दक्कन में हुआ।

(1) बहीखाते जलाना-2 मई, 1875 को पूना जिले के सूपा गाँव में किसानों ने साहूकारों पर हमला कर ऋणबन्धों तथा बहीखातों को जला दिया। साहूकारों के परों में आग लगा दी। पुणे से यह विद्रोह अहमदनगर तक फैल गया तथा 6500 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। विद्रोह दबाने में कई महीने लगे।

(2) नई राजस्व प्रणाली – इस्तमरारी बन्दोबस्त बंगाल से बाहर बहुत कम लागू किया गया। 1810 में खेती की कीमतों तथा उपज के मूल्यों में वृद्धि हुई लेकिन कम्पनी का राजस्व नहीं बढ़ा क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के कारण कम्पनी राजस्व नहीं बढ़ा सकती थी इसलिए कम्पनी ने राजस्व बढ़ाने के नये तरीके ढूँढ़े। जो राजस्व प्रणाली बम्बई में लागू की गई, वह रैयतवाड़ी कहलायी क्योंकि इसे कम्पनी और रैयत (किसान) के मध्य तय किया गया। यह प्रणाली 30 वर्ष के लिए लागू की गई 30 वर्ष बाद इसमें परिवर्तन हो सकता था।

(3) राजस्व की माँग और किसान का कर्ज – बम्बई दक्कन में पहला राजस्व बन्दोबस्त 1820 के दशक में किया गया। राजस्व अधिक होने के कारण किसान गाँव छोड़कर भाग गये। राजस्व कठोरता से वसूला गया, जुर्माने ठोके गये। 1832 ई. के पश्चात् कीमतों में आई तीव्र गिरावट, अकाल आदि के कारण किसानों की स्थिति और दयनीय हो गई किसानों को साहूकारों से ऋण लेकर अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ती थी। उन्हें हल-बैल और बीज के लिए साहूकारों से ऋण लेना पड़ा, लेकिन राजस्व की बकाया राशियाँ आसमान छू रही थीं। 1840 के दशक में कम्पनी के अधिकारियों को भी इसका बोध हुआ तो उन्होंने राजस्व सम्बन्धी माँग को कुछ हल्का किया।

(4) कपास में तेजी – 1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कच्चे माल के रूप में आयात की जाने वाली समस्त कपास का तीन-चौथाई भाग अमेरिका से आता था। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना हुई, 1859 में मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी बनाई गई 1861 में अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ने के कारण कपास के आयात में भारी गिरावट आई। बम्बई के कपास के सौदागरों द्वारा शहरी साहूकारों को अधिक से अधिक अग्रिम राशियाँ दी गई ताकि वे भी ग्रामीण ऋणदाताओं को अधिकाधिक मात्रा में ऋण दे सकें। सौदागरों द्वारा 1862 तक ब्रिटेन के आयात की कपास का 900% भारत से जाता था लेकिन इसका लाभ कुछ धनी किसानों को ही हुआ, शेष किसान कर्ज के बोझ से दब गये।

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(5) ऋण नहीं मिलना अमेरिका में गृह युद्ध समाप्त होने पर कपास का उत्पादन पुनः होने पर ब्रिटेन को भारत से निर्यात कम हो गया। साहूकारों ने किसानों को ऋण देना बन्द कर दिया। एक ओर ऋण का सोत सूख गया, दूसरी ओर राजस्व की दर 50 से 100% बढ़ गई जिसे चुकाना किसानों के वंश के बाहर हो गया।

(6) अन्याय का अनुभव- किसानों ने यह अनुभव किया कि ऋणदाता उनके साथ अन्याय कर रहा है। वह संवेदनहीन होकर देहात की प्रथाओं का उल्लंघन कर रहा है। ब्याज की दरें कई गुना बढ़ा दी गई 100 रु. के मूलधन पर 2000 रु. व्याज वसूला गया। ऋण चुकता होने पर भी रसीद नहीं दी जाती थी। बन्धपत्रों में जाली आँकड़े भरे जाते थे बिना दस्तावेजों के किसान को ऋण नहीं मिलता था।

IV. दक्कन दंगा आयोग – दक्कन में दंगा शुरू होने पर बम्बई सरकार ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। भारत सरकार द्वारा दबाव डालने पर बम्बई सरकार ने एक आयोग की स्थापना की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि दंगे के लिए साहूकार एवं ऋणदाता ही उत्तरदायी थे सरकारी राजस्व की बढ़ोतरी दंगा फैलने का कारण नहीं थी औपनिवेशिक सरकार कभी यह मानने को तैयार नहीं थी कि जनता में असंतोष सरकारी कार्यवाही के कारण उत्पन्न हुआ। रिपोर्टों की विश्वसनीयता ये सरकारी रिपोर्ट थीं इस प्रकार की रिपोर्टों का अध्ययन सावधानी के साथ करना चाहिए तथा अन्य स्रोतों से इनका मिलान करके ही उनकी विश्वसनीयता पर विश्वास करना चाहिए।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत Textbook Exercise Questions and Answers.

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Jharkhand Board Class 12 History संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 413

प्रश्न 1.
उद्देश्य प्रस्ताव में ‘लोकतांत्रिक’ शब्द का इस्तेमाल न करने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने क्या कारण बताया था?
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव में ‘लोकतांत्रिक’ शब्द के इस्तेमाल न करने के पीछे नेहरूजी ने जो कारण बताया वह इस प्रकार है— नेहरूजी ने कहा कि कोई गणराज्य लोकतांत्रिक न हो ऐसा नहीं हो सकता, हमारा पूरा इतिहास इस बात का साक्षी है कि हम लोकतांत्रिक संस्थानों के ही पक्षधर हैं। हमारा लक्ष्य लोकतंत्र ही है। यद्यपि इस प्रस्ताव में हमने लोकतांत्रिक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है क्योंकि हमें लगा कि यह तो स्वाभाविक ही है कि ‘गणराज्य’ शब्द में लोकतांत्रिक शब्द पहले ही निहित होता है। इसलिए हम अनावश्यक और अनुपयोगी शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहते थे। हमने इस प्रस्ताव में लोकतंत्र की अंतर्वस्तु प्रस्तुत की है बल्कि लोकतंत्र की ही नहीं आर्थिक लोकतंत्र की अन्तर्वस्तु भी प्रस्तुत की है।

पृष्ठ संख्या 415

प्रश्न 2.
स्रोत दो में वक्ता को ऐसा क्यों लगता है कि संविधान सभा ब्रिटिश बंदूकों के साये में काम कर रही है?
उत्तर:
वक्ता सोमनाथ लाहिड़ी को ऐसा इसलिए लगता था कि संविधान ब्रिटिश योजना के अनुसार बना है और मामूली मतभेद के लिए भी उसे संघीय न्यायालय में अथवा ब्रिटिश प्रधानमंत्री के द्वार पर दस्तक देनी होगी। हमारा भविष्य अभी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। मूल रूप से सत्ता अभी भी अंग्रेजों के हाथ में है और सत्ता का प्रश्न बुनियादी तौर पर अभी तक तय नहीं हुआ है जिसका अर्थ यह निकलता है कि हमारा भविष्य अभी भी पूरी तरह हमारे हाथों में नहीं है।

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पृष्ठ संख्या 416 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 3.
जवाहरलाल नेहरू ने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर अपने भाषण में कौनसे विचार पेश किए?
उत्तर:
जवाहरलाल नेहरू ने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर निम्न विचार अपने भाषण में पेश किए-

  • भारत एक स्वतन्त्र सम्प्रभु गणराज्य होगा।
  • अल्पसंख्यक, पिछड़ों तथा जनजातियों को सभी अधिकार मिलेंगे।
  • भारतीय संविधान में सिर्फ नकल नहीं होगी।
  • भारतीय संविधान का उद्देश्य यह होगा कि लोकतन्त्र के उदारवादी विचारों तथा आर्थिक न्याय के समाजवादी विचारों का एक-दूसरे में समावेश किया जायेगा।

पृष्ठ संख्या 418

प्रश्न 4.
स्रोत तीन व चार को पढ़िए पृथक् निर्वाचिकाओं के विरोध में कौन-कौन से तर्क दिए गए हैं?
उत्तर:
स्रोत 3 व 4 में पृथक् निर्वाचिकाओं के विरोध में निम्नलिखित तर्फ दिए गए हैं-

  • सरदार पटेल ने कहा, “क्या आप मुझे एक भी स्वतंत्र देश दिखा सकते हैं जहाँ पृथक् निर्वाचिका हो? अर्थात् स्वतंत्र देश में पृथक् निर्वाचिका की जरूरत नहीं है।”
  • वह सभी के भले के लिए है कि हम अंग्रेजों द्वारा बोए गए शरारत के बीजों को भूलकर इससे बाहर निकलने की सोचें।
  • गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा कि मेरा मानना है कि पृथक् निर्वाचिका अल्पसंख्यकों के लिए आत्मघाती सिद्ध होगी और उन्हें भारी नुकसान पहुँचाएगी। वे हमेशा के लिए अलग बने रहेंगे, कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन पाएंगे।
  • अगर अल्पसंख्यक पृथक निर्वाचिकाओं से जीत कर आते रहे तो कभी भी प्रभावी योगदान नहीं दे पाएँगे।
  • क्या अल्पसंख्यक हमेशा अल्पसंख्यकों के रूप में ही रहना चाहते हैं या वे भी एक दिन एक महान् राष्ट्र का अभिन्न अंग बनने का सपना देखते हैं?

पृष्ठ संख्या 419

प्रश्न 5.
जी. बी. पंत निष्ठावादी नागरिकों के अभिलक्षणों को कैसे परिभाषित करते हैं?
उत्तर:
जी.बी. पंत ने निष्ठावान नागरिकों के निम्नलिखित अभिलक्षण बताए है –

  • व्यक्ति को आत्म-अनुशासन की कला सीखनी चाहिए।
  • लोकतंत्र में व्यक्ति को अपने लिए कम तथा दूसरों के लिए अधिक चिन्ता करनी चाहिए।
  • हमारी सारी निष्ठाएँ केवल राज्य पर केन्द्रित होनी चाहिए।
  • यदि व्यक्ति अपने अपव्यय पर अंकुश लगाने की बजाय दूसरों के हितों की तनिक भी चिन्ता नहीं करता, तो ऐसा लोकतंत्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है।

पृष्ठ संख्या 420

प्रश्न 6.
रंगा द्वारा ‘अल्पसंख्यक’ की अवधारणा को किस तरह परिभाषित किया गया है?
उत्तर:

  • एन. जी. रंगा के अनुसार तथाकथित पाकिस्तानी प्रान्तों में रहने वाले हिन्दू, सिख और यहाँ तक मुसलमान भी अल्पसंख्यक नहीं हैं।
  • असली अल्पसंख्यक तो इस देश की गरीब जनता है जो इतनी दबी-कुचली और उत्पीड़ित है जो अभी तक साधारण नागरिक के अधिकारों का लाभ नहीं उठा पा रही है।
  • असली अल्पसंख्यक वे आदिवासी हैं जिनका सदियों से व्यापारियों, जमींदारों और सूदखोरों द्वारा शोषण किया जा रहा है। इन लोगों को मूलभूत शिक्षा तक नहीं मिल पा रही है असली अल्पसंख्यक यही लोग हैं जिन्हें वास्तव में सुरक्षा का आश्वासन मिलना चाहिए।

पृष्ठ संख्या 422 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
आदिवासियों के लिए सुरक्षात्मक उपायों की माँग करते हुए जयपाल सिंह कौन-कौनसे तर्क देते हैं?
उत्तर:
आदिवासियों के लिए सुरक्षात्मक उपायों की माँग करते हुए जयपाल सिंह तर्क देते हैं कि आदिवासी कबीले संख्या के दृष्टिकोण से अल्पसंख्यक नहीं है, परन्तु उन्हें फिर भी संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें वहाँ से बेदखल कर दिया गया है जहाँ वे रहते थे। उन्हें उनके जंगल और चरागाहों से दूर कर दिया गया है। इन्हें आदिम और पिछड़ा हुआ मानकर शेष समाज हेय दृष्टि से देखता है।

पृष्ठ संख्या 425

प्रश्न 8.
एक शक्तिशाली केन्द्र सरकार की हिमायत में क्या दलीलें दी जा रही थीं?
उत्तर:
(1) डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि वह एक शक्तिशाली और एकीकृत केन्द्र चाहते हैं। 1935 के गवर्नमेन्ट एक्ट में हमने जो केन्द्र बनाया था, उससे भी अधिक शक्तिशाली केन्द्र चाहते हैं।

(2) देश में हो रही हिंसात्मक घटनाओं पर नियन्त्रण करने के लिए शक्तिशाली केन्द्र होना चाहिए।

(3) बालकृष्ण शर्मा का कहना था कि शक्तिशाली केन्द्र का होना आवश्यक है ताकि वह देशहित में योजनाएँ बना सके, उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटा सके, उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सके और विदेशी आक्रमणों से देश की रक्षा कर सके।

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उत्तर दीजिए ( लगभग 100 से 150 शब्दों में )

प्रश्न 1.
‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में किन आदर्शों पर जोर दिया गया था?
उत्तर:
13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई तथा फ्रेमवर्क सुझाया जिसके तहत संविधान का कार्य आगे बढ़ाना था। बंधा-

  • इसमें भारत को एक ‘स्वतन्त्र सम्प्रभु गणराज्य’ घोषित किया गया।
  • इसमें समस्त नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय का आश्वासन दिया गया।
  • इसमें इस बात पर भी बल दिया गया कि अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों एवं दमित व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान किए जाएंगे।
  • इसी अवसर पर नेहरू ने बोलते हुए कहा कि उनकी दृष्टि अतीत में हुए उन ऐतिहासिक प्रयोगों की ओर जा रही है जिनमें अधिकारों के ऐसे दस्तावेज तैयार किए गए थे।
  • नेहरू ने कहा कि भारतीय संविधान का उद्देश्य होगा-लोकतंत्र के उदारवादी विचारों और आर्थिक न्याय के समाजवादी विचारों का एक-दूसरे में समावेश करें तथा भारतीय संदर्भ में इनकी रचनात्मक व्याख्या करें।

प्रश्न 2.
विभिन्न समूह’ अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे?
उत्तर:
सामान्यतः अल्पसंख्यक शब्द से हमारा तात्पर्य राष्ट्र की कुल जनसंख्या में किसी वर्ग अथवा समुदाय के कम अनुपात से है परन्तु अलग-अलग लोगों ने अपने- अपने ढंग से अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित किया है, जो इस प्रकार हैं –

  1. मद्रास के बी. पोकर बहादुर के अनुसार मुसलमान अल्पसंख्यक थे, क्योंकि मुसलमानों की आवश्यकताओं को गैर-मुसलमान अच्छी प्रकार से नहीं समझ सकते, न ही अन्य समुदायों के लोग मुसलमानों का कोई सही प्रतिनिधि चुन सकते हैं।
  2. कुछ लोग दमित वर्ग के लोगों को हिन्दुओं से अलग करके देख रहे थे, और उनके लिए अधिक स्थानों का आरक्षण चाह रहे थे।
  3. एन. जी. रंगा के अनुसार असली अल्पसंख्यक गरीब और दबे-कुचले लोग थे रंगा आदिवासियों को अल्पसंख्यक मानते थे। उनका शोषण व्यापारियों, जमींदारों तथा सूदखोरों द्वारा किया जा रहा था। जयपालसिंह ने भी आदिवासियों को अल्पसंख्यक बताया।
  4. एन. जी. रंगा के अनुसार अल्पसंख्यक तथाकथित पाकिस्तानी प्रान्तों में रहने वाले हिन्दू, सिख और यहाँ तक मुसलमान भी अल्पसंख्यक नहीं हैं असली अल्पसंख्यक इस देश की जनता है; यह जनता इतनी दमित, उत्पीड़ित और कुचली हुई है कि अभी तक साधारण नागरिक को मिलने वाले लाभ भी नहीं उठा रही है।

प्रश्न 3.
प्रांतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए?
उत्तर:
राज्यों के अधिकारों की सबसे शक्तिशाली हिमायत मद्रास के सदस्य के संतनम ने प्रस्तुत की। उन्होंने प्रान्तों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए –
(1) उन्होंने कहा कि न केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को ताकतवर बनाने के लिए शक्तियों का पुनर्वितरण आवश्यक है। यदि केन्द्र के पास जरूरत से ज्यादा शक्तियाँ होंगी तो वह प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पाएगा। उसके कुछ दायित्वों को कम करने से और उन्हें राज्यों को सौंप देने से केन्द्र ज्यादा मजबूत हो सकता है।

(2) संतनम का दूसरा तर्क यह था कि शक्तियों का मौजूदा वितरण उन्हें पंगु बना देगा। राजकोषीय प्रावधान प्रांतों को खोखला कर देगा क्योंकि भू-राजस्व के अलावा ज्यादातर कर केन्द्र सरकार के अधिकार में दे दिए गए हैं। यदि पैसा ही नहीं होगा तो राज्यों में विकास परियोजनाएँ कैसे चलेंगी।

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(3) संतनम ने एक और तर्क देते हुए कहा कि अगर पर्याप्त जाँच-पड़ताल किए बिना शक्तियों का प्रस्तावित वितरण लागू कर दिया गया तो हमारा भविष्य अंधकार में पढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ ही सालों में सारे प्रान्त केन्द्र के विरुद्ध उठ खड़े होंगे। उड़ीसा के एक सदस्य के अनुसार बेहिसाब केन्द्रीकरण के कारण केन्द्र बिखर जाएगा।

प्रश्न 4.
महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?
अथवा
महात्मा गाँधी हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा क्यों बनाना चाहते थे? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम है। इसलिए किसी भी देश में राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करने हेतु एक भाषा का होना आवश्यक है। भारत बहुभाषी देश है। यहाँ विभिन्न संस्कृतियों को आश्रय प्राप्त है, इसलिए यहाँ अनेक भाषाएं बोली जाती हैं।

भाषा के सन्दर्भ में गाँधीजी का मानना था –
(1) महात्मा गाँधी का मानना था कि हिन्दुस्तानी भाषा हिन्दी और उर्दू के मेल से बनी है और यह भारतीय जनता के बहुत बड़े हिस्से की भाषा थी। यह भाषा विविध संस्कृतियों के आदान- प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा थी।

(2) समय बीतने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के स्रोतों से नये-नये शब्द और अर्थ हिन्दुस्तानी भाषा में समाविष्ट होते गए और उसे विभिन्न क्षेत्रों के बहुत सारे लोग समझने लगे।

(3) महात्मा गाँधी ने महसूस किया कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के बीच संचार की आदर्श भाषा बन सकती है। यह हिन्दुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है। इन सभी कारणों से गाँधीजी हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा बनाना चाहते थे।

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निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिये (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 5.
वे कौन सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का रूप तय किया?
उत्तर:
संविधान का रूप तय करने वाली ताकतें संविधान का रूप तय करने वाली प्रमुख ऐतिहासिक ताकतें निम्नलिखित –
(1) काँग्रेस पार्टी काँग्रेस पार्टी देश की एक प्रमुख राजनीतिक ताकत थी जिसने देश के संविधान को लोकतांत्रिक गणराज्य, धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने में भूमिका अदा की थी। संविधान सभा में लगभग 82 प्रतिशत सदस्य कॉंग्रेस पार्टी के थे। कांग्रेस पार्टी में विभिन्न वैचारिक धाराएँ कार्य कर रही थीं।

कॉंग्रेस के तीन सदस्यों की प्रमुख भूमिका रही। ये सदस्य थे- जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद पं. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान के ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ को पेश किया तथा भारत के राष्ट्रीय ध्वज की |रूप-रेखा भी निर्धारित की थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कई रिपोर्टों के प्रारूप लिखने में विशेष सहायता की और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

(2) दलित वर्ग जो नेता दलितों या हरिजनों के पक्षधर थे उन्होंने संविधान को कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समानता व न्याय दिलाने वाला, आरक्षण की व्यवस्था करने वाला, छुआछूत को मिटाने वाला स्वरूप प्रदान करने में योगदान दिया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया।

(3) वामपंथी विचारधारा-जिन समुदायों या राजनैतिक दलों पर वामपंथी विचारों या समाजवादी विचारों का प्रभाव था, उन्होंने संविधान में समाजवादी ढाँचे के अनुसार सरकार बनाने, भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने और धीरे-धीरे समान काम के लिए समान वेतन, बंधुआ मजदूरी समाप्त करने, जमींदारी उन्मूलन आदि की व्यवस्थाएँ करने के लिए वातावरण या संवैधानिक व्यवस्थाएँ तय करने में योगदान दिया।

(4) आदिवासियों के प्रतिनिधि- आदिवासियों से सम्बन्धित नेताओं ने संविधान सभा में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आदिवासियों के साथ अनेक वर्षों से ब्रिटिश सरकार, जमींदारों, सूदखोरों और साहूकारों ने सही व्यवहार नहीं किया। आदिवासी नेता पृथक् निर्वाचिका बनाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन विधायिका में आदिवासियों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था को आवश्यक समझते थे।

(5) लोगों की आकांक्षा की अभिव्यक्ति पं. नेहरू ने कहा था कि सरकार जनता की इच्छा को अभिव्यक्ति होती है। हमारे पास जनता की शक्ति है। हम उतनी दूर तक ही जायेंगे, जितनी दूर तक लोग हमें ले जाना चाहेंगे। सविधान सभा उन लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन मानी जा रही थी जिन्होंने स्वतन्त्रता के आन्दोलनों में भाग लिया। लोकतन्त्र, समानता तथा न्याय जैसे आदर्श 19वीं शताब्दी से भारत में स्वमाजिक संघर्षो के साथ गहरे तौर पर जुड़ चुके थे। इस प्रकार समाज सुधारकों ने सामाजिक न्याय पर तथा धार्मिक सुधारकों ने धर्मों को न्यायसंगत बनाने पर बल दिया।

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(6) जनमत-संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से भी प्रभावित होती थीं जब संविधान सभा में बहस होती थी तो विभिन्न पक्षों की दलीलें अखबारों में भी छपती थीं और तमाम प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी। इस तरह प्रेस में होने वाली इस आलोचना और जवाबी आलोचना से किसी मुद्दे पर बनने वाली सहमति या असहमति पर गहरा असर पड़ता था सामूहिक सहभागिता बनाने के लिए जनता के सुझाव भी आमंत्रित किए जाते थे।

प्रश्न 6.
दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
दमित समूहों (जातियों) की सुरक्षा के लिए बहुत सारे दावे किये गए जो निम्नानुसार हैं –
(1) पृथक निर्वाचिका की माँग राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दमित या दलित जातियों के लिए पृथक् निर्वाचिका की माँग की थी जिसका गाँधीजी ने यह कहते हुए विरोध किया था कि ऐसा करने से यह समुदाय स्थायी रूप से कट जाएगा।

(2) संरक्षण और बचाव संविधान सभा में मौजूद दमित जातियों के सदस्यों का आग्रह था कि अस्पृश्यों अछूतों की समस्या को केवल संरक्षण और बचाव के द्वारा हल नहीं किया जा सकता। उनकी अपंगता के पीछे जाति विभाजित समाज के सामाजिक कायदे-कानूनों और नैतिक मूल्य-मान्यताओं का हाथ है। समाज ने उनकी सेवाओं और श्रम का इस्तेमाल किया है परन्तु उन्हें सामाजिक तौर पर स्वयं से दूर रखा है, अन्य जातियों के लोग उनके साथ घुलने-मिलने से कतराते हैं, उनके साथ भोजन नहीं करते और उन्हें मन्दिरों में प्रवेश से रोका जाता है।

(3) कष्ट उठाने को तैयार नहीं-मद्रास के सदस्य जे. नागप्पा ने कहा था, “हम सदा कष्ट उठाते रहे हैं पर अब और कष्ट उठाने को तैयार नहीं हैं। हमें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया है, हमें मालूम है कि अपनी बात कैसे मनवानी है।” नागप्पा ने दूसरा तर्क दिया कि हरिजन अल्पसंख्यक नहीं है आबादी में उनका हिस्सा 20-25 प्रतिशत है। उनकी पीड़ा का कारण यह है कि उन्हें बाकायदा समाज व राजनीति के हाशिए पर रखा गया है उसका कारण उनकी संख्यात्मक महत्वहीनता नहीं है। उनके पास न तो शिक्षा तक पहुँच थी और न ही शासन में हिस्सेदारी।

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(4) हजारों साल तक दमन-मध्य प्रान्त के सदस्य के. जे. खांडेलकर ने कहा था “हमें हजारों साल तक दबाया गया है। …इस हद तक दबाया गया कि हमारे दिमाग, हमारी देह काम नहीं करती और अब हमारा हृदय भी भावशून्य हो चुका है। न ही हम आगे बढ़ने लायक रह गए हैं। यही हमारी स्थिति हैं।”

(5) अस्पृश्यता का उन्मूलन – भारत को स्वतंत्रता मिलने तथा देश के विभाजन के बाद डॉ. अम्बेडकर ने दमित वर्ग के लिए पृथक् निर्वाचिका को माँग छोड़ दी थी। उन्होंने संविधान के द्वारा अस्पृश्यता उन्मूलन किए जाने और मन्दिरों के द्वार सभी के लिए खोल दिए जाने व तथाकथित निम्न जाति कहे जाने वालों के लिए विद्याविकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिए जाने का समर्थन किया। बहुत सारे लोगों का मानना था कि इससे भी समस्त समस्याओं का समाधान नहीं हो सकेगा। सामाजिक भेदभाव को केवल संवैधानिक कानून पारित करके समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज की सोच में परिवर्तन लाना होगा। परन्तु लोकतान्त्रिक जनता ने इन प्रावधानों का स्वागत किया।

प्रश्न 7.
संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच क्या सम्बन्ध देखा?
उत्तर:
तत्कालीन परिस्थितियाँ और मजबूत केन्द्र की आवश्यकता –
संविधान सभा के कुछ सदस्यों द्वारा तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों में ताकतवर केन्द्रीय सरकार की वकालत की गई। उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच निम्नलिखि सम्बन्ध देखा –

(1) शान्ति स्थापित करने, आम सरोकारों के बी समन्वय स्थापित करने तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर देश की आवाज उठाने के लिए मजबूत केन्द्र की आवश्यकत पर बल-जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन परिस्थितियों शक्तिशाली केन्द्र सरकार की आवश्यकता पर बल देते हु संविधान सभा के अध्यक्ष के नाम लिखे पत्र में कहा कि “अब जबकि विभाजन एक हकीकत बन चुका है.. एक दुर्बल केन्द्रीय शासन की व्यवस्था देश के लिए हानिकारक होगी क्योंकि ऐसा केन्द्र शान्ति स्थापित करने में, आम सरोकारों के बीच समन्वय स्थापित करने में औ- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश के लिए आवाज उठाने सक्षम नहीं होगा।”

(2) सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता- डॉ. अम्बेडकर अन्य अनेक सदस्यों ने सड़कों पर हो रही जिस हिंसा के कारण देश टुकड़े-टुकड़े हो रहा था, उसका हवाला देते हुए बार-बार यह कहा कि केन्द्र की शक्तियों में भारी इजाफा होना चाहिए ताकि वह सांप्रदायिक हिंसा को रोक सके डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि 1935 के गवर्नमेन्ट एक्ट में हमने जो केन्द्र बनाया था, उससे भी ज्यादा शक्तिशाली केन्द्र हम चाहते हैं।

(3) योजना बनाने, आर्थिक संसाधनों को जुटाने तथा देश को विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता संयुक्त प्रान्त के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला कि एक शक्तिशाली केन्द्र का होना जरुरी है ताकि वह देश के हित में योजना बना सके उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटा सके, एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सके और देश को विदेशी आक्रमण से बचा सके।

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(4) प्रान्तीय स्वायत्तता के लिए विभाजन के बाद, राजनैतिक दबाव का कम होना विभाजन से पहले काँग्रेस ने प्रान्तों को काफी स्वायत्तता देने पर अपनी सहमति व्यक्त की थी कुछ हद तक यह मुस्लिम लीग को इस बात का भरोसा दिलाने की कोशिश थी कि जिन प्रान्तों में लीग की सरकार बनी है, यहाँ दखलंदाजी नहीं की जाएगी। लेकिन विभाजन के बाद अब एक विकेन्द्रीकृत संरचना के लिए पहले जैसे राजनैतिक दबाव नहीं रह गये थे इसलिए राष्ट्रवादियों ने अब शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता पर बल दिया।

(5) उस समय विद्यमान एकल राजनीतिक व्यवस्था- औपनिवेशिक शासन द्वारा थोपी गई एकल राजनैतिक व्यवस्था पहले से ही मौजूद थी। उस जमाने में हुई घटनाओं व से केन्द्रीयतावाद को बढ़ावा मिला जिसे अब अफरा-तफरी T पर अंकुश लगाने तथा देश के आर्थिक विकास की योजना बनाने के लिए और भी जरूरी माना जाने लगा।

प्रश्न 8.
संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला ?
अथवा
संविधान सभा ने भाषा विवाद को किस प्रकार सुलझाने का प्रयास किया?
अथवा
संविधान सभा ने भाषा के विवाद को किस प्रकार हल किया? व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
संविधान सभा में भाषा के सुवाल को लेकर कई महीनों तक गरमागरम बहस हुई और कई बार काफी तनाव भी उत्पन्न हुआ। भारत एक बहुभाषी देश है, हर प्रान्त की अपनी-अपनी अलग भाषा है। ऐसे में राष्ट्रभाषा किसे बनाया जाए, यह मुद्दा बहुत ही पेचीदा था।

(1) काँग्रेस व गाँधीजी द्वारा हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने का विचार बीसवीं शताब्दी के तीस के दशक तक कांग्रेस पार्टी ने यह मान लिया था कि हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। महात्मा गाँधी का मानना था कि हरेक को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे सभी लोग आसानी से समझ सकें हिन्दी व उर्दू के मेल से बनी हिन्दुस्तानी भारतीय जनता के एक बहुत बड़े हिस्से द्वारा बोली व समझी जाती थी और यह विभिन्न संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा थी। जैसे-जैसे समय बीता कई प्रकार के स्रोतों से नए- नए शब्द व अर्थ इसमें समाते गए और उसे विभिन्न क्षेत्रों के बहुत सारे लोग समझने लगे। गाँधीजी को लगता था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के संचार की आदर्श भाषा हो सकती है वह हिन्दू-मुसलमानों तथा उत्तर-दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है।

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(2) हिन्दुस्तानी का परिवर्तित रूप तथा हिन्दी और उर्दू की बढ़ती दूरियाँ उन्नीसवीं सदी के आखिर से एक भाषा के रूप में हिन्दुस्तानी में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा था। जैसे-जैसे सांप्रदायिक टकराव गहराते गए हिन्दी व उर्दू के बीच दूरियाँ बढ़ती गई। एक ओर तो हिन्दी से अरबी- फारसी के शब्दों को निकाल कर उसे संस्कृतनिष्ठ बनाने की कोशिश की जा रही थी तो दूसरी तरफ उर्दू लगातार फारसी के निकट होती जा रही थी। परिणाम यह निकला कि भाषा भी धार्मिक पहचान की राजनीति का हिस्सा बन गई। लेकिन हिन्दुस्तानी के साझा चरित्र में गाँधीजी की आस्था कम नहीं हुई।

(3) आर.वी. धुलेकर का हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने पर जोर देना – संयुक्त प्रान्त के सदस्य आर.वी. धुलेकर का विचार था कि संविधान को लिखने की भाषा भी हिन्दी ही होनी चाहिए। इस पर कई सदस्यों ने एतराज किया कि संविधान सभा के सभी सदस्यों को हिन्दी नहीं आती। इसका धुलेकर ने जवाब दिया कि “इस सदन में जो लोग भारत का संविधान रचने बैठे हैं और हिन्दुस्तानी नहीं जानते वे इस सभा के पात्र नहीं हैं। उन्हें चले जाना चाहिये।” धुलेकर की टिप्पणी से सभा में हंगामा खड़ा हो गया, नेहरूजी के हस्तक्षेप के बाद शान्त हुआ। लेकिन भाषा का सवाल अगले तीन साल तक बार-बार कार्यवाहियों में बाधा पैदा करता रहा।

(4) भाषा समिति की रिपोर्ट संविधान सभा की भाषा समिति ने हिन्दी के समर्थकों व विरोधियों के बीच पैदा गतिरोध को तोड़ने हेतु एक फार्मूला प्रस्तुत किया। समिति ने सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भारत की राजकीय भाषा होगी। परन्तु इस फार्मूले को समिति ने घोषित नहीं किया था। समिति का मानना था कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए। पहले 15 साल तक सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा। प्रत्येक प्रान्त को अपने कामकाज हेतु कोई एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार होगा।

संविधान सभा की भाषा समिति ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा की बजाय राजभाषा कहकर विभिन्न पक्षों की भावनाओं को शान्त करने और सर्व स्वीकृत समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया था। आखिर में कुछ सदस्यों ने जिनमें दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, मद्रास आदि के सदस्य थे, ने कहा कि हिन्दी के लिए जो कुछ भी किया जाए, बड़ी सावधानी से किया जाए तभी इस भाषा का भला हो पायेगा। सभी सदस्यों ने हिन्दी की हिमायत को तो स्वीकार किया लेकिन उसके वर्चस्व को अस्वीकार कर दिया।

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संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत JAC Class 12 History Notes

→ भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया और यह दुनिया का सबसे लंबा संविधान है। भारत के संविधान को दिसम्बर, 1946 से दिसम्बर, 1949 के बीच सूत्रबद्ध किया गया। सविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए, जिनमें 165 दिन बैठकों में गए। सत्रों के बीच-बीच विभिन्न समितियाँ और उपसमितियाँ मसविदे को सुधारने एवं संवारने का काम करती थीं।

→ उथल-पुथल का दौर-संविधान निर्माण के पहले के वर्ष काफी उथल-पुथल वाले थे। यह महान् आशाओं का क्षण भी था और भीषण मोहभंग का भी 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद तो कर दिया गया किन्तु इसके साथ ही इसे विभाजित भी कर दिया गया। लोगों की स्मृति में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन, सुभाष चन्द्र बोस के स्वतंत्रता के प्रयास, शाही भारतीय नौसेना का विद्रोह अभी भी जीवित थे देश के विभिन्न भागों में मजदूरों व किसानों के आन्दोलन जारी थे।

→ व्यापक हिन्दू-मुस्लिम एकता इन जन आन्दोलनों का एक अहम पहलू था इसके विपरीत काँग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों प्रमुख राजनीतिक दल धार्मिक सौहार्द और सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने के लिए सुलह- सफाई की कोशिशों में असफल होते जा रहे थे। अगस्त, 1946 में कलकत्ता में शुरू हुई हिंसा उत्तर और पूर्वी भारत में फैल गई थी। इसके साथ ही देश के विभाजन की घोषणा हुई और असंख्य लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे। इससे शरणार्थियों की समस्या खड़ी हो गई थी।

121 नवजात राष्ट्र के सामने इतनी गंभीर एक और समस्या देशी रियासतों को लेकर थी। ब्रिटिश राज के दौरान उपमहाद्वीप का लगभग एक तिहाई भूभाग ऐसे नवाबों और रजवाड़ों के नियन्त्रण में था जो ब्रिटिश ताज की अधीनता स्वीकार कर चुके थे स्वतंत्रता की घोषणा के बाद कुछ महाराजा तो बहुत सारे टुकड़ों में बँटे भारत में स्वतंत्र सत्ता का सपना देख रहे थे इन देशी रियासतों की भारत राज्य में एकीकरण की समस्या सामने थी।

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→ संविधान सभा का गठन –
(क) संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव 1946 के प्रांतीय चुनावों के आधार पर किया गया था। संविधान सभा में ब्रिटिश भारतीय प्रांतों द्वारा भेजे गए सदस्यों के अतिरिक्त रियासतों के प्रतिनिधि भी शामिल थे उन्हें इसलिए शामिल किया गया था क्योंकि ये राज्य एक-एक करके भारतीय संघ में शामिल हो चुके थे मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया तथा एक अन्य संविधान बनाकर उसने पाकिस्तान की माँग जारी रखी।

समाजवादी भी शुरुआत में संविधान सभा से परे रहे जिसके कारण उस दौर में संविधान सभा एक ही पार्टी का समूह बनकर रह गई थी और संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य काँग्रेस पार्टी के सदस्य थे। लेकिन सभी कांग्रेस सदस्य एकमत नहीं थे। वे समाजवादी, जमींदारी के पक्षधर तथा धर्मनिरपेक्ष विचारधाराओं से सम्बन्धित थे इसलिए मुद्दों पर वाद-विवाद, बातचीत तथा समझौते के द्वारा उन्हें हल करते थे।

(ख) संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से भी प्रभावित होती थीं जब संविधान सभा में बहस होती थी तो विभिन्न पक्षों की दलीलें अखबारों में भी छपती थीं और सभी प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी। इस तरह प्रेस में होने वाली इस आलोचना और जवाबी आलोचना से किसी मुद्दे पर चलने वाली सहमति या असहमति पर गहरा असर पड़ता था।

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→ संविधान सभा में मुख्य आवाजें संविधान सभा में कुल तीन सी सदस्य थे। इनमें से छह सदस्यों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण दिखाई देती है।

यथा –
(क) नेहरू ने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ तथा तिरंगे झण्डे का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
(ख) पटेल ने परदे के पीछे रहकर कई प्रारूपों को लिखने में मदद की थी तथा विरोधी विचारों के बीच सहमति पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
(ग) राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे।
(प) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।
(ङ) गुजरात के के.एम. मुंशी और

(च) मद्रास के अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर दोनों ने ही संविधान के प्रारूप पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए। (छ) इन छः सदस्यों को दो प्रशासनिक अधिकारी बी. एन. राव और एस. एन. मुखर्जी जटिल प्रस्तावों को स्पष्ट वैधिक भाषा में व्यक्त करने की क्षमता रखते थे। इस कार्य में कुल मिलाकर तीन वर्ष लगे और इस दौरान हुई चर्चाओं के मुद्रित रिकॉर्ड 11 भारी-भरकम खंडों में प्रकाशित हुए।

→ संविधान की दृष्टि –
(1) उद्देश्य प्रस्ताव 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया। इस प्रस्ताव में भारत के मूल संविधान के आदशों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। इसमें भारत को ‘स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य घोषित किया गया। नागरिकों को न्याय, समानता व स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया था और यह वचन दिया गया था कि अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों एवं दमित व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान किए जाएँगे। भारतीय संविधान का उद्देश्य यह होगा कि लोकतंत्र के उदारवादी विचारों और आर्थिक न्याय के समाजवादी विचारों का एक-दूसरे में समावेश किया जाए और भारतीय संदर्भ में इन विचारों की रचनात्मक व्याख्या की जाए।

(ii) लोगों की इच्छा –
(क) संविधान सभा के कम्यूनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी ने यह प्रश्न उठाया कि संविधान सभा अंग्रेजों की बनाई हुई है और वह अंग्रेजों की योजना को साकार करने का काम कर रही हैं। इसके उत्तर में नेहरू ने कहा कि यह सही है कि राष्ट्रवादी नेता एक भित्र प्रकार की संविधान सभा चाहते थे तथा उस सभा के गठन में ब्रिटिश सरकार का काफी हाथ है तथा इसके कामकाज पर कुछ शर्तें भी लगी हुई हैं, लेकिन इसके पास जनता की ताकत है।

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(ख) संविधान सभा उन लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन मानी जा रही थी, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लिया था। लोकतंत्र, समानता तथा न्याय जैसे आदर्श उन्नीसवीं सदी से भारत में सामाजिक संघर्षो के साथ गहरे तौर पर जुड़ चुके थे।

(ग) जैसे-जैसे प्रतिनिधित्व की मांग बढ़ी, अंग्रेजों को चरणबद्ध ढंग से संवैधानिक सुधार करने पड़े प्रांतीय सरकारों में भारतीयों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कई कानून (1909 1919 और 1935) पारित किए गए, जो प्रतिनिध्यात्मक सरकार के लिए लगातार बढ़ती माँग के जवाब में थे। इन्हें पारित करने की प्रक्रिया में भारतीयों की कोई प्रत्यक्ष हिस्सेदारी नहीं थी, उन्हें औपनिवेशिक सरकार ने ही लागू किया था, लेकिन इस सविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान भारतीय जनता के प्रतिनिधियों द्वारा निर्मित तथा एक स्वतंत्र संप्रभु भारतीय गणराज्य के संविधान की कल्पना थी।

→ अधिकारों का निर्धारण नागरिकों के अधिकार किस तरह निर्धारित किये जाएँ? क्या उत्पीड़ित समूहों को कोई विशेष अधिकार मिलने चाहिए? अल्पसंख्यकों के क्या अधिकार हो ? वास्तव में अल्पसंख्यक किसे कहा जाए? जैसे-जैसे संविधान सभा के पटल पर बहस आगे बढ़ी, यह साफ हो का कोई ऐसा उत्तर मौजूद नहीं है जिस पर पूरी सभा सहमत हो यथा –
गया कि इनमें से किसी भी सवाल

(i) पृथक् निर्वाचिका की समस्या – 27 अगस्त, 1947 को मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिका बनाए रखने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा इसके पक्ष में अपनी दलीलें रखीं। लेकिन पृथक निर्वाचिका की हिमायत में दिए गए बयान से राष्ट्रवादी नेता भड़क गए। विभाजन के कारण तो राष्ट्रवादी नेता और भड़कने लगे। उन्हें निरन्तर गृहयुद्ध, दंगों और हिंसा की आशंका दिखाई देती थी। गोविन्द वल्लभ पंत ने ऐलान किया कि पृथक् निर्वाचिका का प्रस्ताव न केवल राष्ट्र के लिए अपितु अल्पसंख्यकों के लिए भी खतरनाक है।

इन सारी दलीलों के पीछे एक एकीकृत राज्य के निर्माण की चिन्ता काम कर रही थी राजनीतिक एकता और राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रत्येक व्यक्ति को राज्य के नागरिक सांचे में ढालना था तथा हर समूह को राष्ट्र के भीतर समाहित किया जाना था संविधान नागरिकों को अधिकार देगा, समुदायों को सांस्कृतिक इकाइयों के रूप में मान्यता दी जा सकती थी, उन्हें सांस्कृतिक अधिकारों का आश्वासन दिया जा सकता था लेकिन राजनीतिक रूप से सभी समुदायों के सदस्यों को राज्य के सामान्य सदस्य के रूप में काम करना था अन्यथा उनकी निष्ठाएँ विभाजित होतीं। 1949 तक संविधान सभा के अधिकतर सदस्य इस बात पर सहमत हो गये थे कि पृथक् निर्वाचन का प्रस्ताव अल्पसंख्यकों के हितों के खिलाफ जाता है।

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(ii) केवल इस प्रस्ताव से काम चलने वाला नहीं है –

(क) उद्देश्य प्रस्ताव का स्वागत करते हुए किसान आन्दोलन के नेता और समाजवादी विचारों वाले एन. जी. रंगा ने आह्वान किया कि अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या आर्थिक स्तर पर की जानी चाहिए रंगा की नजर में असली अल्पसंख्यक गरीब और दबे-कुचले लोग थे। उन्होंने इस बात का स्वागत किया कि संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को कानूनी अधिकार दिए जा रहे हैं मगर उन्होंने इसकी सीमाओं को भी चिह्नित किया तथा कहा कि ऐसी परिस्थितियाँ बनाई जाएँ जहाँ संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का जनता प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सके। इसलिए गरीबों को सहारे की जरूरत है।

(ख) रंगा ने आम जनता और संविधान सभा में उसके प्रतिनिधित्व का दावा करने वालों के बीच मौजूद विशाल खाई की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया।

(ग) रंगा ने आदिवासियों को भी ऐसे ही समूहों में गिनाया था। इस समूह के प्रतिनिधियों में जयपाल सिंह जैसे जबरदस्त वक्ता भी शामिल थे।

(घ) जयपाल सिंह ने आदिवासियों की सुरक्षा तथा उन्हें आम आबादी के स्तर पर लाने के लिए जरूरी परिस्थितियाँ रचने की आवश्यकता पर सुन्दर वक्तव्य दिया तथा विधायिका में आदिवासियों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था का होना आवश्यक बताया।

(iii) हमें हजारों साल तक दबाया गया है –
संविधान में दलितों के अधिकारों को किस तरह परिभाषित किया जाए? राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अम्बेडकर ने दलितों के लिए पृथक् निर्वाचिकाओं की मांग की थी जिसका महात्मा गाँधी ने यह कहते हुए विरोध किया था ऐसा करने से यह समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जाएगा। संविधान सभा इस विवाद को कैसे हल कर सकती थी? दलितों को किस तरह की सुरक्षा दी जा सकती थी? इस पर विभिन्न सदस्यों ने अपने-अपने सुझाव दिये अंततः सविधान सभा में यह निर्णय हुआ कि अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए, हिन्दू मन्दिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाये और निचली जातियों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाये। लोकतांत्रिक जनता ने इन प्रावधानों का स्वागत किया।

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→ राज्य की शक्तियाँ –
(क) संविधान सभा में इस बात पर काफी बहस हुई कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के क्या अधिकार होने चाहिए? जो लोग शक्तिशाली केन्द्र के पक्ष में थे उनमें से एक जवाहरलाल नेहरू भी थे। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि दुर्बल केन्द्रीय शासन की व्यवस्था देश के लिए हानिकारक होगी दुर्बल केन्द्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश के लिए आवाज उठाने में सक्षम नहीं होगा।

(ख) भारतीय संविधान के मसविदे में विषयों की तीन सूचियाँ बनाई गई थीं। केन्द्रीय सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची। पहली सूची के विषय केन्द्र सरकार के अधीन होंगे, जबकि दूसरी सूची के विषय केवल राज्य सरकार के अधीन होंगे। तीसरी सूची के विषय केन्द्र व राज्य दोनों की साझा जिम्मेदारी थे परन्तु अन्य संपों की तुलना में बहुत ज्यादा विषयों को केवल केन्द्रीय नियन्त्रण में रखा गया। समवर्ती सूची में भी प्रांतों की इच्छाओं की उपेक्षा करते हुए बहुत ज्यादा विषय रखे गए।

(ग) संविधान में राजकोषीय संघवाद की भी एक जटिल व्यवस्था बनाई गई कुछ करों (जैसे सीमा शुल्क और कम्पनी कर) से होने वाली सारी आय केन्द्र सरकार के पास रखी गई, कुछ अन्य मामलों (जैसे आबकारी शुल्क और आयकर से होने वाली आय केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वॉट दी गई। कुछ अन्य मामलों से होने वाली आय (जैसे राज्य स्तरीय शुल्क) पूरी तरह राज्यों को सौंप दी गई। राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी कुछ अधिभार और कर वसूलने का अधिकार दिया गया। उदाहरण के लिए वे जमीन और सम्पत्ति कर, बिक्री कर तथा बोतलबंद शराब पर अलग से कर वसूल सकते थे।

(i) केन्द्र बिखर जाएगा – राज्य के अधिकारों की सबसे शक्तिशाली हिमायत मद्रास के सदस्य संतनम ने पेश की। उन्होंने कहा कि न केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को मजबूत बनाने के लिए शक्तियों का पुनर्वितरण जरूरी है। क्योंकि शक्तियों का वर्तमान वितरण उन्हें पंगु बना देगा। राजकोषीय प्रावधान प्रांतों को खोखला कर | देगा, क्योंकि भू-राजस्व के अलावा ज्यादातर कर केन्द्र सरकार के अधिकार में दे दिए गए हैं। यदि पैसा नहीं होगा तो राज्यों में विकास परियोजनाएँ कैसे चलेंगी। प्रान्तों के बहुत सारे सदस्य भी इस तरह की आशंकाओं से परेशान थे।

(ii) “आज हमें एक शक्तिशाली सरकार की आवश्यकता है – प्रांतों के लिए अधिक शक्तियों की माँग से सभा में तीखी प्रतिक्रियाएँ आने लगीं। शक्तिशाली केन्द्र की जरूरत को असंख्य अवसरों पर रेखांकित किया जा चुका था। अम्बेडकर ने घोषणा की थी कि वह ‘एक शक्तिशाली और एकीकृत केन्द्र चाहते हैं। 1935 के गवर्नमेंट एक्ट में हमने जो केन्द्र बनाया था उससे भी ज्यादा शक्तिशाली केन्द्र चाहते हैं सड़कों पर हो रही जिस हिंसा के कारण देश टुकड़े-टुकड़े हो रहा था उसका सन्दर्भ देते हुए बहुत सारे सदस्यों ने बार-बार यह कहा कि केन्द्र की शक्तियों में बढ़ोतरी होनी चाहिए ताकि वह सांप्रदायिक हिंसा रोक सके।

विभाजन से पहले कांग्रेस ने प्रांतों को काफी स्वायत्तता देने पर अपनी सहमति व्यक्त की थी। कुछ हद तक यह मुस्लिम लीग को इस बात का भरोसा दिलाने की कोशिश थी कि जिन प्रान्तों में लीग की सरकार बनी है वहाँ दखलंदाजी नहीं की जाएगी। लेकिन विभाजन के बाद विकेन्द्रीकृत संरचना के लिए पहले जैसे दबाव नहीं बचे थे।

औपनिवेशिक शासन द्वारा थोपी गई एकल व्यवस्था पहले से ही मौजूद थी उस जमाने में घटी घटनाओं से केन्द्रीयतावाद को और बढ़ावा मिला जिसे अब अफरातफरी पर अंकुश लगाने तथा देश के आर्थिक विकास की योजना बनाने के लिए और भी जरूरी माना जाने लगा। इस प्रकार संविधान में भारतीय संघ के घटक राज्यों के अधिकारों की ओर स्पष्ट झुकाव दिखाई देता है।

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→ राष्ट्र की भाषा – 1930 के दशक तक काँग्रेस ने यह मान लिया था कि हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जये महात्मा गाँधी का मानना था कि हर एक को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें हिन्दी और उर्दू के मेल से बनी हिन्दुस्तानी भारतीय जनता के बहुत बड़े हिस्से की भाषा थी और यह विविध संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा थी।

लेकिन उन्नीसवीं सदी के आखिर से एक भाषा के रूप में हिन्दुस्तानी धीरे-धीरे बदल रही थी। जैसे-जैसे सांप्रदायिक टकराव गहरे होते जा रहे थे हिन्दी और उर्दू एक-दूसरे से दूर जा रही थी। एक तरफ तो फारसी और अरबी मूल के सारे शब्दों को हटाकर हिन्दी को संस्कृतनिष्ठ बनाने की कोशिश की जा रही थी, दूसरी तरफ उर्दू फारसी के नजदीक होती जा रही थी। परिणाम यह हुआ कि भाषा भी धार्मिक पहचान की राजनीति का हिस्सा बन गई। लेकिन हिन्दुस्तानी के साझा चरित्र में महात्मा गाँधी की आस्था कम नहीं हुई।

(क) हिन्दी की हिमायत-संविधान सभा के एक शुरुआती सत्र में संयुक्त प्रांत के काँग्रेसी सदस्य आर. बी. धुलेकर ने इस बात के लिए पुरजोर शब्दों में आवाज उठाई थी कि हिन्दी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में प्रयोग किया जाए तब से भाषा का प्रश्न अगले तीन साल तक बार-बार कार्रवाइयों में बाधा डालता रहा और सदस्यों को उत्तेजित करता रहा। इस बीच संविधान सभा की भाषा समिति ने राष्ट्रीय भाषा के सवाल पर हिन्दी के समर्थकों और विरोधियों के बीच पैदा हो गए गतिरोध को तोड़ने के लिए एक फार्मूला विकसित किया। समिति ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा की जगह राजभाषा घोषित कर दिया। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए। पहले 15 साल तक सरकारी कामों में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा। प्रत्येक प्रांत को कोई एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार होगा।

(ख) वर्चस्व का भय मद्रास की सदस्य श्रीमती जी. दुर्गाबाई ने सदन को बताया कि दक्षिण में हिन्दी का विरोध बहुत ज्यादा है, विरोधियों का यह मानना संभवतः सही है कि हिन्दी के लिए हो रहा यह प्रचार प्रांतीय भाषाओं की जड़े खोदने का प्रयास है। इसके बावजूद बहुत सारे अन्य सदस्यों के साथ-साथ उन्होंने भी महात्मा गांधी के आह्नान का पालन किया और दक्षिण में हिन्दी का प्रचार जारी रखा, विरोध का सामना किया, हिन्दी के स्कूल खोले और कक्षाएं चलाई दुर्गाबाई हिन्दुस्तानी को जनता की भाषा स्वीकार कर चुकी थीं।

मगर अब उस भाषा को बदला जा रहा था उर्दू तथा क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को उससे निकालकर उसमें संस्कृतनिष्ठ शब्द भरे जा रहे थे जैसे-जैसे चर्च तीखी होती गई, बहुत सारे सदस्यों ने परस्पर समायोजन व सम्मान की भावना का आह्वान किया। बम्बई के एक सदस्य श्री शंकर राव देव ने कहा कि काँग्रेसी तथा महात्मा गाँधी का अनुवायी होने के नाते वे हिन्दुस्तानी को राष्ट्र की भाषा के रूप में स्वीकार कर चुके हैं, परन्तु उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “अगर आप (हिन्दी के लिए) दिल से समर्थन चाहते हैं तो आपको ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे मेरे भीतर संदेह पैदा हो और मेरी आशंकाओं को बल मिले।” मद्रास के श्री टी. ए. रामलिंगम चेट्टियार ने इस बात पर जोर दिया कि जो कुछ भी किया जाए, एतिहात के साथ किया जाए। यदि आक्रामक होकर कार्य किया गया तो हिन्दी का कोई भला नहीं हो पाएगा।

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निष्कर्ष –
(1) भारतीय संविधान गहन विवादों और परिचर्चाओं से गुजरते हुए बना। इसके कई प्रावधान लेनदेन के प्रक्रिया की द्वारा बनाए गए थे उन पर सहमति तब बन पाई जब सदस्यों ने दो विरोधी विचारों के बीच जमीन तैयार कर ली।

(2) परन्तु संविधान के एक केन्द्रीय अभिलक्षण पर काफी हद तक सहमति थी। यह सहमति प्रत्येक वयस्क भारतीय को मताधिकार देने पर थी।

(3) हमारे संविधान की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता भी धर्मनिरपेक्षता पर बल संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता का गुणगान तो नहीं किया गया था परन्तु संविधान व समाज को चलाने के लिए भारतीय संदर्भों में उसे मुख्य अभिलक्षणों का जिक्र आदर्श रूप में किया गया था। मूल अधिकारों में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और सांस्कृतिक व शैक्षिक अधिकार, समानता का अधिकार इसके प्रमाण हैं।

(4) संविधान सभा के विवादों से हमें यह समझ तो आती है कि सविधान के निर्माण में कैसी-कैसी निरोधी आवाजें उठी थीं और कैसी-कैसी माँगें की गई। ये चर्चाएं हमें उन आदर्शों और सिद्धान्तों के विषय में बताती हैं जिनका वर्णन सविधान निर्माताओं ने किया, परन्तु इन विवादों को समझने में हमें याद रखना चाहिए कि आदर्शों को विशेष संदर्भों के मुताबिक बदला गया। इसके अलावा ऐसा भी हुआ कि सभा के कुछ सदस्यों ने तीन वर्षों में हुई चर्चाओं के साथ-साथ अपने विचार ही बदल डाले। कुछ सदस्यों ने दूसरों के तर्कों के प्रकाश में अपनी समझ बदली और खुले दिलो-दिमाग से काम किया कुछ अन्य सदस्यों आस-पास की घटनाओं को देखते हुए अपने विचार बदल डाले।

काल-रेखा
1945 26 जुलाई दिसम्बर-जनवरी ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में आती है। भारत में आम चुनाव।
1946 16 मई कैबिनेट मिशन अपनी संवैधानिक योजना की घोषणा करता है।
16 जून मुस्लिम लीग कैबिनेट मिशन की संवैधानिक योजना पर स्वीकृति देती है।
16 जून कैबिनेट मिशन केन्द्र में अन्तरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव पेश करता है।
2 सितम्बर कांग्रेस अन्तरिम सरकार का गठन करती है, जिसमें नेहरू को उपराष्ट्रपति बनाया जाता है।
13 अक्टूबर मुस्लिम लीग अन्तरिम सरकार में शामिल होने का फैसला लेती है।
3-6 दिसम्बर ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली कुछ भारतीय नेताओं से मिलते हैं। इन वार्ताओं का कोई नतीजा नहीं निकलता है।
9 दिसम्बर संविधान सभा के अधिवेशन शुरू हो जाते हैं।
1947 29 जनवरी मुस्लिम लीग संविधान सभा को भंग करने की माँग करती है।
16 जुलाई अन्तरिम सरकार की अन्तिम बैठक होती है।
11 अगस्त जिन्ना को पाकिस्तान की संविधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है।
14 अगस्त पाकिस्तान को स्वतन्त्रता : कराची में जश्न।
14-15 अगस्त मध्यरात्रि भारत में स्वतन्त्रता का जश्न।
1949 दिसम्बर भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Jharkhand Board Class 12 History विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 379

प्रश्न 1.
प्रत्येक स्रोत से आपस में बातचीत करने वाले इन लोगों के रुख के बारे में हमें क्या पता चलता है?
उत्तर:
प्रत्येक खोत से हमें आपस में बातचीत करने वालों से यह पता चलता है कि प्रत्येक का दृष्टिकोण अलग-अलग है-
(1) स्रोत एक के अब्दुल लतीफ एक सहृदय व्यक्ति हैं जो अपने पिता की जान बचाने वाले की मदद करके अपने पिता पर चढ़े हुए कर्ज को चुका रहे हैं पाकिस्तान के नागरिक होते हुए भी वे हिन्दुस्तानी से नफरत नहीं करते।

(2) दूसरे स्रोत के इकबाल अहमद अपनी वतनपरस्ती (देशभक्ति) के कारण हिन्दुस्तानियों की मदद नहीं करते हैं। लेकिन उनके दिल में कहीं इंसानियत छिपी है, जिसके कारण वे शोधार्थी को चाय पिलाते तथा अपनी आपबीती सुनाते हैं। दिल्ली में मिलने वाला सिख उन्हें अपने सगे- सम्बन्धी जैसा लगा । वतन छूट जाने पर भी सिख के मन में लाहौर के
मुसलमानों से लगाव था।

(3) तीसरी घटना वाला व्यक्ति घृणा से भरपूर है। जब उसे पता लगा कि शोधार्थी पाकिस्तानी न होकर भारतीय है, उसके मुख से अनायास घृणा भरे शब्द निकल पड़े” वह भारतीयों को अपना कट्टर दुश्मन मानता है।”

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प्रश्न 2.
ये कहानियाँ लोगों की विभाजन सम्बन्धी विभिन्न स्मृतियों के बारे में हमें क्या बताती हैं?
उत्तर:
ये कहानियाँ विभाजन सम्बन्धी स्मृतियों के बारे में हमें बताती हैं कि कुछ लोग विभाजन के बाद भी आपसी भाईचारे में विश्वास रखने वाले थे तथा कुछ बिल्कुल कट्टर शत्रुवत् व्यवहार करने वाले थे।

प्रश्न 3.
इन लोगों ने खुद को और एक-दूसरे को कैसे पेश किया और पहचाना?
उत्तर:
अब्दुल लतीफ ने शोधार्थी के सामने स्वयं को एक सहृदय एहसानमन्द व्यक्ति की तरह पेश किया। इकबाल अहमद ने स्वयं को डरपोक लेकिन अच्छे इंसान की तरह पेश किया तथा तीसरे व्यक्ति ने अपने को सामान्य भारतीयों के कट्टर शत्रु के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी बोलचाल से उन्होंने एक-दूसरे को पहचाना।

पृष्ठ संख्या 387

प्रश्न 4.
लीग की माँग क्या थी? क्या वह ऐसे पाकिस्तान की माँग कर रही थी जैसा हम आज देख रहे हैं?
उत्तर:
लीग की माँग थी कि भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में जरूरत के हिसाब से इलाकों का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए कि हिन्दुस्तान के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों जैसे जिन हिस्सों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं उन्हें एकत्र करके ‘स्वतंत्र राज्य’ बना दिया जाए, जिसमें शामिल इकाइयाँ स्वाधीन और स्वायत्त होंगी। मुस्लिम लीग उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता चाहती थी उस समय लीग आज जैसा पाकिस्तान नहीं चाहती थी जैसा अब है आज का पाकिस्तान एक स्वायत्त राज्य न होकर स्वतंत्र राष्ट्र है।

पृष्ठ संख्या 390

प्रश्न 5.
पाकिस्तान के विचार का विरोध करते हुए महात्मा गाँधी ने क्या तर्क दिए?
उत्तर:
पाकिस्तान के विचार का विरोध करते हुए गांधीजी ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए –

  • हिन्दू और मुसलमान दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं। उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं और एक ही भाषा बोलते हैं।
  • लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह गैर- इस्लामिक है और मैं इसे पापपूर्ण कार्य मानता हूँ।
  • इस्लाम मानव की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का।
  • जो तत्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बाँट देना चाहते हैं वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु हैं।
  • भले ही वे मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दें परन्तु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते जिसे मैं गलत मानता हूँ।

 पृष्ठ संख्या 391

प्रश्न 6.
भाग 3 को पढ़कर यह जाहिर है कि पाकिस्तान कई कारणों से बना आपके मत में इनमें से कौन से कारण सबसे महत्त्वपूर्ण थे और क्यों ?
उत्तर:

  • अंग्रेजों द्वारा पृथक् चुनाव क्षेत्रों की व्यवस्था से मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिला।
  • अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति से मुस्लिम लोग को पाकिस्तान के निर्माण के लिए प्रोत्साहन मिला।
  • साम्प्रदायिक दंगों के कारण देश में अशान्ति और अव्यवस्था फैल गई परन्तु अंग्रेजों ने इन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया।

पृष्ठ संख्या 394 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
भारत छोड़ते समय अंग्रेजों ने शान्ति बनाए रखने के लिए क्या किया? महात्मा गाँधी ने ऐसे दुःखद दिनों में क्या किया?
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने शान्ति स्थापित करने के लिए कुछ नहीं किया अपितु पीड़ितों को कांग्रेसी नेताओं की शरण में जाने को कहा।
(2) महात्मा गाँधी जगह-जगह घूम-घूमकर साम्प्रदायिक सौहार्द की अपील कर रहे थे।

पृष्ठ संख्या 396

प्रश्न 8.
किन विचारों की वजह से विभाजन के दौरान कई निर्दोष महिलाओं की मृत्यु हुई और उन्होंने कष्ट उठाया ? भारतीय और पाकिस्तानी सरकारें क्यों अपनी महिलाओं की अदला-बदली के लिए तैयार हुई ? क्या आपको लगता है कि ऐसा करते समय वे सही थे ?
उत्तर:
(1) दोनों सम्प्रदायों के लोग बदले की भावना से और महिलाओं को अपनी कामवासना का शिकार बनाने के लिए महिलाओं पर हमले कर रहे थे सैकड़ों महिलाओं ने अपनी इज्जत बचाने के लिए कुओं में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। इस कारण कई निर्दोष महिलाओं की मृत्यु हुई और उन्हें कष्ट उठाने पड़े।

(2) दोनों सम्प्रदायों की महिलाओं की स्थिति अत्यधिक शोचनीय हो चुकी थी इसलिए भारतीय तथा पाकिस्तानी सरकारें अपनी महिलाओं की अदला-बदली के लिए तैयार हुई।

(3) कुछ सीमा तक वे सही थे परन्तु उन्हें संवेदनशीलता से काम लेते हुए महिलाओं की भावनाओं का भी ध्यान रखना चाहिए था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Jharkhand Board Class 12 History विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Text Book Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में )

प्रश्न 1.
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?
उत्तर:
23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की मांग का प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था बल्कि इस प्रस्ताव के लेखक पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकन्दर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं, जिसमें यहाँ “मुस्लिम राज और बाकी जगह हिन्दू राज होगा। अगर पाकिस्तान का मतलब यह है कि पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है।” उन्होंने संघीय इकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ के समर्थन में अपने विचारों को फिर दोहराया।

प्रश्न 2.
कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत अचानक हुआ?
उत्तर:
शुरुआत में मुस्लिम नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की मांग विशेष गंभीरता से नहीं उठाई थी। आरम्भ में शायद स्वयं जिन्ना भी पाकिस्तान की सोच को सौदेबाजी में एक पैंतरे के तौर पर प्रयोग कर रहे थे जिसका वे सरकार द्वारा काँग्रेस को मिलने वाली रियायतों पर रोक लगाने और मुसलमानों के लिए और रियायतें हासिल करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे। बँटवारा बहुत अचानक हुआ इसके बारे में खुद मुस्लिम लीग की राय स्पष्ट नहीं थी।

उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग (1940) तथा विभाजन (1947) होने के बीच बहुत कम समय केवल 7 वर्ष का अन्तर रहा। किसी को मालूम नहीं था कि पाकिस्तान के गठन का क्या मतलब होगा और उससे भविष्य में लोगों की जिन्दगी किस तरह तय होगी। इसी कारण कुछ लोगों को लगता था कि विभाजन बहुत अचानक हुआ।

प्रश्न 3.
आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
विभाजन के बारे में आम लोगों का विचार था कि यह विभाजन पूर्णतया या तो स्थायी नहीं होगा अथवा शान्ति और कानून व्यवस्था बहाल होने पर सभी लोग अपने गाँव, कस्बे, शहर या राज्य में वापस लौट जाएँगे। कुछ लोग इसे मात्र गृह युद्ध ही मान रहे थे कुछ लोग इसे ‘मार्शल लॉ’, ‘मारामारी’, ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’ बता रहे थे। कई लोग इसे ‘महाध्वंस’ (होलोकास्ट) की संज्ञा दे रहे थे। कुछ लोगों के लिए यह विभाजन बहुत दर्दनाक था जिसमें उनके मित्र- सम्बन्धी बिछड़ गए, वे अपने घरों, खेतों, व्यवसाय से वचित हो गए। वास्तव में देखा जाए तो आम लोगों की सोच उनके भोलेपन, अज्ञानता और वास्तविकता से आँखें बन्द करने के समान थी।

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प्रश्न 4.
मुहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान के विचार का विरोध करते हुए महात्मा गाँधी ने क्या तर्क दिये थे?
अथवा
बंटवारे के विरुद्ध गाँधीजी के विचारों की समीक्षा कीजिये।
अथवा
विभाजन के खिलाफ महात्मा गाँधी की दलील क्या थे?
उत्तर:
गाँधीजी विभाजन के कट्टर विरोधी थे। उन्हें यह पक्का विश्वास था कि वे देश में सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने में पुनः सफल हो जाएंगे। देशवासी घृणा और हिंसा का रास्ता छोड़कर पुनः आपसी भाईचारे के साथ रहने लगेंगे। गाँधीजी मानते थे कि सैकड़ों सालों से हिन्दू और मुस्लिम भारत में इकट्ठे रहते आए हैं।

वे एक जैसा भोजन करते हैं, एकसी भाषाएँ बोलते हैं तथा एक ही देश का पानी पीते हैं वे शीघ्र आपसी घृणा भूल कर पहले की तरह आपसी मेलजोल से रहने लग जाएँगे। गांधीजी लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग को गैर-इस्लामिक व पापपूर्ण मानते थे। उनका मानना था कि इस्लाम एकता व भाईचारे का संदेश देता है, एकजुटता को तोड़ने का नहीं। गाँधीजी का कहना था कि चाहे उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँ. परन्तु लोग मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते, जिसे वे (गाँधीजी ) गलत मानते थे।

प्रश्न 5.
विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
भारत के विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है। इस विभाजन में लाखों लोग मारे गए, लाखों को रातोंरात अपना घरबार, देश व सम्पत्ति को छोड़कर एक अजनबी स्थान और अजनबी लोगों के बीच जाने को मजबूर होना पड़ा और वहाँ जाकर वे शरणार्थी बन गए। लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को भारत और पाकिस्तान के बीच रातों-रात खड़ी कर दी गई सरहद के इस या उस पार जाना पड़ा दोनों ही संप्रदायों के नेता विभाजन के इस दुष्परिणाम की कल्पना भी नहीं कर सके कि विभाजन इतना भयंकर और हिंसात्मक होगा।

विभाजन के कारण लाखों लोगों को अपनी रेशा रेशा जिन्दगी दुबारा शुरू करनी पड़ी। विभाजन का सबसे बड़ा शिकार औरतों को होना पड़ा। उन पर बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया या जबरदस्ती दूसरों के साथ रहने को मजबूर होना पड़ा इन्हीं सब कारणों से इस विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ कहा गया।

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निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में ) –

प्रश्न 6.
आपके अनुसार भारत विभाजन के लिए कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं ? उल्लेख कीजिए।
अथवा
ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?
अथवा
भारत विभाजन के लिए उत्तरदायी कारणों का विवरण दीजिये।
अथवा
उन कारणों का वर्णन कीजिये जिनके कारण भारत का विभाजन हुआ।
उत्तर:
ब्रिटिश भारत के विभाजन के उत्तरदायी कारक – ब्रिटिश भारत के बँटवारे के प्रमुख कारण निम्नलिखित –
(1) अँग्रेजों की ‘फूट डालो राज करो’ नीति- अंग्रेज ‘फूट डालो और राज करो की नीति पर चल रहे थे। उन्होंने अपनी नीति को सफल बनाने के लिए सांप्रदायिक ताकतों, साहित्य, लेखों तथा भारतीय मध्यकालीन इतिहास की उन घटनाओं का बार-बार जिक्र किया जिन्होंने सांप्रदायिकता को बढ़ाया।

(2) मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग-23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम- बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। यह उसका प्रबल दावा था कि भारत में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली वही एकमात्र पार्टी है लेकिन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के त्रिस्तरीय महासंघ के प्रस्ताव को जब कॉंग्रेस और लीग दोनों ने ही नहीं माना तो इसके बाद विभाजन लगभग अनिवार्य हो गया और लीग ने पाकिस्तान की माँग को अमली जामा दिये जाने पर बल दिया।

(3) सांप्रदायिकता में तीव्र वृद्धि-मुसलमानों में मस्जिदों के सामने संगीत बजाए जाने, गोरक्षा आन्दोलन तथा शुद्धिकरण (मुसलमान बने हिन्दुओं को पुनः हिन्दू बनाना) आदि कार्यों से तीव्र आक्रोश व्याप्त था। दूसरी ओर मुस्लिम संगठनों द्वारा तबलीग (प्रचार) तथा तंजीम (संगठन) आन्दोलन चलाकर देश में साम्प्रदायिक वातावरण तैयार किया गया। इससे दोनों सम्प्रदायों में तनाव बढ़ गया।

(4) पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था करना- 1909 के मिण्टो मार्ले सुधारों में मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई जिसका साम्प्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा। इससे मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिला।

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(5) संयुक्त प्रांत में काँग्रेस द्वारा लीग के साथ गठबंधन सरकार बनाने से इनकार करना 1937 में सम्पन्न हुए चुनावों के बाद संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) में मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी, परन्तु कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के इस प्रस्ताव हुई को ठुकरा दिया जिससे मुसलमानों के मन में निराशा उत्पन्न ये मानने लगे कि अगर भारत अविभाजित रहा तो मुसलमानों के हाथ में राजनीतिक सत्ता नहीं आ पायेगी क्योंकि वे अल्पसंख्यक हैं और मुस्लिम हितों को प्रतिनिधित्व एक मुस्लिम पार्टी ही कर सकती है। काँग्रेस हिन्दुओं की पार्टी है इसलिए मुस्लिम लीग ने विभाजन और पाकिस्तान निर्माण पर जोर दिया।

(6) सांप्रदायिक दंगे- सांप्रदायिक दंगे भी विभाजन का कारण बने। दंगे इससे पूर्व भी हुए थे लेकिन विभाजन से ठीक पूर्व हुए दंगों ने देश के सांप्रदायिक सद्भाव को निगल लिया। सम्पत्ति की हानि हुई महिलाओं और बच्चों पर भयंकर अत्याचार किए गए लोगों का यह मानना था कि विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगों की समस्या हल हो जायेगी।

(7) प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस- 16 अगस्त, 1946 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण की माँग पर बल देते हुए ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाया। उस दिन कलकत्ता में भीषण दंगा भड़क उठा जो कई दिनों तक चला और उसमें कई हजार लोग मारे गए।

प्रश्न 7.
बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
उत्तर:
बँटवारे के समय औरतों के अनुभव-बँटवारे के समय औरतों के अनुभव बहुत खराब रहे।
यथा –
(1) बलात्कार, अगवा करना तथा खरीदा व बेचा जाना कई विद्वानों ने उस हिंसक काल में औरतों के भयानक अनुभवों के बारे में लिखा है उनके साथ बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया, उन्हें बार-बार खरीदा और बेचा गया। उन्हें अनजान हालात में अजनबियों के साथ एक नई जिन्दगी बसर करने के लिए मजबूर किया गया।

(2) औरतों की बरामदगी औरतों ने जो कुछ भुगता उसके गहरे सदमे के बावजूद बदले हुए हालात में कुछ औरतों ने अपने नए पारिवारिक बंधन विकसित किए। लेकिन भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने इंसानी सम्बन्धों की जटिलता के बारे में कोई संवेदनशील रवैया नहीं अपनाया।

बहुत सारी औरतों को जबरदस्ती घर बिठा ली गई मानते हुए उनके नए परिवारों से छीनकर दोबारा पुराने परिवारों या स्थानों पर भेज दिया गया। औरतों से उनकी मर्जी के बारे में कोई सलाह या मशविरा नहीं किया गया। एक अंदाजे के अनुसार करीब 30,000 औरतों की बरामदगी हुई जिनमें 22,000 मुस्लिम औरतों को भारत से और 8000 हिन्दू व सिख औरतों को पाकिस्तान से निकाला गया। यह मुहिम 1954 तक चलती रही।

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(3) इज्जत की रक्षा हेतु औरतों द्वारा शहादत देना- इस भयंकर समय में जब परिवार के मर्दों को यह लगता कि वे अपनी बीवियों, बहनों और बेटियों को दुश्मनों से नहीं बचा पाएँगे तो वे उनको स्वयं ही मार देते थे। उर्वशी बुटालिया ने अपनी पुस्तक ‘दी अदर साइड ऑफ वायलेंस’ में रावलपिंडी जिले के धुआ गाँव का दर्दनाक किस्सा लिखा है कि तकसीम के समय। विभाजन के समय) सिखों के इस गाँव की 90 औरतों ने दुश्मनों के हाथों पड़ने की बजाय अपनी मर्जी से कुएं में कूद कर जान दे दी थी।

इस गाँव से आए शरणार्थी आज भी दिल्ली के गुरुद्वारे में इस घटना पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं तथा उन औरतों की मौत को आत्महत्या न कह उसे शहादत कहते हैं। लेकिन इस कार्यक्रम में उन औरतों को याद नहीं किया जाता जो मरना नहीं चाहती थीं तथा जिन्हें अपनी इच्छा के खिलाफ मौत का रास्ता चुनना पड़ा। उस समय पुरुषों ने औरतों के फैसले को बहादुरी से स्वीकार किया बल्कि कई बार तो उन्होंने औरतों को अपनी जान देने के लिए उकसाया भी हर साल 13 मार्च को शहादत का यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

प्रश्न 8.
बँटवारे के सवाल पर कॉंग्रेस की सोच कैसे बदली?
उत्तर:
बैंटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच बदलने के पीछे कई कारण रहे जो इस प्रकार हैं –
(1) मुस्लिम लीग का पृथक् पाकिस्तान की माँग पर अड़ जाना-कॉंग्रेस मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की माँग छोड़ने के लिए बहुत प्रयत्न करने पर भी राजी न कर पाई।

(2) काँग्रेस का राष्ट्र की एकता को बनाए रखने का स्वप्न टूटना – मुस्लिम लीग की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए माँग पर कुछ काँग्रेसी नेताओं के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिया कि शायद कुछ समय बाद गाँधीजी देश की एकता को फिर से स्थापित करने में कामयाब हो जायेंगे लेकिन ऐसा हो नहीं सका, उनकी सोच ख्याली पुलाव बनकर रह गई।

(3) प्रत्यक्ष कार्यवाही के दौरान हिंसक दंगे भड़क उठना- मुस्लिम लीग द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस की धमकी के साथ ही कलकत्ता व नोआखाली में हिंसक दंगे भड़काना, हिन्दू महासभा द्वारा हिन्दू राष्ट्र की माँग उठाना तथा कुछ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा यह घोषणा करना कि यदि लीग और काँग्रेस किसी नतीजे पर नहीं पहुँचते हैं तो भी वे भारत छोड़कर चले जाएँगे आदि घटनाओं ने भी विभाजन को प्रोत्साहित किया। काँग्रेस जानती थी कि 90 साल बीत जाने पर भी अंग्रेज अपने बच्चों और औरतों के लिए वे खतरे नहीं उठाना चाहते थे जो उन्होंने 1857 के दौरान उठाए थे।

(4) 1946 के चुनावों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम लीग की अपार सफलता- 1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी थी वहाँ मुस्लिम लीग को मिली अपार सफलता, मुस्लिम लीग द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में लीग का शामिल न होना और जिना द्वारा दोहरे राष्ट्र के सिद्धान्त पर बार- बार जोर देना आदि बातों ने कांग्रेस की मानसिकता को राष्ट्र विभाजन का समर्थक बनाने में सहयोग दिया।

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(5) पंजाब और बंगाल के बंटवारे पर क्षेत्रीय कांग्रेसी नेताओं की सहमति मार्च 1947 में कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब को मुस्लिम बहुल तथा हिन्दू/सिख बहुल हिस्सों में बाँटने पर अपनी सहमति दे दी, क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी बंगाल के लिए भी यही सिद्धान्त अपनाया गया। अंकों के खेल में उलझकर पंजाब के बहुत सारे सिख नेता व काँग्रेसी भी इस बात को मान चुके थे कि अब विभाजन अनिवार्य विकृति है जिसे टाला नहीं जा सकता।

उनको लगता था कि वे अविभाजित पंजाब में मुसलमानों से घिर जाएँगे और उन्हें मुस्लिम नेताओं के रहमोकरम पर जीना पड़ेगा। इसलिए वे कमोबेश बँटवारे के फैसले के हक में थे। बंगाल में भी भद्रलोक बंगाली हिन्दुओं का जो तबका सत्ता अपने हाथ में रखना चाहता था, वह ‘मुसलमानों की स्थायी गुलामी’ (उनके एक नेता ने यही शब्द कहे थे) की आशंका से भयभीत था संख्या की दृष्टि से वे कमजोर थे इसलिए उनको लगता था कि प्रांत के विभाजन से ही उनका राजनीतिक प्रभुत्व बना रह सकता है। 1947 में कानून व्यवस्था का नाश हो चुका था। ऐसी परिस्थितियों में कांग्रेस अपनी सोच बदलने के लिए मजबूर हो गई कि शायद बँटवारे के बाद सांप्रदायिक हिंसा खत्म हो जायेगी लेकिन विभाजन के बाद भी 1947-48 तक यह चलती ही रही।

(6) कैबिनेट मिशन के ढीले-ढाले त्रिस्तरीय महासंघ के सुझाव पर कॉंग्रेस और लीग में सहमति न बन पाना- कैबिनेट मिशन के त्रिस्तरीय संघ की योजना को प्रारम्भ में तो सभी प्रमुख दलों ने स्वीकार कर लिया था लेकिन यह समझौता अधिक समय तक नहीं चला क्योंकि सभी पक्षों ने इस योजना के बारे में अलग-अलग व्याख्या की।

प्रश्न 9.
मौखिक इतिहास से विभाजन को हम कैसे समझ सकते हैं ?
अथवा
मौखिक इतिहास के फायदे / नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?
उत्तर:
मौखिक इतिहास के फायदे- मौखिक इतिहास के प्रमुख फायदे निम्नलिखित हैं –
(1) इतिहास को बारीकी से समझने में मदद- व्यक्तिगत स्मृतियाँ जो एक तरह की मौखिक स्रोत हैं- की एक विशेषता यह है कि उनमें हमें अनुभवों और स्मृतियों को और बारीकी से समझने का मौका मिलता है। इससे इतिहासकारों को विभाजन के दौरान लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, इस बारे में बहुरंगी और सजीव वृत्तांत लिखने की काबिलियत मिलती है।

(2) उपेक्षित स्त्री-पुरुषों के अनुभवों की पड़ताल करने में सफल मौखिक इतिहास से इतिहासकारों को गरीबों और कमजोरों, औरतों, शरणार्थियों, विधवाओं, व्यापारियों के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से निकालकर अपने विषय के क्षेत्रों को और फैलाने का मौका मिलता है।

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(3) साक्ष्यों की विश्वसनीयता को तौलना संभव कुछ इतिहासकार मौखिक इतिहास की यह कहकर खारिज कर देते हैं कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती और उनसे घटनाओं का जो क्रम उभरता है, वह अक्सर सही नहीं होता। लेकिन भारत के विभाजन के संदर्भ में ऐसी गवाहियों की कोई कमी नहीं है जिनसे पता चलता है कि उनके दरमियान अनगिनत लोगों ने कितनी तरह की और कितनी भीषण कठिनाइयों और तनावों का सामना किया।

(4) प्रासंगिकता – अगर इतिहास में साधारण और कमजोरों के वजूद को जगह देनी है तो यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि बंटवारे का मौखिक इतिहास केवल सतही मुद्दों से सम्बन्धित नहीं है।

मौखिक इतिहास की सीमाएँ –
इतिहासकारों ने मौखिक इतिहास की अग्रलिखित सीमाएँ या दोष बताए हैं-
(1) सामान्यीकरण करना संभव नहीं-इतिहासकारों का तर्क है कि निजी तजुओं की विशिष्टता के सहारे सामान्यीकरण करना अर्थात् किसी सामान्य नतीजे पर पहुँचना मुश्किल होता है।

(2) अप्रासंगिक – कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि मौखिक विवरण संतही मुद्दों से ताल्लुक रखते हैं और ये छोटे-छोटे अनुभव इतिहास की वृहत्तर प्रक्रियाओं का कारण ढूँढ़ने में अप्रासंगिक होते हैं।

(3) सटीकता का अभाव – कुछ इतिहासकारों ने यह कहा है कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती और उनसे घटनाओं का सही क्रम नहीं उभरता है।

(4) निहायत निजी आपबीती अनुभवों की प्राप्ति कठिन बँटवारे के बारे में मौखिक ब्यौरे स्वयं या आसानी से उपलब्ध नहीं होते। उन्हें साक्षात्कार पद्धति के द्वारा हासिल किया जा सकता है और इसमें सबसे मुश्किल यही होता है कि संभवतः इन अनुभवों से गुजरने वाले निहायत निजी आपबीती के बारे में बात करने को राजी ही न हों।

(5) याददाश्त की समस्या मौखिक इतिहास की एक अन्य बड़ी समस्या याददाश्त सम्बन्धी है। किसी घटना के बारे में कुछ दशक बाद जब बात की जाती है तो लोग क्या याद रखते हैं या भूल जाते हैं, यह आंशिक रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि बीच के वर्षों में उनके अनुभव किस प्रकार के रहे हैं। इस दौरान उनके समुदायों और राष्ट्रों के साथ क्या हुआ है। इस प्रकार मौखिक इतिहासकारों को विभाजन के वास्तविक अनुभवों को निर्मित स्मृतियों के जाल से बाहर निकालने का चुनौतीपूर्ण कार्य भी करना पड़ता है।

मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन की समझ को विस्तार –
(1) आम मर्दों औरतों के अनुभवों की पड़ताल – विभाजन का मौखिक इतिहास ऐसे आम स्त्री-पुरुषों के अनुभवों की पड़ताल करने में कामयाब रहा है जिनके वजूद को अब तक नजरअंदाज कर दिया जाता था।

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(2) स्याह खौफनाक दौर से गुजरे लोगों के अनुभवों की जानकारी – विभाजन का एक समग्र वृत्तांत बुनने के लिए बहुत तरह के स्रोतों का इस्तेमाल करना जरूरी है ताकि हम उसे एक घटना के साथ-साथ एक प्रक्रिया के रूप में भी देख सकें और ऐसे लोगों के अनुभवों को समझ सकें जो उस स्याह खौफनाक दौर से गुजर रहे हैं।

विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव JAC Class 12 History Notes

→ भारत का जो विभाजन दो राष्ट्रों में हुआ उसके कारण लाखों लोग उजड़ गए, शरणार्थी बन कर रह गए। इसलिए 1947 में हमारी आजादी से जुड़ी खुशी विभाजन की हिंसा और बर्बरता से बदरंग पड़ गई थी। ब्रिटिश भारत के दो संप्रभु राज्यों— भारत और पाकिस्तान (जिसके पश्चिमी और पूर्वी दो भाग थे) में बँटवारे से कई परिवर्तन अचानक आए। लाखों मारे गए, कइयों की जिन्दगियाँ पलक झपकते बदल गई, शहर बदला, भारत बदला, एक नए देश का जन्म हुआ और ऐसा जनसंहार, हिंसा और विस्थापन हुआ जिसका इतिहास में पहले से कोई उदाहरण नहीं मिलता है।

→ बँटवारे के कुछ अनुभव यहाँ बँटवारे से सम्बन्धित तीन घटनाएँ दी जा रही हैं जिनका बयान उन दुःखद दिनों से गुजरे लोगों ने 1993 में एक शोधकर्ता के सामने किया था। बयान करने वाले पाकिस्तानी थे और शोधकर्ता भारतीय शोधकर्ता का उद्देश्य यह समझना था कि जो लोग पीढ़ियों से कमोबेश मेल-मिलाप से रहते आए थे, उन्होंने 1947 में एक-दूसरे पर इतना कहर कैसे ढाया।

(अ) “मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़ा हुआ कर्ज चुका रहा हूँ” – शोधकर्ता 1992 की सर्दियों में पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर के इतिहास विभाग के पुस्तकालय में जाया करता था तो वहाँ पर अब्दुल लतीफ नामक एक सज्जन उसकी बहुत मदद करते थे। एक दिन शोधकर्ता ने उनसे मदद का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि बँटवारे के समय एक हिन्दू बुढ़िया माँ ने मेरे अब्बा की जान बचायी थी। इसलिए आपकी मदद करके मैं “अपने अब्बा पर चढ़ा कर्ज चुका रहा हूँ” सुनकर शोधार्थी की आँखों में आँसू छलक आए।

(ब) “बरसों हो गए, मैं किसी पंजाबी मुसलमान से नहीं मिला शोधकर्ता का दूसरा किस्सा लाहौर के यूथ हॉस्टल के मैनेजर के बारे में है जिसने भारतीय होने के कारण शोधकर्ता को हॉस्टल में कमरा देने से मना कर दिया। लेकिन उसने उसे चाय पिलाई तथा दिल्ली का एक किस्सा सुनाया तो उसने कहा कि पचास के दशक में मेरी पोस्टिंग दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास में हुई थी। वहाँ एक सरदार से उसने पंजाबी में पहाड़गंज का पता पूछा तो सरदार ने उससे गले मिलते हुए कहा कि “बरसों हो गए मैं किसी पंजाबी मुसलमान से नहीं मिला। मैं मिलने को तरस रहा था। परन्तु यहाँ पंजाबी बोलने वाले मुसलमान मिलते ही नहीं।”

(स) “ना, नहीं! तुम कभी हमारे नहीं हो सकते” यह शोधकर्ता शोध के ही दौरान लाहौर में एक आदमी से मिला जिसने भूल से उसे अप्रवासी पाकिस्तानी समझ लिया था जब शोधकर्ता ने बताया कि वह भारतीय है तो उसके मुँह से निकल पड़ा, “ओह हिन्दुस्तानी में समझा था आप पाकिस्तानी हैं।” शोधकर्ता ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की कि हम दोनों दक्षिण एशियाई हैं लेकिन वह अड़ा रहा कि “ना, नहीं तुम कभी हमारे नहीं हो सकते। तुम्हारे लोगों ने 1947 में मेरा पूरा गाँव का गाँव साफ कर दिया था। हम कट्टर दुश्मन हैं और हमेशा रहेंगे।”

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→ ऐतिहासिक मोड़ –
(अ) बँटवारा या महाध्वंस (होलोकॉस्ट) – बँटवारे में कई लाख लोग मारे गए करोड़ों बेघरबार हो गए तथा अजनबी धरती पर शरणार्थी बनकर रह गए। सबसे ज्यादा ज्यादती औरतों के साथ हुई, उनका अपहरण हुआ, बलात्कार किया गया तथा जबरन दूसरे के साथ रहने को मजबूर होना पड़ा। जानकारों के अनुसार मरने वालों की संख्या 2 से 5 लाख तक रही होगी। ये लोग दुबारा तिनकों से अपनी जिन्दगी खड़ी करने को मजबूर हो गए। जिन्दा बचने वाले ने दूसरे शब्दों में इसे ‘मार्शल लॉ’, ‘मारा-मारी’, ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’ कहा है। समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने कई बार ‘महाध्वंस’ (होलोकॉस्ट) शब्द का उल्लेख किया है। भारत विभाजन | के समय जो ‘नस्ली सफाया हुआ वह सरकारी कारगुजारी नहीं बल्कि धार्मिक समुदायों के स्वयंभू-प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।

(ब) रूढ़ छवियों की ताकत – भारत में पाकिस्तान के प्रति घृणा का दृष्टिकोण और पाकिस्तान में भारत के प्रति घृणा का दृष्टिकोण रखने वाले दोनों ही विभाजन की उपज हैं।

→ विभाजन क्यों और कैसे हुआ? – विभाजन क्यों और कैसे हुआ इसके अनेक कारण बताए गए हैं। यथा- (अ) हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों की निरन्तरता का लम्बा इतिहास – कुछ इतिहासकार भारतीय भी और पाकिस्तानी भी, यह मानते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना की यह समझ कि औपनिवेशिक भारत में हिन्दू और मुसलमान दो पृथक् राष्ट्र थे, मध्यकालीन इतिहास पर भी लागू की जा सकती है। ये इतिहासकार इस बात पर बल देते हैं कि 1947 की घटनाएँ मध्य और आधुनिक युगों में हुए हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों के लम्बे इतिहास से बारीकी से जुड़ी हुई हैं। यद्यपि उनकी यह बात महत्त्वपूर्ण है तथापि इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि लोगों की मानसिकता पर बदलती परिस्थितियों का असर होता है।

(ब) पृथक् चुनाव क्षेत्र की राजनीति – कुछ अन्य विद्वानों का यह मानना है कि देश का बँटवारा एक ऐसी सांप्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था जो बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों की सांप्रदायिक राजनीति से प्रारम्भ हुआ था। लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि बँटवारा पृथक् चुनाव क्षेत्रों की प्रत्यक्ष देन है।

(स) अन्य कारण 20वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में सांप्रदायिक अस्मिताएँ कई अन्य कारणों से भी पक्की हुई। 1920-30 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव पैदा हुए। फिर भी ऐसा कहना सही नहीं होगा कि बँटवारा केवल सीधे-सीधे बढ़ते हुए सांप्रदायिक तनावों के कारणों से हुआ। क्योंकि सांप्रदायिक तनावों तथा साम्प्रदायिक राजनीति और विभाजन में गुणात्मक अन्तर है।

सांप्रदायिकता से अभिप्राय साम्प्रदायिकता उस राजनीति को कहा जाता है जो धार्मिक समुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है ऐसी राजनीति धार्मिक पहचान को बुनियादी और अटल मानती है। यह किसी धार्मिक समुदाय के आंतरिक फर्को को दबाकर उसकी एकता पर बल देती है तथा उसे अन्य समुदाय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करती है। यह किसी चिह्नित ‘गैर’ के खिलाफ घृणा की राजनीति को पोषित करती हैं। अतः सांप्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष तरह का राजनीतिकरण है जो धार्मिक समुदायों में झगड़े पैदा करवाने की कोशिश करता है।

→ 1937 में प्रांतीय चुनाव और कॉंग्रेस मंत्रालय प्रांतीय संसदों के गठन के लिए 1937 में पहली बार चुनाव कराये गये। इन चुनावों में कांग्रेस के परिणाम अच्छे रहे। लेकिन मुस्लिम लीग इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी। उसे कुल मुस्लिम मतों का केवल 44 प्रतिशत ही मिल पाया। इन चुनावों के बाद निम्न कारणों से विभाजन के विचार को बढ़ावा मिला –

(अ) मुस्लिम लीग संयुक्त प्रान्त में कॉंग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी, लेकिन काँग्रेस को यहाँ पूर्ण बहुमत प्राप्त था। इसलिए उसने मुस्लिम लीग का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इससे लीग के सदस्यों में यह बात घर कर गई कि अविभाजित भारत में मुसलमानों के हाथों में राजनीतिक सत्ता नहीं आयेगी क्योंकि वे अल्पसंख्यक हैं।

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(ब) मुसलमानों में यह मान्यता उभरी कि मुस्लिम हितों का प्रतिनिधित्व एक मुस्लिम पार्टी ही कर सकती है।

(स) जिला की यह जिद कि मुस्लिम लीग को ही मुसलमानों की एकमात्र प्रवक्ता पार्टी माना जाये, उस समय बहुत कम लोगों को मंजूर भी फलतः 1930 के दशक में लीग ने मुस्लिम क्षेत्रों में एकमात्र प्रवक्ता बनने की अपने कोशिशें दोहरी कर दीं।

(द) काँग्रेस मंत्रालयों ने संयुक्त प्रान्त में मुस्लिम लीग के प्रस्ताव को ठुकरा कर मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम पर अधिक बल न देकर मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकी थी।

→ पाकिस्तान का प्रस्ताव- पाकिस्तान की स्थापना की माँग धीरे-धीरे ठोस रूप ले रही थी। यथा –
(अ) 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट सी मांग में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था। इस प्रस्ताव के लेखक सिकंदर हयात ने संघीय इकाइयों के लिए इस स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले संयुक्त महासंघ के समर्थन में अपने विचारों को पुनः 1941 में दोहराया।

(ब) कुछ लोगों का मानना है कि पाकिस्तान गठन की माँग उर्दू कवि मो. इकबाल से शुरू होती है जिन्होंने ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ लिखा था 1930 में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण देते हुए उन्होंने एक ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की जरूरत पर जोर दिया। उस भाषण में भी उन्होंने एक नये देश की माँग नहीं उठाई थी बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को शिथिल भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दिया था।

→ विभाजन का अचानक हो जाना – पाकिस्तान के बारे में अपनी माँग पर लीग की राय पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी प्रारम्भ में खुद जिला भी पाकिस्तान की सोच को सौदेबाजी में एक पैंतरे के तौर पर ही इस्तेमाल कर रहे थे, जिसका वे सरकार द्वारा काँग्रेस को मिलने वाली रियायतों पर रोक लगाने और मुसलमानों के लिए रियायतें हासिल करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को झुकना पड़ा और संभावित सत्ता हस्तान्तरण के बारे में भारतीय पक्षों के साथ वार्ता जारी की।

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→ युद्धोत्तर घटना क्रम –
(अ) केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा का विचार जब युद्ध के बाद 1945 में दुबारा बातचीत प्रारम्भ हुई तो अँग्रेज इस बात पर राजी हो गए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाई जाएगी, जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराय और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के उनकी राय में यह पूर्ण स्वतंत्रता की ओर प्रारम्भिक कदम होगा। सत्ता हस्तान्तरण के बारे में यह चर्चा टूट गई क्योंकि जिला इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार किसी को नहीं है। पंजाब में यूनियनिस्टों का मुसलमानों में दबदबा था और अंग्रेजों के वफादार होने के कारण अँग्रेज उन्हें नाराज नहीं करना चाहते थे।

मुस्लिम लीग के अतिरिक्त और –

(ब) सामान्य चुनाव – 1946 में पुनः प्रांतीय चुनाव हुए। सामान्य सीटों पर कांग्रेस को एकतरफा सफलता मिली 91.3 प्रतिशत गैर मुस्लिम वोट काँग्रेस को मिले मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भी ऐसी सफलता मिली। मध्य प्रान्त में भी लीग को भारी सफलता मिली। इस प्रकार 1946 में जाकर ही मुस्लिम लोग खुद को मुसलमानों की एकमात्र प्रवक्ता होने का दावा करने में सक्षम बनी।

→ विभाजन का एक संभावित विकल्प –

(अ) मार्च, 1946 में ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने लीग की माँग का अध्ययन करने और स्वतंत्र भारत के लिए एक उचित राजनीतिक रूपरेखा सुझाने के लिए तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली भेजा। इसे कैबिनेट मिशन कहा गया। इस मिशन ने तीन महीने तक भारत का दौरा किया और एक ढीले- ढाले त्रिस्तरीय महासंघ का सुझाव दिया। इसमें भारत अविभाजित ही रहने वाला था, जिसकी केन्द्रीय सरकार काफी कमजोर होती और उसके पास केवल विदेश रक्षा और संचार का जिम्मा होता मौजूदा प्रांतीय सभाओं को तीन हिस्सों क, ख, ग में समूहबद्ध किया जाना था।

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(ब) शुरुआत में सभी प्रमुख पार्टियों ने इस योजना को मान लिया था लेकिन वह समझौता अधिक देर तक नहीं चल पाया। सभी पक्षों ने अलग-अलग ढंग से इसकी व्याख्या की थी। कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को काँग्रेस और लीग दोनों ने नहीं माना और यह मिशन अपने उद्देश्य में असफल रहा। इसके बाद विभाजन कमोबेश अपरिहार्य हो गया था काँग्रेस के ज्यादातर नेता इसे अवश्यंभावी परिणाम मान चुके थे लेकिन गाँधीजी व अब्दुल गफ्फार खाँ अन्त तक विभाजन का विरोध करते रहे।

→ विभाजन की ओर कैबिनेट मिशन से अपना समर्थन वापस लेने के बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को अमली जामा पहनाने के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही करने का फैसला लिया। 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने का ऐलान किया। उसी दिन कलकत्ता में दंगा भड़क उठा, जो कई दिनों तक चला और उसमें कई हजार लोग मारे गए मार्च, 1947 तक उत्तर भारत के बहुत सारे हिस्सों में हिंसा फैल चुकी थी। मार्च, 1947 में काँग्रेस हाईकमान ने पंजाब को मुस्लिम बहुल और हिन्दू सिख बहुल, दो हिस्सों में बाँटने की मंजूरी दे दी। इसे पंजाब के सिख और काँग्रेसी नेताओं ने मान लिया। कॉंग्रेस ने बंगाल के मामले में भी यही सिद्धान्त अपनाने का सुझाव दिया क्योंकि बंगाल में भद्र बंगाली हिन्दुओं का सत्ताधारी तबका मुसलमानों के रहम पर जीना नहीं चाहता था।

→ कानून व्यवस्था का नाश मार्च, 1947 से तकरीबन साल भर तक रक्तपात चलता रहा। इसका एक कारण था कि शासन की संस्थाएँ बिखर चुकी थीं। सांप्रदायिक हिंसा इसलिए अधिक बढ़ रही थी कि पुलिस वाले भी हिन्दू, मुस्लिम और सिख के आधार पर आचरण करने लगे थे। जैसे-जैसे सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगा वैसे- वैसे वर्दीधारियों के प्रति लोगों का भरोसा कमजोर पड़ने लगा। बहुत सारे स्थानों पर न केवल पुलिसवालों ने अपने धर्म व लोगों की मदद की बल्कि उन्होंने दूसरे समुदायों पर हमले भी किए।

→ महात्मा गाँधी एक अकेली फौज –

(अ) दंगों की उथल-पुथल में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए एक आदमी की बहादुराना कोशिशें आखिरकार रंग लाने लगीं। 77 साल के बुजुर्ग गाँधीजी ने अहिंसा के अपने जीवन पर्यन्त सिद्धान्त को एक बार फिर आजमाया और अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया। उन्हें विश्वास था लोगों का हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। वे पूर्वी बंगाल के नोआखाली (वर्तमान बांग्लादेश) से बिहार के गाँवों और कलकत्ता व दिल्ली के दंगों में झुलसी झोपड़पट्टियों की यात्रा पर निकल पड़े। उनकी कोशिश थी कि सांप्रदायिक सद्भावना बनी रहे सभी मिलजुल कर रहें। उन्होंने लोगों को दिलासा दी।

(ब) 28 नवम्बर, 1947 को गुरुनानक जयन्ती के अवसर पर गाँधीजी ने गुरुद्वारा शीशगंज में अपने संबोधन में कहा, “हमारे लिए यह बड़ी शर्म की बात है कि चाँदनी चौक में एक भी मुसलमान दिखाई नहीं देता।” गाँधीजी अपनी हत्या तक दिल्ली में ही रहे पाकिस्तान से आए हिन्दू और सिख शरणार्थी भी गाँधीजी के साथ अनशन में बैठे। उनकी हत्या के बाद दिल्ली के बहुत सारे मुसलमानों ने कहा, “दुनिया सच्चाई की राह पर आ गई थी।”

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→ बँटवारे में औरतों पर अत्याचार – बँटवारे के दौरान औरतों पर बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया, उन्हें बार-बार खरीदा और बेचा गया। अनजान हालत में अजनबियों के साथ उन्हें अपनी जिन्दगी गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक अंदाजे के मुताबिक 30 हजार औरतों को बरामद किया गया। कई स्थानों पर परिवार की इज्जत बचाने के लिए स्वयं मर्दों ने ही अपनी बहन-बेटियों और पत्नियों को जान से मार दिया। कई स्थानों पर शत्रुओं से बचने के लिए औरतों ने कुएँ में कूद कर जान दे दी। इस प्रकार औरतें अपनी इज्जत बचाती थीं।

→ क्षेत्रीय विविधताएँ –
(अ) विभाजन का सबसे ज्यादा खूनी और विनाशकारी रूप पंजाब, उत्तर-पश्चिम से लेकर वर्तमान भारतीय पंजाब, हिमाचल और हरियाणा तक में सामने आया।

(अ) उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) के बहुत सारे परिवार पचास व साठ के दशक तक के शुरुआती सालों में भी पाकिस्तान जाकर बसते रहे। लेकिन बहुत सारों ने भारत में ही रहना पसन्द किया पाकिस्तान गए ऐसे लोग जो उर्दू भाषी थे, जिन्हें वहाँ पर मुहाजिर (अप्रवासी) कहा जाता है, वे सिन्ध प्रान्त के कराची और हैदराबाद इलाके में बस गए। धर्म के नाम पर विभाजन हुआ। लेकिन धर्म पूर्वी और पश्चिम पाकिस्तान को जोड़कर नहीं रख पाया। 1971-72 में पूर्वी पाकिस्तान ने स्वयं को पश्चिम से अलग कर नया राज्य बांग्लादेश बनाया।

→ मदद, मानवता, सद्भावना – हिंसा के कचरे और विभाजन की पीड़ा तले, इंसानियत और सौहार्द का एक विशाल इतिहास दबा पड़ा है क्योंकि आम लोग बँटवारे के समय एक-दूसरे की मदद भी कर रहे थे।

→ मौखिक गवाही और इतिहास –
(अ) मौखिक वृत्तांत, संस्मरण, डायरियाँ, पारिवारिक इतिहास और स्वलिखित ब्यौरे इन सबसे तकसीम (बँटवारे के दौरान आम लोगों की कठिनाइयों और मुसीबतों को समझने में मदद मिलती है। लाखों लोग बँटवारे की पीड़ा तथा एक मुश्किल दौर को चुनौती के रूप में देखते हैं। उनके लिए यह जीवन में अनपेक्षित बदलावों का समय था। 1946-50 के तथा उसके बाद भी जारी रहने वाले इन बदलावों से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समायोजन की जरूरत थी।

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(ब) व्यक्तिगत स्मृतियों से इतिहासकारों को बँटवारे जैसी घटनाओं के इस बारे में बहुरंगी और सजीव वृत्तांत लिखने की काबिलियत मिलती है मिलना नामुमकिन होता है। दौरान लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, सरकारी दस्तावेजों से ऐसी जानकारी

→ कानून व्यवस्था का नाश मार्च, 1947 से तकरीबन साल भर तक रक्तपात चलता रहा। इसका एक कारण था कि शासन की संस्थाएँ बिखर चुकी थीं सांप्रदायिक हिंसा इसलिए अधिक बढ़ रही थी कि पुलिस वाले भी हिन्दू, मुस्लिम और सिख के आधार पर आचरण करने लगे थे। जैसे-जैसे सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगा वैसे- वैसे वर्दीधारियों के प्रति लोगों का भरोसा कमजोर पड़ने लगा। बहुत सारे स्थानों पर न केवल पुलिसवालों ने अपने धर्म व लोगों की मदद की बल्कि उन्होंने दूसरे समुदायों पर हमले भी किए।

→ महात्मा गाँधी एक अकेली फौज –
(अ) दंगों की उथल-पुथल में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए एक आदमी की बहादुराना कोशिशें आखिरकार रंग लाने लगीं। 77 साल के बुजुर्ग गाँधीजी ने अहिंसा के अपने जीवन पर्यन्त सिद्धान्त को एक बार फिर आजमाया और अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया। उन्हें विश्वास था लोगों का हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। वे पूर्वी बंगाल के नोआखाली (वर्तमान बांग्लादेश) से बिहार के गाँवों और कलकत्ता व दिल्ली के दंगों में झुलसी झोपड़पट्टियों की यात्रा पर निकल पड़े। उनकी कोशिश थी कि सांप्रदायिक सद्भावना बनी रहे सभी मिलजुल कर रहें। उन्होंने लोगों को दिलासा दी।

(ब) 28 नवम्बर, 1947 को गुरुनानक जयन्ती के अवसर पर गाँधीजी ने गुरुद्वारा शीशगंज में अपने संबोधन में कहा, “हमारे लिए यह बड़ी शर्म की बात है कि चाँदनी चौक में एक भी मुसलमान दिखाई नहीं देता।” गाँधीजी अपनी हत्या तक दिल्ली में ही रहे पाकिस्तान से आए हिन्दू और सिख शरणार्थी भी गाँधीजी के साथ अनशन में बैठे। उनकी हत्या के बाद दिल्ली के बहुत सारे मुसलमानों ने कहा, “दुनिया सच्चाई की राह पर आ गई थी।”

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→ बँटवारे में औरतों पर अत्याचार – बँटवारे के दौरान औरतों पर बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया, उन्हें बार-बार खरीदा और बेचा गया। अनजान हालत में अजनबियों के साथ उन्हें अपनी जिन्दगी गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक अंदाजे के मुताबिक 30 हजार औरतों को बरामद किया गया। कई स्थानों पर परिवार की इज्जत बचाने के लिए स्वयं मदों ने ही अपनी बहन-बेटियों और पत्नियों को जान से मार दिया। कई स्थानों पर शत्रुओं से बचने के लिए औरतों ने कुएं में कूद कर जान दे दी। इस प्रकार औरतें अपनी इज्जत बचाती थीं।

→ क्षेत्रीय विविधताएँ –
(अ) विभाजन का सबसे ज्यादा खूनी और विनाशकारी रूप पंजाब, उत्तर-पश्चिम से लेकर वर्तमान भारतीय पंजाब, हिमाचल और हरियाणा तक में सामने आया।

(अ) उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) के बहुत सारे परिवार पचास व साठ के दशक तक के शुरुआती सालों में भी पाकिस्तान जाकर बसते रहे लेकिन बहुत सारों ने भारत में ही रहना पसन्द किया। पाकिस्तान गए ऐसे लोग जो उर्दू भाषी थे, जिन्हें वहाँ पर मुहाजिर (अप्रवासी) कहा जाता है, वे सिन्ध प्रान्त के कराची और हैदराबाद इलाके में बस गए। धर्म के नाम पर विभाजन हुआ। लेकिन धर्म पूर्वी और पश्चिम पाकिस्तान को जोड़कर नहीं रख पाया। 1971-72 में पूर्वी पाकिस्तान ने स्वयं को पश्चिम से अलग कर नया राज्य बांग्लादेश बनाया।

→ मदद, मानवता, सद्भावना – हिंसा के कचरे और विभाजन की पीड़ा तले, इंसानियत और सौहार्द का एक विशाल इतिहास दबा पड़ा है। क्योंकि आम लोग बँटवारे के समय एक-दूसरे की मदद भी कर रहे थे।

→ मौखिक गवाही और इतिहास –
(अ) मौखिक वृत्तांत, संस्मरण, डायरियाँ, पारिवारिक इतिहास और स्वलिखित ब्यौरे इन सबसे तकसीम (बँटवारे के दौरान आम लोगों की कठिनाइयों और मुसीबतों को समझने में मदद मिलती है। लाखों लोग बँटवारे की पीड़ा तथा एक मुश्किल दौर को चुनौती के रूप में देखते हैं। उनके लिए यह जीवन में अनपेक्षित बदलावों का समय था। 1946-50 के तथा उसके बाद भी जारी रहने वाले इन बदलावों से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समायोजन की जरूरत थी।

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(ब) व्यक्तिगत स्मृतियों से इतिहासकारों को बंटवारे जैसी घटनाओं के दौरान लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, इस बारे में बहुरंगी और सजीव वृत्तांत लिखने की काबिलियत मिलती है सरकारी दस्तावेजों से ऐसी जानकारी मिलना नामुमकिन होता है।

(स) मौखिक इतिहास से इतिहासकारों को गरीबों और कमजोरों, औरतों, शरणार्थियों, विधवाओं एवं पेशावरी व्यापारी आदि के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से निकाल कर अपने विषय के किनारों की तरफ फैलाने का मौका मिलता है। इस प्रकार सम्पन्न और सुज्ञात लोगों की गतिविधियों से आगे जाते हुए विभाजन का मौखिक इतिहास ऐसे मर्दों औरतों के अनुभवों की पड़ताल करने में कामयाब रहा है जिनके वजूद को नजरअंदाज कर दिया जाता था, सहज-स्वाभाविक मान लिया जाता था। यह उल्लेखनीय बात है क्योंकि जो इतिहास हम पढ़ते हैं उसमें आम इंसानों के जीवन और कार्यों को अकसर पहुँच के बाहर या महत्त्वहीन मान लिया जाता है।

(द) अनेक इतिहासकारों को यह शक है कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती और इनसे घटनाओं का जो क्रम उभरता है वह अकसर सही नहीं होता। ऐसे इतिहासकारों की दलील है कि निजी तजुबों की विशिष्टता के सहारे सामान्यीकरण करना, यानी किसी सामान्य नतीजे पर पहुँचना मुश्किल होता है।

(य) भारत के विभाजन और जर्मनी के महाविध्वंस जैसी घटनाओं के संदर्भ में ऐसी गवाहियों की कोई कमी नहीं होगी, जिनसे पता चलता है कि उनके बीच अनगिनत लोगों ने कितनी तरह की और कितनी भीषण कठिनाइयों व तनावों का सामना किया। मिसाल के तौर पर सरकारी रिपोर्टों से हमें भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों द्वारा ‘बरामद ‘ की गई औरतों की अदला-बदली और तादाद का पता चल जाता है। लेकिन उन औरतों ने भोगा क्या, उन पर क्या कुछ बीती इसका जवाब तो सिर्फ वे औरतें ही दे सकती हैं।

काल-रेखा
1930 प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इकबाल एकीकृत ढीले-ढाले भारतीय संघ के भीतर एक ‘उत्तरपश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की जरूरत का विचार पेश करते हैं।
1933,1935 कैम्ब्रिज में पढ़ने वाले एक पंजाबी मुसलमान युवक चौधरी रहमत अली ने पाकिस्तान या पाक-स्तान नाम पेश किया।
1937-39 ब्रिटिश भारत के 11 में से 7 प्रांतों में काँग्रेस के मंत्रिमंडल सत्ता में आए।
1940 लाहौर में मुस्लिम लीग मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए कुछ हद तक स्वायत्तता की माँग करते हुए प्रस्ताव पेश करती है।
1346 प्रांतों में चननाव सम्पन्न होते हैं। सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में काँग्रेस को और मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम लीग को शानदार कामयाबी मिलती है।
मार्च से जून ब्रिटिश कैबिनेट अपना तीन सदस्य मिशन दिल्ली भेजता है।
अगस्त मुस्लिम लीग पाकिस्तान की स्थापना के लिए ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही’ के पक्ष में फैसला लेती है।
16 अगस्त कलकत्ता में हिन्दू-सिखों और मुसलमानों के बीच हिंसा फूट पड़ती है, कई दिन चलने वाली इस हिंसा में हजारों लोग मारे जाते हैं।
मार्च, 1947 काँग्रेस हाईकमान पंजाब को मुस्लिम-बहुल और हिन्दू/सिख बहुल हिस्सों में बाँटने के पक्ष में फैसला लेता है और बंगाल में भी इसी सिद्धान्त को अपनाने का आह्वान करता है।
मार्च, 1947 के बाद अँग्रेज भारत छोड़कर जाने लगते हैं।
14-15 अगस्त, 1947 पाकिस्तान का गठन होता है; भारत स्वतंत्र होता है। महात्मा गाँधी सांप्रदायिक सौहार्द बहाल करने के लिए बंगाल का दौरा करते हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Jharkhand Board Class 12 History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 349

प्रश्न 1.
1915 से पूर्व भारत में हुए राष्ट्रीय आन्दोलनों के बारे में और जानकारी इकट्ठा कीजिए व पता लगाइए कि क्या महात्मा गाँधी की टिप्पणियाँ न्यायसंगत हैं?
उत्तर:
1915 से पूर्व भारत में निम्नलिखित राष्ट्रीय आन्दोलन हुए –

  • 1857 का विद्रोह
  • 1885 में कांग्रेस की स्थापना
  • 1905 में बंगाल का विभाजन
  • स्वदेशी आन्दोलन।

महात्मा गाँधी की टिप्पणियां न्यायसंगत हैं।

पृष्ठ संख्या 354

प्रश्न 2.
आपने अध्याय 11 में अफवाहों के बारे में पढ़ा और देखा कि इन अफवाहों का प्रसार एक समय के विश्वास के ढाँचों के बारे में बताता है, यह बताता है उन लोगों के मन-मस्तिष्क के बारे में जो इन अफवाहों में विश्वास करते हैं और उन परिस्थितियों के बारे में जो इन विश्वासों को संभव बनाती है। आपके अनुसार गाँधीजी के विषय में अफवाहों से क्या पता चलता है?
उत्तर:
गाँधीजी के बारे में फैली अफवाहों से हमें यह पता चलता है कि लोग उन्हें एक पहुँचा हुआ महात्मा या सिद्ध पुरुष मानकर उनमें अपनी श्रद्धा प्रकट करते थे। भले ही ये घटनाएँ किन्हीं परिस्थितियोंश घट गई हों, लेकिन आम जनता ने उन्हें सच मानकर उनमें अपना विश्वास प्रकट किया। गरीब जनता गाँधीजी को अपना उद्धारक मानने लगी थी।

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पृष्ठ संख्या 355 चर्चा कीजिए

प्रश्न 3.
असहयोग क्या था? विभिन्न सामाजिक वर्गों ने आन्दोलन में किन विभिन्न तरीकों से भाग लिया, इसके बारे में पता लगाइए।
उत्तर:
(1) असहयोग एक ऐसा आन्दोलन था जिसमें से भारतीयों ने अंग्रेजों द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने मना कर दिया था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों की नौकरी न करना भी इसका एक मुख्य भाग था
(2) सामाजिक वर्गों की प्रतिक्रिया

  • व्यक्तियों ने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया।
  • विदेशी सामान का प्रयोग बन्द कर दिया।
  • विदेशी उपाधि वापस कर दी गयी।
  • विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी।

पृष्ठ संख्या 357

प्रश्न 4.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा नमक को क्यों नष्ट किया जाता था? महात्मा गाँधी नमक कर को अन्य करों की तुलना में अधिक दमनात्मक क्यों मानते थे?
उत्तर:
(1) औपनिवेशिक सरकार द्वारा नमक पर कर लगाया गया था। यह कर नमक की लागत का 14 गुना तक होता था। बिना कर अदा किए गए नमक का प्रयोग करने से रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार उस नमक को, जिससे वह लाभ नहीं कमा पाती थी, नष्ट कर देती थी। वह देश की जनता को नमक के उत्पादन से रोकती थी। प्रकृति ने जिसे बिना किसी श्रम के उत्पादित किया जाता उसे भी नष्ट कर देती थी। यह उसकी अन्यायपूर्ण नीति की विशेषता कही जा सकती थी। सरकार बेरहम थी तथा भारतीयों की समस्या को बिलकुल नहीं समझती थी

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(2) महात्मा गाँधी नमक कर को इसलिए अन्य करों की तुलना में दमनात्मक मानते थे क्योंकि नमक भोजन का अनिवार्य अंग है और इसे अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते हैं। नमक कर की माश भी बहुत अधिक थी। यह लागत का 14 गुना तक लगाया जाता था। नमक हमारी राष्ट्रीय संपदा का मूल्यवान अंश था। इस पर लगाया जाने वाला कर भूखे लोगों से हजार प्रतिशत से अधिक की उगाही की जाती थी। आम लोगों की उदासीनता के कारण यह कर लम्बे समय तक बना रहा। अब जनता जाग चुकी है। अतः इस कर को समाप्त करना ही होगा।

पृष्ठ संख्या 358

प्रश्न 5.
उल्लिखित भाषण के आधार पर बताइये कि गाँधीजी औपनिवेशिक राज्य को कैसे देखते थे?
उत्तर:
5 अप्रैल, 1930 को दाण्डी में दिए गए भाषण में गाँधीजी के सरकार के बारे में निम्नलिखित विचारों का पता लगता है –
(1) वे ब्रिटिश सरकार को पर्याप्त उदार मानते थे। जब गाँधीजी नमक बनाने के लिए अपने साथियों के साथ दाण्डी यात्रा पर निकले तो उन्हें विश्वास नहीं था कि उन्हें दाण्डी तक पहुँचने दिया जाएगा।

(2) वे ब्रिटिश शासन में यह आस्था रखते थे कि वह औपनिवेशिक राज्य होते हुए भी कानून की सीमा में रहने वालों को अनावश्यक रूप से हतोत्साहित नहीं करेगी।

(3) उनका मानना था कि औपनिवेशिक राज्य शान्ति और अहिंसा में विश्वास रखने वाले राष्ट्रभक्तों की सेना को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं रखता।

(4) गाँधीजी मानते थे कि सरकार को शान्ति व अहिंसा में विश्वास रखने वालों को गिरफ्तार करने में शर्म महसूस होती है। उनके अनुसार सरकार शान्तिप्रिय सत्याग्रहियों को गिरफ्तार न करके अपनी शिष्टता का परिचय दे रही है। यदि वह अन्यायपूर्ण ढंग से गिरफ्तार करती तो उसके देश में ही उसकी आलोचना होती।

(5) गाँधीजी औपनिवेशिक राज्य द्वारा जनमत की परवाह करने के लिए उसे बधाई का पात्र मानते थे। पृष्ठ संख्या 362 चर्चा कीजिए

प्रश्न 6.
स्रोत 5 एवं 6 को पढ़िए। दमित वर्गों के लिए पृथक् निर्वाचिका के मुद्दे पर अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच काल्पनिक संवाद को लिखिए।
उत्तर:

  • गाँधीजी के अनुसार पृथक् निर्वाचिका से यह समस्या समाप्त नहीं हो सकती अपितु स्थायी हो जाएगी।
  • गाँधीजी के अनुसार अस्पृश्यता की समस्या को सामाजिक प्रयासों से हल करना चाहिए।
  • अम्बेडकर के अनुसार हिन्दू व्यवस्था अत्यधिक जटिल है। यहाँ दमित वर्ग का कोई स्थान नहीं है।
  • अम्बेडकर के अनुसार राजनैतिक भागीदारी ही दमित वर्ग का कल्याण कर सकती है ।

पृष्ठ संख्या 369

प्रश्न 7.
(क) इन पत्रों से इस बारे में क्या पता चलता है कि समय के साथ काँग्रेस के आदर्श किस तरह विकसित हो रहे थे?
(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका के बारे में इन पत्रों से क्या पता चलता है?
(ग) क्या ऐसे पत्रों से काँग्रेस की आन्तरिक कार्यप्रणाली तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में कोई विशेष दृष्टि प्राप्त होती है?
उत्तर:
(क) इन पत्रों से हमें यह पता चलता है कि काँग्रेस के आदर्शों में निम्न रूप में परिवर्तन आ रहा था –

  • जवाहरलाल नेहरू सोवियत रूस से प्रभावित होकर समाजवादी विचारधारा के अनुसार काँग्रेस को चलाना चाहते थे
  • सरदार पटेल व डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अपनी पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक थे।
  • इन्हीं विचारों के कारण दोनों में टकराहट भी बढ़ रही थी जिसमें गाँधीजी मध्यस्थता करते थे।

(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन में गांधीजी की भूमिका के बारे में हमें पता चलता है कि गांधीजी दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास करते थे तथा उनका शुकाव जवाहरलाल नेहरू के प्रति अधिक था।

(ग) इन पत्रों से हमें कॉंग्रेस की आन्तरिक कार्यप्रणाली का भी पता चलता है कि काँग्रेस में अन्तर्कलह भी शुरू हो गया था। नेहरूजी समाजवाद की ओर बढ़ रहे थे तथा उनके सहयोगी रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक थे। पृष्ठ संख्या 370, चित्र संख्या 13.16

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प्रश्न 8.
क्या आपको इस तस्वीर और पुलिस की पाक्षिक रिपोटों में दी गई जानकारियों के बीच कोई अन्तर्विरोध दिखाई देता है?
उत्तर:
हाँ, हमें प्रस्तुत तस्वीर और पाक्षिक रिपोर्टों के मध्य अन्तर्विरोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है पाक्षिक रिपोर्ट बताती है कि गृह विभाग यह मानने को तैयार ही नहीं था कि महात्मा गाँधी की कार्यवाहियों को व्यापक जन समर्थन मिल रहा था रिपोर्ट में इस जन आन्दोलन को एक नाटक करतब तथा हताश लोगों का प्रयास बताया गया, जबकि तस्वीर को देखने से पता चलता है कि गाँधीजी की कार्यवाही को भरपूर जनसमर्थन मिल रहा था।

पृष्ठ संख्या 373

प्रश्न 9.
पाक्षिक रिपोर्टों को ध्यान से पढ़िए। बाद रखिए कि ये औपनिवेशिक गृह विभाग की गोपनीय रिपोर्टों के अंश हैं। इन रिपोर्टों में हमेशा केवल पुलिस की ओर से भेजी गई जानकारियों को ही नहीं लिखा जाता था।
(1) स्रोत की पृष्ठभूमि से यह बात किस हद तक प्रभावित होती है कि इन रिपोटों में क्या कहा जा रहा है? उपर्युक्त अंशों से उद्धरण लेते हुए अपने तर्क को पुष्ट कीजिए।
(2) क्या आपको लगता है कि गृह विभाग महात्मा गाँधी की संभावित गिरफ्तारी के बारे में लोगों की सोच को अपनी रिपोर्टों में सही ढंग से दर्ज नहीं कर रहा था? यदि आपका उत्तर हाँ है तो उसके समर्थन में कारण बताइए। 5 अप्रैल, 1930 को दांडी में अपने भाषण में गाँधीजी ने गिरफ्तारियों के सवाल पर जो कहा था, उसे दुबारा पढ़िए।
(3) महात्मा गाँधी को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया? गृह विभाग लगातार यह क्यों कहता रहा कि दांडी यात्रा के प्रति लोगों में कोई उत्साह नहीं है?
उत्तर:
(1) रिपोर्टों की पृष्ठभूमि को पढ़ने से पता लगता है कि इन गोपनीय रिपोर्टों में सही तथ्यों को छिपाया जा रहा था। गाँधीजी की दाण्डी यात्रा में एक बड़ा जनसमूह उनके साथ था लेकिन रिपोर्ट में उसे कम आँका गया उदाहरण के लिए मार्च, 1930 के पहले पखवाड़ा की रिपोर्ट हमारे तर्क को पुष्ट करती है। 44 “गुजरात में आ रहे तेज राजनीतिक बदलावों पर यहाँ गहरी नजर रखी जा रही है। इनसे प्रांत की राजनीतिक परिस्थितियों पर किस हद तक और क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है। रबी की फसल अच्छी हुई है इसलिए फिलहाल किसान फसलों की कटाई में व्यस्त हैं। विद्यार्थी आने वाली परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं।” यह रिपोर्ट वास्तविकता को प्रकट नहीं करती है।

(2) गृह विभाग महात्मा गाँधी की गिरफ्तारी को लेकर जनता की सोच को वास्तव में प्रकट नहीं कर रहा था। इसका कारण यह था कि सत्याग्रह की सक्रियता और निष्क्रियता दोनों से सरकार को ही नुकसान पहुँचेगा। यदि सरकार गाँधीजी को गिरफ्तार करती है तो उसे राष्ट्र के कोप का भाजन बनना पड़ेगा और यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन फैलता जायेगा। इसलिए हमारा मानना है कि अगर सरकार गांधीजी को दण्डित करती है तो भी राष्ट्र की विजय होगी और अगर सरकार उन्हें अपने रास्ते पर चलने देती है तो राष्ट्र की और भी बड़ी विजय होगी। (केसरी अखबार से)

(3) सरकार ने गाँधीजी को इस कारण से गिरफ्तार नहीं किया कि यदि वह गाँधीजी को गिरफ्तार करती है तो राष्ट्र के कोप का भाजन बनना पड़ेगा तथा आन्दोलन और जोर पकड़ जायेगा।

(4) गृह विभाग अपनी रिपोर्ट में वास्तविकता बताता तो जनता में इसका और प्रचार होता तथा आन्दोलन और जोर पकड़ सकता था। इसी बात को ध्यान में रखकर गृह विभाग अपनी सही रिपोर्ट नहीं देता था।

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Jharkhand Board Class 12 History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे स्थापत्य Text Book Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने स्वयं को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए –
(1) गाँधीजी ने आम आदमी की तरह साधारण वस्त्र विशेषकर खादी से बने वस्त्र पहनना शुरू किया। उन्होंने चरखा चलाया, कुटीर उद्योग-धंधों, दलितों के हितों, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार और सच्ची सहानुभूति प्रदर्शित की।
(2) वह आम लोगों की तरह रहते थे और उनकी ही भाषा में बोलते थे। अन्य नेताओं की भाँति वह सामान्य बल्कि वे उनसे सहानुभूति रखते थे तथा उनसे पनिष्ठ सम्बन्ध भी स्थापित कर लेते थे। जनसमूह से अलग नहीं खड़े होते थे –
(3) गाँधीजी आम लोगों के बीच एक साधारण धोती में जाते थे।
(4) गाँधीजी प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा चलाते थे।
(5) वह मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम में कोई भेदभाव नहीं करते थे।
(6) वह सामान्यजनों के सुख-दुःख में निरन्तर भाग लोते थे।
(7) गाँधीजी साधारण लोगों की तरह मात्र धोती पहनते थे। वे अपने कार्य स्वयं किया करते थे।

प्रश्न 2.
किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
किसान गाँधीजी को निम्न रूप में देखते थे –
(1) अपना सच्चा हितैषी किसान गाँधीजी को अपना सच्चा हितैषी मानते थे किसानों की मान्यता थी कि वे उनके दुःखों एवं कठिनाइयों का निवारण कर सकते हैं तथा उनके पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत कराने की शक्ति है।

(2) उद्धारक के रूप में गांधीजी किसानों में बहुत लोकप्रिय थे। वे गाँधीजी को ‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराज’, ‘सामान्य महात्मा’ आदि नामों से पुकारते थे। गाँधीजी किसानों के लिए एक उद्धारक के समान थे जो उनको भूराजस्व की ऊंची दरों और दमनकारी अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले तथा उनके जीवन में मान-मर्यादा तथा स्वायत्तता वापस लाने वाले थे। गाँधीजी की सात्विक शैली तथा साधारण वेशभूषा किसानों को प्रभावित करती थी।

(3) चमत्कारी शक्ति किसानों की दृष्टि में गाँधीजी एक चमत्कारी व्यक्ति थे। किसानों की मान्यता थी कि गाँधीजी औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिला सकते हैं। उस समय ये अफवाहें भी प्रचलित थीं कि गाँधीजी की आलोचना करने वाले लोगों के पर गिर गए और उनकी फसलें नष्ट हो गई।

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प्रश्न 3.
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर:
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष के लिए एक विशेष विषय या मुद्दा बन गया था, क्योंकि –
(1) उन दिनों नमक के निर्माण और बेचने पर ब्रिटिश शासन का एकाधिकार था।
(2) नमक ऐसी वस्तु थी जिसका गरीब से गरीब और अमीर से अमीर सभी अपने भोजन में प्रयोग करते थे परन्तु उन्हें ऊंचे दामों पर नमक खरीदना पड़ता था।
(3) नमक कानून को तोड़ने का अर्थ था विदेशी शासन व ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देना। नमक पर सरकार का एकाधिकार बहुत अलोकप्रिय था। गाँधीजी नमक के इस कानून को सबसे घृणित मानते थे। इसी को मुद्दा बनाते हुए गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन शुरू करने का निश्चय कर लिया। अधिकांश भारतीयों को गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व समझ में आ गया था यह स्वतंत्रता प्राप्ति का साधन था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गाँधीजी ने मार्च, 1930 में दाण्डी यात्रा शुरू की तथा समुद्र के किनारे नमक का उत्पादन करके ब्रिटिश कानून को तोड़ा।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को भली-भाँति समझने के लिए अखबार बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत हैं, क्योंकि
(1) अखबार जनसंचार का अच्छा माध्यम हैं और विशेषकर शिक्षित समुदाय पर अपना व्यापक प्रभाव डालते हैं प्रबुद्ध जनता लेखकों, कवियों, पत्रकारों, विचारकों तथा साहित्यकारों से अधिक प्रभावित होती है।

(2) समाचार पत्र जनमत का निर्माण करने के साथ जनता की अभिव्यक्ति को भी बताते हैं।

(3) यह सरकार और सरकारी अधिकारियों और आम लोगों में विचारों और समस्या के विषय में जानकारी देते हैं तथा कार्य में क्या प्रगति हो रही है तथा कौन से कार्य या क्षेत्र उपेक्षित हैं, उनकी जानकारी प्रदान करते हैं।

(4) राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अखवार जिन लोगों द्वारा पढ़े जाते थे वे देश में घटित घटनाओं, नेतागणों और अन्य लोगों की गतिविधियों तथा विचारों को जानते थे अखबार गाँधीजी की गतिविधियों पर नजर रखते थे तथा आम भारतीय उनके बारे में क्या सोचता है, वे इसको भी बताते थे।

प्रश्न 5.
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर:
(1) चरखा गाँधीजी को बहुत ही प्रिय था। वे अपने खाली समय में चरखा चलाते थे और स्वयं कती खादी से बने वस्त्र ही पहनते थे।

(2) उनका मानना था कि आधुनिक युग में मशीनों ने आदमी को अपना गुलाम बनाकर रख दिया है तथा बेरोजगारी को भी बढ़ावा दिया है। उन्होंने मशीनों की आलोचना की तथा चरखे को एक ऐसे मानव समाज के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकी को बहुत महिमा मंडित नहीं किया जाएगा।

(3) गाँधीजी के अनुसार भारत एक गरीब देश है। चरखे के द्वारा लोगों को पूरक आमदनी प्राप्त होगी, जिससे वे स्वावलंबी बनेंगे, बेरोजगारी और गरीबी से छुटकारा दिलाने में चरखा मदद करेगा।

(4) उनके अनुसार मशीनों से काम करके जो श्रम की बचत हो रही है उससे लोगों को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। उन्हें बेरोजगारी की दलदल में फेंका जा रहा है।

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(5) चरखा धन के विकेन्द्रीकरण में भी सहायक होगा। निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में )-

प्रश्न 6.
असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से एक तरह का प्रतिरोध ही था –
(1) रॉलेट एक्ट वापस लेने के लिए प्रतिरोध – यह आन्दोलन गाँधीजी के द्वारा ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे काले कानून को वापस लेने के लिए जन आक्रोश और प्रतिरोध प्रकट करने का लोकप्रिय माध्यम था।

(2) जलियाँवाला बाग हत्याकांड के दोषियों को बचाने की कार्यवाही का प्रतिरोध असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि भारत के राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज अधिकारियों कों दण्डित करवाना चाहते थे जिन्होंने जलियांवाला बाग में निर्दोष लोगों का संहार किया था। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड में 400 से अधिक लोग मारे गए थे।

(3) खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग – असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोधात्मक आन्दोलन था क्योंकि यह खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों हिन्दुओं और मुसलमानों को संगठित कर औपनिवेशिक शासन का अन्त कर देगा।

(4) सरकारी संस्थाओं व शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार – असहयोग आन्दोलन के दौरान विदेशी शिक्षा संस्थाओं और सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों का बहिष्कार किया गया।

(5) वकीलों द्वारा सरकारी अदालतों का बहिष्कार- असहयोग आन्दोलन में गांधीजी के आह्वान पर वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार कर दिया।

(6) मजदूरों द्वारा हड़ताल करना- इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का असर कस्बों और शहरों में काम करने वाले मजदूरों पर भी पड़ा, उन्होंने हड़ताल कर दी जानकार सूत्रों से पता चलता है कि 1921 में 396 हड़तालें हुई, जिनमें 6 लाख से अधिक मजदूरों ने भाग लिया।

(7) जनजातियों तथा किसानों का प्रतिरोध- असहयोग आन्दोलन का प्रभाव देश के ग्रामीण इलाकों में भी दिखाई पड़ रहा था। उदाहरण के लिए, उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन-कानूनों की अवहेलना करनी शुरू कर दी। अवध के किसानों ने सरकारी लगान नहीं चुकाया । कुमाऊँ के किसानों ने अंग्रेज अधिकारियों का सामान दोने से मना कर दिया।

(8) असहयोग आन्दोलन को स्थगित करना- चौरी- चौरा की हिंसात्मक घटना के कारण गाँधीजी ने 1922 में असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया। फिर भी यह आन्दोलन काफी सफल रहा।

प्रश्न 7.
गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर:
गाँधीजी की दाण्डी यात्रा की सफलता से अंग्रेजों को इस बात का एहसास हो गया कि अब भारत में उनका राज अधिक दिन तक नहीं चल पायेगा तथा उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए। लेकिन ये सम्मेलन सफल नहीं हो पाये।
(1) पहला गोलमेज सम्मेलन – पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लंदन में आयोजित किया गया, जिसमें देश के प्रमुख नेता सम्मिलित नहीं हुए। अतः यह सम्मेलन निरर्थक साबित हुआ।

(2) गाँधी इर्विन समझौता जनवरी, 1931 में गाँधीजी को जेल से मुक्त कर दिया गया। अगले ही महीने गाँधीजी और लार्ड इर्विन के साथ कई बैठकें हुईं। इन्हीं बैठकों के बाद गाँधी इर्विन समझौते पर सहमति बनी, जिसकी शर्तें इस प्रकार थीं –
(क) सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना।
(ख) सारे कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था। रैडिकल राष्ट्रवादियों ने इस समझौते की आलोचना की क्योंकि गांधीजी वायसराय से भारतीयों की राजनैतिक स्वतंत्रता का आश्वासन नहीं ले पाए थे।

(3) दूसरा गोलमेज सम्मेलन – दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 के आखिर में लंदन में आयोजित किया गया। उसमें गाँधीजी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में शामिल होकर नेतृत्व कर रहे थे। गाँधीजी का कहना था कि उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। उनके दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी
(क) मुस्लिम लीग का इस विषय में कहना था कि वह भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है।
(ख) भारत के राजे-रजवाड़ों का कहना था कि काँग्रेस का उनके नियन्त्रण वाले भागों पर कोई अधिकार नहीं है।
(ग) तीसरी चुनौती तेज-तर्रार वकील और विचारक ‘भीमराव अम्बेडकर की तरफ से थी, जिनका कहना था कि गाँधीजी और कॉंग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इसका परिणाम यह हुआ कि यह सम्मेलन भी असफल हो गया और गांधीजी लंदन से खाली हाथ लौट आए।

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(4) तीसरा गोलमेज सम्मेलन भारत में जिन दिनों सविनय अवज्ञा आन्दोलन चल रहा था, ब्रिटिश सरकार ने लंदन में तीसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया। परन्तु कॉंग्रेस पार्टी ने इसमें भाग नहीं लिया। सम्मेलन में लिए गए निर्णयों पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया गया, फिर इसके आधार पर 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट पास किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को स्वतन्त्रता प्रदान न करने और साम्प्रदायिकता की नीति को बढ़ावा देने के कारण गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ताओं का कोई परिणाम नहीं निकला।

प्रश्न 8.
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को निम्नलिखित तरीकों से बदल डाला—
(1) विश्व स्तर पर ख्याति – 1915 में भारत आने से पहले गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह को सफल बना चुके थे। उन्होंने मानववाद, समानता आदि के लिए प्रयास किए तथा रंगभेद और जातीय भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह किया तथा विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त की।

(2) राष्ट्रीय आन्दोलन को विशिष्ट वर्गीय आन्दोलन से जन-आन्दोलन में बदलना गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय आन्दोलन में किसानों, श्रमिकों और कारीगरों को भी शामिल कर एक जन- आन्दोलन में परिणत कर दिया।

(3) भारत के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण के लिए ब्रिटिश भारत सरकार जिम्मेदार – गाँधीजी ने अपने भाषणों तथा लेखों के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता को बता दिया कि भारत में फैली गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, दरिद्रता, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा और अंधविश्वास के लिए ब्रिटिश शासन जिम्मेदार है।

(4) जन – अनुरोध – गाँधीजी एक कुशल संगठनकर्त्ता थे। उन्होंने राष्ट्रवादी संदेश का संचार अंग्रेजी भाषा के स्थान पर मातृभाषा में किया। भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नवीन शाखाएँ खोली गईं तथा देशी राज्यों में ‘प्रजामण्डलों’ की स्थापना की गई।

(5) जननेता तथा अन्याय व शोषण के प्रति आवाज मुखरित करना – गाँधीजी समझते थे कि जब तक वे किसानों, मजदूरों और जनसाधारण के प्रति सरकार, जमींदारों, ताल्लुकदारों आदि के द्वारा किए जा रहे अन्याय व शोषण के विरुद्ध आवाज नहीं उठाएँगे तब तक जनता उन्हें अपने बीच का व्यक्ति नहीं समझेगी। इसलिए उन्होंने गरीब किसानों, मजदूरों और आम आदमी के शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की।

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(6) साम्प्रदायिक एकता के समर्थक – गाँधीजी हिन्दू और मुसलमान दोनों को अपनी दो आँखें मानते थे। वे साम्प्रदायिक एकता के हामी थे वे हिन्दू और मुसलमान में कोई भेद नहीं मानते थे। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करने के लिए खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया।

(7) नारी सशक्तिकरण के समर्थक गांधीजी नारी सशक्तिकरण के समर्थक थे। वे स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं करते थे। उन्होंने नारियों को राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल होने, चरखा कातने, खादी का प्रचार-प्रसार करने, शराब व नशाबंदी का विरोध करने को प्रेरित किया।

(8) प्रमुख समाज सुधारक – गाँधीजी ने समाज सुधार के कार्यों पर भी बहुत अधिक बल दिया। उन्होंने साबरमती आश्रम में स्वयं अपने हाथों से कार्य किया, ‘हरिजन सेवक पत्र’ के माध्यम से अस्पृश्यता के विरुद्ध शंखनाद किया। जब देश में धार्मिक घृणा व उन्माद फैला तो उन्होंने कई बार आमरण अनशन किया और दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा कर शान्ति स्थापना की।

उन्होंने चर्खा चलाने, स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग करने, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने, दलितोद्धार, स्वयं साधारण वस्त्र पहनने तथा सामान्य लोगों की तरह रहने, जनसामान्य की भाषा का प्रयोग करने आदि पर बल दिया। इस प्रकार गाँधीजी ने अपनी गतिविधियों और कार्यकलापों के माध्यम से भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप बदल डाला तथा अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त की।

प्रश्न 9.
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर:
निजी पत्रों तथा आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में हमें निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है –
(1) सम्पूर्ण जीवन वृत्त आत्मकथाओं या पत्रों से सम्बन्धित व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन काल, जन्म-स्थान, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय संचयों, कठिनाइयों तथा जीवन में आए उतार-चढ़ाव का पता लग जाता है। आत्मकथा में जीवन से जुड़ी घटनाएँ भी शामिल होती हैं।

(2) काँग्रेस के आदर्श और प्राथमिकताएँ – निजी पत्र जो राष्ट्रीय आन्दोलन के समय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा नेहरूजी को लिखे गये या नेहरूजी ने गाँधीजी को लिखे अथवा गाँधीजी ने नेहरू या अन्य नेताओं को समय-समय पर लिखे से काँग्रेस के आदर्श कैसे विकसित हुए, काँग्रेस के कार्यक्रम तथा प्राथमिकताएँ क्या र्थी इनका पता लगता है (छात्र/छात्राएँ पृष्ठ 367, स्रोत 7 में दिये गये पत्रों को पढ़कर देखें ) समय-समय पर उठने वाले आन्दोलनों में गाँधीजी की क्या भूमिका रही, यह हमें उस समय लिखे पत्रों से पता लगता है। इन पत्रों से हमें कॉंग्रेस की आंतरिक कार्यप्रणाली तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में अलग-अलग नेताओं के दृष्टिकोणों का पता लगता है।

(3) विभिन्न नेताओं की चारित्रिक विशेषताओं/ त्रुटियों की जानकारी – निजी पत्रों के माध्यम से विभिन्न राष्ट्रीय नेताओं की चारित्रिक विशेषताओं अथवा त्रुटियों के बारे में जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए, गाँधीजी ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र में लिखा, “तुम्हारे साथियों में तुम्हारे जैसा साहस और बेबाकी नहीं है। इसके परिणाम विनाशकारी हो रहे हैं। उनके पास साहस न होने के कारण वे जब भी बोलते हैं ऊटपटांग बोलते हैं जिससे तुम चिढ़ जाते हो। मैं तुम्हें बताता हूँ कि वे तुम्हें इसलिए डरा रहे हैं कि तुम उनसे चिढ़ जाते हो और उनके सामने धैर्य खो देते हो।”

इस प्रकार इस पत्र के माध्यम से हमें जवाहरलाल नेहरू के स्वभाव का पता चलता है तथा दूसरे नेताओं के व्यवहार का भी पता लग जाता है। सरकारी ब्यौरों और निजी पत्रों में अन्तर सरकारी ब्यौरों से निजी पत्र और आत्मकथाएँ बिल्कुल अलग होती हैं सरकारी ब्यौरे प्रायः गुप्त रूप से लिखे जाते हैं। ये लिखाने वाली सरकार और लिखने वाले विवरणदाता या लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों, दृष्टिकोणों आदि से प्रभावित होते हैं।

दूसरी ओर प्रायः निजी पत्र दो व्यक्तियों के बीच में आपसी सम्बन्ध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुड़ी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा, उसकी ईमानदारी, निष्पक्षता और सच्चे विवरण पर उसका मूल्य निर्धारित करती है। इस तरह सरकारी ब्यौरों से आत्मकथा तथा निजी पत्र बिल्कुल भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा में अपनी बुराइयों को भी दर्शाया है और अच्छाइयों को भी।

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महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे JAC Class 12 History Notes

→ प्रस्तावना-राष्ट्रवाद के इतिहास में प्राय: एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण के साथ जोड़कर देखा जाता है। इसी दृष्टि से भारत की आजादी के साथ महात्मा गाँधी को जोड़ कर देखा जाता है और उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया जाता है।

→ स्वयं की उद्घोषणा करता एक नेता –
(क) दक्षिणी अफ्रीका काल – मोहनदास करमचन्द गाँधी 20 वर्ष तक विदेश में रहने के बाद 1915 में भारत लौटे। इन वर्षों का उनका अधिकांश समय दक्षिण अफ्रीका में बीता, जहाँ वे इस क्षेत्र के भारतीय समुदाय के नेता बन गये। यहाँ उन्होंने पहली बार सत्याग्रह के रूप में अपनी विशिष्ट तकनीक का इस्तेमाल किया, विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया।

(ख) भारत लौटने पर भारत की स्थिति – जब वे भारत आए तो उस समय का भारत 1893 में जब वे विदेश गए थे, तब के समय से अपेक्षाकृत भिन्न था।

  • भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का विकास – अभी भी ब्रिटिश शासन था लेकिन अधिकांश शहरों में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की शाखाएँ खुल चुकी थीं।
  • प्रमुख उग्रवादी नेता – 1905-07 के स्वदेशी आन्दोलन ने कुछ प्रमुख नेताओं को जन्म दिया जिनमें लाल, बाल और पाल अत्यधिक प्रसिद्ध थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लड़ाकू प्रतिरोध का समर्थन किया था।
  • उदारवादी नेता – इसके अतिरिक्त कुछ उदारवादी नेता भी थे, जो क्रमिक विकास के हिमायती थे। इनमें प्रमुख गोपाल कृष्ण गोखले थे जो गाँधीजी के राजनीतिक गुरु थे 1

(ग) पहली सार्वजनिक उपस्थिति – उनकी पहली सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय दर्ज हुई। इसमें उन्होंने मजदूर गरीबों की ओर ध्यान न देने के कारण भारत के विशिष्ट वर्ग के लोगों को आड़े हाथों लिया।

(घ) चम्पारन में सत्याग्रह – 1916 के दिसम्बर में गाँधीजी को अपने नियमों को व्यवहार में लाने का मौका मिला। जब लखनऊ में चम्पारन से आये एक किसान ने उन्हें वहाँ अंग्रेज नील उत्पादकों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के बारे में बताया। यहीं से गांधीजी के राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ हुआ और चंपारन (बिहार) में प्रथम सत्याग्रह करके किसानों को मुक्ति दिलाई।

→ असहयोग की शुरुआत और अन्त- गाँधीजी का 1917 का अधिकतर समय काश्तकारी की सुरक्षा के साथ किसानों को मनपसन्द फसल पैदा करने की आजादी दिलाने में बीता।

(i) चंपारन, अहमदाबाद और खेड़ा में पहल – चंपारन, अहमदाबाद और खेड़ा में की गई पहल से गाँधीजी एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में उभरे जिसमें गरीबों के लिए गहरी सहानुभूति थी। ये सभी स्थानिक संघर्ष थे।

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(ii) रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह 1919 में औपनिवेशिक सरकार ने गाँधीजी की झोली में एक ऐसा मुद्दा डाल दिया जिससे वे कहीं अधिक विस्तृत आन्दोलन खड़ा कर सकते थे। प्रथम विश्व युद्ध (1914 1918) के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाया तथा बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। युद्ध के बाद ‘रॉलेट एक्ट’ के द्वारा ये प्रतिबन्ध जारी रखे गए।

गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह शुरू कर दिया। रॉलेट एक्ट के विरुद्ध किए गए सत्याग्रह से गाँधीजी एक राष्ट्रीय नेता बन गए थे। इस सफलता से प्रोत्साहित होकर गाँधीजी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक बड़ा आन्दोलन चलाने का निश्चय किया। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल डायर द्वारा भयंकर जनसंहार किया गया।

(iii) असहयोग आन्दोलन- गाँधीजी को यह आशा थी कि असहयोग को खिलाफत के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय हिन्दू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अन्त कर देंगे। छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया, वकीलों ने अदालत में जाना छोड़ दिया। कस्बों, नगरों और शहरों में मजदूरों ने हड़ताल कर दी। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 1921 में 396 हड़तालें हुई और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ। इस हड़ताल में 6 लाख मजदूर शामिल थे।

(iv) चौरी-चौरा काण्ड और असहयोग आन्दोलन का अन्त-फरवरी 1922 में संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले में स्थित एक पुलिस चौकी को आग लगा दी गई, जिसमें करीब 20 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। आन्दोलन हिंसक हो जाने के कारण गाँधीजी ने इसे वापस ले लिया। आन्दोलन के दौरान हजारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया। स्वयं गाँधीजी को मार्च, 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधीजी को 6 वर्ष की सजा दी गई।

→ गाँधीजी जन नेता के रूप में अब गाँधीजी एक जन नेता के रूप में स्थापित हो गए। निम्न स्थितियों ने उन्हें एक जन नेता बना दिया
(i) राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन में परिणत करना – 1922 तक गांधीजी ने भारतीय राष्ट्रवाद को एकदम बदल दिया था इस प्रकार फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपने भाषण में किए वायदे को उन्होंने पूरा किया। अब यह व्यावसायिकों और बुद्धिजीवियों का आन्दोलन न रहकर हजारों श्रमिकों, कारीगरों, किसानों और आम जनता का आन्दोलन बन गया था। इनमें से कई लोग गाँधीजी के प्रति आदर प्रकट करते हुए उन्हें ‘महात्मा’ कहने लगे। गाँधीजी साधारण वेशभूषा धारण करते थे। उन्होंने पारंपरिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम की दीवार तोड़ने में मदद की।

(ii) किसानों के उद्धारक – गांधीजी भारतीय किसान के लिए उद्धारक के समान थे। लोग उन्हें ‘गांधी बाबा’, ‘गांधी महाराज’ अथवा ‘सामान्य महात्मा’ जैसे अलग-अलग नामों से पुकारते थे वे किसानों की दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले, ऊँची दर के करों से मुक्ति दिलाने वाले और उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाने वाले थे।

(iii) भारतीय उद्योगपति और व्यापारी भी आन्दोलन के समर्थक कांग्रेस में कुछ भारतीय उद्योगपति और व्यापारी भी शामिल हो गए थे उनकी सोच थी कि अंग्रेजों द्वारा जो उनका शोषण हो रहा है, वह स्वतन्त्र भारत में समाप्त हो जाएगा।

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(iv) गाँधी व उनके अनुयायी नेता- 1917 से 1922 के बीच भारतीयों के एक बहुत ही प्रतिभाशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधीजी से जोड़ लिया था। इनमें महादेव भाई देसाई, वल्लभ भाई पटेल, जे. बी. कृपलानी, सुभाष चन्द्र बोस, अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, गोविन्द वल्लभ पंत और सी. राजगोपालाचार्य शामिल थे।

(v) समाज सुधारक के रूप में गाँधीजी – 1924 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपना ध्यान खादी को बढ़ावा देने तथा छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने तथा बाल विवाह को रोकने में लगाया। उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच सौहार्द पर बल दिया। उन्होंने विदेशों से आयातित वस्त्रों को पहनने के स्थान पर खादी पहनने की महत्ता पर जोर दिया।

→  नमक सत्याग्रह नजदीक से एक नजर-
(i) साइमन कमीशन के विरुद्ध आन्दोलन – असहयोग आन्दोलन की समाप्ति के कई वर्षों तक गाँधीजी ने अपने को समाज सुधार कार्यों में केन्द्रित रखा। 1927 में साइमन कमीशन के विरुद्ध होने वाले आन्दोलन तथा बारदोली में किसानों के सत्याग्रह में स्वयं भाग न लेकर दोनों को केवल अपना आशीर्वाद दिया था।

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(ii) लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज की घोषणा – 1929 में दिसम्बर के अन्त में लाहौर में काँग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन किया। इस अधिवेशन की दो बातें मुख्य थीं –
(1) जवाहरलाल नेहरू द्वारा अध्यक्षता करना और
(2) भारत को ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा करना। 26 जनवरी, 1930 को देशभर में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत गाकर औपनिवेशिक भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया जो हर 26 जनवरी के दिन प्रतिवर्ष 1947 तक मनाया जाता रहा।

(iii) दाण्डी यात्रा स्वतंत्रता दिवस’ मनाए जाने के तुरन्त बाद महात्मा गाँधी ने एक घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सबसे अधिक घृणित कानूनों में से एक, जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया है, को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे। प्रत्येक भारतीय के घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य था इसके बावजूद उन्हें नमक बनाने से रोका गया। नमक कानून को निशाना बनाकर गाँधीजी ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक असंतोष को संघटित करने की सोच रहे थे।

(iv) मुट्ठीभर नमक – अधिकांश भारतीयों को गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व समझ में आ गया था, लेकिन ब्रिटिश शासन इसे नहीं समझ सका। अपनी दाण्डी यात्रा की सूचना गाँधीजी ने लार्ड इरविन को दे दी थी, लेकिन उसकी समझ में बात नहीं आई। 12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा शुरू की तीन हफ्ते बाद समुद्र किनारे पहुँचकर उन्होंने मुट्ठीभर नमक बनाकर कानून को तोड़ा और स्वयं को कानून की निगाह में अपराधी बना दिया।

(v) स्वराज की सीढ़ियाँ – वसना नामक गाँव में गाँधीजी ने ऊंची जाति वालों को संबोधित करते हुए कहा था कि “यदि आप स्वराज के हक में आवाज उठाते हैं तो आपको अछूतों की सेवा करनी पड़ेगी सिर्फ नमक कर या अन्य करों के खत्म हो जाने से आपको स्वराज नहीं मिल जायेगा। स्वराज के लिए आपको अपनी उन गलतियों का प्रायश्चित करना होगा जो आपने अछूतों के साथ की हैं। स्वराज के लिए हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सिक्ख सबको एकजुट होना पड़ेगा ये स्वराज की सीढ़ियाँ हैं।”

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(vi) नमक यात्रा का महत्त्व – नमक याश कम से कम निम्नलिखित तीन कारणों से उल्लेखनीय थी –
(क) यही वह घटना थी जिसके चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नजर में आए इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी
(ख) यह पहली गतिविधि थी जिसमें औरतों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। समाजवादी कार्यकर्ता कमला देवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया कि वे अपने आन्दोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें। कमला देवी खुद उन असंख्य औरतों में से एक थीं जिन्होंने नमक या शराब कानूनों को तोड़ते हुए सामूहिक गिरफ्तारी दी।
(ग) तीसरा और संभवतः सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि नमक यात्रा के कारण अंग्रेजों को यह एहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन तक नहीं टिक पाएगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।

→ गोलमेज सम्मेलन –
(i) पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लंदन में आयोजित किया गया, जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए।
(ii) दूसरा गोलमेज सम्मेलन दिसम्बर, 1931 में लंदन में आयोजित हुआ जिसमें गाँधीजी शामिल हुए। लेकिन यह सम्मेलन सफल नहीं हुआ।

(7) सविनय अवज्ञा आन्दोलन भारत लौटकर गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।

(8) गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट में सीमित प्रातिनिधिक शासन व्यवस्था का आश्वासन व्यक्त किया गया। दो साल बाद सीमित मताधिकार के आधार पर हुए चुनावों में काँग्रेस -को जबरदस्त सफलता मिली 11 में से 8 प्रांतों में काँग्रेस के प्रधानमंत्री’ सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देखरेख में काम करते थे।

(9) पाकिस्तान की माँग मार्च, 1940 में मुस्लिम लीग ने ‘पाकिस्तान’ के नाम से पृथक् राष्ट्र की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया और उसे अपना लक्ष्य घोषित कर दिया। अब राजनीतिक भू-दृश्य काफी जटिल हो गया था। यह संघर्ष भारतीय बनाम ब्रिटिश न रहकर काँग्रेस, मुस्लिम लीग और ब्रिटिश शासन के बीच शुरू हो गया।

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(10) भारत छोड़ो आन्दोलन- क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला लिया। अगस्त, 1942 में शुरू हुए इस आन्दोलन को ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधीजी फौरन गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन युवा कार्यकर्ता देश में हड़तालों और तोड़फोड़ के जरिए आन्दोलन चलाते रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायने में जन आन्दोलन था जिसमें लाखों आम हिन्दुस्तानी शामिल थे।

(11) द्वितीय विश्व युद्ध व गाँधीजी की रिहाई-जून, 1944 में जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने काँग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच फासले को पाटने के लिए जिला के साथ कई बार बातचीत की। 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी, जो भारत को स्वतंत्र करने के पक्ष में थी।

(12) कैबिनेट मिशन – 1946 की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन ने काँग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राजी करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रान्तों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी कैबिनेट मिशन का यह प्रयास विफल रहा।

(13) प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस जिन्ना ने पाकिस्तान स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया। इसके लिए 16 अगस्त, 1946 का दिन तय किया। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह संघर्ष कलकत्ता से लेकर ग्रामीण बंगाल, बिहार संयुक्त प्रान्त और पंजाब तक फैल गया।

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(14) स्वतंत्रता व विभाजन फरवरी, 1947 में वावेल की जगह माउंटबैटन वायसराय बनकर आये, उन्होंने वार्ताओं के लिए अन्तिम दौर का आह्वान किया। जब सुलह के लिए उनका अन्तिम प्रयास भी विफल हो गया तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्र कर दिया जायेगा, लेकिन उसका विभाजन होगा। इसके लिए 15 अगस्त का दिन नियत किया गया। दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गांधीजी को ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि से संबोधित किया।

(15) आखिरी, बहादुराना दिन –
(i) 15 अगस्त, 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों में गाँधीजी नहीं थे उस समय वे कलकत्ता में थे लेकिन उन्होंने वहाँ भी न तो किसी कार्यक्रम में भाग लिया, न ही कहीं शण्डा फहराया। गाँधीजी उस दिन 24 घण्टे के उपवास पर थे। उन्होंने इतने दिन तक जिस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था वह एक अकल्पनीय कीमत पर उन्हें मिली थी। उनका राष्ट्र विभाजित था, हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन पर सवार थे।

(ii) काँग्रेस ने आश्वासन दिया कि “वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी।”

(iii) बहुत सारे विद्वानों ने स्वतंत्रता के बाद के महीनों को गाँधीजी के जीवन का ‘ श्रेष्ठतम क्षण’ कहा है। बंगाल में शान्ति स्थापना के बाद वे दिल्ली आ गए।

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(iv) गाँधीजी ने स्वतंत्र और अखण्ड भारत के लिए जीवन भर संघर्ष किया। फिर भी जब देश विभाजित हो गया तो उनकी दिली इच्छा थी कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ सम्मान और दोस्ती के सम्बन्ध बनाए रखेंगे।। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

(v) गाँधीजी की हत्या 30 जनवरी, 1948 की शाम को दैनिक प्रार्थना सभा में एक युवक ने गोली मारकर गाँधी जी की हत्या कर दी। उनके हत्यारे ने कुछ समय बाद आत्मसमर्पण कर दिया। वह नाथूराम गोडसे नाम का व्यक्ति था। पुणे का रहने वाला गोडसे एक अखबार का संपादक था।

काल-रेखा
1915 महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटते हैं।
1917 चम्पारन आन्दोलन।
1918 खेड़ा (गुजरात) में किसान आन्दोलन तथा अहमदाबाद में कपड़ा मिल मजदूर आन्दोलन।
1919 रॉलेट सत्याग्रह (मार्च-अप्रैल)।
1919 जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड (13 अप्रैल)।
1921 असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन।
1928 बारदोली में किसान आन्दोलन।
1929 लाहौर अधिवेशन (दिसम्बर) में ‘पूर्ण स्वराज्य’ को काँग्रेस का लक्ष्य घोषित किया जाता है।
1930 सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू; दांडी यात्रा (मार्च-अप्रैल)।
1931 गाँधी-इर्विन समझौता (मार्च); दूसरा गोलमेज सम्मेलन।
1935 गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट में सीमित प्रातिनिधिक सरकार के गठन का आश्वासन।
1939 काँग्रेस मंत्रिमण्डलों का त्याग-पत्र, द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ (सितम्बर)।
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू (अगस्त)।
1946 महात्मा गाँधी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए नोआखाली तथा अन्य हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करते हैं।
1947 भारत को स्वतंत्रता (15 अगस्त) व विभाजन।
1948 जनवरी 30, गाँधीजी का बलिदान-दिवस।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Jharkhand Board Class 12 History औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 323 चर्चा कीजिए

प्रश्न 1.
जनगणना के अलावा ऐसी दो विधियाँ बताइए जिनके माध्यम से आधुनिक शहरों में आँकड़े इकट्ठा करने और उनको संकलित करने का काम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन चुका है। सांख्यिकीय आँकड़ों या शहर के नक्शों में से किसी एक का अध्ययन कीजिए। पता लगाइए कि ये आँकड़े किसने और क्यों इकट्ठा किए? इस तरह के संग्रह में कौनसे सम्भावित भेद छिपे हो सकते हैं? कौनसी जानकारियाँ थीं जिनको दर्ज नहीं किया गया? यह पता लगाइए कि वे नक्शे क्यों बनाए गए और क्या उनमें शहर के सभी भागों को समान बारीकी से चिन्हित किया गया है?
उत्तर:
(1) नगरपालिका के द्वारा किया जाने वाला गृह-सर्वेक्षण
(2) पल्स पोलियो अभियान।
शेष प्रश्नों की जानकारी विद्यार्थी शिक्षक के माध्यम से प्राप्त करें।

पृष्ठ संख्या 325

प्रश्न 2.
चित्र 12.8 तथा 12.9 को देखिए। सड़कों पर होने वाली उन गतिविधियों पर ध्यान दीजिए, जिन्हें डेनियल बन्धु चित्र में दर्शाना चाहते हैं। इन गतिविधियों से अठारहवीं सदी के आखिर में कलकत्ता की सड़कों के सामाजिक जीवन के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
चित्र संख्या 128 और 12.9 में डेनियल बन्धुओं ने कलकत्ता की सड़कों पर आवागमन के साधनों को दर्शाया है। चित्र संख्या 12.8 से पता चलता है कि सड़कों में सुधार हो गया था। सम्पन्न लोग पालकी और टमटम (बन्द घोड़ागाड़ी) में बैठकर चलते थे जिनके आगे -पीछे घुड़सवार चलते थे सामान ढोने के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग होता था, आम आदमी अपने सिर पर टोकरों में सामान लेकर चलता था। लोग पैदल भी चलते थे। सड़कें पक्की बन गई थीं। चित्र में राइटर्स बिल्डिंग चित्र थीं भी दर्शायी गई है, जो एक प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र था। संख्या 12.9 से हमें पता चलता है कि सड़कें कच्ची तथा आवागमन के लिए बग्गी, बैलगाड़ी, ऊँट आदि का प्रयोग सम्पन्न लोगों द्वारा किया जाता था तथा आम आदमी पैदल चलता था।

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पृष्ठ संख्या 334

प्रश्न 3.
रिपोटों में लिखी बातों से अक्सर रिपोर्ट लिखने वाले के विचारों का पता चलता है। उपरोक्त वक्तव्य में लिखने वाला व्यक्ति किस तरह के शहरी भू- दृश्य को बेहतर मानता है और वह किस तरह की बसावट को हेय दृष्टि से देख रहा है? क्या आप इन विचारों से सहमत हैं?
उत्तर:
उपरोक्त वक्तव्य में लिखने वाला यूरोपीय ढंग से बनने वाले व्हाइट टाउन पार्क जैसे मकानों को अच्छी दृष्टि से देख रहा है और भारतीय ढंग से बसे व बने ब्लैक टाउन के मकानों को हेय दृष्टि से देख रहा है। |यद्यपि व्यक्ति को अपने देश की इमारतों तथा भवन निर्माण की शैली से विशेष लगाव या प्यार होता है, लेकिन दूसरे | देश की शैली की भी अपनी विशेषता होती है। इसलिए उसे हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। हम लिखने वाले के विचार से सहमत नहीं हैं।

पृष्ठ संख्या 337

प्रश्न 4.
वेलेजली ने सरकार की जिम्मेदारी को किस तरह परिभाषित किया है? इस भाग को पढ़िए और चर्चा कीजिए कि इन विचारों को लागू किया जाता तो उनसे शहर में रहने वाले भारतीयों पर क्या असर पड़ता ?
उत्तर:
वेलेजली ने कलकत्ता मिनट्स (1803) में लिखा था, “यह सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी है कि इस विशाल शहर में सड़कों, नालियों और जलमार्गों में एक समग्र व्यवस्था बनाकर तथा मकानों व सार्वजनिक भवनों के निर्माण व प्रसार के बारे में स्थायी नियम बनाकर और हर तरह की गड़बड़ियों को नियंत्रित करने के स्थायी नियम बनाकर यहाँ के निवासियों को स्वास्थ्य, सुरक्षा और सुविधा उपलब्ध कराए।”

यदि वेलेजली के इन विचारों को लागू किया जाता तो शहर में रहने वाले भारतीयों पर इसके अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव पड़ते। जो सम्पन्न और धनी मानी लोग थे, उन्हें उपरोक्त सुविधाएँ उपलब्ध हो सकती थीं लेकिन जो मजदूर वर्ग के या गरीब तबके के लोग थे, उन्हें शहर के बाहर बस्तियों में रहने को मजबूर होना पड़ता। जैसा आगे चलकर लॉटरी कमेटी द्वारा बहुत सारी झोंपड़ियों को साफ करके गरीब मेहनतकशों को बाहर निकालकर कलकत्ता के बाहरी किनारे पर रहने की जगह दी गई।

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Jharkhand Board Class 12 History औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Text Book Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सम्भाल कर क्यों रखे जाते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में निम्नलिखित कारणों से रिकॉर्ड्स सम्भाल कर रखे जाते थे –

  • शहर की आबादी कितनी बढ़ी है या घटी है, यह जानने के लिए उसका रिकॉर्ड रखा जाता था। शहरों तथा ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत जानने में भी ये रिकार्ड उपयोगी थे।
  • शहर की चारित्रिक विशेषताओं के अन्वेषण के समय उन रिकार्डों का प्रयोग सामाजिक और अन्य परिवर्तनों को जानने के लिए आवश्यक था।
  • इन रिकार्डों के द्वारा शहरों में यातायात, व्यापारिक गतिविधियाँ, सफाई, परिवहन और प्रशासनिक कार्यालयों की आवश्यकताओं को जानने, समझने और उन पर आवश्यकतानुसार कार्य करने के लिए नागरिकों की मृत्यु दर तथा बीमारियों का पता लगाने के लिए यह रिकार्ड सहायक होते थे। ये आंकड़े स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते थे।
  • शहरों में मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने तथा शहरों के विकास की योजनाएँ बनाने के लिए भी ये रिकार्ड उपयोगी होते थे।
  • इन आंकड़ों से कानून व्यवस्था बनाये रखने में सहायता प्राप्त होती थी।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक सन्दर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना सम्बन्धी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
उत्तर:

  • जनगणना सम्बन्धी आँकड़े शहरीकरण की गति को दर्शाते हैं। इन आँकड़ों से हमें पता चलता है कि सन् 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। पूरी 19वीं शताब्दी और बीसवीं सदी के प्रथम दो दशकों में शहरी आबादी का अनुपात बहुत साधारण और लगभग स्थिर रहा।
  • जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़ों से नागरिकों के लिंग, जाति, धर्म एवं व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
  • इन आँकड़ों से नागरिकों की जन्म दर एवं मृत्यु दर के प्रतिशत के बारे में जानकारी मिलती है।
  • जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े विभिन्न समुदायों तथा जातियों के लोगों के रोजगार तथा व्यवसायों की जानकारी देते हैं।
  • ये आंकड़े लोगों के स्वास्थ्य के स्तर की भी जानकारी देते हैं।
  • जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े श्वेत व अश्वेत टाऊन के निर्माण, विस्तार एवं उनके जीवन सम्बन्धी स्तर, भयंकर बीमारियों के जनसंख्या पर पड़े दुष्प्रभाव आदि को जानने में भी उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 3.
‘हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
डाइट और ब्लैक टाउन शब्दों का महत्व- अंग्रेज लोग नस्लभेद, रंग-भेद व जातीय भेदभाव में विश्वास करते थे। हाइट टाउन गोरे लोगों की बस्ती के लिए जाना जाता था और ब्लैक टाउन भारतीय व्यापारी, कारीगर और कामगारों की बस्ती के लिए जाना जाता था। हाइट टाउन- 18वीं सदी में अंग्रेजों ने मद्रास, कलकत्ता और बम्बई में जो बस्तियों के किले बनाए उनमें किले के अन्दर रहने के लिए गोरे लोगों की बस्तियाँ बसाई गई। इन्हें उस समय के लेखन में ‘हाइट टाउन’ के नाम से उद्धृत किया जाता था। यहाँ गोरे लोगों को जीवन की सभी मूलभूत सुविधाएँ प्राप्त थीं। यहाँ चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदान, चर्च, क्लब आदि की समुचित व्यवस्था थी। यहाँ सफाई और सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था थी।

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अंग्रेजों की दृष्टि में –

  • भारतीयों की बस्ती ब्लैक टाउन कहलाती थी।
  • ब्लैक टाउन घने और बेतरतीब ढंग से बसे हुए थे।
  • ये अराजकता और हो-हल्ले के केन्द्र थे तथा गन्दगी और बीमारी के स्रोत भी थे।
  • अंग्रेजों ने यहाँ सफाई और स्वच्छता के लिए कोई ध्यान नहीं दिया।
  • ब्लैक टाउन में मन्दिर और बाजार के इर्द- गिर्द रिहायशी मकान बनाए गए थे
  • शहर के बीच से गुजरने वाली आड़ी-टेढ़ी संकरी गलियों में अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे। चिन्ताद्रीपेठ इलाका केवल बुनकरों के लिए था। वाशरमेनपेट में रंगसाज तथा धोबी रहते थे।

प्रश्न 4.
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?
उत्तर:
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों अर्थात् कलकत्ता, मद्रास और बम्बई में खुद को निम्न प्रकार स्थापित किया –
(1) मद्रास में दुबाश लोग एजेन्ट और व्यापारी के रूप में काम करते थे और भारतीय समाज तथा अंग्रेजों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।

(2) 18वीं शताब्दी तक मद्रास, बम्बई और कलकत्ता महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे। यूरोपीय व्यापारियों के साथ लेन-देन चलाने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर अलग बस्तियों में रहते थे। रेलवे के विकास के साथ शहरों का भी विकास हुआ। 1850 के दशक के बाद भारतीय व्यापारियों ने भी बम्बई में सूती कपड़ा मिलें स्थापित कीं।

(3) भारतीय व्यापारी कम्पनी के व्यापार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे बम्बई के रहने वाले व्यापारी चीन को जाने वाली अफीम के व्यापार में हिस्सेदार थे। उन्होंने बम्बई की अर्थव्यवस्था को मालवा, सिंध और राजस्थान जैसे अफीम उत्पादक इलाकों से जोड़ने में सहायता दी। कम्पनी के साथ गठजोड़, एक मुनाफे का सौदा था, जिससे आगे चलकर पूँजीपति वर्ग का जन्म हुआ। भारतीय व्यापारियों में सभी समुदाय – पारसी, मारवाड़ी, यहूदी, कोंकणी, मुसलमान, गुजराती बनिए, बोहरा आदि शामिल थे। 1869 में स्वेज नहर को व्यापार के लिए खोले जाने से बम्बई के व्यापारिक सम्बन्ध विश्व अर्थव्यवस्था के साथ और मजबूत हुए। उनीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक बम्बई में भारतीय व्यापारी काटन मिल जैसे नए उद्योगों में अपना धन लगा रहे थे।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल गए थे?
अथवा
औपनिवेशिक काल में मद्रास के क्रमिक शहरीकरण का वर्णन कीजिये।
अथवा
अंग्रेजों ने मद्रास का शहरीकरण किस प्रकार किया?
उत्तर:
(1) आसपास के गाँवों से लोग आकर मद्रास में रहने लगे थे। ग्रामीण तथा शहरी लोग मुख्यतः मद्रास के ‘ब्लैक टाउन’ में रहते थे। ब्लैक टाउन में परम्परागत भारतीय ढंग के मन्दिर, रिहायशी मकान, आड़ी-टेढ़ी सँकरी गलियाँ और अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे।

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(2) मद्रास में विविध प्रकार के व्यवसाय करने वाले लोग रहते थे। स्थानीय ग्रामीण जाति के बेल्लालार लोग ब्रिटिश कम्पनी के अधीन नौकरियाँ करते थे। पेरियार और वन्नियार गरीब कामगार वर्ग के तमिल लोग थे।

(3) यूरोपवासी भी धीरे-धीरे किले से बाहर जाने लगे। उन्होंने गार्डेन हाउसेज बनाये। इसी दौरान सम्पन्न भारतीय भी अंग्रेजों की भाँति रहने लगे। परिणामस्वरूप मद्रास के आस-पास स्थित गाँवों की जगह अनेक नये उपनगर बस गए। गरीब लोग निकट पड़ने वाले गाँवों में बस गए। इस प्रकार मद्रास के बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप इन गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के भीतर आ गए। इस प्रकार मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्त्व काफी हद तक घुल-मिल गए।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए ( लगभग 250 से 300 शब्दों में ) –

प्रश्न 6.
अठारहवीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण किस तरह हुआ?
अथवा
18वीं शताब्दी के मध्य में नगरों का रूप परिवर्तन क्यों और कैसे हुआ?
उत्तर:
18वीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण 16वीं और 17वीं सदी में आगरा, दिल्ली और लाहौर मुगलकालीन प्रशासन और सत्ता के महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे तथा मदुरई और कांचीपुरम दक्षिण भारत के प्रमुख धार्मिक और व्यापारिक केन्द्र थे। लेकिन 18वीं सदी में इन शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण होने लगा। इन शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण निम्न प्रकार हुआ—
(1) राजनीतिक पुनर्गठन के कारण नये शहरी केन्द्रों का विकास – राजनीतिक पुनर्गठन के कारण नये शहरी केन्द्रों का विकास हुआ। यथा –

  • मुगल राजधानियों का पतन – मुगल सत्ता के पतन के कारण ही उसके शासन से सम्बद्ध नगरों का अवसान हो गया। मुगल राजधानियों, दिल्ली और आगरा ने अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो दिया।
  • क्षेत्रीय राजधानियों का विकास-नयी क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों – लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपद्म पूना (पुणे), नागपुर, बड़ौदा और तंजौर (तंजावुर ) के बढ़ते महत्त्व में परिलक्षित हुआ। व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केन्द्रों से इन नयी राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आए। नये राज्यों के बीच निरन्तर लड़ाइयों का परिणाम यह था कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ तैयार रोजगार मिलता था।
  • कस्बे और गंज जैसी नयी शहरी बस्तियों का विकास – कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से सम्बद्ध अधिकारियों ने भी इस अवसर का उपयोग ‘कस्बे’ और ‘गंज’ जैसी नयी शहरी बस्तियों को बसाने में किया।

(2) व्यापारिक पुनर्गठन के कारण नये शहरी केन्द्रों का विकास – व्यापार तन्त्रों में परिवर्तन शहरी केन्द्रों के रूपान्तरण में परिलक्षित हुए।

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यथा –
यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों की व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने पहले, मुगलकाल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिये थे। जैसे – पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी में, डचों ने 1605 में मछलीपट्नम में अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी में व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केन्द्रों के आसपास नगर विकसित होने लगे।

(3) ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजनीतिक नियंत्रण के स्थापित होने के बाद विकसित आर्थिक राजधानियाँ- मध्य 18वीं सदी से परिवर्तन का एक नया चरण प्रारम्भ हुआ। जब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगीं तो 17वीं सदी में विकसित हुए सूरत, मछलीपट्नम तथा ढाका पतनोन्मुख हो गये 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद जैसे-जैसे अंग्रेजों ने राजनीतिक नियंत्रण हासिल किया और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार फैला तो मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह शहर तेजी से नयी आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरे इन तीनों शहरी केन्द्रों का विकास इस प्रकार हुआ –

  • ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गये थे।
  • यहाँ नए भवनों और संस्थानों का विकास हुआ।
  • यहाँ शहरी स्थानों को नए तरीकों से व्यवस्थित किया गया।
  • यहाँ नए रोजगार विकसित हुए और लोग इन औपनिवेशिक शहरों की ओर उमड़ने लगे। लगभग सन् 1800 तक ये जनसंख्या की दृष्टि से भारत के विशालतम शहर बन गये थे।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में सामने आने वाले नए सार्वजनिक स्थान और उनके उद्देश्य निम्नलिखित थे –
(i) गोदियों और घाटियों का विकास -18वीं सदी तक मद्रास, बम्बई तथा कलकत्ता महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे। यहाँ अनेक कारखाने तथा व्यापारिक केन्द्र स्थापित हुए नदी या समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों वा घाटियों का विकास हुआ।

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(ii) गोदामों, बीमा एजेंसियों आदि की स्थापना- समुद्र किनारे गोदामों, वाणिज्यिक कार्यालयों, जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना हुई।

(iii) प्रशासनिक कार्यालय- कम्पनी के मुख्य प्रशासकीय कार्यालय समुद्र तट से दूर बनाये गये। कलकत्ता में स्थित ‘राइटर्स बिल्डिंग’ इसी तरह का एक दफ्तर हुआ करती थी। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव का संकेत था। यहाँ ‘राइटर्स’ से तात्पर्य क्लर्कों से था।

(iv) यूरोपीय शैली के मकान – किले की चारदीवारी के आसपास यूरोपीय व्यापारियों और एजेण्टों ने यूरोपीय शैली के महलनुमा मकान बना लिए थे। कुछ लोगों ने शहर की सीमा से सटे उपशहरी इलाकों में बगीचाघर बना लिए थे। शासक वर्ग के लिए शहरों में क्लब, रेसकोर्स और रंगमंच भी बनाए गए।

(v) ह्वाइट और ब्लैक टाउन- 19वीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को दो भागों में बाँट दिया गया, जिनको क्रमश: सिविल लाइन्स या हाइट टाउन, जिसमें सफेद रंग वाले गोरे यूरोपीय रहते थे तथा दूसरा ब्लैक टाउन, जिसमें देसी भारतीय लोग रहते थे, कहा गया। ह्वाइट टाउन व सिविल लाइन्स में यूरोपीय शैली के महलनुमा मकान, बगीचा घर, क्लब, रेसकोर्स और रंगमंच, सड़कें, बंगले, परेड मैदान, चर्च आदि थे जो शासक वर्ग के लिए नस्ली विभेद पर आधारित थे।

(vi) भूमिगत पाइपलाइन तथा नालियों की व्यवस्था – साफ-सफाई का ध्यान रखने के लिए भूमिगत पाइपलाइन तथा ढकी हुई नालियों की व्यवस्था की गई।

(vii) हिल स्टेशन – गर्म जलवायु के प्रभाव को कम करने के लिए तथा अंग्रेज सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अंग्रेजों ने शिमला, माउन्ट आबू तथा दार्जिलिंग में हिल स्टेशन स्थापित किए।

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(viii) मिलने-जुलने के स्थान, शिक्षा संस्थान व अन्य सार्वजनिक स्थल-यहाँ यूरोपीय शैली की इमारतों, विला, काटेज, एंग्लिकन चर्च तथा शैक्षणिक संस्थाओं का निर्माण किया गया। टाउन हाल सार्वजनिक पार्क, रंगशालाएँ तथा सिनेमा हाल जैसे मिलने-जुलने के स्थान बनाए गए। शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं, जैसे – स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी उपलब्ध थे। सार्वजनिक सेवा केन्द्र या सामुदायिक भवन भी थे, जहाँ लोगों को समाचार पत्र तथा पत्रिकाएँ मिल सकती थीं।

(ix) रेलवे का नेटवर्क-1853 में भारत में रेलवे की शुरुआत हुई। रेलवे के फैलते नेटवर्क ने औपनिवेशिक शहरों को शेष भारत से जोड़ दिया।

प्रश्न 8.
उन्नीसवीं सदी में नगर नियोजन को प्रभावित करने वाली चिन्ताएँ कौनसी थीं?
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी में औपनिवेशिक शहरों में नगर नियोजन का कार्य प्रारम्भ करते समय चिन्ताएँ निम्नलिखितं थीं –
(i) बढ़ती आबादी लोग गाँवों से शहरों की ओर उमड़ रहे थे। ऐसे में बढ़ती हुई आबादी को बसाने की चिन्ता थी, जिससे सभी को आवास उपलब्ध हो सके।

(ii) नगर नियोजन व सफाई व्यवस्था – शहरों को उचित प्रकार से बसाने के लिए योजना व नक्शे बनाना तथा नियमित साफ-सफाई की व्यवस्था करना, जिससे बीमारियों को फैलने से रोका जा सके, यह भी चिन्ता का विषय था । गन्दे तालाबों, सड़ांध और निकासी की शोचनीय अवस्था से अंग्रेज शासक परेशान थे। उनका मानना था कि दलदली जमीन और ठहरे हुए पानी के तालाबों से जहरीली गैसें निकलती हैं जिनसे बीमारियाँ फैलती हैं। अतः शहरों में खुले स्थान छोड़े जाने पर बल दिया गया।

(iii) रंग व जातिभेद – रंगभेद व जातिभेद को आधार बनाकर शहरों का विभाजन करना तथा उनमें सार्वजनिक सुविधाओं का प्रबन्ध करना अंग्रेज अधिकारियों के लिए चिन्ता का विषय था। अंग्रेज भारतीयों को हीन मानते थे और उनके साथ उठने-बैठने में अपना अपमान समझते थे।

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(iv) सुरक्षा प्रबन्ध – 1857 के विद्रोह से सबक लेकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा का विशेष प्रबन्ध करना भी अंग्रेजों के लिए चिन्ता का कारण था, जिसमें उनके सम्मान की रक्षा, यूरोपीय सम्पत्ति की रक्षा तथा इमारतों और साजो-सामान की रक्षा करना भी शामिल था। इसलिए अंग्रेजों के लिए अधिक सुरक्षित व पृथक् बस्तियों की व्यवस्था की गई और ‘सिविल लाइन्स’ के नाम से नये शहरी क्षेत्र विकसित किए गए।

(v) चालों का निर्माण – शहरों की फैक्ट्रियों तथा अन्य काम-धन्धों में लगे हुए लोग विभिन्न राज्यों से आए थे, उनको निवास उपलब्ध कराने की भी चिन्ता थी। इसके लिए बहुमंजिली इमारतें तथा चालों का निर्माण किया गया।

(vi) स्थापत्य शैलियों की भिन्नता – शहरों में भवन और इमारतों का निर्माण किस शैली के आधार पर किया जाए, यह भी चिन्ता का विषय था अंग्रेजों ने अपनी आवश्यकताओं और रुचियों की पूर्ति के लिए स्थापत्य में अनेक यूरोपीय शैलियों का उपयोग किया। बम्बई में बम्बई सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय, विक्टोरिया टर्मिनस आदि इमारतें नव-गॉथिक शैली में बनाई गई।

(vii) धन सम्बन्धी समस्या- अंग्रेजी सरकार शहरों के सुनियोजित विकास के लिए धन की व्यवस्था करना नागरिकों की जिम्मेदारी मानती थी। अतः कलकत्ता में नगर सुधार के लिए पैसे की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर की जाती थी। इस प्रकार कलकत्ता में नगर नियोजन का काम लॉटरी कमेटी करती थी। लॉटरी कमेटी ने भारतीय बस्तियों में सड़क- निर्माण और नदी किनारे से अवैध कब्जों को हटवाया।

(viii) यातायात के साधन उपलब्ध करवाना – समस्त लोगों को कारखानों या कार्यालयों में जाने के लिए यातायात के साधनों को उपलब्ध करवाना भी एक प्रमुख समस्या थी।

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(ix) महामारी की समस्या- अंग्रेज महामारी की आशंका से भी चिन्तित थे। शहरों में हैजा व प्लेग की बीमारियों से लोग पीड़ित रहते थे।

(x) अग्निकांड की घटनाएँ शहरों में होने वाली अग्निकांड की घटनाओं से भी अंग्रेज चिन्तित थे। इसी आशंका के कारण 1836 में कलकत्ता में पास-फूंस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त मकानों में ईंटों की छत अनिवार्य कर दी गई।

प्रश्न 9.
नए शहरों में सामाजिक सम्बन्ध किस हद तक बदल गए थे?
अथवा
नये औपनिवेशिक नगरों में सामाजिक सम्बन्धों का स्वरूप किस सीमा तक परिवर्तित हो गया था? चर्चा कीजिये ।
उत्तर:
नए अनुभव – साधारण भारतीय आबादी के लिए ये नए शहर आश्चर्यचकित कर देने वाले अनुभव थे, जहाँ पर जिन्दगी हमेशा दौड़ती भागती सी दिखाई पड़ती थी। वहाँ पर एक ओर चरम सम्पन्नता दिखाई देती थी तो दूसरी ओर गहन गरीबी के भी दर्शन होते थे। यातायात के नए साधन आने से सम्पन्न लोग उपनगरों में भी रहने लगे थे।
नये शहरों में सामाजिक सम्बन्धों में आए परिवर्तन

नये शहरों में सामाजिक सम्बन्ध निम्न प्रकार बदल गये थे –
(1) यातायात के नये साधनों का विकास – घोड़ा गाड़ी जैसे नये यातायात के साधन और बाद में ट्रामों तथा बसों के आगमन के परिणामस्वरूप लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय के साथ काम की जगह और रहने की जगह दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए। घर से कार्यालय या फैक्ट्री जाना एक नये प्रकार का अनुभव बन गया।

(2) सार्वजनिक मेल-मिलाप के स्थलों में परिवर्तन यद्यपि अब पुराने शहरों में पहले जैसा सामंजस्य नहीं दिखाई पड़ता था, लेकिन फिर भी लोगों का मेल- मिलाप सार्वजनिक पार्कों, टाउन हॉलों, सिनेमाघरों और रंगशालाओं के माध्यम से हो जाता था।

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(3) नये सामाजिक समूहों का निर्माण शहरों में अब नए सामाजिक समूह बनने लगे और पुरानी पहचान अब गौण होने लगी। एक मध्यम वर्ग का शहरों में उदय होने लगा, जिनमें डॉक्टर, शिक्षक, वकील, एकाउन्टेन्ट्स, इंजीनियर क्लर्क आदि आते थे। पढ़े-लिखे होने के कारण ये लोग पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और सार्वजनिक सभाओं में अपने विचार प्रकट कर सकते थे। सामाजिक रीति-रिवाज, कायदे-कानून और तौर-तरीकों पर सवाल उठने लगे थे।

(4) सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति – शहरों में स्त्रियों के लिए नए अवसर मौजूद थे। समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के द्वारा मध्यम वर्ग की नारियाँ स्वयं को अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही थीं परन्तु महिला शिक्षा के समर्थक चाहते थे कि स्त्रियाँ घर की चारदीवारी के भीतर ही रहें। समय बीतने के साथ सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी। कालान्तर में महिलाएँ भी नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका और रंगकर्मी के रूप में दिखाई पड़ने लगीं। लेकिन ऐसी महिलाओं को लम्बे समय तक सामाजिक रूप से सम्मानित नहीं माना जाता था, जो घर से निकलकर सार्वजनिक स्थानों पर जा रही थीं।

(5) मेहनतकशों का नया वर्ग उभरना तथा नई शहरी संस्कृति-शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ज्यादातर पुरुष अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे। शहरी जिन्दगी संघर्षपूर्ण तथा नौकरी पक्की नहीं थी, खाना महँगा था, रिहायश का खर्चा भी उठाना मुश्किल था। फिर भी गरीब मजदूरों ने वहाँ प्रायः अपनी एक शहरी संस्कृति रच ली थी। वे धार्मिक त्यौहारों, तमाशों (लोक रंगमंच) और स्वांग आदि में पूरे उत्साह से भाग लेते थे, जिनमें ज्यादातर भारतीय और यूरोपीय स्वामियों का मजाक उड़ाया जाता था।

(6) औपनिवेशिक शहरों में दोहरी व्यवस्था – बम्बई, कलकत्ता, मद्रास में निवास हेतु दोहरी व्यवस्था अपनाई गई। यूरोपीय लोगों के लिए सिविल लाइन्स (डाइट टाउन) बसाये गये तथा भारतीय व शेष एशियाई लोगों के लिए ब्लैक टाउन बसाए गए हाइट टाउन में भवन यूरोपीय शैली के आधार पर बनाए गए और वहाँ पर स्वच्छता, सफाई सड़कों आदि की अच्छी व्यवस्था थी, जबकि ब्लैक टाउन में परम्परागत भारतीय शैली के मकान थे तथा साफ-सफाई की व्यवस्था नगण्य थी।

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औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य JAC Class 12 History Notes

→ औपनिवेशिक भारत में शहरीकरण – औपनिवेशिक भारत में शहरीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत शहरों और | कस्बों में आए उन परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है, जो यूरोपीय कम्पनियों अथवा शासकों के पैर भारत में जम जाने के कारण आए। इनमें औपनिवेशिक शहरों की मुख्य विशेषताओं तथा उनमें होने वाले सामाजिक बदलाव को भी शामिल किया जाता है। इसी सन्दर्भ में हम तीन बड़े शहरों मद्रास (चेन्नई), कलकत्ता (कोलकाता) और बम्बई (मुम्बई) के विकास के बारे में पढ़ेंगे।

→ पृष्ठभूमि तीनों शहर मुख्य रूप से मछली पकड़ने तथा बुनाई के गाँव थे, जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों के कारण व्यापार के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गए। कम्पनी के एजेन्ट 1639 में मद्रास तथा 1690 में कलकत्ता में बस गए। 1661 में बम्बई को भी ब्रिटेन के राजा ने कम्पनी को दे दिया। कम्पनी ने इन तीनों ही शहरों में अपने व्यापारिक तथा प्रशासनिक कार्यालय स्थापित किए।

→ पूर्व औपनिवेशिक काल में कस्बे और शहर –
(क) कस्बे कस्बे मुख्यतः विशेष प्रकार की आर्थिक गतिविधियों और संस्कृतियों के प्रतिनिधि बनकर उभरे। कस्बों में व्यापारी, शिल्पकार, प्रशासक और शासक रहते थे। कस्बों का ग्रामीण जनता पर प्रभाव रहता था और वे खेती से प्राप्त करों तथा अधिशेष के आधार पर फलते-फूलते थे। ज्यादातर कस्बों और शहरों की किलेबन्दी की जाती थी, जो ग्रामीण क्षेत्र से इनकी पृथकता को दिखाती थी फिर भी कस्बों और गाँवों की पृथकता अनिश्चित होती थी।

(ख) मुगलों द्वारा बनाए गए शहर –
16वीं तथा 17वीं शताब्दियों में मुगलों द्वारा बनाए गए शहर-आगरा, दिल्ली और लाहौर – जनसंख्या के केन्द्रीकरण, अपने विशाल भवनों तथा शाही शोभा और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे मनसबदार जागीरदार और कुलीन वर्ग की उपस्थिति के कारण यहाँ अच्छे शिल्पकार, बाजार तथा राजकोष स्थित थे। सम्राट एक किलेबन्द महल में रहता था और नगर एक दीवार से घिरा होता था तथा द्वारों से आने-जाने पर नियंत्रण रखा जाता था। नगरों के भीतर उद्यान, मस्जिदें, मन्दिर, महाविद्यालय, बाजार, सराय, मकबरे आदि स्थित होते थे। नगर का केन्द्र महल और मुख्य मस्जिद होते थे। दक्षिण भारत के नगरों – मदुरई, कांचीपुरम- मुख्य केन्द्र मन्दिर होता था। कोतवाल नगर में आन्तरिक मामलों पर नजर रखता था और कानून व्यवस्था को मैं बनाए रखता था।

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(ग) अठारहवीं शताब्दी में परिवर्तन –
(1) राजनीतिक और व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगरों का पतन हुआ और नए नगरों का विकास होने लगा। मुगल राजधानियों दिल्ली और आगरा ने अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो दिया। नई क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों, लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपट्म, पूना (पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (तंजावुर) के बढ़ते महत्त्व में दिखाई पड़ने लगा। (2) व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग इन नई राजधानियों में आने लगे।
(3) भाड़े के सैनिक भी यहाँ रोजगार हेतु आए तथा कुछ स्थानीय तथा विशिष्ट लोगों ने इस काल में ‘कस्बे’ और ‘गंज’ जैसी नई शहरी बस्तियों का विकास किया।
(4) यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगलकाल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने आधार स्थापित कर लिए थे।
(5) 1757 ई. में प्लासी के युद्ध के बाद जैसे-जैसे अंग्रेजों ने राजनीतिक नियंत्रण हासिल किया और इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार फैला, मद्रास, कलकत्ता और बम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह तेजी से नयी आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरे तथा औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गए।

→ औपनिवेशिक शहरों की पड़ताल
(क) रिकार्ड्स और शहरी इतिहास – औपनिवेशिक शासन बेहिसाब आँकड़ों और जानकारियों के संग्रह पर आधारित था। बढ़ते हुए शहरों में जीवन की गति और दिशा पर नजर रखने के लिए वे नियमित रूप से सर्वेक्षण कराते थे। सांख्यिकीय आँकड़े एकत्र करते थे तथा विभिन्न प्रकार की सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित करते थे।

यथा –
(i) मानचित्र पर जोर शुरुआत के वर्षों में औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र बनाने पर विशेष जोर दिया। सरकार का मानना था कि किसी स्थान की बनावट और भू-दृश्यों को समझने के लिए नक्शे जरूरी होते हैं। इस जानकारी के आधार पर वे इलाके पर ज्यादा बेहतर नियंत्रण स्थापित कर सकते थे जब शहरों का विकास होने लगा तो उनके विकास और व्यवसाय को विकसित करने के लिए नक्शे बनाए जाने लगे।

(ii) कर वसूली उन्नीसवीं शताब्दी के आखिर से अंग्रेजों ने वार्षिक नगरपालिका कर के माध्यम से शहरों के रख-रखाव के वास्ते पैसा एकत्र करना शुरू कर दिया। नगर निगम जैसे संस्थानों का उद्देश्य शहरों में जलापूर्ति, निकासी सड़क निर्माण और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसी अत्यावश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराना था।

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(iii) नियमित गिनती शहरों के फैलाव पर नजर रखने के लिए नियमित रूप से लोगों की गिनती की जाती थी। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर जनगणना शुरू की जा चुकी थी। अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास 1872 में किया गया। इसके बाद, 1881 से दशकीय (हर दस साल में होने वाली) जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई। जनगणनाओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने से कुछ दिलचस्प रुझान सामने आते हैं। सन् 1800 के बाद हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। पूरी उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में देश की जनसंख्या में कुल जनसंख्या में शहरी जनसंख्या का हिस्सा बहुत मामूली और स्थिर रहा। 1900 से 1940 के बीच 40 सालों के मध्य शहरी आबादी 10 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 13 प्रतिशत हो गई थी।

(ख) वस्त्र संग्रह डिपो औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के केन्द्र होने के कारण ये शहर भारतीय सूती कपड़े जैसे निर्यात उत्पादों के लिए संग्रह डिपो थे मगर इंग्लैण्ड में होने वाली औद्योगिक क्रान्ति के बाद इस प्रवाह की दिशा बदल गई और इन शहरों में ब्रिटेन के कारखानों में बनी चीजें उतरने लगीं। भारत से तैयार माल की जगह कच्चे माल का निर्यात होने लगा।

(ग) रेलवे का विकास सन् 1853 में रेलवे की शुरुआत हुई। इसने शहरों की काया पलट दी। आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र परम्परागत शहरों से दूर जाने लगा क्योंकि ये शहर पुराने मार्गों और नदियों के समीप थे। हरेक रेलवे स्टेशन कच्चे माल का संग्रह केन्द्र और आयातित वस्तुओं का वितरण बिन्दु बन गया था।

→ नये शहरों का स्वरूप नये शहरों का स्वरूप इस प्रकार था –

→ बन्दरगाह, किले और सेवाओं के केन्द्र तथा हाइट टाउन और ब्लैक टाउन का निर्माण अठारहवीं सदी तक मद्रास, कलकत्ता और बम्बई महत्वपूर्ण बन्दरगाह बन चुके थे अंग्रेजों ने अपने कारखानों की सुरक्षा हेतु इन बस्तियों में किलेबन्दी की मद्रास में फोर्ट सेंट जार्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और बम्बई में फोर्ट, ये इलाके ब्रिटिश आबादी के रूप में जाने जाते थे। यूरोपीय व्यापारियों के साथ लेन-देन चलाने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर और कामगार इन किलों के बाहर बस्तियों में रहते थे। यूरोपीय और भारतीयों के लिए शुरू से ही अलग क्वार्टर बनाए जाते थे उस समय के लेखन में इन्हें ‘हाइट टाउन’ (गोरा शहर) और ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) कहा जाता था। राजनीतिक सत्ता अंग्रेजों के हाथ में आने के बाद यह नस्ली भेदभाव और बढ़ गया था।

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→ एक नया शहरी परिवेश – नये शहरों का शहरी परिवेश भी नया था।

यथा –
(i) शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति के दिग्दर्शक- औपनिवेशिक शहर नए शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रकट करते थे। राजनीतिक सत्ता और संरक्षण भारतीय शासकों के हाथों से निकल कर अंग्रेजों के हाथों में जाने लगा। दुभाषिए, बिचौलिए, व्यापारियों और माल की आपूर्ति करने वाले भारतीयों का भी इन नए शहरों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। नदी या समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों और घाटों का विकास हुआ। समुद्र के किनारे गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय, जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा कम्पनियाँ यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना होने लगी। कम्पनी के मुख्य प्रशासकीय कार्यालय समुद्र से दूर बनाए गए। कलकत्ता में स्थित ‘राइटर्स बिल्डिंग’ इसी तरह का एक दफ्तर हुआ करती थी। ‘राइटर्स’ से तात्पर्य यहाँ क्लकों से था।

(ii) सिविल लाइन्स नाम से नये शहरी इलाकों का विकास-उन्नीसवीं सदी के मध्य इन शहरों का रूप और भी बदल गया। 1857 के विद्रोह के बाद भारत में अंग्रेजों का रवैया विद्रोह की लगातार आशंका से तय होने लगा था। उनको लगता था कि शहरों की और अच्छी प्रकार हिफाजत करना जरूरी है और अंग्रेजों को देशियों के खतरे से दूर सुरक्षित स्थान पर रहना चाहिए। पुराने कस्बों के पास चरागाहों और खेतों को साफ करके ‘सिविल लाइन्स’ नाम से नए शहरी इलाके विकसित किए गए।

(iii) छावनियाँ छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। यहाँ यूरोपीय कमान के अन्तर्गत भारतीय सैनिक तैनात किये जाते थे ये छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल थीं।

(iv) हिल स्टेशन छावनियों की तरह हिल स्टेशन भी औपनिवेशिक शहरी विकास का एक खास पहलू था।

यथा –
(अ) शिमला – हिल स्टेशनों की स्थापना का उद्देश्य सर्वप्रथम ब्रिटिश सेना की जरूरतों से सम्बन्धित था। शिमला की स्थापना गुरखा युद्ध ( 1815 1816) के दौरान की गई थी।
(ब) माउन्ट आबू – अंग्रेज-मराठा युद्ध 1818 के कारण अंग्रेजों की दिलचस्पी माउन्ट आबू में बनी जबकि दार्जिलिंग को 1835 में सिक्किम के राजाओं से छीना गया था। ये हिल स्टेशन फौजियों के ठहरने, सरहद की चौकसी करने और दुश्मन के खिलाफ हमला करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ नए शहरों में सामाजिक जीवन – नये शहरों में चरम सम्पन्नता और गहन गरीबी दोनों के दर्शन एक साथ होते थे। इनमें सामाजिक जीवन इस प्रकार का था –

(i) बढ़ते यातायात के साधनों से निवास स्थल और कार्यस्थल की दूरी बढ़ी घोड़ागाड़ी जैसे यातायात के नए साधन और बाद में बसों और ट्रामों के आने से यह हुआ कि अब लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय के साथ काम की जगह और रहने की जगह दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए। घर से फैक्ट्री या दफ्तर जाना एक नए प्रकार का अनुभव था।

(ii) औरतों की सार्वजनिक उपस्थिति में बढ़ोतरी – शहरों में औरतों के लिए नए अवसर थे। पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के द्वारा मध्यम वर्ग की औरतें खुद को अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रही थीं। सार्वजनिक स्थानों पर औरतों की उपस्थिति बढ़ रही थी।

(ii) कामगारों के एक नए वर्ग का उदय शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ग्रामीण इलाकों से गरीब रोजगार की उम्मीद में शहरों की तरफ भाग रहे थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों के स्रोत के रूप में दिखाई पड़ रहे थे कुछ को एक भिन्न जीवन शैली शहरों की तरफ खींच रही थी। ज्यादातर पुरुष प्रवासी अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे।

→ पृथक्करण, नगर-नियोजन और भवन निर्माण मद्रास, कलकत्ता और बम्बई तीनों औपनिवेशिक शहर पहले के भारतीय कस्बों और शहरों से अलग थे।

यथा –
→ मद्रास में बसावट और पृथक्करण
(i) वस्त्र उत्पादों की खोज में 1639 ई. में अंग्रेज व्यापारियों ने मद्रासपद्म में अपनी व्यापारिक कोठी स्थापित की। यह बस्ती स्थानीय लोगों द्वारा ‘चेनापट्टनम’ कही जाती थी।

(ii) सफेद कस्बा में फ्रांसीसियों की हार के फ्रेंच कम्पनी के साथ प्रतिद्वन्द्विता के कारण अंग्रेजों को यहाँ किलेबन्दी करनी पड़ी। 1761 बाद मद्रास स्थित फोर्ट सेंट जार्ज हाइट टाउन का केन्द्रक बन गया था, जिसमें अधिकतर यूरोपीय लोग ही रहते थे दीवारों और बुर्जों ने इसे एक घेराबन्दी में बदल दिया था किले के अन्दर रहने का फैसला रंग और धर्म पर आधारित था।

(iii) सुरक्षा क्षेत्र का निर्माण – ब्लैक टाउन किले के बाहर विकसित हुआ। इस आबादी को भी सीधी कतारों में बसाया गया था जो कि औपनिवेशिक शहरों की विशेषता थी। लेकिन अठारहवीं सदी के प्रथम दशक के मध्य में सुरक्षा कारणों से उसे गिरा दिया गया, ताकि किले के चारों ओर एक सुरक्षा क्षेत्र बनाया जा सके।

(iv) नया अश्वेत कस्बा – उत्तर दिशा में दूर जाकर एक नया ब्लैक टाउन बसाया गया। नया ब्लैक टाउन परम्परा से चले आ रहे शहरों के जैसा था। वहाँ मन्दिर तथा बाजार के आस-पास रिहायशी मकान बनाए गए थे। शहर के बीच से गुजरने वाली आड़ी-टेढ़ी संकरी गलियों में अलग-अलग जातियों के लोग अपने मोहल्लों में रहते थे। इनमें बुनकरों, कारीगरों, विचौलियों और दुभाषियों को बसाया गया था।

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(v) आबादी का ढाँचा – मद्रास का विकास बहुत सारे गाँवों को मिलाकर किया गया था। यहाँ विविध समुदायों के लिए अवसरों और स्थानों का इंतजाम था। विभिन्न प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले समुदाय आए और मद्रास में ही बस गए। जैसे—दुबाश, वेल्लालार, ब्राह्मण, तेलुगू कोमाटी समुदाय, गुजराती बैंकर, पेरियार और बनियार आदि ।

(vi) उपशहरी इलाके – अंग्रेजी सत्ता के मजबूत होने के बाद यूरोपीय निवासी किले से बाहर जाकर गार्डन हाउसेज बनाने लगे। किले से छावनी तक जाने वाली सड़कों पर ये निवास बनाए गए। सम्पन्न भारतीयों ने मद्रास के इर्द-गिर्द बहुत सारे उपशहरी इलाकों का निर्माण कर लिया। बढ़ते शहरीकरण के कारण गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के भीतर आ गए।

→ कलकत्ता में नगर नियोजन आधुनिक नगर नियोजन का प्रारम्भ औपनिवेशिक शहरों से हुआ। इस प्रक्रिया में भू-उपयोग और भवन- निर्माण के नियमन के द्वारा शहर के स्वरूप को परिभाषित किया गया। इसका एक मतलब यह था कि शहरों में लोगों के जीवन को सरकार ने नियन्त्रित करना शुरू कर दिया था। इसके लिए एक योजना तैयार करना और पूरी शहरी परिधि का स्वरूप तैयार करना जरूरी था।

(1) कम्पनी द्वारा किलेबन्दी – बंगाल में अंग्रेजों द्वारा नगर नियोजन के कार्य को अपने हाथ में लेने का तात्कालिक उद्देश्य सुरक्षा से सम्बन्धित था। इसीलिए प्लासी के युद्ध (1757) में सिराजुद्दौला की हार होने के बाद कम्पनी ने एक ऐसा किला बनाने का विचार किया, जिस पर आसानी से आक्रमण नहीं किया जा सके। कलकत्ता को सुतानाती कोलकाता और गोविन्दपुर इन तीनों गाँवों को मिलाकर बसाया गया था। इस तरह कलकत्ता में फोर्ट विलियम का निर्माण किया गया।

(2) मैदान या गारेर मठ – फोर्ट विलियम के इर्द-गिर्द एक विशाल खाली जगह छोड़ी गई, जिसे मैदान या गारेर मठ कहा जाता था।

(3) गवर्नमेंट हाउस नामक नये महल का निर्माण – कलकत्ता में नगर नियोजन का काम केवल फोर्ट विलियम और मैदान के निर्माण के साथ पूरा होने वाला नहीं था। 1798 में लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बने। उन्होंने अपने रहने के लिए कलकत्ता में ‘गवर्नमेन्ट हाउस’ के नाम से एक महल बनवाया।

(4) स्वास्थ्य की दृष्टि से नगर नियोजन की आवश्यकता- शहर को ज्यादा स्वास्थ्यपरक बनाने का एक तरीका यह था कि शहर में खुले स्थान छोड़े जाएँ। वेलेजली ने 1803 में नगर नियोजन की आवश्यकता पर एक प्रशासकीय आदेश जारी किया और इसके लिए कई कमेटियाँ बनाई गई।

(5) लॉटरी कमेटी – वेलेजली के जाने के बाद नगर नियोजन का काम सरकार की मदद से लॉटरी कमेटी (1817) ने जारी रखा। इसका नाम लॉटरी कमेटी इसलिए पड़ा क्योंकि नगर सुधार के लिए पैसों की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर की जाती थी। लॉटरी कमेटी ने शहर का एक नया नक्शा बनवाया जिससे कलकत्ता की एक पूरी तस्वीर सामने आ सके। इसके साथ ही अवैध कब्जे हटाये गए तथा बहुत सारी झोंपड़ियों को साफ कर दिया गया।

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(6) महामारी की आशंका से नगर नियोजन की अवधारणा को बल- अगले कुछ दशकों में महामारी की आशंका से नगर नियोजन के विचार को अधिक बल मिला। 1817 में हैजा फैलने लगा और 1896 में प्लेग ने शहर को अपनी चपेट में ले लिया। कामकाजी लोगों की बस्तियों और झोंपड़ियों को तेजी से हटाया गया तथा इनकी कीमत पर ब्रिटिश आबादी वाले हिस्सों को तेजी से विकसित किया गया। स्वास्थ्यकर और अस्वास्थ्यकर के नये विभेद के सहारे ‘हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन वाले नस्ली विभाजन को बल मिला।

→ बम्बई में भवन निर्माण कार्यकलाप जैसे-जैसे ब्रिटिश साम्राज्य फैला, अंग्रेज कलकत्ता, मद्रास और बम्बई जैसे शहरों को शानदार राजधानियों में बदलने की कोशिश करने लगे। उनकी सोच से ऐसा लगता था मानो शहरों की भव्यता से ही शाही सत्ता की ताकत प्रतिबिम्बित होती है।

(1) शानदार भव्य इमारतों के निर्माण पर बल – यदि इस शाही दृष्टि को साकार करने का एक तरीका नगर नियोजन था तो दूसरा तरीका यह था कि शहर में शानदार इमारतों का निर्माण किया जाए। शहरों में बनने वाली इमारतों में किले, सरकारी दफ्तर, शिक्षा संस्थान आदि हो सकते थे बुनियादी तौर पर ये इमारतें रक्षा, प्रशासन और वाणिज्य जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती थीं।

(2) टापुओं का जुड़ाव प्रारम्भ में बम्बई सात टापुओं का इलाका था। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, इन टापुओं को आपस में जोड़ दिया गया ताकि ज्यादा जगह पैदा की जा सके। आखिरकार ये टापू एक-दूसरे से जुड़ गए और एक विशाल शहर अस्तित्व में आया। बम्बई औपनिवेशिक भारत की आर्थिक राजधानी थी। पश्चिमी तट पर एक प्रमुख बन्दरगाह होने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था। उन्नीसवीं सदी के अन्त तक भारत का आधा निर्यात और आयात बम्बई से ही होता था।

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(3) अमेरिकी गृहयुद्ध का प्रभाव – 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ने से वहाँ से कपास का आयात बहुत कम हो गया। इससे भारतीय कपास की माँग बहुत बढ़ गई। इसकी खेती मुख्य रूप से दक्कन में की जाती थी। भारतीय व्यापारियों और बिचौलियों के लिए यह बहुत मुनाफे का सौदा था। 1869 में स्वेज नहर खुल जाने के कारण विश्व अर्थव्यवस्था के साथ बम्बई के सम्बन्ध और मजबूत हो गए। बम्बई सरकार और भारतीय व्यापारियों ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए बम्बई को ‘Urts prima in Indis’ यानी भारत का सरताज शहर घोषित कर दिया। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक बम्बई में भारतीय व्यापारी कॉटन मिल जैसे नए उद्योगों में अपना पैसा लगा रहे थे। निर्माण गतिविधियों में भी उनका काफी दखल था।

(4) शैलियों का आपसी विनिमय प्रारम्भ में ये भवन भारतीय भवनों के बीच कुछ अजीब से दिखाई देते थे, लेकिन धीरे-धीरे भारतीयों ने भी यूरोपीय शैली को स्वीकार कर भवनों का निर्माण कराया। दूसरी तरफ अंग्रेजों ने भी अपनी आवश्यकता के अनुरूप भारतीय शैली को अपना लिया। इस तरह दोनों शैलियों में परस्पर विनिमय हो गया। इसकी एक मिसाल उन बंगलों को माना जा सकता है जिन्हें बम्बई और पूरे देश में सरकारी अफसरों के लिए बनाया जाता था। सार्वजनिक भवनों के लिए मोटे तौर पर तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया गया।
ये थीं –
(1) नवशास्त्रीय या नियोक्लासिकल शैली
(2) नव-गॉथिक शैली
(3) इंडो-सारासेनिक शैली।

(5) चाल शहर में जगह की कमी और भीड़-भाड़ की वजह से बम्बई में खास तरह की इमारतों का भी निर्माण हुआ, जिन्हें ‘चाल’ कहा गया।

→ इमारतें और स्थापत्य शैलियाँ क्या बताती हैं?
(1) स्थापत्य शैलियों से अपने समय के सौन्दर्यात्मक आदर्शों और उनमें निहित विविधताओं का पता चलता है। इमारतों के माध्यम से सभी शासक अपनी ताकत को प्रदर्शित करना चाहते थे इस प्रकार एक खास वक्त की स्थापत्य शैली को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि उस समय सत्ता को किस तरह देखा जा रहा था और वह इमारतों और उनकी विशेषताओं – ईंट-पत्थर खम्भे और मेहराब, आसमान छूते गुम्बद या उभरी हुई छतों के जरिये किस प्रकार की अभिव्यक्ति होती थी।

(2) रूपरेखा सम्बन्धी निर्णय स्थापत्य शैलियों से केवल प्रचलित रुचियों का ही पता नहीं चलता, वे उनको बदलती भी हैं वे नयी शैलियों को लोकप्रियता प्रदान करती हैं और संस्कृति की रूपरेखा तय करती हैं।

काल-रेखा
1500-1700 यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियाँ भारत में अपने ठिकाने स्थापित करती हैं। पणजी में पुर्तगाली (1510) ; मछलीपट्नम में डच (1605); मद्रास (1639); बम्बई (1661) और कलकत्ता (1690) में अंग्रेज तथा पाण्डिचेरी (1673) में फ्रांसीसी अपने ठिकाने बनाते हैं।
1757 प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की निर्णायक जीत होती है। वे बंगाल के शासक हो जाते हैं।
1773 ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना।
1803 कलकत्ता नगर सुधार पर लॉर्ड वेलेजली द्वारा लिखित मिनट्स।
1818 दक्कन पर अंग्रेजों का कब्जा, बम्बई को नए प्रान्त की राजधानी बनाया जाता है।
1853 बम्बई से ठाणे तक रेल लाइन बिछाई जाती है।
1857 बम्बई में पहली स्पिनिंग और वीविंग मिल की स्थापना।
1857 बम्बई, मद्रास और कलकत्ता में विश्वविद्यालयों की स्थापमा।
1870 का दशक नगरपालिकाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल किया जाने लगा।
1881 मद्रास हार्बर का निर्माण पूरा हुआ।
1896 बम्बई के वाटसन्स होटल में पहली बार फिल्म दिखाई गई।
1896 बड़े शहरों में प्लेग फैलने लगता है।
1911 कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाया जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है ?
उत्तर :
अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है।

प्रश्न 2.
कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं ?
उत्तर :
कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं।

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प्रश्न 3.
पति – पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया ?
उत्तर :
पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत गर्मजोशी से किया। लेखक उससे स्नेह भरी मुस्कराहट के साथ गले मिला और लेखक की पत्नी ने उसे सादर नमस्ते की।

प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गई ?
उत्तर :
दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई जिसमें सब्ज़ियों, रायता, चावल, रोटी, मिष्ठान आदि था।

प्रश्न 5.
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा ?
उत्तर :
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने कहा कि मैं धोबी को धोने के लिए कपड़े देना चाहता हूँ।

प्रश्न 6.
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ ?
उत्तर :
लेखक ने अतिथि के लिए पत्नी को खिचड़ी बनाने के लिए कह दिया। लेखक ने यह भी कहा कि यदि वह अब भी न गया तो उसे उपवास करना होगा।

लिखित –

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था ?
उत्तर :
लेखक अतिथि के जाने से पहले उससे कुछ दिन और रुकने का आग्रह करना चाहता था। अतिथि जाने की ज़िद करता और लेखक उसे भावभीनी विदाई देता; उसे छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन तक जाता और भीगे नयनों से उसे विदा करता। दोनों ही इस विदाई के अवसर पर भावविभोर हो जाते।

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प्रश्न 2.
पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए –
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर :
(क) जब लेखक के घर अतिथि आया, तो उसे लगा कि इसके अतिथि सत्कार में जो खर्च करना पड़ेगा, उससे उसके बजट पर भी असर पड़ेगा। इसलिए उसे लगा कि इस अतिथि के आने से उसका खर्चा बढ़ जाएगा।
(ख) लेखक का मानना है कि जब अतिथि एक-दो दिन रहकर चला जाए तो वह देवता है। यदि वह तीसरे दिन चला जाए तो मानव है। यदि अतिथि चार दिन से भी अधिक दिनों तक नहीं जाता है, तो वह राक्षस हो जाता है जो मेज़बान के लिए मुसीबत बन जाता है।
(ग) लेखक का मानना है कि अतिथि को अतिथि के समान आकर तुरंत वापस भी लौट जाना चाहिए, जिससे वह जिसके घर में अतिथि बनकर आया है उसके घर में प्रेमभाव के स्थान पर कलह न होने लगे। उसे उस घर की प्रेम भावना को बनाए रखना चाहिए।
(घ) लेखक कहता है कि यदि अतिथि पाँचवें दिन भी अपने घर नहीं लौटता, तो वह उसे और अधिक सहन नहीं कर सकेगा तथा उसे घर से जाने के लिए गेट आउट तक कहने से भी संकोच नहीं करेगा।
(ङ) लेखक का मानना है कि एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते क्योंकि देवता मनुष्य को दर्शन देकर तुरंत चले जाते हैं, वे उसके पास जमकर नहीं बैठे रहते। मनुष्य भी देवता का दर्शन करके शीघ्र ही अपने घर चला जाता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखक सोच रहा था कि अब तो तीसरा दिन हो गया है, इसलिए अतिथि अवश्य चला जाएगा। तीसरे दिन सुबह जब अतिथि ने लेखक से कहा कि वह अपने कपड़े धुलवाने के लिए धोबी को देना चाहता है, तो लेखक को झटका लगा। उसे यह उम्मीद नहीं थी कि अतिथि अभी कुछ और दिन उसके घर रहेगा। लेकिन अतिथि की बात से स्पष्ट हो गया कि उसका इरादा अभी कुछ दिन और उसके घर रुकने का है। इस प्रकार अतिथि के कपड़े धुलवाने की बात लेखक के लिए अप्रत्याशित आघात था।

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प्रश्न 2.
‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना’ – इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं ? विस्तार से लिखिए।
उत्तर :
जब लेखक के घर आया हुआ अतिथि चौथे दिन भी अपने घर नहीं गया, तो लेखक और अतिथि के बीच मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान समाप्त हो गया। ठहाके लगने बिल्कुल बंद हो गए थे; आपसी चर्चा समाप्त हो गई थी। लेखक कोई उपन्यास पढ़ता रहता था तथा अतिथि पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ उलटता रहता था। परस्पर प्रेमभाव बोरियत में बदल गया था। लेखक की पत्नी ने भी पकवान आदि बनाने के स्थान पर खिचड़ी बनाने का निश्चय कर लिया था। इस प्रकार लेखक और उसके अतिथि के संबंध धीरे-धीरे बदलते जा रहे थे। उनमें अपनेपन के स्थान पर परायापन आ गया था और लेखक चाह रहा था कि अतिथि शीघ्र से शीघ्र उसके घर से चला जाए।

प्रश्न 3.
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए ?
उत्तर :
जब अतिथि चार दिन तक अपने घर नहीं गया, तो लेखक का व्यवहार उसके प्रति बदलने लगा। उसने अतिथि के साथ हँसना-बोलना छोड़ दिया। लेखक ने उपन्यास पढ़ना शुरू कर दिया, जिससे उसे अतिथि के साथ बातचीत न करनी पड़े। लेखक अतिथि के साथ अपने पुराने मित्रों, प्रेमिकाओं आदि का जिक्र किया करता था; वह जिक्र करना भी उसने बंद कर दिया। लेखक का अतिथि के प्रति प्रेमभाव और भाईचारा समाप्त हो गया था। वह मन ही मन अतिथि को गालियाँ देने लगा था। लेखक की पत्नी ने जब कहा कि वह आज खिचड़ी बनाएगी, तो लेखक उसे खिचड़ी बनाने के लिए ही कहता है। वह अब अतिथि की और अधिक आवभगत नहीं करना चाहता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए –
चाँद ज़िक्र आघात ऊष्मा अंतरंग
उत्तर :
चाँद = शशि, इंदु।
ज़िक्र = वर्णन, बयान।
आघात = चोट, प्रहार।
ऊष्मा = तपन, गरमी।
अंतरंग = आत्मीय, अभिन्न।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य)
(ख) किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य)
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल)
(घ) इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
(ङ) कब तक टिकेंगे ये ? (नकारात्मक)
उत्तर :
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे।
(ख) किसी लॉण्ड्री पर देने से क्या जल्दी धुल जाएँगे ?
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी।
(घ) इनके कपड़े कहाँ देने हैं?
(ङ) वे देर तक नहीं टिकेंगे।

प्रश्न 3.
पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य संरचना को समझिए –
(क) तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके।
(ख) तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके।
(ग) आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
(घ) शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए।
(ङ) तुम्हारे भारी-भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए –
(क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
(ख) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
(ग) तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
(घ) कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फ़िल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
(ङ) भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।
उत्तर :
विद्यार्थी प्रश्न 3 और 4 को ध्यान से पढ़कर समझें।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करें तथा आधुनिक युग के संदर्भ में इसका आकलन करें।
उत्तर :
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति का अर्थ है कि घर आए हुए मेहमान का देवताओं के समान आदर-सम्मान करना चाहिए। उन्हें प्रेमभाव से अच्छा भोजन करवाना चाहिए। उनकी समस्त सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए। आधुनिक समय में मेहमान का आना मुसीबत का आगमन माना जाता है। मेहमान बोझ प्रतीत होता है। उसे किसी प्रकार से खिला-पिलाकर तुरंत विदा करने की इच्छा होती है। यदि वह दो-चार दिन टिक जाता है, तो घर का वातावरण बिगड़ जाता है।

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प्रश्न 2.
विद्यार्थी अपने घर आए अतिथियों के सत्कार का अनुभव कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने-अपने अनुभव स्वयं सुनाएँ।

प्रश्न 3.
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ हुईं, उन्हें क्रम से छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की निम्नलिखित प्रतिक्रियाएँ हुईं –

  1. अतिथि ने जब कपड़े धुलवाने की बात की, तो लेखक को लगा कि वह अब शीघ्र नहीं जाएगा।
  2. उसे अतिथि देवता नहीं बल्कि मानव और राक्षस लगने लगा।
  3. उसने अतिथि के साथ हँसना – बोलना बंद कर दिया।
  4. अतिथि के प्रति उसकी आत्मीयता बोरियत में बदल गई।
  5. अतिथि को अच्छा भोजन खिलाने के स्थान पर खिचड़ी बनाई गई।

JAC Class 9 Hindi तुम कब जाओगे, अतिथि Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने उन व्यक्तियों की ओर संकेत किया है, जो अपने किसी संबंधी अथवा परिचित के घर बिना बताए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। उनका इस प्रकार आना और फिर वहाँ टिके रहना मेज़बान को अच्छा नहीं लगता। वे एक-दो दिन तो उसकी मेहमाननवाज़ी करते हैं, बाद में उससे बात भी नहीं करते। वे उसे अपने घर से भगाने की चिंता में लगे रहते हैं। अतः जब भी कहीं अतिथि बनकर जाना हो, तो उसे पूर्व सूचना दे देनी चाहिए तथा वहाँ एक- दो दिन ठहरकर वापस लौट जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
लेखक ने यह क्यों कहा कि ‘अतिथि! तुम्हारे जाने का यह उच्च समय अर्थात् हाइटाइम है’ ?
उत्तर :
लेखक चौथे दिन भी अतिथि के न जाने से परेशान हो गया था। वह अतिथि को दिखा-दिखाकर कैलेंडर की तारीखें बदलता है। वह कहता है कि लाखों मील की यात्रा करके चाँद पर पहुँचने वाले अंतरिक्ष यात्री भी चाँद पर इतने समय तक नहीं रुके थे, जितने दिनों से अतिथि उसके घर टिका हुआ है। लेखक को लगता है कि अतिथि ने उससे खूब आत्मीय संबंध स्थापित कर लिए हैं तथा उसका काफ़ी खर्चा करवा दिया है, जिससे उसका बजट भी डगमगा गया है। इसलिए अब उसकी भलाई इसी में है कि वह उसके घर से चला जाए। यही उसके जाने का हाइटाइम अथवा उचित समय है। अन्यथा उसका यहाँ अतिथि सत्कार होना बंद हो जाएगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

प्रश्न 3.
लेखक पाँचवें दिन के लिए अतिथि को क्या चेतावनी देता है ?
उत्तर :
लेखक जब देखता है कि अतिथि चौथे दिन भी नहीं गया तो वह चाहता है कि पाँचवें दिन अतिथि सम्मानपूर्वक उसके घर से जाने का निर्णय ले ले अन्यथा वह उसे और अधिक समय तक अपने घर में सहन नहीं कर पाएगा। वह जानता है कि अतिथि देवता के समान होता है। इसलिए वह चाहता है कि जैसे देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं, उसी प्रकार अतिथि भी लौट जाए। यदि अब भी अतिथि नहीं जाता है, तो वह उसे अपमानित करके घर से निकाल देगा।

प्रश्न 4.
लेखक अतिथि को कैलेंडर दिखाकर तारीख क्यों बदल रहा था ?
उत्तर :
अतिथि को लेखक के घर आए हुए चार दिन हो गए थे। उसके व्यवहार से लेखक को कोई भी ऐसी गंध नहीं मिल रही थी कि वह उनके घर से जाना चाहता है। इसलिए लेखक पिछले दो दिन से अतिथि को दिखा-दिखाकर कैलेंडर की तारीख बदल रहा था। यदि अतिथि कैलेंडर को ध्यान से देखता, तो उसे अनुभव हो जाता कि उसे वहाँ आए चार दिन हो गए हैं; अब उसे जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
लेखक ने यह क्यों कहा कि ‘तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन’ ?
उत्तर :
आज का युग महँगाई का युग है; सभी चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में किसी अतिथि की चार दिन तक मेहमाननवाज़ी करना सरल कार्य नहीं है। इसलिए लेखक कह रहा है कि अब वह अतिथि की मेहमाननवाज़ी करके थक गया है। उसका आर्थिक बजट बिगड़ गया है। अब वह अतिथि का और खर्च नहीं उठा सकता। उसने पहले ही उस पर अधिक खर्च कर दिया है।

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प्रश्न 6.
आरंभ में लेखक और उसकी पत्नी ने अतिथि का सेवा-सत्कार किस प्रकार किया ?
उत्तर :
पहले दिन लेखक और उसकी पत्नी ने मुस्कराहट और सम्मान के साथ अतिथि का सेवा-सत्कार किया। उसके लिए खाने में दो सब्जियाँ, रायता और मीठा बनाया। अगले दिन मनोरंजन के लिए उसे सिनेमा भी दिखाया। यह सब उन्होंने यह सोचकर किया कि अतिथि भगवान होता है, जो दर्शन देकर एक-दो दिन में चला जाएगा।

प्रश्न 7.
लेखक का भावभीनी विदाई से क्या तात्पर्य था ?
उत्तर :
लेखक का भावभीनी विदाई से तात्पर्य था कि जब अतिथि घर से जाता है, तो सबके मन भीग जाते हैं। वे लोग अतिथि को कुछ दिन और रुकने का आग्रह करते हैं, परंतु वह वहाँ से जाने के लिए तैयार हो जाता है। अतिथि से फिर आने का वायदा लिया जाता है। परिवार वाले अश्रुपूर्ण आँखों से अतिथि को स्टेशन छोड़ने जाते हैं और जाते-जाते एक-दूसरे को प्रेम भरे आँसुओं से भिगो देते हैं। इससे दोनों के मन प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
अतिथि के लेखक के घर से न जाने पर घर का वातावरण कैसा हो गया ?
उत्तर :
अतिथि को घर आए हुए चार दिन हो गए थे और उसके प्रति सम्मान धीरे-धीरे कम हो रहा था। अतिथि को देखकर खिलने वाला चेहरा मुरझाने लगा था। उनकी आपस में बातचीत समाप्त हो गई थी। लेखक कमरे में लेटा हुआ उपन्यास पढ़ रहा था और अतिथि फिल्मी पत्रिकाओं के पन्ने पलट रहा था। कमरे में बोरियत भरा वातावरण छा गया था। प्यार की भावनाएँ मन-ही-मन गालियों का स्वरूप ग्रहण कर चुकी थीं। परंतु अतिथि के वहाँ से जाने का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा था, जिस कारण घर का वातावरण असहनीय हो गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

प्रश्न 9.
लेखक की पत्नी ने खिचड़ी बनाने का निर्णय क्यों किया ?
उत्तर :
अतिथि को आए हुए चार दिन हो गए थे और इन चार दिन की मेहमाननवाजी से घर का बजट बिगड़ गया था। लेखक की पत्नी भी अतिथि के सेवा – सत्कार से तंग आ गई थी। इसलिए उसने खिचड़ी बनाने का निर्णय किया।

प्रश्न 10.
सत्कार की ऊष्मा क्या है ? वह क्यों समाप्त हो रही थी ?
उत्तर :
सत्कार की ऊष्मा से अभिप्राय है कि घर आने वाले अतिथि का गर्मजोशी से स्वागत करना तथा उसका खूब सेवा-सत्कार करना। लेखक ने भी अपने अतिथि का खूब सेवा-सत्कार किया, परंतु अतिथि को आए हुए चार दिन हो गए थे। अतिथि के कारण लेखक का बजट बिगड़ गया था। अब वह उस पर अधिक खर्च नहीं कर सकता था। इसलिए अतिथि के प्रति अब उसकी सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी।

प्रश्न 11.
अतिथि के जाने का यह चरम क्षण कैसा था ?
उत्तर :
लेखक अतिथि की सेवा करते हुए तंग आ गया था। वह चाहता था कि अतिथि सम्मानपूर्वक उसके यहाँ से चला जाए। अब वह और उसका परिवार अतिथि को सहन करने का धैर्य खो चुके थे। लेखक भी एक मनुष्य है, इसलिए वह चाहता था कि अतिथि उसके घर से चला जाए। यही उसके घर में ठहरने की चरम सीमा थी। इससे ही लेखक और अतिथि में परस्पर मधुर रिश्ते बने रहेंगे।

तुम कब जाओगे, अतिथि Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – शरद जोशी हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य-लेखकों में से एक हैं। जोशी जी का जन्म सन् 1931 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। पिता सरकारी नौकरी में थे, अतः तबादले होते रहते थे जिससे इनकी शिक्षा मध्य प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में हुई। युवावस्था में आकाशवाणी और सरकारी कार्यालयों में काम करने के पश्चात जोशी जी नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन करने लगे। इंदौर से प्रकाशित ‘नई दुनिया’ में इनकी रचनाएँ छपने लगीं। सन् 1980 में ‘हिंदी एक्सप्रेस’ के संपादन का भार भी इन्होंने सँभाला।

शरद जोशी मूलत: व्यंग्य लेखक थे और इसी रूप में इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया था। सन् 1991 में इनका देहावसान हुआ। रचनाएँ – शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य रचनाएँ हैं- परिक्रमा, ‘जीप पर सवार इल्लियाँ, किसी बहाने’, ‘रहा किनारे बैठ’, ‘तिलस्म’, ‘दूसरी सतह’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’, ‘यथासंभव’ तथा ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे ‘।

भाषा-शैली – शरद जोशी व्यंग्य में हास्य का पुट अधिक रखते हैं, क्योंकि उनके ही शब्दों में, “हास्य के माध्यम से कुछ बातें बहुत कम शब्दों में और बड़ी सरलता से कह देने में सफलता मिली है। सामान्य पाठक बड़ी जल्दी विषय-प्रवेश कर जाता है और उसको जब इस बात का अहसास होता है कि इन सीधी-सादी बातों के पीछे गहरा तथ्य है, तो जो ‘शॉक’ पाठक को लगता है वही उसे झकझोरता है।” इस प्रकार वे हास्य को व्यंग्य का औज़ार मानते हैं, न कि लक्ष्य।

‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ में जब अतिथि चार दिन तक लेखक के घर से नहीं जाता, तो पाँचवें दिन लेखक उसे चुनौती देते हुए कहता है – “तुम लौट जाओ, अतिथि ! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ!” लेखक के इस कथन में अनचाहे मेहमानों पर कटाक्ष किया गया है। लेखक ने तत्सम प्रधान – चतुर्थ, दिवस, अंकित, संक्रमण शब्दों के साथ ही एस्ट्रॉनॉट्स, स्वीट- होम, स्वीटनेस, शराफ़त, सेंटर आदि विदेशी शब्दों का यथास्थान सहज रूप से प्रयोग किया है।

लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें यथास्थान लाक्षणिकता एवं चित्रात्मकता भी विद्यमान है; जैसे- ‘मेरी पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी-बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आँखें देख मैंने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था। पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती हैं, तो मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बड़ी हुई थीं कि अतिथि अधिक दिनों तक ठहरेगा।’

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पाठ का सार :

‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ के लेखक शरद जोशी हैं। इस पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है, जो अपने किसी परिचित के घर बिना सूचना दिए आ जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। लेखक के घर अचानक आए हुए अतिथि को आज चार दिन हो गए हैं और वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक सोचता है कि ‘तुम कब जाओगे अतिथि ?’

लेखक के घर आया हुआ अतिथि जहाँ बैठा सिगरेट का धुआँ फेंक रहा है, उसके सामने लगे कैलेंडर की तारीखें पिछले दो दिनों से लेखक ने अतिथि को दिखा-दिखा कर बदली हैं। लेखक के घर आए आज उसका चौथा दिन है, पर वह जाने का नाम नहीं ले रहा। लेखक कहता है कि इतने समय तक तो चंद्रयात्री भी चाँद पर भी नहीं रुके थे। क्या उसे उसकी अपनी धरती नहीं पुकार रही ?

जिस दिन यह अतिथि लेखक के घर आया था, उस दिन वह किसी अनजानी मुसीबत के आने की संभावना से घबरा गया था और उसे अपने बजट की चिंता होने लगी थी। इतना होने पर भी उसने पत्नी सहित अतिथि का स्वागत किया था। रात के भोजन में उसे दो सब्ज़ियाँ, रायता, मीठा आदि खिलाया था। उन्होंने सोचा था कि कल तो यह अतिथि चला ही जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरे दिन भी उसे अच्छा भोजन करवाया और सिनेमा भी दिखाया। लेखक ने सोचा था कि अगले दिन उसे स्टेशन पहुँचाकर भावभीनी विदाई दे देंगे।

तीसरे दिन जब अतिथि ने अपने कपड़े धोबी को देने के लिए कहा, तो लेखक बहुत घबरा गया। उसे लगा कि अतिथि सदा देवता नहीं होता, वह मानव और राक्षस भी हो सकता है। उसके कपड़े देने के लिए लेखक उसके साथ लॉंड्री की ओर चला, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी की आँखें इस आशंका से फैल गई हैं कि अतिथि अधिक दिन तक ठहरेगा। लाँड्री से कपड़े धुल कर भी आ गए; उसके बिस्तर की चादर भी बदल दी, पर उसके जाने के कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे। दोनों की आपस में बातचीत भी बंद हो गई। लेखक उपन्यास पढ़ता, तो अतिथि फिल्मी पत्रिका के पृष्ठ पलटता रहता था।

लेखक की पत्नी ने पूछा कि यह महाशय कब प्रस्थान करेंगे? लेखक ने केवल इतना ही कहा कि क्या कह सकता हूँ। पत्नी ने कहा कि आज मैं खिचड़ी बना रही हूँ। लेखक ने बनाने के लिए कह दिया। उनके मन में अतिथि सत्कार के सब भाव समाप्त हो गए थे। अब अतिथि को भी खिचड़ी खानी होगी। अगर वह अब भी न गया, तो उसे उपवास भी करना पड़ सकता है। लेखक को लगता है कि अतिथि को यहाँ अच्छा लग रहा है, इसलिए वह यहाँ से जाना नहीं चाहता क्योंकि दूसरों का घर सबको अच्छा लगता है। वह उसे गेट आउट कहना चाहता है, पर शराफत के मारे ऐसा कहता नहीं है।

लेखक सोचता है कि अगले दिन जब अतिथि सो कर उठेगा, तो वह उसका यहाँ आने का पाँचवाँ दिन होगा। लेखक को लगता है कि तब वह यहाँ से सम्मानपूर्वक विदा होने का निर्णय अवश्य ले लेगा। यह लेखक की सहनशीलता का अंतिम दिन होगा। उसके बाद वह उसका आतिथ्य नहीं कर सकेगा। वह जानता है कि अतिथि देवता होता है, पर वह अधिक समय तक देवताओं का भार नहीं उठा सकता क्योंकि देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं न कि उसके समान जमकर बैठ जाते हैं। इसलिए लेखक चाहता है कि उसका अतिथि भी लौट जाए, जिससे उसका देवत्व सुरक्षित रहेगा अन्यथा लेखक उसे भगाने के लिए कुछ भी कर सकता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि

कठिन शब्दों के अर्थ :

अतिथि – मेहमान। आगमन – आना। चतुर्थ – चौथा। दिवस – दिन। निस्संकोच – बिना किसी संकोच के। नम्रता – नरमी, कोमलता। विगत – पिछले। सतत – निरंतर, लगातार। आतिथ्य – आवभगत, अतिथि का सत्कार। संभावना – उम्मीद, आशा। एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री। अंतरंग – घनिष्ठ। मिट्टी खोदना – बुरी हालत करना। हाईटाइम – उच्च समय, ठीक समय, उचित समय। आशंका – भय, संदेह। डिनर – रात्रि-भोज। मेहमाननवाज़ी – अतिथि सत्कार। आग्रह – अनुरोध। पीड़ा – दुख। लंच – दोपहर का भोज। गरिमा – गौरव। छोर – सीमा, किनारा।

भावभीनी – प्रेम से भरपूर। आघात – चोट, प्रहार। अप्रत्याशित – जिसके बारे में सोचा न गया हो, आकस्मिक, अचानक। मार्मिक – मर्मस्थल पर प्रभाव डालने वाली, प्रभावशाली। सामीप्य – निकटता। बेला – समय, अवसर। लॉड्री – कपड़े धुलने का स्थान। औपचारिक – जो केवल दिखलाने भर के लिए हो। निर्मूल – निराधार, व्यर्थ, बिना जड़ के। लुप्त – समाप्त। कोनलों – कोनों से। चर्चा – बातचीत। चुक गए – समाप्त हो गए। सौहार्द – सज्जनता, मित्रता। शनै:-शनै: – धीरे-धीरे। रूपांतरित – बदल जाना। अदृश्य – जो दिखाई न दे। ऊष्मा – गरमी, आवेश। संक्रमण – एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचना। चरम – अंतिम। होम – घर। स्वीटनेस मिठास। गेट आउट – निकल जाओ। गुंजायमान – गूँजती हुई।

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 6 Weavers, Iron Smelters and Factory Owners

JAC Board Class 8th Social Science Solutions History Chapter 6 Weavers, Iron Smelters and Factory Owners

JAC Class 8th History Weavers, Iron Smelters and Factory Owners InText Questions and Answers

Question 1.
Why do you think the Act was called the Calico Act? What does the name tell us about the kind of textiles the Act wanted to ban?
Answer:
The Act was called the Calico Act because in 1720, the British government enacted a legislation banning the use of printed cotton textiles called chintz in England Since, the manufacturers were unable to compete with the Indian market.

Page 72

Question 2.
Read Sources 1 and 2. What reasons do the petition writers give for their condition of starvation?
Source 1:
‘We must starve for food” In 1823 the Company government in India received a petition from 12,000 weavers stating:
Our ancestors and we used to receive advances from the Company and maintain ourselves and our respective families by weaving Company s superior assortments. Owing to our misfortune, the aurangs have been abolished ever since because of which we and our families are distressed for want of the means of livelihoo(d) We are weavers and do not know any other business. We must starve for food, if the Board of Trade do not cast a look of kindness towards us and give orders for clothes. Proceedings of the Board of Trade, 3 February 1824.

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Source 2:
“Please publish this in your paper” One widowed spinner wrote in 1828 to a Bengali newspaper, Samachar Darpan, detailing her plight:

To the Editor, Samachar, I am a spinner. After having suffered a great deal, I am writing this letter. Please publish this in your paper … When my age was … 22, I became a widow with three daughters. My husband left nothing at the time of his death … I sold my jewellery for his shraddha ceremony. When we were on the verge of starvation God showed me a way by which we could save ourselves. I began to spin on takli and charkha … The weavers used to visit our houses and buy the charkha yarn at three tolas per rupee. Whatever amount I wanted as advance from the weavers, 1 could get for the asking. This saved us from cares about food and cloth. In a few years ’time I got together … Rs. 28. With this I married one daughter. And in the same way all three daughters …

Now for 3 years, we two women, mother- in-law and me, are in want of foo(d) The weavers do not call at the house for buying yarn. Not only this, if the yarn is sent to market it is still not sold even at one-fourth the old prices. I do not know how it happened I asked ‘ many about it. They say that Btlati 2 yam is being imported on a large scale. The weavers buy that yarn and weave … People cannot use the cloth out of this yarn even for two months; it rots away. A representation from a suffering spinner
Answer:
They are the weavers and they don’t know any other work. The yam sent to the market is not sold even at the nominal price.

Page 75

Question 3.
Why would the iron and steel making industry be affected by the defeat of the nawabs and rajas?
Answer:
The iron and steel making industry were affected by the defeat of the nawabs and rajas because the swords which they used were made of iron and steel. But, with the defeat of nawabs and rajas by the British, imports of iron and steel stopped from Britain.

JAC Class 8th History Weavers, Iron Smelters and Factory Owners Textbook Questions and Answers

( Let’s Recall)

Question 1.
What kinds of cloth had a large market in Europe?
Answer:
Cotton and silk were the clothes that had a large market in Europe. Also different varieties of Indian textiles were also sold, they were Chintz, Jamdani, Bandana etc.

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Question 2.
What is jamdani?
Answer:
Jamdani is a fine muslin in which beautiful motifs are woven in the loom. A mixture of cotton and gold threads are used The most important jamdani weaving centres were Dacca in Bengal and Lucknow in United Provinces.

Question 3.
What is bandanna?
Answer:
Bandanna is a bright colour scarf used for neck or head The term derived from the word ‘bandhna’ and it means bright colour cloth produced through the method of tying and dying.

Question 4.
Who are the Agaria?
Answer:
Agaria are the group of men and women who forms a community of iron smelters.

Question 5.
Fill in the blanks:
(a) The word chintz comes from the word .
(b) Tipu’s sword was made of steel.
(c) India’s textile exports declined in the century.
Answer:
(a) chhint
(b) Wootz
(c) nineteenth

(Let’s Discuss)

Question 6.
How do the names of different textiles tell us about their histories?
Answer:
The following names of different textiles tell us about their histories: Muslin – European traders first encountered fine cotton cloth from India carried by Arab merchants in Mosul(now Iraq). So, they named all finely woven textiles as muslin. . Calico – When the Portuguese first came to India in search of spices they landed in Calicut on the Kerala coast in south-west India. The cotton textiles which they took back to Europe along with the spices came to be known as calico (derived from Calicut) and subsequently calico became the general name for all cotton textiles. Chintz – It is derived from the Hindi word chhint which means a cloth with small and colourful flowery designs. Bandanna – The word bandanna refers to brightly coloured and printed scarf for the neck or hea(d) Though, the term derived from the word bandhna means tying and referred to a variety of brightly coloured cloth produced through a method of tying and dying.

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Question 7.
Why did the wool and silk producers in England protest against the import of Indian textiles in the early eighteenth century?
Answer:
The wool and silk producers in England protested against the import of Indian textiles in the early eighteenth century because textile industries had just begun to develop in England and unable to compete with Indian textiles, English producers wanted a secure market within the country by preventing the entry of Indian textiles.

Question 8.
How did the development of cotton industries in Britain affect textile producers in India?
Answer:
The development of cotton industries in Britain affected textile producers in India in the following ways:

  1. Indian textiles had to compete with British textiles in the European and American markets.
  2. Due to very high duties imposed on Indian textiles which were imported from Britain, exporting textiles to England became increasingly difficult.
  3. By the beginning of the nineteenth century, English made cotton textiles successfully ousted Indian goods from their traditional markets in Africa, America and Europe.
  4. Bengal weavers were the worst hit. Most of weavers in India were now thrown out of employment.
  5. By the 1830s, British cotton cloth flooded Indian markets. This badly affected not only the specialist weavers but also spinners.

Question 9.
Why did the Indian iron smelting industry decline in the nineteenth century?
Answer:
Indian iron smelting industry began to decline in the nineteenth century due to the following reasons:

  1. The new forest law of British government prevented people from entering the reserved forests. Thus, the iron smelters were not able to find wood for charcoal and iron ore for producing iron.
  2. Defying forest laws, they often entered the forests secretly and collected wood but they could not sustain their occupation on this basis for long. Many gave up their work and looked for other means of livelihood
  3. In some areas, the government did grant access to the forest but the iron smelters had to pay a very high tax to the forest department for every furnace they used This reduced their income.
  4. By the late nineteenth century, iron and steel was being imported from Britain. Ironsmiths in India began using the imported iron to manufacture utensils and implements. This inevitably lowered the demand for iron produced by local smelters.

Question 10.
What problems did the Indian textile industry face in the early years of its development?
Answer:
The Indian textile industry faced many problems in the early years of its development:
(i) It found it difficult to compete with the cheap textiles imported from Britain.
(ii) In most countries, governments supported industrialisation by imposing heavy duties on imports. This helped in eliminating competition and protected infant industries. But the colonial government in India usually refused such protection to local industries.

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Question 11.
What helped TISCO expand steel production during the First World War?
Answer:
The following reasons helped TISCO expand steel production during the First World War:

  1. The World War I broke out in 1914 and demanded a huge amount of iron and steel for the production of ammunition which Britain had to fulfill.
  2. TISCO built shells and carriage wheels for the war.
  3. Indian market turned to TISCO for rail works.
  4. By 1919, British government started to buy 90% of the steel manufactured by TISCO.

(Let’s Do)

Question 12.

Find out about the history of any craft around the area you live. You may wish to know about the community of craftsmen, the changes in the techniques they use and the markets they supply. How have these changed in the past 50 years?
Answer:
Students need to do it on their own.

Question 13.
On a map of India, locate the centres of different crafts today. Find out when these centres came up.
Answer:
Student need to do it on their own.
Hint:

  • Bengal was an important centre.
  • Dacca(now in Bangladesh) was . famous for jamdani and mulmul weaving.
  • Southern Indian region had important cotton weaving centres such as Madras, Pondicherry, etc

JAC Class 8th History Weavers, Iron Smelters and Factory Owners Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions

Question 1.
The industries which were important for the industrial revolution in the modern British world are:
(a) textile, cotton, and steel
(b) textile, steel, and IT
(c) textile, iron, and steel
(d) IT, iron, and, steel
Answer:
(c) textile, iron, and steel

Question 2.
Indian print cotton clothes are:
(a) chintz, khassa, and bandanna
(b) silk, khadi, and khassa
(c) chintz, dhasa, and darya
(d) bandanna, darya, and dhakka
Answer:
(a) chintz, khassa, and bandanna

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Question 3.
The inventor of steam engine was:
(a) John Kaye
(b) Albert Einstein
(c) Richard Arkwright
(d) None of the above
Answer:
(c) Richard Arkwright

Question 4.
Chhipigars are:
(a) Dyers
(b) Block printers
(c) Weavers
(d) Farmers
Answer:
(b) Block printers

Question 5:
…….. towns emerged as important new centres of weaving in the late 19th century.
(a) Kolkata and Delhi
(b) Patna and Bombay
(c) Sholapur and Delhi
(d) Sholapur and Madura
Answer:
(d) Sholapur and Madura

Question 6.
The charkha was put at the centre of the tricolour flag that the Indian National Congress adopted which came to represent India in
(a) 1942
(b) 1931
(c) 1945
(d) 1920
Answer:
(b) 1931

Question 7.
India’s first cotton mill was setup in the year……… in
(a) 1854, Bombay
(b) 1864, Bombay
(c) 1854, Kolkata
(d) 1873, Delhi
Answer:
(a) 1854, Bombay

Question 8. gives the Wootz steel its cutting edge and high strength.
(a) a very low level of carbon
(b) a high level of carbon
(c) a high level of aluminium
(d) a low level of aluminium
Answer:
(b) a high level of carbon

Question 9.
The first world war broke out in………
(a) 1917
(b) 1918
(c) 1919
(d) 1914
Answer:
(d) 1914

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Question 10.
Tata Iron and Steel Company in Jamshedpur gets it water from the river…….
(a) Narmada
(b) Subarnarekha
(c) Ganga
(d) Sutlej
Answer:
(b) Subarnarekha

Very Short Answer Type Question

Question 1.
The people of the Agaria tribe helped Dorabji Tata and Charles Weld to discover a vast source of one of the finest iron ores in the world Where were these deposits found?
Answer:
These deposits were found in the Rajhara hills.

Question 2.
Patola weaving was famous in which period?
Answer:
Patola weaving was famous in mid nineteenth century.

Question 3.
What do you mean by piece goods?
Answer:
Piece goods were woven cloth pieces that were 20 yards long and 1 yard wide.

Question 4.
What was the use of bellows?
Answer:
Bellows were used for pumping air that kept the charcoal burning.

Question 5.
Why were Indian textiles renowned in the world?
Answer:
Indian textiles had been renowned both for their fine quality and exquisite craftsmanship.

Question 6.
Name the place where chintz was produced during the mid- nineteenth century?
Answer:
Chintz was produced in Masulipatnam, Andhra Pradesh in mid-nineteenth century.

Question 7.
In what way the Indian cotton factories prove to be helpful during the First World War?
Answer:
During the First World War when textile imports from Britain declined and Indian factories were called upon to produce cloth for military supplies. These factories proved to be helpful.

Question 8.
Why do you think printed Indian cotton textiles were popular in England?
Answer:
The printed Indian cotton textiles in England and Europe were popular because of their exquisite floral designs, fine texture and relative cheapness.

Question 9:
Where Wootz steel was produced?
Answer:
Wootz steel was produced in all over South India but specially in the state of Mysore.

Question 10.
Why did TISCO have to expand its capacity?
Answer:
TISCO had to expand its capacity during the First World War to meet the demand of the war.

Short Answer Type Question 

Question 1.
What do you understand by smelting?
Answer:
Smelting is the process of obtaining a metal from rock or soil by heating it to a very high temperature or of melting objects made from metal in order to use the metal to make something new.

Question 2.
What was named as ‘calico’?
Answer:
When the Portuguese first came to India in search of spices they landed in Calicut on the Kerala coast in south¬west India. The cotton textiles which they took back to Europe along with the spices was known as ‘calico’ (derived from Calicut).

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Question 3.
Describe briefly the growth of cotton mills in India.
Answer:
In 1854, the first cotton mill in India was set up as a spinning mill in Bombay. By 1900, over 84 mills started operating in Bombay. Mills came up in other cities too. In 1861, the first mill in Ahmedabad started A year later a mill was established in Kanpur in the United Provinces. Growth of cotton mills led to a demand for labour. Thousands of poor peasants, artisans and agricultural labourers moved to the cities to work in the mills.

Question 4.
Wootz steel making process was completely lost by the mid-19th century. Why?
Answer:
Wootz steel making process was completely lost by the mid-nineteenth century because of the following reasons:
(i) The swords and armour making industry died with the conquest of India by the British.
(ii) Imports of iron and steel from England displaced the iron and steel produced by craftspeople in India.

Question 5.
In what ways did the invention of spinning jenny and steam engine revolutionised cotton textiles moving in England?
Answer:
Competition with Indian textiles led to a search for technological innovation in England In 1764, the spinning jenny was invented by John Kaye which increased the productivity of the traditional spindles. The invention of the steam engine by Richard Arkwright in 1786 revolutionised cotton textile weaving. Cloth could now be woven in immense quantities and cheaply too.

Question 6.
Britain came to be known as the workshop of the world Why?
Answer:
In the nineteenth century, mechanised production of cotton textiles made Britain the foremost industrial. And, when its iron and steel industry started growing from the 1850s, Britain came to be known as the “workshop of the world”.

Question 7.
Name some communities famous for weaving?
Answer:
Some famous communities for weaving are:

  1. the tanti weavers of Bengal.
  2. the julahas or momin weavers of north India.
  3. sale and kaikollar and devangs of south India.

JAC Class 8 Social Science Solutions History Chapter 6 Weavers, Iron Smelters and Factory Owners

Question 8.
What happened to the weavers and spinners who lost their livelihood?
Answer:
Many weavers became agricultural labourers. Some migrated to cities in search of work and some went out of the country to work in plantations in Africa and South America. Some of these handloom weavers also found work in the new cotton mills that were established in Bombay (now Mumbai), Ahmedabad, Sholapur, Nagpur and Kanpur.

Long Answer Type Question 

Question 1.
Why do you think handloom weaving did not completely die in India?
Answer:
Handloom weaving did not completely die in India because of the following reasons:

  1. Some types of cloths could not be supplied by machines such as, machines could not produce saris with intricate borders or cloths with traditional woven patterns. These had a wide demand not only amongst the rich but also amongst the middle classes.
  2. The textile manufacturers in Britain did not produced the very coarse cloths used by the poor people in India.
  3. In the late nineteenth century, Sholapur in western India and Madura in South India emerged as important new centres of weaving.
  4. Later during the national movement, Mahatma Gandhi urged people to boycott imported textiles and use hand-spun and hand-woven cloth. Hence, Khadi gradually became a symbol of nationalism.

Question 2.
Describe
(a) the process of weaving.
(b) Patola weave.
Answer:
(a) Process of weaving

  1. The first stage of production was spinning, the work mostly done by women. The charkha and the takli were household spinning instruments. The thread was spun on the charkha and rolled on the takli.
  2. When the spinning was over the thread was woven into cloth by the weaver. In most communities weaving was a task done by men.
  3. For coloured textiles, the thread was dyed by the dyer who are known as rangrez. For printed cloth the weavers needed the help of specialist block printers known as chhipigars.

(b) Patola weave

  1. It came into existence in the mid-nineteenth century.
  2. Patola is a double ikat woven sari usually made from silk which is made in Patan, Gujarat.
  3. They are very expensive and were worn only by those belonging to royal and aristocratic families.
  4. Patola-‘weaving is a closely guarded family tradition.
  5. It was also woven in Surat, Ahmedabad
  6. It was highly valued in Indonesia. It became a part of the local weaving tradition there.

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JAC Class 7 Social Science Solutions History Chapter 6 Towns, Traders and Craftspersons

JAC Board Class 7th Social Science Solutions History Chapter 6 Towns, Traders and Craftspersons

JAC Class 7th History Towns, Traders and Craftspersons InText Questions and Answers

Page 75

Question 1.
What would a traveller visiting a medieval town expect to find?
Answer:
A traveller visiting a medieval town is expected to find out what type of a town it is temple town, administrative centre, commercial town or a port town, etc.

Page 76

Question 2.
Why do you think people regarded Thanjavur as a great town?
Answer:
People regarded Thanjavur as a great town because of the following reasons: It was the capital of Chola empire which was a temple town with Rajarajeshvara temple in it. It also gave employment to a large number of people hence becoming a centre of opportunities. It had a big market selling food, cloth, jewellery, etc.

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Page 77

Question 3.
What do you think were the advantages of using Bronze, bell metal and the “lost wax” technique?
JAC Class 7 Social Science Solutions History Chapter 6 Towns, Traders and Craftspersons 1
Answer:
The Tost wax’ technique had the following advantages:

  • Wax was a reusable material and a quick way to make statues of any shape.
  • When the metal were cooled and solidified, the clay cover was removed. The Bronze statues were not at all hollow from inside and had long life. The Bronze statues were not at all hollow from inside. They were solidified and had long life.

Page 78

Question 4.
Make a list of towns in your district and try to classify these as administrative centres or as temple/pilgrim centres.
Answer:
Need to do it yourself. Hint: Can take help from parents and subject teacher.

Page 79

Question 5.
Find out more about present-day taxes on markets: who collects these, how are they collected and what are they used for.
Answer:
Present-day taxes on markets:

  • They are the property tax, service tax, etc.
  • Central or State government collect these taxes through revenue departments. This department works with other departments to collect and use the money.
  • They are collected in cash.
  • The money collected is used for welfare and development of the society. Moreover, these taxes help in infrastructure development of the nation.

Page 80

Question 6.
As you can see, during this period there was a great circulation of people and goods. What impact do you think this would have had on the lives of people in towns and villages? Make a list of artisans living in towns.

During this period, the great circulation of people and goods must had have following impacts on the lives of people living in towns and villages:

  • They would have become busier and engaged than ever before and their incomes must have increased.
  • Their time must have reduced for the family as they would have started giving more time to the commercial activities.

List of artisans living in towns were:

  • Blacksmith
  • Weavers
  • Metal worker
  • Potters
  • Brass dealers
  • Goldsmith
  • Wood carver
  • Gardener
  • Tailors

Page 83

Question 7.
Why do you think the city was fortified?
Answer:
Hampi was a trade as well as temple town. And temples, were the centres of wealth and the honour of kings. In order to protect the people from the attack of the enemy, the town of Hampi was fortified.

Page 85

Why did the English and the Dutch decide to establish settlements in Masulipatnam?
The English and the Dutch decided to establish settlements in Masulipatnam because Masulipatnam was the most important port of the Andhra coast. It had the convenience of the place where ship can anchor. It was the trade town connected to the hinterland. Due to all such reasons, the Dutch and the English decide to establish settlements in Masulipatnam.

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Page 88

Question 9.
Imagine, you are planning a journey from Surat to West Asia in the seventeenth century. What are the arrangements you will make?
Answer:
If I would plan a journey from Surat to West Asia in the 17th century. I would make the following arrangements:

  1. I would get a confirmed reservation in one of the ships travelling on the route.
  2. I would send some money to West Asia through hundi, as it would not be wise to carry money on a ship journey.
  3. I would look for if I could do some businesses on my journey.

JAC Class 7th History Towns, Traders and Craftspersons Textbook Questions and Answers

Question 1.
Fill in the blanks:
(a) The Raj arajeshvara temple was built in……..
(b) Ajmer is associated with the Sufi saint…… .
(c) Hampi was the capital of the………. Empire.
(d) The Dutch established a settlement at…… in Andhra Pradesh.
Answer:
(a) 1010 A.D.
(b) Khwaja Muinuddin Chisti
(c) Vijayanagara
(d) Masulipatnam

Question 2.
State whether ‘True’ for true and ‘False’ for false.
(a) We know the name of the architect of the Rajarajeshvara temple from an inscription.
(b) Merchants preferred to travel individually rather than in caravans.
(c) Kabul was a major centre of trade for elephants.
(d) Surat was an important trading port on the Bay of Bengal.
Answer:
(a) True
(b) False
(c) False
(d) False

Question 3.
How was water supplied to the city of Thanjavur?
Answer:
Thanjavur was situated near the pemninal river Kaveri. It was from this river that was water supplied to the city. Water supplied to the city of Thanjavur came from tanks and wells.

Question 4.
Who lived in the “Black Towns” in cities such as Madras (now Chennai)?
Answer:
During the eighteenth century, the cities such as Bombay, Calcutta and Madras were formed. During this period, the crafts and commerce underwent major changes as merchants and artisans (such as weavers) were moved into the ‘Black Towns’ established by the European companies within these new cities. The ‘blacks’ or native traders and crafitspersons were confined here while the ‘white’ rulers occupied superior residencies of Fort St. George in Madras or Fort St. William in Calcutta.

(Let’s Understand)

Question 5.
Why do you think towns grew around temples?
Answer:
Towns grew around temples because the temple towns represented a very important pattern of urbanisation. Temples were considered central to the economy and society. The following reasons are:

  • A large number of people like priests, workers, artisans, traders, etc., settle near the temples to cater its needs.
  • Temples were mostly the central hub to the economy and society.
  • Rulers built temples, donated land and money to carry out elaborate rituals, feed pilgrims and priests and celebrate festivals.
  • Pilgrims also made donations to the temples.
  • Temple authorities used their wealth to finance, trade and banking.

Question 6.
How important were craftspersons for the building and maintenance of temples?
Answer:
The Panchalas or Vishwakarma community consisting of goldsmiths, bronzesmiths, blacksmiths, masons and carpenters. The community played an essential role in the building of temples. They had an important role in the construction of big buildings, palaces, tanks and reservoirs. They executed the following activities:

1. The craftspersons of Bidar were well known for their inlay work in copper and silver and it was known as Bidri.

2. During the eighteenth century, the cities such as Bombay, Calcutta and Madras were formed. During this period, the crafts and commerce underwent major changes as merchants and artisans (such as weavers) were moved into the ‘Black Towns’ established by the European companies within these new cities. The ‘blacks’ or native traders and craftspersons were confined here while the ‘white’ rulers occupied superior residencies of Fort St. George in Madras or Fort St. William in Calcutta.

3. Weavers like Saliyar and Kaikkolars were very prosperous communities and they often donated money to temples.

Question 7.
Why did people from distant lands visit Surat?
Answer:
Surat was a cosmopolitan city and people of all castes and creeds lived there. People from distant lands visited Surat for the following reasons:

  • Surat was one of the most important medieval ports on the west coast of Indian subcontinent.
  • The Portuguese, Dutch and English had their factories and warehouses at Surat during the seventeenth century.
  • Surat was gateway for trade with West Asia via the Gulf of Ormuz.
  • It has also been called the gateway to Mecca, because many pilgrims’ ship set sail from here.
  • The big market for cotton textiles was present. There were also several retail and wholesale shops selling cotton textiles.
  • Surat was also famous for the textiles with gold lace borders (zari) which had a market in West Asia, Europe and Africa.
  • The Kathiawad seths or mahajans (moneychangers) had huge banking houses at Surat. Also, the Surat hundis were honoured in the far-off markets of Cairo in Egypt, Basra in Iraq and Antwerp in Belgium.
  • Magnificent buildings and pleasure parks also attracted people from far- off places. They had ample of rest houses for visitors and traders.

Question 8.
In what ways was craft production in cities like Calcutta different from that in cities like Thanjavur?
Answer:

Craft production in Calcutta Craft production in Thanjavur
It was in the form of cotton, jute and silk textiles. It was oganised and planned by the European companies.
They had to produce whatever was demanded by the European companies. It was in the form of inlay work in metals such as copper and silver.
The production mainly focused on the needs of the temple and the pilgrims. They were free to be as much creative as they could be.

(Let’s Discuss)

Question 9.
Compare any one of the cities described in this chapter with a town or a village with which you are familiar. Do you notice any similarities or differences?
Answer:
Do it yourself. Hint: Take the present-day of New Delhi

  • Similarities
  • Mention about Parliament and about Justice means Supreme Court.
  • Many people from distant places visit here and many traders and powerful people live here.
  • It is cultural and economic development centre. Also provides employment opportunities, etc.
  • Differences-(with Thanjavur)
  • Much larger area and had an elaborate transportation system.
  • It also experiences unlawful activities.
  • Migrants come everyday in search of work to Delhi, etc.

Question 10.
What were the problems encountered by merchants? Do you think some of these problems persist today?
Answer:
The problems encountered by the merchants were:

  • Merchants travelled in caravans carrying goods on the back of horses and camels. They had to travel through forests and there was always the fear of robbers.
  • But the European Companies’ used their naval power to gain control
    of the sea trade and forced Indian traders to work as their agents.
  • In the market also, they had to face tough competition with European traders.
  • Yes, some problem still persists today.

(Ie?sDo)

Question 11.
Find out more about the architecture of either Thanjavur or Hampi, and prepare a scrap book illustrating temples and other buildings from these cities.
Answer:
Do it yourself. Hint: Can take help from sources like books, articles, internet, etc.

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Question 12.
Find out about any present-day pilgrimage centre. Why do you think people go there? What do they do there? Are there any shops in the area? If so, what is bought and sold there?
Answer:
Do it yourself.
Hint: Present day pilgrimage centre: Tirupati. People go to this place and do worship and follow certain rituals. They go to famous Balaji temple. There are many shops and hotels. People visit and stay for few days. Offering materials are . also sold in these shops.

JAC Class 7th History Towns, Traders and Craftspersons Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions

Question 1.
Thanjavur served as the capital under the reign of……. rulers.
(a) Shakya
(b) Mughal
(c) Chola
(d) Chauhan
Answer:
(c) Chola

Question 2.
Mandapas or pavilions were used for
(a) training soldiers
(b) assembly meetings and carrying out administrative works and issuing orders
(c) imparting knowledge of art and craft to women
(d) None of the above
Answer:
(b) assembly meetings and carrying out administrative works and issuing orders

Question 3.
A holy lake named Pushkar is situated near which city?
(a) Ajmer
(b) Jaipur
(c) Udaipur
(d) Bikaner
Answer:
(a) Ajmer

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Question 4.
The built the fort of Masulipatnam.
(a) Portuguese
(b) French
(c) English
(d) Dutch
Answer:
(d) Dutch

Question 5.
Group of muslim merchants are known as…….
(a) Noors
(b) Moors
(c) Hoors
(d) None of these
Answer:
(b) Moors

Question 6.
Surat is located on
(a) the banks of the river Ganga
(b) the banks of the river Tapti
(c) the banks pf the river Jhelum
(d) the banks of the river Yamuna
Answer:
(b) the banks of the river Tapti

Question 7.
Domingo Paes was
(a) an Arab traveller
(b) a French traveller
(c) a Portuguese traveller
(d) a Spanish traveller
Answer:
(c) a Portuguese traveller

Question 8.
Great Indian traders such as ….. and ….owned a large number of ships which competed with East India Companies.
(a) Mulla Abdul Ghafur, Virji Vora
(b) Mir Zafar, Mir Jumla
(c) Mulla Abdul Ghafur, Mir Zafar
(d) None of these
Answer:
(a) Mulla Abdul Ghafur, Virji Vora

Question 9.
The Rajarajeshvara temple was located in……
(a) Bijapur
(b) Thanjavur
(c) Hampi
(d) Masulipatnam
Answer:
(b) Thanjavur

Question 10.
Which city was known as Gateway of Asia?
(a) Hampi
(b) Calcutta
(c) Bombay
(d) Surat
Answer:
(d) Surat

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
Which type of sculpture is famous from Thanjavur?
Answer:
Bronze idols are famous from Thanjavur.

Question 2.
Why do you think the temples become so important and powerful in medieval India?
Answer:
The temples became so important and powerful in medieval India because rulers gave a lot of money and grant land for temple development.

Question 3.
Write names of two famous guilds of the 8th century from the southern part of India.
Answer:
Manigramam and Nanadesi are the two famous guilds of the 8th century from the southern part of India.

Question 4.
Give an example of a temple town.
Answer:
Thanjavur was a temple town.

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Question 5.
European gain control of the sea route. How did they do that?
Answer:
European gain control of the sea route as they used their naval power to get authority of the sea trade.

Question 6.
What do you mean by emporium?
Answer:
A plage where goods from diverse production centres are bought and sold is called emporium. Such as, Surat was the emporium of Western trade.

Question 7.
India did trade with Africa. What did they brought?
Answer:
India did trade with Africa. They brought ivory and gold.

Question 8.
Which spices became the part of European cooking?
Answer:
Spices which were grown in tropical climates such as pepper, cinnamon, nutmeg, dried ginger, etc., became an important part of European cooking.

Question 9.
From which place did the Gujarati traders imported spices, tin, Chinese blue pottery and silver?
Answer:
From Southeast Asia and China, Gujarati traders imported spices, tin, Chinese blue pottery and silver.

Question 10.
Name some important temple towns.
Answer:
Some important temple towns are Thanjavur, Bhillasvamin in Madhya Pradesh, Somnath in Gujarat, Kanchipuram, Madurai in Tamil Nadu and Tirupati in Andhra Pradesh.

Short Answer Type Questions

Question 1.
Which ruler tried to play off Dutch and English against each other and why?
Answer:
Since the Mughals began to extend their power to Golconda, their representative the governor Mir Jumla who was also a merchant, began to play off the Dutch and the English against each other.

Question 2.
What do you mean by hundi? Who used hundi and in which city it was used?
Answer:
Hundi is a note recording and a deposit made by a person. The amount deposited can be claimed in another place by presenting the record of the deposit. The Kathiawad seths or mahajans (moneychangers) had huge banking houses at Surat. In Surat, hundis were honoured in the far-off markets of Cairo in Egypt, Basra in Iraq and Antwerp in Belgium.

Question 3.
Which type of markets did the small towns had?
Answer:
Small towns usually had a mandapika (or mandi of later times) to which nearby villagers brought their produce and things to sell. They also had market streets called hatta (haat of later times) lined with shops. Also, there were streets for different kinds of artisans such as potters, oil pressers, sugar makers, toddy makers, smiths, stonemasons, etc.

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Question 4.
Give reasons for the decline of Surat.
Answer:
Surat began to decline towards the end of the seventeenth century because of the following reasons:

  • Due to the decline of the Mughal Empire there was the loss of markets and productivity.
  • The sea routes were controlled by the Portuguese and competition from the English East India Company which shifted its headquarters to

Question 5.
The most impressive community was the Vora community. Discuss.
Answer:
In India, the trading communities were quite large in number and assimilated some of the richest merchants and traders in the world. Virji Vora who dominated Gujarat trade for several decades had a large fleet of ships. Mulla Abdul Ghafur was one of the noteworthy big merchants.

Question 6.
Name the main centres of cotton manufacturing.
Answer:
The main centres of cotton manufacturing were Patna, Cambay and Ahmedabad, Burhanpur, Bengal, Kashmir, Lahore and United Provinces.

Question 7.
Which trading groups made the city, Masulipatnam populous and prosperous?
Answer:
The trading groups which made the city of Masulipatnam populous and prosperous were the Golconda nobles, Persian merchants, Telugu Komati Chettis and European traders.

Question 8.
If weavers wanted to sign deals with the East India Company, they couldn’t sell their own cloth or weave their own patterns. Why?
Answer:
If weavers wanted to sign deals with the East India Company, they couldn’t sell their own cloth or weave their own patterns because they had to work on a system of payments in advance which meant that they had to weave cloth which was already promised to European agents.

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Question 9.
Write any three distinct type of urban centres in the medieval period.
Answer:
The three distinct types of urban centres in the medieval period were:

  • Administrative towns Delhi, Agra, Lahore, etc.
  • Commercial and manufacturing towns Daulatabad, Patna, Ahmedabad, Muziris, Surat, Hampi, Masulipatnam, etc.
  • Pilgrim towns Banaras, Kanchipuram, Mathura, etc.

Question 10.
Briefly explain the Mughal Karkhanas.
Answer:
The karkhanaa in the Mughal period were known as Buyutat as well. It was used for both storing and manufacturing articles for the royal household and nobles requirements. Following sections come under the karkhanas, such as public treasury, department of construction of monuments, repairing, roads and artillery.

Long Answer Type Questions

Question 1.
Explain the different ventures and occupations of big and small traders
in the medieval period.
Answer:
The different ventures and occupations of big and small traders in the medieval period were:

  • Many types of traders were there. It included Banjaras and various traders especially horse traders. ‘ They formed associations with headmen with warriors who bought horses.
  • Caravans were usually used by traders to travel and formed guilds to protect their interests.
  • Communities were present such as Marwari Oswals and Chettiars who later become the main trading groups of the country.
  • Gujarati traders which include the communities of Hindu Baniyas and Muslim Bohras traded enormously with the ports of Red Sea, Persian Gulf, East Africa, China and South East Asia.
  • They majorly sold textiles and spices in these towns and in return brought ivory and gold from Africa and silver, tin, spices, Chinese blue pottery from China and South East Asia.
  • Many traders such as Persian, Chinese, Arab, Syrian Christian, Jewish traded in the towns on the west coast.
  • Indian spices and cotton cloth became the source of attraction for the European traders. And, eventually reached the European markets fetching high profits.

Question 2.
Hampi was in its peak time in the 16th centuries. How? When did it fall to ruin?
Answer:
Hampi was in its peak time in the fifteenth and sixteenth centuries because:

  • It was a very important centre for commercial and cultural activities.
  • Moors which means a name used collectively for Muslim merchants, Chettis and agents of European traders such as the Portuguese, visited the markets of Hampi for different trades.
  • Temples were the main focal point of cultural activities and devadasis means temple dancers performed different forms of dances before the deity, royalty and masses in the many-pillared halls in the Virupaksha which is a form of Shiva temple.
  • The Mahanavami festival which is known today as Navaratri was one of the most important festivals celebrated at Hampi.
  • During the Mahanavami platform, the king received guests and accepted tribute from subordinate chiefs. From here he also watched dance and music performances which held during the festival time as well as wrestling bouts.
  • By the defeat of Vijayanagara in 1565 by the Deccani Sultans which were the rulers of Golconda, Bijapur, Ahmadnagar, Berar and Bidar, Hampi fell into ruin.

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JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Jharkhand Board Class 12 Political Science शीतयुद्ध का दौर InText Questions and Answers

पृष्ठ 5

प्रश्न 1.
प्रत्येक प्रतिस्पर्धी गुट से कम से कम तीन देशों की पहचान करें।
उत्तर:

  • सोवियत संघ गुट के तीन सदस्य देश थे:
    1. पोलैंड
    2. पूर्वी जर्मनी और
    3. रोमानिया।
  • अमेरिकी गुट के तीन सदस्य देश थे
    1. पश्चिमी जर्मनी
    2. ब्रिटेन और
    3. फ्रांस

प्रश्न 2.
अध्याय चार में दिये गये यूरोपीय संघ के मानचित्र को देखें और उन चार देशों के नाम लिखें जो पहले ‘वारसा संधि’ के सदस्य थे और अब यूरोपीय संघ के सदस्य हैं।
उत्तर:
(1) रोमानिया
(2) बुल्गारिया
(3) हंगरी
(4) पोलैण्ड।

प्रश्न 3.
इस मानचित्र की तुलना यूरोपीय संघ के मानचित्र तथा विश्व के मानचित्र से करें इस तुलना के बाद क्या आप तीन ऐसे देशों की पहचान कर सकते हैं जो शीतयुद्ध के बाद अस्तित्व में आए।
उत्तर:
(1) उक्रेन
(2) कजाकिस्तान
(3) किरगिस्तान तथा
(4) बेलारूस। (कोई तीन)

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

पृष्ठ 6

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका में तीन-तीन देशों के नाम उनके गुटों को ध्यान में रखकर लिखें- पूँजीवादी गुट, साम्यवादी गुट और गुटनिरपेक्ष आंदोलन।
गुट, साम्यवार्दी गुट और गुटनिरपेक्ष आंदोलन।
उत्तर:

  • पूँजीवादी गुट:
    1. संयुक्त राज्य अमरीका
    2. ब्रिटेन
    3. फ्रांस
  • साम्यवादी गुट
    1. सोवियत संघ
    2. पोलैण्ड
    3. हंगरी
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
    1. भारत
    2. मिस्न
    3. घाना।

पृष्ठ 7

प्रश्न 5.
उत्तरी और दक्षिणी कोरिया अभी तक क्यों विभाजित हैं जबकि शीत युद्ध के दौर के बाकी विभाजन मिट गये हैं? क्या कोरिया के लोग चाहते हैं कि विभाजन बना रहे?
उत्तर;
उत्तरी और दक्षिणी कोरिया अभी तक विभाजित हैं क्योंकि इसके पीछे संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के हित निहित हैं । इसलिए यहाँ के शासक वर्ग कोरिया के एकीकरण की ओर कदम नहीं बढ़ा पाये हैं। यद्यपि कोरिया के लोग विभाजन नहीं चाहते।

पृष्ठ 12

प्रश्न 6.
पाँच ऐसे देशों के नाम बताएँ जो दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त हुए।
उत्तर:
(1) भारत
(2) पाकिस्तान
(3) घाना
(4) इंडोनेशिया
(5) मिस्र।

Jharkhand Board Class 12 Political Science शीतयुद्ध का दौर TextBook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीत युद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
उत्तर:
(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा कथन गुट निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
संजीव पास बुक्स
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना।
उत्तर:
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 3.
नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
उत्तर:
(क) सही (ख) सही (ग) सही (घ) गलत

प्रश्न 4.
नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीत युद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था?
(क) पोलैंड
(ख) फ्रांस
(ग) जापान
(घ) नाइजीरिया
(ङ) उत्तरी कोरिया
(च) श्रीलंका।
उत्तर:
(क) पोलैंड: साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(ख) फ्रांस : पूँजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान : पूँजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाइजीरिया : गुटनिरपेक्ष आंदोलन
(ङ) उत्तरी कोरिया : साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(च) श्रीलंका : गुटनिरपेक्ष आंदोलन

प्रश्न 5.
शीत युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण – ये दोनों ही प्रक्रियायें पैदा हुईं। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?
उत्तर:
शीत ‘युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण ये दोनों ही प्रक्रियायें पैदा हुईं। इन दोनों प्रक्रियाओं के प्रारंभ होने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे:

  • हथियारों की होड़ की प्रक्रिया के कारण:
    1. शीत युद्ध के दौरान दोनों ही गठबंधनों के बीच प्रतिद्वन्द्विता समाप्त नहीं हुई थी। इसी कारण एक-दूसरे के प्रति शंका की हालत में दोनों गुटों ने भरपूर हथियार जमा किये और लगातार युद्ध के लिए तैयारी करते रहे।
    2. हथियारों के बड़े जखीरे को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए जरूरी माना जा रहा था।
  • हथियारों पर नियंत्रण की प्रक्रिया पैदा होने के कारण:
    1. दोनों गुट यह अनुभव करते थे कि यदि दोनों गुटों में आमने-सामने युद्ध होता है, तो दोनों ही गुटों की ‘अत्यधिक हानि होगी और दोनों में से कोई भी विजेता बनकर नहीं उभर पायेगा, क्योंकि दोनों ही गुटों के पास परमाणु हथियार थे।
    2. दोनों देश लगातार यह समझ रहे थे कि संयम के बावजूद युद्ध हो सकता है जिसका परिणाम भयानक होगा। इस कारण समय रहते अमरीका और सोवियत संघ ने कुछेक परमाणविक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग करने का फैसला किया।

प्रश्न 6.
महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताइये
उत्तर:
महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ निम्न कारणों से सैन्य गठबंधन रखती थीं-

  1. महत्त्वपूर्ण संसाधन तथा भू-क्षेत्र हासिल करना – महाशक्तियाँ महत्त्वपूर्ण संसाधनों, जैसे तेल और खनिज आदि पर अपने नियंत्रण बनाने तथा इन देशों के भू-क्षेत्रों से अपने हथियार और सेना का संचालन करने की दृष्टि से छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखती थीं।
  2. सैनिक ठिकाने – महाशक्तियाँ इन देशों में अपने सैनिक अड्डे बनाकर दुश्मन के देश की जासूसी करती थीं।
  3. आर्थिक मदद – छोटे देश सैन्य गठबंधन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे, जिससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 7.
कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि शीत युद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। इसका कारण यह है कि शीत युद्ध के दौरान दोनों ही गुटों में विचारधारा का अत्यधिक प्रभाव था। पूँजीवादी विचारधारा के लगभग सभी देश अमेरिका के गुट में शामिल थे, जबकि साम्यवादी विचारधारा वाले सभी देश सोवियत संघ के गुट में शामिल थे। विपरीत विचारधाराओं वाले देशों में निरन्तर आशंका, संदेह और भय व्याप्त था। जब 1991 में सोवियत संघ के विघटन से एक विचारधारा का भी पतन हो गया और इसके साथ ही शीत युद्ध भी समाप्त हो गया।

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प्रश्न 8.
शीत युद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान भारत की विदेश नीति-शीत युद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति गुटनिरपेक्षता की नीति रही। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं-

  1. इसके तहत भारत ने स्वयं को सजग और सचेत रूप से महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा। लेकिन उसने अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय हस्तक्षेप भी किया।
  2. भारत ने दोनों गुटों के बीच विद्यमान मतभेदों को दूर करने की कोशिश की तथा मतभेदों को पूर्णव्यापी युद्ध का रूप लेने से रोका।
  3. भारत के राजनयिकों और नेताओं का उपयोग अक्सर शीत युद्ध के दौर के प्रतिद्वन्द्वियों के बीच संवाद कायम करने और मध्यस्थता करने के लिए हुआ।
  4. शीत युद्ध काल में भारत ने उपनिवेशों के चंगुल से मुक्त हुए नवस्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमें में जाने. का पुरजोर विरोध किया ।
  5. भारत ने उन क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को सक्रिय बनाए रखा जो अमरीका या सोवियत संघ के खेमे से नहीं जुड़े थे।

गुटनिरपेक्षता की नीति और भारतीय हित: हाँ, गुटनिरपेक्षता की नीति ने कम से कम दो तरह से भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया-

  1. इस नीति के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सका जिससे उसका हित सधता होता हो।
  2. भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि एक महाशक्ति उसके खिलाफ जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के करीब आने की कोशिश करे।

प्रश्न 9.
गुट निरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीत युद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन तीसरी दुनिया के देशों के लिए प्रस्तुत तीसरा विकल्प गुटनिरपेक्षता ने एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमरीका के नवस्वतंत्र देशों को एक तीसरा विकल्प दिया। यह विकल्प -दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने का । यह पृथकतावाद नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रियता से युक्त आन्दोलन है।

शीत युद्ध काल में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अपने सदस्य देशों के विकास में भूमिका-

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी।
  2. इसी समझ से नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। अंकटाड में 1972 में संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन में प्रस्तुत वैश्विक रिपोर्ट में इन बातों पर बल दिया गया

(क) अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
(ख) अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी, वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार लाभदायक होगा।
(ग) पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी।
(घ) अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।
इसके परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया। इससे स्पष्ट होता है कि जब शीत युद्ध अपने शिखर पर था तब गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।.

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प्रश्न 10.
“गुटनिरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है।” आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
वर्तमान में गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता:
गुटनिरपेक्षता की नीति शीत युद्ध के संदर्भ में पनपी थी। 1990 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शीत युद्ध का अन्त और सोवियत संघ का विघटन हुआ इसके साथ ही एक अन्तर्राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता और प्रभावकारिता में थोड़ी कमी आई। लेकिन गुट निरपेक्ष आंदोलन अप्रासंगिक नहीं हुआ है। इसकी प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है। यथा

  1. गुटनिरपेक्षता इस बात की पहचान पर टिकी है कि उपनिवेश की स्थिति से आजाद हुए देशों के बीच ऐतिहासिक जुड़ाव है और यदि ये देश साथ आ जायें तो एक सशक्त ताकत बन सकते हैं।
  2. कोई भी देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकता है।
  3. यह आंदोलन मौजूदा असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व – व्यवस्था बनाने और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतंत्रधर्मी बनाने के संकल्प पर टिका है।
  4. नवोदित राष्ट्रों का आर्थिक और राजनैतिक विकास भी परस्पर सहयोग पर निर्भर है।
  5. वर्तमान महाशक्ति अमरीका के प्रभाव से मुक्त रहने के लिए भी निर्गुट राष्ट्रों का आपसी सहयोग और भी अधिक आवश्यक है।
  6. यह नीति आज भी गुटनिरपेक्ष देशों की सुरक्षा, सम्मान और प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

शीतयुद्ध का दौर JAC Class 12 Political Science Notes

→ क्यूबा का मिसाइल संकट:
क्यूबा अमरीकी तट से लगा हुआ द्विपीय देश है। सोवियत संघ के नेता ने क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ में परिवर्तित करने हेतु 1962 में वहां परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। इस बात की भनक अमरीकी राष्ट्रपति को लगी तब उन्होंने और उनके सलाहकारों ने दोनों देशों के बीच शांति बनाए रखने का प्रयास किया। लेकिन अमरीका इस बात को लेकर भी दृढ़ था कि रूस क्यूबा से मिसाइल और परमाणु हथियार हटा ले । ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था। शीत युद्ध सिर्फ जोर-आजमाइश, सैनिक गठबन्धन अथवा शक्ति सन्तुलन का मामला भर नहीं था, बल्कि इसके साथ-साथ उदारवादी – पूँजीवादी लोकतान्त्रिक विचारधारा और साम्यवाद व समाजवाद की विचारधारा के बीच एक वास्तविक संघर्ष भी जारी था।

→ शीत युद्ध क्या है?
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वैश्विक राजनीति के मंच पर दो महाशक्तियों का उदय हुआ। ये थीं- संयुक्त राज्य अमेरिका व समाजवादी सोवियत गणराज्य इन दोनों महाशक्तियों ने विश्व के देशों को पूँजीवादी और साम्यवादी विचारधाराओं में विभाजित कर दिया। इनके पास इतनी क्षमता थी कि विश्व की किसी भी घटना को प्रभावित कर सकें। दोनों का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीत युद्ध का कारण बना। दोनों ही पक्षों के पास एक-दूसरे के मुकाबले और परस्पर नुकसान पहुँचाने की इतनी क्षमता थी कि कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता था । इस तरह, महाशक्तियों के बीच की गहन प्रतिद्वन्द्विता रक्तरंजित युद्ध का रूप नहीं ले सकी। पारस्परिक ‘अपरोधं’ की स्थिति ने युद्ध तो नहीं होने दिया, लेकिन यह स्थिति पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को नहीं रोक सकी। इस प्रतिद्वन्द्विता की तासीर ठंडी रही। इसलिए इसे शीत युद्ध कहा जाता है।

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→ दो – ध्रुवीय विश्व का प्रारम्भ:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दोनों महाशक्तियों के बीच जारी शीत युद्ध के कारण दुनिया दो गुटों के बीच स्पष्ट रूप से बंट गयी थी । यह विभाजन पहले यूरोप में हुआ। पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका का पक्ष लिया तो पूर्वी यूरोप सोवियत संघ के खेमे में शामिल हो गया। ये खेमे पश्चिमी और पूर्वी गठबंधन कहलाये । पश्चिमी गठबंधन ने 1949 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना की तो पूर्वी गठबंधन ने 1955 में ‘वारसा पैक्ट’ की स्थापना की। पश्चिमी गठबंधन ने ‘सीटो’ और ‘सेन्टो’ संगठन बनाए तो सोवियत संघ और साम्यवादी चीन ने उत्तरी वियतनाम, उत्तरी कोरिया और इराक के साथ अपने सम्बन्ध मजबूत किये। लेकिन गठबंधनों में परस्पर दरार पड़ने और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विकास के कारण समूचा विश्व दो गुटों में विभाजित नहीं हो सका।

→ शीत युद्ध के दायरे:
शीत युद्ध के दायरे से हमारा आशय ऐसे क्षेत्रों से होता है जहाँ विरोधी खेमों में बँटे देशों के बीच संकट के अवसर आये, युद्ध हुए या इनके होने की संभावना बनी, लेकिन बातें एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ीं। दोनों महाशक्तियाँ कोरिया (1950-53), बर्लिन (1958 – 62), कांगो (1960), क्यूबा (1962) तथा कई अन्य जगहों पर सीधे-सीधे मुठभेड़ की स्थिति में आयीं; वियतनाम और अफगानिस्तान में व्यापक जन-हानि हुई, लेकिन विश्व परमाणु संजीव पास बुक्स युद्ध से बचा रहा। युद्धों को टालने में महाशक्तियों के संयम, गुटनिरपेक्ष देशों की भूमिका, संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव, शस्त्रीकरण और अस्त्र नियंत्रण संधियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

शीत युद्ध का घटनाक्रम-
→ 1947: साम्यवाद को रोकने के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रूमैन का सिद्धान्त।

→ 1947-52: मार्शल योजना – पश्चिमी यूरोप के पुनः निर्माण में अमरीकी सहायता।

→ 1948-49: सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबंदी।

→ 1950-53: कोरियाई युद्ध।

→ 1954: वियतनामियों के हाथों दायन बीयन फू में फ्रांस की हार, जेनेवा समझौते पर हस्ताक्षर, सिएटो का गठन 17वीं समानांतर रेखा द्वारा वियतनाम का विभाजन।

→ 1954-75: वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप।

→ 1955: बगदाद (सेन्टो) समझौता तथा वारसा संधि।

→ 1956: हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप|

→ 1961: क्यूबा में अमेरिका द्वारा प्रायोजित ‘बे ऑफ पिग्स’ आक्रमणं। बर्लिन की दीवार खड़ी की गई तथा गुटनिरपेक्ष सम्मेलन का बेलग्रेड में आयोजन।

→ 1962: क्यूबा का मिसाइल संकट।

→ 1965: डोमिनिकन रिपब्लिक में अमरीकी हस्तक्षेप।

→ 1968: चेकोस्लोवाकिया में सोवियत हस्तक्षेप।

→ 1972: अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन का चीन दौरा।

→ 1978-89: कंबोडिया में वियतनाम का हस्तक्षेप।

→ 1985: गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने; सुधार की प्रक्रिया प्रारंभ।

→ 1989: बर्लिन की दीवार गिरी।

→ 1990: जर्मनी का एकीकरण।

→ 1991: सोवियत संघ का विघटन और शीत युद्ध की समाप्ति।

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→ दो – ध्रुवीयता को चुनौती- गुटनिरपेक्षता:
शीत युद्ध के दौरान विश्व दो प्रतिद्वन्द्वी गुटों में बंट रहा था। इसी संदर्भ में गुटनिरपेक्षता ने एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमरीका के नव-स्वतंत्र देशों को इन गुटों से अलग रहने का तीसरा विकल्प दिया। गुट निरपेक्ष आंदोलन के पाँच संस्थापक नेता थे- भारत के नेहरू, यूगोस्लाविया के टीटो, मिस्र के नासिर, इंडोनेशिया के सुकर्णों और घाना के एनक्रूमा 1961 के बेलग्रेड गुटनिरपेक्ष आंदोलन के पहले सम्मेलन में जहाँ 25 सदस्य देश शामिल हुए, वहीं 2019 में अजरबेजान में हुए 18वें सम्मेलन में 120 सदस्य देश शामिल हुए। गुटनिरपेक्ष आंदोलन महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने का आंदोलन है। यह न तो पृथकतावाद है और न तटस्थतावाद।

→ नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। इन देशों का स्वतंत्रता की दृष्टि से भी आर्थिक विकास जरूरी था। इसी समझ से नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ 1970 के दशक के मध्य में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए आर्थिक दबाव समूह की भूमिका निभायी लेकिन 1980 के दशक में इसके प्रयास ढीले पड़ गये। भारत और शीत युद्ध – गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में भारत ने दो स्तरों पर अपनी भूमिका निभाई।

  • अपने को दोनों महाशक्तियों के खेमे से अलग रखा
  • नव – स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमे में जाने से रोका।

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सकारात्मक थी; उसने प्रतिद्वंद्वियों के बीच संवाद कायम करने तथा मध्यस्थता के प्रयास किये; दोनों खेमों से अलग अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, जैसे राष्ट्रकुल, को सक्रिय रखा। गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता – गुटनिरपेक्षता के कारण भारत अपने राष्ट्रीय हित साधने में सफल रहा। लेकिन आलोचकों ने भारत की इस नीति को सिद्धान्तविहीन तथा अस्थिर कहा वर्तमान में यह आन्दोलन मौजूदा असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था बनाने तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतंत्रधर्मी बनाने के संकल्प पर टिका हुआ है।

 

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. मुस्लिम लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने की घोषणा की थी –
(क) 16 अगस्त, 1948
(ख) 16 अगस्त, 1946
(ग) 12 अगस्त, 1942
(घ) 15 अगस्त, 1944
उत्तर:
(ख) 16 अगस्त, 1946

2. ‘पाकिस्तान’ नाम के प्रस्ताव को सर्वप्रथम जिसने प्रस्तुत किया था, वह था-
(क) चौधरी रहमत अली
(ख) चौधरी मोहम्मद अली
(ग) चौधरी इनायत अली
(घ) चौधरी लियाकत अली
उत्तर:
(क) चौधरी रहमत अली

3. शुद्धि आन्दोलन चलाने वाली संस्था थी –
(क) ब्रह्म समाज
(ग) हिन्दू महासभा
(ख) आर्य समाज
(घ) कॉंग्रेस पार्टी
उत्तर:
(ख) आर्य समाज

4. भारत विभाजन से लगभग कितने लोगों को उजड़ कर दूसरी जगह जाने को मजबूर होना पड़ा –
(क) लगभग दो करोड़ से ज्यादा
(ख) लगभग डेढ़ करोड़
(ग) चार करोड़ से ज्यादा
(घ) पचास लाख से ज्यादा
उत्तर:
(ख) लगभग डेढ़ करोड़

5. भारत विभाजन के समय जो नस्ली सफाया हुआ, वह कारगुजारी थी –
(क) धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की
(ख) सरकारी निकार्यों की
(ग) अंग्रेजों की
(घ) सेना की
उत्तर:
(क) धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

6. “मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़ा हुआ कर्ज चुका रहा हूँ।” यह किसने कहा था –
(क) अब्दुल रज्जाक ने
(ख) अब्दुल लतीफ ने
(ग) मोहम्मद अली ने
(घ) शौकत अली ने
उत्तर:
(ख) अब्दुल लतीफ ने

7. अब्दुल लतीफ के अब्बा की मदद की थी –
(क) एक हिन्दू ने
(ख) एक सिख ने
(ग) एक हिन्दू माई ने
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) एक हिन्दू माई ने

8. औपनिवेशिक भारत में हिन्दू और मुसलमान दो पृथक् राष्ट्र थे। यह सोच थी-
(क) रहमत अली की
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना की
(ग) लियाकत अली की
(घ) मौलाना आजाद की
उत्तर:
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना की

9. काँग्रेस और मुस्लिम लीग का लखनऊ समझौता कब हुआ था?
(क) 1915 में
(ख) 1916 में
(ग) 1919 में
(घ) 1917 में
उत्तर:
(ख) 1916 में

10. होलोकॉस्ट क्या है?
(क) बँटवारा
(ख) संघर्ष
(ग) मित्रता
(घ) संगठन
उत्तर:
(क) बँटवारा

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11. मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई थी?
(क) 1904 में
(ख) 1906 में
(ग) 1912 में.
(घ) 1984 में
उत्तर:
(ख) 1906 में

12. 1937 में के प्रान्तीय चुनावों में कांग्रेस को निम्न में से कितने प्रान्तों में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था ?
(क) 4
(ग) 6
(ख) 5
(घ) 7
उत्तर:
(ख) 5

13. पाकिस्तान नाम सर्वप्रथम दिया था
(क) मोहम्मद अली जिन्ना ने
(ख) मोहम्मद इकबाल ने
(ग) खान अब्दुल गफ्फार खान ने
(घ) चौधरी रहमत अली ने
उत्तर:
(घ) चौधरी रहमत अली ने

14. पंजाब में हिन्दू मुस्लिम एवं सिक्ख भू-स्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनैतिक पार्टी थी –
(क) हिन्दू महासभा
(ग) मुस्लिम लीग
(ख) कांग्रेस
(घ) यूनियनिस्ट पार्टी
उत्तर:
(घ) यूनियनिस्ट पार्टी

15. सीमान्त गांधी कहा जाता था –
(क) जिन्ना को
(ख) महात्मा गाँधी को
(ग) खान अब्दुल गफ्फार खान को
(घ) सुशीला नायर को
उत्तर:
(ग) खान अब्दुल गफ्फार खान को

16. गाँधीजी के दिल्ली आगमन को “बड़ी लम्बी और कठोर गर्मी के बाद बरसात की फुहारों के आने” जैसा महसूस किया था –
(क) जवाहर लाल नेहरू
(ख) शाहिद अहमद देहलवी ने
(ग) जिन्ना से
(घ) खान अब्दुल गफ्फार खान ने
उत्तर:
(ख) शाहिद अहमद देहलवी ने

17. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त किसने दिया था?
(क) रहमत अली
(ग) महात्मा गाँधी
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना

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18. “लव इज स्ट्रांगर देन हेट, ए रिमेम्बरेंस ऑफ 1947” नामक संस्मरण के लेखक हैं –
(क) डॉ. सुखदेव सिंह
(ख) डॉ. रवीन्द्र
(घ) महात्मा गाँधी
(ग) जिन्ना
उत्तर:
(क) डॉ. सुखदेव सिंह

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. विभाजन की वजह से लाखों लोग …………… खनकर रह गए।
2. पत्रकार आर. एम. मर्फी के अनुसार हिन्दू काले, कायर ……………. तथा शाकाहारी होते हैं।
3. …………….. में नात्सी जर्मनी में लोगों को मारने के लिए सरकारी मुहिम चली थी।
4. ……………… समझौता दिसम्बर 1916 में हुआ था।
5. ……………….. लखनक समझौता ……………… और ……………… के बीच हुआ था।
6. कुछ विद्वानों के अनुसार देश का बँटवारा एक ऐसी साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था जो ……………… वीं शताब्दी के प्रारस्भिक दशकों में शुरू हुई।
7. ………………. का तात्पर्य है वह राजनीति जो धार्मिकसमुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है।
8. बहु-धार्मिक देश में ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ शब्दों का अर्थ भी ………………. के करीब-करीब हो सकता है।
9. मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ………………. में हुआ था।
उत्तर:
1. शरणार्थी
2. बहु-ईश्वरवादी
3. 1947- 48
4. लखनऊ
5. कांग्रेस, मुस्लिम लीग
6. 20
7. साम्प्रदायिकता
8 साम्प्रदायिकता
9. ढाका
10. 1915
11. 1937
12. यूनियनिस्ट
13. 1942
14. प्रत्यक्ष कार्यवाही।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सीमान्त गाँधी किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान।

प्रश्न 2.
सर्वप्रथम उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में मुस्लिम राज्य की माँग किसने की थी?
उत्तर:
मुहम्मद इकबाल ने।

प्रश्न 3.
1971 में बंगाली मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान से अलग होने का फैसला लेकर जिला के किस सिद्धान्त को नकार दिया था?
उत्तर:
द्विराष्ट्र सिद्धान्त को।

प्रश्न 4.
नोआखली वर्तमान में किस देश में स्थित है?
उत्तर:
बांग्लादेश में।

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प्रश्न 5.
उन दो नेताओं के नाम लिखिये जो अन्त तक भारत के विभाजन का विरोध करते रहे।
उत्तर:
(1) महात्मा गाँधी
(2) खान अब्दुल गफ्फार खान।

प्रश्न 6.
स्वतन्त्रतापूर्व का ‘संयुक्त प्रान्त’ वर्तमान में कौन-से राज्य के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 7.
जर्मन होलोकास्ट और भारत के विभाजन में क्या अन्तर था?
उत्तर:
जर्मनी में भीषण विनाशलीला हेतु नाजी सरकार उत्तरदायी थी, भारत के विभाजन के लिए धार्मिक नेता उत्तरदायी थे।

प्रश्न 8.
आर्य समाज का मुख्य नारा क्या था?
उत्तर:
शुद्धि आन्दोलन।

प्रश्न 9.
“मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़ा हुआ कर्ज चुका रहा हूँ।” यह किसने कहा था और किससे कहा था?
उत्तर:
(1) अब्दुल लतीफ ने
(2) शोधकर्ता से।

प्रश्न 10.
1947 के बँटवारे को लोग किन नामों से पुकारते हैं?
उत्तर:
‘मार्शल लॉ’, ‘मारामारी’, ‘रौला’ एवं ‘हुल्लड़’।

प्रश्न 11.
जर्मन होलोकास्ट’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नाजी शासन के दौरान जर्मनी में गैर-जर्मन लोगों का संहार।

प्रश्न 12.
किस अधिनियम में सर्वप्रथम मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई ?
उत्तर:
1909 के मिण्टये मार्ले सुधारों में।

प्रश्न 13.
कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता कब हुआ?
उत्तर:
दिसम्बर, 1916 में।

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प्रश्न 14.
लखनऊ समझौता किस-किसके बीच हुआ?
उत्तर:
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच

प्रश्न 15.
हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच किन बातों से साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ?
उत्तर:

  • मस्जिद के सामने संगीत
  • गोरक्षा आन्दोलन
  • शुद्धि आन्दोलन।

प्रश्न 16.
हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच मुसलमानों की किन गतिविधियों से दोनों सम्प्रदायों में तनाव उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
(1) तबलीग (प्रचार) और
(2) तंजीम (संगठन) के विस्तार से

प्रश्न 17.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1906 ई. में।

प्रश्न 18.
मुस्लिम लीग की स्थापना कहाँ हुई?
उत्तर:
ढाका में।

प्रश्न 19.
हिन्दू महासभा की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1915

प्रश्न 20.
मुस्लिम लीग ने ‘पाकिस्तान’ का प्रस्ताव कब पास किया था?
उत्तर:
23 मार्च, 1940 को

प्रश्न 21.
‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा’ इस गीत की रचना किसने की थी?
उत्तर:
मुहम्मद इकबाल ने।

प्रश्न 22.
सर्वप्रथम ‘पाकिस्तान’ का उल्लेख किसने किया था?
उत्तर:
केम्ब्रिज के एक मुस्लिम छात्र चौधरी रहमत अली ने

प्रश्न 23.
1930 के मुस्लिम लीग के अधिवेशन में किसने ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की स्थापना पर जोर दिया था?
उत्तर:
मुहम्मद इकबाल ने।

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प्रश्न 24.
ब्रिटिश सरकार ने केबिनेट मिशन दिल्ली कब भेजा ? इसमें कितने सदस्य थे?
उत्तर:
(1) मार्च 1946 में
(2) तीन सदस्य।

प्रश्न 25.
सीमान्त गाँधी’ या ‘फ्रंटियर गाँधी’ किन्हें कहा जाता था?
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान

‘प्रश्न 26.
मुस्लिम लीग द्वारा ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ कब मनाने की घोषणा की गई थी?
उत्तर:
16 अगस्त, 1946 को

प्रश्न 27.
गाँधीजी द्वारा दिल्ली में दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने पर किसने कहा था कि ” अब दिल्ली बच जायेगी।”
उत्तर:
शाहिद अहमद देहलवी ने

प्रश्न 28.
‘पंजाबी सेंचुरी’ के रचयिता कौन थे ?
उत्तर:
प्रकाश टण्डन।

प्रश्न 29.
‘द अदर साइड ऑफ वाइलेंस’ की रचना किसने की थी?
उत्तर:
उर्वशी बुटालिया ने।

प्रश्न 30.
‘मुहब्बत नफरत से ज्यादा ताकतवर होती है 1947 की यादें’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह।

प्रश्न 31.
भारत के बँटवारे के दौरान के महाध्वंस और यूरोप के नात्सी महाध्वंस में प्रमुख अन्तर क्या है?
उत्तर:
भारत के बँटवारे का महाध्वंस धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी था जबकि यूरोपीय महाध्वंस सरकार की कारगुजारी था।

प्रश्न 32.
विभाजन की स्मृतियों, घृणाओं और छवियों की आज क्या भूमिका है?
उत्तर:
विभाजन की स्मृतियाँ छवियाँ आज भी सरहद के दोनों तरफ के लोगों के इतिहास व सम्बन्धों को तय करती हैं।

प्रश्न 33.
किसी धार्मिक जुलूस के द्वारा नमाज के समय मस्जिद के बाहर संगीत बजाए जाने से हिन्दू- मुस्लिम हिंसा क्यों हो सकती थी?
उत्तर:
नमाज के समय मस्जिद के सामने संगीत बजाने को रूढ़िवादी मुसलमान अपनी नमाज या इबादत में खलल मानते हैं।

प्रश्न 34.
साम्प्रदायिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सांप्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष तरह से राजनीतिकरण है जो धार्मिक समुदायों में झगड़े पैदा करवाने की कोशिश करती है।

प्रश्न 35.
1937 के चुनावों के बाद जिन्ना की प्रमुख जिद क्या थी?
उत्तर:
जिला की जिद थी कि मुस्लिम लीग को ही मुसलमानों का एकमात्र प्रवक्ता माना जाये।

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प्रश्न 36.
1937 के चुनावों के बाद संयुक्त प्रान्त में काँग्रेस पार्टी ने गठबंधन सरकार बनाने के बारे में मुस्लिम लीग के प्रस्ताव को खारिज क्यों कर दिया था?
उत्तर:
संयुक्त प्रान्त में कॉंग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त था तथा जमींदारी प्रथा के सम्बन्ध में दोनों के विचारों में अन्तर था।

प्रश्न 37.
मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप में मुस्लिम- बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की मांग का प्रस्ताव कब पेश किया?
उत्तर:
23 मार्च, 1940 को

प्रश्न 38.
1945 में अँग्रेजों के एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाने के प्रस्ताव पर वार्ता जिन्ना की किस जिद के कारण टूट गई?
उत्तर:
जिन्ना इस बात पर अड़े रहे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार मुस्लिम लीग का होगा।

प्रश्न 39.
किस मिशन के प्रस्ताव को लीग और काँग्रेस द्वारा स्वीकार नहीं करने पर विभाजन कमोबेश अनिवार्य हो गया था?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने पर विभाजन कमोबेश अनिवार्य हो गया था।

प्रश्न 40.
कैबिनेट मिशन योजना की असफलता के बाद मुस्लिम लीग ने क्या कार्यवाही की ?
उत्तर:
लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को मनवाने हेतु 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने का फैसला किया।

प्रश्न 41.
सन् 1947 में भारत विभाजन के दो कारण लिखिये।
उत्तर:
(1) अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’
(2) कैबिनेट मिशन की विफलता।

प्रश्न 42.
द्विराष्ट्र सिद्धान्त का क्या अर्थ है?
उत्तर:
द्विराष्ट्र सिद्धान्त का अर्थ है कि हिन्दू और मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र (देश) हैं वे एक साथ नहीं रह सकते।

प्रश्न 43.
मुस्लिम लीग ने क्रिप्स प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार किया?
उत्तर:
मुस्लिम लीग के अनुसार इस प्रस्ताव में उसकी प्रमुख माँग पाकिस्तान के निर्माण का कहीं भी जिक्र नहीं था।

प्रश्न 44.
अब्दुल लतीफ खाँ शोधार्थी की मदद क्यों करते थे?
उत्तर:
एक हिन्दू बूढ़ी माई ने अब्दुल लतीफ खाँ के वालिद की दंगाइयों से जान बचाई थी।

प्रश्न 45.
हिन्दू महासभा के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखिए।
उत्तर:
हिन्दू महासभा की स्थापना 1915 में हिन्दू समाज में एक ता पैदा करने के उद्देश्य से की गई।

प्रश्न 46.
यूनियनिस्ट पार्टी क्या थी?
उत्तर:
यह पंजाब में हिन्दू-मुस्लिम और सिख भू- स्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक राजनीतिक पार्टी थी।

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प्रश्न 47.
मुस्लिम लीग के 1930 में अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण में मोहम्मद इकबाल ने क्या माँग की थी?
उत्तर:
पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत, शिथिल भारतीय संघ के अन्दर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना करना।

प्रश्न 48.
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का अंग्रेजों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अंग्रेजों को संभावित सत्ता हस्तान्तरण के बारे में भारतीय पक्षों के साथ बातचीत के लिए तैयार होना पड़ा।

प्रश्न 49.
अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों के लिए किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हुई?
उत्तर:
(1) भारतीय अंग्रेजी साहित्य, विज्ञान, गणित तथा तकनीकी विषयों के ज्ञान से परिचित हुए। (2) इसने राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया।

प्रश्न 50.
मार्च, 1947 में काँग्रेस हाईकमान ने किस प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी थी?
उत्तर:
पंजाब को मुस्लिम बहुल और हिन्दू/ सिख बहुल दो हिस्सों में बाँटने के प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी देना।

प्रश्न 51.
भारत विभाजन के समय साम्प्रदायिक दंगों के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग होता है?
उत्तर:
मॉर्शल लॉ, मारामारी, रौला या हुल्लड़ आदि।

प्रश्न 52.
दिल्ली में गाँधीजी के अनशन में आश्चर्यजनक बात क्या थी?
उत्तर:
दिल्ली अनशन में आश्चर्यजनक बात यह थी कि पाकिस्तान से आए शरणार्थी चाहे वे हिन्दू हों या सिख, अनशन में साथ बैठते थे।

प्रश्न 53.
समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने 1947 के दंगों में हुई विनाशलीला को देखते हुए इसे महाध्वंस (होलोकास्ट) क्यों कहा है?
उत्तर:
वे इस सामूहिक जनसंहार की भयानकता को उजागर करना चाहते हैं।

प्रश्न 54.
थुआ गाँव का हादसा क्या था?
उत्तर:
थुआ गाँव की 90 स्वियों ने शत्रुओं के हाथों में पड़ने की बजाय कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी।

प्रश्न 55.
डॉ. खुशदेवसिंह क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह ने धर्मपुर (हिमाचल प्रदेश) में रहते हुए हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को भोजन और आश्रय प्रदान किया।

प्रश्न 56.
आर्य समाज का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
आर्य समाज वैदिक ज्ञान का पुनरुत्थान कर उसको विज्ञान की आधुनिक शिक्षा से जोड़ना चाहता था।

प्रश्न 57.
अविभाजित भारत में दूसरी बार प्रान्तीय चुनाव कब हुए?
उत्तर:
1946 ई. में।

प्रश्न 58.
गुरुद्वारा शीशगंज में गाँधीजी ने किस बात को शर्मनाक बताया?
उत्तर:
गाँधीजी ने इस बात को शर्मनाक बताया कि दिल्ली का दिल कहलाने वाले चाँदनी चौक में उन्हें एक भी मुसलमान दिखाई नहीं दिया।

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प्रश्न 59.
किस मिशन के प्रस्ताव को कांग्रेस व मुस्लिम लीग द्वारा स्वीकार न किये जाने के कारण विभाजन अनिवार्य- सा हो गया था ?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन प्रस्ताव।

प्रश्न 60.
उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य की स्थापना की माँग किसने की थी और कब की थी?
उत्तर:
1930 में मोहम्मद इकबाल ने।

प्रश्न 61.
केबिनेट मिशन की दो सिफारिशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) एक शिथिल त्रिस्तरीय महासंघ का निर्माण करना।
(2) संविधान सभा का चुनाव करना।

प्रश्न 62.
साम्प्रदायिक दंगों से पीड़ित लोगों को सान्त्वना देने के लिए गाँधीजी ने किन स्थानों की यात्रा की?
उत्तर:
गांधीजी ने नोआखली (वर्तमान बांग्लादेश), बिहार, कोलकाता तथा दिल्ली की यात्राएं कीं।

प्रश्न 63.
“हमारे लिए इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि चाँदनी चौक में एक भी मुसलमान नहीं है।” यह किसका कथन था?
उत्तर:
यह कथन गाँधीजी का था।

प्रश्न 64.
दिल्ली में गाँधीजी के अनशन का असर “आसमान की बिजली जैसा रहा”, यह कथन किसका था?
उत्तर:
यह कथन मौलाना आजाद का था।

प्रश्न 65.
‘प्रेम घृणा से अधिक शक्तिशाली होता है : 1947 की यादें’ नामक पुस्तक में किसके संस्मरण संकलित है?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह के।

प्रश्न 66.
कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन की सिफारिशों को क्यों स्वीकार नहीं किया?
उत्तर:
कांग्रेस की माँग थी कि प्रान्तों को अपनी इच्छा का समूह चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।

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प्रश्न 67.
मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की सिफारिशों को क्यों नहीं माना?
उत्तर:
मुस्लिम लीग की माँग थी कि प्रान्तों की समूहबद्धता अनिवार्य होनी चाहिए।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1947 में विभाजन के दौरान हुई भीषण विनाशलीला को ‘महाध्वंस’ (होलोकॉस्ट) क्यों कहा कि जाता है?
उत्तर:
कुछ प्रेक्षकों ने विभाजन के दौरान हुई हत्याओं, बलात्कार, आगजनी तथा लूटपाट को ‘महाध्वंस’ लम (होलोकास्ट) की संज्ञा दी है। वे इस शब्द के द्वारा – सामूहिक जनसंहार की भयानकता को उजागर करना चाहते हैं। यह हादसा इतना भीषण था कि ‘विभाजन’ या ‘बँटवारे’ से उसके समस्त पहलू सामने नहीं आते। जहाँ नाजी जर्मनी में महाध्वंस सरकार के द्वारा किया गया, वहाँ भारत में यह महाध्वंस धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।

प्रश्न 2.
हिन्दू महासभा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हिन्दू महासभा की स्थापना 1915 में हुई। यह एक हिन्दू पार्टी थी जो कमोबेश उत्तर भारत तक सीमित रही यह पार्टी हिन्दुओं के बीच जाति एवं सम्प्रदाय के फर्कों को खत्म कर पैदा करने की कोशिश करती थी अस्मिता को मुस्लिम अस्मिता के करने का प्रयास करती थी। हिन्दू समाज में एकता हिन्दू महासभा, हिन्दू विरोध में परिभाषित

प्रश्न 3.
कैबिनेट मिशन के प्रमुख सुझाव क्या थे?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन के प्रमुख सुझाव निम्नलिखित –
(1) इस कैबिनेट मिशन ने तीन महीने तक भारत का दौरा किया और एक ढीले-ढाले त्रिस्तरीय महासंघ का सुझाव दिया। इसमें भारत एकीकृत ही रहने वाला था जिसकी केन्द्रीय सरकार काफी कमजोर होती और उसके पास केवल विदेश, रक्षा और संचार का जिम्मा होता।

(2) संविधान सभा का चुनाव करते हुए मौजूदा प्रान्तीय सभाओं को तीन हिस्सों में समूहबद्ध किया जाना था हिन्दू बहुल प्रान्तों को समूह ‘क’ पश्चिमोत्तर मुस्लिम बहुल प्रान्तों को समूह ‘ख’ और पूर्वोत्तर (असम सहित ) के मुस्लिम बहुल प्रान्तों को समूह ‘ग’ में रखा गया था।

(3) प्रान्तों के इन खण्डों या समूहों को मिला कर क्षेत्रीय इकाइयों का गठन किया जाना था माध्यमिक स्तर की कार्यकारी और विधायी शक्तियाँ उनके पास ही रहने वाली थी।

प्रश्न 4.
साम्प्रदायिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता उस राजनीति को कहा जाता है, जो धार्मिक समुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है। ऐसी राजनीति धार्मिक पहचान को बुनियादी और अटल मानती है। साम्प्रदायिकता किसी चिह्नित ‘गैर’ के विरुद्ध घृणा की राजनीति को पोषित करती है। मुस्लिम साम्प्रदायिकता हिन्दुओं को ‘गैर’ बताकर उनका विरोध करती है तथा हिन्दू साम्प्रदायिकता मुसलमानों को गैर बताकर उनका विरोध करती है। साम्प्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष प्रकार से राजनीतिकरण है।

प्रश्न 5.
बँटवारे में औरतों की बरामदगी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घंटवारे के दौरान स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए, उनका अपहरण किया गया, उन्हें बार-बार खरीदा- बेचा गया तथा अनजान परिस्थितियों में अजनबियों के साथ एक नया जीवन बसर करने के लिए विवश किया गया। बहुत सी स्त्रियों को जबरदस्ती घर बिठा ली गई तथा उन्हें उनके नये परिवारों से छीनकर पुनः पुराने परिवारों या स्थानों पर भेज दिया गया। इस अभियान में लगभग 30,000 स्त्रियों को बरामद किया गया, इनमें से 22,000 मुस्लिम स्त्रियों को भारत से तथा 8,000 हिन्दू स्त्रियों को पाकिस्तान से निकाला गया।

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प्रश्न 6.
डॉ. खुशदेवसिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डॉ. खुशदेवसिंह एक सिक्ख डॉक्टर थे तथा तपेदिक के विशेषज्ञ थे वे विभाजन के दौरान धर्मपुर (हिमाचल प्रदेश) में नियुक्त थे। उन्होंने दिन-रात लगकर असंख्य प्रवासी मुसलमानों सिक्खों हिन्दुओं को बिना किसी भेदभाव के भोजन, आश्रय और सुरक्षा प्रदान की। उन पर लोगों का ऐसा ही विश्वास था जैसा दिल्ली और कई जगह के मुसलमानों को गाँधीजी पर था।

प्रश्न 7.
” बँटवारे के समय हुई हिंसा से पीड़ित लोग तिनकों में अपनी जिन्दगी दोबारा खड़ी करने के लिए मजबूर हो गये।” इस कथन के सन्दर्भ में एक मार्मिक चित्रण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन के सन्दर्भ की मार्मिक चित्रण को हम निम्न उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं-

  • भारत विभाजन में कई लाख लोग मारे गये और न जाने कितनी महिलाओं का बलात्कार एवं अपहरण हुआ।
  • करोड़ों लोग उजड़ गये। कुछ रातों-रात अजनबी जमीन पर शरणार्थी बनकर रह गए।
  • लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को भारत और पाकिस्तान के मध्य रातों-रात खड़ी कर दी गई सीमा के इस या उस पार जाना पड़ा। जैसे ही उन्होंने इस ‘छाया सीमा’ से ठोकर खाई, वे बेघर बार हो गये।
  • पलक झपकते ही उनकी धन सम्पत्ति हाथ से जाती रही।
  • उनके मित्र तथा रिश्तेदार बिछड़ गए। वे अपनी मकानों, खेतों तथा कारोबार से वंचित हो गए।

प्रश्न 8.
1920 व 1930 ई. के दशकों में कौन- कौनसे मुद्दे हिन्दू व मुसलमानों के मध्य तनाव का कारण बने?
अथवा
20 वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिता के पक्की होने के अन्य कारण क्या थे?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिताएँ कई अन्य कारणों से भी ज्यादा पक्की हुई. 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे मुसलमानों को ‘मस्जिद के सामने संगीत’, गो-रक्षा आन्दोलन, और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें (यानी कि नव-मुसलमानों को फिर से हिन्दू बनाना) जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया। दूसरी ओर हिन्दू 1923 के बाद तबलीग (प्रचार) और तंजीम के विस्तार से उत्तेजित हुए। जैसे-जैसे मध्यमवर्गीय प्रचारक और साम्प्रदायिक कार्यकर्ता अपने समुदायों में लोगों को दूसरे समुदायों के खिलाफ लामबंद करते हुए, ज्यादा एकजुटता बनाने लगे, देश के विभिन्न भागों में दंगे फैलते हुए।

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प्रश्न 9.
संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में काँग्रेस ने मुस्लिम लीग के गठबंधन प्रस्ताव को क्यों खारिज कर दिया?
उत्तर:
प्रथमतः, संयुक्त प्रांत में काँग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था। लीग वहाँ गठबंधन सरकार बनाना चाहती थी जिसे काँग्रेस ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि काँग्रेस को बहुमत के लिए दूसरे दल के साथ गठबंधन की आवश्यकता नहीं थी। दूसरे, इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि काँग्रेस पार्टी जमींदारी प्रथा को खत्म करना चाहती थी और मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन करती हुई प्रतीत होती थी। तीसरे, मुस्लिम लीग मुसलमानों की एकमात्र प्रवक्ता होने पर बल दे रही थी।

प्रश्न 10.
पाकिस्तान का नाम का प्रस्ताव सर्वप्रथम किसने रखा था? लिखिए।
उत्तर”
पाकिस्तान अथवा पाकस्तान (पंजाब, अफगानिस्तान, कश्मीर, सिन्ध और बिलोचिस्तान) नाम सबसे पहले कैम्ब्रिज में पढ़ने वाले पंजाबी मुसलमान छात्र चौधरी रहमत अली ने 1933 और 1935 में लिखित अपने दो पचों में गढ़ा। रहमत अली इस नई इकाई के लिए अलग राष्ट्रीय हैसियत चाहता था। 1930 के दशक में किसी ने भी उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। यहाँ तक कि मुस्लिम लीग तथा अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी उसके इस विचार को खारिज कर दिया था।

प्रश्न 11.
पाकिस्तान का प्रस्ताव कब रखा गया? क्या सभी मुस्लिम नेता पाकिस्तान निर्माण या विभाजन के पक्ष में थे?
उत्तर:
23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था बल्कि इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री सिकन्दर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली में अपने भाषण में कहा था कि “वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जंगह हिन्दू राज होगा।”

प्रश्न 12.
क्या ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ गीत के लेखक मो. इकबाल अलग पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्षीय भाषण में मो. इकबाल ने ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की आवश्यकता पर जोर दिया था। अपने भाषण में इकबाल एक नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत शिथिल भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे। इससे स्पष्ट होता है कि मो. इकबाल विभाजन के पक्ष में नहीं थे।

प्रश्न 13.
क्या मुस्लिम नेताओं और स्वयं जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से उठाया था? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
प्रारम्भ में मुस्लिम नेताओं तथा स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से नहीं उठाया था क्योंकि जिना इस माँग को एक सौदेबाजी के पैंतरे के रूप में प्रयोग कर रहे थे। उनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा काँग्रेस को मिलने वाली रिवायतों पर रोक लगाने तथा मुसलमानों के लिए और रियायतें हासिल करना था। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण अंग्रेजों को स्वतन्त्रता के बारे में औपचारिक वार्ताएँ कुछ समय के लिए टालनी पड़ीं।

प्रश्न 14.
1945 में दोबारा शुरू हुई वार्ताएँ क्यों टूट गई?
उत्तर:
(1) अँग्रेज इस बात पर सहमत हुए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाई जाएगी, जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराव और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के।
(2) लेकिन यह वार्ता टूट गई। जिना इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव

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प्रश्न 8.
1920 व 1930 ई. के दशकों में कौन- कौनसे मुद्दे हिन्दू व मुसलमानों के मध्य तनाव का कारण बने?
अथवा
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिता के पक्की होने के अन्य कारण क्या थे?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में साम्प्रदायिक अस्मिताएँ कई अन्य कारणों से भी ज्यादा पक्की हुई. 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे मुसलमानों को ‘मस्जिद के सामने संगीत’, गो-रक्षा आन्दोलन, और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें (यानी कि नव-मुसलमानों को फिर से हिन्दू बनाना) जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया। दूसरी ओर हिन्दू 1923 के बाद तबलीग (प्रचार) और तंजीम के विस्तार से उत्तेजित हुए। जैसे-जैसे मध्यमवर्गीय प्रचारक और साम्प्रदायिक कार्यकर्ता अपने समुदायों में लोगों को दूसरे समुदायों के खिलाफ लामबंद करते हुए ज्यादा एकजुटता बनाने लगे, देश के विभिन्न भागों में दंगे फैलते हुए।

प्रश्न 9.
संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में काँग्रेस ने मुस्लिम लीग के गठबंधन प्रस्ताव को क्यों खारिज कर दिया ?
उत्त:
प्रथमत:, संयुक्त प्रांत में काँग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था। लीग वहाँ गठबंधन सरकार बनाना चाहती थी जिसे काँग्रेस ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि काँग्रेस को बहुमत के लिए दूसरे दल के साथ गठबंधन की आवश्यकता नहीं थी। दूसरे, इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि काँग्रेस पार्टी जमींदारी प्रथा को खत्म करना चाहती थी और मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन करती हुई प्रतीत होती थी। तीसरे, मुस्लिम लीग मुसलमानों की एकमात्र प्रवक्ता होने पर बल दे रही थी।

प्रश्न 10.
पाकिस्तान का नाम का प्रस्ताव सर्वप्रथम किसने रखा था? लिखिए।
उत्तर:
पाकिस्तान अथवा पाकस्तान (पंजाब, अफगानिस्तान, कश्मीर, सिन्ध और बिलोचिस्तान) नाम सबसे पहले कैम्ब्रिज में पढ़ने वाले पंजाबी मुसलमान छात्र चौधरी रहमत अली ने 1933 और 1935 में लिखित अपने दो पचों में गढ़ा। रहमत अली इस नई इकाई के लिए अलग राष्ट्रीय हैसियत चाहता था। 1930 के दशक में किसी ने भी उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। यहाँ तक कि मुस्लिम लीग तथा अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी उसके इस विचार को खारिज कर दिया था।

प्रश्न 11.
पाकिस्तान का प्रस्ताव कब रखा गया? क्या सभी मुस्लिम नेता पाकिस्तान निर्माण या विभाजन के पक्ष में थे?
उत्तर:
23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था बल्कि इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री सिकन्दर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली में अपने भाषण में कहा था कि “वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जंगह हिन्दू राज होगा।”

प्रश्न 12.
क्या ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ गीत के लेखक मो. इकबाल अलग पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्षीय भाषण में मो. इकबाल ने ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की आवश्यकता पर जोर दिया था। अपने भाषण में इकबाल एक नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत शिथिल भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे। इससे स्पष्ट होता है कि मो. इकबाल विभाजन के पक्ष में नहीं थे।

प्रश्न 13.
क्या मुस्लिम नेताओं और स्वयं जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से उठाया था? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
प्रारम्भ में मुस्लिम नेताओं तथा स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को गंभीरता से नहीं उठाया था क्योंकि जिन्ना इस माँग को एक सौदेबाजी के पैंतरे के रूप में प्रयोग कर रहे थे। उनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा काँग्रेस को मिलने वाली रिवायतों पर रोक लगाने तथा मुसलमानों के लिए और रियायतें हासिल करना था। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण अंग्रेजों को स्वतन्त्रता के बारे में औपचारिक वार्ताएं कुछ समय के लिए टालनी पड़ीं।

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प्रश्न 14.
1945 में दोबारा शुरू हुई वार्ताएँ क्यों टूट गई?
उत्तर:
(1) अँग्रेज इस बात पर सहमत हुए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनाई जाएगी, जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराव और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के।
(2) लेकिन यह वार्ता टूट गई। जिना इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार मुस्लिम लीग के अलावा और किसी को नहीं है। उनका कहना था कि अगर मुस्लिम सदस्य किसी फैसले का विरोध करते हैं तो उसे कम से कम दो-तिहाई सदस्यों की सहमति से ही पारित किया जाना चाहिए।

प्रश्न 15.
उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल का उत्तरी- पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य से क्या आशय था?
उत्तर:
1930 ई. में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण देते हुए उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल ने उत्तरी- पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य की आवश्यकता पर जोर दिया था परन्तु इस भाषण में इकबाल एक नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे।

प्रश्न 16.
विभाजन के लिए भारत को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया था ? नाम लिखिए।
उत्तर:
विभाजन के लिए भारत को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया, जो निम्नलिखित हैं – समूह ‘क’-हिन्दू बहुल प्रान्त समूह ‘ख’- पश्चिमोत्तर मुस्लिम बहुल प्रान्त समूह ‘ग’ असम सहित पूर्वोत्तर के मुस्लिम प्रान्त।

प्रश्न 17.
यूनियनिस्ट पार्टी क्या थी? इसके प्रमुख नेता का नाम बताइए कैबिनेट मिशन योजना से अपना समर्थन वापस लेने के पश्चात् मुस्लिम लीग ने क्या कार्यवाही की?
उत्तर:
यूनियनिस्ट पार्टी पंजाब में हिन्दू, मुस्लिम एवं सिख भूस्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टी थी। यह पार्टी 1923 से 1947 के मध्य बहुत अधिक शक्तिशाली थी। इस पार्टी के प्रमुख नेता, सिकन्दर हयात खान थे जो पंजाब के प्रधानमन्त्री भी रहे थे। कैबिनेट मिशन योजना से अपना समर्थन वापस लेने के पश्चात् मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को वास्तविकता प्रदान करने के लिए 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने का फैसला किया।

प्रश्न 18.
उर्दू के प्रतिभाशाली कहानीकार सआदत हसन मंटो ने अपने लेखन के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
सआदत हसन मंटो ने लिखा है, “लम्बे अर्से तक मैं देश के बँटवारे से अपनी उथल-पुथल के नतीजों को स्वीकार करने से इनकार करता रहा महसूस तो मैं अब भी यही करता पर मुझे लगता है कि आखिरकार मैंने अपने आप पर तरस खाए या हताश हुए बगैर उस खौफनाक सच्चाई को मंजूर कर लिया है। इस प्रक्रिया में मैंने इंसान के बनाए हुए लहू के इस समंदर से अनोखी आय (चमक) वाले मोतियों को निकालने की कोशिश की।”

प्रश्न 19.
विभाजन के बारे में बहुत सी कहानी, कविता और फिल्में लिखी व बनाई गई हैं, उनमें से कुछ का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विभाजन से सम्बन्धित यहाँ पर हम विभिन्न भाषाओं के लेखकों तथा उनकी रचनाओं के नाम दे रहे हैं।
उर्दू-सआदत हसन मंटो, राजेन्दर सिंह बेदी, इंतेजार हुसैन, फैज अहमद फैज दास।
हिन्दी-भीष्म साहनी (तमस), कमलेश्वर, राही मासूम रजा (नीम का पेड़)।
पंजाबी-संत सिंह सेखो, अमृता प्रीतम
बंगला-नरेन्द्रनाथ मित्रा, सैयद वली उल्ला, दिनेश

प्रश्न 20.
काँग्रेस ने भारत विभाजन को किस उद्देश्य से स्वीकार किया?
अथवा
क्या भारत का विभाजन अपरिहार्य था ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(1) कैबिनेट मिशन की असफलता के बाद विभाजन कमोबेश अपरिहार्य हो गया था। महात्मा गाँधी और खान अब्दुल गफ्फार खान को छोड़कर शेष सभी कांग्रेसी नेता विभाजन को अब अवश्यंभावी परिणाम मान चुके थे।
(2) लोग द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही का फैसला लेने से कलकत्ता में दंगे भड़क गये थे जिन्होंने देश की शान्ति भंग कर दी थी। शीघ्र शान्ति की स्थापना हेतु कांग्रेस नेताओं को बँटवारे के लिए अपनी सहमति देनी पड़ी।

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प्रश्न 21.
1946 के प्रान्तीय चुनावों में काँग्रेस और मुस्लिम लीग की स्थिति में क्या अन्तर आया?
उत्तर:
(1) 1946 के प्रान्तीय चुनावों में सामान्य सीटों पर तो काँग्रेस को एकतरफा सफलता मिली। 91.3 प्रतिशत गैर मुस्लिम वोट काँग्रेस के खाते में गये।
(2) मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भी ऐसी ही बेजोड़ सफलता मिनी मध्य प्रान्त में उसने सभी 30 आरक्षित सीटें जीतीं और मुस्लिम वोटों में से 86.6 प्रतिशत उसके उम्मीदवारों को मिले। सभी प्रान्तों की कुल 509 आरक्षित सीटों में से 442 सीटें मुस्लिम लीग के पास गई।

प्रश्न 22.
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मानने से क्यों इन्कार कर दिया था?
उत्तर:
(1) कांग्रेस चाहती थी कि प्रान्तों को अपनी इच्छा का समूह चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। कांग्रेस इस बात से भी असन्तुष्ट थी कि प्रारम्भ में प्रान्तों की समूहबद्धता अनिवार्य होगी परन्तु संविधान बन जाने के बाद उनके पास समूहों से निकलने का अधिकार होगा। (2) मुस्लिम लीग की माँग थी कि प्रान्तों की समूहबद्धता अनिवार्य हो जिसमें समूह ‘ख’ तथा ‘ग’ के पास भविष्य में संघ से अलग होने का अधिकार होना चाहिए।

प्रश्न 23.
” अंग्रेजों द्वारा 1909 ई. में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों का साम्प्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कुछ विद्वानों का तर्क है कि अंग्रेजों द्वारा 1909 ई. में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों (जिनका 1919 में विस्तार किया गया) का साम्प्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा पृथक् चुनाव क्षेत्रों की व्यवस्था से मुसलमान विशेष चुनाव क्षेत्रों में अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे। इस व्यवस्था में राजनेताओं को लालच रहता था कि वह सामुदायिक नारों का प्रयोग करें एवं अपने धार्मिक समुदाय के व्यक्तियों को अनुचित लाभ पहुँचाएँ। इसी प्रकार से उभरती हुई आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था में धार्मिक अस्मिताओं का सक्रिय प्रयोग होने लगा। अब सामुदायिक अस्मिताओं का सम्बन्ध केवल विश्वास एवं आस्था के अन्तर से नहीं था बल्कि अब धार्मिक अस्मिताएँ समुदायों के मध्य बढ़ रहे विरोधों से जुड़ गई। यद्यपि भारतीय राजनीति पर पृथक् चुनाव क्षेत्रों का बहुत प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 24.
क्या कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार किया? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
प्रारम्भ में कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया लेकिन यह समझौता अधिक दिनों तक नहीं चल पाया, कांग्रेस चाहती थी कि प्रान्तों को अपनी इच्छा का समूह चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। कांग्रेस कैबिनेट मिशन के इस स्पष्टीकरण से भी सन्तुष्ट नहीं थी कि प्रारम्भ में यह समूहबद्धता अनिवार्य होगी लेकिन एक बार संविधान बन जाने के उपरान्त उनके पास समूहों से, निकलने का अधिकार प्राप्त होगा और परिवर्तित परिस्थितियों में नए चुनाव कराए जाएँगे। अन्ततः कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को अस्वीकार कर लिया।

प्रश्न 25.
मार्च, 1947 से लगभग साल भर तक देश में रक्तपात चलता रहा।” इसका क्या कारण था?
उत्तर:
लगभग साल भर तक देश में रक्तपात चलते रहने का प्रमुख कारण यह था कि शासन की संस्थाएँ बिखर चुकी थीं। शासन-तन्त्र पूरी तरह नष्ट हो चुका था। अंग्रेज अधिकारी निर्णय लेना नहीं चाहते थे और हस्तक्षेप करने में संकोच कर रहे थे किसी को भी ज्ञात नहीं था कि सत्ता किसके हाथ में है और पीड़ित लोग कहाँ शिकायत करें। भारतीय दलों के अधिकांश नेता स्वतन्त्रता के बारे में जारी वार्ताओं में व्यस्त थे। अंग्रेज भारत छोड़ने की तैयारी में लगे थे।

प्रश्न 26.
1947 के विभाजन में क्षेत्रीय विविधताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • विभाजन का सबसे खूनी और विनाशकारी रूप पंजाब में देखा गया
  • उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) के बहुत सारे परिवार पचास के दशक तथा साठ के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में भी पाकिस्तान जाकर बसते रहे।
  • बंगाल में लोगों का पलायन अधिक लम्बे समय तक चलता रहा। लोग अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के आर-पार जाते रहे।
  • पंजाब और बंगाल में स्त्रियों और लड़कियों पर अत्याचार किए गए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आपके अनुसार क्या भारत विभाजन आवश्यक था? विस्तार से उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारत विभाजन की माँग के प्रति काँग्रेस और गाँधीजी के रवैये की विवेचना कीजिए। आखिरकार विभाजन की माँग क्यों स्वीकार कर ली गई?
उत्तर:
भारत विभाजन की माँग के प्रति काँग्रेस और गाँधीजी का रवैया – कैबिनेट मिशन योजना तक तो काँग्रेस और गाँधीजी दोनों का दृष्टिकोण भारत विभाजन के प्रति नकारात्मक था। वे किसी भी कीमत पर भारत को विभाजन नहीं चाहते थे।

विभाजन की माँग को स्वीकार करने के कारण –
काँग्रेस द्वारा भारत विभाजन की माँग को निम्न कारणों से स्वीकार कर लिया गया –

(1) ब्रिटिश सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति-1909 में ब्रिटिश सरकार ने सांप्रदायिक चुनाव पद्धति लागू कर भारत विभाजन के बीज बोए और फिर वह निरन्तर जिन्ना व मुस्लिम लीग को प्रश्रय देते रहे और जिन्ना की हठ को स्वीकार करते हुए, माउंटबेटन योजना में विभाजन की घोषणा कर दी। इस प्रकार विभाजन की स्थिति अचानक स्वतंत्रता व सत्ता हस्तांतरण के साथ आयी। उस समय उसे स्वीकार करने के अलावा कोई अन्य विकल्प काँग्रेस के पास नहीं रह गया था।

(2) साम्प्रदायिक तनाव-920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं के कारण साम्प्रदायिक तनावों में वृद्धि हुई। मुसलमान मस्जिद के सामने संगीत, गोरक्षा आन्दोलन, आर्य समाज द्वारा संचालित शुद्धि आन्दोलन आदि से नाराज थे। दूसरी ओर हिन्दू तबलीग (प्रचार) और तंजीम (संगठन) के विस्तार से नाराज थे। इससे साम्प्रदायिक तनाव को प्रोत्साहन मिला।.

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(3) पाकिस्तान की माँग-23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए स्वायत्ता की माँग का प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

(4) अंतरिम सरकार की विफलता-अंतरिम सरकार में सम्मिलित मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों ने कदम-कदम पर रुकावटें पैदा कर उसे विफल कर दिया।

(5) 1946 के चुनावों में लीग को आरक्षित सीटों पर मिली अच्छी सफलता-1946 में दुबारा हुए प्रांतीय चुनावों में कुल 509 आरक्षित सीटों में से 442 मुस्लिम लीग के पास गई थीं। अब वह मुस्लिम मतदाताओं के बीच सबसे प्रभुत्वशाली पार्टी के रूप में उभरी थी।

(6) ब्रिटिश सरकार की धमकी-20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड एटली ने घोषणा की कि जून, 1948 तक अंग्रेज भारत छोड़ देंगे।

(7) साम्प्रदायिक दंगे-मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी। उस दिन कलकत्ता में भीषण दंगा भड़क उठा जिसमें हजारों लोग मारे गए।

प्रश्न 2.
दिल्ली अब बच जायेगी।” 1947 के साम्प्रदायिक दंगों के संदर्भ में गाँधीजी के लिए कहे गए उक्त कथन की सत्यता सिद्ध कीजिये।
अथवा
सांप्रदायिक सौहार्द बनाने में गाँधीजी के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वतंत्रता प्राप्त होने के साथ भड़के सांप्रदायिक दंगों में गाँधीजी ने कैसे अकेली फौज की तरह कार्य किया? लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ-साथ सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे हिन्दू और मुसलमान दोनों आपसी भाई चारे को भूल गए। इस सारी उथल-पुथल में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए एक आदमी की बहादुराना कोशिशें आखिरकार रंग लाने लगीं।
(1) अहिंसा का सहारा-77 साल के बुजुर्ग गांधीजी ने अपने जीवनपर्यन्त सिद्धान्त को एक बार फिर आजमाया और अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।

(2) गाँधीजी की पदयात्रा- गाँधीजी पूर्वी बंगाल के नोआखली (वर्तमान बांग्लादेश) से बिहार तक के गाँवों में उसके बाद कलकत्ता व दिल्ली के दंगों में झुलसी झोंपड़- पट्टियों की यात्रा पर निकल पड़े।

(3) गांधीजी पूर्वी बंगाल में-अक्टूबर, 1946 में पूर्वी बंगाल के मुसलमान हिन्दुओं को अपना निशाना बना रहे थे। गाँधी वहाँ पैदल गाँव-गाँव घूमे और स्थानीय मुसलमानों को समझाया कि ये हिन्दुओं को न मारें तथा उनकी रक्षा करें।

(4) गाँधीजी दिल्ली में दिल्ली में गाँधीजी ने दोनों समुदायों को भरोसा दिलाया तथा पारस्परिक विश्वास और भरोसा कायम रखने की सलाह दी।

(5) गाँधीजी शीशगंज गुरुद्वारे में 28 नवम्बर, 1947 को गुरुनानक जयंती के अवसर पर गुरुद्वारा शीशगंज में सिखों की एक सभा को संबोधित करने गये तो उन्होंने देखा कि दिल्ली का दिल कहलाने वाले चाँदनी चौक में एक भी मुसलमान सड़क पर नहीं था।
गाँधीजी अनशन पर मुसलमानों को शहर से बाहर खदेड़ने की सोच से तंग आकर उन्होंने अनशन शुरू किया। इस अनशन में उनके साथ पाकिस्तान से आए शरणार्थी हिन्दू व सिख भी बैठते थे।

मौलाना आजाद ने लिखा है कि “इस अनशन का असर ‘आसमानी बिजली’ की तरह हुआ।” लोगों को मुसलमानों के सफाए की बात में निरर्थकता दिखाई देने लगी। मगर हिंसा का यह नंगा नाच आखिरकार गाँधीजी के बलिदान के साथ ही खत्म हुआ। इस प्रकार हम देखते हैं कि जो कार्य एक फौज नहीं कर सकती थी उसे बुजुर्ग गाँधीजी ने अपने अकेले दम पर करके दिखाया। इसलिए उन्हें एक अकेली फौज कहकर सम्मानित किया गया।

प्रश्न 3.
शोधकर्ता के सामने लाहौर विश्वविद्यालय में जो घटनाएँ घटित हुई उनका वर्णन करते हुए बताइए कि इन घटनाओं से क्या निष्कर्ष निकला?
उत्तर:
शोधकर्ता पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर में विभाजन के समय हुए दंगों के विषय पर शोध करने गया था। वह भारतीय नागरिक था लेकिन वह स्वयं को दक्षिण एशियाई नागरिक मानता था। उसके मन में हिन्दुस्तान या पाकिस्तान का कोई भेदभाव नहीं था। शोध करते समय उसके सामने तीन घटनाएँ घटित हुईं जिनसे अलग-अलग निष्कर्ष निकलते हैं। प्रथम घटना” मैं तो सिर्फ अपने अब्बा पर चढ़े हुए कर्ज को चुका रहा हूँ।”

शोधकर्ता विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुस्तकालय में जाया करता था तो वहाँ अब्दुल लतीफ नामक धर्मनिष्ठ अधेड़ आयु का व्यक्ति उसकी बहुत मदद करता था। जब शोधकर्ता ने उससे मदद देने के आरे में जानकारी चाही तो उसका जवाब सुनकर शोधकर्ता अवाक् रह गया। अब्दुल लतीफ जानते थे कि शोधकर्ता भारतीय है जहाँ बँटवारे में उसका पूरा खानदान खत्म हो गया था सिवाय उसके पिता के उसके पिता की जान एक बुजुर्ग हिन्दू महिला ने बचाई थी इसलिए वह अपने को ऋणी मानते हुए शोधकर्ता की मदद कर रहा था।

इस घटना से पता चलता है कि अब्दुल लतीफ एक दयालु और एहसानमंद व्यक्ति था जिसके मन में भारत के प्रति नफरत नहीं थी। यह घटना बताती है कि अब्दुल लतीफ मजहब के बजाय इंसानी रिश्ते को महत्व देने वाला व्यक्ति था। वह मजहबी दंगों को सिर्फ एक पागलपन मानता था। दूसरी घटना “बरसों हो गए, मैं किसी पंजाबी मुसलमान से नहीं मिला।”

शोधकर्ता के सामने दूसरी घटना लाहौर के एक यूथ हॉस्टल के मैनेजर के साथ घटी जिसने भारतीय होने के कारण शोधकर्ता को हॉस्टल में स्थान देने से मना कर दिया लेकिन शोधकर्ता को चाय पिलाई और अपने साथ दिल्ली में घटी घटना सुनाई। जब वह एक सरदार पहाड़गंज का पता पूछता है तो सरदार उसे रुकने को कहता है।

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मैनेजर उसकी आवाज से डर गया कि अब यह सरदार मुझे खत्म कर देगा क्योंकि उसने अपना नाम इकबाल अहमद तथा निवासी लाहौर बताया था लेकिन उसका डर सही नहीं था। सरदार ने आते ही उसे अपनी बाँहों में कसकर भींच लिया और वह भीगी आँखों से बोला “बरसों हो गए, मैं किसी पंजाबी मुसलमान से नहीं मिला। मैं मिलने को तरस रहा था पर यहाँ पंजाबी बोलने वाले मुसलमान मिलते ही नहीं।” इस घटना से पता चलता है कि विभाजन के बाद भी हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे से मिलने के लिए आतुर रहते थे।

तीसरी घटना-“ना, नहीं तुम कभी हमारे नहीं हो सकते।” शोधकर्ता को लाहौर में एक व्यक्ति मिला जो धोखे से उसे पाकिस्तानी समझ कर उसे वहीं रहने की जिद करने लगा लेकन शोधकर्ता ने बताया कि वह पाकिस्तानी नहीं है, हिन्दुस्तानी है यह सुनते ही उसके मुँह से न चाहते हुए ये शब्द निकले, “ना, नहीं तुम कभी हमारे नहीं हो सकते। तुम्हारे लोगों (भारतीयों) ने हमारे पूरे गाँव को 1947 में साफ कर दिया था। हम कट्टर दुश्मन हैं और हमेशा रहेंगे।” यह घटना बताती है कि तीसरा व्यक्ति मजहब को महत्त्व दे रहा था, उसके अन्दर भारत के प्रति अपार घृणा थी। उसमें इंसानियत का जज्बा (भावना नहीं था।

प्रश्न 4.
“देश के विभाजन के दौरान जहाँ दोनों तरफ मारकाट मची थी वहीं पर कुछ लोग पीड़ितों की मदद करके मानवता और सद्भावना की मिसाल कायम कर रहे थे।” अपनी पाठ्यपुस्तक में से पढ़ी हुई किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए।
अथवा
डॉ. खुशदेव सिंह मानवता व सद्भावना की जिन्दा मिसाल थे। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
देश में बँटवारे के समय दंगों के दौरान जहाँ लोग निर्दोषों का खून बहा रहे थे वहीं दूसरी तरफ डॉ. खुशदेव सिंह जैसे लोग बिना जाति और मजहब का विचार किए पीड़ितों की सेवा में जी-जान से जुटे थे पीड़ितों को राहत पहुँचाना ही उनका मजहब था और ईमान था इतिहासकारों ने अगणित कहानियाँ उजागर की हैं कि किस तरह बहुत सारे लोग बँटवारे के समय एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। ये आपसी हमदर्दी और साझेदारी नए मौकों के खुलने और सदमों पर विजय की कहानियाँ हैं। डॉ. खुशदेव सिंह की कहानी भी इसी प्रकार की कहानी है –

डॉ.खुशदेव सिंह – डॉ. खुशदेव सिंह हमारे सामने एक बेहतरीन मिसाल हैं। डॉ. खुशदेव सिंह एक सिख डॉक्टर थे जो तपेदिक (टी.बी. रोग के विशेषज्ञ थे। वे उस समय धर्मपुर में तैनात थे जो आजकल हिमाचल प्रदेश में है। दिन- रात लगकर डॉ. सिंह ने असंख्य प्रवासी मुसलमानों, सिखों और हिन्दुओं को बिना किसी भेदभाव के एक कोमल स्पर्श, भोजन, आश्रय और सुरक्षा प्रदान की।

धर्मपुर के लोगों में उनके इंसानी जज्बे और सहृदयता के प्रति गहरी आस्था और विश्वास पैदा हो गया था। उन पर लोगों को वैसा ही भरोसा था जैसा दिल्ली और कई जगह के मुसलमानों को गाँधीजी पर था। एक मुस्लिम मुहम्मद उमर ने अपनी चिट्ठी में डॉ. खुशदेव सिंह को लिखा था, “पूरी विनम्रता से मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुझे आपके अलावा किसी की शरण में सुरक्षा दिखाई नहीं देती। इसलिए मेहरबानी करके आप मुझे अपने अस्पताल में एक सीट दे दीजिए।”

डॉ. खुशदेव सिंह के संस्मरण – डॉ. खुशदेव सिंह द्वारा किए गए अथक प्रयासों के बारे में उनके संस्मरणों लव इज स्ट्रांगर दैन हेट ए रिमेम्बेरेन्स ऑफ 1947 ( मुहब्बत नफरत से ज्यादा ताकतवर होती है-1947 की यादें) से पता चलता है। यहाँ डॉक्टर साहब ने अपने कामों को बयान करते हुए लिखा है कि यह ” एक इंसान होने के नाते बिरादर इंसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए मेरी एक छोटी सी कोशिश थी।”

उन्होंने 1949 में कराची की दो संक्षिप्त यात्राओं का गर्व से जिक्र किया है। उनके पुराने दोस्तों और धर्मपुर में उनसे मदद लेने वालों को कराची हवाई अड्डे पर उनके साथ कुछ यादगार घंटे बिताने का मौका मिला। पहले से उन्हें जानने वाले 6 पुलिस कांस्टेबल उन्हें लेकर हवाई जहाज तक गए और जहाज पर चढ़ते हुए उन्हें सलामी दी। “मैंने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया। मेरी आँखों में आँसू छलक आए थे।”

प्रश्न 5.
भारत विभाजन को गृहयुद्ध या महाध्वंस क्यों कहा गया है? यह महाध्वंस नात्सी महाध्वंस से किस रूप में भिन्न है?
उत्तर:
भारत विभाजन – गृहयुद्ध तथा महाध्वंस के रूप में –
भारत विभाजन के दौरान जो चौतरफा हिंसा हुई, उसमें कई लाख लोग मारे गये न जाने कितनी औरतों का बलात्कार और अपहरण हुआ। मोटे रूप से इसमें मरने वालों की संख्या दो लाख से पाँच लाख तक रही तथा लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को एक सरहद से दूसरी सरहद में जाना पड़ा इसे एक सामान्य विभाजन, एक व्यवस्थित संवैधानिक फैसला तथा आपसी रजामंदी के आधार पर इलाके और सम्पत्तियों का सामान्य बँटवारा भर नहीं कहा जा सकता।

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गृहयुद्ध – कुछ इतिहासकारों ने इसे 16 माह का गृहयुद्ध कहा है। उनका तर्क रहा है कि पाले के दोनों तरफ पूरी की पूरी जनसंख्या का दुश्मनों की तरह सफाया कर देने के लिए सुनियोजित कोशिशें की जा रही थीं और इसके लिए संगठित गिरोह कमर कसे खड़े थे। जिन्दा बच जाने वाले लोग इस विभाजन के दौर को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं- माशल-ला (मार्शल लॉ)’. ‘मारामारी’, ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’।

महाध्वंस (होलोकॉस्ट) – विभाजन के दौरान हुई हत्याओं, बलात्कार, आगजनी और लूटपाट को देखते हुए समकालीन प्रेक्षकों और विद्वानों ने इसके लिए ‘मराध्वंस’ शब्द का उल्लेख करते हुए इस सामूहिक जनसंहार की भयानकता को रेखांकित किया है। एक दृष्टि से देखें तो भारत विभाजन की इस भीषणता को ‘महाध्वंस’ शब्द से ही समझा जा सकता है क्योंकि यह हादसा इतना जघन्य था कि ‘विभाजन’, ‘बंटवारे’ जैसे शब्दों से उसके सारे पहलू सामने नहीं आते। इससे यह भी समझने में मदद मिलती है कि यूरोपीय महाध्वंस (नात्सी जर्मन महाध्वंस) की तरह हमारे समकालीन सरोकारों में भी विभाजन का इतना ज्यादा जिक्र क्यों आता है?

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यूरोपीय महाध्वंस और भारत-विभाजन के महाध्वंस में अन्तर यूरोपीय महाध्वंस और भारत विभाजन के महाध्वंस में एक गुणात्मक अन्तर सरकारी भूमिका को लेकर था। 1947-49 में विभाजन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में जनसफाए की कोई सरकारी मुहिम नहीं चली थी जबकि नारसी जर्मनी के महाध्वंस में सरकार मुख्य भूमिका निभा रही थी। वहाँ लोगों को मारने के लिए नियन्त्रण और संगठन की तमाम आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन भारत विभाजन के समय जो नस्ली सफाया हुआ वह सरकारी निकायों की नहीं बल्कि धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।

प्रश्न 6.
सांप्रदायिकता से क्या अभिप्राय है? क्या भारत-पाक बँटवारा प्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक तनावों का ही परिणाम है?
उत्तर:
सांप्रदायिकता से आशय सांप्रदायिकता उस राजनीति को कहा जाता हैं जो धार्मिक समुदायों के बीच विरोध और झगड़े पैदा करती है। यथा –
(1) ऐसी राजनीति धार्मिक पहचान को बुनियादी और अटल मानती है सांप्रदायिक राजनीतिज्ञ शर्मिक पहचान को मजबूत बनाना चाहते हैं। वे इसे लोगों की एक स्वाभाविक अस्मिता मानकर पेश करते हैं, मानो लोग ऐसी पहचान लेकर पैदा हुए हों, मानो ये अस्मिताएँ इतिहास और समय के दौर से गुजरते हुए बदलती नहीं हैं।

(2) सांप्रदायिकता किसी भी समुदाय में एकता पैदा करने के लिए आंतरिक अन्तरों को दबाती है उस समुदाय की एकता पर जोर देती है और उस समुदाय को किसी न किसी अन्य समुदाय के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करती है।

(3) सांप्रदायिकता किसी चिह्नित ‘गैर’ के विरुद्ध घृणा की राजनीति को पोषित करती है। उदाहरण के लिए मुस्लिम सांप्रदायिकता हिन्दुओं को ‘गैर’ बताकर उनका विरोध करती है और ऐसे ही हिन्दू सांप्रदायिकता मुसलमानों को गैर बताकर उनके विरुद्ध डटी रहती है। इस पारस्परिक घृणा से हिंसा की राजनीति को बढ़ावा मिलता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सांप्रदायिकता धार्मिक अस्मिता का विशेष तरह से राजनीतिकरण है जो धार्मिक समुदायों में परस्पर घृणा फैलाकर झगड़े पैदा करवाने की कोशिश करता है तथा हिंसा की राजनीति को बढ़ावा देता है किसी भी बहुधार्मिक देश में ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ शब्दों का अर्थ भी सांप्रदायिकता के करीब-करीब हो सकता है। ऐसे देश में यदि कोई व्यक्ति किसी धार्मिक समुदाय को राष्ट्र मानता है, तो वह विरोध और झगड़ों के बीज बो रहा है।

प्रश्न 7.
“भारत का बँटवारा एक साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था।” इस कथन की समालोचना कीजिए।
उत्तर:
भारत का बँटवारा एक साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु कुछ विद्वानों की मान्यता है कि भारत का बँटवारा एक ऐसी साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी बिन्दु था, जो बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में शुरू हुई। इसकी पुष्टि अग्रलिखित तथ्यों से होती है –
(1) मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् निर्वाचन क्षेत्र अंग्रेजों द्वारा 1909 में मुसलमानों के लिए बनाए गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों का सांप्रदायिक राजनीति की प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ा पृथक् चुनाव क्षेत्रों की वजह से मुसलमान विशेष चुनाव क्षेत्रों में अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे। इस व्यवस्था में राजनीतिज्ञों ने सामुदायिक नारों का इस्तेमाल किया तथा अपने धार्मिक समुदाय के व्यक्तियों को नाजायज तरीके से लाभ पहुँचाने की कोशिश की। इससे धार्मिक अस्मिताओं का क्रियाशील प्रयोग होने लगा। इस प्रकार सांप्रदायिक चुनावी राजनीति ने इन धार्मिक अस्मिताओं को अधिक गहरा तथा पक्का किया और अब धार्मिक अस्मिताएँ समुदायों के बीच हो रहे विरोधों से जुड़ गई।

(2) अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो नीति-ब्रिटिश साम्राज्य को स्थायी रूप से बनाये रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति अपनाई ।

(3) 1920-30 के दशक में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव-कुछ इतिहासकारों का मत है कि 1920-30 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से हिन्दू-मुसलमानों में तनाव उभरे। जैसे- मुसलमानों को ‘मस्जिद के सामने संगीत’, ‘गो-रक्षा आन्दोलन’ और आर्य समाज की ‘शुद्धि’ की कोशिशें जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया तो हिन्दू 1923 के बाद के तबलीग (प्रचार) और तंजीम (संगठन) के विस्तार से उत्तेजित हुए।

जैसे-जैसे मध्यवर्गीय प्रचारक और सांप्रदायिक कार्यकर्ता अपने-अपने समुदायों में लोगों को दूसरे समुदाय के खिलाफ एकजुट करते हुए ज्यादा एकजुटता बनाने लगे, वैसे-वैसे देश के विभिन्न भागों में दंगे फैलते गए, समुदायों के बीच भेदभाव गहरे होते गए और हिंसात्मक गतिविधियों में वृद्धि होने लगी।

(4) साम्प्रदायिक दंगे-मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग को मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी। उस दिन कलकत्ता में भीषण दंगा भड़क उठा जिसमें हजारों लोग मारे गए। इससे भी साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला।

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भारत-पाक बँटवारा प्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक तनावों का परिणाम नहीं से हुआ इस सबके बावजूद यह कहना गलत है कि बँटवारा केवल सीधे-सीधे बढ़ते हुए सांप्रदायिक तनावों की वजह ‘क्योंकि सांप्रदायिक कलह तो 1947 से पहले भी होती थी, पर इसके कारण लाखों लोगों के घर नहीं उजड़े। अतः पहले की साम्प्रदायिक राजनीति और विभाजन में गुणात्मक अन्तर है। बँटवारे के पीछे ब्रिटिश शासन के आखिरी दशक की घटनाएँ उत्तरदायी रही हैं।

प्रश्न 8.
भारत के विभाजन में ब्रिटिश शासन के अन्तिम दशक के कौन-कौन से कारकों को प्रमुख उत्तरदायी माना जाता है?
उत्तर:
भारत के विभाजन के उत्तरदायी कारक- ब्रिटिश शासन के अन्तिम दशक में निम्नलिखित घटनाओं व कारकों को भारत के विभाजन के लिए उत्तरदायी माना जाता है –
(1) 1937 के प्रांतीय चुनाव और कॉंग्रेस मंत्रालय- प्रांतीय संसदों के गठन के लिए 1937 में पहली बार चुनाव कराए गए। इन चुनावों में कांग्रेस के परिणाम अच्छे रहे। उसने 11 में से 7 प्रांतों में अपनी सरकारें बनाई। मुसलमानों के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस और लीग दोनों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इन चुनावों के बाद मंत्रिमण्डल के निर्माण में काँग्रेस ने जिस तरह मुस्लिम लीग की उपेक्षा की, उसने पाकिस्तान के निर्माण की नींव रख दी।

(2) काँग्रेस के मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम की असफलता-1937 के चुनावों के बाद काँग्रेस को अपने ‘मुस्लिम जनसम्पर्क’ कार्यक्रम में कोई खास सफलता नहीं मिल पायी थी।

(3) मुस्लिम लीग का पाकिस्तान प्रस्ताव, 1940-पाकिस्तान की स्थापना की माँग धीरे-धीरे ठोस रूप ले रही थी। 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। यह भारत के विभाजन या पृथक् पाकिस्तान राष्ट्र की माँग नहीं थी, बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत किन्तु शिथिल भारत- संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना की माँग थी।

(4) 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन और भारत-की स्वतंत्रता के लिए वार्तायें आरम्भ 1942 के शुरू हुए विशाल भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को भारत की स्वतंत्रता के बारे में भारतीयों से बातें करने के लिए झुकना पड़ा और उसके अफसरों को संभावित सत्ता हस्तान्तरण के बारे में भारतीय पक्षों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार होना पड़ा। सत्ता के हस्तान्तरण का पेचीदा प्रश्न ही विभाजन का प्रमुख कारक
बना।

(5) जिन्ना की हठधर्मिता-1945 में वार्ताओं के दौरान अंग्रेज इस बात पर सहमत हुए कि एक केन्द्रीय कार्यकारिणी सभा बनायी जायेगी जिसके सभी सदस्य भारतीय होंगे सिवाय वायसराय और सशस्त्र सेनाओं के सेनापति के उनकी राय में यह पूर्ण स्वतंत्रता की ओर शुरुआती कदम था लेकिन सत्ता हस्तान्तरण के बारे में जिना की इस हठधर्मिता के कारण वार्ता टूट गई क्योंकि वे इस बात पर अड़े हुए थे कि कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार मुस्लिम लीग के अलावा और किसी को नहीं है।

(6) कैबिनेट मिशन की असफलता मार्च, 1946 में ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने लीग की माँग का अध्ययन करने एवं स्वतंत्र भारत के लिए एक उचित राजनीतिक रूपरेखा सुझाने के लिए कैबिनेट मिशन दिल्ली भेजा, जिसने भारत का दौरा कर एक ढीले-ढाले त्रिस्तरीय महासंघ का सुझाव दिया। काँग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों दलों ने इसे अस्वीकृत कर दिया।

(7) काँग्रेस द्वारा विभाजन को स्वीकार करना-यह एक बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव था क्योंकि इसके बाद विभाजन कमोबेश अपरिहार्य हो गया था। काँग्रेस के ज्यादातर नेता इसे शासद मगर अवश्यंभावी परिणाम मान चुके थे। गाँधीजी और खान अब्दुल गफ्फार खान ही अब केवल विभाजन के विरोधी रह गये थे। मार्च, 1947 में काँग्रेस हाईकमान ने पंजाब को मुस्लिम बहुल हिन्दू- सिख बहुल दो हिस्सों में बाँटने के प्रस्ताव की मंजूरी दे दी।

प्रश्न 9.
1937 में प्रान्तीय चुनाव व कांग्रेस की भूमिका पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
1937 में प्रान्तीय चुनाव व कांग्रेस की भूमिका प्रान्तीय संसदों के गठन के लिए 1937 में पहली बार चुनाव कराये गए। इन चुनावों में मताधिकार केवल 10 से 12 प्रतिशत लोगों के पास था। इन चुनावों में कांग्रेस की स्थिति अच्छी रही। उसने 11 प्रान्तों में से 5 प्रान्तों में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और 7 प्रान्तों में अपनी सरकार बनाई। मुसलमानों के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा परन्तु मुस्लिम लीग को भी इन क्षेत्रों में बहुत अच्छी सफलता नहीं मिली। उसे इस चुनाव में सम्पूर्ण मुस्लिम वोट का केवल 44 प्रतिशत हिस्सा ही मिला। उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त में उसे एक सीट भी नहीं मिली। पंजाब की 84 आरक्षित सीटों में उसे केवल 2 प्राप्त हुई और सिन्ध में से 13 प्राप्त हुई।

संयुक्त प्रान्त में मुस्लिम लीग द्वारा कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रयास संयुक्त प्रान्त में मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी। परन्तु यहाँ कांग्रेस का सम्पूर्ण बहुमत था इसलिए उसने मुस्लिम लीग की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम लीग की यह मान्यता थी कि मुस्लिम हितों का प्रतिनिधित्व एक मुस्लिम दल ही कर सकता है और कांग्रेस एक हिन्दू दल है। मुहम्मद अली जिन्ना इस जिद्द पर अड़े हुए थे कि मुस्लिम लीग को मुसलमानों का एकमात्र प्रवक्ता माना जाए। परन्तु जिन्ना की इस बात से बहुत कम लोग सहमत थे।

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कांग्रेस मंत्रालयों द्वारा इस खाई को गहरा करना – कांग्रेस मंत्रालयों ने भी इस खाई को और गहरा कर दिया। संयुक्त प्रान्त में पार्टी ने गठबन्धन सरकार बनाने के सम्बन्ध में मुस्लिम लीग के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया था क्योंकि मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन कर रही थी जबकि कांग्रेस जमींदारी प्रथा को समाप्त करना चाहती थी।

कांग्रेस को मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम में सफलता न मिलना – कांग्रेस को अपने मुस्लिम जनसम्पर्क कार्यक्रम में भी सफलता नहीं मिली। इस प्रकार कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष और एडियल बयानों से रूढ़िवादी मुसलमान और मुसलमान भू-स्वामी तो चिन्ता में ही पड़ गए, कांग्रेस मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने में भी सफल नहीं हो पाई। मौलाना आजाद ने 1937 में यह प्रश्न किया था कि कांग्रेस के सदस्यों को मुस्लिम लीग में शामिल होने की छूट तो नहीं है परन्तु उन्हें हिन्दू महासभा में शामिल होने से नहीं रोका जाता है। उनका कहना था कि कम से कम मध्य प्रान्त (वर्तमान मध्य प्रदेश) में यही स्थिति थी।