JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

JAC Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर :
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी, क्योंकि वे हर उत्सव एवं संस्कार पर बड़े भाई और धर्मगुरु की तरह शुभाषीश देते थे। उनकी उपस्थिति में प्रत्येक कार्य शांति और सरलता से संपन्न होता था। लेखक के बच्चे के मुँह में अन्न का पहला दाना फ़ादर बुल्के ने डाला था। उस क्षण उनकी नीली आँखों में जो ममता और प्यार तैर रहा था, उससे लेखक को फ़ादर बुल्के की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगी।

प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है ?
उत्तर :
लेखक ने फ़ादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया है। फ़ादर बुल्के बेल्जियम के रेम्सचैपल के रहने वाले थे। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत आने का फैसला किया। भारत में उन्होंने भारतीय संस्कृति को जाना और समझा। मसीही धर्म से संबंध रखते हुए भी उन्होंने हिंदी में शोध किया। शोध का विषय था-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’। इससे उनके भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव का पता चलता है। लेखक कहता है कि जब तक रामकथा है, उस समय तक इस विदेशी भारतीय साधु को रामकथा के लिए याद किया जाएगा। इस आधार पर कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।

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प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के विदेशी होते हुए भी भारतीय थे। उन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। उन्होंने हिंदी में प्रयाग विश्वविद्यालय से शोध किया। फ़ादर बुल्के ने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिंदी में ‘नीलपंछी’ नाम से रूपांतर किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मसीही धर्म की धार्मिक पुस्तक ‘बाइबिल’ का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश तैयार किया।

उनके शोध ‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ के कुछ अध्याय ‘परिमल’ में पढ़े गए थे। उन्होंने ‘परिमल’ में भी कार्य किया। वे सदैव हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए चिंतित रहते थे। इसके लिए वे प्रत्येक मंच पर आवाज़ उठाते थे। उन्हें उन लोगों पर झुंझलाहट होती थी, जो हिंदी जानते हुए भी हिंदी का प्रयोग नहीं करते थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के का हिंदी के प्रति विशेष लगाव और प्रेम था।

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
फ़ादर कामिल बुल्के एक ऐसा नाम है, जो विदेशी होते हुए भी भारतीय है। उन्होंने अपने जीवन के 73 वर्षों में से 47 वर्ष भारत को दिए। उन 47 वर्षों में उन्होंने भारत के प्रति, हिंदी के प्रति और यहाँ के साहित्य के प्रति विशेष निष्ठा दिखाई। उनका व्यक्तित्व दूसरों को तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। उन्होंने सदैव सबके लिए एक बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य बड़ी शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका व्यक्तित्व संयम धारण किए हुए था।

किसी ने भी उन्हें कभी क्रोध में नहीं देखा था। वे सबके साथ प्यार व ममता से मिलते थे। जिससे एक बार मिलते थे, उससे रिश्ता बना लेते थे, फिर वे संबंध कभी नहीं तोड़ते थे। फ़ादर अपने से संबंधित सभी लोगों के घर, परिवार और उनकी दुख-तकलीफों की जानकारी रखते थे। दुख के समय उनके मुख से निकले दो शब्द जीवन में नया जोश भर देते थे। फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व वास्तव में देवदार की छाया के समान था। उनसे रिश्ता जोड़ने के बाद बड़े भाई के अपनत्व, ममता, प्यार और आशीर्वाद की कभी कमी नहीं होती थी।

प्रश्न 5.
लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व सबसे अलग था। उनके मन में सबके लिए अपनापन था। सबके साथ होते हुए भी वे अपने व्यवहार, अपनत्व व वात्सल्य के कारण अलग दिखाई देते थे। वे सबके साथ एक-सा व्यवहार करते थे। उनका मन करुणामय था। वे सभी जान-पहचान वालों के दुख-सुख की पूरी जानकारी रखते थे। हर किसी के दुख में दुखी होना तथा सुख में खुशी अनुभव करना उनका स्वभाव था। जब वे दिल्ली आते थे, तो समय न होने पर भी लेखक की खोज खबर लेकर वापस जाते थे। जिससे रिश्ता बना लिया, अपनी तरफ़ से उसे पूरी तरह निभाते थे। उनके व्यक्तित्व की यही बातें उन्हें ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ बनाती थीं।

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प्रश्न 6.
फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के अपनी वेशभूषा और संकल्प से संन्यासी थे, परंतु वे मन से संन्यासी नहीं थे। संन्यासी सबके होते हैं; वे किसी से विशेष संबंध बनाकर नहीं रखते। परंतु फ़ादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। वर्षों बाद मिलने पर भी उनसे अपनत्व की महक अनुभव की जा सकती थी। जब वे दिल्ली जाते थे, तो अपने जानने वाले को अवश्य मिलकर आते थे। ऐसा कोई संन्यासी नहीं करता। इसलिए वे परंपरागत संन्यासी की छवि से अलग प्रतीत होते थे।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति में लेखक फ़ादर बुल्के को याद कर रहा है। उनके अंतिम संस्कार में जितने लोग भी शामिल हुए थे, उन सभी की आँखें रो रही थीं। यदि लेखक अब उन लोगों को गिनने लगे, तो उस क्षण को याद करके उसकी अपनी आँखों में से आँसुओं की अविरल धारा बहने लगेगी। वह उस क्षण को स्मरण नहीं कर पाएगा और सबकुछ उसे धुंधला-सा प्रतीत होगा।

(ख) लेखक के फ़ादर बुल्के से अंतरंग संबंध थे। फ़ादर बुल्के से मिलना और उनसे बात करना लेखक को अच्छा लगता था। फ़ादर ने उसके हर दुख-सुख में उसका साथ निभाया था। इसलिए लेखक को लगता है कि फ़ादर बुल्के को याद करना उनके लिए एकांत में उदास शांत संगीत सुनने जैसा है, जो अशांत मन को शांति प्रदान करता है। फ़ादर ने सदैव उनके अशांत मन को शांति प्रदान की थी।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर :
फादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल नामक शहर में हुआ था। जब वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, तब उनके मन में संन्यासी बनने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत आने का मन बनाया। उनके मन में यह बात इसलिए उठी होगी, क्योंकि भारत को साधु-संतों का देश कहा जाता है। भारत आध्यात्मिकता का केंद्र है। उन्हें लगा होगा कि भारत में ही उन्हें सच्चे अर्थों में आत्मा का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

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प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि रेम्सचैपल’-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ। अभिव्यक्त होती हैं ? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं ?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था, परंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि के लिए भारत को चना। उन्होंने अपनी आयु का अधिकांश भाग भारत में बिताया था। उन्हें भारत, भारत की भाषा हिंदी तथा यहाँ के लोगों से बहुत प्यार था; परंतु वे अपनी जन्मभूमि रेम्सचैपल को कभी भूल नहीं पाए। रेम्सचैपल शहर उनके मन के एक कोने में बसा हुआ था। वे अपनी जन्मभूमि से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। जिस मिट्टी में पलकर वे बड़े हुए थे, उसकी महक वे अपने अंदर अनुभव करते थे।

इसलिए लेखक के यह पूछने पर कि कैसी है आपकी जन्मभूमि? फ़ादर बुल्के ने तत्परता से जबाव दिया कि उनकी जन्मभूमि बहुत सुंदर है। यह उत्तर उनकी आत्मा की आवाज़ थी। हमें अपनी जन्मभूमि प्राणों से बढ़कर प्रिय है। जन्मभूमि में ही मनुष्य का उचित विकास होता है। उसकी आत्मा में अपनी जन्मभूमि की मिट्टी की महक होती है। जन्मभूमि से मनुष्य का रिश्ता उसके जन्म से शुरू होकर उसके मरणोपरांत तक रहता है। जन्मभूमि ही हमें हमारी पहचान, संस्कृति तथा सभ्यता से अवगत करवाती है। हमें अपनी जन्मभूमि के लिए कृतज्ञ होना चाहिए और उसकी रक्षा और सम्मान पर कभी आँच नहीं आने देनी चाहिए।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 10.
‘मेरा देश भारत’ विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्र मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है। जिस भूमि के अन्न-जल से यह शरीर बनता एवं पुष्ट होता है, उसके प्रति अनायास ही स्नेह एवं श्रद्धा उमड़ती है। जो व्यक्ति अपने राष्ट्र की सुरक्षा एवं उसके प्रति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, वह कृतघ्न है। उसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं। उसका जीवन पशु के सदृश बन जाता है। रेगिस्तान में वास करने वाला व्यक्ति ग्रीष्म की भयंकरता के बीच जी लेता है, लेकिन अपनी मातृभूमि के प्रति दिव्य प्रेम संजोए रहता है।

शीत प्रदेश में वास करने वाला व्यक्ति काँप-काँप कर जी लेता है, लेकिन जब उसके देश पर कोई संकट आता है तो वह अपनी जन्मभूमि पर प्राण न्योछावर कर देता है। ‘यह मेरा देश है’ कथन में कितनी मधुरता है। इसमें जो कुछ है, वह सब मेरा है। जो व्यक्ति ऐसी भावना से रहित है, उसके लिए ठीक ही कहा गया है –

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है।

मेरा महान देश भारत सब देशों का मुकुट है। इसका अतीत स्वर्णिम रहा है। एक समय था, जब इसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। प्रकृति ने इसे अपने अपार वैभव, शक्ति एवं सौंदर्य से विभूषित किया है। इसके आकाश के नीचे मानवीय प्रतिभा ने अपने सर्वोत्तम वरदानों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया है। इस देश के चिंतकों ने गूढतम प्रश्न की तह में पहुँचने का सफल प्रयास किया है। मेरा देश अति प्राचीन है। इसे सिंधु देश, आर्यावर्त, हिंदुस्तान भी कहते हैं। इसके उत्तर में ऊँचा हिमालय पर्वत इसके मुकुट के समान है। उसके पार तिब्बत तथा चीन हैं। दक्षिण में समुद्र इसके पाँव धोता है। श्रीलंका द्वीप वहाँ समीप ही है।

उसका इतिहास भी भारत से संबद्ध है। पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार देश हैं। पश्चिम में पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईरान देश हैं। प्राचीन समय में तथा आज से दो हज़ार वर्ष पहले सम्राट अशोक के राज्यकाल में और उसके बाद भी गांधार (अफ़गानिस्तान) भारत का ही प्रांत था। कुछ सौ वर्षों पहले तक बाँग्लादेश, ब्रह्मदेश व पाकिस्तान भारत के ही अंग थे। इस देश पर अंग्रेजों ने आक्रमण करके यहाँ पर विदेशी राज्य स्थापित किया और इसे खूब लूटा। पर अब वे दुख भरे दिन बीत चुके हैं। हमारे देश के वीरों, सैनिकों, देशभक्तों और क्रांतिकारियों के त्याग व बलिदान से 15 अगस्त 1947 ई० को भारत स्वतंत्र होकर दिनों-दिन उन्नत और शक्तिशाली होता जा रहा है।

26 जनवरी, 1950 से भारत में नया संविधान लागू हुआ और यह ‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ बन गया। अनेक ज्वारभाटों का सामना करते हुए भी इसका सांस्कृतिक गौरव अक्षुण्ण रहा है। यहाँ गंगा, यमुना, सरयू, नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी, सोन, सतलुज, व्यास, रावी आदि पवित्र नदियाँ बहती हैं, जो इस देश को सींचकर हरा-भरा करती हैं। इनमें स्नान कर देशवासी पुण्य लाभ उठाते हैं। यहाँ बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर-ये छह ऋतुएँ क्रमशः आती हैं। इस देश में अनेक तरह की जलवायु है।

भाँति-भाँति के फल-फूल, वनस्पतियाँ, अन्न आदि यहाँ उत्पन्न होते हैं। इस देश को देखकर हृदय गदगद हो जाता है। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। यह एक विशाल देश है। इस समय इसकी जनसंख्या लगभग एक सौ पच्चीस करोड़ से अधिक हो गई है, जो संसार में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। यहाँ हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि मतों के लोग परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, बाँग्ला, तमिल, तेलुगू आदि अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं।

दिल्ली इसकी राजधानी है। वहीं संसद भी है, जिसके लोकसभा और राज्यसभा दो अंग हैं। मेरे देश के प्रमुख राष्ट्रपति’ कहलाते हैं। एक उपराष्ट्रपति भी होता है। देश का शासन प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल चलाता है। इस देश में विभिन्न राज्य या प्रदेश हैं, जहाँ विधानसभाएँ हैं। वहाँ मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल द्वारा शासन होता है। यह धर्मनिरपेक्ष देश है। यहाँ बड़े धर्मात्मा, तपस्वी, त्यागी, परोपकारी, वीर, बलिदानी महापुरुष हुए हैं। यहाँ की स्त्रियाँ पतिव्रता, सती, साध्वी, वीरता और साहस की पुतलियाँ हैं।

उन्होंने कई बार जौहर व्रत किए हैं। वे योग्य और दृढ़ शासक भी हो चुकी हैं और आज भी हैं। यहाँ के ध्रुव, प्रहलाद, लव-कुश, अभिमन्यु, हकीकतराय आदि बालकों ने अपने ऊँचे जीवनादर्शों से इस देश का नाम उज्ज्वल किया है। मेरा देश गौरवशाली है। इसका इतिहास सोने के अक्षरों में लिखा हुआ है। यह स्वर्ग के समान सभी सुखों को प्रदान करने में समर्थ है। मैं इस पर तन-मन-धन न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता हूँ। मुझे अपने देश पर और अपने भारतीय होने पर गर्व है।

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प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गरमी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
3719, रेलवे रोड
अंबाला
15 मई, 20 ……
प्रिय मित्र हडसन एंड्री
सस्नेह नमस्कार।
आशा है कि आप सब सकुशल होंगे। आपके पत्र से ज्ञात हुआ कि आपका विद्यालय ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो चुका है। हमारा विद्यालय भी 28 मई को ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो रहा है। इस बार छुट्टियों में हम पिताजी के साथ शिमला जा रहे हैं। लगभग 20 दिन तक हम शिमला में रहेंगे। वहाँ मेरे मामाजी भी रहते हैं। अतः वहाँ रहने में पूरी सुविधा रहेगी। हमने शिमला के आस पास सभी दर्शनीय स्थान देखने का निर्णय किया है। मेरे मामाजी के बड़े सुपुत्र वहाँ अंग्रेज़ी के अध्यापक हैं। उनकी सहायता एवं मार्ग दर्शन से मैं अपने अंग्रेजी के स्तर को भी बढ़ा सकूँगा।

प्रिय मित्र, यदि आप भी हमारे साथ शिमला चलें तो यात्रा का आनंद आ जाएगा। आप किसी प्रकार का संकोच न करें। मेरे माता-पिताजी भी आपको देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। आप शीघ्र ही अपने कार्यक्रम के बारे में सूचित करें। हमारा विचार जून के प्रथम सप्ताह में जाने का है। शिमला से लौटने के बाद जम्मू-कश्मीर जाने का विचार है, जहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। जम्मू के पास कटरा में वैष्णो देवी का मंदिर मेरे आकर्षण का केंद्र है। मुझे अभी तक इस सुंदर भवन को देखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। आशा है कि इस बार यह जिज्ञासा भी शांत हो जाएगी। आप अपने कार्यक्रम से शीघ्र ही सूचित करें।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से सादर नमस्कार कहें।
आपका मित्र,
विजय कुमार

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोधक छाँटकर अलग लिखिए –
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद
(ख) माँ ने बचपन से ही घोषित कर दिया था कि लड़का हथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर :
(क) और (ख) कि (ग) तो (घ) जो (ङ) लेकिन।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फ़ादर बुल्के का अंग्रेज़ी-हिंदी कोश’ उनकी एक महत्वपूर्ण देन है। इस कोश को देखिए-समझिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

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प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुई हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी, लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर :
भगिनी निवेदिता, मदर टेरेसा, एनी बेसेंट ऐसी ही विभूतियाँ थीं। इनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी, लेकिन कर्मभूमि के रूप में इन्होंने भारत को ही चुना था।

प्रश्न 3.
कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर :
हरगोविंद खुराना, लक्ष्मी मित्तल, हिंदुजा भाई इसी प्रकार के व्यक्ति हैं।

प्रश्न 4.
एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक युग भौतिकवाद का युग है। प्रत्येक मनुष्य कम समय में बहत अधिक प्राप्त कर लेना चाहता है। भारत में रहकर वह अपनी प्रतिभा और क्षमता को व्यर्थ गँवाना नहीं चाहता। उसे अनुभव होता है कि उसे अपनी क्षमता और प्रतिभा का उतना मूल्य नहीं मिल पा रहा, जितना उसे मिलना चाहिए। इसलिए वह सबकुछ प्राप्त कर लेने की चाह में पश्चिमी चकाचौंध में खो जाता है। वहाँ की चकाचौंध में भारतीय मूल्य और संस्कृति खो जाती है। मनुष्य वहाँ के रीति-रिवाजों में जीने लग जाता है। उसे देश, परिवार किसी से प्रेम नहीं रहता। उसका प्रेम स्वयं की उन्नति तक सीमित हो जाता है। वह सबकी भावनाओं के साथ खेलता है। आज इसके कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। आज की पीढ़ी को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो उन्हें पश्चिमी चकाचौंध से दूर रहने का सही मार्ग दिखाए।

यह भी जानें –

परिमल – निराला के प्रसिद्ध काव्य संकलन से प्रेरणा लेते हुए 10 दिसंबर 1944 को प्रयाग विश्वविद्यालय के साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले कुछ उत्साही युवक मित्रों द्वारा परिमल समूह की स्थापना की गई। ‘परिमल’ द्वारा अखिल भारतीय स्तर की गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं जिनमें कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक आदि पर खुली आलोचना और उन्मुक्त बहस की जाती। परिमल का कार्यक्षेत्र इलाहाबाद था। जौनपुर, मुंबई, मथुरा, पटना, कटनी में भी इसकी शाखाएँ रहीं। परिमल ने इलाहाबाद में साहित्य-चिंतन के प्रति नए दृष्टिकोण का न केवल निर्माण किया बल्कि शहर के वातावरण को एक साहित्यिक संस्कार देने का प्रयास भी किया।

फ़ादर कामिल बुल्के (1909-1982)
शिक्षा-एम०ए०, पीएच-डी० (हिंदी)
प्रमुख कृतियाँ – रामकथा : उत्पत्ति और विकास, रामकथा और तुलसीदास, मानस-कौमुदी, ईसा-जीवन और दर्शन, अंग्रेज़ी-हिंदी कोश, (1974 में पदमभूषण से सम्मानित)।

JAC Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। उन्होंने यह पाठ फ़ादर बुल्के की स्मृतियों को याद करते हुए लिखा है। फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण करना सरल नहीं है, परंतु लेखक की स्मृतियों के आधार पर फ़ादर का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया गया है –
1. परिचय – फ़ादर का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल शहर में हुआ था। उनके परिवार में माता-पिता, दो भाई और एक बहन थी। इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में उनमें संन्यासी बनने की इच्छा जागृत हुई। वे संन्यासी बनकर भारत आ गए और इस तरह उनकी कर्मभूमि भारत बनी।

2. व्यक्तित्व – फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व हर किसी के हृदय में अपनी छाप छोड़ता था। उनका रंग गोरा था। उनकी दाढ़ी भूरी थी, जिसमें सफ़ेदी की झलक भी दिखाई देती थी। उनकी आँखें नीली थीं। उनके चेहरे पर तेज़ था। उनका व्यक्तित्व उन्हें भीड़ – में अलग पहचान देता था।

3. शिक्षा – रेम्सचैपल शहर में जब उन्होंने संन्यास लिया उस समय वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे। भारत आकर उन्होंने कोलकाता से बी०ए०, इलाहाबाद से एम० ए० और प्रयाग विश्वविद्यालय से हिंदी में शोधकार्य किया। शोध का विषय था – ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’।

4. अध्यापन कार्य – फादर बुल्के सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष थे। वहाँ उन्होंने अपना अंग्रेजी-हिंदी कोश लिखा, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने बाइबिल का भी अनुवाद किया।

5. शांत स्वभाव-फ़ादर बुल्के शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें कभी भी किसी ने क्रोध में नहीं देखा था। उनका शांत स्वभाव हर किसी को प्रभावित करता था।

6. ओजस्वी वाणी-फ़ादर बुल्के की वाणी ओजस्वी थी। उनके मुख से निकले दो सांत्वना के शब्द अँधेरे जीवन में रोशनी ला देते थे। उनके विचार ऐसे होते थे, जिन्हें कोई काट नहीं सकता था।

7. बड़े भाई की भूमिका में-फ़ादर बुल्के प्रत्येक व्यक्ति के लिए बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका वात्सल्य सबके लिए देवदार पेड़ की छाया के समान था। ‘परिमल’ में काम करते समय वहाँ का वातावरण एक परिवार की तरह था, जिसके बड़े सदस्य फ़ादर थे। वे बड़े भाई की तरह सबको सुझाव और राय देते थे।

8. मिलनसार-फ़ादर बुल्के मिलनसार व्यक्ति थे। वे जिससे एक बार रिश्ता बना लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। जब भी वे दिल्ली जाते, तो सबसे मिलकर आते थे; चाहे वह मिलना दो मिनट का होता था।

9. हिंदी भाषा के प्रति प्यार-फ़ादर बुल्के एक विदेशी होते हुए भी बहुत अपने थे। उनके अपनेपन का कारण था-उनका भारत, भारत की संस्कृति और भारतीय भाषा हिंदी से विशेष प्यार। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे और इसके लिए प्रयासरत भी रहते थे। उनकी हिंदी भाषा के प्रति चिंता प्रत्येक मंच पर स्पष्ट देखी जा सकती थी। उन्हें उस समय बहुत झुंझलाहट होती थी, जब हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा करते थे। उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों से विशेष प्रेम था।

10. कष्टदायी मृत्यु-फ़ादर बुल्के शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। वे दूसरों के दुख से जल्दी दुखी हो जाते थे। जिन्होंने सदैव अपने स्वभाव से मिठास बाँटी थी, उसी की मृत्यु ज़हरबाद से हुई थी। उन्हें अंतिम समय में बहुत यातना सहन करनी पड़ी थी। उन्होंने अपने जीवन के सैंतालीस साल भारत में बिताए थे। मृत्यु के समय उनकी आयु तिहत्तर वर्ष थी। 18 अगस्त 1982 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हुई।

फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। इसलिए लेखक का उनको याद करना एक उदास शांत संगीत सुनने जैसा था।

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प्रश्न 2.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ हमें क्या संदेश देता है?
उत्तर :
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ एक संस्मरण है। इसके माध्यम से लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ फादर बुल्के को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। फ़ादर बुल्के का जीवन हम भारतवासियों के लिए एक प्रेरणा है। फ़ादर बुल्के विदेशी होते हुए भी भारत, भारत की भाषा और संस्कृति से बहुत गहरे जुड़े हुए थे। उन्होंने स्वयं को सदैव एक भारतीय कहा था। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत प्रयास किए था।

हम लोगों को फ़ादर बुल्के के जीवन से यह संदेश लेना चाहिए कि जब एक विदेशी अनजान देश, अनजान लोगों और अनजान भाषा को अपना बना सकता है तो हम अपने देश, अपने लोगों और अपनी भाषा को अपना क्यों नहीं बना सकते? हमें अपने भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। अपने देश और उसकी राष्ट्रभाषा हिंदी के सम्मान की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।

प्रश्न 3.
लेखक को ‘परिमल’ के दिन क्यों याद आते थे?
अथवा
‘परिमल’ के बारे में आप क्या जानते हैं? इस संदर्भ में लेखक को फ़ादर कामिल बुल्के क्यों याद आते हैं?
उत्तर :
‘परिमल’ में काम करने वाले सभी लोग पारिवारिक रिश्ते में बंधे हुए लगते थे, जिसके बड़े सदस्य फ़ादर बुल्के थे। फ़ादर बुल्के परिमल की सभी गतिविधियों में भाग लेते थे। वे उनकी सभाओं में गंभीर बहस करते थे। उनकी रचनाओं पर खुले दिल से अपनी राय और सुझाव देते थे। लेखक को सदैव वे बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। इसलिए लेखक को परिमल के दिन याद आ रहे थे। परिमल उनका शोधग्रंथ भी पढ़ा गया था। परिमल में उन्होंने अनेक कार्य किए थे जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

प्रश्न 4.
फ़ादर बुल्के के परिवार के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
फ़ादर बुल्के का भरा-पूरा परिवार था। परिवार में दो भाई, एक बहन, माँ और पिता थे। फ़ादर बुल्के के पिता व्यवसायी थे। एक भाई पादरी था और दूसरा भाई कहीं काम करता था। उनकी बहन सख्त और जिद्दी स्वभाव की थी। उसकी शादी बहुत देर से हुई थी। उन्हें अपनी माँ से विशेष लगाव था। प्रायः वे अपनी माँ की यादों में डूब जाते थे। उनका अपने पिता और भाइयों से विशेष लगाव नहीं था। भारत आने के बाद फ़ादर दो या तीन बार ही बेल्जियम गए थे।

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प्रश्न 5.
फ़ादर बुल्के ने भारत में आकर कहाँ-कहाँ से शिक्षा प्राप्त की?
उत्तर :
फ़ादर रेम्सचैपल से संन्यासी बनकर भारत आए थे। उन्होंने दो साल तक ‘जिसेट संघ’ में रहकर पादरियों से धर्माचार की पढ़ाई की। ‘बाद में वे 9-10 सालों तक दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। उन्होंने कोलकाता से बी० ए० और इलाहाबाद से एम० ए० की पढ़ाई की। प्रयाग में डॉ० धीरेंद्र वर्मा हिंदी के विभागाध्यक्ष थे। वहीं पर फ़ादर ने अपना शोध-कार्य पूरा किया। उनके शोध का विषय था-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’। इस तरह उन्होंने भारत आकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

प्रश्न 6.
भारत से अपने लगाव के बारे में फ़ादर बुल्के क्या कहते थे?
उत्तर :
भारत से फ़ादर का स्वाभाविक लगाव था। अपने मन में आए संन्यासी के भाव को ईश्वर की इच्छा मानकर उन्होंने भारत आने का निर्णय किया। जब फ़ादर से पूछा गया कि वे भारत ही क्यों आए, तब उन्होंने कहा कि वे भारत के प्रति लगाव रखते हैं तथा अपने इसी लगाव के कारण वे भारत चले आए।

प्रश्न 7.
क्या फ़ादर बुल्के के जीवन का अनुकरण किया जा सकता है ?
उत्तर :
हाँ, फ़ादर बुल्के के जीवन का अनुकरण किया जा सकता है। वे मानव के रूप में एक दिव्य ज्योति थे, जो दूसरों को प्रकाश देने का काम करते थे। मानव सेवा उनका परम लक्ष्य था। मानव-समाज की भलाई के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। इसलिए उनके जीवन एवं व्यक्तित्व का अनुकरण करना अपने आप में एक उत्तम कार्य है।

प्रश्न 8.
लेखक किसकी याद में नतमस्तक था?
उत्तर :
लेखक फ़ादर कामिल बुल्के की याद में नतमस्तक था, जो एक ज्योति के समान प्रकाशमान थे। लेखक फ़ादर की ममता, उनके हृदय में व्याप्त करुणा तथा उनकी तपस्या का अत्यधिक सम्मान करता था। इसी कारण उसका सिर फ़ादर की याद में झुका हुआ था।

प्रश्न 9.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ किस प्रकार की विधा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है। लेखक ने इस संस्मरण में अपने अतीत के पलों को उकेरा है। उन्होंने फ़ादर बुल्के तथा उनसे जुड़ी यादों का उल्लेख किया है। उनके प्रति अपने लगाव तथा प्रेम को उजागर किया है। उन्होंने बड़े ही भावपूर्ण स्वर में कहा है कि ‘फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।’

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प्रश्न 10.
फ़ादर की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
उत्तर :
फ़ादर का जन्म बेल्जियम के रैम्सचैपल नामक शहर में हुआ था। उनकी मृत्यु 18 अगस्त, 1982 को भारत में हुई थी। उनकी मृत्यु का कारण ज़हरबाद था।

प्रश्न 11.
हिंदी साहित्य में फ़ादर बुल्के का क्या योगदान था?
अथवा
फ़ादर बुल्के ने भारत में रहते हुए हिंदी के उत्थान के लिए क्या कार्य किए?
उत्तर :
फ़ादर बल्के हिंदी प्रेमी थे। हिंदी भाषा से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। इसी उन्होंने अपना शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्याल के हिंदी विभाग से पूरा किया था। उनका सेंट जेवियर्स कॉलेज रॉची में हिंदी और संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष का कार्य भार संभालना उनके हिंदी-प्रेमी होने का पुख्ता प्रमाण है। उन्होंने पवित्र ग्रंथ बाइबिल का हिंदी में अनुवाद भी किया था।

पठित गद्याश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिविरिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और फ़ादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों।

(क) परिमल से आप क्या समझते हैं?
(i) एक सामाजिक संस्था का नाम है।
(ii) एक काव्य-रचना
(iii) एक नाटक मंडली का नाम है
(iv) साहित्यिक संस्था का नाम है
उत्तर :
(iv) साहित्यिक संस्था का नाम है।

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(ख) फ़ादर को याद करना कैसा है?
(i) खारे पानी के समान
(ii) एक उदास संगीत को सुनने के समान
(iii) नदी के जल स्नान करने के समान
(iv) समुद्र के जल पीने के समान
उत्तर :
(ii) एक उदास संगीत को सुनने के समान

(ग) किनको देखना करुणा के जल में स्नान करने के समान है?
(i) लेखक को
(ii) फ़ादर बुल्के को
(iii) पुरोहित को
(iv) बड़े भाई को
उत्तर :
(ii) फ़ादर बुल्के को

(घ) फ़ादर बुल्के की बातें क्या करने की प्रेरणा देती थी?
(i) परोपकार की
(ii) स्वच्छ रखने की
(ii) कर्म करने की
(iv) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(iii) कर्म करने की

(ङ) घर के उत्सवों में फ़ादर की क्या भूमिका रहती थी?
(i) बड़े भाई की
(ii) बड़े भाई और पुरोहित की
(iii) पुरोहित की
(iv) मुखिया की
उत्तर :
(ii) बड़े भाई और पुरोहित की

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) फ़ादर बुल्के किस भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे?
(i) उर्दू
(ii) अंग्रेजी
(iii) संस्कृत
(iv) हिंदी
उत्तर :
(iv) हिंदी

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(ख) फ़ादर ने ‘जिसेट संघ’ में दो वर्ष किस विषय की पढ़ाई की?
(i) इंजीनियरिंग की
(ii) डॉक्टर की
(iii) धर्माचार की
(iv) शिक्षण की
उत्तर :
(iii) धर्माचार की

(ग) फ़ादर की उपस्थिति किस वृक्ष की छाया के समान प्रतीत होती थी?
(i) पीपल की
(ii) देवदार की
(iii) कीकर की
(iv) बरगद की
उत्तर :
(ii) देवदार की

(घ) फ़ादर कामिल बुल्के अकसर किसकी यादों में खो जाते थे?
(i) पत्नी की
(ii) बहन की
(iii) माँ की
(iv) पुत्री की
उत्तर :
(ii) माँ की

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(ङ) फ़ादर ने किसके प्रसिद्ध नाटक का रूपांतर हिंदी में किया?
(i) नीला पंछी
(ii) ब्लूबर्ड
(iii) मातरलिंक
(iv) लहरों के राजहंस
उत्तर :
(iii) मातरलिंक

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. फ़ादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे ? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था। वह देह की इस यातना की परीक्षा की उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दें?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘फ़ादर’ शब्द से किस व्यक्ति की ओर संकेत किया गया है और उनकी मृत्यु कैसे हुई ?
3. लोगों के प्रति फ़ादर का व्यवहार कैसा था?
4. ईश्वर के प्रति फ़ादर के क्या विचार थे ?
5. ‘उम्र की आखिरी देहरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इन शब्दों का क्यों प्रयोग किया है?
उत्तर :
1. पाठ-मानवीय करुणा की दिव्य चमक, लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
2. बेल्जियम से भारत में राम-कथा पर शोध करने आए डॉ० कामिल बुल्के को ‘फ़ादर’ कहा गया है। उनकी मृत्यु गैंग्रीन से हुई थी। गैंग्रीन एक प्रकार का फोडा होता है, जिसका ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
3. फ़ादर कामिल बुल्के का लोगों के प्रति अत्यंत प्रेमपूर्ण तथा मधुर व्यवहार था। वे सबसे खुले दिल से मिलते थे। उनके मन में सबके प्रति ममता तथा अपनत्व का भाव भरा था। वे सबको सुखी देखना चाहते थे।
4. फ़ादर कामिल बुल्के की ईश्वर पर अटूट आस्था थी। वे उस परमात्मा की ही इच्छा को ही सबकुछ मानकर अपने सभी कार्य करते थे। वे परमात्मा के दिए हुए सुख-दुखों को उसकी देन मानकर स्वीकार करते थे।
5. ‘उम्र की आखिरी देहरी’ से तात्पर्य बुढ़ापे से है। लेखक ने यहाँ इन शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा है कि जब फ़ादर बुल्के सारा जीवन लोगों की भलाई करते रहे, तो उन्हें बुढ़ापे में ईश्वर ने इतनी कष्टप्रद भयंकर बीमारी उनकी कौन-सी परीक्षा लेने के लिए दी थी?

फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मज़ाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक के अनुसार फ़ादर को याद करना कैसा और क्यों है?
2. लेखक के अनुसार फ़ादर को देखना और सुनना कैसा था?
3. ‘परिमल’ क्या था? वहाँ कैसी चर्चाएँ होती थीं?
4. घर के उत्सवों में फ़ादर का क्या योगदान रहता था?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार फ़ादर कामिल बुल्के को याद करना ऐसा है, जैसे हम खामोश बैठकर उदास शांत संगीत सुन रहे हों। उन्हें स्मरण करने से उदासी घेर लेती है, परंतु उनके शांत स्वरूप का ध्यान आते ही मनोरम संगीत के स्वर गूंजने लग जाते हैं।

2. लेखक के अनुसार फ़ादर बुल्के को देखने मात्र से ऐसा लगता था, जैसे उन्हें हम किसी पवित्र सरोवर के उज्ज्वल जल में स्नान करके पवित्र हो गए हों। उनसे बातचीत करना तथा उनकी बातें सुनना कर्म करने की प्रेरणा भर देता था।

3. ‘परिमल’ एक साहित्यिक संस्था थी। इसमें समय-समय पर साहित्यिक विचार गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं, जिनमें तत्कालीन साहित्य की विभिन्न विधाओं पर चर्चा होती थी। इन गोष्ठियाँ में नए-पुराने सभी साहित्यकार अपने-अपने विचार व्यक्त करते थे।

4. घर के उत्सवों में फ़ादर बुल्के सबके साथ मिल-जुलकर उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। वे एक बड़े भाई के समान अथवा एक पारिवारिक पुरोहित के समान सबको आशीर्वाद देते थे। उनके इस व्यवहार से सभी पुलकित हो उठते थे।

3. फ़ादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन में संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गरमी, सरदी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है?

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. फ़ादर बुल्के को ‘संकल्प से संन्यासी’ कहने से लेखक का क्या अभिप्राय है?
2. रिश्तों के संबंध में फ़ादर बुल्के के क्या विचार थे ?
3. लेखक ने किस गंध के महसूस होने की बात कही है?
4. ‘यह कौन संन्यासी करता है?’ इस कथन से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर :
1. लेखक के इस कथन का अभिप्राय है कि फ़ादर बुल्के ने दृढ़ निश्चयपूर्वक संन्यास लिया था। उन्होंने किसी के कहने अथवा दबाव में आकर संन्यास नहीं लिया था। किसी लालच के वशीभूत होकर अथवा कर्म-क्षेत्र से पलायन करने के लिए भी उन्होंने संन्यास नहीं लिया था। उन्होंने स्वेच्छा से संन्यास लिया था।

2. एक संन्यासी होते हुए भी फ़ादर बुल्के रिश्तों की गरिमा समझते थे। तथा रिश्तों को निभाना जानते थे। जिसके साथ उनका कोई संबंध बन जाता था, उसे वे अंतकाल तक निभाते थे। वे रिश्ते जोड़कर तोड़ते नहीं थे।

3. लेखक कहता है कि यदि फ़ादर बुल्के से कई वर्षों बाद मुलाकात होती थी, तो भी वे बड़ी प्रगाढ़ता से मिलते थे। उनके साथ जो रिश्ते थे, उसकी गहराई की सुगंध उस मिलन से महसूस होती थी। उनका अपनापन रिश्तों को और भी अधिक मज़बूती देता था।

4. लेखक बताता है कि फ़ादर बुल्के जब कभी दिल्ली आते थे, तो वे अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर उससे मिलने अवश्य आते थे। इस प्रकार मिलने में चाहे उन्हें गरमी अथवा सरदी का सामना करना पड़ता, वे इसकी भी चिंता नहीं करते थे। उनकी इसी स्वभावगत विशेषता के कारण लेखक को कहना पड़ा कि मिलने के लिए ऐसा प्रयास कोई भी संन्यासी नहीं करता है।

4. उनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच में इसकी तकलीफ़ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते। बस इसी एक सवाल पर उन्हें झुंझलाते देखा है और हिंदी वालों द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा पर दुख करते उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुख-तकलीफ़ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दुख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. फ़ादर कामिल बुल्के को किसकी और क्यों चिंता रहती थी? इसे वे कैसे व्यक्त करते थे?
2. फ़ादर बुल्के झुंझलाते क्यों थे? उन्हें क्या दुख था?
3. लेखक ने यहाँ फ़ादर बुल्के के किस स्वभाव की विशेषता का वर्णन किया है?
4. फ़ादर बुल्के के सांत्वना भरे शब्द कैसे होते थे?
उत्तर :
1. फ़ादर बुल्के को इस बात की चिंता रहती थी कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं मिल रहा है। हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने के लिए वे जहाँ कहीं भी वक्तव्य देते थे, अपनी इस चिंता को व्यक्त करते थे तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन करने के पक्ष में उचित तर्क देते थे।

2. फ़ादर बुल्के इसी प्रश्न पर झुंझलाते थे कि हिंदी को अपने ही देश में उचित स्थान नहीं मिल पा रहा। उन्हें इस बात पर बहुत दुख था कि स्वयं हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा कर रहे हैं। हिंदी वालों द्वारा हिंदी का अनादर तथा अनदेखी करने पर वे बहुत दुखी हो जाते थे।

3. इन पंक्तियों में लेखक ने फ़ादर बुल्के के स्वभाव का उल्लेख करते हुए कहा है कि वे जब भी किसी से मिलते थे, तो एक आत्मीय के रूप में उस व्यक्ति से उसके घर-परिवार, उसके सुख-दुख आदि के बारे में पूछते थे।

4. यदि कोई दुखी व्यक्ति फ़ादर बुल्के को अपनी दुखभरी कहानी सुनाता था, तो फ़ादर उस व्यक्ति को इस प्रकार से सांत्वना देते थे कि उस व्यक्ति को लगता था मानो उसके सभी कष्ट व दुख दूर हो गए हों। लेखक को लगता है कि फ़ादर ने किसी के दुख को दूर करने वाले सांत्वना के इन शब्दों को गहरी तपस्या से ही प्राप्त किया था।

5. इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘छायादार फल-फूल, गंध से भरा’ क्यों कहा है ?
2. लेखक के लिए फ़ादर की स्मृति कैसी और क्यों है?
3. लेखक ने फ़ादर को कैसे श्रद्धांजलि दी?
4. लेखक के लिए फ़ादर बुल्के क्या थे?
उत्तर :
1. लेखक ने फ़ादर बुल्के के स्वभाव में सबके प्रति ममता, स्नेह, दया, करुणा आदि गुणों को देखकर कहा है कि वे एक ऐसे विशाल वृक्ष के समान थे जो सबको अपनी छाया, फल-फूल और सुगंध प्रदान करता रहता है; परंतु स्वयं कुछ नहीं लेता। फ़ादर सबको अपना स्नेह बाँटते रहे।

2. लेखक के लिए फ़ादर बुल्के की स्मृति पवित्र भावनाओं से युक्त है। जैसे किसी यज्ञ की पवित्र अग्नि की तपस सदा अनुभव की जा सकती है, उसी प्रकार से लेखक के मन में भी फ़ादर की पुनीत स्मृति आजीवन बनी रहेगी। उनकी मानवीय करुणा ने लेखक के मन में यह भावना जागृत की है।

3. लेखक ने अपने इस आलेख ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ के माध्यम से फ़ादर को श्रद्धांजलि दी है। लेखक उनकी पवित्र एवं करुणामय जीवन-पद्धति से प्रभावित रहा है।

4. लेखक के लिए फ़ादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा की दिव्य चमक के समान थे। वे लेखक के लिए बड़े भाई के समान मार्गदर्शक, आशीर्वाददाता तथा शुभचिंतक थे। लेखक को उन जैसा हिंदी-प्रेमी, संन्यासी होते हुए भी संबंधों को गरिमा प्रदान करने वाला, सबके सुख-दुख का साथी अन्य कोई नहीं दिखाई देता था।

मानवीय करुणा की दिव्या चमक Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-नई कविता के सशक्त कवि तथा प्रतिभावान साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन 1927 ई० हुआ था। सन 1949 ई० में इन्होंने इलाहाबाद से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने कुछ वर्ष तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में काम किया। इन्होंने ‘दिनमान’ में उपसंपादक तथा बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ में संपादक के रूप में कार्य किया था। इन्हें ‘टियों पर टंगे लोग’ कविता-संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सन 1983 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कविता-संग्रह – काठ की घंटियाँ, खूटियों पर टँगे लोग, जंगल का दर्द, कुआनो नदी।
उपन्यास – पागल कुत्तों का मसीहा, सोया हुआ जल।
कहानी संग्रह – लड़ाई।
नाटक – बकरी।
लेख-संग्रह – चरचे और चरखे।
बाल-साहित्य-लाख की नाक, बतूता का जूता, भौं-भौं, खौं-खौँ।

भाषा-शैली – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा-शैली अत्यंत सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने कहीं भी असाधारण अथवा कलिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया है। मानवीय करुणा की दिव्य चमक इनका फ़ादर कामिल बुल्के से संबंधित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने उनसे संबंधित कुछ अंतरंग प्रसंगों को उजागर किया है। फ़ादर की मृत्यु पर लेखक का यह कथन इसी ओर संकेत करता है-‘फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरे के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों?’ लेखक ने वात्सल्य, यातना, आकृति, साक्षी, वृत्त जैसे तत्सम शब्दों के साथ ही महसूस, ज़हर, छोर, सँकरी, कब्र जैसे विदेशी तथा देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है। लेखक ने भावपूर्ण शैली में फ़ादर को स्मरण करते हुए लिखा है-‘फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था।’ लेखक ने फ़ादर से संबंधित अपनी स्मृतियों को अत्यंत सहज रूप से प्रस्तुत किया है।

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पाठ का सार :

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के लेखक ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। यह पाठ एक संस्मरण है। लेखक ने इस पाठ में फ़ादर कामिल बुल्के से संबंधित स्मृतियों का वर्णन किया है। फादर बुल्के ने अपनी जन्मभूमि रैम्सचैपल (बेल्जियम) को छोड़कर भारत को अपनी कार्यभूमि बनाया। उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों से विशेष लगाव था। फ़ादर की मृत्यु जहरबाद से हुई थी। उनके साथ ऐसा होना ईश्वर का अन्याय था। इसका कारण यह था कि वे सारी उम्र दूसरों को अमृत सी मिठास देते रहे थे।

उनका व्यक्तित्व ही नहीं अपितु स्वभाव भी साधुओं जैसा था। लेखक उन्हें पैंतीस सालों से जानता था। वे जहाँ भी रहे, अपने प्रियजनों पर ममता लुटाते रहे। फ़ादर को याद करना, देखना और सुनना-ये सबकुछ लेखक के मन में अजीब शांत-सी हलचल मचा देते थे। उसे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं, जब वह उनके साथ काम करता था। फादर बड़े भाई की भूमिका में सदैव सहायता के लिए तत्पर रहते थे। उनका वात्सल्य सबके लिए देवदार पेड़ की छाया के समान था। लेखक को यह समझ में नहीं आता कि वह फ़ादर की बात कहाँ से शुरू करे।

फ़ादर जब भी मिलते थे, जोश में होते थे। उनमें प्यार और ममता कूट-कूटकर भरी हुई थी। किसी ने भी कभी उन्हें क्रोध में नहीं देखा था। फ़ादर बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, जब वे संन्यासी होकर भारत आ गए। उनका पूरा परिवार बेल्जियम के रैम्सचैपल में रहता था। भारत में रहते हुए वे अपनी जन्मभूमि रैम्सचैपल और अपनी माँ को प्रायः याद करते थे। वे अपने विषय में बताते थे कि उनकी माँ ने उनके बचपन में ही घोषणा कर दी थी कि यह लड़का हाथ से निकल गया है और उन्होंने अपनी माँ की बात पूरी कर दी। वे संन्यासी बनकर भारत के गिरजाघर में आ गए।

आरंभ के दो साल उन्होंने धर्माचार की पढ़ाई की। इसके बाद 9-10 साल तक दार्जिलिंग में पढ़ाई की। कलकत्ता से उन्होंने बी० ए० तथा इलाहाबाद से एम०ए० किया था। वर्ष 1950 में उन्होंने अपना शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से पूरा किया था। उनके शोधकार्य का विषय-‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ था। उन्होंने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिंदी में ‘नीलपंछी’ नाम से रूपांतर किया। वे सेंट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिंदी और संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे। यहाँ रहकर उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया। उन्होंने बाइबिल का हिंदी में अनुवाद भी किया। राँची में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था।

फादर बुल्के मन से नहीं अपितु संकल्प से संन्यासी थे। वे जिससे एक बार रिश्ता जोड़ लेते थे, उसे कभी नहीं तोड़ते थे। दिल्ली आकर कभी वे बिना मिले नहीं जाते थे। मिलने के लिए सभी प्रकार की तकलीफों को सहन कर लेते थे। ऐसा कोई भी संन्यासी नहीं करता था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। वे हर सभा में हिंदी को सर्वोच्च भाषा बनाने की बात करते थे। वे उन लोगों पर झुंझलाते थे, जो हिंदी भाषा वाले होते हुए भी हिंदी की उपेक्षा करते थे। उनका स्वभाव सभी लोगों की दुख-तकलीफों में उनका साथ देता था। उनके मुँह से निकले सांत्वना के दो बोल जीवन में रोशनी भर देते थे।

लेखक की जब पत्नी और पुत्र की मृत्यु हुई, उस समय फ़ादर ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “हर मौत दिखाती है जीवन को नई राह।” लेखक को फ़ादर की बीमारी का पता नहीं चला। वह उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली पहुंचा था। वे चिरशांति की अवस्था में लेटे थे। उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1982 को हुई। उन्हें कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में ले जाया गया। उनके ताबूत के साथ रघुवंश जी, जैनेंद्र कुमार, डॉ० सत्य प्रकाश, अजित कुमार, डॉ० निर्मला जैन, विजयेंद्र स्नातक और रघुवंश जी का बेटा आदि थे। साथ में मसीही समुदाय के लोग तथा पादरीगण थे।

सभी दुखी और उदास थे। उनका अंतिम संस्कार मसीही विधि से हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में रोने वालों की कमी नहीं थी। इस तरह एक छायादार व फल-फूल गंध से भरा वृक्ष हम सबसे अलग हो गया। उनकी स्मृति जीवन भर यज्ञ की पवित्र अग्नि की आँच की तरह सबके मन में बनी रहेगी। लेखक उनकी पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धा से नतमस्तक है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

देह – शरीर। यातना – कष्ट। परीक्षा – इम्तिहान। आकृति – आकार। साक्षी – गवाह। महसूस – अनुभव। निर्मल – साफ़, स्वच्छ। संकल्प – निश्चय। उत्सव – त्योहार, शुभ अवसर। आशीष – आशीर्वाद। वात्सल्य – ममता, प्यार। स्मृति – यादें। डूब जाना – खो जाना। सांत्वना – सहानुभूति। छोर – किनारा। वृत्त – घेरा। आवेश – जोश, उत्साह। जहरबाद – गैंग्रीन, एक तरह का ज़हरीला और कष्ट साध्य फोड़ा। आस्था – विश्वास, श्रद्धा। देहरी – दहलीज़। सँकरी – तंग। पादरी – ईसाई धर्म का पुरोहित या आचार्य। आतुर – अधीर, उत्सुक। निर्लिप्त – आसक्ति रहित, जो लिप्त न हो। आवेश – जोश, उत्साह। लबालब – भरा हुआ। गंध – महक। धर्माचार – धर्म का पालन या आचरण। रूपांतर – किसी वस्तु का बदला हुआ रूप। अकाट्य – जो कट न सके, जो बात काटी न जा सके। विरल – कम मिलने वाली। ताबूत – शव या मुरदा ले जाने वाला संदूक या बक्सा। करील – झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कँटीला और बिना पत्ते का पौधा। गैरिक वसन – साधुओं द्वारा धारण किए जाने वाले गेरुए वस्त्र। श्रद्धानत – प्रेम और भक्तियुक्त पूज्यभाव।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

JAC Class 10 Hindi कर चले हम फ़िदा Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है ?
उत्तर :
हाँ, इस गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। यह कविता सन् 1962 ई॰ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है, जिसमें देश की रक्षा करते हुए अपना बलिदान देने वाले सैनिक देशवासियों को कह रहे हैं कि वे तो अपना बलिदान देकर जा रहे हैं, परंतु अब देश की रक्षा का भार देशवासियों पर है। उन्होंने तो मरते-मरते भी दुश्मनों को खदेड़ना जारी रखा था। वे देश के नौजवानों को कहते हैं कि देश पर बलिदान होने का अवसर कभी-कभी ही आता है, इसलिए वे देश की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें। उनके शहीद हो जाने के बाद भी देश की रक्षार्थ बलिदानों का यह क्रम सदा जारी रहे।

प्रश्न 2.
‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’, इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में हिमालय हमारे देश की शान, गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक है। हिमालय की ऊँची चोटियों के समान ही हमारे देश की ऊँची शान है। सैनिक इसी शान को बचाए रखने के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों को न्योछावर कर देते हैं।

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प्रश्न 3.
‘कर चले हम फिदा’ कविता में धरती को दुलहन क्यों कहा गया है?
उत्तर :
कवि कहता है कि धरती एक दुलहन के समान सजी हुई है। जिस प्रकार किसी स्वयंवर में दुलहन को प्राप्त करने के लिए राजाओं में युद्ध होता है, उसी प्रकार धरतीरूपी दुलहन की रक्षा करने के लिए भी दुश्मनों से युद्ध करना होगा।

प्रश्न 4.
गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद रह जाते हैं?
उत्तर :
गीत में शब्दों और संगीत का सुंदर मिश्रण होता है। उसमें सुर, लय और ताल से एक ऐसा आकर्षण आ जाता है, जो हमें अपनी ओर आकर्षित करता है। गीतों में कोमल और मधुर शब्दों का प्रयोग होता है, जो सीधे हमारे हृदय पर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक गीत में हम अपनी ही कोमल भावनाओं को रूप लेते अनुभव करते हैं। यही कारण है कि गीत हमें न केवल प्रभावित करते हैं अपितु जीवन भर याद भी रहते हैं।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?
अथवा
‘कर चले हम फिदा’ कविता में कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन देशवासियों के लिए किया है। कवि देशवासियों और विशेषकर नवयुवकों को अपने देश की रक्षा के लिए तत्पर रहने का संदेश देता है। वह देश पर अपने प्राणों को न्योछावर कर देने की बात कहता है।

प्रश्न 6.
कवि ने इस कविता में किस काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?
उत्तर :
कवि ने सैनिकों के माध्यम से देश पर मर-मिटने के काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है। सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया है। उनके मरने के बाद भी देश पर मर-मिटने का सिलसिला निरंतर चलता रहना चाहिए। जब भी देश पर कोई संकट आए, देशवासियों को अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश को बचाना चाहिए। सैनिक कहते हैं कि देश पर प्राणों को न्योछावर करने का काफ़िला निरंतर बढ़ता रहना चाहिए।

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प्रश्न 7.
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?
उत्तर :
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ मृत्यु की भी परवाह न करने की ओर सकेत करता है। गीत में देश की रक्षा के लिए देशवासियों को अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिए तैयार होने को कहा गया है।

प्रश्न 8. इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
‘कर चले हम फिदा’ अथवा ‘मनुष्यता’ कविता का प्रतिपाद्य लगभग 100 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस कविता के माध्यम से कवि ने देश के लिए अपना बलिदान देने वाले सैनिकों के हृदय की आवाज़ को सुंदर अभिव्यक्ति दी है। सैनिक अपने देश की आन, बान और शान के लिए मर-मिटते हैं। वे मरते दम तक अपने देश की रक्षा करते हैं। सैनिक देश पर मर-मिटने के लिए देशवासियों का भी आह्वान करते हैं। वे देशवासियों से कहते हैं कि उनके बाद भी देश पर बलिदान देने का काफ़िला रुकना नहीं चाहिए। देश पर आक्रमण करने वाले दुश्मनों का नाश करने के लिए देशवासियों को सदा तैयार रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए यदि उन्हें अपने प्राणों का बलिदान भी देना पड़े, तो उन्हें हँसते-हँसते प्राणों को न्योछावर कर देना चाहिए।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न
1. साँस थमती गई, नब्ज जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
2. खींच दो अपने से जमीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए ने रावन कोई
3. छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
उत्तर :
1. गीत की इन पंक्तियों में देश की रक्षा के लिए तैनात सैनिक कहते हैं कि उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की भी बलि चढ़ा दी। वे अपने अंतिम समय तक देश की रक्षा करते रहे। सीमा पर खड़े हुए जब उनकी साँसें धीरे-धीरे रुकती जा रही थीं और नाड़ी का चलना बंद होता जा रहा था, तब भी उन्होंने दुश्मन को पीछे खदेड़ने के लिए उठे कदमों को नहीं रोका। वे मृत्यु के समीप होते हुए भी देश की रक्षा करते रहे।

2. गीत की इन पंक्तियों में सैनिक देशवासियों को देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने देश में बुरी नीयत से घुसने वाले दुश्मनरूपी रावण को आने से रोकना होगा। इसके लिए चाहे हमें अपने प्राणों को ही न्योछावर क्यों न करना पड़े। जिस प्रकार से दुराचारी रावण को रोकने के लिए लक्ष्मण ने रेखा खींची थी, हमें अपने खून से वैसी ही रेखा खींचकर दुश्मनों को रोकना होगा।

3. इन पंक्तियों में सैनिक देशवासियों को उद्बोधित करते हुए कहते हैं कि भारतभूमि सीता के समान पवित्र है। यदि कोई दुश्मन इसे अपवित्र करने का प्रयास करे, तो तुम्हें राम और लक्ष्मण बनकर इसे बचाना होगा। जिस प्रकार सीता के मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले दुराचारी रावण को राम-लक्ष्मण न मार डाला था, उसी प्रकार तुम्हें भी इस देश के दुश्मनों को मौत के घाट उतारना होगा।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 1.
इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए। कट गए सर, नब्ज जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे
उत्तर :
कट गए सर – मृत्यु को प्राप्त होना। सैनिक युद्ध-क्षेत्र में अपने सर कटा देते हैं, किंतु देश की आन पर कलंक नहीं लगने देते।
नब्ज जमती गई – मृत्यु समीप होना। जब डॉक्टर मरीज़ को देखने पहुंचा, तो उसकी नब्ज जमती जा रही थी।
जान देने की रुत – बलिदान देने का उचित अवसर। जब दुश्मन हमारे देश पर आक्रमण करता है, तब सैनिकों के लिए जान देने की रुत आती है।
हाथ उठने लगे – आक्रमण होना। जब भी दुश्मन ने हमारे देश की ओर हाथ उठाया है, तो हमारे वीरों ने उसका डटकर मुकाबला किया है।

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प्रश्न 2.
ध्यान दीजिए संबोधन में बहुवचन ‘शब्द रूप’ पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता; जैसे – भाइयो, बहिनो, देवियो, सज्जनो आदि।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं पढ़ें और समझें।

योग्यता विस्तार – 

प्रश्न 1.
कैफ़ी आज़मी उर्दू भाषा के एक प्रसिद्ध कवि और शायर थे। ये पहले ग़ज़ल लिखते थे। बाद में फ़िल्मों में गीतकार और
कहानीकार के रूप में लिखने लगे। निर्माता चेतन आनंद की फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए इन्होंने यह गीत लिखा था, जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली। यदि संभव हो सके तो यह फ़िल्म देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘फ़िल्म का समाज’ पर प्रभाव विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
फ़िल्म और समाज का परस्पर गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं। काफ़ी समय से फ़िल्मों के द्वारा समाज और जागृति पैदा करने का प्रयास होता आया है। फ़िल्मों के द्वारा युवकों में वीरता, देश-प्रेम तथा परोपकार की भावना को सरलता से भरा जा सकता है। फ़िल्में वह माध्यम हैं, जो आँखों से सीधे हमारे मन और मस्तिष्क पर प्रभाव डालती हैं। फ़िल्मों में जो कुछ दिखाया जाता है, वह अधिकतर समाज में ही घटित घटनाएँ होती हैं। देश में भावात्मक एकता उत्पन्न करने और राष्ट्रीयता का विकास करने में फ़िल्मों का महत्वपूर्ण योगदान है।

समाज की अनेक कुरीतियों जैसे दहेज-प्रथा, मदिरापान, भ्रष्टाचार, बाल-विवाह, छुआछूत आदि को दूर करने के लिए फ़िल्में एक सशक्त माध्यम हैं। ‘दहेज’, ‘सुजाता’, ‘अछूत कन्या’ जैसी फ़िल्में इस दृष्टि से बहुत सफल रही हैं। जहाँ एक ओर फ़िल्मों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव है, वहीं नकारात्मक प्रभाव भी है। फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली नग्नता, कामुकता आदि का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

कम आयु के बच्चे जब फ़िल्मों में डकैती, हिंसा, बलात्कार तथा मारपीट जैसे दृश्य देखते हैं, तो वे भी कई बार वैसा ही आचरण करने लगते हैं। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी फ़िल्मों का निर्माण हो, जो समाज को कल्याण और उन्नति की ओर अग्रसर कर सकें। यदि निर्देशक ऐसी स्वस्थ फ़िल्में बनाएँगे, तो फ़िल्में देश की उन्नति के साथ समाज-सुधार में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगी।

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प्रश्न 3.
कैफ़ी आज़मी की अन्य रचनाओं को पुस्तकालय से प्राप्त कर पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। इसके साथ ही उर्दू भाषा के अन्य कवियों की रचनाओं को भी पढ़िए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा कैफ़ी आज़मी पर बनाई गई फ़िल्म देखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

परियोजना कार्य प्रश्न – 

1. सैनिक जीवन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक निबंध लिखिए।
उत्तर :
सैनिक जीवन चुनौतियों से भरा होता है। इसमें हर पल एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है। सैनिक का जीवन आरंभ से ही चुनौतीपूर्ण होता है। एक सैनिक को अपने माता-पिता और परिवार को छोड़कर आना पड़ता है। माँ के स्नेह और सुखदायी आँचल से दूर उसे हर क्षण उनकी याद सताती है। सैनिक का जीवन अस्थिर जीवन होता है। उसे सदा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर शिविरों में रहना पड़ता है। पर्वतीय क्षेत्रों में उसका जीवन और अधिक कठिन एवं चुनौतीपूर्ण हो जाता है। वहाँ न तो सही ढंग से भोजन की व्यवस्था हो पाती है और न ही रहने की कोई व्यवस्था हो पाती है।

सैनिक के जीवन में चुनौतियाँ तब और भी बढ़ जाती हैं, जब उसका विवाह हो जाता है। पत्नी और बच्चों से कोसों दूर वह उनके प्रेम के लिए तरसता रहता है। वह अपनी जान को तो मुट्ठी में रखता ही है, उसकी पत्नी और बच्चे भी उसकी चिंता में डूबे रहते हैं। एक सैनिक अपने बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था भी ठीक ढंग से करने में कठिनाई अनुभव करता है। बच्चों के सुनहरे भविष्य की क वह देश की सरहद पर रहकर करता है। कई बार सैनिक को जंगलों आदि में भी रहना पड़ता है। ऐसे समय में जंगली जानवरों का डर बना रहता है।

कर देता है, तो सैनिक को अपनी जान पर खेलकर उसका मुकाबला करना होता है। बंदूकों, तोपों और बमों के बीच में कब वह मौत का शिकार हो जाए, वह नहीं जानता। उसका तो एकमात्र उद्देश्य केवल अपने देश की रक्षा करना होता है। वह देशवासियों की रक्षा के लिए अपना सीना तान कर दुश्मनों के आगे खड़ा हो जाता है। यद्यपि वह जानता है कि हर पल वह मौत के साए में जी रहा है, किंतु वह अपनी मृत्यु की परवाह न करते हुए देश की आन, बान और शान पर मर मिटता है। निश्चित रूप से एक सैनिक का जीवन अनेक चुनौतियों से भरा होता है। वह परोपकारी होता है। अपने जीवन की बाज़ी लगाकर वह सबके जीवन की रक्षा करता है। ऐसे वीर सैनिकों के कारण ही देश की आजादी बची हुई है। देश को अपने सैनिकों पर नाज है।

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प्रश्न 2.
आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आजादी बनाए रखना’। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक / अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अपने स्कूल के किसी समारोह पर यह गीत या अन्य देशभक्तिपूर्ण गीत गाकर सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कर चले हम फ़िदा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
सैनिकों ने देशवासियों से क्या कहा है?
उत्तर :
सैनिकों ने देशवासियों से कहा है कि उन्हें दुश्मनरूपी रावण को रोकने के लिए अपने खून से लक्ष्मण-रेखा खींचनी चाहिए। जो हाथ सीता के समान पवित्र हमारे भारतवर्ष की तरफ बढ़ेंगे, उन्हें तोड़ देना चाहिए। हमने स्वयं को देश पर बलिदान कर दिया है। अब हम देश की रक्षा का भार देशवासियों पर छोड़कर जा रहे हैं। इसलिए हमारे बाद देशवासियों को वतन की रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
सैनिकों ने अपने देश की शान कैसे बचाई?
उत्तर :
सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की शान बचाई। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, परंतु देश पर आँच नहीं आने दी। उन्होंने हँसते-हँसते मृत्यु को गले लगा लिया; अपने सीनों पर गोलियाँ खाईं; मरते दम तक दुश्मनों से युद्ध करते रहे और अंततः आत्म-बलिदान देकर शहीद हो गए। उन्होंने अपने बलिदान से देश की शान को बचाए रखा।

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प्रश्न 3.
‘राम भी तम, तम्हीं लक्ष्मण साथियो’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या प्रेरणा देना चाहता है?
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह प्रेरणा देना चाहता है कि जिस प्रकार त्रेता युग में रामचंद्र और लक्ष्मण ने सीता की लाज-मर्यादा के लिए लंकापति रावण को पराजित कर दिया था, ठीक उसी तरह भारतवासियों को भी अपने देश की रक्षा करनी चाहिए। इन्हें भी अपना सर्वस्व देश के लिए अर्पित कर देना चाहिए और किसी भी कीमत पर अपने वतन की लाज को बचाना चाहिए।

प्रश्न 4.
सैनिकों ने मरते-मरते भी देश की रक्षा किस प्रकार की?
उत्तर :
सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। जब उनका अंतिम समय समीप था, तो भी उन्होंने दुश्मनों से मुकाबला करते हुए देश की रक्षा की। उस समय उनकी साँसें रुकती जा रही थीं और नाड़ी का चलना भी बंद हो रहा था, किंतु उन्होंने दुश्मनों की तरफ़ बढ़ते अपने कदमों को नहीं रोका। इस प्रकार वे दुश्मनों से लड़ते-लड़ते देश पर शहीद हो गए।

प्रश्न 5.
‘जीत का जश्न इस जश्न के बाद है’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि अपने देश पर मर-मिटने की खुशी से बढ़कर कोई खुशी नहीं है। युद्ध में जीत की खुशी तो बाद में मिलती है, उससे पहले सैनिक अपने आपको देश पर न्योछावर कर देता है। उसके लिए जीत की खुशी उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती, जितनी देश पर अपना बलिदान देने की होती है।

प्रश्न 6.
सैनिकों ने किन हाथों को तोड़ने की बात कही है?
उत्तर :
सैनिकों ने अपने देश पर आक्रमण करने वाले दुश्मन के हाथों को तोड़ने की बात कही है। वे देश पर बुरी नज़र रखने वाले दुश्मन के उन हाथों को तोड़ देना चाहते हैं, जो हमारे देश को हानि पहुँचाने के लिए उठते हैं। वे चाहते हैं कि देशवासी देश पर हमला करने वाले दुश्मनों का डटकर मुकाबला करें और उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दें।

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प्रश्न 7.
इस गीत से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
यह एक देशभक्तिपूर्ण गीत है। इस गीत से हमें अपने देश पर मर-मिटने की प्रेरणा मिलती है। गीतकार देशवासियों में देश पर सर्वस्व न्योछावर करने का भाव पैदा करना चाहता है। यह गीत हमें संकट के समय देश पर अपने आपको कुर्बान कर देने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 8.
इस गीत के माध्यम से कवि ने किसका आह्वान किया है ? और क्यों?
उत्तर :
इस गीत के माध्यम से कवि ने नवयुवकों का आह्वान किया है। कवि नवयुवकों का आह्वान करते हुए कहता है कि उन्हें देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसा समय कभी-कभी मिलता है। उन्हें अपनी जवानी देश के लिए कुर्बान कर देनी चाहिए; देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग देना चाहिए।

प्रश्न 9.
कवि ने देशवासियों को राम-लक्ष्मण कहकर क्या संदेश देना चाहा है ?
उत्तर :
कवि ने देशवासियों को राम-लक्ष्मण कहकर उनके आत्मविश्वास व वीरता को जगाने का प्रयास किया है। वह उनसे कहता है कि जिस प्रकार सीता के मान-सम्मान को कलंकित करने वाले रावण को श्रीराम ने मार डाला था, उसी प्रकार देशवासियो! तुम भी अपनी मातृभूमि पर बुरी नज़र रखने वाले शत्रुओं पर टूट पड़ो और तुम उनका पूर्णतः विनाश कर दो।

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प्रश्न 10.
कवि देशवासियों के सम्मुख यह गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ क्यों गाता है?
उत्तर :
कवि अपने देशवासियों को सैनिकों के बलिदानों से अवगत करवाना चाहता है। वह लोगों की वीरता और पौरुष को ललकारते हुए उन्हें देश पर मर-मिटने के लिए प्रोत्साहित करता है। वह अपने इस गीत के द्वारा देशवासियों के हृदय में देशभक्ति की लौ जलाना चाहता है। वह उन्हें उनकी आन का हवाला देते हुए सैनिकों की भाँति कुछ करने तथा देश के लिए मर-मिटने को तैयार रहने की बात करता है।

प्रश्न 11.
‘कर चले हम फ़िदा’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में कवि ने देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने वाले वीर सैनिकों के हृदय की आवाज़ को अभिव्यक्ति प्रदान की है। सैनिक अपने देश की आन, बान, शान के लिए मर मिटते हैं। वे मरते दम तक अपने देश की रक्षा करते हैं। मरते-मरते भी वे देशवासियों का आह्वान करते हुए उन्हें कहते हैं कि उनके बलिदान के बाद भी देश पर मर-मिटने वालों का काफ़िला रुकना नहीं चाहिए। देश पर आक्रमण करने वाले दुश्मनों का नाश करने के लिए देशवासियों को सदा तैयार रहना चाहिए और हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान दे देना चाहिए।

कर चले हम फ़िदा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – कैफ़ी आज़मी का जन्म 19 जनवरी सन 1919 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के मजमां नामक गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम अतहर हुसैन रिज़वी था। बाद में ये कैफ़ी आज़मी के नाम से प्रसिद्ध हुए। कैफ़ी आज़मी का परिवार कलाकारों का परिवार था। इनके तीनों बड़े भाई भी शायर थे। इनकी पत्नी शौकत आज़मी और बेटी शबाना आजमी प्रसिद्ध अभिनेत्रियाँ हैं। कैफ़ी आज़मी को फ़िल्मी दुनिया में काफ़ी नाम और प्रसिद्धि मिली। इनकी साहित्य सेवा के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। 10 मई सन 2002 को इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – कैफ़ी आज़मी युवावस्था से ही प्रसिद्ध शायर थे। उन्हें मुशायरों में अपनी रचनाओं पर खूब वाहवाही मिलती थी। इन्होंने कविता संग्रह के साथ-साथ अनेक फ़िल्मी गीत लिखे हैं। इनकी रचनाओं में जहाँ एक ओर सामाजिक और राजनैतिक जागरूकता हैं, वहीं हृदय की कोमलता भी है। कैफ़ी आज़मी के पाँच कविता संग्रह ‘झंकार’, ‘आखिर-ए-शब’, ‘आवारा सजदे’, ‘सरमाया’ और फ़िल्मी गीतों का संग्रह ‘मेरी आवाज़ सुनो’ प्रकाशित हुए। इनके द्वारा लिखे गीत आज पर भी मधुर और कर्णप्रिय लगते हैं।

भाषा-शैली – कैफ़ी आज़मी मूलत: उर्दू के शायर हैं। अत: इनकी भाषा में उर्दू और फ़ारसी के शब्दों का होना स्वाभाविक है। इसके साथ।
इसमें खड़ी बोली के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग मिलता है। इनकी भाषा में संगीतात्मकता, लयात्मकता तथा रोचकता विद्यमान है। भाषा। की मार्मिकता के कारण इनकी रचनाएँ सीधे हृदय को स्पर्श करने वाली हैं। इनकी भाषा की चित्रात्मकता, प्रभावोत्पादकता तथा भावानुकूलता द्रष्टव्य है। इनका एक-एक शब्द भावों को पूर्ण रूप से व्यक्त करने में सक्षम है। कैफ़ी आज़मी की शैली रोमांटिक, उद्बोधनात्मक तथा व्यंग्यपूर्ण है।

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गीत का सार :

कर चले हम फ़िदा’ कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखित एक देशभक्तिपूर्ण गीत है। इस गीत में उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपना बलिदान देने वाले सैनिकों के हृदय की आवाज़ को सुंदर अभिव्यक्ति दी है। इस गीत में सैनिकों ने देशवासियों को भी देश पर मर-मिटने की प्रेरणा दी है। सन 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखे इस गीत में सैनिक कहते हैं कि वे तो देश की रक्षा करते हुए अपना बलिदान देकर इस संसार से जा रहे हैं। अब देश की रक्षा का दायित्व देशवासियों का है। सैनिक बताते हैं कि दुश्मन से लड़ते-लड़ते जब उनकी मृत्यु समीप थी, तो भी उन्होंने दुश्मनों को खदेड़ना जारी रखा।

उन्होंने देश की शान को बचाए रखने के लिए अपना बलिदान दे दिया। नवयुवकों का आह्वान करते हुए सैनिक कहते हैं कि देश पर अपने प्राणों को न्योछावर करने का अवसर कभी-कभी ही आता है। अत: नवयुवकों को अपनी जवानी को देश की रक्षा में लगा देना चाहिए। सैनिकों की इच्छा है कि उनके शहीद होने के बाद भी देश पर बलिदान होने का सिलसिला निरंतर चलते रहना चाहिए। देश पर कुर्बान होने की खुशी जीत से भी बढ़कर है। अतः देशवासियों को मौत की परवाह न करते हुए देश की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए।

सैनिक देशवासियों को उद्बोधित करते हुए कहते हैं कि दुश्मनरूपी रावण को रोकने के लिए उन्हें अपने खून से लक्ष्मण-रेखा खींचनी होगी। सीता के समान पवित्र भारत-भूमि की तरफ बढ़ने वाले प्रत्येक हाथ को तोड़ डालना होगा। उन्होंने अपने आपको देश पर बलिदान कर दिया है, अब ऐसी ही अपेक्षा उन्हें अपने देशवासियों से भी है। अतः वे देश की रक्षा का भार देशवासियों पर छोड़कर इस संसार से जा रहे हैं।

सप्रसंग व्याख्या – 

1. कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साधियो
साँस थमती गई, नब्त्र जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शब्दार्थ : फ़िदा – न्योछावर। जानो-तन – प्राण और शरीर। हवाले – सुपुर्द। वतन – देश। थमना – रुकना। नब्ज – नाड़ी। गम – दुख।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध गीतकार कैफ़ी आज़मी के गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं। यह एक देशभक्तिपूर्ण गीत है। इसमें उन्होंने देश पर प्राणों को न्योछावर करने वाले सैनिकों के माध्यम से देशवासियों को देश पर मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक कहते हैं कि वे अपने शरीर और प्राणों को देश पर न्योछावर करके मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। अब देश की रक्षा का भार देशवासियों के कंधों पर है। दुश्मन ने आक्रमण किया, तो उन्होंने मरते दम तक उनका मुकाबला किया है। जब उनकी साँसें रुकती जा रही थी और नाड़ी का चलना बंद होता जा रहा था, तब भी उन्होंने दुश्मनों को पीछे धकेलने का कार्य जारी रखा।

सैनिक गर्व से कहते हैं कि देश की रक्षा करते हए प्राणों को न्योछावर करने का उन्हें कोई दुख नहीं है। उन्हें इस बात की खुशी है कि उन्होंने देश के मान-सम्मान के प्रतीक हिमालय को झुकने नहीं दिया। सैनिक पुनः कहते हैं कि उन्होंने अपने अंतिम समय में भी दुश्मनों का वीरता से मुकाबला किया। अब वे देश की रक्षा का भार अपने देशवासियों पर छोड़कर इस संसार से जा रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

2. जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इशक दोनों को रुख्वा करे
वो जबानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ : जिंदा – जीवित। मगर – लेकिन। जान – प्राण। रुत – मौसम। रोज़ – प्रतिदिन । हुस्न – सुंदरता। इश्क – प्रेम। रुस्वा – बदनाम। खू – खून।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखित गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं। इस गीत में उन्होंने सैनिकों के बलिदान के माध्यम से देशवासियों को अपने देश पर मर-मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक कहते हैं कि जीवन में आनंद लेने का समय तो बार-बार आता है, किंतु अपने देश पर प्राणों को न्योछावर करने का समय कभी-कभी ही आता है। जब भी देश पर आक्रमण हो, तो नवयुवकों को प्रेम और सुंदरता त्यागकर देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देना चाहिए। इसी में भी उसके यौवन की सार्थकता है। सैनिक पुनः नवयुवकों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि आज धरती दुलहन के समान सजी हुई है। जिस प्रकार स्वयंवर में दुलहन को प्राप्त करने के लिए राजा अपनी जान की बाजी लगा देते हैं, उसी प्रकार आज नवयुवकों को अपनी धरतीरूपी दुलहन के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने की ज़रूरत है। अब वे देश की रक्षा का दायित्व देशवासियों पर छोड़कर इस संसार से जा रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

3. राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्तरे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ कुर्बानियाँ – बलिदान। वीरान – सुनसान। काफ़िला – यात्रियों का समूह। जश्न – खुशी मनाना। सर से कफ़न बाँधना – मृत्यु की परवाह न करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं। इस गीत में उन्होंने सैनिकों के बलिदान
के माध्यम से देशवासियों को देश पर मर-मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक देशवासियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि वे देश पर अपने प्राणों का बलिदान करके जा रहे हैं, लेकिन उनके बाद भी यह सिलसिला चलता रहना चाहिए। जब-जब इस देश पर दुश्मनों का आक्रमण हो, तब-तब देशवासियों को बलिदान देने का क्रम बढ़ाना चाहिए। युद्ध में जीत की खुशी मिलना बाद की बात है, उससे पहले अपने आपको हँसते-हँसते देश पर बलिदान करने की खुशी होती है। उस समय जिंदगी मौत से गले मिलती प्रतीत होती है। सैनिक पुनः देशवासियों से कहते हैं कि उन्हें अपने प्राणों की परवाह न करते हुए देश की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। वे अब इस देश को उनके सुपुर्द करके इस संसार से जा रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

4. खींच दो अपने खं से जमीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ : खू – खून। जमीं – ज़मीन, धरती। लकीर – रेखा। तरफ़ – ओर। अगर – यदि। दामन – आँचल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित गीत ‘कर चले हम फ़िदा’ से ली गई हैं । इस गीत में उन्होंने सैनिकों के बलिदान के माध्यम से देशवासियों को देश पर मर-मिटने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि अब उन्हें ही देश की रक्षा करनी है। यदि कोई दुश्मनरूपी रावण हमारे देश की ओर आगे बढ़े, तो तुम्हें उसे रोकने के लिए अपने खून से लक्ष्मण-रेखा खींचनी होगी। अपने देश की ओर बढ़ने वाले प्रत्येक हाथ को तोड़ देना होगा। हमारी भारत भूमि सीता के दामन के समान पवित्र है। यदि कोई दुश्मन उसे अपवित्र करने का प्रयास करे, तो तुम्हें उस दुश्मन को नष्ट करना होगा। सैनिक देशवासियों से कहते हैं कि इस देश के राम और लक्ष्मण तुम ही हो। तुम्हें ही अब इस देश की रक्षा करनी है, क्योंकि अब वे इस देश की रक्षा का सारा दायित्व उन्हें सौंपकर इस संसार से जा रहे हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

सभी वर्गों का उच्चारण मुख से होता है, जिसमें-कण्ठ, जिह्वा, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ एवं नासिका का योगदान होता है। इन उच्चारण-स्थानों से पूर्व ‘वर्ण’ के विषय में आवश्यक ज्ञान अपेक्षित है।

वर्ण – वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके टुकड़े न हो सकें। जैसे – क्, ख्, ग् आदि। इनके टुकड़े नहीं किये जा सकते। इन्हें अक्षर भी कहते हैं।
वर्ण भेद – संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के माने गये हैं। (क) स्वर वर्ण, इन्हें अच् भी कहते हैं। (ख) व्यञ्जन वर्ण, इन्हें हल भी कहा जाता है।
स्वर वर्ण-जिन वर्णों का उच्चारण करने के लिये अन्य किसी वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती, उन्हें स्वर वर्ण कहते हैं। स्वर 13 होते हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, ए, ऐ, ओ, औ।
स्वरों का वर्गीकरण उच्चारण काल अथवा मात्रा के आधार पर स्वर तीन प्रकार के माने गये हैं –
1. ह्रस्व स्वर
2. दीर्घ स्वर
3. प्लुत स्वर।

1. ह्रस्व स्वर-जिन स्वरों के उच्चारण में केवल एक मात्रा का समय लगे अर्थात कम से कम समय लगे, उन्हें ह्रस्व , स्वर कहते हैं। जैसे-अ, इ, उ, ऋ, ल। इनकी संख्या 5 है। इनमें कोई अन्य स्वर या वर्ण मिश्रित नहीं होता, इन्हीं को मूल स्वर भी कहते हैं।

2. दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण काल में ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा दोगुना समय लगे अर्थात दो मात्राओं का समय लगे, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। जैसे-आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ओ, ऐ, औ। इनकी संख्या 8 है।

3. प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। इनमें तीन मात्राओं का उच्चारण काल होता है। इनके उच्चारण काल में दो मात्राओं से अधिक समय लगता है। प्लुत का ज्ञान कराने के लिए ३ अंक स्वर के आगे लगाते हैं। इसका प्रयोग अधिकतर वैदिक संस्कृत में होता है। जैसे – अ ३, इ ३, उ ३, ऋ ३, ल ३, ए ३, ओ ३, ऐ ३, औ ३।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

(ख) व्यञ्जन – व्यञ्जन उन्हें कहते हैं, जो बिना स्वर की सहायता के उच्चारित नहीं किये जाते हैं। व्यञ्जन का उच्चारण काल अर्ध मात्रा काल है। जिस व्यञ्जन में स्वर का योग नहीं होता उसमें हलन्त का चिह्न लगाते हैं।
क् ख् ग् घ् ड्
च छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् द् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
य र ल व्
श् ष् स् ह
ऊपर लिखे गये ये सभी व्यञ्जन स्वर रहित हैं। इनके स्वर रहित रूप को समझने की दृष्टि से इनमें हल का चिह्न लगाया गया है। जब किसी व्यञ्जन का किसी स्वर के साथ मेल करते हैं, तब हल् का चिह्न हटा देते हैं। जैसे : क् + अ = क।
व्यञ्जन के भेद – उच्चारण की भिन्नता के आधार पर व्यञ्जनों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है –

  1. स्पर्श
  2. अन्तःस्थ
  3. ऊष्म।

1. स्पर्श – ‘कादयो मावसाना: स्पर्शाः’ अर्थात जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करने में जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श करती है और वायु कुछ क्षण के लिए रुककर झटके से निकलती है, वे स्पर्श संज्ञक व्यञ्जन कहलाते हैं। क् से म् पर्यन्त व्यञ्जन स्पर्श संज्ञक हैं। इनकी संख्या 25 है, जो निम्न पाँच वर्गों में विभक्त हैं –

1. क वर्ग क् ख् ग् घ् डू.
2. च वर्ग च् छ् ज् झ् ञ्
3. ट वर्ग ट् ठ् ड् द. ण
4. त वर्ग त् थ द ध न
5. प वर्ग प् फ् ब् भ् म्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

2. अन्तःस्थ – जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्तःस्थ व्यञ्जन कहलाते हैं। ‘यणोऽन्तःस्थाः ‘ अर्थात् यण (य, व, र, ल) अन्त:स्थ व्यञ्जन हैं। इनकी संख्या चार है।

3. ऊष्म – जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को धीरे-धीरे रोककर रगड़ के साथ निकालकर किया जाता है, वे ऊष्म व्यञ्जन कहे जाते हैं। ‘शल ऊष्माणः’ अर्थात् शल्-श, ष, स्, ह ऊष्म संज्ञक व्यञ्जन हैं। इनकी संख्या भी चार है।
इनके अतिरिक्त तीन व्यञ्जन और हैं, जिन्हें संयुक्त व्यञ्जन कहा जाता है, क्योंकि ये दो-दो व्यञ्जनों के मूल से बनते हैं। जैसे –

1. क् + ष् = क्ष्
2. त् + र् = त्र
3. ज् + ञ् = ज्ञ

अयोगवाह-वर्ण

1. अनुस्वार – स्वर के ऊपर जो बिन्दु (.) लगाया जाता है, उसे अनुस्वार कहते हैं। स्वर के बाद न् अथवा म् के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया जाता है। यथा –
(i) इयम् गच्छति-इयं गच्छति, (ii) यशान् + सि = यशांसि। इसके अन्य उदाहरण हैं-अंश, अवतंस, हंस, धनूंषि, बृंहितम, सिंह, हिंसक आदि।

2. अनुनासिक – बू, , डू. ण, न; ये पाँच व्यञ्जन अनुनासिक माने जाते हैं। इन्हें अर्द्ध अनुस्वार भी कहा जाता है, जिसे चन्द्रबिन्दु (ँ) के नाम से भी जाना जाता है। यथा-कहाँ, वहाँ, यहाँ, पाँच आदि।

3. विसर्ग स्वरों के आगे आने वाले दो बिन्दुओं (:) को विसर्ग कहते हैं। विसर्ग का उच्चारण आधे ह की तरह किया जाता है। इसका प्रयोग किसी स्वर के बाद किया जाता है। यह र और स् के स्थान पर भी आता है। जैसे – रामः, भानुः इत्यादि।

4. जिह्वामूलीय – (क, ख) इसका प्रयोग क् एवं ख से पहले किया जाता है अर्थात क् एवं ख् से पूर्व अर्द्ध विसर्ग सदृश चिह्न को जिह्वामूलीय कहते हैं। जैसे – सः करोति (क्)। सः खादति (ख)।

5. उपध्मानीय – (पफ) इसका प्रयोग प् एवं फ से पूर्व अर्द्ध विसर्ग के समान किया जाता है। जैसे-कः पचति (प्)। वृक्षः फलति। ( फ्)।

क वर्ग से प वर्ग तक पाँचों वर्गों के प्रथम और द्वितीय अक्षरों (क, ख, च, छ आदि) तथा ऊष्म वर्णों (श, ष, स, ह) को ‘परुष’ व्यञ्जन और शेष वर्गों (ग घ आदि) को ‘कोमल’ व्यञ्जन कहते हैं। व्यञ्जनों के दो प्रकार हैं- अल्पप्राण तथा महाप्राण। पाँचों वर्गों के पहले और तीसरे वर्ग (क, ग, च, ज आदि) ‘अल्पप्राण’ हैं तथा दूसरे और चौथे वर्ण (ख, घ, छ, झ) ‘महाप्राण’ हैं। वर्गों के पञ्चम वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म्) अनुनासिक व्यञ्जन कहलाते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

वर्णों के उच्चारण स्थान –

संस्कृत वर्णमाला में पाणिनीय शिक्षा (व्याकरण) के अनुसार 63 वर्ण हैं। उन सभी वर्गों के उच्चारण के लिए आठ स्थान हैं। जो ये हैं – (1) उर, (2) कण्ठ, (3) शिर (मूर्धा), (4) जिह्वामूल, (5) दन्त, (6) नासिका, (7) ओष्ठ और (8) तालु।

उन उच्चारण स्थानों का विभाजन निम्न रूप में किया जाता है –
1. कण्ठ – ‘अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः’ अर्थात् अकार (अ, आ), क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ्) और विसर्ग का उच्चारण स्थान कण्ठ होता है। कण्ठ से उच्चारण किये गये वर्ण ‘कण्ठ्य’ कहलाते हैं।)

2. तालु – इचुयशानां तालु’ अर्थात् इ, ई, च वर्ग (च, छ, त्, झ, ञ्), य् और श् का उच्चारण स्थान तालु है। तालु से उच्चारित वर्ण ‘तालव्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करने में जिह्वा तालु (दाँतों के मूल से थोड़ा ऊपर) का स्पर्श करती है।

3. मूर्धा – ‘ऋटुरषाणां मूर्धा’ अर्थात् ऋ, ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, द, ण), र और ष का उच्चारण स्थान मूर्धा है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘मूर्धन्य’ कहे जाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण जिह्वा मूर्धा (तालु से भी ऊपर गहरे गड्ढेनुमा भाग) का स्पर्श करती है।

4. दन्त – ‘लुतुलसानां दन्ताः ‘अर्थात् लु, त वर्ग (त्, थ, द्, ध्, न्), ल और स् का उच्चारण स्थान दन्त होता है। दन्तर स्थान से उच्चारित वर्ण ‘दन्त्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करने में जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती है।

5. ओष्ठ – ‘उपूपध्मानीयानामोष्ठौ’ अर्थात् उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्; ब्, भ, म्) तथा उपध्मानीय ( प, फ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ होते हैं। ये वर्ण ‘ओष्ठ्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करते समय दोनों ओष्ठ आपस में मिलते हैं।

6. नासिक – (i) ‘जमङ्गनानां नासिका च’ अर्थात् ज, म्, ङ, ण, न् तथा अनुस्वार का उच्चारण स्थान नासिका है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘नासिक्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों के पूर्वोक्त अपने-अपने वर्ग के अनुसार कण्ठादि उच्चारण स्थान भी होते हैं। जैसे – क वर्ग के ‘ङ्’ का उच्चारण स्थान तालु और नासिका, ट वर्ग के ‘ण’ का मूर्धा और नासिका, त वर्ग के ‘न्’ का दन्त और नासिका तथा प वर्ग के ‘म्’ का ओष्ठ और नासिका होता है।

(ii) नासिकाऽनुस्वारस्यं – अर्थात् अनुस्वार (-) का उच्चारण स्थान नासिका (नाक) होती है।

7. कण्ठतालु – ‘एदैतोः कण्ठतालु’ अर्थात् ए तथा ऐ का उच्चारण स्थान कण्ठतालु होता है। अतः ये वर्ण ‘कण्ठतालव्य’ कहे जाते हैं। अ, इ के संयोग से ए तथा अ, ए के संयोग से ऐ बनता है। अतः ए तथा ऐ के उच्चारण में कण्ठ तथा तालु दोनों का सहयोग लिया जाता है।

8. कण्ठोष्ठ ‘ओदौतोः कण्ठोष्ठम्’ अर्थात् ओ तथा औ का उच्चारण स्थान कण्ठोष्ठ होता है। अ + उ = ओ तथा अ + ओ = औ बनते हैं। अतः इनके उच्चारण में कण्ठ तथा ओष्ठ दोनों का उपयोग किया जाता है। ये वर्ण ‘कण्ठोष्ठ्य’ कहलाते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

9. दन्तोष्ठ ‘वकारस्य दन्तोष्ठम्’ अर्थात् व का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठ होता है। इस कारण ‘व”दन्तोष्ठ्य’ कहलाता है। इसका उच्चारण करते समय जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती है तथा ओष्ठ भी कुछ मुड़ते हैं। अतः दोनों के सहयोग से वकार का उच्चारण किया जाता है।

10. जिह्वामूल – ‘जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम्’ अर्थात् जिह्वामूलीय (क-ख) का उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है। उपर्युक्त वर्णोच्चारण स्थानों को नीचे दी गई तालिका के माध्यम से सरलता से जाना जा सकता है।

वर्ण-उच्चारण-स्थान तालिका

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि 1

प्रत्याहार –

1. अक् अ इ उ ऋ लु।
2. अच् अ इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ।
3. अण् अ इ उ
4. अट् अ इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ ह य व र।
5. अण् अ इ उ ऋ ल ए ओ ए औ ह य् व् र् ल।
6. अम् अ इ उ ऋ ल ए ओ ए औ ह य् व् र् ल् ब् भ् डू. ण न्।
7. अश् अ इ उ ल ए ओ ऐ औ ह य व् र् ल् ज् म् डू ण् न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् इन्।
8. अल अ इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ ह य् व् र् ल् ब् म् डू. ण् न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् म् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् श् ष् स्।
9. इक्इ उ ऋ ल।
10. इच् इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ।
11. इण् इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ ह य व.र ल।
12. उक् उ ऋ ल।
13. एडू. ए ओ।
14. एच ए ओ ऐ औ।
15. ऐच् ऐ और
16. खय् ख् फ् छ् ठ् थ् च् ट् त् क् ।
17. खर् ख् फ् छ् ठ् थ् च् ट् त् क् प् श् ष् स्।
18. ङम् ड्. ण न्।
19. चय् च् ट् त् क्
20. चर् च् ट् त् क् य श् ष् स्।
21. छव च् ट् त्।
22. जश् ज् ब् ग् ड् द्।
23. भय् झ भ घ ढ ध ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् ठ् घ् च ट् त् क् ।
24. झर् झ म् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् घ् त् थ् च् त् ट् क् प् श् ष् स्।
25. झल झ भ् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् श् ष् स् ।
26. भश् झ भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द्।
27. भष् झ् भ् थ् द् धु
28. बश् ब् ग् ड् द्
29. मय् म् ड्. ण् न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प्।
30. य य् व् र् ल् ञ् म् इ. ण् न् झ्।
31. यण् य् व् र् ल।
32. यम् य् व् र् ल् ज् म् ड्. ण न्।
33. यय् य् व् र् ल् ब् म् ड्. ण् न् झ् भ् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् प् छ् ठ् थ् च् ट् त् क्।
34. यर् य् व् र् ल् ज् म् ड्. ण् न् क्ष् घ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् ठ् थ् च् त् क प् श् ष् स्।
35. रल र् ल् ब् म् ड्. ण् न् झ् भ् घ् ढ् ध् ज् व् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् य् श् ष् स् ह्।
36. वल् व् र् ल् ज् म् ड्. ण् न् झ् भ् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् श ष स ह्।
37. वश व् र् ल् ब् भ् ड्. ण न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द्।
38. शर् श् ष् स्।
39. शल् श् ष् स् ह्।
40. र र् ल।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रयत्न

वर्गों के उच्चारण में जो चेष्टा करनी पड़ती है, उसे प्रयत्न कहते हैं। ये प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं।

1. आभ्यान्तर प्रयत्न।
2. बाह्य प्रयत्न।

1. आभ्यान्तर प्रयत्न – मुख के भीतरी अवयवों द्वारा किया गया यल आभ्यान्तर प्रयत्न कहलाता है। यह पाँच प्रकार का होता है –
(i) स्पृष्ट – इसका अर्थ है, उच्चारण के समय जीभ द्वारा मुख के अन्दर विभिन्न उच्चारण स्थानों का किया गया स्पर्श इस प्रयत्न द्वारा सभी 25 स्पर्श व्यञ्जन क् से म् तक उच्चारित होते हैं। पाँचों वर्गों के अक्षरों का स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
(ii) ईषत्स्पष्ट अर्थात् थोड़ा स्पर्श। जब जीभ मुख के अन्दर तालु आदि उच्चारण स्थानों का कम स्पर्श करती है, तो इस प्रयत्न को ईषत्स्पृष्ट प्रयत्न कहा जाता है। अन्त:स्थ व्यञ्जन वर्णों (य् र् ल व) का ईशत्स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
(iii) विवृत-इसका अर्थ है, उच्चारण के समय कण्ठ का खुलना। जब विभिन्न उच्चारणों में कण्ठ-विवर खुलता है, तो इस प्रयत्न को विवृत प्रयत्न कहा जाता है। सभी स्वर वर्णों का विवृत प्रयत्न होता है।
(iv) ईषद् विवृत-जब वर्गों के उच्चारण काल में कण्ठ पूरी तरह न खुलकर स्वल्प (थोड़ा सा) खुलता है तब ऐसे प्रयत्न को ईषद् विवृत प्रयत्न कहा जाता है। ऊष्म वर्णों (श् ष् स् ह) का ईषद् विवृत प्रयत्न होता है।
(v) संवत-संवृत का अर्थ है-बन्द। ह्रस्व अकार का उच्चारण संवृत-प्रयल है।

2. बाह्य प्रयत्न वर्गों के उच्चारण में जिस प्रकार मुख के अन्दर प्रयत्न अथवा चेष्टाएँ होती हैं, उसी प्रकार कुछ चेष्टाएँ बाहर से भी होती हैं, जिन्हें हम बाह्य प्रयत्न कहते हैं। ये निम्न हैं.
(i) विवार – वर्ण के उच्चारण के समय मुख के खुलने को विवार कहा जाता है। वर्गों के पहले तथा दूसरे वर्ण एवं श् प् स् विवार प्रयत्न द्वारा उच्चारित होते हैं।
(ii) संवार – जब वर्ण के उच्चारण में मुख कुछ संकुचित होता है, तब ऐसे प्रयत्न को संवार प्रयत्न कहा जाता है। इसके अन्तर्गत सभी वर्गों के तीसरे, चौथे तथा पाँचवें वर्ग एवं अन्त:स्थ व्यञ्जन आते हैं।
(ii) श्वास – जिनके उच्चारण में श्वास की गति विशेष रूप से प्रभावित होती है, उन्हें श्वास वर्ग की संज्ञा दी जाती है, इसके अन्तर्गत सभी वर्गों के पहले, दूसरे तथा ऊष्म वर्ण आते हैं।
(iv) नाद वर्णों के उच्चारण में विशेष प्रकार की अव्यक्त ध्वनि को नाद कहते हैं, किसी भी वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवें वर्ण तथा शल वर्ण (श ष स ह) नाद प्रयत्न द्वारा उच्चारित होते हैं।
(v) घोष – उच्चारण में होने वाले विशेष शब्द को घोष कहा जाता है। वर्गों के तीसरे, चौथे व पाँचवें वर्ण घोष प्रयत्न द्वारा बोले जाते हैं।
(vi) अघोष – जिन वर्गों के उच्चारण में घोष ध्वनि नहीं होती, उन्हें अघोष प्रयत्ल द्वारा उच्चारित किया जाता है। इनमें वर्गों के पहले, दूसरे तथा अन्त:स्थ व्यञ्जन आते हैं।
(vii) अल्पप्राण – जिन वर्णों के उच्चारण में कम मात्रा में वायु मुख के भीतरी भाग से बाहर निकलती है, उन वर्गों को अल्पप्राण वर्ण कहा जाता है। वर्गों के पहले, तीसरे और पाँचवें वर्ण अल्पप्राण कहलाते हैं।
(viii) महाप्राण – जिन वर्णों के उच्चारण में अधिक प्राणवायु का उपयोग होता है, ऐसे वर्णों को महाप्राण वर्ण कहा जाता है। वर्गों के दूसरे और चौथे वर्ण महाप्राण कहलाते हैं।
(ix) उदात्त – तालु आदि से उच्चारण में अधिक प्राणवायु का उपयोग होता है, ऐसे वर्णों को महाप्राण वर्ण कहा जाता है। वर्गों के दूसरे और चौथे वर्ण महाप्राण कहलाते हैं।
(x) अनुदात्त – तालु आदि उच्चारण स्थानों के निचले भाग से उच्चारित स्वर-वर्णों को अनुदात्त प्रयत्न वाला कहा जाता है।
(xi) स्वरित – जब वायु तालु आदि उच्चारण स्थलों के मध्य भाग से निकलती है, तो ऐसे प्रयत्न स्वरित प्रयत्न कहे जाते हैं।
सवर्ण-जिन वर्णों के उच्चारण स्थान तथा प्रयत्न दोनों एक हों उन वर्णों को सवर्ण अथवा समान वर्ण कहते हैं असमान वर्ण जब वणों के उच्चारण स्थान या प्रयत्न भिन्न-भिन्न हों, तो ऐसे वर्गों को असमान वर्ण कहते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

अभ्यास 1

प्रश्न 1.
‘ग्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति। (‘ग्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है.)
(अ) तालु
(ब) नासिका
(स) कण्ठः
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(स) कण्ठः

प्रश्न 2.
‘द्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति – (‘द्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) कण्ठः
(ब) तालुः
(स) दन्तः
(द) मूर्धाः
उत्तर :
(स) दन्तः

प्रश्न 3.
अनुस्वारस्य उच्चारणस्थानं भवति-(अनुस्वार का उच्चारण स्थान होता है-)
(अ) नासिका
(ब) कण्ठः
(स) ओष्ठौः
(द) दन्तः।
उत्तर :
(अ) नासिका

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 4.
‘छ’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति (छ’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) कण्ठः
(ब) तालु
(स) मूर्धा
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) कण्ठः

प्रश्न 5.
‘ड’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ड्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है )
(अ) मूर्धा
(ब) कण्ठतालु
(स) तालु
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) मूर्धा

प्रश्न 6.
हकारस्य उच्चारणस्थानं भवति-(हकार का उच्चारण स्थान होता है)
(अ) कण्ठः
(ब) तालु
(स) मूर्धा
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) कण्ठः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 7.
‘ष’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ए’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) तालु
(ब) मूर्धा
(स) कण्ठः
(द) ओष्ठौ
उत्तर :
(ब) मूर्धा

प्रश्न 8.
‘जश’ प्रत्याहारान्तर्गत परिगणिताः वर्णाः सन्ति-(‘जश्’ प्रत्याहार में परिगणित होने वाले वर्ण हैं-)
(अ) ह् य् व् र् ल्
(ब) क् प् श् ष् स्
(स) ज् ब् ग् ड् द्
(द) झ् भ् घ् द ध्।
उत्तर :
(स) ज् ब् ग् ड् द्

प्रश्न 9.
‘एच’ प्रत्याहारान्र्तगताः वर्णाः सन्ति-(‘एच’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं)
(अ) अ, इ, उ, ऋ, लु
(ब) ए, ओ, ऐ, औ
(स) ए, ओ
(द) ऐ, औ।
उत्तर :
(ब) ए, ओ, ऐ, औ

प्रश्न 10.
‘अक्’ प्रत्याहारन्तर्गता. वर्णाः सन्ति-(‘अक्’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं –
(अ) अ, इ, उ ऋ, ल
(ब) अ, इ उ
(स) इ, उ, ऋ, ल
(द) अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ, ए।
उत्तर :
(अ) अ, इ, उ ऋ, ल

अभ्यास 2

प्रश्न 1.
‘शल्’ प्रत्याहारान्तर्गताः वर्णाः सन्ति-(‘शल्’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं )
(अ) श् ष् स्
(ब) श् ष् स् ह्
(स) क् प् श् ष् स् ह
(द) ज् ब् ग् ड् द्।
उत्तर :
(ब) श् ष् स् ह्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 2.
‘यण’ प्रत्याहारान्तर्गताः वर्णाः सन्ति-(‘यण’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं)
(अ) ह य् व् र् ल्
(ब) श् ष स ह
(स) य् व् र् ल्
(द) ज् द् ग् ड् द्।
उत्तर :
(स) य् व् र् ल्

प्रश्न 3.
‘इक्’ प्रत्याहारान्तर्गताः वर्णाः सन्ति-(‘इक्’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं)
(अ) अ, इ, उ,
(ब) अ, इ, उ, ऋ, लु
(स) ए, ओ, ऐ, औ
(द) इ, उ, ऋ, ल।
उत्तर :
(द) इ, उ, ऋ, ल।

प्रश्न 4.
‘हल’ प्रत्याहारास्य वर्णाः कथ्यन्ते-(‘हल्’ प्रत्याहार के वर्गों को कहते हैं-)
(अ) स्वर
(ब) स्पर्श
(स) व्यञ्जन
(द) ऊष्म।
उत्तर :
(स) व्यञ्जन

प्रश्न 5.
स्पर्शवर्णानां आभ्यान्तरप्रयत्नं भवति-(स्पर्श वर्णों का आभ्यान्तर प्रयत्न होता है-)
(अ) विवृत
(ब) संवृत
(स) स्पृष्ट
(द) ईषत् स्पृष्ट।
उत्तर :
(स) स्पृष्ट

प्रश्न 6.
महाप्राणप्रयत्नः केषां वर्णानां भवति-(‘महाप्राण’ प्रयत्न वाले कौन-से वर्ण हैं-)
(अ) शल्
(ब) यण
(स) अच्
(द) जश्।
उत्तर :
(अ) शल्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 7.
‘घोष’ वर्णाः सन्ति – (घोष’ वर्ण हैं)
(अ) ग, घ, ड.
(ब) त, क, न
(स) य, र, त
(द) न, ड., क।
उत्तर :
(अ) ग, घ, ड.

प्रश्न 8.
‘ध्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति। (‘ध्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) ओष्ठौ
(ब) दन्ताः
(स) तालु
(द) मूर्धा।
उत्तर :
(ब) दन्ताः

प्रश्न 9.
‘थ्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘थ्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) मर्धा
(ब) ओष्ठौ
(स) कण्ठः
(द) दन्ताः
उत्तर :
(द) दन्ताः

प्रश्न 10.
‘ओ’ वर्णस्य’औ’वर्णस्य च उच्चारणस्थानम अस्ति-(ओ तथा औ वर्णों का उच्चारण स्थान है )
(अ) कण्ठःतालु
(ब) कण्ठनासिका
(स) कण्ठजिह्वा
(द) कण्ठोष्ठम्।
उत्तर :
(ब) कण्ठनासिका

अभ्यास 3

प्रश्न 1.
‘ब’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति (‘ब’ वर्ण का उच्चारण स्थान है)
(अ) मूर्धा
(ब) दन्ताः
(स) ओष्ठौ
(द) कण्ठः
उत्तर :
(ब) दन्ताः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 2.
‘ओ’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ओ’ वर्ण का उच्चारण स्थान है)
(अ) कण्ठोष्ठी
(ब) दन्तोष्ठौ
(स) मूर्धा
(द) दन्ताः
उत्तर :
(स) मूर्धा

प्रश्न 3.
ऐकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ऐकार’ का उच्चारण स्थान है-)
(अ) नासिका
(ब) कण्ठतालु
(स) कण्ठोष्ठौ
(द) दन्ताः।
उत्तर :
(अ) नासिका

प्रश्न 4.
ऋकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ऋकार’ का उच्चारण स्थान है)
(अ) मूर्धा
(ब) तालु
(स) कण्ठः
(द) दन्ताः।
उत्तर :
(अ) मूर्धा

प्रश्न 5.
वकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति – (‘वकार’ का उच्चारण स्थान है-)
(अ) कण्ठोष्ठौ
(ब) दन्तोष्ठी
(स) जिह्वामूल
(द) दन्ताः
उत्तर :
(अ) कण्ठोष्ठौ

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 6.
‘न्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘न्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है )
(अ) ओष्ठौ
(ब) दन्ता
(स) नासिका
(द) कण्ठः
उत्तर :
(अ) ओष्ठौ

प्रश्न 7.
‘आ’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘आ’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) दन्ताः
(ब) तालु
(स) नासिका
(द) कण्ठः
उत्तर :
(द) कण्ठः

प्रश्न 8.
‘ई’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ई’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) तालु
(ब) मूर्धा
(स) दन्ताः
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) तालु

प्रश्न 9.
रकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति – (‘रकार’ का उच्चारण स्थान है-)
(अ) तालु
(ब) मूर्धा
(स) ओष्ठौ
(द) कण्ठः
उत्तर :
(ब) मूर्धा

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 10.
लकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘लकार’ का उच्चारण स्थान है)
(अ) ओष्ठौ
(ब) दन्ताः
(स) तालु
(द) कण्ठोष्ठौ।
उत्तर :
(ब) दन्ताः

अभ्यास 4

1. तालु कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (तालु किस वर्ग का उच्चारण स्थान होता है?)
2. कण्ठः कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (कण्ठ किस वर्ग का उच्चारण स्थान होता है?)
3. मूर्धा कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (मूर्धा किस वर्ग का उच्चारण स्थान है?)
4. ओष्ठौ कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (ओष्ठ किस वर्ग के उच्चारण स्थान हैं?)
5. दन्ताः कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (दाँत किस वर्ग के उच्चारण स्थान होते हैं?)
6. नासिका केषां वर्णानाम उच्चारणस्थानं भवति? (नासिका किन वर्गों की उच्चारण स्थान होती है?)
7. उच्चारणस्थानानि कति सन्ति? (उच्चारण स्थान कितने हैं ?)
8. वर्णोच्चारणे कस्याः परमसहयोगो भवति? (वर्ण उच्चारण में किसका परम सहयोग होता है?)
9. पवर्गस्य उच्चारणस्थानं किं भवति? (प वर्ग का उच्चारण स्थान क्या है?)
10. दन्तोष्ठम् उच्चारणस्थानं कस्य वर्णस्य अस्ति? (दन्तोष्ठ किस वर्ग का उच्चारण स्थान है?)
उत्तरम् :
1. चवर्गस्य
2. कवर्गस्य
3. टवर्गस्य
4. पवर्गस्य
5. तवर्गस्य
6. ञ, म, ङ, ण, न्
7. अष्टौ
8. जिह्वायाः
9. ओष्ठौ
10. ‘व’ वर्णस्य।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

अभ्यास 5

1. प्रयत्नानि कति भवन्ति? (प्रयत्न कितने होते हैं?)
2. आभ्यान्तरप्रयत्नस्य कति भेदाः सन्ति? (आभ्यन्तर प्रयत्न के कितने भेद हैं?)
3. बाह्यप्रयत्नस्य कति भेदाः सन्ति? (बाह्य प्रयत्न के कितने भेद हैं?)
4. स्पर्शवर्णानाम् अन्य नाम किमस्ति? (स्पर्श वर्णों का दूसरा नाम क्या है?)
5. स्पर्शवर्णाः कानि-कानि सन्ति? (स्पर्श वर्ण कौन-कौन से हैं?)
6. महाप्राणाः के भवन्ति? (महाप्राण कौन हैं ?)
7. ऊष्मसंज्ञकाः वर्णा: के सन्ति? (अन्तःस्थ व्यंजन कौन हैं?)
उत्तरम् :
1. माहेश्वरसूत्रस्य
2. द्वे
3. पञ्च
4. एकादशः
5. उदितवर्णाः
6. क् ख् ग् घ् ङ् च् छ त् झ् ञ् ट ठ् ड् द ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म्
7. वर्गस्य द्वितीयचतुर्थवर्णाः
8. श् ष् स् ।

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 5 Introduction to Euclid’s Geometry

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 5 Introduction to Euclid’s Geometry Important Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Important Questions Chapter 5 Introduction to Euclid’s Geometry

Multiple Choice Questions

Question 1.
How many lines pass through one point?
(a) 0
(b) 1
(c) 5
(d) Infinite
Solution :
(d) Infinite

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 5 Introduction to Euclid’s Geometry

Question 2.
How many lines can be drawn to pass through three given points if they are not collinear?
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) Infinite
Solution :
(d) Infinite

Question 3.
A point is that which has ______ part(s)
(a) Zero
(b) One
(c) Five
(d) two
Solution :
(a) Zero

JAC Class 9 Maths Important Questions Chapter 5 Introduction to Euclid’s Geometry

Question 4.
_____ is a collection of infinite number of points.
(a) point
(b) line
(c) surface
(d) plane
Solution :
(b) line

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ?
उत्तर :
लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया, तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए, जैसे उन्हें लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था, जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसलिए वे परेशान हो गए। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखने लगे। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर :
नवाब साहब ने बहुत नज़ाकत और सलीके से खीरा काटकर, उस पर नमक-मिर्च लगाया। फिर उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाने सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्य वस्तु खाने में शर्म अनुभव करते थे।

लेखक को डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसलिए उन्होंने खीरे को केवल सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब साहब के ऐसा करने से लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे थे। वे दिखावा पसंद इनसान थे। इसी स्वभाव के कारण उन्होंने लेखक को देखकर खीरा खाना अपना अपमान समझा।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
हम लेखक के इन विचारों से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है; क्योंकि प्रत्येक कहानी के पीछे कोई-न-कोई घटना, विचार अथवा पात्र अवश्य होता है। उदाहरण के लिए लेखक की इस कहानी ‘लखनवी-अंदाज़’ को ही ले सकते हैं, जिसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने के लिए सारा ताना-बाना बुना है। इसमें लेखक के इसी विचार की प्रमुखता है। घटना के रूप में रेलयात्रा तथा पात्र के रूप में लखनवी नवाब आ जाते हैं और कहानी बन जाती है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी बन सकती है। प्रत्येक कहानी में इन सबका होना बहुत आवश्यक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 4.
उत्तर
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? हम इस निबंध को ‘अकड़-नवाब’ नाम देना चाहते हैं, क्योंकि इस पाठ के नवाब साहब अपना सारा काम अकड़ कर करते हैं। वे किसी सहयात्री से बातचीत नहीं करते। खीरे को ऐसे काटते हैं, जैसे कोई विशेष वस्तु हो। ‘खीरा आम आदमी के खाने की वस्तु है’-यह याद आते ही वे उसे खाने के स्थान पर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं।

उनकी ये सभी हरकतें इस पाठ को ‘अकड़ नवाब’ शीर्षक देने के लिए बिलकुल सही हैं। इसके अतिरिक्त लेखक ने इस निबंध का नाम ‘लखनवी अंदाज़’ रखा है, जो लखनऊ के नवाबों के जिंदगी जीने के अंदाज़ का वर्णन करता है। लखनवी अंदाज़’ के अतिरिक्त इस निबंध का नाम ‘नवाब की सनक’ हो सकता है। इस निबंध में लेखक ने एक नवाब की सनक का वर्णन किया है।

नवाब एकांत में तो आम कार्य कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के सामने आम कार्य करते समय उन्हें शर्म महसूस होती है। इसके लिए वे आम कार्य को भी खास बनाने का बेतुका प्रयत्न करते हैं। इस निबंध के अनुसार नवाब खीरे को बड़ी नज़ाकत और सलीके से खाने के लिए तैयार करता है। लेकिन नवाब उन खीरों को लेखक के सामने नहीं खाना चाहता, इसलिए केवल से कर ही खीरे को खिड़की से बाहर फेंक देता है। यह कार्य केवल सनकी लोग ही कर सकते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है? इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
(ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं ?
उत्तर :
(क) नवाब साहब ने पहले खीरों को धोया और फिर तौलिए से उन खीरों को पोंछा। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरे के सिरे काटे और उन्हें अच्छी तरह से गोदा। उसके बाद खीरों को बहुत सावधानी से छीलकर फाँकों को तौलिए पर बड़े अच्छे ढंग से सजा दिया। नवाब साहब के पास खीरा बेचने वालों के पास से ली गई नमक-मिर्च-जीरा की पुड़िया थी। नवाब साहब ने तौलिए पर रखे खीरों की फांकों पर जीरा-नमक-मिर्च छिड़का। उन खीरों की फाँकों को देखने मात्र से ही मुँह में पानी आने लगा था। इस तरह नवाब साहब ने बड़े नज़ाकत और सलीके से खीरा खाने की तैयारी की।

(ख) हम गाजर, टमाटर, मूली आदि चीजों को खाना पसंद करते हैं। इन चीजों को पहले धोकर पोंछ लेते हैं। फिर उन्हें चाकू से साफ़ करके पतली-पतली फाँकें कर लेते हैं। इसके बाद उन पर नमक और मसाला लगाकर खाने के लिए तैयार कर लेते हैं। खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों बारे में पढ़ा-सुना होगा।

किसी एक के बारे में लिखिए। उत्तर नवाब साहब द्वारा खीरे को खाने के लिए तैयार करना और फिर उसे केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देना इसे नवाबी सनक कहा जा सकता है। इसी प्रकार हमने नवाबों की कई सनकों के बारे में सुना है। दो नवाब रेलवे स्टेशन पर गाड़ी पकड़ने के लिए जाते हैं। दोनों का एक ही डिब्बे के सामने आमना-सामना हो जाता है।

नवाबों में शिष्टाचार का बहुत महत्व होता है। इसी शिष्टाचार के कारण दोनों नवाब एक-दूसरे को डिब्बे में पहले जाने की बात करते हैं। गाड़ी चलने को तैयार हो जाती है, परंतु उन दोनों में से कोई डिब्बे में पहले चढ़ने की पहल नहीं करता। उनकी शिष्टाचार की सनक ने उनकी गाड़ी निकाल दी, परंतु दोनों अपनी जगह से टस-से-मस नहीं हुए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख करें।
उत्तर :
कभी-कभी किसी सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। उसकी सनक दूसरों को सुधरने के लिए मजबूर कर देती है। जैसे किसी को हर काम समय पर करने की आदत होती है। वह अपना सारा काम घड़ी की सुई के अनुसार करता है। आरंभ में उसकी इस आदत से लोग परेशान होते हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों को समय पर काम करने की आदत हो जाती है। इससे उनमें अनुशासन की भावना आ जाती है।

किसी-किसी व्यक्ति को सफ़ाई बहुत पसंद होती है। यदि उसके आस-पास का वातावरण बिखरा रहता है, तो वह चुपचाप सभी का काम करता रहता है; वह किसी से कुछ नहीं कहता। लोग उसको सफ़ाई-पसंद सनकी कहते हैं, परंतु वह फिर भी बिखरे हुए और गंदे सामान को साफ़ करके उचित स्थान पर रखता रहता है। उसकी इस आदत से लोगों में शर्मिंदगी का एहसास होता है और धीरे-धीरे वे भी अपनी आदतें सुधारने में लग जाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए –
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर :
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) कल्पना करना – अकर्मक क्रिया
(घ) खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) सिर काटे, झाग निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – अकर्मक क्रिया
(छ) लेट गए – अकर्मक क्रिया,
(ज) निकालना – सकर्मक क्रिया

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब-अर्ज’…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
‘नमस्ते’, ‘आइए’, ‘बैठिए’, ‘कृपया कुछ लीजिए’, ‘धन्यवाद’, ‘क्षमा करना’, ‘कृपया यह काम कर दें’ आदि कुछ शिष्टाचार सूचक कथन हैं।

प्रश्न 2.
‘खीरा…मेदे पर बोझ डाल देता है; क्या वास्तव में खीरा अपच करता है। किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर :
वास्तव में खीरा अपच खाद्य पदार्थ नहीं है; यह गरमियों में शीतलता प्रदान करता है परंतु इसका अधिक मात्रा में उपयोग करना नुकसान देता है। खाद्य पदार्थों का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है; जैसे-मौसम, व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, खाद्य पदार्थ के प्रति लगाव आदि। सरदी के मौसम में ठंडी वस्तुओं का कम प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

सबसे अधिक प्रभाव बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है। ऐसे ही गरमियों में गरमाहट देने वाली वस्तु का प्रयोग कम किया जाता है, क्योंकि वे शरीर के तापमान को बढ़ा देती हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सरदी में हम गर्म वस्तुओं तथा गरमी में ठंडी वस्तुओं का प्रयोग अधिक करते हैं। बरसात के दिनों में ऐसी वस्तुओं के प्रयोग से बचा जाता है, जो बद-बादी होती हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 3.
खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं, जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा करें।
उत्तर :
हमारे क्षेत्र में खाद्य पदार्थों से संबंधित बहुत-सी मान्यताएँ प्रचलित हैं। गरमियों में लू से बचने के लिए हम नींबू पानी, आम पन्ना, की लस्सी तथा बेल के शरबत का प्रयोग करते हैं। सरदियों में ठंड से बचने के लिए गुड़-शक्कर, मूंगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

प्रश्न 4.
पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढ़कर पढ़िए और संभव हो तो फ़िल्म भी देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस पाठ के माध्यम से बताना चाहता है कि बिना पात्रों, घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन-शैली का वर्णन किया है। लेखक को रेलगाड़ी के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। नवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है, लेकिन लेखक के सामने खीरा खाने में उसे संकोच होता है।

इसलिए अपने नवाबी अंदाज़ में लज़ीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है। नवाब के इस व्यवहार से लगता है कि वे आम लोगों जैसे कार्य एकांत में करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं किसी के देख लेने से उनकी शान में फर्क न आ जाए। आज का समाज भी ऐसी ही दिखावा पसंद संस्कृति का आदी हो गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 2.
लेखक ने नवाब की असुविधा और संकोच के लिए क्या अनुमान लगाया ?
उत्तर :
लेखक जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए बैठे थे। उनके सामने दो खीरे रखे थे। लेखक को देखकर उन्हें असुविधा और संकोच हो रहा था। लेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखे। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में उन्हे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उनके लिए असुविधा और संकोच का कारण बन रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक को खीरे खाने से इनकार करने पर अफ़सोस क्यों हो रहा था?
उत्तर :
नवाब साहब ने साधारण से खीरों को इस तरह से सँवारा कि वे खास हो गए थे। खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया, परंतु वह पहले ही खीरा खाने से इनकार कर चुका था। अब उसे अपना आत्म-सम्मान बचाना था। इसलिए नवाब साहब के दोबारा पूछने पर लेखक ने मेदा (आमाशय) कमज़ोर होने का बहाना बनाया।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरा खाने का कौन-सा रईसी तरीका अपनाया? इससे लेखक के ज्ञान-चक्षु कैसे खुले?
उत्तर :
नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण-सा खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खीरे को किसी कीमती वस्तु की तरह तैयार किया। उस लजीज खीरे को देखकर लेखक के मुँह में पानी आ गया। इसके बाद नवाब साहब खीरे की फाँक को उठाया और नाक तक ले जाकर सूंघा। खीरे की महक से उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने उस पानी को गटका और खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।

इस तरह उन्होंने सारा खीरा बाहर फेंक दिया और लेखक को गर्व से देखा। उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे वे लेखक से कह रहे हों कि नवाबों के खीरा खाने का यह खानदानी रईसी तरीका है। यह तरीका देखकर लेखक सोचने लगा कि बिना खीरा खाए, केवल सूंघकर उसकी महक और स्वाद की कल्पना से तृप्ति का डकार आ सकता है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से ‘नई कहानी’ क्यों नहीं बन सकती। इसी सोच ने लेखक के ज्ञान-चक्षु खोल दिए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 5.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज’ पाठ व्यंग्य प्रधान है। इस पाठ का मूल उद्देश्य यह दर्शाना है कि बिना पात्र, विचार, घटना के कहानी नहीं लिखी जा सकती है। साथ ही लेखक ने उन लोगों पर करारा व्यंग्य भी किया है, जो दिखावे तथा बनावटीपन में विश्वास रखते हैं।

प्रश्न 6.
नवाब साहब को देखते ही लेखक उसके प्रति व्यंग्य से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
लेखक के मन में पहले से ही नवाबों के प्रति व्यंग्य की धारणा बनी हुई थी कि वे अपनी आन-बान-शान को अत्यधिक महत्व देते हैं। वे खाने-पीने के बहुत शौकीन होते हैं। वे औरों के समक्ष स्वयं को सदाचारी तथा शिष्ट बनाकर प्रस्तुत करते हैं। उसे नवाब द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कार्य उसे मात्र दिखावा लग रहा था, इसलिए लेखक नवाब साहब के प्रति व्यंग्य से भर जाता है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर यशपाल की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यशपाल ने अपनी रचना में सहज स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लेखक ने उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज़’ किस प्रकार की रचना है?
अथवा
‘लखनवी अंदाज’ को रोचक कहानी बनाने वाली कोई दो बातें लिखिए।
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज़’ पतनशील सामंती-वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करके नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध रखता है। आज के समाज में दिखावटी संस्कृति को देखा जा सकता है।

पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। नवाब साहब ने करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्जी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के ख्याल से अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

(क) लखनऊ स्टेशन पर विक्रेता किसका इस्तेमाल का तरीका जानते हैं?
(i) सेब
(ii) खीरा
(iii) ककड़ी
(iv) पपीता
उत्तर :
(ii) खीरा

(ख) खीरे किसके पास थे?
(i) ट्रेन में बैठे ग्राहक के
(ii) यात्री लेखक के
(iii) नवाब साहब के
(iv) भिखारी के
उत्तर :
(iii) नवाब साहब के

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(ग) खीरा विक्रेता खीरे के साथ और क्या हाजिर करता था?
(i) काला नमक
(ii) चूरन
(iii) नींबू
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च
उत्तर :
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च

(घ) लेखक कनखियों से देखकर किसके बारे में सोच रहे थे?
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में
(ii) खीरे विक्रेता के बारे में
(iii) खीरे के स्वाद के बारे में
(iv) नवाब साहब की पोशाक के बारे में
उत्तर :
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में

(ङ) नवाब साहब की भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से क्या स्पष्ट था?
(i) खीरे को काटकर फेंकना चाहते थे।
(ii) खीरों को केवल सूंघना चाहते थे।
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।
(iv) लेखक को भी खीरे का स्वाद बताना चाहते थे।
उत्तर :
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(i) निम्न वर्ग पर
(ii) उच्च वर्ग पर
(iii) सफ़ेदपोश नेताओं पर
(iv) पतनशील सामंती वर्ग
उत्तर :
(iv) पतनशील सामंती वर्ग

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(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या करने की है?
(i) सोने की
(ii) कल्पना करने की
(iii) फल काटने की
(iv) रोने की धोने की
उत्तर :
(ii) कल्पना करने की

(ग) लखनऊ के खीरे की क्या विशेषता थी?
(i) लजीज
(ii) देसी
(iii) बासी
(iv) कषैला
उत्तर :
(i) लजीज

(घ) लेखक ने खीरे को क्या माना है?
(i) बहुमूल्य फल
(ii) अपदार्थ वस्तु
(iii) सुपाच्य वस्तु
(iv) स्वादिष्ट सब्जी
उत्तर :
(ii) अपदार्थ वस्तु

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ से क्या आशय है ?
3. लेखक ट्रेन की कौन-सी क्लास में यात्रा कर रहा था और क्यों?
4. ‘ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी।’ इस पंक्ति से लेखक ट्रेन की किस स्थिति की ओर संकेत कर रहा था?
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक किस क्लास में यात्रा करने की राय दे रहा था? उस क्लास में यात्रा करने से क्या हानि थी?
उत्तर :
1. पाठ-लखनवी अंदाज, लेखक-यशपाल।
2. जो साधारण ट्रेन प्रमुख नगर के आस-पास के क्षेत्रों में जाती है, उस ट्रेन को ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ कहते हैं। प्रमुख नगर में आस … पास से आने-जाने वाले दैनिक यात्री तथा अन्य लोग इस ट्रेन का लाभ उठाते हैं।
3. लेखक ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा था। द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में भीड़ नहीं होती तथा आराम से यात्रा की जा सकती थी। इसमें बैठने के लिए खिड़की के पास स्थान मिल जाता था, जिससे बाहर के दृश्य भी देखे जा सकते थे। लेखक एकांत में किसी कहानी का प्लाट भी सोचना चाहता था।
4. ट्रेन के इस वर्णन से लेखक संकेत कर रहा है कि ट्रेन में पुराने जमाने का भाप का इंजन लगा हुआ था, जो ट्रेन को चलाने से पहले फंकार-सी मारता था। यह फूंकार उसमें से भाप निकलने के कारण होती थी।
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करने की सलाह दे रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करने की – मुख्य हानि यह थी कि इसके लिए पैसे अधिक खर्च करने पड़ते थे।

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2. गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक जब प्लेटफार्म प ट्रेन की क्या स्थिति थी? लेखक ने क्या किया?
2. लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या हुआ?
3. लेखक ने डिब्बे में किसे और किस स्थिति में देखा?
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में क्या सोचा?
उत्तर :
1. लेखक जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो ट्रेन चल पड़ी थी। लेखक ने चलती हुई ट्रेन में सेकंड क्लास का एक छोटा-सा डिब्बा देखा। वह उस डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़ गया।
2. लेखक का अनुमान था कि जिस डिब्बे में वह चढ़ रहा है, वह खाली है। किंतु उसके अनुमान के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ था।
3. लेखक ने डिब्बे की एक बर्थ पर लखनवी नवाब जैसे एक भद्र पुरुष को पालथी मारकर बैठे हुए देखा। उन सज्जन के सामने तौलिए पर दो ताज़े और मुलायम खीरे रखे हुए थे।
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में सोचा कि उसके डिब्बे में अचानक कूद आने से उन सज्जन की एकांत साधना में विघ्न पड़ गया है। उसे लगा कि शायद ये सज्जन भी उसकी तरह ही किसी कहानी की रूप-रेखा बनाने में डूबे हुए हों अथवा उन्हें उसके द्वारा यह देखे जाने पर संकोच हो रहा हो कि वे खीरे जैसी मामूली वस्तु खा रहे हैं।

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3. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफ़र करता देखे।… अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफ़ेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. लेखक की पुरानी आदत क्या थी और क्यों?
2. लेखक किस बात का अनुमान करने लगा?
3. लेखक के अनुसार नवाब साहब सेकंड क्लास में सफ़र क्यों कर रहे थे ?
4. नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
उत्तर :
1. लेखक की पुरानी आदत थी कि वह जब अकेला अथवा खाली होता था, तो अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करने लग जाता था। वह एक लेखक था, इसलिए कल्पना के आधार पर अपनी रचनाएँ करता था। खाली समय में इन्हीं कल्पनाओं में डूबा रहता था कि अब क्या नया लिखा जाए।

2. लेखक नवाब साहब के संकोच और असुविधा के कारण का अनुमान करने लगा। वह सोचने लगा कि नवाब साहब अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। अधिक किराया खर्च न करना पड़े, इसलिए कुछ बचत करने के विचार से उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा। अब उन्हें यह अच्छा नहीं लग रहा होगा कि शहर का कोई दूसरा सज्जन उन्हें इस प्रकार द्वितीय श्रेणी में यात्रा करते हुए देखे।

3. लेखक का विचार था कि एकांत में यात्रा करने के उद्देश्य से नवाब साहब ने सेकंड क्लास में यात्रा करना उचित समझा होगा। इसके अतिरिक्त प्रथम श्रेणी में किराया भी अधिक लगता है। सेकंड क्लास में एकांत भी मिल जाएगा और किराए की भी बचत हो जाएगी।

4. लेखक के विचार में नवाब साहब ने अकेले में सफ़र काटने के लिए खीरे खरीद लिए होंगे। अब वे खीरे इसलिए नहीं खा रहे थे, क्योंकि उन्हें लेखक के सामने खीरे जैसी मामूली वस्तु खाने में संकोच हो रहा था।

4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बार फेंकते गए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. ‘सतृष्ण आँखों’ से देखने का क्या तात्पर्य है ? यहाँ कौन ऐसा कर रहा था?
2. नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास क्यों लिया?
3. नवाब साहब ने खीरे की फाँक का क्या किया?
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद कैसे लिया?
उत्तर :
1. जिन आँखों में किसी चीज़ को पाने की चाह होती है, उन्हें ‘सतृष्ण आँखें’ कहते हैं। यहाँ नवाब साहब कटे हुए खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खा लेने की इच्छा से देख रहे थे, परंतु वे इन्हें खा नहीं सकते थे।
2. नवाब साहब खिड़की के बाहर देखकर लंबी साँस इसलिए ले रहे थे, क्योंकि वे चाहकर भी खीरा खा नहीं पा रहे थे।
3. नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की फाँकों में से एक फाँक उठाई और उसे अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद उन्होंने उस फाँक को सँघा। उन्हें इससे इतना आनंद आया कि उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया और पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। इसके बाद उन्होंने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खाकर नहीं, बल्कि उन फाँकों को सूंघकर लिया। सूंघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक देते थे।

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5. नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों- यह है खानदानी रईसों का तरीका! नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
2. नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया?
3. लेखक को नवाब साहब की किस बात पर अपना सिर झुकाना पड़ा?
4. लेखक किस बात पर विचार कर रहा था?
5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया ?
6. नवाब साहब का खीरा खाने का ढंग किस तरह अलग था?
7. नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?
8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए क्या किया है?
उत्तर :
1. नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर उन्होंने खीरों को खिड़की के बाहर धोया और उन्हें तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिर काटा और उन्हें गोदकर उनका झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीलकर वे उनकी फाँकों को तौलिए पर सजाते गए और उन पर जीरा मिला नमक व लाल मिर्च छिड़क दी।

2. नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा। फाँक को सूंघने से मिले आनंद से उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया, जिसे वे गटक गए। इसके बाद उन्होंने वह फाँक खिड़की से बाहर फेंक दी। ऐसा ही उन्होंने खीरे की अन्य फाँकों के साथ किया। नवाब साहब ने इस प्रकार से खीरे का इस्तेमाल किया।

3. लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के इस्तेमाल की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा कि किस प्रकार से अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता और कोमलता प्रदर्शित करते हुए नवाब साहब ने खीरे का मात्र सूंघकर आनंद लिया था।

4. लेखक विचार कर रहा था कि जिस प्रकार से नवाब साहब ने मात्र सूंघकर खीरे का आनंद लिया है, क्या इससे पेट की संतुष्टि हो सकती है?

5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताया कि खीरा होता तो स्वादिष्ट है, परंतु आसानी से पचता नहीं है। इसके सेवन से आमाशय पर बोझ पड़ता है, इसलिए वे खीरा नहीं खाते हैं।

6. नवाब साहब ने बड़े ही सलीके से कटे हुए तथा नमक-मिर्च लगे खीरे की फाँकों को उठाया, उसे सूंघा तथा खाने की बजाय उसे एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंक दिया। तत्पश्चात वे ऐसा दर्शाने लगे जैसे खीरा खाने से उनका पेट भर गया हो।

7. नवाब साहब रसास्वादन के माध्यम से तृप्त होने के विचित्र तरीके से अपनी अमीरी को प्रकट करना चाहते थे।

8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को सूंघा तथा एक-एक करके बाहर फेंकते रहे तथा खीरा न खाने का कारण यह बताया कि वह आमाशय पर बोझ डालता है।

लखनवी अंदाज़ भगत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – हिंदी के यशस्वी उपन्यासकार, कहानी लेखक एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 1903 ई० में जाब के फ़िरोज़पुर छावनी में हआ था। इनके पिताजी हीरालाल हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के भुंपल गाँव के निवासी थे, जहाँ वे छोटी-सी दुकान चलाते थे। इनकी माता प्रेमा देवी एक अनाथालय में अध्यापिका थीं। माता स्वयं को शाम चौरासी के मंत्रियों की वंशज मानती थीं। संभवतः यही कारण है कि प्रेमा देवी नौकरी करके अलग रहने लगी थीं। पति की मृत्यु के पश्चात उनका कांगड़ा आना जाना प्रायः समाप्त हो गया था।

यशपाल की प्रारंभिक शिक्षा कांगड़ा में हुई थी। माता उन्हें दयानंद सरस्वती का सच्चा सिपाही बनाना चाहती थी, इसलिए इन्हें पढ़ने के लिए गुरुकुल कांगड़ी में भेजा गया। लेकिन अस्वस्थता के कारण इन्हें गुरुकुल कांगड़ी छोड़ना पड़ा। इसके बाद इन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी० ए० किया। यहीं पर रहते हुए यशपाल क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में इन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

इन्होंने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ काम किया और अनेक बार जेल भी गए। चंद्रशेखर के बलिदान के पश्चात यशपाल ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के कमांडर-इन-चीफ बने और अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वर्ष 1936 के पश्चात इनकी रुचि साम्यवादी विचारधारा में बढ़ी और इन्होंने लखनऊ से ‘विप्लव’ नामक पत्रिका निकालना प्रारंभ किया।

साम्यवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए यशपाल ने निरंतर संघर्ष किया। यशपाल की शादी जेल में ही हुई थी। इन्होंने अनेक बार विदेशों में भ्रमण किया और अपने संस्मरण लिखे। ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’, ‘राह बीती’ तथा ‘स्वार्गोद्यान बिन साँप’ इनके यात्रा वर्णन हैं। दिसंबर 1952 में इन्होंने वियाना में हुए विश्व शांति कांग्रेस में भाग लिया था। सन 1976 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ – यशपाल मुख्यतः उपन्यासकार हैं। अमिता’, ‘दिव्या’, ‘झूठा सच’, ‘देशद्रोही’, ‘दादा कामरेड’ तथा ‘मेरी तेरी उसकी बात’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। इन्होंने दो सौ से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। इनके प्रमुख कहानी-संग्रह ‘ज्ञान-दान’, ‘तर्क का तूफ़ान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘फूलों का कुर्ता’ आदि हैं। इनके निबंध ‘विप्लव’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। इनके प्रसिद्ध निबंध संग्रह हैं-‘बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है’, ‘देखा सोचा-समझा’, ‘मार्क्सवाद’, ‘गांधीवाद की शव परीक्षा’, ‘राम राज्य की कथा’, ‘चक्कर क्लब’, ‘बात-बात में बात’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘जग का मुजरा’ आदि।

भाषा-शैली – यशपाल ने अपनी रचनाओं में सहज एवं स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लखनवी अंदाज़’ इनकी पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है।

भाषा उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की है; जैसे – ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थीं।’ अन्यत्र भी इन्होंने सेकंड क्लास, सफ़ेदपोश, किफ़ायत, गुमान, मेदा, तसलीम, नफ़ासत, नज़ाकत, एवस्ट्रेक्ट, सकील जैसे विदेशी शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। कहीं-कहीं उदर, तृप्ति, प्लावित, स्फुरण जैसे तत्सम शब्द भी दिखाई दे जाते हैं।

इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है; जैसे-नवाब साहब की यह स्थिति – ‘नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया।’ लेखक ने अपनी सहज भाषा-शैली में रचना को रोचक बना दिया है।

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पाठ का सार :

‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक सिद्ध करना चाहता है कि बिना पात्रों व कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती, परंतु एक स्वतंत्र रचना का निरूपण किया जा सकता है। इसमें लेखक ने नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध नहीं रखता। आज के समाज में इस दिखावटी संस्कृति को सहज देखा जा सकता है। लेखक एकांत में नई कहानी पर सोच-विचार करना चाहता था। इसलिए सेकंड क्लास का किराया ज्यादा होते हुए भी उसी का टिकट लिया।

सेकंड क्लास में कोई नहीं बैठता था। गाड़ी छटने वाली थी, इसलिए वह दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ गया। जिस डिब्बे को वह खाली समझ रहा था, वहाँ पहले से ही नवाबी नस्ल के एक सज्जन पुरुष विराजमान थे। लेखक का उस डिब्बे में आना उन सज्जन को अच्छा नहीं लगा। नवाब के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे थे। नवाब ने लेखक से बातचीत करना पसंद नहीं किया।

लेखक नवाब के बारे में अनुमान लगाने लगा कि उसे उसका आना क्यों अच्छा नहीं लगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। लेखक ने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने दोनों खीरों को धोया; तौलिए से पोंछकर चाकू से दोनों सिरों को काटकर खीरे का झाग निकाला। वे खीरे को बड़े सलीके और नजाकत से संवार रहे थे। उन्होंने खीरों पर नमक-मिर्च लगाया। नवाब साहब का मुंह देखकर ऐसा लग रहा था कि खीरे की फांक देखकर। उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट देखकर खीरा खाने का लेखक का मन हो रहा था, परंतु वह पहले इनकार कर चुका था।

इसलिए नवाब के दोबारा पूछने पर आत्मसम्मान के कारण उन्होंने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने खीरे की फाँक उठाई, फाँक को होंठों तक ले गए। उसे सूंघा। खीरे के स्वाद के कारण मुँह में पानी भर गया था। परंतु नवाब। साहब ने फाँक को सँघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। नवाब साहब ने सभी फांकों को बारी-बारी से सूघा और खिड़की से बाहर फेंका दिया। बाद में नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और गर्व से लेखक की ओर देखा।

ऐसा लग रहा था, जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का ढंग है। लेखक यह सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब कहते हैं कि खीरा खाने में तो अच्छा लगता है, परंतु अपच होने के कारण मैदे पर भारी पड़ता है। लेखक को लगता है कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है, तो बिना घटना-पात्रों और विचार के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती?

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

कठिन शब्दों के अर्थ :

मुफस्सिल – केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान। सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति, सज्जन पुरुष। किफ़ायत – मितव्यता। आदाब अर्ज़ – अभिवादन करना। गुमान – भ्रम। एहतियात – सावधानी। बुरक देना – छिड़क देना। स्फुरण – फड़कना, हिलना। प्लावित – पानी भर जाना। पनियाती – रसीली। मेदा – आमाशय। तसलीम – सम्मान में। खम – झुकाना। तहज़ीब – शिष्टता। लज़ीज – मजेदार, स्वादिष्ट। नफ़ासत – स्वच्छता। नज़ाकत – कोमलता। गौर करना – विचार करना। नफ़ीस – बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट – सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो। सकील – आसानी से न पचने वाला। उदर – पेट। तृप्ति – संतुष्टि। इस्तेमाल – प्रयोग। रईस – अमीर। सुगंध – खुशबू, महक। पैसेंजर – यात्री। नस्ल – जाति। ठाली बैठना – खाली बैठना।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

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Question 1.
Construct a triangle ABC in which BC = 7 cm, ∠B = 75° and AB + AC = 13 cm.
Answer:
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 1
Steps of Construction:
Step 1: A line segment BC of 7 cm is drawn.
Step 2: At point B, an angle ∠XBC is constructed such that it is equal to 75°.
Step 3: A line segment BD =13 cm is cut on BX (which is equal to AB + AC).
Step 4: DC is joined.
Step 5: Draw perpendicular bisector of CD which meets BD at A.
Step 6: Join AC.
Thus, ∆ABC is the required triangle.

Question 2.
Construct a triangle ABC in which BC = 8 cm, ∠B = 45° and AB – AC = 3.5 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1: A line segment BC = 8 cm is drawn and at point B, make an angle of 45° i.e. ∠XBC.
Step 2: Cut the line segment BD = 3.5 cm (equal to AB – AC) on ray BX.
Step 3: Join DC and draw the
perpendicular bisector PQ of CD.
Step 4: Let it intersect BX at point A. Join AC.
Thus, ∆ABC is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Question 3.
Construct a triangle PQR in which QR = 6 cm, ∠Q = 60° and PR – PQ = 2 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1: A line segment QR = 6 cm is drawn.
Step 2: A ray QY is constructed making an angle of 60° with QR and YQ is produced backwards to form a line YY’.
Step 3: Cut off a line segment QS = 2 cm from QY’. RS is joined.
Step 4: Draw perpendicular bisector of RS intersecting QY at a point P. PR is joined. Thus, ∆PQR is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 3

Question 4.
Construct a triangle XYZ in which ∠Y = 30°, ∠Z = 90° and XY + YZ + ZX = 11 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1: A line segment PQ = il cm is drawn. (XY + YZ + ZX =11 cm)
Step 2: An angle, ZRPQ = 30° is constructed at point P and an angle ZSQP = 90° at point Q.
Step 3: ZRPQ and ZSQP are bisected. The bisectors of these angles intersect each other at point X.
Step 4: Perpendicular bisectors TU of PX and WV of QX are constructed.
Step 5: Let TU intersect PQ at Y and WV intersect PQ at Z. XY and XZ are joined.
Thus, ∆XYZ is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 4

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2

Question 5.
Construct a right triangle whose base is 12 cm and sum of its hypotenuse and other side is 18 cm.
Answer:
Steps of Construction:
Step 1 : A line segment BC = 12 cm is drawn.
Step 2: ZCBY = 90° is constructed.
Step 3: Cut off a line segment BD = 18 cm from BY. CD is joined.
Step 4: Perpendicular bisector of CD is constructed intersecting BD at A. AC is joined.
Thus, ∆ABC is the required triangle.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 11 Constructions Ex 11.2 - 5

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.3

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.3

Page-121

Question 1.
Diameter of the base of a cone is 10.5 cm and its slant height is 10 cm. Find its curved surface area.
Answer:
Radius (r) = \(\frac{10.5}{2}\) cm = 5.25 cm

Slant height (l) = 10 cm
Curved surface area of the cone = (πrl) cm2
= (\(\frac{22}{7}\) × 5.25 × 10) cm2
= 165 cm2

Question 2.
Find the total surface area of a cone, if its slant height is 21 m and diameter of its base is 24 m.
Ans. Radius (r) = \(\frac{24}{2}\) m = 12 m
Slant height (l) = 21 m
Total surface area of the cone = πr (l + r) m2
= \(\frac{22}{7}\) × 12 × (21 + 12) m2
= \(\frac{22}{7}\) × 12 × 33 m2= 1244.57 m2

Question 3.
Curved surface area of a cone is 308 cm2 and its slant height is 14 cm. Find
(i) radius of the base and
(ii) total surface area of the cone.
Answer:
(i) Curved surface of a cone = 308 cm2
Slant height (l) = 14 cm
Let r be the radius of the base
∴ πrl = 308
⇒ \(\frac{22}{7}\) × r × 14 = 308
⇒ 44r = 308
⇒ r = \(\frac{308}{\frac{22}{7} \times 14}\) = 7 cm.

(ii) TSA of the cone = πr(l + r) cm2
= \(\frac{22}{7}\) × 7 × (14 + 7) cm2
= (22 × 21) cm2
= 462 cm2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.3

Question 4.
A conical tent is 10 m high and the radius of its base is 24 m. Find:
(i) slant height of the tent.
(ii) cost of the canvas required to make the tent, if the cost of 1 m2 canvas is ₹ 70.
Answer:
(i) Radius of the base (r) = 24 m
Height of the conical tent (h) = 10 m
Let l be the slant height of the cone.
∴ l2 = h2 + r2
⇒ l = \(\sqrt{\mathrm{h}^2+\mathrm{r}^2}=\sqrt{10^2+24^2}\)
= \(\sqrt{100 +576}\) = 26 m

(ii) Canvas required to make the conical tent = Curved surface of the cone
= πrl = \(\frac{22}{7}\) × 24 × 26 m2 = \(\frac{13728}{7}\) m

Cost of 1 m2 canvas = ₹ 70
∴ Cost of canvas = ₹ \(\frac{13728}{7}\) × 70
= ₹ 137280

Question 5.
What length of tarpaulin 3 m wide will be required to make conical tent of height 8 m and base radius 6 m? Assume that the extra length of material that will be required for stitching margins and wastage in cutting is approximately 20 cm (Use π = 3.14)
Answer:
Radius of the base (r) = 6 m
Height of the conical tent (h) = 8 m
Let l be the slant height of the cone.
∴ l = \(\sqrt{\mathrm{h}^2+\mathrm{r}^2}\) = \(\sqrt{10^2+24^2}\)
= \( \sqrt{100} \) = 10 m

CSA of conical tent = πrl = (3.14 x 6 x 10) m2 = 188.4 m2
Breadth of tarpaulin = 3 m
Let length of tarpaulin sheet required be x.
20 cm will be wasted in cutting.
So, the length will be (x – 0.2) m
Area of sheet = CSA of tent
⇒ [(x – 0.2) m × 3] m2 = 188.4 m2
⇒ x – 0.2 = 62.8
⇒ x = 63 m
∴ Length of tarpaulin sheet required = 63 m.

Question 6.
The slant height and base diameter of a conical tomb are 25 m and 14 m respectively. Find the cost of white-washing its curved surface at the rate of ₹ 210 per 100 m².

Ans. Radius (r) = \(\frac{14}{2}\) m = 7 m
Slant height of the tomb (l) = 25 m
Curved surface area = πrl m2
= \(\frac{22}{7}\) × 25 × 7 m2= 550 m2

Rate of white-washing = ₹ 210 per 100 m2
Total cost of white-washing the tomb = ₹ (550 × \(\frac{210}{100}\)) = ₹ 1155

Question 7.
A joker’s cap is in the form of a right circular cone of base radius 7 cm and height 24 cm. Find the area of the sheet required to make 10 such caps.
Ans.
Radius of the cone (r) = 7 cm
Height of the cone (h) = 24 cm
Let l be the slant height
∴ l = \(\sqrt{\mathrm{h}^2+\mathrm{r}^2}\) = \(\sqrt{24^2+7^2}\)
= \( \sqrt{625} \) = 25 m

Sheet required for one cap = Curved surface of the cone
= πrl cm2
= \(\frac{22}{7}\) × 7 × 25 cm2
= 550 cm2

Sheet required for 10 caps = 550 × 10 cm2 = 5500 cm2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.3

Question 8.
A bus stop is barricaded from the remaining part of the road, by using 50 hollow cones made of recycled cardboard. Each cone has a base diameter of 40 cm and height 1 m. If the outer side of each of the cones is to be painted and the cost of painting is ₹ 12 per m2, what will be the cost of painting all these cones?
(Use n = 3.14 and take Vl.04 = 1.02)
Answer:
Radius of the cone (r) = \(\frac{40}{2}\) cm = 20 cm = 0.2 m
Height of the cone (h) = 1 m
Let l be the slant height of a cone.
l = \(\sqrt{\mathrm{h}^2+\mathrm{r}^2}\) = \(\sqrt{1^2+0.2^2}\)
= \( \sqrt{1.04} \) = 1.02 m

Rate of painting = ₹ 12 per m2
Curved surface of 1 cone = πrl m2
= (3.14 × 0.2 × 1.02) m2 = 0.64056 m2

Curved surface of such 50 cones= (50 × 0.64056) m2= 32.028 m2
Cost of painting all these cones = ₹ (32.028 × 12) = ₹ 384.34

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2

Page-216

Question 1.
The curved surface area of a right circular cylinder of height 14 cm is 88 cm2. Find the diameter of the base of the cylinder.
Answer:
Let r be the radius of the base and
h = 14 cm be the height of the cylinder.
Curved surface area of cylinder = 2πrh = 88 cm2
⇒ ⇒ 2 × \(\frac{22}{7}\) × r × 14 = 88
⇒ r = \(\frac{88}{\left(2 \times \frac{22}{7} \times 14\right)}\) = 1 cm
⇒ r = 1 cm
Thus, the diameter of the base = 2π = 2 ×1 = 2 cm

Question 2.
It is required to make a closed cylindrical tank of height 1 m and base diameter 140 cm from a metal sheet. How many square metres of the sheet are required for the same?
Answer:
Let r be the radius of the base and h be the height of the cylinder.
Base diameter = 140 cm and Height (h) = 1 m

Radius of base (r) = \(\frac{140}{2}\) = 70 cm = 0.7 m
Metal sheet required to make a closed cylindrical tank = 2πr(h + r)
= (2 × \(\frac{22}{7}\) × 0.7) (1 + 0.7) m2
= (2 × 22 × 0.1 × 1.7) m2 = 7.48 m2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2

Question 3.
A metal pipe is 77 cm long. The inner diameter of a cross section is 4 cm, the outer diameter being 4.4 cm (see Fig. ).
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2 - 1
Find its
(i) inner curved surface area,
(ii) outer curved surface area,
(iii) total surface area.
Answer:
Let R be external radius and r be the internal radius and h be the length of the pipe.
R = \(\frac{4.4}{2}\) = 2.2 cm
r = \(\frac{4}{2}\) = 2 cm
h = 77 cm

(i) Inner curved surface
= 2πrh cm2
= 2 × \(\frac{22}{7}\) × 2 × 77 cm2
= 968 cm2

(ii) Outer curved surface
= 2πRh cm2
= 2 × \(\frac{22}{7}\) × 2.2 × 77 cm2
= 1064.8 cm2

(iii) Total surface area of a pipe = Inner curved surface area + outer curved surface area + areas of two bases
= 2πrh + 2πRh + 2π(R2 – r2)
= [968 + 1064.8 + (2 × \(\frac{22}{7}\)) (4.84 – 4)] cm2
= (2032.8 + \(\frac{44}{7}\) × 0.84 7)
= (2032.8 + 5.28) cm2
= 2038.08 cm2

Page-217

Question 4.
The diameter of a roller is 84 cm and its length is 120 cm. It takes 500 complete revolutions to move once over to level a playground. Find the area of the playground in nr.
Answer:
Length of the roller (h) = 120 cm = 1.2 m
Radius of the roller (r) = \(\frac{88}{2}\) cm
= 42 cm = 0.42 m

Total no. of revolutions = 500
Distance covered by roller in one revolution = Curved surface area = 2πrh
= (2 × \(\frac{22}{7}\) × 42 × 1.2) m2
= 3.1680 m2

Area of the playground
= (500 × 3.168) m2 = 1584 m2

Question 5.
A cylindrical pillar is 50 cm in diameter and 3.5 m in height. Find the cost of painting the curved surface of the pillar at the rate of ₹ 12.50 per m2.
Ans. Radius of the pillar (r) = \(\frac{50}{2}\) = 25 cm = 0.25 m2
Height of the pillar (h) = 3.5 m.
Rate of painting = ₹ 12.50 per m2
Curved surface area
= 2πrh = (2 × \(\frac{22}{7}\) × 0.25 × 3.5) m2
= 5.5 cm2

Total cost of painting = (5.5 × 12.5) = ₹ 68.75

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2

Question 6.
Curved surface area of a right circular cylinder is 4.4 m2. If the radius of the base of the cylinder is 0.7 m, find its height.
Answer:
Let r be the radius of the base and h be the height of the cylinder.
Curved surface area = 2πrh = 4.4 m2
⇒ 2 × \(\frac{22}{7}\) × 0.7 × h = 4.4
⇒ h = \(\frac{4.4}{\left(2 \times \frac{22}{7} \times 0.7\right)}\) = 1 m

Question 7.
The inner diameter of a circular well is 3.5 m. It is 10 m deep. Find
(i) its inner curved surface area,
(ii) the cost of plastering this curved surface at the rate of ₹ 40 per m2.
Answer:
Radius of circular well (r) = \(\frac{3.5}{2}\) m = 1.75 m
Depth of the well (h) = 10 m
Rate of plastering = ₹ 40 per m2

(i) Curved surface area = 2πrh
= (2 × \(\frac{22}{7}\) × 1.75 × 10) m2
= 110 m2

(ii) Cost of plastering = ₹ (110 × 40) = ₹ 4400

Question 8.
In a hot water heating system, there is a cylindrical pipe of length 28 m and diameter 5 cm. Find the total radiating surface in the system.
Answer:
Radius of the pipe (r) = \(\frac{5}{2}\) cm = 2.5 cm = 0.025 m2
Length of cylindrical pipe (h) = 28 m
Total radiating surface = Curved surface area of the pipe
= 2πrh
= (2 × \(\frac{22}{7}\) × 0.025 × 28) m2
= 4.4 m2

Question 9.
Find:
(i) the lateral or curved surface area of a closed cylindrical petrol storage tank that is 4.2 m in diameter and 4.5 m high.
(ii) how much steel was actually used, if \(\frac{1}{12}\) of the steel actually used was wasted in making the tank
Answer:
(i) Radius of the tank (r) = \(\frac{4.2}{2}\) m = 2.1 m
Height of the tank (h) = 4.5 m
Curved surface area = 2πrh m2 = 2 × \(\frac{22}{7}\) × 2.1 × 4.5 7
= 59.4 m2

(ii) Total surface area of the tank = 2πr(r + h) m2
= [2 × \(\frac{22}{7}\) × 2.1 (2.1 + 4.5)] m2
= 87.12 m2

Let x be the actual steel used in making tank.
∴ (1 – \(\frac{1}{12}\)) × x = 87.12
⇒ x = 87.12 × \(\frac{12}{11}\) = 95.04 m2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2

Question 10.
In Fig., you see the frame of a lampshade. It is to be covered with a decorative cloth. The frame has a base diameter of 20 cm and height of 30 cm. A margin of 2.5 cm is to be given for folding it over the top and bottom of the frame. Find how much cloth is required for covering the lampshade.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.2 - 2
Answer:
Radius of the frame (r) = \(\frac{20}{2}\) cm = 10 cm

Height of the frame (h) = 30 cm + 2 × 2.5 cm = 35 cm
(2.5 cm of margin will be added both sides in the height.)

Cloth required for covering the lampshade = curved surface area = 2πrh
= (2 × \(\frac{22}{7}\) × 10 × 35) cm2 = 2200 cm2

Question 11.
The students of a Vidyalaya were asked to participate in a competition for making and decorating penholders in the shape of a cylinder with a base, using cardboard. Each penholder was to be of radius 3 cm and height 10.5 cm. The Vidyalaya was to supply the competitors with cardboard. If there were 35 competitors, how much cardboard was required to be bought for the competition?
Answer:
Radius of the penholder (r) = 3 cm
Height of the penholder (h) = 10.5 cm
Cardboard required by 1 competitor = CSA of one penholder + area of the base
= 2πrh + πr2
= [(2 × \(\frac{22}{7}\) × 3 × 10.5) + \(\frac{22}{7}\) × 32] cm2
= 198 + \(\frac{198}{7}\)
= \(\frac{1584}{7}\) cm2

Cardboard required for 35 competitors = (35 × \(\frac{1584}{7}\)) cm2 = 7920 cm2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.1

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.1

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Question 1.
A plastic box 1.5 m long, 1.25 m wide and 65 cm deep is to be made. It is opened at the top. Ignoring the thick-ness of the plastic sheet, determine:
(i) The area of the sheet required for making the box.
(ii) The cost of sheet for it, if a sheet measuring 1 m2 costs ₹ 20.
Answer:
Length of plastic box (l) = 1.5 m
Width of plastic box (b) = 1.25 m
Depth of plastic box (h) = 65 cm = 0.65 m
(i) The area of sheet required to make the box is equal to the surface area of the box excluding the top.
Surface area of the box
= Lateral surface area + Area of the base
= 2(l + b) × h + (l × b)
= 2[( 1.5 + 1.25) × 0.65] + (1.5 × 1.25)
= (3.575 + 1.875) m2= 5.45 m2
The sheet required to make the box is 5.45 m2.

(ii) ∵ Cost of 1 m2 of sheet = ₹ 20
∴ Cost of 5.45 m2 of sheet = ₹ (20 x 5.45) = ₹ 109

Question 2.
The length, breadth and height of a room are 5 m, 4 m and 3 m respectively. Find the cost of white washing the walls of the room and the ceiling at the rate of ₹ 7.50 per m2.
Answer:
Length of the room, l = 5 m
Breadth of the room, b = 4 m
Height of the room, h = 3 m
Area of four walls including the ceiling = 2(l + b) × h + (l × b)
= 2(5 + 4) × 3 + (5 × 4)
= (54 + 20) m2 = 74 m2
Cost of white washing = ₹ 7.50 per m2
Total cost = ₹ (74 x 7.50) =₹ 555

Question 3.
The floor of a rectangular hall has a perimeter 250 m. If the cost of painting the four walls at the rate of 10 per m2 is ₹ 15000, find the height of the hall.
[Hint: Area of the four walls = Lateral surface area.]
Ans. Perimeter of rectangular hall = 2(l + b) = 250 m
Total cost of painting = ₹ 15000
Rate per m2 = ₹ 10
Area of four walls = 2(l + b) h
= (250 × h) m2
According to question,
(250 × h) × 10 = ₹ 15000
⇒ 2500 x h = ₹ 15000
⇒ h = \(\frac{15000}{2500}\) m
⇒ h = 6 m
Thus, the height of the hall is 6 m.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.1

Question 4.
The paint in a certain container is sufficient to paint an area equal to 9.375 m2. How many bricks of dimensions 22.5 cm x 10 cm x 7.5 cm can be painted out of this container?
Answer:
Area of paint
= 9.375 m2 = 93750 cm2 Dimensions of brick
= 22.5 cm × 10 cm × 7.5 cm Total surface area of a brick = 2(lb + bh + lh) cm2
=2(22.5 × 10+ 10 × 7.5+ 22.5 × 7.5) cm2
= 2(225 + 75 + 168.75) cm2
= 2 × 468.75 cm2 = 937.5 cm2

Number of bricks which can be painted = 93750

Question 5.
A cubical box has each edge 10 cm and another cuboidal box is 12.5 cm long, 10 cm wide and 8 cm high.
(i) Which box has the greater lateral surface area and by how much?
(ii) Which box has the smaller total surface area and by how much?
Answer:
(i) Lateral surface area of cubical box of edge 10 cm = 4 × 102 cm2 = 400 cm2
Lateral surface area of cuboidal box = 2(l + b) × h
= 2 × (12.5 + 10) × 8 cm2
= 2 × 22.5 × 8 cm2 = 360 cm2

Thus, lateral surface area of the cubical box is greater by (400 – 360) cm2 = 40 cm2

(ii) Total surface area of cubical box of edge 10 cm = 6 × 102 cm2 = 600 cm2
Total surface area of cuboidal box = 2 (lb + bh + lh)
= 2(12.5 x 10+10 x 8 + 8 x 12.5) cm2
= 2(125 + 80 + 100) cm2 = (2 × 305) cm2 = 610 cm2
Thus, total surface area of cubical box is smaller by 10 cm2.

Question 6.
A small indoor greenhouse (herbarium) is made entirely of glass panes (including base) held together with tape. It is 30 cm long, 25 cm wide and 25 cm high.
(i) What is the area of the glass?
(ii) How much of tape is needed for all the 12 edges?
Answer:
(i) Dimensions of greenhouse:
l = 30 cm, b = 25 cm, h = 25 cm
Total surface area of green house = 2(lb + bh + lh)
= 2(30 × 25 + 25 × 25 + 25 × 30) cm2
= 2(750 + 625 + 750) cm2 = 4250 cm2

(ii) Length of the tape needed
= 4(l + b + h) = 4(30 + 25 + 25) cm = 4 × 80 cm = 320 cm

Question 7.
Shanti Sweets Stall was placing an order for making cardboard boxes for packing their sweets. Two sizes of boxes were required. The bigger of dimensions 25 cm × 20 cm × 5 cm and the smaller of dimensions 15 cm × 12 cm × 5 cm. For all the overlaps, 5% of the total surface area is required extra. If the cost of the cardboard is 4 for 1000 cm2, find the
cost of cardboard required for supplying 250 boxes of each kind.
Answer:
Dimension of bigger box = 25 cm × 20 cm × 5 cm
Total surface area of bigger box = 2(lb + bh + lh)
= 2(25 × 20 + 20 × 5 + 25 × 5) cm2 = 2(500 + 100 + 125) cm2 = 1450 cm2

Dimension of smaller box = 15 cm × 12 cm × 5 cm
Total surface area of smaller box = 2(lb + bh + lh)
= 2(15 × 12 + 12 × 5 + 15 × 5) cm2
= 2(180 + 60 + 75) cm2 = 630 cm2

Total surface area of 250 boxes of each type = 250(1450 + 630) cm2
= 250 × 2080 cm2
= 520000 cm2

Extra area required
= \(\frac{5}{100}\) × 520000 cm2 = 26000 cm2

Total cardboard required =(520000 + 26000) cm2 = 546000 cm2

Total cost of cardboard sheet = \(\frac{(546000 × 4)}{1000}\)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.1

Question 8.
Parveen wanted to make a temporary shelter for her car, by making a box like structure with tarpaulin that covers all the four sides and the top of the car (with the front face as a flap which can be rolled up). Assuming that the stitch-ing margins are very small, and there fore negligible, how much tarpaulin would be required to make the shelter of height 2.5 m, with base dimensions m × 3 m?
Answer:
Dimensions of the box- like structure
= 4m × 3m × 2.5m
Tarpaulin only required for all the four sides and top.
Thus, tarpaulin required = 2(l + b) × h + lb
= [2(4 + 3) × 2.5 + 4 × 3] m2
= (35 + 12) m2
= 47 m2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2

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Question 1.
A parks, in the shape of a quadrilateral ABCD has ∠C = 90°, AB = 9 m, BC = 12 m, CD = 5 m and AD = 8 m. How much area does it occupy?
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 1
Answer:
∠C = 90°, AB = 9 m, BC = 12 m, CD = 5 m and AD = 8 m
BD is joined.
In ∆BCD,
By applying Pythagoras theorem,
BD2 = BC2 + CD2
⇒ BD2 = 122 + 52
⇒ BD2 = 169
⇒ BD2 = 169
⇒ BD = 13 m

Area of ΔBCD = 12 × 12 × 5 = 30 m2

Now,
Semi perimeter of ∆ABD
S = \(\frac{(8 + 9 + 13)}{2}\) m = \(\frac{30}{2}\) m = 15 m
Using Herons formula,
Area of ∆ABD = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{15(15 -13)(15 – 9)(15 – 8)}\) m2
= \(\sqrt{l5x2x6x7 m2
= [latex]6 \sqrt{5}\) m2
= 35.5 m2 (approx.)

Area of quadrilateral ABCD = Area of ∆BCD + Area of ∆ABD
= 30 m2 +35.5 m2
= 65.5 m2

Question 2.
Find the area of a quadrilateral ABCD in which AB = 3 cm, BC = 4 cm, CD = 4 cm, DA = 5 cm and AC = 5 cm.
Answer:
AB = 3 cm, BC = 4 cm, CD = 4 cm, DA = 5 cm and AC = 5 cm
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 2
In ∆ABC,
Consider AC2 = 52 = 25
and AB2 + BC2 = 32 + 42 = 25
∴ AC2 = AB2 + BC2
Thus, ∆ABC is right angled at B.
Area of ∆ABC = \(\frac{1}{2}\) × 3 × 4 = 6 cm2
Now,
Semi perimeter of ∆ACD(s)
\(\frac{5+5+4}{2}\) cm = \(\frac{14}{2}\) cm = 7 cm

Using Herons formula,
Area of ∆ACD = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{(7-5)(7-5)(7-4)}\) cm2
= \(\sqrt{7×2×2×3}\) cm2
= \(2 \sqrt{2}\) cm2
= 9.17 cm2 (approx.)

Area of quadrilateral ABCD
= Area of ∆ABC + Area of ∆ACD = 6 cm2 + 9.17 cm2 = 15.17 cm2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2

Question 3.
Radha made a picture of an aeroplane with coloured paper as shown in Fig. Find the total area of the paper used.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 3
Answer:
Length of the sides of the triangle section I = 5 cm, 1 cm and 5 cm
Perimeter of the triangle = 5 + 5 + 1 = 11 cm
Semi perimeter = \(\frac{11}{2}\) cm = 5.5 cm

Using Heron’s formula,
Area of section I = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{15.5(5.5 – 5)(5.5 – 5)(5.5 – 1)}\) cm2
= \(\sqrt{5.5 × 0.5 × 0.5 × 4.5}\) cm2
= \(0.75 \sqrt{11}\) cm2
= 0.75 × 3.317 cm2
= 2.488 cm2 (approx.)

Length of the sides of the rectangle of section II = 6.5 cm and 1 cm
Area of section II = 6.5 × 1 cm2 = 6.5 cm2
Area of section III
Draw BE || AD such that ABED is a parallelogram (as AB || DE and AD || BE)
Also, draw BF ⊥ EC
Now, DE = AB = 1 cm and AD = BE = 1 cm (Opposite sides of parallelogram)
⇒ EC = DC – DE = 2 – 1 = 1 cm
⇒ BE = BC = EC = 1 cm
⇒ ∆BEC is an equilateral triangle.
∴ F is the mid point of EC.
⇒ EC = FC = \(\frac{1}{2}\) cm.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 4
In ∆BFC, right angled at F
BC2 = BF2 + CF2
12 = BF2 + (\(\frac{1}{2}\))2
BF2 = 1 – \(\frac{1}{4}\) = \(\frac{3}{4}\)
⇒ BF = \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) cm

So, Area of trapezium = \(\frac{1}{2}\) (sum of parallel sides) × height
= \(\frac{1}{2}\) (AB + CD) × BF
= \(\frac{1}{2}\) (1 + 2) \(\frac{\sqrt{3}}{2}\)
= \(\frac{3 \sqrt{3}}{4}\)
= 1.3 cm2

Section IV and V are 2 congruent right angled triangles with base 6 cm and height 1.5 cm
Area of region IV and V = 2 × \(\frac{1}{2}\) × 6 × 1.5 cm2 = 9 cm2

Total area of the paper used = (2.488 + 6.5 + 1.3 + 9) cm2 = 19.3 cm2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2

Question 4.
A triangle and a parallelogram have the same base and the same area. If the sides of the triangle are 26 cm, 28 cm and 30 cm, and the parallelogram stands on the base 28 cm, find the height of the parallelogram.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 5
Answer:
Given,
Area of the parallelogram and triangle are equal.
Length of the sides of the triangle are 26 cm, 28 cm and 30 cm.
Perimeter of the triangle = 26 + 28 + 30 = 84 cm
Semi perimeter of the triangle 84
s = \(\frac{84}{2}\) cm = 42 cm

Using Heron’s formula,
Area of the triangle
= \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{42(42-26)(42-28)(42-30)}\)
= \(\sqrt{42×16×14×12}\) cm2 = 336 cm2

Let height of parallelogram be h cm.
Area of parallelogram = Area of triangle
⇒ 28 × h = 336
⇒ h = \(\frac{336}{28}\) cm
⇒ h = 12 cm
The height of the parallelogram is 12 cm.

Page-207

Question 5.
A rhombus shaped field has green grass for 18 cows to graze. If each side of the rhombus is 30 m and its longer diagonal is 48 m, how much area of grass field will each cow be getting?
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 6
Answer:
Diagonal AC divides the rhombus ABCD into two congruent triangles of equal area.
Semi perimeter of ∆ABC = \(\frac{(30 + 30 + 48)}{2}\) m = 54 m

Using Herons formula,
Area of the ∆ABC
= \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{54(54-30)(54-30)(54-48)}\) m2
= \(\sqrt{54×24×24×6}\) m2
= 432 m2

Area of field = 2 × area of the ∆ABC
= (2 × 432) m2 = 864 m2
Thus,
Area of grass field which each cow will be getting = \(\frac{864}{18}\) m2 = 48 m2

Question 6.
An umbrella is made by stitching 10 triangular pieces of cloth of two different colours (see Fig.), each piece measuring 20 cm, 50 cm and 50 cm. How much cloth of each colour is required for the umbrella?
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 7
Answer:
Semi perimeter of each triangular piece
\(\frac{(50 + 50 + 20)}{2}\) cm
= \(\frac{120}{2}\) cm = 60 cm

Using Herons formula,
area of the triangular pieces of each colour
= \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{60(60 – 50)(60 – 50)(60 -20)}\) cm2
= \(\sqrt{60×10×10×40}\) cm2
= \(200 \sqrt{6}\) cm2

Area of 5 triangular pieces = 5 × \(200 \sqrt{6}\) cm2
= \(1000 \sqrt{6}\) cm2
Hence, cloth require for each colour = \(1000 \sqrt{6}\) cm2

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2

Question 7.
A kite in the shape of a square with a diagonal 32 cm and an isosceles triangle of base 8 cm and sides 6 cm each is to be made of three different shades as shown in Fig. How much paper of each shade has been used in it?
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 8
Answer:
We know that,
As the diagonals of a square bisect each other at right angle.
Area of square = \(\frac{1}{2}\) (diagonal)2
= \(\frac{1}{2}\) x 32 x 32 = 512 cm2
Area of shade I = \(\frac{1}{2}\) cm2

= 256 cm2 = Area of shade II
So, area of paper required in each of shade
I and shade II = 256 cm2 For the III section,
Length of the sides of triangle are 6 cm, 6 cm and 8 cm Semi perimeter of triangle (6 + 6 + 8)
s = cm = 10 cm
Using Herons formula,
Area of section III = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
=\(\sqrt{10(10 – 6)(10 – 6)(10 – 8)}\) cm2
= \(\sqrt{10×4×4×2}\) cm2 = \(8 \sqrt{5}\) cm2
= 17.92 cm2

Hence paper needed for shade I = shade
II = 256 cm2 paper needed for shade
III = 17.92 cm2

Question 8.
A floral design on a floor is made up of 16 tiles which are triangular, the sides of the triangle being 9 cm, 28 cm and 35 cm (see Fig.). Find the cost of polishing the tiles at the rate of 50p per cm2.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 9
Answer:
Semi perimeter of the each triangular shape = \(\frac{(28 + 9 + 35)}{2}\) cm = 36 cm

Using Herons formula,
Area of the each triangular shape
= \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{36(36 – 28)(36 – 9)(36 – 35)}\) cm2
= \(\sqrt{36×8×27×1}\) cm2 = \(36 \sqrt{6}\) cm2
= 88.2 cm2

Total area of 16 tiles
= 16 × 88.2 cm2= 1411.2 cm2
Cost of polishing tiles = 50 p per cm2
Total cost of polishing the tiles = ₹ (1411.2 × 0.5) = ₹ 705.6

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2

Question 9.
A field is in the shape of a trapezium whose parallel sides are 25 m and 10 m. The non-parallel sides are 14 m and 13 m. Find the area of the field.
JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 12 Heron’s Formula Ex 12.2 - 10
Answer:
Let ABCD be the given trapezium with parallel sides AB = 25 m and CD = 10 m and the non-parallel sides AD = 13 m and BC = 14 m.
Draw CM ⊥ AB and CE || AD.

In ∆BCE,
BC = 14 m, CE = AD = 13 m and BE = AB – AE = 25 – 10= 15 m
Semi perimeter of the ∆BCE = \(\frac{(15 + 13 + 14)}{2}\) cm = 21 cm
Using Heron’s ormula,
Area of the ∆BCF = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\)
= \(\sqrt{21(21 – 14)(36 – 13)(21 – 15)}\) m2
= \(\sqrt{21×7×8×6}\) m2
= 84 m2

Area of the ∆BCE = \(\frac{1}{2}\) × BE × CM = 84 m2
⇒ \(\frac{1}{2}\) × 15 × CM = 84
⇒ CM = \(\frac{168}{15}\) m
⇒ CM = \(\frac{56}{5}\) m

Area of the parallelogram AECD = Base × Altitude = AE × CM
= 10 × \(\frac{56}{5}\) = 112 m2

Area of the trapezium ABCD
= Area of AECD + Area of ∆BCE = (112 + 84) m2= 196 m2

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

JAC Class 10th Sanskrit भूकम्पविभीषिका Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिये)
(क) कस्य दारुण विभीषिका गुर्जरक्षेत्रं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती?
(किसकी दारुण विभीषिका ने गुजरात क्षेत्र को ध्वंसावशेषों में परिणित कर दिया?)
(ख) कीदृशानि भवनानि धाराशायीनि जातानि?
(कैसे भवन धराशायी हो जाते हैं?)
(ग) दुर्वार-जलधाराभिः किमुपस्थितम्?
(कठिनाई से रोके जाने वाली जल धाराओं ने क्या उपस्थित कर दिया?)
(घ) कस्य उपशमनस्य स्थिरोपायः नास्ति?
(किसको शान्त करने का स्थिर उपाय नहीं है?)
(ङ) कीदृशाः प्राणिनः भूकम्पेन निहन्यन्ते ?
(कैसे प्राणी भूकम्प द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं ?)
उत्तराणि :
(क) भूकम्पस्य (भूकम्प की)
(ख) बहुभूमिकानि (बहुमञ्जिले)
(ग) महाप्लावनदृश्यम् (महान बाढ़ के दृश्य को)
(घ) भूकम्पस्य (भूकम्प के)
(ङ) विवशा (मजबूर)

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) समस्तराष्ट्र कीदृक् उल्लासे मग्नम् आसीत् ?
(सारा राष्ट्र कैसे उल्लास में मग्न था ?)
उत्तरम् :
समस्तराष्ट्रं नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नम् आसीत्।।
(सम्पूर्ण राष्ट्र नाच-गान और वादनों के उल्लास में डूबा हुआ था।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(ख) भूकम्पस्य केन्द्रभूतं किं जनपदः आसीत् ?
(भूकम्प का केन्द्रस्थित जनपद कौन-सा था ?)
उत्तरम् :
भूकम्पस्य केन्द्रभूतं कच्छजनपदः आसीत्।
(भूकम्प का केन्द्रस्थित भुज जनपद था।)

(ग) पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते ?
(पृथ्वी के स्खलन से क्या पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
पृथिव्याः स्खलनात् बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव पतन्ति। विद्युद्दीपस्तम्भाः पतन्ति। गृहसोपानमार्गाः विशीर्यन्ते।
भूमिः फालद्वये विभक्ता भवति। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वारजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपतिष्ठति। (पृथ्वी के अपने स्थान से खिसकने (हिलने) से बहुमंजिले मकान पलभर में गिर जाते हैं। बिजली के खम्भे गिर जाते हैं। घरों की सीढ़ियाँ टूटकर बिखर जाती हैं। भूमि दो भागों में बँट जाती है। पृथ्वी के भीतरी भाग से निकलने वाली अनियंत्रित जलधाराओं से बाढ़ जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है।)।

(घ) समग्रो विश्वः कैः आतङ्कितः दृश्यते ?
(सम्पूर्ण विश्व किनसे आतङ्कित दिखाई देता है ?)।
उत्तरम् :
समग्रो विश्वः भूकम्पैः आतङ्कितः दृश्यते।
(सम्पूर्ण संसार भूकम्पों से आतङ्कित दिखाई देता है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(ङ) केषां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते ?
(किनके विस्फोटों से भी भूकम्प पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते। (ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प पैदा होता है।)

प्रश्न 3.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती।।
(भूकम्प की विभीषिका ने विशेषतः कच्छ जिले को ध्वंसावशेषों में परिवर्तित कर दिया।)
उत्तरम् :
भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं केषु परिवर्तितवती ?
(भूकम्प की विभीषिका ने विशेषतः कच्छ जिले को किसमें परिवर्तित कर दिया ?)

(ख) वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
(वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी के गर्भ में पत्थर की शिलाओं के रगड़ने से कम्पन पैदा होता है।)
उत्तरम् :
के कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भ, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते ?
(कौन कहते हैं कि पृथ्वी के गर्भ में पत्थर की शिलाओं की रगड़ से कंपन पैदा होता है ?)

(ग) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते।
(विवश प्राणी आकाश में चींटी की तरह मारे जाते हैं।)
उत्तरम् :
विवशाः प्राणिनः कस्मिन् स्थाने (कुत्र) पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते ?
(विवश प्राणी किस स्थान पर (कहाँ) चींटी की तरह मारे जाते हैं ?)

(घ) एतादृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता।
(ऐसी भयानक घटना गढ़वाल क्षेत्र में घटी थी।)
उत्तरम् :
कीदृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता ?
(कैसी भयानक घटना गढ़वाल क्षेत्र में घटी थी ?)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(ङ) तदिदानीम् भूकम्पकारणं विचारणीयं तिष्ठति।
(तो अब भूकम्प का कारण विचारणीय है।)
उत्तरम् :
तदिदानीम् किं विचारणीयं तिष्ठति ?
(तो अब क्या विचारणीय है ?)

प्रश्न 4.
‘भूकम्पविषये’ पञ्चवाक्यमितम् अनुच्छेदं लिखत – (भूकम्प के विषय में पाँच वाक्यों का अनुच्छेद लिखिये-)
उत्तरम् :
भूकम्पेन प्रकृतेः सन्तोलनं नश्यति। प्रकृतेः असन्तोलनस्य भीषणः परिणामः भवति। भूकम्पेन बहुभूमिकानि भवनानि क्षणमात्रेण ध्वस्तानि भवन्ति। पतितेषु भवनेषु बहवः प्राणिनः मृत्युं प्राप्नुवन्ति। एवं भूकम्पेन भीषणा क्षतिः भवति। (भूकम्प से प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। प्रकृति के असंतुलन का भीषण परिणाम होता है। भूकम्प से बहुमंजिले मकान पलभर में गिर जाते हैं। गिरे हुए मकानों में बहुत-से प्राणी मर जाते हैं। इस प्रकार भूकम्प से भयंकर हानि होती है।)

प्रश्न 5.
कोष्ठकेष दत्तेष धातष निर्देशानसारं परिवर्तनं विधाय रिक्तस्थानानि परयत –
(कोष्ठक में दी हुई धातुओं में निर्देश के अनुसार परिवर्तन करके रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
(क) समग्रं भारतं उल्लासे मग्नः ……………. (अस् + लट् लकारे)
(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं …………. (कृ + क्तवतु + ङीप्)
(ग) क्षणेनैव प्राणिनः गृहविहीनाः ………….. (भू + लङ्, प्रथमपुरुष, बहुवचन)
(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्याम् ………. (भू + लट्, प्रथमपुरुष, बहुवचन)
(ङ) मानवाः ……………….. यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयं न वा? (पृच्छ + लट्, प्रथमपुरुष, बहुवचन)
(च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे ……………… (सम् + आ + विश् + विधिलिङ्, प्रथमपुरुष, एकवचन)
उत्तरम् :
(क) अस्ति
(ख) कृतवती
(ग) अभवन्
(घ) भवन्ति
(ङ) पृच्छन्ति
(च) समाविशे

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 6.
(अ) सन्धिं/सन्धिविच्छेदं च कुरुत (सन्धि तथा सन्धि-विच्छेद कीजिए।)
(अ) परसवर्णसन्धिनियमानुसारम् (परसवर्ण सन्धि के नियमानुसार)
(क) किञ्च = ………..+ च।
(ख) ………… = नगरम् + तु।
(ग) विपन्नञ्च = ……….. + ……….।
(घ) ………… = किम् + नु।
(ङ) भुजनगरन्तु = …………… + ………..।
(च) ………… = सम् + चयः।
उत्तर :
(क) किञ्च = किं + च।
(ख) नगरन्तु = नगरम् + तु।
(ग) विपन्नञ्च = विपन्नम् + च।
(घ) किन्नु = किम् + नु।
(ङ) भुजनगरन्तु = भुजनगरम् + तु।
(च) सञ्चयः = सम् + चयः।

(आ) विसर्गसन्धिनियमानसारम (विसर्गसन्धि के नियमानुसार)
(क) शिशवस्तु = …….. + …….।
(ख)………… = विस्फोटैः + अपि।
(ग) सहस्रशोऽन्ये =……….+ अन्ये।
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + ……।
(ङ) ……… = भूकम्पः + जायते।
(च) वामनकल्य एव = …….. + ……..।
उत्तरम् :
(क) शिशवस्तु = शिशवः + तु।
(ख) विस्फोटैरपि = विस्फोट: + अपि।
(ग) सहस्रशोऽन्ये = सहस्रशः + अन्ये।
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + अयम्।
(ङ) भूकम्पो जायते = भूकम्प: + जायते।
(च) वामनकल्प एव = वामनकल्पः + एव।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 7.
(अ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे विलोमपदानि, तयोः संयोगं करुत
(‘क’ स्तम्भ में दिए गए पदों को ‘ख’ स्तम्भ में दिए गए उनके विलोम पदों से मिलाइए-)
(क) – (ख)
सम्पन्नम् – प्रविशन्तीभिः
ध्वस्तभवनेषु – सुचिरेणैव
निस्सरन्तीभिः – विपन्नम्
निर्माय – नवनिर्मितभवनेषु
क्षणेनैव – विनाश्य
उत्तर :
(क) – (ख)
सम्पन्नम् – विपन्नम्
ध्वस्तभवनेषु – नवनिर्मितभवनेषु
निस्सरन्तीभिः – प्रविशन्तीभिः
निर्माय – विनाश्य
क्षणेनैव – सुचिरेणैव

(आ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे समानार्थकपदानि तयोः संयोगं कुरुत- (माध्यमिक परीक्षा, 2013) (‘क’ स्तम्भ में पद दिए हुए हैं और ‘ख’ स्तम्भ में उनके समानार्थी पद हैं, उन दोनों का मेल कीजिए-)
(क) – (ख)
पर्याकुलम् – नष्टाः
विशीर्णाः – क्रोधयुक्ताम्
उगिरन्तः – संत्रोट्य
विदार्य – व्याकुलम्
प्रकुपिताम् – प्रकटयन्तः
उत्तर :
(क) – (ख)
पर्याकुलम् – व्याकुलम्
विशीर्णाः – नष्टाः
उगिरन्तः – प्रकटयन्तः
विदार्य – संत्रोट्य
प्रकुपिताम् – क्रोधयुक्ताम्

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 8.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य प्रकृति-प्रत्ययोः विभागं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार प्रकृति-प्रत्यय को पृथक् कीजिए-)
यथा – परिवर्तितवती – परि + वृत् + क्तवतु + ङीप् (स्त्री)

  • धृतवान् – …………. + …………..
  • हसन् …………. + …………..
  • विशीर्णा – वि + श + क्त + ………..
  • प्रचलन्ती – …………. + ………….. + शतृ + ङीप् (स्त्री)
  • हतः – …………. + …………..

उत्तरम् :

  • धृतवान् ‘- धृ + क्तवतु
  • हसन् – हस् + शत्र
  • विशीर्णा – वि + शृ + क्त + टाप् (स्त्री)
  • प्रचलन्ती – प्र + चल् + शतृ + ङीप् (स्त्री)
  • हतः – हन् + क्त

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

(आ) पाठात् विचित्य समस्तपदानि लिखत – (पाठ से चुनकर समस्त पद लिखिए-)
(क) महत् च तत् कम्पनम् = …………
(ख) दारुणा च सा विभीषिका = …………
(ग) ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = …………
(घ) प्राक्तने च तस्मिन् युगे = ………
(ङ) महत् च तत् राष्ट्र तस्मिन् = …………
उत्तरम् :
(क) महाकम्पनम्
(ख) दारुणविभीषिका
(ग) ध्वस्तभवनेषु
(घ) प्राक्तनयुगे
(ङ) महाराष्ट्रे।

JAC Class 10th Sanskrit भूकम्पविभीषिका Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
भारतराष्ट्र नृत्य-गीत-वादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् –
(अ) प्रसन्नतायाम्
(ब) प्रमादे
(स) भग्न
(द) दुखे
उत्तरम् :
(अ) प्रसन्नतायाम्

प्रश्न 2.
विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः।
(अ) विभीषिका
(ब) नष्य
(स) विशेषेण
(द) भूकम्पस्य
उत्तरम् :
(ब) नष्य

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 3.
फालद्वये विभक्ता
(अ) संपुज्य
(ब) धराः
(स) विभाजिता
(द) निस्सरन्तीभिः
उत्तरम् :
(स) विभाजिता

प्रश्न 4.
द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।
(अ) सहस्रमिताः
(ब) सहायतार्थम्
(स) मृतप्रायाः
(द) प्राणान्.
उत्तरम् :
(द) प्राणान्.

प्रश्न 5.
इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छभूकम्पस्य।
(अ) भीषण
(ब) ऋजु
(स) दुर्बलः
(द) कटु
उत्तरम् :
(अ) भीषण

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

प्रश्न 6.
तदैव भयावहकम्पनं धराया
(अ) प्रकम्पते
(ब) प्रथिव्याः
(स) कथयन्ति
(द) संघर्षण
उत्तरम् :
(ब) प्रथिव्याः

प्रश्न 7.
विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति- .
(अ) कथम्
(ब) सञ्चयम्
(स) वदन्ति
(द) सर्वमेव
उत्तरम् :
(स) वदन्ति

प्रश्न 8.
ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।
(अ) नदीवेगेन
(ब) ग्रामाः
(स) पर्वताः
(द) उत्पादयन्ति
उत्तरम् :
(द) उत्पादयन्ति

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प्रश्न 9.
यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम
(अ) ईश्वरीयः
(ब) उपशमनस्य
(स) कोऽपि
(द) तथापि
उत्तरम् :
(अ) ईश्वरीयः

प्रश्न 10.
अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।
(अ) तटबन्धम्
(ब) वस्तुतः
(स) मित्र
(घ) रिपुः
उत्तरम् :
(ब) वस्तुतः

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
भूकम्पेन भुजनगरं कीदृशं जातम् ?
(भुजनगर भूकम्प से कैसा हो गया?)
उत्तरम् :
खण्ड-खण्डम् (टुकड़े-टुकड़े)।

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प्रश्न 2.
कीदृशानि भवनानि धराशायीनि जातानि ?
(कैसे भवन धराशायी हो गये ?)
उत्तरम् :
बहुभूमिकानि (बहुमंजिले)।

प्रश्न 3.
भूकम्पेन क्षणेन कति मानवाः मृताः ?
(भूकम्प से क्षणभर में कितने मनुष्य मर गये ?)
उत्तरम् :
सहस्रमिताः (हजारों)।

प्रश्न 4.
ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः मानवाः किं कुर्वन् आसन् ?
(ध्वस्त भवनों में पीड़ित मनुष्य क्या कर रहे थे ?)
उत्तरम् :
करुणक्रन्दनम् (करुण क्रन्दन)।

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प्रश्न 5.
बृहत्यः पाषाणशिलाः कस्मात् कारणात् त्रुट्यन्ति ?
(विशाल पत्थर की शिलाएँ किस कारण से टूटती हैं ?)
उत्तरम् :
संघर्षणवशात् (घर्षण के कारण)।

प्रश्न 6.
पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते ?
(पृथ्वी के स्खलन से क्या होता है ?)
उत्तरम् :
महाविनाशम् (महाविनाश)।

प्रश्न 7.
अग्निः शिलादिसञ्चयं किं करोति ?
(आग शिला आदि संचय का क्या करती है ?)
उत्तरम् :
क्वथयति (उबाल देती है)।

प्रश्न 8.
गगनं केन आवृणोति? (आकाश किससे ढक जाता है ?)
उत्तरम् :
धूमभस्माभ्याम् (धुआँ और राख से)।

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प्रश्न 9.
प्रकृतेः असन्तुलनवशात् किं सम्भवति ?
(प्रकृति के असन्तुलन के कारण क्या होता है ?)
उत्तरम् :
भूकम्पः (पृथ्वी का हिलना)।

प्रश्न 10.
एकस्मिन् स्थले किं न पुञ्जीकरणीयम् ?
(एक जगह पर क्या एकत्रित नहीं करना चाहिए ?)
उत्तरम् :
नदीजलम् (नदियों का पानी)।

प्रश्न 11.
भूकम्पावसरे भारतराष्ट्र केषाम् उल्लासे मग्नमासीत् ?
(भूकम्प के अवसर पर भारत राष्ट्र किसके उल्लास में डूबा हुआ था ?)
उत्तरम् :
गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि (गणतन्त्र दिवस समारोह में)।

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प्रश्न 12.
भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका कस्मिन् जनपदे आसीत् ?
(भूकम्प की भयंकर घटना किस जिले में थी ?)
उत्तरम् :
कच्छजनपदे (कच्छ जिले में)।

प्रश्न 13.
कति फाले विभक्ता भूमिः ?
(भूमि कितने भागों में बँट गई ?)
उत्तरम् :
फालद्वये (दो भागों में)।

प्रश्न 14.
भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुरजलधाराभिः किं दृश्यम् उपस्थितम् ?
(धरती के भीतरी भाग से ऊपर निकलती अनियंत्रित जलधाराओं से क्या दृश्य उपस्थित हो गया ?)
उत्तरम् :
महाप्लावनम् (भयंकर बाढ़ का)।

प्रश्न 15.
कच्छजनपदे कस्य भैरवविभीषिका आसीत् ?
(कच्छजनपद में किसकी भयंकर विभीषिका थी ?)
उत्तरम् :
भूकम्पस्य (भूकम्प की)।

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प्रश्न 16.
कस्याः अन्तर्गर्भे बृहत्यः पाषाणशिलाः विद्यमानाः भवन्ति ?
(किसके भीतरी भाग में पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाएँ मौजूद होती हैं ?)
उत्तरम् :
पृथिव्याः (धरती के)।

प्रश्न 17.
ग्रामाः नगराणि च कस्मिन् समाविशन्ति ?
(गाँव और नगर किसमें समाविष्ट हो जाते हैं ?)
उत्तरम् :
लावारसोदरे (लावे के अन्दर)।

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प्रश्न 18.
केषां विस्फोटैः भूकम्पः जायते ?
(किनके विस्फोट से भूकंप पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
ज्वालामुखपर्वतानाम् (ज्वालामुखी पहाड़ों के)।

प्रश्न 19.
अद्यापि विज्ञानगर्वितः मानवः कीदृशः अस्ति ?
(आज भी विज्ञान से गर्वित मानव कैसा है ?)
उत्तरम् :
वामनकल्पः (बौना-सा)।

प्रश्न 20.
केषां प्रकोपः भूकम्पः अस्ति ?
(भूकम्प किनका प्रकोप है ?)
उत्तरम् :
देवानाम् (देवताओं का)।

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पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 21.
भूकम्पेन कच्छजनपदस्य का दशा अभवत् ?
(भूकम्प से कच्छ जिले की क्या स्थिति हो गई ?)
उत्तरम् :
भूकम्पेन कच्छ जनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितम्।
(भूकम्प से कच्छ जिला खण्डहरों में बदल गया।)

प्रश्न 22.
सहस्रमिता: प्राणिनः कथं मृताः ?
(हजारों प्राणी कैसे मर गये ?)
उत्तरम् :
भूकम्पस्य विभीषिकया सहस्रमिताः प्राणिनः मृताः।
(भूकम्प की विभीषिका से हजारों प्राणी मर गये।)

प्रश्न 23.
भूकम्पात् किं भवति ?
(भूकम्प से क्या होता है ?)
उत्तरम् :
भूकम्पात् अपार-जन-धन-हानिः भवति।
(भूकम्प से अपार जन और धन की हानि होती है।)

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प्रश्न 24.
पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निः किं करोति?
(धरती के गर्भ में स्थित आग क्या करती है ?)
उत्तरम् :
पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निः खनिजमृत्तिकाशिलादि सञ्चयं क्वथयति।
(पृथ्वी के गर्भ में स्थित आग खनिज-मिट्टी की शिलाओं के संचय को उबालती है।)

प्रश्न 25.
मानवः वामनकल्पः कुत्र भवति ? (मनुष्य बौने के समान कहाँ होता है ?)
प्रकत्याः समक्षं मानवः वामनकल्पः एव भवति।
(प्रकृति के समक्ष मानव बौना-सा ही होता है।)

प्रश्न 26.
भूकम्पेन गुर्जरराज्यं कीदृशम् अभवत् ?
(भूकम्प से गुजरात राज्य कैसा हो गया ?)
उत्तरम् :
भूकम्पेन गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तं क्रन्दनविकलं च जातम्।
(भूकम्प से गुजरात राज्य चारों ओर से व्याकुल, अस्त-व्यस्त तथा क्रन्दन से व्याकुल हो गया।)

प्रश्न 27.
महाप्लावनदृश्यं कथम् उपस्थितम्? (महाप्लावन का दृश्य कैसे उपस्थित हो गया ?)
उत्तरम् :
भूमिगर्भाद् उपरि निस्सरन्तीभिः दुरिजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।
(भूमि के गर्भ से ऊपर निकलती कठिनाई से रोकने योग्य जल की धाराओं से महाप्लावन का दृश्य उपस्थित हो गया।)

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प्रश्न 28.
कश्मीरप्रान्ते कदा महाकम्पनम् आगतम् ?
(कश्मीर प्रान्त में महाभूकम्प कब आया ?)
उत्तरम् :
कश्मीरप्रान्ते पञ्चोत्तरद्विसहस्रख्रीष्टाब्दे भूकम्पम् आगतम्।
(कश्मीर प्रान्त में 2005 ई. में भूकम्प आया।)

प्रश्न 29.
भूकम्पः कैः अपि जायते ?
(भूकम्प किनसे भी पैदा होता है ?)
उत्तरम् :
भूकम्पः ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटः अपि जायते।
(भूकम्प ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी पैदा होता है।)

प्रश्न 30.
कस्य स्थिरोपायो न दृश्यते ?
(किसका स्थायी उपचार नहीं दिखाई देता ?)
उत्तरम् :
भूकम्पोपशमनस्य कोऽपि स्थिरोपायः न दृश्यते।
(भूकम्प शान्ति का कोई स्थिर उपाय नहीं दिखाई देता।)

प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. गुर्जरराज्ये एकोत्तरद्विसहस्त्रख्रीष्टाब्दे भूकम्पः जातः।
(गुजरात में 2001 ई. में भूकम्प आया।)
2. भूकम्पेन बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि।
(भूकम्प से बहुमञ्जिले मकान क्षणभर में धराशायी हो गए।)
3. भूकम्पेन फालद्वये भूमिः विभक्ता।
(भूकम्प से धरती दो भागों में विभक्त हो गई।)
4. जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।
(जल की धाराओं से महान् बाढ़ का दृश्य पैदा हो गया।)
5. सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव भूकम्पेन मृताः।
(हजारों प्राणी क्षणभर में ही भूकम्प से मारे गए।)
6. ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः क्रन्दन्ति स्म।
(ध्वस्त भवनों में पीड़ित (लोग) क्रन्दन कर रहे थे।)
7. शिशवः ईश्वरकृपया जीवनं धारितवन्तः।
(बच्चे ईश्वर की कृपा से जीवन धारण किए हुए थे।)
8. कश्मीरप्रान्ते पञ्चोत्तरद्विसहस्त्रख्रीष्टाब्दे धरायाः महत्कम्पनं जातम्।।
(कश्मीर प्रान्त में 2005 ई. में धरती का महान् कम्पन हुआ।)
9. कश्मीरे धरायाः महत्कम्पनात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः।
(कश्मीर में धरती के महान् कम्पन से लाखों लोग असमय में काल के ग्रास बन गए।)
10. महाकम्पनेन महाविनाशदृश्यम् समुत्पद्यते।
(महाकम्पन से महाविनाश का दृश्य पैदा हो जाता है।)
उत्तराणि :
1. गुर्जरराज्ये कदा भूकम्पः जातः ?
2. भूकम्पेन कानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि ?
3. केन फालद्वये भूमिः विभक्ता ?
4. काभिः महाप्लावनदृश्यमुपस्थितम् ?
5. कति प्राणिनः क्षणेनैव भूकम्पेन मृताः ?
6. केषु सम्पीडिताः क्रन्दन्ति स्म ?
7. शिशवः कया जीवनं धारितवन्तः ?
8. कश्मीरप्रान्ते कदा धरायाः महत्कम्पनं जातम् ?
9. कश्मीरे जनाः अकालकालकवलिताः ?
10. केन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते ?

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पाठसार लेखनम –

प्रश्न :
‘भूकम्पविभीषिका’ इति पाठस्य सारांश: हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
ईसवी सन् 2001 में गणतन्त्र दिवस समारोह में जिस समय सम्पूर्ण भारत देश तल्लीन था, उस समय अनायास ही धरती हिलने के भयंकर त्रास ने सारे ही गुजरात प्रदेश को विशेष रूप से कच्छ नाम के जनपद को खण्डहरों में बदल दिया था। केन्द्र बना भुजनामक नगर तो मिट्टी के खिलौने की तरह चकनाचूर हो गया था। अनेक मंजिलों वाले भवन तो क्षणमात्र में ही धराशायी हो गये। जल की धाराओं से महान् बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो गया।

हजारों की संख्या में जीवधारी क्षण मात्र में ही मारे गये। घरों के नष्ट हो जाने पर पीड़ित हजारों की संख्या में दूसरे सहयोग के लिये अति करुण क्रन्दन कर रहे थे। हे विधाता! भूख से सूखे गले वाले मरणासन्न कुछ बच्चे भगवान् की कृपा से दो-तीन दिन तक ही प्राणों को धारण कर सके। कच्छ क्षेत्र में उत्पन्न भूकम्प की भयानक आपत्ति की यह स्थिति थी। ईशवी सन् 2005 में भी कश्मीर प्रदेश और पाकिस्तान देश में महान् भूकम्प आया।

जिसमें लाखों की संख्या में मानव असमय में ही मर गये। ‘धरती किस कारण से हिलती है। वैज्ञानिक इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में विद्यमान विशाल पत्थर की चट्टानें जिस समय आपस में टकराने से दुकड़े-टुकड़े हो जाती है उस समय भयंकर विचलन होता है। विचलन से उत्पन्न कम्पन्न उसी समय पृथ्वी के बाहरी तल पर आकर महान् कम्पन पैदा करता है। जिसके कारण अतिविनाश का दृश्य उत्पन्न हो जाता है।

ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प होता है। ऐसा भूगर्भ रहस्य वेत्ताओं ने कहा है। भूकम्प दैवी प्रकोप है। परन्तु इसका कोई स्थायी शान्ति का कोई उपचार नजर नहीं आता है। प्रकृति के सामने आज भी मनुष्य बौना है। परंतु फिर भी भूकम्प के रहस्य को जानने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि बहुमञ्जिले भवनों का निर्माण नहीं करना चाहिये। पानी के बाँधों का निर्माण करके बड़ी मात्रा में नदी के जल को एक जगह संग्रह नहीं करना चाहिये। नहीं तो सन्तुलन के अभाव में भूकम्प सम्भव है।

भूकम्पविभीषिका Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रकृति ने जहाँ हमें अनेक प्रकार के भौतिक सुख-साधन उपलब्ध कराए हैं, वहीं अनेक आपदाएँ भी प्रदान की हैं। कभी किसी महामारी की आपदा, बाढ़ तथा सूखे की आपदा या तूफान के रूप में भयंकर प्रलय। ये सभी आपदाएँ देखते-ही-देखते महाविनाश करके मानव-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। इन्हीं भयङ्कर आपदाओं में से एक है- भूकम्प। भूकम्प में पृथ्वी अकस्मात् काँपने लगती है। फलस्वरूप विशालकाय निर्माण, बहुमंजिले भवन, सड़कें और बिजली के खम्भे आदि गिरकर महाविनाश का कारण बनते हैं। प्रस्तुत पाठ इसी आपदा पर आधारित है। इस पाठ के माध्यम से बताया गया है कि किसी भी आपदा में बिना किसी घबराहट के, हिम्मत के साथ किस प्रकार हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

मूलपाठः,शब्दार्थाः, सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

1. एकोत्तरद्विसहस्रनीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्र नृत्य-गीत-वादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं, विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः।

शब्दार्थाः – एकोत्तर द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे = 2001 ईस्वीये वर्षे (सन् 2001 ईग्वी वर्ष में)। गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि = गणतन्त्रदिवसोत्सवे (गणतन्त्र दिवस समारोह में)। यदा = यस्मिन् काले जब)। समग्रमपि भारतराष्ट्रम् = सम्पूर्णोऽपि भारतदेशः (सारा भारत राष्ट्र)। नृत्य-गीत-वादित्राणाम् = नर्तनस्य, गानस्य वाद्यवादनस्य च (नाच-गाने और बाजे बजाने के)। उल्लासे = प्रसन्नतायाम् (खुशी में)। मग्नमासीत् = तल्लीनः निमग्नः, व्यापृतः वा अवर्तत (डूबा हुआ था)। तदा = तस्मिन् काले (तब)। अकस्मादेव = अनायासमेव (अचानक ही)। गुर्जर-राज्यम् = गुजराताख्यं प्रान्तम् (गुजरात प्रान्त)। पर्याकुलम् = परितः व्याकुलम् (चारों ओर से बेचैन)। विपर्यस्तम् = अस्तव्यस्तम् (अस्तव्यस्त)। क्रन्दनविकलम् = चीत्कारेण व्याकुलम् (क्रन्दन, रुदन से बेचैन)।

विपन्नम् = विपत्तियुक्तम्, विपत्तिग्रस्तम् (मुसीबत में)। जातम् = अभवत्, अजायत (हो गया, पड़ गया)। भूकम्पस्य = धरादोलनस्य (धरती हिलने की)। दारुण = भयङ्करः (भयानक)। विभीषिका = त्रासः (भयंकर घटना ने)। समस्तमपि = सम्पूर्णमपि (सारे)। गुर्जरक्षेत्रम् = गुजरातप्रदेशम् (गुजरात प्रान्त को)। विशेषेण च = विशेषरूपेण च (और विशेष रूप से)। कच्छजनपदम् = कच्छाख्यं जनपदम् (कच्छ जिले को)। ध्वंसावशेषु = नाशोपरान्त-अवशिष्टेषु भग्नावशिष्टेषु (विनाश के बाद बचे हुए खंडहरों में)। परिवर्तितवती = परिणितम् अकरोत् (बदल दिया, परिणत कर दिया)। भूकम्पस्य = धरादोलनस्य (धरती हिलने के)। केन्द्रभूतम् = मध्येस्थितम् (मध्य में या केन्द्र स्थित)। भुजनगरं तु = भुजनामकं पुरं तु (भुजनगर तो)।

मृत्तिका-क्रीडनकमिव = (मिट्टी के खिलौने की तरह)। खण्डखण्डम् = विखण्डितम् (टुकड़े-टुकड़े)। जातम् = अभवत् (हो गया)। बहुभूमिकानि भवनानि = बहव्यः भूमिकाः येषु तानि भवनानि, अनेकतलगृहाणि (बहुमंजिले मकान)। क्षणेनैव = क्षणमात्रकालेन एव (क्षणभर में ही)। धराशायीनि जातानि = पृथिव्यां पतितानि (धरती पर गिर गए)। उत्खाताः = उत्पाटिताः (उखड़ गए)। विधुदीपस्तम्भाः = दामिनी-दीप-यूपाः (बिजली के खंभे)। विशीर्णाः = नष्टाः (टूट गए)। गृहसोपान-मार्गाः = भवनस्य आरोहणपद्धत्यः (झीने, सीढ़ियाँ)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ भूकम्प की विभीषिका को दर्शाता है।

हिन्दी-अनुवादः – सन् 2001 ईस्वी वर्ष में जब सारा भारत राष्ट्र गणतन्त्र दिवस समारोह में नाचने, गाने और बजाने की खुशी में डूबा हुआ था तब अचानक ही गुजरात नामक प्रदेश चारों ओर से बेचैन, अस्तव्यस्त, क्रन्दन-रुदन से व्याकुल तथा विपत्तिग्रस्त हो गया। भूकम्प की भयंकर घटना ने सम्पूर्ण गुजरात प्रान्त को विशेष रूप से कच्छ जिले को भग्नावशेषों-खण्डहरों में बदल दिया। धरती हिलने के मध्य भाग में (केन्द्र में) स्थित भुज नामक नगर तो मिट्टी के खिलौने की तरह टुकड़े-टुकड़े हो गया। बहु-मंजिले मकान क्षण-भर में ही धराशायी हो गए अर्थात् गिर गए। बिजली के खम्भे उखड़ गए (और) झीने टूटकर बिखर गए अर्थात् मकानों में ऊपर जाने के लिए बनी सीढ़ियों के टुकड़े-टुकड़े हो गए।

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2. फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुरजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्व इम्पीडिताः सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव ! क्षत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।

शब्दार्थाः – फालद्वये = खण्डद्वये, द्वयोः खण्डयोः (दो भागों में)। विभक्ता = विभाजिता (बँटी हुई)। भूमिः = धरा (धरती)। भूमिग दुपरि = पृथिव्या गर्भात् (धरती के अन्दर से)। निस्सरन्तीभिः = निर्गच्छन्तीभिः (निकलती हुई)। दुर्वार = दुःखेन निवारयितुं योग्यम् (अनियन्त्रित, जिनको रोकना कठिन है; न रोके जाने योग्य)। जलधाराभिः = तोयधाराभिः (पानी की धाराओं से)। महाप्लावनदृश्यम् = महत्प्लावनस्य दृश्यम् (भयंकर बाढ़ का दृश्य)। उपस्थितम् = प्रस्तुतम्, उपस्थितोऽजायत् (उपस्थित हो गया था)। सहस्रमिताः = सहस्रसंख्यकाः, सहस्रपरिमिताः (हजारों की संख्या में)। प्राणिनस्तु = जीवधारिणः तु (प्राणी तो)। क्षणेनैव = पलमात्रेण एव (पलभर में ही)। मृताः = हताः (मारे गए)।

ध्वस्तभवनेषु = विनष्टावासेषु, गृहेषु (गिरे हुए भवनों में)। सम्पीडिताः = पीडिताः (पीडित)। सहस्रशोऽन्ये = सहस्रसंख्यकाः अपरे (हजारों दूसरे)। सहायतार्थम् = सहयोगार्थम् (सहायता के लिए)। करुणकरुणम् = अतिकरुणया (करुणामय)। क्रन्दन्ति स्म = क्रन्दनं कुर्वन्ति स्म (क्रन्दन कर रहे थे)। हा दैव ! = हा विधातः ! (हाय विधाता)। क्षुत्क्षामकण्ठाः = क्षुधाक्षामः कण्ठाः येषाम् ते, बुभुक्षया दुर्बलस्वरः (भूख से दुर्बल स्वर वाले)। मृतप्रायाः = मरणासन्नाः (मरणासन्न)। केचन् = केचिद् (कुछ)। शिशवस्तु = बालाः तु (छोटे बच्चे तो)। ईश्वरकृपया एव = भगवत्कृपया एव (ईश्वर की कृपा से ही)। द्वित्राणि दिनानि = द्वे त्रीणि दिनानि वा (दो या तीन दिन)। जीवनम् =प्राणान् (प्राणों को)। धारितवन्तः =धृतवन्तः (धारण किया)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से लिया गया है। गद्यांश में भूकम्प द्वारा किये गये विनाश का चित्रण है।

हिन्दी-अनुवादः – धरती दो भागों में बँट गई। बैंटी हुई धरती के अन्दर से निकलती हुई न रोके जाने योग्य पानी की धाराओं से भयंकर बाढ़ का-सा दृश्य उपस्थित हो गया था। हजारों की संख्या में जीवधारी (प्राणी) तो पल-भर में ही मारे गए। गिरे हुए (ध्वस्त) भवनों में पीड़ित हजारों दूसरे सहयोग के लिए (सहायता के लिए) करुणापूर्ण क्रन्दन कर रहे थे। हाय विधाता ! भूख से दुर्बल कण्ठ (स्वर) वाले मरणासन्न कुछ बालक तो ईश्वर की कृपा से ही दो-तीन दिन प्राणों (जीवन) को धारण किए रहे अर्थात् जीवित रहे।

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3. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छभूकम्पस्य। पञ्चोत्तरद्विसहस्त्रनीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीरप्रान्ते पाकिस्तानदेशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाणशिला यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम, संस्खलनजन्यं कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धराया उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।

शब्दार्थाः – इयम् = एषा (यह ऐसी)। कच्छभूकम्पस्य = कच्छक्षेत्रे आगतस्य धरादोलनस्य (कच्छ क्षेत्र में आए भूकम्प की)। भैरवविभीषिका = भीषणा आपदा (भयंकर घटना, भयावह आपदा)। आसीत् = अवर्तत (थी)। पञ्चोत्तरद्विसहस्रख्रीष्टाब्दे = 2005 ईस्वीये वर्षे (सन् 2005 ई. वर्ष में)। अपि = (भी)। कश्मीरप्रान्ते = शारदादेशे (कश्मीर में)। पाकिस्तानदेशे च = (पाकिस्तान देश में, और पाकिस्तान में)। धरायाः = भुवः, (पृथ्वी का)। महत्कम्पनम् = प्रभूतं महद्दोलनमजायत (बहुत अधिक कम्पन हुआ)। यस्मात् कारणात् = यस्मात् हेतोः (जिस कारण से, जिससे)।

लक्षपरिमिताः = शतसहस्रमिताः, शतसहस्रसंख्यकाः (लाखों की संख्या में)। जनाः = मनुष्याः, मानवाः (लोग)। अकालकालकवलिताः = असमये एव दिवंगताः (अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए, असमय ही मर गये)। पृथ्वी = धरा (धरती)। कस्मात् = केन कारणेन (किस कारण से)। प्रकम्पते = दोलायते (हिलती है)। वैज्ञानिकाः = विज्ञानवेत्तारः (मौसम विज्ञान के जानकार)। इति विषये = अस्मिन् सन्दर्भे (इस विषय में)। कथयन्ति = वदन्ति (बोलते हैं, कहते हैं)। यत् = (कि)। पृथिव्याः अन्तर्गर्भे = धरायाः निम्नभागे, आन्तरिकभागे वा (पृथ्वी के केन्द्र भाग में)।

विद्यमानाः = उपस्थिताः (विद्यमान, मौजूद)। बृहत्यः = विशाला: (बड़ी-बड़ी)। पाषाण-शिलाः = प्रस्तर या भीतरी पट्टिकाः (पत्थर की शिलाएँ)। यदा = यस्मिन् काले (जब)। संघर्षणवशात् = परस्परघर्षणात् (आपस में टकराने से)। त्रुटयन्ति = भञ्जन्ति, खण्डखण्डं भवन्ति (टुकड़े-टुकड़े होती हैं)। तदा = तस्मिन् काले (तब)। भीषणं = भयंकरम् (भयंकर)। संस्खलनम् = विचलनम् (खिसकना, दूर हटना)। जायते = भवति (होता है)। संस्खलनजन्यम् = विचलनात् उत्पन्नम् (खिसकने से उत्पन्न)।

कम्पनञ्च = दोलनञ्च (हिलना, काँपना)। तदैव = तस्मिन्नेव काले (उसी समय, तभी)। भयावहकम्पनम् = भयंकरम् दोलनम् (भयानक कंपन)। धरायाः = पृथिव्याः (धरती के)। उपरितलमप्यागत्य = बाह्य तलं प्राप्य (ऊपर के तल पर आकर)। महाकम्पनम् = महद्दोलनम् (अत्यधिक कम्पन)। जनयति = उत्पन्नं करोति (पैदा करता है)। येन = येन कारणेन (जिससे)। महाविनाशदृश्यम् = (महाविनाश का दृश्य)। समुत्पद्यते = प्रादुर्भवति, उद्भवति (पैदा होता है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में सन् 2005 ईसवी में आये भूकम्प की भयानक विभीषिका का चित्रण है।

हिन्दी-अनुवादः- यह कच्छक्षेत्र में आई भूकम्प की भयंकर आपदा (घटना) थी। सन् 2005 ई. में भी कश्मीर प्रान्त में और पाकिस्तान देश में पृथ्वी का बहुत अधिक कम्पन हुआ, जिससे लाखों की संख्या में लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए अर्थात् असमय में ही मर गए। धरती किस कारण से काँपती है। मौसम विज्ञान के जानकार इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के आन्तरिक (भीतरी) भाग में विद्यमान बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएँ जब आपस में टकराने से टूटती हैं (टुकड़े-टुकड़े होती हैं) तब भयंकर स्खलन होता है। स्खलन से कम्पन उत्पन्न होता है। तभी भयानक कम्पन पृथ्वी के ऊपरी तल पर आकर अत्यधिक कम्पन उत्पन्न करता है, जिससे अत्यधिक विनाश का दृश्य पैदा होता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

4. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुरगत्या धरां पर्वतं वा विदार्य बहिनिष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियस-ताप-मात्राया अष्टशताङ्कता मुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति। निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुदगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।।

शब्दार्थाः – ज्वालामुखपर्वतानाम् = अग्न्याननगिरीणाम् (ज्वालामुखी पर्वतों के)। विस्फोटैरपि = विस्फोटै: अपि (विस्फोटों से भी)। भूकम्पो जायते = धरादोलनं भवति (धरती में कम्पन होता है) (इति = ऐसा)। भूकम्प-विशेषज्ञाः = भुवः कम्पन-रहस्यस्य ज्ञातारः (भूमि के काँपने के रहस्य को जानने वाले)। कथयन्ति = वदन्ति, आहुः, ब्रुवन्ति (कहते हैं)। पृथिव्याः = धरायाः (धरती के)। गर्भे = आन्तरिक-भागे (भीतरी भाग में)। विद्यमानः = स्थितः (उपस्थित)। अग्निः = अनलः, पावकः, हुताशनम् (आग)। यदा = यस्मिन् काले (जब)। खनिज = उत्खननात् प्राप्तं द्रव्यम् (खनिज)। मृत्तिका = मृद् (मिट्टी)। शिलादिसञ्चयम् = प्रस्तरपट्टिकादीनां संग्रहम् (शिला आदि के संचय को)। क्वथयति = उत्तप्तं करोति (उबालती है, तपाती है)। तदा = ततः (तब)। तत्सर्वमेव = तत्सम्पूर्णं, सकलमेव (वह सब ही)।

लावारसताम् = खनिद्रव-रसत्वम्, लावाद्रवत्वम् (लावा द्रवत्व को)। उपेत्य = प्राप्य (प्राप्त करके)। दुर्वारगत्या = अनियन्त्रित-वेगेन (अनियन्त्रित वेग से)। धराम् = पृथिवीम् (धरती को)। वा = अथवा। पर्वतम् = गिरिम् (पहाड़ को)। विदार्य = विदीर्णं कृत्वा (फाड़कर)। बहिर्निष्क्रामति = बहिर् निस्सरति, उपर्यागच्छति (बाहर निकलता है)। तदा = तस्मिन् काले (तब, उस समय)। गगनम् = आकाशमण्डलम् (आकाश)। धूमभस्मावृतं जायते = धूमेन, भस्मेन च आवृतं भवति (धुआँ और राख से ढक जाता है)। सेल्सियसतापमात्रायाः = तापस्य परिमाणमस्य सेल्सियसः (ताप के परिमाण की मात्रा का सेल्सियस)। अष्टशताकताम् = अष्टशत-अङ्कपर्यन्तम् (800 डिग्री तक)। उपगतो = उपेतः (प्राप्त हुआ)। अयम् = एषः (यह)। लावारसः = खनिद्रवप्रवाहः (लावा)। यदा = यस्मिन् काले (जिस समय)।

नदीवेगेन = तटिनी गत्या (नदी के वेग से)। प्रवहति = द्रवति (बहता है)। तदा = तरिमन् काले (उस समय)। पार्श्वस्थ = (समीप)। स्थिता: ग्रामाः = निकटस्थग्रामाः (पास या समीप में स्थित, आस-पास के)। ग्रामाः नगराणि वा = वसत्यः, पुराणि वा (गाँव अथवा नगर)। तदुदरे = तत् कुक्षौ, जठरे (उसके पेट में)। क्षणेनैव = पलमात्रेणैव (क्षणमात्र में ही)। समाविशन्ति = अन्तः गच्छन्ति, समाविष्टाः भवन्ति (समा जाते हैं)। निहन्यन्ते = म्रियन्ते (मारे जाते हैं)। विवशाः प्राणिनश्च = अवशाः जीव-जन्तवः (बेबस जीव-जन्तु)। ज्वालामुगिरन्तः = अग्निं प्रकटयन्तः वमन्तः (आग उगलते हुए)। एते पर्वताः = इमे गिरयः (ये पर्वत)। अपि = (भी)। भीषणम् = भयंकरम् (भयावह)। भूकम्पं जनयन्ति = धरादोलनं उत्पादयन्ति (भूकम्प को पैदा करते हैं)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में भूकम्प के कारणों का उल्लेख किया गया है। ज्वालामुखी पर्वत का विस्फोट इनमें से प्रमुख है।

हिन्दी-अनुवादः – ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी धरती काँपती (हिलती) है, ऐसा भूमि के काँपने के रहस्य को जानने वाले कहते हैं। धरती के गर्भ में स्थित आग जब खनिज, मिट्टी, शिला आदि के संचय (समूह) को उबालती (तपाती) है, तब वह सब ही लावा-द्रवत्व को प्राप्त होकर अनियन्त्रित वेग (गति) से धरती अथवा पहाड़ को फाड़कर (चीरकर) बाहर निकलता है। उस समय आकाश धुएँ और राख से ढक जाता है। ताप के परिमाण की मात्रा 800° सेल्सियस तक पहुँचा हुआ यह लावा जब नदी के वेग से बहता है, उस समय आस-पास के गाँव अथवा शहर उसके पेट में (गर्भ में) क्षणमात्र में समाविष्ट (विलीन) हो जाते हैं। विवश (बेबस) जीव-जन्तु मारे जाते हैं। आग उगलते हुए ये पर्वत भी भयंकर भूकम्प को पैदा करते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

5 यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृति-समक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्ध निर्माय बृहन्मानं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

शब्दार्थाः – भूकम्पः = धरादोलनम् (धरती का हिलना)। दैवः = ईश्वरीय (दैवीय)। प्रकोपः = प्रकृष्टः कोप: (अत्यधिक कोप है)। तस्य = (उसके)। उपशमनस्य = शान्तेः (शान्त करने का)। कोऽपि = कश्चिदपि (कोई भी)। स्थिरोपायो = स्थायी उपचारः (स्थायी इलाज)। न दृश्यते = न लक्ष्यते (दिखाई नहीं देता है)। प्रकृतिसमक्षम् = प्रकृत्याः, निसर्गस्य सम्मुखे (प्रकृति के सामने)। अद्यापि = अधुनापि, इदानीमपि (आज भी)। मानवः = मनुष्यः (मनुष्य)। वामनकल्प एव = ह्रस्वकायः सदृशः ह्रस्वः (बौने की तरह ही)। (अस्ति = है।) तथापि = पुनरपि (फिर भी)। भूकम्परहस्यज्ञाः = धरादोलनरहस्यविदः (धरती हिलने के रहस्य को जानने वाले)। कथयन्ति = ब्रुवन्ति, आहुः (कहते हैं)। यत् = कि। बहुभूमिकभवननिर्माणम् = अनेकतलोपेतानां गृहाणां सर्जनम् [अनेक तलों से (मंजिलों से) युक्त घरों का निर्माण)। न करणीयः = न कर्त्तव्यम् (नहीं करना चाहिए)।

तटबन्धम् = जलबंधम् (बाँध)। निर्माय = निर्माणं कृत्वा (बनाकर)। बृहन्मात्रम् = विशालमात्रम् (बहुत मात्रा में)। नदीजलमपि = सरित्तोयमपि (नदी का पानी भी)। एकस्मिन् स्थले = एकस्मिन्नेव स्थाने (एक ही स्थान पर)। न पुञ्जीकरणीयम् = नैकत्र करणीयम्, संग्रहणीयम् (इकट्ठा नहीं करना चाहिए)। अन्यथा = नहीं तो। असन्तुलनवशात् = सन्तुलनाभावात् (सन्तुलन के अभाव में)। भूकम्पः = धरादोलनम् (धरती का हिलना)। सम्भवति = सम्भाव्यमस्ति (सम्भव होता है)। वस्तुतः = यथार्थतः (वास्तव में)। शान्तानि एव = प्रशान्तान्येव (प्रशान्त ही)। पञ्चतत्त्वानि = पृथिव्यादिनि पञ्चतत्त्वानि (धरती आदि पाँच तत्त्व)।

क्षितिजलपावकसमीरगगनानि = पृथ्वी, आपः, अग्निः, वायुः, आकाशादीनि (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश आदि)। भूतलस्य = धरातलस्य (पृथ्वीतल की)। योगक्षेमाभ्यां = अप्राप्तस्य प्राप्तिः, योगः प्राप्तस्य रक्षणम् (क्षेमः) ताभ्याम् (अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा)। कल्पन्ते = रचयन्ति (रचना करते हैं)। अशान्तानि = शमनाभावे (शान्ति के अभाव में)। खलु = वस्तुतः (वास्तव में)। तान्येव = अमूनि एव (वे ही)। महाविनाशम् = महाप्रलयं (महान् विनाश को)। उपस्थापयन्ति = उपस्थितं कुर्वन्ति (उपस्थित करते हैं)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में भूकम्प के अन्य कारणों को दर्शाया है।

हिन्दी-अनुवादः – यद्यपि धरती का हिलना एक ईश्वरीय प्रकोप है, तथापि उसको शान्त करने का कोई स्थायी उपचार दिखाई नहीं देता है। प्रकृति के सामने आज भी मनुष्य बौने के समान ही है। फिर भी धरती हिलने के रहस्य को जानने वाले (लोग) कहते हैं कि हमें बहुमंजिले मकान नहीं बनाने चाहिए (और) बाँधों का निर्माण करके अत्यधिक मात्रा में नदी का जल भी एक जगह इकट्ठा नहीं करना चाहिए, नहीं तो असन्तुलन होने के कारण या सन्तुलन के अभाव में धरती का हिलना सम्भव है। वास्तव में पाँचों प्रशान्त तत्त्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश पृथ्वी तल के योग (अप्राप्त की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त की रक्षा) की रचना करते हैं; अर्थात् उपर्युक्त पाँचों तत्त्वों के शान्तिपूर्ण सन्तुलन में ही पृथ्वी की कुशलता निहित है। अशान्त होने पर वास्तव में वे ही तत्त्व पृथ्वी पर महाविनाश उपस्थित कर देते हैं।