JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

सभी वर्गों का उच्चारण मुख से होता है, जिसमें-कण्ठ, जिह्वा, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ एवं नासिका का योगदान होता है। इन उच्चारण-स्थानों से पूर्व ‘वर्ण’ के विषय में आवश्यक ज्ञान अपेक्षित है।

वर्ण – वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके टुकड़े न हो सकें। जैसे – क्, ख्, ग् आदि। इनके टुकड़े नहीं किये जा सकते। इन्हें अक्षर भी कहते हैं।
वर्ण भेद – संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के माने गये हैं। (क) स्वर वर्ण, इन्हें अच् भी कहते हैं। (ख) व्यञ्जन वर्ण, इन्हें हल भी कहा जाता है।
स्वर वर्ण-जिन वर्णों का उच्चारण करने के लिये अन्य किसी वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती, उन्हें स्वर वर्ण कहते हैं। स्वर 13 होते हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, ए, ऐ, ओ, औ।
स्वरों का वर्गीकरण उच्चारण काल अथवा मात्रा के आधार पर स्वर तीन प्रकार के माने गये हैं –
1. ह्रस्व स्वर
2. दीर्घ स्वर
3. प्लुत स्वर।

1. ह्रस्व स्वर-जिन स्वरों के उच्चारण में केवल एक मात्रा का समय लगे अर्थात कम से कम समय लगे, उन्हें ह्रस्व , स्वर कहते हैं। जैसे-अ, इ, उ, ऋ, ल। इनकी संख्या 5 है। इनमें कोई अन्य स्वर या वर्ण मिश्रित नहीं होता, इन्हीं को मूल स्वर भी कहते हैं।

2. दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण काल में ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा दोगुना समय लगे अर्थात दो मात्राओं का समय लगे, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। जैसे-आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ओ, ऐ, औ। इनकी संख्या 8 है।

3. प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। इनमें तीन मात्राओं का उच्चारण काल होता है। इनके उच्चारण काल में दो मात्राओं से अधिक समय लगता है। प्लुत का ज्ञान कराने के लिए ३ अंक स्वर के आगे लगाते हैं। इसका प्रयोग अधिकतर वैदिक संस्कृत में होता है। जैसे – अ ३, इ ३, उ ३, ऋ ३, ल ३, ए ३, ओ ३, ऐ ३, औ ३।

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(ख) व्यञ्जन – व्यञ्जन उन्हें कहते हैं, जो बिना स्वर की सहायता के उच्चारित नहीं किये जाते हैं। व्यञ्जन का उच्चारण काल अर्ध मात्रा काल है। जिस व्यञ्जन में स्वर का योग नहीं होता उसमें हलन्त का चिह्न लगाते हैं।
क् ख् ग् घ् ड्
च छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् द् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
य र ल व्
श् ष् स् ह
ऊपर लिखे गये ये सभी व्यञ्जन स्वर रहित हैं। इनके स्वर रहित रूप को समझने की दृष्टि से इनमें हल का चिह्न लगाया गया है। जब किसी व्यञ्जन का किसी स्वर के साथ मेल करते हैं, तब हल् का चिह्न हटा देते हैं। जैसे : क् + अ = क।
व्यञ्जन के भेद – उच्चारण की भिन्नता के आधार पर व्यञ्जनों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है –

  1. स्पर्श
  2. अन्तःस्थ
  3. ऊष्म।

1. स्पर्श – ‘कादयो मावसाना: स्पर्शाः’ अर्थात जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करने में जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श करती है और वायु कुछ क्षण के लिए रुककर झटके से निकलती है, वे स्पर्श संज्ञक व्यञ्जन कहलाते हैं। क् से म् पर्यन्त व्यञ्जन स्पर्श संज्ञक हैं। इनकी संख्या 25 है, जो निम्न पाँच वर्गों में विभक्त हैं –

1. क वर्ग क् ख् ग् घ् डू.
2. च वर्ग च् छ् ज् झ् ञ्
3. ट वर्ग ट् ठ् ड् द. ण
4. त वर्ग त् थ द ध न
5. प वर्ग प् फ् ब् भ् म्

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2. अन्तःस्थ – जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्तःस्थ व्यञ्जन कहलाते हैं। ‘यणोऽन्तःस्थाः ‘ अर्थात् यण (य, व, र, ल) अन्त:स्थ व्यञ्जन हैं। इनकी संख्या चार है।

3. ऊष्म – जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को धीरे-धीरे रोककर रगड़ के साथ निकालकर किया जाता है, वे ऊष्म व्यञ्जन कहे जाते हैं। ‘शल ऊष्माणः’ अर्थात् शल्-श, ष, स्, ह ऊष्म संज्ञक व्यञ्जन हैं। इनकी संख्या भी चार है।
इनके अतिरिक्त तीन व्यञ्जन और हैं, जिन्हें संयुक्त व्यञ्जन कहा जाता है, क्योंकि ये दो-दो व्यञ्जनों के मूल से बनते हैं। जैसे –

1. क् + ष् = क्ष्
2. त् + र् = त्र
3. ज् + ञ् = ज्ञ

अयोगवाह-वर्ण

1. अनुस्वार – स्वर के ऊपर जो बिन्दु (.) लगाया जाता है, उसे अनुस्वार कहते हैं। स्वर के बाद न् अथवा म् के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया जाता है। यथा –
(i) इयम् गच्छति-इयं गच्छति, (ii) यशान् + सि = यशांसि। इसके अन्य उदाहरण हैं-अंश, अवतंस, हंस, धनूंषि, बृंहितम, सिंह, हिंसक आदि।

2. अनुनासिक – बू, , डू. ण, न; ये पाँच व्यञ्जन अनुनासिक माने जाते हैं। इन्हें अर्द्ध अनुस्वार भी कहा जाता है, जिसे चन्द्रबिन्दु (ँ) के नाम से भी जाना जाता है। यथा-कहाँ, वहाँ, यहाँ, पाँच आदि।

3. विसर्ग स्वरों के आगे आने वाले दो बिन्दुओं (:) को विसर्ग कहते हैं। विसर्ग का उच्चारण आधे ह की तरह किया जाता है। इसका प्रयोग किसी स्वर के बाद किया जाता है। यह र और स् के स्थान पर भी आता है। जैसे – रामः, भानुः इत्यादि।

4. जिह्वामूलीय – (क, ख) इसका प्रयोग क् एवं ख से पहले किया जाता है अर्थात क् एवं ख् से पूर्व अर्द्ध विसर्ग सदृश चिह्न को जिह्वामूलीय कहते हैं। जैसे – सः करोति (क्)। सः खादति (ख)।

5. उपध्मानीय – (पफ) इसका प्रयोग प् एवं फ से पूर्व अर्द्ध विसर्ग के समान किया जाता है। जैसे-कः पचति (प्)। वृक्षः फलति। ( फ्)।

क वर्ग से प वर्ग तक पाँचों वर्गों के प्रथम और द्वितीय अक्षरों (क, ख, च, छ आदि) तथा ऊष्म वर्णों (श, ष, स, ह) को ‘परुष’ व्यञ्जन और शेष वर्गों (ग घ आदि) को ‘कोमल’ व्यञ्जन कहते हैं। व्यञ्जनों के दो प्रकार हैं- अल्पप्राण तथा महाप्राण। पाँचों वर्गों के पहले और तीसरे वर्ग (क, ग, च, ज आदि) ‘अल्पप्राण’ हैं तथा दूसरे और चौथे वर्ण (ख, घ, छ, झ) ‘महाप्राण’ हैं। वर्गों के पञ्चम वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म्) अनुनासिक व्यञ्जन कहलाते हैं।

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वर्णों के उच्चारण स्थान –

संस्कृत वर्णमाला में पाणिनीय शिक्षा (व्याकरण) के अनुसार 63 वर्ण हैं। उन सभी वर्गों के उच्चारण के लिए आठ स्थान हैं। जो ये हैं – (1) उर, (2) कण्ठ, (3) शिर (मूर्धा), (4) जिह्वामूल, (5) दन्त, (6) नासिका, (7) ओष्ठ और (8) तालु।

उन उच्चारण स्थानों का विभाजन निम्न रूप में किया जाता है –
1. कण्ठ – ‘अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः’ अर्थात् अकार (अ, आ), क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ्) और विसर्ग का उच्चारण स्थान कण्ठ होता है। कण्ठ से उच्चारण किये गये वर्ण ‘कण्ठ्य’ कहलाते हैं।)

2. तालु – इचुयशानां तालु’ अर्थात् इ, ई, च वर्ग (च, छ, त्, झ, ञ्), य् और श् का उच्चारण स्थान तालु है। तालु से उच्चारित वर्ण ‘तालव्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करने में जिह्वा तालु (दाँतों के मूल से थोड़ा ऊपर) का स्पर्श करती है।

3. मूर्धा – ‘ऋटुरषाणां मूर्धा’ अर्थात् ऋ, ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, द, ण), र और ष का उच्चारण स्थान मूर्धा है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘मूर्धन्य’ कहे जाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण जिह्वा मूर्धा (तालु से भी ऊपर गहरे गड्ढेनुमा भाग) का स्पर्श करती है।

4. दन्त – ‘लुतुलसानां दन्ताः ‘अर्थात् लु, त वर्ग (त्, थ, द्, ध्, न्), ल और स् का उच्चारण स्थान दन्त होता है। दन्तर स्थान से उच्चारित वर्ण ‘दन्त्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करने में जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती है।

5. ओष्ठ – ‘उपूपध्मानीयानामोष्ठौ’ अर्थात् उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्; ब्, भ, म्) तथा उपध्मानीय ( प, फ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ होते हैं। ये वर्ण ‘ओष्ठ्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करते समय दोनों ओष्ठ आपस में मिलते हैं।

6. नासिक – (i) ‘जमङ्गनानां नासिका च’ अर्थात् ज, म्, ङ, ण, न् तथा अनुस्वार का उच्चारण स्थान नासिका है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘नासिक्य’ कहलाते हैं। इन वर्गों के पूर्वोक्त अपने-अपने वर्ग के अनुसार कण्ठादि उच्चारण स्थान भी होते हैं। जैसे – क वर्ग के ‘ङ्’ का उच्चारण स्थान तालु और नासिका, ट वर्ग के ‘ण’ का मूर्धा और नासिका, त वर्ग के ‘न्’ का दन्त और नासिका तथा प वर्ग के ‘म्’ का ओष्ठ और नासिका होता है।

(ii) नासिकाऽनुस्वारस्यं – अर्थात् अनुस्वार (-) का उच्चारण स्थान नासिका (नाक) होती है।

7. कण्ठतालु – ‘एदैतोः कण्ठतालु’ अर्थात् ए तथा ऐ का उच्चारण स्थान कण्ठतालु होता है। अतः ये वर्ण ‘कण्ठतालव्य’ कहे जाते हैं। अ, इ के संयोग से ए तथा अ, ए के संयोग से ऐ बनता है। अतः ए तथा ऐ के उच्चारण में कण्ठ तथा तालु दोनों का सहयोग लिया जाता है।

8. कण्ठोष्ठ ‘ओदौतोः कण्ठोष्ठम्’ अर्थात् ओ तथा औ का उच्चारण स्थान कण्ठोष्ठ होता है। अ + उ = ओ तथा अ + ओ = औ बनते हैं। अतः इनके उच्चारण में कण्ठ तथा ओष्ठ दोनों का उपयोग किया जाता है। ये वर्ण ‘कण्ठोष्ठ्य’ कहलाते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

9. दन्तोष्ठ ‘वकारस्य दन्तोष्ठम्’ अर्थात् व का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठ होता है। इस कारण ‘व”दन्तोष्ठ्य’ कहलाता है। इसका उच्चारण करते समय जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती है तथा ओष्ठ भी कुछ मुड़ते हैं। अतः दोनों के सहयोग से वकार का उच्चारण किया जाता है।

10. जिह्वामूल – ‘जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम्’ अर्थात् जिह्वामूलीय (क-ख) का उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है। उपर्युक्त वर्णोच्चारण स्थानों को नीचे दी गई तालिका के माध्यम से सरलता से जाना जा सकता है।

वर्ण-उच्चारण-स्थान तालिका

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि 1

प्रत्याहार –

1. अक् अ इ उ ऋ लु।
2. अच् अ इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ।
3. अण् अ इ उ
4. अट् अ इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ ह य व र।
5. अण् अ इ उ ऋ ल ए ओ ए औ ह य् व् र् ल।
6. अम् अ इ उ ऋ ल ए ओ ए औ ह य् व् र् ल् ब् भ् डू. ण न्।
7. अश् अ इ उ ल ए ओ ऐ औ ह य व् र् ल् ज् म् डू ण् न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् इन्।
8. अल अ इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ ह य् व् र् ल् ब् म् डू. ण् न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् म् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् श् ष् स्।
9. इक्इ उ ऋ ल।
10. इच् इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ।
11. इण् इ उ ऋ ल ए ओ ऐ औ ह य व.र ल।
12. उक् उ ऋ ल।
13. एडू. ए ओ।
14. एच ए ओ ऐ औ।
15. ऐच् ऐ और
16. खय् ख् फ् छ् ठ् थ् च् ट् त् क् ।
17. खर् ख् फ् छ् ठ् थ् च् ट् त् क् प् श् ष् स्।
18. ङम् ड्. ण न्।
19. चय् च् ट् त् क्
20. चर् च् ट् त् क् य श् ष् स्।
21. छव च् ट् त्।
22. जश् ज् ब् ग् ड् द्।
23. भय् झ भ घ ढ ध ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् ठ् घ् च ट् त् क् ।
24. झर् झ म् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् घ् त् थ् च् त् ट् क् प् श् ष् स्।
25. झल झ भ् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् श् ष् स् ।
26. भश् झ भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द्।
27. भष् झ् भ् थ् द् धु
28. बश् ब् ग् ड् द्
29. मय् म् ड्. ण् न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प्।
30. य य् व् र् ल् ञ् म् इ. ण् न् झ्।
31. यण् य् व् र् ल।
32. यम् य् व् र् ल् ज् म् ड्. ण न्।
33. यय् य् व् र् ल् ब् म् ड्. ण् न् झ् भ् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् प् छ् ठ् थ् च् ट् त् क्।
34. यर् य् व् र् ल् ज् म् ड्. ण् न् क्ष् घ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् ठ् थ् च् त् क प् श् ष् स्।
35. रल र् ल् ब् म् ड्. ण् न् झ् भ् घ् ढ् ध् ज् व् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् य् श् ष् स् ह्।
36. वल् व् र् ल् ज् म् ड्. ण् न् झ् भ् घ् ढ् ध् ज् ब् ग् ड् द् ख् फ् छ् त् थ् च् ट् त् क् प् श ष स ह्।
37. वश व् र् ल् ब् भ् ड्. ण न् झ् भ् थ् द् ध् ज् ब् ग् ड् द्।
38. शर् श् ष् स्।
39. शल् श् ष् स् ह्।
40. र र् ल।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रयत्न

वर्गों के उच्चारण में जो चेष्टा करनी पड़ती है, उसे प्रयत्न कहते हैं। ये प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं।

1. आभ्यान्तर प्रयत्न।
2. बाह्य प्रयत्न।

1. आभ्यान्तर प्रयत्न – मुख के भीतरी अवयवों द्वारा किया गया यल आभ्यान्तर प्रयत्न कहलाता है। यह पाँच प्रकार का होता है –
(i) स्पृष्ट – इसका अर्थ है, उच्चारण के समय जीभ द्वारा मुख के अन्दर विभिन्न उच्चारण स्थानों का किया गया स्पर्श इस प्रयत्न द्वारा सभी 25 स्पर्श व्यञ्जन क् से म् तक उच्चारित होते हैं। पाँचों वर्गों के अक्षरों का स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
(ii) ईषत्स्पष्ट अर्थात् थोड़ा स्पर्श। जब जीभ मुख के अन्दर तालु आदि उच्चारण स्थानों का कम स्पर्श करती है, तो इस प्रयत्न को ईषत्स्पृष्ट प्रयत्न कहा जाता है। अन्त:स्थ व्यञ्जन वर्णों (य् र् ल व) का ईशत्स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
(iii) विवृत-इसका अर्थ है, उच्चारण के समय कण्ठ का खुलना। जब विभिन्न उच्चारणों में कण्ठ-विवर खुलता है, तो इस प्रयत्न को विवृत प्रयत्न कहा जाता है। सभी स्वर वर्णों का विवृत प्रयत्न होता है।
(iv) ईषद् विवृत-जब वर्गों के उच्चारण काल में कण्ठ पूरी तरह न खुलकर स्वल्प (थोड़ा सा) खुलता है तब ऐसे प्रयत्न को ईषद् विवृत प्रयत्न कहा जाता है। ऊष्म वर्णों (श् ष् स् ह) का ईषद् विवृत प्रयत्न होता है।
(v) संवत-संवृत का अर्थ है-बन्द। ह्रस्व अकार का उच्चारण संवृत-प्रयल है।

2. बाह्य प्रयत्न वर्गों के उच्चारण में जिस प्रकार मुख के अन्दर प्रयत्न अथवा चेष्टाएँ होती हैं, उसी प्रकार कुछ चेष्टाएँ बाहर से भी होती हैं, जिन्हें हम बाह्य प्रयत्न कहते हैं। ये निम्न हैं.
(i) विवार – वर्ण के उच्चारण के समय मुख के खुलने को विवार कहा जाता है। वर्गों के पहले तथा दूसरे वर्ण एवं श् प् स् विवार प्रयत्न द्वारा उच्चारित होते हैं।
(ii) संवार – जब वर्ण के उच्चारण में मुख कुछ संकुचित होता है, तब ऐसे प्रयत्न को संवार प्रयत्न कहा जाता है। इसके अन्तर्गत सभी वर्गों के तीसरे, चौथे तथा पाँचवें वर्ग एवं अन्त:स्थ व्यञ्जन आते हैं।
(ii) श्वास – जिनके उच्चारण में श्वास की गति विशेष रूप से प्रभावित होती है, उन्हें श्वास वर्ग की संज्ञा दी जाती है, इसके अन्तर्गत सभी वर्गों के पहले, दूसरे तथा ऊष्म वर्ण आते हैं।
(iv) नाद वर्णों के उच्चारण में विशेष प्रकार की अव्यक्त ध्वनि को नाद कहते हैं, किसी भी वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवें वर्ण तथा शल वर्ण (श ष स ह) नाद प्रयत्न द्वारा उच्चारित होते हैं।
(v) घोष – उच्चारण में होने वाले विशेष शब्द को घोष कहा जाता है। वर्गों के तीसरे, चौथे व पाँचवें वर्ण घोष प्रयत्न द्वारा बोले जाते हैं।
(vi) अघोष – जिन वर्गों के उच्चारण में घोष ध्वनि नहीं होती, उन्हें अघोष प्रयत्ल द्वारा उच्चारित किया जाता है। इनमें वर्गों के पहले, दूसरे तथा अन्त:स्थ व्यञ्जन आते हैं।
(vii) अल्पप्राण – जिन वर्णों के उच्चारण में कम मात्रा में वायु मुख के भीतरी भाग से बाहर निकलती है, उन वर्गों को अल्पप्राण वर्ण कहा जाता है। वर्गों के पहले, तीसरे और पाँचवें वर्ण अल्पप्राण कहलाते हैं।
(viii) महाप्राण – जिन वर्णों के उच्चारण में अधिक प्राणवायु का उपयोग होता है, ऐसे वर्णों को महाप्राण वर्ण कहा जाता है। वर्गों के दूसरे और चौथे वर्ण महाप्राण कहलाते हैं।
(ix) उदात्त – तालु आदि से उच्चारण में अधिक प्राणवायु का उपयोग होता है, ऐसे वर्णों को महाप्राण वर्ण कहा जाता है। वर्गों के दूसरे और चौथे वर्ण महाप्राण कहलाते हैं।
(x) अनुदात्त – तालु आदि उच्चारण स्थानों के निचले भाग से उच्चारित स्वर-वर्णों को अनुदात्त प्रयत्न वाला कहा जाता है।
(xi) स्वरित – जब वायु तालु आदि उच्चारण स्थलों के मध्य भाग से निकलती है, तो ऐसे प्रयत्न स्वरित प्रयत्न कहे जाते हैं।
सवर्ण-जिन वर्णों के उच्चारण स्थान तथा प्रयत्न दोनों एक हों उन वर्णों को सवर्ण अथवा समान वर्ण कहते हैं असमान वर्ण जब वणों के उच्चारण स्थान या प्रयत्न भिन्न-भिन्न हों, तो ऐसे वर्गों को असमान वर्ण कहते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

अभ्यास 1

प्रश्न 1.
‘ग्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति। (‘ग्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है.)
(अ) तालु
(ब) नासिका
(स) कण्ठः
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(स) कण्ठः

प्रश्न 2.
‘द्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति – (‘द्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) कण्ठः
(ब) तालुः
(स) दन्तः
(द) मूर्धाः
उत्तर :
(स) दन्तः

प्रश्न 3.
अनुस्वारस्य उच्चारणस्थानं भवति-(अनुस्वार का उच्चारण स्थान होता है-)
(अ) नासिका
(ब) कण्ठः
(स) ओष्ठौः
(द) दन्तः।
उत्तर :
(अ) नासिका

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 4.
‘छ’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति (छ’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) कण्ठः
(ब) तालु
(स) मूर्धा
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) कण्ठः

प्रश्न 5.
‘ड’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ड्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है )
(अ) मूर्धा
(ब) कण्ठतालु
(स) तालु
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) मूर्धा

प्रश्न 6.
हकारस्य उच्चारणस्थानं भवति-(हकार का उच्चारण स्थान होता है)
(अ) कण्ठः
(ब) तालु
(स) मूर्धा
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) कण्ठः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 7.
‘ष’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ए’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) तालु
(ब) मूर्धा
(स) कण्ठः
(द) ओष्ठौ
उत्तर :
(ब) मूर्धा

प्रश्न 8.
‘जश’ प्रत्याहारान्तर्गत परिगणिताः वर्णाः सन्ति-(‘जश्’ प्रत्याहार में परिगणित होने वाले वर्ण हैं-)
(अ) ह् य् व् र् ल्
(ब) क् प् श् ष् स्
(स) ज् ब् ग् ड् द्
(द) झ् भ् घ् द ध्।
उत्तर :
(स) ज् ब् ग् ड् द्

प्रश्न 9.
‘एच’ प्रत्याहारान्र्तगताः वर्णाः सन्ति-(‘एच’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं)
(अ) अ, इ, उ, ऋ, लु
(ब) ए, ओ, ऐ, औ
(स) ए, ओ
(द) ऐ, औ।
उत्तर :
(ब) ए, ओ, ऐ, औ

प्रश्न 10.
‘अक्’ प्रत्याहारन्तर्गता. वर्णाः सन्ति-(‘अक्’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं –
(अ) अ, इ, उ ऋ, ल
(ब) अ, इ उ
(स) इ, उ, ऋ, ल
(द) अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ, ए।
उत्तर :
(अ) अ, इ, उ ऋ, ल

अभ्यास 2

प्रश्न 1.
‘शल्’ प्रत्याहारान्तर्गताः वर्णाः सन्ति-(‘शल्’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं )
(अ) श् ष् स्
(ब) श् ष् स् ह्
(स) क् प् श् ष् स् ह
(द) ज् ब् ग् ड् द्।
उत्तर :
(ब) श् ष् स् ह्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 2.
‘यण’ प्रत्याहारान्तर्गताः वर्णाः सन्ति-(‘यण’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं)
(अ) ह य् व् र् ल्
(ब) श् ष स ह
(स) य् व् र् ल्
(द) ज् द् ग् ड् द्।
उत्तर :
(स) य् व् र् ल्

प्रश्न 3.
‘इक्’ प्रत्याहारान्तर्गताः वर्णाः सन्ति-(‘इक्’ प्रत्याहार में आने वाले वर्ण हैं)
(अ) अ, इ, उ,
(ब) अ, इ, उ, ऋ, लु
(स) ए, ओ, ऐ, औ
(द) इ, उ, ऋ, ल।
उत्तर :
(द) इ, उ, ऋ, ल।

प्रश्न 4.
‘हल’ प्रत्याहारास्य वर्णाः कथ्यन्ते-(‘हल्’ प्रत्याहार के वर्गों को कहते हैं-)
(अ) स्वर
(ब) स्पर्श
(स) व्यञ्जन
(द) ऊष्म।
उत्तर :
(स) व्यञ्जन

प्रश्न 5.
स्पर्शवर्णानां आभ्यान्तरप्रयत्नं भवति-(स्पर्श वर्णों का आभ्यान्तर प्रयत्न होता है-)
(अ) विवृत
(ब) संवृत
(स) स्पृष्ट
(द) ईषत् स्पृष्ट।
उत्तर :
(स) स्पृष्ट

प्रश्न 6.
महाप्राणप्रयत्नः केषां वर्णानां भवति-(‘महाप्राण’ प्रयत्न वाले कौन-से वर्ण हैं-)
(अ) शल्
(ब) यण
(स) अच्
(द) जश्।
उत्तर :
(अ) शल्

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 7.
‘घोष’ वर्णाः सन्ति – (घोष’ वर्ण हैं)
(अ) ग, घ, ड.
(ब) त, क, न
(स) य, र, त
(द) न, ड., क।
उत्तर :
(अ) ग, घ, ड.

प्रश्न 8.
‘ध्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति। (‘ध्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) ओष्ठौ
(ब) दन्ताः
(स) तालु
(द) मूर्धा।
उत्तर :
(ब) दन्ताः

प्रश्न 9.
‘थ्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘थ्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) मर्धा
(ब) ओष्ठौ
(स) कण्ठः
(द) दन्ताः
उत्तर :
(द) दन्ताः

प्रश्न 10.
‘ओ’ वर्णस्य’औ’वर्णस्य च उच्चारणस्थानम अस्ति-(ओ तथा औ वर्णों का उच्चारण स्थान है )
(अ) कण्ठःतालु
(ब) कण्ठनासिका
(स) कण्ठजिह्वा
(द) कण्ठोष्ठम्।
उत्तर :
(ब) कण्ठनासिका

अभ्यास 3

प्रश्न 1.
‘ब’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति (‘ब’ वर्ण का उच्चारण स्थान है)
(अ) मूर्धा
(ब) दन्ताः
(स) ओष्ठौ
(द) कण्ठः
उत्तर :
(ब) दन्ताः

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 2.
‘ओ’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ओ’ वर्ण का उच्चारण स्थान है)
(अ) कण्ठोष्ठी
(ब) दन्तोष्ठौ
(स) मूर्धा
(द) दन्ताः
उत्तर :
(स) मूर्धा

प्रश्न 3.
ऐकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ऐकार’ का उच्चारण स्थान है-)
(अ) नासिका
(ब) कण्ठतालु
(स) कण्ठोष्ठौ
(द) दन्ताः।
उत्तर :
(अ) नासिका

प्रश्न 4.
ऋकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ऋकार’ का उच्चारण स्थान है)
(अ) मूर्धा
(ब) तालु
(स) कण्ठः
(द) दन्ताः।
उत्तर :
(अ) मूर्धा

प्रश्न 5.
वकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति – (‘वकार’ का उच्चारण स्थान है-)
(अ) कण्ठोष्ठौ
(ब) दन्तोष्ठी
(स) जिह्वामूल
(द) दन्ताः
उत्तर :
(अ) कण्ठोष्ठौ

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 6.
‘न्’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘न्’ वर्ण का उच्चारण स्थान है )
(अ) ओष्ठौ
(ब) दन्ता
(स) नासिका
(द) कण्ठः
उत्तर :
(अ) ओष्ठौ

प्रश्न 7.
‘आ’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘आ’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) दन्ताः
(ब) तालु
(स) नासिका
(द) कण्ठः
उत्तर :
(द) कण्ठः

प्रश्न 8.
‘ई’ वर्णस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘ई’ वर्ण का उच्चारण स्थान है-)
(अ) तालु
(ब) मूर्धा
(स) दन्ताः
(द) ओष्ठौ।
उत्तर :
(अ) तालु

प्रश्न 9.
रकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति – (‘रकार’ का उच्चारण स्थान है-)
(अ) तालु
(ब) मूर्धा
(स) ओष्ठौ
(द) कण्ठः
उत्तर :
(ब) मूर्धा

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

प्रश्न 10.
लकारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति-(‘लकार’ का उच्चारण स्थान है)
(अ) ओष्ठौ
(ब) दन्ताः
(स) तालु
(द) कण्ठोष्ठौ।
उत्तर :
(ब) दन्ताः

अभ्यास 4

1. तालु कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (तालु किस वर्ग का उच्चारण स्थान होता है?)
2. कण्ठः कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (कण्ठ किस वर्ग का उच्चारण स्थान होता है?)
3. मूर्धा कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (मूर्धा किस वर्ग का उच्चारण स्थान है?)
4. ओष्ठौ कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (ओष्ठ किस वर्ग के उच्चारण स्थान हैं?)
5. दन्ताः कस्य वर्गस्य उच्चारणस्थानं भवति? (दाँत किस वर्ग के उच्चारण स्थान होते हैं?)
6. नासिका केषां वर्णानाम उच्चारणस्थानं भवति? (नासिका किन वर्गों की उच्चारण स्थान होती है?)
7. उच्चारणस्थानानि कति सन्ति? (उच्चारण स्थान कितने हैं ?)
8. वर्णोच्चारणे कस्याः परमसहयोगो भवति? (वर्ण उच्चारण में किसका परम सहयोग होता है?)
9. पवर्गस्य उच्चारणस्थानं किं भवति? (प वर्ग का उच्चारण स्थान क्या है?)
10. दन्तोष्ठम् उच्चारणस्थानं कस्य वर्णस्य अस्ति? (दन्तोष्ठ किस वर्ग का उच्चारण स्थान है?)
उत्तरम् :
1. चवर्गस्य
2. कवर्गस्य
3. टवर्गस्य
4. पवर्गस्य
5. तवर्गस्य
6. ञ, म, ङ, ण, न्
7. अष्टौ
8. जिह्वायाः
9. ओष्ठौ
10. ‘व’ वर्णस्य।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् उच्चारणस्थानानि

अभ्यास 5

1. प्रयत्नानि कति भवन्ति? (प्रयत्न कितने होते हैं?)
2. आभ्यान्तरप्रयत्नस्य कति भेदाः सन्ति? (आभ्यन्तर प्रयत्न के कितने भेद हैं?)
3. बाह्यप्रयत्नस्य कति भेदाः सन्ति? (बाह्य प्रयत्न के कितने भेद हैं?)
4. स्पर्शवर्णानाम् अन्य नाम किमस्ति? (स्पर्श वर्णों का दूसरा नाम क्या है?)
5. स्पर्शवर्णाः कानि-कानि सन्ति? (स्पर्श वर्ण कौन-कौन से हैं?)
6. महाप्राणाः के भवन्ति? (महाप्राण कौन हैं ?)
7. ऊष्मसंज्ञकाः वर्णा: के सन्ति? (अन्तःस्थ व्यंजन कौन हैं?)
उत्तरम् :
1. माहेश्वरसूत्रस्य
2. द्वे
3. पञ्च
4. एकादशः
5. उदितवर्णाः
6. क् ख् ग् घ् ङ् च् छ त् झ् ञ् ट ठ् ड् द ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म्
7. वर्गस्य द्वितीयचतुर्थवर्णाः
8. श् ष् स् ।

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