JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर कब हुए थे?
(अ) फरवरी, 1993
(स) जून, 1992
(ब) फरवरी, 1992
(द) जुलाई, 1992
उत्तर:
(ब) फरवरी, 1992

2. मास्ट्रिस्ट संधि किस संगठन का आधार है
(अ) गैट
(ब) विश्व – व्यापार संगठन
(स) नाफ्टा
(द) यूरोपीय संघ
उत्तर:
(द) यूरोपीय संघ

3. यूरोपीय संघ के झंडे में सितारों की संख्या है
(अ) 15
(ब) 13
(स) 12
(द) 14
उत्तर:
(स) 12

4. देंग श्याओपंग ने ‘ओपेन डोर’ की नीति चलाई-
(अं) दिसंबर, 1978
(स) फरवरी 1947
(ब) जुलाई, 1949
(द) जून, 1947
उत्तर:
(अं) दिसंबर, 1978

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

5. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब
(अं) 1949
(ब) 1950
(स) 1966
(द) 1951
उत्तर:
(स) 1966

6. यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव हुआ
(अ) जून, 1979
(ब.) मई, 2004
(स) अप्रैल, 1951
(द) जनवरी, 1973
उत्तर:
(अ) जून, 1979

7. आसियान की स्थापना किस वर्ष में हुई थी?
(अ) 1967
(ब) 1977
(स) 1966
(द) 1958
उत्तर:
(अ) 1967

8. चीन की साम्यवादी क्रांति कब हुई?
(अ) दिसम्बर, 1948
(ब) जनवरी, 1949
(स) अक्टूबर, 1949
(द) फरवरी, 1950
उत्तर:
(स) अक्टूबर, 1949

9. आसियान के झंडे का वृत्त किसका प्रतीक है?
(अ) प्रगति का
(ब) मित्रता का
(स) एकता का
(द) समृद्धि का
उत्तर:
(स) एकता का

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. ……………………………. में यूरोपीय संघ ने एक साझा संविधान बनाने की कोशिश की थी।
उत्तर:
2003

2. आसियान के प्रतीक चिन्ह में धान की ………………………… बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती है।
उत्तर:
दस

3. …………………………. का उद्देश्य मुख्य रूप से आर्थिक विकास को तेज करना था।
उत्तर:
आसियान

4. …………….. में आसियान क्षेत्रीय मंच ( ARF) की स्थापना की गई।
उत्तर:
1994

5. भारत ने 1991 से ………………….. और 2014 से ………………… नीति अपनायी।
उत्तर:
लुक ईस्ट, एक्ट ईस्ट

6. चीन ने …………………… में खेती का निजीकरण किया और ………………………… में उद्योगों का निजीकरण किया।
उत्तर:
1982, 1998

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जर्मनी का एकीकरण कब हुआ?
उत्तर:
अक्टूबर, 1990 में जर्मनी का एकीकरण हुआ।

प्रश्न 2.
यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर कब हुए?
उत्तर:
फरवरी, 1992 में यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर हुए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 3.
ASEAN (आसियान) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एसियन नेशन्स।

प्रश्न 4.
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारे क्यों हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारे हैं क्योंकि बारह की संख्या को वहाँ पारम्परिक रूप से पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 5.
आसियान शैली किसे कहा जाता है?
उत्तर:
आसियान देशों की अनौपचारिक, टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल-मिलाप की नीति को आसियान शैली कहा जाता है।

प्रश्न 6.
चीन में साम्यवादी क्रांति किस वर्ष और किसके नेतृत्व में हुई?
उत्तर:
चीन में सन् 1949 में माओ के नेतृत्व में साम्यवादी क्रांति हुई।

प्रश्न 7.
चीन में ‘ओपेन डोर’ की नीति किसने और कब चलायी?
उत्तर:
चीन में ‘ओपेन डोर’ की नीति देंग श्याओपेंग ने 1978 के दिसम्बर में चलायी।

प्रश्न 8.
चीन ने खेती के निजीकरण को कब अपनाया?
उत्तर:
चीन में सन् 1982 में खेती के निजीकरण को अपनायां।

प्रश्न 9.
भारत और चीन के बीच किस वर्ष युद्ध लड़ा गया?
उत्तर:
सन् 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध लड़ा गया।

प्रश्न 10.
यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन कैसे ‘हुआ?
उत्तर:
यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

प्रश्न 11.
परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला देश कौनसा है?
उत्तर:
परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला एकमात्र देश जापान है।

प्रश्न 12.
यूरोपीय संघ के झंडे में कितने सितारे हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारे हैं।

प्रश्न 13.
जापान के किन शहरों पर परमाणु बम गिराए गए थे?
उत्तर:
हिरोशिमा और, नागासाकी शहरों में।

प्रश्न 14.
यूरोपीय संघ के कौनसे दो देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं?
उत्तर:
ब्रिटेन और  फ्रांस।

प्रश्न 15.
यूरोपीय संघ की स्थापना कब हुई? यूरोपीय संघ द्वारा प्रेरित किन्हीं दो प्रकार के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में हुई थी। यूरोपीय संघ द्वारा प्रेरित दो प्रभाव हैं। आर्थिक, राजनीतिक।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 16.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
यूरोपीय देशों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना।

प्रश्न 17.
आसियान की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
आसियान के देशों का आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना।

प्रश्न 18.
भारत के उस पड़ोसी देश का नाम लिखिये जो आसियान का सदस्य है।
उत्तर:
म्यांमार

प्रश्न 19.
वर्तमान में आसियान के सदस्य देशों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
दस।

प्रश्न 20.
आसियान किस प्रकार का संगठन है?
उत्तर:
आसियान एक असैनिक आर्थिक संगठन है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोपीय संघ के झण्डे में बना हुआ सोने के रंग के सितारों का घेरा किस बात का प्रतीक है?
अथवा
यूरोपीय संघ के झंडे में 12 सितारों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झंडे में सोने के रंग के 12 सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की एकता और मेलमिलाप का प्रतीक है; क्योंकि 12 की संख्या को वहाँ पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 2.
मार्शल योजना क्या है?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त सहायता की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। यह योजना अमेरिकी विदेश मंत्री मार्शल के नाम से प्रसिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
अप्रेल, 1951 में पश्चिमी यूरोप के छः देशों – फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने पेरिस संधि पर हस्ताक्षर कर यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।

प्रश्न 4.
रोम संधि ( 1957 ) के द्वारा यूरोप की किन संस्थाओं का गठन हुआ?
उत्तर:
मार्च, 1957 में यूरोप के छः देशों ने रोम संधि के माध्यम से

  1. यूरोपीय आर्थिक समुदाय और
  2. यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय का गठन किया।

प्रश्न 5.
यूरोपीय संघ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में हुई। यूरोपीय संघ यूरोप के देशों का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसका आर्थिक, सैनिक, राजनैतिक व कूटनीतिक रूप में विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 6.
यूरोपीय संघ के निर्माण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. यूरोपीय संघ का निर्माण यूरोप के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए किया गया।
  2. इसका निर्माण अमेरिका की आर्थिक शक्ति के मुकाबले के लिए किया गया।

प्रश्न 7.
यूरोपीय संघ के विस्तार के कोई दो चरण लिखें।
उत्तर:

  1. 1948 में यूरोपीय राज्यों ने आर्थिक पुनर्निर्माण हेतु यूरोपीय आर्थिक समुदाय का निर्माण किया।
  2. 18 अप्रेल, 1951 को यूरोपीय राज्यों ने यूरोपीय कोयला एवं इस्पात समुदाय की स्थापना की।

प्रश्न 8.
यूरोपीय कोयला एवं इस्पात समुदाय का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर:
इसका मुख्य कार्य सदस्य राष्ट्रों के कोयले एवं इस्पात के उत्पादन व वितरण पर नियंत्रण रखना तथा सदस्य राज्यों के कोयले व इस्पात के साधनों की एक सामान्य मण्डी बनाकर उनके उपयोग की व्यवस्था करना था।

प्रश्न 9.
आसियान की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
1967 में दक्षिण-पूर्व एशियायी क्षेत्र के 5 देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और थाइलैंड ने बैंकाक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान’ की स्थापना की।

प्रश्न 10.
आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य है। सदस्य देशों के सामाजिक, आर्थिक विकास में सहायता करना तथा उन्हें साझा बाजार देना।

प्रश्न 11.
आसियान के मुख्य स्तंभों के नाम लिखिये।
उत्तर:
2003 में आसियान ने तीन मुख्य स्तंभ बताये हैं।

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय
  2. आसियान आर्थिक समुदाय और
  3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक समुदाय।

प्रश्न 12.
आसियान सुरक्षा समुदाय का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
आसियान सुरक्षा समुदाय का मुख्य उद्देश्य है। क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाकर उन्हें बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास करना।

प्रश्न 13.
आसियान के दस देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:
आसियान के दस देश ये हैं।

  1. मलेशिया,
  2. सिंगापुर,
  3. इण्डोनेशिया,
  4. थाइलैंड,
  5. फिलीपींस,
  6. लाओस,
  7. कम्बोडिया,
  8. म्यांमार,
  9. वियतनाम और
  10. ब्रुनेई।

प्रश्न 14.
चीन में विदेशी व्यापार वृद्धि के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. चीन ने विदेशी व्यापार वृद्धि के लिए 1978 में ‘खुले द्वार’ की नीति की घोषणा की।
  2. विदेशी निवेश एवं व्यापार को आकर्षित करने के लिए उसने विशेष आर्थिक क्षेत्रों का निर्माण किया।

प्रश्न 15.
चीन की नई आर्थिक नीति की कोई दो असफलताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. नई आर्थिक नीति के सुधारों का लाभ चीन में सभी क्षेत्रों को नहीं मिल पाया है।
  2. नई आर्थिक नीति से चीन में बेरोजगारी की समस्या पैदा हुई है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 16.
आसियान के झण्डे की व्याख्या करें।
उत्तर:
आसियान के प्रतीक चिन्ह में धान की दस बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती हैं जो आपस में मित्रता और एकता के धागे से बंधे हैं। वृत्त आसियान की एकता का प्रतीक है

प्रश्न 17.
1978 से पहले एवं बाद में चीन की आर्थिक नीतियों में कोई दो अन्तर बताएँ।
उत्तर:

  1. चीन ने आर्थिक क्षेत्र में 1978 से पहले एकान्तवास की नीति अपनायी थी, जबकि 1978 के पश्चात् खुले द्वार की नीति अपनायी।
  2. 1978 से पहले कृषि राज्य नियंत्रित थी जबकि 1978 के बाद कृषि का निजीकरण कर दिया गया।

प्रश्न 18.
समेकित कीजिए।
(i) आसियान की स्थापना 1948
(ii) यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना 1992
(iii) यूरोपीय परिषद की स्थापना 1967
(iv) यूरोपीय संघ की स्थापना 1949
उत्तर:
(i) 1967
(ii) 1948
(iii) 1949
(iv) 1992

प्रश्न 19.
किस कारण से आज भारत और चीन के बीच संबंधों को ज्यादा मजबूत बनाने में मदद मिली है?
उत्तर:
परिवहन और संचार मार्गों की बढ़ोतरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और चीन के बीच सम्बन्धों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।

प्रश्न 20.
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को आसियान संगठन बनाने की पहल क्यों करनी पड़ी?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान एशिया का कुछ हिस्सा बार-बार यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद का शिकार हुआ तथा भारी राजनैतिक और आर्थिक कीमत चुकाई युद्ध समाप्त होने पर इसे राष्ट्र-निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसे शीतयुद्ध के दौर में किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबाव को भी झेलना पड़ा। टकरावों और भागमभाग की ऐसी स्थिति को दक्षिण-पूर्व एशिया संभालने की स्थिति में नहीं था।

बांडुंग सम्मेलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन वगैरह के माध्यम से एशिया और तीसरी दुनिया के देशों में एकता कायम करने के प्रयास अनौपचारिक स्तर पर सहयोग और मेलजोल कराने के मामले में कारगर नहीं हो रहे थे। इसी के चलते दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन (आसियान) बनाकर एक वैकल्पिक पहल की।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 21.
आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर:
आसियान के सदस्य देशों ने 2003 तक कई समझौते किए जिनके द्वारा हर सदस्य देश ने शांति, निष्पक्षता, सहयोग, अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की। आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की स्थापना की गई।

प्रश्न 22.
भारत व चीन के मध्य अच्छे संबंध बनाने हेतु दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:
भारत व चीन के मध्य अच्छे संबंध बनाने हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. दोनों देशों की सरकारें, पारस्परिक बातचीत के द्वारा विवादों का हल निकालने का प्रयत्न करें।
  2. दोनों देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर समान दृष्टिकोण अपनाकर सहयोग को बढ़ावा दें।

प्रश्न 23.
यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब व किन उद्देश्यों को लेकर की गई? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यूरोप के देशों में मेल-मिलाप तथा यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के उद्देश्यों को लेकर मार्शल योजना के तहत सन् 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई। इसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद दी गई।

प्रश्न 24.
यूरोपीय संघ की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं।

  1. यूरोपीय संघ की साझी मुद्रा यूरो, स्थापना दिवस, गान तथा झण्डा है।
  2. यूरोपीय संघ आर्थिक-राजनैतिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है।
  3. इसके दो सदस्य ब्रिटेन और फ्रांस- सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं।
  4. इसका आर्थिक, राजनैतिक, सैनिक तथा कूटनीतिक वैश्विक प्रभाव बहुत अधिक है।

प्रश्न 25.
यूरोपीय संघ के राजनैतिक स्वरूप पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ का राजनैतिक स्वरूप – एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है। यथा।

  1. अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है।
  2. यद्यपि यूरोपीय संघ की एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झंडा, गानं, स्थापना – दिवस और अपनी मुद्रायूरो है।
  3. अन्य देशों से सम्बन्धों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है।
  4.  नये सदस्यों को शामिल करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की। नये सदस्य मुख्यतः भूतपूर्व सोवियत खेमे के थे।
  5.  सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है।

प्रश्न 26.
यूरोपीय संघ के देशों में पाये जाने वाले मतभेदों को बताइये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ के देशों के मध्य पाये जाने वाले प्रमुख मतभेद ये हैं।

  1. यूरोपीय देशों की विदेश एवं रक्षा नीति में परस्पर मतभेद विद्यमान हैं।
  2. इराक के सम्बन्ध में यूरोपीय देशों में मतभेद हैं।
  3. यूरोप के कुछ देशों में यूरो मुद्रा को लागू करने के सम्बन्ध में मतभेद हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 27.
1962 के युद्ध का भारत-चीन सम्बन्धों पर क्या असर हुआ?
उत्तर:
1962 के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत-चीन सम्बन्धों पर इसका दीर्घकालिक असर हुआ। 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनैतिक संबंध समाप्त हो गए।

प्रश्न 28.
आसियान की स्थापना कब हुई? इसके सदस्य देशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आसियान की स्थापना: 1967 में दक्षिण – पूर्व एशिया के पांच देशों ने बैंकाक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान’ की स्थापना की। ये देश थे – इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और थाइलैंड ब्रूनई दारुसलेम इस समूह में 1984 में शामिल हो गया। उसके बाद 28 जुलाई, 1995 को वितयनाम, 23 जुलाई, 1997 को लाओस और म्यांमार तथा 30 अप्रेल, 1999 को कम्बोडिया इसमें शामिल हो गये। इस प्रकार वर्तमान में आसियान के 10 सदस्य हैं। ये है। इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रूनई दारुसलेम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कम्बोडिया।

प्रश्न 29.
आसियान के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आसियान के प्रमुख उद्देश्य ये हैं।

  1. दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक विकास को तेज करना।
  2. सदस्य राष्ट्रों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्रों में परस्पर सहायता करना।
  3. सामूहिक सहयोग तथा बातचीत से साझी समस्याओं का हल ढूँढ़ना।
  4. इस क्षेत्र में साझा बाजार तैयार करना।
  5. क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना।

प्रश्न 30.
आसियान के मौलिक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आसियान के मौलिक सिद्धान्त – सन् 1976 में बाली शिखर सम्मेलन में एक संधि के द्वारा आसियान ने निम्नलिखित सिद्धान्तों को अंगीकृत किया है। सम्मान।

  1. सभी राष्ट्रों की स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता, समानता, राजक्षेत्रीय संपूर्णता और राष्ट्रीय पहचान के प्रति पारस्परिक
  2. बाह्य हस्तक्षेप, अवपीड़न से मुक्ति तथा अपने राष्ट्रीय अस्तित्व के संचालन का प्रत्येक राष्ट्र का अधिकार।
  3. एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप।
  4. शांतिपूर्ण तरीकों से मतभेदों या झगड़ों का समाधान।
  5. धमकी या बल प्रयोग का परित्याग।
  6. आपस में कारगर सहयोग।

प्रश्न 31.
मास्ट्रिस्ट संधि पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मास्ट्रिस्टं संधि-यूरोपीय आर्थिक समुदाय के सभी 12 सदस्यों को बैठक नीदरलैंड के नगर मास्ट्रिस्ट में 9 व 10 दिसम्बर को हुई थी, 1991 को 12 सदस्यीय यूरोपीय आर्थिक समुदाय ने यूरोपीय मौद्रिक संघ के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे ‘मास्ट्रिस्ट संधि’ कहा जाता है। फरवरी, 1992 में यूरोपीय संघ के गठन के लिए सभी देशों ने मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर किये। मास्ट्रिस्ट संधि यूरोप के एकीकरण के मार्ग में एक मील का पत्थर है। इस संधि ने पूरे यूरोप के लिए एक अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार, एक नागरिकता, एक संसद, एक सरकार, एक सुरक्षा व्यवस्था, एक विदेश नीति का मार्ग प्रशस्त किया।

प्रश्न 32.
यूरोपीय संघ के वर्तमान में कितने राष्ट्र सदस्य हैं? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
1 जुलाई, 2013 को क्रोएशिया द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण करने के पश्चात् यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों की कुल संख्या 28 हो गई है। ये राष्ट्र हैं।
आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, नीदरलैंड, जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन,  फिनलैंड, आस्ट्रिया, इटली, माल्टा, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैण्ड, चेकरिपब्लिक, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया,  हंगरी, ग्रीस, साइप्रस, बुल्गारिया, रूमानिया, क्रोएशियां।

प्रश्न 33.
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् यूरोप के समक्ष आने वाली प्रमुख समस्याओं को लिखिये
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् यूरोप के समक्ष निम्नलिखित प्रमुख समस्यायें आयीं:

  1. यूरोपीय देशों के समक्ष द्वितीय विश्व युद्ध में तहस-नहस हुई अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की समस्या थी।
  2. यूरोपीय देशों के समक्ष यूरोपीय नागरिकों की नष्ट हुई मान्यताओं और मूल्यों को पुनः बहाल करने की समस्या थी।
  3. इनके समक्ष विश्व स्तर पर अपने राजनैतिक और आर्थिक सम्बन्धों को स्थापित करने की समस्या थी।
  4. यूरोपीय देशों के बीच पारस्परिक शत्रुता विद्यमान थी। इस शत्रुता को छोड़कर परस्पर सहयोग करने की और बढ़ने की समस्या थी।

प्रश्न 34.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
र-यूरोपीय आर्थिक समुदाय या यूरोपीय साझा बाजार: यूरोपीय आर्थिक समुदाय या यूरोपीय साझा बाजार का जन्म 25 मार्च, 1957 को रोम की संधि के तहत 1 जनवरी, 1958 को हुआ था । इस पर हस्ताक्षर करने वाले छः राष्ट्र थे।

  1. फ्रांस,
  2. जर्मनी
  3. इटली
  4. बेल्जियम
  5. नीदरलैंड और
  6. लक्जमबर्ग।

वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 28 हो गई है।
उद्देश्य: यूरोपीय साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों में उत्तरोत्तर सामञ्जस्य स्थापित करके समुदाय के क्रमबद्ध आर्थिक विकास की उन्नति करना, सदस्य देशों में निकटता स्थापित कराना है। यूरोपीय साझा बाजार के साथ ही यूरोपीय एकीकरण की नींव पड़ी और यूरोपीय आर्थिक समुदाय ही 1992 में यूरोपीय संघ में बदल गया है।

प्रश्न 35.
विश्व राजनीति में यूरोपीय संघ की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

  1. यूरोपीय संघ अब काफी हद तक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है।
  2. अन्य देशों से संबंधों के मामले में यूरोपीय संघ ने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति बना ली है। अब यह एक सार्थक राजनैतिक इकाई के रूप में विश्व व्यापार संगठन में अपनी भूमिका निभा रहा है।
  3. आज यूरो मुद्रा अमरीकी डालर को चुनौती दे रही है। यूरोपीय संघ विश्व के सबसे बड़े व्यापार ब्लॉक के रूप में उभरकर इस क्षेत्र में अमेरिका के लिए समस्या पैदा कर रहा है।
  4. यूरोपीय संघ के कई देश सुरक्षा परिषद् के स्थायी और अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। इसके चलते यह अमरीका समेत सभी देशों की नीतियों को प्रभावित करता है।

प्रश्न 36.
यूरो, अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा कैसे बन सकता है?
उत्तर:
निम्न रूप में यूरो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकता है।

  1. यूरोपीय संघ के सदस्यों की संयुक्त मुद्रा यूरो का प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है और यह डॉलर को चुनौती प्रस्तुत करता नजर आ रहा है क्योंकि विश्व व्यापार में यूरोपीय संघ की भूमिका अमेरिका से तिगुनी है।
  2. यूरोपीय संघ राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक रूप से भी अधिक प्रभावी है। इसे अमेरिका धमका नहीं सकता।
  3. यूरोपीय संघ की आर्थिक शक्ति का प्रभाव अपने पड़ौसी देशों के साथ-साथ एशिया और अफ्रीका के राष्ट्रों पर भी है।
  4. यूरोपीय संघ की विश्व की एक विशाल अर्थव्यवस्था है जो सकल घरेलू उत्पादन में अमेरिका से भी अधिक

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 37.
यूरोपीय संघ ने अपना राजनीतिक तथा कूटनीतिक प्रभाव किस प्रकार क्रियान्वित किया है? उत्तर – यूरोपीय संघ ने निम्न रूप में अपना राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव क्रियान्वित किया है।

  1. यूरोपीय संघ विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। विश्व व्यापार में इसकी सहभागिता अमेरिका से तिगुनी है।
  2. यूरोपीय संघ के दो सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं तथा कई देश इसके अस्थायी सदस्य हैं। इसीलिये यह अमरीका सहित सभी देशों की नीतियों को प्रभावित कर रहा है।
  3. सैन्य शक्ति के दृष्टिकोण से इसके पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के पश्चात् सर्वाधिक है। अंतरिक्ष विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इसका स्थान दूसरा है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में यह राजनीतिक तथा सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है।

प्रश्न 38.
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच समानताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अमेरिका तथा यूरोपीय संघ में समानताएँ-

  1. अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाए हुए हैं।
  2. दोनों ही वैश्वीकरण, उदारवादी तथा पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं।
  3. अमेरिका सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है तो यूरोपीय संघ के दो सदस्य ब्रिटेन और फ्रांस भी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं।
  4. अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ही परमाणु हथियारों से सम्पन्न हैं।
  5. दोनों की अपनी-अपनी मुद्राएँ हैं। अमेरिका की मुद्रा डालर है तो यूरोपीय संघ की मुद्रा यूरो है।

प्रश्न 39.
दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने आसियान के निर्माण की पहल क्यों की?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने निम्नलिखित कारणों से आसियान के निर्माण की पहल की

  1. दूसरे विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान, दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद के शिकार हुए तथा भारी राजनैतिक और आर्थिक कीमत चुकाई।
  2. युद्ध के बाद इन्हें राष्ट्र निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  3. शीत युद्ध काल में इन्हें किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा था।
  4. परस्पर टकरावों की स्थिति में ये देश अपने आपको संभालने की स्थिति में नहीं थे।
  5. गुट निरपेक्ष आंदोलन तीसरी दुनिया के देशों में सहयोग और मेलजोल कराने में सफल नहीं हो रहे थे।

प्रश्न 40.
“विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।” कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
अथवा
‘आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है।” कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
अथवा
आसियान की प्रासंगिकता पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
आसियान की प्रासंगिकता या महत्त्व:

  1. आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। यह टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति पर बल देता है।
  2. इसने पूर्व: एशियायी सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 से नियमित रूप से वार्षिक बैठक आयोजित की है। बातचीत की नीति के तहत ही इसने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया है और पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।
  3. आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति ने चीन और भारत के साथ व्यापार और निवेश के मामले में अपनी प्रासंगिकता को स्पष्ट किया है।
  4. यह एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियायी देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 41.
आर्थिक शक्ति के रूप में चीन के उदय को किस तरह देखा जा रहा है?
उत्तर:
1978 के बाद से जारी चीन की आर्थिक सफलता को एक महाशक्ति के रूप में इसके उभरने के रूप में देखा जा रहा है। यथा

  1. आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे ज्यादा तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और यह माना जाता है कि इस रफ्तार से चलते हुए 2040 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमरीका से भी आगे निकल जाएगा।
  2. आर्थिक स्तर पर अपने पड़ोसी देशों से जुड़ाव के चलते चीन पूर्व एशिया के विकास का इंजन जैसा बना हुआ है और इस कारण क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है।
  3. इसकी विशाल आबादी, बड़ा भू-भाग, संसाधन, क्षेत्रीय अवस्थिति, सैन्य शक्ति और राजनैतिक प्रभाव इस तेज आर्थिक वृद्धि के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 42.
1970 के दशक में चीनी नेतृत्व ने किन कारणों से आधुनिकीकरण और खुले द्वार की नीति को अपनाया? ये थीं-
उत्तर:
1970 तक आते-आते चीन में राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था की कमियाँ सामने आ गयीं। कुछ प्रमुख कमियाँ

  1. खेती की पैदावार उद्योगों को पूरी जरूरत लायक अधिशेष नहीं दे पाती थी। इससे औद्योगिक उत्पादन में गतिरोध आ गया था। यह पर्याप्त तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा था।
  2. आर्थिक एकांतवास और राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था के कारण विदेशी निवेश और विदेशी व्यापार न के बराबर था।
  3. चीन की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

प्रश्न 43.
1970 के दशक में चीनी नेतृत्व ने कौनसे बड़े नीतिगत निर्णय लिये?
उत्तर:
चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिये। ये थे

  1. चीन ने 1972 में अमरीका से सम्बन्ध बढ़ाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकान्तवास को खत्म किया।
  2. सन् 1973 में चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे।
  3. 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए।

प्रश्न 44.
बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने क्या तरीका अपनाया?
उत्तर:
बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोलने का तरीका अपनाया। यथा:

  1. सन् 1978 में चीन ने आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति की घोषणा की तथा विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता प्राप्त करने पर बल दिया गया।
  2. 1982 में चीन ने खेती का निजीकरण किया।
  3. 1998 में उसने उद्योगों का निजीकरण किया।
  4. चीन ने व्यापार सम्बन्धी अवरोधों को सिर्फ ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ के लिए ही हटाया है, जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं।

प्रश्न 45.
भारत-चीन के सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले कोई चार मुद्दे लिखिये।
उत्तर:
भारत-चीन सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।

  1. सीमा विवाद: भारत-चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है । यह विवाद मैकमोहन रेखा, अरुणाचल प्रदेश के एक भाग तवांग तथा अक्साई चिन के क्षेत्र को लेकर है।
  2. पाक को परमाणु सहायता: चीन गोपनीय तरीके से पाकिस्तान को परमाणु ऊर्जा एवं तकनीक प्रदान कर रहा है। इससे चीन के प्रति भारत में खिन्नता है।
  3. हिन्द महासागर में पैठ: चीन हिन्द महासागर में अपनी पैठ जमाना चाहता है । इस हेतु उसने म्यांमार से कोको द्वीप लिया है तथा पाकिस्तान में कराची के पास ग्वादर का बन्दरगाह बना रहा है।
  4. भारत विरोधी रवैया: चीन भारत की परमाणु नीति की आलोचना करता है और सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोधी है।

प्रश्न 46.
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों में सुधार हेतु सुझाव:

  1. सांस्कृतिक सम्बन्धों में सुदृढ़ता लाना: चीन और भारत दोनों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों इसके लिए भाषा और साहित्य का आदान-प्रदान एवं अध्ययन किया जाये।
  2. नेताओं का आवागमन: दोनों देशों के प्रमुख नेता परस्पर एक-दूसरे का भ्रमण करें, अपने विचारों का आदान-प्रदान कर परस्पर सहयोग एवं सद्भाव की भावना को विकसित करें।
  3. व्यापारिक सम्बन्धों में बढ़ावा: दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्धों में निरन्तर विस्तार किया जाना चाहिए।
  4. पर्यावरण सुरक्षा पर समान दृष्टिकोण: दोनों ही देश विश्व सम्मेलनों में पर्यावरण सुरक्षा के सम्बन्ध में समानं दृष्टिकोण अपना कर परस्पर एकता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  5. बातचीत द्वारा विवादों का समाधान: दोनों देश अपने विवादों का समाधान निरन्तर बातचीत द्वारा करने का प्रयास करते रहें

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 47.
नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन आये?
उत्तर:
नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को अपनी जड़ता से उबरने में मदद मिली। यथा

  1. कृषि के निजीकरण के कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीणों की आय में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई। इससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी।
  2. उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  3. व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. चीन अब पूरे विश्व में विदेशी निवेशी के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा है। उसके पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार हो गया है और इसके दम पर वह दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।

प्रश्न 48.
सत्ता के उभरते हुए वैकल्पिक केन्द्रों द्वारा विभिन्न देशों में समृद्धशाली अर्थव्यवस्थाओं का रूप देने में निभाई गई भूमिका की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
विश्व राजनीति में एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था के शुरू होने पर राजनीति तथा आर्थिक सत्ता के वैकल्पिक केन्द्रों ने कुछ सीमा तक अमरीका के प्रभुत्व को सीमित किया है। यथा है।

  1. यूरोप में यूरोपीय संघ तथा एशिया में आसियान का प्रादुर्भाव एक समृद्धशाली अर्थव्यवस्थाओं के रूप में हुआ
  2. यूरोपीय संघ और आसियान दोनों ने ही अपने-अपने क्षेत्रों में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों तथा कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान तलाशा है तथा अपने-अपने क्षेत्रों में शांतिपूर्ण एवं सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित की है।
  3. यूरोपीय संघ और आसियान के अतिरिक्त चीन के आर्थिक उभार ने भी विश्व राजनीति पर प्रभावी प्रभाव डाला है।

प्रश्न 49.
नयी अर्थव्यवस्था को अपनाने से चीन में कौन-कौन सी समस्यायें उभरी हैं?
उत्तर:
नयी अर्थव्यवस्था को अपनाने से चीन में निम्न समस्यायें उभरी हैं। मिला है।

  1. चीन में आर्थिक सुधारों का लाभ प्रत्येक व्यक्ति को नहीं मिला है। इन सुधारों का लाभ कुछ ही वर्गों को
  2. सुधारों के कारण चीन में बेरोजगारी बढ़ी है और 10 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में हैं।
  3. नयी अर्थव्यवस्था में पर्यावरण के नुकसान और भ्रष्टाचार के बढ़ने जैसे परिणाम भी सामने आये हैं
  4. गांव और शहर के तथा तटीय और मुख्य भूमि पर रहने वाले लोगों के बीच आर्थिक फासला बढ़ता जा रहा

प्रश्न 50.
वैश्विक स्तर पर चीन के आर्थिक प्रभाव को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्विक स्तर पर चीन का आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित है।

  1. चीन की अर्थव्यवस्था का बाहरी दुनिया से जुड़ाव और पारस्परिक निर्भरता ने अब यह स्थिति बना दी है कि अपने व्यावसायिक साझीदारों पर चीन का जबरदस्त प्रभाव बन चुका है और यही कारण है कि जापान, आसियान, अमरीका और रूस — सभी व्यापार के लिए चीन से अपने विवादों को भुला चुके हैं।
  2. 1997 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है।
  3. लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की इसकी नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

प्रश्न 51.
यूरोपीय संघ अमरीका और चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौंस के साथ बात करता है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत ज्यादा है। 2016 में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 17000 अरब डॉलर से ज्यादा था जो अमरीका के ही लगभग है। इसकी मुद्रा यूरो अमरीका डालर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमेरिका से तीन गुनी ज्यादा है औरइसी के कारण यह अमरीका ओर चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौंस के साथ बात करता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 52.
“हान नदी पर चमत्कार” किसे कहा जाता है?
उत्तर:
1 – द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात कोरियाई प्रायद्वीप को दक्षिण और उत्तरी कोरिया में विभाजित किया गया। 1950-53 के बीच कोरियाई युद्ध और शीतयुद्ध काल की गतिशीलता ने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंद्विता को तेज कर दिया। 17 सितंबर को दोनों कोरिया संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बने। 1960 से 1980 के दशक के बीच इसका आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से विकास हुआ, जिसे ‘हान नदी पर चमत्कार’ की संज्ञा दी गई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के प्रयासों के आर्थिक तथा राजनैतिक प्रयासों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप का आर्थिक पुनरुद्धार और एकीकरण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के आर्थिक-राजनैतिक प्रयास निम्नलिखित रहे:

  1. शीत युद्ध: शीत युद्ध के दौर में पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप के देश अपने-अपने खेमों में एक-दूसरे के नजदीक आए।
  2. मार्शल योजना-1947: इस योजना के तहत अमरीका ने पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद की।
  3. नाटो: अमेरिका ने नाटो के तहत पश्चिमी यूरोप में एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया।
  4. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन: 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन के माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक- दूसरे की मदद शुरू की।
  5. यूरोपीय परिषद् 5 मई, 1949 को यूरोपीय परिषद् की स्थापना हुई। जिसके तहत आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए अपनी सामान्य विरासत के आदर्शों और सिद्धान्तों में एकता लाने का प्रयास किया गया।
  6. यूरोपीय कोयला तथा इस्पात समुदाय: 18 अप्रेल, 1951 को पश्चिमी यूरोप के छः देशों ने यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।
  7. यूरोपीय अणु-शक्ति समुदाय तथा यूरोपीय आर्थिक समुदाय – 25 मार्च, 1957 को यूरोपीय आर्थिक समुदाय ( यूरोपीय साझा बाजार) और यूरोपीय अणु शक्ति समुदाय का गठन किया गया।
  8. मास्ट्रिस्ट संधि ( 1991 ): इस संधि ने यूरोप के लिए एक अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार, एक नागरिकता, एक संसद, एक सरकार, एक सुरक्षा व्यवस्था तथा एक विदेश नीति का मार्ग प्रशस्त किया।
  9. यूरोपीय संघ ( 1992 ): 1992 में यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया। 1 जनवरी, 1999 को यूरोपीय संघ की साझा यूरो मुद्रा को औपचारिक रूप से स्वीकृति दे दी।

प्रश्न 2.
यूरोपीय संघ की संस्थाओं या अंगों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की संस्थाएँ ( अंग ) यूरोपीय संघ सात प्रधान संस्थाओं ( अंगों ) के माध्यम से कार्य करता है। ये निम्नलिखित हैं।

  1. यूरोपियन संघीय परिषद्: यह मुख्य निर्णयकारी संस्था है। इसमें 15 सदस्य देशों के मंत्री शामिल होते हैं। यह परिषद् संघीय कानूनों का निर्माण करती है।
  2. यूरोपीय संसद: 2003 में यूरोपीय संसद के सदस्यों की संख्या 626 थी। ये सदस्य सीधे 5 साल के लिए चुने जाते हैं। यह यूरोपीय संघ के लिए राजनीतिक मंच का कार्य पूरा करती है।
  3. यूरोपीय आयोग: यूरोपीय आयोग के तहत सभी अधिशासियों का विलय कर दिया गया है। इसे यूरोपीय संघ की कार्यकारी संस्था का स्थान प्राप्त है। इसके सदस्यों की संख्या 30 है। इसका कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
  4. न्यायालय: यूरोपीय संघ के दो न्यायालय हैं।
    • (अ) न्याय का न्यायालय और
    • (ब) उपाय का न्यायालय। दोनों में 15-15 न्यायाधीश होते हैं। इनके न्यायाधीशों की नियुक्ति सदस्य राज्यों की आपसी सहमति से की जाती है। इनका कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
  5. लेखा परीक्षकों का न्यायालय-यूरोपीय संघ में लेखा-परीक्षकों का एक न्यायालय है जिसमें 15 सदस्य होते हैं। इसका कार्य यह देखना है कि संघ का आय तथा व्यय कानून के अनुसार हो।
  6. आर्थिक व सामाजिक समिति: यह एक सलाहकार संस्था है। इसमें 222 सदस्य होते हैं। यह समिति नौकरी देने वाले व्यापार संघों तथा उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करती है।
  7. यूरोपीय निवेश बैंक: विभिन्न प्रोजेक्टों को धन देना, समुदाय के हितों की रक्षा तथा साझे बाजार के संतुलित विकास के लिए कार्य करना इस बैंक के मुख्य उद्देश्य हैं।

प्रश्न 3.
माओ युग के पश्चात् चीन में अपनायी गई नयी आर्थिक नीतियों, उसके कारणों तथा परिणामों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
माओ के पश्चात् नवीन आर्थिक नीतियाँ अपनाने के कारण – 1950-60 के दशक में चीन अपना उतना आर्थिक विकास नहीं कर पा रहा था, जितना वह चाह रहा था; क्योंकि-

  1. अर्थव्यवस्था की विकास दर 5-6 फीसदी थी, लेकिन जनसंख्या में 2-3 फीसदी की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर पर पानी फेर रही थी और बढ़ती आबादी विकास के लाभ से वंचित रह जा रही थी।
  2. खेती की पैदावार उद्योगों की पूरी जरूरत लायक अधिशेष नहीं दे पा रही थी।
  3. इसका औद्योगिक उत्पादन तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

माओ युग के पश्चात् चीन की नयी आर्थिक नीतियाँ: 1970 के दशक में आर्थिक संकट से उबरने के लिये अमरीका से संबंध बढ़ाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकान्तवास को खत्म किया; कृषि, उद्योग, सेना तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण का रास्ता अपनाया; आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति अपनायी और खेती तथा उद्योगों का निजीकरण किया।

नयी आर्थिक नीतियों के लाभकारी परिणाम: नयी आर्थिक नीतियों के निम्न परिणाम निकले

  1. कृषि-उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई तथा ग्रामीण उद्योगों की तादाद बड़ी तेजी से
  2. उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  3. विदेश – व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. अब चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा।
  5. लेकिन इससे चीन में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तथा गरीबी- अमीरी की खाई भी बढ़ी है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 4.
आसियान के संगठन तथा उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
दक्षिण – पूर्वी एशियायी राष्ट्रों का संघ – आसियान आसियान की स्थापना 8 अगस्त, 1967 को बैंकाक में 5 मौलिक सदस्यों :

  1. इंडोनेशिया
  2. थाइलैंड
  3. फिलिपींस,
  4. मलेशिया और
  5. सिंगापुर द्वारा की गई। बाद में 1984 में
  6. ब्रूनई दारुस्सलेम, 1995 में
  7. वियतनाम, 1997 में
  8. लाओस और
  9. म्यांमार तथा 1999 में
  10. कम्बोडिया इसमें शामिल हो गये। इस प्रकार आसियान में वर्तमान में 10 सदस्य देश हैं। इसका कार्यालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है और उसका अध्यक्ष महासचिव होता है।

आसियान की प्रमुख संस्थाएँ ये हैं।

  1. विदेश मंत्रियों के सम्मेलन
  2. सचिवालय
  3. आसियान सुरक्षा समुदाय
  4. आसियान क्षेत्रीय सुरक्षा मंच
  5. आसियान आर्थिक समुदाय आसियान की संस्थाएँ
  6. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय।

आसियान के उद्देश्य – आसियान निर्माण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आसियान क्षेत्र में आर्थिक प्रगति को तेज करना तथा उसके आर्थिक स्थायित्व को बनाए रखना।
  2. सदस्य राष्ट्रों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में परस्पर सहायता करना।
  3. सामूहिक सहयोग से साझी समस्याओं का हल ढूँढ़ना।
  4. साझा बाजार तैयार करना तथा सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना।
  5. कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र के कायदों पर आधारित क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना।

प्रश्न 5.
आसियान के कार्य, भूमिका एवं उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
उत्तर:
आसियान के कार्य, भूमिका तथा उपलब्धियाँ आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। आसियान टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अपनाये हुए है। अनौपचारिक, टकराव रहितं और सहयोगात्मक मेल-मिलाप की आसियान शैली से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया है, पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।

आसियान की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार रही हैं।

  1. राजनैतिक सुरक्षा व सहयोग: आसियान सुरक्षा समुदाय तथा आसियान क्षेत्रीय सुरक्षा मंच ने मैत्री और सहयोग संधि, दक्षिण चीन सागर में पक्षकार देशों के आचार पर घोषणा, दक्षिण-पूर्व एशिया नाभिकीय शस्त्र मुक्त क्षेत्र · आयोग आदि के द्वारा सदस्य देशों के बीच सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखने के लिए सहकारी ढांचे के निर्माण के प्रयास किये हैं।
  2. आर्थिक सहयोग के प्रयत्न: आर्थिक सहयोग की दिशा में आसियान ने ‘आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र’ तथा ‘आसियान आर्थिक समुदाय’ का गठन कर चीन तथा दक्षिण कोरिया के साथ मुक्त व्यापार सम्बन्धी मसौदे पर हस्ताक्षर किये हैं तथा अन्य देशों के साथ इस ओर प्रयत्न जारी है।
  3. सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भूमिका: आसियान ने सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
  4. एशियायी समुदाय के गठन के मार्ग को प्रशस्त करना: एशियायी समुदाय के गठन की दिशा में आसियान प्रयासरत है।
  5.  एक राजनैतिक मंच के रूप में: आसियान एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियायी देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 6.
भारत-चीन के बीच संघर्ष के मुद्दों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत-चीन के संघर्ष के मुद्दे चीन की स्वतंत्रता- 1949 के बाद से कुछ समय के लिए दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे। कुछ समय के लिए ‘हिन्दी – चीनी भाई-भाई’ का नारा भी लोकप्रिय हुआ किन्तु निम्न मुद्दों के कारण दोनों देशों के बीच संघर्ष व कटुता पैदा हो गयी।

1. तिब्बत का प्रश्न :1949 से पूर्व तिब्बत नाममात्र के लिए चीन के अधीन था और आन्तरिक तथा बाह्य मामलों में पूर्णतः स्वतंत्र था। भारत के साथ तिब्बत के घनिष्ठ व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। 1950 में चीन ने तिब्बत को हड़पने की प्रक्रिया चालू कर दी तथा 1954 में चीन की सरकार ने तिब्बत पर अपना सम्पूर्ण अधिकार जमा लिया। तिब्बतियों ने चीन की नीति का विरोध किया और दलाईलामा ने भारत में आकर शरण ली। चीन ने शरण दिये जाने की भारत की कार्यवाही को अपने प्रति शत्रुता की संज्ञा दी। दलाईलामा की भारत में उपस्थिति वर्तमान में भी चीन के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है।

2. मैकमोहन रेखा तथा सीमा विवाद:
भारत के साथ सीमा विवाद एक ऐतिहासिक देन है। भारत मैकमोहन रेखा को दोनों के बीच सीमा रेखा मानता है, लेकिन चीन इसे स्वीकार नहीं करता है। फलतः वह भारतीय भू-भाग में घुसपैठ करता रहता है। सन् 1962 में भारत और चीन दोनों देश अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई-चिन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते लड़ पड़े । 1962 के भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी तथा भारत का काफी भू-भाग उसने अपने कब्जे में ले लिया। 1962 से लेकर 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त रहे। 1981 के दशक के बाद दोनों देशों के बीच सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं का सिलसिला जारी है।

3. सिक्किम का भारत में विलय:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सन् 1975 में सिक्किम को भारत में मिलाकर उसे देश का 22वां राज्य घोषित कर दिया। चीन ने इसकी आलोचना की तथा उसके द्वारा प्रदर्शित मानचित्रों में सिक्किम को भारत के हिस्से के रूप में नहीं दर्शाया गया। लेकिन वर्ष 2005 में चीन ने सिक्किम को भारतीय भू-भाग में शामिल कर इसे मान्यता दे दी है और दोनों के मध्य यह विवाद समाप्त हो गया है।

4. भारत के परमाणु परीक्षण पर चीन का विरोध:
मई, 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किये जाने पर चीन ने अमेरिका के साथ मिलकर भारत की निंदा की। चीन ने भारत पर यह आरोप लगाया कि इससे दक्षिण एशिया में संजीव पास बुक्स परमाणु होड़ शुरू हो जाएगी। वह एक सुसंगठित अभियान चलाकर भारत पर एन. पी. टी. पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालता रहा । ऐसी स्थिति में दोनों देशों के मध्य कड़वाहट होना स्वाभाविक था।

5. चीन-पाकिस्तान के बीच बढ़ती निकटता:
पाकिस्तान ने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करने एवं मिसाइलों के निर्माण में चीन की अहम भूमिका रही है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है तथा पाकिस्तान को सैन्य सहयोग दे रहा है। ये सभी तथ्य भारत के मन में चीन के प्रति संदेह पैदा करते हैं।

6. अन्य मुद्दे – भारत – चीन के कटुता के अन्य मुद्दे ये हैं-

  1. चीन नेपाल को भारत से अलग कर वहाँ अपने सैनिक अड्डे बनाने के प्रयास कर रहा है।
  2. वह समय-समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ करता रहता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 7.
वैकल्पिक शक्ति केन्द्र के रूप में जापान प्रभावकारी है। तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैकल्पिक शक्ति केन्द्र के रूप में जापान अत्यंत प्रभावकारी है इस बात का अनुमान निम्न तथ्यों से लगाया जा सकता है।

  1. सोनी, पैनासोनिक, कैनन, सुजुकी, होंडा, ट्योटा और माज्दा आदि प्रसिद्ध ब्रांड जापान के हैं। इनके नाम उच्च प्रौद्योगिकी के उत्पाद बनाने के लिए मशहूर हैं।
  2. जापान के पास प्राकृतिक संसाधन कम हैं और वह ज्यादातर कच्चे माल का आयात करता है। इसके बावजूद दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान ने बड़ी तेजी से प्रगति की।
  3. जापान 1964 में आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OCED) का सदस्य बन गया। 2017 में जापान की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
  4. एशिया के देशों में अकेला जापान ही समूह -7 के देशों में शामिल है। आबादी के लिहाज से विश्व में जापान ग्यारहवें स्थान पर है।
  5. परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला जापान इकलौता देश है। जापान संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में अंशदान करने के लिहाज से जापान दूसरा सबसे बड़ा देश है।
  6. 1951 से जापान का अमरीका के साथ सुरक्षा – गठबंधन है। जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार- “राष्ट्र के संप्रभु अधिकार के रूप में युद्ध को तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में बल-प्रयोग अथवा धमकी से काम लेने के तरीके का जापान के लोग हमेशा त्याग करते हैं।”
  7. जापान का सैन्य व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1 प्रतिशत है फिर भी सैन्य व्यय के लिहाज से जापान सातवें स्थान पर है। उपरोक्त तथ्यों से हम अनुमान लगा सकते हैं कि वैकल्पिक शक्ति केन्द्र के रूप में जापान अत्यंत प्रभावकारी है।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के पश्चात् दक्षिण कोरिया के अर्थव्यवस्था में तेजी आई। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोरियाई प्रायद्वीप को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में दक्षिण कोरिया और उत्तरी कोरिया में 38वें समानांतर के साथ-साथ विभाजित किया गया था। 1950-53 के दौरान कोरियाई युद्ध और शीत युद्ध काल की गतिशीलत ने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंद्विता को तेज कर दिया। अंतत: 17 सितंबर, 1991 को दोनों कोरिया संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बने। इसी बीच दक्षिण कोरिया एशिया में सत्ता के रूप में केन्द्र बनकर उभरा। 1960 के दशक से 1980 के दशक के बीच, इसका आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से विकास हुआ, जिसे “हान नदी पर चमत्कार” कहा जाता है।

अपने सर्वांगीण विकास को संकेतित करते हुए, दक्षिण कोरिया 1996 में ओईसीडी का सदस्य बन गया। 2017 में इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सैन्य खर्च में इसका दसवां स्थान है। मानव विकास रिपोर्ट, 2016 के अनुसार दक्षिण कोरिया का एचडीआई रैंक 18 है। दक्षिण कोरिया के उच्च मानव विकास के प्रमुख कारण ‘सफल भूमि सुधार, ग्रामीण विकास, व्यापक मानव संसाधन विकास, तीव्र न्यायसंगत आर्थिक वृद्धि, निर्यात उन्मुखीकरण, मजबूत पुनर्वितरण नीतियाँ, निर्यात उन्मुखीकरण, मजबूत पुनर्वितरण नीतियाँ, सार्वजनिक अवसंरचना विकास, प्रभावी संस्थाएँ और शासन आदि हैं।’

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

Jharkhand Board Class 12 History भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 144

प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि तोंदराडिप्पोडि जाति- व्यवस्था के विरोधी थे?
उत्तर:
हाँ, मुझे लगता है कि तोंदराडिप्पोडि जाति- व्यवस्था के विरोधी थे तोंदराडिप्पोडि नामक ब्राह्मण अलवार का कहना था कि यदि चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण भी भगवान विष्णु की सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते तो वे भगवान विष्णु को प्रिय नहीं हैं। दूसरी ओर भगवान विष्णु उन दासों को अधिक पसन्द करते हैं, जो भगवान के चरणों से प्रेम रखते हैं, चाहे वे वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत नहीं आते।

पृष्ठ संख्या 144

प्रश्न 2.
क्या ब्राह्मणों के प्रति तोंदराडिप्पोडी और अप्यार के विचारों में समानता है अथवा नहीं?
उत्तर:
स्रोत में प्रस्तुत उद्धरण को पढ़कर लगता कि तोंदराडिप्पोडी और नयनार संत अप्पार के विचारों में पर्याप्त समानता है। अप्पार का उद्धरण भी शास्त्रों को उद्धृत करने वाले ब्राह्मणों की धूर्तता की ओर लक्ष्य करते हुए उन्हें शिव के प्रति निष्ठा और समर्पण तथा उन्हें अपना एकमात्र आश्रयदाता मानकर नतमस्तक होने के लिए प्रेरित करता है।

पृष्ठ संख्या 145

प्रश्न 3.
उन उपायों की सूची बनाइये जिन उपायों से कराइक्काल अम्मइयार अपने आपको प्रस्तुत करती है किस भाँति ये उपाय स्त्री सौन्दर्य की पारम्परिक अवधारणा से भिन्न हैं?
उत्तर:

  • फूली हुई गाड़ियाँ
  • बाहर निकली हुई आँखें
  • सफेद दाँत
  • अन्दर धंसा हुआ पेट
  • लाल केश
  • आगे की ओर निकले दाँत
  • टखनों तक फैली हुई लम्बी पिंडली की नली।

ये उपाय निम्न प्रकार से स्वी सौन्दर्य की पारम्परिक अवधारणा से भिन्न है –

  • काजल लगी हुई मछली जैसी आंखें
  • सफेद दाँत तथा होठों पर लगी हुई लाली
  • काले व गहरे केश
  • मुँह में सही स्थिति में सुन्दर दाँत
  • लम्बी तथा सुन्दर पिंडली तथा पाँवों में पायजेब

पृष्ठ संख्या 146 चर्चा कीजिए

प्रश्न 4.
आपको क्यों लगता है कि शासक भक्तों से अपने सम्बन्ध को दर्शाने के लिए उत्सुक थे?
उत्तर:
वेल्लाल कृषक नयनार और अलवार सन्तों को सम्मानित करते थे। इसलिए शासक भी इन सन्तों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते थे। उदाहरण के लिए चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया और अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुन्दर और विशाल मन्दिरों का निर्माण करवाया जिनमें पत्थर और धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं। इन सम्राटों ने तमिल भाषा के शैव भजनों का गायना इन मन्दिरों में प्रचलित किया। 945 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि चोल सम्राट परांतक प्रथम ने सन्त कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ एक शिवमन्दिर में स्थापित करवाई।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

पृष्ठ संख्या 147

प्रश्न 5.
अनुष्ठानों के प्रति वासवन्ना के रवैये की व्याख्या कीजिए वे किस तरह श्रोता को अपनी बात समझाने का प्रयत्न करते हैं?
उत्तर:
बासवन्ना, लोगों द्वारा किये जा रहे आडम्बर, कर्मकाण्ड तथा मूर्ति पूजा पर कटाक्ष करते हैं। उनका कहना है कि पत्थर से बने सर्प को दूध पिलाते हैं जो पी नहीं लगते सकता और वहीं दूसरी तरफ जीवित सर्प को देखते ही मारने हैं। इसी प्रकार पत्थर की मूर्तियों को भोग लगाते हैं परन्तु भूखे-प्यासे भगवान के सेवकों को भगाने का प्रयास करते हैं।

पृष्ठ संख्या 149

प्रश्न 6.
वे लोग कौन थे जिनकी तरफ से अकबर को अपने फरमान की बेअदबी का अंदेशा था?
उत्तर:
बादशाह अकबर को खम्बायत गुजरात में गिरजाघर के निर्माण में यह हुक्मनामा इसलिए जारी करना पड़ा कि बादशाह को ऐसा अंदेशा था कि सम्भवतः अन्य धर्मों के लोग गिरजाघर के निर्माण का विरोध करें। उस काल में ईसाई धर्म के लोगों की संख्या भी कम थी। अकबर अपनी उदारवादी नीति के कारण अल्पसंख्यक लोगों के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध था।

पृष्ठ संख्या 150

प्रश्न 7.
जोगी द्वारा वंदनीय देवता की पहचान कीजिए जोगी के प्रति बादशाह के रवैये का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औरंगजेब द्वारा जोगी को लिखे पत्र द्वारा जात होता है कि जोगी शैव धर्म का उपासक है और जोगी के आराध्य देवता भगवान शिव हैं। बादशाह जोगी का बहुत सम्मान करता है और जोगी की हर तरह से मदद करता है। बादशाह के पत्र से औरंगजेब का जोगी के प्रति श्रद्धाभाव प्रकट होता है।

पृष्ठ संख्या 156

प्रश्न 8.
जहाँआरा कौनसी चेष्टाओं का जिक्र करती हैं जो शेख के प्रति उसकी भक्ति को दर्शाते हैं। दरगाह की खासियत को वह किस तरह दर्शाती है?
उत्तर:
वे चेष्टाएँ जो जहाँआरा, शेख मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रति श्रद्धा दर्शाती हैं, इस प्रकार हैं-मार्ग में कम-से- कम दो बार नमाज पढ़ना (प्रत्येक पड़ाव पर), रात को बाघ के चमड़े पर न सोना दरगाह की दिशा की ओर पैर न करना, दरगाह की तरफ अपनी पीठ न करना आदि। जहाँआरा दरगाह की विशिष्टताओं का इस प्रकार वर्णन करती है- दरगाह का वातावरण चिराग तथा इत्र से खुशनुमा है, दरगाह पाक और मुकद्दस भी दरगाह के अन्दर पवित्र आत्मिक आनन्द की अनुभूति हुई और जहाँआरा ने दरगाह की चौखट पर अपना सिर रखा।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

पृष्ठ संख्या 157

प्रश्न 9.
इस गाने (स्रोत 8 चरखानामा) के विचार और अभिव्यक्ति के तरीके जहाँआरा की जियारत (स्त्रोत 7) में वर्णित विचारों और अभिव्यक्ति के तरीकों से कैसे समान और भिन्न है?
उत्तर:
इस गाने के विचार और अभिव्यक्ति के तरीके जहाँआरा की जियारत में वर्णित विचारों और अभिव्यक्ति के तरीकों से इस प्रकार भिन्न हैं कि जहाँआरा ने जियारत यानी अपनी भक्ति और इबादत के लिए बाह्य पूजा; जैसाकि शारीरिक कष्ट उठाकर नंगे पाँव जाना, कठिन नियमों का पालन करना आदि का सहारा लिया है। यहाँ पर आत्मपूजा पर बल दिया गया है, अपने अन्दर बैठे परमात्मा की हर श्वास में पूजा करनी है कहीं बाहर नहीं जाना है। समानता इस बात की है कि दोनों पद्धतियों के भाव में कोई फर्क नहीं है। भाव तो परम सत्ता की इबादत का ही है। पृष्ठ संख्या 159 चर्चा कीजिए

प्रश्न 10.
धार्मिक और राजनीतिक नेताओं में टकराव के सम्भावित स्रोत क्या-क्या हैं?
उत्तर:
धार्मिक और राजनीतिक नेताओं में टकराव के सम्भावित स्रोत निम्नलिखित हैं-
(1) अपनी सत्ता का दावा करने के लिए दोनों ही कुछ आचारों पर बल देते थे, जैसे झुककर प्रणाम और कदम चूमना।
(2) कभी-कभी सूफी शेखों को आडम्बरपूर्ण पदवी से सम्बोधित किया जाता था। उदाहरण के लिए शेख निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी उन्हें सुल्तान-उल-मशेख (अर्थात् शेखों में सुल्तान) कहकर सम्बोधित करते थे। इसे शासक वर्ग के लोग अपने अहं के विरुद्ध मानते थे।
(3) कभी-कभी धार्मिक नेता शाही भेंट अस्वीकार कर देते थे।

पृष्ठ संख्या 159

प्रश्न 11.
सूफियों और राज्य के बीच सम्बन्ध का कौनसा पहलू इस कहानी से स्पष्ट होता है? यह किस्सा हमें शेख और उनके अनुयायियों के बीच सम्पर्क के तरीकों के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
सूफियों और राज्य के बीच सम्बन्ध का निम्नांकित पहलू इस कहानी से स्पष्ट होता है—शासक वर्ग सूफियों और सन्तों का सम्मान करता था, सूफियों और सन्तों की कृपा प्राप्त करने हेतु शासक वर्ग, सूफियों को आर्थिक तथा अन्य प्रकार की भेंट दिया करता था। सूफी लोग किसी से भेंट का आग्रह नहीं करते थे और न ही संग्रह करते थे सूफी संतों की लोकप्रियता बहुत थी, इसलिए शासक वर्ग भी इनके आशीर्वाद का आकांक्षी रहता था। यह कहानी सूफियों की निस्पृह भावना को भी उजागर करती है, वे निर्लिप्त भाव से रहते थे। वे चीज जैसेकि भूमि आदि, वे अनावश्यक समझते थे, उसे अस्वीकार कर देते थे।

पृष्ठ संख्या 160

प्रश्न 12.
विभिन्न समुदायों के ईश्वर के बीच पार्थक्य के विरुद्ध कबीर किस तरह की दलील पेश करते हैं?
उत्तर:
कबीर के अनुसार संसार का स्वामी एक ही है जो ईश्वर है। लोग ईश्वर को अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि, हजरत आदि नामों से पुकारते हैं कबीर के अनुसार ईश्वर के नाम के बारे में विभिन्नताएं तो केवल शब्दों में हैं जो हमारे द्वारा ही बनाए गए हैं। कबीर कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भुलाने में हैं। इनमें से कोई भी एक ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। वे अपना सम्पूर्ण जीवन सत्य से दूर विवादों में ही नष्ट कर देते हैं। पृष्ठ संख्या 164 चर्चा कीजिए

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

प्रश्न 13.
आपको क्यों लगता है कि कबीर, गुरुनानक देव और मीराबाई इक्कीसवीं सदी में भी महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
कबीर, गुरुनानक देव तथा मीराबाई ने सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त कुरीतियों, आडम्बरों एवं अन्धविश्वासों का विरोध किया था। इक्कीसवीं शताब्दी में भी सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में धार्मिक आडम्बर, कर्मकाण्ड और अन्धविश्वास प्रचलित हैं। अतः कबीर, गुरुनानक देव तथा मीराबाई इक्कीसवीं शताब्दी में भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी शिक्षाएँ आज भी मानव जाति के लिए उपयोगी हैं।

पृष्ठ संख्या 164

प्रश्न 14.
यह उद्धरण राणा के प्रति मीरा बाई के रुख के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
यह उद्धरण मीरा की भगवान कृष्ण के प्रति आसक्ति एवं अनुराग की पराकाष्ठा का द्योतक है, साथ ही साथ मीरा इस गीत के द्वारा सांसारिक जीवन के प्रति अपने वैराग्य भाव का भी वर्णन करती है। उनके अनुसार गोविन्द के गुण गाने के अतिरिक्त उन्हें अन्य कोई अभिलाषा नहीं है।

Jharkhand Board Class 12 History भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100-150 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 1.
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि सम्प्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
उत्तर:
इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम-से-कम दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थीं-
(1) प्रथम प्रक्रिया-प्रथम प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचरारा के प्रचार की थी। इसका प्रसार पौराणिक ग्रन्थों की रचना, संकलन और परिरक्षण द्वारा हुआ ये ग्रन्थ सरल संस्कृत छन्दों में थे, जिन्हें वैदिक विद्या से विहीन स्विय और शूद्र भी पढ़ सकते थे।
(2) द्वितीय प्रक्रिया द्वितीय प्रक्रिया थी स्त्रिय शूद्रों व अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मण द्वारा स्वीकृत किया जाना और उसे एक नया रूप प्रदान करना।

समाजशास्त्रियों का मत – कुछ समाजशास्त्रियों की यह मान्यता है कि सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में अनेक धार्मिक विचारधाराएँ तथा पद्धतियाँ ‘महान’ संस्कृत पौराणिक परिपाटी तथा ‘लघु’ परम्परा के बीच हुए निरन्तर संवाद का परिणाम हैं। इस प्रक्रिया का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण पुरी (उड़ीसा) में मिलता है, जहाँ बारहवीं शताब्दी तक आते-आते मुख्य देवता को जगन्नाथ के रूप में प्रस्तुत किया गया और उन्हें विष्णु का एक स्वरूप माना गया। समन्वय के ऐसे उदाहरण देवी सम्प्रदायों में भी मिलते हैं। स्थानीय देवियों को पौराणिक परम्परा के भीतर मुख्य देवताओं की पत्नी के रूप में मान्यता दी गई थी। कभी वह लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी बनीं और कभी शिव की पत्नी पार्वती के रूप में सामने आई।

प्रश्न 2.
किस हद तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण है?
उत्तर:
उपमहाद्वीप में अनेक मुस्लिम शासकों ने अनेक मस्जिदें बनवाई। इन मस्जिदों की स्थापत्य कला में स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक धर्म का जटिल मिश्रण दिखाई देता है। इन मस्जिदों के कुछ स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्व सार्वभौमिक थे-जैसे इमारत का मक्का की ओर अनुस्थापन जो मेहराब (प्रार्थना का आला) तथा मिनवार ( व्यासपीठ) की स्थापना से चिन्हित होता था।

दूसरी ओर स्थापत्य सम्बन्धी कुछ जैसे छत और निर्माण की सामग्री उदाहरण के लिए केरल में तेरहवीं शताब्दी में निर्मित एक मस्जिद जिसकी छत मन्दिर के शिखर से मिलती-जुलती है। दूसरी ओर जिला मैमनसिंग (बांग्लादेश) में ईटों की बनी अतिया मस्जिद की छत गुम्बददार है जो केरल में निर्मित मस्जिद की छत से भिन्न है। इसी प्रकार श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे बनी शाह हमदान मस्जिद के स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्व उपर्युक्त दोनों मस्जिदों के स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्वों से अलग हैं। यह मस्जिद कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्यकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

प्रश्न 3.
बे-शरिया और बा- शरिया सूफी परम्परा के बीच एकरूपता और अन्तर दोनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम कानूनों के संग्रह को शरिया कहते हैं। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। यह कानून मुस्लिम समुदाय को निर्देशित करता है। हदीस का तात्पर्य है पैगम्बर मोहम्मद साहब से जुड़ी परम्पराएँ। इन परम्पराओं में मोहम्मद साहब की स्मृति से जुड़े हुए शब्द और उनके क्रियाकलापों का समावेश है कुछ रहस्यवादियों ने सूफी सिद्धान्तों की मौलिक व्याख्या के आधार पर नवीन आन्दोलनों की नींव रखी।

खानकाह का तिरस्कार करके ये रहस्यवादी, फकीर का जीवन बिताते थे निर्धनता तथा ब्रह्मचर्य को उन्होंने गौरव प्रदान किया। इन्हें मदारी, कलंदर, मलंग हैदरी आदि नामों से जाना जाता था। शरिया की अवहेलना करने के कारण उन्हें शरिया कहा जाता था। दूसरी ओर का पालन करने वाले सूफी वा शरिया कहलाते थे। यहाँ रोचक तथ्य यह है कि वे शरिया तथा बा- शरिया दोनों ही इस्लाम से सम्बन्ध रखते थे। इन सूफी परम्पराओं के बीच एकरूपता भी थी। बे शरिया तथा बा-शरिया दोनों परम्पराओं के सूफी इस्लाम से सम्बन्धित थे दोनों ही इस्लाम के मूल सिद्धान्तों में विश्वास करते थे।

प्रश्न 4.
चर्चा कीजिए कि अलवार, नवनार और वीरशैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की?
उत्तर:
(1) अलवार और नयनार तमिलनाडु के भक्ति संत थे। कुछ इतिहासकारों का यह मानना है कि अलवार और नयनार सन्तों ने जातिप्रथा व ब्राह्मणों की प्रभुता का विरोध किया। कुछ सीमा तक यह बात सत्य प्रतीत होती है कि क्योंकि भक्ति संत विविध समुदायों में से थे जैसे ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान आदि कुछ भक्तिसंत तो ‘अस्पृश्य’ मानी जाने वाली जातियों से सम्बन्धित थे। उन्होंने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। इन्होंने सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में घूम-घूम कर अपनी शिक्षाओं का प्रचार किया। उन्होंने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया, जिन्हें अधिकाधिक लोग समझ सकते थे और उन्हें अपने जीवन में ग्रहण कर सकते थे।

उनके उपदेश और शिक्षाएँ भी सरल और व्यावहारिक थीं जिन्हें जनसाधारण की भाषाओं में व्यक्त करना उपयोगी था। यदि वे किसी एक विशिष्ट भाषा को अपने विचार व्यक्त करने के लिए माध्यम बनाते तो उन्हें अपने उद्देश्यों में सफलता मिलना बहुत कठिन था, इसलिए जन साधारण तक पहुँचने के लिए भक्ति तथा सूफी चिन्तकों ने जन साधारण को भाषाओं का ही सहारा लिया।

इस तथ्य की पुष्टि के लिए निम्नलिखित उदाहरणों से होती है –
उदाहरण –
(1) नमनार और अलवार सन्तों ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार तमिल भाषा में किया। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए तमिल में अपनी शिक्षाओं का प्रचार करते थे।
(2) कबीर के भजन अनेक भाषाओं और बोलियों में मिलते हैं। उनकी भाषा खिचड़ी है जिसमें पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूर्वी ब्रजभाषा आदि अनेक भाषाओं का मेल है।
(3) गुरु नानक ने अपने विचार पंजाबी भाषा में ‘शब्द’ के माध्यम से लोगों के सामने रखे उनके पदों और भजनों में उर्दू-फारसी के तत्कालीन प्रचलित शब्दों का प्रयोग मिलता है। सम्भवतः इसका कारण यह था कि उनका जन्म स्थान और प्रचारक्षेत्र पंजाब था, जहाँ उन शब्दों का जन साधारण में प्रचलन हो चुका था।
(4) मीरा ने भी अपने विचार बोलचाल की भाषा राजस्थानी में व्यक्त किये। इस पर ब्रज भाषा, गुजराती और खड़ी बोली का भी रंग चढ़ा हुआ है।
(5) सूफी सन्तों ने जन साधारण की भाषा खड़ी बोली में अपने विचार व्यक्त किये। सूफी सन्त बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने पंजाबी, गुजराती आदि भाषाओं में भी अपने विचार लोगों के सामने रखे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

प्रश्न 9.
इस अध्याय में प्रयुक्त किन्हीं पाँच स्रोतों का अध्ययन कीजिए और उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक एवं धार्मिक विचार इस अध्याय में प्रयुक्त स्रोतों के अध्ययन से उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों का वर्णन इस प्रकार है –
(1) स्रोत 1 (चतुर्वेदी और अस्पृश्य) चतुर्वेदी ब्राह्मण चारों वेदों के ज्ञाता थे परन्तु वे भगवान विष्णु की सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते थे। इसलिए भगवान विष्णु उन दासों को अधिक पसन्द करते हैं जो उनके चरणों से प्रेम रखते हैं, चाहे दास वर्ण व्यवस्था में शामिल नहीं थे। इस स्रोत से प्रकट होता है कि तमिलनाडु के अलवार सन्त जाति व्यवस्था के विरोधी थे।

(2) स्रोत 4 (अनुष्ठान और यथार्थं संसार) – इस स्रोत में बताया गया है कि ब्राह्मण सर्प की पत्थर की मूर्ति पर दूध चढ़ाते हैं, परन्तु असली साँप को देखते ही वे उसे मारने पर कटिबद्ध हो जाते हैं। इसी प्रकार ब्राह्मण देवता के भूखे सेवक को भोजन देने से इन्कार कर देते हैं, जबकि यह भोजन परोसने पर खा सकता है। इसके विपरीत, वे भगवान की प्रतिमा को भोजन परोसते हैं, जबकि वह भोजन नहीं खा सकती है। इस स्रोत में अनुष्ठानों की निरर्थकता पर प्रकाश डाला गया है।

(3) स्रोत 5 (खम्बात का गिरजाघर)- जब मुगल- सम्राट अकबर को ज्ञात हुआ कि ईसाई धर्म के पादरी गुजरात के खम्बात शहर में उपासना के लिए एक गिरजाघर का निर्माण करना चाहते थे, तो अकबर की ओर से एक शाही फरमान जारी किया गया कि खम्बात के महानुभाव किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न न करें और ईसाइयों को गिरजाघर का निर्माण करने दें। इससे मुगल सम्राट अकबर की उदारता, धर्म-सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना के बारे में जानकारी मिलती है।

(4) स्रोत 6 (जोगी के प्रति श्रद्धा)- इस स्रोत के अध्ययन से पता चलता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने गुरु आनन्दनाथ नामक एक जोगी के प्रति अत्यधिक सम्मान प्रकट किया और उसने जोगी को पोशाक के लिए वस्व तथा पच्चीस रुपये भेंट के रूप में भेजे। उसने जोगी को यह भी लिखा कि वह किसी भी प्रकार की सहायता के लिए उन्हें लिख सकते थे इस स्रोत से औरंगजेब की दानशीलता तथा अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता तथा सम्मान की भावना का बोध होता है।

(5) स्त्रोत 10 (एक ईश्वर )-इस खोत से कबीर की शिक्षाओं के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें कबीर ने बताया है कि संसार का एक ही स्वामी है। ईश्वर को अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि तथा हजरत आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। विभिन्नताएँ तो केवल शब्दों में ही जिनका आविष्कार हम स्वयं करते हैं। कबीर कहते हैं दोनों ही भुलावे में हैं। वे पूरा जीवन विवादों में ही बिता देते हैं। इस स्रोत से पता चलता है कि कबीर एकेश्वरवादी धे तथा बहुदेववाद के विरुद्ध थे। उन्होंने धार्मिक आडम्बरों की भी कटु आलोचना की है और एक ईश्वर की उपासना पर ही बल दिया है।

भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ JAC Class 12 History Notes

→ साहित्य और मूर्तिकला में देवी-देवताओं का दृष्टिगत होना लगभग आठवीं से अठारहवीं सदी तक के काल की सम्भवत: सबसे प्रभावी विशिष्टता यह है कि साहित्य और मूर्तिकला दोनों में ही अनेक प्रकार के देवी- देवता अधिकाधिक दृष्टिगत होते हैं। इससे पता चलता है कि विष्णु, शिव और देवी की आराधना की परिपाटी न केवल चलती रही, बल्कि और अधिक विस्तृत हुई।

→ पूजा प्रणालियों का समन्वय इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम से कम दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थीं। एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इसी काल की एक अन्य प्रक्रिया थी जिसमें स्वियों शूद्रों तथा अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों ने स्वीकृति प्रदान की थी और उसे एक नवीन रूप प्रदान किया
था।

→ तान्त्रिक पूजा पद्धति-अधिकांशतः देवी की आराधना पद्धति को तान्त्रिक नाम से जाना जाता है। तान्त्रिक पूजा पद्धति उपमहाद्वीप के कई भागों में प्रचलित थी। इसके अन्तर्गत स्वी और पुरुष दोनों ही शामिल हो सकते थे। इस पद्धति के विचारों ने शैव और बौद्ध दर्शन को भी प्रभावित किया, विशेष रूप से उपमहाद्वीप के पूर्वी उत्तरी और दक्षिणी भागों में कभी-कभी पूजा परम्पराओं में संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती थी। वैदिक परिपाटी के अनुयायी उन सभी आचारों की निन्दा करते थे, जो ईश्वर की उपासना के लिए मन्त्रों के उच्चारण के साथ यहाँ के सम्पादन से अलग थे। इसके विपरीत वे लोग थे, जो तान्त्रिक आराधना के उपासक थे और वैदिक सत्ता को स्वीकार नहीं करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

→ भक्ति परम्परा आठवीं से अठारहवीं सदी के काल से पूर्व लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन भक्तिपूर्ण उपासना की परम्परा रही है। इस समय भक्ति प्रदर्शन में मन्दिरों में इष्टदेव की आराधना से लेकर उपासकों के प्रेमभाव में तल्लीन हो जाना दिखाई पड़ता है। भक्ति रचनाओं का उच्चारण अथवा गाया जाना इस उपासना पद्धति के अंश थे।

→ उपासना की कविताएँ प्रारम्भिक भक्ति परम्परा कई बार संत कवि ऐसे नेता के रूप में उभरे जिनके आस-पास भक्तजनों का एक पूरा समुदाय रहता था। इन परम्पराओं ने स्वियों तथा निम्न वर्गों को भी स्वीकृति प्रदान की विविधता भक्ति परम्परा की एक अन्य विशेषता भी धर्म के इतिहासकार भक्ति परम्परा को दो मुख्य वर्गों में बाँटते हैं –

  • सगुण (विशेषण सहित ) तथा
  • निर्गुण (विशेषण विहीन) प्रथम वर्ग में शिव, विष्णु तथा उनके अवतार व देवियों की आराधना आती है।

इनकी मूर्त रूप में अवधारणा हुई। निर्गुण भक्ति परम्परा में अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।

→ तमिलनाडु के अलवार और नवनार संत-प्रारम्भिक भक्ति आन्दोलन लगभग छठी शताब्दी में अलवारों एवं नयनारों के नेतृत्व में हुआ अलवार विष्णु के उपासक थे, जबकि नयनार शिव की उपासना करते थे। अपनी यात्राओं के दौरान अलवार और नयनार संतों ने कुछ पवित्र स्थलों को अपने इष्ट का निवास स्थल घोषित किया। बाद में इन्हीं स्थलों पर विशाल मन्दिरों का निर्माण हुआ और वे तीर्थ स्थल माने गए।

→ जाति के प्रति दृष्टिकोण-कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलवार और नयनार सन्तों ने जातिप्रथा व ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में आवाज उठाई अलवार और नवनार संतों की रचनाओं को वेद जितना महत्त्वपूर्ण बताकर इस परम्परा को सम्मानित किया गया। अलवार सन्तों के एक मुख्य काव्य संकलन ‘नलविरादिव्य प्रबन्धम्’ का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था।

→ स्त्री भक्त इस परम्परा की सबसे बड़ी विशिष्टता इसमें स्विर्षो की उपस्थिति थी। अंडाल नामक अलवार स्वी के भक्तिगीत व्यापक स्तर पर गाए जाते थे और आज भी गाए जाते हैं। करइक्काल अम्मदवार एक शिवभक्त महिला श्री जिसने घोर तपस्या का मार्ग अपनाया।

→ राज्य के साथ सम्बन्ध-तमिल भक्ति रचनाओं में बौद्ध और जैन धर्म के प्रति विरोध की भावना व्यक्त की गई है। नयनार सन्तों की रचनाओं में यह विरोध विशेष रूप से दिखाई देता है। इसका कारण यह था कि परस्पर- विरोधी धार्मिक समुदायों में राजकीय अनुदान को लेकर प्रतिस्पद्धां थी। शक्तिशाली चोल सम्राटों ने ब्राह्मणीय तथा भक्ति परम्परा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मन्दिरों के निर्माण के लिए भूमि अनुदान दिया। चिदम्बरम, तंजावुर तथा गंगैकोंडचोलपुरम के विशाल शिव मन्दिर चोल सम्राटों की सहायता से ही बनाए गए थे चोल सम्राटों ने अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुन्दर मन्दिर बनवाये जिनमें पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं।

→ कर्नाटक की वीर शैव परम्परा-बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसका नेतृत्व बासवन्ना ( 1106-1168) नामक एक ब्राह्मण ने किया। बासवन्ना के अनुयायी वीरशैव (शिव के बीर) व लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहलाए। लिंगायत शिव की आराधना लिंग के रूप में करते हैं। इनका विश्वास है कि मृत्योपरान्त भक्त शिव में लीन हो जायेंगे तथा इस संसार में पुनः नहीं लौटेंगे। ये लोग श्राद्ध संस्कार का पालन नहीं करते तथा अपने मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते हैं। लिंगायतों ने जाति की अवधारणा तथा कुछ समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया। उन्होंने वयस्क विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

→ उत्तरी भारत में धार्मिक उफान उत्तरी भारत में अनेक राजपूत राज्यों का उद्भव हुआ। इन सभी राज्यों में ब्राह्मणों का महत्त्वपूर्ण स्थान था और वे ऐहिक और आनुष्ठानिक दोनों ही कार्य करते थे। इसी समय नाथ, जोगी तथा सिद्ध नामक धार्मिक नेताओं का प्रादुर्भाव हुआ। अनेक नवीन धार्मिक नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी और अपने विचार आम लोगों की भाषा में व्यक्त किए। तेरहवीं सदी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। सल्तनत की स्थापना से राजपूत राज्यों का और उनसे जुड़े ब्राह्मणों का पराभव हुआ। इन परिवर्तनों का प्रभाव संस्कृति और धर्म पर भी पड़ा।

→ शासकों और शासितों के धार्मिक विश्वास बहुत से क्षेत्रों में इस्लाम शासकों का स्वीकृत धर्म था। सैद्धान्तिक रूप से मुसलमान शासकों को उलमा के मार्गदर्शन पर चलना होता था। उलमा से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे शासन में शरिया का पालन करवाएँगे। परन्तु उपमहाद्वीप में स्थिति जटिल थी क्योंकि बड़ी जनसंख्या इस्लाम धर्म को मानने वाली नहीं थी। इस संदर्भ में जिम्मी अर्थात् संरक्षित श्रेणी का प्रादुर्भाव हुआ। जिम्मी वे लोग थे जो उद्घाटित धर्म ग्रन्थ को मानने वाले थे।

ये लोग जजिया नामक कर चुका कर मुसलमान शासकों द्वारा संरक्षण दिए जाने के अधिकारी हो जाते थे। हिन्दू भी इनमें सम्मिलित कर लिए गए। वास्तव में शासक शासितों की ओर काफी लचीली नीति अपनाते थे। उदाहरण के लिए बहुत से शासकों ने भूमि अनुदान व कर की छूट हिन्दू, जैन, पारसी, ईसाई और यहूदी धर्म संस्थाओं को दी तथा गैर मुसलमान धार्मिक नेताओं के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त किया।

→ लोक प्रचलन में इस्लाम इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्त हैं –

  • अल्लाह एकमात्र ईश्वर है, पैगम्बर मोहम्मद उनके दूत हैं
  • दिन में पाँच बार नमाज पढ़ी जानी चाहिए।
  • खैरात (जात) बॉटनी चाहिए।
  • रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए
  • हज के लिए मक्का जाना चाहिए।

→ मस्जिदों के स्थापत्य सम्बन्धी सार्वभौमिक तत्त्व-मस्जिदों के कुछ स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्व सार्वभौमिक थे जैसे इमारत का मक्का की ओर अनुस्थापन जो मेहराब और मिनबार की स्थापना से लक्षित होता था बहुत से तत्त्व ऐसे थे जिनमें भिन्नता देखने में आती है जैसे छत और निर्माण का सामान।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

→ समुदायों के नाम- लोगों का वर्गीकरण उनके जन्म स्थान के आधार पर किया जाता था जैसे तुर्की मुसलमानों को तुरुष्क तथा तजाकिस्तान से आए लोगों को ताजिक और फारस से आए लोगों को पारसीक नाम से सम्बोधित किया गया। प्रवासी समुदायों के लिए ‘म्लेच्छ’ शब्द का प्रयोग किया जाता था इससे ज्ञात होता है कि वे वर्ण नियमों का पालन नहीं करते थे तथा ऐसी भाषाएँ बोलते थे जो संस्कृत से नहीं उपजी थीं।

→ सूफी मत का विकास खिलाफत की बढ़ती विषयशक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर शुकाव बढ़ा जिन्हें सूफी कहा जाता था। इन लोगों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं तथा धर्माचार्यों द्वारा ‘की गई कुरान और सुन्ना (पैगम्बर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। उन्होंने मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया। उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब को इंसान-ए- कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने का उपदेश दिया।

→ खानकाह और सिलसिला संस्थागत दृष्टि से सूफी अपने को एक संगठित समुदाय खानकाह के इर्द- गिर्द स्थापित करते थे। खानकाह का नियन्त्रण शेख, पीर अथवा मुशींद के हाथ में था। बारहवीं शताब्दी के आस-पास इस्लामी जगत् में सूफी सिलसिलों का गठन होने लगा। सिलसिला का शाब्दिक अर्थ है जंजीर जो शेख और मुरीद के बीच एक निरन्तर रिश्ते का प्रतीक है जिसकी पहली अटूट कड़ी पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ी है पीर की मृत्यु के बाद उसकी दरगाह उसके मुरीदों के लिए भक्ति का स्थल बन जाती थी। इस प्रकार पीर की दरगाह पर जियारत के लिए जाने की, विशेषकर उनकी बरसी के अवसर पर परिपाटी चल निकली। इस परिपाटी को ‘उर्स’ कहा जाता था।

→ खानकाह के बाहर कुछ रहस्यवादी खानकाह का तिरस्कार करके फकीर का जीवन विताते थे। ये गरीबी में रहते थे तथा ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। ये कलंदर, मदारी, मलंग, हैदरी आदि नामों से जाने जाते थे। 19. उपमहाद्वीप में चिश्ती सिलसिला बारहवीं सदी के अन्त में भारत आने वाले सूफी समुदायों में चिश्ती सबसे अधिक प्रभावशाली थे। खानकाह सामाजिक जीवन का केन्द्र बिन्दु था शेख निजामुद्दीन औलिया का खानकाह दिल्ली शहर की बाहरी सीमा पर यमुना नदी के किनारे गियासपुर में था जहाँ सहवासी और अतिथि रहते थे और उपासना करते थे।

यहाँ एक सामुदायिक रसोई (लंगर) फुतूह (बिना मांगी खैर) पर चलती थी। यहाँ विभिन्न वर्गों के लोग आते थे। कुछ अन्य मिलने वालों में अमीर हसन सिजजी और अमीर खुसरो जैसे कवि तथा दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी जैसे लोग शामिल थे। शेख निजामुद्दीन ने कई आध्यात्मिक वारिसों का चुनाव किया और उन्हें उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में खानकाह स्थापित करने के लिए नियुक्त किया।

→ चिश्ती उपासना जियारत और कव्वाली सूफी सन्तों की दरगाह पर की गई जियारत सम्पूर्ण इस्लामी जगत् में प्रचलित है। इनमें सबसे अधिक पूजनीय दरगाह ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की है, जिन्हें ‘गरीब नवाज कहा जाता है। अजमेर में स्थित यह दरगाह शेख की सदाचारिता और धर्मनिष्ठा तथा उनके आध्यात्मिक वारिसों की महानता आदि के कारण लोकप्रिय थी। सोलहवीं सदी तक अजमेर की यह दरगाह बहुत ही लोकप्रिय हो गई थी।

अकबर ने 14 बार इस दरगाह की यात्रा की प्रत्येक यात्रा पर वह दान भेंट दिया करता था। 1568 में अकबर ने तीर्थयात्रियों के लिए खाना पकाने के लिए एक विशाल देग दरगाह को भेंट की। नाच और संगीत भी जियारत के भाग थे, विशेष रूप से कव्वालों द्वारा प्रस्तुत रहस्यवादी गुणगान, जिससे परमानन्द की भावना को जागृत किया जा सके। सूफी सन्त क्रि (ईश्वर का नाम-जप) या फिर समा अर्थात् आध्यात्मिक संगीत की महफिल के द्वारा ईश्वर की उपासना में विश्वास खते थे।

→ भाषा और सम्पर्क चिश्तियों ने स्थानीय भाषा को अपनाया। दिल्ली में चिश्ती सिलसिले के लोग हिन्दवी में बातचीत करते थे बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की। बीजापुर कर्नाटक में दक्खनी (उर्दू का रूप) में चिश्ती सन्तों ने छोटी कविताएँ लिखीं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

→ सूफी और राज्य सुल्तानों ने खानकाहों को करमुक्त (इनाम) भूमि अनुदान में दी और दान सम्बन्धी न्यास स्थापित किये चिश्ती धन और सामान के रूप में दान स्वीकार करते थे किन्तु इनको संजोने के बजाय भोजन, कपड़े, रहने की व्यवस्था, अनुष्ठानों आदि पर पूरी तरह खर्च कर देते थे। शासक न केवल सूफी सन्तों से सम्पर्क रखना चाहते थे, अपितु उनका समर्थन पाने के भी इच्छुक थे जब तुकों ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की तो उलमा द्वारा शरिया लागू किए जाने की मांग की गई जिसे सुल्तानों ने ठुकरा दिया। ऐसे समय सुल्तानों ने सूफी सन्तों का सहारा लिया। सुल्तानों और सूफियों के बीच तनाव के उदाहरण भी मिलते हैं।

→ नवीन भक्ति पंथ-कबीर की ‘बानी’ तीन विशिष्ट परिपाटियों में संकलित है। ‘कवीर बीसक’ कबीरपंथियों द्वारा वाराणसी तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर संरक्षित है। ‘कबीर ग्रन्थावली’ का सम्बन्ध राजस्थान के दादुपधियों से है। कबीर के कई पद ‘ आदि ग्रन्थ साहिब’ में भी संकलित हैं। कबीर की रचनाएँ अनेक भाषाओं और बोलियों में मिलती हैं। उनकी कुछ रचनाएँ ‘उलटबांसी’ कहलाती हैं जो इस प्रकार लिखी गई हैं कि उनके दैनिक अर्थ को उलट दिया गया।

इन उलटबाँसी रचनाओं का तात्पर्य परम सत्य के स्वरूप को समझने की कठिनाई दर्शाता है ‘कबीर वानी’ की एक प्रमुख विशिष्टता यह भी है कि उन्होंने परम सत्य का वर्णन करने के लिए अनेक परिपाटियों का सहारा लिया है। वैष्णव परम्परा की जीवनियों में कबीर को जन्म से हिन्दू कबीरदास बताया गया है किन्तु उनका पालन गरीब मुसलमान परिवार में हुआ, जो जुलाहे थे और कुछ समय पहले ही इस्लाम धर्म के अनुयायी बने थे। इन जीवनियों में रामानन्द को कबीर का गुरु बताया गया है। परन्तु इतिहासकारों का यह मानना है कि कबीर और रामानन्द का समकालीन होना कठिन प्रतीत होता है।

→ बाबा गुरुनानक बाबा गुरुनानक का जन्म 1469 ई. में एक हिन्दू व्यापारी परिवार में हुआ। उनका जन्म स्थान पंजाब का ननकाना गाँव था जो रावी नदी के पास था उनका विवाह छोटी आयु में हो गया था, परन्तु वह अपना अधिक समय सूफी और भक्त संतों के बीच व्यतीत करते थे। उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने यज्ञ, आनुष्ठानिक स्थान, मूर्तिपूजा, कठोर तप आदि बाहरी आडम्बरों का विरोध किया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

उन्होंने हिन्दू तथा मुसलमानों के धर्मग्रन्थों को भी नकार दिया। उन्होंने रब (ईश्वर) की उपासना के लिए एक सरल उपाय बताया और वह था उनका निरन्तर स्मरण व नाम का जाप उन्होंने अपने विचार पंजाबी भाषा में ‘शब्द’ के माध्यम से सामने रखे। उन्होंने अपने | अनुयायियों को एक समुदाय में संगठित किया। उन्होंने अपने अनुवायी अंगद को अपने बाद गुरुपद पर आसीन किया। इस परिपाटी का पालन 200 वर्षों तक होता रहा।

→ गुरबानी पाँचवें गुरु अर्जुनदेवजी ने बाबा गुरुनानक तथा उनके चार उत्तराधिकारियों, बाबा फरीद रविदास तथा कबीर की बानी को ‘आदि ग्रंथ साहिब’ में संकलित किया। इनको ‘गुरबानी’ कहा जाता है। सत्रहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में दसवें गुरु गोविन्द सिंहजी ने नवें गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को भी इसमें शामिल किया और इस ग्रन्थ को ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ कहा गया।

→ खालसा पंथ गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ (पवित्रों की सेना) की नींव डाली और उनके पाँच प्रतीकों का वर्णन किया –

  • बिना कटे केश
  • कृपाण
  • कच्छा
  • कंघा
  • लोहे का कड़ा।

→ मीराबाई, भक्तिमय राजकुमारी मीराबाई संभवतः भक्ति परम्परा की सबसे सुप्रसिद्ध कवयित्री हैं। मीरा का विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ के सिसोदिया कुल में कर दिया गया। उनके पति की मृत्यु के बाद उन पर भारी अत्याचार किये गए उनके ससुराल वालों ने उन्हें विष देने का प्रयत्न किया किन्तु वह राजभवन से निकलकर एक घुमक्कड़ गायिका बन गई। वह भगवान कृष्ण की अनन्य उपासिका थीं। कुछ परम्पराओं के अनुसार मीरा के गुरु रैदास थे। इससे ज्ञात होता है कि मोरा ने जातिवादी समाज की रूढ़ियों का उल्लंघन किया। ऐसा माना जाता है कि अपने पति के राजमहल के ऐश्वर्य को त्याग कर उन्होंने विधवा के सफेद वस्त्र अथवा संन्यासिनी के जोगिया वस्व धारण किये।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

→ शंकर देव-पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम के शंकर देव वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में उभरे। उनके उपदेशों को ‘भगवती धर्म’ कहकर सम्बोधित किया जाता है क्योंकि वे भगवद्‌गीता और भागवत पुराण पर आधारित थे शंकर देव ने भक्ति के लिए नाम कीर्तन और श्रद्धावान भक्तों के सत्संग में ईश्वर के नाम पर बल दिया। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार के लिए सत्र या मठ तथा नामपर जैसे प्रार्थना गृह की स्थापना को बढ़ावा दिया। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में ‘कीर्तनपोष’ भी है।

→ सूफी परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए विभिन्न स्रोत-
उच्चारण –
(1) अली विन उस्मान हुजवरी ने ‘कश्फ-उल-महजुब’ नामक पुस्तक लिखी जो सूफी विचारों और आचारों पर प्रबन्ध पुस्तिका है। इससे यह जानकारी मिलती है कि उपमहाद्वीप के बाहर की परम्पराओं ने भारत में सूफी चिन्तन को किस प्रकार प्रभावित किया।

(2) मुलफुजात (सूफी सन्तों की बातचीत) – मुलफुतात’ पर एक आरम्भिक ग्रन्थ ‘फवाइद-अल-फुआद’ है यह शेख निजामुद्दीन औलिया की बातचीत पर आधारित एक संग्रह है जिसका संकलन प्रसिद्ध फारसी कवि अमीर हसन सिजजी देहलवी ने किया।

(3) मक्तुबात लिखे हुए पत्रों का संकलन ) ये वे पत्र थे जो सूफी सन्तों द्वारा अपने अनुयायियों और सहयोगियों को लिखे गए। इन पत्रों से धार्मिक सत्य के बारे में शेख के अनुभवों का वर्णन मिलता है जिसे वह अन्य लोगों के साथ बांटना चाहते थे।

(4) तजकिरा ( सूफी सन्तों की जीवनियों का स्मरण ) भारत में लिखा पहला ‘सूफी तजकिरा’ ‘मीर खुर्द किरमानी’ का ‘सियार-उल-औलिया है। यह तजकिरा मुख्यतः चिश्ती संतों के बारे में था सबसे प्रसिद्ध तजकिरा अब्दुल हक मुहाद्दिस देहलवी का ‘अखबार-उल-अखबार है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

किरा के लेखकों का मुख्य उद्देश्य अपने सिलसिले की प्रधानता स्थापित करना और साथ ही अपनी आध्यात्मिक वंशावली की महिमा का वर्णन करना था। तजकिरे के बहुत से वर्णन अद्भुत और अविश्वसनीय हैं, किन्तु फिर भी वे इतिहासकारों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और सूफी परम्परा के स्वरूप को समझने में सहायक सिद्ध होते हैं। इतिहासकार धार्मिक परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए अनेक स्रोतों का उपयोग करते हैं जैसे मूर्तिकला, स्थापत्य, धर्मगुरुओं से जुड़ी कहानियाँ, काव्य रचनाएँ आदि।

काल-रेखा
भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ मुख्य धार्मिक शिक्षक

लगभग 500-800 ईस्वी तमिलनाडु में अप्पार, संबंदर, सुन्दरमूर्ति
लगभग 800-900 ईस्वी तमिलनाडु में नम्मलवर, मणिक्वचक्कार, अंडाल, तोंदराडिप्पोडी
लगभग 1000-1100 ईस्वी पंजाब में अल हुजविरी, दातागंज बवश; तमिलनाडु में रामानुजाचार्य
लगभग 1100-1200 ईस्वी कर्नाटक में बसवन्ना
लगभग 1200-1300 ईस्वी महाराष्ट्र में ज्ञानदेव मुक्ता बाई; राजस्थान में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती; पंजाब में बहाउद्दीन जकारिया और फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर; दिल्ली में कुतुबुद्दीन बरिखियार काकी
लगभग 1300-1400 ईस्वी कश्मीर में लालदेद; सिन्ध में लाल शाहबाज कलन्दर; दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया; उत्तरप्रदेश में रामानन्द; महाराष्ट्र में चोखमेला; बिहार में शराफुद्दीन याह्या मनेरी
लगभग 1400- 1500 ईस्वी उत्तरप्रदेश में कबीर, रैदास, सूरदास; पंजाब में बाबा गुरु नानक; गुजरात में बल्लभाचार्य; ग्वालियर में अब्दुल्ला सत्तारी; गुजरात में मुहम्मद शाह आलम; गुलबर्गा में मीर सैयद, मोहम्मद गेसू दराज़; असम में शंकर देव; महाराष्ट्र में तुकाराम
लगभग 1500-1600 ईस्वी बंगाल में श्री चैतन्य; राजस्थान में मीराबाई; उत्तरप्रदेश में शेख अब्दुल कुहस गंगोही, मलिक मोहम्मद जायसी, तुलसीदास
लगभग 1600-1700 ईस्वी हरियाणा में शेख अहमद सरहिन्दी; पंजाब में मियाँ मीर।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board Class 12 History विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 84

प्रश्न 1.
यज्ञ के उद्देश्यों की सूची बनाइये।
उत्तर:

  • यज्ञ करने वाले की आहूति को देवताओं तक पहुँचाना।
  • प्रचुर खाद्य पदार्थ प्राप्त करना।
  • प्रचुर धन प्राप्त करना।
  • पुष्टिवर्धक गाय प्राप्त करना।
  • वंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र की प्राप्ति करना।

पृष्ठ संख्या 87

प्रश्न 2.
क्या इन लोगों को नियतिवादी या भौतिकवादी कहना आपको उचित लगता है?
उत्तर:
मक्खलि गोसाल एक प्रसिद्ध नियतिवादी दार्शनिक थे। उनके अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दु:ख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। दूसरी ओर केसकम्बलिन भौतिकवादी दार्शनिक थे। उनके अनुसार दान, यज्ञ, चढ़ावा आदि सब निरर्थक हैं। इन लोगों के अलग-अलग सिद्धान्तों को देखते हुए इन्हें नियतिवादी या भौतिकवादी कहना उचित है।

पृष्ठ संख्या 87 चर्चा कीजिए

प्रश्न 3.
जब लिखित सामग्री उपलब्ध न हो अथवा किन्हीं वजहों से बच न पाई हो तो ऐसी स्थिति में विचारों और मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में क्या समस्याएँ सामने आती हैं?
उत्तर:
जब लिखित सामग्री उपलब्ध न हो अथवा किन्हीं कारणों से बच न पाई हो तो ऐसी स्थिति में विचारों और मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में निम्नलिखित समस्याएँ सामने आती हैं –

(1) हमें विचारों और मान्यताओं के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए इमारतों, मूर्तियों, अभिलेखों, चित्रों आदि का सहारा लेना पड़ता है। परन्तु दुर्भाग्य से अनेक इमारतें, मूर्तियाँ, अभिलेख, चित्र आदि नष्ट हो गए हैं। उदाहरण के लिए सांची का स्तूप तो सुरक्षित है, परन्तु अमरावती का स्तूप नष्ट हो गया है। इसलिए हमें तत्कालीन विचारों और 1. मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

(2) किसी मूर्तिकला अंश को देखकर फूस की झोंपड़ी तथा पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य की झलक मिलती है। परन्तु कुछ कला इतिहासकार इसे वेसान्तर जातक से लिया गया एक दृश्य बताते हैं। इससे स्पष्ट है कि प्राय: इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या, लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। परन्तु लिखित साक्ष्यों के अभाव में ऐसा करना सम्भव नहीं होता। (चित्र 4. 13, पृ० 100 )

(3) साँची की मूर्तियों में अनेक प्रतीक पाए गए हैं। इन प्रतीकों में कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति प्रमुख है। कुछ इतिहासकार मूर्ति को बुद्ध की माता माया से जोड़ते हैं तो अन्य इतिहासकार उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। लिखित सामग्री के अभाव में इस प्रकार की निश्चित जानकारी नहीं मिल पाती।

पृष्ठ संख्या 88

प्रश्न 4.
महारानी कमलावती द्वारा अपने पति को संन्यास लेने के लिए दिया गया कौनसा तर्क आपको सबसे ज्यादा युक्तियुक्त लगता है?
उत्तर:
महारानी कमलावती ने अपने पति को संन्यास लेने के लिए यह तर्क दिया कि “यदि सम्पूर्ण विश्व और वहाँ के सभी खजाने तुम्हारे हो जायें, तब भी तुम्हें सन्तोष नहीं होगा और न ही यह सब कुछ तुम्हें बचा पाएगा। जब तुम्हारी मृत्यु होगी तो सारा धन पीछे छूट जाएगा, तब केवल धर्म अर्थात् सत्कर्म ही तुम्हारी रक्षा करेगा।” इस प्रकार महारानी कमलावती द्वारा अपने पति को संन्यास लेने के लिए यह तर्क सर्वाधिक युक्तियुक्त लगता है कि राजा को संसार के सुखों और धन-दौलत का परित्याग कर संन्यास ले लेना चाहिए।

पृष्ठ संख्या 89 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 5.
क्या बीसवीं शताब्दी में अहिंसा की कोई प्रासंगिकता है?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी में भी अहिंसा की प्रासंगिकता बनी हुई है। महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध आदि चिन्तकों ने मानव जाति को अहिंसा का सन्देश दिया था। अहिंसा का सिद्धान्त आज भी महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी बना हुआ है। उग्रराष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्द्धा आदि के कारण युद्ध के बादल मंडराते रहते हैं युद्धों में भीषण विनाशलीला होती है तथा लोगों को भी भीषण कष्ट उठाने पड़ते हैं। युद्धों और रक्तपात से किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। हिंसा से कटुता बढ़ती है और समाज में अशान्ति एवं अव्यवस्था फैलती है। इसलिए अहिंसा का पालन करते हुए ही युद्धों और रक्तपात से बचा जा सकता है। अहिंसा के द्वारा ही समाज में सौहार्द, सहयोग, शान्ति एवं सुरक्षा का वातावरण बना रह सकता है। अत: इक्कीसवीं शताब्दी में भी अहिंसा की प्रासंगिकता है।

पृष्ठ संख्या 89

प्रश्न 6.
क्या आप इसकी (चित्र 4.6) लिपि को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 89 के चित्र क्रमांक 4.6 में दर्शायी गई चौदहवीं शताब्दी की जैन ग्रन्थ की पाण्डुलिपि है जो प्राकृत भाषा में लिखी गई है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

पृष्ठ संख्या 90 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
यदि आप बुद्ध के जीवन के बारे में नहीं जानते तो क्या आप मूर्ति को देखकर समझ पाते कि उसमें क्या दिखाया गया है?
उत्तर:
इतिहासकारों ने बुद्ध के जीवन के बारे में चरित लेखन से जानकारी इकट्ठी की है। अतः यदि हम बुद्ध के जीवन के बारे में नहीं जानते, तो इस मूर्ति ( पृ० 90) को देखकर हम कुछ भी सही अनुमान नहीं लगा सकते थे कि यह मूर्ति युद्ध के जीवन से सम्बन्धित किस घटना पर प्रकाश डालती है। इस मूर्ति से पता चलता है कि संन्यासी को देखकर बुद्ध ने संन्यास का रास्ता अपनाने का निश्चय किया और महल त्यागकर सत्य की खोज में निकल गए। पृष्ठ संख्या 91

प्रश्न 8.
आप सुझाव दीजिए कि माता-पिता, शिक्षकों और पत्नी के लिए किस तरह के निर्देश दिए गए होंगे?
उत्तर:
(1) माता-पिता की सेवा करनी चाहिए और उनकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।
(2) शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और उनके आदेशों का पालन करना चाहिए।
(3) पत्नी के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए और सुख-दुःख में उसका साथ देना चाहिए।

पृष्ठ संख्या 92 चर्चा कीजिए

प्रश्न 9.
बुद्ध द्वारा सिगल को दी गई सलाह की तुलना अशोक द्वारा उसकी प्रजा (अध्याय 2) को दी गई सलाह से कीजिए। क्या आपको कुछ समानताएँ और असमानताएँ नजर आती हैं?
उत्तर:
बुद्ध द्वारा सिंगल को दी गई सलाह की तुलना अशोक द्वारा उसकी प्रजा को दी गई सलाह से करने पर निम्नलिखित समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं- समानताएँ-

  • संन्यासियों और ब्राह्मणों की देखभाल करना
  • सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार
  • बड़ों के प्रति आदर
  • दूसरे धर्मों और परम्पराओं का सम्मान।

असमानताएँ –

  • ब्राह्मणों और भ्रमण के स्वागत में हमेशा घर खुले रखकर और उनकी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करना
  • नौकरों और कर्मचारियों को भोजन और मजदूरी देना, बीमार पड़ने पर उनकी सेवा करना, उनके साथ स्वादिष्ट भोजन बाँटना और समय-समय पर उन्हें अवकाश देना।

पृष्ठ संख्या 93

प्रश्न 10.
बुद्ध की कौन-सी शिक्षाएँ ‘बेरीगाथा’ नज़र आती हैं? देना।
उत्तर:
(1) बुरे कर्मों का परित्याग।
(2) जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का विरोध।
(3) कर्मों के फल और पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर बल
(4) सत्कर्म करने पर बल देना।
(5) आडम्बरों और कर्मकाण्डों का विरोध।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

पृष्ठ संख्या 94

प्रश्न 11.
क्या आप बता सकते हैं कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम क्यों बनाए गए ?
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए संघ की स्थापना की संघ ऐसे भिक्षुओं की संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए। बाद में भिक्षुणियों को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान की गई। धीरे-धीरे भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या बढ़ने लगी। अतः संघ में अनुशासन तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए संघ प्रणाली को सफल बनाने के लिए और सभी कार्यों के सुचारु रूप से संचालन के लिए भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए नियम बनाए गए। पृष्ठ संख्या 94 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
पुन्ना जैसी दासी संघ में क्यों जाना चाहती थी?
उत्तर:
पुन्ना एक निर्धन दासी थी वह अपने स्वामी के घर के लिए प्रतिदिन प्रातः नदी का पानी लेने जाती थी। उच्च वर्णों के लोग निम्न वर्गीय माने जाने वाली दासियों का शोषण करते थे। वे उनके साथ कठोर व्यवहार करते थे। पुन्ना को भीषण ठंड में भी नदी से पानी लाना पड़ता था तथा ऐसा न करने पर उसे दंड भुगतना पड़ता था या उच्च घरानों की स्वियों के कटु वचन सुनने पड़ते थे अतः अपनी अपमानजनक एवं दयनीय स्थिति से मुक्ति पाने तथा समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त करने के लिए पुन्ना संघ में जाना चाहती थी। संघ में सभी भिक्षुओं और भिक्षुणियों को बराबर माना जाता था और वहाँ उन्हें सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था क्योंकि भिक्षु तथा भिक्षुणी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।

पृष्ठ संख्या 96

प्रश्न 13.
चित्र 4.15 (पृ. 100) को देखकर क्या आप इनमें से कुछ रीति-रिवाजों को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
(1) यह स्तूप बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। इससे पता चलता है कि स्तूपों का निर्माण बुद्ध अथवा बोधिसत्वों के अवशेष रखने के लिए किया जाता था।
(2) इससे पता चलता है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी स्तूपों की पूजा करते थे।
(3) स्तूप की पूजा के लिए समारोह आयोजित किए जाते थे।
(4) इस अवसर पर नृत्य तथा संगीत का भी आयोजन किया जाता था।

पृष्ठ संख्या 97 चर्चा कीजिए

प्रश्न 14.
साँची के महास्तूप के मापचित्र (चित्र 4.10क) और छायाचित्र (चित्र 4.3 ) में क्या समानताएँ और फर्क हैं?
उत्तर:
मापचित्र तथा छायाचित्र में निम्नलिखित समानताएँ और फर्क हैं –
(1) चित्र 4.10 (क) में साँची के महास्तूप की योजना को उसके समतलीय परिप्रेक्ष्य में दिखाया गया है, जबकि चित्र 43 में स्तूप को उसके वास्तविक स्वरूप में दिखाया गया है।
(2) चित्र 4.10 (क) से स्तूप की पूर्ण बनावट, उसके चारों तोरण द्वार तथा मध्य का भाग स्पष्ट होता है। जबकि चित्र 43 से ऐसा स्पष्ट नहीं होता है।
(3) चित्र 4.10 (क) में स्तूप के प्रदक्षिणा पथ को भी स्पष्ट देखा जा सकता है; जबकि चित्र 43 में प्रदक्षिणा पथ दिखाई नहीं देता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्तूप की बनावट की संरचना को समझाने हेतु चित्र 4.10
(क) एवं
(ख) सहायक हो सकते हैं।
चित्र 43 द्वारा स्तूप की संरचना को समझना कठिन है। यह चित्र 43 प्रत्यक्ष दर्शन के लिए प्रेरित करता है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

पृष्ठ संख्या 99 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 15.
कारण बताइये कि साँची क्यों बच गया?
उत्तर:
साँधी इसलिए बच गया क्योंकि उसके किसी पुरातात्विक अवशेष को वहाँ से उठाकर नहीं ले जाया गया तथा पुरातात्विक अवशेष खोज की जगह पर ही संरक्षित किए गए 1818 में जब साँची की खोज हुई, इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे चौथा तोरणद्वार वहीं पर गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी हालत में था। उस समय भी यह सुझाव दिया गया था कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु ये सुझाव कार्यान्वित नहीं हुए और साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। भोपाल के शासकों ने भी इस स्तूप के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रकार साँची बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया।

पृष्ठ संख्या 103 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
मूर्तिकला के लिए हड्डियों, मिट्टी और धातुओं का भी इस्तेमाल होता है। इनके विषय में पता कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा काल में मूर्तिकला हेतु मिट्टी, पत्थर, धातुओं और हड्डी का प्रयोग होता था। यह सामग्री इसलिए प्रयोग में लाई जाती थी कि इन पर तकनीकी रूप से उत्कीर्णन का कार्य सरल था तथा यह वस्तुएँ सर्वसुलभ और सस्ती थीं।

पृष्ठ संख्या 104

प्रश्न 17.
मूर्ति में दी गई आकृतियों के आपसी अनुपात में फर्क से क्या बात समझ में आती है?
उत्तर:
चित्र 4.23 भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक वराह अवतार का है। भगवान विष्णु ने अपने इस अवतार से पृथ्वी की रक्षा की थी तथा इसे पाताल लोक अथवा समुद्र से निकालकर पुनः यथास्थान स्थापित किया था चित्र में बनायी गई आकृतियों को हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं –
(1) चित्र का मुख्य कथानक भगवान विष्णु का वराह अवतार रूपी मूर्ति है। इसे आप चित्र के मध्य में तथा नीचे से ऊपर तक देख सकते हैं। इस अवतार में भगवान ने अत्यधिक विशाल रूप धारण किया था। अतः इन्हें यहाँ अन्य मूर्तियों की अपेक्षा विशाल रूप में दिखाया गया है।

(2) चित्र में नीचे दायीं ओर पाताल देवता तथा उसकी पत्नी को छोटे रूप में दिखाया गया है, जो सपत्नीक वराह की स्तुति कर रहा है।

(3) चित्र में ऊपर दायीं ओर वराह भगवान ने अपने मुख के धुधन से पृथ्वी देवी को पकड़ा हुआ है जो पाताल से उन्हें बाहर निकालकर लाए हैं। अतः यहाँ पृथ्वी को वराह की अपेक्षा अत्यन्त लघु रूप में दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 105

प्रश्न 18.
कलाकारों ने किस प्रकार गति को दिखाने की कोशिश की है? इस मूर्ति में बताई कहानी के बारे में जानकारी इकट्ठी कीजिए ।
उत्तर:
इस चित्र में कलाकारों ने युद्ध-विषयक गति दिखाने का प्रयास किया है। इसमें देवी महिषासुर नामक दैत्य को मारने का प्रयास कर रही हैं। चित्र में आप भैंसे के चित्र वाले दैत्य को भी देख सकते हैं। यहाँ देवी को सिंह पर बैठे हुए तथा हाथ में धनुष लिए दिखाया गया है। विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक के चित्र 4.24 को देखें।

पृष्ठ संख्या 106 प्रश्न

19. गर्भगृह के प्रवेश द्वार और शिखर के अवशेषों को पहचानें।
उत्तर:
चित्र 4.25 के अवलोकन से पता लगता है कि सीढ़ियों के समक्ष वाला द्वार गर्भगृह का द्वार है। प्रवेश द्वार के शीर्ष पर मन्दिर के शिखर के अवशेष दिखाई दे रहे हैं। मन्दिर देवगढ़ में स्थित है तथा यह गुप्तकालीन मन्दिर है। मन्दिर का निर्माण एक ऊँचे चबूतरे पर किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board Class 12 History विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 1.
क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
उपनिषदों के दार्शनिकों के विचारों की नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचारों से भिन्नता उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार उपनिषदों में ब्रह्म, आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म तथा मोक्ष सम्बन्धी दार्शनिक विचारों की विवेचना की गई है। उपनिषदों के अनुसार आत्मा ब्रह्म की ही ज्योति है और उससे भिन्न नहीं है। उपनिषदों के अनुसार मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसी के अनुसार अच्छे और बुरे कर्मों का फल भोगने के लिए उसका अगला जन्म होता है अच्छे कर्मों से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है परन्तु नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचारों में ब्रह्म और आत्मा की एकता, कर्म और पुनर्जन्म तथा मोक्ष सम्बन्धी विचारों को कोई स्थान नहीं है।

नियतिवादियों तथा भौतिकवादियों के विचार – नियतिवादियों के अनुसार मनुष्य के सुख और दुःख पूर्व- निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। इन्हें संसार में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया भी नहीं जा सकता। इसी प्रकार भौतिकवादियों की मान्यता है कि संसार में दान देना, यज्ञ करना या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं होती। मनुष्य की मृत्यु के साथ ही चारों तत्व नष्ट हो जाते हैं जिनसे वह बना होता है। दान देने का सिद्धान्त मूर्खतापूर्ण और नितान्त झूठ है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे।

प्रश्न 2.
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए।
अथवा
जैन धर्म के अहिंसा सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) जैन दर्शन के अनुसार सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यह माना जाता है कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। जैन धर्म के अनुसार इन्सानों, जानवरों, पेड़-पौधों कीड़े- मकोड़ों आदि की हत्या नहीं करनी चाहिए। वास्तव में जैन अहिंसा के सिद्धान्त ने सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन परम्परा को प्रभावित किया है।
(3) जैन धर्म के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। इस चक्र से मुक्ति पाने के लिए त्याग और तपस्या की आवश्यकता होती है। यह संसार के त्याग से ही सम्भव हो पाता है। इसलिए मुक्ति के लिए बिहारों में निवास करना चाहिए।
(4) जैन साधुओं और साध्वियों को पाँच व्रतों का पालन करना चाहिए। ये पाँच व्रत हैं –

  • हत्या न करना
  • चोरी न करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचर्य (अमृषा) का पालन करना तथा
  • धन संग्रह न करना।

प्रश्न 3.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सम्बन्ध में उन्होंने निम्नलिखित कार्य किए –
(1) शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया।
(2) सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया।
(3) जॉन मार्शल ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तानजहाँ बेगम को समर्पित किया। इन पुस्तकों के प्रकाशन में सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया।
(4) प्रारम्भ में फ्रांसीसियों ने तथा बाद में अंग्रेजों ने साँची के पूर्वी तोरणद्वार को अपने-अपने देश में ले जाने का प्रयास किया। परन्तु भोपाल की बेगमों ने उन्हें स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियाँ देकर सन्तुष्ट कर दिया। इस प्रकार बेगमों के प्रयासों के परिणामस्वरूप साँची के स्तूप की मूलकृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही रही।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 4.
निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए – महाराज हुविष्क ( एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।
(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं?
(घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रन्थों को जानती थीं?
(ङ) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?
उत्तर:
(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कुषाण शासक महाराज हुविष्क के शासनकाल की सहायता से निश्चित की यह तारीख हुविष्क के शासनकाल के तैंतीसवें साल की ग्रीष्म ऋतु के पहले महीने का आठवाँ दिन है।
(ख) धनवती एक बौद्ध भिक्षुणी थी उनकी बौद्ध धर्म में अत्यधिक श्रद्धा थी अतः उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा एवं सम्मान प्रकट करने के लिए बोधिसत की मूर्ति स्थापित की।
(ग) वेमौसी बुद्धमिता तथा अपने माता-पित्ता का नाम लेती है.
(घ) वे त्रिपिटक नामक बौद्ध ग्रन्थों को जानती थीं।
(ङ) उन्होंने ये पाठ अपने गुरु भिक्षु बल तथा अपनी मौसी बुद्धमिता से सीखे थे।

प्रश्न 5.
आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए एक संघ की स्थापना की। स्त्री और पुरुष निम्नलिखित कारणों से संघ में जाते थे –
(1) वे संघ में रहते हुए बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन कर सकते थे।
(2) वे बौद्ध भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों से बौद्ध धर्म की शिक्षाओं और दार्शनिक सिद्धान्तों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
(3) वे संघ में जाकर धम्म के शिक्षक बन सकते थे।
(4) अनेक स्त्रियों धम्म की उपदेशिकाएँ अथवा धेरी बनना चाहती थीं।
(5) वे धम्म से सम्बन्धित अपनी शंकाओं का समाधान करना चाहते थे।
(6) वे अपने जीवन को सफल, सुखी एवं अनुशासित करना चाहते थे।

निम्नलिखित पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?
अथवा
“साँची की खोज ने प्रारम्भिक बौद्ध धर्म सम्बन्धी हमारे ज्ञान को अत्यधिक रूपान्तरित कर दिया है।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
साँची की मूर्ति कला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से सहायता मिलना
साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से हमें निम्न रूप से सहायता मिलती है-

(1) इतिहासकारों द्वारा मूर्तिकला की व्याख्या- इस मूर्तिकला अंश में फूस की झोंपड़ी और पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य का चित्रण दिखाई देता है परन्तु साँची की मूर्तिकला का गहन अध्ययन करने वाले कला इतिहासकार इसे वेसान्तर जातक से लिया गया एक दृश्य बताते हैं। यह कहानी एक ऐसे दानशील राजकुमार के बारे में है, जिसने अपना सर्वस्व एक ब्राह्मण को दे दिया और स्वयं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगल में रहने चला गया। इस उदाहरण से पता चलता है कि प्रायः इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित
साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं।

(2) बुद्ध के चरित लेखन के बारे में जानकारी प्राप्त करना बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित लेखन के बारे में जानकारी प्राप्त करनी पड़ी। बौद्ध चरित लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे चिंतन करते हुए बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए ‘रिक्त स्थान’ बुद्ध के ध्यान की दशा तथा स्तूप ‘महापरिनिब्बान’ के प्रतीक बन गए। ‘चक्र’ का भी प्रतीक के रूप में प्रायः प्रयोग किया गया। यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए प्रथम उपदेश का प्रतीक था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

(3) लोक परम्पराएँ साँची की बहुत सी मूर्तियाँ शायद बौद्धमत से सीधी सम्बन्धित नहीं थीं। इनमें कुछ सुन्दर स्त्रियाँ भी मूर्तियों में उत्कीर्णित हैं, जो तोरणद्वार के किनारे एक वृक्ष पकड़ कर झूलती हुई दिखाई देती हैं। प्रारम्भ में विद्वान इस मूर्ति के महत्व के बारे में कुछ असमंजस में थे क्योंकि इस मूर्ति का त्याग और तपस्या से कोई सम्बन्ध दिखाई नहीं देता था परन्तु साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन से उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परां में यह माना जाता था कि इस स्वी के द्वारा हुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल होने लगते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इसी कारण स्तूप के अलंकरण में यह प्रयुक्त हुआ।

(4) साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीकों का लोक परम्पराओं से उभरना ‘शालभंजिका’ की मूर्ति से ज्ञात होता है कि जो लोग बौद्ध धर्म में आए, उन्होंने बुद्ध- पूर्व और बौद्ध धर्म से अलग अन्य विश्वासों, प्रथाओं और धारणाओं से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया। साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न निश्चित रूप से इन्हीं परम्पराओं से उभरे थे।

उदाहरण के लिए, सांची में जानवरों के कुछ बहुत सुन्दर उत्कीर्णन प्राप्त हुए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय-बैल सम्मिलित हैं। यद्यपि साँची में जातकों से ली गई जानवरों की अनेक कहानियाँ हैं फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था उदाहरण के लिए, हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

(5) कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति का उत्कीर्णन साँची में इन प्रतीकों में कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति प्रमुख है। हाथी उनके ऊपर जल छिड़क रहे हैं, जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हैं। कुछ इतिहासकार इस महिला को बुद्ध की माता भाषा से जोड़ते हैं तो कुछ अन्य इतिहासकार उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध थीं, जिन्हें प्रायः हाथियों के साथ जोड़ा जाता है। यह भी सम्भव है कि इन उत्कीर्णित मूर्तियों को देखने वाले उपासक इस महिला को माया और गजलक्ष्मी दोनों से जोड़ते थे।

(6) स्तम्भों पर सर्पों का उत्कीर्णन कुछ स्तम्भों पर सर्पों का उत्कीर्णन है। यह प्रतीक भी ऐसी लोक परम्पराओं से लिया गया प्रतीत होता है जिनका ग्रन्थों में सदैव उल्लेख नहीं होता था। प्रसिद्ध कलामर्मज्ञ और इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने साँची को वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र माना था। वे बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञ थे। उस 5 समय तक अधिकांश बौद्धग्रन्थों का अनुवाद नहीं हुआ था। इसलिए उन्होंने केवल उत्कीर्णित मूर्तियों का अध्ययन करके उसके निष्कर्ष निकाले थे।

प्रश्न 7.
चित्र 4.32 और 4.33 में साँची से लिए गए दो परिदृश्य दिए गए हैं। आपको इनमें क्या नजर आता है? वास्तुकला, पेड़-पौधे और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धन्धों को पहचानकर यह बताइये कि इनमें से कौनसे ग्रामीण और कौनसे शहरी परिदृश्य हैं?
उत्तर:
देखें पाठ्यपुस्तक, चित्र 4.32 (पृष्ठ 112) – यह चित्र ग्रामीण परिदृश्य से सम्बन्धित है। इसमें अनेक पेड़-पौधे, जानवर भी दिखाए गए हैं। इसमें मनुष्य और पशु जैसे हिरण, गाय, भैंस आदि दर्शाये गए हैं। इससे ज्ञात होता है कि ग्रामीण लोगों के जीवन में पशुओं का अत्यधिक महत्त्व था। चित्र में लोगों को संगीत-नृत्य की मुद्रा में दिखाया गया है जिससे ज्ञात होता है कि संगीत-नृत्य आदि उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। चित्र में लोगों को बुद्ध और बोधिसत्वों की पूजा करते हुए दिखाया गया है। इससे पता चलता है कि बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियाँ बनाई जाती थीं तथा उनकी उपासना की जाती थी ये बुद्ध और बोधिसतों की उपासना करते हुए दिखाए गए हैं।

इस चित्र से पशुओं, पेड़-पौधों के प्रति बौद्धों के करुणामय दृष्टिकोण तथा अहिंसा के प्रति अटूट श्रद्धा की जानकारी मिलती है। यद्यपि साँची में जातकों से ली गई जानवरों की कई कहानियाँ हैं, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था।

साँची में पेड़-पौधों का भी प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था। पेड़ का तात्पर्य एक पेड़ नहीं था, वरन् वह बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक था इस प्रकार इस चित्र में तत्कालीन ग्रामीण परिवेश के बारे में जानकारी मिलती। है। इससे हमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी मिलती है।

देखें पाठ्यपुस्तक, चित्र 4.33 ( पृष्ठ 112 ) – यह चित्र शहरी परिदृश्य से सम्बन्धित है। इससे तत्कालीन वास्तुकला एवं मूर्तिकला की विशेषताओं के बारे में जानकारी मिलती है। इस चित्र में बड़े-बड़े सुन्दर स्तम्भ, स्तम्भों के ऊपर उल्टे कलश और उनके ऊपर विभिन्न पशुओं का उत्कीर्णन किया गया है। कलशों के ऊपर दो दिशाओं में घोड़े तथा शेर आदि की मूर्तियाँ बनी हुई है। इसमें प्रथम दो भागों में एक आसन पर एक राजा बैठा हुआ है जिसके ऊपर एक छत्र लगा है तथा उसके पीछे दो सेवक पंखा कर रहे हैं।

स्तम्भों के नीचे जालीदार सुन्दर कार्य दर्शाया गया है। इसमें विभिन्न भिक्षुओं, भिक्षुणियों, व्यवसायियों आदि को विभिन्न रूपों में उत्कीर्णित किया गया है। इस चित्र के निचले भाग में भिक्षु बुद्ध और बोधिसत्तों की उपासना में लीन हैं। इसमें वाद्ययन्त्र बजाते हुए भी लोगों को दिखाया गया है। इसमें विभिन्न पशुओं की जो मूर्तियाँ दर्शाई गई हैं वे मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में हैं। उदाहरण के लिए हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

प्रश्न 8.
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वैष्णववाद तथा शैववाद का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है। यदि हम जॉन मार्शल के कथन को सही मानें तो मोहन जोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा जिस पर योगी की मुद्रा उभरी हुई है वह और कोई नहीं अपितु शिव ही हैं। इस प्रकार देखा जाए तो शैववाद आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के अपने पुरातात्त्विक साक्ष्य प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त हड़प्पा सभ्यता से हमें अनेक प्रस्तर लिंग भी प्राप्त होते हैं। ऋग्वैदिक काल में शैववाद तथा वैष्णववाद के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। ऋग्वैदिक आर्यों के प्रमुख देवता इन्द्र अग्नि तथा वरुण थे। यहाँ शिव को हम पशुओं के देवता अर्थात् पूषन के रूप में देखते हैं तथा विष्णु को हम एक सामान्य देवता के रूप में देखते हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

इस समय आराधना का मुख्य आधार यज्ञ था। देवताओं की आराधना तथा उनको प्रसन्न करने का एकमात्र माध्यम यज्ञ था। उत्तरवैदिक काल में बहुदेववाद एकेश्वरवाद में परिवर्तित हुआ। इसके परिणामस्वरूप भागवत धर्म तथा शैवधर्म की स्थापना हुई। इनके विधिवत रूप से स्थापित होने का समय लगभग 600 ई.पू. रहा होगा। परन्तु इस काल के शैववाद अथवा वैष्णववाद से सम्बन्धित कोई मूर्ति अथवा मन्दिर नहीं मिलते हैं। भारत में मूर्तिकला का प्रथम विधिवत आरम्भ हम मथुरा कला तथा गांधार कला में पाते हैं।

वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला का विकास निम्न प्रकार है –
(1) अवतारवाद – प्राचीन काल में भारत में वैष्णव और शैव परम्परायें भी प्रचलित थीं। वैष्णववाद में विष्णु की तथा शौववाद में शिव की पूजा प्रचलित थी उनकी उपासना भक्ति के माध्यम से की जाती थी। वैष्णववाद में कई अवतारों की पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई। इस परम्परा के अन्तर्गत दस अवतारों की कल्पना की गई। विष्णु और उनके अनेक अवतारों की मूर्तियाँ बनाई जाने लगीं। शिव की भी मूर्तियाँ बनाई गई।

(2) मन्दिरों का निर्माण जिस समय साँची जैसे स्थानों में स्तूप अपने विकसित रूप में आ गए थे, उसी समय देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मन्दिर भी बनाएं गए। प्रारम्भिक मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे, जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाजा होता था जिससे उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए अन्दर प्रविष्ट हो सकता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा, जिसे शिखर कहा जाता था। मन्दिर की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किये जाते थे। कालान्तर में मन्दिरों के स्थापत्य का काफी विकास हुआ। अब मन्दिरों के साथ विशाल सभा स्थल, ऊँची दीवारें और तोरण भी बनाए जाने लगे। मन्दिरों में जल आपूर्ति की व्यवस्था की जाने लगी।

(3) कृत्रिम गुफाओं का निर्माण आरम्भिक मन्दिरों की एक विशेषता यह थी कि इनमें से कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काटकर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा काफी पुरानी थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बनाई गई थीं।

कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा अलग-अलग चरणों में विकसित होती रही। इसका सबसे विकसित रूप हमें आठवीं सदी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है जिसमें पूरी पहाड़ी काटकर उसे मन्दिर का रूप दे दिया गया था। यह तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। एक ताम्रपत्र अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि इस मन्दिर का निर्माण समाप्त करने के बाद इसके प्रमुख मूर्तिकार ने अपना आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि “हे भगवान! यह मैंने कैसे बनाया।”

(4) मूर्तिकला का विकास इस युग में विष्णु और शिव की अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया। विष्णु के कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दर्शाया गया है। अनेक देवताओं की भी मूर्तियाँ बनाई गईं। इनमें उदयगिरी से प्राप्त वराह की मूर्ति तथा देवगढ़ की विष्णु की मूर्ति उल्लेखनीय है। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दर्शाया गया है। ये समस्त चित्रण देवताओं से सम्बन्धित मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनकी विशेषताओं तथा प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्र, आभूषण, आयुधों (हथियार और हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से दर्शाया जाता था।

प्रश्न 9.
स्तूप क्यों और कैसे बनाए जाते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
स्तूप क्यों बनाए जाते थे?
कुछ पवित्र स्थानों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए जाते थे। इन टीलों को स्तूप कहते थे। स्तूप बनाने की परम्परा शायद बुद्ध के पहले से ही प्रचलित थी, परन्तु यह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूंकि इन स्तूपों में पवित्र अवशेष होते थे, इसलिए समूचे स्तूप को ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठा मिली। ‘अशोकावदान’ नामक एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार अशोक ने बुद्ध के अवशेषों को प्रत्येक महत्त्वपूर्ण नगर में बाँट कर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया था ईसापूर्व दूसरी शताब्दी तक भरहुत, साँची तथा सारनाथ आदि स्थानों पर स्तूप बन चुके थे। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूप बनवाये।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

स्तूप कैसे बनाए गए?

स्तूपों के निर्माण के लिए अनेक लोगों ने दान दिए। स्तूपों की वेदिकाओं और स्तम्भों पर मिले अभिलेखों से हमें इन्हें बनाने और सुसज्जित करने के लिए दिए गए दानों का पता चलता है। कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए थे, जैसे सातवाहन वंश के राजाओं द्वारा दिए गए दान कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए। उदाहरण के लिए साँची के एक तोरणद्वार का हिस्सा हाथीदाँत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था। इसके अतिरिक्त सैकड़ों स्त्रियों और पुरुषों ने भी स्तूपों के निर्माण के लिए दान दिये। दान के अभिलेखों में उनके नाम मिलते हैं। कभी-कभी वे अपने गाँव अथवा शहर का नाम बताते हैं और कभी-कभी अपना व्यवसाय तथा सम्बन्धियों -के नाम भी बताते हैं। इन स्तूपों के निर्माण में भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।

स्तूप की संरचना स्तूप की संरचना के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित थे –
(1) अंड – स्तूप ( संस्कृत अर्थ टीला) का जन्म एक गोलार्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ, जिसे बाद में अंड कहा गया। धीरे-धीरे इसकी संरचना जटिल हो गई, जिसमें कई चौकोर और गोल आकारों का सन्तुलन बनाया गया।
(2) हर्मिका – अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी। यह छज्जे के जैसा ढाँचा देवताओं के घर का प्रतीक था।
(3) यष्टि हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था, जिसे यष्टि कहते थे। इस पर प्राय: एक छत्री लगी होती थी।
(4) वेदिका – टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी, जो पवित्र स्थल को सामान्य संसार से अलग करती थी।

साँची और भरहुत के स्तूप-साँची और भरहुत के प्रारम्भिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं। इनमें पत्थर की वेदिकाएँ और तोरणद्वार हैं ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर अच्छी नक्काशी की गई थी। उपासक पूर्वी तोरणद्वार से प्रवेश करके टीले को दाई ओर देखते हुए

दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे ऐसा प्रतीत होता था कि वे आकाश में सूर्य के पथ का अनुकरण कर रहे थे। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी। अमरावती और पेशावर (पाकिस्तान) में शाहजी की देरी में स्तूपों में ताख और मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई हैं।

विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास JAC Class 12 History Notes

→ प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोत ईसा पूर्व 600 से 600 ईसवी तक के काल के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत बौद्ध-जैन और ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त इमारतें और अभिलेख आदि हैं।

→ साँची भोपाल राज्य के प्राचीन अवशेषों में साँची कनखेड़ा की इमारतें सबसे अद्भुत हैं। साँची का स्तूप भोपाल से बीस मील उत्तर-पूर्व की ओर एक पहाड़ी की तलहटी में बसे गाँव में स्थित है। यह एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है और एक मुकुट जैसा दिखाई देता है। भोपाल के शासकों, शाहजहाँ बेगम और उसकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम ने इस स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया। साँची बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।

→ चिन्तकों का उद्भव ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी में ईरान में जरथुख, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू तथा भारत में महावीर और बुद्ध आदि अनेक चिन्तकों का उद्भव हुआ। उन्होंने जीवन के रहस्यों तथा मनुष्यों और विश्व व्यवस्था के बीच सम्बन्धों को समझने का प्रयास किया।

→ यज्ञों की परम्परा – पूर्व वैदिक परम्परा ऋग्वेद से मिलती है। ऋग्वेद का संकलन 1500 से 1000 ई. पूर्व में हुआ था। ऋग्वेद इन्द्र, अग्नि, सोम आदि अनेक देवताओं की स्तुति सम्बन्धी सूक्तियों का संग्रह है। यज्ञों के समय इन सूक्तियों का उच्चारण किया जाता था और लोग पशु, पुत्र, स्वास्थ्य, दीर्घ आयु आदि के लिए प्रार्थना करते थे। प्रारम्भ में यज्ञ सामूहिक रूप से किये जाते थे बाद में कुछ यज्ञ घरों के स्वामियों के द्वारा किए जाते थे।

→ वाद-विवाद और चर्चाएँ समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें 64 सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है। इससे हमें जीवन्त चचाओं और विवादों की एक झांकी मिलती है। महावीर और बुद्ध ने वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाया और कहा कि जीवन के दुःखों से मुक्ति का प्रयास हर व्यक्ति स्वयं कर सकता था। यह बात ब्राह्मणवाद से बिल्कुल भिन्न थी।

→ नियतिवादी और भौतिकवादी नियतिवादी लोग आजीविक परम्परा के थे। उनका विश्वास था कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है। भौतिकवादी लोकायत परम्परा के थे भौतिकवादियों के अनुसार दान, यज्ञ या चढ़ावा आदि की बात मूर्खों का सिद्धान्त है, खोखला झूठ है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

→ महावीर की शिक्षाएँ महावीर जैन धर्म तीर्थकर वे महापुरुष थे जो पुरुषों और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचाते हैं –
(1) जीवों के प्रति अहिंसा का पालन करना।
(2) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
(3) कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की आवश्यकता है। यह संसार के त्याग से ही सम्भव है।
(4) पाँच व्रतों पर बल देना –

  • हत्या न करना
  • चोरी न करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचर्य और
  • धन संग्रह न करना।

→ जैन धर्म का विस्तार धीरे-धीरे जैन धर्म भारत के कई भागों में फैल गया। जैनों ने प्राकृत, संस्कृत तथा तमिल आदि अनेक भाषाओं में अपने ग्रन्थ लिखे।

→ बुद्ध और ज्ञान की खोज-बुद्ध तत्कालीन युग के सबसे प्रभावशाली शिक्षकों में से एक थे सैकड़ों वर्षों के दौरान उनकी शिक्षाएँ सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में और उसके बाद मध्य एशिया होते हुए चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और इण्डोनेशिया तक फैल गई। बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वे शाक्य कबीले के सरदार के पुत्र थे। नगर का भ्रमण करते समय उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक संन्यासी और एक मृतक को देखकर प्रबल आघात पहुँचा। कुछ समय बाद वे महल त्यागकर सत्य की खोज में निकल गए। उन्होंने साधना के कई मार्ग अपनाए और अन्त में ज्ञान प्राप्त कर लिया। इसके बाद वे बुद्ध कहलाए।

→ बुद्ध की शिक्षाएँ

  • विश्व अनित्य और निरन्तर परिवर्तनशील है, यह आत्माविहीन है
  • यह संसार दुःखों का घर है
  • मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य दुःखों से मुक्ति पा सकता है
  • समाज का निर्माण इन्सानों ने किया है, न कि ईश्वर ने
  • जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्मज्ञान और निर्वाण के लिए व्यक्ति केन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक् कर्म पर बल देना
  • अपने लिए ज्योति बनना तथा अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ़ना।

→ बुद्ध के अनुयायी बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए एक संघ की स्थापना की। संघ ऐसे भिक्षुओं की एक संस्था थी, जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये भ्रमण सादा जीवन बिताते थे और उपासकों से भोजन दान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे। संघ में पुरुष एवं स्त्री दोनों ही सम्मिलित थे बुद्ध के अनुयायियों में राजा, धनवान, गृहपति और सामान्यजन सभी शामिल थे संघ में सभी भिक्षुओं को समान माना जाता था।

→ बेरीगाथा यह अनूठा बौद्ध ग्रन्थ ‘सुत्तपिटक’ का भाग है। इसमें भिक्षुणियों द्वारा रचित छन्दों का संकलन किया गया है। इससे महिलाओं के सामाजिक और आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में जानकारी मिलती है।

→ भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम –
(1) जब कोई भिक्षु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा तो उसे उसका प्रयोग कम से कम छः वर्षों तक करना पड़ेगा।
(2) यदि कोई भिक्षु किसी गृहस्थी के घर जाता है और उसे भोजन दिया जाता है, तो वह दो से तीन कटोरा भर ही भोजन स्वीकार कर सकता है।
(3) यदि कोई भिक्षू किसी विहार से प्रस्थान के पहले अपने द्वारा बिछाए गए बिस्तर को नहीं समेटता है, न ही समेटवाता है, तो उसे अपना अपराध स्वीकार करना होगा।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

→ बौद्ध धर्म के प्रसार के तेजी से फैलने के कारण –
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे
(2) बौद्ध धर्म में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की बजाय अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्त्व दिए जाने से स्त्री और पुरुष इस धर्म की ओर आकर्षित हुए।
(3) छोटे और कमजोर लोगों से मैत्रीपूर्ण और दयापूर्ण व्यवहार करने पर बल दिए जाने से भी लोग बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए।

→ स्तूप- शवदाह के पश्चात् शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े ये टीले चैत्य के रूप में जाने गए कुछ पवित्र स्थल पर एक छोटी-सी वेदी बनी रहती थी, जिन्हें कभी-कभी चैत्य कहा जाता था। बौद्ध साहित्य में कई चैत्यों का उल्लेख है। इसमें बुद्ध के जीवन से जुड़े स्थानों का भी वर्णन है- लुम्बिनी (जन्म-स्थल), बोधगया (जहाँ ज्ञान प्राप्त किया), सारनाथ (जहाँ प्रथम उपदेश दिया) तथा कुशीनगर (जहाँ निर्वाण प्राप्त किया)।

→ स्तूप क्यों बनाए जाते थे? कुछ पवित्र स्थलों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए गए थे, इन टीलों को स्तूप कहते थे स्तूप बनाने की परम्परा बुद्ध से पहले की रही होगी, परन्तु वह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूँकि उनमें ऐसे अवशेष रहते थे, जिन्हें पवित्र समझा जाता था, इसलिए समूचे स्तूप को ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठा मिली।

→ स्तूप कैसे बनाए गए स्तूप बनाने के लिए कुछ राजाओं (जैसे सातवाहन वंश के राजा) तथा कुछ शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों के द्वारा दान दिए गए। साँची के एक तोरणद्वार का भाग हाथीदांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था। स्तूपों के निर्माण में भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।

→ स्तूप की संरचना स्तूप (संस्कृत अर्थ टीला) का जन्म एक गोलार्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ, जिसे बाद में ‘अंड’ कहा गया। अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी। यह छज्जे जैसा ढाँचा, देवताओं के घर का प्रतीक था। हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था जिसे ‘यष्टि’ कहते थे, जिस पर प्राय: एक छत्री लगी होती थी। टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी।

→ साँची और भरहुत के स्तूप-साँची और भरहुत के प्रारम्भिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं सिवाए इसके कि उनमें पत्थर की वेदिकाएँ और तोरणद्वार हैं ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बांस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी। अमरावती और पेशावर (पाकिस्तान) में शाहजी की ढेरी में स्तूपों में ताख और मूर्तियाँ उत्कीर्ण करने की कला के काफी उदाहरण मिलते हैं।

→ स्तूपों की खोज- 1796 में एक स्थानीय राजा को अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी को यहाँ अनेक मूर्तियाँ मिलीं 1854 में गुन्टूर (आन्ध्रप्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। उन्होंने कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर जमा किए और वे उन्हें मद्रास ले गए। उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी खोज निकाला और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप था 1850 के दशक में अमरावती के उत्कीर्ण पत्थर अनेक स्थानों पर ले जाए जा रहे थे।

→ अमरावती के स्तूप का नष्ट हो जाना यद्यपि साँची का स्तूप बच गया, परन्तु अमरावती का स्तूप नष्ट हो गया। विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाए खोज के स्थान पर ही संरक्षित करना कितना महत्त्वपूर्ण था दूसरी ओर 1818 में जब साँची की खोज हुई, उसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे, चौथा वहीं गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी स्थिति में था।

→ मूर्तिकला बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखन का सहारा लेना पड़ा। बौद्ध चरित्र लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई। कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

→ लोक परम्पराएँ- साँची में उत्कीर्णित अनेक मूर्तियाँ शायद बौद्ध धर्म से सीधी जुड़ी हुई नहीं थीं। इनमें से कुछ सुन्दर स्त्रियाँ भी मूर्तियों में उत्कीर्णित हैं साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन से विद्वान यह समझ पाए कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परा में यह माना जाता था कि इस स्वी द्वारा छुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल आने लगते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इस कारण स्तूप के अलंकरण में प्रयुक्त हुआ।

→ साँची में जानवरों के सुन्दर उत्कीर्णन – साँची में जानवरों के कुछ बहुत सुन्दर उत्कीर्णन पाए गए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय बैल शामिल हैं। यद्यपि साँची में जातकों से ली गई जानवरों की कई कहानियाँ हैं, ऐसा लगता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों को मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। उदाहरण के लिए हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

→ महायान बौद्धमत का विकास प्रारम्भ में बुद्ध को भी एक मनुष्य माना जाता था परन्तु धीरे-धीरे एक मुक्तिदाता के रूप में बुद्ध की कल्पना उभरने लगी। यह विश्वास किया जाने लगा कि वे मुक्ति दिलवा सकते थे। साथ-साथ बोधिसत की अवधारणा भी पनपने लगी। बोधिसत्तों को परम करुणामय जीव माना गया जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे परन्तु वे इस पुण्य से दूसरों की सहायता करते थे बुद्ध और बोधिसत्तों की मूर्तियों की पूजा इस परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। इस नई परम्परा को ‘महायान’ के नाम से जाना गया। महायान के अनुयायी पुरानी परम्परा को ‘हीनयान’ के नाम से पुकारते थे।

→ पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय हिन्दू धर्म में दो परम्पराएँ शामिल थीं- वैष्णव तथा शैव वैष्णव परम्परा में विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना जाता है और शैव परम्परा में शिव परमेश्वर है। इस प्रकार की आराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का सम्बन्ध प्रेम और समर्पण का सम्बन्ध माना जाता था इसे भक्ति कहते हैं।

→ वैष्णववाद में अवतारों की कल्पना वैष्णववाद में कई अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई वैष्णव धर्म में दस अवतारों की कल्पना की गई। यह माना जाता है कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब विश्व में अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती थी तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे।

→ अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाना कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की भी मूर्तियों का निर्माण हुआ। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। ये सारे चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। इन मूर्तियों के अंकन का अभिप्राय समझने के लिए इतिहासकारों को इनसे जुड़ी हुई कहानियों से परिचित होना पड़ता है। कई कहानियाँ प्रथम सहस्राब्दी के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों में पाई जाती हैं। इनमें देवी-देवताओं की कहानियाँ हैं।

→ मन्दिरों का निर्माण आरम्भिक मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे, जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक द्वार होता था जिससे उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो सकता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर शिखर बनाया जाने लगा। मन्दिरों की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। बाद के युगों में मन्दिरों के स्थापत्य का काफी विकास हुआ। अब मन्दिरों के साथ विशाल सभास्थल, ऊँची दीवारें और तोरण भी जुड़ गए।

→ कृत्रिम गुफाएँ – प्रारम्भ में कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काट कर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ई. पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बनाई गई थीं। इसका सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है। इसमें पूरी पहाड़ी काट कर उसे मन्दिर का रूप दे दिया गया था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

→ अज्ञात को समझने का प्रयास- यद्यपि यूरोपीय विद्वान प्रारम्भिक भारतीय मूर्तिकला को यूनान की कला से निम्नस्तर का मानते थे, फिर भी वे बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों की खोज से काफी उत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी प्रतिमानों से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ अधिकतर तक्षशिला और पेशावर के नगरों में मिली थीं। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती जुलती थीं। चूँकि ये विद्वान् यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन मूर्तियों को भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना बताया। इन्होंने इस कला को समझने के लिए यह तरीका अपनाया-परिचित चीजों के आधार पर अपरिचित चीजों को समझने का पैमाना तैयार करना।

→ लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करना किसी मूर्ति का महत्व और संदर्भ समझने के लिए कला के इतिहासकार प्राय: लिखित ग्रन्थों से जानकारी एकत्रित करते हैं भारतीय मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना कर निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा यह निश्चय ही अधिक उत्तम तरीका है परन्तु यह तरीका आसान नहीं।

कालरेखा 1
महत्वपूर्ण धार्मिक बदलाव

लगभग 1500-1000 ई. पूर्व प्रारम्भिक वैदिक परम्पराएँ
लगभग 1000-500 ई.पूर्व उत्तरवैदिक परम्पराएँ
लगभग छठी सदी ई. पूर्व प्रारम्भिक उपनिषद्, जैन धर्म, बौद्ध धर्म
लगभग तीसरी सदी ई. पूर्व आरम्भिक स्तूप
लगभग दूसरी सदी ईसा पूर्व से आगे महायान बौद्ध मत का विकास, वैष्णववाद, शैववाद और देवी पूजन परम्पराएँ
लगभग तीसरी सदी ईसवी सबसे पुराने मन्दिर

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

कालरेखा 2
प्राचीन इमारतों और मूर्तियों की खोज और संरक्षण के महत्त्वपूर्ण चरण

उन्नीसवीं सदी –
1814 इंडियन म्यूजियम, कोलकाता की स्थापना।
1834 रामराजा लिखित एसेज ऑन द आर्किटैक्चर आफ द हिन्दूज का प्रकाशन; कनिंघम ने सारनाथ के स्तूप की छानबीन की।
1835-1842 जेम्स फर्गुसन ने महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों का सर्वेक्षण किया।
1851 गवर्नमेंट म्यूजियम, मद्रास की स्थापना।
1854 अलैक्जैंडर कनिंघम ने भिलसा टोप्स लिखी जो साँची पर लिखी गई सबसे प्रारम्भिक पुस्तकों में से एक है।
1878 राजेन्द्र लाल मित्र की पुस्तक, बुद्ध गया : द हेरिटेज आफ शाक्य मुनि का प्रकाशन।
1880 एच.एच. कोल को प्राचीन इमारतों का संग्रहाध्यक्ष बनाया गया।
1888 ट्रेजर-ट्रोव एक्ट का बनाया जाना। इसके अनुसार सरकार पुरातात्विक महत्त्व की किसी भी चीज को हस्तगत कर सकती थी।
बीसवीं सदी-
1914 जॉन मार्शल और अल्फ्रेड फूसे की ‘द मान्युमेंट्स आफ साँची’ पुस्तक का प्रकाशन।
1923 जॉन मार्शल की पुस्तक ‘कन्जर्वेशन मैनुअल’ का प्रकाशन।
1955 प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली की नींव रखी।
1989 साँची को एक विश्व कला दाय स्थान घोषित किया गया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Jharkhand Board Class 12 History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 116

प्रश्न 1.
अल-बिरुनी की कृति का अंश पढ़िए (स्रोत – 5) तथा चर्चा कीजिये कि क्या यह कृति इन उद्देश्यों को पूरा करती है ?
उत्तर:
अल-बिरुनी द्वारा ‘किताब – उल – हिन्द’ नामक पुस्तक लिखने के दो प्रमुख उद्देश्य थे –
(1) उन लोगों की सहायता करना जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे तथा
(2) ऐसे लोगों के लिए सूचना का संग्रह करना, जो हिन्दुओं के साथ सम्बद्ध होना चाहते थे।
अल बिरूनी ने अपनी कृति के ‘अंश स्रोत – 5’ में भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था तथा समाज में ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों के स्थान का वर्णन किया है। इस दृष्टि से अल-बिरुनी की कृति तत्कालीन वर्ण व्यवस्था को समझने में उपयोगी है।

पृष्ठ संख्या 117 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
यदि अल-बिरुनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो वही भाषाएँ, जानने पर भी उसे विश्व के किन क्षेत्रों में आसानी से समझा जा सकता था ?
उत्तर:
यदि अल-बिरुनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो उसे इजरायल, सीरिया, मिस्र, साउदी अरेबिया, लेबेनान, ईरान, इराक, खाड़ी देश भारत, पाकिस्तान आदि देशों में आसानी से समझा जा सकता था।

पृष्ठ संख्या 117

प्रश्न 3.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 117 पर चित्र संख्या 5.2 में सोलोन तथा उनके विद्यार्थियों के कपड़ों को ध्यान से देखिए । क्या ये कपड़े यूनानी हैं अथवा अरबी ?
उत्तर:
उपर्युक्त चित्र को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कपड़े अरबी हैं।

पृष्ठ संख्या 118

प्रश्न 4.
आप डाकुओं को यात्रियों से कैसे अलग करेंगे ?
उत्तर:

  • पाठ्य पुस्तक के चित्र 53 में दिखाया गया है
  • कि कुछ यात्रियों के हाथों में
  • सामान है तथा डाकू लोग उ
  • डाकू उनका पीछा कर रहे हैं।
  • पर हमला कर रहे हैं। यात्री अपने प्राण बचाने के लिए आगे-आगे दौड़ रहे हैं तथा

पृष्ठ संख्या 119

प्रश्न 5.
आपके मत में कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार क्यों हैं ?
उत्तर:
पाठ्य पुस्तक के चित्र 54 में कुछ व्यापारी एक नाव में बैठ कर यात्रा कर रहे हैं। इस चित्र में कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार दिखाए गए हैं क्योंकि उस समय समुद्री यात्रा करना अत्यन्त जोखिम भरा कार्य था। अतः वे समुद्री डाकुओं से अपने माल व प्राणों की रक्षा के लिए हथियारों से सुसज्जित होकर यात्रा करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

पृष्ठ संख्या 121 चर्चा कीजिए

प्रश्न 6.
आपके विचार में अल-विरुनी और इब्नबतूता के उद्देश्य किन मायनों में समान / भिन्न थे?
उत्तर:
समानताएँ-अल-विरुनी और इब्नबतूता के उद्देश्यों में निम्नलिखित समानताएँ थीं –
(1) अल-बिहनी और इब्नबतूता ने अपने ग्रन्थ अरबी भाषा में लिखे।
(2) दोनों ने ही भारतीय सामाजिक जीवन, रीति- रिवाज, प्रथाओं, धार्मिक जीवन त्यौहारों आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
(3) दोनों ही उच्चकोटि के विद्वान थे तथा दोनों की भारतीय साहित्य, सम्मान, धर्म तथा संस्कृति में गहरी रुचि थी।

असमानताएँ –
(1) अल बिरुनी संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया था। परन्तु इब्नबतूता संस्कृत से अनभिज्ञ था।
(2) अल बिरूनी ने ब्राह्मणों, पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। परन्तु इब्नबतूता को इस प्रकार का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
(3) अल बिरुनी का भारतीय विवरण संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित था परन्तु इब्नबतूता ने संस्कृतवादी परम्परा का अनुसरण नहीं किया।
(4) अल बिरानी ने अपने ग्रन्थ के प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया, जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन और अन्त में अन्य संस्कृतियों से तुलना करना दूसरी ओर इब्नबतूता ने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं तथा मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत का सावधानी तथा कुशलतापूर्वक वर्णन किया है।

पृष्ठ संख्या 123

प्रश्न 7.
स्रोत चार में बर्नियर द्वारा दी गई सूची में कौनसी वस्तुएँ हैं, जो आज आप यात्रा में साथ ले जायेंगे?
उत्तर:
स्रोत चार में वर्नियर द्वारा दी गई सूची में वर्णित निम्नलिखित वस्तुओं को मैं यात्रा में साथ लेकर चलूँगा

  • दरी
  • बिहीना
  • तकिया
  • अंगोछे/ नैपकिन
  • झोले
  • वस्त्र
  • चावल
  • रोटी
  • नींबू
  • चीनी
  • पानी
  • पानी पीने का

पृष्ठ संख्या 125 चर्चा कीजिए

प्रश्न 8.
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान कितना आवश्यक है?
उत्तर:
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। अन्य क्षेत्र से आए यात्री को लोगों के धर्म और दर्शन, रीति-रिवाजों, मान्यताओं, प्रथाओं, सामाजिक जीवन, कला कानून आदि का विवरण प्रस्तुत करना होता है परन्तु स्थानीय क्षेत्र की भाषा के ज्ञान के अभाव में इनका यथार्थ, युक्तियुक्त और सटीक वर्णन करना अत्यन्त कठिन होता है। परिणामस्वरूप उसका वृत्तान्त अपूर्ण, संदिग्ध और भ्रामक होता है। उसे अपने ग्रन्थों में सुनी-सुनाई बातों पर अवलम्बित होना पड़ता है वह उनका उचित विश्लेषण नहीं कर पाता और तथ्यों की जांच-पड़ताल किये बिना ही उसे अपने ग्रन्थ में वर्णित करता है। अतः यात्री के लिए स्थानीय भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

पृष्ठ संख्या 126

प्रश्न 9.
नारियल कैसे होते हैं अपने पाठकों को यह समझाने के लिए इब्नबतूता किस तरह की तुलनाएँ प्रस्तुत करता है? क्या ये तुलनाएँ वाजिब हैं? वह किस तरह से यह दिखाता है कि नारियल असाधारण फल है? इब्नबतूता का वर्णन कितना सटीक है?
उत्तर:
इब्नबतूता ने लिखा है कि नारियल का वृक्ष बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसा दिखता है। इनमें अन्तर यह है कि एक से काष्ठ फल प्राप्त होता है जबकि दूसरे से खजूर इब्नबतूता ने नारियल को मानव सिर से तुलना करते हुए लिखा है कि नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मिलता-जुलता है क्योंकि इसमें भी दो आँखें और एक मुख है। इसके अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है और इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है। इब्नबतूता की तुलनाएँ वाजिब प्रतीत होती हैं। इब्नबतूता के अनुसार नारियल एक असाधारण फल है क्योंकि लोग इससे रस्सी बनाते हैं और इनसे जहाजों को सिलते हैं। उसका वर्णन बिल्कुल सटीक है।

पृष्ठ संख्या 126

प्रश्न 10.
आपके विचार में इसने इब्नबतूता का ध्यान क्यों खींचा? क्या आप इस विवरण में कुछ और जोड़ना चाहेंगे ?
उत्तर:
इब्नबतूता के देश के लोग पान से अपरिचित थे क्योंकि वहाँ पान नहीं उगाया जाता था अतः पान ने इब्नबतूता का ध्यान खींचा सुपारी के अतिरिक्त इलायची, गुलकन्द, मुलहठी, सौंफ आदि वस्तुएँ भी पान में डाली जाती हैं। पान में जर्द आदि का भी प्रयोग किया जाता है।

पृष्ठ संख्या 127

प्रश्न 11.
स्थापत्य के कौनसे अभिलक्षणों पर इब्नबतूता ने ध्यान दिया?
उत्तर:
इब्नबतूता ने स्थापत्य कला के विभिन्न अभिलक्षणों पर ध्यान दिया है; जैसेकि किले की प्राचीर, प्राचीर में खिड़की प्राचीरों में उपलब्ध विभिन्न सामग्री, प्राचीरों तथा इनके निर्माण की वास्तुकला, किले के विभिन्न प्रवेश द्वार, मेहराब, मीनारें, गुम्बद आदि ।

पृष्ठ संख्या 128

प्रश्न 12.
अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया?
उत्तर:
इब्नबतूता ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में उन सभी गतिविधियों को सम्मिलित किया जो उसके पाठकों के लिए अपरिचित थीं। इब्नबतूता दौलताबाद में गायकों के लिए निर्धारित बाजार, यहाँ की दुकानों, अन्य वस्तुओं, गायिकाओं द्वारा प्रस्तुत संगीत व नृत्य के कार्यक्रमों को देखकर अत्यधिक प्रभावित हुआ। अतः उसने इन गतिविधियों से अपने देशवासियों को परिचित कराने के लिए इन गतिविधियों को उजागर किया।

पृष्ठ संख्या 129

प्रश्न 13.
क्या सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था पूरे उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी?
उत्तर:
यह सम्भव नहीं है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था पूरे उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी। इसके लिए निम्नलिखित तर्फ प्रस्तुत किए जा सकते हैं–

  1. मुहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में फैला हुआ नहीं था। विजयनगर, बहमनी आदि दक्षिण भारत के राज्य सुल्तान के साम्राज्य में सम्मिलित नहीं थे। सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर भी मुहम्मद तुगलक का आधिपत्य नहीं था।
  2. भारत एक विशाल देश था। एक ओर यहाँ कठिन पर्वतीय क्षेत्र तथा रेगिस्तानी क्षेत्र स्थित थे, तो दूसरी ओर कुछ क्षेत्र समुद्रों से घिरे हुए थे इन सभी क्षेत्रों में पैदल डाक व्यवस्था का संचालन करना अत्यन्त कठिन था।
  3. मुहम्मद तुगलक को अपने शासन काल में निरन्तर विद्रोहों का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त उसकी योजनाओं की असफलता के कारण भी उपमहाद्वीप में अशान्ति, अराजकता एवं अव्यवस्था फैली हुई थी। अतः इन परिस्थितियों में सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था का संचालित होना सम्भव नहीं था।

पृष्ठ संख्या 131

प्रश्न 14.
बर्नियर के अनुसार उपमहाद्वीप में किसानों को किन-किन समस्याओं से जूझना पड़ता था? क्या आपको लगता है कि उसका विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक होता?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार उपमहाद्वीप में किसानों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –

  1. विशाल ग्रामीण अंचलों की भूमियाँ रेतीली या बंजर, पथरीली थीं।
  2. यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी।
  3. कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता था।
  4. गवर्नरों द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण अनेक श्रमिक मर जाते थे।
  5. जब गरीब कृषक अपने स्वामियों की माँगों को पूरा करने में असमर्थ होते थे तो उन्हें जीवन निर्वाह के साधनों से वंचित कर दिया जाता था तथा उनके बच्चों को दास बना कर ले जाया जाता था।
  6. सरकार के निरंकुशतापूर्ण व्यवहार से हताश होकर अनेक किसान गाँव छोड़कर चले जाते थे।

बनिंदर निजी स्वामित्व का प्रबल समर्थक था। उसके अनुसार राजकीय भू-स्वामित्व ही भारतीय कृषकों को दयनीय दशा के लिए उत्तरदायी था। वह चाहता था कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित उसका विवरण यूरोप में उन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा, जो निजी स्वामित्व की अच्छाइयों को स्वीकार नहीं करते थे अतः हमें लगता है कि बर्नियर का विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक रहा।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

पृष्ठ संख्या 132

प्रश्न 15.
बर्नियर सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार करता है?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगल शासकों की नीतियों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप की भयावह स्थिति का चित्रण किया है उसके अनुसार मुगल शासकों की नीतियाँ कतई हितकारी नहीं हैं; उनका अनुसरण करने पर उनके राज्य इतने सुशिष्ट और फलते-फूलते नहीं रह जाएंगे तथा वह भी मुगल शासकों की तरह जल्दी ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे। पृष्ठ संख्या 133

प्रश्न 16.
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 में दिए गए विवरण से किन मायनों में भिन्न है?
उत्तर:
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 के उद्धरण में दिए गए विवरण के बिल्कुल विपरीत है। एक तरफ तो बर्निचर स्रोत 11 में भारत की सामाजिक-आर्थिक विपन्नता का वर्णन करता है, दूसरी तरफ इस खोत में दिए गए विवरण में बर्नियर ने भारत की सामाजिक-आर्थिक सम्पन्नता का वर्णन किया है। इस स्त्रोत में बर्नियर ने भारत की उच्च कृषि, शिल्पकारी, वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात जिसके एवज में पर्याप्त सोना, चाँदी भारत में आता था आदि का वर्णन किया है।

बर्नियर के वर्णन में यह भिन्नता सम्भवत: इसलिए है कि बर्नियर ने सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का भ्रमण किया; वहाँ की सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक परिस्थितियाँ इतनी उच्च नहीं थीं। बाद में वह ऐसे क्षेत्र में पहुँचा जहाँ कि विकास से सम्बन्धित परिस्थितियाँ बेहतर थीं। जैसेकि उपजाऊ कृषि भूमि, पर्याप्त श्रम उपलब्धता, विकसित शिल्पकारी इसलिए वहाँ की सम्पन्नता को देखकर बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में इसका वर्णन किया है।

पृष्ठ संख्या 134

प्रश्न 17.
बर्नियर इस विचार को किस प्रकार प्रेषित करता है कि हालांकि हर तरफ बहुत सक्रियता है, परन्तु उन्नति बहुत कम ?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार शिल्पकार अपने कारखानों में प्रतिदिन सुबह आते थे जहाँ ये पूरे दिन कार्यरत रहते थे और शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे। इस प्रकार नौरस वातावरण में कार्य करते हुए उनका समय बीतता जाता था। बर्नियर के अनुसार यद्यपि हर ओर बहुत सक्रियता है, परन्तु शिल्पकारों के जीवन में बहुत अधिक प्रगति दिखाई नहीं देती थी। वास्तव में कोई भी शिल्पकार जीवन की उन परिस्थितियों में सुधार करने का इच्छुक नहीं था जिनमें वह उत्पन्न हुआ था।

पृष्ठ संख्या 134

प्रश्न 18.
आपके विचार में बर्नियर जैसे विद्वानों ने भारत की यूरोप से तुलना क्यों की ?
उत्तर:
बर्नियर ने अपने ग्रंथ ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है। वह पश्चिमी संस्कृति का प्रबल समर्थक था उसने महसूस किया कि यूरोपीय संस्कृति के मुकाबले में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति निम्न कोटि की है अतः उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखलाया है अथवा फिर यूरोप का विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

पृष्ठ संख्या 136 चर्चा कीजिए

प्रश्न 19.
आपके विचार में सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन ने इब्नबतूता और बर्नियर जैसे यात्रियों का ध्यान अपनी ओर क्यों नहीं खींचा?
उत्तर:
तत्कालीन युग में यात्रा-वृत्तान्त लिखने वाले यात्री राजदरबार, अभिजात वर्ग के लोगों की गतिविधियों का चित्रण करने में अधिक रुचि लेते थे। वे पुरुष प्रधान समाज का चित्रण करना ही अपना प्रमुख कर्तव्य समझते थे। अतः उन्होंने सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन से सम्बन्धित गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया।

पृष्ठ संख्या 136

प्रश्न 20.
यहाँ यातायात के कौन-कौनसे साधन अपनाए गए हैं ?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के चित्र 5.13 में यातायात के निम्नलिखित साधन अपनाए गए हैं-घोड़ा, घुड़सवार, घोड़ा- गाड़ी अथवा रथ, हाथी, महावत

Jharkhand Board Class 12 History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
‘किताब-उल-हिन्द’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
(1) ‘किताब-उल-हिन्द’ अरबी में लिखी गई अल बिरूनी की कृति है। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ अम्मी अध्यायों में विभाजित है।

(2) अल बिरनी ने प्राय: प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैल का प्रयोग किया. जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन था और अना में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना की गई थी। विद्वानों के अनुसार यह लगभग एक ज्यामितीय संरचना है, जिसका मुख्य कारण अल बिरूनी का गणित की ओर झुकाव था। यह ग्रन्थ अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए प्रसिद्ध है।

(3) अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। यह संस्कृत, प्राकृत तथा पालि ग्रन्थों के अरजी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था। इनमें दंत कथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा सम्बन्धी कृतियाँ भी शामिल थीं।

प्रश्न 2.
इब्नबतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोण से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तान्त लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अन्तर बताइये।
उत्तर:
(1) इब्नबतूता अन्य यात्रियों के विपरीत, पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था उसने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में अपने विचारों को सावधानी तथा कुशलतापूर्वक व्यक्त किया। राजाओं तथा सामान्य पुरुषों और महिलाओं के बारे में उसे जो कुछ भी विचित्र लगता था, उसका यह विशेष रूप से वर्णन करता था, ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूर्ण रूप से प्रभावित हो सकें। उसके पाठक नारियल तथा पान से अपरिचित थे अतः उसने इनका बड़ा रोचक वर्णन किया है। उसने कृषि, व्यापार तथा उद्योगों के उन्नत अवस्था में होने का वर्णन भी किया है। उसने भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता का भी वर्णन किया है जिसे देखकर वह चकित हो गया था।

(2) जहाँ इब्नबतूता ने हर उस चीज का वर्णन किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित और उत्सुक किया, वहीं दूसरी ओर बर्नियर ने भारत में जो भी देखा, वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेषकर फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करना चाहता था। उसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज और संस्कृति की त्रुटियों को दर्शाना तथा यूरोपीय समाज, प्रशासन तथा संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता का प्रतिपादन करना था।

प्रश्न 3.
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
शहरी केन्द्र
(1) बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहा है जिससे उसका आशय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। उसकी मान्यता थी कि वे नगर राजदरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे तथा इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे उसका यह भी कहना था कि इन नगरों का सामाजिक और आर्थिक आधार व्यावहारिक नहीं होता था और ये राजकीय संरक्षण पर आश्रित रहते थे। परन्तु बर्नियर का यह विवरण सही प्रतीत नहीं होता।

(2) वास्तव में उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि।

(3) सामान्यतः नगर में व्यापारियों का संगठन होता था पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को ‘महाजन’ कहा जाता था तथा उनके मुखिया को ‘सेट’ अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था।

(4) अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। इनमें से कुछ वर्गों को राज्याश्रय प्राप्त था तथा कुछ सामान्य लोगों की सेवा करके जीवनयापन करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 4.
इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की भाँति खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे।
(2) सिन्ध पहुँचने पर इब्नबतूता ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे थे।
(3) इब्नबतूता बताता है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक एक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास प्रदान किए थे।
(4) इब्नबतूता के विवरण से ज्ञात होता है कि दास भिन्न-भिन्न प्रकार के होते थे सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर दासियों के घरेलू श्रम के लिए प्रदर्शन से अत्यधिक आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीर की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
(5) सामान्यतः दासों का ह प्रयोग किया जाता था। ये दास पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने का काम करते थे। दासों विशेषकर उन दासियों की कीमत बहुत कम होती थी, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए होती थी। अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दासों को तो रखते ही थे।

प्रश्न 5.
सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
अथवा
सती प्रथा के बारे में बर्नियर ने क्या लिखा था ?
उत्तर:
लाहौर में वर्नियर ने एक अत्यधिक सुन्दर 12 वर्षीय विधवा को सती होते हुए देखा। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सती प्रथा के निम्नलिखित तत्त्वों ने बर्निवर का ध्यान अपनी ओर खींचा –

  1. बर्नियर के अनुसार अधिकांश विधवाओं को सती होने के लिए बाध्य किया जाता था।
  2. अल्पवयस्क विधवा को जलने के लिए बाध्य किया जाता भी आग में जीवित था उसके रोने, चिल्लाने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था उसके मस्तिष्क की पीड़ा अवर्णनीय थी।
  3. इस प्रक्रिया में ब्राह्मण तथा बूढ़ी महिलाएँ भी भाग लेती थीं।
  4. विधवा को उसकी इच्छा के विरुद्ध चिता में जलने के लिए जबरन ले जाया जाता था।
  5. सती होने वाली विधवा के हाथ-पांव बाँध दिए जाते थे, ताकि वह भाग न जाए।
  6. इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में सती होने वाली विधवा के करुणाजनक विलाप की ओर किसी का ध्यान नहीं जा पाता था।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
भारतीय जाति व्यवस्था के बारे में अल- बिरुनी का यात्रा वर्णन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल-बिरुनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल-विरुनी की व्याख्या अल बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के द्वारा जाति व्यवस्था को समझने और उसकी व्याख्या करने का प्रयास किया।
(1) प्राचीन फारस में सामाजिक वर्गों को मान्यता- अल बिरुनी के अनुसार प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता प्राप्त थी।

ये चार वर्ग निम्नलिखित थे-

  • घुड़सवार और शासक वर्ग
  • भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक
  • खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक
  • कृषक तथा शिल्पकार।

(2) अल बिरुनी का उद्देश्य फारस के सामाजिक वर्गों का उल्लेख करके अल-बिरनी यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे अपितु अन्य देशों में भी थे। इसके साथ ही उसने यह भी बताया कि इस्लाम में सभी लोगों को समन माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।

(3) अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार करना- यद्यपि अल बिरूनी जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानता था, फिर भी उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसने लिखा कि प्रत्येक यह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। उदाहरण के लिए सूर्य वायु को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है। अल-विरुनी इस बात पर बल देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। अल बिरूनी का कहना था कि जाति व्यवस्था में संलग्न अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।

(4) भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था-अल-विरुनी ने भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है –

  • ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। इसी वजह से हिन्दू ब्राह्मणों को मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
  • क्षत्रिय अल बिरूनी के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि क्षत्रिय ब्रह्मन् के कंधों और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है।
  • वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। वैश्य ब्रह्मन् की जंघाओं से उत्पन्न हुए थे।
  • शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन् के चरणों से हुआ अल बिरुनी के अनुसार अन्तिम दो वर्गों में अधिक अन्तर नहीं था परन्तु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी शहरों और गांवों में मिल-जुल कर रहते थे।

जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित होना-जाति-व्यवस्था के विषय में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतथा प्रभावित था। परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी। उदाहरण के लिए, अन्त्यज (जाति व्यवस्था में सम्मिलित नहीं की जाने वाली जाति) नामक श्रेणियों से सामान्यतया यह अपेक्षा की जाती थी कि वे कृषकों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम प्रदान करें।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 7.
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर:
समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली को समझने में इब्नबतूता के वृत्तान्त का सहायक होना हो, हमें लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृत्तांत काफी सहायक है। इसका कारण यह है कि उसने समकालीन शहरी केन्द्रों का विस्तृत विवरण दिया है उसकी जानकारी का मुख्य आधार उसका व्यक्तिगत सूक्ष्म अध्ययन एवं अवलोकन था। इब्नबतूता वृत्तान्त समकालीन शहरी केन्द्रों की जीवन-शैली के बारे में निम्नलिखित जानकारियाँ प्राप्त होती है –
(1) घनी आबादी वाले तथा समृद्ध शहर इब्नबतूत के अनुसार तत्कालीन नगर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। परन्तु कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों के कारण कुछ नगर नष्ट भी हो जाया करते थे।

(2) भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले बाजार अधिकांश शहरों में
भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे। ये बाजार विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।

(3) बड़े शहर इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली एक बहुत बड़ा शहर था जिसकी आबादी बहुत अधिक थी। उसके अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा शहर था दौलताबाद (महाराष्ट्र में भी कम नहीं था और आकार में वह दिल्ली को चुनौती देता था।

(4) सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्रबाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मन्दिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी निर्धारित थे।

(5) इतिहासकारों द्वारा इब्नबतूता के वृत्तान्त का प्रयोग करना – इतिहासकारों ने उसके वृत्तान्त का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि शहर अपनी सम्पत्ति का एक बड़ा भाग गाँवों से अधिशेष के अधिग्रहण से प्राप्त करते थे।

(6) कृषि का उत्पादनकारी होना इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के बहुत अधिक उत्पादनकारी होने का कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। इसी कारण किसान एक वर्ष में दो फसलें उगाते थे।

(7) उपमहाद्वीप का व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर- एशियाई तन्त्रों से जुड़ा होना इब्नबतूता के अनुसार उपमहाद्वीप का व्यापार तथा वाणिज्य अन्तर- एशियाई तत्वों से भली-भांति जुड़ा हुआ था। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत माँग थी। इससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ होता था भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी। इब्नबतूता लिखता है कि महीन मलमल की कई किस्में तो इतनी अधिक महँगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत धनी लोग ही पहन सकते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि बर्निचर का वृत्तान्त किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?
अथवा
बर्नियर के अनुसार मुगलकालीन भारत में किसानों की क्या समस्याएँ थीं?
अथवा
बर्नियर के वृत्तान्त में समकालीन भारतीय समाज का जो चित्र उभरता है, उसकी चर्चा कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर ने समकालीन ग्रामीण समाज का जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, वह सर्वथा सत्य नहीं है इसलिए क बर्नियर का वृत्तान्त इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में आंशिक रूप से ही सक्षम करता है, पूर्ण रूप से नहीं। बर्नियर ने तत्कालीन ग्रामीण समाज का जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, उसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत वर्णित किया जा सकता है-

(1) भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव बर्नियर न्द्र के अनुसार भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था। न्दर उसके अनुसार मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का कों, स्वामी था सम्राट इस भूमि को अपने अमीरों के बीच बाँटता था। इसके अर्थव्यवस्था तथा समाज पर हानिप्रद प्रभाव पड़ते थे।

(2) भूधारकों पर प्रतिकूल प्रभाव बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के कारण भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। परिणामस्वरूप निजी भू- स्वामित्व के अभाव से बेहतर भूधारकों के वर्ग का उदय नहीं हो सका, जो भूमि के रख-रखाव तथा सुधार के लिए प्रयास करता। इस वजह से कृषि का विनाश हुआ, किसानों का अत्यधिक उत्पीड़न हुआ और समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में निरन्तर पतन की स्थिति उत्पन्न हुई। परन्तु शासक वर्ग पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।

(3) भारतीय समाज दरिद्र लोगों का जनसमूह- बर्नियर के अनुसार भारतीय समाज दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना था। यह समाज अत्यन्त अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग के अधीन था। वर्नियर के अनुसार “भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं हैं।”

(4) मुगल साम्राज्य का रूप बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा ‘भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। इसके शहर तथा नगर विनष्ट थे तथा खराब हवा’ से दूषित थे। इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे, इसका केवल एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व बर्नियर के अनुसार ” यहाँ की खेती अच्छी नहीं है।

यहाँ तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि-विहीन रह जाता है। इनमें से कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के फलस्वरूप मर जाते हैं गरीब लोग जब अपने लोभी मालिकों की माँगों को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है।”

(5) बर्नियर के वृत्तान्त की अन्य साक्ष्यों से पुष्टि नहीं होना आश्चर्य की बात यह है कि एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह संकेत नहीं करता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। बर्नियर का ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर होना वास्तव में बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।

सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य’ भूमिविहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था। इसके साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे के योग्य उत्पादन कर पाते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 9.
यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है – “ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुन्दर शिल्प कारीगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औजारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है कभी- कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अन्तर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में भारतीय लोग बेहतरीन बन्दूकें और ऐसे सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अक्सर इनके चित्रों की सुन्दरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।” उसके द्वारा उल्लिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर ने इस उद्धरण में बन्दूकें बनाने तथा सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाने आदि शिल्प कार्यों का उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि भारतीय स्वर्णकार ऐसे सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है।
तुलना –
इस अध्याय में वर्णित अन्य शिल्प गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. कसीदाकारी
  2. चित्रकारी
  3. रंग-रोगन करना
  4. बद्देगिरी
  5. खरादी
  6. कपड़े सीन
  7. जूते बनाना
  8. रेशम, जरी और बारीक मलमल का काम
  9. सोने और चांदी के वस्त्र बनाना
  10. गलीचे बनानें का काम
  11. सोने के बर्तन बनाना आदि।

बर्नियर के अतिरिक्त मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने भी भारतीय वस्तुओं की अत्यधिक प्रशंख की है। इब्नबतूता ने शिल्प गतिविधियों का उल्लेख किया है उसके अनुसार सूती वस्त्र, महीन मलमल, रेशम के वस्त्र, जरी साटन आदि की विदेशों में अत्यधिक मांग थी। राजकीय कारखाने यनियर ने राजकीय कारखानों में होने वाली विविध शिल्प गतिविधियों का उल्लेख किया है शिल्पकार प्रतिदिन सुबह कारखानों में आते थे तथा वहाँ वे पूरे दिन कार्यरत रहते थे और शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे।

यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ JAC Class 12 History Notes

→ मध्यकालीन भारत में विदेशी यात्रियों का आगमन मध्यकाल में भारत में अनेक विदेशी यात्री आए, जिनमें अल- विरुनी, इब्नबतूता तथा फ्रांस्वा बर्नियर उल्लेखनीय हैं। इनके यात्रा वृत्तान्तों से मध्यकालीन भारत के सामाजिक जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

→ अल बिरूनी- अल बिरुनी का जन्म आधुनिक उत्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। अल बिरुनी सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत आदि भाषाओं का जाता था। 1017 में ख़्वारिज्य पर आक्रमण के बाद सुल्तान महमूद गजनवी अल बिरुनी आदि अनेक विद्वानों को अपने साथ गजनी ले आया था। अल-बिरुनी ने भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृत आदि का ज्ञान प्राप्त किया।

→ किताब-उल-हिन्द-अल-बिरूनी ने अरबी भाषा में किताब-उल-हिन्द नामक पुस्तक की रचना की। यह ग्रन्थ अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इसमें धर्म, दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सामाजिक जीवन, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का वर्णन है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

→ इब्नबतूता इनका जन्म मोरक्को के सैंजियर नामक नगर में हुआ था। वह 1333 ई. में सिन्ध पहुँचा। सुल्तान महमूद तुगलक ने उसकी विद्वता से प्रभावित होकर उसे दिल्ली का काशी या न्यायाधीश नियुक्त किया। 1342 में उसे सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया 1347 में उसने वापस अपने घर जाने का निश्चय कर लिया 1354 में इब्नबतूता मोरक्को पहुँच गया। उसने अपना यात्रा-वृत्तान्त अरबी भाषा में लिखा, जो ‘रिला’ के नाम से प्रसिद्ध है। उसने अपने या वृत्तान्त में नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के बारे में लिखा है।

→ फ्रांस्वा बर्नियर-फ्रांस का निवासी फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा इतिहासकार था। वह 1656 से 1668 तक भारत में 12 वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा।

→ ‘पूर्व’ और ‘पश्चिम’ की तुलना बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। परन्तु उसका आकलन हमेशा सटीक नहीं था। बर्नियर के कार्य प्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुए थे और अगले पाँच वर्षों में ही अंग्रेजी, डच, जर्मन तथा इतालवी भाषाओं में इनका अनुवाद हो गया।

→ भारतीय सामाजिक जीवन को समझने में बाधाएँ अल बिरुनी को भारतीय सामाजिक जीवन को समझने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। ये बाधाएँ थीं –
(1) संस्कृत भाषा की कठिनाई
(2) धार्मिक अवस्था और प्रथाओं में मित्रता
(3) अभिमान

→ अल बिरूनी का जाति व्यवस्था का विवरण अल बिरूनी ने जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी सिद्धान्तों को स्वीकार किया; परन्तु उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसके अनुसार प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरुनी का विवरण उसके नियामक संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्ण रूप से प्रभावित था।

→ इब्नबतूता तथा अनजाने को जानने की उत्कंठा इब्नबतूता ने अपनी भारत यात्रा के दौरान जो भी अपरिचित था, उसे विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें।

→ इब्नबतूता तथा नारियल और पान इब्नबतूता ने नारियल और पान दो ऐसी वानस्पतिक उपजों का वर्णन किया है, जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे उसके अनुसार नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानो दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है। उसके अनुसार पान एक ऐसा वृक्ष है, जिसे अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता है।

→ इब्नबतूता और भारतीय शहर इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे इब्नबतूता दिल्ली को बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है। दौलताबाद (महाराष्ट्र) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था। बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ‘तारावबाद’ कहते थे।

→ कृषि और व्यापार इब्नबतूता के अनुसार कृषि बड़ी उत्पादनकारी थी। इसका कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। किसान वर्ष में दो फसलें उगाते थे। भारतीय माल को मध्य तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया दोनों में बहुत माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों विशेष रूप से सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक महँगी होती थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत ही धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।

→ संचार की एक अनूठी प्रणाली इब्नबतूता के अनुसार लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह बने हुए थे। इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर चकित हुआ। डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की खबरें सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के माध्यम से मात्र पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं। इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी। अश्व डाक व्यवस्था जिसे ‘उलुक’ कहा जा था, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील ती / अवस्थान होते थे, जिसे ‘दावा’ कहा जाता था। यह एक मील का एक तिहाई होता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

→ इब्नबतूता और बर्नियर जहाँ इब्नबतूता ने हर उस बात का वर्णन किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित किया, वहीं बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परम्परा से सम्बन्धित था। उसने भारत में जो भी देखा, उसको उसने यूरोप में व्याप्त स्थितियों से तुलना की। उसका उद्देश्य यूरोपीय संस्कृति की श्रेष्ठता प्रतिपादित करना था।

→ ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर बर्नियर ने ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि तथा गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है। बर्नियर ने अपने ग्रन्थ में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया है। इस ग्रन्थ में बर्नियर ने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है तथा प्रायः यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाया है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है अथवा फिर यूरोप का विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

→ भूमि स्वामित्व का प्रश्न बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर के अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था। राजकीय भू-स्वामित्व के कारण, भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने के लिए दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन रहते थे। इस प्रकार निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भू-धारकों के वर्ग के उदय को रोका। इसके परिणामस्वरूप कृषि का विनाश हुआ तथा किसानों का उत्पीड़न हुआ।

→ बर्नियर द्वारा मुगल साम्राज्य का चित्रण वर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। इसके शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब हवा’ से दूषित थे। इसके खेत ‘झाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे तथा इसका मात्र एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व। परन्तु किसी भी सरकारी मुगल दस्तावेज से यह बात नहीं होता कि राज्य ही भूमि का एक मात्र स्वामी था।

→ बर्नियर के विवरणों द्वारा पश्चिमी विचारकों को प्रभावित करना वर्नियर के विवरणों ने पश्चिमी विचारकों को भी प्रभावित किया। फ्रांसीसी दार्शनिक मॉटेस्क्यू ने उसके वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरकुंशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इसके अनुसार एशिया में शासक अपनी प्रजा के ऊपर अपनी प्रभुता का उपभोग करते थे, जिसे दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि समस्त भूमि पर राजा का स्वामित्व होता तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इसके अनुसार राजा और उसके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई से जीवन-यापन कर पाता था। उन्नीसवीं शताब्दी में कार्ल माक्र्स ने इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धांत के रूप में और आगे बढ़ाया।

→ बर्नियर द्वारा ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से दूर होना बर्नियर द्वारा ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से दूर था। एक ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’, भूमि विहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था, जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में लगा रहता था। कुछ छोटे किसान भी थे जो बड़ी कठिनाई से अपने जीवन निर्वाह के योग्य उत्पादन कर पाते थे।

→ एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई बर्नियर के विवरण से कभी-कभी एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई भी उजागर होती है। उसका कहना है कि यद्यपि उत्पादन हर जगह पतनोन्मुख था, फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था। उसने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।

→ नगरों की स्थिति सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पन्द्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था। यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था। इतने पर भी बनिंवर ने मुगलकालीन शहरों को शिविर नगर’ कहा है जी अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे उसका विश्वास था कि ये शिविर नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे जैसे उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

→ व्यापारी वर्ग वर्नियर के अनुसार व्यापारी प्रायः सुद्द सामुदायिक अथवा बन्धुत्व के सम्बन्धों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनका मुखिया सेठ कहलाता था।

→ व्यावसायिक वर्ग-अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।

→ राजकीय कारखाने सम्भवतः बर्नियर एकमात्र ऐसा इतिहासकार है जो राजकीय कारखानों की कार्य प्रणाली का विस्तृत विवरण देता है। उसने लिखा है कि कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते हैं, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते हैं। एक कक्ष में कसीदाकार, एक अन्य में सुनार, तीसरे में चित्रकार, चौथे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले पाँचवें में बढ़ई, छठे में रेशम, जरी तथा महीन मलमल का काम करने वाले रहते हैं।

→ महिलाएँ दासियाँ, सती तथा श्रमिक बाजारों में दास खुले आम बेचे जाते थे सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर दासियाँ के संगीत और नृत्य के प्रदर्शन से खूब आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। दासों का सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था। मुगलकालीन भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। बर्नियर ने लिखा है कि यद्यपि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, परन्तु अन्यों को मरने के लिए बाध्य किया जाता था। महिलाओं का श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन दोनों में महत्त्वपूर्ण था। व्यापारिक परिवारों से आने वाली महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। अतः महिलाओं को उनके घरों के विशेष स्थानों तक परिसीमित कर नहीं रखा जाता था।

काल-रेखा
कुछ यात्री जिन्होंने वृत्तान्त छोड़े

दसरीं-ग्यारहवीं शताब्दियाँ 973-1048 मोहम्मद इब्न अहमद अबू रेहान अल-बिरुनी (उज्ञेकिस्तान से)
तेरहवीं शताब्दी 1254-1323 मार्को पोलो (इटली से)
चौदहर्वीं शताब्दी 1304-77 इब्नतूता (मोरक्को से)
पन्द्रहवीं शताब्दी 1413-82 अब्द अल-रज़्जाक कमाल अल-दिन इब्न इस्हाक अल-समरकन्दी (समरकन्द से)
1466-72 अफानासी निकितिच निकितिन (पन्द्रहर्वीं शताब्दी, रूस से)
(भारत में बिताये वर्ष) दूरते बारबोसा, मृत्यु 1521 (पुर्तगाल से)
सोलहवीं शताब्दी 1518 (भारत की यात्रा) सयदी अली रेइस (तुर्की से)
1562 (मृत्यु का वर्ष) अन्तोनियो मानसेरते (स्पेन से)
1536-1600 महमूद वली बलखी (बल्खू से)
सत्रहवीं शताब्दी 1626-31 (भारत में बिताए वर्ष) पींटरमुंडी (इंग्लैण्ड से)
1600-67 ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्नियर (फ्रांस से)
1605-89 फ्रांस्वा बर्नियर (फ्रांस से)
1620-88 मोहम्मद इब्न अहमद अबू रेहान अल-बिरुनी (उज्ञेकिस्तान से)
नोट-जहाँ कोई अन्य संकेत नहीं है तिथियाँ यात्री के जीवन काल को बता रही हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board Class 12 History बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 56

प्रश्न 1.
इस मन्त्र के संदर्भ में, विवाह का वधू और वर के लिए क्या अभिप्राय है? इसकी चर्चा कीजिये । क्या ये अभिप्राय समान हैं या फिर इनमें भिन्नताएँ हैं?
उत्तर:
विवाह का वधू और वर के लिए अभिप्राय उत्तम पुत्रों की प्राप्ति है। दोनों का उद्देश्य एक-दूसरे का साथ निभाते हुए तथा प्रेमपूर्वक रहते हुए उत्तम पुत्र प्राप्त करना है। अतः इन दोनों के अभिप्राय समान हैं।

पृष्ठ संख्या 57

प्रश्न 2.
उद्धरण पढ़िये और उन सारे मूल तत्त्वों की सूची तैयार कीजिये जिनका राजा बनने के लिए प्रस्ताव किया गया है। एक विशेष कुल में जन्म लेना कितना महत्त्वपूर्ण था? इनमें से कौन-सा मूल तत्त्व सही लगता है ? क्या ऐसा कोई तत्त्व है जो आपको अनुचित लगता है?
उत्तर:
(1) राजा बनने के लिए निम्नलिखित मूल तत्त्व आवश्यक थे-

  • राजा का उत्तराधिकारी होना
  • शारीरिक अंगों का अभाव या नेत्रहीन न होना
  • भाइयों में ज्येष्ठ होना
  • वयस्क होना
  • योग्य एवं सदाचारी होना।

(2) एक विशेष कुल में जन्म लेना बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता था क्योंकि इससे व्यक्ति सिंहासन प्राप्ति के लिए अपना दावा प्रस्तुत कर सकता था।
(3) ‘योग्य और सदाचारी होना’ नामक मूल तत्त्व सही लगता है।
(4) अयोग्य और अल्पवयस्क होने पर भी सिंहासन प्राप्त करने की आकांक्षा रखना अनुचित तत्त्व लगता है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

पृष्ठ संख्या 58

प्रश्न 3.
इनमें से प्रत्येक विवाह पद्धति के विषय में चर्चा कीजिए कि विवाह का निर्णय किसके द्वारा लिया गया था –
(क) वधू
(ख) वर
(ग) वधू का पिता
(घ) वर का पिता
(ङ) अन्य लोग।
उत्तर:
(क) छठी विवाह पद्धति में वधू और वर द्वारा निर्णय लिया गया था।
(ख) पाँचवीं विवाह पद्धति में वर द्वारा निर्णय लिया गया था।
(ग) पहली और चौथी विवाह पद्धतियों में वर के पिता द्वारा निर्णय लिया गया।
(घ) पाँचवीं विवाह पद्धति में वधु के वर पिता द्वारा निर्णय लिया गया।

पृष्ठ संख्या 59

प्रश्न 4.
यहाँ कितने गोतमी – पुत्त तथा कितने वसिथि (वैकल्पिक वर्तनी वसथि ) पुत्र हैं?
उत्तर:
यहाँ तीन गोतमी – पुत्त तथा एक वसिथि-पुत्र हैं।

पृष्ठ संख्या 60

प्रश्न 5.
क्या यह उद्धरण आपको आरम्भिक भारतीय समाज में माँ को किस दृष्टि से देखा जाता था, इसका जायजा देता है?
उत्तर:
इस उद्धरण से हमें इसका जायजा मिलता है कि आरम्भिक भारतीय समाज में माँ को आदर की दृष्टि से देखा जाता था। इस युग में स्त्रियाँ विदुषी, दूरदर्शी होती थीं तथा राजनीतिक कार्यों में भी भाग लेती थीं वे विवेकपूर्ण होती थीं तथा उनका ज्ञान विस्तृत होता था। वे संकटपूर्ण परिस्थितियों में अपने पुत्रों को उचित सलाह देती थीं। परन्तु अहंकारी और सत्तालोलुप लोग अपनी माता की उचित सलाह को भी ठुकरा दिया करते थे। गान्धारी ने अपने पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह दी परन्तु उसने अपनी माता की सलाह का पालन नहीं किया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

पृष्ठ संख्या 60 चर्चा कीजिये

प्रश्न 6.
आजकल बच्चों का नामकरण किस भाँति होता है? क्या ये नाम इस अंश में वर्णित नामों से मिलते- जुलते हैं अथवा भिन्न हैं?
उत्तर:
आजकल अभिभावक ज्योतिषियों की सलाह से अपने बच्चों का नाम रखते हैं। ज्योतिषी प्राय: बच्चों का नामकरण जन्म की राशि के आधार पर निर्धारित अक्षरों के आधार पर करते हैं। सातवाहन राजाओं के नाम उनके मातृ नाम के आधार पर रखे जाते थे परन्तु आजकल इस अंश में वर्णित नाम आधुनिक नामों से भिन्न हैं। पृष्ठ संख्या 61

प्रश्न 7.
आपको क्या लगता है कि ब्राह्मण इस सूक्त को बहुधा क्यों उद्धृत करते थे?
उत्तर:
ब्राह्मणों की मान्यता थी कि वर्ण व्यवस्था में उन्हें सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उनकी यह भी मान्यता थी कि वर्ण व्यवस्था एक दैवीय व्यवस्था है अतः इसे प्रमाणित करने के लिए वे ऋग्वेद के पुरुषसूक्त मन्त्र को बहुधा उद्धत करते थे।

पृष्ठ संख्या 62

प्रश्न 8.
इस कहानी के द्वारा निषादों को कौनसा सन्देश दिया जा रहा था? क्षत्रियों को इससे क्या सन्देश मिला होगा? क्या आपको लगता है कि एक ब्राह्मण के रूप में द्रोण धर्मसूत्र का अनुसरण कर रहे थे जब वे धनुर्विद्या की शिक्षा दे रहे थे?
उत्तर:
इस कहानी द्वारा निषादों को दो विरोधाभासी सन्देश दिये जा रहे थे। पहला सन्देश धनुर्विद्या के पात्र नहीं हैं, इस पर केवल यह था कि वह क्षत्रियों का ही अधिकार है। दूसरा सन्देश यह प्राप्त होता है कि श्रद्धा लगन और निष्ठा से सतत् अभ्यास के द्वारा कोई भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वे किसी से कमतर नहीं हैं। क्षत्रियों को इससे यह सन्देश प्राप्त होता है कि धनुर्विद्या पर मात्र उनका ही एकाधिकार नहीं है। धर्मसूत्रों में शूद्रों को विद्या अध्ययन की आज्ञा नहीं थी, इसलिए धर्मसूत्रों के अनुसार द्रोण का यह कार्य उचित था परन्तु गुरुदक्षिणा के रूप में एकलव्य से अंगूठा माँगना न्यायसंगत नहीं था।

पृष्ठ संख्या 64

प्रश्न 9.
क्या आपको लगता है कि रेशम के बुनकर उस जीविका का पालन कर रहे थे जो उनके लिए शास्त्रों ने तय की थी?
उत्तर:
प्राचीन भारत में जो जातियाँ एक ही जीविका अथवा व्यवस्था से जुड़ी थीं उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था। मंदसौर (मध्यप्रदेश) से मिले एक अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है जो मूलतः लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे और वहाँ से मन्दसौर चले गए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि रेशम के बुनकर उस जीविका का पालन नहीं कर रहे थे जो उनके लिए शास्त्रों ने निर्धारित की थी। कुछ बुनकर संगीत प्रेमी थे तथा कुछ लेखक थे। कुछ बुनकर धार्मिक व्याख्यानों में संलग्न थे तथा कुछ धार्मिक अनुष्ठान करते थे। कुछ बुनकर वीर योद्धा थे।

पृष्ठ संख्या 65

प्रश्न 10.
इस सारांश में उन व्यवहारों को निर्दिष्ट कीजिये जो अब्राह्मणीय प्रतीत होते हैं।
उत्तर:
हिडिम्बा द्वारा भेष बदलकर सुन्दर स्वी के रूप में भीम से विवाह का प्रस्ताव करना, भीम द्वारा राक्षस की बहिन हिडिम्बा के साथ सशर्त विवाह करना तथा हिडिम्बा और उसके पुत्र द्वारा पाण्डवों को छोड़कर वन में जाना अब्राह्मणीय प्रतीत होते हैं।

पृष्ठ संख्या 67

प्रश्न 11.
इस कथा में उन तत्त्वों की ओर इंगित कीजिए जिनसे यह ज्ञात हो कि वह मातंग के नजरिए से लिखे गये थे।
उत्तर:
इस कथा में मातंग के नजरिए से लिखे गए तत्त्व निम्नलिखित हैं –
(1) मातंग का लगातार 7 दिन दिथ्थ के घर के आगे उपवास करना।
(2) मातंग का संसार त्यागने का निर्णय और अलौकिक शक्ति पाकर बनारस लौटना।
(3) मातंग का माण्डव्य को उत्तर जिन्हें अपने जन्म पर गर्व है पर अज्ञानी हैं; वे भेंट के पात्र नहीं हैं। इसके विपरीत जो लोग दोषमुक्त हैं, वे भेंट योग्य हैं।
(4) मातंग का दिथ्य से कहना कि वह उनके भिक्षा- पात्र में बचे हुए भोजन का अंश माण्डव्य तथा ब्राह्मणों को दे दे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

पृष्ठ संख्या 67 : चर्चा कीजिये

प्रश्न 12.
इस प्रकरण में कौनसे स्रोत हैं जिनसे यह ज्ञात होता है कि लोग ब्राह्मणों द्वारा बताई गई जीविका का अनुसरण करते थे? कौनसे स्त्रोत हैं जिनसे अलग सम्भावनाओं की जानकारी होती है?
उत्तर:
निम्नलिखित स्रोतों से ज्ञात होता है कि लोग ब्राह्मणों द्वारा बताई गई जीविका का अनुसरण करते थे –
(1) उच्च वर्णों के लोगों द्वारा चाण्डालों के दर्शन न करना। चाण्डालों का नगर से बाहर रहना।
(2) दिथ्थ मांगलिक नामक व्यापारी की पुत्री को मातंग नामक चाण्डाल को सौंपना और मातंग द्वारा दिव मांगलिक से विवाह करना।
(3) दिव्य के पुत्र माण्डव्यकुमार द्वारा वेदों का अध्ययन करना और ब्राह्मणों को भोजन कराना।
(4) माण्डव्यकुमार द्वारा मातंग नामक पतित व्यक्ति को भोजन न देना। परन्तु मातंग द्वारा दिय से यह कहना कि वह उसके भिक्षापात्र में बने हुए भोजन का कुछ अंश माण्डव्य तथा ब्राह्मणों को दे दे, यह अलग सम्भावना की जानकारी देता है।

पृष्ठ संख्या 68

प्रश्न 13.
क्या आपको ऐसा लगता है कि यह प्रकरण इस बात की ओर इंगित करता है कि पत्नियों को पतियों की निजी सम्पत्ति माना जाए?
उत्तर:
द्रौपदी के प्रश्न के उत्तर में जो दो मत प्रकट किए गए उनका कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। धृतराष्ट्र द्वारा सभी पाण्डवों तथा द्रौपदी को उनकी निजी स्वतन्त्रता पुनः लौटा देने से यह प्रकट होता है के समान पत्नियों को पति की निजी सम्पत्ति कि वस्तु मानना अनुचित है।

पृष्ठ संख्या 69

प्रश्न 14.
स्त्री और पुरुष किस प्रकार धन प्राप्त कर सकते थे? इसकी तुलना कीजिए व अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) पुरुषों द्वारा धन प्राप्त करना – मनुस्मृति के अनुसार पुरुष निम्नलिखित सात तरीकों से धन प्राप्त कर सकते थे-

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजय प्राप्त करके
  • निवेश
  • कार्य द्वारा तथा
  • सज्जनों द्वारा दी गई भेंट को स्वीकार करके।

(2) स्त्रियों द्वारा धन प्राप्त करना मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियाँ निम्नलिखित छ तरीकों से धन प्राप्त कर सकती थीं-

  • वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट
  • वधू गमन के समय मिली भेंट
  • स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट
  • भ्राता, माता और पिता द्वारा दिए गए उपहार
  • परवर्ती काल में मिली भेंट
  • वह सब कुछ जो ‘अनुरागी’ पति से उसे प्राप्त हो।

तुलना – मनुस्मृति के अनुसार पुरुष और स्त्री दोनों को ही धन अर्जित करने का अधिकार था। पुरुष सात तरीकों से धन अर्जित कर सकते हैं तथा स्वियों छ: तरीकों से धन प्राप्त कर सकती हैं।

अन्तर:
(1) पुरुषों को विरासत में पैतृक सम्पत्ति मिलती थी, परन्तु स्त्रियों को पिता की सम्पत्ति विरासत में नहीं मिलती थी
(2) पुरुष युद्ध में विजय प्राप्त करके शत्रु की सम्पत्ति पर अधिकार कर सकते थे। वे खोज करके, किसी चीज को खरीदकर (तथा कुछ समय बाद बेचकर) धन निवेश कर धन कमा सकते थे परन्तु स्त्रियाँ विजय प्राप्त करके, खोज तथा क्रय-विक्रय से धन नहीं कमाती थीं दूसरी ओर स्त्रियाँ वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट, वधू गमन के समय मिली भेंट, स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट, भाई तथा माता- पिता के द्वारा दिए गए उपहार, परवर्ती काल में मिली भेंट तथा अनुरागी पति से मिली भेंट आदि के द्वारा धन अर्जित कर सकती थीं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

पृष्ठ संख्या 71

प्रश्न 16.
मूर्तिकार ने सरदार व उसके अनुयायी के बीच अन्तर को कैसे दर्शाया है? (चित्र के लिए देखिए पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ 71)
उत्तर:
(1) सरदार अनुयायी के सिर पर अपना हाथ रखे हुए है। इससे ज्ञात होता है कि वह अपने अनुयायी का आश्रयदाता है।
(2) सरदार का शरीर बलिष्ठ है तथा उसका कद लम्बा है परन्तु अनुयायी का शरीर कमजोर है तथा उसका कद छोटा है। इससे प्रतीत होता है कि समाज में सरदार का प्रभाव और उसकी प्रतिष्ठा अनुयायी से
अधिक है।
(3) सरदार आभूषण पहने हुए है। वह एक वस्व धारण किए हुए है जो कमर से लेकर घुटनों तक है। परन्तु अनुयायी आभूषण रहित है और वह एक लंगोट जैसा मामूली वस्त्र पहने हुए है। इससे सरदार की सम्पन्नता तथा अनुयायी की निर्धनता प्रकट होती है। पृष्ठ संख्या 71

प्रश्न 17.
चारण ने सरदार को दानी बताने के लिए किस तरह के दाँव-पेच अपनाये? धन अर्जित करने के लिए सरदार को क्या करना होता था जिससे वह उसका कुछ अंश चारण को दे सके ?
उत्तर:
चारण ने अपने सरदार को दानी बताते हुए कहा कि उसके पास प्रतिदिन दूसरों पर खर्चा करने के लिए धन नहीं है। परन्तु वह इतना ओछा भी नहीं कि वह धन न होने का बहाना करके दान देने से मना कर दे। वह दानप्रिय है। वह चारणों को भी अपने सरदार के पास चलने को प्रेरित करता है। चारण ने कहा कि यदि हम सरदार से प्रार्थना करेंगे और अपनी भूख से क्षीण हुई पसलियाँ उसे दिखायेंगे, तो वह हमारी प्रार्थना अवश्य सुनेगा। सरदार को धन अर्जित करने के लिए एक लम्बा भाला बनवाना होता था जिससे वह युद्ध करता था तथा विजय प्राप्त करके विपुल धन प्राप्त करता था। इस धन में वह उसका कुछ अंश चारण को देता था।

पृष्ठ संख्या 76

प्रश्न 18.
क्या आपको लगता है कि लाल की खोज और महाकाव्य में वर्णित हस्तिनापुर में समानता है?
उत्तर:
हमें लगता है कि लाल की खोज और महाभारत नामक महाकाव्य में वर्णित हस्तिनापुर में समानता है। गंगा के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में हस्तिनापुर का होना, जहाँ कुरु राज्य भी स्थित था, इसकी ओर इंगित करता है कि यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर ही थी। जिसका उल्लेख महाभारत नामक महाकाव्य ‘के आदिपर्वन’ में किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

पृष्ठ संख्या 76

प्रश्न 19.
आपको क्यों लगता है कि लेखक (लेखकों) ने एक ही प्रकरण के लिए तीन स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए?
उत्तर:
द्रौपदी के बहुपति विवाह के लिए तीन स्पष्टीकरण-महाभारत के लेखक (लेखकों) ने द्रौपदी के बहुपति विवाह के लिए निम्नलिखित तीन स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए हैं –
(1) जब पांडव प्रतियोगिता जीतकर द्रौपदी को लेकर अपनी माता कुंती के पास पहुँचे तो कुंती ने बिना देखे ही उन्हें लाई गई वस्तु को आपस में बांट लेने का आदेश दिया। जब कुंती ने द्रौपदी को देखा, तो उन्हें अपनी भूल ज्ञात हुई, किन्तु उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं की जा सकती थी। बहुत सोच-विचार के बाद युधिष्ठिर ने यह निर्णय लिया कि द्रौपदी उन पाँचों पाण्डवों की पत्नी होगी।

(2) दूसरे स्पष्टीकरण में ऋषि व्यास ने राजा द्रुपद को बताया कि पांडव वास्तव में इन्द्र के अवतार हैं और इन्द्र की पत्नी ने द्रौपदी के रूप में जन्म लिया है। इसलिए नियति ने ही द्रौपदी के पाँच पति निर्धारित कर दिए थे।

(3) तीसरे स्पष्टीकरण में ऋषि व्यास ने राजा द्रुपद को यह बताया कि एक बार एक युवती ने पति पाने के लिए शिव की उपासना की और अत्यधिक उत्साह में आकर पाँच बार पति प्राप्ति का वर मांग लिया। इसी स्त्री ने द्रौपदी के रूप में जन्म लिया तथा शिव ने उसकी प्रार्थना को पूरा किया है।

Jharkhand Board Class 12 History बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?
उत्तर:
विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता का महत्त्वपूर्ण होना विशिष्ट परिवार में शासक, उसका परिवार तथा धनी लोगों के परिवार सम्मिलित हैं। पितृवांशिकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है। प्राचीन काल में विशिष्ट परिवारों में पितृर्वेशिकता महत्त्वपूर्ण रही थी।

इसके निम्नलिखित कारण थे –
(1) पितृवंश को आगे बढ़ाना-धर्मसूत्रों के अनुसार पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्त्वपूर्ण होते हैं, पुत्रियाँ नहीं इसलिए विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता महत्त्वपूर्ण रही होगी। विशिष्ट परिवारों में उत्तम पुत्रों की प्राप्ति की कामना की जाती थी। यह वार्ता ऋग्वेद के एक मन्त्र से भी स्पष्ट हो जाती है।

(2) उत्तराधिकार से सम्बन्धित विवाद के निपटारे के लिए पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके संसाधनों पर अधिकार स्थापित कर सकते थे। अतः शासक की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र सिंहासन पर अधिकार कर सकता था।

परन्तु इस पद्धति में विभिन्नता थी –

  • परिवार में पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था।
  • कभी-कभी बन्धु-बांधव गद्दी पर अपना अधिकार जमा लेते थे।
  • कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में जैसे उत्तराधिकारी के अल्प वयस्क होने पर स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त सिंहासन प्राप्त कर लेती थीं।

प्रश्न 2.
क्या आरम्भिक राज्यों में शासक निश्चित रूप से क्षत्रिय ही होते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आरम्भिक राज्यों में शासकों का क्षत्रिय होना- धर्म सूत्रों एवं धर्म शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय वर्ग के लोग ही शासक हो सकते थे परन्तु सभी शासक क्षत्रिय नहीं होते थे अनेक महत्त्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी –
(1) मौर्य वंश मौर्यो की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में तीव्र मतभेद है। बाद के बौद्ध ग्रन्थों में यह कहा गया है। कि मौर्य क्षत्रिय थे, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र मौयों को ‘निम्नकुल’ का मानते हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

(2) शुंग और कण्व वंश- शुंग और कण्व, जो मौर्यो के उत्तराधिकारी थे, ब्राह्मण थे वास्तव में राजनीतिक सत्ता का उपभोग हर वह व्यक्ति कर सकता था, जो समर्थन और संसाधन जुटा सके। यह आवश्यक नहीं था कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति को ही सिंहासन प्राप्त होता था।

(3) शकशक शासक मध्य एशिया से भारत आए थे। ब्राह्मण उन्हें मलेच्छ, बर्बर अथवा विदेशी मानते थे। परन्तु ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि शक- शासक रुद्रदामन (लगभग दूसरी शताब्दी ईसवी) ने सुदर्शन झील की मरम्मत करवाई थी। इससे यह जानकारी मिलती है कि शक्तिशाली मलेच्छ भी संस्कृतीच परिपाटी से परिचित
थे।

(4) सातवाहन- सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गोतमीपुत्त सिरी सातकनि ने स्वयं को ‘अनूठा ब्राह्मण’ एवं ‘क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला ‘ बताया था।

प्रश्न 3.
द्रोण, हिडिंबा और मातंग की कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना कीजिए व उनके अन्तर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) द्रोण की कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना द्रोण एक ब्राह्मण थे, जो कुरु वंश के राजकुमारों को धनुर्विद्या की शिक्षा देते थे। एक बार एकलव्य नामक वनवासी निषाद द्रोण के पास धनुर्विद्या की शिक्षा प्राप्त करने के लिए आया। अपने धर्म का पालन करते हुए द्रोण ने एकलव्य को अपना शिष्य नहीं बनाया क्योंकि वह एक निषाद था एकलव्य द्रोण की प्रतिमा को अपना गुरु मानकर धनुर्विद्या की साधना करके धनुर्विद्या में पारंगत बन गया। परन्तु अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को दिए गए वचन को निभाने के लिए द्रोण द्वारा एकलव्य से गुरु दक्षिणा में दायें हाथ का अंगूठा मांगना धर्म के विपरीत था।

(2) हिडिंबा की कथा में धर्म के मानदंडों की तुलना – हिडिंबा एक नरभक्षी राक्षस की बहन थी। नरभक्षी राक्षस ने हिडिंबा को पांडवों को पकड़ कर लाने के लिए भेजा। हिडिंबा ने पांडवों को पकड़कर लाने का प्रयास नहीं किया और अपने धर्म का पालन नहीं किया। उसने कुंती से कहा कि उसने भीम को अपने पति के रूप में चुना है। अन्त में हिडिंबा का भीम से विवाह कर दिया गया। इस प्रकार कुन्ती तथा युधिष्ठिर सशर्त विवाह के लिए तैयार हो गये और उन्होंने क्षत्रियोचित उदारता का परिचय दिया। परन्तु हिडिम्बा ने भीम से विवाह करके राक्षस कुल की मर्यादा को आघात पहुँचाया।

(3) मातंग की कथा में धर्म के मानदंडों की तुलना- एक बार बोधिसत्व ने एक चाण्डाल के पुत्र के रूप में जन्म लिया, जिसका नाम मातंग था मातंग ने एक व्यापारी की पुत्री दिध्य से विवाह कर लिया। यह ब्राह्मणीय व्यवस्था के धर्म के विपरीत था। उनके यहाँ एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम माण्डव्यकुमार था।

एक दिन मातंग अपने पुत्र माण्डव्यकुमार के द्वार पर आए और भोजन माँगा तो माण्डव्य ने एक पतित व्यक्ति होने के कारण मातंग को भोजन देने से इनकार कर दिया। माण्डव्य का यह आचरण उसकी संकीर्णता का परिचायक था। जब मातंग ने माण्डव्य को अपने जन्म पर गर्व न करने और विवेकपूर्ण व्यवहार करने का उपदेश दिया, तो माण्डव्य ने मातंग को अपने घर से बाहर निकलवा दिया। उसने अब्राह्मणों के प्रति अपनी घृणा और क्रूरता दिखाकर धर्म के विपरीत आचरण किया।

प्रश्न 4.
किन मायनों में सामाजिक अनुबन्ध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी, जो पुरुष सूक्त पर आधारित था?
उत्तर:
सामाजिक अनुबन्ध की बौद्ध अवधारणा- बौद्ध जन्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे। ‘सुत्तपिटक’ नामक बौद्ध ग्रन्थ में लिखा है कि प्रारम्भ में मानव शान्तिपूर्ण रहते थे। कालान्तर में मनुष्य अधिकाधिक लालची, प्रतिहिंसक और कपटी हो गए तब उन्होंने यह अनुभव किया कि उन्हें एक ऐसे व्यक्ति का चयन करना चाहिए जो न्यायप्रिय हो, अपराधी को दण्डित करे तथा निष्कासित किये जाने वाले व्यक्ति को राज्य से निष्कासित करे। इस प्रकार बौद्ध अवधारणा तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को दैवीय व्यवस्था नहीं मानती थी। बौद्धों ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को अस्वीकार किया। बौद्ध व्यवस्था में समाज के सभी वर्गों का समान आदर था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

पुरुष सूक्त पर आधारित ब्राह्मणीय दृष्टिकोण- ब्राह्मणों के अनुसार वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था थी। ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र के अनुसार समाज में चार वर्णों की उत्पत्ति आदि मानव पुरुष से हुई थी। उसके मुख से ब्राह्मण की भुजाओं से क्षत्रिय की जंघा से वैश्य की तथा पैर से शूद्र (हरिजन) की उत्पत्ति हुई थी।

धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन तथा वेदों को शिक्षा देना था। क्षत्रियों का कार्य शासन और युद्ध करना, वैश्यों का कार्य कृषि, पशुपालन और व्यापार करना था। शूद्रों (हरिजनों) का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। इस प्रकार ब्राह्मणीय दृष्टिकोण के अनुसार सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार जन्म था। यहाँ वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म था।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित अवतरण महाभारत से है जिसमें ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर दूत संजय को संबोधित कर रहे संजय धृतराष्ट्र गृह के सभी ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को मेरा विनीत अभिवादन दीजिएगा। मैं गुरु द्रोण के सामने नतमस्तक होता हूँ… मैं कृपाचार्य के चरण स्पर्श करता हूँ…. (और) कुरु वंश के प्रधान भीष्म के। मैं वृद्ध राजा ( धृतराष्ट्र) को नमन करता हूँ। मैं उनके पुत्र दुर्योधन और उनके अनुजों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता हूँ तथा उनको शुभकामनाएँ देता हूँ.. मैं उन सब युवा कुरु योद्धाओं का अभिनंदन करता हूँ जो हमारे भाई, पुत्र और पौत्र हैं… सर्वोपरि मैं उन महामति विदुर को (जिनका जन्म दासी से हुआ है) नमस्कार करता हूँ जो हमारे पिता और माता के सदृश हैं. मैं उन सभी वृद्धा स्त्रियों को प्रणाम करता हूँ जो हमारी माताओं के रूप में जानी जाती हैं जो हमारी पत्नियाँ हैं उनसे यह कहिएगा कि, “मैं आशा करता हूँ कि वे सुरक्षित हैं.. मेरी ओर से उन कुलवधुओं का जो उत्तम परिवारों में जन्मी हैं और बच्चों की माताएँ हैं, अभिनंदन कीजिएगा तथा हमारी पुत्रियों का आलिंगन कीजिएगा… सुंदर, सुगंधित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनाएँ दीजिएगा दासियों और उनकी संतानों तथा वृद्ध, विकलांग और असहाय जनों को भी मेरी ओर से नमस्कार कीजिएगा…. इस सूची को बनाने के आधारों की पहचान कीजिए- उम्र, लिंग, भेद व बंधुत्व के संदर्भ में क्या कोई अन्य आधार भी हैं? प्रत्येक श्रेणी के लिए स्पष्ट कीजिए कि सूची में उन्हें एक विशेष स्थान पर क्यों रखा गया है?
उत्तर:
इस सूची को बनाने में उम्र, लिंग भेद व बन्धुत्व के अतिरिक्त कुछ अन्य आधार भी हैं, जैसे गुरुजनों, योद्धाओं, माताओं के प्रति सम्मान आदि उक्त आधारों पर इस सूची का निम्न प्रकार से निर्माण किया जा सकता है –

  • सबसे पहले ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को अभिवादन प्रस्तुत किया गया है।
  • इसके बाद गुरु द्रोण और कृपाचार्य के प्रति सम्मान प्रकट किया गया है।
  • युधिष्ठिर ने कुरु वंश के प्रधान और उम्र में सबसे बड़े भीष्म पितामह के प्रति भी सम्मान प्रकट किया है इससे ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों के बाद क्षत्रियों का स्थान था।
  • युधिष्ठिर ने वृद्ध राजा धृतराष्ट्र को भी अपना अभिवादन प्रस्तुत किया।
  • उन्होंने दुर्योधन, उसके अनुजों तथा युवा कुरु योद्धाओं का भी अभिनन्दन किया। इससे ज्ञात होता है कि उत्तराधिकारी के रूप में युवराज का प्रमुख स्थान था।
  • उन्होंने अपने माता-पिता के समान महामति विदुर का भी अभिनंदन किया।
  • इसके बाद उन्होंने वृद्धा स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रकट किया, पत्नियों के प्रति सुरक्षित होने की कामना की और कुलवधुओं का अभिनन्दन किया। उन्होंने पुत्रियों के प्रति अपना स्नेह प्रकट किया।
  • सबसे अन्त में उन्होंने सुन्दर, सुगन्धित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनाएँ दीं और दासियों तथा उनकी सन्तानों का भी अभिवादन किया।
  • विकलांगों तथा असहायों को भी नमस्कार किया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में।)

प्रश्न 6.
भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासकार मौरिस विंटरविट्ज ने महाभारत के बारे में लिखा था कि ‘चूँकि महाभारत सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है… बहुत सारी और अनेक प्रकार की चीजें इसमें निहित हैं…( वह भारतीयों की आत्मा की अगाध गहराई को एक अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है।” चर्चा कीजिए।
उत्तर:
महाभारत
महाभारत महाकाव्य सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दोनों दृष्टियों से अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। यह सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है। महाभारत वस्तुतः वर्तमाना में धार्मिक एवं लौकिक भारतीय ज्ञान का विश्वकोश है। इसमें तत्कालीन धर्म, समाज, जीवन मूल्यों, वर्णाश्रम व्यवस्था तथा आदर्शों का सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया है। साहित्यिक परम्परा में महाभारत के रचयिता ऋषि व्यास माने जाते हैं। इसकी रचना लगभग 500 ई. पूर्व से एक हजार वर्ष तक होती रही।
(1) महाभारत की भाषा महाभारत का मूल पाठ संस्कृत भाषा में है। परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।
(2) विषयवस्तु इतिहासकार महाभारत की विषयवस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक आख्यान में कहानियों का संग्रह है तथा उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार- विचार के मानदंडों का चित्रण है। अधिकतर इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि महाभारत वस्तुतः एक भाग नाटकीय कथानक था, जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गए।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

(3) महाभारत का ऐतिहासिक महत्त्व – आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को ‘इतिहास’ की श्रेणी में रखा गया है। महाभारत की मुख्य कथा दो परिवारों के बीच हुए युद्ध का चित्रण है। महाभारत में बान्धवों के दो दलों कौरवों तथा पांडवों के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए बुद्ध का वर्णन किया गया है। दोनों ही दल कुरु वंश से सम्बन्धित थे। इस युद्ध में पांडवों की विजय हुई महाभारत में तत्कालीन धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक अवस्थाओं का वर्णन है।

(4) महाभारत का साहित्यिक महत्त्व इस ग्रन्थ में वीर रस की प्रधानता है परन्तु कहीं-कहीं शृंगार रस और शान्त रस भी मिलते हैं। इस ग्रन्थ में उपमा आदि अलंकारों का तथा अनेक छन्दों का प्रयोग किया गया है।

(5) महाभारत – भारतीय ज्ञान का विश्वकोश- महाभारत धार्मिक एवं लौकिक भारतीय ज्ञान का विश्वकोश है ‘आदि पर्व’ में महाभारत को केवल इतिहास ही नहीं, बल्कि धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा मोक्षशास्त्र भी कहा गया है।

(6) महाभारत का नीतिबोध महाभारत में जगह- जगह नीति का उपदेश है। भीष्म का राजनीति तथा धर्म के विभिन्न पक्षों पर शान्ति पर्व में लम्बा प्रवचन है। नीतिकारों में विदुर का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(7) महाभारत में वर्णित समाज-महाकाव्यकाल में वर्ण-व्यवस्था सुदृढ़ हो चुकी थी। समाज चार प्रमुख वर्णों में विभाजित था –
(1) ब्राह्मण
(2) क्षत्रिय
(3) वैश्य तथा
(4) शुद्र चारों वर्णों में ब्राह्मण वर्ण को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता था। फिर भी महाभारत में शील और सदाचार को सामाजिक व्यवस्था का आधार माना गया था। महाभारत के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र व्यक्ति कर्म से होता है, न कि जन्म से महाभारतकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अधिक उच्च नहीं थी वे प्रायः पुरुषों पर निर्भर थीं। बहुपति विवाह तथा बहुपत्नी विवाह प्रचलित थे। स्वयंवर प्रथा भी प्रचलित थी शूद्रों की स्थिति शोचनीय थी। उन्हें अन्य वर्णों के कर्मों को अपनाने, शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।

(8) दार्शनिक महत्त्व-गीता का दर्शन भी महाभारत का एक अंग है। इसमें ज्ञान, भक्ति और कर्म का सुन्दर समन्वय स्थापित किया गया है। गीता में कर्मयोग, ज्ञान- योग तथा भक्ति योग तीनों को ही मोक्ष का साधन माना गया है। इस दृष्टि से गीता का दृष्टिकोण समन्वयात्मक है। फिर भी गीता में भक्ति मार्ग की श्रेष्ठता पर अधिक बल दिया गया है।

(9) महाभारत में आदर्श – विदुर एक उच्च कोटि का विद्वान एवं नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र का ज्ञाता था। वह धृतराष्ट्र को सलाह देते हुए कहता है कि राजा होते हुए उन्हें अपने पुत्र की महत्त्वाकांक्षाओं को अपने निर्णयों में आड़े नहीं आने देना चाहिए। भीष्म धर्म और न्याय के प्रतीक होते हुए भी अपनी प्रतिज्ञा के कारण हस्तिनापुर के राजसिंहासन से बंधे हुए हैं। युधिष्ठिर अनेक कष्ट सहन हुए भी धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हैं। महाभारत में द्रौपदी एक आदर्श नारी के रूप में चित्रित की गई है।
करते

(10) महाभारत का सामाजिक मूल्य- महाभारत की सामाजिक व्यवस्था में कर्म को अधिक महत्त्व दिया गया है। उसके अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र व्यक्ति कर्म से होता है, न कि जन्म से द्रोणाचार्य और परशुराम जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय कर्म में रत थे क समाज में जन्मजात वर्ण का भी महत्त्व था। परन्तु गुण कर्म अ के आदेश से लोगों को कर्म करने की स्वतन्त्रता मिलने लगी।

(11) धार्मिक जीवन महाभारत काल में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, दुर्गा, लक्ष्मी आदि देवी- देवताओं की उपासना की जाती थी। इस युग में अवतारवाद का सिद्धान्त लोकप्रिय होने लगा था। राम, कृष्ण आदि को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना की जाती थी। इस युग में यज्ञों का महत्व बना हुआ था इस युग में कर्मवाद तथा पुनर्जन्मवाद के सिद्धान्त भी लोकप्रिय थे। उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि मौरिस विन्टरनिट्ज का यह कथन सही प्रतीत होता है कि “महाभारत सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है।”

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 7.
क्या यह सम्भव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? चर्चा कीजिए।
अथवा
महाभारत के लेखक एवं तिथियों पर संक्षिप्त टिप्पणी
लिखिए।
अथवा
महाभारत का लेखनकाल तथा रचयिता अत्यन्त विवादित रहे हैं। विवेचना कीजिये।
अथवा
क्या यह सम्भव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
महाभारत का रचयिता
यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि महाभारत का एक ही रचयिता था महाभारत की रचना 500 ई. पूर्व से लेकर एक हजार वर्ष तक होती रही। इसमें वर्णित कुछ कथाएँ तो महाकाव्य काल से पहले भी प्रचलित थीं। अतः महाभारत को एक ही व्यक्ति की रचना कहना तर्कसंगत नहीं है। वर्तमान में महाभारत में लगभग एक लाख श्लोक हैं, जो विभिन्न प्रारूपों एवं कालों में लिखे गये हैं।
विभिन्न लेखक- महाभारत के रचयिताओं के सम्बन्ध में निम्नलिखित मत प्रकट किए गए हैं –

(1) मूल कथा के रचयिता सम्भवतः महाभारत की मूलकथा के रचयिता भाट सारथी थे, जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था ये क्षत्रिय योद्धाओं के साथ युद्धक्षेत्र में जाते थे और उनकी विजयों एवं उपलब्धियों के बारे में कविताओं की रचना करते थे। इन रचनाओं का प्रेषण मौखिक रूप में हुआ

(2) ब्राह्मणों द्वारा रचना करना पाँचवीं शताब्दी ई. पूर्व से ब्राह्मणों ने इस कथा परम्परा पर अपना अधिकार कर लिया और इसे लिखा यह वह काल था जब कुरु और पांचाल, जिनके इर्द-गिर्द महाभारत की कथा घूमती है, मात्र सरदारी से राजतन्त्र के रूप में विकसित हो रहे थे। यह सम्भव है कि नये राजा अपने इतिहास को अधिक नियमित रूप से लिखना चाहते थे। यह भी सम्भव है कि नये राज्यों की स्थापना के समय होने वाली उथल-पुथल के कारण पुराने सामाजिक मूल्यों के स्थान पर नवीन मानदंडों की स्थापना हुई। इन मानदंडों का इसके कुछ भागों में वर्णन मिलता है।

(3) लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ईसवी के बीच महाभारत के रचनाकाल का चरण लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ईसवी के बीच महाभारत के रचना काल का एक और चरण आरम्भ हुआ। इस काल में विष्णु देवता की उपासना जोर पकड़ रही थी तथा महाभारत के महत्त्वपूर्ण नायक श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार बताया जा रहा था।

(4) कालान्तर में महाभारत में उपदेशात्मक प्रकरणों का जोड़ा जाना- कालान्तर में लगभग 200-400 ईसवी के बीच ‘मनुस्मृति’ से मिलते-जुलते वृहत् उपदेशात्मक प्रकरण महाभारत में जोड़े गए। इन प्रकरणों के जोड़े जाने से ‘महाभारत’ का आकार बढ़ता गया। परिणामस्वरूप यह ग्रन्थ जो अपने प्रारम्भिक रूप में सम्भवतः 10,000 श्लोकों से भी कम रहा होगा, बढ़कर एक लाख श्लोकों वाला हो गया। वर्तमान रूप में महाभारत में एक लाख श्लोक हैं। इससे सिद्ध होता है कि एक ही व्यक्ति महाभारत का
रचयिता नहीं हो सकता।

(5) साहित्यिक परम्परा के अनुसार महाभारत का रचयिता साहित्यिक परम्परा में महाभारत के रचयिता ऋषि व्यास माने जाते हैं।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि एक ही व्यक्ति महाभारत का रचयिता नहीं था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 8.
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताएँ कितनी महत्त्वपूर्ण रही होंगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताएँ –
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताओं के निम्नलिखित कारण थे –
(1) पितृवैशिक व्यवस्था प्राचीनकाल में पितृवंशिक व्यवस्था प्रचलित थी। पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु ने के पश्चात् उनके संसाधनों पर अधिकार स्थापित कर सकते थे। इसलिए पितृवंशिकता व्यवस्था में पुत्र महत्त्वपूर्ण माने जाते सभी लोग पुत्रों की ही कामना करते थे परन्तु पितृवंशिक व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था।

पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था। परिवार के लोग यही प्रयास करते थे कि अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना चाहिए। इस प्रथा को ‘बहिर्विवाह पद्धति’ कहते हैं। इसका अभिप्राय यह था कि प्रतिष्ठित परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्त्रियों का जीवन बहुत सावधानी से नियमित किया जाता था ताकि ‘उचित समय’ पर और ‘उचित व्यक्ति’ से उनका विवाह किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्त्तव्य माना गया।

(2) स्त्री का गोत्र- लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से एक ब्राह्मणीय पद्धति प्रचलित हुई, जो लोगों, विशेषकर ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत करती थी प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे गोत्रों के दो नियम महत्वपूर्ण थे –

  • विवाह के पश्चात् स्वियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
  • एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।

परन्तु इन नियमों का हमेशा पालन नहीं किया जाता। था। कुछ सातवाहन राजाओं की अनेक पत्नियाँ थीं सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नामों के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि उनके नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे जो उनके पिता के गोत्र थे। इससे पता चलता है कि इन रानियों ने विवाह के बाद अपने पति- कुल के गोत्र को ग्रहण करने की अपेक्षा, अपने पिता के गोत्र नाम को ही बनाये रखा। यह भी ज्ञात होता है कि कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं।

यह बात बहिर्विवाह पद्धति के नियमों के विरुद्ध थी यह उदाहरण एक वैकल्पिक प्रथा अन्तर्विवाह पद्धति अर्थात् बन्धुओं में विवाह सम्बन्ध का प्रतीक है। इस विवाह पद्धति का प्रचलन दक्षिण भारत के अनेक समुदायों में आज भी है। बान्धवों जैसे ममेरे, चचेरे इत्यादि भाई बहिन के साथ किए गए विवाह सम्बन्धों से एक सुगठित समुदाय जन्म लेता था। सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था। इससे यह ज्ञात होता है कि माताएँ महत्त्वपूर्ण थीं। परन्तु इस निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले यह बात ध्यान में रखनी होगी कि सातवाहन राजाओं में सिंहासन का उत्तराधिकारी प्राय: पितृवंशिक होता था।

(3) सम्पत्ति का अधिकार ‘मनुस्मृति’ के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। परन्तु ज्येष्ठ पुत्र इस सम्पत्ति में विशेष भाग का अधिकारी था। स्त्रियाँ इस पैतृक संसाधन में भागीदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्वीधन’ (अर्थात् स्वी का धन) कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

इस सम्पत्ति पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था परन्तु ‘मनुस्मृति’ स्त्रियों को पति की अनुमति के बिना पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपनी बहुमूल्य सम्पत्ति को गुप्त रूप से संचित करने से मना करती थी। अनेक साक्ष्यों से यह पता चलता है कि यद्यपि उच्च वर्ग की स्त्रियाँ संसाधनों पर अपनी पैठ रखती थीं, फिर भी भूमि, पशु और धन पर प्राय: पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में स्वी और पुरुष के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही प्रबल हुई थी।

(4) अन्य विषमताएँ –

  • ‘महाभारत’ से ज्ञात होता है कि युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों, गुरुजनों, क्षत्रिय राजाओं और राजकुमारों आदि का अभिवादन करने के बाद अन्त में स्वियों का अभिवादन किया। इससे स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताओं पर प्रकाश पड़ता है।
  • महाभारत से ज्ञात होता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दाँव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। इससे पता चलता है कि पुरुष पत्नियों को निजी सम्पत्ति मानते थे।
  • मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के सात साधन हैं, परन्तु स्त्रियों के लिए केवल 6 तरीके ही हैं।
  • महाभारत काल में स्त्रियों की स्थिति सन्तोषजनक नहीं थी। समाज में बहुविवाह, बहुपति प्रथा, दासी प्रथा आदि प्रचलित थीं। इस काल में वेश्यावृत्ति भी प्रचलित थी।

प्रश्न 9.
उन साक्ष्यों की चर्चा कीजिए जो यह दर्शाते हैं कि बन्धुत्व और विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं होता था।
उत्तर:
बन्धुत्व और विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र पालन नहीं होना धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों के ब्राह्मण लेखकों की यह मान्यता थी कि उनका दृष्टिकोण सार्वभौमिक है और उनके द्वारा बनाए गए नियमों का सबके द्वारा पालन होना चाहिए। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं था। वास्तविक सामाजिक सम्बन्ध कहीं अधिक जटिल थे। उपमहाद्वीप में फैली क्षेत्रीय विभिन्नता और संचार की बाधाओं के कारण ब्राह्मणों का प्रभाव सार्वभौमिक नहीं हो सकता था अतः विद्वानों की मान्यता है कि उस समय बन्धुत्व और विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र पालन नहीं होता था।

(1) पारिवारिक जीवन में भिन्नता हम प्रायः
पारिवारिक जीवन को सहज ही स्वीकार कर लेते हैं। परन्तु वास्तव में सभी परिवार एक जैसे नहीं होते। पारिवारिक जनों के आपसी सम्बन्धों तथा क्रियाकलापों में भिन्नता होती है। परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते हैं, जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं। तकनीकी भाषा में हम सम्बन्धियों को ‘जाति समूह’ कह सकते हैं। पारिवारिक रिश्ते प्राकृतिक तथा रक्त से सम्बन्धित माने जाते हैं। परन्तु इन रिश्तों की परिभाषा अलग- अलग ढंग से की जाती है। एक ओर कुछ समाजों में भाई- बहिन (चचेरे, मौसेरे आदि) से रक्त का रिश्ता माना जाता है, परन्तु कुछ समाज ऐसा नहीं मानते। उदाहरणार्थ, बान्धवों के दो दल कौरव और पांडव भूमि और सत्ता को लेकर एक- दूसरे के विरुद्ध युद्ध में कूद पड़ते हैं। दोनों ही दल कुरुवंश से सम्बन्धित थे। यहाँ बन्धुत्व सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का उल्लंघन किया गया।

पितृवशिक पद्धति में भिन्नता यद्यपि कुछ परिवारों में पितृवंशिकता पद्धति प्रचलित थी, परन्तु इस पद्धति में विभिन्नता थी। कभी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी-कभी बन्धु- बान्धव राजगद्दी पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते थे। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त सिंहासन प्राप्त कर लेती थीं।

(2) विवाह के नियम:
प्राचीनकाल में पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण होते थे। इस व्यवस्था में पुत्रियों को पुत्रों के समान महत्त्व प्राप्त नहीं था पिता अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना ही अपना प्रमुख कर्तव्य समझता था। इस प्रथा को ‘बहिर्विवाह पद्धति’ कहते हैं। इसका अभिप्राय यह था कि उच्च प्रतिष्ठित परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्त्रियों का जीवन बड़ी सावधानीपूर्वक नियमित किया जाता था जिससे ‘उचित समय’ पर तथा ‘उचित व्यक्ति’ से उनका विवाह किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप ‘कन्यादान’ अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

(3) नगरों के उद्भव से सामाजिक जीवन में जटिलता नए नगरों के उद्भव से सामाजिक जीवन में अधिक जटिलता आ गई। नगरों के निकट और दूर से आकर लोग आपस में मिलते थे और वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते थे। इसके फलस्वरूप नगरों में रहने वाले लोगों में विचारों का आदान-प्रदान होता था। शायद इस कारण से कुछ लोगों के आरम्भिक विश्वासों और व्यवहारों पर सन्देह प्रकट किया और उनका औचित्य जानना चाहा। इस समस्या के समाधान के लिए ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार कीं। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन ‘धर्मसूत्र’ व ‘धर्मशास्व’ नामक संस्कृत ग्रन्थों में किया गया। इन ग्रन्थों में ‘मनुस्मृति’ सबसे महत्त्वपूर्ण थी जिसका संकलन लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ईसवी के बीच हुआ।

(4) शास्त्रों द्वारा विवाह के आठ प्रकारों को मान्यता देना- धर्मसूत्रों तथा धर्मशास्त्रों ने विवाह के आठ प्रकारों को अपनी स्वीकृति दी है। विवाह के 8 प्रकार थे –

  • ब्रह्म विवाह
  • दैव विवाह
  • आर्ष विवाह
  • प्रजापत्य विवाह
  • आसुर विवाह
  • गन्धर्व विवाह
  • राक्षस विवाह
  • पैशाच विवाह इन आठ विवाहों में से पहले चार विवाह ‘उत्तम’ माने जाते थे तथा शेष चार विवाह निंदित माने गए।

सम्भव है कि ये निन्दित विवाह पद्धतियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं जो ब्राह्मणीय नियमों को स्वीकार नहीं करते थे। महाभारत काल में अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित थे। उदाहरणार्थ, क्षत्रिय भीम द्वारा हिडिम्बा नामक राक्षसी के साथ विवाह करना तथा दिथ्य मांगलिक नामक वैश्य कन्या द्वारा मातंग नामक चाण्डाल से विवाह करना आदि। परन्तु ये विवाह विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय विषयों के विपरीत थे।

(5) सातवाहन नरेशों द्वारा गोत्रों के नियमों की अवहेलना ब्राह्मणीय पद्धति के अनुसार गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –
(1) विवाह के बाद स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
(2) एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे परन्तु सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों ने विवाह के बाद भी अपने पतिकुल के गोत्र को ग्रहण नहीं किया, जैसा ब्राह्मणीय व्यवस्था में प्रचलित था; उन्होंने अपने पिता का गोत्र नाम ही बनाए रखा। इसके अतिरिक्त कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं। यह बात ब्राह्मणीय व्यवस्था की बहिर्विवाह पद्धति के नियमों के विरुद्ध थी।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज JAC Class 12 History Notes

→ महाभारत उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध ग्रन्थों में से महाभारत एक है। यह एक विशाल महाकाव्य है जो अपने वर्तमान रूप में एक लाख श्लोकों से अधिक है। यह विभिन्न सामाजिक श्रेणियों व परिस्थितियों का लेखा-जोखा है। इसकी मुख्य कथा दो परिवारों के बीच हुए युद्ध का चित्रण है।

→ महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण- 1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण को तैयार करने की परियोजना शुरू हुई यह परियोजना 47 वर्षों में पूरी हुई। इस प्रक्रिया में दो बातें विशेष रूप से उभर कर आई –
(1) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता थी तथा
(2) कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभरकर सामने आए।

→ परिवार परिवार एक बड़े समूह का भाग होते हैं जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं सम्बन्धियों को ‘जाति समूह’ कहा जा सकता है। पारिवारिक सम्बन्ध ‘नैसर्गिक’ और रक्त से सम्बन्धित माने जाते हैं। संस्कृत ग्रन्थों में ‘कुल’ शब्द का प्रयोग ‘परिवार’ के लिए और ‘जाति’ का ‘बान्धवों’ के समूह के लिए होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज इकट्ठे रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं।

→ पितृवंशिकता – पितृवंशिकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है पितृवेशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके संसाधनों (राजाओं के संदर्भ में सिंहासन भी) पर अधिकार कर सकते थे। अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे। ‘मातृवंशिकता’ शब्द का प्रयोग हम तब करते हैं, जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है।

→ विवाह के नियम-पुत्री का अपने गोत्र से बाहर विवाह कर देना ही उचित माना जाता था। इस प्रथा को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं। कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता था।

→ आचार संहिताएँ- ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार कीं। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन ‘धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ नामक ग्रन्थों में किया गया। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण मनुस्मृति श्री जिसका संकलन लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ई. के बीच हुआ।

→ विवाह के प्रकार –

  • अन्तर्विवाह अन्तर्विवाह में वैवाहिक सम्बन्ध समूह के बीच ही होते हैं। यह समूह एक गोत्र, कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है।
  • बहिर्विवाह – गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह कहते हैं।
  • बहुपत्नी प्रथा यह प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी है।
  • बहुपति प्रथा यह एक स्वी के अनेक पति होने की पद्धति है।
  • धर्म सूत्र और धर्मशास्य विवाह के आठ प्रकारों को अपनी स्वीकृति देते हैं। इनमें से पहले चार ‘उत्तम’ माने जाते थे तथा अन्तिम चार को निंदित माना गया।

→ गोत्रों में वर्गीकृत करना लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से ब्राह्मणों ने लोगों, विशेषकर ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत करना शुरू किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे।

→ गोत्रों के नियम – गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –
(1) विवाह के पश्चात् स्थियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था।
(2) एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं कर सकते थे परन्तु सातवाहन राजाओं की रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे जो उनके पिता के गोत्र थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

→ माताओं का महत्त्वपूर्ण होना- सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था। इससे यह प्रतीत होता है कि माताएँ महत्त्वपूर्ण थीं परन्तु सातवाहन राजाओं में सिंहासन का उत्तराधिकार पितृवंशिक होता था।

→ सामाजिक विषमताएँ-धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। इनमें ब्राह्मणों को पहला दर्जा प्राप्त था तथा शूद्रों एवं अस्पृश्यों को सबसे निम्नस्तर पर रखा जाता था। समाज में चार वर्ग अथवा वर्ण थे।

→ वर्गों के लिए उचित जीविका

  • ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना और करवाना, दान देना और लेना था।
  • क्षत्रियों का काम युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना आदि था। पालन और व्यापार करना था
  • वैश्यों का कार्य कृषि, गौ था।
  • शूद्रों का काम तीनों उच्च वर्णों की सेवा करना

→ राजा किस वर्ण का होना चाहिए? शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे। परन्तु अनेक महत्त्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी, शुंग और कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे सातवाहन वंश के राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण बताया था।

→ जाति और सामाजिक गतिशीलता ब्राह्मणीय सिद्धान्त के अनुसार वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी। परन्तु वर्ण जहाँ केवल चार थे, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी। कुछ जातियों को कभी- कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था। मन्दसौर के एक अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है।

→ चार वर्णों के परे कुछ समुदायों पर ब्राह्मणीय विचारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उदाहरण के लिए निषाद वर्ग इसी का उदाहरण है। एकलव्य भी निषाद वर्ग से जुड़ा हुआ था। यायावर पशुपालकों को भी शंका की दृष्टि से देखा जाता था। ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे। उन्होंने चाण्डालों को अछूत मानकर समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा था। ‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डालों को गाँव के बाहर रहना पड़ता था। वे फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे तथा मृतकों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

→ सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार- मनुस्मृति के अनुसार पैतृक सम्पत्ति का माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी पुत्रों में समान रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए किन्तु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था। स्वियों इस पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे ‘स्त्री धन’ कहा जाता था। इस सम्पति पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था।

→ वर्ण और सम्पत्ति के अधिकार ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार लैंगिक आधार के अतिरिक्त सम्पत्ति पर अधिकार का एक और आधार वर्ण था शूद्रों के लिए एकमात्र ‘जीविका’ अन्य तीन वर्णों की सेवा थी जिसमें हमेशा उनकी इच्छा सम्मिलित नहीं होती थी। परन्तु तीन उच्च वर्णों के पुरुषों के लिए विभिन्न जीविकाओं की सम्भावना रहती थी। राजा, पुरोहित आदि धनी होते थे।

→ वर्ण व्यवस्था का विरोध बौद्धों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया। उन्होंने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को अस्वीकार किया।

→ सम्पत्ति में भागीदारी प्राचीन तमिलकम सरदार अपनी प्रशंसा गाने वाले चारणों और कवियों के आश्रयदाता थे। यद्यपि वहाँ भी धनी और निर्धन के बीच विषमताएँ थीं, परन्तु जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी थी, उनसे यह उपेक्षा की जाती थी कि वे मिल बांटकर सम्पत्ति का उपयोग करेंगे।

→ सामाजिक विषमताओं की व्याख्या बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि राजा का पद लोगों द्वारा चुने जाने पर निर्भर करता था राजा द्वारा लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के बदले में लोग राजा को ‘कर’ देते थे। बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित एक मिथक से ज्ञात होता है कि आर्थिक और सामाजिक सम्बन्धों को बनाने में मानवीय कर्म का बड़ा हाथ था।

→ साहित्यिक स्रोतों का प्रयोग इतिहासकार और महाभारत इतिहासकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय अग्रलिखित बातों पर विचार करते हैं-

  • ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया था
  • क्या ये ग्रन्थ मन्त्र थे, जो अनुष्ठानकर्त्ताओं द्वारा पढ़े और उच्चरित किए जाते थे, अथवा ‘कथा ग्रन्थ’ थे जिन्हें लोग पढ़ और सुन सकते थे।
  • इतिहासकार लेखक के बारे में जानने का प्रयास करते हैं।
  • वे ग्रन्थ के रचनाकाल और उसकी रचना भूमि का भी विश्लेषण करते हैं।

→ भाषा और विषयवस्तु महाभारत का यह पाठ संस्कृत में है, परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है। इतिहासकार महाभारत की विषयवस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –

  • आख्यान तथा
  • उपदेशात्मक आख्यान में कहानियों का संग्रह है और उपदेशात्मक में. सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है।

अधिकांश इतिहासकार इस बात पर एकमत हैं कि महाभारत वस्तुतः एक भाग में नाटकीय कथानक था, जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गए।

→ महाभारत इतिहास की परम्परा में आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को ‘इतिहास’ की श्रेणी में रखा गया है। इतिहास का अर्थ है ‘ऐसा ही था।’ कुछ इतिहासकारों का मत है कि स्वजनों के बीच हुए युद्ध की स्मृति ही महाभारत का मुख्य कथानक है परन्तु कुछ इतिहासकारों का कहना है कि हमें युद्ध की पुष्टि किसी और साक्ष्य से नहीं होती।

→ महाभारत का लेखक और रचनाकाल-साहित्यिक परम्परा के अनुसार महाभारत की रचना ऋषि व्यास ने की थी। उन्होंने इस ग्रन्थ को ‘श्रीगणेश’ से लिखवाया था। सम्भवतः मूल कथा के लेखक भाट सारथी थे जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था। पाँचवीं शताब्दी ई. पूर्व से ब्राह्मणों ने इस कथा परम्परा पर अपना अधिकार कर लिया। 200 ई. पूर्व से. 200 ई. के बीच हम इस ग्रन्थ के रचनाकाल का एक और चरण देखते हैं। कालान्तर में 200-400 ई. के बीच मनुस्मृति से मिलते-जुलते हुए कुछ उपदेशात्मक प्रकरण महाभारत में जोड़े गए। इस प्रकार अपने प्रारम्भिक रूप में महाभारत में 10,000 श्लोक से भी कम थे, परन्तु कालान्तर में इसमें एक लाख श्लोक हो गए।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

→ हस्तिनापुर का उत्खनन 1951-52 में पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल के नेतृत्व में मेरठ जिले के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया गया। कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर हो सकती थी जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।

→ महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पाण्डवों के विवाह की है। यह बहुपति विवाह का उदाहरण है जो महाभारत की कथा का अभिन्न अंग है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः बहुपति प्रथा शासकों के विशिष्ट वर्ग में किसी काल में विद्यमान थी परन्तु समय के साथ बहुपति प्रथा कुछ ब्राह्मणों की दृष्टि में अमान्य हो गई फिर भी यह प्रथा हिमालय क्षेत्र में प्रचलित थी और आज भी है।

→ एक गतिशील ग्रन्थ-शताब्दियों से महाकाव्य के अनेक पाठान्तर भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखे गए। इसमें अनेक कहानियाँ समाहित कर ली गई। इसके साथ ही इस महाकाव्य की मुख्य कथा की अनेक पुनर्व्याख्याएँ की गई। इसके प्रसंगों को मूर्तिकला और चित्रों में भी दर्शाया गया। इस महाकाव्य ने नाटकों और नृत्य कलाओं के लिए भी विषय-वस्तु प्रदान की।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है –
(अ) सड़क
(स) आभूषण
(ब) मृदभाण्ड
(द) मुहर
उत्तर:
(द) मुहर

2. मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं –
(अ) मोहनजोदड़ो
(स) मिताथल
(ब) बनावली
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(ब) बनावली

3. पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के किस स्थल से हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं?
(अ) धौलावीरा
(स) राखीगढ़ी
(ब) रंगपुर
(द) कालीबंगा
उत्तर:
(द) कालीबंगा

4. थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र क्या कहलाता है?
(अ) नखलिस्तान
(स) पोलिस्तान
(ब) पाकिस्तान
(द) अफगानिस्तान
उत्तर:
(स) पोलिस्तान

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

5. भारतीय पुरातत्व का जनक किसे कहा जाता है?
(अ) जॉन मार्शल
(ब) मैके
(स) दयाराम साहनी
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम
उत्तर:
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम

6. हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत विशाल स्नानागार स्थित
(अ) मोहनजोदड़ो
(ब) कालीबंगा
(स) रंगपुर
(द) चन्हूदड़ो
उत्तर:
(अ) मोहनजोदड़ो

7. मनके बनाने के लिए कौनसी बस्ती प्रसिद्ध थी?
(अ) मोहनजोद
(ब) बणावली
(स) धौलावीरा
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(द) चन्लूदड़ो

8. बालाकोट तथा नागेश्वर किस वस्तु के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं ?
(अ) अस्त्र-शस्त्र
(ब) जहाज
(स) शंख की वस्तुएँ
(द) मृदाभाण्ड
उत्तर:
(स) शंख की वस्तुएँ

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1…………….. प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं।
2. बाजरे के दाने …………. के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
3. भोजन तैयार करने की प्रक्रिया को ………….. धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था।
4. सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ………….. पद्धति में बनाया गया था।
5. विद्वानों के अनुमान से मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग ………….. थी।
6. …………… पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे, जो ………….. तथा क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव लाए।
उत्तर:
1. पुरा वनस्पतिज्ञ
2. गुजरात
3. पत्थर
4. ग्रिड
5. 700
6. यूनान।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जान मार्शल ने 1924 में सिन्धुघाटी में उत्खनन के सन्दर्भ में क्या घोषणा की?
उत्तर:
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा।

प्रश्न 2.
उन दो पुरास्थलों का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पाई समाज द्वारा कृषि के लिए जल संचय किया जाता था।
उत्तर:
(1) अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक पुरास्थल
(2) गुजरात में धौलावीरा नामक पुरास्थल।

प्रश्न 3.
उन दो पुरावस्तुओं का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद् यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए हड़प्पा संस्कृति में बैलों का प्रयोग होता था।
उत्तर:
(1) मोहरों पर किए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ
(2) मिट्टी से बने हल

प्रश्न 4.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डाइरेक्टर जनरल रहे किन्हीं दो पुरातत्त्ववेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) जनरल कनिंघम
(2) आर.ई. एम. व्हीलर।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के सबसे लम्बे अभिलेख में कितने चिह्न हैं ?
उत्तर:
लगभग 26 चिह्न।

प्रश्न 6.
पुरातत्व वैज्ञानिकों के द्वारा खोजे गए हड़प्पा सभ्यता के कोई चार नगरों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • हड़प्पा
  • मोहनजोदड़ो
  • लोथल
  • रंगपुर।

प्रश्न 7.
हड़प्पा स्थलों से किन जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं?
उत्तर:
भेड़, बकरी, भैंस, सूअर, हिरण तथा चढ़ियाल।

प्रश्न 8.
हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा और चावल।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के साधनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुएँ, नहरें तथा जलाशय।

प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन किससे बने होते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के से बने होते थे।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवनों के निर्माण में अधिकतर किस आकार की ईंटों का प्रयोग होता था ?
उत्तर:
सामान्यतः हड़प्पा सभ्यता में 4:2:1 आकार की ईंटों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर स्थित दो प्रमुख संरचना का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) मालगोदाम
(2) विशाल स्नानागार।

प्रश्न 13.
पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता में पाई जाने वाली सामाजिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए किन दो विधियों का प्रयोग किया गया?
उत्तर:
(1) शवाधानों का अध्ययन
(2) उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं की खोज।

प्रश्न 14.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई उपयोगी वस्तुओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
चक्कियाँ, मृदभाण्ड सूइयाँ, झाँवा

प्रश्न 15.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई विलासिता की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) फयॉन्स के छोटे पात्र
(2) सोने, चाँदी तथा बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण।

प्रश्न 16.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के दो प्रमुख स्थानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) चन्लूदड़ो
(2) लोथल।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 17.
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शिल्प कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहरें बनाना तथा बाट बनाना।

प्रश्न 18.
हड़प्पावासी ताँबा तथा सोना कहाँ से मँगाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी तौबा खेतड़ी (राजस्थान) और ओमान से तथा सोना दक्षिण भारत से मँगवाते थे।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए जिनसे हड़प्पावासियों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के ओमान तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 20.
पुरुवस्तुओं के आधार पर बताइये कि हड़यावासी किनकी पूजा करते थे?
उत्तर:

  • मातृदेवी
  • आद्य शिव
  • पशु – पक्षियों की
  • वृक्षों की
  • लिंग पूजा।

प्रश्न 21.
शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्र थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 22.
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद जिन वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं, उनमें से किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • कच्चा माल
  • औजार
  • अपूर्ण वस्तुएँ
  • कूड़ा-करकट।

प्रश्न 23.
हड़प्पा की खुदाई का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब किया गया?
उत्तर:
1921 ई. में हड़प्पा की खुदाई का कार्य दयाराम साहनी के नेतृत्व में किया गया।

प्रश्न 24.
ऐसे चार भौतिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिये जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के लोगों के जीवन को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं।
उत्तर:

  • मृदभाण्ड
  • औजार
  • आभूषण
  • घरेलू सामान।

प्रश्न 25.
मोहनजोदड़ो में उत्खनन का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब ?
उत्तर:
1922 में श्री राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में।

प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की कटाई
  • भीषण बाढ़
  • नदियों का सूख जाना।

प्रश्न 27.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-कौन से शिल्पकार्य प्रचलित थे? कोई दो लिखिए।
उत्तर:
(1) मनके बनाना
(2) शंख की कटाई।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु कौनसी है?
उत्तर:
हड़प्पाई मुहर

प्रश्न 29.
हड़प्पाई मुहर किससे बनाई गई थी?
उत्तर:
सेलखड़ी पत्थर

प्रश्न 30.
अंग्रेजी में बी.सी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बिफोर क्राइस्ट (ईसा पूर्व)।

प्रश्न 31.
हड़प्पाई सभ्यता के किन स्थलों से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं?
उत्तर:
चोलिस्तान तथा बनावली (हरियाणा)।

प्रश्न 32.
हड़प्पा के किस स्थल से नहरों के अवशेष हैं ?
उत्तर:
अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुधई से

प्रश्न 33.
अवतल चक्कियाँ हड़प्पाई सभ्यता के किस स्थल से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से

प्रश्न 34.
‘फर्दर एक्सकैवेशन्स एट मोहनजोदड़ो’ नामक नुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके

प्रश्न 35.
मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या कितनी नी?
उत्तर:
लगभग 7001

प्रश्न 36.
विशाल स्नानागार कहाँ स्थित है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो में।

प्रश्न 37.
‘अर्ली इंडस सिविलाइजेशन’ नामक पुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 38.
हड़प्पा सभ्यता में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः किन स्थानों पर मिली हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में।

प्रश्न 39.
मनकों में छेद करने के उपकरण किन स्थानों से मिले हैं ?
उत्तर:

  • चन्द्रदड़ो
  • लोथल
  • धोलावीरा।

प्रश्न 40.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट समुद्र तट के समीप स्थित हैं।

प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिये. किन कच्चे मालों का प्रयोग होता था?
उत्तर:
मिट्टी, पत्थर, लकड़ी तथा धातु।

प्रश्न 42.
हड़प्पाई सभ्यता में अभियान भेजकर राजस्थान तथा दक्षिण भारत से कौनसी वस्तुएँ प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताँबा तथा दक्षिण भारत से सोना।

प्रश्न 43.
हड़प्पाई लिपि में चिह्नों की संख्या कुल कितनी है?
उत्तर:
लगभग 375 से 400 के बीच।

प्रश्न 44.
‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आकिंयालोजी’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
एस. एन. राव

प्रश्न 45.
‘आद्य शिव मुहर’ किस पुरास्थल से प्राप्त हुई है?
उत्तर:
हड़या से।

प्रश्न 46.
हड़प्पाकालीन कृषि प्रौद्योगिकी की कोई दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर:
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
(2) हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 47.
सिन्धुघाटी सभ्यता की खोज कब और किसने की ?
उत्तर:
सन् 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की तथा 1922 में श्री राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 48.
हड़प्पा पूर्व की बस्तियों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:

  • बस्तियाँ प्रायः छोटी होती थीं।
  • इनकी अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली थी।
  • ये कृषि, पशुपालन तथा शिल्पकारी से परिचित थे।

प्रश्न 49.
सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सिन्धुघाटी सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान पर किया गया है, जहाँ वह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी।

प्रश्न 50.
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया गया है।

प्रश्न 51.
मोहनजोदड़ो नगर किन दो भागों में विभाजित था?
उत्तर:
(1) दुर्ग – यह छोटा भाग था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था।
(2) निचला शहर- यह बड़ा भाग था, जो नीचे बनाया गया था।

प्रश्न 52.
अलेक्जेण्डर कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणों के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। उन्हें सामान्यतः ‘भारतीय पुरातत्व का जनक’ कहा जाता है।

प्रश्न 53.
हड़प्पा सभ्यता की नालियों के निर्माण की क्या विशेषताएँ थीं? दो का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
घरों की नालियाँ एक हौदी में खाली होती थीं और गन्दा पानी गली की नालियों में बह जाता था।

प्रश्न 54.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) आवासीय भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे
(2) प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।

प्रश्न 55.
हड़प्पा सभ्यता में मृतकों का अन्तिम संस्कार किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
सामान्यतः मृतकों को गत में दफनाया जाता था तथा मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 56.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
मनकों के निर्माण में कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी तथा ताँबा, काँसा, सोने जैसी धातुओं का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 57.
चंन्हूदड़ो क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
चन्द्रदड़ो मनकों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ बड़ी मात्रा में मनके बनाये जाते थे।

प्रश्न 58.
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि, सेलखड़ी कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर;
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में शोधई से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से मंगवाते थे।

प्रश्न 59.
हड़प्पा निवासी किन वस्तुओं को सुदूर क्षेत्रों से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी ताँबा ओमान से, लाजवर्द अफगानिस्तान से तथा कार्नेलियन, लाजवर्द मणि, सोना आदि मेलुहा से मँगवाते थे।

प्रश्न 60.
हड़प्या लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
हड़प्पा संस्कृति की लिपि पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
अथवा
हड़प्पा की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिड़ हैं। सम्भवतः यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी।

प्रश्न 61.
हड़प्पा की किन वस्तुओं पर लिखावट मिली है?
उत्तर:
मुहरों, ताँबे के औजारों, तांबे तथा मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, आभूषणों अस्थि घड़ों और एक प्राचीन सूचना पट्ट पर लिखावट मिली है।

प्रश्न 62.
हड़प्पा सभ्यता में बाटों के मानदण्डों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
बाटों के निचले मानदण्ड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16, 32 आदि) थे जबकि ऊपरी मानदण्ड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 63.
कनिंघम ने आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए किस स्रोत का उपयोग किया?
उत्तर:
कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

प्रश्न 64.
1980 से पुरातत्वविद किन नई तकनीकों का अवलम्बन ले रहे हैं?
उत्तर:
1960 से पुरातत्वविद आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं जिसमें मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि का अन्वेषण करते हैं।

प्रश्न 65.
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग किस लिए होता था?
उत्तर:
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।

प्रश्न 66.
डीलर कौन थे ?
उत्तर:
हीलर एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वे 1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने थे।

प्रश्न 67.
हड़प्पा सभ्यता के शासकों के अस्तित्व के बारे में पुरातत्वविदों के मत का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था।
(2) यहाँ कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के शासक
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।

प्रश्न 68.
ए.डी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह एनी डामिनी’ नामक दो लेटिन शब्दों से बना है तथा इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है।

प्रश्न 69.
हड़प्पाई लोग किन वस्तुओं से अपना भोजन प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और मछली सहित जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे।

प्रश्न 70.
मोहनजोदड़ो का दुर्ग ऊंचाई पर क्यों बनाया गया था?
उत्तर:
क्योंकि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं।

प्रश्न 71.
1980 के दशक में हड़या के कब्रिस्तान में उत्खनन में कौनसी वस्तुएँ मिली थीं ?
उत्तर;
एक पुरुष की खोपड़ी के समीप शंख के तीन छल्ले, जैस्पर के मनके तथा सैकड़ों सूक्ष्म मनकों से बना एक आभूषण।

प्रश्न 72.
हड़प्पा सभ्यता में पुरातत्वविदों ने सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए कौनसी विधि का प्रयोग किया ?
उत्तर:
पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 73.
नागेश्वर तथा बालाकोट क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी वस्तुओं के निर्माण के लिए विशिष्ट केन्द्र थे ।

प्रश्न 74.
जान मार्शल कौन थे?
उत्तर;
जान मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल थे। 1924 ई. में उन्होंने सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रश्न 75.
‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम को ‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक’ कहा जाता है।

प्रश्न 76.
हड़प्पा निवासी ताँबा कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी ताँबा राजस्थान के खेतड़ी अंचल से मँगवाते थे।

प्रश्न 77.
पुरातात्विक पुरास्थल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं।

प्रश्न 78.
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा किसने की और कब की ?
उत्तर:
1924 ई. में जान मार्शल ने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रश्न 79.
‘मोहनजोदड़ो एण्ड द इंडस सिविलाइजेशन’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
जान मार्शल।

प्रश्न 80.
हड़प्पाई मर्तबान किस स्थल से प्राप्त हुआ
उत्तर:
हड़प्पाई मर्तबान ओमान से मिला है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 81.
भारत का सबसे आरम्भिक धार्मिक ग्रन्थ कौनसा है?
उत्तर:
ऋग्वेद।

प्रश्न 82.
ऋग्वेद कब संकलित किया गया था?
उत्तर:
ऋग्वेद लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित किया गया था।

प्रश्न 83.
आधुनिक युग में पुरातत्वविद कौनसी दो आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
(1) मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि सतह का अन्वेषण
(2) उपलब्ध साक्ष्य के टुकड़ों का विश्लेषणः।

प्रश्न 84.
‘उत्तर हड़प्पा’ संस्कृति से क्या अभिप्राय
उत्तर:
जिस संस्कृति में पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ एक ग्रामीण जीवन शैली को प्रकट करती हैं, उसे ‘उत्तर हड़प्पा’ कहा जाता है।

प्रश्न 85.
आपको कौनसी परिकल्पना सबसे बुक्तिसंगत दिखाई देती है?
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी
(2) हड़प्पा में कई शासक थे।
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।
उत्तर:
हड़प्पा एक ही राज्य था” यह परिकल्पना सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होती है।

प्रश्न 86.
चोलिस्तान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र चोलिस्तान कहलाता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
नगर योजना बनाते समय आप मोहनजोदड़ो नगर योजना की कौनसी बार विशेषताओं का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
(1) नगर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था ईंटें एक निश्चित आकार की होती थीं।
(2) मोहनजोदड़ों की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
(3) निचले शहरों में आवासीय भवन थे। कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
(4) हर घर का ईंटों के फर्श से बना एक स्नानपर होता था।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में ‘संस्कृति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है। पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं। ऐसे समूहों का सम्बन्ध प्रायः एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल खंड से होता है। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों में मिली हैं।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण, काल तथा अवस्थाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण- हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या कहा जाता है ।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 4.
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। आजकल ‘ए.डी.’ तथा ‘बी.सी. के स्थान पर किन शब्दों का प्रयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर:
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ-अंग्रेजी में बी.सी. (हिन्दी में ईसा पूर्व) का तात्पर्य ‘बिफोर क्राइस्ट’ (ईसा पूर्व) से है। ए.डी. (A.D.) ‘एनो डॉमिनी’ नामक दो लैटिन शब्दों से बना है। इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है। आजकल ‘ए.डी.’ के स्थान पर सी.ई. तथा बी.सी. के स्थान पर बी.सी.ई. का प्रयोग होता है। ‘सी.ई. का प्रयोग ‘कामन एरा’ तथा ‘बी.सी.ई. का प्रयोग ‘बिफोर कामन एरा’ के लिए होता है।

प्रश्न 5.
सिन्ध और चोलिस्तान में बस्तियों के सम्बन्ध में आँकड़े प्रस्तुत कीजिए। इनमें आरम्भिक हड़प्पा स्थल तथा विकसित हड़प्पा स्थल कितने हैं ?
उत्तर:
आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में बस्तियों की संख्या के सम्बन्ध में निम्नलिखित आँकड़े प्रस्तुत हैं –

सिन्ध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ 43 132
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल 29 33

प्रश्न 6.
“इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं ये संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध थीं। इनके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं प्रायः बस्तियाँ छोटी होती थीं तथा इनमें बड़े आकार की संरचनाओं का अभाव था। कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर जलाए जाने के प्रमाणों से तथा कुछ अन्य स्थलों के त्याग दिए जाने से यह जान पड़ता है कि आरम्भिक हड़प्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम भंग था।

प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीके –

  • हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और जानवरों से प्राप्त मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।
  • वे गेहूँ जी, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे।
  • वे भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे।
  • जंगली जानवरों जैसे बराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हट्टियाँ मिलने से ज्ञात होता है कि हड़प्पा- निवासी इन जानवरों का मांस भी खाते थे।

प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का
वर्णन कीजिये।
उत्तर:

  • खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
  • हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
  • हड़प्पा निवासी कुओं तथा जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे। सिंचाई के लिए नहरों का भी उपयोग किया जाता था अफगानिस्तान में शोधई नामक स्थान पर नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं।

प्रश्न 9.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। ” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित है, एक भाग छोटा है जो ऊँचाई पर बनाया गया है तथा दूसरा भाग अपेक्षाकृत अधिक बड़ा है जो नीचे बनाया गया है। छोटा भाग दुर्ग तथा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था तथा निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। पहले शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया था। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं।

प्रश्न 10.
हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी । व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा की जल निकास प्रणाली शहरों में नालियाँ बनी हुई थीं। पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस पास आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा हुआ होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।

प्रश्न 11.
प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद अलेक्जैंडर कनिंघम ने हड़प्पा नगर की दुर्दशा का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल अलेक्जेण्डर कनिंघम ने 1875 ई. में हड़प्पा नगर की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि “हड़प्पा नंगर को ईंटें चुराने वाले लोगों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। उनके अनुसार हड़प्पा से ले जाई गई ईटों की मात्रा लगभग 100 मील लम्बी लाहौर तथा मुल्तान के बीच की रेल पटरी के लिए ईंटें बिछाने के लिए पर्याप्त थीं।”

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार- विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो दुर्ग के आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी थीं। इसके तीनों ओर कक्षा बने हुए थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशया से पानी एक बड़े नाले में यह जाता था। इसके उत्तर में एक छोटा कक्ष था, जिसमें आठ स्नानघर बने थे।

प्रश्न 13.
मोहनजोदड़ो सभ्यता में गृहस्थापत्य की चार विशेषताएँ बताइये।
अथवा
मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताएँ

  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे। कई आवासों के मध्य में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
  • भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को नहीं देखा जा सकता था।
  • प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।
  • कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। कई आवासों में कुएँ बने हुए थे। इससे मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की आज भी प्रासंगिकता बनी हुई है।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
  • सड़कें पर्याप्त चौड़ी थीं तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • मकानों के गन्दे पानी को निकालने के लिए नालियाँ बनी हुई थीं।
  • कई आवासों में कुएँ बने हुए थे।
  • हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः ईंटों के बने होते थे मकानों में रसोईघर, स्नानघर, शौचालय आदि की व्यवस्था थी। छतों अथवा दूसरी मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के शवाधानों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गत में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। हड़प्पा के एक कब्रिस्तान से एक पुरुष की खोपड़ी के पास शंख के तीन छल्ले, जैस्पर (एक. प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सैकड़ों की संख्या में बारीक मनकों से बना एक आभूषण मिला था। कहीं-कहीं पर शवों के साथ ताँबे के दर्पण रख दिए जाते थे।

प्रश्न 16.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों को प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:

  • मनकों के निर्माण में विभिन्न प्रकार के पत्थर जैसे कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का ), जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न), स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थरों को प्रयुक्त किया जाता था। –
  • इनके निर्माण में ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं को भी प्रयुक्त किया जाता था।
  • इनके निर्माण में शंख, फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि का भी प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 17.
मनके बनाने की तकनीकों में क्या भिन्नताएँ थीं ?
उत्तर:
मनके बनाने की तकनीकों में भिन्नताएँ –
(1) मनके बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं। सेलखड़ी, जो एक बहुत मुलायम पत्थर है, पर सरलता से कार्य हो जाता था।
(2) कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किए जाते थे। इससे विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके कैसे बनाए जाते थे, यह प्रश्न प्राचीन तकनीकों का अध्ययन करने वाले पुरातत्वविदों के लिए एक पहेली बना हुआ है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 18.
मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनके बनाने की प्रक्रिया-
(1) कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
(2) पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
(3) घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी। चन्हूदड़ो, लोथल तथा धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 19.
हड़प्पा शहरों में तैयार शंख और मनके कहाँ भेजे जाते थे ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट नामक बस्तियाँ समुद्र- तट के समीप स्थित थीं। ये शंख से बनी वस्तुओं जैसे चूड़ियाँ, करछियाँ तथा पच्चीकारी की वस्तुओं के निर्माण के विशिष्ट केन्द्र थे यहाँ से ये वस्तुएँ दूसरी बस्तियों में भेजी जाती थीं। यह भी सम्भव है कि चन्हूदड़ो और लोथल से तैयार माल जैसे मनके, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरी केन्द्रों में भेजे जाते थे।

प्रश्न 20.
शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान पुरातत्वविदों द्वारा किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर:
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान –
(1) शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद प्राय: निम्नलिखित वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरे शंख, तौबा- अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट।
(2) कूड़ा-करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतकों में से एक है।
(3) कभी-कभी बड़े बेकार टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तुएँ बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता था अतः ये बड़े बेकार टुकड़े यह प्रकट करते हैं कि ये स्थल शिल्प- उत्पादन के केन्द्र रहे होंगे।

प्रश्न 21.
शिल्प उत्पादन के लिए हड़प्पा निवासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कौनसी नीतियाँ अपनाते थे ?
उत्तर:
कच्चा माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ –
(1) हड़प्पा निवासी शिल्प उत्पादन के लिए कच्चा माल प्राप्त करने हेतु कई तरीके अपनाते थे नागेश्वर तथा बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। वे लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुमई से कार्नीलियन गुजरात में स्थित भड़ौच से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से और धातु राजस्थान से मँगवाते थे।
(2) अभियान भेजना हड़प्पा वासी ताँबा प्राप्त करने हेतु राजस्थान के खेतड़ी आँचल में तथा सोना प्राप्त करने के लिए दक्षिण भारत में अभियान भेजते थे

प्रश्न 22.
गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्त्वविदों ने ‘गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति’ के नाम से पुकारा है। इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभाण्ड हड़प्पाई मृदभाण्डों से भिन्न थे तथा यहाँ ताँबे की वस्तुओं की विपुल संपदा मिली थी। विद्वानों का अनुमान है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे। राजस्थान के खेतड़ी अंचल से ताँबा प्राप्त करने हेतु हड़प्पा से अभियान भेजे जाते थे।

प्रश्न 23.
हड़प्पा निवासियों का किन देशों से व्यापारिक सम्पर्क था?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पश्चिम छोर पर स्थित ओमान से ताँबा मँगवाते थे मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (हड़प्पाई क्षेत्र) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। यह लेख मेलुहा से प्राप्त उत्पादों जैसे कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना, लकड़ी आदि का उल्लेख करते हैं। ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क समुद्री मार्ग से था।

प्रश्न 24.
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों तथा मुद्रांकनों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्मकों को सुविधाजनक बनाने हेतु किया जाता था। उदाहरणार्थ, जब सामान से भरा हुआ एक बैला एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता था तो उसका मुँह रस्सी से बाँध दिया जाता था तथा गाँठ पर थोड़ी गीली मिट्टी जमाकर एक या अधिक मुहरों से दबा दिया जाता था। इससे मिट्टी पर मुहरों की छाप पड़ जाती थी। मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान का भी पता चलता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 25.
हड़प्पा लिपि के बारे में आप क्या जानते
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की लिपि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
“हड़प्पा लिपि एक रहस्यमयी लिपि थी।””
समझाइये
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की लिपि –

  1. हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है, जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाते हैं। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं।
  2. हड़प्पा सभ्यता की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, इसलिए इसे रहस्यमयी लिपि कहा जाता है।
  3. यह लिपि निश्चित रूप से वर्णमालीय नहीं क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इस लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं।
  4. यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थे।

प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली के बा में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली –

  • विनिमय वाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाल द्वारा नियन्त्रित थे।
  • ये बाट प्रायः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जा
  • सामान्यतः ये किसी भी प्रकार के निशान से रहित और घनाकार होते थे।
  • इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी (12. 4, 8, 16, 32 इत्यादि 12,900 तक) थे, जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली के
    अनुसार थे।
  • छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 27.
” हड़प्पा सभ्यता में सत्ता अस्तित्व में थी।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उदाहरण के लिए, मृदभाण्डों, मुहरों, बायें, ईटों आदि से स्पष्ट होता है कि इन पुरावस्तुओं में अत्यधिक एकरूपता दिखाई देती है। ईंटों का उत्पादन स्पष्ट रूप से किसी एक केन्द्र पर नहीं होता था, फिर भी जम्मू से गुजरात तक सम्पूर्ण क्षेत्र में ईंटें समान अनुपात की थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें बनाने, विशाल दीवारों तथा चबूतरों आदि के निर्माण के लिए किसी सत्ता द्वारा ही श्रम संगठित किया गया था।

प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व –
(1) पुरातत्वविदों ने मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को एक प्रासाद की संज्ञा दी है।
(2) इसी प्रकार उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी गई थी।
(3) कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि यहाँ कई शासक थे। कुछ का यह मत है कि यह एक ही राज्य था। यह मत सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होता है।

प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता का अन्त किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अन्त –
(1) कुछ साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ईसा पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थल उजड़ चुके थे।
(2) कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आया था, जो निम्नानुसार था-

  • सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुएँ बाट, मुहरें या विशिष्ट मनके समाप्त हो गए।
  • लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प- विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई।
  • अब बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण बन्द हो गया।

प्रश्न 30.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या कारण
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. सिन्धु नदी के मार्ग बदलने और जलवायु परिवर्तन से सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई।
  2. वनों की कटाई के कारण भूमि में नमी की कमी हो गई।
  3. सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।
  4. नदियों के सूख जाने के कारण इस क्षेत्र में रेगिस्तान का प्रसार हुआ।
  5. सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई राज्य का अन्त हो गया।

प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी संक्षेप में लिखिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की खोज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की खोज –
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में प्रसिद्ध पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकाल ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा से प्राप्त हुई मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। 1924 ई. में जॉन मार्शल ने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 32.
‘पुरास्थल’ और ‘टीले’ से आप क्या समझते
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं जब लोग एक ही स्थान पर नियमित रूप से रहते हैं तो भूमिखंड के लगातार उपयोग और पुनः उपयोग से आवासीय मलबों का निर्माण हो जाता है, जिन्हें ‘टीला’ कहते हैं। अल्पकालीन या स्थायी परित्याग की स्थिति में हवा या प पानी की क्रियाशीलता और कटाव के कारण भूमि खंड के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 33.
‘स्तर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
टीलों में मिले स्तरों से प्राप्त प्राचीन वस्तुओं से आवास का पता चलता है ये स्तर एक-दूसरे से रंग, प्रकृति और इनमें मिली पुरावस्तुओं के संदर्भ में भिन्न होते हैं। परित्यक्त स्तर ‘बंजर स्तर’ कहलाते हैं। इनकी पहचान इन सभी लक्षणों के अभाव से की जाती है। सामान्यतः सबसे निचले स्तर प्राचीनतम और सबसे ऊपरी स्तर नवीनतम होते हैं। स्तरों में मिली पुरावस्तुओं को विशेष सांस्कृतिक काल-खंडों से सम्बद्ध किया जा सकता है।

प्रश्न 34.
अतीत के पुनर्निर्माण में आने वाली समस्याओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। परन्तु भौतिक साक्ष्यों से पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायता मिलती है। भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि उल्लेखनीय हैं। केवल टूटी हुई अथवा अनुपयोगी वस्तुएँ ही फेंकी जाती थीं। परिणामस्वरूप जो बहुमूल्य वस्तुएँ अक्षत अवस्था में मिलती हैं, या तो वे अतीत में खो गई थीं या फिर संचयन के बाद कभी पुनः प्राप्त नहीं की गई थीं।

प्रश्न 35.
पुरातत्वविदों द्वारा अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
खोजों का वर्गीकरण-
(1) पुरावस्तुओं की पुन: प्राप्ति के बाद पुरातत्वविद अपनी खोजों को वर्गीकृत करते हैं वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु अस्थि, हाथीदांत आदि के बारे में होता है।
(2) वर्गीकरणों का दूसरा सिद्धान्त पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है।
(3) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्राय: आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं से उनकी समानता पर आधारित होती है। मनके, चक्कियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता काल में उद्योग-धन्धों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. हड़प्पा में सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्व तैयार किये जाते थे।
  2. मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग भी विकसित
  3. हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि के आभूषण बनाते थे।
  4. यहाँ ताँबे के अनेक औजार और हथियार बनाए जाते थे।
  5. हड़प्पा में मनके बनाने, शंख की कटाई करने, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे।

प्रश्न 37.
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद वस्तुओं को किन भागों में वर्गीकृत करते हैं?
उत्तर:
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद प्रायः पुरावस्तुओं को दो भागों में वर्गीकृत करते हैं –
(1) उपयोगी वस्तुएँ तथा
(2) विलास की वस्तुएँ। पहले वर्ग में दैनिक उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं; जैसे- चक्कियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, झाँवा ये वस्तुएँ सभी नगरों में सर्वत्र पाई जाती हैं। दूसरे वर्ग में कीमती वस्तुएँ सम्मिलित हैं जैसे-फयॉन्स के छोटे पात्र ये केवल बड़े नगरों में – मिलती हैं।

प्रश्न 38.
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ किन स्थानों से प्राप्त होती थीं?
उत्तर:
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिलती हैं। उदाहरणार्थ, फयॉन्स से बने छोटे पात्र, जो सम्भवतः सुगन्धित द्रव्यों के पात्रों के रूप में प्रयुक्त होते थे, अधिकांशतः मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिले हैं, ये कालीबंगा जैसी छोटी बस्तियों से बिल्कुल नहीं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 39.
हड़प्पा सभ्यता की खोज में जान मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
1924 में भारत के प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद जान मार्शल ने सम्पूर्ण विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। इस प्रकार विश्व को एक नवीन सभ्यता ‘हड़प्पा की सभ्यता’ की जानकारी : मिली जान मार्शल भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे। यद्यपि कनिंघम की भाँति ही उन्हें भी आकर्षक खोजों में रुचि थी, परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धत्तियों को जानने की उत्सुकता भी थी परन्तु वह पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर देते थे।

प्रश्न 40.
हड़प्पावासियों के पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल में व्यापार के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता-काल में व्यापार का विकास –

  • हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था। व्यापार जल तथा थल दोनों मार्गों से होता था।
  • नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख, अफगानिस्तान (शोतुंभई) से लाजवर्द मणि, ताँबा खेतड़ी (राजस्थान) से मंगाया जाता था।
  • हड़प्पा के लोगों का ईरान, मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था ओमान से तांबा मंगाया जाता था।
  • ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क सामुद्रिक मार्ग से था।

प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्द्रदड़ो बणावली, राखीगढ़ी, रोपड़, रंगपुर, लोथल, धौलावीरा, कालीबंगा आदि अनेक पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात तथा गंगा घाटी तक फैली हुई थी। हड़प्पा की सभ्यता का वर्तमान में ज्ञात भौगोलिक विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 42.
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्रचलित धार्मिक अनुष्ठानों के संकेत पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन –

  • हड़प्पावासी मातृदेवी की पूजा करते थे।
  • हड़प्पावासी शिव की उपासना करते थे।
  • हड़प्पावासी पशुओं तथा वृक्षों की पूजा करते थे।
  • हड़प्पा के लोग लिंग और योनि की उपासना करते थे।

प्रश्न 43.
लिपि के अभाव में किन साक्ष्यों से हड़प्पाई सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर:
यद्यपि विद्वानों को हड़प्पाई लिपि के पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है, फिर भी हड़प्पाई लोगों द्वारा पीछे छोड़ी गई पुरवस्तुओं जैसे उनके आवासों, मृदभाण्डों, आभूषणों, औजारों, मुहरों, मूर्तियों आदि से पर्याप्त जानकारी मिलती है। ये पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पाई सभ्यता एवं संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इन पुरातात्विक साक्ष्यों से हड़प्पा के लोगों के भोजन, नगर योजना, भवन-निर्माण, धार्मिक जीवन, कृषि, व्यापार आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 44.
” 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है। हड़या और मोहनजोद दोनों स्थलों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं। वे आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर धातु की वस्तुएँ तथा वनस्पति और जानवरों के अवशेष प्राप्त करने के लिए सतह की खोज और उपलब्ध साक्ष्य के प्रत्येक सूक्ष्म टुकड़े का विश्लेषण सम्मिलित है। इन खोजों से भविष्य में रोचक परिणाम निकल सकते हैं।

प्रश्न 45.
“हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्त्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर यद्यपि यह नीति पत्थर की चक्कियों तथा पात्रों के सम्बन्ध में सही हो सकती है, परन्तु धार्मिक प्रतीक के बारे में यह अधिक संदिग्ध रहती है।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
(1) नगर योजना मोहनजोदड़ो के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। इन नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी शहरों से बाहर निकाल दिया जाता था। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे मकानों में आंगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों व खिड़कियों की व्यवस्था रहती थी। इस सभ्यता में कुछ विशिष्ट भवन भी मिले हैं जिनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, माल गोदाम आदि उल्लेखनीय हैं।

(2) सामाजिक जीवन समाज में कई वर्ग थे। हड़मा समाज मातृ सत्तात्मक था। स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। ये लोग अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –

  • शव को जलाकर
  • शव को जमीन में गाड़कर
  • शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाना।

(3) आर्थिक अवस्था-मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, दाल, बाजरा, कपास, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। यहाँ अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। (4) धार्मिक अवस्था हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी तथा शिव की उपासना करते थे। ये लोग लिंग और योनि की, पशुओं और वृक्षों की, नांग की भी पूजा करते थे।

(5) राजनीतिक अवस्था हडप्पाई सभ्यता में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार यहाँ पुरोहित, राज शासन करते थे। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।

(6) लिपि हड़प्पाकालीन लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं। यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी।

(7) कला वहाँ के लोग मुहर निर्माण करना, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में निपुण थे। यहाँ के लोग मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ बनाने में मुहर, मनके आदि बनाने में तथा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के आभूषण में दक्ष थे।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण तथा विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण –
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। 1920 ई. में दयाराम साहनी तथा माधोस्वरूप वत्स के नेतृत्व में हड़प्पा की खोज की गई थी। इसके बाद 1922 ई. में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खोज की गई। सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है।

पुरातत्त्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं एक ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से सम्बद्ध पाए जाते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे स्थानों से मिली हैं, जो एक-दूसरे से लम्बी दूरी पर स्थित हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता का काल पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया है। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में गिनी जाती है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या की संस्कृतियाँ कहते हैं।

इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियों की अस्तियों के आँकड़े निम्नलिखित हैं-

सिन्ध चोलिस्तान
बस्तियों की कुल संख्या 106 239
आरम्भिक हड़प्पा स्थल 52 37
विकसित हड़प्पा स्थल 65 136
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ 43 132
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल 29 33

प्रश्न 3.
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीकों का विवेचन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के रहन-सहन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीके (रहन-सहन ) विकसित हड़प्पा संस्कृति का कुछ ऐसे स्थानों पर विकास हुआ, जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। इन संस्कृतियों में अनेक तत्त्व समान थे। इनके निर्वाह के तरीकों में भी समानता थी।
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से प्राप्त भोजन हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़- पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे।

(2) गेहूँ, जौ, दाल, चना, तिल, बाजरे, चावल का प्रयोग जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई लोगों के भोजन के बारे में काफी जानकारी मिली है। इनका अध्यचन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं हड़प्पाई लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे। हड़प्पा के अनेक स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे तथा चावल के दाने प्राप्त हुए थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने भी मिले थे, परन्तु वे अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं।

(3) जानवरों के मांस का सेवन करना हड़या ‘के स्थलों के उत्खनन में अनेक जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इनमें भेड़, बकरी, भैंस या सूअर की हड्डियाँ सम्मिलित हैं। जीव पुरातत्वविदों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। अनुमान है कि हड़प्पाई लोग इन जानवरों के मांस का सेवन करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा के लोग इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे मुहरों पर उत्कीर्ण मछली के चित्रों से ज्ञात होता है कि हड़प्पाई लोग मछली का भी सेवन करते थे।

(4) मछली तथा पक्षियों के मांस का सेवन करना- उत्खनन में मछली तथा कुछ पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी मछली तथा पक्षियों के मांस का भी सेवन करते थे।

(5) जानवरों के शिकार के बारे में अनिश्चित जानकारी अभी तक विद्वान लोग यह नहीं जान पाए हैं कि हड़प्पा निवासी स्वयं इन जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी की विवेचना कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल की कृषि की स्थिति का विवेचन
कीजिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी (कृषि की स्थिति)
हड़प्पा स्थलों से अनाज के दाने मिले हैं, जिनसे यहाँ कृषि के संकेत मिलते हैं परन्तु वास्तविक कृषि-विधियों के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग- मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मिट्टी की मूर्तियाँ यह संकेत देती हैं कि हड़प्पा निवासियों को वृषभ (बैल) के विषय में जानकारी थी।

इस साक्ष्य के आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान (पाकिस्तान) के कई स्थलों तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हलों के प्रतिरूप मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि लोग कृषि में हलों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त कालीबंगा (राजस्थान) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। यह आरम्भिक हड़प्पा स्तरों से सम्बद्ध है। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते थे। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि एक खेत में एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थीं।

(2) कृषि उपकरण – पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है। इसके लिए हड़प्पा के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे।

(3) सिंचाई अधिकांश हड़प्पा-स्थल अर्थ – शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ सम्भवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिन्ध में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले। ऐसा सम्भव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं।

हड़प्पा स्थलों से कुओं के अवशेष भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता होगा। इसके अतिरिक्त धौलावीरा में जलाशय के अवशेष मिले हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि जलाशयों का प्रयोग सम्भवत: कृषि के लिए जल संचयन के लिए किया जाता था। इस प्रकार जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग भी सिंचाई के लिए किया जाता था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 5.
मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का अर्नेस्ट मैके द्वारा दिए गए वृत्तान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके द्वारा अवतल चक्की का दिया गया वृत्तान्त प्राचीन काल में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया के अन्तर्गत अनाज पीसने के यन्त्र तथा उन्हें आपस में मिलाने, मिश्रण करने तथा भोजन पकाने के लिए बर्तनों की आवश्यकता थी। इन सभी वस्तुओं का निर्माण पत्थर, धातु तथा मिट्टी से किया जाता था। अर्नेस्ट मैके नामक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् ने मोहनजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का वृत्तान्त दिया है।

अवतल चक्कियाँ अर्नेस्ट मैके के अनुसार मोहनजोदड़ो के उत्खनन में अनेक अवतल चक्कियाँ प्राप्त हुई हैं। अनुमान किया जाता है कि इन चक्कियों का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था। सम्भवतः अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं प्राय: इन चक्कियों का निर्माण मोटे रूप से कठोर कंकरीले अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से किया गया था।

सामान्यतः इन चक्कियों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता था। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, अतः इन्हें जमीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा, जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ उत्खनन में दो मुख्य प्रकार की अवतल चक्कियाँ मिली हैं –

  • एक प्रकार की चक्कियाँ वे थीं, जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था, जिससे निचला पत्थर खोखला हो गया था।
  • दूसरे प्रकार की चक्कियों से हैं, जिनका प्रयोग सम्भवतः केवल सालान अथवा तरी बनाने के लिए तथा जड़ी-बूटियों और मसालों को कूटने के लिए किया जाता था। इन चक्कियों के पत्थरों को ‘सालन पत्थर’ कहा जाता था अर्नेस्ट मैके के अनुसार इन पत्थरों को सालन पत्थर का नाम उनके श्रमिकों द्वारा दिया गया था। उनके एक रसोइये ने एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा था।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकास प्रणाली का वर्णन कीजिये।
अथवा
“हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा शहरों की नियोजित जल निकास प्रणाली हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) नालियों के साथ गलियों का निर्माण ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था।

(2) मुख्य नालों का निर्माण-मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईटों से ढका गया था, जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके कुछ स्थानों पर नालों को ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियाँ गली की नालियों में मिल जाती थीं।

(3) घरों की नालियों का एक हीदी या मलकुंड में खाली होना घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में वह जाता था। जो नाले बहुत लम्बे थे, उनमें कुछ अन्तरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं।

(4) नालियों के किनारे गड्ढों का बना होना- नालियों के किनारे भी कहीं-कहीं गड्ढे बने मिलते हैं।

(5) नालियों की सफाई समय समय पर नालियों की सफाई की जाती थी। कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि नालों की सफाई के बाद कचरे को सदैव हटाया नहीं जाता था।

(6) छोटी बस्तियों में भी जल निकास प्रणालियों का प्रचलित होना जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी प्रचलित थीं। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है कि “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा सम्पूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि हड़प्यावासियों के सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क थे। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पा सभ्यता के सुदूर क्षेत्रों से सम्बन्ध थे
(1) ओमान से सम्बन्ध – हाल ही में हुई पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि अरब प्रायद्वीप के दक्षिण – पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात होता है –

ताँबा लाया जाता था। कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो दोनों के साझा उद्भव की ओर संकेत करते हैं। इसके अतिरिक्त ओमानी स्थलों से एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान, जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी भी मिला है। ऐसी मोटी परतें तरल पदार्थों के रिसाव को रोक देती हैं। अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी इनमें रखे सामान का ओमानी ताँबे से विनिमय करते थे।

(2) मेसोपोटामिया के लेखों से जानकारी प्राप्त होना मेसोपोटामिया के विभिन्न नगरों से हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व के मेसोपोटामिया के लेखों में मगान (सम्भवतः ओमान के लिए प्रयुक्त नाम) नामक क्षेत्र से ताँबे के आने का उल्लेख मिलता है। यह बात उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया के स्थलों से मिले ताँबे में भी निकल के अंश मिले हैं।

(3) लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजें-लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजों में हड़प्पाई मुहरें, बाट, पासे तथा मनके सम्मिलित हैं।

(4) मेसोपोटामिया के लेख से दिलमुन, मगान तथा मेलुहा से सम्पर्क की जानकारी मेसोपोटामिया के लेखों से दिलमुन (सम्भवतः बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (सम्भवतः हड़प्पाई क्षेत्र के लिए प्रयुक्त शब्द ) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। ये लेख मेलुहा से प्राप्त अनेक उत्पादों का उल्लेख करते हैं, जैसे- कार्नी लियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना तथा विविध प्रकार की लकड़ियाँ।

(5) बहरीन में मिली मुहर पर हड़प्पाई चित्रों का मिलना बहरीन में मिली गोलाकार फारस की खाड़ी प्रकार की मुहर पर कभी-कभी हड़प्पाई चित्र मिलते हैं।

प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त मुहरों, लिपि एवं तौल के साधनों की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की मुहरें हड़प्पा सभ्यता की मुहरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) पत्थर, मिट्टी, ताँबे से निर्मित मुहरे हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी नामक पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें काँचली मिट्टी (फयॉन्स), गोमेद, चर्ट और मिट्टी से निर्मित हैं। ताँबे की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं मुहरों पर सामान्यतः पशुओं के चित्र तथा हड़प्पा लिपि के चिह्न उत्कीर्ण हैं।

(2) कला के उत्कृष्ट नमूने – हड़प्पाई मुहरें तत्कालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं अपने आकर्षक विशुद्ध आकार और हल्की चमकदार सतह के कारण वे सुन्दर कलाकृतियों में गिनी जाती हैं।

(3) आकार-प्रकार हड़प्पाई मुहरें वर्गाकार, आयताकार, बटन जैसी घनाकार और गोल हैं। परन्तु मुख्यतः वर्गाकार अथवा चौकोर मुहरें ही लोकप्रिय थीं।

(4) मुहरों पर पशुओं के चित्र एवं संक्षिप्त लेखों का उत्कीर्ण होना सामान्यतः मुहरों पर पशुओं के चित्र तथा संक्षिप्त लेख उत्कीर्ण हैं। इन पर बैल, हाथी, गेंडे, व्याघ्र आदि पशुओं का अंकन उल्लेखनीय है।

(5) रचना-शैली-मुहरों की रचना शैली उत्कृष्ट है। हड़प्पावासी मुहरों पर पशुओं के चित्र उत्कीर्ण करने में निपुण थे। मुहरों पर पीपल आदि वृक्षों के चित्रण भी मिलते हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(6) विशिष्ट मुहरें हड़प्पाई मुहरों में दो मुहरें विशेष उल्लेखनीय हैं। एक मुहर पर एक देवता की मूर्ति अंकित है इस देवता के तीन मुख और दो सींग हैं। यह देव- पुरुष एक हाथी, चीता, गैंडा तथा भैंस से घिरे हुए हैं। जॉन मार्शल के अनुसार यह मूर्ति शिव की है, दूसरी प्रसिद्ध मुहर पर एक कूबड़दार बैल का अंकन है।

(7) मुहरों का प्रयोग- इन मुहरों एवं मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान की भी जानकारी हो जाती थी । लिपि एवं तौल के साधन इसके लिए लघुत्तरात्मक प्रश्न संख्या 25 एवं 26 का उत्तर देखें।

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के बारे में विभिन्न मतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक का अस्तित्व
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के अस्तित्व के बारे में अनेक मत प्रकट किए गए हैं। इन मतों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत दिया जा सकता
(1) हड़प्पा सभ्यता में सत्ता का अस्तित्व – हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उत्खनन में जो मृदभाण्ड, मुहरें, ईंटें तथा बाढ़ मिले हैं, उनमें असाधारण एकरूपता दिखाई देती है। हड़प्पा सभ्यता काल में भिन्न-भिन्न कारणों से बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें, विशाल दीवार तथा चबूतरे बनाने के लिए बड़े पैमाने पर मजदूरों को संगठित किया गया था ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।

(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं –

  • प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
  • पुरोहित-राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित-राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
  • शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • अनेक शासकों का अस्तित्व-कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
  • हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था। निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।

प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब से यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन शुरू किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था।

भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम- एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।

प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया। उन्होंने हड़या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं।

इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने मजदूरों को संगठित किया गया था। ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता- काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।

(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं-

  • प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
  • पुरोहित राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद | मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
  • शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
  • अनेक शासकों का अस्तित्व- कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
  • हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद वह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।

निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।

प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब वे यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब शुरू उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी।

चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग- आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।

हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था।

अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।

प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी:
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़या में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।

उन्होंने हड़प्या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

प्रसिद्ध पुरातत्वविद एस.एन. राव ‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आर्कियोलोजी’ में लिखते हैं कि “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा। ” मेसोपोटामिया के पुरास्थलों में हुए उत्खननों से हड़प्पा पुरास्थलों से प्राप्त मुहरों जैसी मुहरें मिली थीं। इस प्रकार विश्व को न केवल एक नई सभ्यता की जानकारी मिली, बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया की समकालीन थी।

हड़या सभ्यता की खोज में जॉन मार्शल का योगदान – भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था। वह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे। वह भारत में यूनान तथा क्रीट से अपने कार्यों का अनुभव भी लाए थे। कनिंघम की भांति ही उनकी भी आकर्षक खोजों में रुचि थी परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी।

जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में त्रुटि – जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में एक त्रुटि थी कि वह पुरास्थल के स्तर-विन्यास को पूर्णरूप से अनदेखा कर पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास करते थे। इस प्रकार पृथक्- पृथक् स्तरों से सम्बन्धित होने पर भी एक इकाई विशेष रूप से प्राप्त सभी पुरावस्तुओं को सामूहिक रूप से वर्गीकृत कर दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन खोजों के संदर्भ के विषय में बहुमूल्य जानकारी सदा के लिए लुप्त हो जाती थी।

प्रश्न 12.
“बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नई तकनीकें तथा प्रश्न:
बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) व्हीलर द्वारा जॉन मार्शल की त्रुटि को दूर करना 1944 में आर.ई. एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने। उन्होंने जॉन मार्शल द्वारा उत्खनन कार्य में की गई त्रुटि का निवारण किया। व्हीलर ने यह महसूस किया कि एकसमान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक था। इसके अतिरिक्त सेना के पूर्व ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व की पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता को भी शामिल किया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करना हड़प्पा सभ्यता की भौगोलिक सीमाओं का आज की राष्ट्रीय सीमाओं से बहुत थोड़ा या कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु उपमहाद्वीप के विभाजन तथा पाकिस्तान के निर्माण के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थान अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए व्यापक सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसी प्रकार पंजाब तथा हरियाणा में किए गए उत्खनन कार्यों के फलस्वरूप वहाँ भी अनेक पुरास्थलों के बारे में जानकारी ई। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, बणावली, धौलावीरा आदि हड़प्पा स्थल प्रकाश में आए हैं। नई खोजें अब भी जारी हैं।

(3) नये प्रश्नों का महत्त्वपूर्ण होना- इन दशकों में नए प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। कुछ पुरातत्वविद प्रायः सांस्कृतिक उपक्रम को जानने के इच्छुक रहते हैं जबकि अन्य पुरातत्वविद विशेष पुरास्थलों की भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को जानने का प्रयास करते हैं।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुचि बढ़ना 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्वों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि निरन्तर बढ़ती जा रही है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनों स्थानों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से अन्वेषण सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं।

प्रश्न 13.
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की क्या समस्याएँ हैं? पुरातत्वविद अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की समस्याएँ हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता की जानकारी प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में पुरातत्वविद भौतिक साक्ष्यों की सहायता से हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करते हैं। इन भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान सम्मिलित हैं। कुछ खोजें प्रारूपिक की बजाय संयोगिक होती हैं।

पुरातत्वविदों द्वारा खोजों का वर्गीकरण –
(1) वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे- पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है।
(2) वर्गीकरण का दूसरा और अधिक जटिल सिद्धान्त वस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है। पुरातत्वविदों को यह निश्चित करना पड़ता है कि कोई पुरावस्तु एक औजार है या एक आभूषण है या यह आनुष्ठानिक प्रयोग की कोई वस्तु है।

पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ –
(1) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्रायः आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं की समानता पर आधारित होती है। मनके, चकियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।

(2) पुरातत्वविद किसी पुरावस्तु की उपयोगिता को समझने का प्रयास उस संदर्भ में भी करते हैं जिसमें वह मिली थी। उदाहरणार्थ, क्या वह वस्तु घर में मिली थी या नाले में, या कब्र में या भट्टी में मिली थी। अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना कभी-कभी पुरातत्त्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ हड़प्पा स्थलों से कपास के टुकड़े मिले हैं। परन्तु उनकी वेशभूषा के विषय में जानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है, जैसे मूर्तियों में चित्रण इन चित्रों को देखकर हमें तत्कालीन लोगों की वेशभूषा में जानकारी मिलती है।

संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना – पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है। उत्खनन में प्राप्त पहली हड़प्पाई मुहर को तब तक नहीं समझा जा सका, जब तक पुरातत्वविदों को उसे समझने के लिए सही संदर्भ नहीं मिला। सांस्कृतिक अनुक्रम जिसमें वह मुहर प्राप्त हुई थी तथा मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना, दोनों के सम्बन्ध में।

प्रश्न 14.
पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक व्याख्यां की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) धार्मिक प्रथाओं का पुनर्निर्माण आरम्भिक पुरातत्वविद यह महसूस करते थे कि कुछ वस्तुएँ जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, वे सम्भवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन मृण्मूर्तियों के शीर्ष पर विस्तृत प्रसाधन थे। इन्हें ‘मातृ देवी’ की संज्ञा दी गई थी। दुर्लभ पत्थर से बनी पुरुषों की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक हाथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, को भी इसी वर्ग में रखा गया था।

(2) आनुष्ठानिक महत्त्व की संरचनाएँ कुछ अन्य मामलों में संरचनाओं को आनुष्ठानिक महत्त्व का माना गया है। इनमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगा और लोथल से मिली वेदियाँ सम्मिलित हैं।

(3) वृक्षों की पूजा कुछ मुहरों पर पेड़-पौधों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी प्रकृति (वृक्षों) की पूजा करते थे।

(4) शिव की पूजा कुछ मुहरों पर एक आकृति को पालथी मारकर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। उसे हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप कहा गया है।

(5) लिंग की पूजा- उत्खनन में पत्थर की शंक्वाकार वस्तुएँ मिली हैं। इन्हें लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी लिंग की भी पूजा करते थे।

(6) आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताओं के आधार पर हड़प्पाई धर्म के पुनर्निर्माण- हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर अग्रसर होते हैं।

(7) ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण उदाहरण के लिए हम ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण करते हैं। आर्यों के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ ऋग्वेद (लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित) में रुद्र नामक एक देवता का उल्लेख मिलता है जो बाद की पौराणिक परम्पराओं में शिव के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव और उसके विस्तार क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 ई. में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।

उन्होंने हड़प्पा से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 ई. में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र – हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से ही नहीं बल्कि अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल निम्नलिखित प्रान्तों से प्राप्त हुए हैं –

  • बलूचिस्तान-सुत्कागेण्डोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डाबरकोट।
  • सिन्ध – मोहनजोदड़ो, चन्दड़ो, कोटदीजी, अली मुरीद।
  • पंजाब (पाकिस्तान) – हड़प्या, जलीलपुर, रहमान ढेरी, सरायखोला, गनेरीवाल
  • पंजाब (भारत) – रोपड़, संघोल, बाड़ा, कोटलानिहंगखान।
  • हरियाणा- बणावली, मीताथल, राखीगढ़ी।
  • जम्मू-कश्मीर माण्डा।
  • राजस्थान कालीबंगा।
  • उत्तर प्रदेश – आलमगीरपुर (मेरठ), अम्बाखेड़ी (सहारनपुर), कौशाम्बी।
  • गुजरात – रंगपुर, लोथल, रोजदी, सुरकोटड़ा, मालवणा, भगवतराव, धौलावीरा
  • महाराष्ट्र – दाइमाबाद (अहमदनगर)।

इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, गंगाघाटी तक फैली हुई थी। डॉ. विमल चन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि ” इस सभ्यता के क्षेत्र के अन्तर्गत बलूचिस्तान, उत्तर- पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्ध, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगाघाटी का उत्तरी भाग शामिल था।” प्रो. रंगनाथ राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था।”

प्रश्न 16.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता शहरी केन्द्रों का विकास था। हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
(1) नगर का दो भागों में विभाजित होना- मोहनजोदड़ो नगर एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा भाग बड़ा था, जो निचले स्थल में बनाया गया था। छोटा भाग ‘दुर्ग’ कहलाता था तथा बड़ा भाग ‘निचला शहर’ कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग दीवार से घिरा हुआ था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से पृथक् कर दिया था।

(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था, जो नींव का कार्य करते थे। इन भवनों के निर्माण में बहुत बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ी होगी। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम- दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इससे स्पष्ट होता है कि मोहनजोदड़ो के भवनों के निर्माण के लिए बहुत बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी होगी।

(3) नगर का नियोजन किया जाना शहर का समस्त भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इससे ज्ञात होता है कि पहले मोहनजोदड़ो शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया था। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटों का भी महत्त्व है। इन ईंटों को धूप में सुखाकर या भट्टी में पकाकर बनाया गया था। ये ईंटें निश्चित अनुपात की होती थीं इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटों का प्रयोग हड़प्पाई सभ्यता के सभी नगरों में किया गया था।

प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा के नगर नियोजन की वर्तमान संदर्भ में उपादेयता बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना तथा जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नगर – हड़प्पा के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार- योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग भाग’ तथा पूर्व में ‘नगर भाग’ प्राप्त होता है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) सड़कें नगरों की सड़कें तथा गलियों एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

(3) नालियाँ – शहरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में पक्की नालियाँ बनी हुई थीं। नालियों की जुड़ाई तथा प्लास्तर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता था ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। समय-समय पर इन नालियों की सफाई की जाती थी। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं, जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।

(4) कुएं हड़प्पा सभ्यता काल में प्राय: प्रत्येक पर में एक कुआँ होता था। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था कुछ कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।

(5) भवन निर्माण हड़प्पा सभ्यता के मकान एक निश्चित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे।

  • दीवारों पर प्लास्तर – दीवारों पर मिट्टी का प्लास्तर किया जाता था, कभी-कभी जिप्सम का प्लास्तर भी किया
    जाता था।
  • आँगन, रसोईघर, स्नानघर आदि की व्यवस्था- मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, रोशनदानों आदि की व्यवस्था रहती थी भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगने का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
  • छतें मकानों की छतें समतल थीं ये लकड़ी की कड़ियों से बनाई जाती थीं।
  • सीढ़ियाँ मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे। छत अथवा ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं ये पकी ईटों की बनती थीं।

(6) विशाल स्नानागार-मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी दीवारें और फर्श पक्की ईंटों के बने हैं। स्नानकुंड के चारों ओर गैलेरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुंड के निकट ही एक कुआँ है जिससे स्नानकुंड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुंड के तीन ओर बरामदे थे। स्नानागार के भवन के उत्तर में आठ स्नानकक्ष थे।

प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है—
(1) कृषि – हड़प्पा के निवासियों का मुख्य व्यवसायं कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, कपास, दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।

(2) पशुपालन उत्खनन में अनेक मुहरें मिली हैं जिन पर अनेक पशु-पक्षियों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पावासी गाय, बैल, भैंस, सूअर, भेड़, बकरी, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। ये लोग व्याघ्र, हाथी, गैंडा, भैंसा, हिरण, घड़ियाल आदि जानवरों से परिचित थे।

(3) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा उनी दोनों प्रकार के वस्त्र तैयार किए जाते थे। यहाँ के कुम्भकार | मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। यहाँ मनके बनाने, शंख की कुटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे। सीप, घाँचा, हाथीदांत आदि के काम में भी निपुण थे।

(4) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से होता था। जल यातायात के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का एवं थल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। आन्तरिक व्यापार उन्नत अवस्था में था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था उनका ओमान, मेसोपोटामिया, ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था। मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। मोहनजोदड़ो में भी मेसोपोटामिया की मुहरें मिली हैं।

(5) तोल तथा माप के साधन – हड़प्पा निवासी बाटों का प्रयोग करना भी जानते थे। मोहनजोदड़ो की खुदाई में छोटे-बड़े सभी प्रकार के बाट मिले हैं। ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे और प्रायः ये किसी भी प्रकार के चिह्न से रहित घनाकार होते थे।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(6) यातायात के साधन स्थल मार्ग से जाने के लिए बैलगाड़ियों, इक्कों आदि का प्रयोग होता था। जलमार्ग से जाने के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 19.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) समाज का वर्गीकरण-उत्खनन में प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज में कई वर्ग थे। कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, दस्तकार, जुलाहे, राजगीर आदि पेशेवर लोग रहे होंगे। सम्भवतः पुरोहितों का एक पृथक् वर्ग रहा होगा। राजकर्मचारियों एवं सेनाधिकारियों का भी एक विशिष्ट वर्ग रहा होगा। दुर्ग भाग में शासक, उच्च पदाधिकारी एवं सम्पन्न लोग रहते होंगे और नगर भाग में अधिकतर सामान्य लोग रहते होंगे

(2) परिवार – उत्खनन में जो भवन मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि उनमें पृथक् पृथक् परिवार रहते होंगे। हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक था। ऐसी स्थिति में स्थियों का परिवार एवं समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।

(3) भोजन – हड़प्पा निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे। वे गेहूं, जौ, चना, दाल, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे। वे मांस, मछली तथा अण्डों का भी सेवन करते थे। वे भेड़, बकरी, सूअर, भैंस, हिरण, कछुआ, घड़ियाल आदि के मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।

(4) वेशभूषा हड़प्पावासी सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पुरुष प्रायः धोती तथा शाल का प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ प्रायः घाघरे की तरह एक पेरेदार वस्त्र का प्रयोग करती थीं।

(5) आभूषण- हड़प्पा के स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। स्वी और पुरुष दोनों ही अंगूठी, कंगन, हार, भुजबन्द, कड़े आदि आभूषण पहनते थे आभूषण सोने, चाँदी, तांबे, काँसे, हाथीदाँत, मनकों तथा विविध बहुमूल्य पत्थरों के बने होते थे।

(6) सौन्दर्य प्रसाधन-स्विय बड़ी शृंगारप्रिय थीं तथा वे दर्पण, कंधी, काजल, सुरमा सिन्दूर, इत्र, पाउडर, लिपस्टिक आदि का प्रयोग करती थीं।

(7) आमोद-प्रमोद के साधन-शिकार करना, शतरंज खेलना, संगीत-नृत्य में भाग लेना, जुआ खेलना, पशु- पक्षियों की लड़ाइयाँ आदि हड़प्पावासियों के मनोरंजन के साधन थे। अनेक प्रकार के खिलौने बच्चों के मनोरंजन के साधन थे।

(8) मृतक संस्कार हड़प्पा निवासी अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –

  • पूर्णं समाधि – इसके अन्तर्गत शव को जमीन में गाड़ दिया जाता था। शव के साथ मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण आदि वस्तुएँ भी रख दी जाती थीं। कुछ कनों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। कुछ शवों के साथ शंख के छल्ले, जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सूक्ष्म मनकों से बने आभूषण, ताँबे के दर्पण भी रख दिए जाते थे।
  • दाह-कर्म- इसमें शव को जला दिया जाता था तथा उसकी भस्म को मटके में डाल कर दबा दिया जाता था।
  • आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था और शव के बचे हुए भाग को जमीन में गाड़ दिया जाता था।

प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति (हड़प्पा के लोगों का धार्मिक जीवन) हड़प्पा के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मातृदेवी की उपासना- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्द्रदड़ो आदि स्थानों से मिट्टी की बनी हुई नारी मूर्तियाँ मिली हैं। इन्हें मातृदेवी की मूर्तियाँ माना गया है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

(2) शिव की उपासना हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है। इस देवता के तीन मुख और दो सौंग हैं। उसे एक हाथी, एक व्याघ्र एक भैंसा तथा एक गैंडा से घिरा हुआ दिखाया गया है। आसन के नीचे हिरण अंकित है, इसे ‘आद्य शिव’ अर्थात् हिन्दू के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप की संज्ञा दी गई है।

(3) लिंग पूजा- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से हमें पत्थर, फॉन्स, सीप आदि से बने हुए छोटे-बड़े आकार के लिंग मिले हैं शिव के प्रतीक होने के कारण ये लिंग पवित्र समझे जाते थे तथा इनकी पूजा की जाती थी।

(4) योनि-पूजा – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में बहुत से छाले मिले हैं। पुरातत्वविद जॉन मार्शल इन छल्लों को योनि का प्रतीक मानते हैं उनका मत है कि हड़प्पा सभ्यता में योनि-पूजा का भी प्रचलन था।

(5) पशु-पूजा – हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडा आदि के चित्र मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडे आदि की उपासना करते थे। हड़प्पावासी नाग की भी पूजा करते थे।

(6) वृक्ष-पूजा मुहरों पर पीपल के वृक्ष के चित्र पर्याप्त मात्रा में अंकित हुए मिले हैं। हड़प्पावासी पीपल, बबूल, तुलसी, खजूर, नीम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे।

(7) अग्नि वेदिकाएँ- कालीबंगा, लोथल, बणावली और राखीगढ़ी की खुदाई से हमें अनेक अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।

(8) जल-पूजा – हड़प्पावासियों को पवित्र स्नान तथा जल पूजा में गहरा विश्वास था।

(9) प्रतीक पूजा हड़या से प्राप्त मुहरों पर स्वस्तिक, चक्र, स्तम्भ आदि के चित्र मिले हैं। ये सम्भवत: मंगल- चिह्न थे। सम्भवतः इनका कुछ धार्मिक महत्व था।

(10) जादू-टोने में विश्वास हड़प्पावासी भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते थे तथा ये लोग पशु बलि में भी विश्वास करते थे।

प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताएँ:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) मूर्तिकला – हड़प्पावासी मूर्तिकला में बड़े निपुण थें। मूर्तियाँ मिट्टी, पत्थर, सोना, चाँदी, पीतल, तांबे, कांस्य आदि की बनाई जाती थीं हड़प्पा से प्राप्त पत्थर की दो मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त काँसे की बनी हुई एक नर्तकी की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर और सजीव है। इस मूर्ति में नारी अंगों का न्यास सुन्दर रूप से हुआ है।

(2) मुहर निर्माण कला-हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा हड़प्पा लिपि में लेख मिलते हैं। इन मुहरों का प्रयोग पत्र अथवा पार्सल पर छाप लगाने के लिए किया जाता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल से विशाल संख्या में मुहरें मिली हैं। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें फयॉन्स (काँचली मिट्टी), गोमेद, चर्ट और मिट्टी की भी हैं। अनेक मुहरों पर हाथी, व्याघ्र गैंडे तथा कूबड़दार बैल आदि का अंकन मिलता है।

(3) चित्रकला खुदाई में अनेक बर्तन तथा मुहरें मिली हैं जिन पर चित्र अंकित हैं। ये चित्र बड़े सुन्दर और सजीव हैं। इनमें सांड तथा बैल के चित्र विशेष रूप से बड़े आकर्षक हैं।

(4) मिट्टी के बर्तन बनाने की कला-मिट्टी के बर्तन कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे तथा उन्हें भट्टियों पर पकाया जाता था।

(5) धातुकला हड़प्पावासी सोना, चाँदी आदि के सुन्दर आभूषण बनाते थे ये लोग धातुओं की मूर्तियाँ भी बनाते थे। धातुओं के बर्तनों पर नक्काशी भी की जाती थी।

(6) लेखन कला – सामान्यतः हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं। यह लिपि रहस्यमय बनी हुई है क्योंकि यह आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

विद्वानों के अनुसार निश्चित रूप से हड़प्या लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है- 400 के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाव से बायीं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दायीं ओर चौड़ा अन्तराल है और बायीं ओर यह संकुचित है जिससे जान पड़ता है कि लिखने वाले व्यक्ति ने दायीं ओर से लिखना शुरू किया और बाद में बायीं ओर स्थान कम पड़ गया।

प्रश्न 22.
1800 ई. तक हड़प्पाई सभ्यता का अन्त किन कारणों से हुआ? उल्लेख कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण विभिन्न विद्वानों और पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण बताए हैं –
(1) जलवायु परिवर्तन कुछ विद्वानों का मत है कि सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से अनेक बस्तियाँ उजड़ गई और लोग बर्बाद हो गए।

(2) पर्यावरण का सूखा होना – ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए ईंट पकाने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए हड़प्पा निवासी बहुत अधिक लकड़ी जलाते थे, जिससे आस-पास के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई।

(3) बाड़ों का प्रकोप कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।

(4) भूकम्प कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः किसी शक्तिशाली भूकम्प के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ होगा।

(5) संक्रामक रोग-कुछ विद्वानों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता का विनाश मलेरिया अथवा किसी अन्य संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने से हुआ होगा।

(6) प्रशासनिक शिथिलता कुछ विद्वानों का विचार है कि शासक का अपने अधिकारियों पर नियन्त्रण नहीं रहा होगा ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई सभ्यता का अंत हो गया होगा।

(7) हड़प्पा के नगरों का समुद्र तट से दूर होना- डेल्स के अनुसार अनेक कारणों से हड़प्पा के अनेक नगर समुद्र तट से दूर होते चले गए। परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के नगरों के व्यापार की प्रगति अवरुद्ध हो गई और उनकी सम्पन्नता नष्ट होती चली गई।

(8) आर्द्रता की कमी घोष के अनुसार कुछ स्थानों पर आर्द्रता की कमी तथा भूमि की शुष्कता के कारण भी हड़प्पा सभ्यता का अन्त हुआ।

(9) नदियों का दिशा परिवर्तन-डेल्स के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का दिशा परिवर्तन उस क्षेत्र में संस्कृति के विनाश का प्रमुख कारण रहा होगा।

(10) विदेशी आक्रमण कुछ विद्वानों का विचार है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हड़प्पा प्रदेश पर आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया होगा। सम्भवतः ये आक्रमणकारी आर्य लोग थे।

प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के अंत के बारे में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अंत:
(1) विकसित हड़प्पा स्थलों का त्याग उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा- स्थलों को त्याग दिया गया था। दूसरी ओर गुजरात, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नयी बस्तियों में आबादी में वृद्धि होने लगी थी।

(2) भौतिक संस्कृति में परिवर्तन विद्वानों के अनुसार उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई.पूर्व के पश्चात् भी अस्तित्व में रहे कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में बदलाव आया था जैसे हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं-बायें, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई। प्रायः थोड़े सामान के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयुक्त किया जाता था।

इसके अतिरिक्त भवन निर्माण की तकनीकों का अन्त हुआ और बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बन्द हो गया। इस प्रकार पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवन शैली को उजागर करती हैं। इन संस्कृतियों को ‘उत्तर हड़प्पा’ अथवा ‘अनुवर्ती संस्कृतियों’ की संज्ञा दी गई।

(3) हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के कारण विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के सम्भावित कारण निम्नलिखित थे-

  • जलवायु परिवर्तन- सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से ‘अनेक बस्तियाँ उजड़ गई तथा हड़प्पा संस्कृति का अन्त हो गया।
  • वनों की कटाई वनों की कटाई से हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई। भी
  • अत्यधिक बाढ़-सिन्धु नदी की अत्यधिक बाड़ें हड़प्पा की सभ्यता के अन्त के लिए उत्तरदायी थीं।
  • नदियों का मार्ग परिवर्तन कुछ विद्वानों के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का मार्ग परिवर्तन उस क्षेत्र में सभ्यता के विनाश का एक प्रमुख कारण था।
  • सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों का अभाव- कुछ विद्वानों का मत है कि सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों के अभाव मैं हड़प्पा सभ्यता का अन्त हो गया था।

 

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

Jharkhand Board Class 12 History शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 226 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 1.
पता लगाने की कोशिश कीजिए कि आप जिस राज्य में रहते हैं, क्या वह मुगल साम्राज्य का भाग था ? क्या साम्राज्य स्थापित होने के परिणामस्वरूप उस क्षेत्र में किसी तरह के परिवर्तन हुए थे ?
उत्तर:
मुगल सम्राटों ने अपने साम्राज्य को अनेक प्रान्तों में विभाजित किया था। मुगल सम्राट अकबर के समय में मुगल साम्राज्य 15 प्रान्तों में विभक्त था जिनमें पंजाब, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, कश्मीर, खानदेश आदि सम्मिलित थे। राजस्थान भी मुगल साम्राज्य का एक भाग था। मुगल साम्राज्य स्थापित होने के कारण राजस्थान के प्रशासन पर भी काफी प्रभाव पड़ा। राजस्थान के अनेक राजपूत – नरेशों को उच्च पदवियाँ प्राप्त हुई। औरंगजेब ने जयसिंह और जसवन्तसिंह को ‘मिर्जा’ की उपाधि प्रदान की।

पृष्ठ संख्या 228 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
आज तैयार होने वाली पुस्तकें किन मायनों में मुगल इतिवृत्तों की रचना के तरीकों से भिन्न अथवा समान हैं ?
उत्तर:
(1) मुगल इतिवृत्तों की रचना का उद्देश्य निरंकुश और प्रबुद्ध मुगल सम्राटों की प्रशंसा करना तथा मुगल साम्राज्य को एक उत्कृष्ट साम्राज्य के रूप में दर्शाना है, परन्तु वर्तमान पुस्तकों के लेखकों का ऐसा उद्देश्य नहीं है।

(2) मुगल इतिवृत्तों के लेखक दरबारी इतिहासकार थे जो मुगल सम्राटों के दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर इतिवृत्त लिखते थे। परन्तु वर्तमान पुस्तकों के लेखक लोकतान्त्रिक विचारधारा के समर्थक हैं। ये रचनाएँ निष्पक्ष रूप से लिखी गई हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

पृष्ठ संख्या 229

प्रश्न 3.
अबुल फजल चित्रकला को महत्त्वपूर्ण क्यों मानता था? वह इस कला को वैध कैसे ठहराता था ?
उत्तर:
अबुल फजल ने चित्रकारी का एक ‘जादुई कला’ के रूप में वर्णन किया है। उसकी राय में यह कला किसी भी निर्जीव वस्तु को भी इस रूप में प्रस्तुत कर सकती है कि उसमें जीवन हो। अबुल फजल के अनुसार चित्रकला न केवल किसी वस्तु के सौन्दर्य को बढ़ावा देने वाली, बल्कि वह लिखित माध्यम से राजा और राजा की भक्ति के विषय में जो बात कही न जा सकी हों, ऐसे विचारों के सम्प्रेषण का भी एक शक्तिशाली माध्यम थी। ब्यौरे की सूक्ष्मता, परिपूर्णता और प्रस्तुतीकरण की निर्भीकता, जो चित्रों में दिखाई पड़ती है, वह अतुलनीय है। यहाँ तक कि निर्जीव वस्तुएँ भी प्राणवान प्रतीत होती हैं अबुल फसल का कहना था कि कलाकार के पास खुदा को पहचानने का अद्वितीय तरीका है। चूँकि कहीं-न-कहीं उसे यह महसूस होता है कि खुदा की रचना को वह जीवन नहीं दे सकता।

पृष्ठ संख्या 229

प्रश्न 4.
इस लघुचित्र में (चित्र 9.4) चित्रित मुगल पांडुलिपि की रचना में संलग्न अलग-अलग कार्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
पृष्ठ संख्या 229 के चित्र 94 को ध्यान से देखने पर व्यक्ति निम्न कार्यों में संलग्न दिखाई देते हैं –

  • पृष्ठों को व्यवस्थित करता व्यक्ति,
  • पृष्ठों को पढ़ता हुआ एक व्यक्ति,
  • एक दूसरे व्यक्ति को बोलकर लिखवाता एक व्यक्ति,
  • अपने वृत्तान्त लिखवाता एक व्यक्ति, (s) दुपट्टे से हवा करता एक व्यक्ति,
  • कार्मिकों की सेवा में खड़े कुछ व्यक्ति।

पृष्ठ संख्या 230 चर्चा कीजिए

प्रश्न 5.
चित्रकार के साहित्यिक और कलात्मक रचना प्रदर्शन की तुलना अबुल फजल की साहित्यिक और कलात्मक रचना-शक्ति से कीजिए।
उत्तर:
चित्र 94 की तुलना स्रोत 1 से करने पर निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं-

  • पुस्तक लेखन में अनेक व्यक्ति कार्यरत हैं। जिनमें कुल व्यक्तियों की संख्या 8 है और 4 सेवक हैं।
  • अबुल फजल ने स्रोत-1 में निरीक्षक तथा लिपिकों की बात कही है जो चित्र 94 में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है
  • अबुल फजल ने उस समय की चित्रकारी को अत्यधिक सजीव कहा है। यह सच भी है क्योंकि चित्र 94 सजीवता के अत्यधिक समीप है।
  • अबुल फजल ने चित्रकारों की सूक्ष्मता के लिए भी प्रशंसा की है। चित्र 94 को देखने से स्पष्ट होता है कि यहाँ दरवाजे, खम्भों तथा मेहराबों पर सुन्दर तथा अतिसूक्ष्म नक्काशी का कार्य किया है।
  • उपर्युक्त के अतिरिक्त अबुल फजल ने उस समय के चित्रकारों के कार्य को परिपूर्ण तथा प्रस्तुतीकरण में उच्चकोटि का माना है। चित्र 94 को देखने से अबुल फजल की यह बात भी पूर्ण रूप से सत्य हो जाती है।

पृष्ठ संख्या 233

प्रश्न 6.
यह चित्र पिता-पुत्र के बीच के सम्बन्ध को कैसे चित्रित करता है? आपको क्यों लगता है कि मुगल कलाकारों ने निरन्तर बादशाहों को गहरी अथवा फीकी पृष्ठभूमि के साथ चित्रित किया है? इस चित्र में प्रकाश के कौनसे स्रोत हैं?
उत्तर:

  • यह चित्र पिता-पुत्र के मध्य आत्मीय सम्बन्धों को दर्शा रहा है।
  • मुगल चित्रकारों ने बादशाहों को गहरी तथा फीकी पृष्ठभूमि में दिखाया है क्योंकि इससे बादशाहों की तस्वीरें साफ तथा स्पष्ट दिखाई देती हैं।
  • इस चित्र में अकबर तथा जहाँगीर के पीछे सूरज को प्रकाश के स्रोत के रूप में दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 235 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
मुगल साम्राज्य में न्याय को राजतन्त्र का इतना महत्त्वपूर्ण सद्गुण क्यों माना जाता था?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में न्याय को राजतन्त्र का सर्वोत्तम सद्गुण माना जाता था अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्वों की रक्षा करता है –

  • जीवन (जन)
  • धन (माल)
  • सम्मान (नामस)
  • विश्वास (दीन)।

इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण सम्प्रभु ही शक्ति और देवी मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे। इसी कारण न्याय के विचार के दृश्य रूप में निरूपण के लिए अनेक प्रतीकों की रचना की गई। कलाकारों द्वारा प्रयुक्त सर्वाधिक लोकप्रिय प्रतीकों में से एक था -एक-दूसरे के साथ चिपटकर। शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी अथवा शेर और गाय इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दर्शाना था, जहाँ दुर्बल तथा सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते 7 थे। गद्दी पर बैठने के बाद जहाँगीर ने जो पहला आदेश दिया वह न्याय की जंजीर को लगाने का था। कोई भी उत्पीड़ित व्यक्ति इस जंजीर को हिलाकर बादशाह के सामने अपनी फरियाद प्रस्तुत कर सकता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

पृष्ठ संख्या 235

प्रश्न 8.
इस चित्र (चित्र 9.7) के प्रतीकों की पहचान कर उनकी व्याख्या कीजिए और इस चित्र का सार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

  • यह चित्र जहाँगीर के प्रिय चित्रकार अबुल हसन ने बनाया है।
  • इस चित्र में जहाँगीर को दखितारूपी मानवीय आकृति को मारते हुए दिखाया गया है।
  • यहाँ देवदूत जहाँगीर को उसका मुकुट प्रदान कर रहे हैं। चित्र में देवदूत जहाँगीर को न्याय के अधिकार के रूप में अस्त्र प्रदान कर रहा है।
  • चित्र में एक प्लेटफार्म दिखाया गया है जिस पर जहाँगीर की न्याय की जंजीर बंधी हुई है तथा इसको आकाश में एक देवदूत पकड़े हुए है।
  • जहाँगीर के शासन काल को न्यायप्रिय शासनकाल के रूप में दिखाया गया है, जहाँ शेर तथा बकरी एक साथ रह सकते हैं। यहाँ शेर का सम्बन्ध सम्पन्न तथा सबल वर्ग से है तो बकरी का सम्बन्ध दुर्बल वर्ग से है। चित्र का सार चित्र में राजा के दैवीय रूप को पूर्ण रूप से स्थापित किया गया है तथा उसकी न्याय व्यवस्था को अत्यधिक न्यायसंगत तथा देवताओं को प्रिय के रूप में दर्शाया गया है।

पृष्ठ संख्या 237

प्रश्न 9.
मुगल सम्राट अकबर के दरबार में होने वाली गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • दरबार लगाते समय एक विशाल ढोल पीटा जाता था और साथ-साथ अल्लाह का गुणगान भी किया जाता था।
  • बादशाह के पुत्र, पौत्र, दरबारी तथा सभी लोग दरबार में उपस्थित होते थे जिन्हें दरबार में प्रवेश की अनुमति थी।
  • वे बादशाह का अभिवादन करके अपने स्थान पर खड़े हो जाते थे।
  • प्रसिद्ध विद्वान तथा विशिष्ट कलाओं में निपुण लोग बादशाह के प्रति आदर व्यक्त करते थे।
  • न्याय अधिकारी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे।
  • सम्राट अपनी सूझ-बूझ के अनुसार आदेश देते थे तथा मामलों को सन्तोषजनक ढंग से निपटाते थे।

पृष्ठ संख्या 240

प्रश्न 10.
चित्र 9.11 (क), 9.11 ( ख ), 9.11 (ग) में आप जो देख रहे हैं उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चित्र 9.11 (क) में दाराशिकोह का विवाह दिखाया गया है। चित्र 9.11 (क) में अभिजात दाराशिकोह के विवाह के अवसर पर विभिन्न उपहार अपने साथ ला रहे हैं। चित्र 9.11 (ख) में शाहजहां की उपस्थिति में मौलवी तथा काजी विवाह सम्पन्न करा रहे हैं। चित्र 9.11 (ग) में विवाह के अवसर पर महिलाएँ अपना नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं। इसी चित्र में विभिन्न गायक तथा संगीतकार अपना कौशल दिखा रहे हैं।

पृष्ठ संख्या 241 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 11.
क्या मुगलों से जुड़े कुछ रिवाजों और | व्यवहारों का अनुपालन आज के राजनेता करते हैं?
उत्तर:
(1) आज के राजनेता भी मुगलों की भाँति अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह बड़ी धूम-धाम से करते हैं और इन अवसरों पर विपुल धन खर्च करते हैं।
(2) आज के राजनेता भी अपने निवास स्थानों पर होली, दीवाली ईद आदि अनेक त्यौहार धूम-धाम से मनाते हैं। इन अवसरों पर विभिन्न समुदायों और सम्प्रदायों के लोग वहाँ एकत्रित होते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं।
(3) योग्य व्यक्तियों को आज भी अनेक पुरस्कार, पदवियाँ आदि दी जाती हैं योग्य व्यक्तियों को भारतरत्न, पद्म विभूषण, पद्मश्री आदि अनेक पदवियाँ दी जाती हैं। खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार आदि अनेक प्रकार के पुरस्कार दिए जाते हैं। सैनिकों को विशिष्ट सैनिक सेवाओं के कारण अशोक चक्र, महावीर चक्र आदि अनेक पुरस्कार दिए जाते हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

पृष्ठ संख्या 245

प्रश्न 12.
फादर मान्सेरेट की टिप्पणी मुगल बादशाह अकबर व उनके अधिकारियों के बीच सम्बन्ध के बारे में क्या संकेत देती है?
उत्तर:
फादर मान्सेरेट की टिप्पणी मुगल बादशाह अकबर व उनके अधिकारियों के बीच सम्बन्ध के बारे में यह संकेत देती है कि अकबर निरकुंशतापूर्वक शासन करता था। वह लिखता है कि सत्ता के निर्भीकतापूर्ण उपयोग से उच्च अभिजातों को नियन्त्रित करने के लिए सम्राट उन्हें अपने दरबार मैं बुलाता था और उन्हें निरंकुश आदेश देता था जैसे कि वे उसके दास हों। इन आदेशों का पालन उन अभिजातों के उच्च पदों और हैसियत से मेल नहीं खाता था। वास्तव में फादर मान्सेरेट का दृष्टिकोण जातीय अभिमान का प्रतीक है। अन्य साक्ष्यों से प्रतीत होता है कि अकबर अभिजात वर्ग के लोगों के साथ उदारतापूर्ण तथा सम्मानपूर्ण व्यवहार करता था । अभिजात वर्ग के लोग भी बादशाह के प्रति स्वामिभक्ति रखते थे तथा उसके आदेशों का सहर्ष पालन करते थे।

पृष्ठ संख्या 250

प्रश्न 13.
वे कौनसे मुद्दे और सरोकार थे जिन्होंने मुगल शासकों के उनके समसामयिकों के साथ सम्बन्धों को निर्धारित किया ?
उत्तर:
(1) मुगल सम्राट सामरिक महत्त्व के प्रदेशों विशेष कर काबुल और कन्धार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। दूसरी ओर ईरान के शासक भी कन्धार पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे। अन्त में 1622 ई. में ईरानी सेना ने कन्धार पर आक्रमण किया और मुगल सेना को पराजित कर कन्धार पर अधिकार कर लिया।
(2) मुगल सम्राट आटोमन नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों व तीर्थयात्रियों के स्वतन्त्र आवागमन को बनाये रखना चाहते थे।
(3) इसी प्रकार जेसुइट धर्म प्रचारकों का सम्मान करता था। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों की अकबर के सिंहासन के निकट स्थान दिया जाता था। इन्हीं जेसुइट धर्म प्रचारकों, यात्रियों आदि के विवरणों से यूरोप को भारत के बारे में जानकारी प्राप्त हुई

Jharkhand Board Class 12 History शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार  Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 1.
मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। थीं?
अथवा
मुगल दरबार में पाण्डुलिपियाँ कैसे तैयार की जाती
अथवा
मुगलों के शासनकाल में पाण्डुलिपियों की रचना से जुड़े विविध कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मुगल दरबार में बांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया मुगल काल में पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना था। किताबखाना एक लिपिपर था, जहाँ बादशाह की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था तथा नई पांडुलिपियों की रचना की जाती थी पांडुलिपि की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले लोग शामिल होते –

  • पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने के लिए कागज बनाने वाले
  • पाठ की नकल तैयार करने हेतु सुलेखक
  • पृष्ठों को चमकाने के लिए कोफ्तगर
  • पाठ से दृश्यों को चित्रित करने के लिए चित्रकार
  • पन्नों को इकट्ठा करके उसे अलंकृत आवरण में बाँधने के लिए जिल्दसाज तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु तथा बौद्धिक सम्पदा तथा सौन्दर्यपूर्ण कार्य के रूप में देखा जाता था। इस प्रकार के सौन्दर्य को उजागर करके इन पांडुलिपियों के संरक्षक मुगल सम्राट अपनी शक्ति को दर्शाते थे। मुगल सम्राट पाण्डुलिपि तैयार करने वालों को विभिन्न पदवियों तथा पुरस्कार प्रदान करते थे।

प्रश्न 2.
मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?
उत्तर:
(1) राजसिंहासन मुगल शासन की सत्ता का केन्द्र बिन्दु राजसिंहासन था जिसने सम्राट के कार्यों को भौतिक स्वरूप प्रदान किया था।

(2) दरबार में अनुशासन दरबार में किसी भी दरबारी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह बादशाह के कितना निकट और दूर बैठा है। किसी भी दरबारी को शासक द्वारा दिया गया स्थान सम्राट की दृष्टि से उसकी महत्ता का प्रतीक था। सिंहासन पर सम्राट के बैठने के बाद किसी भी दरबारी अतवा व्यक्ति को अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी।

(3) अभिवादन के तरीके-बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस दरबारी की हैसियत का पता चलता था। अभिवादन का उच्चतम रूप ‘सिजदा या दंडवत लेटना था।

(4) राजनयिक दूतों से सम्बन्धित अभिवादन के तरीके मुगल दरबार में राजनयिक दूतों से सम्बन्धित अभिवादन के तरीके भी निर्धारित थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

(5) झरोखा दर्शन झरोखा दर्शन की प्रथा अकबर शुरू की थी। इसके अनुसार बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था।

(6) दीवान-ए-आम व दीवान-ए-खास बादशाह सरकारी कार्यों के संचालन के लिए दीवान-ए-आम में आता था। इसके बाद बादशाह दीवान-ए-खास में गोपनीय मुद्दों पर चर्चा करता था।

(7) विशिष्ट अवसर बादशाह सिंहासनारोहण की वर्षगांठ, ईद, शब-ए-बारात तथा होली आदि त्यौहार अपने दरबार में धूम-धाम से मनाता था।

प्रश्न 3.
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
मुगल राजघरानों में महिलाओं की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों की भूमिका-
(1) वित्तीय संसाधनों पर नियन्त्रण- जहाँगीर के शासन काल में नूरजहाँ ने शासन के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों पर नियन्त्रण रखना शुरू कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियों, जहाँआरा और रोशनआरा को ऊँचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी इसके अतिरिक्त, जहाँआरा को सूरत के बंदरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था।

(2) निर्माण कार्य मुगल परिवार की महत्त्वपूर्ण महिलाओं ने इमारतों एवं बागों का निर्माण करवाया। जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की अनेक वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। शाहजहाँनाबाद के मुख्य केन्द्र चाँदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँआरा द्वारा बनाई गई थी।

(3) साहित्यिक क्षेत्र में योगदान गुलबदन बेगम द्वारा रचित ‘हुमायूँनामा’ से हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की एक झलक मिलती है। गुलबदन ने जो लिखा, वह मुगल बादशाहों की प्रशस्ति नहीं थी। उसने राजाओं और राजकुमारों के बीच चलने वाले संघर्षों तथा तनावों के बारे में भी लिखा। उसने कुछ संघर्षों को सुलझाने में परिवार की वयोवृद्ध स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं के बारे में भी विस्तार से लिखा था।

प्रश्न 4.
वे कौन से मुद्दे थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?
उत्तर:
(1) सफ़ावी तथा कन्धार- मुगल सम्राटों तथा ईरान व तूरान के पड़ोसी देशों के बीच राजनीतिक व राजनयिक सम्बन्ध हिन्दुकुश पर्वत द्वारा निर्धारित सीमाओं के नियन्त्रण पर निर्भर करते थे। कन्धार सफ़ावियों ( ईरानियों) और मुगलों के बीच झगड़े का मुख्य कारण था कन्धार का किला नगर शुरू में हुमायूँ के अधिकार में था 1595 ई. में अकबर ने कन्धार पर पुनः अधिकार कर लिया था। 1613 में जहाँगीर ने ईरान के शासक शाह अब्बास को कहलवाया कि कन्धार को मुगल अधिकार में रहने दिया जाए, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली। 1622 में फारसी सेना ने कन्धार पर अधिकार कर लिया।

(2) ऑटोमन साम्राज्य ऑटोमन साम्राज्य के साथ अपने सम्बन्धों में मुगल बादशाह प्रायः धर्म एवं वाणिज्य के मुद्दों को जोड़ने का प्रयास करते थे। वे विभिन्न वस्तुओं की बिक्री से अर्जित आय को उस क्षेत्र के धर्मस्थलों व फकीरों में दान में बाँट दिया करते थे परन्तु जब औरंगजेब को अरब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग का पता चला, तो उसने भारत में उसके बाँटे जाने पर बल दिया।

(3) मुगल दरबार में जेसुइट धर्मप्रचारक-मुगल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृतांत सबसे पुराने वृतान्त हैं। 15वीं शताब्दी के अन्त में पुर्तगाली व्यापारियों ने भारत के तटीय नगरों में व्यापारिक केन्द्रों को स्थापित किया। अकबर के निमन्त्रण पर अनेक जेसुइट पादरी दरबार में आए। इन जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से बात की और उसे काफी प्रभावित किया। अकबर इन जेसुइट पादरियों का बड़ा सम्मान करता था।

प्रश्न 5.
मुगल प्रान्तीय शासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केन्द्र किस तरह से प्रान्तों पर नियन्त्रण रखता था?
उत्तर:
प्रशासन की सुविधा के लिए मुगल साम्राज्य को अनेक प्रान्तों (सूबों में बाँटा गया था। प्रान्तीय शासन … का प्रमुख गवर्नर (सूबेदार) होता था, जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था प्रान्त के अन्य अधिकारियों में दीवान, बख्शी, काजी तथा सद्र उल्लेखनीय थे दीवान प्रान्त की आय व्यय का विवरण रखता था। बख्शी प्रान्तीय सेना का प्रमुख अधिकारी होता था। सद्र लोगों के नैतिक चरित्र का निरीक्षण करता था तथा काजी प्रान्त का प्रमुख न्यायिक अधिकारी होता था।

सरकार प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बँटा हुआ था। प्रायः सरकार की सीमाएँ फौजदार के नीचे आने वाले क्षेत्रों की सीमाओं से मेल खाती थीं। इन प्रदेशों में फौजदारों को विशाल घुड़सवार सेना तथा लोपचियों के साथ रखा जाता था। परगना प्रत्येक सरकार को अनेक परगनों में बाँटा गया था। परगना (उप-जिला) स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख-रेख तीन अर्थ वंशानुगत अधिकारियों द्वारा की जाती थी ये अधिकारी थे –

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

  • कानूनगो ( राजस्व आलेख रखने वाला)
  • चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) तथा
  • काजी (न्याय करने वाला अधिकारी) थे।

लिपिकों का सहायक समूह-शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह लेखाकार, लेखा परीक्षक, सन्देशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे ये मानकीकृत नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार कार्य करते थे। मुगल इतिहासकारों के अनुसार ग्राम स्तर तक के सम्पूर्ण प्रशासनिक तन्त्र पर बादशाह तथा उसके दरबार का नियन्त्रण होता था।

निम्नलिखित प्रश्नों पर लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 250- 300 शब्दों में उत्तर)

प्रश्न 6.
उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षण-मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) दरबारी इतिहासकारों को इतिहास-लेखन का कार्यं सौंपना मुगल सम्राटों ने दरबारी इतिहासकारों को इतिहास-लेखन का कार्य सौंपा। इन विवरणों में बादशाहों के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया। इसके अतिरिक्त इन इतिहास-लेखकों ने बादशाहों को अपने प्रदेशों के शासन में सहायता के लिए उपमहाद्वीप के अन्य प्रदेशों से महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ भी एकत्रित कीं।

(2) कालक्रमानुसार घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना मुगल इतिवृत्त घटनाओं का कालक्रम के अनुसार विवरण देते थे। मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक विद्वानों के लिए ये इतिवृत्त अनिवार्य स्रोत हैं। ये एक ओर तो मुगल साम्राज्य की संस्थाओं के बारे में जानकारी देते थे तो दूसरी ओर उन उद्देश्यों का प्रसार करते थे, जिन्हें मुगल- सम्राट अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे।

(3) मुगल साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण स्रोत-मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त मुगल- साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के रूप में दर्शाने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इतिवृत्तों के माध्यम से मुगल सम्राट यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन के विवरण उपलब्ध रहें।

(4) दरबारी लेखक- मुगल इतिवृत्त मुगल दरबारियों द्वारा लिखे गए थे। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर के शासनकाल की घटनाओं पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक ‘अंकबरनामा’, ‘शाहजहाँनामा’, ‘आलमगीरनामा’ यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य एवं दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

(5) फारसी भाषा का प्रयोग मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। ‘अकबरनामा’ जैसे मुगल इतिहास फारसी में लिखे गए थे, जबकि बाबर के संस्मरणों का ‘बाबरनामा’ के नाम से तुर्की से फारसी में अनुवाद किया गया था। मुगल बादशाहों ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाया था।

(6) रंगीन चित्र एक मुगल बादशाह के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ ही उन घटनाओं का चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में भी वर्णन किया जाता था।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री किस सीमा तक अबुल फजल द्वारा किये गए ‘तसवीर’ के वर्णन (स्त्रोत 1) से मेल खाती है?
उत्तर:
अबुल फज्जाल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन से इस अध्याय में दी गई दश्प-सामश्री का मेलइस अध्याद में दी गई दूर्य सामती मुख्य रूप से रंगीन चित्र हैं। यह दृश्य-सामग्री अयुल फणल द्वारा किए गए ‘ तास्वीर’ के बर्णन से मेल खाती है। (पाठ्य-पुस्तक के पूष्ठ संख्या 229 का अवलोकन करें)

(1) दुश्य-सामग्री का महत्च-सुगल हतिहाखें में रंगीन चिर्त्रों का समावेश किया जाता या। चित्र न केखल किसी पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते थे, बस्कि वे लिखिए माध्यम से राजा और उसकी शक्ति के विषय में जो बातें न कही जा सकी हों, ऐसे बिचारों की अभिव्यक्ति के एक सशक्त माध्यम भी थे। इस अध्याय के चित्ञ 9.14 में चित्रकार रामदास ने फरेहपुर सीकरी में ज्ञाहजादे सलीम के जन्होत्सव का चित्र प्रस्तुज किया है जिससे मुगल दरबार में मनाए जाने वाले उस्सवों के बारे में जानकारी मिलती है। चित्र 9.10 में तुलादान समारोह में ज्ञाहजादे सहुरम को बहुमूल्य धातुओं से तोले जने का स्पष्ट और सजीव चित्रण किया गया है। चित्र 9.6 में जहांगीर द्वारा शाहजादे सुरंम को पगड़ी में लगाई जाने वाली मणी देने का दृश्य अंकित किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

(2) चित्रकला एक ‘जादुई कला’-इतिहासकार अबुल फरलल ने चित्रकला का एक ‘जाद्दई कला’ के रूप में वर्णन किला है।

(3) मुगल सम्राटों की चित्रकला में रुचि-ये चित्र मुगल सम्राटों की चित्रकला में गहरी रुचि दर्शाते हैं। बे इस कला को अध्ययन और मनोरंजन दोनों का ही साधन मानते थे तध्धा इस कला को हरसम्भव प्रोत्साहन देते थे। मुगल पांदुधििषियों में चिर्धो के अंकन के लिए चित्रकारों। की एक बड़ी संख्या लगाई जाठी थी।

(4) उत्कृष्ट चित्रकारों का उपलब्ध होना-चित्रकारों को प्रेत्साहन दिए जने के परिणामस्वश्र्प उस समय सर्यांिक उत्कृष्ट चित्रकार मिलने लगो घे।

(5) चित्रों की विशेषताएँ-विबरण की सूक्ष्मता, परिपूर्णत या प्रस्तुतीकरण की निर्भीकल जो मुगल-दूतिहासंें के चित्रों में दिखाई पझुती है, वह अतुलनीय थी। यहाँ तक कि निर्जींब वस्तुएँ भी सजीब प्रतीत होती थीं। इस अध्याय के चिन्न संख्या 9.1 में तैमूर बाबर को राजवंशीय मुकुट सीपता दिखाया गया है।

यह चित्र चित्रकार गोवर्धन द्वारा चिशित है। इससे ज्ञात होता है कि मुगल अपने को तैमूरी कहते थे क्योंकि फित पक्ष से वे तुर्की शासक वैमूर के बंझज थे। चिं्र $9.5$ में चितकार अवुल हसन ने जाँाँगीर को दैदीध्यमान वस्ग्रों तथा आभूषणों में अपने पिता अफघर के चित्र को हाथ में लिए दिख्या है। इससे ज्ञात होता है कि 17वीं शताब्दी से मुगल चित्रकारों ने मुगल-रु प्रभामंडल के साथ चित्रित करना शुरू किया था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

प्रश्न 8.
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके सम्बन्ध किस तरह बने?
अथवा
मुगल अभिजात वर्ग की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण- मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित थे –
(1) विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूह-मुगलकाल में अभिजात वर्ग अत्यन्त विस्तृत था। यह अभिजात वर्ग मुगल साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ था। अभिजात- वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। मुगल साम्राज्य की स्थापना के आरम्भिक वर्षों से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे।

(2) भारतीय मूल के अभिजात 1560 के बाद भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों – राजपूतों व भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं ने शाही सेवा में प्रवेश किया। इनमें नियुक्त होने वाला प्रथम व्यक्ति एक राजपूत सरदार आम्बेर का राजा भारमल कछवाहा था। खत्री जाति के टोडरमल को वित्तमंत्री के पद पर नियुक्त किया था।

(3) ईरानी जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए।

(4) मराठे औरंगजेब ने राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। मुगल शासन में अधिकारियों के समूह में मराठे भी पर्याप्त संख्या में थे।

(5) ‘जात’ तथा ‘सवार’ मनसबदार सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो प्रकार के संख्या- विषयक पद होते थे-जात और सवार ‘जात’ मनसबदार के पद और वेतन का सूचक था तथा ‘सवार’ वह सूचित करता था कि उसे सेवा में कितने घुड़सवार रखने होंगे।

(6) अभिजात वर्ग की भूमिका तथा बादशाह के

साथ उनके सम्बन्ध –

  • अभिजात वर्ग के लोग सैन्य अभियानों में अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे।
  • वे प्रान्तों में साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे।
  • प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों को भर्ती करता था तथा उन्हें हथियारों से सुसज्जित करता था और प्रशिक्षण देता था।
  • निम्नतम पदों के अधिकारियों को छोड़कर बादशाह स्वयं सभी अधिकारियों के पदों, पदवियों और आधिकारिक नियुक्तियों पर अपना नियन्त्रण रखता था। अकबर ने अपने अभिजात वर्ग के कुछ लोगों को शिष्य (मुरीद) की भाँति मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध भी स्थापित किये।
  • अभिजात वर्ग के लोगों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक साधन थी।

केन्द्र में दो अन्य महत्त्वपूर्ण मन्त्री थे –

  • दीवान- ए-आला (वित्तमन्त्री) तथा
  • सद्र उस सुदूर (मदद- ए-माश अथवा अनुदान का मन्त्री और स्थानीय न्यायाधीशों अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी) ।

(7) तैनात ए रकाब दरबार में नियुक्त तैनात-ए- रकाब’ अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। वे दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उठाते थे।

(8) दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करना- अभिजातों और क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि (वकील) दरबार की बैठकों (पहर) की तिथि और समय के साथ ‘उच्च दरबार से समाचार’ (अखबारात ए-दरबार- ए-मुअल्ला ) शीर्षक के अन्तर्गत दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे राजाओं और अभिजातों के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन का इतिहास लिखने के लिए ये सूचनाएँ बहुत उपयोगी होती थीं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

प्रश्न 9.
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्व – राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) राजा दैवीय प्रकाश का प्रतीक दरबारी इतिहासकारों ने अनेक साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह बताया कि मुगल सम्राटों को सीधे ईश्वर से शक्ति प्राप्त हुई थी।

(2) अबुल फजल द्वारा मुगल राजत्व को सर्वोच्च स्थान देना अबुल फजल ने ईश्वरीय प्रकाश को ग्रहण करने वाली चीजों में मुगल राजत्व को सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। इस विषय में वह प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावित था जिन्होंने सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया था।

(3) चित्रकारों द्वारा बादशाहों को प्रभामंडलों के साथ चित्रित करना-सत्रहवीं शताब्दी से मुगल | कलाकारों ने बादशाहों को प्रभामण्डलों के साथ चित्रित करना शुरू कर दिया। ये प्रभामंडल ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक थे।

(4) सुलह-ए-कुल एकीकरण का एक स्रोत- मुगल इतिवृत्तों के अनुसार साम्राज्य में हिन्दुओं, जैनों, जरतुश्तियों और मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न-भिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समुदायों के लोग रहते थे। बादशाह शान्ति और स्थायित्व के स्रोत के रूप में इन सभी धार्मिक एवं नृजातीय समूहों से ऊपर होता था। वह इनके बीच मध्यस्थता करता था तथा यह सुनिश्चित करता था कि साम्राज्य में न्याय और शान्ति बनी रहे।

(5) सुलह-ए-कुल के आदर्श को लागू करना –
(i) तीर्थयात्रा कर तथा जजिया कर समाप्त करना- सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के द्वारा लागू किया गया। मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग एक मिश्रित वर्ग था। उसमें ईरानी तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे। इन्हें दिए गए पद और पुरस्कार पूर्णरूप से राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे। इसके अतिरिक्त अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया को समाप्त कर दिया क्योंकि ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे।
(ii) उपासना स्थलों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान देना सभी मुगल सम्राटों ने उपासना स्थलों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान दिए। युद्ध के दौरान जब मन्दिरों को नष्ट कर दिया जाता था तो बाद में उनकी मरम्मत के लिए अनुदान जारी किये जाते थे।
(6) सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभसुत्ता-अबुल फजल ने प्रभुसत्ता की एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषा दी है उसने लिखा है कि बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्यों की रक्षा करता है –

  • जीवन (जन)
  • धन (माल)
  • सम्मान (नामस) तथा
  • विश्वास (दीन) केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे।

(7) न्याय के विचार को दृश्य रूप में निरूपण के लिए प्रतीकों की रचना न्याय के विचार के दृश्य रूप में निरूपण के लिए अनेक प्रतीकों की रचना की गई। इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसी संस्था के रूप में दिखाना था जहाँ दुर्बल तथा सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते थे।

शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार JAC Class 12 History Notes

→ इतिवृत्त इतिवृत्त घटनाओं का अनवरत कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत करते हैं। ये इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं इनका उद्देश्य उन नीतियों को स्पष्ट करना था जिन्हें मुगल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे।

→ मुगल शासक और उनका साम्राज्य मुगल की उत्पत्ति ‘मंगोल’ शब्द से हुई है। मुगल राजवंश के शासकों ने स्वयं के लिए यह नाम नहीं चुना था। वे अपने को तैमूरी कहते थे क्योंकि पितृपक्ष से वे तुर्की शासक तिमूर के वंशज थे। पहला मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज खाँ का सम्बन्धी था बाबर मुगल साम्राज्य का संस्थापक था। 1526 में वह अपने दल की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में भारतीय उपमहाद्वीप में आगे की ओर बढ़ा। हुमायूँ ने साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया, परन्तु शेरशाह सूरी ने उसे पराजित किया। 1555 में उसने सूरों को पराजित कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया, परन्तु 1556 में उसकी मृत्यु हो गई।

→ अकबर और उसके उत्तराधिकारी- अकबर मुगल साम्राज्य का सबसे महान शासक (1556-1605) था। उसने न केवल मुगल साम्राज्य का विस्तार ही किया, बल्कि इसे अपने समय का विशालतम दृढ़तम और सब समृद्ध राज्य बना दिया। अकबर के बाद जहाँगीर ( 1605-1627), शाहजहाँ (1628-1658) और औरंग (1658-1707) के रूप में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्वों वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी। हुए। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया। 1857 में इस वंश के अन्तिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

→ इतिवृत्तों की रचना – मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन की प्रस्तुति के उद्देश्य से लिखे गए थे। इनका उद्देश्य लोगों को यह भी बताना था कि मुगल विरोधियों का असफल होना निश्चित था। मुगल इतिवृत्तों के लेखक दरबारी ही थे। उन्होंने जो इतिवृत्त लिखे उनके केन्द्रबिन्दु में शासक पर केन्द्रित घटनाएँ, शासक का परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ थीं। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर (औरंगजेब) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक ‘अकबरनामा’, ‘शाहजहाँनामा’, ‘आलमगीरनामा’ यह संकेत करते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।

→ तुर्की से फारसी की ओर मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। अकबर ने सोच समझकर | फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया। फारसी को दरबार की भाषा का उच्च स्थान दिया गया तथा उन लोगों को शक्ति तथा प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनका इस भाषा पर अच्छा नियन्त्रण था। यह सभी स्तरों के प्रशासन की भी भाषा | बन गई। स्थानीय मुहावरों को समाविष्ट करने से फारसी का भारतीयकरण हो गया था। फारसी के हिन्दवी के साथ | पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा का जन्म हुआ। मुगल सम्राटों ने ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ जैसे संस्कृत ग्रन्थों के फारसी में अनुवाद करवाए। ‘महाभारत’ का अनुवाद ‘रज्मनामा’ (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ।

→ पांडुलिपि की रचना – मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थीं अर्थात् वे हाथ से लिखी जाती थीं। पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबनामा था सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कौशल मानी जाती थी। नस्तलिक अकबर की पसन्द की शैली थी। यह एक ऐसी तरल शैली थी जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था।

→ रंगीन चित्र चित्र पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करते थे तथा राजा और राजा की शक्ति के विषय में जो बात न कही जा सकी हो, उसे चित्र के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता था। इतिहासकार अबुल फराल ने चित्रकारी को एक ‘जादुई कला’ के रूप में वर्णन किया है। उसके अनुसार चित्रकला किसी निर्जीव वस्तु में भी प्राण फूँक सकती है। ईरान से मीर सैयद अली तथा अब्दुस समद जैसे प्रसिद्ध चित्रकार मुगल दरबार में लाये गये। अबुल फसल ऐसे लोगों को पसन्द नहीं करता था, जो चित्रकला से घृणा करते थे।

→ अकबरनामा’ और ‘बादशाहनामा’ – महत्त्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों में ‘अकबरनामा’ तथा ‘बादशाहनामा’ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। ‘अकबरनामा’ का लेखक अबुल फजल तथा ‘बादशाहनामा’ का लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी था।’ अकबरनामा’ को तीन जिल्दों में विभाजित किया गया है जिनमें से प्रथम दो इतिहास हैं। तीसरी जिल्द ‘आइन- ए-अकबरी’ है। ‘अकबरनामा’ में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण दिया गया है। इसमें अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। अबुल फजल की भाषा बहुत अलंकृत थी। इस भाषा में लय तथा कथन शैली को बहुत महत्त्व दिया जाता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

‘बादशाहनामा’ भी सरकारी इतिहास है। इसकी तीन जिल्दें हैं तथा प्रत्येक जिल्द दस चन्द्र वर्षों का विवरण देती है। लाहौरी ने शाहजहाँ के शासन (1627-47) के पहले दो दशकों पर पहली व दूसरी जिल्द लिखी। 1784 ई. सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की। इस संस्था ने कई भारतीय पांडुलिपियों के सम्पादन, प्रकाशन और अनुवाद का दायित्व अपने ऊपर लिया था।

→ आदर्श राज्य- एक दैवीय प्रकाश दरबारी इतिहासकारों के अनुसार मुगल सम्राटों को सीधे ईश्वर से | शक्ति मिली थी। ईश्वर से उद्भूत प्रकाश को ग्रहण करने वाली वस्तुओं में मुगल राजत्व को अबुल फजल ने सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। इस विषय में वह प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावित था। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के अन्तर्गत यह दैवीय प्रकाश राजा में सम्प्रेषित होता था जिसके बाद राजा अपनी | प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।

→ सुलह-ए-कुल एकीकरण का एक स्रोत अबुल फजल ने सुलह-ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बतलाया है। सुलह-ए-कुल में सभी धर्मों और मतों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ओं, परन्तु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य सत्ता को हानि नहीं पहुँचायेंगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे। सुलह-ए- कुल के आदर्श को राज्य नीतियों के द्वारा लागू किया गया। अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया। सभी मुगल सम्राटों ने मन्दिरों के निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान दिए।

→ सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता अबुल फजल के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के | चार सत्त्वों की रक्षा करता था— (1) जीवन (जन), (2) धन (माल), (3) सम्मान (नामस) तथा (4) विश्वास (दीन)। इसके बदले में वह प्रजा से आज्ञापालक तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता था। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे। न्याय के विचार का प्रतिपादन करने के लिए अनेक प्रतीकों की रचना की गई। इन प्रतीकों में से एक सर्वाधिक लोकप्रिय था— एक-दूसरे के साथ चिपटकर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी या शेर और गाय ।

→ राजधानियाँ और दरबार- 1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इसका एक कारण यह हो सकता है कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था, जहाँ शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुकी थी। 1585 में अकबर ने उत्तर- पश्चिम पर पूर्ण नियन्त्रण रखने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानान्तरित कर दिया था। शाहजहाँ के समय में 1648 में शाहजहांनाबाद को नई राजधानी बनाया गया।

→ मुगल दरबार- दरबार में सभी दरबारियों का स्थान मुगल सम्राट द्वारा ही निर्धारित किया जाता था । सिंहासन पर बादशाह के बैठने के बाद किसी को भी अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को तुरन्त ही दण्डित किया जाता था। शासक को किए गए अभिवादन के तरीके से उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। जिस व्यक्ति के सामने अधिक झुक कर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत अधिक ऊँची मानी जाती थी। आत्म- निवेदन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत लेटना था। शाहजहाँ के समय में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।

→ झरोखा दर्शन मुगल बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था और इसके बाद वह एक छोटे छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा करती थी। अकबर द्वारा शुरू की गई झरोखा दर्शन की प्रथा का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति को और विस्तार देना था।

→ दीवान-ए-आम तथा दीवान-ए-खास झरोखे में एक घंटा बिताने के बाद बादशाह अपनी सरकार के प्राथमिक कार्यों के संचालन के लिए सार्वजनिक सभा भवन (दीवान-ए-आम) में आता था। दो घण्टे बाद बादशाह ‘दीवान-ए-खास’ में निजी सभाएँ और गोपनीय मामलों पर चर्चा करता था।

→ दरबार को सुसज्जित करना सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, ईद, शब-ए-बरात तथा होली के अवसरों पर दरबार को खूब सजाया जाता था मुगल सम्राट वर्ष में तीन मुख्य त्यौहार मनाया करते थे-सूर्यवर्ष और चन्द्रवर्ष के अनुसार सम्राट का जन्मदिन तथा वसन्तगमन पर फारसी नववर्ष शाही परिवारों में विवाहों का आयोजन बहुत खर्चीला होता था।

→ पदवियाँ, उपहार और भेंट राज्याभिषेक के समय अथवा किसी शत्रु पर विजय के बाद मुगल सम्राट विशाल पदवियाँ ग्रहण करते थे। योग्य व्यक्तियों को बादशाह द्वारा पदवियाँ दी जाती थीं औरंगजेब ने जयसिंह और जसवन्त सिंह को ‘मिर्जा राजा’ की पदवी प्रदान की।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

→ शाही परिवार मुगल परिवार में बादशाह की पत्नियाँ और उपपत्नियाँ, उसके निकटस्थ और दूर के सम्बन्धी आदि होते थे। राजपूत कुलों तथा मुगलों दोनों के लिए विवाह राजनीतिक सम्बन्ध बनाने व मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का एक तरीका थे। मुगल परिवारों में शाही परिवारों से आने वाली स्वियों (बेगमों) और अन्य स्वियों (अगहा) में अन्तर रखा जाता था। अगहा वे स्त्रियाँ थीं जिनका जन्म कुलीन परिवार में नहीं हुआ था। दहेज (मेहर) के रूप में विपुल धन नकद और बहुमूल्य वस्तुएँ लेने के बाद विवाह करके आई बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक रूप से ‘अगहाओं’ की तुलना में अधिक ऊँचा दर्जा और सम्मान मिलता था। राजतन्त्र से जुड़े महिलाओं के पदानुक्रम में उपपत्नियों (अगाचा) की स्थिति सबसे निम्न थी।

→ शाही परिवार की महिलाओं की भूमिका नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियन्त्रण रखना शुरू कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियों— जहाँआरा तथा रोशनआरा को उच्च शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी। इसके अतिरिक्त जहाँआरा को सूरत के बन्दरगाह नगर से राजस्व प्राप्त होता था जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी ‘शाहजहाँनाबाद’ (दिल्ली) की कई वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। गुलबदन बेगम ने ‘हुमायूँनामा’ पुस्तक लिखी। इससे हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की झलक मिलती है। गुलबदन आबर की पुत्री हुमायूँ की बहन तथा अकबर की चाची थी। गुलबदन स्वयं तुर्की तथा फारसी में धाराप्रवाह लिख सकती थी।

→ शाही नौकरशाही मुगल साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप से अभिजात वर्ग भी कहते हैं अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके। मुगलों के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो स्वामिभक्ति से बादशाह से जुड़े हुए थे। प्रारम्भ से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे। 1560 से आगे भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों – राजपूतों व भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं) ने शाही सेवा में प्रवेश किया। इसमें नियुक्त होने वाला पहला व्यक्ति आम्बेर का राजा भारमल कछवाहा था जिसकी पुत्री से अकबर का विवाह हुआ था। टोडरमल अकबर का वित्तमन्त्री था।

→ जात और सवार सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे तथा पदों में दो प्रकार के संख्या-विषयक पद होते थे – जात और सवार ‘जात’ शाही पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद और वेतन का सूचक था तथा ‘सवार’ यह सूचित करता था कि उससे सेवा में कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित था। सत्रहवीं शताब्दी में 1000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार अभिजात (उमरा) कहे गए।

→ अभिजात सैन्य अभियानों में ये अभिजात अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे तथा प्रान्तों में वे साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे। प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों की भर्ती करता था, उन्हें हथियारों से सुसज्जित करता था और उन्हें प्रशिक्षण करता था। मनसब प्रथा की शुरुआत करने वाले अकबर ने अपने अभिजात वर्ग के कुछ लोगों को शिष्य (मुरीद) की भाँति मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध भी स्थापित किए।

अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक साधन था। मीर बख्शी (उच्चतम वेतनदाता) मनसबदार के पद पर नियुक्ति तथा पदोन्नति के इच्छुक सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था। उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश तैयार करता था। केन्द्र में दो अन्य महत्त्वपूर्ण मंत्री थे दीवान-ए-आला (वित्तमन्त्री) तथा सद्र उस सुदूर ( मदद-ए-माश अथवा अनुदान का मन्त्री और स्थानीय न्यायाधीश अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी)।

→ तैनात-ए-रकाब – दरबार में नियुक्त (तैनात ए रकाब) अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था, जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। वे प्रतिदिन दो बार प्रातःकाल व सायंकाल को सार्वजनिक सभा भवन में बादशाह को आत्म-निवेदन करते थे। वे दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उठाते थे।

→ सूचना तथा साम्राज्य-मीर बख्शी दरबारी लेखकों (वाकिया नवीस) के समूह का निरीक्षण करता था। ये लेखक ही दरबार में प्रस्तुत की जाने वाली सभी अर्जियों तथा दस्तावेजों और सभी शासकीय आदेशों (फरमान) का आलेख तैयार करते थे। इसके अतिरिक्त अभिजातों तथा क्षेत्रीय शासकों के प्रतिनिधि दरबार की बैठकों की तिथि और समय के साथ ‘उच्चदरबार से समाचार’ (अखबारात ए- दरबार-ए-मुअल्ला ) शीर्षक के अन्तर्गत दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार करते थे। समाचार वृत्तान्त और महत्त्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही डाक के द्वारा मुगल शासन के अधीन क्षेत्रों में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे। कागज के डिब्बों में लपेट कर हरकारों ( कसीद अथवा पथमार) के दल दिन-रात दौड़ते रहते थे। काफी दूर स्थित प्रान्तीय राजधानियों से भी वृत्तान्त बादशाह को कुछ ही दिनों में मिल जाया करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 9 शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

→ प्रान्तीय शासन केन्द्र के समान प्रान्तों में भी मंत्रियों के अनुरूप अधीनस्थ दीवान, बख्शी और सद्र होते थे। प्रान्तीय शासन का प्रमुख गवर्नर (सूबेदार) होता था, जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था। प्रत्येक सूबा कई ‘सरकारों में बँटा होता था। ‘सरकार’ का प्रमुख अधिकारी फौजदार होता था जिसके पास विशाल घुड़सवार सेना और तोपची होते थे। सरकार ‘परगनों’ (उप-जिलों) में विभाजित थे। इनके प्रमुख अधिकारी कानूनगो, चौधरी और काजी होते थे। शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह, लेखाकार, लेखा परीक्षक, सन्देशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे जो तकनीकी रूप से दक्ष अधिकारी थे।

→ विदेशों से सम्बन्ध-सफावी और कन्धार – मुगल सम्राटों की यह नीति थी कि सामरिक महत्त्व की चौकियों विशेषकर काबुल व कन्धार पर नियन्त्रण रखा जाए। कन्धार सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े का कारण था। 1595 में अकबर ने कन्धार पर अधिकार कर लिया। 1622 की शीत ऋतु में एक फारसी सेना ने कन्धार पर घेरा डाल दिया। फारसी सेना ने मुगल सेना को पराजित कर दिया और कन्धार के किले तथा नगर पर अधिकार कर लिया।

→ मुगल दरबार में जैसुइट धर्मप्रचारक – अकबर, ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था। उसने | जेसुइट पादरियों को आमन्त्रित करने के लिए एक दूतमंडल गोवा भेजा। पहला जेसुइट शिष्टमण्डल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वहाँ लगभग दो वर्ष रहा। इन जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से बात की और इसकी विशेषताओं के विषय में उलमा से उनका वाद-विवाद हुआ। लाहौर के मुगल दरबार में दो और शिष्टमण्डल 1591 और 1595 में भेजे गए। जेसुइट विवरण व्यक्तिगत प्रेक्षणों पर आधारित हैं तथा वे मुगल बादशाह अकबर के चरित्र और सोच पर गहरा प्रकाश डालते हैं। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के काफी निकट स्थान दिया जाता था। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा अवकाश के समय में वे प्रायः उसके साथ रहते थे।

→ इबादतखाना – सभी धर्मों और सम्प्रदायों के सिद्धान्तों की जानकारी प्राप्त करने के लिए 1575 ई. में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में ‘इबादतखाने’ का निर्माण करवाया। उसने विद्वान मुसलमानों, हिन्दुओं, जैनों, पारसियों और ईसाइयों के धार्मिक सिद्धान्तों पर चर्चा की। उसके धार्मिक विचार, विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के विद्वानों से प्रश्न पूछने और उनके धार्मिक सिद्धान्तों के बारे में जानकारी एकत्रित करने से परिपक्व हुए धीरे-धीरे वह धर्मों को समझने में रूढ़िवादी तरीकों से दूर प्रकाश और सूर्य पर केन्द्रित दैवीय उपासना के स्वकल्पित विभिन्न दर्शनग्राही रूप की ओर बढ़ा। अकबर और अबुल फजल ने प्रकाश के दर्शन का सृजन किया और राजा की छवि तथा राज्य की विचारधारा को आकार देने में इसका प्रयोग किया। इसमें दैवीय रूप से प्रेरित व्यक्ति का अपने लोगों पर सर्वोच्य प्रभुत्व तथा अपने शत्रुओं पर पूर्ण नियन्त्रण होता है।

→ हरम में होम अब्दुल कादिर बदायूँनी ने लिखा है कि युवावस्था के आरम्भ से ही अकबर अपनी पत्नियों अर्थात् भारत के राजाओं की पुत्रियों के सम्मान में हरम में होम का आयोजन कर रहे थे। यह एक ऐसी धर्म क्रिया थी जो अग्नि-पूजा से व्युत्पन्न हुई थी परन्तु अपने 25वें शासनवर्ष (1578) के नए वर्ष पर उसने सार्वजनिक रूप से सूर्य और अग्नि को दंडवत प्रणाम किया। शाम को चिराग और मोमबत्तियाँ जलाए जाने पर समस्त दरबार को आदरपूर्वक उठना पड़ा।

काल-रेखा
कुछ प्रमुख मुगल इतिवृत्त तथा संस्मरण

लगभग 1530 बाबर के संस्मरणों की पांडुलिपि का तिमूरियों के पारिवारिक संग्रह का हिस्सा बनना। तुर्की भाषा में लिखे गए ये संस्मरण किसी तरह एक तूफान से बचा लिए गए।
लगभग 1587 गुलबदन बेगम द्वारा ‘हुमायूँनामा ‘ के लेखन की शुरुआत।
1589 बाबर के संस्मरणों का ‘बाबरनामा’ के रूप में फारसी में अनुवाद।
1589-1602 अबुल फज़ल द्वारा ‘अकबरनामा ‘ पर कार्य करना।
1605-22 जहाँगीर द्वारा ‘जहाँगीरनामा ‘ नाम से अपना संस्मरण लिखना।
1639-47 लाहौरी द्वारा ‘बादशाहनामा ‘ के पहले दो दफ्तरों का लेखन।
लगभग 1650 मुहम्मद वारिस द्वारा शाहजहाँ के शासन के तीसरे दशक के इतिवृत्त लेखन की शुरुआत।
1668 मुहम्मद काज़िम द्वारा औरंगजेब के शासन के पहले दस वर्षों के इतिहास का ‘आलमगीरनामा’ के नाम से संकलन।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board Class 12 History किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 198

प्रश्न 1.
कृषि जीवन के उन पहलुओं का विवरण दीजिए जो बाबर को उत्तर भारत के इलाके की खासियत लगी।
उत्तर:
‘बाबरनामा’ के रचयिता बाबर के अनुसार भारत के कृषि समाज की यह विशेषता थी कि भारत में बस्तियाँ और गाँव, वस्तुतः शहर के शहर, एक क्षण में ही वीरान भी हो जाते थे और पुनः बस भी जाते थे वर्षों से बसे हुए किसी बड़े शहर के निवासी जो उसे छोड़कर चले जाते थे तथा वे लोग यह काम कुछ इस प्रकार करते थे कि डेढ़ दिनों के भीतर उनका हर नामोनिशान वहाँ से मिट जाता था।

दूसरी ओर, भारत के लोग यदि किसी स्थान पर बसना चाहते थे, तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की आवश्यकता नहीं होती थी; क्योंकि उनकी समस्त फसलें वर्षा के पानी में ही उगती थीं। चूँकि भारत की आबादी बेशुमार है, लोग उमड़ते चले आते थे। वे एक सरोवर या कुआँ बना लेते थे, उन्हें घर बनाने या दीवार खड़ी करने की भी आवश्यकता नहीं होती थी। यहाँ खस की घास बहुतायत में पाई जाती थी। यहाँ जंगल अपार थे तथा झोंपड़ियाँ बना ली जाती थीं। इस प्रकार अकस्मात् एक गाँव या शहर खड़ा हो जाता था।

पृष्ठ संख्या 199

प्रश्न 2.
सिंचाई के जिन साधनों का उल्लेख बाबर ने किया है, उनकी तुलना विजयनगर की सिंचाई व्यवस्था से कीजिए। इन दोनों अलग-अलग प्रणालियों में किस- किस तरह के संसाधनों की आवश्यकता पड़ती होगी? इनमें से किन-किन प्रणालियों में कृषि तकनीक में सुधार के लिए किसानों की भागेदारी आवश्यक होती होगी?
उत्तर:
बाबर के अनुसार शरद ऋतु की फसलें वर्षा के पानी से ही पैदा हो जाती थीं और बंसन्त ऋतु की फसलें तो तब भी पैदा हो जाती थीं, जब वर्षा बिल्कुल ही नहीं होती थी। छोटे पेड़ों तक बाल्टियों अथवा रहट के द्वारा पानी पहुँचाया जाता था। कुछ स्थानों पर रहट के द्वारा सिंचाई की जाती थी। रहट या लकड़ी के गुटकों पर बँधे घड़ों से कुओं से पानी निकाला जाता था रहट द्वारा निकाला गया कुओं का जल संकरा नाला खोदकर खेतों तक पहुँचाया जाता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

उत्तर भारत में कुछ क्षेत्रों के लोग बाल्टियों से सिंचाई करते थे। विजयनगर में सिंचाई नहरों, झीलों, जलाशयों, बाँधों, वर्षा आदि के पानी से की जाती थी। बाबर के अनुसार सिंचाई के लिए रहट एवं बाल्टियों का प्रयोग किया जाता था। इसके लिए रस्सी, लकड़ी के गुटकों, घड़ों पहियों, बैलों, लकड़ी के कन्नों, बेलन आदि संसाधनों की आवश्यकता पड़ती थी। विजयनगर राज्य में जलाशयों, बाँधों, झीलों आदि के निर्माण के लिए फावड़े, टोकरियों, सीमेंट या कंकरीट, हजारों श्रमिकों, पाइपों आदि संसाधनों की आवश्यकता पड़ती थी।

सिंचाई की रहट प्रणाली, कुओं को खोदने, बैलों को पालने, चमड़े या लकड़ी की बाल्टियाँ बनाने के लिए किसानों की भागीदारी की आवश्यकता पड़ती थी। विजयनगर में तालाब बनाने, बाँध बनाने, जल आपूर्ति के लिए पाइप बनाने तथा जल धाराओं से पानी इकट्ठा करने आदि कार्यों में किसानों की भागीदारी की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। ये कार्य प्रायः शासकों द्वारा करवाए जाते थे।

पृष्ठ संख्या 201

प्रश्न 3.
चित्र (पृष्ठ 201, 8.3 ) में महिलाएँ और पुरुष क्या-क्या करते दिखाए गए हैं? गाँव की वास्तुकला का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चित्र में महिलाएँ सूत कातते, बर्तन बनाने की मिट्टी को साफ करते और उसे गूँथते तथा बच्चों की देखभाल करते हुए दर्शायी गई हैं। साथ ही, उन्हें भोजन पकाते और मसाला कूटते भी दिखाया गया है। पुरुष को खड़ा होकर सभी व्यवस्था पर नजर रखते हुए दिखाया गया है। गाँव में मिट्टी और ईंट के बने मकान दिखाई दे रहे हैं। कुछ झोपड़ियाँ भी हैं। मिट्टी से बने अन्न भण्डार भी दिखाई पड़ रहे हैं।

पृष्ठ संख्या 203

प्रश्न 4.
चित्रकार ने गाँव के बुजुर्गों और कर अधिकारियों में फर्क कैसे डाला है ? (चित्र 8.4 )
उत्तर:

  1. चित्र में गाँव के बुजुर्ग अधिक संख्या (11 सदस्य) में दिखाए गए हैं
  2. कुछ बुजुर्ग जमीन पर बैठे हुए हैं तथा कुछ खड़े हुए हैं
  3. अधिकारी संख्या में दो हैं तथा दोनों अच्छी वेशभूषा में दर्शाए गए हैं
  4. अधिकारी लोग प्रभावशाली दिखाई देते हैं
  5. अधिकारियों के सम्मुख अनेक दस्तावेज दिखाए गए हैं।

पृष्ठ संख्या 204

प्रश्न 5.
चित्र में दर्शायी गयी गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • चित्र में कपड़ा बुनने के आरम्भ से लेकर पूर्ण होने तक के विभिन्न चरण दिखाए गए हैं।
  • चित्र में रंग-बिरंगे कपड़े दिखाए गए हैं।
  • एक व्यक्ति को कपास की खेती करते दिखाया गया है।
  • एक व्यक्ति को कपड़े की गाँठ ढोते दिखाया गया है।
  • एक व्यक्ति कपड़े को साफ कर रहा है।
  • एक व्यक्ति कपड़े को बुन रहा है।
  • एक व्यक्ति भट्टी पर कपड़े को रंग रहा है।
  • चित्र में दिखाए गए व्यक्ति कपड़े की विविधता को दर्शाते हैं।

पृष्ठ संख्या 206 चर्चा कीजिए

प्रश्न 6.
इस अनुभाग में जिन पंचायतों का जिक्र किया गया है, वे आपके अनुसार किस प्रकार से आज की ग्राम पंचायतों से मिलती-जुलती थीं अथवा भिन्न थीं?
उत्तर:
समानताएँ प्रस्तुत अनुभाग में वर्णित पंचायतों तथा आज की ग्राम पंचायतों में निम्नलिखित समानताएँ थीं –
(1). दोनों ग्रामीणों की विभिन्न समस्याओं का निवारण करने का प्रयास करती हैं।
(2) सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्राम पंचायत का एक मुखिया होता था। आज भी ग्राम पंचायत का एक प्रमुख होता है जो सरपंच कहलाता है।
(3) उस समय ग्रामीण लोगों की भलाई के लिए पंचायत द्वारा कुएँ, छोटे-मोटे बाँध, नहर, जलाशय आदि बनवाये जाते थे। आज भी ग्राम पंचायतों द्वारा गाँवों में सफाई करवाने, रोशनी का प्रबन्ध करने, स्कूल, अस्पताल, जलाशय, कुएँ आदि बनवाने, लोगों के मनोरंजन के लिए वाचनालय, पुस्तकालय, दूरदर्शन केन्द्र आदि बनवाने की व्यवस्था की जाती है।
(4) उस समय भी ग्राम पंचायतों को जुर्माना लगाने और छोटे-मोटे झगड़ों को निपटाने का अधिकार था आज भी ग्राम पंचायतों को सिविल और फौजदारी के छोटे-मोटे झगड़ों को निपटाने तथा साधारण जुर्माना करने का अधिकार है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

विभिन्नताएँ –
(1) 16वीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्राम पंचायतों में बुजुर्ग लोग होते थे। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे तथा उनके पास अपनी सम्पत्ति में पैतृक अधिकार होते थे। इनका चुनाव नहीं होता था परन्तु वर्तमान में ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव किया जाता है। गाँव के लोग एक सरपंच और कुछ पंचों का चुनाव करते हैं। उस समय ग्राम पंचायतों में अनुसूचित एवं जनजातियों और महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित नहीं रखे जाते थे परन्तु वर्तमान में इनके लिए स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं।

(2) उस समय पंचायत का एक मुखिया होता था जो मुकदम या मंडल कहलाता थी। वर्तमान में ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच कहलाता है। राज्य की ओर से 1 एक सचिव . और कुछ अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है।

(3) उस समय पंचायत में विभिन्न जातियों तथा सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व होता था परन्तु इसमें सन्देह है कि छोटे-मोटे और निम्न काम करने वाले खेतिहर मजदूरों के लिए उसमें कोई स्थान होता होगा परन्तु वर्तमान में दलित जातियों के लोगों के लिए स्थान सुरक्षित रखे गए हैं।

(4) उस समय पंचायत का एक बड़ा काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। वे जाति की अवहेलना रोकने के लिए प्रयत्नशील रहती र्थी; परन्तु वर्तमान में ग्राम पंचायतों का यह उत्तरदायित्व नहीं है।

(5) उस समय पंचायत को समुदाय से निष्कासित करने जैसे गम्भीर दंड देने का अधिकार था। परन्तु वर्तमान में ग्राम पंचायत को यह अधिकार नहीं है।

(6) उस समय गाँव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी तथा अधिकतर मामलों में राज्य जाति पंचायत के निर्णयों को मानता था परन्तु वर्तमान में राज्य जाति पंचायत के निर्णयों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

पृष्ठ संख्या 207

प्रश्न 7.
क्या आपके प्रान्त में कृषि भूमि पर महिलाओं और मर्दों की पहुँच में कोई फर्क है?
उत्तर:
विद्यार्थी यह स्वयं करें।

पृष्ठ संख्या 208

प्रश्न 8
आप इस चित्र (89) में जो देखते हैं, उसका वर्णन कीजिए। इसमें ऐसा कौनसा सांकेतिक तत्त्व है, जो शिकार और एक आदर्श न्याय व्यवस्था को जोड़ता है ?
उत्तर:
मुगलकाल में सम्राट अपनी प्रजा को न्याय प्रदान करने के लिए शिकार अभियान का आयोजन करते थे। इस चित्र में हिरण, नीलगाय आदि अनेक जानवर दिखाए गए हैं। मुगल सम्राट शाहजहाँ नीलगाय का शिकार करते हुए दिखाए गए हैं। नीलगाय किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुँचाती है। इसलिए ऐसे जानवरों का शिकार करना एक आदर्श न्याय व्यवस्था का प्रतीक है। पृष्ठ संख्या 209

प्रश्न 9.
यह पद्यांश जंगल में घुसपैठ के कौनसे रूपों को उजागर करता है? जंगल में रहने वाले लोगों के अनुसार पद्यांश में किन्हें ‘विदेशी’ बताया गया है?
उत्तर:
यह पद्यांश सोलहवीं शताब्दी के एक कवि मुकुंदराम चक्रवर्ती द्वारा लिखित एक कविता चंडी मंगल का एक अंश है। इस पद्यांश में कालकेतु नामक एक सरदार द्वारा जंगल का सफाया कर साम्राज्य बनाने के सम्बन्ध में. काव्यात्मक रूप से वर्णन किया गया है। कालकेतु ने हजारों लोगों के साथ विभिन्न साधनों से जंगल का सफाया कर यहाँ के मूल निवासियों यहाँ तक कि पशुओं को भी पलायन करने को विवश कर दिया। इस कविता में बाहर से आए इन लोगों को विदेशी कहा गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

पृष्ठ संख्या 210

प्रश्न 10.
अबुल फजल ने परिवहन के कौन स तरीकों का उल्लेख किया है? आपके अनुसार इनका प्रयोग क्यों किया जाता था? मैदानों से जो सामान पहाड़ पर ले जाए जाते थे, उनमें से हर एक वस्तु किस काम में लाई जाती होगी? इसका खुलासा कीजिए।
उत्तर:
(1) अबुल फजल ने परिवहन के निम्न तरीकों का उल्लेख किया है –

  • इन्सानों के सिर तथा पीठ पर सामान ढोया जाता था।
  • मोटे-मोटे घोड़ों की पीठ पर
  • मोटे-मोटे बकरों की पीठ पर सामान ढोया जाता था।

(2) मेरे विचारानुसार, उस समय बड़े पैमाने पर आधुनिक यातायात के साधन जैसे- ट्रक, रेलगाड़ी, मोटर, वारुयान आदि उपलब्ध नहीं थे, इसलिए इन्सानों, घोड़ों, आदि का यातायात के साधनों के रूप में प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त मोटे-मोटे बकरे तथा घोड़े आदि दुर्गम पहाड़ी रास्तों में सामान ढोने का काम सुगमता से करते थे।

कुछ गरीब लोग भी अपने जीवन निर्वाह के लिए सामान ढोने का काम करते थे। वे पहाड़ी रास्तों में सामान ढोने के अभ्यस्त भी थे इसलिए इन्सानों, घोड़ों, बकरों आदि का यातायात के साधनों के रूप में प्रयोग किया जाता था। मैदानों से जो वस्तुएँ पहाड़ों पर ले जाई जाती थीं, इनमें से अधिकांश का प्रयोग दैनिक जीवन में होता था। कुछ वस्तुओं का प्रयोग छोटे-मोटे उद्योगों में किया जाता था। कुछ वस्तुएँ विलासिता से सम्बन्धित थीं।

पृष्ठ संख्या 213 चर्चा कीजिए

प्रश्न 11.
आजादी के बाद भारत में जमींदारी व्यवस्था समाप्त कर दी गई। इस अनुभाग को पढ़िए तथा उन कारणों की पहचान कीजिए जिनकी वजह से ऐसा किया गया।
उत्तर:
आजादी के बाद भारत में जमींदारी व्यवस्था को समाप्त कर दिए जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित धे –

  1. जमींदारों की आय तो खेती से आती थी, परन्तु वे कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे। उन्हें समाज में उच्च स्थिति प्राप्त थी तथा उन्हें कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थीं।
  2. जमींदार वर्ग बड़ा समृद्ध वर्ग था। इस समृद्धि का कारण उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। वे इन मजदूरों का शोषण करते थे।
  3. जमींदारों के पास विपुल आर्थिक और सैनिक संसाधन थे वे राज्य की ओर से कर वसूल करते थे जिसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। अधिकांश जमींदारों के पास अपने किले और सैनिक टुकड़ियाँ थीं। इन साधनों के बल पर वे गरीबों, किसानों और मजदूरों का शोषण करते थे। ये कमजोर लोगों को उनकी जमीनों से बेदखल कर देते थे।
  4. जमींदारी प्रथा, जाति प्रथा और ऊँच-नीच के भेद- भाव को प्रोत्साहन देती थी।
  5. दारों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।
  6. यह व्यवस्था असमानता, विशेषाधिकारों एवं शोषण पर आधारित थी।

पृष्ठ संख्या 214

प्रश्न 12.
अपने अधीन इलाकों में जमीन का वर्गीकरण करते समय मुगल राज्य ने किन सिद्धान्तों का पालन किया? राजस्व निर्धारण किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
(1) मुगल सम्राटों ने अपनी गहरी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए जमीनों का वर्गीकरण किया। उन्होंने प्रत्येक (वर्ग की जमीन) के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया ताकि न्यायोचित राजस्व निर्धारित किया जा सके।
(2) मुगल काल में भूमि चार वर्गों में बाँटी गई –
(1) पोलज
(2) परौती
(3) चचर
(4) बंजर पोलज जमीन वह थी, जिसमें एक के बाद एक हर फसल की वार्षिक खेती होती थी और जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था। परौती वह जमीन थी, जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी। चचर वह भूमि थी, जो कि तीन या चार वर्षों तक खाली रहती थी। बंजर वह जमीन थी, जिस पर पाँच या उससे अधिक वर्षों से खेती नहीं की गई थी।

पहले दो प्रकार की जमीन की तीन किस्में थीं –
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब हर वर्ग की जमीन की उपज को जोड़ दिया जाता था और इसका तीसरा हिस्सा मध्यम उत्पाद माना जाता था तथा उसका एक- तिहाई हिस्सा राजकीय शुल्क माना जाता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

पृष्ठ संख्या 215 चर्चा कीजिए

प्रश्न 13.
क्या आप मुगलों की भूराजस्व प्रणाली को एक लचीली व्यवस्था मानेंगे ?
उत्तर:
हाँ, हम मुगलों की भूराजस्व प्रणाली को एक लचीली व्यवस्था मानते हैं। इसके निम्नलिखित कारण हैं –
(1) किसानों से भूमिकर नकद अथवा अनाज के रूप में वसूल किया जाता था।
(2) साम्राज्य की भूमि की पैमाइश करवाई गई और भूमि के आंकड़ों को संकलित किया गया।
(3) राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया गया कि वे राजस्व वसूली में बल प्रयोग करें।
(4) अतिवृष्टि, अकाल, अनावृष्टि आदि की दशा में भूराजस्व माफ कर दिया जाता था। राज्य द्वारा पीड़ित किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती थी।

पृष्ठ संख्या 215

प्रश्न 14.
राजस्व निर्धारण व वसूली की प्रत्येक प्रणाली में खेतिहरों पर क्या फर्क पड़ता होगा?
उत्तर:
(1) कणकुत प्रणाली में प्रायः अनुमान से किया गया भूमि का आकलन पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था। इसलिए इस प्रणाली में खेतिहरों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता होगा।
(2) मटाई अथवा भाओली प्रणाली में अनेक समझदार निरीक्षकों की आवश्यकता पड़ती थी परन्तु उस काल में प्रायः अधिकांश निरीक्षक स्वाथी, धोखेबाज तथा मक्कार होते थे इसलिए खेतिहरों को उनकी धोखेबाजी का शिकार बनना पड़ता था।
(3) खेत बढाई प्रणाली में बीज बोने के बाद खेत बाँट लिए जाते थे। यह प्रणाली भी त्रुटिपूर्ण थी। अतः इसका भी खेतिहरों पर हानिप्रद प्रभाव पड़ता होगा।
(4) लॉंग बटाई प्रणाली में फसल काटने के बाद राजस्व अधिकारी उसका ढेर बना लेते थे और फिर उसे आपस में बाँट लेते थे। इस प्रणाली में बेइमानी की गुंजाइश रहती थी जिसके परिणामस्वरूप खेतिहरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता होगा।

प्रश्न 15.
आपकी राय में मुगल बादशाह औरंगजेब ने विस्तृत सर्वेक्षण पर क्यों जोर दिया?
उत्तर:
मुगल सम्राट औरंगजेब एक कुशल प्रशासक था। उसे वित्तीय मामलों की अच्छी जानकारी थी। मुगल काल में प्रत्येक प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने योग्य जमीन दोनों की नपाई की गई औरंगजेब चाहता था कि राज्य अधिक से अधिक राजस्व वसूल करे; परन्तु इसके साथ-साथ किसानों के कल्याण को भी ध्यान में रखा जाए। एक ओर वह सरकार के वित्तीय हितों को भी सुनिश्चित करना चाहता था, दूसरी ओर वह किसानों की भलाई पर भी उचित ध्यान देना चाहता था इसलिए उसने हर गाँव, हर किसान के बारे में खेती की वर्तमान स्थिति का पता लगाने का आदेश दिया। औरंगजेब द्वारा विस्तृत सर्वेक्षण पर जोर देने का यही कारण था।

पृष्ठ संख्या 216 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
पता लगाइए कि वर्तमान में आपके राज्य में कृषि उत्पादन पर कर लगाए जाते हैं या नहीं। आज की राज्य सरकारों की राजकोषीय नीतियों और मुगल राजकोषीय नीतियों में समानताओं और भिन्नताओं को समझाइए।
उत्तर:
(1) वर्तमान में अधिकांश राज्य सरकारें कृषि उत्पादनों पर कर नहीं लगाती हैं, अपितु कृषकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करती हैं।
(2) मुगल राज्य की आय का मुख्य स्रोत कृषि तथा भू-राजस्व व्यवस्था थी।
(3) वर्तमान सरकारें कृषि से आय प्राप्त नहीं करतीं अपितु उन्हें अनेक प्रकार की सब्सिडी प्रदान करती हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board Class 12 History किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने में कौनसी समस्याएँ हैं? इतिहासकार इन समस्याओं से कैसे निपटते हैं?
उत्तर:
कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ का स्रोत के रूप में प्रयोग करने में समस्याएँ –

  1. शासक वर्ग का दृष्टिकोण किसानों के बारे में, जो कुछ हमें ‘आइन’ से ज्ञात होता है, वह शासक वर्ग का दृष्टिकोण है। यह किसानों के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
  2. आँकड़ों के जोड़ में गलतियाँ आइन’ में आँकड़ों के जोड़ में कई गलतियाँ पाई गई हैं।
  3. संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ ‘ आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं। सभी प्रान्तों से आँकड़े एक ही रूप में एकत्रित नहीं किए गए उदाहरणार्थ, जहाँ कई प्रान्तों के लिए जमींदारों की जाति से सम्बन्धित विस्तृत सूचनाएँ संकलित की गई, वहीं बंगाल और उड़ीसा के लिए ऐसी सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
  4. मूल्यों और मजदूरी की दरों की अपर्याप्त सूची मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची ‘आइन’ में दी भी गई है, वह साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के क्षेत्रों से ली गई है।

इससे स्पष्ट है कि देश के शेष भागों के लिए इन आँकड़ों की प्रासंगिकता सीमित है। इतिहासकारों का इन समस्याओं से निपटना- इन समस्याओं से निपटने के लिए इतिहासकार सत्रहवीं तथा अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से मिलने वाले उन दस्तावेजों का प्रयोग कर सकते हैं, जो सरकार की आमदनी की विस्तृत जानकारी देते हैं। इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भी बहुत से दस्तावेज हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी रूप-रेखा प्रस्तुत करते हैं। इनमें किसानों, जमींदारों और राज्य के मध्य विवाद दर्ज हैं।

प्रश्न 2.
सोलहवीं सत्रहवीं सदी में कृषि उत्पादन को किस हद तक महज गुजारे के लिए खेती कह सकते हैं? अपने उत्तर के कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं सत्रहवीं सदी में कृषि उत्पादन को केवल गुजारे के लिए खेती नहीं कहा जा सकता यद्यपि सोलहवीं सत्रहवीं सदी में दैनिक आहार की खेती पर | अधिक जोर दिया जाता था तथा गेहूं, चावल, ज्वार आदि फसलों का अधिक उत्पादन किया जाता था, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं था कि इस युग में भारत में खेती केवल गुजारा करने के लिए की जाती थी। कृषि राजस्व का भी एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं –
(1) खेती मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान की जाती थी –

  1. एक खरीफ ( पतझड़ में) और
  2. दूसरी रबी (बसन्त में)।

इस प्रकार सूखे इलाकों और अंजर भूमि को छोड़कर अधिकांश स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई. जाती थीं।
(2) इस युग में मुगल राज्य किसानों को जिन्स-ए- कामिल (सर्वोत्तम फसलें) नामक फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन देता था; क्योंकि इन फसलों से राज्य को अधिक कर मिलता था। इन फसलों में कपास और गन्ने की फसलें मुख्य थीं तिलहन (जैसे, सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलों में सम्मिलित थी। थे। इससे ज्ञात होता है कि एक औसत किसान की जमीन पर पेट भरने के लिए होने वाले उत्पादन तथा व्यापार के लिए किए जाने वाले उत्पादन एक दूसरे से जुड़े हुए व्यापार भी कृषि पर पर्याप्त सीमा तक निर्भर थे।

प्रश्न 3.
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
अथवा
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण दीजिए।
अथवा
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिये।
अथवा
मुगलकालीन भारत में कृषि आधारित समाज में महिलाओं की भूमिका की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका –
(1) खेती के कार्य में सहायता करना- सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में महिलाएँ और पुरुष कन्धे से कन्धा मिलाकर खेतों में काम करते थे। पुरुष खेत जोतते थे व हल चलाते थे, जबकि महिलाएँ बुआई, निराई कटाई तथा पकी हुई फसलों बने का दाना निकालने का काम करती थीं। फिर भी महिलाओं की जैव-वैज्ञानिक क्रियाओं को लेकर लोगों के मन में पूर्वाग्रह रहे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी भारत में मासिक-धर्म वाली महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की अनुमति नहीं थी। इसी प्रकार बंगाल में अपने मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बागान में प्रवेश नहीं कर सकती थीं।

(2) अन्य कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में संलग्न – रहना – इस समय महिलाएँ कृषि के अतिरिक्त अन्य कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में भी संलग्न रहती थीं, जैसे-सूत काराना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना और गूंधना, कपड़ों पर कढ़ाई करना आदि। ये सभी कार्य महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे। किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की उतनी ही माँग होती थी। वास्तव में किसान और दस्तकार महिलाएँ आवश्यकता पड़ने पर न केवल खेतों में काम करती थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं और बाजारों में भी इस प्रकार कृषि उत्पादन में महिलाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 4.
विचाराधीन काल में मौद्रिक कारोबार की अहमियत की विवेचना उदाहरण देकर कीजिए।
उत्तर:
विचाराधीन काल (मुगल काल ) में मौद्रिक कारोबार की अहमियत ( महत्त्व ) – सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इस कारण भारत के समुद्र पार व्यापार की अत्यधिक उन्नति हुई तथा कई नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के कारण, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत में पहुँचा। यह स्थिति भारत के लिए लाभप्रद थी क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।

परिणामस्वरूप सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की उपलब्धि में अच्छी स्थिरता बनी रही। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा मुगल – साम्राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने लगभग 1690 ई. में भारत की यात्रा की थी उसने इस बात का बड़ा सजीव चित्र प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार चाँदी समस्त विश्व से होकर भारत पहुँचती थी उसके वृत्तान्त से हमें यह भी जात होता है कि सत्रहवीं शताब्दी के भारत में भारी मात्रा में नकदी और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था। इसके अतिरिक्त गाँवों में भी आपसी लेन देन नकदी में होने लगा। जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी या पूर्व भुगतान भी नकद में ही मिलता था।

प्रश्न 5.
उन सबूतों की जाँच कीजिए जो ये सुझाते हैं कि मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व बहुत महत्त्वपूर्ण था।
उत्तर:
मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व का महत्त्वपूर्ण होना –
(1) मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन- भूमि से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन था। इसलिए कृषि उत्पादन पर नियन्त्रण रखने के लिए तथा तीव्रगति से फलते मुगल साम्राज्य में राजस्व के आकलन तथा वसूली के लिए एक प्रशासनिक तन्त्र की स्थापना की आवश्यकता थी। दीवान इस प्रशासनिक तन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग था। दीवान के कार्यालय पर सम्पूर्ण राज्य की वित्तीय व्यवस्था के देख-रेख की जिम्मेदारी थी। इस प्रकार हिसाब रखने वाले तथा राजस्व अधिकारी कृषि- सम्बन्धों को नया रूप देने में एक निर्णायक शक्ति के रूप में प्रकट हुए। अमील गुजार प्रमुख रूप से राजस्व वसूल करने वाला अधिकारी था।

(2) अधिक से अधिक राजस्व वसूल करने का प्रयास अकबर ने अमील-गुजार या राजस्व वसूल करने वाले अधिकारियों को यह आदेश दिया कि वे किसानों से नकद भुगतान वसूल करने के साथ फसलों के रूप में भी भुगतान का विकल्प खुला रखें। राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था, परन्तु स्थानीय स्थिति के कारण कभी-कभी वास्तव में इतनी वसूली कर पाना सम्भव नहीं हो पाता था।

(3) जोतने योग्य जमीन की माप करवाना प्रत्येक प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने योग्य जमीन दोनों की माप करवाई गई। अकबर के शासनकाल में अबुल फ़जल ने अपने ग्रन्थ’ आइन’ में ऐसी जमीनों के सभी आँकड़े संकलित किये। अकबर के बाद के मुगल सम्राटों के शासनकाल में भी जमीन की माप करवाये जाने के प्रयास जारी रहे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

निम्नलिखित पर लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 250- 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
आपके अनुसार कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने में जाति किस हद तक एक कारक थी?
उत्तर:
कृषि समाज में सामाजिक
व आर्थिक सम्बन्धों को
प्रभावित करने में जाति की भूमिका –
(1) खेतिहर किसानों का अनेक समूहों में विभक्त होना जाति तथा अन्य जाति जैसे भेदभावों के कारण खेतिहर लगा जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी या पूर्व भुगतान भी नकद में ही मिलता था। किसान कई प्रकार के समूहों में विभक्त थे। खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जो निकृष्ट समझे जाने वाले कार्यों में लगे हुए थे अथवा फिर खेतों में मजदूरी करते थे।

यद्यपि खेती योग्य जमीन का अभाव नहीं था, फिर भी कुछ जातियों के लोगों को केवल निकृष्ट समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इस प्रकार वे निर्धनता में जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। उपलब्ध आँकड़ों तथा तथ्यों से ज्ञात होता है कि गाँव की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही लोगों के समूहों का था। इन लोगों के पास संसाधन सबसे कम थे तथा ये जाति-व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बंधे थे। इनकी स्थिति न्यूनाधिक आधुनिक भारत में रहने वाले दलितों जैसी ही थी।

(2) अन्य सम्प्रदायों में भी भेदभावों का प्रसार- ऐसे भेदभावों का प्रसार अन्य सम्प्रदायों में भी होने लगा था। मुसलमान समुदायों में हलालखोरान जैसे निकृष्ट काम से जुड़े समूह गांव की सीमाओं के बाहर ही रह सकते थे। इसी प्रकार बिहार में मल्लाहजादाओं (शाब्दिक अर्थ – नाविकों के पुत्र) की स्थिति भी दासों जैसी थी ।

(3) बीच के समूहों में जाति, गरीबी और सामाजिक स्थिति के बीच सम्बन्ध न होना-यद्यपि समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी और सामाजिक स्थिति के बीच सीधा सम्बन्ध था, परन्तु ऐसा सम्बन्ध बीन के समूहों में नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक राजपूतों की चर्चा किसानों के रूप में की गई है। इस पुस्तक के अनुसार जाट भी किसान थे, परन्तु जाति व्यवस्था में उनको स्थिति राजपूतों की तुलना में नीची थी।

(4) अन्य जातियों की स्थिति सत्रहवीं सदी में वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र में रहने वाले गौरव समुदाय के लोगों ने भी राजपूत होने का दावा किया, यद्यपि ये लांग जमीन को जुताई के काम से जुड़े हुए थे। पशुपालन और बागवानों में बढ़ते मुनाफे के कारण अहीर, गुज्जर और माली जैसी जातियाँ सामाजिक सोढ़ी में ऊपर उठीं अर्थात् उनके सामाजिक स्तर में वृद्धि हुई। पूर्वी प्रदेशों में पशुपालक और मछुआरी जातियाँ भी किसानों जैसी सामाजिक स्थिति पाने लगीं। इनमें सदगोप एवं कैवर्त जातियाँ सम्मिलित थीं।

प्रश्न 7.
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों की जिन्दगी किस तरह बदल गई?
अथवा
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में जंगलवासियों के जीवन में किस प्रकार परिवर्तन आ गया? वर्णन कीजिये।
अथवा
बनवासी कौन थे? सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में उनके जीवन में कैसे परिवर्तन आया?
उत्तर:
जंगलवासी सोलहवीं एवं सत्रहवीं सदी में भारत में जमीन के विशाल भाग जंगलों या झाड़ियों से घिरे थे। समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती हैं परन्तु जंगली होने का अर्थ यह नहीं था कि वे असभ्य थे। उन दिनों इस शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका जीवन निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरीय खेती से होता था। ये काम मौसम के अनुसार होते थे जैसे भीलों में बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठे किये जाते, गर्मियों में मछलियाँ पकड़ी जातीं, मानसून के महीनों में खेती की जाती तथा शरद और जाड़े के महीनों में शिकार किया जाता था। निरन्तर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहना जंगलों में रहने वाले कबीलों की एक प्रमुख विशेषता थी। सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों . के जीवन में परिवर्तन

सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों के जीवन ‘में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(1) बाहरी शक्तियों का जंगलों में प्रवेश – बाहरी शक्तियों, जंगलों में कई तरह से प्रवेश करती थीं। उदाहरणार्थ- राज्य को सेना के लिए हाथियों की आवश्यकता होती थी। इसलिए मुगल सम्राटों के द्वारा जंगलवासियों से ली जाने वाली पेशकश (भेंट) में प्राय: हाथी भी सम्मिलित होते थे। दरबारी इतिहासकारों के अनुसार शिकार अभियान के नाम पर युगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करता था। इस प्रकार वह अपने साम्राज्य के भिन्न- भिन्न प्रदेशों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों से अवगत होता था और उन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देता था दरबारी कलाकारों के चित्रों में शिकारी के अनेक दृश्य दिखाए गए हैं। र इन चित्रों में चित्रकार प्राय: छोटा-सा एक ऐसा दृश्य अंकित कर देते थे जो शासक के सद्भावनापूर्ण होने का संकेत देता 5 था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

(2) वाणिज्यिक खेती का प्रभाव- वाणिज्यिक खेती का असर एक बाह्य कारक के रूप में जंगलवासियों के जीवन पर भी पड़ता था। शहद, मधुमोम और लाक जैसे जंगल के उत्पादों की बहुत माँग थी। लाक जैसी वस्तुएँ तो सत्रहवीं सदी में भारत से समुद्र पार होने वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएँ थीं। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे। 5 व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली भी होती थी। कुछ कबीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले स्थलीय व्यापार में लगे हुए थे जैसे पंजाब का लोहानी कबीला। वे पंजाब के गाँवों और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में भी भाग लेते थे।

(3) सामाजिक प्रभाव सामाजिक कारणों से भी जंगलवासियों के जीवन में परिवर्तन हुए। ग्रामीण समुदाय के बड़े आदमियों की भाँति जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई कबीलों के सरदार जमींदार बन गए तथा कुछ तो राजा भी हो गए। इस स्थिति में उन्हें सेना का गठन करने की आवश्यकता हुई। उन्होंने अपने ही वंश के लोगों को सेना में भर्ती किया अथवा अपने ही भाई बन्धुओं से सैन्य सेवा की माँग की।

(4) सांस्कृतिक प्रभाव जंगली प्रदेशों में नए सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार की भी शुरुआत हुई कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि नए बसे हुए प्रदेशों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार धीरे-धीरे इस्लाम को ग्रहण किया, उसमें सूफी सन्तों (पीर) ने भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

प्रश्न 8.
मुगलकालीन जमींदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
अथवा
मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) कमाई का स्रोत कृषि- मुगल भारत में जमींदारों की कमाई का स्रोत तो कृषि था, परन्तु वे कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे।
(2) विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त होना-ग्रामीण समाज में उच्च स्थिति के कारण जमींदारों को कुछ विशेष सामाजिक

और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त थीं। समाज में जमींदारों की उच्च स्थिति के दो कारण थे –
(1) उनकी जाति तथा
(2) उनके द्वारा राज्य को दी जाने वाली कुछ विशेष प्रकार की सेवाएँ।
(3) जमींदारों की समृद्धि-जमींदार वर्ग समृद्धि का कारण उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन थी। इसे मिल्कियत कहते थे अर्थात् सम्पत्ति प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर अथवा पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी इच्छा के अनुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी अन्य व्यक्ति के नाम कर सकते थे अथवा उन्हें गिरवी रख सकते थे।
(4) जमींदारों की शक्ति के स्रोत जमींदारों की शक्ति का एक अन्य स्रोत यह था कि वे प्रायः राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। सैनिक संसाधन भी जमींदारों की शक्ति का एक और स्रोत था।
(5) मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक सम्बन्धों की पिरामिड के रूप में कल्पना-यदि हम मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक सम्बन्धों को एक पिरामिड के रूप में देखें, तो जमींदार इसके संकरे शीर्ष का हिस्सा थे अर्थात् जमींदारों का समाज में सर्वोच्च स्थान था।
(6) जमींदारों की उत्पत्ति का स्त्रोत- समसामयिक दस्तावेजों से ऐसा प्रतीत होता है कि युद्ध में विजय जमींदारों की उत्पत्ति का सम्भावित स्रोत रहा होगा। प्रायः जमींदारी फैलाने का एक तरीका था शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना।
(7) जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया – जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी।

इसे निम्न तरीकों से पुख्ता किया जा सकता था –

  • नयी जमीनों को बसा कर
  • अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
  • राज्य के आदेश से
  • या फिर खरीद कर

(8) परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों का पुख्ता होना कई कारणों ने मिलकर परिवार या वंश पर आधारित जमदारियों को पुख्ता होने का अवसर दिया। उदाहरणार्थ, राजपूतों और जाटों ने ऐसी रणनीति अपनाकर उत्तर भारत में जमीन की बड़ी-बड़ी पट्टियों पर अपना नियन्त्रण पुख्ता किया।

(9) खेती योग्य जमीनों को बसाने में नेतृत्व प्रदान करना- जमींदारों ने खेती योग्य जमीनों को बसाने में नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता दी।

(10) गाँव के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आना- जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई। इसके अतिरिक्त जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।

(11) बाजार (हाट) स्थापित करना- जमींदार प्रायः बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

(12) किसानों से सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृक तथा संरक्षण का पुट होना- यद्यपि इसमें कोई सन्देह नहीं कि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था। सत्रहवीं शताब्दी में भारी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमें राज्य के विरुद्ध जमींदारों को किसानों का समर्थन मिला।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 9.
पंचायत और गाँव का मुखिया किस प्रकार से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे? विवेचन कीजिए।
उत्तर:
पंचायत और गाँव का मुखिया –
(1) पंचायत गाँव की पंचायत बुजुगों की सभा होती थी। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ प्राय पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी यह एक ऐसा अल्पतन्त्र था, जिसमें गाँव के अलग-अलग सम्प्रदायों और जातियों का प्रतिनिधित्व होता था। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था।
(2) पंचायत का मुखिया पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था। मुखिया ‘मुकदम या मंडल’ कहलाता था। गाँव की आय व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख काम था। इस काम में पंचायत का पटवारी उसकी सहायता करता था।
(3) पंचायत का खर्चा पंचायत का खर्चा गाँव के उस आम खजाने से चलता था जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान देता था।

  • इस आम खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था, जो समय-समय पर गाँव का दौरा किया करते थे।
  • इस खजाने का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी होता था।
  • इस कोष का प्रयोग ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए किया जाता था, जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे कि मिट्टी के छोटे-मोटे बाँध बनाना या नहर खोदना।

(4) ग्रामीण समाज का नियमन –

  • जाति की अवहेलना को रोकना पंचायत का एक प्रमुख काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें।
  • जुर्माना लगाने तथा समुदाय से निष्कासित करने का अधिकार पंचायतों को जुर्माना लगाने तथा दोषी को समुदाय से निष्कासित करने जैसे अधिक गम्भीर दंड देने के अधिकार थे। समुदाय से निष्कासित करना एक कठोर कदम था, जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इस अवधि में वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था।

(5) जाति पंचायतें ग्राम पंचायत के अतिरिक्त गाँव में प्रत्येक जाति की अपनी पंचायत होती थी। समाज में ये जाति पंचायतें पर्याप्त शक्तिशाली होती थीं।

  • राजस्थान में जाति-पंचायतें भिन्न-भिन्न जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं।
  • वे जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़ों को सुलझाती थीं।
  • वे यह तय करती थीं कि विवाह जातिगत मानदंडों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं।
  • फौजदारी न्याय को छोड़कर अधिकांश मामलों में राज्य जाति पंचायतों के निर्णयों को मानता था।

(6) पंचायतों से शिकायत करना पश्चिमी भारत विशेषकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे कई प्रार्थना पत्र सम्मिलित हैं, जिनमें पंचायत से ‘ऊँची ‘ जातियों या राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध जबरन कर वसूली अथवा बेगार वसूली की शिकायत की गई है।

किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य JAC Class 12 History Notes

→ किसान और कृषि उत्पादन सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में भारत में लगभग 85 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे। खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई गाँव थी जिसमें किसान रहते थे। किसान जमीन की जुताई, बीज बोने फसल की कटाई करने आदि का कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त वे कृषि आधारित वस्तुओं के उत्पादन में भी भाग लेते थे; जैसे शक्कर, तेल इत्यादि।

→ ग्रामीण समाज के स्रोत सोलहवीं और सत्रहवीं सदियों के कृषि इतिहास को समझने के लिए हमारे मुख्य स्रोत वे ऐतिहासिक ग्रन्थ व दस्तावेज हैं जो मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए थे। ‘आइन-ए-अकबरी’ इनमें से महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थों में एक था ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुलफजल ने की थी। इस ग्रन्थ में खेतों की नियंत्रित जुताई की व्यवस्था करने के लिए राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा करों की वसूली के लिए और राज्य तथा जमींदारों के बीच के सम्बन्धों के नियमन के लिए जो प्रबन्ध राज्य ने किए थे, उनका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

अन्य स्रोत थे –
(1) गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान आदि से मिलने वाले दस्तावेज तथा
(2) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दस्तावेज

→ आइन-ए-अकबरी का उद्देश्य आइन-ए-अकबरी का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूपरेखा प्रस्तुत करनी थी जहाँ एक सुदृद सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। किसानों के बारे में जो कुछ हमें ‘आइन’ से ज्ञात होता है, वह शासक वर्ग का दृष्टिकोण है।

→ किसान और उनकी जमीन मुगलकाल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए प्रायः रैयत या मुजरियान शब्द का प्रयोग करते थे। इसके साथ ही किसान या आसामी जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया जाता था। सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं –
(1) खुद काश्त तथा
(2) पाहि काश्त।
खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे, जिनमें उनकी जमीनें थीं। पाहि काश्त किसान वे खेतिहर थे, जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे लोग अपनी इच्छा से भी पाहि काश्त किसान बनते थे। उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास शायद ही कभी एक जोड़ी बैल और दो हल से अधिक कुछ होता था। अधिकतर किसानों के पास इससे भी कम होता था। गुजरात में वे किसान समृद्ध माने जाते थे जिनके पास लगभग 6 एकड़ जमीन होती थी। दूसरी ओर बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ थी। वहाँ 10 एकड़ जमीन वाले किसान को धनी माना जाता था। खेती निजी स्वामित्व के सिद्धान्त पर आधारित थी।

→ सिंचाई – जमीन की प्रचुरता, मजदूरों की उपलब्धता तथा किसानों की गतिशीलता के कारण कृषि का निरन्तर विस्तार हुआ चावल, गेहूँ, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं। मानसून भारतीय कृषि की रीढ़ था जैसा कि आज भी है परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी इसलिए इनके लिए सिंचाई के कृत्रिम उपाय बनाने पड़े। उत्तर भारत में राज्य ने कई नहरें व नाले खुदवाये और कई पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई जैसे कि शाहजहाँ के शासनकाल में पंजाब में ‘शाह नहर’।

→ तकनीक किसान पशुबल पर आधारित तकनीकों का भी प्रयोग करते थे। वे लकड़ी के उस हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर बनाया जा सकता था चैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था। परन्तु बीजों को हाथ से छिड़ककर बोने का रिवाज अधिक प्रचलित था। मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार प्रयुक्त किये जाते थे।

→ फसलें — मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी – (1) खरीफ ( पतझड़ में) तथा (2) रबी (बसन्त में)। सूखे प्रदेशों और बंजर भूमि को छोड़कर अधिकतर स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं।

→ जिन्स-ए-कामिल स्रोतों में हमें प्राय: जिन्स-ए-कामिल (सर्वोत्तम फसलें) जैसे शब्द मिलते हैं। कपास और गन्ना जैसी फसलें ‘जिन्स-ए-कामिल थीं। तिलहन (जैसे सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलें कहलाती थीं। 9. विश्व के विभिन्न भागों से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचने वाली फसलें सत्रहवीं शताब्दी में विश्व के विभिन्न भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं। उदाहरणार्थ, मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन के मार्ग से आया। टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियाँ भी नई दुनिया से लाई गई। अनानास और पपीता जैसे फल भी वहीं से भारत लाए गए।

→ खेतिहर किसान- किसान एक सामूहिक ग्रामीण समुदाय के भाग थे। ग्रामीण समुदाय के तीन घटक थे –
(1) खेतिहर किसान
(2) पंचायत
(3) गाँव का मुखिया (मुकद्दम वा मंडल)।

खेतिहर किसान कई प्रकार के समूहों में बटे हुए थे। खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी, जो नीच समझे जाने वाले कामों में लगे थे अथवा फिर खेतों में काम करते थे। कुछ जातियों के लोगों को केवल नीच समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। गाँव की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही समूहों का था। इनके पास संसाधन सबसे कम थे और ये जाति व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बँधे हुए थे। इनकी दशा न्यूनाधिक वैसी ही थी जैसी कि आधुनिक भारत में दलितों की। समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी तथा सामाजिक हैसियत के बीच सीधा सम्बन्ध था ऐसा बीच के समूहों में नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक में राजपूतों का उल्लेख किसानों के रूप में किया गया है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ पंचायतें और मुखिया – गाँव की पंचायत में बुजुर्ग लोग होते थे। प्रायः वे गाँव के प्रतिष्ठित एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हुआ करते थे। उनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था। पंचायत का सरदार (प्रधान) एक मुखिया होता था, जिसे मुकद्दम या मंडल कहते थे। प्रायः मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था। मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रहता था जब तक कि गाँव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था। गाँव की आय व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख कार्य था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी सहायता करता था।

पंचायत का खर्चा गाँव के उस सामान्य कोष से चलता था, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान देता था पंचायत का एक अन्य बड़ा काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। पंचायतों को जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे गम्भीर दंड देने के अधिकार थे। ग्राम पंचायत के अतिरिक्त गाँव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी। समाज में ये पंचायतें काफी शक्तिशाली होती थीं। राजस्थान में जाति पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं तथा ये जमीन से सम्बन्धित दावेदारियों के झगड़ों का निपटारा करती थीं।

→ ग्रामीण दस्तकार – गाँवों में दस्तकार काफी अच्छी संख्या में रहते थे। कहीं-कहीं तो कुल घरों के 25 प्रतिशत पर दस्तकारों के थे। कई खेतिहर दस्तकारी का काम भी करते थे; जैसे – रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजारों को बनाना या उनकी मरम्मत करना। कुम्हार, लुहार, बढ़ई, नाई, सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार भी अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे जिसके बदले गाँव वाले उन्हें विभिन्न तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः या तो उन्हें फसल का एक भाग दे दिया जाता था या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा। – बंगाल में जमींदार उनकी सेवाओं के बदले लौहारों, बढ़ई और सुनारों को दैनिक भत्ता तथा भोजन के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को जजमानी कहते थे।

→ ग्राम ‘एक छोटा गणराज्य – उन्नीसवीं शताब्दी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय गाँवों को एक ऐसे ‘छोटे गणराज्य’ के रूप में देखा जहाँ लोग सामूहिक स्तर पर भाईचारे के साथ संसाधनों और श्रम का बँटवारा करते थे। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि गाँव में सामाजिक बराबरी थी। सम्पत्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व होता था और जाति तथा सामाजिक लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं कुछ शक्तिशाली लोग गाँव की समस्याओं पर निर्णय लेते थे तथा दुर्बल वर्गों का शोषण करते थे। न्याय करने का भी अधिकार उन्हें ही प्राप्त था मुगलों के केन्द्रीय क्षेत्रों |में कर की गणना तथा वसूली भी नकद में की जाती थी।

→ कृषि समाज में महिलाएँ पुरुष खेत जोतते थे व हल चलाते थे तथा महिलाएँ बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल का दाना निकालती थीं। सूत कातने, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंथने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के काम उत्पादन के ऐसे पहलू थे जो महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे। वास्तव में किसान और दस्तकार महिलाएँ आवश्यकता पड़ने पर न केवल खेतों में काम करती थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं और बाजारों में भी कई ग्रामीण सम्प्रदायों में विवाह के लिए ‘वधू की कीमत अदा करने की आवश्यकता पड़ती थी, न कि दहेज की तलाकशुदा महिलाएँ और विधवाएँ दोनों ही वैधानिक रूप से विवाह कर सकती थीं।

इसका कारण यह था कि बच्चे पैदा करने की योग्यता के कारण महिलाओं को महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा जाता था। महिलाओं की प्रजनन शक्ति के महत्व को ध्यान में रखते हुए महिला पर परिवार और समुदाय के पुरुषों द्वारा प्रबल नियंत्रण रखा जाता था। बेवफाई के संदेह पर ही महिलाओं को भवानक दंड दिए जा सकते थे। भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार था। पंजाब में महिलाएँ पैतृक सम्पत्ति के विक्रेता के रूप में ग्रामीण भूमि के बाजार में सक्रिय भागेदारी रखती थीं। वे उसे बेचने अथवा गिरवी रखने के लिए स्वतंत्र थीं। बंगाल में भी महिला जमींदार पाई जाती थीं। अठारहवीं शताब्दी की सबसे बड़ी और प्रसिद्ध जमींदारियों में राजशाही की जमींदारी थी जिसकी कर्त्ता-धर्ता एक महिला थी।

→ जंगल और कबीले इस काल में जमीन के विशाल भाग जंगल या झाड़ियों से घिरे थे उस समय जंगलों के प्रसार का औसत लगभग 40 प्रतिशत था। समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती थीं। परन्तु जंगली होने का अर्थ सभ्यता का न होना बिल्कुल नहीं था। उन दिनों इस शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका जीवन निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरित खेती से होता था ये काम ऋतु के अनुसार होते थे। उदाहरण के लिए भीलों में बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठे किये जाते। गर्मियों में मछिलयाँ पकड़ी जातीं, मानसून के महीनों में खेती की जाती और शरद व जाड़े के महीनों में शिकार किया जाता था। लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहना, इन जंगलों में रहने वाले कबीलों की एक विशेषता थी। राज्य के लिए जंगल बदमाशों को शरण देने वाला अड्डा था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ जंगलों में घुसपैठ जंगलों में बाहरी शक्तियाँ कई प्रकार से प्रवेश करती थीं। उदाहरण के लिए, राज्य को सेना के लिए हाथियों की आवश्यकता होती थी इसलिए जंगलवासियों से ली जाने वाली पेशकश में प्रायः हाथी भी शामिल होते थे।

→ शिकार अभियान-मुगल राजनीतिक विचारधारा में प्रजाजनों से न्याय करने का राज्य के गहरे सरोकार का एक लक्षण ‘शिकार अभियान’ था दरबारी इतिहासकारों के अनुसार शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के भिन्न-भिन्न प्रदेशों का दौरा करते थे और इस प्रकार वहाँ के लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर व्यक्तिगत रूप से मनन करते थे।

→ जंगलवासियों पर वाणिज्यिक खेती का प्रभाव- वाणिज्यिक खेती का प्रभाव जंगलवासियों के जीवन पर भी पड़ता था। शहद, मधु, मोम और लाक जैसे जंगलों के उत्पादों की बहुत माँग थी। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं का विनिमय भी होता था।

→ सामाजिक प्रभाव कई कबीलों के सरदार जमींदार बन गए, कुछ तो राजा भी हो गए, उन्होंने अपनी सेनाओं का गठन किया। उन्होंने अपने ही खानदान के लोगों को सेना में भर्ती किया। सिन्ध प्रदेश की कबीलाई सेनाओं में 6000 घुड़सवार तथा 7000 पैदल सैनिक होते थे। असम में अहोम राजाओं के अपने ‘पायक’ होते थे ये वे लोग थे जिन्हें जमीन के बदले सैनिक सेवा देनी पड़ती थी।

→ सांस्कृतिक प्रभाव कुछ इतिहासकारों के अनुसार नये बसे क्षेत्रों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार धीरे- धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

→ जमींदार जमींदार अपनी जमीन के स्वामी होते थे। इन्हें ग्रामीण समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त थी तथा कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ भी प्राप्त थीं, जमींदारों की बढ़ी हुई प्रतिष्ठा के कारण थे –
(1) जाति
(2) उनके द्वारा राज्य को कुछ विशेष प्रकार की सेवाएँ देना।
जमींदारों के पास विस्तृत व्यक्तिगत जमीन थी। यह उनकी समृद्धि का कारण था। उनकी व्यक्तिगत जमीन ‘मिल्कियत’ कहलाती थी मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी प्रयोग के लिए खेती होती थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी इच्छानुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या इन्हें गिरवी रख सकते थे।

→ जमींदार की शक्ति के स्रोत जमींदारों की शक्ति के स्रोत थे –
(1) वे प्राय: राज्य की ओर से कर वसूल करते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था।
(2) सैनिक संसाधन भी उनकी शक्ति के स्रोत थे। अधिकतर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी थीं जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने तथा पैदल सैनिकों के जत्थे होते थे।

→ सामाजिक स्थिति यदि हम मुगल कालीन गाँवों में सामाजिक सम्बन्धों की कल्पना एक पिरामिड के रूप में करें, तो जमींदार इसके संकरे शीर्ष का भाग थे अर्थात् उनका स्थान सबसे ऊँचा था।

→ जमींदारों की उत्पत्ति के स्रोत जमींदारों की उत्पत्ति के स्रोत थे –
(1) युद्ध में जमींदारों की विजय
(2) शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा दुर्बल लोगों को बेदखल करना।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया – जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी। यह काम कई प्रकार से किया जा सकता था –

  1. नई जमीनों को बसाकर
  2. अधिकारों के हस्तान्तरण द्वारा
  3. राज्य के आदेश से
  4. भूमि खरीदकर यही वे प्रक्रियाएँ थीं जिनके द्वारा अपेक्षाकृत निम्न जातियों के लोग भी जमींदारी वर्ग में सम्मिलित हो सकते थे क्योंकि इस काल में जमींदारी खुलेआम खरीदी और बेची जाती थी।

→ परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों को पुख्ता होने का अवसर मिलना-कई कारणों ने मिलकर परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों को पुख्ता होने का अवसर दिया। उदाहरण के तौर पर राजपूतों और जाटों ने ऐसी रणनीति अपनाकर उत्तर भारत में जमीन की बड़ी-बड़ी पट्टियों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। इसी प्रकार मध्य तथा दक्षिण-पश्चिम बंगाल में किसान पशुचारियों (जैसे सद्गोप) ने शक्तिशाली जमींदारियाँ खड़ी कीं।

→ जमींदारों का योगदान –

  1. जमींदारों ने कृषि योग्य जमीनों को बसाने में नेतृत्व प्रदान किया और खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता की।
  2. जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई
  3. जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।
  4. जमींदार प्राय: बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

→ जमींदारों से किसानों के सम्बन्ध-यद्यपि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था भक्ति संतों ने जमींदारों को किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दर्शाया। इसके अतिरिक्त सत्रहवीं सदी में हुए कृषि विद्रोहों में राज्य के विरुद्ध जमींदारों को प्रायः किसानों का समर्थन मिला।

→ भू-राजस्व प्रणाली जमीन से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य की आर्थिक नींव थी सम्पूर्ण साम्राज्य में राजस्व के आकलन व वसूली के लिए उचित व्यवस्था की गई थी। दीवान के कार्यालय पर सम्पूर्ण साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देख-रेख की जिम्मेदारी थी।

भू-राजस्व के प्रबन्ध के दो चरण थे –
(1) कर निर्धारण
(2) वास्तविक वसूली ‘जमा’ निर्धारित रकम थी तथा ‘हासिल’ वास्तव में वसूली गई रकम थी।

राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना भाग अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था प्रत्येक प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने योग्य जमीन दोनों की नपाई की गई। अकबर के शासनकाल में अबुलफजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ में ऐसी जमीनों के सभी आँकड़े संकलित किए। अकबर के बाद के शासकों के शासनकाल में भी जमीन की नपाई के प्रयास जारी रहे। 1665 में औरंगजेब ने अपने राजस्व कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि हर गाँव में खेतिहरों की संख्या का वार्षिक हिसाब रखा जाए।

→ अकबर के शासनकाल में भूमि का वर्गीकरण-अकबर के शासनकाल में भूमि का वर्गीकरण किया गया –
(1) पोलज
(2) परौती
(3) चचर
(4) बंजर पोलज भूमि को कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था तथा परौती भूमि पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी। चचर भूमि वह थी जिसे तीन या चार वर्षों तक खाली रखा जाता था। बंजर भूमि वह भूमि थी जिस पर पाँच या दस से अधिक वर्षों से खेती नहीं की गई थी।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

पोलज और परती भूमि की तीन किस्में थीं –
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब हर प्रकार की जमीन की उपज को जोड़ दिया जाता था तथा इसका तीसरा भाग ओसत उपज माना जाता था इसका एक तिहाई भाग राजकीय शुल्क माना जाता था।

→ अमीन – अमीन एक सरकारी कर्मचारी था। उसे यह सुनिश्चित करना होता था कि प्रान्तों में राजकीय नियम-कानूनों का पालन हो रहा है।

→ राजस्व वसूल करने की प्रणालियां मुगल काल में राजस्व वसूल करने की प्रमुख प्रणालियाँ थीं –
(1) कणकुत प्रणाली
(2) बटाई प्रणाली
(3) खेत बटाई
(4) लांग बटाई।

→ मनसबदारी व्यवस्था मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तंत्र ( मनसबदारी ) था, जिस पर राज्य के सैनिक व नागरिक मामलों की जिम्मेदारी थी कुछ मनसबदारों को नकदी भुगतान किया जाता था, जबकि उनमें से अधिकांश मनसबदारों को साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजस्व के आवंटन के द्वारा भुगतान किया | जाता था। समय-समय पर मनसबदारों का तबादला किया जाता था।

→ चाँदी का बहाव खोजी यात्राओं तथा नयी दुनिया की खोज से यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इस कारण भारत के समुद्रपार व्यापार में एक ओर भौगोलिक विविधता आई, तो दूसरी ओर अनेक नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान न करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत की ओर खिंच गया।

परिणामस्वरूप सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की उपलब्धि में अच्छी स्थिरता बनी रही इसके साथ ही एक ओर तो अर्थ व्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ, तो दूसरी ओर मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई। इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने लिखा है कि संसार भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी अन्ततः भारत में पहुँच जाता है। इसी यात्री से हमें यह भी ज्ञात होता है कि सत्रहवीं सदी के भारत में बड़ी अद्भुत मात्रा में नकद और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

→ अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी अकबर के शासन के बयालीसवें वर्ष, 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद, इस ग्रन्थ को पूरा किया गया। इस ग्रन्थ में दरबार, प्रशासन, सेना के संगठन, राजस्व के स्रोत, अकबरकालीन प्रान्तों के भूगोल, लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक व धार्मिक रिवाजों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। अकबर के प्रशासन के समस्त विभागों और प्रान्तों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। यह ग्रन्थ अकबर के शासन के अन्तर्गत | मुगल साम्राज्य के बारे में सूचनाओं की खान है। आइन-ए-अकबरी पाँच भागों में विभाजित है। इसके पहले तीन भागों में मुगल प्रशासन का विवरण मिलता है। चौथे और पाँचवें भागों में भारत के लोगों के धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का वर्णन है। इनके अन्त में अकबर के ‘शुभ वचनों का एक संग्रह भी है।

कालरेखा 1
मुगल साम्राज्य के इतिहास के मुख्य पड़ाव

1526 दिल्ली के सुल्तान, इब्राहीम लोदी को पानीपत में हराकर बाबर का पहला मुगल बादशाह बनना
1530-40 हुमायूँ के शासन का पहला चरण
1540-55 शेरशाह से हार कर हुमायूँ का सफावी दरबार में प्रवासी बनकर रहना
1555-56 हुमायूँद्वारा खोये हुए राज्य को फिर से प्राप्त करना
1556-1605 अकबर का शासनकाल
1605-1627 जहाँगीर का शासनकाल
1628-1658 शाहजहाँ का शासनकाल
1658-1707 औरंगजेब का शासनकाल
1739 नादिरशाह द्वारा भारत पर आक्रमण करना और दिल्ली को लूटना
1761 अहमद शाह अब्दाली द्वारा पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को पराजित करना
1765 बंगाल के दीवानी अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौंपे जाना
1857 अंग्रेजों द्वारा अन्तिम मुगल बादशाह शाह जफर को गद्दी से हटाना और देश निकाला देकर रंगून (आज का यांगोन, म्यांमार में) भेजना।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन दक्षिण एशिया InText Questions and Answers

पृष्ठ 66

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया के देशों की कुछ ऐसी विशेषताओं की पहचान करें जो इस क्षेत्र के देशों में तो समान रूप से लागू होती हैं परन्तु पश्चिम एशिया अथवा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों पर लागू नहीं होतीं।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देशों में सद्भाव एवं शत्रुता, आशा व निराशा तथा पारस्परिक शंका और विश्वास साथ- साथ पाये जाते हैं जो पश्चिम एशिया अथवा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में इस रूप में नहीं पाये जाते हैं।

पृष्ठ 69

प्रश्न 2.
सेना के जेनरल और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में पाकिस्तान के शासक परवेज मुशर्रफ की दोहरी भूमिका की ओर यह कार्टून ( पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 69 ) संकेत करता है। कार्टून में दिए गए समीकरण को ध्यान से पढ़ें और कार्टून के संदेश को लिखें।
उत्तर:
इस कार्टून में सेना के जेनरल और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में पाकिस्तान के शासक परवेज मुशर्रफ की दोहरी भूमिका की ओर संकेत करता है कि इस दोहरी भूमिका में मुख्य भूमिका सेना के जेनरल की ही है क्योंकि यदि राष्ट्रपति के पद से सेना के जेनरल के पद को घटा दिया जाये तो राष्ट्रपति की शक्ति शून्य रह जाती है और यदि सेना के जेनरल के पद पर रहते हुए मुशर्रफ राष्ट्रपति नहीं रहते हैं तो भी वे शक्ति सम्पन्न बने रहेंगे और जब मुशर्रफ दोनों पदों को धारण कर लेते हैं तो उनकी शक्ति दुगुनी हो जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान के प्रशासन में सेना का दबदबा है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

पृष्ठ 75

प्रश्न 3.
ऐसा क्यों है कि हर पड़ोसी देश को भारत से कुछ-न-कुछ परेशानी है? क्या हमारी विदेश नीति में कुछ गड़बड़ी है? या यह केवल हमारे बड़े होने के कारण है?
उत्तर:
इसका पहला कारण दक्षिण एशिया का भूगोल है जहाँ भारत बीच में स्थित है और बाकी देश भारत की सीमा के इर्द-गिर्द पड़ते हैं। दूसरे, दक्षिण एशिया के अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में भारत काफी बड़ा है और वह शक्तिशाली है। इसकी वजह से अपेक्षाकृत छोटे देशों का भारत के इरादों को लेकर शक करना लाजिमी है। तीसरे, भारत नहीं चाहता कि उसके पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो। उसे भय लगता है कि ऐसी स्थिति में बाहरी ताकतों को इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने में मदद मिलेगी। भारत इस अस्थिरता को रोकने के जो प्रयास करता हैं, उसमें छोटे देशों को लगता है कि भारत दक्षिण एशिया में दबदबा कायम करना चाहता है। चौथे, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दक्षिण एशिया की राजनीति में जिस प्रकार अपनी भूमिका निभा रहे हैं, उससे भी भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच कड़वाहट पैदा होती रही है।

पृष्ठ 77

प्रश्न 4.
अगर अमरीका के बारे में लिखे गए अध्याय को ‘अमरीकी वर्चस्व’ का शीर्षक दिया गया तो इस अध्याय को भारतीय वर्चस्व क्यों नहीं कहा गया?
उत्तर:
अमरीका के बारे में लिखे गये अध्याय को ‘अमरीकी वर्चस्व’ का शीर्षक इसलिए दिया गया कि विश्व में इस समय अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति है। सैनिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में उसकी वर्चस्वकारी स्थिति है तथा आज सभी देश अमरीकी ताकत के समक्ष बेबस हैं। उसका व्यवहार असहनीय होने के बावजूद सहन करना पड़ रहा है और अन्य देश उसके इस असहनीय व्यवहार का प्रतिरोध भर कर सकते हैं।

यद्यपि दक्षिण एशिया में सैन्य, आर्थिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से भारत की शक्ति अन्य देशों की तुलना में प्रबल है, वर्चस्वकारी है, लेकिन भारत ने अपने इन पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया, बल्कि उनके साथ बराबरी का व्यवहार किया है। इसीलिए इस अध्याय को भारतीय वर्चस्व नहीं कहा गया है।

पृष्ठ 78

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान से लिए गए दो कार्टून ( पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 78 पर ) इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले दो बाहरी खिलाड़ियों की भूमिका की व्याख्या करते हैं। ये बाहरी खिलाड़ी कौन हैं? क्या आपको इन दोनों के दृष्टिकोण में कुछ समानता दिखाई देती है?
उत्तर:

  1. ये दोनों कार्टून भारत तथा पाकिस्तान में दिलचस्पी रखने वाले दो बाहरी खिलाड़ियों की भूमिका की व्याख्या करते हैं
  2. ये बाहरी खिलाड़ी चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
  3. इन दोनों के दृष्टिकोण में समानता यह है कि दोनों इस क्षेत्र में दखल देकर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं। दोनों ही भारत के विरुद्ध पाकिस्तान को आर्थिक तथा शस्त्रास्त्रों का सहयोग देकर उसे भारत के विरोध में खड़ा करने की शक्ति प्रदान करते रहे हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

पृष्ठ 78

प्रश्न 6.
लगता है हर संगठन व्यापार के लिए ही बनता है? क्या व्यापार लोगों के आपसी मेलजोल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
विश्व के अधिकांश संगठन व्यापार के लिए ही बनाए गए हैं। इसलिए ऐसा लगता है कि हर संगठन व्यापार के लिए ही बनता है। यद्यपि व्यापार लोगों के आपसी मेलजोल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है तथापि व्यापार के माध्यम से लोगों का आपसी मेल-जोल भी बढ़ता है, इसलिए इसका महत्त्व अधिक हो जाता है।

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन दक्षिण एशिया Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
देशों की पहचान करें-
(क) राजतंत्र, लोकतंत्र – समर्थक समूहों और अतिवादियों के बीच संघर्ष के कारण राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बना।
उत्तर:
(क) नेपाल,

(ख) चारों तरफ भूमि से घिरा देश।
उत्तर:
(ख) नेपाल, भूटान

(ग) दक्षिण एशिया का वह देश जिसने सबसे पहले अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।
उत्तर:
(ग) श्रीलंका,

(घ) सेना और लोकतंत्र – समर्थक समूहों के बीच संघर्ष में सेना ने लोकतंत्र के ऊपरी बाजी मारी।
उत्तर:
(घ) पाकिस्तान,

(ङ) दक्षिण एशिया के केंद्र में अवस्थित । इस देश की सीमाएँ दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों से मिलती हैं।
उत्तर:
(ङ) भारत,

(च) पहले इस द्वीप में शासन की बागडोर सुल्तान के हाथ में थी । अब यह एक गणतंत्र है।
उत्तर:
(च) मालदीव,

(छ) ग्रामीण क्षेत्र में छोटी बचत और सहकारी ऋण की व्यवस्था के कारण इस देश को गरीबी कम करने में मदद मिली है।
उत्तर:
(छ) बांग्लादेश,

(ज) एक हिमालयी देश जहाँ संवैधानिक राजतंत्र है। यह देश भी हर तरफ से भूमि से घिरा है।
उत्तर:
(ज) भूटान।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 2.
दक्षिण एशिया के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।
(ख) बांग्लादेश और भारत ने नदी जल की हिस्सेदारी के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
(ग) ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर इस्लामाबाद के 12वें सार्क सम्मेलन में हुए।
(घ) दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन और संयुक्त राज्य अमरीका महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।

प्रश्न 3.
पाकिस्तान के लोकतंत्रीकरण में कौन-कौनसी कठिनाइयाँ हैं ?
अथवा
पाकिस्तान में लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियों का वर्णन कीजिये।
अथवा
दक्षिण एशियायी देश पाकिस्तान लोकतान्त्रिक व्यवस्था को लगातार स्थापित क्यों नहीं रख सका? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पाकिस्तान निम्नलिखित कठिनाइयों के कारण प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को लगातार स्थापित नहीं रख सका:

  1. सैनिक तानाशाही – पाकिस्तान में सदैव ही सेना का प्रभुत्व रहा है। वहाँ सैनिक तानाशाही ने लोकतंत्र के मार्ग में सर्वाधिक रुकावटें पैदा की हैं। पाकिस्तान और भारत के कड़वाहट भरे सम्बन्धों की आड़ में पाकिस्तानी सेना ने सदैव पाकिस्तान में अपना दबदबा बनाये रखा तथा किसी भी निर्वाचित सरकार को ठीक ढंग से काम नहीं करने दिया।
  2. लोकतंत्र के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन का अभाव – पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन चले – इसके लिये कोई खास अंतर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता। अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने-अपने स्वार्थों से गुजरे वक्त में पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया।
  3. धर्मगुरुओं एवं अभिजन का प्रभाव – पाकिस्तानी समाज में भू-स्वामी अभिजनों और धर्मगुरुओं का काफी प्रभुत्व रहता है। ये लोग सेना के शासन के पक्षधर रहे हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 4.
नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए?
उत्तर:
एक मजबूत लोकतंत्र समर्थक आंदोलन से विवश होकर नेपाल के राजा ने 1990 में नये लोकतंत्र संविधान की मांग मान ली। लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा हुआ रहा। 1990 के दशक में ही राजा की सेना, लोकतंत्र समर्थकों और भाओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और लोकतंत्र को समाप्त कर दिया। अप्रैल 2006 में यहाँ सात दलों के गठबंधन, माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन किये और राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इस प्रकार नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में समर्थ हुए।

प्रश्न 5.
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है?
उत्तर – श्रीलंका के जातीय संघर्ष में सिंहली – बहुसंख्यकवाद और तमिल – आतंकवाद दोनों की ही प्रमुख भूमिका रही है । श्रीलंका में सिंहली समुदाय बहुसंख्यक है जो अल्पसंख्यक तमिलों के खिलाफ है । सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना था कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत’ नहीं बरती जानी चाहिये क्योंकि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। तमिलों के प्रति उपेक्षा भरे बरताव से एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई।

1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाईगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) ने ‘तमिल ईलम’ यानी’ श्रीलंका के तमिलों के लिये एक अलग देश की मांग की है। श्रीलंका के उत्तर-1 -पूर्वी हिस्से पर लिट्टे का नियंत्रण है। धीरे-धीरे श्रीलंका में जातीय संघर्ष तेज होने लगा और विस्फोटक तथा व्यापक हत्याएँ की जाने लगीं। भारत और श्रीलंका में इस जातीय संघर्ष समाप्त करने के लिए काफी प्रयास किये गये लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई। लेकिन सन् 2009 में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन के सैनिक कार्यवाही में मारे जाने के पश्चात् यह समस्या समाधान के कगार पर है।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में क्या समझौते हुये?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में निम्नलिखित समझौते हुये

  1. 2004 में श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के बीच बस सेवा की शुरुआत पर दोनों देशों में सहमति बनी।
  2. भारत-पाक ने परस्पर आर्थिक समझौते किये।
  3. भारत-पाक ने साहित्य, कला एवं संस्कृति तथा खिलाड़ियों को वीजा देने के लिये आपस में समझौता किया।
  4. भारत-पाक युद्ध के खतरे को कम करने के लिये परस्पर विश्वास बहाली के उपायों पर सहमत हुये हैं।
  5. सन् 2005 में बम्बई और कराची में वाणिज्य दूतावास खोलने पर दोनों देशों में सहमति हुई।

प्रश्न 7.
ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है और इसी तरह दो ऐसे मसलों के नाम बताएँ जिन पर असहमति है।
उत्तर:
(1) सहयोग के मुद्दे-
(क) आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मुद्दे पर दोनों देशों ने निरंतर सहयोग किया है।
(ख) आर्थिक सम्बन्ध के क्षेत्र में दोनों देश परस्पर सहयोगी रहे हैं। बांग्लादेश भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति का हिस्सा है।

(2) असहयोग के मुद्दे –
(क) भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश का इन्कार।
(ख) गंगा, ब्रह्मपुत्र नदी के जल के बँटवारे की समस्या।

प्रश्न 8.
दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय संबंधों को बाहरी शक्तियाँ कैसे प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय संबंधों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं-
1. चीन की रणनीतिक साझेदारी पाकिस्तान के साथ है और यह भारत-चीन संबंधों में एक बड़ी कठिनाई है।

2. शीत युद्ध के बाद दक्षिण एशिया में अमरीकी प्रभाव तेजी से बढ़ा है। अमरीका ने शीत युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों से अपने संबंध बेहतर किये हैं। वह भारत-पाक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है। उसके प्रभाव स्वरूप ही दोनों देशों में आर्थिक सुधार हुए हैं और उदार नीतियाँ अपनायी गयी हैं। इससे दक्षिण एशिया में अमरीकी भागीदारी ज्यादा गहरी हुई है। साथ ही इस क्षेत्र की सुरक्षा एवं शांति के भविष्य से अमेरिका के हित भी बंधे हुए हैं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 9.
दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में ‘दक्षेस’ (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिये आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में सार्क की भूमिका दक्षिण एशिया के देशों में आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। साफ्टा – दक्षेस के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियायी मुक्त व्यापार क्षेत्र – समझौता (SAFTA) हुआ। इस पर 2004 में हस्ताक्षर हुए तथा यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया। इस समझौते का लक्ष्य है कि इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को 2007 तक 20 प्रतिशत कम कर दिया जाये।

अन्य कार्य – सार्क के देशों ने अपने शिखर सम्मेलनों में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध क्षेत्रीय कानूनी खाका तैयार करने, ऊर्जा व खाद्यान्न संकट की चुनौतियों का एकजुट होकर मुकाबला करने, क्षेत्र के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए व्यापक कार्य योजना बनाने तथा सुरक्षा, गरीबी, उन्मूलन व आपदा प्रबन्धन की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।

  • दक्षेस की सीमाएँ
    1. इस क्षेत्र के दो बड़े देशों भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध हैं।
    2. सार्क के कुछ देशों का मानना है कि साफ्टा के माध्यम से भारत यहाँ के बाजार को हस्तगत करना चाहता है तथा यहाँ की राजनीति को प्रभावित करना चाहता है।
    3. दक्षेस के देशों में दक्षिण एशियाई पहचान की कमी है। सार्क देशों की समस्याओं के कारण चीन तथा अमेरिका इस क्षेत्र की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    4. सार्क के अधिकांश देशों में आंतरिक अशान्ति और अस्थिरता और आतंकवाद इसके विकास के मार्ग में प्रमुख बाधा बने हुए हैं।
  • सार्क की सफलता के लिए सुझाव
    1. भारत और पाक अपने राजनैतिक या सीमा सम्बन्धी विवादों को सार्क से दूर रखें।
    2. सार्क देशों को भारत पर विश्वास करना चाहिए।
    3. इन देशों में आन्तरिक शांति तथा स्थिरता की स्थापना हो।
    4. सार्क देशों को इस क्षेत्र से निरक्षरता, बेरोजगारी तथा गरीबी जैसी समस्याओं से निपटने पर एकजुट प्रयास करने पर बल देना चाहिए।

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता इस कथन की पुष्टि में कोई भी दो उदाहरण दें और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं जिसके कारण ये देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर एक स्वर में नहीं बोल पाते और इस कारण यह क्षेत्र वहाँ एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता उदाहरण के लिए-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और पाक के विचार सदैव एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।
  2. दक्षेस के अन्य सदस्य देशों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि भारत कहीं बड़े होने का दबाव हम पर न बनाए।

दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के उपाय – यदि हम दक्षिण एशिया को मजबूत बनाना चाहते हैं तो इसके लिए यह आवश्यक है कि;

  1. सभी देश आपस में एक-दूसरे पर विश्वास करें।
  2. सभी देशों को दक्षेस के मंच पर परस्पर के विवादों को अलग रखते हुए व्यापारिक, सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए।
  3. ये मिलकर वार्ता द्वारा अपनी समस्याओं के समाधान की दिशा में पहल करें।
  4. बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप पर रोक लगाएं।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 11.
दक्षिण एशिया के देश भारत को एक बाहुबली समझते हैं जो इस क्षेत्र के छोटे देशों पर अपना दबदबा जमाना चाहता है और उनके अंदरूनी मामलों में दखल देता है। इन देशों की ऐसी सोच के लिये कौन-कौन सी बातें जिम्मेदार हैं?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देश भारत को एक बाहुबली समझते हैं जो इस क्षेत्र के छोटे देशों पर अपना दबदबा जमाना चाहता है और उनके अंदरूनी मामलों में दखल देता है। इन देशों की ऐसी सोच के लिए निम्नलिखित बातें जिम्मेदार हैं-
1. भारत का आकार बड़ा है और वह दक्षिण एशिया का सर्वाधिक शक्तिशाली परमाणु एवं सैनिक शक्ति सम्पन्न देश है। इसकी वजह से अपेक्षाकृत छोटे देशों का भारत के इरादों को लेकर शक करना लाजिमी है।

2. भारत नहीं चाहता कि इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो। उसे भय लगता है कि ऐसी स्थिति में बाहरी ताकतों को इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने में मदद मिलेगी। इससे छोटे देशों को लगता है कि भारत दक्षिण एशिया में अपना दबदबा कायम करना चाहता है।

3. दक्षिण एशिया का भूगोल ही ऐसा है कि भारत इसमें बीच में स्थित है और बाकी देश भारत की सीमा के इर्द-गिर्द पड़ते हैं।

4. भारत विश्व की तेजी से उभरती आर्थिक व्यवस्था है। भारत जब ‘साफ्टा’ के द्वारा दक्षेस के देशों में मुक्त व्यापार नीति अपनाने पर बल देता है तो कुछ छोटे देश मानते हैं कि ‘साफ्टा’ की ओट लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है और व्यावसायिक उद्यम तथा व्यावसायिक मौजूदगी के जरिये उनके समाज और राजनीति पर असर डालना चाहता है।

समकालीन दक्षिण एशिया JAC Class 12 Political Science Notes

→ परिचय:
बीसवीं सदी के आखिरी सालों में जब भारत और पाकिस्तान ने युद्ध को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की बिरादरी में बैठा लिया तो यह क्षेत्र पूरे विश्व की नजर में महत्त्वपूर्ण हो उठा। इस क्षेत्र के देशों के बीच सीमा और नदी जल को लेकर विवाद कायम है। इसके अतिरिक्त विद्रोह, जातीय संघर्ष और संसाधनों के बँटवारे को लेकर होने वाले झगड़े भी हैं। इन वजहों से दक्षिण एशिया का इलाका बड़ा संवेदनशील है। इस इलाके के बहुत से लोग इस तथ्य की निशानदेही करते हैं कि दक्षिण एशिया के देश आपस में सहयोग करें यह क्षेत्र विकास करके समृद्ध बन सकता है। क्या है दक्षिण एशिया?

1. प्राय: बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है।

2. उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण का हिंद महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से यह क्षेत्र एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। यह भौगोलिक विशिष्टता ही इस उप-महाद्वीपीय क्षेत्र के भाषाई, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है। भू राजनैतिक धरातल पर दक्षिण एशिया एक क्षेत्र विशेष है, लेकिन यह विविधताओं से भरा क्षेत्र है।

→ दक्षिण एशिया में राजनैतिक प्रणाली- दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनीतिक प्रणाली नहीं है।

  • भारत और श्रीलंका में स्वतंत्रता के बाद से लोकतांत्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है।
  • पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक और सैनिक दोनों तरह के नेताओं का शासन रहा है।
  • भूटान में वर्तमान में राजतंत्र है, लेकिन यहाँ बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है।
  • मालदीव में 1968 तक सल्तनत का शासन था। 1968 के बाद यहाँ लोकतांत्रिक गणराज्य बना और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी है।
  • नेपाल में 2006 तक संवैधानिक राजतंत्र था, लेकिन अप्रेल, 2006 में एक सफल जन विद्रोह के बाद यहाँ लोकतंत्र की बहाली हुई है।

इस प्रकार दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का रिकार्ड मिला-जुला रहा है। इसके बावजूद दक्षिण एशियायी देशों की जनता लोकतंत्र की आकांक्षाओं में सहभागी है। इन देशों के लोग शासन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतंत्र को वरीयता देते हैं।

दक्षिण एशिया का घटनाक्रम ( 1947 से )
→ 1947: ब्रिटिश राज की समाप्ति के बाद भारत और पाकिस्तान का स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय।

→ 1948: श्रीलंका (तत्कालीन सिलोन) को आजादी मिली; कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई।

→ 1954-55: पाकिस्तान शीतयुद्धकालीन सैन्य गुट ‘सिएटो’ और ‘सेंटो’ में शामिल हुआ।

→ सितम्बर, 1960: भारत और पाकिस्तान ने सिंधु नदी जल समझौते पर हस्ताक्षर किए।

→ 1962: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद।

→ 1965: भारत-पाक युद्ध; संयुक्त राष्ट्रसंघ का भारत – पाक पर्यवेक्षण मिशन।

→ 1966: भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को ज्यादा स्वायत्तता देने के लिए छ: सूत्री प्रस्ताव रखा।

→ मार्च, 1971: बांग्लादेश के नेताओं द्वारा आजादी की उद्घोषणा।

→ अगस्त, 1971: भारत और सोवियत संघ ने 20 सालों के लिए मैत्री संधि पर दस्तखत किए।

→ दिसंबर, 1971: भारत-पाक युद्ध; बांग्लादेश की मुक्ति।

→ जुलाई, 1972: भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता।

→ मई, 1974: भारत ने परमाणु परीक्षण किए।

→ 1976: पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच कूटनयिक संबंध बहाल हुए।

→ दिसम्बर, 1985: ‘दक्षेस’ के पहले सम्मेलन में दक्षिण एशिया के देशों ने ‘दक्षेस’ के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए।

→ 1987: भारत-श्रीलंका समझौता; भारतीय शांति सेना का श्रीलंका में अभियान (1987-90)।

→ 1988: मालदीव में भाड़े के सैनिकों द्वारा किए गए षड्यन्त्र को नाकाम करने के लिए भारत ने वहाँ सेना भेजी। भारत और पाकिस्तान के बीच एक-दूसरे के परमाणु ठिकानों और सुविधाओं पर हमला न करने के समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

→ 1988-91: पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में लोकतंत्र की बहाली।

→ 1993: ‘दक्षेस’ के सातवें सम्मेलन में आपसी व्यापार में दक्षेस के देशों को वरीयता देने की संधि पर हस्ताक्षर।

→ दिसम्बर, 1996: गंगा नदी के पानी में हिस्सेदारी के मसले पर भारत और बांग्लादेश के बीच फरक्का संधि पर हस्ताक्षर हुए।

→ मई, 1998: भारत और पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किए।

→ दिसंबर, 1998: भारत और पाकिस्तान ने मुक्त व्यापार संधि पर हस्ताक्षर किए।

→ फरवरी, 1999: भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस – यात्रा करके लाहौर गए तथा शांति के एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए।

→ जून – जुलाई, 1999: भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल – युद्ध।

→ जुलाई 2001: वाजपेयी – मुशर्रफ के बीच आगरा – बैठक असफल।

→ फरवरी 2004: 12वें दक्षेस सम्मेलन में ‘मुक्त व्यापार संधि’ पर हस्ताक्षर हुए।

→ 2007: अफगानिस्तान दक्षेस का सदस्य बना।

→ नवम्बर, 2014: 8वां दक्षेस सम्मेलन काठमांडू, नेपाल में हुआ।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

→ पाकिस्तान में सेना और लोकतंत्र:
→ 14 अगस्त, 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना हुई स्थापना के समय पाकिस्तान दो खंडों में विभाजित था, जिसे पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था।

→ मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खाँ ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। जिन्ना की मृत्यु के पश्चात् शासन की बागडोर लियाकत अली खाँ के हाथों में आ गई। लियाकत अली खाँ की हत्या के बाद ख्वाजा निजामुद्दीन को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया। 1953 निजामुद्दीन का मंत्रिमंडल भंग कर दिया और मुहम्मद अली को प्रधानमंत्री बनाया गया।

→ पाकिस्तान में पहले संविधान के बनने के बाद देश के शासन की बागडोर जनरल अयूब खान ने अपने हाथों में ले ली और जल्दी ही अपना निर्वाचन भी करा लिया। परन्तु उनके शासन के खिलाफ जनता का गुस्सा भड़का फलस्वरूप सैनिक शासन का रास्ता साफ हुआ और याहिया खान ने शासन की बागडोर संभाली।

→ याहिया खान के शासनकाल में पाकिस्तान को बांग्ला देश संकट का सामना करना पड़ा और 1971 को भारत-पाक के बीच युद्ध हुआ और युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से टूटकर एक अलग देश- बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

→ बांग्लादेश के निर्माण के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार बनी जो 1977 तक कायम रही।

→ 1977 में जनरल जियाउल हक ने इस सरकार को अपदस्थ कर दिया 1982 के बाद जनरल जियाउल – हक को लोकतंत्र – समर्थक आंदोलन का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप 1988 में पुनः बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार बनी। निर्वाचित लोकतंत्र की यह अवस्था 1999 तक बनी रही।

→ 1999 में फिर सेना ने दखल दी तथा सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पदच्युत करके सत्ता संभाल ली। 2001 में मुशर्रफ ने राष्ट्रपति के रूप में अपना निर्वाचन करा लिया।

→ 2008 में पाकिस्तान में चुनाव हुए जिसमें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। वर्तमान में पाकिस्तान में लोकतंत्रीय शासन है जिसमें नवाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं।

→ पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी न बन पाने के कई कारण हैं। यथा-

  • यहाँ सेना, धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनों का दबदबा है।
  • पाकिस्तान की भारत के साथ तनातनी के कारण यहाँ सेना समर्थक समूह ज्यादा मजबूत है।
  • पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन चले इसके लिए कोई खास अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता।
  • अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने निहित स्वार्थों की सिद्धि के लिए पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया है।

→ बांग्लादेश में लोकतंत्र

  • 1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था।
  • 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के आजादी के आंदोलन तथा भारत – पाक युद्ध के कारण स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ का निर्माण हुआ।
  • 1971 में बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया।
  • 1975 में शेख मुजीब ने संविधान में संशोधन कराकर उसे अध्यक्षात्मक प्रणाली का रूप दिया तथा अवामी पार्टी को छोड़कर अन्य पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव व संघर्ष की स्थिति पैदा हुई तथा एक त्रासद घटनाक्रम में शेख मुजीब सेना के हाथों मारे गये।
  • 1975 में सैनिक शासक जियाउर्रहमान ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी और 1979 के चुनाव में विजयी रही। लेकिन जियाउर्रहमान की हत्या हुई और एच. एम. इरशाद के नेतृत्व में एक सैनिक शासन ने बागडोर संभाली। वे 1990 तक सत्ता में बने रहे।
  • 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र कायम है।

→ नेपाल में राजतंत्र और लोकतंत्र

  • नेपाल अतीत में एक हिन्दू राज्य था।
  • आधुनिक काल में 1990 तक यहाँ संवैधानिक राजतंत्र रहा।
  • एक मजबूत लोकतंत्र – समर्थक आंदोलन के कारण राजा ने 1990 में नये लोकतांत्रिक संविधान की माँग मान ली । लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा रहा।
  • 1990 के दशक में नेपाल में राजा की सेना, लोकतंत्र – समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष हुआ। फलस्वरूप 2002 में राजा ने संसद को भंग कर लोकतंत्र को समाप्त कर दिया।
  • अप्रैल, 2006 में यहाँ देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए। अहिंसक रहे इस आंदोलन का नेतृत्व सात दलों के गठबंधन, माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया और पुनः नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई है। माओवादी और कुछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत शंकित थे। 2008 में नेपाल राजतंत्र को खत्म करने के बाद लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। 2015 में नेपाल ने नया संविधान अपनाया।

JAC Class 12 Political Science Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

→ श्रीलंका में जातीय संघर्ष और लोकतंत्र

  • स्वतंत्रता (1948) के बाद से लेकर अब तक श्रीलंका में लोकतंत्र कायम है।
  • श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है जिसकी मांग है- श्रीलंका के एक क्षेत्र को तमिलों के लिए एक अलग राष्ट्र बनाया जाये।
  • श्रीलंका की राजनीति में बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का दबदबा रहा है। इन लोगों का मानना है कि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। अतः तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जाये।
  • सिंहलियों के इस उपेक्षा भरे व्यवहार की प्रतिक्रिया में श्रीलंका में उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई। 1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) ने श्रीलंका की सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ कर दिया।
  • श्रीलंका के इस संकट का हिंसक चरित्र बरकरार है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थ के रूप में नार्वे और आइसलैंड जैसे देश दोनों पक्षों को आपस में बातचीत के लिए राजी कर रहे हैं। श्रीलंका का भविष्य इन्हीं वार्ताओं पर निर्भर है।
  • अंदरूनी संघर्ष के झंझावातों को झेलकर भी श्रीलंका ने लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था कायम रखी है।

→ भारत-पाकिस्तान संघर्ष

→ विभाजन के तुरन्त बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देश कश्मीर के मुद्दे पर लड़ पड़े पाकिस्तान सरकार का दावा था कि कश्मीर पाकिस्तान का है।
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के मुद्दे पर पहले 1947-48 में युद्ध हुआ और फिर 1965 में। लेकिन युद्ध से इसका समाधान नहीं हुआ। युद्ध से कश्मीर के दो भाग हो गए एक भाग पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाया और दूसरा हिस्सा भारत का जम्मू-कश्मीर प्रान्त बना। दोनों के बीच एक नियंत्रण – सीमा रेखा है।

→ सामरिक मसलों, जैसे- सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण तथा हथियारों की होड़ को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी रहती है ।

→ दोनों देशों की सरकारें लगातार एक-दूसरे को संदेह की नजरों से देखती हैं।

→ दोनों के बीच नदी जल बँटवारे के सवाल पर भी तनातनी हुई है।

→ कच्छ के रन में सरक्रिक की सीमा रेखा को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।

→ भारत और पाक के बीच इन सभी मसलों पर वार्ताओं के दौर चल रहे हैं।

→ भारत तथा बांग्लादेश सम्बन्ध-

  • बांग्लादेश और भारत के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के जल में हिस्सेदारी सहित कई मुद्दों पर मतभेद हैं।
  • भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों के अवैध आप्रवास, भारत-विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन, म्यांमार को बांग्लादेशी क्षेत्र से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देने आदि मुद्दों पर दोनों में मतभेद हैं।
  • भारत-बांग्लादेश के सहयोग के क्षेत्र हैं आर्थिक सम्बन्धों में सुधार, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मुद्दे पर दोनों में सहयोग।

→ भारत तथा नेपाल सम्बन्ध-

  • भारत और नेपाल के बीच मधुर सम्बन्ध हैं। दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं।
  • नेपाल की चीन के साथ बढ़ती दोस्ती को लेकर भारत ने अपनी अप्रसन्नता बताई है। वह भारत – विरोधी तत्वों के प्रति कठोर कदम नहीं उठाता। नेपाल में माओवाद के बढ़ने से भारत के नक्सलवाद को बढ़ावा मिलता है
  • नेपाल सरकार भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने, नदी- जल, पन- बिजली आदि मुद्दों पर भारत से नाराज है।
  • विभेदों के बावजूद दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन, जल प्रबंधन के मसले पर सहयोग कर रहे हैं।

भारत तथा श्रीलंका सम्बन्ध-
→ श्रीलंका और भारत की सरकारों के सम्बन्धों में तनाव इस द्वीप में जारी जातीय संघर्ष को लेकर है।

→ 1987 के बाद से भारत सरकार श्रीलंका के मामले में असंलग्नता की नीति अपनाये हुए है।

→ दोनों ने एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ किया है। भारत-भूटान – भारत तथा भूटान के बीच बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। भारत- मालदीव – भारत और मालदीव के साथ भी भारत के सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध हैं। दक्षिण एशिया में भारत केन्द्र में स्थित है और अन्य देश भारत की सीमा के इर्द-गिर्द पड़ते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में सभी बड़े झगड़े भारत और उसके पड़ौसी देशों के बीच हैं।

→ दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग
दक्षिण एशिया के देश आपस में दोस्ताना रिश्ते तथा सहयोग के महत्त्व को पहचानते हैं। यथा-

  • इस क्षेत्र में शांति के प्रयास द्विपक्षीय भी हुए हैं और क्षेत्रीय स्तर पर भी।
  • दक्षेस (सार्क) इन देशों का आपस में सहयोग की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। दक्षेस ने इस क्षेत्र में मुक्त व्यापार हेतु साफ्टा समझौता किया है।
  • भारत ने भूटान, नेपाल, श्रीलंका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते किये हैं।
  • भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ताओं के दौर जारी हैं। पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों के पंजाब वाले हिस्से के बीच कई बस मार्ग खुले हैं।
  • पिछले दस वर्षों से भारत-चीन के सम्बन्ध बेहतर हुए हैं।
  • अमेरिका, भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है।
  • भारत और अमरीका के बीच शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सम्बन्धों में निकटता आई है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो –
1. दसवीं पंचवर्षीय योजना कब समाप्त हुई ?
(A) 2005
(B) 2006
(C) 2007
(D) 2008.
उत्तर:
(C) 2007

2. भरमौर जन- जातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
(A) उत्तराखंड
(B) जम्मू कश्मीर
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(C) हिमाचल प्रदेश

3. किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास किस तत्त्व पर निर्भर करता है ?
(A) धरातल
(B) जलवायु
(C) जनसंख्या
(D) संसाधन।
उत्तर:
(D) संसाधन।

4. पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम में क्षेत्र की ऊँचाई कितनी ऊँचाई से अधिक है ?
(A) 500 मीटर
(B) 600 मीटर
(C) 700 मीटर
(D) 800 मीटर
उत्तर:
(B) 600 मीटर

5. सूखा सम्भावी क्षेत्र कितने जिलों में पहचाने गए हैं ?
(A) 47
(B) 57
(C) 67
(D) 77.
उत्तर:
(C) 67

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

6. भरमौर क्षेत्र की प्रमुख नदी है-
(A) चेनाब
(B) ब्यास
(C) सतलुज
(D) रावी।
उत्तर:
(D) रावी।

7. भरमौर क्षेत्र में कौन-सी जन-जाति निवास करती है ?
(A) भोरिया
(B) गद्दी
(C) मारिया
(D) भील।
उत्तर:
(B) गद्दी

8. भरमौर क्षेत्र में स्त्री साक्षरता है-
(A) 32%
(B) 35%
(C) 40%
(D) 42%.
उत्तर:
(D) 42%.

9. अवर कॉमन फ़्यूचर रिपोर्ट किसने प्रस्तुत की ?
(A) ब्रंटलैंड
(B) मीडोस
(C) एहरलिच
(D) राष्ट्र संघ।
उत्तर:
(A) ब्रंटलैंड

10. इन्दिरा गाँधी नहर किस बाँध से निकाली गई है ?
(A) भाखड़ा
(C) हरीके
(B) नंगल
(D) थीन।
उत्तर:
(C) हरीके

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में सर्वप्रथम पंचवर्षीय योजना कब आरम्भ हुई ? इसकी अवधि क्या थी ?
उत्तर:
1951 में 1951-1956.

प्रश्न 2.
दसवीं पंचवर्षीय योजना कब समाप्त हुई है ?
उत्तर:
31.3.2007 को

प्रश्न 3.
नियोजन के दो उपागम बताओ।
उत्तर:
खण्डीय तथा प्रादेशिक

प्रश्न 4.
योजना अवकाश का क्या समय रहा ?
उत्तर:
1966-67, 1968-1969.

प्रश्न 5.
सूखा सम्भावी क्षेत्र में विकास के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
रोज़गार उपलब्ध करना तथा सूखा कम करना।

प्रश्न 6.
सूखा सम्भावी क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र कितने % हो ?
उत्तर:
30% से कम।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 7.
पर्वतीय विकास क्षेत्र में दो पहाड़ी क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
दार्जिलिंग तथा नीलगिरी।

प्रश्न 8.
भरमौर जन- जातीय खण्ड हिमाचल प्रदेश के किस जिले में स्थित है ?
उत्तर:
चम्बा ज़िला की दो तहसीले भरमौर तथा होली।

प्रश्न 9.
भरमौर क्षेत्र में स्थित दो पर्वत श्रेणियां बताओ।
उत्तर:
पीर पंजाल तथा धौलाधार।

प्रश्न 10.
भरमौर क्षेत्र की जनसंख्या तथा जनसंख्या घनत्व बताओ।
उत्तर:
जनसंख्या 32,246 तथा घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग कि० मी०।

प्रश्न 11.
किस बाँध से इन्दिरा गाँधी नहर निकाली गई ?
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर हरीके पतन बाँध से निकाली गई है।

प्रश्न 12.
‘दी लिमिट टू ग्रोथ’ पुस्तक किसने लिखी ?
उत्तर:
1972 में मीडोस ने ‘दी लिमिट टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक लिखी।

प्रश्न 13.
सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लोगों के लिए चौथी पंचवर्षीय योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना को सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लागू करने का मुख्य उद्देश्य रोज़गार प्रदान करना था ।

प्रश्न 14.
भारत की किस पंचवर्षीय योजना में पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया गया ?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम भारत की पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-75 से 1977-78 तक) में प्रारम्भ किया गया ताकि मूल संसाधनों का विकास किया जा सके ।

प्रश्न 15.
भरमौर जनजातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नियोजन से क्या अभिप्राय है ? यह किस प्रकार एक क्रमिक प्रक्रिया है ?
उत्तर:
नियोजन, क्रियाओं के क्रम / अनुक्रम को विकसित करने की प्रक्रिया है, जिसे भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए बनाया जाता हैं। नियोजन के लिए चुनी गई समस्याएं बदलती रहती हैं पर यह मुख्य रूप में आर्थिक और सामाजिक ही होती है। नियोजन के प्रकार और स्तर के अनुसार नियोजन की अवधि में भी अन्तर होता है लेकिन सभी प्रकार के नियोजन में एक क्रमिक प्रक्रिया होती है, जिसकी कुछ अवस्थाओं के रूप में संकल्पना की जाती है।

प्रश्न 2.
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम कहां-कहां आरम्भ किए गए हैं ?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारम्भ किया गया और इसके अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के सारे पर्वतीय जिले (वर्तमान उत्तराखंड), मिकिर पहाड़ी और असम की उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग ज़िला और तमिलनाडु के नीलगिरी आदि को मिलाकर कुल 15 जिले शामिल हैं। 1981 में ‘पिछड़े क्षेत्रों पर राष्ट्रीय समिति ने उस सभी पर्वतीय क्षेत्रों को पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल करने की सिफारिश की जिनकी ऊँचाई 600 मीटर से अधिक है और जिनमें जन- जातीय उप-योजना लागू नहीं है।

प्रश्न 3.
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के क्या सुझाव दिए गए हैं ?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए बनी राष्ट्रीय समिति ने निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए सुझाव दिए:
(1) सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं;
(2) स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास;
(3) जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी बनाना;
(4) अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
(5) पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
(6) पारिस्थिकीय सन्तुलन बनाए रखना ।

प्रश्न 4.
पर्वतीय क्षेत्रों में किन पक्षों का विकास किया जाएगा ?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्र के विकास की विस्तृत योजनाएँ इनके स्थलाकृतिक, पारिस्थिकीय, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई। ये कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी का विकास, रोपण कृषि, पशुपालन, मुर्गी पालन, वानिकी, लघु तथा ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाने के उद्देश्य से बनाए गए।

प्रश्न 5.
सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई। इसका उद्देश्य सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था । पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया । प्रारम्भ में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है । परन्तु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे विद्युत्, सड़कों, बाज़ार, ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर जोर दिया।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 6.
देश के किन भागों में सूखा सम्भावी क्षेत्र है ?
उत्तर:
1967 में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों (पूर्ण या आंशिक) की पहचान सूखा सम्भावी जिलों के रूप में की। 1972 में सिंचाई आयोग ने 30 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र का मापदंड लेकर सूखा सम्भावी क्षेत्रों को परिसीमन किया । भारत में सूखा सम्भावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश के रायलसीमा और तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भाग के शुष्क और अर्ध-शुष्क भागों में फैले हुए हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते हैं।

प्रश्न 7.
इन्दिरा गाँधी नहर कब आरम्भ हुई ? यह नहर किन-किन राज्यों से गुज़रती है ?
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर –

  1. आरम्भ – इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना पर काम 31 मार्च, 1958 को प्रारम्भ हुआ था।
  2. निकास स्थान- पंजाब प्रान्त के फिरोज़पुर ज़िले में सतलुज तथा व्यास के संगम पर स्थित हरिके बैराज से यह निकाली गई है।
  3. जल ग्रहण क्षमता – यह अपने तल में 40 मीटर चौड़ी तथा 6.4 मीटर गहरी है। अपने शीर्ष पर इसकी प्रवाह क्षमता 18,500 क्यूसेक्स है। 1981 के एक प्रस्ताव के अनुसार रावी – व्यास के अतिरिक्त जल से राजस्थान को 8.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का नियतन किया गया था जिसमें से 7.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का उपयोग इन्दिरा गाँधी नहर द्वारा किया जायेगा।
  4. राज्यों में विस्तार – इन्दिरा गाँधी नहर 204 किलोमीटर तक एक फीडर है और 150 किलोमीटर पंजाब में तथा 19 किलोमीटर हरियाणा में बहती है जहाँ इसमें कोई निकास नहीं है।
  5. शीर्ष स्थान – मुख्य नहर का शीर्ष श्री गंगानगर के हनुमानगढ़ तहसील में मसीतावाली के निकट स्थित है । 445 किलोमीटर लम्बी नहर का अन्तिम भाग जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के निकट स्थित है।
  6. कमाण्ड क्षेत्र – इस नहर का कमाण्ड क्षेत्र – बाड़मेर जिले के गदरा रोड तक विस्तृत है। इस परियोजना का निर्माण कार्य हो रहा है तथा इसे दो चरणों में किया जा रहा है। इस नहर में 11 अक्तूबर, 1967 को पानी छोड़ा गया था और 1 जनवरी, 1987 को यह अन्तिम छोर तक पहुँचाया जा सका है।

प्रश्न 8.
इन्दिरा गाँधी नहर कमाण्ड क्षेत्र से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़े हैं ?
उत्तर:
सिंचाई का पर्यावरण पर प्रभाव-
सिंचाई से इस क्षेत्र की कृषि भू-दृश्यावली में परिवर्तन साफ़ परिलक्षित होता है तथा कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
1. भू-जल स्तर में वृद्धि – प्रथम चरण के कमाण्ड क्षेत्र में भूमि – जल स्तर में 0.8 मीटर प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है जो चिन्ता का विषय है । भूमिगत जल विभाग के एक अनुमान के अनुसार घग्घर बेसिन क्षेत्र के लगभग 25 प्रतिशत भाग की दशा जल स्तर के ऊपर आ जाने से शोचनीय हो गई है। यदि इसे रोकने के उपाय न किए गए तो इस शताब्दी के अन्त तक लगभग 50 प्रतिशत भाग की दशा बिगड़ने की सम्भावना है।

2. मिट्टी में लवणता – मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होने एवं जलाक्रातता के कारण कमाण्ड क्षेत्र के प्रथम चरण की मिट्टी में लवणता का प्रकोप बढ़ गया है।

3. मिट्टी की उर्वरता – इसके कारण मिट्टी की उर्वरता तथा कृषि उत्पादन पर कुप्रभाव पड़ा है। यह समस्या द्वितीय चरण कमाण्ड क्षेत्र में अधिक शोचनीय होने की आंशका है। क्योंकि कमाण्ड क्षेत्र के इस भाग में भूमि के कुछ ही मीटर नीचे कंकड़ के स्तर जो प्रवाह को अवरुद्ध कर जलाक्रांतता को प्रोत्साहन देते हैं।

प्रश्न 9.
इन्दिरा गाँधी नहर कमाण्ड क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ? इस क्षेत्र की स्थिति तथा विस्तार बताओ।
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर थार मरुस्थल के विकास के लिए बनाई गई नहर है। यह संसार के बहुत बड़े नहर तन्त्रों में से एक है। इस नहर का कमाण्ड क्षेत्र राजस्थान के थार मरुस्थल के उत्तर पश्चिमी भाग में श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर तथा चुरू जिलों में स्थित है। यह पाकिस्तान की सीमा रेखा के साथ लगभग 23,725 वर्ग कि० मी० क्षेत्र पर फैला हुआ है। यह क्षेत्र पाकिस्तान सीमा रेखा के समानान्तर लगभग 38 कि० मी० चौड़ाई में फैला हुआ है

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खण्डीय नियोजन तथा प्रादेशिक नियोजन में अन्तर बताओ ।
उत्तर:
सामान्यतः नियोजन के दो उपागम होते हैं –
(1) खण्डीय (Sectoral) नियोजन और
(2) प्रादेशिक नियोजन।

1. खण्डीय नियोजन – खण्डीय नियोजन का अर्थ है – अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों, जैसे- कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना तथा उनको लागू करना।

2. प्रादेशिक नियोजन – किसी भी देश में सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हैं तो कुछ पिछड़े हुए हैं। विकास का यह असमान प्रतिरूप (Pattern) सुनिश्चित करता है कि नियोजक एक स्थानिक परिप्रेक्ष्य अपनाएँ तथा विकास में प्रादेशिक असंतुलन कम करने के लिए योजना बनाएं। इस प्रकार के नियोजन को प्रादेशिक नियोजन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
” भारत में नियोजन अभी तक केन्द्रीकृत ही है ।” स्पष्ट करते हुए इसके अधीन महत्त्वपूर्ण विषयों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में नियोजन अभी तक केन्द्रीकृत ही है। राष्ट्रीय विकास परिषद् नियोजन की नीति तय करती है। इस परिषद् में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल, योजना आयोग के सदस्य राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमन्त्री / प्रशासक शामिल होते हैं । राष्ट्रीय महत्त्व के विषय. जैसे- रक्षा, संचार, रेलें आदि केन्द्रीय सरकार के अधीन होते हैं जबकि ग्रामीण विकास की महत्त्वपूर्ण सेवाएं, लघु उद्योग और सड़कों का विकास व परिवहन राज्य सरकार के नियन्त्रण में होते हैं। अधिकतर मामलों में योजना आयोग ही, कार्य-नीतियां, नीतियां और कार्यक्रम बनाता है तथा राज्यों को केवल उन्हें क्रियान्वित करने के लिए कहा जाता है।

प्रश्न 3.
‘लक्ष्य क्षेत्र’ (Target Area) तथा ‘लक्ष्य समूह’ (Target group) से क्या अभिप्राय है ? इन क्षेत्रों में कौन से कार्यक्रम सम्मिलित हैं ?
उत्तर:
आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन प्रबल हो रहा था। क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को काबू में रखने के क्रम में योजना आयोग ने ‘लक्ष्य क्षेत्र’ तथा ‘लक्ष्य समूह’ योजना उपागमों को प्रस्तुत किया है। लक्ष्य क्षेत्रों की ओर इंगित कार्यक्रमों के कुछ उदाहरणों में कमान नियन्त्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम हैं। इसके साथ ही लघु कृषक विकास संस्था, सीमान्त किसान विकास संस्था आदि कुछ लक्ष्य समूह कार्यक्रम के उदाहरण हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना में पर्वतीय क्षेत्रों तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों, जनजातीय एवं पिछड़े क्षेत्रों में अवसंरचना को विकसित करने के लिए विशिष्ट क्षेत्र योजना को तैयार किया गया।

प्रश्न 4.
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए कौन-से सुझाव आप देना चाहोगे जो इनके वासियों को आधारभूत सेवाएँ प्रदान करने में सहायक ?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए कुछ सुझाव –

  1. सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं
  2. स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास
  3. जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था का निवेश – उन्मुखी बनाना
  4. अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
  5. पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
  6. पारिस्थिकीय सन्तुलन बनाएं रखना।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में नियोजन परिप्रेक्ष्य का अवलोकन करो।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में योजना आयोग ने निम्नलिखित पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई हैं-
1. प्रथम पंचवर्षीय योजना – प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 में आरम्भ हुई तथा यह 1951-52 से 1955-56 तक चली।
2. द्वितीय तथा तृतीय पंचवर्षीय योजना – द्वितीय तथा तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं की समय अवधि क्रमशः 1956- 57 से 1960-61 और 1961-62 से 1965-66 तक रही।
3. योजना अवकाश – 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो सूखों (1965-66 और 1966-67) और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण 1966-67 और 1968-69 में ‘ योजना अवकाश’ लेना पड़ा।
4. रोलिंग प्लान- इस अवधि में वार्षिक योजनाएँ लागू रहीं जिन्हें ‘रोलिंग प्लान’ भी कहा गया है।
5. चतुर्थ पंचवर्षीय योजना – चतुर्थ पंचवर्षीय योजना 1969-70 में आरम्भ हुई और 1973-74 तक चली। 6. पांचवीं पंचवर्षीय योजना- इसके बाद पाँचवीं पंचवर्षीय योजना आरम्भ 1974-75 में आरम्भ हुई परन्तु तत्कालीन सरकार ने इसे एक वर्ष पहले अर्थात् 1977-78 में ही समाप्त कर दिया।
7. छठी पंचवर्षीय योजना – छठी पंचवर्षीय योजना 1980 में लागू हुई।
8. सातवीं पंचवर्षीय योजना-सातवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 1985 से 1990 के बीच रही। एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता और उदारीकरण की नीति की शुरुआत के कारण आठवीं पंचवर्षीय योजना देरी से आरम्भ हुई।
9. आठवीं पंचवर्षीय योजना- इस योजना ने 1992 से 1997 के बीच की अवधि तय की।
10. नौवीं पंचवर्षीय योजना- नौवीं पंचवर्षीय योजना 1997 से 2002 तक लागू रही।
11. दसवीं पंचवर्षीय योजना – दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002 में प्रारम्भ हुई और 31.3.2007 को समाप्त हुई । 12. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना – ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का उपागम प्रपत्र ‘तीव्रता के साथ और अधिक सम्मिलित वृद्धि की ओर’ पर पहले से ही परिचर्चा चल रही है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 2.
भरमौर क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण बताओ।
उत्तर:
1. स्थिति तथा क्षेत्रफल – यह क्षेत्र 32° 11′ उत्तर से 32° 41′ उत्तर अक्षांशों तथा 76° 22′ पूर्व से 76° 53′ पूर्व देशान्तरों के बीच स्थित है। यह प्रदेश लगभग 1,818 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

2. धरातल – इसका अधिकतर भाग समुद्र तल से 1500 मीटर से 3700 मीटर की औसत ऊँचाई के बीच स्थित है। गद्दियों की आवास भूमि कहलाया जाने वाला यह क्षेत्र चारों दिशाओं में ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ है। इसके उत्तर में पीर पंजाल तथा दक्षिण में धौलाधार पर्वत श्रेणियाँ हैं। पूर्व में धौलाधार श्रेणी का फैलाव रोहतांग दर्रे के पास पीर पंजाल श्रेणी से मिलता है।

3. नदियाँ – इस क्षेत्र में रावी और इसकी सहायक नदियाँ बुधित और टुंडेन बहती हैं और गहरे महाखड्डों का निर्माण करती हैं। ये नदियाँ इस पहाड़ी प्रदेश को चार भूखण्डों, होली, खणी, कुगती और तुण्डाह में विभाजित करती हैं।

4. जलवायु – शरद् ऋतु में भरमौर में जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी और बर्फ पड़ती है तथा जनवरी में यहाँ औसत मासिक तापमान 4° सेल्सियस और जुलाई में 26° सेल्सियस रहता है।

प्रश्न 3.
भरमौर समन्वित जनजातीय खण्ड के विकास का कार्यक्रम तथा उनके प्रभाव बताओ ।
उत्तर:
केस अध्ययन – भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम
1. सामाजिक जीवन – भरमौर जनजातीय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की दो तहसीलें, भरमौर और होली शामिल हैं। यह 21 नवम्बर, 1975 से अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ‘ गद्दी जनजातीय समुदाय का आवास है।’ इस समुदाय की हिमालय क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान है क्योंकि गद्दी लोग ऋतु प्रवास करते हैं तथा गद्दीयाली भाषा में बात करते हैं। भरमौर जनजातीय क्षेत्र में जलवायु कठोर है, आधारभूत संसाधन कम हैं और पर्यावरण भंगुर है।

इन कारकों ने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया है। 2001 की जनगणना के अनुसार, भरमौर उपमण्डल की जनसंख्या 32,246 थी अर्थात् जनसंख्या घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर। यह हिमाचल प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है । ऐतिहासिक तौर पर, गद्दी जनजाति ने भौगोलिक और आर्थिक अलगाव का अनुभव किया है और सामाजिक-आर्थिक विकास से वंचित रही है। इनका आर्थिक आधार मुख्य रूप से कृषि और इससे सम्बद्ध क्रियाएँ जैसे- भेड़ और बकरी पालन है।

2. विकास कार्यक्रम – भरमौर जनजातीय क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया 1970 के दशक में शुरू हुई जब गद्दी लोगों को अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया गया। 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत जनजातीय उप-योजना प्रारम्भ हुई और भरमौर को हिमाचल प्रदेश में पाँच में से समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (आई० टी० डी० पी० ) का दर्जा मिला। इस क्षेत्र विकास योजना का उद्देश्य गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना और भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के बीच में विकास के स्तर में अन्तर को कम करना है। इस योजना के अन्तर्गत परिवहन तथा संचार, कृषि और इससे सम्बन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई।

3. उद्देश्य – इस क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान विद्यालयों, जन स्वास्थ्य सुविधाओं, पेयजल, सड़कों, संचार और विद्युत् के रूप में अवसंरचना विकास है। परन्तु होली और खणी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गाँव अवसंरचना विकास के सबसे अधिक लाभान्वित हुए हैं। तुंदाह और कुगती क्षेत्रों के दूरदराज के गाँव अभी भी इस विकास की परिधि से बाहर हैं।

4. विकास कार्यक्रम से प्राप्त लाभ – जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार और बाल विवाह में कमी शामिल है।

  • इस क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 42.83 प्रतिशत हो गई।
  • स्त्री और पुरुष साक्षरता दर में अन्तर अर्थात् साक्षरता में लिंग असमानता भी कम हुई है ।
  • गद्दियों की परम्परागत अर्थव्यवस्था जीवन निर्वाह कृषि व पशुचारण पर आधारित थी जिसमें खाद्यान्नों और पशुओं के उत्पादन पर बल दिया जाता था।

परन्तु 20वीं शताब्दी के अन्तिम तीन दशकों के दौरान, भरमौर क्षेत्र में दालों और अन्य नकदी फसलों की खेती में बढ़ोत्तरी हुई है। परन्तु यहाँ खेती अभी भी परम्परागत तकनीकों से की जाती है । (4) इस क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में पशुचारण के घटते महत्त्व को इस बात से आँका जा सकता है कि आज कुल पारिवारिक इकाइयों का दसवाँ भाग ही ऋतु प्रवास करता है । परन्तु गद्दी जनजाति आज भी बहुत गतिशील है क्योंकि इनकी एक बड़ी संख्या शरद् ऋतु में कृषि और मज़दूरी करके आजीविका कमाने के लिए कांगड़ा और आस-पास के क्षेत्रों में प्रवास करती है –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास - 1

प्रश्न 4.
सतत् पोषणीय विकास पर एक निबन्ध लिखो।
उत्तर:
सतत् पोषणीय विकास (Sustainable Development ) – प्राकृतिक संसाधन ऐसी संपत्ति है, जिसके दोहरे उपयोग हैं। ये विकास के लिए कच्चा माल और ऊर्जा प्रदान करते हैं। ये पर्यावरण के अंग भी हैं, जो स्वास्थ्य और जीवनशक्ति पर भी प्रभाव डालते हैं। इसीलिए मानव जीवन और विकास के संसाधनों का बुद्धिमत्ता पूर्ण उपयोग अनिवार्य है। इसके लिए सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता है, जिसके महत्त्व को गांधी जी ने सन् 1908 से बताना शुरू कर दिया था।

सतत् पोषणीय विकास का तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखा जाता है कि समाप्य संसाधनों का उपयोग इस तरह से किया जाए कि सभी प्रकार की संपदा ( पर्यावरणीय संपदा समेत ) के कुल भंडार कभी भी खाली नहीं होने पाएं। विकास के अनेक रूप, पर्यावरण के उन्हीं संसाधनों का ह्रास कर देते हैं, जिन पर वे आश्रित होते हैं। इससे वर्तमान आर्थिक विकास धीमा हो जाता है तथा भविष्य की संभावनाएं काफ़ी हद तक घट जाती हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

अतः सतत् पोषणीय विकास में पारितंत्र के स्थायित्व को सदैव ध्यान में रखना पड़ता है । इसी बात को ध्यान में रखकर प्रकृति के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ ने सतत् पोषणीय विकास को इस प्रकार परिभाषित किया है पालन-पोषण करने वाले पारितंत्र की निर्वाह क्षमता के अनुसार जी यापन करते हुए मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार ही सतत् पोषणीय विकास है। इस प्रकार प्रश्न केवल जीवन की सतत् पोषणीयता का ही नहीं है, अपितु जीवन की अच्छी गुणवत्ता भी ज़रूरी है।

मानव और पर्यावरण अंतः क्रिया की प्रक्रियाएँ इस बात पर निर्भर करती हैं कि समाज में किस प्रकार की प्रौद्योगिकी विकसित की है और किस प्रकार की संस्थाओं का पोषण किया है। प्रौद्योगिकी और संस्थाओं ने मानव – पर्यावरण अंतःक्रिया को गति प्रदान की है तो इससे पैदा हुए संवेग ने प्रौद्योगिकी का स्तर ऊँचा उठाया है और अनेक संस्थाओं का निर्माण और रूपांतरण किया है। अतः विकास एक बहु-आयामी संकल्पना है और अर्थव्यवस्था समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक व अनुत्क्रमीय परिवर्तन का द्योतक है। विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोतरी के रूप में मापा जाता है।

परंतु अधिक आर्थिक वृद्धि वाले देशों में भी असमान वितरण के कारण गरीबी का स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ा। अतः 1970 के दशक में ‘पुनर्वितरण के साथ वृद्धि’ तथा ‘वृद्धि और समानता’ जैसे वाक्यांश विकास की परिभाषा में शामिल किए गए। पुनर्वितरण और समानता के प्रश्नों से निपटते हुए यह अनुभव हुआ कि विकास की संकल्पना को मात्र आर्थिक प्रक्षेत्र तक की सीमित नहीं रखा जा सकता । इसमें लोगों के कल्याण और रहने के स्तर, जन स्वास्थ्य, शिक्षा, समान अवसर और राजनीतिक तथा नागरिक अधिकारों से संबंधित मुद्दे भी सम्मिलित हैं। 1980 के दशक तक विकास एक बहु-आयामी संकल्पना के रूप में उभरा जिसमें समाज के सभी लोगों के लिए वृहद् स्तर पर सामाजिक एवं भौतिक कल्याण का समावेश है।

1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत् पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषय में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिच की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीडोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। इस घटनाक्रम के परिपेक्ष्य में विकास के एक नए माडल जिसे ‘सतत् पोषणीय विकास’ कहा जाता है, की शुरुआत हुई।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण और विकास आयोग की स्थापना की जिसके प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री गरो हरलेम ब्रंटलैंड थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर’ (जिसे ब्रंटलैंड रिपोर्ट भी कहते हैं) 1987 में प्रस्तुत की। ने सतत् पोषणीय विकास की सीधी- सरल और वृहद् स्तर पर प्रयुक्त परिभाषा प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के अनुसार सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है – ‘ एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।’
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास - 2

प्रश्न 5.
इन्दिरा गांधी कमाण्ड क्षेत्र में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं ? विकास कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर:
कमाण्ड क्षेत्र में विकास (Development in Indira Gandhi Canal Command Area)

इन्दिरा गांधी नहर परियोजना से लाभ (Benefits from Indira Canal)
1. मरुस्थल के विस्तार पर रोक (To check the Advance of Deserts ) – इस क्षेत्र में वर्षा की कमी के कारण मरुस्थल का विस्तार अधिक है । यह मरुस्थल तीव्र गति से पड़ोसी प्रदेशों की ओर बढ़ रहा है। इस जल से वर्षा की कमी को दूर कर चरागाहों तथा वृक्षारोपण से मरुस्थल के विस्तार को रोका जाएगा।

2. पीने का जल (Drinking Water ) – इस क्षेत्र में जल स्तर बहुत नीचा है। विभिन्न योजनाओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पीने का स्वच्छ जल प्रदान होगा। जैसे गन्थेली साहवा जल पूर्ति योजना, सीकर व झुंझुनू कस्बों तक पानी पहुंचाया
जाएगा।

3. यातायात साधनों का विकास (Means of Transport ) – रेतीली भूमि के कारण परिवहन साधन कम हैं। इस योजना से परिवहन विकास सम्भव है। परिवहन के साधनों एवं सार्वजनिक सुविधाओं का विकास करना जिसके अन्तर्गत सड़क निर्माण करना, अधिवासों को विपणन केन्द्रों से जोड़ना, नये विपणन केन्द्रों का विकास तथा पीने के पानी का प्रबन्ध करना आदि सम्मिलित हैं।

4. कृषि विकास (Agricultural Development ) – राजस्थान एक कृत्रिम मरुस्थल है। कई विद्वानों के अनुसार उपजाऊ मिट्टी में कृषि विकास सम्भव है । इस नहर द्वारा जल सिंचाई से गेहूं, कपास, जौ, गन्ना आदि फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा। एक अनुमान के अनुसार 400 करोड़ रुपये के खाद्यान्न उत्पन्न किए जा सकेंगे जिससे अकालों पर काबू पाया जा सकेगा। कृषि विकास के अन्तर्गत सर्वेक्षण एवं नियोजन, जल मार्गों का पक्का बनाना, भूमि को समतल करना तथा विघटित भूमि को समतल करके उसका पुनः उद्धार करना आदि सम्मिलित थे।

5. औद्योगिक विकास (Industrial Development ) – लगभग 1200 क्यूसेक जल औद्योगिक विकास के लिए प्रदान किया जाएगा जो कृषि पदार्थों पर आधारित उद्योगों में लगेंगे।

6. जल सिंचाई (Irrigation) – इस नहर की पूर्ति पर 1,394,000 हेक्टेयर भूमि में जल सिंचाई सम्भव हो सकेगी। कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन से सिंचाई के विस्तार, जल- उपयोग की क्षमता, कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि आदि में सहायता मिली है।

7. वनारोपण (Afforestation) – वनारोपण तथा चरागाह विकास जिसके अन्तर्गत नहरों एवं सड़कों के किनारे वृक्ष लगाना, अधिवासों के निकट खण्डों में वृक्षारोपण, बालुका- टीलों का स्थिरीकरण तथा कृषि योग्य बंजर भूमि पर चरागाहों का विकास करना सम्मिलित है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

8. फसल – प्रारूप (Cropping Pattern) – पश्चिमी राजस्थान में मिट्टी में आर्द्रता की कमी कृषि विकास में सदैव अवरोध पैदा करती रही है। किसान केवल खरीफ में ही फसल पैदा कर सकता है। बहुत बड़ा कृषि योग्य भू-भाग बंजर अथवा परती भूमि के रूप में रह जाता है। सिंचाई के विस्तार से शुद्ध कृषि भूमि तथा कुल कृषि भूमि में वृद्धि हुई है। इससे पहले सूखा सहन करने वाली फसलों बाजरा, ज्वार, मूंग, मोठ तथा चना आदि बोयी जाती थीं।

वाणिज्यिक फसलों जैसे – कपास, मूंगफली, गेहूं तथा सरसों के क्षेत्रफल में तीव्रता से वृद्धि हुई है। गेहूं, कपास, सरसों की कृषि में वृद्धि हुई है। कृषि उत्पादन एवं प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी तीव्रता से वृद्धि हुई है। कपास, मूंगफली, चावल तथा गेहूँ की उत्पादकता उत्तरोत्तर बढ़ रही है। आधुनिक कृषि उपकरणों की आपूर्ति करना जिसमें उत्तम सुधरे बीजों की आपूर्ति, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाओं की आपूर्ति करना तथा किसानों को प्रशिक्षण एवं विस्तार सेवाओं को उपलब्ध कराना आदि सम्मिलित हैं।

9. सम्पूर्ण विकास (Total Development ) – इस परियोजना को सम्पूर्ण विकास द्वारा इस रेगिस्तान को पुन: हरा-भरा बनाने का उद्देश्य है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व में वृद्धि होगी । भूमि को समतल करके भूमि सुधार किया जाएगा। रोज़गार की सुविधा बढ़ेगी। इस निर्धन प्रदेश में सीमा सुरक्षा के उचित प्रबन्ध हो सकेंगे। इससे विभिन्न करों, उत्पादन व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी। कई क्षेत्रों में जल से घास तथा चरागाहों का विकास करके पशु धन को बढ़ाया जा सकेगा। इस प्रकार यह परियोजना इस क्षेत्र में आर्थिक तथा सामाजिक क्रान्ति लाने का प्रयास है।

10. चरागाहों का विकास ( Development of Pastures ) – 3.66 लाख भूमि पर सिंचित चरागाहों को विकसित करके पशुचारण को लाभ देना है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. निम्नलिखित में से किस उद्योग में चूने का पत्थर कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है।
(A) एल्यूमीनियम
(B) सीमेंट
(C) चीनी
(D) पटसन।
उत्तर:
(B) सीमेंट

2. सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात यन्त्रों के इस्पात का विक्रय किस संस्था द्वारा होता है ?
(A) HAL
(B) SAIL
(D) MNCC
(C) TATA
उत्तर:
(B) SAIL

3. किस उद्योग में बॉक्साइट कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है ?
(A) एल्यूमीनियम
(B) सीमेंट
(C) पटसन
(D) इस्पात
उत्तर:
(A) एल्यूमीनियम

4. किस उद्योग में टेलीफोन व कंप्यूटर बनाए जाते हैं ?
(A) इस्पात
(B) एल्यूमीनियम
(C) इलैक्ट्रॉनिक्स
(D) सूचना प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(D) सूचना प्रौद्योगिकी

5. निर्माण किस वर्ग की क्रिया है ?
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) तृतीयक
(D) चतुर्थक।
उत्तर:
(B) द्वितीयक

6. कौन – सा उद्योग कृषि आधारित उद्योग है ?
(A) लोहा-इस्पात
(B) सूती वस्त्र
(C) एल्यूमीनियम
(D) सीमेंट।
उत्तर:
(B) सूती वस्त्र

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

7. पहली सूती वस्त्र मिल मुम्बई में कब लगाई गई ?
(A) 1834
(B) 1844
(C) 1854
(D) 1864.
उत्तर:
(C) 1854

8. अधिकतर पटसन मिलें किस बेसिन में स्थित हैं ?
(A) महानदी
(B) दामोदर
(C) हुगली
(D) कोसी।
उत्तर:
(C) हुगली

9. भारत में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति इस्पात खपत है
(A) 30 कि० ग्रा०
(B) 31 कि० ग्रा०
(C) 32 कि० ग्रा०
(D) 33 कि० ग्रा०
उत्तर:
(C) 32 कि० ग्रा०

10. भारत में एल्यूमीनियम का उत्पादन है।
(A) 50 करोड़ टन
(B) 60 करोड़ टन
(C) 70 करोड़ टन
(D) 80 करोड़ टन।
उत्तर:
(B) 60 करोड़ टन

11. किस नगर को भारत की इलैक्ट्रोनिक राजधानी कहते हैं ?
(A) मुम्बई
(B) कोलकाता
(C) बंगलौर
(D) पुणे।
उत्तर:
(C) बंगलौर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
जमशेदपुर में टाटा इस्पात केन्द्र कब स्थापित किया गया ?
उत्तर:
सन् 1907 में।

प्रश्न 2.
उद्योगों के स्वामित्व के आधार पर तीन वर्ग बताओ।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, सहकारी क्षेत्र।

प्रश्न 3.
भारत में इस्पात का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
-311 लाख टन।

प्रश्न 4.
भारत में पहली आधुनिक सूती मिल कब व कहां लगाई गई ?
उत्तर:
1854 में मुम्बई में।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 5.
भारत में चीनी मिलों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर:
506.

प्रश्न 6.
भारत में चीनी का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
1.77 करोड़ टन।

प्रश्न 7.
भारत में इलेक्ट्रोनिक उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र बताओ।
उत्तर:
बंगलौर

प्रश्न 8.
गुजरात राज्य में एक प्रमुख उद्योग बताओ।
उत्तर:
पेट्रो रसायन।

प्रश्न 9.
छोटा नागपुर क्षेत्र में दो औद्योगिक केन्द्र बताओ।
उत्तर:
रांची, बोकारो।

प्रश्न 10.
हुगली औद्योगिक प्रदेश में मुख्य उद्योग कौन-सा है ?
उत्तर:
पटसन उद्योग।

प्रश्न 11.
उद्योगों के उत्पादों के उपयोग के आधार पर वर्गीकरण करो।
उत्तर:

  1. वस्तु आधारभूत उद्योग
  2. पूंजीगत वस्तु उद्योग
  3. मध्यवर्ती वस्तु उद्योग
  4. उपभोक्ता वस्तु उद्योग।

प्रश्न 12.
कच्चे माल के आधार पर चार प्रकार के उद्योग बताओ।
उत्तर:

  • कृषि आधारित
  • वन आधारित
  • खनिज आधारित
  • प्रसंस्कृत कच्चे माल पर आधारित उद्योग।

प्रश्न 13.
केलिको सूत्री वस्त्र मिल कहां स्थित है ?
उत्तर:
अहमदाबाद में।

प्रश्न 14.
सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:

  1.  कच्चे माल
  2. ईंधन
  3. रसायन
  4. मशीनें
  5. श्रमिक
  6. परिवहन
  7. बाज़ार।

प्रश्न 15.
सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र पंचभुज प्रदेश बनाते हैं ? इसके पांच बिन्दु कौन-से हैं ?
उत्तर:
अहमदाबाद, मुम्बई, शोलापुर, नागपुर, इंदौर – उज्जैन।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 16.
भारत के किस राज्य में सूती वस्त्र मिलें सर्वाधिक हैं ?
उत्तर:
तमिलनाडु में 439 मिलें।

प्रश्न 17.
भारत में लौह तथा अलौह उद्योगों का एक-एक उदाहरण दो।
उत्तर:
लौह उद्योग – लौह इस्पात
अलौह उद्योग – तांबा।

प्रश्न 18.
राऊरकेला लोह-इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
जर्मनी।

प्रश्न 19.
भिलाई लौह इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
“रूस

प्रश्न 20.
दुर्गापुर लौह इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
इंग्लैंड

प्रश्न 21.
शक्ति के उत्पादन पर आधारित एक उद्योग बताओ।
उत्तर:
एल्युमिनियम।

प्रश्न 22.
बाज़ार की निकटता पर आधारित एक उद्योग का नाम लिखिए।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विनिर्माण उद्योग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कच्चे माल (Raw Material) को मशीनों की सहायता के रूप बदल कर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं । यह मनुष्य का एक सहायक या गौण या द्वितीयक (Secondary) व्यवसाय है। इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य वृद्धि हो जाती है जैसे लकड़ी से लुग्दी तथा काग़ज़ बनाया जाता है। कपास से धागा और कपड़ा बनाया जाता है। खनिज लोहे से इस्पात तथा कल-पुर्जे बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
भारी उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भारी उद्योग ( Heavy Industry ):
खनिज पदार्थों का प्रयोग करने वाले आधारभूत उद्योगों को भारी उद्योग कहते हैं । इन उद्योगों में भारी पदार्थों का आधुनिक मिलों में निर्माण किया गया है। ये उद्योग किसी देश के औद्योगीकरण की आधारशिला हैं । लोहा – इस्पात उद्योग, मशीनरी, औज़ार तथा इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योग भारी उद्योग के वर्ग में गिने जाते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 3.
उद्योगों का वर्गीकरण किस विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है ?
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –
(i) उद्योगों के आकार तथा कार्यक्षमता के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) बड़े पैमाने के उद्योग
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग।

(ii) औद्योगिक विकास के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कुटीर उद्योग
(ख) आधुनिक शिल्प उद्योग।

(iii) स्वामित्व के आधार पर उद्योग दो-तीन प्रकार के होते हैं –
(क) सार्वजनिक उद्योग (जिनकी व्यवस्था सरकार स्वयं करती है),
(ख) निजी उद्योग
(ग) सहकारी उद्योग।

(iv) कच्चे माल के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कृषि पर आधारित उद्योग
(ख) खनिजों पर आधारित उद्योग।

(v) वस्तुओं के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) हल्के उद्योग,
(ख) भारी उद्योग।

(vi) इसी प्रकार उद्योगों को अनेक विभिन्न वर्गों में रखा जाता है। जैसे हस्तकला उद्योग, ग्रामीण उद्योग, घरेलू उद्योग आदि।

प्रश्न 4.
भारत के पाँच लोहा तथा इस्पात केन्द्र वाले नगरों के नाम लिखो।
उत्तर:
लोहा – इस्पात नगर (Steel Towns) – भारत में निम्नलिखित नगरों में आधुनिक इस्पात कारखाने स्थित हैं। इन्हें लोहा-इस्पात नगर भी कहा जाता है।

  • जमशेदपुर (झारखण्ड)
  • बोकारो (झारखण्ड)
  • भिलाई (छत्तीसगढ़)
  • राऊरकेला (उड़ीसा)
  • भद्रावती (कर्नाटक)।

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में अपनाई गई औद्योगिक नीति के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् सामाजिक तथा आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए औद्योगिक नीति अपनाई गई। इस नीति में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए क्षेत्रों में उद्योग स्थापित किए गए ताकि प्रादेशिक असन्तुलन को कम किया जा सके।

औद्योगिक नीति के उद्देश्य इस प्रकार थे –

  • रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करना।
  • उद्योगों में उच्च उत्पादकता प्राप्त करना।
  • प्रादेशिक असन्तुलन को दूर करना।
  • कृषि आधारित उद्योगों का विकास करना।
  • निर्यात प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना।

प्रश्न 6.
भारत में स्वामित्व के आधार पर कौन-कौन से प्रकार के उद्योग हैं?
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर भारत में तीन प्रकार के उद्योगों को मान्यता दी गई है –

  1. सार्वजनिक उद्योग (Public Sector ) – ऐसे उद्योगों का संचालन सरकार स्वयं करती है। इसके अन्तर्गत भारी तथा आधारभूत उद्योग हैं; जैसे भिलाई इस्पात केन्द्र, नंगल उर्वरक कारखाना आदि।
  2. निजी उद्योग (Private Sector ) – ऐसे उद्योग किसी निजी व्यक्ति के अधीन होते हैं, जैसे जमशेदपुर का इस्पात उद्योग
  3. सहकारी उद्योग (Co-operative Sector ) – जब कुछ व्यक्ति किसी सहकारी समिति द्वारा किसी उद्योग की स्थापना करते हैं, जैसे चीनी उद्योग।

प्रश्न 7.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण के पाँच लक्षण बताओ।
उत्तर:

  • भारत में सूती वस्त्र उद्योग व्यापक रूप से वितरित
  • इसका मुम्बई तथा अहमदाबाद में संकेन्द्रक है।
  • यह कृषि आधारित उद्योग है ।
  • कपड़े का उत्पादन मिल सैक्टर, पावरलूम तथा हथकरघों द्वारा होता है।
  • यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है।

प्रश्न 8.
भारत में कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण करो
उत्तर:

  1. कृषि-आधारित उद्योग
  2. वन – आधारित उद्योग
  3. खनिज आधारित उद्योग
  4. असैम्बली उद्योग।

प्रश्न 9.
उद्योगों के समूहीकरण के लिए प्रयोग किए जाने वाले चार सूचकांक बताओ।
उत्तर:

  1. औद्योगिक इकाइयों की संख्या
  2. श्रमिकों की संख्या
  3. कुल उत्पादन
  4. कुल शक्ति का प्रयोग।

प्रश्न 10.
सूती वस्त्र उद्योग की क्या समस्याएं हैं ?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा संगठित उद्योग है परन्तु इस उद्योग की कई समस्याएं हैं –

  1. देश में लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन कम है। यह कपास विदेशों से आयात करनी पड़ती है।
  2. सूती कपड़ा मिलों की मशीनरी पुरानी है जिससे उत्पादकता कम है तथा लागत अधिक है।
  3. मशीनरी के आधुनिकीकरण के लिए स्वचालित मशीनें लगाना आवश्यक है। इसके लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता है।
  4. देश में हथकरघा उद्योग से स्पर्धा है तथा विदेशी बाज़ार में चीन तथा जापान के तैयार वस्त्र से स्पर्धा तीव्र है ।

प्रश्न 11.
दिए गए चित्र का अध्ययन करो इसमें भारत के एक प्रमुख इस्पात संयन्त्र को दर्शाया गया है तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 10
(i) यह संयन्त्र किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:
उड़ीसा

(ii) इस संयन्त्र को लौह अयस्क कहां से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
किरुबुरु खान से।

(iii) इस संयन्त्र से विद्युत् तथा जल प्राप्ति के साधन बताओ।
उत्तर:
मन्दिरा बांध से जल, हीराकुड बांध से विद्युत्।

प्रश्न 12.
जल गुणवत्ता से क्या अभिप्राय है ? भारत में जल गुणवत्ता क्यों कम हो रही है ? कोई दो कारण बताओ।
उत्तर:
जल गुणवत्ता से तात्पर्य है जल की शुद्धता तथा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल। भारत में जल गुणवत्ता कम होने के दो कारण हैं –
(i) उद्योगों तथा रासायनिक पदार्थों के अपशिष्ट पदार्थ जल प्रदूषित करते हैं। इससे जल मानव उपयोग के योग्य नहीं रहता।
(ii) विषैले पदार्थ झीलों, नदियों, जलाशयों में प्रवेश करते हैं तथा जल प्रदूषण के कारण जल गुणवत्ता कम करते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 13.
भारत में 1991 के पश्चात् नई औद्योगिक नीति के अधीन आरम्भ किए गए तीन महत्त्वपूर्ण पग बताओ।
उत्तर:
इस नई औद्योगिक नीति के अधीन उत्पादकता तथा रोजगार बढ़ाने के लिए 1991 में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई है –

  1. औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था को समाप्त किया गया है।
  2. औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण किया गया है।
  3. आयात शुल्क को कम या समाप्त किया गया है।

प्रश्न 14.
वस्त्रोत्पादन उद्योग मुम्बई में अहमदाबाद की ओर क्यों बढ़े हैं ? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से व्याख्या करो
उत्तर:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग सबसे पहले मुम्बई में स्थापित किया गया। यहां पर्याप्त मात्रा में पूंजी उपलब्ध थी तथा विदेशों से मशीनरी मंगवाने की सुविधा प्राप्त थी, परन्तु यहां कच्चे माल की प्राप्ति भारत के कई राज्यों पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात से कपास मंगवा कर पूरी की जाती थी। कुछ समय के पश्चात् यहां श्रमिकों की मज़दूरी बढ़ने, मिलों के लिए पर्याप्त स्थान की कमी, हड़तालों आदि की समस्याओं के कारण यह उद्योग मुम्बई से हट कर अहमदाबाद की ओर बढ़ने लगा। अहमदाबाद में कपास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थी । पूंजी के पर्याप्त साधन थे। मिलों के लिए खुले स्थान उपलब्ध थे। मुम्बई में जो समस्याएं थीं वे समस्याएं अहमदाबाद में नहीं थीं। इसलिए अहमदाबाद शीघ्र ही ‘भारत का मानचेस्टर’ बन गया।

प्रश्न 15.
चीनी उद्योग उत्तरी भारत से दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित क्यों हो रहा है ?
उत्तर:
भारत में गन्ने की उपज के लिए आदर्श दशाएं दक्षिणी भारत में पाई जाती हैं, परन्तु गन्ने का अधिक उत्पादन उत्तरी मैदान में है, जहां उपजाऊ मिट्टी क्षेत्र है । परिणामस्वरूप चीनी की अधिकतर मिलें भी गन्ना उत्पादन क्षेत्र में हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार राज्य में देश की चीनी का 60% उत्पादन होता था, परन्तु अब यह उत्पादन दिनों दिन कम होता जा रहा है। चीनी उद्योग प्रायद्वीपीय भारत में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु राज्य में विकसित हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. दक्षिणी भारत में गन्ने के लिए उष्ण कटिबन्धीय जलवायु मिलती है
  2. दक्षिणी भारत में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक है
  3. दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है
  4. दक्षिणी भारत में गन्ने का पिड़ाई का समय अधिक होता है
  5. दक्षिणी भारत में अधिकांश मिलों में आधुनिक मशीनरी लगाई गई है जिससे उत्पादकता अधिक है।
  6. दक्षिणी भारत में चीनी के कारखाने सहकारी क्षेत्र में लगाए जा रहे हैं।

प्रश्न 16.
कोलकाता क्षेत्र तथा छोटा नागपुर क्षेत्रों में उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले पाँच कारकों के प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
कोलकाता क्षेत्र –
1. स्थिति – यह औद्योगिक क्षेत्र हुगली नदी के किनारे स्थित है। यहां कोलकाता बन्दरगाह से सीधे रूप से आयात-निर्यात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
2. कच्चे माल – हुगली क्षेत्र में असम से चाय तथा पश्चिमी बंगाल से पटसन कच्चे माल के रूप में प्राप्त हैं।
3. शक्ति के साधन – यहां शक्ति के साधनों की कमी है। कोयला रानीगंज से प्राप्त होता है। खनिज तेल असम से प्राप्त होता है।
4. यातायात के साधन – यहां जल यातायात तथा रेल सड़क मार्गों की सुविधाएं हैं।
5. श्रमिक – यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते, कुशल श्रमिक प्राप्त हैं।

छोटा नागपुर क्षेत्र –
1. यह औद्योगिक क्षेत्र दामोदर घाटी में छोटा नागपुर क्षेत्र में स्थित है। यहाँ कोलकाता से आयात-निर्यात की सुविधा है, परन्तु इस पर परिवहन व्यय अधिक है।
2. इस पठार पर कई खनिज पदार्थ कोयला, लोहा आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसे भारत का ‘रुहर’ भी कहते हैं।
3. यहां शक्ति के साधन अधिक प्राप्त हैं। झरिया से कोयला, D. V. C. से जल विद्युत् प्राप्त होती है।
4. यातायात के साधन अधिक उन्नत तथा पर्याप्त नहीं हैं।
5. यहां बिहार- उड़ीसा राज्यों से सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाएं विद्यमान हैं। स्पष्ट करें।
उत्तर:
औद्योगिक विकास को आर्थिक विकास के स्तर को मापने के लिए मापदण्ड के रूप में उपयोग किया जाता है । भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाएं विद्यमान हैं। विशाल और विविध प्राकृतिक संसाधनों के साथ इसकी विशाल जनसंख्या सस्ते श्रमिक सुलभ कराती हैं तथा निर्मित वस्तुओं की खपत के लिए विशाल बाज़ार भी प्रदान करती हैं । उद्योगों के लिए कच्चे माल, खनिज तथा शक्ति के साधन पर्याप्त हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति से पहले भारतीय उद्योगों की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व भारत औद्योगिक दृष्टि से विकसित देश था। भारतीय उद्योग कृषि के साथ एकीकृत थे तथा घरेलू उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के अंग थे । भारतीय दस्तकार और कारीगर, कपड़ा बुनना, मिट्टी के बर्तन बनाना, बांस के उपकरण, आभूषण तथा धातुओं की वस्तुएँ बनाना जानते थे। वे लकड़ी और चमड़े की वस्तुएँ भी बनाते थे। भारत जलयान निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध था।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति प्राप्ति के पश्चात् भारत के औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ। उदाहरण देकर पुष्टि करो।
उत्तर:

  • भारत में औद्योगीकरण की शुरुआत सन् 1854 में मुख्यतः भारतीय पूंजी और उद्यम से मुम्बई (बम्बई) में सूती वस्त्र बनाने के कारखाने की स्थापना से हुई।
  • पहली जूट मिल 1855 में कोलकाता के निकट रिसर में स्काटिश पूंजी और प्रबन्ध से लगाई गई थी।
  • कोयले का खनन भी लगभग उसी समय शुरू हुआ।
  • इसके बाद कागज़ के कारखाने और रासायनिक उद्योग भी शुरू किये गये।
  • सन् 1875 में कुल्टी में कच्चा लोहा बनाने का कारखाना खोला गया।
  • 1907 में जमशेदपुर में टाटा लोहा और इस्पात कम्पनी की स्थापना के बाद भारत में औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ।

प्रश्न 4.
उद्योगों का निर्मित वस्तुओं के आधार पर वर्गीकरण करें।
उत्तर:
उद्योगों का अन्य सामान्य वर्गीकरण, निर्मित वस्तुओं के स्वरूप के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार उद्योगों को सात वर्गों में रखा जाता है –

  • धातु उद्योग
  • यान्त्रिक इंजीनियरी उद्योग
  • बिजली इंजीनियरी उद्योग
  • रसायन और सम्बन्धित उद्योग
  • वस्त्र उद्योग
  • खाद्य उद्योग
  • बिजली उत्पादन उद्योग और
  • इलैक्ट्रोनिक तथा संचार उद्योग हैं।

प्रश्न 5.
उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय बताओ।
उत्तर:
उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय ये थे –

  • निवेश सम्बन्धी बाधाएं हटा दी गईं।
  • व्यापार को बन्धन मुक्त कर दिया गया।
  • कुछ क्षेत्रों में विदेशी प्रौद्योगिकी आयात करने की छूट दी गई।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (विनियोग ) की अनुमति दी गई।
  • पूंजी बाजार में पहुंच की बाधाओं को हटा दिया गया।
  • औद्योगिक लाइसेंस पद्धति को सरल और नियन्त्रण मुक्त कर दिया गया।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के सुरक्षित क्षेत्रों को घटा दिया गया तथा
  • सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उपक्रमों का विनिवेशीकरण किया गया अर्थात् इन्हें निजी कम्पनियों को बेच दिया गया।

प्रश्न 6.
ऐसे उद्योग, जिनके उत्पाद कच्चे माल की तुलना में काफ़ी कम वज़न के होते हैं, कच्चे माल के स्रोत के निकट लगाए जाते हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर:
भारत में चीनी उद्योग, उत्तरी मैदानों या दक्षिणी राज्यों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही लगाए जाते हैं। 100 किलो गन्ने से लगभग 12 किलो चीनी बनती है, शेष खोई रह जाती है। यदि गन्ने को लम्बी दूरियों तक ले जाना पड़े तो खोई के परिवहन की लागत, चीनी की उत्पादन लागत को बढ़ा देगी। इसी प्रकार लुग्दी उद्योग, तांबा प्रगलन और कच्चा लोहा (पिग आयरन) उद्योग अपने कच्चे माल द्वारा ही आकर्षित होते हैं। लोहा और इस्पात उद्योग में उपयोग में आने वाले लौह-अयस्क और कोयला, दोनों ही भारी वज़न खोने वाले और लगभग समान भार के होते हैं । अतः अनुकूलतम अवस्थिति इन दोनों के स्रोतों के मध्य होगी, जैसे कि जमशेदपुर में है।

प्रश्न 7.
“सूती वस्त्र तैयार करने वाले कारखानों का वितरण व्यापक है।” इस कथन की व्याख्या सूती वस्त्र उद्योग के विकेन्द्रीकरण के सन्दर्भ में करो।
उत्तर:
आरम्भ में सूती वस्त्र उद्योग मुम्बई नगर में केन्द्रित था। सूती वस्त्र उद्योग ने अपने विकास के दौरान काफ़ी उतार-चढ़ाव देखे हैं विशाल घरेलू बाजार, जल विद्युत् के विकास, कपास की प्राप्ति, कोयला क्षेत्रों से निकटता तथा कुशल श्रमिकों के कारण यह उद्योग सारे देश में फैल गया। इसे सूती वस्त्र उद्योग का विकेन्द्रीकरण कहते हैं। सबसे पहले यह उद्योग गुजरात राज्य में अच्छी कपास प्राप्त होने के कारण अहमदाबाद में स्थापित हुआ।

तमिलनाडु राज्य में जल विद्युत् की प्राप्ति के कारण चेन्नई, कोयम्बटूर, उद्योग के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बने। कोलकाता में विशाल मांग क्षेत्र तथा रानीगंज कोयला क्षेत्र से निकटता के कारण यह उद्योग विकसित हुआ। उत्तर प्रदेश में कानपुर, मोदीनगर, मध्य प्रदेश में इन्दौर और ग्वालियर, राजस्थान में कोटा और जयपुर में आधुनिक मिलें स्थापित हुई हैं। यहाँ घनी जनसंख्या के कारण यह उद्योग उन्नत हुआ है। लम्बे रेशे वाली कपास पर उत्पादन के कारण इस उद्योग का विकास पंजाब तथा हरियाणा राज्य में हो रहा है।

प्रश्न 8.
प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों के नाम लिखो।
उत्तर:
प्रमुख औद्योगिक प्रदेश –

  1. मुम्बई – पुणे प्रदेश
  2. हुगली प्रदेश
  3. बंगलौर – तमिलनाडु प्रदेश
  4. गुजरात प्रदेश
  5. छोटा नागपुर प्रदेश और
  6. विशाखापटनम – गुंटूर प्रदेश,
  7. गुड़गांव – दिल्ली-मेरठ प्रदेश
  8. कोल्लम – तिरुवनन्तपुरम् प्रदेश।

प्रश्न 9.
गौण औद्योगिक प्रदेश कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
गौण औद्योगिक प्रदेश –

  1. अम्बाला – अमृतसर
  2. सहारनपुर – मुजफ्फरनगर – बिजनौर
  3. इंदौर- देवास-उज्जैन
  4. जयपुर – अजमेर
  5. कोल्हापुर – दक्षिण कन्नड़
  6. उत्तरी मालाबार
  7. मध्य मालाबार
  8. आदिलाबाद – निजामाबाद
  9. इलाहाबाद – वाराणसी – मिर्जापुर
  10. भोजपुर – मुंगेर
  11. दुर्ग – रायपुर
  12. बिलासपुर – कोरबा और
  13. ब्रह्मपुत्र घाटी।

प्रश्न 10.
औद्योगिक ज़िलों के नाम लिखो।
उत्तर:
औद्योगिक ज़िले –

  1. कानपुर
  2. हैदराबाद
  3. आगरा
  4. नागपुर
  5. ग्वालियर
  6. भोपाल
  7. लखनऊ
  8. जलपाईगुड़ी
  9. कटक
  10. गोरखपुर
  11. अलीगढ़
  12. कोटा
  13. पूर्णिया
  14. जबलपुर और
  15. बरेली।

प्रश्न 11.
ज्ञान आधारित उद्योग पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
ज्ञान आधारित उद्योग (Knowledge based Industries ) – सूचना प्रौद्योगिकी के विकास का देश की अर्थव्यवस्था तथा लोगों की जीवन शैली पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। सूचना प्रौद्योगिकी में हुई क्रान्ति ने आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के द्वार खोल दिए हैं। भारतीय साफ्टवेयर उद्योग अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले क्षेत्र के रूप में उभरा है। इस उद्योग का कुल व्यापार सन् 2000-01 में 377.50 अरब रुपयों का हो गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी साफ्टवेयर और सेवा उद्योग की भारत के सकल घरेलू उत्पाद में दो प्रतिशत की भागीदारी है। भारत का साफ्टवेयर का निर्यात सन् 2000-01 में 283.50 अरब रुपयों का हो गया। भारत के साफ्टवेयर उद्योग ने उत्कृष्ट कोटि के उत्पादन तैयार करने में उल्लेखनीय विशिष्टता प्राप्त कर ली है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने वाली अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के भारत में या तो साफ्टवेयर विकास केन्द्र हैं या अनुसन्धान विकास केन्द्र हैं।

वितरण – इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अन्तर्गत टेलीफोन, सैल्यूलर फोन, कम्प्यूटर, अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान के उपकरण, हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर आदि व्यापक रूप से तैयार किये जाते हैं। बंगलौर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी है। हैदराबाद, दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, कानपुर, लखनऊ तथा कोयम्बटूर आदि 18 केन्द्रों में प्रौद्योगिकी पार्क विकसित किए गए हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 12.
निम्नलिखित उद्योगों पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखें-
(i) पेट्रो रसायन उद्योग
(ii) पालिमर्स उद्योग
(iii) कृत्रिम रेशे उद्योग।
उत्तर:
(i) पेट्रो – रसायन उद्योग (Petrochemicals ):
इस उद्योग में विविध प्रकार के उत्पाद शामिल हैं। पेट्रोलियम परिष्करण उद्योग का विस्तार बड़ी तेज़ी से हुआ है। कच्चे (क्रूड) पेट्रोलियम से अनेक वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं, जिनका अनेक नए उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। इन सभी को सम्मिलित रूप में पेट्रो- रसायन उद्योग कहा जाता है। मुम्बई पेट्रो-कैमिकल उद्योगों का केन्द्र है। विभिन्न कारखाने इन स्थानों पर लगाए गये हैं – औरैया (उत्तर प्रदेश), जामनगर, गांधार, हजीरा (गुजरात), नागोथाने, रत्नागिरी (महाराष्ट्र), हल्दिया (प० बंगाल) और विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश )। रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग के प्रशासनिक नियन्त्रण में पेट्रो रसायन क्षेत्र के तीन संगठन कार्य कर रहे हैं।
(1) सार्वजनिक क्षेत्र का प्रतिष्ठावान इण्डियन पेट्रो-केमिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड का कार्य कर रहा है।
(2) दूसरा है पेट्रोफिल्स कोआपरेटिव लिमिटेड।
(3) तीसरा है- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलॉजी।

(ii) पालिमर्स (Polymers) – पालिमर्स का निर्माण एथलीन और प्रोपीलीन से होता है। ये पदार्थ कच्चे तेल के परिष्करण की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त होते हैं। प्लास्टिक उद्योग में पालिमर्स को कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं। पालिमर्स में पालिथिलीन व्यापक रूप में प्रयोग किया जाने वाला थर्मोप्लास्टिक है। प्लास्टिक को सबसे पहले चादरों, चूर्ण, रेजिन और गोलियों या गुटिकाओं में बदला जाता है। इसके बाद ही इसका उपयोग प्लास्टिक उत्पादों के निर्माण के लिए किया जाता है।

प्लास्टिक उत्पादों को उनकी मज़बूती, लचीलेपन, जल और रासायनिक प्रतिरोध और कम कीमत के कारण पसन्द किया जाता है। सन् 1961 में मफतलाल कम्पनी द्वारा स्थापित नेशनल आर्गेनिक केमिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने मुम्बई में पहला नैप्था आधारित रसायन उद्योग स्थापित किया था। मुम्बई, बरौनी, मैटूर, पिंपरी और रिसरा, प्लास्टिक पदार्थों के प्रमुख उत्पादक हैं। सन् 2000-01 में पालिमर्स का उत्पादन 34.41 लाख टन था। देश में लगभग 19,000 छोटे बड़े कारखाने हैं, जो लगभग 35 लाख टन वर्जित पालिमर्स का कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं।

(iii) कृत्रिम रेशे (Synthetic fibres ) – कृत्रिम रेशे मज़बूत, टिकाऊ, प्रक्षालन योग्य तथा सिकुड़न प्रतिरोधी होते हैं। इसीलिए वस्त्र उत्पादन में इनका व्यापक उपयोग किया जाता है । ये वस्त्र गांवों और शहरों दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय हैं। नायलॉन और पालिएस्टर के धागे बनाने के कारखाने कोटा, पिंपरी, मुम्बई, मोदीनगर, पुणे, उज्जैन, नागपुर और उधना में लगाए गए हैं। एक्रिलिक स्टेपल रेशे कोटा और वडोदरा में बनाए जाते हैं। पोलीएस्टर स्टेपल रेशों के उत्पादन के लिए कारखाने ठाणे, गाजियाबाद, मनाली, कोटा और वडोदरा में लगाए गए हैं। कृत्रिम रेशों का उत्पादन 2000-01 में 15.67 लाख टन था।

प्रश्न 13.
हुगली औद्योगिक प्रदेश के विकास में सहायक किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  1. हुगली नदी पर कोलकाता पत्तन के निकट स्थित होने के कारण यह क्षेत्र देश का अग्रणी औद्योगिक क्षेत्र बना।
  2. यह क्षेत्र जलमार्ग, सड़क मार्ग तथा रेलमार्ग द्वारा पृष्ठभूमि से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है
  3. चाय बागानों का इस क्षेत्र के विकास में योगदान है। असम और पश्चिमी बंगाल की उत्तरी पहाड़ियों में चाय के बागान विकसित हैं। पटसन की कृषि भी सहायक है।
  4. दामोदर घाटी के कोयला क्षेत्रों तथा छोटा नागपुर पठार के लौह-अयस्क के निक्षेप हुगली प्रदेश के निकट स्थित हैं।

प्रश्न 14.
भारत में चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों संकेन्द्रित हैं ? किन्हीं पांच कारणों से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु देश में गन्ना उत्पन्न करने वाले प्रमुख राज्य हैं। इन राज्यों में अधिकतर चीनी मिलें केन्द्रित हैं। इसके कारण हैं-

  • गन्ना एक भार ह्रास वाली फ़सल है। इसलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में उगाई जाती हैं
  • गन्ने का प्रयोग काटने के तुरन्त पश्चात् ही कर लेना चाहिए वरना गन्ने में सुक्रोज़ की मात्रा घट जाती है।
  • गन्ने को काटने के पश्चात् 24 घण्टों के अन्दर ही पेरा जाना चाहिए तो अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है।
  • परिवहन लागत भी कम हो जाती है यदि दूरी कम हो।
  • चीनी मिलें उन क्षेत्रों में लगाई जाती हैं जहां गन्ने में सुक्रोज मात्रा अधिक हो।

प्रश्न 15.
‘गुजरात औद्योगिक प्रदेश’ की किन्हीं पांच विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुजरात औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत का तीसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश हैं तथा देश के आन्तरिक भाग में स्थित है। इस प्रदेश के विकास के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. यह क्षेत्र कपास उत्पन्न करने वाले प्रदेश के बीच स्थित है
  2. यहां गंगा सतलुज के मैदान सूती कपड़ा के मांग क्षेत्र के निकट हैं
  3. यहां सस्ते मूल्य पर कुशल श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  4. यहां मुम्बई तथा कांडला बन्दरगाहों से आयात-निर्यात की सुविधा है।
  5. खम्बात क्षेत्र में अंकलेश्वर में खनिज तेल की खोज ने कई पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है
  6. अधिकतर सूती वस्त्र उद्योग अहमदाबाद में है जिसे ‘भारत का मानचेस्टर’ भी कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
उद्योगों का स्थानीयकरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
किसी स्थान पर उद्योगों की स्थापना के लिए कुछ भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक तत्त्वों का होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए कच्चा माल, शक्ति के साधन, श्रम, पूंजी और बाज़ार उद्योगों के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं। इन्हें उद्योगों के आधारभूत कारक भी कहते हैं। ये सभी कारक मिल-जुल कर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक कारक का महत्त्व समय, स्थान और उद्योगों के अनुसार बदलता रहता है। इन अनुकूल तत्त्वों के कारण किसी स्थान पर अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं। यह क्षेत्र स्थानीयकरण के कारकों को दो वर्गों में

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

एक औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Region) बन जाता है। उद्योगों के बांटा जाता है –
(i) भौगोलिक कारक
(ii) ग़ैर- भौगोलिक कारक।

भौगोलिक कारक (Geographical Factors)
1. कच्चे माल की निकटता (Nearness of Raw Material) – उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित किए जाते हैं। कच्चा माल उद्योगों की आत्मा है। उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं, जहां कच्चा माल अधिक मात्रा में कम लागत पर आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए लोहे और चीनी के कारखाने कच्चे माल की प्राप्ति- स्थान के निकट लगाए जाते हैं। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं जैसे डेयरी उद्योग भी उत्पादक केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं।

भारी कच्चे माल के उद्योग उन वस्तुओं के मिलने के स्थान के निकट ही लगाए जाते हैं। इस्पात उद्योग कोयला तथा लोहा खानों के निकट स्थित हैं। कागज की लुगदी के कारखाने तथा आरा मिलें कोणधारी वन प्रदेशों में स्थित हैं। उदाहरण – कच्चे माल की प्राप्ति के कारण ही चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश में, पटसन उद्योग पश्चिमी बंगाल में, सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र में तथा लोहा इस्पात उद्योग झारखण्ड, उड़ीसा में लगे हुए हैं।

2. शक्ति के साधन (Power Resources ) – कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत् शक्ति के प्रमुख साधन हैं। भारी उद्योगों में शक्ति के साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसलिए अधिकतर उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां कोयले की खानें समीप हों या पेट्रोलियम अथवा जल-विद्युत् उपलब्ध हो। भारत में दामोदर घाटी, कोयले के कारण ही प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।

खाद व रासायनिक उद्योग, एल्यूमीनियम उद्योग, कागज़ उद्योग, जल-विद्युत् शक्ति केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं, क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में सस्ती बिजली की आवश्यकता होती है। उदाहरण – भारत में इस्पात उद्योग झरिया तथा रानीगंज की कोयला खानों के समीप स्थित हैं। पंजाब में भाखड़ा योजना से जल-विद्युत् प्राप्ति के कारण खाद का कारखाना नंगल में स्थित है। एल्यूमीनियम उद्योग एक ऊर्जा – गहन (Energy intensive) उद्योग है जो रेनूकूट में (उत्तर प्रदेश) विद्युत् शक्ति उपलब्धता के कारण स्थापित है।

3. यातायात के साधन (Means of Transport ) – उन स्थानों पर उद्योग लगाए जाते हैं जहां सस्ते, उत्तम, कुशल और शीघ्रगामी यातायात के साधन उपलब्ध हों। कच्चा माल, श्रमिक तथा मशीनों को कारखानों तक पहुंचाने के लिए सस्ते साधन चाहिएं। तैयार किए हुए माल को कम खर्च पर बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्तम परिवहन साधन बहुत सहायक होते हैं। उदाहरण – जल यातायात सबसे सस्ता साधन है। इसलिए अधिक उद्योग कोलकाता, चेन्नई आदि बन्दरगाहों के स्थान पर हैं जो अपनी पृष्ठ भूमि (Hinterland) से रेल मार्ग तथा सड़क मार्गों द्वारा जुड़ी हुई हैं। दिल्ली परिवहन का एक केन्द्र बिन्दु है तथा उद्योग अधिक हैं।

4. कुशल श्रमिक (Skilled Labour ) – कुशल श्रमिक अधिक और अच्छा काम कर सकते हैं, जिससे उत्तम तथा सस्ता माल बनता है। किसी स्थान पर लम्बे समय से एक ही उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के कारण औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं । आधुनिक मिल उद्योग में अधिक कार्य मशीनों द्वारा होता है, इसलिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कुछ उद्योगों में अत्यन्त कुशल तथा कुछ उद्योगों में अर्द्ध- कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। श्रम प्रधान उद्योग (Labour intensive) उद्योग कुशल तथा सस्ते श्रम क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण – मेरठ और जालन्धर में खेलों का सामान बनाने, लुधियाना में हौज़री उद्योग तथा वाराणसी में जरी उद्योग, मुरादाबाद में पीतल के बर्तन बनाने तथा फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने का उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही हैं।

5. जल की पूर्ति (Water Supply) – कई उद्योगों में प्रयोग के लिए जल की विशाल राशि की आवश्यकता होती है; जैसे लोहा – इस्पात उद्योग, खाद्य संसाधन कागज़ उद्योग, रसायन तथा पटसन उद्योग, इसलिए ये उद्योग झीलों, नदियों तथा तालाबों के निकट लगाए जाते हैं। उदाहरण – जमशेदपुर में लोहा – इस्पात उद्योग खोरकाई तथा स्वर्ण रेखा नदियों के संगम पर स्थित हैं।

6. जलवायु (Climate ) – कुछ उद्योगों में जलवायु का मुख्य स्थान होता है। उत्तम जलवायु मनुष्य की कार्य- कुशलता पर भी प्रभाव डालती है। सूती कपड़े के उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु बार-बार नहीं टूटता। वायुयान उद्योग के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। उदाहरण – मुम्बई में सूती कपड़ा उद्योग आर्द्र जलवायु के कारण तथा बंगलौर में वायुयान उद्योग (Aircraft) शुष्क जलवायु के कारण स्थित हैं।

7. बाज़ार से निकटता (Nearness to Market ) – मांग क्षेत्रों का उद्योग के निकट होना आवश्यक है। इससे कम खर्च पर तैयार माल बाज़ारों में भेजा जाता है। माल की खपत जल्दी हो जाती है तथा लाभ प्राप्त होता है। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के उद्योग जैसे डेयरी उद्योग, खाद्य उद्योग बड़े नगरों के निकट लगाए जाते हैं।

यहां अधिक जनसंख्या के कारण लोगों की माल खरीदने की शक्ति अधिक होती है। एशिया के देशों में अधिक जनसंख्या है, परन्तु निर्धन लोगों के कारण ऊँचे मूल्य वाली वस्तुओं की मांग कम है। यही कारण है कि विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी है। छोटे-छोटे पुर्जे तैयार करने वाले उद्योग बड़े कारखानों के निकट लगाए जाते हैं, जहां इन पुर्जों का प्रयोग होता है।

8. सस्ती व समतल भूमि ( Cheap and Level Land ) – भारी उद्योगों के लिए समतल मैदानी भूमि की बहुत आवश्यकता होती है। इसी कारण से जमशेदपुर का इस्पात उद्योग दामोदर नदी घाटी के मैदानी क्षेत्र में स्थित है।

ग़ैर-भौगोलिक कारक (Non-Geographical Factors)
1. पूंजी की सुविधा (Capital) – उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पूंजी पर्याप्त मात्रा में ठीक समय पर तथा उचित दर पर मिल सके। निर्माण उद्योग को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में पूंजी लगाने के कारण उद्योगों का विकास हुआ है। राजनीतिक स्थिरता और बिना डर के पूंजी विनियोग उद्योगों के विकास में सहायक है। उदाहरण – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि नगरों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बैंकों की सुविधा के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

2. पूर्व आरम्भ (Early Start ) – जिस स्थान पर कोई उद्योग पहले से ही स्थापित हों, उसी स्थान पर उस उद्योग के अनेक कारखाने स्थापित हो जाते हैं । मुम्बई में सूती कपड़े के उद्योग तथा कोलकाता में जूट उद्योग इसी कारण से केन्द्रित हैं। किसी स्थान पर अचानक किसी ऐतिहासिक घटना के कारण सफल उद्योग स्थापित हो जाते हैं । अलीगढ़ में ताला उद्योग इसका उदाहरण है।

3. सरकारी नीति (Government Policy) – सरकार के संरक्षण में कई उद्योग विकास कर जाते हैं, जैसे देश में चीनी उद्योग सन् 1932 के पश्चात् संरक्षण से ही उन्नत हुआ है। सरकारी सहायता से कई उद्योगों को बहुत-सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। सरकार द्वारा लगाए टैक्सों से भी उद्योग पर प्रभाव पड़ता है। मथुरा में तेल शोधनशाला, कपूरथला में रेल कोच फैक्टरी तथा जगदीशपुर में उर्वरक कारखाना सरकारी नीति के अधीन लगाए गए हैं। भिलाई तथा राउरकेला इस्पात कारखाना जनजातीय विकास के कारण स्थित है।

4. अन्य कारक (Other Factors) – कई उद्योग सुविधाओं के कारण लग जाते हैं; जैसे बैंकिंग सुविधा बीमे की सुविधा, राजनीतिक स्थिरता, सुरक्षा आदि।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 2.
भारतीय लोहे तथा इस्पात उद्योग का विवरण दो। भारत में लगाए गए नए कारखानों का वर्णन करो।
उत्तर:
वर्तमान युग को “इस्पात युग” (Steel Age) कहा जाता है। लोहा इस्पात उद्योगों से ही सभी मशीनें, परिवहन के साधन तथा इंजीनियरिंग का सामान तैयार किया जाता है। भारत में लोहा इस्पात उद्योग बहुत पुराना है। भारत में इस्पात उद्योग के लिए अनुकूल साधन मौजूद हैं। पर्याप्त मात्रा में उत्तम लोहा, कोयला, मैंगनीज़, चूने का पत्थर मिलता है। भारत में संसार का सबसे सस्ता इस्पात बनता है इस्पात – भारत में लोहा – इस्पात उद्योग में आधुनिक ढंग का पहला कारखाना सन् 1907 में साकची जमशेदपुर (बिहार) में जमशेद जी टाटा द्वारा लगाया गया जो अब झारखण्ड राज्य में है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 1

निजी क्षेत्र के प्रमुख इस्पात केन्द्र-
I. जमशेदपुर में (TISCO) टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।
स्थिति के भौगोलिक कारण (Geographical Factors for Location)
1. कच्चा लोहा – सिंहभूमि ज़िले में कच्चा लोहा निकट ही से प्राप्त हो जाता है। उड़ीसा की मयूरभंज खानों से 75 कि० मी० दूरी से कच्चा लोहा मिलता है।
2. कोयला – कोक कोयले (Coking Coal) के क्षेत्र झरिया तथा रानीगंज के निकट ही हैं।
img
3. अन्य खनिज पदार्थ – चूने का पत्थर गंगपुर से, मैगनीज़ बिहार से तथा क्वार्टज़ मिट्टी कालीमती स्थान से आसानी से प्राप्त हो जाती है।
4. नदियों की सुविधा – रेत तथा जल कई नदियों से जैसे दामोदर, स्वर्ण रेखा, खोरकाई से प्राप्त हो जाते हैं 5. सस्ते व कुशल श्रमिक – बिहार, बंगाल राज्य के घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते व कुशल श्रमिक आसानी से मिलते हैं।
6. बन्दरगाहों की सुविधा – कोलकाता बन्दरगाह निकट है तथा आयात व निर्यात की आसानी है।
7. यातायात के साधन – रेल, सड़क व जलमार्गों के यातायात के सुगम व सस्ते साधन प्राप्त हैं।
8. खपत – इस प्रदेश में अनेक उद्योगों के कारण लोहा-इस्पात की खपत भी अधिक है।
9. समतल भूमि – नदी घाटियों में समतल व सस्ती भूमि प्राप्त है, जहां कारखाने लगाए जा सकते हैं।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 2
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 3
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 4

II. बर्नपुर में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO ) – पश्चिमी बंगाल में यह निजी क्षेत्र से इस्पात कारखाना स्थित है। यह कारखाना सन् 1972 से केन्द्र द्वारा नियन्त्रित है। यहां निम्नलिखित सुविधाएं प्राप्त हैं-
(1) रानीगंज तथा झरिया से 137 कि० मी० की दूरी पर कोयला प्राप्त होता है।
( 2 ) लोहा झारखण्ड में सिंहभूम क्षेत्र से।
(3) चूने का पत्थर उड़ीसा से, गंगपुर क्षेत्र से
(4) जल दामोदर नदी से प्राप्त हो जाता है।
(5) कोलकाता बन्दरगाह से आयात-निर्यात तथा व्यापार की सुविधाएं प्राप्त हैं।

III. विश्वेश्वरैया (Vishvesveraya) आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड ( VISL) – यह कारखाना कर्नाटक राज्य में भद्रा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित भद्रावती स्थान पर सन् 1923 में लगाया गया।

सुविधाएं (Factors ) –

  1. हैमेटाइट लोहा बाबा बूदन पहाड़ियों से
  2. लकड़ी का कोयला (Charcoal) कादूर के वनों से
  3. जल विद्युत् जोग जल प्रपात तथा शिव समुद्रम् प्रपात से।
  4. चूने का पत्थर भंडी गुड्डा से प्राप्त होता है।
  5. शिमोगा से मैंगनीज़ प्राप्त होता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 9

सार्वजनिक क्षेत्र से लोहा इस्पात केन्द्र – देश में इस्पात उद्योग में वृद्धि करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) कम्पनी की स्थापना की गई। इसके अधीन विदेशी सहायता से चार इस्पात कारखाने लगाए गए हैं –

I. भिलाई – यह कारखाना छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भिलाई स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लोहा 97 कि० मी० दूरी से धाली – राजहारा पहाड़ी से प्राप्त होता है।
  • कोयला कोरबा तथा झरिया खानों से मिलता है।
  • मैंगनीज़ बालाघाट क्षेत्र से तथा चूने का पत्थर नंदिनी खानों से प्राप्त होता है।
  • तांदुला तालाब से जल प्राप्त होता है।
  • यह नगर कोलकाता – नागपुर रेलमार्ग पर स्थित है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

II. दुर्गापुर – यह इस्पात कारखाना पश्चिमी बंगाल में इंग्लैण्ड की सहायता से लगाया गया है।

  1. यहां लोहा सिंहभूम क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  2. कोयला रानीगंज क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  3. गंगपुर क्षेत्र में डोलोमाइट व चूने का पत्थर मिलता है।
  4. दामोदर नदी से जल तथा विद्युत् प्राप्त होती है।

इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 16 लाख टन से बढ़ाकर 24 लाख टन किया जा रहा है।

III. राऊरकेला – यह कारखाना उड़ीसा में जर्मनी की फ़र्म क्रुप एण्ड डीमग की सहायता से लगाया गया –

  1. यहां लोहा उड़ीसा के बोनाई क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  2. कोयला झरिया तथा रानीगंज से प्राप्त होता है।
  3. चूने का पत्थर पुरनापानी तथा मैंगनीज़ ब्राजमदा क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  4. हीराकुड बांध से जल तथा जल विद्युत् मिल जाती है।

इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 18 लाख टन से बढ़ा कर 28 लाख टन करने की योजना है।

IV. बोकारो – यह कारखाना झारखण्ड में बोकारो नामक स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • इस केन्द्र की स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के मध्य में है। यहां बोकारो, झरिया से कोयला, उड़ीसा के क्योंझर क्षेत्र से लोहा प्राप्त होता है।
  • जल विद्युत् हीराकुड तथा दामोदर योजना से।
  • जल बोकारो तथा दामोदर नदियों से।

इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ा कर 40 लाख टन किया जा रहा है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 5

सातवीं पंचवर्षीय योजना के नए कारखाने – सातवीं पंचवर्षीय योजना में तीन नए कारखाने लगाए जाने की योजना बनाई गई है।

  • आन्ध्र में विशाखापट्टनम।
  • तमिलनाडु में सेलम।
  • कर्नाटक में होस्पेट के निकट विजय नगर।

उत्पादन – देश में उत्पादन बढ़ जाने के कारण कुछ ही वर्षों में भारत संसार के प्रमुख इस्पात देशों में स्थान प्राप्त कर लेगा। 2009 में देश में तैयार इस्पात का उत्पादन 597 लाख टन था। यन्त्रों आदि के लिए स्पैशल इस्पात का उत्पादन 5 लाख टन था। भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत केवल 32 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 500 किलोग्राम है। भारत से प्रतिवर्ष 20 लाख टन लोहा तथा इस्पात विदेशों को निर्यात किया जाता है, जिसका मूल्य 2000 करोड़ ₹ है।

भविष्य – 24 जनवरी, 1973 को स्टील अथारिटी ऑफ इण्डिया (SAIL) की स्थापना की गई है। यह संगठन लोहा-इस्पात, उत्पादन व निर्यात का कार्य सम्भालेगा। विभिन्न कारखानों की क्षमता को बढ़ाकर उत्पादन 1000 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य है । देश में इस्पात बनाने के लिए छोटे-छोटे कारखाने (Mini Steel Plants) लगाकर उत्पादन बढ़ाया जाएगा।

प्रश्न 3.
भारत में सूती कपड़ा उद्योग का विवरण दो। यह उद्योग किन कारणों से मुम्बई तथा अहमदाबाद में केन्द्रित है ?
उत्तर:
सूती कपड़ा उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। ढाका की मलमल दूर-दूर के देशों में प्रसिद्ध थी। यह उद्योग घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत था, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस उद्योग को समाप्त करके भारत को इंग्लैण्ड से बने कपड़े की एक मण्डी बना दिया। भारत में पहली आधुनिक कपड़ा मिल सन् 1818 में कलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित की गई।

महत्त्व (Importance ) –

  1. यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा तथा प्राचीन उद्योग है।
  2. इसमें 10 लाख मज़दूर काम करते हैं। (3) सब उद्योगों में से अधिक पूंजी इसमें लगी हुई है।
  3. इस उद्योग के माल के निर्यात से 57000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  4. इस उद्योग पर रंगाई, धुलाई, रासायनिक उद्योग निर्भर करते हैं। इस उद्योग में 50 लाख ₹ के रासायनिक पदार्थ प्रयोग होते हैं।

सूती कपड़ा उद्योग का स्थानीयकरण (Location) –
भारत में इस उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित अनुकूल सुविधाएं हैं-

  1. अधिक मात्रा में कपास।
  2. उचित मशीनें।
  3. मांग का अधिक होना।

उत्पादन (Production ) – देश में 2009 में 1824 कपड़ा मिलें थीं। इन कारखानों में 200 लाख तकले तथा 2 लाख करघे हैं। इन मिलों में लगभग 200 करोड़ किलोग्राम सूत तथा 3000 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

वितरण (Distribution ) – सूती कपड़े के कारखाने सभी प्रान्तों में हैं। लगभग 80 नगरों में सूती मिलें फैली हुई हैं। इन प्रदेशों में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति निम्नलिखित कारणों से है-
1. महाराष्ट्र – यह राज्य सूती कपड़ा उद्योग में सबसे आगे है। यहां 119 मिलें हैं। मुम्बई आरम्भ से ही सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र है । इसलिए इसे सूती वस्त्रों की राजधानी (Cotton-Polis of India) कहते है। मुम्बई के अतिरिक्त नागपुर, पुणे, शोलापुर, अमरावती प्रसिद्ध केन्द्र हैं ।

मुम्बई नगर में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पूर्व आरम्भ – भारत की सबसे पहली आधुनिक मिल मुम्बई में ही खोली गई।
  • पूंजी – मुम्बई के व्यापारियों ने कपड़ा मिलें खोलने में बहुत धन लगाया।
  • कपास – आस-पास के खानदेश तथा बरार प्रदेश की काली मिट्टी के क्षेत्र में उत्तम कपास मिल जाती है।
  • उत्तम बन्दरगाह – मुम्बई एक उत्तम बन्दरगाह है, जहां मशीनरी तथा कपास आयात करने तथा कपड़ा निर्यात करने की सुविधा है।
  • नम जलवायु – सागर से निकटता तथा नम जलवायु इस उद्योग के लिए आदर्श है।
  • सस्ते श्रमिक – घनी जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  • जल विद्युत् – कारखानों के लिए सस्ती बिजली टाटा विद्युत् केन्द्र से प्राप्त होती है।
  • यातायात – मुम्बई रेलों व सड़कों द्वारा देश के भीतरी भागों से मिला हुआ है।
  • जल प्राप्ति – कपड़े की धुलाई, रंगाई के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है।

2. गुजरात – गुजरात राज्य का इस उद्योग में दूसरा स्थान है। अहमदाबाद प्रमुख केन्द्र है, जहां 75 मिलें हैं। अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर (Manchester of India) कहते हैं। इसके अतिरिक्त सूरत, बड़ौदा, राजकोट प्रसिद्ध केन्द्र हैं। यहां सस्ती भूमि व उत्तम कपास के कारण उद्योग का विकास हुआ है।

3. तमिलनाडु – इस राज्य में पन- बिजली के विकास तथा लम्बे रेशे के कपास की प्राप्ति के कारण यह उद्योग बहुत उन्नत है। मुख्य केन्द्र मदुराई, कोयम्बटूर, सेलम, चेन्नई हैं।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 6
4. पश्चिमी बंगाल – इस राज्य में अधिकतर मिलें हुगली क्षेत्र में हैं। यहां रानीगंज से कोयला, समुद्री आर्द्र जलवायु, सस्ते मज़दूर व अधिक मांग के कारण यह उद्योग स्थित है ।
5. उत्तर प्रदेश – यहां अधिकतर (14) मिलें कानपुर में स्थित हैं। कानपुर को उत्तरी भारत का मानचेस्टर कहते हैं। यह कपास उत्पन्न करने वाला राज्य है। यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते मज़दूर हैं व सस्ते कपड़े की मांग अधिक है। इसके अतिरिक्त आगरा, मोदीनगर, बरेली, वाराणसी, सहारनपुर प्रमुख केन्द्र हैं।
6. मध्य प्रदेश में इन्दौर, ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल।
7. आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद तथा वारंगल।
8. कर्नाटक में मैसूर तथा बंगलौर।
9. पंजाब में अमृतसर, फगवाड़ा, अबोहर, लुधियाना।
(x) हरियाणा में भिवानी।
(xi) अन्य नगर देहली, पटना, कोटा, जयपुर, कोचीन।

प्रश्न 4.
भारत में चीनी उद्योग के महत्त्व, उत्पादन तथा प्रमुख केन्द्रों का वर्णन करो।
अथवा
भारत में चीनी उद्योग के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी उद्योग (Sugar Industry ) – चीनी उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। सन् 1932 में सरकार ने विदेशों से आने वाली चीनी पर कर लगा दिया। इस प्रकार बाहर से आने वाली चीनी महंगी हो गई तथा देश में चीनी उद्योग का विकास शुरू हुआ।

महत्त्व – देश की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

  • चीनी उद्योग भारत का दूसरा बड़ा उद्योग है जिसमें 1 अरब से अधिक पूंजी लगी हुई है।
  • देश की 506 मिलों में 4 लाख मज़दूर काम करते हैं।
  • इस उद्योग में देश के 2 करोड़ कृषकों को लाभ होता है।
  • भारत विश्व की 10% चीनी उत्पन्न करता है और चौथे स्थान पर है।
  • इस उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों पर अल्कोहल, खाद, मोम, कागज़ उद्योग निर्भर करते हैं।

उत्पादन – यह उद्योग कृषि पर आधारित (Agro based) है। इसलिए यह उद्योग गन्ना उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थित है। भारत में चीनी मिलों की संख्या 504 है जिनमें चीनी का उत्पादन लगभग 150 लाख टन है, जो विश्व में सबसे अधिक है। अधिकतर कारखाने उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्य में हैं।

उत्तरी भारत में सुविधाएं –

  • भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है।
  • अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
  • सस्ती जल-विद्युत् तथा बिहार से कोयला मिल जाता है।
  • यातायात के उत्तम साधन हैं।

कठिनाइयां (Problems ) – भारत में चीनी उद्योग को कई कठिनाइयां हैं। भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है। गन्ने में रस की मात्रा कम है। गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं। गन्ने की कीमतें ऊंची हैं। चीनी उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों (By- Products) का ठीक उपयोग नहीं होता । इन कारणों से चीनी पर लागत अधिक है।

भविष्य (Future ) – चीनी उद्योग गन्ने की अनुकूल उपज दशाओं के कारण दक्षिणी भारत में बढ़ रहा है। दक्षिणी भारत में कोयम्बटूर में गन्ना अनुसन्धान केन्द्र है। यहां गन्ने में रस की मात्रा तथा प्रति एकड़ उत्पादन भी अधिक है। चीनी उद्योग का वितरण – भारत में चीनी उद्योग गन्ना उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थित है। गन्ना एक भारी कच्चा माल है। इसलिए यह उद्योग कच्चे माल के स्रोत के समीप ही चलाया जाता है। भारत में 2/3 कारखाने उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों में हैं जो भारत की 60% चीनी उत्पन्न करते हैं ।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

1. उत्तर प्रदेश – भारत में उत्तर प्रदेश चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गन्ना उत्पादन में भी यह प्रदेश प्रथम स्थान पर है। यहां चीनी मिलें दो क्षेत्रों में पाई जाती हैं-
(क) तराई क्षेत्र – गोरखपुर, बस्ती, सीतापुर, फैज़ाबाद
(ख) दोआब क्षेत्र – सहारनपुर, मेरठ, मुज़फ्फरनगर

उत्तरी भारत में सुविधाएं –

  • भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है।
  • अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
  • सस्ती जल विद्युत् तथा बिहार से कोयला मिल जाता है।
  • यातायात के उत्तम साधन हैं।
  • जल के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं।

2. महाराष्ट्र – महाराष्ट्र भारत का चीनी का दूसरा बड़ा उत्पादक राज्य है। प्रमुख केन्द्र कोल्हापुर, पुणे, शोलापुर हैं।
3. आन्ध्र प्रदेश – यहां गन्ने का अधिक उत्पादन होता है। प्रमुख मिलें विशाखापट्टनम, हैदराबाद, विजयवाड़ा, हास्पेट, पीठापुरम में हैं।
4. अन्य केन्द्र –

  • कर्नाटक में – बेलगांव, रामपुर, पाण्डुपुर।
    • बिहार में – चम्पारण, सारण, मुज़फ्फरपुर, दरभंगा, पटना।
      JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 8
  • तमिलनाडु में – कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, रामनाथपुरम।
  • पंजाब में – नवांशहर, भोगपुर, फगवाड़ा, धूरी, अमृतसर।
  • हरियाणा में – यमुनानगर, पानीपत, रोहतक।
  • राजस्थान में – चित्तौड़गढ़, उदयपुर।
  • गुजरात में – अहमदाबाद, भावनगर।
  • उड़ीसा में – गंजम

चीनी उद्योग की कठिनाइयां (Problems ) – भारत में चीनी उद्योग को कई कठिनाइयां हैं। भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है। गन्ने में रस की मात्रा कम है। गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं। गन्ने की कीमतें ऊंची हैं। चीनी उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों (By-Produces) का ठीक उपयोग नहीं होता। इन कारणों से चीनी पर लागत अधिक है।

भविष्य – पिछले कुछ वर्षों से चीनी उद्योग दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित कर रहा है। कोयम्बटूर में गन्ना खोज केन्द्र भी स्थापित किया गया है। दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है तथा इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। दक्षिणी भारत में गन्ने की पिराई का समय भी अधिक होता है। गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक है। यहां
आधुनिक चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में लगाई गई हैं।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगिक समूहों के विकास का वर्णन करो। इनका वर्गीकरण करके अस्तित्व की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न प्रदेशों में उद्योगों के केन्द्रीयकरण के कारण कई औद्योगिक क्षेत्रों और समूहों का विकास हुआ है। ये औद्योगिक समूह यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे भारी समूह नहीं हैं। ये छोटे-छोटे समूह एक-दूसरे के पास स्थित हैं। इनमें काम करनें वाले श्रमिकों की औसत दैनिक संख्या के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में बांटा जाता है-
(1) मुख्य औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 1 लाख 50 हज़ार / 1,50,000 से अधिक होती है।
(2) लघु औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 25 हज़ार से अधिक होती है।
(3) छोटे औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 25 हज़ार से कम होती है

भारत के विभिन्न प्रदेशों में निम्नलिखित 8 बड़े औद्योगिक प्रदेशों का विकास हुआ है –
1. हुगली औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत की प्रमुख औद्योगिक पेटी है । इस प्रदेश का विस्तार खुले समुद्र से 97 किलोमीटर अन्दर तक हुगली नदी के दोनों किनारों के साथ-साथ है। इस क्षेत्र के विकास के लिए निम्नलिखित सुविधाएं हैं-

  • हुगली नदी के किनारे कोलकाता बन्दरगाह द्वारा आयात-निर्यात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
  • दामोदर घाटी क्षेत्र से कोयला तथा लोहे का प्राप्त होना।
  • यह क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान की घनी जनसंख्या वाले पृष्ठ प्रदेश में रेलों तथा सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ है।
  • आसाम में चाय, डेल्टा प्रदेश से पटसन की प्राप्ति ने इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास में सहायता की है।
  • कोलकाता एक व्यापारिक केन्द्र है। यहां बिहार तथा उड़ीसा राज्यों से सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं ।

इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भी अनुकूल है। यहां से विदेशों को कच्चे माल के निर्यात तथा मशीनरी व तैयार माल के आयात की सुविधा है। गंगा नदी पर फरक्का बांध के निर्माण तथा हल्दिया बन्दरगाह के बन जाने से महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होंगे। इस क्षेत्र में लोहा, इस्पात, पटसन, कागज़, चमड़ा तथा अन्य कई उद्योगों का विकास हुआ है।

2. मुम्बई – पुणे औद्योगिक प्रदेश – यह देश का दूसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है। इसका विकास सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के कारण हुआ है । यह प्रदेश मुम्बई, थाना, कल्याण तथा पुणे तक फैला हुआ है। इस प्रदेश के विकास के लिए निम्नलिखित तत्त्व सहायक रहे हैं-

  • मुम्बई बन्दरगाह से आयात-निर्यात की सुविधाएं।
  • मुम्बई तथा थाना के मध्य रेल मार्ग का निर्माण होना।
  • स्वेज नहर मार्ग के विकास के कारण विदेशों से अधिक सम्पर्क स्थापित होना।
    JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग - 8
  • पश्चिमी घाट से जल-विद्युत् का प्राप्त होना।
  • महाराष्ट्र और गुजरात के पृष्ठ प्रदेश से उत्तम कपास तथा सस्ते श्रमिकों का प्राप्त होना।
  • भोर घाट तथा थाल घाट मार्गों के खुलने से रेल तथा सड़क मार्गों द्वारा परिवहन साधनों से पृष्ठ प्रदेश के साथ सम्बन्ध स्थापित होना।
  • यहां सूती वस्त्र उद्योग, खनिज तेल शोधक उद्योग, रासायनिक उद्योग तथा इंजीनियरिंग उद्योगों का विकास हुआ है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

3. अहमदाबाद बड़ौदा औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत का तीसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है तथा देश के आन्तरिक भाग में स्थित है। इस प्रदेश के विकास के निम्नलिखित कारण हैं –

  • यह क्षेत्र कपास उत्पन्न करने वाले प्रदेश के बीच स्थित है।
  • यहां गंगा सतलुज के मैदान सूती कपड़ा के मांग क्षेत्र के निकट हैं।
  • यहां सस्ते मूल्य पर कुशल श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  • यहां मुम्बई तथा कांडला बन्दरगाहों से आयात-निर्यात की सुविधा है।
  • खम्बात क्षेत्र में अंकलेश्वर में खनिज तेल की खोज ने कई पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है।
  • अधिकतर सूती वस्त्र उद्योग अहमदाबाद में है जिसे ‘भारत का मानचेस्टर’ भी कहते हैं।

4. मदुराई, कोयम्बटूर, बंगलौर औद्योगिक प्रदेश – दक्षिणी भारत के इस प्रदेश में चेन्नई, कोयम्बटूर, मदुराई, बंगलौर तथा मैसूर में विभिन्न उद्योगों की स्थापना हुई है। यहां उद्योग के केन्द्रीयकरण के कई कारण हैं –

  • यहां मैटूर, पाइकारा, शिव समुद्रम आदि योजनाओं से सस्ती जल – विद्युत् प्राप्त होती है।
  • यहां सस्ते, कुशल श्रमिक प्राप्त हैं
  • घनी जनसंख्या के कारण मांग अधिक है।
  • जलवायु कई उद्योगों के अनुकूल है।
  • इस क्षेत्र में उत्तम कपास की प्राप्ति हो जाती है।

इसलिए कोयम्बटूर में सूती कपड़ा, कॉफी की मिलें, चमड़े के कारखाने तथा सीमेंट मिलों का विकास हुआ है। बंगलौर में हिन्दुस्तान वायुयान केन्द्र, मशीन टूल्स, टेलीफोन उद्योग तथा विद्युत् उपकरण उद्योग स्थापित हुए हैं। अन्य केन्द्रों में सूती कपड़ा, ऊनी कपड़ा, रेशमी वस्त्र, रासायनिक उद्योग, मोटर गाड़ियों के उद्योग तथा चमड़ा उद्योग मिलते हैं।

5. छोटा नागपुर पठार औद्योगिक प्रदेश – बिहार तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों में इस क्षेत्र का विकास दामोदर घाटी हुआ है। यहां कई लोहा – इस्पात कारखाने जैसे जमशेदपुर, बोकारो, दुर्गापुर आदि स्थापित हो गए हैं। इसे भारत का रुहर प्रदेश भी कहते हैं। यहां औद्योगिक विकास के लिए कई सुविधाएं हैं-

  • झरिया तथा रानीगंज से कोयला प्राप्त होना।
  • बिहार, झारखण्ड तथा उड़ीसा से खनिज लोहे की प्राप्ति।
  • कोलकाता बन्दरगाह की सुविधाएं प्राप्त होना।
  • दामोदर घाटी योजना से जल विद्युत् तथा तापीय विद्युत् की सुविधा।
  • कई इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योगों का रांची, चितरंजन, सिन्द्री आदि शहरों में स्थापित हो जाना।

6. दिल्ली तथा निकटवर्ती प्रदेश – स्वतन्त्रता के पश्चात् अनेक औद्योगिक गुच्छों का विकास हुआ है।

  • उत्तर प्रदेश में आगरा-मथुरा-मेरठ – सहारनपुर क्षेत्र
  • हरियाणा में फ़रीदाबाद – गुड़गांव – अम्बाला क्षेत्र
  • दिल्ली का निकटवर्ती क्षेत्र

इस प्रदेश के विकास में कई भौगोलिक तत्त्वों का योगदान है-

  • भाखड़ा नंगल योजना से जल विद्युत् प्राप्ति।
  • हरदुआगंज़ तथा फ़रीदाबाद से ताप विद्युत् प्राप्ति।
  • कृषि आधारित उद्योगों (चीनी तथा वस्त्र उद्योग) के लिए कच्चे माल की प्राप्ति।
  • मथुरा के तेल शोधन कारखाने से तेल प्राप्ति तथा पेट्रो- रासायनिक पदार्थों की प्राप्ति।
  • कृषि क्षेत्र के कारण अधिक मांग

प्रमुख केन्द्र – इस प्रदेश में शीशा, रसायन, कागज़, इलेक्ट्रॉनिक्स, साइकिल, वस्त्र तथा चीनी उद्योग स्थापित है।

  • आगरा में शीशा उद्योग
  • गुड़गांव में कार फैक्टरी तथा I.D. P. L. की इकाई।
  • फ़रीदाबाद में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
  • सहारनपुर तथा यमुनानगर में कागज़ उद्योग
  • मोदी नगर, सोनीपत, पानीपत, बल्लभगढ़ में वस्त्र उद्योग

7. विशाखापट्टनम:
गुंटूर प्रदेश – यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापट्टनम ज़िले से लेकर दक्षिण में कुर्नूल और प्रकाशम ज़िलों तक विस्तृत है। इस प्रदेश का औद्योगिक विकास मुख्यतः विशाखापट्टनम और मछलीपटनम के पत्तनों और इनके पृष्ठ प्रदेश की समृद्ध कृषि तथा खनिजों के विशाल भंडार पर आश्रित है। गोदावरी द्रोणी के कोयला क्षेत्र इस प्रदेश को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करते हैं। 1941 में विशाखापट्टनम में जलयान निर्माण उद्योग लगाया गया था।

पेट्रोलियम परिष्करणशाला आयातित कच्चे तेल पर आधारित है तथा इसने अनेक पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है। इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं – चीनी, वस्त्र, जूट, कागज़, उर्वरक, सीमेंट, एल्यूमीनियम और इंजीनियरी के हल्के सामान। गुंटूर जिले में एक सीसा – जस्ता प्रगलन संयंत्र भी चालू है। विशाखापट्टनम में स्थित लोहे और इस्पात का कारखाना बैलाडिला के लौह-अयस्क का उपयोग करता है। इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र ये हैं: विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, विजयनगर, राजामुन्दरी, गुंटूर, एलुरू और कुर्नूल।

8. कोल्लम – तिरुवनन्तपुरम प्रदेश:
इस प्रदेश का विस्तार तिरुवनन्तपुरम, कोल्लम, अलप्पुजा, एर्णाकुलम और त्रिशुर जिलों में हैं। रोपण कृषि और जल विद्युत् ने इस प्रदेश को औद्योगिक आधार प्रदान किया है। यह प्रदेश देश की खनिज पट्टी से दूर है। अतः यहां मुख्य रूप से कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण से संबंधित और बाज़ारोन्मुख हल्के उद्योग ही विकसित हुए हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग

इस प्रदेश के मुख्य उद्योग ये हैं – सूती वस्त्र, चीनी, रबड़, माचिस, कांच, रासायनिक उर्वरक और मछली आधारित उद्योग। इनके अलावा खाद्य प्रसंस्करण, कागज़, नारियल रेशे के उत्पाद, एल्यूमीनियम और सीमेंट उद्योग भी उल्लेखनीय हैं। कोच्चि में तेल परिष्करणशाला ने इस प्रदेश के उद्योगों में एक नया आयाम जोड़ दिया है । इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र ये हैं : कोल्लम्, तिरुवनन्तपुरम्, अलवाए, कोच्चि और अलप्पुजा।