Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है –
(अ) सड़क
(स) आभूषण
(ब) मृदभाण्ड
(द) मुहर
उत्तर:
(द) मुहर
2. मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं –
(अ) मोहनजोदड़ो
(स) मिताथल
(ब) बनावली
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(ब) बनावली
3. पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के किस स्थल से हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं?
(अ) धौलावीरा
(स) राखीगढ़ी
(ब) रंगपुर
(द) कालीबंगा
उत्तर:
(द) कालीबंगा
4. थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र क्या कहलाता है?
(अ) नखलिस्तान
(स) पोलिस्तान
(ब) पाकिस्तान
(द) अफगानिस्तान
उत्तर:
(स) पोलिस्तान
5. भारतीय पुरातत्व का जनक किसे कहा जाता है?
(अ) जॉन मार्शल
(ब) मैके
(स) दयाराम साहनी
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम
उत्तर:
(द) अलेक्जेण्डर कनिंघम
6. हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत विशाल स्नानागार स्थित
(अ) मोहनजोदड़ो
(ब) कालीबंगा
(स) रंगपुर
(द) चन्हूदड़ो
उत्तर:
(अ) मोहनजोदड़ो
7. मनके बनाने के लिए कौनसी बस्ती प्रसिद्ध थी?
(अ) मोहनजोद
(ब) बणावली
(स) धौलावीरा
(द) चन्लूदड़ो
उत्तर:
(द) चन्लूदड़ो
8. बालाकोट तथा नागेश्वर किस वस्तु के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं ?
(अ) अस्त्र-शस्त्र
(ब) जहाज
(स) शंख की वस्तुएँ
(द) मृदाभाण्ड
उत्तर:
(स) शंख की वस्तुएँ
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
1…………….. प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं।
2. बाजरे के दाने …………. के स्थलों से प्राप्त हुए थे।
3. भोजन तैयार करने की प्रक्रिया को ………….. धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था।
4. सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ………….. पद्धति में बनाया गया था।
5. विद्वानों के अनुमान से मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग ………….. थी।
6. …………… पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे, जो ………….. तथा क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव लाए।
उत्तर:
1. पुरा वनस्पतिज्ञ
2. गुजरात
3. पत्थर
4. ग्रिड
5. 700
6. यूनान।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जान मार्शल ने 1924 में सिन्धुघाटी में उत्खनन के सन्दर्भ में क्या घोषणा की?
उत्तर:
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा।
प्रश्न 2.
उन दो पुरास्थलों का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पाई समाज द्वारा कृषि के लिए जल संचय किया जाता था।
उत्तर:
(1) अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक पुरास्थल
(2) गुजरात में धौलावीरा नामक पुरास्थल।
प्रश्न 3.
उन दो पुरावस्तुओं का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर पुरातत्त्वविद् यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए हड़प्पा संस्कृति में बैलों का प्रयोग होता था।
उत्तर:
(1) मोहरों पर किए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ
(2) मिट्टी से बने हल
प्रश्न 4.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डाइरेक्टर जनरल रहे किन्हीं दो पुरातत्त्ववेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) जनरल कनिंघम
(2) आर.ई. एम. व्हीलर।
प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के सबसे लम्बे अभिलेख में कितने चिह्न हैं ?
उत्तर:
लगभग 26 चिह्न।
प्रश्न 6.
पुरातत्व वैज्ञानिकों के द्वारा खोजे गए हड़प्पा सभ्यता के कोई चार नगरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- हड़प्पा
- मोहनजोदड़ो
- लोथल
- रंगपुर।
प्रश्न 7.
हड़प्पा स्थलों से किन जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं?
उत्तर:
भेड़, बकरी, भैंस, सूअर, हिरण तथा चढ़ियाल।
प्रश्न 8.
हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा और चावल।
प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के साधनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुएँ, नहरें तथा जलाशय।
प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन किससे बने होते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के से बने होते थे।
प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवनों के निर्माण में अधिकतर किस आकार की ईंटों का प्रयोग होता था ?
उत्तर:
सामान्यतः हड़प्पा सभ्यता में 4:2:1 आकार की ईंटों का प्रयोग होता था।
प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के दुर्ग पर स्थित दो प्रमुख संरचना का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) मालगोदाम
(2) विशाल स्नानागार।
प्रश्न 13.
पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता में पाई जाने वाली सामाजिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए किन दो विधियों का प्रयोग किया गया?
उत्तर:
(1) शवाधानों का अध्ययन
(2) उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं की खोज।
प्रश्न 14.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई उपयोगी वस्तुओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
चक्कियाँ, मृदभाण्ड सूइयाँ, झाँवा
प्रश्न 15.
पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई विलासिता की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) फयॉन्स के छोटे पात्र
(2) सोने, चाँदी तथा बहुमूल्य पत्थरों के बने हुए आभूषण।
प्रश्न 16.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के दो प्रमुख स्थानों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) चन्लूदड़ो
(2) लोथल।
प्रश्न 17.
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शिल्प कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहरें बनाना तथा बाट बनाना।
प्रश्न 18.
हड़प्पावासी ताँबा तथा सोना कहाँ से मँगाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी तौबा खेतड़ी (राजस्थान) और ओमान से तथा सोना दक्षिण भारत से मँगवाते थे।
प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए जिनसे हड़प्पावासियों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के ओमान तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक सम्बन्ध थे।
प्रश्न 20.
पुरुवस्तुओं के आधार पर बताइये कि हड़यावासी किनकी पूजा करते थे?
उत्तर:
- मातृदेवी
- आद्य शिव
- पशु – पक्षियों की
- वृक्षों की
- लिंग पूजा।
प्रश्न 21.
शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से वस्तुएँ बनाने के दो प्रमुख केन्द्र थे।
प्रश्न 22.
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद जिन वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं, उनमें से किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- कच्चा माल
- औजार
- अपूर्ण वस्तुएँ
- कूड़ा-करकट।
प्रश्न 23.
हड़प्पा की खुदाई का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब किया गया?
उत्तर:
1921 ई. में हड़प्पा की खुदाई का कार्य दयाराम साहनी के नेतृत्व में किया गया।
प्रश्न 24.
ऐसे चार भौतिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिये जो पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के लोगों के जीवन को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायक होते हैं।
उत्तर:
- मृदभाण्ड
- औजार
- आभूषण
- घरेलू सामान।
प्रश्न 25.
मोहनजोदड़ो में उत्खनन का कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब ?
उत्तर:
1922 में श्री राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में।
प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- जलवायु परिवर्तन
- वनों की कटाई
- भीषण बाढ़
- नदियों का सूख जाना।
प्रश्न 27.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-कौन से शिल्पकार्य प्रचलित थे? कोई दो लिखिए।
उत्तर:
(1) मनके बनाना
(2) शंख की कटाई।
प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु कौनसी है?
उत्तर:
हड़प्पाई मुहर
प्रश्न 29.
हड़प्पाई मुहर किससे बनाई गई थी?
उत्तर:
सेलखड़ी पत्थर
प्रश्न 30.
अंग्रेजी में बी.सी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बिफोर क्राइस्ट (ईसा पूर्व)।
प्रश्न 31.
हड़प्पाई सभ्यता के किन स्थलों से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं?
उत्तर:
चोलिस्तान तथा बनावली (हरियाणा)।
प्रश्न 32.
हड़प्पा के किस स्थल से नहरों के अवशेष हैं ?
उत्तर:
अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुधई से
प्रश्न 33.
अवतल चक्कियाँ हड़प्पाई सभ्यता के किस स्थल से प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से
प्रश्न 34.
‘फर्दर एक्सकैवेशन्स एट मोहनजोदड़ो’ नामक नुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके
प्रश्न 35.
मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या कितनी नी?
उत्तर:
लगभग 7001
प्रश्न 36.
विशाल स्नानागार कहाँ स्थित है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो में।
प्रश्न 37.
‘अर्ली इंडस सिविलाइजेशन’ नामक पुस्तक के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके।
प्रश्न 38.
हड़प्पा सभ्यता में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः किन स्थानों पर मिली हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में।
प्रश्न 39.
मनकों में छेद करने के उपकरण किन स्थानों से मिले हैं ?
उत्तर:
- चन्द्रदड़ो
- लोथल
- धोलावीरा।
प्रश्न 40.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट समुद्र तट के समीप स्थित हैं।
प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिये. किन कच्चे मालों का प्रयोग होता था?
उत्तर:
मिट्टी, पत्थर, लकड़ी तथा धातु।
प्रश्न 42.
हड़प्पाई सभ्यता में अभियान भेजकर राजस्थान तथा दक्षिण भारत से कौनसी वस्तुएँ प्राप्त की जाती थीं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताँबा तथा दक्षिण भारत से सोना।
प्रश्न 43.
हड़प्पाई लिपि में चिह्नों की संख्या कुल कितनी है?
उत्तर:
लगभग 375 से 400 के बीच।
प्रश्न 44.
‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आकिंयालोजी’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
एस. एन. राव
प्रश्न 45.
‘आद्य शिव मुहर’ किस पुरास्थल से प्राप्त हुई है?
उत्तर:
हड़या से।
प्रश्न 46.
हड़प्पाकालीन कृषि प्रौद्योगिकी की कोई दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर:
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
(2) हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 47.
सिन्धुघाटी सभ्यता की खोज कब और किसने की ?
उत्तर:
सन् 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की तथा 1922 में श्री राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।
प्रश्न 48.
हड़प्पा पूर्व की बस्तियों की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
- बस्तियाँ प्रायः छोटी होती थीं।
- इनकी अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली थी।
- ये कृषि, पशुपालन तथा शिल्पकारी से परिचित थे।
प्रश्न 49.
सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सिन्धुघाटी सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान पर किया गया है, जहाँ वह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी।
प्रश्न 50.
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया गया है।
प्रश्न 51.
मोहनजोदड़ो नगर किन दो भागों में विभाजित था?
उत्तर:
(1) दुर्ग – यह छोटा भाग था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था।
(2) निचला शहर- यह बड़ा भाग था, जो नीचे बनाया गया था।
प्रश्न 52.
अलेक्जेण्डर कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणों के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। उन्हें सामान्यतः ‘भारतीय पुरातत्व का जनक’ कहा जाता है।
प्रश्न 53.
हड़प्पा सभ्यता की नालियों के निर्माण की क्या विशेषताएँ थीं? दो का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
घरों की नालियाँ एक हौदी में खाली होती थीं और गन्दा पानी गली की नालियों में बह जाता था।
प्रश्न 54.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) आवासीय भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे
(2) प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।
प्रश्न 55.
हड़प्पा सभ्यता में मृतकों का अन्तिम संस्कार किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
सामान्यतः मृतकों को गत में दफनाया जाता था तथा मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं।
प्रश्न 56.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
मनकों के निर्माण में कार्नीलियन जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी तथा ताँबा, काँसा, सोने जैसी धातुओं का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 57.
चंन्हूदड़ो क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
चन्द्रदड़ो मनकों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ बड़ी मात्रा में मनके बनाये जाते थे।
प्रश्न 58.
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि, सेलखड़ी कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर;
हड़प्पा निवासी लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में शोधई से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से मंगवाते थे।
प्रश्न 59.
हड़प्पा निवासी किन वस्तुओं को सुदूर क्षेत्रों से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पावासी ताँबा ओमान से, लाजवर्द अफगानिस्तान से तथा कार्नेलियन, लाजवर्द मणि, सोना आदि मेलुहा से मँगवाते थे।
प्रश्न 60.
हड़प्या लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
हड़प्पा संस्कृति की लिपि पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
अथवा
हड़प्पा की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिड़ हैं। सम्भवतः यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी।
प्रश्न 61.
हड़प्पा की किन वस्तुओं पर लिखावट मिली है?
उत्तर:
मुहरों, ताँबे के औजारों, तांबे तथा मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, आभूषणों अस्थि घड़ों और एक प्राचीन सूचना पट्ट पर लिखावट मिली है।
प्रश्न 62.
हड़प्पा सभ्यता में बाटों के मानदण्डों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
बाटों के निचले मानदण्ड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16, 32 आदि) थे जबकि ऊपरी मानदण्ड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।
प्रश्न 63.
कनिंघम ने आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए किस स्रोत का उपयोग किया?
उत्तर:
कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।
प्रश्न 64.
1980 से पुरातत्वविद किन नई तकनीकों का अवलम्बन ले रहे हैं?
उत्तर:
1960 से पुरातत्वविद आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं जिसमें मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि का अन्वेषण करते हैं।
प्रश्न 65.
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग किस लिए होता था?
उत्तर:
मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था।
प्रश्न 66.
डीलर कौन थे ?
उत्तर:
हीलर एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वे 1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने थे।
प्रश्न 67.
हड़प्पा सभ्यता के शासकों के अस्तित्व के बारे में पुरातत्वविदों के मत का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था।
(2) यहाँ कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के शासक
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।
प्रश्न 68.
ए.डी. का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह एनी डामिनी’ नामक दो लेटिन शब्दों से बना है तथा इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है।
प्रश्न 69.
हड़प्पाई लोग किन वस्तुओं से अपना भोजन प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और मछली सहित जानवरों से प्राप्त भोजन करते थे।
प्रश्न 70.
मोहनजोदड़ो का दुर्ग ऊंचाई पर क्यों बनाया गया था?
उत्तर:
क्योंकि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं।
प्रश्न 71.
1980 के दशक में हड़या के कब्रिस्तान में उत्खनन में कौनसी वस्तुएँ मिली थीं ?
उत्तर;
एक पुरुष की खोपड़ी के समीप शंख के तीन छल्ले, जैस्पर के मनके तथा सैकड़ों सूक्ष्म मनकों से बना एक आभूषण।
प्रश्न 72.
हड़प्पा सभ्यता में पुरातत्वविदों ने सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए कौनसी विधि का प्रयोग किया ?
उत्तर:
पुरातत्वविद पुरावस्तुओं को उपयोगी तथा विलासिता की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं।
प्रश्न 73.
नागेश्वर तथा बालाकोट क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट शंख से बनी वस्तुओं के निर्माण के लिए विशिष्ट केन्द्र थे ।
प्रश्न 74.
जान मार्शल कौन थे?
उत्तर;
जान मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल थे। 1924 ई. में उन्होंने सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज की घोषणा की।
प्रश्न 75.
‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर कनिंघम को ‘भारतीय पुरातत्त्व का जनक’ कहा जाता है।
प्रश्न 76.
हड़प्पा निवासी ताँबा कहाँ से मँगवाते थे?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी ताँबा राजस्थान के खेतड़ी अंचल से मँगवाते थे।
प्रश्न 77.
पुरातात्विक पुरास्थल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं।
प्रश्न 78.
सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा किसने की और कब की ?
उत्तर:
1924 ई. में जान मार्शल ने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
प्रश्न 79.
‘मोहनजोदड़ो एण्ड द इंडस सिविलाइजेशन’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर:
जान मार्शल।
प्रश्न 80.
हड़प्पाई मर्तबान किस स्थल से प्राप्त हुआ
उत्तर:
हड़प्पाई मर्तबान ओमान से मिला है।
प्रश्न 81.
भारत का सबसे आरम्भिक धार्मिक ग्रन्थ कौनसा है?
उत्तर:
ऋग्वेद।
प्रश्न 82.
ऋग्वेद कब संकलित किया गया था?
उत्तर:
ऋग्वेद लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित किया गया था।
प्रश्न 83.
आधुनिक युग में पुरातत्वविद कौनसी दो आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
(1) मिट्टी, पत्थर, धातु की वस्तुओं, वनस्पति आदि सतह का अन्वेषण
(2) उपलब्ध साक्ष्य के टुकड़ों का विश्लेषणः।
प्रश्न 84.
‘उत्तर हड़प्पा’ संस्कृति से क्या अभिप्राय
उत्तर:
जिस संस्कृति में पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ एक ग्रामीण जीवन शैली को प्रकट करती हैं, उसे ‘उत्तर हड़प्पा’ कहा जाता है।
प्रश्न 85.
आपको कौनसी परिकल्पना सबसे बुक्तिसंगत दिखाई देती है?
(1) हड़प्पाई समाज में शासक नहीं था तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी
(2) हड़प्पा में कई शासक थे।
(3) हड़प्पा एक ही राज्य था।
उत्तर:
हड़प्पा एक ही राज्य था” यह परिकल्पना सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होती है।
प्रश्न 86.
चोलिस्तान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र चोलिस्तान कहलाता है।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नगर योजना बनाते समय आप मोहनजोदड़ो नगर योजना की कौनसी बार विशेषताओं का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
(1) नगर का समस्त भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था ईंटें एक निश्चित आकार की होती थीं।
(2) मोहनजोदड़ों की एक प्रमुख विशिष्टता उसकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
(3) निचले शहरों में आवासीय भवन थे। कई आवासों में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
(4) हर घर का ईंटों के फर्श से बना एक स्नानपर होता था।
प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में ‘संस्कृति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है। पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं। ऐसे समूहों का सम्बन्ध प्रायः एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल खंड से होता है। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों में मिली हैं।
प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण, काल तथा अवस्थाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण- हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या कहा जाता है ।
प्रश्न 4.
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। आजकल ‘ए.डी.’ तथा ‘बी.सी. के स्थान पर किन शब्दों का प्रयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर:
‘बी.सी.’ तथा ‘ए.डी.’ का अर्थ-अंग्रेजी में बी.सी. (हिन्दी में ईसा पूर्व) का तात्पर्य ‘बिफोर क्राइस्ट’ (ईसा पूर्व) से है। ए.डी. (A.D.) ‘एनो डॉमिनी’ नामक दो लैटिन शब्दों से बना है। इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है। आजकल ‘ए.डी.’ के स्थान पर सी.ई. तथा बी.सी. के स्थान पर बी.सी.ई. का प्रयोग होता है। ‘सी.ई. का प्रयोग ‘कामन एरा’ तथा ‘बी.सी.ई. का प्रयोग ‘बिफोर कामन एरा’ के लिए होता है।
प्रश्न 5.
सिन्ध और चोलिस्तान में बस्तियों के सम्बन्ध में आँकड़े प्रस्तुत कीजिए। इनमें आरम्भिक हड़प्पा स्थल तथा विकसित हड़प्पा स्थल कितने हैं ?
उत्तर:
आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में बस्तियों की संख्या के सम्बन्ध में निम्नलिखित आँकड़े प्रस्तुत हैं –
|
सिन्ध |
चोलिस्तान |
बस्तियों की कुल संख्या |
106 |
239 |
आरम्भिक हड़प्पा स्थल |
52 |
37 |
विकसित हड़प्पा स्थल |
65 |
136 |
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ |
43 |
132 |
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल |
29 |
33 |
प्रश्न 6.
“इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं ये संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से सम्बद्ध थीं। इनके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं प्रायः बस्तियाँ छोटी होती थीं तथा इनमें बड़े आकार की संरचनाओं का अभाव था। कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर जलाए जाने के प्रमाणों से तथा कुछ अन्य स्थलों के त्याग दिए जाने से यह जान पड़ता है कि आरम्भिक हड़प्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम भंग था।
प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पावासियों के निर्वाह के तरीके –
- हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों और जानवरों से प्राप्त मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।
- वे गेहूँ जी, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे।
- वे भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर के मांस का सेवन करते थे।
- जंगली जानवरों जैसे बराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हट्टियाँ मिलने से ज्ञात होता है कि हड़प्पा- निवासी इन जानवरों का मांस भी खाते थे।
प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का
वर्णन कीजिये।
उत्तर:
- खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग किया जाता था।
- हड़प्पा निवासी लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों या धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
- हड़प्पा निवासी कुओं तथा जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करते थे। सिंचाई के लिए नहरों का भी उपयोग किया जाता था अफगानिस्तान में शोधई नामक स्थान पर नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं।
प्रश्न 9.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था। ” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में विभाजित है, एक भाग छोटा है जो ऊँचाई पर बनाया गया है तथा दूसरा भाग अपेक्षाकृत अधिक बड़ा है जो नीचे बनाया गया है। छोटा भाग दुर्ग तथा बड़ा भाग निचला शहर कहलाता है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था तथा निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। पहले शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार उसका कार्यान्वयन किया गया था। ईंटें एक निश्चित अनुपात में होती थीं।
प्रश्न 10.
हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी । व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा की जल निकास प्रणाली शहरों में नालियाँ बनी हुई थीं। पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस पास आवासों का निर्माण किया गया था। घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा हुआ होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।
प्रश्न 11.
प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद अलेक्जैंडर कनिंघम ने हड़प्पा नगर की दुर्दशा का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर:
भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल अलेक्जेण्डर कनिंघम ने 1875 ई. में हड़प्पा नगर की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि “हड़प्पा नंगर को ईंटें चुराने वाले लोगों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। उनके अनुसार हड़प्पा से ले जाई गई ईटों की मात्रा लगभग 100 मील लम्बी लाहौर तथा मुल्तान के बीच की रेल पटरी के लिए ईंटें बिछाने के लिए पर्याप्त थीं।”
प्रश्न 12.
मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार- विशाल स्नानागार मोहनजोदड़ो दुर्ग के आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी थीं। इसके तीनों ओर कक्षा बने हुए थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशया से पानी एक बड़े नाले में यह जाता था। इसके उत्तर में एक छोटा कक्ष था, जिसमें आठ स्नानघर बने थे।
प्रश्न 13.
मोहनजोदड़ो सभ्यता में गृहस्थापत्य की चार विशेषताएँ बताइये।
अथवा
मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य की विशेषताएँ
- हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मकान प्रायः पक्की ईंटों के बने होते थे। कई आवासों के मध्य में एक आँगन था जिसके चारों ओर कमरे बने हुए थे।
- भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगन को नहीं देखा जा सकता था।
- प्रत्येक घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था।
- कुछ घरों में दूसरी मंजिल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। कई आवासों में कुएँ बने हुए थे। इससे मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की आज भी प्रासंगिकता बनी हुई है।
प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
- सड़कें पर्याप्त चौड़ी थीं तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
- मकानों के गन्दे पानी को निकालने के लिए नालियाँ बनी हुई थीं।
- कई आवासों में कुएँ बने हुए थे।
- हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः ईंटों के बने होते थे मकानों में रसोईघर, स्नानघर, शौचालय आदि की व्यवस्था थी। छतों अथवा दूसरी मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं।
प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के शवाधानों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में प्रायः मृतकों को गत में दफनाया गया था। कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती थी। कुछ कब्रों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। हड़प्पा के एक कब्रिस्तान से एक पुरुष की खोपड़ी के पास शंख के तीन छल्ले, जैस्पर (एक. प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सैकड़ों की संख्या में बारीक मनकों से बना एक आभूषण मिला था। कहीं-कहीं पर शवों के साथ ताँबे के दर्पण रख दिए जाते थे।
प्रश्न 16.
मनकों के निर्माण में किन पदार्थों को प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:
- मनकों के निर्माण में विभिन्न प्रकार के पत्थर जैसे कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का ), जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न), स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थरों को प्रयुक्त किया जाता था। –
- इनके निर्माण में ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं को भी प्रयुक्त किया जाता था।
- इनके निर्माण में शंख, फयॉन्स तथा पक्की मिट्टी आदि का भी प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 17.
मनके बनाने की तकनीकों में क्या भिन्नताएँ थीं ?
उत्तर:
मनके बनाने की तकनीकों में भिन्नताएँ –
(1) मनके बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं। सेलखड़ी, जो एक बहुत मुलायम पत्थर है, पर सरलता से कार्य हो जाता था।
(2) कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किए जाते थे। इससे विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके कैसे बनाए जाते थे, यह प्रश्न प्राचीन तकनीकों का अध्ययन करने वाले पुरातत्वविदों के लिए एक पहेली बना हुआ है।
प्रश्न 18.
मनके बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनके बनाने की प्रक्रिया-
(1) कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था।
(2) पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था।
(3) घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही मनके बनाने की प्रक्रिया पूरी होती थी। चन्हूदड़ो, लोथल तथा धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 19.
हड़प्पा शहरों में तैयार शंख और मनके कहाँ भेजे जाते थे ?
उत्तर:
नागेश्वर तथा बालाकोट नामक बस्तियाँ समुद्र- तट के समीप स्थित थीं। ये शंख से बनी वस्तुओं जैसे चूड़ियाँ, करछियाँ तथा पच्चीकारी की वस्तुओं के निर्माण के विशिष्ट केन्द्र थे यहाँ से ये वस्तुएँ दूसरी बस्तियों में भेजी जाती थीं। यह भी सम्भव है कि चन्हूदड़ो और लोथल से तैयार माल जैसे मनके, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरी केन्द्रों में भेजे जाते थे।
प्रश्न 20.
शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान पुरातत्वविदों द्वारा किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर:
शिल्प-उत्पादन के केन्द्रों की पहचान –
(1) शिल्प उत्पादन के केन्द्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद प्राय: निम्नलिखित वस्तुओं को ढूँढ़ते हैं- प्रस्तरपिंड, पूरे शंख, तौबा- अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट।
(2) कूड़ा-करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतकों में से एक है।
(3) कभी-कभी बड़े बेकार टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तुएँ बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता था अतः ये बड़े बेकार टुकड़े यह प्रकट करते हैं कि ये स्थल शिल्प- उत्पादन के केन्द्र रहे होंगे।
प्रश्न 21.
शिल्प उत्पादन के लिए हड़प्पा निवासी कच्चा माल प्राप्त करने के लिए कौनसी नीतियाँ अपनाते थे ?
उत्तर:
कच्चा माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ –
(1) हड़प्पा निवासी शिल्प उत्पादन के लिए कच्चा माल प्राप्त करने हेतु कई तरीके अपनाते थे नागेश्वर तथा बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। वे लाजवर्द मणि अफगानिस्तान में स्थित शोर्तुमई से कार्नीलियन गुजरात में स्थित भड़ौच से, सेलखड़ी दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से और धातु राजस्थान से मँगवाते थे।
(2) अभियान भेजना हड़प्पा वासी ताँबा प्राप्त करने हेतु राजस्थान के खेतड़ी आँचल में तथा सोना प्राप्त करने के लिए दक्षिण भारत में अभियान भेजते थे
प्रश्न 22.
गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर:
राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्त्वविदों ने ‘गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति’ के नाम से पुकारा है। इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभाण्ड हड़प्पाई मृदभाण्डों से भिन्न थे तथा यहाँ ताँबे की वस्तुओं की विपुल संपदा मिली थी। विद्वानों का अनुमान है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे। राजस्थान के खेतड़ी अंचल से ताँबा प्राप्त करने हेतु हड़प्पा से अभियान भेजे जाते थे।
प्रश्न 23.
हड़प्पा निवासियों का किन देशों से व्यापारिक सम्पर्क था?
उत्तर:
हड़प्पा निवासी अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पश्चिम छोर पर स्थित ओमान से ताँबा मँगवाते थे मेसोपोटामिया के लेख दिलमुन (बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (हड़प्पाई क्षेत्र) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। यह लेख मेलुहा से प्राप्त उत्पादों जैसे कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना, लकड़ी आदि का उल्लेख करते हैं। ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क समुद्री मार्ग से था।
प्रश्न 24.
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों तथा मुद्रांकनों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्मकों को सुविधाजनक बनाने हेतु किया जाता था। उदाहरणार्थ, जब सामान से भरा हुआ एक बैला एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता था तो उसका मुँह रस्सी से बाँध दिया जाता था तथा गाँठ पर थोड़ी गीली मिट्टी जमाकर एक या अधिक मुहरों से दबा दिया जाता था। इससे मिट्टी पर मुहरों की छाप पड़ जाती थी। मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान का भी पता चलता था।
प्रश्न 25.
हड़प्पा लिपि के बारे में आप क्या जानते
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की लिपि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
“हड़प्पा लिपि एक रहस्यमयी लिपि थी।””
समझाइये
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की लिपि –
- हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है, जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाते हैं। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं।
- हड़प्पा सभ्यता की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, इसलिए इसे रहस्यमयी लिपि कहा जाता है।
- यह लिपि निश्चित रूप से वर्णमालीय नहीं क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इस लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं।
- यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थे।
प्रश्न 26.
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली के बा में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की बाट प्रणाली –
- विनिमय वाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाल द्वारा नियन्त्रित थे।
- ये बाट प्रायः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जा
- सामान्यतः ये किसी भी प्रकार के निशान से रहित और घनाकार होते थे।
- इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी (12. 4, 8, 16, 32 इत्यादि 12,900 तक) थे, जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली के
अनुसार थे।
- छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था।
प्रश्न 27.
” हड़प्पा सभ्यता में सत्ता अस्तित्व में थी।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उदाहरण के लिए, मृदभाण्डों, मुहरों, बायें, ईटों आदि से स्पष्ट होता है कि इन पुरावस्तुओं में अत्यधिक एकरूपता दिखाई देती है। ईंटों का उत्पादन स्पष्ट रूप से किसी एक केन्द्र पर नहीं होता था, फिर भी जम्मू से गुजरात तक सम्पूर्ण क्षेत्र में ईंटें समान अनुपात की थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें बनाने, विशाल दीवारों तथा चबूतरों आदि के निर्माण के लिए किसी सत्ता द्वारा ही श्रम संगठित किया गया था।
प्रश्न 28.
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शासक का अस्तित्व –
(1) पुरातत्वविदों ने मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को एक प्रासाद की संज्ञा दी है।
(2) इसी प्रकार उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी गई थी।
(3) कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। कुछ पुरातत्वविदों की मान्यता है कि यहाँ कई शासक थे। कुछ का यह मत है कि यह एक ही राज्य था। यह मत सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होता है।
प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता का अन्त किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अन्त –
(1) कुछ साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ईसा पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थल उजड़ चुके थे।
(2) कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आया था, जो निम्नानुसार था-
- सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुएँ बाट, मुहरें या विशिष्ट मनके समाप्त हो गए।
- लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प- विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई।
- अब बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण बन्द हो गया।
प्रश्न 30.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या कारण
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कारण लिखिए।
उत्तर:
- सिन्धु नदी के मार्ग बदलने और जलवायु परिवर्तन से सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई।
- वनों की कटाई के कारण भूमि में नमी की कमी हो गई।
- सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।
- नदियों के सूख जाने के कारण इस क्षेत्र में रेगिस्तान का प्रसार हुआ।
- सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई राज्य का अन्त हो गया।
प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी संक्षेप में लिखिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की खोज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की खोज –
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में प्रसिद्ध पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकाल ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा से प्राप्त हुई मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। 1924 ई. में जॉन मार्शल ने सिन्धुघाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
प्रश्न 32.
‘पुरास्थल’ और ‘टीले’ से आप क्या समझते
उत्तर:
पुरातात्विक पुरास्थल वस्तुओं और संरचनाओं के निर्माण, प्रयोग और फिर उन्हें त्याग दिए जाने से बनते हैं जब लोग एक ही स्थान पर नियमित रूप से रहते हैं तो भूमिखंड के लगातार उपयोग और पुनः उपयोग से आवासीय मलबों का निर्माण हो जाता है, जिन्हें ‘टीला’ कहते हैं। अल्पकालीन या स्थायी परित्याग की स्थिति में हवा या प पानी की क्रियाशीलता और कटाव के कारण भूमि खंड के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है।
प्रश्न 33.
‘स्तर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
टीलों में मिले स्तरों से प्राप्त प्राचीन वस्तुओं से आवास का पता चलता है ये स्तर एक-दूसरे से रंग, प्रकृति और इनमें मिली पुरावस्तुओं के संदर्भ में भिन्न होते हैं। परित्यक्त स्तर ‘बंजर स्तर’ कहलाते हैं। इनकी पहचान इन सभी लक्षणों के अभाव से की जाती है। सामान्यतः सबसे निचले स्तर प्राचीनतम और सबसे ऊपरी स्तर नवीनतम होते हैं। स्तरों में मिली पुरावस्तुओं को विशेष सांस्कृतिक काल-खंडों से सम्बद्ध किया जा सकता है।
प्रश्न 34.
अतीत के पुनर्निर्माण में आने वाली समस्याओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता को जानने में कोई सहायता नहीं मिलती। परन्तु भौतिक साक्ष्यों से पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करने में सहायता मिलती है। भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि उल्लेखनीय हैं। केवल टूटी हुई अथवा अनुपयोगी वस्तुएँ ही फेंकी जाती थीं। परिणामस्वरूप जो बहुमूल्य वस्तुएँ अक्षत अवस्था में मिलती हैं, या तो वे अतीत में खो गई थीं या फिर संचयन के बाद कभी पुनः प्राप्त नहीं की गई थीं।
प्रश्न 35.
पुरातत्वविदों द्वारा अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
खोजों का वर्गीकरण-
(1) पुरावस्तुओं की पुन: प्राप्ति के बाद पुरातत्वविद अपनी खोजों को वर्गीकृत करते हैं वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु अस्थि, हाथीदांत आदि के बारे में होता है।
(2) वर्गीकरणों का दूसरा सिद्धान्त पुरावस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है।
(3) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्राय: आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं से उनकी समानता पर आधारित होती है। मनके, चक्कियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके उदाहरण हैं।
प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता काल में उद्योग-धन्धों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- हड़प्पा में सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्व तैयार किये जाते थे।
- मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग भी विकसित
- हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि के आभूषण बनाते थे।
- यहाँ ताँबे के अनेक औजार और हथियार बनाए जाते थे।
- हड़प्पा में मनके बनाने, शंख की कटाई करने, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे।
प्रश्न 37.
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद वस्तुओं को किन भागों में वर्गीकृत करते हैं?
उत्तर:
सामाजिक भिन्नता को पहचानने के लिए पुरातत्वविद प्रायः पुरावस्तुओं को दो भागों में वर्गीकृत करते हैं –
(1) उपयोगी वस्तुएँ तथा
(2) विलास की वस्तुएँ। पहले वर्ग में दैनिक उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं; जैसे- चक्कियाँ, मृदभाण्ड, सुइयाँ, झाँवा ये वस्तुएँ सभी नगरों में सर्वत्र पाई जाती हैं। दूसरे वर्ग में कीमती वस्तुएँ सम्मिलित हैं जैसे-फयॉन्स के छोटे पात्र ये केवल बड़े नगरों में – मिलती हैं।
प्रश्न 38.
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ किन स्थानों से प्राप्त होती थीं?
उत्तर:
महँगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिलती हैं। उदाहरणार्थ, फयॉन्स से बने छोटे पात्र, जो सम्भवतः सुगन्धित द्रव्यों के पात्रों के रूप में प्रयुक्त होते थे, अधिकांशतः मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसे बड़े शहरों से मिले हैं, ये कालीबंगा जैसी छोटी बस्तियों से बिल्कुल नहीं।
प्रश्न 39.
हड़प्पा सभ्यता की खोज में जान मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
1924 में भारत के प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद जान मार्शल ने सम्पूर्ण विश्व के सामने सिन्धुघाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। इस प्रकार विश्व को एक नवीन सभ्यता ‘हड़प्पा की सभ्यता’ की जानकारी : मिली जान मार्शल भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्त्वविद थे। यद्यपि कनिंघम की भाँति ही उन्हें भी आकर्षक खोजों में रुचि थी, परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धत्तियों को जानने की उत्सुकता भी थी परन्तु वह पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर देते थे।
प्रश्न 40.
हड़प्पावासियों के पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल में व्यापार के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता-काल में व्यापार का विकास –
- हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था। व्यापार जल तथा थल दोनों मार्गों से होता था।
- नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख, अफगानिस्तान (शोतुंभई) से लाजवर्द मणि, ताँबा खेतड़ी (राजस्थान) से मंगाया जाता था।
- हड़प्पा के लोगों का ईरान, मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था ओमान से तांबा मंगाया जाता था।
- ओमान, बहरीन या मेसोपोटामिया से सम्पर्क सामुद्रिक मार्ग से था।
प्रश्न 41.
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्द्रदड़ो बणावली, राखीगढ़ी, रोपड़, रंगपुर, लोथल, धौलावीरा, कालीबंगा आदि अनेक पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात तथा गंगा घाटी तक फैली हुई थी। हड़प्पा की सभ्यता का वर्तमान में ज्ञात भौगोलिक विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर है।
प्रश्न 42.
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्रचलित धार्मिक अनुष्ठानों के संकेत पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन –
- हड़प्पावासी मातृदेवी की पूजा करते थे।
- हड़प्पावासी शिव की उपासना करते थे।
- हड़प्पावासी पशुओं तथा वृक्षों की पूजा करते थे।
- हड़प्पा के लोग लिंग और योनि की उपासना करते थे।
प्रश्न 43.
लिपि के अभाव में किन साक्ष्यों से हड़प्पाई सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर:
यद्यपि विद्वानों को हड़प्पाई लिपि के पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है, फिर भी हड़प्पाई लोगों द्वारा पीछे छोड़ी गई पुरवस्तुओं जैसे उनके आवासों, मृदभाण्डों, आभूषणों, औजारों, मुहरों, मूर्तियों आदि से पर्याप्त जानकारी मिलती है। ये पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पाई सभ्यता एवं संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इन पुरातात्विक साक्ष्यों से हड़प्पा के लोगों के भोजन, नगर योजना, भवन-निर्माण, धार्मिक जीवन, कृषि, व्यापार आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रश्न 44.
” 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि लगातार बढ़ रही है। हड़या और मोहनजोद दोनों स्थलों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं। वे आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर धातु की वस्तुएँ तथा वनस्पति और जानवरों के अवशेष प्राप्त करने के लिए सतह की खोज और उपलब्ध साक्ष्य के प्रत्येक सूक्ष्म टुकड़े का विश्लेषण सम्मिलित है। इन खोजों से भविष्य में रोचक परिणाम निकल सकते हैं।
प्रश्न 45.
“हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा परवर्ती परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्त्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर यद्यपि यह नीति पत्थर की चक्कियों तथा पात्रों के सम्बन्ध में सही हो सकती है, परन्तु धार्मिक प्रतीक के बारे में यह अधिक संदिग्ध रहती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
(1) नगर योजना मोहनजोदड़ो के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। इन नालियों के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी शहरों से बाहर निकाल दिया जाता था। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे मकानों में आंगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों व खिड़कियों की व्यवस्था रहती थी। इस सभ्यता में कुछ विशिष्ट भवन भी मिले हैं जिनमें मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, माल गोदाम आदि उल्लेखनीय हैं।
(2) सामाजिक जीवन समाज में कई वर्ग थे। हड़मा समाज मातृ सत्तात्मक था। स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। ये लोग अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –
- शव को जलाकर
- शव को जमीन में गाड़कर
- शव को पशु-पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाना।
(3) आर्थिक अवस्था-मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, दाल, बाजरा, कपास, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। यहाँ अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। (4) धार्मिक अवस्था हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी तथा शिव की उपासना करते थे। ये लोग लिंग और योनि की, पशुओं और वृक्षों की, नांग की भी पूजा करते थे।
(5) राजनीतिक अवस्था हडप्पाई सभ्यता में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार यहाँ पुरोहित, राज शासन करते थे। कुछ पुरातत्त्वविदों के अनुसार हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। परन्तु कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
(6) लिपि हड़प्पाकालीन लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है। इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिह्न हैं। यह लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी।
(7) कला वहाँ के लोग मुहर निर्माण करना, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में निपुण थे। यहाँ के लोग मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ बनाने में मुहर, मनके आदि बनाने में तथा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के आभूषण में दक्ष थे।
प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण तथा विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण –
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। 1920 ई. में दयाराम साहनी तथा माधोस्वरूप वत्स के नेतृत्व में हड़प्पा की खोज की गई थी। इसके बाद 1922 ई. में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खोज की गई। सिन्धु घाटी सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ भी कहा जाता है।
पुरातत्त्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं एक ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से सम्बद्ध पाए जाते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे स्थानों से मिली हैं, जो एक-दूसरे से लम्बी दूरी पर स्थित हैं।
हड़प्पा सभ्यता का काल पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ई. पूर्व के बीच किया है। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में गिनी जाती है। हड़प्पा सभ्यता की अवस्थाएँ इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्या की संस्कृतियाँ कहते हैं।
इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियाँ- सिन्ध और चोलिस्तान (थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र) में आरम्भिक तथा विकसित हड़प्पा संस्कृतियों की अस्तियों के आँकड़े निम्नलिखित हैं-
|
सिन्ध |
चोलिस्तान |
बस्तियों की कुल संख्या |
106 |
239 |
आरम्भिक हड़प्पा स्थल |
52 |
37 |
विकसित हड़प्पा स्थल |
65 |
136 |
नए स्थलों पर विकसित हंड़प्पा बस्तियाँ |
43 |
132 |
त्याग दिए गए आरम्भिक हड़प्पा स्थल |
29 |
33 |
प्रश्न 3.
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीकों का विवेचन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के रहन-सहन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा निवासियों के निर्वाह के तरीके (रहन-सहन ) विकसित हड़प्पा संस्कृति का कुछ ऐसे स्थानों पर विकास हुआ, जहाँ पहले आरम्भिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। इन संस्कृतियों में अनेक तत्त्व समान थे। इनके निर्वाह के तरीकों में भी समानता थी।
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से प्राप्त भोजन हड़प्पा सभ्यता के लोग कई प्रकार के पेड़- पौधों से प्राप्त उत्पादन तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे।
(2) गेहूँ, जौ, दाल, चना, तिल, बाजरे, चावल का प्रयोग जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्त्वविदों को हड़प्पाई लोगों के भोजन के बारे में काफी जानकारी मिली है। इनका अध्यचन पुरा वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं हड़प्पाई लोग गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाजों का सेवन करते थे। हड़प्पा के अनेक स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे तथा चावल के दाने प्राप्त हुए थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने भी मिले थे, परन्तु वे अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं।
(3) जानवरों के मांस का सेवन करना हड़या ‘के स्थलों के उत्खनन में अनेक जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं। इनमें भेड़, बकरी, भैंस या सूअर की हड्डियाँ सम्मिलित हैं। जीव पुरातत्वविदों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। अनुमान है कि हड़प्पाई लोग इन जानवरों के मांस का सेवन करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। इस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा के लोग इन जानवरों के मांस का भी सेवन करते थे मुहरों पर उत्कीर्ण मछली के चित्रों से ज्ञात होता है कि हड़प्पाई लोग मछली का भी सेवन करते थे।
(4) मछली तथा पक्षियों के मांस का सेवन करना- उत्खनन में मछली तथा कुछ पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पा निवासी मछली तथा पक्षियों के मांस का भी सेवन करते थे।
(5) जानवरों के शिकार के बारे में अनिश्चित जानकारी अभी तक विद्वान लोग यह नहीं जान पाए हैं कि हड़प्पा निवासी स्वयं इन जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे।
प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी की विवेचना कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता काल की कृषि की स्थिति का विवेचन
कीजिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी (कृषि की स्थिति)
हड़प्पा स्थलों से अनाज के दाने मिले हैं, जिनसे यहाँ कृषि के संकेत मिलते हैं परन्तु वास्तविक कृषि-विधियों के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) खेत जोतने के लिए बैलों और हलों का प्रयोग- मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मिट्टी की मूर्तियाँ यह संकेत देती हैं कि हड़प्पा निवासियों को वृषभ (बैल) के विषय में जानकारी थी।
इस साक्ष्य के आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान (पाकिस्तान) के कई स्थलों तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हलों के प्रतिरूप मिले हैं। इनसे ज्ञात होता है कि लोग कृषि में हलों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त कालीबंगा (राजस्थान) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। यह आरम्भिक हड़प्पा स्तरों से सम्बद्ध है। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते थे। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि एक खेत में एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थीं।
(2) कृषि उपकरण – पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है। इसके लिए हड़प्पा के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औजारों का प्रयोग करते होंगे।
(3) सिंचाई अधिकांश हड़प्पा-स्थल अर्थ – शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ सम्भवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफगानिस्तान में शोर्तुपई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिन्ध में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले। ऐसा सम्भव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं।
हड़प्पा स्थलों से कुओं के अवशेष भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता होगा। इसके अतिरिक्त धौलावीरा में जलाशय के अवशेष मिले हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि जलाशयों का प्रयोग सम्भवत: कृषि के लिए जल संचयन के लिए किया जाता था। इस प्रकार जलाशयों से प्राप्त पानी का प्रयोग भी सिंचाई के लिए किया जाता था।
प्रश्न 5.
मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का अर्नेस्ट मैके द्वारा दिए गए वृत्तान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अर्नेस्ट मैके द्वारा अवतल चक्की का दिया गया वृत्तान्त प्राचीन काल में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया के अन्तर्गत अनाज पीसने के यन्त्र तथा उन्हें आपस में मिलाने, मिश्रण करने तथा भोजन पकाने के लिए बर्तनों की आवश्यकता थी। इन सभी वस्तुओं का निर्माण पत्थर, धातु तथा मिट्टी से किया जाता था। अर्नेस्ट मैके नामक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् ने मोहनजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त अवतल चक्की का वृत्तान्त दिया है।
अवतल चक्कियाँ अर्नेस्ट मैके के अनुसार मोहनजोदड़ो के उत्खनन में अनेक अवतल चक्कियाँ प्राप्त हुई हैं। अनुमान किया जाता है कि इन चक्कियों का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था। सम्भवतः अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं प्राय: इन चक्कियों का निर्माण मोटे रूप से कठोर कंकरीले अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से किया गया था।
सामान्यतः इन चक्कियों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता था। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, अतः इन्हें जमीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा, जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ उत्खनन में दो मुख्य प्रकार की अवतल चक्कियाँ मिली हैं –
- एक प्रकार की चक्कियाँ वे थीं, जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था, जिससे निचला पत्थर खोखला हो गया था।
- दूसरे प्रकार की चक्कियों से हैं, जिनका प्रयोग सम्भवतः केवल सालान अथवा तरी बनाने के लिए तथा जड़ी-बूटियों और मसालों को कूटने के लिए किया जाता था। इन चक्कियों के पत्थरों को ‘सालन पत्थर’ कहा जाता था अर्नेस्ट मैके के अनुसार इन पत्थरों को सालन पत्थर का नाम उनके श्रमिकों द्वारा दिया गया था। उनके एक रसोइये ने एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा था।
प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकास प्रणाली का वर्णन कीजिये।
अथवा
“हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा शहरों की नियोजित जल निकास प्रणाली हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) नालियों के साथ गलियों का निर्माण ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था। घरों के गन्दे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था। हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था।
(2) मुख्य नालों का निर्माण-मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईटों से ढका गया था, जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके कुछ स्थानों पर नालों को ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियाँ गली की नालियों में मिल जाती थीं।
(3) घरों की नालियों का एक हीदी या मलकुंड में खाली होना घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में वह जाता था। जो नाले बहुत लम्बे थे, उनमें कुछ अन्तरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं।
(4) नालियों के किनारे गड्ढों का बना होना- नालियों के किनारे भी कहीं-कहीं गड्ढे बने मिलते हैं।
(5) नालियों की सफाई समय समय पर नालियों की सफाई की जाती थी। कुछ पुरातत्वविदों का मत है कि नालों की सफाई के बाद कचरे को सदैव हटाया नहीं जाता था।
(6) छोटी बस्तियों में भी जल निकास प्रणालियों का प्रचलित होना जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी प्रचलित थीं। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है कि “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा सम्पूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”
प्रश्न 7.
हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक खोजों से ज्ञात होता है कि हड़प्यावासियों के सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क थे। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पा सभ्यता के सुदूर क्षेत्रों से सम्बन्ध थे
(1) ओमान से सम्बन्ध – हाल ही में हुई पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि अरब प्रायद्वीप के दक्षिण – पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात होता है –
ताँबा लाया जाता था। कि ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो दोनों के साझा उद्भव की ओर संकेत करते हैं। इसके अतिरिक्त ओमानी स्थलों से एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान, जिसके ऊपर काली मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी भी मिला है। ऐसी मोटी परतें तरल पदार्थों के रिसाव को रोक देती हैं। अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी इनमें रखे सामान का ओमानी ताँबे से विनिमय करते थे।
(2) मेसोपोटामिया के लेखों से जानकारी प्राप्त होना मेसोपोटामिया के विभिन्न नगरों से हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। तीसरी सहस्राब्दी ई. पूर्व के मेसोपोटामिया के लेखों में मगान (सम्भवतः ओमान के लिए प्रयुक्त नाम) नामक क्षेत्र से ताँबे के आने का उल्लेख मिलता है। यह बात उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया के स्थलों से मिले ताँबे में भी निकल के अंश मिले हैं।
(3) लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजें-लम्बी दूरी के सम्पर्कों की ओर संकेत करने वाली अन्य पुरातात्विक खोजों में हड़प्पाई मुहरें, बाट, पासे तथा मनके सम्मिलित हैं।
(4) मेसोपोटामिया के लेख से दिलमुन, मगान तथा मेलुहा से सम्पर्क की जानकारी मेसोपोटामिया के लेखों से दिलमुन (सम्भवतः बहरीन द्वीप), मगान (ओमान) तथा मेलुहा (सम्भवतः हड़प्पाई क्षेत्र के लिए प्रयुक्त शब्द ) नामक क्षेत्रों से सम्पर्क की जानकारी मिलती है। ये लेख मेलुहा से प्राप्त अनेक उत्पादों का उल्लेख करते हैं, जैसे- कार्नी लियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना तथा विविध प्रकार की लकड़ियाँ।
(5) बहरीन में मिली मुहर पर हड़प्पाई चित्रों का मिलना बहरीन में मिली गोलाकार फारस की खाड़ी प्रकार की मुहर पर कभी-कभी हड़प्पाई चित्र मिलते हैं।
प्रश्न 8.
हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त मुहरों, लिपि एवं तौल के साधनों की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की मुहरें हड़प्पा सभ्यता की मुहरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) पत्थर, मिट्टी, ताँबे से निर्मित मुहरे हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी नामक पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें काँचली मिट्टी (फयॉन्स), गोमेद, चर्ट और मिट्टी से निर्मित हैं। ताँबे की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं मुहरों पर सामान्यतः पशुओं के चित्र तथा हड़प्पा लिपि के चिह्न उत्कीर्ण हैं।
(2) कला के उत्कृष्ट नमूने – हड़प्पाई मुहरें तत्कालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं अपने आकर्षक विशुद्ध आकार और हल्की चमकदार सतह के कारण वे सुन्दर कलाकृतियों में गिनी जाती हैं।
(3) आकार-प्रकार हड़प्पाई मुहरें वर्गाकार, आयताकार, बटन जैसी घनाकार और गोल हैं। परन्तु मुख्यतः वर्गाकार अथवा चौकोर मुहरें ही लोकप्रिय थीं।
(4) मुहरों पर पशुओं के चित्र एवं संक्षिप्त लेखों का उत्कीर्ण होना सामान्यतः मुहरों पर पशुओं के चित्र तथा संक्षिप्त लेख उत्कीर्ण हैं। इन पर बैल, हाथी, गेंडे, व्याघ्र आदि पशुओं का अंकन उल्लेखनीय है।
(5) रचना-शैली-मुहरों की रचना शैली उत्कृष्ट है। हड़प्पावासी मुहरों पर पशुओं के चित्र उत्कीर्ण करने में निपुण थे। मुहरों पर पीपल आदि वृक्षों के चित्रण भी मिलते हैं।
(6) विशिष्ट मुहरें हड़प्पाई मुहरों में दो मुहरें विशेष उल्लेखनीय हैं। एक मुहर पर एक देवता की मूर्ति अंकित है इस देवता के तीन मुख और दो सींग हैं। यह देव- पुरुष एक हाथी, चीता, गैंडा तथा भैंस से घिरे हुए हैं। जॉन मार्शल के अनुसार यह मूर्ति शिव की है, दूसरी प्रसिद्ध मुहर पर एक कूबड़दार बैल का अंकन है।
(7) मुहरों का प्रयोग- इन मुहरों एवं मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान की भी जानकारी हो जाती थी । लिपि एवं तौल के साधन इसके लिए लघुत्तरात्मक प्रश्न संख्या 25 एवं 26 का उत्तर देखें।
प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के बारे में विभिन्न मतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक का अस्तित्व
हड़प्पा सभ्यता में सत्ता एवं शासक के अस्तित्व के बारे में अनेक मत प्रकट किए गए हैं। इन मतों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत दिया जा सकता
(1) हड़प्पा सभ्यता में सत्ता का अस्तित्व – हड़प्पाई समाज में जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के संकेत मिलते हैं। उत्खनन में जो मृदभाण्ड, मुहरें, ईंटें तथा बाढ़ मिले हैं, उनमें असाधारण एकरूपता दिखाई देती है। हड़प्पा सभ्यता काल में भिन्न-भिन्न कारणों से बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इसके अतिरिक्त ईंटें, विशाल दीवार तथा चबूतरे बनाने के लिए बड़े पैमाने पर मजदूरों को संगठित किया गया था ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।
(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं –
- प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
- पुरोहित-राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित-राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
- शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
- अनेक शासकों का अस्तित्व-कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
- हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था। निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।
प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब से यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।
कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन शुरू किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।
हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था।
भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम- एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।
प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया। उन्होंने हड़या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं।
इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने मजदूरों को संगठित किया गया था। ये कार्य बिना किसी सत्ता के सम्पन्न नहीं हो सकते थे। अतः पुरातत्वविदों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता- काल में सत्ता का अस्तित्व अवश्य था।
(2) सत्ता के केन्द्र तथा शासक का अस्तित्व- सत्ता के केन्द्र तथा शासक के अस्तित्व के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों ने निम्नलिखित मत व्यक्त किये हैं-
- प्रासाद – मोहनजोदड़ो में मिले एक विशाल भवन को पुरातत्वविदों ने एक प्रासाद (महल) की संज्ञा दी है, परन्तु इससे सम्बन्धित कोई भव्य वस्तुएँ नहीं मिली हैं।
- पुरोहित राजा उत्खनन में प्राप्त पत्थर की एक मूर्ति को पुरातत्वविदों ने ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा दी थी। इसे ‘पुरोहित राजा’ की संज्ञा इसलिए दी गई थी क्योंकि पुरातत्वविद | मेसोपोटामिया के इतिहास तथा वहाँ के ‘पुरोहित राजाओं’ से परिचित थे। यही समानताएँ उन्होंने सिन्धुक्षेत्र में भी ढूँढ़ीं।
- शासक का अभाव – कुछ पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।
- अनेक शासकों का अस्तित्व- कुछ पुरातत्वविद यह मानते हैं कि हड़प्पा में कोई एक शासक नहीं, बल्कि अनेक शासक थे।
- हड़प्पा एक ही राज्य था कुछ पुरातत्वविद वह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था।
निष्कर्ष उपर्युक्त तर्कों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक की स्थिति में अन्तिम परिकल्पना सबसे तर्कसंगत जान पड़ती है क्योंकि यह सम्भव नहीं लगता कि सम्पूर्ण समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए जाते होंगे और वे लागू किये जाते होंगे।
प्रश्न 10.
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने के बारे में पुरातत्वविदों को क्या भ्रम था ? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए ?
उत्तर:
पुरावस्तुओं का अर्थ लगाने में कठिनाई जब हड़प्पा सभ्यता के शहर नष्ट हो गए तो लोग धीरे-धीरे उनके विषय में सब कुछ भूल गए हजारों वर्षों बाद जब लोगों ने इस क्षेत्र में रहना शुरू किया, तब वे यह नहीं समझ पाए कि बाढ़ या मिट्टी के कटाव के कारण अथवा खेत की जुताई के समय या फिर खजाने के लिए खुदाई के समय कभी-कभी पृथ्वी की सतह पर आने वाली अपरिचित वस्तुओं का क्या अर्थ लगाया जाए।
कनिंघम का भ्रम:
कनिंघम एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम डायरेक्टर जनरल थे। जब शुरू उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन किए, उस समय पुरातत्वविद अपनी खोजों के मार्गदर्शन के लिए लिखित स्रोतों जैसे साहित्य तथा अभिलेखों का प्रयोग करना अधिक पसन्द करते थे। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरम्भिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी।
चीनी बौद्धयात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग- आरम्भिक बस्तियों की पहचान के लिए कनिंघम ने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध यात्रियों के वृत्तान्तों का प्रयोग किया।
हड़प्पा कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं था चीनी तीर्थयात्रियों ने हड़प्पा जैसे पुरास्थल की यात्रा नहीं की थी। इसके अतिरिक्त हड़प्पा एक आरम्भिक ऐतिहासिक शहर भी नहीं था।
अतः इन तथ्यों के कारण हड़प्पा जैसा पुरास्थल कनिंघम की खोज के ढाँचे में उपयुक्त नहीं बैठता था। भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के बारे में कनिंघम का भ्रम एक बार एक अंग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। कनिंघम ने मुहर पर ध्यान तो किया, पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में रखने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। इसका कारण यह था कि कई और लोगों की भाँति ही उनका भी यह विचार था कि भारतीय इतिहास का प्रारम्भ गंगा की घाटी में विकसित पहले शहरों के साथ ही हुआ था। अपनी इस सुनिश्चित अवधारणा के कारण ही कनिंघम हड़प्पा के महत्त्व को नहीं समझ पाए।
प्रश्न 11.
हड़प्पा की सभ्यता की जानकारी किस प्रकार हुई ? सभ्यता की खोज में विभिन्न पुरातत्वविदों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी:
बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़या में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।
उन्होंने हड़प्या से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि ये दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
प्रसिद्ध पुरातत्वविद एस.एन. राव ‘द स्टोरी ऑफ इण्डियन आर्कियोलोजी’ में लिखते हैं कि “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा। ” मेसोपोटामिया के पुरास्थलों में हुए उत्खननों से हड़प्पा पुरास्थलों से प्राप्त मुहरों जैसी मुहरें मिली थीं। इस प्रकार विश्व को न केवल एक नई सभ्यता की जानकारी मिली, बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया की समकालीन थी।
हड़या सभ्यता की खोज में जॉन मार्शल का योगदान – भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था। वह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद थे। वह भारत में यूनान तथा क्रीट से अपने कार्यों का अनुभव भी लाए थे। कनिंघम की भांति ही उनकी भी आकर्षक खोजों में रुचि थी परन्तु उनमें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी।
जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में त्रुटि – जॉन मार्शल के उत्खनन कार्य में एक त्रुटि थी कि वह पुरास्थल के स्तर-विन्यास को पूर्णरूप से अनदेखा कर पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास करते थे। इस प्रकार पृथक्- पृथक् स्तरों से सम्बन्धित होने पर भी एक इकाई विशेष रूप से प्राप्त सभी पुरावस्तुओं को सामूहिक रूप से वर्गीकृत कर दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन खोजों के संदर्भ के विषय में बहुमूल्य जानकारी सदा के लिए लुप्त हो जाती थी।
प्रश्न 12.
“बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नई तकनीकें तथा प्रश्न:
बीसवीं शताब्दी में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के लिए नई तकनीकें तथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं –
(1) व्हीलर द्वारा जॉन मार्शल की त्रुटि को दूर करना 1944 में आर.ई. एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने। उन्होंने जॉन मार्शल द्वारा उत्खनन कार्य में की गई त्रुटि का निवारण किया। व्हीलर ने यह महसूस किया कि एकसमान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक था। इसके अतिरिक्त सेना के पूर्व ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व की पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता को भी शामिल किया।
(2) भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करना हड़प्पा सभ्यता की भौगोलिक सीमाओं का आज की राष्ट्रीय सीमाओं से बहुत थोड़ा या कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु उपमहाद्वीप के विभाजन तथा पाकिस्तान के निर्माण के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थान अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं। इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया। कच्छ में हुए व्यापक सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसी प्रकार पंजाब तथा हरियाणा में किए गए उत्खनन कार्यों के फलस्वरूप वहाँ भी अनेक पुरास्थलों के बारे में जानकारी ई। कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, बणावली, धौलावीरा आदि हड़प्पा स्थल प्रकाश में आए हैं। नई खोजें अब भी जारी हैं।
(3) नये प्रश्नों का महत्त्वपूर्ण होना- इन दशकों में नए प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। कुछ पुरातत्वविद प्रायः सांस्कृतिक उपक्रम को जानने के इच्छुक रहते हैं जबकि अन्य पुरातत्वविद विशेष पुरास्थलों की भौगोलिक स्थिति के पीछे निहित कारणों को जानने का प्रयास करते हैं।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुचि बढ़ना 1980 के दशक से हड़प्पाई पुरातत्वों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि निरन्तर बढ़ती जा रही है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनों स्थानों पर उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से अन्वेषण सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं।
प्रश्न 13.
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की क्या समस्याएँ हैं? पुरातत्वविद अपनी खोजों का वर्गीकरण किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
अतीत को जोड़ कर पूरा करने की समस्याएँ हड़प्पाई लिपि से हड़प्पा सभ्यता की जानकारी प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं मिलती। वास्तव में पुरातत्वविद भौतिक साक्ष्यों की सहायता से हड़प्पा सभ्यता को ठीक प्रकार से पुनर्निर्मित करते हैं। इन भौतिक साक्ष्यों में मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान सम्मिलित हैं। कुछ खोजें प्रारूपिक की बजाय संयोगिक होती हैं।
पुरातत्वविदों द्वारा खोजों का वर्गीकरण –
(1) वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे- पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है।
(2) वर्गीकरण का दूसरा और अधिक जटिल सिद्धान्त वस्तुओं की उपयोगिता के आधार पर होता है। पुरातत्वविदों को यह निश्चित करना पड़ता है कि कोई पुरावस्तु एक औजार है या एक आभूषण है या यह आनुष्ठानिक प्रयोग की कोई वस्तु है।
पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ –
(1) किसी पुरावस्तु की उपयोगिता की समझ प्रायः आधुनिक समय में प्रयुक्त वस्तुओं की समानता पर आधारित होती है। मनके, चकियाँ, पत्थर के फलक तथा पात्र इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
(2) पुरातत्वविद किसी पुरावस्तु की उपयोगिता को समझने का प्रयास उस संदर्भ में भी करते हैं जिसमें वह मिली थी। उदाहरणार्थ, क्या वह वस्तु घर में मिली थी या नाले में, या कब्र में या भट्टी में मिली थी। अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना कभी-कभी पुरातत्त्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ हड़प्पा स्थलों से कपास के टुकड़े मिले हैं। परन्तु उनकी वेशभूषा के विषय में जानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है, जैसे मूर्तियों में चित्रण इन चित्रों को देखकर हमें तत्कालीन लोगों की वेशभूषा में जानकारी मिलती है।
संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना – पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है। उत्खनन में प्राप्त पहली हड़प्पाई मुहर को तब तक नहीं समझा जा सका, जब तक पुरातत्वविदों को उसे समझने के लिए सही संदर्भ नहीं मिला। सांस्कृतिक अनुक्रम जिसमें वह मुहर प्राप्त हुई थी तथा मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना, दोनों के सम्बन्ध में।
प्रश्न 14.
पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पुरातात्विक व्याख्यां की समस्याएँ पुरातात्विक व्याख्या की समस्याओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) धार्मिक प्रथाओं का पुनर्निर्माण आरम्भिक पुरातत्वविद यह महसूस करते थे कि कुछ वस्तुएँ जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, वे सम्भवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन मृण्मूर्तियों के शीर्ष पर विस्तृत प्रसाधन थे। इन्हें ‘मातृ देवी’ की संज्ञा दी गई थी। दुर्लभ पत्थर से बनी पुरुषों की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक हाथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, को भी इसी वर्ग में रखा गया था।
(2) आनुष्ठानिक महत्त्व की संरचनाएँ कुछ अन्य मामलों में संरचनाओं को आनुष्ठानिक महत्त्व का माना गया है। इनमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगा और लोथल से मिली वेदियाँ सम्मिलित हैं।
(3) वृक्षों की पूजा कुछ मुहरों पर पेड़-पौधों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी प्रकृति (वृक्षों) की पूजा करते थे।
(4) शिव की पूजा कुछ मुहरों पर एक आकृति को पालथी मारकर ‘योगी’ की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। उसे हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप कहा गया है।
(5) लिंग की पूजा- उत्खनन में पत्थर की शंक्वाकार वस्तुएँ मिली हैं। इन्हें लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी लिंग की भी पूजा करते थे।
(6) आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताओं के आधार पर हड़प्पाई धर्म के पुनर्निर्माण- हड़प्पाई धर्म के कई पुनर्निर्माण इस अनुमान के आधार पर किए गए हैं कि आरम्भिक तथा बाद की परम्पराओं में समानताएँ होती हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांशतः पुरातत्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात् वर्तमान से अतीत की ओर अग्रसर होते हैं।
(7) ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण उदाहरण के लिए हम ‘आद्य शिव’ मुहरों का विश्लेषण करते हैं। आर्यों के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ ऋग्वेद (लगभग 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच संकलित) में रुद्र नामक एक देवता का उल्लेख मिलता है जो बाद की पौराणिक परम्पराओं में शिव के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव और उसके विस्तार क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने हड़प्पा में कुछ मुहरें खोज निकालीं। ये मुहरें निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बन्धित थीं। अब इनके महत्त्व को समझा जाने लगा। 1922 ई. में एक अन्य पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य किया गया।
उन्होंने हड़प्पा से मिली मुहरों के समान मुहरें मोहनजोदड़ो से खोज निकालीं। इससे अनुमान लगाया गया कि दोनों पुरास्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति के भाग थे। इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 ई. में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने विश्व के सामने सिन्धु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र – हड़प्पा सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इस सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से ही नहीं बल्कि अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल निम्नलिखित प्रान्तों से प्राप्त हुए हैं –
- बलूचिस्तान-सुत्कागेण्डोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डाबरकोट।
- सिन्ध – मोहनजोदड़ो, चन्दड़ो, कोटदीजी, अली मुरीद।
- पंजाब (पाकिस्तान) – हड़प्या, जलीलपुर, रहमान ढेरी, सरायखोला, गनेरीवाल
- पंजाब (भारत) – रोपड़, संघोल, बाड़ा, कोटलानिहंगखान।
- हरियाणा- बणावली, मीताथल, राखीगढ़ी।
- जम्मू-कश्मीर माण्डा।
- राजस्थान कालीबंगा।
- उत्तर प्रदेश – आलमगीरपुर (मेरठ), अम्बाखेड़ी (सहारनपुर), कौशाम्बी।
- गुजरात – रंगपुर, लोथल, रोजदी, सुरकोटड़ा, मालवणा, भगवतराव, धौलावीरा
- महाराष्ट्र – दाइमाबाद (अहमदनगर)।
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, गंगाघाटी तक फैली हुई थी। डॉ. विमल चन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि ” इस सभ्यता के क्षेत्र के अन्तर्गत बलूचिस्तान, उत्तर- पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्ध, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगाघाटी का उत्तरी भाग शामिल था।” प्रो. रंगनाथ राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था।”
प्रश्न 16.
“मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र था।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केन्द्र सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता शहरी केन्द्रों का विकास था। हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था।
(1) नगर का दो भागों में विभाजित होना- मोहनजोदड़ो नगर एक नियोजित शहरी केन्द्र था। यह दो भागों में विभाजित था। इनमें से एक भाग छोटा था, जो ऊँचाई पर बनाया गया था तथा दूसरा भाग बड़ा था, जो निचले स्थल में बनाया गया था। छोटा भाग ‘दुर्ग’ कहलाता था तथा बड़ा भाग ‘निचला शहर’ कहलाता था। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग दीवार से घिरा हुआ था। इस प्रकार दीवार ने दुर्ग को निचले शहर से पृथक् कर दिया था।
(2) निचला शहर निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। निचले शहर के अनेक भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था, जो नींव का कार्य करते थे। इन भवनों के निर्माण में बहुत बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ी होगी। एक अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो केवल आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम- दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी। इससे स्पष्ट होता है कि मोहनजोदड़ो के भवनों के निर्माण के लिए बहुत बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी होगी।
(3) नगर का नियोजन किया जाना शहर का समस्त भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इससे ज्ञात होता है कि पहले मोहनजोदड़ो शहर का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार निर्माण कार्य किया गया था। नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटों का भी महत्त्व है। इन ईंटों को धूप में सुखाकर या भट्टी में पकाकर बनाया गया था। ये ईंटें निश्चित अनुपात की होती थीं इनकी लम्बाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी तथा दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटों का प्रयोग हड़प्पाई सभ्यता के सभी नगरों में किया गया था।
प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा के नगर नियोजन की वर्तमान संदर्भ में उपादेयता बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना तथा जल निकास प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नगर – हड़प्पा के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। इन नगरों की आधार- योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास व्यवस्था में समानता तथा एकरूपता दिखाई देती है। प्रायः नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग भाग’ तथा पूर्व में ‘नगर भाग’ प्राप्त होता है।
(2) सड़कें नगरों की सड़कें तथा गलियों एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
(3) नालियाँ – शहरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था। वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में पक्की नालियाँ बनी हुई थीं। नालियों की जुड़ाई तथा प्लास्तर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता था ये नालियाँ ईंट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। समय-समय पर इन नालियों की सफाई की जाती थी। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं, जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में वह जाता था।
(4) कुएं हड़प्पा सभ्यता काल में प्राय: प्रत्येक पर में एक कुआँ होता था। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था कुछ कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।
(5) भवन निर्माण हड़प्पा सभ्यता के मकान एक निश्चित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। मकान प्रायः पकी ईंटों के बने होते थे।
- दीवारों पर प्लास्तर – दीवारों पर मिट्टी का प्लास्तर किया जाता था, कभी-कभी जिप्सम का प्लास्तर भी किया
जाता था।
- आँगन, रसोईघर, स्नानघर आदि की व्यवस्था- मकानों में आँगन, रसोईघर, स्नानघर, शौचालय, दरवाजों, रोशनदानों आदि की व्यवस्था रहती थी भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आन्तरिक भाग अथवा आँगने का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
- छतें मकानों की छतें समतल थीं ये लकड़ी की कड़ियों से बनाई जाती थीं।
- सीढ़ियाँ मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे। छत अथवा ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं ये पकी ईटों की बनती थीं।
(6) विशाल स्नानागार-मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी दीवारें और फर्श पक्की ईंटों के बने हैं। स्नानकुंड के चारों ओर गैलेरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुंड के निकट ही एक कुआँ है जिससे स्नानकुंड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुंड के तीन ओर बरामदे थे। स्नानागार के भवन के उत्तर में आठ स्नानकक्ष थे।
प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है—
(1) कृषि – हड़प्पा के निवासियों का मुख्य व्यवसायं कृषि था। यहाँ गेहूं, जौ, चावल, कपास, दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों, कुओं और जलाशयों का जल काम में लिया जाता था। पुरातत्वविदों ने फसलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को पहचानने का प्रयास भी किया है।
(2) पशुपालन उत्खनन में अनेक मुहरें मिली हैं जिन पर अनेक पशु-पक्षियों के चित्र उत्कीर्ण हैं। इनसे ज्ञात होता है कि हड़प्पावासी गाय, बैल, भैंस, सूअर, भेड़, बकरी, कुत्ते आदि जानवर पालते थे। ये लोग व्याघ्र, हाथी, गैंडा, भैंसा, हिरण, घड़ियाल आदि जानवरों से परिचित थे।
(3) उद्योग-धन्धे हड़प्पा सभ्यता काल में अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित थे। यहाँ सूती तथा उनी दोनों प्रकार के वस्त्र तैयार किए जाते थे। यहाँ के कुम्भकार | मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। हड़प्पा के स्वर्णकार सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों, पीतल, ताँबे आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। यहाँ मनके बनाने, शंख की कुटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाने के उद्योग भी उन्नत थे। सीप, घाँचा, हाथीदांत आदि के काम में भी निपुण थे।
(4) व्यापार हड़प्पा निवासियों का व्यापार भी उन्नत था व्यापार जल तथा धल दोनों मार्गों से होता था। जल यातायात के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का एवं थल यातायात के लिए पशु गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था। आन्तरिक व्यापार उन्नत अवस्था में था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था उनका ओमान, मेसोपोटामिया, ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था। मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता की लगभग दो दर्जन मुहरें मिली हैं। मोहनजोदड़ो में भी मेसोपोटामिया की मुहरें मिली हैं।
(5) तोल तथा माप के साधन – हड़प्पा निवासी बाटों का प्रयोग करना भी जानते थे। मोहनजोदड़ो की खुदाई में छोटे-बड़े सभी प्रकार के बाट मिले हैं। ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे और प्रायः ये किसी भी प्रकार के चिह्न से रहित घनाकार होते थे।
(6) यातायात के साधन स्थल मार्ग से जाने के लिए बैलगाड़ियों, इक्कों आदि का प्रयोग होता था। जलमार्ग से जाने के लिए नावों तथा छोटे जहाजों का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 19.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) समाज का वर्गीकरण-उत्खनन में प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज में कई वर्ग थे। कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, दस्तकार, जुलाहे, राजगीर आदि पेशेवर लोग रहे होंगे। सम्भवतः पुरोहितों का एक पृथक् वर्ग रहा होगा। राजकर्मचारियों एवं सेनाधिकारियों का भी एक विशिष्ट वर्ग रहा होगा। दुर्ग भाग में शासक, उच्च पदाधिकारी एवं सम्पन्न लोग रहते होंगे और नगर भाग में अधिकतर सामान्य लोग रहते होंगे
(2) परिवार – उत्खनन में जो भवन मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि उनमें पृथक् पृथक् परिवार रहते होंगे। हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक था। ऐसी स्थिति में स्थियों का परिवार एवं समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा।
(3) भोजन – हड़प्पा निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे। वे गेहूं, जौ, चना, दाल, तिल, बाजरा, चावल आदि का सेवन करते थे। वे मांस, मछली तथा अण्डों का भी सेवन करते थे। वे भेड़, बकरी, सूअर, भैंस, हिरण, कछुआ, घड़ियाल आदि के मांस का सेवन करते थे। वे मछली का भी सेवन करते थे।
(4) वेशभूषा हड़प्पावासी सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पुरुष प्रायः धोती तथा शाल का प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ प्रायः घाघरे की तरह एक पेरेदार वस्त्र का प्रयोग करती थीं।
(5) आभूषण- हड़प्पा के स्वी और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। स्वी और पुरुष दोनों ही अंगूठी, कंगन, हार, भुजबन्द, कड़े आदि आभूषण पहनते थे आभूषण सोने, चाँदी, तांबे, काँसे, हाथीदाँत, मनकों तथा विविध बहुमूल्य पत्थरों के बने होते थे।
(6) सौन्दर्य प्रसाधन-स्विय बड़ी शृंगारप्रिय थीं तथा वे दर्पण, कंधी, काजल, सुरमा सिन्दूर, इत्र, पाउडर, लिपस्टिक आदि का प्रयोग करती थीं।
(7) आमोद-प्रमोद के साधन-शिकार करना, शतरंज खेलना, संगीत-नृत्य में भाग लेना, जुआ खेलना, पशु- पक्षियों की लड़ाइयाँ आदि हड़प्पावासियों के मनोरंजन के साधन थे। अनेक प्रकार के खिलौने बच्चों के मनोरंजन के साधन थे।
(8) मृतक संस्कार हड़प्पा निवासी अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से करते थे –
- पूर्णं समाधि – इसके अन्तर्गत शव को जमीन में गाड़ दिया जाता था। शव के साथ मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण आदि वस्तुएँ भी रख दी जाती थीं। कुछ कनों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले हैं। कुछ शवों के साथ शंख के छल्ले, जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) के मनके तथा सूक्ष्म मनकों से बने आभूषण, ताँबे के दर्पण भी रख दिए जाते थे।
- दाह-कर्म- इसमें शव को जला दिया जाता था तथा उसकी भस्म को मटके में डाल कर दबा दिया जाता था।
- आंशिक समाधि इसमें शव को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था और शव के बचे हुए भाग को जमीन में गाड़ दिया जाता था।
प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिये।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक जीवन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक स्थिति (हड़प्पा के लोगों का धार्मिक जीवन) हड़प्पा के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मातृदेवी की उपासना- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्द्रदड़ो आदि स्थानों से मिट्टी की बनी हुई नारी मूर्तियाँ मिली हैं। इन्हें मातृदेवी की मूर्तियाँ माना गया है।
(2) शिव की उपासना हड़प्पा की खुदाई में एक मुहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति अंकित है। यह देव पुरुष योगासन में बैठा है। इस देवता के तीन मुख और दो सौंग हैं। उसे एक हाथी, एक व्याघ्र एक भैंसा तथा एक गैंडा से घिरा हुआ दिखाया गया है। आसन के नीचे हिरण अंकित है, इसे ‘आद्य शिव’ अर्थात् हिन्दू के प्रमुख देवताओं में से एक का आरम्भिक रूप की संज्ञा दी गई है।
(3) लिंग पूजा- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से हमें पत्थर, फॉन्स, सीप आदि से बने हुए छोटे-बड़े आकार के लिंग मिले हैं शिव के प्रतीक होने के कारण ये लिंग पवित्र समझे जाते थे तथा इनकी पूजा की जाती थी।
(4) योनि-पूजा – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में बहुत से छाले मिले हैं। पुरातत्वविद जॉन मार्शल इन छल्लों को योनि का प्रतीक मानते हैं उनका मत है कि हड़प्पा सभ्यता में योनि-पूजा का भी प्रचलन था।
(5) पशु-पूजा – हड़प्पा से प्राप्त मुहरों पर बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडा आदि के चित्र मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा निवासी बैल, भैंस, भैंसे, हाथी, गैंडे आदि की उपासना करते थे। हड़प्पावासी नाग की भी पूजा करते थे।
(6) वृक्ष-पूजा मुहरों पर पीपल के वृक्ष के चित्र पर्याप्त मात्रा में अंकित हुए मिले हैं। हड़प्पावासी पीपल, बबूल, तुलसी, खजूर, नीम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे।
(7) अग्नि वेदिकाएँ- कालीबंगा, लोथल, बणावली और राखीगढ़ी की खुदाई से हमें अनेक अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।
(8) जल-पूजा – हड़प्पावासियों को पवित्र स्नान तथा जल पूजा में गहरा विश्वास था।
(9) प्रतीक पूजा हड़या से प्राप्त मुहरों पर स्वस्तिक, चक्र, स्तम्भ आदि के चित्र मिले हैं। ये सम्भवत: मंगल- चिह्न थे। सम्भवतः इनका कुछ धार्मिक महत्व था।
(10) जादू-टोने में विश्वास हड़प्पावासी भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते थे तथा ये लोग पशु बलि में भी विश्वास करते थे।
प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताएँ:
हड़प्पा सभ्यता की कलाओं की विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) मूर्तिकला – हड़प्पावासी मूर्तिकला में बड़े निपुण थें। मूर्तियाँ मिट्टी, पत्थर, सोना, चाँदी, पीतल, तांबे, कांस्य आदि की बनाई जाती थीं हड़प्पा से प्राप्त पत्थर की दो मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त काँसे की बनी हुई एक नर्तकी की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर और सजीव है। इस मूर्ति में नारी अंगों का न्यास सुन्दर रूप से हुआ है।
(2) मुहर निर्माण कला-हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा हड़प्पा लिपि में लेख मिलते हैं। इन मुहरों का प्रयोग पत्र अथवा पार्सल पर छाप लगाने के लिए किया जाता था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल से विशाल संख्या में मुहरें मिली हैं। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी पत्थर से बनी हुई हैं। कुछ मुहरें फयॉन्स (काँचली मिट्टी), गोमेद, चर्ट और मिट्टी की भी हैं। अनेक मुहरों पर हाथी, व्याघ्र गैंडे तथा कूबड़दार बैल आदि का अंकन मिलता है।
(3) चित्रकला खुदाई में अनेक बर्तन तथा मुहरें मिली हैं जिन पर चित्र अंकित हैं। ये चित्र बड़े सुन्दर और सजीव हैं। इनमें सांड तथा बैल के चित्र विशेष रूप से बड़े आकर्षक हैं।
(4) मिट्टी के बर्तन बनाने की कला-मिट्टी के बर्तन कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे तथा उन्हें भट्टियों पर पकाया जाता था।
(5) धातुकला हड़प्पावासी सोना, चाँदी आदि के सुन्दर आभूषण बनाते थे ये लोग धातुओं की मूर्तियाँ भी बनाते थे। धातुओं के बर्तनों पर नक्काशी भी की जाती थी।
(6) लेखन कला – सामान्यतः हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो सम्भवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं। यह लिपि रहस्यमय बनी हुई है क्योंकि यह आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
विद्वानों के अनुसार निश्चित रूप से हड़प्या लिपि वर्णमालीय नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है- 400 के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाव से बायीं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दायीं ओर चौड़ा अन्तराल है और बायीं ओर यह संकुचित है जिससे जान पड़ता है कि लिखने वाले व्यक्ति ने दायीं ओर से लिखना शुरू किया और बाद में बायीं ओर स्थान कम पड़ गया।
प्रश्न 22.
1800 ई. तक हड़प्पाई सभ्यता का अन्त किन कारणों से हुआ? उल्लेख कीजिए।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण विभिन्न विद्वानों और पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण बताए हैं –
(1) जलवायु परिवर्तन कुछ विद्वानों का मत है कि सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से अनेक बस्तियाँ उजड़ गई और लोग बर्बाद हो गए।
(2) पर्यावरण का सूखा होना – ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए ईंट पकाने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए हड़प्पा निवासी बहुत अधिक लकड़ी जलाते थे, जिससे आस-पास के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई।
(3) बाड़ों का प्रकोप कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु नदी की बाड़ें इस सभ्यता के विनाश के लिए उत्तरदायी थीं।
(4) भूकम्प कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः किसी शक्तिशाली भूकम्प के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ होगा।
(5) संक्रामक रोग-कुछ विद्वानों का विचार है कि हड़प्पा सभ्यता का विनाश मलेरिया अथवा किसी अन्य संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने से हुआ होगा।
(6) प्रशासनिक शिथिलता कुछ विद्वानों का विचार है कि शासक का अपने अधिकारियों पर नियन्त्रण नहीं रहा होगा ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में सम्भवतः हड़प्पाई सभ्यता का अंत हो गया होगा।
(7) हड़प्पा के नगरों का समुद्र तट से दूर होना- डेल्स के अनुसार अनेक कारणों से हड़प्पा के अनेक नगर समुद्र तट से दूर होते चले गए। परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के नगरों के व्यापार की प्रगति अवरुद्ध हो गई और उनकी सम्पन्नता नष्ट होती चली गई।
(8) आर्द्रता की कमी घोष के अनुसार कुछ स्थानों पर आर्द्रता की कमी तथा भूमि की शुष्कता के कारण भी हड़प्पा सभ्यता का अन्त हुआ।
(9) नदियों का दिशा परिवर्तन-डेल्स के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का दिशा परिवर्तन उस क्षेत्र में संस्कृति के विनाश का प्रमुख कारण रहा होगा।
(10) विदेशी आक्रमण कुछ विद्वानों का विचार है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हड़प्पा प्रदेश पर आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया होगा। सम्भवतः ये आक्रमणकारी आर्य लोग थे।
प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के अंत के बारे में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का अंत:
(1) विकसित हड़प्पा स्थलों का त्याग उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा- स्थलों को त्याग दिया गया था। दूसरी ओर गुजरात, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नयी बस्तियों में आबादी में वृद्धि होने लगी थी।
(2) भौतिक संस्कृति में परिवर्तन विद्वानों के अनुसार उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई.पूर्व के पश्चात् भी अस्तित्व में रहे कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में बदलाव आया था जैसे हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं-बायें, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना लेखन, लम्बी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई। प्रायः थोड़े सामान के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयुक्त किया जाता था।
इसके अतिरिक्त भवन निर्माण की तकनीकों का अन्त हुआ और बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बन्द हो गया। इस प्रकार पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवन शैली को उजागर करती हैं। इन संस्कृतियों को ‘उत्तर हड़प्पा’ अथवा ‘अनुवर्ती संस्कृतियों’ की संज्ञा दी गई।
(3) हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के कारण विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति के अन्त होने के सम्भावित कारण निम्नलिखित थे-
- जलवायु परिवर्तन- सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से ‘अनेक बस्तियाँ उजड़ गई तथा हड़प्पा संस्कृति का अन्त हो गया।
- वनों की कटाई वनों की कटाई से हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्र के जंगल तथा वन नष्ट हो गए और भूमि में नमी की कमी हो गई। भी
- अत्यधिक बाढ़-सिन्धु नदी की अत्यधिक बाड़ें हड़प्पा की सभ्यता के अन्त के लिए उत्तरदायी थीं।
- नदियों का मार्ग परिवर्तन कुछ विद्वानों के अनुसार घग्घर तथा उसकी सहायक नदियों का मार्ग परिवर्तन उस क्षेत्र में सभ्यता के विनाश का एक प्रमुख कारण था।
- सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों का अभाव- कुछ विद्वानों का मत है कि सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्वों के अभाव मैं हड़प्पा सभ्यता का अन्त हो गया था।