JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

बहुचयनात्मक प्रश्न 

1. द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत दो महाशक्तियाँ उभर कर सामने आयी थीं-
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ
(ब) सोवियत संघ और ब्रिटेन
(द) सोवियत संघ और चीन
उत्तर:
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ

2. क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट किस वर्ष उत्पन्न हुआ था ?
(अ) 1967
(ब) 1971
(स)1975
(द) 1962
उत्तर:
(द) 1962

3. बर्लिन दीवार कब खड़ी की गई थी?
(अ) 1961
(बं) 1962
(स) 1960
(द) 1971
उत्तर:
(अ) 1961

4. उत्तर एटलांटिक संधि-संगठन की स्थापना की गई थी-
(अ) 1962 में
(ब) 1967 में
(स) 1949 में
(द) 1953 में
उत्तर:
(स) 1949 में

5. वारसा संधि कब हुई ?
(अ) 1965 में
(ब) 1955 में
(स) 1957 में
(द) 1954 में
उत्तर:
(ब) 1955 में

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6. तीसरी दुनिया से अभिप्राय है-
(अ) अज्ञात और शोषित देशों का समूह
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह
(स) सोवियत गुट के देशों का समूह
(द) अमेरिकी गुट के देशों का समूह
उत्तर:
(ब) विकासशील या अल्पविकसित देशों का समूह

7. द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रमुख
(अ) एकध्रुवीय विश्व राजनीति
(ब) द्वि-ध्रुवीय राजनीति
(स) बहुध्रुवीय राजनीति
(द) अमेरिकी गुट विशेषता है
उत्तर:
(ब) द्वि-ध्रुवीय राजनीति

8. गुटनिरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन हुआ था।
(अ) नई दिल्ली में
(ब) द्वि- ध्रुवीय राजनीति
(स) अफ्रीका में
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं

9. वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन में कितने सदस्य हैं। के देशों का समूह
(अ) 115
(ब) 116
(स) 117
(द) 120
उत्तर:
(द) 120

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. प्रथम विश्व युद्ध ………………….. से………………….. के बीच हुआ था।
उत्तर:
1914, 1918

2. शीतयुद्ध ……………….. और ……………….. तथा इनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव और संघर्ष की श्रृंखला
उत्तर:
अमरिका, सोवियत संघ

3. धुरी – राष्ट्रों की अगुआई जर्मनी, ………………….. और जापान के हाथ में थी।
उत्तर:
इटली

4. …………………. विश्व युद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।
उत्तर:
द्वितीय

5. जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम का गुप्तनाम …………………. तथा ……………………. थी।
उत्तर:
लिटिल ब्वॉय, फैटमैन

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नाटो का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
नाटो का पूरा नाम है। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन)।

प्रश्न 2.
‘वारसा संधि’ की स्थापना का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर:
‘वारसा संधि’ की स्थापना का मुख्य कारण नाटो के देशों का मुकाबला करना था।

प्रश्न 3.
भारत के पहले प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे।

प्रश्न 4.
यूगोस्लाविया में एकता कायम करने वाले नेता कौन थे?
उत्तर:
जोसेफ ब्रॉज टीटो।

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प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक वामे एनक्रूमा थे।

प्रश्न 6.
शीतयुद्ध का चरम बिन्दु क्या था?
उत्तर:
क्यूबा मिसाइल संकट।

प्रश्न 7.
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की जानकारी संयुक्त राज्य अमेरिका को कितने समय बाद लगी?
उत्तर:
तीन सप्ताह बाद।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के काल के तीन पश्चिमी या अमेरिकी गठबंधनों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो )।
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन ( सेन्टो)।
  3. केन्द्रीय संधि संगठन (सीटो )।

प्रश्न 9.
मार्शल योजना क्या थी?
उत्तर:
शीतयुद्ध काल में अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन हेतु जो आर्थिक सहायता की, वह मार्शल योजना के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 10.
परमाणु अप्रसार संधि कब हुई?
उत्तर;
परमाणु अप्रसार संधि 1 जुलाई, 1968 को हुई।

प्रश्न 11.
शीतयुद्ध का सम्बन्ध किन दो गुटों से था?
उत्तर:
शीत युद्ध का सम्बन्ध जिन दो गुटों से था, वे थे

  1. अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी गुट और
  2.  सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट।

प्रश्न 12.
शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच
1. 1950-53
2. 1962 में हुई किन्हीं दो मुठभेड़ों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. 1950-53 कोरिया संकट
  2. 1962 में बर्लिन और कांगो मुठभेड़।

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प्रश्न 13.
नाटो में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिय।
उत्तर:

  1. अमेरिका
  2.  ब्रिटेन
  3. फ्रांस
  4. इटली।

प्रश्न 14.
शीत युद्ध के युग में एक पूर्वी गठबंधन और तीन पश्चिमी गठबंधनों के नाम लिखिये।
उत्तर:
पूर्वी गठबंधन – वारसा पैक्ट, पश्चिमी गठबंधन

  1. नाटो,
  2. सीएटो और
  3. सैण्टो।

प्रश्न 15.
वारसा पैक्ट में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. सोवियत संघ
  2. पोलैण्ड
  3. पूर्वी जर्मनी
  4. हंगरी।

प्रश्न 16.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के किन्हीं चार अग्रणी देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत
  2. इण्डोनेशिया
  3. मिस्र
  4. यूगोस्लाविया।

प्रश्न 17.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के कोई दो नकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:

  1. दो विरोधी गुटों का निर्माण।
  2. शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्धा का जारी रहना।

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प्रश्न 18.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के कोई दो सकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म
  2. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन।

प्रश्न 19.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रणेता थे

  1. जवाहरलाल नेहरू
  2. मार्शल टीटो
  3. कर्नल नासिर और
  4. डॉ. सुकर्णो।

प्रश्न 20.
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को कब घुटने टेकने पड़े?
उत्तर:
सन् 1945 में अमेरिका ने जब जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये तो जापान को घुटने टेकने पड़े।

प्रश्न 21.
शीत युद्ध में पश्चिमी गठबंधन की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
शीत युद्ध काल में पश्चिमी गठबंधन उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का समर्थक था।

प्रश्न 22.
सोवियत गठबंधन की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
सोवियत संघ गुट की वैचारिक प्रतिबद्धता समाजवाद और साम्यवाद के लिए थी।

प्रश्न 23.
पारमाणविक हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों द्वारा किये गये किन्हीं दो समझौतों के नाम लिखिये।
उत्तर:

  1. परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि
  2. परमाणु अप्रसार संधि।

प्रश्न 24.
1960 में दो महाशक्तियों द्वारा किये गए किन्हीं दो समझौतों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  1. परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि
  2. परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि।

प्रश्न 25.
पृथकतावाद से क्या आशय है?
उत्तर:
पृथकतावाद का अर्थ होता है। अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना।

प्रश्न 26.
गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद से कैसे अलग है?
उत्तर:
पृथकतावाद अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखने से है जबकि गुट निरपेक्षता में शांति और स्थिरता के लिए मध्यस्थता की सक्रिय भूमिका निभाना है।

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प्रश्न 27.
अल्प विकसित देश किन्हें कहा गया था?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को अल्प विकसित देश कहा गया था।

प्रश्न 28.
अल्प विकसित देशों के सामने मुख्य चुनौती क्या थी?
उत्तर:
अल्पं विकसित देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी।

प्रश्न 29.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में शीत युद्ध के दौर में भारत ने क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
भारत ने एक तरफ तो अपने को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा तो दूसरी तरफ अन्य नव स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमों में जाने से रोका।

प्रश्न 30.
भारत ‘नाटो’ अथवा ‘सीटो’ का सदस्य क्यों नहीं बना?
उत्तर:
भारत ‘नाटो’ अथवा ‘सीटो’ का सदस्य इसलिए नहीं बना क्योंकि भारत गुटनिरपेक्षता की नीति में विश्वास रखता है।

प्रश्न 31.
शीत युद्ध किनके बीच और किस रूप में जारी रहा?
उत्तर:
शीत युद्ध सोवियत संघ और अमेरिका तथा इनके साथी देशों के बीच प्रतिद्वन्द्विता, तनाव और संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा।

प्रश्न 32.
द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की अगुवाई कौन-से देश कर रहे थे?
उत्तर:
अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और फ्रांस।

प्रश्न 33.
शीतयुद्ध के काल में पूर्वी गठबंधन का अगुआ कौन था तथा इस गुट की प्रतिबद्धता किसके लिए थी?
उत्तर:
शीतयुद्ध के काल में पूर्वी गठबंधन का अगुआ सोवियत संघ था तथा इस गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद के लिए थी।

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प्रश्न 34.
अमरीका ने जापान के किन दो शहरों पर परमाणु बम गिराया?
उत्तर:
हिरोशिमा तथा नागासाकी।

प्रश्न 35.
द्वितीय विश्व युद्ध कब से कब तक हुआ था?
उत्तर:
1939 से 1945।

प्रश्न 36.
वारसा संधि से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 37.
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन को पश्चिमी गठबंधन भी कहा जाता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देश अमरीका में शामिल हुए।

प्रश्न 38.
भारत ने सोवियत संध के साथ आपसी मित्रता की संधि पर कब हस्ताक्षर किय ?
उत्तर:
1971 में।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध का क्या अर्थ है?
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?
अथवा
उत्तर:
शीत युद्ध वह अवस्था है जब दो या दो से अधिक देशों के मध्य तनावपूर्ण वातावरण हो, लेकिन वास्तव में कोई युद्ध न हो। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वाद-विवाद, रेडियो प्रसारणों तथा सैनिक शक्ति के प्रसार द्वारा लड़े गये स्नायु युद्ध को शीत युद्ध कहा जाता है।

प्रश्न 2.
अपरोध का तर्क किसे कहा गया?
उत्तर:
अगर कोई शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जायेंगे। इसी को अपरोध का तर्क कहा गया।

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प्रश्न 3.
सीमित परमाणु परीक्षण संधि के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सीमित परमाणु परीक्षण संधि – वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गई।

प्रश्न 4.
शीत युद्ध के दायरे से क्या आशय है?
उत्तर:
शीत युद्ध के दायरे से यह आशय है कि ऐसे क्षेत्र जहाँ विरोधी खेमों में बँटे देशों के बीच संकट के अवसर आए, युद्ध हुए या इनके होने की संभावना बनी, लेकिन बातें एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ीं।

प्रश्न 5.
तटस्थता से क्या आशय है?
उत्तर:
तटस्थता का अर्थ है – मुख्य रूप से युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना ऐसे देश युद्ध में न तो शामिल होते हैं और न ही युद्ध के सही-गलत होने के बारे में अपनी कोई राय देते हैं।

प्रश्न 6.
शीत युद्ध की कोई दो सैनिक विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
शीत युद्ध की दो सैनिक विशेषताएँ ये थीं:

  1. सैन्य गठबंधनों का निर्माण करना तथा इनमें अधिक से अधिक देशों को शामिल करना।
  2. शस्त्रीकरण करना तथा परमाणु मिसाइलों को बनाना तथा उन्हें युद्ध के महत्त्व के ठिकानों पर स्थापित करना।

प्रश्न 7.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आलोचना के दो आधारों को स्पष्ट कीजिये किन्हीं दो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आलोचना के दो आधार निम्नलिखित हैं-

  1. सिद्धान्तहीनता: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धान्तहीन रही है।
  2. अस्थिरता की नीति: भारत की गुटनिरपक्षता की नीति में अस्थिरता रही है।

प्रश्न 8.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने दो-ध्रुवीयता को कैसे चुनौती दी थी?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने

  1. एशिया, अफ्रीका व लातिनी अमरीका के नव स्वतंत्र देशों को गुटों से अलग रखने का तीसरा विकल्प देकर तथा
  2. शांति व स्थिरता के लिए दोनों गुटों में मध्यस्थता द्वारा दो – ध्रुवीयता को चुनौती दी थी।

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प्रश्न 9.
शीत युद्ध में विचारधारा के स्तर पर क्या लड़ाई थी?
उत्तर:
शीत युद्ध में विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौनसा है? अमरीकी गुट जहाँ उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था, वहाँ सोवियत संघ गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद और साम्यवाद के लिए थी।

प्रश्न 10.
किस घटना के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हुआ?
उत्तर:
अगस्त, 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े। इन बमों के गिराने के बाद ही दूसरे विश्व युद्ध का अन्त हुआ।

प्रश्न 11.
मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
1947 से 1952 तक जारी की गई अमरीकी मार्शल योजना के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों को अपने पुनर्निर्माण हेतु अमरीका की आर्थिक सहायता प्राप्त हुई।

प्रश्न 12.
शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच हुई किन्हीं चार मुठभेड़ों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के बीच निम्न मुठभेड़ें हुईं-

  1. 1950-53 का कोरिया युद्ध तथा कोरिया का दो भागों में विभक्त होना।
  2. 1954 का फ्रांस एवं वियतनाम का युद्ध जिसमें फ्रांसीसी सेना की हार हुई।
  3. बर्लिन की दीवार का निर्माण।
  4.  क्यूबा मिसाइल संकट (1962 )

प्रश्न 13.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
(i) जवाहरलाल नेहरू मिस्र
(ii) जोसेफ ब्रॉज टीटो
(iii) गमाल अब्दुल नासिर
(iv) सुकर्णो
उत्तर:
(i) जवाहरलाल नेहरू – मिस्र
(ii) जोसेफ ब्राज टीटो – इण्डोनेशिया
(iii) गमाल अब्दुल नासिर – भारत
(iv) सुकर्णो – यूगोस्लाविया

प्रश्न 14.
महाशक्तियों के बीच गहन प्रतिद्वन्द्विता होने के बावजूद शीत युद्ध रक्तरंजित युद्ध का रूप क्यों नहीं ले सका?
उत्तर:
शीत युद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें विजेता कौन है यह तय करना भी असंभव होगा इसलिए कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता था।

प्रश्न 15.
“शीत युद्ध में परस्पर प्रतिद्वन्द्वी गुटों में शामिल देशों से अपेक्षा थी कि वे तर्कसंगत और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करेंगे।” यहाँ तर्कसंगत और जिम्मेदारी भरे व्यवहार से क्या आशय है?
उत्तर:
यहाँ तर्कसंगत भरे व्यवहार से आशय है कि आपसी युद्ध में जोखिम है। पारस्परिक अपरोध की स्थिति में युद्ध लड़ना दोनों के लिए विध्वंसक साबित होगा। इस संदर्भ में जिम्मेदारी का अर्थ है- संयम से काम लेना और तीसरे विश्व युद्ध के जोखिम से बचना। बताइये।

प्रश्न 16.
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने क्यों आकर्षित किया? कोई दो कारण
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों ने निम्न कारणों से आकर्षित किया

  1. महाशक्तियाँ इन देशों में अपने सैनिक अड्डे बनाकर दुश्मन के देशों की जासूसी कर सकती थीं।
  2. छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे। इससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 17.
शीत युद्ध के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण कैसे होता था?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ- हानि के गणित से होता था।

  1. दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं।
  2. छोटे देशों ने सुरक्षा, हथियार और आर्थिक मदद की दृष्टि से गठबंधन किया।

प्रश्न 18.
उत्तर – एटलांटिक संधि संगठन (नाटो) कब बना तथा इसमें कितने देश शामिल थे?
उत्तर:
नाटो (NATO) : अप्रैल, 1949 में अमेरिका के नेतृत्व में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना हुई जिसमें 12 देश शामिल थे। ये देश थे: संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड, डेनमार्क, नार्वे , फिनलैंड,

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प्रश्न 19.
वारसा संधि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नाटो के जवाब में सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों के गठबंधन ने सन् 1955 में ‘वारसा संधि’ की। इसमें ये देश सम्मिलित हुए – सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया इसका मुख्य काम था – ‘नाटो’ में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना।

प्रश्न 20.
शीतयुद्ध के कारण बताएँ।
उत्तर:
शीत युद्ध के कारण – शीत युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. अमेरिका और सोवियत संघ के महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले में खड़े होना शीत युद्ध का कारण बना।
  2. विचारधाराओं के विरोध ने भी शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
  3. अपरोध के तर्क ने प्रत्यक्ष तीसरे युद्ध को रोक दिया। फलतः शीतयुद्ध का विकास हुआ।

प्रश्न 21.
शीतयुद्ध के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें। उत्तर – शीतयुद्ध के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित थे-

  1. विश्व का दो गुटों में विभाजन: शीतयुद्ध के कारण अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में विश्व दो खेमों में विभाजित हो गया। एक खेमा पूँजीवादी गुट कहलाया और दूसरा साम्यवादी गुट कहलाया।
  2. सैनिक गठबन्धनों की राजनीति: शीतयुद्ध के कारण सैनिक गठबंधनों की राजनीति प्रारंभ हुई।
  3. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति: शीतयुद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उत्पत्ति हुई एशिया- अफ्रीका के नव-स्वतंत्र राष्ट्रों ने दोनों गुटों से अपने को अलग रखने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बनाया।
  4. शस्त्रीकरण को बढ़ावा: शीत युद्ध के प्रभावस्वरूप शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला। दोनों गुट खतरनाक शस्त्रों का संग्रह करने लगे।

प्रश्न 22.
शीत युद्ध की तीव्रता में कमी लाने वाले कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निम्न कारणों से शीतयुद्ध की तीव्रता में कमी आयी-
1. अपरोध का तर्क:
अपरोध ( रोक और सन्तुलन ) के तर्क ने शीत युद्ध में संयम बरतने के लिए दोनों गुटों को मजबूर कर दिया । अपरोध का तर्क यह है कि जब दोनों ही विरोधी पक्षों के पास समान शक्ति तथा परस्पर नुकसान पहुँचाने की क्षमता होती है तो कोई भी युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता।

2. गठबंधन में भेद आना:
सोवियत संघ के साम्यवादी गठबंधन में भेद पैदा होने की स्थिति ने भी शीत युद्ध की तीव्रता को कम किया। साम्यवादी चीन की 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ से अनबन हो गयी।

3. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भी नव-स्वतंत्र राष्ट्रों को दो ध्रुवीय विश्व की गुटबाजी से अलग रहने का मौका दिया।

प्रश्न 23.
शीत युद्ध के काल में ‘अपरोध’ की स्थिति ने युद्ध तो रोका लेकिन यह दोनों महाशक्तियों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता को नहीं रोक सकी। क्यों? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अपरोध की स्थिति शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों की प्रतिद्वन्द्विता को निम्न कारणों से नहीं रोक सकी-

  1. दोनों ही गुटों के पास परमाणु बमों का भारी भण्डारण था। दोनों एक- दूसरे से निरंतर सशंकित थ। इसलिए प्रतिस्पर्द्धा बनी रही, यद्यपि सम्पूर्ण विनाश के भय ने युद्ध को रोक दिया।
  2. दोनों महाशक्तियों की पृथक्-पृथक् विचारधाराएँ थीं। दोनों में विचारधारागत प्रतिद्वन्द्विता जारी रही क्योंकि उनमें कोई समझौता संभव नहीं था।
  3. दोनों महाशक्तियाँ औद्योगीकरण के चरम विकास की अवस्था में थीं और उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल विश्व के अल्पविकसित देशों से ही प्राप्त हो सकता था। इसलिए सैनिक गठबंधनों के द्वारा इन क्षेत्रों में दोनों अपने- अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए छीना-झपटी कर रहे थे।

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प्रश्न 24.
महाशक्तियों ने ‘अस्त्र- नियंत्रण’ संधियाँ करने की आवश्यकता क्यों समझी?
उत्तर:
यद्यपि महाशक्तियों ने यह समझ लिया था कि परमाणु युद्ध को हर हालत में टालना जरूरी है। इसी समझ के कारण दोनों महाशक्तियों ने संयम बरता और शीत युद्ध एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की तरफ खिसकता रहा; तथापि दोनों के बी प्रतिद्वन्द्विता जारी थी। इस प्रतिद्वन्द्विता के चलते रहने से दोनों ही महाशक्तियाँ यह समझ रही थीं कि संयम के बावजूद गलत अनुमान या मंशा को समझने की भूल या किसी परमाणु दुर्घटना या किसी मानवीय त्रुटि के कारण युद्ध हो सकता है! इस बात को समझते हुए दोनों ही महाशक्तियों ने कुछेक परमाणविक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग करने का फैसला किया और अस्त्र नियंत्रण संधियों द्वारा हथियारों की दौड़ पर लगाम लगाई और उसमें स्थायी संतुलन लाया है।

प्रश्न 25.
1947 से 1950 के बीच शीतयुद्ध के विकास का वर्णन करें।
उत्तर:
1947 से 1950 के बीच शीतयुद्ध का विकास:

  1. मार्शल योजना (1947): अमेरिका ने यूरोप में रूसी प्रभाव को रोकने की दृष्टि से 1947 में पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण हेतु मार्शल योजना बनायी।
  2. बर्लिन की नाकेबन्दी: सोवियत संघ ने 1948 में बर्लिन कीं नाकेबंदी कर शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
  3. नाटो की स्थापना: 4 अप्रैल, 1949 को अमेरिकी गुट ने नाटो की स्थापना कर शीत युद्ध को बढ़ावा
  4. कोरिया संकट: 1950 में उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया के बीच हुए युद्ध ने भी शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 26.
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्यूबा का मिसाइल संकट 1962 में सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने अमरीका के तट पर स्थित एक द्वीपीय देश क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे के रूप में बदलने हेतु वहाँ परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दो गुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था। क्यूबा में मिसाइलों की तैनाती की जानकारी अमरीका को तीन हफ्ते बाद लगी।

इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाय। इस चेतावनी से लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा संकट के रूप में जाना गया। लेकिन सोवियत संघ के जहाजों के वापसी का रुख कर लेने से यह संकट टल गया।

प्रश्न 27.
1960 के दशक को खतरनाक दशक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
निम्न घटनाओं के कारण 1960 का दशक खतरनाक दशक कहा जाता है-

  1. कांगो संकट: 1960 के दशक के प्रारंभ में ही कांगो सहित अनेक स्थानों पर प्रत्यक्ष रूप से मुठभेड़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
  2. क्यूबा संकट: 1961 में क्यूबा में अमरीका द्वारा प्रायोजित ‘बे ऑफ पिग्स’ आक्रमण और 1962 में ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ ने शीतयुद्ध को चरम पर पहुँचा दिया।
  3. अन्य: सन् 1965 में डोमिनिकन रिपब्लिक में अमेरिकी हस्तक्षेप और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में सोवियत संघ के हस्तक्षेप से तनाव बढ़ा।

प्रश्न 28.
गुटनिरपेक्षता क्या है? क्या गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय तटस्थता है?.
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ- गुटनिरपेक्षता का अर्थ है कि महाशक्तियों के किसी भी गुट में शामिल न होना तथा इन गुटों के सैनिक गठबंधनों व संधियों से अलग रहना तथा गुटों से अलग रहते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना तथा विश्व राजनीति में भाग लेना। गुटनिरपेक्षता तटस्थता नहीं है – गुट निरपेक्षता तटस्थता की नीति नहीं है।

तटस्थता का अभिप्राय है युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। ऐसे देश न तो युद्ध में संलग्न होते हैं और न ही युद्ध के सही-गलत के बारे में अपना कोई पक्ष रखते हैं। लेकिन गुटनिरपेक्षता युद्ध को टालने तथा युद्ध के अन्त का प्रयास करने की नीति है।

प्रश्न 29.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की पाँच विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की विशेषताएँ-

  1. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने की नीति है।
  2. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति एक स्वतंत्र नीति है तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता हेतु अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय सहयोग देने की नीति है
  3. भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  4. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति नव-स्वतंत्र देशों के गुटों में शामिल होने से रोकने की नीति है।
  5. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति अल्पविकसित देशों को आपसी सहयोग तथा आर्थिक विकास पर बल देती है।

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प्रश्न 30.
भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कोई चार कारण बताओ। भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई?
अथवा
उत्तर-भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीय हित की दृष्टि से भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए अपनाई ताकि वह स्वतंत्र रूप से ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सके जिनसे उसका हित सधता हो; न कि महाशक्तियों और खेमे के देशों का।
  2. दोनों महाशक्तियों से सहयोग लेने हेतु भारत ने दोनों महाशक्तियों से सम्बन्ध व मित्रता स्थापित करते हुए दोनों से सहयोग लेने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी।
  3. स्वतंत्र नीति-निर्धारण हेतु भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतंत्र नीति का निर्धारण कर सके।
  4. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए – भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

प्रश्न 31.
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये|
उत्तर:
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन;
सन् 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन बेलग्रेड में हुआ। इसी को बेलग्रेड शिखर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। यह सम्मेलन कम-से-कम निम्न तीन बातों की परिणति था

  1. भारत, यूगोस्लाविया, मिस्र, इण्डोनेशिया और घाना इन पाँच देशों के बीच सहयोग।
  2. शीत युद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते दायरे।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर बहुत से नव-स्वतंत्र अफ्रीकी देशों का नाटकीय उदय।

बेलग्रेड शिखर सम्मेलन में 25 सदस्य देश शामिल हुए। सम्मेलन में स्वीकार किये गये घोषणा-पत्र में कहा गया कि विकासशील राष्ट्र बिना किसी भय व बाधा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास को प्रेरित करें।

प्रश्न 32.
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता ‘साल्ट प्रथम’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (साल्ट ) प्रथम सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (साल्ट) का प्रथम चरण सन् 1969 के नवम्बर में प्रारंभ हुआ सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमरीका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई, 1972 को निम्नलिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए

  1. परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (ए वी एम ट्रीटी) – इस संधि के अन्तर्गत दोनों ही राष्ट्रों ने हवाई सुरक्षा एवं सामरिक प्रक्षेपास्त्र सुरक्षा को छोड़कर सामरिक युद्ध कौशल के प्रक्षेपास्त्रों व प्रणालियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  2. सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता हुआ जो 3 अक्टूबर, 1972 से प्रभावी हुआ।

प्रश्न 33.
” गुटनिरपेक्ष आंदोलन वैश्विक सम्बन्धों में खतरनाक दुश्मनी के युग में एक संस्थात्मक आशावादी अनुक्रिया के रूप में सामने आया। इसका मुख्य सिद्धान्त यह था कि जो महाशक्ति नहीं है या जिनके सदस्यों की किसी भी गुट में शामिल होने की अपनी कोई इच्छा नहीं थी। हमारे नेताओं ने किसी गुट में शामिल होने से मना करके तटस्थ रहना स्वीकार किया, इस तरह उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। ” ऊपर लिखित अनुच्छेद को पढ़ें एवं निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
(क) अनुच्छेद में संकेत दिए गए वैश्विक दुश्मनी का नाम लिखें।
(ख) दो महाशक्तियों का नाम लिखें, जिनका आपस में तनाव था।
(ग) भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल होने के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
(क) इस पैरे में वैश्विक दुश्मनी का अर्थ अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध से है।

(ख) अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच तनाव था।

(ग) भारत निम्नलिखित कारणों से गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल हुआ-
(i) भारत गुटों की राजनीति से अलग रहना चाहता था।
(ii) भारत दोनों शक्ति गुटों से लाभ प्राप्त करना चाहता था।

प्रश्न 34.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन को अनवरत जारी रखना द्वि-ध्रुवीय विश्व में एक चुनौती भरा काम था। क्यों? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शीत युद्ध काल के द्विध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को चलाये रखना एक चुनौती भरा काम था, क्योंकि:

  1. विश्व की दोनों महाशक्तियाँ नवस्वतंत्रता प्राप्त तीसरे विश्व के अल्पविकसित देशों को लालच देकर, दबाव डालकर तथा समझौते कर अपने-अपने गुट में मिलाने का प्रयास कर रही थीं।
  2. शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों द्वारा अनेक देशों पर हमले किये गये थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में गुट- निरपेक्ष आंदोलन को निरन्तर जारी रखना स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
  3. पाँच सदस्य देशों ने मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन का सफर शुरू किया था जिसकी संख्या बढ़ते हुए 120 तक हो गई है। शीतयुद्ध काल में अपने समर्थक देशों की इतनी संख्या बनाना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

प्रश्न 35.
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से अभिप्राय है। ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जिसमें नवोदित विकासशील राष्ट्रों का राष्ट्रीय विकास पूँजीवादी राष्ट्रों की इच्छा पर निर्भर न रहे। विश्व आर्थिक व्यवस्था का संचालन एक-दूसरे की संप्रभुता का समादर, अहस्तक्षेप एवं कच्चे माल व उत्पादन राष्ट्र का पूर्ण अधिकार आदि सिद्धान्तों पर आधारित हो। नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के मूल सिद्धान्त हैं।

  1. अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो, जिनका दोहन पश्चिम में विकसित देश करते हैं।
  2. अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक हो।
  3. पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो।
  4. अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़े।

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प्रश्न 36.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य लिखिये।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के उद्देश्य – नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित

  1. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार हेतु प्रस्तावित की गई थी।
  2. इसमें अल्पविकसित देशों को उनके उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होने का उद्देश्य रखा गया है जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
  3. इसमें अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी।
  4. इसमें पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी।
  5. अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।
  6. विकसित देश विकासशील देशों में पूँजी का निवेश करेंगे, उन्हें न्यूनतम ब्याज की शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जायेगा तथा उनके पुनर्भुगतान की शर्तें भी लचीली होंगी।

प्रश्न 37.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थन में दो तर्क दीजिये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थन में तर्क-

  1. गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले ले सका जिनसे उसका हित सता था न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  2. इसके कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि एक महाशक्ति उसके खिलाफ हो जाए तो वह दूसरी महाशक्ति के नजदीक आने की कोशिश करे। अगर भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही धौंस जमा सकता था।

प्रश्न 38.
दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ-हानि के गणित से होता था। महाशक्तियों के बीच की तनातनी का मुख्य अखाड़ा यूरोप बना। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि अपने गुट में शामिल करने के लिए महाशक्तियों ने बल प्रयोग किया। सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। इस क्षेत्र के देशों में सोवियत संघ की सेना की व्यापक उपस्थिति ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपना प्रभाव जमाया कि यूरोप का पूरा पूर्वी हिस्सा सोवियत संघ के दबदबे में रहे। पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया तथा पश्चिम एशिया में अमरीका ने गठबंधन का तरीका अपनाया। इन गठबंधनों को दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन (SEATO) और केन्द्रीय संधि संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 39.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सटीक परिभाषा कर पाना मुश्किल है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समय के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई। 2019 में अजरबेजान में हुए 18वें सम्मेलन में 120 सदस्य देश और 17 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए। जैसे-जैसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में बढ़ता गया वैसे-वैसे इसमें विभिन्न राजनीतिक प्रणाली और अलग-अलग हितों के देश शामिल होते गए। इससे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मूल स्वरूप में बदलाव आया इसी कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सटीक परिभाषा कर पाना मुश्किल है।

प्रश्न 40.
गुटनिरपेक्षता के आंदोलन की बदलती प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समय बीतने के साथ गुटनिरपेक्षता की प्रकृति भी बदली तथा इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। बेलग्रेड में हुए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं थे। सन् 1970 के दशक के मध्य तक आर्थिक मुद्दे प्रमुख हो उठे। इसके परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया। सन् 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध तक नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को बनाये चलाये रखने के प्रयास मंद पड़ गए।

प्रश्न 41.
” अमरीका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराना एक राजनीतिक खेल था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अगस्त, 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए और तब जापान को आत्मसमर्पण करना पड़ा इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति हो गई। यद्यपि अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है। अमरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था। वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत है। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि अमरीका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराना एक राजनीतिक खेल था।

प्रश्न 42.
हथियारों की होड़ पर लगाम लगाने हेतु महाशक्तियों द्वारा किए गए प्रयत्नों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दोनों महाशक्तियों को इस बात का अंदाजा था कि परमाणु युद्ध दोनों के लिए विनाशकारी होगा। इस कारण, अमेरिका और सोवियत संघ ने कुछेक परमाण्विक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने हेतु आपस में सहयोग का फैसला किया। अतः दोनों ने ‘अस्त्र – नियन्त्रण’ का फैसला किया। इस प्रयास की शुरुआत 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुई और एक ही दशक के भीतर दोनों पक्षों ने तीन अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। ये समझौते थे– परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि, परमाणु अप्रसार सन्धि और परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन सन्धि तत्पश्चात् महाशक्तियों ने ‘अस्त्र परिसीमन के लिए वार्ताओं के कई दौरे किए और हथियारों पर अंकुश रखने के लिए अनेक सन्धियाँ कीं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्यूबा का मिसाइल संकट क्या था? यह संकट कैसे टला ? क्यूबा का मिसाइल संकट
उत्तर:
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु मिसाइलें तैनात करना: सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने अमरीका के तट पर स्थित एक छोटे से द्वीपीय देश क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ के रूप में बदलने हेतु 1962 में क्यूबा परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं।

अमरीका का नजदीकी निशाने की सीमा में आना: मिसाइलों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। अब सोवियत संघ पहले की तुलना में अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था।

अमरीका की प्रतिक्रिया तथा सोवियत संघ को संयम भरी चेतावनी: क्यूबा में इन परमाणु मिसाइलों की तैनाती की जानकारी अमरीका को तीन हफ्ते बाद लगी। इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाये। अमरीका की इस चेतावनी से ऐसा लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में जाना गया।

सोवियत संघ का संयम भरा कदम और संकट की समाप्ति: अमरीका की गंभीर चेतावनी को देखते हुए सोवियत संघ ने संयम से काम लिया और युद्ध को टालने का फैसला किया। सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापसी का रुख कर लिया। इस प्रकार क्यूबा मिसाइल संकट टल गया।

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प्रश्न 2.
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं? अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर इसके प्रभाव का परीक्षण कीजिये । उत्तर- शीत युद्ध का अर्थ – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लेकर 1990 तक विश्व राजनीति में दो महाशक्तियों- अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में उदारवादी पूँजीवादी गुट तथा साम्यवादी समाजवादी गुट के बीच जो शक्ति व प्रभाव विस्तार की प्रतिद्वन्द्विता चलती रही, उसे शीत युद्ध का नाम दिया गया। दोनों के बीच यह वाद-विवादों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो प्रसारणों तथा भाषणों से लड़ा जाने वाला युद्ध; शस्त्रों की होड़ को बढ़ाने वाली एक सैनिक प्रवृत्ति तथा दो भिन्न विचारधाराओं का युद्ध था। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध का प्रभाव: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े। यथा
(अ) नकारात्मक प्रभाव:

  1. शीत युद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भय और सन्देह के वातावरण को निरन्तर बनाए रखा।
  2. इसने सैनिक गठबन्धनों को जन्म दिया; सैनिक अड्डों की स्थापना की, शस्त्रों की दौड़ तेज की और विनाशकारी शस्त्रों के निर्माण को बढ़ावा दिया।
  3. इसने विश्व में दो विरोधी गुटों को जन्म दिया।
  4. इसके कारण सम्पूर्ण विश्व पर परमाणु युद्ध का भय छाया रहा।
  5. शीत युद्ध ने निःशस्त्रीकरण के प्रयासों को अप्रभावी बना दिया।

(ब) सकारात्मक प्रभाव-

  1. शीत युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म तथा विकास हुआ।
  2. इसकी भयावहता के कारण शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्रोत्साहन मिला।
  3. इसके कारण आणविक शक्ति के क्षेत्र में तकनीकी और प्राविधिक विकास को प्रोत्साहन मिला।
  4. इसने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 3.
शीतयुद्ध के उदय के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
शीत
युद्ध
शीत युद्ध के उदय के कारण के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:

  1. परस्पर सन्देह एवं भय: दोनों गुटों के बीच शीत युद्ध के प्रारंभ होने का प्रमुख कारण परस्पर संदेह, अविश्वास तथा डर का व्याप्त होना था।
  2. विरोधी विचारधारा: दोनों महाशक्तियों के अनुयायी देश परस्पर विरोधी विचारधारा वाले देश थे। विश्व में. दोनों ही अपना-अपना प्रभाव – क्षेत्र बढ़ाने में लगे थे।
  3. अणु बम का रहस्य सोवियत संघ से छिपाना: अमरीका ने अणु बम बनाने का रहस्य सोवियत संघ से छुपाया। जापान पर जब उसने अणु बम गिरा कर द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त किया तो सोवियत संघ ने इसे अपने विरुद्ध भी समझा। इससे दोनों महाशक्तियों के बीच दरार पड़ गयी।
  4. अमेरिका और सोवियत संघ का एक-दूसरे का प्रतिद्वन्द्वी बनना: अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीत युद्ध का कारण बना।
  5. अपरोध का तर्क: शीत युद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी कार्य कर रही थी कि परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसे अपरोध का तर्क कहा गया।

प्रश्न 4.
शीत युद्धकालीन द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
शीत युद्धकालीन द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियाँ – शीत युद्ध के दौरान विश्व दो प्रमुख गुटों में बँट गया एक गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था और दूसरे गुट का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। लेकिन शीत युद्ध के दौरान ही द्विध्रुवीय विश्व को चुनौतियाँ मिलना शुरू हो गयी थीं। ये चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं-
1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
शीत युद्ध के दौरान द्विध्रुवीय विश्व को सबसे बड़ी चुनौती गुटनिरपेक्ष आंदोलन से मिली। गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अल्पविकसित तथा विकासशील नव-स्वतंत्र देशों को दोनों गुटों से अलग रहने का तीसरा विकल्प दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देशों ने स्वतंत्र विदेश नीति अपनायी; शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वन्द्वी गुटों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका निभायी।

2. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था ने भी द्विध्रुवीय विश्व को चुनौती दी। मई, 1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के छठे विशेष अधिवेशन में महासभा ने पुरानी विश्व अर्थव्यवस्था को समाप्त करके एक नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए विशेष कार्यक्रम बनाया; गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने भी इसकी स्थापना के लिए दबाव बनाया।

3. साम्यवादी गठबंधन में दरार पड़ना:
साम्यवादी चीन की 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ से अनबन हो गई। 1971 में अमरीका ने चीन के नजदीक आने के प्रयास किये इस प्रकार साम्यवादी गठबंधन में दरार पड़ने से भी द्विध्रुवीय विश्व को चुनौती मिली।

प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति एवं सिद्धान्तों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थ- गुटनिरपेक्षता का अर्थ है। दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहना। यह महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने तथा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाते हुए विश्व राजनीति में शांति और स्थिरतां के लिए सक्रिय रहने का आंदोलन है। अतः गुटनिरपेक्षता का अर्थ है – किसी भी देश को प्रत्येक मुद्दे पर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हित एवं विश्व शांति के आधार पर गुटों से अलग रहते हुए स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाने की स्वतन्त्रता।

गुटनिरपेक्षता की प्रकृति एवं सिद्धान्त; गुटनिरपेक्षता की प्रकृति को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

  1. गुटनिरपेक्षता पृथकतावाद नहीं: पृथकतावाद का अर्थ होता है कि अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना। जबकि गुटनिरपेक्षता की नीति विश्व के मामलों में सक्रिय रहने की नीति है।
  2. गुटनिरपेक्ष तटस्थता नहीं है: तटस्थता का अर्थ होता है। मुख्य रूप से युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। जबकि गुटनिरपेक्ष देश युद्ध में शामिल हुए हैं। इन देशों ने दूसरे देशों के बीच युद्ध को होने से टालने के लिए काम किया है और हो रहे युद्ध के अंत के लिए प्रयास भी किये हैं।
  3. विश्व शांति की चिन्ता: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रमुख चिंता विश्व में शांति स्थापित करना है।
  4. आर्थिक सहायता लेना: गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल देश अपने आर्थिक विकास के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं, ताकि वे अपना आर्थिक विकास कर आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो सकें।
  5. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना: गुटनिरपेक्ष देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की धारणा का समर्थन किया और इसकी स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में दबाव बनाया।

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प्रश्न 6.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेता कौन थे? गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका बताइये
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की जड़ में यूगोस्लाविया के जोसेफ ब्रॉज टीटो, भारत के जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर प्रमुख थे। इंडोनेशिया के सुकर्णो और घाना के वामे एनक्रूमा ने इनका जोरदार समर्थन किया। ये पांच नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कहलाये।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

  1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक – भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य रहा है। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की नीति का प्तिपादन किया।
  2. स्वयं को महाशक्तियों की खेमेबन्दी से अलग रखा – शीत युद्ध के दौर में भारत ने सजग और सचेत रूप से अपने को दोनों महाशक्तियों की खेमेबन्दी से दूर रखा।
  3. नव – स्वतंत्र देशों को आंदोलन में आने की ओर प्रेरित किया- भारत ने नव-स्वतंत्र देशों को महाशक्तियों के खेमे में जाने का पुरजोर विरोध किया तथा उनके समक्ष तीसरा विकल्प प्रस्तुत करके उन्हें गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सदस्य बनने को प्रेरित किया।
  4. विश्व शांति और स्थिरता के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को सक्रिय रखना – भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय हस्तक्षेप की नीति अपनाने पर बल दिया।
  5. वैचारिक एवं संगठनात्मक ढाँचे का निर्धारण- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के वैचारिक एवं संगठनात्मक ढाँचे के निर्धारण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  6. समन्वयकारी भूमिका – भारत ने समन्वयकारी भूमिका निभाते हुए सदस्यों के बीच उठे विवादास्पद मुद्दों को टालने या स्थगित करने पर बल देकर आंदोलन को विभाजित होने से बचाया।

प्रश्न 7.
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचना:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का आलोचनात्मक विवेचन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है। भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के लाभ गुटनिरपेक्षता की नीति ने निम्न क्षेत्रों में भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया है।

  1. राष्ट्रीय हित के अनुरूप फैसले: गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय फैसले और पक्ष ले सका जिनसे उसका हित सधता था, न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में अपने महत्त्व को बनाए रखने में सफल: गुटनिरपेक्ष नीति अपनाने के कारण भारत हमेशा इस स्थिति में रहा कि अगर भारत को महसूस हो कि महाशक्तियों में से कोई उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है, तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ अपना रुख कर सकता था। दोनों गुटों में से कोई भी भारत सरकार को लेकर न तो बेफिक्र हो सकता था और न ही धौंस जमा सकता था।

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की निम्नलिखित कारणों से आलोचना की गई है।
1. सिद्धान्तविहीन नीति:
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धान्तविहीन है। कहा जाता है कि भारत के अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के नाम पर अक्सर महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर कोई सुनिश्चित पक्ष लेने से बचता रहा।

2. अस्थिर नीति: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति में अस्थिरता रही है और कई बार तो भारत की स्थिति विरोधाभासी रही।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 8.
शीत युद्ध काल में दोनों महाशक्तियों द्वारा निःशस्त्रीकरण की दिशा में किये गये प्रयासों का उल्लेख कीजिये
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण के प्रयास: शीत युद्ध काल में दोनों पक्षों ने निःशस्त्रीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख प्रयास किये
1. सीमित परमाणु परीक्षण संधि (एलटीबीटी):
1963, वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गयी।

2. परमाणु अप्रसार संधि, 1967: यह संधि केवल पांच परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों को ही एटमी हथियार रखने की अनुमति देती है और शेष सभी देशों को ऐसे हथियार हासिल करने से रोकती है। यह संधि 5 मार्च, 1970 से प्रभावी हुई। इस संधि को 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया है।

3. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता – I ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स – साल्ट – I) सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता का पहला चरण सन् 1969 के नवम्बर में आरंभ हुआ सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई, 1972 को निम्नलिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए-
(क) परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (एबीएम ट्रीटी)।
(ख) सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता। ये अक्टूबर, 1972 से प्रभावी

4. सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता – II ( स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स – सॉल्ट – II ) यह संधि अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव के बीच 18 जून, 1979 को हुआ था। इस संधि का उद्देश्य सामरिक रूप से घातक हथियारों पर प्रतिबंध लगाना था।

5. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि – I: अमरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (सीनियर) और सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने 31 जुलाई, 1991 को घातक हथियारों के परिसीमन और उनकी संख्या में कमी लाने से संबंधित संधि पर हस्ताक्षर किए।

6. सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि – II: सामरिक रूप से घातक हथियारों को सीमित करने और उनकी संख्या में कमी करने हेतु इस संधि पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और अमरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर) ने मास्को में 3 जनवरी, 1993 को हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 9.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? इसके बुनियादी सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से आशय – नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में जिन बातों पर जोर दिया गया है, वे हैं। विकासशील देशों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना; साधनों को विकसित देशों से विकासशील देशों में भेजना अल्प विकसित देशों का अपने उन प्राकृतिक साधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो, जिनका दोहन पश्चिमी विकसित देश करते हैं; अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक हो तथा पश्चिमी देशों से मंगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम हो। नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद तथा नव उपनिवेशवाद व नव-साम्राज्यवाद को उनके सभी रूपों में समाप्त करना चाहती है। यह न्याय तथा समानता पर आधारित, लोकतंत्र के सिद्धान्त पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था है।

नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धान्त: नवीन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धान्त इस प्रकार हैं-

  1. खनिज पदार्थों और समस्त प्रकार के आर्थिक क्रियाकलापों पर उसी राष्ट्र की संप्रभुता की स्थापना करना।
  2. कच्चे माल और तैयार माल की कीमतों में ज्यादा अन्तर न होना।
  3. विकसित देशों के साथ व्यापार की वरीयता का विस्तार करना।
  4. विकासशील देशों द्वारा उत्पादित औद्योगिक माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना।
  5. विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों के मध्य तकनीकी विकास की खाई को पाटना।
  6. विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना।
  7. बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों पर समुचित नियंत्रण लगाना।

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प्रश्न 10.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गये प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गये प्रयास 70 के दशक में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रयास हुए हैं।

1. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर ‘अंकटाड’ तथा ‘यू.एन.आई.डी. ओ. के माध्यम से अनेक प्रयत्न किये गये:
(अ) अंकटाड के स्तर पर 1964 से लेकर कई सम्मेलन हुए जिनका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संप्रभुता सम्पन्न, समानता तथा सहयोग के आधार पर पुनर्गठित करना रहा है जिससे इसको न्याय पर आधारित बनाया जा सके। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार एवं विकास से संबंधित सम्मेलन वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया ताकि अल्प विकसित देशों के अपने समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त हो सके, वे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपना माल बेच सकें। कम लागत से उन्हें प्रौद्योगिकी मिल सके आदि।

(ब) यू.एन.आई.डी.ओ. के माध्यम से विकासशील देशों में औद्योगीकरण की गति को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया हैं

2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन के स्तर पर: 1970 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया । इन देशों की पहल के क्रियान्वयन के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा का छठा अधिवेशन बुलाया गया जिसने ‘नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था’ स्थापित करने की घोषणा की।

3. विकासशील राष्ट्रों के स्तर पर: 1982 में दिल्ली में हुए विकासशील देशों के सम्मेलन में इनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए आह्वान किया गया और नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में सहयोग हेतु आठ सूत्री कार्यक्रम रखा गया। इसमें संरक्षणवाद की समाप्ति पर भी बल दिया गया।

प्रश्न 11.
‘अपरोध’ का तर्क किसे कहा गया है? विस्तार में समझाइये।
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। विश्वयुद्ध की समाप्ति के कारण कुछ भी हो परंतु इसका परिणामस्वरूप वैश्विक राजनीति के मंच पर दो महाशक्तियों का उदय हो गया। जर्मनी और जापान हार चुके थे और यूरोप तथा शेष विश्व विध्वंस की मार झेल रहे थे। अब अमरीका और सोवियत संघ विश्व की सबसे बड़ी शक्ति थे। इनके पास इतनी क्षमता थी कि विश्व की किसी भी घटना को प्रभावित कर सके। अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना। शीतयुद्ध शुरू होने के पीछे यह समझ भी काम कर रही थी कि परमाणु बम होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बूते की बात नहीं।

जब दोनों महाशक्तियों के पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार हों कि वे एक-दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सके तो ऐसे में दोनों के बीच रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है। उकसावे के बावजूद कोई भी पक्ष युद्ध का जोखिम मोल लेना नहीं चाहेंगा क्योंकि युद्ध से राजनीतिक फायदा चाहे किसी को भी हो, लेकिन इससे होने वाले विध्वंस को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता। परमाणु युद्ध की सूरत में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें से विजेता कौन है – यह तय करना भी मुश्किल होगा। यदि कोई अपने शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच जाएँगे। इसे ‘अपरोध’ का तर्क कहा गया है।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

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पृष्ठ 170

क्रियाकलाप 1 : अरावाकों और स्पेनवासियों के बीच पाए जाने वाले अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। इनमें से कौनसे अन्तरों को आप सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं और क्यों?
उत्तर:
अरावाकों और स्पेनवासियों के बीच पाए जाने वाले अन्तर –
(1) कैरीबियन द्वीप-समूहों में रहने वाले अरावाक शान्तिप्रिय थे तथा लड़ने की बजाय वार्तालाप द्वारा झगड़े निपटाना चाहते थे। दूसरी ओर स्पेनवासी अच्छे योद्धा तथा साम्राज्यवादी थे। वे अपनी सैन्य शक्ति के बल पर अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे।

(2) अरावाक लोगों के पास एक शक्तिशाली तथा प्रशिक्षित सेना का अभाव था जबकि स्पेनवासियों के पास घोड़ों के प्रयोग पर आधारित एक शक्तिशाली सेना थी।

(3) अरावाक लोग सोने को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। उन्हें यदि यूरोपवासी सोने के बदले काँच के मनके दे देते थे, तो वे प्रसन्न हो जाते थे। इसके विपरीत स्पेनवासी सोना-चाँदी प्राप्त करने के लिए लालायित रहते थे। वे उचित- अनुचित सभी प्रकार के तरीकों द्वारा अधिकाधिक सोना-चाँदी प्राप्त करना चाहते थे।

(4) अरावाक लोगों का व्यवहार बहुत उदारतापूर्ण होता था और वे सोने की तलाश में स्पेनी लोगों का साथ देने के लिए सदैव तैयार रहते थे। इसके विपरीत स्पेनी लोग बड़े स्वार्थी, लालची तथा क्रूर होते थे। उन्होंने सोना-चाँदी प्राप्त करने के लिए अऱावक लोगों पर भारी अत्याचार किये। उन्होंने अराबाक लोगों को गुलाम बनाकर सोने-चाँदी की खानों में काम करने के लिए बाध्य किया।

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(5) अरावाक लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित थे। उनमें बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे जीववादी थे। परन्तु स्पेन के लोग अभिजात वर्ग, पादरी वर्ग तथा कृषक वर्ग तथा व्यापारी वर्ग आदि में विभाजित थे।

(6) अरावाक लोगों के पास बन्दूकों, बारूद और उत्तम घोड़ों का अभाव था परन्तु स्पेन के पास एक शक्तिशाली सेना थी। उनके सैनिकों के पास बन्दूकें, गोला-बारूद और उत्तम घोड़े थे।

पृष्ठ 177

क्रियाकलाप 3 : आपके विचार से ऐसे कौनसे कारण थे, जिनसे प्रेरित होकर यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों के लोगों ने खोज यात्राओं पर जाने का जोखिम उठाया?
उत्तर:
खोज – यात्राओं के कारण – यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों के लोगों द्वारा खोज – यात्राएँ करने के निम्नलिखित कारण थे –
(1) 1380 ई. में कुतुबनुमा का आविष्कार हो चुका था। 15वीं शताब्दी में इसका प्रयोग समुद्री यात्राओं में होने लगा।

(2) 1477 में टालेमी की ‘ज्योग्राफी’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। इस पुस्तक के अध्ययन से यूरोपवासियों को संसार के बारे में काफी जानकारी मिली जिसे उन्होंने तीन महाद्वीपों अर्थात् यूरोप, एशिया और अफ्रीका में बँटा हुआ समझा। यूरोपवासियों को इस बात का कोई अनुमान नहीं था कि अटलान्टिक के दूसरी ओर भूमि पर पहुँचने के लिए कितनी दूरी तय करनी होगी। उनका विचार था कि यह दूरी बहुत कम होगी, इसलिए अनेक साहसिक लोग समुद्रों में यात्रा करने के लिए उत्सुक रहते थे।

(3) 14वीं शताब्दी के मध्य से 15वीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई। वहाँ व्यापार में मंदी आ गई तथा सोने और चाँदी की कमी आ गई। 1453 में तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। यद्यपि इटलीवासियों ने तुर्कों के साथ व्यवसाय करने की व्यवस्था तो कर ली, परन्तु उन्हें व्यापार पर अधिक कर देना पड़ता था। अतः अब यूरोपवासी पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने हेतु नये समुद्री मार्ग खोजने लगे।

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(4) यूरोप के धर्मपरायण ईसाई विभिन्न देशों की खोज करके वहाँ ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे

(5) धर्म-युद्धों के कारण एशिया और यूरोप के बीच व्यापार में वृद्धि हुई। अब यूरोपवासियों की एशिया के उत्पादों, विशेषकर मसालों के प्रति रुचि बढ़ गई।

(6) यूरोपवासी सोने और मसालों की तलाश में नए-नए प्रदेशों की खोज करने लगे। इस प्रकार स्पेनवासियों ने मुख्यतः आर्थिक कारणों से प्रेरित होकर नये-नये देशों की खोज करना शुरू कर दिया।

पृष्ठ 181

क्रियाकलाप 4: दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों पर यूरोपीय लोगों के सम्पर्क से क्या प्रभाव पड़ा ? विश्लेषण कीजिए। यूरोप से आकर दक्षिणी अमेरिका में बसे लोगों और जेसुइट पादरियों के प्रति स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों पर यूरोपवासियों के सम्पर्क से प्रभाव –
(1) यूरोपवासियों की मार-काट के कारण दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों की जनसंख्या कम हो गई, उनकी जीवन-शैली का विनाश हो गया और उन्हें गुलाम बनाकर खानों, बागानों तथा कारखानों में उनसे काम लिया जाने लगा।

(2) वहाँ दास प्रथा को प्रोत्साहन मिला। दक्षिणी अमेरिका के पराजित लोगों को गुलाम बना लिया जाता था।

(3) वहाँ उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। अधिक से अधिक धन कमाने के लिए यूरोपवासी यहाँ के स्थानीय लोगों का शोषण करते थे जिससे उनकी स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गई।

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(4) दक्षिणी अमेरिका में नई-नई आर्थिक गतिविधियाँ शुरू हो गईं। जंगलों का सफाया करके प्राप्त की गई भूमि पर पशु-पालन किया जाने लगा। 1700 में सोने की खोज के बाद खानों का काम चल पड़ा और इन सभी कामों के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता थी। अतः बड़ी संख्या में गुलाम अफ्रीका से मँगवाये गए।

(5) स्पेनी अभियानों के कारण भारी संख्या में एजटेक लोग मारे गए। इसके अतिरिक्त स्पेनियों के साथ आई चेचक की महामारी से भी हजारों एजटेक लोग मौत के मुँह में चले गए।

(6) अमेरिकी लोगों की पाण्डुलिपियों तथा स्मारकों को निर्ममतापूर्वक नष्ट कर दिया गया।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एजटेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना कीजिए।
उत्तर:
एजटेक लोगों की सभ्यता की विशेषताएँ –

  1. एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। समाज में अभिजात, योद्धाओं, व्यापारियों, शिल्पियों, किसानों व दासों में विभाजित था। प्रतिभाशाली शिल्पियों, चिकित्सकों और विशिष्ट अध्यापकों को आदर की दृष्टि से देखा जाता था।
  2. एजटेक लोगों ने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाये। राजधानी में बने हुए राजमहल और पिरामिड झील के बीच में खड़े हुए बड़े आकर्षक लगते थे।
  3. साम्राज्य ग्रामीण आधार पर टिका हुआ था। ये लोग मक्का, फलियाँ, कद्दू, कसावा, आलू आदि की फसलें उगाते थे।
  4. एजटेक लोग अपने बच्चों को स्कूलों में भेजते थे।
  5. दास-प्रथा प्रचलित थी। गरीब लोग कभी-कभी अपने बच्चों को भी गुलामों के रूप में बेच देते थे।
  6. एजटेक लोगों की लिपि चित्रात्मक थी।
  7. एजटेक लोग अच्छे भवन निर्माता थे। उन्होंने अनेक भव्य मन्दिरों का निर्माण किया। उनके सर्वाधिक भव्य मन्दिर भी युद्ध के देवताओं और सूर्य भगवान की समर्पित थे।
  8. एजटेक लोगों उनके देवी-देवताओं की पूजा करते थे। सूर्य, युद्ध का देवता आदि उनके प्रमुख देवता थे।
  9. एजटेक लोग इस बात का पूरा ध्यान रखते थे कि उनके सभी बच्चे स्कूल अवश्य जाएँ।

मेसोपोटामिया की सभ्यता की विशेषताएं –

  1. मेसोपोटामियावासी गेहूँ, जौ, मटर, मसूर की खेती करते थे। खेतों की सिंचाई की जाती थी। ये लोग भेड़, बकरी आदि अनेक जानवर पालते थे।
  2. मेसोपोटामिया के लोगों ने सर्वप्रथम लेखन कला का विकास किया। उनकी लिपि ‘क्यूनीफार्म’ कहलाती थी।
  3. ये लोग काँसा, टिन, ताँबा आदि धातुओं से परिचित थे।
  4. मेसोपोटामियावासी लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी आदि तुर्की, ईरान आदि से मँगाते थे तथा वे अपना कपड़ा, कृषि जन्य उत्पाद उन्हें निर्यात करते थे।
  5. इनका समाज उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और दास वर्ग में विभक्त था।
  6. मेसोपोटामिया में अनेक मन्दिर बने हुए थे। मन्दिरों में अनेक देवी-देवताओं की उपासना की जाती थी। उर तथा इन्नाना प्रमुख देवी – देवता थे।
  7. कुम्हार चाक से बर्तन बनाते थे।
  8. युद्ध-बन्दियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिर का अथवा शासक का काम करना पड़ता था। उन्हें काम के बदले अनाज दिया जाता था।
  9. समाज में एकल परिवार की प्रथा प्रचलित थी।
  10. उन्होंने चन्द्रमा के आधार पर एक पंचांग बनाया। उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को 30 दिनों में, एक दिन को 24 घण्टों में, एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया।

प्रश्न 2.
ऐसे कौनसे कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
उत्तर:
यूरोपीय नौचालन – 15वीं शताब्दी में निम्नलिखित कारणों से यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली –
(1) 1380 ई. में कुतुबुनुमा अर्थात् दिशा सूचक यन्त्र का आविष्कार हो चुका था। इससे यात्रियों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी मिलती थी।

(2) समुद्री यात्रा पर जाने वाले यूरोपीय जहाजों में भी काफी सुधार हो चुका था। बड़े-बड़े जहाजों का निर्माण होने लगा था, जो विशाल मात्रा में माल की ढुलाई करते थे। ये जहाज आत्म-रक्षा के अस्त्र- -शस्त्रों से भी सुसज्जित होते थे ताकि शत्रुओं के आक्रमण का मुकाबला किया जा सके।

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(3) 15वीं सदी के अन्तर्गत यात्रा – – वृत्तान्तों और सृष्टि-वर्णन तथा भूगोल की पुस्तकों के प्रसार ने यूरोपीय लोगों में समुद्री खोजों के प्रति रुचि उत्पन्न की।

(4) 1477 में टालेमी की पुस्तक ‘ज्योग्राफी’ प्रकाशित हुई । टालेमी ने विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति को अक्षांश और देशान्तर रेखाओं के रूप में व्यवस्थित किया था। इसके अध्ययन से यूरोपवासियों को विश्व के बारे में पर्याप्त जानकारी मिली। टालेमी ने यह भी बताया कि पृथ्वी गोल है।

(5) 1453 में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने से यूरोपवासियों को नये समुद्री मार्ग खोजने की प्रेरणा मिली।

(6) स्पेन और पुर्तगाल के लोग महत्त्वाकांक्षी थे तथा नये देशों की खोज कर वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। स्पेन तथा पुर्तगाल के शासक सोना तथा धन-सम्पत्ति के भण्डार प्राप्त करना चाहते थे। वे नये-नये प्रदेशों की खोज करके वहाँ अपने साम्राज्य स्थापित करके यश और सम्मान प्राप्त करने हेतु लालायित थे।

(7) यूरोपीय लोग बाहरी विश्व के लोगों को ईसाई बनाना चाहते थे। इसने भी यूरोप के धर्मपरायण ईसाइयों को इन साहसिक कार्यों की ओर उन्मुख किया।

प्रश्न 3.
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पन्द्रहवीं शताब्दी में. सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया?
उत्तर:
स्पेन और पुर्तगाल द्वारा अटलांटिक महासागर के पार जाने के कारण –
(1) स्पेन में आर्थिक कारणों ने लोगों को ‘महासागरीय शूरवीर’ बनने के लिए प्रोत्साहन दिया। धर्म- युद्धों की स्मृति और रीकां क्विस्टा (ईसाई राजाओं द्वारा आइबेरियन द्वीप पर प्राप्त की गई विजय ) की सफलता ने स्पेन के लोगों को उत्साहित किया और इकरारनामों को प्रारम्भ किया। इन इकरारनामों के तहत स्पेन का शासक नये विजित क्षेत्रों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर लेता था और उन्हें जीतने वाले अभियानों के नेताओं को पुरस्कार के रूप में उपाधियाँ और विजित देशों पर शासनाधिकार प्रदान करता था।

(2) स्पेन और पुर्तगाल के शासक नई समुद्री खोजों के लिए सदैव धन जुटाने को तैयार रहते थे। वे नाविकों और साहसी यात्रियों को नये-नये देशों की खोज करने के लिए प्रोत्साहित करते थे और उन्हें हर संभव सहायता प्रदान करते थे। स्पेन के शासक ने कोलम्बस को नई समुद्री खोजों के लिए प्रोत्साहित किया। पुर्तगाल का राजकुमार हेनरी नाविक के नाम से प्रसिद्ध था। उसने पश्चिमी अफ्रीका की तटीय यात्रा की और 1405 में सिउटा पर अधिकार कर लिया।

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(3) चौदहवीं शताब्दी के मध्य से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई थी।. व्यापार में मन्दी आ गई तथा वहाँ सोने-चाँदी की कमी आ गई।

(4) स्पेन और पुर्तगाल के धर्म-परायण ईसाई बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने के लिए लालायित थे।

(5). स्पेनी और पुर्तगाली सोने और मसालों की खोज में नये-नये प्रदेशों में जाने के लिए उत्सुक रहते थे।

(6) 1453 में तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। इससे व्यापार करना कठिन हो गया। अतः यूरोपवासियों ने पूर्वी देशों से व्यापार के लिए नये समुद्री मार्गों की तलाश करना शुरू कर दिया।

(7) स्पेन और पुर्तगाल के लोग बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने के लिए लालायित थे। इस कारण भी वे नवीन समुद्री मार्गों की खोज के लिए उन्मुख हुए।

प्रश्न 4.
कौनसी नई खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमेरिका से बाकी दुनिया में भेजी जाती थीं?
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका से मक्का, आलू, कसावा, कुमाला, तम्बाकू, गन्ने की चीनी, ककाओ, रबड़, लाल मिर्च आदि खाद्य वस्तुएँ बाकी दुनिया को भेजी जाती थीं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राजील ले जाए गए सत्रह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राजील ले जाए गए सत्रह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा – ब्राजील पर पुर्तगालियों का अधिकार था। ब्राजील में इमारती लकड़ी बड़े पैमाने पर उपलब्ध थी। पुर्तगालियों ने स्थानीय लोगों को गुलाम बनाना शुरू कर दिया। 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने बड़े – बड़े बागानों में गन्ना उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। यह चीनी यूरोप के बाजारों में बेची जाती थी।

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बहुत ही गर्म तथा नम जलवायु में चीनी मिलों में काम करने के लिए पुर्तगाली लोग स्थानीय लोगों पर निर्भर थे। परन्तु जब उन लोगों ने इस थकाने वाले नीरस काम को करने से इनकार कर दिया तो मिल मालिकों ने उनका अपहरण करवाकर उन्हें गुलाम बनाना शुरू कर दिया। इस पर स्थानीय लोग इन गुलाम बनाने वाले मिल मालिकों से बचने के लिए जंगलों में भागने लगे। विवश होकर मिल मालिकों ने अफ्रीका से गुलाम प्राप्त करने का निश्चय किया। अतः अंगोला से एक 17 वर्षीय अफ्रीकी को गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राजील लाया गया।

इस सत्रह वर्षीय लड़के की ब्राजील – यात्रा बड़ी कष्टदायक थी। उसे सैकड़ों अन्य गुलामों के साथ पकड़कर एक जहाज द्वारा ब्राजील लाया गया था। इस यात्रा में उसे किसी प्रकार की सुविधा नहीं दी गई थी। उसे पशुओं की भाँति जहाज में ठूंस कर लाया गया। उसकी गतिविधियों पर कठोर नजर रखी जाती थी।

उसे बेड़ियों में जकड़ कर रखा जाता था ताकि वह भागने का प्रयास न करे। उसे भर पेट भोजन नहीं दिया जाता था। उससे जहाज पर कठोर परिश्रम करवाया जाता था और साधारण-सी गलती करने पर उसे कोड़ों से पीटा जाता था। पुर्तगाली लोग बड़े क्रूर थे और वे गुलामों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार करते थे। उससे बेगार ली जाती थी। उसे काम के बदले में कुछ भी पारिश्रमिक नहीं दिया जाता था। इस प्रकार उसके साथ कई दिनों तक अमानवीय व्यवहार किया गया और उसे अमानुषिक यातनाएँ सहनी पड़ीं।

प्रश्न 6.
दक्षिणी अमरीका की खोज ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के विकास को कैसे जन्म दिया?
उत्तर:
यूरोपीय उपनिवेशवाद का विकास – दक्षिण अमरीका की खोज ने यूरोपीय देशों को वहाँ अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस सन्दर्भ में स्पेन तथा पुर्तगाल को विशेष सफलताएँ मिलीं और उन्हें दक्षिण अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित करने का अवसर मिल गया।

1. स्पेन के उपनिवेशवाद का विकास – कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद स्पेन को दक्षिणी अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित करने की प्रेरणा मिली। स्पेनवासी धन-लोलुप थे। वे दक्षिणी अमेरिकी से सोना-चाँदी प्राप्त कर अपने देश में लाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दक्षिणी अमेरिका के विभिन्न प्रदेशों में जाकर बसना शुरू कर दिया। स्पेन के पास एक शक्तिशाली सेना थी। अतः उसने बारूद और घोड़ों के प्रयोग पर आधारित सैन्य शक्ति के बल पर दक्षिणी अमेरिका में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। उन्होंने स्थानीय लोगों को कर, भेंट देने तथा सोने-चाँदी की खानों में काम करने के लिए बाध्य किया।

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स्थानीय प्रधानों को नये-नये प्रदेश तथा सोने के नए-नए स्रोत खोजने के लिए भर्ती किया जाता था। जब स्थानीय लोगों ने प्रतिरोध किया, तो स्पेन के सैनिकों ने उनका कठोरतापूर्वक दमन किया। लम्बस के अभियानों के बाद आधी शताब्दी में ही स्पेनवासियों ने मध्यवर्ती तथा दक्षिणी अमेरिका में लगभग 40 डिग्री उत्तरी से 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक के समस्त क्षेत्र को खोज लिया और उस पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। मैक्सिको तथा इंका साम्राज्य पर अधिकार – स्पेन के निवासी कोर्टेस तथा उसके सैनिकों ने सरलता से मैक्सिको पर अधिकार कर लिया। 1519 में स्पेनी सैनिकों ने ट्लैक्सकलानों को पराजित कर टेनोक्ट्रिटलैन पर अधिकार कर लिया।

जब यहाँ के एजटेक लोगों ने स्पेन के साम्राज्यवाद का विरोध किया, तो स्पेन की सेना ने एजटेक लोगों के विद्रोह को कुचल दिया और अनेक विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया। 1532 में स्पेन के निवासी पिजारों ने इंका – साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। स्पेन के सैनिकों की दमनकारी नीति के विरुद्ध 1534 में इंका – साम्राज्य के लोगों ने विद्रोह कर दिया, जो दो वर्ष तक जारी रहा। इस अवधि में हजारों विद्रोही मारे गये। अगले पाँच वर्षों में स्पेनियों ने पोटोसी (ऊपरी पेरू) की खानों में चाँदी के विशाल भण्डारों का पता लगा लिया और उन खानों में काम करने के लिए उन्होंने इंका लोगों को गुलाम बना लिया।

2. पुर्तगाल के उपनिवेशवाद का विकास – पुर्तगाली कुशल नाविक तथा महत्त्वाकांक्षी लोग थे। दक्षिणी अमरीका की खोज के बाद पुर्तगालियों ने भी वहाँ अपने उपनिवेश स्थापित करने शुरू कर दिये। 1500 ई. में पुर्तगाल निवासी कैब्राल जहाजों का एक बेड़ा लेकर ब्राजील पहुँच गया। ब्राजील में इमारती लकड़ी बड़े पैमाने पर उपलब्ध थी। इमारती लकड़ी के इस व्यापार के कारण पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारियों के बीच भीषण लड़ाइयाँ हुईं।

अन्त में इनमें पुर्तगालियों की विजय हुईं क्योंकि वे स्वयं तटीय क्षेत्र में बसना तथा उपनिवेश स्थापित करना चाहते थे 1534 में पुर्तगाल के राजा ने ब्राजील के तट को 14 आनुवंशिक कप्तानों में बाँट दिया। उनके मालिकाना अधिकार उन पुर्तगालियों को दे दिये गये जो वहाँ स्थायी रूप से रहना चाहते थे। उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का भी अधिकार दे दिया गया। 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने बड़े-बड़े बागानों में गन्ने उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। 1549 में पुर्तगाली राजा के अधीन एक औपचारिक सरकार स्थापित की गई और बहिया ( सैल्वाडोर) को उसकी राजधानी बनाया गया।

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संस्कृतियों का टकराव JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. कैरीबियन द्वीप समूह और ब्राजील के जन-समुदाय – अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे द्वीप समूहों और बृहत्तर ऐंटिलीज में रहते थे –
(i) अरावाक – अरावाक लोग शान्तिप्रिय थे तथा बातचीत से झगड़े निपटाना अधिक पसन्द करते थे। वे खेती, शिकार और मछली पकड़कर अपना जीवन-निर्वाह करते थे। उनमें बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे। वे सोने को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। वे बुनाई में निपुण थे। उनका व्यवहार उदारतापूर्ण होता था।

(ii) तुपिनांबा – तुपिनांबा लोग दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी समुद्री तट पर और ब्राजील नामक पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गाँवों में रहते थे। वहाँ फल, सब्जियाँ तथा मछलियाँ बहुतायत में उपलब्ध थीं। इससे उन्हें खेती पर निर्भर नहीं होना पड़ा।

2. मध्य और दक्षिणी अमरीका की राज-व्यवस्थाएँ – मध्य और दक्षिणी अमरीका में एजटेक, माया तथा इंका जनसमुदाय निवास करते थे। यथा –
(i) एजटेकजन – बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात लोग अपने में से एक सर्वोच्च नेता चुनते थे जो आजीवन शासक बना रहता था। एजटेक लोगों ने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू बनाए। उनके द्वारा निर्मित राजमहल तथा पिरामिड बड़े सुन्दर थे। वे अपने बच्चों को स्कूलों में भेजते थे। कुलीन वर्ग के बच्चे सेना अधिकारी और धार्मिक नेता बनने के लिए प्रशिक्षण लेते थे।

(ii) माया लोग – मैक्सिको की माया संस्कृति की ग्यारहवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी के बीच महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। वहाँ मक्के की खेती खूब होती थी। उनके खेती करने के तरीके उन्नत थे। माया लोगों ने वास्तुकला, खगोल विज्ञान, गणित आदि में भी प्रगति की।

(iii) पेरू के इंका लोग – दक्षिणी अमेरिकी देशों की संस्कृतियों में सबसे बड़ी संस्कृति पेरू में क्वेचुआ या इंका लोगों की संस्कृति थी। इंका साम्राज्य इक्वेडोर से चिली तक 3000 मील में फैला हुआ था। राजा सर्वोच्च अधिकारी था। अनुमानतः इस साम्राज्य में 10 लाख से अधिक लोग रहते थे। इंका लोग उच्चकोटि के भवन निर्माता थे। उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से लेकर चिली तक अनेक सड़कें नाई थीं। उनके किले शिलापट्टियों को बारीकी से तराश कर बनाये जाते थे । राजमिस्त्री खण्डों को सुन्दर रूप देने के लिए शल्क पद्धति (फ्लेकिंग) का प्रयोग करते थे। इंका सभ्यता का आधार कृषि था। उनकी बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने की कला उच्चकोटि की थी।

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3. यूरोपवासियों की खोज यात्राएँ –
(i) स्पेन और पुर्तगाल के लोग खोज – यात्राओं में सबसे आगे थे। स्पेन और पुर्तगाल के शासक आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक कारणों से समुद्री यात्राओं के लिए प्रेरित हुए। ये देश सोने-चाँदी तथा मसालों की खोज में नए-नए प्रदेशों में जाने की योजना बनाने लगे। पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने पश्चिमी अफ्रीका की तटीय यात्रा आयोजित की और 1415 में सिउय पर आक्रमण कर दिया। पुर्तगालियों ने अफ्रीका के बोजाडोर अन्तरीप में अपना व्यापार केन्द्र स्थापित कर लिया। अफ्रीकियों को बड़ी संख्या में गुलाम बना लिया गया।

(ii) स्पेन में आर्थिक कारणों ने लोगों को ‘महासागरीय शूरवीर’ बनने के लिए प्रोत्साहित किया। इकरारनामों के अन्तर्गत स्पेन का शासक नये विजित प्रदेशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर लेता था।

4. अटलांटिक पारगमन –
(i) 3 अगस्त, 1492 को कोलम्बस ने जहाजों और नाविकों के साथ पश्चिम की ओर प्रस्थान किया। अन्त में 12 अक्टूबर, 1492 को कोलम्बस बहामा द्वीप समूह पहुँच गया। अरावाक लोगों ने नाविकों का स्वागत किया। कोलम्बस ने इस स्थान का नाम सैन सैल्वाडोर रखा और अपने आपको वायसराय घोषित कर दिया। आगे चलकर ऐसी तीन यात्राएँ और आयोजित की गईं जिनके दौरान कोलम्बस ने बहामा और बृहत्तर ऐंटिलीज द्वीपों, दक्षिणी अमरीका की मुख्य भूमि और उसके तटवर्ती प्रदेशों में अपना खोज कार्य पूरा किया। बाद में पता चला कि इन स्पेनी नाविकों ने ‘इंडीज’ नहीं बल्कि एक नया महाद्वीप ही खोज निकाला।

(ii) कोलम्बस के द्वारा खोजे गए दो महाद्वीपों उत्तरी और दक्षिणी अमरीका का नामकरण फ्लोरेंन्स के एक भूगोलवेत्ता ‘अमेरिगो वेस्पुस्सी’ के नाम पर किया गया जिसने उन्हें ‘नई दुनिया’ की संज्ञा दी।

5. अमेरिका में स्पेन के साम्राज्य की स्थापना –
(i) अमेरिका में स्पेनी साम्राज्य का विस्तार बारूद और घोड़ों के प्रयोग पर आधारित सैन्य शक्ति के आधार पर हुआ । स्पेनी लोग वहाँ बस्ती बसाते थे तथा स्थानीय मजदूरों पर निगरानी रखते थे। सोने के लालच में स्पेनी लोग स्थानीय शान्तिप्रिय अरावाक लोगों पर अत्याचार करते थे। चेचक जैसी महामारी के कारण भी अरावाकों को बड़ी संख्या में मौत के मुँह में जाना पड़ा।

(ii) कोलम्बस के बाद स्पेनवासियों ने मध्यवर्ती और दक्षिणी अमरीका में खोज का कार्य जारी रखा। आधी शताब्दी में ही स्पेनवासियों ने लगभग 40 डिग्री उत्तरी से 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तक के समस्त क्षेत्र को खोज निकाला और उस पर अधिकार कर लिया।

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(iii) स्पेन के दो व्यक्तियों हरमन कोर्टेस तथा फ्रांसिस्को पिजारो ने दो बड़े साम्राज्यों को जीत कर उन्हें स्पेन के अधीन किया। उनके अभियानों का ख़र्चा स्पेन के जमींदारों, नगर परिषदों के अधिकारियों और अभिजात वर्ग ने उठाया था।

6. कोर्टेस और एजटेक लोग –
(i) कोर्टेस और उसके सैनिकों ने बड़ी सरलता से मैक्सिको को जीत लिया। 1519 में कोर्टेस क्यूबा से मैक्सिको आया था जहाँ उसने टाटानैक लोगों से मैत्री कर ली। स्पेनी सैनिकों ने ट्लैक्सक्लानों को पराजित कर दिया और टेनोक्ट्रिटलैन नगर पर अधिकार कर लिया।

(ii) एजटेक के शासक मोंटेजुमा ने कोर्टेस का स्वागत किया और उसे बहुमूल्य उपहार दिए। परन्तु कोर्टेस ने सम्राट को नजरबन्द कर लिया और उसके नाम पर शासन चलाने लगा।

(iii) कोर्टेस के क्यूबा लौट जाने के बाद स्पेनी शासन के अत्याचारों के कारण सामान्य जनता ने विद्रोह कर दिया। इस पर कोर्टेस के सहायक ऐल्वारैडो ने कत्ले-आम का आदेश दे दिया। जब 25 जून, 1520 को कोर्टेस वापस लौटा तो उसे भीषण संकटों का सामना करना पड़ा और उसे विवश होकर वापस लौटना पड़ा।

(iv) इसी समय मोटेजुमा की मृत्यु हो गई। एजटेकों तथा स्पेनियों के बीच लड़ाई चलती रही। उस समय एजटेक लोग यूरोपीय लोगों के साथ आई चेचक के प्रकोप से मौत के मुँह में जा रहे थे। मेक्सिको पर विजय प्राप्त करने में दो वर्ष का समय लग गया। कोर्टेस मैक्सिको में न्यू स्पेन का कैप्टन जनरल बन गया। मैक्सिको में स्पेनियों ने ग्वातेमाला, निकारागुआ और होंडुरास पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

7. पिजारो और इंका लोग –
(i) पिजारो एक निर्धन और अनपढ़ व्यक्ति था। वह सेना में भर्ती होकर 1502 में कैरीबियन द्वीप-समूह में आया था। स्पेन के राजा ने पिजारो को यह वचन दिया था कि यदि वह इंका प्रदेश पर विजय प्राप्त कर लेगा, तो उसे वहाँ का राज्यपाल बना दिया जायेगा।

(ii) 1532 में अताहुआल्पा ने इंका साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। पिजारो वहां पहुँच गया और धोखे से वहाँ के राजा को बन्दी बना लिया। राजा ने अपने आप को मुक्त कराने के लिए एक कमरा – भर सोना फिरौती में देने का प्रस्ताव किया, परन्तु पिजारो ने राजा का वध करवा दिया। पिजारो के सैनिकों ने वहाँ खूब लूट-मार की और इंका – साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।

(iii) अगले पाँच वर्षों में स्पेन के लोगों ने पोटोसी, ऊपरी पेरू आदि की खानों में चाँदी के विशाल भण्डारों का पता लगा लिया और उन खानों में काम करने के लिए उन्होंने इंका लोगों को गुलाम बना लिया।

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8. कैब्राल और ब्राजील –
(i) 1500 ई. में पुर्तगाल निवासी पेड्रो अल्वारिस कैब्राल जहाज लेकर भारत के लिए रवाना हुआ, परन्तु वह ब्राजील पहुँच गया। ब्राजील इमारती लकड़ी के लिए प्रसिद्ध था। इमारती लकड़ी के व्यापार के कारण पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारियों में भयंकर लड़ाइयाँ हुईं। इनमें अन्ततः पुर्तगालियों की विजय हुई 1534 में पुर्तगाल के राजा ने ब्राजील के तट को 14 आनुवंशिक कप्तानियों में बाँट दिया। उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का अधिकार भी दे दिया।

(ii) 1540 में पुर्तगालियों ने बड़े-बड़े बागानों में गन्ना उगाना और चीनी बनाने के लिए मिलें चलाना शुरू कर दिया। मिल मालिकों ने स्थानीय लोगों को गुलाम बनाना शुरू कर दिया। इस पर स्थानीय लोग गाँव छोड़ कर जंगलों की ओर भागने
लगे।

(iii) 1549 में पुर्तगाली राजा के अधीन एक औपचारिक सरकार स्थापित की गई। इस समय तक जेसुइट पादरी ब्राजील पहुँचने लगे। यूरोपीय लोग इन जेसुइट पादरियों को पसन्द नहीं करते थे क्योंकि वे मूल निवासियों के साथ दया का बर्ताव करने की सलाह देते थे। वे दास प्रथा की कटु आलोचना करते थे।

9. विजय, उपनिवेश और दास व्यापार – अमरीका की खोज के अनेक दीर्घकालीन परिणाम निकले –
(i) सोने-चाँदी की बाढ़ ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और औद्योगीकरण का और अधिक विस्तार किया। 1560 से 1600 तक सैकड़ों जहाज हर वर्ष दक्षिणी अमेरिका की खानों से चाँदी स्पेन को लाते रहे।

(ii) इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम, हालैण्ड आदि देशों के व्यापारियों ने बड़ी-बड़ी संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ बनाईं। अपने बड़े-बड़े व्यापारिक अभियान चलाए और उपनिवेश स्थापित किये।

(iii) यूरोपवासी नई दुनिया में पैदा होने वाली नई-नई चीजों, जैसे- आलू, तम्बाकू, गन्ने की चीनी, रबड़ आदि से परिचित हुए।

(iv) मार-काट के कारण उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों की जनसंख्या कम हो गई, उनकी जीवन-शैली नष्ट हो गई और उन्हें गुलाम बनाकर खानों, बागानों, कारखानों में उनसे काम लिया जाने लगा।

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(v) अब नई-नई आर्थिक गतिविधियाँ शुरू हो गईं। सोने की खोज के बाद खानों का काम जोरों से चल पड़ा। अफ्रीका से गुलाम बड़ी संख्या में मँगाए गए। 1550 के दशक से 1880 के दशक तक ब्राजील में 36 लाख से भी अधिक अफ्रीकी गुलामों का आयात किया गया। परन्तु यह अमरीकी महाद्वीपों में आयातित अफ्रीकी गुलामों की संख्या का लगभग आधा था।

तिथि यूरोपवासियों द्वारा समुद्री यात्राएँ –
1492 कोलम्बस ने बहामा द्वीप – समूह और क्यूबा पर स्पेन की दावेदारी की।
1494 ‘अनखोजी दुनिया’ का पुर्तगाल और स्पेन के बीच बँटवारा हुआ।
1497 एक अंग्रेजी यात्री जॉन कैबोट ने उत्तरी अमरीका के समुद्रतट की खोज की।
1498 वास्कोडिगामा कालीकट / कोझीकोड पहुँचा।
1499 अमेरिगो वेस्पुसी ने दक्षिणी अमरीका के समुद्र तट को देखा।
1500 कैब्राल ने ब्राजील पर पुर्तगाल की दावेदारी की।
1513 बालबोआ ने पनामा इस्थमस को पार किया और प्रशान्त महासागर को देखा।
1521 कोर्टेस ने ऐजटक लोगों को पराजित किया।
1522 स्पेनवासी मैगलन ने जहाज में बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाया।
1532 पिजारो ने इंका राज्य को जीता।
1571 स्पेन के सैनिकों ने फिलिपीन्स को जीता।
1600 ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई।
1602 डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग Textbook Exercise Questions and Answers.

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Jharkhand Board Class 11 History तीन वर्ग In-text Questions and Answers

पृष्ठ 137 क्रियाकलाप 1:

प्रश्न 1.
विभिन्न मानकों; जैसे व्यवसाय, भाषा, धन और शिक्षा पर आधारित श्रेणीबद्ध सामाजिक ढाँचे की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक वर्ग।

1. पादरी वर्ग – यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। ये प्रथम वर्ग के अंग थे। बिशपों के पास भी विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे। कुछ धार्मिक व्यक्ति मठों में रहते थे। ये भिक्षु कहलाते थे। ये लोग अपना समय प्रार्थना करने, अध्ययन करने आदि में व्यतीत करते थे। स्त्री और पुरुष दोनों ही भिक्षु का जीवन अपना सकते थे। पादरियों, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए विवाह करना वर्जित था। मठों के साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे।

2. अभिजात वर्ग-अभिजात वर्ग दूसरे वर्ग में रखा गया था। बड़े-बड़े भू-स्वामी तथा अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। वे अपनी सेना रखते थे, अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।

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वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के मालिक थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। उसका अपना मेनर, भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। नाइट (कुशल घुड़सवार) लार्ड से सम्बद्ध थे। लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था जिसे फीफ कहा जाता था। बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।

3. कृषक वर्ग – कृषक वर्ग को तीसरे वर्ग में रखा गया। कृषक दो प्रकार के होते थे –
(1) स्वतन्त्र कृषक
(2) कृषि – दास (सर्फ )।

स्वतन्त्र कृषक अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। पुरुष कृषक सैनिक सेवा में योगदान देते थे। कृषक परिवारों को लार्ड की जागीर पर जाकर काम करना पड़ता था। उन्हें बेगार भी देनी पड़ती थी। कृषि दासों को उन भूखण्डों पर भी खेती करनी पड़ती थी जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थी, इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी।

4. चौथा वर्ग – नगरवासी – कालान्तर में नगरों का विकास हुआ। नगरों में रहने वाले लोग या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषि – दास थे, जो कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे। बाद में साहूकारों और वकीलों का प्रादुर्भाव हुआ। इस प्रकार नगरों में रहने वाले लोगों ने चौथा वर्ग बना लिया था नगरों में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग भी थे जिनमें व्यापारी, व्यवसायी, शिल्पकार, लेखक, विद्वान आदि थे। यद्यपि इनके पास पर्याप्त धन था, परन्तु अभिजात वर्ग की तुलना में इन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। व्यवसायियों की अनेक श्रेणियाँ बनी हुई थीं।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस की तुलना मेसोपोटामिया तथा रोमन साम्राज्य से करें।
उत्तर:
1. मध्यकालीन फ्रांस की मेसोपोटामिया से तुलना – मेसोपोटामिया का समाज तीन वर्गों में विभाजित –
(1) उच्च वर्ग
(2) मध्यम वर्ग
(3) निम्न वर्ग।

उच्च वर्ग में राजा उसका परिवार, सामन्त, पुरोहित, उच्च पदाधिकारी आदि सम्मिलित थे। अधिकांश धन-दौलत पर इसी वर्ग का अधिकार था । मध्यम वर्ग में व्यापारी, कारीगर, बुद्धिजीवी तथा स्वतन्त्र किसान थे। निम्न वर्ग में अर्द्ध स्वतन्त्र किसान तथा दास लोग सम्मिलित थे। इस वर्ग के लोगों को किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे । मध्यकालीन फ्रांस में भी समाज तीन वर्गों में विभाजित था।

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ये तीन वर्ग थे –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग
(3) कृषक वर्ग। समाज में पादरी वर्ग तथा अभिजात वर्ग का बोलबाला था। इस वर्ग के लोग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। ये लोग कृषकों का शोषण करते थे । कृषक वर्ग की दशा शोचनीय थी।

2. मध्यकालीन फ्रांस की रोमन साम्राज्य से तुलना – पूर्ववर्ती काल में रोमन समाज अनेक वर्गों में बँटा हुआ था। ये वर्ग थे –
(1) सैनेटर
(2) अश्वारोही या नाइट वर्ग
(3) सम्माननीय जनता का वर्ग
(4) फूहड़ निम्नतर वर्ग।

परवर्तीकाल में रोमन समाज निम्नलिखित वर्गों में विभाजित था –
(1) अभिजात वर्ग – इस काल में सैनेटर तथा नाइट एकीकृत होकर अभिजात वर्ग बन चुके थे।
(2) मध्य वर्ग – इस वर्ग में सेना तथा नौकरशाही से सम्बन्धित लोग थे। इसमें धनी सौदागर तथा किसान भी शामिल थे।
(3) निम्न वर्ग – इस वर्ग में ग्रामीण श्रमिक, कामगार, शिल्पकार, दास आदि शामिल थे।

दूसरी ओर मध्यकालीन फ्रांस में समाज तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक वर्ग। कालान्तर में वहाँ नगरों में रहने वाले एक चौथे वर्ग का भी प्रादुर्भाव हुआ।

पृष्ठ 138

क्रियाकलाप 2: मध्यकालीन मेनर, महल और पूजा के स्थान पर विभिन्न सामाजिक स्तर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीकों की उदाहरण देते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर:
1. मध्यकालीन मेनर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – अभिजात वर्ग का घर मेनर कहलाता था। लार्ड का अपना मेनर – भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। कुछ लार्ड अनेक गाँवों के मालिक थे। स्त्रियाँ वस्त्र कातती तथा बुनती थीं और बच्चे लार्ड की मदिरा – सम्पीडक में कार्य करते थे । लार्ड जंगलों में जाकर शिकार करते थे। एक नए वर्ग का उदय हुआ जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। वे लार्ड से सम्बद्ध थे। लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग (फीफ) देते थे और उसकी रक्षा का वचन देते थे।

सामन्ती मेनर की तरह फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे। बदले नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था । अभिजात वर्ग की व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था और साथ ही साथ अपने खेतों पर भी काम करना पड़ता था।

2. मध्यकालीन महल के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनके पास एक शक्तिशाली सेना होती थी। वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और यहाँ तक कि अपने सिक्के भी चला सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के मालिक थे जिनमें उनके शानदार महल, निजी खेत, जोत व चरागाह और उनके असामी- कृषकों के घर और खेत होते थे।

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उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत …भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। वे आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में भी कार्य करते थे। वे शानदार महलों में निवास करते थे। इन महलों में सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थीं तथा अभिजात वर्ग के लोग ऐश्वर्यपूर्ण न व्यतीत करते थे। उनकी सेवा के लिए सैकड़ों नौकर-चाकर होते थे1

3. मध्यकालीन पूजा के स्थान पर व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – यूरोप में पूजा-स्थल के रूप में चर्च होता था। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। चर्च में प्रत्येक रविवार को लोग पादरियों के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होते थे। पुरुष पादरी विवाह नहीं कर सकते थे।

स्त्रियों, दास- कृषक और विकलांगों के पादरी बनने पर प्रतिबन्ध था। बिशपों के पास भी लार्ड की तरह बड़ी-बड़ी जागीरें होती थीं और वे शानदार महलों में रहते थे। कृषक अपनी उपज का दसवाँ भाग चर्च को देते थे, जिसे ‘टीथ’ कहते थे। लोग चर्च में प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकते थे। नाइट भी अपने वरिष्ठ लार्ड के प्रति स्वामि भक्ति की शपथ लेते समय यही तरीका अपनाते थे।

पृष्ठ 149.

क्रियाकलाप 4 : तिथियों के साथ दी गई घटनाओं और प्रक्रियाओं को पढ़िए और उनका विवरणात्मक लेखा-जोखा दीजिए।
उत्तर:
1. तिथि 1066-1066 ई. में नारमैंडी के ड्यूक विलियम ने एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पार किया और इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया। विलियम ने भूमि नपवाई, उसके नक्शे बनवाये तथा उसे अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया।

2. 1100 के पश्चात् – धनी व्यापारी चर्च को दान देते थे। 1100 के पश्चात् फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले चर्चों का निर्माण होने लगा। यद्यपि वे मठों की सम्पत्ति थे, परन्तु लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से कथीड्रलों के निर्माण में सहयोग दिया।

3. 1315-1317 – चौदहवीं शताब्दी में यूरोप को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। इसके बाद 1320 के दशक में अनगिनत पशुओं की मौतें हुईं।

4. 1347-1350 – पश्चिमी यूरोप 1347-1350 के मध्य महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ। यूरोप की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत भाग मौत के मुँह में चला गया जबकि कुछ स्थानों पर मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसंख्या का 40% तक थी।

5. 1338-1461-1338 से 1461 की अवधि में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच युद्ध हुआ जो ‘सौ वर्षीय युद्ध’ कहलाता है।

6. 1381 – मजदूरों की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों में कमी के कारण अभिजात वर्ग की आमदनी घट गई। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने पुराने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर शिक्षित तथा धनी कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया। परिणामस्वरूप 1381 में ब्रिटेन में कृषकों ने विद्रोह कर दिया।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

Jharkhand Board Class 11 History तीन वर्ग Text Book Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के लक्षण-फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के दो प्रमुख लक्षण निम्नलिखित थे-
(1) फ्रांस में सामन्तवाद सामन्त और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित था। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लार्ड के खेतों पर कार्य करते थे। कृषक लार्ड को श्रम सेवा देते थे तथा बदले में लार्ड उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान करते थे। लार्ड के कृषकों पर न्यायिक अधिकार भी थे।

(2) फ्रांस का प्रारंभिक सामन्ती समाज तीन वर्गों में विभाजित था। प्रथम वर्ग पादरी था; द्वितीय वर्ग अभिजात वर्ग था और तृतीय वर्ग कृषक वर्ग था। पादरी वर्ग कैथोलिक चर्च से जुड़ा था। यह राजा पर निर्भर संस्था नहीं थी। अभिजात वर्ग राजा से जुड़ा था तथा धनी और भू-स्वामी था। तीसरा वर्ग किसान भूस्वामी वर्ग के अधीन था तथा इसी दशा दयनीय थी।

प्रश्न 2.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लम्बी अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर:
जनसंख्या के स्तर में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव – जनसंख्या के स्तर में होने वाले परिवर्तनों के यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-

(1) कृषि के विस्तार के परिणामस्वरूप यूरोप में जनसंख्या में भी वृद्धि हुई। यूरोप की जनसंख्या जो 1000 में लगभग 420 लाख थी, वह बढ़कर 1200 में लगभग 620 लाख और 1300 में 730 लाख हो गई। पौष्टिक आहार मिलने के कारण व्यक्ति की जीवन-अवधि लम्बी हो गई। तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय व्यक्ति आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी होती थी, क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे।

(2) जनसंख्या में वृद्धि होने से नगरों का विकास हुआ, परन्तु 14वीं शताब्दी में इस स्थिति में परिवर्तन आया। पिछले 300 वर्षों की तीव्र ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठण्डी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया। उत्तरी यूरोप में तेरहवीं सदी के अन्त तक उपज वाले मौसम छोटे हो गए, चरागाहों की कमी हो गई तथा पशुओं की संख्या में कमी आ गई। जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम हो गए, जिसके परिणामस्वरूप भीषण अकाल पड़े। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। 1347 और 1350 के बीच यूरोप में महामारी का प्रकोप हुआ जिससे यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20% भाग मौत के मुँह में चला गया। यूरोप की जनसंख्या 1300 में 730 लाख से घटकर 1400 में 450 लाख रह गई।

इस विनाशलीला के अतिरिक्त आर्थिक मन्दी से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ। जनसंख्या में कमी होने के कारण मजदूरों की संख्या में बहुत कमी आई। कृषि उत्पादों के मूल्यों में भी कमी आई। महामारी के बाद इंग्लैण्ड में मजदूरों विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। आमदनी घटने से अभिजात वर्ग ने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।

प्रश्न 3.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर:
नाइट- नौवीं शताब्दी से यूरोप में स्थानीय युद्ध प्रायः होते रहते थे। शौकिया कृषक- सैनिक पर्याप्त नहीं थे। अतः इन युद्धों के लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक नये वर्ग का उदय हुआ, जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। वे लार्ड से इसी प्रकार सम्बद्ध थे, जिस प्रकार लार्ड राजा से सम्बद्ध थे। लार्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग दिया, जिसे ‘फीफ’ कहा जाता था और उसकी रक्षा करने का वचन दिया।

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फीफ 1000-2000 एकड़ या उसके अधिक में फैली हुई हो सकती थी तथा इसे उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता था। फीफ में नाइट और उसके परिवार के लिए एक पन-चक्की, मदिरा संपीडक, घर, चर्च आदि थे। दूसरी ओर नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। नाइट्स अपनी वीरता तथा युद्ध-कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। बारहवीं शताब्दी में नाइट वर्ग का पतन हो गया। बारहवीं सदी से गायक फ्रांस के मेनरों में पराक्रमी राजाओं तथा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ, गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे, जो अंशत: ऐतिहासिक एवं अंशतः काल्पनिक होती थीं। अब नाइट्स साहित्यिक रचनाओं के रूप में ही सीमित रह गए थे।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों का कार्य – मध्यकालीन मठों में भिक्षु रहा करते थे। वे प्रार्थना करते, अध्ययन करते तथा कृषि-कार्य भी करते थे। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग मठ थे। भिक्षु का जीवन पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को ‘मौंक’ तथा स्त्रियों को ‘नन’ कहते थे। भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ विवाह नहीं कर सकती थीं। मठों में रहने वाले भिक्षु ईसाई धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन करते थे तथा ईसाई धर्म का प्रचार करते थे।

कुछ मठ सैकड़ों लोगों के समुदाय बन गए जिससे स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। इन मठों ने कला के विकास में भी योगदान दिया। आबेस हिल्डेगार्ड एक कुशल संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उत्पन्न हो गईं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना – मध्यकालीन फ्रांस के नगरों में दुकानदारों, व्यापारियों के साथ-साथ शिल्पकार भी रहते थे। इन शिल्पकारों में लुहार, बढ़ई, मिस्त्री, पत्थर पर डिजाइन बनाने वाले, जुलाहा, अस्त्र-शस्त्र और शराब बनाने वाले शिल्पकार उल्लेखनीय थे। उनकी दिनचर्या काफी व्यस्त रहती थी।

हम पत्थर पर काम करने वाले शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना करते हुए इसका वर्णन करते हैं –
(1) सबसे पहले वह शिल्पकार उस पत्थर को अपने सामने लाता है और उसे उचित ढंग से रखता है।

(2) इसके बाद वह अपने औजारों के बक्से से हथौड़े और छेनी निकालता है। उन्हें काम करने हेतु तैयार करता है। ठीक प्रकार से काम करने योग्य हो जाने पर वह पत्थर पर कार्य हेतु तैयार हो जाता है।

(3) पत्थर पर वह चॉक से डिजायन बनाता है। फिर अपने कार्य में जुट जाता है। वह हथौड़े से छेनी को कभी तेज व कभी धीमी मारता है और पत्थर से कभी बड़ा टुकड़ा और कभी छोटा टुकड़ा निकलता है।

(4) बीच-बीच में म नोरंजन हेतु गाना गुनगुनाता है। वह दोपहर के समय काम बंद कर खाने के लिए चला जाता है और खाना खाने के बाद थोड़ा विश्राम कर पुन: उसी कार्य में जुट जाता है।

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(5) शाम तक वह पत्थर के एक छोटे से भाग पर सुन्दर डिजायन का रूप दे देता है।

(6) इस प्रकार वह दिन भर अपने काम को मनोयोग से करता है। वह दिन भर परिश्रम करता रहता है और शाम को काम बंद कर अपने सामान – पत्थर व औजारों को उचित स्थान पर रखकर प्रसन्न मन से घर को चला जाता है। इस प्रकार उसकी दिनचर्या पूर्णतः व्यस्त रहती है।

प्रश्न 6.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
1. रोम के दास – रोम में बड़ी संख्या में दास रहते थे। दास सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। उन्हें सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे । यद्यपि उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्राय: क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे, परन्तु साधारण लोग उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण बर्ताव करते थे। दासों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था। समूहों में काम करने वाले दासों को प्रायः पैरों में जंजीर डालकर एक-साथ रखा जाता था। दासों के बच्चे भी दास ही कहलाते थे। रोम में दासों को अधिकतर घरेलू कार्यों में लगाया जाता था। उन्हें दिन भर कठोर परिश्रम करना पड़ता था और उन्हें भरपेट भोजन भी प्राप्त नहीं होता था। उन्हें कारखानों, खेतों, जलपोतों आदि पर कार्य पर लगाया जा सकता था। उन्हें मनोरंजन के लिए हिंसक जंगली जानवरों से भी लड़ाया जाता था। रोम में दासों का क्रय-विक्रय भी किया जाता था।

2. फ्रांस के सर्फ-फ्रांस में सर्फ (कृषि – दास) बहुत बड़ी संख्या में थे। ये निम्न वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित थे। अपने जीवन-निर्वाह के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को ही मिलती थीं। सर्फ उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे, जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। सर्फ लार्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे, उनके तन्दूर में ही रोटी सेंक सकते थे तथा उनकी मदिरा सम्पीडक में ही शराब और बीयर तैयार कर सकते थे। लार्ड को कृषि – दासों के विवाह तय करने का भी अधिकार था।

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दोनों की जीवन-दशाओं में अन्तर –
(1) फ्रांस में सर्फ लोगों को अधिकतर लार्ड के खेतों पर ही काम करना पड़ता था। उन्हें बेगार भी करनी पड़ती थी। परन्तु उन्हें कारखानों, जलपोतों आदि पर काम नहीं करना पड़ता था और न ही उन्हें हिंसक जानवरों से लड़ाया जाता था। जबकि सर्पों को केवल कृषि, पशुपालन आदि कार्य ही करने पड़ते थे। चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उत्पन्न हो गईं।
(2) रोम में दासों का क्रय-विक्रय किया जाता था, वहाँ फ्रांस में सर्फ (कृषि-दासों) के क्रय-विक्रय करने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
(3) कृषि-दास लार्ड के स्वामित्व वाले भूखण्डों पर कृषि करते थे तथा लार्ड की उपज में से कृषिदासों को कुछ हिस्सा मिलता था, परन्तु रोमन साम्राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं थी।

तीन वर्ग JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. तीन वर्ग – नौवीं से 16वीं सदी के मध्य पश्चिमी यूरोप में होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिवर्तनों में तीन सामाजिक श्रेणियों (वर्गों) –

  • ईसाई पादरी
  • भूमिधारक अभिजात वर्ग और
  • कृषक वर्ग- के बीच बदलते सम्बन्ध इतिहास को गढने वाले प्रमुख कारक थे।

2. सामन्तवाद-सामन्तवाद जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ ‘एक भूमि का टुकड़ा’ है और यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैण्ड तथा दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ। आर्थिक सन्दर्भ में सामन्तवाद कृषि उत्पादन को इंगित करता है जो सामन्त और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित है। सामन्तवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में 11वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हई।

3. फ्रांस – गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया। छठी सदी से यह ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था। फ्रांसीसियों के चर्च के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध थे।

4. इंग्लैण्ड – एक संकरे जल मार्ग के पार स्थित इंग्लैण्ड – स्काटलैण्ड द्वीपों को ग्यारहवीं शताब्दी में फ्रांस के एक प्रान्त नारमंडी के राजकुमार द्वारा जीत लिया गया।

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5. द्वितीय वर्ग – अभिजात वर्ग-सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक अभिजात वर्ग (भू-स्वामियों) के अधीन होते थे। इस वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। वे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे । वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत जोत व चरागाह और उनके असामी- कृषकों के घर और खेत होते थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था।

6. मेनर की जागीर – लार्ड का अपना मेनर – भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार होते थे। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। लार्ड की भूमि कृषक जोतते थे। जागीरों में विस्तृत अभयारण्य तथा वन चरागाह होते थे तथा एक दुर्ग होता था।

7. नाइट – नौवीं सदी में यूरोप के स्थानीय युद्धों में कुशल अश्व सेना की आवश्यकता हुई। इससे एक नए वर्ग नाइट्स को बढ़ावा मिला। नाइट्स का लार्ड से उसी प्रकार का सम्बन्ध था जिस प्रकार का लार्ड का राजा से सम्बन्ध था। लार्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग (जिसे फीफ कहा गया) दिया और उसकी रक्षा करने का वचन दिया। इस फीफ में नाइट और उसके परिवार के लिए पनचक्की, मदिरा – संपीडक, घर, चर्च आदि होते थे। फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे तथा बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।

8. प्रथम वर्ग – पादरी वर्ग-पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में रखा था। कैथोलिक चर्च अपनी भूमियों से कर वसूल कर सकते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी बड़ी-बड़ी जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे।

9. भिक्षु-ये अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति होते थे जो मठों में रहते थे। भिक्षु अपना सारा जीवन मठों में रहने और हर समय प्रार्थना करने, अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था। भिक्षु और भिक्षुणियां विवाह नहीं कर सकते थे। मठ छोटे समुदाय से बढ़कर सैकड़ों की संख्या के समुदाय बन गए जिनसे बड़ी इमारतें, भू- जागीरें, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। इन्होंने कला के विकास में योगदान दिया।

10. चर्च और समाज- चौथी सदी से ही क्रिसमस तथा ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे। 25 दिसम्बर को मनाये जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व – रोमन त्यौहार का स्थान ले लिया। तीर्थयात्रा ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी।

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11. तीसरा वर्ग – किसान, स्वतंत्र और बंधक – किसान वर्ग तीसरा वर्ग कहलाता था । किसान दो तरह के होते थे –
(1) स्वतन्त्र किसान
(2) सर्फ ( कृषि – दास)।

स्वतन्त्र किसान अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। कृषकों के परिवारों को लार्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे । कृषि दास अपने गुजारे के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को हीं मिलती थी। कृषि – दास अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे तथा उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे।

12. इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास – इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास ग्यारहवीं सदी में हुआ। ग्यारहवीं सदी में नामैंडी के ड्यूक विलियम ने इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया। उसने भूमि को अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया। यही लार्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए थे।

13. सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक – लार्ड और सामन्तों के सामाजिक तथा आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले अनेक कारक थे, जिनमें –

  • पर्यावरण
  • भूमि का उपयोग
  • नई कृषि प्रौद्योगिकी आदि उल्लेखनीय थे।

14. चौथा वर्ग – नये नगर और नगरवासी – ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि का विस्तार होने के कारण कृषक लोग नगरों में आने लगे। स्वतन्त्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषिदास भाग कर नगरों में छिप जाते थे। अपने लार्ड की नजरों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषि दास एक स्वतन्त्र नागरिक बन जाता था । नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषि – दास थे जो अकुशल श्रमिक होते थे। दुकानदार और व्यापारी काफी बड़ी संख्या में थे।

15. श्रेणी ( गिल्ड ) – आर्थिक संस्था का आधार श्रेणी (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक ‘श्रेणी’ के रूप में संगठित था। यह उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियन्त्रण रखती थी। ‘ श्रेणी सभागार’ प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग था।

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16. कथीड्रल नगर – बारहवीं सदी से फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा। कथीड्रल का निर्माण करते समय कथीड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और जब उनका निर्माण पूरा हुआ तो वे स्थान तीर्थ-स्थान बन गए। इस प्रकार उनके चारों ओर छोटे नगर विकसित हुए।

17. चौदहवीं सदी का संकट – 14वीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया। ऐसा तीन कारकों के वजह से हुआ। ये तीन कारक थे –

  • 1315-17 के बीच पड़े भयंकर अकाल
  • धातु मुद्रा में कमी आना तथा
  • प्लेग।

इससे भारी विनाश हुआ। जनसंख्या बढ़ी तथा आर्थिक मंदी के और जुड़ने से सामाजिक विस्थापन हुआ तथा श्रमिक बल में कमी आ गई।

18. सामाजिक असन्तोष- मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आय को घटा दिया। अतः उन्होंने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया और पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया । इसके फलस्वरूप अनेक स्थानों पर कृषकों के विद्रोह हुए।

19. राजनीतिक परिवर्तन – पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया। अनेक सम्राटों ने स्थायी सेनाओं, स्थायी नौकरशाही तथा राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया। स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की योजनाएँ बनाईं।

फ्रांस का प्रारम्भिक इतिहास

तिथि ( ई.) घटना
481 क्लोविस फ्रैंक लोगों का राजा बना।
486 क्लोविस और फ्रैंक.ने उत्तरी गॉल का विजय अभियान शुरू किया।
496 क्लोविस और फ्रैंक लोग धर्म-परिवर्तन करके ईसाई बने।
714 चार्ल्स मारटल राजमहंल का मेयर बना।
751 मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। उसके विजय-अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया। पेपिन का स्थान उसके पुत्र शार्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया।
768 पोप लियो III ने शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट का ताज पहनाया।
800 नार्वे से वाइकिंग लोगों के हमले।
840 मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। उसके विजय-अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया। पेपिन का स्थान उसके पुत्र शार्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया।
ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दियों में (यूरोप)
तिथि (ई.) घटना
1066 नारमन लोगों की एंग्लो-सेक्सन लोगों को हराकर इंग्लैण्ड पर विजय
1100 के पश्चात् फ्रांस में कथीड्रल का निर्माण
1315-1317 यूरोप में महान अकाल
1347-1350 ब्यूबोनिक प्लेग (Black Death)
1338-1461 इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य ‘सौ वर्षीय युद्ध’
1381 कृषकों के विद्रोह।

JAC Class 11 Political Science Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 11th Political Science Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 11th Political Science Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 11th Political Science Part 1 Indian Constitution at Work (भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार भाग-1)

Jharkhand Board Class 11th Political Science Part 2 Political Theory (राजनीतिक-सिद्धान्त भाग-2)

JAC Board Class 11th Political Science Solutions in English Medium

JAC Board Class 11th Political Science Part 1 Indian Constitution at Work

  • Chapter 1 Constitution: Why and How?
  • Chapter 2 Rights in the Indian Constitution
  • Chapter 3 Election and Representation
  • Chapter 4 Executive
  • Chapter 5 Legislature
  • Chapter 6 Judiciary
  • Chapter 7 Federalism
  • Chapter 8 Local Governments
  • Chapter 9 Constitution as a Living Document
  • Chapter 10 The Philosophy of the Constitution

JAC Board Class 11th Political Science Part 2 Political Theory

  • Chapter 1 Political Theory: An Introduction
  • Chapter 2 Freedom
  • Chapter 3 Equality
  • Chapter 4 Social Justice
  • Chapter 5 Rights
  • Chapter 6 Citizenship
  • Chapter 7 Nationalism
  • Chapter 8 Secularism
  • Chapter 9 Peace
  • Chapter 10 Development

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी

→ “सांख्यिकी एक ऐसा विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध, संख्यात्मक आँकड़ों के संग्रह, उनके प्रस्तुतीकरण और उनसे निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया से हैं।”

→ “सांख्यिकीय आँकड़ों से अभिप्राय उन संख्यात्मक तथ्यों अथवा प्रेक्षणों है, जिनका संग्रह किसी पूर्व निर्धारित उद्देश्य के लिए किया जाता है।”
(i) प्राथमिक आँकड़े (Primary Data) : वे आँकड़े जो अन्वेषक द्वारा अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वयं प्रथम बार एकत्रित किए जाते हैं, प्राथमिक आँकड़ें कहलाते हैं।
(ii) द्वितीयक आँकड़े (Secondary Data) : वे आँकड़े जो मूल रूप से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी और उद्देश्य से एकत्रित किए जाते हैं, किन्तु अपने विश्लेषण के लिए अन्वेषक द्वारा प्रयुक्त होते हैं, द्वितीयक आँकड़े अथवा गौण आँकड़े कहलाते हैं।

→ “ऐसा समूह जिसमें आँकड़ों को विभिन्न श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। वर्ग कहलाता है।” उदाहरणार्थ 10 – 20, 20 – 30 अथवा 0 – 5, 5 – 10 आदि ।

→ “किसी भी वर्ग के प्रथमांक अथवा न्यूनतम राशि को सम्बन्धित वर्ग की निम्न सीमा कहते हैं।”
उदाहरणार्थ : 10 – 20 वर्ग में निम्न सीमा = 10
20 – 30 वर्ग में निम्न सीमा = 20

→ “किसी भी वर्ग के अंतिमांक अथवा उच्चतम राशि को उस वर्ग की उच्च सीमा कहते हैं।”
उदाहरणार्थ : 10 – 20 वर्ग में उच्च सीमा = 20
20 – 30 वर्ग में उच्च सीमा = 30

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी

→ “किसी भी वर्ग की उच्च एवं निम्न सीमा के अन्तर को उस वर्ग का वर्ग अन्तराल कहते हैं।”
वर्ग अन्तराल = वर्ग की उच्च सीमा – वर्ग की निम्न सीमा

→ “किसी भी वर्ग की उच्च सीमा एवं निम्न सीमा के मध्य मूल्य को उस वर्ग का वर्ग चिह्न अथवा मध्य बिन्दु कहते हैं।”
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी 1

→ “दिए गए आँकड़ों में आने वाले प्रत्येक आँकड़ो की कुल संख्या को उस आँकड़े की बारम्बारता कहते हैं।”

→ “किसी वर्ग विशेष की सीमा में आने वाले आँकड़ों की कुल संख्या को उस वर्ग की आवृत्ति कहते हैं।”

→ “यदि वर्गीकृत आँकड़ों को, प्रत्येक आँकड़े की बारम्बारता के साथ सारणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो इस प्रकार निर्मित सारणी को बारम्बारता सारणी कहते हैं।”

→ “यदि किसी वर्ग विशेष की बारम्बारता और उससे पूर्व के समस्त वर्गों की बारम्बारताओं का योग करें तो प्राप्त योगफल उस वर्ग की संचयी बारम्बारता कहलाता है।”

→ “वह सारणी जिससे प्रत्येक वर्ग की संचयी बारम्बारता प्रकट होती हो संचयी बारम्बारता सारणी कहलाती है।”

→ “कुल आँकड़ों की अधिकतम व न्यूनतम राशि के अन्तर को परिसर (Range) कहते हैं।”

→ “आँकड़ों के वर्गीकरण की मुख्यतः दो विधियाँ हैं :
(i) अपवर्जी विधि (Exclusive Method) : इस विधि में प्रत्येक वर्ग की उच्च सीमा, आगे वाले वर्ग अन्तराल की निम्न सीमा होती है।
उदाहरणार्थ: 0 – 10, 10 – 20, 20 – 30, 30 – 40 इस वर्गीकरण में किसी कक्षा के 0 से 40 प्राप्तांकों को अपवर्जी विधि द्वारा व्यक्त किया गया है।
(ii) समावेशी विधि (Inclusive Method) : इस विधि के अन्तर्गत किसी वर्ग की उच्च सीमा को अगले वर्ग की निम्न सीमा के रूप में समावेशित नहीं किया जाता है।
उदाहारणार्थ किसी कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा 0 उसे 40 तक प्राप्ताकों की समावेशी विधि है।
0 – 9, 10 – 19, 20 – 29, 30 – 39.

JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी

→ “वर्गीकृत आँकड़ों को एक सुव्यवस्थित ढंग से पंक्तियों एवं स्तम्भों में लिखने के रूप को सारणीयन कहते हैं।”

→ “जब आँकड़ो को सरल, सुन्दर तथा बोधगम्य बनाने के लिए उन्हें चित्रों द्वारा निरूपित किया जाता है, तो उसे आँकड़ों का चित्रों द्वारा निरूपण कहते हैं। ये मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं:
(i) दण्ड आलेख (Bar Graph): इसके द्वारा एकल अथवा सामूहिक सांख्यिकीय आँकड़ों को आयताकार दण्डों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।” जहाँ प्रत्येक दण्ड की लम्बाई उसके द्वारा प्रदर्शित किए जा रहे मान के अनुपात में रखी जाती है।
(ii) आयत चित्र (Histogram) आयताकार चित्रों द्वारा आवृत्ति वितरण का एक ग्राफीय निरूपण जिसमें चौड़ाई की दिशा में वर्ग अन्तराल और लम्बाई की दिशा में सम्बन्धित आवृत्ति को प्रदर्शित किया जाता है।
(iii) बारम्बारता बहुभुज (Frequency Polygon): आयत चित्र के प्रत्येक आयत के ऊपर की भुजाओं के मध्य बिन्दुओं को मुक्त हस्त रेखा द्वारा मिला दिया जाता है फिर प्रथम और अन्तिम आयतों के ऊपर की भुजाओं के मध्य बिन्दुओं को क्रमश: प्रथम और अन्तिम वर्ग अन्तरालों के आधार पर मध्य बिन्दुओं से मिला दिया जाता है। इस प्रकार बने बारम्बारता बहुभुज का क्षेत्रफल आयत चित्र के क्षेत्रफल के बराबर होता है।

→ केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप (Measures of Central Tendency) : “केन्द्रीय प्रवृत्ति उस माप को कहते हैं, जो दिए गए आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करता है।” केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापों से तात्पर्य औसत मान से होता है।”
(i) समान्तर माध्य (Mean): सांख्यिकीय आँकड़ों के औसत (Average) मान को समान्तर माध्य कहते हैं।
यदि दिए गए पद x1, x2, x3, x4, …….., xn हैं तो
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी 2
यदि आँकड़ों के साथ बारम्बारता भी दी गयी है तो
\(\bar{x}\) = \(\frac{\sum f_i x_i}{N}\)
(ii) माध्यिका (Median) : यदि दिए गए आँकड़े आरोही अथवा अवरोही क्रम में हैं तो
माध्यिका = \(\frac{N+1}{2}\)
यदि प्राप्त आँकड़ें सम संख्या हैं तो
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 14 सांख्यिकी 3
(iii) बहुलक (Mode) : किसी प्रेक्षण में सर्वाधिक आवृत्ति वाला वर्ग बहुलक वर्ग कहलाता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Important Questions and Answers.

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बहुचयनात्मक प्रश्न

1. मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर कब हुए थे?
(अ) फरवरी, 1993
(स) जून, 1992
(ब) फरवरी, 1992
(द) जुलाई, 1992
उत्तर:
(ब) फरवरी, 1992

2. मास्ट्रिस्ट संधि किस संगठन का आधार है
(अ) गैट
(ब) विश्व – व्यापार संगठन
(स) नाफ्टा
(द) यूरोपीय संघ
उत्तर:
(द) यूरोपीय संघ

3. यूरोपीय संघ के झंडे में सितारों की संख्या है
(अ) 15
(ब) 13
(स) 12
(द) 14
उत्तर:
(स) 12

4. देंग श्याओपंग ने ‘ओपेन डोर’ की नीति चलाई-
(अं) दिसंबर, 1978
(स) फरवरी 1947
(ब) जुलाई, 1949
(द) जून, 1947
उत्तर:
(अं) दिसंबर, 1978

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5. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब
(अं) 1949
(ब) 1950
(स) 1966
(द) 1951
उत्तर:
(स) 1966

6. यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव हुआ
(अ) जून, 1979
(ब.) मई, 2004
(स) अप्रैल, 1951
(द) जनवरी, 1973
उत्तर:
(अ) जून, 1979

7. आसियान की स्थापना किस वर्ष में हुई थी?
(अ) 1967
(ब) 1977
(स) 1966
(द) 1958
उत्तर:
(अ) 1967

8. चीन की साम्यवादी क्रांति कब हुई?
(अ) दिसम्बर, 1948
(ब) जनवरी, 1949
(स) अक्टूबर, 1949
(द) फरवरी, 1950
उत्तर:
(स) अक्टूबर, 1949

9. आसियान के झंडे का वृत्त किसका प्रतीक है?
(अ) प्रगति का
(ब) मित्रता का
(स) एकता का
(द) समृद्धि का
उत्तर:
(स) एकता का

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. ……………………………. में यूरोपीय संघ ने एक साझा संविधान बनाने की कोशिश की थी।
उत्तर:
2003

2. आसियान के प्रतीक चिन्ह में धान की ………………………… बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती है।
उत्तर:
दस

3. …………………………. का उद्देश्य मुख्य रूप से आर्थिक विकास को तेज करना था।
उत्तर:
आसियान

4. …………….. में आसियान क्षेत्रीय मंच ( ARF) की स्थापना की गई।
उत्तर:
1994

5. भारत ने 1991 से ………………….. और 2014 से ………………… नीति अपनायी।
उत्तर:
लुक ईस्ट, एक्ट ईस्ट

6. चीन ने …………………… में खेती का निजीकरण किया और ………………………… में उद्योगों का निजीकरण किया।
उत्तर:
1982, 1998

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जर्मनी का एकीकरण कब हुआ?
उत्तर:
अक्टूबर, 1990 में जर्मनी का एकीकरण हुआ।

प्रश्न 2.
यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर कब हुए?
उत्तर:
फरवरी, 1992 में यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 3.
ASEAN (आसियान) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एसियन नेशन्स।

प्रश्न 4.
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारे क्यों हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारे हैं क्योंकि बारह की संख्या को वहाँ पारम्परिक रूप से पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 5.
आसियान शैली किसे कहा जाता है?
उत्तर:
आसियान देशों की अनौपचारिक, टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल-मिलाप की नीति को आसियान शैली कहा जाता है।

प्रश्न 6.
चीन में साम्यवादी क्रांति किस वर्ष और किसके नेतृत्व में हुई?
उत्तर:
चीन में सन् 1949 में माओ के नेतृत्व में साम्यवादी क्रांति हुई।

प्रश्न 7.
चीन में ‘ओपेन डोर’ की नीति किसने और कब चलायी?
उत्तर:
चीन में ‘ओपेन डोर’ की नीति देंग श्याओपेंग ने 1978 के दिसम्बर में चलायी।

प्रश्न 8.
चीन ने खेती के निजीकरण को कब अपनाया?
उत्तर:
चीन में सन् 1982 में खेती के निजीकरण को अपनायां।

प्रश्न 9.
भारत और चीन के बीच किस वर्ष युद्ध लड़ा गया?
उत्तर:
सन् 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध लड़ा गया।

प्रश्न 10.
यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन कैसे ‘हुआ?
उत्तर:
यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

प्रश्न 11.
परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला देश कौनसा है?
उत्तर:
परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला एकमात्र देश जापान है।

प्रश्न 12.
यूरोपीय संघ के झंडे में कितने सितारे हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारे हैं।

प्रश्न 13.
जापान के किन शहरों पर परमाणु बम गिराए गए थे?
उत्तर:
हिरोशिमा और, नागासाकी शहरों में।

प्रश्न 14.
यूरोपीय संघ के कौनसे दो देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं?
उत्तर:
ब्रिटेन और  फ्रांस।

प्रश्न 15.
यूरोपीय संघ की स्थापना कब हुई? यूरोपीय संघ द्वारा प्रेरित किन्हीं दो प्रकार के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में हुई थी। यूरोपीय संघ द्वारा प्रेरित दो प्रभाव हैं। आर्थिक, राजनीतिक।

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प्रश्न 16.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
यूरोपीय देशों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना।

प्रश्न 17.
आसियान की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
आसियान के देशों का आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना।

प्रश्न 18.
भारत के उस पड़ोसी देश का नाम लिखिये जो आसियान का सदस्य है।
उत्तर:
म्यांमार

प्रश्न 19.
वर्तमान में आसियान के सदस्य देशों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
दस।

प्रश्न 20.
आसियान किस प्रकार का संगठन है?
उत्तर:
आसियान एक असैनिक आर्थिक संगठन है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोपीय संघ के झण्डे में बना हुआ सोने के रंग के सितारों का घेरा किस बात का प्रतीक है?
अथवा
यूरोपीय संघ के झंडे में 12 सितारों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झंडे में सोने के रंग के 12 सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की एकता और मेलमिलाप का प्रतीक है; क्योंकि 12 की संख्या को वहाँ पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 2.
मार्शल योजना क्या है?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त सहायता की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। यह योजना अमेरिकी विदेश मंत्री मार्शल के नाम से प्रसिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
अप्रेल, 1951 में पश्चिमी यूरोप के छः देशों – फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने पेरिस संधि पर हस्ताक्षर कर यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।

प्रश्न 4.
रोम संधि ( 1957 ) के द्वारा यूरोप की किन संस्थाओं का गठन हुआ?
उत्तर:
मार्च, 1957 में यूरोप के छः देशों ने रोम संधि के माध्यम से

  1. यूरोपीय आर्थिक समुदाय और
  2. यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय का गठन किया।

प्रश्न 5.
यूरोपीय संघ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में हुई। यूरोपीय संघ यूरोप के देशों का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसका आर्थिक, सैनिक, राजनैतिक व कूटनीतिक रूप में विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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प्रश्न 6.
यूरोपीय संघ के निर्माण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. यूरोपीय संघ का निर्माण यूरोप के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए किया गया।
  2. इसका निर्माण अमेरिका की आर्थिक शक्ति के मुकाबले के लिए किया गया।

प्रश्न 7.
यूरोपीय संघ के विस्तार के कोई दो चरण लिखें।
उत्तर:

  1. 1948 में यूरोपीय राज्यों ने आर्थिक पुनर्निर्माण हेतु यूरोपीय आर्थिक समुदाय का निर्माण किया।
  2. 18 अप्रेल, 1951 को यूरोपीय राज्यों ने यूरोपीय कोयला एवं इस्पात समुदाय की स्थापना की।

प्रश्न 8.
यूरोपीय कोयला एवं इस्पात समुदाय का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर:
इसका मुख्य कार्य सदस्य राष्ट्रों के कोयले एवं इस्पात के उत्पादन व वितरण पर नियंत्रण रखना तथा सदस्य राज्यों के कोयले व इस्पात के साधनों की एक सामान्य मण्डी बनाकर उनके उपयोग की व्यवस्था करना था।

प्रश्न 9.
आसियान की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
1967 में दक्षिण-पूर्व एशियायी क्षेत्र के 5 देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और थाइलैंड ने बैंकाक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान’ की स्थापना की।

प्रश्न 10.
आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य है। सदस्य देशों के सामाजिक, आर्थिक विकास में सहायता करना तथा उन्हें साझा बाजार देना।

प्रश्न 11.
आसियान के मुख्य स्तंभों के नाम लिखिये।
उत्तर:
2003 में आसियान ने तीन मुख्य स्तंभ बताये हैं।

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय
  2. आसियान आर्थिक समुदाय और
  3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक समुदाय।

प्रश्न 12.
आसियान सुरक्षा समुदाय का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
आसियान सुरक्षा समुदाय का मुख्य उद्देश्य है। क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाकर उन्हें बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास करना।

प्रश्न 13.
आसियान के दस देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:
आसियान के दस देश ये हैं।

  1. मलेशिया,
  2. सिंगापुर,
  3. इण्डोनेशिया,
  4. थाइलैंड,
  5. फिलीपींस,
  6. लाओस,
  7. कम्बोडिया,
  8. म्यांमार,
  9. वियतनाम और
  10. ब्रुनेई।

प्रश्न 14.
चीन में विदेशी व्यापार वृद्धि के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. चीन ने विदेशी व्यापार वृद्धि के लिए 1978 में ‘खुले द्वार’ की नीति की घोषणा की।
  2. विदेशी निवेश एवं व्यापार को आकर्षित करने के लिए उसने विशेष आर्थिक क्षेत्रों का निर्माण किया।

प्रश्न 15.
चीन की नई आर्थिक नीति की कोई दो असफलताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. नई आर्थिक नीति के सुधारों का लाभ चीन में सभी क्षेत्रों को नहीं मिल पाया है।
  2. नई आर्थिक नीति से चीन में बेरोजगारी की समस्या पैदा हुई है।

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प्रश्न 16.
आसियान के झण्डे की व्याख्या करें।
उत्तर:
आसियान के प्रतीक चिन्ह में धान की दस बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती हैं जो आपस में मित्रता और एकता के धागे से बंधे हैं। वृत्त आसियान की एकता का प्रतीक है

प्रश्न 17.
1978 से पहले एवं बाद में चीन की आर्थिक नीतियों में कोई दो अन्तर बताएँ।
उत्तर:

  1. चीन ने आर्थिक क्षेत्र में 1978 से पहले एकान्तवास की नीति अपनायी थी, जबकि 1978 के पश्चात् खुले द्वार की नीति अपनायी।
  2. 1978 से पहले कृषि राज्य नियंत्रित थी जबकि 1978 के बाद कृषि का निजीकरण कर दिया गया।

प्रश्न 18.
समेकित कीजिए।
(i) आसियान की स्थापना 1948
(ii) यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना 1992
(iii) यूरोपीय परिषद की स्थापना 1967
(iv) यूरोपीय संघ की स्थापना 1949
उत्तर:
(i) 1967
(ii) 1948
(iii) 1949
(iv) 1992

प्रश्न 19.
किस कारण से आज भारत और चीन के बीच संबंधों को ज्यादा मजबूत बनाने में मदद मिली है?
उत्तर:
परिवहन और संचार मार्गों की बढ़ोतरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और चीन के बीच सम्बन्धों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।

प्रश्न 20.
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को आसियान संगठन बनाने की पहल क्यों करनी पड़ी?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान एशिया का कुछ हिस्सा बार-बार यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद का शिकार हुआ तथा भारी राजनैतिक और आर्थिक कीमत चुकाई युद्ध समाप्त होने पर इसे राष्ट्र-निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसे शीतयुद्ध के दौर में किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबाव को भी झेलना पड़ा। टकरावों और भागमभाग की ऐसी स्थिति को दक्षिण-पूर्व एशिया संभालने की स्थिति में नहीं था।

बांडुंग सम्मेलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन वगैरह के माध्यम से एशिया और तीसरी दुनिया के देशों में एकता कायम करने के प्रयास अनौपचारिक स्तर पर सहयोग और मेलजोल कराने के मामले में कारगर नहीं हो रहे थे। इसी के चलते दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन (आसियान) बनाकर एक वैकल्पिक पहल की।

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प्रश्न 21.
आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर:
आसियान के सदस्य देशों ने 2003 तक कई समझौते किए जिनके द्वारा हर सदस्य देश ने शांति, निष्पक्षता, सहयोग, अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की। आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की स्थापना की गई।

प्रश्न 22.
भारत व चीन के मध्य अच्छे संबंध बनाने हेतु दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:
भारत व चीन के मध्य अच्छे संबंध बनाने हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. दोनों देशों की सरकारें, पारस्परिक बातचीत के द्वारा विवादों का हल निकालने का प्रयत्न करें।
  2. दोनों देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर समान दृष्टिकोण अपनाकर सहयोग को बढ़ावा दें।

प्रश्न 23.
यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब व किन उद्देश्यों को लेकर की गई? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यूरोप के देशों में मेल-मिलाप तथा यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के उद्देश्यों को लेकर मार्शल योजना के तहत सन् 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई। इसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद दी गई।

प्रश्न 24.
यूरोपीय संघ की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं।

  1. यूरोपीय संघ की साझी मुद्रा यूरो, स्थापना दिवस, गान तथा झण्डा है।
  2. यूरोपीय संघ आर्थिक-राजनैतिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है।
  3. इसके दो सदस्य ब्रिटेन और फ्रांस- सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं।
  4. इसका आर्थिक, राजनैतिक, सैनिक तथा कूटनीतिक वैश्विक प्रभाव बहुत अधिक है।

प्रश्न 25.
यूरोपीय संघ के राजनैतिक स्वरूप पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ का राजनैतिक स्वरूप – एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है। यथा।

  1. अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है।
  2. यद्यपि यूरोपीय संघ की एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झंडा, गानं, स्थापना – दिवस और अपनी मुद्रायूरो है।
  3. अन्य देशों से सम्बन्धों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है।
  4.  नये सदस्यों को शामिल करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की। नये सदस्य मुख्यतः भूतपूर्व सोवियत खेमे के थे।
  5.  सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है।

प्रश्न 26.
यूरोपीय संघ के देशों में पाये जाने वाले मतभेदों को बताइये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ के देशों के मध्य पाये जाने वाले प्रमुख मतभेद ये हैं।

  1. यूरोपीय देशों की विदेश एवं रक्षा नीति में परस्पर मतभेद विद्यमान हैं।
  2. इराक के सम्बन्ध में यूरोपीय देशों में मतभेद हैं।
  3. यूरोप के कुछ देशों में यूरो मुद्रा को लागू करने के सम्बन्ध में मतभेद हैं।

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प्रश्न 27.
1962 के युद्ध का भारत-चीन सम्बन्धों पर क्या असर हुआ?
उत्तर:
1962 के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत-चीन सम्बन्धों पर इसका दीर्घकालिक असर हुआ। 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनैतिक संबंध समाप्त हो गए।

प्रश्न 28.
आसियान की स्थापना कब हुई? इसके सदस्य देशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आसियान की स्थापना: 1967 में दक्षिण – पूर्व एशिया के पांच देशों ने बैंकाक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान’ की स्थापना की। ये देश थे – इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और थाइलैंड ब्रूनई दारुसलेम इस समूह में 1984 में शामिल हो गया। उसके बाद 28 जुलाई, 1995 को वितयनाम, 23 जुलाई, 1997 को लाओस और म्यांमार तथा 30 अप्रेल, 1999 को कम्बोडिया इसमें शामिल हो गये। इस प्रकार वर्तमान में आसियान के 10 सदस्य हैं। ये है। इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रूनई दारुसलेम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कम्बोडिया।

प्रश्न 29.
आसियान के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आसियान के प्रमुख उद्देश्य ये हैं।

  1. दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक विकास को तेज करना।
  2. सदस्य राष्ट्रों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्रों में परस्पर सहायता करना।
  3. सामूहिक सहयोग तथा बातचीत से साझी समस्याओं का हल ढूँढ़ना।
  4. इस क्षेत्र में साझा बाजार तैयार करना।
  5. क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना।

प्रश्न 30.
आसियान के मौलिक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आसियान के मौलिक सिद्धान्त – सन् 1976 में बाली शिखर सम्मेलन में एक संधि के द्वारा आसियान ने निम्नलिखित सिद्धान्तों को अंगीकृत किया है। सम्मान।

  1. सभी राष्ट्रों की स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता, समानता, राजक्षेत्रीय संपूर्णता और राष्ट्रीय पहचान के प्रति पारस्परिक
  2. बाह्य हस्तक्षेप, अवपीड़न से मुक्ति तथा अपने राष्ट्रीय अस्तित्व के संचालन का प्रत्येक राष्ट्र का अधिकार।
  3. एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप।
  4. शांतिपूर्ण तरीकों से मतभेदों या झगड़ों का समाधान।
  5. धमकी या बल प्रयोग का परित्याग।
  6. आपस में कारगर सहयोग।

प्रश्न 31.
मास्ट्रिस्ट संधि पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मास्ट्रिस्टं संधि-यूरोपीय आर्थिक समुदाय के सभी 12 सदस्यों को बैठक नीदरलैंड के नगर मास्ट्रिस्ट में 9 व 10 दिसम्बर को हुई थी, 1991 को 12 सदस्यीय यूरोपीय आर्थिक समुदाय ने यूरोपीय मौद्रिक संघ के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे ‘मास्ट्रिस्ट संधि’ कहा जाता है। फरवरी, 1992 में यूरोपीय संघ के गठन के लिए सभी देशों ने मास्ट्रिस्ट संधि पर हस्ताक्षर किये। मास्ट्रिस्ट संधि यूरोप के एकीकरण के मार्ग में एक मील का पत्थर है। इस संधि ने पूरे यूरोप के लिए एक अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार, एक नागरिकता, एक संसद, एक सरकार, एक सुरक्षा व्यवस्था, एक विदेश नीति का मार्ग प्रशस्त किया।

प्रश्न 32.
यूरोपीय संघ के वर्तमान में कितने राष्ट्र सदस्य हैं? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
1 जुलाई, 2013 को क्रोएशिया द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण करने के पश्चात् यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों की कुल संख्या 28 हो गई है। ये राष्ट्र हैं।
आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, नीदरलैंड, जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन,  फिनलैंड, आस्ट्रिया, इटली, माल्टा, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैण्ड, चेकरिपब्लिक, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया,  हंगरी, ग्रीस, साइप्रस, बुल्गारिया, रूमानिया, क्रोएशियां।

प्रश्न 33.
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् यूरोप के समक्ष आने वाली प्रमुख समस्याओं को लिखिये
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् यूरोप के समक्ष निम्नलिखित प्रमुख समस्यायें आयीं:

  1. यूरोपीय देशों के समक्ष द्वितीय विश्व युद्ध में तहस-नहस हुई अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की समस्या थी।
  2. यूरोपीय देशों के समक्ष यूरोपीय नागरिकों की नष्ट हुई मान्यताओं और मूल्यों को पुनः बहाल करने की समस्या थी।
  3. इनके समक्ष विश्व स्तर पर अपने राजनैतिक और आर्थिक सम्बन्धों को स्थापित करने की समस्या थी।
  4. यूरोपीय देशों के बीच पारस्परिक शत्रुता विद्यमान थी। इस शत्रुता को छोड़कर परस्पर सहयोग करने की और बढ़ने की समस्या थी।

प्रश्न 34.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
र-यूरोपीय आर्थिक समुदाय या यूरोपीय साझा बाजार: यूरोपीय आर्थिक समुदाय या यूरोपीय साझा बाजार का जन्म 25 मार्च, 1957 को रोम की संधि के तहत 1 जनवरी, 1958 को हुआ था । इस पर हस्ताक्षर करने वाले छः राष्ट्र थे।

  1. फ्रांस,
  2. जर्मनी
  3. इटली
  4. बेल्जियम
  5. नीदरलैंड और
  6. लक्जमबर्ग।

वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 28 हो गई है।
उद्देश्य: यूरोपीय साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों में उत्तरोत्तर सामञ्जस्य स्थापित करके समुदाय के क्रमबद्ध आर्थिक विकास की उन्नति करना, सदस्य देशों में निकटता स्थापित कराना है। यूरोपीय साझा बाजार के साथ ही यूरोपीय एकीकरण की नींव पड़ी और यूरोपीय आर्थिक समुदाय ही 1992 में यूरोपीय संघ में बदल गया है।

प्रश्न 35.
विश्व राजनीति में यूरोपीय संघ की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

  1. यूरोपीय संघ अब काफी हद तक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है।
  2. अन्य देशों से संबंधों के मामले में यूरोपीय संघ ने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति बना ली है। अब यह एक सार्थक राजनैतिक इकाई के रूप में विश्व व्यापार संगठन में अपनी भूमिका निभा रहा है।
  3. आज यूरो मुद्रा अमरीकी डालर को चुनौती दे रही है। यूरोपीय संघ विश्व के सबसे बड़े व्यापार ब्लॉक के रूप में उभरकर इस क्षेत्र में अमेरिका के लिए समस्या पैदा कर रहा है।
  4. यूरोपीय संघ के कई देश सुरक्षा परिषद् के स्थायी और अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। इसके चलते यह अमरीका समेत सभी देशों की नीतियों को प्रभावित करता है।

प्रश्न 36.
यूरो, अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा कैसे बन सकता है?
उत्तर:
निम्न रूप में यूरो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकता है।

  1. यूरोपीय संघ के सदस्यों की संयुक्त मुद्रा यूरो का प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है और यह डॉलर को चुनौती प्रस्तुत करता नजर आ रहा है क्योंकि विश्व व्यापार में यूरोपीय संघ की भूमिका अमेरिका से तिगुनी है।
  2. यूरोपीय संघ राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक रूप से भी अधिक प्रभावी है। इसे अमेरिका धमका नहीं सकता।
  3. यूरोपीय संघ की आर्थिक शक्ति का प्रभाव अपने पड़ौसी देशों के साथ-साथ एशिया और अफ्रीका के राष्ट्रों पर भी है।
  4. यूरोपीय संघ की विश्व की एक विशाल अर्थव्यवस्था है जो सकल घरेलू उत्पादन में अमेरिका से भी अधिक

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प्रश्न 37.
यूरोपीय संघ ने अपना राजनीतिक तथा कूटनीतिक प्रभाव किस प्रकार क्रियान्वित किया है? उत्तर – यूरोपीय संघ ने निम्न रूप में अपना राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव क्रियान्वित किया है।

  1. यूरोपीय संघ विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। विश्व व्यापार में इसकी सहभागिता अमेरिका से तिगुनी है।
  2. यूरोपीय संघ के दो सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं तथा कई देश इसके अस्थायी सदस्य हैं। इसीलिये यह अमरीका सहित सभी देशों की नीतियों को प्रभावित कर रहा है।
  3. सैन्य शक्ति के दृष्टिकोण से इसके पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के पश्चात् सर्वाधिक है। अंतरिक्ष विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इसका स्थान दूसरा है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में यह राजनीतिक तथा सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है।

प्रश्न 38.
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच समानताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अमेरिका तथा यूरोपीय संघ में समानताएँ-

  1. अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाए हुए हैं।
  2. दोनों ही वैश्वीकरण, उदारवादी तथा पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं।
  3. अमेरिका सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है तो यूरोपीय संघ के दो सदस्य ब्रिटेन और फ्रांस भी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं।
  4. अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ही परमाणु हथियारों से सम्पन्न हैं।
  5. दोनों की अपनी-अपनी मुद्राएँ हैं। अमेरिका की मुद्रा डालर है तो यूरोपीय संघ की मुद्रा यूरो है।

प्रश्न 39.
दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने आसियान के निर्माण की पहल क्यों की?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने निम्नलिखित कारणों से आसियान के निर्माण की पहल की

  1. दूसरे विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान, दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद के शिकार हुए तथा भारी राजनैतिक और आर्थिक कीमत चुकाई।
  2. युद्ध के बाद इन्हें राष्ट्र निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  3. शीत युद्ध काल में इन्हें किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा था।
  4. परस्पर टकरावों की स्थिति में ये देश अपने आपको संभालने की स्थिति में नहीं थे।
  5. गुट निरपेक्ष आंदोलन तीसरी दुनिया के देशों में सहयोग और मेलजोल कराने में सफल नहीं हो रहे थे।

प्रश्न 40.
“विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।” कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
अथवा
‘आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है।” कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
अथवा
आसियान की प्रासंगिकता पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
आसियान की प्रासंगिकता या महत्त्व:

  1. आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। यह टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति पर बल देता है।
  2. इसने पूर्व: एशियायी सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 से नियमित रूप से वार्षिक बैठक आयोजित की है। बातचीत की नीति के तहत ही इसने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया है और पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।
  3. आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति ने चीन और भारत के साथ व्यापार और निवेश के मामले में अपनी प्रासंगिकता को स्पष्ट किया है।
  4. यह एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियायी देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 41.
आर्थिक शक्ति के रूप में चीन के उदय को किस तरह देखा जा रहा है?
उत्तर:
1978 के बाद से जारी चीन की आर्थिक सफलता को एक महाशक्ति के रूप में इसके उभरने के रूप में देखा जा रहा है। यथा

  1. आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे ज्यादा तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और यह माना जाता है कि इस रफ्तार से चलते हुए 2040 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमरीका से भी आगे निकल जाएगा।
  2. आर्थिक स्तर पर अपने पड़ोसी देशों से जुड़ाव के चलते चीन पूर्व एशिया के विकास का इंजन जैसा बना हुआ है और इस कारण क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है।
  3. इसकी विशाल आबादी, बड़ा भू-भाग, संसाधन, क्षेत्रीय अवस्थिति, सैन्य शक्ति और राजनैतिक प्रभाव इस तेज आर्थिक वृद्धि के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते हैं।

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प्रश्न 42.
1970 के दशक में चीनी नेतृत्व ने किन कारणों से आधुनिकीकरण और खुले द्वार की नीति को अपनाया? ये थीं-
उत्तर:
1970 तक आते-आते चीन में राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था की कमियाँ सामने आ गयीं। कुछ प्रमुख कमियाँ

  1. खेती की पैदावार उद्योगों को पूरी जरूरत लायक अधिशेष नहीं दे पाती थी। इससे औद्योगिक उत्पादन में गतिरोध आ गया था। यह पर्याप्त तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा था।
  2. आर्थिक एकांतवास और राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था के कारण विदेशी निवेश और विदेशी व्यापार न के बराबर था।
  3. चीन की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

प्रश्न 43.
1970 के दशक में चीनी नेतृत्व ने कौनसे बड़े नीतिगत निर्णय लिये?
उत्तर:
चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिये। ये थे

  1. चीन ने 1972 में अमरीका से सम्बन्ध बढ़ाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकान्तवास को खत्म किया।
  2. सन् 1973 में चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे।
  3. 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए।

प्रश्न 44.
बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने क्या तरीका अपनाया?
उत्तर:
बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोलने का तरीका अपनाया। यथा:

  1. सन् 1978 में चीन ने आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति की घोषणा की तथा विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता प्राप्त करने पर बल दिया गया।
  2. 1982 में चीन ने खेती का निजीकरण किया।
  3. 1998 में उसने उद्योगों का निजीकरण किया।
  4. चीन ने व्यापार सम्बन्धी अवरोधों को सिर्फ ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ के लिए ही हटाया है, जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं।

प्रश्न 45.
भारत-चीन के सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले कोई चार मुद्दे लिखिये।
उत्तर:
भारत-चीन सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।

  1. सीमा विवाद: भारत-चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है । यह विवाद मैकमोहन रेखा, अरुणाचल प्रदेश के एक भाग तवांग तथा अक्साई चिन के क्षेत्र को लेकर है।
  2. पाक को परमाणु सहायता: चीन गोपनीय तरीके से पाकिस्तान को परमाणु ऊर्जा एवं तकनीक प्रदान कर रहा है। इससे चीन के प्रति भारत में खिन्नता है।
  3. हिन्द महासागर में पैठ: चीन हिन्द महासागर में अपनी पैठ जमाना चाहता है । इस हेतु उसने म्यांमार से कोको द्वीप लिया है तथा पाकिस्तान में कराची के पास ग्वादर का बन्दरगाह बना रहा है।
  4. भारत विरोधी रवैया: चीन भारत की परमाणु नीति की आलोचना करता है और सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोधी है।

प्रश्न 46.
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों में सुधार हेतु सुझाव:

  1. सांस्कृतिक सम्बन्धों में सुदृढ़ता लाना: चीन और भारत दोनों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों इसके लिए भाषा और साहित्य का आदान-प्रदान एवं अध्ययन किया जाये।
  2. नेताओं का आवागमन: दोनों देशों के प्रमुख नेता परस्पर एक-दूसरे का भ्रमण करें, अपने विचारों का आदान-प्रदान कर परस्पर सहयोग एवं सद्भाव की भावना को विकसित करें।
  3. व्यापारिक सम्बन्धों में बढ़ावा: दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्धों में निरन्तर विस्तार किया जाना चाहिए।
  4. पर्यावरण सुरक्षा पर समान दृष्टिकोण: दोनों ही देश विश्व सम्मेलनों में पर्यावरण सुरक्षा के सम्बन्ध में समानं दृष्टिकोण अपना कर परस्पर एकता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  5. बातचीत द्वारा विवादों का समाधान: दोनों देश अपने विवादों का समाधान निरन्तर बातचीत द्वारा करने का प्रयास करते रहें

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प्रश्न 47.
नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन आये?
उत्तर:
नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को अपनी जड़ता से उबरने में मदद मिली। यथा

  1. कृषि के निजीकरण के कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीणों की आय में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई। इससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी।
  2. उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  3. व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. चीन अब पूरे विश्व में विदेशी निवेशी के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा है। उसके पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार हो गया है और इसके दम पर वह दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।

प्रश्न 48.
सत्ता के उभरते हुए वैकल्पिक केन्द्रों द्वारा विभिन्न देशों में समृद्धशाली अर्थव्यवस्थाओं का रूप देने में निभाई गई भूमिका की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
विश्व राजनीति में एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था के शुरू होने पर राजनीति तथा आर्थिक सत्ता के वैकल्पिक केन्द्रों ने कुछ सीमा तक अमरीका के प्रभुत्व को सीमित किया है। यथा है।

  1. यूरोप में यूरोपीय संघ तथा एशिया में आसियान का प्रादुर्भाव एक समृद्धशाली अर्थव्यवस्थाओं के रूप में हुआ
  2. यूरोपीय संघ और आसियान दोनों ने ही अपने-अपने क्षेत्रों में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों तथा कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान तलाशा है तथा अपने-अपने क्षेत्रों में शांतिपूर्ण एवं सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित की है।
  3. यूरोपीय संघ और आसियान के अतिरिक्त चीन के आर्थिक उभार ने भी विश्व राजनीति पर प्रभावी प्रभाव डाला है।

प्रश्न 49.
नयी अर्थव्यवस्था को अपनाने से चीन में कौन-कौन सी समस्यायें उभरी हैं?
उत्तर:
नयी अर्थव्यवस्था को अपनाने से चीन में निम्न समस्यायें उभरी हैं। मिला है।

  1. चीन में आर्थिक सुधारों का लाभ प्रत्येक व्यक्ति को नहीं मिला है। इन सुधारों का लाभ कुछ ही वर्गों को
  2. सुधारों के कारण चीन में बेरोजगारी बढ़ी है और 10 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में हैं।
  3. नयी अर्थव्यवस्था में पर्यावरण के नुकसान और भ्रष्टाचार के बढ़ने जैसे परिणाम भी सामने आये हैं
  4. गांव और शहर के तथा तटीय और मुख्य भूमि पर रहने वाले लोगों के बीच आर्थिक फासला बढ़ता जा रहा

प्रश्न 50.
वैश्विक स्तर पर चीन के आर्थिक प्रभाव को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्विक स्तर पर चीन का आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित है।

  1. चीन की अर्थव्यवस्था का बाहरी दुनिया से जुड़ाव और पारस्परिक निर्भरता ने अब यह स्थिति बना दी है कि अपने व्यावसायिक साझीदारों पर चीन का जबरदस्त प्रभाव बन चुका है और यही कारण है कि जापान, आसियान, अमरीका और रूस — सभी व्यापार के लिए चीन से अपने विवादों को भुला चुके हैं।
  2. 1997 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है।
  3. लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की इसकी नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

प्रश्न 51.
यूरोपीय संघ अमरीका और चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौंस के साथ बात करता है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत ज्यादा है। 2016 में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 17000 अरब डॉलर से ज्यादा था जो अमरीका के ही लगभग है। इसकी मुद्रा यूरो अमरीका डालर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमेरिका से तीन गुनी ज्यादा है औरइसी के कारण यह अमरीका ओर चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौंस के साथ बात करता है।

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प्रश्न 52.
“हान नदी पर चमत्कार” किसे कहा जाता है?
उत्तर:
1 – द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात कोरियाई प्रायद्वीप को दक्षिण और उत्तरी कोरिया में विभाजित किया गया। 1950-53 के बीच कोरियाई युद्ध और शीतयुद्ध काल की गतिशीलता ने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंद्विता को तेज कर दिया। 17 सितंबर को दोनों कोरिया संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बने। 1960 से 1980 के दशक के बीच इसका आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से विकास हुआ, जिसे ‘हान नदी पर चमत्कार’ की संज्ञा दी गई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के प्रयासों के आर्थिक तथा राजनैतिक प्रयासों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप का आर्थिक पुनरुद्धार और एकीकरण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के आर्थिक-राजनैतिक प्रयास निम्नलिखित रहे:

  1. शीत युद्ध: शीत युद्ध के दौर में पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप के देश अपने-अपने खेमों में एक-दूसरे के नजदीक आए।
  2. मार्शल योजना-1947: इस योजना के तहत अमरीका ने पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद की।
  3. नाटो: अमेरिका ने नाटो के तहत पश्चिमी यूरोप में एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया।
  4. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन: 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन के माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक- दूसरे की मदद शुरू की।
  5. यूरोपीय परिषद् 5 मई, 1949 को यूरोपीय परिषद् की स्थापना हुई। जिसके तहत आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए अपनी सामान्य विरासत के आदर्शों और सिद्धान्तों में एकता लाने का प्रयास किया गया।
  6. यूरोपीय कोयला तथा इस्पात समुदाय: 18 अप्रेल, 1951 को पश्चिमी यूरोप के छः देशों ने यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।
  7. यूरोपीय अणु-शक्ति समुदाय तथा यूरोपीय आर्थिक समुदाय – 25 मार्च, 1957 को यूरोपीय आर्थिक समुदाय ( यूरोपीय साझा बाजार) और यूरोपीय अणु शक्ति समुदाय का गठन किया गया।
  8. मास्ट्रिस्ट संधि ( 1991 ): इस संधि ने यूरोप के लिए एक अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार, एक नागरिकता, एक संसद, एक सरकार, एक सुरक्षा व्यवस्था तथा एक विदेश नीति का मार्ग प्रशस्त किया।
  9. यूरोपीय संघ ( 1992 ): 1992 में यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया। 1 जनवरी, 1999 को यूरोपीय संघ की साझा यूरो मुद्रा को औपचारिक रूप से स्वीकृति दे दी।

प्रश्न 2.
यूरोपीय संघ की संस्थाओं या अंगों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की संस्थाएँ ( अंग ) यूरोपीय संघ सात प्रधान संस्थाओं ( अंगों ) के माध्यम से कार्य करता है। ये निम्नलिखित हैं।

  1. यूरोपियन संघीय परिषद्: यह मुख्य निर्णयकारी संस्था है। इसमें 15 सदस्य देशों के मंत्री शामिल होते हैं। यह परिषद् संघीय कानूनों का निर्माण करती है।
  2. यूरोपीय संसद: 2003 में यूरोपीय संसद के सदस्यों की संख्या 626 थी। ये सदस्य सीधे 5 साल के लिए चुने जाते हैं। यह यूरोपीय संघ के लिए राजनीतिक मंच का कार्य पूरा करती है।
  3. यूरोपीय आयोग: यूरोपीय आयोग के तहत सभी अधिशासियों का विलय कर दिया गया है। इसे यूरोपीय संघ की कार्यकारी संस्था का स्थान प्राप्त है। इसके सदस्यों की संख्या 30 है। इसका कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
  4. न्यायालय: यूरोपीय संघ के दो न्यायालय हैं।
    • (अ) न्याय का न्यायालय और
    • (ब) उपाय का न्यायालय। दोनों में 15-15 न्यायाधीश होते हैं। इनके न्यायाधीशों की नियुक्ति सदस्य राज्यों की आपसी सहमति से की जाती है। इनका कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
  5. लेखा परीक्षकों का न्यायालय-यूरोपीय संघ में लेखा-परीक्षकों का एक न्यायालय है जिसमें 15 सदस्य होते हैं। इसका कार्य यह देखना है कि संघ का आय तथा व्यय कानून के अनुसार हो।
  6. आर्थिक व सामाजिक समिति: यह एक सलाहकार संस्था है। इसमें 222 सदस्य होते हैं। यह समिति नौकरी देने वाले व्यापार संघों तथा उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करती है।
  7. यूरोपीय निवेश बैंक: विभिन्न प्रोजेक्टों को धन देना, समुदाय के हितों की रक्षा तथा साझे बाजार के संतुलित विकास के लिए कार्य करना इस बैंक के मुख्य उद्देश्य हैं।

प्रश्न 3.
माओ युग के पश्चात् चीन में अपनायी गई नयी आर्थिक नीतियों, उसके कारणों तथा परिणामों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
माओ के पश्चात् नवीन आर्थिक नीतियाँ अपनाने के कारण – 1950-60 के दशक में चीन अपना उतना आर्थिक विकास नहीं कर पा रहा था, जितना वह चाह रहा था; क्योंकि-

  1. अर्थव्यवस्था की विकास दर 5-6 फीसदी थी, लेकिन जनसंख्या में 2-3 फीसदी की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर पर पानी फेर रही थी और बढ़ती आबादी विकास के लाभ से वंचित रह जा रही थी।
  2. खेती की पैदावार उद्योगों की पूरी जरूरत लायक अधिशेष नहीं दे पा रही थी।
  3. इसका औद्योगिक उत्पादन तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

माओ युग के पश्चात् चीन की नयी आर्थिक नीतियाँ: 1970 के दशक में आर्थिक संकट से उबरने के लिये अमरीका से संबंध बढ़ाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकान्तवास को खत्म किया; कृषि, उद्योग, सेना तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण का रास्ता अपनाया; आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति अपनायी और खेती तथा उद्योगों का निजीकरण किया।

नयी आर्थिक नीतियों के लाभकारी परिणाम: नयी आर्थिक नीतियों के निम्न परिणाम निकले

  1. कृषि-उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई तथा ग्रामीण उद्योगों की तादाद बड़ी तेजी से
  2. उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  3. विदेश – व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. अब चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा।
  5. लेकिन इससे चीन में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तथा गरीबी- अमीरी की खाई भी बढ़ी है।

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प्रश्न 4.
आसियान के संगठन तथा उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
दक्षिण – पूर्वी एशियायी राष्ट्रों का संघ – आसियान आसियान की स्थापना 8 अगस्त, 1967 को बैंकाक में 5 मौलिक सदस्यों :

  1. इंडोनेशिया
  2. थाइलैंड
  3. फिलिपींस,
  4. मलेशिया और
  5. सिंगापुर द्वारा की गई। बाद में 1984 में
  6. ब्रूनई दारुस्सलेम, 1995 में
  7. वियतनाम, 1997 में
  8. लाओस और
  9. म्यांमार तथा 1999 में
  10. कम्बोडिया इसमें शामिल हो गये। इस प्रकार आसियान में वर्तमान में 10 सदस्य देश हैं। इसका कार्यालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है और उसका अध्यक्ष महासचिव होता है।

आसियान की प्रमुख संस्थाएँ ये हैं।

  1. विदेश मंत्रियों के सम्मेलन
  2. सचिवालय
  3. आसियान सुरक्षा समुदाय
  4. आसियान क्षेत्रीय सुरक्षा मंच
  5. आसियान आर्थिक समुदाय आसियान की संस्थाएँ
  6. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय।

आसियान के उद्देश्य – आसियान निर्माण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आसियान क्षेत्र में आर्थिक प्रगति को तेज करना तथा उसके आर्थिक स्थायित्व को बनाए रखना।
  2. सदस्य राष्ट्रों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में परस्पर सहायता करना।
  3. सामूहिक सहयोग से साझी समस्याओं का हल ढूँढ़ना।
  4. साझा बाजार तैयार करना तथा सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना।
  5. कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र के कायदों पर आधारित क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना।

प्रश्न 5.
आसियान के कार्य, भूमिका एवं उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
उत्तर:
आसियान के कार्य, भूमिका तथा उपलब्धियाँ आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। आसियान टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अपनाये हुए है। अनौपचारिक, टकराव रहितं और सहयोगात्मक मेल-मिलाप की आसियान शैली से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया है, पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।

आसियान की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार रही हैं।

  1. राजनैतिक सुरक्षा व सहयोग: आसियान सुरक्षा समुदाय तथा आसियान क्षेत्रीय सुरक्षा मंच ने मैत्री और सहयोग संधि, दक्षिण चीन सागर में पक्षकार देशों के आचार पर घोषणा, दक्षिण-पूर्व एशिया नाभिकीय शस्त्र मुक्त क्षेत्र · आयोग आदि के द्वारा सदस्य देशों के बीच सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखने के लिए सहकारी ढांचे के निर्माण के प्रयास किये हैं।
  2. आर्थिक सहयोग के प्रयत्न: आर्थिक सहयोग की दिशा में आसियान ने ‘आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र’ तथा ‘आसियान आर्थिक समुदाय’ का गठन कर चीन तथा दक्षिण कोरिया के साथ मुक्त व्यापार सम्बन्धी मसौदे पर हस्ताक्षर किये हैं तथा अन्य देशों के साथ इस ओर प्रयत्न जारी है।
  3. सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भूमिका: आसियान ने सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
  4. एशियायी समुदाय के गठन के मार्ग को प्रशस्त करना: एशियायी समुदाय के गठन की दिशा में आसियान प्रयासरत है।
  5.  एक राजनैतिक मंच के रूप में: आसियान एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियायी देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 6.
भारत-चीन के बीच संघर्ष के मुद्दों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत-चीन के संघर्ष के मुद्दे चीन की स्वतंत्रता- 1949 के बाद से कुछ समय के लिए दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे। कुछ समय के लिए ‘हिन्दी – चीनी भाई-भाई’ का नारा भी लोकप्रिय हुआ किन्तु निम्न मुद्दों के कारण दोनों देशों के बीच संघर्ष व कटुता पैदा हो गयी।

1. तिब्बत का प्रश्न :1949 से पूर्व तिब्बत नाममात्र के लिए चीन के अधीन था और आन्तरिक तथा बाह्य मामलों में पूर्णतः स्वतंत्र था। भारत के साथ तिब्बत के घनिष्ठ व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। 1950 में चीन ने तिब्बत को हड़पने की प्रक्रिया चालू कर दी तथा 1954 में चीन की सरकार ने तिब्बत पर अपना सम्पूर्ण अधिकार जमा लिया। तिब्बतियों ने चीन की नीति का विरोध किया और दलाईलामा ने भारत में आकर शरण ली। चीन ने शरण दिये जाने की भारत की कार्यवाही को अपने प्रति शत्रुता की संज्ञा दी। दलाईलामा की भारत में उपस्थिति वर्तमान में भी चीन के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है।

2. मैकमोहन रेखा तथा सीमा विवाद:
भारत के साथ सीमा विवाद एक ऐतिहासिक देन है। भारत मैकमोहन रेखा को दोनों के बीच सीमा रेखा मानता है, लेकिन चीन इसे स्वीकार नहीं करता है। फलतः वह भारतीय भू-भाग में घुसपैठ करता रहता है। सन् 1962 में भारत और चीन दोनों देश अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई-चिन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते लड़ पड़े । 1962 के भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी तथा भारत का काफी भू-भाग उसने अपने कब्जे में ले लिया। 1962 से लेकर 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त रहे। 1981 के दशक के बाद दोनों देशों के बीच सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं का सिलसिला जारी है।

3. सिक्किम का भारत में विलय:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सन् 1975 में सिक्किम को भारत में मिलाकर उसे देश का 22वां राज्य घोषित कर दिया। चीन ने इसकी आलोचना की तथा उसके द्वारा प्रदर्शित मानचित्रों में सिक्किम को भारत के हिस्से के रूप में नहीं दर्शाया गया। लेकिन वर्ष 2005 में चीन ने सिक्किम को भारतीय भू-भाग में शामिल कर इसे मान्यता दे दी है और दोनों के मध्य यह विवाद समाप्त हो गया है।

4. भारत के परमाणु परीक्षण पर चीन का विरोध:
मई, 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किये जाने पर चीन ने अमेरिका के साथ मिलकर भारत की निंदा की। चीन ने भारत पर यह आरोप लगाया कि इससे दक्षिण एशिया में संजीव पास बुक्स परमाणु होड़ शुरू हो जाएगी। वह एक सुसंगठित अभियान चलाकर भारत पर एन. पी. टी. पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालता रहा । ऐसी स्थिति में दोनों देशों के मध्य कड़वाहट होना स्वाभाविक था।

5. चीन-पाकिस्तान के बीच बढ़ती निकटता:
पाकिस्तान ने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करने एवं मिसाइलों के निर्माण में चीन की अहम भूमिका रही है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है तथा पाकिस्तान को सैन्य सहयोग दे रहा है। ये सभी तथ्य भारत के मन में चीन के प्रति संदेह पैदा करते हैं।

6. अन्य मुद्दे – भारत – चीन के कटुता के अन्य मुद्दे ये हैं-

  1. चीन नेपाल को भारत से अलग कर वहाँ अपने सैनिक अड्डे बनाने के प्रयास कर रहा है।
  2. वह समय-समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ करता रहता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 7.
वैकल्पिक शक्ति केन्द्र के रूप में जापान प्रभावकारी है। तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैकल्पिक शक्ति केन्द्र के रूप में जापान अत्यंत प्रभावकारी है इस बात का अनुमान निम्न तथ्यों से लगाया जा सकता है।

  1. सोनी, पैनासोनिक, कैनन, सुजुकी, होंडा, ट्योटा और माज्दा आदि प्रसिद्ध ब्रांड जापान के हैं। इनके नाम उच्च प्रौद्योगिकी के उत्पाद बनाने के लिए मशहूर हैं।
  2. जापान के पास प्राकृतिक संसाधन कम हैं और वह ज्यादातर कच्चे माल का आयात करता है। इसके बावजूद दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान ने बड़ी तेजी से प्रगति की।
  3. जापान 1964 में आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OCED) का सदस्य बन गया। 2017 में जापान की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
  4. एशिया के देशों में अकेला जापान ही समूह -7 के देशों में शामिल है। आबादी के लिहाज से विश्व में जापान ग्यारहवें स्थान पर है।
  5. परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला जापान इकलौता देश है। जापान संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में अंशदान करने के लिहाज से जापान दूसरा सबसे बड़ा देश है।
  6. 1951 से जापान का अमरीका के साथ सुरक्षा – गठबंधन है। जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार- “राष्ट्र के संप्रभु अधिकार के रूप में युद्ध को तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में बल-प्रयोग अथवा धमकी से काम लेने के तरीके का जापान के लोग हमेशा त्याग करते हैं।”
  7. जापान का सैन्य व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1 प्रतिशत है फिर भी सैन्य व्यय के लिहाज से जापान सातवें स्थान पर है। उपरोक्त तथ्यों से हम अनुमान लगा सकते हैं कि वैकल्पिक शक्ति केन्द्र के रूप में जापान अत्यंत प्रभावकारी है।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के पश्चात् दक्षिण कोरिया के अर्थव्यवस्था में तेजी आई। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोरियाई प्रायद्वीप को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में दक्षिण कोरिया और उत्तरी कोरिया में 38वें समानांतर के साथ-साथ विभाजित किया गया था। 1950-53 के दौरान कोरियाई युद्ध और शीत युद्ध काल की गतिशीलत ने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंद्विता को तेज कर दिया। अंतत: 17 सितंबर, 1991 को दोनों कोरिया संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बने। इसी बीच दक्षिण कोरिया एशिया में सत्ता के रूप में केन्द्र बनकर उभरा। 1960 के दशक से 1980 के दशक के बीच, इसका आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से विकास हुआ, जिसे “हान नदी पर चमत्कार” कहा जाता है।

अपने सर्वांगीण विकास को संकेतित करते हुए, दक्षिण कोरिया 1996 में ओईसीडी का सदस्य बन गया। 2017 में इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सैन्य खर्च में इसका दसवां स्थान है। मानव विकास रिपोर्ट, 2016 के अनुसार दक्षिण कोरिया का एचडीआई रैंक 18 है। दक्षिण कोरिया के उच्च मानव विकास के प्रमुख कारण ‘सफल भूमि सुधार, ग्रामीण विकास, व्यापक मानव संसाधन विकास, तीव्र न्यायसंगत आर्थिक वृद्धि, निर्यात उन्मुखीकरण, मजबूत पुनर्वितरण नीतियाँ, निर्यात उन्मुखीकरण, मजबूत पुनर्वितरण नीतियाँ, सार्वजनिक अवसंरचना विकास, प्रभावी संस्थाएँ और शासन आदि हैं।’

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

Jharkhand Board Class 12 History भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 144

प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि तोंदराडिप्पोडि जाति- व्यवस्था के विरोधी थे?
उत्तर:
हाँ, मुझे लगता है कि तोंदराडिप्पोडि जाति- व्यवस्था के विरोधी थे तोंदराडिप्पोडि नामक ब्राह्मण अलवार का कहना था कि यदि चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण भी भगवान विष्णु की सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते तो वे भगवान विष्णु को प्रिय नहीं हैं। दूसरी ओर भगवान विष्णु उन दासों को अधिक पसन्द करते हैं, जो भगवान के चरणों से प्रेम रखते हैं, चाहे वे वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत नहीं आते।

पृष्ठ संख्या 144

प्रश्न 2.
क्या ब्राह्मणों के प्रति तोंदराडिप्पोडी और अप्यार के विचारों में समानता है अथवा नहीं?
उत्तर:
स्रोत में प्रस्तुत उद्धरण को पढ़कर लगता कि तोंदराडिप्पोडी और नयनार संत अप्पार के विचारों में पर्याप्त समानता है। अप्पार का उद्धरण भी शास्त्रों को उद्धृत करने वाले ब्राह्मणों की धूर्तता की ओर लक्ष्य करते हुए उन्हें शिव के प्रति निष्ठा और समर्पण तथा उन्हें अपना एकमात्र आश्रयदाता मानकर नतमस्तक होने के लिए प्रेरित करता है।

पृष्ठ संख्या 145

प्रश्न 3.
उन उपायों की सूची बनाइये जिन उपायों से कराइक्काल अम्मइयार अपने आपको प्रस्तुत करती है किस भाँति ये उपाय स्त्री सौन्दर्य की पारम्परिक अवधारणा से भिन्न हैं?
उत्तर:

  • फूली हुई गाड़ियाँ
  • बाहर निकली हुई आँखें
  • सफेद दाँत
  • अन्दर धंसा हुआ पेट
  • लाल केश
  • आगे की ओर निकले दाँत
  • टखनों तक फैली हुई लम्बी पिंडली की नली।

ये उपाय निम्न प्रकार से स्वी सौन्दर्य की पारम्परिक अवधारणा से भिन्न है –

  • काजल लगी हुई मछली जैसी आंखें
  • सफेद दाँत तथा होठों पर लगी हुई लाली
  • काले व गहरे केश
  • मुँह में सही स्थिति में सुन्दर दाँत
  • लम्बी तथा सुन्दर पिंडली तथा पाँवों में पायजेब

पृष्ठ संख्या 146 चर्चा कीजिए

प्रश्न 4.
आपको क्यों लगता है कि शासक भक्तों से अपने सम्बन्ध को दर्शाने के लिए उत्सुक थे?
उत्तर:
वेल्लाल कृषक नयनार और अलवार सन्तों को सम्मानित करते थे। इसलिए शासक भी इन सन्तों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते थे। उदाहरण के लिए चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया और अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुन्दर और विशाल मन्दिरों का निर्माण करवाया जिनमें पत्थर और धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं। इन सम्राटों ने तमिल भाषा के शैव भजनों का गायना इन मन्दिरों में प्रचलित किया। 945 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि चोल सम्राट परांतक प्रथम ने सन्त कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ एक शिवमन्दिर में स्थापित करवाई।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

पृष्ठ संख्या 147

प्रश्न 5.
अनुष्ठानों के प्रति वासवन्ना के रवैये की व्याख्या कीजिए वे किस तरह श्रोता को अपनी बात समझाने का प्रयत्न करते हैं?
उत्तर:
बासवन्ना, लोगों द्वारा किये जा रहे आडम्बर, कर्मकाण्ड तथा मूर्ति पूजा पर कटाक्ष करते हैं। उनका कहना है कि पत्थर से बने सर्प को दूध पिलाते हैं जो पी नहीं लगते सकता और वहीं दूसरी तरफ जीवित सर्प को देखते ही मारने हैं। इसी प्रकार पत्थर की मूर्तियों को भोग लगाते हैं परन्तु भूखे-प्यासे भगवान के सेवकों को भगाने का प्रयास करते हैं।

पृष्ठ संख्या 149

प्रश्न 6.
वे लोग कौन थे जिनकी तरफ से अकबर को अपने फरमान की बेअदबी का अंदेशा था?
उत्तर:
बादशाह अकबर को खम्बायत गुजरात में गिरजाघर के निर्माण में यह हुक्मनामा इसलिए जारी करना पड़ा कि बादशाह को ऐसा अंदेशा था कि सम्भवतः अन्य धर्मों के लोग गिरजाघर के निर्माण का विरोध करें। उस काल में ईसाई धर्म के लोगों की संख्या भी कम थी। अकबर अपनी उदारवादी नीति के कारण अल्पसंख्यक लोगों के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध था।

पृष्ठ संख्या 150

प्रश्न 7.
जोगी द्वारा वंदनीय देवता की पहचान कीजिए जोगी के प्रति बादशाह के रवैये का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औरंगजेब द्वारा जोगी को लिखे पत्र द्वारा जात होता है कि जोगी शैव धर्म का उपासक है और जोगी के आराध्य देवता भगवान शिव हैं। बादशाह जोगी का बहुत सम्मान करता है और जोगी की हर तरह से मदद करता है। बादशाह के पत्र से औरंगजेब का जोगी के प्रति श्रद्धाभाव प्रकट होता है।

पृष्ठ संख्या 156

प्रश्न 8.
जहाँआरा कौनसी चेष्टाओं का जिक्र करती हैं जो शेख के प्रति उसकी भक्ति को दर्शाते हैं। दरगाह की खासियत को वह किस तरह दर्शाती है?
उत्तर:
वे चेष्टाएँ जो जहाँआरा, शेख मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रति श्रद्धा दर्शाती हैं, इस प्रकार हैं-मार्ग में कम-से- कम दो बार नमाज पढ़ना (प्रत्येक पड़ाव पर), रात को बाघ के चमड़े पर न सोना दरगाह की दिशा की ओर पैर न करना, दरगाह की तरफ अपनी पीठ न करना आदि। जहाँआरा दरगाह की विशिष्टताओं का इस प्रकार वर्णन करती है- दरगाह का वातावरण चिराग तथा इत्र से खुशनुमा है, दरगाह पाक और मुकद्दस भी दरगाह के अन्दर पवित्र आत्मिक आनन्द की अनुभूति हुई और जहाँआरा ने दरगाह की चौखट पर अपना सिर रखा।

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पृष्ठ संख्या 157

प्रश्न 9.
इस गाने (स्रोत 8 चरखानामा) के विचार और अभिव्यक्ति के तरीके जहाँआरा की जियारत (स्त्रोत 7) में वर्णित विचारों और अभिव्यक्ति के तरीकों से कैसे समान और भिन्न है?
उत्तर:
इस गाने के विचार और अभिव्यक्ति के तरीके जहाँआरा की जियारत में वर्णित विचारों और अभिव्यक्ति के तरीकों से इस प्रकार भिन्न हैं कि जहाँआरा ने जियारत यानी अपनी भक्ति और इबादत के लिए बाह्य पूजा; जैसाकि शारीरिक कष्ट उठाकर नंगे पाँव जाना, कठिन नियमों का पालन करना आदि का सहारा लिया है। यहाँ पर आत्मपूजा पर बल दिया गया है, अपने अन्दर बैठे परमात्मा की हर श्वास में पूजा करनी है कहीं बाहर नहीं जाना है। समानता इस बात की है कि दोनों पद्धतियों के भाव में कोई फर्क नहीं है। भाव तो परम सत्ता की इबादत का ही है। पृष्ठ संख्या 159 चर्चा कीजिए

प्रश्न 10.
धार्मिक और राजनीतिक नेताओं में टकराव के सम्भावित स्रोत क्या-क्या हैं?
उत्तर:
धार्मिक और राजनीतिक नेताओं में टकराव के सम्भावित स्रोत निम्नलिखित हैं-
(1) अपनी सत्ता का दावा करने के लिए दोनों ही कुछ आचारों पर बल देते थे, जैसे झुककर प्रणाम और कदम चूमना।
(2) कभी-कभी सूफी शेखों को आडम्बरपूर्ण पदवी से सम्बोधित किया जाता था। उदाहरण के लिए शेख निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी उन्हें सुल्तान-उल-मशेख (अर्थात् शेखों में सुल्तान) कहकर सम्बोधित करते थे। इसे शासक वर्ग के लोग अपने अहं के विरुद्ध मानते थे।
(3) कभी-कभी धार्मिक नेता शाही भेंट अस्वीकार कर देते थे।

पृष्ठ संख्या 159

प्रश्न 11.
सूफियों और राज्य के बीच सम्बन्ध का कौनसा पहलू इस कहानी से स्पष्ट होता है? यह किस्सा हमें शेख और उनके अनुयायियों के बीच सम्पर्क के तरीकों के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
सूफियों और राज्य के बीच सम्बन्ध का निम्नांकित पहलू इस कहानी से स्पष्ट होता है—शासक वर्ग सूफियों और सन्तों का सम्मान करता था, सूफियों और सन्तों की कृपा प्राप्त करने हेतु शासक वर्ग, सूफियों को आर्थिक तथा अन्य प्रकार की भेंट दिया करता था। सूफी लोग किसी से भेंट का आग्रह नहीं करते थे और न ही संग्रह करते थे सूफी संतों की लोकप्रियता बहुत थी, इसलिए शासक वर्ग भी इनके आशीर्वाद का आकांक्षी रहता था। यह कहानी सूफियों की निस्पृह भावना को भी उजागर करती है, वे निर्लिप्त भाव से रहते थे। वे चीज जैसेकि भूमि आदि, वे अनावश्यक समझते थे, उसे अस्वीकार कर देते थे।

पृष्ठ संख्या 160

प्रश्न 12.
विभिन्न समुदायों के ईश्वर के बीच पार्थक्य के विरुद्ध कबीर किस तरह की दलील पेश करते हैं?
उत्तर:
कबीर के अनुसार संसार का स्वामी एक ही है जो ईश्वर है। लोग ईश्वर को अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि, हजरत आदि नामों से पुकारते हैं कबीर के अनुसार ईश्वर के नाम के बारे में विभिन्नताएं तो केवल शब्दों में हैं जो हमारे द्वारा ही बनाए गए हैं। कबीर कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भुलाने में हैं। इनमें से कोई भी एक ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। वे अपना सम्पूर्ण जीवन सत्य से दूर विवादों में ही नष्ट कर देते हैं। पृष्ठ संख्या 164 चर्चा कीजिए

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प्रश्न 13.
आपको क्यों लगता है कि कबीर, गुरुनानक देव और मीराबाई इक्कीसवीं सदी में भी महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
कबीर, गुरुनानक देव तथा मीराबाई ने सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त कुरीतियों, आडम्बरों एवं अन्धविश्वासों का विरोध किया था। इक्कीसवीं शताब्दी में भी सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में धार्मिक आडम्बर, कर्मकाण्ड और अन्धविश्वास प्रचलित हैं। अतः कबीर, गुरुनानक देव तथा मीराबाई इक्कीसवीं शताब्दी में भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी शिक्षाएँ आज भी मानव जाति के लिए उपयोगी हैं।

पृष्ठ संख्या 164

प्रश्न 14.
यह उद्धरण राणा के प्रति मीरा बाई के रुख के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
यह उद्धरण मीरा की भगवान कृष्ण के प्रति आसक्ति एवं अनुराग की पराकाष्ठा का द्योतक है, साथ ही साथ मीरा इस गीत के द्वारा सांसारिक जीवन के प्रति अपने वैराग्य भाव का भी वर्णन करती है। उनके अनुसार गोविन्द के गुण गाने के अतिरिक्त उन्हें अन्य कोई अभिलाषा नहीं है।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100-150 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 1.
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि सम्प्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
उत्तर:
इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम-से-कम दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थीं-
(1) प्रथम प्रक्रिया-प्रथम प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचरारा के प्रचार की थी। इसका प्रसार पौराणिक ग्रन्थों की रचना, संकलन और परिरक्षण द्वारा हुआ ये ग्रन्थ सरल संस्कृत छन्दों में थे, जिन्हें वैदिक विद्या से विहीन स्विय और शूद्र भी पढ़ सकते थे।
(2) द्वितीय प्रक्रिया द्वितीय प्रक्रिया थी स्त्रिय शूद्रों व अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मण द्वारा स्वीकृत किया जाना और उसे एक नया रूप प्रदान करना।

समाजशास्त्रियों का मत – कुछ समाजशास्त्रियों की यह मान्यता है कि सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में अनेक धार्मिक विचारधाराएँ तथा पद्धतियाँ ‘महान’ संस्कृत पौराणिक परिपाटी तथा ‘लघु’ परम्परा के बीच हुए निरन्तर संवाद का परिणाम हैं। इस प्रक्रिया का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण पुरी (उड़ीसा) में मिलता है, जहाँ बारहवीं शताब्दी तक आते-आते मुख्य देवता को जगन्नाथ के रूप में प्रस्तुत किया गया और उन्हें विष्णु का एक स्वरूप माना गया। समन्वय के ऐसे उदाहरण देवी सम्प्रदायों में भी मिलते हैं। स्थानीय देवियों को पौराणिक परम्परा के भीतर मुख्य देवताओं की पत्नी के रूप में मान्यता दी गई थी। कभी वह लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी बनीं और कभी शिव की पत्नी पार्वती के रूप में सामने आई।

प्रश्न 2.
किस हद तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण है?
उत्तर:
उपमहाद्वीप में अनेक मुस्लिम शासकों ने अनेक मस्जिदें बनवाई। इन मस्जिदों की स्थापत्य कला में स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक धर्म का जटिल मिश्रण दिखाई देता है। इन मस्जिदों के कुछ स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्व सार्वभौमिक थे-जैसे इमारत का मक्का की ओर अनुस्थापन जो मेहराब (प्रार्थना का आला) तथा मिनवार ( व्यासपीठ) की स्थापना से चिन्हित होता था।

दूसरी ओर स्थापत्य सम्बन्धी कुछ जैसे छत और निर्माण की सामग्री उदाहरण के लिए केरल में तेरहवीं शताब्दी में निर्मित एक मस्जिद जिसकी छत मन्दिर के शिखर से मिलती-जुलती है। दूसरी ओर जिला मैमनसिंग (बांग्लादेश) में ईटों की बनी अतिया मस्जिद की छत गुम्बददार है जो केरल में निर्मित मस्जिद की छत से भिन्न है। इसी प्रकार श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे बनी शाह हमदान मस्जिद के स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्व उपर्युक्त दोनों मस्जिदों के स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्वों से अलग हैं। यह मस्जिद कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्यकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

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प्रश्न 3.
बे-शरिया और बा- शरिया सूफी परम्परा के बीच एकरूपता और अन्तर दोनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम कानूनों के संग्रह को शरिया कहते हैं। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। यह कानून मुस्लिम समुदाय को निर्देशित करता है। हदीस का तात्पर्य है पैगम्बर मोहम्मद साहब से जुड़ी परम्पराएँ। इन परम्पराओं में मोहम्मद साहब की स्मृति से जुड़े हुए शब्द और उनके क्रियाकलापों का समावेश है कुछ रहस्यवादियों ने सूफी सिद्धान्तों की मौलिक व्याख्या के आधार पर नवीन आन्दोलनों की नींव रखी।

खानकाह का तिरस्कार करके ये रहस्यवादी, फकीर का जीवन बिताते थे निर्धनता तथा ब्रह्मचर्य को उन्होंने गौरव प्रदान किया। इन्हें मदारी, कलंदर, मलंग हैदरी आदि नामों से जाना जाता था। शरिया की अवहेलना करने के कारण उन्हें शरिया कहा जाता था। दूसरी ओर का पालन करने वाले सूफी वा शरिया कहलाते थे। यहाँ रोचक तथ्य यह है कि वे शरिया तथा बा- शरिया दोनों ही इस्लाम से सम्बन्ध रखते थे। इन सूफी परम्पराओं के बीच एकरूपता भी थी। बे शरिया तथा बा-शरिया दोनों परम्पराओं के सूफी इस्लाम से सम्बन्धित थे दोनों ही इस्लाम के मूल सिद्धान्तों में विश्वास करते थे।

प्रश्न 4.
चर्चा कीजिए कि अलवार, नवनार और वीरशैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की?
उत्तर:
(1) अलवार और नयनार तमिलनाडु के भक्ति संत थे। कुछ इतिहासकारों का यह मानना है कि अलवार और नयनार सन्तों ने जातिप्रथा व ब्राह्मणों की प्रभुता का विरोध किया। कुछ सीमा तक यह बात सत्य प्रतीत होती है कि क्योंकि भक्ति संत विविध समुदायों में से थे जैसे ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान आदि कुछ भक्तिसंत तो ‘अस्पृश्य’ मानी जाने वाली जातियों से सम्बन्धित थे। उन्होंने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। इन्होंने सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में घूम-घूम कर अपनी शिक्षाओं का प्रचार किया। उन्होंने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया, जिन्हें अधिकाधिक लोग समझ सकते थे और उन्हें अपने जीवन में ग्रहण कर सकते थे।

उनके उपदेश और शिक्षाएँ भी सरल और व्यावहारिक थीं जिन्हें जनसाधारण की भाषाओं में व्यक्त करना उपयोगी था। यदि वे किसी एक विशिष्ट भाषा को अपने विचार व्यक्त करने के लिए माध्यम बनाते तो उन्हें अपने उद्देश्यों में सफलता मिलना बहुत कठिन था, इसलिए जन साधारण तक पहुँचने के लिए भक्ति तथा सूफी चिन्तकों ने जन साधारण को भाषाओं का ही सहारा लिया।

इस तथ्य की पुष्टि के लिए निम्नलिखित उदाहरणों से होती है –
उदाहरण –
(1) नमनार और अलवार सन्तों ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार तमिल भाषा में किया। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए तमिल में अपनी शिक्षाओं का प्रचार करते थे।
(2) कबीर के भजन अनेक भाषाओं और बोलियों में मिलते हैं। उनकी भाषा खिचड़ी है जिसमें पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूर्वी ब्रजभाषा आदि अनेक भाषाओं का मेल है।
(3) गुरु नानक ने अपने विचार पंजाबी भाषा में ‘शब्द’ के माध्यम से लोगों के सामने रखे उनके पदों और भजनों में उर्दू-फारसी के तत्कालीन प्रचलित शब्दों का प्रयोग मिलता है। सम्भवतः इसका कारण यह था कि उनका जन्म स्थान और प्रचारक्षेत्र पंजाब था, जहाँ उन शब्दों का जन साधारण में प्रचलन हो चुका था।
(4) मीरा ने भी अपने विचार बोलचाल की भाषा राजस्थानी में व्यक्त किये। इस पर ब्रज भाषा, गुजराती और खड़ी बोली का भी रंग चढ़ा हुआ है।
(5) सूफी सन्तों ने जन साधारण की भाषा खड़ी बोली में अपने विचार व्यक्त किये। सूफी सन्त बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने पंजाबी, गुजराती आदि भाषाओं में भी अपने विचार लोगों के सामने रखे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

प्रश्न 9.
इस अध्याय में प्रयुक्त किन्हीं पाँच स्रोतों का अध्ययन कीजिए और उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक एवं धार्मिक विचार इस अध्याय में प्रयुक्त स्रोतों के अध्ययन से उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों का वर्णन इस प्रकार है –
(1) स्रोत 1 (चतुर्वेदी और अस्पृश्य) चतुर्वेदी ब्राह्मण चारों वेदों के ज्ञाता थे परन्तु वे भगवान विष्णु की सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते थे। इसलिए भगवान विष्णु उन दासों को अधिक पसन्द करते हैं जो उनके चरणों से प्रेम रखते हैं, चाहे दास वर्ण व्यवस्था में शामिल नहीं थे। इस स्रोत से प्रकट होता है कि तमिलनाडु के अलवार सन्त जाति व्यवस्था के विरोधी थे।

(2) स्रोत 4 (अनुष्ठान और यथार्थं संसार) – इस स्रोत में बताया गया है कि ब्राह्मण सर्प की पत्थर की मूर्ति पर दूध चढ़ाते हैं, परन्तु असली साँप को देखते ही वे उसे मारने पर कटिबद्ध हो जाते हैं। इसी प्रकार ब्राह्मण देवता के भूखे सेवक को भोजन देने से इन्कार कर देते हैं, जबकि यह भोजन परोसने पर खा सकता है। इसके विपरीत, वे भगवान की प्रतिमा को भोजन परोसते हैं, जबकि वह भोजन नहीं खा सकती है। इस स्रोत में अनुष्ठानों की निरर्थकता पर प्रकाश डाला गया है।

(3) स्रोत 5 (खम्बात का गिरजाघर)- जब मुगल- सम्राट अकबर को ज्ञात हुआ कि ईसाई धर्म के पादरी गुजरात के खम्बात शहर में उपासना के लिए एक गिरजाघर का निर्माण करना चाहते थे, तो अकबर की ओर से एक शाही फरमान जारी किया गया कि खम्बात के महानुभाव किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न न करें और ईसाइयों को गिरजाघर का निर्माण करने दें। इससे मुगल सम्राट अकबर की उदारता, धर्म-सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना के बारे में जानकारी मिलती है।

(4) स्रोत 6 (जोगी के प्रति श्रद्धा)- इस स्रोत के अध्ययन से पता चलता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने गुरु आनन्दनाथ नामक एक जोगी के प्रति अत्यधिक सम्मान प्रकट किया और उसने जोगी को पोशाक के लिए वस्व तथा पच्चीस रुपये भेंट के रूप में भेजे। उसने जोगी को यह भी लिखा कि वह किसी भी प्रकार की सहायता के लिए उन्हें लिख सकते थे इस स्रोत से औरंगजेब की दानशीलता तथा अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता तथा सम्मान की भावना का बोध होता है।

(5) स्त्रोत 10 (एक ईश्वर )-इस खोत से कबीर की शिक्षाओं के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें कबीर ने बताया है कि संसार का एक ही स्वामी है। ईश्वर को अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि तथा हजरत आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। विभिन्नताएँ तो केवल शब्दों में ही जिनका आविष्कार हम स्वयं करते हैं। कबीर कहते हैं दोनों ही भुलावे में हैं। वे पूरा जीवन विवादों में ही बिता देते हैं। इस स्रोत से पता चलता है कि कबीर एकेश्वरवादी धे तथा बहुदेववाद के विरुद्ध थे। उन्होंने धार्मिक आडम्बरों की भी कटु आलोचना की है और एक ईश्वर की उपासना पर ही बल दिया है।

भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ JAC Class 12 History Notes

→ साहित्य और मूर्तिकला में देवी-देवताओं का दृष्टिगत होना लगभग आठवीं से अठारहवीं सदी तक के काल की सम्भवत: सबसे प्रभावी विशिष्टता यह है कि साहित्य और मूर्तिकला दोनों में ही अनेक प्रकार के देवी- देवता अधिकाधिक दृष्टिगत होते हैं। इससे पता चलता है कि विष्णु, शिव और देवी की आराधना की परिपाटी न केवल चलती रही, बल्कि और अधिक विस्तृत हुई।

→ पूजा प्रणालियों का समन्वय इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम से कम दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थीं। एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इसी काल की एक अन्य प्रक्रिया थी जिसमें स्वियों शूद्रों तथा अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों ने स्वीकृति प्रदान की थी और उसे एक नवीन रूप प्रदान किया
था।

→ तान्त्रिक पूजा पद्धति-अधिकांशतः देवी की आराधना पद्धति को तान्त्रिक नाम से जाना जाता है। तान्त्रिक पूजा पद्धति उपमहाद्वीप के कई भागों में प्रचलित थी। इसके अन्तर्गत स्वी और पुरुष दोनों ही शामिल हो सकते थे। इस पद्धति के विचारों ने शैव और बौद्ध दर्शन को भी प्रभावित किया, विशेष रूप से उपमहाद्वीप के पूर्वी उत्तरी और दक्षिणी भागों में कभी-कभी पूजा परम्पराओं में संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती थी। वैदिक परिपाटी के अनुयायी उन सभी आचारों की निन्दा करते थे, जो ईश्वर की उपासना के लिए मन्त्रों के उच्चारण के साथ यहाँ के सम्पादन से अलग थे। इसके विपरीत वे लोग थे, जो तान्त्रिक आराधना के उपासक थे और वैदिक सत्ता को स्वीकार नहीं करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

→ भक्ति परम्परा आठवीं से अठारहवीं सदी के काल से पूर्व लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन भक्तिपूर्ण उपासना की परम्परा रही है। इस समय भक्ति प्रदर्शन में मन्दिरों में इष्टदेव की आराधना से लेकर उपासकों के प्रेमभाव में तल्लीन हो जाना दिखाई पड़ता है। भक्ति रचनाओं का उच्चारण अथवा गाया जाना इस उपासना पद्धति के अंश थे।

→ उपासना की कविताएँ प्रारम्भिक भक्ति परम्परा कई बार संत कवि ऐसे नेता के रूप में उभरे जिनके आस-पास भक्तजनों का एक पूरा समुदाय रहता था। इन परम्पराओं ने स्वियों तथा निम्न वर्गों को भी स्वीकृति प्रदान की विविधता भक्ति परम्परा की एक अन्य विशेषता भी धर्म के इतिहासकार भक्ति परम्परा को दो मुख्य वर्गों में बाँटते हैं –

  • सगुण (विशेषण सहित ) तथा
  • निर्गुण (विशेषण विहीन) प्रथम वर्ग में शिव, विष्णु तथा उनके अवतार व देवियों की आराधना आती है।

इनकी मूर्त रूप में अवधारणा हुई। निर्गुण भक्ति परम्परा में अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।

→ तमिलनाडु के अलवार और नवनार संत-प्रारम्भिक भक्ति आन्दोलन लगभग छठी शताब्दी में अलवारों एवं नयनारों के नेतृत्व में हुआ अलवार विष्णु के उपासक थे, जबकि नयनार शिव की उपासना करते थे। अपनी यात्राओं के दौरान अलवार और नयनार संतों ने कुछ पवित्र स्थलों को अपने इष्ट का निवास स्थल घोषित किया। बाद में इन्हीं स्थलों पर विशाल मन्दिरों का निर्माण हुआ और वे तीर्थ स्थल माने गए।

→ जाति के प्रति दृष्टिकोण-कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलवार और नयनार सन्तों ने जातिप्रथा व ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में आवाज उठाई अलवार और नवनार संतों की रचनाओं को वेद जितना महत्त्वपूर्ण बताकर इस परम्परा को सम्मानित किया गया। अलवार सन्तों के एक मुख्य काव्य संकलन ‘नलविरादिव्य प्रबन्धम्’ का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था।

→ स्त्री भक्त इस परम्परा की सबसे बड़ी विशिष्टता इसमें स्विर्षो की उपस्थिति थी। अंडाल नामक अलवार स्वी के भक्तिगीत व्यापक स्तर पर गाए जाते थे और आज भी गाए जाते हैं। करइक्काल अम्मदवार एक शिवभक्त महिला श्री जिसने घोर तपस्या का मार्ग अपनाया।

→ राज्य के साथ सम्बन्ध-तमिल भक्ति रचनाओं में बौद्ध और जैन धर्म के प्रति विरोध की भावना व्यक्त की गई है। नयनार सन्तों की रचनाओं में यह विरोध विशेष रूप से दिखाई देता है। इसका कारण यह था कि परस्पर- विरोधी धार्मिक समुदायों में राजकीय अनुदान को लेकर प्रतिस्पद्धां थी। शक्तिशाली चोल सम्राटों ने ब्राह्मणीय तथा भक्ति परम्परा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मन्दिरों के निर्माण के लिए भूमि अनुदान दिया। चिदम्बरम, तंजावुर तथा गंगैकोंडचोलपुरम के विशाल शिव मन्दिर चोल सम्राटों की सहायता से ही बनाए गए थे चोल सम्राटों ने अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुन्दर मन्दिर बनवाये जिनमें पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं।

→ कर्नाटक की वीर शैव परम्परा-बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसका नेतृत्व बासवन्ना ( 1106-1168) नामक एक ब्राह्मण ने किया। बासवन्ना के अनुयायी वीरशैव (शिव के बीर) व लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहलाए। लिंगायत शिव की आराधना लिंग के रूप में करते हैं। इनका विश्वास है कि मृत्योपरान्त भक्त शिव में लीन हो जायेंगे तथा इस संसार में पुनः नहीं लौटेंगे। ये लोग श्राद्ध संस्कार का पालन नहीं करते तथा अपने मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते हैं। लिंगायतों ने जाति की अवधारणा तथा कुछ समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया। उन्होंने वयस्क विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।

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→ उत्तरी भारत में धार्मिक उफान उत्तरी भारत में अनेक राजपूत राज्यों का उद्भव हुआ। इन सभी राज्यों में ब्राह्मणों का महत्त्वपूर्ण स्थान था और वे ऐहिक और आनुष्ठानिक दोनों ही कार्य करते थे। इसी समय नाथ, जोगी तथा सिद्ध नामक धार्मिक नेताओं का प्रादुर्भाव हुआ। अनेक नवीन धार्मिक नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी और अपने विचार आम लोगों की भाषा में व्यक्त किए। तेरहवीं सदी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। सल्तनत की स्थापना से राजपूत राज्यों का और उनसे जुड़े ब्राह्मणों का पराभव हुआ। इन परिवर्तनों का प्रभाव संस्कृति और धर्म पर भी पड़ा।

→ शासकों और शासितों के धार्मिक विश्वास बहुत से क्षेत्रों में इस्लाम शासकों का स्वीकृत धर्म था। सैद्धान्तिक रूप से मुसलमान शासकों को उलमा के मार्गदर्शन पर चलना होता था। उलमा से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे शासन में शरिया का पालन करवाएँगे। परन्तु उपमहाद्वीप में स्थिति जटिल थी क्योंकि बड़ी जनसंख्या इस्लाम धर्म को मानने वाली नहीं थी। इस संदर्भ में जिम्मी अर्थात् संरक्षित श्रेणी का प्रादुर्भाव हुआ। जिम्मी वे लोग थे जो उद्घाटित धर्म ग्रन्थ को मानने वाले थे।

ये लोग जजिया नामक कर चुका कर मुसलमान शासकों द्वारा संरक्षण दिए जाने के अधिकारी हो जाते थे। हिन्दू भी इनमें सम्मिलित कर लिए गए। वास्तव में शासक शासितों की ओर काफी लचीली नीति अपनाते थे। उदाहरण के लिए बहुत से शासकों ने भूमि अनुदान व कर की छूट हिन्दू, जैन, पारसी, ईसाई और यहूदी धर्म संस्थाओं को दी तथा गैर मुसलमान धार्मिक नेताओं के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त किया।

→ लोक प्रचलन में इस्लाम इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्त हैं –

  • अल्लाह एकमात्र ईश्वर है, पैगम्बर मोहम्मद उनके दूत हैं
  • दिन में पाँच बार नमाज पढ़ी जानी चाहिए।
  • खैरात (जात) बॉटनी चाहिए।
  • रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए
  • हज के लिए मक्का जाना चाहिए।

→ मस्जिदों के स्थापत्य सम्बन्धी सार्वभौमिक तत्त्व-मस्जिदों के कुछ स्थापत्य सम्बन्धी तत्त्व सार्वभौमिक थे जैसे इमारत का मक्का की ओर अनुस्थापन जो मेहराब और मिनबार की स्थापना से लक्षित होता था बहुत से तत्त्व ऐसे थे जिनमें भिन्नता देखने में आती है जैसे छत और निर्माण का सामान।

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→ समुदायों के नाम- लोगों का वर्गीकरण उनके जन्म स्थान के आधार पर किया जाता था जैसे तुर्की मुसलमानों को तुरुष्क तथा तजाकिस्तान से आए लोगों को ताजिक और फारस से आए लोगों को पारसीक नाम से सम्बोधित किया गया। प्रवासी समुदायों के लिए ‘म्लेच्छ’ शब्द का प्रयोग किया जाता था इससे ज्ञात होता है कि वे वर्ण नियमों का पालन नहीं करते थे तथा ऐसी भाषाएँ बोलते थे जो संस्कृत से नहीं उपजी थीं।

→ सूफी मत का विकास खिलाफत की बढ़ती विषयशक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर शुकाव बढ़ा जिन्हें सूफी कहा जाता था। इन लोगों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं तथा धर्माचार्यों द्वारा ‘की गई कुरान और सुन्ना (पैगम्बर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। उन्होंने मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया। उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब को इंसान-ए- कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने का उपदेश दिया।

→ खानकाह और सिलसिला संस्थागत दृष्टि से सूफी अपने को एक संगठित समुदाय खानकाह के इर्द- गिर्द स्थापित करते थे। खानकाह का नियन्त्रण शेख, पीर अथवा मुशींद के हाथ में था। बारहवीं शताब्दी के आस-पास इस्लामी जगत् में सूफी सिलसिलों का गठन होने लगा। सिलसिला का शाब्दिक अर्थ है जंजीर जो शेख और मुरीद के बीच एक निरन्तर रिश्ते का प्रतीक है जिसकी पहली अटूट कड़ी पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ी है पीर की मृत्यु के बाद उसकी दरगाह उसके मुरीदों के लिए भक्ति का स्थल बन जाती थी। इस प्रकार पीर की दरगाह पर जियारत के लिए जाने की, विशेषकर उनकी बरसी के अवसर पर परिपाटी चल निकली। इस परिपाटी को ‘उर्स’ कहा जाता था।

→ खानकाह के बाहर कुछ रहस्यवादी खानकाह का तिरस्कार करके फकीर का जीवन विताते थे। ये गरीबी में रहते थे तथा ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। ये कलंदर, मदारी, मलंग, हैदरी आदि नामों से जाने जाते थे। 19. उपमहाद्वीप में चिश्ती सिलसिला बारहवीं सदी के अन्त में भारत आने वाले सूफी समुदायों में चिश्ती सबसे अधिक प्रभावशाली थे। खानकाह सामाजिक जीवन का केन्द्र बिन्दु था शेख निजामुद्दीन औलिया का खानकाह दिल्ली शहर की बाहरी सीमा पर यमुना नदी के किनारे गियासपुर में था जहाँ सहवासी और अतिथि रहते थे और उपासना करते थे।

यहाँ एक सामुदायिक रसोई (लंगर) फुतूह (बिना मांगी खैर) पर चलती थी। यहाँ विभिन्न वर्गों के लोग आते थे। कुछ अन्य मिलने वालों में अमीर हसन सिजजी और अमीर खुसरो जैसे कवि तथा दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी जैसे लोग शामिल थे। शेख निजामुद्दीन ने कई आध्यात्मिक वारिसों का चुनाव किया और उन्हें उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में खानकाह स्थापित करने के लिए नियुक्त किया।

→ चिश्ती उपासना जियारत और कव्वाली सूफी सन्तों की दरगाह पर की गई जियारत सम्पूर्ण इस्लामी जगत् में प्रचलित है। इनमें सबसे अधिक पूजनीय दरगाह ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की है, जिन्हें ‘गरीब नवाज कहा जाता है। अजमेर में स्थित यह दरगाह शेख की सदाचारिता और धर्मनिष्ठा तथा उनके आध्यात्मिक वारिसों की महानता आदि के कारण लोकप्रिय थी। सोलहवीं सदी तक अजमेर की यह दरगाह बहुत ही लोकप्रिय हो गई थी।

अकबर ने 14 बार इस दरगाह की यात्रा की प्रत्येक यात्रा पर वह दान भेंट दिया करता था। 1568 में अकबर ने तीर्थयात्रियों के लिए खाना पकाने के लिए एक विशाल देग दरगाह को भेंट की। नाच और संगीत भी जियारत के भाग थे, विशेष रूप से कव्वालों द्वारा प्रस्तुत रहस्यवादी गुणगान, जिससे परमानन्द की भावना को जागृत किया जा सके। सूफी सन्त क्रि (ईश्वर का नाम-जप) या फिर समा अर्थात् आध्यात्मिक संगीत की महफिल के द्वारा ईश्वर की उपासना में विश्वास खते थे।

→ भाषा और सम्पर्क चिश्तियों ने स्थानीय भाषा को अपनाया। दिल्ली में चिश्ती सिलसिले के लोग हिन्दवी में बातचीत करते थे बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की। बीजापुर कर्नाटक में दक्खनी (उर्दू का रूप) में चिश्ती सन्तों ने छोटी कविताएँ लिखीं।

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→ सूफी और राज्य सुल्तानों ने खानकाहों को करमुक्त (इनाम) भूमि अनुदान में दी और दान सम्बन्धी न्यास स्थापित किये चिश्ती धन और सामान के रूप में दान स्वीकार करते थे किन्तु इनको संजोने के बजाय भोजन, कपड़े, रहने की व्यवस्था, अनुष्ठानों आदि पर पूरी तरह खर्च कर देते थे। शासक न केवल सूफी सन्तों से सम्पर्क रखना चाहते थे, अपितु उनका समर्थन पाने के भी इच्छुक थे जब तुकों ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की तो उलमा द्वारा शरिया लागू किए जाने की मांग की गई जिसे सुल्तानों ने ठुकरा दिया। ऐसे समय सुल्तानों ने सूफी सन्तों का सहारा लिया। सुल्तानों और सूफियों के बीच तनाव के उदाहरण भी मिलते हैं।

→ नवीन भक्ति पंथ-कबीर की ‘बानी’ तीन विशिष्ट परिपाटियों में संकलित है। ‘कवीर बीसक’ कबीरपंथियों द्वारा वाराणसी तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर संरक्षित है। ‘कबीर ग्रन्थावली’ का सम्बन्ध राजस्थान के दादुपधियों से है। कबीर के कई पद ‘ आदि ग्रन्थ साहिब’ में भी संकलित हैं। कबीर की रचनाएँ अनेक भाषाओं और बोलियों में मिलती हैं। उनकी कुछ रचनाएँ ‘उलटबांसी’ कहलाती हैं जो इस प्रकार लिखी गई हैं कि उनके दैनिक अर्थ को उलट दिया गया।

इन उलटबाँसी रचनाओं का तात्पर्य परम सत्य के स्वरूप को समझने की कठिनाई दर्शाता है ‘कबीर वानी’ की एक प्रमुख विशिष्टता यह भी है कि उन्होंने परम सत्य का वर्णन करने के लिए अनेक परिपाटियों का सहारा लिया है। वैष्णव परम्परा की जीवनियों में कबीर को जन्म से हिन्दू कबीरदास बताया गया है किन्तु उनका पालन गरीब मुसलमान परिवार में हुआ, जो जुलाहे थे और कुछ समय पहले ही इस्लाम धर्म के अनुयायी बने थे। इन जीवनियों में रामानन्द को कबीर का गुरु बताया गया है। परन्तु इतिहासकारों का यह मानना है कि कबीर और रामानन्द का समकालीन होना कठिन प्रतीत होता है।

→ बाबा गुरुनानक बाबा गुरुनानक का जन्म 1469 ई. में एक हिन्दू व्यापारी परिवार में हुआ। उनका जन्म स्थान पंजाब का ननकाना गाँव था जो रावी नदी के पास था उनका विवाह छोटी आयु में हो गया था, परन्तु वह अपना अधिक समय सूफी और भक्त संतों के बीच व्यतीत करते थे। उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने यज्ञ, आनुष्ठानिक स्थान, मूर्तिपूजा, कठोर तप आदि बाहरी आडम्बरों का विरोध किया।

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उन्होंने हिन्दू तथा मुसलमानों के धर्मग्रन्थों को भी नकार दिया। उन्होंने रब (ईश्वर) की उपासना के लिए एक सरल उपाय बताया और वह था उनका निरन्तर स्मरण व नाम का जाप उन्होंने अपने विचार पंजाबी भाषा में ‘शब्द’ के माध्यम से सामने रखे। उन्होंने अपने | अनुयायियों को एक समुदाय में संगठित किया। उन्होंने अपने अनुवायी अंगद को अपने बाद गुरुपद पर आसीन किया। इस परिपाटी का पालन 200 वर्षों तक होता रहा।

→ गुरबानी पाँचवें गुरु अर्जुनदेवजी ने बाबा गुरुनानक तथा उनके चार उत्तराधिकारियों, बाबा फरीद रविदास तथा कबीर की बानी को ‘आदि ग्रंथ साहिब’ में संकलित किया। इनको ‘गुरबानी’ कहा जाता है। सत्रहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में दसवें गुरु गोविन्द सिंहजी ने नवें गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को भी इसमें शामिल किया और इस ग्रन्थ को ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ कहा गया।

→ खालसा पंथ गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ (पवित्रों की सेना) की नींव डाली और उनके पाँच प्रतीकों का वर्णन किया –

  • बिना कटे केश
  • कृपाण
  • कच्छा
  • कंघा
  • लोहे का कड़ा।

→ मीराबाई, भक्तिमय राजकुमारी मीराबाई संभवतः भक्ति परम्परा की सबसे सुप्रसिद्ध कवयित्री हैं। मीरा का विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ के सिसोदिया कुल में कर दिया गया। उनके पति की मृत्यु के बाद उन पर भारी अत्याचार किये गए उनके ससुराल वालों ने उन्हें विष देने का प्रयत्न किया किन्तु वह राजभवन से निकलकर एक घुमक्कड़ गायिका बन गई। वह भगवान कृष्ण की अनन्य उपासिका थीं। कुछ परम्पराओं के अनुसार मीरा के गुरु रैदास थे। इससे ज्ञात होता है कि मोरा ने जातिवादी समाज की रूढ़ियों का उल्लंघन किया। ऐसा माना जाता है कि अपने पति के राजमहल के ऐश्वर्य को त्याग कर उन्होंने विधवा के सफेद वस्त्र अथवा संन्यासिनी के जोगिया वस्व धारण किये।

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→ शंकर देव-पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम के शंकर देव वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में उभरे। उनके उपदेशों को ‘भगवती धर्म’ कहकर सम्बोधित किया जाता है क्योंकि वे भगवद्‌गीता और भागवत पुराण पर आधारित थे शंकर देव ने भक्ति के लिए नाम कीर्तन और श्रद्धावान भक्तों के सत्संग में ईश्वर के नाम पर बल दिया। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार के लिए सत्र या मठ तथा नामपर जैसे प्रार्थना गृह की स्थापना को बढ़ावा दिया। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में ‘कीर्तनपोष’ भी है।

→ सूफी परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए विभिन्न स्रोत-
उच्चारण –
(1) अली विन उस्मान हुजवरी ने ‘कश्फ-उल-महजुब’ नामक पुस्तक लिखी जो सूफी विचारों और आचारों पर प्रबन्ध पुस्तिका है। इससे यह जानकारी मिलती है कि उपमहाद्वीप के बाहर की परम्पराओं ने भारत में सूफी चिन्तन को किस प्रकार प्रभावित किया।

(2) मुलफुजात (सूफी सन्तों की बातचीत) – मुलफुतात’ पर एक आरम्भिक ग्रन्थ ‘फवाइद-अल-फुआद’ है यह शेख निजामुद्दीन औलिया की बातचीत पर आधारित एक संग्रह है जिसका संकलन प्रसिद्ध फारसी कवि अमीर हसन सिजजी देहलवी ने किया।

(3) मक्तुबात लिखे हुए पत्रों का संकलन ) ये वे पत्र थे जो सूफी सन्तों द्वारा अपने अनुयायियों और सहयोगियों को लिखे गए। इन पत्रों से धार्मिक सत्य के बारे में शेख के अनुभवों का वर्णन मिलता है जिसे वह अन्य लोगों के साथ बांटना चाहते थे।

(4) तजकिरा ( सूफी सन्तों की जीवनियों का स्मरण ) भारत में लिखा पहला ‘सूफी तजकिरा’ ‘मीर खुर्द किरमानी’ का ‘सियार-उल-औलिया है। यह तजकिरा मुख्यतः चिश्ती संतों के बारे में था सबसे प्रसिद्ध तजकिरा अब्दुल हक मुहाद्दिस देहलवी का ‘अखबार-उल-अखबार है।

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किरा के लेखकों का मुख्य उद्देश्य अपने सिलसिले की प्रधानता स्थापित करना और साथ ही अपनी आध्यात्मिक वंशावली की महिमा का वर्णन करना था। तजकिरे के बहुत से वर्णन अद्भुत और अविश्वसनीय हैं, किन्तु फिर भी वे इतिहासकारों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और सूफी परम्परा के स्वरूप को समझने में सहायक सिद्ध होते हैं। इतिहासकार धार्मिक परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए अनेक स्रोतों का उपयोग करते हैं जैसे मूर्तिकला, स्थापत्य, धर्मगुरुओं से जुड़ी कहानियाँ, काव्य रचनाएँ आदि।

काल-रेखा
भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ मुख्य धार्मिक शिक्षक

लगभग 500-800 ईस्वी तमिलनाडु में अप्पार, संबंदर, सुन्दरमूर्ति
लगभग 800-900 ईस्वी तमिलनाडु में नम्मलवर, मणिक्वचक्कार, अंडाल, तोंदराडिप्पोडी
लगभग 1000-1100 ईस्वी पंजाब में अल हुजविरी, दातागंज बवश; तमिलनाडु में रामानुजाचार्य
लगभग 1100-1200 ईस्वी कर्नाटक में बसवन्ना
लगभग 1200-1300 ईस्वी महाराष्ट्र में ज्ञानदेव मुक्ता बाई; राजस्थान में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती; पंजाब में बहाउद्दीन जकारिया और फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर; दिल्ली में कुतुबुद्दीन बरिखियार काकी
लगभग 1300-1400 ईस्वी कश्मीर में लालदेद; सिन्ध में लाल शाहबाज कलन्दर; दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया; उत्तरप्रदेश में रामानन्द; महाराष्ट्र में चोखमेला; बिहार में शराफुद्दीन याह्या मनेरी
लगभग 1400- 1500 ईस्वी उत्तरप्रदेश में कबीर, रैदास, सूरदास; पंजाब में बाबा गुरु नानक; गुजरात में बल्लभाचार्य; ग्वालियर में अब्दुल्ला सत्तारी; गुजरात में मुहम्मद शाह आलम; गुलबर्गा में मीर सैयद, मोहम्मद गेसू दराज़; असम में शंकर देव; महाराष्ट्र में तुकाराम
लगभग 1500-1600 ईस्वी बंगाल में श्री चैतन्य; राजस्थान में मीराबाई; उत्तरप्रदेश में शेख अब्दुल कुहस गंगोही, मलिक मोहम्मद जायसी, तुलसीदास
लगभग 1600-1700 ईस्वी हरियाणा में शेख अहमद सरहिन्दी; पंजाब में मियाँ मीर।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Jharkhand Board Class 12 History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 116

प्रश्न 1.
अल-बिरुनी की कृति का अंश पढ़िए (स्रोत – 5) तथा चर्चा कीजिये कि क्या यह कृति इन उद्देश्यों को पूरा करती है ?
उत्तर:
अल-बिरुनी द्वारा ‘किताब – उल – हिन्द’ नामक पुस्तक लिखने के दो प्रमुख उद्देश्य थे –
(1) उन लोगों की सहायता करना जो हिन्दुओं से धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे तथा
(2) ऐसे लोगों के लिए सूचना का संग्रह करना, जो हिन्दुओं के साथ सम्बद्ध होना चाहते थे।
अल बिरूनी ने अपनी कृति के ‘अंश स्रोत – 5’ में भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था तथा समाज में ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों के स्थान का वर्णन किया है। इस दृष्टि से अल-बिरुनी की कृति तत्कालीन वर्ण व्यवस्था को समझने में उपयोगी है।

पृष्ठ संख्या 117 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 2.
यदि अल-बिरुनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो वही भाषाएँ, जानने पर भी उसे विश्व के किन क्षेत्रों में आसानी से समझा जा सकता था ?
उत्तर:
यदि अल-बिरुनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो उसे इजरायल, सीरिया, मिस्र, साउदी अरेबिया, लेबेनान, ईरान, इराक, खाड़ी देश भारत, पाकिस्तान आदि देशों में आसानी से समझा जा सकता था।

पृष्ठ संख्या 117

प्रश्न 3.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 117 पर चित्र संख्या 5.2 में सोलोन तथा उनके विद्यार्थियों के कपड़ों को ध्यान से देखिए । क्या ये कपड़े यूनानी हैं अथवा अरबी ?
उत्तर:
उपर्युक्त चित्र को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कपड़े अरबी हैं।

पृष्ठ संख्या 118

प्रश्न 4.
आप डाकुओं को यात्रियों से कैसे अलग करेंगे ?
उत्तर:

  • पाठ्य पुस्तक के चित्र 53 में दिखाया गया है
  • कि कुछ यात्रियों के हाथों में
  • सामान है तथा डाकू लोग उ
  • डाकू उनका पीछा कर रहे हैं।
  • पर हमला कर रहे हैं। यात्री अपने प्राण बचाने के लिए आगे-आगे दौड़ रहे हैं तथा

पृष्ठ संख्या 119

प्रश्न 5.
आपके मत में कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार क्यों हैं ?
उत्तर:
पाठ्य पुस्तक के चित्र 54 में कुछ व्यापारी एक नाव में बैठ कर यात्रा कर रहे हैं। इस चित्र में कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार दिखाए गए हैं क्योंकि उस समय समुद्री यात्रा करना अत्यन्त जोखिम भरा कार्य था। अतः वे समुद्री डाकुओं से अपने माल व प्राणों की रक्षा के लिए हथियारों से सुसज्जित होकर यात्रा करते थे।

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पृष्ठ संख्या 121 चर्चा कीजिए

प्रश्न 6.
आपके विचार में अल-विरुनी और इब्नबतूता के उद्देश्य किन मायनों में समान / भिन्न थे?
उत्तर:
समानताएँ-अल-विरुनी और इब्नबतूता के उद्देश्यों में निम्नलिखित समानताएँ थीं –
(1) अल-बिहनी और इब्नबतूता ने अपने ग्रन्थ अरबी भाषा में लिखे।
(2) दोनों ने ही भारतीय सामाजिक जीवन, रीति- रिवाज, प्रथाओं, धार्मिक जीवन त्यौहारों आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
(3) दोनों ही उच्चकोटि के विद्वान थे तथा दोनों की भारतीय साहित्य, सम्मान, धर्म तथा संस्कृति में गहरी रुचि थी।

असमानताएँ –
(1) अल बिरुनी संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया था। परन्तु इब्नबतूता संस्कृत से अनभिज्ञ था।
(2) अल बिरूनी ने ब्राह्मणों, पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। परन्तु इब्नबतूता को इस प्रकार का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
(3) अल बिरुनी का भारतीय विवरण संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित था परन्तु इब्नबतूता ने संस्कृतवादी परम्परा का अनुसरण नहीं किया।
(4) अल बिरानी ने अपने ग्रन्थ के प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया, जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन और अन्त में अन्य संस्कृतियों से तुलना करना दूसरी ओर इब्नबतूता ने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं तथा मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत का सावधानी तथा कुशलतापूर्वक वर्णन किया है।

पृष्ठ संख्या 123

प्रश्न 7.
स्रोत चार में बर्नियर द्वारा दी गई सूची में कौनसी वस्तुएँ हैं, जो आज आप यात्रा में साथ ले जायेंगे?
उत्तर:
स्रोत चार में वर्नियर द्वारा दी गई सूची में वर्णित निम्नलिखित वस्तुओं को मैं यात्रा में साथ लेकर चलूँगा

  • दरी
  • बिहीना
  • तकिया
  • अंगोछे/ नैपकिन
  • झोले
  • वस्त्र
  • चावल
  • रोटी
  • नींबू
  • चीनी
  • पानी
  • पानी पीने का

पृष्ठ संख्या 125 चर्चा कीजिए

प्रश्न 8.
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान कितना आवश्यक है?
उत्तर:
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। अन्य क्षेत्र से आए यात्री को लोगों के धर्म और दर्शन, रीति-रिवाजों, मान्यताओं, प्रथाओं, सामाजिक जीवन, कला कानून आदि का विवरण प्रस्तुत करना होता है परन्तु स्थानीय क्षेत्र की भाषा के ज्ञान के अभाव में इनका यथार्थ, युक्तियुक्त और सटीक वर्णन करना अत्यन्त कठिन होता है। परिणामस्वरूप उसका वृत्तान्त अपूर्ण, संदिग्ध और भ्रामक होता है। उसे अपने ग्रन्थों में सुनी-सुनाई बातों पर अवलम्बित होना पड़ता है वह उनका उचित विश्लेषण नहीं कर पाता और तथ्यों की जांच-पड़ताल किये बिना ही उसे अपने ग्रन्थ में वर्णित करता है। अतः यात्री के लिए स्थानीय भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।

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पृष्ठ संख्या 126

प्रश्न 9.
नारियल कैसे होते हैं अपने पाठकों को यह समझाने के लिए इब्नबतूता किस तरह की तुलनाएँ प्रस्तुत करता है? क्या ये तुलनाएँ वाजिब हैं? वह किस तरह से यह दिखाता है कि नारियल असाधारण फल है? इब्नबतूता का वर्णन कितना सटीक है?
उत्तर:
इब्नबतूता ने लिखा है कि नारियल का वृक्ष बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसा दिखता है। इनमें अन्तर यह है कि एक से काष्ठ फल प्राप्त होता है जबकि दूसरे से खजूर इब्नबतूता ने नारियल को मानव सिर से तुलना करते हुए लिखा है कि नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मिलता-जुलता है क्योंकि इसमें भी दो आँखें और एक मुख है। इसके अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है और इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है। इब्नबतूता की तुलनाएँ वाजिब प्रतीत होती हैं। इब्नबतूता के अनुसार नारियल एक असाधारण फल है क्योंकि लोग इससे रस्सी बनाते हैं और इनसे जहाजों को सिलते हैं। उसका वर्णन बिल्कुल सटीक है।

पृष्ठ संख्या 126

प्रश्न 10.
आपके विचार में इसने इब्नबतूता का ध्यान क्यों खींचा? क्या आप इस विवरण में कुछ और जोड़ना चाहेंगे ?
उत्तर:
इब्नबतूता के देश के लोग पान से अपरिचित थे क्योंकि वहाँ पान नहीं उगाया जाता था अतः पान ने इब्नबतूता का ध्यान खींचा सुपारी के अतिरिक्त इलायची, गुलकन्द, मुलहठी, सौंफ आदि वस्तुएँ भी पान में डाली जाती हैं। पान में जर्द आदि का भी प्रयोग किया जाता है।

पृष्ठ संख्या 127

प्रश्न 11.
स्थापत्य के कौनसे अभिलक्षणों पर इब्नबतूता ने ध्यान दिया?
उत्तर:
इब्नबतूता ने स्थापत्य कला के विभिन्न अभिलक्षणों पर ध्यान दिया है; जैसेकि किले की प्राचीर, प्राचीर में खिड़की प्राचीरों में उपलब्ध विभिन्न सामग्री, प्राचीरों तथा इनके निर्माण की वास्तुकला, किले के विभिन्न प्रवेश द्वार, मेहराब, मीनारें, गुम्बद आदि ।

पृष्ठ संख्या 128

प्रश्न 12.
अपने वर्णन में इब्नबतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया?
उत्तर:
इब्नबतूता ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में उन सभी गतिविधियों को सम्मिलित किया जो उसके पाठकों के लिए अपरिचित थीं। इब्नबतूता दौलताबाद में गायकों के लिए निर्धारित बाजार, यहाँ की दुकानों, अन्य वस्तुओं, गायिकाओं द्वारा प्रस्तुत संगीत व नृत्य के कार्यक्रमों को देखकर अत्यधिक प्रभावित हुआ। अतः उसने इन गतिविधियों से अपने देशवासियों को परिचित कराने के लिए इन गतिविधियों को उजागर किया।

पृष्ठ संख्या 129

प्रश्न 13.
क्या सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था पूरे उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी?
उत्तर:
यह सम्भव नहीं है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था पूरे उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी। इसके लिए निम्नलिखित तर्फ प्रस्तुत किए जा सकते हैं–

  1. मुहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में फैला हुआ नहीं था। विजयनगर, बहमनी आदि दक्षिण भारत के राज्य सुल्तान के साम्राज्य में सम्मिलित नहीं थे। सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर भी मुहम्मद तुगलक का आधिपत्य नहीं था।
  2. भारत एक विशाल देश था। एक ओर यहाँ कठिन पर्वतीय क्षेत्र तथा रेगिस्तानी क्षेत्र स्थित थे, तो दूसरी ओर कुछ क्षेत्र समुद्रों से घिरे हुए थे इन सभी क्षेत्रों में पैदल डाक व्यवस्था का संचालन करना अत्यन्त कठिन था।
  3. मुहम्मद तुगलक को अपने शासन काल में निरन्तर विद्रोहों का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त उसकी योजनाओं की असफलता के कारण भी उपमहाद्वीप में अशान्ति, अराजकता एवं अव्यवस्था फैली हुई थी। अतः इन परिस्थितियों में सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में मुहम्मद बिन तुगलक की पैदल डाक व्यवस्था का संचालित होना सम्भव नहीं था।

पृष्ठ संख्या 131

प्रश्न 14.
बर्नियर के अनुसार उपमहाद्वीप में किसानों को किन-किन समस्याओं से जूझना पड़ता था? क्या आपको लगता है कि उसका विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक होता?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार उपमहाद्वीप में किसानों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –

  1. विशाल ग्रामीण अंचलों की भूमियाँ रेतीली या बंजर, पथरीली थीं।
  2. यहाँ की खेती अच्छी नहीं थी।
  3. कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता था।
  4. गवर्नरों द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण अनेक श्रमिक मर जाते थे।
  5. जब गरीब कृषक अपने स्वामियों की माँगों को पूरा करने में असमर्थ होते थे तो उन्हें जीवन निर्वाह के साधनों से वंचित कर दिया जाता था तथा उनके बच्चों को दास बना कर ले जाया जाता था।
  6. सरकार के निरंकुशतापूर्ण व्यवहार से हताश होकर अनेक किसान गाँव छोड़कर चले जाते थे।

बनिंदर निजी स्वामित्व का प्रबल समर्थक था। उसके अनुसार राजकीय भू-स्वामित्व ही भारतीय कृषकों को दयनीय दशा के लिए उत्तरदायी था। वह चाहता था कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित उसका विवरण यूरोप में उन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा, जो निजी स्वामित्व की अच्छाइयों को स्वीकार नहीं करते थे अतः हमें लगता है कि बर्नियर का विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक रहा।

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पृष्ठ संख्या 132

प्रश्न 15.
बर्नियर सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार करता है?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगल शासकों की नीतियों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप की भयावह स्थिति का चित्रण किया है उसके अनुसार मुगल शासकों की नीतियाँ कतई हितकारी नहीं हैं; उनका अनुसरण करने पर उनके राज्य इतने सुशिष्ट और फलते-फूलते नहीं रह जाएंगे तथा वह भी मुगल शासकों की तरह जल्दी ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे। पृष्ठ संख्या 133

प्रश्न 16.
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 में दिए गए विवरण से किन मायनों में भिन्न है?
उत्तर:
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 के उद्धरण में दिए गए विवरण के बिल्कुल विपरीत है। एक तरफ तो बर्निचर स्रोत 11 में भारत की सामाजिक-आर्थिक विपन्नता का वर्णन करता है, दूसरी तरफ इस खोत में दिए गए विवरण में बर्नियर ने भारत की सामाजिक-आर्थिक सम्पन्नता का वर्णन किया है। इस स्त्रोत में बर्नियर ने भारत की उच्च कृषि, शिल्पकारी, वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात जिसके एवज में पर्याप्त सोना, चाँदी भारत में आता था आदि का वर्णन किया है।

बर्नियर के वर्णन में यह भिन्नता सम्भवत: इसलिए है कि बर्नियर ने सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का भ्रमण किया; वहाँ की सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक परिस्थितियाँ इतनी उच्च नहीं थीं। बाद में वह ऐसे क्षेत्र में पहुँचा जहाँ कि विकास से सम्बन्धित परिस्थितियाँ बेहतर थीं। जैसेकि उपजाऊ कृषि भूमि, पर्याप्त श्रम उपलब्धता, विकसित शिल्पकारी इसलिए वहाँ की सम्पन्नता को देखकर बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में इसका वर्णन किया है।

पृष्ठ संख्या 134

प्रश्न 17.
बर्नियर इस विचार को किस प्रकार प्रेषित करता है कि हालांकि हर तरफ बहुत सक्रियता है, परन्तु उन्नति बहुत कम ?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार शिल्पकार अपने कारखानों में प्रतिदिन सुबह आते थे जहाँ ये पूरे दिन कार्यरत रहते थे और शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे। इस प्रकार नौरस वातावरण में कार्य करते हुए उनका समय बीतता जाता था। बर्नियर के अनुसार यद्यपि हर ओर बहुत सक्रियता है, परन्तु शिल्पकारों के जीवन में बहुत अधिक प्रगति दिखाई नहीं देती थी। वास्तव में कोई भी शिल्पकार जीवन की उन परिस्थितियों में सुधार करने का इच्छुक नहीं था जिनमें वह उत्पन्न हुआ था।

पृष्ठ संख्या 134

प्रश्न 18.
आपके विचार में बर्नियर जैसे विद्वानों ने भारत की यूरोप से तुलना क्यों की ?
उत्तर:
बर्नियर ने अपने ग्रंथ ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ में भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है। वह पश्चिमी संस्कृति का प्रबल समर्थक था उसने महसूस किया कि यूरोपीय संस्कृति के मुकाबले में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति निम्न कोटि की है अतः उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखलाया है अथवा फिर यूरोप का विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

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पृष्ठ संख्या 136 चर्चा कीजिए

प्रश्न 19.
आपके विचार में सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन ने इब्नबतूता और बर्नियर जैसे यात्रियों का ध्यान अपनी ओर क्यों नहीं खींचा?
उत्तर:
तत्कालीन युग में यात्रा-वृत्तान्त लिखने वाले यात्री राजदरबार, अभिजात वर्ग के लोगों की गतिविधियों का चित्रण करने में अधिक रुचि लेते थे। वे पुरुष प्रधान समाज का चित्रण करना ही अपना प्रमुख कर्तव्य समझते थे। अतः उन्होंने सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन से सम्बन्धित गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया।

पृष्ठ संख्या 136

प्रश्न 20.
यहाँ यातायात के कौन-कौनसे साधन अपनाए गए हैं ?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के चित्र 5.13 में यातायात के निम्नलिखित साधन अपनाए गए हैं-घोड़ा, घुड़सवार, घोड़ा- गाड़ी अथवा रथ, हाथी, महावत

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
‘किताब-उल-हिन्द’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
(1) ‘किताब-उल-हिन्द’ अरबी में लिखी गई अल बिरूनी की कृति है। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ अम्मी अध्यायों में विभाजित है।

(2) अल बिरनी ने प्राय: प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैल का प्रयोग किया. जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परम्पराओं पर आधारित वर्णन था और अना में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलना की गई थी। विद्वानों के अनुसार यह लगभग एक ज्यामितीय संरचना है, जिसका मुख्य कारण अल बिरूनी का गणित की ओर झुकाव था। यह ग्रन्थ अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए प्रसिद्ध है।

(3) अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। यह संस्कृत, प्राकृत तथा पालि ग्रन्थों के अरजी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों से परिचित था। इनमें दंत कथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा सम्बन्धी कृतियाँ भी शामिल थीं।

प्रश्न 2.
इब्नबतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोण से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तान्त लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अन्तर बताइये।
उत्तर:
(1) इब्नबतूता अन्य यात्रियों के विपरीत, पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था उसने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में अपने विचारों को सावधानी तथा कुशलतापूर्वक व्यक्त किया। राजाओं तथा सामान्य पुरुषों और महिलाओं के बारे में उसे जो कुछ भी विचित्र लगता था, उसका यह विशेष रूप से वर्णन करता था, ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से पूर्ण रूप से प्रभावित हो सकें। उसके पाठक नारियल तथा पान से अपरिचित थे अतः उसने इनका बड़ा रोचक वर्णन किया है। उसने कृषि, व्यापार तथा उद्योगों के उन्नत अवस्था में होने का वर्णन भी किया है। उसने भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता का भी वर्णन किया है जिसे देखकर वह चकित हो गया था।

(2) जहाँ इब्नबतूता ने हर उस चीज का वर्णन किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित और उत्सुक किया, वहीं दूसरी ओर बर्नियर ने भारत में जो भी देखा, वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेषकर फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करना चाहता था। उसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज और संस्कृति की त्रुटियों को दर्शाना तथा यूरोपीय समाज, प्रशासन तथा संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता का प्रतिपादन करना था।

प्रश्न 3.
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
शहरी केन्द्र
(1) बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहा है जिससे उसका आशय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। उसकी मान्यता थी कि वे नगर राजदरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे तथा इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे उसका यह भी कहना था कि इन नगरों का सामाजिक और आर्थिक आधार व्यावहारिक नहीं होता था और ये राजकीय संरक्षण पर आश्रित रहते थे। परन्तु बर्नियर का यह विवरण सही प्रतीत नहीं होता।

(2) वास्तव में उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि।

(3) सामान्यतः नगर में व्यापारियों का संगठन होता था पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को ‘महाजन’ कहा जाता था तथा उनके मुखिया को ‘सेट’ अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था।

(4) अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। इनमें से कुछ वर्गों को राज्याश्रय प्राप्त था तथा कुछ सामान्य लोगों की सेवा करके जीवनयापन करते थे।

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प्रश्न 4.
इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) बाजारों में दास अन्य वस्तुओं की भाँति खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंट स्वरूप दिए जाते थे।
(2) सिन्ध पहुँचने पर इब्नबतूता ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे थे।
(3) इब्नबतूता बताता है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक एक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास प्रदान किए थे।
(4) इब्नबतूता के विवरण से ज्ञात होता है कि दास भिन्न-भिन्न प्रकार के होते थे सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर दासियों के घरेलू श्रम के लिए प्रदर्शन से अत्यधिक आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीर की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
(5) सामान्यतः दासों का ह प्रयोग किया जाता था। ये दास पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने का काम करते थे। दासों विशेषकर उन दासियों की कीमत बहुत कम होती थी, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए होती थी। अधिकांश परिवार कम से कम एक या दो दासों को तो रखते ही थे।

प्रश्न 5.
सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
अथवा
सती प्रथा के बारे में बर्नियर ने क्या लिखा था ?
उत्तर:
लाहौर में वर्नियर ने एक अत्यधिक सुन्दर 12 वर्षीय विधवा को सती होते हुए देखा। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सती प्रथा के निम्नलिखित तत्त्वों ने बर्निवर का ध्यान अपनी ओर खींचा –

  1. बर्नियर के अनुसार अधिकांश विधवाओं को सती होने के लिए बाध्य किया जाता था।
  2. अल्पवयस्क विधवा को जलने के लिए बाध्य किया जाता भी आग में जीवित था उसके रोने, चिल्लाने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था उसके मस्तिष्क की पीड़ा अवर्णनीय थी।
  3. इस प्रक्रिया में ब्राह्मण तथा बूढ़ी महिलाएँ भी भाग लेती थीं।
  4. विधवा को उसकी इच्छा के विरुद्ध चिता में जलने के लिए जबरन ले जाया जाता था।
  5. सती होने वाली विधवा के हाथ-पांव बाँध दिए जाते थे, ताकि वह भाग न जाए।
  6. इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में सती होने वाली विधवा के करुणाजनक विलाप की ओर किसी का ध्यान नहीं जा पाता था।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
भारतीय जाति व्यवस्था के बारे में अल- बिरुनी का यात्रा वर्णन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल-बिरुनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल-विरुनी की व्याख्या अल बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के द्वारा जाति व्यवस्था को समझने और उसकी व्याख्या करने का प्रयास किया।
(1) प्राचीन फारस में सामाजिक वर्गों को मान्यता- अल बिरुनी के अनुसार प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता प्राप्त थी।

ये चार वर्ग निम्नलिखित थे-

  • घुड़सवार और शासक वर्ग
  • भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक
  • खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक
  • कृषक तथा शिल्पकार।

(2) अल बिरुनी का उद्देश्य फारस के सामाजिक वर्गों का उल्लेख करके अल-बिरनी यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे अपितु अन्य देशों में भी थे। इसके साथ ही उसने यह भी बताया कि इस्लाम में सभी लोगों को समन माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।

(3) अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार करना- यद्यपि अल बिरूनी जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानता था, फिर भी उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसने लिखा कि प्रत्येक यह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। उदाहरण के लिए सूर्य वायु को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है। अल-विरुनी इस बात पर बल देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जाता। अल बिरूनी का कहना था कि जाति व्यवस्था में संलग्न अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।

(4) भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था-अल-विरुनी ने भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है –

  • ब्राह्मण-ब्राह्मणों की जाति सबसे ऊँची थी हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे। इसी वजह से हिन्दू ब्राह्मणों को मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
  • क्षत्रिय अल बिरूनी के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि क्षत्रिय ब्रह्मन् के कंधों और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है।
  • वैश्य क्षत्रियों के बाद वैश्य आते हैं। वैश्य ब्रह्मन् की जंघाओं से उत्पन्न हुए थे।
  • शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन् के चरणों से हुआ अल बिरुनी के अनुसार अन्तिम दो वर्गों में अधिक अन्तर नहीं था परन्तु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी शहरों और गांवों में मिल-जुल कर रहते थे।

जाति व्यवस्था के बारे में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित होना-जाति-व्यवस्था के विषय में अल बिरूनी का विवरण संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतथा प्रभावित था। परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी। उदाहरण के लिए, अन्त्यज (जाति व्यवस्था में सम्मिलित नहीं की जाने वाली जाति) नामक श्रेणियों से सामान्यतया यह अपेक्षा की जाती थी कि वे कृषकों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम प्रदान करें।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 7.
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर:
समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली को समझने में इब्नबतूता के वृत्तान्त का सहायक होना हो, हमें लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्नबतूता का वृत्तांत काफी सहायक है। इसका कारण यह है कि उसने समकालीन शहरी केन्द्रों का विस्तृत विवरण दिया है उसकी जानकारी का मुख्य आधार उसका व्यक्तिगत सूक्ष्म अध्ययन एवं अवलोकन था। इब्नबतूता वृत्तान्त समकालीन शहरी केन्द्रों की जीवन-शैली के बारे में निम्नलिखित जानकारियाँ प्राप्त होती है –
(1) घनी आबादी वाले तथा समृद्ध शहर इब्नबतूत के अनुसार तत्कालीन नगर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। परन्तु कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों के कारण कुछ नगर नष्ट भी हो जाया करते थे।

(2) भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले बाजार अधिकांश शहरों में
भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे। ये बाजार विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।

(3) बड़े शहर इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली एक बहुत बड़ा शहर था जिसकी आबादी बहुत अधिक थी। उसके अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा शहर था दौलताबाद (महाराष्ट्र में भी कम नहीं था और आकार में वह दिल्ली को चुनौती देता था।

(4) सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्रबाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मन्दिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी निर्धारित थे।

(5) इतिहासकारों द्वारा इब्नबतूता के वृत्तान्त का प्रयोग करना – इतिहासकारों ने उसके वृत्तान्त का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि शहर अपनी सम्पत्ति का एक बड़ा भाग गाँवों से अधिशेष के अधिग्रहण से प्राप्त करते थे।

(6) कृषि का उत्पादनकारी होना इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के बहुत अधिक उत्पादनकारी होने का कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। इसी कारण किसान एक वर्ष में दो फसलें उगाते थे।

(7) उपमहाद्वीप का व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर- एशियाई तन्त्रों से जुड़ा होना इब्नबतूता के अनुसार उपमहाद्वीप का व्यापार तथा वाणिज्य अन्तर- एशियाई तत्वों से भली-भांति जुड़ा हुआ था। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत माँग थी। इससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ होता था भारतीय सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी। इब्नबतूता लिखता है कि महीन मलमल की कई किस्में तो इतनी अधिक महँगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत धनी लोग ही पहन सकते थे।

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प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि बर्निचर का वृत्तान्त किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?
अथवा
बर्नियर के अनुसार मुगलकालीन भारत में किसानों की क्या समस्याएँ थीं?
अथवा
बर्नियर के वृत्तान्त में समकालीन भारतीय समाज का जो चित्र उभरता है, उसकी चर्चा कीजिये।
उत्तर:
बर्नियर ने समकालीन ग्रामीण समाज का जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, वह सर्वथा सत्य नहीं है इसलिए क बर्नियर का वृत्तान्त इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में आंशिक रूप से ही सक्षम करता है, पूर्ण रूप से नहीं। बर्नियर ने तत्कालीन ग्रामीण समाज का जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, उसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत वर्णित किया जा सकता है-

(1) भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव बर्नियर न्द्र के अनुसार भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था। न्दर उसके अनुसार मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का कों, स्वामी था सम्राट इस भूमि को अपने अमीरों के बीच बाँटता था। इसके अर्थव्यवस्था तथा समाज पर हानिप्रद प्रभाव पड़ते थे।

(2) भूधारकों पर प्रतिकूल प्रभाव बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के कारण भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। परिणामस्वरूप निजी भू- स्वामित्व के अभाव से बेहतर भूधारकों के वर्ग का उदय नहीं हो सका, जो भूमि के रख-रखाव तथा सुधार के लिए प्रयास करता। इस वजह से कृषि का विनाश हुआ, किसानों का अत्यधिक उत्पीड़न हुआ और समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में निरन्तर पतन की स्थिति उत्पन्न हुई। परन्तु शासक वर्ग पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।

(3) भारतीय समाज दरिद्र लोगों का जनसमूह- बर्नियर के अनुसार भारतीय समाज दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना था। यह समाज अत्यन्त अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग के अधीन था। वर्नियर के अनुसार “भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं हैं।”

(4) मुगल साम्राज्य का रूप बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा ‘भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। इसके शहर तथा नगर विनष्ट थे तथा खराब हवा’ से दूषित थे। इसके खेत ‘शाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे, इसका केवल एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व बर्नियर के अनुसार ” यहाँ की खेती अच्छी नहीं है।

यहाँ तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि-विहीन रह जाता है। इनमें से कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के फलस्वरूप मर जाते हैं गरीब लोग जब अपने लोभी मालिकों की माँगों को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें न केवल जीवन निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है।”

(5) बर्नियर के वृत्तान्त की अन्य साक्ष्यों से पुष्टि नहीं होना आश्चर्य की बात यह है कि एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह संकेत नहीं करता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। बर्नियर का ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर होना वास्तव में बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।

सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े जमींदार थे तथा दूसरी ओर अस्पृश्य’ भूमिविहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था। इसके साथ ही कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी कठिनाई से अपने गुजारे के योग्य उत्पादन कर पाते थे।

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प्रश्न 9.
यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है – “ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुन्दर शिल्प कारीगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औजारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है कभी- कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अन्तर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में भारतीय लोग बेहतरीन बन्दूकें और ऐसे सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अक्सर इनके चित्रों की सुन्दरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।” उसके द्वारा उल्लिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर ने इस उद्धरण में बन्दूकें बनाने तथा सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाने आदि शिल्प कार्यों का उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि भारतीय स्वर्णकार ऐसे सुन्दर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है।
तुलना –
इस अध्याय में वर्णित अन्य शिल्प गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. कसीदाकारी
  2. चित्रकारी
  3. रंग-रोगन करना
  4. बद्देगिरी
  5. खरादी
  6. कपड़े सीन
  7. जूते बनाना
  8. रेशम, जरी और बारीक मलमल का काम
  9. सोने और चांदी के वस्त्र बनाना
  10. गलीचे बनानें का काम
  11. सोने के बर्तन बनाना आदि।

बर्नियर के अतिरिक्त मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने भी भारतीय वस्तुओं की अत्यधिक प्रशंख की है। इब्नबतूता ने शिल्प गतिविधियों का उल्लेख किया है उसके अनुसार सूती वस्त्र, महीन मलमल, रेशम के वस्त्र, जरी साटन आदि की विदेशों में अत्यधिक मांग थी। राजकीय कारखाने यनियर ने राजकीय कारखानों में होने वाली विविध शिल्प गतिविधियों का उल्लेख किया है शिल्पकार प्रतिदिन सुबह कारखानों में आते थे तथा वहाँ वे पूरे दिन कार्यरत रहते थे और शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे।

यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ JAC Class 12 History Notes

→ मध्यकालीन भारत में विदेशी यात्रियों का आगमन मध्यकाल में भारत में अनेक विदेशी यात्री आए, जिनमें अल- विरुनी, इब्नबतूता तथा फ्रांस्वा बर्नियर उल्लेखनीय हैं। इनके यात्रा वृत्तान्तों से मध्यकालीन भारत के सामाजिक जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

→ अल बिरूनी- अल बिरुनी का जन्म आधुनिक उत्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। अल बिरुनी सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत आदि भाषाओं का जाता था। 1017 में ख़्वारिज्य पर आक्रमण के बाद सुल्तान महमूद गजनवी अल बिरुनी आदि अनेक विद्वानों को अपने साथ गजनी ले आया था। अल-बिरुनी ने भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृत आदि का ज्ञान प्राप्त किया।

→ किताब-उल-हिन्द-अल-बिरूनी ने अरबी भाषा में किताब-उल-हिन्द नामक पुस्तक की रचना की। यह ग्रन्थ अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इसमें धर्म, दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सामाजिक जीवन, कानून, मापतन्त्र विज्ञान आदि विषयों का वर्णन है।

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→ इब्नबतूता इनका जन्म मोरक्को के सैंजियर नामक नगर में हुआ था। वह 1333 ई. में सिन्ध पहुँचा। सुल्तान महमूद तुगलक ने उसकी विद्वता से प्रभावित होकर उसे दिल्ली का काशी या न्यायाधीश नियुक्त किया। 1342 में उसे सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया 1347 में उसने वापस अपने घर जाने का निश्चय कर लिया 1354 में इब्नबतूता मोरक्को पहुँच गया। उसने अपना यात्रा-वृत्तान्त अरबी भाषा में लिखा, जो ‘रिला’ के नाम से प्रसिद्ध है। उसने अपने या वृत्तान्त में नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के बारे में लिखा है।

→ फ्रांस्वा बर्नियर-फ्रांस का निवासी फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा इतिहासकार था। वह 1656 से 1668 तक भारत में 12 वर्ष तक रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा।

→ ‘पूर्व’ और ‘पश्चिम’ की तुलना बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। परन्तु उसका आकलन हमेशा सटीक नहीं था। बर्नियर के कार्य प्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुए थे और अगले पाँच वर्षों में ही अंग्रेजी, डच, जर्मन तथा इतालवी भाषाओं में इनका अनुवाद हो गया।

→ भारतीय सामाजिक जीवन को समझने में बाधाएँ अल बिरुनी को भारतीय सामाजिक जीवन को समझने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। ये बाधाएँ थीं –
(1) संस्कृत भाषा की कठिनाई
(2) धार्मिक अवस्था और प्रथाओं में मित्रता
(3) अभिमान

→ अल बिरूनी का जाति व्यवस्था का विवरण अल बिरूनी ने जाति-व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी सिद्धान्तों को स्वीकार किया; परन्तु उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसके अनुसार प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरुनी का विवरण उसके नियामक संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्ण रूप से प्रभावित था।

→ इब्नबतूता तथा अनजाने को जानने की उत्कंठा इब्नबतूता ने अपनी भारत यात्रा के दौरान जो भी अपरिचित था, उसे विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें।

→ इब्नबतूता तथा नारियल और पान इब्नबतूता ने नारियल और पान दो ऐसी वानस्पतिक उपजों का वर्णन किया है, जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे उसके अनुसार नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानो दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है। उसके अनुसार पान एक ऐसा वृक्ष है, जिसे अंगूर लता की तरह ही उगाया जाता है।

→ इब्नबतूता और भारतीय शहर इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे इब्नबतूता दिल्ली को बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है। दौलताबाद (महाराष्ट्र) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था। बाजार केवल आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ‘तारावबाद’ कहते थे।

→ कृषि और व्यापार इब्नबतूता के अनुसार कृषि बड़ी उत्पादनकारी थी। इसका कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। किसान वर्ष में दो फसलें उगाते थे। भारतीय माल को मध्य तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया दोनों में बहुत माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों विशेष रूप से सूती कपड़े, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक महँगी होती थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत ही धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।

→ संचार की एक अनूठी प्रणाली इब्नबतूता के अनुसार लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह बने हुए थे। इब्नबतूता भारत की डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर चकित हुआ। डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं गुप्तचरों की खबरें सुल्तान तक इस डाक व्यवस्था के माध्यम से मात्र पाँच दिनों में पहुँच जाती थीं। इब्नबतूता के अनुसार भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी। अश्व डाक व्यवस्था जिसे ‘उलुक’ कहा जा था, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी पैदल डाक व्यवस्था में प्रति मील ती / अवस्थान होते थे, जिसे ‘दावा’ कहा जाता था। यह एक मील का एक तिहाई होता था।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

→ इब्नबतूता और बर्नियर जहाँ इब्नबतूता ने हर उस बात का वर्णन किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित किया, वहीं बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परम्परा से सम्बन्धित था। उसने भारत में जो भी देखा, उसको उसने यूरोप में व्याप्त स्थितियों से तुलना की। उसका उद्देश्य यूरोपीय संस्कृति की श्रेष्ठता प्रतिपादित करना था।

→ ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर बर्नियर ने ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि तथा गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है। बर्नियर ने अपने ग्रन्थ में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया है। इस ग्रन्थ में बर्नियर ने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है तथा प्रायः यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाया है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है अथवा फिर यूरोप का विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

→ भूमि स्वामित्व का प्रश्न बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। बर्नियर के अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक था। राजकीय भू-स्वामित्व के कारण, भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने के लिए दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन रहते थे। इस प्रकार निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भू-धारकों के वर्ग के उदय को रोका। इसके परिणामस्वरूप कृषि का विनाश हुआ तथा किसानों का उत्पीड़न हुआ।

→ बर्नियर द्वारा मुगल साम्राज्य का चित्रण वर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य का राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। इसके शहर और नगर विनष्ट तथा ‘खराब हवा’ से दूषित थे। इसके खेत ‘झाड़ीदार’ तथा ‘घातक दलदल से भरे हुए थे तथा इसका मात्र एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व। परन्तु किसी भी सरकारी मुगल दस्तावेज से यह बात नहीं होता कि राज्य ही भूमि का एक मात्र स्वामी था।

→ बर्नियर के विवरणों द्वारा पश्चिमी विचारकों को प्रभावित करना वर्नियर के विवरणों ने पश्चिमी विचारकों को भी प्रभावित किया। फ्रांसीसी दार्शनिक मॉटेस्क्यू ने उसके वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरकुंशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया। इसके अनुसार एशिया में शासक अपनी प्रजा के ऊपर अपनी प्रभुता का उपभोग करते थे, जिसे दासता तथा गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि समस्त भूमि पर राजा का स्वामित्व होता तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इसके अनुसार राजा और उसके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई से जीवन-यापन कर पाता था। उन्नीसवीं शताब्दी में कार्ल माक्र्स ने इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धांत के रूप में और आगे बढ़ाया।

→ बर्नियर द्वारा ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से दूर होना बर्नियर द्वारा ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से दूर था। एक ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर ‘अस्पृश्य’, भूमि विहीन श्रमिक (बलाहार) थे। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था, जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में लगा रहता था। कुछ छोटे किसान भी थे जो बड़ी कठिनाई से अपने जीवन निर्वाह के योग्य उत्पादन कर पाते थे।

→ एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई बर्नियर के विवरण से कभी-कभी एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई भी उजागर होती है। उसका कहना है कि यद्यपि उत्पादन हर जगह पतनोन्मुख था, फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चांदी के बदले निर्यात होता था। उसने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।

→ नगरों की स्थिति सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पन्द्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था। यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था। इतने पर भी बनिंवर ने मुगलकालीन शहरों को शिविर नगर’ कहा है जी अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे उसका विश्वास था कि ये शिविर नगर राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे जैसे उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र तीर्थ स्थान आदि।

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→ व्यापारी वर्ग वर्नियर के अनुसार व्यापारी प्रायः सुद्द सामुदायिक अथवा बन्धुत्व के सम्बन्धों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनका मुखिया सेठ कहलाता था।

→ व्यावसायिक वर्ग-अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।

→ राजकीय कारखाने सम्भवतः बर्नियर एकमात्र ऐसा इतिहासकार है जो राजकीय कारखानों की कार्य प्रणाली का विस्तृत विवरण देता है। उसने लिखा है कि कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते हैं, जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते हैं। एक कक्ष में कसीदाकार, एक अन्य में सुनार, तीसरे में चित्रकार, चौथे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले पाँचवें में बढ़ई, छठे में रेशम, जरी तथा महीन मलमल का काम करने वाले रहते हैं।

→ महिलाएँ दासियाँ, सती तथा श्रमिक बाजारों में दास खुले आम बेचे जाते थे सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। इब्नबतूता सुल्तान की बहिन की शादी के अवसर पर दासियाँ के संगीत और नृत्य के प्रदर्शन से खूब आनन्दित हुआ। सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। दासों का सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था। मुगलकालीन भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। बर्नियर ने लिखा है कि यद्यपि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, परन्तु अन्यों को मरने के लिए बाध्य किया जाता था। महिलाओं का श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन दोनों में महत्त्वपूर्ण था। व्यापारिक परिवारों से आने वाली महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थीं। अतः महिलाओं को उनके घरों के विशेष स्थानों तक परिसीमित कर नहीं रखा जाता था।

काल-रेखा
कुछ यात्री जिन्होंने वृत्तान्त छोड़े

दसरीं-ग्यारहवीं शताब्दियाँ 973-1048 मोहम्मद इब्न अहमद अबू रेहान अल-बिरुनी (उज्ञेकिस्तान से)
तेरहवीं शताब्दी 1254-1323 मार्को पोलो (इटली से)
चौदहर्वीं शताब्दी 1304-77 इब्नतूता (मोरक्को से)
पन्द्रहवीं शताब्दी 1413-82 अब्द अल-रज़्जाक कमाल अल-दिन इब्न इस्हाक अल-समरकन्दी (समरकन्द से)
1466-72 अफानासी निकितिच निकितिन (पन्द्रहर्वीं शताब्दी, रूस से)
(भारत में बिताये वर्ष) दूरते बारबोसा, मृत्यु 1521 (पुर्तगाल से)
सोलहवीं शताब्दी 1518 (भारत की यात्रा) सयदी अली रेइस (तुर्की से)
1562 (मृत्यु का वर्ष) अन्तोनियो मानसेरते (स्पेन से)
1536-1600 महमूद वली बलखी (बल्खू से)
सत्रहवीं शताब्दी 1626-31 (भारत में बिताए वर्ष) पींटरमुंडी (इंग्लैण्ड से)
1600-67 ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्नियर (फ्रांस से)
1605-89 फ्रांस्वा बर्नियर (फ्रांस से)
1620-88 मोहम्मद इब्न अहमद अबू रेहान अल-बिरुनी (उज्ञेकिस्तान से)
नोट-जहाँ कोई अन्य संकेत नहीं है तिथियाँ यात्री के जीवन काल को बता रही हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Jharkhand Board Class 12 History विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 84

प्रश्न 1.
यज्ञ के उद्देश्यों की सूची बनाइये।
उत्तर:

  • यज्ञ करने वाले की आहूति को देवताओं तक पहुँचाना।
  • प्रचुर खाद्य पदार्थ प्राप्त करना।
  • प्रचुर धन प्राप्त करना।
  • पुष्टिवर्धक गाय प्राप्त करना।
  • वंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र की प्राप्ति करना।

पृष्ठ संख्या 87

प्रश्न 2.
क्या इन लोगों को नियतिवादी या भौतिकवादी कहना आपको उचित लगता है?
उत्तर:
मक्खलि गोसाल एक प्रसिद्ध नियतिवादी दार्शनिक थे। उनके अनुसार सब कुछ पूर्व निर्धारित है। सुख और दु:ख पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। दूसरी ओर केसकम्बलिन भौतिकवादी दार्शनिक थे। उनके अनुसार दान, यज्ञ, चढ़ावा आदि सब निरर्थक हैं। इन लोगों के अलग-अलग सिद्धान्तों को देखते हुए इन्हें नियतिवादी या भौतिकवादी कहना उचित है।

पृष्ठ संख्या 87 चर्चा कीजिए

प्रश्न 3.
जब लिखित सामग्री उपलब्ध न हो अथवा किन्हीं वजहों से बच न पाई हो तो ऐसी स्थिति में विचारों और मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में क्या समस्याएँ सामने आती हैं?
उत्तर:
जब लिखित सामग्री उपलब्ध न हो अथवा किन्हीं कारणों से बच न पाई हो तो ऐसी स्थिति में विचारों और मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में निम्नलिखित समस्याएँ सामने आती हैं –

(1) हमें विचारों और मान्यताओं के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए इमारतों, मूर्तियों, अभिलेखों, चित्रों आदि का सहारा लेना पड़ता है। परन्तु दुर्भाग्य से अनेक इमारतें, मूर्तियाँ, अभिलेख, चित्र आदि नष्ट हो गए हैं। उदाहरण के लिए सांची का स्तूप तो सुरक्षित है, परन्तु अमरावती का स्तूप नष्ट हो गया है। इसलिए हमें तत्कालीन विचारों और 1. मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

(2) किसी मूर्तिकला अंश को देखकर फूस की झोंपड़ी तथा पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य की झलक मिलती है। परन्तु कुछ कला इतिहासकार इसे वेसान्तर जातक से लिया गया एक दृश्य बताते हैं। इससे स्पष्ट है कि प्राय: इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या, लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं। परन्तु लिखित साक्ष्यों के अभाव में ऐसा करना सम्भव नहीं होता। (चित्र 4. 13, पृ० 100 )

(3) साँची की मूर्तियों में अनेक प्रतीक पाए गए हैं। इन प्रतीकों में कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति प्रमुख है। कुछ इतिहासकार मूर्ति को बुद्ध की माता माया से जोड़ते हैं तो अन्य इतिहासकार उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। लिखित सामग्री के अभाव में इस प्रकार की निश्चित जानकारी नहीं मिल पाती।

पृष्ठ संख्या 88

प्रश्न 4.
महारानी कमलावती द्वारा अपने पति को संन्यास लेने के लिए दिया गया कौनसा तर्क आपको सबसे ज्यादा युक्तियुक्त लगता है?
उत्तर:
महारानी कमलावती ने अपने पति को संन्यास लेने के लिए यह तर्क दिया कि “यदि सम्पूर्ण विश्व और वहाँ के सभी खजाने तुम्हारे हो जायें, तब भी तुम्हें सन्तोष नहीं होगा और न ही यह सब कुछ तुम्हें बचा पाएगा। जब तुम्हारी मृत्यु होगी तो सारा धन पीछे छूट जाएगा, तब केवल धर्म अर्थात् सत्कर्म ही तुम्हारी रक्षा करेगा।” इस प्रकार महारानी कमलावती द्वारा अपने पति को संन्यास लेने के लिए यह तर्क सर्वाधिक युक्तियुक्त लगता है कि राजा को संसार के सुखों और धन-दौलत का परित्याग कर संन्यास ले लेना चाहिए।

पृष्ठ संख्या 89 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 5.
क्या बीसवीं शताब्दी में अहिंसा की कोई प्रासंगिकता है?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी में भी अहिंसा की प्रासंगिकता बनी हुई है। महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध आदि चिन्तकों ने मानव जाति को अहिंसा का सन्देश दिया था। अहिंसा का सिद्धान्त आज भी महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी बना हुआ है। उग्रराष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्द्धा आदि के कारण युद्ध के बादल मंडराते रहते हैं युद्धों में भीषण विनाशलीला होती है तथा लोगों को भी भीषण कष्ट उठाने पड़ते हैं। युद्धों और रक्तपात से किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। हिंसा से कटुता बढ़ती है और समाज में अशान्ति एवं अव्यवस्था फैलती है। इसलिए अहिंसा का पालन करते हुए ही युद्धों और रक्तपात से बचा जा सकता है। अहिंसा के द्वारा ही समाज में सौहार्द, सहयोग, शान्ति एवं सुरक्षा का वातावरण बना रह सकता है। अत: इक्कीसवीं शताब्दी में भी अहिंसा की प्रासंगिकता है।

पृष्ठ संख्या 89

प्रश्न 6.
क्या आप इसकी (चित्र 4.6) लिपि को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 89 के चित्र क्रमांक 4.6 में दर्शायी गई चौदहवीं शताब्दी की जैन ग्रन्थ की पाण्डुलिपि है जो प्राकृत भाषा में लिखी गई है।

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पृष्ठ संख्या 90 चर्चा कीजिए

प्रश्न 7.
यदि आप बुद्ध के जीवन के बारे में नहीं जानते तो क्या आप मूर्ति को देखकर समझ पाते कि उसमें क्या दिखाया गया है?
उत्तर:
इतिहासकारों ने बुद्ध के जीवन के बारे में चरित लेखन से जानकारी इकट्ठी की है। अतः यदि हम बुद्ध के जीवन के बारे में नहीं जानते, तो इस मूर्ति ( पृ० 90) को देखकर हम कुछ भी सही अनुमान नहीं लगा सकते थे कि यह मूर्ति युद्ध के जीवन से सम्बन्धित किस घटना पर प्रकाश डालती है। इस मूर्ति से पता चलता है कि संन्यासी को देखकर बुद्ध ने संन्यास का रास्ता अपनाने का निश्चय किया और महल त्यागकर सत्य की खोज में निकल गए। पृष्ठ संख्या 91

प्रश्न 8.
आप सुझाव दीजिए कि माता-पिता, शिक्षकों और पत्नी के लिए किस तरह के निर्देश दिए गए होंगे?
उत्तर:
(1) माता-पिता की सेवा करनी चाहिए और उनकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।
(2) शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और उनके आदेशों का पालन करना चाहिए।
(3) पत्नी के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए और सुख-दुःख में उसका साथ देना चाहिए।

पृष्ठ संख्या 92 चर्चा कीजिए

प्रश्न 9.
बुद्ध द्वारा सिगल को दी गई सलाह की तुलना अशोक द्वारा उसकी प्रजा (अध्याय 2) को दी गई सलाह से कीजिए। क्या आपको कुछ समानताएँ और असमानताएँ नजर आती हैं?
उत्तर:
बुद्ध द्वारा सिंगल को दी गई सलाह की तुलना अशोक द्वारा उसकी प्रजा को दी गई सलाह से करने पर निम्नलिखित समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं- समानताएँ-

  • संन्यासियों और ब्राह्मणों की देखभाल करना
  • सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार
  • बड़ों के प्रति आदर
  • दूसरे धर्मों और परम्पराओं का सम्मान।

असमानताएँ –

  • ब्राह्मणों और भ्रमण के स्वागत में हमेशा घर खुले रखकर और उनकी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करना
  • नौकरों और कर्मचारियों को भोजन और मजदूरी देना, बीमार पड़ने पर उनकी सेवा करना, उनके साथ स्वादिष्ट भोजन बाँटना और समय-समय पर उन्हें अवकाश देना।

पृष्ठ संख्या 93

प्रश्न 10.
बुद्ध की कौन-सी शिक्षाएँ ‘बेरीगाथा’ नज़र आती हैं? देना।
उत्तर:
(1) बुरे कर्मों का परित्याग।
(2) जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का विरोध।
(3) कर्मों के फल और पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर बल
(4) सत्कर्म करने पर बल देना।
(5) आडम्बरों और कर्मकाण्डों का विरोध।

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पृष्ठ संख्या 94

प्रश्न 11.
क्या आप बता सकते हैं कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम क्यों बनाए गए ?
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए संघ की स्थापना की संघ ऐसे भिक्षुओं की संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गए। बाद में भिक्षुणियों को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान की गई। धीरे-धीरे भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या बढ़ने लगी। अतः संघ में अनुशासन तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए संघ प्रणाली को सफल बनाने के लिए और सभी कार्यों के सुचारु रूप से संचालन के लिए भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए नियम बनाए गए। पृष्ठ संख्या 94 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
पुन्ना जैसी दासी संघ में क्यों जाना चाहती थी?
उत्तर:
पुन्ना एक निर्धन दासी थी वह अपने स्वामी के घर के लिए प्रतिदिन प्रातः नदी का पानी लेने जाती थी। उच्च वर्णों के लोग निम्न वर्गीय माने जाने वाली दासियों का शोषण करते थे। वे उनके साथ कठोर व्यवहार करते थे। पुन्ना को भीषण ठंड में भी नदी से पानी लाना पड़ता था तथा ऐसा न करने पर उसे दंड भुगतना पड़ता था या उच्च घरानों की स्वियों के कटु वचन सुनने पड़ते थे अतः अपनी अपमानजनक एवं दयनीय स्थिति से मुक्ति पाने तथा समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त करने के लिए पुन्ना संघ में जाना चाहती थी। संघ में सभी भिक्षुओं और भिक्षुणियों को बराबर माना जाता था और वहाँ उन्हें सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था क्योंकि भिक्षु तथा भिक्षुणी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।

पृष्ठ संख्या 96

प्रश्न 13.
चित्र 4.15 (पृ. 100) को देखकर क्या आप इनमें से कुछ रीति-रिवाजों को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
(1) यह स्तूप बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। इससे पता चलता है कि स्तूपों का निर्माण बुद्ध अथवा बोधिसत्वों के अवशेष रखने के लिए किया जाता था।
(2) इससे पता चलता है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी स्तूपों की पूजा करते थे।
(3) स्तूप की पूजा के लिए समारोह आयोजित किए जाते थे।
(4) इस अवसर पर नृत्य तथा संगीत का भी आयोजन किया जाता था।

पृष्ठ संख्या 97 चर्चा कीजिए

प्रश्न 14.
साँची के महास्तूप के मापचित्र (चित्र 4.10क) और छायाचित्र (चित्र 4.3 ) में क्या समानताएँ और फर्क हैं?
उत्तर:
मापचित्र तथा छायाचित्र में निम्नलिखित समानताएँ और फर्क हैं –
(1) चित्र 4.10 (क) में साँची के महास्तूप की योजना को उसके समतलीय परिप्रेक्ष्य में दिखाया गया है, जबकि चित्र 43 में स्तूप को उसके वास्तविक स्वरूप में दिखाया गया है।
(2) चित्र 4.10 (क) से स्तूप की पूर्ण बनावट, उसके चारों तोरण द्वार तथा मध्य का भाग स्पष्ट होता है। जबकि चित्र 43 से ऐसा स्पष्ट नहीं होता है।
(3) चित्र 4.10 (क) में स्तूप के प्रदक्षिणा पथ को भी स्पष्ट देखा जा सकता है; जबकि चित्र 43 में प्रदक्षिणा पथ दिखाई नहीं देता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्तूप की बनावट की संरचना को समझाने हेतु चित्र 4.10
(क) एवं
(ख) सहायक हो सकते हैं।
चित्र 43 द्वारा स्तूप की संरचना को समझना कठिन है। यह चित्र 43 प्रत्यक्ष दर्शन के लिए प्रेरित करता है।

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पृष्ठ संख्या 99 : चर्चा कीजिए

प्रश्न 15.
कारण बताइये कि साँची क्यों बच गया?
उत्तर:
साँधी इसलिए बच गया क्योंकि उसके किसी पुरातात्विक अवशेष को वहाँ से उठाकर नहीं ले जाया गया तथा पुरातात्विक अवशेष खोज की जगह पर ही संरक्षित किए गए 1818 में जब साँची की खोज हुई, इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे चौथा तोरणद्वार वहीं पर गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी हालत में था। उस समय भी यह सुझाव दिया गया था कि तोरणद्वारों को पेरिस या लन्दन भेज दिया जाए। परन्तु ये सुझाव कार्यान्वित नहीं हुए और साँची का स्तूप वहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है। भोपाल के शासकों ने भी इस स्तूप के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रकार साँची बच गया, जबकि अमरावती नष्ट हो गया।

पृष्ठ संख्या 103 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
मूर्तिकला के लिए हड्डियों, मिट्टी और धातुओं का भी इस्तेमाल होता है। इनके विषय में पता कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा काल में मूर्तिकला हेतु मिट्टी, पत्थर, धातुओं और हड्डी का प्रयोग होता था। यह सामग्री इसलिए प्रयोग में लाई जाती थी कि इन पर तकनीकी रूप से उत्कीर्णन का कार्य सरल था तथा यह वस्तुएँ सर्वसुलभ और सस्ती थीं।

पृष्ठ संख्या 104

प्रश्न 17.
मूर्ति में दी गई आकृतियों के आपसी अनुपात में फर्क से क्या बात समझ में आती है?
उत्तर:
चित्र 4.23 भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक वराह अवतार का है। भगवान विष्णु ने अपने इस अवतार से पृथ्वी की रक्षा की थी तथा इसे पाताल लोक अथवा समुद्र से निकालकर पुनः यथास्थान स्थापित किया था चित्र में बनायी गई आकृतियों को हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं –
(1) चित्र का मुख्य कथानक भगवान विष्णु का वराह अवतार रूपी मूर्ति है। इसे आप चित्र के मध्य में तथा नीचे से ऊपर तक देख सकते हैं। इस अवतार में भगवान ने अत्यधिक विशाल रूप धारण किया था। अतः इन्हें यहाँ अन्य मूर्तियों की अपेक्षा विशाल रूप में दिखाया गया है।

(2) चित्र में नीचे दायीं ओर पाताल देवता तथा उसकी पत्नी को छोटे रूप में दिखाया गया है, जो सपत्नीक वराह की स्तुति कर रहा है।

(3) चित्र में ऊपर दायीं ओर वराह भगवान ने अपने मुख के धुधन से पृथ्वी देवी को पकड़ा हुआ है जो पाताल से उन्हें बाहर निकालकर लाए हैं। अतः यहाँ पृथ्वी को वराह की अपेक्षा अत्यन्त लघु रूप में दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 105

प्रश्न 18.
कलाकारों ने किस प्रकार गति को दिखाने की कोशिश की है? इस मूर्ति में बताई कहानी के बारे में जानकारी इकट्ठी कीजिए ।
उत्तर:
इस चित्र में कलाकारों ने युद्ध-विषयक गति दिखाने का प्रयास किया है। इसमें देवी महिषासुर नामक दैत्य को मारने का प्रयास कर रही हैं। चित्र में आप भैंसे के चित्र वाले दैत्य को भी देख सकते हैं। यहाँ देवी को सिंह पर बैठे हुए तथा हाथ में धनुष लिए दिखाया गया है। विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक के चित्र 4.24 को देखें।

पृष्ठ संख्या 106 प्रश्न

19. गर्भगृह के प्रवेश द्वार और शिखर के अवशेषों को पहचानें।
उत्तर:
चित्र 4.25 के अवलोकन से पता लगता है कि सीढ़ियों के समक्ष वाला द्वार गर्भगृह का द्वार है। प्रवेश द्वार के शीर्ष पर मन्दिर के शिखर के अवशेष दिखाई दे रहे हैं। मन्दिर देवगढ़ में स्थित है तथा यह गुप्तकालीन मन्दिर है। मन्दिर का निर्माण एक ऊँचे चबूतरे पर किया गया है।

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Jharkhand Board Class 12 History विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Text Book Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए-

प्रश्न 1.
क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
उपनिषदों के दार्शनिकों के विचारों की नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचारों से भिन्नता उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार उपनिषदों में ब्रह्म, आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म तथा मोक्ष सम्बन्धी दार्शनिक विचारों की विवेचना की गई है। उपनिषदों के अनुसार आत्मा ब्रह्म की ही ज्योति है और उससे भिन्न नहीं है। उपनिषदों के अनुसार मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसी के अनुसार अच्छे और बुरे कर्मों का फल भोगने के लिए उसका अगला जन्म होता है अच्छे कर्मों से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है परन्तु नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचारों में ब्रह्म और आत्मा की एकता, कर्म और पुनर्जन्म तथा मोक्ष सम्बन्धी विचारों को कोई स्थान नहीं है।

नियतिवादियों तथा भौतिकवादियों के विचार – नियतिवादियों के अनुसार मनुष्य के सुख और दुःख पूर्व- निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। इन्हें संसार में बदला नहीं जा सकता। इन्हें बढ़ाया या घटाया भी नहीं जा सकता। इसी प्रकार भौतिकवादियों की मान्यता है कि संसार में दान देना, यज्ञ करना या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं होती। मनुष्य की मृत्यु के साथ ही चारों तत्व नष्ट हो जाते हैं जिनसे वह बना होता है। दान देने का सिद्धान्त मूर्खतापूर्ण और नितान्त झूठ है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे।

प्रश्न 2.
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए।
अथवा
जैन धर्म के अहिंसा सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) जैन दर्शन के अनुसार सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यह माना जाता है कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। जैन धर्म के अनुसार इन्सानों, जानवरों, पेड़-पौधों कीड़े- मकोड़ों आदि की हत्या नहीं करनी चाहिए। वास्तव में जैन अहिंसा के सिद्धान्त ने सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन परम्परा को प्रभावित किया है।
(3) जैन धर्म के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। इस चक्र से मुक्ति पाने के लिए त्याग और तपस्या की आवश्यकता होती है। यह संसार के त्याग से ही सम्भव हो पाता है। इसलिए मुक्ति के लिए बिहारों में निवास करना चाहिए।
(4) जैन साधुओं और साध्वियों को पाँच व्रतों का पालन करना चाहिए। ये पाँच व्रत हैं –

  • हत्या न करना
  • चोरी न करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचर्य (अमृषा) का पालन करना तथा
  • धन संग्रह न करना।

प्रश्न 3.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सम्बन्ध में उन्होंने निम्नलिखित कार्य किए –
(1) शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया।
(2) सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया।
(3) जॉन मार्शल ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तानजहाँ बेगम को समर्पित किया। इन पुस्तकों के प्रकाशन में सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया।
(4) प्रारम्भ में फ्रांसीसियों ने तथा बाद में अंग्रेजों ने साँची के पूर्वी तोरणद्वार को अपने-अपने देश में ले जाने का प्रयास किया। परन्तु भोपाल की बेगमों ने उन्हें स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियाँ देकर सन्तुष्ट कर दिया। इस प्रकार बेगमों के प्रयासों के परिणामस्वरूप साँची के स्तूप की मूलकृति भोपाल राज्य में अपने स्थान पर ही रही।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए – महाराज हुविष्क ( एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।
(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं?
(घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रन्थों को जानती थीं?
(ङ) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?
उत्तर:
(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कुषाण शासक महाराज हुविष्क के शासनकाल की सहायता से निश्चित की यह तारीख हुविष्क के शासनकाल के तैंतीसवें साल की ग्रीष्म ऋतु के पहले महीने का आठवाँ दिन है।
(ख) धनवती एक बौद्ध भिक्षुणी थी उनकी बौद्ध धर्म में अत्यधिक श्रद्धा थी अतः उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा एवं सम्मान प्रकट करने के लिए बोधिसत की मूर्ति स्थापित की।
(ग) वेमौसी बुद्धमिता तथा अपने माता-पित्ता का नाम लेती है.
(घ) वे त्रिपिटक नामक बौद्ध ग्रन्थों को जानती थीं।
(ङ) उन्होंने ये पाठ अपने गुरु भिक्षु बल तथा अपनी मौसी बुद्धमिता से सीखे थे।

प्रश्न 5.
आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते
उत्तर:
बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए एक संघ की स्थापना की। स्त्री और पुरुष निम्नलिखित कारणों से संघ में जाते थे –
(1) वे संघ में रहते हुए बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन कर सकते थे।
(2) वे बौद्ध भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों से बौद्ध धर्म की शिक्षाओं और दार्शनिक सिद्धान्तों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
(3) वे संघ में जाकर धम्म के शिक्षक बन सकते थे।
(4) अनेक स्त्रियों धम्म की उपदेशिकाएँ अथवा धेरी बनना चाहती थीं।
(5) वे धम्म से सम्बन्धित अपनी शंकाओं का समाधान करना चाहते थे।
(6) वे अपने जीवन को सफल, सुखी एवं अनुशासित करना चाहते थे।

निम्नलिखित पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?
अथवा
“साँची की खोज ने प्रारम्भिक बौद्ध धर्म सम्बन्धी हमारे ज्ञान को अत्यधिक रूपान्तरित कर दिया है।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
साँची की मूर्ति कला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से सहायता मिलना
साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से हमें निम्न रूप से सहायता मिलती है-

(1) इतिहासकारों द्वारा मूर्तिकला की व्याख्या- इस मूर्तिकला अंश में फूस की झोंपड़ी और पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य का चित्रण दिखाई देता है परन्तु साँची की मूर्तिकला का गहन अध्ययन करने वाले कला इतिहासकार इसे वेसान्तर जातक से लिया गया एक दृश्य बताते हैं। यह कहानी एक ऐसे दानशील राजकुमार के बारे में है, जिसने अपना सर्वस्व एक ब्राह्मण को दे दिया और स्वयं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगल में रहने चला गया। इस उदाहरण से पता चलता है कि प्रायः इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित
साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं।

(2) बुद्ध के चरित लेखन के बारे में जानकारी प्राप्त करना बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित लेखन के बारे में जानकारी प्राप्त करनी पड़ी। बौद्ध चरित लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे चिंतन करते हुए बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए ‘रिक्त स्थान’ बुद्ध के ध्यान की दशा तथा स्तूप ‘महापरिनिब्बान’ के प्रतीक बन गए। ‘चक्र’ का भी प्रतीक के रूप में प्रायः प्रयोग किया गया। यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए प्रथम उपदेश का प्रतीक था।

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(3) लोक परम्पराएँ साँची की बहुत सी मूर्तियाँ शायद बौद्धमत से सीधी सम्बन्धित नहीं थीं। इनमें कुछ सुन्दर स्त्रियाँ भी मूर्तियों में उत्कीर्णित हैं, जो तोरणद्वार के किनारे एक वृक्ष पकड़ कर झूलती हुई दिखाई देती हैं। प्रारम्भ में विद्वान इस मूर्ति के महत्व के बारे में कुछ असमंजस में थे क्योंकि इस मूर्ति का त्याग और तपस्या से कोई सम्बन्ध दिखाई नहीं देता था परन्तु साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन से उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परां में यह माना जाता था कि इस स्वी के द्वारा हुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल होने लगते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इसी कारण स्तूप के अलंकरण में यह प्रयुक्त हुआ।

(4) साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीकों का लोक परम्पराओं से उभरना ‘शालभंजिका’ की मूर्ति से ज्ञात होता है कि जो लोग बौद्ध धर्म में आए, उन्होंने बुद्ध- पूर्व और बौद्ध धर्म से अलग अन्य विश्वासों, प्रथाओं और धारणाओं से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया। साँची की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न निश्चित रूप से इन्हीं परम्पराओं से उभरे थे।

उदाहरण के लिए, सांची में जानवरों के कुछ बहुत सुन्दर उत्कीर्णन प्राप्त हुए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय-बैल सम्मिलित हैं। यद्यपि साँची में जातकों से ली गई जानवरों की अनेक कहानियाँ हैं फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था उदाहरण के लिए, हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

(5) कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति का उत्कीर्णन साँची में इन प्रतीकों में कमलदल और हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति प्रमुख है। हाथी उनके ऊपर जल छिड़क रहे हैं, जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हैं। कुछ इतिहासकार इस महिला को बुद्ध की माता भाषा से जोड़ते हैं तो कुछ अन्य इतिहासकार उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध थीं, जिन्हें प्रायः हाथियों के साथ जोड़ा जाता है। यह भी सम्भव है कि इन उत्कीर्णित मूर्तियों को देखने वाले उपासक इस महिला को माया और गजलक्ष्मी दोनों से जोड़ते थे।

(6) स्तम्भों पर सर्पों का उत्कीर्णन कुछ स्तम्भों पर सर्पों का उत्कीर्णन है। यह प्रतीक भी ऐसी लोक परम्पराओं से लिया गया प्रतीत होता है जिनका ग्रन्थों में सदैव उल्लेख नहीं होता था। प्रसिद्ध कलामर्मज्ञ और इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने साँची को वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र माना था। वे बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञ थे। उस 5 समय तक अधिकांश बौद्धग्रन्थों का अनुवाद नहीं हुआ था। इसलिए उन्होंने केवल उत्कीर्णित मूर्तियों का अध्ययन करके उसके निष्कर्ष निकाले थे।

प्रश्न 7.
चित्र 4.32 और 4.33 में साँची से लिए गए दो परिदृश्य दिए गए हैं। आपको इनमें क्या नजर आता है? वास्तुकला, पेड़-पौधे और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धन्धों को पहचानकर यह बताइये कि इनमें से कौनसे ग्रामीण और कौनसे शहरी परिदृश्य हैं?
उत्तर:
देखें पाठ्यपुस्तक, चित्र 4.32 (पृष्ठ 112) – यह चित्र ग्रामीण परिदृश्य से सम्बन्धित है। इसमें अनेक पेड़-पौधे, जानवर भी दिखाए गए हैं। इसमें मनुष्य और पशु जैसे हिरण, गाय, भैंस आदि दर्शाये गए हैं। इससे ज्ञात होता है कि ग्रामीण लोगों के जीवन में पशुओं का अत्यधिक महत्त्व था। चित्र में लोगों को संगीत-नृत्य की मुद्रा में दिखाया गया है जिससे ज्ञात होता है कि संगीत-नृत्य आदि उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। चित्र में लोगों को बुद्ध और बोधिसत्वों की पूजा करते हुए दिखाया गया है। इससे पता चलता है कि बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियाँ बनाई जाती थीं तथा उनकी उपासना की जाती थी ये बुद्ध और बोधिसतों की उपासना करते हुए दिखाए गए हैं।

इस चित्र से पशुओं, पेड़-पौधों के प्रति बौद्धों के करुणामय दृष्टिकोण तथा अहिंसा के प्रति अटूट श्रद्धा की जानकारी मिलती है। यद्यपि साँची में जातकों से ली गई जानवरों की कई कहानियाँ हैं, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था।

साँची में पेड़-पौधों का भी प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता था। पेड़ का तात्पर्य एक पेड़ नहीं था, वरन् वह बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक था इस प्रकार इस चित्र में तत्कालीन ग्रामीण परिवेश के बारे में जानकारी मिलती। है। इससे हमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी मिलती है।

देखें पाठ्यपुस्तक, चित्र 4.33 ( पृष्ठ 112 ) – यह चित्र शहरी परिदृश्य से सम्बन्धित है। इससे तत्कालीन वास्तुकला एवं मूर्तिकला की विशेषताओं के बारे में जानकारी मिलती है। इस चित्र में बड़े-बड़े सुन्दर स्तम्भ, स्तम्भों के ऊपर उल्टे कलश और उनके ऊपर विभिन्न पशुओं का उत्कीर्णन किया गया है। कलशों के ऊपर दो दिशाओं में घोड़े तथा शेर आदि की मूर्तियाँ बनी हुई है। इसमें प्रथम दो भागों में एक आसन पर एक राजा बैठा हुआ है जिसके ऊपर एक छत्र लगा है तथा उसके पीछे दो सेवक पंखा कर रहे हैं।

स्तम्भों के नीचे जालीदार सुन्दर कार्य दर्शाया गया है। इसमें विभिन्न भिक्षुओं, भिक्षुणियों, व्यवसायियों आदि को विभिन्न रूपों में उत्कीर्णित किया गया है। इस चित्र के निचले भाग में भिक्षु बुद्ध और बोधिसत्तों की उपासना में लीन हैं। इसमें वाद्ययन्त्र बजाते हुए भी लोगों को दिखाया गया है। इसमें विभिन्न पशुओं की जो मूर्तियाँ दर्शाई गई हैं वे मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में हैं। उदाहरण के लिए हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

प्रश्न 8.
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वैष्णववाद तथा शैववाद का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है। यदि हम जॉन मार्शल के कथन को सही मानें तो मोहन जोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा जिस पर योगी की मुद्रा उभरी हुई है वह और कोई नहीं अपितु शिव ही हैं। इस प्रकार देखा जाए तो शैववाद आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के अपने पुरातात्त्विक साक्ष्य प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त हड़प्पा सभ्यता से हमें अनेक प्रस्तर लिंग भी प्राप्त होते हैं। ऋग्वैदिक काल में शैववाद तथा वैष्णववाद के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। ऋग्वैदिक आर्यों के प्रमुख देवता इन्द्र अग्नि तथा वरुण थे। यहाँ शिव को हम पशुओं के देवता अर्थात् पूषन के रूप में देखते हैं तथा विष्णु को हम एक सामान्य देवता के रूप में देखते हैं।

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इस समय आराधना का मुख्य आधार यज्ञ था। देवताओं की आराधना तथा उनको प्रसन्न करने का एकमात्र माध्यम यज्ञ था। उत्तरवैदिक काल में बहुदेववाद एकेश्वरवाद में परिवर्तित हुआ। इसके परिणामस्वरूप भागवत धर्म तथा शैवधर्म की स्थापना हुई। इनके विधिवत रूप से स्थापित होने का समय लगभग 600 ई.पू. रहा होगा। परन्तु इस काल के शैववाद अथवा वैष्णववाद से सम्बन्धित कोई मूर्ति अथवा मन्दिर नहीं मिलते हैं। भारत में मूर्तिकला का प्रथम विधिवत आरम्भ हम मथुरा कला तथा गांधार कला में पाते हैं।

वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला का विकास निम्न प्रकार है –
(1) अवतारवाद – प्राचीन काल में भारत में वैष्णव और शैव परम्परायें भी प्रचलित थीं। वैष्णववाद में विष्णु की तथा शौववाद में शिव की पूजा प्रचलित थी उनकी उपासना भक्ति के माध्यम से की जाती थी। वैष्णववाद में कई अवतारों की पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई। इस परम्परा के अन्तर्गत दस अवतारों की कल्पना की गई। विष्णु और उनके अनेक अवतारों की मूर्तियाँ बनाई जाने लगीं। शिव की भी मूर्तियाँ बनाई गई।

(2) मन्दिरों का निर्माण जिस समय साँची जैसे स्थानों में स्तूप अपने विकसित रूप में आ गए थे, उसी समय देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मन्दिर भी बनाएं गए। प्रारम्भिक मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे, जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाजा होता था जिससे उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए अन्दर प्रविष्ट हो सकता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा, जिसे शिखर कहा जाता था। मन्दिर की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किये जाते थे। कालान्तर में मन्दिरों के स्थापत्य का काफी विकास हुआ। अब मन्दिरों के साथ विशाल सभा स्थल, ऊँची दीवारें और तोरण भी बनाए जाने लगे। मन्दिरों में जल आपूर्ति की व्यवस्था की जाने लगी।

(3) कृत्रिम गुफाओं का निर्माण आरम्भिक मन्दिरों की एक विशेषता यह थी कि इनमें से कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काटकर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा काफी पुरानी थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बनाई गई थीं।

कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा अलग-अलग चरणों में विकसित होती रही। इसका सबसे विकसित रूप हमें आठवीं सदी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है जिसमें पूरी पहाड़ी काटकर उसे मन्दिर का रूप दे दिया गया था। यह तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। एक ताम्रपत्र अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि इस मन्दिर का निर्माण समाप्त करने के बाद इसके प्रमुख मूर्तिकार ने अपना आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि “हे भगवान! यह मैंने कैसे बनाया।”

(4) मूर्तिकला का विकास इस युग में विष्णु और शिव की अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया। विष्णु के कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दर्शाया गया है। अनेक देवताओं की भी मूर्तियाँ बनाई गईं। इनमें उदयगिरी से प्राप्त वराह की मूर्ति तथा देवगढ़ की विष्णु की मूर्ति उल्लेखनीय है। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दर्शाया गया है। ये समस्त चित्रण देवताओं से सम्बन्धित मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनकी विशेषताओं तथा प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्र, आभूषण, आयुधों (हथियार और हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से दर्शाया जाता था।

प्रश्न 9.
स्तूप क्यों और कैसे बनाए जाते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
स्तूप क्यों बनाए जाते थे?
कुछ पवित्र स्थानों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए जाते थे। इन टीलों को स्तूप कहते थे। स्तूप बनाने की परम्परा शायद बुद्ध के पहले से ही प्रचलित थी, परन्तु यह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूंकि इन स्तूपों में पवित्र अवशेष होते थे, इसलिए समूचे स्तूप को ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठा मिली। ‘अशोकावदान’ नामक एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार अशोक ने बुद्ध के अवशेषों को प्रत्येक महत्त्वपूर्ण नगर में बाँट कर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया था ईसापूर्व दूसरी शताब्दी तक भरहुत, साँची तथा सारनाथ आदि स्थानों पर स्तूप बन चुके थे। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूप बनवाये।

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स्तूप कैसे बनाए गए?

स्तूपों के निर्माण के लिए अनेक लोगों ने दान दिए। स्तूपों की वेदिकाओं और स्तम्भों पर मिले अभिलेखों से हमें इन्हें बनाने और सुसज्जित करने के लिए दिए गए दानों का पता चलता है। कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए थे, जैसे सातवाहन वंश के राजाओं द्वारा दिए गए दान कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए। उदाहरण के लिए साँची के एक तोरणद्वार का हिस्सा हाथीदाँत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था। इसके अतिरिक्त सैकड़ों स्त्रियों और पुरुषों ने भी स्तूपों के निर्माण के लिए दान दिये। दान के अभिलेखों में उनके नाम मिलते हैं। कभी-कभी वे अपने गाँव अथवा शहर का नाम बताते हैं और कभी-कभी अपना व्यवसाय तथा सम्बन्धियों -के नाम भी बताते हैं। इन स्तूपों के निर्माण में भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।

स्तूप की संरचना स्तूप की संरचना के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित थे –
(1) अंड – स्तूप ( संस्कृत अर्थ टीला) का जन्म एक गोलार्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ, जिसे बाद में अंड कहा गया। धीरे-धीरे इसकी संरचना जटिल हो गई, जिसमें कई चौकोर और गोल आकारों का सन्तुलन बनाया गया।
(2) हर्मिका – अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी। यह छज्जे के जैसा ढाँचा देवताओं के घर का प्रतीक था।
(3) यष्टि हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था, जिसे यष्टि कहते थे। इस पर प्राय: एक छत्री लगी होती थी।
(4) वेदिका – टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी, जो पवित्र स्थल को सामान्य संसार से अलग करती थी।

साँची और भरहुत के स्तूप-साँची और भरहुत के प्रारम्भिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं। इनमें पत्थर की वेदिकाएँ और तोरणद्वार हैं ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर अच्छी नक्काशी की गई थी। उपासक पूर्वी तोरणद्वार से प्रवेश करके टीले को दाई ओर देखते हुए

दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे ऐसा प्रतीत होता था कि वे आकाश में सूर्य के पथ का अनुकरण कर रहे थे। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी। अमरावती और पेशावर (पाकिस्तान) में शाहजी की देरी में स्तूपों में ताख और मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई हैं।

विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास JAC Class 12 History Notes

→ प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोत ईसा पूर्व 600 से 600 ईसवी तक के काल के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत बौद्ध-जैन और ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त इमारतें और अभिलेख आदि हैं।

→ साँची भोपाल राज्य के प्राचीन अवशेषों में साँची कनखेड़ा की इमारतें सबसे अद्भुत हैं। साँची का स्तूप भोपाल से बीस मील उत्तर-पूर्व की ओर एक पहाड़ी की तलहटी में बसे गाँव में स्थित है। यह एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है और एक मुकुट जैसा दिखाई देता है। भोपाल के शासकों, शाहजहाँ बेगम और उसकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम ने इस स्तूप के रख-रखाव के लिए प्रचुर धन का अनुदान दिया। साँची बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।

→ चिन्तकों का उद्भव ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी में ईरान में जरथुख, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू तथा भारत में महावीर और बुद्ध आदि अनेक चिन्तकों का उद्भव हुआ। उन्होंने जीवन के रहस्यों तथा मनुष्यों और विश्व व्यवस्था के बीच सम्बन्धों को समझने का प्रयास किया।

→ यज्ञों की परम्परा – पूर्व वैदिक परम्परा ऋग्वेद से मिलती है। ऋग्वेद का संकलन 1500 से 1000 ई. पूर्व में हुआ था। ऋग्वेद इन्द्र, अग्नि, सोम आदि अनेक देवताओं की स्तुति सम्बन्धी सूक्तियों का संग्रह है। यज्ञों के समय इन सूक्तियों का उच्चारण किया जाता था और लोग पशु, पुत्र, स्वास्थ्य, दीर्घ आयु आदि के लिए प्रार्थना करते थे। प्रारम्भ में यज्ञ सामूहिक रूप से किये जाते थे बाद में कुछ यज्ञ घरों के स्वामियों के द्वारा किए जाते थे।

→ वाद-विवाद और चर्चाएँ समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें 64 सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है। इससे हमें जीवन्त चचाओं और विवादों की एक झांकी मिलती है। महावीर और बुद्ध ने वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाया और कहा कि जीवन के दुःखों से मुक्ति का प्रयास हर व्यक्ति स्वयं कर सकता था। यह बात ब्राह्मणवाद से बिल्कुल भिन्न थी।

→ नियतिवादी और भौतिकवादी नियतिवादी लोग आजीविक परम्परा के थे। उनका विश्वास था कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है। भौतिकवादी लोकायत परम्परा के थे भौतिकवादियों के अनुसार दान, यज्ञ या चढ़ावा आदि की बात मूर्खों का सिद्धान्त है, खोखला झूठ है।

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→ महावीर की शिक्षाएँ महावीर जैन धर्म तीर्थकर वे महापुरुष थे जो पुरुषों और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचाते हैं –
(1) जीवों के प्रति अहिंसा का पालन करना।
(2) जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
(3) कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की आवश्यकता है। यह संसार के त्याग से ही सम्भव है।
(4) पाँच व्रतों पर बल देना –

  • हत्या न करना
  • चोरी न करना
  • झूठ न बोलना
  • ब्रह्मचर्य और
  • धन संग्रह न करना।

→ जैन धर्म का विस्तार धीरे-धीरे जैन धर्म भारत के कई भागों में फैल गया। जैनों ने प्राकृत, संस्कृत तथा तमिल आदि अनेक भाषाओं में अपने ग्रन्थ लिखे।

→ बुद्ध और ज्ञान की खोज-बुद्ध तत्कालीन युग के सबसे प्रभावशाली शिक्षकों में से एक थे सैकड़ों वर्षों के दौरान उनकी शिक्षाएँ सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में और उसके बाद मध्य एशिया होते हुए चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और इण्डोनेशिया तक फैल गई। बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वे शाक्य कबीले के सरदार के पुत्र थे। नगर का भ्रमण करते समय उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक संन्यासी और एक मृतक को देखकर प्रबल आघात पहुँचा। कुछ समय बाद वे महल त्यागकर सत्य की खोज में निकल गए। उन्होंने साधना के कई मार्ग अपनाए और अन्त में ज्ञान प्राप्त कर लिया। इसके बाद वे बुद्ध कहलाए।

→ बुद्ध की शिक्षाएँ

  • विश्व अनित्य और निरन्तर परिवर्तनशील है, यह आत्माविहीन है
  • यह संसार दुःखों का घर है
  • मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य दुःखों से मुक्ति पा सकता है
  • समाज का निर्माण इन्सानों ने किया है, न कि ईश्वर ने
  • जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्मज्ञान और निर्वाण के लिए व्यक्ति केन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक् कर्म पर बल देना
  • अपने लिए ज्योति बनना तथा अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ़ना।

→ बुद्ध के अनुयायी बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए एक संघ की स्थापना की। संघ ऐसे भिक्षुओं की एक संस्था थी, जो धम्म के शिक्षक बन गए। ये भ्रमण सादा जीवन बिताते थे और उपासकों से भोजन दान पाने के लिए एक कटोरा रखते थे। संघ में पुरुष एवं स्त्री दोनों ही सम्मिलित थे बुद्ध के अनुयायियों में राजा, धनवान, गृहपति और सामान्यजन सभी शामिल थे संघ में सभी भिक्षुओं को समान माना जाता था।

→ बेरीगाथा यह अनूठा बौद्ध ग्रन्थ ‘सुत्तपिटक’ का भाग है। इसमें भिक्षुणियों द्वारा रचित छन्दों का संकलन किया गया है। इससे महिलाओं के सामाजिक और आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में जानकारी मिलती है।

→ भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम –
(1) जब कोई भिक्षु एक नया कम्बल या गलीचा बनाएगा तो उसे उसका प्रयोग कम से कम छः वर्षों तक करना पड़ेगा।
(2) यदि कोई भिक्षु किसी गृहस्थी के घर जाता है और उसे भोजन दिया जाता है, तो वह दो से तीन कटोरा भर ही भोजन स्वीकार कर सकता है।
(3) यदि कोई भिक्षू किसी विहार से प्रस्थान के पहले अपने द्वारा बिछाए गए बिस्तर को नहीं समेटता है, न ही समेटवाता है, तो उसे अपना अपराध स्वीकार करना होगा।

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→ बौद्ध धर्म के प्रसार के तेजी से फैलने के कारण –
(1) लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असन्तुष्ट थे
(2) बौद्ध धर्म में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की बजाय अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्त्व दिए जाने से स्त्री और पुरुष इस धर्म की ओर आकर्षित हुए।
(3) छोटे और कमजोर लोगों से मैत्रीपूर्ण और दयापूर्ण व्यवहार करने पर बल दिए जाने से भी लोग बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए।

→ स्तूप- शवदाह के पश्चात् शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े ये टीले चैत्य के रूप में जाने गए कुछ पवित्र स्थल पर एक छोटी-सी वेदी बनी रहती थी, जिन्हें कभी-कभी चैत्य कहा जाता था। बौद्ध साहित्य में कई चैत्यों का उल्लेख है। इसमें बुद्ध के जीवन से जुड़े स्थानों का भी वर्णन है- लुम्बिनी (जन्म-स्थल), बोधगया (जहाँ ज्ञान प्राप्त किया), सारनाथ (जहाँ प्रथम उपदेश दिया) तथा कुशीनगर (जहाँ निर्वाण प्राप्त किया)।

→ स्तूप क्यों बनाए जाते थे? कुछ पवित्र स्थलों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए गए थे, इन टीलों को स्तूप कहते थे स्तूप बनाने की परम्परा बुद्ध से पहले की रही होगी, परन्तु वह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। चूँकि उनमें ऐसे अवशेष रहते थे, जिन्हें पवित्र समझा जाता था, इसलिए समूचे स्तूप को ही बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठा मिली।

→ स्तूप कैसे बनाए गए स्तूप बनाने के लिए कुछ राजाओं (जैसे सातवाहन वंश के राजा) तथा कुछ शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों के द्वारा दान दिए गए। साँची के एक तोरणद्वार का भाग हाथीदांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था। स्तूपों के निर्माण में भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया।

→ स्तूप की संरचना स्तूप (संस्कृत अर्थ टीला) का जन्म एक गोलार्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ, जिसे बाद में ‘अंड’ कहा गया। अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी। यह छज्जे जैसा ढाँचा, देवताओं के घर का प्रतीक था। हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था जिसे ‘यष्टि’ कहते थे, जिस पर प्राय: एक छत्री लगी होती थी। टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी।

→ साँची और भरहुत के स्तूप-साँची और भरहुत के प्रारम्भिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं सिवाए इसके कि उनमें पत्थर की वेदिकाएँ और तोरणद्वार हैं ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बांस के या काठ के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी। बाद में स्तूप के टीले पर भी अलंकरण और नक्काशी की जाने लगी। अमरावती और पेशावर (पाकिस्तान) में शाहजी की ढेरी में स्तूपों में ताख और मूर्तियाँ उत्कीर्ण करने की कला के काफी उदाहरण मिलते हैं।

→ स्तूपों की खोज- 1796 में एक स्थानीय राजा को अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिल गए। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज अधिकारी को यहाँ अनेक मूर्तियाँ मिलीं 1854 में गुन्टूर (आन्ध्रप्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की। उन्होंने कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर जमा किए और वे उन्हें मद्रास ले गए। उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी खोज निकाला और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप था 1850 के दशक में अमरावती के उत्कीर्ण पत्थर अनेक स्थानों पर ले जाए जा रहे थे।

→ अमरावती के स्तूप का नष्ट हो जाना यद्यपि साँची का स्तूप बच गया, परन्तु अमरावती का स्तूप नष्ट हो गया। विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाए खोज के स्थान पर ही संरक्षित करना कितना महत्त्वपूर्ण था दूसरी ओर 1818 में जब साँची की खोज हुई, उसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे, चौथा वहीं गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी स्थिति में था।

→ मूर्तिकला बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखन का सहारा लेना पड़ा। बौद्ध चरित्र लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई। कई प्रारम्भिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव के रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया।

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→ लोक परम्पराएँ- साँची में उत्कीर्णित अनेक मूर्तियाँ शायद बौद्ध धर्म से सीधी जुड़ी हुई नहीं थीं। इनमें से कुछ सुन्दर स्त्रियाँ भी मूर्तियों में उत्कीर्णित हैं साहित्यिक परम्पराओं के अध्ययन से विद्वान यह समझ पाए कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित ‘शालभंजिका’ की मूर्ति है। लोक परम्परा में यह माना जाता था कि इस स्वी द्वारा छुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल आने लगते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इस कारण स्तूप के अलंकरण में प्रयुक्त हुआ।

→ साँची में जानवरों के सुन्दर उत्कीर्णन – साँची में जानवरों के कुछ बहुत सुन्दर उत्कीर्णन पाए गए हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बन्दर और गाय बैल शामिल हैं। यद्यपि साँची में जातकों से ली गई जानवरों की कई कहानियाँ हैं, ऐसा लगता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों को मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। उदाहरण के लिए हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।

→ महायान बौद्धमत का विकास प्रारम्भ में बुद्ध को भी एक मनुष्य माना जाता था परन्तु धीरे-धीरे एक मुक्तिदाता के रूप में बुद्ध की कल्पना उभरने लगी। यह विश्वास किया जाने लगा कि वे मुक्ति दिलवा सकते थे। साथ-साथ बोधिसत की अवधारणा भी पनपने लगी। बोधिसत्तों को परम करुणामय जीव माना गया जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे परन्तु वे इस पुण्य से दूसरों की सहायता करते थे बुद्ध और बोधिसत्तों की मूर्तियों की पूजा इस परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। इस नई परम्परा को ‘महायान’ के नाम से जाना गया। महायान के अनुयायी पुरानी परम्परा को ‘हीनयान’ के नाम से पुकारते थे।

→ पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय हिन्दू धर्म में दो परम्पराएँ शामिल थीं- वैष्णव तथा शैव वैष्णव परम्परा में विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना जाता है और शैव परम्परा में शिव परमेश्वर है। इस प्रकार की आराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का सम्बन्ध प्रेम और समर्पण का सम्बन्ध माना जाता था इसे भक्ति कहते हैं।

→ वैष्णववाद में अवतारों की कल्पना वैष्णववाद में कई अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई वैष्णव धर्म में दस अवतारों की कल्पना की गई। यह माना जाता है कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब विश्व में अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती थी तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे।

→ अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाना कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की भी मूर्तियों का निर्माण हुआ। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था परन्तु उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। ये सारे चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। इन मूर्तियों के अंकन का अभिप्राय समझने के लिए इतिहासकारों को इनसे जुड़ी हुई कहानियों से परिचित होना पड़ता है। कई कहानियाँ प्रथम सहस्राब्दी के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों में पाई जाती हैं। इनमें देवी-देवताओं की कहानियाँ हैं।

→ मन्दिरों का निर्माण आरम्भिक मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे, जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक द्वार होता था जिससे उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो सकता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर शिखर बनाया जाने लगा। मन्दिरों की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। बाद के युगों में मन्दिरों के स्थापत्य का काफी विकास हुआ। अब मन्दिरों के साथ विशाल सभास्थल, ऊँची दीवारें और तोरण भी जुड़ गए।

→ कृत्रिम गुफाएँ – प्रारम्भ में कुछ मन्दिर पहाड़ियों को काट कर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ई. पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से आजीविक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बनाई गई थीं। इसका सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ के मन्दिर में दिखाई देता है। इसमें पूरी पहाड़ी काट कर उसे मन्दिर का रूप दे दिया गया था।

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→ अज्ञात को समझने का प्रयास- यद्यपि यूरोपीय विद्वान प्रारम्भिक भारतीय मूर्तिकला को यूनान की कला से निम्नस्तर का मानते थे, फिर भी वे बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों की खोज से काफी उत्साहित हुए। इसका कारण यह था कि ये मूर्तियाँ यूनानी प्रतिमानों से प्रभावित थीं। ये मूर्तियाँ अधिकतर तक्षशिला और पेशावर के नगरों में मिली थीं। ये मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों से काफी मिलती जुलती थीं। चूँकि ये विद्वान् यूनानी परम्परा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने इन मूर्तियों को भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना बताया। इन्होंने इस कला को समझने के लिए यह तरीका अपनाया-परिचित चीजों के आधार पर अपरिचित चीजों को समझने का पैमाना तैयार करना।

→ लिखित ग्रन्थों से जानकारी प्राप्त करना किसी मूर्ति का महत्व और संदर्भ समझने के लिए कला के इतिहासकार प्राय: लिखित ग्रन्थों से जानकारी एकत्रित करते हैं भारतीय मूर्तियों की यूनानी मूर्तियों से तुलना कर निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा यह निश्चय ही अधिक उत्तम तरीका है परन्तु यह तरीका आसान नहीं।

कालरेखा 1
महत्वपूर्ण धार्मिक बदलाव

लगभग 1500-1000 ई. पूर्व प्रारम्भिक वैदिक परम्पराएँ
लगभग 1000-500 ई.पूर्व उत्तरवैदिक परम्पराएँ
लगभग छठी सदी ई. पूर्व प्रारम्भिक उपनिषद्, जैन धर्म, बौद्ध धर्म
लगभग तीसरी सदी ई. पूर्व आरम्भिक स्तूप
लगभग दूसरी सदी ईसा पूर्व से आगे महायान बौद्ध मत का विकास, वैष्णववाद, शैववाद और देवी पूजन परम्पराएँ
लगभग तीसरी सदी ईसवी सबसे पुराने मन्दिर

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कालरेखा 2
प्राचीन इमारतों और मूर्तियों की खोज और संरक्षण के महत्त्वपूर्ण चरण

उन्नीसवीं सदी –
1814 इंडियन म्यूजियम, कोलकाता की स्थापना।
1834 रामराजा लिखित एसेज ऑन द आर्किटैक्चर आफ द हिन्दूज का प्रकाशन; कनिंघम ने सारनाथ के स्तूप की छानबीन की।
1835-1842 जेम्स फर्गुसन ने महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों का सर्वेक्षण किया।
1851 गवर्नमेंट म्यूजियम, मद्रास की स्थापना।
1854 अलैक्जैंडर कनिंघम ने भिलसा टोप्स लिखी जो साँची पर लिखी गई सबसे प्रारम्भिक पुस्तकों में से एक है।
1878 राजेन्द्र लाल मित्र की पुस्तक, बुद्ध गया : द हेरिटेज आफ शाक्य मुनि का प्रकाशन।
1880 एच.एच. कोल को प्राचीन इमारतों का संग्रहाध्यक्ष बनाया गया।
1888 ट्रेजर-ट्रोव एक्ट का बनाया जाना। इसके अनुसार सरकार पुरातात्विक महत्त्व की किसी भी चीज को हस्तगत कर सकती थी।
बीसवीं सदी-
1914 जॉन मार्शल और अल्फ्रेड फूसे की ‘द मान्युमेंट्स आफ साँची’ पुस्तक का प्रकाशन।
1923 जॉन मार्शल की पुस्तक ‘कन्जर्वेशन मैनुअल’ का प्रकाशन।
1955 प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली की नींव रखी।
1989 साँची को एक विश्व कला दाय स्थान घोषित किया गया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board Class 12 History बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 56

प्रश्न 1.
इस मन्त्र के संदर्भ में, विवाह का वधू और वर के लिए क्या अभिप्राय है? इसकी चर्चा कीजिये । क्या ये अभिप्राय समान हैं या फिर इनमें भिन्नताएँ हैं?
उत्तर:
विवाह का वधू और वर के लिए अभिप्राय उत्तम पुत्रों की प्राप्ति है। दोनों का उद्देश्य एक-दूसरे का साथ निभाते हुए तथा प्रेमपूर्वक रहते हुए उत्तम पुत्र प्राप्त करना है। अतः इन दोनों के अभिप्राय समान हैं।

पृष्ठ संख्या 57

प्रश्न 2.
उद्धरण पढ़िये और उन सारे मूल तत्त्वों की सूची तैयार कीजिये जिनका राजा बनने के लिए प्रस्ताव किया गया है। एक विशेष कुल में जन्म लेना कितना महत्त्वपूर्ण था? इनमें से कौन-सा मूल तत्त्व सही लगता है ? क्या ऐसा कोई तत्त्व है जो आपको अनुचित लगता है?
उत्तर:
(1) राजा बनने के लिए निम्नलिखित मूल तत्त्व आवश्यक थे-

  • राजा का उत्तराधिकारी होना
  • शारीरिक अंगों का अभाव या नेत्रहीन न होना
  • भाइयों में ज्येष्ठ होना
  • वयस्क होना
  • योग्य एवं सदाचारी होना।

(2) एक विशेष कुल में जन्म लेना बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता था क्योंकि इससे व्यक्ति सिंहासन प्राप्ति के लिए अपना दावा प्रस्तुत कर सकता था।
(3) ‘योग्य और सदाचारी होना’ नामक मूल तत्त्व सही लगता है।
(4) अयोग्य और अल्पवयस्क होने पर भी सिंहासन प्राप्त करने की आकांक्षा रखना अनुचित तत्त्व लगता है।

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पृष्ठ संख्या 58

प्रश्न 3.
इनमें से प्रत्येक विवाह पद्धति के विषय में चर्चा कीजिए कि विवाह का निर्णय किसके द्वारा लिया गया था –
(क) वधू
(ख) वर
(ग) वधू का पिता
(घ) वर का पिता
(ङ) अन्य लोग।
उत्तर:
(क) छठी विवाह पद्धति में वधू और वर द्वारा निर्णय लिया गया था।
(ख) पाँचवीं विवाह पद्धति में वर द्वारा निर्णय लिया गया था।
(ग) पहली और चौथी विवाह पद्धतियों में वर के पिता द्वारा निर्णय लिया गया।
(घ) पाँचवीं विवाह पद्धति में वधु के वर पिता द्वारा निर्णय लिया गया।

पृष्ठ संख्या 59

प्रश्न 4.
यहाँ कितने गोतमी – पुत्त तथा कितने वसिथि (वैकल्पिक वर्तनी वसथि ) पुत्र हैं?
उत्तर:
यहाँ तीन गोतमी – पुत्त तथा एक वसिथि-पुत्र हैं।

पृष्ठ संख्या 60

प्रश्न 5.
क्या यह उद्धरण आपको आरम्भिक भारतीय समाज में माँ को किस दृष्टि से देखा जाता था, इसका जायजा देता है?
उत्तर:
इस उद्धरण से हमें इसका जायजा मिलता है कि आरम्भिक भारतीय समाज में माँ को आदर की दृष्टि से देखा जाता था। इस युग में स्त्रियाँ विदुषी, दूरदर्शी होती थीं तथा राजनीतिक कार्यों में भी भाग लेती थीं वे विवेकपूर्ण होती थीं तथा उनका ज्ञान विस्तृत होता था। वे संकटपूर्ण परिस्थितियों में अपने पुत्रों को उचित सलाह देती थीं। परन्तु अहंकारी और सत्तालोलुप लोग अपनी माता की उचित सलाह को भी ठुकरा दिया करते थे। गान्धारी ने अपने पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह दी परन्तु उसने अपनी माता की सलाह का पालन नहीं किया।

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पृष्ठ संख्या 60 चर्चा कीजिये

प्रश्न 6.
आजकल बच्चों का नामकरण किस भाँति होता है? क्या ये नाम इस अंश में वर्णित नामों से मिलते- जुलते हैं अथवा भिन्न हैं?
उत्तर:
आजकल अभिभावक ज्योतिषियों की सलाह से अपने बच्चों का नाम रखते हैं। ज्योतिषी प्राय: बच्चों का नामकरण जन्म की राशि के आधार पर निर्धारित अक्षरों के आधार पर करते हैं। सातवाहन राजाओं के नाम उनके मातृ नाम के आधार पर रखे जाते थे परन्तु आजकल इस अंश में वर्णित नाम आधुनिक नामों से भिन्न हैं। पृष्ठ संख्या 61

प्रश्न 7.
आपको क्या लगता है कि ब्राह्मण इस सूक्त को बहुधा क्यों उद्धृत करते थे?
उत्तर:
ब्राह्मणों की मान्यता थी कि वर्ण व्यवस्था में उन्हें सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उनकी यह भी मान्यता थी कि वर्ण व्यवस्था एक दैवीय व्यवस्था है अतः इसे प्रमाणित करने के लिए वे ऋग्वेद के पुरुषसूक्त मन्त्र को बहुधा उद्धत करते थे।

पृष्ठ संख्या 62

प्रश्न 8.
इस कहानी के द्वारा निषादों को कौनसा सन्देश दिया जा रहा था? क्षत्रियों को इससे क्या सन्देश मिला होगा? क्या आपको लगता है कि एक ब्राह्मण के रूप में द्रोण धर्मसूत्र का अनुसरण कर रहे थे जब वे धनुर्विद्या की शिक्षा दे रहे थे?
उत्तर:
इस कहानी द्वारा निषादों को दो विरोधाभासी सन्देश दिये जा रहे थे। पहला सन्देश धनुर्विद्या के पात्र नहीं हैं, इस पर केवल यह था कि वह क्षत्रियों का ही अधिकार है। दूसरा सन्देश यह प्राप्त होता है कि श्रद्धा लगन और निष्ठा से सतत् अभ्यास के द्वारा कोई भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वे किसी से कमतर नहीं हैं। क्षत्रियों को इससे यह सन्देश प्राप्त होता है कि धनुर्विद्या पर मात्र उनका ही एकाधिकार नहीं है। धर्मसूत्रों में शूद्रों को विद्या अध्ययन की आज्ञा नहीं थी, इसलिए धर्मसूत्रों के अनुसार द्रोण का यह कार्य उचित था परन्तु गुरुदक्षिणा के रूप में एकलव्य से अंगूठा माँगना न्यायसंगत नहीं था।

पृष्ठ संख्या 64

प्रश्न 9.
क्या आपको लगता है कि रेशम के बुनकर उस जीविका का पालन कर रहे थे जो उनके लिए शास्त्रों ने तय की थी?
उत्तर:
प्राचीन भारत में जो जातियाँ एक ही जीविका अथवा व्यवस्था से जुड़ी थीं उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था। मंदसौर (मध्यप्रदेश) से मिले एक अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है जो मूलतः लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे और वहाँ से मन्दसौर चले गए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि रेशम के बुनकर उस जीविका का पालन नहीं कर रहे थे जो उनके लिए शास्त्रों ने निर्धारित की थी। कुछ बुनकर संगीत प्रेमी थे तथा कुछ लेखक थे। कुछ बुनकर धार्मिक व्याख्यानों में संलग्न थे तथा कुछ धार्मिक अनुष्ठान करते थे। कुछ बुनकर वीर योद्धा थे।

पृष्ठ संख्या 65

प्रश्न 10.
इस सारांश में उन व्यवहारों को निर्दिष्ट कीजिये जो अब्राह्मणीय प्रतीत होते हैं।
उत्तर:
हिडिम्बा द्वारा भेष बदलकर सुन्दर स्वी के रूप में भीम से विवाह का प्रस्ताव करना, भीम द्वारा राक्षस की बहिन हिडिम्बा के साथ सशर्त विवाह करना तथा हिडिम्बा और उसके पुत्र द्वारा पाण्डवों को छोड़कर वन में जाना अब्राह्मणीय प्रतीत होते हैं।

पृष्ठ संख्या 67

प्रश्न 11.
इस कथा में उन तत्त्वों की ओर इंगित कीजिए जिनसे यह ज्ञात हो कि वह मातंग के नजरिए से लिखे गये थे।
उत्तर:
इस कथा में मातंग के नजरिए से लिखे गए तत्त्व निम्नलिखित हैं –
(1) मातंग का लगातार 7 दिन दिथ्थ के घर के आगे उपवास करना।
(2) मातंग का संसार त्यागने का निर्णय और अलौकिक शक्ति पाकर बनारस लौटना।
(3) मातंग का माण्डव्य को उत्तर जिन्हें अपने जन्म पर गर्व है पर अज्ञानी हैं; वे भेंट के पात्र नहीं हैं। इसके विपरीत जो लोग दोषमुक्त हैं, वे भेंट योग्य हैं।
(4) मातंग का दिथ्य से कहना कि वह उनके भिक्षा- पात्र में बचे हुए भोजन का अंश माण्डव्य तथा ब्राह्मणों को दे दे।

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पृष्ठ संख्या 67 : चर्चा कीजिये

प्रश्न 12.
इस प्रकरण में कौनसे स्रोत हैं जिनसे यह ज्ञात होता है कि लोग ब्राह्मणों द्वारा बताई गई जीविका का अनुसरण करते थे? कौनसे स्त्रोत हैं जिनसे अलग सम्भावनाओं की जानकारी होती है?
उत्तर:
निम्नलिखित स्रोतों से ज्ञात होता है कि लोग ब्राह्मणों द्वारा बताई गई जीविका का अनुसरण करते थे –
(1) उच्च वर्णों के लोगों द्वारा चाण्डालों के दर्शन न करना। चाण्डालों का नगर से बाहर रहना।
(2) दिथ्थ मांगलिक नामक व्यापारी की पुत्री को मातंग नामक चाण्डाल को सौंपना और मातंग द्वारा दिव मांगलिक से विवाह करना।
(3) दिव्य के पुत्र माण्डव्यकुमार द्वारा वेदों का अध्ययन करना और ब्राह्मणों को भोजन कराना।
(4) माण्डव्यकुमार द्वारा मातंग नामक पतित व्यक्ति को भोजन न देना। परन्तु मातंग द्वारा दिय से यह कहना कि वह उसके भिक्षापात्र में बने हुए भोजन का कुछ अंश माण्डव्य तथा ब्राह्मणों को दे दे, यह अलग सम्भावना की जानकारी देता है।

पृष्ठ संख्या 68

प्रश्न 13.
क्या आपको ऐसा लगता है कि यह प्रकरण इस बात की ओर इंगित करता है कि पत्नियों को पतियों की निजी सम्पत्ति माना जाए?
उत्तर:
द्रौपदी के प्रश्न के उत्तर में जो दो मत प्रकट किए गए उनका कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। धृतराष्ट्र द्वारा सभी पाण्डवों तथा द्रौपदी को उनकी निजी स्वतन्त्रता पुनः लौटा देने से यह प्रकट होता है के समान पत्नियों को पति की निजी सम्पत्ति कि वस्तु मानना अनुचित है।

पृष्ठ संख्या 69

प्रश्न 14.
स्त्री और पुरुष किस प्रकार धन प्राप्त कर सकते थे? इसकी तुलना कीजिए व अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) पुरुषों द्वारा धन प्राप्त करना – मनुस्मृति के अनुसार पुरुष निम्नलिखित सात तरीकों से धन प्राप्त कर सकते थे-

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजय प्राप्त करके
  • निवेश
  • कार्य द्वारा तथा
  • सज्जनों द्वारा दी गई भेंट को स्वीकार करके।

(2) स्त्रियों द्वारा धन प्राप्त करना मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियाँ निम्नलिखित छ तरीकों से धन प्राप्त कर सकती थीं-

  • वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट
  • वधू गमन के समय मिली भेंट
  • स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट
  • भ्राता, माता और पिता द्वारा दिए गए उपहार
  • परवर्ती काल में मिली भेंट
  • वह सब कुछ जो ‘अनुरागी’ पति से उसे प्राप्त हो।

तुलना – मनुस्मृति के अनुसार पुरुष और स्त्री दोनों को ही धन अर्जित करने का अधिकार था। पुरुष सात तरीकों से धन अर्जित कर सकते हैं तथा स्वियों छ: तरीकों से धन प्राप्त कर सकती हैं।

अन्तर:
(1) पुरुषों को विरासत में पैतृक सम्पत्ति मिलती थी, परन्तु स्त्रियों को पिता की सम्पत्ति विरासत में नहीं मिलती थी
(2) पुरुष युद्ध में विजय प्राप्त करके शत्रु की सम्पत्ति पर अधिकार कर सकते थे। वे खोज करके, किसी चीज को खरीदकर (तथा कुछ समय बाद बेचकर) धन निवेश कर धन कमा सकते थे परन्तु स्त्रियाँ विजय प्राप्त करके, खोज तथा क्रय-विक्रय से धन नहीं कमाती थीं दूसरी ओर स्त्रियाँ वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट, वधू गमन के समय मिली भेंट, स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट, भाई तथा माता- पिता के द्वारा दिए गए उपहार, परवर्ती काल में मिली भेंट तथा अनुरागी पति से मिली भेंट आदि के द्वारा धन अर्जित कर सकती थीं।

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पृष्ठ संख्या 71

प्रश्न 16.
मूर्तिकार ने सरदार व उसके अनुयायी के बीच अन्तर को कैसे दर्शाया है? (चित्र के लिए देखिए पाठ्यपुस्तक का पृष्ठ 71)
उत्तर:
(1) सरदार अनुयायी के सिर पर अपना हाथ रखे हुए है। इससे ज्ञात होता है कि वह अपने अनुयायी का आश्रयदाता है।
(2) सरदार का शरीर बलिष्ठ है तथा उसका कद लम्बा है परन्तु अनुयायी का शरीर कमजोर है तथा उसका कद छोटा है। इससे प्रतीत होता है कि समाज में सरदार का प्रभाव और उसकी प्रतिष्ठा अनुयायी से
अधिक है।
(3) सरदार आभूषण पहने हुए है। वह एक वस्व धारण किए हुए है जो कमर से लेकर घुटनों तक है। परन्तु अनुयायी आभूषण रहित है और वह एक लंगोट जैसा मामूली वस्त्र पहने हुए है। इससे सरदार की सम्पन्नता तथा अनुयायी की निर्धनता प्रकट होती है। पृष्ठ संख्या 71

प्रश्न 17.
चारण ने सरदार को दानी बताने के लिए किस तरह के दाँव-पेच अपनाये? धन अर्जित करने के लिए सरदार को क्या करना होता था जिससे वह उसका कुछ अंश चारण को दे सके ?
उत्तर:
चारण ने अपने सरदार को दानी बताते हुए कहा कि उसके पास प्रतिदिन दूसरों पर खर्चा करने के लिए धन नहीं है। परन्तु वह इतना ओछा भी नहीं कि वह धन न होने का बहाना करके दान देने से मना कर दे। वह दानप्रिय है। वह चारणों को भी अपने सरदार के पास चलने को प्रेरित करता है। चारण ने कहा कि यदि हम सरदार से प्रार्थना करेंगे और अपनी भूख से क्षीण हुई पसलियाँ उसे दिखायेंगे, तो वह हमारी प्रार्थना अवश्य सुनेगा। सरदार को धन अर्जित करने के लिए एक लम्बा भाला बनवाना होता था जिससे वह युद्ध करता था तथा विजय प्राप्त करके विपुल धन प्राप्त करता था। इस धन में वह उसका कुछ अंश चारण को देता था।

पृष्ठ संख्या 76

प्रश्न 18.
क्या आपको लगता है कि लाल की खोज और महाकाव्य में वर्णित हस्तिनापुर में समानता है?
उत्तर:
हमें लगता है कि लाल की खोज और महाभारत नामक महाकाव्य में वर्णित हस्तिनापुर में समानता है। गंगा के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में हस्तिनापुर का होना, जहाँ कुरु राज्य भी स्थित था, इसकी ओर इंगित करता है कि यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर ही थी। जिसका उल्लेख महाभारत नामक महाकाव्य ‘के आदिपर्वन’ में किया गया है।

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पृष्ठ संख्या 76

प्रश्न 19.
आपको क्यों लगता है कि लेखक (लेखकों) ने एक ही प्रकरण के लिए तीन स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए?
उत्तर:
द्रौपदी के बहुपति विवाह के लिए तीन स्पष्टीकरण-महाभारत के लेखक (लेखकों) ने द्रौपदी के बहुपति विवाह के लिए निम्नलिखित तीन स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए हैं –
(1) जब पांडव प्रतियोगिता जीतकर द्रौपदी को लेकर अपनी माता कुंती के पास पहुँचे तो कुंती ने बिना देखे ही उन्हें लाई गई वस्तु को आपस में बांट लेने का आदेश दिया। जब कुंती ने द्रौपदी को देखा, तो उन्हें अपनी भूल ज्ञात हुई, किन्तु उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं की जा सकती थी। बहुत सोच-विचार के बाद युधिष्ठिर ने यह निर्णय लिया कि द्रौपदी उन पाँचों पाण्डवों की पत्नी होगी।

(2) दूसरे स्पष्टीकरण में ऋषि व्यास ने राजा द्रुपद को बताया कि पांडव वास्तव में इन्द्र के अवतार हैं और इन्द्र की पत्नी ने द्रौपदी के रूप में जन्म लिया है। इसलिए नियति ने ही द्रौपदी के पाँच पति निर्धारित कर दिए थे।

(3) तीसरे स्पष्टीकरण में ऋषि व्यास ने राजा द्रुपद को यह बताया कि एक बार एक युवती ने पति पाने के लिए शिव की उपासना की और अत्यधिक उत्साह में आकर पाँच बार पति प्राप्ति का वर मांग लिया। इसी स्त्री ने द्रौपदी के रूप में जन्म लिया तथा शिव ने उसकी प्रार्थना को पूरा किया है।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?
उत्तर:
विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता का महत्त्वपूर्ण होना विशिष्ट परिवार में शासक, उसका परिवार तथा धनी लोगों के परिवार सम्मिलित हैं। पितृवांशिकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है। प्राचीन काल में विशिष्ट परिवारों में पितृर्वेशिकता महत्त्वपूर्ण रही थी।

इसके निम्नलिखित कारण थे –
(1) पितृवंश को आगे बढ़ाना-धर्मसूत्रों के अनुसार पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्त्वपूर्ण होते हैं, पुत्रियाँ नहीं इसलिए विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता महत्त्वपूर्ण रही होगी। विशिष्ट परिवारों में उत्तम पुत्रों की प्राप्ति की कामना की जाती थी। यह वार्ता ऋग्वेद के एक मन्त्र से भी स्पष्ट हो जाती है।

(2) उत्तराधिकार से सम्बन्धित विवाद के निपटारे के लिए पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके संसाधनों पर अधिकार स्थापित कर सकते थे। अतः शासक की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र सिंहासन पर अधिकार कर सकता था।

परन्तु इस पद्धति में विभिन्नता थी –

  • परिवार में पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था।
  • कभी-कभी बन्धु-बांधव गद्दी पर अपना अधिकार जमा लेते थे।
  • कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में जैसे उत्तराधिकारी के अल्प वयस्क होने पर स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त सिंहासन प्राप्त कर लेती थीं।

प्रश्न 2.
क्या आरम्भिक राज्यों में शासक निश्चित रूप से क्षत्रिय ही होते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आरम्भिक राज्यों में शासकों का क्षत्रिय होना- धर्म सूत्रों एवं धर्म शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय वर्ग के लोग ही शासक हो सकते थे परन्तु सभी शासक क्षत्रिय नहीं होते थे अनेक महत्त्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी –
(1) मौर्य वंश मौर्यो की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में तीव्र मतभेद है। बाद के बौद्ध ग्रन्थों में यह कहा गया है। कि मौर्य क्षत्रिय थे, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र मौयों को ‘निम्नकुल’ का मानते हैं।

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(2) शुंग और कण्व वंश- शुंग और कण्व, जो मौर्यो के उत्तराधिकारी थे, ब्राह्मण थे वास्तव में राजनीतिक सत्ता का उपभोग हर वह व्यक्ति कर सकता था, जो समर्थन और संसाधन जुटा सके। यह आवश्यक नहीं था कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति को ही सिंहासन प्राप्त होता था।

(3) शकशक शासक मध्य एशिया से भारत आए थे। ब्राह्मण उन्हें मलेच्छ, बर्बर अथवा विदेशी मानते थे। परन्तु ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि शक- शासक रुद्रदामन (लगभग दूसरी शताब्दी ईसवी) ने सुदर्शन झील की मरम्मत करवाई थी। इससे यह जानकारी मिलती है कि शक्तिशाली मलेच्छ भी संस्कृतीच परिपाटी से परिचित
थे।

(4) सातवाहन- सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गोतमीपुत्त सिरी सातकनि ने स्वयं को ‘अनूठा ब्राह्मण’ एवं ‘क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला ‘ बताया था।

प्रश्न 3.
द्रोण, हिडिंबा और मातंग की कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना कीजिए व उनके अन्तर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) द्रोण की कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना द्रोण एक ब्राह्मण थे, जो कुरु वंश के राजकुमारों को धनुर्विद्या की शिक्षा देते थे। एक बार एकलव्य नामक वनवासी निषाद द्रोण के पास धनुर्विद्या की शिक्षा प्राप्त करने के लिए आया। अपने धर्म का पालन करते हुए द्रोण ने एकलव्य को अपना शिष्य नहीं बनाया क्योंकि वह एक निषाद था एकलव्य द्रोण की प्रतिमा को अपना गुरु मानकर धनुर्विद्या की साधना करके धनुर्विद्या में पारंगत बन गया। परन्तु अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को दिए गए वचन को निभाने के लिए द्रोण द्वारा एकलव्य से गुरु दक्षिणा में दायें हाथ का अंगूठा मांगना धर्म के विपरीत था।

(2) हिडिंबा की कथा में धर्म के मानदंडों की तुलना – हिडिंबा एक नरभक्षी राक्षस की बहन थी। नरभक्षी राक्षस ने हिडिंबा को पांडवों को पकड़ कर लाने के लिए भेजा। हिडिंबा ने पांडवों को पकड़कर लाने का प्रयास नहीं किया और अपने धर्म का पालन नहीं किया। उसने कुंती से कहा कि उसने भीम को अपने पति के रूप में चुना है। अन्त में हिडिंबा का भीम से विवाह कर दिया गया। इस प्रकार कुन्ती तथा युधिष्ठिर सशर्त विवाह के लिए तैयार हो गये और उन्होंने क्षत्रियोचित उदारता का परिचय दिया। परन्तु हिडिम्बा ने भीम से विवाह करके राक्षस कुल की मर्यादा को आघात पहुँचाया।

(3) मातंग की कथा में धर्म के मानदंडों की तुलना- एक बार बोधिसत्व ने एक चाण्डाल के पुत्र के रूप में जन्म लिया, जिसका नाम मातंग था मातंग ने एक व्यापारी की पुत्री दिध्य से विवाह कर लिया। यह ब्राह्मणीय व्यवस्था के धर्म के विपरीत था। उनके यहाँ एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम माण्डव्यकुमार था।

एक दिन मातंग अपने पुत्र माण्डव्यकुमार के द्वार पर आए और भोजन माँगा तो माण्डव्य ने एक पतित व्यक्ति होने के कारण मातंग को भोजन देने से इनकार कर दिया। माण्डव्य का यह आचरण उसकी संकीर्णता का परिचायक था। जब मातंग ने माण्डव्य को अपने जन्म पर गर्व न करने और विवेकपूर्ण व्यवहार करने का उपदेश दिया, तो माण्डव्य ने मातंग को अपने घर से बाहर निकलवा दिया। उसने अब्राह्मणों के प्रति अपनी घृणा और क्रूरता दिखाकर धर्म के विपरीत आचरण किया।

प्रश्न 4.
किन मायनों में सामाजिक अनुबन्ध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी, जो पुरुष सूक्त पर आधारित था?
उत्तर:
सामाजिक अनुबन्ध की बौद्ध अवधारणा- बौद्ध जन्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे। ‘सुत्तपिटक’ नामक बौद्ध ग्रन्थ में लिखा है कि प्रारम्भ में मानव शान्तिपूर्ण रहते थे। कालान्तर में मनुष्य अधिकाधिक लालची, प्रतिहिंसक और कपटी हो गए तब उन्होंने यह अनुभव किया कि उन्हें एक ऐसे व्यक्ति का चयन करना चाहिए जो न्यायप्रिय हो, अपराधी को दण्डित करे तथा निष्कासित किये जाने वाले व्यक्ति को राज्य से निष्कासित करे। इस प्रकार बौद्ध अवधारणा तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को दैवीय व्यवस्था नहीं मानती थी। बौद्धों ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को अस्वीकार किया। बौद्ध व्यवस्था में समाज के सभी वर्गों का समान आदर था।

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पुरुष सूक्त पर आधारित ब्राह्मणीय दृष्टिकोण- ब्राह्मणों के अनुसार वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था थी। ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र के अनुसार समाज में चार वर्णों की उत्पत्ति आदि मानव पुरुष से हुई थी। उसके मुख से ब्राह्मण की भुजाओं से क्षत्रिय की जंघा से वैश्य की तथा पैर से शूद्र (हरिजन) की उत्पत्ति हुई थी।

धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन तथा वेदों को शिक्षा देना था। क्षत्रियों का कार्य शासन और युद्ध करना, वैश्यों का कार्य कृषि, पशुपालन और व्यापार करना था। शूद्रों (हरिजनों) का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। इस प्रकार ब्राह्मणीय दृष्टिकोण के अनुसार सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार जन्म था। यहाँ वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म था।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित अवतरण महाभारत से है जिसमें ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर दूत संजय को संबोधित कर रहे संजय धृतराष्ट्र गृह के सभी ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को मेरा विनीत अभिवादन दीजिएगा। मैं गुरु द्रोण के सामने नतमस्तक होता हूँ… मैं कृपाचार्य के चरण स्पर्श करता हूँ…. (और) कुरु वंश के प्रधान भीष्म के। मैं वृद्ध राजा ( धृतराष्ट्र) को नमन करता हूँ। मैं उनके पुत्र दुर्योधन और उनके अनुजों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता हूँ तथा उनको शुभकामनाएँ देता हूँ.. मैं उन सब युवा कुरु योद्धाओं का अभिनंदन करता हूँ जो हमारे भाई, पुत्र और पौत्र हैं… सर्वोपरि मैं उन महामति विदुर को (जिनका जन्म दासी से हुआ है) नमस्कार करता हूँ जो हमारे पिता और माता के सदृश हैं. मैं उन सभी वृद्धा स्त्रियों को प्रणाम करता हूँ जो हमारी माताओं के रूप में जानी जाती हैं जो हमारी पत्नियाँ हैं उनसे यह कहिएगा कि, “मैं आशा करता हूँ कि वे सुरक्षित हैं.. मेरी ओर से उन कुलवधुओं का जो उत्तम परिवारों में जन्मी हैं और बच्चों की माताएँ हैं, अभिनंदन कीजिएगा तथा हमारी पुत्रियों का आलिंगन कीजिएगा… सुंदर, सुगंधित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनाएँ दीजिएगा दासियों और उनकी संतानों तथा वृद्ध, विकलांग और असहाय जनों को भी मेरी ओर से नमस्कार कीजिएगा…. इस सूची को बनाने के आधारों की पहचान कीजिए- उम्र, लिंग, भेद व बंधुत्व के संदर्भ में क्या कोई अन्य आधार भी हैं? प्रत्येक श्रेणी के लिए स्पष्ट कीजिए कि सूची में उन्हें एक विशेष स्थान पर क्यों रखा गया है?
उत्तर:
इस सूची को बनाने में उम्र, लिंग भेद व बन्धुत्व के अतिरिक्त कुछ अन्य आधार भी हैं, जैसे गुरुजनों, योद्धाओं, माताओं के प्रति सम्मान आदि उक्त आधारों पर इस सूची का निम्न प्रकार से निर्माण किया जा सकता है –

  • सबसे पहले ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को अभिवादन प्रस्तुत किया गया है।
  • इसके बाद गुरु द्रोण और कृपाचार्य के प्रति सम्मान प्रकट किया गया है।
  • युधिष्ठिर ने कुरु वंश के प्रधान और उम्र में सबसे बड़े भीष्म पितामह के प्रति भी सम्मान प्रकट किया है इससे ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों के बाद क्षत्रियों का स्थान था।
  • युधिष्ठिर ने वृद्ध राजा धृतराष्ट्र को भी अपना अभिवादन प्रस्तुत किया।
  • उन्होंने दुर्योधन, उसके अनुजों तथा युवा कुरु योद्धाओं का भी अभिनन्दन किया। इससे ज्ञात होता है कि उत्तराधिकारी के रूप में युवराज का प्रमुख स्थान था।
  • उन्होंने अपने माता-पिता के समान महामति विदुर का भी अभिनंदन किया।
  • इसके बाद उन्होंने वृद्धा स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रकट किया, पत्नियों के प्रति सुरक्षित होने की कामना की और कुलवधुओं का अभिनन्दन किया। उन्होंने पुत्रियों के प्रति अपना स्नेह प्रकट किया।
  • सबसे अन्त में उन्होंने सुन्दर, सुगन्धित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनाएँ दीं और दासियों तथा उनकी सन्तानों का भी अभिवादन किया।
  • विकलांगों तथा असहायों को भी नमस्कार किया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में।)

प्रश्न 6.
भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासकार मौरिस विंटरविट्ज ने महाभारत के बारे में लिखा था कि ‘चूँकि महाभारत सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है… बहुत सारी और अनेक प्रकार की चीजें इसमें निहित हैं…( वह भारतीयों की आत्मा की अगाध गहराई को एक अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है।” चर्चा कीजिए।
उत्तर:
महाभारत
महाभारत महाकाव्य सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दोनों दृष्टियों से अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। यह सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है। महाभारत वस्तुतः वर्तमाना में धार्मिक एवं लौकिक भारतीय ज्ञान का विश्वकोश है। इसमें तत्कालीन धर्म, समाज, जीवन मूल्यों, वर्णाश्रम व्यवस्था तथा आदर्शों का सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया है। साहित्यिक परम्परा में महाभारत के रचयिता ऋषि व्यास माने जाते हैं। इसकी रचना लगभग 500 ई. पूर्व से एक हजार वर्ष तक होती रही।
(1) महाभारत की भाषा महाभारत का मूल पाठ संस्कृत भाषा में है। परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।
(2) विषयवस्तु इतिहासकार महाभारत की विषयवस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक आख्यान में कहानियों का संग्रह है तथा उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार- विचार के मानदंडों का चित्रण है। अधिकतर इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि महाभारत वस्तुतः एक भाग नाटकीय कथानक था, जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गए।

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(3) महाभारत का ऐतिहासिक महत्त्व – आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को ‘इतिहास’ की श्रेणी में रखा गया है। महाभारत की मुख्य कथा दो परिवारों के बीच हुए युद्ध का चित्रण है। महाभारत में बान्धवों के दो दलों कौरवों तथा पांडवों के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए बुद्ध का वर्णन किया गया है। दोनों ही दल कुरु वंश से सम्बन्धित थे। इस युद्ध में पांडवों की विजय हुई महाभारत में तत्कालीन धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक अवस्थाओं का वर्णन है।

(4) महाभारत का साहित्यिक महत्त्व इस ग्रन्थ में वीर रस की प्रधानता है परन्तु कहीं-कहीं शृंगार रस और शान्त रस भी मिलते हैं। इस ग्रन्थ में उपमा आदि अलंकारों का तथा अनेक छन्दों का प्रयोग किया गया है।

(5) महाभारत – भारतीय ज्ञान का विश्वकोश- महाभारत धार्मिक एवं लौकिक भारतीय ज्ञान का विश्वकोश है ‘आदि पर्व’ में महाभारत को केवल इतिहास ही नहीं, बल्कि धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा मोक्षशास्त्र भी कहा गया है।

(6) महाभारत का नीतिबोध महाभारत में जगह- जगह नीति का उपदेश है। भीष्म का राजनीति तथा धर्म के विभिन्न पक्षों पर शान्ति पर्व में लम्बा प्रवचन है। नीतिकारों में विदुर का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(7) महाभारत में वर्णित समाज-महाकाव्यकाल में वर्ण-व्यवस्था सुदृढ़ हो चुकी थी। समाज चार प्रमुख वर्णों में विभाजित था –
(1) ब्राह्मण
(2) क्षत्रिय
(3) वैश्य तथा
(4) शुद्र चारों वर्णों में ब्राह्मण वर्ण को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता था। फिर भी महाभारत में शील और सदाचार को सामाजिक व्यवस्था का आधार माना गया था। महाभारत के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र व्यक्ति कर्म से होता है, न कि जन्म से महाभारतकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अधिक उच्च नहीं थी वे प्रायः पुरुषों पर निर्भर थीं। बहुपति विवाह तथा बहुपत्नी विवाह प्रचलित थे। स्वयंवर प्रथा भी प्रचलित थी शूद्रों की स्थिति शोचनीय थी। उन्हें अन्य वर्णों के कर्मों को अपनाने, शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।

(8) दार्शनिक महत्त्व-गीता का दर्शन भी महाभारत का एक अंग है। इसमें ज्ञान, भक्ति और कर्म का सुन्दर समन्वय स्थापित किया गया है। गीता में कर्मयोग, ज्ञान- योग तथा भक्ति योग तीनों को ही मोक्ष का साधन माना गया है। इस दृष्टि से गीता का दृष्टिकोण समन्वयात्मक है। फिर भी गीता में भक्ति मार्ग की श्रेष्ठता पर अधिक बल दिया गया है।

(9) महाभारत में आदर्श – विदुर एक उच्च कोटि का विद्वान एवं नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र का ज्ञाता था। वह धृतराष्ट्र को सलाह देते हुए कहता है कि राजा होते हुए उन्हें अपने पुत्र की महत्त्वाकांक्षाओं को अपने निर्णयों में आड़े नहीं आने देना चाहिए। भीष्म धर्म और न्याय के प्रतीक होते हुए भी अपनी प्रतिज्ञा के कारण हस्तिनापुर के राजसिंहासन से बंधे हुए हैं। युधिष्ठिर अनेक कष्ट सहन हुए भी धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हैं। महाभारत में द्रौपदी एक आदर्श नारी के रूप में चित्रित की गई है।
करते

(10) महाभारत का सामाजिक मूल्य- महाभारत की सामाजिक व्यवस्था में कर्म को अधिक महत्त्व दिया गया है। उसके अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र व्यक्ति कर्म से होता है, न कि जन्म से द्रोणाचार्य और परशुराम जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय कर्म में रत थे क समाज में जन्मजात वर्ण का भी महत्त्व था। परन्तु गुण कर्म अ के आदेश से लोगों को कर्म करने की स्वतन्त्रता मिलने लगी।

(11) धार्मिक जीवन महाभारत काल में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, दुर्गा, लक्ष्मी आदि देवी- देवताओं की उपासना की जाती थी। इस युग में अवतारवाद का सिद्धान्त लोकप्रिय होने लगा था। राम, कृष्ण आदि को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना की जाती थी। इस युग में यज्ञों का महत्व बना हुआ था इस युग में कर्मवाद तथा पुनर्जन्मवाद के सिद्धान्त भी लोकप्रिय थे। उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि मौरिस विन्टरनिट्ज का यह कथन सही प्रतीत होता है कि “महाभारत सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है।”

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प्रश्न 7.
क्या यह सम्भव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? चर्चा कीजिए।
अथवा
महाभारत के लेखक एवं तिथियों पर संक्षिप्त टिप्पणी
लिखिए।
अथवा
महाभारत का लेखनकाल तथा रचयिता अत्यन्त विवादित रहे हैं। विवेचना कीजिये।
अथवा
क्या यह सम्भव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
महाभारत का रचयिता
यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि महाभारत का एक ही रचयिता था महाभारत की रचना 500 ई. पूर्व से लेकर एक हजार वर्ष तक होती रही। इसमें वर्णित कुछ कथाएँ तो महाकाव्य काल से पहले भी प्रचलित थीं। अतः महाभारत को एक ही व्यक्ति की रचना कहना तर्कसंगत नहीं है। वर्तमान में महाभारत में लगभग एक लाख श्लोक हैं, जो विभिन्न प्रारूपों एवं कालों में लिखे गये हैं।
विभिन्न लेखक- महाभारत के रचयिताओं के सम्बन्ध में निम्नलिखित मत प्रकट किए गए हैं –

(1) मूल कथा के रचयिता सम्भवतः महाभारत की मूलकथा के रचयिता भाट सारथी थे, जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था ये क्षत्रिय योद्धाओं के साथ युद्धक्षेत्र में जाते थे और उनकी विजयों एवं उपलब्धियों के बारे में कविताओं की रचना करते थे। इन रचनाओं का प्रेषण मौखिक रूप में हुआ

(2) ब्राह्मणों द्वारा रचना करना पाँचवीं शताब्दी ई. पूर्व से ब्राह्मणों ने इस कथा परम्परा पर अपना अधिकार कर लिया और इसे लिखा यह वह काल था जब कुरु और पांचाल, जिनके इर्द-गिर्द महाभारत की कथा घूमती है, मात्र सरदारी से राजतन्त्र के रूप में विकसित हो रहे थे। यह सम्भव है कि नये राजा अपने इतिहास को अधिक नियमित रूप से लिखना चाहते थे। यह भी सम्भव है कि नये राज्यों की स्थापना के समय होने वाली उथल-पुथल के कारण पुराने सामाजिक मूल्यों के स्थान पर नवीन मानदंडों की स्थापना हुई। इन मानदंडों का इसके कुछ भागों में वर्णन मिलता है।

(3) लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ईसवी के बीच महाभारत के रचनाकाल का चरण लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ईसवी के बीच महाभारत के रचना काल का एक और चरण आरम्भ हुआ। इस काल में विष्णु देवता की उपासना जोर पकड़ रही थी तथा महाभारत के महत्त्वपूर्ण नायक श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार बताया जा रहा था।

(4) कालान्तर में महाभारत में उपदेशात्मक प्रकरणों का जोड़ा जाना- कालान्तर में लगभग 200-400 ईसवी के बीच ‘मनुस्मृति’ से मिलते-जुलते वृहत् उपदेशात्मक प्रकरण महाभारत में जोड़े गए। इन प्रकरणों के जोड़े जाने से ‘महाभारत’ का आकार बढ़ता गया। परिणामस्वरूप यह ग्रन्थ जो अपने प्रारम्भिक रूप में सम्भवतः 10,000 श्लोकों से भी कम रहा होगा, बढ़कर एक लाख श्लोकों वाला हो गया। वर्तमान रूप में महाभारत में एक लाख श्लोक हैं। इससे सिद्ध होता है कि एक ही व्यक्ति महाभारत का
रचयिता नहीं हो सकता।

(5) साहित्यिक परम्परा के अनुसार महाभारत का रचयिता साहित्यिक परम्परा में महाभारत के रचयिता ऋषि व्यास माने जाते हैं।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि एक ही व्यक्ति महाभारत का रचयिता नहीं था।

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प्रश्न 8.
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताएँ कितनी महत्त्वपूर्ण रही होंगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताएँ –
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताओं के निम्नलिखित कारण थे –
(1) पितृवैशिक व्यवस्था प्राचीनकाल में पितृवंशिक व्यवस्था प्रचलित थी। पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु ने के पश्चात् उनके संसाधनों पर अधिकार स्थापित कर सकते थे। इसलिए पितृवंशिकता व्यवस्था में पुत्र महत्त्वपूर्ण माने जाते सभी लोग पुत्रों की ही कामना करते थे परन्तु पितृवंशिक व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था।

पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था। परिवार के लोग यही प्रयास करते थे कि अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना चाहिए। इस प्रथा को ‘बहिर्विवाह पद्धति’ कहते हैं। इसका अभिप्राय यह था कि प्रतिष्ठित परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्त्रियों का जीवन बहुत सावधानी से नियमित किया जाता था ताकि ‘उचित समय’ पर और ‘उचित व्यक्ति’ से उनका विवाह किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्त्तव्य माना गया।

(2) स्त्री का गोत्र- लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से एक ब्राह्मणीय पद्धति प्रचलित हुई, जो लोगों, विशेषकर ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत करती थी प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे गोत्रों के दो नियम महत्वपूर्ण थे –

  • विवाह के पश्चात् स्वियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
  • एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।

परन्तु इन नियमों का हमेशा पालन नहीं किया जाता। था। कुछ सातवाहन राजाओं की अनेक पत्नियाँ थीं सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नामों के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि उनके नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे जो उनके पिता के गोत्र थे। इससे पता चलता है कि इन रानियों ने विवाह के बाद अपने पति- कुल के गोत्र को ग्रहण करने की अपेक्षा, अपने पिता के गोत्र नाम को ही बनाये रखा। यह भी ज्ञात होता है कि कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं।

यह बात बहिर्विवाह पद्धति के नियमों के विरुद्ध थी यह उदाहरण एक वैकल्पिक प्रथा अन्तर्विवाह पद्धति अर्थात् बन्धुओं में विवाह सम्बन्ध का प्रतीक है। इस विवाह पद्धति का प्रचलन दक्षिण भारत के अनेक समुदायों में आज भी है। बान्धवों जैसे ममेरे, चचेरे इत्यादि भाई बहिन के साथ किए गए विवाह सम्बन्धों से एक सुगठित समुदाय जन्म लेता था। सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था। इससे यह ज्ञात होता है कि माताएँ महत्त्वपूर्ण थीं। परन्तु इस निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले यह बात ध्यान में रखनी होगी कि सातवाहन राजाओं में सिंहासन का उत्तराधिकारी प्राय: पितृवंशिक होता था।

(3) सम्पत्ति का अधिकार ‘मनुस्मृति’ के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। परन्तु ज्येष्ठ पुत्र इस सम्पत्ति में विशेष भाग का अधिकारी था। स्त्रियाँ इस पैतृक संसाधन में भागीदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्वीधन’ (अर्थात् स्वी का धन) कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी।

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इस सम्पत्ति पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था परन्तु ‘मनुस्मृति’ स्त्रियों को पति की अनुमति के बिना पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपनी बहुमूल्य सम्पत्ति को गुप्त रूप से संचित करने से मना करती थी। अनेक साक्ष्यों से यह पता चलता है कि यद्यपि उच्च वर्ग की स्त्रियाँ संसाधनों पर अपनी पैठ रखती थीं, फिर भी भूमि, पशु और धन पर प्राय: पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में स्वी और पुरुष के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही प्रबल हुई थी।

(4) अन्य विषमताएँ –

  • ‘महाभारत’ से ज्ञात होता है कि युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों, गुरुजनों, क्षत्रिय राजाओं और राजकुमारों आदि का अभिवादन करने के बाद अन्त में स्वियों का अभिवादन किया। इससे स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की विषमताओं पर प्रकाश पड़ता है।
  • महाभारत से ज्ञात होता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दाँव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। इससे पता चलता है कि पुरुष पत्नियों को निजी सम्पत्ति मानते थे।
  • मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के सात साधन हैं, परन्तु स्त्रियों के लिए केवल 6 तरीके ही हैं।
  • महाभारत काल में स्त्रियों की स्थिति सन्तोषजनक नहीं थी। समाज में बहुविवाह, बहुपति प्रथा, दासी प्रथा आदि प्रचलित थीं। इस काल में वेश्यावृत्ति भी प्रचलित थी।

प्रश्न 9.
उन साक्ष्यों की चर्चा कीजिए जो यह दर्शाते हैं कि बन्धुत्व और विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं होता था।
उत्तर:
बन्धुत्व और विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र पालन नहीं होना धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों के ब्राह्मण लेखकों की यह मान्यता थी कि उनका दृष्टिकोण सार्वभौमिक है और उनके द्वारा बनाए गए नियमों का सबके द्वारा पालन होना चाहिए। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं था। वास्तविक सामाजिक सम्बन्ध कहीं अधिक जटिल थे। उपमहाद्वीप में फैली क्षेत्रीय विभिन्नता और संचार की बाधाओं के कारण ब्राह्मणों का प्रभाव सार्वभौमिक नहीं हो सकता था अतः विद्वानों की मान्यता है कि उस समय बन्धुत्व और विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र पालन नहीं होता था।

(1) पारिवारिक जीवन में भिन्नता हम प्रायः
पारिवारिक जीवन को सहज ही स्वीकार कर लेते हैं। परन्तु वास्तव में सभी परिवार एक जैसे नहीं होते। पारिवारिक जनों के आपसी सम्बन्धों तथा क्रियाकलापों में भिन्नता होती है। परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते हैं, जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं। तकनीकी भाषा में हम सम्बन्धियों को ‘जाति समूह’ कह सकते हैं। पारिवारिक रिश्ते प्राकृतिक तथा रक्त से सम्बन्धित माने जाते हैं। परन्तु इन रिश्तों की परिभाषा अलग- अलग ढंग से की जाती है। एक ओर कुछ समाजों में भाई- बहिन (चचेरे, मौसेरे आदि) से रक्त का रिश्ता माना जाता है, परन्तु कुछ समाज ऐसा नहीं मानते। उदाहरणार्थ, बान्धवों के दो दल कौरव और पांडव भूमि और सत्ता को लेकर एक- दूसरे के विरुद्ध युद्ध में कूद पड़ते हैं। दोनों ही दल कुरुवंश से सम्बन्धित थे। यहाँ बन्धुत्व सम्बन्धी ब्राह्मणीय नियमों का उल्लंघन किया गया।

पितृवशिक पद्धति में भिन्नता यद्यपि कुछ परिवारों में पितृवंशिकता पद्धति प्रचलित थी, परन्तु इस पद्धति में विभिन्नता थी। कभी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी-कभी बन्धु- बान्धव राजगद्दी पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते थे। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त सिंहासन प्राप्त कर लेती थीं।

(2) विवाह के नियम:
प्राचीनकाल में पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण होते थे। इस व्यवस्था में पुत्रियों को पुत्रों के समान महत्त्व प्राप्त नहीं था पिता अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना ही अपना प्रमुख कर्तव्य समझता था। इस प्रथा को ‘बहिर्विवाह पद्धति’ कहते हैं। इसका अभिप्राय यह था कि उच्च प्रतिष्ठित परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्त्रियों का जीवन बड़ी सावधानीपूर्वक नियमित किया जाता था जिससे ‘उचित समय’ पर तथा ‘उचित व्यक्ति’ से उनका विवाह किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप ‘कन्यादान’ अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया।

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(3) नगरों के उद्भव से सामाजिक जीवन में जटिलता नए नगरों के उद्भव से सामाजिक जीवन में अधिक जटिलता आ गई। नगरों के निकट और दूर से आकर लोग आपस में मिलते थे और वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते थे। इसके फलस्वरूप नगरों में रहने वाले लोगों में विचारों का आदान-प्रदान होता था। शायद इस कारण से कुछ लोगों के आरम्भिक विश्वासों और व्यवहारों पर सन्देह प्रकट किया और उनका औचित्य जानना चाहा। इस समस्या के समाधान के लिए ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार कीं। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन ‘धर्मसूत्र’ व ‘धर्मशास्व’ नामक संस्कृत ग्रन्थों में किया गया। इन ग्रन्थों में ‘मनुस्मृति’ सबसे महत्त्वपूर्ण थी जिसका संकलन लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ईसवी के बीच हुआ।

(4) शास्त्रों द्वारा विवाह के आठ प्रकारों को मान्यता देना- धर्मसूत्रों तथा धर्मशास्त्रों ने विवाह के आठ प्रकारों को अपनी स्वीकृति दी है। विवाह के 8 प्रकार थे –

  • ब्रह्म विवाह
  • दैव विवाह
  • आर्ष विवाह
  • प्रजापत्य विवाह
  • आसुर विवाह
  • गन्धर्व विवाह
  • राक्षस विवाह
  • पैशाच विवाह इन आठ विवाहों में से पहले चार विवाह ‘उत्तम’ माने जाते थे तथा शेष चार विवाह निंदित माने गए।

सम्भव है कि ये निन्दित विवाह पद्धतियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं जो ब्राह्मणीय नियमों को स्वीकार नहीं करते थे। महाभारत काल में अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित थे। उदाहरणार्थ, क्षत्रिय भीम द्वारा हिडिम्बा नामक राक्षसी के साथ विवाह करना तथा दिथ्य मांगलिक नामक वैश्य कन्या द्वारा मातंग नामक चाण्डाल से विवाह करना आदि। परन्तु ये विवाह विवाह सम्बन्धी ब्राह्मणीय विषयों के विपरीत थे।

(5) सातवाहन नरेशों द्वारा गोत्रों के नियमों की अवहेलना ब्राह्मणीय पद्धति के अनुसार गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –
(1) विवाह के बाद स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
(2) एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे परन्तु सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों ने विवाह के बाद भी अपने पतिकुल के गोत्र को ग्रहण नहीं किया, जैसा ब्राह्मणीय व्यवस्था में प्रचलित था; उन्होंने अपने पिता का गोत्र नाम ही बनाए रखा। इसके अतिरिक्त कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं। यह बात ब्राह्मणीय व्यवस्था की बहिर्विवाह पद्धति के नियमों के विरुद्ध थी।

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बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज JAC Class 12 History Notes

→ महाभारत उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध ग्रन्थों में से महाभारत एक है। यह एक विशाल महाकाव्य है जो अपने वर्तमान रूप में एक लाख श्लोकों से अधिक है। यह विभिन्न सामाजिक श्रेणियों व परिस्थितियों का लेखा-जोखा है। इसकी मुख्य कथा दो परिवारों के बीच हुए युद्ध का चित्रण है।

→ महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण- 1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण को तैयार करने की परियोजना शुरू हुई यह परियोजना 47 वर्षों में पूरी हुई। इस प्रक्रिया में दो बातें विशेष रूप से उभर कर आई –
(1) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता थी तथा
(2) कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभरकर सामने आए।

→ परिवार परिवार एक बड़े समूह का भाग होते हैं जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं सम्बन्धियों को ‘जाति समूह’ कहा जा सकता है। पारिवारिक सम्बन्ध ‘नैसर्गिक’ और रक्त से सम्बन्धित माने जाते हैं। संस्कृत ग्रन्थों में ‘कुल’ शब्द का प्रयोग ‘परिवार’ के लिए और ‘जाति’ का ‘बान्धवों’ के समूह के लिए होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज इकट्ठे रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं।

→ पितृवंशिकता – पितृवंशिकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है पितृवेशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके संसाधनों (राजाओं के संदर्भ में सिंहासन भी) पर अधिकार कर सकते थे। अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे। ‘मातृवंशिकता’ शब्द का प्रयोग हम तब करते हैं, जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है।

→ विवाह के नियम-पुत्री का अपने गोत्र से बाहर विवाह कर देना ही उचित माना जाता था। इस प्रथा को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं। कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता था।

→ आचार संहिताएँ- ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार कीं। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन ‘धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ नामक ग्रन्थों में किया गया। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण मनुस्मृति श्री जिसका संकलन लगभग 200 ई. पूर्व से 200 ई. के बीच हुआ।

→ विवाह के प्रकार –

  • अन्तर्विवाह अन्तर्विवाह में वैवाहिक सम्बन्ध समूह के बीच ही होते हैं। यह समूह एक गोत्र, कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है।
  • बहिर्विवाह – गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह कहते हैं।
  • बहुपत्नी प्रथा यह प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी है।
  • बहुपति प्रथा यह एक स्वी के अनेक पति होने की पद्धति है।
  • धर्म सूत्र और धर्मशास्य विवाह के आठ प्रकारों को अपनी स्वीकृति देते हैं। इनमें से पहले चार ‘उत्तम’ माने जाते थे तथा अन्तिम चार को निंदित माना गया।

→ गोत्रों में वर्गीकृत करना लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से ब्राह्मणों ने लोगों, विशेषकर ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत करना शुरू किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे।

→ गोत्रों के नियम – गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –
(1) विवाह के पश्चात् स्थियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था।
(2) एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं कर सकते थे परन्तु सातवाहन राजाओं की रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे जो उनके पिता के गोत्र थे।

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→ माताओं का महत्त्वपूर्ण होना- सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था। इससे यह प्रतीत होता है कि माताएँ महत्त्वपूर्ण थीं परन्तु सातवाहन राजाओं में सिंहासन का उत्तराधिकार पितृवंशिक होता था।

→ सामाजिक विषमताएँ-धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। इनमें ब्राह्मणों को पहला दर्जा प्राप्त था तथा शूद्रों एवं अस्पृश्यों को सबसे निम्नस्तर पर रखा जाता था। समाज में चार वर्ग अथवा वर्ण थे।

→ वर्गों के लिए उचित जीविका

  • ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना और करवाना, दान देना और लेना था।
  • क्षत्रियों का काम युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना आदि था। पालन और व्यापार करना था
  • वैश्यों का कार्य कृषि, गौ था।
  • शूद्रों का काम तीनों उच्च वर्णों की सेवा करना

→ राजा किस वर्ण का होना चाहिए? शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे। परन्तु अनेक महत्त्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी, शुंग और कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे सातवाहन वंश के राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण बताया था।

→ जाति और सामाजिक गतिशीलता ब्राह्मणीय सिद्धान्त के अनुसार वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी। परन्तु वर्ण जहाँ केवल चार थे, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी। कुछ जातियों को कभी- कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था। मन्दसौर के एक अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है।

→ चार वर्णों के परे कुछ समुदायों पर ब्राह्मणीय विचारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उदाहरण के लिए निषाद वर्ग इसी का उदाहरण है। एकलव्य भी निषाद वर्ग से जुड़ा हुआ था। यायावर पशुपालकों को भी शंका की दृष्टि से देखा जाता था। ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे। उन्होंने चाण्डालों को अछूत मानकर समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा था। ‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डालों को गाँव के बाहर रहना पड़ता था। वे फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे तथा मृतकों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

→ सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार- मनुस्मृति के अनुसार पैतृक सम्पत्ति का माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी पुत्रों में समान रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए किन्तु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था। स्वियों इस पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे ‘स्त्री धन’ कहा जाता था। इस सम्पति पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था।

→ वर्ण और सम्पत्ति के अधिकार ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार लैंगिक आधार के अतिरिक्त सम्पत्ति पर अधिकार का एक और आधार वर्ण था शूद्रों के लिए एकमात्र ‘जीविका’ अन्य तीन वर्णों की सेवा थी जिसमें हमेशा उनकी इच्छा सम्मिलित नहीं होती थी। परन्तु तीन उच्च वर्णों के पुरुषों के लिए विभिन्न जीविकाओं की सम्भावना रहती थी। राजा, पुरोहित आदि धनी होते थे।

→ वर्ण व्यवस्था का विरोध बौद्धों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया। उन्होंने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को अस्वीकार किया।

→ सम्पत्ति में भागीदारी प्राचीन तमिलकम सरदार अपनी प्रशंसा गाने वाले चारणों और कवियों के आश्रयदाता थे। यद्यपि वहाँ भी धनी और निर्धन के बीच विषमताएँ थीं, परन्तु जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी थी, उनसे यह उपेक्षा की जाती थी कि वे मिल बांटकर सम्पत्ति का उपयोग करेंगे।

→ सामाजिक विषमताओं की व्याख्या बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि राजा का पद लोगों द्वारा चुने जाने पर निर्भर करता था राजा द्वारा लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के बदले में लोग राजा को ‘कर’ देते थे। बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित एक मिथक से ज्ञात होता है कि आर्थिक और सामाजिक सम्बन्धों को बनाने में मानवीय कर्म का बड़ा हाथ था।

→ साहित्यिक स्रोतों का प्रयोग इतिहासकार और महाभारत इतिहासकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय अग्रलिखित बातों पर विचार करते हैं-

  • ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया था
  • क्या ये ग्रन्थ मन्त्र थे, जो अनुष्ठानकर्त्ताओं द्वारा पढ़े और उच्चरित किए जाते थे, अथवा ‘कथा ग्रन्थ’ थे जिन्हें लोग पढ़ और सुन सकते थे।
  • इतिहासकार लेखक के बारे में जानने का प्रयास करते हैं।
  • वे ग्रन्थ के रचनाकाल और उसकी रचना भूमि का भी विश्लेषण करते हैं।

→ भाषा और विषयवस्तु महाभारत का यह पाठ संस्कृत में है, परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है। इतिहासकार महाभारत की विषयवस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –

  • आख्यान तथा
  • उपदेशात्मक आख्यान में कहानियों का संग्रह है और उपदेशात्मक में. सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है।

अधिकांश इतिहासकार इस बात पर एकमत हैं कि महाभारत वस्तुतः एक भाग में नाटकीय कथानक था, जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गए।

→ महाभारत इतिहास की परम्परा में आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को ‘इतिहास’ की श्रेणी में रखा गया है। इतिहास का अर्थ है ‘ऐसा ही था।’ कुछ इतिहासकारों का मत है कि स्वजनों के बीच हुए युद्ध की स्मृति ही महाभारत का मुख्य कथानक है परन्तु कुछ इतिहासकारों का कहना है कि हमें युद्ध की पुष्टि किसी और साक्ष्य से नहीं होती।

→ महाभारत का लेखक और रचनाकाल-साहित्यिक परम्परा के अनुसार महाभारत की रचना ऋषि व्यास ने की थी। उन्होंने इस ग्रन्थ को ‘श्रीगणेश’ से लिखवाया था। सम्भवतः मूल कथा के लेखक भाट सारथी थे जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था। पाँचवीं शताब्दी ई. पूर्व से ब्राह्मणों ने इस कथा परम्परा पर अपना अधिकार कर लिया। 200 ई. पूर्व से. 200 ई. के बीच हम इस ग्रन्थ के रचनाकाल का एक और चरण देखते हैं। कालान्तर में 200-400 ई. के बीच मनुस्मृति से मिलते-जुलते हुए कुछ उपदेशात्मक प्रकरण महाभारत में जोड़े गए। इस प्रकार अपने प्रारम्भिक रूप में महाभारत में 10,000 श्लोक से भी कम थे, परन्तु कालान्तर में इसमें एक लाख श्लोक हो गए।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

→ हस्तिनापुर का उत्खनन 1951-52 में पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल के नेतृत्व में मेरठ जिले के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया गया। कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर हो सकती थी जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।

→ महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पाण्डवों के विवाह की है। यह बहुपति विवाह का उदाहरण है जो महाभारत की कथा का अभिन्न अंग है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः बहुपति प्रथा शासकों के विशिष्ट वर्ग में किसी काल में विद्यमान थी परन्तु समय के साथ बहुपति प्रथा कुछ ब्राह्मणों की दृष्टि में अमान्य हो गई फिर भी यह प्रथा हिमालय क्षेत्र में प्रचलित थी और आज भी है।

→ एक गतिशील ग्रन्थ-शताब्दियों से महाकाव्य के अनेक पाठान्तर भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखे गए। इसमें अनेक कहानियाँ समाहित कर ली गई। इसके साथ ही इस महाकाव्य की मुख्य कथा की अनेक पुनर्व्याख्याएँ की गई। इसके प्रसंगों को मूर्तिकला और चित्रों में भी दर्शाया गया। इस महाकाव्य ने नाटकों और नृत्य कलाओं के लिए भी विषय-वस्तु प्रदान की।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

Jharkhand Board JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

JAC Class 9 English The Little Girl Textbook Questions and Answers

Thinking About the Text

I. Given below are some emotions that Kezia felt. Match the emotions in Column A with the items in Column B.

नीचे वे भाव (emotion) दिये गये हैं जिन्हें केजिया महसूस करती थी । कॉलम A में दिये गये भावों (emotions) का कॉलम B में दी गयी बातों से मिलान कीजिये

Column A Column B
1. fear or terror (i) father comes Into her room to give her a goodbye kiss
2. glad sense of relief (ii) noise of the carriage grows fainter
3. a ‘funny’ feeling, perhaps of understanding (iii) father comes home
(iv) speaking to father
(v) going to bed when alone at home
(vi) father comforts her and falls asleep
(vii) father stretched out on the sofa snoring

Answer:

Column A Column B
1. fear or terror (i) father comes Into her room to give her a goodbye kiss
2. glad sense of relief (iii) father comes home
3. a ‘funny’ feeling, perhaps of understanding (iv) speaking to father
(v) going to bed when alone at home
 JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl (vii) father stretched out on the sofa snoring
(ii) noise of the carriage grows fainter
(vi) father comforts her and falls asleep

II. Answer the following questions in about 30 words each:

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिये :

Question 1.
Why was Kezia afraid of her father ?
केजिया अपने पिता से क्यों डरी हुई थी ?
Answer:
Kezia was afraid of her father because he (father) never spoke kindly to her. He was very strict in his behaviour. He never played with her. She was panic stricken when he looked at her over his spectacles.

केजिया अपने पिता से इसलिए डरी हुई थी क्योंकि वे उससे कभी भी दयालुता से बात नहीं करते थे । उनका व्यवहार अत्यधिक कठोर था । वह कभी भी केजिया के साथ नहीं खेलते थे। जब वह अपने चश्मे को लगाकर उसमें से उसे देखते थे तो वह बहुत घबरा जाती थी।

Question 2.
Who were the people in Kezia’s family ?
केजिया के परिवार में कौन-कौन लोग थे ?
Answer:
There were only four persons in Kezia’s family. They were – her father, mother, grandmother and Kezia herself. Besides, the cook Alice was also there who looked after her in her mother’s absence.

केजिया के परिवार में केवल चार लोग थे । वे थे उसके पिता, माँ, दादी माँ और स्वयं केजिया । इसके अतिरिक्त एलिस नामक महिला रसोइया भी थी जो उसकी माँ केजिया की अनुपस्थिति में उसकी देखभाल करती थी।

Question 3.
What was the Kezia’s father’s routine :
(i) before going to his office ?
(ii) after coming back from his office ?
(iii) on Sundays ?

केजिया के पिताजी की दिनचर्या क्या थी
(i) दफ्तर जाने से पहले ?
(ii) दफ्तर से लौटकर घर आने पर ?
(iii) हर रविवार को ?
Answer:
Kezia’s father’s routine was that –
केजिया के पिता की दिनचर्या थी

(i) Before going to office he came into Kezia’s room and gave her a casual goodbye kiss.
दफ्तर जाने से पहले वह केजिया के कमरे में आते और उसे विदाई के समय का हल्के अंदाज में चुम्बन देते थे।

(ii) After coming back home, he would have his boots taken off. Then he demanded tea, his slippers and paper.
घर आने पर वे अपने जूते उतरवांते । फिर वे चाय, अपनी चप्पलें और अखबार माँगते थे।

(iii) On Sundays, he stretched out on the sofa, covered his face with a handkerchief and slept soundly.
रविवार को वह सोफा पर लेटते, अपने चेहरे को रूमाल से ढकते और गहरी नींद में सो जाते थे ।

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Question 4.
In what ways did Kezia’s grandmother encourage her to get to know her father better?
केजिया की दादी माँ उसे अपने पिता को बेहतर समझने के लिए कैसे प्रोत्साहित करती थीं ?
Answer:
Kezia’s grandmother wanted her to understand her father better. On Sunday afternoons grandmother encouraged Kezia to go to her father in the drawing room to have a nice talk with him. After some days she suggested Kezia to make a pin-cushion as a gift for her father on his birthday.

केजिया की दादी चाहती थी कि वह अपने पिता को अच्छी तरह समझे । हर रविवार को दोपहर बाद दादी माँ केजिया को ड्राइंग रूम में अपने पिता के पास जाकर उनसे अच्छी तरह बात करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं । कुछ दिनों बाद उन्होंने केजिया को सुझाव दिया कि वह अपने पिता को जन्मदिन पर उपहार देने के लिए एक पिन- कुशन बनाये ।

III. Discuss these questions in class with your teacher and then write down your answers in about 60 words each :

कक्षा में अपने शिक्षक से इन प्रश्नों पर चर्चा कीजिये और फिर प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीजिये :

Question 1.
Kezia’s efforts to please her father resulted in displeasing him very much. How did this happen?
अपने पिता को प्रसन्न करने के केजिया के प्रयासों का परिणाम उन्हें बहुत नाराज करना हुआ । यह कैसे हुआ?
Answer:
Kezia wanted to please her father by gifting him a pin-cushion on his birthday. Laboriously, she made a pin-cushion. She unknowingly tore her father’s important papers into pieces and filled them into the pin-cushion. Later when her father came to know this, he became very angry. He beat Kezia with a ruler. Thus, Kezia’s efforts to please her father resulted in displeasing him very much.

केजिया अपने पिता को उनके जन्मदिन पर उपहार में एक पिन- कुशन देकर प्रसन्न करना चाहती थी । बहुत परिश्रम से उसने एक पिन- कुशन बनाया । उसने अनजाने में ही अपने पिता के महत्त्वपूर्ण कागजों को फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया और उन्हें पिन- कुशन में भर दिया। बाद में, जब उसके पिता को यह पता चला तो वे बहुत नाराज हुए । उन्होंने केजिया को पटरी से ( पैमाने से) पीटा । इस प्रकार केजिया के अपने पिता को प्रसन्न करने के प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि उसके पिता अत्यधिक नाराज हो गये ।

Question 2.
Kezia decides that there are ‘different kinds of fathers.’ What kind of father was Mr Macdonald, and how was he different from Kezia’s father?
केजिया यह निश्चय कर लेती है कि ‘पिता भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं । मि. मैक्डोनाल्ड किस प्रकार के पिता थे और वे केजिया के पिता से किस तरह भिन्न थे ?
Answer:
Mr Macdonald loved his children very much. He had enough time to play with his children. He did not scold his children even for throwing water on him with a hose- pipe. He laughed and enjoyed it with his children, whereas Kezia’s father neither played with his daughter nor spoke to her softly. Kezia was afraid of him very much. She thought her father to be a cruel man. Though Kezia’s father also loved his daughter, he didn’t show it.

मि. मैक्डोनाल्ड अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे । बच्चों के साथ खेलने के लिए उनके पास पर्याप्त समय होता था । उन्होंने अपने बच्चों को अपने ऊपर हौज़पाइप से पानी फेंकने पर भी नहीं डाँटा । वे हँसते रहे और अपने बच्चों के साथ इसका आनन्द लेते रहे जबकि केजिया के पिताजी अपनी बेटी के साथ ना तो कभी खेलते थे और ना ही उससे कभी मृदुता से बात करते थे । केजिया उनसे बहुत डरती थी । वह अपने पिता को निर्दयी व्यक्ति समझती थी । यद्यपि केजिया के पिताजी भी अपनी बेटी को प्यार करते थे किन्तु वह इसे दर्शाते नहीं थे।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

Question 3.
How does Kezia begin to see her father as a human being who needs her sympathy?
केजिया किस प्रकार अपने पिता को एक ऐसे मानव प्राणी के रूप में देखने लगती है जिसे उसकी सहानुभूति की आवश्यकता है ?
Answer:
Kezia feared and avoided her father. In the absence of her mother and grandmother, when she was sleeping alone in night and had a nightmare, she cried out of fear and called her grandmother. But she was not at home. Then her father came to help her. He took her to his bedroom in his arms.

He asked her to rub her feet against his legs to get them warm. Now she felt comfortable. She got rid of her fear under his protection. She realized that her father had to work hard and was too tired to play with her. Thus, Kezia begins to see her father as a human being who needed her sympathy.

केजिया अपने पिताजी से डरती थी और उनसे बचा करती थी । अपनी दादी और माँ की अनुपस्थिति में एक रात जब वह अकेली सो रही थी तो उसे भयंकर स्वप्न आया, वह भय से चीखी और उसने अपनी दादी माँ को पुकारा । किन्तु वह घर पर नहीं थीं । तब उसके पिताजी उसकी मदद के लिए आये। वे उसे अपनी गोद में उठाकर अपने शयन कक्ष में ले गये ।

उन्होंने उससे अपने पैरों को उनकी टाँगों से रगड़कर गर्म करने के लिए कहा । अब उसे आराम महसूस हुआ और वह उनके संरक्षण में डर से मुक्त हो गई। अब केजिया ने महसूस किया कि उसके पिताजी को दिन-भर परिश्रम करना पड़ता है और वे इतने थक जाते थे कि उसके साथ खेल नहीं सकते। इस प्रकार केजिया अपने पिता को एक ऐसे मानव प्राणी के रूप में देखने लगती है जिन्हें उसकी सहानुभूति की जरूरत है।

Thinking about Language

I. Look at the following sentence :

निम्नलिखित वाक्य को देखिये :

There was a glad sense of relief when she heard the noise of the carriage growing fainter….
यहाँ ‘glad’ का अर्थ है — किसी बात से प्रसन्न होना ।
Glad, happy, pleased, delighted, thrilled और overjoyed – ये सभी पर्यायवाची (समानार्थी) शब्द हैं । ये शब्द कुछ विशेष तरीके से प्रसन्नता दर्शाते हैं ।

Read the sentences below :
नीचे वाले वाक्यों को पढ़िये :

  • She was glad when the meeting was over.
  • The chief guest was pleased to announce the name of the winner.

1. Use an appropriate word from the synonyms given above in the following sentences.

Clues are given in brackets.
उपर्युक्त समानार्थी शब्दों में से उचित शब्द निम्नलिखित वाक्यों में भरिये । संकेत कोष्ठकों में दिये गये हैं :

(i) She was ……………… by the news of her brother’s wedding. (very pleased)
(ii) I was………. to be invited to the party. (extremely pleased and excited about)
(iii) She was ……….. at the birth of her grand daughter.
(iv) The coach was ……….. with his performance. (satisfied about)
(v) She was very with her results. (happy about something that has happened)
Answer:
(i) delighted
(ii) thrilled
(iii) overjoyed
(iv) pleased
(v) happy.

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2. Study the use of the word ‘big’ in the following sentence :

निम्नलिखित वाक्य में ‘big’ शब्द के प्रयोग का अध्ययन कीजिये :

He was so big – “his hands and his neck, especially his mouth ……………. चौड़ा ।
यहाँ ‘Big’ का तात्पर्य है- आकार में लम्बा –

Now, consult a dictionary and find out the meaning of ‘big’ in the following sentences.
The first one has been done for you :

अब निम्नलिखित वाक्यों में ‘big’ शब्द का अर्थ शब्दकोष से पता लगाइये । प्रथम वाक्य आपके लिये हल कर दिया है :

(i) You are a big girl now. (older)
(ii) Today you are going to take the biggest decision of your career.
(iii) Their project is full of big ideas.
(iv) Cricket is a big game in our country.
(v) I am a big fan of Lata Mangeskar.
(vi) You have to cook a bit more as my friend is a big eater.
(vii) What a big heart you’ve got, Father dear.
Answer:
(ii) most important
(v) enthusiastic
(iii) ambitious
(iv) very popular
(vi) doing something a lot
(vii) generous.

II. Verbs of Reporting:

Study the following sentences :
निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िये :

  • “What!” screamed Mother.
  • “N-n-no”, she whispered.
  • “Sit up”, he ordered.

टेढ़े छपे हुए शब्द ‘Reporting Verbs’ हैं । हम किसी के कथन या विचार को उद्धृत या सूचित करने के लिये ‘Reporting Verb’ का प्रयोग करते हैं । प्रत्येक ‘Reporting Clause’ में एक ‘Reporting Verb’ होती है ।

उदाहरणार्थ :

  • He promised to help in my project.
  • “How are you doing?” Seema asked.

हम ‘Reporting Verbs’ का प्रयोग सलाह देने, आज्ञा, सूचना, बयान, विचार, इरादे, प्रश्न, निवेदन, खेद तथा बोलने के तरीके आदि को व्यक्त करने के लिए करते हैं ।

1. Write the verbs of reporting in the following sentences:

निम्नलिखित वाक्यों में verbs of reporting को लिखिए :

(i) He says he will enjoy the ride.
(ii) Father mentioned that he was going on a holiday.
(iii) No one told us that the shop was closed.
(iv) He answered that the price would go up.
(v) I wondered why he was screaming.
(vi) Ben told her to wake him up.
(vii) Ratan apologised for coming late to the party.
Answer:
(i) says
(ii) mentioned
(iii) told
(iv) answered
(v) wondered
(vi) told
(vii) apologised.

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2. Some verbs of reporting are given in the box. Choose the appropriate verbs and fill in the blanks in the following sentences.

कुछ verbs of reporting बॉक्स में दी गई हैं । उपयुक्त verbs चुनिये और निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये :

were complaining, shouted, replied, remarked, ordered, suggested

(i) “I am not afraid,” ………….. the woman.
(ii) “Leave me alone,” my mother …………..
(iii) The children ………… that the roads were crowded and noisy.
(iv) ‘Perhaps he isn’t a bad sort of a chap after all,”……………… the master.
(v) “Let’s go and look at the school ground,”………….. the sports teacher.
(vi) The traffic police ………… all the passers-by to keep off the road.
Answer:
(i) replied
(ii) shouted
(iii) were complaining
(iv) remarked
(v) suggested
(vi) ordered

Speaking

Form pairs or groups and discuss the following questions:
जोड़े या टोलियाँ बनाइये तथा निम्नलिखित प्रश्नों पर चर्चा कीजिये :

Question 1.
This story is not an Indian story. But do you think there are fathers, mothers and grandmothers like the ones portrayed in the story in our own country?
यह कहानी कोई इंडियन (भारतीय) कहानी नहीं है । लेकिन क्या आप सोचते हैं कि कहानी में वर्णित माता-पिता तथा दादी जैसे लोग हमारे अपने देश में भी होते हैं ?
Answer:
Yes, in our country also there are fathers, mothers and grandmothers like those described in the story. Many parents show their love greatly, but there are others who do not show it. However, it never means that they have no affection for their children. But they fail to comprehend the psychology of the children. Children need parents’ time and love. They want to interact with their parents. In fact, they (parents) are too burdened with other responsibilities that they do not have time to show their love.

हाँ, हमारे अपने देश में भी कहानी में वर्णित उन जैसे माता-पिता तथा दादियाँ हैं । बहुत-से माता-पिता अपने प्यार को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं । किन्तु कुछ अन्य ऐसे भी हैं जो इसे प्रदर्शित नहीं करते हैं । हालांकि, इसका यह आशय कदापि नहीं है कि वे अपने बच्चों से प्यार नहीं करते हैं। लेकिन वे बच्चों के मनोविज्ञान को समझने में असफल रहते हैं। बच्चों को अपने माता-पिता के समय और प्यार की आवश्यकता होती है। वे अपने माता-पिता के साथ बात-चीत करना चाहते हैं। वास्तव में उन पर अर्थात् माता-पिता पर अन्य उत्तरदायित्वों का इतना अधिक भार होता है कि उनके पास अपने प्यार को दर्शाने के लिए समय नहीं होता है।

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Question 2.
Was Kezia’s father right to punish her ? What kind of a person was he? You might find some of these words useful in describing him :
क्या केजिया के पिता का उसे दण्ड देना सही था ? वे किस प्रकार के व्यक्ति थे ? आप निम्नलिखित शब्दों में से कुछ शब्द उनका वर्णन करने हेतु उपयोगी पा सकते हैं :
undemonstrative, loving, strict, hard-working, responsible, unkind, disciplinarian, short-tempered, affectionate, caring, indifferent.
Answer:
No, Kezia’s father was not right to punish her. He was a hard-working and short- tempered man. He was a strict disciplinarian but he was undemonstrative. He himself was responsible for the loss of great speech because he should have told everyone beforehand that his speech should not be touched. He was loving and affectionate to Kezia. But he was unkind to punish him. In the end of the story, he was seen very caring to Kezia.

नहीं, केजिया के पिता का उसे दण्ड देना सही नहीं था । वह परिश्रमी थे और गर्म मिजाज वाले व्यक्ति थे। वह अत्यधिक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे किन्तु वे अप्रदर्शनशील भी थे । महत्वपूर्ण भाषण के गुम हो जाने के लिए वह स्वयं भी दोषी थे क्योंकि उन्हें घर में पहले ही सबको बता देना चाहिए था कि उनके भाषण को कोई हाथ नहीं लगाये । वह केजिया के प्रति दयालु व स्नेहशील थे किन्तु उसे दण्डित करते समय वे निर्दयी हो गये । कहानी के अन्त में वह केजिया के प्रति बहुत ही दयालु दिखाई दिए।

Writing

Has your life been different from or similar to that of Kezia when you were a child? Has your perception about your parents changed now? Do you find any change in your parents’ behaviour vis-a-vis yours? Who has become more understanding? What steps would you like to take to build a relationship based on understanding? Write three or four paragraphs discussing these issues from your own experience.

जब आप बच्चे थे तब क्या आपका जीवन केजिया के जीवन जैसा ही था या उससे भिन्न ? क्या अपने माता-पिता के बारे में आपकी धारणा अब बदल चुकी है ? क्या आप अपने माता-पिता, साथ ही साथ, अपने व्यवहार में कोई परिवर्तन पाते हैं ? कौन ज्यादा समझदार हो गया है ? समझदारी पर आधारित सम्बन्ध बनाने के लिए आप क्या कदम उठाना चाहेंगे ? तीन या चार अनुच्छेदों में इन मुद्दों पर चर्चा करते हुए अपने स्वयं के अनुभव से लिखिये ।
Answer:
No, my life has been different to that of Kezia when I was a child. My father was loving and caring to me. He would teach me everything with love. He never rebuked me. He never punished me for my faults. Instead, he asked me not to do anything wrong in future.

I loved my parents when I was a child. Now I am about fifteen. I understand my parents better now. I think that my parents are the best parents in the world. I love them very much. I obey them too.

Now I see many changes in my parents’ behaviour. They treat me as their friend. They fear that if they do not pay attention to me, I may be spoiled. I will always respect their advise to build a relationship with my parents based on understanding. There should not be any gap between us.

नहीं, जब मैं बच्चा था तो मेरा जीवन केजिया के जीवन से भिन्न था। मेरे पिता मेरे प्रति दयालु थे व मेरा ध्यान रखते थे । वह मुझे प्यार से हर बात समझाते थे । वह मुझे कभी भी नहीं फटकारते थे । वह मुझे मेरी गलतियों पर दण्ड नहीं देते थे । इसकी बजाय वह मुझसे कहते थे कि मैं भविष्य में कोई गलती नहीं करूँ ।

जब मैं बच्चा था तब अपने माता-पिता से प्रेम करता था । अब मैं लगभग पन्द्रह वर्ष का हूँ। अब मैं अपने माता-पिता को अधिक अच्छी तरह से समझता हूँ । मेरे विचार में मेरे माता-पिता संसार के सबसे अच्छे माता – पिता हैं । मैं उन्हें बहुत अधिक प्रेम करता हूँ । मैं उनकी बात भी मानता हूँ ।

अब मैं अपने माता-पिता के व्यवहार में बहुत परिवर्तन देखता हूँ । वे मुझसे मित्रवत व्यवहार करते हैं। उन्हें यह डर भी है कि यदि उन्होंने मेरे ऊपर ध्यान नहीं रखा तो मैं बिगड़ सकता हूँ । मैं अपने माता-पिता से समझदारी पर आधारित सम्बन्ध बनाने के लिए उनकी सलाह का सदैव सम्मान करूँगा । हमारे और उनके बीच कोई भी अन्तराल नहीं रहना चाहिए ।

JAC Class 9 English The Little Girl Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions

Answer the following questions in about 30 words each:

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिये :

Question 1.
What did Kezia’s father do before going to work ?
काम पर जाने से पहले केजिया के पिताजी क्या करते थे ?
Answer:
Kezia’s father was a very busy person. Before going to work, he used to come into the little girl’s room and gave her a casual kiss. In response, Kezia used to wish her father goodbye.

केजिया के पिताजी एक अत्यन्त व्यस्त व्यक्ति थे । काम पर जाने से पूर्व वे छोटी बच्ची (केजिया) के कमरे में जाते थे और उसे हल्के अंदाज में एक चुम्बन देते थे। इसके बदले में केजिया अपने पिताजी को अलविदा कहा करती थी ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

Question 2.
Why did the little girl stutter when she talked to her father ?
छोटी लड़की अपने पिताजी से बात करते समय क्यों हकलाती थी ?
Answer:
The little girl stuttered when she talked to her father because she tried very hard to say the words properly. This was so because she was afraid of her father.

छोटी लड़की अपने पिताजी से बात करते समय इसलिए हकलाती थी क्योंकि वह शब्दों को ठीक ढंग से बोलने के लिए ज्यादा प्रयास करती थी । ऐसा इसलिये था क्योंकि वह अपने पिता से डरती थी ।

Question 3.
What did grandmother suggest the little girl ?
दादी माँ ने छोटी बच्ची को क्या सुझाव दिया ?
Answer:
One day Kezia’s grandmother told her that her father’s birthday was falling next week. So the grandmother suggested the little girl to make a pin-cushion as a gift for her father on his birthday.

एक दिन केजिया की दादी ने उसे बताया कि उसके पिताजी का जन्मदिन अगले सप्ताह में है इसलिए दादी माँ ने छोटी बच्ची को सुझाव दिया कि वह अपने पिताजी को उनके जन्मदिन पर उपहार देने के लिए एक पिन- कुशन बनाये ।

Question 4.
Why was there a hue and cry in the house that one night ?
उस रात घर में हंगामा क्यों मचा हुआ था ?
Answer:
There was a hue and cry in the house that night because father’s great speech for the Port Authority had been lost. Everybody searched it everywhere in the house but they could not find it.

उस रात घर में हंगामा इसलिए मचा हुआ था क्योंकि बन्दरगाह प्राधिकरण संबंधी पिता का महत्त्वपूर्ण भाषण खो गया था । प्रत्येक व्यक्ति ने इसे घर में हर जगह तलाश किया किन्तु वे उसे ढूँढ़ नहीं पाये ।

Question 5.
When did Kezia decide that there were different sorts of fathers?
जिया ने यह निश्चय कब किया कि पिता विभिन्न प्रकार के होते हैं ?
Answer:
Kezia’s father was a very strict and busy person. He never played with his daughter. He never enjoyed passing time with his daughter. On the other hand, the father in the Macdonalds played with his children. Seeing this, Kezia decided that there were different sorts of fathers.

केजिया के पिता बहुत कठोर और व्यस्त व्यक्ति थे । वे कभी भी अपनी पुत्री के साथ नहीं खेलते थे । वे अपनी पुत्री के साथ समय बिताकर कभी भी आनन्दित नहीं होते थे । दूसरी ओर मैक्डोनाल्ड़ परिवार में पिता बच्चों के साथ खेलते थे । यह देखकर केजिया ने निश्चय किया कि पिता विभिन्न प्रकार के होते हैं ।

Question 6.
Why could the little girl not sleep alone ?
लड़की अकेली क्यों नहीं सो पाती थी ?
Answer:
The little girl could not sleep alone because she had nightmares. She also feared darkness. In her sleep she dreamt that a butcher with a knife and a rope was coming towards her.

छोटी बच्ची इसलिए अकेली नहीं सो पाती थी क्योंकि उसे दुःस्वप्न आते थे। उसे अँधेरे से भी डर लगता था वह सपने में एक कसाई को चाकू व रस्सी लेकर अपनी ओर आते हुए देखती थी ।

Question 7.
What was Kezia’s nightmare ?
केजिया का दुःस्वप्न क्या था ?
Answer:
In the nightmare Kezia saw a butcher with a knife and a rope, who came nearer and nearer. He was smiling that dreadful smile while she could not move. She could only stand still, crying out, ‘Grandma! Grandma !’

केजिया ने अपने दुःस्वप्न में देखा कि एक कसाई एक चाकू व रस्सी लेकर उसके बहुत निकट आता जा रहा था। वह भयानक रूप से मुस्कुरा रहा था जबकि वह हिल भी नहीं पा रही थी । वह केवल स्थिर खड़ी थी तथा ‘दादी माँ ! दादी माँ !’ चिल्ला रही थी ।

Question 8.
Did the girl change her opinion for her father ?
क्या लड़की ने अपने पिता के प्रति अपना विचार बदल दिया ?
Answer:
Yes, the girl changed her opinion for her father. Now she understood that the hardness of her father was natural because he had to work very hard daily. He got so tired that he could not play with her.

हाँ, लड़की ने अपने पिता के प्रति अपने विचार बदल दिये। अब वह समझ गयी कि उसके पिता की कठोरता स्वाभाविक ही थी क्योंकि वे सारा दिन बहुत कठिन परिश्रम करते थे। वे इतने थक जाते थे कि उसके साथ नहीं खेल पाते थे ।

Long Answer Type Questions

Answer the following questions in about 60 words each:

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीजिये :

Question 1.
Why did Kezia fear from her father so much?
केजिया अपने पिता से इतना क्यों डरती थी ?
Answer:
Kezia was a little girl. She feared from her father because she didn’t know her father’s nature. Whenever the girl went before him, he instructed her to behave properly. But the little girl got frightened and began to stutter before him. At this, her father got annoyed and asked her to speak properly. Thus, Kezia feared from her father and thought that he was a strict and fearful person.

केजिया एक छोटी बच्ची थी । वह अपने पिता से इसलिए डरती थी क्योंकि वह अपने पिता के स्वभाव को नहीं समझती थी । जब कभी बच्ची उनके सामने जाती तो वह उसे ठीक ढंग से व्यवहार करने का निर्देश देते थे । किन्तु छोटी बच्ची डर जाती थी और उनके सामने हकलाने लगती थी । इस बात पर उसके पिता नाराज हो जाते थे और उससे ठीक तरह से बोलने के लिए कहते थे । इस प्रकार केजिया अपने पिता से डरती थी और सोचती थी कि वे एक कठोर व डरावने व्यक्ति

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

Question 2.
How did Kezia make the pin-cushion and why ?
केजिया ने पिन- कुशन कैसे बनाया व क्यों ?
Answer:
Kezia’s grandmother had suggested her to make a pin-cushion to gift her father on his birthday. Kezia stitched three sides of cushion with a double cotton piece. Now she had nothing to fill it with. So, she looked for some scraps into the house. She found a few sheets of fine paper in her mother’s room. She tore them into pieces and stuffed her case. Then she sewed up the fourth side of the cushion also. Thus, Kezia prepared the pin-cushion.

केजिया की दादी माँ ने उसको सुझाव दिया था कि वह अपने पिता के जन्मदिन पर उपहार देने के लिए एक पिन – कुशन बनाये। केजिया ने कुशन को एक दोहरे सूती कपड़े से तीन ओर से सिल दिया । अब उसके पास इसमें भरने के लिए कुछ भी नहीं था । इसलिए उसने घर में कुछ कतरनों की तलाश की। उसे अपनी माँ के कमरे में अच्छे कागज के कई पन्ने मिल गये । उसने उनको फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया और . अपने खोल को भर लिया । उसके बाद उसने कुशन की चौथी तरफ भी सिलाई कर दी । इस प्रकार केजिया ने पिन- कुशन तैयार कर लिया।

Question 3.
How did the children and their father play together in the Macdonalds?
मैक्डोनाल्ड परिवार में बच्चे व उनके पिता साथ-साथ कैसे खेला करते थे ?
Answer:
The Macdonalds lived next door to Kezia’s family. They had five children. They played ‘tag’ in the evening. Their father carried the baby Mao on his shoulders. The two girls hung on to his coat pockets. Then they all ran round and round the flower-beds. They laughed loudly and played together. The two sons turned the hose pipe on their father and the father tried to catch them laughing all the time.Thus, the children and their father played happily together in the Macdonalds.

मैक्डोनाल्ड परिवार केजिया के परिवार के पड़ोस में रहता था । उनके पाँच बच्चे थे । वे शाम को ‘छुआ-छू का खेल खेलते थे । उनके पिता छोटी बच्ची माओ को अपने कन्धों पर बैठा लेते थे । दो लड़कियाँ उनके कोट की जेबों से लटक जाती थीं । तत्पश्चात् वे सभी फूलों की क्यारियों का चक्कर लगाते हुए दौड़ लगाते थे । वे जोर-जोर से हँसते थे और साथ-साथ खेलते थे। दोनों पुत्रों ने पानी के पाइप को अपने पिता की ओर मोड़ दिया और पिता लगातार हँसते हुए उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। इस प्रकार मैक्डोनाल्ड परिवार में बच्चे व उनके पिता प्रसन्नतापूर्वक साथ-साथ खेला करते थे ।

Question 4.
Why could Kezia not sleep alone at night ? Which nightmare did she have?
केजिया रात को अकेली क्यों नहीं सो पाती थी ? उसे कौन-सा बुरा स्वप्न आता था ?
Answer:
Kezia could not sleep alone because she often had nightmares. Moreover, she could not stay in the dark. She had the same old nightmare again and again. She dreamt that a butcher was coming towards her. He had a knife and a rope with him. He kept coming nearer and nearer to her. His smiling was dreadful. Kezia got frightened. She even could not move. She cried out due to fear, “Grandma ! Grandma” !

केजिया अकेली नहीं सो पाती थी क्योंकि उसे अक्सर दुःस्वप्न आते थे। इसके अतिरिक्त वह अँधेरे में नहीं रह सकती थी । उसे वही पुराना दुःस्वप्न बार-बार आता था । वह स्वप्न में देखती थी कि एक कसाई उसकी तरफ आ रहा है । उसके पास एक चाकू व एक रस्सी होती थी। वह उसके अत्यधिक निकट आ जाता था । उसकी मुस्कान भयानक थी । केजिया भयभीत हो जाती थी । वह हिल भी नहीं पाती थी । फिर वह भय से चीख पड़ी, “दादी माँ ! दादी माँ !”

Seen Passages

Read the following passages carefully and answer the questions given below them:

निम्नलिखित गद्यांशों को सावधानीपूर्वक पढ़िये तथा उनके नीचे दिये हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिये :

Passage – 1.

To the little girl he was a figure to be feared and avoided. Every morning before going to work he came into her room and gave her a casual kiss, to which she responded with “Goodbye, Father.” And oh, there was a glad sense of relief when she heard the noise of the carriage growing fainter and fainter down the long road!

In the evening, when he came home, she stood near the staircase and heard his loud voice in the hall. “Bring my tea into the drawing-room……….. Hasn’t the paper come yet? Mother, go and see if my paper’s out there-and bring me my slippers.” “Kezia,” Mother would call to her, “if you’re a good girl you can come down and take off father’s boots.” Slowly the girl would slip down the stairs, more slowly still across the hall, and push open the drawing-room door.

By that time he had his spectacles on and looked at her over them in a way that was terrifying to the little girl. “Well, Kezia, hurry up and pull off these boots and take them outside. Have you been a good girl today?”
“I d-d-don’t know, Father.” “You d-d-don’t know? If you stutter like that, Mother will have to take you to the doctor.”

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

1. What did the little girl’s father do before going to work?
काम पर जाने से पूर्व छोटी लड़की के पिताजी क्या करते थे ?

2. How did the little girl feel when her father had gone to work?
जब छोटी लड़की के पिताजी काम पर चले जाते थे तो वह कैसा महसूस करती थी ?

3. What did the girl do when her father came home in the evening?
जब लड़की के पिताजी शाम को घर आते थे तो लड़की क्या करती थी ?

4. What things did the little girl’s father demand when he returned from work in the evening?
जब छोटी लड़की के पिता शाम को काम से लौटकर आते थे तो वे कौन कौन-सी वस्तुएँ माँगते थे ?

5. What did Kezia’s mother tell her to do?
केजिया की माँ उससे क्या करने को कहती थी ?

6. How did the little girl Kezia reach her father?
छोटी लड़की केजिया अपने पिताजी के पास किस प्रकार से पहुँचती थी ?

7. What was terrifying to the little girl?
छोटी बच्ची को क्या भयावह लगता था ?

8. What orders did her father give her?
उसके पिताजी उसे क्या आदेश देते थे ?

9. Pick out the word from the passage which is the opposite to – ‘put on’

10. Find the word from the passage which means: ‘replied’
Answers:
1. The little girl’s father gave her a casual kiss before going to work.
काम पर जाने से पूर्व छोटी लड़की के पिताजी उसको हल्के अंदाज में चुम्बन देते थे ।

2. The little girl felt a glad sense of relief when her father had gone to work.
जब छोटी लड़की के पिताजी काम पर चले जाते थे तो वह खुशी-भरी राहत महसूस करती थी ।

3. The girl stood near the staircase and heard her father’s loud voice in the hall.
लड़की सीढ़ियों के पास खड़ी हो जाती थी और हॉल में अपने पिताजी की तेज आवाज सुनती थी ।

4. The little girl’s father demanded tea, paper and his slippers when he returned from work in the evening.
जब छोटी लड़की के पिताजी शाम को काम से लौटते थे तो वह चाय, समाचार पत्र और अपनी चप्पलें माँगते थे ।

5. Kezia’s mother told her to take off her father’s boots.
केन्जिया की माँ उससे अपने पिताजी के जूते उतारने के लिए कहती थी ।

6. The little girl Kezia reached her father moving very slowly.
वह छोटी लड़की केजिया अपने पिता के पास बड़ी धीरे से चलकर पहुँचती थी ।

7. Her father’s looking at her over his spectacles was terrifying to the little girl.
उसके पिताजी का अपने चश्मे में से उसको देखना उसे भयावह लगता था ।

8. Her father ordered her to pull off the boots quickly and take them outside.
उसके पिताजी ने उसे जल्दी से जूते उतारकर उन्हें बाहर ले जाने का आदेश देता ।

9. take off

10. responded

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Passage – 2.

On Sunday afternoons Grandmother sent her down to the drawing-room to have a ‘nice talk with Father and Mother.’ But the little girl always found Mother reading and Father stretched out on the sofa, his handkerchief on his face, his feet on one of the best cushions, sleeping soundly and snoring. She sat on a stool, gravely watched him until he woke and stretched, and asked the time then looked at her.

“Don’t stare so, Kezia. You look like a little brown owl.” One day, when she was kept indoors with a cold, her Grandmother told her that father’s birthday was next week, and suggested she should make him a pin- cushion for a gift out of a beautiful piece of yellow silk.

Laboriously, with a double cotton, the little girl stitched three sides. But what to fill it with? That was the question. The Grandmother was out in the garden, and she wandered into Mother’s bedroom to look for scraps. On the bed table she discovered a great many sheets of fine paper, gathered them up, tore them into tiny pieces, and stuffed her case, then sewed up the fourth side.

That night there was a hue and cry in the house. Father’s great speech for the Port Authority had been lost. Rooms were searched; servants questioned. Finally Mother came into Kezia’s room. “Kezia, I suppose you didn’t see some papers on a table in our room?”

1. Where did the little girl go to look for scraps?
कतरनों की तलाश में छोटी लड़की कहाँ गई ?

2. What did she discover on the bed-table?
पलंग के निकट वाली मेज पर उसे क्या मिला ?

3. What did the little girl do with the papers?
छोटी लड़की ने कागजों का क्या किया ?

4. According to passage, why was there a hue and cry in the house that night?
अनुच्छेद के अनुसार, उस रात घर में हंगामा क्यों मचा था ?

5. Where did Grandmother send the little girl on Sunday afternoons?
दादी माँ हर रविवार की अपराह्न को छोटी बच्ची को कहाँ भेज देती थीं ?

6. What did father say to Kezia ?
पिताजी ने केजिया से क्या कहा ?

7. What did grandmother ask the girl?
दादी माँ ने लड़की से क्या कहा ?

8. Why did the girl make a pin-cushion ?
उस छोटी लड़की ने पिन- कुशन क्यों बनाया ?

9. Pick out the word from the passage which is the opposite to ‘worst’

10. Find the word from the passage which means: ‘advised’
Answer:
1. The little girl went into her mother’s bedroom to look for scraps.
कतरनों की तलाश में छोटी लड़की अपनी माँ के शयनकक्ष में गई ।

2. She discovered many sheets of fine paper on the bed-table.
पलंग के निकट रखी मेज पर उसे बहुत से अच्छे कागज मिले ।

3. The little girl tore the papers into tiny pieces and stuffed her cushion case.
छोटी लड़की ने कागजों को छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़ दिया और अपने कुशन के खोल में ठूंस दिया ।

4. There was a hue and cry in the house that night because Father’s great speech for the Port Authority had been lost.
उस रात घर में हंगामा इसलिए मचा था क्योंकि बन्दरगाह प्राधिकरण के लिए पिताजी का महत्त्वपूर्ण भाषण खो गया था ।

5. On Sunday afternoons Grandmother sent the little girl down to the drawing-room to have a ‘nice talk with Father and Mother.
‘दादी माँ छोटी बच्ची को हर रविवार की अपराह्न को अपने ‘माता-पिता से अच्छा वार्तालाप करने के लिए बैठक के कमरे में भेज देती थी ।

6. Father suggested Kezia not to stare because she looked like a little brown owl.
पिता ने केजिया को सुझाव देते हुए कहा कि वह घूरकर नहीं देखे क्योंकि वह एक छोटे. भूरे उल्लू की तरह दिखाई देती थी ।

7. Grandmother asked the girl to make a pin-cushion for a gift to be given on her father’s birthday.
दादी माँ ने लड़की से अपने पिताजी के जन्मदिन पर उपहार देने के लिए एक पिन- कुशन बनाने को कहा ।

8. The girl made a pin-cushion to gift her father on his birthday.
अपने पिता के जन्मदिन पर उन्हें उपहार देने के लिए उस लड़की ने पिन-कुशन बनाया ।

9. best

10. suggested

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

Passage – 3.

The Macdonalds lived next door. They had five children. Looking through a gap in the fence the little girl saw them playing ‘tag’ in the evening. The father with the baby, Mao, on his shoulders, two little girls hanging on to his coat pockets ran round and round the flower-beds, shaking with laughter. Once she saw the boy turn the hose on him- and he tried to catch them laughing all the time.

Then it was she decided there were different sorts of fathers. Suddenly, one day, Mother became ill, and she and Grandmother went to hospital. The little girl was left alone in the house with Alice, the cook. That was all right in the daytime, but while Alice was putting her to bed she grew suddenly afraid. “What’ll I do if I have a nightmare?” she asked. “I often have nightmares and then Grannie takes me into her bed-I can’t stay in the dark-it all gets ‘whispery’…”

“You just go to sleep, child,” said Alice, pulling off her socks, “and don’t you scream and wake your poor Pa.” But the same old nightmare came- the butcher with a knife and a rope, who came nearer and nearer, smiling that dreadful smile, while she could not move, could only stand still, crying out, “Grandma! Grandma!” She woke shivering to see Father beside her bed, a candle in his hand. “What’s the matter?” he said.

1. How many children did the Macdonalds have ?
मैक्डोनाल्ड परिवार में कितने बच्चे थे ?

2. What were the children playing?
बच्चे क्या खेल रहे थे ?

3. Why did Mother and Grandmother go to hospital ?
माँ तथा दादी माँ अस्पताल क्यों गयीं ?

4. With whom was the little girl left alone in the house?
छोटी लड़की किसके साथ घर में अकेली रह गई ?

5. Who were the Macdonalds ?
मैक्डोनाल्ड्स कौन थे ?

6. What did the little girl look through the gap in the fence?
उस छोटी लड़की ने चहारदीवारी के छेद में से क्या देखा ?

7. When did Kezia decide there were different sorts of fathers?
केजिया ने यह कब निश्चय किया कि पिता अलग-अलग प्रकार के होते हैं ?

8. What was the butcher doing?
वह कसाई क्या करं रहा था ?

9. Pick out the word from the passage which is the opposite to

10. Find the word from the passage which means :
‘a children’s game of catching one another’
Answer:
1. The Macdonalds had five children.
मैक्डोनाल्ड परिवार में पाँच बच्चे थे ।

2. The children were playing ‘tag’.
बच्चे ‘छूआ-छू’ का खेल खेल रहे थे ।

3. Kezia’s mother became ill so she and Grandmother went to hospital.
केजिया की माँ बीमार हो गई, इसलिए वह और दादी अस्पताल गये ।

4. The little girl was left alone in the house with Alice, the cook.
छोटी लड़की एलिस नामक भोजन बनाने वाली महिला के साथ घर में अकेली रह गई थी ।

5. The Macdonalds were their next door neighbour.
मैक्डोनाल्डस उनके निकट के पड़ोसी थे ।

6. The little girl saw the Macdonalds playing ‘tag’ through the gap in the fence.
उस छोटी लड़की ने मैक्डोनाल्ड परिवार को छुआ-छू का खेल खेलते हुए चहारदीवारी के छेद में से देखा ।

7. When Kezia saw Mr Macdonald playing with his children, she decided there were different sorts of fathers.
जब केजिया ने श्रीमान मेक्डोनाल्ड को अपने बच्चों के साथ खेलते हुए देखा , तो उसने निश्चय किया कि पिता अलग-अलग प्रकार के होते हैं ।

8. The butcher was coming nearer and nearer to the little girl and smiling dreadfully.
वह कसाई छोटी लड़की के और भी निकट आता जा रहा था और भयंकर रूप से मुस्कुरा रहा था ।

9. nearer

10. tag

Passage – 4

“Oh, a butcher- a knife- I want Grannie.” He blew out the candle, bent down and caught up the child in his arms, carrying her along the passage to the big bedroom. A newspaper was

on the bed – a half-smoked cigar was near his reading-lamp. He put away the paper, threw the cigar into the fireplace, then carefully tucked up the child. He lay down beside her. Half asleep still, still with the butcher’s smile all about her it seemed, she crept close to him, snuggled her head under his arm, held tightly to his shirt.

Then the dark did not matter; she lay still. “Here, rub your feet against my legs and get them warm,” said Father. Tired out, he slept before the little girl. A funny feeling came over her. Poor Father, not so big, after all and with no one to look after him. He was harder than Grandmother, but it was a nice hardness.

And every day he had to work and was too tired to be a Mr Macdonald…. She had torn up all his beautiful writing… She stirred suddenly, and sighed.
“What’s the matter ?” asked her father. “Another dream ?”
“Oh,” said the little girl, “my head’s on your heart. I can hear it going. What a big heart you’ve got, Father dear.

1. Where did father carry the little girl ?
पिताजी बच्ची को कहाँ ले गये ?

2. What did he do with the cigar ?
उन्होंने सिगार का क्या किया ?

3. Where did father lie down ?
पिताजी कहाँ लेट गये ?

4. What did the little girl dream about in her sleep ?
छोटी बच्ची ने नींद में किसके बारे में स्वप्न देखा ?

5. Why did her father sleep before the little girl?
उस छोटी लड़की के पिताजी उससे पहले क्यों सो गये ?

6. Why would it not be possible for her father to be a Mr Macdonald ?
उसके पिता के लिए श्रीमान मेक्डोनाल्ड बन पाना सम्भव क्यों नहीं होगा ?

7. What did Kezia know about the nature of her father ?
केजिया ने अपने पिता के स्वभाव के बारे में क्या जाना ?

8. Why did the little girl feel sorry ?
उस छोटी लड़की ने दुःख क्यों महसूस किया ?

9. Pick out the word from the passage which is the opposite to – ‘ugly’

10. Find the word from the passage which means : ‘covered up nicely in bed ‘
Answer:
1. Father carried the little girl to the big bedroom.
पिताजी बच्ची को बड़े शयनकक्ष में ले गये ।

2. He threw the cigar into the fireplace.
उन्होंने सिगार को अंगीठी में फेंक दिया ।

3. Father lay down beside the little girl Kezia.
पिताजी छोटी बच्ची केजिया के पास लेट गये ।

4. The little girl dreamt about a butcher in her sleep.
छोटी बच्ची ने नींद में एक कसाई के बारे में स्वप्न देखा ।

5. Her father slept before the little girl because he was very tired.
उस छोटी लड़की के पिता उससे पहले इसलिए सो गये क्योंकि वे बहुत थके हुए थे ।

6. It would not be possible for her father to be a Mr Macdonald because he had to work hard. As a result, he was too tired to play with her.
उसके पिताजी के लिए श्रीमान् मेक्डोनाल्ड बन पाना सम्भव नहीं होगा क्योंकि उन्हें कठोर परिश्रम करना पड़ता था । परिणामस्वरूप वह इतने थके हुए होते थे कि उसके साथ खेल नहीं सकते थे।

7. Kezia knew that her father was a nice person, but due to tiredness and lack of time he could not give her time and show affection.
केजिया ने जाना कि उसके पिताजी एक अच्छे व्यक्ति थे परन्तु थकान व समयाभाव के कारण वे उसको समय नहीं दे पाते थे व स्नेह प्रदर्शित नहीं कर पाते थे ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

8. The little girl felt sorry because she had torn her father’s important sheets of paper unknowingly. उस छोटी लड़की ने दुःख इसलिए महसूस किया क्योंकि उसने अनजाने में अपने पिता के महत्त्वपूर्ण कागज फाड़ दिये थे ।

9. beautiful

10. tucked up

The Little Girl Summary and Translation in Hindi

About The Lesson

यह कहानी कैजिया नाम की एक छोटी लड़की की है। इस कहानी में वह पिता के प्रति अपने बदलते हुए व्यवहार के बारे में बताती है। शुरूआत में केजिया अपने पिता से बहुत डरती है । तत्पश्चात् वह एक ऐसी गलती कर देती है जिससे उसके पिता उससे और अधिक नाराज हो जाते हैं । इस कारण केजिया अपने पिता से बहुत ज्यादा डरने लगती है । किन्तु कुछ दिनों बाद उसे अपने पिता का स्नेह मिलता है तो वह अपने पिता के बारे में अपनी राय बदल देती है ।

Who is who in the Lesson

1. Kezia: A little girl who is afraid of her father.
केजिया : एक छोटी लड़की जो अपने पिता से डरती है ।

2. Father : He is the father of Kezia.
यह केजिया के पिता हैं।

3. Mother : She is Kezia’s mother.
यह केजिया की माँ हैं।

4. Grannie : Grandmother of Kezia.
केजिया की दादी हैं।

5. Alice : Cook in the house.
यह घर का रसोइया है।

6. Mr Macdonald : A loving father and neighbour of Kezia.
केजिया के पड़ोसी तथा एक प्यारे पिता हैं।

7. Mao : Daughter of Mr Macdonald.
यह Mr Macdonald की बेटी है।

Before You Read ( पढ़ने से पूर्व )

क्या आप सोचते हैं कि अब आप अपने माता-पिता को बेहतर समझते हैं बजाय उस समय के जब आप छोटे थे ? सम्भवतया अब आप उनके कुछ कार्यों के कारणों को समझने लगे हैं जो आपको पूर्व में विचलित कर दिया करते थे । यह एक छोटी बच्ची की कहानी है जिसकी भावना अपने पिता के प्रति भय के स्थान पर समझ में परिवर्तित हो गई । इस कहानी की गूँज शायद हर घर में सुनाई देगी ।

Word-Meanings and Hindi Translation

1. To the little girl ……… my slippers. (Page 32)

To the little girl. Word Meanings: a figure to be feared = a person to be feared, व्यक्ति जिससे डर लगे । to be avoided (टु बी अवॉइडिड् ) = to be kept away from, बचा जाये । casual (कैश्जुॲल्) = full of carelessness, लापरवाही-भरा (यहाँ) हल्के अंदाज में । kiss (किस् ) = चुम्बन । responded ( रिस्पॉन्डिड्) = replied, उत्तर देती। a glad sense = a happy feeling, आनन्दपूर्ण अनुभव | relief (रिलीफ्) = राहत । carriage (कैरिज्) = vehicle, गांड़ी, वाहन । growing fainter and fainter = becoming slower and slower, धीमा और धीमा होता हुआ, मंद होता हुआ । staircase (स्टेॲरकेस्) सीढ़ियाँ | loud (लाउड्) ऊँची, तेज । voice (वॉइस्) drawing-room (ड्रॉइंग् रूम्) बैठक | slippers (स्लिपॅज़)

हिन्दी अनुवाद- उस छोटी बच्ची के लिए वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिससे डरकर और बचकर रहा जाये । रोज सुबह काम पर जाने से पूर्व वे उसके कमरे में आते और उसे हल्के अंदाज में चुम्बन देते जिसका वह“ अलविदा, पिताजी” कहकर उत्तर देती थी । और ओह ! जब वह लम्बी सड़क पर गाड़ी के शोर को मन्द होता हुआ सुनती तो उसे राहत का आनन्दपूर्ण अनुभव होता । शाम को जब वे घर आते तो वह सीढ़ियों के सुनती । ” मेरी चाय बैठक में ले आओ जाओ और देखो कि क्या मेरा अखबार बाहर है

2. “Kezia”, Mother would ……………. to the doctor. ” (Pages 32-33)

निकट खड़ी हो जाती और हॉल (बड़े कमरे) में उनकी तेज आवाज क्या अभी तक समाचार पत्र नहीं आया है ? माँ (केजिया की माँ), और मेरी चप्पलें लेकर आओ ।”

Word Meanings: would call (वुड कॉल) = पुकारती थी । come down (कॅम डाउन्) = नीचे आना। take off (टेक् ऑफ़ ) = उतारना। slowly (स्लोलि ) धीरे-धीरे | slip down (स्लिप् डाउन्) = come down धकेलना । open (ओपन) quietly and unwillingly, अनिच्छापूर्वक चुपचाप नीचे आना । push (पुश्) खोलना । spectacles (स्पेक्ट्रॅकॅल्ज्) = चश्मा, ऐनक | terrifying ( टेरिफाइंग) = causing to feel fear, भयावह, डराने वाला । hurry up (हरि अप्) = जल्दी करो | pull off ( पुल् ऑफ् ) = remove, खींचकर उतारना । stutter (स्टटॅर्) = stammer, हकलाना ।

JAC Class 9 English Solutions Beehive Chapter 3 The Little Girl

हिन्दी अनुवाद – ” केजिया !” माँ उसको पुकारती थी, “यदि तुम अच्छी लड़की हो तो तुम नीचे आ सकती हो और पिताजी के जूते उतार सकती हो ।” लड़की धीरे-धीरे अनिच्छापूर्वक चुपचाप सीढ़ियों से नीचे आती और पहले से भी धीरे-धीरे चलकर शांति से हॉल को पार करती और बैठक का दरवाजा धकेलकर खोलती । उस समय तक वे ( उसके पिता) अपना चश्मा लगा चुके होते और उसे चश्मे में से ऐसे ढंग से देखते जो उस छोटी बच्ची को भयावह ( डराने वाला) लगता था । ‘अच्छा, केजिया, जल्दी करो और इन जूतों को उतारो और उन्हें बाहर ले जाओ। क्या आज तुम एक अच्छी लड़की बनी रहीं ?” “मुझे न नहीं पता, पिताजी ।” तुम्हें न- नहीं पता ? यदि तुम इस तरह हकलाओगी तो (तुम्हारी) माँ को तुम्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा ।

3. She never stuttered . about a giant. (Page 33)

Word Meanings: never (नेवर्) कभी नहीं I stutter (स्टॅटर्) = हकलाना । quite (क्वाइट् ) completely, पूर्णतया thad given up (हैड गिवन अॅप् ) = stopped doing, छोड़ दिया था । trying (ट्राइंग) प्रयास कर रही | properly (प्रॉपर्टि) ठीक तरह से, ढंग से । matter (मैटर्) = बात, मामला | wretched (रैचिड्) = unhappy, दुखी, बेचारी | wish (विश् ) = चाहना, इच्छा करना । taught (टॉट् ) = सिखाया | appear (ॲपिॲर) दिखाई देना | suicide ( सुइसाइड् ) = killing oneself, आत्महत्या । on the brink of suicide = about to commit suicide, जो आत्महत्या करने ही वाली हो । carry (कैरि) ले जाओ । carefully (केॲरफलि ) ‘सावधानी से। especially (इस्पेशलि ) = विशेष रूप से । yawned (यॉन्ड् ) = opened the mouth widely, जम्हाई लेता था। thinking (थिंकिंग् ) सोचना । alone (अलोन्) = केवल, सिर्फ | giant (जाइॲन्ट्) दानव, दैत्य।

हिन्दी अनुवाद: वह दूसरे लोगों से (बात करते समय) कभी नहीं हकलाती थी (वह) ऐसा करना लगभग, पूरी तरह से छोड़ चुकी थी किन्तु केवल पिताजी के साथ (बात करते हुए वह हकलाती थी) क्योंकि उस समय वह शब्दों को सही ढंग से बोलने के लिए अत्यधिक प्रयास कर रही होती थी । ‘क्या बात है ? तुम किस बात पर इतनी दुखी दिखाई दे रही हो ? माँ, मैं चाहता हूँ कि आप इस बच्ची को सिखाएँ कि वह ऐसी न दिखाई दे कि आत्महत्या करने ही वाली हो….. केजिया, यह मेरा चाय का कप सावधानीपूर्वक वापिस टेबल पर ले जाओ ।” वे इतने बड़े थे – उनके हाथ और उनकी गर्दन भी, विशेष रूप से उनका मुँह जब वे जम्हाई लेते थे । उनके बारे में केवल सोचना ही ऐसा था मानो किसी दानव (दैत्य) के बारे में सोचना|

4. On Sunday afternoons ……………. yellow silk. (Pages 33-34)

Word Meanings: nice (नाइस् ) = fine, अच्छी | talk (टॉक्) = conversation, बातचीत | stretched out (स्ट्रैच्ट् आउट्) = with extended legs, पसरे हुए, फैलकर लेटे हुए | handkerchief ( हैन्ड्कचिफ ) = रूमाल । cushions (कुशॅन्ज़) = bags of cloth stuffed with a mass of soft material, गद्दियाँ । soundly ( साउड्लि) अच्छी तरह से | sleep soundly (स्लीप् साउड्लि) गहरी नींद सोना । snoring (स्नोरिंग्) breathing noisily in sleep, खर्राटे लेते हुए | gravely (ग्रेवलि) = seriously, गंभीरतापूर्वक । watched ( वॉच्ट्) देखती। woke (वोक् ) = जागते । stare (स्टेअर् ) = (here) watch intently, घूरना, घूरकर देखना । kept indoors (केप्ट इन्डोर्ज) = अन्दर ही रखा गया | cold (कोल्ड्) = जुकाम । suggested ( सजिस्टिड् ). सुझाव दिया । pin-cushion (पिन्- कुशॅन् ) = a small pad for holding pins, पिन लगाने की गद्दी । silk ( सिल्क्) रेशम ।

हिन्दी अनुवाद – रविवार को दोपहर बाद दादी माँ उसको ‘अपने माता-पिता से अच्छी तरह बातचीत’ करने के लिए बैठक के कमरे में भेज दिया करती थी । किन्तु बैठक में छोटी बच्ची हमेशा ही माँ को पढ़ते हुए और पिता को सोफा पर लेटे हुए (फैलकर ) व चेहरे पर अपना रूमाल डाले हुए और अपने पैरों को एक सबसे अच्छी गद्दी में डाले हुए गहरी नींद में सोते हुए व खर्राटे लेते हुए पाती थी । वह एक स्टूल पर बैठ जाती और गम्भीरतापूर्वक उन्हें तब तक देखती रहती जब तक कि वह जाग न जाते और अंगड़ाई न ले लेते और समय पूछते देखते |

“केजिया, इस तरह घूरकर मत देखो । तुम एक छोटे भूरे उल्लू की तरह दिखाई देती हो । ” फिर उसकी ओर एक दिन जब जुकाम के कारण उसे (केजिया को) घर के अन्दर ही रखा गया तो उसकी दादी माँ ने उसे बताया कि अगले सप्ताह उसके पिताजी का जन्मदिन है, और उन्होंने सुझाव दिया कि वह पीले रेशम के सुन्दर से टुकड़े का एक पिन- कुशन ( पिन लगाने की गद्दी ) उन्हें (पिताजी को) उपहार के रूप में देने के लिए बनाए ।

5. Laboriously, with …………. this instant. (Page 34)

Word-Meanings: laboriously (लॅबॉरिॲस्लि) = with a lot of difficulty; परिश्रमपूर्वक । stitched (स्टिच्ट) = सी दिया, सिल दिया I fill (फिल्) = भरना | wandered into (वाण्डर्ड् इन्टु ) = went in by chance, घूमती हुई घुसी । look for ( लुक् फॉर्) = search, तलाश करना I scraps (स्क्रेप्स्) = small pieces of cloth or paper etc., कतरन । discovered (डिस्कवर्ड) found, पाया, खोजा, मिला । sheet (शीट) = फलक, शीट | gathered up (गैदई अप्) = collected, इकट्ठा किया |

tore (टोर् ) = फाड़ दिया | tiny (टाइनि) = बहुत छोटे, नन्हें Istuffed (स्टफ्ट) = filled, ठूंस दिया, भर दिया I case (केस) = खोल | hue and cry (ह्यू एण्ड् क्राइ) = angry protest, क्रोधपूर्ण शोर-शराबा हंगामा | speech (स्पीच्) = भाषण | Port Authority (पोर्ट अॅथॉरिटि) authority of sea-port, पत्तन- निकाय, बन्दरगाह – प्राधिकरण । lost (लॉस्ट्) तलाश किया। questioned (क्वेश्चन्ड्) = प्रश्न पूछे गये | tore up (टोर अप्) screamed (स्क्रीम्ड्) cried, चीखी | dining-room (डाइनिंग रूम) moment, क्षण, पल । खो गया | searched ( सच्ट) = broke into pieces, फाड़ डाला। भोजनकक्ष | instant (इन्स्टन्ट् )

हिन्दी अनुवाद – दोहरा सूती कपड़ा लेकर उस छोटी बच्ची ने बहुत परिश्रम करके उसे तीन ओर से सिल दिया। पर उसमें भरे क्या ? यह प्रश्न था । दादी माँ बाहर बगीचे में थी और वह कतरनों की खोज में घूमती हुई माँ के शयन कक्ष में घुस गई । पलंग से सटी मेज पर उसे अच्छे कागज की कई शीटें रखी हुई मिलीं। उसने उनको इकट्ठा किया, उन्हें फाड़कर छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये और उनको अपने खोल में भर दिया फिर उसने चौथी तरफ भी सिलाई कर दी । उस रात घर में क्रोधपूर्ण शोर-शराबा ( हंगामा ) हुआ । बन्दरगाह प्राधिकरण के लिए पिताजी का महत्त्वपूर्ण भाषण खो गया था । कमरों में तलाशी ली गई; नौकरों से पूछताछ की गई । अन्त में माँ केजिया के कमरे में आई । “केजिया, मैं समझती हूँ कि तुमने हमारे कमरे में मेज पर कुछ कागज तो नहीं देखे ?”’अरे, हाँ”, वह बोली, “मैंने उन्हें अपनी आश्चर्यजनक वस्तु अर्थात् पिताजी के उपहार के लिए फाड़ दिया । ” ‘क्या !” माँ चीख पड़ीं, “तुम तत्काल सीधे भोजन कक्ष में नीचे आओ ।”

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6. And she was dragged …………….. this instant. (Page 34)

Word-Meanings: was dragged (वाज ड्रैग्ड्) = was pulled down forcibly, घसीटकर लाया गया । pacing (पेसिंग्) = moving in a steady speed, टहल रहे । to and fro (टु एण्ड् फ्रो) = here and there, इधर-उधर, आगे-पीछे | behind (बिहाइण्ड्) पीछे । sharply (शा: पूलि ) = strictly, कठोरता से । explained (इक्स्प्लेइण्ड्) = समझाया | stopped ( स्टॉप्ट) = रुके | stared (स्टेअर्स्) = घूरकर देखा । whispered (विस्पर्स्) बहुत धीरे से कहा, फुसफुसाई । fetch ( फैच्) = जाकर लाना | damned ( डैम्ड्) (यहाँ) पिन कुशन | (here) pin cushion,

हिन्दी अनुवाद और उसको घसीटकर वहाँ लाया गया जहाँ पिताजी पीठ पीछे हाथ रखे इधर-उधर टहल रहे थे । ” क्या हुआ,” उन्होंने कठोरता से पूछा । माँ ने बात समझाई । वे रुक गये और ( उन्होंने ) बच्ची की तरफ घूरकर देखा। ‘क्या तुमने यह काम किया ?” “न-न-नहीं”, वह फुसफुसाई । “माँ (केजिया की माँ), ऊपर इसके कमरे में जाओ और उस पिन कुशन को नीचे लेकर आओ – देखो, इस बच्ची को इसी क्षण बिस्तर पर पटक दो ।”

7. Crying too much ………….. little, pink palms. (Page 35)

Word Meanings: crying (क्राइंग ) रोते हुए । explain (एक्स्प्लेन) समझाना । lay (ले) remained lying, लेट गई । shadowed (शैडोड्) = full of darkness, अन्धकारयुक्त । pattern (पैटॅन्) = पीटना | screamed design, आकृति, नमूना । floor (फ्लोर) = फर्श । ruler ( रूलॅर् ) = पटरी | beat (बीट्) (स्क्रीम्ड् ) = cried out, चीख पड़ी | hiding (हाइडिंग ) छिपते हुए, छिपाते हुए | aside (ॲसाइड्) दूर । ordered (ऑर्डर्ड) = आदेश दिया । must be taught (मॅस्ट बी टॉट् ) = सिखाना आवश्यक है । touch (टच्) = छूना । belong to ( बिलाँग टु) = related to, से सम्बन्ध होना, का होना । palms ( पाम्ज़) = flat parts of hands, हथेलियाँ। = अलग,

हिन्दी अनुवाद – वह इतना रो रही थी कि अपनी बात को समझा नहीं पा रही थी। वह अन्धकारयुक्त कमरे में पड़ी रही और सायंकाल के प्रकाश को कमरे के फर्श पर एक दुःखमय छोटी-सी आकृति बनाते हुए देखती रही। फिर पिताजी हाथों में पटरी लिए हुए कमरे में आये । ” मैं तुम्हें इस कार्य के लिए पीयूँगा”, वे बोले । “ओह, नहीं, नहीं”, वह बिस्तर के कपड़ों में छिपती हुई चीख पड़ी । उन्होंने (उसके पिताजी ने) उन्हें (बिस्तर के कपड़ों को) खींचकर अलग कर दिया। “बैठ जाओ” उन्होंने आदेश दिया, ” अपने हाथ बाहर निकालो। तुम्हें एक बार हमेशा के लिए सिखाना होगा कि जो चीज तुम्हारी नहीं है, उसे तुम नहीं छूओगी ।” ” किन्तु यह आपके ज-ज- जन्मदिन के लिए था । ” बच्ची की छोटी गुलाबी हथेलियों पर पटरी से

8. Hours later,…………..flew into her cheeks. (Page 35)

Word Meanings: wrapped (रैप्ट) लपेट दिया । rocked (रॉक्ट) = swung, झुलाया | rocking- chair (रॉकिंग् चेॲर्) = a chait which can be moved back and forth, झूलने वाली कुर्सी । clung (क्लंग्) = held tightly, चिपक गई, लिपट गई । soft (सॉफ्ट्) ढीला, दुर्बल । sobbed (सॉब्ड्) =wept, सिसकियाँ भरीं । hanky (हैंकि) = रूमाल । darling (डार्लिंग् ) = प्रिय । blow (ब्लो) = clean your nose, नाक साफ कर लो। प्यारी, लाड़ली । forget (फॅगेट् ) pet (पैट्) = प्रयास क्रिया | explain (इक्स्प्लेन्) भूलना | tried (ट्राइड्) समझाना। upset (अपसेट् ) = worried, अशान्त, परेशान । listen (लिसॅन्) = सुनना । quickly (क्विक्लि ) = शीघ्रता से, जल्दी से । cheeks (चीक्स् ) = गाल । red colour flew into her cheeks = her cheeks became red due to fear, डर के कारण उसके गाल लाल हो गए।

हिन्दी अनुवाद – घण्टों बाद जब दादी माँ ने उसको शॉल ओढ़ाया और झूलने वाली कुरसी में झुलाया तो वह बच्ची दादी के दुर्बल शरीर से चिपक गई । ‘ईश्वर ने पिता किसलिए बनाये ? “वह सिसकियाँ लेते हुए बोली ।”प्रिय, यह एक साफ रूमाल है । अपनी नाक साफ कर लो । सो जाओ, मेरी लाड़ली; सुबह तक तुम यह सब कुछ भूल जाओगी । मैंने तुम्हारे पिता को समझाने का प्रयास किया था किन्तु वे इतना परेशान थे कि वे आज रात कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे ।” किन्तु बच्ची कभी नहीं भूली । अगली बार जब उसने उन्हें (अपने पिता को ) देखा तो उसने जल्दी से अपने दोनों हाथ अपनी पीठ के पीछे कर लिये और उसके गाल ( डर से ) लाल हो गये ।

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9. The Macdonalds lived …………….. suddenly afraid. (Pages 35-36)

Word-Meanings: through (थ्रू) में होकर | gap (गैप् ) = space between two things, दरार, छेद। fence (फेन्स्) = hedge, बाड़, चहारदीवारी । tag (टैग्) = a children’s game of catching one another, बच्चों का छुआ-छू का खेल | shoulders (शोल्डज़) कन्धे । hanging on to = को पकड़े हुए, से लटकती हुई । flower-beds (फ्लॉउॲर बेड्ज़) = फूलों की क्यारियाँ | shaking ( शेकिंग् ) = moving happily, खुशी से डगमगाते हुए, झूमते हुए । laughter (लाफ्टर्) हँसी ।

turn (टॅ:न्) = घुमाना, मोड़ना । hose (होज़ ) = water pipe, पानी का पाइप । catch (कैच्) = पकड़ना । decided (डिसाइडिड्) निश्चय किया। different (डिफॅरॅण्ट् ) = भिन्न, पृथक् । sorts (सॉर्ट्स) = types, प्रकार | suddenly (सडॅन्लि) = अचानक । ill (इल्) बीमार । left alone (लेफ्ट् अॅलोन्) = remained alone, अकेली रह गई । cook (कुक् ) = रसोईया । grew (ग्रू) = became, हो गई । afraid (अफ्रेड्) = terrified, भयभीत ।

हिन्दी अनुवाद – मैक्डोनाल्ड परिवार पड़ोस में रहता था । उनके पाँच बच्चे थे । चहारदीवारी के छेद में से छोटी बच्ची ने उनको शाम के समय छुआ-छू का खेल खेलते हुए देखा । पिता छोटी बच्ची माओ को अपने कन्धों पर उठाए हुए था और दो छोटी बच्चियाँ उसके कोट की जेबों को पकड़े हुए और हँसी के कारण डगमगाते (झूमते हुए फूलों की क्यारियों के चारों ओर दौड़ रही थीं। एक बार उसने देखा कि लड़कों ने पानी का पाइप (रबर का नल) अपने पिता की ओर घुमा दिया और वे हर समय हँसते हुए उनको पकड़ने की कोशिश करते रहे । तभी केजिया ने दृढ़तापूर्वक निश्चय कर लिया कि पिता भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं । अचानक, एक दिन, माँ बीमार हो गईं और वह तथा दादी माँ अस्पताल चली गईं ।

10. “What’ ll I do ……….. matter?” he said. (Pages 36-37)

Word Meanings: nightmare (नाइटमेअर् ) = a bad dream, दुःस्वप्न, बुरा सपना । often (ऑफॅन्) अक्सर | grannie (ग्रेनी) दादी माँ I stay (स्टे) = रहना, ठहरना । dark ( डा:क् ) = अँधेरा । whispery soft sounds, सरसराहट की आवाजें धीमी-धीमी ध्वनियाँ । just (जस्ट्) = बस, अभी | pulling off (पुलिंग ऑफ़ ) = taking off, उतारते हुए । scream (स्क्रीम् ) = cry, चीखना | wake ( वेक्) = जगाना । poor (पॉअ) = (here) this word is used when you are showing that you feel sorry for somebody, बेचारे ।

butcher (बुचर ) = one who kills animal for its meat, कसाई । knife (नाइफ् ) रस्सी । nearer (निअर) = अधिक निकट | smiling (स्माइलिंग्) = मुस्कुराते हुए भयानक । while (वाइल्) जबकि | still ( स्टिल्) (क्राइंग आउट्) चीखती हुई । shivering (शिवरिंग्) the side of, बगल में । candle (केण्डल्) मोमबत्ती । matter (मैट्र्) चाकू। rope (रोप्) | dreadful (ड्रेड्फल) = not moving, बिना हरकत किए, स्थिर । crying out trembling, काँपती हुई । beside (बिसाइड् ) = by = बात, मामला ।

हिन्दी अनुवाद – ” यदि मुझे बुरा सपना आया तो मैं क्या करूँगी ?” उसने पूछा । ” मुझे अक्सर बुरे सपने आते हैं और तब दादी माँ मुझे अपने बिस्तर पर ले जाती हैं- मैं अँधेरे में नहीं रह सकती हूँ तब मुझे धीमी-धीमी ध्वनियों (सरसराहट की आवाजों) का आभास होता है ।” एलिस ने उसके जुर्राब (मोजे) उतारते हुए कहा, “तुम बस सो जाओ, ,” “और तुम चीखना मत और अपने बेचारे पापा को मत जगा देना ।”
बच्ची,’ किन्तु वही पुराना बुरा सपना आया एक कसाई चाकू और रस्सी लिए हुए उसके निकट आता जा रहा था, और भयानक रूप से मुस्कुरा रहा था, जबकि वह हिल भी नहीं पा रही थी, वह ” दादी माँ ! दादी माँ !” चीखती हुई केवल बिना हरकत किए या स्थिर खड़ी रह पायी । वह काँपती हुई जाग गई और उसने अपने पिता को हाथ में मोमबत्ती लिए अपने बिस्तर के पास देखा । क्या बात है ?” उन्होंने कहा ।

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11. “Oh, a butcher ………………. said Father (Page 37)

Word-Meanings: blew out (ब्लू आउट्) put off, बुझा दिया । bent down (बैण्ट् डाउन्) नीचे झुके। caught up (कॉट् अप्) = (यहाँ) उठा लिया । in his arms (इन् हिज़ आम्ज्र) = अपनी भुजाओं में । carrying (कैरिङ्ग्) = ले जाते हुए । along (ऑलाँग्) = के बगल में । passage (पैसिज्) = गलियारा। halfsmoked cigar = आधा-पिया हुआ सिगार । reading-lamp (रीडिंग् लैम्प्) = पढ़ने की लैम्प । put away (पुट् अवे) = kept away, दूर रख दिया । threw ( थ्रू) = फेंक दिया । fireplace (फायरप्लेस्) = चूल्हा, अंगीठी । carefully (केयरफलि) = सावधानी से । tucked up (टक्ट अप्) = covered up nicely in bed, बिस्तर में अच्छी तरह से उसे ओढ़ा दिया ।

lay down (ले डाउन्) = लेट गया । seemed (सीम्ड्) = appeared, प्रतीत होता था । crept (क्रेप्ट्) = moved slowly, quietly and carefully, सरक आई, खिसक आई। close (क्लोज़्) = निकट । snuggled (स्नगल्ड्) = moved into a warm, comfortable position, close to another person, चिपका लिया। under (अण्डर्) = नीचे । held (हेल्ड्) = पकड़ लिया । tightly (टाइट्लि् = कसकर। didn’t matter = did not have importances, महत्व नहीं रखता था । rub (रब्) = रगड़ो । against (अगेन्स्ट्) = के सामने के विरुद्ध (यहाँ) पर, से । warm (वा:म्) = गर्म ।

हिन्दी अनुवाद – “ ओह, एक कसाई मुझे दादी माँ चाहिए ।” पिताजी ने मोमबत्ती बुझा दी, वे झुके और (उन्होंने) बच्ची को अपनी बाँहों में उठा लिया और उसे गलियारे के बगल में बड़े शयनकक्ष में ले गये । उनकी पढ़ने की लैम्प के पास एक आधा पिया हुआ सिगार रखा था । उन्होंने समाचार-पत्र को अलग रख दिया, सिगार को अँगीठी में फेंक दिया और फिर सावधानी से बच्ची को बिस्तर पर लिटाकर अच्छी तरह ओढ़ा दिया । वे उसकी बगल में लेट गये ।

बच्ची अभी भी अर्द्धनिद्रा में थी और अभी भी उसके इर्द-गिर्द कसाई की मुस्कान सी दिखाई दे रही प्रतीत होती थीं, वह अपने पिता के और निकट सरक आई, उसने अपने सिर को उनकी ( पिताजी की ) बाँह के नीचे चिपका लिया और उनकी शर्ट कसकर पकड़ ली। अब अँधेरा महत्व नहीं रखता था; वह चुपचाप ( शान्त) लेटी रही । “यहाँ, अपने पैरों को मेरी टाँगों से रगड़ो और उनको गर्म कर लो ।” पिता ने कहा ।

12. Tired out, he …………. Father dear. (Page 37)

Word Meanings: tired out (टायड् आउट् ) = very tired, अत्यधिक थके हुए | slept (स्लेप्ट्) सोये । funny (फनि) = अनोखी, आनन्दपूर्ण | feeling (फीलिंग्) = भावना । came over (केम ओवर) spread over, छा गई । look after ( लुक् ऑफ्टर) = take care, देखभाल करना । harder (हा:ड्र्) = ज्यादा कठोर | hardness (हा:ड्नस् ) कठोरता । writing ( राइटिंग्) – लेख | work (वॅक) कार्य करना | had torn up = फाड़ डाला था । stirred (स्टर्ड् ) = moved, हिली-डुली । sighed ( साईड्) = आह भरी, गहरी साँस ली । dream (ड्रीम् ) = सपना | heart (हा : ट् ) = हृदय | hear ( हियर् ) = सुनना । can hear it going · can hear the movement of your heart, आपके हृदय की धड़कन सुन सकती हूँ ।

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हिन्दी अनुवाद – अत्यधिक थके हुए होने के कारण वे लड़की से पहले ही सो गये । एक आनन्दपूर्ण भावना बच्ची पर छा गई । बेचारे पिताजी, आखिर इतने बड़े तो नहीं और उनकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है। वे दादी माँ से ज्यादा कठोर थे लेकिन उनकी कठोरता अच्छी थी। और प्रतिदिन उन्हें काम करना पड़ता था और वे इतने थक जाते थे कि मैक्डोनाल्ड नहीं बन सकते . उसने उनका पूरा सुन्दर लेख फाड़ डाला था
वह हिली और ( उसने) लम्बी आह भरी । ‘क्या बात है ?” उसके पिताजी ने पूछा, “क्या एक और सपना आया ?” अचानक ‘ओह”, छोटी बच्ची बोली, “मेरा सिर आपके हृदय पर रखा है । मैं इसकी धड़कन सुन सकती हूँ । आपका हृदय कितना विशाल है, मेरे प्यारे पिताजी !”