JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

JAC Class 10th Sanskrit जननी तुल्यवत्सला Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिए)
(क) वृषभः दीन इति जानन्नपि कः तम् नुद्यमानः आसीत्? (बैल कमजोर है, ऐसा जानते हुए भी कौन उसे कष्ट दे रहा था?)
उत्तरम् :
कृषक: (किसान)।

(ख) वृषभः कुत्र पपात? (बैल कहाँ गिर गया?)
उत्तरम् :
क्षेत्रे (खेत में)।

(ग) दुर्बले सुते कस्याः अधिका कृपा भवति? (दुर्बल बेटे पर किसकी अधिक कृपा होती है?)
उत्तरम् :
मातुः (माता की)।

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(घ) कयोः एक शरीरेण दुर्बलः आसीत्? (किनमें से एक शरीर से कमजोर था?)
उत्तरम् :
बलीवर्दयोः (दो बैलों में से)।

(ङ) चण्डवातेन मेघरवैश्च सह कः समजायत? (तीव्र वायु और बादल की गर्जना के साथ क्या होता था?)
उत्तरम् :
प्रवर्षः (तेज वर्षा)।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषया लिखत – (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए।)
(क) कृषकः किं करोति स्म?
(किसान क्या कर रहा था?)
उत्तरम् :
कृषक: क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।
(किसान खेत जोत रहा था।)

(ख) माता सुरभिः किमर्थमश्रूणि मुञ्चति स्म?
(माता सुरभि किसलिए आँसू बहा रही थी?)
उत्तरम् :
माता सुरभिः स्वपुत्रं भूमौ पतितं दृष्ट्वा नेत्राभ्याम् अश्रूणि मुञ्चति स्म।
(माता सुरभि अपने पुत्र को धरती पर गिरे हुए को देखकर आँखों से आँसू बहा रही थी।)

(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किम् उत्तरं ददाति?
(सुरभि इन्द्र के प्रश्न का क्या उत्तर देती है?)
उत्तरम् :
अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि।
(मैं पुत्र का शोक कर रही हूँ, अतः रोती हूँ।)

(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
(माता की अधिक-कृपा किस पर होती है?)
उत्तरम् :
दुर्बले सुते मातुः अधिका कृपा भवति।
(दुर्बल बेटे पर माता की अधिक कृपा होती है।)

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(ङ) इन्द्रः दुर्बल वृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं किं कृतवान्?
(इन्द्र ने दुर्बल बैल के कष्टों को दूर करने के लिए क्या किया?)
उत्तरम् :
इन्द्रेण दुर्बल वृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं वृष्टिः कृता।
(इन्द्र ने दुर्बल बैल के कष्ट दूर करने के लिए वर्षा कर दी।)

(च) जननी कीदृशी भवति?
(जननी कैसी होती है?)
उत्तरम् :
जननी तुल्यवत्सला भवति।
(माता समान वात्सल्य प्रदान करने वाली होती है।)

(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
(इस पाठ में किनका संवाद है?)
उत्तरम् :
पाठेऽस्मिन् सुरभीन्द्रयोः संवादः विद्यते।
(इस पाठ में सुरभि और इन्द्र का संवाद है।)

प्रश्न 3.
‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं ‘ख’ स्तम्भे दत्तैः समानार्थक पदैः करुत –

‘क’ स्तम्भ‘ख’ स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण1. वृषभः
(ख) चक्षुभ्या॑म्2. वासवः
(ग) जवेन3. नेत्राभ्याम्
(घ) इन्द्रः4. अचिरम
(ङ) पुत्राः5. द्रुतगत्या
(च) शीघ्रम्6. काठिन्येन
(छ) बलीवर्दः7. सुताः

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ‘ख’ स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण6. काठिन्येन
(ख) चक्षुभ्या॑म्3. नेत्राभ्याम्
(ग) जवेन5. द्रुतगत्या
(घ) इन्द्रः2. वासवः
(ङ) पुत्राः7. सुताः
(च) शीघ्रम्4. अचिरम
(छ) बलीवर्दः1. वृषभः

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प्रश्न 4.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत (मोटे पदों को आधार मानकर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) सः कुच्छ्रेण भारम् उद्वहति। (वह कठिनाई से बोझ उठाता है।)
(ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्। (देवराज ने उससे पूछा।)
(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः। (यह औरों से कमजोर है।)
(घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्। (गायों की माता सुरभि थी।)
(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुखी आसीत्। (हजारों से अधिक पुत्र होने पर भी वह दुखी थी।)
केन भारं उदवहति? (वह किससे भार उठाता है?)
(ख) कः ताम् अपृच्छत? (किसने उससे पूछा?)
(ग) अयम् केभ्यो दुर्बलः? (यह किनसे कमजोर है?)
(घ) कासाम् माता सुरभिः आसीत्। (सुरभि किनकी माता थी?)
(ङ) कतिषु पुत्रेषु सत्स्वपि सः दुखी आसीत् ? (कितने पुत्र होने पर भी वह दुखी थी?)

प्रश्न 5.
रेखाङ्कित पदे यथास्थानं संधि-विच्छेद/सन्धिं वा कुरुत।
(रेखांकित पद में संधि अथवा संधि विच्छेद कीजिए।)
(क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्+आसीत्।
(ख) तयोरेकः वृषभः दुर्बलः आसीत्।
(ग) तथापि वृषः न उत्थित।
(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथम्?
(ङ) तथा अपि+अहम् एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।
(च) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
(छ) सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
उत्तराणि :
(क) कुर्वन्नासीत्
(ख) तयोः एकः
(ग) नोत्थितः
(घ) सत्सु अपि
(ङ) तथाप्यहमेतस्मिन्
(च) बहून्यपत्यानि
(छ) जल+उपप्लवः।

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प्रश्न 6.
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकित सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित सर्वनाम पद किसके लिए प्रयोग हुए हैं ?)
(क) सा च अवदत् भो वासवः अहं भृशं दुखिता अस्मि।
(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
(ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषकः तं पीडयति।
(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
(ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्।
(च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीतिः अस्ति ।
उत्तराणि :
(क) सुरभिः
(ख) सुरभिः
(ग) वृषभः
(घ) सुरभेः
(ङ) इन्द्रः
(च) सुरभेः

प्रश्न 7.
‘क’ स्तम्भे विशेषण पदं लिखितम् ‘ख’ स्तम्भे पुनः विशेष्य पदं। तयोः मेलनं कुरुत।
(क स्तम्भ में विशेषण पद लिखे हैं, ख स्तम्भ में पुनः विशेष्य पद हैं, उन दोनों का मेल करो।)

‘क’ स्तम्भ‘ख’ स्तम्भ
(क) कश्चित्1. वृषभम्
(ख) दुर्बलम्2. कृपा
(ग) क्रुद्ध3. कृषीवलः
(घ) सहस्राधिकेषु4. आखण्डलः
(ङ) अभ्याधिकाः5. जननी
(च) विस्मितः6. पुत्रेषु
(छ) तुल्यवत्सला7. कृषक:

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ‘ख’ स्तम्भ
(क) कश्चित्7. कृषक:
(ख) दुर्बलम्1. वृषभम्
(ग) क्रुद्ध3. कृषीवल:
(घ) सहस्राधिकेषु6. पुत्रेषु
(ङ) अभ्याधिकाः2. कृपा
(च) विस्मितः4. आखण्डल:
(छ) तुल्यवत्सला5. जननी

JAC Class 10th Sanskrit जननी तुल्यवत्सला Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्।
(अ) कर्मकरः
(ब) कृषिबल
(स) वर्दयोः
(द) दुर्बलः
उत्तरम् :
(ब) कृषिबल

प्रश्न 2.
सः ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात।
(अ) अपतत्
(ब) आसीत्
(स) वृषभं
(द) प्रपात
उत्तरम् :
(अ) अपतत्

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प्रश्न 3.
मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्।
(अ) पतिते
(ब) वृषभः
(स) अविरत
(द) कामधेनोः
उत्तरम् :
(द) कामधेनोः

प्रश्न 4.
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप!
(अ) अपृच्छत्
(ब) रोदिषि
(स) इन्द्रः
(द) निपातः
उत्तरम् :
(स) इन्द्रः

प्रश्न 5.
भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि।
(अ) वीक्ष्य
(ब) कृत्वा
(स) दीनः
(द) जानन्नपि
उत्तरम् :
(अ) वीक्ष्य

प्रश्न 6.
सः कृच्छ्रेण भारमुबहति।
(अ) कृषक:
(ब) पीडयति
(स) इतरमिव
(द) कष्टेन
उत्तरम् :
(द) कष्टेन

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प्रश्न 7.
इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।
(अ) अनुयुक्ताः
(ब) वोढुम
(स) शक्नोति
(द) भवान्
उत्तरम् :
(अ) अनुयुक्ताः

प्रश्न 8.
यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे।
(अ) मह्यम्
(ब) नूनम्
(स) सत्वसपि
(द) एतादृशं
उत्तरम् :
(अ) मह्यम्

प्रश्न 9.
बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्।
(अ) सत्यम्
(ब) उचितम्
(स) विशिष्य
(द) असत्यम्
उत्तरम् :
(ब) उचितम्

प्रश्न 10.
गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।
(अ) तथापि
(ब) सहजैव इति
(स) सान्त्वयत्
(घ) कल्याणम्
उत्तरम् :
(स) सान्त्वयत्

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
कृषक: बलीवर्दाभ्यां किं कुर्वन्नासीत्? (किसान बैलों से क्या कर रहा था?)
उत्तरम् :
क्षेत्रकर्षणम् (खेत की जुताई)।

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प्रश्न 2.
जवेन गन्तुं कोऽसमर्थः आसीत्? (तेज चलने में कौन असमर्थ था?)
उत्तरम् :
बलीवर्दः (बैल)।

प्रश्न 3.
वृषभं पतितमवलोक्य का रोदिति स्म (बैल को गिरा हुआ देखकर कौन रोई?)
उत्तरम् :
सुरभिः (गोवंश की माँ)।

प्रश्न 4.
धेनूनाम् माता का? (गायों की माता कौन है?)
उत्तरम् :
सुरभिः (कामधेनु)।

प्रश्न 5.
वृषभं कः पीडयति? (बैल को कौन पीड़ा देता है)
उत्तरम् :
कृषक: (किसान)।

प्रश्न 6.
पतितो वृषभः कथं भारं वहति? (गिरा हुआ बैल भार को कैसे ढोता है?)
उत्तरम् :
कृच्छ्रेण (कठिनाई से)।

प्रश्न 7.
‘बहून्यपत्यानि मे’ इति केनोक्तम्?
(‘बहून्यपत्यानि मे’ पद किसने कहा?)
उत्तरम् :
सुरभ्या (सुरभि द्वारा)।

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प्रश्न 8.
जननी कीदृशी भवति?
(जननी कैसी होती है?)
उत्तरम् :
तुल्यवत्सला (समान प्रेम वाली)।

प्रश्न 9.
लोकानां पश्यताम् सर्वत्र किमभवत्?
(लोगों के देखते-देखते सब जगह क्या होता गया?)
उत्तरम् :
जलोपप्लवा (जलभराव)।

प्रश्न 10.
केन सह प्रवर्षः समजायत?
(किसके साथ वृष्टि हुई?)
उत्तरम् :
मेघरवैः
(मेघध्वनि के साथ)।

पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 11.
सुरभिः कस्मात् रोदिषि?
(सुरभि क्यों रोती है?)
उत्तरम् :
सुरभिः पुत्राय शोचति अत: रोदिषि।
(सुरभि पुत्र का शोक करती है, अत: रोती है।)

प्रश्न 12.
दीनं वृषभं कृषकः कथं व्यवहरति ?
(दीन बैल के साथ किसान कैसा व्यवहार करता है?
उत्तरम् :
सः दीनः इति जानन्नपि तं बहुधा पीडयति।
(वह दीन है, यह जानते हुए भी उसे अनेक प्रकार से पीड़ा देता है।)

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प्रश्न 13.
शक्रः सुरभिं कथमसान्त्वयत्?
(इन्द्र ने सुरभि को कैसे सान्त्वना दी?) ।
उत्तरम् :
शक्रः सुरभिमसान्त्वयत्-“गच्छ वत्से? सर्वं भद्रं जायेत।
(इन्द्र ने सुरभि को सान्त्वना दी-जाओ पुत्री! सब कल्याण (भला) हो।

प्रश्न 14.
कथं सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
(किस प्रकार सब जगह जल भराव हो गया?)
उत्तरम् :
लोकानां पश्यताम् सर्वत्र जलोपप्लवः अभवत्।
(लोगों के देखते-देखते सब जगह जलप्लावन हो गया।)

प्रश्न 15.
एकः बलीवर्दः कीदृशः आसीत्? (एक बैल कैसा था?) ।
उत्तरम् :
एक: बलीवर्दः दुर्बल: जवेन गन्तुमसमर्थः आसीत्।
(एक बैल कमजोर था जो तेज गति से नहीं चल सकता था)

प्रश्न 16.
सुरभिः का आसीत्? (सुरभि कौन थी?)
उत्तरम् :
सुरभिः सर्वधेनूनां जननी आसीत्।
(सुरभि सब गायों की माँ थी।)

प्रश्न 17.
एतस्मिन्नेव वृषभे कस्मात् इयती कृपा? (इस बैल पर इतनी कृपा क्यों है।)
उत्तरम् :
दीनस्थ तुसतः पुत्रस्य अत्यधिका कृपा।
(बेटा अधिक दीन हो तो उस पर अधिक कृपा होती है।)

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प्रश्न 18.
कीदृशे पुत्रे जननी अधिकतरं स्नियति?
(कैसे पुत्र पर माँ अधिक प्यार करती है?)
उत्तरम् :
दुर्बले पुत्रे मातुः अत्यधिक कृपा भवेत्।
(कमजोर बच्चे पर माता की अधिक कृपा होती है।)

प्रश्न 19.
दीने पुत्रे माता कीदृशी भवेत्?
(दीनपुत्र पर माता को कैसा होना चाहिए?)
उत्तरम् :
दीनेपुत्रे तु माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।
(दीन पुत्र पर तो माता को कृपालु होना चाहिए।)

अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखित श्लोकस्य अन्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत् –
(क) विनिपातो ……… कौशिकः!
मञ्जूषा – रोदिमि, दृश्यते, पुत्रम्, विनिपातो।

त्रिदशाधिप! वः कश्चिद (1) ……….. न (2) ………..। कौशिकः। अहं तु (3) ………… शोचामि तेन (4) ………….।
उत्तरम् :
1. विनिपातो 2. दृश्यते 3. पुत्रम् 4. रोदिमि।

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(ख) यदि ………….. कृपा।।
मञ्जूषा – दीनस्य, पुत्रसहस्रं, अभ्यधिका, सर्वत्र।

यदि मे (1) …………., मे (2) ………… सममेव। शक्र ! (3) …………. पुत्रस्य सत (4)………… कृपा।
उत्तरम् :
1. पुत्रसहस्रं 2. सर्वत्र 3. दीनस्य 4. अभ्यधिका।

मञ्जूषा – दीने, अपत्येषु, कृपाहृदयाभवेत्, तुल्यवत्सला।

(ग) अपत्येषु ……………………… भवेत्।

सर्वेषु (1) ………च जननी (2) ………..। सा माता (3) ……….. पुत्रे तु (4) …………भवेत।
उत्तरम् :
1. अपत्येषु 2. तुल्यवत्सला 3. दीने 4. कृपाईहृदयाभवेत्।

प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत? (किसान उस दुर्बल बैल को कष्ट देकर धकेल रहा था।)
2. पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदिमि। (पुत्र की दीनता को देखकर रोती हैं।)
3. इन्द्रेण पृष्टा सुरक्षित प्रत्यवोचत्। (इन्द्र द्वारा पूछी हुई सुरभि बोली।)
4. यतो हि अयमन्येभ्यः दुर्बलः। (क्योंकि यह अन्यों से दुर्बल है)
5. स च तामेवमसान्त्वयत्। (और उसने उसे इस प्रकार सान्त्वना दी।)
6. कृषक: हर्षातिरेकेण गृहमगात्। (किसान अति प्रसन्नता से घर चला गया।)
7. पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्र हृदया भवेत्। (दीनपुत्र पर तो उस माता को और भी कृपा होना चाहिये।)
8. वृषभः हलमूदवा क्षेत्रे पपात। (बैल हल को उठाकर खेत में गिर गया।)
9. क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं यत्नमकरोत् । (क्रुद्ध किसान ने उसे उठाने का प्रयत्न किया।)
10. भूमौः पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सुरभिरागच्छत्। (धरती पर पड़े हुए अपने पुत्र को देखकर सुरभि आ गई।)
उत्तराणि :
1. कृषक: तं दुर्बलं वृषभं केन नुद्यमानः अर्तत?
2. कस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदिमि?
3. केन पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्?
4. यतो हि कः अन्येभ्यः दुर्बलः?
5. स च काम् एवम् असान्त्वयत्?
6. कृषक: केन गृहमागच्छत् ?
7. पुत्रे कीदृशे तु सा माता कृपाई हृदया भवेत् ?
8. वृषभ: हलमूदवा कुत्र अपतत् ?
9. कीदृशः कृषीवल: तमुत्थापायितुं यत्नमकरोत् ?
10. कुत्र पतितं स्वपुत्रं दृष्ट्वा सुरभिरगाच्छत् ।

भावार्थ-लेखनम् –

अधोलिखित पद्यांशानां संस्कृते भावार्थं लिखत –

(i) विनिपातो न वः …………………………. तेन रोदिमि कौशिक!।।
भावार्थ – कामधेनोः अवदत्-‘हे देवराज इन्द्र युष्माकं कोऽपि अधःपतन हानिर्वा अहं द्रष्टुं शक्न मि (पश्यामि) हे कुशिक नन्दन! अहं तु आत्मजस्य परितापं करोमि तस्मात् रुदनं करोमि।

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(ii) यदि पुत्र सहस्रं ………………………. पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।
भावार्थ – हे देवराज इन्द्र! यद्यपि (चेत्) मे दशशताधिकात्मजा: सर्वेषु स्थानेषु सन्ति परञ्च मह्यं सर्वे एव समानमेव । हे इन्द्र! यदि कश्चित् पुत्र दीनः दयनीयः वा भवति सः अधिकतरं मर्षणीयं भवति।।

(ii) अपत्येषु च सर्वेषु …………………………. कृपाईहदया भवेत् ।।
भावार्थ-माता सर्वासु सन्ततीषु समानभावेन वात्सल्यं प्रदायनी भवति । परञ्च असौ निर्बले आत्मजे अति कृपालु भवेत्।

पाठ-सार –

प्रश्न :
‘जननी तुल्य वत्सला’ इति पाठस्य-सारांशः हिन्दी भाषायां लिखत।
उत्तर :
कोई किसान भूमि जोत रहा था। उन बैलों में से एक शरीर से कमजोर तथा तेज चलने में असमर्थ था। इसी कारण से किसान उस कमजोर बैल को पीड़ा या कष्ट देकर हाँक रहा था। वह बैल हल को धारण करके चलने में असमर्थ धरती पर गिर गया। क्रोधित किसान ने उसे उठाने का अनेक बार प्रयत्न किया फिर भी बैल नहीं उठा। धरती पर गिरे हुए पुत्र (बैल) को देखकर सभी गायों की जननी कामधेनु की आँखों से आँसू प्रकट हो गए। कामधेनु की यह दशा देखकर उससे पूछा “हे कल्याणी! ऐसे क्यों रो रही हो। कहो!” वह बोली-“हे देवराज इन्द्र आपका कोई अध:पतन (हानि) नजर नहीं आ रही है।

मैं तो अपने पुत्र का शोक कर रही हूँ, इस कारण से रो रही हूँ।” हे देवराज! मैं पुत्र की दीनता को देखकर विलाप कर रही हूँ। वह दुखी है, ऐसा जानकर भी किसान उसे कष्ट देता है। वह बैल बड़ी कठिनाई से भार को उठा सकता है। दूसरे बैल की तरह वह बोझा अथवा धुरी को वहन करने योग्य नहीं है। यह सब तुम स्वयं भी देख रहे हो। इस प्रकार उसने उत्तर दिया। कल्याणि यद्यपि तेरे हजारों बेटे हैं फिर भी इस पर ही इतना वात्सल्य क्यों? इन्द्र द्वारा पूछी हुई कामधेनु ने इस प्रकार उत्तर दिया- “यद्यपि मेरे हजारों पुत्र सभी स्थानों पर हैं परन्तु मेरे लिए सभी समान हैं।

हे इन्द्र ! कोई पुत्र दीन अथवा दयनीय हो तो वह अधिक दया का पात्र होता है। बहुत-सी सन्तान मेरी हैं यह उचित ही है फिर भी मैं इस बेटे पर विशेष रूप से अपनी पीड़ा अनुभव क्यों करती हूँ? क्योंकि यह दूसरों से कमजोर है। सभी पुत्रों पर माता समान स्नेह देने वाली होती है। अतः निर्बल पुत्र पर माँ का अनुग्रह स्वाभाविक होता है। कामधेनु के वाक्य को सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो गया तथा वह उस सुरभि को इस प्रकार सान्त्वना देने लगा-जाओ, बेटी सब ठीक हो जायेगा।

शीघ्र ही तेज हवा से मेघ गर्जना के साथ जोर की वर्षा होने लगी। लोगों के देखते-देखते सब जमह पानी भर गया। किसान अत्यधिक प्रसन्न होता हुआ खेत की जुताई छोड़कर बैलों को लेकर घर चला गया। माता सभी सन्तानों पर समान भाव से वात्सल्य प्रदान करने वाली होती है परन्तु उसे निर्बल बेटे पर अत्यधिक कृपालु होना चाहिए।

जननी तुल्यवत्सला Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास चारों वेदों और अठारह पुराणों के सम्पादक और रचयिता हैं। अत: वेदों का व्यसन करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्हीं महर्षि वेद व्यास की महान रचना है- महाभारत। यह वृहदाकार होने के कारण विश्वकोश माना जाता है। महाभारत में ही कहा गया है –

धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्।।

प्रस्तुत पाठ महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ महाभारत के ‘वन पर्व’ से लिया गया है। यह कथा सभी प्राणियों में समान दृष्टि की भावना का बोध कराती है। इसका वांछित अर्थ है कि समाज में विद्यमान दुर्बल प्राणियों के प्रति भी माँ का वात्सल्य उत्कृष्ट ही होता है।

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मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंग, हिन्दी-अनुवादः

1. कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अत: कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवल: तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।

शब्दार्थ: – कश्चित् = कोऽपि (कोई), कृषकः = कृषिवल: (किसान), क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत् = भूमि कर्षति स्म (खेत जोत रहा था) तयोः = अमुयोः (उन दोनों में), बलीवर्दयोः = वृषभयोः (बैलों में), एकः = (एक), शरीरेण = वपुसा (शरीर से)। दुर्बलः = निर्बल: (कमजोर), जवेन = वेगेन (तेज), गन्तुम् = गमनाय (जाने में), अशक्त: = असमर्थः (कमजोर) आसीत् = अभवत् (था), अतः = अनेनैव कारणेन (इसलिए), कृषकः = कृषीवल: (किसान), तम् = अमुम् (उसको)। दुर्बलम् =अशक्तम् (कमजोर को), वृषभं = बलीवर्दम् (बैल को)। तोदनम् = वेदनां, कष्टं (कष्ट), नुद्यमानः = प्रेरयन् (हाँकता हुआ), अवर्तत = अभवत् (रहता)। सः वृषभः = असौ बलीवर्दः (वह बैल), हलमूदवा = लाङ्गलं धृत्वा, संधार्य (हल वहन करके), गन्तुमशक्तः = गमनेऽसमर्थः (जाने में असमर्थ)। क्षेत्रे पपात = भूमौ अपतत् (धरती पर गिर गया), क्रुद्धः = प्रकुपितः (नाराज), कृषीवलः = कृषक: (किसान ने), तमुत्थापयितुम् = अमुम् उत्थापनाय (उसे उठाने के लिए), बहुवारम् = अनेकशः (अनेक बार), यत्नमकरोत् = प्रयास कृतवान् (प्रयास किया), तथापि = पुनरपि (फिर भी), वृषः = बलीवर्दः (बैल), नोत्थितः= न उत्थितवान् (नहीं उठा)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से संकलित है। इस गद्यांश में दुर्बल बैल के साथ किसान का व्यवहार वर्णित है।

हिन्दी अनुवादः – कोई किसान दो बैलों से खेत जोत रहा था। उन बैलों में से एक शरीर से कमजोर था, तेज गति से चलने में असमर्थ था। अतः किसान उस कमजोर बैल को कष्ट देता हुआ हाँकता रहता था। हल वहन कर चलने में असमर्थ वह खेत में गिर गया। नाराज हुये किसान ने (उसे) उठाने के लिए अनेक बार प्रयत्न किया फिर भी बैल नहीं उठा।

2. भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्” इति। सा च

विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप!।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!।।

शब्दार्थाः – भमौ = धरायाम (धरती पर). पतिते = गलिते (गिरने पर), स्वपत्रम = आत्मजम (बे सर्वधेनूनां = सर्वासां गवाम् (सब गायों की), मातुः = जनन्या (माता), सुरभैः = कामधेनोः (कामधेनु के) नेत्राभ्याम् = नयनाभ्याम् (आँखों में), अश्रूणिः = वाष्पं, नेत्रजलम् (आँसू), आविरासन् = प्रकटिताः (निकल आये)। सुरभेः = कामधेनोः (कामधेनु की), इमां = एतद् (इस), अवस्थाम् = दशां, स्थितिम् (हालत को), दृष्ट्वा = विलोक्य (देखकर), ताम् = अमूम् (उसको), अपृच्छत् = पृष्टवान् (पूछा), अयि = भोः (अरी), शुभे = कल्याणि (कल्याणी), किम् एवम् = कस्मात् अनेन प्रकारेण (इस प्रकार क्यों),

रोदिषि = रोदनं करोषि (रो रही हो), उच्यताम् = कथ्यताम्, ब्रूहि (कहो), इति = एवम् (इस प्रकार), सा च = असौ च (और वह), त्रिदशाधिपः = देवराजः इन्द्रः (देवराज इन्द्र), वः = युष्माकम् (तुम्हारा), कश्चिद् = कोऽसि (कोई कुछ भी), विनिपातः = अनादरः, अध: पतनं (हानि, बर्वादी), दृश्यते = द्रष्टुं शक्नोति (देख सकता), कौशिकः = हे कुशिक नन्दन (हे विश्वामित्र), अहम् तु = (मैं तो) पुत्रं = आत्मजम् (बेटे का), शोचामि = परितापं करोमि (शोक कर रही हूँ), तेन = तस्मात् कारणात् (उसकी वजह से), रोदिमि = रुदनं करोमि (रोती हूँ)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में गायों में प्रमुख कामधेनु का वात्सल्य वर्णन है।

हिन्दी अनुवादः – भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र (बैल) को देखकर सभी गायों की माता कामधेनु की आँखों में आँस भर आये। कामधेनु की इस अवस्था को देखकर देवराज इन्द्र बोले-अरी कल्याणी! ऐसे क्यों रो रही हो। कहो। और वह (बोली) “हे देवराज इन्द्र तुम्हारा कोई अनादर (क्षय) दिखाई नहीं देता।” हे विश्वामित्र! मैं तो बेटे का शोक कर रही हूँ। अतः रो रही हूँ।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

3. “भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुबहति। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।
“भद्रे! नूनम्! सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।

यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शुक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।

शब्दार्था: – भो वासव! = हे देवराज इन्द्र! (हे इन्द्र), पुत्रस्य = आत्मजस्य (पुत्र की), दैन्यम् = दीनताम् (दीनता को), दृष्ट्वा वीक्ष्य (देखकर), अहं रोदिमि = अहम् विलपामि (विलाप कर रही हूँ), स: = असौ (वह), दीनः विषण्णः (दुखी), इति एव (इतना), जानन्नपि ज्ञात्वापि (जानते हुए भी), कृषक: कृषीवल (किसान), तम् अमुम् (उसे), पीडयति = तुदति, क्लिश्नाति (दुख देता है), सः = असौ वृषः (वह बैल), कृच्छ्रेण = काठिन्येन, कष्टेन (कठिनाई से), भारमुवहति = भारमुत्थापयति (वजन उठाता है), इतरमिव अपरमिव (दूसरे बैल के समान), सः = असौ (वह), धुरम् अक्षम्, भारम् (धुरी को, बोझ को) वोढुम वहनाययोग्य (वहन करने योग्य), न = नैव (नहीं), शक्नोति = सकता, एतत् इदम् (इसे), भवान् त्वम् (तुम), पश्यति न = अवलोकयसि न (देख रहे हो न), इति एवं (इस प्रकार), प्रत्यवोचत् = उत्तरं दत्तवती (जवाब दिया), भद्रे = कल्याणि (कल्याणी), नूनम् निश्चयेन (निश्चित ही), सहस्राधिकेषु = दशशताधिकेषु (हजारों से अधिकों में),

पुत्रेषु = आत्मजेषु, सुतेषु, तनयेषु (बेटों में/पर), सत्वसपि भवत्स्वपि (होते हुए भी), तवते (तेरा), अस्मिन्ने = अस्योपरि एव (इस पर ही), एतादृशं इयत् (इतना, ऐसा), वात्सल्यम् वत्सलता, स्नेहभावः (प्रेम), कथम् कस्मात् (कैसे), इति एवं (इस प्रकार), इन्द्रेण वासवेन (इन्द्र द्वारा), पृष्टा = अनुयुक्ता (पूछी गई), सुरभिः = कामधेनुः (कामधेनु), प्रत्यवोचत् उत्तरं दत्तवती (उत्तर दिया, जवाब में बोली), यदि-चेत् (यदि), मे = मम (मेरे), पुत्रसहस्र-दशशत् आत्मज (हजारों पुत्र), सर्वत्र सर्वेषु स्थानेषु (सब जगह), मे मह्यम् (मुझे, मेरे लिए), सममेव = समानमेव (समान ही है), शक्र! हे इन्द्र (हे इन्द्र), दीनस्य तु पुत्रस्य = यदि पुत्रः दीनः भवति (यदि पुत्र दुखी हो तो), अत्यधिका कृपा = अधिकतरः मर्षणीयम्, मर्षणम् (और भी अधिक कृपा होती है।)

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्य वत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में सुरभि शोक और रोदन का कारण बताती है।

हिन्दी अनुवादः – “हे इन्द्र! पुत्र की दीनता देखकर मैं रो रही हूँ। वह दीन है, ऐसा जानते हुए भी किसान उसे बहुत पीड़ा दे रहा है। वह कठिनाई से बोझ उठाता है। दूसरे बैल की तरह से वह धुर को वहन नहीं कर सकता है। यह आप देख रहे हैं न”। ऐसा उत्तर दिया।

“कल्याणि! नि:संदेह हजारों पुत्र होते हुए भी तुम्हारा इस पर इतना प्रेम (वात्सल्य) क्यों है? ऐसा इन्द्र के पूछने पर सुरभि ने उत्तर में कहा
यदि (यद्यपि) हजारों पुत्र हैं मेरे। वे सब जगह मेरे लिए समान हैं। हे इन्द्र! पुत्र के दीन होने पर तो उस पर और भी अधिक कृपा होती है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

4. ‘बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनाममनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव’ इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्- “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”

शब्दार्था: – बहून्यपत्यानि = बहवः पुत्राः, सन्ततयः (बहुत से बच्चे), मे = मम् (मेरे), सन्ति वर्तन्ते (हैं), सत्यम्-उचितम् (सच), तथापि = पुनरपि (फिर भी), अहमेतस्मिन् = अहमस्मिन् (मैं इसमें, इस पर), पुत्रे-आत्मजे (बेटे पर), विशिष्य-विशेष रूपेण (विशेष रूप से), आत्मवेदनाम् स्वस्यपीडाम् (अपनी पीड़ा का), अनुभवामि = अनुभवं करोमि (अनुभव कर रही हूँ), यतोहि = यस्मात् हि (क्योंकि), अयम् एषः (यह), अन्येभ्य = अपरेभ्यः (और से), दुर्बल: = अशक्तः, निर्बलः (कमजोर), सर्वेषु = अखिलेषु (सभी में), अपत्येषु = पुत्रेषु, जातेषु (बच्चों में), जननी = माता (माँ), तुल्यवत्सला एव = समान स्नेहवती (एक समान) स्नेह करने वाली होती है), तथापि पुनरपि (फिर भी), दुर्बले निर्बले (कमजोर), सुते = पुत्रे (बेटे पर), मातुः जनन्याः (माँ की), अभ्यधिका = प्रभूताम् (अधिकतर), कृपा अनुग्रहः (महरबानी), सहजैव इति स्वाभाविकी एव (स्वाभाविक है), सुरभिवचनं कामधेनोः वाक्यं (कामधेनु की बात), श्रुत्वा = आकर्ण्य, निशम्य (सुनकर), भृशं = अत्यधिकम् (बहुत), विस्मितस्याखण्डलस्यापि आश्चर्यचकितस्य इन्द्रस्य अपि (आश्चर्यचकित इन्द्र का भी), हृदयम् = मानसम् (हृदय), अद्रवत् = द्रवितोऽभवत् (पिघल गया), सः च असौ च (और उसने), ताम् अमूम् (उसे), एवम् अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), सान्त्वयत् सान्त्वनां प्रदत्तवान् (सान्त्वना प्रदान की) गच्छ याहि (जाओ) वत्से बालिके (बच्ची), सर्वम्स कलम् (सब), भद्रम् कल्याणम् (भला), जायेत = भवेत (हो)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत् महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में इन्द्र सुरभि के तुल्य वात्सल्य भाव को जानकर उसे सान्त्वना प्रदान करता है।

हिन्दी अनुवादः – यह सच है कि मेरे बहुत सी सन्तान हैं, फिर भी मैं इस बेटे पर विशेष रूप से आत्मवेदना का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह औरों से कमजोर है, सभी सन्तानों पर माता का समान वात्सल्य होता है। फिर भी कमजोर बेटे पर अधिक महरबानी स्वाभाविक होती है। सुरभि के वचन सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का भी हृदय द्रवित हो गया (पिघल गया) और उसने उसे इस प्रकार सान्त्वना प्रदान की- ‘जाओ बेटी! सब का कल्याण हो।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

5. अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपाईहृदया भवेत् ।।

शब्दार्थाः – अचिरादेव = शीघ्रमेव (जल्दी ही), चण्डवातेन-वेगयुता वायुना, तीव्र वायुना (तेज हवा द्वारा), मेघरवैः = वारिद गर्जनेन (मेघों की गर्जना से) सह प्रवर्षः = वृष्टिसहितम् (वर्षा समेत), समजायत = समभवत् (हो गई), लोकानाम् मनुष्याणाम् (लोगों के), पश्यताम् पश्यन्नेव (देखते-देखते), सर्वत्र = सर्वेषु स्थानेषु (सब जगह) जलोपप्लव: = जलप्लाव (जलोत्पात), सञ्जातः = अभवत् (हो गया), कृषक: = कृषिवल: (किसान), हर्षातिरेकेण = अत्यधिक प्रसन्नतया (अत्यधिक प्रसन्नता से), कर्षण विमुख = कर्षण कार्यात् विमुखः सन् (जोतने से रुककर), वृषभौ = बलीवी (बैलों को लेकर), गृहमगात् = गृहमगच्छत् (घर को चला गया), जननी = माता (माता), सर्वेषु = सकलेषु (सभी पर), अपत्येषु = सन्ततीषु आत्मजेषु (सन्तान पर), तुल्य = समान भावेन (समान भाव से), वत्सला = वात्सल्य स्नेह भावेन, युता भवति (वात्सल्य या स्नेह से युक्त होती है), परञ्च (परंतु) दीन = दयनीय (निर्बल), पुत्रे = आत्मजे (बेटे पर), तुसा = तु असौ (तो वह), कृपा = कृपया आर्द्र हृदयं यस्याः सा (कृपा से जिसका हृदय आर्द्र है), भवेत् = स्यात् (होनी चाहिए)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वेदव्यास-कृत महाभारत के वनपर्व से सङ्कलित है। इस गद्यांश में वर्णित है कि भाग्य से वर्षा हो जाती है, प्रसन्न किसान बैलों को लेकर घर चला गया, जिससे दीन बैल की जान सुरक्षित हो जाती है।

हिन्दी अनुवादः – शीघ्र ही तेज वायु से मेघों की गर्जना के साथ वर्षा हो गई। लोगों के देखते-देखते सब जगह जलभराव हो गया। किसान अत्यन्त प्रसन्नता के साथ हल जोतना छोड़कर बैलों को लेकर घर चला गया। माता सभी सन्तानों को समान वात्सल्य (स्नेह) प्रदान करती है। परन्तु जो पुत्र दीन होता है उस माता को उस पुत्र पर तो अधिक कृपा से आर्द्र हृदय (कृपालु) होना चाहिए।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः

Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरुः

JAC Class 9th Sanskrit कल्पतरुः Textbook Questions and Answers

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः अस्ति? (जीमूतवाहन किसका पुत्र है?)
उत्तरम् :
जीमूतकेतोः (जीमूतकेतु का)।

(ख) संसारेऽस्मिन् कः अनश्वरः भवति? (इस संसार में अनश्वर कौन है?)
उत्तरम् :
परोपकारः (परोपकार)।

(ग) जीमूतवाहनः परोपकारैकफलसिद्धये कम् आराधयति?
(जीमूतवाहन परोपकार की एकमात्र फलसिद्धि के लिए किसकी आराधना करता है?)
उत्तरम् :
कल्पवृक्षपादपम्। (कल्पवृक्ष के पौधे की)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

(घ) जीमूतवाहनस्य सर्वभूतानुकम्पया सर्वत्र किं प्रथितम्?
(जीमूतवाहन की सभी प्राणियों की अनुकम्पा से किसकी वृद्धि हुई ?)
उत्तरम् :
यशः। (यश की)।

(ङ) कल्पतरुः भुवि कानि अवर्ष?
(कल्पतरु ने पृथ्वी पर क्या बरसाया?)
उत्तरम् :
वसूनि। (धन)।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं कुत्र विभाति स्म? (कञ्चनपुर नामक नगर कहाँ सुशोभित था?)
उत्तरम् :
हिमवतः नगेन्द्रस्य सानोरुपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति स्म। (पर्वतराज हिमालय के शिखर के ऊपर कंचनपुर नामक नगर सुशोभित था।)

(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत्? (जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्। (जीमूतवाहन महान् दानवीर तथा सभी प्राणियों पर दया करने वाला था।)

(ग) कल्पतरो: वैशिष्ट्यमाकर्ण्य जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत्? (कल्पवृक्ष की विशेषता को सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः अचिन्तयत् यत् अहम् एतत्कल्पतरोः स्वकामनां मनोरथमभीष्टं साधयामि। (जीमतवाहन ने सोचा कि मैं इस कल्पवक्ष से अपनी कामना सिद्ध करता हैं।)

(घ) हितैषिण: मन्त्रिण: जीमूतवाहनं किम् उक्तवन्तः? (हितैषी मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
“युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति अकथयत्। (“हे युवराज! जो यह सारी कामनाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष तुम्हारे बाग में खड़ा है, वह तुम्हारे लिए सदा पूज्य है। इसके अनुकूल होने पर इन्द्र भी हमें कोई बाधा नहीं पहुँचा सकता है।” इस प्रकार से कहा।)

(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन कल्पतरु के समीप जाकर क्या बोला?)
उत्तरम् :
“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव” इति। (देव! आपने हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएं पूरी की तो मेरी भी एक कामना पूरी कर दीजिए, जिस प्रकार मैं पृथ्वी को दरिद्रततारहित देखें, ऐसा कर दीजिए।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

3. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानि कस्मै प्रयुक्तानि? (निम्नलिखित वाक्यों में मोटे पद किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं ?)
(क) तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरंम्। (उसकी चोटी के ऊपर कञ्चनपुर नामक नगर सुशोभित था)
उत्तरम् :
हिमवते नगेन्द्राय प्रयुक्तम्। (पर्वतराज हिमालय के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(ख) राजा सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्? (राजा ने युवावस्था को प्राप्त हुए उसे युवराज के पद पर अभिषिक्त कर दिया।)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनाय प्रयुक्तम्। (जीमूतवाहन के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(ग) अयं तव सदा पूज्यः। (यह तुम्हारा सदा पूजनीय है।)
उत्तरम् :
कल्पवृक्षाय प्रयुक्तम्। (कल्पवृक्ष के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

(घ) तात ! त्वं तु जानासि यत् धनं वीचिवच्चञ्चलम्। (हे पिताजी, तुम तो जानते हो कि धन जल की तरंग के समान चंचल है।)
उत्तरम् :
जीमूतकेतवे प्रयुक्तम्। (जीमूतकेतु के लिए प्रयुक्त हुआ है।)

4. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत –
(निम्नलिखित पदों के पर्यायपद पाठ से चुनकर लिखिए-)
(क) पर्वतः – …………..
(ख) भूपतिः – …………..
(ग) इन्द्रः – …………..
(घ) धनम् – ………….
(ङ) इच्छितम् – ………….
(च) समीपम् – …………..
(छ) धरित्रीम् – …………
(ज) कल्याणम् – …………..
(झ) वाणी – ………..
(ब) वृक्षः – …………
उत्तर :
(क) नगेन्द्रः
(ख) राजा
(ग) शक्रः
(घ) अर्थः, वसूनि
(ङ) अभीष्टम्
(च) अन्तिकम्
(छ) पृथ्वीम्
(ज) हितम्
(झ) वाक्
(ज) तरुः।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

5. ‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि। तानि समचितं योजयत
(‘क’ स्तम्भ में विशेषण और ‘ख’ स्तम्भ में विशेष्य दिये हुए हैं। उन्हें ठीक से मिलाइये-)

‘क’ स्तम्भ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतःपरोपकारः
दानवीरःमन्त्रिभिः
हितैषिभिःजीमूतवाहनः
वीचिवच्चञ्चलम्कल्पतरुः
अनश्वरःधनम्

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतःकल्पतरुः
दानवीरःजीमूतवाहनः
हितैषिभिःमन्त्रिभिः
वीचिवच्चञ्चलम्धनम्
अनश्वरःपरोपकारः

6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (मोटे छपे पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) तरोः कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत्।
(ख) स: कल्पतरवे न्यवेदयत्।
(ग) धनवृष्ट्या कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्।
(घ) कल्पतरुः पृथिव्यां धनानि अवर्षत्।
(ङ) जीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्।
उत्तरम् :
प्रश्न: – कस्य कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत् ?
प्रश्न: – सः कस्मै न्यवेदयत् ?
प्रश्न: – कथं कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत् ?
प्रश्न: – कल्पतरुः कुत्र धनानि अवर्षत् ?
प्रश्न: – कथं जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्?

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

7. (क) “स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्दस्य योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। इत्यनेन नियमेन अत्र चतुर्थी विभक्तिः प्रयुक्ता। एवमेव (कोष्ठकगतेषु पदेषु) चतुर्थी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(“स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। इस नियम से यहाँ चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। इसी प्रकार (कोष्ठक में दिये शब्दों में) चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को पूर्ण कीजिए
(i) स्वस्ति ………… (राजा)
(ii) स्वस्ति ………… (प्रजा)
(ii) स्वस्ति ………… (छात्र)
(iv) स्वस्ति …………… (सर्वजन)
उत्तरम् :
(i) राज्ञे
(ii) प्रजाभ्यः
(iii) छात्राय
(iv) सर्वजनेभ्यः

(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत (कोष्ठक में दिये शब्दों में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को पूर्ण कीजिए-)
(i) तस्य ……… उद्याने कल्पतरुः आसीत्। (गृह)
(ii) सः ………… अन्तिकम् अगच्छत्। (पितृ)
(iii) …………. सर्वत्र यशः प्रथितम्। (जीमूतवाहन)
(iv) अयं ………. तरुः ? (किम्)
उत्तर :
(i) गृहस्य
(ii) पितुः
(iii) जीमूतवाहनस्य
(iv) कस्य।

JAC Class 9th Sanskrit कल्पतरुः Important Questions and Answers

प्रश्न: 1.
सर्वरत्नभूमिः कः अस्ति ? (सभी रत्नों का उत्पत्ति स्थान क्या है?)
उत्तरम् :
हिमवान् नाम नगेन्द्रः सर्वरत्नभूमिः अस्ति। (पर्वतराज हिमालय सभी रत्नों का उत्पत्तिस्थान है।)

प्रश्नः 2.
कल्पतरुः कुत्र स्थितः? (कल्पवृक्ष कहाँ स्थित था?)
उत्तरम् :
कल्पतरुः जीमूतकेतोः गृहोद्याने स्थितः। (कल्पतरु जीमूतकेतु के घर के बगीचे में स्थित था।)

प्रश्न: 3.
जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्। (जीमूतवाहन दानवीर और समस्त जीवों पर दया करने वाला था।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 4.
जीमूतवाहनः कल्पवृक्षविषये कैः उक्तः? (जीमूतवाहन से कल्पवृक्ष के बारे में किन्होंने कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पवृक्षविषये हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः। (जीमूतवाहन से कल्पवृक्ष के विषय में हितैषी पिता के मन्त्रियों ने कहा।)

प्रश्न: 5.
मन्त्रिभिः जीमूतवाहनः किम् उक्तः ? (मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
मन्त्रिभिः जीमूतवाहन: उक्तः यत् योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति, स तव सदा पूज्यः।
(मन्त्रियों ने जीमतवाहन से कहा कि जो यह समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला कल्पवक्ष आपके बगीचे में है, वह तुम्हारा हमेशापूजनीय है।)

प्रश्न: 6.
जीमूतवाहनस्य पूर्वैः पुरुषैः कीदृशं फलं नासादितम्?
(जीमूतवाहन के पूर्वजों ने किस प्रकार का फल प्राप्त नहीं किया?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य पूर्वैः पुरुषैः परोपकारस्य फलं न आसादितम्। (जीमूतवाहन के पूर्वजों के द्वारा परोपकार का फल प्राप्त नहीं किया गया।)

प्रश्न: 7.
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर क्या कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-यत् देव ! यथा पृथ्वीमदरिद्रां पश्यामि तथा करोतु। (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर कहा कि हे देव! जिससे पृथ्वी को दरिद्रता से रहित देखू, वैसा ही कीजिए।)

प्रश्न: 8.
तस्मात् कल्पवृक्षात् का वाक् उद्भूत्? (उस कल्पवृक्ष से क्या वाणी उत्पन्न हुई?)
उत्तरम् :
तस्मात् कल्पवृक्षात् “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् उद्भूत्। (उस कल्पवृक्ष से “तुम्हारे द्वारा त्यागा गया यह मैं जाता हूँ” इस प्रकार की वाणी उत्पन्न हुई।)

प्रश्न: 9.
कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य किम् अकरोत्? (कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर क्या किया?)
उत्तरम :
कल्पवृक्षः दिवं समुत्पत्य पृथिव्यां तथा वसूनि अवर्षत् यथा कोऽपि दुर्गतः न आसीत्। (कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर भूमि पर उस प्रकार से धन की वर्षा की जिससे कोई भी पीड़ित/निर्धन नहीं रहा।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न: 10.
‘कल्पतरुः’ इति कथा कस्मात् ग्रन्थात् गृहीता? (‘कल्पतरुः’ कहानी किस ग्रन्थ से ली गई है?)
उत्तरम् :
‘कल्पतरुः’ इति कथा ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ इति ग्रन्थात् गृहीता। (‘कल्पतरुः’ कथा ‘वेतालपंचविंशतिः’ कथा ग्रन्थ से ली गई है।)

प्रश्न: 11.
कल्पतरुः’ इति कथायां केषां निरूपणं वर्तते। (‘कल्पतरुः’ कथा में किनका निरूपण किया गया है?)
उत्तरम् :
‘कल्पतरुः’ कथायां जीवनमूल्यानां निरूपणं वर्तते। (‘कल्पतरुः’ कथा में जीवन-मूल्यों का निरूपण किया है।)

प्रश्न: 12.
जीमूतकेतुः केषां नृपः अभवत्? (जीमूतकेतु किनका राजा हुआ?)
उत्तरम् :
जीमूतकेतु विद्याधराणां राजा आसीत्। (जीमूतवाहन विद्याधरों का राजा था।)

प्रश्न: 13.
जीमूतवाहनः कस्य अंशात् सम्भवः आसीत्? (जीमूतवाहन किसके अंश से पैदा हुआ था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः बोधिसत्वस्य अंशात् सम्भवः आसीत्। (जीमूतवाहन बोधिसत्व के अंश से पैदा हुआ था।)

प्रश्न: 14.
जीमूतवाहनस्य अभीष्टं किमासीत्? (जीमूतवाहन की इच्छा क्या थी?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य अभीष्टं आसीत् यत् सः पृथिवीं अदरिद्रां पश्येत्। (जीमूतवाहन का अभीष्ट था कि वह धरती को दीनतारहित देखे।)

प्रश्न: 15.
जीमूतवाहनस्य प्रार्थनां श्रुत्वा कल्पतरुः किमवदत्? (जीमूतवाहन की प्रार्थना सुनकर कल्पतरु ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
कल्पतरुः अवदत् यत्-‘त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि। (कल्पतरु ने कहा- तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ।)

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प्रश्न: 16.
कल्पतरुः उत्प्लुत्य कुत्र अगच्छत्? (कल्पवृक्ष उड़कर कहाँ चला गया?)
उत्तरम् :
कल्पतरु समुत्लुत्य दिवम् अगच्छत्। (कल्पवृक्ष उड़कर आकाश में चला गया।)

प्रश्न: 17:
जीमूतवाहनः कस्मै वरं याचते? (जीमूतवाहन किसके लिए वर माँगता है?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः सांसारिक प्राणिनां दुःखानि अपाकरणाय वरं याचते। (जीमूतवाहन सांसारित पाणिनों के दुःखों को दूर करने के लिए वर माँगता है।)

प्रश्न: 18.
लोकभोग्या भौतिक पदार्थाः कीदृशाः सन्ति?
(लोक के भोगने योग्य भौतिक पदार्थ केसे हैं?)
उत्तरम् : लोकभोग्या भौतिक पदार्थाः जलतरंगवद् अनित्याः सन्ति।
(लोक द्वारा भोग्य भौतिक पदार्थ जल की लहरों की तरह नश्वर हैं।)

रेखांकितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

प्रश्न: 1.
जीमूतकेतुः कल्पवृक्षम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्तम्।
(जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया।).
उत्तरम् :
जीमूतकेतुः कम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्तम् ?
(जीमूतकेतु ने किसकी आराधना करके जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया?)

प्रश्न: 2.
जीमूतवाहनः दानवीरः आसीत्। (जीमूतवाहन दानवीर था।)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)

प्रश्न: 3.
कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। (कंजूसों द्वारा कुछ धन माँगा गया।)
उत्तरम् :
कैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थितः। (किनके द्वारा कुछ धन माँगा गया?)

प्रश्न: 4.
सः पितुः अन्तिकं गतः। (वह पिता के पास गया।)
उत्तरम् :
सः कुत्र गतः? (वह कहाँ गया?)

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प्रश्न: 5.
सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत। (आराम से बैठे हुए पिता से एकान्त में पूछा।)
उत्तरम् :
कीदृशम् पितरम् एकान्ते न्यवेदयत? (कैसे पिताजी से एकांत में निवेदन किया?)

प्रश्न: 6.
सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। (सभी धन लहर की तरह चञ्चल है।)
उत्तरम् :
किं वीचिवत् चञ्चलम्? (लहरों की तरह क्या चंचल है।)

प्रश्नः 7.
परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः। (परोपकार ही इस संसार में अनश्वर है।)
उत्तरम् :
क एव अस्मिन् संसारे अनश्वर:? (कौन ही इस संसार में अनश्वर है?)

प्रश्न: 8.
कल्पतरुः भुवि वसूनि अवर्षत्। (कल्पतरु ने धरती पर धन बरसाया।)
उत्तरम् :
कल्पतरुः कुत्र वसूनि अवर्षत्। (कल्पतरु ने कहाँ धन बरसाया?)

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प्रश्न: 9.
जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पयां सर्वत्र यश प्रथितम्। (जीमूतवाहन की सब प्राणियों पर दया होने से सब जगह यश फैल गया।) .
उत्तरम् :
जीमूतवाहनस्य कथं सर्वत्र यश प्रथितम्। (जीमूतवाहन का कैसे सब जगह यश फैल गया।)

प्रश्न: 10.
वाक् तस्मात् तरोः उद्भूत्। (वाणी उस वृक्ष से पैदा हुई।)
उत्तरम् :
वाक् कुतः उद्भूत? (वाणी कहाँ से पैदा हुई?)

कथाक्रम संयोजनम् अधोलिखितवाक्यानि पठित्वा कथाक्रमसंयोजनम् कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर कथा-क्रम संयोजन कीजिए-)

  1. योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः।
  2. यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहन: कदाचित् हितैषिभिः पितमन्त्रिभिः उक्तः।
  3. तस्य गहोद्याने कलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
  4. अस्मिन अनुकले स्थि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।
  5. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः।
  6. स कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
  7. जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
  8. कञ्चनपुरे नगरे जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।

उत्तरम् :

  1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः।
  2. कञ्चनपुरे नगरे जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।
  3. तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
  4. स कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
  5. जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
  6. यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहनः कदाचित् हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः।
  7. योऽयं सर्वकामदः कल्पतरु: तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः।
  8. अस्मिन् अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।

योग्यताविस्तारः

(क) ग्रन्थ परिचय –
‘वेतालपञ्चविंशतिका’ पच्चीस कथाओं का संग्रह है। इस नाम की दो रचनाएँ पाई जाती हैं। एक शिवदास (13वीं शताब्दी) द्वारा लिखित ग्रन्थ है जिसमें गद्य और पद्य दोनों विधाओं का प्रयोग किया गया है। दूसरी जम्भलदत्त की रचना है, जो केवल गद्यमयी है। इस कथा में कहा गया है कि राजा विक्रम को प्रतिवर्ष कोई तान्त्रिक सोने का एक फल देता है। उसी तांत्रिक के कहने पर राजा विक्रम श्मशान से शव लाता है। जिस पर सवार होकर एक वेताल मार्ग में राजा के मनोरंजन के लिए कथा सुनाता है।

कथा सुनते समय राजा को मौन रहने का निर्देश देता है। कहानी के अन्त में वेताल राजा से कहानी पर आधारित एक प्रश्न पूछता है। राजा उसका सही उत्तर देता है। शर्त के अनुसार वेताल पुनः श्मशान पहुँच जाता है। इस तरह पच्चीस बार ऐसी ही घटनाओं की आवृत्ति होती है और वेताल राजा को एक-एक करके पच्चीस कथाएँ सुनाता है। ये कथाएँ अत्यन्त रोचक, भावप्रधान और विवेक की परीक्षा लेने वाली हैं।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

(ख) क्त, क्तवतु प्रयोग :
क्त – इस प्रत्यय का प्रयोग सामान्यतः कर्मवाच्य में होता है।
क्तवतु – इस प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य में होता है।
क्त प्रत्ययः –

  • जीमूतवाहनः हितैषिभिः मन्त्रिभिः उक्तः।
  • कृपणैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थितः।
  • त्वया अस्मत्कामाः पूरिताः।
  • तस्य यशः प्रथितम् (कर्तृवाच्य में क्त)

क्तवतु प्रत्ययः –

  • सः पुत्रं यौवराज्यपदेऽभिषिक्तवान्।
  • एतदाकर्ण्य जीमूतवाहनः चिन्तितवान्।
  • स सुखासीनं पितरं निवेदितवान्।
  • जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उक्तवान्।

(ग) लोक कल्याण-कामना-विषयक कतिपय श्लोक – (लोगों की कल्याण की कामना सम्बन्धी कुछ श्लोक-)

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।

हिन्दी-आशय – सभी सुख पाने वाले होवें, सभी स्वस्थ होवें। सभी कल्याण देखें, कोई भी दुःख पाने वाला नहीं होना चाहिए।)

सर्वस्तरतु दुर्गाणि, सर्वे भद्राणि पश्यतु ।
सर्वः कामानवाप्नोतु, सर्वः सर्वत्र नन्दतु।।

हिन्दी-आशय – सभी कठिनाइयों से पार होवें, सभी कल्याण देखें। सभी कामनाओं को प्राप्त करें, सभी सब जगह आनन्दित होवें।)

न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग न पुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामातिनाशनम्।।

हिन्दी-आशय – न तो मैं राज्य की कामना करता हूँ न स्वर्ग की, न पुनर् जन्म की। दुःख से पीड़ित प्राणियों के दु:ख के नाश की (मैं) कामना करता हूँ।)

कल्पतरुः Summary and Translation in Hindi

पाठ का सारांश – प्रस्तुत पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः नामक कथा-संग्रह से लिया गया है, जिसमें मनोरंजक एवं आश्चर्यजनक घटनाओं के माध्यम से जीवन-मूल्यों का निरूपण किया गया है। इस कथा में हिमालय पर्वत के शिखर पर बसे कंचनपुर नामक नगर के राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन, जो कल्पवृक्ष की कृपा से उत्पन्न हुआ था, की उदारता का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि परोपकार ही सर्वोत्कृष्ट एवं चिरस्थाई तत्त्व है।

मन्त्रियों की सलाह के अनुसार एवं अपने पुत्र जीमूतवाहन के गुणों पर प्रसन्न होकर राजा जीमूतकेतु युवावस्था में स्थित अपने पुत्र का युवराज पद पर अभिषेक कर देता है। मन्त्रिगण उसे कुलक्रम से प्राप्त घर के उद्यान में स्थित कल्पवृक्ष की साधना करने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह वृक्ष समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला है। बहुत सोच-विचार करने के बाद युवराज जीमूतवाहन अपने पिता के पास जाता है और कहता है कि इस संसार में सब कुछ पानी की तरंगों के समान नष्ट होने वाला है।

केवल परोपकार ही अमर यश प्रदान करने वाला है। अत: मैं परोपकार करने के लिए कल्पवृक्ष की साधना करूँगा। पिता के ‘ऐसा ही करो’ आदेश देने पर वह कल्पवृक्ष के पास गया और वृक्ष से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। प्रार्थना सुनकर कल्पवृक्ष ने स्वर्ग में उड़कर वहाँ से पृथ्वी पर इतना धन बरसाया कि सबकी निर्धनता दूर हो गयी। इस प्रकार सभी प्राणियों पर दया करने वाले जीमूतवाहन का यश हर जगह फैल गया।
[मूलपाठः,शब्दार्याः,सप्रसंग हिन्दी अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत व्यारव्याः अवबोधन कार्यम् च]

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानोः उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।. स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्। सः जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्। कदाचित् हितैषिणः पितमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमतवाहनं उक्तवन्त:- “युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।

शब्दार्था: – अस्ति = वर्तते (है), हिमवान् = हिमालयः (हिमालय), नाम = अभिधानं (नामक), सर्वरत्नभूमिः = सर्वेषां रत्नानाम् उत्पत्तिस्थानम् (समस्त रत्नों का उत्पत्ति स्थान/खान), नगेन्द्रः = पर्वतराजः (पर्वतराज/पर्वतों का राजा), तस्य = अमुष्य (उसका/उसकी),सानोः = शिखरस्य (चोटी के/शिखर के), उपरि = ऊर्ध्वं (ऊपर), विभाति = शोभते (सुशोभित है), कञ्चनपुरं नाम नगरम् = कञ्चनपुरम् अभिधानं पुरम् (कञ्चनपुर नामक नगर), तत्र = तस्मिन् स्थाने (वहाँ), जीमूतकेतुः इति = जीमूतकेतुरिति (जीमूतकेतु नामक), श्रीमान् = श्रीयुतः (धनवान्),

विद्याधरपतिः = विद्याधराणां पतिः (विद्याधरों का स्वामी, विद्याधरपति), वसति स्म = वासम् अकरोत् (निवास करता था/रहता था), तस्य = अमुष्य (उसके), गृहोद्याने = गृहस्य उपवने (घर के बगीचे में), कुलक्रमागतः = कुलक्रमाद् आगतः (कुल परम्परा से प्राप्त), कल्पतरुः = कल्पवृक्षः (कल्पवृक्ष), स्थितः = विद्यमानः (स्थित था), स राजा जीमूतकेतुः = उस राजा जीमूतकेतु ने, तं कल्पतरुम् = तस्य कल्पवृक्षस्य (उस कल्पवृक्ष की), आराध्य = आराधनां कृत्वा (आराधना करके), तत्प्रसादात् = तस्य अनुग्रहेण (उसकी कृपा से), च = अपि (और), बोधिसत्वांशसम्भवम् = बोधिसत्वस्य अंशात् उत्पन्नम् (बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न), जीमूतवाहनं नाम = जीमूतवाहनं नामधेयं (जीमूतवाहन नाम का),

पुत्रम् = सुतं (पुत्र), प्राप्नोत् = अधिगतम् अकरोत् (प्राप्त किया), स महान् दानवीरः = स अत्यंतः दानशीलः (वह महान् दानवीर), सर्वभूतानुकम्पी च = सर्वेषु प्राणिषु दयावान् च (और सब प्राणियों पर दया करने वाला), अभवत् = अवर्तत (हुआ), तस्य गुणैः = अमुष्य श्रेष्ठ लक्षणैः (उसके गुणों से), प्रसन्नः = तुष्टः (प्रसन्न), स्वसचिवैः = स्वकीयैः अमात्यैः (अपने मंत्रियों से), च = और, प्रेरितः = प्रोत्साहितः (प्रेरित/प्रोत्साहित), राजा = नृपः (राजा ने), कालेन = समयेन (समय से), सम्प्राप्तयौवनम् = युवावस्थायां स्थितं (युवावस्था को प्राप्त), तम् = अमुम् (उसकी/उसको), यौवराज्ये = युवराजपदे (युवराज पद पर),

अभिषिक्तवान् = अभिषिक्तम् अकरोत् (अभिषेक कर दिया), कदाचित् = कस्मिंश्चित् काले (कभी, किसी समय), हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः = पितुः हितचिन्तकैः सचिवैः (पिता के कल्याण की कामना करने वाले मन्त्रियों ने), यौवराज्ये = युवराजपदे (युवराज के पद पर), स्थितंः = विद्यमानः (स्थित), तं जीमूतवाहनः = उस जीमूतवाहन से, उक्तवन्तः = अकथयन् (कहा), युवराज! = राजकुमार! (युवराज!), योऽयम् = यः अयम् (जो यह), सर्वकामदः = सर्वासां कामनानां प्रदाता (समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला), कल्पतरुः = कल्पवृक्षः (कल्पवृक्ष),

तवोद्याने = भवतः उपवने (आपके बगीचे में), तिष्ठति = वर्तते (है), स तव सदा पूज्यः = स भवता सर्वदा पूजनीयः (वह आपके द्वारा हमेशा पूजनीय है), अस्मिन् = एतस्मिन् (इसके), अनुकले स्थिते = अनुकूलस्थितौ वर्तमाने (अनुकूल स्थिति में रहने पर), शक्रोऽपि = इन्द्रोऽपि (इन्द्र भी), अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात् = नास्मान् बाधितुं शक्नोति (हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन के युवराज पद पर अभिषेक तथा कल्पवृक्ष के महत्त्व का वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनवाद – हिमालय नाम का समस्त रत्नों का उत्पत्तिस्थान पर्वतराज है। उसकी चोटी के ऊपर कंचनपर नामक नगर सुशोभित है। वहाँ जीमूतकेतु नामक अत्यन्त धनवान् विद्याधरपति रहता था। उसके घर के बगीचे में कुल परम्परा से प्राप्त कल्पवृक्ष स्थित था। उस राजा जीमूतकेतु ने उस कल्पवृक्ष की आराधना करके और उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र प्राप्त किया। वह महान् दानवीर और समस्त प्राणियों पर दया करने वाला हुआ। उसके गुणों से प्रसन्न और अपने मंत्रियों से प्रेरित राजा ने समय से युवावस्था को प्राप्त उसका युवराज पद पर अभिषेक कर दिया। युवराज पद पर स्थित उस जीमूतवाहन से पिता के कल्याण की कामना करने वाले मन्त्रियों ने किसी समय कहा-“हे युवराज ! जो यह समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष आपके बगीचे में है, वह आपके द्वारा हमेशा पूजनीय है। इसके अनुकूल स्थिति में रहने पर इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता।”

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं “वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रहात् संकलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘वेताल पञ्चविंशतिः’ कथा-ग्रन्थ से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशे नृपस्य जीमूतकेतोः पुत्रस्य जीमूतवाहनस्य युवराजपदे अभिषेक: कल्पवृक्षस्य महत्त्वं च वर्णितम् अस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश में राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवाहन के युवराज पद पर अभिषेक तथा कल्पवृक्ष का महत्व वर्णित

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

व्याख्या: – हिमालय इति अभिधानस्य सर्वेषां रत्लानां उत्पत्तिस्थानं पर्वतराजः अस्ति। अमुष्य शिखरस्य ऊर्ध्वं कञ्चनपुरम् अभिधानं पुरं शोभते। तस्मिन् स्थाने जीमूतकेतुः इति श्रीयुतः विद्याधरपतिः वासम् अकरोत्। अमुष्य गृहस्य उपवने कुलक्रमाद् आगतः कल्पवृक्षः विद्यमानः आसीत्। स राजा जीमूतकेतुः तस्य कल्पवृक्षस्य आराधनां कृत्वा तस्य अनुग्रहेण बोधिसत्वस्य अंशात् उत्पन्नं जीमूतवाहननामधेयं सुतम् अधिगतम् अकरोत्। स अत्यन्तं दानवीरः सर्वेषु प्राणिषु च दयावान् अवर्तत।

अमुष्य श्रेष्ठलक्षणैः तुष्टः स्वकीयैः अमात्यैः च प्रोत्साहितः नृपः युवावस्थायां स्थितम् अमुं युवराजपदे अभिषिक्तम् अकरोत्। युवराजपदे विद्यमानम् अमुं जीमूतवाहनं कस्मिंश्चित् काले हितचिन्तकाः पितृसचिवाः अकथयन्-“राजकुमार! यः एष . सर्वासां कामनानां प्रदाता कल्पवृक्षः भवतः उपवने वर्तते, स भवता सर्वदा पूजनीयः। एतस्मिन् अनुकूलस्थितौ वर्तमाने इन्द्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नोति।”

(हिमालय नामक सभी रत्नों की खान पर्वतों का राजा है। इसकी चोटी पर कंचनपुर नाम का नगर शोभा देता है। उस स्थान पर जीमूतकेतु लक्ष्मी व शोभा से युक्त, विद्याधरों का स्वामी निवास करता था। इसके घर के बाग में कुल क्रम से चला आया कल्पवृक्ष विद्यमान था। यह राजा जीमूतकेतु उस कल्पवृक्ष की आराधना करके उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया।

वह अत्यधिक दान करने वाला और सभी प्राणियों पर दया करने वाला था। इसके उत्तम लक्षणों से सन्तुष्ट और अपने मन्त्रियों द्वारा प्रोत्साहित राजा ने जबानी में रहते हुए ही इसको युवराज पद पर अभिषिक्त कर दिया। युवराज पद पर आसीन इस जीमूतवाहन से किसी समय हित सोचने वाले पिता के मन्त्रियों ने कल्पतरु: ₹59 कहा-“राजकुमार, यह जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष आपके बाग में है, वह आप द्वारा सदैव पूजा के योग्य है। इस अनुकूल स्थिति में रहते हुए इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुँचा सकता है।”)

अवबोधन कार्यम्

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) हिमवान् नगेन्द्रः किमुक्तः? (हिमवान् पर्वत क्या कहा गया है?)
(ख) जीमूतकेतुः कः आसीत् ? (जीमूत केतु कौन था?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य किं प्राप्नोत्? (जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके क्या प्राप्त किया?).
(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत् ? (जीमूतवाहन कैसा था?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रतिकूले’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(‘प्रतिकूले’ पद का विलोमपद गद्यांश से चुनकर लिखिये।)
(ख) ‘जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः’ उक्तवन्तः क्रियापदस्य कर्तृपदं गद्यांशात् लिखत।
(‘जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः’ ‘उक्तवन्तः’ क्रियापद का कर्त्ता गद्यांश से लिखिए।)
उत्तराणि :
(1) (क) सर्वरत्न भूमिः (सभी रत्नों की खान) ।
(ख) विद्याधरपतिः (विद्याधरों का स्वामी)।

(2) (क) जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्। (जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया।)
(ख) जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी चासीत् ? (जीमूतवाहन महान दानवीर तथा सभी प्राणियों पर कृपा करने वाला था।)

(3) (क) अनुकूले (अनुरूप) ।
(ख) हितैषिणः पितृमन्त्रिणः (हितैषी पिता के मन्त्री)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

2. एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत् – “अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्- “तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एकः परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभिः ईदृशः कल्पतरुः किमर्थं रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानीं कुत्र गताः? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमः . कल्पपादपम् आराधयामि।

शब्दार्थाः – एतत् आकर्ण्य = एतत् निशम्य (यह सुनकर), जीमूतवाहनः = (जीमूतवाहन), अचिन्तयत् = मनसि विचारम् अकरोत् (मन में विचार किया), अहो = अये (अरे), ईदृशम् अमरपादपम् = एतत्प्रकारम् अमरवृक्षं (इस प्रकार के अमर वृक्ष को), प्राप्यापि = प्राप्तं कृत्वा अपि. (प्राप्त करके भी), पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं = अस्माकं पूर्वजाः (हमारे पूर्वजों ने), तादृशम् = तस्य प्रकारस्य (उस प्रकार का), फलम् = फल, किमपि = किञ्चिदपि (कोई भी), ना प्राप्तम् = न आसादितम् (प्राप्त नहीं किया), किन्तु = परञ्च (किन्तु), केवलम् = मात्र (केवल), कैश्चिदेव= कुछ ही,

कृपणैः = कदर्यैः (कंजूसों द्वारा), कश्चिदपि = कतिचित अपि (कुछ भी), अर्थः = धनम् (धन), अथितः = याचितः (माँगा गया), तदहम् = तदानीं अहम् (तब मैं), अस्मात् = एतस्मात् (इस वृक्ष से), अभीष्टम् = अभिलषितं (इच्छा को), साधयामि = पूर्ण करिष्यामि (पूर्ण करूँगा), एवम् आलोच्य = अनया रीत्या विचार्य (इस प्रकार से विचार कर), सः = असौ (वह), पितुः अन्तिकम् = पितुः समीपम् (पिता के पास), आगच्छत् = प्रस्थितः (आया), आगत्य = आगम्य (आकर), च = और, सुखमासीनम् = सुखपूर्वकम् उपविष्टं (सुख से बैठे हुए), पितरम् = जनकं (पिता से),

एकान्ते = निर्जनस्थाने (एकान्त में), न्यवेदयत् = निवेदनम् अकरोत् (निवेदन किया), तात! = हे जनक! (पिताजी), त्वम् = (तुम), तु = (तो), जानासि = बोधयसि (जानते हो), एव = अवश्यं (ही), यदस्मिन् = एतस्मिन् (कि इस), संसारसागरे = समुद्रभूते संसारे (संसार सागर में), आशरीरम् = आजीवनम् (आजीवन), इदम् = एतत् (यह), सर्वम् = समस्तम् (समस्त), धनम् = अर्थः (धन), वीचिवत् = तरङ्गवत् (तरंग की तरह), चञ्चलम् = अस्थिरं भवति (अस्थिर रहता है), एकः परोपकार एव = केवलं. परहितम् एव (एक परोपकार ही), अस्मिन् संसारे = एतस्मिन् जगति (इस संसार में),

अनश्वरः = अविनाशी (नष्ट न होने वाला), योः = यत् (जो), युगान्तपर्यन्तम् = युगान्तं यावत् (युगों तक), यशः = कीर्तिम् (यश/कीर्ति को), प्रसूते = जनयति (उत्पन्न करता है), तत् = तदानी (तब), अस्माभिः ईदृशः = अस्माभिः एतत् प्रकारस्य (हमारे द्वारा इस प्रकार के), कल्पतरुः = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष की), किमर्थम् = केन कारणेन (क्यों), रक्ष्यते = रक्षा क्रियते (रक्षा की जाती है), यैश्च = यैः च (और जिन्होंने), पूर्वैरयम् = पुरा अस्य (पहले इसकी),

मम मम इति = मदीय-मदीय अनेन प्रकारेण (मेरा-मेरा इस प्रकार), आग्रहेण = तत्परतापूर्वकम् (तत्परतापूर्वक/आग्रहपूर्वक), रक्षितः = रक्षा कृता (रक्षा की थी), ते = अमी (वे), इदानीम् = अधुना (इस समय), कुत्र = कं स्थानं (कहाँ), गताः = प्रस्थिताः (गये), तेषां कस्यायम् = अमीषाम् कस्य एषः (उनमें से यह किसका है), अस्य = एतस्य (इसके), वा = किंवा (अथवा), के ते = के अमी (वे कौन हैं), तस्मात् = अमुष्मात् कारणात् (इस कारण से), परोपकारैकफलसिद्धये = एकमात्र परहितस्य फल-प्राप्त्यर्थं (मात्र परोपकार के फल की प्राप्ति के लिए), त्वदाज्ञया = भवतः स्वीकृत्या (आपकी आज्ञा से), इमम् = अस्य (इस), कल्पपादपम् = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष की), आराधयामि = आराधनां करिष्यामि (आराधना करूँगा)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’… ‘कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष से धन-प्राप्ति की कामना न करके परोपकार की कामना की गयी है एवं परोपकार की महिमा का यहाँ वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद – यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया -“अरे आश्चर्य की बात है! इस प्रकार के अमर वृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने उस प्रकार का कोई भी फल प्राप्त नहीं किया किन्तु केवल किन्हीं कंजूसों द्वारा कुछ धन ही माँगा गया। तब मैं इस (वृक्ष) से मन की इच्छा को पूरी करूँगा।” इस प्रकार विचारकर वह पिता के पास आया और आकर सुख से बैठे हुए पिता से (उसने) एकान्त में निवेदन किया-“पिताजी ! आप तो जानते ही हैं कि इस संसार सागर में आजीवन यह समस्त धन तरंग की तरह अस्थिर रहता है। एक परोपकार ही इस संसार में अनश्वर (नष्ट न होने वाला) है जो युगों तक यश (कीर्ति) उत्पन्न करता रहता है। तब हम इस प्रकार के कल्पवृक्ष की क्यों रक्षा करते हैं और जिन्होंने पहले इसकी ‘मेरा-मेरा’ इस प्रकार आग्रहपूर्वक रक्षा की थी, वे इस समय कहाँ गये? उनमें से यह किसका है अथवा वे इसके कौन हैं ? इस (कारण) से एकमात्र परोपकार के फल की प्राप्ति के लिए आपकी आज्ञा से इस कल्पवृक्ष की आराधना करूँगा।

संस्कत-व्याख्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतः अस्ति। पाठोऽयं वेतालपञ्चविंशतिः कथा-संग्रहात् संकलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रह से संकलित है।) . प्रसङ्गः-प्रस्तुतगद्यांशे जीमूतवाहनेन कल्पवृक्षात् धनप्राप्तेः कामनां न कृत्वा परोपकारस्य कामना क्रियते परोपकारस्य महिमा च अत्र वर्णितः। (प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष से धन-प्राप्ति की कामना न करके परोपकार की कामना की गयी है और परोपकार का यहाँ महत्व वर्णित है।)

व्याख्या: – एतत् निशम्य जीमूतवाहनः मनसि विचारम् अकरोत्-अये! विस्मयः अस्ति, एतत् प्रकारम् अमरवृक्षं प्राप्तं कृत्वा अपि अस्माकं पूर्वजाः तस्य प्रकारस्य किञ्चिदपि फलं न प्राप्तम् अकुर्वन् । परञ्च मात्र कैश्चित् एव कदर्यैः कतिचित् केवलं धनं याचितम्। तदानीं अहम् एतस्मात् (वृक्षात्) मनसा अभिलषितं पूर्णं करिष्यामि। अनया रीत्या विचार्य असौ . जनकस्य समीपं प्रस्थितः। आगम्य च सुखपूर्वकम् उपविष्टं जनकं (सः) निर्जनस्थाने निवेदनम् अकरोत्-हे जनक ! त्वं तु बोधयसि एवं यत् समुद्रभूते एतस्मिन् संसारे आजीवनम् एतत् समस्तम् अर्थम् तरङ्गवत् अस्थिरं भवति। केवलं परहितम् एव एतस्मिन् जगति अविनाशी अस्ति यत् युगान्तं यावत् कीर्तिं जनयति। तदानीम् अस्माभिः एतद् प्रकारस्य कल्पवृक्षस्य केन . कारणेन रक्षा क्रियते। यैः च पुरा अस्य मदीय-मदीय अनेन प्रकारेण तत्परतापूर्वक रक्षा कृता, अमी अधुना कं स्थानं प्रस्थिताः।। अमीषां कस्य एषः एतस्य वा के अमी। अमुष्मात् कारणात् एकमात्र परहितस्य फलप्राप्त्यर्थं भवतः स्वीकृत्या अस्य । कल्पवृक्षस्य आराधनां करिष्यामि।

(यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया- अरे आश्चर्य है, इस प्रकार के कल्पवृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने इस प्रकार का कोई फल प्राप्त नहीं किया परन्तु मात्र कुछ लोगों (कंजूसों) द्वारा कुछ थोड़ा सा धन माँगा गया तो अब मैं इस वृक्ष से मन की अभिलाषाएँ पूरा करूँगा। इस प्रकार विचार कर वह पिताजी के पास गया और आकर सुखपूर्वक बैठे पिताजी से उसने एकान्त में निवेदन किया- ‘हे पिताजी! आप तो जानते हैं कि समुद्र की लहरों के समान इस संसार में यह जीवन, यह धन भी लहरों की तरह चलायमान होता है।

केवल परोपकार ही इस संसार में नाश न होने वाला है जो युग-युग तक कीर्ति पैदा करता है। तब हमारे द्वारा इस प्रकार के कल्पवृक्ष की किस कारण से रक्षा की जाती है? और जिन लोगों ने . पहले मेरा-मेरा इस प्रकार से तत्परतापूर्वक रक्षा की गई, अब किस स्थान पर पहुँच गये? उनमें से यह किसका है अथवा इसके कौन हैं? इस कारण से एकमात्र परोपकार फलप्राप्ति के लिए आपकी स्वीकृति से इस कल्पवृक्ष की आराधना करूँगा।)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) ‘अमरपादपम्’ अत्र कस्मै प्रयुक्तम्? (‘अमरपादपम्’ पद का प्रयोग किसके लिए किया है?)
(ख) जीमूतवाहनः कल्पतरोः किं साधयितुम् इच्छति? (जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से क्या,साधना चाहता है?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) मन्त्रिणां परामर्श श्रुत्वा जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत् ?
(मन्त्रियों की सलाह सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
(ख) अस्मिन् संसारे आशरीरं धनं कीदृशं स्मृतम्?
(इस संसार में शरीर-सहित यह धन कैसा कहा गया है?)

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘समीपम्’ इति पदस्य पर्यायवाचे पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘समीपम्’ पद का समानार्थी शब्द गद्यांश से चुनकर लिखिए।)
(ख) ‘नश्वरः’ इति पदस्य विलोमार्थकं पदं गद्यांशात् चित्वा लिखत्।
(‘नश्वरः’ पद का विलोमार्थक शब्द गद्यांश से चुनकर लिखिए।) ।
उत्तराणि-
(1) (क) कल्पतरुम् (कल्पवृक्ष को)।
(ख) अभीष्टम् (इच्छित को)।

(2) (क) अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्?
(अरे इस अमर पौधे को प्राप्त करके भी हमारे पुरखों ने ऐसा कोई फल प्राप्त नहीं किया?) ।
(ख) अस्मिन् संसारे आशरीरं धनं वीचिवत् चञ्चलम्।
(इस संसार में शरीर सहित धन लहरों की तरह चञ्चल होता है।)

(3) (क) अन्तिकम् (समीप)।
(ख) अनश्वरः (जिसका नाश न हो)।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

3. अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच – “देव! त्वया अस्मत्यूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैक कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव” इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्।
क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

शब्दार्था: – अथ = तदनन्तरम् (इसके पश्चात्), पित्रा = जनकेन (पिता से), तथा इति = यथा इच्छसि इति (वैसी), अभ्यनुज्ञातः = अनुमतः (अनुमति पाया हुआ), स जीमूतवाहनः = असौ जीमूतवाहनः (वह जीमूतवाहन), कल्पतरुम् = कल्पवृक्षस्य (कल्पवृक्ष के), उपगम्य = समीपं गत्वा (पास जाकर), उवाच = अवदत् (बोला), देव! = भो देव! (हे देव!), त्वया = भवता (आपके द्वारा), अस्मत् पूर्वेषाम् = अस्माकं पूर्वजानां (हमारे पूर्वजों की), अभीष्टाः = वाञ्छिताः (इच्छित), कामाः = कामनाः (कामनाएँ), पूरिताः = पूर्णाः कृताः (पूर्ण की गई हैं), तत् = तदानीम् (तब), मम = मदीय (मेरी),

एकम् = एक, कामम् = कामनाम् (कामना), पूरय = पूर्णं कुरु (पूर्ण कीजिए), यथा = येन प्रकारेण (जिस प्रकार से), पृथ्वीम् = भूमिं (पृथ्वी को), अदरिद्राम् = दरिद्रहीनाम् (दरिद्रता से रहित), पश्यामि = ईक्षे (देखू), तथा = तद्वत् एव (वैसा ही), करोतु = कीजिए, देव! = भो देव! (हे देव!), एवंवादिनि = यावदेव एवम् अवदत् (इस प्रकार कहने पर), जीमूतवाहने = जीमूतवाहनेन (जीमूतवाहन के द्वारा), त्यक्तस्त्वया = युष्माभिः त्यक्तः (तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ), एषोऽहं = एषः अहं (यह मैं), यातोऽस्मि = गच्छामि (जाता हूँ), इति वाक = एवंविधा वाणी (इस प्रकार की वाणी),

तस्मात् = उस, तरोरुद्भूत् = वृक्षात् उत्पन्ना अभवत् (वृक्ष से उत्पन्न हुई), क्षणेन = क्षणमात्रे (क्षणभर में), स कल्पतरुः = असौ कल्पवृक्षः (उस कल्पवृक्ष ने), दिवम् = स्वर्गम् (स्वर्ग को), समुत्पत्य = उड्डीय (उड़कर), भुवि = पृथिव्यां (पृथ्वी पर), तथा = तेन प्रकारेण (उस प्रकार से), वसूनि = धनस्य (धन की), अवर्षत् = वृष्टिम् अकरोत् (वर्षा की), यथा = येन (जिससे), न = मा (नहीं), कोऽपि = कश्चन (कोई भी), दुर्गतः = दुर्गतिम् आपन्नः (पीड़ित/निर्धन), आसीत् = अभवत् (रहा था), ततः = तदनन्तरं (इसके पश्चात्), तस्य जीमूतवाहनस्य = अमुष्य जीमूतवाहनस्य (उस जीमूतवाहन का), सर्वः = समनः (समस्त), जीवानुकम्पया = जीवेषु कृपया (जीवों पर दया करने से), सर्वत्र = समस्तस्थानेषु (सब जगह), यशः = कीर्तिः (यश/कीर्ति), प्रथितम् = प्रसिद्धा अभवत् (प्रसिद्ध हो गयी।)

हिन्दी अनुवादः

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से सम्पूर्ण भूमि के जीवों को सुखी करने के लिए प्रार्थना करता है।

हिन्दी-अनुवाद – इसके पश्चात् पिता से वैसी अनुमति प्राप्त किया हुआ वह जीमूतवाहन कल्पवृक्ष के पास जाकर बोला-“देव ! आपके द्वारा हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएँ पूर्ण की गयी हैं, तब मेरी (भी) एक कामना पूर्ण कीजिये। जिस प्रकार से पृथ्वी को दरिद्रता से रहित देखू, देव! वैसा ही कीजिए।” जीमूतवाहन के ऐसा कहने पर “तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ” इस प्रकार की वाणी उस वृक्ष से उत्पन्न हुई। और क्षणभर में उस कल्पवृक्ष ने स्वर्ग को उड़कर पृथ्वी पर उस प्रकार से धन की वर्षा की, जिससे कोई भी पीड़ित/ निर्धन नहीं (रहा) था। इसके पश्चात् उस जीमूतवाहन का समस्त जीवों पर दया करने से सर्वत्र (सब जगह) कीर्ति (यश) प्रसिद्ध हो गयी।

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

संस्कत-व्यारव्याः

सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य शेमुष्याः ‘कल्पतरुः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ कथा-संग्रहात् सङ्कलितो वर्तते। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘कल्पतरुः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा-संग्रह से संकलित है।)

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशे जीमूतवाहनः कल्पवृक्षं समस्तपृथिव्याः जीवान् सुखीकरणाय प्रार्थयति। (प्रस्तुत गद्यांश में जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से सम्पूर्ण भूमि के जीवों को सुखी करने के लिए प्रार्थना करता है।)

व्याख्या – तदनन्तरम् जनकेन यथा इच्छसि इति अनुमतः असौ जीमूतवाहनः कल्पवृक्षस्य समीपं गत्वा अवदत्-“भो देव! भवता अस्माकं पूर्वजानां वाञ्छिताः कामनाः पूर्णाः कृताः, इदानीं मदीय एकां कामना पूर्णां कुरु। येन प्रकारेण भूमि दरिद्रहीनाम् ईक्षे, भो देव! एवं कुरु।” यावदेव जीमूतवाहनः एवम् अवदत् तावदेव तस्मात् वृक्षात् एवं वाणी उत्पन्ना अभवत् यत् त्वया त्यक्तः एषः अहं गच्छामि। क्षणमात्रे च असौ कल्पवृक्षः स्वर्गम् उड्डीय पृथिव्यां तेन प्रकारेण धनस्य वृष्टिम् अकरोत् येन मा कश्चन दुर्गतिम् आपन्नः अभवत्। तदनन्तरम् अमुष्य जीमूतवाहनस्य समग्रजीवेषु कृपया समस्तस्थानेषु कीर्तिः प्रसिद्धा अभवत्।

(इसके पश्चात् पिताजी ने- ‘जैसा तुम चाहते हो” इस प्रकार आज्ञा प्राप्त किया हुआ वह जीमूवाहन कल्पवृक्ष के समीप गया और बोला- हे देव! आपके द्वारा हमारे पूर्वजों की इच्छित कामनाएँ पूरी की गईं, अब मेरी एक कामना पूरी करो। जिस प्रकार से पृथ्वी गरीबी रहित देखू, हे देव! ऐसा करो।’ जैसे ही जीमूतवाहन ने ऐसा बोला वैसे ही उस वृक्ष से वाणी (आवाज) आई कि तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ यह मैं जाता हूँ। क्षण मात्र में ही वह कल्पवृक्ष स्वर्ग को उड़कर पृथ्वी पर इस प्रकार से धन की वर्षा की जिससे कोई भी पीड़ित और निर्धन न रहे। उसके पश्चात् इस जीमूतवाहन की सभी प्राणियों पर दया के कारण कीर्ति प्रसिद्ध हो गई।)

अवबोधन कार्यम् –

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्पतरुः भुवि किम् अवर्षत् ? (कल्पवृक्ष ने धरती पर किसकी वर्षा की?)
(ख) जीमूतवाहनस्य केन कारणेम यशप्रथितम्? (जीमूतवाहन का यश किस कारण से फैला?)

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कल्पतरो: का वाक उदभत? (कल्पवक्ष से क्या वाणी निकली?)
(ख) किं फलस्य सिद्धये जीमूतवाहन पित्रोः आज्ञामयाचत् ?
(किस फल की सिद्धि के लिए जीमूतवाहन ने पिता से आज्ञा माँगी?)

JAC Class 9 Sanskrit Solutions Chapter 4 कल्पतरुः

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत – (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘पृथिव्याम्’ इति पदस्यस्थाने गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘पृथिव्याम्’ पद के लिए गद्यांश में किम् पद का प्रयोग हुआ है?)
(ख) ‘अभीष्टाः कामाः’ एतयो पदयोः किं विशेष्यपदम् ?
(‘अभीष्टाः कामाः’ इन पदों में विशेषण कौनसा है?)
उत्तराणि :
(1) (क) वसूनि (धन)।
(ख) सर्वजीवानुकम्पया (सभी जीवों पर दया करने के कारण)।

(2) (क) त्यक्तः त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि। (तुम्हारे द्वारा त्यागा हुआ, यह मैं जा रहा हूँ।)
(ख) परोपकारैकफलसिद्धये जीमूतवाहन पित्रोः आज्ञामयाचत्। (एकमात्र परोपकार फल सिद्धि हेतु जीमूतवाहन ने पिता से आज्ञा माँगी।)

(3) (क) भुवि (धरती पर)।
(ख) कामाः (कामनाएँ)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद् Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

JAC Class 10th Sanskrit प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद् Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिये)
(क) कः चन्दन दासं दृष्टुम् इच्छति?
(चन्दनदास से कौन मिलना चाहता है?)
उत्तरम् :
चाणक्यः।

(ख) चन्दनदासस्य वणिज्या कीदृशी आसीत्?
(चन्दनदास का व्यापार कैसा था?)
उत्तरम् :
अखण्डिता (बाधा रहित)।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

(ग) किं दोषम् उत्पादयति?
(क्या दोष पैदा करता है?)
उत्तरम् :
गृहजन प्रच्छादनम्। (घरवालों को छुपाना)।

(घ) चाणक्य के द्रष्टुम् इच्छति?
(चाणक्य किससे मिलना चाहता है?)
उत्तरम् :
चन्दनदासम् (चन्दन दास का)।

(ङ) कः शङ्कनीयः भवति ?
(कौन शंका के योग्य होता है?)
उत्तरम् :
अत्यादरः (अधिक आदर)।

प्रश्न 2.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) चन्दनदासः कस्य गहजनं स्वगृहे रक्षति स्म ?
(चन्दनदास किसके परिवारवालों को अपने घर में रखता था ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासः अमात्यराक्षसस्य गृहजनं स्वगृहे रक्षति स्म।
(चन्दनदास अमात्य राक्षस के परिवार के लोगों को अपने घर में रखता था।)

(ख) तृणानां केन सह विरोधः अस्ति ?
(तिनको का किसके साथ विरोध है ?)
उत्तरम् :
तृणानाम् अग्निना सह विरोधः अस्ति।
(तिनकों का अग्नि के साथ विरोध है।)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

(ग) पाठेऽस्मिन् चन्दनदासस्य तुलना केन सह कृता ?
(इस पाठ में चन्दनदास की तुलना किसके साथ की गई है?)
उत्तरम् :
पाठेऽस्मिन् चन्दनदासस्य तुलना शिविना सह कृता।
(इस पाठ में चन्दनदास की तुलना शिवि के साथ की गई है।)

(घ) प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियं के इच्छन्ति ?
(कौन (लोग) प्रसन्नस्वभाव वालों से उपकार का बदला चाहते हैं ?)
उत्तरम् :
प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियं राजानः इच्छन्ति। (राजा (लोग) प्रसन्न स्वभाव वालों से उपकार का बदला चाहते

(ङ) कस्य प्रसादेन चन्दनदासस्य वणिज्या अखण्डिता ? (किसकी कृपा से चन्दनदास का व्यापार निर्बाध था ?)
उत्तरम् :
आर्यचाणक्यस्य प्रसादेन चन्दनदासस्य वणिज्या अखण्डिता।
(आर्य चाणक्य की कृपा से चन्दनदास का व्यापार निर्बाध था।)

प्रश्न 3.
स्थूलाक्षरपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(मोटे छपे शब्दों के आधार पर प्रश्न-निर्माण कीजिए)
(क) शिविना विना इदं दुष्करं कार्यं कः कुर्यात्
(शिवि के बिना यह दुष्कर कर्म कौन करे।)
उत्तरम् : केन विना इदं दुष्करं कार्य कः कुर्यात् ?
(किसके बिना यह दुष्कर कर्म कौन करे ?)

(ख) प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृत्।
(प्राणों से भी प्यारा मित्र (होता है)।)
उत्तरम् :
प्राणेभ्योऽपि प्रियः कः ?
(प्राणों से भी प्यारा कौन है?)

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

(ग) आर्यस्य प्रसादेनं मे वणिज्या अखण्डिता।
(आर्य की कृपा से मेरा व्यापार निर्बाध है।)
उत्तरम् :
कस्य प्रसादेन मे वणिज्या अखण्डिता।
(किसकी कृपा से मेरा व्यापार निर्बाध है ?)

(घ) प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः राजानः प्रतिप्रियमिच्छन्ति।
(प्रसन्नस्वभाव वालों से राजा लोग प्रत्युपकार का बदला चाहते
उत्तरम् :
प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः के प्रतिप्रियमिच्छन्ति ?
(प्रसन्न स्वभाव वालों से कौन प्रत्युपकार का बदला चाहते हैं ?)

(ङ) तणानाम् अग्निना सह विरोधो भवति।
(तिनकों का आग के साथ विरोध होता है।)
उत्तरम् :
केषाम् अग्निना सह विरोधो भवति ?
(किनका अग्नि के साथ विरोध होता है ?)

प्रश्न 4.
यथानिर्देशमुत्तरत् –
(क) ‘अखण्डिता मे वणिज्या’- अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्?
(ख) पूर्वम् ‘अनृतम्’ इदानीम् आसीत् इति परस्परविरुद्ध वचने – अस्मात् वाक्यात् ‘अधुना’ इति पदस्य समानार्थकपदं चित्वा लिखत।
(ग) ‘आर्य! किं मे भयं दर्शयसि’ अत्र ‘आर्य’ इति सम्बोधनपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(घ) ‘प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति राजानः’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
(ङ). तस्मिन् समये आसीदस्मद्गृहे’ अस्मिन् वाक्ये विशेष्यपदं किम्?
उत्तरम् :
(क) अखण्डिता
(ख) इदानीम्
(ग) चाणक्याय
(घ) राजानः
(ङ) गृहे।

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प्रश्न 5. निर्देशानुसारम् सन्धि/सन्धिविच्छेदं कुरुत –
(निर्देश के अनुसार सन्धि/सन्धि-विच्छेद कीजिए)
(क) यथा – कः + अपि = कोऽपि
प्राणेभ्यः + अपि = …………
………. + अस्मि = सज्जोऽस्मि
आत्मनः + ………. = आत्मनोऽधिकारसदृशम्।
उत्तरम् :
प्राणेभ्यः + अपि = प्राणेभ्योऽपि
सज्जः + अस्मि = सज्जोऽस्मि
आत्मनः + अधिकारसदृशम् = आत्मनोऽधिकारसदृशम्।

(ख) यथा – सत् + चित् = सच्चित्।
शरत् + चन्द्रः = ……………..।
कदाचित् + च = ……………..।
उत्तरम् :
शरत् + चन्द्रः = शरच्चन्द्रः।
कदाचित् + च = कदाचिच्च।

प्रश्न 6.
कोष्ठकेषु दत्तयोः पदयोः शुद्धं विकल्पं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(कोष्ठकों में दिए हुए दो पदों में से शुद्ध विकल्प चुनकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
(क) …………… विना इदं दुष्करं कः कुर्यात् ? (चन्दनदासस्य/चन्दनदासेन)
उत्तरम् :
चन्दनदासेन

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(ख) …………… इदं वृत्तान्तं निवेदयामि। (गुरवे/गुरोः)
उत्तरम् :
गुरवे

(ग) आर्यस्य ……….. अखण्डिता मे वणिज्या। (प्रसादात्/प्रसादेन)
उत्तरम् :
प्रसादेन

(घ) अलम् ……………। (कलहेन/कलहात्)
उत्तरम् :
कलहेन।

(ङ) वीरः …………… बालं रक्षति। (सिंहेन/सिंहात्)
उत्तरम् :
सिंहात्।

(च) ………. भीतः मम भ्राता सोपानात् अपतत्।। (कुक्कुरेण/कुक्कुरात्)
उत्तरम् :
कुक्कुरात्।

(छ) छात्रः …………… प्रश्नं पृच्छति। (आचार्यम्/आचार्येण)
उत्तरम् :
आचार्यम्।

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प्रश्न 7.
अधोदत्तमञ्जूषातः समुचितपदानि गृहीत्वा विलोमपदानि लिखत –
(नीचे दिए गए मञ्जूषा (बॉक्स) से उचित पद लेकर विलोम पद लिखिए)
[असत्यम्, पश्चात्, गुणः, आदरः, तदानीम्, तत्र पदानि]
(क) अनादरः ………..
(ख) गुणः ………..
(ग) पश्चात् ………..
(घ) असत्यम् ………..
(ङ) तदानीम् ………..
(च) तत्र ………..
उत्तराणि :
(क) आदरः
(ख) दोषः
(ग) पूर्वम्
(घ) सत्यम्
(ङ) इदानीम्
(च) अत्र

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प्रश्न 8.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानि पदानि प्रयुज्य पञ्चवाक्यानि रचयत –
(उदाहरण के अनुसार निम्न पदों का प्रयोग करके पाँच वाक्य बनाइए-)
यथा – निष्क्रम्य – शिक्षिका पुस्तकालयात् निष्क्रम्य कक्षां प्रविशति।
पदानि –
(क) उपसृत्य ……………….
(ख) प्रविश्य ………………
(ग) द्रष्टुम् …………………
(घ) इदानीम् ……………..
(ङ) अत्र ………………
उत्तराणि :
(क) उपसत्य स आह, एषः श्रेष्ठी चन्दनदासः।
(ख) वने प्रविश्य रामः पर्णकुटीम् अरचयत्।
(ग) अहं त्वां द्रष्टुम् इच्छामि।
(घ) इदानीं भवान् कुत्र गच्छति ?
(ङ) अत्र मम विद्यालयः स्थितः।

JAC Class 10th Sanskrit प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद् Important Questions and Answers

शब्दार्थ चयनम् –

अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
वत्स ! मणिकारश्रेष्ठिनं चन्दनदासमिदानीं द्रष्टुमिच्छामि।
(अ) रत्नकार
(ब) तथेति
(स) श्रेष्ठिन्
(द) परिक्रामतः
उत्तरम् :
(अ) रत्नकार

प्रश्न 2.
उपाध्याय ! अयं श्रेष्ठी चन्दनदासः।
(अ) स्वागतं ते
(ब) गुरुदेव
(स) आत्मगतम्
(द) वणिज्या
उत्तरम् :
(ब) गुरुदेव

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प्रश्न 3.
नन्दस्यैव अर्थसम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति।
(अ) नन्दराज्यम्
(ब) नन्दस्यैव
(स) धनस्य सम्बधः
(द) उत्पादयति
उत्तरम् :
(स) धनस्य सम्बधः

प्रश्न 4.
पुनरधन्यो राज्ञो विरुद्ध इति आर्येणावगम्यते ?
(अ) श्रेष्ठिन्!
(ब) आज्ञापयतु
(स) प्रथमम्
(द) नृपस्य
उत्तरम् :
(द) नृपस्य

प्रश्न 5.
अयमीदृशो विरोधः यत् त्वमद्यापि-
(अ) मतभेदः
(ब) राजापथ्यकारिणः
(स) स्वगृहे
(द) निवेदितम्
उत्तरम् :
(अ) मतभेदः

प्रश्न 6.
गृहेषु गृहजनं निक्षिप्य देशान्तरं व्रजन्ति।
(अ) इच्छतामपि
(ब) स्थापयित्वा
(स) दोषमुत्पादयति।
(द) परस्परं
उत्तरम् :
(ब) स्थापयित्वा

प्रश्न 7.
भो श्रेष्ठिन् ! शिरसि भयम्, अतिदूरं तत्प्रतिकारः।
(अ) इदानीम्
(ब) कथम् न
(स) मस्तके
(द) तंदुलः
उत्तरम् :
(स) मस्तके

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प्रश्न 8.
चन्दनदास ! एष एव ते निश्चयः ?
(अ),समर्पयामि
(ब) अयम्
(स) त्वम्
(द) तव
उत्तरम् :
(द) तव

प्रश्न 9.
क इदं दुष्करं कुर्यादिदानीं शिविना विना –
(अ) कठिन।
(ब) स्वगतम्
(स) साधुः
(द) अतिदूरम्
उत्तरम् :
(अ) कठिन।

प्रश्न 10.
ननु भवता प्रष्टव्याः स्मः –
(अ) निश्चितमेव
(ब) राज्ञो विरुद्धः
(स) प्रथमम्
(घ) पिधाय
उत्तरम् :
(अ) निश्चितमेव

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 1.
चाणकस्य कृपया कस्य वणिज्या अखण्डिता ?
(चाणक्य की कृपा से किसका व्यापार बाधारहित था ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासस्य (चन्दनदास का)।

प्रश्न 2.
कः सम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति ?
(कौनसा सम्बन्ध प्रेम पैदा करता है ?)
उत्तरम् :
अर्थसम्बन्धः (धन का संबंध)।

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प्रश्न 3.
कुत्र अविरुद्धवृत्तिः ?
(कहाँ विरोध रहित स्वभाव वाले बनो ?)
उत्तरम् :
राजनि (राजा के प्रति)।

प्रश्न 4.
केन चन्दनदासो राज्ञो विरुद्ध इति अवगम्यते ?
(कौन ‘चन्दनदास राजा के विरुद्ध है’ यह जानता है? )
उत्तरम् :
चाणक्यः (चाणक्य)।

प्रश्न 5.
अमात्यराक्षसस्य गृहजनः का क्या गृहे असीत ?
(अमात्य राक्षस के घरवाले किसके घर में थे ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासस्य (चन्दनदास के)।

प्रश्न 6.
चन्दनदासानुसारम् अलीकम चायनसाय क्रेन निवेदितम् ?
(चन्दनदास के अनुसार चाणवले मिथ्या किसने कहा ?)
उत्तरम् :
केनाप्यनार्येण (किलो दुष्ट थे)।

प्रश्न 7.
चन्दनदासस्य दुष्कर कार्य किमामील ?
(चन्दनदास का दुष्कर कार्य क्या था ?)
उत्तरम् :
निश्चयः (निश्चय)।

प्रश्न 8.
‘क इदं दुष्करं कुर्यादिदानीं शिविना विना’ अत्र किं क्रियापदम् ?
(‘क इदं दुष्करं कुर्यादिदानी शिविना विना’ यहाँ क्रियापद क्या है ?)
उत्तरम् :
कुर्यात् (करे)।

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प्रश्न 9.
मणिकारश्रेष्ठिनं कः द्रष्टुम् इच्छति ?
(जौहरी सेठ से कौन मिलना चाहता है ?)
उत्तरम् :
चाणक्यः (चाणक्य)।

प्रश्न 10.
चाणक्यः कं द्रष्टुम् इच्छति ?
(चाणक्य किससे मिलना चाहता है ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासम् (चन्दनदास से)।

प्रश्न 11.
चाणक्यानुसारं चन्दनदासः राजानं प्रति कीदृशः भवितव्य ?
(चाणक्य के अनुसार चन्दनदास राजा के प्रति कैसा हो?)
उत्तरम् :
अविरुद्धवृत्तिर्भव (विरोध रहित स्वभाव वाले।)

प्रश्न 12.
कस्तावत् प्रथमम् ? (कौन प्रमुख है?)
उत्तरम् :
भवान् (आप, चन्दनदास)।

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प्रश्न 13.
के भीताः देशान्तरं व्रजन्ति ?
(डरे हुए कौन परदेश जाते हैं ?)
उत्तरम् :
राजपुरुषाः (राजपुरुष)।

प्रश्न 14.
चाणक्यानुसारं चन्दनदासस्य वचने कीदृशे आस्ताम् ?
(चाणक्य के अनुसार चन्दनदास के दोनों वचन कैसे थे ?)
उत्तरम् :
परस्परविरुद्धे (दोनों परस्पर विरुद्ध)।

प्रश्न 15.
चन्दनदासः कस्य गृहजनं न समर्पयति ?
(चन्दनदास किसके परिवारीजनों को नहीं सौंपता है?)
उत्तरम् :
राक्षसस्य (राक्षस के)।

प्रश्न 16.
अस्मिन् नाट्यांशे चन्दनदासस्य तुलना केन सह कृता ?
(इस नाट्यांश में चन्दनदास कीतुलना किसके साथ की गई है ?)
उत्तरम् :
शिविना (शिवि से)।

पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)

प्रश्न 17.
चन्दनदासः काम् आज्ञाम् इच्छति ?
(चन्दनदास क्या आज्ञा चाहता है ?)
उत्तरम् :
चन्दनदास: ‘किं कियत् च अस्मज्जनादिश्यते’ इति आज्ञाम् इच्छति।
(चन्दनदास ने ‘क्या और कितना हम लोगों को आदेश दिया जाता है’ ऐसी आज्ञा चाहता है।)

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प्रश्न 18.
चन्दनदासेन चाणक्यः किं प्रष्टव्यः ?
(चन्दनदास से चाणक्य क्या पूछता है?)
उत्तरम् :
यो श्रेष्ठिन ! स चापरिक्लेशः कथमाविर्भवति ?
(सेठजी, वह सुख किस प्रकार प्राप्त होता है ?)

प्रश्न 19.
चन्दनदासः कर्णौ पिधाय किम् अवदत्?
(चन्दनदास कानों को ढंककर क्या बोला ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासः कर्णौ पिधाय अवदत्-शान्तं पापम्, शान्तं पापम्। कीदृशस्तृणानामाग्निना सह विरोधः?
(कानों पर हाथ रखकर चन्दनदास ने कहा- पाप शान्त हो, पाप शांत हो तिनकों के साथ आग का कैसा विरोध ?)

प्रश्न 20.
अमात्यराक्षसस्य गृहजनविषये चन्दनदासः कथं स्वीकरोति ?
(अमात्य राक्षस के घरवालों के विषय में चन्दनदास कैसे स्वीकार करता है ?)
उत्तरम् :
‘तस्मिन् समये तु अमात्यराक्षसस्य गृहजनः मम गृहे आसीत्’ इदानीं क्व गतः, न जानामि।
(उस समय तो अमात्य राक्षस के घरवाले मेरे घर में थे, अब कहाँ गये, नहीं जानता हूँ।)

प्रश्न 21.
चन्दनदासः कोऽस्ति ?
(चन्दनदास कौन है ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासः मणिकारः श्रेष्ठी अस्ति।
(चन्दनदास जौहरी सेठ है।)

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प्रश्न 22.
अविरुद्धवत्तिः कस्मिन भवेत ?
(किसके प्रति अनकल व्यवहार करने वाला होना चाहिए ?)
उत्तरम् :
राजनि अविरुद्धवृत्तिर्भवेत्।
(राजा के प्रति अनुकूल व्यवहार करने वाला होना चाहिए।)

प्रश्न 23.
भीताः पूर्वराजपुरुषाः किं कुर्वन्ति ?
(डरे हुए पूर्व राजपुरुष क्या करते हैं?)
उत्तरम् :
भीताः पूर्वराजपुरुषाः पौराणामिच्छतामपि गृहेषु गृहजनं निक्षिप्य देशान्तरं व्रजन्ति।
(डरे हुए पूर्व राजपुरुष नगरवासियों के चाहने पर भी उनके घरों पर स्वजनों को रखकर परदेश चले जाते हैं।)

प्रश्न 24.
“किं मे भयं दर्शयसि” इति कः कं प्रति कथयति?
(…. कौन किसके प्रति कहता है ?)
उत्तरम् :
चन्दनदासः चाणक्यं प्रति कथयति।
(चन्दनदास चाणक्य के प्रति कहता है।)

अन्वय-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा पूरयत।
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति मंजूषा से उचित पद चुनकर कीजिए।)
सुलभेष्वर्थलाभेषु ……………. …………………. शिविना विना।।

मञ्जूषा – सुलभेषु, संवेदने, शिविना, कः।

परस्य (i)……… अर्थलाभेषु (ii)……… इदं दुष्करं कर्म जने (लोके) (iii)……… विना (iv)……… कुर्यात्।
उत्तरम् :
(i) संवेदने (ii) सुलभेषु (iii) शिविनाः (iv) कः।

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प्रश्ननिर्माणम् –

अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. चाणक्यः मणिकारश्रेष्ठिनं चन्दनदासं द्रष्टुमिच्छति।
(चाणक्य रत्नकार चन्दनदास को देखना चाहता है।)
2. शिष्यः चन्दनदासेन सह प्रविशति।
(शिष्य चन्दनदास के साथ प्रवेश करता है।)
3. आर्यस्य प्रसादेन अखण्डिता मे वणिज्या।
(आर्य की कृपा से मेरा व्यापार निर्विघ्न है।)
4. राजानः प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति।
(राजा लोग प्रसन्न प्रकृति वाले का प्रत्युपकार करते हैं।)
5. नन्दस्य अर्थसम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति।
(नन्द का अर्थ सम्बन्ध प्रीति पैदा करता है।)
6. राजनि अविरुद्धवृत्तिर्भवेत्।
(राजा में विरोधी प्रवृत्ति वाला नहीं होना चाहिए।)
7. भीताः पूर्वराजपुरुषाः गृहजनं निक्षिप्य देशान्तरं व्रजन्ति।
(डरे हुए पूर्व राजपुरुष घरवालों (स्वजनों) को रखकर परदेश चले जाते हैं।)
8. अग्निना सह तृणानां विरोधः।
(अग्नि के साथ तिनकों (घास) का विरोध है।)
9. प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहत्।
(प्राणों से भी प्रिय स्वजन होता है।)
(माध्यमिक परीक्षा, 2013)
10. अत्यादरः शङ्कनीयः।
(अधिक आदर शंका करने योग्य होता है।)
उत्तराणि :
1. चाणक्यः कं द्रष्टुम् इच्छति ?
2. शिष्यः केन सह प्रविशति ?
3. कस्य प्रसादेन अखण्डिता मे वणिज्या ?
4. राजानः काभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति ?
5. कस्य अर्थसम्बन्धः प्रीतिम् उत्पादयति ?
6. कस्मिन् अविरुद्धवृत्तिर्भवेत् ?
7. के गृहजनं निक्षिप्य देशान्तरं व्रजन्ति ?
8. केन सह तृणानां विरोधः ?
9. कः प्राणेभ्योऽपि प्रियः ?
10. कः शङ्कनीयः ?

भावार्थ-लेखनम् –

अधोलिखित पद्यांश संस्कृते भावार्थं लिखत सुलभेष्वर्थलाभेषु ……………………………कुर्यादिदानीं शिविना विना।।

भावार्थ – अन्यस्य वस्तु समर्पिते कृते, धन प्राप्तेषु, सहजेषु सत्सु एतत् स्वार्थं त्यक्त्वा परस्य वस्तु रक्षणं-कर्त्तव्यम् लोके कठिनम्, शिविमन्तरेण कः सम्पादयेत्।।

अधोलिखितानां सूक्तीनां भावबोधनं सरलसंस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित सूक्तियों का भावबोध सरल संस्कृत भाषा में लिखिए-)

(i) अत्यादरः शङ्कनीयः।

भावार्थः – यः मनुष्यः अत्यधिकम् आदरं करोति, सः वञ्चनप्रयोजनेन करोति अतः अत्यधिक: आदरः शङ्कां जनयति। (जो मनुष्य अत्यधिक आदर करता है, वह छलने के प्रयोजन से करता है। अत: अधिक आदर शंका को पैदा करता है।)

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(ii) प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति राजानः।

भावार्थ: – प्रसन्नेभ्यः प्रजाजनेभ्यः नृपाः प्रतिकाररूपेण आत्मानं प्रति अपि प्रियम् एव इच्छन्ति।
(प्रसन्न प्रजाजनों से राजा लोग बदले में अपने लिए भी प्रिय ही चाहते हैं।)

(iii) राजनि अविरुद्धवृत्तिर्भव।

भावार्थ: – प्रजाजनैः सदैव राजानं प्रति अनुकूलवृत्तिः एव भवेत्।
(प्रजाजनों को सदैव राजा के प्रति अनुकूल व्यवहार वाला ही होना चाहिए।)

(iv) कः पुनरधन्यो राज्ञो विरुद्धः।

भावार्थ: – कोऽपि मनुष्यः नृपस्य प्रतिकूलं कार्यं न कुर्यात्। यः नृपस्य विरुद्धः भवति सः धन्यः न भवति। (किसी भी मनुष्य को राजा के प्रतिकूल कार्य नहीं करना चाहिए। जो राजा के विरुद्ध होता है वह धन्य नहीं होता।)

(v) कीदृशस्तृणानाम् अग्निना सह विरोधः।

भावार्थ: – अग्निः तु तृणान् ज्वालयति, यतः असौ सामर्थ्यवान् भवति अत: अग्निना सह तृणानां विरोधः कथं सम्भवति तथैव नृपैः सह अपि प्रजाजनानां वैरम् अपि असम्भवः। (आग तो घास को जलाती है। क्योंकि वह सामर्थ्यवान् होती है अतः आग के साथ तिनकों का विरोध कैसे सम्भव हो सकता है। उसी प्रकार राजाओं के साथ प्रजाजनों का वैर भी असम्भव है।)

प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – ‘काव्येषु नाटकं रम्यम्’ ऐसी उक्ति प्रसिद्ध है। संस्कृत साहित्य में नाटकों की एक लम्बी श्रृंखला है जिसमें विविध नाटकों की कड़ियाँ जुड़ी हुई हैं। इन्हीं नाटकों में कूटनीति एवं राजनीति से भरपूर एक प्रसिद्ध नाटक है ‘मुद्राराक्षसम्’। प्रस्तुत पाठ ‘प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्’ महाकवि विशाखदत्त रचित ‘मुद्राराक्षसम्’ के प्रथम अंक से सङ्कलित है। नन्दवंश का विनाश करने के बाद उसके हितैषियों को खोज-खोजकर पकड़वाने के क्रम में चाणक्य, अमात्य राक्षस एवं उसके परिजनों की जानकारी प्राप्त करने के लिए चन्दनदास से वार्तालाप करते हैं किन्तु चाणक्य को अमात्य राक्षस के विषय में कोई सुराग न देता हुआ चन्दनदास अपनी मित्रता पर दृढ़ रहता है।

उसके मैत्री भाव से प्रसन्न होते हुए भी चाणक्य जब उसे राजदण्ड का भय दिखाता है तब चन्दनदास राजदण्ड भोगने के लिए सहर्ष प्रस्तुत हो जाता है। इस प्रकार अपने मित्र के लिए प्राणों का भी उत्सर्ग करने के लिए तत्पर चन्दनदास अपनी सुहृद्-निष्ठा का एक ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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मूलपाठः,शब्दार्थाः, सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः

1.

  • चाणक्यः – वत्स ! मणिकारश्रेष्ठिनं चन्दनदासमिदानीं द्रष्टुमिच्छामि।
  • शिष्यः – तथेति (निष्क्रम्य चन्दनदासेन सह प्रविश्य) इतः इतः श्रेष्ठिन् (उभौ परिक्रामतः)
  • शिष्यः – (उपसृत्य) उपाध्याय ! अयं श्रेष्ठी चन्दनदासः।
  • चन्दनदासः – जयत्वार्यः
  • चाणक्यः – श्रेष्ठिन् ! स्वागतं ते। अपि प्रचीयन्ते संव्यवहाराणां वृद्धिलाभाः ?
  • चन्दनदासः – (आत्मगतम्) अत्यादरः शङ्कनीयः। (प्रकाशम्) अथ किम्। आर्यस्य प्रसादेन अखण्डिता मे वणिज्या।
  • चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन् ! प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति राजानः।
  • चन्दनदासः – आज्ञापयतु आर्यः, किं कियत् च अस्मज्जनादिष्यते इति।

शब्दार्थाः = वत्स ! = पुत्र ! (बेटा)। मणिकारश्रेष्ठिनम् = रत्नकारं वणिजम्, रत्नानां व्यवसायिनम् (रत्नों के व्यापारी)। चन्दनदासमिदानीम् = चन्दनदास इत्याख्यम् अधुना (चन्दनदास नामक को अब)। द्रष्टुमिच्छामि = परामृष्टुं वाञ्छामि (मिलना चाहता हूँ )। तथेति = तथैव भवतु (वैसा ही हो)। निष्क्रम्य = बहिर्गत्वा (बाहर निकलकर)। चन्दनदासेन सह प्रविष्य = चन्दनदासेन श्रेष्ठिना सार्धं प्रवेशं कृत्वा (चन्दनदास के साथ प्रवेश करके)। इतः इतः = अत्र एहि (इधर-इधर आएँ)।

श्रेष्ठिन् = हे धनिक ! (हे सेठ जी !)। उभौ = द्वावेव (दोनों)। परिक्रामतः = घूमते हैं। उपसृत्य = समीपं गत्वा (पास जाकर)। उपाध्याय ! = हे गुरुदेव ! (हे गुरु जी !)। अयम् = एषः (यह)। श्रेष्ठी = धनिकः (सेठ)। जयत्वार्यः = विजयतामार्यः (आर्य की जय हो)। स्वागतं ते = अभिनन्दन भवतः (आपका स्वागत है)। अपि = किम् (क्या)। प्रचीयन्ते = वृद्धिं प्राप्नुवन्ति (बढ़ रहे हैं)। संव्यवहाराणां = व्यापाराणाम् (व्यापारों का)। वृद्धिलाभाः = लाभ वृद्धयः (लाभांशों की वृद्धि)। आत्मगतम् = मनसि एव (मन ही मन)। अत्यादरः = अत्यधिक: सम्मानः (अत्यधिक आदर)।

शङ्कनीयः = सन्देहास्पदम् (शंका करने योग्य है)। प्रकाशम् = प्रकटम् (सबके समक्ष)। अथ किम् = आम् कथन्न (जी हाँ, क्यों नहीं)। आर्यस्य = श्रीमतः (आर्य की)। प्रसादेन = कृपया (कृपा से)। अखण्डिताः = निर्बाधः (बाधा रहित हैं)। मे = मम (मेरे)। वणिज्या = व्यवसायाः वाणिज्यम् (व्यापार)। भो श्रेष्ठिन्! = रे धनिक ! (अरे सेठ जी !)। प्रीताभ्यः = प्रसन्नाभ्यः (प्रसन्नजनों के प्रति)। प्रकृतिभ्यः = प्रजायैः (प्रजा के लिये)। प्रतिप्रियमिच्छन्ति = प्रत्युपकारम् वाञ्छन्ति (उपकार के बदले उपकार करना चाहते हैं)। राजानः = नृपाः (राजा लोग)। आज्ञापयतु आर्यः = श्रेष्ठजनः आज्ञां देहि, आदिशतु (आर्य आज्ञा दें, आदेश दें)। किं कियत् च = किं कियन्मानञ्च (क्या और कितना)। अस्मज्जनादिष्यते = अस्मभ्यम् आज्ञां दीयते (हमें आज्ञा दी जाती है)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी शेमुषी पाठ्य-पुस्तक के ‘प्राणेभ्योऽपि प्रियः सहृद’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महाकवि विशाखदत्त रचित ‘मुद्राराक्षसम्’ नाटक के पहले अंक से सङ्कलित है। इस नाट्यांश में चाणक्य मणिकार चन्दनदास से मिलना चाहता है परन्तु चन्दनदास इस अत्यादर में शङ्का करता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

हिन्दी-अनुवादः :

  • चाणक्य – बेटा (वत्स) ! अब मैं रत्नों के व्यापारी चन्दनदास से मिलना चाहता हूँ।
  • शिष्य – वैसा ही हो। (बाहर निकलकर और चन्दनदास के साथ प्रवेश करके) इधर, इधर (आइए) सेठ जी ! (दोनों घूमते हैं)।
  • शिष्य – (पास जाकर) गुरुदेव ! यह सेठ चन्दनदास है।
  • चन्दनदास – आर्य की जय हो।
  • चाणक्य – सेठ जी ! आपका स्वागत है। क्या व्यापार में आपकी लाभवृद्धियाँ बढ़ रही हैं ?
  • चन्दनदास – (मन ही मन) अत्यधिक आदर शंका करने योग्य होता है। (प्रकट में) जी हाँ, आर्य की कृपा से मेरे व्यापार बाधारहित हैं।
  • चाणक्य – अरे सेठ जी ! प्रसन्न स्वभाव से लोगों के लिए राजा प्रत्युपकार चाहते हैं।
  • चन्दनदास – आर्य आज्ञा दें, क्या और कितना हमारे लिए आदेश दिया जाता है।

2 चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन् ! चन्द्रगुप्तराज्यमिदं न नन्दराज्यम्। नन्दस्यैव अर्थसम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति।
चन्द्रगुप्तस्य तु भवतामपरिक्लेश एव।
चन्दनदासः – (सहर्षम्) आर्य ! अनुगृहीतोऽस्मि।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन् ! स चापरिक्लेशः कथमाविर्भवति इति ननु भवता प्रष्टव्याः स्मः।
चन्दनदासः – आज्ञापयतु आयः।।
चाणक्यः – राजनि अविरुद्धवृत्तिर्भव।
चन्दनदासः – आर्य ! कः पुनरधन्यो राज्ञो विरुद्ध इति आर्येणावगम्यते ?
चाणक्यः – भवानेव तावत् प्रथमम्।
चन्दनदासः – (कर्णी पिधाय) शान्तं पापम्, शान्तं पापम्। कीदृशस्तृणानामग्निना सह विरोध: ?

शब्दार्थाः – भो श्रेष्ठिन् = हे धनिक ! (अरे सेठ जी)। चन्द्रगुप्तराज्यमिदम् = चन्द्रगुप्तस्य एतद् शासनम् (यह चन्द्रगुप्त का राज्य है)। न नन्दराज्यम् = न तु नंदस्य शासनम् (न कि नन्द का राज्य)। नन्दस्यैव = नन्दस्य राज्यम् एव (नंद के राज्य में ही)। अर्थसम्बन्धः = धनस्य सम्बन्धः (धन के प्रति लगाव)। प्रीतिमुत्पादयति = स्नेहं जनयति (स्नेह पैदा करता है)। चन्द्रगुप्तस्य तु = चन्द्रगुप्तमौर्यस्य तु (चन्द्रगुप्त मौर्य का तो)। भवताम् = युष्माकम् (आपका)। अपरिक्लेश एव = दुःखाभावः एव (दुःख का अभाव ही है)। सहर्षम् = प्रसन्नतासहितम् (प्रसन्नता के साथ)। अ = श्रीमन् ! (हे श्रीमान् जी!)।

अनगृहीतोऽस्मि = सानुकम्पोऽस्मि (अनुगृहीत हुआ हूँ )। भो श्रेष्ठिन! = हे वणिक ! (अरे सेठ जी!)। स चापरिक्लेशः = असौ च दुःखाभावः (और वह दुःख का अभाव)। कथमाविर्भवति = कथम् अवतरितः (कैसे अवतरित होता है)। इति ननु भवता = एवं निश्चितमेव त्वया (इस प्रकार निश्चय ही आपके द्वारा)। प्रष्टव्याः स्मः = प्रष्टुं योग्याः स्मः (पूछने योग्य हैं)। आज्ञापयतु आर्यः = आर्यः आदिशतु (आर्य आदेश दें)। राजनि = नृपे (राजा में, राजा के प्रति)। अविरुद्धवत्तिर्भव = अविरुद्धस्वभावः भव (विरोध-रहित स्वभाव वाले बनो)।

आर्य ! = हे श्रीमन् !(हे श्रीमान् जी!)। कः पुनरधन्यो = पुनः कः हतभाग्यः (फिर कौन अभागा)। राज्ञो विरुद्धः = नृपस्य विरोधे (राजा के विरोध में)। अस्ति = है। इति आर्येणावगम्यते – इति देवेन ज्ञायते (इसे श्रीमान् द्वारा जाना जाता है, अर्थात् आप इसे जानते हैं)। भवान् एव = त्वम् एव, श्रीमान् एव (आप ही)। तावत् = तर्हि (तो)। प्रथमम् = प्रमुखः (प्रमुख हैं)। कर्णी = श्रवणौ (कानों को)। पिधाय = आच्छाद्य (बन्द करके)। शान्तं पापम् = अघः नश्यतु (पाप शान्त हो)। कीदृशस्तृणानामग्निना सह विरोधः = अनलेन सह घासस्य/तृणस्य कीदृशः मतभेदः (अग्नि के साथ तिनके का क्या विरोध)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी शेमुषी पाठ्य-पुस्तक के ‘प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्’ पाठ से लिया गया है। मूलत: यह पाठ महाकवि विशाखदत्त रचित ‘मुद्राराक्षसम्’ नाटक के प्रथम अंक से सङ्कलित है। इस नाट्यांश में चाणक्य और चन्दनदास के संवाद के बहाने प्रसंग आरंभ किया जाता है।

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हिन्दी-अनुवादः –

  • चाणक्य – अरे सेठ जी ! यह चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य है न कि नन्द का राज्य। नन्द के राज्य में ही धन के प्रति लगाव स्नेह पैदा करता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के (राज्य में) तो आपको दुःख का अभाव ही है।
  • चन्दनदास – (प्रसन्नता के साथ) आर्य ! मैं अनुगृहीत हुआ।
  • चाणक्य – अरे सेठ जी ! और वह दुःख का अभाव अति सुख कैसे उत्पन्न होता है, यह आपको निश्चित ही हमसे पूछना चाहिए।
  • चन्दनदास – आर्य ! आदेश दें।
  • चाणक्य – राजा के प्रति अविरोधी (विरोधहीन अर्थात् अनुकूल) व्यवहार वाले बनो।
  • चन्दनदास – आर्य ! फिर ऐसा कौन अभागा है जो राजा का विरोधी हो। ऐसा श्रीमान् जानते ही हैं आप ही बताएँ।
  • चाणक्य – प्रथम (प्रमुख) तो आप ही हैं।
  • चन्दनदास – (कानों को बन्द करके अर्थात् कानों पर हाथ रखकर) पाप शान्त हो, पाप शान्त हो (अरे राम, राम) तिनकों के साथ आग का कैसा विरोध ?

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3 चाणक्यः – अयमीदृशो विरोधः यत् त्वमद्यापि राजापथ्यकारिणोऽमात्यराक्षसस्य गृहजनं स्वगृहे रक्षसि।
चन्दनदासः – आर्य ! अलीकमेतत्। केनाप्यनार्येण आर्याय निवेदितम्।।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन् ! अलमाशङ्कया। भीताः पूर्वराजपुरुषाः पौराणामिच्छतामपि गृहेषु गृहजनं निक्षिप्य देशान्तरं व्रजन्ति। ततस्तत्तच्छादनं दोषमुत्पादयति।
चन्दनदासः – एवं नु इदम्। तस्मिन् समये आसीदस्मद्गृहे अमात्यराक्षसस्य गृहजन इति।
चाणक्यः – पूर्वम् ‘अनृतम्’, इदानीम् ‘आसीत्’ इति परस्परविरुद्ध वचने।
चन्दनदासः – आर्य ! तस्मिन् समये आसीदस्मद्गृहे अमात्यराक्षस्य गृहजन इति।

शब्दार्थाः – अयम् = एषः (यह)। ईदृशो = अस्य प्रकारस्य, एतद्विधः (ऐसा, इस प्रकार का)। विरोधः = मतभेदः (विरोध)। यत् त्वमद्यापि = यद् भवान् अधुनापि (कि आप अब, आज भी)। राजापथ्यकारिणः = नृपस्य अपकारिणः (राजा का अहित करने वाले)। अमात्यराक्षसस्य = मन्त्रिणः राक्षसस्य (मन्त्री राक्षस के)। गृहजनम् = परिवारिजनम् (परिवार वालों की)। स्वगृहे = आत्मनः भवने (अपने घर में)। रक्षसि = रक्षां करोति (रक्षा करते हो)। आर्य ! = (हे महोदय!)। अलीकमेतत् = असत्यम् इदम्, अनृतमिदम् (यह झूठ है)। केनाप्यनार्येण = कोऽपि दुष्टः (किसी दुष्ट ने)।

आर्याय = महोदयाय (आर्य से)। निवेदितम् = निवेदितवान् (निवेदन किया है; कहा है)। भो श्रेष्ठिन् = रे धनिक ! (अरे सेठजी)। अलमाशङ्कया = सन्देहस्य आवश्यकता न वर्तते, सन्देहं मा कुरु (शङ्का मत करो)। भीताः = भयाक्रान्ताः (डरे हुए)। पूर्वराजपुरुषाः = पूर्वराज्ञः सैनिकाः, पूर्वनृपस्य सेवकाः (भूतपूर्व राजा के सैनिक)। पौराणाम् = नगरवासिनाम् (नगरवासियों के)। इच्छतामपि = वाञ्छतामपि, इच्छुकानामपि (चाहने वालों के भी)। गृहेषु = भवनेषु (घरों में)। गृहजनम् = परिवारिजनान् (परिवार के लोगों को)। निक्षिप्य = स्थापयित्वा (रखकर)।

देशान्तरम् = परदेशम् (परदेश को)। व्रजन्ति = गच्छन्ति, प्रस्थानं कुर्वन्ति (चले जाते हैं)। ततः = तत्पश्चात् (उसके बाद)। तत् आच्छादनम् = तस्य गोपायनम् (उसे छिपाना, छुपाकर रखना)। दोषमुत्पादयति = अपराधं जनयति (अपराध को जन्म देता है, पैदा करता है)। एवं नु इदम् = नैवम् एत् (ऐसा नहीं है)। तस्मिन् समये = तदा (उस समय)। अस्मद् गृहे = अस्माकम् आवासे (हमारे घर पर)। अमात्यराक्षसस्य = मन्त्रिणः राक्षसस्य (अमात्य राक्षस के)। गृहजनः = परिजनः (परिवार के लोग)। आसीत् = अवर्तत (थे)। पूर्वम् = पूर्वकाले, प्रथमस्तु (पहले तो)। अनृतम् = मिथ्या, असत्यम् (झूठ)। इदानीम् = अधुना (अब)।

आसीत् = अवर्तत (था)। इति परस्परं = एवम् अन्यान्ययोः (इस प्रकार एक दूसरे .के)। विरुद्ध वचने = विपरीतकथने (विपरीत वचन होने पर)। आर्य ! = हे श्रीमन् ! (हे महोदय!)। तस्मिन् समये = तस्मिन् काले, तदा (तब, उस समय)। अस्मद्गृहे = अस्माकम् आवासे (हमारे घर में)। अमात्यराक्षसस्य = मन्त्रिणः राक्षसस्य (अमात्य राक्षस के)। गृहजनः = परिजनः (परिवार के लोग)। आसीत् = अवर्तत (था/थे)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी शेमुषी पाठ्य-पुस्तक के ‘प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महाकवि विशाखदत्त रचित ‘मुद्राराक्षसम्’ नाटक के प्रथम अंक से सङ्कलित है। इस नाट्यांश में चाणक्य अपने कथ्य को चन्दनदास से कहता है और अन्वेषण आरम्भ कर देता है।।

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हिन्दी-अनुवादः :

  • चाणक्य – यह ऐसा विरोध है कि आप अब भी राजा का अहित करने वाले मन्त्री राक्षस के परिवारवालों को अपने घर में छुपाकर रक्षा करते हैं।
  • चन्दनदास – आर्य ! यह (बिल्कुल) झूठ है। किसी दुष्ट ने (आपसे) ऐसा कह दिया है।
  • चाणक्य – अरे सेठ जी ! शंका मत करो। भूतपूर्व राजा के डरे हुए सैनिक चाहने वाले नगरवासियों के घरों में अपने परिजनों को भी रखकर परदेश को जाते हैं। तब उस अमात्य राक्षस का छुपाना दोष या अपराध को जन्म देता है।
  • चन्दनदास – ऐसा नहीं है, उस समय हमारे घर में अमात्य राक्षस के परिवार के लोग थे।
  • चाणक्य – पहले ‘अनृतम्’ (झूठ) अब ‘आसीत्’ (थे) इस प्रकार आपस में (परस्पर) विरोधी वचन है।
  • चन्दनदास – आर्य ! उस समय (तब) हमारे घर में अमात्य राक्षस के परिवार वाले थे (अब नहीं हैं)।

4. चाणक्यः – अथेदानी क्व गतः ?
चन्दनदासः – न जानामि।
चाणक्यः – कथं न ज्ञायते नाम ? भो श्रेष्ठिन् ! शिरसि भयम्, अतिदूरं तत्प्रतिकारः।
चन्दनदासः – आर्य! किं मे भयं दर्शयसि ? सन्तमपि गेहे अमात्यराक्षसस्य गृहजनं न समर्पयामि, किं पुनरसन्तम् ?
चाणक्यः – चन्दनदास ! एष एव ते निश्चयः ?
चन्दनदासः – बाढम्, एष एव मे निश्चयः।
चाणक्यः – (स्वगतम्) साधु ! चन्दनदास साधु।

सुलभेष्वर्थलाभेषु परसंवेदने जने।
क इदं दुष्करं कुर्यादिदानीं शिविना विना।।

शब्दार्थाः – अथ = एतत्पश्चात् (तो फिर)। इदानीम् = अधुना (अब)। क्व – कुत्र (कहाँ)। गतः = प्रस्थितः यातः (गए)। न जानामि = न मया ज्ञायते (नहीं जानता, मुझे पता नहीं)। कथम् न = कस्मात् न (क्यों नहीं)। ज्ञायते नाम = अवगम्यते (जानते हो)। भो श्रेष्ठिन् ! = रे धनिक ! (अरे सेठजी)। शिरसि = मस्तके (सिर पर)। भयम् = भीतिः (डर है)। तत्प्रतिकारं = तस्योपचारम् (उसका उपचार)। अतिदूरम् = अत्यधिकं दूरे स्थितम् (बहुत दूर पर है)। आर्य! = (हे महोदय)। किं मे भयं दर्शयति = अपि मां भयभीतं करोषि (क्या मुझे डरा रहे हो)।

सन्तमपि गेहे = गृहे विद्यमानं अपि (घर में होते हुए भी)। अमात्यराक्षसस्य = मन्त्रिणः राक्षसस्य (अमात्य राक्षस के)। गृहजनम् = परिवारस्य सदस्यान् (परिवारीजनों को)। न समर्पयामि = न प्रत्यर्पयामि (नहीं लौटाता)। किं पुनरसन्तम् = किं पुनः न निवसन्तम् (न रहने वालों का तो कहना क्या)। एष एव = अयमेव (यही)। ते = तव (तेरा)। निश्चयः = संकल्पः (निश्चय है)। बाढम् = आम् (हाँ)। एषः एव = अयमेव (यही)। मे = मम (मेरा)। निश्चयः = दृढसंकल्पः (निश्चय है)। स्वगतम् = आत्मगतम् (मन ही मन)। साधुः धन्यः = अतिसुन्दरम् (बहुत अच्छे, निश्चय ही, धन्य हो)। चन्दनदास साधु = धन्योऽसि चन्दनदास! (चन्दनदास, तुम धन्य हो)।

सुलभेष्वर्थलाभेषु …………………………. शिविना विना।।

अन्वयः – परस्य संवेदने अर्थलाभेषु सुलभेषु इदं दुष्करं कर्म जने (लोके) शिविना विना कः कुर्यात्।

शब्दार्थाः – परस्य = अन्यस्य (दूसरे की वस्तु को)। संवेदने = समर्पणे कृते सति (समर्पित करने पर)। सुलभेषु = धन प्राप्तेषु सहजेषु सत्सु (धन की प्राप्ति आसान हो जाने पर भी)। इदम् = एतद् स्वार्थं त्यक्त्वा परस्य वस्तुरक्षणम् (यह)। कर्म = कर्त्तव्यम् (कार्य)। जने = लोके (मनुष्यों में)। दुष्करम् = कठिनम् (मुश्किल है)। शिविना विना = शिविमन्तरेण (दानवीर शिवि के अतिरिक्त)। कः कुर्यात् = कः सम्पादयेत् (कौन करे)।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी शेमुषी पाठ्य-पुस्तक के ‘प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महाकवि विशाखदत्त रचित नाटक ‘मुद्राराक्षसम्’ नाटक के प्रथम अंक से सङ्कलित किया गया है। इस अंश में चाणक्य और चन्दनदास का संवाद विवाद में परिवर्तित हो जाता है।

JAC Class 10 Sanskrit Solutions Chapter 11 प्राणेभ्योऽपि प्रियः सुहृद्

हिन्दी-अनुवादः :

  • चाणक्य – तो अब कहाँ गए ?
  • चन्दनदास – मैं नहीं जानता (मुझे पता नहीं)।
  • चाणक्य – क्यों नहीं जानते हो। अरे सेठजी, डर तो सिर पर सवार है और (उसका) उपाय बहुत दूर है।
  • चन्दनदास – आर्य ! क्या मुझे डरा रहे हैं ? घर में होते हुए भी अमात्य राक्षस के परिवार के लोगों को नहीं दे सकता हूँ फिर न होने पर तो कहना ही क्या ?
  • चाणक्य – चन्दनदास ! क्या तुम्हारा यही निश्चय है ?
  • चन्दनदास – हाँ, मेरा यही निश्चय है।
  • चाणक्य – (मन ही मन) धन्य हो चन्दनदास, तुम धन्य हो।
    दूसरे की वस्तु को समर्पित करने पर धन की प्राप्ति आसान हो जाने पर भी यह (स्वार्थ त्यागकर दूसरे की वस्तु की रक्षा करने का) कार्य मनुष्यों में अत्यन्त कठिन कार्य है। दानवीर शिवि के (तुम्हारे) अलावा (अतिरिक्त) इसे और कौन करे।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् कारकम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

कारकस्य परिभाषा – क्रियाजनकं कारकम् अथवा क्रियां करोति इति कारकम्। (क्रिया का जनक कारक होता है अथवा क्रिया को करता है वह कारक है।)

अर्थात् यः क्रियां सम्पादयति अथवा यस्य क्रियया सह साक्षात् परम्परया वा सम्बन्धो भवति सः ‘कारकम्’ इति कथ्यते। (अर्थात् जो क्रिया को सम्पादित करता है अथवा जिसका क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध होता है वह ‘कारक’ कहा जाता है।)

क्रियया सह कारकाणां साक्षात् परम्परया व सम्बन्धः कथं भवति इति बोधयितुम् अत्र वाक्यमेकं प्रस्तूयते। यथा (क्रिया के साथ कारकों का साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध कैसे होता है यह जानने के लिए यहाँ एक वाक्य प्रस्तुत किया जा रहा है।)

“हे मनुष्याः! नरदेवस्य पुत्रः जयदेवः स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः ग्रामे धनं ददाति।” अत्र क्रियया सह कारकाणां सम्बन्धं ज्ञातुम् एवं प्रकारेण प्रश्नोत्तरमार्गः आश्रयणीय: (यहाँ क्रिया के साथ कारकों का सम्बन्ध जानने के लिए इस प्रकार से प्रश्नोत्तर मार्ग का आश्रय लेना चाहिए-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम् 1

एवमेव जयदेवः इति कर्तृकारकस्य तु क्रियया सह साक्षात् सम्बन्धः अस्ति अन्येषां कारकाणां च परम्परयां सम्बन्धः अस्ति। अतः इमानि सर्वाणि कारकाणि कथ्यन्ते। परन्तु अस्य एव वाक्यस्य हे मनुष्याः, नरदेवस्य च इति पदद्वयस्य ‘ददाति’ इति क्रियया सह साक्षात् परम्परया वा सम्बन्धो नास्ति। अतः इदं पदद्वयं कारकम् नास्ति। सम्बन्धः कारकं तु नास्ति परन्तु तस्मिन् षष्ठी विभक्तिः भवति। (इसी प्रकार ‘जयदेव’ इस कर्ता कारक का तो क्रिया के साथ साक्षात् सम्बन्ध है और दूसरे कारकों का परम्परा से सम्बन्ध है। अतः ये सब कारक कहे जाते हैं। परन्तु इस वाक्य का “हे मनुष्याः , नरदेवस्य” इन दो पदों का ‘ददाति’ क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध नहीं है। अतः ये दो पद कारक नहीं हैं। सम्बन्ध कारक तो नहीं हैं परन्तु उसमें षष्ठी विभक्ति होती है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

कारकाणां संख्या- इत्थं कारकाणां संख्या षड् भवति। यथोक्तम्- (इस प्रकार कारकों की संख्या छः होती है। जैसा कहा है-)

कर्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट्।।

अत्र कारकाणां विभक्तीनां च सामान्यपरिचयः प्रस्तूयते- (यहाँ कारकों और विभक्तियों का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है-)

ध्यातव्यः – संस्कृत में प्रथमा से सप्तमी तक सात विभक्तियाँ होती हैं। ये सात विभक्तियाँ ही कारक का रूप धारण करती हैं। सम्बोधन विभक्ति को प्रथमा विभक्ति के ही अन्तर्गत गिना जाता है। क्रिया से सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक माना गया है। षष्ठी विभक्ति का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है, अतः ‘सम्बन्ध’ कारक को कारक नहीं माना गया है। इस प्रकार संस्कृत में कारक छः ही होते हैं तथा विभक्तियाँ सात होती हैं। कारकों में प्रयुक्त विभक्तियों तथा उनके चिह्नों का विवरण इस प्रकार है –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम् 2

प्रथमा-विभक्तिः

यः क्रियायाः करणे स्वतन्त्रः भवति सः कर्ता इति कथ्यते (स्वतन्त्रः कर्ता)। उक्तकर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति। यथा-रामः पठति। (जो क्रिया के करने में स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता कहा जाता है। (स्वतन्त्र कर्ता) और कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे- रामः पठति।)

अत्र पठनक्रियायाः स्वतन्त्ररूपेण सम्पादकः रामः अस्ति। अतः अयम् एव कर्ता अस्ति। कर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति। (यहाँ पठन क्रिया का स्वतन्त्र रूप से सम्पादन करने वाला ‘राम’ है। अत: यही कर्ता है और कर्त्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।)

कर्मवाच्ये कर्मणि प्रथमा विभक्तिः भवति। (कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।) यथा- मया ग्रन्थः पठ्यते।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

सम्बोधने प्रथमा विभक्तिः भवति (सम्बोधने च) ((सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है। ) यथा- हे बालकाः! यूयं कुत्र गच्छथ?

कस्यचित् संज्ञादिशब्दस्य (प्रातिपदिकस्य) अर्थं, लिङ्ग, परिमाणं, वचनं च प्रकटीकर्तुं प्रथमायाः विभक्तेः प्रयोगः क्रियते। यतोहि विभक्तेः प्रयोगं विना कोऽपि शब्दः स्वकीयमर्थं दातुं समर्थो नास्ति अत एव अस्मिन् विषये प्रसिद्ध कथनमस्ति- ‘अपदं न प्रयुञ्जीत।’

उदाहरणार्थम् – बलदेवः, पुरुषः, लघुः, लता। (किसी संज्ञा आदि शब्द के (प्रातिपदकस्य) अर्थ, लिङ्ग, परिमाण और वचन प्रकट करने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि विभक्ति के प्रयोग के बिना कोई भी शब्द अपना अर्थ देने में समर्थ नहीं है, इसलिए इस विषय में प्रसिद्ध कथन है- “अपदं न प्रयुञ्जीत” उदाहरण के लिए- बलदेवः, पुरुषः, लघुः, लता।)

‘इति’ शब्दस्य योगे प्रथमा विभक्तिः भवति। यथा- वयम् इम् जयन्तः इति नाम्ना जानीमः। (‘इति’ शब्द के प्रयोग में प्रथमा होती है। जैसे- “हमें इसे ‘जयन्त’ इस नाम से जानते हैं।”)

ध्यातव्यः
संस्कृत में कर्ता के तीन पुरुष, तीन वचन और तीन लिङ्ग होते हैं। यथा (जैसे) –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम् 3

प्रथम पुरुष के सर्वनाम रूपों की भाँति ही राम, लता, फल, नदी आदि के रूप तीनों वचनों में प्रयोग में लाये जाते हैं। कर्ता के तीन लिङ्ग-पुल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसकलिङ्ग होते हैं। वाक्य में सामान्य रूप से कर्ता कारक को प्रथमा विभक्ति द्वारा व्यक्त करते हैं।

वाक्य में कर्ता की स्थिति के अनुसार संस्कृत में वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –
(i) कर्तृवाच्य
(ii) कर्मवाच्य
(iii) भाववाच्य।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

(i) कर्तृवाच्यः – जब वाक्य में कर्ता की प्रधानता होती है, तो कर्ता में सदैव प्रथमा विभक्ति ही होती है। जैसे-मोहनः पठति।
(ii) कर्मवाच्यः – वाक्य में कर्म की प्रधानता होने पर कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और कर्त्ता में तृतीया। जैसे-रामेण ग्रन्थः पठ्यते।
(iii) भाववाच्यः – वाक्य में भाव (क्रियातत्त्व) की प्रधानता होती है और कर्म नहीं होता है। कर्ता में सदैव तृतीया विभक्ति और क्रिया (आत्मनेपदी) प्रथम पुरुष एकवचन की प्रयुक्त होती है। जैसे-कमलेन गम्यते।

वाक्य में कर्ता के अनुसार ही क्रिया का प्रयोग किया जाता है अर्थात् कर्ता जिस पुरुष और वचन का होता है, क्रिया भी उसी पुरुष व वचन की होती है।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम् 4

द्वितीया विभक्तिः

कर्तरीप्सिततमं कर्म – (i) कर्ता क्रियया यं सर्वाधिकम् इच्छति तस्य कर्मसंज्ञा भवति। कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (कर्मणि द्वितीया) कर्ता क्रिया से (क्रिया के द्वारा) जिसे सबसे अधिक चाहता है उसकी कर्म संज्ञा होती है।
“कर्मणि द्वितीया” और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।) यथा –

रामः ग्रामं गच्छति। (राम गाँव को जाता है।)
बालका: वेदं पठन्ति। (बालक वेद पढ़ते हैं।)
वयं नाटकं द्रक्ष्यामः। (हम नाटक देखेंगे।)
साधुः तपस्याम् अकरोत्। (साधु ने तपस्या की।)
सन्दीपः सत्यं वदेत्। (सन्दीप सत्य बोले।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

(ii) तथायुक्तं अनीप्सितम्-कर्ता जिसे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रखता है, उसे ईप्सितम् कहते हैं और जिसकी इच्छा नहीं रखता उसे अनीप्सित कहते हैं। अनीप्सित पदार्थ पर क्रिया का फल पड़ने पर उसकी कर्म संज्ञा होती है। जैसे-‘दिनेशः विद्यालयं गच्छन्, बालकं पश्यति’ (‘दिनेश विद्यालय को जाता हुआ, बालक को देखता है’) इस वाक्य में ‘बालक’ अनीप्सित पदार्थ है, फिर भी ‘विद्यालयं’ की तरह प्रयुक्त होने से उसमें कर्म कारक का प्रयोग हुआ है।

अधोलिखितशब्दानां योगे द्वितीयाविभक्तिः भवति। यथा – (निम्नलिखित शब्दों के योग में द्वितीय विभक्ति होती है। जैसे-)

अभित:/उभयतः (दोनों) – राजमार्गम् अभितः वृक्षाः सन्ति। (राजमार्ग (सड़क) के दोनों ओर वृक्ष हैं।)
परित:/सर्वतः (चारों ओर): – ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति। (गाँव के चारों ओर खेत हैं।)
समया/निकषा (समीप में) – विद्यालयं निकषा देवालयः अस्ति। (विद्यालय के समीप में देवालय है।)
अन्तरेण/विना (बिना) – प्रदीपः पुस्तकं विना/अन्तरेण पठति। (प्रदीप पुस्तक के बिना पढ़ता है।)
अन्तरा (बीच में) – रामं श्यामं च अन्तरा देवदत्तः अस्ति। (राम और श्याम के बीच में देवदत्त है।)
धिक् (धिक्कार) – दुष्टं धिक्। (दुष्ट को धिक्कार है।)
हा (हाय) – हा दुर्जनम् ! (हाय दुर्जन।)
प्रति (ओर) – छात्राः विद्यालयं प्रति गच्छन्ति। (छात्र विद्यालय की ओर जाता है।)
अनु (पीछे) – राजपुरुषः चौरम् अनुधावति। (राजपुरुष चोर के पीछे दौड़ता है।)
यावत् (तक) – गणेशः वनं यावत् गच्छति। (गणेश वन तक जाता है।)
अधोऽधः (सबसे नीचे) भूमिम् अधोऽधः जलम् अस्ति। (भूमि के सबसे नीचे जल है।)
अध्यधि (अन्दर-अन्दर) – लोकम् अध्यधि हरिः अस्ति। (लोक (संसार) के अन्दर-अन्दर हरि है।)
उपर्युपरि (ऊपर-ऊपर) – लोकम् उपर्युपरि सूर्यः अस्ति। (लोक (संसार) के ऊपर-ऊपर सूर्य है।)

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अधि – उपसर्गपूर्वक-शीङ्-स्था-आस् धातूनां प्रयोगे एषाम् आधारस्य कर्मसंज्ञा भवति, कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (अधिशीङ्स्थासां कर्म)। उदाहरणार्थम्- (“अधिशीस्थासां कर्म” ‘अधि’ ‘उपसर्गपूर्वक शी। ‘स्था’ (ठहरना) एवं अस्’ (बैठना) धातुओं के प्रयोग में इनके आधार की कर्म संज्ञा होती है और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण-)

  1. अधिशेते (सोता है) – सुरेशः शय्याम् अधिशेते। (सुरेश शैय्या पर सोता है।)
  2. अधितिष्ठति (बैठता है) – अध्यापकः आसन्दिकाम् अधितिष्ठति। (अध्यापक कुर्सी पर बैठता है।)
  3. अध्यास्ते (बैठता है) – नृपः सिंहासनम् अध्यास्ते। (राजा सिंहासन पर बैठता है।)

उप-अधि-आङ् (आ)- उपसर्गपूर्वक-वस् धातोः प्रयोगे अस्य आधारस्य कर्मसंज्ञा भवति, कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (उपान्वध्यावास:)। (उपान्वध्यावास” उप, अधि, आङ् (अ) उपसर्गपूर्वक ‘वस्’ धातु के प्रयोग में इसके आधार की कर्म संज्ञा होती है। अर्थात् वस धातु से पहले उप, अनु, अधि और आङ् (आ) उपसर्गों में से कोई भी उपसर्ग लगता हो, तो वस् धातु के आधार की कर्म संज्ञा होती है अर्थात् सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति ही लगती है।

और कर्म में द्वितीया विभक्ति लगती है।)

उपवसति (पास में रहता है) – श्यामः नगरम् उपवसति। (श्याम नगर के पास में रहता है।)
अनुवसति (पीछे रहता है) – कुलदीपः गृहम् अनुवसति। (कुलदीप घर के पीछे रहता है।)
अधिवसति (में रहता है) – सुरेशः जयपुरम् अधिवसति। (सुरेश जयपुर में रहता है।)
आवसति (रहता है) – हरिः वैकुण्ठम् आवसति। (हरि वैकुण्ठ में रहता है।)

“अभि-नि” उपसर्गद्वयपूर्वक-विश्-धातोः प्रयोगे सति अस्य आधारस्य कर्म-संज्ञा भवति, कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (अभिनिविशश्च)। (“अभिनिविशश्च” विश् धातु के प्रयोग के “अधि और नि” ये दो उपसर्ग लगने पर इसके आधार की कर्म संज्ञा होती है और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।)
अभिनिविशते (प्रवेश करता है) – दिनेशः ग्रामम् अभिनिविशत। (दिनेश ग्राम में प्रवेश करता है।)

अपादानादिकारकाणां यत्र अविवक्षा अस्ति तत्र तेषां कर्मसंज्ञा भवति, कर्मणि च द्वितीयाविभक्तिः भवति (अकथितं च)। संस्कृतभाषायां एतादृशः षोडशधातवः सन्ति येषां प्रयोग एकं तु मुख्यं द्वितीया विभक्तिः भवति। इमे धातवः एक द्विकर्मकधातवः कथ्यन्ते। एतेषां प्रयोगः अत्र क्रियते- (“अकथितं च” अपादान आदि कारकों की जहाँ अविवक्षा हो वहाँ उनकी कर्म संज्ञा होती है और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। संस्कृत भाषा में इस तरह की सोलह धातुएँ हैं उनके प्रयोग में एक तो मुख्य कर्म होता है और दूसरा अपादान आदि कारक से अविवक्षित गौण कर्म होता है। इस गौण कर्म में भी द्वितीया विभक्ति होती है। ये धातुएँ ही द्विकर्मक धातुएँ कही जाती हैं। इनका प्रयोग यहाँ किया जा रहा है-)

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दुह् (दुहना) – गोपाल: गां दोग्धि। (गोपाल गाय से दूध दुहता है)।
याच् (माँगना) – सुरेशः महेशं पुस्तकं याचते। (सुरेश महेश से पुस्तक माँगता है)
पच (पकाना) – याचकः तण्डुलान् ओदनं पचति। (पाचक चावलों से भात पकाता है)
दण्ड् (दण्ड देना) – राजा गर्गान् शतं दण्डयति। (राजा गर्गों को सौ रुपये का दण्ड देता है)
प्रच्छ (पूछना) – सः माणवकं पन्थानं पृच्छति। (वह बालक से मार्ग पूछता है)
रुध् (रोकना) – ग्वालः व्रजं ग्राम अवरुणद्धि। (ग्वाला गाय को व्रज में रोकता है)
चि (चुनना) – मालाकारः लतां पुष्पं चिनोति। (माली लता से पुष्प चुनता है।)
जि. (जीतना) – नृपः शत्रु राज्यं जयति। (राजा शत्रु से राज्य को जीतता है)
ब्रु (बोलना) – गुरु शिष्यं धर्म ब्रूते/शास्ति। (गुरु शिष्य से धर्म कहता है।)
शास् (कहना) गुरु शिष्यं धर्मं ब्रूते/शास्ति। (गुरु शिष्य से धर्म कहता है।)
मथ् (मथना) – सः क्षीरनिधिं सुधां मध्नाति। (वह क्षीरसागर से अमृत मथता है)
मुष् (चुराना) चौरः देवदत्तं धनं मुष्णाति। (चोर देवदत्त से धन चुराता है।)
नी (ले जाना).. – सः अजां ग्रामं नयति। (वह बकरी को गाँव ले जाता है)
ह (हरण करना). – सः कृपणं धनं हरित। (वह कंजूस के धन को हरता है)
वह (ले.जाना) – कृषकः ग्रामं भारं वहति। (किसान गाँव में बोझा ले जाता है)
कृष् (खींचना) – कृषकः क्षेत्र महिर्षी कर्षति। (किसान खेत में भैंस को खींचता है)

कालवाचिनि शब्दे मार्गवाचिनि शब्द च अत्यन्तसंयोगे गम्यमाने द्वितीया विभक्तिः भवति-(कालाध्वनोरत्यन्तसंयोग)। (कालाध्वनोरत्यन्तसंयोग कालवाची शब्द में और मार्गवाची शब्द में अत्यन्त संयोग हो तो कालवाची और मार्गवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति आती है। जैसे-)

सुरेशः अत्र पञ्चदिनानि पठति। (सुरेश यहाँ लगातार पाँच दिन से पढ़ रहा है)
मोहनः मासम् अधीते। (मोहन लगातार महीने भर पढ़ता है)
नदी क्रोशं कुटिला अस्ति। (नदी कोस भर तक लगातार टेढ़ी है)
प्रदीपः योजनं पठति। (प्रदीप लगातार एक योजन तक पढ़ता।

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ध्यातव्य –

“गत्यर्थककर्मणि द्वितीयचतुझे चेष्टायामध्वनि” यदा गत्यर्थक धातुनां कर्मः मार्ग न भवति तदां चतुर्थी द्वितीया। च भवति। यथा (अर्थात् जब गति अर्थ वाली धातुओं का कर्म मार्ग नहीं रहता, तब चतुर्थी और द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे- ‘गृहं गृहाय वा गच्छति’ यहाँ जाने में हाथ-पैर आदि अंगों का हिलना-डुलना रहा और गृह मार्ग नहीं है। मार्ग में द्वितीया होती है- ‘पन्थानं गच्छति’ शरीर के व्यापार न करने पर – ‘चेतसां हरि ब्रजति’ (मन से ईश्वर (हरि) को भजता है)।
उदाहरण –
(i) रामः ग्रामं गच्छति। (राम गाँव को जाता है।)
(ii) सिंह वनं विचरति। (सिंह वन में विचरण करता है।)
(iii) स स्मृतिं गच्छति। (वह स्मृति को प्राप्त करता है।)
(iv) स परं विषादम् अगच्छत्। (वह परम विषाद को प्राप्त हुआ।)

“एनपा द्वितीया” अर्थात् एनप् प्रत्ययान्तस्य शब्दस्य येन समीपता प्रतीतं भवति, तस्मिन् द्वितीया षष्ठी वा भवति। यथा – (अर्थात् एनप् प्रत्ययान्त शब्द की जिससे समीपता प्रतीत होती है, उसमें द्वितीया अथवा षष्ठी विभक्ति होती हैं। जैसे-)
1. नगरं नगरस्य व दक्षिणेन (नगर के दक्षिण की ओर)
2. उत्तरेण यमुनाम् (यमुना के उत्तर में)

तृतीया विभक्तिः

(क) क्रियासिद्धौ यत् सर्वाधिकं सहायकं भवति तस्य कारकस्य करणसंज्ञा भवति (साधकतमं करणम्)। कतरि करणे च (कर्तृकरणयोस्तृतीया इति पाणिनीय सूत्रेण) तृतीया विभक्तिः भवति। यथा- (कार्य की सिद्धि में जो सबसे अधिक सहायक होता है उस कारक की ‘करण’ संज्ञा होती है। (साधकतमं करणम्।)
“कर्तृकरणयोस्तृतीया” इस पाणिनीय सूत्र से (भाववाच्य अथवा कर्मवाच्य के) कर्ताकारक में तथा करा . कारक में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)
1. जागृतिः कलमेन लिखति।
(जागृति कलम से लिखती है।)

2. वैशाली जलेन मुखं प्रक्षालयति।
(वैशाली जल से मुँह धोती है।)

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3. रामः दुग्धेन रोटिकां खादति।
(राम दूध से रोटी खाता है।)

4. सुरेन्द्रः पादाभ्यां चलति।
(सुरेन्द्र पैरों से चलता है।)

(ख) कर्मवाच्यस्य भाववाच्यस्य वा अनुक्तकर्तरि अपि तृतीया विभक्ति भवति। यथा (कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य के अनुक्त कर्ता में भी तृतीया विभक्ति होती है जैसे-)

1. रामेण लेखः लिख्यते। (कर्मवाच्ये)
(राम के द्वारा लेख लिखा जाता है।)

2. मया जलं पीयते। (कर्मवाच्ये)
(मेरे द्वारा जल पीया जाता है।)

3. तेन हस्यते। (भाववाच्ये)
(उसके द्वारा हँसा जाता है।)

सह-साकम्-समम्-साधर्म-शब्दानां योगे तृतीया विभक्तिः भवति (सहयुक्तेऽप्रधाने)। यथा –
“सहयुक्तोऽप्रधाने” अर्थात् सह-साकम्, समम्, सार्धम् शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. जनकः पुत्रेण सह गच्छति।
(पिता पुत्र के साथ जाता है।)

2. सीता गीतया साकं पठति।
(सीता गीता के साथ पढ़ती है।)

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3. ते स्वमित्रैः सार्धं क्रीडन्ति।
(वे अपने मित्रों के साथ खेलते हैं।)

4. त्वं गुरुणा सह वेदपाठं करोषि।
(तुम गुरु के साथ वेदपाठ करते हो।)

येन विकृतेन अङ्गेन अङ्गिनः विकारो लक्ष्यते तस्मिन् विकृताङ्गे तृतीया भवति (येनाङ्गविकार:)। यथा –
(“येनाङ्गविकारः” अर्थात जिस विकृत अङ्ग से अङ्ग विकार लक्षित होता है उस विकृत अङ्ग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. सः नेत्रेण काणः अस्ति।
(वह आँख से काना है।)

2. बालकः कर्णेन बधिरः वर्तते।
(बालक कान से बहरा है।)

3. साधुः पादेन खञ्जः अस्ति।
(साधु पैर से लगड़ा है।)

4. श्रेष्ठी शिरसा खल्वाट: विद्यते।
(सेठ शिर से गंजा है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

5. सूरदासः नेत्राभ्याम् अन्धः आसीत्।
(सूरदास आँखों से अन्धा था।)

येन चिह्नेन कस्यचिद् अभिज्ञानं भवति तस्मिन् चिह्नवाचिनि शब्दे तृतीया विभक्तिः भवति (इत्थंभूतलक्षणे)। यथा –
(“इत्थंभूतलक्षणे”.अर्थात् जिस चिह्न से किसी का ज्ञान होता है उस चिह्नवाची शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. सः जटाभिः तापसः प्रतीयते।।
(वह जटाओं से तपस्वी प्रतीत होता है।)

2. सः बालकः पुस्तकैः छात्रः प्रतीयते।
(वह बालक पुस्तकों से छात्र प्रतीत होता है।)

हेतुवाचिशब्दे तृतीया विभक्तिः भवति (हेतौ) यथा –
(हेतुवाची शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. पुण्येन हरिः दृष्टः।
(पुण्य से हरि को देखा।)

2. सः अध्ययनेन वसति।
(वह पढ़ने हेतु रहता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

3. विद्यया यशः वर्धते।
(विद्या से यश बढ़ता है।)

4. विद्या विनयेन शोभते।।
(विद्या विनय से शोभा पाती है।)

प्रकृति-आदिक्रियाविशेषणशब्देषु तृतीया विभक्तिः भवति (प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम्)।
(“प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानाम्” प्रकृति आदि क्रियाविशेषण शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. सः प्रकृत्य साधुः अस्ति।
(वह प्रकृति से साधु (सज्जन) है।)

2. गणेशः सुखेन जीवति।
(गणेश सुख से जीता है।)

3. प्रियंका सरलतया लिखति।
(प्रियंका सरलता से लिखती है।)

4. मूर्खः दुःखेन जीवति।
(मूर्ख दुःख से जीता है।)

निषेधार्थकस्य अलम् इति शब्दस्य योगे तृतीया विभक्तिः भवति। यथा –
(निषेधार्थक ‘अलम्’ शब्द के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. अलं हसितेन। (हँसो मत)।
अलं विवादेन। (विवाद मत करो)

चतुर्थी विभक्तिः

दानस्य कर्मणा कर्ता यं सन्तुष्टं कर्तुम् इच्छति सः सम्प्रदानम् इति कथ्यते (कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्), सम्प्रदाने च (चतुर्थी सम्प्रदाने इति पाणिनीयसूत्रेण) चतुर्थी विभक्तिः भवति। यथा –
(“कर्मण यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्” अर्थात् दान के कर्म के द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, वह पदार्थ सम्प्रदान कहलाता है।
“चतुर्थी सम्प्रदाने” इस पाणिनीय सूत्र से सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. नृपः निर्धनाय धनं यच्छति। (राजा निर्धन को धन देता है।)
2. बालकः स्वमित्राय पुस्तकं ददाति। (बालक अपने मित्र को पुस्तक देता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

रुच्यर्थानां धातूनां प्रयोगे यः प्रीयमाणः भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति (रुच्यर्थानां प्रीयमाणः)। यथा – (“रुच्यर्थानां प्रीयमाण:” रुच तथा रुच् के अर्थवाली धातुओं के योग में जो प्रसन्न होता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है, सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. भक्ताय रामायणं रोचते।
(भक्त को रामायण अच्छी लगती है।)

2. बालकाय मोदकाः रोचन्ते।।
(बालक को लड्डू अच्छे लगते हैं।)

3. गणेशाय दुग्धं स्वदते।
(गणेश को दूध अच्छा लगता है।)

क्रुधादि-अर्थानां धातूनां प्रयोगे यं प्रति कोपादिकं क्रियते तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति (क्रुधदुहेासूयार्थानां यं प्रति कोपः)। (‘क्रुधदुहेासूयार्थानां यं प्रति कोपः’ क्रुध आदि अर्थों की धातुओं के (क्रुध्, द्रुह, ईर्ष्ण, असूय) प्रयोग में जिस पर कोप (क्रोध) आदि किया जाता है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. क्रुध् (क्रोध करना) – पिता पुत्राय क्रुध्यति। (पिता पुत्र पर क्रोध करता है।)
2. द्रह (द्रोह करना) – किंकरः नपाय द्रहयति। (नौकर राजा से द्रोह करता है।)
3. ईर्ष्या (ईर्ष्या करना) – दुर्जनः सज्जनाय ईर्ण्यति। (दुर्जन सज्जन से ईर्ष्या करता है।)
4. असूय् (निन्दा करना) – सुरेशः महेशाय असूयति। (सुरेश महेश की निन्दा करता है।

स्पृह (ईप्सायां) धातोः प्रयोगे यः ईप्सितः भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति (स्पृहेरीप्सितः)। यथा – (स्पृह (चाहना) धातु के प्रयोग में (जिसे चाहा गया है) जो ईप्सित (प्रिय) होता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है, सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-)
1. स्पृह (इच्छा करना) – बालकः पुष्पाय स्पृह्यति। (बालक पुष्प की इच्छा करता है।)

नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट्, इति शब्दानां योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति (नमः स्वस्तिस्वाहास्व धालंवषड्योगाच्च)। यथा- (“नमः स्वस्तिस्वहास्वधालंवषड्योगाच्च” नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. नमः (नमस्कार) – रामाय नमः। (राम को नमस्कार)
2. स्वस्ति (कल्याण)। – गणेशाय स्वस्ति। (गणेश का कल्याण हो।)
3. स्वाहा (आहुति) प्रजापतये स्वाहा। . (प्रजापति के लिए आहुति)
4. स्वधा ” स्वधा (हवि का दान) – पितभ्यः स्वधा। (पितरों के लिए हवि का दान)
5. वषट् (हवि का दान) – सूर्याय वषट्। (सूर्य के लिए हवि का दान)
6. अलम् (समर्थ) – दैत्येभ्यः हरिः अलम्। (दैत्यों के लिए हरि पर्याप्त हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

धृञ् (धारणे) धातोः प्रयोगे यः उत्तमर्णः (ऋणदाता) भवति तस्य सम्प्रदान संज्ञा स्यात्, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः , भवति (धारेरुत्तमर्णः)। यथा- (“धारेरुत्तमर्णः” धृञ् धारण करना धातु के योग में जो उत्तमर्ण (ऋणदाता) होता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होवे, सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-)
देवदत्तः यज्ञदत्ताय शतं धारयति। (देवदत्त यज्ञदत्त का सौ रुपये का ऋणी है।)

यस्मै प्रयोजनाय या क्रिया क्रियते तस्मिन् प्रयोजनवाचिनि शब्दे चतुर्थी विभक्तिः भवति (तादर्थ्य चतुर्थी वाच्या)।
यथा – (“तादर्थं चतुर्थी वाच्या” जिस प्रयोजन के लिए जो क्रिया की जाती है उसके प्रयोजन वाची शब्द में चतुर्थी विभक्ति होती है जैसे-)

1. सः मोक्षाय हरि भजति। (वह मोक्ष के लिए हरि को भजता है।)
2. बालकः दुग्धाय क्रन्दति। (बालक दूध के लिए रोता है।)

निम्नलिखितधातूनां योगे प्रायः चतुर्थी विभक्तिः भवति। यथा- (निम्नलिखित धातुओं के योग में प्रायः चतुर्थी विभक्ति
होती है। जैसे-)
1. कथय (कहना) – रामः स्वमित्राय कथयति। (राम अपने मित्र के लिए कहता है।)
2. निवेदय् (निवदेन करना) – शिष्यः गुरुवे निवेदयति। (शिष्य गुरु से निवेदन करता है।)
3. उपदिश् (उपदेश देना) – साधुः सज्जनाय उपदिशति। (साधु सज्जन के लिए उपदेश देता है।)

पञ्चमी विभक्तिः

अपाये सति यद् ध्रुवं तस्य अपादानसंज्ञा भवति (ध्रुवमपायेऽपादानम्), अपादाने च (अपादाने पञ्चमी इति सूत्रेण)
पञ्चमी विभक्तिः भवति। यथा – (“ध्रुवमपायेऽपादानम्” जिससे कोई वस्तु पृथक् (अलग) हो, उसकी अपादान संज्ञा होती है और “अपादाने पञ्चमी” इस सूत्र से अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. वृक्षात् पत्रं पतति।
(वृक्ष से पत्ता गिरता है।)

2. नृपः ग्रामात् आगच्छति।
(नृप गाँव से आता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

भयार्थानां रक्षणार्थानां च धातूनां प्रयोगे भयस्य यद् हेतुः अस्ति तस्य आपादान संज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (भीत्रार्थानां भयहेतुः) यथा- (“भीत्रार्थाना भयहेतुः” भय और रक्षा अर्थवाली धातुओं के साथ भय का जो हेतु है उसकी अपादान संज्ञा होती है, अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. बालकः सिंहात् विभेति।
(बालक सिंह (शेर) से डरता है।)

2. नृपः दुष्टात् रक्षति/त्रायते।
(नृप (राजा) दुष्ट से रक्षा करता है।

यस्मात् नियमपूर्वकं विद्या गृह्यते तस्य शिक्षकादिजनस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (आख्यातोपयोगे)। यथा- (“आख्यातोपयोगे” अर्थात् जिससे नियमपूर्वक विद्या ग्रहण की जाती है उस शिक्षक आदि की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. शिष्यः उपाध्यायात् अधीते।
(शिष्य उपाध्याय से पढ़ता है।)

2. छात्रः शिक्षकात् पठति।
(छात्र शिक्षक से पढ़ता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

जुगुप्सा-विराम – प्रमादार्थकधातूनां प्रयोगे यस्मात् घृणादि क्रियते तस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानम्)। यथा – (“जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानाम्” अर्थात् जुगुप्सा, घृणा करना, विराम (रुकना), प्रमाद (असावधानी करना) अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिससे घृणा आदि की जाती है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे-)

1. महेशः पापात् जुगुप्सते।
(महेश पाप से घृणा करता है।)

2. कुलदीपः अधर्मात् विरमति।
(कुलदीप अधर्म से रुकता है।)

3. मोहनः अध्ययनात् प्रमाद्यति।
(मोहन अध्ययन में असावधानी (प्रमाद) करता है।)

भूधातोः यः कर्ता, तस्य यद् उत्पत्तिस्थानम्, तस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (भुवः प्रभाव:)। यथा- (“भुवः प्रभावः” अर्थात् भू (होना) धातु के कर्ता का जो उद्गम स्थान होता है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. गंगा हिमालयात् प्रभवति।
(गंगा हिमालय से निकलती है।)

2. काश्मीरात् वितस्ता नदी प्रभवति।
(कश्मीर से वितस्ता नदी निकलती है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

जन् धातोः यः कर्त्ता, तस्य या प्रकृतिः (कारणम् = हेतुः) तस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (जनिकः प्रकृतिः)। यथा-(“जनिकर्तृः प्रकृतिः” अर्थात् ‘जन’ (उत्पन्न होना) धातु का जो कर्ता है उसके हेतु (करण) की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. गोमयात् वृश्चिक: जायते।
(गाय के गोबर से बिच्छू उत्पन्न होते हैं।)

2. कामात् क्रोधः जायते।
(काम से क्रोध उत्पन्न होता है।)

कर्ता, यस्मात् अदर्शनम् इच्छति, तस्य कारकस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (अन्तौँ येनादर्शनमिच्छति)। यथा-” (“अन्तौ येना दर्शनमिच्छति” अर्थात् जब कर्ता जिससे अदर्शनं (छिपना) चाहता है, तब उसे कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे –

1. बालकः मातुः निलीयते।
(बालक माता से छिपता है।)

2. महेश: जनकात् निलीयते।
(महेश पिता से छिपता है।)

वारणार्थानां धातूनां प्रयोगे यः ईप्सितः अर्थः भवति तस्य कारकस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः
(वारणार्थानामीप्सितः)। यथा- (“वारणार्थानामीप्सितः” अर्थात् वरण (हटाना) अर्थ की धातु के योग में अत्यन्त इष्ट (प्रिय) वस्तु की अपादान संज्ञा होती है और उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-) कृषक: यवेभ्यः गां वारयति।
(किसान जौ से गाय को हटाता है।)

यदा द्वयोः पदार्थयोः कस्यचित् एकस्य पदार्थस्य विशेषता प्रदर्श्यते तदा विशेषणशब्दैः सह ईयसुन् अथवा तर प्रत्ययस्य योगः क्रियते, यस्मात् च विशेषता प्रदर्श्यते तस्मिन् पञ्चमी विभक्तेः प्रयोगः भवति (पञ्चमी विभक्ते)। यथा- (“पञ्चमी विभक्तेः” अर्थात् जब दो पदार्थों में से किसी एक पदार्थ की विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ “ईयसुन” अथवा “तरप्” प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिसमें विशेषता प्रकट की जाती है उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. रामः श्यामात् पटुतरः अस्ति।
(राम श्याम से अधिक चतुर है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

2. माता भूमेः गुरुतरा अस्ति।
(माता भूमि से अधिक बढ़कर है।)

3. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात् अपि गरीयसी। (जननी, जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ी है।)

अधोलिखितशब्दानां योगे पञ्चमी विभक्तिः भवति। यथा –
(निम्नलिखित के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-)

1. ऋत (बिना) – ज्ञानात् ऋते मुक्तिः न भवति। (ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती हैं।)
2. प्रकृति (से लेकर) – सः बाल्यकालात् प्रभृति अद्यावधि अत्रैव पठति। (वह बाल्यकाल से लेकर आज तक यहाँ ही पढ़ता है।)
3. बहिः (बाहर) छात्राः विद्यालयात् बहिः गच्छति। (छात्र विद्यालय से बाहर जाता है।)
4. पूर्वम् (पहले) – विद्यालयगमनात् पूर्व गृहकार्यं कुरु। (विद्यालय जाने से पहले गृहकार्य करो।)
5. प्राक् (पूर्व) – ग्रामात् प्राक् आश्रमः अस्ति। (ग्राम से पहले आश्रम है।) : अन्य (दूसरा)
6. रामात् अन्यः अयं कः अस्ति? (राम से दूसरा यह कौन है?) Fitik अनन्तरम् (बाद)
7. यशवन्तः पठनात् अनन्तरं क्रीडाक्षेत्रं गच्छति। (यशवन्त पढ़ने के बाद खेल के मैदान में जाता है।)
8. पृथक् (अलग) नगरात् पृथक् आश्रमः अस्ति।
9. परम् (बाद) – रामात् परम् श्यामः अस्ति।

षष्ठी विभक्तिः 

(नगर से पृथक् आश्रम है।) (राम के बाद श्याम है।)

सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति (षष्ठि शेषे)। यथा – (“षष्ठी शेषे सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे-)
रमेशः संस्कृतस्य पुस्तकं पठति। (रमेश संस्कृत की पुस्तक पढ़ता है।)

यदा बहुषु कस्यचित् एकस्य जातिगुणक्रियाभिः विशेषता प्रदर्श्यते तदा विशेषणशब्दैः सह इष्ठन् अथवा तमप् प्रत्ययस्य योगः क्रियते यस्मात् च विशेषता प्रदर्श्यते तस्मिन् षष्ठी विभक्तेः अथवा सप्तमीविभक्तेः प्रयोगः भवति (यतश्च निर्धारणम्)। यथा- (“यतश्च निर्धारणम्” अर्थात् जब बहुत में से किसी एक की जाति, गुण, क्रिया के द्वारा विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ ‘इष्ठन्’ अथवा ‘तमप्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे-)

1. कवीनां (कविषु वा) कालिदासः श्रेष्ठ अस्ति। (सभी कवियों में कालिदास सबसे श्रेष्ठ हैं।)
2. छात्राणां (छात्रेषु वा) सुरेशः पटुतमः अस्ति। (सभी छात्रों में सुरेश सबसे अधिक चतुर है।)

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अधोलिखितशब्दाना योगे षष्ठीविभक्तिः भवति। यथा – (निम्नलिखित शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है।)

1. अधः (नीचे) – वृक्षस्य अधः बालकः शेते। (वृक्ष के नीचे बालक सोता है।)
2. उपरि (ऊपर) – भवनस्य उपरि खगाः सन्ति। (भवन के ऊपर पक्षी हैं।)
3. पुरः (सामने) – विद्यालयस्य पुरः मन्दिरम् अस्ति। (विद्यालय के सामने मंदिर है।)
4. समक्षम् (सामने) – अध्यापकस्य समक्षं शिष्यः अस्ति। (अध्यापक के समक्ष शिष्य है?)
5. समीपम् (समीप) – नगरस्य समीपं ग्रामः अस्ति। (नगर के समीप ग्राम है।)
6. मध्ये (बीच में) पशूनां मध्ये ग्वालः अस्ति। (पशुओं के बीच में ग्वाला है।)
7. कृते (के लिए) बालकस्य कृते दुग्धम् आनय। (बालक के लिए दूध लाओ।)
8. अन्तः (अन्दर) – गृहस्य अन्तः माता विद्यते। (घर के अन्दर माता है।)

तुल्यवाचिशब्दानां योगे षष्ठि अथवा तृतीया विभक्तिः भवति (तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्)। यथा –
(“तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्” अर्थात् तुलनावाची शब्दों के योग में षष्ठी अथवा तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-)

1. सुरेशः महेशस्य (महेशे वा) तुल्यः अस्ति। (सुरेश महेश के समान है।)
2. सीता गीतायाः (गीतया वा) तुल्या विद्यते। (सीता गीता के समान है।)

अन्य महत्त्वपूर्ण नियम –

‘षष्ठी हेतु प्रयोगे’ – अर्थात् हेतु शब्द का प्रयोग करने पर प्रयोजनवाचक शब्द एवं हेतु शब्द, दोनों में ही षष्ठी विभक्ति आती है। जैसे –

(i) अन्नस्य हेतोः वसति। (अन्न के कारण रहता है।)
(ii) अल्पस्य हेतोः बहु हातुम् इच्छन्। (थोड़े के लिए बहुत छोड़ने की इच्छा करता हुआ।)

‘षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन’-अर्थात् दिशावाची अतस् प्रत्यय तथा उसके अर्थ वाले प्रत्यय लगाकर बने शब्दों तथा इसी प्रकार के अर्थ के, पुरस्तात् (सामने), पश्चात् (पीछे), उपरिष्टात् (ऊपर की ओर) और अधस्तात् (नीचे की ओर) आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे –
(i) ग्रामस्य दक्षिणत: देवालयोऽस्ति। (गाँव के दक्षिण की ओर मन्दिर है।)
(ii) वृक्षस्य अधः (अधस्ताद् वा) जलम् अस्ति। (वृक्ष के नीचे की ओर जल है।)

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‘अधीगर्थदयेषां कर्मणि’-अर्थात् स्मरण अर्थ की धातु के साथ कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे-बालकः मातुः स्मरति। (बालक माता को स्मरण करता है।)
(यहाँ खेदपूर्वक स्मरण होने के कारण कर्म के स्थान पर षष्ठी हुई है।)

कर्तृकर्मणोः कृतिः – कृदन्त शब्द अर्थात् जिनके अन्त में कृत् प्रत्यय तृच् (तू), अच् (अ), घब् (अ), ल्युट् (अन्), क्तिन् (ति), ण्वुल (अक्) आदि रहते हैं। ऐसे शब्दों के कर्ता और कर्म में षष्ठी होती है।
यथा – (i) शिशोः रोदनम् (बच्चे का रोना।)
(ii) कालस्य गतिः। (समय की चाल।)

क्तस्य च वर्तमाने- भूतकाल का वाचक ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्द जब वर्तमान के अर्थ में प्रयुक्त होता है तब षष्ठी होती है। यथा-अहमेव मतो महीपतेः। (राजा मुझे ही मानते हैं।)

जासिनि प्रहणनाट क्राथपिषां हिंसायाम्-हिंसार्थक जस्, नि, तथा उपसर्गपूर्वक हन्, क्रथ, नट्, तथा पिस् धातुओं के कर्म में षष्ठी होती है। यथा – (i) बधिकस्य नाटयितुं क्राथयितुं वा (बधिक के वध करने के लिए।)
(ii) अपराधिनः निहन्तुं, प्रहन्तुं, प्राणिहन्तुं वा (अपराधी के मारने के लिए)

दिवस्तदर्थस्य-‘दिव्’ धातु का प्रयोग जुआ खेलने के अर्थ में होता है, तब उसके योग में भी कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है। यथा – शतस्य दीव्यति। (सौ का जुआ खेलता है।)

अवयवावयविभाव होने पर अंशी तथा अवयवी में षष्ठी विभक्ति होती है।
यथा – (i) जलस्य बिन्दुः। (जल की बूंद।), (ii) रात्रेः पूर्वम्। (रात्रि के पूर्व।)

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सप्तमी विभक्तिः

क्रियायाः सिद्धौ यः आधारः भवति तस्य अधिकरणसंज्ञा भवति (अधारोऽधिकरणम), अधिकरणे च (सप्तम्यधिकरणे च इति सूत्रेण) सप्तमी विभक्तिः भवति। यथा – (“आधारोऽधिकरणम्” क्रिया की सिद्धि में जो आधार होता है उसकी अधिकरण संज्ञा होती है और अधिकरण में ‘सप्तमभ्यधिकरणे च’ इस सूत्र से सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –

1. नृपः सिंहासने तिष्ठति। (राजा सिंहासन पर बैठता है।)
2. वयं ग्रामे निवसामः। (हम गाँव में रहते हैं।)
3. तिलेषु तैलं विद्यते। (तिलों में तेल है।)

यस्मिन् स्नेहः क्रियते तस्मिन् सप्तमी विभक्तिः भवति। यथा – (जिस पर स्नेह किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-)

पिता पुत्रे स्निह्यति। (पिता पुत्र को प्रेम करता है।)

संलग्नार्थकशब्दानां चतुरार्थकशब्दानां च योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। यथा – (संलग्नार्थक शब्दों तथा (युक्तः, व्याप्तः, तत्परः आदि) चतुरार्थक शब्दों (कुशलः, निपुणः, पटुः आदि) के साथ सप्तमी विभक्ति होती है। यथा-)
बलदेवः स्वकार्ये संलग्नः अस्ति। (बलदेव अपने कार्य में लगा है।)
जयदेवः संस्कृते चतुरः अस्ति। (जयदेव संस्कृत में चतुर है।)

यदा एकक्रियायाः अनन्तरं अपरा क्रिया भवति तदा पूर्वक्रियायाः तस्याश्च कर्तरि सप्तमी विभक्तिः भवति यस्य च
भावेन भावलक्षणम्)। यथा – (“यस्य च भावेन भावलक्षणम्” जब एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया होती है तब पूर्व क्रिया और उसके कर्ता में सप्तमी विभिक्ति होती है। जैसे-)

1. रामे वनं गते दशरथः प्राणान् अत्यजत्। (राम के वन जाने पर दशरथ ने प्राण त्याग दिए।)
2. सूर्ये अस्तं गते सर्वे बालकाः गृहम् अगच्छन्। (सूर्य अस्त होने पर सभी बालक घर गए।)

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अन्य महत्त्वपूर्ण नियम –

‘साध्वसाधु प्रयोगे च’-अर्थात् साधु और असाधु शब्दों के प्रयोग करने पर सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे –
कृष्ण: मातरि साधुः। (कृष्ण माता के प्रति अच्छा है।)

विषय में, बारे में तथा समयबोधक शब्दों में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे –
(i) मम मोक्षे इच्छाऽस्ति।
(मेरी मोक्ष के विषय में इच्छा है।)
(ii) सः सायंकाले पठति।
(वह शाम को पढ़ता है।)

युज् धातु तथा उससे बनने वाले योग्य अथवा उपयुक्त आदि शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे –
(i) त्रैलोकस्य अपि प्रभुत्वं तस्मिन् युज्यते। (त्रैलोक्य का भी राज्य उसके लिए उचित है।)
(ii) स धर्माधिकारे नियुक्तोऽस्ति। (वह धर्माधिकार में लगाया गया है।)

‘अप’ उपसर्गपूर्वक राध् धातु और उससे बने हुए शब्दों के योग में, जिसके प्रति अपराध होता है, उसमें सप्तमी या . षष्ठी होती है। जैसे –
(i) सा पूजायोग्ये अपराद्धा। (उसने पूज्य व्यक्ति के प्रति अपराध किया है।)
(ii) सा पूजायोग्यस्य अपराद्धा। (उसने पूज्य के प्रति अपराध किया है।)
(ii) अपराद्धोऽस्मि तत्र भवतः कण्वस्य। (पूज्य कण्व के प्रति मैंने अपराध किया है।)

फेंकना या झपटना अर्थ की क्षिप, मुच् या अस् धातुओं के साथ सप्तमी विभक्ति आती है। जैसे –
(i) नृपः मृगे बाणं क्षिपति। (राजा हिरन पर बाण फेंकता है।)
(ii) मृगेषु बाणान् मुञ्चति। (मृगों पर बाण छोड़ता है।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

व्याप्त (संलग्न), तत्पर, व्यग्र, कुशल, निपुण, दक्ष, प्रवीण आदि शब्दों के योग में सप्तमी होती है। जैसे –
(i) जनाः गृहकर्मणि व्यापृताः सन्ति। (लोग गृहकार्य में संलग्न हैं।)
(ii) ते समाजसेवायां तत्पराः सन्ति। (वे समाज सेवा में लगे हुए हैं।)
(iii) मम पिता अध्यापने कुशलः, निपुणः दक्षः वा अस्ति। (मेरे पिता अध्यापन के कार्य में कुशल निपुण हैं।)

विशेष ध्यातव्य – पृथग्विनानानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम् – पृथक्, बिना तथा नाना (बिना) के योग में द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी में से किसी भी एक विभक्ति का प्रयोग हो सकता है।

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नानां उत्तरस्य उचित विकल्पं चित्वा लिखत –
1. ‘अभितः’ शब्दस्य योगे विभक्तिः भवति –
(अ) चतुर्थी
(ब) पञ्चमी
(स) द्वितीया
(द) तृतीया
उत्तरम् :
(स) द्वितीया

2. ‘सह’ शब्दस्य योगे विभक्तिः भवति –
(अ) तृतीया
(ब) चतुर्थी
(स) पञ्चमी
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(अ) तृतीया

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

3. अङ्गविकारे विभक्तिः भवति –
(अ) प्रथमा
(ब) द्वितीया
(स) तृतीया
(द) सप्तमी
उत्तरम् :
(स) तृतीया

4. अधस्तनेषु चतुर्थी विभक्तेः कारणम् अस्ति –
(अ) नमः
(ब) सह
(स) अभितः
(द) प्रति
उत्तरम् :
(अ) नमः

5. अधस्तनेषु पंचमीविभक्तेः कारणम् अस्ति –
(अ) नमः
(ब) अनन्तरम्
(स) अधोऽधः
(द) खल्वाटः
उत्तरम् :
(ब) अनन्तरम्

6. अपादाने विभक्तिः भवति –
(अ) द्वितीया
(ब) तृतीया
(स) पञ्चमी
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(स) पञ्चमी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

7. रक्षार्थकधातूनां योगे विभक्तिः भवति –
(अ) षष्ठी
(ब) सप्तमी
(स) पंचमी
(द) तृतीया
उत्तरम् :
(स) पंचमी

8. कारकाणां संख्या अस्ति –
(अ) सप्त
(ब) अष्ट
(स) षट्
(द) नव
उत्तरम् :
(स) षट्

9. सम्बोधने विभक्तिः भवति –
(अ) द्वितीया
(ब) प्रथमा
(स) तृतीया
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(ब) प्रथमा

10. …………… सह दीर्घकालीनानां युद्धानां कारणेन मेवाडराज्य स्थिति समीचीन नासीत् –
(अ) शत्रूणाम्
(ब) शत्रुभिः
(स) शत्रुभ्यः
(द) शत्रून्
उत्तरम् :
(ब) शत्रुभिः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

11. सः …………….. निकषा गत्वा उवाच।
(अ) प्रतापम्
(ब) प्रतापस्य
(स) प्रतापेन
(द) प्रतापात्।
उत्तरम् :
(अ) प्रतापम्

12. तया सेनया च मुगलानां …………….. प्रति स्वातन्त्र्य युद्धं प्रारभत।
(अ) शासनस्य
(ब) शासनात्
(स) शासनम्
(द) शासनेन।
उत्तरम् :
(स) शासनम्

13. पितुः …………….. प्रागेव माता विपन्नाभवत्।
(अ) प्रयाणेन
(ब) प्रयाणस्य
(स) प्रयाणात्
(द) प्रयाणाय
उत्तरम् :
(स) प्रयाणात्

14. अरे धिक्……………..।
(अ) माम्
(ब) मम
(द) मयि।
उत्तरम् :
(अ) माम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

15. ……………. मल्लः सूरजमल्लः।
(अ) मल्लेषु
(ब) मल्लेभ्यः
(स) मल्ले:
(द) मल्लान्
उत्तरम् :
(अ) मल्लेषु

16. …………… सह सर्वेऽपि अनुचराः निःसरन्ति।
(अ) प्रतापस्य
(ब) प्रतापात्
(स) प्रतापाय
(द) प्रतापेन
उत्तरम् :
(द) प्रतापेन

17. रोचते ………….. एषः भद्र मयूरः।
(अ) मे
(ब) मम।
(स) माम्
(द) मयि।
उत्तरम् :
(अ) मे

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

18. एकस्य पशुचारकस्य …………… प्रति यात्रायाः प्रस्थान बिन्दुरासीत्।
(अ) महापुरुषत्वस्य
(ब) महापुरुषत्वम्
(स) महापुरुषत्वाय
(द) महापुरुषत्वे।
उत्तरम् :
(ब) महापुरुषत्वम्

प्रश्न 2.
कोष्ठकगतशब्देषु उचितविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।
1. नास्ति …………………. समः शत्रुः। (क्रोधः)
2. माता …………………. स्निहयति। (शिशु)
3. …………………. भीत: बालकः क्रन्दति। (चौर)
4. अलम् …………. (विवाद)
5. ……… ………. परितः जलम् अस्ति। (नदी)
6. …………………. रामायणं रोचते। (भक्त)
7. …………………. बहिः छात्राः कोलाहलं कुर्वन्ति। (कक्षा)
8. भिक्षुकः …………………. भिक्षां याचते। (नृप)
9. जनकः …………………. क्रुध्यति। (पुत्र)
उत्तराणि :
1. क्रोधस्य क्रोधेन वा
2. शिशौ
3. चौरात्
4. विवादेन
5. नदीम्
6. भक्ताय
7. कक्षायाः
8. नृपं
9. पुत्राय।

प्रश्न 3.
कोष्ठकेभ्यः शुद्धम् उत्तरं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
1. …………………. सह सीता वनम् अगच्छत। (रामस्य/रामेण)
2. सुरेशः …………………. पुस्तकं यच्छति। (रामम्/रामाय)
3. …………………. नमः। (रामम्/रामाय)
4. माता …………………. क्रुध्यति। (पुत्र/पुत्राय)
5. पिता …………………. स्निह्यति। (पुत्रे/पुत्रात्)
6………………….. अभितः क्षेत्राणि सन्ति। (ग्रामस्य/ग्रामम्)
7. …………………. मोदकाः रोचन्ते। (बालकाय/बालकम्)
8. बालकः …………………. अधिशेते। (पर्यङ्के/पर्यङ्कम्)
उत्तराणि :
1. रामेण
2. रामाय
3. रामाय
4. पुत्राय
5. पुढे
6. ग्रामम्
7. बालकाय
8. पर्यङ्कम्।

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प्रश्न 4.
कोष्ठाङ्कित पदे उचित विभक्तिं प्रयुज्य रिक्त स्थानं पूरयत –
(कोष्ठक में लिखे पद में उचित विभक्ति लगाकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
1. भवतु! अलम् …………….। (नाटक)
2. किं…………………… किञ्चिदपराद्धम् ? (भर्तृदारक)
3. रामदत्तोऽपि …………………. अनुसरति। (तद्)
4. रत्नापि ………………….. सार्धमायाति। (दारक)
5. ………………. अतितरां स्निह्यत्यसौ। (अस्मद्)
6. ………………. साकं युद्धं कृतवान्। (हम्मीरदेव)
7. सः …………………… आप …. अपि तीक्ष्णः। (पठन)
8. …………………… स्व पुस्तकं कस्मात् दत्तम् ?
9. सः ………………….. अपि रोचते। (अस्मद्)
10. …………………… साक …………… साकं मैत्रीवर्धनस्य न काप्यावश्यकता। (सोमधर)
11. अलं … (भिषगाह्वान्)
12. सहर्षं …………………… प्रति।। (रत्ना)
13. किं तस्य …………………… वा ? (जीवित)
14. पराक्रमं कुर्वाणः ………………… निःसृत्य युद्धरतोऽभवत्।
15. ………………….. अपि कमलं विकसति।
उत्तराणि :
1. नाटकेन
2. भर्तृदारकेण
3. तम्
4. दारकेण
5. मयि
6. हम्मीरदेवेन
7. पठने
8. तस्मै
9. मह्यम्
10. सोमधरेण
11. भिषगाह्वानेन
12. रत्नाम्
13. जीवितेन
14. दुर्गात्
15. पङ्के।

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प्रश्न 5.
समुचितविभक्तिपदेन वार्तालापं पूरयत – (उचित विभक्ति पदों से वार्तालाप को पूर्ण कीजिए-)
मोहन: – त्वं कस्मिन् विद्यालये पठसि?
हरीश: – अहं नवोदयविद्यालये पठामि।
मोहनः – तव विद्यालयः कीदृशः अस्ति?
हरीश: – मे …………
(i) (विद्यालय) परितः वनानि सन्ति।
मोहन: – त्वं विद्यालयं कदा गच्छसि?
हरीश: – अहं विद्यालयं दशवादने गच्छामि।
मोहन: – तव मित्र महेशः तु खञ्जः अस्ति।
हरीश:- आम् सः………..(ii) (दण्ड) चलति।
मोहनः – हरीश! तव माता प्रात:काले कुत्र गच्छति?
हरीश: – मम माता प्रात:काले………….. (iii) (भ्रमण) गच्छति।
मोहन: – अतिशोभनम्………….. (iv) (स्वास्थ्यलाभ) मा प्रमदितव्यम्।
सहसा शिक्षकः कक्षे प्रवेशं करोति वदति च अलम्…………. (v) (वार्तालाप)।
उत्तरम् :
(i) विद्यालयं
(ii) दण्डेन
(iii) भ्रमणाय
(iv) स्वास्थ्यलाभात्
(v) वार्तालापेण।

प्रश्न 6.
कोष्ठके प्रदत्तशब्दानां समुचितविभक्तिपदैः अधोलिखितं वार्तालापं पूरयत। (कोष्ठक में दिये गये शब्दों की उचित विभक्ति पदों से निम्नलिखित वार्तालाप को पूर्ण कीजिए-)
कमला – महेश! किं त्वमपि (i) …………..(विद्यालय) प्रति गच्छसि?
महेशः – आम् (ii) ……………..(युष्मद्) सह कः गच्छति?
कमला – मम कक्षायाः सहपाठिनः आगच्छन्ति।
महेश: – शिक्षकः अपि अधुना गच्छति।
छात्रा: – (iii) ………….(शिक्षक) नमः।
शिक्षकः – नमस्ते। प्रसन्नाः भवन्तु। (iv) ………………(ग्राम) बहिः क्रीडास्थलं गच्छन्ति भवन्तः?
छात्राः – (v) ………(विद्यालय) पुरतः क्रीडास्थले वयं क्रीडामः।
उत्तरम् :
(i) विद्यालयं
(ii) त्वया
(iii) शिक्षकाय
(iv) ग्रामात्
(v) विद्यालयस्य।

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प्रश्न 7.
कोष्ठकगतपदेषु चितविभक्तिं प्रयुज्य वाक्यानि पूरयत –
(कोष्ठक में दिये पदों में उचित विभक्ति प्रयुक्त कर वाक्यों को पूर्ण कीजिए)
(क) पुरा (i) …………..(हस्तिनापुर) शान्तनुः नाम नृपतिः अभवत्। देवव्रतः (ii) …………….(शान्तनु) गंगायाः च पुत्रः आसीत्। एकदा शान्तुनः (iii) …………..(यमुना) तीरे सत्यवतीम् अपश्यत्। यदा देवव्रतः इदं सर्व (iv) ……….(वृत्तान्त) अवागच्छत् स धीवरस्य गृहम् अगच्छत्। धीवरः सत्यवत्याः विवाहं (v) ………… (नृपति) सह अकरोत्।
उत्तरम् :
(i) हस्तिनापुरे
(ii) शान्तनोः
(iii) यमुनायाः
(iv) वृत्तान्तम्
(v) नृपतिना।

(ख) तत्र (i) …………….(ग्राम) निकषा एकः देवालयः अस्ति। देवालये बहवः जनाः आगच्छन्ति परं कोऽपि
(ii) ………(पुत्र) हीनः नास्ति।
(iii) …………..(देवालय) बहिः एक सरोवरः अस्ति। सरोवरे विकसितानि कमलानि।
(iv) ……….. (दर्शक) रोचन्ते।
(v) ………..(सरोवर) तटे एकः उद्यानम् अपि अस्ति।
उत्तरम् :
(i) ग्रामं
(ii) पुत्रैः
(iii) देवालयात्
(iv) दर्शकेभ्यः
(v) सरोवरस्य।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकम्

प्रश्न 8.
कोष्ठान्तर्गतशब्देषु उचितां विभक्तिं प्रयुज्य वाक्यानि पूरयत –
(कोष्ठक में दिये शब्दों में उचित विभक्ति प्रयुक्त कर वाक्यों को पूर्ण कीजिए-)
(i) ……………अभितः नद्यौ स्तः (ग्राम)
(ii) …………मोदकं रोचते। (बालक)
(ii) धिक्…………ये वेदान् न पठन्ति। (ब्राह्मण)
(iv) ………..योगेशः पटुः। (बालक)
उत्तरम् :
(i) ग्रामम्
(ii) बालकाय
(iii) ब्राह्मणान्
(iv) बालकेषु।

प्रश्न 9.
कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत – (कोष्ठक से उचित पद चुनकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(i) ………….विना जीवनं नास्ति। (जलम्/जलस्य)
(ii) …………. भक्तिः रोचते। (हरये/हरिः)
(iii) रामः………….जुगुप्सते। (पापेन/पापात्)
(iv) सः ……………गार्योऽस्ति। (गोत्रेण/गोत्रस्य)
(v) ईश्वरः………….वर्तते। (सर्वे/सर्वस्मिन्)
उत्तरम् :
(i) जलम्
(ii) हरये
(iii) पापात्
(iv) गोत्रेण
(v) सर्वस्मिन्।

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प्रश्न 10.
क खण्डं ख खण्डेन सह योजयत।
‘क खण्डः’ – ‘ख खण्डः’
1. दा धातुयोगे – 1. षष्ठी
2. रुच् धातुयोगे – 2. तृतीया
3. अङ्गविकारे – 3. चतुर्थी
4. सम्बन्धे – 4. चतुर्थी
5. अधितिष्ठति योगे – 5. सप्तमी
6. श्रद्धायोगे – 6. द्वितीया
7. प्रमाद्यति धातुयोगे – 7. प्रथमा
8. कर्मवाच्यस्य कर्मणि – 8. पञ्चमी
उत्तराणि :
‘क खण्डः’ – ‘ख खण्डः’
1. दा धातुयोगे – 1. चतुर्थी
2. रुच् धातुयोगे – 2. चतुर्थी
3. अङ्गविकारे – 3. तृतीया
4. सम्बन्धे – षष्ठी
5. अधितिष्ठतियोगे – 5. द्वितीया
6. श्रद्धायोगे – 6. सप्तमी
7. प्रमाद्यति धातुयोगे – 7. पञ्चमी
8. कर्मवाच्यस्य कर्मणि – 8. प्रथमा

प्रश्न 11.
अधोलिखितशब्दानां योगे चितविभक्तिप्रयोगं कृत्वा वाक्यरचनां कुरुत।
1. विना …………….
2. धिक् …………….
3. बहिः …………….
4. विभेति …………….
5. काणः …………….
6. अन्तरा …………
7. पटुतरः …………….
8.. पटुतमः …………….
9. स्वाहा …………….
10. उपवसति …………….
11. अधः …………….
12. कुशलः …………….
उत्तराणि :
1. प्रदीपः पुस्तकं विना पठति।
2. धिक् मूर्खम्
3. ग्रामात् बहिः मन्दिरम् अस्ति।
4. बालकः चौरात् विभेति।
5. सः नेत्रेण काणः अस्ति।
6. सः भोजनम् अन्तरेण जीवति।
7. रामः श्यामात् पटुतरः अस्ति।
8. छात्राणां छात्रेषु वा मोहनः पटुतमः अस्ति।
9. इन्द्राया स्वाहा।
10. श्यामः नगरम् उपवसति।
10. वृक्षस्य अधः सर्पः अस्ति।
11. शिक्षकेषु मुरारी लालः कुशलः।

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प्रश्न 12.
अधोलिखितपदानां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत – (निम्नलिखित शब्दों का संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए-)
प्रति, उद्घाटितम, सह, करणीया, अलम, बहिः, कर्तव्यः, साकम्, किम्, नीता, मग्नः, जायते, सम्भवति, अन्तरेण, याचते।
उत्तरम् :

  1. प्रति – श्रृगालः ग्राम प्रति धावति। (गीदड़ गाँव की ओर दौड़ता है।)
  2. उद्घाटितम् – अद्य त्वया मम नेत्रयुगलम् उद्घाटितम्। (आज तुमने मेरी आँखें खोल दी।)
  3. सह – रामेण सह सीतापि वनमगच्छत्। (राम के साथ सीता भी वन को गई।)
  4. करणीया – सज्जापि मया एव करणीया। (सजावट भी मुझे ही करनी है।)
  5. अलम् – अलं विवादेन। (विवाद मत करो।)
  6. वहिः – सः दुर्गाद् बहिरागच्छत्। (वह दुर्ग से बाहर आ गया।)
  7. कर्त्तव्यः – मया एव सर्वप्रथम खड्गप्रहारः कर्त्तव्यः। (मुझे ही सबसे पहले तलवार का प्रहार करना चाहिए।)
  8. साकम् – दुर्गद्वारमागत्य हम्मीरदेवेन साकं युद्धं कृतवान्। (दुर्ग के द्वार पर आकर हम्मीरदेव के साथ युद्ध किया।)
  9. किम् – किम् मम एतया मृत्तिका शकटिकया ? (मुझे इस मिट्टी की गाड़ी से क्या प्रयोजन ?)
  10. नीता- तेन श्रेष्ठिपुत्रेण सा स्वर्णशकटिका नीता। (वह श्रेष्ठ का बेटा उस सोने की गाड़ी को ले गया।)
  11. मग्न: – सः ध्याने मग्नः मां नापश्यत्। (ध्यान में डूबे हुए उसने मुझे नहीं देखा।)
  12. जायते – जलात् जायते जलजः। (कमल पानी से पैदा होता है।)
  13. सम्भवति – अन्नं पर्जन्यात् सम्भवति। (अन्न वृष्टि से होता है।)
  14. अन्तरेण – न सुखं धनमन्तरेण। (धन के बिना सुख नहीं।)
  15. याचते – रामदत्तः माम् पुस्तकं याचते। (रामदत्त मुझसे पुस्तक माँगता है।)

प्रश्न 13.
अधस्तनेषु स्थूलशब्देषु विभक्तेः कारणं लिखत –

  1. ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति।
  2. कविषु कालिदासः श्रेष्ठः।
  3. हरये रोचते भक्तिः।
  4. हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते।
  5. कृषक: ग्रामम् अजां नयति।
  6. साधुः कर्णाभ्यां बधिरः अस्ति।
  7. हिमालयात् गंगा प्रभवति।
  8. रामः श्यामाय शतं धारयति।
  9. हनुमते नमः

उत्तराणि :

  1. ‘परितः”योगे द्वितीया विभक्तिः भवति (परितः के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।)
  2. ‘इष्टन्’ अथवा ‘तमप्’ प्रत्ययस्य योगे यस्मात् च विशेषता प्रदर्शयते तस्मिन् षष्ठी विभक्तेः अथवा सप्तमी विभक्ते प्रयोगः भवति। (‘इष्ठन् ‘ अथवा ‘तमप्’ प्रत्यय के योग में जिससे विशेषता प्रदर्शित की जाती है उसमें षष्ठी विभक्ति का अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)
  3. रुच्यर्थानां प्रीयमाणः अर्थात् रुच्यर्थानां धातूनां योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। (‘रुच’ अर्थ वाली धातुओं के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।)
  4. अधि-उपसर्गपूर्वक शीङ् धातोः योगे द्वितीया विभक्ति भवति। (‘अधि’ उपसर्गपूर्वक ‘शीङ्’ धातु के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।)
  5. ‘नी’ धातोः योगे द्वितीया विभक्ति भवति। (‘नी’ (हो जाना) धातु के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
  6. “येनाङ्ग विकारः” विकृताङ्गे तृतीया विभक्तिः भवति। (“येनाङ्ग विकारः” सूत्र से विकृत अङ्ग में तृतीया विभक्ति होती है।)
  7. ‘भुवः प्रभाव:’ सूत्रेण उत्पत्तिस्थाने पञ्चमी विभक्तिः भवति। (‘भुवः प्रभावः’ सूत्र से उत्पत्ति स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।)
  8. धृञ् धातो: योगे उत्तमर्णे (ऋणदाता) चतुर्थी विभक्ति भवति। (धृञ् धातु के योग में उत्तमर्ण में (ऋणदाता में) चतुर्थी विभक्ति होती है।)
  9. नमः योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। (नमः के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।)

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प्रश्न 14.
रेखाङ्कित पदेषु विभक्ति निर्देशं कृत्वा कारण लिखत – (रेखांकित शब्दों में विभक्ति बताते हुए कारण बताइये।)
1. महत्सु श्रङगेषु महीधराणां विश्रम्य प्रयाति
उत्तरम् :
सप्तमी बहुवचनम्। अधिकरणे सप्तमी।

2. स्वेषाम् अपत्यानाम् उपरि सौहार्दत्वात् अनुग्रहं चकारः।
उत्तरम् :
षष्ठी-बहुवचनम् उपरि शब्दस्य योगे षष्ठी विभक्ति।

3. अनुकृतम् अनेन पितुः रूपम्।
उत्तरम् :
तृतीयाः एकवचनम्। कर्मवाच्यकर्तरि तृतीया।

4. मया इयं मृत्तिकाशकटिका दत्ता।
उत्तरम् :
तृतीया-एकवचनम्। कर्मवाच्ये कर्तरि तृतीयाः

5. धिङ् मुर्खान्।
उत्तरम् :
द्वितीया-बहवचनम। धिक योगे द्वितीया।

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6. मुग्धेन मुखेन अति करुणं मन्यमसि।
उत्तरम् :
तृतीया एकवचनम्। करणे तृतीया।

7. हम्मीरदेवेन साकं युद्धं कृतवान्।
उत्तरम् :
तृतीया-एकवचनम्। सहयुक्तेऽप्रधाने तृतीया।

8. हम्मीरदेवं प्रति दूतः प्रहितः।
उत्तरम् :
द्वितीया-एकवचनम्। ‘प्रति’ योगे द्वितीया।

9. महिमासाहिना सह त्वामन्तकपुरं नेष्यामि।
उत्तरम् :
तृतीया-एकवचनम्। सहयुक्तेऽप्रधाने तृतीया।

10. सर्वे दुर्गादबहिः स्थानान्तरं गच्छत।
उत्तरम् :
पञ्चमी-एकवचनम्। बहियोगे पंचमी।।

11. अधिवक्तुः पटनी रला अपि दारकेण सार्धम् आयाति।
उत्तरम् :
तृतीया-एकवचनम्। सहयुक्तेऽप्रधाने तृतीया।

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12. सोमधरः मम सुहृदस्ति।
उत्तरम् :
षष्ठी एकवचनम्। सम्बन्धे षष्ठी।।

13. सोमघरेण साकं मैत्री वर्धनस्य न काप्यावश्यकता।
उत्तरम् :
तृतीया-एकवचनम्। सहयुक्तेऽप्रधाने तृतीया।

14. त्वया सख्यमेव कस्मात् कृतम्।
उत्तरम् :
तृतीया-एकवचनम्। कर्मवाच्ये कर्तरि तृतीया।

प्रश्न 15.
रेखाङ्कित पदेषु विभक्ति निर्देशं कृत्वा कारण लिखत –
1. (i) सः लगडेन चलन्तं वृद्धम् अपश्यत्।
(i) अहम् एनं हंसम् अहनम्।
2. (i) अहं शरणार्थिनं कदापि व्याधाय न दास्यामि।
(ii) सिद्धार्थः प्रासादात. वनं निरगच्छत्।
3. (i) गंगा शान्तनोः भार्या आसीत्।
(ii) स्वां रूपवती दुहितरं मह्यं यच्छ।
4. (i) अहं सदा ब्रह्मचर्येण स्थास्यामि।
(ii) मम पित्रे स्वां दुहितरं यच्छ।
5. (i) अहं सत्यवतीं तभ्यं विवाहे. दास्यामि।
(ii) नूपतिना सह विवाहमकरोत्।
6. (i) सर्वे भूम्या सह पुत्रवत् समाचरन्तु।
(ii) प्रशासका: गुप्तसंदेशाय कपोतानाम् उपयोगम् अकुर्वन्।
7. (i) जनाः विद्यत तरंगैः संदेशं प्रेषयन्ति स्म।
(ii) सांस्कृतिक-विकासे वनानां भूमिकास्ति।
8. (i) वनानां सम्बन्धोऽपि मानवेन सह विद्यते।
(ii) सिंहः दुर्गायाः वाहनमस्ति।
9. (i) सर्वे पशुपक्षिणो देवताभिः सह सम्बद्धाः सन्ति।
(ii) पुत्रस्य नेत्राभ्याम् अश्रुधारा प्रवहति स्म।
10. (i) सः पितः चरणयोः अपतत्।
(ii) समाजे नार्याः महत्वपूर्ण स्थानं वर्तते।
11. (i) स्त्रियोऽपि पुरुषैः समं विभिन्नेषु क्षेत्रेषु प्रगतिं कुर्युः।
(ii) स राज्यकार्य विहाय समाजसेवायां प्रवृत्तोऽभवत्।
12. (i) माता पुत्रान् पोषयति।
(ii) धेनुभिः सह मातृतुलना कृता।
13. (i) सः सिंहशावकेन सह क्रीडति स्म।
(ii) गंगा-यमुना-प्रभृतयः नद्यः हिमालयात प्रभवन्ति।
14. (i) वृक्षेभ्यः नानाविधानि फलानि पुष्पाणि च उत्पद्यन्ते।
(ii) युद्धेन किं प्रयोजनम्?
15. (i) चौराद् बिभेति।
(ii) सः दण्डेन सर्प ताडितवान्।
16. (i) मेदपाटस्य महिमा देशरक्षायै विशिष्टरूपेण उल्लेखनीया।
(ii) प्रतापात भीताः शत्रवः मेदपाटं न आयाताः।
17. (i) संग्रामसिंहः युद्धे शत्रुभ्यः अक्रुध्यत्।
(ii) सः युद्धक्षेत्रे अक्ष्णा काणः अभवत्।
18. (i) सः पादेन खञ्जः।
(ii) सः पर्यकम् अधिशेते।
19. (i) सः आसन्दिकाम् अध्यास्ते।
(ii) नमः शिवाय।
20. (i) सः हस्तेन लुञ्जः अभवत्।
(ii) पिता पुत्राय क्रुध्यति।
उत्तराणि :
1. (i) करण कारके तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) कर्मणि द्वितीया विभक्तिः भवति।

2. (i) सम्प्रदाने चतुर्थी विभक्तिः भवति।
(ii) अपादाने पञ्चमी विभक्तिः भवति।

3. (i) सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति।
(ii) सम्प्रदाने चतुर्थी विभक्तिः भवति।

4. (i) करण कारके तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) सम्प्रदाने चतुर्थी विभक्तिः भवति।

5. (i) सम्प्रदाने चतुर्थी विभक्तिः भवति।
(ii) ‘सह’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।

6. (i) ‘सह’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) सम्प्रदाने चतुर्थी विभक्तिः भवति।

7. (i) करण कारके तृतीय विभक्तिः भवति।
(ii) अधिकरणे सप्तमी विभक्तिः भवति।

8. (i) ‘सह’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति।।

9. (i) ‘सह’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) अपादाने पञ्चमी विभक्तिः भवति।

10. (i) सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति।
(ii) अधिकरणे सप्तमी विभक्तिः भवति।

11. (i) ‘समम्’ योगे द्वितीया विभक्तिः भवति।
(ii) कर्मणि द्वितया विभक्तिः भवति।

12. (i) कर्मणि द्वितीया विभक्तिः भवति।
(ii) ‘सह’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।

13. (i) ‘सह’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) उत्पत्ति स्थाने पञ्चमी विभक्तिः भवति।

14. (i) उत्पत्ति स्थाने पञ्चमी विभक्तिः भवति।
(ii) ‘प्रयोजन’ योगे तृतीया विभक्तिः भवति।

15. (i) ‘भी’ धातोः योगे पञ्चमी विभक्तिः भवति।
(ii) करण कारके तृतीया विभक्तिः भवति।

16. (i) सम्प्रदाने चतुर्थी विभक्तिः भवति।
(ii) ‘भी’ धातोः योगे पञ्चमी विभक्तिः भवति।

17. (i) ‘कृध्’ धातोः योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति।
(ii) येनाङ्ग विकारे तृतीया विभक्तिः भवति।

18. (i) येनाङ्ग विकारे तृतीया विभक्तिः भवति।
(ii) अधि + शी धातोः योगे द्वितीया विभक्तिः भवति।

19. (i) अधि + आस् धातोः योगे द्वितीया विभक्तिः भवति।
(ii) नमः धातोः योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति।

20. (i) येनाङ्ग विकारे तृतीया विभक्तिः भवति।।
(i) ‘क्रुध्’ धातोः योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति।

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प्रश्न 16.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. राजपुरुषः चौरस्य अनुधावति।
2. ग्रामस्य परितः जलम् अस्ति।
3. साधुः दुर्जनेन जुगुप्सते।
4. अहं रेलयानात् ग्रामं गमिष्यामि।
उत्तरम् :
1. राजपुरुषः चौरम् अनुधावति।
2. ग्रामम् परितः जलम् अस्ति।
3. साधुः दुर्जनात् जुगुप्सते।
4. अहं रेलयानेन ग्रामं गमिष्यामि।

प्रश्न 17.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. ईश्वरं नमः।
2. अध्यापकः आसनम् तिष्ठति।
3. मह्यं मिष्टान्नं रोचते।
4. अलं विवादम्।
उत्तरम् :
1. ईश्वराय नमः।
2. अध्यापकः आसने तिष्ठति।
3. माम् मिष्टान्नं रोचते।
4. अलं विवादेन।

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प्रश्न 18.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. विद्यालयम् अभितः वाटिका।
2. ग्रामस्य परितः जलम् अस्ति।
3. श्रमस्य विना फलं न मिलति।
4. अहं रेलयांनात् ग्रामं गमिष्यामि।
उत्तरम् :
1. विद्यालस्य अभितः वाटिका।
2. ग्रामं परितः जलम् अस्ति।
3. श्रमात, श्रम, श्रमेण वा विना फलं न मिलति।
4. अहं रेलयानेन ग्रामं गमिष्यामि।

प्रश्न 19.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. महावीरं नमः।
2. हरिः मथुरायाम् अधितिष्ठिति।
3. शिवः पार्वत्याः सह तिष्ठति।
4. अलं विवादम्।
उत्तरम् :
1. महावीराय नमः
2. हरिः मथुराम् अधितिष्ठति
3. शिवः पार्वत्या सह तिष्ठति
4. अलं विवादेन।

प्रश्न 20.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि
1. व्याघ्रः मृगेषु हन्ति।
2. सिंहः शावका: व्यांपादयति।
3. अहं तुभ्यं न पश्यामि।
4. स: गुरवे प्रणमति।
5. ग्रामस्य परितः जलम् अस्ति।
उत्तरम् :
1. व्याघ्रः मृगान् हन्ति।
2. सिंहः शावकान् व्यापादयति।
3. अहं त्वाम् न पश्यामि।
4. स: गुरुं प्रणमति।
5. ग्रामं परितः जलम् अस्ति।

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प्रश्न 21.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. रामः शरात् रावणं हन्ति।
2. आवां कन्दुकात् क्रीडामः।
3. रामः ग्रन्थः पठ्यते।
4. सः स्वपितुः सह आपणं गच्छति।
5. शिक्षकः पादात् खञ्जः।।
उत्तरम् :
1. रामः शरेण रावणं हन्ति।
2. आवां कन्दुकेन क्रीडामः।
3. रामेण ग्रन्थः पठ्यते।
4. सः स्व पित्रा सह आपणं गच्छति।
5. शिक्षकः पादेन खञ्जः।

प्रश्न 22.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. सः पुष्पान् स्पृहयति।
2. धनिकः निर्धनं भोजनं ददाति।
3. नृपः विप्रान् धनं वितरति।
4. माम् मोदकं रोचते।
5. कः मित्रं द्रुह्यति।
उत्तरम् :
1. सः पुष्पेभ्यः स्पृहयति।
2. धनिकः निर्धनाय भोजनं ददाति।
3. नृपः विप्रेभ्यः धनं वितरति।
4. मह्यं मोदकं रोचते।
5. कः मित्राय द्रुह्यति ?

प्रश्न 23.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
1. मानवः सिंहेन बिभेति।
2. सुमित्रं पापेन निवारयति।
3. शिष्यः आचार्येण बिभेति।
4. ग्रामस्य बहिर् एकम् उद्यानम्।
5. ब्रह्मणा प्रजाः प्रजायन्ते।
उत्तरम् :
1. मानवः सिंहात् बिभेति।
2. सुमित्रं पापात् निवारयति।
3. शिष्यः आचार्यात् बिभेति।
4. ग्रामात् बहिर् एकम् उद्यानम्।
5. ब्रह्मणः प्रजाः प्रजायन्ते।

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प्रश्न 24.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि
1. बालक: मातरम् स्मरति।
2. अर्जुनः पाण्डुना पुत्रः आसीत्।
3. देवदत्तः अन्नाय हेतोः वसति।
4. सर्वैः पित्रा आज्ञा पालनीया।
उत्तरम् :
1. बालकः मातुः स्मरति।
2. अर्जुनः पाण्डोः पुत्रः आसीत्।
3. देवदत्तः अन्नस्य हेतोः वसति।
4. सर्वैः पितुः आज्ञा पालनीया।

प्रश्न 25.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि
1. सः मया वैरं विदधाति।
2. बालकः कार्यस्य कुशलः अस्ति।
3. शिष्यः अध्ययनेन रतः।
4. सूर्यस्य अस्तंगते छात्राः गृहम् आगच्छन्।
5. शिष्यः गुरोः भक्तिं करोति।
उत्तरम् :
1. स: मयि वैरं विदधाति।
2. बालकः कार्ये कुशलः अस्ति।
3. शिष्यः अध्ययने रतः।
4. सूर्ये अस्तंगते छात्राः गृहम् आगच्छन्।
5. शिष्यः गुरौ भक्तिं करोति।

प्रश्न 26.
अधोलिखित कारकाणां लक्षणानि उदाहरणानि च लिखत।
(नीचे लिखे कारकों के लक्षण और उदाहरण लिखिए।)
(क) करणम्
(ख) सम्प्रदानम्
(ग) अपादानम्
(घ) अधिकरणम्।
उत्तरम् :
(क) करणम् – (i) साधकतमं करणम् (ii) कर्तृकरणयो स्तृतीया-गोपाल: जलेन मुखं प्रक्षालयति।
(ख) सम्प्रदानम् – (i) कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम् (ii) चतुर्थी सम्प्रदाने-ब्राह्मणाय गां ददाति।
(ग) अपादानम् – (i) ध्रुवमपायेऽपादानम् (ii) अपादान पञ्चमी-वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(घ) अधिकरणम् – (i) आधारोऽधिकरणम् (ii) सप्तम्यधिकरणे च-आसने उपविशति।

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प्रश्न 27.
कारकस्य परिभाषा लेखनीया। (कारक की परिभाषा लिखिए।)
उत्तरम् :
‘क्रियाजनकत्वं कारकम अथवा क्रियां करोति निवर्तयति इति कारकम’ अतः यः क्रियां सम्पादयति अथवा यस्य क्रियया सह साक्षात् परम्परया वा सम्बन्धो भवति सः कारक इति कथ्यते।

प्रश्न 28.
संस्कृते कति कारकाणि सन्ति? तेषां नामानि लिखत। (संस्कृत में कितने कारक हैं? उनके नाम लिखिए।)
उत्तरम् :
संस्कृते षट् कारकाणि सन्ति-कर्ता, कर्म, करणम्, सम्प्रदानम्, अपादानम्, अधिकरणम् च। सम्बोधने प्रथमा विभक्तिः एव भवति, अतः अस्य परिगणनं प्रथमायामेव भवति। सम्बन्धस्य परिगणना कारकान्तर्गते न भवति।

प्रश्न 29.
अधोलिखितशब्देषु उचितविभक्तिप्रयोगं कृत्वा वाक्यरचनां कुरुत।
(निम्नलिखित शब्दों में उचित बिभक्ति का प्रयोग करके वाक्य बनाइए-)
1. विना ………….
2. धिक ………….
3. बहिः ………….
4. बिभेति ………….
5. काणः ………….
6. अन्तरा ………….
उत्तराणि :
1. विना – ज्ञानं विना न सुखम्
2. धिक् – धिक मूर्खम
3. बहिः – नगरात्बहिः उपवनम् अस्ति।
4. बिभेति – बालकः चौरात् बिभेति
5. काण: – नेत्रेण काण:
6. अन्तर – रामम् अन्तरा न गतिः।

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प्रश्न 30.
अधोलिखितशब्देषु उचितविभक्तिप्रयोगं कृत्वा वाक्यरचनां कुरुत।
1. पटुतरः ………….
2. पटुतमः ………….
3. स्वाहा ………….
4. उपवसति ………….
5. अधः ………….
6. कुशलः ………….
उत्तराणि :
1. पटुतर: – राम कृष्णात् पटुतरः
2. पटुतमः – कवीनां कविषु वा कालिदासः पटुतमः
3. स्वाहा – इन्द्राय स्वाहा
4. उपवसति – हरिः वैकुण्ठम् उपवसति।
5. अध: – वृक्षस्य अधः कृष्णसर्पः निवसतिस्म।
6. कुशल – मम पिता अध्यापने कुशलः।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित चार विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर धुनिएप्रश्न:
1. भारत का सबसे उत्तरी अक्षांश कौन-सा है
(क) 37°6′
(ख)8°4
(ग) 97°25
(घ) 68°7′
उत्तर:
(क) 37°6′.

प्रश्न 2.
मिजोरम, मणिपुर, नागालैण्ड एवं अरुणाचल प्रदेश की सीमाएँ किस देश को छूती हैं
(क) बांग्लादेश
(ख) पाकिस्तान
(ग) अफगानिस्तान
(घ) म्यांमार।
उत्तर:
(घ) म्यांमार।

प्रश्न 3.
भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम बिन्दु है
(क) कन्याकुमारी
(ख) इन्दिरा बिन्दु
(ग) अण्डमान
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(क) कन्याकुमारी।

प्रश्न 4.
कौन-सी रेखा भारत को दो भागों में बाँटती है
(क) मकर रेखा
(ख) भूमध्य रेखा
(ग) कर्क रेखा
(घ) मानक याम्योत्तर रेखा।
उत्तर:
(ग) कर्क रेखा।

प्रश्न 5.
भारत और यूरोप के मध्य किस नहर के कारण दूरी कम हो गई है
(क) पनामा नहर
(ख) स्वेज नहर
(ग) गंग नहर
(घ) इन्दिरा गाँधी नहर।
उत्तर:
(ख) स्वेज नहर।।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत किस गोलार्द्ध में स्थित है?
उत्तर:
भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।

प्रश्न 2.
भारत का अक्षाशीय विस्तार क्या है?
उत्तर:
भारत 8° 4 उत्तरी से 37° 6 उत्तरी अक्षांशों के मध्य स्थित है।

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प्रश्न 3.
भारत का देशान्तरीय विस्तार क्या है?
उत्तर:
भारत का देशान्तरीय विस्तार 68° 7 पूर्व से 97° 25 पूर्वी देशान्तर के मध्य है।

प्रश्न 4.
अरुणाघल शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अरुणाचल शब्द का अर्थ है सूरोंदय की भूमि। हमारे देश के एक पूर्वी प्रान्त का क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश है।

प्रश्न 5.
भारत के दो प्रमुख द्वीप समूं कौन-कौन से हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह।
  2. लक्षद्वीप द्वीप समूह।

प्रश्न 6.
भारत के भू-भाग का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर:
लगभग 32.8 लाख वर्ग किमी।

प्रश्न 7.
भारत का क्षेत्रफल सम्पूर्ण विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत है?
उत्तर:
2.4 प्रतिशत।

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प्रश्न 8.
भारत की स्थलीय सीमा रेखा की लम्बाई कितनी है?
उत्तर:
लगभग 15,200 किमी।

प्रश्न 9.
भारतीय भूखण्ड कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारतीय भूखण्ड एशिया महाद्वीप के पूर्व और पश्चिम के मध्य में स्थित है।

प्रश्न 10.
स्वेज नहर के खुलने से भारत और यूरोप के मध्य कितनी दूरी कम हो गई?
उत्तर:
7,000 किमी.।

प्रश्न 11.
भारत का मानक याम्योत्तर किस देशान्तर रेखा को माना गया है?
उत्तर:
82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा को।

प्रश्न 12.
भारत की मानक याम्योत्तर रेखा कहाँ से गुजरती है?
उत्तर:
भारत की मानक याम्योत्तर रेखा उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर से गुजरती है।

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प्रश्न 13.
भारत में कितने राज्य और केन्द्र-शासित क्षेत्र हैं?
उत्तर:
भारत में 28 राज्य और 8 केन्द्र-शासित क्षेत्र हैं।

प्रश्न 14.
भारत के पड़ोसी दो द्वीपीय राष्ट्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
श्रीलंका और मालदीव।

प्रश्न 15.
सन् 1947 से पूर्व भारत में कितने प्रकार के राज्य थे? नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रान्त, रियासत।

प्रश्न 16.
भारत की उत्तर-दक्षिण लम्बाई कितनी है ?
उत्तर:
3,214 किमी.।

प्रश्न 17.
भारत की पूर्व-पश्चिम चौड़ाई कितनी है?
उत्तर:
2,933 किमी.।

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प्रश्न 18.
सन् 2004 से पूर्व भारतीय संघ राज्य का सबसे दक्षिणी बिन्दु कौन-सा था?
उत्तर:
इन्दिरा बिन्दु।

प्रश्न 19.
भारत का कौन-सा स्थान जो सन् 2004 में सुनामी लहरों के कारण समुद्र में जलमग्न हो गया?
उत्तर:
इन्दिरा बिन्दु।

प्रश्न 20.
भारत के दक्षिण में कौन-सा महासागर स्थित है?
उत्तर:
हिन्द महासागर।

प्रश्न 21.
अण्डमान और निकोबार एवं लक्षद्वीप सहित भारत की मुख्य भूमि की तट रेखा की कुल लम्बाई कितनी है?
उत्तर:
लगभग 7,5166 किमी.।

प्रश्न 22.
भारत की कौन-सी सीमा पर नवीनतम वलित पर्वत स्थित है?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिम, उत्तर एवं उत्तर-पूर्वी सीमा पर नवीनतम वलित पर्वत स्थित है।

प्रश्न 23.
गुजरात से अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय समय में कितना अन्तर है?
उत्तर:
लगभग 2 घण्टे का।

प्रश्न 24.
भारत के अक्षांशीय विस्तार का एक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भारत के अक्षांशीय विस्तार का प्रभाव दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर दिन और रात की अवधि पर पड़ता है।

प्रश्न 25.
भारत और श्रीलंका के मध्य जलसच्धि एवं खाड़ी का नाम बताइए।
उत्तर:
पाक जल सन्धि एवं मन्नार की खाड़ी।

प्रश्न 26.
स्वेज नहर को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए कब खोला गया?
उत्तर:
सन् 1869 ई. में।

प्रश्न 27.
भारत के किन-किन राज्यों की सीमाएँ नेपाल से लगती हैं।
उत्तर’:
उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल एवं सिक्किम।

प्रश्न 28.
मालदीव कहाँ स्थित है?
उत्तर:
मालदीव लक्षद्वीप समूह के दक्षिण में स्थित है।

प्रश्न 29.
ऐसी दो वस्तुओं के नाम बताइए जिनका प्राचीन काल में भारत से निर्यात होता था?
उत्तर:
मसाले तथा मलमल।

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प्रश्न 30.
पड़ौसी देशों के साथ भारत के भौगोलिक एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध कैसे रहे हैं?
उत्तर:
अपने पड़ौसी देशों के साथ भारत के भौगोलिक एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध बहुत अच्छे रहे हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार के प्रभावों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत के अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4′ उत्तरी से 37°6′ उत्तरी अक्षांश है। इसके अधिक विस्तार के कारण उत्तरी भागों की जलवायु परिस्थितियाँ अत्यन्त कठोर हैं अर्थात् सर्दियों में अधिक सर्दी एवं गर्मियों में अधिक गर्मियाँ पड़ती हैं।
  2. भारत का देशान्तरीय विस्तार 6807′ पूर्वी से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य है। इस प्रकार देशान्तरीय विस्तार लगभग 30° है। इस वृहद् विस्तार के कारण भारत के पूर्वी भाग में सूर्योदय पश्चिमी भागों की तुलना में पहले हो जाता है। इसके बीच दो घण्टे का अन्तर होता है।
  3. अक्षांश का प्रभाव दक्षिण से उत्तर की ओर दिन-रात की अवधि पर पड़ता है। भारत के दक्षिण में स्थित कन्याकुमारी में दिन-रात की अवधि में कम अन्तर पाया जाता है, जबकि भारत के उत्तर में स्थित कश्मीर में अधिक पाया जाता है।

प्रश्न 2.
आकार की दृष्टि से भारत एक विशाल देश है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत विश्व का सातवाँ बड़ा देश है। भारत के कुल भूभाग का क्षेत्रफल लगभग 32.8 लाख वर्ग कि. मी. है। यह विश्व के भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। भारत की स्थल सीमारेखा की लम्बाई 15,200 कि. मी. है तथा इसकी समुद्र तटरेखा की लम्बाई 7,516.6 कि. मी. है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत आकार की दृष्टि से एक विशाल देश

प्रश्न 3.
भारत के सन्दर्भ में स्थलीय एवं समुद्रीय मार्गों के महत्व की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत के सन्दर्भ में स्थलीय एवं समुद्रीय मार्गों का महत्व निम्नलिखित है

  1. भारत का विश्व के अन्य देशों के साथ सम्पर्क बहुत पुराना है परन्तु यह सम्पर्क समुद्री जलमार्गों की अपेक्षा स्थलीय भागों से अधिक था। इन मार्गों ने प्राचीन समय से ही विचार एवं वस्तुओं के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  2. इस प्रकार से उपनिषदों एवं रामायण के विचार, पंचतन्त्र की कहानियाँ, भारतीय अंक एवं दशमलव प्रणाली आदि विश्व के विभिन्न भागों तक फैल गये।
  3. मसाले, मलमल एवं वस्त्र तथा ऐसी बहुत-सी व्यापारिक वस्तुएँ भारत से विभिन्न देशों तक पहुँची।
  4. दूसरी ओर यूनानी स्थापत्यकला तथा पश्चिमी एशिया की मीनार एवं गुम्बदों की वास्तुकला शैलियाँ भारत के विभिन्न भागों में देखी गयी हैं।

प्रश्न 4.
भारत तथा हिन्दमहासागर के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत एशिया महाद्वीप के पूर्व और पश्चिम के मध्य में स्थित है। भारतीय भू-भाग एशिया महाद्वीप का दक्षिणी विस्तार है। हिन्द महासागर जो कि पश्चिम में यूरोपीय देशों और पूर्वी एशियाई देशों को मिलाता है इसलिए भारत को केन्द्रीय स्थिति प्रदान करता है। हिन्द महासागर में किसी भी देश की तटीय सीमा भारत जैसी नहीं है। भारत की इसी महत्वपूर्ण स्थिति के कारण इसका नाम हिन्द महासागर रखा गया है।

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प्रश्न 5.
उपमहाद्वीप किसे कहते हैं? भारत को प्रायः उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
एक विशाल एवं विशिष्ट भौगोलिक इकाई, जो शेष महाद्वीप से एक स्पष्ट भिन्नता रखती है, उसे उपमहाद्वीप कहते हैं। हिमालय पर्वत भारत को शेष एशिया महाद्वीप से स्पष्ट भिन्नता प्रदान करता है इसलिए भारत को प्रायः एक उपमहाद्वीप कहा जाता है। इसके अन्तर्गत भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका आते हैं।

प्रश्न 6.
भारत के लिए हमें एक मानक याम्योत्तर की आवश्यकता क्यों है? संक्षेप में बताइए। उत्तर-भारत के लिए हमें एक मानक याम्योत्तर की आवश्यकता निम्न कारणों से है

  1. भारत का देशान्तरीय विस्तार विस्तृत है अर्थात् यह 6807′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक लगभग 30° में फैला हुआ है।
  2. भारत के सबसे पूर्वी एवं सबसे पश्चिमी स्थानों के मध्य लगभग 2 घण्टे के समय का अन्तर है अर्थात् अरुणाचल प्रदेश से गुजरात के स्थानीय समय में दो घण्टे का अन्तर है।
  3. भारत तथा अन्य किसी भी देश के लिए एक मानक समय के निर्धारण की आवश्यकता होती है अन्यथा देश के विभिन्न भागों की घड़ियों में अलग-अलग समय होगा जिससे अनेक प्रकार की व्यावहारिक समस्याएँ उत्पन्न होंगी। इसलिए प्रत्येक देश में मानक समय निर्धारण के लिए एक मानक याम्योत्तर का निर्धारण आवश्यक है। अत: स्थानीय समय में समानता लाने के लिए भारत के लिए 82°30′ पूर्वी देशान्तर को मानक याम्योत्तर रेखा माना गया है।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
संसार के रेखीय मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए

  1. भारत,
  2. एशिया,
  3. यूरोप,
  4. अफ्रीका,
  5. ऑस्ट्रेलिया,
  6. उत्तरी अमेरिका,
  7. दक्षिणी अमेरिका,
  8. अटलांटिक महासागर,
  9. हिन्द महासागर,
  10. प्रशान्त महासागर।

उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Important Questions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति 1

प्रश्न 2.
दिये गये रेखा मानचित्र में निम्न को दर्शाइए:
1. दिल्ली और बैंकाक के मध्य वायु मार्ग।
2. कोलकाता और टोकियो के मध्य वायु मार्ग।
3. मुम्बई और सिंगापुर के मध्य समुद्री मार्ग।
4. मुम्बई और स्वेज नहर के मध्य समुद्री मार्ग।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
भारत के रेखा मानचित्र में निम्न को दर्शाइए:

  1. सबसे बड़ा राज्य,
  2. सबसे छोटा राज्य,
  3. मानक याम्योत्तर रेखा,
  4. मध्य प्रदेश,
  5. प. बंगाल,
  6. गुजरात,
  7. केरल,
  8. कर्क रेखा।

JAC Class 9 Social Science Important Questions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति 3

प्रश्न 4.
दिए गए रेखाचित्र का अध्ययन कर निम्न प्रश्नों का
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Important Questions Geography Chapter 1 भारत-आकार वे स्थिति 4
दीजिए चित्र-विश्व के सात बड़े देश
1. दिए गए रेखाचित्र में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा देश कौन-सा है?
2. दिए गए रेखाचित्र में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा देश कौन-सा है?
3. किन्हीं दो देशों के नाम बताइए जिनका क्षेत्रफल भारत से अधिक है?
उत्तर:

  1. रूस,
  2. भारत,
  3. रूस एवं चीन।

JAC Class 9 Social Science Important Questions

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution

JAC Class 9th History Socialism in Europe and the Russian Revolution InText Questions and Answers 

Activity (Page No. 28)

Question 1.
List two differences between the capitalist and socialist ideas of private property.
Answer:
The following are the two differences between the capitalist and socialist ideas about private property :

  1. Capitalists believe in private property and a class-based society, but socialists believe in collective property and a class-less society.
  2. Capitalists believe that the profit should be enjoyed by the owners of the industry, but socialists believe that the profits are the result of the worker’s labour, so the workers deserve to share it.

Activity (Page No. 29)

Question 1.
Imagine that a meeting has been called in your area to discuss the socialist idea of doing away with private property and introducing collective ownership. Write the speech you would make at the meeting if you are :
(a) A poor labourer working in the fields.
(b) A medium-level land owner.
(c) A house owner.
Answer:
(a) A poor labourer working in the fields Dear Friends:
Nature has not done any partiality in providing resources to everyone and so some people own more land than others. All the profits from our crops are the results of hard work done by people like us in planting seeds. Watering the crops, keeping them free from weeds and harvesting them.

So I think, we the labourers should share in the profits made from sale of crops, instead of getting a subsistence wage. To enable this, private ownership of property needs to be abolished and collective ownership of the fields by all the labourers who are working on it be introduced. This is in the interest of the poor labourers working in the field.
Thank you.

(b) A medium level land owner:
Dear Friends, the idea of socialism is good but I do not agree that private ownership of property should be removed. It is not rational and will reduce the crop production. You will not try to increase crop production if the whole profit is not going to you.

In fact, what should be done is the equitable distribution of land so that only a few people do not own large areas of land. While others have to manage with small areas of land or are deprived completely of any land ownership. So all should be land owners, so that everybody benefitted. Thank you.

(c) A house owner:
Respected friends. I think everybody should have the basic necessities of life like food, cloth and shelter but not at the expense of other people’s property. Those who do not have land should be given the means to earn their livelihood. But with the abolition of private property and collective ownership, the creative potential of the people will slow down.

Thus, after some time, the collective wealth will become zero. Because every one would like to take something from it and nothing will be added to it. Therefore there should be equality in property ownership but not capitalism. Thank you.

Activity (Page No. 33)

Question 1.
Why were there revolutionary disturbances in Russia in 1905? What were the demands of revolutionaries?
Answer:
1. The reasons for the revolutionary disturbances in Russia in 1905 were as following:
(a) Prices of essential goods rose so quickly that real wages declined by 20 ‘ per cent. When four members of the Assembly of Russian Workers, which had been formed in 1904, were dismissed at the Putifov Iron Works, there was a call for industrial action.

(b) When the procession of workers led by Father Gapon reached the Winter Palace, it was attacked by the police and the Cossacks. Over 100 workers were killed and about 300 wounded.

2. The demands of revolutionaries were:
(a) Reduction in the working day to eight hours,
(b) An increase in wages, and
(c) Improvement in working conditions.

Activity (Page No. 34)

Question 1.
The year is 1916. You are a general in the Tsar’s army on the eastern front. You are writing a report for the government in Moscow. In your report suggest what you think the government should do to improve the situation.
Answer:
Report for Russian Government from the War Front. Sir, our army is fighting very well on the eastern front, but many soldiers lost their lives till now. Due to this, remaining soldiers are losing their morale.
They do not wish to fight such a war. Thus, I request you to think about some other warfare strategies like Guerilla war to save the soldiers from disappointment. Sincerely yours General of the Russian Army

Activity (Page No. 36)

Question 1.
Look again at Source A and Box 1.
1. List five changes in the mood of the workers.
2. Place yourself in the position of a woman who has seen both situations and write an account of what has changed.
Answer:
1. In 1920s and 1930s, India was a colony of the British and there existed caste and class differences. Most of the population was ignorant, backward and poor. Naturally, Indians like Shaukat Usmani and Rabindranath Tagore who visited USSR during this period were impressed to see the level of development of the nation and progress of the people in a short span of 10 years.

Freedom from the Tsar, they felt, had ended class and religious barriers. People appeared happy, satisfied, confident and fearless, while just a decade ago, they too were miserable, hungry, ignorant and illiterate. Asians and Europeans mingled freely, bound by a sense of brotherhood.

2. The writers failed to notice the essential freedom denied to the citizens, The people of USSR were not free to do as they liked. The Bolsheviks ruled like dictators and followed repressive policies to repidly develop the nation. The hard lives and poor working conditions of the people went unnoticed by these writers.

Activity (Page No. 48)

Question 1.
Imagine that you are a striking worker in 1905 who is being tried in court for your act of rebellion. Draft the speech you would make in your defence. Act out your speech for your class.
Answer:
Your honour, as a worker, I did not commit any crime by participating in the rebellion of 1905. You know how the price of bread has gone up. My wages accordingly should have been increased so that my family did not starve. We eat only one meal a day, as there is no money to buy more food.

So what is wrong if I demand increase in wages? I am forced to work 15 hours a day, which is wrong. I have demanded an 8-hour working day, which is quite reasonable. Have I committed a crime in that? Now, I leave it to you to decided whether I am a criminal or not.

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution

Question 2.
Write the headline and a short news item about the uprising of 24 October 1917 for each of the following newspapers :
1. a Conservative paper in France.
2. a Radical newspaper in Britain.
3. a Bolshevik newspaper in Russia.
Answer:
1. For a conservative newspaper in France.
The Suppression of a Bolshevik Rebel: At dawn, military men seized the building of two Bolshevik newspapers. Pro-government troops were sent to take over telephone and telegraph offices and protect the Winter Palace.

2. For a Radical Newspaper in Britain:
Recognition of Bolshevik activity The city is in control of Bolshevik revolutionaries. All ministers have surrendered. At a meeting of the All Russian Congress of Soviets in Petrograd, the majority approved the Bolshevik action.

3. For a Bolshevik newspaper in Russia:
Bolsheviks win the war: The party has seized the Winter Palace and other Military Revolutionary Committees. We the people of Russia and followers of Bolshevik have finally captured the centre of power of government, i.e. the Moscow Petrograd area.

Question 3.
Imagine that you are a middle-level wheat farmer in Russia after collectivisation. You have decided to write a letter to Stalin explaining your objections to collectivisation. What would you write about the conditions of your life? What do you think would be Stalin’s response to such a farmer?
Answer:
To,
Sir Stalin
Leader of the Soviet Union,
Moscow
Respected Sir,
I am a middle-level wheat farmer. I work very hard to produce crops. I obtain sufficient grain from this field which is enough to fulfill the necessities of my family. Therefore, grant me order to do farming on my own field and free my field from collectivisation.

Yours faithfully
Mikhael

(ii) Response of Stalin
To
Mikhael
New Street, Petrograd
Dear Mikhael
I received your letter. You are obedient and find your right way. But you are not aware from collectivisation through which production would be increased and source of income too. Its reason is excessive dependence of agriculture on modern techniques. We are not taking your field, but instead are sharing the profits with others for unity and prosperity of the society. Therefore, you should obey the orders.
Thanks

Your well-wisher
Stalin

JAC Class 9th History Socialism in Europe and the Russian Revolution Textbook Questions and Answers 

Question 1.
What were the social, economic and political conditions of Russia before 1905?
Answer:
1. Social Conditions :
The Europet countries had undergone important social changes during the 19th century, it the base of Russian Society was still feudalistic.

(a) The society was divided into two classes. The privileged class, which comprised of prosperous and influential people who had all the political and other rights.

(b) The non-privileged class, which consisted of farmers and workers formed about 90% of the Russian population. They had to work hard to meet their both ends.

2. Economic Conditions :
(a) Backwardness of industry and agriculture was the factor responsible for the Russian revolution.

(b) The peasants had to pay heavy dues for the land that they got. Their holdings were small and they had no resources to develop the land. Therefore, they occasionally pooled their land together into a commune and divided their income according to the efforts and needs of various families.

(c) The workers could be divided into three categories. The ‘State Factories’ were manned by peasants who came from the villages. The ‘Professional Factories’ were operated by skilled workers who had settled in cities. The ‘Manorial Factories’ were owned by landowners and operated on their estates.

(d) Women were employed in factories in large numbers, but they were paid much less than men.

3. Political Conditions :
(a) Tsar Nicholas II was an inefficient and short-sighted person. He was ruthless ruler, having no concern with administration or the welfare of his subjects.

(b) The common masses or their representatives had no participation in the political system of the country.

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution

Question 2.
In what ways was the working population in Russia different from other countries in Europe, before 1917?
Answer:
Working population of Russia was vastly different from other European countries in the following ways
1. About 85% of the Russians, even in the early 20th century, were agriculturists. This proportion was much higher than other European countries.

2. Peasants were divided into groups. These divisions were incorporated due to religious sentiments. Unlike European peasants, Russian peasants had no respect for nobles. They wanted the land of nobles to be given to them. They refused to pay rent and even murdered the landlords.

3. Unlike European peasants, they were natural socialists. They pooled their land periodically and their commune divided it according to the needs of the individual.

4. Unlike Europe, in Russia, workers were divided into social groups. Divisions were based on skills. The ‘State Factories’, the ‘Professional Factories’ and the ‘Manorial Factories’ were the three categories in which Russian workers were divided.

5. The condition of the factory workers was miserable. They could not form any trade unions and political parties to express their grievances. Industrialists exploited the workers for their selfish ends. There was no limit of working hours, as a result of which they had to work for up to 12-15 hours a day.

Question 3.
Why did the Tsarist autocracy collapse in 1917?
Answer:
The Tsarist autocracy collapsed in 1917 due to the interplay of many social, economic and political factors which were as follows :
1. The Russian state under Tsar Nicholas II was completely unsuited to the needs of modern times. The Tsar still believed in the autocratic divine right of the king.

2. The bureaucracy that the Tsar recruited was top heavy, inefficient and unflexible. Members were recruited on the basis of privileges and patronage, and not on merit.

3. The Tsar had built a vast empire and imposed Russian language and culture on diverse nationalities.

4. The peasants and workers who formed large section of the population were miserable and frustrated. The Tsar was totally ignorant, indifferent to their conditions and needs.

5. The Tsar Nicholas II imposed restrictions on political activity, changed voting laws and dismissed any questioning or restrictions on his authority.

6. At the beginning of the First World War, people rallied around the Tsar. But as the war prolonged, he refused to consult the main parties in the Duma. Thus, he lost the support. The Russian army lost the war. This led to over 3 million refugees in Russia, which worsened the condition. It exposed the economic bankruptcy of the government and increased liabilities on the already impoverished  population. Socialism in Europe and the Russian Revolution

7.  The liberal ideas of the west and growth of socialist ideology led to the formation of many socialist groups which infused the workers and peasants with a revolutionary spirit.

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution

Question 4.
Make two lists: One with the main events and the effects of the February Revolution and the other with the main events and effects of the October Revolution. Write a paragraph on who was involved in each, who were the leaders and what was the impact of each on Soviet history?
Answer:
Main Events of the February Revolution: The main events of the February Revolution were as follows :

  1. In the winter of 1917, conditions in the capital, Petrograd, were harsh.
  2. In the capital city, the workers’ quarters and factories were located on the right bank of the River Neva. On the left bank were the Winter Palace and official buildings, including the palace where the Duma met.
  3. In February 1917, food shortages were deeply felt in the workers’ quarters. The winter was very cold and severe.
  4. Parliamentarians wishing to preserve elected government were opposed to the Tsar’s desire to dissolve the Duma.
  5. On 22 February, a lockout took place at a factory on the right bank. The next day, workers in fifty factories called a strike in sympathy in which most were the women.
  6. Demonstrating workers crossed from the factory quarters to the centre of the capital-the Nevskii Prospekt.
  7. When the government imposed curfew, demonstrators dispersed by the evening, but they came back on the 24th and 25th.
  8. On 25th February, the government suspended the Duma. On 27th, the Police Headquarters were ransacked.
  9. The streets thronged with people raising slogans about bread, wages, better hours and democracy.
  10. The government tried to control the situation and called out the army but the army refused to fire on the demonstrators. By the evening, soldiers and striking workers had gathered to form a ‘Soviet’ or ‘Council’ in the same building as the Duma met. This was the Petrograd Soviet.
  11. The next day, a delegation went to see the Tsar. Military commanders advised him to abdicate. He abdicated on 2 March and in this way monarchy came to an end.

Effects of the February Revolution The effects of the February Revolution can be understood through following points :

  1. Soviet leaders and Duma leaders formed a Provisional Government to run the country.
  2. Russia’s future would be decided by a constituent assembly elected on the basis of universal adult suffrage.
  3. Restrictions on public meetings and associations were removed.
  4. In April 1917, the Bolshevik leader Vladimir Lenin returned to Russia from his exile.

He made three demands known as ‘April Theses’. These demands were:
(a) the war be brought to a close,
(b) land be transferred to the peasants, and
(c) banks be nationalised.

Impact of February Revolution on Soviet History :
The February Revolution had no political party at its forefront. It was led by the people themselves. Petrograd had brought down the monarch and thus gained a significant place in Soviet history. Main Events of the October Revolution: Main events of the October Revolution were as following:

  1. As the conflict between the Provisional Government and the Bolsheviks grew, Lenin feared the Provisional Government would set up a dictatorship.
  2. He began discussion for an uprising against the government and brought together the Bolshevik supporters.
  3. On 16 October 1917, Lenin persuaded the Petrograd Soviet and the Bolshevik Party to agree to a socialist seizure of power.
  4. A Military Revolutionary Committee was appointed by the Soviet under Leon Trotskii to organise the seizure.
  5. The uprising began on 24 October. Prime Minister Kerenskii had left the city. At dawn, military men loyal to the government seized the building of two Bolshevik newspapers.
  6. In a swift response, the Military Revolutionary Committee ordered its supporters to seize government offices and arrest ministers. The ship Aurora shelled the Winter Palace. By nightfall, the city was under the committee’s control and the ministers had surrendered.

Effects of the October Revolution Effects of the October Revolution were as follows:

  1. The Bolsheviks were totally opposed to private property. Therefore, private property in the means of production was abolished. Land and other means of production were declared as the property of the entire nation.
  2. Most industries and banks were nationalised in November, 1917.
  3. Land was declared social property and peasants were allowed to seize the land of the nobility.
  4. In cities, Bolsheviks enforced the partition of large houses according to family requirements.
  5. They banned the use of the old titles of aristocracy.
  6. The Bolshevik party was renamed the Russian Communist Party.
  7. The control of industries was given to the workers. All the banks, insurance companies, large industries, mines, water transports and railways were nationalised.

Impact of the October Revolution on Soviet history:
The October Revolution was primarily led by Lenin and his subordinate Trotskii and involved the masses who supported these leaders. It marked the beginning of Lenin’s rule over the Soviet, with the Bolsheviks under his guidance.

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution

Question 5.
What were the main changes brought about by the Bolsheviks immediately after the October Revolution?
Answer:
Bolsheviks immediately made the following changes after the October Revolution :

  1. The right to private property was abolished.
  2. They nationalised most industries and banks.
  3. Land was declared social property and peasants were allowed to seize the land of the nobility.
  4. In cities, Bolsheviks enforced the partition of large houses according to family requirement.
  5. They banned the use of the old titles of aristocracy.
  6. To assert the change, new uniform were designed for the army and officials, like the Soviet hat.
  7. The Bolshevik party renamed itself as the Russian Communist Party.
  8. All Russian Congress of Soviets became the parliament of the country.
  9. Trade unions were kept under party control.
  10. The secret police kept vigilance on citizens and punished those who criticised the Bolsheviks.

Write a few lines to show what you know about:
(a) Kulaks
(b) The Duma
(c) Women workers between 1900 and 1930
(d) The liberals
(e) Stalin’s collectivisation programme.

(a) Kulaks: It is a term used for well-to-do peasants in Russia. In the period of Stalin, it was decided to eliminate Kulaks to develop modern farms, and run them along industrial lines with machinery.

(b) The Duma: Duma was an elected consultative Parliament. It was created by the Tsar during the 1905 Revolution, but later he dismissed the Duma because he did not want any questioning of his authority or any reduction in his power.

(c) Women workers between 1900 and 1930: Women workers in Russia constituted 31% of the factory labour force by 1914. They formed the unprivileged class, had no political status or political rights. They were discriminated, paid less than men, i.e., between half and three-fourths of a man’s wage.

Women, however, were in the forefront in agitations and strikes for better and equal wages, improvement in conditions of work 8 hours a day, reinstatements and voting rights. They were a source of inspiration for their male co-workers. On February 23, 1917, women led the way to strikes as recognition of their active and significant role. February 23 is celebrated as International Women’s Day.

(d) The Liberals: Liberals wanted to bring a change in the society. They wanted a nation which tolerated all religions. They opposed the uncontrolled power of dynastic rulers. They wanted to safeguard the rights of individuals against governments.

They also wanted to have an independent judiciary to interpret law. However, they were not ‘democrats’. They did not believe in universal adult franchise. They felt that only the person holding a property mainly had the right to vote. They also did not want the voting rights to be given to women.

(e) Stalin’s collectivisation programme: By 1927-1928, there was a great shortage of food grains in the towns of Soviet Russia. Stalin introduced a firm emergency measure which is known as collectivisation programme.

From 1929, the Party forced all peasants to cultivate in collective farms (kolkhoz). The bulk of land and implements were transferred to the ownership of collective farms. Peasants worked on the land, and the kolkhoz profit was shared

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JAC Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जैसलमेर के निकट थार के रेगिस्तान में ऊँट पालकों की बस्ती को कहा जाता है
(अ) थारू
(ब) मारू राइका
(स) ढंडी
(द) राइका
उत्तर:
(स) ढंडी।

2. किस चरवाहा समुदाय के गाँव कच्छ के रन में स्थित हैं
(अ) मालधारी
(ब) राइका
(स) बंजारे
(द) धनगर।
उत्तर:
(अ) मालधारी।

3. राजस्थान के रेगिस्तान में रहने वाला चरवाही समुदाय है
(अ) धनगर
(ब) राइका
(स) कुरुमा
(द) गोल्ला।
उत्तर:
(ब) राइका।

4. थार मरुस्थल भारत के किस राज्य में स्थित है
(अ) राजस्थान
(ब) उत्तर प्रदेश
(स) गुजरात
(द) केरला
उत्तर:
(अ) राजस्थान।

5. निम्न में से अफ्रीका का प्रमुख चरवाहा समुदाय नहीं है
(अ) बेदुईन्स
(ब) मासाई
(स) बोरान
(द) बंजारे।
उत्तर:
(द) बंजारे।

6. सन् 1947 ई. से पूर्व सिन्ध जाने वाले राजस्थान के राइका चरवाहे अब अपने ऊँटों एवं भेड़ों को चराई के लिए कहाँ लेकर जाते हैं
(अ) पंजाब
(ब) उत्तर प्रदेश
(स) हरियाणा
(द) जम्मू-कश्मीर।
उत्तर:
(स) हरियाणा।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बुग्याल क्या हैं?
उत्तर:
बुग्याल ऊँचे पहाड़ों पर 12000 फुट से भी अधिक ऊँचाई पर स्थित विशाल चरागाह होते हैं।

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प्रश्न 2.
जम्मू-कश्मीर राज़्य में भेड़-बकरी पालने वाले समुदाय का नाम बताइए।
उत्तर:
गुज्जर बक्करवाल।

प्रश्न 3.
गुज्जर बक्करवाल समुदाय शीतकाल में कहाँ डेरा डाल लेते हैं?
उत्तर:
शिबालिक की निचली पहाड़ियों में।

प्रश्न 4.
हिमाचल प्रदेश में रहने वाले चरवाहा समुदाय का नाम बताइए।
उत्तर:
गढ़ी समुदाय।

प्रश्न 5.
हिमाचल प्रदेश के गही्दी समुदाय के चरवाहे ग्रीष्म ॠतु में कहाँ रहते हैं?
उत्तर:
लाहौल और स्पीवि क्षेत्र में।

प्रश्न 6.
भाषर किसे कहते हैं?
उत्तर:
गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आस-पास पाये जाने वाले शुष्क या सूखे जंगल के इलाके को भाचर कहते हैं।

प्रश्न 7.
महाराष्ट्र में पाये जाने बाले किसी एक चरवाही समुदाय का नाम बताइए।
उत्तर:
धनगर समुदाय।

प्रश्न 8.
धनगर समुदाय वर्षा क्रहतु में कहाँ रहते थे?
उत्तर:
धनगर समुदाय वर्षा ऋतु में महाराप्थ के मध्य पठारों में रहते थे।

प्रश्न 9.
हिमाचल क्षेत्र के चरवाहा समुदायों की मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर:
मौसम के अनुरूप अपने को छालना एवं विभिन्न इलाकों में प्रवास करना।

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प्रश्न 10.
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले किन्हीं तीन चरवाहा समुदाय के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. भोटिया,
  2. शेरपा,
  3. किन्नौरौ।

प्रश्न 11.
औपनिवेशिक सरकार ने कल अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया? चरवाही ‘ कर’ कब से लागू किया था?
उत्तर:
उन्नीसर्वीं सदी के मध्य से।

प्रश्न 13.
मासाई समुदाय अफ्रीका महाद्वीप के किस भाग में रहते हैं?
उत्तर:
पूर्वीं भाग में।

प्रश्न 14.
मासाई मुख्य रूप से क्या कार्य करते हैं?
उत्तर:
पशुपालन का कार्य।

प्रश्न 15.
विश्व के किस महाद्दीप में विश्व की आधी से अधिक चरवाह्म आबादी रहती है?
उत्तर:
अफ्रीका महाद्वीप में।

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प्रश्न 16.
बदलती हुई परिस्थितियों में मासाई कौन-कौन से खाद्य पदार्थो पर निर्भर होते जा रहे हैं?
उत्तर:
बदलती हुई परिस्थितियों में मासाई मक्का, चावल, आलू एवं गोभी जैसे खान्य पदाध्थों पर निर्भर होत्ते जा रहे हैं।

प्रश्न 17.
‘मासाई’ शब्द्र का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
‘मासाई’ शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘मेरे ‘लोग’ है।

प्रश्न 18.
काफिला क्या है?
उत्तर:
कफिला का अर्थ है-लोगों का समूह। जब घुर्मतू चरवाहे लोग एक साथ मिलकर सफर करते हैं तो लोगों के इस समूह को काफिला कहते हैं?

प्रश्न 19.
किन्हीं चार समुदायों का नाम बताइए जो आवाजाही के वार्षिक चक्र को अपनाते हैं?
उत्तर:

  1. भोटिया,
  2. गुज्जर बक्करवाल,
  3. गद्दी,
  4. शेरपा,
  5. किजौरी।

प्रश्न 20.
दक्षिण भारत के किन्ही दो चरवाहा समुदायों के नाम बताइए।
उत्तर:
कुरुबा,  गोल्ला।

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प्रश्न 21.
राजस्थान के किसी एक चरवाहा समुदाय का नाम बताइए।
उत्तर:
राइका।

प्रश्न 22.
अफ्रीका के किन्हीं पाँच घुमंतु चरवाहा समुदायों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. मासाई,
  2. सोमाली,
  3. बोरान,
  4. बेदुईन्स,
  5. तुर्काना।

प्रश्न 23.
कीनिया के एक चरवाहा समुदाय का नाम लिखिए।
उत्तर:
मासाई।

प्रश्न 24.
मासाई समाज कितनी सामाजिक श्रेणियों में बँटा हुआ है? नाम लिखिए।
उत्तर:
मासाई समाज दो सामाजिक श्रेणियों में बँटा हुआ है:

  1. वरिक्ठ जन (ऐल्डर्स),
  2. योद्धा (वॉरियर्स)।

प्रश्न 25.
किन्ही चार पशुओं के नाम बताइए जिन्हें घुमंतू चरवाहे पालते हैं।
उत्तर:
ऊँट, भेड़, बकरी, भैस।

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प्रश्न 26.
चरागाहों को शिकारगाह बनाने पर अफ्रीका में कौन से शिकारगाह अस्तित्व में आए?
उत्तर:
कीनिया में मासाई मारा एवं सम्बुरु नेशनल पार्क तथा तंज़ानिया में सेरेनेनेटी पार्क जैसे शिकारगाह इसी तरह अस्तित्व में आए।

प्रश्न 27.
औपनिवेशिक शासन से पहले मासाईलैण्ड का क्षेत्र किन भागों में फैला हुआ था?
उत्तर:
अपनिवेशिक शासन से पहले मासाईलैण्ड का क्षेत्र उत्तरी कीनिया से लेकर तंज़ानिया के घास के मैद्रानों तक फैला हुआ था।

प्रश्न 28.
बंजारे चरवाहे कहाँ रहते थे?
उत्तर:
बंजारे चरवाहे उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश एवं महाराट्र के कई क्षेत्रों में रहते थे।

प्रश्न 29.
मासाई योद्धाओं की वेशभूषा क्या होती है?
उत्तर:
मासाई योद्धा गहरे लाल रंग की शुका और चमकदार मोतियों के आभूषण पहनते हैं।

प्रश्न 30.
पर्यांरणणादी तथा अर्थशाख्ती किस बात को गम्भीरता से मानने लगे हैं?
उत्तर:
पयाँवरणवादी तथा अर्धशाख्ली इस बात को गम्भीरता से मानने लगे हैं कि घुमंतू चरवाहों की जीवनशैली संसार के बहुत से पहाड़ी और सूखे क्षेत्र में जीवन-यापन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है।

प्रश्न 31.
जावा किसलिए प्रसिद्ध है? किस औपनिवेशिक शक्ति ने इस पर शासन किया?
उत्तर:
जावा (इंडोनेशिया) चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है। यह छच का उपनियेश था।

प्रश्न 32.
कलांग कौन थे?
उत्तर:
जावा में कलांग समुद्दाय के लोग कुशल लकड़हारे और घुमंतू किसान धे।

प्रश्न 33.
बंड़ी क्या है?
उत्तर:
मारु राड़काओं का निवास ठंडी कहलाता है।

प्रश्न 34.
पाँच भौगोलिक भागों के नाम लिखों जहाँ चरवाही कार्य होता है।
उत्तर:

  1. पर्वत,
  2. पठार,
  3. मैदान,
  4. मरुस्थल,
  5. वन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते थे। ये 19वीं सदी में अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में यहाँ आये थे। समय बीतता गया और वे यहीं के होकर रह गये। जाड़े के दिनों में वे शिवालिक की निचली पहाड़ियों में तथा अप्रैल के अन्त में वे उत्तर दिशा में जाने लगते थे। सितम्बर में वे निचली पहाड़ियों में चले जाते थे। इस प्रकार वे घुमंतू प्रकृति के चरवाहे थे।

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प्रश्न 2.
राजस्थान के राइका समुदाय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
राइका पशुचारक समुदाय राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर एवं बीकानेर जिलों में निवास करते हैं। ये इलाके मरुस्थली हैं। बरसात के दिनों में यहाँ कुछ चारा मिलने के कारण राइका लोग यहाँ निवास करते हैं एवं अपने पशुओं को चराते हैं। अक्टूबर आते ही राइका लोग चरागाह की तलाश में दूसरे इलाके में चल देते हैं।

इस तरह जब फिर से बरसात प्रारम्भ होती है तब पुनः वापस लौटते हैं। ये लोग पशुचारक के साथ-साथ खेतिहर भी हैं। राइका का एक वर्ग ऊँट पालता है, जबकि दूसरा वर्ग कुछ भेड़-बकरियों को पालता है। 1947 के भारत-पाक विभाजन से यह बुरी तरह प्रभावित हुए।

प्रश्न 3.
धनगर समुदाय की वार्षिक आवाजाही के लिए उत्तरदायी किन्हीं चार कारकों का उल्लेख गरिए।
उत्तर:
धनगर समुदाय की वार्षिक आवाजाही के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं

  1. चारे की कमी के कारण, अक्टूबर-नवम्बर में, धनगर समुदाय महाराष्ट्र के मध्य पठार से बाहर चले जाते थे।
  2. अनाज के ढूंठों की उपलब्धता के कारण वे कोंकण चले जाते थे।
  3. कोंकण के स्थानीय लोग धनगरों का स्वागत करते थे क्योंकि धनगरों का झुण्ड उनके खेतों के लिए खाद प्रदान करता था।
  4. धनगरों को स्थानीय लोगों से अनाज भी मिलता था।

प्रश्न 4.
धनगर चरवाहा समुदाय की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
धनगर चरवाहा समुदाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. धनगर चरवाहा महाराष्ट्र का एक प्रमुख चरवाहा समुदाय है।
  2. बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में धनगर चरवाहा समुदाय की जनसंख्या लगभग 4,67,000 थी।
  3. धनगर चरवाहा समुदाय बरसात के मौसम में महाराष्ट्र के मध्य पठारों में रहते हैं। यह एक अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है।
  4. मानसून की वर्षा प्रारम्भ होते ही धनगर चरवाहे कोंकण और तटीय इलाके छोड़कर सूखे पठारों की ओर लौट जाते हैं क्योंकि भेड़ें गीली मानसूनी हालात को सहन नहीं कर पाती हैं।

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प्रश्न 5.
कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश के गोल्ला समुदाय की वार्षिक गतिक्रियाएँ जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बक्करवाल समुदाय से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बक्करवाल समुदाय की गतिक्रियाएँ शीत तथा ग्रीष्म ऋतुओं के चारों ओर चक्कर लगाती हैं। सर्दियों में जब ऊँचे पर्वत बर्फ से ढक जाते हैं, वे निचली पहाड़ियों में आ जाते हैं तथा गर्मियों में वे फिर से ऊँची पहाड़ियों की ओर चल देते हैं। गोल्ला समुदाय की गतिक्रियाएँ मानसून के आगे और पीछे हटने के चारों ओर चक्कर लगाती हैं। शुष्क ऋतु में वे तटीय क्षेत्रों की ओर चल देते हैं तथा बरसात आने पर वहाँ से सूखे पठारों की ओर लौट आते हैं क्योंकि भेड़ें गीले मानसूनी हालात को सहन नहीं कर पाती।

प्रश्न 6.
चरवाहा समुदायों की वार्षिक आवाजाही के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चरवाहा समुदायों की वार्षिक आवाजाही के लिए अग्रलिखित कारण उत्तरदायी हैं
1. प्रतिकल जलवायविक दशाएँ:
चरवाहा समुदायों की गतिशीलता के लिए उत्तरदायी एक प्रमुख कारक प्रतिकूल जलवायविक दशाएँ हैं। सर्दियों में पहाड़ों की ऊँचाई पर तापमान बहुत कम होता है इसलिए वे नीचे उतर आते हैं।

2. चारे की कमी:
सर्दियों में ऊँचे पहाड़ बर्फ से ढके रहते हैं, इसलिए वहाँ चारे की कमी होती है। परिणामस्वरूप, लोग सर्दियों में निचली पहाड़ियों में आ जाते हैं क्योंकि वहाँ चारे की कोई कमी नहीं
होती।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा पारित अपराधी जनजाति अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार द्वारा पारित अपराधी जनजाति अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस अधिनियम के द्वारा दस्तकारों, व्यापारियों एवं चरवाहों के अनेक समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रखा गया।
  2. इस अधिनियम के अन्तर्गत उनकी गतिविधियों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिये गये, जैसे मुख्य अधिसूचित गाँवों में बस जाने का आदेश, बिना अनुमति पत्र के आवागमन पर रोक आदि।
  3. दस्तकारों, व्यापारियों एवं चरवाहों पर ग्राम पुलिस नजर रखने लगी।

प्रश्न 8.
भारत में औपनिवेशिक शासन ने चरवाही समुदाय के जीवन पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
भारत में औपनिवेशिक शासन ने चरवाही समुदाय के जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव डाला

  1. विभिन्न चरागाह क्षेत्रों पर भिन्न-भिन्न कानूनों द्वारा चरवाही समुदायों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
  2. चरागाह क्षेत्र के कम होने के कारण चरवाही समुदाय के पशु मरने लगे एवं पशुओं की संख्या कम होने लगी।
  3. औपनिवेशिक शासकों ने विभिन्न चरागाह क्षेत्रों में चरवाही टैक्स लगा दिया।
  4. स्थायी जीवन न व्यतीत करने के कारण घुमंतू लोगों को स्वभावतः अपराधी मान लिया गया।
  5. औपनिवेशिक शासन की कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाहियों के कारण चरवाही समुदाय के लोगों को अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी तथा अन्य व्यवसाय की ओर ध्यान लगाना पड़ा।

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प्रश्न 9.
वन अधिनियम द्वारा किये गये बदलाव से चरवाहे किस प्रकार से बचे?
उत्तर:
वन अधिनियम द्वारा किये गये बदलाव से चरवाहे निम्न प्रकार से बचे

  1. जब एक जगह के चरागाह को बन्द कर दिया गया तो चरवाहों ने अपनी आवाजाही को दूसरी ओर परिवर्तित कर लिया।
  2. चरवाहों ने अपनी पशुओं की संख्या कम कर दी एवं पशुचारण के साथ-ही-साथ आय के अन्य स्रोतों में लग गए।
  3. चरवाहे आधुनिक विश्व में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप अपनी जिन्दगी बदलने की कोशिश करने लगे।

प्रश्न 10.
चरवाहा समुदायों की जिन्दगी किन-किन बातों पर टिकी हुई है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
चरवाहा समुदायों की जिन्दगी निम्नलिखित बातों पर टिकी हुई है

  1. चरवाहों को इस बात का हमेशा ध्यान रखना पड़ता है कि उनके रेवड़ एक स्थान पर कितने दिनों तक रह सकते हैं। साथ ही उन्हें पानी कहाँ मिल सकता है।
  2. सिर्फ किन इलाकों में कितने दिन रहना पड़ेगा यही नहीं, बल्कि इसका भी ध्यान रखना पड़ता है कि उन्हें किन इलाकों से गुजरने की छूट मिल सकती है तथा किससे नहीं।
  3. इन समुदायों को अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिए खेती, चरवाही एवं व्यापार भी करना पड़ता है।
  4. सफर करते समय चरवाहों को यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि किसानों से उनका सम्बन्ध अच्छा बने ताकि उनके खेतों में अपने पशुओं को चरा सकें। साथ ही उनके खेतों को उपजाऊ बना सकें।

प्रश्न 11.
वन अधिनियम द्वारा किये गये परिवर्तन के फलस्वरूप चरवाहों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
वन अधिनियम द्वारा किये गये परिवर्तन के फलस्वरूप चरवाहों की निम्नलिखित प्रतिक्रिया हुई

  1. चरागाहों की कमी के कारण कई चरवाहों ने अपने पशुओं की संख्या कम कर दी तथा कुछ चरवाहों ने नये-नये चरागाहों की भी खोज की।
  2. कुछ धनी चरवाहों ने अपने पशुचारक जीवन को त्यागकर कुछ भूमि खरीद ली एवं अपने घर बना लिए। वे कृषि करने लगे।
  3. परन्तु कुछ गरीब चरवाहों की स्थिति ब्याज पर कर्ज लेने के कारण दिन-प्रतिदिन बिगड़ती गई। फलस्वरूप, वे खेतिहर मजदूर बनते गए।

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प्रश्न 12.
‘चरागाह भूमि के बड़े क्षेत्र शिकारगाहों में परिवर्तित कर दिए गए थे”। इसका भी अफ्रीका के घुमंतू चरवाहों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। कोई दो उदाहरण देकर कथन को स्पष्ट करिए।
उत्तर:
चरागाह भूमि के बड़े क्षेत्र शिकारगाहों में परिवर्तित कर दिए गए थे। इनका भी अफ्रीका के घुमंतू चरवाहों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। यह निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है
1. चरागाह भूमि के बड़े:
बड़े क्षेत्र शिकारगाहों में परिवर्तित कर दिए गए, जैसे-कीनिया में मासाईमारा एवं साम्बूरू नेशनल पार्क एवं तंज़ानिया में सेरेन्गेटी पार्क आदि। चरवाहों को इन आरक्षित क्षेत्रों में जाने की आज्ञा न थी, वे न तो इन क्षेत्रों में जानवरों का शिकार कर सकते थे और न ही पशुओं को चरा सकते थे। इससे उनके चराई क्षेत्रों में कमी आ गई।

2. बड़े:
बड़े चरागाहों के समाप्त होने से मौजूदा चरागाहों पर अधिक दबाव पड़ा परिणामस्वरूप चारे की कमी उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 13.
औपनिवेशिक शासन का मासाई लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन का मासाई लोगों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

  1. औपनिवेशिक शासन ने सन् 1885 ई. में ब्रिटिश कीनिया और जर्मन तांगान्यिका के बीच एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा खींचकर मासाईलैण्ड के दो बराबर टुकड़े कर दिये गये।
  2. सरकार ने गोरे लोगों को बसाने के लिए मासाई समुदाय के लोगों से अच्छे चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया तथा इस समुदाय के लोगों को दक्षिणी कीनिया और उत्तरी तंज़ानिया के छोटे से क्षेत्र में समेट दिया गया।
  3. औपनिवेशिक शासन के दौरान मासाई लोगों की गतिविधियों को सीमित कर दिया गया। .
  4. मासाई समुदाय के लोग अपने पशुओं को नये चरागाहों में नहीं ले जा सकते थे। अतः सूखे के दौरान बड़ी संख्या में उनके पशु भूख तथा बीमारी के कारण मर गये।
  5. चरागाह क्षेत्र कम होने, सूखे के दुष्परिणाम के कारण मासाई समुदाय के लोगों के पास पशुओं की संख्या धीरे-धीरे कम होती गई तथा उन्हें अपने जीवन-यापन के लिए अन्य व्यवसायों की ओर अग्रसर होना पड़ा।

प्रश्न 14.
मासाई समुदाय के वरिष्ठ जनों (ऐल्डर्स )तथा योद्धाओं (वॉरियर्स )पर औपनिवेशिक शासन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मासाई समुदाय के वरिष्ठ जनों तथा योद्धाओं पर औपनिवेशिक शासन का निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

  1. औपनिवेशिक शासन में अंग्रेजों ने मासाई समुदाय की प्राचीन सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ दिया।
  2. अंग्रेजों ने विभिन्न मासाई उपसमूहों के मुखिया को नियुक्त करना आरम्भ किया, जो कि अपने-अपने कबीलों के सभी कामों के लिए उत्तरदायी थे।
  3. उन्होंने हमला करने तथा युद्धों पर प्रतिबन्ध लगा दिये थे।
  4. परिणामस्वरूप, वरिष्ठ जनों तथा योद्धाओं की पारम्परिक सत्ता बहुत कमजोर हो गई।

प्रश्न 15.
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में किस प्रकार से मासाईलैण्ड का विभाजन औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा हुआ?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में निम्न प्रकार से मासाईलैण्ड का विभाजन औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा किया गया

  1. सन् 1885 ई. में मासाईलैण्ड का विभाजन एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के द्वारा ब्रिटिश कीनिया एवं जर्मन तांगान्यिका में कर दिया गया।
  2. श्वेत लोगों को बसाने के लिए सरकार ने अच्छे चरागाह अपने कब्जे में ले लिए एवं मासाईयों को दक्षिणी कीनिया एवं उत्तरी तंज़ानिया में समेट दिया गया।
  3. इस दौरान उनसे 60 प्रतिशत जमीन छीन ली गई एवं उन्हें ऐसे सूखे इलाकों में कैद कर दिया गया, जहाँ न तो अच्छी वर्षा होती थी और न ही हरे-भरे चरागाह थे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों के जीवन में बहुत अधिक बदलाव आया”। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों के जीवन में बहुत अधिक बदलाव आया, जिसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
1. कृषि योग्य जमीन का विस्तार:
औपनिवेशिक सरकार ने गैर-कृषि भूमि को कृषि-योग्य भूमि में परिवर्तित कर दिया क्योंकि सरकार इसे अनुत्पादक एवं बेकार मानती थी। इससे न तो लगान में वृद्धि होती थी न ही कृषि उपज प्राप्त होती थी। कृषि योग्य भूमि बनाने के लिए “परती भूमि विकास” के लिए नियम बनाये गये। अन्ततः प्रभाव यह हुआ कि चरागाहों की कमी हो गई।

2. घुमंतू समुदायों पर नियंत्रण:
सरकार घुमंतू चरवाहों को शक की नजर से देखती थी। क्योंकि एक स्थान विशेष पर निवास करने वाले व्यक्तियों की तुलना में इन पर शासन करना मुश्किल हो जाता था। इसलिए इन्हें नियन्त्रित करने के लिए सन् 1871 में “अपराधी जनजाति अधिनियम’ बनाकर कई समुदायों को अपराधी जनजाति घोषित करके कई इलाकों में उनकी आवाजाही पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जिससे इनका जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ।

3. वन अधिनियम लागू करना:
वन अधिनियम पारित करके वनों को ‘आरक्षित’ एवं ‘संरक्षित वन घोषित कर दिया गया। फलस्वरूप, पशुओं की आवाजाही पर प्रतिबन्ध लग गया, जिससे चरागाहों का क्षेत्र भी सीमित होता चला गया। इससे चरवाहों की जिन्दगी बुरी तरह प्रभावित हुई। अब उन्हें नए चरागाह तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा।

4. सरकार द्वारा राजस्व वृद्धि के प्रयास:
सरकार ने अपनी राजस्व वृद्धि करने के लिए 19वीं सदी के मध्य में ‘चरवाही टैक्स’ लगा दिया। उन्होंने जमीन, नहरों के पानी, नमक क्रय-विक्रय एवं पशुओं पर भी टैक्स आरोपित कर दिए। 1850-80 के बीच टैक्स वसूली का काम बोली लगाकर ठेकेदारों को दिया जाने लगा। अधिकाधिक कमाई के चक्कर में ठेकेदार खूब टैक्स वसूली करने लगे, जिससे चरवाहों की स्थिति दयनीय होने लगी।

JAC Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

प्रश्न 2.
घुमंतू चरवाहा समुदायों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। उत्तर-चरवाहा समुदायों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. प्रमुख व्यवसाय:
घुमंतू चरवाहे मुख्यत: पशु-पालन पर निर्भर थे। इनके द्वारा पाले गये प्रमुख पशु-बकरियाँ, भेड़ें, ऊँट तथा भैंसे थीं। कुछ घुमंतू चरवाहे फसलें भी उगाते थे।

2. गतिक्रियाएँ:
घुमंत चरवाहे किसी भी क्षेत्र में निरुद्देश्य नहीं जाते थे, बल्कि उन्हें सही भू-क्षेत्रों की अच्छी पहचान थी। वे अपनी गतिक्रियाओं के क्षेत्रों की भौतिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं के प्रति जागरूक थे।

3. भोजन:
चरवाहा कबीले माँस की अपेक्षा अनाज ही खाते थे। वे गेहूँ, चावल, बाजरा तथा मक्का खाते थे। कुछ खाद्यान्न वे स्वयं उगाते थे और कुछ अपनी गतिक्रियाओं के मार्ग से व्यवस्थित करते थे।

4. पशुओं का चुनाव:
घुमंतू चरवाहे स्थानीय सांस्कृतिक तथा भौतिक लक्षणों के अनुसार झुंडों के लिए पशुओं का प्रकार तथा संख्या का चुनाव करते थे। पशुओं का चुनाव विशेष जलवायु, वनस्पति के अनुकूल प्रजातियों की योग्यता तथा पशुओं की प्रतिष्ठा पर आधारित होती थी। उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य पूर्व में अधिकतर ऊँट पाले जाते थे। इसके अतिरिक्त भेड़ तथा बकरियाँ पाली जाती थीं।

5. आर्थिक जीवन:
अधिकतर घुमंतू चरवाहे वस्तु विनिमय प्रणाली को अपनाते थे, जबकि कुछ धन का भी प्रयोग करते थे। वे भोजन अथवा अनाज के लिए पशुओं का आदान-प्रदान करते थे।

6. परिवर्तनशील जीवन:
19वीं शताब्दी में यूरोपीय उपनिवेशों के विस्तार ने घुमंतू चरवाहों के जीवन को प्रभावित किया था। यूरोपियों ने अपने प्रयोग के लिए भूमि पर अपना अधिकार कर लिया। इसी कारण, स्थानीय लोगों के जीने के पारम्परिक ढंग में हमेशा के लिए परिवर्तन हो गया। यूरोपियों ने मूल निवासियों को उनकी भूमि अथवा क्षेत्रों से निकाल दिया था।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दिए गए भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित चरवाहा समुदायों को प्रदर्शित कीजिए
1. गुज्जर समुदायों का क्षेत्र,
2. धनगर समुदाय का क्षेत्र,
3. कुरुबा समुदाय का क्षेत्र,
4. मालधारी समुदाय का क्षेत्र,
5. राइका समुदाय का क्षेत्र,
6. गद्दी समुदाय का क्षेत्र। उत्तर
JAC Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे 1

प्रश्न 2.
दिए गए अफ्रीका के रेखा मानचित्र पर प्रमुख चरवाहा समुदायों के नामों को अंकित कीजिए।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति 3

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JAC Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

JAC Board Class 9th Social Science Important Questions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय वन सेवा की स्थापना की
(अ) भेंडिस ने
(ब) हिटलर ने
(स) सामिन ने
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) भेंडिस ने।

2. प्रथम वन अधिनियम कब लागू हुआ
(अ) सन् 1856 ई. में
(ब) सन् 1865 ई. में
(स) सन् 1947 ई. में
(द) सन् 1857 ई. में।
उत्तर:
(ब) सन् 1865 ई. में।

3. श्रीलंका में घुमंतू कृषि को किस नाम से पुकारा जाता है
(अ) लादिंग
(ब) तावी
(स) चितमेन
(द) चेना।
उत्तर:
(द) चेना।

4. धया, पेंदा, बेवर, झूम, पोडू, आदि किस देश की घुमंतू कृषि के नाम हैं
(अ) भारत
(ब) श्रीलंका
(स) चीन
उत्तर:
(अ) भारत।

5. जावा में वन सम्बन्धी ‘भस्म कर भागो नीति” किन लोगों ने अपनायी थी
(अ) जापानियों ने
(ब) डचों ने
(स) पुर्तगालियों ने
(द) अंग्रेजों ने।
उत्तर:
(ब) डचों ने।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आपके द्वारा प्रयोग की जाने वाली कोई चार ऐसी वस्तुएँ बताइए। जो जंगल से प्राप्त होती हैं।
उत्तर:
1. कागज,
2. मेज-कुर्सीं
3. गोंद,
4. मसाले।

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प्रश्न 2.
सन् 1600 ईं. तक भारत के कुल भू-भाग के कितने हिस्से पर खेती होती थी?
उत्तर:
सन् 1600 ई. तक भारत के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी।

प्रश्न 3.
अंग्रेजों ने किन-किन व्यावसाखिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया।
उत्तर:
पटसन, गन्ना, गेहूँ एवं कपास के उत्पादन को।

प्रश्न 4.
19वीं सदी की शुरुआत में इंग्लैण्ड में किस वृक्ष के जंगल लुप्त होने लगे थे।
उत्तर:
बलूत वृक्ष के।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक शासकों को किन-किन उदेश्यें की पूर्ति हेतु बड़ी मात्रा में लकड़ी की आवश्यकता होती थी?
उत्तर:

  1. रेलवे के विस्तार हेतु,
  2. शाही नौसेना हेतु जलयान बनाने के लिए।

प्रश्न 6.
ब्रैंडिस द्वारा वनों की रक्षा हेतु दिया गया प्रमुख सुझाव लिखिए।
उत्तर:
जंगलों के प्रबन्धन हेतु व्यवस्थित तंत्र विकसित करने के लिए कानून के निर्माण का सुझाव।

प्रश्न 7.
भारतीय वन सेवा की स्थापना कब्र की गयी?
उत्तर:
सन् 1864 ई. में।

प्रश्न 8.
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीद्यूट की स्थापना कब एवं कहाँ की गयी?
उत्तर:
सन् 1906 ई. में देहरादून में।

प्रश्न 9.
अंग्रेजों ने डायद्रिघ ब्रैडिस नामक जर्मन विशेषज्ञ को भारत क्यों बुलाया?
उत्तर:
अंग्रेजों को इस बात की चिन्ता थी कि स्थानीय लोगों द्वारा जंगलों का उपयोग एवं व्यापारियों द्वारा पेड़ों की अंधधिंध कटाई से जंगल नही हो जाएँंगे इसलिए उन्होंने डायट्रिच ब्रैंडिस को भारत बुलाया।

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प्रश्न 10.
वन विनाश के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. बढ़ती जनसंख्या,
  2. औद्योगीकरण।

प्रश्न 11.
कलांग कौन थे?
उत्तर:
कलांग जावा के कुशल लकड़हारे एवं घुमन्तू किसान थे।

प्रश्न 12.
सन् 1878 ई. के वन अधिनियम द्वारा वनों को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया?
उत्तर:
तीन भागों में:

  1. आरक्षित वन,
  2. सुरक्षित वन,
  3. ग्रामीण वन।

प्रश्न 13.
वैज्ञानिक वानिकी क्या है?
उत्तर:
वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई की वह पद्धति जिसमें पुराने पेड़ काट कर उनकी जगह नये पेड़ लगाये जाते हैं?

प्रश्न 14.
आरक्षित वन क्या थे?
उत्तर:
सबसे अच्छे जंगलों को आरक्षित वन कहा गया। ग्रामवासी इन जंगलों से उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे।

प्रश्न 15.
ग्रामवासी ईंधन या घर बनाने के लिए लकड़ी कहाँ से ले सकते थे?
उत्तर:
ग्रामवासी इंधन या घर बनाने के लिए केवल सुरक्षित या फ्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।

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प्रश्न 16.
महुआ का क्या-क्या उपयोग होता है?
उत्तर:
महुआ के फूल से शराब बनाई जाती है। बीजों से वेल भी निकाला जाता है।

प्रश्न 17.
भारत में अंग्रेजों के लिए रेल अनिवार्य क्यों थी?
उत्तर:
शाही सेना के आवागमन और औपनिवेशिक व्यापार के लिए रेल अंग्रेजों के लिए अनिवार्य थी।

प्रश्न 18.
बीड़ी बनाने में किस वनोत्पाद का प्रयोग होता है?
उत्तर:
बीड़ी बनाने में सूखे हुए तेंदू के पत्तों का प्रयोग होता है। बच्चे, महिलाएँ और वृद्ध इन पत्तों को एकत्र करते हैं।

प्रश्न 19.
वनों के विनाश में ठेकेदारों की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया जिससे रेल लाइनों के आस-पास तेजी से जंगल गायब होने लगे।

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प्रश्न 20.
बड़े जंगाली जानवरों के प्रति अंग्रेजों के क्या विचार थे?
उत्तर:
अंग्रेजों का विचार था कि बड़े जंगली जानवरों को मारकर वे हिन्दुस्तान को सभ्य बनाएँगे।

प्रश्न 21.
बस्तर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
बस्तर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित है।

प्रश्न 22.
बस्तर में कौन-कौन से आदिवासी समुदाय रहते हैं?
उत्तर:
बस्तर में मरिया, मुरिया गोंड, धुरवा, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते है।

प्रश्न 23.
देवसारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
यदि एक गाँव के लोग दुसरे गाँव के जंगल से अल्प मात्रा में लकड़ी लेना चाहते हैं तो इसके बदले में उन्हें शुल्क अदा करना पड़ता है। इसे देवसारी कहते हैं।

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प्रश्न 24.
औपनिवेशिक काल में वनों और गोदामों से भारी लकड़ी के दुकड़ों को उठाने के लिए किस पशु का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
हाथी का।

प्रश्न 25.
बागान किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी विशेष प्रजाति के पौधों को सीधी कतारों में लगाने की प्रक्रिया को बागान कहते है।

प्रश्न 26.
इण्डोनेशिया के किस द्वीप को चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है?
उत्तर:
इण्डोनेशिया देश के जावा द्वीप को चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 27.
जावा पर जापानियों के नियन्त्रण से पहले डचों ने वन सम्बन्धी कौन-सी नीति अपनायी?
उत्तर:
भस्म-कर-भागो नीति।

प्रश्न 28.
किन्हीं दो बागानी फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
चाय, रबड़।

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प्रश्न 29.
भारत में रेल लाइनों का जाल किस दशक में तेजी से फैला?
उत्तर:
भारत में रेल लाइनों का जाल सन् 1860 ई. के दशक में तेजी से फैला।

प्रश्न 30.
जार्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने कितने बाघों को मारा था?
उत्तर:
400 बाघों को।

प्रश्न 31.
वे कौन-से कारण हैं जिन्होंने बस्तर के लोग्री को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसाया?
उत्तर:

  1. जंगल के दो-तिहाई भाग को आरक्षित करना।
  2. घुमतू खेती को रोकना।
  3. शिकार एवं वन्य उत्पादों के संग्रह पर पाबन्दी लगाना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उन सभी वस्तुओं की सूची बनाइए जो वनों से प्राप्त होती हैं और जिन्हें आप अपने घरों एवं विद्यालय में प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
हमें वनों से निम्नलिखित वस्तुएँ प्राप्त होती हैं जिनका प्रयोग हम अपने घरों एवं विद्यालय में करते हैं

  1. फर्नीचर जैसे कुर्सियाँ, मेज तथा दरवाजे एवं खिड़कियाँ।
  2. पुस्तकों का कागज।
  3. मसाले जिनका हम भोजन में प्रयोग करते हैं।
  4. रंग जिनसे कपड़ों की रंगाई की जाती है।
  5. पैंसिल में प्रयुक्त लकड़ी वनों से प्राप्त होती है।
  6. बीड़ी बनाने हेतु तेंदू पत्ते वनों से मिलते हैं।
  7. गोंद, रबड़, शहद, चाय, कॉफी आदि भी वनों से मिलते हैं।
  8. चाकलेट बनाने में प्रयुक्त होने वाला तेल, जो साल के बीजों से मिलता है।
  9. खाल से चमड़ा बनाने में प्रयोग होने वाला टैनिन।
  10. दवाइयाँ बनाने हेतु काम में ली जाने वाली जड़ी-बूटियाँ।
  11.  इसके अतिरिक्त वनों से हमें बाँस, ईंधन के लिए लकड़ी, घास, कच्चा कोयला, फल-फूल आदि मिलते हैं।

प्रश्न 2.
जनसंख्या वृद्धि का जंगलों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि का जंगलों पर प्रभाव-बढ़ती हुई जनसंख्या की रहने, खाने एवं कपड़े पहनने आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जंगलों को काटा जाने लगा जिसके परिणामस्वरूप जंगल सिकुड़ते चले गये। सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के – भाग पर खेती होती थी जो अब बढ़कर लगभग – भाग तक पहुँच गयी है। अत: हम कह .. सकते हैं कि जनसंख्या वृद्धि का जंगलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

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प्रश्न 3.
उपनिवेशकालीन भारत में रेलवे के विस्तार ने जंगलों को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
उपनिवेशकाल में अंग्रेजों ने अपने माल की ढुलाई के लिए रेलवे का काफी विकास किया लेकिन इसका दुष्परिणाम भारतीय जंगलों को भुगतना पड़ा। क्योंकि नयी रेल पटरियों को बिछाने के लिए लगाये जाने वाले स्लीपर जंगली लकड़ी से बनाये जाते थे। जैसे-जैसे रेल लाइनों का विस्तार होता गया वैसे-वैसे ही पटरी बिछाने के लिए स्थान हेतु तथा स्लीपरों के लिए जंगल काटे जाने लगे। अत: रेलवे के विस्तार ने जंगलों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।

प्रश्न 4.
बागान पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जब व्यावसायिक उद्देश्य से एक विशाल क्षेत्र पर एक ही प्रकार के पेड़ उगाये जाते हैं तो वे बागान कहलाते हैं। यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए अंग्रेजों ने भारत में जंगलों को साफ करके बागान लगाये थे। इन बागानों के कारण जगलों का एक भारी हिस्सा काटकर समाप्त कर दिया गया था।

प्रश्न 5.
”इंग्लैण्ड की शाही नौ-सेना भी भारत में वन-विनाश के लिए उत्तरदायी थी।” कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड की शाही नौ-सेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति की समस्या वहाँ बलूत के वन विलुप्त होने के कारण उत्पन्न हो गई थी। अत: शाही नौ सेना हेतु जलयान बनाने के लिए लकड़ी की आपूर्ति के कारणवश अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर भारतीय वनों को काटा।

प्रश्न 6.
ब्रिटिश शासकों ने झूम खेती को प्रतिबन्धित क्यों किया?
उत्तर:
ब्रिटिश शासकों ने निम्न कारणों से झूम खेती को हानिप्रद मानते हुए प्रतिबन्धित किया

  1. ब्रिटिश शासकों का यह मानना था कि उस भूमि पर जहाँ कुछ वर्षों के बाद झूम खेती की जाती थी, रेलवे के लिए आवश्यक लकड़ी हेतु पेड़ नहीं उगाए जा सकते थे।
  2. झूम खेती के कारण बार-बार स्थान परिवर्तन करने के कारण अधिकारियों के लिए कर-निर्धारण करना अत्यन्त कठिन था।
  3. ब्रिटिश शासकों का यह मानना था कि जब झूम कृषि के लिए जंगल को जलाकर साफ किया जाता है तो उस समय मूल्यवान पेड़ों के भी आग में जलकर नष्ट होने की सम्भावना बहुत अधिक रहती है।

प्रश्न 7.
वैज्ञानिक वानिकी के अन्तर्गत वन-प्रबन्धन के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए?
उत्तर:
वैज्ञानिक वानिकी के अन्तर्गत वन-प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए

  1. वैज्ञानिक वानिकी के अन्तर्गत उन प्राकृतिक वनों को काट दिया गया जिनमें विविध प्रजातियों के वृक्ष पाये जाते थे।
  2. काटे गए वनों के स्थान पर सीधी पंक्ति में एक ही प्रकार के वृक्ष लगाए गए।
  3. वन-विभाग के अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण किया और विभिन्न प्रकार के वृक्षों के अधीन क्षेत्र का अनुमान लगाया।
  4. वन विभाग के अधिकारियों ने वनों के उचित प्रबन्ध के लिए विभिन्न प्रकार की व्यापक योजनाएँ तैयार की।
  5. वन अधिकारियों ने योजना बनाते समय यह भी निर्णय किया कि प्रति वर्ष जितने वृक्ष काटे जाएँ उस क्षेत्र में उतने ही वृक्ष लगाए जाएँ।

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प्रश्न 8.
सन् 1878 ई. के वन अधिनियम द्वारा क्या परिवर्तन लाए गए थे?
उत्तर:
सन् 1878 ई. के वन अधिनियम द्वारा निम्नलिखित परिवर्तन लाए गए थे:

  1. वनों का तीन श्रेणियों में वर्गीकरण कर दिया गया-आरक्षित, सुरक्षित और ग्रामीण वन।
  2. गाँव के निवासियों को आरक्षित वनों में किसी भी प्रकार के वनोत्पाद को संगृहीत करने की अनुमति नहीं थी।
  3. ग्रामीण घर बनाने या ईंधन के लिए सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।

प्रश्न 9.
घुमंतू कृषि क्या है?
उत्तर:
घुमंतू कृषि के अन्तर्गत पेड़ों, झाड़ियों एवं घास को काटकर वन-भूमि का छोटा-सा टुकड़ा साफ किया जाता है, फिर उन्हें जला दिया जाता है। जलाने के बाद प्राप्त राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है ताकि उपजाऊपन को बढ़ाया जा सके। तब उस स्थान पर कुछ वर्षों के लिए कृषि की जाती है। जब उस स्थान का उपजाऊपन कम हो जाता है, तो अन्य स्थान पर कृषि आरम्भ की जाती है। अत: इस प्रकार की ‘कृषि’ के अन्तर्गत किसान एक स्थान से दूसरे स्थान पर कृषि के लिए घूमते रहते हैं।

प्रश्न 10.
वन अधिनियम के लागू होने से गाँव वालों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
वन अधिनियम के लागू होने से गाँव वालों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  1. दैनिक गतिविधियाँ, जैसे-घरों के लिए लकड़ी काटना, पशुओं को चराना, कन्द-मूल फल एकत्रित करना, शिकार करना, मछली पकड़ना आदि गैर-कानूनी बन गए।
  2. इन सभी गतिविधियों पर पाबन्दी लगा दी गई। गाँव वाले जंगलों से लकड़ी चुराने लगे।
  3. यदि वे जंगलों से लकड़ी चुराते समय पकड़े जाते तो उन्हें वन-रक्षकों को घूस देनी पड़ती थी या वे उनसे मुफ्त खाने-पीने की माँग करते थे।
  4. जलाने हेतु लकड़ी एकत्र करने वाली महिलाएँ दुःखी हुईं क्योंकि उन्हें पुलिस एवं जंगल के चौकीदारों द्वारा परेशान किया जाता था।

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प्रश्न 11.
ब्लैण्डाँगडिएन्स्टेन व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
ब्लैण्डाँगडिएन्स्टेन जावा की डच सरकार और वहाँ के वनवासियों के बीच किया गया एक समझौता था। इस प्रणाली के अन्तर्गत डचों ने इस शर्त पर भूमि पर कर न देने की कुछ गाँवों को छूट दे दी थी कि यदि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने तथा उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए श्रम तथा भैंसें मुफ्त में प्रदान करने के लिए कार्य करेंगे। इस व्यवस्था को ब्लैण्डाँगडिएन्स्टेन के नाम से जाना गया। बाद में, कर छूट की अपेक्षा, ग्रामीणों को थोड़ी-सी मजदूरी दी जाने लगी, परन्तु वन भूमि पर कृषि करने के उनके अधिकार पर रोक लगा दी थी।

प्रश्न 12.
सुरोन्तिको सामिन कौन था? उसका क्या कहना था?
उत्तर:
सुरोन्तिको सामिन जावा के रान्दुब्लातुंग गाँव का निवासी था। सन् 1890 ई. के आस-पास उसने सागौन के जंगलों पर राजकीय मालिकाना अधिकार के प्रश्न पर डच सरकार का विरोध किया। उसका कहना था कि हवा, पानी, भूमि एवं लकड़ी डच सरकार की बनाई हुई नहीं है, अत: उन पर उसका कोई अधिकार नहीं हो सकता।

प्रश्न 13.
किन कारणों से औपनिवेशिक काल में कृषि का विस्तार तेजी से हुआ? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में कृषि का विस्तार तेजी से हुआ जिसके प्रमुख दो कारण अग्रलिखित थे
1. कच्चे पदार्थों की आवश्यकता तथा खाद्य समस्या:
अंग्रेजों ने जूट, चीनी, कपास तथा नील आदि व्यापारिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया क्योंकि ब्रिटिश उद्योगों में इनका प्रयोग कच्चे पदार्थों के रूप में होता था। उन्होंने खाद्यान्नों के उत्पादन को भी प्रोत्साहित किया क्योंकि बढ़ती हुई शहरी जनसंख्या के भोजन के लिए इनकी आवश्यकता थी।

2. अनुत्पादित वन:
19वीं शताब्दी के आरम्भ में औपनिवेशिक शासन ने सोचा था कि वन अनुत्पादित हैं। जिन्हें कृषि के अधीन लाकर कृषि उत्पादों को किया जा सकता है तथा राज्य की आमदनी भी बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 14.
जंगलों पर वन विभाग का नियन्त्रण स्थापित हो जाने से क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलों पर वन विभाग का नियन्त्रण स्थापित हो जाने से निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  1. जंगलों पर वन विभाग का नियन्त्रण स्थापित हो जाने से वन-उत्पादों का व्यापार प्रारभ हो गया। बहुत-सी व्यापारिक कम्पनियाँ व्यापार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत आईं।
  2. ब्रिटिश सरकार ने कई बड़ी यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों को विशेष क्षेत्रों में वन उत्पादों के व्यापार की इजारेदारी सौंप दी।
  3. लोगों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ प्रभावित हुईं। स्थानीय लोगों द्वारा शिकार करने और पशुओं को चराने पर पाबन्दी लगा दी गई।
  4. अनेक चरवाहे और घुमंतू समुदाय को “अपराधी कबीला” कहा जाने लगा। इन्हें ब्रिटिश सरकार की निगरानी में फैक्ट्रियों, खदानों तथा बागानों में काम करने के लिए मजबूर किया गया।

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प्रश्न 15.
वनों के संरक्षण के विभिन्न उपायों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
वनों का संरक्षण निम्नलिखित उपायों द्वारा किया जा सकता है

  1. हमें वृक्षारोपण का कार्य करते रहना चाहिए। यह कार्य उपलब्ध खाली स्थान, नदियों एवं बाँधों के आस-पास के क्षेत्र में अच्छे ढंग से हो सकता है।
  2. वन हमारी राष्ट्रीय निधि हैं। हमारा दायित्व वनों के अन्धाधुन्ध कटाव को रोकना है।
  3. आज के वैज्ञानिक युग में हमें ऐसी फसलों की खोज कर लेनी चाहिए जो पहाड़ी, शुष्क, रेतीली एवं बंजर भूमि में सरलता से उगाई जा सके।
  4. हमें वनों पर दबाव कम करने के लिए प्लास्टिक, कागज, बोर्ड आदि से निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 16.
इस कथन को सिद्ध कीजिए कि-‘वन राष्ट्र की निधि हैं।
उत्तर:
किसी भी राष्ट्र की प्रगति में वन संसाधनों का विशेष,महत्व होता है। वनों से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. वर्षा कराने में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वृक्ष वातावरण को शीतल बना देते हैं, जिससे वाष्प-कणों से तृप्त वायु उनके ऊपर से गुजरती है, तो वह ठण्डी होकर वर्षा का रूप धारण कर लेती है। यह वर्षा कृषि के लिए अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है।
  2. वनों का मृदा अपरदन रोकने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। वृक्ष बहने वाले जल के रास्ते में अवरोधक बनकर खड़े हो जाते हैं और जल के वेग को कम कर देते हैं, जिससे मृदा-कणों को बहाकर ले जाने की उतनी शक्ति नहीं रहती।
  3. वनों से मूल्यवान पदार्थ, जैसे-लकड़ी, गोंद, रबड़ आदि प्राप्त होते हैं। वनों से प्राप्त कच्ची लकड़ी से कागज की लुगदी एवं कच्चे रबड़ से मोटरगाड़ियों के लिए टायर आदि निर्मित किए जाते हैं।
  4. वन में उगने वाले घास-फूस पर अनेक पशुओं का जीवन निर्भर करता है।
  5. वनों से प्राप्त जड़ी-बूटियों से अनेक प्रकार की दवाइयाँ बनायी जाती हैं।
  6. वन नदियों की बाढ़ को रोकने एवं उनकी गति धीमी करने में सहायक सिद्ध होते हैं।
  7. वनों से अनेक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।
  8. वन सूखे को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि वन ‘राष्ट की निधि हैं’।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बस्तर के लोगों की बगावत की विस्तार से व्याख्या करें।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बस्तर के लोगों की बगावत की व्याख्या निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती है
1. बगावत के कारण:

  • सन् 1905 ई. में, ब्रिटिश सरकार ने वनों का दो-तिहाई आरक्षित करने का प्रस्ताव रखा।
  • स्थानान्तरित कृषि पर प्रतिबन्ध लगाया।
  • शिकार करने तथा वन उत्पादों को एकत्र करने पर प्रतिबन्ध लगाया। इन समस्त कदमों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए स्थानीय लोगों को मजबूर किया।

2. बगावत की कार्य-प्रणाली:

  • लोगों ने अपनी ग्राम पंचायतों, बाजारों तथा त्योहारों के मौके पर इन सब विषयों पर चर्चा करनी आरम्भ कर दी। कांगेर वन के धुरवा समुदाय द्वारा इस सम्बन्ध में पहल की गई, जहाँ सबसे पहले आरक्षण लागू हुआ। इस विद्रोह का मुख्य नेता नेथानार गाँव का गुंडा धूर था।
  • सन् 1910 ई. में गाँवों में आम की शाखाओं, मिट्टी के ढेले, मिर्ची तथा तीरों को घुमाना आरम्भ हुआ वास्तव में, ये ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बगावत करने के लिए, ग्रामीणों को आमन्त्रित करने के सन्देश थे। प्रत्येक गाँव ने बगावत के खर्चों के लिए कुछ न कुछ योगदान दिया।
  • बाजारों को लूटा गया, अधिकारियों तथा व्यापारियों के घरों, स्कूलों तथा पुलिस स्टेशनों को लूटा एवं जलाया गया और अनाज का पुनर्वितरण किया गया। जिन पर आक्रमण किया गया, उनमें से अधिकतर औपनिवेशिक शासन तथा दमन के कानूनों से सम्बन्ध रखते थे।

3. विद्रोह का दमन:
ब्रिटिश सरकार ने बगावत को दबाने के लिए सेना भेजी। आदिवासी नेताओं ने समझौता करने का प्रयास किया, परन्तु अंग्रेजों ने उनके शिविरों को घेरकर उन पर गोली चलाई। इसके बाद उन्होंने गाँव की ओर मार्च किया तथा बगावत में भाग लेने वालों को सजा दी। अधिकतर गाँव खाली हो गए क्योंकि लोग जंगलों में भाग गए थे। अंग्रेजों को फिर से नियन्त्रण पाने में तीन महीने लग गए, परन्तु वे गुंडा धूर को कभी पकड़ न पाए।

4. बगावत के परिणाम:
बागियों की बहुत बड़ी जीत यह रही कि आरक्षण पर कार्य कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया तथा आरक्षित क्षेत्र को भी सन् 1910 ई. से पहले की योजना से लगभग आधा कर दिया गया।

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JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

→ मानव के भोजन के सम्बन्ध में कहा जाता है कि जिस प्रकार साँस लेने के लिए वायु आवश्यक है उसी प्रकार जीवन के लिए भोजन की आवश्यकता है।

→ खाद्य सुरक्षा से आशय है, सभी लोगों के लिए हमेशा भोजन की उपलब्धता, पहुँच और इसे प्राप्त करने की सामर्थ्य होना।

→ खाद्य सुरक्षा देश में प्रचलित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शासकीय सतर्कता और खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्यवाही पर निर्भर करती है।

→ देश में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता प्राकृतिक आपदाओं के समय देश की समस्त जनसंख्या को खाद्य असुरक्षा ग्रस्त होने से बचाव के लिए है। प्राकृतिक आपदाओं के समय खाद्य सुरक्षा में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

→ देश में खाद्य सुरक्षा के अभाव में व्यापक भुखमरी और अकाल जैसी स्थितियों के पैदा होने का डर रहता है।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

→ सन् 1943 में बंगाल प्रान्त में पड़े अकाल में लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई। स्वतन्त्र भारत में बंगाल जैसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई लेकिन उड़ीसा के कालाहांडी तथा काशीपुर ऐसे स्थान हैं जहाँ अकाल जैसी दशाएँ कई वर्षों से बनी हुई हैं।

→ भारत में खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से सबसे अधिक प्रभावित भूमिहीन-कृषक, पारम्परिक दस्तकार, छोटे-मोटे कामगार श्रमिक, निराश्रित और भिखारी आदि हैं।

→ कुपोषण से सबसे अधिक महिलायें प्रभावित होती हैं यह गम्भीर चिंता का विषय है क्योंकि इससे अजन्मे बच्चों को कुपोषण का खतरा रहता है। खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त आबादी का एक बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।

→ भारत में खाद्य असुरक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक लोगों की संख्या उत्तर प्रदेश के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी भाग, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम-बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भाग हैं।

→ खाद्य पदार्थों की सुरक्षा से न केवल वर्तमान की भुखमरी समाप्त होती है बल्कि भविष्य में भुखमरी का खतरा भी नहीं रहता।

→ जनसंख्या में भुखमरी के दो आयाम होते हैं-दीर्घकालिक और मौसमी भुखमरी।

→ स्वतन्त्रता के बाद भारतीय नीति-निर्माताओं ने खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्र में नयी रणनीति अपनाई जिसकी परिणति हरित क्रान्ति के रूप में हुई।

→ भारत सरकार द्वारा तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था-बफर स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई।
भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों द्वारा उत्पादित खाद्यान्न को न्यूनतम समर्थित मूल्य पर खरीद कर बफर स्टॉक करता है।

→ भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब . वर्गों में वितरित कराती है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहलाती है।

→ भारत में राशन व्यवस्था का श्रीगणेश सन् 1940 के दशक में बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में हुआ।

→ गरीबी के उच्च स्तरों को ध्यान में रखते हुए सन् 1970 के दशक के मध्य खाद्य सम्बन्धी तीन महत्वपूर्ण अंतःक्षेप कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए। जिनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल-विकास सेवाएँ और काम के बदले अनाज कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए।

→ प्रारम्भ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली सभी के लिये समान रूप से उपलब्ध थी लेकिन बाद में इसे अधिक दक्ष और लक्षित बनाने के उद्देश्य से समय-समय पर संशोधित किया गया।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

→ 1992 में देश में 1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर. पी. डी. एस.) शुरू की गयी।

→ जून 1997 लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी. पी.डी.एस.) प्रारंभ की गई।

→ सन् 2000 में दो विशेष योजनाएँ-अंत्योदय अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना प्रारम्भ की गई। ये योजनाएँ क्रमश: ‘गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब’ और ‘दीन वरिष्ठ नागरिक’ समूहों पर लक्षित हैं।

→ वर्ष 2014 में एफ. सी. आई. के पास गेहूँ और चावल का भंडार 65.2 करोड़ टन था जो न्यूनतम बफर प्रतिमान से बहुत अधिक था।

→ पी. डी. एस. गेहूँ की प्रति माह प्रति व्यक्ति खपत 2004-05 से ग्रामीण एवं नगरीय भारत में दोगुनी हो गई है।

→ देश की खाद्य-सुरक्षा व्यवस्था में सरकार की भूमिका के साथ-साथ अनेक सहकारी समितियाँ और गैर-सरकारी संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जैसे महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस का अनाज बैंक कार्यक्रम है।

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JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

→ स्वतन्त्र भारत के समक्ष सर्वाधिक कठिन चुनौती निर्धनता की समस्या है।

→ भारत एवं विश्व में निर्धनता की प्रवृतियों को निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से समझाया गया है।

→ जिन्हें हम निर्धन समझते हैं वे गाँवों के भूमिहीन श्रमिक या शहरों की भीड़ भरी झुग्गियों में रहने वाले लोग हो सकते हैं। ये निर्धन लोग दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी या ढाबों पर काम करने वाले बाल श्रमिक अथवा भिखारी भी हो सकते हैं।

→ एक व्यक्ति तब निर्धन माना जाता है जब उसकी आय या उपभोग का स्तर इतना कम होता है कि वह अपनी मूलभूत न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूर्ण नहीं कर पाता है।

→ महात्मा गाँधी सदैव इस बात पर जोर देते थे कि भारत सही मायने में तभी स्वतन्त्र होगा जब यहाँ का सबसे निर्धन व्यक्ति भी मानवीय व्यथा से मुक्त होगा।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

→ सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा निर्धनता को अनेक सूचकों जैसे आय और उपभोग के स्तर, निरक्षरता के स्तर, कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की कमी आदि के माध्यम से देखा जाता है।

→ निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों या व्यक्तियों के आने वाले वर्षों में निर्धन होने या बने रहने की सम्भावना को प्रदर्शित करता है।

→ असुरक्षा का निर्धारण परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों का जीविका के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है।

→ निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से निर्धनता का आकलन सामान्य आय एवं उपभोग स्तर के आधार पर समझाया जाता है।

→ व्यक्तियों की मूल आवश्यकताएँ काल एवं स्थान के अनुसार भिन्न होती हैं इसीलिए काल एवं स्थान के अनुसार निर्धनता रेखा भी भिन्न होती है।

→ निर्धनता रेखा का आकलन सामान्यतः प्रत्येक 5 वर्ष बाद ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन’ द्वारा किया जाता है।

→ भारत में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के परिवार निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं। आर्थिक समूहों ‘ में सर्वाधिक असुरक्षित समूह-ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार व अनियमित मजदूर परिवार हैं।

→ निर्धन परिवार के सभी लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है किन्तु कुछ लोगों, जैसे महिलाओं, वृद्धों और लड़कियों को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

→ वर्ष 2011-12 में भारत का निर्धनता अनुपात 22 प्रतिशत था, लेकिन सभी राज्यों में इसकी दर एक समान नहीं है।

→ भारत के उड़ीसा, असम, बिहार, बंगाल, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश राज्यों में निर्धनता अन्य राज्यों की अपेक्षा एक गम्भीर समस्या है।

→ पंजाब और हरियाणा राज्यों में उच्च कृषि वृद्धि दर के द्वारा, केरल में मानव संसाधन विकास द्वारा तथा पश्चिमी बंगाल में भूमि सुधार उपायों के माध्यम से निर्धनता को कम करने में सफलता हासिल की गई है।

→ भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण हैं

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर।
  • जनसंख्या में उच्च वृद्धि दर का पाया जाना।
  • गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति ने नगरीय क्षेत्रों में निर्धनता को बढ़ावा दिया।
  • भूमि और संसाधनों का असमान वितरण।
  • भारत में भूमि संसाधनों की कमी और भूमि का उप विभाजन।
  • भारतीयों में सामाजिक दायित्वों और धार्मिक अनुष्ठानों की प्रवृत्ति का अधिक पाया जाना।
  • अत्यधिक ऋणग्रस्तता भी निर्धनता का प्रमुख कारण है।

→ भारत में निर्धनता उन्मूलन हेतु उपाय

  • भारत सरकार द्वारा आर्थिक संवृद्धि दर को प्रोत्साहन देना।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) पारित किया गया।
  • राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम प्रारम्भ करना।
  • प्रधानमन्त्री रोजगार योजना शुरू करना।
  • ग्रामीण रोजगार सृजन योजना लागू करना।
  • स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना प्रारम्भ करना।
  • प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना प्रारम्भ करना।
  • अंत्योदय अन्न योजना प्रारम्भ करना आदि।

→ देश की प्रगति के बाद भी निर्धनता उन्मूलन एक महत्वपूर्ण चुनौती है। आशा है कि अगले 10-15 वर्षों में निर्धनता उन्मूलन में अधिक प्रगति होगी जो प्रमुख रूप से उच्च आर्थिक संवृद्धि, सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्धि पर जोर, जनसंख्या विकास में कमी, महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बढ़ते सशक्तीकरण से सम्भव हो सकेगा।

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JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

→ जब शिक्षा, प्रशिक्षण तथा स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूँजी में परिवर्तित हो जाती है।

→ जनसंख्या, उत्पादन में अपनी भूमिका एक संसाधन के रूप में निभाती है जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है।

→ यही जनसंख्या उस समय एक समस्या के रूप में सामने आती है जब इसके लिए प्राथमिक आवश्यकताओं; जैसे- भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पूर्ति करना होता है। यह जनसंख्या का एक नकारात्मक पहलू है।

→ जब मानवीय संसाधन रूपी जनसंख्या को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से विकसित किया जाता है तब हम इसे मानव-पूँजी निर्माण कहते हैं जो कि देश की उत्पादन क्षमता में भौतिक पूँजी निर्माण की भाँति वृद्धि करता है।

→ समाज में उच्च आय से केवल शिक्षित और स्वस्थ लोगों को ही लाभ नहीं होता बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से समाज के सभी लोगों को लाभ होता है। इसीलिए मानव पूँजी उत्पादन के अन्य संसाधनों से श्रेष्ठ बताई जाती है।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

→ बच्चों में शिक्षा के द्वारा उनकी गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है जिससे कुल उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ देश की संवृद्धि भी होती है।

→ भूमि और पूँजी में निवेश की भाँति जनसंख्या में निवेश द्वारा भविष्य में उच्च प्रतिफल प्राप्त होता है। जापान जैसे प्राकृतिक संसाधनों से हीन देश मानव संसाधन पर निवेश और कुशल उपयोग करके आज धनी देश बन गये हैं।

→ शिक्षित माता – पिता अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान इसलिए देते हैं कि वे स्वयं शिक्षा और स्वास्थ्य के महत्व से अशिक्षित की अपेक्षा ज्यादा परिचित होते हैं।

→ जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता – दर, जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। मानव के विभिन्न क्रियाकलापों को प्राथमिक , द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, इन्हीं क्षेत्रों के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

→ मानव द्वारा धनोपार्जन हेतु जो क्रियाएँ की जाती हैं उन्हें आर्थिक क्रियाएँ कहा जाता है।

→ अनार्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जो स्व-उपभोग हेतु या दान-पुण्य के लिए की जाती हैं।

→ किसी व्यक्ति के पारिश्रमिक का निर्धारण उसकी योग्यता और शिक्षा के आधार पर किया जाता है।

→ देश की संवृद्धि दर निर्धारण में जनसंख्या की गुणवत्ता महत्वपूर्ण कारक है।

→ शिक्षा व्यक्ति के लिए नये क्षितिज, नई आकांक्षाएँ तथा जीवन मूल्य विकसित करने में अहम् भूमिका निभाती है इसीलिए प्राथमिक शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य किया गया है। लड़कियों की शिक्षा पर भी विशेष बल दिया जा रहा है।

→ सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर व्यय सन् 1951-52 के 0.64 प्रतिशत से बढ़कर सन् 2015-16 में 3 प्रतिशत के लगभग हो गया है। साक्षरता दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 74 प्रतिशत हो गई है।

→ वर्ष 2011 में केरल के कुछ जिलों में साक्षरता दर 94 प्रतिशत है जबकि बिहार में 62 प्रतिशत ही है।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

→ बारहवीं योजना में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में 25.2 प्रतिशत तक की वृद्धि 2017-18 में तथा वर्ष 2020-21 तक 30 प्रतिशत तक वृद्धि करने का प्रयास जारी है।

→ भारत में सर्वशिक्षा अभियान हेतु पाठ्यक्रम, स्कूल लौटो शिविर तथा मिड-डे-मील जैसी योजनाओं के द्वारा सभी को शिक्षा प्रदान करने की सरकार द्वारा कोशिशें की जा रही हैं।

→ किसी फर्म में स्वस्थ व्यक्तियों को ही रोजगार दिया जाता है क्योंकि एक स्वस्थ व्यक्ति ही उत्पादन वृद्धि में सहयोग कर सकता है।

→ सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण कार्यक्रमों और पौष्टिक भोजन की उपलब्धि से जनसंख्या की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु दर तथा जन्म दर में कमी आई है।

→ आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार 2014 में जीवन प्रत्याशा 68.3 वर्ष से अधिक हो गयी है। 2016 में शिशु मृत्युदर घटकर 34 पर आ गयी है।

→ बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो प्रचलित मजदूरी पर काम करने की इच्छा रखता है लेकिन उसे कोई काम नहीं मिलता है। बेरोजगारों में केवल 15 वर्ष से 59 वर्ष के लोगों को शामिल किया जाता है।

→ भारतीय ग्रामों में मौसमी व प्रच्छन्न बेरोजगारी तथा शहरों में शिक्षित बेरोजगारी दिखाई देती है।

→ बेरोजगारी के कारण तेजी से स्वास्थ्य स्तर में गिरावट तथा विद्यालय प्रणाली से अलगाव में वृद्धि होने लगती है।

→ शिक्षा के माध्यम व व्यक्ति की लगन और मेहनत से कई प्रकार के आधुनिक आर्थिक क्रियाकलापों को जन्म देकर देश की एक बड़ी समस्या बेरोजगारी को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

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