JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ मुद्रा विनिमय माध्यम के रूप में

  • हमारे दैनिक जीवन में मुद्रा का बहुत अधिक प्रयोग होता है। मुद्रा के माध्यम से ही वस्तुएँ खरीदी क बेची जाती हैं।
  • जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने और बेचने पर सहमति र त्रते हैं तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनमय किया जाता है।
  • मुद्रा, विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है इसलिए इसे रनिमय का माध्यम कहा जाता है।
  • मुद्रा वह चीज है जो लेन-देन में विनिमय का माध्यम बन सकती है। सिक्कों के प्रचलन में आने से पहले विभिन्न प्रकार की चीजों को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था; जैसे-अनाज पशु, सोना, चाँदी तथा ताँबे के सिक्के आदि।
  • मुद्रा के कई आधुनिक रूप हैं जिनमें करेंसी, कागज के नोट और सिके प्रमुख हैं।
  • मुद्रा को देश की सरकार प्राधिकृत करती है इसलिए इसे विनिमय का माध्यम स्वीकार किया जाता है।
  • हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है।

→ बैंक की भूमिका

  • बैंक लोगों से जमा स्वीकार करते हैं एवं उस पर ब्याज भी प्रदान कर हैं।
  • बैंक खातों में जमा धन को माँग के द्वारा निकाला जा सकता है, इस कारण इस जमा को माँग जमा कहते हैं।
  • चेक एक ऐसा कागज का टुकड़ा है जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।
  • चेक को भी आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा समझा जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

→ बैंक ऋण

  • बैंक अपने यहाँ जमा नगद राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।
  • बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे अधिक ब्याज ऋण पर लेते हैं।
  • जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज और कर्जदारों से लिए गए ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में साख की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए होती है।

→ ऋण की शर्ते

  • प्रत्येक ऋण समझौते में ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जः महाजन को मूल रकम के साथ अदा करता है।
  • ब्याज दर, समर्थक ऋणाधार, जरूरी कागजात तथा भुगतान के तरीकों को सम्मिलित रूप से ऋण की शर्त कहते हैं। ये शर्ते उधारदाता तथा कर्जदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों में अतिरिक्त सस्ते ऋण का एक अन्य स्रोत सहकारी समितियाँ हैं जो अपने सदस्यों को ऋण प्रदान करती हैं।

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→ भारत में औपचारिक क्षेत्रक में साख

  • विभिन्न प्रकार के ऋणों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
  • औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण। औपचारिक क्षेत्रक ऋण में बैंकों व सहकारी समितियों से लिए गए ऋणों को सम्मिलित किया जाता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार व दोस्त आदि से लिए गए ऋण आते हैं।
  • हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नियन्त्रण रखता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है। फलस्वरूप कर्जदार का शोषण होता है।
  • ऋण की ऊँची लागत का अर्थ है-कर्जदार की आय का ज्यादातर हिस्सा ऋण की अदायगी में खर्च होना।
  • देश के विकास के लिए सस्ता तथा सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज (ऋण) अति आवश्यक है।
  • वर्तमान समय में धनिक वर्ग ही औपचारिक स्रोतों से ऋण प्राप्त करते हैं जबकि निर्धन वर्ग को अनौपचारिक स्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
  • स्वयं सहायता समूह कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में सहायता करते हैं।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. मुद्रा: मुद्रा से अभिप्राय उस वैधानिक वस्तु से है, जिसका उपयोग सामान्यतः विनिमय माध्यम के रूप में किया जाता है।

2. विनिमय: दो पक्षों के बीच होने वाले वस्तुओं व सेवाओं के लेन-देन को विनिमय कहते हैं।

3. वस्तु विनिमय: जब चीजों का लेन-देन बिना मुद्रा के प्रयोग से आपस में ही हो जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहते हैं।

4. मुद्रा विनिमय: जब वस्तुओं का लेन-देन मुद्रा के माध्यम से होता है तो उसे मुद्रा विनिमय कहते हैं।

5. करेंसी: मुद्रा का आधुनिक रूप-कागज के नोट व सिक्के।

6. माँग जमा: जब बैंक खातों में जमा धन को ग्राहक द्वारा माँग अनुसार निकाला जाता है तो इसे माँग जमा कहते हैं।

7. चेक: यह एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।

8. व्यावसायिक बैंक: वह संस्था जो कि मुद्रा की प्राप्ति एवं ग्राहकों की माँग पर उसका भुगतान करता है।

9. ऋण: ऋण या उधार का तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूकार कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वायदा लेता है।

10. पूँजी: उत्पादन का एक प्रमुख साधन, जिसके अन्तर्गत मुद्रा तथा वस्तुओं का भंडार आता है और जिसका प्रयोग उत्पादन हेतु होता है।

11. सहकारी समितियाँ: यह लोगों का एक ऐच्छिक संगठन होता है जिसमें वे अपने आर्थिक हितों की पूर्ति हेतु एक साथ मिलकर काम करते हैं।

12. समर्थक ऋणाधार: समर्थक ऋणाधार वह सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार है (जैसे-भूमि, मकान, गाड़ी, पशु व बैंकों में पूँजी आदि) तथा इसका इस्तेमाल वह ऋणदाता को गारण्टी के रूप में करता है जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।

13. बैंक जमा राशि बैंक कुल जमा का एक छोटा: सा हिस्सा जमाकर्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने पास रखते हैं। कुल जमा का वह हिस्सा जो बैंक अपने पास नकद के रूप में रखते हैं, बैंक जमा राशि कहलाती है।

14. विनिमय प्रणाली वस्तुओं के आदान: प्रदान की प्रणाली को विनिमय प्रणाली कहते हैं।

15. कृषक सहकारी समिति: वह सहकारी समिति जो कृषि उपकरण खरीदने, खेती, कृषि व्यापार करने, मछली पकड़ने, – घर बनाने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ऋण उपलब्ध कराती है।

16. निक्षेप जमा करना। बैंक में राशि जमा करना।

17. आर. बी. आई: भारतीय रिजर्व बैंक 1 अप्रैल, 1935 को स्थापित भारत का केन्द्रीय बैंक। यह देश में करेन्सी नोटों का निर्गमन करता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

→ आर्थिक कार्यों के क्षेत्रक

  • जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो उसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कपास की खेती, डेयरी उत्पाद (दूध) आदि।
  • प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है, क्योंकि हम अधिकतर प्राकृतिक उत्पाद कृषि, डेयरी, मत्स्यन तथा वनों से प्राप्त करते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में वे गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है, जैसे-कपास के पौधों से प्राप्त रेशे का प्रयोग सूत कातना एवं कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी व गुड़ बनाना आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से संबद्ध है, इसी कारण यह औद्योगिक क्षेत्रक भी कहलाता है।
  • तृतीयक क्षेत्रक उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्रकों से भिन्न है। इस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं वरन् वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। उदाहरण- परिवहन, संचार, बैंक सेवाएँ, भण्डारण, व्यापार आदि।
  • तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अति आवश्यक सेवाएँ भी हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं, जैसे-शिक्षक, वकील, डॉक्टर, धोबी, नाई, मोची आदि।

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→ आर्थिक क्षेत्रकों की तुलना

  • प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विभिन्न उत्पादन कार्यों से बहुत अधिक मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है तथा अनेक लोग इस कार्य में संलग्न हैं। मध्यवर्ती वस्तुओं का उपयोग अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्माण में किया जाता है। इन वस्तुओं का मूल्य अन्तिम वस्तुओं के मूल्य में पहले से ही शामिल होता है।
  • किसी वर्ष विशेष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य उस वर्ष में क्षेत्रक के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है।
  • सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों का योगफल होता है जो किसी देश के अन्दर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है।

→ क्षेत्रकों में परिवर्तन

  • भारत के पिछले चालीस वर्षों के आँकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में सबसे अधिक योगदान तृतीयक क्षेत्रक से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का है जबकि रोजगार अधिकांशतः प्राथमिक क्षेत्रक में मिलता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है। इसका प्रकाशन केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है।
  • उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक) का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। सेवा क्षेत्रक की सभी सेवाओं में समान दर से संवृद्धि नहीं हो पा रही है।
  • द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
  • हमारे देश में आधे से अधिक श्रमिक प्राथमिक क्षेत्रक (मुख्यतः कृषि क्षेत्र) में कार्यरत हैं।
  • कृषि क्षेत्र का जी.डी.पी. में योगदान लगभग एक-छठा भाग है जबकि शेष द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक का योगदान है।
  • कषि क्षेत्रक के श्रमिकों में अल्प बेरोजगारी देखने को मिलती है अर्थात् कृषि क्षेत्र से कुछ लोगों को हटा देने पर भी उत्पादन
  • प्रभावित नहीं होगा। अल्प बेरोजगारी को प्रच्छन बेरोजगारी भी कहते हैं।

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→ रोजगार का सृजन

  • नीति (योजना) आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अकेले शिक्षा क्षेत्र में लगभग 20 लाख रोजगारों का
  • सृजन किया जा सकता है।
  • हमारे देश में कार्य का अधिकार लागू करने के लिए एक कानून बनाया गया है जिसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है।
  • आर्थिक कार्यों को विभाजित करने का एक अन्य तरीका संगठित एवं असंगठित के रूप में क्षेत्रकों का विभाजन है।
  • संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान सम्मिलित हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  • असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ, जो अधिकाशंतः राजकीय नियन्त्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इन कार्यों में रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती तथा रोजगार की सुरक्षा भी नहीं है।
  • सन् 1990 से हमारे देश में यह देखा गया है कि संगठित क्षेत्रक के अत्यधिक श्रमिक अपना रोजगार खोते जा रहे हैं। ये लोग असंगठित क्षेत्रक में कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हैं। अतः असंगठित क्षेत्रक में रोजगार बढ़ाने की आवश्यकता के अतिरिक्त श्रमिकों को संरक्षण एवं सहायता की भी आवश्यकता है।
  • भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार छोटे तथा सीमान्त किसानों की श्रेणी में आते हैं।
  • हमारे देश में बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ी जातियों से हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में कार्य करते हैं।

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→ स्वामित्व आधारित क्षेत्रक:

  • स्वामित्व के आधार पर क्षेत्रक को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक में बाँटा जा सकता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व रहता है एवं सरकार ही समस्त सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • निजी क्षेत्रक में परिसम्पतियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति अथवा कम्पनी के हाथों में होती है।
  • भारत सरकार किसानों से उचित मूल्य पर गेहूँ तथा चावल आदि खरीदती है। इसे अपने गोदामों में भण्डारित करती है तथा राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेचती है।
  • अधिकांश आर्थिक गतिविधियों की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार पर होती है जिस पर व्यय करना सरकार की अनिवार्यता होती है।
  • सरकार को सुरक्षित पेयजल, निर्धनों के लिए आवासीय सुविधाएँ, भोजन व पोषण जैसे मानव विकास के पक्षों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। उदाहरण-कृषि, खनन, मत्स्य पालन, डेयरी, शिकार आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इससे उत्पन्न प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण-कपास से कपड़ा, गन्ने से चीनी एवं लौह अयस्क से इस्पात बनाना आदि ।

3. तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ:
इसके अन्तर्गत सभी सेवाओं वाले व्यवसाय सम्मिलित हैं। उदाहरण-परिवहन, संचार, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन आदि ।

4. सूचना प्रौद्योगिकी:
सूचना प्रौद्योगिकी किसी इलेक्ट्रानिक विधि से सूचना भेजने, प्राप्त करने एवं संग्रहित करने की एक पद्धति है। जिसमें कम्प्यूटर, डाटाबेस एवं मॉडम का उपयोग किया जाता है। इसमें सूचनाओं का तीव्रगति से त्रुटिरहित एवं कुशलतापूर्वक सम्पादन होता है।

5. सकल घरेलू उत्पाद:
किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (स. घ. उ. अथवा जी. डी. पी.) कहलाता है।

6. बेरोजगारी:
जब प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक व सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता तो ऐसे व्यक्ति बेरोजगार एवं ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है।

7. छिपी हुई बेरोजगारी:
जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे रहते हैं तो उसे छिपी हुई अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी कहा जाता है। यदि इन लोगों को वहाँ से स्थानान्तरित कर दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसे अल्प बेरोजगारी भी कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है।

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8. मध्यवर्ती वस्तुएँ:
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे उत्पादित वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग उत्पादक कच्चे माल के रूप में उत्पादन की प्रक्रिया में करता है अथवा उन्हें फिर से बेचने के लिए खरीदा जाता है।

9. अन्तिम वस्तुएँ:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग अन्तिम उपभोग अथवा पूँजी निर्माण में होता है, इन्हें फिर से नहीं बेचा जाता है।

10. बुनियादी सेवाएँ:
किसी भी देश में अनेक सेवाओं; जैसे-अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, न्यायालय, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कम्पनी आदि की आवश्यकता होती है, इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है।

11. संगठित क्षेत्रक: संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। काम सुनिश्चित होता है और सरकारी नियमों व विनियमों का पालन किया जाता है।

12. असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों से जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं होता।

13. सार्वजनिक क्षेत्रक: सार्वजनिक क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्धन व नियन्त्रण होता है।

14. निजी क्षेत्रक: निजी क्षेत्रक में उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इसके अन्तर्गत उपक्रमों का प्रबन्ध उपक्रम के स्वामी द्वारा ही किया जाता है।

15. खुली बेरोजगारी: जब देश की श्रम शक्ति रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं कर पाती है तो इस स्थिति में इसे खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी देश के औद्योगिक क्षेत्रों में पायी जाती है।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Geography Chapter 4 जलवायु

JAC Class 9th Geography जलवायु InText Questions and Answers 

प्रश्न 1.
राजस्थान में घरों की दीवार मोटी तथा छत चपटी क्यों होती हैं?
उत्तर:
राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थलीय है, यहाँ की जलवायु अत्यन्त गर्म है, यहाँ वनस्पति के अभाव के कारण सूर्य की किरणें धरातल पर सीधी पड़ती हैं। यहाँ हवाएँ भी तीव्र गति से चलती हैं, यहाँ गर्मियों में तो धूल भरी आँधियाँ चलती हैं। राजस्थान में इन्हीं विषम परिस्थितियों के कारण यहाँ के निवासी अपने घरों की दीवार मोटी बनाते हैं ताकि वे देरी से गर्म हों।

इससे घर के अन्दर का तापमान कम रहता है एवं लम्बे समय तक ठंडक बनी रहती है। घरों की छतें चपटी बनायी जाती हैं क्योंकि यहाँ वर्षा कम होती है। इस प्रकार की छतों से वर्षा जल की एक-एक बूंद को एकत्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसी छतों का आँधियों में उड़ जाने का खतरा भी नहीं रहता है।

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प्रश्न 2.
तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मैंगलोर में ढाल वाली छतें क्यों होती हैं?
उत्तर:
तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मैंगलोर भारत के ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं, जहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है। गोवा एवं मैंगलोर में 300-400 सेमी. से भी अधिक वर्षा एवं तराई क्षेत्रों में 100-200 सेमी तक वर्षा होती है इसलिए इन क्षेत्रों में ढलान वाली छतें बनाई जाती हैं ताकि पानी छतों पर रुके नहीं बल्कि ढलवाँ छतों के सहारे आसानी से बह जाए।

प्रश्न 3.
असम में प्रायः कुछ घर बाँस के खम्भों पर क्यों बने होते हैं?
उत्तर:
असम में प्रतिवर्ष 300 सेमी. से अधिक वर्षा होती है, इस क्षेत्र में अकसर बाढ़े आती रहती हैं जिससे सम्पूर्ण क्षेत्र पानी में डूब जाता है। धरातल पर लगभग सम्पूर्ण वर्ष बाढ़ का पानी भरा रहता है जिससे उसमें विषैले जीव-जन्तु; जैसे-साँप, कीड़े-मकोड़े आदि अपना निवास बना लेते हैं। अत: घर को पानी के भराव से एवं विषैले जीव-जन्तुओं से सुरक्षित रखने के लिए असम के निवासी अपने घरों को बाँस के खम्भों पर बनाते हैं।

प्रश्न 4.
विश्व के अधिकतर मरुस्थल उपोष्ण कटिबन्धीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर क्यों स्थित हैं ?
उत्तर:
उपोष्ण कटिबन्ध में सर्वाधिक वर्षा की प्राप्ति व्यापारिक पवनों से होती है जो उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर चलती हैं। जब ये पवनें किसी महाद्वीप के पूर्वी छोर से उठती हैं, तब वे आर्द्रता से परिपूर्ण होती हैं।

तथा पूर्वी किनारों पर किसी अवरोध के आते ही तुरन्त वर्षा करना प्रारम्भ कर देती हैं परन्तु जैसे ही ये महाद्वीपों के पश्चिमी छोर पर पहुँचती हैं, शुष्क हो जाती हैं। इनकी आर्द्रता समाप्त हो जाती है फलस्वरूप, पश्चिमी छोर वर्षारहित रह जाता है। यही कारण है कि विश्व के अधिकांश मरुस्थल उपोष्ण कटिबन्धीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर स्थित हैं।

‘क्या आप जानते हैं?’ आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति किससे हई है?
उत्तर:
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ मौसम है।

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प्रश्न 2.
मानसून का क्या अर्थ है?
उत्तर:
मानसून का अर्थ एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है।

प्रश्न 3.
विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र कौन सा है?
उत्तर:
मॉसिनराम।

प्रश्न 4.
मॉसिनराम की दो प्रसिद्ध गुफाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. स्टैलैग्माइट,
  2. स्टैलैक्टाइट।

JAC Class 9th Geography जलवायु Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें:
1. नीचे दिए गए स्थानों में से किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है
(क) सिलचर
(ख) चेरापूंजी
(ग) मॉसिनराम
(घ) गुवाहाटी।
उत्तर:
(ग) मॉसिनराम।

2. ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है
(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) लू।

3. निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है
(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानसून।
उत्तर:
(ख) पश्चिमी विक्षोभ।

4. भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है
(क) मई के प्रारम्भ में
(ख) जून के प्रारम्भ में
(ग) जुलाई के प्रारम्भ में
(घ) अगस्त के प्रारम्भ में।
उत्तर:
(ख) जून के प्रारम्भ में।

5. निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है
(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें
(ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें
(घ) ठंडा दिन एवं गर्म रातें।
उत्तर:
(ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें।

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प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए
1. भारत की जलवाय को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर:
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं-अक्षांश, ऊँचाई, वायुदाब, पवनें, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ एवं उच्चावचीय लक्षण।

2. भारत में मानसूनी प्रकार की जलवाय क्यों है?
उत्तर:
धरातल पर मानसूनी जलवायु का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 30° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। वास्तव में ये प्रदेश व्यापारिक हवाओं की पेटी में आते हैं, जिनमें ऋतुवत् उत्तर एवं दक्षिण की ओर खिसकाव होता रहता है जिस कारण मानसूनी प्रकार की जलवायु की उत्पत्ति होती है

जिसमें 6 महीने तक हवाएँ सागर से स्थल की ओर तथा शेष 6 महीने में स्थल से सागर की ओर चला करती हैं। चूँकि भारत का अधिकांश अक्षांशीय विस्तार इन्हीं अक्षांशों के मध्य है। मानसूनी जलवायु की उत्पत्ति हेतु आवश्यक समस्त परिस्थितियाँ भारत में मौजूद हैं। इस कारण भारत की जलवायु मानसूनी प्रकार की है।

3. भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं
(अ) माह मई, जून में भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में न्यून वायुदाब का केन्द्र विकसित हो जाता है।

(ब) इन भागों में गर्म पवनें जिन्हें ‘लू’ के नाम से जाना जाता है, चलने लगती हैं। ये धूल भरी गर्म हवाएँ होती हैं जो तापमान को बढ़ा देती हैं।

4. किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा मालाबार तट पर वर्षा होती है।

5. जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायुको प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
जेट धाराएँ एक संकरी पट्टी में स्थित क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई (12000 मीटर से अधिक) वाली पश्चिमी हवाएँ होती हैं। इनकी गति ग्रीष्म ऋतु में 110 किमी. प्रति घण्टा एवं शीत ऋतु में 184 किमी. प्रति घण्टा होती है। भारत में जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती हैं। इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं।

6. मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-मौसम। मानसून का अर्थ, एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है। मानसून में विराम, मानसून से सम्बन्धित एक परिघटना है, इसमें आर्द्र एवं शुष्क दोनों तरह के अंतराल होते हैं। दूसरे शब्दों में, मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक होती है। इसमें वर्षारहित अंतराल भी होते हैं, इसे ही मानसून में विराम के नाम से जाना जाता है। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से सम्बन्धित होते हैं।

7. मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहाँ उच्चावच, जलवायु एवं वनस्पति में ही नहीं वरन् जनजीवन में भी विभिन्नताएँ मिलती हैं किन्तु मानसून एक ऐसा भौगोलिक कारक है जो देश की इन विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एकता स्थापित करता है। मानसून के आगमन पर समस्त देश में वर्षा होती है। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं।

समस्त भारतीय भू-परिदृश्य, इसका वन्य एवं वनस्पति जीवन, सम्पूर्ण कृषि कार्यक्रम, लोगों की जीवन-शैली और उनके त्यौहार सभी कुछ मानसून के इर्द-गिर्द घूमते हैं। मानसून के कारण ही प्रतिवर्ष ऋतुओं के चक्र की एक लय बनी रहती है। यही कारण है कि मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला समझा जाता है।

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प्रश्न 3.
उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय भारत की त्रिभुजाकार आकृति के कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून दो भागों में बँट जाता है

  1. अरब सागरीय शाखा,
  2. बंगाल की खाड़ी की शाखा।

आर्द्रता से युक्त बंगाल की खाड़ी की शाखा तीव्र गति से उत्तरी-पूर्वी राज्यों की ओर प्रवेश करती है और वहाँ पर स्थित पहाड़ियों से टकराकर घनघोर वर्षा प्रदान करती है। यहाँ से ये पवनें हिमालय के सहारे-सहारे पश्चिम में गंगा के मैदान की ओर मुड़ जाती हैं। जैसे ही ये पवनें पश्चिम की ओर बहती हैं, धीरे-धीरे इनकी आर्द्रता घटती जाती है जिस कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 4.
कारण बताएँ
1. भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन के निम्नलिखित कारण हैं
(अ) ग्रीष्मकाल में सम्पूर्ण उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप अत्यधिक गर्म रहता है। इससे यहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और यहाँ निम्न वायुदाब का केन्द्र बन जाता है जबकि जलीय क्षेत्रों में जहाँ इस समय उच्च वायुदाब होता है और पवनें निम्न दाब की ओर चलती हैं। अतः इस समय पवनों की दिशा जल से स्थल की ओर होती है।

(ब) शीत ऋतु सम्पूर्ण उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च वायुदाब का केन्द्र बन जाता है। इसके विपरीत जलीय भाग पर इस समय निम्न वायुदाब रहता है। अत: पवनें स्थल से जल की ओर चलती हैं।

2. भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
उत्तर:
भारत में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होती है जो भारत में केवल जून से सितम्बर के मध्य सक्रिय होते हैं। यही कारण है कि भारत में अधिकतर वर्षा इन्हीं महीनों में होती है।

3. तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर:
तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होने के निम्नलिखित कारण हैं
(अ) तमिलनाडु तट दक्षिण-पश्चिमी मानसून के वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ने के कारण ग्रीष्म ऋतु में वर्षा प्राप्त नहीं करता है।

(ब) शीत ऋतु में तमिलनाडु तट भारत में चलने वाली उत्तरी-पूर्वी पवनों के प्रभाव के क्षेत्र में पड़ता है। ये पवनें शुष्क होती हैं।

(स) जब ये उत्तरी-पूर्वी पवनें बंगाल की खाड़ी के ऊपर से होकर गुजरती हैं तो काफी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और तमिलनाडु के तट से टकराकर खूब वर्षा करती हैं।

4. पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।
उत्तर:
पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्रों में प्रायः चक्रवात आने के निम्नलिखित कारण हैं

(अ) नवम्बर माह के प्रारम्भ में अण्डमान सागर में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात उत्पन्न होते हैं। ये उत्तरी-पूर्वी पवनों के प्रभाव में आकर दक्षिण-पश्चिम की ओर चलते हैं।

(ब) इसके कारण उत्तर-पश्चिम भारत का निम्न वायुदाब क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाता है। इनकी दिशा पूर्वी तट की ओर होती है।

(स) जो चक्रवात सामान्यतः पूर्वी तट को पार करते हैं वे बहुत तीव्र गति वाले होते हैं, ये भारी वर्षा करते हैं। पूर्वी तट पर गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा हैं जहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। अतः इन चक्रवातों के प्रभाव से यहाँ जन-धन की भारी हानि होती है।

5. राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सखा प्रभावित क्षेत्र है।
उत्तर:
राजस्थान एवं गुजरात राज्य के कुछ भाग, जो पश्चिमी छोर पर स्थित हैं, सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं क्योंकि वर्षा ऋतु में जब मानसूनी पवनें इन क्षेत्रों में पहुँचती हैं तो उनकी आर्द्रता समाप्त हो चुकी होती है और ये बहुत कम वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र पवनाविमुख ढाल पर स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा न्यूनतम होती है।

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प्रश्न 5.
भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट समझा जा सकता
1. तापमान:
ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाता है, जबकि इसी समय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° सेण्टीग्रेड तक होता है। शीत ऋतु में जम्मू-कश्मीर के द्रास का तापमान 45° सेण्टीग्रेड तक गिर जाता है जबकि तिरुवन्तपुरम् में तापमान 22° सेण्टीग्रेड तक बना रहता है। सामान्य रूप से देश के तटीय क्षेत्रों के तापमान में अन्तर कम होता है। देश के आन्तरिक भागों में मौसमी या ऋतुनिष्ठ अन्तर अधिक होता है।

2. वर्षा:
देश के अधिकांश भागों में वर्षा जून से सितम्बर के मध्य होती है लेकिन तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा शरद ऋतु में अक्टूबर एवं नवम्बर के महीने में होती है।
वार्षिक वर्षा में भी भिन्नता देखने को मिलती है जहाँ मेघालय में यह वर्षा 400 सेमी. से अधिक वहीं लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह वर्षा 10 सेमी. से भी कम होती है। उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।

3. वर्षण का रूप:
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में अधिकांश वर्षा हिमपात के रूप में होती है, जबकि देश के अन्य भागों में यह वर्षा के रूप में होती है।

4. पवनों की दिशा:
ग्रीष्म ऋतु में पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं, जबकि शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 6.
मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करिए। उत्तर-मानसून अभिक्रिया (रचना तन्त्र) को निम्न प्रकार समझा जा सकता है
1. स्थल एवं जल के गर्म एवं ठण्डे होने की विभेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है, जबकि इसके आस-पास के समुद्रों के ऊपर उच्च वायुदाब का क्षेत्र बनता है।

2. ग्रीष्म ऋतु के अन्तः उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है। यह विषुवतीय गर्त है, जो सामान्यतः विषुवत् वृत से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून काल में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।

3. हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व में लगभग 20° दक्षिण के ऊपर उच्च दबाव क्षेत्र की उपस्थिति मिलती है। इस उच्च दबाव क्षेत्र की स्थिति और तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।

4. ग्रीष्म ऋतु के दौरान तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है। इस कारण समुद्र तट से लगभग 9 किमी. की ऊँचाई पर इस पठार के ऊपर उच्च दाब एवं तीव्र ऊर्ध्वाधर वायुधाराओं का निर्माण हो जाता है।

5. ग्रीष्म ऋतु में हिमालय के ऊपर उत्तर-पश्चिमी जेट वायुधाराओं का एवं भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी जेट वायुधाराओं का प्रभाव दिखाई देता है।

6. इसके अतिरिक्त दक्षिणी महासागरों के ऊपर दाब की अवस्थाओं में परिवर्तन भी स्पष्ट रूप से मानसून को प्रभावित करता है।

प्रश्न 7.
शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शीत ऋतु में मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित होती हैं।
1. शीत ऋतु की अवधि:
यह ऋतु मध्य नवम्बर से आरम्भ होकर फरवरी तक रहती है। भारत के उत्तरी भाग में दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठण्डे महीने होते हैं।

2. तापमान:
इस ऋतु में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता जाता है। दक्षिणी भारत में पूर्वी तट पर स्थित चेन्नई में औसत तापमान 24° से 25° सेण्टीग्रेड के मध्य होता है, जबकि उत्तरी मैदानों में यह 10° से 15° सेण्टीग्रेड के मध्य होता है। इस ऋतु में दिन गर्म होते हैं एवं रातें ठण्डी होती हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य होता है एवं हिमालय के उच्च ढलानों पर हिमपात होता है।

3. पवनें:
इस ऋतु के दौरान देश में उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं, ये स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। अतः देश के अधिकांश भागों में यह शुष्क मौसम होता है।

4. वर्षा:
इस ऋतु में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक वनों से तमिलनाडु तट पर अल्प मात्रा में वर्षा होती है। यहाँ वर्षा होने का प्रमुख कारण पवनों का समुद्र से स्थल की ओर चलना है।

5. वायुदाब:
देश के उत्तरी भाग में एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं।

6. शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर:
पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह न्यून दाब प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती हैं इसके कारण शीत ऋतु में मैदानों में वर्षा होती है एवं पर्वतों पर हिमपात। इस ऋतु में होने वाली वर्षा को महावट के नाम से जाना जाता है जो रबी की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है।

7. प्रायद्वीपीय भागों में शीत ऋतु सम्बद्ध नहीं होती। समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण इस ऋतु में भी यहाँ तापमान के प्रारूप में बहुत कम परिवर्तन होता है। शीत ऋतु की विशेषताएँ:

  1. इस ऋतु में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता जाता है।
  2. इस ऋतु में आसमान साफ, तापमान एवं आर्द्रता कम एवं पवनें धीरे-धीरे चलती हैं।
  3. इस ऋतु में दिन की अवधि छोटी एवं रातें लम्बी होती हैं।

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प्रश्न 8.
भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताइए। उत्तर-भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मानसूनी वर्षा:
भारत में अधिकांश वर्षा (लगभग 98%) दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों से होती है। शीतकालीन मानसूनों से यहाँ वर्षा मात्र 5 प्रतिशत होती है।

2. अनिश्चितता:
मानसूनी वर्षा में निश्चितता नहीं पाई जाती है इनका आगमन एवं वापसी बहुत ही अनिश्चित होती है। कभी भारी वर्षा होती है और कभी सूखा ही पड़ जाता है।

3. असमान वितरण:
मानसूनी वर्षा का वितरण असमान होता है, कहीं पर मानसूनी वर्षा बहत अधिक होती है, जैसे-उत्तरी-पूर्वी राज्य जबकि कहीं वर्षा बहुत कम होती है, जैसे-राजस्थान का मरुस्थल।

4. अवधि में अन्तर:
मानसून (ग्रीष्मकालीन मानसून) की अवधि में भी अन्तर पाया जाता है। पश्चिमी राजस्थान में दो महीने से कम तथा केरल एवं अण्डमान और निकोबार क्षेत्र समूह में लगभग 6 महीने की अवधि का होता है।

5. क्रमभंगता की प्रवृत्ति:
मानसून वर्षा के क्रम में निरन्तरता नहीं होती बल्कि वर्षा रुक-रुक कर होती है। भारी वर्षा होने के पश्चात् बीच-बीच में शुष्क मौसम आता रहता है। कभी-कभी यह अन्तराल अधिक हो जाता है जिससे फसलें सूख जाती हैं।

6. मूसलाधार वर्षा;
मानसूनी वर्षा मूसलाधार होती है। एक बार आने पर यह लगातार कई दिनों तक जारी रहती है इसे मानसून का फटना कहते हैं।

मानचित्र कौशल

भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए:
1. 400 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र,
2. 20 सेमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र,
3. भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा।
उत्तर:
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परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
पता लगाइए कि आपके क्षेत्र में एक विशेष मौसम से कौन-से गाने, नृत्य, पर्व एवं भोजन सम्बन्धित हैं? क्या भारत के दूसरे क्षेत्रों से इनमें कुछ समानता है?
उत्तर:
विद्यार्थी अपने क्षेत्र के अनुसार इस प्रश्न को शिक्षक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विशेष ग्रामीण मकानों तथा लोगों की वेशभूषा के फोटोग्राफ इकडे कीजिए। देखिए क्या उनमें और उन क्षेत्रों की जलवायु की दशाओं तथा उच्चावच में कोई सम्बन्ध है।
उत्तर:
इस कार्य को विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

स्वयं करने के लिए

प्रश्न 1.
सारिणी-1 में दस प्रतिनिधि स्थानों के औसत माध्य, मासिक तापमान तथा औसत मासिक वार्षिक वर्षा दिया गया है। इसका अध्ययन करके प्रत्येक स्थान के तापमान और वर्षा के आरेख बनाइए।
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प्रश्न 2.
दस स्थानों को दो भिन्न क्रमों में लिखिए:
1. विषुवत् वृत्त से उनकी दूरी के क्रम में।
2. समुद्रतल से उनकी ऊँचाई के क्रम में।
उत्तर:
(i) निम्नलिखित दस स्थान विषुवत् वृन्त से उनकी दूरी के क्रम समुद्रतल से उनकी ऊँचाई के क्रम में दिए गए हैं

स्थान विषुवत् वृत्त से दूरी स्थान समुद्र तल से औसत ऊँचाई (मीटर में)
(i) तिरुवनंतपुरम् 8°29 उ. (942 किमी.) (i) कोलकाता 6 मीटर
(ii) बंगलौर (बैंगलुरु) 12° 58 उ. (1439 किमी.) (ii) चेन्नई 7. मीटर
(iii) चेन्नई 13° 4 उ. (1451 किमी.) (iii) मुम्बई 11 मीटर
(iv) मुम्बई 19°उ. (2100 किमी.) (iv) तिरुवनंतपुरम 61 मीटर
(v) नागपुर 21° 9 उ. (2348 किमी.) (v) दिल्ली 219 मीटर
(vi) कोलकाता 22° 34 उ. (2505 किमी.) (vi) जोधपुर 224 मीटर
(vii) शिलांग 24°34 उ. (2835 किमी.) (vii) नागपुर 312 मीटर
(viii) जोधपुर 26°18 उ. (2919 किमी.) (viii) बंगलौर (बैंगलुरु) 909 मीटर
(ix) दिल्ली 29°उ. (3219 किमी.) (ix) शिलाँग 1461 मीटर
(x) लेंह 34°उ. (3774 किमी.) (x) लेह 3506 मीटर

प्रश्न 3.
1. सर्वाधिक वर्षा वाले दो स्थान।
उत्तर:
शिलाँग, मुम्बई।

2. दो शुष्कतम् स्थान।
उत्तर:
लेह, जोधपुर।

3. सर्वाधिक समान जलवायु वाले दो स्थान।
उत्तर:
मुम्बई, तिरुवनंतपुरम्।

4. जलवायु में अत्यधिक अन्तर वाले दो स्थान।
उत्तर:
दिल्ली, जोधपुर।

5. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की अरब सागर शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
मुम्बई, बैंगलुरु।

6. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
शिलाँग, कोलकाता।

7. दोनों से प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
तिरुवनंतपुरम्, कन्याकुमारी।

8. लौटती हुई तथा उत्तर-पूर्वी मानसून से प्रभावित दो स्थान।
उत्तर:
चेन्नई, आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र।

9. पश्चिमी विक्षोभों के द्वारा शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त करने वाले दो स्थान।
उत्तर:
दिल्ली, लेह (हिमपात के रूप में)।

10. सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले दो महीने।
उत्तर:
जुलाई, अगस्त।

11. निम्नलिखित महीनों में सर्वाधिक गर्म दो महीने: फरवरी, अप्रैल, मई, जून।
उत्तर:
मई एवं, जून।

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प्रश्न 4.
अब ज्ञात कीजिए:
1. तिरुवनंतपुरम् तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
तिरुवनंतपुरम् केरल राज्य में भारत के दक्षिणी सिरे पर स्थित है। मानसून भारत में जून के महीने में दक्षिण की ओर से प्रवेश करता है जिससे तिरुवनंतपुरम् में पर्याप्त वर्षा होती है। मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के रास्ते में सबसे पहले शिलाँग की पहाड़ियाँ आती हैं जिनसे ये आर्द्र पवनें टकराकर वर्षा करती हैं। मानसूनी पवनों के मार्ग में सबसे पहले पड़ने के कारण तिरुवनंतपुरम् एवं शिलांग जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं।

2. जुलाई में तिरुवनंतपुरम् की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
जुलाई में मानसूनी हवाएँ देश के आन्तरिक भागों में पहुँच जाती हैं जिसके कारण तिरुवनंतपुरम् में वर्षा होती जबकि मुम्बई में अरब सागर की ओर से आने वाली मानसूनी पवनें जून के दूसरे सप्ताह में यहाँ पहुँचती हैं और इसके पश्चात् पश्चिमी घाट से टकराकर इस क्षेत्र में वर्षा करती हैं। यही कारण है कि जुलाई में तिरुवनंतपुरम् की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा होती है।

3. चेन्नई में दक्षिण-पश्चिमी मानसन के द्वारा कम वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की अरब सागरीय शाखा पश्चिमी घाट के पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट को पार करने पर इन पवनों में आर्द्रता की कमी आ जाती है। पवनों के नीचे उतरने से उनका तापमान बढ़ जाता है तथा उनमें शुष्कता बढ़ जाती है। इस तरह चेन्नई वृष्टिछाया क्षेत्र में आ आता है। फलस्वरूप चेन्नई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा बहुत कम वर्षा होती है।

4. शिलाँग में कोलकाता की अपेक्षा अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
शिलाँग, मेघालय के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है पर्वतों से घिरे होने के कारण यहाँ संघनन प्रक्रिया तीव्र होती है और पवनें भारी वर्षा करने को विवश होती हैं, जबकि कोलकाता मैदानी भाग में स्थित है। यहाँ ऐसा कोई पर्वत या पहाड़ियाँ नहीं हैं जो मानसूनी पवनों को घेरने में सक्षम हों इसलिए यहाँ कम वर्षा होती है।

5. कोलकाता में जुलाई में जून से अधिक वर्षा क्यों होती है? इसके विपरीत, शिलाँग में जून में जुलाई से अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
जून के महीने में बंगाल की खाड़ी की ओर से मानसून पवनें, जो आर्द्रता से भरी होती हैं, जब उत्तरी-पूर्वी भाग से भारत में प्रवेश करती हैं तो वहाँ स्थित गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियों से टकराकर भारी वर्षा करती हैं। इन्हीं पहाड़ियों के मध्य शिलाँग स्थित है, जिससे यहाँ जून में अधिक वर्षा होती है। यहाँ से धीरे-धीरे ये मानसूनी पवनें पश्चिम दिशा की ओर बढ़ती हैं और जुलाई में कोलकाता में वर्षा करती हैं। इस प्रकार जून में कोलकाता में मानसून पूरी तरह नहीं पहुँच पाता है, जबकि शिलाँग में पहुँच जाता है। यही कारण है कि कोलकाता में जुलाई में जून से अधिक वर्षा होती है एवं इसके विपरीत शिलाँग में जून में जुलाई से अधिक वर्षा होती है।

6. दिल्ली में जोधपुर से अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाली दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनें जब भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की पहाड़ियों से टकराकर वर्षा करती हैं। इसके बाद ये पवनें पश्चिम की ओर बहना प्रारम्भ कर देती हैं तथा भारत के उत्तरी मैदानों में वर्षा करती हैं। दिल्ली भी इन्हीं मैदानी भागों में स्थित है जिससे दिल्ली में भी इन्हीं पवनों से वर्षा होती है। इसके विपरीत जोधपुर राजस्थान के पश्चिमी भाग में स्थित है

इस क्षेत्र में मानसून की अरब सागरीय शाखा के समानान्तर ही अरावली पर्वत स्थित है जिससे यहाँ पवनें बिना वर्षा किये आगे निकल जाती हैं। इसके अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी की मानसूनी शाखा यहाँ पहुँचते-पहुँचते अपनी आर्द्रता समाप्त कर चुकी होती हैं इसलिए इन पवनों से यहाँ नाममात्र की वर्षा होती है। यही कारण है कि दिल्ली में जोधपुर की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।

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प्रश्न 5.
1. अब सोचिए ! ऐसा क्यों होता है तिरुवनंतपुरम् की जलवायु सम है।
उत्तर:
समुद्र तटीय स्थानों की जलवायु सम होती है। जल अपना समकारी प्रभाव थल पर छोड़ता है। अतः समुद्र तटीय क्षेत्र ग्रीष्म ऋतु में न अधिक गर्म और न शीत ऋतु में अधिक ठण्डे होते हैं इसके अतिरिक्त समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों का दैनिक तथा वार्षिक ताप परिसर दोनों ही कम होते हैं। यही कारण है कि तिरुवनंतपुरम् की जलवायु सम है।

2. देश के अधिकतर भागों में मानसूनी वर्षा के समाप्त होने के बाद ही चेन्नई में अधिक वर्षा होती है।
उत्तर:
देश के अधिकतर भागों में वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों से होती है। सितम्बर-अक्टूबर माह में मानसूनी पवनें लौटना प्रारम्भ कर देती हैं। इस समय समस्त भारत में उत्तरी-पूर्वी पवनें चलने लगती हैं ये मानसूनी पवनें बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरते समय आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और संघनित होकर चेन्नई में अधिक वर्षा करती हैं।

3. जोधपुर की जलवायु उष्ण मरुस्थलीय है।
उत्तर:
जोधपुर की जलवायु के उष्ण मरुस्थलीय होने के निम्नलिखित कारण हैं:

  1. यहाँ मानसूनी पवनें पहुँचते-पहुँचते शुष्क हो जाती हैं और वर्षा बहुत कम होती है।
  2. यहाँ तापमान उच्च रहता है जो वायु की आर्द्रता को वाष्पीकृत कर वर्षा के लिए बाधक बनता है।
  3. यहाँ बलुई मिट्टी पायी जाती है जो वर्षा के जल को तुरन्त सोख लेती है।
  4. यहाँ वार्षिक एवं दैनिक तापान्तर अधिक पाया जाता है।
  5. यहाँ वनस्पति का अभाव पाया जाता है।

4. लेह में लगभग पूरे वर्ष मध्य वर्षण होता है।
उत्तर:
जम्मू: कश्मीर का लेह क्षेत्र अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित है जिसके कारण यहाँ वृष्टि का केवल हिमरूप ही दिखाई पड़ता है। यहाँ का न्यून तापक्रम भी जल को जमा देता है जिससे लेह में लगभग पूरे वर्ष मध्य वर्षण होता है।

5. दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा लगभग तीन महीनों में होती है, लेकिन तिरुवनंतपुरम् और शिलाँग में वर्ष के 9 महीने तक वर्षा होती है।
उत्तर:
दिल्ली और जोधपुर देश के आन्तरिक भागों में स्थित हैं, यहाँ मानसूनी पवनें बहुत देरी से पहुँचती हैं तथा सबसे पहले लौट भी जाती हैं, जबकि तिरुवनंतपुरम् और शिलांग में मानसूनी पवनें सबसे पहले पहुँचकर वर्षा करती हैं और सबसे बाद में लौटती हैं।

6. गम्भीरता से विचार कीजिए कि इन सब तथ्यों के बावजूद क्या हमारे पास इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पुष्ट प्रमाण है कि पूरे देश में जलवायु की सामान्य एकता बनाए रखने में मानसून का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान
उत्तर:
यह तथ्य पूर्णरूपेण सत्य है कि पूरे देश में जलवायु की सामान्य एकरूपता बनाए रखने में मानसून का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान है जो निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है

  1. पवन की दिशाओं का ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन एवं उनसे सम्बन्धित ऋतुओं की दशाएँ ऋतु चक्रों को एक लय प्रदान करती हैं।
  2. सम्पूर्ण भारतीय परिदृश्य, इसके जीव-जन्तु एवं वनस्पति, इसका कृषि चक्र , मानवीय जीवन एवं उनके त्यौहार-उत्सव, सभी इसी मानसूनी लय के चारों तरफ घूमते हैं।
  3. मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की सम्पूर्ण प्रक्रिया में तीव्रता लाती हैं एवं सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती हैं।

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JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शोषण का मूल कारण है
(क) बेरोजगारी
(ख) अशिक्षा
(ग) गरीबी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अशिक्षा

2. कोपरा (COPRA) क्या है?
(क) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम
(ख) उपभोक्ता आन्दोलन
(ग) उपभोक्ता दल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम

3. अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया, वह कानून है
(क) सूचना पाने का अधिकार
(ख) चुनने का अधिकार
(ग) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) सूचना पाने का अधिकार

4. 20 लाख से लेकर एक करोड़ तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों की शिकायतें किसमें प्रस्तुत की जा सकती हैं?
(क) जिलास्तरीय न्यायालय
(ख) राज्यस्तरीय न्यायालय
(ग) राष्ट्रीयस्तर की अदालतें
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) राज्यस्तरीय न्यायालय

5. एगमार्क किन वस्तुओं के लिए प्रामाणिक चिह्न है?
(क) उत्पादित सामान
(ख) स्वर्ण व चाँदी
(ग) खाद्य-पदार्थ
(घ) उत्पादित मशीन
उत्तर:
(ग) खाद्य-पदार्थ

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

6. भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब मनाया जाता है?
(क) 24 सितम्बर
(ख) 24 दिसम्बर
(ग) 5 सितम्बर
(घ) 21 जून।।
उत्तर:
(क) 24 सितम्बर

रिक्त स्थानपूर्ति

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. ………….के रूप में हम वस्तुओं तथा सेवाओं को कम करते हैं।
उत्तर:
उपभोक्ता,

2. भारत में …………के दशक में व्यवस्थित उपभोक्ता आन्दोलन का उदय हुआ?
उत्तर:
1960,

3. भारत सरकार ने…………सूचना पाने का अधिकार लागू किया।
उत्तर:
अक्टूबर, 2005,

4. भारत से प्रतिवर्ष………..को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
उत्तर:
दिसम्बर

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ताओं की बाजार में भागीदारी कब होती है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं की बाजार में भागीदारी तब होती है जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं और सेवाओं को खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
उपभोक्ताओं का शोषण क्यों होता रहता है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं का शोषण इसलिए होता रहता है कि वे या तो अपने अधिकारों के बारे में जानते नहीं या जानते हैं तो वे उनका प्रयोग नहीं करते।

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प्रश्न 3.
अधिकारों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता को किसका निर्वहन करना आवश्यक है?
उत्तर:
अधिकारों की प्राप्ति के लिए उपभोक्ता को अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ किस कारण हुआ?
उत्तर:
उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
कोपरा (COPRA)।

प्रश्न 6.
‘सूचना का अधिकार’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार द्वारा निर्मित एक कानून जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएँ प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 7.
उपभोक्ता के किन्हीं दो अधिकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सुरक्षा का अधिकार,
  2. सूचना पाने का अधिकार ।

प्रश्न 8.
यदि व्यापारी द्वारा उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई गई है, तो किस उपभोक्ता अधिकार के अन्तर्गत वह नुकसान की भरपाई के लिए उपभोक्ता न्यायालय जा सकता है?
उत्तर;
सुरक्षा का अधिकार।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित की गई अदालतों के नाम लिखिए।
उत्तर;

  1. जिला स्तर की उपभोक्ता अदालत,
  2. राज्य स्तर की उपभोक्ता अदालत,
  3. राष्ट्र स्तर की उपभोक्ता अदालत।

प्रश्न 10.
बाजार से वस्तुएँ खरीदते समय उपभोक्ता को आई.एस.आई. या एगमार्क के शब्द चिह्न क्यों देखने चहिए?
उत्तर:
क्योंकि यह वस्तु की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं।

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प्रश्न 11.
विद्युत उपकरणों एवं खाद्य वस्तुओं पर अंकित शब्द चिह्न और प्रमाणकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विद्युत उपकरण ISI चिद्न। खाद्य वस्तुओं पर AGMARK चिह्न।

प्रश्न 12.
मान लीजिए कि आपको बिजली का सामान (उपकरण) खरीदना है, तो उस सामान पर गुणवत्ता के लिए आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखोगे ?
उत्तर:
विद्युत उपकरणों पर हम ISI चिह्न देखेंगे।

प्रश्न 13.
कल्पना कीजिए कि आपको यात्रा के ौरान पीने के लिए पानी की पैक बोतल खरीदनी पड़ी। इसकी गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त होने के लिए आप कौन-सा शब्द चिह्न (Logo) देखना चाहोगे ?
उत्तर:
पानी की बोतल पर हम AGMARK का चिह्न देखेंगे।

प्रश्न 14.
मान लीजिए कि आपके माता-पिता आपके साथ सोने के आभूषण खरीदना चाहते हैं, तो इसके लिए आप आभूषणों पर कौन-सा शब्द चिह्न (लोगो) देखना चाहोगे?
उत्तर:
हॉलमार्क।

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प्रश्न 15.
भारत में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि 1986 में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया था।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बाजार में हमारी भागीदारी कैसे होती है?
उत्तर:
बाजार में हमारी भागीदारी निम्न प्रकार से होती है

  1. बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है।
  2. वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादक के रूप में हम कृषि, उद्योग या सेवा में से किसी क्षेत्रक में कार्यरत हो सकते हैं।
  3. उपभोक्ता के रूप में हमारी भागीदारी तब होती है जब हम अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
चयन के अधिकार को संक्षेप में उदाहरण सहित बताइए।
अथवा
उपभोक्ता के ‘चुनने का अधिकार’ का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी भी उपभोक्ता को जो कि किसी सेवा को प्राप्त करता है, चाहे वह किसी भी आयु एवं लिंग का हो तथा किसी भी प्रकार की सेवा प्राप्त करता हो, उसको सेवा प्राप्त करते हुए हमेशा चयन का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि विक्रेता हमें कहता है कि एक दंत मंजन के साथ कुछ खरीदना पड़ेगा तो यह हमारे चयन के अधिकार का उल्लंघन होगा। अत: हम अपने ‘चयन (चुनने) के अधिकार’ का इस्तेमाल करते हुए केवल दंत मंजन ही खरीद सकते हैं।

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प्रश्न 3.
क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार को संक्षेप में बताइए।
अथवा
उपभोक्ताओं के लिए ‘क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार’ के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता को अनुचित व्यवसाय कार्यों एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार होता है। यदि उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचायी जाती है तो उसे हुई क्षति की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए एक सरल व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 4.
प्रतिनिधित्व के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हमें उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालयों में जाने का अधिकार है। हमारे हितों को उपयुक्त मंचों पर उचित महत्त्व मिलना चाहिए। यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में निरस्त कर दिया जाता है तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके पश्चात् राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है।

प्रश्न 5.
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति के समर्थन में कोई तीन तर्क दीजिए। उत्तर–भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति के समर्थन में प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं

  1. भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ उपभोक्ता निपटारे के लिए अलग अदालतें हैं।
  2. हमारे देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं जिसमें से 20-25 संगठन ऐसे हैं जो सुसंगठित एवं अच्छी कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं।
  3. भारत में उपभोक्ता ज्ञान धीरे-धीरे फैल रहा है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ता आंदोलन के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ को पारित करने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आंदोलन के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं

  1. उपभोक्ता आंदोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवहारों में सम्मिलित होते हैं।
  2. 1980 के दशक से पहले बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक जब तक उपभोक्ता एवं विशेष ब्रांड के उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो सामान्यत: वह उस ब्रांड उत्पाद को एवं उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था।
  3. यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते समय वह सावधानी बरते विक्रेता का कोई उत्तरदायित्व नहीं है।
  4. अनुचित व्यवसाय कार्यों, अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी एवं कालाबाजारी ने भी उपभोक्ता आन्दोलन को प्रोत्साहन प्रदान किया।

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प्रश्न 2.
उपभोक्ता आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं? समझाइए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में सम्मिलित होते थे। बाजार में उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह मान लिया गया था कि वस्तु या सेवा खरीदते समय सावधान रहना उपभोक्ता की जिम्मेदारी है।

सन् 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था के दिशा-निर्देश को अपनाया। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा हेतु उपयुक्त तरीके अपनाने हेतु राष्ट्रों के लिए एवं सेवा करने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर करने हेतु उपभोक्ता वकालत दलों के लिए एक हथियार था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह उपभोक्ता आन्दोलन का आधार बना।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता अधिकार के रूप में ‘सुरक्षा का अधिकार’ को उदाहरण सहित संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत सी वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करते हैं तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार प्राप्त होता है क्योंकि ये जीवन व सम्पत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा विनियमों एवं नियमों का पालन करें। ऐसी बहुत सी वस्तुएँ एवं सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से विशेष सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए प्रेशर कुकर में एक सेफ्टी वाल्व होता है जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना का कारण बन सकता है। सेफ्टी वाल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता को प्राप्त किन्हीं तीन अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 24 दिसम्बर, 1986 में पारित हुआ था। उपभोक्ता अधिकार उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं।

1. सुरक्षा का अधिकार- इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को ऐसे माल के क्रय:
विक्रय के विरुद्ध संरक्षण पाने का अधिकार प्रदान किया गया है, जो जीवन व सम्पत्ति के लिए हानिकारक हैं। उपभोक्ता को किसी भी वस्तु या सेवा के क्रय या उपभोग से बीमार होने, चोट लगने या किसी भी व्यक्ति के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से होने वाली हानि के विरुद्ध सुरक्षा पाने का अधिकार है।

2. सूचना पाने का अधिकार:
उपभोक्ता को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि उसे माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्यों के बारे में सूचना प्रदान की जाये। यदि ये सूचनाएँ माल के उत्पादक द्वारा नहीं लिखी गयी हैं तो उपभोक्ता इन सूचनाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखता है। आज सरकार द्वारा प्रदत्त विविध सेवाओं को उपयोगी बनाने के लिए सूचना पाने के अधिकार का दायरा बढ़ा दिया गया है। अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने एक नया कानून लागू किया जो RTI या सूचना पाने के अधिकार के नाम से जाना जाता है।

3. चुनाव का अधिकार:
इस अधिकार के तहत उपभोक्ता बाजार में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से किसी का भी चयन कर सकता है। वह किसी भी व्यवसायी द्वारा उत्पादित माल की किसी भी किस्म को अपनी इच्छा से पसन्द कर सकता है। …

4. क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार:
इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को व्यवसायी द्वारा किये जाने वाले प्रतिबन्धात्मक एवं अनुचित व्यवहार के कारण होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार दिया गया है।

5. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:
इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को वस्तुओं, सेवाओं एवं उनके उपयोग की विधि आदि के सम्बन्ध में जानकारी या शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होता है। यह अधिकार उपभोक्ताओं को जागरूक बने रहने के लिए ज्ञान तथा क्षमता प्रदान करने का अधिकार है।

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प्रश्न 5.
सूचना का अधिकार क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उपभोक्ताओं के लिए ‘सूचना पाने का अधिकार’ (आर.टी.आई.) के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता को खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है। इसके अन्तर्गत माल की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्यों आदि की सूचना सम्मिलित है। यदि ये सूचनाएँ माल के उत्पादक द्वारा नहीं लिखी गयी हैं तो उपभोक्ता इन सूचनाओं को प्राप्त करने का अधिकार रखता है।

यह अधिकार उपभोक्ताओं को इसलिए दिया गया है ताकि विक्रेता द्वारा धोखा दिया जाने पर उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार ने सूचना पाने के अधिकार को एक कानून के रूप में लागू किया। यह अधिकार भारतीय नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यालयों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है। इसे RTI या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 6.
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार का आप किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं?
अथवा
उपभोक्ता अपने ‘क्षतिपूर्ति निवारण के अधिकार’ का उपयोग किस प्रकार कर सकते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उपभोक्ता को अनुचित व्यवसाय कार्यों एवं शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार होता है। यदि उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचायी जाती हैं तो उसे हुई क्षति की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए एक सरल व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है। उदाहरण-रामप्रसाद ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए अपने गाँव एक मनीआर्डर भेजा।

उसकी पुत्री को जब इन पैसों की आवश्यकता थी, तब पैसे पोस्ट ऑफिस में जाकर मनीआर्डर के बारे में पूछताछ की लेकिन वहाँ से उसे कोई 10 सन्तोषप्रद जबाव नहीं मिला। तत्पश्चात् रामप्रसाद अपने जिले की उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराते हैं तथा आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं। उपभोक्ता अदालत ने निर्धारित तिथि को दोनों पक्षों के तर्क सुनकर रामप्रसाद के पक्ष में फैसला देते हैं तथा पोस्ट ऑफिस से मनीआर्डर की राशि मय ब्याज के रामप्रसाद को उपलब्ध करवाते हैं। इस प्रकार हम भी अनुचित व्यवसाय कार्यों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रश्न 7.
उपभोक्ता संरक्षण परिषद क्या है? ये उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु क्या-क्या सेवाएं प्रदान करते हैं?
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन ने विभिन्न ऐच्छिक संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया है। उन्हें सामान्य तथा उपभोक्ता अदालत अथवा उपभोक्ता संरक्षण परिषद के नाम से जाना जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण परिषद उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करती हैं

  1. ये उपभोक्ताओं को जानकारी देते हैं कि किस प्रकार उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज करायें।
  2. सामान्यतः ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
  3. वें जनता में उपभोक्ता के अधिकारों एवं कर्त्तव्य को प्रति उन्हें जागरूक करने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए स्थापित न्यायिक तंत्र को समझाइए।
अथवा
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र किस प्रकार स्थापित किया गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए कोपरा (उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986) के अन्तर्गत जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गई है। जिला स्तर के न्यायालय को जिला केन्द्र भी कहते हैं। यह 20 लाख तक दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करता है।

राज्य स्तरीय अदालत को राज्य आयोग भी कहते हैं। यह 20 लाख से 1 करोड़ तक के विवादों पर विचार करते हैं। राष्ट्रीय स्तर की अदालत को राष्ट्रीय आयोग भी कहते हैं। यह 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारियों से सम्बन्धित मुकदमों को देखती है। यदि कोई मुकदमा जिला केन्द्र से खारिज हो जाता है तो उपभोक्ता राज्य आयोग में तथा उसके बाद राष्ट्रीय आयोग में भी अपील कर सकता है।

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प्रश्न 9.
भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल क्यों होती जा रही है ? कारण दीजिए।
अथवा
भारत में उपभोक्ता शिकायतों की निवारण प्रक्रिया किस प्रकार जटिल, खर्चीली और समयसाध्य साबित हो रही है? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समयसाध्य साबित हो रही है।” इस समस्या के समाधान के लिए किन्हीं तीन कारकों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया किस प्रकार जटिल, खर्चीली और समय-साध्य हो रही है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया निम्न कारणों में जटिल होती जा रही है

  1. उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया खर्चीली एवं समयसाध्य साबित हो रही है।
  2. कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमे अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने एवं आगे बढ़ने आदि में बहुत अधिक समय लेते हैं।
  3. अधिकांश क्रेताओं को खरीददारी के समय विक्रेताओं द्वारा रसीद नहीं दी जाती। ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना, आसान नहीं होता। इसके अतिरिक्त बाजार में अधिकांश खरीदारियाँ छोटी फुटकर दुकानों से होती हैं।
  4. श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद विशेषकर असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार बाजार के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता है।
    पभोक

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी कारक कौन-कौन से हैं? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारम्भ के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं

  1. भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म अनैतिक एवं अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
  2. देश में अत्यधिक खाद्य पदार्थों की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों में एवं तेलों में मिलावट के कारण से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म हुआ।
  3. 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बन्धित आलेखों एवं प्रदर्शनों के आयोजन का कार्य करने लगी थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ एवं राशन की दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर निगरानी रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाये।
  4. पिछले कुछ वर्षों से भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए हुआ कि. व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण के अनेक मामले लगातार हमारे समक्ष आते जा रहे हैं।
  5. उपभोक्ता आन्दोलन वृहत स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ एवं अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों एवं सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया जिसे उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के नाम से जाना जाता है। 24 दिसम्बर, 1986 को भारत की संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया जो कोपरा (COPRA) नाम से जाना जाता है।
  6. कोपरा के अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरों या एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 2.
क्या कोपरा (उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम) प्रभावकारी हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क कीजिए।
उत्तर:
हाँ, कोपरा प्रभावकारी है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  1. कोपरा (COPRA) अधिनियम ने केन्द्र और राज्य सरकारों में उपभोक्ता मामले के अलग विभागों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा की है।
  2. विज्ञापनों के माध्यम से सरकार नागरिकों को उपभोक्ता सुरक्षा सम्बन्धी कानूनी प्रक्रिया के बारे में अवगत कराती है, जिससे नागरिक कानूनों का प्रयोग कर सकें।
  3. जब हम विभिन्न वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते समय, उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे, तब हम अच्छे और बुरे में फर्क करने तथा श्रेष्ठ का चुनाव करने में सक्षम होंगे। कोपरा के माध्यम से इस प्रकार की जागरूकता का विकास हुआ है।
  4. एक जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए निपुणता और ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है। हम अपने अधिकारों के प्रति कैसे सजग रहें इसके लिए उपभोक्ता कानून बनाये गये हैं।
  5. कोपरा के माध्यम से विभिन्न उपभोक्ता अदालतों एवं मंचों का गठन किया गया है जिससे उपभोक्ता आसानी से एवं कम खर्च में न्याय प्राप्त कर सकते हैं।
  6. अब उपभोक्ता की तरफ से कोई उपभोक्ता संगठन भी उत्पाद की शिकायत करके क्षतिपूर्ति दिला सकता है।
  7. कोपरा के द्वारा अब उपभोक्ता वस्तु के खराब होने पर आसानी से क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

प्रश्न 3.
उपभोक्ता का शोषण किस प्रकार किया जाता है? इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने क्या किया है?
उत्तर:
बाजार में उपभोक्ताओं का निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है

  1. विक्रेता प्रायः वस्तुओं की उचित ढंग से माप-तौल नहीं करते तथा माप-तौल में कमी करते हैं।
  2. कई अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते हैं।
  3. बाजार में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है।
  4. कई बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत या अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं।

उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा निर्मित 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act, COPRA) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपर्ति की व्यवस्था की गई है। उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता-विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में त्रिस्तरीय न्यायिक व्यवस्था है

जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता मंच (फोरम) की स्थापना की गयी है। यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है। इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए गए निवेश को क्या कहते हैं?
(क) उत्पादन
(ख) व्यय
(ग) वितरण
(घ) विदेशी निवेश
उत्तर:
(घ) विदेशी निवेश

2. कारगिल फूड्स किस देश की बहुराष्ट्रीय कम्पनी है?
(क) अमेरिका
(ख) भारत
(ग) फ्रांस
(घ) कनाडा
उत्तर:
(क) अमेरिका

3. विदेशी व्यापार किनके मध्य होता है?
(क) दो देशों के मध्य
(ख) दो नगरों के मध्य
(ग) दो गाँवों के मध्य
(घ) दो प्रदेशों के मध्य
उत्तर:
(क) दो देशों के मध्य

4. देशों के तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
(क) उदारीकरण
(ख) वैश्वीकरण
(ग) शहरीकरण
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) वैश्वीकरण

5. तत्काल इलेक्ट्रॉनिक डाक किसके द्वारा भेजी जा सकती है?
(क) डाकघर:
(ख) वायु परिवहन
(ग) बहुराष्ट्रीय निगम
(घ) इण्टरनेट
उत्तर:
(घ) इण्टरनेट

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

6. एक ऐसा संगठन जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है
(क) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(ख) विश्व व्यापार संगठन
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) विश्व व्यापार संगठन

7. सर्वप्रथम विश्व व्यापार संगठन किसके द्वारा शुरू हुआ?
(क) विकसित देश
(ख) विकासशील देश
(ग) अल्प-विकसित देश
(घ) निर्धन देश
उत्तर:
(क) विकसित देश

8. वैश्वीकरण से सर्वाधिक लाभान्वित हुए हैं।
(क) ग्रामीण मजदूर
(ख) शहरी शिक्षित व्यक्ति
(ग) धनी वर्ग के उपभोक्ता
(घ) ये सभी.
उत्तर:
(ग) धनी वर्ग के उपभोक्ता

9. वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव में सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं
(क) वस्त्र निर्यातक
(ख) श्रमिक
(ग) धनिक वर्ग
(घ) बहुराष्ट्रीय कम्पनी
उत्तर:
(क) वस्त्र निर्यातक

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. परिसम्पत्तियों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा…………. कहलाती है।
उत्तर:
निवेश,

2. देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना …………. कहलाता है।
उत्तर:
वैश्वीकरण,

3. वैश्वीकरण से अनेक………….एवं श्रमिक प्रभावित हुए है।
उत्तर:
छोटे उत्पादक,

4. ……………… का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तौर-तरीकों के सरल बनाना है।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन।

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपेक्षाकृत नवीन परिघटना कौन-सी है?
उत्तर:
हमारे बाजारों में वस्तुओं के बहुव्यापी विकल्प अपेक्षाकृत नवीन परिघटना है।

प्रश्न 2.
बीसर्वीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन की क्या मुख्य विशेषता थी?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन देश की सीमाओं के अन्दर तक ही सीमित था।

प्रश्न 3.
भारत में आयात-निर्यात का क्या स्वरूप था?
उत्तर:
भारत से कच्चा माल तथा खाद्य पदार्थों का निर्यात होता था और तैयार वस्तुओं का आयात होता था।

प्रश्न 4.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है, बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहलाती है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किन प्रदेशों में अपने कार्यालय व उत्पादन के कारखाने स्थापित करती हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय व उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम व अन्य संसाधन मिल सकते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-सा देश सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है?
उत्तर:
चीन सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
निवेश क्या है?
अथवा
निवेश का अर्थ लिखिए।
अथवा
निवेश और विदेशी निवेश में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
निवेश-परिसम्पत्तियों; जैसे – भूमि, भवन, मशीन व अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की मुद्रा को निवेश कहते हैं। विदेशी निवेश-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किया गया निवेश विदेशी निवेश कहलाता है।

प्रश्न 8.
‘वैश्वीकरण’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका कौन निभा रहा है?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

प्रश्न 10.
व्यापार अवरोधक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशों से होने वाले आयात पर लगने वाले प्रतिबन्ध व्यापार अवरोधक कहलाते हैं।

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प्रश्न 11.
सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग किसलिए कर सकती हैं?
उत्तर:
सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती करने और देश में किस प्रकार की वस्तुएँ कितनी मात्रा में आयात होनी चाहिए, यह निर्णय करने के लिए कर सकती हैं।

प्रश्न 12.
उदारीकरण क्या है?
अथवा
उदारीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 13.
कोटा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या पर एक सीमा तय कर देती है, जिसे ‘कोटा’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के कितने देश सदस्य हैं?
उत्तर:
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के 164 देश सदस्य हैं।

प्रश्न 15.
किस देश में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोग उत्पादन एवं दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए सरकार से बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोग सरकार से बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 16.
किन लोगों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है?
उत्तर:
उत्पादकों एवं श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रश्न 17.
विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने किन कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति प्रदान की है?
उत्तर:
विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार ने श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति प्रदान की है।

प्रश्न 18.
विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए किन्हीं दो कदमों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना।
  2. सरकार द्वारा श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति देना।

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण ने किस क्षेत्र वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सृजन किया है?
उत्तर:
वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कम्पनियों विशेषकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सुजन किया है।

प्रश्न 20.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में अपने ग्राहक देखभाल केन्द्र क्यों स्थापित कर रही हैं?
उत्तर:
क्योंकि भारत में अंग्रेजी बोलने वाले शिक्षित युवक कम वेतन पर उपलब्ध हैं।

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प्रश्न 21.
वैश्वीकरण ने किस प्रकार छोटे उत्पादकों के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी की है?
उत्तर:
छोटे उत्पादकों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सस्ती दर पर वस्तुएँ उत्पादित कर रही हैं।

प्रश्न 22.
न्यायसंगत वैश्वीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसर प्रदान करेगा और यह सुर्निश्चित भी करेगा कि वैश्वीकरण से प्राप्त लाभ में सभी की हिस्सेदारी हो।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या आशय है? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से आशय-बहुराष्ट्रीय कम्पनी वह है जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है। विशेषताएँ

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनी उन देशों में अपने कार्यालय व उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती है, जहाँ उसे सस्ता श्रम व अन्य संसाधन मिल सकते हैं।
  2. उत्पादन लागत में कमी करने एवं अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ऐसा करती हैं।

प्रश्न 2.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किन स्थितियों में किसी देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ निम्नलिखित स्थितियों में किसी देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं

  1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं, जो बाजार के समीप हो।
  2. जहाँ कम लागत पर कुशल श्रम व अकुशल श्रम उपलब्ध हो।
  3. जहाँ उत्पादन के अन्य तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
  4. जहाँ सरकारी नीतियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अनुकूल हों।

प्रश्न 3.
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को क्या लाभ होता है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को क्या लाभ होते हैं?
अथवा
बहराष्ट्रीय कम्पनियों के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनियों को दोहरा लाभ होता है, जो निम्नलिखित है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अतिरिक्त निवेश के लिए धन प्रदान कर सकती हैं; जैसे-तीव्र उत्पादन हेतु मशीन खरीदना।
  2. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ ला सकती हैं।

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प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के पश्चात भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर क्यों प्रतिबन्ध लगा रखा था?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबन्ध उत्पादकों को विदेशी दिर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए लगाया। सन् 1950 एवं 1960 के दशक में उद्योगों का उदय हो रहा था। इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती इसलिए भारत ने केवल अनिवार्य वस्तुओं; जैसे-मशीनरी, उर्वरक एवं पेट्रोलियम के आयातों की ही अनुमति दी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायक होता है? समझाइए।
अथवा
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं वाले बाज़ारों को एकीकृत करता है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार दूसरे देशों में बाज़ारों को सहूलियत देते हैं। परन्तु हर देश उन्हीं वस्तुओं का आयात करता है जिनका निर्माण वह अपने देश में नहीं करता या उनके देश में उनका उत्पादन कम है। इसी तरह निर्यात भी उन वस्तुओं का किया जाता है जो अपने देश में ज़रूरत से अधिक हों या दूसरे देशों के मुकाबले उनका उत्पादन सस्ते दामों पर अपने देश में किया जा रहा हो।

सामान्यतः विदेश व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। विभिन्न बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं । इस प्रकार विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या उनके एकीकरण में सहायक होता है।

उदाहरण के लिए भारत में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग उपकरणों का बहुतायत में उत्पादन होता है। विश्व के विभिन्न देशों में इन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, यदि वे इनकी माँग करते हैं। दूसरी तरफ भारत में खाद्य तेल, खनिज तेल व जीवन रक्षक दवाइयों की कमी भी है तो ये वस्तुएँ भारत में विभिन्न देशों से आयात की जाती हैं। इस प्रकार विदेश व्यापार से विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में सहायता मिलती है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की क्या भूमिका है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के किन्हीं तीन लाभों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के फलस्वरूप भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  2. देश में अनेक उद्योगों की स्थापना होने से देश का तीव्र औद्योगिक विकास हुआ है।
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादन में नवीन तकनीकों का प्रयोग करने से देश में नवीन तकनीकी का आगमन हुआ है।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश में अनेक उद्योगों की स्थापना कर रही हैं जिसमें लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है।
  5. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अच्छी गुणवत्तायुक्त वस्तुएँ उपलब्ध करायी जा रही हैं, इसके फलस्वरूप भारतीय उपभोक्ताओं के समक्ष अनेक विकल्प उपलब्ध हो गये हैं।

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प्रश्न 3.
“सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है।” उपयुक्त उदाहरण देकर कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को संक्षेप में बताइए।
अथवा
वैश्वीकरण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका को किन्हीं तीन आधारों पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार उत्प्रेरित किया है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। दूसरे शब्दों में, अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना वैश्वीकरण कहलाता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका निम्नलिखित है

  1. प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति वह कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया।
  2. परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार ने लम्बी दूरियों तक कम लागत पर वस्तुओं की तीव्रतम आपूर्ति को सम्भव बनाया है।
  3. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी अर्थात् दूरसंचार, कम्प्यूटर व इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का तीव्र विकास हुआ है। इन्होंने सम्पूर्ण विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क को आसान बना दिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटर का उपयोग किया जा रहा है।
  4. प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है।

प्रश्न 4.
उदाहरण देकर उन कारकों का वर्णन कीजिए जिन्होंने भारत में वैश्वीकरण को सम्भव बनाया है।
अथवा
वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वैश्वीकरण के लिए उत्तरदायी कारक

  1. प्रौद्योगिकी में तीव्र गति से हुई प्रगति।
  2. निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नीतियों का उदारीकरण
  3. विश्व व्यापार संगठन जैसे, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सहयोग।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी इकाइयाँ तथा कार्यालय भारत में स्थापित करना।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन क्या है ? क्या यह संगठन अपना कार्य ठीक ढंग से कर रहा है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य विभिन्न सदस्य देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार पर निगरानी करना, उसे प्रोत्साहित करना व उदार बनाना है। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित कानून बनाता है तथा यह भी देखता है कि इन कानूनों का पालन हो रहा है या नहीं।

यह संगठन ठीक से कार्य नहीं कर पा रहा है। यद्यपि विश्व व्यापार संगठन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सभी देशों को मुक्त व्यापार करने की अनुमति दे परन्तु व्यवहार में यह देखा गया है कि विकसित देश अनुचित रूप से व्यापार अवरोधकों का स । अभी तक ले रहे हैं वहीं दूसरी ओर संगठन के नियमों ने विकासशील देशों को व्यापार अवरोधक हटाने के लिए बाध्य कि है।

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प्रश्न 6.
वैश्वीकरण क्या है? भारत में इसके दो प्रभाव लिखिए।
अथवा
भारत में वैश्वीकरण के किन्हीं तीन प्रभावों को समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी एवं श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण के अन्तर्गत विदेशी व्यापार अवरोधक हटा लिये जाते हैं, जिससे पूँजी व श्रम का स्वतन्त्र रूप में आवागमन होता है, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, आयात-निर्यात में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त उत्पादन व उत्पादकता का स्तर बढ़ता है। वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव-वैश्वीकरण के भारत की अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं

  1. वैश्वीकरण में भारतीय उत्पादकों को वस्तुओं और सेवाओं के अनेक विकल्प मिले हैं तथा भारतीय उपभोक्ताओं को कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं की प्राप्ति होती है। उपभोक्ता को विश्व स्तर की वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध होती हैं।
  2. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है, जिससे देश में उत्पादन एवं रोजगार में वृद्धि
  3. उत्पादकों एवं श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के विभिन्न वर्गों पर कौन-कौन से नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
विभिन्न वर्गों पर वैश्वीकरण के निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं

  1. छोटे उद्योगों जैसे-बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक खिलौने, टायर, डेयरी उत्पाद एवं खाद्य तेल आदि को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण बहुत नुकसान झेलना पड़ा है।
  2. कई उद्योग बन्द हो गये जिसके अनेक श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं।
  3. वैश्वीकरण तथा प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन में बहुत परिवर्तन ला दिया है। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता आजकल श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि अब श्रमिकों का रोजगार सुनिश्चित एवं सुरक्षित नहीं रह गया है।
  4. नियोक्ता श्रम लागतों में निरन्तर कटौती कर रहे हैं, वे कम वेतन पर श्रमिकों से अधिक समय काम ले रहे हैं।
  5. वैश्वीकरण से धनिक एवं निर्धन वर्ग के मध्य अन्तर में और अधिक वृद्धि हुई है।

प्रश्न 8.
न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार क्या भूमिका निभा सकती है?
अथवा
न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कौन-कौन से उपाय करने चाहिए?
उत्तर:
विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण सभी के लिए लाभप्रद नहीं रहा है। शिक्षित, कुशल एवं सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है वहीं दूसरी ओर अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है। न्यायसंगत वैश्वीकरण सुनिश्चित करने हेतु सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1. सरकारी नीतियों से देश के धनी व प्रभावशील लोगों के साथ-साथ देश के सभी लोगों के हितों का संरक्षण करना चाहिए।
  2. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि श्रमिक कानूनों का उचित ढंग से क्रियान्वयन हो एवं श्रमिकों को उनके अधिकार मिलें।
  3. सरकार को छोटे उत्पादकों को कार्य निष्पादन में सुधार के लिए उस समय तक सहायता करनी चाहिए जब तक कि वे प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम न हो जाएँ।
  4. सरकार को विश्व व्यापार संगठन में कसित देशों के प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के लिए समान हित वाले अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर प्रयास कर पाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अन्य देशों में अपना उत्पादन किस प्रकार स्थापित तथा नियंत्रित करती हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या अभिप्राय है? आधुनिक अर्थव्यवस्था में उनकी कार्यप्रणाली समझाइए।
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी से क्या आशय है? उनकी कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हराष्ट्रीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वे कम्पनियाँ होती हैं जो एक से अधिक देशों में अपनी औद्योगिक इकाइयाँ व कार्यालय स्थापित करती हैं। ये कम्पनियाँ एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण व स्वामित्व रखती हैं। इन कम्पनियों में पूँजी निवेश अधिक होता है। इन कम्पनियों की इकाइयों का आकार विशाल होता है तथा उत्पादन की माँग व पूर्ति बड़े पैमाने पर होती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा दूसरे देशों में अपने उत्पादन पर नियंत्रण बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दूसरे देशों में अपने उत्पादन पर निम्न प्रकार से नियंत्रण स्थापित करती हैं
1. संयुक्त उत्पादन द्वारा:
कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कुछ देशों की स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनी को दोहरा लाभ प्राप्त होता है।

2. स्थानीय कम्पनियाँ खरीद कर:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों को खरीदकर अपने उत्पादन का विस्तार करती हैं। अपार सम्पदा वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ यह आसानी से कर सकती हैं।

3. छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आर्डर देना:
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एक अन्य तरीके से भी उत्पादन नियन्त्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल का सामान ऐसे उद्योग हैं जहाँ विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति की जाती है। ये कम्पनियाँ इन वस्तुओं को अपने ब्रांड नाम से उपभोक्ताओं को बेच देती

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प्रश्न 2.
वैश्वीकरण क्या है? भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण से होने वाले किन्हीं चार लाभों को समझाइए।
अथवा
वैश्वीकरण के किन्हीं पाँच प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के किन्हीं तीन लाभों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध एवं तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण कहलाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है जिससे वस्तुओं और सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी एवं श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके।

वैश्वीकरण के अन्तर्गत विदेशी व्यापार अवरोधक हटा लिये जाते हैं, जिससे पूँजी व श्रम का स्वतंत्र रूप से आवागमन होता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, आयात-निर्यात में वृद्धि होती है तथा उत्पादन व उत्पादकता का स्तर बढ़ता है। वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव-वैश्वीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्न सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं

  1. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत का विश्व के अन्य देशों के साथ सम्पर्क बढ़ा है तथा आर्थिक व राजनैतिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
  2. स्थानीय व विदेशी उत्पादकों के मध्य प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं विशेषकर शहरी क्षेत्र में रह रहे धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। वे अब अनेक वस्तुओं और सेवाओं की उत्कृष्टता, गुणवत्ता तथा कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं।
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने शहरी क्षेत्रों में सेलफोन, मोटरगाड़ियाँ, इलेक्ट्रोनिक उत्पादों, ठण्डे पेय पदार्थों, जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसे सेवाओं के निवेश में रुचि दिखाई है। जिससे शहरी क्षेत्रों में पढ़े-लिखे लोगों एवं कुशल श्रमिकों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कम्पनियों के लाभ में वृद्धि हुई है।
  5. वैश्वीकरण ने कुछ वृहत् भारतीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है।
  6. वैश्वीकरण सूचना प्रौद्योगिकी, आँकड़ा प्रविष्टि, लेखांकन, प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग आदि कई सेवाएँ प्रदान करने वाली कम्पनियों के लिए नए अवसर उत्पन्न किए हैं।
  7. वैश्वीकरण के फलस्वरूप देश के विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे भारतीय उत्पादकों को लाभ प्राप्त हुआ है।
  8. वैश्वीकरण से देश में नवीन प्रौद्योगिकी का आगमन हुआ है।
  9. वैश्वीकरण से देश में विदेशी पूँजी में वृद्धि हुई है, जिसके प्रभाव से उत्पादन व रोजगार में वृद्धि दर्ज की गयी है।
  10. वैश्वीकरण से देश में प्रतिस्पर्धा का वातावरण उत्पन्न हुआ है, जिसका लाभ उत्पादक व उपभोक्ता दोनों को ही प्राप्त हुआ है।

नीचे दिए गए स्रोतों को पढ़िए और उनके नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
स्रोत (क)-अन्तरदेशीय उत्पादन:
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अन्दर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लांघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जरिया था। यह बड़ी कम्पनियाँ थीं, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कहते हैं।

स्रोत (ख)-विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण:
सरल शब्दों में कहा जाए, तो विदेश व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।

स्रोत (ग)-भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव:
वैश्वीकरण और उत्पादों-स्थानीय एवं विदेशी दोनों के बीच वृहत्तर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामतः ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनन्द ले रहे हैं। उत्पादकों और श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एकसमान प्रभाव नहीं पड़ा है।

स्रोत (क)-अन्तरदेशीय उत्पादन:
(i) बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किस प्रकार संसार के देशों को जोड़ रही हैं?

स्रोत (ख)-विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण:
(ii) विदेशी व्यापार किस प्रकार देशों को जोड़ने का प्रमुख मार्ग है?

स्रोत (ग)-भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव:
(iii) वैश्वीकरण किस प्रकार उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है?
उत्तर:
1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं या स्थानीय कम्पनियों को खरीद लेती हैं तथा अपने उत्पाद का विस्तार करती हैं।

2. विदेशी व्यापार बाजारों को बाहर के बाजारों में पहुंचने के लिए उत्पादों का अवसर प्रदान करता है, जिससे बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं।

3. वैश्वीकरण निम्न प्रकार से उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है
(क) ज्यादा-से-ज्यादा वस्तुओं तथा सेवाओं का सृजन हुआ।
(ख) नई प्रौद्योगिकी तथा नए तरीकों का विकास हुआ।
(ग) वस्तुओं तथा सेवाओं के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ी है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

बहविकल्पीय

प्रश्न 1.
केन्द्रीय सरकार की ओर से निम्नलिखित में कौन करेंसी नोट जारी करता है?
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक
(ग) भारतीय वाणिज्यिक बैंक
(घ) यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(ख) भारतीय रिजर्व बैंक

2. बैंकों से सम्बंधित निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(क) बैंक जमा राशि का उपयोग लोगों की ऋण सम्बंधी माँगों को पूरा करने के लिए नहीं कर सकते
(ख) बैंक जमा राशि का उपयोग सरकार की आवश्यकताओं के लिए करते हैं।
(ग) बैंक जमा राशि रख लेते हैं और ऋण नहीं देते।
(घ) बैंक जमा राशि को लोगों की कर्जे सम्बन्धी माँगों को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं
उत्तर:
(घ) बैंक जमा राशि को लोगों की कर्जे सम्बन्धी माँगों को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं

3. ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की आवश्यकता मुख्यतः किसलिए होती है?
(क) आवास
(ख) फसल उगाने के लिए
(ग) विदेश यात्रा के लिए
(घ) पारिवारिक यात्रा के लिए
उत्तर:
(ख) फसल उगाने के लिए

4. कर्ज लेने के लिए कर्जदार निम्नलिखित में से किसका उपयोग गारण्टी देने के लिए करता है?
(क) साख
(ख) करेंसी नोट
(ग) चैक
(घ) समर्थक ऋणाधार
उत्तर:
(घ) समर्थक ऋणाधार

5. निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नज़र रखती है?
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) सैंट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) ग्रामीण बैंक
उत्तर:
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक

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6. स्वयं सहायता समूह का सम्बन्ध है
(क) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं
(ख) अमीर लोगों का समूह जो मिलकर काम करते हैं
(ग) एक औपचारिक ऋण क्षेत्रक
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं

7. “अगर गरीब लोगों को सही और उचित शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है, तो लाखों छोटे लोग अपनी लाखों छोटी-छोटी गतिविधियों के जरिए विकास का सबसे बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।” यह कथन किसका है?
(क) प्रो. मोहम्मद यूनुस
(ख) प्रो. अमर्त्य सेन
(ग) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
(घ) डॉ. मनमोहन सिंह।
उत्तर:
(क) प्रो. मोहम्मद यूनुस

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. …………प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय किया जाता है।
उत्तर:
वस्तु विनिमय,

2. भारतीय रिजर्व बैंक…………की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार,

3. बैंकों व सरकारी समितियों से लिया गया ऋण………. कहलाता है।
उत्तर:
औपचारिक क्षेत्रक ऋण,

4. साहूकार, मालिक या परिचित से लिया गया ऋण ………………कहलाता है।
उत्तर:
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण

अति लयूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वस्तुओं का लेन-देन बिना मुद्रा के प्रयोग से आपस में ही हो जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 2.
मुद्रा को परिभाषित कीजिए।
अथवा
मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:
मुद्रा से अभिप्राय उस वैधानिक वस्तु से है जिसका उपयोग सामान्यतः विनिमय माध्यम के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 3.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वस्तुओं के आदान-प्रदान की प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है।

प्रश्न 4.
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने व बेचने पर सहमति रखते हैं तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं।

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प्रश्न 5.
वस्तु विनिमय प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण क्या है?
उत्तर:
विनिमय प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण आवश्यकताओं का दोहरा संयोग है।

प्रश्न 6.
विनिमय का माध्यम क्या है?
उत्तर:
मुद्रा विनिमय का माध्यम है क्योंकि यह विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है।

प्रश्न 7.
विनिमय की प्रक्रिया में मुद्रा किस प्रकार माध्यम का काम करती है?
उत्तर:
मुद्रा के माध्यम से वस्तुएँ खरीदी व बेची जा सकती हैं।

प्रश्न 8.
आधुनिक मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
अथवा
मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है।

प्रश्न 9.
मुद्रा के सम्बन्ध में भारतीय कानून क्या है?
उत्तर:
भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं है।

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प्रश्न 10.
माँग जमा क्या है?
उत्तर:
जब बैंक खातों में जमा धन को ग्राहक द्वारा माँग के अनुसार निकाला जा सकता है तो उसे माँग जमा कहते हैं।

प्रश्न 11.
बैंक चेक क्या है?
उत्तर:
चेक एक ऐसा कागज है जो बैंक को कोई व्यक्ति अपने खाते से चेक पर लिख्रे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष रकम का धुगतान करने का आदेश देता है।

प्रश्न 12.
हम चेक क्यों जारी करते हैं?
उत्तर:
हम माँग जमाओं के विरुद्ध चेक जारी करते हैं जिससे बिना नकद का इस्तेमाल किए सीधा भुगतान करना सम्भव होता है।

प्रश्न 13.
माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
बैंक खातों में जमाधन को माँग करने पर निकाला जा सकता है। अतः इस माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है।

प्रश्न 14.
बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में क्यों रखते हैं?
उत्तर:
किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही वैंक से नगदी निकालने के लिए आते हैं। इन्हें नगदी देने के लिए बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास रखते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में बैंक जमा का कितना प्रतिशत हिस्सा’ नकद के रूप में अपने पास रखते हैं?
उत्तर:
भारत में बैंक जमा का 15 प्रतिशत हिस्सा नकद् रूप में अपने पास रखते हैं।

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प्रश्न 16.
बैंक शेष जमा राशि का कैसे उपयोग करते हैं?
उत्तर:
बैंक शेष जमा राशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग करते हैं।

प्रश्न 17.
बैंक के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. धन जमा करना
  2. ऋण देना।

प्रश्न 18.
बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत क्या है?
अथवा
बैंकों में जमा राशियाँ किस प्रकार बैंकों की आय का स्रोत बनती है?
उत्तर:
कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 19.
ऋण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
ॠण क्या है?
उत्तर:
ऋण से तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूका कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदल में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वायदा लेता है।

प्रश्न 20.
ऋण किस प्रकार एक महत्त्वपूर्ण एव सकारात्मक भूमिका निभाता है ?
उत्तर:
ऋण उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने, उत्पादन को समय पर पूरा करने एवं आय बढ़ाने मे सहायता करता है।

प्रश्न 21.
बैंकों के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का प्रमुख स्रोत कौन-सा है ?
उत्तर:
सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का एक प्रमुख स्रोत हैं।

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प्रश्न 22.
कृषक सहकारी समिति का क्या कार्य है?
उत्तर:
कृषक सहकारी समिति उपकरण खरीदने, खेती एवं व्यापार करने, मछली पालन करने, घर बनाने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ॠण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 23.
ॠणों को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है? नाम लिखो।
उत्तर:

  1. औपचारिक क्षेत्रक ॠण
  2. अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण।

प्रश्न 24.
औपचारिक क्षेत्रक ऋण के स्रोत क्या हैं?
अथवा
ऋण के औपचारिक स्रोत क्या हैं ?
उत्तर:

  1. बैंक
  2. सहकारी समितियौ।

प्रश्न 25.
ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नजर रखना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
ऋणों के समान वितरण और ब्याज दरों को निम्न रखने के लिए।

प्रश्न 26.
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण के स्रोत क्या हैं?
अथवा
साख (ऋण) के अनौपचारिक क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. साहूकार,
  2. व्यापारी,
  3. मालिक,
  4. रिश्तेदार,
  5. दोस्त आदि।

प्रश्न 27.
ऋण की ऊँची लागत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ऋण की ऊँची लागत का अर्थ है कि कर्जदार की आय का अधिकांश भाग ऋण कै ब्याज भुगतान में ही खर्च हो जाता है। इसलिए कर्जदारों के पास अपने लिए कम आय शेष रहती है।

प्रश्न 28.
कर्जदारों की अनौपचारिक स्रोतों पर से निर्भरता कम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
बैकों व सहकारी समितियों को अपनी गतिविधियाँ विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़्मनी चाहिए।

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प्रश्न 29.
एक स्वयं सहायता समूह में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
एक स्वयं सहायता समूह में 15-20 सदस्य होते हैं।

प्रश्न 30.
लोग स्वर्यं सहायता समूह से ऋण लेने के लिए प्राथमिकता देते हैं। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि इनकी ब्याज की दरें अनौपचारिक स्रोतों से कम होती हैं।

प्रश्न 31.
यदि स्वयं सहायता समूह नियमित रूप से बचत करता है तो वह किससे ऋण लेने योग्य हो जाता है?
उत्तर:
स्वयं सहायता समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है।

प्रश्न 32.
स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक से समूह के नाम से लिये गये ऋणों का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
भारत में मुद्रा के आधुनिक रूप कौन कौन से हैं? इसे विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है?
अथवा
आधुनिक मुद्रा को, जिसका अपना कोई उपयोग नहीं है, विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है? कारण ज्ञात कीजिए।
अथवा
“करेंसी’ का अर्थ स्पष्ट कीजिएस.
उत्तर:
भारत में मुद्रा का आधुनिक रूप करेंसी है जिसमें कागज के नोट व सिक्के सम्मिलित हैं। इसे विनिमय का माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है क्योंकि सरकार द्वारा इसे प्राधिकृत किया गया है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी को छापती है और वैधानिक विनिमय के माध्यम के रूप में इसे इस्तेमाल करने के लिए स्वीकार करती है। भारत में किसी भी सौदे एवं लेन-देन के लिए इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
मुद्रा के आधुनिक रूप एवं पार व्यरिक रूप में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मुद्रा के आधुनिक रूप एवं पारम्पक रूप में निम्नलिखित अन्तर हैं

  • मुद्रा का आधुनिक रूप:
    1. मुद्रा के आधुनिक रूप में करेंसी-कागज के नोट एवं सिक्के सम्मिलित किये जाते हैं।
    2. मुद्रा का यह रूप वर्तमान काल में प्रचलन में है।
    3. आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है।
  • मुद्रा का पारम्परिक रूप
    1. मुद्रा के प म्परिक रूप में सोना, चाँदी, ताँबा जैसी धातुओं को सम्मिलित किया जाता था।
    2. मुद्रा का यह रूप प्राचीनकाल में प्रचलन में था।
    3. इस मुद्रा का अपना इस्तेमाल होता था।

प्रश्न 3.
माँग जमा क्या है? माँग जमा की मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
माँग जमा:
बैंक खातों में वह जमा राशि जिसे माँग के अनुसार निकाला जा सके जमा कहलाती है। माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है क्योंकि:

  1. इसे विनिमय के माध्यम के रूप से प्रयोग किया जा सकता है।
  2. यह आसानी से सबको स्वीकार्य होती है।
  3. बिना नकद का प्रयोग किए इससे भगतान करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
‘माँग जमा में मुद्रा के अनिवार्य लक्षण मिलते हैं।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक खाते में वह जमा राशि जिसे माँग के अनुसार निकाला जा सके माँग जमा कहलाती है। माँग जमा में मुद्रा के निम्नलिखित अनिवार्य लक्षण मिलते हैं

  1. लोगों की मुद्रा बैंकों में सुरक्षित रहती है।
  2. लोगों को बैंक में जमा राशि पर ब्याज भी मिलती है।
  3. भुगतान नकद के बदले चेक के द्वारा भी किया जा सकता है। इसलिए बैंकों के द्वारा अपने खाताधारकों को चेक बुक जारी की जाती है।
  4. लोग अपनी इच्छानुसार बैंकों से की भी मुद्रा निकाल सकते हैं।

प्रश्न 5.
चेक क्या है? हम चेक क्यों और कैसे जारी करते हैं?
उत्तर:
चेक चेक एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक विशेष धनराशि का भुगतान करने का आदेश देता है। हम माँग जमाओं के विरुद्ध चेक जारी करते हैं, जिससे बिना नकद लेन-देन का प्रयोग किए सीधे भुगतान करना संभव होता है। चेक से भुगतान करने के लिए भुगतानकर्ता, जिसका किसी बैंक में खाता है, एक निश्चित राशि के लिए चेक काटता है।

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प्रश्न 6.
बैंकों की आवश्यकता हमें क्यों है? बैंक लोगों को किस प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं?
उत्तर:
बैंकों की आवश्यकता व सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।
  2. बैंक में जमा धन से लोगों को ब्याज प्राप्त होता है।
  3. बैंक बचत के लिए आवश्यक हैं।
  4. बैंक जमा राशि से लोगों की आवश्? कताओं को पूरा करने के लिए ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।
  5. माँग जमा के बदले चेक लिखने की सुविधा से बिना नकद का प्रयोग किए सीधा भुगतान किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की माँग क्यों होती है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य मांग फसल उगाने के लिए होती है। फसल उगाने में बीज, खाद, कीटनाशक दवाओं, पानी, विद्युत, कृषि उपकरणों की मरम्मत आदि पर बहुत खर्च होता है। इन आगतों को खरीदने एवं फसल की बिक्री होने के बीच कम से कम 3-4 महीने का अन्तरल होता है। अधिकांशतया किसान ऋतु के प्रारम्भ में फसल उगाने के लिए उधार लेते हैं और फसल तैयार होने के पश्चात् का देते हैं। उधार का भुगतान मुख्य रूप से फसल से प्राप्त आय पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
भारत में बैंकों एवं सहकारी सतियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ऋण सुविधाएँ क्यों प्रदान करनी चाहिए?
अथवा
बैंकों और सहकारी समितियों को अपनी ऋण देने की गतिविधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में बैंकों एवं सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ऋण सुविधाएँ निम्न कारणों से प्रदान करनी चाहिए

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकार, व्यापारी आदि ऊँची ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।
  2. साहूकार व व्यापारी आदि अपना पैसा वापस लेने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं।
  3. सस्ता कर्ज उत्पादन की लागत में कमी करता है तथा आय बढ़ाता है।
  4. ग्रामीण विकास के लिए सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल कर्ज होना चाहिए।

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प्रश्न 9.
कर्ज जाल क्या है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एक स्थिति में ऋण आय बढ़ाने में सहायता करता है, जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले से बेहतर हो जाती है। दूसरी स्थिति में फसल बर्बाद होने के कारण ऋण व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेता है। कर्ज उतारने के लिए उसे जमीन का टुकड़ा बेचना पड़ता है जिससे उसकी स्थिति पहले की तुलना में बुरी हो जाती है। इस तरह ऋण कर्जदार को ऐसी परिस्थिति में धकेल देता है जहाँ से बाहर निकलना बहुत कष्टदायक होता है। इसे ही कर्ज जाल कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
खरीददारी मुद्रा के माध्यम से क्यों होती है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मुद्रा में लेन-देन क्यों किए जाते हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा मूल्य के मापन का कार्य करती है। मुद्रा के रूप में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का निर्धारण किया । जा सकता है। मुद्रा विनिमय का एक माध्यम है। यह आसानी से स्वीकार्य है। जिस व्यक्ति के पास मुद्रा होती है वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति भुगतान मुद्रा के रूप में लेना पसन्द करता है फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने के लिए करता है।

उदाहरण:
एक किसान बाजार में गेहूँ बेचना चाहता है और घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदना चाहता है। इसलिए किसान सबसे पहले गेहूँ के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा। इसके पश्चात् मुद्रा का प्रयोग घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के लिए करेगा।

प्रश्न 2.
“मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की आवश्यकता को समाप्त कर देती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
वस्तु विनिमय प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग वस्तु विनिमय प्रणाली में देखने को मिलता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय होता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मनुष्य ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ता है जो उसकी अतिरिक्त वस्तु लेकर उसे इच्छित वस्तु दे। उदाहरण के लिए, किसान गेहूँ बेचकर जूते खरीदना चाहता है तो उसे ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ना पड़ेगा जो उससे गेहूँ लेकर जूते दे दे।

यह एक कठिन कार्य है। इसकी तुलना में ऐसी अर्थव्यवस्था में जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत को समाप्त कर देती है। अब किसान के लिए जरूरी नहीं रह जाता कि वह ऐसे जूता निर्माता को ढूँढ़े जो न केवल उसका गेहूँ खरीदे बल्कि साथ-साथ उसको जूते में बेचे।

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प्रश्न 3.
“बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है, के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है, के बीच मध्यस्थता का कार्य निम्न प्रकार करते हैं

  1. बैंक उन लोगों से जमा राशि स्वीकार करते हैं जिनके पास अतिरिक्त धन होता है।
  2. बैंक जमाओं पर ब्याज का भी भुगतान करते हैं।
  3. बैंक अपने पास जमा धनराशि का एक छोटा भाग नकद के रूप में रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है।
  4. चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही नकद रुपया निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश भाग उन्हें ऋण देने के लिए प्रयोग में लेते हैं, जिन्हें धन की आवश्यकता होती है। इस तरह बैंक जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिन्हें धनराशि की जरूरत है के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।

प्रश्न 4.
“बैंकों द्वारा मुद्रा निक्षेप स्वीकार करना उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  1. लोग अपनी अतिरिक्त मुद्रा को बैंकों में निक्षेप के रूप में सुरक्षित रखते हैं।
  2. लोग अतिरिक्त नकद को बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते हैं। बैंक जमा स्वीकार करते हैं और इस पर ब्याज़ भी देते हैं।
  3. लोगों को आवश्यकतानुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध करायी जाती है। चूँकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के जरिए निकाला जा सकता है, इसलिए इस जमा को ‘माँग जमा’ कहा जाता है।

प्रश्न 5.
जब कोई ऋण लेने वाला किसी महाजन अथवा साहूकार से कर्ज लेता है, तो उसके समक्ष आने वाली समस्याओं में से किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. हर ऋण समझौते के अंतर्गत ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जदार महाजन को मूल रकम के साथ वापस करता है। इसके अलावा, उधारदाता कोई समर्थक ऋणाधार (गिरवी रखने के लिए) की माँग कर सकता है।
  2. समर्थक ऋणाधार ऐसी सम्पत्ति है, जिसका मालिक कर्जदार है (जैसे कि भूमि, इमारत, गाड़ी, पशु बैंकों में पूँजी) और इसका इस्तेमाल वह उधारदाता को गारण्टी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।
  3. यदि कर्जदार ऋण का भुगतान नहीं कर पाता है तो ऋणदाता को ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।

प्रश्न 6.
सहकारी समितियाँ क्या होती हैं? संक्षेप में बताइए।
अथवा
सहकारी समितियों की कार्य-प्रणाली को बताइए।
अथवा
ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की गतिविधियाँ बढ़ाने हेतु कोई तीन सुझाव दीजिए
उत्तर:
वे लोग जो कुछ सामान्य उद्देश्यों पर एक साथ मिल-जुलकर कार्य करना चाहते हैं, एक समिति का गठन कर लेते हैं जिसे सहकारी समिति कहते हैं। यह लोगों का एक ऐच्छिक संगठन होता है जिसके अन्तर्गत वे अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। सहकारी समितियाँ पारस्परिक सहायता के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। लोग एक समूह के रूप में एकत्रित होकर अपने व्यक्तिगत संसाधनों को एकत्रित करते हैं तथा उनका सर्वोत्तम ढंग से उपयोग करते हैं और इससे प्राप्त सामूहिक लाभ को आपस में मिलजुलकर बाँट लेते हैं। सुझाव:

  1. बैंकों द्वारा सहकारी समितियों को सस्ती दर पर ऋण प्रदान करना।
  2. सहकारी समितियों द्वारा अपने सदस्यों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना।
  3. कृषकों पर किसी भी प्रकार की कोई अनुचित शर्त न लगाना ताकि सहकारी समिति के अधिकाधिक सदस्य बन सकें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आपके दृष्टिकोण से वस्तु विनिमय प्रणाली और मौद्रिक प्रणाली में कौन-सी प्रणाली श्रेष्ठ है और क्यों?
उत्तर:
मेरे दृष्टिकोण से दोनों प्रणालियों में से मौद्रिक प्रणाली श्रेष्ठ है क्योंकि जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय कोई भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए कर सकता है। हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसंद करता है, फिर उस मुद्रा का उपयोग अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए कर सकता है। एक जूता निर्माता का उदाहरण लेते हैं। वह बाज़ार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है।

जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगां फिर इस मुद्रा का इस्तेमाल गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। यदि जूता निर्माता बिना मुद्रा का इस्तेमाल किए जूते का सीधे गेहूँ से विनिमय करता है, तो उसे गेहूँ शास्त्र पैदा करने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ेगा, जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो बल्कि साथ में जूते भी खरीदना चाहता हो अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने व बेचने पर सहमत हों। विनिमय की दूसरी प्रणाली में समय एवं श्रम अधिक लगेगा जबकि मौद्रिक प्रणाली में समय एवं श्रम की बचत है। चूँकि मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, अतः वस्तु विनिमय की तुलना में मुद्रा विनिमय प्रणाली श्रेष्ठ है।

प्रश्न 2.
भारत में ‘करेंसी नोट’ कौन जारी करता है? बैंकों के तीन कार्य बताइए।
अथवा
भारत की अर्थव्यवस्था में बैंक किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“बैंक, देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।” कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की अनुमति नहीं है। मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी में कागज के नोट एवं सिक्कों को सम्मिलित किया गया है। बैंक के कार्य अथवा भारत की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका
1. जमा राशि को स्वीकार करना:
बैंक जनता से जमा स्वीकार करते हैं। लोग अपनी नकदी को सुविधा के लिए बैंकों के बचत जमा खाता, सावधि जमा खाता, चालू खाता आदि में जमा कराते हैं। बैंक इन जमाओं पर ब्याज भी देता है। इस तरह लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।

2. ऋण प्रदान करना:
बैंक अपने पास जमा रकम का एक छोटा हिस्सा नकदं के रूप में रखते हैं। उदाहरण के लिए आजकल भारत में बैंक जमा धन का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा नकद में अपने पास रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की सम्भावना को देखते हुए रखा जाता है। चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्ता ही नगद राशि निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश हिस्सा ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।

3. पूँजी निर्माण:
बैंक लोगों की बचतों को संग्रह करते हैं तथा उसे अन्य उत्पादक क्रियाओं में निवेश करते हैं। इस प्रकार बैंक देश में पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं तथा आर्थिक विकास की दर को तीव्र करते हैं।

4. लॉकर सुविधाएँ:
बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं, जिसमें लोग अपनी मूल्यवान वस्तुओं एवं महत्त्वपूर्ण कागजातों को सुरक्षित रख सकते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 3.
उदाहरण सहित समझाइए कि किस प्रकार से बैंक ऋण उत्पादन में सकारात्मक भूमिका अदा करते हैं?
उत्तर:
हमारी दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं में व्यापक लेन-देन किसी-न-किसी रूप में ऋण द्वारा ही होता है। ऋण किसानों को अपनी फसल उगाने में मदद करता है। यह उद्यमियों के लिए व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना, समय पर उत्पादन को पूरा करने एवं उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने में सहायक होता है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है। ऋण देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में बैंकों द्वारा ऋण के अन्य स्रोतों के मुकाबले सस्ती दर पर अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान किया जाता है।

बैंक जमा रकम का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में रखकर शेष जमा राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण की बहुत अधिक माँग रहती है। बैंक जमा धनराशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयोग करते हैं! लोग बैंकों से सस्ती दर पर ऋण प्राप्त कर उत्पादन कार्यों में लगाते हैं तथा अधिक लाभ प्राप्त करते हैं।

उदाहरण: सोहन का जूते बनाने का कारखाना है। उसके पास शहर के एक बड़े व्यापारी से 5000 जोड़ी जूतों की माँग आती है जिसे एक महीने के अन्दर पूरा करना है। उत्पादन के कार्य को समय पर पूर्ण करने के लिए सोहन को सिलाई व चिपकाने के काम के लिए अतिरिक्त मजदूर रखने की आवश्यकता है तथा उसे कच्चा माल भी खरीदना है। अतः सोहन को इस कार्य के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

वह बैंक की औपचारिकताओं को पूर्ण करके उससे ऋण ले लेता है। समय पर शहर के व्यापारी को जूते बनाकर दे देता है। इस प्रकार सोहन उत्पादन के लिए कार्यशील पूँजी की जरूरत को ऋण के द्वारा पूरा करता है। ऋण उसे उत्पादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को समय पर पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार सोहन बैंक ऋण द्वारा अपनी कमाई बढ़ा लेता है। इस प्रकार बैंक ऋण उत्पादन में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 4.
साख की दो विभिन्न स्थितियाँ बताइए एवं बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साख की स्थितियाँ प्रथम स्थिति:
एक स्थिति में ऋण (साख) आय बढ़ाने में सहयोग करता है, जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले से बेहतर हो जाती है।

द्वितीय स्थिति:
दूसरी स्थिति में फसल बर्बाद होने के कारण ऋण व्यक्ति को अपने जाल में फंसा लेता है। जहाँ से बाहर निकलना काफी कष्टदायक होता है। आमदनी में वृद्धि की बजाय कर्जदार की स्थिति पहले से बदतर हो जाती है। ऋण उपयोगी होगा या नहीं, यह परिस्थितियों के खतरों एवं हानि होने पर प्राप्त सहयोग की सम्भावना पर निर्भर करता है।

बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्ते: बैंकों से ऋण लेने की आवश्यक शर्ते निम्नलिखित हैं

  1. सर्वप्रथम ऋण लेने वाले व्यक्ति को यह प्रमाण-पत्र देना होगा कि यह देख लिया जाए कि उसे कितना ऋण दिया जाए, जिसे वह आसानी से उतार सके।
  2. यदि वह व्यक्ति कहीं नौकरी कर रहा हो तो उसे अपनी आय के विषय में ब्यौरा उपलब्ध कराना होगा।
  3. बैंक कर्जदार से समर्थक ऋणाधार की माँग कर सकता है, जिसमें भूमि, पशु, सम्पत्ति एवं बैंकों में जमा-पूँजी आदि सम्मिलित होती है।
  4. बैंक कर्जदार से किसी ऐसे व्यक्ति की गारंटी माँग सकता है जो उसके कर्ज न चुकाने पर रकम वापस कर सके।

प्रश्न 5.
शहरी गरीबों व अमीरों के ऋणों में औपचारिक साख के योगदान की तुलना कीजिए। औपचारिक क्षेत्र की ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:
गरीबों की तुलना में अमीर परिवारों को औपचारिक ऋणों का अधिक हिस्सा मिलता है क्योंकि अमीर परिवारों के पास ऋण लेने हेतु समर्थक ऋणाधार होता है तथा उन परिवारों की ऋण चुकाने की क्षमता भी अधिक होती है। जिस प्रकार से साहूकार, महाजन आदि गरीबों का शोषण करते हैं, जबकि औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्ज लिए जाने पर उनका शोषण नहीं किया जाता है।

गरीबों को उचित व कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार से अमीरों को ऋण उचित ब्याज दरों पर प्रदान कर औपचारिक संस्थाएँ, बहुत से उद्योगपतियों की उनकी विनियोग संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करती हैं। जिससे लोगों को रोजगार की प्राप्ति होती है तथा राष्ट्रीय उत्पादन व आय में भी वृद्धि होती है। औपचारिक क्षेत्र की ऋणों के सृजन में भागीदारी बढ़ाने हेतु दो उपाय इस प्रकार से हैं

  1. औपचास्कि स्रोतों को गैर-उत्पादक उद्देश्यों के लिए भी ऋण प्रदान करना चाहिए ।
  2. औपचारिक स्रोतों को ऋण के दस्तावेज संबंधी प्रक्रिया सरल कर देनी चाहिए, जिससे कि सभी जरूरतमंद लोग जरूरत के समय जल्द से जल्द ऋण प्राप्त कर सकें।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 6.
अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की कोई दो कमियाँ बताइए। इस सन्दर्भ में औपचारिक क्षेत्रक ऋण किस प्रकार बेहतर हैं?
उत्तर:
ऋण के स्रोत भारत में ऋण प्रदान करने वाले स्रोतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. औपचारिक ऋण स्रोत:
भारत में औपचारिक ऋण स्रोतों में व्यापारिक बैंक, सहकारी समितियाँ, ग्रामीण बैंक आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन स्रोतों द्वारा कम ब्याज दर पर लम्बे समय के लिए ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।

2. अनौपचारिक ऋण स्रोत:
भारत में बड़ी संख्या में ऋण अनौपचारिक स्रोतों द्वारा उपलब्ध करवाये जाते हैं। अनौपचारिक स्रोतों में साहूकार, महाजन, व्यापारियों, रिश्तेदारों एवं मित्रों को सम्मिलित किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश छोटे कृषक एवं मजदूर आज भी भारत के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।

  • अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की कमियाँ: अनौपचारिक क्षेत्रक ऋणों की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं
    1. भारत में अनौपचारिक ऋण स्रोतों द्वारा ऊँची दर पर ऋण दिया जाता है।
    2. अनौपचारिक स्रोतों द्वारा अत्यन्त कठोर शर्तों पर ऋण दिया जाता है।
    3. ऋण न चुकाने की स्थिति में ऋणदाता, कृषकों का अनाज सस्ते में खरीद लेते हैं तथा कई बार उन्हें अपने खेतों अथवा घरों पर बिना परिश्रम के कार्य करवाते हैं।
  • औपचारिक क्षेत्रक ऋण निम्न प्रकार से बेहतर हैं:
    1. औपचारिक क्षेत्रक ऋण में ऋण के वे स्रोत सम्मिलित होते हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। इनमें बैंक व सहकारी समितियाँ प्रमुख हैं।
    2. भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज पर निगरानी रखता है।
    3. ऋण के औपचारिक स्रोतों द्वारा ऋण प्रदान किये जाने का उद्देश्य लाभ कमाने के साथ-साथ सामाजिक भी होता है।
    4. इन स्रोतों से कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाए जाते हैं।
    5. ऋण के औपचारिक स्रोत ऋण लेने वाले के समक्ष कोई अनुचित शर्त नहीं लगाते हैं।
    6. औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्जदारों का शोषण नहीं किया जाता है।

प्रश्न 7.
स्वयं सहायता समूह क्या हैं? स्वयं सहायता समूहों की कार्यविधि को विस्तार से बताइए।
अथवा:
स्वयं सहायता समूहों के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वयं सहायता समूह क्या है? ये किस प्रकार कार्य करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. हाल के वर्षों में लोगों ने गरीबों को उधार देने के कुछ नए तरीके अपनाने की कोशिश की है। इनमें से एक विचार ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करने एवं उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है।’
  2. एक विशेष सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ौसी 15-20 सदस्य होते हैं जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं।
  3. स्वयं सहायता समूहों का प्रमुख उद्देश्य गरीब लोगों की बचत पूँजी को एकत्रित करना होता है।
  4. प्रतिव्यक्ति बचत 25 रुपये से लेकर 100 रुपये या उससे अधिक भी हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है।
  5. स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं। यह साहूकार द्वारा लिये गये ब्याज से कम होता है।
  6. एक या दो वर्षों के पश्चात् अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है तो समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है।
  7. बैंकों द्वारा ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
  8. सदस्यों को छोटे-छोटे ऋण अपनी गिरवी भूमि को छुड़ाने हेतु, कार्यशील पूँजी की जरूरतों, जैसे-बीज, खाद, . बाँस व कपड़ा खरीदने के लिए, घर बनाने तथा सिलाई मशीन, हथकरघा व पंशु आदि खरीदने के लिए दिये जाते हैं।
  9. स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत बचत व ऋण गतिविधियों से सम्बन्धित निर्णय समूह के सदस्य स्वयं लेते हैं। समूह ही दिये जाने वाले ऋण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम, ब्याज-दर, वापस लौटाने की अवधि आदि के बारे में निर्णय करता है।
  10. स्वयं सहायता समूहों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें से अधिकांश समूह महिलाओं द्वारा संगठित किए गए हैं। ये समूह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने में मदद करते हैं। समूह की नियमित बैठकों के माध्यम से लोगों को एक मंच मिलता है, जहाँ वह विभिन्न प्रकार के सामाजिक विषयों; जैसे-स्वास्थ्य, पोषण व घरेलू हिंसा आदि पर आपस में चर्चा कर पाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→ भारत में राष्ट्रवाद का उदय

  • भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की घटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का परिणाम रही है।
  • 1914 ई. में प्रारम्भ हुए प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में एक नयी राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति उत्पन्न कर दी जिसके कारण रक्षा खर्च में बहुत अधिक वृद्धि हुई। सीमा शुल्क में वृद्धि के साथ आयकर की शुरुआत की गई।
  • 1918-19 ई तथा 1920-21ई. में देश के अनेक क्षेत्रों में फसल खराब होने के कारण खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई। इसी दौरान फ्लू की महामारी फैल गई। जनगणना 1921 के अनुसार दुर्भिक्ष तथा महामारी की वजह से 120-130 लाख मारे गए।

→  सत्याग्रह का विचार

  • महात्मा गांधी जनवरी, 1915 में दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापस आये थे। वहाँ उन्होंने सत्याग्रह का मार्ग अपनाकर वहाँ की नस्लभेदी सरकार से लोहा लिया।
  • गाँधीजी का विश्वास था कि अहिंसा समस्त भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकती है।
  • भारत आने के पश्चात् गाँधीजी ने अनेक स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया, जिनमें चंपारन 1916 ई., खेड़ा 1917 ई. एवं अहमदाबाद 1918 ई. आदि प्रमुख हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→  रॉलेट एक्ट

  • 1919 ई. में गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाया।
  • रॉलेट एक्ट के तहत सरकार राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने तथा राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बन्द रख सकती थी।
  • 13 अप्रैल, 1919 ई. को अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए।
  • सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने खिलाफत आन्दोलन के समर्थन तथा स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू करने पर अन्य नेताओं को राजी किया।

→  असहयोग आंदोलन

  • महात्मा गाँधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ (1909 ई.) में कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था तथा उनके सहयोग से ही चल पा रहा है। यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो शीघ्र ही ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज्य की स्थापना हो जाएगी।
  • दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौते के साथ असहयोग कार्यक्रम को मंजूरी दी गई।
  • असहयोग-खिलाफत आन्दोलन जनवरी, 1921 में प्रारम्भ हुआ। असहयोग-खिलाफत आन्दोलन की शुरुआत शहरी मध्यम वर्ग की भागीदारी के साथ हुई। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये तथा लोगों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।
  • असहयोग आन्दोलन शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैल गया। देश के विभिन्न भागों में संचालित किसानों व आदिवासियों के संघर्ष भी इस आन्दोलन में सम्मिलित हो गये।
  • अंग्रेजों के बागानों में कार्य करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत के बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी। जब उन्होंने असहयोग आन्दोलन के बारे में सुना तो हजारों मजदूरों ने अपने अधिकारियों की अवहेलना कर बागान छोड़ दिये और अपने घर को चल दिए।
  • गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर घटित घटना के विरोध में फरवरी, 1922 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लेने का फैसला किया।
  • वल्लभ भाई पटेल ने 1928 ई. में गुजरात के बारदोली में किसान आन्दोलन का सफल नेतृत्व किया। यह आन्दोलन भू-राजस्व में वृद्धि के खिलाफ था। इस आन्दोलन को ‘बारदोली सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारों से किया गया।
  • दिसम्बर, 1929 में पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाना तय किया गया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→  नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन:

  • देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गाँधी ने नमक को एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। 6 अप्रैल, 1930 को महात्मा गाँधी ने दांडी पहुँचकर वहाँ नमक बनाकर ब्रिटिश कानून को तोड़ा तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
  • 5 मार्च, 1931 को महात्मा गाँधी ने लॉर्ड इरविन के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए तथा लन्दन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति प्रदान की। •गाँवों में सम्पन्न कृषक समुदाय जैसे गुजरात के पटीदार व उत्तर प्रदेश के जाट सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सक्रिय थे।
  • औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में नागपुर के अतिरिक्त कहीं भी बहुत बड़ी संख्या में भाग नहीं लिया।
  • इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बड़े पैमाने पर भाग लिया।
  • महात्मा गाँधीजी ने घोषणा की कि छुआछूत को समाप्त किये बिना हम स्वराज की स्थापना नहीं कर सकते। उन्होंने अछूतों को हरिजन यानि ईश्वर की सन्तान बताया।
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने सन् 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया।
  • अंबेडकर ने गाँधीजी की बात मानकर सितंबर, 1932 में पूना पैक्ट पर दस्तखत किए।
  • भारत में सामूहिक अपनेपन की भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों के चलते उत्पन्न हुई थी।
  • राष्ट्रवाद को साकार करने में इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक, सभी ने अपना योगदान दिया था।
  • 1870 के दशक में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने मातृभूमि की स्तुति में ‘वन्देमातरम्’ गीत लिखा। यह गीत उनके उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में शामिल है।
  • स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा से अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की छवि को चित्रित किया।
  • जैसे-जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन आगे-बढ़ा। राष्ट्रवादी नेताओं ने लोगों को एकजुट करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए विभिन्न प्रकार के चिह्नों व प्रतीकों का प्रयोग किया।
  • अंग्रेज सरकार के विरुद्ध तीव्र गति से बढ़ता गुस्सा भारतीय समूहों एवं वर्गों के लिए स्वतन्त्रता का साझा संघर्ष बनता जा रहा था। औपनिवेशिक शासन से मुक्ति की चाह में लोगों को सामुहिक होने का आधार प्रदान किया था।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ

तिथि घटनाएँ
1. 1913 ई. 6 नवम्बर को महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत मजदूरों के अधिकारों को हनन करने वाले नस्लभेदी कानून के विरुद्ध सत्याग्रह किया।
2. 1915 ई. जनवरी माह में महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये।
3. 1916 ई. महात्मा गाँधी ने बिहार के चम्पारन क्षेत्र का दौरा किया।
4. 1918-19 ई. बाबा रामचन्द्र द्वारा उत्तर-प्रदेश के कृषकों को संगठित किया।
5. 1918 ई. महात्मा गाँधी सूती वस्त्र कारखानों के श्रमिकों के मध्य सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद पहुँचे।
6. 1919 ई. रॉलेट एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह चलाने का निश्चय किया। 13 अप्रैल को अमृतसर का जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ।
7. 1920 ई. सितम्बर माह में महात्मा गाँधी द्वारा कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में खिलाफत आन्दोलन के समर्थन एवं स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु अन्य नेताओं को सहमत किया।
8. 1921 ई. असहयोग आन्दोलन के लिए समर्थन जुटाने हेतु गाँधीजी व शौकत अली ने देशभर में यात्राएँ कीं। दिसम्बर माह में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति हेतु समझौता। भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस का गठन।
9. 1922 ई. जनवरी माह में असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ।
10. 1924 ई. फरवरी माह चौरी-चौरा कांड, महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लिया।
11. 1927 मई माह में अल्लूरी सीताराम राजू की गिरफ्तारी। दो वर्ष से चला आ रहा हथियारबन्द आदिवासी संघर्ष समाप्त।
12. 1928 भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ का गठन।
13. 1929 साइमन कमीशन भारत पहुँचा। सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन।
14. 1930 ई. अक्टूबर माह में वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा भारत के लिए डोमीनियन स्टेट्स की घोषणा। दिसम्बर माह में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग औपचारिक रूप से स्वीकार, 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाये जाने का निर्णय।
15. 1931 जनवरी माह में महात्मा गाँधी द्वारा 11 सूत्री माँगों के साथ वायसराय इरविन को पत्र लिखा गया। मार्च में गाँधीजी द्वारा दांडी में नमक कानून का उल्लंघन करके सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करना, डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित करना।
16. 1932 मार्च माहृ में गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वापस लिया जाना। 5 मार्च को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। दिसम्बर माह द्वितीय गोलमेज सम्मेलन। गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने महात्मा गाँधीजी लन्दन गये। सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुन: प्रारम्भ, सितम्बर माह में पूना समझौता हुआ।
17. 1942 14 जुलाई को अपनी कार्यकारिणी में कांग्रेस कार्य समिति में ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया। 8 अगस्त को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। महात्मा गाँधी ने प्रसिद्ध ‘करो या मरो’ का नारा दिया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  1. जबरन भर्ती: इस प्रक्रिया के अन्तर्गत अंग्रेज भारतीय लोगों को अपनी सेना में जबरदस्ती भर्ती कर लेते थे।
  2. पिकेटिंग: विरोध अथवा प्रदर्शन का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दुकान, कारखाना या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते है।
  3. बहिष्कार: किसी के साथ सम्पर्क रखने एवं जुड़ने से इंकार करना अथवा गतिविधियों में हिस्सेदारी, वस्तुओं की खरीद एवं प्रयोग से इन्कार करना। सामान्यतया यह विरोध प्रदर्शन का एक रूप होता है।
  4. सत्याग्रह: दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध गाँधीजी द्वारा प्रयोग किया गया एक अहिंसात्मक ढंग।
  5. गिरमिटिया मजदूर: औपनिवेशिक शासन के दौरान अधिक संख्या में लोगों को काम करने के लिए गयाना, फिजी, वेस्टइंडीज. आदि स्थानों पर ले जाया जाता था जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा। इन श्रमिकों को एक अनुबन्ध के तहत ले जाया जाता था, बाद में इसी समझौते के अन्तर्गत ये श्रमिक गिरमिट कहने लगे, जिससे आगे चलकर इन श्रमिकों को गिरमिटिया मजदूर कहा जाने लगा।
  6. खिलाफत आन्दोलन: यह मोहम्मद अली एवं शौकत अली बन्धुओं द्वारा संचालित एक विरोध आन्दोलन था जो तुर्की के साथ युद्ध के पश्चात् किए गए अन्याय के विरुद्ध चलाया गया था।
  7. असहयोग आन्दोलन: जनवरी, 1921 ई. में महात्मा गाँधी जी द्वारा संचालित आन्दोलन। इस आन्दोलन का उद्देश्य पंजाब एवं तुर्की में हुए अन्याय का विरोध करना एवं स्वराज की प्राप्ति था।
  8. इंग्लैंड इमिग्रेशन एक्ट: अंग्रेज सरकार द्वारा लागू एक कानून जिसके तहत बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को बिना अनुमति बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाजत उन्हें कभी-कभी ही मिलती थी।
  9. पूना समझौता: सितम्बर, 1932 ई. में गाँधीजी एवं डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के मध्य हुआ एक समझौता जिसके अन्तर्गत दलित वर्गों को प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में सीटों का आरक्षण दिया गया।
  10. दांडी यात्रा: महात्मा गाँधी जी अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट दांडी तक पैदल यात्रा की थी तथा वहाँ नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

→ फ्रांसीसी क्रांति

  • फ्रांसीसी कलाकार फ्रेड्रिक सॉरयू ने सन् 1848 में चार चित्रों की एक श्रृंखला (विश्वव्यापी प्रजातांत्रिक और सामाजिक
    गणराज्यों का स्वप्न-राष्ट्रों के बीच संधि) बनाई। इनके कल्पनादर्श (युटोपिया) में विश्व के लोग अलग राष्ट्रों के समूहों में विभक्त हैं जिन्हें उनके कपड़ों एवं राष्ट्रीय पोशाकों से पहचाना जा सकता है।
  • 19 वीं सदी के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसी शक्ति के रूप में सामने आया जिसने यूरोप के राजनीतिक तथा मानसिक जगत में बड़े बदलाव किए जिनके परिणामस्वरूप अंततः यूरोप के बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्यों की जगह ‘राष्ट्र-राज्य’ का उदय हुआ।

→ यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

  • यूरोप में राष्ट्रवाद की प्रथम स्पष्ट अभिव्यक्ति सन् 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति के साथ हुई। इससे उत्पन्न हुए राजनीतिक
    तथा संवैधानिक परिवर्तनों से प्रभुसत्ता का हस्तांतरण राजतंत्र से निकलकर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हुआ।
  • फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने प्रारम्भ से ही ऐसे अनेक कदम उठाए जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की
    भावना उत्पन्न हो सकती थी।
  • इस्टेट जेनरल का नाम बदलकर नेशनल एसेबंली कर दिया गया तथा इसका चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा
    करवाया जाने लगा।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति, रियों का प्रमुख लक्ष्य यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराना था। नेपोलियन ने प्र में राजतंत्र को वापस लाकर प्रजातंत्र को समाप्त किया लेकिन उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक क्रान्तिकारी सिद्धान्तों को सम्मिलित किया।
  • सन् 1804 में नेपोलियन ने एक नागरिक संहिता का निर्माण किया, जिसे नेपोलियन संहिता के नाम से भी जाना जाता है। इसमें जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
  • नेपोलियन द्वारा निर्मित नागरिक संहिता में कानून के समक्ष समानता एवं सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित रखने की बात कही गयी थी। अठारहवीं शताब्दी के मध्य में पूर्वी व मध्य यूरोप निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन था। यहाँ रहने वाले लोग विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे। केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा ही इन समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व था। यूरोप महाद्वीप का सबसे शक्तिशाली वर्ग-कुलीन वर्ग था जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से भूमि का मालिक था।
  • जनसंख्या की दृष्टि से कुलीन वर्ग एक छोटा समूह था जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे।
  • मध्य एवं पश्चिमी यूरोप में औद्योगिक उत्पादन एवं व्यापार में वृद्धि होने से विभिन्न शहरों व वाणिज्यिक वर्गों का जन्म हुआ। इन वर्गों का अस्तित्व बाजार के लिए उत्पादन पर टिका था।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

→ उदारवादी राष्ट्रवाद

  • कुलीन वर्ग को प्राप्त विशेषाधिकारों की समाप्ति के पश्चात् शिक्षित एवं उदारवादी वर्गों के बीच ही राष्ट्रीय एकता के विचारों का अधिक प्रचार-प्रसार हुआ।
  • उदारवाद (Liberalism) शब्द लैटिन भाषा के मूल शब्द Liber से निकला है जिसका अर्थ है- आजाद।
  • यूरोप के नवीन मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का अर्थ था-लोगों के लिए स्वतन्त्रता एवं कानून के समक्ष सभी की
    समानता।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति के पश्चात् से ही उदारवाद निरंकुश शासक व पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति तथा संविधान एवं संसदीय प्रतिनिधि सरकार का समर्थक था।
  • आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद, बाजारों की मुक्ति एवं पूँजी व वस्तुओं के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाये गये नियन्त्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था।

→  रूढ़िवाद का उदय व वियना संधि

  • सन् 1815 में नेपोलियन की पराजय के पश्चात् यूरोप की सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित थीं। रूढ़िवादियों का मत था कि राज्य व समाज द्वारा स्थापित की गयी पारम्परिक संस्थाओं जैसे- चर्च, सामाजिक भेदभाव, राजतन्त्र, सम्पत्ति एवं परिवार को बनाए रखना चाहिए।
  • नेपोलियन को पराजित करने वाली यूरोपीय शक्तियों-ब्रिटेन, रूस, प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के प्रतिनिधियों ने यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मुलाकात की। ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने इस सम्मेलन की मेजबानी की। इस सम्मेलन में सभी प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से सन् 1815 की वियना सन्धि तैयार की।
  • वियना सन्धि का उद्देश्य उन बहुत से बदलावों को समाप्त करना था जिन्हें नेपोलियाई युद्धों के दौरान किया गया था।
  • वियना सन्धि के तहत, फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान हटाए गये बूढे राजवंश को वापस शासन का अधिकार दिया गया।
  • फ्रांस को भविष्य में विस्तार करने से रोकने के लिए उसकी सीमाओं पर उत्तर में नीदरलैंड्स राज्य स्थापित किया गया तथा दक्षिण में पीडमॉण्ट में जेनोआ को सम्मिलित किया गया।
  • सन् 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं।
  • रूढ़िवादी व्यवस्था के आलोचक उदारवादी राष्ट्रवादी प्रेस की स्वतन्त्रता चाहते थे।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

→  क्रांतिकारी

  • सन् 1815 के पश्चात् यूरोप में अनेक उदारवादी-राष्ट्रवादी सरकारी दमन के भय से भूमिगत हो गये।
  • विभिन्न यूरोपीय देशों में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण एवं विचारों का प्रसार करने के लिए अनेक गुप्त संगठनों का निर्माण हुआ।
  • इटली का ज्युसेपी मेत्सिनी भी एक ऐसा क्रान्तिकारी था जो, कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य था।
  • मेत्सिनी ने 24 वर्ष की अवस्था में लिगुरिया में क्रांति करने के लिए बहिष्कृत होने के बाद ‘यंग इनी’ (मार्सेई में) तथा ‘यंग यूरोप’ (बर्न में) नामक दो अन्य भूमिगत संगठनों की स्थापना की।
  • मेत्सिनी राजतंत्र का घोर विरोध कर तथा प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने स्वप्न से रूढ़िवादियों ६ हराने में सफल रहा। उसे मैटरनिख ने ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ करार दिया।

→ क्रांतियों का युग व रूमावी कल्पनी और राष्ट्रीय भावना

  • जुलाई 1830 में फ्रांस में प्रथम विद्रोह हुआ जिसमें उदारवादी क्रांतिकारियों ने बूढे राजा को सत्ता से बेदखल कर दिया तथा लुई फिलिप की अध्यक्षता में एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया।
  • सन् 1832 में हुई कुस्तुनतुनिया की सन्धि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की।
  • राष्ट्रवाद के विचार के निर्माण में संस्कृति का बहुत अधिक योगदान रहा।
  • रूमानी कलाकारों एवं कवियों ने तर्क-वितर्क व विज्ञान के स्थान पर भावनाओं, अंतर्दृष्टि एवं रहस्यवादी भावनाओं पर – अधिक बल दिया।
  • जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड के अनुसार राष्ट्र की वास्तविक आत्मा लोकगीतों, जनकाव्य एवं लोकनृत्यों से प्रकट होती थी।
  • यूरोप में राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भाषा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

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→ भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह तथा उदारवादियों की क्रांति:

  • सन् 1830 के दशक में यूरोप में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिनमें तीव्र जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी में वृद्धि, वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि एवं निर्धनता प्रमुख थीं। सन् 1848 में खाने-पीने की सामग्री की कमी एवं अत्यधिक बेरोजगारी के कारण लोगों ने पेरिस की सड़कों पर आकर आन्दोलन कर दिया।
  • सन् 1848 में अनेक यूरोपीय देशों में किसान व मजदूर वर्ग ने गरीबी, बेरोजगारी व भुखमरी के कारण विद्रोह कर दिया।
    उसी समय शिक्षित मध्यम वर्ग ने भी राजा के विरुद्ध क्रान्ति कर दी।
  • उदारवादी मध्यम वर्ग ने राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग की जो संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता एवं संगठन निर्माण की
    स्वतन्त्रता जैसे संसदीय व्यवस्था के सिद्धान्तों पर आधारित थी।
  • 18 मई, 1848 को जर्मन क्षेत्रों में मतदान द्वारा सर्व-जर्मन नेशनल एसेम्बली का गठन किया गया, जिसमें 831 निर्वाचित प्रतिनिधि थे। इसे ‘फ्रैंकफर्ट संसद’ के नाम से जाना गया।
  • फ्रैंकफर्ट संसद में मध्यम वर्ग का प्रभाव अधिक था, जिसने मजदूर-कारीगर वर्ग की माँगों का विरोध किया। फलस्वरूप मध्यम वर्ग ने समर्थन खो दिया और संसद भंग हो गयी।
  • उदारवादी आंदोलन में महिलाओं को राजनैतिक अधिकार प्रदान करने का मुद्दा विवादास्पद था।
  • सन् 1848 में रूढ़िवादी ताकतों ने उदारवादी आन्दोलन को समाप्त कर दिया। लेकिन वे पुरानी व्यवस्था बहाल करने में नाकाम रहीं।

→ जर्मनी व इटली का एकीकरण

  • मध्य वर्ग के जर्मन राष्ट्रवादी लोगों के प्रयासों से जर्मनी व इटली एकीकृत होकर राष्ट्र-राज्य बने।
  • बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व किया। ऑस्ट्रिया, डेनमार्क व फ्रांस से सात वर्ष के दौरान तीन युद्धों में जीत के साथ प्रशा ने एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया।
  • जनवरी 1871 में वर्साय में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
  • जर्मनी की तरह इटली का भी राजनीतिक विखण्डन का एक लम्बा इतिहास रहा है।
  • उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में इटली सात राज्यों में विभाजित था। इनमें से मात्र एक सार्डिनिया पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था।
  • सन् 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इटली गणराज्य के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत की तथा ‘यंग इटली’ नामक गुप्त संगठन का गठन किया।
  • सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय के मंत्री प्रमुख कापूर ने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया।
  • सन् 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली राष्ट्र का राजा घोषित किया गया।

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→  ब्रिटेन का उदय

  1. ब्रिटेन में राष्ट्र राज्य का निर्माण अचानक न होकर एक लम्बी प्रक्रिया द्वारा हुआ।
  2. अठारहवीं शताब्दी से पहले विश्व में कोई ब्रिटेन नाम का राष्ट्र नहीं था। सन् 1688 में आंग्ल संसद ने राजतंत्र से सत्ता छीनकर एक राष्ट्र राज्य का निर्माण किया जिसके केन्द्र में इंग्लैण्ड था।
  3. सन् 1707 में इंग्लैण्ड और स्कॉटलैण्ड के बीच एक्ट ऑफ यूनियन नामक समझौते के तहत ‘यूनाइटेड किगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ।
  4. सन् 1801 में आयरलैण्ड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में सम्मिलित कर लिया गया। इस तरह नये ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण हुआ।

→  राष्ट्र दृश्य की कल्पना

  • 18 वीं एवं 19 वीं शताब्दी के कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके उसे मानव के रूप में चित्रित किया। उस समय राष्ट्र को महिला भेष में प्रस्तुत किया जाता था। इस काल में महिला की छवि राष्ट्र का प्रतीक (रूपक) बन गयी।
  • फ्रांसीसी गणराज्य में मारीआन की तस्वीर, जर्मनी में जर्मेनिया की तस्वीर इसी प्रकार की अभिव्यक्ति के प्रमुख उदाहरण

→  राष्ट्रवाद व साम्राज्य

  • सन् 1871 के पश्चात् यूरोप महाद्वीप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का प्रमुख स्रोत बाल्कन क्षेत्र था।
  • बाल्कन क्षेत्र में भौगोलिक एवं जातीय भिन्नता बहुत अधिक थी। इस क्षेत्र में आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया एवं मॉन्टिनिग्रो आदि सम्मिलित थे। आमतौर पर इस क्षेत्र के निवासियों को स्लाव कहा जाता था।
  • बाल्कन क्षेत्र का अधिकांश भाग ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था।
  • 19वीं शताब्दी में बाल्कन क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र ऑटोमन साम्राज्य के नियन्त्रण से निकलकर स्वतन्त्रता की घोषणा करने लगे।
  • साम्राज्यवाद से जुड़कर राष्ट्रवाद सन् 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। अंततः प्रथम विश्व युद्ध हआ।
  • यूरोपीय शक्तियों के अधीन विश्व के विभिन्न राष्ट्रों ने उनके साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध किया।
तिथि घटनाएँ
1. 1688 ई. आंग्ल (इंग्लैण्ड) की संसद ने राजतंत्र से शक्ति छीन ली एवं एक राष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ।
2. 1707 ई. इंग्लैण्ड एवं स्कॉटलैण्ड के मध्य एक्ट ऑफ यूनियन द्वारा ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन किया गया।
3. 1785 ई. जर्मनी के उदारवादी नेता जैकब ग्रिम का जन्म।
4. 1786 ई. जर्मनी के उदारवादी नेता विल्हेल्म ग्रिम का जन्म।
5. 1789 ई. फ्रांस की क्रान्ति।
6. 1797 ई. नेपोलियन का इटली पर आक्रमण, नेपोलियन के युद्धों की शुरुआत।
7. 1801 ई. आयरलैण्ड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में सम्मिलित किया गया।
8. 1804 ई. फ्रांस में नागरिक संहिता का निर्माण किया गया, जिसे नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना गया।
9. 1807 ई. इटली के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी ज्युसेपे मेत्सिनी का जन्म।
10. 1812 ई. ग्रीम्स बन्धु जैकब ग्रिम व विल्हेल्म ग्रिम की लोककथाओं की कहानियों का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ।
11. 1814-15 ई. नेपोलियन का पतन एवं वियना शांति संधि।
12. 1819 ई. लुइजे ऑटो पीटर्स का जन्म।
13. 1821 है. यूनानियों का स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ।
14. 1830 ई. फ्रांस की उुलाई क्रान्ति।
15. 1831 ई. रूस के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह।
16. 1832 है. कुस्तुनु निया की संधि ने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी।
17. 1834 ह. प्रशा की पहल पर एक शुल्क संघ, ‘जॉवेराइन’ की स्थापना जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य सम्मिलित थे।
18. 1848 ईई. फ्रांस में क्रान्ति, आर्थिक समस्याओं से परेशान कारीगरों, औद्योगिक मजदूरों एवं किसानों की बगावत, मध्यम वर्ग द्वारा संविधान तथा प्रतिनिध्यात्मक सरकार के गठन की माँग, जर्मन, इतालवी, पोलिश, चेक आदि के लोगों ने राष्ट्र राज्यों की माँग की।
19. 1859-1870 ई. इटली का एकीकरण।
20. 1861 ई. इमेनुएल द्वितीय एकीकृत इटली का राजा घोषित।
21. 1866-1871 ई. जर्मनी का एकीकरण।
22. जनवरी 1871 ई. वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
23. 1905 ई. हैब्सबर्ग एवं ऑटोमन साम्राज्यों में स्लाव राष्ट्रवाद की मजबूती।
24. 1914 ई प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. निरंकुशवाद:
एक ऐसी सरकार अथवा शासन व्यवस्था जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता। इतिहास में ऐसी राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार कहा जाता है जो अत्यधिक केन्द्रीकृत सैन्य बल पर निर्भर एवं दमनकारी सरकारें होती थीं।

2. कल्पनादर्श (युटोपिया): एक ऐसे समाज की कल्पना जो इतना अधिक आदर्श है कि उसका साकार होना लगभग असम्भव होता है।

3. जनमत संग्रह: एक प्रत्यक्ष मतदान जिसके माध्यम से एक क्षेत्र के समस्त लोगों को किसी प्रस्ताव को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करने के लिए पूछा जाता है।

4. राष्ट्र: समान नस्ल, भाषा, धर्म एवं क्षेत्र है, जिसे एक लम्बे प्रयासों, त्याग एवं निष्ठा के द्वारा प्राप्त किया है।
5. मताधिकार: मत (वोट) देने का अधिकार।

6. रूढ़िवाद: एक ऐसा राजनीतिक दर्शन जो परम्परा, स्थापित संस्थाओं व रीति-रिवाज़ों पर बल देता है एवं तीव्र परिवर्तन की अपेक्षा धीमे व श्रमिक विकास को प्राथमिकता देता है।

7. नारीवाद: महिला व पुरुष की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक समानता की सोच के आधार पर महिलाओं के अधिकारों व हितों के प्रति जागृति की विचारधारा।

8. विचारधारा: एक विशेष प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक दृष्टि को इंगित करने वाले विचारों का समूह।

9. नृजातीय: एक साझा नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान स्वीकार करता है।

10. राष्ट्रवाद: व्यक्तियों के द्वारा एकता की भावना को महसूस करना जो एक समान भाषा, इतिहास एवं साझी संस्कृति के भागीदार होते हैं।

11. उदारवाद: यूरोप में 19वीं शताब्दी में मध्यम वर्ग के लोगों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा प्रोत्साहित वह विचारधारा जिसमें उनको ही अधिक-से-अधिक राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में अवसर प्रदान हों तथा उनकी हिस्सेदारी को महत्व प्रदान किया जाये।

12. रूपक: जब किसी भी अमूर्त विचार; जैसे-लालच, ईर्ष्या, स्वतन्त्रता, मुक्ति आदि को किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। एक रूपकात्मक कहानी के दो अर्थ होते हैं- एक शाब्दिक अर्थ व एक प्रतीकात्मक अर्थ।

13. मारीआन: फ्रांस में राष्ट्रीय भावना के रूपक के रूप में दर्शायी गई एक नारी की छवि। यह ईसाइयों का लोकप्रिय नाम था। इसे सिक्कों और डाक-टिकटों पर दर्शाया गया था।

14. जर्मेनिया: जर्मन राष्ट्र की रूपक। इसे वीरता के प्रतीक ‘बलूत के वृक्ष के पत्तों का मुकुट’ पहने हुए दर्शाया गया है।

15. राष्ट्र का मानवीकरण: एक देश को इस प्रकार चित्रित करना कि वह कोई व्यक्ति हो।

16. हलेनिज्म: प्राचीन यूनानी संस्कृति।

17. क्रान्ति: अचानक होने वाली ऐसी कार्यवाही जो गैर-कानूनी तरीके अथवा शक्ति के द्वारा सरकार या शासन में परिवर्तन के लिए विद्रोह के रूप में प्रकट होती है।

18. जॉलवेराइन: प्रशा की पहल पर स्थापित एक शुल्क संघ।

19. रूमानीवाद: एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

JAC Class 9th Geography अपवाह InText Questions and Answers 

प्रश्न 1.
भारत में किस नदी की अपवाह द्रोणी सबसे बड़ी है।
उत्तर:
भारत में गंगा नदी की अपवाह द्रोणी सबसे बड़ी है।

प्रश्न 2.
भारत का सबसे बड़ा जल प्रपात कौन-सा है?
उत्तर:
भारत का सबसे बड़ा जल प्रपात जोग जल प्रपात है जो शरावती नदी द्वारा निर्मित है।

‘क्या आप जानते हैं’ पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी किस नदी की है?
उत्तर:
अमेजन नदी की।

प्रश्न 2.
सिंधु जल समझौता, 1960 के अनुसार भारत सिंधु नदी के कितने प्रतिशत जल का उपभोग कर सकता है?
उत्तर:
20 प्रतिशत जल का।

प्रश्न 3.
विश्व का सबसे बड़ा एवं तेजी से वृद्धि करने वाला डेल्टा कौन-सा है?
उत्तर:
सुन्दर डेल्टा।

प्रश्न 4.
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत एवं बांग्लादेश में किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में सांगपो एवं बांग्लादेश में जमुना कहा जाता है।

प्रश्न 5.
भारत में दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात कौन-सी नदी बनाती है?
उत्तर:
कावेरी नदी।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

प्रश्न 6.
भारत में दूसरा सबसे बड़ा जल प्रपात कौन-सा है?
उत्तर:
कावेरी नदी द्वारा बनाया गया शिवसमुद्रम् जलप्रपात।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के धरातल का लगभग कितने प्रतिशत भाग जल से ढंका है?
उत्तर:
71 प्रतिशत।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग कितने प्रतिशत जल स्वच्छ है?
उत्तर:
3 प्रतिशत।

प्रश्न 9.
बड़े आकार वाली झीलों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
समुद्र कहा जाता है।

प्रश्न 10.
पृथ्वी पर उपलब्ध जल का कितने प्रतिशत लवणीय है?
उत्तर:
97 प्रतिशत।

क्रियाकलाप आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
एटलस की सहायता से प्राकृतिक तथा मानव निर्मित झीलों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:

  • प्राकृतिक झील:
    1. डल झील (जम्मू और कश्मीर),
    2. वूलर झील (जम्मू और कश्मीर),
    3. भीमताल झील (उत्तराखण्ड),
    4. नैनीताल झील (उत्तराखण्ड),
    5. लोनार झील (महाराष्ट्र),
    6. पुष्कर झील (राजस्थान),
    7. कोलेरु झील (आन्ध्र प्रदेश),
    8. चिल्का झील (उड़ीसा),
    9. वेम्बनाद झील (केरल),
    10. सांभर झील (राजस्थान),
    11. लोकतक झील (मणिपुर),
    12. पुलीकट झील (आन्ध्र प्रदेश)।
  • मानव निर्मित झील:
    1. गोविन्द सागर झील (हिमाचल प्रदेश),
    2. नागार्जुन सागर (आन्ध्र प्रदेश)
    3. राणा प्रताप सागर (राजस्थान),
    4. हीराकुण्ड (उड़ीसा),
    5. गांधी सागर (मध्य प्रदेश),
    6. गोविन्द बल्लभ सागर (उत्तर प्रदेश)।

JAC Class 9th Geography अपवाह Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
दिए गये चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए।
1. वूलर झील निम्नलिखित में से किस राज्य में स्थित है
(क) राजस्थान
(ख) पंजाब
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) जम्मू-कश्मीर।
उत्तर:
(घ) जम्मू-कश्मीर।

2. नर्मदा नदी का उद्गम कहाँ से है
(क) सतपुड़ा
(ख) अमरकंटक
(ग) ब्रह्मगिरी
(घ) पश्चिमी घाट के ढाल।
उत्तर:
(ख) अमरकंटक।

3. निम्नलिखित में से कौन-सी लवणीय जल वाली झील है
(क) सांभर
(ख) वूलर
(ग) डल
(घ) गोविन्द सागर।
उत्तर:
(क) सांभर।

4. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है
(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) कृष्णा
(घ) महानदी।
उत्तर:
(ख) गोदावरी।

5. निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी से होकर बहती है
(क) महानदी
(ख) कृष्णा
(ग) तुंगभद्रा
(घ) तापी।
उत्तर:
(घ) तापी।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए
1. जल विभाजक का क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जल विभाजक वह उच्च स्थलीय भाग है जो दो अपवाह द्रोणियों को एक-दूसरे से पृथक् करता है। उदाहरण के लिए; अंबाला नगर सिंधु और गंगा नदी तन्त्रों के बीच जल विभाजक पर स्थित है।

2. भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
उत्तर:
गंगा द्रोणी।

3. सिंध एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं?
उत्तर:
सिंधु नदी मानसरोवर झील (तिब्बत) के निकट से एवं गंगा नदी गंगोत्री नामक हिमानी (उत्तराखण्ड) से निकलती है।

4. गंगा की दो मुख्य धाराओं के नाम लिखिए।ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती
उत्तर:
गंगा की दो मुख्य धाराएँ भागीरथी एवं अलकनंदा हैं। ये दोनों धाराएँ एक-दूसरे से उत्तराखण्ड राज्य के देवप्रयाग (जनपद टिहरी) नामक स्थान पर मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।

5. लम्बी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद(सिल्ट क्यों है?
उत्तर:
लम्बी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद (सिल्ट) है क्योंकि यह एक शीत एवं शुष्क क्षेत्र है अतः यहाँ इस नदी में जल की मात्रा कम है जिसके फलस्वरूप अपरदन कम होता है।

6. कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं? समुद्र में प्रवेश करने से पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं?
उत्तर:
नर्मदा एवं तापी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ हैं जो गर्त से होकर बहती हैं। समुद्र में प्रवेश करने से पहले वे ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।

7. नदियों तथा झीलों के कुछ आर्थिक महत्व को बताइएं।
उत्तर:

  • नदियों का आर्थिक महत्व:
    1. नदियाँ घरेलू कार्यों, उद्योगों एवं फसलों की सिंचाई के लिए जल उपलब्ध करवाती हैं।
    2. नदियाँ गाद और तलछट को बहाकर लाती हैं जो बाढ़ के मैदानों को उपजाऊ बनाती हैं तथा देश को उपजाऊ कृषि भूमि प्रदान करती हैं।
    3. नदियाँ जल विद्युत के उत्पादन में सहायक हैं।
    4. नदियाँ नौ-संचालन में प्रयोग होती हैं।
  • झीलों का आर्थिक महत्व:
    1. झीलें प्राकृतिक सुन्दरता एवं पर्यटन को बढ़ावा देती हैं तथा हमें मनोरंजन प्रदान करती हैं।
    2. झीलें नदी के बहाव को सुचारु बनाये रखती हैं।
    3. झीलों का प्रयोग जल विद्युत उत्पादन में किया जाता है।
    4. अत्यधिक वर्षा के समय झीलें बाढ़ के पानी को रोकती हैं।
    5. झीलों का प्रयोग नौका संचालन में भी किया जाता है।
    6. सूखे के मौसम में झीलें पानी के बहाव को सन्तुलित करने में सहायता करती हैं।
    7. झीलें आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु को सामान्य बनाती हैं।
    8. झीलें जलीय पारितन्त्र को सन्तुलित रखती हैं।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

प्रश्न 3.
नीचे भारत की कुछ झीलों के नाम दिये गए हैं। इन्हें प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वर्गों में बाँटिए
(क) वूलर
(ग) नैनीताल
(ङ) गोविन्द सागर
(छ) बारापानी
(झ) सांभर
(ट) निजामसागर
(ड) नागार्जुन सागर
(ख) डल
(घ) भीमताल
(च) लोकताल
(ज) चिल्का
(अ) राणा प्रताप सागर
(ठ) पुलिकट
(ढ) हीराकुण्ड
उत्तर:
1. प्राकृतिक झीलें: (क) वूलर, (ख) डल, (ग) नैनीताल, (घ) भीमताल, (च) लोकताल, (छ) बारापानी, (ज) चिल्का, (झ) सांभर, (ठ) पुलिकट।

2. मानव निर्मित झीलें: (ङ) गोविन्द सागर, (ब) राणाप्रताप सागर, (ट) निजाम सागर, (ठ) नागार्जुन सागर, (ढ) हीराकुण्ड।

प्रश्न 4.
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य अन्तरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैंहिमालयी नदियाँ

हिमालयी नदियाँ प्रायद्वीपीय नदियाँ
1. हिमालय से निकलने वाली नदियों का अपवाह क्षेत्र लम्बा है। 1. प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह क्षेत्र छोटा है।
2. हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ बारहमासी हैं। इनमें पूरे वर्ष भर पानी बना रहता है। 2. प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं। इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है।
3. हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियों का जन्म हिमानियों से हुआ है। 3. प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ वर्षा जल पर निर्भर हैं। यहाँ कोई हिमानी नहीं है।
4. अपने ऊपरी मार्ग में ये नदियाँ तीव्र गति से अपरदन कार्य करती हैं फलस्वरूप ये अपने साथ भारी मात्रा में गाद एवं तलछट लाती हैं। 4. धीमे ढलानों के कारण ये नदियाँ अपेक्षाकृत धीमी गति से अपरदन कार्य करती हैं।
5. समतल भूभाग में होकर बहने के कारण ये नदियाँ नौकायन करने योग्य हैं। 5. ये नदियाँ मार्ग में जल प्रपात बनाती हैं अतः तटीय मैदानों को छोड़कर ये नदियाँ नहीं हैं।
6. ये नदियाँ विशाल डेल्टा बनाती हैं। 6. ये नदियाँ अपेक्षाकुत छोटे डेल्टा बनाती हैं।

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प्रश्न 5.
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की तुलना निम्न प्रकार से हैपूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ

पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ पशिचम की ओर बहने वाली नदियाँ
1. ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। 1. ये नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं।
2. ये नदियाँ डेल्टा का निर्माण करती हैं। 2. ये नदियाँ ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।
3. ये नदियाँ अधिक लम्बी दूरी को पार करती हैं तथा अपनी घाटी का स्वयं निर्माण करती हैं। 3. नर्मदा एवं तापी को छोड़कर सभी नदियाँ अत्यन्त छोटी हैं तथा तेजी से तीव्र ढाल पर बहती हुई अरब सागर में गिरती हैं।
4. पूर्व की ओर बहने वाली नदियों में महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि प्रमुख हैं। 4. पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में नर्मदा एवं तापी आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 6.
किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्वपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर:
किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि

  1. नदियाँ घरेलू कार्यों, उद्योगों एवं फसलों की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराती हैं विशेषकर भारत जैसे देश में जहाँ फसल मानसून पर निर्भर होती है।
  2. नदियाँ परिवहन के साधन एवं अन्तर्देशीय जल मार्ग उपलब्ध करवाती हैं।
  3. नदियों के किनारे नगर, मनोरंजन केन्द्र, पर्यटन एवं मत्स्य संग्रहण केन्द्र भी विकसित होते हैं।
  4. नदियाँ गाद और तलछट बहाकर लाती हैं जो बाढ़ के मैदानों को उपजाऊ बनाती हैं।
  5. नदियाँ अवशिष्ट को जमने नहीं देतीं, उसे गलाकर नष्ट कर देती हैं।
  6. नदियों का उपयोग जल विद्युत उत्पादन में किया जाता है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मानव सभ्यता की जीवन रेखायें यह नदियाँ ही हैं।

मानचित्र कौशल

भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित नदियों को चिह्नित कीजिए तथा उनके नाम लिखिए गंगा, सतलुज, दामोदर, कृष्णा, नर्मदा, तापी, महानदी, दिहांग।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह 1

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह

प्रश्न 2.
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित झीलों को चिह्नित कीजिए तथा उनके नाम लिखिए: चिल्का, सांभर, वूलर, पुलिकट तथा कोलेरू।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह 2

क्रियाकलाप

नीचे दी गई वर्ग पहेली को हल करें नोट: पहेली के उत्तर अंग्रेजी के शब्दों में हैं।

  • बाएँ से दाएँ:
    1. नागार्जुन सागर नदी परियोजना किस नदी पर है?
    2. भारत की सबसे लम्बी नदी।
    3. व्यास कुण्ड से उत्पन्न होने वाली नदी।
    4. मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से उत्पन्न होकर पश्चिम की ओर बहने वाली नदी।
    5. प. बंगाल का ‘शोक’ के नाम से जानी जाने वाली नदी। मूल रूप से पाठ्य-पुस्तक में बिहार का शोक है। लेकिन पहेली में स्थान दामोदर के लिए छोड़ा गया है उस हिसाब से प. बंगाल का शोक ठीक है।
    6. किस नदी से इंदिरा गांधी नहर निकाली गयी है?
    7. रोहतांग दर्रा के पास किस नदी का स्रोत है?
    8. प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी।
  • ऊपर से नीचे
    1. सिन्धु नदी की सहायक नदी, जिसका उद्गम हिमाचल प्रदेश में है।
    2. भ्रंश अपवाह होकर अरब सागर में मिलने वाली नदी।
    3. दक्षिण भारतीय नदी, जो ग्रीष्म तथा शीत ऋतु दोनों में वर्षा का जल प्राप्त करती है।
    4. लद्दाख, गिलगित तथा पाकिस्तान में बहने वाली नदी।
    5. भारतीय मरुस्थल की एक महत्वपूर्ण नदी।
    6. पाकिस्तान में चिनाव से मिलने वाली नदी।
    7. यमुनोत्री हिमानी से निकलने वाली नदी।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 3 अपवाह 3

JAC Class 9 Social Science Solutions

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
निम्न में से सही विकल्प को चुनिएस्तम्भ A स्तम्भ B

A B
(क) पंजाब के समृद्ध किसान (i) काम करने के अधिक दिन तथा बेहतर मजदूरी
(ख) भूमिहीन ग्रामीण मजदूर (ii) सिंचाई के लिए अतिरिक्त साधनों की उपलब्धता
(ग) किसान जो खेती के लिए केवल वर्षा पर निर्भर हैं। (iii) किसानों को उनकी उपज के लिए ज्यादा समर्थन मूल्य
(घ) शहर के अमीर परिवार की एक लड़की (iv) उसे अपने भाई के समान आजादी मिलती है।

उत्तर:
(घ) शहर के अमीर परिवार की एक लड़की – (iv) उसे अपने भाई के समान आजादी मिलती है।

2. अगर आपको कहीं दूर-दराज के इलाके में नौकरी मिलती है, तो उसे स्वीकार करने से पहले आप आय के अतिरिक्त कौन से कारक पर विचार करेंगे
(क) परिवार के लिए सुविधाएँ
(ख) काम करने का वातावरण
(ग) सीखने के अवसर
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

3. देशों की तुलना करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण विशिष्टता समझी जाती है
(क) आय
(ख) व्यय
(ग) व्यवहार
(घ) अनैतिकता
उत्तर:
(क) आय

4. औसत आय को कहा जाता है
(क) प्रतिव्यक्ति आय
(ख) राष्ट्रीय आय
(ग) सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(घ) सकल राष्ट्रीय आय
उत्तर:
(क) प्रतिव्यक्ति आय

5. निम्न में से कौन-सा कथन तीन स्तरों के लिए सकल नामांकन अनुपात दर्शाता है
(क) प्राथमिक स्कूल, माध्यमिक स्कूल और उससे आगे उच्च शिक्षा के नामांकन अनुपात का कुल योग
(ख) 10-14 वर्ष के बच्चों की साक्षरता दर।
(ग) 10-14 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले ग्रामीण बच्चों का प्रतिशत
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) प्राथमिक स्कूल, माध्यमिक स्कूल और उससे आगे उच्च शिक्षा के नामांकन अनुपात का कुल योग

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

6. निम्न में से कौन-सा संगठन मानव विकास रिपोर्ट तैयार करता है
(क) सार्क
(ख) विश्व बैंक
(ग) यू. एन. डी. पी.
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सार्क

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति ही ……….. आकांक्षाओं की पूर्ति ही…………………के लक्ष्य है।
उत्तर:
विकास,

2. विभिन्न देशों की तुलना करने का प्रमुख आधार उन देशों की…………….से होती है।
उत्तर:
आय,

3. देशों का विकास के आधार पर वर्गीकरण करते समय……………मापदण्ड का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर:
प्रतिव्यक्ति आय,

4. सात वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात…………..कहलाता है।
उत्तर:
साक्षारता दर।

अतिलयूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आज के विश्व में हम अपनी आशाओं एवं सम्भावनाओं को वास्तविक जीवन में किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा हम अपनी आशाओं को वास्तविक जीवन में प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
भूमिहीन ग्रामीण मजदूरों के किन्हीं दो विकास के लक्ष्य एवं आकांक्षाओं को बताइए।
उत्तर:

  1. काम करने के अंधिक दिन
  2. बेहतर मजदूरी।

प्रश्न 3.
लोगों द्वारा इच्छित आर्थिक लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. नियमित काम
  2. बेहतर मजदूरी
  3. अपनी उपज एवं अन्य उत्पादों के लिए अच्छी कीमतें।

प्रश्न 4.
लोगों द्वारा इच्छित सामाजिक लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. समान व्यवहार
  2. स्वतन्त्रता,
  3. सुरक्षा
  4. अन्य लोगों द्वारा सम्मान।

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प्रश्न 5.
विकास किसे कहते हैं?
उत्तर:
विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ असमानता, निर्धनता एवं निरक्षरता में कमी भी हो अर्थात् लोगों के आर्थिक जीवन में सुधार हो एवं उनका जीवन स्तर ऊँचा हो।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय आय को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी समयावधि में एक अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं में कुल प्रवाह का मौद्रिक मूल्य राष्ट्रीय आय कहलाता है।

प्रश्न 7.
प्रतिव्यक्ति आय को परिभाषित कीजिए।
अथवा
औसत आय क्या है?
अथवा
प्रतिव्यक्ति आय का तात्पर्य लिखिए।
उत्तर:
जब देश की कुल आय को कुल जनसंख्या से भाग देकर निकाला जाता है तो उसे प्रतिव्यक्ति आय या औसत आय कहते हैं।
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प्रश्न 8.
जिन देशों की आय अधिक है उन्हें कम आय वाले देशों से अधिक विकसित क्यों समझा जाता है ?
उत्तर:
क्योंकि अधिक आय का अर्थ है- मानवीय आवश्यकता की सभी वस्तुओं का अधिक होना।

प्रश्न 9.
कौन-सा विकास का अधिक उपयुक्त मापदण्ड है?
अथवा
दो या अधिक देशों के विकास की तुलना का उपयुक्त माप क्या है?
उत्तर:
प्रतिव्यक्ति आय विकास का अधिक उपयुक्त मापदण्ड है।

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प्रश्न 10.
औसत आय के अतिरिक्त विकास के अन्य दो प्रमुख मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर:

  1. शिशु मृत्यु दर
  2. साक्षरता।

प्रश्न 11.
अधिक आय को अपने आप में जीवन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि आय (मुद्रा) से ही लोग अपनी अधि कांश आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।

प्रश्न 12.
आय के अतिरिक्त विकास को जानने के और कौन-कौन से मापदण्ड हैं?
उत्तर:

  1. अच्छा व्यवहार
  2. समानता
  3. स्वतन्त्रता
  4. सुरक्षा।

प्रश्न 13.
‘भारत में शिशु मृत्यु-दर’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बंच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्च्वों का अनुपात शिशु मृत्यु दर कहलाता है।

प्रश्न 14.
साक्षरता दर शब्द को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
7 वर्ष और उससे ज्यादा आयु के व्यक्तियों में साक्षर जनसंख्या के अनुपात को साक्षरता दर कहते हैं।

प्रश्न 15.
केरल में शिशु मृत्यु दर कम क्यों है?
अथवा
केरल में शिशु मृत्यु दर कम होने के कारण बताइए।
उत्तर:
क्योंकि केरल में स्वास्थ्य और शिक्षा की भौतिक सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।

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प्रश्न 16.
“यह आवश्यक नहीं कि जेब में रखा रुपया वे सब वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीद सके, जिनकी आपको एक बेहतर जीवन के लिए आवश्यकता हो सकती है।” ऐसी दो आवश्यकताएँ बताइए जो रुपयों से खरीदी नहीं जा सकती हैं।
उत्तर:

  1. प्रदूषण रहित वातावरण एवं
  2. बिना मिलावट वाले खाद्य पदार्थ

प्रश्न 17.
निम्नलिखित के पूरे नाम लिखिए-
1. एच. डी. आर. (H.D.R.),
2. बी. प्म. आई. (B.M.I.),
3. यू. एन. डी. पी. (U.N.D.P.)
4. एच. डी. आई. (H.D.I.)
उत्तर:

  1. मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report),
  2. शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body Mass Index),
  3. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United National Development Programme)
  4. मानव विकास सूचकांक (Human Development Index)

प्रश्न 18.
शरीर द्रव्यमान सूचकांक को कैसे माप सकते हैं?
उत्तर:
व्यक्ति के भार को उसकी लम्बाई के वर्ग से भाग देकर शरीर द्रव्यमान सूचकांक निकाला जाता है।

प्रश्न 19.
मानव विकास सूचकांक के किन्हीं दो सूचकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. स्वास्थ्य स्थिति
  2. शिक्षा का स्तर।

प्रश्न 20.
भारत में 2017 में जन्म के समय सम्भावित आयु क्या है? आयु क्या है?
उत्तर:
68.8वर्ष

प्रश्न 21.
जन्म के समय सम्भावित आयु क्या दर्शाती है?
उत्तर:
जन्म के समय सम्भावित आयु व्यक्ति की जन्म के समय औसत आयु की सम्भावना को दर्शाती है।

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प्रश्न 22.
मानव विकास सूचकांक में भारत की कौन-सी स्थिति है?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक में भारत 130 वें स्थान पर है।

प्रश्न 23.
धारणीय आर्थिक विकास क्या है?
उत्तर:
बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये आर्थिक विकास को आगे बढ़ना धारणीय आर्थिक विकास कहलाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
विकास की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. अलग-अलग लोगों के विकास के लक्ष्य अलग-अलग हो सकते हैं।
  2. एक व्यक्ति के लिए जो विकास है, हो सकता है वह दूसरे व्यक्ति के लिए विकास न हो। दूसरे के लिए वह विनाशकारी भी हो सकता है।
  3. विकास के लिए सब लोग मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं।
  4. विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है-आय, परन्तु ज़्यादा आय चाहने के अतिरिक्त लोग बराबरी का व्यवहार, स्वतन्त्रता, सुरक्षा एवं दूसरों से आदर मिलने की इच्छा भी रखते हैं।

प्रश्न 2.
विकास के अन्तर्गत सामान्यतः सभी व्यक्ति किन-किन लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं?
अथवा
आय के अतिरिक्त विकास के किन्हीं दो लक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास के अन्तर्गत सामान्यतः सभी व्यक्ति अपनी आय को अधिक से अधिक करना चाहते हैं। साथ ही लोग समानता का व्यवहार, स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं दूसरों से आदर मिलने की इच्छा भी रखते हैं। हमारा बेहतर जीवन कई भौतिक एवं अभौतिक वस्तुओं पर निर्भर करता है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 1 विकास

प्रश्न 3.
देशों के बीच तुलना करने के लिए कुल आय अधिक उपयुक्त माप नहीं है। क्यों?
उत्तर:
देशों के बीच तुलना करने के लिए कुल आय अधिक उपयुक्त माप नहीं है क्योंकि देशों की जनसंख्या अलग-अलग होती है। कुल आय की तुलना करने से हमें यह ज्ञात नहीं होता है कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है? क्या एक देश के लोग दूसरे देश के लोगों से बेहतर हैं? इसलिए हम औसत आय की तुलना करते हैं जो कि देश की कुल आय में कुल जनसंख्या का भाग देकर निकाली जाती है।

प्रश्न 4.
“धन उन सभी वस्तुओं और सेवाओं को नहीं खरीद सकता जिससे व्यक्ति बेहतर जीवन बिता सके।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि धन उन सभी वस्तुओं और सेवाओं को नहीं खरीद सकता जिससे व्यक्ति बेहतर जीवन बिता सके। उदाहरण के रूप में; धन प्रदूषण मुक्त वातावरण नहीं खरीद सकता, धन बिना मिलावट की वस्तुएँ नहीं दिला सकता, धन संक्रामक बीमारियों से नहीं बचा सकता। इसके अतिरिक्त धन शांति नहीं खरीद सकता।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
“एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न भी हो।” उक्त कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास नहीं भी हो सकता है। यह निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है

  1. अधिक मजदूरी अर्थात् एक श्रमिक के लिए विकास परन्तु यह एक उद्योगपति के लिए ठीक नहीं हो सकता।
  2. एक धनिक किसान अथवा व्यापारी अपने खाद्यान्न ऊँची कीमतों पर बेचना चाहता है परन्तु एक गरीब किसान उसे कम कीमत पर खरीदना चाहता है।
  3. बिजली अधिक प्राप्त करने के लिए उद्योगपति अधिक बाँधों का निर्माण चाह सकते हैं परन्तु इससे कृषि भूमि में कमी आ सकती है जिससे लोगों के जीवन में संकट आ सकता है।
  4. बाँध के निर्माण से सस्ती एवं अधिक ऊर्जा मिलती है। परन्तु जिन लोगों को इसके निर्माण से बेघर होना पड़ता है वे विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं, जैसे आदिवासी।

प्रश्न 2.
“विकास के लिए लोग मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं।” कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकास एक प्रक्रिया है जिसमें प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ समानता, निर्धनता एवं निरक्षरता में कमी भी हो अर्थात् लोगों के आर्थिक जीवन में सुधार हो एवं उनका जीवन-स्तर ऊँचा हो। विकास के लिए लोग मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं। यह सत्य है कि यदि महिलाएँ वेतनभोगी कार्य करती हैं तो घर एवं समाज में उनके आदर व सम्मान में वृद्धि होती है।

यद्यपि यह भी सत्य है कि यदि महिलाओं के लिए आदर है तो घर में उनके कामकाज में अधिक से अधिक हाथ बँटाया जाएगा तथा घर से बाहर कार्य करने वाली महिलाओं को अधिक स्वीकार किया जाएगा। सुरक्षित एवं संरक्षित वातावरण के कारण अधिकाधिक महिलाएँ विभिन्न प्रकार की नौकरियाँ अथवा व्यापार कर सकती हैं इसलिए लोगों के विकास के लक्ष्य केवल अच्छी आमदनी से ही नहीं होते बल्कि जीवन में अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के बारे में भी होते हैं।

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प्रश्न 3.
राष्ट्रीय विकास क्या है? राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत किन-किन पक्षों को सम्मिलित किया गया है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास-किसी राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विकास को राष्ट्रीय विकास के नाम से जाना जाता है।
राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत सम्मिलित विभिन्न पक्ष राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत निम्नलिखित पक्ष सम्मिलित हैं

  1. राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत सरकार यह निर्णय लेती है कि विकास का कौन-सा मार्ग न्यायसंगत व सही है।
  2. राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत केवल उन्हीं कार्यक्रमों एवं नीतियों को लागू किया जाता है, जिनसे अधिकतम लोगों को लाभ हो।
  3. राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत विचारों की भिन्नता एवं उनके समाधान के बारे में निर्णय लेना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  4. राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत हमें यह भी सोचना होगा कि विकास का अन्य कोई बेहतर तरीका है।

प्रश्न 4.
“औसत आय अधिक होने पर भी हरियाणा का मानव विकास क्रमांक केरल से नीचे है। इसलिए मानव विकास के लिए प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड बिल्कुल नहीं है।” इस कथन के पक्ष में कोई तीन तर्क दीजिए।
उत्तर:
मानव विकास के लिए प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड बिल्कुल नहीं हैं। इस कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत हैं
1. प्रायः
राज्यों की तुलना प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है लेकिन प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर मानव विकास का सही माप नहीं किया जा सकता क्योंकि केवल प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर ही मानव विकास को ज्ञात नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्धनता व सामाजिक सुविधाएँ आदि भी मानव विकास के अन्य महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं।

2. मानव विकास क्रमांक और औसत आय के बीच सम्बन्ध किसी समरूपता को नहीं दर्शाता है।

3. आय अपने आप में उन भौतिक वस्तुओं व सेवाओं का एक पूर्ण व पर्याप्त सूचक नहीं है जो, नागरिक प्रयोग करने के लिए सक्षम होते हैं।

4. मुद्रा से वे समस्त वस्तुएँ व सेवाएँ नहीं खरीदी जा सकतीं जो अच्छे रहन सहन के लिए आवश्यक हो सकती हैं।

उदाहरणस्वरूप: आपके पास उपलब्ध मुद्रा से आप प्रदूषण मुक्त वातावरण नहीं खरीद सकते। अतः औसत आय अधिक होने पर भी हरियाणा का मानव विकास क्रमांक केरल से नीचे है क्योंकि केरल के पास हरियाणा की तुलना में अन्य सुविधाएँ, जैसे-अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ, अधिक साक्षरता आदि उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त हरियाणा की तुलना में केरल में प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की निवल उपस्थिति अनुपात अधिक है।

प्रश्न 5.
औसत आय किस प्रकार ज्ञात की जाती है? तथा उन सूचकों को सूचीबद्ध कीजिए जिनके आधार पर मानव विकास सूचकांक बनाया जाता है।
अथवा
‘मानव विकास सूचकांक’ के तीन घटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
औसत आय: किसी देश की कुल आय में उसकी कुल जनसंख्या का भाग देकर औसत आय प्राप्त की जाती है। मानव विकास के सूचकों की सूची जनसंख्या का सम्बन्ध उपलब्ध संसाधनों के साथ-साथ प्राथमिक सुविधाओं, जैसे-स्वास्थ्य व शिक्षा, सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक एवं राजनैतिक दशाओं से भी होता है। ये सभी स्थितियाँ जनसंख्या तथा जीवनयापन के साधनों के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। इस संतुलन को बनाये रखने एवं जीवन-स्तर में प्रगति ही मानव विकास है। मानव विकास के सूचक निम्नलिखित हैं

  1. जीवन काल: जिसकी माप जन्म के समय जीवन की प्रत्याशा से की जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक बच्चा अपने जन्म से कितने वर्ष तक जीवित रहेगा।
  2. शैक्षिक स्तर: जिसे प्रौढ़ साक्षर और प्राथमिक, माध्यमिक एवं उससे आगे की उच्च शिक्षा के सकल नामांक-अनुपात दोनों को जोड़कर मापा जाता है।
  3. प्रतिव्यक्ति आय: इसका उपयोग जीवन-स्तर को मापने में किया जाता है। प्रतिव्यक्ति आय की गणना सभी देशों के लिए डॉलर में की जाती है ताकि उसकी तुलना की जा सके।

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प्रश्न 6.
मानव विकास क्या है? मानव विकास सूचकांक का महत्व बताइए।
उत्तर:
मानव विकास स्वस्थ भौतिक पर्यावरण से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्वतंत्रता तक समस्त प्रकार के मानव विकल्पों को सम्मिलित करते हुए लोगों के विकल्पों में विस्तार और उनके शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तथा सशक्तीकरण के अवसरों में वृद्धि की प्रक्रिया मानव विकास कहलाती है।

दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो मानव विकास लोगों की इच्छाओं एवं उनके जीवन स्तर में वृद्धि लाने की प्रक्रिया है ताकि वे एक उद्देश्यपूर्ण एवं सक्रिय जीवन जी सकें। मानव विकास सूचकांक मानव विकास के विविध आयामों के मापन के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा निर्धारित विभिन्न संकेतकों को मानव विकास सूचकांक कहा जाता है। इसका महत्त्व निम्नलिखित है

  1. यह देश के विकास के स्तर का संकेत देता है।
  2. इसके माध्यम से आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण घटकों यथा-जीवन प्रत्याशा, शिक्षा-प्राप्ति का स्तर एवं वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय की जानकारी मिलती है।
  3. यह विभिन्न देशों को संकेत देता है कि वे मानव विकास की दिशा में कितने अग्रसर हो चुके हैं एवं उन्हें कितना और आगे बढ़ना है।

प्रश्न 7.
आर्थिक विकास एवं मानव विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक विकास एवं मानव विकास में निम्नलिखित अन्तर हैं आर्थिक विकास एक साधन है।

आर्थिक विकास मानव विकास
1. आर्थिक विकास, विकास का एक संकीर्ण पक्ष है क्योंकि इसमें केवल वित्तीय पक्ष को ही लिया जाता है। 1. मानव विकास, विकास का व्यापक पक्ष है क्योंकि इसमें वित्तीय पक्ष के साथ-साथ गैर वित्तीय पक्षों को भी सम्मिलित किया जाता है।
2. इसके अन्तर्गत केवल मात्रात्मक विकास सम्मिलित होता है। 2. इसके अन्तर्गत मात्रात्मक विकास के साथ-साथ गुणात्मक पक्ष भी सम्मिलित होता है।
3. आर्थिक विकास, मानव विकास को प्राप्त करने का एक साधन है। 3. मानव विकास समस्त विकासों का अंतिम लक्ष्य है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास क्या है? विकास के विभिन्न लक्ष्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
आपकी दृष्टि में, विकास की धारणीयता के सन्दर्भ में हमारे लक्ष्य क्या होने चाहिए? समझाइए।
अथवा
आर्थिक विकास के कोई तीन लक्ष्य समझाइए।
उत्तर:
विकास-विकास एक प्रक्रिया है जिसमें प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ निर्धनता, असमानता, अशिक्षा एवं बीमारी में कमी भी हो अर्थात् लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार हो एवं उनका जीवन-स्तर उच्च हो। विकास के विभिन्न लक्ष्य विकास के विभिन्न लक्ष्य निम्नलिखित हैं

1. आय में वृद्धि करना:
यह विकास का सबसे प्रमुख लक्ष्य है। आय में वृद्धि के फलस्वरूप लोग पहले की तुलना में अधिक अच्छे तरीके से अपना जीवनयापन कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय आय एवं प्रतिव्यक्ति आय दोनों में वृद्धि के लक्ष्य को सम्मिलित किया जाता है। आय में वृद्धि से लोगों के जीवन-स्तर में सुधार होता है।

2. काम करने के अधिक दिन एवं बेहतर मजदूरी विकास का एक अन्य महत्त्वपूर्ण:
लक्ष्य यह है कि लोगों को काम करने के अधिक दिन उपलब्ध हों अर्थात् नियमित रूप से रोजगार की प्राप्ति हो। उन्हें नियमित रोजगार के साथ-साथ बेहतर मजदूरी भी प्राप्त हो ताकि वे अपना जीवनयापन अच्छे ढंग से कर सकें। लोगों को उनकी उपज का अधिक समर्थन मूल्य मिले।

3. शैक्षिक विकास विकास:
में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षित व्यक्ति अधिक कार्यकुशल एवं उत्पादक होता है। शिक्षा से व्यक्ति न केवल अपना विकास करता है वरन् राष्ट्र का भी विकास करता है। अतः विकास के अन्तर्गत देश में शैक्षिक सुविधाओं का विकास किया जाना भी एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है।

4. समानता का व्यवहार:
विकास के अन्तर्गत सभी लोगों के साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए। समानता के अन्तर्गत आर्थिक समानता के साथ-साथ सामाजिक व राजनैतिक समानता को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।

5. सुरक्षा:
किसी भी राष्ट्र का विकास इस प्रकार होना चाहिए कि उसमें निवास करने वाले समस्त समुदायों के लोग अपने आपको सुरक्षित समझें।

6. स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार:
विकास का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लक्ष्य यह है कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का पर्याप्त विकास एवं विस्तार किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार से देश में उत्पादन एवं आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

7. सार्वजनिक सुविधाओं का विस्तार:
किसी भी देश के विकास का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लक्ष्य यह होता हैं कि देश में सार्वजनिक सुविधाओं का पर्याप्त विस्तार होना चाहिए, जिससे कि लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाना सुनिश्चित हो सके।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

JAC Board Class 9th Social Science Solutions Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

JAC Class 9th Geography भारत का भौतिक स्वरूप  InText Questions and Answers 

‘ज्ञात कीजिए’ आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
महान हिमालय में पायी जाने वाली हिमानियों तथा दरों के नाम।
उत्तर:

  1. महान हिमालय में पायी जाने वाली हिमानियाँ: सियाचिन, मिलाम, गंगोत्री, जेमू, बाल्टोरो, बिआफो।
  2. महान हिमालय में पाये जाने वाले दर्रे”: बुर्जिल, जोजीला, शिपकी ला, बारालाचा ला. जेलेप ला, बोमडी ला, थागा ला, लोपूलेख ला।

प्रश्न 2.
भारत के उन राज्यों के नाम जहाँ ऊपर दिए गए ऊँचे शिखर स्थित हैं।
उत्तर:

पर्वत शिखर राज्य
कंचनजंघा सिक्किम
नंगा पर्वत जम्मू और कश्मीर
नन्दा देवी उत्तराखण्ड
कामेट उत्तराखण्ड
नामचा बरुआ अरुणाचल प्रदेश।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

प्रश्न 3.
एटलस से मसूरी, नैनीताल एवं रानीखेत की स्थिति देखें तथा उन राज्यों के नाम लिखें जहाँ वे स्थित
उत्तर:

स्थान राज्य
मसूरी उत्तराखण्ड
नैनीताल उत्तराखण्ड
रानीखेत उत्तराखण्ड

‘क्या आप जानते हैं’ से सम्बन्धित प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व का सबसे बड़ा नदीयद्वीप, जिस पर लोग निवास करते हैं, कौन-सा है?
उत्तर:
ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित माजोली नदीय द्वीप।

प्रश्न 2.
‘दोआब’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘दोआब’ का अर्थ है दो नदियों के बीच का भाग। यह दो शब्दों से मिलकर बना है-दो तथा आब अर्थात् पानी।

प्रश्न 3.
‘पंजाब’ किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
‘पंज’ तथा ‘आब’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है। इसमें पंज का अर्थ है पाँच तथा आब का अर्थ है पानी।

प्रश्न 4.
भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील कौन-सी है?
उत्तर:
चिल्का झील।

प्रश्न 5.
चिल्का झील कहाँ स्थित है?
उत्तर:
चिल्का झील उड़ीसा में महानदी डेल्टा के दक्षिण में स्थित है।

JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप

प्रश्न 6.
भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी कहाँ स्थित है?
उत्तर:
अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह के बैरेन द्वीप पर।

JAC Class 9th Geography भारत का भौतिक स्वरूप Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:
1. एक स्थलीय भाग जो तीन ओर से समुद्र से घिरा हो
(क) तट
(ख) प्रायद्वीप
(ग) द्वीप
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) प्रायद्वीप।

2. भारत के पूर्वी भाग में म्यांमार की सीमा का निर्धारण करने वाले पर्वतों का संयुक्त नाम
(क) हिमाचल
(ख) पूर्वांचल
(ग) उत्तराखण्ड
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) पूर्वांचल।

3. गोवा के दक्षिण में स्थित पश्चिम तटीय पट्टी
(क) कोरोमण्डल
(ख) कन्नड़
(ग) कोंकण
(घ) उत्तरी सरकार।
उत्तर:
(ग) कोंकण।

4. पूर्वी घाट का सर्वोच्च शिखर
(क) अनाईमुडी
(ख) महेन्द्रगिरि
(ग) कंचनजंघा
(घ) खासी।
उत्तर:
(ख) महेन्द्रगिरि।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए:
1. भाबर क्या है?
उत्तर:
नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक के ढाल पर 8 से 16 किमी. की चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती हैं। इसे भाबर के नाम से जाना जाता है।

2. हिमालय के तीन प्रमुख विभागों के नाम उत्तर से दक्षिण के क्रम में बताइए।
उत्तर:

  1. हिमाद्रि,
  2. हिमाचल,
  3. शिवालिक।

3. अरावली और विन्ध्याचल की पहाड़ियों में कौन-सा पठार स्थित है?
उत्तर:
मालवा का पठार।

4. भारत के उन द्वीपों के नाम बताइए जो प्रवाल भित्ति के हैं।
उत्तर:
लकादीव, मिनीकाय एवं एमीनदीव। इन्हें आजकल लक्षद्वीप द्वीप समूह के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए:
1. बांगर और खादर:

बांगर खादर
1. उत्तरी मैदान के पुराने जलोढ़ को बांगर कहते हैं। 1. बाढ़ के मैदानों के नवीन जलोढ़ को खादर कहते हैं।
2. ये नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं। यहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है। 2. इन क्षेत्रों में बाढ़ के समय नदी का पानी सम्पूर्ण क्षेत्र में फैल जाता है तथा नयी जलोढ़ की परत जम जाती है।
3. इनका प्रत्येक वर्ष पुर्नर्निर्माण नहीं होता है। 3. इनका प्रत्येक वर्ष पुनर्निर्माण होता है।
4. यह कम उपजाऊ होते हैं। 4. यह अधिक उपजाऊ होते हैं।

2. पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट पूर्वी घाट:

पूर्वी घाट पशिचमी घाट
1. दक्षिणी पठार के पूर्वी सिरे पर पूर्वी घाट स्थित है। 1. दक्षिणी पठार के पश्चिमी सिरे पर पश्चिमी घाट स्थित है।
2. ये शृंग पर्वतमाला है जो पूर्वी तट के समानान्तर फैली हुई है। 2. यह सतत् पर्वतमाला है जो पश्चिमी तट के समानान्तर स्थित है।
3. पूर्वी घाट कम ऊँचे हैं। इन घाटों की औसत ऊँचाई 600 मीटर है। 3. पश्चमी घाट अधिक ऊँचे हैं। इन घाटों की औसत ऊँचाई 900 से 1600 मीटर है।
4. पूर्वी घाट को बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों ने काट दिया है। 4. पश्चिमी घाट निरन्तरता लिए हुए हैं और इन्हें दर्रों से होकर ही पार किया जा सकता है।
5. महेन्द्रगिरि ( 1,500 मी.) पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है। 5. अनाईमुडी (2,695 मी.) पश्चिमी घाट का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है।

प्रश्न 4.
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग कौन-से हैं ? हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीपीय पठार के उच्चावच लक्षणों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग निम्नलिखित हैं

  1. हिमालय पर्वत श्रृंखला,
  2. उत्तरी मैदान,
  3. प्रायद्वीपीय पठार,
  4. भारतीय मरुस्थल,
  5. तटीय मैदान,
  6. द्वीप समूह।

हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीप पठार के उच्चावच लक्षणों में अन्तर निम्न प्रकार से हैंहिमालय क्षेत्र

हिमालय क्षेत्र प्रायद्वीपीय पठार
1. यह नवीन वलित पर्वतीय क्षेत्र है। 1. यह पठारी क्षेत्र अति प्राचीन भूखण्ड है।
2. हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की तीन वलित श्रेणियाँ हैं: हिमाद्रि, निम्न हिमालय, शिवालिक। 2. प्रायद्वीपीय पठार के दो भाग हैं: मध्यवर्ती भूमि, दक्कन (दक्षिण) का पठार।
3. हिमालय क्षेत्र में ऊँचे पर्वत शिखर एवं गहरी घाटियाँ हैं। 3. इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गोलाकार पहाड़ियाँ हैं।
4. हिमालय क्षेत्र में अधिक हिमनद एवं दरे पाये जाते हैं। 4. पठारी भूमि होने के कारण हिमनद नहीं पाये जाते हैं। केवल सीमित मात्रा में दर्रे पाये जाते हैं।
5. इस पर्वतीय क्षेत्र का निर्माण मुख्य रूप से अत्यधिक संपीडित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ है। 5. इस पठारी क्षेत्र का निर्माण पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय एवं रूपान्तरित शैलों से हुआ है।

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प्रश्न 5.
भारत के उत्तरी मैदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के उत्तरी मैदान का वर्णन निम्न प्रकार से है

  1. उत्तरी मैदान हिमालय पर्वतीय प्रदेश एवं प्रायद्वीपीय पठार के मध्य में स्थित है।
  2. इस मैदानी क्षेत्र का विस्तार 7 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में है। यह मैदान लगभग 2400 किमी. लम्बा एवं 240 से 320 किमी. चौड़ा है।
  3. यह मैदान उत्तर में हिमालय से आने वाली नदियों द्वारा लाये गये महीन जलोढ़कों द्वारा निर्मित है।
  4. उच्चावच में बहुत कम विषमताओं वाला यह लगभग समतल भू-भाग है।
  5. यह मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों से निर्मित हुआ है।
  6. इस मैदानी क्षेत्र की उपजाऊ मृदा, पर्याप्त जलापूर्ति एवं अनुकूल जलवायु इसे कृषि के लिए आदर्श बनाती है।
  7. आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:
    • भाबर,
    • तराई,
    • भांगर (बांगर),
    • खादर।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
1. मध्य हिमालय,
2. मध्य उच्च भूमि,
3. भारत के द्वीप समूह।
उत्तर:
(i) मध्य हिमालय:

  1. मध्य हिमालय पर्वत श्रृंखला हिमालय पर्वत की सर्वोच्च श्रेणी हिमाद्रि के दक्षिण में समानान्तर रूप में फैली हुई है। इसे हिमाचल या निम्न हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
  2. इसकी औसत ऊँचाई 3700 से 4500 मीटर है तथा औसत चौड़ाई लगभग 50 किलोमीटर है।
  3. यह हिमालय की मध्यवर्ती श्रेणी है।
  4. इसका सर्वाधिक भाग असम राज्य में है।
  5. इसमें पीरपंजाल श्रृंखला सबसे लम्बी एवं सबसे महत्वपूर्ण श्रृंखला है। धौलाधर एवं महाभारत श्रृंखलाएँ भी महत्वपूर्ण हैं।
  6. इसी पर्वत श्रृंखला में कश्मीर की घाटी एवं हिमाचल के कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित हैं।
  7. धर्मशाला, शिमला, मसूरी, नैनीताल एवं दार्जिलिंग यहाँ के प्रमुख स्वास्थ्यवर्द्धक पर्वतीय स्थल हैं।

(ii) मध्य उच्च भूमि:

  1. नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो मालवा के पठार के अधिकांश भागों पर फैला है, मध्य उच्च भूमि के नाम से जाना जाता है।
  2. इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ-चम्बल, सिंध, बेतवा एवं केन दक्षिण-पश्चिम से उत्तर पूर्व की तरफ बहती हैं।
  3. मध्यवर्ती उच्च भूमि पश्चिम में चौड़ी एवं पूर्व में सँकरी है।
  4. इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप में बुन्देलखंड एवं बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
  5. सोन नदी के पूर्व में छोटा नागपुर का पठार स्थित है। यह पठारी भाग लावा के निक्षेपों की परतों से बना है।

(iii) भारत के द्वीप समूह भारत के द्वीप समूह को दो वर्गों में बाँटा जाता है लक्षद्वीप द्वीप समूह:

  1. केरल के मालाबार तट के समीप स्थित छोटे-छोटे द्वीपों के समूह को लक्षद्वीप कहते हैं।
  2. द्वीपों का यह समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से मिलकर बना है।
  3. इन द्वीपों को पहले लकादीव, मीनीकाय एवं एमीनदीव के नाम से जाना जाता था।
  4. यह द्वीप समूह 32 किमी. के छोटे से क्षेत्र में फैला हुआ है।
  5. कावारत्ती द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है।
  6. इस द्वीप समूह पर वनस्पति एवं जन्तुओं के अनेक प्रकार पाये जाते हैं।
  7. पिटली द्वीप पर मनुष्यों का निवास नहीं है। यहाँ एक पक्षी अभयारण्य स्थित है।

(iv) अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह:

  1. ये द्वीप बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की ओर फैले हुए हैं।
  2. ये द्वीप समूह आकार में बड़े, संख्या में बहुल एवं बिखरे हुए हैं।
  3. इन द्वीप समूहों को मुख्यत: दो भागों में बाँटा गया है-उत्तर में अण्डमान तथा दक्षिण में निकोबार।
  4. यह माना जाता है कि यह द्वीप समूह निमज्जित पर्वत श्रेणियों के ऊपर उठे हुए भाग हैं।
  5. यह द्वीप समूह देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस द्वीप समूह का मुख्यालय पोर्ट ब्लेयर में है।
  6. इन द्वीप समूह में पाये जाने वाले पादप और जन्तुओं में बहुत अधिक विविधता पायी जाती है।
  7. ये द्वीप विषुवत् वृत्त के समीप स्थित हैं।
  8. इन द्वीपों की जलवायु विषुवतीय है।
  9. ये द्वीप घने वनों से आच्छादित हैं।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए:
1. पर्वत शिखर-के-2, कंचनजंघा, नंगा पर्वत, अनाईमुडी।
2. पठार-शिलांग, छोटा नागपुर, मालवा तथा बुन्देलखंड।
3. थार मरुस्थल, पश्चिमी घाट, लक्षद्वीप समूह, गंगा-यमुना दोआब तथा कोरोमण्डल तट।
उत्तर:
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप 2

क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
दी गई वर्ग पहेली में कुछ शिखरों, दरों, श्रेणियों, पठारों, पहाड़ियों एवं घाटियों के नाम छपे हैं। उन्हें ढूंढ़िए। ज्ञात कीजिए कि ये आकृतियाँ कहाँ स्थित हैं? आप अपनी खोज क्षैतिज, ऊर्ध्वाधर या विकर्णीय दिशा में कर सकते नोट-पहेली के उत्तर अंग्रेजी के शब्दों में हैं।
JAC Class 9 Social Science Solutions Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप 1
उत्तर:

  1. शिखर-कंचनजंघा (हिमालय पर्वत), एवरेस्ट (हिमालय पर्वत), अनाईमुडी (पश्चिमी घाट)
  2. दरे-नाथू-ला (हिमालय पर्वत), शिपकी-ला (हिमालय पर्वत), बोमडी-ला (हिमालय पर्वत)
  3. पर्वत श्रेणियाँ-मैकाल, सह्याद्रि, विन्ध्यन (प्रायद्वीपीय पठार)
  4. पठार–छोटा नागपुर, मालवा (प्रायद्वीपीय पठार)
  5. पहाड़ियाँ-जयंतिया (पूर्वांचल), कैमूर (प्रायद्वीपीय पठार), गारो (पूर्वांचल), नीलगिरी (प्रायद्वीपीय पठार)
  6. घाटियाँ-भोरघाट, पालघाट (पश्चिमी घाट)।

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