JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. कौरव और पांडव किस वंश से सम्बन्धित थे –
(अ) पांचाल
(ब) हर्यंक
(स) लिच्छवि
(द) कुरु
उत्तर:
(द) कुरु

2. वर्तमान महाभारत में श्लोक हैं –
(अ) दस हजार से अधिक
(ब) एक लाख से अधिक
(स) दो लाख से अधिक
(द) पचास हजार से अधिक
उत्तर:
(ब) एक लाख से अधिक

3. ‘धर्म सूत्र’ और ‘धर्मशास्त्र’ विवाह के कितने प्रकारों को अपनी स्वीकृति देते हैं-
(अ) चार
(स) आठ
(ब) दो
(द) सात
उत्तर:
(स) आठ

4. पितृवंशिकता में पिता का महत्त्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया था –
(अ) कन्या को शिक्षा दिलाना
(ब) कन्यादान
(द) पुत्र का विवाह
(स) पुत्र की देखभाल
उत्तर:
(ब) कन्यादान

5. किस उपनिषद् में कई लोगों को उनके मातृनामों से निर्दिष्ट किया गया था?
(अ) बृहदारण्यक
(स) कठ
(ख) प्रश्न
(द) छान्दोग्य
उत्तर:
(अ) बृहदारण्यक

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6. किन शासकों को उनके मातृनाम से चिह्नित किया जाता था?
(अ) कुषाण
(स) मौर्य
(ब) शुंग
(द) सातवाहन
उत्तर:
(द) सातवाहन

7. किस सातवाहन शासक ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण एवं क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला बताया था?
(अ) शातकर्णी प्रथम
(ब) गौतमीपुत्र शातकर्णी
(स) वसिष्ठीपुत्र शातकर्णी
(द) पुलुमावि शातकर्णी
उत्तर:
(ब) गौतमीपुत्र शातकर्णी

8. एकलव्य किस वर्ग से जुड़ा हुआ था ?
(अ) कृषक
(ब) पशुपालक
(स) व्यवसायी वर्ग
(द) निषाद वर्ग
उत्तर:
(द) निषाद वर्ग

9. महाभारत की मूल भाषा है-
(अ) प्राकृत
(ब) पालि
(स) तमिल
(द) संस्कृत
उत्तर:
(द) संस्कृत

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10. प्रसिद्ध इतिहासकार वी.एस. सुकथांकर एक प्रसिद्ध विद्वान् थे-
(अ) संस्कृत के
(ब) मराठी के
(स) हिन्दी के
(द) अंग्रेजी के
उत्तर:
(अ) संस्कृत के

11. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण से सम्बन्धित एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना किस वर्ष आरम्भ हुई?
(अ) 1905 ई. में
(ब) 1911 ई. में
(द) 1942 ई. में
(स) 1919 ई. में
उत्तर:
(स) 1919 ई. में

12. महाभारत एक है-
(अ) खण्डकाव्य
(स) उपन्यास
(ब) महाकाव्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) महाकाव्य

13. धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य था –
(अ) वेदों की शिक्षा देना
(ब) व्यापार करना
(स) न्याय करना
(द) सेवा करना
उत्तर:
(अ) वेदों की शिक्षा देना

14. महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का कार्य किसके नेतृत्व में प्रारम्भ किया गया था?
(अ) रोमिला थापर
(ब) वी.एस. सुकथांकर
(स) उमा चक्रवर्ती
(द) आर.एस. शर्मा
उत्तर:
(ब) वी.एस. सुकथांकर

15. महाभारत के रचयिता किसे माना जाता है?
(अ) विशाखदत्त
(ब) बाणभट्ट
(स) कालिदास
(द) वेदव्यास
उत्तर:
(द) वेदव्यास

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

1. कुंती ओ निषादी नामक लघु कथा की रचना…….ने की है।
2. …………… महाभारत का उपदेशात्मक अंश है।
3. संस्कृत ग्रन्थों में, …………. शब्द का प्रयोग परिवार के लिए और ………….. का बाँधयों के बड़े समूह के लिए होता है।
4. छठी शताब्दी ई.पू. से राजवंश …………… प्रणाली का अनुसरण करते थे।
5. जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है वहाँ ………… शब्द का इस्तेमाल होता है।
6. गोत्र से बाहर विवाह करने को …………… कहते है।
7. ……………. में चाण्डालों के कर्त्तव्यों की सूची मिलती है।
8. मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के …………… तरीके हैं।
उत्तर:
1. महाश्वेता देवी
2. भगवद्गीता
3. कुल, जाति
4. पितृवंशिकता
5. मातृवंशिकता
6. बहिर्विवाह
7. मनुस्मृति
8. सात

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस राजवंश के राजाओं को उनके मातृ नाम से चिन्हित किया जाता था?
उत्तर:
सातवाहन राजवंश।

प्रश्न 2.
किस राजवंश में राजाओं के नाम से पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था।
उत्तर:
सातवाहन राजवंश।

प्रश्न 3.
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का कार्य कब व किसके नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
(1) 1919 ई. में
(2) बी. एस. सुकथांकर के नेतृत्व में

प्रश्न 4.
बहिर्विवाह पद्धति किसे कहते हैं? यह अन्तर्विवाह पद्धति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं। परन्तु अन्तर्विवाह समूह ( गोत्र, कुल, जाति) के बीच होते हैं।

प्रश्न 5.
किस राज्य में राजाओं के नाम के पूर्व माताओं का नाम लिखा जाता था ?
उत्तर:
सातवाहन राज्य में करना।

प्रश्न 6.
धर्मशास्त्रों के अनुसार क्षत्रियों के किन्हीं दो आदर्श कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • युद्ध करना
  • लोगों को सुरक्षा प्रदान

प्रश्न 7.
‘कुल’ और ‘जात’ में क्या भिन्नता है?
उत्तर:
कुल परिवार को तथा जात बांधवों के बड़े समूह को कहते हैं।

प्रश्न 8.
महाश्वेता देवी ने किस लघु कथा की रचना
उत्तर:
कुंती ओ निषादी।

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प्रश्न 9.
पितृवेशिकता का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वह वंश परम्परा जो पिता के पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र से चलती है।

प्रश्न 10.
कुल और जाति में क्या अन्तर है?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों में कुल शब्द का प्रयोग परिवार के लिए तथा जाति का प्रयोग बांधवों के बड़े समूह के लिए होता है।

प्रश्न 11.
‘अन्तर्विवाह’ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अन्तर्विवाह समूह (गोत्र, कुल या जाति) के बीच होते हैं।

प्रश्न 12.
वंश से क्या आशय है?
उत्तर:
पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज सम्मिलित रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं।

प्रश्न 13.
महाभारत का युद्ध किन दो दलों के मध्य और क्यों हुआ था?
उत्तर:
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य सत्ता पर नियन्त्रण स्थापित करने हेतु हुआ था।

प्रश्न 14.
ब्राह्मणों के अनुसार वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है। इसे सिद्ध करने के लिए वे किस मन्त्र को ‘उद्धृत करते थे?
उत्तर:
ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र को।

प्रश्न 15.
चाण्डाल कौन थे?
उत्तर:
चाण्डाल शवों की अन्त्येष्टि करते थे, मृत-पशुओं को उठाते थे।

प्रश्न 16.
‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डाल के दो कर्तव्य बताइये।
उत्तर:

  • गाँव के बाहर रहना
  • मरे हुए लोगों के वस्त्र पहनना।

प्रश्न 17.
महाभारत किस भाषा में रचित है?
उत्तर:
संस्कृत भाषा में।

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प्रश्न 18.
कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध किस वंश से था?
उत्तर:
कौरवों और पाण्डवों का सम्बन्ध कुरुवंश से

प्रश्न 19.
इतिहास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इतिहास का अर्थ है ऐसा ही था।

प्रश्न 20.
चार वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख किस वैदिक ग्रन्थ में मिलता है?
उत्तर:
ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ में।

प्रश्न 21.
गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या की शिक्षा देने से क्यों इनकार कर दिया था?
उत्तर:
क्योंकि एकलव्य निषाद (शिकारी समुदाय)

प्रश्न 22.
आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को किस श्रेणी में रखा गया है?
उत्तर:
इतिहास की श्रेणी में

प्रश्न 23.
किस सातवाहन शासक ने अपने को ‘अनूठा ब्राह्मण’ तथा क्षत्रियों के दर्प का हनन करने वाला बतलाया था?
उत्तर:
गौतमीपुत्र शातकर्णी।

प्रश्न 24.
दो राजवंशों के नाम लिखिए जिनके राजा ब्राह्मण थे।
उत्तर:
शुंग और कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे।

प्रश्न 25.
भीम ने किस राक्षस कन्या से विवाह किया
उत्तर:
हिडिम्बा से

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प्रश्न 26.
धर्मसूत्र व धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थ किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
धर्मसूत्र व धर्मशास्य नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है।

प्रश्न 27.
अधिकतर राजवंश पितृवेशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे या मातृवंशिकता प्रणाली का ?
उत्तर:
पितृवंशिकता प्रणाली का।

प्रश्न 28.
धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के सिंहासन पर क्यों आसीन नहीं हुए?
उत्तर:
क्योंकि यह नेत्रहीन थे।

प्रश्न 29.
महाभारत के अनुसार किस माता ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह दी थी?
उत्तर:
गान्धारी ने।

प्रश्न 30.
सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम किन गोत्रों से उद्भूत थे?
उत्तर:
गौतम तथा वशिष्ठ गोत्रों से।

प्रश्न 31.
हस्तिनापुर नामक गाँव में उत्खनन कार्य किसके नेतृत्व में किया गया और कब?
उत्तर:
(1) बी.बी. लाल के नेतृत्व में
(2) 1951

प्रश्न 32.
‘सूत’ कौन थे?
उत्तर:
महाभारत की मूलकथा के रचयिता भाट सारथी ‘सूत’ कहलाते थे।

प्रश्न 33.
महाभारत की विषय-वस्तु को किन दो मुख्य भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक।

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प्रश्न 34.
किस क्षेत्र में दानशील व्यक्ति का सम्मान किया जाता था तथा कृपण व्यक्ति को घृणा का पात्र समझा जाता था?
उत्तर:
प्राचीन तमिलकम में।

प्रश्न 35.
उन दो चीनी यात्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने लिखा है कि चाण्डालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।
उत्तर:

  • फा-शिक्षन
  • श्वैन-त्सांग।

प्रश्न 36.
मनुस्मृति के अनुसार समाज का कौनसा वर्ग पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकता था?
उत्तर:
स्त्री वर्ग।

प्रश्न 37.
प्रारम्भ में महाभारत में कितने श्लोक थे?
उत्तर:
लगभग 10,000

प्रश्न 38.
वर्तमान में महाभारत में कितने श्लोक हैं ?
उत्तर:
लगभग एक लाख श्लोक।

प्रश्न 39.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति व्यवस्था किस पर आधारित थी?
उत्तर:
जन्म पर।

प्रश्न 40.
किस शक शासक ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ?
उत्तर:
रुद्रदामन

प्रश्न 41.
लोगों को गोशों में वर्गीकृत करने की ब्राह्मणीय पद्धति कब प्रचलन में आई ?
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से।

प्रश्न 42.
मनुस्मृति के आधार पर पुरुषों के लिए सम्पत्ति अर्जन के कोई चार तरीके बताइये।
उत्तर:

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजित करके।

प्रश्न 43.
महाभारतकालीन स्वियों की विभिन्न समस्याएँ लिखिए।
उत्तर:

  • पैतृक संसाधनों में स्थियों की हिस्सेदारी न होना
  • बहुपति प्रथा का प्रचलन
  • जुएँ में स्वियों को दाँव पर लगाना।

प्रश्न 44.
वर्ग शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर्ग शब्द एक विशिष्ट सामाजिक श्रेणी का प्रतीक है।

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प्रश्न 45.
बहुपत्नी प्रथा एवं बहुपति प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की परिपाटी है, बहुपति प्रथा एक स्वी होने की पद्धति है।

प्रश्न 46.
‘धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ ग्रन्थों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत जो आचार संहिताएं तैयार कीं, वे धर्मसूत्र’ एवं ‘धर्मशास्त्र’ कहलाते हैं।

प्रश्न 47.
मनुस्मृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मनुस्मृति प्राचीन भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि- ग्रन्थ है। यह धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 48.
धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में विवाह के कितने प्रकारों को स्वीकृति दी गई है? इनमें कौन से विवाह ‘उत्तम’ तथा कौनसे विवाह ‘निन्दित’ माने गए हैं?
उत्तर:

  • विवाह के आठ प्रकारों को स्वीकृति दी गई है।
  • पहले चार विवाह ‘उत्तम’ तथा शेष को ‘निन्दित’ माना गया है।

प्रश्न 49.
बहिर्विवाह पद्धति की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  • अपने गोत्र से बाहर विवाह करने को बहिर्विवाह कहते हैं।
  • इसमें ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम आयु की कन्याओं और स्वियों का जीवन सावधानी से नियन्त्रित किया जाता था।

प्रश्न 50.
गोत्रों का प्रचलन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे।

प्रश्न 51.
गोत्र प्रणाली के दो नियमों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
गोत्रों के दो महत्त्वपूर्ण नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • विवाह के पश्चात् स्वियों को पति के गोत्र का माना जाता था।
  • एक ही गोत्र के सदस्यों में विवाह वर्जित था।

प्रश्न 52.
‘वर्ण’ और ‘जाति’ के कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर:

  • वर्ण मात्र चार थे, परन्तु जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
  • वर्ण व्यवस्था में अन्तर्विवाह आवश्यक नहीं है, परन्तु जाति व्यवस्था में अन्तर्विवाह अनिवार्य होता है।

प्रश्न 53.
सातवाहन शासकों का देश के किन भागों पर शासन था ?
उत्तर:
सातवाहन शासकों का पश्चिमी भारत तथा दक्यान के कुछ भागों पर शासन था।

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प्रश्न 54.
सातवाहनों में अन्तर्विवाह पद्धति प्रचलित थी। इसका उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ सातवाहन रानियाँ एक ही गोत्र से थीं। यह उदाहरण सातवाहनों में अन्तर्विवाह पद्धति को दर्शाता है।

प्रश्न 55.
कुछ रानियों ने सातवाहन राजाओं से विवाह करने के बाद भी अपने पिता के गोत्र नाम को ही कायम रखा था। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से उद्भूत थे, जो उनके पिता के गोत्र थे।

प्रश्न 56.
सातवाहन काल में माताएँ क्यों महत्त्वपूर्ण थीं?
उत्तर:
सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम ( माता के नाम से उद्भूत) से चिह्नित किया जाता था।

प्रश्न 57.
ब्राह्मणीय सामाजिक व्यवस्था में पहला दर्जा तथा सबसे निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
इस सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों को पहला दर्जा तथा शूद्रों को सबसे निम्न दर्जा प्राप्त था।

प्रश्न 58.
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त’ के अनुसार चार वर्णों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर:
ब्राह्मण की उत्पत्ति परमात्मा के मुख से क्षत्रिय की भुजाओं से वैश्य की जंघा से शूद्र की पैरों से हुई।

प्रश्न 59.
‘स्त्री धन’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे ‘स्वी धन’ कहा जाता था।

प्रश्न 60.
मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिए धन अर्जित करने के कौनसे तरीके हैं?
उत्तर:

  • विरासत
  • खोज
  • खरीद
  • विजित करके
  • निवेश
  • कार्य द्वारा तथा
  • सज्जनों द्वारा दी गई भेंट को स्वीकार करके।

प्रश्न 61.
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार के कौनसे आधार थे?
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार के दो आधार थे –

  • लिंग का आधार
  • वर्ण का आधार।

प्रश्न 62.
महाकाव्य काल में सबसे धनी व्यक्ति किन वर्णों के लोग होते थे?
उत्तर:
महाकाव्य काल में ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे धनी व्यक्ति होते थे।

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प्रश्न 63.
तमिलकम के सरदारों की दानशीलता का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
तमिलकम के सरदार अपनी प्रशंसा गाने वाले चारणों एवं कवियों के आश्रयदाता थे। वे उन्हें उदारतापूर्वक दान दिया करते थे।

प्रश्न 64.
महाभारत को व्यापक स्तर पर लोगों द्वारा क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
क्योंकि महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।

प्रश्न 65.
महाभारत की विषयवस्तु को किन दो मुख्य शीर्षकों में रखा जाता है?
उत्तर:

  • आख्यान – इसमें कहानियों का संग्रह है।
  • उपदेशात्मक – इसमें सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है।

प्रश्न 66.
‘भगवद्गीता’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘भगवद्गीता’ महाभारत का सबसे महत्त्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है। इसमें कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं।

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प्रश्न 67.
सातवाहन शासकों की शासनावधि क्या थी?
उत्तर:
सातवाहन शासकों ने लगभग दूसरी शताब्दी ई. पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसवी तक शासन किया।

प्रश्न 68.
मनुस्मृति का संकलन (रचना) कब किया गया?
उत्तर:
मनुस्मृति का संकलन (रचना) लगभग 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी के बीच हुआ।

प्रश्न 69.
पितृवंशिकता के आदर्श को किसने सुदृढ़ किया?
उत्तर:
महाभारत ने पितृवंशिकता के आदर्श को सुदृद किया।

प्रश्न 70.
अधिकांश राजवंश किस प्रणाली का अनुसरण करते थे?
उत्तर:
अधिकांश राजवंश पितृवशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे।

प्रश्न 71.
सातवाहन काल में माताएँ क्यों महत्वपूर्ण थीं?
उत्तर:
सातवाहन काल में राजाओं को उनके मातृनाम से जाना जाता था।

प्रश्न 72.
‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख किन ग्रन्थों में मिलता है?
उत्तर:
धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में चारों वर्णों के लिए ‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 73.
ब्राह्मणों द्वारा ‘आदर्श जीविका’ से सम्बन्धित नियमों का पालन करवाने के लिए अपनाई गई दो नीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति को एक दैवीय व्यवस्था बतलाया।
  • वे शासकों को इन नियमों का अनुसरण करने का उपदेश देते थे।

प्रश्न 74.
अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य को कौनसा प्रण याद दिलाया ?
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने अर्जुन को वचन दिया था कि वह उनके सभी शिष्यों में अद्वितीय तीरन्दाज बनेगा।

प्रश्न 75.
किस तथ्य से यह ज्ञात होता है कि शक्तिशाली मलेच्छ राजा भी संस्कृतीय परिपाटी से परिचित थे?
उत्तर:
प्रसिद्ध शक राजा रुद्रदामन ने सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।

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प्रश्न 76.
ब्राह्मणों द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था में पहला दर्जा एवं सबसे निम्न दर्जा किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
पहला दर्जा ब्राह्मणों को तथा निम्न दर्जा शूद्रों को प्राप्त था।

प्रश्न 77.
किस अभिलेख में रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है? यह अभिलेख कब का है ?
उत्तर:

  • मन्दसौर (मध्यप्रदेश) से प्राप्त अभिलेख में।
  • यह अभिलेख लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसवी का है।

प्रश्न 78.
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत किन नये समुदायों का जाति में वर्गीकरण कर दिया गया ?
उत्तर:
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत निषाद (शिकारी समुदाय) तथा सुवर्णकार जैसे व्यावसायिक वर्ग का जातियों में वर्गीकरण कर दिया गया।

प्रश्न 79.
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों के लिए धन अर्जित करने के कोई दो तरीके बताइए।
उत्तर:

  • स्नेह के प्रतीक के रूप में।
  • माता-पिता द्वारा दिए गए उपहार के रूप में।

प्रश्न 80.
महाकाव्य काल में सबसे धनी व्यक्ति किस वर्ग के लोग होते थे?
उत्तर:
ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग के लोग सबसे धनी होते थे।

प्रश्न 81.
महाभारत में दुर्योधन के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर:
धृतराष्ट्र तथा गान्धारी।

प्रश्न 82.
मज्झिमनिकाय किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
मज्झिमनिकाय पालि भाषा में लिखा गया बौद्ध ग्रन्थ है।

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प्रश्न 83.
बौद्ध भिक्षु फा शिएन चीन से भारत कब आया था?
उत्तर:
लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसवी

प्रश्न 84.
चीनी तीर्थयात्री श्वेन त्सांग भारत कब आया
उत्तर:
लगभग सातवीं शताब्दी ईसवी।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
600 ई. पूर्व से 600 ई. तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के समकालीन समाज पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
600 ई. पूर्व से 600 ई. तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के समकालीन समाज पर निम्नलिखित प्रभाव हुए-

  • वन क्षेत्रों में कृषि का विस्तार हुआ, जिससे वहाँ रहने वाले लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन हुआ।
  • शिल्प-विशेषज्ञों के एक विशिष्ट सामाजिक समूह का उदय हुआ।
  • सम्पत्ति के असंगत वितरण से सामाजिक विषमताओं में वृद्धि हुई।

प्रश्न 2.
आरम्भिक समाज में प्रचलित आचार- व्यवहार और रिवाजों का इतिहास लिखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
(1) प्रत्येक ग्रन्थ किसी समुदाय विशेष के दृष्टिकोण से लिखा जाता था अतः यह याद रखना आवश्यक. था कि ये ग्रन्थ किसने लिखे इन ग्रन्थों में क्या लिखा गया, किनके लिए इन ग्रन्थों की रचना हुई।
(2) यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इन ग्रन्थों की रचना में किस भाषा का प्रयोग हुआ तथा इनका प्रचार- प्रसार किस प्रकार हुआ। इन ग्रन्थों का सावधानीपूर्वक प्रयोग करने से आचार व्यवहार और रिवाजों का इतिहास लिखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
परिवार के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या सभी परिवार एक जैसे होते हैं?
उत्तर:
संस्कृत ग्रन्थों में ‘कुल’ शब्द का प्रयोग परिवार के लिए होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज इकट्ठे रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं परन्तु सभी परिवार एक जैसे नहीं होते। पारिवारिक जनों की गिनती, एक-दूसरे से उनका रिश्ता और उनके क्रियाकलापों में भी भिन्नता होती है। कई बार एक ही परिवार के लोग भोजन और अन्य संसाधनों का आपस में
करते हैं। एक साथ रहते और काम मिल बाँट कर प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
परिवार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होता है जिन्हें हम सम्बन्धी कहते हैं। तकनीकी भाषा में हम सम्बन्धियों को जातिसमूह कह सकते हैं। पारिवारिक रिश्ते ‘नैसर्गिक’ और ‘रक्त सम्बद्ध’ माने जाते हैं। कुछ समाजों में भाई-बहिन (चचेरे मौसेरे से रक्त का रिश्ता माना जाता है परन्तु अन्य समाज ऐसा नहीं मानते।

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प्रश्न 5.
नये नगरों के उद्भव से आई सामाजिक जटिलता की चुनौती का किस प्रकार समाधान किया हैं?
उत्तर:
नये नगरों में रहने वाले लोग एक-दूसरे से विचार-विमर्श करने लगे और आरम्भिक विश्वासों तथा व्यवहारों पर प्रश्न चिह्न लगाने लगे। इस चुनौती के उत्तर में ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचारसंहिताएं तैयार कीं। ब्राह्मणों तथा अन्य लोगों को इनका अनुसरण करना पड़ता था। लगभग 500 ई. पूर्व से इन मानदण्डों का संकलन धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में किया गया। इनमें मनुस्मृति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।

प्रश्न 6.
धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के ब्राह्मण लेखकों का मानना था कि उनका दृष्टिकोण सार्वभौमिक है और उनके बनाए नियमों का सब लोगों के द्वारा पालन होना चाहिए। क्या यह सम्भव था?
उत्तर:
यह सम्भव नहीं था क्योंकि उपमहाद्वीप में फैली क्षेत्रीय विभिन्नता तथा संचार की बाधाओं के कारण से ब्राह्मणों का प्रभाव सार्वभौमिक नहीं हो सकता था। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों ने विवाह की आठ प्रणालियों को स्वीकृति दी है। इनमें से पहले चार विवाह उत्तम तथा शेष विवाह निंदित माने गए। सम्भव है कि ये विवाह प्रणालियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं, जो ब्राह्मणीय नियमों को अस्वीकार करते थे।

प्रश्न 7.
पितृवंशिकता के आदर्श को स्पष्ट कीजिए। महाभारत ने इस आदर्श को कैसे सुदृढ़ किया?
उत्तर:
पितृवशकता का अर्थ है वह वंश परम्परा जो फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है। महाभारत पिता के पुत्र, में बान्धवों के दो दलों – कौरवों तथा पांडवों के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए युद्ध का वर्णन है, जिसमें पांडव विजयी हुए। इसके बाद पितृवंशिक उत्तराधिकार की उद्घोषणा की गई। महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने पितृवंशिकता के आदर्श को और सुदृढ़ किया।

प्रश्न 8.
पितृवंशिकता प्रणाली में पाई जाने वाली विभिन्नता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व से अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे, परन्तु इस प्रथा में निम्नलिखित भिन्नताएँ थीं-

  • कभी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था।
  • कभी-कभी बन्धु बान्धव सिंहासन पर अपना अधिकार जमा लेते थे।
  • कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्विर्ण जैसे प्रभावती गुप्त सिंहासन पर अधिकार कर लेती थीं।

प्रश्न 9.
ब्राह्मणीय पद्धति में लोगों को गोत्रों में किस प्रकार वर्गीकृत किया गया? क्या इन नियमों का सामान्यतः अनुसरण होता था?
उत्तर:
लगभग 1000 ई. पूर्व के बाद से प्रचलन में आई एक ब्राह्मणीय पद्धति ने लोगों को विशेष रूप से ब्राह्मणों को गोत्रों में वर्गीकृत किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य ऋषि के वंशज माने जाते थे। गोत्रों के दो नियम महत्त्वपूर्ण थे –

  • विवाह के पश्चात् स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र का माना जाता था तथा
  • एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते थे।

प्रश्न 10.
क्या ब्राह्मणीय पद्धति के गोत्र सम्बन्धी नियमों का सम्पूर्ण भारत में पालन किया जाता था?
उत्तर:
इन नियमों का सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में पालन नहीं होता था कुछ सातवाहन राजाओं की एक से अधिक पलियाँ थीं। सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वसिष्ठ गोत्रों से लिए गए थे जो उनके पिता के गोत्र थे। इससे ज्ञात होता है कि विवाह के बाद भी अपने पति कुल के गोत्र को ग्रहण करने की अपेक्षा, उन्होंने पिता का गोत्र नाम ही बनाए रखा। यह ब्राह्मणीय व्यवस्था के विपरीत था। कुछ सातवाहन रानियाँ एक ही गोत्र से थीं यह बात बहिर्विवाह पद्धति के विरुद्ध थी।

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प्रश्न 11.
अन्तर्विवाह, बहिर्विवाह, बहुपत्नी प्रथा तथा बहुपति प्रथा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्विवाह अन्तर्विवाह में वैवाहिक सम्बन्ध समूह के बीच ही होते हैं यह समूह एक गोत्र कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है।
  • बहिर्विवाह अहिर्विवाह गोत्र से बाहर विवाह करने को कहते हैं।
  • बहुपत्नी प्रथा बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी है।
  • बहुपति प्रथा बहुपति प्रथा एक स्त्री के अनेक पति होने की पद्धति है।

प्रश्न 12.
विभिन्न वर्णों के लिए धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में वर्णित आदर्श जीविका लिखिए। क्या वह जीविका आज भी विद्यमान है?
अथवा
सूत्रों तथा धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए ‘आदर्श जीविका’ से जुड़े कई नियम मिलते हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  • ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना और करवाना, दान देना तथा दान लेना था।
  • क्षत्रियों का कार्य युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना, वेदों का अध्ययन करना, यज्ञ करवाना तथा दान-दक्षिणा देना था।
  • वैश्यों का कार्य कृषि, गोपालन तथा व्यापार का कार्य करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना तथा दान-दक्षिणा देना था।
  • शूद्रों का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। यह जीविका आज विद्यमान नहीं है।

प्रश्न 13.
ब्राह्मणों ने धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में वर्णित आदर्श जीविका सम्बन्धी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
ब्राह्मणों ने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाई –

  • ब्राह्मणों ने लोगों को बताया कि वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है।
  • वे शासकों को यह उपदेश देते थे कि वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में पालन करें।
  • उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि उनको प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है।

प्रश्न 14.
महाभारत में गान्धारी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को पाण्डवों के विरुद्ध युद्ध न करने की क्या सलाह दी थी? क्या दुर्योधन ने अपनी माता की सलाह मानी थी?
उत्तर:
गान्धारी ने दुर्योधन को युद्ध न करने की सलाह देते हुए कहा कि युद्ध में कुछ भी शुभ नहीं होता, न धर्म और अर्थ की प्राप्ति होती है और न ही प्रसन्नता की यह भी आवश्यक नहीं कि युद्ध के अन्त में तुम्हें सफलता मिले। अतः मैं तुम्हें सलाह देती हूँ कि तुम बुद्ध करने का विचार त्याग दो। परन्तु दुर्योधन ने अपनी माता गान्धारी की सलाह नहीं मानी।

प्रश्न 15.
ब्राह्मणों द्वारा वर्ण व्यवस्था को दैवीय व्यवस्था क्यों बताया गया ?
उत्तर:
ब्राह्मणों की मान्यता थी कि वर्ण-व्यवस्था में उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है। अतः समाज में अपनी सर्वोच्च स्थिति को बनाये रखने के लिए उन्होंने वर्ण व्यवस्था को एक दैवीय व्यवस्था बताया। इसे प्रमाणित करने के लिए वे ऋग्वेद के ‘पुरुषसूक्त’ मन्त्र को उद्धृत करते हैं। पुरुषसूक्त के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से क्षत्रिय भुजाओं से वैश्य जंघाओं से तथा शूद्र चरणों से उत्पन्न हुए।

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प्रश्न 16.
क्या सभी राजवंशों की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से ही हुई थी?
उत्तर:
शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे परन्तु अनेक महत्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थ मौर्य सम्राटों को क्षत्रिय बताते हैं, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र उन्हें ‘निम्न’ कुल का मानते हैं मौचों के उत्तराधिकारी शुंग और कण्व ब्राह्मण थे सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमीपुत्र ‘शातकर्णी ने स्वयं को अनूठा ब्राह्मण और क्षत्रियों के दर्प को कुचलने वाला बताया है।

प्रश्न 17.
“जाति प्रथा के भीतर आत्मसात् होना एक जटिल सामाजिक प्रक्रिया थी।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सातवाहन वंश के शासक स्वयं को ब्राह्मण वर्ग का बताते थे, जबकि ब्राह्मणीय शास्त्र के अनुसार राजा को क्षत्रिय होना चाहिए। यद्यपि सातवाहन चतुर्वर्णी व्यवस्था की मर्यादा को बनाए रखना चाहते थे, परन्तु साथ ही वे उन लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित करते थे जो इस वर्ण व्यवस्था से ही बाहर थे। इस प्रकार वे अन्तर्विवाह प्रणाली का पालन करते थे, न कि बहिर्विवाह प्रणाली का जो ब्राह्मणीय ग्रन्थों में प्रस्तावित है।

प्रश्न 18.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में जाति पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
ब्राह्मणीय सिद्धान्त में वर्ण की भाँति जाति भी जन्म पर आधारित थी। परन्तु वर्ण जहाँ केवल चार थे, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी। वास्तव में जिन नये समुदायों का जैसे निषादों, स्वर्णकारों आदि को चार वर्णों वाली ब्राह्मणीय व्यवस्था में शामिल करना सम्भव नहीं था, उनका जाति में वर्गीकरण कर दिया गया। कुछ जातियाँ एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से सम्बन्धित थीं। उन्हें कभी-कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था।

प्रश्न 19.
मन्दसौर के अभिलेख से जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की जानकारी मिलती है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मन्दसौर के अभिलेख से ज्ञात होता है कि रेशम के बुनकरों की एक अलग श्रेणी थी। इस अभिलेख से तत्कालीन जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं पर प्रकाश पड़ता है। इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि श्रेणी के सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और कई चीजों में भी सहभागी होते थे। सामूहिक रूप से उन्होंने अपने शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य मन्दिर के निर्माण में खर्च किया।

प्रश्न 20.
मनुस्मृति में उल्लिखित विवाह के आठ प्रकारों में से किन्हीं चार प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुस्मृति में उल्लिखित विवाह के चार प्रकार –

  • इसमें पिता द्वारा कन्या का दान वेदज्ञ वर को दिया जाता था।
  • इसके अन्तर्गत पिता वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता था।
  • इसके अन्तर्गत वर कन्या के बान्धवों को यथेष्ट धन प्रदान करता था।
  • इस पद्धति में लड़का तथा लड़की काम से उत्पन्न हुई अपनी इच्छा से प्रेम विवाह कर लेते थे।

प्रश्न 21.
ब्राह्मणीय व्यवस्था में चार वर्णों के अतिरिक्त अन्य समुदायों की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रन्थों ने जिस ब्राह्मणीय व्यवस्था को स्थापित किया था उसका सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में पालन नहीं किया जाता था। उस महाद्वीप में पाई जाने वाली विविधताओं के कारण यहाँ सदा से ऐसे समुदाय रहे हैं जिन पर ब्राह्मणीय व्यवस्था का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। निषाद वर्ग इसी का उदाहरण हैं। ब्राह्मणीय व्यवस्था में यायावर पशुपालकों के समुदाय को भी सन्देह की दृष्टि से देखा जाता था क्योंकि उन्हें स्थायी कृषकों के समुदाय में आसानी से समाहित नहीं किया जा सकता था।

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प्रश्न 22.
ब्राह्मणीय व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ किन आधारों पर माना जाता था?
उत्तर:
ब्राह्मण समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ मानते थे। उनके अनुसार अनुष्ठानों के सम्पादन से जुड़े कुछ कार्य पवित्र थे। अपने को पवित्र मानने वाले लोग ‘अस्पृश्यों’ से भोजन स्वीकार नहीं करते थे कुछ कार्य ऐसे भी थे जिन्हें ‘दूषित’ माना जाता था जैसे शवों की अन्त्येष्टि करने का कार्य शवों की अन्त्येष्टि तथा मृत पशुओं को छूने वाले रा लोगों को चाण्डाल कहा जाता था। उच्च वर्ण के लोग इन  चाण्डालों का स्पर्श अथवा देखना भी अपवित्रकारी मानते इन् थे।

प्रश्न 23.
चाण्डालों के कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मनुस्मृति में चाण्डालों के कर्तव्यों का उल्लेख मिलता है। चाण्डालों को गाँव से बाहर रहना पड़ता था। वे के फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे। मृतक लोगों के अस्व तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में वे गाँवों और नगरों में ना भ्रमण नहीं कर सकते थे। उन्हें कुछ मृतकों की अन्त्येष्टि क करनी पड़ती थी तथा वधिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था। फाहियान के अनुसार उन्हें सड़कों पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी, जिससे अन्य लोग उनके दर्शन न कर सकें।

प्रश्न 24.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘मनुस्मृति’ के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए, परन्तु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था स्विय इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्वीधन’ अर्थात् ‘स्वी का धन’ कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थीं और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था।

प्रश्न 25.
‘मनुस्मृति’ के अनुसार पुरुषों और स्त्रियों के धन अर्जित करने के तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:’
‘मनुस्मृति’ के अनुसार पुरुष सात तरीकों से धन अर्जित कर सकते हैं –

  1. विरासत
  2. खोज
  3. खरीद
  4. विजय प्राप्त करके
  5. निवेश
  6. कार्य द्वारा तथा
  7. सज्जनों द्वारा दी

गई भेंट को स्वीकार करके स्त्रियाँ 6 तरीकों से धन अर्जित कर सकती हैं –

  1. वैवाहिक अग्नि के सामने मिली भेंट
  2. वधू गमन के साथ मिली भेंट
  3. स्नेह के प्रतीक के रूप में मिली भेंट
  4. भ्राता, माता तथा पिता द्वारा दिए गए उपहार
  5. परवर्ती काल में मिली भेंट
  6. पति से प्राप्त भेंट।

प्रश्न 26.
“ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार का एक आधार वर्ण भी था।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रन्थों के अनुसार सम्पत्ति पर अधिकार का एक आधार वर्ण भी था शूद्रों के लिए एकमात्र ‘जीविका’ तीनों उच्चवर्णों की सेवा थी परन्तु इसमें उनकी इच्छा शामिल नहीं थी। दूसरी ओर तीनों उच्चवणों के पुरुषों के लिए विभिन्न जीविकाओं की सम्भावनाएँ रहती थीं। यदि इन नियमों को वास्तव में कार्यान्वित किया जाता, तो ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे अधिक धनी व्यक्ति होते यह बात कुछ अंशों तक सामाजिक व्यवस्था से मेल खाती थी।

प्रश्न 27.
बौद्धों द्वारा ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण- व्यवस्था की आलोचनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुछ परम्पराओं में इस वर्ण व्यवस्था की आलोचना की जा रही थी। लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में बौद्ध ग्रन्थों में ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था की आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई। यद्यपि बौद्धों ने इस बात को स्वीकार किया कि समाज में विषमता विद्यमान थी, परन्तु यह भेद प्राकृतिक और स्थायी नहीं थे। उन्होंने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को मानने से इनकार कर दिया। इस प्रकार बौद्ध लोग जन्म पर आधारित वर्णीय व्यवस्था को स्वीकृति प्रदान नहीं करते।

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प्रश्न 28.
“प्राचीन तमिलकम में दानशील व्यक्ति का सम्मान किया जाता था। कृपण व्यक्ति घृणा का पात्र होता था।’ विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन तमिलकम में दानशील व्यक्ति का समाज में सम्मान किया जाता था तथा कृपण व्यक्ति घृणा का पात्र होता था। इस क्षेत्र में 2000 वर्ष पहले अनेक सरदारियाँ थीं ये सरदार अपनी प्रशंसा में गाने वाले चारणों और कवियों के आश्रयदाता होते थे। तमिल भाषा के संगम साहित्य से पता चलता है कि यद्यपि धनी और निर्धन के बीच विषमताएँ थीं, फिर भी धनी लोगों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपनी धन-सम्पत्ति का मिल बांट कर उपयोग करेंगे।

प्रश्न 29.
समाज में फैली हुई सामाजिक विषमताओं के संदर्भ में बौद्धों द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘सुत्तपिटक’ नामक बौद्ध ग्रन्थ में एक मिथक का वर्णन है जो यह बताता है कि प्रारम्भ में सभी जीव शान्तिपूर्वक रहते थे और प्रकृति से उतना ही ग्रहण करते थे, जितनी एक समय के भोजन की आवश्यकता होती थी। परन्तु कालान्तर में लोग अधिकाधिक लालची और प्रतिहिंसक हो गए। इस स्थिति में उन्होंने समाज का नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति को सौंपने का निर्णय लिया जो जिसकी प्रताड़ना की जानी चाहिए उसे प्रताड़ित कर सके और जिसे निष्कासित किया जाना चाहिए, उसे निष्कासित कर सके।

प्रश्न 30.
साहित्यकार किसी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय किन पहलुओं पर विचार करते हैं?
अथवा
साहित्यिक स्रोतों का प्रयोग करते समय इतिहासकार को किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. ग्रन्थों की भाषा क्या है? क्या यह आम लोगों की भाषा थी जैसे पालि, प्राकृत, तमिल अथवा पुरोहितों और किसी विशिष्ट वर्ग की भाषा थी जैसे संस्कृत।
  2. क्या ये ग्रन्थ ‘मन्त्र’ थे जो अनुष्ठानकर्त्ताओं द्वारा पढ़े जाते थे अथवा ‘कथाग्रन्थ’ थे जिन्हें लोग पढ़ और सुन सकते थे?’
  3. ग्रन्थों के लेखकों के बारे में जानकारी प्राप्त करना जिनके दृष्टिकोण और विचारों के आधार पर ग्रन्थ लिखे गए थे।
  4. श्रोताओं की अभिरुचि का ध्यान रखना।

प्रश्न 31.
महाभारत की भाषा का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत की भाषा- यद्यपि महाभारत की रचना अनेक भाषाओं में की गई है, परन्तु इसकी मूल भाषा संस्कृत है। परन्तु महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है अतः यह सम्भव है कि महाभारत को व्यापक स्तर पर समझा जाता था।

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प्रश्न 32.
महाभारत की विषय-वस्तु का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
इतिहासकार महाभारत की विषय वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अन्तर्गत रखते हैं –
(1) आख्यान तथा
(2) उपदेशात्मक।

‘आख्यान’ में कहानियों का संग्रह है जबकि उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदण्डों का वर्णन है। परन्तु उपदेशात्मक अंशों में भी कहानियाँ होती हैं और प्रायः आख्यानों में समाज के लिए उपदेश निहित रहता है। वास्तव में महाभारत एक भाग में नाटकीय कथानक था जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े
गए।

प्रश्न 33.
भगवद्गीता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भगवद्गीता महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है, जहाँ कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। इस ग्रन्थ में 18 अध्याय हैं। भगवद्गीता में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का समन्वय स्थापित किया गया है। अन्त में श्रीकृष्ण का उपदेश सुनकर अर्जुन अपने बान्धवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। इस युद्ध में पाण्डवों की विजय हुई।

प्रश्न 34.
“महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ है।” ‘व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शताब्दियों से इस महाकाव्य के अनेक पाठान्तर अनेक भाषाओं में लिखे गए अनेक कहानियाँ जिनका उद्भव एक क्षेत्र विशेष में हुआ और जिनका विशेष लोगों में प्रसार हुआ, वे सब इस महाकाव्य में सम्मिलित कर ली गई। इस महाकाव्य के मुख्य कथानक की अनेक पुनर्व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई। महाभारत के विभिन्न प्रसंगों को मूर्तियों तथा चित्रों में भी दर्शाया गया। इस महाकाव्य ने नाटकों एवं नृत्य कलाओं के लिए भी विषय-वस्तु प्रदान की।

प्रश्न 35.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?
उत्तर:
पूर्व वैदिक समाज के विशिष्ट परिवारों के विषय में इतिहासकारों को सुगमता के साथ सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। इतिहासकार परिवार तथा बन्धुता सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण करते हैं, यहाँ उनका अध्ययन इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इससे वैदिककालीन लोगों की विचारधारा का ज्ञान प्राप्त होता है। यहाँ महाभारत की कथा महत्त्वपूर्ण है। जिसमें बान्धवों के दो दलों, कौरव तथा पाण्डवों के मध्य भूमि तथा सत्ता को लेकर संघर्ष होता है।

दोनों एक ही कुरु वंश से सम्बन्धित थे। इनमें भीषण बुद्ध के उपरान्त पाण्डव विजयी होते हैं। इसके उपरान्त पितृवंशिक उत्तराधिकारी को उद्घोषित किया गया। लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में अधिकांश राजवंश पितृवंशीय व्यवस्था का अनुगमन करते थे। यद्यपि इस प्रणाली में कभी-कभी भिन्नता भी देखने को मिलती है। पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता है। कभी बन्धु बान्धव सिंहासन पर अपना बलात् अधिकार जमा लेते थे।

प्रश्न 36.
ब्राह्मणों द्वारा लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत करने की पद्धति कैसे प्रारम्भ हुई, इसे किस प्रकार लागू किया गया, क्या सातवाहन राजा इसके अपवाद हैं?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा लोगों को गोत्रों में वर्गीकृत करने की पद्धति लगभग 1000 ई. पू. के पश्चात् प्रारम्भ हुई। ब्राह्मणों ने लोगों का वर्गीकरण वैदिक ऋषियों के नाम पर आधारित गोत्रों के आधार पर करना प्रारम्भ कर दिया। एक ही गोत्र से सम्बन्धित सभी लोगों को उस ऋषि का वंशज समझा जाता था। गोत्र के सम्बन्ध में दो मुख्य नियम प्रचलित थे –

  • स्वियों को विवाह के पश्चात् अपने पिता का गोत्र त्यागकर अपने पति का गोत्र अपनाना पड़ता था।
  • सगोत्रीय, अर्थात् एक ही गोत्र में विवाह वर्जित था, एक गोत्र के सभी सदस्य रक्त सम्बन्धी समझे जाते थे।

सातवाहन राजाओं की रानियाँ अपने नाम के आगे अपने पिता का गोत्र लिखती थी जैसे कि गौतम और वशिष्ठ कई बार रक्त सम्बन्धियों में भी विवाह हो जाते थे। दक्षिण भारत में कहीं कहीं यह प्रथा आज भी पाई जाती है।

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प्रश्न 37.
चारों वर्णों से परे वर्णहीन ब्राह्मणीय व्यवस्था से अलग समुदायों की स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप की विशालता तथा विविधता और सामाजिक जटिलताओं के कारण कुछ ऐसे समुदाय भी अस्तित्व में थे, जिनका ब्राह्मणों द्वारा निश्चित किये गये वर्णों में कोई स्थान नहीं था। ऐसे समुदाय के लोगों को वर्णहीन कहा जाता था। इन वर्णहीन समुदायों पर ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित सामाजिक नियमों का कोई प्रभाव नहीं था। संस्कृत साहित्य में जब ऐसे समुदायों का उल्लेख होता था तो इन्हें असभ्य, बेढंगे और पशु समान कहा जाता था। जंगलों में रहने वाली एक जाति निषाद की गणना इसी वर्ग में होती थी।

शिकार करना, कन्दमूल, फल – फूल एकत्र करना आदि वनों पर आधारित उत्पाद इनके जीवन निर्वाह के साधन थे। वह समाज से पूर्ण रूप से बहिष्कृत नहीं थे। समाज के अन्य वर्गों के साथ उनका संवाद होता था। उनके बीच- विचारों और मतों का आदान-प्रदान होता था महाभारत की कई कथाओं में इसका उल्लेख है।

प्रश्न 38.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीनकाल में स्त्री और पुरुषों के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में सम्पत्ति के स्वामित्व विशेषकर पैतृक सम्पत्ति के सन्दर्भ में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। मनुस्मृति के अनुसार पैतृक सम्पत्ति का माता- पिता की मृत्यु के पश्चात् सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए, लेकिन ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी होता है। स्त्रियाँ पैतृक सम्पत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकतीं। किन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्रीधन की संज्ञा दी जाती थी।

इस सम्पत्ति को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है। अधिकतर साक्ष्य भी इंगित करते हैं कि उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पहुंच रखती थीं फिर भी भूमि और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि स्वी और पुरुष के मध्य सामाजिक स्थिति की भिन्नता उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण ही व्यापक हुई।

प्रश्न 39.
12वीं से 17वीं शताब्दी ई.पू. के मिलने वाले घरों के बारे में डॉ. बी.बी. लाल के किन्हीं एक अवलोकन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1951-52 में पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल ने मेरठ जिले (उ.प्र.) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। सम्भवतः यह महाभारत में उल्लेखित पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर थी। बी. बी. लाल को यहाँ आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले थे जिनमें से दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है। दूसरे स्तर (लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई.पू.) पर मिलने वाले घरों के बारे में लाल कहते हैं: “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवास गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती किन्तु मिट्टी की बनी दीवारें और कच्ची मिट्टी की ईटें अवश्य मिलती हैं। सरकण्डे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर इशारा करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकण्डों की बनी थीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।”

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प्रश्न 40.
बी. बी. लाल को उत्खनन से महाभारत काल के किस पुरास्थल के साक्ष्य मिले हैं? ये साक्ष्य कितने स्तरों तक प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:

  1. पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल ने 1951-52 में उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया।
  2. गंगा नदी के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में इस पुरास्थल का होना जहाँ कुरू राज्य था, इस ओर इंगित करता है। यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर हो सकती थी जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।
  3. बी. बी. लाल को यहाँ की आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले हैं जिनमें दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  4. दूसरे स्तर पर मिलने वाले घरों के बारे में लाल कहते हैं कि जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से आवासीय गृह की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती है।
  5. तीसरे स्तर पर लगभग छठी से तीसरी शताब्दी ई.पू. के साक्ष्य मिले हैं। लाल के अनुसार तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटों के बने हुए थे।

प्रश्न 41.
मंदसौर के अभिलेख से पाँचवीं शताब्दी ई. के रेशम के बुनकरों की स्थिति के विषय में क्या पता चलता है?
उत्तर:
(1) लगभग पाँचवीं शताब्दी ई. का अभिलेख मध्य प्रदेश के मंदसौर क्षेत्र से प्राप्त हुआ है। इसमें रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है जो मूलत: लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे।

(2) बाद में वे मंदसौर चले गये थे, जिसे उस समय दशपुर के नाम से जाना जाता था। यह कठिन यात्रा उन्होंने अपने बच्चों और बाँधयों के साथ सम्पन्न की।

(3) इन बुनकरों ने वहाँ के राजा की महानता के बारे में सुना था अतः वे उसके राज्य में बसना चाहते थे।

(4) यह अभिलेख जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की झलक देता है ये श्रेणियों के स्वरूप के विषय में अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। हालांकि श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी। कुछ सदस्य अन्य जीविका भी अपना लेते थे।

(5) इस अभिलेख से यह भी पता चलता है कि सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और चीजों में भी सहभागी थे। सामूहिक रूप से उन्होंने शिल्पकर्म से अर्जित धन को सूर्य देवता के सम्मान में मन्दिर बनवाने पर खर्च किया।

प्रश्न 42.
मनुस्मृति के अनुसार चाण्डालों की क्या विशेषताएँ और कार्य थे? कुछ चीनी यात्रियों ने उनके बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार चाण्डालों को गाँव के बाहर रहना पड़ता था। वे फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में गाँव और नगरों में चल-फिर नहीं सकते थे। सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की उन्हें अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी तथा अधिक के रूप में भी कार्य करना होता था। चीन से आए बौद्ध भिक्षु फा शिएन का कहना है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ एक और चीनी तीर्थयात्री हवन-त्सांग के अनुसार अधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।

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प्रश्न 43.
1919 में संस्कृत विद्वान् वी.एस. शुकथांकर के नेतृत्व में किस महत्त्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान् वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का जिम्मा उठाया। आरम्भ में देश के विभिन्न भागों से विभिन्न लिपियों में लिखी गई महाभारत की संस्कृत पाण्डुलिपियों को एकत्रित किया गया। परियोजना पर काम करने वाले विद्वानों ने सभी पाण्डुलिपियों में पाए जाने वाले श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढूँढ़ा। अंततः उन्होंने उन श्लोकों का चयन किया जो लगभग सभी पाण्डुलिपियों में पाए गए थे और उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में फैले अनेक ग्रन्थ खण्डों में किया। इस परियोजना को पूरा करने में सैंतालीस वर्ष लगे।

प्रश्न 44.
महाभारत ग्रन्थ के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रक्रिया में कौनसी दो विशेष बातें उभर कर आई ?
उत्तर:
महाभारत ग्रन्थ के समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रक्रिया में निम्न दो बातें उभर कर आई –
(1) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता थी। यह इस बात से ही स्पष्ट होता है कि समूचे उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पाण्डुलिपियों में यह समानता देखने में आई।

(2) कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभर कर सामने आए। इन प्रभेदों का संकलन मुख्य पाठ की पादटिप्पणियों और परिशिष्टों के रूप में किया गया। 13,000 पृष्ठों में से आधे से भी अधिक इन प्रभेदों का ब्यौरा देते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण को तैयार करने की परियोजना का वर्णन कीजिए।
अथवा
बीसवीं शताब्दी में किये गए महाभारत के संकलन के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण –
(1) बी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में एक परियोजना का आरम्भ – 1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी.एस. सुकथांकर के नेतृत्व में एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना का आरम्भ हुआ। अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्कार तैयार करने का निश्चय किया।

(2) श्लोकों का चयन – परियोजना पर काम करने वाले विद्वानों ने उन श्लोकों का चयन किया जो लगभग सभी पांडुलिपियों में पाए गए थे। उन्होंने उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में फैले अनेक ग्रन्थ-खंडों में किया। इस परियोजना को पूरा करने में सैंतालीस वर्ष लगे।

(3) दो तथ्यों का उभर कर आना –
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में दो तथ्य विशेष रूप से उभर कर सामने आए –

(i) संस्कृत के कई पाठों के अनेक अंशों में समानता – पहला, संस्कृत के कई पाठों में अनेक अंशों में समानता थी। यह इस बात से ही स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में उत्तर में कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तक सभी पांडुलिपियों में यह समानता दिखाई दी।

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(ii) क्षेत्रीय प्रभेदों का उभरकर सामने आना- दूसरा तथ्य यह था कि कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेद भी उभरकर सामने आएं इन प्रभेदों का संकलन मुख्य पाठ की पाद टिप्पणियों और परिशिष्टों के रूप में किया गया।

(4) प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी इन सभी प्रक्रियाओं के बारे में हमारी जानकारी मुख्यतः उन ग्रन्थों पर आधारित है जो संस्कृत में ब्राह्मणों द्वारा उन्हीं के लिए लिखे गए। उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी में इतिहासकारों ने पहली बार सामाजिक इतिहास के मुद्दों का अध्ययन करते हुए इन ग्रन्थों को ऊपरी तौर पर समझा।

उनका विश्वास था कि इन ग्रन्थों में जो कुछ भी लिखा गया है, वास्तव में उसी प्रकार से उसे व्यवहार में लाया जाता होगा। कालान्तर में विद्वानों ने पालि, प्राकृत और तमिल ग्रन्थों के माध्यम से अन्य परम्पराओं का अध्ययन किया। इन अध्ययनों से वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदर्शमूलक संस्कृत ग्रन्थ सामान्यतः आधिकारिक माने जाते थे। परन्तु इन आदर्शों पर प्रश्न भी उठाए जाते थे और कभी-कभी इनकी अवहेलना भी की जाती थी।

प्रश्न 2.
मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचवीं तथा छठी विवाह पद्धति के उद्धरण को प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
विवाह पद्धतियों के उद्धरण प्राचीन भारत में विवाह की आठ प्रकार की पद्धतियाँ प्रचलित थीं। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों ने विवाह की आठ प्रकार की पद्धतियों को मान्यता प्रदान की है। मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचव तथा छठी विवाह पद्धति के उद्धरण प्रस्तुत हैं –
(1) विवाह की पहली पद्धति इस विवाह पद्धति के अन्तर्गत कन्या का दान बहुमूल्य वस्त्रों तथा अलंकारों से विभूषित कर उसे वेदश वर को दान दिया जाए जिसे पिता ने स्वयं आमन्त्रित किया हो।

(2) विवाह की चौथी पद्धति इस विवाह पद्धति के अन्तर्गत वर की विधिपूर्वक पूजा करके कन्या का दान किया जाता था पिता वर-वधू युगल को यह कह कर सम्बोधित करता है कि “तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो। गृहस्थ जीवन में दोनों मिलकर जीवनपर्यन्त धर्माचरण करो।” इसके बाद वह वर का सम्मान कर उसे
कन्या का दान करता था।

(3) विवाह की पाँचवीं पद्धति वर को वधू की प्राप्ति तब होती है, जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बांधों को और स्वयं वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है। मनु के अनुसार इस विवाह में बान्धवों (कन्या के पिता, चाचा आदि) को कन्या के लिए यथेष्ट धन देकर स्वेच्छा से कन्या स्वीकार की जाती है।

(4) विवाह की छठी पद्धति इस पद्धति में लड़का तथा लड़की काम से उत्पन्न हुई इच्छा से प्रेम विवाह कर लेते थे। इसे गान्धर्व विवाह भी कहा जाता है। मनु ने कन्या और वर के इच्छानुसार कामुकतावश संयुक्त होने को ‘गान्धर्व विवाह’ की संज्ञा दी है। यह प्रथा प्रेम विवाह या प्रणय विवाह का सूचक है जो हिन्दू समाज में अत्यन्त प्राचीन काल से विद्यमान है।

प्रश्न 3.
क्या प्राचीन काल के भारत में केवल क्षत्रीय शासक ही शासन कर सकते थे? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
प्राचीन भारत में क्षत्रियों एवं अक्षत्रियों द्वारा शासन करना धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय वर्ग के लोग ही शासन कर सकते थे। वैदिककाल के प्रायः सभी शासक क्षत्रिय वर्ग से सम्बन्धित थे परन्तु सभी शासक क्षत्रिय नहीं होते थे। प्राचीन काल में अनेक अक्षत्रिय राजाओं ने भी शासन किया।
(1) मौर्य वंश मौर्यों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद है। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थों में मौर्यों को क्षत्रिय बताया गया है, परन्तु ब्राह्मणीय शास्त्र मौर्यो को ‘निम्न’ कुल का मानते हैं।

(2) शुंग और कण्व वंश मौर्य वंश के बाद शुंग तथा कण्व वंश के राजाओं ने शासन किया। शुंग वंश तथा कण्व वंश के राजा ब्राह्मण थे। वास्तव में योग्य, शक्तिशाली तथा साधन-सम्पन्न व्यक्ति राजनीतिक सत्ता का उपयोग कर सकता था। राजत्व क्षत्रिय कुल में जन्म लेने पर शायद ही निर्भर करता था। दूसरे शब्दों में यह आवश्यक नहीं था कि केवल क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही गद्दी पर बैठ सकता था।

(3) शक वंश ब्राह्मण मध्य एशिया से आने वाले शकों को म्लेच्छ, बर्बर अथवा विदेशी मानते थे परन्तु कुछ शक राजा भी भारतीय रीति-रिवाज और परिपाटियों का अनुसरण करते थे। संस्कृत में लिखे हुए ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि लगभग दूसरी शताब्दी ईसवी में शक- शासक रुद्रदामन ने सुदर्शन झील की मरम्मत करवाई थी जिससे लोगों को बड़ी राहत मिली थी। इससे पता चलता है कि शक्तिशाली म्लेच्छ भी भारतीय राजाओं की भाँति प्रजावत्सल थे और संस्कृतीय परिपाटी से परिचित थे।

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(4) सातवाहन वंश अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार सातवाहन वंश के शासक ब्राह्मण थे। सातवाहन वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी ने स्वयं को ‘अनूठा ब्राह्मण’ एवं ‘क्षत्रियों के दर्प को चकनाचूर करने वाला’ बताया था। उनकी वर्ण व्यवस्था में पूर्ण आस्था थी। इसलिए उन्होंने चार वर्णों की व्यवस्था की मर्यादा को बनाये रखने का प्रयास किया।

प्रश्न 4.
ब्राह्मण किन लोगों को वर्णव्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे? क्या आप इस मत से सहमत हैं कि उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर सामाजिक विषमता को और तीव्र कर दिया?
उत्तर:
ब्राह्मणों द्वारा अस्पृश्य लोगों को वर्ण- व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानना
(1) समाज के कुछ वर्गों को अस्पृश्य घोषित करना – ब्राह्मण कुछ लोगों को वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते थे। उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर दिया और इस प्रकार सामाजिक विषमता को और अधिक तीव्र कर दिया।

(2) ‘अस्पृश्य’ घोषित करने के आधार ब्राह्मणों की यह मान्यता थी कि कुछ कर्म, विशेष रूप से अनुष्ठानों के सम्पादन से जुड़े हुए कर्म, पुनीत और पवित्र थे अतः अपने को पवित्र मानने वाले लोग अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे। इसके विपरीत कुछ कार्य ऐसे थे, जिन्हें विशेष रूप से ‘दूषित’ माना जाता था। शव की अन्त्येष्टि करने वालों और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा जाता था उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था। वे लोग, जो स्वयं को सामाजिक क्रम में सबसे ऊपर मानते थे, इन चाण्डालों का स्पर्श, यहाँ तक कि उन्हें देखना भी अपवित्रकारी मानते थे।

(3) चाण्डालों के कर्तव्य ‘मनुस्मृति’ के अनुसार चाण्डालों के निम्नलिखित कार्य थे –

  • चाण्डालों को गाँवों से बाहर रहना होता था।
  • वे फेंके हुए बर्तनों का प्रयोग करते थे तथा मृतक लोगों के वस्त्र और लोहे के आभूषण पहनते थे।
  • रात्रि में वे गाँव और नगरों में घूम नहीं सकते थे।
  • उन्हें सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की अन्त्येष्टि करनी पड़ती थी।
  • उन्हें जल्लाद के रूप में भी कार्य करना पड़ता

(4) चीनी यात्रियों द्वारा चाण्डालों का वर्णन करना पाँचवीं शताब्दी ई. में फा-शिएन ने लिखा है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते समय करताल बजाकर अपने चाण्डाल होने की सूचना देने पड़ती थी जिससे अन्य लोग उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ इसी प्रकार लगभग सातवीं शताब्दी ई. में आने वाले चीनी यात्री श्वैन-त्सांग ने लिखा है कि जल्लाद और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था। इस प्रकार समाज में अस्पृश्यों की स्थिति शोचनीय थी। उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे।

प्रश्न 5.
प्राचीनकाल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर का हारना- कौरवों और पाण्डवों के बीच लम्बे समय से चली आ रही प्रतिस्पर्द्धा के फलस्वरूप दुर्योधन ने युधिष्ठिर को द्यूत क्रीड़ा के लिए आमन्त्रित किया। युधिष्ठिर अपने प्रतिद्वन्द्वी द्वारा धोखा दिए जाने के कारण इस द्यूत क्रीड़ा में सोना, हाथी, रथ, दास, सेना, कोष, राज्य तथा अपनी प्रजा की सम्पत्ति, अनुजों और फिर स्वयं को भी दाँव पर लगा कर गंवा बैठा। इसके बाद उन्होंने पांडवों की सहपत्नी द्रौपदी को भी दाँव पर लगाया और उसे भी हार गए। इससे यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल मैं पुरुष लोग अपनी पत्नियों को निजी सम्पति मानते थे।

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(2) प्राचीन काल में सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार- मनुस्मृति के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। परन्तु इसमें ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था। स्त्रियाँ इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की मांग नहीं कर सकती थीं।

(3) स्त्रीधन यद्यपि पैतृक संसाधन में स्त्रियाँ हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं, परन्तु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्वियों का स्वामित्व माना जाता था। इसे ‘स्त्रीधन’ अर्थात् ‘स्वी का धन’ कहा जाता था। इस सम्पत्ति को उनकी सन्तान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थीं और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति’ स्त्रियों को पति की अनुमति के बिना पारिवारिक सम्पत्ति अथवा स्वयं अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को गुप्त रूप से एकत्रित करने से रोकती है।

(4) सामान्यतः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का नियन्त्रण होना- चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक कुल में हुआ था। वह एक धनाढ्य महिला थी। उसने दंगुन गाँव को एक ब्राह्मण आचार्य चनालस्वामी को दान किया था परन्तु अधिकांश साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यद्यपि उच्चवर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पैठ रखती थीं, फिर भी प्रायः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का ही नियन्त्रण था। दूसरे शब्दों में, स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक स्थिति की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियन्त्रण की भिन्नता के कारण से अधिक प्रबल हुई।

प्रश्न 6.
बी. बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर में किए गए उत्खनन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बी.बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर में उत्खनन कार्य महाभारत में अन्य प्रमुख महाकाव्यों की भाँति युद्धों, वनों राजमहलों और बस्तियों का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण है। 1951-52 ई. में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता बी. बी. लाल ने मेरठ जिले (उत्तरप्रदेश) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया। यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि यह गाँव महाभारत में वर्णित हस्तिनापुर ही था। फिर भी नामों की समानता केवल एक संयोग हो सकता है, परन्तु गंगा के ऊपरी दोआब वाले क्षेत्र में इस पुरास्थल का होना जहाँ कुरु राज्य भी था, इस ओर संकेत करता है कि शायद यह पुरास्थल कुरुओं की राजधानी हस्तिनापुर ही था, जिसका उल्लेख महाभारत में आता है।

(1) आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य-बी. बी. लाल को उत्खनन के दौरान यहाँ आबादी के पाँच स्तरों के साक्ष्य मिले थे जिनमें से दूसरा और तीसरा स्तर हमारे विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(2) दूसरे स्तर के साक्ष्य दूसरे स्तर (लगभग बारहवीं से सातवीं शताब्दी ई. पूर्व) पर मिलने वाले घरों के सम्बन्ध में बी.बी. लाल लिखते हैं कि “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ, वहाँ से आवास गृहों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती परन्तु मिट्टी की बनी दीवार और कच्ची मिट्टी की ईंटें अवश्य मिलती हैं। सरकंडे की छाप वाले मिट्टी के पलस्तर की खोज इस बात की ओर संकेत करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकंडों की बनी धीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।”

(3) तीसरे स्तर के साक्ष्य तीसरे स्तर (लगभग छठी से तीसरी शताब्दी ई. पूर्व) के घरों के बारे में बी.बी. लाल लिखते हैं कि “तृतीय काल के घर कच्ची और कुछ पक्की ईंटों के बने हुए थे। इनमें शोषकघट और ईंटों के नाले गंदे पानी के निकास के लिए प्रयुक्त किए जाते थे। वलय कूपों का प्रयोग, कुओं और मल की निकासी वाले गत दोनों ही रूपों में किया जाता था।

” महाभारत के आदिपर्वन में हस्तिनापुर के चित्रण से लाल द्वारा खोजे गए हस्तिनापुर के चित्रण से भिन्नता- महाभारत के आदिपर्वन में हस्तिनापुर का जो चित्रण किया गया है वह बी. बी. लाल के द्वारा खोजे गए हस्तिनापुर के चित्रण से बिल्कुल भिन्न है ऐसा प्रतीत होता है कि हस्तिनापुर नगर का यह चित्रण महाभारत के मुख्य कथानक में बाद में सम्भवतः ई. पूर्व छठी शताब्दी के बाद जोड़ा गया प्रतीत होता है, जब इस क्षेत्र में नगरों का विकास हुआ यह भी सम्भव है कि यह मात्र कवियों की कल्पना की उड़ान थी जिसकी पुष्टि किसी भी अन्य साक्ष्य से नहीं होती।

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प्रश्न 7.
“महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पांडवों के विवाह की है।” स्पष्ट कीजिए तथा द्रौपदी के विवाह के बारे में विभिन्न इतिहासकारों के मतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
द्रौपदी से पांडवों के विवाह की उपकथा का चुनौतीपूर्ण होना महाभारत की सबसे चुनौतीपूर्ण उपकथा द्रौपदी से पांडवों के विवाह की है। यह बहुपति विवाह का उदाहरण है जो महाभारत की कथा का अभिन्न अंग है। द्रौपदी से पांडवों के विवाह के बारे में विभिन्न इतिहासकारों ने निम्नलिखित मत प्रकट किए हैं –

(1) बहुपति विवाह की प्रथा का शासकों के विशिष्ट वर्ग में विद्यमान होना वर्तमान इतिहासकारों ने यह मत प्रकट किया है कि महाभारत के लेखक (लेखकों) द्वारा बहुपति विवाह सम्बन्ध का वर्णन इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि सम्भवतः यह प्रथा शासकों के विशिष्ट वर्ग में किसी काल में विद्यमान थी किन्तु साथ ही इस प्रकरण के विभिन्न स्पष्टीकरण इस बात को भी व्यक्त करते हैं कि समय के साथ बहुपति प्रथा उन ब्राह्मणों में अमान्य हो गई, जिन्होंने कई शताब्दियों के दौरान इस ग्रन्थ का पुनर्निर्माण किया।

(2) बहुपति प्रथा का हिमालय क्षेत्र में प्रचलित होना- कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यद्यपि ब्राह्मणों की दृष्टि में बहुपति प्रथा अमान्य और अवांछित थी, फिर भी यह प्रथा हिमालय क्षेत्र में प्रचलित थी और आज भी प्रचलित है। यह भी तर्क दिया जाता है कि युद्ध के समय स्त्रियों की कमी के कारण बहुपति प्रथा को अपनाया गया था। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि बहुपति प्रथा को संकट की स्थिति में अपनाया गया था।

(3) सृजनात्मक साहित्य की अपनी कथा सम्बन्धी आवश्यकताएँ होना आरम्भिक स्रोतों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि बहुपति प्रथा न तो एकमात्र विवाह पद्धति थी और न ही यह सबसे अधिक प्रचलित थी। फिर भी महाभारत के लेखक (लेखकों) ने इस प्रथा को ग्रन्थ के प्रमुख पात्रों के साथ अभिन्न रूप से जोड़ कर क्यों देखा ? इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि सृजनात्मक साहित्य की अपनी कथा सम्बन्धी आवश्यकताएँ होती हैं जो सदैव समाज में विद्यमान वास्तविकताओं को उजागर नहीं करतीं।

प्रश्न 8.
महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी द्वारा खोजे गए विकल्पों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए महाश्वेता देवी द्वारा खोजे गए विकल्प प्रसिद्ध बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने महाभारत की मुख्य कथावस्तु के लिए अन्य विकल्पों की खोज की है और उन प्रश्नों की ओर ध्यान खींचा है जिन पर संस्कृत पाठ चुप है।

(1) दुर्योधन द्वारा पांडवों को छल से ‘लाक्षागृह’ मैं जलाकर मार देना- संस्कृत पाठ में दुर्योधन द्वारा पांडवों को छल से लाक्षागृह में जलाकर मार देने का उल्लेख आता है किन्तु पहले से मिली चेतावनी के कारण पांडव उस गृह में सुरंग खोदकर भाग निकलते हैं उस समय कुंती एक भोज का आयोजन करती है जिसमें ब्राह्मण आमन्त्रित होते हैं। किन्तु एक निषादी भी अपने पाँच पुत्रों के साथ उसमें आती है। भोजन करके वे गहरी नींद में सो जाते हैं और पांडवों द्वारा लगाई गई आग में वे उसी लाक्षागृह में जल कर मर जाते हैं। जब उस निषादी और उसके पुत्रों के जले हुए शव मिलते हैं तो कि पांडवों की मृत्यु हो गई है।

(2) महाश्वेता देवी की लघु कथा ‘कुंती ओ निषादी’ महाश्वेता देवी ने अपनी लघुकथा, जिसका शीर्षक ‘कुंती ओ निषादी’ है, के कथानक का प्रारम्भ वहीं से किया है, जहाँ महाभारत के इस प्रसंग का अंत होता है। उन्होंने अपनी कहानी की रचना एक वन्य प्रदेश में की है जहाँ महाभारत के युद्ध के बाद कुंती रहने लगती है। कुंती अपने अतीत के बारे में विचार करती है। वह पृथ्वी से बातें करते हुए अपनी त्रुटियों को स्वीकार करती है। प्रतिदिन वह निषादों को देखती है, जो जंगल में लकड़ी, शहद, कंदमूल आदि इकट्ठा करने आते हैं। एक निषादी प्रायः कुंती को पृथ्वी से बातें करते हुए सुनती है।

(3) निषादी द्वारा कुंती से लाक्षागृह की घटना के बारे में प्रश्न करना एक दिन आग लगने के कारण जानवर जंगल छोड़कर भाग रहे थे। कुंती ने देखा कि नियादी उन्हें घूर घूर कर देख रही थी जब निषादी ने कुंती से पूछा कि क्या उन्हें लाक्षागृह की याद है तो कुंती झेंप गई। उन्हें याद था कि उन्होंने वृद्धा निषादी तथा उसके पाँच पुत्रों को इतनी शराब पिलाई थी कि वे सब बेसुध हो गए थे जबकि वह स्वयं अपने पुत्रों के साथ बचकर लाक्षागृह से निकल गई थी।

जब कुंती ने उससे पूछा कि क्या तुम वही निषादी हो? तो उसने उत्तर दिया कि मरी हुई निषादी उसकी सास थी। साथ ही उसने यह भी कहा कि अपने अतीत पर विचार करते समय तुम्हें एक बार भी उन छ निर्दोष लोगों की याद नहीं आई जिन्हें मौत के मुंह में जाना पड़ा था, क्योंकि तुम तो अपने और अपने पुत्रों के प्राण बचाना लोग यह अनुमान लगा लेते हैं। चाहती थीं। आग की लपटें निकट आने के कारण निषादी तो अपने प्राण बचाकर निकल गई, परन्तु कुंती जहाँ खड़ी थी, वहीं रह गई।

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प्रश्न 9.
महाभारतकालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) महाभारतकालीन सामाजिक स्थिति- महाभारत काल में वर्ण व्यवस्था सुदृढ़ हो चुकी थी। समाज चार प्रमुख वर्णों में विभाजित था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चारों वर्णों में ब्राह्मणों को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता था। इस युग में पुत्री की अपेक्षा पुत्र का अधिक महत्त्व था। इस युग में सजातीय विवाहों का अधिक प्रचलन था, परन्तु अन्तर्जातीय विवाहों का भी उल्लेख मिलता है बहुपति प्रथा भी प्रचलित थी। द्रौपदी का विवाह पाँच पांडवों से हुआ था। स्वयंवर प्रथा प्रचलित थी। कुल मिलाकर स्वियों की स्थिति सन्तोषजनक थी।

(2) आर्थिक स्थिति इस युग के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि था। गेहूं, जौ, चावल, चना दाल, तिल आदि की खेती की जाती थी। राज्य की ओर से सिंचाई की व्यवस्था की जाती थी। पशुपालन भी आजीविका का एक अन्य मुख्य साधन था। इस युग में अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। स्वर्णकार, लुहार, कुम्हार, बढ़ई, जुलाहे, रंगरेज, चर्मकार, रथकार आदि अनेक शिल्पकार थे। वस्त्र उद्योग काफी उन्नत अवस्था में था। इस युग में वाणिज्य तथा व्यापार भी उन्नत अवस्था में था ।

(3) धार्मिक स्थिति इस युग में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। इस युग में अवतारवाद की अवधारणा प्रचलित थी। विष्णु के अवतार के रूप में राम, श्रीकृष्ण आदि की उपासना की जाती थी यज्ञों का महत्त्व भी बना हुआ था। परन्तु पशुबलि धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी।

(4) राजनीतिक स्थिति राज का पद बड़ा प्रतिष्ठित माना जाता था उसे अग्नि, सूर्य, यम, कुबेर आदि विभिन्न रूपों में प्रतिष्ठित किया गया है। लोक कल्याण और धर्मानुसार शासन करना उसके प्रमुख कर्त्तव्य थे। राजा का पद वंशानुगत था परन्तु शारीरिक दोष होने पर बड़े पुत्र को उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित किया जा सकता था। नेत्रहीन होने के कारण धृतराष्ट्र को गद्दी से वंचित रहना पड़ा था। राजा को सहयोग और सलाह देने के लिए मन्त्रिपरिषद् का गठन किया गया था। राजा के अन्य पदाधिकारियों में युवराज, सेनापति, द्वारपाल, दुर्गपाल आदि प्रमुख थे। सेना के चार प्रमुख अंग थे –

  • पैदल
  • अश्वारोही
  • गजारोही
  • रथारोही

महाभारत में कुछ गणराज्यों का भी उल्लेख मिलता है। गणराज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अपना संघ बना रखा था।

प्रश्न 10.
ब्राह्मणों ने धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों की रचना क्यों की? इसमें चार वर्गों के लिए जीविका- सम्बन्धी कौनसे नियम निर्धारित किए गए थे?
उत्तर:
(i) धर्मसूत्र में वेद विद्या के सिद्धान्त का वर्णन किया गया है। इसमें उच्च विचारों और भावों का समावेश है। धर्मसूत्र में सामाजिक नियमों का वर्णन मिलता है। धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सबसे प्राचीन है। इसमें प्राचीन विचारों के हिन्दुओं के जीवन के सभी पहलुओं के विषय में लिखा गया है। वर्तमान में भारतीय न्याय व्यवस्था में हिन्दुओं से सम्बन्धी कानून मनुस्मृति पर काफी हद तक आधारित हैं।

(ii) धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। ब्राह्मणों का यह मानना था कि यह व्यवस्था जिसमें ब्राह्मणों को पहला स्थान प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है। शूद्रों और अस्पृश्यों को सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था।

(iii) धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में चारों वर्गों के लिए आदर्श ‘जीविका’ से जुड़े कई नियम मिलते हैं। ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यह करना और करवाना था तथा उनका काम दान देना और लेना था।

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(iv) क्षत्रियों का कर्म युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना और दान-दक्षिणा देना था। अन्तिम तीन कार्य वैश्यों के लिए भी थे साथ ही उनसे कृषि, गौ पालन और व्यापार का कर्म भी अपेक्षित था शूद्रों के लिए मात्र एक ही जीविका थी – तीनों ‘उच्च’ वर्णों की सेवा करना।

(v) इन नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने दो-तीन नीतियाँ अपनाई। पहली नीति में यह बताया गया हैं कि वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति देवीय व्यवस्था है। दूसरा, वे शासकों को यह उपदेश देते थे कि वे इस व्यवस्था के नियमों का अपने राज्यों में अनुसरण करें। तीसरे, उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है। किन्तु ऐसा करना आसान बात नहीं थी। अतः इन मानदण्डों को बहुधा महाभारत जैसे अनेक ग्रन्थों में वर्णित कहानियों के द्वारा बल प्रदान किया जाता था।

प्रश्न 11.
ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था में अस्पृश्य वर्ग की क्या स्थिति थी? मनुस्मृति में वर्णित चाण्डालों के कर्त्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर:

  1. वर्ण-व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली में ब्राह्मणों ने कुछ लोगों को अस्पृश्य घोषित किया था। ब्राह्मणों का मानना था कि कुछ कर्म, जिसमें विशेष रूप से ब्राह्मणों द्वारा सम्पन्न अनुष्ठान थे पुनीत और पवित्र होते थे। इन पवित्र कार्यों को करने वाले पवित्र लोग अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे।
  2. पवित्रता के इस पहलू के ठीक विपरीत कुछ कार्य ऐसे थे जिन्हें खासतौर से ‘दृषित’ माना जाता था। शवों की अन्त्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा जाता था। उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था।
  3. ब्राह्मण स्वयं को सामाजिक क्रम में सबसे ऊपर मानते थे, वे चाण्डालों का स्पर्श, यहाँ तक कि उन्हें देखना भी, अपवित्रकारी मानते थे।
  4. मनुस्मृति में चाण्डालों के ‘कर्तव्यों’ की सूची मिलती है। उन्हें गाँव के बाहर रहना होता था। वे फेंके हुए बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, मरे हुए लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनते थे। रात्रि में वे गाँव और नगरों में चल-फिर नहीं सकते थे।
  5. सम्बन्धियों से विहीन मृतकों की उन्हें अंत्येष्टि करनी पड़ती थी तथा वधिक के रूप में भी कार्य करना होता था।
  6. लगभग पांचवीं शताब्दी ईसवी में चीन से आए बौद्ध भिक्षु फा शिएन का कहना है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ।
  7. लगभग सातवीं शताब्दी ईस्वी में भारत आए चीनी तीर्थयात्री श्वैन-त्सांग का कहना है कि वधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।

प्रश्न 12.
ऋग्वैदिक काल में सामाजिक जीवन, पारिवारिक जीवन, विवाह, मनोरंजन के साधन आदि की क्या विशेषताएँ थीं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऋग्वैदिक काल में भारतीय आर्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नति की वे एक सभ्य और सुसंस्कृत जीवन पद्धति का विकास कर चुके थे और दूसरी ओर संसार की अन्य जातियाँ अपनी आदिम अवस्था में ही विद्यमान थीं।

इस काल की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं –

(1) सामाजिक जीवन ऋग्वैदिककालीन आर्यों का जीवन पूर्णत: विकसित था, किन्तु ये लोग बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। सम्पूर्ण समाज चार भागों में विभाजित था। ये वर्ण कहलाते थे। ब्राह्मण धर्म-दर्शन और विचारों के अधिष्ठाता थे विद्या का पठन-पाठन इनका मुख्य कार्य था क्षत्रिय लोगों पर समाज की रक्षा का भार था। वैश्य कृषि का कार्य करते थे तथा व्यापार व कला-कौशल में दक्षता प्राप्त करके समाज की समृद्धि की चिन्ता करते थे। शूद्रों का कार्य अन्य वर्णों की सेवा करना था। ये चारों वर्ण कर्मप्रधान थे एक ही परिवार में विभिन्न वर्गों के लोग रहते थे एक वर्ण से दूसरे में परिवर्तन सम्भव था। इन वर्णों में पारस्परिक विवाह सम्पन्न होते थे।

(2) पारिवारिक जीवन परिवार पितृप्रधान हुआ करते थे। इस काल में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। पिता परिवार का मुखिया होता था। वह परिवार के सदस्यों में कार्य विभाजन करता था। पत्नी का स्थान भी महत्वपूर्ण होता था।

(3) विवाह वैदिक सभ्यता में विवाह एक धार्मिक संस्कार था। साधारणतः एक पत्नी की प्रथा प्रचलित थी। हालांकि कुलीन परिवारों में बहुपत्नी व बहुपति प्रथा के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। निकट सम्बन्धियों में विवाह नहीं होते थे। कन्याओं को स्वयंवर विवाह की अनुमति थी। साधारण परिवार की कन्याएँ भी स्वयंवर द्वारा स्वयं पति चुनती थीं।

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(4) वेश-भूषा तथा प्रसाधन-महाकाव्यकालीन लोग साधारण पोशाक ही धारण करते थे शरीर के ऊपरी भाग पर पहनने वाले वस्त्र को ऊर्ध्ववस्व तथा शरीर के निचले भाग पर धारण किए वस्त्र को अधोवस्य कहते थे। आभूषण स्वी और पुरुष दोनों ही पहनते थे। आभूषण सोने और चाँदी के होते थे जिनमें नग व मोती जड़े होते थे।

(5) मनोरंजन के साधन महाकाव्यकाल में मनोरंजन के प्रमुख साधन शिकार, नृत्य, संगीत, मल्लयुद्ध और गदायुद्ध आदि थे। जुआ भी खेला जाता था।

प्रश्न 13.
जाति प्रथा का विकास कैसा हुआ? सामाजिक विषमताओं के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही भारत में किसी न किसी रूप में जाति प्रथा प्रचलित रही है। प्रारम्भ में वर्णों के आधार पर कुल चार जातियाँ थीं— ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

जाति प्रथा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं परन्तु निम्न दो मत तर्कसंगत हैं –
(1) धर्मसूत्रों और धर्म-ग्रन्थों के आधार पर ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार, जैसेकि पुरुषसूक्त में वर्णन है कि जाति जन्म पर आधारित है, यह एक दैवीय व्यवस्था है। ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।

(2) श्रम विभाजन के आधार पर आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि जाति प्रथा का आरम्भ श्रम- विभाजन के कारण हुआ। शक्तिशाली तथा सामर्थ्यवान लोगों को देश की रक्षा का भार सौंपा गया; अतः योद्धाओं की एक विशेष जाति क्षत्रिय की उत्पत्ति हुई। आनुष्ठानिक धार्मिक कार्य और वेदाध्ययन करने वाले लोगों को ब्राह्मण कहा गया। व्यापारिक कार्यों तथा कृषि और पशुपालन जैसे कार्यों को करने वालों को वैश्य का दर्जा दिया गया। जो लोग इन सब कार्यों को करने का सामर्थ्य नहीं रखते थे उन्हें तीनों जातियों की सेवा का कार्य दिया गया और वे शूद्र कहलाए।

जाति प्रथा का सामाजिक विषमताओं में योगदान- आरम्भिक चरणों में जाति प्रथा इतनी कठोर नहीं थी क्योंकि यह जातीय भेद व्यवसायों पर आधारित था परन्तु बाद में जन्म आधारित मान्यता मिल जाने पर जाति प्रथा कठोर होती चली गई और इसके द्वारा समाज में बहुत-सी विषमताएँ उत्पन्न हुई –

  1. समाज में छुआछूत की भावना फैली। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीनों वर्ण शूद्रों को स्वयं से हीन समझने लगे, यहाँ तक कि कुछ लोगों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर दिया गया।
  2. ब्राह्मण अपने-आपको तथा क्षत्रिय स्वयं को सभी जातियों से उच्च समझते थे, इस कारण समाज में विद्वेष की भावना सम्पन्न हुई।
  3. शिक्षा का अधिकार केवल ब्राह्मणों के पास ही था, सैनिक शिक्षा क्षत्रियों तक ही सीमित रही।
  4. विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड, सामाजिक कुरीतियाँ समाज में प्रचलित हो गयीं।
  5. लोगों की राष्ट्रीय भावना में कमी आई एवं लोग अपने जातिगत स्वार्थी को पूरा करने में लग गये। इन सब कारणों से समाज की एकजुटता में कमी आई जिसका लाभ विदेशी शासकों ने उठाया।

प्रश्न 14.
महाभारत काल में लैंगिक असमानता के आधार पर सम्पत्ति के अधिकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महाभारत काल में स्वी की स्थिति तथा लैंगिक असमानता के कारण स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त युक्त नहीं थे। सम्पत्ति के अधिकारों की क्रमबद्ध व्याख्या निम्न है –

(1) वस्तु की भाँति पत्नी को निजी सम्पत्ति मानना इसका उदाहरण द्यूतक्रीड़ा के प्रकरण में मिलता है पाण्डव अपनी सारी सम्पत्ति कौरवों के साथ घृत- क्रीड़ा में चौसर के खेल में हार गए। अन्त में पाण्डवों ने अपनी साझी पत्नी द्रौपदी को भी निजी सम्पत्ति मानकर दाँव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। स्त्री को सम्पत्ति मात्र समझने के कई उदाहरण धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में प्राप्त होते हैं।

(2) मनुस्मृति के अनुसार सम्पत्ति का बँटवारा- मनुस्मृति में सम्पत्ति के बँटवारे के सम्बन्ध में वर्णित है कि माता-पिता की सम्पत्ति में उनकी मृत्यु के पश्चात् पुत्रों का समान अधिकार होता है इसलिए पैतृक सम्पत्ति का सभी पुत्रों में समान बँटवारा करना चाहिए। माता-पिता की सम्पत्ति में पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं था।

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(3) स्त्री धन स्वियों हेतु धन की व्यवस्था स्वी धन के रूप में की गई थी। स्वी को विवाह के समय जो उपहार उसे परिवार और कुटुम्बजनों से प्राप्त होते थे; उन पर उनका अधिकार होता था उस पर पति का अधिकार भी नहीं होता था।

(4) सम्पत्ति अर्जन के पुरुषों के अधिकार – मनुस्मृति के अनुसार पुरुषों के लिये धन अर्जन के सात तरीके हैं; जैसे— विरासत, खोज, खरीद, विजित करके, निवेश, काम द्वारा तथा सज्जनों से प्राप्त भेंट

(5) उच्च वर्ग की महिलाओं की विशेष स्थिति- उच्च वर्ग की महिलाओं की स्थिति बेहतर थी। उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभुत्व रखती थीं। दक्षिण भारत में महिलाओं की स्थिति रस सम्बन्ध में और भी अच्छी थी। वाकाटक वंश की रानी चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त अत्यन्त प्रभावशाली महिला थी; उनके सम्पत्ति के अधिकारों के स्वामित्व का प्रमाण इस बात से मिलता है कि उन्होंने अपने अधिकार से एक ब्राह्मण को भूमिदान किया था।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाला प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ था –
(अ) अकबरनामा
(स) बादशाहनामा
(ब) आइन-ए-अकबरी
(द) बाबरनामा
उत्तर:
(ब) आइन-ए-अकबरी

2. बाबरनामा’ का रचयिता था –
(अ) हुमायूँ
(स) बाबर
(ब) अकबर
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(स) बाबर

3. पंजाब में शाह नहर की मरम्मत किसके शासनकाल में करवाई गई –
(अ) बाबर
(ब) हुमायूँ
(स) अकबर
(द) शाहजहाँ
उत्तर:
(द) शाहजहाँ

4. तम्बाकू का प्रसार सर्वप्रथम भारत के किस भाग में हुआ?
(अ) उत्तर भारत
(ब) दक्षिण भारत
(स) पूर्वी भारत
(द) पूर्वोत्तर भारत
उत्तर:
(ब) दक्षिण भारत

5. किस मुगल सम्राट ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था?
(अ) अकबर
(स) जहाँगीर
(ब) बाबर
(द) शाहजहाँ
उत्तर:
(स) जहाँगीर

6. कौनसी फसल नकदी फसल ( जिन्स-ए-कामिल) कहलाती थी –
(अ) कपास
(ब) गेहूँ
(स) जौ
(द) चना
उत्तर:
(अ) कपास

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7. अफ्रीका और स्पेन से किसकी फसल भारत पहुँची ?
(अ) गेहूँ
(ब) बाजरा
(स) मक्का
(द) चना
उत्तर:
(स) मक्का

8. सत्रहवीं शताब्दी में लिखी गई एक पुस्तक मारवाड़ में में किसकी चर्चा किसानों के रूप में की गई है?
(अ) वैश्यों
(ब) राजपूतों
(स) ब्राह्मणों
(द) योद्धाओं
उत्तर:
(ब) राजपूतों

9. गांव की पंचायत का मुखिया कहलाता था –
(अ) फौजदार
(ब) ग्राम-प्रधान
(स) चौकीदार
(द) मुकद्दम (मंडल)
उत्तर:
(द) मुकद्दम (मंडल)

10. खुदकाश्त तथा पाहिकारत कौन थे?
(अ) किसान
(ब) सैनिक
(स) जमींदार
(द) अधिकारी
उत्तर:
(अ) किसान

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11. मिरासदार कौन थे?
(अ) महाराष्ट्र प्रांत के धनी अथवा सम्पन्न कृषक
(ब) राजस्थान के धनी व्यापारी तथा कृषक
(स) राजस्थान में अधिकारियों का एक समूह
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) महाराष्ट्र प्रांत के धनी अथवा सम्पन्न कृषक

12. वह भूमि जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था, कहलाती थी –
(अ) परौती
(ब) चचर
(स) उत्तम
(द) पोलज
उत्तर:
(द) पोलज

13. मनसबदार कौन थे?
(अ) मुगल अधिकारी
(ब) मुगल जमींदार
(स) मुगल दरबारी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मुगल अधिकारी

14. इटली का यात्री जोवनी कारेरी कब भारत आया ?
(अ) 1560 ई.
(ब) 1690 ई.
(स) 1590 ई.
(द) 1670 ई.
उत्तर:
(ब) 1690 ई.

15. आइन-ए-अकबरी में कुल कितने भाग हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(द) पाँच

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1526 ई. में ……………. को पानीपत के युद्ध में हराकर बाबर पहला मुगल बादशाह बना।
2. मुगल काल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए रैयत या …………… शब्द का उपयोग करते थे।
3. सामूहिक ग्रामीण समुदाय के तीन घटक …………… और …………….. थे।
4. पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे ………………. या मण्डल कहते थे।
5. मुद्रा की फेरबदल करने वालों को …………….. कहा जाता था।
6. जोवान्नी कारेरी ………………. का मुसाफिर था जो लगभग ……………. ई. में भारत से होकर गुजरा था।
उत्तर:
1. इब्राहिम लोदी
2. मुजरियान
3. खेतिहर किसान, पंचायत, गाँव का मुखिया
4. मुकद्दम
5. सर्राफ
6. इटली, 1690

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जिन्स-ए-कामिल’ फसल के बारे में बताइये।
उत्तर:
‘जिन्स-ए-कामिल’ सर्वोत्तम फसलें थीं जैसे कपास और गन्ने की फसलें।

प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी किसके द्वारा लिखी गई ?
उत्तर:
अबुल फ़सल।

प्रश्न 3.
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में राज्य द्वारा जंगलों में घुसपैठ के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) सेना के लिए सभी प्राप्त करना
(2) शिकार अभियान द्वारा न्याय करना।

प्रश्न 4.
सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत भारत में कितने प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के किसानों की –
(1) खुद काश्त
(2) पाहि काश्त

प्रश्न 5.
अबुल फ़सल द्वारा रचित पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’।

प्रश्न 6.
मुगलकाल में गाँव की पंचायत के मुखिया को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।

प्रश्न 7.
मुगलकाल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए किन शब्दों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
(1) रैयत
(2) मुजरियान
(3) किसान
(4) आसामी

प्रश्न 8.
खुद काश्त किसान कौन थे?
उत्तर:
खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे, जिनमें उनकी जमीनें थीं।

प्रश्न 9.
लगभग सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि के निरन्तर विस्तार होने के तीन कारक लिखिए।
उत्तर:

  • जमीन की प्रचुरता
  • मजदूरों की उपलब्धता
  • किसानों की गतिशीलता.

प्रश्न 10.
इस काल में सबसे अधिक उगाई जाने वाली तीन प्रमुख फसलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) चावल
(2) गेहूँ
(3) ज्यार

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प्रश्न 11.
चावल, गेहूँ तथा ज्वार की फसलें सबसे अधिक उगाई जाने का क्या कारण था?
उत्तर:
इस काल में खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था।

प्रश्न 12.
मौसम के किन दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी?
उत्तर;
(1) खरीफ (पतझड़ में) तथा
(2) रबी (बसन्त में)।

प्रश्न 13.
16वीं – 17वीं शताब्दी के दौरान भारत में कितने प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे?
उत्तर:
85 प्रतिशत।

प्रश्न 14.
भारत में कपास का उत्पादन कहाँ होता था?
उत्तर:
मध्य भारत तथा दक्कनी पठार में।

प्रश्न 15.
दो नकदी फसलों के नाम बताइये।
उत्तर:
(1) तिलहन (जैसे-सरसों) तथा
(2) दलहन

प्रश्न 16.
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के विभिन्न भागों से भारत में पहुंचने वाली चार फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • मक्का
  • टमाटर
  • आलू
  • मिर्च

प्रश्न 17.
सामूहिक ग्रामीण समुदाय के तीन घटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) खेतिहर किसान
(2) पंचायत
(3) गाँव का मुखिया (मुकद्दम या मंडल)।

प्रश्न 18.
1600 से 1700 के बीच भारत की जनसंख्या में कितनी वृद्धि हुई?
उत्तर:
लगभग 5 करोड़ की।

प्रश्न 19.
ग्राम की पंचायत में कौन लोग होते थे?
उत्तर:
ग्राम के बुजुर्ग।

प्रश्न 20.
ग्राम की पंचायत का मुखिया कौन होता
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।

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प्रश्न 21.
पंचायत के मुखिया का प्रमुख कार्य क्या
उत्तर:
गांव की आमदनी एवं खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना

प्रश्न 22.
इस कार्य में मुकद्दम की कौन राजकीय कर्मचारी सहायता करता था ?
उत्तर:
पटवारी

प्रश्न 23.
पंचायतों के दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जुर्माना लगाना
(2) दोषी व्यक्ति को समुदाय से निष्कासित करना।

प्रश्न 24.
पंचायत के निर्णय के विरुद्ध किसान विरोध का कौनसा अधिक उम्र रास्ता अपनाते थे? उत्तर- गाँव छोड़कर भाग जाना।

प्रश्न 25
उन दो प्रान्तों के नाम लिखिए जहाँ महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी जिसे बेचने व गिरवी रखने के लिए वे स्वतंत्र थीं।
उत्तर:
(1) पंजाब
(2) बंगाल

प्रश्न 26.
जंगल के तीन उत्पादों का उल्लेख कीजिए, जिनकी बहुत माँग थी।
उत्तर:
(1) शहद
(2) मधुमोम
(3) लाख

प्रश्न 27.
‘मिल्कियत’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जमींदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन ‘मिल्कियत’ कहलाती थी।

प्रश्न 28.
जमींदारों की समृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
जमींदारों की समृद्धि का कारण था उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन।

प्रश्न 29.
जमींदारों की शक्ति के दो स्रोत बताइये।
उत्तर:
(1) जमींदारों द्वारा राज्य की ओर से कर वसूल करना
(2) सैनिक संसाधन।

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प्रश्न 30.
भू-राजस्व के प्रबन्ध के दो चरण कौन- कौन से थे?
उत्तर:
(1) कर निर्धारण
(2) वास्तविक वसूली।

प्रश्न 31.
अमील गुजार कौन था?
उत्तर:
अमील गुजार राजस्व वसूली करने वाला अधिकारी था।

प्रश्न 32.
अकबर ने भूमि का किन चार भागों में वर्गीकरण किया?
उत्तर:

  • पोलज
  • परौती
  • चचर
  • अंजर

प्रश्न 33.
मध्यकालीन भारत में कौन-कौनसी फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं?
उत्तर:
गेहूं, चावल, ज्वार इत्यादि।

प्रश्न 34.
भारत के किस भाग में सबसे पहले तम्बाकू की खेती की जाती थी?
उत्तर:
दक्षिण भारत में।

प्रश्न 35.
मुगलकाल में खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई क्या थी?
उत्तर:
गाँव

प्रश्न 36.
मुगल राज्य किसने को ‘जिन्स-ए-कामिल’ फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन क्यों देते थे?
उत्तर:
क्योंकि इन फसलों से राज्य को अधिक कर मिलता था।

प्रश्न 37.
चीनी के उत्पादन के लिए कौनसा प्रान्त प्रसिद्ध था?
उत्तर:
बंगाल।

प्रश्न 38.
19वीं शताब्दी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने गाँवों को किसकी संज्ञा दी थी?
उत्तर:
‘छोटे गणराज्य’।

प्रश्न 39.
आइन-ए-दहसाला किसने जारी किया?
उत्तर:
अकबरअकबर ने

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प्रश्न 40.
मुगल साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देख-रेख करने वाला कौनसा दफ्तर था?
उत्तर;
दीवान का दफ्तर।

प्रश्न 41.
अकबर के समय में वह जमीन क्या कहलाती थी, जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था?
उत्तर:
पोलज

प्रश्न 42.
अकबर के शासन काल में वह जमीन क्या कहलाती थी, जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी?
उत्तर:
परौती।

प्रश्न 43.
आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार भू-राजस्व वसूल करने के लिए कौनसी प्रणालियाँ अपनाई जाती थीं?
उत्तर:
(1) कणाकृत
(2) बटाई
(3) खेत बटाई।

प्रश्न 44.
आइन-ए-अकबरी’ को कब पूरा किया गया?
उत्तर:
1598 ई. में

प्रश्न 45.
अकबरनामा’ की कितनी जिल्दों में रचना
की गई?
उत्तर:
तीन जिल्दों में।

प्रश्न 46.
‘अकबरनामा’ का रचयिता कौन था?
उत्तर:
अबुल फजल।

प्रश्न 47
रैयत कौन थे?
उत्तर:
मुगल काल के भारतीय फारसी खोत किसान के लिए आमतौर पर रैयत या मुजरियान शब्द का इस्तेमाल करते थे। था।

प्रश्न 48.
‘परगना’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
परगना मुगल प्रान्तों में एक प्रशासनिक प्रमंडल

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प्रश्न 49.
ग्राम पंचायत (मुगलकाल) के मुखिया के दो कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) गाँव के आय-व्यय का हिसाब-किताब तैयार करवाना
(2) जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आवरण पर नजर रखना।

प्रश्न 50.
पाहि काश्त किसान कौन थे?
उत्तर:
पाहि कारण किसान के खेतिहर थे, जो दूसरे गाँव से ठेके पर खेती करने आते थे।

प्रश्न 51.
बाबरनामा’ के अनुसार खेतों की सिंचाई साधन कौनसे थे?
गई ?
उत्तर:
(1) रहट के द्वारा
(2) बाल्टियों से।

प्रश्न 52.
भारत में नई दुनिया से कौनसी फसलें लाई
उत्तर:
टमाटर, आलू, मिर्च, अनानास, पपीता

प्रश्न 53.
पंचायत का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर:
गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोगों को अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रखना।

प्रश्न 54.
राजस्थान की जाति पंचायतों के दो अधिकारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • दीवानी के झगड़ों का निपटारा करना
  • जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाना।

प्रश्न 55.
पंचायत के मुखिया का चुनाव किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
(1) गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से और
(2) उसे इसकी स्वीकृति जमींदार से लेनी होती थी।

प्रश्न 56.
खेतिहर किन ग्रामीण दस्तकारियों में संलग्न रहते थे?
उत्तर:
रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजार बनाना।

प्रश्न 57.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ में कृषि इतिहास को जानने के दो स्त्रोतों का उल्लेख करो।
उत्तर:
(1) आइन-ए-अकबरी
(2) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत सारे दस्तावेज

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प्रश्न 58.
गाँव के प्रमुख दस्तकारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुम्हार, लुहार, बढ़ई, नाई, सुनार

प्रश्न 59.
कौनसी दस्तकारियों के काम उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे?
उत्तर:
सूत कातना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी साफ करना और गूंधना, कपड़ों पर कढ़ाई करना।

प्रश्न 60.
‘पेशकश का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पेशकरा’ मुगल राज्य के द्वारा ली जाने वाली एक प्रकार की भेंट थी। था?

प्रश्न 61.
मुगल राज्य के लिए जंगल कैसा भू-भाग
उत्तर;
मुगल राज्य के अनुसार जंगल बदमाशों, विद्रोहियों आदि को शरण देने वाला अड्डा था।

प्रश्न 62.
जमींदार कौन थे?
उत्तर;
जमींदार अपनी जमीन के स्वामी होते थे उन्हें ग्रामीण समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त थी।

प्रश्न 63.
जमींदारों की उच्च स्थिति के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) उनकी जाति
(2) जमींदारों के द्वारा राज्य को दी जाने वाली कुछ विशिष्ट सेवाएँ।

प्रश्न 64.
‘जमा’ और ‘हासिल’ में भेद कीजिये।
उत्तर:
‘जमा निर्धारित रकम थी, जबकि ‘हासिल’ वास्तव में वसूल की गई रकम थी।

प्रश्न 65.
जमींदारी पुख्ता करने के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) नयी जमीनों को बसाकर
(2) अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा।

प्रश्न 66.
अमीन कौन था?
उत्तर:
अमीन एक मुगल अधिकारी था, जिसका काम यह सुनिश्चित करना था कि राजकीय कानूनों का पालन हो रहा है।

प्रश्न 67.
मनसबदारी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
मनसबदारी मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तत्व था, जिसे मनसबदारी व्यवस्था कहते हैं।

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प्रश्न 68.
अकबर के समय का प्रसिद्ध इतिहासकार कौन था? उसके द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) अकबर के समय का प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फजल था।
(2) अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ तथा आइन-ए-अकबरी’ की रचना की।

प्रश्न 69.
चंडीमंगल नामक बंगाली कविता के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर:
सोलहवीं सदी में मुकुंदराम चक्रवर्ती ने चंडीमंगल नामक कविता लिखी थी।

प्रश्न 70.
पेशकश क्या होती थी?
उत्तर:
पेशकश मुगल राज्य के द्वारा की जाने वाली एक तरह की भेंट थी।

प्रश्न 71.
गाँवों में कौनसी पंचायतें होती थीं?
उत्तर:
(1) ग्राम पंचायत
(2) जाति पंचायत ।

प्रश्न 72.
किस प्रांत में चावल की 50 किस्में पैदा की
जाती थीं?
उत्तर:
बंगाल में।

प्रश्न 73
गाँवों में पाई जाने वाली दो सामाजिक असमानताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) सम्पति की व्यक्तिगत मिल्कियत होती थी।
(2) जाति और सामाजिक लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं।

प्रश्न 74.
शाह नहर कहाँ है?
उत्तर:
पंजाब में।

प्रश्न 75.
अकबर द्वारा अमील गुजार को क्या आदेश दिए गए थे?
उत्तर:
इस बात की व्यवस्था करना कि खेतिहर नकद भुगतान करे और वहीं फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे।

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प्रश्न 76
जमींदारी को पुख्ता करने के क्या तरीके थे?
उत्तर:
(1) नई जमीनों को बतकर
(2) अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
(3) राज्य के आदेश से
(4) जमीनों को खरीद कर

प्रश्न 77.
वाणिज्यिक खेती का प्रभाव जंगलवासियाँ के जीवन पर कैसे पढ़ता था?
उत्तर:
(1) शहद, मधु, मोम, लाक की अत्यधिक माँग होना
(2) हाथियों को पकड़ना और बेचना
(3) व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली।

प्रश्न 78.
जंगली (जंगलवासी) कौन थे?
उत्तर:
जिन लोगों का गुजारा जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरित खेती से होता था, वे जंगली (जंगलवासी) कहलाते थे।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
खेतिहर समाज के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी जिसमें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमें में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर उसे काटना आदि सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल थे जो कृषि आधारित थीं, जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि ।

प्रश्न 2.
सत्रहवीं शताब्दी के खोत किन दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं?
उत्तर- सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत निम्नलिखित दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं- (1) खुद काश्त तथा (2) पाहि कार खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी। पाहि काश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे। कुछ लोग अपनी इच्छा से भी पाहि-कारत बनते थे, जैसे दूसरे गाँव में करों की शर्तें उत्तम मिलने पर कुछ लोग अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी से बाध्य होकर भी पाहि कार किसान बनते थे।

प्रश्न 3.
मुगल काल में कृषि की समृद्धि से भारत में आबादी में किस प्रकार बढ़ोतरी हुई?
उत्तर:
कृषि उत्पादन में अपनाए गए विविध और लचीले तरीकों के परिणामस्वरूप भारत में आवादी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। आर्थिक इतिहासकारों की गणना के अनुसार समय- समय पर होने वाली भुखमरी और महामारी के बावजूद 1600 से 1700 के बीच भारत की आबादी लगभग 5 करोड़ बढ़ गई। 200 वर्षों में यह लगभग 33 प्रतिशत बढ़ोतरी थी।

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प्रश्न 4.
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज किन-किन रिश्तों के आधार पर निर्मित था ?
उत्तर:
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज छोटे किसानों एवं धनिक जमींदारों दोनों से निर्मित था। ये दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े थे और फसल में हिस्सों के दावेदार थे। इससे उनके मध्य सहयोग, प्रतियोगिता एवं संघर्ष के रिश्ते निर्मित हुए कृषि से जुड़े इन समस्त रिश्तों से ग्रामीण समाज बनता था।

प्रश्न 5.
मुगल साम्राज्य के अधिकारी ग्रामीण समाज को नियन्त्रण में रखने का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य अपनी आय का एक बड़ा भाग कृषि उत्पादन से प्राप्त करता था इसलिए राजस्व निर्धारित करने वाले, राजस्व की वसूली करने वाले एवं राजस्व का विवरण रखने वाले अधिकारी ग्रामीण समाज को नियन्त्रण में रखने का पूरा प्रयास करते थे। वे चाहते थे कि खेती की नियमित जुताई हो एवं राज्य को उपज से अपने हिस्से का कर समय पर मिल जाए।

प्रश्न 6.
ग्रामीण भारत के खेतिहर समाज पर संक्षेप में तीन पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर;
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी; जिमसें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमों में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना एवं फसल पकने पर उसकी कटाई करना आदि कार्य सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित थे जो कृषि आधारित थीं जैसे कि शक्कर, तेल आदि ।

प्रश्न 7.
” सत्रहवीं सदी में दुनिया के अलग-अलग भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में दुनिया के विभिन्न भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं। उदाहरणार्थ, मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन से पहुँचा और सत्रहवीं सदी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई। इसी प्रकार अनानास तथा पपीता जैसे फल भी नई दुनिया से आए।

प्रश्न 8.
मुगल काल में गाँव की पंचायत का गठन किस प्रकार होता था?
उत्तर:
गाँव की पंचायत बुजुर्गों की सभा होती थी। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ प्रायः पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी यह एक ऐसा अल्पतंत्र था, जिसमें गाँव के अलग-अलग सम्प्रदायों एवं जातियों का प्रतिनिधित्व होता था। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था।

प्रश्न 9.
गाँव की पंचायत का जाति सम्बन्धी प्रमुख काम क्या था?
उत्तर:
गांव की पंचायत का जाति सम्बन्धी प्रमुख काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग सम्प्रदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। पूर्वी भारत में सभी विवाह मंडल की उपस्थिति में होते थे। दूसरे शब्दों में ” जाति की अवहेलना के लिए” लोगों के आचरण पर नजर रखनां गाँव की पंचायत के मुखिया की एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी थी।

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प्रश्न 10.
गाँव की पंचायतों को कौनसे न्याय सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे?
उत्तर:
गाँव की पंचायतों को दोषियों पर जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे दंड देने के अधिकार प्राप्त थे। समुदाय से निष्कासित करना एक कड़ा कदम था, जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इसके अन्तर्गत दण्डित व्यक्ति को (निर्धारित समय के लिए) गाँव छोड़ना पड़ता था। इस अवधि में वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था। इन नीतियों का उद्देश्य जातिगत परम्पराओं की अवहेलना को रोकना था।

प्रश्न 11.
सत्रहवीं सदी में गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के बारे में फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने क्या लिखा है?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के बारे में लिखा है कि, “भारत में वे गाँव बहुत ही छोटे कहे जायेंगे, जिनमें मुद्रा की फेरबदल करने वाले हाँ ये लोग सराफ कहलाते थे। एक बैंकर की भाँति सराफ हवाला भुगतान करते थे और अपनी इच्छा के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत तथा कौड़ियों के मुकाबले पैसों की कीमत बढ़ा देते थे।”

प्रश्न 12.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत द में जंगलों के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जमीन के विशाल भाग जंगल या शादियों से घिरे हुए थे। के ऐसे प्रदेश झारखंड सहित सम्पूर्ण पूर्वी भारत, मध्य भारत, उत्तरी क्षेत्र (जिसमें भारत-नेपाल की सीमावर्ती क्षेत्र की ि तराई शामिल है), दक्षिण भारत का पश्चिमी घाट और प दक्कन के पठारों में फैले हुए थे। समसामयिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भारत में जंगलों के फैलाव का औसत लगभग 40 प्रतिशत था।

प्रश्न 13.
जंगलवासियों पर कौनसे नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलवासियों पर नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े। कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता है कि नए बसे इलाकों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार से धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों (पीर) ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार जंगली प्रदेशों में नए सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार से शुरूआत हुई। प्रश्न 14. जमींदार कौन थे?
उत्तर- जमींदारों की आय तो खेती से आती थी, परन्तु ये कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे। वे अपनी जमीन के मालिक होते थे। उन्हें ग्रामीण समाज में ऊँची स्थिति के कारण कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त थीं। जमींदारों की ऊँची स्थिति के दो कारण थे-
(1) उनकी जाति तथा
(2) उनके द्वारा राज्य को कुछ विशेष प्रकार की सेवाएं देना।

प्रश्न 15.
जमींदारों की समृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
जमींदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन उनकी समृद्धि का कारण था उनकी व्यक्तिगत जमीन मिल्कियत कहलाती थी अर्थात् सम्पत्ति मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी प्रयोग के लिए खेती होती थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी मजदूर या पराधीन मजदूर कार्य करते थे जमींदार अपनी इच्छानुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या उन्हें गिरवी रख सकते थे।

प्रश्न 16.
जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी। इसके निम्नलिखित तरीके थे—

  • नयी जमीनों को बसा कर
  • अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
  • राज्य के आदेश से
  • या फिर खरीदकर इन प्रक्रियाओं के द्वारा अपेक्षाकृत ‘निचली जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में शामिल हो सकते थे, क्योंकि इस काल में जमींदारी धड़ल्ले से खरीदी और बेची जाती थी।

प्रश्न 17.
1665 में औरंगजेब ने जमा निर्धारित करने के लिए अपने राजस्व अधिकारियों को क्या आदेश दिया?
उत्तर:
1665 में औरंगजेब ने जमा निर्धारित करने के लिए अपने राजस्व अधिकारियों को वह आदेश दिया कि वे परगनाओं के अमीनों को निर्देश दें कि वे प्रत्येक गाँव, प्रत्येक किसान (आसामीवार) के बारे में खेती की वर्तमान स्थितियों का पता करें बारीकी से उनकी जाँच करने के बाद सरकार के वित्तीय हितों व किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए जमा निर्धारित करें।

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प्रश्न 18.
मुगल काल में कृषि की समृद्धि और भारत की आबादी की बढ़ोत्तरी में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
मुगलकाल में शासकों की दूरदर्शिता द्वारा किसानों के हितों एवं कृषि उत्पादन के लिए विविध तकनीकों के प्रयोग के कारण कृषि आधारित समृद्धि में व्यापक वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप आबादी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। आर्थिक इतिहासकारों की गणना के अनुसार 1600 से 1700 के बीच समय-समय पर होने वाली भुखमरी और महावारी के उपरान्त भी भारत की आबादी लगभग 5 करोड़ बढ़ गई। 200 वर्षों में आबादी की यह बढ़ोत्तरी करीब 33 प्रतिशत थी।

प्रश्न 19
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग- अलग हिस्सों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँची।” कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नई फसलों जैसे मक्का, ज्वार, आलू आदि का भारत में प्रवेश कैसे हुआ?
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारिक आवागमन में वृद्धि के कारण कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँचीं। उदाहरण के रूप में मक्का भारत में अफ्रीका व स्पेन से पहुँची और सत्रहवीं शताब्दी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई। इसी प्रकार अनन्नास एवं पपीता भी नई दुनिया से आए।

प्रश्न 20.
जजमानी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में बंगाल में जमींदार लोहारों, बढ़ई व सुनारों जैसे ग्रामीण दस्तकारों को उनकी सेवाओं के बदले दैनिक भत्ता तथा खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को जजमानी व्यवस्था कहा जाता था। यद्यपि यह प्रथा सोलहवीं व सत्रहवीं शताब्दी में अधिक प्रचलित नहीं थी।

प्रश्न 21.
मुगलकाल में गाँवों और शहरों के मध्य व्यापार से गाँवों में नकदी लेन-देन होना प्रारम्भ हुआ, सोदाहरण कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में गाँवों और शहरों के मध्य व्यापार के कारण गाँवों में भी नकदी लेन-देन होने लगा। मुगलों के केन्द्रीय प्रदेशों से भी कर की गणना और वसूली नकद में दी जाती थी जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी अथवा पूर्ण भुगतान नकद में ही किया जाता था। इसी प्रकार कपास, रेशम या नील जैसी व्यापारिक फसलें उत्पन्न करने वाले किसानों का भुगतान भी नकदी में ही होता है।

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प्रश्न 22.
आइन-ए-अकबरी’ में किन मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई है?
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी’ में अनेक मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई है; जैसे दरबार, प्रशासन और सेना का गठन, राजस्व के स्रोत और अकबरी साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल, लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक रिवाज अकबर की सरकार के समस्त विभागों और प्रान्तों (सूखों) के बारे में जानकारी दी गई है। ‘आइन’ में इन सूबों के बारे में जटिल और आँकड़ेबद्ध सूचनाएँ बड़ी बारीकी से दी गई हैं।

प्रश्न 23.
‘आइन’ कितने भागों (दफ्तरों) में विभक्त है? उनका सक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर- ‘आइन’ पाँच भागों (दफ्तरों में विभक्त है-
(1) मंजिल आबादी, शाही घर-परिवार और उसके रख- रखाव से सम्बन्ध रखती है
(2) सिपह- आबादी- सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है।
(3) मुल्क आबादी में साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आँकड़े वर्णित हैं तथा बारह प्रान्तों का वर्णन है। चौथे और पाँचवें भाग भारत के लोगों के धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखते हैं।

प्रश्न 24.
अकबर के समय भूमि का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया था?
अथवा
चाचर और बंजर भूमि की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:

  • पोलज पोलज भूमि में एक के बाद एक हर फसल की वार्षिक खेती होती थी जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था।
  • परीती परौती जमीन पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी ताकि वह अपनी खोई हुई उर्वरा शक्ति वापस पा सके।
  • चचर पचर जमीन तीन या चार वर्षों तक खाली रहती थी।
  • बंजर – बंजर जमीन वह थी जिस पर पाँच या उससे अधिक वर्षों से खेती नहीं की जाती थी।

प्रश्न 25.
कणकुत प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
अकबर के समय कनकृत प्रणाली राजस्व निर्धारण की एक प्रणाली थी। हिन्दी में ‘कण’ का अर्थ है ‘अनाज’ और कुंत का अर्थ है अनुमान’। इसके अनुसार फसल को अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था-
(1) अच्छा
(2) मध्यम
(3) खराब इस प्रकार सन्देह दूर किया जाना चाहिए। प्रायः अनुमान से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था।

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प्रश्न 26.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के ग्रामीण समाज की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में लगभग 85 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे छोटे खेतिहर तथा भूमिहर जमींदार दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े हुए थे और दोनों ही फसल के हिस्सों के दावेदार थे। इससे उनके बीच सहयोग, प्रतियोगिता तथा संघर्ष के सम्बन्ध बने खेती से जुड़े इन समस्त सम्बन्धों के ताने-बाने से गाँव का समाज बनता था। मुगल-राज्य अपनी आय का बहुत बड़ा भाग कृषि उत्पादन से वसूल करता था राजस्व अधिकारी ग्रामीण समाज पर नियन्त्रण रखते थे

प्रश्न 27.
खेतिहर समाज का परिचय दीजिए। कृषि समाज की भौगोलिक विविधताओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी, जिसमें किसान रहते थे किसान वर्ष भर फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर उसे काटना आदि सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल थे, जो कृषि आधारित थीं जैसे शक्कर, तेल इत्यादि । परन्तु सूखी भूमि के विशाल हिस्सों से लेकर पहाड़ियों वाले क्षेत्र में उस प्रकार की खेती नहीं हो सकती थी जैसी कि अधिक उपजाऊ जमीनों पर।

प्रश्न 28.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी का कृषि- इतिहास लिखने के लिए ‘आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य स्रोत के रूप में विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी का कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन-ए-अकबरी’ एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरवारी इतिहासकार अबुल फतल ने की थी खेतों की नियमित जुलाई सुनिश्चित करने के लिए राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा करों की वसूली करने के लिए तथा राज्य व जमींदारों के बीच के सम्बन्धों के नियमन के लिए राज्य द्वारा किये गए प्रबन्धों का लेखा-जोखा ‘आइन’ में प्रस्तुत किया गया है।

प्रश्न 29.
आइन-ए-अकबरी’ के लेखन का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूप-रेखा प्रस्तुत करना था, जहाँ एक सुदृढ़ सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। अबुल फजल के अनुसार मुगल साम्राज्य के विरुद्ध कोई भी विद्रोह या किसी भी प्रकार की स्वायत्त सत्ता की दावेदारी का असफल होना निश्चित था अतः ‘आइन’ से किसानों के बारे में जो कुछ पता चलता है, वह मुगल शासक वर्ग का ही दृष्टिकोण है।

प्रश्न 30.
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी के कृषि- इतिहास की जानकारी के लिए ‘आइन’ के अतिरिक्त अन्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) ‘आइन’ के अतिरिक्त सत्रहवीं व अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से उपलब्ध होने वाले वे दस्तावेज भी हैं जो सरकार की आय की विस्तृत जानकारी देते हैं।
(2) इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भी बहुत से दस्तावेज हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। इन सभी स्रोतों में किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले झगड़ों के विवरण मिलते हैं। इनसे किसानों के राज्य के प्रति दृष्टिकोण की जानकारी मिलती है।

प्रश्न 31.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसान की समृद्धि का मापदंड क्या था ?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास शायद ही कभी एक जोड़ी बैल तथा दो हलों से अधिक कुछ होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी कम था। गुजरात के वे किसान समृद्ध माने जाते थे जिनके पास 6 एकड़ के लगभग जमीन थी दूसरी ओर, बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ थी वहाँ 10 एकड़ जमीन वाले किसान को धनी माना जाता था। खेती व्यक्तिगत स्वामित्व के सिद्धान्त पर आधारित थी।

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प्रश्न 32.
‘बाबरनामा’ में बाबर ने कृषि-समाज की विशेषताओं का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
‘बाबरनामा’ के अनुसार भारत में बस्तियाँ और गाँव, वस्तुत: शहर के शहर, एक क्षण में ही बीरान भी हो जाते थे और बस भी जाते थे। दूसरी ओर, यदि वे किसी पर बसना चाहते थे तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि उनकी समस्त फसलें वर्षा के पानी में उगती थीं भारत की अनगिनत आबादी होने के कारण लोग उमड़ते चले आते थे । यहाँ झोंपड़ियाँ बनाई जाती थीं और अकस्मात एक गाँव या शहर तैयार हो जाता था।

प्रश्न 33.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में कृषि क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जमीन की प्रचुरता, मजदूरों की उपलब्धता तथा किसानों की गतिशीलता के कारण कृषि का निरन्तर विकास हुआ। चूँकि खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था, इसलिए दैनिक भोजन में काम आने वाले खाद्य पदार्थों जैसे चावल, गेहूं, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं। जिन प्रदेशों में प्रतिवर्ष 40 इंच या उससे अधिक वर्षा होती थी, वहाँ न्यूनाधिक चावल की खेती होती थी कम वर्षा वाले प्रदेशों में गेहूँ तथा ज्वार बाजरे की खेती होती थी।

प्रश्न 34.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में सिंचाई के साधनों में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आज की भाँति सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में भी मानसून को भारतीय कृषि की रीढ़ माना जाता था। परन्तु कुछ फसलों के लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। इसके लिए सिंचाई के कृत्रिम साधनों का सहारा लेना पड़ा। राज्य की ओर से सिंचाई कार्यों में सहायता दी जाती थी उदाहरणार्थ, उत्तर भारत में राज्य ने कई नई नहरें व नाले खुदवाये तथा कई पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई। शाहजहाँ के शासन काल में पंजाब में ‘शाह नहर’ इसका उदाहरण है।

प्रश्न 35.
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाओं की स्थिति बताइए।
उत्तर:
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाएँ व पुरुष मिलजुलकर खेती का कार्य करते थे। पुरुष खेत जोतते थे तथा हल चलाते थे जबकि महिलाएँ बुआई, निराई व कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल से दाना निकालने का कार्य करती थीं। सूत कातना, वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना व गूंथना तथा कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्य भी महिलाएँ ही करती थीं महिलाओं पर परिवार और समुदाय के पुरुषों का नियन्त्रण बना रहता था।

प्रश्न 36.
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में किस प्रकार परिवर्तन आया?
उत्तर:
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में परिवर्तन आया। ग्रामीण समुदाय के बड़े आदमियों की तरह जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई कबीलों के सरदार धीरे-धीरे जमींदार बन गए। कुछ तो राजा भी बन गए। 16वीं- 17वीं शताब्दी में कुछ राजाओं ने पड़ोसी कवीलों के साथ एक के बाद एक युद्ध किया और उन पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

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प्रश्न 37.
जंगलवासियों पर कौनसे नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलवासियों पर नए-नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता है कि नए बसे क्षेत्रों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार से धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

प्रश्न 38.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में खेती के विकास के लिए किसानों द्वारा अपनायी गई तकनीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) किसान लकड़ी के ऐसे हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगा कर सरलता से बनाया जा सकता था।
(2) बैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था परन्तु बीजों को हाथ से छिड़क कर बोने की पद्धति अधिक प्रचलित थी।
(3) मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार प्रयुक्त किए जाते थे।

प्रश्न 39.
भारत में तम्बाकू का प्रसार किस प्रकार हुआ? जहाँगीर ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध क्यों लगा दिया?
उत्तर:
तम्बाकू का पौधा सबसे पहले दक्षिण भारत पहुँचा और वहाँ से सरहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में इसे उत्तर भारत लाया गया। अकबर और उसके अमीरों ने 1604 ई. में पहली बार तम्बाकू देखा सम्भवत: इसी समय से भारत में तम्बाकू का धूम्रपान (हुक्के या चिलम में) करने के व्यसन ने जोर पकड़ा। परन्तु जहाँगीर ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस प्रतिबन्ध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि इसका सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक सम्पूर्ण भारत में प्रचलन था।

प्रश्न 40.
मुगलकाल में मौसम के चक्रों में उगाई जाने वाली विविध फसलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में भारत में मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी एक खरीफ (पतझड़ में) तथा दूसरी रवी (बसन्त में) अधिकतर स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें उगाई जाती थीं जहाँ वर्षा अथवा सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ यो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं ‘आइन-ए- अकबरी’ के अनुसार दोनों मौसमों को मिलाकर मुगल- प्रान्त आगरा में 39 तथा दिल्ली प्रान्त में 43 फसलों की उगाई की जाती थी।

प्रश्न 41.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत ‘में ‘जिन्स-ए-कामिल’ नामक फसलें क्यों उगाई जाती थीं?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में ‘जिन्स-ए-कामिल’ (सर्वोत्तम फसलें) नामक फसलें भी उगाई जाती थीं मुगल राज्य भी किसानों को ‘जिन्स-ए- कामिल’ नामक फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन देता था क्योंकि इनसे राज्य को अधिक कर मिलता था। कपास और गने जैसी फसलें श्रेष्ठ ‘जिन्स-ए-कामिल’ श्रीं तिलहन (जैसे सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलों में सम्मिलित थीं।

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प्रश्न 42.
जाति और अन्य जाति जैसे भेदभावों के कारण खेतिहर किसान किन समूहों में बँटे हुए थे?
उत्तर:
खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो निकृष्ट समझे जाने वाले कामों में लगे थे अथवा फिर खेतों में मजदूरी करते थे कुछ जातियों के लोगों को केवल निकृष्ट समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इस प्रकार वे गरीबी का जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। गाँव की आबादी का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही समूहों का था। इनके पास संसाधन सबसे कम थे तथा ये जाति व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बंधे हुए थे इनकी स्थिति न्यूनाधिक आधुनिक भारत के दलितों जैसी थी।

प्रश्न 43.
“समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी तथा सामाजिक हैसियत के बीच सीधा सम्बन्ध था। परन्तु ऐसा बीच के समूहों में नहीं था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- सत्रहवीं सदी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक में राजपूतों का उल्लेख किसानों के रूप में किया गया है। इस पुस्तक के अनुसार जाट भी किसान थे परन्तु जाति व्यवस्था में उनका स्थान राजपूतों की तुलना में नीचा था सत्रहवीं सदी में वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र में रहने वाले गौरव समुदाय ने भी राजपूत होने का दावा किया, यद्यपि वे जमीन की जुताई के काम में लगे थे। अहीर, गुज्जर तथा माली जैसी जातियों के सामाजिक स्तर में भी वृद्धि हुई।

प्रश्न 44.
पंचायत का मुखिया कौन होता था? उसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था, जिसे ‘मुकदम’ चा ‘मंडल’ कहते थे। मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था। इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी स्वीकृति जमींदार से लेनी पड़ती थी। मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रह सकता था, जब तक गाँव के बुजुगों को उस पर भरोसा था। गाँव की आप व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख कार्य था। इस कार्य में पंचायत का पटवारी उसको सहायता करता था।

प्रश्न 45.
मुगल काल में गाँव के ‘आम खजाने’ से पंचायत के कौनसे खर्चे बलते थे?
उत्तर:
(1) मुगल काल में पंचायत का खर्चा के आम खजाने से चलता था इस खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था, जो समय-समय पर गाँव का दौरा किया करते थे।
(2) इस आम खजाने का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी किया जाता था।
(3) इस कोष का प्रयोग ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी किया जाता था जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे छोटे-मोटे बांध बनाना या नहर खोदना

प्रश्न 46.
मुगलकालीन जाति पंचायतों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • राजस्थान में जाति पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं।
  • वे जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाती
  • वे यह निश्चित करती थीं कि विवाह जातिगत मानदंडों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं।
  • वे यह निश्चित करती थीं कि गाँव के आयोजन में किसको किसके ऊपर प्राथमिकता दी जाएगी। कर्मकाण्डीय वर्चस्व किस क्रम में होगा।

प्रश्न 47
पंचायतों में ग्रामीण समुदाय के निम्न वर्ग के लोग उच्च जातियों तथा राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध कौनसी शिकायतें प्रस्तुत करते थे?
उत्तर:
पश्चिमी भारत, विशेषकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे कई प्रार्थना-पत्र हैं, जिनमें पंचायत से ‘सी’ जातियों अथवा राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध जबरन कर वसूली अथवा बेगार वसूली की शिकायत की गई है। इनमें किसी जाति या सम्प्रदाय विशेष के लोग अभिजात वर्ग के समूहों की उन माँगों के विरुद्ध अपना विरोध दर्शाते थे जिन्हें वे नैतिक दृष्टि से अवैध मानते थे। उनमें एक मांग बहुत अधिक कर की माँग थी।

प्रश्न 48
पंचायतों द्वारा इन शिकायतों का निपटारा किस प्रकार किया जाता था ?
उत्तर:
निचली जाति के किसानों और राज्य के अधिकारियों या स्थानीय जमींदारों के बीच झगड़ों में पंचायत के निर्णय अलग-अलग मामलों में अलग-अलग हो सकते थे। अत्यधिक कर की मांगों में पंचायत प्रायः समझौते का सुझाव देती थीं जहाँ समझौते नहीं हो पाते थे, वहाँ किसान विरोध के अधिक उम्र साधन अपनाते थे, जैसे कि गाँव छोड़ कर भाग जाना।

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प्रश्न 49.
खेतिहर लोग किन ग्रामीण दस्तकारियों में संलग्न रहते थे?
उत्तर:
खेतिहर और उसके परिवार के सदस्य विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न रहते थे जैसे-रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजारों को बनाना अथवा उनकी मरम्मत करना। जब किसानों को खेती के काम से अवकाश मिलता था, जैसे-बुआई और सुड़ाई के बीच या सुहाई और कटाई के बीच, उस अवधि में ये खेतिहर दस्तकारी के काम में संलग्न रहते थे।

प्रश्न 50.
ग्रामीण दस्तकार किस रूप में अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे? इसके बदले गाँव के लोग उन सेवाओं की अदायगी किन तरीकों से करते थे?
उत्तर:
कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई, यहाँ तक कि सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे, जिसके बदले गाँव वाले उन्हें विभिन्न तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग दे देते थे या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा अदायगी का तरीका सम्भवतः पंचायत ही तय करती थी कुछ स्थानों पर दस्तकार तथा प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी बातचीत करके अदायगी का तरीका तय कर लेते थे।

प्रश्न 51.
कुछ अंग्रेज अफसरों द्वारा भारतीय गाँवों को ‘छोटे गणराज्य’ क्यों कहा गया?
अथवा
ग्रामीण समुदाय के महत्त्व का विवेचन कीजिए।
अथवा
‘छोटे गणराज्य’ के रूप में भारतीय गाँवों का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय गाँवों को एक ऐसे ‘छोटे गणराज्य’ की संज्ञा दी, जहाँ लोग सामूहिक स्तर पर भाई चारे के साथ संसाधनों तथा श्रम का विभाजन करते थे परन्तु ऐसा नहीं लगता कि गाँव में सामाजिक समानता थी सम्पत्ति पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता था। इसके साथ ही जाति और लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं कुछ शक्तिशाली लोग गाँव की समस्याओं पर निर्णय लेते थे और कमजोर वर्गों के लोगों का शोषण करते थे।

प्रश्न 52.
भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को प्राप्त पैतृक सम्पत्ति के अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था। पंजाब में महिलाएँ (विधवा महिलाएँ भी) पैतृक सम्पत्ति के विक्रेता के रूप में ग्रामीण जमीन के क्रय-विक्रय में सक्रिय भागीदारी रखती थीं हिन्दू और मुसलमान महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी, जिसे बेचने अथवा गिरवी रखने के लिए वे स्वतंत्र थीं। बंगाल में भी महिला जमींदार थीं। वहाँ राजशाही की जमींदारी की कर्ता-धर्ता एक स्वी थी।

प्रश्न 53.
‘जंगली’ कौन थे? मुगलकाल में जंगली शब्द का प्रयोग किन लोगों के लिए किया जाता था?
उत्तर:
समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती हैं। परन्तु जंगली होने का अर्थ यह नहीं था कि वे असभ्य थे। मुगलकाल में जंगली शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरीच खेती से होता था। ये काम मौसम के अनुसार होते थे। उदाहरण के लिए, भील बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठा करते थे, गर्मियों में मछली पकड़ते थे तथा मानसून के महीनों में खेती करते थे।

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प्रश्न 54.
राज्य की दृष्टि में जंगल किस प्रकार का क्षेत्र था?
उत्तर:
राज्य की दृष्टि में जंगल राज्य की दृष्टि में जंगल उलटफेर वाला इलाका था अपराधियों को शरण देने वाला अड्डा राज्य के अनुसार अपराधी और विद्रोही जंगल में शरण लेते थे अपराध करने के बाद ये लोग जंगल में छिप जाते थे। बाबर के अनुसार जंगल एक ऐसा रक्षाकवच था जिसके पीछे परगना के लोग कड़े विद्रोही हो जाते थे और कर चुकाने से मुकर जाते थे।”

प्रश्न 55.
मुगल काल में बाहरी शक्तियाँ जंगलों में किसलिए प्रवेश करती थीं?
उत्तर:
(1) मुगलकाल में बाहरी शक्तियाँ जंगलों में कई तरह से प्रवेश करती थीं। उदाहरणार्थ, राज्य को सेना के लिए हाथियों को आवश्यकता होती थी इसलिए जंगलवासियों से ली जाने वाली भेंट में प्रायः हाथी भी सम्मिलित होते थे।
(2) शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों का दौरा करते थे और लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर उचित ध्यान देते थे।

प्रश्न 56.
मुगल-राजनीतिक विचारधारा में शिकार अभियान का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मुगल राजनीतिक विचारधारा में गरीबों और अमीरों सहित सबको न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से ‘शिकार अभियान’ प्रारम्भ किया गया। शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करता था। इस प्रकार वह अलग-अलग प्रदेशों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देता था और न्याय प्रदान करता था।

प्रश्न 57.
जंगलवासियों के जीवन पर बाहरी कारक के रूप में वाणिज्यिक खेती का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जंगलवासियों के जीवन पर वाणिज्यिक खेती का काफी प्रभाव पड़ता था। शहद, मधुमोम तथा लाक जैसे जंगल के उत्पादों की बहुत माँग थी। लाक जैसी कुछ वस्तुएँ तो सत्रहवीं सदी में भारत से समुद्र पार होने वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएँ थीं। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली भी होती थी। कुछ कवीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले स्थलीय व्यापार में लगे हुए थे वे पंजाब के गाँवों और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में भी भाग लेते थे।

प्रश्न 58.
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई जंगली कबीलों के सरदार जमींदार बन गए। कुछ तो राजा भी बन गए। ऐसे में उन्हें सेना का गठन करने की आवश्यकता हुई। अतः उन्होंने अपने ही वंश के लोगों को सेना में भर्ती किया अथवा फिर उन्होंने अपने ही भाई- बन्धुओं से सैन्य-सेच की मांग की। सिन्ध प्रदेश की कमीलाई सेनाओं में 6000 घुड़सवार और 7000 पैदल सैनिक होते थे।

प्रश्न 59.
मुगलकालीन भारत में जमींदारों की शक्ति के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जमींदारों को शक्ति इस बात से मिलती धी कि वे प्रायः राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था।
(2) सैनिक संसाधन उनकी शक्ति का एक और स्रोत था अधिकतर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी, जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने तथा पैदल सैनिकों के जत्थे होते थे।

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प्रश्न 60.
जमींदारों की उत्पत्ति का स्रोत क्या था?
उत्तर:
समसामयिक दस्तावेजों से प्रतीत होता है कि युद्ध में विजय जमींदारों की उत्पत्ति का सम्भावित लोत रहा होगा। प्रायः जमींदारी के प्रसार का एक तरीका था शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना। परन्तु इसकी सम्भावना कम ही दिखाई देती है कि राज्य किसी जमींदार को इतने आक्रामक रुख अपनाने की अनुमति देता हो, जब तक कि एक राज्यादेश के द्वारा इसकी पुष्टि पहले ही नहीं कर दी गई हो।

प्रश्न 61.
कृषि के विकास में जमींदारों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • जमींदारों ने कृषि योग्य जमीनों को बसने में नेतृत्व प्रदान किया और खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता की।
  • जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई।
  • जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।
  • कुछ साक्ष्य दर्शाते हैं कि जमींदार प्रायः बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

प्रश्न 62.
“किसानों से जमींदारों के सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था। भक्ति सन्तों ने बड़ी निर्भीकतापूर्वक जातिगत तथा अन्य प्रकार के अत्याचारों की कटु निन्दा की, परन्तु उन्होंने जमींदारों को किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दर्शाया। सत्रहवीं सदी में हुए कृषि विद्रोहों में राज्य के विरुद्ध जमींदारों को प्राय: किसानों का समर्थन मिला।

प्रश्न 63.
मुगलकालीन भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
अकबर के शासन में भूमि के वर्गीकरण किये जाने के बारे में अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन’ में क्या वर्णन किया है?
अथवा
अकबर के समय में प्रचलित भू-राजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिये ।
अथवा
अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अकबर ने जमीनों का वर्गीकरण किया और प्रत्येक वर्ग की जमीन के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया। भूमि को चार वर्गों में बाँटा गया-
(i) पोलज
(ii) पोलज और परौती की तीन मध्यम
(iii) चचर
(iv) बंजर। और प्रत्येक वर्ग की तीन किस्में थीं-
(1) अच्छी
(2) किस्म
(3) खराब प्रत्येक की जमीन की उपज को जोड़ा जाता था और उसका तीसरा हिस्सा औसत उपज माना जाता था इसका एक- तिहाई भाग राजकीय शुल्क माना जाता था।

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प्रश्न 64.
अकबर के शासन काल में राजस्व की वसूली के लिए अपनाई गई प्रणालियों का ‘आइन’ में किस प्रकार वर्णन किया गया है?
उत्तर:
अकबर के शासन काल में फसल के रूप में राजस्व वसूली की पहली प्रणाली कुणकुत प्रणाली थी। इसमें फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था दूसरी प्रणाली बटाई या भाओली थी, जिसमें फसल काट कर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की सहमति से बंटवारा किया जाता था। खेत बटाई तीसरी प्रणाली थी जिसमें बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते थे। लाँग बटाई चौथी प्रणाली थी जिसमें फसल काटने के बाद उसे आपस में बाँट लेते थे।

प्रश्न 65.
मनसबदारी व्यवस्था’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मनसबदारी व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मनसबदारी मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तन्त्र था। इस पर राज्य के सैनिक व नागरिक मामलों की जिम्मेदारी थी कुछ मनसबदारों को नकदी भुगतान किया जाता था परन्तु अधिकांश मनसबदारों को साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में राजस्व के आवंटन के द्वारा भुगतान किया जाता था। सम्राट द्वारा समय-समय पर उनका स्थानान्तरण किया जाता था। प्रायः योग्य और अनुभवी व्यक्ति को ही मनसबदार के पद पर नियुक्त किया जाता था।

प्रश्न 66.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में चाँदी का बहाव क्यों और किस प्रकार हुआ? उत्तर- सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में भारत के व्यापार में अत्यधिक उन्नति हुई। इस कारण भारत के समुद्र पार व्यापार में एक ओर भौगोलिक विविधता आई, तो दूसरी ओर अनेक नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हुआ। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत पहुँचा। यह भारत के लिए लाभप्रद था; क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।

प्रश्न 67.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत में चाँदी के बहाव के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
(1) सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की प्राप्ति में अच्छी स्थिरता बनी रही।
(2) अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की तलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई।
(3) इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी के अनुसार चाँदी समस्त विश्व से होकर भारत पहुँचती थी तथा सत्रहवी शताब्दी में भारत में अत्यधिक मात्रा में नकदी और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था।

प्रश्न 68
आइन-ए-अकबरी’ की त्रुटियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) जोड़ करने में कई गलतियाँ पाई गई हैं।
(2) ‘आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं।
(3) जहाँ सूबों से लिए गए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से कीमतों और मजदूरी से सम्बन्धित आँकड़े इतने विस्तार के साथ नहीं दिए गए हैं।
(4) मूल्यों और मजदूरी की दरों की सूची मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के प्रदेशों से ली गई है।

प्रश्न 69.
“कुछ त्रुटियों के होते हुए भी ‘आइन- ए-अकबरी’ अपने समय के लिए एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’ अपने समय के लिए एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज हैं। मुगल साम्राज्य के गठन और उसकी संरचना की अत्यन्त आकर्षक झलकियाँ दर्शाकर और उसके निवासियों व उत्पादों के सम्बन्ध में सांख्यिकीय आँकड़े प्रस्तुत कर, अबुल फजल मध्यकालीन इतिहासकारों से कहीं आगे निकल गए। ‘आइन’ में भारत के लोगों और मुगल साम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ दी गई हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ सत्रहवीं शताब्दी के भारत के अध्ययन के लिए संदर्भ-बिन्दु बन गया है।

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प्रश्न 70.
बटाई प्रणाली तथा लाँग बढाई पद्धतियों | का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) कटाई प्रणाली में फसल काटकर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति तथा सहमति से बँटवारा कर लेते थे।
(2) लॉंग बटाई – इस प्रणाली में फसल काटने के बाद उसके ढेर बना लिए जाते थे तथा फिर उन्हें आपस में बाँट लेते थे। इसमें हर पक्ष अपना हिस्सा घर ले जाता था।

प्रश्न 71.
मुगल सम्राट शिकार अभियानों का क्यों आयोजन करते थे?
उत्तर:
मुगल सम्राट गरीबों और अमीरों सहित सबके साथ न्याय करना अपना प्रमुख कर्त्तव्य मानते थे। इसलिए ये शिकार अभियानों का आयोजन करते थे। वे शिकार आयोजन के नाम पर अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करते थे और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों को सुनकर उनका निराकरण करते थे।

प्रश्न 72.
कृषि के अतिरिक्त महिलाएँ दस्तकारी के किन कार्यों में संलग्न रहती थीं?
उत्तर:
कृषि के अतिरिक्त महिलाएं सूत कातने वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंधने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्यों में संलग्न रहती थीं किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की उतनी ही माँग होती थी। इस प्रकार महिलाएँ न केवल खेतों में कार्य करतीं थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं।

प्रश्न 73.
मुगलकाल में कृषि में प्रयोग होने वाली मुख्य तकनीकी कौनसी थी? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
मुगलकाल में कृषि अपनी उच्च अवस्था में थी क्योंकि उस समय अनेक तकनीकों का प्रयोग किया जाता था। वस्तुत: उस समय प्रमुख कृषि तकनीकी पशु बल पर आधारित थी। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) लकड़ी का हल एक प्रमुख कृषि उपकरण था। इसे एक छोर पर लोहे की नुकीली धार अथवा फाल लगाकर बनाया जाता था ऐसे हल मिट्टी को अधिक गहरा नहीं खोदते थे। जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहती थी जो उपज अथवा फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती थी
(2) मिट्टी की निराई तथा गुड़ाई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार वाले उपकरण प्रयोग होते थे।
(3) बैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था, किन्तु बीजों को अधिकतर हाथ से छिड़ककर ही बोया जाता था
(4) रहट, जो उस समय सिंचाई का मुख्य साधन था, में भी बैलों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 74.
फ्रांसीसी यात्री ज्यां बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत में आए फ्रांसीसी यात्री ज्यां बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने भारत के गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में उल्लेख किया है कि “भारत के गाँव बहुत ही छोटे कहे जाएँगे, जिसमें मुद्रा के फेर-बदल करने वालों को ‘सर्राफ’ कहा जाता है। सर्राफ का कार्य बैंकरों की भाँति होता था, एक बैंक की भाँति सर्राफ हवाला भुगतान करते हैं और अपनी मर्जी के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत और कौड़ियों के मुकाबले पैसे की कीमत बढ़ा देते हैं।”

प्रश्न 75
ग्राम पंचायतों के कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आचरण पर नजर रखना। (2) दोषियों पर जुर्माना लगाना और समुदाय से निष्कासित करना। इसके अन्तर्गत दण्डित व्यक्ति को निर्धारित समय के लिए गाँव छोड़ना पड़ता था। इस दौरान वह अपनी जाति और व्यवसाय से बचित हो जाता था।

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प्रश्न 76.
मध्यकालीन भारत में सिंचाई के कौनसे साधन प्रचलित थे?
उत्तर:
मानसून भारतीय कृषि का रीढ़ था। खेती कृषि पर निर्भर करती थी परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त जल की आवश्यकता थी। अतः कुआँ, नहरों, नदियों, जलाशयों आदि से भी खेती की सिंचाई की जाती थी। बाबर के अनुसार रहट या बाल्टियों से सिंचाई की जाती थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आप कृषि का इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ का स्रोत के रूप में किस प्रकार उपयोग करेंगे? समझाइये
अथवा
कृषि-इतिहास के स्रोत के रूप में ‘आइन-ए- अकबरी’ का वर्णन कीजिये।
अथवा
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि – इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का विवेचन निम्नलखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए ऐतिहासिक ग्रन्थ व दस्तावेज-किसान अपने बारे में स्वयं नहीं लिखा करते थे इसलिए खेतों में काम करने वाले ग्रामीण समाज के क्रिया-कलापों की जानकारी हमें उन लोगों से प्राप्त नहीं होती। परिणामस्वरूप सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाले हमारे मुख्य स्रोत वे ऐतिहासिक ग्रन्थ एवं दस्तावेज हैं, जो मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए थे।

(2) ‘आइन-ए-अकबरी’- सोलहवीं या सत्रहवीं शताब्दियों का कृषि इतिहास लिखने के लिए, ‘आइन- ए-अकबरी’ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है ‘ आइन-ए- अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फसल ने की थी। ‘आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूप- रेखा प्रस्तुत करना था, जहाँ एक शक्तिशाली सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बना कर रखता था। ‘आइन’ के तीसरे भाग ‘मुल्क आबादी में उत्तर भारत के कृषि-समाज के बारे में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा | राजस्व की दरों के आंकड़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें प्रत्येक प्रान्त तथा उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन और निर्धारित राजस्व का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है।

(3) अन्य स्रोत- सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी के लिए हम निम्नलिखित स्रोतों का भी प्रयोग कर सकते हैं-
(i) मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए ग्रन्थ व दस्तावेज’ आइन’ की जानकारी के साथ- साथ हम उन लोगों का भी प्रयोग कर सकते हैं, जो मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए थे। इनमें सत्रहवीं व अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से उपलब्ध होने वाले वे दस्तावेज सम्मिलित हैं. जो सरकार की आय की विस्तृत जानकारी देते हैं।

(ii) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दस्तावेज इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत से दस्तावेज भी हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी जानकारी देते हैं। इन सभी स्रोतों में किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले झगड़ों के विवरण मिलते हैं। इन स्रोतों से हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि किसानों का राज्य के प्रति क्या दृष्टिकोण था तथा राज्य से उन्हें कैसे न्याय की आशा थी।

प्रश्न 2.
खुद काश्त व पाहि काश्त से आप क्या समझते हैं? मुगलकाल में किसानों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसानों को मुगलकाल में रैयत या मुजरिवान कहा जाता था। किसानों के लिए सत्रहवीं सदी के भारतीय- फारसी स्रोत में इसी शब्द का प्रयोग किया गया है। किसानों के लिए आसामी शब्द का प्रयोग भी किया जाता था। यह शब्द गाँवों में अब भी प्रचलित है। सत्रहवीं शताब्दी के ग्रामीण समाज से सम्बन्धित स्रोतों में दो प्रकार के किसानों का उल्लेख किया गया है; जो इस प्रकार है – खुद काश्त किसन जो उन्हीं गाँवों में निकास करते थे जिनमें उनकी जमीन होती थी अपनी जमीन पर खेती करने वाले किसानों को खुद काश्त किसान कहा जाता था। पाहि काश्त पाहि काश्त उन किसानों को कहा जाता था जो दूसरे गाँवों से आकर ठेके पर खेती लेकर कृषि कार्य करते थे। कभी-कभी लोग दूसरे गाँवों में खेती की अच्छी सम्भावनाओं, जैसेकि ठेके आदि की कम दरें और अच्छी उपज के लालच में पाहि काश्तकारी करते थे।

आर्थिक परेशानी, अकाल या भुखमरी तथा खुद की जमीन न होने पर भी लोग पाहि काश्तकारी करते थे। किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि उनकी समृद्धि का मापदण्ड थी। सामान्य तौर पर उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास अधिक भूमि न होने के कारण एक जोड़ी बैल और दो हल से अधिक कुछ नहीं होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी न्यून साधन होते थे किसानों के पास उपलब्ध साधनों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भूमि की उपलब्धता कम थी। गुजरात में 6 एकड़ जमीन का स्वामित्व रखने वाले किसान समृद्ध कहे जाते थे। बंगाल में औसत किसान के पास अधिक से अधिक 5 एकड़ जमीन होती थी।

10 एकड़ जमीन रखने वाले किसान अमीर समझे जाते थे। कृषि भूमि की मिल्कियत जिस प्रकार अन्य सम्पत्तियाँ खरीदी और बेची जाती थीं, उसी प्रकार कृषि भूमि भी व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी। व्यक्तिगत मिल्कियत होने के नाते किसान कृषि भूमि तथा क्रय-विक्रय अन्य सम्पत्तियों की भाँति कर सकते हैं। किसानों की मिल्कियत के बारे में एक विवरण उन्नीसवीं सदी के दिल्ली-आगरा प्रदेश के किसानों के सम्बन्ध में प्राप्त होता है। उपर्युक्त विवरण सत्रहवीं सदी के किसानों पर भी इसी भाँति लागू होता है। किसानों की दशा तत्कालीन समय के इतिहासकारों में किसानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में मतभेद है।

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प्रश्न 3.
मुगलकाल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में उपयोगिता को समझाइये।
अथवा
‘बाबरनामा’ में वर्णित भारत में सिंचाई के साधनों एवं उपकरणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगलकाल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में उपयोगिता आज की भाँति मानसून मुगलकाल में भी भारतीय कृषि को रोड़ थी परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। अतः मुगल काल में वर्षा के अतिरिक्त सिंचाई तालाबों, कुओं, नहरों एवं बांधों के द्वारा होती थी। मुगल काल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में काफी उपयोगिता है। आज भी देश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है। यद्यपि आज धनी लोगों द्वारा ट्यूबवैल आदि आधुनिक साधनों का उपयोग किया जाता है, परन्तु अधिकांशतः खेतों की सिंचाई वर्षा, कुओं, तालाबों, नहरों, बांधों के द्वारा ही की जाती है।

(2) ‘बाबरनामा में वर्णित भारत में सिंचाई के साधन-
(i) बहते पानी के प्रबन्ध का अभाव- भारत का -अधिकतर भाग मैदानी जमीन पर बसा हुआ है। यद्यपि यहाँ शहर और खेती योग्य जमीन की प्रचुरता थी, परन्तु कहीं भी बहते पानी का प्रबन्ध नहीं किया जाता था। इसलिए फसलें उगाने या बागानों के लिए पानी की बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी। शरद ऋतु की फसलें वर्षा के पानी से ही पैदा हो जाती थीं यह बड़े आश्चर्य की बात है कि बसन्त ऋतु की फसलें तो वर्षा के अभाव में भी पैदा हो जती थीं।

(ii) रहट द्वारा सिंचाई ‘बाबरनामा’ के अनुसार छोटे पेड़ों तक रहट या बाल्टियों के द्वारा पानी पहुंचाया जाता था लाहौर, दीपालपुर (वर्तमान में पाकिस्तान में) और ऐसे दूसरे स्थानों पर लोग रहट के द्वारा सिंचाई करते थे लोग रस्सी के दो गोलाकार फंदे बनाते थे, जो कुएँ की गहराई के अनुसार लम्बे होते थे। इन फन्दों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लकड़ी के गुटके लगाए जाते थे और इन गुटकों पर पड़े बांध दिए जाते थे।

लकड़ी के गुटकों और घड़ों से बंधी इन रस्सियों को कुएँ के ऊपर पहियों से लटकाया जाता था। पहिये की धुरी पर एक ओर पहिया होता था। इस अन्तिम पहिए को बैल के द्वारा घुमाया जाता था इस पहिये के दाँत पास के दूसरे पहिए के दांतों को जकड़ लेते थे और इस प्रकार घड़ों वाला पहिया घूमने लगता था। घड़ों से जहाँ पानी गिरता था, वहाँ एक संकरा नाला खोद दिया जाता था और इस विधि से प्रत्येक स्थान पर पानी पहुँचाया जाता था।

(iii) बाल्टियों से सिंचाई ‘बाबरनामा’ के अनुसार वर्तमान उत्तर प्रदेश में स्थित आगरा, चांदवर तथा बवाना में और ऐसे अन्य प्रदेशों में भी लोग बाग बाल्टियों से सिंचाई करते थे। वे कुएँ के किनारे पर लकड़ी के कन्ने गाड़ देते थे। वे इन फन्नों के मध्य बेलन टिकाते थे, एक बड़ी बाल्टी में रस्सी बांधते थे रस्सी को बेलन पर लपेटते थे और इसके दूसरे छोर को बैल से बाँध देते थे। एक व्यक्ति बैल हाँकता था तथा दूसरा बाल्टी से पानी निकालता था।

प्रश्न 4.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति पर प्रकाश डालिए। उत्तर भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति –
(1) गाँवों में बड़ी संख्या में दस्तकारों की उपलब्धता-अंग्रेजी शासन के प्रारम्भिक वर्षों में किए गए गाँवों के सर्वेक्षण तथा मराठाओं के दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि गाँवों में दस्तकार काफी बड़ी संख्या में रहते थे। कुछ गाँवों में तो कुल घरों के 25 प्रतिशत घर दस्तकारों के थे।

(2) किसानों और दस्तकारों के बीच सम्बन्ध- कभी-कभी किसानों और दस्तकारों के बीच अन्तर करना कठिन होता था क्योंकि कई ऐसे समूह से जो दोनों प्रकार के काम करते थे। खेतिहर और उसके परिवार के सदस्य अनेक प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेते थे। उदाहरणार्थ, वे रंगरेजी, कपड़ों पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाने, खेती के औजार बनाने या उनकी मरम्मत का काम करते थे। बुआई और सुहाई के बीच या सुहाई और के बीच की अवधि में किसानों के पास खेती का काम नहीं होता था, इसलिए इस अवधि में ये खेतिहर दस्तकारी का काम करते थे।

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(3) ग्रामीण दस्तकारों द्वारा गाँव के लोगों को सेवाएँ देना कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई और सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएं गाँव के लोगों को देते थे। इसके बदले गाँव के लोग उन्हें अलग-अलग तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग दे दिया करते थे या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा यह जमीन का टुकड़ा ऐसा था जो खेती योग्य होने के बावजूद बेकार पड़ा रहता था भुगतान का तरीका सम्भवतः पंचायत ही निश्चित करती थी। महाराष्ट्र में ऐसी जमीन दस्तकारों की ‘मीरास’ या ‘वतन’ बन गई जिस पर दस्तकारों का पैतृक अधिकार होता था।

यही व्यवस्था कभी-कभी थोड़े परिवर्तित रूप में भी पाई जाती थी। इसमें दस्तकार और प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी बातचीत द्वारा सेवाओं के भुगतान की कोई एक व्यवस्था तय कर लेते थे। इस स्थिति में प्रायः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता था उदाहरणार्थ, अठारहवीं सदी के स्त्रोतों से ज्ञात होता है कि बंगाल में जमींदार उनकी सेवाओं के बदले लोहारों, बढ़ई और सुनारों तक को “दैनिक भत्ता और खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को ‘जजमानी’ कहते थे। इन तथ्यों से पता चलता है कि गाँव के छोटे स्तर पर विनिमय के सम्बन्ध काफी जटिल थे। परन्तु ऐसा नहीं है कि नकद अदायगी का प्रचलन बिल्कुल ही नहीं था।

प्रश्न 5.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका का विवेचन कीजिए। समाज में उनकी स्थिति पर प्रकाश डालिए । उत्तर- भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका-
(1) उत्पादन की प्रक्रिया में पुरुष और महिलाओं की भूमिका उत्पादन की प्रक्रिया में पुरुष और महिलाएँ विशेष प्रकार की भूमिकाएं निभाते हैं। भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भी महिलाएँ और पुरुष कन्धे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करते थे।

पुरुष हल जोतते थे तथा हल चलाते थे और महिलाएँ बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल से दाना निकालने का काम करती थीं। फिर भी महिलाओं की जैव वैज्ञानिक क्रियाओं को लेकर लोगों के मन में पूर्वाग्रह बने रहे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी भारत में मासिक धर्म वाली महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की अनुमति नहीं थी। इसी प्रकार बंगाल में अपने मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बागान में प्रवेश नहीं कर सकती थीं।

(2) दस्तकारी के कामों में महिलाओं का योगदान- सूत कातने वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंथने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्य महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे।

(3) महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में महिलाएं श्रम प्रधान समाज में बच्चे उत्पन्न करने की अपनी योग्यता के कारण महिलाओं को महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा
जाता था।

समाज में महिलाओं की स्थिति-
(1) विवाहित महिलाओं की कमी तत्कालीन युग में विवाहित महिलाओं की कमी थी क्योंकि कुपोषण, बार-बार माँ बनने और प्रसव के समय मृत्यु हो जाने के कारण महिलाओं में मृत्यु दर बहुत अधिक थी इससे किसान और दस्तकार समाज में ऐसे सामाजिक रीति- रिवाज उत्पन्न हुए, जो अभिजात वर्ग के लोगों से बहुत अलग थे। कई ग्रामीण सम्प्रदायों में विवाह के लिए ‘दुल्हन की कीमत अदा करनी पड़ती थी, न कि दहेज की। तलाकशुदा महिलाएँ और विधवाएँ दोनों ही कानूनी रूप से विवाह कर सकती थीं।

(2) महिलाओं पर नियन्त्रण रखना प्रचलित रिवाज के अनुसार घर का मुखिया पुरुष होता था। इस प्रकार महिला पर परिवार और समुदाय के पुरुषों का पूर्ण नियन्त्रण बना रहता था दूसरे पुरुषों के साथ अवैध सम्बन्ध रखने के शक पर ही महिलाओं को भयानक दंड दिए जाते थे।

(3) महिलाओं द्वारा अपने पतियों की बेवफाई का विरोध-राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि पश्चिमी भारत के प्रदेशों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे प्रार्थना-पत्र मिले हैं, जो महिलाओं ने न्याय और मुआवजे की आशा से ग्राम पंचायतों को भेजे थे। इनमें पत्नियाँ अपने पतियों की बेवफाई का विरोध करती हुई दिखाई देती हैं या फिर गृहस्थी के पुरुष पर पत्नी और बच्चों की अवहेलना करने का आरोप लगाती हुई नजर आती हैं।

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(4) महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार- भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 6.
मुगलकाल में सिंचाई, कृषि तकनीक व फसलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिंचाई- भारत के किसानों की पारिश्रमिक प्रवृत्ति और कृषि से प्राप्त उनकी गतिशीलता, कृषि योग्य भूमि व श्रम की उपलब्धता के कारण कृषि का निरन्तर विस्तार हुआ खाद्यान्न फसलों, जैसे गेहूं, चावल, ज्वार आदि की खेती प्रचुरता के साथ की जाती थी। कृषि मुख्य रूप से मानसून पर आधारित थी: अधिक वर्षा वाले इलाकों में धान की खेती एवं कम वर्षा वाले इलाकों में गेहूं व बाजरे आदि की खेती की जाती थी कुछ फसलें ऐसी थीं, जिनके लिए अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती थी।

ऐसी फसलों के लिए सिंचाई के कृत्रिम साधन विकसित करने पड़े। सिंचाई के कृत्रिम उपायों के विकास में युगल शासकों ने व्यापक रुचि ली। किसानों को व्यक्तिगत रूप से कुएँ तालाब, बाँध आदि बनाने के लिए राज्य से सहायता दी गई। कई-कई नहरों व नालों का निर्माण राज्य द्वारा करवाया गया।

शाहजहाँ के शासन काल में पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई गई, जैसेकि पंजाब की शाह नहर कृषि तकनीकें खेती में मानवीय श्रम को कम करने के लिए किसानों ने पशुबल पर आधारित तकनीकों में नए सुधार किए। पहले जुताई के लिए लकड़ी के फाल वाले हल्के हल का प्रयोग किया जाता था।

लकड़ी के फाल वाले हल जमीन की गहरी जुताई कर सकने में सक्षम नहीं थे इसलिए किसानों ने नुकीली धार वाले लोहे के फाल का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया लोहे की फाल लगा हल आसानी से गहरी जुताई कर सकता था और हल खींचने वाले पशुओं पर जोर भी कम पड़ता था। मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लोहे के पतले धार वाले यन्त्र का प्रयोग किया जाने लगा। बीजों की बुआई के लिए बरमे का प्रयोग किया जाता था, जो बैलों द्वारा खींचा जाता था। हाथ से छिड़क कर भी बीज बोए जाते थे।

भरपूर फसलें मौसम के चक्रों पर आधारित स्त्री और खरीफ की फसलें मुख्य थीं खरीफ की फसल पतझड़ में और रबी की फसल वसंत में ली जाती थी। जहाँ पर सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती थी, उन क्षेत्रों में तीन फसलें ली जाती थीं। मुख्यतया खाद्यान्न फसलों की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था परन्तु कुछ नकदी फसलें भी उगाई जाती थी, जिन्हें ‘जिन्स-ए-कामिल’ म्यानि सर्वोत्तम फसलें कहा जाता था, जैसे- गन्ना, कपास, सरसों, नील आदि ।

प्रश्न 7.
आइन-ए-अकबरी’ मुगलकालीन
शासन व्यवस्था की जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है।” विवेचना कीजिए।
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ के ऐतिहासिक महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल की ‘आइन-ए-अकबरी’
(1) आइन-ए-अकबरी’ का संक्षिप्त परिचय- मुगल सम्राट अकबर के आदेश पर उसके दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना की थी। 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद, इस ग्रन्थ को पूरा किया गया। ‘आइन’ इतिहास लेखन की एक ऐसी विशाल परियोजना का भाग थी, जिसकी पहल अकबर ने की थी। ‘आइन” अक्रबरनामा’ की तीसरी जिल्द थी।

(2) ‘आइन’ की विषय-वस्तु’ आइन’ में निम्नलिखित विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है-

  • दरबार, प्रशासन और सेना का संगठन
  • राजस्व के स्रोत और अकबर के साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल ।
  • लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक रिवाज।
  • अकबर की सरकार के समस्त विभागों एवं प्रान्तों (सूर्वो) के बारे में विस्तार से जानकारी देने के अतिरिक्त, ‘आइन’ इन सूबों के बारे में जटिल और आँकड़ेबद्ध सूचनाएँ बड़ी बारीकी से देती है।

(3) महत्त्व इन सूचनाओं को इकट्ठा करके, उन्हें ‘क्रमबद्ध तरीके से संकलित करना एक महत्त्वपूर्ण शाही प्रक्रिया थी। इसने सम्राट को साम्राज्य के समस्त प्रदेशों में प्रचलित रिवाजें और व्यवसायों की जानकारी दी। इस प्रकार हमारे लिए’ आइन’ अकबर के शासनकाल से सम्बन्धित मुगल साम्राज्य के बारे में सूचनाओं की खान है।

(4) आइन’ के दफ्तर (भाग) आइन पांच भागों (दफ्तरों) का संकलन है। इसके पहले तीन भाग प्रशासन का विवरण देते हैं।
(i) मंजिल आबादी ‘मंजिल आबादी’ के नाम से पहला ग्रन्थ शाही घर-परिवार और उसके रख-रखाव से सम्बन्ध रखता है।

(ii) सिपह- आबादी- दूसरा भाग ‘सिपह आबादी’ सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है। इस भाग में शाही अधिकारियों (मनसबदारों), विद्वानों, कवियों और कलाकारों की संक्षिप्त जीवनियाँ सम्मिलित हैं।

(iii) मुल्क आबादी- तीसरे भाग ‘मुल्क- आबादी’ में साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आँकड़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसके बाद ‘बारह प्रान्तों का वर्णन’ दिया गया है। इस खण्ड में सांख्यिकी सूचनाएँ विस्तार से दी गई हैं। इसमें सूबों (प्रान्तों) और उनकी समस्त प्रशासनिक तथा वित्तीय इकाइयों (सरकार, परगना और महल) के भौगोलिक, स्थलाकृतिक और आर्थिक रेखाचित्र भी सम्मिलित हैं। इसी खण्ड में प्रत्येक प्रान्त और उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन और निर्धारित राजस्व (जमा) की जानकारी भी दी गई है।

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‘सरकार’ सम्बन्धी जानकारी-
सूबा स्तर की विस्तृत जानकारी देने के बाद, ‘आइन’ हमें सूबों के नीचे की इकाई ‘सरकारों’ के बारे में विस्तृत जानकारी देती है। ये सूचनाएँ तालिकाबद्ध तरीके से दी गई हैं। हर तालिका में आठ खाने हैं जो हमें निम्नलिखित सूचनाएं देते हैं-

परगनात / महल
(ii) किला
(iii) अराजी और जमीन-ए- पाईंमूद (मापे गए इलाके)
(iv) नकदी (नकद निर्धारित राजस्व)
(v) सुयूगल (दान में दिया गया राजस्व अनुदान)
(vi) जमींदार
सातवें तथा आठवें खानों में जमींदारों की जातियों और उनके घुड़सवार, पैदल सैनिक (प्यादा) व हाथी (फ्री) सहित उनकी सेना की जानकारी दी गई है। ‘मुल्क- आबादी’ नामक खण्ड उत्तर भारत के कृषि-समाज का विस्तृत, आकर्षक और जटिल चित्र प्रस्तुत करता है।
(iv) और
(v) भाग-ये भाग भारतवासियों के धार्मिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखते हैं।

प्रश्न 8.
आइन-ए-अकबरी के महत्त्व एवं सीमाओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
महत्व की विवेचना ‘आइन-ए-अकबरी’ के कीजिए और इसकी त्रुटियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’ का महत्त्व एवं त्रुटियाँ (सीमाएँ ) यद्यपि ‘आइन-ए-अकबरी’ को मुगल सम्राट अकबर के शासन की सुविधा के लिए आधिकारिक तौर पर विस्तृत सूचनाएँ संकलित करने के लिए प्रायोजित किया गया था, मा फिर भी यह ग्रन्थ आधिकारिक दस्तावेजों की नकल नहीं है। अबुलफजल की ग्रन्थ लेखन में बड़ी रुचि थी इसी कारण उसने इसकी पांडुलिपि को पाँच बार संशोधित किया था।

त्रुटियाँ इतिहासकारों के अनुसार ‘आइन’ की प्रमुख त्रुटियाँ (सीमाएँ ) निम्नलिखित हैं-
(1) जोड़ करने में गलतियाँ जोड़ करने में कई गलतियाँ पाई गई हैं। ऐसा माना जाता है कि या तो ये अंकगणित की छोटी-मोटी चूक है अथवा फिर नकल उतारने के दौरान अबुल फजल के सहयोगियों की भूल।
(2) संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं सभी सूबों (प्रान्तों) से आँकड़े एक ही रूप में एकत्रित नहीं किए गए हैं।
(3) कीमतों और मजदूरी से सम्बन्धित आँकड़ों का विस्तार से वर्णन नहीं करना इसी प्रकार जहाँ सूर्यो से लिए गए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से कीमतों और मजदूरी जैसे इतने ही महत्वपूर्ण आँकड़े इतने विस्तार से साथ नहीं दिए गए हैं।
(4) मूल्यों और मजदूरों की दरों की अपर्याप्त सूची- मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची ‘आइन’ में दी भी गई है, वह मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के प्रदेशों से ली गई है।

निष्कर्ष –
(1) असामान्य एवं अनूठा ग्रन्थ- कुछ त्रुटियों के होते हुए भी, ‘आइन’ अपने समय के लिए एक असामान्य एवं अनूठा दस्तावेज है। मुगल साम्राज्य के गठन और उसकी संरचना की अत्यन्त आकर्षक झलकियाँ दर्शा कर और उसके निवासियों व उत्पादों के सम्बन्ध में सांख्यिकीय आँकड़े देकर, अबुल फसल मध्यकालीन इतिहासकारों से कहीं आगे निकल गए।

(2) भारत के लोगों और उनके व्यवसायों के बारे में विस्तृत जानकारी देना मध्यकालीन भारत में अबुल फसल से पहले के इतिहासकार अधिकतर राजनीतिक घटनाओं के बारे में ही लिखते थे युद्ध-विजय, राजनीतिक प या वंशीय उथल-पुथल से सम्बन्धित विवरण ग्रन्थों में रहते थे। भारत के लोगों और मुगल साम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ देकर ‘आइन’ ने स्थापित परम्पराओं को पीछे छोड़ दिया और इस प्रकार सत्रहवीं सदी के भारत के अध्ययन के लिए एक संदर्भ बिन्दु बन गया। जहाँ तक कृषि सम्बन्धों का प्रश्न है, ‘आइन’ के सांख्यिकी प्रमाणों के महत्व को चुनौती नहीं दी जा सकती।

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प्रश्न 9.
मुगलों की भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मुगलों अथवा अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था मुगलों अथवा अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(1) भू-राजस्व – मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन-भू-राजस्व मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन था अतः कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए सम्पूर्ण साम्राज्य में राजस्व आकलन तथा वसूली के लिए एक प्रशासनिक तन्त्र की स्थापना की गई।
(2) भू-राजस्व के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करना भू-राजस्व प्रबन्ध के अन्तर्गत दो चरण थे-
(1) कर निर्धारण तथा
(2) वास्तविक वसूली जमा निर्धारित रकम थी तथा हासिल वास्तविक वसूली गई रकम राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था, परन्तु कभी-कभी वास्तव में इतनी वसूली कर पाना सम्भव नहीं हो पाता था।
(3) भूमि की पैमाइश अकबर ने जुती हुई जमीन तथा खेती योग्य भूमि दोनों की पैमाइश करवाई।
(4) भूमि का वर्गीकरण- कृषि योग्य भूमि को निम्नलिखित चार वर्गों में बांटा गया-

  • पोलज पोलज भूमि सबसे उत्तम भूमि थी जिस पर प्रत्येक वर्ष खेती होती थी।
  • परीती इस भूमि पर भी वर्ष भर खेती होती थी, परन्तु उसे पुनः उर्वरा शक्ति प्रदान करने के लिए एक अथवा दो वर्ष के लिए खाली छोड़ दिया जाता था।
  • चचर ऐसी भूमि जिस पर तीन वर्ष या चार वर्ष खेती नहीं की जाती थी, चचर भूमि कहलाती थी।
  • बंजर इस भूमि पर पाँच अथवा इससे भी अधिक वर्षों तक खेती नहीं की जाती थी।

(5) भूमि कर निर्धारण पोलज तथा परौती भूमि को तीन श्रेणियों में बाँटा गया था
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब प्रत्येक भूमि की औसत पैदावार का पता लगाया जाता था और इसका तीसरा भाग औसत पैदावार माना जाता था। इस औसत पैदावार का एक तिहाई हिस्सा भूमि-कर के रूप में लिया जाता था।

(6) भूमि कर व्यवस्था की अन्य प्रणालियाँ- अकबर ने आदेश दिया कि भूमि कर केवल नकदी के रूप में नहीं, बल्कि फसलों के रूप में भी वसूल किया जाए। इसके लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई गई

  • कणकुत प्रणाली- इसके अनुसार खड़ी फसल के अनुमान के आधार पर सरकारी लगान निश्चित किया जात था और फसल कटने पर सरकार अपना भाग ले लेती थी।
  • बटाई (भाओली) प्रणाली- इसमें फसल काट कर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति में व सहमति से बंटवारा करते थे।
  • खेत बटाई- इसमें बीज बोने के बाद खेत बाँट लिए जाते थे।
  • लाँग बटाई- इसमें फसल काटने के बाद उसके ढेर बना लिए जाते थे और फिर उसे आपस में बाँट लेते थे।

(7) अकबर के बाद मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था-अकबर के बाद के मुगल सम्राटों के शासन- काल में भी भूमि की नपाई के प्रयास जारी रहे। 1665 में औरंगजेब ने अपने राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया कि प्रत्येक गाँव में खेतिहरों की संख्या का वार्षिक हिसाब रखा जाए। परन्तु इसके बावजूद सभी प्रदेशों की नपाई सफलतापूर्वक नहीं हुई।

प्रश्न 10.
मुगलकाल में भू-राजस्व निर्धारण की कौनसी प्रणालियाँ प्रचलित थीं?
उत्तर:
मुगलकाल के भू-राजस्व निर्धारण की प्रणालियाँ अकबर ने राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया था कि वे लगान नकदी में लेने की आदत न डालें, बल्कि फसल भी लेने के लिए तैयार रहें। अतः अकबर के शासनकाल में भूमि कर निर्धारण के लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई गई-
(1) कणकुत प्रणाली हिन्दी भाषा में ‘कण’ का अर्थ है-‘ अनाज’ और ‘कुल’ का अर्थ है-‘ अनुमान’ इसके अन्तर्गत फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था

  • अच्छा
  • मध्यम
  • खराब इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसल के अनुमान के आधार पर सरकारी लगान निश्चित किया जाता था और फसल कटने पर सरकार अपना भाग लेती थी। प्रायः अनुमान से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था।

(2) बटाई या भाओली इस प्रणाली के अन्तर्गत फसल काटकर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति में व आपसी सहमति से बँटवारा कर लेते थे। इसमें फसल का कुछ भाग सरकार द्वारा से लिया जाता था। परन्तु इसमें कई बुद्धिमान निरीक्षकों की आवश्यकता पढ़ती थी वरना दुष्ट बुद्धि मक्कार और धोखेबाज लोग बेइमानी करते थे तथा किसानों को धोखा देते थे।

(3) खेत बढाई इसमें खेत में बीज बो दिए जाते थे और बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते थे। जिस प्रकार की फसल बोई जाती थी, उसी के अनुसार लगान निर्धारित होता था।

(4) लॉंग बटाई इसमें फसल काटने के बाद उसके देर बना लिए जाते थे और फिर उन्हें आपस में बाँट लेते थे प्रत्येक पक्ष फसल का अपना भाग लेकर घर ले जाता था और उससे मुनाफा कमाता था।

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प्रश्न 11.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में चाँदी के प्रवाह का वर्णन कीजिए। भारत में चाँदी के प्रवाह के बारे में इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में चाँदी का प्रवाह सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में व्यापार की बहुत अधिक उन्नति हुई खोजी यात्राओं से और ‘नई दुनिया’ की खोज से यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारत के समुद्र पार व्यापार की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई तथा कई नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी का आगमन हुआ। इस चाँदी का एक बड़ा हिस्सा भारत पहुँचा। यह स्थिति भारत के लिए लाभप्रद थी क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। परिणामस्वरूप, सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा – विशेषकर चांदी के रुपयों की प्राप्ति में अच्छी स्थिरता बनी रही। इसके दो लाभ हुए-
(1) अर्थव्यवस्था में मुद्रा- संचार तथा सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा –
(2) मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई।

इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी का वृत्तांत-
लगभग 1690 ई. में इटली का यात्री जोवान्नी कारेरी भारत से होकर गुजरा था वह यहाँ चाँदी की प्रचुरता देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा कि मुगल साम्राज्य में चाँदी भारी मात्रा में समस्त विश्व में से होकर भारत पहुँचती थी। उसने लिखा है कि समस्त है संसार में विचरण करने वाला समस्त सोना-चाँदी अन्ततः भारत पहुँच जाता है। इसका बहुत बड़ा भाग अमेरिका से आता है और यूरोप के कई राज्यों से होते हुए, इसका कुछ भाग कई प्रकार की वस्तुओं के लिए तुर्की में जाता है और थोड़ा-सा भाग रेशम के लिए फारस पहुँचता है। तुर्की लोग कॉफी से अलग नहीं रह सकते और न ही फारस अरविया तथा तुर्की के लोग भारत की वस्तुओं के बिना रह सकते हैं।

चे मुद्रा की विशाल मात्रा मोचा भेजते हैं। इसी प्रकार वे ये वस्तुएँ बसरा भेजते हैं। बाद में यह समस्त सम्पत्ति जहाजों से भारत भेज दी जाती है भारतीय जहाजों के अतिरिक्त जो डच, अंग्रेजी और पुर्तगाली जहाज प्रतिवर्ष भारत की वस्तुएँ लेकर पेगू, स्याम, श्रीलंका, मालद्वीप, मोजाम्बीक और अन्य स्थानों पर ले जाते हैं, इन्हीं जहाजों को निश्चित तौर पर विपुल सोना-चाँदी इन देशों से लेकर भारत पहुँचना पड़ता है। वह सब कुछ, जो डच लोग जापान की खानों से प्राप्त करते हैं अन्ततः भारत चला जाता है। यहाँ से यूरोप को जाने वाली समस्त वस्तुएँ चाहे वे फ्रांस जाएँ या इंग्लैण्ड या पुर्तगाल, सभी नकद में खरीदी जाती हैं, जो नकद भारत में रह जाता है।

प्रश्न 12.
उन स्त्रोतों का उल्लेख कीजिए जिनका प्रयोग अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ को पूरा करने के लिए किया।
उत्तर:
अबुल फजल द्वारा ‘अकबरनामा’ को पूरा करने के लिए प्रयुक्त किए गए स्त्रोत
(1) दस्तावेजों तथा प्रमाणों को एकत्रित करना- मुगल सम्राट अकबर ने अबुल फसल को आदेश दिया था कि वह साम्राज्य की शानदार घटनाओं और राज्य क्षेत्र अधीन करने वाली उनकी विजयों का ईमानदारी से वर्णन करे। अबुल फसल ने सम्राट के आदेश का पालन करते हुए अनेक दस्तावेज तथा प्रमाण इकट्ठे किये और राज्य के कर्मचारियों तथा शाही परिवार के सदस्यों से सूचनाएँ माँगीं।

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(2) लोगों के विवरणों को नोट करना अबुल फसल ने सच बोलने वाले बुद्धिमान बुजुर्गों और तीव्र बुद्धिवाले, सत्यकर्मी जवानों दोनों की जाँच-पड़ताल की और उनके विवरणों को लिखित रूप में नोट किया।

(3) पुराने कर्मचारियों द्वारा लिखित संस्मरणों का अवलोकन करना- सूबों (प्रान्तों) को शाही आदेश जारी किया गया कि पुराने कर्मचारी अपने संस्मरण लिखें और उसे दरबार भेज दें। इसके बाद एक और शाही आदेश जारी किया गया कि जो सामग्री जमा की जाए, उसे सम्राट की उपस्थिति में पड़कर सुनाया जाए और बाद में जो कुछ भी

लिखा जाना हो, उसे उस महान ग्रन्थ में परिशिष्ट के रूप में जोड़ दिया जाए। अबुल फजल को आदेश दिया गया कि वह ऐसे विवरण जो उसी समय परिणति तक न लाए जा सकें, को बाद में नोट करे –

(4) घटनाओं का इतिहासवृत्त प्राप्त करना इस शाही आदेश के बाद अबुल फजल ने ऐसे कच्चे प्रारूप लिखने शुरू किये जिसमें शैली या विन्यास का सौन्दर्य नहीं था। उन्होंने इलाही संवत के उन्नीसवें वर्ष से जब बादशाह ने दस्तावेज कार्यालय स्थापित किया था, घटनाओं का इतिहासवृत्त प्राप्त किया और उसके पृष्ठों से कई मामलों का वृत्तान्त प्राप्त किया। उन सभी आदेशों की मूल प्रति वा नकल प्राप्त की गई, जो राज्याभिषेक से लेकर आज तक सूबों को जारी किए गए थे। अबुल फसल ने उनमें से कई रिपोर्टों को भी शामिल किया, जो साम्राज्य के विभिन्न मामलों या दूसरे देशों में घटी घटनाओं के बारे में थीं और जिन्हें उच्च अधिकारियों और मन्त्रियों ने भेजा था।

(5) कच्चे मसौदे तथा ज्ञानपत्र प्राप्त करना अबुल | फसल ने वे कच्चे मसौदे तथा ज्ञानपत्र भी प्राप्त किये जिन्हें जानकार और दूरदर्शी लोगों ने लिखा था।

प्रश्न 13.
मुगल काल में कृषि कीजिए।
की दशा का वर्णन
उत्तर:
मुगल काल में कृषि की दशा मुगल काल में कृषि की दशा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) फसलें मुगलकाल में भी कृषि भारतीयों के जीवन निर्वाह करने का प्रमुख साधन था किसान फसल की पैदावार से सम्बन्धित विविध प्रकार के कार्य करते थे, जैसे कि जमीन की जुताई, बीज बोना तथा फसल पकने पर उसकी कटाई वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित होते थे जो कृषि आधारित थीं, जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि।

(2) फसलों की भरमार मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी एक खरीफ (पतझड़ में) तथा दूसरी रबी (बसन्त में)। अधिकांश स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं। दैनिक आहार की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था। कपास और गन्ना जैसी फसलें श्रेष्ठ ‘जिन्स- ए-कामिल थीं। मध्यभारत तथा दक्कनी पठार में कपास उगाई जाती थी। बंगाल गन्ने के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। तिलहन (सरसों) और दलहन भी नकदी फसलों में गिनी जाती थीं। मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन से पहुँचा टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई।

(3) सिंचाई के साधन आज की भाँति मानसून मुगल काल में भी भारतीय कृषि की रीढ़ था परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। ‘बाबरनामा’ से ज्ञात होता है कि छोटे पेड़ों तक रहट एवं बाल्टियों के द्वारा पानी पहुँचाया जाता था। इसके अतिरिक्त सिंचाई तालाबों, कुओं, नहरों एवं बाँधों के द्वारा भी होती थी। सिंचाई कार्यों को राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया जाता था।

(4) किसानों द्वारा तकनीकों का प्रयोग किसान प्राय: पशुबल पर आधारित तकनीकों का प्रयोग करते थे। वे लकड़ी के उस हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर आसानी से बनाया जा सकता था। ऐसे हल मिट्टी को बहुत गहरे नहीं खोदते थे जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में नमी बची रहती थी। बैलों के जोड़ों के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था। मिट्टी की गुड़ाई और साथ-साथ निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार काम में लाए जाते थे।

(5) फलों के बाग मुगल सम्राटों ने फलों के अनेक बाग लगवाये।

(6) कृषि की दशा को सुधारने के लिए मुगल- सम्राटों के प्रयास मुगल सम्राटों ने किसानों को अच्छी फसलें गन्ना, कपास, तिलहन, दलहन आदि का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 14.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) किसानों के प्रकार-सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारतीय फारसी लोत ‘किसान’ के लिए चार शब्दों का प्रयोग करते थे-
(1) रैयत
(2) मुजरियान
(3) किसान और
(4) आसामी सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत निम्नलिखित दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं-
(i) खुद काश्त एवं
(ii) पाहि काश्त

(i) खुद काश्तखुद काश्त किसान वे थे जो उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी।
(ii) पाहि काश्त पाहि कारण वे खेतिहर थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे लोग अपनी इच्छा से भी पाहि-कारत बनते थे। उदाहरणार्थ-
(1) यदि करों की शर्तें किसी दूसरे गाँव में अधिक अच्छी मिलती थीं तथा
(2) अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी के कारण।

(2) किसानों की समृद्धि का मापदंड उत्तर भारत में एक औसत किसान के पास सम्भवतः एक जोड़ी बैल तथा दो हल से अधिक कुछ नहीं होता था अधिकतर किसानों के पास इससे भी कम था। गुजरात में जिन किसानों के पास 6 एकड़ के लगभग जमीन थी, वे समृद्ध माने जाते थे। दूसरी ओर बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ भी वहीं 10 एकड़ जमीन वाले आसामी को धनी समझा जाता था।

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(3) व्यक्तिगत मिल्कियत खखेती व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी। किसानों की जमीन अन्य सम्पति मालिकों की भाँति खरीदी और बेची जाती थी। उन्नीसवीं सदी के दिल्ली-आगरा के प्रदेश में किसानों की मिल्कियत का यह विवरण सत्रहवीं सदी पर भी उतना ही लागू होता है- “हल जोतने वाले खेतिहर किसान हर जमीन की सीमाओं पर मिट्टी, ईंट और काँटों से पहचान के लिए निशान लगाते हैं और जमीन के ऐसे हजारों टुकड़े किसी भी गाँव में देखे जा सकते हैं।”

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन Important Questions and Answers.

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बहुचयनात्मक प्रश्न

1. इजराइल ने लेबनान पर हमला किया।
(अ) फरवरी, 2006
(स) अक्टूबर, 2006
(ब) जून, 2006
(द) जनवरी, 2006
उत्तर:
(ब) जून, 2006

2. संयुक्त राष्ट्रसंघ के दूसरे महासचिव थे
(अ) एंटोनियो गुटेरेस
(ब) यू थांट
(स) बान की मून
(द) डेग हैमरशोल्ड
उत्तर:
(द) डेग हैमरशोल्ड

3. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में कितने सदस्य हैं?
(अ) 193
(ब) 191
(स) 190
(द) 189
उत्तर:
(द) 189

4. अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और ब्रितानी प्रधानमंत्री चर्चिल ने अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए-
(अ) फरवरी, 1945
(स) अक्टूबर, 1945
(ब) जून, 1941
(द) अगस्त, 1941
उत्तर:
(द) अगस्त, 1941

5. संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान सदस्य संख्या कितनी है
(अ) 193
(ब) 190
(स) 189
(द) 191
उत्तर:
(अ) 193

6. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब की गई-
(अ) 24 अक्टूबर, 1945
(ब) 1 जनवरी, 1945
(स) 1 जून, 1945
(द) 31 दिसम्बर, 1945
उत्तर:
(अ) 24 अक्टूबर, 1945

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7. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय कहाँ है-
(अ) वाशिंगटन में
(ब) न्यूयार्क में
(स) हेग में
(द) जिनेवा में
उत्तर:
(स) हेग में

8. भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ में कब शामिल हुआ?
(अ) 24 अक्टूबर, 1995
(ब) 30 अक्टूबर, 1945
(स) 26 जून, 1945
(द) 15 अक्टूबर, 1945
उत्तर:
(ब) 30 अक्टूबर, 1945

9. संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है
(अ) 24 अक्टूबर को
(स) 15 अगस्त को
(ब) 20 जनवरी को
(द) 26 जनवरी को
उत्तर:
(अ) 24 अक्टूबर को

10. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या है।
अ) 11
(ब) 9
(स) 15
(द) 16
उत्तर:
(स) 15

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतीक चिह्न में ……………………….. की पत्तियाँ हैं, जो कि ……………………. का संकेत करती हैं।
उत्तर:
जैतून, विश्व शांति

2. ………………………. का सबसे प्रभावकारी समाधान वैश्विक तापवृद्धि को रोकना है।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग

3. अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष में समूह -7 के सदस्यों के पास …………………….. प्रतिशत मत है।
उत्तर:
41.29

4. IMF में अमरीका का मताधिकार ……………………. प्रतिशत है।
उत्तर:
16.52

5. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों का चुनाव ………………………. तथा ………………………… में पूर्ण बहुमत द्वारा होता है।
उत्तर:
आम सभा, सुरक्षा परिषद्

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दूसरा विश्व युद्ध कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
दूसरा विश्व युद्ध 1945 में समाप्त हुआ।

प्रश्न 2.
विश्व बैंक की औपचारिक स्थापना कब हुई?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन् 1944 में विश्व बैंक की औपचारिक स्थापना हुई।

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प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्रसंघ का प्रतीक चिह्न क्या है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतीक चिह्न में दुनिया का नक्शा बना हुआ है और इसके चारों तरफ जैतून की पत्तियाँ हैं।

प्रश्न 4.
समूह -7 के सदस्य देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
समूह – 7 के सदस्य देशों के नाम- अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और कनाडा है।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा पर हस्ताक्षर कब हुआ?
उत्तर:
धुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ रहे 26 मित्र राष्ट्र अटलांटिक चार्टर के समर्थन में वाशिंग्टन में मिले ओर दिसंबर, 1943 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा पर हस्ताक्षर हुए।

प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् की सिफारिश के आधार पर महासभा महासचिव को नियुक्त करती है।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय कुल कितने सदस्य थे?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय कुल 51 सदस्य थे

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के नौवें महासचिव कौन हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के नौवें महासचिव एंटोनियो गुटेरेस हैं। इन्होंने महासचिव का पद 1 जनवरी, 2017 को संभाला।

प्रश्न 9.
विश्व की एकमात्र सुपर पॉवर ( महाशक्ति) का नाम बताइये।
उत्तर:
विश्व की एकमात्र महाशक्ति ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ है।

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प्रश्न 10.
आई. एम. एफ. का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund)

प्रश्न 11.
डब्ल्यू. एच. ओ. (W.H.O.) का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization )

प्रश्न 12.
यूनेस्को (UNESCO) का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific Cultural Organization)

प्रश्न 13.
इजरायल ने लेबनान पर कब हमला किया? उसने अपने आक्रमण को क्यों जरूरी बताया?
उत्तर:
इजरायल ने लेबनान पर 2006 में हमला किया। उसने उग्रवादी गुट हिजबुल्लाह पर अंकुश लगाने हेतु आक्रमण को आवश्यक बताया।

प्रश्न 14.
इजरायल के लेबनान पर आक्रमण के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ का क्या दृष्टिकोण रहा?
उत्तर:
इजरायल के लेबनान पर 2006 के आक्रमण के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ का यह दृष्टिकोण रहा कि इजरायली सैन्य बल इस क्षेत्र से वापस जाये।

प्रश्न 15.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मांगे जाने पर सदस्य देशों को वित्तीय एवं तकनीकी मदद उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 16.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
1 जनवरी, 1995 को।

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प्रश्न 17.
विश्व व्यापार संगठन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन की मुख्य भूमिका विश्व के देशों में समान आर्थिक नियमों को लागू करना एवं मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है।

प्रश्न 18.
विश्व व्यापार संगठन की सदस्य संख्या क्या है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन की सदस्य संख्या 150 है।

प्रश्न 19.
विश्व व्यापार संगठन में फैसले कैसे लिये जाते हैं?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन में फैसले आम सहमति से लिये जाते हैं।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस संगठन का मुख्य उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना तथा सैन्य उद्देश्यों में इसके प्रयोग को रोकना है।

प्रश्न 21.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी (आई.ए.ई.ए.) का स्थापना वर्ष लिखिये
उत्तर:
सन् 1957 ई.

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प्रश्न 22.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी क्या प्रयास करता है?
उत्तर:
यह संगठन परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने का कार्य करता है।

प्रश्न 23.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य शांति और सुरक्षा कायम करना है।

प्रश्न 24.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क में स्थित है।

प्रश्न 25.
अमरीका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन को संयुक्त राष्ट्रसंघ का स्थायी सदस्य क्यों चुना गया?
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध के तुरंत बाद के समय में ये देश सबसे ज्यादा ताकतवर थे और इस महायुद्ध के विजेता भी रहे, इसलिए इन्हें स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया।

प्रश्न 26.
संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग कौनसा है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग ‘सुरक्षा परिषद्’ है।

प्रश्न 27.
संयुक्त राष्ट्र संघ का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग कौनसा है, जिसके सभी सदस्य राष्ट्र सदस्य हैं?
उत्तर:
आम सभा या महासभा।

प्रश्न 28.
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंग कितने हैं? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंग हैं। ये हैं।

  1. महासभा
  2. सुरक्षा परिषद्
  3. आर्थिक और सामाजिक परिषद्
  4. न्यास परिषद्
  5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय और
  6. सचिवालय।

प्रश्न 29.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 वर्ष का होता है । प्रश्न 30. संयुक्त राष्ट्र संघ के किन्हीं दो विशिष्ट अभिकरणों के नाम लिखिये।
उत्तर:
कृषि एवं खाद्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन

प्रश्न 31.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या कितनी है और उनका कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या 10 है तथा उनका कार्यकाल 4 वर्ष का है।

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प्रश्न 32.
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य ये हैं।

  1. सामूहिक व्यवस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा कायम रखना और आक्रामक प्रवृत्तियों को नियंत्रण में रखना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना।

प्रश्न 33.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के दो कार्य बताइये।
उत्तर:

  1. साधारण सभा की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना
  2. सुरक्षा सम्बन्धी विवादों को महासभा के समक्ष प्रस्तुत करना।

प्रश्न 34.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे किन्हीं दो गैर-सरकारी संगठनों के नाम लिखें।
अथवा
मानवाधिकारों की रक्षा में संलग्न दो गैर सरकारी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन कौन से हैं?
उत्तर:

  1. एमनेस्टी इन्टरनेशनल
  2. ह्यमन राइट्स वॉच।

प्रश्न 35.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कोई दो कार्य बताइये।
उत्तर:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा बनाये रखना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय कानून सम्बन्धी व्याख्या करना।

प्रश्न 36.
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1950 में ‘शांति के लिए एकता’ प्रस्ताव की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. महासभा का आपातकालीन अधिवेशन बुलाना
  2. शांति निरीक्षण आयोग की स्थापना करना।

प्रश्न 37.
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के दो कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ का बजट पारित करना।
  2. सुरक्षा परिषद् तथा अन्य संस्थाओं व संगठनों की रिपोर्ट पर विचार करना।

प्रश्न 38.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के नाम लिखिये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्य हैं। ये हैं।

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2.  ब्रिटेन
  3. फ्रांस
  4. रूस व
  5. चीन।

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प्रश्न 39.
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों को कौन निर्वाचित करता है? अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों को महासभा निर्वाचित करती है तथा अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष का होता है।

प्रश्न 40.
वर्तमान में सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या कितनी है?
उत्तर:
वर्तमान में सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या 15 है। इनमें 5 सदस्य स्थायी हैं और 10 अस्थायी हैं । प्रश्न 41. संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रतिष्ठा में वृद्धि के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:

  1. महासभा में प्रायः सभी देशों को प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
  2. शांति के लिये एकता प्रस्ताव के कारण।

प्रश्न 42.
जी 8 के सदस्य देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:
जी 8 के सदस्य देश हैं।

  1. अमरीका
  2. जापान
  3. जर्मनी
  4. फ्रांस
  5. ब्रिटेन
  6. इटली
  7. कनाडा और
  8. रूस।

प्रश्न 43.
संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक बजट में सर्वाधिक योगदान किस देश का है और कितना है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका का लगभग 22 प्रतिशत।

प्रश्न 44.
एमनेस्टी इण्टरनेशनल का क्या उत्तरदायित्व है?
उत्तर:
इसका उत्तरदायित्व है। मानवाधिकारों से सम्बद्ध रिपोर्ट तैयार करना तथा उन्हें प्रकाशित करना।

प्रश्न 45.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रथम महासचिव कौन थे?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रथम महासचिव ट्राइग्व ली थे।

प्रश्न 46.
संयुक्त राष्ट्रसंघ में अस्थायी सदस्य कितने वर्षों के लिए चुने जाते हैं?
उत्तर:
दो वर्षों के लिए।

प्रश्न 47.
मानवाधिकार परिषद् कब से सक्रिय है?
उत्तर:
मानवाधिकार परिषद् 19 जून, 2006 से सक्रिय है।

प्रश्न 48.
विश्व व्यापार संगठन किसके उत्तराधिकारी के रूप में कार्य करता है?
उत्तर:
जनरल एग्रींट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ

प्रश्न 49.
विश्व बैंक के मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर:
कृषि, ग्रामीण, विकास, पर्यावरण सुरक्षा, सुशासन तथा आधारभूत ढाँचे के लिए काम करता है।

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प्रश्न 50.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कार्य लिखिए।
उत्तर:
विश्व स्तर पर वित्त व्यवस्था की देखरेख तथा वित्तीय व तकनीकी सहायता देना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरक्षा परिषद् के अस्थाई सदस्यों का भौगोलिक वितरण किस प्रकार किया गया है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का भौगोलिक वितरण इस प्रकार है। अफ्रीका और एशिया के पाँच सदस्य, पूर्वी यूरोप का एक सदस्य, लातीन अमेरिका के दो सदस्य, पश्चिमी यूरोप तथा अन्य राज्यों के दो सदस्य।

प्रश्न 2.
वीटो किसे कहते हैं?
उत्तर:
वीटो का शब्दार्थ है, “मैं मना करता हूँ।” सुरक्षा परिषद् का कोई स्थायी सदस्य यदि किसी महत्त्वपूर्ण या सारवान प्रश्न पर असहमति प्रकट करता है तो उसे अस्वीकृत कर दिया जाता है। उसके इस अधिकार/ शक्ति को ही वीटो शक्ति कहा जाता है।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन या लोकतंत्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन या लोकतन्त्रीकरण से अभिप्राय है— सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों में विस्तार करना तथा उसमें विकासशील देशों को समुचित प्रतिनिधित्व देना।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता हेतु भारत की दावेदारी के समर्थन में दो तर्क लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्रीय देश है।
  2. भारत सैनिक, आर्थिक तथा प्रौद्योगिक दृष्टि से एक सशक्त राष्ट्र- है

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन एवं प्रक्रिया में सुधार के लिये कोई दो सुझाव दें।
उत्तर:

  1. वीटो की समाप्ति-सुरक्षा परिषद् की कार्यप्रणाली को व्यवस्थित एवं लोकतांत्रिक बनाने के लिए वीटो की शक्ति को समाप्त कर देना चाहिए।
  2. समान सदस्यता- सुरक्षा परिषद् में अस्थाई सदस्यों की धारणा को समाप्त करके सबको समान स्तर की. सदस्यता प्रदान करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ की समस्या को स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘ग्लोबल वार्मिंग’ से आशय है। वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने से तापमान में वृद्धि इससे समुद्रतल की ऊँचाई बढ़ने का खतरा है। ऐसा होने पर विश्व के समुद्रतटीय इलाके जलमग्न हो सकते हैं। इस समस्या का सबसे प्रभावकारी समाधान वैश्विक तापवृद्धि को रोकना है।

प्रश्न 7.
‘लीग ऑव नेशंस’ की उत्पत्ति क्यों हुई?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व को एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन की जरूरत का आभास हुआ जो अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निपटारा बातचीत द्वारा कर सके जिससे युद्ध जैसे विनाशकारी स्थिति को टाला जा सके। इसके परिणामस्वरूप ‘लीग ऑव नेशंस’ का जन्म हुआ।

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प्रश्न 8.
एंटोनियो गुटेरेस के बारे में संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
एंटोनियो गुटेरेस संयुक्त राष्ट्रसंघ के नौवें महासचिव हैं। उन्होंने महासचिव का पद 1 जनवरी, 2017 को ग्रहण किया। ये 1995 से 2002 तक पुर्तगाल के प्रधानमंत्री और 2005 से 2015 तक यूनाइटेड नेशंस हाई कमीशनर फॉर रिफ्यूजीज रहे। 1999-2005 तक ये सोशलिस्ट
इंटरनेशनल के अध्यक्ष भी रहे।

प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र संघ की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम लिखो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम इस प्रकार हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.)
  2. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO)
  3. विश्व स्वास्थ्य संगठन., (W.H.O.)
  4. खाद्य एवं कृषि संगठन।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कोई तीन सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ सदस्यों की संप्रभु समानता पर आधारित है।
  2. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य ईमानदारी से घोषणा-पत्र के अन्तर्गत निर्धारित दायित्वों का पालन करेंगे।
  3. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य अपने विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटायेंगे ।0

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वितीय महासचिव कौन थे? उनके द्वारा किए गए कार्यों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वितीय महासचिव डेग हैमरशोल्ड थे। ये स्वीडन से थे तथा अर्थशास्त्री और वकील थे इन्होंने स्वेज नहर से जुड़े विवादों को सुलझाने तथा अफ्रीका के अनौपनिवेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांगो- संकट को सुलझाने की दिशा में किए गए प्रयासों के लिए मरणोपरांत इन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। हालाँकि सोवियत संघ और फ्रांस ने अफ्रीका में इनकी भूमिका की आलोचना की थी।

प्रश्न 12.
सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों को प्राप्त निषेधाधिकार (Veto) शक्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों को प्राप्त निषेधाधिकार की शक्ति का अर्थ है कि यदि पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी एक सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में रखे गये प्रस्ताव के विरोध में वोट डाल दे तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा।

प्रश्न 13.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक्ष कौन से दो बुनियादी सुधारों का मसला है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक्ष निम्न दो बुनियादी सुधारों का मसला है।

  1. एक तो इस संगठन की बनावट और इसकी प्रक्रियाओं में सुधार किया जाए।
  2. दूसरा, इस संगठन के न्यायाधिकार में आने वाले मुद्दों की समीक्षा की जाए।

प्रश्न 14.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब हुई ? आजकल इसके कितने सदस्य हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की विधिवत् स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई. को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयार्क अमेरिका में है। आजकल संसार के छोटे-बड़े लगभग 193 देश इसके सदस्य हैं। करना।

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प्रश्न 15.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
उद्देश्य-संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखना।
  2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना।
  3. आपसी सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल

प्रश्न 16.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा के संगठन को संक्षिप्त में बताइये।
उत्तर:
हासभा-महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा अंग है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य इसके सदस्य होते हैं और प्रत्येक सदस्य राष्ट्र इसमें पाँच प्रतिनिधि भेजता है परन्तु उनका मत एक ही होता है। प्राय: वर्ष में इसका एक बार अधिवेशन होता है। वर्तमान में इसके सदस्यों की कुल संख्या 193 है।

प्रश्न 17.
सुरक्षा परिषद् के संगठन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। इसके 15 सदस्य होते हैं। जिनमें पाँच स्थाई सदस्य हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन और रूस । इसके अलावा 10 अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिये महासभा द्वारा चुने जाते हैं। सुरक्षा परिषद् के पाँच स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 18.
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी क्या है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी परमाणविक ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और सैन्य उद्देश्यों में इसके प्रयोग को रोकने की कोशिश करता है। इसके अधिकारी विश्व की परमाणविक सुविधाओं की जाँच करते हैं ताकि नागरिक परमाणु संयंत्रों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए न हो।

प्रश्न 19.
एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है?
उत्तर:
एमनेस्टी इन्टरनेशनल
एमनेस्टी इंटरनेशनल एक स्वयंसेवी संगठन है। यह पूरे विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अभियान चलाता है। यह संगठन मानवाधिकारों से जुड़ी रिपोर्ट तैयार और प्रकाशित करता है। ये रिपोर्टें मानवाधिकारों से संबंधित अनुसंधान और तरफदारी में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 20.
ह्यूमन राइट वाच क्या है?
उत्तर:
ह्यूमन राइट वाच (Human Right Watch):
ह्यमन राइट वाच मानवाधिकारों की वकालत और उनसे संबंधित अनुसंधान करने वाला एक अन्तर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन है। यह अमरीका का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है। यह विश्व की मीडिया का ध्यान मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर खींचता है।

प्रश्न 21.
विश्व व्यापार संगठन क्या है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (WTO):
‘विश्व व्यापार संगठन’ (World Trade Organization) एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। यह वैश्विक व्यापार के नियमों को तय करता है। इसकी स्थापना सन् 1995 में हुई। इसके सदस्यों की संख्या 164 है।

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प्रश्न 22.
सन् 2018 तक स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो पॉवर का इस्तेमाल कितनी-कितनी बार किया गया है? उत्तर-सन् 2018 तक स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो पॉवर का इस्तेमाल इस प्रकार किया गया है।

  1. सोवियत संघ / रूस द्वारा 135 बार
  2. अमरीका द्वारा 84 बार
  3. ब्रिटेन द्वारा 32 बार
  4. फ्रांस द्वारा 18 बार
  5. चीन द्वारा 11 बार।

प्रश्न 23.
सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की आमसभा में किन तीन शिकायतों का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था?
उत्तर:
सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की आम सभा में निम्न तीन शिकायतों का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था।

  1. सुरक्षा परिषद् राजनीतिक वास्तविकताओं की नुमाइंदगी नहीं करती।
  2. इनके फैसलों पर पश्चिमी देशों के मूल्यों और हितों की छाप होती है और इन फैसलों पर चंद देशों का दबदबा होता है।
  3. सुरक्षा परिषद् में बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं है।

प्रश्न 24.
सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार क्यों दिया गया?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार इसलिये दिया गया क्योंकि-

  1. ये देश द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता थे।
  2. राजनीतिक मामलों में इनकी सहमति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।
  3. वीटो का अधिकार न देने पर संभवतः ये समस्याओं में अधिक रुचि नहीं लेते।

प्रश्न 25.
मानवाधिकार परिषद् के संस्थापक कौन थे? इनके कुछ प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानवाधिकार परिषद् के आयोग की स्थापना कोफी ए. अन्नान ने की। इनकी कुछ उपलब्धियाँ निम्नलिखित

  1. ये (1997 से 2006 तक) संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव रहे।
  2. इन्होंने एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए एक वैश्विक कोष बनाया।
  3. इन्होंने शान्ति संस्थापक आयोग की स्थापना 2005 में की।
  4. महासचिव के रूप में किए गए कार्यों के कारण 2001 में इनको नोबेल शान्ति पुरस्कार दिया गया।

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प्रश्न 26.
” सोवियत संघ की गैर मौजूदगी में अमरीका एक भाग महाशक्ति है।” इस कथन का सत्यापन
कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ की गैर मौजूदगी में अमरीका एकमात्र महाशक्ति है। क्योंकि

  1. अमरीका की ताकत पर आसानी से अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
  2. अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत के सहारे अमरीका संयुक्त राष्ट्रसंघ या किसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन की अनदेखी कर सकता है।
  3. संयुक्त राष्ट्रसंघ के भीतर अमरीका का खास प्रभाव है क्योंकि वह संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में सबसे ज्यादा योगदान करता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ अमरीकी भू-क्षेत्र में स्थित है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के कई नौकरशाह अमरीका के नागरिक हैं।

प्रश्न 27.
“अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के हर सदस्य की राय का वजन बराबर नहीं है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष में 189 सदस्य हैं लेकिन हर सदस्य की राय का वजन बराबर नहीं है। क्योंकि

  1. समूह – 7 के सदस्य ( अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और कनाडा) के पास 41.29% मत हैं। अकेले अमरीका के पास 16.52% मताधिकार है।
  2. अन्य अग्रणी सदस्यों में चीन ( 6.09%), भारत (2.64%), रूस (2.59% ), ब्राजील (2.22%) और सऊदी अरब (0.02%) है।

प्रश्न 28.
अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता निम्न कारणों की वजह से है-

  1. समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान हेतु।
  2. ये संगठन सहयोग के उपाय जुटाने मेंसहायक होते हैं।
  3. ये संगठन नियमों तथा नौकरशाही की रूपरेखा तैयार करते हैं।
  4. ये शांति और प्रगति के प्रति मानवता की आशा का प्रतीक़ होते हैं

प्रश्न 29.
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्त-संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये निम्नलिखित सिद्धान्तों के. अनुसार कार्य करता है।

  1. संयुक्त राष्ट्र · सभी सदस्यों की प्रभुसत्ता और समानता के सिद्धान्त में विश्वास रखता है।
  2. सभी राष्ट्रों की अखण्डता और राजनीतिक स्वाधीनता का आदर करें।
  3. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार कोई कार्यवाही करें तो सभी सदस्य राष्ट्रों को उसकी सहायता करनी चाहिये।
  4. सभी राष्ट्र अपने विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से निपटायें।
  5. संयुक्त राष्ट्र उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जो अनिवार्य रूप से किसी राज्य के आंतरिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

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प्रश्न 30.
क्या संयुक्त राष्ट्र अमरीकी प्रभुत्व के खिलाफ संतुलन के रूप में कार्य कर सकता है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ का अमरीकी प्रभुत्व के खिलाफ संतुलन के रूप में कार्य न कर पाने की निम्न वजहें हैं।

  1. अमरीका अपने वीटो पावर के द्वारा ऐसे किसी भी कदम को रोक सकती है जिससे उसका हित ना सधता हो।
  2. 1991 के बाद से अमरीका एकमात्र महाशक्ति बन कर उभरा है जो अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत से किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की अनदेखी कर सकता है।
  3. अपनी ताकत और निषेधाधिकार के कारण संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के चयन में भी अमरीका की बात बहुत वजन रखती है।

प्रश्न 31.
” भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनना चाहता है।” क्या इस कथन से आप सहमत हैं? तर्कों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनना चाहता है। इस कथन से मैं सहमत हूँ। निम्न कथनों के द्वारा इस कथन को स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. भारत विश्व में आबादी वाला दूसरा बड़ा देश है।
  2. भारत में विश्व की कुछ जनसंख्या का 1/5 वाँ हिस्सा निवास करता है।
  3. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
  4. भारत ने संयुक्त राष्ट्र की लगभग सभी पहलकदमियों में भाग लिया है।
  5. संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति बहाल करने के प्रयासों में भारत लंबे समय से ठोस भूमिका निभाता आ रहा है।
  6. भारत तेजी से अंतर्राष्ट्रीय फलक पर आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है।
  7. भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में नियमित रूप से अपना योगदान दिया है कभी भी यह अपने भुगतान से चुका नहीं है।

प्रश्न 32.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों के नाम बताइये तथा इसकी कार्यप्रणाली की कमियाँ बताइये।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्य हैं।
    1. अमेरिका
    2. फ्रांस
    3. ब्रिटेन
    4. रूस
    5. चीन।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की कार्यप्रणाली की कमियाँ ये हैं।
    1. सुरक्षा परिषद् अब राजनीतिक वास्तविकताओं की नुमाइंदगी नहीं करती।
    2. इसके फैसलों पर पश्चिमी मूल्यों और हितों की छाप तथा चंद देशों का दबदबा होता है।
    3. इसमें बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं है।

प्रश्न 33.
एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्रसंघ की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्रसंघ क्षेत्रीय या विश्वव्यापी विवाद के मुद्दों पर सभी देशों का बातचीत करके हल निकालने का मंच देता है।
  2. अमरीकी सरकार यह जानती है कि झगड़ों और सामाजिक आर्थिक विकास के मसलों पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के माध्यम से 193 राष्ट्रों को एकत्रित किया जा सकता है।
  3. शेष विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ एक ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी रवैये और नीतियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

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प्रश्न 34.
एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिये।
अथवा
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन पूरे विश्व के लिए अपरिहार्य है? अपने उत्तर के पक्ष में कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए। एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन पूरे विश्व के लिए अपरिहार्य है। एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता या अपरिहार्यता को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका और शेष विश्व के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत कायम कर सकता है।
  2. झगड़ों और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये 193 देशों को एक साथ किया जा सकता है।
  3. शेष विश्व संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच के माध्यम से अमरीकी रवैये और नीतियों पर कुछ न कुछ अंकुश लगा सकता है।
  4. आज विभिन्न समाजों और मुद्दों के बीच आपसी तार जुड़ते जा रहे हैं। आने वाले दिनों में पारस्परिक निर्भरता बढ़ती जायेगी । इसलिये संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्त्व भी निरन्तर बढ़ेगा ।

प्रश्न 35.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष क्या है? कितने देश इसके सदस्य हैं?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष: यह संगठन वैश्विक स्तर की वित्त व्यवस्था की देखरेख करता है और मांगे जाने. पर वित्तीय तथा तकनीकी सहायता मुहैया करता है। वैश्विक स्तर की वित्त व्यवस्था का आशय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली वित्तीय संस्थाओं और लागू होने वाले नियमों से है। वर्तमान में 189 देश अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य हैं लेकिन हर सदस्य की राय का वजन बराबर नहीं है। समूह -7 के सदस्य (अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और कनाडा) के पास 41.29 प्रतिशत मत है। अन्य अग्रणी सदस्यों में चीन ( 6.09%), भारत (2.64%), रूस (2.59%), ब्राजील. (2.22%) और सऊदी अरब (2.02%) है। अकेले अमरीका के पास 16.52% मताधिकार है।

प्रश्न 36.
विश्व बैंक की स्थापना कब हुई? इसके प्रमुख कार्यों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
विश्व बैंक – दूसरे विश्व युद्ध के तुरन्त बाद सन् 1945 में विश्व बैंक की औपचारिक स्थापना हुई। विश्व बैंक के कार्य-विश्व बैंक की गतिविधियाँ प्रमुख रूप से विकासशील देशों से संबंधित हैं। यथा

  1. यह बैंक मानवीय विकास ( शिक्षा, स्वास्थ्य), कृषि और ग्रामीण विकास (सिंचाई, ग्रामीण सेवाएँ), पर्यावरण सुरक्षा (प्रदूषण में कमी, नियमों का निर्माण और उन्हें लागू करना), आधारभूत ढाँचा (सड़क, शहरी विकास, बिजली) तथा सुशासन ( कदाचार का विरोध, विधिक संस्थाओं का विकास) के लिए काम करता है ।
  2. यह अपने सदस्य देशों को आसान ऋण और अनुदान देता है । ज्यादा गरीब देशों को ये अनुदान वापिस नहीं चुकाने पड़ते। इस अर्थ में यह संस्था समकालीन वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है।

प्रश्न 37.
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता के कोई दो बिन्दु बताइये।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता – अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए आवश्यक – बातचीत के माध्यम से दो या अधिक देशों के मध्य के झगड़ों और विभेदों को बिना युद्ध के हल करने की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सदस्य देशों की मदद करते हैं।
  2. चुनौतीपूर्ण समस्याओं को निपटाने में विभिन्न देशों को मिलकर कार्य करने में सहायता करना- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ऐसी चुनौतीपूर्ण समस्याओं को निपटाने के लिए आवश्यक है, जिनसे निपटने के लिए विभिन्न देशों को मिलाकर सहयोग करना आवश्यक होता है।

प्रश्न 38.
1991 के बाद वैश्विक – व्यवस्था में क्या प्रमुख परिवर्तन आये हैं?’
उत्तर:
1991 के बाद विश्व की राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों में निम्नलिखित परिवर्तन आए हैं।

  1. 1991 के बाद शीत युद्ध काल की दो महाशक्तियों – सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में से एक महाशक्ति सोवियत संघ का पतन हो गया है तथा वह बिखर गया है।
  2. सोवियत संघ के उत्तराधिकारी राज्य रूस और अमरीका के बीच अब संबंध कहीं ज्यादा सहयोगात्मक हैं।
  3. चीन बड़ी तेजी से एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।
  4. सोवियत संघ से स्वतंत्र हुए अनेक नये देश संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल हुए हैं।
  5. वर्तमान में विश्व के सामने नयी चुनौतियों की एक पूरी कड़ी विद्यमान है। ये चुनौतियाँ हैं। जनसंहार, गृहयुद्ध, जातीय संघर्ष, आतंकवाद, परंमाणविक प्रसार, जलवायु में बदलाव, पर्यावरण की हानि, महामारी आदि।

प्रश्न 39.
संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए हाल ही में क्या कदम उठाये गये हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए हाल ही में निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं।

  1. शांति संस्थापक आयोग का गठन किया गया है।
  2. यदि कोई राष्ट्र अपने नागरिकों को अत्याचारों से बचाने में असफल हो जाए तो विश्व बिरादरी इसका उत्तरदायित्व ले- इस बात की स्वीकृति।
  3. मानवाधिकार परिषद की स्थापना
  4. सहस्राब्दि विकास लक्ष्य को प्राप्त करने पर सहमति
  5. हर रूप रीति के आतंकवाद की निंदा करना
  6. एक लोकतंत्र कोष का गठन।

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प्रश्न 40.
सुरक्षा परिषद् के स्थायी व अस्थायी सदस्यों के लिए सुझाये गये कोई चार मानदण्ड बताइये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के स्थायी व अस्थायी सदस्यों के लिए चार आवश्यक मानदण्ड ये होने चाहिए:

  1. वह देश क्षेत्र तथा जनसंख्या की दृष्टि से बड़ा देश हो।
  2. वह एक लोकतांत्रिक देश हो।
  3. वह आर्थिक तथा सैनिक शक्ति के रूप में उभर रहा हो तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में अपना नियमित योगदान देता आ रहा हो।
  4. वह संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति बहाल करने के प्रयासों में निरन्तर अपनी प्रभावी भूमिका निभाता आ रहा हो।

प्रश्न 41.
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य: संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना।
  2. सभी राष्ट्रों के बीच लोगों के समान अधिकार एवं स्वतंत्रता के सिद्धान्तों पर आधारित मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों पर विकास करना और विश्व शान्ति को सुदृढ़ बनाने के लिए उचित उपाय करना।
  3. सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मानवीय क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित व मजबूत करना तथा सबके लिए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के सम्मान को बढ़ाना और प्रोत्साहन देना।
  4. उपर्युक्त सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति में राष्ट्रों के कार्यों में समन्वय बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को केन्द्र बनाना।

प्रश्न 42.
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्रसंघ की असफलताओं पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्रसंघ की असफलताएँ निम्न हैं-

  1. कुछ मसलों पर जैसे निःशस्त्रीकरण, विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असन्तुलन कम करने में आंशिक सफलता ही मिली।
  2. संयुक्त राष्ट्रसंघ अनेक विवादों को सुलझाने तथा महाशक्तियों की मनमानी को रोकने में असफल रहा है।

प्रश्न 43.
‘पारस्परिक निर्भरता’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पारस्परिक निर्भरता – हालाँकि संयुक्त राष्ट्रसंघ में थोड़ी कमियाँ हैं लेकिन इसका अस्तित्व आवश्यक है क्योंकि इसके बिना दुनिया और बदहाल हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व के सात अरब लोगों को एक साथ रहने के लिए मददगार है। आज विभिन्न समाजों और मसलों के बीच तार जुड़ते जा रहे हैं, इसे ही ‘पारस्परिक निर्भरता’ का नाम दिया गया है।

प्रश्न 44.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक ओर सामाजिक परिषद् के ऊपर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक और सामाजिक परिषद् में कुल 54 सदस्य होते हैं जिनका चुनाव महासभा 2/3 बहुमत से तीन वर्ष के लिए करती है। इसके 1/3 सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करते हैं । इस प्रकार यह परिषद् एक स्थायी संस्था है।

प्रश्न 45.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की सफलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ की सफलताओं को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. आतंकवाद का विरोध करने में।
  2. निःशस्त्रीकरण।
  3. शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करने में।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास करने में।
  5. मानवाधिकारों का संरक्षण करने में।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन क्यों चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता हमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान हेतु: अन्तर्राष्ट्रीय संगठन देशों की समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सदस्य देशों की सहायता करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का निर्माण विभिन्न राज्य ही करते हैं और यह उनके मामलों के लिए जवाबदेह होता है। एक बार इसका निर्माण हो जाने के बाद ये सदस्य देशों की समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सहायता करते हैं।
  2. सहयोग के उपाय जुटाने में सहायक: एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन सहयोग करने के उपाय तथा सूचनाएँ एकत्रित करने में मदद कर सकता है।
  3. नियमों तथा नौकरशाही की रूपरेखा: एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन नियमों और नौकरशाही की एक रूपरेखा दे सकता है ताकि सदस्यों को यह विश्वास हो कि आने वाली लागत में सबकी समुचित साझेदारी होगी, लाभ का बँटवारा न्यायोचित होगा और यदि कोई सदस्य उस समझौते में शामिल हो जाता है तो वह इस समझौते के नियम और शर्तों का पालन करेगा।
  4. शांति और प्रगति के प्रति मानवता की आशा का प्रतीक: एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन शांति और प्रगति प्रति मानवता की आशा का प्रतीक होता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ इसका प्रतीक है। इस संगठन को विश्व भर के अधिकांश लोग एक अनिवार्य संगठन मानते हैं।

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प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास क्रम एवं उसकी स्थापना का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का विकास क्रम एवं स्थापना: संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास क्रम को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. अटलांटिक चार्टर ( अगस्त, 1941 ): 14 अगस्त, 1941 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल और अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने विश्व शांति की स्थापना के आधारभूत सिद्धान्तों की व्यवस्था की। इस पर दोनों देशों के अध्यक्षों ने हस्ताक्षर किये। इसे अटलांटिक चार्टर के नाम से जाना जाता है।
  2. संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र: धुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ रहे 26 मित्र राष्ट्र अटलांटिक चार्टर के समर्थन में वाशिंगटन में मिले और दिसम्बर 1943 में संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये।
  3. याल्टा सम्मेलन ( फरवरी, 1945 ): तीन बड़े नेताओं ( रूजवेल्ट, स्टालिन और चर्चिल) ने याल्टा सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन, उसकी सदस्यता एवं प्रकृति पर विचार किया तथा एक सम्मेलन करने का निर्णय किया।
  4. सेनफ्रांसिस्को सम्मेलन (अप्रेल-मई 1945): सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 50 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर तैयार किया गया । 26 जून, 1945 को इस घोषणा पत्र (चार्टर) पर 50 देशों के प्रतिनिधियों ने तथा पोलैंड ने 15 अक्टूबर, 1945 को हस्ताक्षर किये। इस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ में 51 मूल संस्थापक सदस्य हैं।
  5. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना: 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई । इसीलिए 24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है। 10 फरवरी, 1946 को संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न पदाधिकारियों के चुनाव हुए।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन: संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता: वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों की संख्या 193 है।
  • अधिकारिक भाषाएँ तथा मुख्यालय: सामान्य तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यवाही की दो भाषाएँ हैं- अंग्रेजी व फ्रेंच। इनके अतिरिक्त चीनी, अरबी, स्पेनिश तथा रशियन भाषाओं को भी मान्यता प्राप्त है। इसका मुख्यालय न्यूयार्क शहर के मैनहट्टन द्वीप में है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंग ( निकाय ) संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंग हैं। यथा
    1. महासभा (आमसभा ) महासभा संयुक्त राष्ट्र का मुख्य विचार-विनिमय निकाय है। इसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं।
    2. सुरक्षा परिषद् सुरक्षा परिषद् में कुल 15 सदस्य होते हैं। इसमें 5 स्थायी तथा 10 अस्थायी होते हैं। 5 स्थायी सदस्य देश हैं। अमरीका, चीन, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस पाँचों स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’ की शक्ति दी गई है।
    3. आर्थिक व सामाजिक परिषद्: आर्थिक-सामाजिक परिषद् के 54 सदस्य हैं, जिनका चुनाव महासभा 2/3 बहुमत से तीन वर्ष के लिए करती है। इसके 1/3 सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करते हैं। इस प्रकार यह परिषद् एक स्थायी संस्था है।
    4. ट्रस्टीशिप परिषद्: इस परिषद् का उद्देश्य 11 ट्रस्ट क्षेत्रों के प्रशासन की देखभाल करना था। 1994 तक ये . सभी ट्रस्ट स्वतंत्र हो चुके हैं।
    5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय: अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिनका चयन महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा एक साथ ही किया जाता है। न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 वर्ष का होता है। इसका मुख्यालय हेग में है।
    6. सचिवालय: सचिवालय में महासचिव तथा संघ की आवश्यकता के अनुसार कर्मचारी रहते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधारों में भारत की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधारों में भारत की भूमिका: भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे में सुधार के मुद्दे को निम्नलिखित आधारों पर समर्थन दिया है।

  • (1) संयुक्त राष्ट्र संघ की मजबूती पर बल: बदलते हुए विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की मजबूती और दृढ़ता जरूरी है।
  • (2) विकास के मुद्दे पर बल: संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और विकास को बढ़ावा देने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाए ।
  • (3) सुरक्षा परिषद् की संरचना में सुधार किया जाये:  इस संदर्भ में भारत के प्रमुख तर्क अग्रलिखित हैं।
    1. सुरक्षा परिषद् की संरचना प्रतिनिधित्वमूलक हो:  भारत का तर्क है कि सुरक्षा परिषद् का विस्तार करने पर वह ज्यादा प्रतिनिधिमूलक होगी तथा उसे विश्व – बिरादरी का अधिक समर्थन मिलेगा।
    2. सुरक्षा परिषद् में विकासशील देशों की संख्या बढ़ायी जाये – संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में ज्यादातर विकासशील सदस्य देश हैं। इसलिए सुरक्षा परिषद् में उनका यथोचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
    3. सुरक्षा परिषद् की गतिविधियों का दायरा बढ़ा है: सुरक्षा परिषद् के काम-काज की सफलता विश्व- बिरादरी के समर्थन पर निर्भर है। इस कारण सुरक्षा परिषद् के पुनर्गठन की कोई योजना व्यापक धरातल पर बननी चाहिए।
    4. भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनाया जाये:  भारत स्वयं भी पुनर्गठित सुरक्षा परिषद् में एक स्थायी सदस्य बनना चाहता है।

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प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर बैठने वाले दो एशियाई व्यक्तियों के नाम लिखिए। उनके कार्यकाल के दौरान उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर बैठने वाले दो एशियाई व्यक्ति हैं।
1. यू थांट-यू थांट 1961 से 1971 तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर बने रहे। ये बर्मा (म्यांमार) से थे। पेशे से ये शिक्षक और राजनयिक थे। अपने महासचिव के कार्यकाल के दौरान इन्होंने क्यूबा के मिसाइल – संकट के समाधान और कांगो के संकट की समाप्ति के लिए प्रयास किए। साइप्रस में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेना बहाल की। वियतनाम युद्ध के दौरान अमरीका की आलोचना की।

2. बान की मून-बान की मून कोरिया गणराज्य से थे और 2007 से 2016 तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव रहे। ये संयुक्त राष्ट्रसंघ के आठवें महासचिव थे। महासचिव के पद पर बैठने वाले ये दूसरे एशियाई हैं। अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने जलवायु परिवर्तन पर विश्व का ध्यान खींचा। इनका ध्यान सहस्राब्दि विकास लक्ष्य और सतत विकास लक्ष्य की तरफ रहा। इन्होंने यूएन वीमेन के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । युद्ध वियोजन और परमाणु निरस्त्रीकरण पर जोर दिया।

प्रश्न 6.
1997 के बाद के सालों में सुरक्षा परिषद् की स्थायी और अस्थायी सदस्यता हेतु नए मानदंड सुझाए · गए, इनकी संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1997 के बाद के सालों में सुरक्षा परिषद् की स्थायी और अस्थायी सदस्यता हेतु नये मानदंड सुझाए गए। इस सुझावों के अनुसार नए सदस्य को-

  1. बड़ी आर्थिक ताकत होना चाहिए।
  2. बड़ी सैन्य ताकत होना चाहिए।
  3. संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में ऐसे देशों का योगदान ज्यादा होना चाहिए।
  4. आबादी के लिहाज से वह राष्ट्र बड़ा होना चाहिए।
  5. वह देश लोकतंत्र और मानवाधिकार का सम्मान करता हो।
  6. वह देश ऐसा हो जो अपने भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिहाज से विश्व की विविधता में नुमाइंदगी करता हो।

प्रश्न 7.
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलताओं और असफलताओं पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रमुख सफलताएँ व असफलताएँ निम्नलिखित हैं- संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलताएँ

  1. शांति एवं सुरक्षा की स्थापना: संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विवादों, मतभेदों व तनावों को अनेक बार युद्ध में परिणत होने से बचाया है।
  2. आतंकवाद का विरोध: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सब प्रकार के आतंकवाद के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित कर विश्व – -समुदाय से आतंकवाद की चुनौती को मिलकर सामना करने का आग्रह किया है।
  3. निःशस्त्रीकरण: संयुक्त राष्ट्र संघ ने निःशस्त्रीकरण के लिए अनेक प्रयास किये हैं।
  4. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध: संयुक्त राष्ट्र संघ ने साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को समाप्त करने में बहुत सहायता दी है।
  5. आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में सफलताएँ – आर्थिक व सामाजिक असन्तोष, भूख, दरिद्रता, निरक्षरता आदि को दूर करने में संयुक्त राष्ट्र संघ ने निरन्तर प्रयत्न किये हैं।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास-संयुक्त राष्ट्र संघ निरन्तर अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग, सद्भावना और सहअस्तित्व की भावना का विकास कर रहा है।
  7. मानवाधिकारों का संरक्षक: मानवाधिकार आयोग के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में मानवाधिकारों के संरक्षक की भूमिका निभा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की असफलताएँ

  1. आंशिक सफलताएँ: संयुक्त राष्ट्र संघ को निःशस्त्रीकरण, हिन्द महासागर को शांति क्षेत्र बनाने, विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असन्तुलन को कम करने, समुद्री सम्पदा के उचित दोहन आदि मामलों में आंशिक सफलता ही मिली है।
  2. पूर्णतः असफलताएँ: संयुक्त राष्ट्र संघ अनेक विवादों को सुलझाने तथा महाशक्तियों की मनमानी रोकने में असफल रहा है।

प्रश्न 8.
एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ क्या अमरीका की मनमानी को रोक सकता है? यदि नहीं तो क्यों? एक ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
एक – ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ एक-ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र अमरीका की मनमानी को नहीं रोक सकता क्योंकि

  1. अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत के बल पर अमरीका संयुक्त राष्ट्र संघ या किसी अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की अनदेखी कर सकता है।
  2. संयुक्त राष्ट्र संघ के भीतर उसके बजट, अमरीकी भू क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति आदि के कारण अमरीका का अत्यधिक प्रभाव है।
  3. सुरक्षा परिषद् का वह स्थायी सदस्य है तथा उसके पास वीटो की शक्ति है।
  4. अमरीका अपनी ताकत और निषेधाधिकार के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के चयन में भी दखल रखता है।
  5. अमरीका अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर विश्व बिरादरी में फूट डाल सकता है।

एक – ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता: एक – ध्रुवीय विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को निम्न प्रकार बताया जा सकता है।

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ क्षेत्रीय या विश्वव्यापी विवाद के मुद्दों पर सभी देशों के बीच बातचीत का एक मंच प्रस्तुत करता है।
  2. अमरीकी नेता समझते हैं कि झगड़ों और सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये 193 राष्ट्रों को एक साथ किया जा सकता है।
  3. शेष विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी रवैये और नीतियों पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है।

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प्रश्न 9.
‘विश्व व्यापार संगठन’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (WTO):
यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो कि वैश्विक व्यापार के नियमों को तय करता है। इस संगठन की स्थापना 1995 में हुई थी। यह संगठन ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ के उत्तराधिकारी के रूप में काम करता है जो कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अस्तित्व में आया था । 29 जुलाई, 2016 तक इसके सदस्यों की संख्या 164 थी।

इस संगठन में हर फैसला सभी सदस्यों की सहमति से किया जाता है लेकिन अमरीका, यूरोपीय संघ तथा जापान जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियाँ विश्व व्यापार संगठन में व्यापार के नियमों को इस तरह बना दिया है जिससे उनका हित सधता हो। विकासशील देशों की अक्सर शिकायत रहती है इस संगठन की कार्यविधि पारदर्शी नहीं है और बड़ी आर्थिक ताकतें इन देशों को पीछे ढकेलती है।’

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुरक्षा परिषद् की संरचना का वर्णन कीजिए। इसके स्थायी और अस्थायी सदस्यों को दिए गए विशेषाधिकारों में क्या अंतर है।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् में पाँच स्थायी और दस अस्थायी सदस्य हैं।

  1. स्थायी सदस्य: दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में स्थिरता कायम करने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र में पाँच स्थायी सदस्यों को विशेष हैसियत दी गई। पाँच स्थायी सदस्यों की सदस्यता स्थायी होगी और उन्हें ‘वीटो ‘ का अधिकार होगा।
  2. अस्थायी सदस्य: अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिए चुने जाते हैं और इस अवधि के बाद उनकी जगह नए सदस्यों का चयन होता है। दो साल की अवधि तक अस्थायी सदस्य रहने के तत्काल बाद किसी देश को फिर से इस पद के लिए नहीं चुना जा सकता अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन इस प्रकार होता है कि विश्व के सभी महादेशों का प्रतिनिधित्व हो सके अस्थायी देशों को वीटो का अधिकार नहीं है।

प्रश्न 11.
कुछ देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य के रूप में भारत को शामिल करने के मुद्दे पर सवाल क्यों उठाते हैं? व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत या किसी और देश के लिए भविष्य में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बन पाना मुश्किल लगता है। क्यों?
उत्तर:
यद्यपि भारत चाहता है कि वह संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बने तथा उसे भी निषेधाधिकार प्राप्त हो लेकिन कुछ देश सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करते हैं। यथा।

  1. सिर्फ पड़ोसी पाकिस्तान ही नहीं, जिनके साथ भारत के संबंध दिक्कततलब रहे हैं, बल्कि कुछ और देश भी चाहते हैं कि भारत को सुरक्षा परिषद् में वीटोधारी सदस्य के रूप में ना शामिल किया जाए।
  2. कुछ देश भारत के परमाणु हथियारों को लेकर चिंतित हैं।
  3. कुछ देशों का मानना है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में कठिनाई के कारण भारत स्थायी सदस्य के रूप में प्रभावी नहीं रहेगा।
  4. कुछ अन्य देशों की राय है कि उभरती हुई ताकत के रूप में अन्य देशों जैसे कि -ब्राजील, जर्मनी, जापान और शायद दक्षिण अफ्रीका को भी शामिल करना पड़ेगा जिसका ये देश विरोध करते हैं।
  5. कुछ देशों का मत है कि यदि सुरक्षा परिषद् में किसी तरह का विस्तार होता है तो अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका को जरूर प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए क्योंकि मौजूदा सुरक्षा परिषद् में इन्हीं महादेशों की नुमाइंदगी नहीं है। उपर्युक्त वजहों को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत या किसी और देश के लिए निकट भविष्य में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बन पाना मुश्किल है।

प्रश्न 12.
“संयुक्त राष्ट्रसंघ एक अपरिहार्य संगठन है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ एक अपरिहार्य संगठन है। इस कथन को निम्न तर्कों से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. संयुक्त राष्ट्रसंघ ही वो माध्यम है जिसके द्वारा अमरीका जो महाशक्ति है और बाकी विभिन्न देशों को विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एकत्रित किया जा सकता है।
  2. संयुक्त राष्ट्रसंघ ने संघर्ष और आर्थिक विकास से निपटने के लिए 190 से अधिक देशों को एक साथ लाने का कार्य किया है।
  3. संयुक्त राष्ट्रसंघ अमरीका के अलावा बाकी देशों को बातचीत करने का मंच प्रदान करवाता है जहाँ अमरीकी दृष्टिकोण और नीतियों को संशोधित करना संभव हो। हालाँकि अमरीका के खिलाफ देशों को शायद ही एकजुट किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा मंच है जहाँ अमरीकी दृष्टिकोण तथा नीतियों के खिलाफ बहस सुनी जाती है और उसके अनुरूप बदलाव किया जा सकता है।
  4. वैश्वीकरण को इस आधुनिक दुनिया में संयुक्त राष्ट्रसंघ में कमियों के बावजूद इसका अस्तित्व आवश्यक है। आज़ विभिन्न समाजों और मसलों के बीच तार जुड़ते जा रहे हैं। इसे ‘पारस्परिक निर्भरता’ का नाम दिया गया है। प्रौद्योगिकी यह सिद्ध कर रही है कि आने वाले समय में विश्व में पारस्परिक निर्भरता बढ़ती जाएगी। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्रसंघ उन तरीकों को खोजने में मददगार होगा जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हितों के अनुरूप होगा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश है।
(अ) भारत
(ब) पाकिस्तान
(स) श्रीलंका
(द) बांग्लादेश
उत्तर:
(अ) भारत

2. दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) का गठन किया गया।
(अ) 1985 में
(ब) 1986 में
(स) 1990 में
(द) 1991 में
उत्तर:
(अ) 1985 में

3. कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई कब हुई ?
(अ) 1954
(ब) 1947
(स) 1966
(द) 1955
उत्तर:
(ब) 1947

4. ‘साफ्टा’ सम्बन्धित है।
(अ) आसियान से
(ब) सार्क से
(स) हिमतेक्ष से
(द) ओपेक से
उत्तर:
(ब) सार्क से

5. आजादी के बाद से श्रीलंका की राजनीति पर किस समुदाय का दबदबा रहा?
(अ) तमिल
(ब) हिन्दू
(स) मुस्लिम
(द) सिंहली
उत्तर:
(द) सिंहली

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

6. भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 में हुए युद्ध के फलस्वरूप किस प्रांत के दो हिस्से हुए?
(अ) बांग्लादेश
(ब) बंगाल
(स) कश्मीर
(द) असम
उत्तर:
(स) कश्मीर

7. 1998 में पाकिस्तान ने कहाँ पर परमाणु परीक्षण किया?
(अ) कश्मीर
(ब) पश्चिमी पाकिस्तान
(स) चगाई पहाड़ी
(द) पोखरण
उत्तर:
(स) चगाई पहाड़ी

8. बांग्लादेश एक स्वतन्त्र सम्प्रभु राष्ट्र बना।
(अ) 1947 में
(ब) 1948 में
(स) 1949 में
(द) 1971 में
उत्तर:
(द) 1971 में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1998 में भारत ने …………………………. में परमाणु परीक्षण किया।
उत्तर:
पोखरण

2. …………………… के दशक में भारत तथा पाकिस्तान ने परमाणु हथियार और ऐसे हथियारों को एक-दूसरे पर दागने ………………………की क्षमता वाले मिसाइल हासिल कर लिए।
उत्तर:
1990

3. 1960 में विश्व बैंक की मदद से भारत और पाकिस्तान ने …………………… पर दस्तखत किए।
उत्तर:
सिंधु जल संधि

4. भूटान ………………………. में संवैधानिक राजतंत्र बना।
उत्तर:
2008

5. मालदीव ………………………. में गणतंत्र बना और यहाँ शासन की ……………………… प्रणाली अपनायी गयी।
उत्तर:
1968, अध्यक्षात्मक

6. …………………………. से ………………………………. तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था।
उत्तर:
1947, 1971

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता के बाद दक्षिण एशिया के किन दो देशों में आज तक लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है?
उत्तर:
भारत और श्रीलंका में।

प्रश्न 2.
भारत में स्वतंत्रता के बाद किस प्रकार की शासन प्रणाली अपनाई गई?
उत्तर:
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली।

प्रश्न 3.
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध से पूर्वी पाकिस्तान ‘बांग्लादेश’ के रूप में नया स्वतंत्र देश

प्रश्न 4.
भारत के पड़ौसी देश कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत के पड़ौसी देश हैं।

  1. पाकिस्तान,
  2. नेपाल,
  3. भूटान,
  4. बांग्लादेश,
  5. श्रीलंका,
  6. चीन आदि।

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता कब हुआ?
उत्तर:
जुलाई, 1972 में भारत-पाक के बीच शिमला समझौता हुआ।

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प्रश्न 6.
श्रीलंका को आजादी के बाद से ही किस कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है?
उत्तर:
जातीय संघर्ष का।

प्रश्न 7.
दक्षिण एशियायी देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों से आपस में सहयोग के लिए उठाया गया कदम कौनसा है?’ – यह बड़ा कदम है। दक्षेस (सार्क) की स्थापना का।
उत्तर:

प्रश्न 8.
12वें दक्षेस सम्मेलन में किस संधि पर हस्ताक्षर किये गये?
उत्तर:
मुक्त व्यापार संधि पर।

प्रश्न 9.
दक्षेस के देशों ने साफ्टा (SAFTA) पर कब हस्ताक्षर किये?
उत्तर:
दक्षेस के देशों ने सन् 2004 में साफ्टा पर हस्ताक्षर किये।

प्रश्न 10.
साफ्टा में क्या वायदा किया गया है?
उत्तर:
‘साफ्टा’ में पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है।

प्रश्न 11.
सार्क का पूरा नाम लिखिये।
उत्तर:
सार्क का पूरा नाम है। साउथ एशियन एसोसियेशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ)।

प्रश्न 12.
सार्क में कितने देश हैं?
उत्तर:
सार्क में कुल आठ देश हैं। ये हैं- भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान।

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प्रश्न 13.
दक्षिण एशिया का इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। क्यों?
उत्तर:
उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण का हिन्द महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। उत्तर- ‘साफ्टा’ का पूरा नाम है।’ दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता’ (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया)।

प्रश्न 14.
दक्षेस को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कोई दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:

  1. महाशक्तियों को इस क्षेत्र से दूर रखा जाये।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर दक्षेस देशों द्वारा सर्वसम्मत दृष्टिकोण अपनाया जाये।

प्रश्न 15.
ताशकंद समझौता कब और किसके मध्य हुआ?
उत्तर:
सन् 1966 में भारत और पाकिस्तान के मध्य ताशकंद समझौता हुआ।

प्रश्न 16.
दो समझौतों के नाम लिखिये जिन्हें भारत ने पाकिस्तान के साथ किये।
उत्तर:

  1. 1965 में ताशकंद समझौता
  2. 1971 में शिमला समझौता।

प्रश्न 17.
शिमला समझौते के दो प्रावधान लिखिये।
उत्तर:

  1. दोनों देश अपने मतभेदों को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का प्रयास करेंगे।
  2. दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध बल का प्रयोग नहीं करेंगे।

प्रश्न 18.
भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव के दो मुख्य बिन्दु बताइये।
उत्तर:

  1. कमा शरणार्थियों की समस्या।
  2. गंगा – जल के वितरण की समस्या।

प्रश्न 19.
भारत-पाक मैत्री के मार्ग में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ये दो बाधायें हैं।

  1. चीन का पाकिस्तान को सामरिक सहयोग तथा
  2. भारतीय आतंकवादियों को प्रशिक्षण व सहायता देना।

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प्रश्न 20.
भारत को किन दो कठिनाइयों का सामना पड़ौसियों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने में करना पड़ता है?
उत्तर:

  1. पड़ौसी देशों द्वारा भारतीय आतंकवादियों को संरक्षण, प्रशिक्षण व सहयोग देना।
  2. सीमा विवाद तथा शरणार्थियों की समस्या।

प्रश्न 21.
राजनीतिक प्रणाली की दृष्टि से भारत और श्रीलंका की किसी एक समानता को बताइये।
उत्तर:
भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद, लोकतांत्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है। एक राष्ट्र के रूप में भारत और श्रीलंका हमेशा लोकतांत्रिक रहे हैं।

प्रश्न 22.
पाकिस्तान में शीत युद्ध के बाद के सालों में कौनसी दो लोकतांत्रिक सरकारें बनीं?
उत्तर:
पाकिस्तान में शीत युद्ध के बाद के सालों में लगातार ये दो लोकतांत्रिक सरकारें बनीं

  1. बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में बनी सरकार और
  2. नवाज शरीफ के नेतृत्व में बनी सरकार।

प्रश्न 23.
दक्षिण एशिया के दो सबसे छोटे देशों के नाम लिखिये।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के दो सबसे छोटे देश हैं। मालदीव और भूटान।

प्रश्न 24.
मालदीव में 1968 के बाद कौनसी शासन प्रणाली अपनाई गई?
अथवा
मालदीव में कैसी शासन प्रणाली है?
उत्तर:
1968 से मालदीव में लोकतन्त्र की अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अपनाई गई है।

प्रश्न 25.
दक्षिण एशियायी देशों की जनता किस प्रकार के शासन को वरीयता देती है?
उत्तर:
दक्षिण एशियायी देशों के लोग लोकतंत्र को वरीयता देते हैं।

प्रश्न 26.
दक्षेस का कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
दक्षेस का कार्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में स्थित है।

प्रश्न 27.
भारत के उत्तर में किन्हीं दो सदस्य देशों का उल्लेख कीजिये जो सार्क में सम्मिलित हैं।
उत्तर:
भारत के उत्तर में स्थित नेपाल और भूटान सार्क के सदस्य देश हैं।

प्रश्न 28.
भारत के दक्षिण में सार्क के किन्हीं दो सदस्य देशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
श्रीलंका और मालदीव

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प्रश्न 29.
आर्थिक वैश्वीकरण का दक्षिण एशिया पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण से दक्षिण एशिया में मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिला तथा आर्थिक सुविधाओं में गुणात्मक सुधार हुआ।

प्रश्न 30.
नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राज्य में कब परिवर्तित किया गया?
उत्तर:
नेपाल को 17 मई, 2006 को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में परिवर्तित किया गया।

प्रश्न 31.
श्रीलंका में जातीय संघर्ष के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:

  1. श्रीलंका में सिंहली जाति बहुसंख्या में है।
  2. उसमें बहुसंख्यकवाद की भावना है जो अल्पसंख्यक तमिलों की उपेक्षा करती है।

प्रश्न 32
भारत द्वारा शांति सेना कब और किस देश में भेजी गई?
उत्तर:
1987 में श्रीलंका में।

प्रश्न 33.
श्रीलंका के जातीय समुदायों के नाम लिखिये।
उत्तर:
श्रीलंका के जातीय समुदाय ये हैं

  1. सिंहली
  2. श्रीलंकाई तमिल
  3. भारतवंशी तमिल तथा
  4. मुसलमान।

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प्रश्न 34.
सियाचीन की समस्या किन देशों के बीच मतभेद का प्रमुख कारण है?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच।

प्रश्न 35.
फरक्का संधि पर हस्ताक्षर कब और किनके बीच हुआ था?
उत्तर:
फरक्का संधि पर हस्ताक्षर दिसंबर, 1996 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुआ था।

प्रश्न 36.
1975 में बांग्लादेश के संविधान में क्या संशोधन किया गया?
उत्तर:
1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन कराया और संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को मान्यता मिली।

प्रश्न 37.
श्रीलंका में पैदा हुए जान्ति संघर्ष का निवारण करने हेतु किन दो स्कैंडिनेवियाई देशों ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई?
उत्तर:
नार्वे और आइसलैंड।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया से क्या आशय है?
उत्तर:
सामान्यतः दक्षिण एशिया प्रदेश का प्रयोग सात देशों

  1. बांग्लादेश,
  2. भूटान,
  3. भारत,
  4. मालदीव,
  5. नेपाल,
  6. पाकिस्तान और
  7. श्रीलंका के लिए किया जाता है। इसमें जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 2.
पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी न बन पाने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
पाकिस्तान में लोकतंत्र के स्थायी न बन पाने के प्रमुख कारण ये हैं।

  1. यहाँ सेना, धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है।
  2. भारत के साथ निरन्तरं तनातनी रहने के कारण सेना समर्थक समूह अधिक मजबूत है।
  3. अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 3.
पूर्वी पाकिस्तान के लोग मूलतः पश्चिमी पाकिस्तान के विरोधी क्यों थे?
उत्तर:
पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद ही यहाँ के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया था ।

प्रश्न 4.
किन कारणों की वजह से अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देश पाकिस्तान को ‘पश्चिम’ तथा दक्षिण एशिया में पश्चिमी हितों को रखवाला मानते हैं?
उत्तर:
पाकिस्तान में सेना, धर्मगुरु और भूस्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है। परिणामतः कई बार निर्वाचित सरकारों को गिराकर सैनिक शासन कायम हुआ । यद्यपि पाकिस्तान में लोकतंत्र का जज्बा मजबूती के साथ कायम रहा है तथापि लोकतंत्र पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया। लोकतांत्रिक शासन के लिए पाकिस्तान को कोई खास अंतर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता। इस वजह से भी सेना को अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए बढ़ावा दिया।

अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने-अपने स्वार्थों की वजह से भी पाकिस्तान में सैनिक शासन को प्रोत्साहन दिया। इन देशों को विश्वव्यापी इस्लामी आतंकवाद से भय लगता है कि पाकिस्तान के परमाण्विक हथियार आतंकवादी समूहों के हाथ न लग जाएँ। उपरोक्त बातों के मद्देनजर पाकिस्तान को ये देश ‘पश्चिम’ तथा दक्षिण एशिया में पश्चिमी हितों का रखवाला मानते हैं।

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प्रश्न 5.
दक्षेस से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दक्षेस से आशय है। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन। यह दक्षिण एशिया के आठ देशों:

  1. भारत,
  2. पाकिस्तान,
  3. बांग्लादेश,
  4. श्रीलंका,
  5. नेपाल,
  6. भूटान,
  7. मालदीव,
  8. अफगानिस्तान- का एक क्षेत्रीय आर्थिक संगठन है जिसकी स्थापना इन देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से की है।

प्रश्न 6.
लिट्टे क्या है?
उत्तर:
लिट्टे का पूरा नाम है- लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम । यह 1983 के बाद से श्रीलंका में सक्रिय एक उग्र तमिल संगठन है जो श्रीलंका के तमिलों के लिए एक अलग देश की मांग को लेकर श्रीलंकाई सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है।

प्रश्न 7.
श्रीलंका की प्रमुख सफलताएँ क्या हैं?
उत्तर:
श्रीलंका की प्रमुख सफलताएँ निम्न हैं।

  1. श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है।
  2. इसने जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण स्थापित किया है।
  3. दक्षिण एशियायी देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही आर्थिक उदारीकरण किया।
  4. श्रीलंका में निरन्तर लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रही है।

प्रश्न 8.
भारत-श्रीलंका की दो समान विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  1. भारत तथा श्रीलंका दोनों ही ब्रिटेन के अधीन रहे तथा कुछ माह के अन्तराल से इन्हें स्वतंत्रता मिली – भारत 1947 में तथा श्रीलंका 1948 में स्वतंत्र हुआ।
  2. स्वतंत्रता के बाद से दोनों ही देशों में लोकतांत्रिक शासन चला आ रहा है।

प्रश्न 9.
‘बांग्लादेश’ के निर्माण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली जनता के आंदोलन को कुचलने का प्रयत्न किया। हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए। परिणामस्वरूप इन शरणार्थियों को संभालने की समस्या भारत के सामने खड़ी हो गई। अतः भारतीय सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी का समर्थन किया। इस कारण 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध आरंभ हो गया। युद्ध की समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तनी सेना के आत्मसमर्पण तथा एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ के निर्माण के साथ हुई।

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के देशों में मुख्य रूप से कौन-कौन सी समस्यायें हैं?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देशों में प्रमुख समस्यायें ये हैं।

  1. निर्धनता और बेरोजगारी की समस्या
  2. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समस्या
  3. जातीय संघर्ष
  4. संसाधनों के बंटवारे में होने वाले झगड़े
  5. सीमा एवं नदी जल बंटवारे से संबंधित विवाद

प्रश्न 11.
दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:

  1. दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ सद्भाव और शत्रुता, आशा और निराशा तथा पारस्परिक शंका और विश्वास साथ-साथ बसते हैं।
  2. सामान्यतः बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है। इस क्षेत्र में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है।
  3. उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण का हिंद महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह क्षेत्र एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है 1
  4. दक्षिण एशिया विविधताओं से भरा-पूरा इलाका है फिर भी भू-राजनैतिक धरातल पर यह एक क्षेत्र है।

प्रश्न 12.
दक्षिण एशिया के देशों की राजनैतिक प्रणाली किस प्रकार की है?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक सी राजनैतिक प्रणाली नहीं है। यथा।

  1. इस क्षेत्र के दो देशों, भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद, सफलतापूर्वक कायम है। लोकतांत्रिक व्यवस्था
  2. पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक और सैनिक दोनों तरह की शासन व्यवस्थाएँ बदलती रही हैं। वर्तमान में दोनों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है।
  3. नेपाल में 2006 तक संवैधानिक राजतंत्र था। अप्रेल, 2006 से वहाँ लोकतंत्र की स्थापना हुई है।
  4. भूटान में अब भी राजतंत्र है लेकिन यहाँ के राजा ने भूटान में लोकतंत्र स्थापित करने की योजना की शुरुआत . कर दी है।
  5. मालदीव में 1968 तक राजतंत्र (सल्तनत) शासन था। 1968 में यह एक गणतंत्र बना।

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प्रश्न 13.
” दक्षिण एशियायी देशों की जनता लोकतंत्र की आकांक्षाओं में सहभागी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का रिकार्ड मिला-जुला रहा है। इसके बावजूद इस क्षेत्र के देशों की जनता लोकतंत्र की आकांक्षाओं में सहभागी है अर्थात् वह लोकतंत्र को अन्य शासन प्रणालियों से अच्छा समझती है। इस क्षेत्र के पांच बड़े देशों – बांग्लादेश, नेपाल, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में हाल ही में एक सर्वेक्षण किया गया था जिसमें यह बात स्पष्ट हुई कि इन पांच देशों में लोकतंत्र को व्यापक जन-समर्थन हासिल है। इन देशों में हर वर्ग और धर्म के आम नागरिक लोकतंत्र को अच्छा मानते हैं और प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र की संस्थाओं का समर्थन करते हैं। इन देशों के लोग शासन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतंत्र को वरीयता देते हैं और मानते हैं कि उनके देश के लिए लोकतंत्र ही ठीक है।

प्रश्न 14.
बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र कब से कायम है?
उत्तर:
शेख मुजीब की हत्या के बाद जियाउर्रहमान ने बांग्लादेश में सैनिक शासन की पुनर्स्थापना की तथा बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी। जियाउर्रहमान की हत्या के बाद लेफ्टिनेंट जनरल एच एम इरशाद ने सैन्य शासन की बागडोर संभाली। परन्तु बांलादेश की जनता लोकतंत्र की माँग करने लगी। इस आंदोलन के फलस्वरूप जनरल इरशाद को राजनीतिक गतिविधियों में छूट देनी पड़ी। इसके बाद जनरल इरशाद पाँच सालों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। परन्तु 1990 में जनता के विरोध के आगे जनरल इरशाद को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा। और 1991 में पुन: चुनाव हुए। इसके बाद से बांगलादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र कायम है।

प्रश्न 15.
नेपाल में लोकतंत्र की राह कैसे अवरुद्ध हुई?
उत्तर:
नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के समय में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाते रहे । परन्तु राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और इस प्रकार नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई।

प्रश्न 16.
बांग्लादेश का निर्माण क्यों और कैसे हुआ?
उत्तर:
1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का एक अंग था, जिसे ‘पूर्वी पाकिस्तान’ नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तानी दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे।

  1. शेख मुजीब की गिरफ्तारी:
    जब 1970 के चुनावों में शेख मुजीब के नेतृत्व वाली अवामी लीग को संपूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया तो सरकार ने सभा को आहूत करने से इन्कार कर दिया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी प्रतिक्रिया में पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र में शासन के विरुद्ध जन- आंदोलन फैल गया।
  2. भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण: जन-आंदोलन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत शरणार्थी के रूप में आये भारत सरकार ने लोगों के जन-आंदोलन का समर्थन किया परिणामस्वरूप 1971 में भारत-पाक युद्ध हुआ जिसकी समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान के एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ के निर्माण के साथ हुई।

प्रश्न 17.
1975 में बांग्लादेश में सेना ने शासन के खिलाफ बगावत क्यों की?
उत्तर;
स्वतंत्रता के बाद बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया। लेकिन, 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन कराया और संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को मान्यता दी गई। शेख मुजीब ने अपनी पार्टी अवामी लीग को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हुई। अगस्त, 1975 में सेना ने शेख मुजीब के शासन के खिलाफ बगावत कर दी।

प्रश्न 18.
श्रीलंका की जातीय समस्या पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
श्रीलंका की जातीय समस्या: श्रीलंका की राजनीति पर बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के हितों की नुमाइंदगी करने वालों का दबदबा रहा है। ये लोग भारत से आकर श्रीलंका में बसे तमिलों के खिलाफ हैं। सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना है कि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए। सिंहलियों के तमिलों के प्रति इस उपेक्षा भरे व्यवहार से श्रीलंका में एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई। 1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) श्रीलंका सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है। इसने ‘तमिल ईलम’ यानी श्रीलंका के तमिलों के लिए एक अलग देश की माँग की है। इस प्रकार श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है जिसकी मांग है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र बनाया जाये।

प्रश्न 19.
भारत सरकार श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर प्रत्यक्ष रूप से कब और किस रूप में शामिल हुई?
उत्तर:
भारत की तमिल जनता का भारतीय सरकार पर भारी दबाव रहा कि वह श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करे। भारत सरकार समय-समय पर इस संदर्भ में श्रीलंका सरकार से बातचीत करने की कोशिश करती रही। लेकिन 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई। सन् 1987 में भारत की सरकार ने श्रीलंका सरकार से तमिल मुद्दे को सुलझाने के लिए एक समझौता किया तथा श्रीलंका सरकार और तमिलों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए भारत ने शांति सेना को भेजा। लेकिन शांति सेना अन्ततः लिट्टे के साथ संघर्ष में फंस गई। भारतीय सेना की उपस्थिति को श्रीलंका की जनता ने श्रीलंका के अंदरूनी . मामलों में भारत की दखलंदाजी समझा । परिणामस्वरूप ‘शांति सेना’ अपना लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली गई।

प्रश्न 20.
श्रीलंका की आर्थिक व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है। उसने जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण किया है। दक्षिण एशिया के देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया । जातीय संघर्ष से गुजरने के बावजूद कई सालों से इस देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है।

प्रश्न 21.
सार्क की स्थापना के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
सार्क की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे।

  1. दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण करने की कामना तथा उनके जीवन स्तर को सुधारना।
  2. दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक उन्नति को प्राप्त करना तथा इस क्षेत्र के सभी व्यक्तियों के लिए प्रतिष्ठा के अवसर प्रदान करना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता पैदा करना तथा उसको बढ़ावा देना।
  4. एक-दूसरे की समस्याओं को पारस्परिक विश्वास, सूझ-बूझ तथा अभिमूल्यन की दृष्टि से देखना।

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प्रश्न 22.
क्षेत्रीय सहयोग के साधन के रूप में सार्क की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
दक्षिण एशिया क्षेत्र में सहयोग के साधन के रूप में सार्क की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. इस क्षेत्र में सातों देश एक-दूसरे के काफी नजदीक आए हैं तथा इससे उनमें दिखाई देने वाला तनाव कम हुआ है।
  2. दक्षेस (सार्क) के कारण इस क्षेत्र के देशों के छोटे-मोटे मतभेद अपने-आप आसानी से सुलझ रहे हैं और इन देशों में अपनापन विकसित हुआ है।
  3. सार्क के माध्यम से इस क्षेत्र में विदेशी शक्तियों का इस क्षेत्र में प्रभाव कम हुआ है और ये देश अपने को अधिक स्वतंत्र महसूस करने लगे हैं।
  4. सार्क ने एक संरक्षित अन्न भंडार की स्थापना की है जो इस क्षेत्र के देशों की आत्मनिर्भरता की भावना के प्रबल होने का सूचक है।

प्रश्न 23.
भारत और बांग्लादेश के बीच मतभेद के कारणों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के बीच मतभेद के मुद्दे: भारत और बांग्लादेश के बीच मतभेद के प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं।
(अ) भारत के बांग्लादेश से अप्रसन्नता के कारण – भारतीय सरकारों के बांग्लादेश से नाखुश होने के कारण हैं।

  1. भारत में अवैध आप्रवास पर ढाका द्वारा खंडन करना।
  2. बांग्लादेश सरकार द्वारा भारत विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन देना।
  3. भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश का इन्कार करना।
  4. म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देना।

(ब) बांग्लादेश भारत पर निम्न कारणों से अप्रसन्न है।

  1. भारतीय सरकार गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी – जल में हिस्सेदारी के प्रश्न पर इलाके के दादा की तरह बरताव करती है।
  2. भारत की सरकार चटगाँव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को हवा दे रही है।
  3. भारत उसकी प्राकृतिक गैस में सेंधमारी कर रहा है तथा व्यापार में बेईमानी बरत रहा है।

प्रश्न 24.
भारत और बांग्लादेश के सहयोग के मुद्दों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग के मुद्दे भारत और बांग्लादेश निम्नलिखित मुद्दों पर आपस में सहयोग करते हैं।

  1.  पिछले बीस वर्षों के दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्धं ज्यादा बेहतर हुए हैं।
  2. बांग्लादेश भारत के ‘लुक ईस्ट’ और 2014 से ‘एक्ट ईस्ट’ की नीति का हिस्सा है। इस नीति के अन्तर्गत स्यांमार के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया से सम्पर्क साधने की बात है ।
  3. आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मसले पर भी दोनों देशों ने निरन्तर सहयोग किया है।
  4. इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक-दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरत कर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाये।

प्रश्न 25.
भारत-नेपाल के सम्बन्धों के बीच कड़वाहट के मुद्दों पर एक टिप्पणी लिखिये । भारत-नेपाल के सम्बन्धों के बीच तनाव के मुद्दे
उत्तर:
भारत-नेपाल के मधुर सम्बन्धों के बीच निम्नलिखित मुद्दे मनमुटाव पैदा करते रहे हैं।

  1. नेपाल की चीन के साथ मित्रता को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता जतायी है।
  2. नेपाल सरकार भारत विरोधी तत्त्वों के विरुद्ध आवश्यक कदम नहीं उठाती है। इससे भी भारत नाखुश है।
  3. भारत की सुरक्षा एजेंसियां नेपाल में चल रहे माओवादी आंदोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती हैं।
  4. नेपाल के लोगों की यह सोच है कि भारत की सरकार नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल दे रही है और उसके नदी जल तथा पन बिजली पर आँख गड़ाए हुए है।
  5. नेपाल को यह भी लगता है कि भारत उसको अपने भू-क्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुँचने से रोकता है।

प्रश्न 26.
” भारत-नेपाल के बीच मधुर संबंध हैं ।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत और नेपाल के बीच मधुर संबंध हैं, इसे हम निम्न उदाहरणों से स्पष्ट कर सकते हैं।
1. भारत और नेपाल दोनों देशों के बीच पारगमन संधि है। इस संधि के तहत दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट (पारपत्र) और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं।
2. दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन और जल प्रबंधन ग्रिड के मसले पर एक साथ हैं।
3. नेपाल में लोकतंत्र की बहाली से दोनों देशों के बीच संबंधों के और मजबूत होने की संभावना है। प्रश्न 27. भारत-श्रीलंका के सम्बन्धों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
भारत और श्रीलंका के सम्बन्ध

  1. यद्यपि श्रीलंका और भारत की सरकारों के संबंधों में तनाव इस द्वीप में जारी जातीय संघर्ष को लेकर है तथापि 1987 के सैन्य हस्तक्षेप के बाद से भारतीय सरकार श्रीलंका के अंदरूनी मामलों में असंलग्नता की नीति अपनाये हुए है।
  2. दोनों देशों की सरकारों ने परस्पर एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर अपने सम्बन्धों को और मजबूत किया है।
  3. श्रीलंका में ‘सुनामी’ से हुई तबाही के बाद के पुनर्निर्माण कार्यों में भारतीय मदद से भी दोनों देश एक-दूसरे के नजदीक आये हैं।

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प्रश्न 28.
भूटान और मालदीव के साथ भारत के सम्बन्धों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:

  • भारत-भूटान सम्बन्ध – भारत के भूटान के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं तथा भूटानी सरकार के साथ भारत का कोई बड़ा झगड़ा नहीं है।
    1. भूटान से अपने काम का संचालन कर रहे पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों और गुरिल्लों को भूटान ने अपने क्षेत्र से खदेड़ भगाया। भूटान के इस कदम से भारत को बड़ी सहायता मिली है।
    2. भारत भूटान में पन बिजली की बड़ी परियोजनाओं में हाथ बँटा रहा है
    3. भूटान के विकास कार्यों के लिए सबसे ज्यादा अनुदान भारत से हासिल होता है।
  • भारत और मालदीव सम्बन्ध:
    1. मालदीव के साथ भारत के संबंध सौहार्द्रपूर्ण तथा गर्मजोशी से भरे हैं।
    2. भारत ने मालदीव के आर्थिक विकास, पर्यटन और मत्स्य उद्योग में भी मदद की है।

प्रश्न 29.
‘साफ्टा’ क्या है?
उत्तर:
साफ्टा (SAFTA ) साफ्टा’ का पूरा नाम है। दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asia Free Trade Area)! दक्षेस के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते’ पर दस्तखत करने का वायदा किया। इसमें पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है। इस समझौते पर 2004 में हस्ताक्षर हुए और यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया है। इस समझौते का लक्ष्य है कि इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को 2007 तक 20 प्रतिशत कम कर दिया जाये।

प्रश्न 30.
भारत-पाकिस्तान के बीच सियाचिन की समस्या को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
भारतीय नक्शे में शीर्ष पर स्थित सियाचिन हिमनाद को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच विवाद बना हुआ है। सियाचिन सैनिक तथा सामरिक दृष्टि महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ से पाक अधिकृत कश्मीर, चीन के सिक्यांग प्रान्त, रूसी राष्ट्रकुल के देशों तथा अफगानिस्तान पर पैनी दृष्टि रखी जा सकती है। इसलिए इसे भारत और पाकिस्तान दोनों अपने-अपने अधिकार में लेना चाहते हैं। इसे लेकर दोनों देशों में अनेक मुठभेड़ें हो चुकी हैं। वर्तमान में दोनों ही देश इस समस्या के स्थायी हल के लिए वार्ताएँ कर रहे हैं।

प्रश्न 31.
“श्रीलंका की समस्या भारतवंशी लोगों से जुड़ी है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की तमिल जनता का भारतीय सरकार पर भारतीय सरकार पर भारी दबाव है कि वह श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करे भारतीय सरकार ने समय-समय पर तमिलों के सवाल पर श्रीलंका की सरकार से बातचीत की कोशिश की है। 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका के तमिल मसले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई। भारतीय सरकार ने श्रीलंका से समझौता किया तथा श्रीलंका और तमिलों के बीच रिश्ता सामान्य करने के लिए भारतीय सेना भेजा अतः हम कह सकते हैं कि श्रीलंका की समस्या भारतवंशी लोगों से जुड़ी है।

प्रश्न 32.
1989 में भारत को अपनी ‘शांति सेना’ वापस बुलानी पड़ी।
उत्तर:
भारतीय सरकार ने श्रीलंका से समझौता किया और इसके फलस्वरूप भारतीय सरकार ने श्रीलंका सरकार और तमिलों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए भारतीय सेना भेजी सेना लिट्टे के साथ संघर्ष में फँस गई। भारतीय सेना की उपस्थिति का श्रीलंका की जनता ने विरोध किया। वहाँ की जनता ने यह समझा कि भारतीय सेना उनके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। फलस्वरूप 1989 में भारत ने अपनी ‘शांति सेना’ लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली।

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प्रश्न 33.
कश्मीर के दो हिस्सों में विभाजित होने के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कश्मीर के दो हिस्सों में विभाजित होने के कारण निम्नलिखित हैं।

  1. दक्षिण एशिया में स्थित देशों के आपसी संघर्षों में सबसे प्रमुख और सर्वग्रासी संघर्षों में सबसे प्रमुख और सर्वग्रासी संघर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच का संघर्ष है।
  2. भारत और पाकिस्तान के विभाजन के तुरंत बाद ही दोनों देश कश्मीर के मसले पर लड़ पड़े।
  3. पाकिस्तान सरकार कश्मीर पर अपना दावा कर रही थी।
  4. पाकिस्तान सरकार कश्मीर पर अपना दावा कर रही थी।
  5. 1948 के युद्ध के फलस्वरूप कश्मीर के दो हिस्से हो गए।

प्रश्न 34.
“दक्षिण एशिया के सारे झगड़े सिर्फ भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच ही नहीं है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के सारे झगड़े सिर्फ भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच ही नहीं है क्योंकि।

  1. नेपाल – भूटान तथा बांग्लादेश – म्यांमार के बीच जातीय मूल के नेपालियों के भूटान आप्रवास तथा रोहिंग्या लोगों म्यांमार में आप्रवास के मामलों पर मतभेद रहे हैं।
  2. बांग्लादेश और नेपाल के बीच हिमालयी नदियों के जल की हिस्सेदारी को लेकर खटपट है।

प्रश्न 35.
‘साफ्टा’ के उद्देश्य पर भारत और अन्य देश एकमत नहीं है। इस कथन की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच 2004 में ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर हुआ और यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया। यद्यपि इस समझौते का मकसद इन क्षेत्रों के सीमा रेखा मुक्त व्यापार पर सहमत होना था। परंतु कुछ देशों का मानना था कि ‘साफ्टा’ की ओट लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है ओर व्यावसायिक उद्यम तथा व्यावसायिक मौजूदगी जरिये उनके समाज ओर राजनीति पर असर डालना चाहता है।

जबकि भारत सोचता है कि ‘साफ्टा’ के जरिये इस क्षेत्र के हर देश का फायदा होगा और क्षेत्र में मुक्तव्यापार बढ़ने से राजनीतिक मसलों पर सहयोग बेहतर होगा। भारत में कुछ लोगों का मानना है कि भारत को साफ्टा पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि भारत भूटान, नेपाल और श्रीलंका से पहले ही द्विपक्षीय समझौता कर चुका है।

प्रश्न 36.
दक्षिण एशिया के क्षेत्रों की सुरक्षा और शांति के भविष्य से अमरीका के हित बंधे हुए हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के बाद से दक्षिण एशिया में अमरीकी प्रभाव तेजी से बढ़ा है। अमरीका ने शीतयुद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों से अपने संबंध सुधारे हैं। आवश्यकता पड़ने पर अमरीका ने भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की भूमिका भी निभाई है। दोनों देशों में आर्थिक सुधार हुए हैं और उदार नीतियाँ अपनाई गई हैं। इस वजह से दक्षिण एशिया में अमरीकी भागीदारी ज्यादा गहरी हुई है। अमरीका में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों की जनसंख्या अच्छी-खासी है। दक्षिण एशिया की जनसंख्या और बाजार भी भारी भरकम है। इस कारण इस क्षेत्र की सुरक्षा और शांति के भविष्य से अमरीका के हित भी बंधे हुए हैं।

प्रश्न 37.
नेपाल में लोकतंत्र की बहाली किस प्रकार हुई ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नेपाल में अप्रेल, 2006 में लोकतंत्र के लिए देशव्यापी आंदोलन हुए। लोकतंत्र के समर्थन में जगह-जगह प्रदर्शन किए गए। संघर्षरत लोकतंत्र – समर्थकों को जीत हासिल हुई और नेपाल के राजा को बाध्य होकर संसद को चलने की अनुमति दे दी इस प्रकार नेपाल में लोकतंत्र की बहाली हुई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया से आप क्या समझते हैं? शीत युद्ध के बाद के काल में दक्षिण एशिया के देशों में राजनीतिक प्रणाली की मुख्य प्रवृत्ति क्या रही है?
उत्तर:
दक्षिण एशिया से आशय सामान्य रूप से बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका इन सात देशों को इंगित करने के लिए दक्षिण एशिया पद का इस्तेमाल किया जाता है। इस क्षेत्र की चर्चा में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है। दक्षिण एशिया के देशों में राजनीतिक प्रणाली शीत युद्ध के बाद के काल में इस क्षेत्र के देशों में तथा यहाँ के लोगों में मुख्य प्रवृत्ति लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली को अपनाने की रही है। यथा

  1. भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश: भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद से आज तक लोकतांत्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है तथा शीत युद्ध के बाद से बांग्लादेश में भी लोकतांत्रिक सरकारें कायम हैं।
  2. पाकिस्तान: पाकिस्तान में शीत युद्ध के बाद के सालों में लगातार दो लोकतांत्रिक सरकारें बनीं। 1999 से 2007 तक सैनिक तख्ता पलट के कारण पाकिस्तान में गैर लोकतांत्रिक सरकार रही लेकिन 2008 से आज तक वहां लोकतांत्रिक सरकार कार्यरत है।
  3. नेपाल: अप्रेल, 2006 तक नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र था, लेकिन अप्रेल 2006 से आज तक नेपाल में भी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था कायम है।
  4. भूटान: भूटान में 2007 तक राजतंत्र शासन रहा। लेकिन मार्च, 2008 से यहाँ भी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है।
  5.  मालदीव: मालदीव में 1968 तक राजतंत्र शासन व्यवस्था रही। 1968 से यहाँ भी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है। स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया के देशों में लोकतंत्र को अपनाने की मुख्य प्रवृत्ति रही है।

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प्रश्न 2.
पाकिस्तान में लोकतंत्र और उसके सैनिक तंत्र में बदलाव तथा पुनः लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया पर एक निबंध लिखिये।
उत्तर:
14 अगस्त, 1947 को भारत का विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना हुई। पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खां ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। लेकिन 1948 में जिन्ना की मृत्यु हो गई और पाकिस्तान के शासन की बागडोर लियाकत अली खां के हाथों में पूरी तरह से आ गई। अक्टूबर, 1951 में लियाकत अली खां की हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद ख्वाजा निजामुद्दीन को प्रधानमंत्री तथा गुलाम मोहम्मद को गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्त किया गया। 7 अप्रैल, 1953 को गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद ने निजामुद्दीन मंत्रिमंडल को भंग कर दिया।

अमरीकी प्रभाव में अब मुहम्मद अली को प्रधानमंत्री बनाया गया। सैनिक तानाशाही: 7 अक्टूबर, 1958 को प्रधान सेनापति जनरल अयूब खां के नेतृत्व में सेना ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा सत्ता प्राप्त कर ली। तब से लेकर 1971 तक तथा पुनः 5 जुलाई, 1977 से 1988 तक पाकिस्तान में सैनिक शासन रहा।

लोकतंत्र: 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार बनी जो 1977 तक कायम रही। इसके बाद 1989 से 1999 तक पाकिस्तान में पुनः लोकतान्त्रिक सरकारों ने काम किया।

  1. पुनः सैनिक शासन ( 1999 से 2007 तक ): सन् 1999 में सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पदच्युत करके अपने आपको वहां का शासक बना लिया जो 2007 तक सत्ता पर काबिज रहे।
  2. पुनः लोकतंत्र की वापसी (2008 से वर्तमान तक ): जन आंदोलनों और जनमत के दबाव में 2008 में पाकिस्तान में चुनाव हुए और तब से वर्तमान तक वहाँ लोकतांत्रिक सरकारें चली आ रही हैं।

प्रश्न 3.
बांग्लादेश का निर्माण क्यों और किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
बांग्लादेश का निर्माण क्यों और कैसे?
1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था, जिसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था।

  1. बंगाली संस्कृति की उपेक्षा: पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही यहां के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया था।
  2. प्रशासन तथा राजनीतिक सत्ता में भागीदारी की माँग- इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने न्यायोचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी तथा पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की मांग उठायी।
  3. 1970 के आम चुनाव और शेख मुजीब की अवामी लीग को बहुमत मिलना:1970 के आम चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग को सम्पूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया। लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था और सरकार ने इस सभा को आहूत करने से इन्कार कर दिया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया।
  4. भारत-पाक युद्ध 1971: पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान की जनता के आंदोलन को कुचलने हेतु हजारों लोगों को मौत के मुँह सुला दिया। वहाँ के लोगों ने भारत में पलायन किया। इससे भारत में शरणार्थी की समस्या खड़ी हो गई। फलतः भारत-पाक युद्ध 1971 हुआ ।
  5. बांग्लादेश का निर्माण: युद्ध समाप्त होने से पहले ही पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और अन्त में अप्रेल, 1971 में बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

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प्रश्न 4.
बांग्लादेश में लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियों की व्याख्या कीजिए। (कोई चार )
अथवा
बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना की चर्चा कीजिए।
अथवा
बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
बांग्लादेश में लोकतंत्रीय शासन स्थापना की प्रक्रिया: बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना निम्न प्रकार हुई।

1. संसदीय लोकतंत्र की स्थापना:
12 अप्रेल, 1971 को स्वतंत्र बांग्लादेश सरकार का गठन हुआ। बांग्लादेश ने अपना एक नवीन संविधान बनाया जिसमें इसे संसदात्मक, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया गया।

2. संसदीय लोकतंत्र के स्थान पर अध्यक्षीय लोकतंत्र:
19075 में शेख मुजीब ने संसदीय लोकतंत्र के स्थान पर अध्यक्षात्मक प्रणाली को मान्यता दी। इसके विरोध में सेना ने बगावत कर दी तथा शेख मुजीब की हत्या कर दी।

3. सैनिक शासन:
शेख मुजीब की हत्या के बाद 1975 में सैनिक शासके जियाउर्रहमान ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनाई तथा 1979 के चुनाव में विजयी रही। लेकिन जियाउर्रहमान की हत्या हुई। अब लेफ्टिनेंट जनरल एम. एम. इरशाद के नेतृत्व में एक और सैनिक शासन ने बागडोर संभाली तथा 1990 तक सत्ता में बने रहे।

4. पुनः लोकतंत्र की स्थापना: जनता के व्यापक विरोध के समक्ष झुकते हुए ले. जनरल इरशाद को राष्ट्रपति का पद 1990 में छोड़ना पड़ा और 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है।

प्रश्न 5.
नेपाल में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया की एक समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र: 1947 से 1960 तक नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता खुले और उत्तरदायी शासन की माँग उठाते रहे। विवश होकर राजा ने 1990 में नए लोकतान्त्रिक संविधान की माँग मान ली। इस प्रकार नेपाल में 1990 से लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ। लेकिन 1990 के दशक में ही 5-6 जिलों में माओवादियों की समानान्तर शासन व्यवस्था को नियंत्रित करने की प्रक्रिया में शाही सेना व माओवादियों के बीच हिंसक लड़ाई छिड़ गई।

कुछ समय तक राजा की सेना, लोकतंत्र – समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। अन्त में सन् 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। लोकतंत्र की बहाली ( 2006 ) – अप्रेल, 2006 में नेपाल में देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए तथा 24 अप्रेल, 2006 को राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया।

प्रश्न 6.
भारत के नेपाल व श्रीलंका के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
अथवा
भारत-श्रीलंका सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत-नेपाल सम्बन्ध: भारत के नेपाल के साथ सम्बन्धों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. दोनों देशों के बीच बहुत नजदीकी सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  2. 1950 से नेपाल और भारत के बीच पारगमन और व्यापार संधि रही है।
  3. नेपाल के राजनीतिक विकास और लोकतंत्रीकरण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  4. भारत ने नेपाल में शिक्षण संस्थाओं के विकास, हवाई सेवा के विकास, भारतीय सशस्त्र बलों से सेवानिवृत्त नेपाली लोगों के कल्याण आदि में नेपाल को सहयोग दिया है।
  5. दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन और जल प्रबंधन ग्रिड के मुद्दों पर एक साथ हैं।
  6. दोनों देशों के बीच पारगमन संधि पर नेपाल के संदेह, नेपाल के चीन से बढ़ते रिश्ते, कालापानी के मुद्दे, जल- विवाद आदि के सम्बन्ध में मतभेद उभरते रहे हैं। उक्त विवादों के होते हुए दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण बने हुए हैं।

भारत-श्रीलंका सम्बन्ध: भारत और श्रीलंका दोनों पड़ौसी देश हैं। दोनों के बीच घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध हैं। यथा।

  1. दक्षिण एशिया में भारत और श्रीलंका दोनों ही स्वतंत्रता के बाद से लोकतांत्रिक देश रहे हैं।
  2. भारत और श्रीलंका के बीच केवल समुद्र है और दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा विषयक समझौता है।
  3. भारत ने समय-समय पर आर्थिक सहयोग दिया है। दोनों गुटनिरपेक्ष देश हैं। दोनों के बीच मुक्त व्यापार समझौता है। यथा।
  4. दोनों देशों के बीच श्रीलंका तमिल समस्या विवाद का विषय रही। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत-श्रीलंका के बीच परस्पर अच्छे पड़ौसी के सम्बन्ध कायम हैं।

प्रश्न 7.
भारत और नेपाल के आपसी सम्बन्धों में विवाद और सहयोग के मुख्य मुद्दों की विवेचना कीजिये भारत और नेपाल सम्बन्ध
उत्तर:
भारत व नेपाल के बीच सम्बन्धों में विवाद और सहयोग दोनों का सुगुंफन है। यथा।
I. भारत और नेपाल के सम्बन्धों में सहयोग के मुद्दे – भारत-नेपाल के बीच सहयोग के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित

  1. दोनों देशों के बीच बहुत नजदीकी सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  2. 1950 से नेपाल और भारत के बीच पारगमन और व्यापार संधि रही है।
  3. नेपाल के राजनीतिक विकास और लोकतंत्रीकरण में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  4. भारत ने नेपाल में शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक संस्थाओं और संगठनों के विकास में योगदान दिया है।
  5. दोनों देशों के बीच हवाई सेवा सम्बन्धी समझौता है।

II. भारत-नेपाल के बीच विवाद के मुद्दे – भारत – नेपाल के बीच अनेक मुद्दों पर विवाद उभरता रहा है।

  1. नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्त्वों के खिलाफ कदम नहीं उठाती।
  2. भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ नेपाल में चल रहे माओवादी आंदोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती है क्योंकि वे भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं।
  3. नेपाल के चीन से बढ़ते रिश्तों के कारण भारत की चिंता बढ़ी है।
  4. नेपाल के बहुत से लोग सोचते हैं कि भारत सरकार नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल दे रही है और उसके नदी जल तथा पन बिजली पर आँख गड़ाए हुए है।
  5. नेपाल को यह संशय है कि भारत उसको अपने भूक्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुँचने से रोकता है।

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प्रश्न 8.
भारत-पाक के बीच प्रमुख विवादग्रस्त मुद्दे क्या हैं? प्रकाश डालिये।
अथवा
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दों का विवेचन कीजिये । भारत – पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे
उत्तर;
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।’
1. कश्मीर का मुद्दा: विभाजन के तुरन्त बाद दोनों देश कश्मीर के मुद्दे पर लड़ पड़े। पाकिस्तान की सरकार का दावा था कि कश्मीर पाकिस्तान का है जबकि भारत का कहना है कि कश्मीर भारत का अंग है। दोनों देशों के अपने-अपने तर्क हैं। इस मुद्दे को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच 1947-48 तथा 1965 का युद्ध हो चुका है, लेकिन इन युद्धों से इस मसले का समाधान नहीं हो पाया है।

2. सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण का मुद्दा:
हिमालय में भारत – पाक-चीन सीमा पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर उचित सीमा निर्धारण नहीं किये जा सकने के कारण भारत-पाक के बीच विवाद का मुद्दा बना हुआ है। सामरिक दृष्टि से इस क्षेत्र का अत्यधिक महत्त्व होने के कारण दोनों देश इस पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते हैं।

3. हथियारों की होड़ का मुद्दा: हथियारों की होड़ को लेकर भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी रहती है। 1998 में दोनों ने परमाणु परीक्षण किये तथा दोनों परमाणु अस्त्रों से लैस हैं।

4. एक-दूसरे पर संदेह तथा आरोप-प्रत्यारोप: दोनों देशों की सरकारें लगातार एक-दूसरे को संदेह की नजर से देखती हैं। उग्रवाद, आतंकवाद, जासूसी आदि के लिए एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करती रहती है।

5. नदी – जल बँटवारे पर विवाद: भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की व्याख्या और नदी – जल के इस्तेमाल को लेकर विवाद बना हुआ है।

6. सरक्रीक की समस्या: कच्छ के रन में सरक्रीक की सीमा रेखा को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।

प्रश्न 9.
पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्धों को किस प्रकार सुधारा जा सकता है?
अथवा
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव दीजिये।
उत्तर:
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधार हेतु सुझाव: भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों को सुधारने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. राजनीतिक स्तर पर बातचीत एवं विश्वास बहाली के प्रयास: भारत और पाकिस्तान दोनों राजनीतिक स्तर पर प्रयास करके आपसी विवादों को बातचीत और समझौतों के द्वारा दूर कर सकते हैं।
  2. आर्थिक स्तर पर प्रयास: दोनों देशों को आपसी सम्बन्ध सुधारने के लिए आर्थिक स्तर पर ‘मुक्त व्यापार संधि’ तथा एक-दूसरे की आर्थिक जरूरतों को पूरा करके सम्बन्धों में सुधार के प्रयत्न करने चाहिए।
  3. सांस्कृतिक स्तर पर प्रयास: सांस्कृतिक स्तर पर दोनों देशों को साहित्य, कला और खेल गतिविधियों के आदान-प्रदान, वीजा सुविधा तथा सिनेमा के द्वारा सहयोग बढ़ाना चाहिए।
  4. सामाजिक स्तर पर प्रयास: भारत और पाकिस्तान को अपने सम्बन्ध सुधारने के लिए समय पर इन लोगों को आपस में मिलने की सुविधा प्रदान करें।समय
  5. तकनीकी तथा चिकित्सा सेवा का आदान-प्रदान- दोनों देश तकनीकी ज्ञान तथा चिकित्सा के क्षेत्र में भी साथ काम करके आपसी सम्बन्ध सुधार सकते हैं। गया है।
  6. शिमला समझौते का पालन- दोनों देशों को शिमला समझौते की शर्तों का पालन करना चाहिए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 10.
भारत और बांग्लादेश के मध्य तनाव तथा सहयोग के मुद्दों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के मध्य तनाव और सहयोग के मुद्दे भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव तथा सहयोग के मुद्दों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया दोनों देशों के मध्य तनाव के मुद्दे भारत और बांग्लादेश के मध्य तनाव के अग्रलिखित प्रमुख मुद्दे हैं।
(अ) भारत सरकार निम्न कारणों से बांग्लादेश से नाराज है।

  1. भारत में अवैध आप्रवास (बांग्लादेशी शरणार्थियों की भारत में घुसपैठ ) पर ढाका द्वारा खंडन करना।
  2. बांग्लादेश सरकार का भारत विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन देना।
  3. भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश का इन्कार करना।
  4. ढाका का भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने का फैसला।
  5. म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात नहीं करने देना।

(ब) बांग्लादेश सरकार निम्न कारणों से भारत सरकार से नाखुश है।

  • बांग्लादेश सरकार नदी – जल में हिस्सेदारी के सवाल पर भारत सरकार से नाखुश है।
  • भारत की सरकार पर चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को हवा देने, बांग्लादेश के प्राकृतिक गैस में सेंधमारी करने के भी आरोप हैं।
    1. पिछले दस वर्षों के भारत और बांग्लादेश के मध्य सहयोग के मुद्दे. दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध ज्यादा बेहतर हुए हैं।
    2. आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मसले पर भी दोनों देशों ने निरंतर सहयोग किया है।
    3.  इस बात के भी प्रयास किये जा रहें हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक-दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरतकर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाये ।

प्रश्न 11.
दक्षिण एशियायी क्षेत्रीय सहयोग के क्षेत्र में सार्क की स्थापना के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये तथा उसके संगठन पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
‘सार्क सार्क की स्थापना: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना दिसम्बर, 1985 में हुई । वर्तमान में, सार्क में आठ सदस्य राष्ट्र हैं। सार्क के उद्देश्य – सार्क के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण में वृद्धि तथा उनके जीवन स्तर में उन्नति लाना।
  2. इस क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक विकास लाना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों के बीच सामूहिक आत्मविश्वास को विकसित करने का प्रयास करना।
  4. एक-दूसरे की समस्याओं को समझने, सुलझाने तथा परस्पर विश्वास को लाने में योगदान करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में परस्पर सहयोग करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ पारस्परिक सहयोग में वद्धि करना।
  7. समान हितों के मामलों में अन्तर्राष्ट्रीय आधारों पर परस्पर सहयोग में वृद्धि करना।
  8. समान उद्देश्यों वाले क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

सार्क का संगठन: सार्क की प्रमुख संस्थाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. शिखर सम्मेलन: सार्क देशों का प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता है जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेते हैं।
  2. मंत्रिपरिषद्: सार्क के सभी राष्ट्रों के विदेशमंत्रियों से मिलकर एक मंत्रिपरिषद् का निर्माण किया गया है जो नीतियों का निर्माण करती है ।
  3. स्थायी समिति: सार्क की एक स्थायी समिति है जो परिषद् की योजनाओं की स्वीकृति देती है तथा उनका वित्तीय प्रबन्ध करती है।
  4. तकनीकी समिति: सार्क की तकनीकी समिति क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार, योजनाओं का निर्माण व उनके कार्यान्वयन का मूल्यांकन आदि कार्य करती है।
  5. सचिवालय: सार्क का एक सचिवालय है। इसका एक महासचिव होता है जिसका कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया है।
  6. वित्तीय व्यवस्था: सार्क के चार्टर के अनुच्छेद 9 में वित्तीय व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।

प्रश्न 12.
दक्षिण एशिया में शांति एवं सहयोग हेतु किये गये प्रयासों की विवेचना कीजिए।
अथवा
दक्षिण (सार्क) क्या है? दक्षिण एशिया की शांति व सहयोग में इसका क्या योगदान है।?
उत्तर:
सार्क (दक्षेस) से आशय: सार्क (दक्षेस) दक्षिण एशिया के देशों का इस क्षेत्र में शांति एवं सहयोग की स्थापना हेतु स्थापित किया गया एक क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1985 में हुई। वर्तमान में इसके सदस्य देश हैं- भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान। दक्षिण एशिया के देशों में शांति एवं सहयोग के कदम दक्षिण एशिया के देशों ने दक्षिण एशिया में शांति एवं सहयोग की स्थापना की दिशा में निम्न प्रमुख कदम उठाये हैं

(1) सार्क (दक्षेस) की स्थापना तथा उसके कार्य:
सार्क के विभिन्न शिखर सम्मेलनों में दक्षिण एशिया के देशों में नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने, पर्यटन के विकास, आपदा प्रबन्ध, खाद्य सुरक्षा भण्डार की स्थापना, पर्यावरण की सुरक्षा, संयुक्त उद्यम स्थापित करने, क्षेत्रीय परियोजनाओं हेतु सामूहिक कोष गठित करने आदि के निर्णय लिये गये

(2) दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asia Free Trade Area)-SAFTA ): इन देशों ने साफ्टा (SAFTA) लागू करना स्वीकार कर लिया। सन् 2004 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के समझौते पर सार्क के देशों ने हस्ताक्षर किये तथा यह समझौता 2006 से प्रभावी हो गया। इसके अतिरिक्त इन सम्मेलनों में एक गरीबी उन्मूलन कोष गठित करने; दोहरे करारोपण से बचाव, वीसा नियमों में उदारता तथा दक्षेस संचार विषयों पर सहमति हुई है।

(3) भारत-पाकिस्तान सहयोग के प्रयास: भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने और शांति बहाल करने के लिए सार्क सम्मेलनों में लगातार प्रयास हुए हैं।

प्रश्न 13
श्रीलंका के जातीय संघर्ष का वर्णन कीजिए।
उत्तर: श्रीलंका का जातीय संघर्ष श्रीलंका 1948 में स्वतंत्र हुआ और स्वतंत्रता के बाद से अब तक वहाँ लोकतंत्र कायम है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद से ही श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।

  1. सिंहली समुदाय व उसका दृष्टिकोण: श्रीलंका की राजनीति में सिंहली समुदाय बहुसंख्यक है। तथा सिंहली समुदाय का ही वहाँ दबदबा रहा है। सिंहलियों का मानना है कि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है। अतः तमिलों को कोई रियायत नहीं दी जाए।
  2. तमिल समुदाय: श्रीलंका के तमिल समुदाय की माँग रही है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को तमिलों के लिए एक अलग राष्ट्र बनाया जाये। लेकिन सिंहलियों के तमिल अल्पसंख्यकों के उक्त उपेक्षा भरे व्यवहार के कारण वहाँ उग्र- तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई।
  3. जातीय संघर्ष: 1983 के बाद श्रीलंका के एक उग्रवादी तमिल संगठन लिट्टे ने श्रीलंका की सेना के साथ एक पृथक तमिल राष्ट्र की स्थापना के लिए सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ कर दिया। श्रीलंका का यह हिंसक संघर्ष लगातार चलता आ रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थ के रूप में नार्वे और आइसलैंड जैसे देश युद्धरत दोनों पक्षों को बातचीत करने के लिए राजी कर रहे हैं। लेकिन यह संभव नहीं हो पाया है। अंदरूनी संघर्ष के झंझावतों को झेलकर भी श्रीलंका ने लोकतांत्रिक राज व्यवस्था कायम रखी है।

प्रश्न 14.
पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग पलायन करके भारत आ गए। कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंग्रेजी शासन के समय बंगाल और असम के विभाजित हिस्सों से पूर्वी पाकिस्तान बना था। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध का प्रदर्शन करने लगे। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने न्यायोचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी की माँग की। पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ लोगों ने आंदोलन किया तथा पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की।

परिणामस्वरूप शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में आवामी लीग को 1970 में पूर्वी पाकिस्तान की सारी सीटों पर विजय मिली। लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था। जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. भारत में सर्वाधिक लम्बा राष्ट्रीय मार्ग है-
(A) NH-1
(B) NH-7
(C) NH-5
(D) NH-3.
उत्तर:
(B) NH-7

2. उत्तर – दक्षिण गलियारा इन स्थानों को जोड़ता है-
(A) श्री नगर – कन्याकुमारी
(B) दिल्ली-चेन्नई
(C) जयपुर – सेलम
(D) पटना- कोच्ची
उत्तर:
(A) श्री नगर – कन्याकुमारी

3. भारत में पहली रेल कब चली ?
(A) 1833
(B) 1843
(C) 1853
(D) 1863
उत्तर:
(C) 1853

4. भारत में आन्तरिक जल मार्गों की लम्बाई है-
(A) 14000 कि०मी०
(B) 14200 कि०मी०
(C) 14300 कि०मी०
(D) 14500 कि०मी०
उत्तर:
(D) 14500 कि०मी०

5. संचार साधन किस तत्त्व को दूसरे स्थान तक नहीं भेजते ?
(A) विचार
(B) संदेश
(C) दर्शन
(D) दिल्ली – चेन्नई
उत्तर:
(D) दिल्ली – चेन्नई

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

6. NH-1 किन नगरों को जोड़ता है ?
(A) दिल्ली-अमृतसर
(B) दिल्ली-कोलकाता
(C) दिल्ली – मुम्बई
(D) यात्रियों
उत्तर:
(A) दिल्ली-अमृतसर

7. भारत में राष्ट्रीय महामार्ग का सड़कों में प्रतिशत है-
(A) 1%
(B) 2%
(C) 3%
(D) 4%.
उत्तर:
(D) 4%.

8. स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्गों की लम्बाई है-
(A) 3846 कि०मी०
(B) 4846 कि०मी०
(C) 5846 कि०मी०
(D) 6846 कि०मी०
उत्तर:
(C) 5846 कि०मी०

9. भारत में सर्वाधिक सड़क घनत्व किस राज्य में है ?
(A) पंजाब
(B) केरल
(C) तमिलनाडु
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(B) केरल

10. भारत में कितने रेल मंडल हैं ?
(A) 9
(B) 12
(C) 14
(D) 16
उत्तर:
(D) 16

11. बड़े गेज़ की रेल पटरी की चौड़ाई है-
(A) 1.5 मीटर
(B) 1.6 मीटर
(C) 1.3 मीटर
(D) 1.8 मीटर
उत्तर:
(B) 1.6 मीटर

12. भारत में पहली पाइप लाइन कब बनी ?
(A) 1957
(B) 1958
(C) 1959
(D) 1960
उत्तर:
(C) 1959

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में सड़कों की कुल लम्बाई बताओ।
उत्तर:
-33 लाख कि०मी०।

प्रश्न 2.
पूर्व – पश्चिम गलियारे के दो अन्तिम स्टेशन बताओ।
उत्तर:
सिलचर तथा पोरबन्दर।

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प्रश्न 3.
भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन – सा है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग – 7 ( वाराणसी से कन्याकुमारी तक)।

प्रश्न 4.
भारत में सड़कों का राष्ट्रीय घनत्व कितना है ?
उत्तर:
प्रति 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्रफल में सड़कों की लम्बाई 75 कि०मी० है।

प्रश्न 5.
भारत में रेलमार्गों की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर:
62759 कि०मी०

प्रश्न 6.
भारत में नाव्य जलमार्गों की लम्बाई बताओ।
उत्तर:
14500 कि०मी०

प्रश्न 7.
भारत में कितने अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन हैं ?
उत्तर:
11.

प्रश्न 8.
भारत में एक प्रमुख गैस पाइप लाइन बताओ।
उत्तर:
HBJ गैस पाइप लाइन।

प्रश्न 9.
प्रसार भारती का गठन कब हुआ ?
उत्तर:
1997 में।

प्रश्न 10.
भारत में रेडियो प्रसारण कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1923 में।

प्रश्न 11.
परिवहन तन्त्र किन स्तरों पर अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है ?
उत्तर:
भूमण्डलीय, राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय स्तर।

प्रश्न 12.
संचार तन्त्र के तीन रूप बताओ।
उत्तर:

  1. भौतिक
  2. तार द्वारा
  3. वायु तरंगों द्वारा।

प्रश्न 13.
भारत में सबसे लम्बा राष्ट्रीय महामार्ग कौन-सा है?
उत्तर:
NH-7 जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक 2369 कि०मी० लम्बा

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प्रश्न 14.
भारत में पक्की सड़कों का सबसे अधिक घनत्व तथा सबसे कम घनत्व किन राज्यों में है?
उत्तर:
भारत में पक्की सड़कों का सबसे अधिक घनत्व केरल में – 387 कि०मी० प्रति 100 वर्ग कि०मी० और सबसे कम घनत्व जम्मू-कश्मीर में – 3.5 कि०मी० प्रति 100 वर्ग कि०मी० है।

प्रश्न 15.
भारत के तट रेखा की लम्बाई तथा समुद्री आर्थिक क्षेत्र कितना है ?
उत्तर:
तट रेखा 7516 कि०मी० लम्बी है तथा समुद्री क्षेत्र 20 लाख कि०मी० से अधिक समुद्री आर्थिक क्षेत्र है।

प्रश्न 16.
भारत में वायु परिवहन के दो मुख्य वर्ग बताओ।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तथा घरेलू परिवहन।

प्रश्न 17.
भारत में उत्तरी रेलवे क्षेत्र का प्रमुख कार्यालय बताओ।
उत्तर:
नई दिल्ली।

प्रश्न 18.
भारत के राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 1 के मार्ग का विस्तार बताओ।
उत्तर:
इलाहाबाद से हल्दिया तक।

प्रश्न 19.
भारत के उस वायु परिवहन सेवा का नाम लिखो जो सभी महाद्वीपों को जोड़ती है ?
उत्तर:
एयर इण्डिया।

प्रश्न 20.
भारत में किस वर्ग की सड़कें कुल सड़क मार्गों की 2% लम्बाई रखती है परन्तु देश के सड़क भार का 40% बोझा परिवहन करती हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सड़क मार्गों के क्या दोष हैं ?
उत्तर:

  1. सड़क मार्ग महंगे हैं।
  2. इनसे वायु प्रदूषण होता है।
  3. अधिक दूरी तक भारी वस्तुओं का परिवहन नहीं होता।
  4. दुर्घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

प्रश्न 2.
स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrangles) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ किन चार महानगरों को जोड़ता है ?
उत्तर:
यह एक सुपर महामार्ग है जो देहली-कोलकाता – मुम्बई तथा चेन्नई को आपस में जोड़ता है। इसमें 4 या 6 लेन वाले महामार्ग शामिल हैं। इसका आकार एक चतुर्भुज जैसा है।

प्रश्न 3.
चार राष्ट्रीय महामार्गों के नाम लिखो तथा इनके अन्तिम स्टेशन बताओ।
उत्तर:

  • शेरशाह सूरी मार्ग – राष्ट्रीय महामार्ग नं० 1 – देहली से अमृतसर तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 3 – आगरा से मुम्बई तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 7 – वाराणसी से कन्याकुमारी तक।
  • राष्ट्रीय महामार्ग नं० 2 – देहली से कोलकाता तक।

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प्रश्न 4.
दो राष्ट्रीय जल मार्ग बताओ।
उत्तर:
(i) राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 1 – इलाहाबाद से हल्दिया तक (गंगा नदी)
(ii) राष्ट्रीय जलमार्ग नं० 2 – सदिया से दुबरी तक (ब्रह्मपुत्र नदी )

प्रश्न 5.
भारतीय रेल मार्ग पटरी की चौड़ाई के आधार पर कितने प्रकार की है ?
उत्तर:
भारत में धरातल की विभिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार के रेलमार्ग बनाए गए हैं। मैदानी भागों में चौड़ी पटरी वाले रेलमार्ग हैं, जबकि पहाड़ी भागों में तंग पटरी वाले रेलमार्ग हैं।
(i) चौड़ी पटरी (Broad gauge ) – 1.616 मीटर चौड़ाई
(ii) छोटी पटरी (Meter gauge) – 1 मीटर चौड़ाई
(iii) तंग पटरी (Narrow gauge) – 0.76 मीटर और
0.610 मीटर चौड़ाई
कुल लम्बाई – कुल ल० का %
46807 कि० मी० – (74.14%)
13290,, – (21.2%)
3124,, – (4.94%)
63221 – 100%

प्रश्न 6.
संचार तन्त्र के विभिन्न रूप बताओ।
उत्तर:
संचार का जाल एक स्थान से दूसरे स्थान को सूचनाएं भेजता या प्राप्त करता है। इसके तीन रूप हैं भौतिक जैसे डाक सेवाएं, तार द्वारा जैसे टेलीग्राम और टेलीफोन और वायु तरंगों द्वारा जैसे रेडियो और टेलीविजन। कुछ संचार तन्त्र परिवहन के सहयोग से कार्य करते हैं, जैसे डाक सेवाएं लेकिन कुछ संचार के साधन परिवहन तन्त्र से अलग स्वतन्त्र रूप में कार्य करते हैं; जैसे- रेडियो।

प्रश्न 7.
भारत में रेलमार्गों का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
(1) भारतीय रेलों का जाल एशिया में प्रथम लेकिन विश्व में चौथा सबसे बड़ा जाल है।
(2) यात्रियों और माल के परिवहन के लिए यह सस्ता साधन है।
(3) यह वस्तुओं के केन्द्रों से मांग के क्षेत्रों में वितरण को जैसे खाद्य पदार्थ, रेशों, कच्चे माल और तैयार माल को, करता है।
(4) रेल मार्गों की लम्बाई 62,759 कि०मी० है जिस पर 6867 स्टेशनों के मध्य प्रतिदिन 12670 गाड़ियां चलती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में राष्ट्रीय जलमार्गों के वितरण बताओ।
उत्तर:
देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, रख-रखाव और नियमन के लिए 1986 में भारतीय आन्तरिक जलमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया था। इस समय देश में तीन राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। 10 अन्य जलमार्गों को भी राष्ट्रीय जलमार्गों का दर्जा देने पर विचार किया जा रहा है। तीन राष्ट्रीय जलमार्ग ये हैं – राष्ट्रीय जलमार्ग – 1 : गंगा-भागीरथी- हुगली नदी तन्त्र का इलाहाबाद और हल्दिया के बीच का मार्ग ( 1620 कि०मी०); राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 : ब्रह्मपुत्र नदी का सदिया – धूबरी भाग ( 891 कि०मी०) और राष्ट्रीय जलमार्ग-3 : पश्चिम तट नहर का कोटापुरम में कोल्लम खण्ड तथा उद्योग मण्डल और चंपाकारा नहरें (205 कि०मी० )।

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प्रश्न 9.
परिवहन जाल का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव है ?
उत्तर:
परिवहन जाल की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने में रही है । हमारे देश में स्थानीय स्तरों पर उत्पादन की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्ट उत्पादों के लिए स्थानीय बाज़ार हैं। उत्पादन तथा साथ ही साथ उपभोग की ये विशिष्टताएं हमारे परिधानों, भोजन और कलाकृतियों में झलकती हैं। परिवहन जाल ने इन स्थानीय बाज़ारों को राष्ट्रीय बाज़ार के साथ जोड़ने का बहुत बड़ा काम किया है। इस एकीकरण का विस्तार और आगे अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार के साथ भी हुआ है 1

प्रश्न 10.
भारत में आकाशवाणी के विकास पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
आकाशवाणी – देश में रेडियो जनसंचार का सशक्त माध्यम है। भारत में सन् 1927 में रेडियो प्रसारण का प्रारम्भ हुआ। इसके लिए मुम्बई और कोलकाता में दो निजी ट्रांसमीटर लगाए गए थे। 1936 में इसे ऑल इण्डिया रेडियो ( ए०आई० आर०) नाम दिया गया। इसे आकाशवाणी भी कहते हैं । स्वतन्त्रता के समय छः रेडियो स्टेशन थे। इस समय आकाशवाणी के 208 स्टेशन तथा 327 प्रसारण केन्द्र हैं। ये स्टेशन और प्रसारण केन्द्र देश की 99 प्रतिशत जनसंख्या तथा देश के 90 प्रतिशत क्षेत्र को प्रसारण सेवाएं प्रदान करते हैं। निजी क्षेत्र में 100 एफ० एम० रेडियो स्टेशन स्थापित किए गए हैं। आकाशवाणी सूचना, शिक्षा और मनोरंजन से सम्बन्धित विविध प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित करता है। समाचार सेवा, विविध भारती, व्यावसायिक कार्यक्रम, राष्ट्रीय चैनल (1988) आदि प्रमुख सेवाएं हैं।

प्रश्न 11.
भारत में दूरदर्शन पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
दूरदर्शन – दूरदर्शन भारत का राष्ट्रीय टेलीविज़न है। यह संसार के सबसे बड़े क्षेत्रीय प्रसारण संगठनों में से एक है। इसने गांवों और नगरों दोनों में ही लोगों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को बदल दिया है । दूरदर्शन – 1 ( डी०डी०- 1 ) 1042 स्थल ट्रांसमीटरों के द्वारा देश की 87 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंचता है। यही नहीं 65 अतिरिक्त ट्रांसमीटर भी हैं, जो अन्य चैनलों को स्थानीय सहायता प्रदान करते हैं। दूरदर्शन का पहला कार्यक्रम 15 सितम्बर, 1959 को प्रसारित किया गया था। भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित पहला प्रयोग 1975-76 में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्स्पेरिमेंट (साइट) कार्यक्रम के अन्तर्गत किया गया था। देश में राष्ट्रीय कार्यक्रम और रंगीन टेलीविज़न की शुरुआत 1992 में ही हो सकी।

प्रश्न 12.
कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग बताओ।
उत्तर:
उपग्रह – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तंत्र में एक क्रान्ति आ गई है। रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह छोड़ा था। उपग्रहों, प्रेक्षपण यानों और सम्बन्धित स्थलीय प्रणालियों का विकास देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का अंग है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणालियों को दो वर्गों में रखा जा सकता है – भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) तथा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई० आर०एस० )। इन्सैट, दूरसंचार, मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रेक्षण और अन्य विविध आंकड़ों तथा कार्यक्रमों के लिए एक बहु-उद्देशीय उपग्रह प्रणाली है।

दूरदर्शन की तीन स्तरों वाली बुनियादी कार्यक्रम प्रसारण सेवाएं हैं –
(1) राष्ट्रीय
(2) प्रादेशिक और
(3) स्थानीय।

राष्ट्रीय दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रमों में समाचार, सामयिक विषय, विज्ञान, सांस्कृतिक पत्रिकाएं, वृत्तचित्र, संगीत, नृत्य नाटक, सीरियल और फीचर फिल्में शामिल होती हैं । यह स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिए भी शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित करता है। भारतीय सुदूर संवेदन (आई० आर० एस०) उपग्रह प्रणाली का प्रारम्भ मार्च, 1988 में हुआ जब पहला आई० आर०एस० – 1 ए अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। तब से लेकर अब तक दो शृंखलाओं के उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित किए जा चुके हैं। भारतीय सुदूर संवेदन एजेंसी हैदराबाद में स्थित है। यह आंकड़ों के अर्जन और इनके प्रसंस्करण की सुविधाएं प्रदान करती है। प्रकृति के संसाधनों के प्रबन्धन में ये बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

प्रश्न 13.
मुक्त आकाश नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मुक्त आकाश नीति (Open Sky Policy) – वायु परिवहन के केन्द्रों को विमान पत्तन कहा जाता है। वायु परिवहन किराया अपेक्षाकृत अधिक होता है । अतः इसका मुख्य रूप से यात्री परिवहन के लिए ही उपयोग किया जाता है। केवल हल्की और मूल्यवान वस्तुएं ही मालवाहक वायुयानों द्वारा भेजी जाती हैं । भारतीय निर्यातकों की सहायता करने के लिए तथा उनके निर्यात को और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए भारत सरकार ने व्यावसायिक माल के लिए ‘मुक्त आकाश की नीति” शुरू करने का निर्णय लिया है। इस नीति के अनुसार कोई भी विदेशी वायुयान कम्पनी या निर्यातकों का संघ माल ले जाने के लिए देश में मालवाहक जहाज़ ला सकते हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

प्रश्न 14.
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
देश में 11 अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन तथा 112 घरेलू विमान पत्तन हैं। भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण इन विमान पत्तनों का प्रबन्ध करता है। इन विमान पत्तनों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है – अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन, प्रमुख राष्ट्रीय विमान पत्तन, मध्यम विमान पत्तन और लघु विमान पत्तन। अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन मुम्बई (सांताक्रूज और सहारा विमान पत्तन), दिल्ली ( इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन ), कोलकाता ( दमदम), चेन्नई (मीनेबक्कम् ), बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, पणजी, अमृतसर, गुवाहाटी और कोच्चि हैं। ये पत्तन अन्तर्राष्ट्रीय सेवाओं के साथ-साथ घरेलू सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में शेरसाह सूरी मार्ग का वर्णन करें।
उत्तर:
शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से लेकर बंगाल की सोनार घाटी तक सुदृढ़ एवं संघटित (समेकित ) रखने के लिए शाही राजमार्ग का निर्माण कराया था । कोलकाता से पेशावर तक जोड़ने वाले इसी मार्ग को ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रांड ट्रंक (जी० टी०) रोड के नाम से पुनः नामित किया गया था। वर्तमान में यह अमृतसर से कोलकाता के बीच विस्तृत है और इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है –
(क) राष्ट्रीय महामार्ग दिल्ली से अमृतसर तक और
(ख) राष्ट्रीय महामार्ग दिल्ली से कोलकाता तक।

प्रश्न 16.
भारत में कोंकण रेलवे का वर्णन करो।
उत्तर:
1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यह 760 कि० मी० लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है। इसे अभियांत्रिकी का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है। यह रेलमार्ग 146 नदियों व धाराओं तथा 2000 पुलों एवं 91 सुरंगों को पार करता है। इस मार्ग पर एशिया की सबसे लंबी 6.5 कि० मी० की सुरंग भी है। इस उद्यम में कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य भागीदार हैं।

प्रश्न 17.
भारत में वायु सेवाओं के दो प्रमुख प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में वायु सेवाएं दो प्रकार की हैं – अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू
(1) एयर इंडिया, यात्रियों और माल के परिवहन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वायु सेवाएं प्रदान करती है। इसके द्वारा चार प्रमुख विमान पत्तनों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता से 35 देशों के लिए विमान सेवाएं उपलब्ध हैं। सन् 2000-01 में एयर इंडिया के द्वारा 38.3 लाख यात्रियों ने यात्रा की। प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय वायु मार्ग ये हैं – दिल्ली – रोम – फ्रैंकफुर्ट, दिल्ली – मास्को, कोलकाता टोकियो, कोलकाता – पर्थ, मुम्बई – लन्दन – न्यूयार्क।

(2) इंडियन एयरलाइंस दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया के पड़ोसी देशों को भी वायु सेवाएं प्रदान करती है। इस समय दो निजी कम्पनियां नियमित घरेलू वायु सेवा प्रदान करती हैं। 38 निजी कम्पनियों के पास अनियमित एयर – टैक्सी चलाने के परमिट हैं। निजी वायु सेवा कम्पनियों की घरेलू वायु यातायात में इस समय 52.8 प्रतिशत की भागीदारी है। उदारीकरण की नीति के लागू होने के बाद वायु सेवा के क्षेत्र में निजी कम्पनियों की भागीदारी बहुत तेज़ी से बढ़ी है।

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प्रश्न 18.
अन्तः स्थलीय जलमार्ग के विकास के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदियों, नहरों और झीलें महत्त्वपूर्ण अन्तः स्थलीय जलमार्ग हैं। अन्तः स्थलीय जलमार्गों का विकास निम्नलिखित मार्गों पर निर्भर करता है-

  1. जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई – कई नदियों की नाव्यता बढ़ाने के लिए सुधार करके जलधारा की चौड़ाई एवं गहराई को बढ़ाया गया है।
  2. जल प्रवाह की निरन्तरता – जल प्रवाह की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए बांधों तथा बराजों का निर्माण किया गया है।
  3. परिवहन प्रौद्योगिकी का प्रयोग – नदी में पानी की एक निश्चित गहराई को बनाए रखने के लिए उसकी तलहटी से सिल्ट एवं बालू निकालकर सफ़ाई करना।

प्रश्न 19.
दी गई तालिक का 1 तथा 2 स्थान पर उपयुक्त शब्द लिख कर पूरा करें तथा अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखें।
उत्तर:
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 2

प्रश्न 20.
भारतीय रेलों की तीन मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63229 कि० मी० है जो एशिया में सर्वाधिक है तथा विश्व में चौथे स्थान पर है।
  2. भारतीय रेलों की पटरी की चौड़ाई तीन गेज है-चौड़ी पटरी, मीटर पटरी तथा तंग पटरी।
  3. अधिकतर रेलमार्ग गंगा- सतलुज मैदान में पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
भारत में समुद्र परिवहन की किन्हीं छः विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) संसार के बड़े महामार्गों के जाल में से एक भारत में है।
(2) भारत में सड़कों की कुल लम्बाई 33 लाख कि०मी० है।
(3) सड़कें 85% यांत्री परिवहन तथा 70% भार परिवहन ढोती हैं।
(4) सड़कें नगरीय केन्द्रों के इर्द-गिर्द केन्द्रित हैं।
(5) ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें कम हैं।
(6) 5846 कि०मी० लम्बी स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई तथा मुम्बई को जोड़ता है।

प्रश्न 22.
भारत में सर्वाधिक प्रभावी और अधुनातन वैयक्तिक संचार प्रणाली कौन-से हैं ? इसकी किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी वैयक्तिक संचार तन्त्रों में इन्टरनेट सर्वाधिक प्रभावित एवं अधुनातन है।
विशेषताएं –
(1) इन साधन का नगरीय क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है।
(2) यह उपयोगकर्त्ता को ई मेल के माध्यम से ज्ञान एवं सूचना की दुनिया में सीधे पहुंच बनाने में सहायक होता है।
(3) यह ई कामर्स तथा मौद्रिक लेन-देन के लिए अधिकाधिक प्रयोग में लाया जा रहा है।
(4) यह आंकड़ों का विशाल केन्द्रीय भण्डारागार होता है।

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प्रश्न 23.
भारतीय रेल प्रणाली को सोलह मण्डलों में क्यों बांटा गया है ? पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी तथा दक्षिणी मंडलों के मुख्यालयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में रेल मण्डलों की रचना का उद्देश्य रेलों की कार्यक्षमता में वृद्धि करना है । भार तथा यात्री ढोने में सहायता मिलती है।

रेल मण्डल मुख्यालय
1. पूर्वी कोलकाता
2. पश्चिमी मुम्बई
3. उत्तरी नई दिल्ली
4. दक्षिणी चेन्नई

प्रश्न 24.
भारतीय रेलों की तीन मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. रेलमार्गों की कुल लम्बाई 63229 कि०मी० है जो एशिया में सर्वाधिक है तथा विश्व में चौथे स्थान पर है।
  2. भारतीय रेलों की पटरी की चौड़ाई तीन गेज है-चौड़ी पटरी, मीटर पटरी तथा तंग पटरी ।
  3. अधिकतर रेलमार्ग गंगा- सतलुज मैदान में पाए जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में सड़कों का वितरण समान नहीं है। स्पष्ट करो।
अथवा
भारत में सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक भिन्नता का वर्णन करो।
उत्तर:
देश में सड़कों का वितरण समान नहीं है। सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक अन्तर बहुत है। सड़कों के घनत्व का अर्थ है : प्रति 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सड़कों की लम्बाई। जम्मू और कश्मीर में सड़कों का घनत्व 10 कि०मी० है, जबकि केरल में 375 कि०मी०। सड़कों का राष्ट्रीय घनत्व 75 कि०मी० (1996-97) है। अधिक घनत्व वाले प्रदेश – लगभग सभी उत्तरी राज्यों और प्रमुख दक्षिणी राज्यों में सड़कों का घनत्व अधिक है। कम घनत्व वाले प्रदेश – यह हिमालयी प्रदेश, उत्तर-पूर्वी राज्यों, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कम है। भूमि का स्वरूप और आर्थिक विकास का स्तर, सड़कों के घनत्व के मुख्य निर्धारक हैं।

समतल मैदानी क्षेत्र में सड़कों का निर्माण आसान और सस्ता होता है, जबकि पहाड़ी और अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों में सड़कें बनाना महंगा और कठिन होता है। इसीलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व और गुणवत्ता दोनों ही ऊंचे होते हैं। दुर्गम भूमियां लगभग सड़क विहीन होती हैं। जनसंख्या के उच्च घनत्व से भी सड़कों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है।

पक्की सड़कों के घनत्व में और भी अधिक अन्तर पाया जाता है। देश के प्रति 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्र में औसतन 75.4 कि०मी० लम्बी सड़कें हैं। गोवा में पक्की सड़कों का घनत्व सबसे अधिक है (153.8 कि०मी०)। इसके विपरीत जम्मू और कश्मीर में सबसे कम घनत्व ( 10.5 कि०मी०) है। अरुणाचल प्रदेश में पक्की सड़कों का घनत्व कुछ अधिक अर्थात् 4.8 कि०मी० है। सड़कों के उच्चतर घनत्व वाले राज्यों में ही पक्की सड़कों का भी घनत्व अधिक है। असम और नागालैंड इसके अपवाद हैं। केरल में 387.2 कि० मी० घनत्व है।

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प्रश्न 2.
रेलमार्गों के प्रारूप को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों के विकास को निम्नलिखित कारकों ने प्रभावित किया है-
1. भौतिक कारक – भारत के समतल मैदानी भागों में रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है। जैसे उत्तरी मैदान में। परन्तु पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में रेलमार्ग कम हैं; जैसे- असम तथा हिमालय प्रदेश में।
2. आर्थिक कारक – बड़े-बड़े औद्योगिक, व्यापारिक नगरों तथा प्रमुख पत्तनों के समीप रेलमार्गों का अधिक विस्तार हुआ है परन्तु राजस्थान में कम आर्थिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।
3. राजनीतिक कारक – ब्रिटिश प्रशासन ने देश के संसाधनों के शोषण की नीति के कारण प्रमुख पत्तनों को देश के आन्तरिक भागों से रेलमार्गों द्वारा जोड़ दिया ।

प्रश्न 3.
हिमालय पर्वत के विभिन्न क्षेत्रों में रेलमार्गों का विकास कम क्यों है ?
उत्तर:
हिमालय प्रदेश में धरातलीय बाधाओं के कारण रेलमार्गों का विकास नहीं किया जा सका। कई प्रदेशों में सुरंगें बनाना तथा तेज़ धारा वाली नदियों पर पुल बनाना कठिन कार्य है । रेलमार्गों को केवल पद स्थली पर स्थित नगरों तक ले जाकर छोड़ देना पड़ा। जैसे पहले रेलमार्ग पठानकोट तक, परन्तु अब इसका विस्तार जम्मू तक है। जम्मू से उधमपुर, जवाहर सुरंग तथा कोजी कुण्ड से होकर कश्मीर घाटी तक रेल बनाने की योजना बनाई गई है। संकरे गेज़ द्वारा शिमला-कालका रेलमार्ग तथा सिलीगुड़ी – दार्जिलिंग रेलमार्ग बनाए गए हैं। इसलिए हिमालय क्षेत्र कटे-फटे भू- भाग पिछड़ी अर्थव्यवस्था तथा विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग कम हैं।

प्रश्न 4.
रेल तन्त्र में तीन गेज होने के कारण क्या कठिनाइयां हैं ?
उत्तर:
भारतीय रेल तन्त्र में चौड़े गेज, मीटर गेज तथा संकरे गेज के कारण कई कठिनाइयां उत्पन्न हो गई हैं। यात्रियों एवं माल के सुचारू परिवहन में यह बाधक है। एक गेज की रेल पटरी से दूसरी गेज की पटरी पर सामान चढ़ाने बहुत असुविधा होती है। सामान उतारने लादने की प्रक्रिया में समय नष्ट होता है तथा खर्च अधिक होता है।

वर्तमान रेल पटरियों को चौड़े गेज में बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसे Unigauge कहते हैं। पटरियों के तीन गेज यात्रियों एवं माल के सुचारु परिवहन में यह बाधक हैं। एक गेज की रेल पटरी से दूसरी गेज की पटरी पर स्थानान्तरण करने में बार-बार उतारने एवं लादने की क्रिया में समय लगता है तथा यह महंगा होता है। जल्दी नष्ट होने वाली वस्तुएं इस देरी के कारण खराब हो जाती हैं। यात्रियों की संख्या तथा ढोये जाने वाले माल की मात्रा में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। वर्तमान रेल पटरियां अधिक भार सहन नहीं कर सकतीं।

प्रश्न 5.
भारतीय सड़क मार्गों को विभिन्न प्रकारों में बांटो।
उत्तर:
भारत में 6 प्रकार के सड़क मार्ग हैं-
1. स्वर्ण चतुष्कोण परम राजमार्ग (Golden Quadrangle Super Highways ) – सरकार ने सड़कों के विकास की एक मुख्य परियोजना तैयार की है। इसके द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को 6 गलियों वाले परम राजमार्गों द्वारा जोड़ा जा रहा है। श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ने वाला उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा सिल्चर को पोरबन्दर से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम गलियारा इसके मुख्य अंग हैं।

2. राष्ट्रीय महामार्ग (National Highways) – जो देश के प्रमुख नगरों को मिलाते हैं। इनका निर्माण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग करता है। इनकी कुल लम्बाई 65769 कि० मी० है। इन सड़कों की लम्बाई देश की सड़कों की कुल लम्बाई का 2% भाग है परन्तु यातायात में इसकी भागीदारी 40% है।

3. राजकीय मार्ग (State Highways ) – जो राजधानियों को अन्य नगरों से मिलाते हैं। इनकी कुल लम्बाई 1,37,100 लाख कि० मी० है। इनका निर्माण राज्य सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है।

4. जिला सड़क मार्ग (District Roads ) – जो किसी राज्य के मुख्यालयों को अन्य नगरों से जोड़ती हैं। इनकी लम्बाई 6 लाख कि० मी० है।

5. ग्रामीण सड़कें (Village Roads) – जो ग्रामीण केन्द्रों को नगरों से मिलाती हैं। इनमें से लगभग आधी सड़कें पक्की हैं।

6. सीमावर्ती सड़कें ( Border Roads ) – सीमा सड़क संगठन 1960 में बनाया गया था। यह सामरिक महत्त्व की सड़कों का निर्माण करता है। इसके 30,028 कि०मी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया है तथा दुर्गम क्षेत्रों में आवागमन सुगम बनाया है।

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प्रश्न 6.
पंजाब में सड़कों की सर्वाधिक सघनता क्यों है ? इसके लिए उत्तरदायी पांच कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पंजाब में सड़कों की सर्वाधिक सघनता है। सड़कों की घनता 74 कि० मी० प्रति 100 कि०मी० है। इसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
(1) पंजाब एक साधारण ढलान वाला जलोढ़ मैदान है। इसलिए यहाँ सड़क निर्माण कार्य सुगम है।
(2) पंजाब एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए सड़क निर्माण आवश्यक है।
(3) पंजाब प्रदेश से गेहूँ, चावल आदि उत्पाद बाहर निर्यात किए जाते हैं जिसके लिए सड़क निर्माण आवश्यक है।
(4) पंजाब में लोगों के रहन-सहन का स्तर तथा प्रति व्यक्ति आय अधिक है। इसलिए कच्चे माल तथा तैयार माल के परिवहन के लिए सड़कों के निर्माण की आवश्यकता है।
(5) यात्री परिवहन अधिक है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों द्वारा ही यात्रा सम्भव है।

प्रश्न 7.
सीमान्त प्रदेशों में सड़क निर्माण की प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर:
सीमान्त प्रदेशों के सामरिक महत्त्व को देखते हुए सन् 1960 में ‘सीमा सड़क संगठन’ (Border Road Organisation) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य सीमान्त प्रदेशों में सुरक्षा प्रदान करने तथा आर्थिक विकास तेज़ करने के लिए सड़कों का निर्माण करना था । इस संगठन ने मनाली (हिमाचल प्रदेश) से लेह (कश्मीर) तक संसार की सबसे ऊंची सड़क का निर्माण किया है। यह सड़क औसत रूप से 4270 मीटर समुद्र तल से ऊंची है। इस संगठन ने भारत- चीन सीमा हिन्दुस्तान तिब्बत सीमा सड़क का भी निर्माण किया है। इस संगठन ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, असम, मेघालय, नागालैंड सीमान्त प्रदेशों में लगभग 40,450 कि० मी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया है तथा 35,577 कि० मी० सड़कों की देखभाल का कार्य किया है।

प्रश्न 8.
सड़क परिवहन के कौन-से गुण एवं अवगुण हैं ?
उत्तर:
छोटी दूरियों के लिए माल तथा यात्रियों के ढोने में सड़क परिवहन लाभदायक है। यह एक प्रकार से तन्त्र है जो ग्रामीण क्षेत्रों को नगरों से जोड़ता है। सड़क परिवहन से सामान ग्राहक के घर तक भेजा जा सकता है। यह एक विश्वसनीय परिवहन साधन है। कई दुर्गम क्षेत्रों में धरातलीय बाधाओं के कारण सड़कें बनाना कठिन है। सड़क परिवहन द्वारा अधिक भारी माल नहीं ढोया जा सकता। वर्षा ऋतु में सड़क परिवहन में कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

प्रश्न 9.
भारत में वायु परिवहन सेवाओं के प्रकार बताओ।
उत्तर:
भारत में वायु परिवहन के दो खण्ड हैं- आन्तरिक सेवाएं तथा अन्तर्देशीय सेवाएं। एयर इण्डिया संगठन विदेशी उड़ानों का प्रबन्ध करती है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एयर इण्डिया के केन्द्र बिन्दु हैं। इण्डियन एयर लाइन्स देश के भीतरी भागों तथा पड़ोसी देशों के साथ वायु सेवाओं का प्रबन्ध करती है। सन् 1981 से देश के भीतर दुर्गम भागों में वायुदूत एयर लाइन्स सेवाओं का भी प्रारम्भ किया गया है। 1985 में पवन हंस लिमिटेड की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों, वनाच्छादित तथा पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने हेतु हेलीकाप्टर सेवाएं उत्पन्न करवाने के लिए की गई।

अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International Airports)

भारत में निम्नलिखित अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं –
(1) इन्दिरा गांधी हवाई अड्डा – देहली ( पालम)
(2) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा – कोलकाता (डम डम)
(3) सहार हवाई अड्डा – मुम्बई ( सान्ता क्रूज़)
(4) मीनामबकम हवाई अड्डा – चेन्नई
(5) राजासांसी हवाई अड्डा-अमृतसर
(6) त्रिवनन्तपुरम हवाई अड्डा – तिरुवनन्तपुरम्।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय तथा राजकीय महामार्ग में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:
राष्ट्रीय तथा राजकीय महामार्ग में निम्नलिखित अन्तर हैं-

राष्ट्रीय महामार्ग (National Highways): राजकीय महामार्ग (State Highways)
(1) ये समस्त देश की प्रमुख सड़कें हैं। (1) ये विभिन्न राज्यों की मुख्य सड़कें हैं।
(2) ये महामार्ग प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक नगरों, राजधानियों तथा प्रमुख बन्दरगाहों को आपस में मिलाते हैं। (2) ये महामार्ग विभिन्न राज्यों की राजधानियों को राज्यों के प्रमुख नगरों व कार्यालय को मिलाते हैं।
(3) ये प्रायः केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए जाते हैं। (3) ये महामार्ग राज्य सरकारों के अधीन होते हैं।
(4) भारत में राष्ट्रीय महामार्गों की कुल लम्बाई 33,612 कि० मी० है। (4) भारत में राजकीय महामार्गों की लम्बाई 3,81,000 कि० मी० है।
(5) ये आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। (5) ये प्रशासकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
(6) अमृतसर – चण्डीगढ़ मार्ग एक राजकीय महामार्ग है। (6) शेरशाह सूरी मार्ग एक राष्ट्रीय महामार्ग है।

प्रश्न 11.
मीटर गेज तथा बड़े गेज वाले मार्ग में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:

मीटर गेज पटरी (Metre Gauge) चौड़ी पटरी(Broad Gauge )
(1) ये रेलमार्ग एक मीटर चौड़ी पटरी वाले मार्ग हैं। (1) ये रेल मार्ग 1.68 मीटर चौड़ी पटरी वाले मार्ग हैं।
(2) इनकी चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है। (2) इनकी चौड़ाई अधिक है।
(3) ये मार्ग यात्रियों तथा हल्के सामान को सम्भालने के लिए बनाए गए थे। (3) ये मार्ग अधिक भारी सामान तथा यात्रियों के परिवहन के योग्य हैं।
(4) ये मार्ग अधिकतर पहाड़ी भागों में स्थित हैं। (4) ये मार्ग अधिकतर मैदानी भागों में स्थित हैं।

प्रश्न 12.
परिवहन तथा संचार में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
लोगों तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के साधन को परिवहन कहते हैं। देश के आर्थिक विकास को गतिशीलता प्रदान करने के लिए परिवहन आवश्यक है। परिवहन साधनों में सड़कें, रेलें, जलमार्ग तथा वायु मार्ग शामिल हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचनाएं भेजने के साधनों को संचार साधन कहते हैं। देश की सामाजिक प्रगति के लिए संचार साधन आवश्यक है। डाक तार सेवाएं, टेलीफोन, टेलीविज़न आदि संचार साधन हैं।

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत संचार और जन संचार में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना भेजने के साधन को व्यक्तिगत संचार कहते हैं। जैसे – डाक सेवा आदि। कम्प्यूटर द्वारा सूचना को शीघ्र भेजा जा सकता है। जब जन साधारण तक संदेश या सूचनाएं भेजनी हों तो उसे जन संचार कहते हैं। जैसे रेडियो, टेलीविज़न आदि आकाशवाणी तथा दूरदर्शन भारत में दो प्रमुख जन संचार साधन हैं।

प्रश्न 14.
यातायात के साधन किसी देश की जीवन रेखाएं क्यों कही जाती हैं ?
उत्तर:
यातायात के साधन राष्ट्र रूपी शरीर की धमनियां हैं। किसी भी देश की आर्थिक व सामाजिक उन्नति यातायात के साधनों के विकास पर निर्भर है। देश के प्राकृतिक साधनों का पूरा लाभ उठाने के लिए इन साधनों का विकास आवश्यक है। परिवहन साधन व्यापार तथा उद्योगों की आधारशिला हैं। देश के दूर-दूर स्थित भागों को यातायात साधनों द्वारा मिलाकर एक राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का निर्माण होता है। इस प्रकार यातायात के साधन राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक होते हैं । विभिन्न प्रदेशों में मानव तथा पदार्थों की गतिशीलता यातायात के साधनों पर निर्भर करती है। जिस प्रकार शरीर में नाड़ियों द्वारा रक्त प्रवाह होता है, उसी प्रकार किसी देश में सड़कों, रेलमार्गों, जलमार्गों आदि द्वारा व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। इसलिए यातायात के साधनों को देश की जीवन रेखाएं कहा जाता है।

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प्रश्न 15.
भारत के किन-किन प्रदेशों में रेलमार्गों का विकास कम है और क्यों ?
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों का विकास राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित हुआ है। देश के कई भागों में रेलों का विकास कम है।
(1) हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में रेलों की कमी है। अधिक ऊंचाई के कारण रेलमार्ग बनाना कठिन है। इस दुर्गम प्रदेश में विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग बनाना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(2) राजस्थान के मरुस्थल में भी रेलमार्ग कम हैं।
(3) उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में घने जंगलों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(4) पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई, दलदली भागों में रेलमार्ग बनाना सम्भव नहीं है।
(5) असम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(6) दक्षिणी प्रायद्वीप में पहाड़ी तथा ऊँचे-नीचे धरातल के कारण कई बाधाएं हैं तथा रेलमार्ग कम हैं इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत को तीन भौतिक इकाइयों (पर्वत, पठार तथा मैदान) के स्वरूप देश में रेल यातायात का असमान वितरण है। मैदानी भागों में अधिक रेलमार्ग मिलते हैं जबकि पर्वतीय तथा पठारी भागों में कम। है।

प्रश्न 16.
भारत में भीतरी जलमार्गों का अधिक विकास क्यों नहीं हो पाया है ?
उत्तर:
देश में नदियों तथा नहरों के भीतरी जलमार्गों का कम विकास हुआ है। भारत में नदियों की लम्बाई अधिक परन्तु इनका पूरा उपयोग नहीं किया जाता है। इसके कई कारण हैं-
(1) भारत की अधिकांश नदियों में बाढ़ों के कारण वर्षा ऋतु में जहाज़ तथा नावें नहीं चलाई जा सकतीं।
(2) शुष्क ऋतु में पानी की कमी के कारण नदियों का प्रयोग जलमार्गों के रूप में नहीं होता।
(3) दक्षिणी भारत की नदियां तेज़ गति व ऊंचे-नीचे धरातल के कारण जल प्रपात बनाती हैं तथा जहाज़रानी के अयोग्य हैं।
(4) नदियों के मुहानों पर रेत के जमाव, छिछले डेल्टा के निर्माण के कारण बड़े-बड़े जहाज़ प्रयोग नहीं किए जा सकते।
(5) नदियों के तली पर अवसादों के जमाव के कारण गहराई कम हो जाती है। अधिकतर नदियों का जल सिंचाई के लिए प्रयोग कर लिया जाता है। इसलिए भारत में नदियों का भीतरी जलमार्गों के रूप में बहुत कम विकास हुआ।

प्रश्न 17.
भारत के तीन राष्ट्रीय जलमार्ग कौन-से हैं ? प्रत्येक राष्ट्रीय जलमार्ग की एक मुख्य विशेषता लिखिए ।
उत्तर:
राष्ट्रीय जलमार्ग-
(1) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1
(2) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 2
(3) राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 3

विशेषताएं –
राष्ट्रीय जलमार्ग 1
(1) यह भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय जलमार्ग है।
( 2 ) इसका मुख्य विस्तार इलाहाबाद और हल्दिया के मध्य है। (गंगा – भागीरथी)
( 3 ) यह यन्त्रीकृत नौकाओं द्वारा पटना तक तथा साधारण नौकाओं द्वारा हरिद्वार तक नौकायान योग्य है।
( 4 ) यह 1620 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग है तथा सबसे लम्बा जलमार्ग है।

राष्ट्रीय जलमार्ग 2
(1) यह ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली का एक भाग है।
(2) यह सदिया से डिब्रूगढ़ तक विस्तृत है। (891 कि० मी०)
(3) इसका उपयोग भारत और बांग्लादेश साझेदारी से करते हैं। राष्ट्रीय जलमार्ग 3

(1) इस जलमार्ग में तीन नहरें शामिल हैं-
(क) चंपाकारा
(ख) उद्योग मंडल
(ग) पश्चिमी तट नहर।
(2) इस मार्ग की कुल लम्बाई 205 किलोमीटर है।
(3) इस जलमार्ग को कोट्टापुरम कोलम विस्तार के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 18.
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय महामार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग वे सड़क मार्ग हैं जो देश के प्रमुख व्यापारिक, औद्योगिक नगरों, राजधानियों तथा बन्दरगाहों को आपस में जोड़ते हैं। इनका निर्माण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (C. P. W. D.) करता है। देश में इन महामार्गों की कुल लम्बाई 38445 कि० मी० है। प्रमुख महामार्ग निम्नलिखित हैं-

(1) राष्ट्रीय महामार्ग नं०
1. (National Highway ) – यह महामार्ग अमृतसर तथा दिल्ली को आपस में जोड़ता है। इसे शेरशाह सूरी मार्ग या ग्रांड ट्रंक रोड (G. T. Road) भी कहते हैं।
(2) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 2. दिल्ली को कोलकाता से मिलाता है।
(3) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 3. आगरा व मुम्बई को मिलाता है।
(4) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 4. चेन्नई को मुम्बई से जोड़ता है।
(5) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 7 देश का सबसे लम्बा मार्ग है जो वाराणसी को कन्याकुमारी तक मिलाता है । इसकी कुल लम्बाई 2369 कि०मी० है।
(6) राष्ट्रीय महामार्ग नं0 5 चेन्नई – कोलकाता मार्ग है।
(7) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 6 मुम्बई से कोलकाता तक है ।
(8) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 17 मुम्बई – कन्याकुमारी मार्ग है।
(9) राष्ट्रीय महामार्ग नं० 15 एक सीमान्त सड़क है जो कांधला से होकर पंजाब तक चली गई है।

प्रश्न 19.
भारत में स्वर्ण चतुष्कोण पर राजमार्ग का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वर्ण चतुष्कोण परम राजमार्ग – सरकार ने सड़कों के विकास की एक मुख्य परियोजना शुरू की है। इसके द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई – मुंबई और दिल्ली को छः गलियों वाले परम राजमार्गों द्वारा जोड़ा जा रहा है श्रीनगर ( जम्मू और कश्मीर) को कन्याकुमारी ( तमिलनाडु) से जोड़ने वाला उत्तर-दक्षिण गलियारा तथा सिलचर (असम) को पोरबंदर (गुजरात) से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम गलियारा इसी परियोजना के अंग हैं। इन राजमार्गों पर बड़ी तेज़ी से काम चल रहा है तथा ये 2013 के अंत तक उपयोग के योग्य हो जाएंगे।
इन परम राजमार्गों के बन जाने से भारत के महानगरों के बीच समय – दूरी काफ़ी घट जाएगी (यात्रा में कम समय लगेगा)। इन राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण का दायित्व भारत के राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण का है।

प्रश्न 20.
“ भारत में सड़क यातायात रेल यातायात का प्रतियोगी नहीं है, वरन् यह उसका पूरक है।” इस कथन को पांच तर्क देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सड़कें तथा रेलमार्ग भारत में यातायात के प्रमुख साधन हैं। ये साधन एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक-दूसरे की सहायता करते हैं। रेलें भारी वस्तुओं को सस्ते दर पर लम्बी दूरियों तक होती हैं । परन्तु इन वस्तुओं को ट्रकों द्वारा रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाया जाता है। तैयार वस्तुओं को भी सड़क मार्गों द्वारा घरों तक भेजा जाता है। दुर्गम प्रदेशों में कम खर्च पर सड़कें बनाई जा सकती हैं। सड़कें तीव्रगामी साधन हैं। परन्तु रेलों की क्षमता अधिक होती है। रेलें भारत के कुल भार का 80% परिवहन करती हैं। बड़े-बड़े नगर रेलवे द्वारा जोड़े गए हैं। परन्तु ग्राम तथा छोटे नगर सड़कों द्वारा बड़े नगरों से जोड़े जाते हैं। सड़क मार्गों द्वारा कारखानों तक कच्चे माल तथा खनिज पदार्थ पहुंचाए जाते हैं। इस प्रकार दोनों साधनों के अपने-अपने गुण हैं, दोनों साधन ही देश के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य हैं। इसलिए सड़क यातायात रेल यातायात का पूरक है।

प्रश्न 21.
भारत के राज्य महामार्गों की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राज्य महामार्गों की विशेषताएं –
(1) इन महामार्गों की निर्माण एवं रखरखाव राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
(2) ये मार्ग राज्य की राजधानी से जिला मुख्यालयों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों को जोड़ते हैं।
(3) ये मार्ग राष्ट्रीय राज्य में ही बनाए जाते हैं।
(4) देश की कुल सड़कों की लम्बाई में राज्य महामार्गों का योगदान 4 प्रतिशत है तथा इनका प्रशासनिक महत्त्व है।

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प्रश्न 22.
पटरियों की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेलों के तीन वर्ग कौन-कौन से हैं ? प्रत्येक वर्ग की मुख्य विशेषता लिखिए।
उत्तर:
पटरियों की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेलों के तीन वर्ग निम्नलिखित हैं-
(क) बड़ी लाइन
(ख) मीटर लाइन
(ग) छोटी लाइन।

मुख्य विशेषताएं –
(क) बड़ी लाइन –
(1) रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर (1 मीटर से अधिक) होती है।
(2) बड़ी लाइन के मार्ग की कुल लम्बाई 46807 कि० मी० सबसे अधिक है।
(3) यह देश के कुल रेलमार्गों की लम्बाई का 74.14 प्रतिशत भाग है।

(ख) मीटर लाइन –
(1) रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती है।
(2) मीटर लाइन की कुल लम्बाई 13290 कि० मी० है।
(3) भारतीय रेल की कुल लम्बाई में इसकी लम्बाई केवल 21.02 प्रतिशत है।

(ग) संकरी लाइन
(1) इसमें दो पटरियों के बीच की दूरी केवल 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है। (1 मीटर से कम)।
(2) इसकी कुल लम्बाई 3124 कि० मी० है तथा पर्वतीय भाग में है।
(3) भारतीय रेल की कुल लम्बाई की छोटी लाइन का अनुपात मात्र 4.94 प्रतिशत भाग है।

प्रश्न 23.
‘भारत में सड़कों का घनत्व और गुणवत्ता अन्य क्षेत्रों की तुलना में, मैदानों में अधिक अच्छी है।’ इस कथन की उदाहरण सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी राज्यों में अधिकतर सड़कों का घनत्व उच्च है। हिमालयाई प्रदेशों में यह घनत्व निम्न है किसी प्रदेश के आर्थिक विकास के स्तर पर सड़क घनत्व निर्भर करता है । पंजाब तथा केरल राज्यों में सड़क घनत्व बहुत ऊँचा है (300 कि० मी० प्रति 100 वर्ग कि० मी०)। सड़कों का घनत्व तथा गुणवत्ता भू-भाग की प्रकृति पर निर्भर करता है। मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण आसान एवं सस्ता होता है जबकि पहाड़ी व पठारी क्षत्रों में यह कठिन तथा महंगा होता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों की गुणवत्ता अच्छी होती है। सड़कों का घनत्व बरसाती क्षेत्रों, वन क्षेत्र तथा दक्षिणी राज्यों में कम है।

प्रश्न 24.
भारत की उपग्रह प्रणाली की समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो वर्गों में बांटिए। प्रत्येक वर्ग की मुख्य विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तन्त्र में एक क्रान्ति आ गई है। रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह छोड़ा था। उपग्रहों, प्रक्षेपण यानों और सम्बन्धित स्थलीय प्रणालियों का विकास देश के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का अंग है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणालियों को दो वर्गों में रखा जा सकता है – भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) तथा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई० आर० एस० ) । इन्सैट दूरसंचार मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रेक्षण और अन्य विविध आंकड़ों तथा कार्यक्रमों के लिए एक बहु-उद्देशीय उपग्रह प्रणाली है।

प्रश्न 25.
भारत में रेलमार्गों के विकास में मुख्य भूमिका निभाने वाले मूल आधारित तीन कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों के विकास को निम्नलिखित कारकों ने मुख्य भूमिका निभाई-
1. भौतिक कारक – भारत के समतल मैदानी भागों में रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है। जैसे उत्तरी मैदान में। परन्तु पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में रेलमार्ग कम हैं, जैसे- असम तथा हिमालय प्रदेश में।

2. आर्थिक कारक – बड़े-बड़े औद्योगिक, व्यापारिक नगरों तथा प्रमुख पत्तनों के समीप रेलमार्गों का अधिक विस्तार हुआ है परन्तु राजस्थान में कम आर्थिक विकास के कारण रेलमार्ग कम हैं।

3. राजनीतिक कारक – ब्रिटिश प्रशासन ने देश के संसाधनों के शोषण की नीति के कारण प्रमुख पत्तनों को देश के आन्तरिक भागों से रेलमार्गों द्वारा जोड़ दिया।

प्रश्न 26.
भारत के भिन्न क्षेत्रों में रेलमार्गों का विकास समान रूप से नहीं हो पाया है। कौन-से ऐसे मूल्य आधारित कारक जिनके चलते ऐसा है ?
उत्तर:
भारत में रेलमार्गों का विकास राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित हुआ है। इसके फलस्वरूप देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रेलों का विकास कम हुआ, जैसे कि –
(1) हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में रेलों की कमी है। अधिक ऊंचाई के कारण रेलमार्ग बनाना कठिन है। इस दुर्गम प्रदेश में विरल जनसंख्या के कारण रेलमार्ग बनाना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(2) राजस्थान के मरुस्थल में भी रेलमार्ग कम हैं। क्योंकि यहाँ के रेतीले क्षेत्रों में पट्टी बिछाना आसान नहीं है।
(3) उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में घने जंगलों के कारण रेलमार्ग कम हैं।
(4) पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई, दलदली भागों में रेलमार्ग बनाना सम्भव नहीं है।
(5) असम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ों के कारण रेलमार्ग का विस्तार कम है।
(6) दक्षिणी प्रायद्वीप में पहाड़ी तथा ऊँचे-नीचे धरातल के कारण रेलमार्ग के निर्माण में बहुत बाधाएँ हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत को तीन भौतिक इकाइयों (पर्वत, पठार तथा मैदान) के स्वरूप देश में रेल यातायात का असमान वितरण है। मैदानी भागों में अधिक रेलमार्ग मिलते हैं जबकि पर्वतीय तथा पठारी भागों में कम।
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प्रश्न 27.
भारत के वायु परिवहन के क्षेत्र में ‘एयर इण्डिया’ तथा ‘इण्डियन’ के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में वायु परिवहन के दो खण्ड हैं- आन्तरिक सेवाएं तथा अन्तर्देशीय सेवाएं एयर इण्डिया संगठन विदेशी उड़ानों का प्रबन्ध करती है। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एयर इण्डिया के केन्द्र बिन्दु हैं। इंण्डियन एयर लाइन्स देश के भीतरी भागों तथा पड़ोसी देशों के साथ वायु सेवाओं का प्रबन्ध करती है। सन् 1981 से देश के भीतर दुर्गम भागों में वायुदूत एयर लाइन्स सेवाओं का भी प्रारम्भ किया गया है। 1985 में पवन हंस लिमिटेड की स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों, वनाच्छादित तथा पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने हेतु हेलीकाप्टर सेवाएं उत्पन्न करवाने के लिए की गई।

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निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय रेलमार्गों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
रेलमार्गों का वितरण – रेलमार्गों के मानचित्र देखने से रेल – जाल की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट हो जाती हैं-
1. उत्तरी मैदान – भारत के उत्तरी मैदान में अमृतसर एवं हावड़ा के बीच रेल मार्गों का घना जाल विकसित हुआ है जिसमें मुगलसराय, लखनऊ, आगरा तथा पटना जैसे मुख्य रेल जंक्शन पाये जाते हैं। उत्तरी मैदान का सम्पूर्ण भाग रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है। इस मैदान में पूर्व-पश्चिम की दिशा में संबद्धता अधिक पाई जाती है जबकि उत्तर – दक्षिण की दिशा में यह उतनी सक्षम नहीं है। उदाहरण के लिए दिल्ली से कोलकाता के बीच की 1500 किलोमीटर की दूरी 17 घंटे में तय की जा सकती है। इसके विपरीत दिल्ली से देहरादून पहुँचने में 10 घंटे लगते हैं। जबकि दिल्ली एवं देहरादून के बीच की दूरी कोलकाता की अपेक्षा एक तिहाई भी नहीं है। इस मैदान में रेल – जाल का बहुत घनिष्ठ सह- सम्बन्ध इस के कृषि एवं औद्योगिक विकास के स्तर से है। दिल्ली तक केन्द्र बिन्दु है जहाँ से रेलमार्ग प्रत्येक दिशा में विकीर्ण होते हैं। दिल्ली को सभी पत्तन नगरों से अति शीघ्र (सुपरफास्ट) रेल गाड़ियों द्वारा जोड़ा गया है।

उत्तरी मैदान में रेलमार्गों के विकास के लिए कई अनुकूल दशाएं हैं।
(1) देश का सबसे लम्बा रेलमार्ग उत्तरी रेलवे इसी क्षेत्र में है जिसकी लम्बाई 10,977 किलोमीटर है।
(2) उत्तरी मैदान एक समतल सपाट मैदान है। यहां रेलमार्ग आसानी से बनाए जा सकते हैं। मीलों तक सीधे रेलमार्ग मिलते हैं।
(3) इस क्षेत्र में जनसंख्या बहुत घनी है, बड़े-बड़े नगर बसे हैं, जिनके कारण रेलमार्गों की घनता अधिक है।
(4) यहां औद्योगिक विकास के लिए कृषि पदार्थों के परिवहन के लिए रेलमार्गों की अधिक आवश्यकता है।
(5) कई आर्थिक तथा प्रशासनिक केन्द्रों को एक-दूसरे से मिलाने के लिए रेलमार्गों का अधिक विकास हुआ है।
(6) उत्तरी मैदान के सम्पन्न पृष्ठ प्रदेश को मुम्बई तथा कोलकाता की बन्दरगाहों से मिलाने के लिए रेलमार्गों का निर्माण आवश्यक है।

2. प्रायद्वीपीय पठार – प्रायद्वीपीय भाग, गुजरात तथा तमिलनाडु में अन्य भागों की तुलना में मध्यम सघन रेल – जाल पाया जाता है। सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय मैदान एक पहाड़ी भू-भाग है। जनसंख्या का संकेन्द्रण भी मध्यम है। अतः रेल – जाल भी मध्यम सघन है। मुख्य रेलमार्गों को इस प्रकार बिछाया गया है कि मुम्बई – चेन्नई, चेन्नई – कोचीन, चेन्नई-दिल्ली तथा चेन्नई – हैदराबाद के मध्य अधिक सक्षम रेल सेवा उपलब्ध है।

3. तटीय मैदान – पूर्वी तटीय प्रदेशों एवं पश्चिमी तटीय प्रदेशों के रेल- जाल से स्पष्ट भिन्नता देखने को मिलती है। पूर्वी तट के साथ-साथ कोलकाता एवं चेन्नई के बीच एक मुख्य रेलमार्ग बनाया गया है जबकि पश्चिमी तटीय मैदान में मुम्बई एवं कोचीन के मध्य सीधा रेलमार्ग कोंकण रेल मार्ग ( 837 कि०मी० लम्बा) है। पश्चिमी तटीय मैदान में घाट की पहाड़ियां तट के बहुत निकट हैं अतः तटीय मैदान संकरा है तथा समुद्र तट की ओर बढ़ी हुई पहाड़ियाँ रेलमार्ग में अवरोध पैदा करती हैं। इसके विपरीत पूर्वी तटीय मैदान अधिक चौड़ा है एवं पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ तट से दूर स्थित हैं।

4. विरल रेल जाल वाले क्षेत्र – देश में हिमालय पर्वत, पश्चिमी राजस्थान ब्रह्मपुत्र घाटी, पूर्वी पर्वतीय प्रदेश में रेल मार्ग कम हैं।
(क) हिमालय पर्वतीय क्षेत्र – इस क्षेत्रों में मुख्य हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र है। कटा-फटा भूभाग, पर्वतों एवं उपत्यकाओं का धरातल, पिछड़ी अर्थव्यवस्था एवं विरल जनसंख्या आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो रेल – जाल के विरल होने के लिए उत्तरदायी हैं।
(ख) पश्चिमी राजस्थान – पश्चिमी राजस्थान के शुष्क प्रदेश में केवल एक दो मीटर गेज के रेलमार्ग प्रविष्ट हो सके हैं।
(ग) ब्रह्मपुत्र घाटी – ब्रह्मपुत्र घाटी में दो समान्तर रेलमार्ग हैं परन्तु मेघालय पठार पर कोई रेलमार्ग नहीं बनाया जा सका है।
(घ) उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र – त्रिपुरा, मणिपुर, मिज़ोरम एवं नागालैण्ड में भी कोई रेलमार्ग नहीं है। पर्वतीय धरातल एवं घने वनों से आच्छादित भूमि ही रेलमार्गों के न होने के लिए उत्तरदायी है। इन क्षेत्रों में रेल मार्ग बनाने में बहुत बड़ी लागत आएगी। विरल जनसंख्या होने के कारण भी रेलमार्ग बनाने के कार्य को प्रोत्साहन नहीं मिला।

प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख आन्तरिक जलमार्गों का वर्णन करो।
उत्तर:
जब देश के भीतरी भागों झीलों, नदियों का प्रयोग परिवहन के लिए किया जाता है तो इन्हें आन्तरिक जलमार्ग (Inland Water-ways) कहा जाता है। किसी दिशा के प्रादेशिक व्यापार के लिए यह सबसे सस्ते तथा महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भारत में 3700 कि० मी० लम्बे नदी मार्गों पर तथा 4300 किलोमीटर लम्बी नहरों के मार्ग पर जल – यातायात के साधन प्रयोग किए जा सकते हैं। भारत में झीलों द्वारा बने जलमार्ग बहुत कम हैं।
(क) नदी परिवहन मार्ग –
(1) गंगा नदी में छोटे स्टीमर कोलकाता से पटना तक चल सकते हैं। नावें हरिद्वार तक चलाई जा सकती हैं। गंगा नदी- भागीरथी – हुगली नदी तन्त्र को राष्ट्रीय जलमार्ग – 1 कहा जाता है। यह इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 कि०मी० लम्बा है।
(2) ब्रह्मपुत्र नदी में, असम में सदिया – धूबरी, राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 ( 89 कि०मी०) में नौकाओं द्वारा जाया जा सकता है।
(3) राष्ट्रीय जलमार्ग – 3 पश्चिमी तट नहर को कोटापुरम से कोल्लम खण्ड तथा उद्योगमंडल व चम्पाकर नहरें ( 205 कि०मी०) बराक नदी, गोवा की मांडावी नदी और जुआरी नदी को भी आन्तरिक जलमार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(4) दक्षिणी भारत में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और महानदी नदियों के निचले भाग में नावें चलाई जा सकती हैं।
(ख) नहर परिवहन मार्ग – भारत में कई नहरों का जल-मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे तमिलनाडु में बकिंघम नहर तथा कंवेर जुआ नहर, गंगा की नहरें, केरल प्रदेश में लैगून झीलों द्वारा बने जल-मार्ग तथा गोदावरी डेल्टाई नहरों का जल मार्गों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 3.
भारत में प्रमुख पाइप लाइनों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. नहर कटिया – बारौनी पाइप लाइन – आयल इंडिया लिमिटेड कम्पनी ने असम के नहरकाटिया तेल क्षेत्र से बिहार की बरौनी तेल परिष्करणशाला तक नूनमती होकर सबसे पहली 1152 कि०मी० लम्बी पाइप लाइन सन् 1962-68 में बनाई थी।
2. हल्दिया – कानपुर पाइप लाइन – पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन के लिए 1966 में हल्दिया-बरौनी- कानपुर पाइप लाइन बिछाई गई थी। इसके बाद हल्दिया- मौरीग्राम – राजबन्ध पाइप लाइन बनी।
3. अंकलेश्वर- कोयली पाइप लाइन – अंकलेश्वर तेल क्षेत्र को कोयली परिष्करणशाला से जोड़ने वाली पहली पाइप लाइन सन् 1965 में बनाई गई। इसके बाद कलोल – साबरमती कच्चे तेल की पाइप लाइन, नवगांव – कलोल – कोयली पाइप लाइन और मुम्बई हाई – कोयली पाइप लाइन बिछाई गई ।
4. अहमदाबाद – कोयली पाइप लाइन – पैट्रोलियम उत्पादों के परिवहन के लिए अहमदाबाद को पाइप लाइन द्वारा कोयली से जोड़ा गया है।
5. अंकलेश्वर – बड़ोदरा पाइप लाइन – खंभात और धुवरन के मध्य अंकलेश्वर और उत्तरण तथा अंकलेश्वर और बडोदरा के मध्य गैस पाइप लाइनें भी बिछाई गई हैं । भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड देश में 4200 कि०मी० पाइप लाइनों का संचालन करता है तथा बिजली घरों को गैस की आपूर्ति करता है ।
6. HBJ गैस पाइप लाइन – 1750 कि०मी० लम्बी हजीरा – विजयपुर – जगदीशपुर गैस पाइप लाइन काफ़ी पहले बन चुकी है। अब इस पाइप लाइन का बीजापुर से उत्तर प्रदेश में दादरी तक विस्तार कर दिया गया है।
7. कांडला – दिल्ली पाइप लाइन – भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड आजकल रसोई गैस (एल०पी०जी० ) के परिवहन के लिए 1246 कि०मी० लम्बी पाइप लाइन गुजरात में कांडला – जामनगर से लेकर दिल्ली से होते हुए उत्तर प्रदेश में लोनी तक बना रहा है।
8. मथुरा – जालन्धर तेल पाइप लाइन
9. कांडला – भठिण्डा पाइप लाइन-

प्रश्न 4.
‘भारत में सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक एकीकरण को मज़बूत करने में त्रिविध परिवहन तन्त्र की विशेष भूमिका है’ प्रश्न में निहित चारों तत्त्वों का उदाहरण सहित विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवहन का एकीकरण कार्य ( Integrating Role of Transport ) – स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में परिवहन व्यवस्था के विकास के कई कार्य किए गए हैं। बीस वर्षीय नागपुर सड़क विकास योजना के अधीन सड़कों का विस्तार किया गया। औद्योगिक, व्यापारिक तथा पिछड़े हुए क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य को बढ़ावा दिया गया। इसी प्रकार रेलमार्गों के निर्माण की कई योजनाएं पूरी हो गई हैं। देश की आर्थिक व्यवस्था में भारी सामान को दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए रेलों तथा सड़कों को एक-दूसरे के पूरक बनाया गया है। प्रादेशिक विकास के लिए सभी प्रकार के परिवहन साधनों का संगठन किया गया।

देश में राजनीतिक तथा आर्थिक एकता के लिए यातायात के सभी साधनों को एक-दूसरे से पूरक एक संगठित परिवहन व्यवस्था बनाई गई है। यह साधन खाद्यान्नों, कच्चे माल, खनिज पदार्थों तथा तैयार माल को उत्पादन क्षेत्रों से खपत केन्द्रों तक पहुंचाते हैं। यातायात के इन साधनों के एकीकरण के प्रभाव से व्यापारी बाज़ारों का विकास हुआ है। देश के जल पोताश्रयों को आन्तरिक प्रदेशों से जोड़कर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ा गया है। इस प्रकार जलीय तथा स्थलीय यातायात के साधन मिलकर एक संगठित व्यवस्था बनाते हैं।

देश के दुर्गम तथा दूरस्थ भागों में वायु परिवहन के तीव्रगामी साधनों द्वारा कम समय में पहुंचा जा सकता है । यह साधन पूर्वी भागों के घने वनों, हिमालय के उच्च पर्वतीय प्रदेशों तथा राजस्थान के मरुस्थल को एक-दूसरे से मिलाकर राष्ट्रीय एकता का आभास कराते हैं। इसी प्रकार जलयान तथा वायुयान सेवाओं द्वारा अण्डमान द्वीप को देश के मुख्य भू-भाग से मिलाया गया है। पीरपंजाल पर्वत श्रेणी में जवाहर सुरंग के निर्माण से कश्मीर घाटी को भारत के अन्य भागों से मिलाया गया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में संतुलित विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी परिवहन साधनों का एकीकरण करके एक स्वस्थ, सुसंगठित परिवहन व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है ।

प्रश्न 5.
भारत में सड़क महामार्गों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में प्राचीनकाल से ही सड़कें महत्त्वपूर्ण रही हैं। शेरशाह सूरी ने राष्ट्रीय राजमार्ग, ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण किया । स्वाधीनता के पश्चात् 10 वर्षीय नागपुर योजना के अन्तर्गत सड़क मार्गों का विकास किया गया। भारत में अधिकतर पक्की सड़कें दक्षिणी भारत में हैं, क्योंकि यहां सड़कों को बनाने के लिए दक्षिणी पठार में पर्याप्त मात्रा में पत्थर मिल जाते हैं

भारतीय सड़कों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –
(1) भारत की कुल सड़कों की लम्बाई 33 लाख किलोमीटर है।
(2) देश में राष्ट्रीय महामार्गों की लम्बाई 57,700 किलोमीटर।
(3) प्रमुख महामार्ग मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, बंगलौर तथा श्रीनगर को मिलाते हैं।
(4) भारत में महामार्ग देश को पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में तिब्बत तथा चीन, पूर्व में बांग्ला देश और बर्मा (म्यानमार) को जोड़ते हैं।
(5) भारत में सीमा प्रदेशों में 30,028 कि० मी० लम्बी सड़कें बनाई गई हैं जिनमें मनाली से लेकर लेह तक सड़क मार्ग 4270 मीटर ऊंचा है।
(6) लगभग पच्चीस लाख मोटरगाड़ियां भारतीय सड़कों पर चलती हैं तथा प्रति वर्ष 1500 करोड़ रुपए की आय होती है।
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 10 परिवहन तथा संचार - 3
Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of india extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line. The external boundaries and coastlines of India agree with the Recored Master copy certified by-the Survey of India.

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प्रश्न 6.
भारत में रेल मार्गों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय रेल मार्ग – परिवहन के साधनों में रेलों का महत्त्व सबसे अधिक है। 1853 ई० में भारत में प्रथम रेल लाइन 34 कि० मी० लम्बी बम्बई (मुम्बई) से थाना स्टेशन तक बनाई गई। भारतीय रेलवे की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) भारतीय रेल मार्ग 62,759 कि० मी० लम्बा है।
(2) यह एशिया में सबसे लम्बा रेल मार्ग है।
(3) विश्व में भारत का चौथा स्थान है।
(4) भारतीय रेलों में 18 लाख कर्मचारी काम करते हैं।
(5) प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियां लगभग 13 लाख कि० मी० दूरी चलती हैं तथा 6867 रेलवे स्टेशन हैं।
(6) प्रतिदिन लगभग 130 लाख यात्री यात्रा करते हैं तथा 13 लाख टन भार ढोया जाता है।
(7) भारतीय रेलों में 8000 करोड़ रुपए की पूंजी लगी हुई है तथा प्रतिवर्ष 21,000 करोड़ रुपए की आय होती है।
(8) भारतीय रेलों में 11,000 रेल इंजन, 38,000 सवारी डिब्बे तथा 4 लाख भार ढोने वाले डिब्बे हैं ।
(9) भारत में 80% सामान तथा 70% यात्री रेलों द्वारा ही ले जाए जाते हैं।
(10) भारतीय रेलों का अधिक विस्तार उत्तरी भारत के समतल मैदान में है।
(11) भारत में जम्मू – कश्मीर, पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर का पठार तथा थार के मरुस्थल में रेल मार्ग कम हैं।
(12) दक्षिणी भारत में पथरीली, ऊंची-नीची भूमि के कारण, छोटी-छोटी नदियों पर जगह-जगह पुल बनाने की असुविधा है।
(13) अब भारतीय रेलों पर 4259 डीज़ल इंजन तथा 2302 बिजली के इंजन 347 भाप इंजन चलते हैं।
(14) लगभग 13517 कि० मी० लम्बे रेल मार्ग पर विद्युत् गाड़ियां दौड़ती हैं।

भारत में रेल मार्ग तीन प्रकार के हैं –
(1) चौड़ी पटरी ( Broad Gauge ) – 1.676 मीटर चौड़ाई। (कुल लंबाई 44380 कि०मी० – 70.7%)
(2) छोटी पटरी (Metre Gauge ) – 1 मीटर चौड़ाई। ( कुल लंबाई 15013 कि०मी० – 23.9 %)
(3) तंग पटरी (Narrow Gauge ) – 0.76 मीटर और 0.610 मीटर चौड़ाई। (कुल लंबाई 3363 कि०मी० – 5.4%)
रेल क्षेत्र (Railway Zones) – भारत में 16 रेल क्षेत्र हैं। ये रेल तथा प्रमुख कार्यालय इस प्रकार हैं –

रेल क्षेत्र प्रमुख कार्यालय लम्बाई ( कि०मी०)
(1) उत्तर रेलवे नई दिल्ली 10977
(2) उत्तर-पूर्वी रेलवे गोरखपुर 5163
(3) उत्तर-पूर्वी सीमान्त रेलवे गोहाटी 3613
(4) मध्य रेलवे मुम्बई 6309
(5) दक्षिण रेलवे चेन्नई 6703
(6) दक्षिण मध्य रेलवे सिकन्द्राबाद 6932
(7) दक्षिण-पूर्वी रेलवे कोलकाता 704
(8) पश्चिमी रेलवे मुम्बई 10292
(9) पूर्वी रेलवे कोलकाता 4204
(10) मध्य-पूर्वी हाजीपुर
(11) पूर्वतटीय भुवनेश्वर
(12) उत्तर-मध्यवर्ती इलाहाबाद
(13) उत्तर-पश्चिमी जयपुर
(14) दक्षिण-पूर्व मध्यवर्ती बिलासपुर
(15) दक्षिण-पश्चिम हुबली
(16) पश्चिम-मध्य जबलपुर

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

Jharkhand Board Class 12 Political Science भारतीय राजनीति : नए बदलाव InText Questions and Answers

पृष्ठ 174

प्रश्न 1
‘अगर हर सरकार एक-सी नीति पर अमल करे तो मुझे नहीं लगता कि इससे राजनीति में कोई बदलाव आयेगा।’
उत्तर:
यदि सभी सरकारें या उनसे सम्बद्ध राजनीतिक दल एक ही प्रकार की नीतियाँ अपनाएं तो इससे राजनीतिक व्यवस्था स्थिर व जड़ हो जायेगी। लेकिन लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इस प्रकार की नीति लागू होना सम्भव नहीं है क्योंकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनमत सर्वोपरि होता है और जनसामान्य के हित अलग-अलग होते हैं और यह हित समय और परिस्थितियों के अनुसार निरन्तर परिवर्तित भी होते रहते हैं, इसलिए प्रत्येक सरकार को जन इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए कार्य करना पड़ता है।

ऐसी स्थिति में सभी सरकारें एक जैसी नीति का अनुसरण नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त भारत जैसे बहुदलीय व्यवस्था वाले देश में तो इस प्रकार की नीति लागू करना बिल्कुल भी सम्भव नहीं है क्योंकि भारत में प्रत्येक दल की विचारधारा व कार्यक्रमों में व्यापक अन्तर है और ये राजनीतिक दल सत्ता में आने पर अलग-अलग ढंग से निर्णय लेते हैं।

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प्रश्न 2.
चलो मान लिया कि भारत जैसे देश में लोकतान्त्रिक राजनीति का तकाजा ही गठबन्धन बनाना है। लेकिन क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि हमारे देश में हमेशा से गठबन्धन बनते चले आ रहे हैं। अथवा, राष्ट्रीय स्तर के दल एक बार फिर से अपना बुलंद मुकाम हासिल करके दिखाएंगे।
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में गठबन्धन का दौर हमेशा से चला आ रहा है । यह बात कुछ हद तक सहीं है, लेकिन इन गठबन्धनों के स्वरूप में व्यापक अन्तर है। पहले जहाँ एक ही पार्टी के भीतर गठबन्धन होता था अब पार्टियों के बीच गठबन्धन होता है। जहाँ तक राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व का सवाल है, वर्तमान दलीय व्यवस्था के बदलते दौर में अपना बुलंद मुकाम पाना बहुत कठिन है। क्योंकि वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बहुदलीय हो गया है जिसमें राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता। यही कारण है कि भारत में नब्बे के दशक से गठबन्धन सरकारों का सिलसिला चला आ रहा है।

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प्रश्न 3.
मुझे इसकी चिन्ता नहीं है कि सरकार किसी एक पार्टी की है या गठबन्धन की। मसला तो यह है कि कोई सरकार काम कौनसे कर रही है? क्या गठबन्धन सरकार में ज्यादा समझौते करने पड़ते हैं? क्या गठबन्धन सरकार साहसी और कल्पनाशील नीतियाँ नहीं अपना सकती?
उत्तर:
सरकारों का स्वरूप चाहे कैसा भी हो। चाहे वह गठबन्धन सरकार हो या एक ही दल की सरकार हो लेकिन सरकार जनता की कसौटियों पर खरी उतरे वही सफल सरकार है। गठबन्धन सरकारों में विभिन्न दल आपसी समझौतों या शर्तों के आधार पर सरकार का गठन करते हैं। इन दलों के सभी के अपने-अपने हित एवं स्वार्थ होते हैं जिन्हें पूरा करने हेतु निरन्तर प्रयास करते रहते हैं।

जहाँ आपसी हितों में रुकावट या टकराव आता है वहीं दल अलग हो जाते हैं और सरकारें गिर जाती हैं। इस प्रकार गठबन्धन सरकारों में स्थिरता बहुत कम पायी जाती है। इस प्रकार की सरकारों में स्वतन्त्र निर्णय लेना सम्भव नहीं है। इस प्रकार गठबन्धन सरकार साहसी और कल्पनाशील नीतियाँ नहीं अपना सकती।

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प्रश्न 4.
क्या इससे पिछड़े और दलित समुदायों के सभी नेताओं को लाभ होगा या इन समूहों के भीतर मौजूद कुछ ताकतवर जातियाँ और परिवार ही सारे फायदे अपनी मुट्ठी में कर लेंगे?
उत्तर:
इससे पिछड़े और दलित समुदायों के सभी नेताओं का लाभ तो शायद ही हो अपितु हमने यह देखा है कि ऐसे संगठनों में मौजूद कुछ नेता अत्यधिक ताकतवर और रसूखवाले हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
असल मुद्दा नेताओं का नहीं, जनता का है! क्या इस बदलाव से सचमुच के वंचितों के लिए बेहतर नीतियाँ बनेंगी और उन पर कारगर तरीके से अमल होगा या फिर यह सारा कुछ एक राजनीतिक खेल मात्र बनकर रह जाएगा?
उत्तर:
हम इस बात को पूरी तरह नकार नहीं सकते कि ऐसे बदलावों से वंचितों के लिए कोई बेहतर नीतियाँ नहीं बनीं और उन पर कारगर तरीके से अमल होगा। परंतु कई बार नेताओं ने ऐसे नीतियों का फायदा जरूरतमंदों तक पूरा-पूरा नहीं पहुँचने दिया।

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प्रश्न 6.
क्या हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि जो लोग ऐसे जनसंहार की योजनाएँ बनाएँ, अमल करें और उसे समर्थन दें। वे कानून के हाथों से बच न पाएँ? ऐसे लोगों को कम-से-कम राजनीतिक रूप से तो सबक सिखाया ही जा सकता है।
उत्तर:
भारत में धर्म, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर अनेक बार साम्प्रदायिक दंगे हुए। इन साम्प्रदायिक दंगों के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों का हाथ रहा है। ये दल अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु दुष्प्रचार करते हैं जिससे जनसामान्य इनके बहकावे में आकर गलत कदम उठाते हैं। भारत में 1984 के सिख दंगे हों, अयोध्या की घटना हो या 2002 में गुजरात का गोधरा काण्ड, इन सभी घटनाओं के पीछे राजनीतिक दलों की स्वार्थपूर्ण नीति रही है।

इन घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक है कि ऐसे राजनीतिक दल व उनके नेतृत्वकर्ता जिनका आपराधिक रिकार्ड रहा है या साम्प्रदायिक दंगों में लिप्त रहे हैं उन पर चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए। जो लोग नरसंहार की योजना बनाएँ या उस पर अमल करें उन्हें कानून द्वारा सख्त सजा दी जानी चाहिए।

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प्रश्न 1.
उन्नी – मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें।
(क) मंडल आयोग की सिफारिशें और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ख) जनता दल का गठन
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(घ) इन्दिरा गांधी की हत्या
(ङ) राजग सरकार का गठन
(च) संप्रग सरकार का गठन
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
उत्तर:
(क) इन्दिरा गांधी की हत्या (1984)
(ख) जनता दल का गठन (1988)
(ग) मण्डल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा (1990)
(घ) बाबरी मस्जिद का विध्वंस (1992)
(ङ) राजग सरकार का गठन (1999)
(च) गोधरा दुर्घटना और उसके परिणाम (2002)
(छ) संप्रग सरकार का गठन (2004)।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में मेल करें-

(क) सर्वानुमति की राजनीति (i) शाहबानो मामला
(ख) जाति आधारित दल (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय (iii) गठबन्धन सरकार
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत (iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति

उत्तर:

(क) सर्वानुमति की राजनीति (iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति
(ख) जाति आधारित दल (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय (i) शाहबानो मामला
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत (iii) गठबन्धन सरकार

प्रश्न 3.
1989 के बाद की अवधि में भारतीय के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आये हैं?
उत्तर:
1989 के बाद भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे – 1989 के बाद भारतीय राजनीति में कई बदलाव आये जिनमें कांग्रेस का कमजोर होना, मण्डल आयोग की सिफारिशें एवं आन्दोलन, आर्थिक सुधारों को लागू करना, राजीव गांधी की हत्या तथा अयोध्या मामला प्रमुख हैं । इन स्थितियों में भारतीय राजनीति में जो मुद्दे प्रमुख रूप से उभरे उनसे राजनीतिक दलों का आपसी जुड़ाव निम्न रूप में सामने आया-

  1. कांग्रेस ने स्थिर सरकार का मुद्दा उठाकर कहा कि देश में स्थिर सरकार कांग्रेस ही दे सकती है।
  2. भाजपा ने राम मंदिर बनाने का मुद्दा उठाकर हिन्दू मतों को अपने पक्ष में कर अपने जनाधार को ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक करने का प्रयास किया।
  3. लोकदल व जनता दल ने मंडल आयोग की सिफारिशों का मुद्दा उठाकर पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने का प्रयास किया ।

प्रश्न 4.
“गठबन्धन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-कौनसे तर्क देंगे?
उत्तर:
पक्ष में तर्क- वर्तमान युग में गठबन्धन की राजनीति का दौर चल रहा है। इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार बनाकर गठजोड़ नहीं कर रहे बल्कि अपने निजी राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं। इस बात के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  1. 1977 में जे. पी. नारायण के आह्वान पर जो जनता दल बना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः सी. पी. आई. को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल शामिल थे। इन सभी दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते।
  2. जनता दल की सरकार गिरने के बाद केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा बना जिसमें एक ओर जनता पार्टी के वी. पी. सिंह तो दूसरी ओर उन्हें समर्थन देने वाले सी. पी. एम. वामपंथी और भाजपा जैसे तथाकथित हिन्दुत्व समर्थक गांधीवादी राष्ट्रवादी दल भी थे।
  3. कांग्रेस की सरकार, 1991 से 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में अल्पमत होते हुए भी इसलिए चलती रही क्योंकि उसे अनेक ऐसे दलों का समर्थन प्राप्त था जिससे तथाकथित साम्प्रदायिक शक्तियाँ सत्ता में न आ सकें।
  4. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी जनतांत्रिक गठबन्धन ( एन. डी.ए) की सरकार को अकालियों, तृणमूल कांग्रेस, बीजू पटनायक कांग्रेस, समता दल, जनता पार्टी तथा अनेक क्षेत्रीय दलों ने भी सहयोग और समर्थन दिया।

विपक्ष में तर्क- उपर्युक्त कथन के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-

  1. गठबन्धन की राजनीति के नए दौर में भी वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाया, वे उसे अब भी राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्शीय पार्टी मानते हैं।
  2. समाजवादी पार्टी, वामपंथी मोर्चा, डी. पी. के. जैसे क्षेत्रीय दल किसी भी उस प्रत्याशी को खुला समर्थन नहीं देना चाहते जो एन. डी. ए. अथवा भाजपा का प्रत्याशी हो।
  3. कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश मोर्चों पर बीजेपी विरोधी और बीजेपी ने कांग्रेस विरोधी रुख अपनाया है

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प्रश्न 5.
आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास क्रम का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी का विकास-क्रम – आपातकाल के पश्चात् भाजपा की विकास यात्रा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

  1. जनता पार्टी सरकार के पतन के बाद जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने वर्ष 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।
  2. वर्ष 1984 के चुनावों में भाजपा को लोकसभा में केवल दो सीटें प्राप्त हुईं।
  3. सन् 1989 के चुनावों में भाजपा ने चुनाव में राम मंदिर बनवाने के नारे को उछाला। फलतः इस चुनाव में भाजपा को आशा से अधिक सफलता मिली। भाजपा ने वी. पी. सिंह को बाहर से समर्थन देकर संयुक्त मोर्चा सरकार का गठन करने में सहयोग दिया।
  4. 1991 के चुनाव में भी राम मंदिर निर्माण का नारा भाजपा के लिए विशेष लाभदायक सिद्ध हुआ।
  5. 1996 के चुनावों में यह लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।
  6. सन् 1998 के चुनावों में इसने कुछ क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर सरकार बनाई तथा 1999 के चुनावों में भाजपानीत गठबंधन ने फिर सत्ता प्राप्त की। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के काल में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।
  7. सन् 2004 में तथा 2009 के चुनावों में भाजपा को पुनः अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी । फिर भी कांग्रेस के बाद आज यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है।
  8. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ तथा नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई।

प्रश्न 6.
कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
देश की राजनीति से यद्यपि कांग्रेस का प्रभुत्व समाप्त हो गया है परन्तु अभी कांग्रेस का असर कायम है, क्योंकि अब भी भारतीय राजनीति कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूम रही है तथा सभी राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ एवं योजनाएँ कांग्रेस को ध्यान में रखकर बनाते हैं। अभी भी कांग्रेस पार्टी दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। 2004 के 14वें लोकसभा के चुनावों में इसने अन्य दलों के सहयोग से केन्द्र सरकार बनाई।

इसके साथ-साथ जुलाई, 2007 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में भी इस दल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वर्ष 2009 के आम चुनावों में पहले से काफी अधिक सीटों पर जीत प्राप्त कर गठबंधन की सरकार बनाई । 2014 के लोकसभा चुनावों में यद्यपि उसे 44 ही सीटें प्राप्त हुईं तथापि उसके मत प्रतिशत में बहुत अधिक अन्तर नहीं आया है। अतः कहा जा सकता है कि कमजोर होने के बावजूद भी कांग्रेस का असर भारतीय राजनीति पर कायम है।

प्रश्न 7.
अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं?
उत्तर:
कुछ लोगों का मानना है कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो दलीय व्यवस्था जरूरी है। इनका मानना है कि द्विदलीय व्यवस्था में साधारण बहुमत के दोष समाप्त हो जाते हैं, सरकार स्थायी होती है, भ्रष्टाचार कम फैलता है, निर्णय शीघ्रता से लिये जा सकते हैं। भारत में बहुदलीय प्रणाली भारत में बहुदलीय प्रणाली है।

कई विद्वानों का मत है कि भारत में बहुदलीय प्रणाली उचित ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है तथा यह भारतीय लोकतन्त्र के लिए बाधा उत्पन्न कर रही है अतः भारत को द्वि-दलीय पद्धति अपनानी चाहिए परन्तु पिछले बीस सालों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को अग्रलिखित फायदे हुए हैं-

  1. विभिन्न मतों का प्रतिनिधित्व: बहुदलीय प्रणाली के कारण भारतीय राजनीति में सभी वर्गों तथा हितों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
  2. मतदाताओं को अधिक स्वतन्त्रता: अधिक दलों के कारण मतदाताओं को अपने वोट का प्रयोग करने के लिए अधिक विकल्प प्राप्त होते हैं।
  3. राष्ट्र दो गुटों में नहीं बँटता:  बहुदलीय प्रणाली होने के कारण भारत कभी भी दो विरोधी गुटों में विभाजित नहीं हुआ।
  4. मन्त्रिमण्डल की तानाशाही स्थापित नहीं होती: बहुदलीय प्रणाली के कारण भारत में मन्त्रिमण्डल तानाशाह नहीं बन सकता।
  5. अनेक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व:  बहुदलीय प्रणाली में व्यवस्थापिका में देश की अनेक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व हो सकता है

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दें-
भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे राजव्यवस्था के सामने एक महत्त्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें – जोया हसन
(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?
(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनसे एकजुटता का होना क्यों जरूरी है?
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों
की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की?
उत्तर:
(क) इस अध्याय में दलगत व्यवस्था की निम्नलिखित चुनौतियाँ उभर कर सामने आती हैं-

  1. गठबन्धन की राजनीति को चलाना।
  2. क्षेत्रीय दलों का उभरना तथा राजनीतिक भ्रष्टाचार का बढ़ना।
  3. पिछड़े वर्गों की राजनीति का उभरना।
  4. अयोध्या विवाद का उभरना।
  5. गैर सैद्धान्तिक राजनीतिक समझौते का होना।
  6. साम्प्रदायिक दंगे होना।

(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना जरूरी है, क्योंकि तभी भारत अपनी एकता और अखण्डता को बनाए रखकर विकास कर सकता है।

(ग) अयोध्या विवाद ने भारत में राजनीतिक दलों के सामने साम्प्रदायिकता की चुनौती पेश की तथा भारत में साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों की राजनीति बढ़ गई।

भारतीय राजनीति : नए बदलाव JAC Class 12 Political Science Notes

→ 1990 का दशक:
1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तथा 1984 के लोकसभा चुनावों में श्रीमती गांधी की हत्या के बाद सहानुभूतिस्वरूप भारतीय जनता ने कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से विजयी बनाया। 1980 के दशक के आखिर के सालों में देश में पाँच ऐसे बदलाव आये जिनका देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

  • 1990 के दशक में एक महत्त्वपूर्ण घटना 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार है। 1989 में ही ‘कांग्रेस प्रणाली’ की समाप्ति हो गई।
  • दूसरा बड़ा बदलाव राष्ट्रीय राजनीति में मण्डल मुद्दे का उदय था। 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की नई सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया। इन सिफारिशों के अन्तर्गत प्रावधान किया गया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाएगा।
  • विभिन्न सरकारों ने इस दौर में जो आर्थिक नीतियाँ अपनाईं वह बुनियादी तौर पर बदल चुकी थीं। इसे ढांचागत समायोजन कार्यक्रम अथवा नये आर्थिक प्रकार के नाम से जाना जाता है।
  • इन्हीं घटनाओं के सिलसिले में एक और घटना अयोध्या स्थित एक विवादित ढाँचे (बाबरी मस्ज़िद के रूप में प्रसिद्ध) के विध्वंस के सम्बन्ध में है। यह घटना 1992 में दिसम्बर महीने में घटी। इस घटना ने देश की राजनीति में कई परिवर्तनों को जन्म दिया।
  • मई, 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई और इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन हुआ। 1991 के चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी। राजीव गांधी के बाद नरसिम्हा राव ने कांग्रेस पार्टी की बागडोर सम्भाली।

→ गठबन्धन का युग:
1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई। कांग्रेस की हार के बावजूद भी यह सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन बहुमत न मिलने के कारण उसने विपक्ष में बैठने का फैसला किया। राष्ट्रीय मोर्चा को (यह मोर्चा जनता दल और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बनाया) परस्पर विरुद्ध दो राजनीतिक समूहों भाजपा और वाममोर्चा ने बाहर से समर्थन दिया।

→ काँग्रेस का पतन:
काँग्रेस की हार के साथ भारत की दलीय व्यवस्था से उसका दबदबा खत्म हो गया। 1960 के दशक के अंतिम सालों में काँग्रेस के एकछत्र राज को चुनौती मिली थी, लेकिन इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय राजनीति पर अपना प्रभुत्व फिर से कायम किया। 90 के दशक में काँग्रेस की अग्रणी हैसियत को एक बार फिर चुनौती मिली। इस दौर में काँग्रेस के दबदबे के खात्मे के साथ बहुदलीय शासन प्रणाली का युग शुरू हुआ। 1989 के. बाद से लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी पार्टी को 2014 तक पूर्ण बहुमत नहीं मिला।

→ गठबन्धन की राजनीति:
1989 के बाद लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस प्रकार केन्द्र में गठबन्धन की राजनीति प्रारम्भ हुई। इसके साथ ही नब्बे का दशक ताकतवर पार्टियों और आन्दोलनों के उभार का साक्षी रहा। इन पार्टियों और आन्दोलनों ने दलित तथा पिछड़ा वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग या ओ.बी.सी.) की नुमाइंदगी की। इन दलों में से अनेक ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं की दमदार दावेदारी की। 1996 में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार में इन पार्टियों ने अहम भूमिका निभाई।

→ भाजपा का उभार:
1991 तथा 1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली। 1996 के चुनावों में यह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। इस नाते भाजपा को सरकार बनाने का निमन्त्रण मिला लेकिन अधिकांश दल भाजपा की नीतियों एवं कार्यक्रमों के खिलाफ थे । इस तरह भाजपा लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर पायी। आखिरकार भाजपा एक गठबन्धन (राजग) के अगुआ के रूप में सत्ता में आई और 1998 के मई से 1999 के जून तक सत्ता में रही। फिर 1999 में इस गठबन्धन ने दोबारा सत्ता हासिल की। 1999 की वाजपेयी सरकार ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया। अन्य पिछड़ा वर्ग का राजनीतिक उदय – ‘ अन्य पिछड़ा वर्ग’ में शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय की गणना की जाती है।

→ मंडल का लागू होना:
1980 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्गों के बीच लोकप्रिय ऐसे ही राजनीतिक समूहों को जनता दल ने एकजुट किया। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीति को सुगठित रूप देने में मदद मिली।

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→ राजनीतिक परिणाम:
1980 के दशक में दलित जातियों के राजनीतिक संगठनों का भी उभार हुआ। 1978 में बामसेफ (बेकवर्ड एवं माइनॉरिटी क्लासेज एम्पलाइज फाउंडेशन) का गठन हुआ। इस संगठन ने बहुजन यानी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की। कांशीराम के नेतृत्व वाली बसपा ने अपने संगठन की बुनियाद व्यवहार में बामसेफ की नीतियों पर केन्द्रित की। साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतन्त्र – इस दौर में आया एक दूरगामी बदलाव धार्मिक पहचान पर आधारित राजनीति का उदय है।

इसने धर्मनिरपेक्षता और लोकतन्त्र के बारे में बहसों को सरगर्म किया। शुरू-शुरू में भाजपा ने जनसंघ की अपेक्षा कहीं ज्यादा बड़ा राजनीतिक मंच अपनाया इसने गाँधीवादी समाजवाद को अपनी विचारधारा के रूप में स्वीकार किया। लेकिन भाजपा को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली। 1986 के बाद इस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिन्दू राष्ट्रवाद के तत्त्वों पर जोर देना शुरू किया। भाजपा ने हिन्दुत्व की राजनीति का रास्ता चुना और हिन्दुओं को लामबन्द करने की नीति अपनाई।

→ अयोध्या विवाद का निर्णय:
फैजाबाद जिला न्यायालय द्वारा फरवरी, 1986 में अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया गया। इस अदालत ने यह फैसला दिया कि रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खोला जाना चाहिए ताकि हिन्दू यहाँ पूजा-पाठ कर सकें क्योंकि वे इस जगह को पवित्र मानते हैं। विध्वंस और उसके बाद- राम मंदिर निर्माण का समर्थन करने वाले संगठनों ने दिसम्बर, 1992 में कारसेवा का आयोजन किया। इसके अन्तर्गत रामभक्तों का आह्वान किया गया कि वे राम मन्दिर के निर्माण में श्रमदान करें। लाखों श्रद्धालु अयोध्या की ओर चल पड़े। पूरे देश में माहौल तनावपूर्ण हो गया।

अयोध्या में तनाव अपने चरम पर था। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह विवादित स्थल की सुरक्षा का पूरा इंतजाम करे। लेकिन 6 दिसम्बर, 1992 को देश के विभिन्न भागों से लोग आ जुटे और इन लोगों ने विवादित ढाँचे को गिरा दिया। विवादित ढाँचे के विध्वंस की खबर से देश के कई भागों में हिन्दू और मुसलमानों के बीच झड़प हुई। जनवरी, 1993 में एक बार फिर मुम्बई में हिंसा भड़की और अगले दो हफ्तों तक जारी रही।

→ गुजरात के दंगे:
2002 के फरवरी मार्च में गुजरात में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक चला। 2004 के लोकसभा चुनाव-2004 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने भी गठबन्धन बनाकर चुनावों में भाग लिया राजग की हार हुई और संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) की सरकार बनी। इस गठबन्धन का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी ने किया। संप्रग को वाम मोर्चा तथा कुछ अन्य दलों का समर्थन मिला। 2004 के चुनावों में एक हद तक कांग्रेस पार्टी का पुनरुत्थान भी हुआ। बढ़ती सहमति – संप्रग सरकार में आपसी सहमति के प्रमुख बिन्दु निम्न हैं।

  • नई आर्थिक नीति की सहमति
  • पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति।
  • देश के शासन में प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति।
  • विचारधारात्मक पक्ष की जगह कार्यसिद्धि पर जोर और विचारधारा सहमति के बिना राजनीतिक गठजोड़ 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस गठबन्धन को बहुमत मिला

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

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Jharkhand Board Class 12 Political Science जन आंदोलनों का उदय InText Questions and Answers

पृष्ठ 129

प्रश्न 1.
है तो यह बड़ी शानदार बात! लेकिन कोई मुझे बताए कि हम जो यहाँ राजनीति का इतिहास पढ़ रहे हैं, उससे यह बात कैसे जुड़ती है?
उत्तर:
सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों में जन आंदोलनों की शानदार उपलब्धि रही है । चिपको आंदोलन के अन्तर्गत उत्तराखण्ड के एक गाँव के स्त्री एवं पुरुषों ने पर्यावरण की सुरक्षा और जंगलों की कटाई का विरोध करने के लिए एक अनूठा प्रयास किया, जिसमें इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाँहों में भर लिया ताकि उनको काटने से बचाया जा सके। इस आन्दोलन को व्यापक सफलता प्राप्त हुई। जन-आंदोलन, कभी राजनीतिक तो कभी सामाजिक आंदोलन का रूप ले सकते हैं और अक्सर यह दोनों ही रूपों में नजर आते हैं। स्वतन्त्रता के तीन दशक बाद लोगों का धैर्य टूटा और जनता की बेचैनी जन-आन्दोलनों में उमड़ी। यहाँ हम राजनीति का इतिहास पढ़ रहे हैं परन्तु वह कुशल राजनीति की असफलता के उमड़े जन-आन्दोलन के उभार की अभिव्यक्ति है।

पृष्ठ 130

प्रश्न 2.
गैर-राजनीतिक संगठन ? मैं यह बात कुछ समझा नहीं! आखिर, पार्टी के बिना राजनीति कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
सामान्यतः गैर-राजनीतिक संगठन ऐसे संगठन हैं जो दलगत राजनीति से दूर स्थानीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़े हुए होते हैं तथा सक्रिय राजनीति में भाग लेने की अपेक्षा एक दबाव समूह की तरह कार्य करते हैं। औपनिवेशिक दौर में अनेक स्वतंत्र सामाजिक आंदोलनों का जन्म हुआ, जैसे— जाति प्रथा विरोधी आंदोलन, किसान सभा आंदोलन और मजदूर संगठनों के आंदोलन। मुंबई, कोलकाता और कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में मजदूर संगठनों के आंदोलनों का मुख्य जोर आर्थिक अन्याय और असमानता के मसले पर रहा। ये सभी गैर-राजनैतिक संगठन थे और इन्होंने अपनी माँगें मनवाने के लिए आंदोलनों का सहारा लिया। इन गैर-राजनैतिक संगठनों का राजनीतिक दलों से नजदीकी सम्बन्ध रहा।

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पृष्ठ 132

प्रश्न 3.
क्या दलितों की स्थिति इसके बाद से ज्यादा बदल गई है? दलितों पर अत्याचार की घटनाओं के बारे में मैं रोजाना सुनती हूँ। क्या यह आंदोलन असफल रहा? या, यह पूरे समाज की असफलता है?
उत्तर:
दलितों की स्थिति में सुधार हेतु 1972 में शिक्षित दलित युवा वर्ग ने महाराष्ट्र में एक आन्दोलन चलाया, जिसे दलित पैंथर्स आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन के माध्यम से दलितों की स्थिति सुधारने हेतु अनेक प्रयास किये गये। इस आन्दोलन का उद्देश्य जाति प्रथा को समाप्त करना तथा गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन तैयार करना था। लेकिन इस आन्दोलन को अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो पायी।

छुआछूत प्रथा को कानूनन समाप्त किये जाने के बावजूद भी अछूत जातियों के साथ नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बरताव कई रूपों में जारी रहा। दलितों की बस्तियाँ मुख्य गाँव से अब भी दूर हैं, दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते हैं। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-मोटी बात को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म ढाये जाते हैं। इस सबके बावजूद यह आन्दोलन पूरी तरह से असफल नहीं कहा जा सकता क्योंकि धीरे-धीरे दलितों को उनके हक मिलने लगे हैं।

पृष्ठ 135

प्रश्न 4.
मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो कहे कि मैं किसान बनना चाहता हूँ। क्या हमें अपने देश में किसानों की जरूरत नहीं है?
उत्तर:
यद्यपि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा कृषि पर आधारित है, लेकिन संसाधनों के अभाव व वर्षा आधारित कृषि होने के कारण किसानों को इस कार्य में पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अतिरिक्तं जनाधिक्य व कृषिगत क्षेत्र की सीमितता के कारण इस क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी जैसी समस्या आम बात हो गई है। इसलिए आम नागरिक को इस क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य नजर नहीं आ रहा है। इसलिए लोग कृषिगत कार्यों की अपेक्षा अन्य कार्यों में अधिक रुचि लेने लगे हैं। लेकिन हमें अपने देश में किसानों की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि किसान खेती का काम करना बन्द कर देंगे, तो अन्न कहाँ से आयेगा? कृषि – आधारित उद्योग नष्ट हो जायेंगे और देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जायेगी अतः देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कृषक वर्ग की अत्यन्त आवश्यकता है। हाँ, कृषि सम्बन्धी समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को प्राथमिकता से ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 5.
हमें इस तरह की अच्छी-अच्छी कहानियाँ तो सुनाई जाती हैं लेकिन हमें कभी यह नहीं बताया जाता कि इन कहानियों का अंत कैसा रहा। क्या यह आंदोलन शराबबंदी में सफल हो पाया? या पुरुषों ने एक समय के बाद फिर पीना शुरू कर दिया?
उत्तर:
इन कहानियों का अंत तो बहुत ही रोचक होता है। लेकिन हकीकत में इन कहानियों का अंत इतना रोचक नहीं होता। ऐसे आंदोलनों का असर पर कुछ समय के लिए ही होता है बाद में फिर पुरुष शराब पीना शुरू कर देते हैं

पृष्ठ 142

प्रश्न 6.
क्या आंदोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जा सकता है? आंदोलनों के दौरान नए प्रयोग किए जाते हैं और सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल अपना लेते हैं।
उत्तर:
जन-आन्दोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जन-आन्दोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना रहता है। समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को सार्थक दिशा देकर इन आन्दोलनों ने एक तरह से लोकतन्त्र की रक्षा की है। जन-आन्दोलनों में शरीक अनेक व्यक्ति और संगठन राजनीतिक दलों में सक्रिय रूप से जुड़े। ऐसे जुड़ाव से दलगत राजनीति में विभिन्न सामाजिक तबकों की बेहतर नुमाइंदगी सुनिश्चित हुई। इस प्रकार जन-आन्दोलनों के दौरान किये जाने वाले सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल अपना लेते हैं।

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प्रश्न 1.
चिपको आंदोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत हैं-
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आंदोलन था।
(ख) इस आंदोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आंदोलन था।
(घ) इस आंदोलन की माँग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए । उत्तर- (ग) गलत।

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे कुछ कथन गलत हैं। इनकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें-
(क) सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आंदोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ।
उत्तर:
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को बढ़ावा दे रहे हैं।
(ख) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।
(ग) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।

प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में ( अब उत्तराखण्ड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आन्दोलन का जन्म हुआ? इस आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
चिपको आंदोलन के कारण-चिपको आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब वन विभाग ने खेती-बाड़ी के लिए औजार बनाने के लिए गाँव वालों को ‘Ashtree’ काटने की अनुमति नहीं दी तथा खेल सामग्री बनाने वाली एक व्यावसायिक कम्पनी को यह पेड़ काटने की अनुमति प्रदान कर दी। इससे गाँव वालों में रोष उत्पन्न हुआ तथा कटाई के विरोध में यह आन्दोलन उठ खड़ा हुआ।
  2. गाँव वालों ने माँग रखी कि वन की कटाई का ठेका किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक साधनों पर उपयुक्त नियंत्रण होना चाहिए।
  3. चिपको आंदोलन का एक अन्य कारण पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना था। गांव वासी चाहते थे कि इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को हानि पहुँचाये बिना विकास किया जाये।
  4. इस क्षेत्र में वनों की कटाई के दौरान ठेकेदार यहाँ के पुरुषों को शराब आपूर्ति का व्यवसाय भी करते थे अतः स्त्रियों ने शराबखोरी की लत के विरोध में भी आवाज बुलन्द की।

प्रभाव – इस आन्दोलन के निम्न प्रमुख प्रभाव हुए-

  1. सरकार ने 15 वर्ष के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी।
  2. इस आन्दोलन ने अन्य आन्दोलनों को प्रभावित तथा प्रेरित किया।
  3. इस आन्दोलन के प्रभावस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता के आन्दोलन चलाए गए।

प्रश्न 4.
भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?
उत्तर:
1990 के दशक में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने भारतीय किसानों की दुर्दशा सुधारने हेतु अनेक मुद्दों पर बल दिया, जिनमें प्रमुख निम्न हैं-

  1. इसने बिजली की दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया तथा उचित दर पर गारण्टीशुदा बिजली आपूर्ति करने पर बल दिया।
  2. इसने नगदी फसलों के सरकारी खरीद मूल्यों में बढ़ोतरी की माँग की।
  3. इसने कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियों को हटाने पर बल दिया।
  4. किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की माँग की।
  5. किसानों के बकाया कर्ज को माफ किया जाये।

सफलताएँ – भारतीय किसान यूनियन को निम्न सफलताएँ प्राप्त हुईं-

  1. बीकेयू (BKU) जैसी माँगें देश के अन्य किसान संगठनों ने भी उठायीं I
  2. 1990 के दशक में बीकेयू ने अपनी संख्या बल के आधार पर एक दबाव समूह की तरह कार्य किया तथा अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी मांगें मनवाने में सफलता पाई।

प्रश्न 5.
आन्ध्रप्रदेश में चले शराब-विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे?
उत्तर:
आन्ध्रप्रदेश में चले शराब-विरोधी या ताड़ी विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान निम्नलिखित गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा-

  1. शराब पीने से पुरुषों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य कमजोर होता है।
  2. शराब पीने से व्यक्ति की कार्यक्षमता प्रभावित होती है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
  3. शराबखोरी से ग्रामीणों पर कर्ज का बोझ बढ़ता है।
  4. शराबखोरी से कामचोरी की आदत बढ़ती है।
  5. शराब माफिया के सक्रिय होने से गांवों में अपराधों को बढ़ावा मिलता है तथा अपराध और राजनीति के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध बनता है।
  6. शराबखोरी से परिवार की महिलाओं से मारपीट एवं तनाव को बढ़ावा मिलता है।
  7. शराब विरोधी आंदोलन ने महिलाओं के मुद्दों दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल व सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़क, लैंगिक असमानता आदि  के प्रति समाज में जागरूकता उत्पन्न की।

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प्रश्न 6.
क्या आप शराब-विरोधी आंदोलन को महिला आंदोलन का दर्जा देंगे? कारण बताएँ।
उत्तर:
शराब-विरोधी आंदोलन को महिला आंदोलन का दर्जा दिया जा सकता है। क्योंकि शराब – 1 ब- विरोधी आंदोलन में महिलाओं ने अपने आस-पड़ौस में मदिरा या ताड़ी की बिक्री पर पाबन्दी लगाने की माँग की। यह महिलाओं का स्वतः स्फूर्त आन्दोलन था। यह आन्दोलन महिलाओं ने शराब माफिया तथा सरकार दोनों के खिलाफ चलाया। शराबखोरी से सर्वाधिक परेशानी महिलाओं को होती है। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है, परिवार में तनाव व मारपीट का वातावरण बनता है। तनाव के चलते पुरुष शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाते इन्हीं कारणों से शराब विरोधी आंदोलनों का प्रारंभ प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता रहा है। अत: शराब-विरोधी ‘नों को महिला आंदोलन भी कहा जा सकता है।

प्रश्न 7.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजना का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजना का विरोध निम्नलिखित कारणों से किया

  1. बाँध निर्माण से प्राकृतिक नदियों व पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है।
  2. जिस क्षेत्र में बाँध बनाये जाते हैं वहाँ रह रहे गरीबों के घर-बार, उनकी खेती योग्य भूमि, वर्षों से चले आ रहे कुटीर -धन्धों पर भी बुरा असर पड़ता है।
  3. प्रभावित गाँवों के करीब ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मामला उठाया जा रहा था।
  4. परियोजना पर किये जाने वाले व्यय में हेरा-फेरी के दोषों को उजागर करना भी परियोजना विरोधी स्वयंसेवकों का उद्देश्य था।
  5. आन्दोलनकर्ता प्रभावित लोगों को आजीविका और उनकी संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण को बचाना चाहते थे। वे जल, जंगल और जमीन पर प्रभावित लोगों का नियन्त्रण या इन्हें उचित मुआवजा और उनका पुनर्वास चाहते थे।

प्रश्न 8.
क्या आंदोलन और विरोध की कार्यवाहियों से देश का लोकतन्त्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
शांतिपूर्ण आन्दोलनों एवं विरोध की कार्यवाहियों से लोकतन्त्र मजबूत होता है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-

  1. चिपको आंदोलन अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से चलाया गया। यह एक व्यापक जन आंदोलन था। इससे पेड़ों की कटाई, वनों का उजड़ना रुका। पशु-पक्षियों और जनता को जल, जंगल, जमीन और स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण मिला। सरकार लोकतान्त्रिक मांगों के समक्ष झुकी।
  2. वामपंथियों द्वारा चलाये गये किसान और मजदूर आंदोलनों द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी और सरकार को सर्वहारा वर्ग की उचित माँगों के लिए जगाने में सफलता मिली।
  3. दलित पैंथर्स नेताओं द्वारा चलाए गए आंदोलनों ने आदिवासी, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों में चेतना पैदा की। समाज में समानता, स्वतन्त्रता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।
  4. ताड़ी – विरोधी आंदोलन ने नशाबंदी और मद्य-निषेध के विरोध का वातावरण तैयार किया। महिलाओं से जुड़ी अनेक समस्याएँ, जैसे यौन उत्पीड़न, घरेलू समस्या, दहेज प्रथा और महिलाओं को विधायिका में दिये जाने वाले आरक्षण के मामले उठे। महिलाओं में राजनैतिक चेतना बढ़ी।

प्रश्न 9.
दलित- पैंथर्स ने कौन-कौन-से मुद्दे उठाये?
उत्तर:
दलित पैंथर्स – दलित पैंथर्स बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों में दलित शिक्षित युवा वर्ग का आन्दोलन था। इसमें ज्यादातर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित पैंथर्स ने दलित समुदाय से सम्बन्धित सामाजिक असमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दे उठाये।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-
लगभग सभी नए सामाजिक आंदोलन नयी समस्याओं जैसे – पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपने आप में समाजव्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था। इस अर्थ में ये आंदोलन अतीत की क्रांतिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग हैं। लेकिन, ये आंदोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है सामाजिक आंदोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है।

ये आंदोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्त्वों से भरे हैं, अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। ‘इस’ या ‘उस’ के विरोध ( पश्चिम-विरोधी, पूँजीवाद – विरोधी, ‘विकास’- विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हों- ऐसी बात नहीं। – रजनी कोठारी

(क) नए सामाजिक आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधाराओं में क्या अंतर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आंदोलनों की सीमाएँ क्या-क्या हैं?
(ग) यदि सामाजिक आंदोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ‘बिखरा’ हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केंद्रित हैं। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर:
(क) सामाजिक आन्दोलन समाज से जुड़े हुए मामलों अथवा समस्याओं को उठाते हैं; जैसे जाति भेदभाव, रंग भेदभाव, लिंग भेदभाव के विरोध में चलाये जाने वाले सामाजिक आन्दोलन। इसी प्रकार ताड़ी- विरोधी आन्दोलन, सभी को शिक्षा, सामाजिक न्याय और समानता के लिए चलाये जाने वाले आन्दोलन आदि जबकि क्रान्तिकारी विचारधारा के लोग तुरन्त सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में बदलाव लाना चाहते हैं। वे’ लक्ष्यों को ज्यादा महत्त्व देते हैं, तरीकों को नहीं।

(ख) सामाजिक आन्दोलन बिखरे हुए हैं तथा इनमें एकजुटता का अभाव पाया जाता है। सामाजिक आन्दोलनों के पास सामाजिक बदलाव के लिए कोई ढांचागत योजना नहीं है।

(ग) सामाजिक आन्दोलनों द्वारा उठाए गए विशिष्ट मुद्दों के कारण यह कहा जा सकता है कि ये आन्दोलन अपने मुद्दों पर अधिक केन्द्रित हैं।

जन आंदोलनों का उदय JAC Class 12 Political Science Notes

→ सामान्यतः
वे आन्दोलन जो दलगत राजनीति से दूर तथा जन सामान्य के हित में चलाये जाते हैं उन्हें जन- आन्दोलन कहा जाता है। भारतीय राजनीति में इस प्रकार के आन्दोलनों की विशेष भूमिका रही है।

→ चिपको आन्दोलन:
इस आन्दोलन की शुरुआत उत्तराखण्ड के दो-तीन गाँवों से हुई। 1973 में उत्तराखण्ड सरकार ने स्थानीय लोगों को कृषिगत औजार बनाने के लिए वन की कटाई करने से इनकार कर दिया, लेकिन एक खेल कम्पनी को पेड़ों की कटाई की अनुमति प्रदान कर दी। इससे स्थानीय लोगों में रोष की भावना उत्पन्न हुई और उन्होंने वनों की कटाई रोकने के लिए विशेष अभियान चलाया। इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाँहों में भर लिया ताकि इनको काटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आन्दोलन के रूप में परिणत हुआ और ‘चिपको आन्दोलन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

→ आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण पक्ष:
(i) ग्रामवासियों ने माँग की कि जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्तियों को नहीं दिया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों का जल, जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियन्त्रण होना चाहिए।
(ii) लोग चाहते थे कि सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए और उस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुँचाए बगैर यहाँ का विकास सुनिश्चित करे। आंदोलन ने भूमिहीन वन कर्मचारियों का आर्थिक मुद्दा भी उठाया और न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी की माँग की।

→ आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका:
चिपको आन्दोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। यह आन्दोलन का एकदम नया पहलू था। इलाके में सक्रिय जंगल कटाई के ठेकेदार यहाँ के पुरुषों को शराब की आपूर्ति का व्यवसाय भी करते थे। महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी लगातार आवाज उठायी। इससे आन्दोलन का दायरा विस्तृत हुआ और उसमें कुछ और सामाजिक मसले आ जुड़े।

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→ दल – आधारित आन्दोलन:
जन-आन्दोलन कभी-कभी सामाजिक तो कभी राजनीतिक आन्दोलन का रूप ले सकते हैं और अक्सर ये आन्दोलन दोनों ही रूपों में नजर आते हैं, जैसे- भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन। यह मुख्य रूप से राजनीतिक आंदोलन था, लेकिन हम जानते हैं कि औपनिवेशिक दौर में सामाजिक-आर्थिक मसलों पर भी विचार मंथन चला, जिससे अनेक स्वतन्त्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ, जैसे- जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, नारी कल्याण आन्दोलन, नारी मुक्ति आन्दोलन, धर्म सुधार आन्दोलन, शिक्षा प्रसार आन्दोलन कहे जा सकते हैं। अनेक आन्दोलन 19वीं और 20वीं शताब्दी में सर्वहारा वर्गों के हितों के लिए चलाए गए। जैसे किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठन आन्दोलन।

ये आन्दोलन 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में सामने आये। इन आन्दोलनों ने सामाजिक संघर्षों के कुछ अंदरूनी मुद्दे उठाये। ऐसे कुछ आन्दोलन आजादी के बाद के दौर में चलते रहे। मुंबई, कोलकाता और कानपुर जैसे बड़े शहरों के औद्योगिक मजदूरों के बीच मजदूर संगठनों के आन्दोलनों का जोर था। बड़ी पार्टियों ने इस तबके के मजदूरों को लामबंद करने के लिए अपने-अपने मजदूर संगठन बनाए। भारत की स्वतन्त्रता के उपरान्त प्रारम्भिक वर्षों में आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में किसान तथा कृषि मजदूरों ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में अपना विरोध जारी रखा। भारत के कुछ दल सीधी कार्यवाही अथवा हिंसा में यकीन करने वाले थे जिनमें मार्क्सवादी-लेनिनवादी दल प्रमुख हैं। इस काल में किसान और मजदूरों के आंदोलनों का मुख्य जोर आर्थिक पिछड़ापन, अन्याय तथा असमानता के मसले पर रहा।

→ राजनीतिक दलों से स्वतंत्र आंदोलन:
70 और 80 के दशक में कई सामाजिक तबकों का राजनीतिक दलों के. आचार-व्यवहार से मोहभंग हुआ। देश ने आजादी के बाद नियोजित विकास का मॉडल अपनाया था। इस मॉडल को अपनाने के पीछे दो लक्ष्य थे- आर्थिक संवृद्धि और आय का समतापूर्ण बँटवारा। राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया । ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध को स्वर देने के लिए इन्होंने आवाम को लामबंद करना शुरू किया। मध्यवर्ग के युवा कार्यकर्ताओं ने गाँव के गरीब लोगों के बीच रचनात्मक कार्यक्रम तथा सेवा संगठन चलाए। इन संगठनों के सामाजिक कार्यों की प्रकृति स्वयंसेवी थी इसलिए इन संगठनों को स्वयंसेवी संगठन या स्वयंसेवी क्षेत्र के संगठन कहा गया। इन संगठनों ने स्वयं को दलगत राजनीति से दूर रखा । स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर ये संगठन न तो चुनाव लड़े और न ही इन्होंने किसी एक राजनीतिक दल को समर्थन दिया । इसी कारण इन संगठनों को ‘स्वतंत्र राजनीतिक संगठन’ कहा जाता है।

→ दलित पैंथर्स आन्दोलन: सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें ज्यादातर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की | दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972
में दलित युवाओं का संगठन ‘दलित पैन्थर्स’ बना। इस संगठन में पढ़े-लिखे दलित युवकों को सम्मिलित किया गया।

→ आंदोलन की गतिविधियाँ: महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना दलित पैंथर्स की मुख्य गतिविधि थी। दलित पैंथर्स तथा इसके सहधर्मी संगठनों द्वारा दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार के मुद्दे पर लगातार विरोध आंदोलन चलाया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून बनाया। इस कानून के तहत दलितों पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया। दलित पैंथर्स का विचारधारात्मक एजेंडा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था।

→ भारतीय किसान यूनियन: भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का एक संगठन था। यह अस्सी के दशक के किसान आंदोलन के अग्रणी संगठनों में एक था। बीकेयू की विशेषताएँ – बीकेयू की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

  • इसने सरकार पर अपनी माँगों को मनवाने के लिए रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो आन्दोलन का सहारा लिया। इन कार्यवाहियों में पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उसके आस-पास के इलाकों के गांवों के हजारों किसानों ने भाग लिया।
  • बीकेयू के अधिकांश सदस्य एक खास समुदाय के थे। इस संगठन ने जातिगत समुदायों को आर्थिक मसले पर एकजुट करने के लिए ‘जाति-पंचायत’ की परम्परागत संस्था का उपयोग किया।
  • बीकेयूं के लिए धनराशि और संसाधन जातिगत संगठनों से जुटाये जाते थे और इन्हीं के सहारे बीकेयू की गतिविधियाँ भी संचालित होती थीं।
  • 1990 के शुरुआती वर्षों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर यह राजनीतिक दलों में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें मनवाने में सफलता पाई। इस अर्थ में किसान आंदोलन अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था।
  • किसान आंदोलन मुख्य रूप से देश के समृद्ध राज्यों में सक्रिय था। खेती को अपनी जीविका का आधार बनाने वाले अधिकांश भारतीय किसानों के विपरीत बीकेयू जैसे संगठनों के सदस्य बाजार के लिए नगदी फसल उपजाते। थे।
  • बीकेयू की तरह राज्यों के अन्य किसान संगठनों ने अपने सदस्य उन समुदायों के बीच से बनाए जिनका क्षेत्र की चुनावी राजनीति से रसूख था। महाराष्ट्र शेतकारी संगठन और कर्नाटक का रैयत संगठन ऐसे किसान संगठनों के जीवंत उदाहरण हैं।

→ ताड़ी-विरोधी आन्दोलन:
ताड़ी – विरोधी आन्दोलन की शुरुआत आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले से मानी जाती है । इस आन्दोलन के अन्तर्गत ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ी तथा शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाने की माँग की। यह लड़ाई माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। ताड़ी – विरोधी आंदोलन के कारण दो परस्पर विरोधी गुट दृष्टिगोचर हुए। एक शराब माफिया और दूसरी ओर ताड़ी के कारण पीड़ित परिवार। शराब के ठेकेदार ताड़ी व्यापार पर एकाधिकार बनाये रखने के लिए अपराधों में व्यस्त थे। शराबखोरी से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही थी। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

→ नारी मुक्ति एवं ताड़ी:
विरोधी आंदोलन – ताड़ी – विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन का एक हिस्सा बन गया । इससे घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और यह बात पूरे देश पर लागू होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू हुई कि औरतों पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खास जटिल है। इस तरह के अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता उत्पन्न की। धीरे-धीरे महिला आंदोलन कानूनी सुधारों से हटकर सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुले तौर पर बात करने लगा। नवें दशक तक आते-आते महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगे तथा इसी के परिणामस्वरूप संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अन्तर्गत महिलाओं को स्थानीय निकायों में आरक्षण प्रदान किया गया। इस व्यवस्था को राज्यों की विधानसभाओं तथा संसद में भी लागू करने की मांग की जा रही है।

→ नर्मदा बचाओ आन्दोलन:
आठवें दशक के प्रारम्भ में भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मझोले तथा 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। गुजरात के सरदार सरोवर और मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बाँध के रूप में दो सबसे बड़ी बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया। नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चला। इस आंदोलन के संचालनकर्ताओं की मुख्य माँग नर्मदा नदी पर बने इन छोटे एवं मझोले बांधों के निर्माण को रोकना है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन इन बाँधों के निर्माण के साथ-साथ देश में चल रही विकास परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाता रहा है। सरदार सरोवर बाँध के निर्माण से सम्बन्धित राज्यों के 245 गाँव डूब के क्षेत्र में आ रहे थे। अतः प्रभावित गाँवों के करीब ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मुद्दा सबसे पहले स्थानीय कार्यकर्त्ताओं ने उठाया।

→ जन आन्दोलन के सबक:
जन आंदोलनों का राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था पर विशेष प्रभाव होता है और इन आंदोलनों से राजनीतिक व्यवस्था के संचालनकर्ताओं को नई सीख मिलती है। जन आंदोलनों के सबक निम्न हैं

  • जन आंदोलनों का इतिहास लोकतान्त्रिक राजनीति को बेहतर ढंग से समझने में मदद प्रदान करता है।
  • समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आंदोलनों ने लोकतन्त्र की रक्षा की है तथा भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।
  • सामाजिक आंदोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी दिक्कतों को चुनावी राजनीति के जरिए हल नहीं कर पा रहे थे।
  • इन आंदोलनों के आलोचकों ने यह दलील दी है कि हड़ताल, धरना और रैली जैसी सामूहिक कार्यवाहियों से सरकार के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। इनके अनुसार इस तरह की गतिविधियों से सरकार की निर्णय प्रक्रिया बाधित होती है तथा रोजमर्रा की लोकतान्त्रिक व्यवस्था बाधित होती है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Jharkhand Board Class 12 Political Science क्षेत्रीय आकांक्षाएँ InText Questions and Answers

पृष्ठ 149

प्रश्न 1.
क्या इसका मतलब यह हुआ कि क्षेत्रवाद साम्प्रदायिकता के समान खतरनाक नहीं है? क्या हम यह भी कह सकते हैं कि क्षेत्रवाद अपने आप में खतरनाक नहीं?
उत्तर:
सामान्यतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को राष्ट्र विरोधी नहीं माना जाता। इसके साथ ही लोकतान्त्रिक राजनीति में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा अथवा किसी खास क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइंदगी करें। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में क्षेत्रीय राजनीति का एक अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाए और उन्हें इसमें भागीदारी भी दी जाए। दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता धार्मिक या भाषायी समुदाय पर आधारित एक संकीर्ण मनोवृत्ति है जो धार्मिक या भाषायी अधिकारों तथा हितों को राष्ट्रीय हितों के ऊपर रखती है इसलिए यह समाज विरोधी तथा राष्ट्रविरोधी मनोवृत्ति है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि क्षेत्रवाद साम्प्रदायिकता के समान खतरनाक नहीं है।

पृष्ठ 150

प्रश्न 2.
खतरे की बात हमेशा सीमांत के राज्यों के संदर्भ में ही क्यों उठाई जाती है? क्या इस सबके पीछे विदेशी हाथ ही होता है?
उत्तर:
प्रायः यह देखा गया है कि सीमांत प्रदेशों में ही क्षेत्रवाद एवं अलगाववाद की समस्या अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण वहाँ की जनता की राजनीतिक आकांक्षाओं के साथ-साथ विदेशी ताकतों का हाथ होना माना जा सकता है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब और पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में घटित होने वाली विभिन्न घटनाएँ इसका उदाहरण माना जा सकता है। कश्मीरियों द्वारा अलग से स्वतन्त्र राष्ट्र की और पंजाब द्वारा खालिस्तान की माँग के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ रहा है।

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पृष्ठ 158

प्रश्न 3.
पर यह सारी बात तो सरकार, अधिकारियों, नेताओं और आतंकवादियों के बारे में है। कश्मीरी जनता के बारे में कोई कुछ क्यों नहीं कहता? लोकतन्त्र में तो जनता की इच्छा को महत्त्व दिया जाना चाहिए। क्यों मैं ठीक कह रही हूँ न?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों का एक तबका कश्मीर को एक अलग राष्ट्र बनाना चाहता है; दूसरा कश्मीर का विलय पाकिस्तान में चाहता है तथा तीसरा तबका कश्मीर को भारत संघ का ही हिस्सा रहने देना चाहता है, लेकिन अधिक स्वायत्तता चाहता है। जम्मू और लद्दाख के लोग उपेक्षित बरताव तथा पिछड़ेपन से छुटकारा हेतु तबका, अधिक स्वायत्तता चाहते हैं। इस वजह से पूरे राज्य की स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है उतनी ही प्रबल माँग इस राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है।

जम्मू-कश्मीर पर प्रायः अलगाववादियों, आतंकवादियों एवं विभिन्न राजनीतिज्ञों की प्रशासनिक नीतियों का प्रभाव रहा है लेकिन वहाँ जनमत की इच्छा का सम्मान करते हुए जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छानुसार प्रशासनिक निर्णय लिया जाना चाहिए अर्थात् जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में जनमत संग्रह की नीति का पालन किया जाना चाहिए। जिससे इस क्षेत्र की समस्त समस्याओं का स्थायी समाधान हो सके।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित में मेल करें:

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण (i) नगालैंड/मिजोरम
(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव (ii) झारखंड / छत्तीसगढ़
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण (iii) पंजाब
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग (iv) तमिलनाडु

उत्तर:

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण (iii) पंजाब
(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव (iv) तमिलनाडु
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण (i) झारखंड / छत्तीसगढ़
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग (ii) नगालैंड/मिजोरम

प्रश्न 2.
पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन, ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आंदोलन और अलग देश बनाने की माँग करना ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिये अलग-अलग रंग भरिये और दिखाइये कि किस राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल है?
उत्तर:

  1. बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन – असम
  2. ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आन्दोलन – मेघालय
  3. अलग देश बनाने की माँग – मिजोरम

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(अलग देश बनाने की माँग नगालैण्ड व मिजोरम ने की थी। कुछ समय पश्चात् मिजोरम स्वायत्त राज्य बनने के लिए तैयार हो गया। मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर को राज्य का दर्जा दे दिया गया है।) अतः मिजोरम की माँग का समाधान हो गया है, लेकिन नगालैण्ड में अलगाववाद की समस्या का पूर्ण हल अभी तक नहीं हो पाया है।

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प्रश्न 3.
पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ौसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
पंजाब समझौता: जुलाई, 1985 में अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे पंजाब – समझौता कहा जाता है। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-

  1. मारे गये निरपराध व्यक्तियों के लिए मुआवजा: एक सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्यवाही या आन्दोलन में मारे गए लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जाएगा।
  2. सेना में भर्ती; देश के सभी नागरिकों को सेना में भर्ती का अधिकार होगा और चयन के लिए केवल योग्यता ही आधार रहेगा।
  3. सेना से निकाले हुए व्यक्तियों का पुनर्वास: सेना से निकाले हुए व्यक्तियों और उन्हें लाभकारी रोजगार दिलाने के प्रयास किए जाएंगे।
  4. विशेष सुरक्षा अधिनियम को वापस लेने पर सहमति:  पंजाब में उग्रवाद प्रभावित लोगों को मुआवजा प्रदान करने तथा उनके साथ अच्छा व्यवहार करने को तैयार हो गई तथा पंजाब से विशेष सुरक्षा अधिनियम को वापस लेने की बात पर भी सहमत हो गई।
  5. सीमा विवाद:  चण्डीगढ़ की राजधानी परियोजना क्षेत्र और सुखना ताला पंजाब को दिए जाएंगे । केन्द्र शासित प्रदेश के अन्य पंजाबी क्षेत्र पंजाब को तथा हिन्दी भाषी क्षेत्र हरियाणा को दिए जाएंगे।
    ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ौसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने का कारण नहीं बन सकते हैं क्योंकि इसमें इन राज्यों के विवादास्पद मुद्दों को नहीं छुआ गया है।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने का मुख्य कारण यह था कि इस प्रस्ताव में पंजाब सूबे के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की गई, जो कि परोक्ष रूप से एक अलग सिख राष्ट्र की माँग को बढ़ावा देती है। दूसरे यह प्रस्ताव ‘सिख वर्चस्व’ का ऐलान करता था।

प्रश्न 5.
आपकी राय में कश्मीर में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उभर आने के कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जम्मू-कश्मीर की अंदरूनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सिर उठाया है।
उत्तर:
अंदरूनी विभिन्नताएँ:
जम्मू-कश्मीर में अधिकांश रूप में अंदरूनी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। जम्मू- कश्मीर राज्य में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र – जम्मू कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं। जम्मू पहाड़ी क्षेत्र है, इसमें हिन्दू-मुस्लिम और सिक्ख अर्थात् कई धर्मों एवं भाषाओं के लोग रहते हैं। कश्मीर में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या अधिक है और यहाँ पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। जबकि लद्दाख पर्वतीय क्षेत्र है, इसमें बौद्ध, मुस्लिम की आबादी है। इतनी विभिन्नताओं के कारण यहाँ पर कई क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सिर उठाया है। यथा

  1. इसमें पहली आकांक्षा कश्मीरी पहचान की है जिसे कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है। कश्मीर के निवासी सबसे पहले अपने को कश्मीरी तथा बाद में कुछ और मानते थे
  2. राज्य में उग्रवाद और आतंकवाद को दूर करना भी यहाँ के लोगों की एक मुख्य आकांक्षा है।
  3. स्वायत्तता की बात जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को अलग-अलग ढंग से लुभाती है। यहाँ पूरे राज्य में स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है, उतनी ही प्रबल माँग राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है। जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दल हैं, जो जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की माँग करते रहते हैं। इसमें नेशनल कांफ्रेंस सबसे महत्त्वपूर्ण दल है।
  4. इसके अतिरिक्त कुछ उग्रवादी संगठन भी हैं, जो धर्म के नाम पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं

प्रश्न 6.
कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें से कौनसा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
कश्मीर की स्वायत्तता का मसला- कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर मुख्य रूप से दो पक्ष सामने आते हैं- प्रथम पक्ष वह है जो धारा 370 को समाप्त करना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष वह है जो इस राज्य को और अधिक स्वायत्तता देना चाहता हैं। यदि इन दोनों पक्षों का उचित ढंग से अध्ययन किया जाए तो प्रथम पक्ष अधिक उचित दिखाई पड़ता है जो धारा 370 को समाप्त करने के पक्ष में है। उनका तर्क है कि इस धारा के कारण यह राज्य भारत के साथ पूरी तरह नहीं मिल पाया है। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने से कई प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याएँ भी पैदा होती हैं।

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प्रश्न 7.
असम आन्दोलन सांस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।
अथवा
ऑल असम स्टूडेंटस यूनियन (आ सू) द्वारा चलाये गये आंदोलनों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
असम आन्दोलन – 1979 से 1985 तक असम में बाहरी लोगों के खिलाफ चला, असम आंदोलन असम के सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था क्योंकि-
1. असमी लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि असम में बांग्लादेश से आए विदेशी लोगों को पहचान कर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जायेगी। यह उन्हें असमी संस्कृति पर ख़तरा दिखाई दे रहा था। अतः 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने जब यह माँग की कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए, तो इस आंदोलन को पूरे असम में समर्थन मिला।

2. असम आंदोलन के पीछे आर्थिक मसले भी जुड़े थे। असम में तेल, चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। दूसरे, भारत के अन्य राज्यों से या किसी अन्य देश से आए लोग यहाँ के रोजगार के अवसरों को हथिया रहे हैं और यहाँ की जनता उनसे वंचित हो रही है।

प्रश्न 8.
हर क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी माँग की तरफ अग्रसर नहीं होता । इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के कई क्षेत्रों में काफी समय से कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन चल रहे हैं, परन्तु सभी क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी आन्दोलन नहीं होते अर्थात् कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन भारत से अलग नहीं होना चाहते बल्कि अपने लिए अलग राज्य की मांग करते हैं, जैसे—झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का आन्दोलन, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा चलाया गया आन्दोलन तथा तेलंगाना प्रजा समिति द्वारा चलाया गया आन्दोलन इत्यादि ऐसे ही आन्दोलन रहे हैं और अपने क्षेत्र के लिए एक पृथक् राज्य के गठन के बाद ये आन्दोलन समाप्त हो गये हैं ।

प्रश्न 9.
भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से ‘विविधता में एकता’ के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्क दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न प्रकार की माँगें उठीं। तमिलनाडु में जहाँ हिन्दी भाषा के विरोध और अंग्रेजी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में बनाए रखने की माँग उठी, तो असम में विदेशियों को असम से बाहर निकालने की माँग उठी, नगालैंड और मिजोरम में अलगाववाद की माँग उठी तो आंध्रप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों में भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की माँग उठी।

इसी प्रकार उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड क्षेत्रों में प्रशासनिक सुविधा तथा आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु अलग राज्य बनाने के. आंदोलन हुए। अभी भी विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न प्रकार की माँगें उठ रही हैं जिनका मुख्य आधार क्षेत्रीय पिछड़ापन है । इससे स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय माँगों से विविधता के दर्शन होते हैं। भारत सरकार ने इन माँगों के निपटारे के लिए लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एकता का परिचय दिया है।

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प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
हजारिका का एक गीत एकता की विजय पर है; पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ कहा गया है. मेघालय अपने रास्ते गई अरुणाचल भी अलग हुई और मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने को खड़ा है इस गीत का अंत असमी लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है। करबी और मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं। संजीव बरुआ
(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कर रहा है?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य क्यों बनाए गए?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है? क्यों?
उत्तर:
(क) लेखक यहाँ पर पूर्वोत्तर राज्यों की एकता की बात कर रहा है।

(ख) सभी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य बनाए गए।

(ग) भारत के सभी क्षेत्रों पर एकता की यह बात लागू हो सकती है, क्योंकि भारत के सभी राज्यों में अलग- अलग धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं तथा देश की एकता एवं अखण्डता के लिए उनमें एकता कायम करना आवश्यक है। दूसरे, भारत के संविधान में क्षेत्रीय विभिन्नताओं और आकांक्षाओं के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है। तीसरे, देश के नेता तथा सभी राजनीतिक दल एकता के समर्थक हैं।

क्षेत्रीय आकांक्षाएँ JAC Class 12 Political Science Notes

→ क्षेत्र और राष्ट्र:
भारत में 1980 के दशक में देश के विभिन्न हिस्सों में स्वायत्तता की माँगें उठीं। लोगों ने स्वायत्तता की माँगों को लेकर संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए हथियार तक उठाये। भारत सरकार ने इन मांगों को दबाने के लिए जवाबी कार्यवाही की, जिससे अनेक बार राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया अवरुद्ध हुई।

→ भारत सरकार का नजरिया:
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया और भारत के संविधान के बारे में अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि देश में विभिन्न क्षेत्रों और भाषायी समूह को अपनी संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार होगा। भारत ने एकता की भावधारा से बँधे एक ऐसे सामाजिक जीवन के निर्माण का निर्णय लिया जिससे एक समाज को आकार देने वाली तमाम संस्कृतियों की विशिष्टता बनी रहे।

→ तनाव के दायरे:
आजादी के बाद भारत में क्षेत्रीय तनाव के विभिन्न मुद्दे उभरे जिनमें प्रमुख हैं-

  • आजादी के तुरन्त बाद जम्मू-कश्मीर का मामला सामने आया। यह सिर्फ भारत और पाकिस्तान के मध्य संघर्ष का मामला नहीं था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था।
  • ठीक इसी प्रकार पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मसले पर सहमति नहीं थी। पहले नगालैण्ड में और फिर मिजोरम में भारत से अलग होने की माँग करते हुए जोरदार आंदोलन चले।
  • दक्षिण भारत में द्रविड़ आन्दोलन से जुड़े कुछ समूहों ने एक समय अलग राष्ट्र की बात उठायी थी।
  • अलगाव के इन आन्दोलनों के अतिरिक्त देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग करते हुए जन-आन्दोलन चले। मौजूदा कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात ऐसे ही आन्दोलनों वाले राज्यों में हैं।

→ जम्मू-कश्मीर:
जम्मू-कश्मीर भारत और पाकिस्तान के मध्य एक बड़ा मुद्दा है। 1947 से पहले जम्मू-कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिन्दू शासक भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे और उन्होंने अपने स्वतन्त्र राज्य के लिए भारत और पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की। कश्मीर समस्या की प्रमुख जड़ों को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

→  राज्य में नेशनल कान्फ्रेंस के शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जन-आन्दोलन चला। शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि महाराजा पद छोड़ें, लेकिन वे पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। नेशनल कान्फ्रेंस एक धर्मनिरपेक्ष संगठन था। इसका कांग्रेस के साथ काफी समय से गठबन्धन था। राष्ट्रीय राजनीति के कई प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला के मित्र थे। इनमें नेहरू भी शामिल थे।

→ अक्टूबर, 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठ को अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में महाराज भारतीय सेना से मदद माँगने को मजबूर हुए। भारत ने सैन्य मदद उपलब्ध करवाई और कश्मीर घाटी से घुसपैठियों को खदेड़ा। इससे पहले भारत सरकार ने महाराजा से भारत संघ में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए। इस बारे में सहमति जताई गई कि स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर की नियति का फैसला जनमत सर्वेक्षण द्वारा होगा। मार्च, 1948 में शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रधानमन्त्री बने ( राज्य में सरकार के मुखिया को तब प्रधानमन्त्री कहा जाता था )। भारत, जम्मू एवं कश्मीर की स्वायत्तता को बनाए रखने पर सहमत हो गया। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दिया गया।

→ बाहरी और आन्तरिक दबाव:
जम्मू-कश्मीर की राजनीति हमेशा विवादग्रस्त एवं संघर्षयुक्त रही। इसमें बाहरी एवं आन्तरिक दोनों कारण हैं। कश्मीर समस्या का एक कारण पाकिस्तान का रवैया है। उसने हमेशा यह दावा किया है कि कश्मीर घाटी पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। 1947 में इस राज्य में पाकिस्तान ने कबायली हमला कराया। इसके परिणामस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तानी नियन्त्रण में आ गया। भारत ने दावा किया कि यह क्षेत्र का अवैध अधिग्रहण है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को आजाद कश्मीर कहा । 1947 के बाद कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का एक बड़ा मुद्दा रहा है। आन्तरिक रूप से देखें तो भारतीय संघ में कश्मीर की हैसियत को लेकर विवाद रहा। कश्मीर को संविधान में धारा 370 के अन्तर्गत विशेष स्थान दिया गया है। धारा 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता दी गई है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

→ 1948 के बाद की राजनीति:
प्रधानमन्त्री बनने के बाद शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में सुधार हेतु अनेक कदम उठाये। उन्होंने भूमि सुधार व जन-कल्याण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाये लेकिन केन्द्र सरकार से मतभेद होने के कारण उन्हें 1953 में पद से हटा दिया गया। 1953 से लेकर 1974 तक राज्य की राजनीति पर कांग्रेस का असर रहा। विभाजित हो चुकी नेशनल कांफ्रेंस कांग्रेस के समर्थन से राज्य में कुछ समय तक सत्तासीन रही लेकिन बाद में यह कांग्रेस में मिल गयी। इस तरह राज्य की सत्ता सीधे कांग्रेस के नियन्त्रण में आ गई। इस बीच शेख अब्दुल्ला और भारत सरकार के बीच सुलह की कोशिश जारी रही। आखिरकार, 1974 में इन्दिरा गाँधी के साथ शेख अब्दुल्ला ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और वे राज्य के मुख्यमन्त्री बने।

→ विद्रोही तेवर और उसके बाद:
1984 में विधानसभा चुनाव हुए। आधिकारिक नतीजे बता रहे थे कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबन्धन को भारी बहुमत मिला है। फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। बहराल लोग यह मान रहे थे कि चुनावों में धाँधली हुई है और चुनाव परिणाम जनता की पसंद की नुमाइंदगी नहीं कर रहे। 1980 के दशक से ही यहाँ के लोगों में प्रशासनिक अक्षमता को लेकर रोष पनप रहा था। 1989 तक राज्य उग्रवादी आन्दोलन की गिरफ्त में आ चुका था। इस आन्दोलन में लोगों को अलग कश्मीर के नाम पर लामबंद किया जा रहा था। 1990 के बाद से इस राज्य के लोगों को उग्रवादियों और सेना की हिंसा भुगतनी पड़ी। 1996 में एक बार फिर इस राज्य में विधानसभा चुनाव हुए। फारुख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनी और उसने जम्मू-कश्मीर के लिए क्षेत्रीय स्वायत्तता की माँग की। जम्मू-कश्मीर में 2002 के चुनाव बड़े निष्पक्ष ढंग से हुए । नेशनल कांफ्रेंस को बहुमत नहीं मिल पाया। इस चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीपी) और कांग्रेस की गठबन्धन सरकार सत्ता में आई।

→ 2002 और इससे आगे:
गठबंधन के अनुसार मुफ्ती मोहम्मद तीन वर्षों तक सरकार के मुखिया रहे, इसके बाद गुलामनबी आजाद मुखिया बने। 2008 में कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और 2008 के नवंबर-दिसंबर में चुनाव करवाया गया। उमर अब्दुल्ला मुखिया बने। 2014 के चुनाव में पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन हुआ और मिली-जुली सरकार सत्ता में आई । 2018 में बीजेपी ने अपना सहयोग वापस ले लिया। फलस्वरूप कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया। राज्य को पुनर्गठित कर दो केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख बना दिये गये।

→ पंजाब:
1980 के दशक में पंजाब में भी बड़े बदलाव आए। इस प्रान्त की सामाजिक बनावट विभाजन के समय पहली बार बदली थी। 1966 में पंजाबी भाषी प्रान्त का निर्माण हुआ। सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में 1920 के दशक में अकाली दल का गठन हुआ था। अकाली दल ने पंजाबी सूबा के गठन का आन्दोलन चलाया। पंजाबी- भाषी सूबे में सिख बहुसंख्यक हो गये। राजनीतिक संदर्भ-पंजाबी सूबे के पुनर्गठन के बाद अकाली दल ने यहाँ 1967 और इसके बाद 1977 में सरकार बनाई। 1970 के दशक में अकालियों के एक तबके ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठायी। 1973 में आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में क्षेत्रीय स्वायत्तता की माँग उठायी गयी। 1980 में अकाली दल की सरकार बर्खास्त हो गई तो अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ौसी राज्यों के बीच पानी के बँटवारे को लेकर आन्दोलन चलाया।

→ हिंसा का चक्र:
जल्दी ही अकाली आन्दोलन का नेतृत्व नरम पंथियों के हाथों से निकल कर चरमपंथियों के हाथों में आ गया और इस आन्दोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। उग्रवादियों ने अमृतसर स्थित सिखों के तीर्थ स्थल स्वर्णमन्दिर में अपना मुख्यालय बनाया और स्वर्णमन्दिर एक हथियारबंद किले में तब्दील हो गया। 1984 के जून माह में भारत सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया । यह स्वर्णमन्दिर में की गई सैन्य कार्यवाही का कूट नाम था । कुछ और त्रासद घटनाओं ने पंजाब की समस्या को एक जटिल रास्ते पर खड़ा कर दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की 31 अक्टूबर, 1984 के दिन उनके आवास के बाहर उन्हीं के अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के कारण दिल्ली में बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए जिसमें लगभग 2000 सिख स्त्री-पुरुष एवं बच्चे मारे गये।

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→ शांति की ओर:
984 के चुनावों के बाद तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने नरमपंथी अकाली नेताओं से बातचीत की शुरुआत की। अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचरन सिंह लोंगोवाल के साथ 1985 की जुलाई में एक समझौता हुआ। इस समझौते को राजीव गाँधी लोंगोवाल समझौता अथवा पंजाब समझौता कहा जाता है । यह समझौता पंजाब में अमन कायम करने की क्रिया में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। लेकिन पंजाब में हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। केन्द्र सरकार ने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इससे सामान्य राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया बाधित हुई। 1992 में पंजाब के चुनावों में 24 प्रतिशत मतदाता मत डालने आए। 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति बहाल हुई तथा 1997 में चुनाव में लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। अब पंजाब में पुनः आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के मुद्दे प्रमुख हो गये हैं।

→ पूर्वोत्तर:
पूर्वोत्तर राज्यों में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ 1980 के दशक में एक निर्णायक मोड़ पर आ गई थीं। क्षेत्र में सात राज्य हैं। इन्हें ‘सात बहनें’ कहा जाता है। इस क्षेत्र में देश की कुल 4 फीसदी आबादी निवास करती है। लेकिन भारत के कुल क्षेत्रफल में पूर्वोत्तर के हिस्से को देखते हुए यह आबादी दोगुनी कही जाएगी। 22 किलोमीटर लंबी एक पतली सी राहदारी इस इलाके को शेष भारत से जोड़ती है अन्यथा इस क्षेत्र की सीमाएँ चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से लगती हैं और यह इलाका भारत के लिए एक तरह से दक्षिण-पूर्वी एशिया का प्रवेश द्वार है।

इस इलाके में 1947 के बाद अनेक परिवर्तन आये हैं। पूर्वोत्तर के पूरे इलाके का बड़े व्यापक स्तर पर राजनीतिक पुनर्गठन हुआ है। नगालैण्ड को 1963 में राज्य बनाया गया। मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा 1972 में राज्य बने जबकि अरुणाचल प्रदेश को 1987 में राज्य का दर्जा दिया गया। 1947 के भारत विभाजन से पूर्वोत्तर के इलाके भारत के शेष भागों से एकदम अलग-थलग पड़ गए और इसका अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ा। पूर्वोत्तर के राज्यों में राजनीति में तीन मुद्दे हावी हैं

  • स्वायत्तता की माँग,
  • अलगाव के आन्दोलन तथा
  • बाहरी लोगों का विरोध।

→ स्वायत्तता की माँग:
आजादी के वक्त मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़ दें तो यह पूरा इलाका असम कहलाता था। गैर- असमी लोगों को जब लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस इलाके से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। पूरे राज्य में असमी भाषा को लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। बड़े जनजाति समुदाय के नेता असम से अलग होना चाहते थे। इन लोगों ने ‘ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन’ का गठन किया जो 1960 में कहीं ज्यादा व्यापक ‘आल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस’ में बदल गया। इन नेताओं की माँग थी कि असम से

→ अलग एक जन:
जातीय राज्य बनाया जाए। आखिरकार एक जनजातीय राज्य की जगह असम को काट कर कई जनजातीय राज्य बने। केन्द्र सरकार ने अलग-अलग वक्त पर असम को बाँटकर मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश बनाया। 1972 तक पूर्वोत्तर का पुनर्गठन पूरा हो चुका था लेकिन स्वायत्तता की माँग खत्म नहीं हुई। उदाहरण के लिए, असम के बोडो, करबी और दिमसा जैसे समुदायों ने अपने लिए अलग राज्य की माँग की। अपनी माँग के पीछे उन्होंने जनमत तैयार करने के प्रयास किए, जन-आंदोलन चलाए और विद्रोही कार्यवाहियाँ भी कीं।
संघीय राजव्यवस्था के कुछ और प्रावधानों का उपयोग करके स्वायत्तता की मांग को सन्तुष्ट करने की कोशिश की गई और इन समुदायों को असम में ही रखा गया। करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद् के अन्तर्गत स्वायत्तता दी गई। बोडो जनजाति को हाल ही में स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया है।

→ अलगाववादी आंदोलन:
पूर्वोत्तर राज्यों में स्वायत्तता की माँग के साथ – साथ अलगाववादी ताकतों का भी बोलबाला बढ़ा। अलगाववादी देश से अलग होकर अपने को एक अलग राष्ट्र के रूप में प्रतिस्थापित करना चाहते थे। भारत के पूर्वोत्तर के राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नगालैण्ड, मिजोरम, त्रिपुरा में इस प्रकार की माँगें उठती रहती हैं।

→ बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन:
पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर अप्रवासी भारतीय आये हैं। इससे एक खास समस्या उत्पन्न हुई है। स्थानीय जनता इन्हें बाहरी समझती है और बाहरी लोगों के खिलाफ उसके मन गुस्सा है। भारत के दूसरे राज्यों अथवा किसी अन्य देश से आये लोगों को यहाँ की जनता रोजगार के अवसरों और राजनीतिक सत्ता के एतबार से एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है। स्थानीय लोग बाहर से आये लोगों के बारे में मानते हैं कि ये लोग यहाँ की जमीन हथिया रहे हैं। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है और कभी-कभी इन बातों के कारण हिंसक घटनाएँ भी होती हैं।

→ समाहार और राष्ट्रीय अखण्डता:
आजादी के छह दशक बाद भी राष्ट्रीय अखण्डता के कुछ मामलों का समाधान पूरी तरह से नहीं हो पाया। क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लगातार एक न एक रूप से उभरती रहीं। कभी कहीं से अलग राज्य बनाने की माँग उठी तो कहीं आर्थिक विकास का मसला उठा। कहीं-कहीं से अलगाववाद के स्वर उभरे। 1980 के बाद के दौर में भारत की राजनीति इन तनावों के घेरे में रही और समाज के विभिन्न तबके की माँगों में पटरी बैठा पाने की लोकतान्त्रिक राजनीति की क्षमता की परीक्षा हुई।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Jharkhand Board Class 12 Political Science लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट InText Questions and Answers

पृष्ठ 104

प्रश्न 1.
गरीब जनता पर सचमुच भारी मुसीबत आई होगी। आखिर गरीबी हटाओ के वादे का हुआ क्या? उत्तर – श्रीमती गांधी ने 1971 के आम चुनावों में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था लेकिन इस नारे के बावजूद भी 1971-72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में सुधार नहीं हुआ और यह नारा खोखला साबित हुआ। इसी अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। इससे विभिन्न चीजों की कीमतों में तेजी आई। इस तीव्र मूल्य वृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई । बांग्लादेश के संकट से भी भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गये थे । इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। फलतः गरीबी हटाओ कार्यक्रम के लिए दिये जाने वाले अनुदान में कटौती कर दी गई और यह नारा पूर्णतः असफल साबित हुआ।

पृष्ठ 107

प्रश्न 2.
क्या ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ और ‘प्रतिबद्ध नौकरशाही’ का मतलब यह है कि न्यायाधीश और सरकारी अधिकारी शासक दल के प्रति निष्ठावान हो?
उत्तर:
प्रतिबद्ध नौकरशाही के अन्तर्गत नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों से बंधी हुई होती है और उस दल के निर्देशन में कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती; बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना किसी प्रश्न उठाए आँखें मूंद कर लागू करना होता है। जहाँ तक प्रतिबद्ध न्यायपालिका का सवाल है यह ऐसी न्यायपालिका होती है, जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफादार हो तथा सरकार के निर्देशों के अनुसार चले। इस प्रकार ऐसी व्यवस्था में न्यायपालिका व व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है और प्रशासन निरंकुश हो जाता है अर्थात् कानून बनाने एवं फैसला या निर्णय देने की शक्ति केवल एक ही संस्था या दल के पास आ जाती है। इस प्रकार की व्यवस्था प्रायः साम्यवादी देशों में पायी जाती है।

पृष्ठ 108

प्रश्न 3.
यह तो सेना से सरकार के खिलाफ बगावत करने को कहने जैसा जान पड़ता है। क्या यह बात लोकतांत्रिक है?
उत्तर:
नहीं, यह बात लोकतंत्र के खिलाफ है।

पृष्ठ 109

प्रश्न 4.
क्या राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सिफारिश के बगैर आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी? कितनी अजीब बात है!
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख किया गया है। भारत में 1975 में अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की गई जिसमें मन्त्रिमण्डल से सलाह करके आपातकालीन स्थिति की घोषणा का प्रावधान है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बिना मंत्रिमण्डल की सलाह के राष्ट्रपति को आपातकाल की घोषणा करने की सलाह दी थी, मन्त्रिमण्डल की बैठक उसके बाद हुई। इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियों में चाहें कुछ भी हुआ हो लेकिन वर्तमान में आपातकाल के प्रावधानों में सुधार कर लिया गया है। अंब आंतरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही लगाया जा सकता है। इसके लिए भी आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् को राष्ट्रपति को लिखित में देनी होगी।

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पृष्ठ 112

प्रश्न 5.
अरे ! सर्वोच्च न्यायालय ने भी साथ छोड़ दिया! उन दिनों सबको क्या हो गया था?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान नागरिकों की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिये गये तथा मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गये। लेकिन अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो। 1976 के अप्रेल माह में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील मान ली। इसका आशय यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिकों से जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में से एक माना गया। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बंद हो गए अर्थात् इस काल में सर्वोच्च न्यायालय ने भी जनता का साथ छोड़ दिया था।

पृष्ठ 113

प्रश्न 6.
जिन चंद लोगों ने प्रतिरोध किया, उनकी बात छोड़ दें- बाकियों के बारे में सोचें कि उन्होंने क्या किया ! क्या कर रहे थे बड़े-बड़े अधिकारी, बुद्धिजीवी, सामाजिक-धार्मिक नेता और नागरिक …………..?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। जिन्होंने विरोध किया उनको जेल में डाल दिया गया, कई नेताओं और बुद्धिजीवियों को नजरबंद कर दिया गया। सरकार के विरोध में कोई भी स्वर उठाता उसको जेल में यातनाएँ दी जातीं। कुछ नेता जो गिरफ्तारी से बच गए वे भूमिगत होकर सरकार के खिलाफ मुहिम जारी रखी। कुछ ने आपातकाल के विरोध में अपनी पदवी लौटा दी। अधिकारी सरकार के प्रति वफादार बने रहे और ऐसा न करने पर उनका निलंबन कर दिया जाता था।

पृष्ठ 121

प्रश्न 7.
अगर उत्तर और दक्षिण के राज्यों में मतदाताओं ने इतने अलग ढर्रे पर मतदान किया, तो हम कैसे कहें कि 1977 के चुनावों का जनादेश क्या था?
उत्तर:
1977 के चुनावों में आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हारी। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिलीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों . को 330 सीटें प्राप्त हुईं। लेकिन तत्कालीन चुनावी नतीजों पर प्रकाश डालें तो यह एहसास होता है कि कांग्रेस देश में हर जगह चुनाव नहीं हारी थी । महाराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा में उसने कई सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखा था और दक्षिण भारत के राज्यों में तो उसकी स्थिति काफी मजबूत थी। इसका मुख्य कारण यह था कि दक्षिण के राज्यों में आपातकाल के दौरान ज्यादतियाँ नहीं हुई थीं। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि चुनावों का जनादेश आपातकाल की ज्यादतियों व उसके दुरुपयोग के विरुद्ध था।

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पृष्ठ 122

प्रश्न 8.
मैं समझ गया! आपातकाल एक तरह से तानाशाही निरोधक टीका था। इसमें दर्द हुआ और बुखार भी आया, लेकिन अन्ततः हमारे लोकतन्त्र के भीतर क्षमता बढ़ी।
उत्तर:
आपातकाल से सबक – आपातकाल के प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं-

  1. आपातकाल का प्रथम सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र को विदा कर पाना बहुत कठिन है।
  2. दूसरे आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब आंतरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  3. तीसरे आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई।

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प्रश्न 1.
बताएँ कि आपातकाल के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत-
(क) आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गाँधी ने की।
(ख) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए।
(ग) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आपातकाल की घोषणा की गई थी।
(घ) आपातकाल के दौरान विपक्ष के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
(ङ) सी. पी. आई. ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया।
उत्तर:
(क) गलत,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही,
(ङ) सही।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकाल की घोषणा के संदर्भ में मेल नहीं खाता है-
(क) ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान
(ख) 1974 की रेल – हड़ताल
(ग) नक्सलवादी आंदोलन
(घ) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
(ङ) शाह आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष
उत्तर:
(ग) नक्सलवादी आंदोलन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(क) संपूर्ण क्रांति (i) इंदिरा गाँधी
(ख) गरीबी हटाओ (ii) जयप्रकाश नारायण
(ग) छात्र आंदोलन (iii) बिहार आंदोलन
(घ) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नांडिस

उत्तर:

(क) संपूर्ण क्रांति (ii) जयप्रकाश नारायण
(ख) गरीबी हटाओ (i) इंदिरा गाँधी
(ग) छात्र आंदोलन (iii) बिहार आंदोलन
(घ) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नांडिस

प्रश्न 4.
किन कारणों से 1980 के मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
उत्तर:
1977 के चुनावों में जनता पार्टी को जनता ने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया लेकिन जनता पार्टी के नेताओं में प्रधानमंत्री के पद को लेकर मतभेद हो गया। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए ही एकजुट रख सका। जनता पार्टी के पास किसी एक दिशा, नेतृत्व अथवा साझे कार्यक्रम का अभाव था। केवल 18 महीने में ही मोरारजी देसाई ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया जिसके कारण मोरारजी देसाई को त्यागपत्र देना पड़ा। मोरारजी देसाई के बाद चरणसिंह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री बने लेकिन चार महीने बाद कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया। अतः जनता पार्टी की सरकार में पारस्परिक तालमेल का अभाव, सत्ता की भूख तथा राजनैतिक अस्थिरता के कारण 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाए गए।

प्रश्न 5.
जनता पार्टी ने 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गई थी? इसके क्या निष्कर्ष थे?
उत्तर:
शाह आयोग का गठन ” 25 जून, 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्यवाही तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं” की जाँच के लिए किया गया था । आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जांच की और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। शाह आयोग ने अपनी जाँच के दौरान पाया कि इस अवधि में बहुत सारी ‘अति’ हुई। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों और तीसरी तथा अंतिम रिपोर्ट की सिफारिशी पर्यवेक्षणों और निष्कर्षों को स्वीकार किया ।

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प्रश्न 6.
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
उत्तर:
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके निम्नलिखित कारण बताये थे-

  1. सरकार ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा लोकतन्त्र को रोकने की कोशिश की जा रही है तथा सरकार को उचित ढंग से कार्य नहीं करने दिया जा रहा है। आन्दोलनों के कारण हिंसक घटनाएँ हो रही हैं तथा हमारी सेना तथा पुलिस को बगावत के लिए उकसाया जा रहा है। (ii) सरकार ने कहा कि विघटनकारी ताकतों का खुला खेल जारी है और साम्प्रदायिक उन्माद को हवा दी जा रही है, जिससे हमारी एकता पर खतरा मँडरा रहा है।
  2. षड्यंत्रकारी शक्तियाँ सरकार के प्रगतिशील कामों में अड़ंगे लगा रही हैं और उसे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती हैं।

प्रश्न 7.
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से संभव हुआ?
उत्तर:
1977 के चुनावों के बाद केन्द्र में पहली बार विपक्षी दल की सरकार बनने के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार रहे, इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. बड़ी विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना: आपातकाल लागू होने से आहत विपक्षी नेताओं ने आपातकाल के बाद हुए चुनाव के पहले एकजुट होकर ‘जनता पार्टी’ नामक एक नया दल बनाया। कांग्रेस विरोधी मतों के बिखराव को रोका।
  2. जगजीवनराम द्वारा त्याग-पत्र देना: चुनाव से पहले जगजीवनराम ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया तथा कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवनराम के नेतृत्व में एक नयी पार्टी – ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ बनायी तथा बाद में यह पार्टी जनता पार्टी में शामिल हो गई ।
  3. आपातकाल की ज्यादतियाँ: आपातकाल के दौरान जनता पर अनेक ज्यादतियाँ की गईं। जैसे – संजय गाँधी के नेतृत्व में अनिवार्य नसबंदी कार्यक्रम चलाया गया; प्रेस तथा समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई; हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो गई। इन सब कारणों से जनता कांग्रेस से नाराज थी और उसने कांग्रेस के विरोध में मतदान किया।
  4. जनता पार्टी का प्रचार: जनता पार्टी ने 1977 के चुनावों को आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया तथा इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों को मुद्दा बनाया।

प्रश्न 8.
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?
1. नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर
2. कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध
3. जनसंचार माध्यमों के कामकाज
4. पुलिस और नौकरशाही की कार्यवाहियाँ ।
उत्तर:

  1. आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को निलम्बित कर दिया गया तथा श्रीमती गाँधी द्वारा ‘मीसा कानून’ लागू किया गया जिसके अन्तर्गत किसी भी नागरिक को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में लिया जा सकता था।
  2. आपातकाल में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे के सहयोगी हो गये, क्योंकि सरकार ने सम्पूर्ण न्यायपालिका को सरकार के प्रति वफादार रहने के लिए कहा तथा आपातकाल के दौरान कुछ हद तक न्यायपालिका सरकार के प्रति वफादार भी रही। इस प्रकार आपातकाल के दौरान न्यायपालिका कार्यपालिका के आदेशों का पालन करने वाली संस्था बन गई थी।
  3. आपातकाल के दौरान जनसंचार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, कोई भी समाचार पत्र सरकार के खिलाफ कोई भी खबर नहीं छाप सकता था तथा जो भी खबर अखबार द्वारा छापी जाती थी उसे
  4. पहले सरकार से स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती थी।
  5. आपातकाल के दौरान पुलिस और नौकरशाही, सरकार के प्रति वफादार बनी रही, यदि किसी पुलिस अधिकारी या नौकरशाही ने सरकार के आदेशों को मानने से मना किया तो उसे या तो निलम्बित कर दिया गया या गिरफ्तार कर लिया गया। इस काल में पुलिस की ज्यादतियाँ बढ़ गई थीं तथा नौकरशाही अनुशासन के नाम पर तानाशाह हो गयी थी। रिश्वतखोरी बढ़ गयी थी।

प्रश्न 9.
भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
उत्तर:
आपातकाल का भारतीय दलीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि अधिकांश विरोधी दलों को किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं थी। आजादी के समय से लेकर 1975 तक भारत में वैसे भी कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा तथा संगठित विरोधी दल उभर नहीं पाया, वहीं आपातकाल के दौरान विरोधी दलों की स्थिति और भी खराब हुई। आपातकाल के बाद सरकार ने जनवरी, 1977 में चुनाव कराने का फैसला लिया। सभी बड़े विपक्षी दलों ने मिलकर एक नयी पार्टी – ‘ जनता पार्टी’ का गठन कर चुनाव लड़ा और सफलता पायी और सरकार बनाई। इस प्रकार कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राजनैतिक प्रणाली द्वि-दलीय हो जायेगी। लेकिन 18 माह में ही जनता पार्टी का यह कुनबा बिखर गया और पुनः दलीय प्रणाली उसी रूप में आ गई।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-
1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो- दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरंत बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई: “जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची” “डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रणव रॉय। – पार्थ चटर्जी
(क) किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो- दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो- दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई ?
उत्तर:
(क) 1977 में भारत की राजनीति दो- दलीय प्रणाली इसलिए जान पड़ती थी; क्योंकि उस समय केवल दो ही दल सत्ता के मैदान में थे, जिसमें सत्ताधारी दल कांग्रेस एवं मुख्य विपक्षी दल जनता पार्टी।

(ख) लेखकगण इस दौर को दो- दलीय प्रणाली के नजदीक इसलिए बता रहे हैं; क्योंकि कांग्रेस कई टुकड़ों. में बँट गई और जनता पार्टी में भी फूट हो गई परंतु फिर भी इन दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता संयुक्त नेतृत्व और साझे कार्यक्रम और नीतियों की बात करने लगे। इन दोनों गुटों की नीतियाँ एक जैसी थीं। दोनों में बहुत कम अंतर था । वामपंथी मोर्चे में सी. पी. एम., सी. पी. आई., फारवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी की नीति एवं कार्यक्रमों को इनसे अलग माना जा सकता है।

(ग) 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के कारण नेताओं में निराशा पैदा हुई और इस निराशा के कारण फूट पैदा हुई, क्योंकि अधिकांश कांग्रेसी नेता श्रीमती गाँधी के चमत्कारिक नेतृत्व के महापाश से बाहर निकल चुके थे, दूसरी ओर जनता पार्टी में नेतृत्व और विचारधारा को लेकर फूट पैदा हो गई थी। प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारों में आपसी होड़ मच गई।

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट JAC Class 12 Political Science Notes

→ आपातकाल की पृष्ठभूमि:
1967 के चुनावों के बाद भारतीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। श्रीमती इंदिरा गाँधी एक कद्दावर नेता के रूप में उभरीं और उनकी लोकप्रियता चरम सीमा पर पहुँच गई। इस काल में दलगत प्रतिस्पर्द्धा कहीं ज्यादा तीखी और ध्रुवीकृत हो गई तथा न्यायपालिका और सरकार के सम्बन्धों में तनाव आए। इस काल में कांग्रेस के विपक्ष में जो दल थे उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मानकर प्रयोग किया जा रहा है और राजनीति हद से ज्यादा व्यक्तिगत होती जा रही है। कांग्रेस की टूट से इंदिरा गांधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गये थे।

→ आर्थिक संदर्भ:
1971 में ‘गरीबी हटाओ’ का जो नारा दिया गया वह पूर्णतया खोखला साबित हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ा। लगभग 80 लाख शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गये। युद्ध के बाद अमरीका ने भारत की सहायता बन्द कर दी। इस अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना वृद्धि हुई जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वस्तुओं की कीमतों में जबरदस्त इजाफा हुआ।

→ गुजरात और बिहार में आंदोलन: गुजरात और बिहार में कांग्रेसी सरकार थी। इन राज्यों में हुए आन्दोलनों का प्रदेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।

→ गुजरात में आंदोलन के कारण: 1974 में तेल की कीमतों व आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के विरुद्ध छात्रों ने आन्दोलन किया। इस आन्दोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शामिल हो गईं और इस आन्दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। विपक्षी दलों ने राज्य की विधानसभा के लिए दुबारा चुनाव कराने की मांग की। कांग्रेस (ओ) के प्रमुख नेता मोरारजी देसाई ने कहा कि अगर राज्य में नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए गए तो मैं भूख हड़ताल पर बैठ जाऊँगा। मोरारजी अपने कांग्रेस के दिनों में इंदिरा गांधी के मुख्य विरोधी रहे थे। विपक्षी दलों द्वारा समर्थित छात्र आंदोलन के गहरे दबाव में 1975 के जून में विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस इस चुनाव में हार गयी।

→ बिहार में आंदोलन के कारण:
1974 के मार्च माह में बिहार में इन्हीं मांगों को लेकर छात्रों द्वारा आन्दोलन छेड़ा गया। आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा। जेपी तब सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे और सामाजिक कार्यों में लगे हुए थे। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा। इस प्रकार छात्र आंदोलन ने एक राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और उसके भीतर राष्ट्रव्यापी अपील आई। बिहार के इस आन्दोलन में हर क्षेत्र के लोग जुड़ने लगे। जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में समग्र क्रान्ति का आह्वान किया ताकि उन्हीं के शब्दों में सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना की जा सके।

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→ आन्दोलन का प्रभाव:
बिहार के इस आन्दोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हुआ। जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि यह आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों में भी फैले। इस आंदोलन के साथ-साथ रेलवे कर्मचारियों ने भी राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, जिससे देश का सम्पूर्ण कामकाज ठप होने का खतरा उत्पन्न हो गया। विशेषज्ञों एवं विद्वानों का मानना था कि ये आन्दोलन राज्य सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व के खिलाफ चलाए गए। इंदिरा गांधी का मानना था कि ये आन्दोलन उनके प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित थे।

→ न्यायपालिका से संघर्ष:

  • न्यायपालिका के साथ इस दौर में सरकार और शासक दल के गहरे मतभेद पैदा हुए। इस क्रम में तीन संवैधानिक मामले उठे क्या संसद मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है? सर्वोच्च न्यायालय का जवाब था कि संसद ऐसा नहीं कर सकती।
  • दूसरा यह कि क्या संसद संविधान में संशोधन करके सम्पत्ति के अधिकार में काट-छाँट कर सकती है? इस मसले पर भी सर्वोच्च न्यायालय का यही कहना था कि सरकार संविधान में इस तरह संशोधन नहीं कर सकती कि अधिकारों की कटौती हो जाए।
  • तीसरा, संसद ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन किया कि वह नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को प्रभावकारी बनाने के लिए मौलिक अधिकारों में कमी कर सकती है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया। इससे सरकार और न्यायपालिका के मध्य संघर्ष उत्पन्न हो गया।

1973 में सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके न्यायमूर्ति ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से विवादास्पद बना रहा क्योंकि सरकार ने जिन तीन न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी इस मामले में की थी उन्होंने सरकार के इस कदम के विरुद्ध फैसला दिया।

आपातकाल की घोषणा:
12 जून, 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने लोकसभा के लिए इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला। इन दलों ने 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल प्रदर्शन किया। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। जयप्रकाश नारायण ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशों का पालन न करें। सरकार ने इन घटनाओं के मद्देनजर जवाब में 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी। श्रीमती गाँधी की सरकार ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने तुरन्त आपातकाल की उद्घोषणा कर दी।

→  परिणाम:

  • सरकार के इस फैसले से विरोध- आंदोलन एक बार रुक गया। हड़तालों पर रोक लगा दी गई अनेक विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।
  • आपातकाल की मुखालफत और प्रतिरोध की कई घटनाएँ घटीं। पहली लहर में जो राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से रह गए थे वे ‘भूमिगत’ हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलायी। इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया।
  • इंदिरा गांधी के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में संविधान में संशोधन हुआ। इस संशोधन के द्वारा प्रावधान किया गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वां संशोधन पारित हुआ इस संशोधन के माध्यम से संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किए गए। 42वें संशोधन के माध्यम से हुए अनेक बदलावों में एक था- देश की विधायिका के कार्यकाल को 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 साल करना।

→ आपातकाल के संदर्भ में विवाद;
सरकार का तर्क था कि भारत में लोकतन्त्र है और इसके अनुकूल विपक्षी दलों को चाहिए कि वे निर्वाचित शासक दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दें। देश में लगातार गैर-संसदीय राजनीति का सहारा नहीं लिया जा सकता। इससे अस्थिरता पैदा होती है। इंदिरा गांधी ने शाह आयोग को चिट्ठी में लिखा कि षड्यंत्रकारी ताकतें सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में अड़ंगे लगा रही थीं और मुझे गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थीं। आपातकाल के आलोचकों का तर्क था कि आजादी के आंदोलन से लेकर लगातार भारत में जन-आंदोलन का एक सिलसिला रहा है।

जयप्रकाश नारायण सहित विपक्ष के नेताओं का विचार था कि लोकतन्त्र में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध का अधिकार होना चाहिए। लोकतान्त्रिक कार्यप्रणाली को ठप करके आपातकाल लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की जरूरत कतई नहीं थी। दरअसल खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और स्वयं प्रधानमंत्री को था । आलोचक कहते हैं कि देश को बचाने के लिए बनाए गए संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग इंदिरा गांधी ने निजी ताकतों को बचाने के लिए किया ।

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→ आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ?:
आपातकाल को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा कि इसके जरिए वो कानून व्यवस्था को बहाल करना चाहती थी, कार्यकुशलता बढ़ाना चाहती थी और गरीबों के हित के कार्यक्रम लागू करना चाहती थी । इस उद्देश्य से सरकार ने एक बीससूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की और इसे लागू करने का अपना दृढ़ संकल्प दोहराया। आपातकाल की घोषणा के बाद, शुरुआती महीनों में मध्यवर्ग इस बात से खुश था कि विरोध- आंदोलन समाप्त हो गया और सरकारी कर्मचारियों पर अनुशासन लागू हुआ। आपातकाल के दौरान कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी। प्रेस पर कई तरह की पाबंदी लगाई गई। इसके अलावा कुछ और गंभीर आरोप लगे थे जो किसी आधिकारिक पद पर नहीं थे, लेकिन सरकारी ताकतों का इन लोगों ने इस्तेमाल किया था। आपातकाल का बुरा असर आम लोगों को भी भुगतना पड़ा। इसके दौरान पुलिस हिरासत में मौत और यातना की घटनाएँ भी सामने आईं। गरीब लोगों को मनमाने तरीके से एक जगह से उजाड़कर दूसरी जगह बसाने की घटनाएँ भी हुईं। जनसंख्या नियंत्रण के बहाने लोगों को अनिवार्य रूप से नसबंदी के लिए मजबूर किया गया।

→ आपातकाल से सबक:

  • आपातकाल से एकबारगी भारतीय लोकतन्त्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हुईं। यद्यपि पर्यवेक्षक मानते हैं कि आपातकाल के दौरान भारत लोकतान्त्रिक नहीं रह गया था, लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि थोड़े दिनों के अंदर कामकाज फिर से लोकतान्त्रिक ढर्रे पर लौट आया। इस तरह आपातकाल का एक सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र विदा कर पाना बहुत कठिन है।
  • आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब ‘अंदरूनी’ आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  • आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा संचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई। आपातकाल के बाद की राजनीति – उत्तर भारत में आपातकाल का असर ज्यादा दिखाई दिया। यहाँ विपक्षी दलों ने लोकतन्त्र बचावों के बारे पर चुनाव लड़ा। जनादेश निर्णायक तौर पर आपातकाल के विरुद्ध था। जिन सरकारों को जनता ने लोकतन्त्र विरोधी माना उन्हें मतदान के रूप में उसने भारी दण्ड दिया।

→ लोकसभा चुनाव, 1977:
1977 के चुनावों में आपातकाल का असर व्यापक रूप से दिखाई दिया। इन चुनावों में जनादेश कांग्रेस के विरुद्ध था। कांग्रेस को लोकसभा में मात्र 154 सीटें मिलीं। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटों पर जीती और उसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक भी सीट न पा सकी।

→ जनता सरकार:
1977 के चुनावों के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन इस पार्टी में तालमेल का अभाव था। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन पार्टी के भीतर खींचतान जारी रही। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ समय तक ही एक रख सका। जनता पार्टी बिखर गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में अपना समर्थन खो दिया। इसके बाद चरण सिंह की सरकार भी केवल 4 माह तक ही चल पायी। 1980 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त की।

→ विरासत:

  • 1969 से पहले तक कांग्रेस विविध विचारधाराओं के नेताओं व कार्यकर्ताओं को एक साथ लेकर चलती थी। अपने बदले हुए स्वभाव में कांग्रेस ने स्वयं को विशेष विचारधारा से जोड़ा। उसने अपने को देश की एकमात्र समाजवादी और गरीबों की हिमायती पार्टी बताना शुरू किया।
  • अप्रत्यक्ष रूप से 1977 के बाद पिछड़े वर्गों की भलाई का मुद्दा भारतीय राजनीति पर हावी होना शुरू हुआ। 1977 के चुनाव परिणामों पर पिछड़ी जातियों के कदम पर असर पड़ा, खासकर उत्तर भारत में।
  •  इस दौर में एक और महत्त्वपूर्ण मामला संसदीय लोकतन्त्र में जन- आंदोलन की भूमिका और उसकी सीमा को लेकर उठा स्पष्ट ही इस दौर में संस्था आधारित लोकतन्त्र में तनाव नजर आया। इस तनाव का एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि हमारी दलीय प्रणाली जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम साबित नहीं हुई।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

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JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Jharkhand Board Class 12 Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना InText Questions and Answers

पृष्ठ 83

प्रश्न 1.
फ्रांस और कनाडा में ऐसी सूरत कायम हो, तो वहाँ कोई भी लोकतंत्र के असफल होने अथवा देश के टूटने की बात नहीं कहता। हम ही आखिर लगातार इतने शक में क्यों पड़े रहते हैं?
उत्तर:
फ्रांस में लोकतंत्र 1792 में स्थापित हुआ जबकि कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र है, जिसमें सम्राट राज्य का प्रमुख होता है। कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र 1867 में बना। भारत 1947 में आजाद हुआ और उसी समय भारत में लोकतंत्र कायम हुआ। भारत में नया नया लोकतंत्र कायम हुआ था इसलिए इतनी विविधताओं वाले देश में लोकतंत्र के असफल होने या देश के टूटने का शक लगातार लगा रहता है।

पृष्ठ 86

प्रश्न 2.
इन्दिरा गाँधी के लिए स्थितियाँ सचमुच कठिन रही होंगी-पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में आखिर वे अकेली महिला थीं। ऊँचे पदों पर अपने देश में ज्यादा महिलाएँ क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनीं लेकिन प्रारम्भिक काल में उनको सिण्डीकेट और प्रभावशाली वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा अनेक चुनौतियाँ मिलीं, लेकिन पारिवारिक राजनीतिक विरासत और पर्याप्त राजनीतिक अनुभव के कारण उनको एक सामान्य महिला की अपेक्षा कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन भारत में ज्यादातर महिलाओं के समक्ष अनेक ऐसी चुनौतियाँ एवं समस्याएँ हैं जिनके कारण वे ऊँचे पदों पर नहीं आ पातीं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है। अधिकांश कानून पुरुषों द्वारा बनाए गए और महिलाओं को समाज में गैर- बराबरी का दर्जा दिया गया।
  2. लड़कों की तुलना में उनके जन्म और पालन-पोषण में नकारात्मक भेद-भाव किया जाता था।
  3. सती-प्रथा, बहुपत्नी विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, कन्या वध या भ्रूण हत्या, विधवा विवाह की मनाही, अशिक्षा आदि ने नारियों को समाज में पछाड़े रखा।
  4. भारत में पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता के कारण वे महिलाओं को सरकारी नौकरियाँ विशेषकर ऊँचे पदों पर नहीं देखना चाहते।
  5. शिक्षा के प्रचार- प्रसार, नारी जागृति तथा नारी सशक्तीकरण के कारण अब धीरे-धीरे देश के उच्च पदों पर महिलाएँ कार्य कर रही हैं, लेकिन अभी भी उनकी संख्या काफी कम है।

पृष्ठ 89

प्रश्न 3.
क्या आज गैर-कांग्रेसवाद प्रासंगिक है? क्या मौजूदा पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा ही तरीका अपनाया जा सकता है?
उत्तर:
गैर कांग्रेसवाद के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया थे और गैर-कांग्रेसवाद आज भी उतना प्रासंगिक है जितना 1960 के दशक में था। बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा तरीका अपनाया जा सकता है क्योंकि बंगाल में वाममोर्चा का एकाधिकार है जिसके कारण समाज में कुछ अलगाववादी तत्त्व सक्रिय हो गए हैं। इन सबको खत्म करने का ये तरीका कारगर हो सकता है।

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पृष्ठ 90

प्रश्न 4.
त्रिशंकु विधानसभा और गठबन्धन सरकार की इन बातों में नया क्या है? ऐसी बातें तो हम आए दिन सुनते रहते हैं।
उत्तर:
भारत में 1967 के चुनावों से गठबन्धन की राजनीति सामने आयी। त्रिशंकु विधानसभा और गठबंधन सरकार की घटना उन दिनों नई थी क्योंकि पहली बार चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था, इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। लेकिन वर्तमान समय में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बदल गया है। बहुदलीय व्यवस्था होने के कारण केन्द्र और राज्यों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता और त्रिशंकु विधान सभा या संसद का निर्माण हो रहा है। इसलिए आज गठबन्धन सरकार या त्रिशंकुं संसद आम बात हो गई है।

पृष्ठ 92

प्रश्न 5.
इसका मतलब यह है कि राज्य स्तर के नेता पहले के समय में भी ‘किंगमेकर’ थे और इसमें कोई नयी बात नहीं है। मैं तो सोचती थी कि ऐसा केवल 1990 के दशक में हुआ।
उत्तर:
पार्टी के ऐसे ताकतवर नेता जिनका पार्टी संगठन पर पूर्ण नियन्त्रण होता है उन्हें ‘किंगमेकर’ कहा जाता है प्रधानमन्त्री हो या मुख्यमन्त्री, इनकी नियुक्ति में इनकी विशेष भूमिका होती है। भारत में राज्य स्तर पर किंगमेकर्स की शुरुआत केवल 1990 के दशक में नहीं बल्कि इससे पहले भी इस प्रकार की स्थिति पायी जाती थी। भारत में पहले कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट के नाम से इंगित किया जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियन्त्रण था। मद्रास प्रान्त के कामराज, मुम्बई सिटी के एस.के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष इस संगठन में शामिल थे। लाल बहादुर शास्त्री एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमन्त्री पद पर आरूढ़ हुए।

पृष्ठ 96

प्रश्न 6.
गरीबी हटाओ का नारा तो अब से लगभग चालीस साल पहले दिया गया था। क्या यह नारा महज एक चुनावी छलावा था?
उत्तर:
गरीबी हटाओ का नारा श्रीमती गाँधी ने तत्कालीन समय व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दिया। उन्होंने विपक्षी गठबन्धन द्वारा दिये गये इन्दिरा हटाओ नारे के विपरीत लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने मशहूर नारे ‘गरीबी हटाओ’ के जरिए एक शक्ल प्रदान की। इन्दिरा गाँधी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि, ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी सम्पदा के परिसीमन, आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा प्रिवीपर्स की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया।

गरीबी हटाओ के नारे से श्रीमती गाँधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासियों, अल्पसंख्यक महिलाओं और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। लेकिन 1971 के भारत-पाक युद्ध और विश्व स्तर पर पैदा हुए तेल संकट के कारण गरीबी हटाओ का नारा कमजोर पड़ गया। 1971 में इन्दिरा गाँधी द्वारा दिया गया यह नारा महज पाँच साल के अन्दर ही असफल हो गया और 1977 में इन्दिरा गांधी को ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार यह नारा महज एक चुनावी छलावा साबित हुआ।

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पृष्ठ 99

प्रश्न 7.
यह तो कुछ ऐसा ही है कि कोई मकान की बुनियाद और छत बदल दे फिर भी कहे कि मकान वही है। पुरानी और नयी कांग्रेस में कौनसी चीज समान थी?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस के विभाजन तथा कामराज योजना के तहत कांग्रेस पार्टी की पुनर्स्थापना करने का प्रयास किया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और उनके साथ अन्य युवा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। यह पार्टी पूर्णतः अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर आश्रित थी। पुरानी कांग्रेस की तुलना में इसका सांगठनिक ढाँचा कमजोर था। अब इस पार्टी के भीतर कई गुट नहीं थे। अर्थात् अब यह कांग्रेस विभिन्न मतों और हितों को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी। इस प्रकार इन्दिरा कांग्रेस के बारे में यह कहा जा सकता है कि इसकी बुनियाद और छत बदल दी गई थी, लेकिन नाम वही था। पुरानी और नई कांग्रेस में एक बात समान थी कि दोनों को ही लोकप्रियता में समान स्थान प्राप्त था। पार्टी के सर्वोच्च नेता पर आश्रितता की नीति में भी कोई परिवर्तन नहीं आया तथा कांग्रेस की मूल विचारधारा में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।

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प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें:

(क) सिंडिकेट (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ख) दल-बदल (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(ग) नारा (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।

उत्तर:

(क) सिंडिकेट (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।
(ख) दल-बदल (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ग) नारा (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है?
(क) जय जवान, जय किसान
(ख) इन्दिरा हटाओ
(ग) गरीबी हटाओ।
उत्तर:
(क) लालबहादुर शास्त्री
(ख) विपक्षी गठबंधन
(ग) श्रीमती इन्दिरा गाँधी।

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प्रश्न 4.
1971 के ‘ग्रैंड अलायंस’ के बारे में कौनसा कथन ठीक है?
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) लाभ – पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से पार्टी में एकता और अनुशासन की भावना का विकास होगा। हानि – इससे एक व्यक्ति की तानाशाही या निरंकुशता स्थापित होने का खतरा बढ़ जाता है।

(ख) लाभ – मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से यह लाभ होगा कि इससे अधिकांश की राय का पता चलेगा तथा पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। हानि – बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की उचित बात की अवहेलना की सम्भावना बनी रहेगी। (ग) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रख सकेगा। यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक तथा निष्पक्ष है। हानि – गुप्त मतदान में क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।

(घ) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सलाह का विशेष लाभ होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के पास अनुभव होता है तथा सभी सदस्य उनका आदर करते हैं। हानि – वरिष्ठ एवं अनुभवी व्यक्ति नये विचारों एवं मूल्यों को अपनाने से कतराते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे / किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
(कं) इसको कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस के पास अनेक वरिष्ठ और करिश्माई नेता थे

(ख) यह कांग्रेस पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस दो गुटों में बँटती जा रही थी युवा तुर्क और सिंडिकेट युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा) के बीच आपसी फूट के कारण कांग्रेस पार्टी को 1967 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।

(ग) 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी. एम. के. जैसे दल अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक दलों के रूप में उभरे जिससे कांग्रेस प्रभाव व विस्तार क्षेत्र में कमी आयी तथा कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच पूर्णरूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रान्तों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर-कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद के कारण बहुत जल्दी ही आन्तरिक फूट कालान्तर में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था।

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प्रश्न 7.
1970 के दशक में इन्दिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर:
1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के कारण – 1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
1. करिश्मावादी नेता:
इन्दिरा गाँधी कांग्रेस पार्टी की करिश्मावादी नेता थीं। वह भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री की पुत्री थीं और उन्होंने स्वयं को गाँधी-नेहरू परिवार का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी बताया। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुईं।

2. प्रगतिशील कार्यक्रमों की घोषणा:
इन्दिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. गिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव जिता कर लाना आदि ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया ।

3. कुशल एवं साहसिक चुनावी रणनीति:
इंदिरा गाँधी ने एक साधारण से सत्ता संघर्ष को विचारधारात्मक संघर्ष में बदल दिया । उन्होंने अपनी वामपंथी नीतियों की घोषणा कर जनता को यह दर्शाने में सफलता पाई कि कांग्रेस का सिंडीकेट धड़ा इन नीतियों के मार्ग में बाधाएँ डाल रहा है। चुनावों में श्रीमती गाँधी को इसका लाभ मिला।

4. भूमि सुधार कानूनों का क्रियान्वयन:
श्रीमती गाँधी ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त अभियान चलाया तथा उन्होंने भू-परिसीमन के कुछ और कानून भी बनाए। जिसका प्रभाव चुनाव में उनके पक्ष में गया।

प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के सन्दर्भ में सिंडिकेट का क्या अर्थ है? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
सिंडिकेट का अर्थ- कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को एक अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट के नाम से पुकारा जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर अधिकार एवं नियन्त्रण था। सिंडिकेट के अगुआ के. कामराज थे। इसमें विभिन्न प्रान्तों के ताकतवर नेता जैसे बम्बई सिटी (अब मुम्बई) के एस. के. पाटिल, मैसूर ( अब कर्नाटक) के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। भूमिका – इन्दिरा गाँधी के पहले मन्त्रिमण्डल में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही।

इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस का विभाजन होने के बाद सिंडिकेट के नेता कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में ही रहे । चूँकि इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही, इसलिए ये ताकतवर नेता 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई? कांग्रेस के 1969 के विभाजन के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों का परीक्षण कीजिए।
अथवा
1969 में कांग्रेस में विभाजन के क्या कारण थे?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन या टूट के कारण 1969 में कांग्रेस के विभाजन एवं टूट के निम्नलिखित कारण थे:

  1. दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं के समर्थकों के मध्य कलह: 1967 के चौथे आम चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद कांग्रेस के कुछ नेता दक्षिणपंथी विचारधारा वालों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे और कुछ वामपंथी विचारधारा वाले दलों के साथ। कांग्रेस के नेताओं की यह कलह उसके विभाजन का मुख्य कारण बनी।
  2. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन को लेकर मतभेद: 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस द्वारा समर्थित उम्मीदवार एन. संजीव रेड्डी को श्रीमती गाँधी व उनके समर्थकों ने मत न देकर एक स्वतन्त्र उम्मीदवार वी. वी. गिरि को समर्थन दिया। जिससे चुनाव में वी.वी. गिरि जीत गये। यह घटना कांग्रेस पार्टी के विभाजन का प्रमुख कारण बनी।
  3. युवा तुर्क एवं सिंडिकेट के बीच कलह: 1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन का एक कारण युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा ) के बीच होने वाली कलह भी रही।
  4. वित्त विभाग, मोरारजी देसाई से वापस लेना: श्रीमती गाँधी की मोरारजी देसाई से वित्त विभाग को वापस लेने तथा बैंक राष्ट्रीयकरण के प्रस्ताव को मन्त्रिमण्डल में सर्वसम्मति से पारित कर देने की कार्यवाही ने भी कांग्रेस विभाजन को मुखरित किया।
  5. सिंडीकेट द्वारा श्रीमती गाँधी को पद से हटाने का प्रयास: 1969 में कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार के चुनाव हार जाने के बाद सिंडीकेट ने प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को पद से हटाने का प्रयास किया परन्तु वे इसमें सफल न हो सके। उपर्युक्त घटनाओं के कारण कांग्रेस में आन्तरिक कलह इस कदर बढ़ गया कि नवम्बर, 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतान्त्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं- 1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इन्दिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?
उत्तर:
(क) जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय लोकतान्त्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेता और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में कार्य करती थी।

(ख) लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सत्तर के दशक में कांग्रेस की सर्वोच्च नेता श्रीमती इन्दिरा गाँधी एक अधिनायकवादी नेता थीं। उन्होंने मनमाने ढंग से मन्त्रिमण्डल और दल का गठन किया तथा पार्टी में विचार-विमर्श प्रायः मर गया।

(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के सामने आये। 1977 के चुनावों में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।

कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना JAC Class 12 Political Science Notes

→ पण्डित नेहरू के शासन काल में देश के सभी भागों में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व बना रहा तथा कोई भी राजनीतिक पार्टी कांग्रेसी वर्चस्व को चुनौती देने में सक्षम नहीं थी। लेकिन नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होने लगीं।

→ राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती:
राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती मई, 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुई जिसे लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमन्त्री बनने के साथ ही हल कर लिया गया। शास्त्री 1964 1966 तक प्रधानमंत्री रहे। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शास्त्रीजी के निधन के उपरान्त फिर राजनीतिक उत्तराधिकार का मामला उठा। लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी को देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री और तीसरा प्रधानमन्त्री बनने का अवसर मिला । उन्होंने अपने प्रतियोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई को पराजित किया। इन्दिरा गाँधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक प्रधानमन्त्री पद पर रहीं। 1984 में उनकी हत्या कर दी गई।

→ चौथा आम चुनाव 1967:
भारतीय चुनावी राजनीति के इतिहास में 1967 के वर्ष को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। 1952 के बाद से पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का जो दबदबा कायम था वह 1967 के चुनावों में समाप्त हो गया।

→ चुनावों का सन्दर्भ:
1960 के दशक में अनेक कारणों से देश गम्भीर आर्थिक संकट में था। आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई, खाद्यान्न की कमी तथा बढ़ती बेरोजगारी से लोगों की स्थिति बदतर हो गई और लोग सरकार के विरोध में उतर आये। कांग्रेस सरकार इसे भाँप नहीं सकी। मार्क्सवादी समाजवादी दल से अलग हुए मार्क्सवादी-लेनिनवादी गुट ने सशस्त्र कृषक विद्रोह का नेतृत्व किया तथा किसानों को संगठित किया। तीसरे, इस काल में गम्भीर साम्प्रदायिक दंगे भी हुए।

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→ गैर-कांग्रेसवाद:
कांग्रेस विरोधी वोटों को चुनाव में बंटने से रोकने के लिए सभी विरोधी दलों ने एकजुट होकर सभी राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया जिसे राममनोहर लोहिया ने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नारा दिया।

चुनाव का जनादेश तथा गठबन्धन सरकारें: व्यापक जन- असन्तोष और राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इस माहौल में 1967 के चौथे आम चुनाव हुए। इन चुनावों को कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में तो बहुमत मिल गया लेकिन उसकी सीटों की संख्या में भारी गिरावट आयी। सात राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। 2 अन्य राज्यों में भी दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। मद्रास में डी.एम. के. ने सरकार बनायी तथा अन्य 8 राज्यों में गठबन्धन की सरकारें बनीं।

→ दल – बदल: 1967 से देश में राजनीति दल-बदल और ‘ आया राम-गया राम’ की राजनीति शुरू हुई, जिसकी वजह से भारतीय लोकतन्त्र को अस्थायी रूप से गहरा आघात लगा। कांग्रेस सिंडिकेट और इंडिकेट या पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस के नाम से विभाजित हो गयी।

→ कांग्रेस में विभाजन:
1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया, जिसके कई कारण थे, जैसे- दक्षिणपंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद, युवा तुर्क एवं सिंडीकेट के बीच कलह तथा मोरारजी से वित्त विभाग वापस लेना इत्यादि।

→ इंदिरा बनाम सिंडिकेट:
इंदिरा गाँधी को असली चुनौती विपक्ष से नहीं अपितु अपनी पार्टी के भीतर से मिली। उन्हें सिंडिकेट से निपटना पड़ा। ‘सिंडिकेट’ कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। इसके अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। ‘सिंडिकेट’ ने इंदिरा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी लेकिन इसके विपरीत इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का मुकाम बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे और बड़ी सावधानी से उन्होंने सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया।

इस तरह इंदिरा गाँधी ने दो चुनौतियों का सामना किया। उन्हें ‘सिंडिकेट’ के प्रभाव से स्वतंत्र अपना मुकाम बनाया और 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने जो जमीन खोयी थी उसे हासिल किया। 1967 में कांग्रेस कार्यसमिति ने दस सूत्री कार्यक्रम अपनाया। इस कार्यक्रम में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा के राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के परिसीमन, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देने के प्रावधान शामिल थे।

→ राष्ट्रपति पद का चुनाव, 1969:
सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गाँधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया। इंदिरा गाँधी ने ऐसे समय में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें।

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→ 1971 का चुनाव और कांग्रेस का पुनर्स्थापन:
1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद यद्यपि इन्दिरा गाँधी की सरकार अल्पमत में आ गयी थी, लेकिन वह डी. एम. के. तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से टिकी रही। अब श्रीमती गाँधी की सरकार ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन, भू-परिसीमन के कानून, बैंक राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवी पर्स की समाप्ति आदि के द्वारा अपना समाजवादी रंग पेश किया तथा 1970 में लोकसभा भंग कर 1971 में चुनाव कराएं। 1971 के चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गाँधी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जीत के कई कारण थे, जैसे- श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व, समाजवादी नीतियाँ, कांग्रेसी दल पर श्रीमती गाँधी की पकड़, श्रीमती गाँधी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण तथा गरीबी हटाओ का नारा। 1971 के चुनावों में जहाँ श्रीमती गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया, वहीं उनके विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया, जिसे मतदाताओं ने पसन्द नहीं किया तथा श्रीमती गाँधी के पक्ष में मतदान किया।

→ कांग्रेस की पुनर्स्थापना:
1971 के लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य संकट उठ खड़ा हुआ। 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे को लेकर युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना। इन घटनाओं से इन्दिरा गाँधी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। विपक्ष के नेताओं तक ने उसके राज्य कौशल की प्रशंसा की। 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें गरीबों, वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा गया। पार्टी के अन्दर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश न बची। कांग्रेस को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ राज्य स्तर के चुनावों में भी भारी सफलता प्राप्त हुई।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Jharkhand Board Class 12 History एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 171

प्रश्न 1.
मैकेन्जी और उनके देशज सूचनादाताओं को चित्रकार ने किस प्रकार चित्रित किया है? उनके तथा उनके सूचनादाताओं के विषय में दर्शकों पर किस प्रकार के विचार डालने का प्रयास किया गया है?
उत्तर:
दिए गए चित्र में कॉलिन मैकेन्जी तथा उनके सहायकों को दर्शाया गया है। यह चित्र, चित्रकार थॉमस हिकी द्वारा बनाए गए तैलचित्र का किसी अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाया गया प्रतिरूप है। इस चित्र में मैकेन्जी को ब्रिटिश पहनावे में दिखाया गया है। मैकेन्जी के बायीं ओर दूरबीन थामे उनका चपरासी स्निाजी और दायीं ओर उनके ब्राह्मण सहायक हैं। ब्राह्मण सहायकों में एक जैन पंडित तथा दूसरा तेलुगू ब्राह्मण है। इस चित्र द्वारा दर्शकों पर यह प्रभाव डालने की कोशिश की गई है कि मैकेन्जी एक अभियन्ता, सर्वेक्षक तथा मानचित्रकार था। स्थानीय लोगों के साथ उसका यह चित्र यह दर्शाता है कि उसने भारतीय इतिहास से सम्बन्धित तथ्यों का सर्वेक्षण करने की कोशिश की है।

पृष्ठ संख्या 173

प्रश्न 2.
आपके विचार में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय व्यापार को प्रोत्साहित करने के इच्छुक क्यों थे? उनके द्वारा किए गए विनिमयों से किन समूहों को लाभ पहुँचा होगा?
उत्तर:
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय निम्नलिखित कारणों से व्यापार को प्रोत्साहित करना चाहते थे-
(1) व्यापार से प्राप्त राजस्व राज्य की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता था।
(2) राजा अपनी सेना के लिए अच्छी नस्ल के शक्तिशाली घोड़े प्राप्त करना चाहता था।
(3) राजा अपने राज्य में घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चन्दन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का आयात बढ़ाना चाहता था । उपर्युक्त विनिमयों से राज्य, शासक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिल्पी वर्ग, विदेशी व्यापारी वर्ग, समृद्ध जनता आदि को लाभ पहुँचा होगा।

पृष्ठ संख्या 176

प्रश्न 3.
नक्शे (चित्र 7.4) पर बने तीन अंचलों को पहचानिए। मध्य भाग को ध्यान से देखिए क्या आप नदियों से जुड़ती हुई नहरों को देख सकते हैं? आप कितनी किलेबन्द दीवारों को देख सकते हैं? क्या धार्मिक केन्द्र किलेबन्द था?
उत्तर:
उपर्युक्त पृष्ठ पर बने विजयनगर के रेखाचित्र को देखने पर निम्नलिखित तीन अंचल दिखाई देते हैं –
(i) दक्षिण में किलेबन्द केन्द्रीय शाही भाग तथा शाही केन्द्र
(ii) हम्पी तथा पवित्र केन्द्र
(iii) उत्तर-पूर्व में स्थित अनेगंदी
यहाँ नदियाँ तथा उनसे जुड़ी नहरें तथा जलाशय देखे जा सकते हैं। किलेबन्द दीवारें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। धार्मिक केन्द्र किलेबन्द है।

पृष्ठ संख्या 176

प्रश्न 4.
क्या आप आज किसी शहर में ये अभिलक्षण देख सकते हैं? आपके विचार में पेस ने उद्यानों तथा जल स्त्रोतों को विशेष उल्लेख के लिए क्यों चुना?
उत्तर:
प्राचीन वास्तुकला के ऐसे अभिलक्षण नवीन शहरों में नहीं दिखाई देते, परन्तु प्राचीन शहरों में आज भी ऐसे अभिलक्षण शेष हैं नवीन शहरों के स्थापत्य में भी बाग-बगीचों, जलाशयों, पार्कों आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है। पेस आजकल की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित विजयनगर में मौजूद उद्यानों तथा जलस्रोतों को देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ इसलिए उसने उद्यानों तथा जलस्रोतों का उल्लेख विशेष रूप से किया।

पृष्ठ संख्या 178

प्रश्न 5.
इन दो (चित्र 7.6 तथा 7.7) प्रवेश द्वारों के बीच समानताओं तथा विभिन्नताओं का वर्णन कीजिए आपके विचार में विजयनगर के शासकों ने इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के तत्त्वों को क्यों अपनाया?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 178 पर दिए गए चित्र संख्या 76 तथा 77 के प्रवेश द्वारों पर ऊंचे शिखर बनाए गए हैं। परन्तु चित्र 77 में शिखर आयताकार है तथा 7.6 में शिखर गोलाकार है। चूँकि तत्कालीन समय में धीरे-धीरे इण्डो-इस्लामिक स्थापत्यकला का विकास हो रहा था; अतः विजयनगर के शासकों द्वारा भी इस स्थापत्य- कला का प्रयोग मन्दिरों में किया गया।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

पृष्ठ संख्या 179

प्रश्न 6.
आपके विचार में ये टुकड़े मूलतः किस प्रकार के बर्तनों का हिस्सा थे?
उत्तर:
चीनी मिट्टी से बने बर्तनों के ये टुकड़े सम्भवतः इस्लामी पच्चीकारी से बने मर्तबानों और अन्य घड़े जैसे बर्तनों का हिस्सा थे।

पृष्ठ संख्या 179

प्रश्न 7.
क्या इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के चारित्रिक तत्त्व विद्यमान हैं?
उत्तर:
चित्र को देखकर यह प्रतीत होता है कि इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामिक तत्त्व विद्यमान हैं।

पृष्ठ संख्या 180

प्रश्न 8.
क्या आप इन चित्रों (चित्र 7.11 तथा 7.12 ) के विषयों को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
इन चित्रों से सम्बन्धित विषय-वस्तु सम्भवतः इस प्रकार है –
(1) मोड़े को चारा खिलाना
(2) ऊँचे चबूतरे पर बैठे योगी के सामने नतमस्तक भक्त
(3) घोड़े की लगाम खींचता हुआ सेवक
(4) मृर्गों का शिकार करते हुए शिकारी
(5) पशुओं को हाँकता हुआ व्यक्ति
(6) एक योगी संत प्रवचन देता हुआ इत्यादि।

पृष्ठ संख्या 181

प्रश्न 9.
चित्र 7.13 तथा 7.15 की तुलना कीजिए तथा उन अभिलक्षणों की सूची बनाइए जो दोनों में हैं, और साथ ही उनकी भी जो इनमें से केवल एक में ही देखे जा सकते हैं। चित्र 7.14 में बनी मेहराब की तुलना चित्र 7.6 में बनी मेहराब से कीजिए कमल महल में नौ मीनारें थीं-बीच में एक ऊँची तथा आठ उसकी भुजाओं के साथ-साथ छायाचित्र तथा खड़े रेखाचित्र में आप कितनी कितनी मीनारें देख पाते हैं? यदि आप कमल महल का फिर से नामकरण करते तो इसे क्या कहते ?
उत्तर:
चित्र 7.13 तथा 7.15 में समान तत्त्व इस प्रकार हैं –
(1) दोनों में समान रूप के मेहराब दिखाई देते हैं।
(2) दोनों में एक समान सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं।
(3) दोनों में प्रथम तल की आकृति एकसमान दिखाई देती है।

असमानता चित्र 7.13 में छह मीनारें दिखाई देती हैं। चित्र 7.15 में पाँच मीनारें स्पष्ट दिखाई देती हैं। चित्र सं. 7.14 में बनी मेहराब की तुलना 7.14 चित्र संख्या में मेहराब का सूक्ष्म चित्रण किया गया है, जिससे यह अधिक सुन्दर तथा कलात्मक प्रतीत होता है। चित्र 76 में बनी मेहराब में कलात्मक कार्य स्पष्ट नहीं है। यदि मैं फिर से इस भवन का नामकरण करता तो मैं इतने उत्कृष्ट और सुन्दर भवन के निर्माता के नाम पर इसका नाम कृष्ण महल रखता।

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प्रश्न 10.
चित्र 7.16 (क) तथा 7.16 (ख) की तुलना चित्र 7.17 से कीजिए प्रत्येक में दिखाई देने वाले अभिलक्षणों की सूची बनाइए क्या आपको लगता है कि ये वास्तव में हाथियों के अस्तबल थे?
उत्तर:
दोनों चित्रों में तुलना के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –
(1) चित्र 7.16 (क) में अस्तबल का सम्पूर्ण क्षेत्र दिखाया गया है।
(2) चित्र 7.16 (ख) में वास्तविक कक्ष अथवा
खाली स्थान का रेखाचित्र बनाया गया है। इन चित्रों में विशालकाय दरवाजों तथा तत्कालीन समय युद्ध में हाथियों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भवन हाथी- खाना यानी कि हाथियों का अस्तबल रहा हो।

पृष्ठ संख्या 183

प्रश्न 11.
क्या आप नृत्य के दृश्यांशों को पहचान सकती हैं? आपके विचार में हाथियों और घोड़ों को पटलों पर क्यों चित्रित किया गया था?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.18 से सम्बन्धित है। यहाँ नृत्य के प्रमुख दृश्य इस प्रकार हैं –
(1) नृत्य करते विभिन्न पुरुष
(2) नृत्य करती विभिन्न महिलाएँ
(3) नृत्य-संगीत में विभिन्न वाद्य यन्त्रों का प्रयोग जैसे मृदंग, ढोल, तुरही आदि। इस चित्र में हाथियों तथा घोड़ों को पृथक् पृथक् पटलों पर इसलिए दिखाया गया है क्योंकि यहाँ पाँचों खानों को अलग-अलग दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 183 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
नायकों ने विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्पराओं को जारी क्यों रखा?
उत्तर:
विजयनगर शहर पर आक्रमण के पश्चात् विजयनगर की कई संरचनाएँ विनष्ट हो गई थीं, परन्तु नायकों ने महलनुमा संरचनाओं के निर्माण की परम्परा को जारी रखा। इनमें से कई भवन आज भी मौजूद हैं। विजयनगर राज्य के सेना प्रमुख नायक कहलाते थे। वे भी राजाओं की भाँति साधन-सम्पन्न, समृद्ध तथा शक्तिशाली थे।

उन्होंने भी अपनी शक्ति प्रतिष्ठा तथा गौरव का प्रदर्शन करने के लिए अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया और विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्परा को जारी रखा। वे दुर्गों तथा मन्दिरों आदि का निर्माण कर जनसाधारण की लोकप्रियता को प्राप्त करने के लिए भी लालायित रहते थे इसलिए उन्होंने अनेक दुर्गों तथा मन्दिरों का निर्माण करवाया। मदुराई के नायकों द्वारा बनवाया गया एक गोपुरम उल्लेखनीय है।

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पृष्ठ संख्या 185

प्रश्न 13.
नक्शे में दिए गए स्केल का प्रयोग कर मुख्य गोपुरम् से केन्द्रीय देवालय की दूरी नापिए जलाशय से देवालय तक जाने के लिए सबसे आसान मार्ग कौनसा रहा होगा?
उत्तर:
(1) पूर्वी प्रवेश द्वार अथवा गोपुरम् से मुख्य देवालय की दूरी लगभग 450 मीटर है।
(2) जलाशय से देवालय तक जाने का सबसे आसान मार्ग देवालय का उत्तर-पश्चिमी द्वार है।

पृष्ठ संख्या 186

प्रश्न 14.
स्तम्भ पर आप जो देख रहे हैं, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-स्तम्भ को देखने पर इसके दो भाग क्रमश: दायें और बायें भाग दिखाई दे रहे हैं। बायें भाग पर अलंकृत मयूर, हाथ में फरसा लिए हुए एक व्यक्ति, ढोल बजाते हुए तथा नृत्य करते हुए मनुष्य दिखाई दे रहे हैं। दायें भाग पर अलंकृत जानवर सिंह आकृति एवं देवाकृति तथा हाथी की आकृति दिखाई दे रही हैं दायें भाग में अधिक जटिल उत्कीर्णन है।

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प्रश्न 15.
क्या आपको लगता है कि वास्तव में इस प्रकार के रथ बनाए जाते होंगे ?
उत्तर:
चित्र संख्या 7.24 में विट्ठल मन्दिर में रथ के आकार का एक मन्दिर दर्शाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है। कि वास्तव में इस प्रकार के रथ नहीं बनाए जाते थे।

पृष्ठ संख्या 188 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
आनुष्ठानिक स्थापत्य की पूर्ववर्ती परम्पराओं को विजयनगर के शासकों ने कैसे और क्यों अपनाया तथा रूपान्तरित किया?
उत्तर:
विजयनगर के शासकों ने पूर्वकालिक परम्पराओं को अपनाया और उनमें नवीनता का समावेश किया और उन्हें रूपान्तरित किया। गोपुरम और मण्डप – अब राजकीय प्रतिकृति मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रदर्शित की जाने लगीं और राजा की मन्दिरों की यात्राओं को महत्त्वपूर्ण राजकीय अवसर माना जाने लगा जिन पर साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नायक भी उनके साथ जाते थे अब विशाल गोपुरम का निर्माण किया जाने लगा। गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवस्थलों के चारों ओर बने थे।

विरुपाक्ष मन्दिर इस मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है। इन परिवर्धनों के परिणामस्वरूप केन्द्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे भाग तक सीमित रह गया था। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ, संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने और कुछ अन्य का प्रयोग देवी-देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था।

विट्ठल मन्दिर यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं इस देवता की पूजा को कर्नाटक में शुरू करना उन माध्यमों का प्रतीक है जिनसे एक सामाजिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परम्पराओं को आत्मसात किया अन्य मन्दिरों की भाँति, इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। रथ गलियाँ- मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 17.
अंग्रेजी वर्णमाला का कौनसा अक्षर प्रयोग नहीं किया गया था? मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए किसी एक छोटे वर्ग की लम्बाई नापिए उत्तर – यहाँ अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर ‘I’ का प्रयोग नहीं किया गया है। मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए वर्ग ‘M’ की लम्बाई 4 किमी. प्राप्त होती है।

पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 18.
इस मानचित्र में कौनसा पैमाना प्रयोग किया गया है ?
उत्तर:
इस मानचित्र में वर्ग पैमाने का प्रयोग किया गया है।

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प्रश्न 19.
किसी एक मन्दिर को पहचानिए दीवारों, एक केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले रास्तों के अवशेषों को खोजिए। मानचित्र पर उन वर्गों को नाम दीजिए जिनमें मन्दिर का नक्शा स्थित है।
उत्तर:
(1) वर्ग H में एक केन्द्रीय मन्दिर स्थित है।
(2) दीवारों, केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले मार्ग हेतु चित्र 730 को देखने पर रास्तों के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
(3) वर्ग CHJ में एक केन्द्रीय मन्दिर का नक्शा स्थित है।

पृष्ठ संख्या 190

प्रश्न 20.
गोपुरम्, सभागारों, स्तम्भावलियों तथा केन्द्रीय देवालय को पहचानिए बाहरी प्रवेश द्वार से केन्द्रीय देवलय तक पहुँचने के लिए आप किन भागों से होकर गुजरेंगे?
उत्तर:
यह प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.30 से सम्बन्धित है। इसमें केंद्रीय देवालय का भाग (A) से, गोपुरम् (H) से तथा (J) (I) (C) से सभागारों को दर्शाया गया है। बाहरी मार्गों से केन्द्रीय देवालय तक पहुँचने हेतु निम्न मार्गों का प्रयोग किया जाएगा.– (H) मार्ग जो उत्तर की ओर बना है। (F) मार्ग जो पूर्व की ओर स्थित है (E) मार्ग पश्चिम की ओर, तथा (G) मार्ग गोपुरम् के सामने है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100-150 शब्दों में दीजिए –

प्रश्न 1.
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रही?
अथवा
हम्पी की खोज की कहानी पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हम्पी की खोज कैसे हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन की पद्धतियाँ –
(1) हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियन्ता तथा पुराविद् कर्नल कॉलिन मैकेन्जी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। कर्नल मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनकी प्रारम्भिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर तथा पंपादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।

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(2) कालान्तर में 1856 ई. से छायाचित्रकारों ने यहाँ के भवनों के चित्र संकलित करने शुरू किये जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन करने में सफल हुए।

(3) 1836 ई. से ही अभिलेखकत्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से अनेक दर्जन अभिलेखों का संग्रह करना शुरू कर दिया था।

(4) इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल तथा संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया ताकि विजयनगर शहर और साम्राज्य के इतिहास का पुनर्निर्माण किया जा सके।

(5) हमारे अनुसार ये पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों के द्वारा प्रदान की गई जानकारी की पर्याप्त सीमा तक पूरक सिद्ध हुई।

प्रश्न 2.
विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
अथवा
विजयनगर कालीन सिंचाई व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
(1) विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड से होती थी। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भूदृश्य रमणीय ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है जो शहर को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन पहाड़ियों से कई जल- धाराएँ आकर नदी में मिलती हैं।

(2) हौजों का निर्माण लगभग सभी जल धाराओं के साथ-साथ बाँध बना कर भिन्न-भिन्न आकारों के हौज बनाए गए थे। चूंकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्कं क्षेत्रों में से एक था, इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के लिए व्यापक प्रबन्ध करना आवश्यक था। यहाँ के सबसे महत्त्वपूर्ण जलाशय कमलपुरम का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ था। इस हौज के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से ‘राजकीय केन्द्र’ तक भी ले
जाया जाता था।

(3) हिरिया नहर – हिरिया नहर यहाँ की सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचना थी। इस नहर में तुंगभद्रा नदी पर बने बांध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली पाटी की सिंचाई करने में प्रयुक्त किया जाता था।

(4) अन्य जल के स्रोत सामान्य नगर निवासियों के लिए कुएँ, वर्षा के पानी वाले जलाशय तथा मन्दिरों के जलाशय जल के स्रोतों का कार्य करते थे।

प्रश्न 3.
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फायदे और नुकसान थे?
उत्तर:
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के फायदे –
(1) इससे शत्रु सेना को खाद्य सामग्री से वंचित करके उसे समर्पण के लिए बाध्य किया जा सकता था।
(2) शत्रु सेना खाद्य सामग्री को क्षति नहीं पहुँचा सकती थी।
(3) कई बार शत्रु की घेराबन्दी कई महीनों और कभी-कभी वर्षों तक जारी रहती थी ऐसी संकटपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए शासकों द्वारा किलेबन्द क्षेत्रों के अन्दर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाया जाता था।
(4) विजयनगर के शासकों ने किलेबन्द क्षेत्र में पानी पहुँचाने की उत्तम व्यवस्था की थी। इससे खेतों की सिंचाई भली प्रकार से की जा सकती थी। था।
(5) किलेबन्द कृषि क्षेत्र जंगली जानवरों से सुरक्षित शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के नुकसान –
(1) यह व्यवस्था बहुत महँगी थी तथा इसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ती थी।
(2) इस व्यवस्था में किसानों को अनेक कठिनाइयों एवं असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। शत्रु सेना द्वारा घेरावन्दी होने पर किसानों के लिए बीज, उर्वरक, यन्त्र आदि की व्यवस्था करना अत्यन्त कठिन हो जाता था।

प्रश्न 4.
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से सम्बद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
अथवा
महानवमी के डिब्बा के अवसर पर आयोजित किन्हीं दो उत्सवों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
महानवमी डिब्बा’ विजयनगर शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से परिपूर्ण है। ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः महानवमी से सम्बद्ध थे, जो उत्तरी भारत में दशहरा, बंगाल में दुर्गा पूजा तथा प्रायद्वीपीय भारत में नवरात्रि अथवा महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी प्रतिष्ठा, शक्ति तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे। इस अवसर पर निम्नलिखित अनुष्ठान आयोजित किए जाते थे-

  • मूर्ति की पूजा
  • राज्य के अश्व की पूजा
  • भैंसों तथा अन्य जानवरों की बलि।

इस अवसर के प्रमुख आकर्षक थे-
(1) नृत्य
(2) कुश्ती की प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों एवं अधीनस्थ राजाओं द्वारा सम्राट और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे त्यौहार के अन्तिम दिन राजा अपनी और अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोहों में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा निश्चित कर भी लाते थे।

प्रश्न 5.
चित्र 7.33 विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य
स्तम्भ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) रेखाचित्र में अनेक फूलदार पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण किया गया है पशु-पक्षियों में मोर, बत्तख, घोड़ा आदि सम्मिलित हैं। उस समय मन्दिर विभिन्न प्रकार की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र होते थे। पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण सम्भवत: प्रवेशद्वार को सुन्दर और आकर्षक बनाने तथा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु किया गया था। इससे मन्दिर का निर्माण करने वाले शासकों की प्रकृति के प्रति रुचि, कलानुराग तथा धार्मिक निष्ठा का बोध होता है।

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(2) विभिन्न पशु-पक्षी, देवी-देवताओं के साथ वाहन के रूप में भी जुड़े हुए थे। इसलिए उन्हें देवी-देवताओं का वाहन मान कर पूजा जाता था।

(3) रेखाचित्र में मानव आकृतियों का भी चित्रण किया गया है। मानव आकृतियों में देवी देवता तथा संत पुरुष सम्मिलित हैं। स्तम्भ के ऊपरी भाग में एक स्त्री बैठी हुई है जिसके हाथ में फूल हैं। एक देवता के सिर पर घंटी, ताज तथा गले में मालाएँ हैं। वह अनेक प्रकार के आभूषण धारण किए हुए है। उसके एक हाथ में गदा है। एक योद्धा को शिवलिंग की पूजा करते हुए दिखाया गया हैं, इसके हाथ में धनुष है तथा वह नृत्य की मुद्रा में शिव को चल चढ़ा रहा है। निम्नलिखित पर लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250- 300 शब्दों में)-

प्रश्न 6.
‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं?
उत्तर:
शाही केन्द्र:
‘शाही केन्द्र’ अथवा ‘राजकीय केन्द्र’ बस्ती के दक्षिण- पश्चिमी भाग में स्थित था।
(1) बड़ी संरचनाएँ – शाही केन्द्र’ की लगभग तीसा संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं होती थीं। इन इमारतों तथा मन्दिरों के बीच एक अन्तर यह था कि मन्दिर पूर्ण रूप से राजगिरी से बने हुए थे जबकि अन्य इमारतें नष्ट की हुई वस्तुओं से बनाई गई थीं।

(2) राजा का भवन – राजकीय केन्द्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं के नाम भवनों के आकार तथा उनके कार्यों के आधार पर रखे गए हैं। ‘राजा का भवन’ नामक संरचना इस क्षेत्र में सबसे विशाल है, परन्तु इसके राजकीय आवास होने का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें प्राय: सभा मंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है।

(3) सभा मंडप सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छिद्र बने हुए हैं। इसमें इन स्तम्भों पर टिकी दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।

(4) महानवमी डिब्बा महानवमी डिब्बा विजयनगर शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णनों से परिपूर्ण है।

(5) ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान थे उत्तर भारत का दशहरा, बंगाल में दुर्गापूजन तथा प्रायद्वीपीय भारत के नवरात्रि या महानवमी।

(6) इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान- इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान निम्नलिखित थे-
(1) मूर्ति की पूजा
(2) राज्य के अश्व की पूजा तथा
(3) भैंसों और अन्य जानवरों की बलि।
(7) प्रमुख आकर्षण – इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे –
(1) नृत्य
(2) कुश्ती प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन प्रतीकात्मक अर्थ थे। विद्वानों की मान्यता है कि ‘महानवमी डिब्बा’ के चारों -ओर का स्थान सशस्त्र व्यक्तियों, स्त्रियों तथा बड़ी संख्या में जानवरों की शोभायात्रा के लिए पर्याप्त नहीं था राजकीय केन्द्र में स्थित अनेक और संरचनाओं की भाँति यह भी एक पहेली बना हुआ है।

(8) ‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, वे उस भाग का सही वर्णन करते ‘शाही केन्द्र’ प्राय: राजमहलों, किलों, राजदरबारों और राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र होता है। परन्तु इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे।

प्रश्न 7.
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
कमल महल का स्थापत्य:
‘कमल महल’ (लोटस महल) विजयनगर राज्य के ‘राजकीय केन्द्र’ के सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। इसे यह नाम उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने दिया था। इतिहासकार इस सम्बन्ध में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था फिर भी प्रसिद्ध पुराविद् कर्नल मैकेन्जी के द्वारा बनाए गए मानचित्र से यह सुझाव मिलता है कि यह परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था। ‘कमल महल’ के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यह महल अत्यन्त भव्य था और इसका स्थापत्य उच्चकोटि का था। हाथियों का अस्तबल कमल महल के निकट हाथियों का अस्तबल है।

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इसमें एक ही पंक्ति में अनेक कमरे बने हुए हैं। इस अस्तबल में बड़ी संख्या में हाथी रखे जाते थे। विजयनगर के शासक पराक्रमी और महत्त्वाकांक्षी थे। उस समय युद्धों में हाथियों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था। अतः विजयनगर के शासक हाथियों की उपयोगिता को देखते हुए हाथियों के अस्तबल बनवाते थे तथा उनकी देख-रेख पर विपुल धन खर्च करते थे। हाथियों के अस्तबल का स्थापत्य भी उच्चकोटि का था।

कमल महल और ‘हाथियों के अस्तबल’ को देखने से ज्ञात होता है कि इन इमारतों की स्थापत्यकला में इंडो- इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया है। विजयनगर के शासक कला-प्रेमी थे तथा उनकी स्थापत्य कला में गहरी रुचि थी। वे प्रजावत्सल शासक थे तथा उन्होंने विशाल महलों और सेना के काम में आने वाले भवनों का निर्माण करवाया। वे इनके निर्माण पर प्रचुर धन खर्च करते थे। इससे पता चलता है कि विजयनगर के शासकों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ थी तथा वे जन-कल्याण के कार्यों, सामारिक भवनों और राजमहलों के निर्माण में रुचि लेते थे। इन इमारतों को देखने से विजयनगर के शासकों की शक्ति, प्रतिष्ठा, कलाप्रियता, स्तवा तथा अधिराज्य के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 8.
स्थापत्य में कौन-कौनसी परम्पराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परम्पराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
अथवा
विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
स्थापत्य की परम्पराएँ विजयनगर के शासकों ने स्थापत्य की प्रचलित परम्पराओं को अपनाया। उन्होंने उन परम्पराओं में नवीनता का समावेश किया और उन्हें विकसित किया।
स्थापत्य में नवीन तत्त्वों का समावेश- विजयनगर के शासकों ने मन्दिर स्थापत्य में निम्नलिखित तत्वों का समावेश करवाया
(1) गोपुरम – विजयनगर में विशाल स्तर पर संरचनाएँ बनाई गई जो राजकीय सत्ता की प्रतीक थीं। इनका सबसे अच्छा उदाहरण रायगोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार थे। इनके सामने केन्द्रीय देवालयों की मीनारें बहुत ही छोटी जान पड़ती थीं ये लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत दे देते थे।

(2) मंडप तथा गलियारे अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देव स्थलों के चारों ओर बने थे।

(3) विरुपाक्ष मन्दिर विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे ऐसे स्तम्भों से सजाया गया था जो बारीकी से उत्कीर्णित थे। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है।

(4) मन्दिर के सभागारों का प्रयोग सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। कुछ सभागारों में देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं। अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने के लिए होता था।

(5) विठ्ठल मन्दिर – विठ्ठल मन्दिर विजयनगर राज्य का एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर था यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है।

(6) हजार राम मन्दिर – विजयनगर साम्राज्य के अत्यन्त भव्य एवं विशाल मन्दिरों में हजार राम मन्दिर की गिनती की जाती है। इसकी दीवारों पर उत्कीर्ण हाथी और घोड़ों की मूर्तियाँ अत्यन्तु सुन्दर और कलात्मक हैं।

(7) रथ गलियाँ मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मंडप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

(8) किलेबन्दियाँ शहर की किलेबन्दी की गई तथा सड़कें बनाई गई। किलेबन्दी द्वारा खेतों को भी घेरा गया। दुर्ग में प्रवेश के लिए प्रवेशद्वार थे। कला इतिहासकार इस शैली को ‘इंडो-इस्लामिक’ कहते हैं क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।

(9) सड़कें सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं।

(10) हौज, जलाशय और नहर विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति का स्त्रोत तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। नदी के आस-पास का भूदृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। लगभग सभी जलधाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए। इन महत्वपूर्ण होजों में कमलपुरम जलाशय’ उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 9.
अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
उत्तर:
विजयनगर के सामान्य लोगों का जीवन अध्याय के विभिन्न विवरणों से विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती
(1) आवासीय मुहल्ला यहाँ मुसलमानों का एक आवासीय मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट नमूने भी हैं। फिर भी उनकी स्थापत्य कला हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों की स्थापत्य कला से मिलती- जुलती है।

(2) सामान्य लोगों के आवास सोलहवीं शताब्दी |के पुर्तगाली यात्री बरबोसा ने सामान्य लोगों के आवास के बारे में लिखा है कि, “लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृद हैं, और व्यवसाय के आधार पर कई 7 खुले स्थानों वाली गलियों में व्यवस्थित हैं।”

(3) पूजा स्थल और छोटे मन्दिर क्षेत्र सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अनेक पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे जो विविध प्रकार के सम्प्रदायों से सम्बन्धित थे। ये पूजा स्थल और छोटे मन्दिर सम्भवत: विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे।

(4) सामान्य लोगों के पानी के स्रोत सर्वेक्षणों से यह भी पता चलता है कि कुएं, वर्षा के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

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(5) कृषि विजयनगर राज्य के लोगों का जीवन- निर्वाह करने का प्रमुख साधन कृषि था। यहाँ अनेक प्रकार के खाद्यानों, फलों तथा सब्जियों की खेती की जाती थी। नहरों, जलाशयों आदि से खेतों की सिंचाई की जाती थी। विजयनगर में कृषि क्षेत्रों को भी किलेबन्दी द्वारा घेरा गया था। इससे कृषक आक्रमणकारियों के आक्रमणों के भय से मुक्त होकर कृषि कार्य में संलग्न रहते थे। यहाँ गेहूँ, चावल, मकई, दाल, काले चना, जौ, सेम, मूंग, अंगूर, सन्तरे, नींबू, अनार, आम आदि की खेती की जाती थी।

(6) खान-पान यहाँ के सामान्य लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे। ये लोग गेहूं, जौ, चावल, दूध, दही, साग-सब्जी के अतिरिक्त मांस आदि का भी सेवन करते थे। नूनिज के अनुसार यहाँ के बाजारों में मांस बड़ी मात्रा में बिकता था। ब्राह्मण मांस नहीं खाते थे। सामान्य वर्ग के पुरुष धोती, कमीज, कुर्ता, टोपी अथवा पगड़ी पहनते थे तथा कन्धे पर एक दुपट्टा डालते थे। सामान्य वर्ग की स्वियों धोती और चोली पहनती थीं।

एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर JAC Class 12 History Notes

→ विजयनगर की स्थापना- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। 1565 में विजयनगर पर आक्रमण कर इसे खूब लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया।

→ हम्पी की खोज- 1800 ई. में कर्नल कालिन मैकेन्जी नामक एक अभियन्ता तथा पुराविद ने हम्पी के भग्नावशेषों की खोज की मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। 1836 से ही अभिलेखकर्त्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से कई दर्जन अभिलेखों को एकत्रित करना शुरू कर दिया था।

→ राय, नायक तथा सुल्तान – विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर तथा बुक्का द्वारा 1336 ई. में की गई थी। अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर के शासकों ने दक्कन के सुल्तानों तथा उड़ीसा के गजपति शासक से संघर्ष किया। विजयनगर के शासक अपने आपको राय कहते थे।

→ शासक और व्यापारी-चौदहवीं से सोलहवीं सदी तक के काल में युद्धकला शक्तिशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी, इसलिए प्रतिस्पद्ध राज्यों के लिए अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात बहुत महत्त्वपूर्ण था। यह व्यापार प्रारम्भ में अरब व्यापारियों द्वारा नियन्त्रित था। व्यापारियों के स्थानीय समूह भी इन विनिमयों में भाग लेते थे। 1498 में | पुर्तगाली भी व्यापारिक और सैनिक केन्द्र स्थापित करने का प्रयास करने लगे। तत्कालीन राजनीति में पुर्तगाली भी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरे। विजयनगर मसालों, वस्त्रों, रत्नों के अपने बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ की समृद्ध जनता रत्नों, आभूषणों आदि महंगी विदेशी वस्तुओं की माँग करती थी।

→ विजयनगर के शासक विजयनगर साम्राज्य का पहला राजवंश ‘संगम’ कहलाता था इस राजवंश ने 1485 तक शासन किया। सुलुवों ने संगम राजवंश को उखाड़ फेंका। ये सैनिक कमांडर थे। इन्होंने 1503 ई. तक शासन किया। इसके बाद तुलुव राजवंश की स्थापना हुई। कृष्णदेव राय तुलुव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।

→ कृष्णदेव राय – कृष्णदेव राय के शासन की प्रमुख विशेषता विजयनगर साम्राज्य का विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण था। उसने 1512 तक तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र रायचूर दोआब पर अधिकार कर लिया। उसने उड़ीसा के शासकों को पराजित किया और बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया। उसने अनेक भव्य मन्दिर बनवाये तथा मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ा। उसने नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना की।

→ अराविदु राजवंश – 1542 तक विजयनगर साम्राज्य में अराविदु राजवंश की सत्ता की स्थापना हुई। यह राजवंश सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्तारूढ़ बना रहा।

→ राक्षसी – तांगड़ी (तालीकोटा) का युद्ध – 1565 ई. में राक्षसी तांगड़ी (तालीकोटा) के युद्ध में बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर की सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। विजयी सेनाओं ने विजयनगर पर धावा बोलकर उसे खूब लूटा। कुछ ही वर्षों में यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।

→ राय तथा नायक – विजयनगर साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे, जो सामान्यतः किलों पर नियन्त्रण रखते थे तथा उनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे ये ‘नायक’ कहलाते थे। कई नायकों ने विजयनगर के शासकों की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था, परन्तु ये अवसर पाकर विद्रोह कर देते थे तथा इन्हें सैनिक कार्यवाही के द्वारा ही अधीनता में लाया जाता था।

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→ अमर नायक प्रणाली- अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। अमर नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय (शासक) द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे वे किसानों, शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू-राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे। वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे। अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे। राजा कभी-कभी उन्हें ‘एक 5 से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर उन पर अपना नियन्त्रण रखता था, परन्तु सत्रहवीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।

→ विजयनगर जल सम्पदा विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे चौकाने वाला तथ्य तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भू-दृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। यहाँ लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए थे।

इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में एक का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ जिसे आज ‘कमलपुरम जलाशय’ कहा जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचनाओं में एक हिरिया नहर को आज भी देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था।

→ किलेबन्दियाँ तथा सड़कें विजयनगर की एक विशाल किलेबन्दी थी जिसे दीवारों से घेरा गया था। पन्द्रहवीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकट ( कोजीकोड) भेजे गए दूत अब्दुररज्जाक ने दुर्गों की सात पंक्तियों का उल्लेख किया है। इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आस-पास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था। सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी। गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया था।

इस किलेबन्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था अब्दुररज्जाक के अनुसार “पहली, दूसरी और तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बगीचे तथा आवास हैं।” दूसरी किलेबन्दी नगरीय केन्द्र के आन्तरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी। तीसरी किलेबन्दी से शासकीय केन्द्र को घेरा गया था जिसमें महत्त्वपूर्ण इमारतों के प्रत्येक समूह को ऊँची दीवारों से घेरा गया था।

→ सुरक्षित प्रवेश द्वार दुर्ग में प्रवेश के लिए अच्छी तरह सुरक्षित प्रवेश द्वार थे, जो शहर को मुख्य सड़कों से जोड़ते थे प्रवेश द्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे प्रवेश द्वार पर बनी मेहराब और साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुम्बद तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं। कला इतिहासकार इस शैली को इंडो- इस्लामिक ( हिन्द-इस्लामी ) कहते हैं, क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।

→ सड़कें – सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मन्दिर के प्रवेश द्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाजार थे।

→ शहरी केन्द्र – पुरातत्वविदों ने कुछ स्थानों में परिष्कृत चीनी मिट्टी पाई है और उनका यह सुझाव है कि सम्भव है कि इन स्थानों में धनी व्यापारी रहते होंगे। यह मुस्लिम रिहायशी मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट कार्य हैं। फिर भी उनका स्थापत्य हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों के स्थापत्य से मिलता-जुलता है। क्षेत्र सर्वेक्षण संकेत करते हैं कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत से पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे, जो विभिन्न प्रकार के सम्प्रदायों के प्रचलन की ओर संकेत करते हैं। कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर-निवासियों के पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

→ राजकीय केन्द्र-राजकीय केन्द्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे। लगभग 30 संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं थीं।

→ महानवमी डिब्बा – ‘राजा का भवन’ नामक संरचना, अन्तः क्षेत्र में सबसे विशाल है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें सामान्यतः ‘सभामंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सभामंडप एक ऊँचा मंच है। जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।

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शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित ‘महानवमी डिब्बा’ एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11,000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है। साक्ष्यों से पता चलता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिन्दू त्यौहार; जैसे- दशहरा, दुर्गापूजा, नवरात्रि या महानवमी आदि के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे । इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी शक्ति प्रभाव तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।

→ लोटस (कमल) महल – राजकीय केन्द्र के सबसे सुन्दर भवनों में लोटस (कमल) महल है। इसका यह नामकरण उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने किया था। मैकेन्जी के अनुसार यह भवन परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।

→ राजकीय केन्द्र में मन्दिर – यद्यपि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केन्द्र में स्थित थे, परन्तु राजकीय केन्द्र में भी कई मन्दिर स्थित थे। इनमें ‘हजारराम मन्दिर’ अत्यन्त भव्य एवं दर्शनीय है। सम्भवतः इसका प्रयोग केवल राजा और उनके परिवार द्वारा किया जाता था। इसकी दीवारों पर बनाई गई पटल मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इनमें मन्दिर की आन्तरिक दीवारों पर उत्कीर्णित रामायण से लिए गए कुछ दृश्यांश सम्मिलित हैं।

→ धार्मिक केन्द्र तुंगभद्रा नदी के तट से लगा विजयनगर शहर का उत्तरी भाग पहाड़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष नामक देवता से विवाह के लिए तप किया था। विरुपाक्ष राज्य के संरक्षक देवता थे तथा शिव का एक रूप माने जाते थे।

→ धार्मिक केन्द्र में मन्दिर निर्माण धार्मिक क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लम्बा इतिहास रहा है। सामान्यतः शासक अपने आपको ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे। मन्दिर शिक्षा के केन्द्रों के रूप में भी कार्य करते थे । मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केन्द्रों के रूप में विकसित हुए ।

→ विजयनगर के स्थान का चयन- यह सम्भव है कि विजयनगर के स्थान का चयन वहाँ विरुपाक्ष तथा पम्पा देवी के मन्दिरों के अस्तित्व से प्रेरित था । विजयनगर के शासक भगवान् विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर प्रायः कन्नड़ लिपि में श्री विरुपाक्ष’ शब्द अंकित होता था। शासक देवताओं से अपने घनिष्ठ सम्बन्धों के प्रतीक के रूप में ‘हिन्दू सूरतराणा’ विरुद का प्रयोग करते थे। इसका शाब्दिक अर्थ हैं – ‘हिन्दू सुल्तान’

→ ‘गोपुरम’ और ‘मण्डप’ – राय गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार राजकीय सत्ता की प्रतीक संरचनाएँ थीं। ये प्रायः केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। ये सम्भवतः शासकों की शक्ति की याद भी दिलाते थे जो इतनी ऊँची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन, तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे। अन्य विशिष्ट संरचनाओं में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे उल्लेखनीय थे। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवालयों के चारों ओर बने थे।

→ विरुपाक्ष मन्दिर – विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे बारीकी से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। कृष्णदेव राय को ही पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं।

→ विट्ठल मन्दिर – यहाँ के प्रमुख देवता विट्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इसके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

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→ महलों, मन्दिरों तथा बाजारों का अंकन 1986 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली, इसके बाद 1980 के दशक के आरम्भ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से, विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारम्भ किया गया। लगभग 20 वर्षों के काल में सम्पूर्ण विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकट्ठा और संरक्षित करने का कार्य किया। इन सर्वेक्षणों से हजारों संरचनाओं के अंशों—छोटे देवस्थानों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक को पुनः उजागर किया गया।

उनका प्रलेखन भी किया गया। जॉन एम. फ्रिट्ज, जार्ज मिशेल तथा एम.एस. नागराज ने लिखा है कि, “विजयनगर के स्मारकों के उसके अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं-स्तम्भ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अन्दरुनी भाग तथा मीनारों की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है, जो प्लास्टर से सजाए और सम्भवतः चटकीले रंगों से चित्रित थे।” यद्यपि लकड़ी की संरचनाएँ अब नहीं हैं और केवल पत्थर की संरचनाएँ अस्तित्व में हैं। यात्रियों द्वारा छोड़े गए विवरण तत्कालीन गतिशील जीवन के कुछ आयामों को पुनर्निर्मित करने में सहायक हुए हैं।

→ पेस द्वारा कृष्णदेव राय का वर्णन पेस ने कृष्णदेव राय का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “मझला कद, गोरा रंग और अच्छी काठी, कुछ मोटा, राजा के चेहरे पर चेचक के दाग हैं।”

कालरेखा 1

महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन

लगभग 1200-1300 ईसवी दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206)
लगभग 1300-1400 ईसवी विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336); बहमनी राज्य की स्थापना (1347); जौनपुर, कश्मीर और मदुरई में सल्तनतें
लगभाग 1400-1500 ईसवी उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना (1435); गुजरात और मालबा की सल्तनतों की स्थापना; अहमदाबाद, बीजापुर तथा बरार सल्तनतों का उदय (1490)
लगभग 1500-1600 ईसवी पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर विजय (1510); बहमनी राज्य का विनाश; गोलकुंडा की सल्थनत का उदय (1518); बाबर द्वारा मुगल साप्राज्य की स्थापना (1526)

 

कालरेखा 2

विज्ययगगर की खोज व संरक्षण की मुखय घटनाएँ

1800 कॉलिन मैकेन्जी द्वारा विजयनगर की यात्रा
1856 अलेक्जैंडर ग्रनिलो द्वारा हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लेना
1876 पुरास्थल की मन्दिर की दीवारों के अभिलेखों का जे.एफ. फ्लीट द्वारा प्रलेखन आरम्भ
1902 जॉन मार्शल के अधीन संरक्षण कार्य आरम्भ
1986 हम्पी को यूनेस्को द्वारा ‘विश्व पुरातत्व स्थल’ घोषित किया जाना