JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. इस्तमरारी बन्दोबस्त सबसे पहले लागू किया गया –
(क) बंगाल में
(ख) मद्रास में
(ग) बम्बई में
(घ) उत्तरप्रदेश में
उत्तर:
(क) बंगाल में

2. इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया –
(क) 1794 में
(ख) 1792 में
(ग) 1793 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1792 में

3. ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किया जाता था–
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए
(ख) ताल्लुकदारों के लिए
(ग) जोतदारों के लिए
(प) रैयतदारों के लिए
उत्तर:
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए

4. बर्दवान में जमींदारी की नीलामी की गई थी, वर्ष
(क) 1798 में
(ख) 1797 में
(ग) 1897 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1797 में

5. बंगाल में किस गवर्नर जनरल ने इस्तमरारी बन्दोवस्त लागू किया.
(क) लार्ड डलहौजी ने
(ख) विलियम बैंटिक ने
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने
(घ) लार्ड एलिनवरो ने
उत्तर:
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने

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6. रैयत शब्द का प्रयोग अंग्रेजों ने किया –
(क) किसानों के लिए
(ख) जमींदारों के लिए
(ग) ताल्लुकदारों के लिए
(घ) राजाओं के लिए
उत्तर:
(क) किसानों के लिए

7. धनी किसानों के लिए जिस शब्द का प्रयोग होता था, वह था –
(क) फौजदार
(ख) जोतदार
(ग) ताल्लुकदार
(घ) फरमाबरदार
उत्तर:
(ख) जोतदार

8. जमींदार द्वारा राजस्व वसूलने वाला अधिकारी कहलाता थ –
(क) दामुला
(ख) अमला
(ग) आमूला
(घ) अमली
उत्तर:
(ख) अमला

9. घोर आर्थिक मंदी जिस सन् में आई, वह था –
(क) 1950
(ख) 1929
(ग) 1930
(घ) 1932
उत्तर:
(ख) 1929

10. बाहरी लोग को संथाल लोग क्या कहते थे?
(क) परदेशी
(ख) अंग्रेजी बाबू
(ग) दिकू
(घ) इनमें
उत्तर:
(ग) दिकू

11. संथालों का नेतृत्व किसने किया?
(क) सोदी
(ख) कान्हू
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों

12. बुकानन कौन था?
(क) ब्रिटिश एजेन्ट
(ग) यात्री
(ख) अंग्रेज अधिकारी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ब्रिटिश एजेन्ट

13. अमेरिका में गृह युद्ध कब आरम्भ हुआ?
(क) 1760 में
(ग) 1840 में
(ख) 1761 में
(घ) 1861 में
उत्तर:
(घ) 1861 में

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14. रेलों का युग प्रारम्भ होने से पहले कौनसा कस्बा दक्कन से आने वाली कपास के लिए संग्रह केन्द्र था ?
(क) मिर्जापुर
(ग) मद्रास
(ख) बम्बई
(घ) जयपुर
उत्तर:
(क) मिर्जापुर

15. दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई –
(क) 1870 में
(ख) 1875 में
(ग) 1878 में
(घ) 1980 में
उत्तर:
(ग) 1878 में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. ………………. “शब्द का प्रयोग अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था।
2. इस्तमरारी बंदोबस्त ……………… ने राजस्व की राशि निश्चित करने के लिए लागू की थी।
3. अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ……………… ब्रिटिश सेना का कमाण्डर था।
4. 1793 में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करते समय वहाँ का …………… कार्नवालिस था
5. …………… शब्द का प्रयोग अंग्रेजों के विवरणों में किसानों के लिए किया जाता था।
6. …………… का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास लाठी या डंडा हो।
उत्तर:
1 राजा
2. ईस्ट इण्डिया कम्पनी
3. कार्नवालिस
4. गवर्नर जनरल
5. रैयत
6. लाठियाल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त कब लागू हुआ?
उत्तर:
सन् 1793

प्रश्न 2.
अंग्रेजी विवरणों के अनुसार ‘रैयत’ शब्द का प्रयोग किनके लिए किया जाता था ?
उत्तर:
किसानों के लिए।

प्रश्न 3.
राजस्व इकट्ठा करने के समय जमींदार का जो अधिकारी गाँव में आता था, उसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
अमला।

प्रश्न 4.
बंगाल के धनी किसानों के वर्ग को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 5.
जोतदारों की जमीन का काफी बड़ा भाग किनके द्वारा जोता जाता था ?
उत्तर:
बटाईदारों द्वारा

प्रश्न 6.
जब राजस्व का भुगतान न किये जाने पर जमींदार की जमींदारी को नीलाम किया जाता था तो प्रायः उन जमीनों को कौन खरीद लेते थे?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 7.
1930 के दशक में अंततः जमींदारों का भट्ठा क्यों बैठ गया?
उत्तर:
1930 के दशक की घोर मंदी के कारण।

प्रश्न 8.
पहाड़िया जीवन का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
कुदाल।

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प्रश्न 9.
संथालों की शक्ति का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
हल

प्रश्न 10.
पहाड़िया लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
म खेती।

प्रश्न 11.
संधाल लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
स्थायी खेती।

प्रश्न 12.
1875 में पुणे के सूपा गाँव में हुआ किसानों का आन्दोलन किनके विरोध में था?
उत्तर:
साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरोध

प्रश्न 13.
साहूकार कौन होता था?
उत्तर:
साहूकार पैसा उधार देता था और व्यापार भी करता था।

प्रश्न 14.
दक्षिण के गाँवों में रैयतों ने किस सन् में बगावत की?
उत्तर:
सन् 1875 में।

प्रश्न 15.
इस्तमरारी बन्दोबस्त किन-किन के मध्य लागू किया गया ?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के जमींदारों के मध्य ।

प्रश्न 16.
1857 के गदर में बंगाल के किस राजा ने अंग्रेजों की मदद की थी ?
उत्तर:
बंगाल के बर्दवान के राजा मेहताबचन्द ने।

प्रश्न 17.
1930 की आर्थिक मंदी का जमींदारों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
इसके फलस्वरूप जमींदारों की दशा दयनीय हो गई।

प्रश्न 18.
रेलों का युग शुरू होने से पहले कपास का परिवहन कैसे होता था?
उत्तर:
नौकाओं, बैलगाड़ियों तथा जानवरों के द्वारा।

प्रश्न 19.
भारत में सर्वप्रथम औपनिवेशिक शासन कहाँ स्थापित हुआ?
उत्तर:
बंगाल में।

प्रश्न 20.
गाँवों में किनकी शक्ति जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी?
उत्तर:
जोतदारों की।

प्रश्न 21.
बंगाल के किस क्षेत्र में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे?
उत्तर:
उत्तरी बंगाल में।

प्रश्न 22.
बंगाल में जोतदार किन अन्य नामों से पुकारे जाते थे?
उत्तर:
‘हवलदार’, ‘गांटीदार’ तथा ‘मंडल’ के नामों

प्रश्न 23.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई थी?
उत्तर:
1813 ई. में ।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले संथालों का नेता कौन था?
उत्तर:
सिधू मांझी ।

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प्रश्न 25.
संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कब किया?
उत्तर:
1855-56 में।

प्रश्न 26.
मैनचेस्टर काटन कम्पनी कब और कहाँ स्थापित की गई ?
उत्तर:
1859 ई. में इंग्लैण्ड में

प्रश्न 27.
रेलों के विकास से पूर्व दक्कन से आने वाली कपास के लिए कौनसा शहर संग्रह केन्द्र था?
उत्तर:
मिर्जापुर।

प्रश्न 28.
ऋणदाता लोग देहात के किस प्रथागत मानक का उल्लंघन कर किसानों का शोषण कर रहे थे?
उत्तर;
ऋणदाता मूलधन से अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 29.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई ?
उत्तर:
सन् 1878 ई. में।

प्रश्न 30.
रेग्यूलेटिंग एक्ट कब पारित किया गया ?
उत्तर:
1773 ई. में ।

प्रश्न 31.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल की दीवानी कब प्राप्त की?
उत्तर:
सन् 1765 ई. में

प्रश्न 32.
रेग्यूलेटिंग एक्ट क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यकलापों को विनियमित करने वाला अधिनियम।

प्रश्न 33.
सन् 1862 तक ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था, उसका कितना भाग अकेले भारत से जाता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 34.
अमेरिका में गृह युद्ध का सूत्रपात कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1861 ई. में ।

प्रश्न 35.
जोतदारों की स्थिति क्या थी? वे जमींदारों से किस प्रकार प्रभावशाली होते थे?
उत्तर:
जोतदार बंगाल के धनी किसान थे। उनका ग्रामवासियों पर नियन्त्रण था और वे रैयत को अपने पक्ष में रखते थे।

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प्रश्न 36.
गाँवों में जोतदार के शक्तिशाली होने के कारण लिखिए।
अथवा
गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक क्यों थी ? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) जोतदार गाँवों में ही रहते थे, ग्रामवासियों पर नियंत्रण रखते थे।
(2) वे रैयत को अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।

प्रश्न 37.
जोतदार जमींदारों का किस प्रकार प्रतिरोध करते थे? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) जोतदार जमींदारों द्वारा गाँव की लगान बढ़ाने का विरोध करते थे
(2) वे जमींदार को राजस्व भुगतान में देरी करा देते थे।

प्रश्न 38.
पाँचवीं रिपोर्ट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी।

प्रश्न 39.
जमींदार किस प्रकार अपनी जमींदारियाँ बचा लेते थे? दो उदाहरण दीजिये ।
उत्तर:
(1) फर्जी बिक्री द्वारा
(2) अपनी जमींदारियों का कुछ हिस्सा महिलाओं को प्रदान करके।

प्रश्न 40.
1832 ई. तक किस भूमि को संथालों की भूमि के रूप में सीमांकित किया गया?
उत्तर:
दामिन-इ-कोह के रूप में सीमांकित भूमि को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 41.
दक्कन दंगा रिपोर्ट क्या थी ? इसके अनुसार रैयत विद्रोह का क्या कारण था ?
उत्तर:
दक्कन दंगा रिपोर्ट दक्कन के दंगों से सम्बन्धित रिपोर्ट थी रैयत विद्रोह का कारण ऋणदाताओं, साहूकारों न्पों की शोषण नीति थी।

प्रश्न 42.
झूम खेती किस बात पर निर्भर करती थी?
उत्तर:
झुम खेती नई जमीनें खोजने और भूमि की से प्राकृतिक उर्वरता का उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करती थी।

प्रश्न 43.
इस्तमरारी बन्दोबस्त कब एवं किस क्षेत्र में न्य लागू किया गया ?
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 में बंगाल में लागू किया गया।

प्रश्न 44.
कुदाल और हल किन लोगों के जीवन का प्रतीक माना जाता था?
उत्तर:
कुदाल’ पहाड़िया लोगों के जीवन का तथा ‘हल’ संथालों के जीवन का प्रतीक माना जाता था।

प्रश्न 45.
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास न का आयात कहाँ से किया जाता था?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास के समस्त आयात का 75% अमेरिका से किया जाता था।

प्रश्न 46.
रैयतवाड़ी क्या थी? इसे कहाँ लागू किया गया?
अथवा
बम्बई दक्कन में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई राजस्व प्रणाली का नाम बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी राजस्व की प्रणाली थी, जो कम्पनी सरकार तथा रैयत (किसानों) के बीच बम्बई दक्कन में लागू की गई थी।

प्रश्न 47.
दक्कन में किसानों का विद्रोह कब व कहाँ से शुरू हुआ?
उत्तर:
दक्कन में किसानों का विद्रोह 1875 में (आधुनिक पुणे जिले में) से शुरू हुआ।

प्रश्न 48.
‘दामिन-इ-कोह’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1832 में संथालों को स्थाई रूप से बसाने के लिए ‘दामिन-इ-कोह’ नामक एक भू-भाग निश्चित किया गया।

प्रश्न 49.
बुकानन कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत आया तथा 1794 से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया।

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प्रश्न 50.
पहाड़िया लोग कौन थे? वे अपना निर्वाह कैसे करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग राजमहल की पहाड़ियों में रहते थे तथा जंगलों की उपज से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 51.
संथाल कौन थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में बसे हुए थे। वे हलों द्वारा स्थायी कृषि करते थे।

प्रश्न 52.
संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये गए विद्रोह के कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संथालों को विद्रोह पर क्यों उतरना पड़ा? दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने संथालों की भूमि पर भारी कर लगा दिया।
(2) साहूकार लोग बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा रहे

प्रश्न 53.
1875 में साहूकारों के विरुद्ध रैयत द्वारा विद्रोह करने के अन्तर्गत किए गए दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत ने साहूकारों के बहीखाते जला दिए और ऋणबंध नष्ट कर दिये। (2) उन्होंने साहूकारों की अनाज की दुकानें लूट लीं।

प्रश्न 54.
रैयतवाड़ी प्रणाली की एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली के राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी।

प्रश्न 55.
बम्बई दक्कन में अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों के विद्रोह के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) किसानों से बहुत अधिक राजस्व वसूल किया जाता था
(2) उन्हें ब्याज की ऊँची दरों पर साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था।

प्रश्न 56.
ब्रिटिश काल में दक्कन में दंगा होने का मुख्य कारण बताइये।
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे।

प्रश्न 57.
किन दो कारणों से भारतीय दस्तकार बेकार हो गए?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन से तैयार माल मंगाना और कच्चा माल ब्रिटेन भेजना
(2) कपास के उत्पादन में कमी।

प्रश्न 58.
किन दो कारणों से भारतीय किसान दरिद्र हो गए?
उत्तर:
(1) किसानों पर भारी भूमि कर लगाना
(2) साहूकारों, व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण

प्रश्न 59.
अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न भागों में भू- राजस्व सम्बन्धी कौन-कौन सी तीन प्रणालियाँ प्रचलित क?
उत्तर:
(1) इस्तमरारी बन्दोबस्त
(2) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त
(3) महलवाड़ी बन्दोबस्त।

प्रश्न 60.
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को किस क्षेत्र में बसने की अनुमति प्रदान की थी?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को राजमहल की तलहटी में बसने की अनुमति प्रदान की थी।

प्रश्न 61.
जमीन के किस क्षेत्र को संथालों की भूमि घोषित किया गया?
उत्तर:
‘दामिन-इ-कोह’ को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 62.
पहाड़िया लोगों का क्या व्यवसाय था ?
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे।

प्रश्न 63.
संथाल लोग कौनसी फसलें उगाते थे?
उत्तर:
संथाल लोग चावल, कपास, सरसों, तम्बाकू आदि की फसलें उगाते थे।

प्रश्न 64.
1875 में रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह करने के दो कारणों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) ऋणदाता वर्ग अत्यन्त संवेदनहीन हो गया था।
(2) ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे।

प्रश्न 65.
ऋणदाता लोग गांवों में प्रचलित मानकों और रूढ़ि-रिवाजों का किस प्रकार उल्लंघन कर रहे थे ?
उत्तर:
ऋणदाता लोग रैयत से मूलधन से भी अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 66.
साहूकार रैयत को ऋण देने से क्यों इन्कार कर रहे थे? दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) भारतीय कपास की मांग घटती जा रही थी
(2) कपास की कीमतों में गिरावट आ रही थी।

प्रश्न 67.
पहाड़िया और संधाल लोग किन उपकरणों से खेती करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग कुदाल से तथा संथाल लोग हल से खेती करते थे।

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प्रश्न 68.
संथाल लोगों का बंगाल में कब आगमन हुआ?
उत्तर:
संथाल लोगों का 1780 के दशक में बंगाल में आगमन हुआ।

प्रश्न 69.
संथाल लोग अंग्रेजों को आदर्श निवासी क्यों लगे ?
उत्तर:
क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने तथा भूमि को पूरी शक्ति के साथ जोतने में कोई संकोच नहीं था।

प्रश्न 70.
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल तथा धोखेबाज क्यों समझते थे?
उत्तर:
(1) ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करते थे।
(2) वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे।

प्रश्न 71.
रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध अंग्रेजों को दिए गए प्रार्थना-पत्र में उल्लिखित दो शिकायतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत द्वारा कड़ी शर्तों पर बंधपत्र लिखना
(2) साहूकारों द्वारा रैयत की उपज ले जाना और बदले में रसीद न देना।

प्रश्न 72.
पहाड़ी लोग कौन थे?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले लोग पहाड़ी कहलाते थे। वे जंगल की उपन से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 73.
प्राय: ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता था?
उत्तर:
शक्तिशाली जमींदारों के लिए।

प्रश्न 74.
रैयत व शिकमी रैयत में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
रैयत जमींदारों के लिए जमीन जोतते थे एवं कुछ जमीन अन्य रैयतों को लगाने पर दे देते थे जिन्हें शिकमी रैयत कहा जाता था।

प्रश्न 75.
अमेरिका में गृहयुद्ध के समय ब्रिटेन को भारत से कपास का कितना निर्यात होता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 76.
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक यानी सम्बन्ध हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया।

प्रश्न 77.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ किसके द्वारा तैयार की गई थी?
उत्तर:
प्रवर समिति।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“संथालों और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और अपनी कुदाल से जमीन खुरच कर दालें तथा ज्वार बाजरा उगाते थे। दूसरी ओर संथाल लोग जंगलों को साफ करके हलों से जमीन जोतते थे तथा चावल, कपास आदि की खेती करते थे। इससे पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों में पीछे हटना पड़ा। एक ओर कुदाल पहाड़िया लोगों के जीवन का प्रतीक था, तो दूसरी ओर हल संथालों के जीवन का प्रतीक था और दोनों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।

प्रश्न 2.
‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ क्या था?
अथवा
स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1793 ई. में बंगाल के गवर्नर जनरल ने बंगाल में ‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ लागू किया। इस बन्दोवस्त के अन्तर्गत ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को चुकानी पड़ती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे, उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी जमींदारियां नीलाम कर दी जाती थीं। यह बन्दोबस्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा जमींदारों के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
फ्रांसिस बुकानन के बारे में आप क्या जानते हँ?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक (सर्जन) भी रहा। कलकता में उसने एक चिड़ियाघर की ‘स्थापना की जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर के नाम से मशहूर हुआ। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

प्रश्न 4.
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने पहाड़िया लोगों से शान्ति स्थापना हेतु कौनसी नीति अपनाई?
उत्तर:
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने शान्ति स्थापना हेतु पहाड़िया मुखियाओं के साथ एक समझौता किया, जिसमें मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया जाना था तथा बदले में मुखियाओं को अपने लोगों के चाल-चलन को ठीक रखने की जिम्मेदारी लेनी थी। उनसे यह भी आशा की गई थी कि वे अपनी बस्तियों में व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने लोगों को अनुशासन में रखेंगे। परन्तु बहुत से मुखियाओं ने भत्ता लेने से मना दिया।

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प्रश्न 5.
बुकानन द्वारा वर्णित गंजुरिया पहाड़ की यात्रा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बुकानन के अनुसार गंजुरिया में अभी जुताई की गई है जिससे पता चलता है कि इसे कितने शानदार इलाके में बदला जा सकता है इसकी सुन्दरता और समृद्धि विश्व के किसी भी क्षेत्र जैसी विकसित की जा सकती है। यहाँ की जमीन अलबत्ता चट्टानी है लेकिन बहुत ही ज्यादा बढ़िया है। उसने उतनी बढ़िया सरसों और तम्बाकू कहीं नहीं देखी। संथालों ने वहाँ कृषि क्षेत्र की सीमा काफी बढ़ा ली थी, वे यहाँ 1800 के आसपास आये थे।

प्रश्न 6.
संथालों के बारे में बुकानन के विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुकानन ने संथालों के क्षेत्र में भ्रमण किया और उनके बारे में ये विचार व्यक्त किये कि ” नयी जमीनें साफ करने में वे बहुत होशियार होते हैं, लेकिन नीचता से रहते हैं। उनकी झोंपड़ियों में कोई बाड़ नहीं होती और दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी लकड़ियों की बनी होती हैं जिन पर भीतर की ओर लेप ( पलस्तर) लगा होता है। झोंपड़ियाँ छोटी और मैली-कुचैली होती हैं, उनकी छत सपाट होती है, उनमें उभार बहुत कम होता है।”

प्रश्न 7.
कड़वा के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने क्या लिखा?
उत्तर:
कडुया के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने लिखा कि, “लगभग एक मील चलने के बाद मैं एक शिलाफलक पर आ गया, जिसका कोई यह एक छोटा दानेदार ग्रेनाइट है जिसमें लाल-लाल फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज और काला अबरक लगा है …… । वहाँ से आधा मील से अधिक की दूरी पर मैं एक अन्य चट्टान पर आया वह भी स्तरहीन थी और उसमें बारीक दानों वाला ग्रेनाइट था जिसमें पीला सा फेल्डस्पार, सफेद-सा क्वार्ट्ज और काला अबरक था।”

प्रश्न 8.
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –
(1) कभी-कभी खराब फसल होने पर किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(2) उपज की नीची कीमतों के कारण भी किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(3) कभी-कभी किसान जानबूझकर स्वयं भी भुगतान में देरी कर देते थे।

प्रश्न 9.
एक राजस्व सम्पदा क्या थी? सूर्यास्त विधि क्या थी?
उत्तर:
ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में एक जमींदार के नीचे अनेक गाँव होते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनुसार एक जमींदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलकर एक राजस्व सम्पदा का रूप ले लेते थे। जमींदारों को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक निश्चित तारीख को सूर्यास्त तक राजस्व जमा कराना अनिवार्य था। राजस्व जमा न होने की दशा में उसकी जमींदारी नीलाम की जा सकती थी। इसे ही सूर्यास्त विधि कहा जाता था।

प्रश्न 10.
1832 के दशक में किसानों को ऋण क्यों लेने पड़े?
उत्तर:
1832 के दशक के पश्चात् कृषि उत्पादों में तेजी से गिरावट आयी जिससे किसानों की आय में और भी तेजी से गिरावट आ गयी। इसके अतिरिक्त 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्र अकाल की चपेट में आ गये जिससे जन-धन की भारी हानि हुई किसानों के पास इस संकट का सामना करने के लिए खाद्यान्न नहीं था। राजस्व की बकाया राशियाँ बढ़ती गयीं परिणामस्वरूप किसानों को ऋण लेने पड़े।

प्रश्न 11.
वनों की कटाई और स्थायी कृषि के बारे बुकानन के विचार लिखिए।
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के एक गाँव से गुजरते हुए बुकानन ने लिखा, “इस प्रदेश का दृश्य बहुत बढ़िया है। यहाँ खेती विशेष रूप से, घुमावदार संकरी घाटियों में धान की फसल, बिखरे हुए पेड़ों के साथ साफ की गई जमीन और चट्टानी पहाड़ियाँ सभी अपने आप में पूर्ण हैं, कमी है तो बस इस क्षेत्र में प्रगति की और विस्तृत तथा उन्नत खेती की, जिनके लिए यह प्रदेश अत्यन्त संवेदनशील है। यहाँ टसर और लाख के लिए बागान लगाए जा सकते हैं।”

प्रश्न 12.
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने अपने पत्र में आयुक्त को क्या लिखित सूचना दी?
उत्तर:
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा कि, “शनिवार 15 मई को सूपा आने पर मुझे इस उपद्रव का पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जला दिया गया लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़ दिया गया और उनमें घुसकर वहाँ के सारे सामान को आग लगा दी गई। खाते पत्र बाँड, अनाज, देहाती कपड़ा सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहाँ राख के ढेर अब भी देखे जा सकते हैं।”

प्रश्न 13.
भाड़ा-पत्र क्या था ?
उत्तर:
जब किसान ऋणदाता का कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता था तो उसके पास अपना सर्वस्व जमीन, गाड़ियाँ, पशुधन देने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं था; लेकिन जीवनयापन हेतु खेती करना जरूरी था इसलिए उसने ऋणदाता से जमीन, पशु या गाड़ी फिर किराये पर ले ली; इसके लिए उसे एक भाड़ा पत्र ( किरायानामा) लिखना पड़ता था, जिसमें साफ तौर पर यह लिखा होता था कि ये पशु और गाड़ियाँ उसकी अपनी नहीं हैं।

प्रश्न 14.
इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए राजकीय प्रतिवेदनों के प्रयोग में क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी न चाहिए?
उत्तर:
राजकीय प्रतिवेदन सरकार की दृष्टि से तैयार किये जाते हैं जो पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होते हैं अतः इन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। इनका प्रयोग करने में से पहले समाचार पत्रों, गैर-राजकीय वृत्तान्तों, वैधानिक र अभिलेखों एवं मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता का सत्यापन करना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
बर्दवान के राजा की सम्पदा क्यों नीलाम की गई?
उत्तर:
1797 में बर्दवान के राजा की कई सम्पदाएँ नीलाम की गई। बर्दवान के राजा पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व की बड़ी रकम बकाया हो गई थी इसलिए उसकी सम्पदा नीलाम की गई खरीददारों में जिसने सबसे ऊँची बोली लगाई, उसको जमींदारी बेच दी गई। लेकिन यह खरीददारी फर्जी थी क्योंकि बोली लगाने वालों में 95% लोग राजा के एजेन्ट ही थे वैसे जमींदारी खुले तौर पर बेच दी गई थी लेकिन उन जमींदारियों का नियन्त्रण राजा के हाथ में ही रहा।

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प्रश्न 16.
सरकारी राजस्व जमा करने में जमींदारों के समक्ष कौन-कौनसी समस्याएँ आ रही थीं?
उत्तर:
1. राजस्व की माँग बहुत ऊँची थी।
2. यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें बहुत नीची थीं जिससे किसानों के लिए लगान चुकाना मुश्किल था।
3. राजस्व असमान था। फसल चाहे अच्छी हो या खराब, राजस्व का सही समय पर भुगतान करना जरूरी था।
4. यदि राजस्व निश्चित तिथि की शाम तक जमा नहीं हो पाता था तो जमींदारी नीलाम की जा सकती थी।

प्रश्न 17.
जमींदारों पर नियन्त्रण रखने के लिए कम्पनी सरकार ने क्या नीति अपनाई थी?
उत्तर:
1. जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
2. सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों को कम्पनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर की देखरेख में रख दिया गया।
3. जमींदारों से स्थानीय न्याय और स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
4. जमींदार के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया। कलेक्टर के कार्यालय की शक्ति बढ़ गई।

प्रश्न 18.
जमींदार अपनी जमींदारी में राजस्व कैसे वसूल करता था?
उत्तर:
एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे। कम्पनी सारे गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी। उसके बाद जमींदार यह निर्धारित करता था कि उसे किन-किन गाँवों से कितना-कितना राजस्व वसूल करना है। राजस्व वसूल करने के लिए उसने अमला नामक एक अधिकारी नियुक्त कर रखा था। फिर जमींदार निर्धारित राजस्व को कम्पनी सरकार के खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 19.
गाँवों से राजस्व वसूलने में जमींदार को क्या-क्या कठिनाइयाँ आती थीं?
उत्तर:
1. किसानों की आमदनी कम होने के कारण लगान वसूलने में कठिनाई आती थी।
2. फसल खराब होने पर राजस्व वसूली में परेशानी आती थी।
3. फसल की कीमतें नीची थीं।
4. किसान जान-बूझकर भी लगान जमा कराने में देरी करते थे।
5. जमींदार बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था, मगर न्यायिक प्रक्रिया लम्बी होने से उसे उस मुकदमे से राजस्व वसूली में कोई लाभ नहीं मिल पाता था।

प्रश्न 20.
बुकानन के अनुसार दिनाजपुर के जोतदार किस प्रकार जमींदारों का प्रतिरोध करते थे?
उत्तर:
बुकानन के अनुसार जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनों को जोतते थे। वे बहुत हठीले और जिद्दी थे वे राजस्व के रूप में थोड़ी सी राशि देते थे और हर किस्त में कुछ-न- कुछ बकाया रकम रह जाती थी। जमींदारों द्वारा उन्हें कचहरी में बुलाये जाने पर वे उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी धाना या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते थे और अपने अपमानित किये जाने की शिकायत करते थे वे रैयत को जमींदारों को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे।

प्रश्न 21.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसमें किसके बारे में बताया गया था?
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिनमें से एक रिपोर्ट पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती थी। इस रिपोर्ट में भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन और क्रियाकलापों का वर्णन था। इस रिपोर्ट में जमींदारों और रैयतों (किसानों) की अर्जियाँ तथा अलग-अलग जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल तथा मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखी हुई टिप्पणियाँ शामिल थीं।

प्रश्न 22.
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के दोषों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के निम्न दोष थे –
(1) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अनेक खरीददार होते थे और ऊंची बोली लगाने वाले को बेच दी जाती थी नीलामी में अधिकतर बिक्री फर्जी होती थी।
(2) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अधिकांश खरीददार जमींदारों के ही नौकर या एजेंट होते थे जो जमींदार की ओर से नीलामी में भाग लेते थे। इस प्रकार जमींदारी की जमीनें खुले तौर पर बेच दी जाती थीं पर उनकी जमींदारी का नियन्त्रण उन्हीं के हाथों में रहता था।

प्रश्न 23.
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदार अपने क्षेत्र से राजस्व वसूली किस प्रकार करते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व वसूली हेतु जमींदारों को क्षेत्र दे रखे थे। एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे जिनकी संख्या 400 तक होती थी ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक जमींदारी के समस्त गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी राजस्व वसूल करने के लिए जमींदार एक अधिकारी नियुक्त करते थे। यही अधिकारी प्रत्येक गाँव से राजस्व वसूल करके जमींदार को देते थे तत्पश्चात् जमींदार एकत्रित राशि को कम्पनी सरकार के आदेशानुसार उसके खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 24.
ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन में ऐसे अन्य व्यापारिक समूह थे, जो भारत तथा चीन के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध करते थे। ये समूह चाहते थे कि जिस शाही फरमान द्वारा कम्पनी को यह एकाधिकार मिला था, उसे रद्द किया जाये ब्रिटेन के उद्योगपति व निजी व्यापारी भी भारत से व्यापार करना चाहते थे।

(2) कई राजनीतिक समूहों का भी यह कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का लाभ केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

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प्रश्न 25.
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा क्या कार्यवाही की गई?
उत्तर:
(1) कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अनेक अधिनियम पारित किये गये।
(2) कम्पनी को बाध्य किया गया कि वह भारत प्रशासन के विषय में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट भेजा करे।
(3) कम्पनी के कामकाज की जाँच करने के लिए कई समितियाँ नियुक्त की गयीं। एक प्रवर समिति द्वारा पाँचवीं रिपोर्ट तैयार की गई।

प्रश्न 26.
पहाड़ी लोगों को पहाड़िया क्यों कहा जाता था? इनके जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
अथवा
पहाड़िया लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पहाड़ी लोग पश्चिमी बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों एवं उसके आसपास के क्षेत्र में निवास करते थे, इसलिए इन्हें पहाड़िया कहा जाता था। इनकी आजीविका जंगल की उपज पर आधारित थी। ये जंगलों से महुआ के फूल, रेशम के कोये तथा राल और काठकोयले के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे। वे जंगलों में झाड़ियों व घास- फूस को आग लगाकर जमीन साफ कर ‘झूम’ खेती करते थे तथा कुदाल से जमीन खुरचकर दालें तथा ज्वार- बाजरा उगाते थे।

प्रश्न 27.
कार्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था क्यों लागू की?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर चार्ल्स कॉर्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था 1793 ई. में लागू की थी। उस समय बंगाल की कृषि की स्थिति अच्छी नहीं थी सरकार को प्रतिवर्ष भूमि के ठेके देने पड़ते थे अतः कार्नवालिस ने दीर्घ अध्ययन के उपरान्त बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था लागू कर दी। इस व्यवस्था के अनुसार ठेकेदार ही भूमि के स्वामी होते थे तथा वे कम्पनी को निश्चित कर देते थे। इससे कम्पनी की आय निश्चित हो गयी।

प्रश्न 28.
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे –
(1) कम्पनी की आय निश्चित बनाने में आसानी हुई।
(2) जमींदार ही स्थायी रूप से भूमि का स्वामी मान लिया गया अतः उसने अपनी भूमि उपजाऊ बनाने का प्रयास किया।
(3) कम्पनी के कर्मचारियों की संख्या सीमित हो गयी तथा राजस्व वसूलने के लिए अधिक धन तथा बल की आवश्यकता नहीं रही।
(4) इस्तमरारी बन्दोबस्त का सबसे बड़ा लाभ बंगाल के जमींदारों को हुआ। अब उन्हें सरकार को किसी प्रकार को भेंट नहीं देनी पड़ती थी।

प्रश्न 29.
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम अग्रलिखित हैं –
(1) आरम्भ में अनेक जमींदार किसानों से लगान नहीं वसूल सके, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जमींदारी बिक गयी।
(2) भूमि की माप तथा भू-राजस्व का निर्धारण सही ढंग से नहीं हो पाया था।
(3) आशाओं के विपरीत जमींदारों ने अपनी जमीन के सुधार पर कोई ध्यान नहीं दिया।

प्रश्न 30.
‘झूम’ खेती से आप क्या समझते हैं तथा यह किसके द्वारा की जाती थी?
उत्तर:
‘झूम’ खेती पहाड़िया लोगों द्वारा की जाती थी। ये लोग जंगल की झाड़ियाँ काटकर और घास-फूस में आग लगाकर जमीन साफ करके खेती करते थे। ये लोग कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरचकर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें तथा ज्वार, बाजरा उत्पन्न कर लेते थे। कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे।

प्रश्न 31.
पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण क्यों किये जाते थे?
उत्तर:
(1) पहाड़िया लोगों द्वारा ये आक्रमण अधिकतर अपने आप को अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किये जाते थे।
(2) पहाड़िया लोग इन आक्रमणों के माध्यम से मैदानों में बसे हुए लोगों के सामने अपनी सत्ता का प्रदर्शन करना चाहते थे।
(3) ऐसे आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए भी किये जाते थे, मैदानों में रहने वाले जमींदारों को पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देना पड़ता था।

प्रश्न 32.
ब्रिटिश सरकार पहाड़िया लोगों का दमन क्यों कर देना चाहती थी?
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने जंगलों की कटाई-सफाई के काम को प्रोत्साहन दिया और जमींदारों तथा जोतदारों ने परती भूमि को धान के खेतों में बदल दिया।
(2) अंग्रेजों ने स्थायी कृषि के विस्तार पर बल दिया क्योंकि उससे राजस्व के स्रोतों में वृद्धि हो सकती थी तथा नियत के लिए फसल पैदा हो सकती थी ।
(3) अंग्रेज जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर तथा उपद्रवी मानते थे।

प्रश्न 33.
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली क्यों लागू की गई ?
उत्तर:
(1) 1810 के बाद उपज की कीमतों में वृद्धि होने से बंगाल के जमींदारों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई, लेकिन कम्पनी की आमदनी में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के अनुसार कम्पनी बढ़ी हुई आमदनी में अपना दावा नहीं कर सकती थी।

(2) अपने वित्तीय साधनों में बढ़ोतरी की इच्छा से कम्पनी ने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार किया, इसलिए उन्नीसवीं शताब्दी में कम्पनी शासन में शामिल किये गये प्रदेशों में नए राजस्व बन्दोबस्त किए गए।

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प्रश्न 34.
“रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में एक नई राजस्व प्रणाली लागू की गई, जिसे ‘रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ कहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत (किसान) के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर तीस वर्ष के बाद जमीनों का फिर से सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

प्रश्न 35.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी नई राजस्व नीति से क्या अपेक्षाएँ थीं?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी राजस्व नीति से निम्न अपेक्षाएँ थीं –
(1) कम्पनी को यह आशा थी कि इस नीति से उन समस्याओं का समाधान हो जाएगा जो बंगाल की विजय के समय से ही उनके समक्ष उपस्थित हो रही थीं।
(2) अधिकारियों को यह अपेक्षा थी कि इससे छोटे किसानों एवं धनी भू-स्वामियों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न हो जाएगा जिनके पास कृषि में सुधार करने के लिए पूँजी तथा उद्यम दोनों होंगे।
(3) कम्पनी को यह आशा थी कि ब्रिटिश शासन से पालन-पोषण एवं प्रोत्साहन प्राप्त कर यह वर्ग कम्पनी के प्रति स्वामि भक्त बना रहेगा।

प्रश्न 36.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के कारण लिखिए।
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के निम्नलिखित कारण हैं-
राजस्व की प्रारम्भिक माँगें बहुत ऊँची थी, ऐसा इसलिए किया गया कि आगे कृषि की कीमतों में वृद्धि होने पर राजस्व नहीं बढ़ाया जा सकता। इस हानि को पूरा करने के लिए ऊंची दरें रखी गयी इसका यह कारण बताया गया कि जैसे ही कृषि का उत्पादन बढ़ेगा वैसे ही जमींदारों का बोझ कम हो जाएगा। राजस्व असमान था फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का भुगतान सही समय पर करना जरूरी था इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ में जमींदारों की शक्ति को रैयत से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी जमींदारी का प्रबन्धन करने तक ही सीमित कर दिया था।

प्रश्न 37.
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में लागू किए गए रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
(1) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के अन्तर्गत माँगा गया राजस्य बहुत अधिक था। परिणामस्वरूप बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नए क्षेत्रों में चले गए।
(2) राजस्व अधिकारी किसानों से कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे। राजस्व न देने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं और सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना किया जाता था।
(3) 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिसके परिणामस्वरूप दक्कन में आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में
चला गया।

प्रश्न 38.
1820 के दशक में लागू किये गये राजस्व के बारे में 1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने क्या अनुभव किया? लिखिए।
उत्तर:
1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने 1820 में लागू किये गये राजस्व के बारे में यह अनुभव किया कि –
(1) सभी जगह किसान कर्ज के बोझ से दबे हैं।
(2) 1820 के दशक में लागू किए गए राजस्व सम्बन्धी बन्दोबस्त कठोरतापूर्ण थे।
(3) राजस्व की माँग बहुत ज्यादा थी
(4) राजस्व संकलन की व्यवस्था कठोर एवं लचकहीन थी
(5) इसके बाद उन्होंने राजस्व सम्बन्धी माँग कुछ हल्की की जिससे कृषि को प्रोत्साहन मिल सके।

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प्रश्न 39.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता कपास की आपूर्ति हेतु वैकल्पिक स्रोत क्यों और कैसे खोज रहे थे?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कच्चे माल के रूप में आयात की जाने वाली समस्त कपास का तीन- चौथाई भाग अमेरिका से आता था। अमेरिकी कपास पर निर्भरता के कारण ब्रिटेन के वस्त्र निर्माता अधिक परेशान थे। वे सोचते थे कि यदि कभी यह स्रोत बन्द हो गया तो हमें कपास कहाँ से मिलेगी ? अतः वे कपास के अन्य स्रोतों की खोज में जुटे। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना की गई तथा 1859 में मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी की स्थापना की गई।

प्रश्न 40.
1865 में अमेरिकी गृह युद्ध की समाप्ति का महाराष्ट्र के निर्यात व्यापारियों तथा साहूकारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध समाप्त होने पर वहाँ कपास का उत्पादन पुनः होने से भारतीय कपास की माँग घटने लगी। इस पर महाराष्ट्र के निर्यातकों और साहूकारों ने दीर्घावधि ऋण देने से किसानों को मना कर दिया। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की मांग पटती जा रही है तथा कपास की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। अब उन्हें यह अनुभव होने लगा था कि अब किसानों में उनका ऋण चुकाने की क्षमता नहीं रही है।

प्रश्न 41.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता भारत से कपास का आयात क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माताओं ने भारत को एक ऐसा देश समझा जो अमेरिकी कपास के आयात का स्थान ले सकता था और अमेरिका कपास की आपूर्ति बन्द – होने पर लंकाशायर की कपास की माँग पूरी कर सकता था भारत की भूमि तथा जलवायु दोनों ही कपास की खेती के लिए अनुकूल थीं तथा यहाँ सस्तां श्रम भी उपलब्ध था। 1861 में जब अमेरिका से आने वाली कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई, तो भारत से कपास का आयात करने का निश्चय किया गया।

प्रश्न 42.
संथालों को ‘अगुआ बाशिंदे’ किसलिए कहा गया?
उत्तर:
सन् 1800 के लगभग संथाल राजमहल की पहाड़ियों के निचले हिस्से में जंगलों को साफ कर स्थायी नी रूप से बस गये। एक ओर पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं थे और न उपद्रवी व्यवहार कर रहे थे, दूसरी ओर संथाल अंग्रेजों को न्छ अगुआ बाशिन्दे प्रतीत हुए क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई संकोच नहीं था और वे भूमि को पूरी शक्ति की लगा कर जोतते थे।

प्रश्न 43.
ब्रिटिश कलाकार विलियम होजेज के ल्ल बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर:
विलियम होजेज एक ब्रिटिश कलाकार था पर जिसने कैप्टन कुक के साथ प्रशान्त महासागर की यात्रा की। न क्लीवलैंड के निमन्त्रण पर होजेज 1782 ई. में उसके साथ या जंगल भू-सम्पदाओं के भ्रमण पर गया था। वहाँ होजेज न्य ने ऐसी तस्वीरें बनाई जो ताम्रपट्टी में अम्ल की सहायता र्ति से चित्र के रूप में कटाई करके छापी जाती हैं जिन्हें एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

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प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था। उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों’ को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये। इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बड़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

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प्रश्न 47.
” पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों की छाँह में आराम करते थे। वे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे।

प्रश्न 48.
पहाड़ियों के प्रति अंग्रेजों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
अंग्रेज पहाड़ियों को असभ्य, बर्बर, उपद्रवी तथा क्रूर समझते थे और उन पर शासन करना एक कठिन कार्य मानते थे इसलिए उन्होंने यह विचार किया कि जंगलों का सफाया करके, वहाँ स्थायी कृषि की स्थापना की जाए तथा जंगली लोगों को पालतू एवं सभ्य बनाया जाए। अत: अंग्रेजों ने पहाड़िया लोगों को खेती का व्यवसाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 49.
पहाड़िया लोग संथाल लोगों को अपना शत्रु क्यों मानते थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल के जंगलों को नष्ट करते हुए, इमारती लकड़ी को काटते हुए, जमीन जोतते हुए और चावल तथा कपास का उत्पादन करते हुए राजमहल की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में बस गए। उन्होंने निचली पहाड़ियों पर अधिकार कर लिया। इससे पहाड़िया लोगों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया और उन्होंने संथालों का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 50.
अंग्रेजों ने राजमहल की पहाड़ियों में संथालों को बसाने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
अंग्रेज संचालों को आदर्श निवासी मानते थे क्योंकि वे जंगलों को नष्ट करने के समर्थक थे तथा जमीन को पूरी शक्ति लगाकर जोतते थे अतः उन्होंने 1832 तक राजमहल के एक काफी बड़े क्षेत्र को ‘दामिन-इ-कोह’ के रूप में सीमांकित कर दिया और इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया। अतः यहाँ संथाल बड़ी संख्या में बस गए और कई प्रकार की वाणिज्यिक खेती करने लगे तथा व्यापारियों साहूकारों के साथ लेन-देन करने लगे।

प्रश्न 51.
संथालों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) संथालों को यह ज्ञात हो गया कि उन्होंने जिस भूमि पर खेती करना शुरू किया था, वह उनके हाथों से निकलती जा रही थी
(2) संथालों ने जिस जमीन पर खेती शुरू की थी, उस पर सरकार ने भारी कर लगा दिया था
(3) साहूकारों ने बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा दिया था और कर्ज अदा न किए जाने पर संथालों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे
(4) जमींदार लोग दामिन क्षेत्र पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।

प्रश्न 52.
बम्बई दक्कन में किसानों के विद्रोह के कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) अम्बई (मुम्बई) में लागू की गई रैयतवाड़ी प्रणाली के अन्तर्गत किसानों से माँगा गया राजस्व बहुत अधिक था। राजस्व अदा न करने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं।
(2) कालान्तर में साहूकारों ने ऋण देना बन्द कर दिया।
(3) ऋणदाता संवेदनहीन थे तथा ब्याज मूलधन से भी अधिक वसूल करते थे।
(4) ऋणदाता ऋण चुकायी गई राशि की रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर देते थे और किसानों की उपज को नीची कीमतों पर लेते थे।

प्रश्न 53.
1861 में अमेरिका में छिड़ने वाले गृहयुद्ध का भारतीय किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1861 में अमेरिका में गृह बुद्ध छिड़ने पर अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई। इस स्थिति में दक्कन के गाँवों के रैयतों (किसानों) को विपुल धनराशि ऋण के रूप में मिलने लगी। परन्तु इस अवसर पर केवल धनी किसानों को लाभ हुआ तथा अधिकांश किसान ऋण के भार से दब गए। व्यापारियों और साहूकारों ने ऋण देने से इन्कार कर दिया। दूसरी ओर राजस्व की माँग बढ़ा दी गई। ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करने लगे और कानून की अवहेलना करने लगे।

प्रश्न 54.
रैयत ऋणदाता को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझने लगे थे?
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे और रैयत से हर तीसरे वर्ष एक नया बंधपत्र भरवाते थे। वे किसानों की फसलों को नीची कीमतों पर ले लेते थे तथा अवसर पाकर किसानों की धन सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेते थे। भिन्न-भिन्न प्रकार के दस्तावेजों और बंधपत्रों से किसान असंतुष्ट थे।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
“गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी और जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँवों में जोतदारों की सुदृढ़ स्थिति अठारहवीं शताब्दी के अन्त में बंगाल के गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी तथा जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।
(1) बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी- जोतदार गाँवों में रहते थे तथा वे बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी थे। ये धन-सम्पन्न किसान थे। इन जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े रकों पर अधिकार कर रखा था। ये रकबे (क्षेत्र) कभी- कभी तो कई हजार एकड़ में फैले होते थे। स्थानीय व्यापारियों और साहूकारों के व्यवसाय पर भी उनका नियंत्रण था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के दरिद्र किसानों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते थे। उनकी जमीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था। ये बटाईदार स्वयं अपने हल-बैल लाकर खेती करते थे और फसल के बाद उपज का आधा हिस्सा जोतदारों को दे देते थे।

(2) गाँवों में जोतदारों की शक्ति-गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी। जोतदार गाँवों में ही रहते थे तथा गाँवों में रहने वाले किसानों पर उनका सीधा नियंत्रण था। जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वे घोर प्रतिरोध करते थे तथा लगान वसूली में बाधा डालते थे जो रैयत उन पर निर्भर रहते थे, उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे तथा जमींदार के राजस्व के भुगतान में जानबूझ कर देरी करा देते थे।

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(3) जोतदारों द्वारा जमींदारी को खरीदना राजस्व अदा न करने पर जब जमींदारी नीलाम होती थी, तो प्रायः जोतदार ही उन जमीनों को खरीद लेते थे।

(4) उत्तरी बंगाल में जोतदारों का सबसे अधिक शक्तिशाली होना- उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे। कुछ स्थानों पर जोतदारों को ‘हवलदार’ कहा जाता था और कुछ अन्य स्थानों पर वे ‘गांटीदार’ म अथवा ‘मंडल’ कहलाते थे। जोतदारों के उदय होने के २ फलस्वरूप जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना अनिवार्य था।

(5) रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काना-जोतदार अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये दे देते थे और लगभग हर किस्त में कुछ न कुछ बकाया राशि रह जाती थी। जमींदार की रकम के कारण यदि अधिकारी उन्हें न्यायालय में बुलाते थे, तो वे तुरन्त उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी थाना अथवा मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच क जाते थे तथा जमींदार के कारिन्दों द्वारा उन्हें अपमानित किए जाने की बात कहते थे। जोतदार रैयत को राजस्व न देने के लिए भी भड़काते रहते थे।

प्रश्न 2.
पहाड़िया लोग कौन थे? ब्रिटिश सरकार की उनका दमन करने के लिए क्यों प्रयत्नशील थी?
अथवा
पहाड़िया लोग कौन थे? बाहरी लोगों के आगमन पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों का परिचय –
(1) झूम खेती करना – पहाड़िया लोग जंगल ‍ शाड़ियों को काटकर और पास फेंस को जलाकर जमीन साफ करते थे। ये लोग अपने भोजन के लिए अनेक प्रका की दालें तथा ज्वार बाजरा उगा लेते थे।

(2) जंगलों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करना- पहाड़िया लोग खाने के लिए जंगलों से महुआ के फूल इकट्ठे करते थे तथा बेचने के लिए रेशम के कोया और राला तथा काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे पेड़ों के नीचे उगे हुए घास-फूंस पशुओं के लिए चरागा का काम देती थी।

(3) पहाड़ियों के जीवन का जंगल से घनिष्ठ रूपा से जुड़ना पहाड़िया लोग शिकारियों, झूम खेती करने बालों, खाद्य पदार्थ इकट्ठा करने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में अपना जीवन निर्वाह करते थे। उनका जीवन जंगल से मनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के नीचे अपनी झोंपड़ियों में रहते थे तथा आम के वृक्षों की छाँह में विश्राम करते थे।

(4) पहाड़िया लोगों के मुखिया पहाड़िया लोगों के मुखिया अपने समूह में एकता बनाए रखते थे तथा आपसी लड़ाई-झगड़ों को निपटा देते थे। अन्य जनजातियों तथा मैदानी लोगों के साथ लड़ाई छिड़ने पर वे अपनी जन- जाति का नेतृत्व करते थे।

(5) मैदानी भागों पर आक्रमण करना पहाड़िया लोग मैदानी भागों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण करते थे ये आक्रमण प्रायः अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे। इन आक्रमणों के माध्यम से वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी करना चाहते थे।

(6) अंग्रेजों द्वारा पहाड़िया लोगों का दमन करना- अंग्रेज लोग जंगलों की कटाई-सफाई कर स्थायी कृषि का विस्तार करना चाहते थे वे जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर, क्रूर तथा उपद्रवी मानते थे। 1770 के दशक में अंग्रेजों ने पहाड़ियों का क्रूरतापूर्वक दमन किया। इसके बाद पहाड़िया लोग पहाड़ों के भीतरी भागों में चले गए। बाद में संथालों ने उन्हें पराजित कर दिया और उन्हें पहाड़ियों के भीतर चले जाने के लिए बाध्य कर दिया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय के विस्तार को अग्र बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
(1) 18वीं शताब्दी में बंगाल में उदित होने वाले धनी किसानों को जोतदार कहा गया। इन्होंने गाँवों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।
(2) 19वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों तक आते- आते जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त कर लिए थे जो 1000 एकड़ में फैले हुए थे।
(3) जोतदारों का गाँवों के स्थानीय व्यापार एवं साहूकारों के कारोबार पर भी नियन्त्रण था। वे अपने क्षेत्र के निर्धन किसानों पर भी अपनी शक्ति का अधिक प्रयोग करते थे।
(4) जोतदारों की भूमि का एक बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो स्वयं अपना हल लाते थे, खेतों में मेहनत करते थे एवं फसल उत्पन्न होने के पश्चात् उपज का आधा भाग जोतदारों को प्रदान करते थे।
(5) गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक प्रभावशाली थी। जमींदार शहर में रहते थे जबकि जोतदार गाँवों में रहा करते थे फलस्वरूप जोतदारों का गाँव के अधिकांश निर्धन लोगों पर सीधा नियन्त्रण रहता था।
(6) जोतदारों का जमींदारों से संघर्ष चलता रहता था। इसके निम्न कारण हैं-
(i) जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने पर जोतदार विरोध करते थे।
(ii) जोतदार जमींदार के अधिकारियों को अपना कर्तव्य पालन करने से रोकते थे।
(iii) जो लोग जोतदारों पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।
(iv) जोतदार जमींदारों को परेशान करने की नीयत से किसानों द्वारा जमींदारों को दिए जाने वाले राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते थे।
(v) जब जमींदारों की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीन को खरीद लेते थे जो जमींदारों को अच्छा नहीं लगता था।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बंगाल में जोतदार शक्तिशाली बनकर उभरे। उनके उदय से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था।

प्रश्न 4.
संथाल विद्रोह कब व क्यों हुआ? इस पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
अथवा
संथाल कौन थे? उनके विद्रोह के कारणों का विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
संथालों का परिचय
(1) संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में बसना संथाल लोग 1800 के आस-पास राजमहल की पहाड़ियों में बस गए थे ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में बसकर स्थायी खेती करने के लिए राजी कर लिया। इस प्रकार 1800 के आसपास संचाल जंगलों को साफ कर इमारती लकड़ी को काटते हुए पहाड़ियों की तलहटी में जमीन साफ कर धान और कपास की स्थायी कृषि करने लगे। इन्होंने पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों के भीतरी भाग में जाने के लिए मजबूर कर दिया।

(2) दामिन-इ-कोह का निर्माण सन् 1832 के आसपास ब्रिटिश कम्पनी ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो ‘दामिन-इ-कोह’ कहलाया। इसे संथाल भूमि घोषित कर दिया गया।

(3) संथालों की संख्या वृद्धि – दामिन-इ-कोह के सीमांकन के बाद संथालों की बस्तियाँ तेजी से बढ़ीं। सन् 1838 में गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 तक 1,473 गाँवों में बदल गई और जनसंख्या जो पहले 3,000 थी, बढ़कर 82,000 से भी अधिक हो गई। खेती का विस्तार होने से कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल विद्रोह कब और क्यों? सन् 1855-56 में संथालों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सिधू मांझी उनका नेता था।

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इस विद्रोह के प्रमुख कारण अग्रलिखित थे –
(1) कम्पनी सरकार द्वारा भारी कर लगाना- कम्पनी सरकार ने प्रारम्भ में संथालों को जो भूमि दी थी, उस पर कोई राजस्व नहीं था; लेकिन जैसे ही संथालों ने कृषि में विकास किया, कम्पनी सरकार ने उन पर भारी कर लगा दिया।
(2) ऊँची ब्याज दर साहूकारों द्वारा ऊँची दर पर ब्याज लगाया गया तथा कर्ज अदा न कर पाने पर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया गया।
(3) जमींदारों का अपने नियंत्रण का दावा- जिस जमीन को साफ कर संथाल लोग खेती कर रहे थे, उस पर अब जमींदारों ने अपने नियंत्रण का दावा करना शुरू कर दिया ।
(4) संथालों की मानसिकता में बदलाव — संथालों ने 1850 के दशक तक यह महसूस किया कि उनका अधिकार जमीन पर से खत्म होता जा रहा है। उन्हें अपने *लिए एक ऐसे आदर्श संसार का निर्माण करना है, जहाँ उनका अपना शासन हो जमींदारों, साहूकारों और औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है।

प्रश्न 5.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों द्वारा किस प्रकार प्रतिरोध किया गया?
अथवा
ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों ने कौन- कौनसी नई रणनीतियाँ बनाकर प्रतिरोध किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों की स्थिति उभर रही श्री लेकिन जमींदारों की सत्ता पूर्णतः समाप्त नहीं हुई थी। राजस्व की अत्यधिक मांग और अपनी भू-सम्पदा को ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नीलाम करने की समस्या से निपटने के लिए जमींदारों ने कुछ रणनीतियाँ बनाई –
(1) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण – ईस्ट इण्डिया कम्पनी महिलाओं के हिस्सों की नीलामी नहीं करती थी इसलिए जमींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भागों को अपने परिवार की स्वियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे।

(2) नकली नीलामी जमींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर कम्पनी के अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व का भुगतान नहीं करते थे जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ जाती थी। जब भू-सम्पदा का हिस्सा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के व्यक्ति ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची बोली लगाकर सम्पत्ति को खरीद लेते थे।

(3) अन्य तरीके जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचने के साथ- साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि कम्पनी के किसी अधिकारी की जिद के कारण किसी जमींदार की भू-सम्पदा को किसी बाहर का व्यक्ति खरीद लेता था तो उसे कब्जा प्राप्त नहीं हो पाता था कभी-कभी पुराने किसान नये जमींदार को लोगों की जमीन में घुसने नहीं देते थे।
परिणाम- 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गई। इसलिए जो जमींदार 1790 ई. के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो
गए, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को लचीला बनाने के फलस्वरूप गाँवों पर जमींदारों की पकड़ और मजबूत हो गयी। परन्तु 1930 की मंदी के कारण जमींदारों को नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली।

प्रश्न 6.
1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त क्यों लागू किया गया? इसके किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करने के कारण 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किये जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाना- 1810 के बाद कृषि के मूल्य बढ़ गए, जिससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी में वृद्धि हुई। परन्तु इस्तमरारी बन्दोबस्त के कारण ब्रिटिश सरकार इस बढ़ी हुई आय में अपने हिस्से का कोई दावा नहीं कर सकती थी। अतः उसने अपने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए नवीन राजस्व प्रणालियाँ लागू करने का निश्चय कर लिया।

(2) डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित होना- ब्रिटिश अधिकारी इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित थे रिकार्डों के विचारों के अनुसार भू-स्वामी को उस समय लागू ‘ औसत लगानों को प्राप्त करने का ही अधिकार होना चाहिए। ब्रिटिश अधिकारियों ने महसूस किया कि बंगाल में जमींदार लोग किराया जीवियों के रूप में बदल गए थे क्योंकि उन्होंने अपनी जमीनें पट्टे पर दे दीं और किराये की आमदनी पर निर्भर रहने लगे। इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों ने एक नवीन राजस्व प्रणाली अपनाने का निश्चय किया।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करना 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किया गया। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था। रैयत की राजस्व अदा करने की क्षमता का आकलन कर लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप में उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर 30 वर्ष के बाद जमीनों का पुन: सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर प्रभाव रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(1) राजस्व का अधिक होना सरकार की राजस्व की माँग इतनी अधिक थी कि बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नये क्षेत्रों में चले गए।
(2) ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा कठोरतापूर्वक लगान वसूल करना इस स्थिति में भी ब्रिटिश अधिकारी कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे और राजस्व न देने वाले किसानों की फसलों को जब्त कर लेते थे तथा सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना ठोक देते थे।
(3) भीषण अकाल- 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिससे दक्कन की आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में चला गया।
(4) ऋणदाताओं से ऋण लेना किसानों को अपने जीवन निर्वाह के लिए ऋणदाताओं से रुपया उधार लेना पड़ा। कर्ज बढ़ता गया, उधार की राशियाँ बकाया रहती गई और ऋणदाताओं पर किसानों की निर्भरता बढ़ती गई।

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प्रश्न 7.
फ्रांसिस बुकानन कौन था? इसके दिए गए विवरण का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 ई. तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह भारत के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक भी रहा। कलकत्ता में रहने के दौरान उसने कलकत्ता में एक चिड़ियाघर की स्थापना की, जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसके अनुसार राजस्व की वृद्धि हेतु जंगलों को कृषि भूमि में बदलना अनिवार्य था। 1815 में वह बीमार होने के पश्चात् वह इंग्लैण्ड वापस चले गए। फ्रांसिस बुकानन द्वारा दिया गया विवरण बुकानन की यात्राएं व सर्वेक्षण ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए विकास और प्रगति का आधार थे।

इनके विवरण को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है –
(1) बुकानन द्वारा दिया गया विवरण संथालों के बारे में, राजमहल के पहाड़िया लोगों के बारे में और अनेक अन्य बातों के विषय में विस्तृत जानकारी का स्रोत है। परन्तु उसके विवरण को पूर्णतया मान्य भी नहीं किया जा सकता था क्योंकि वह कम्पनी का कर्मचारी था।

(2) फ्रांसिस बुकानन ने विशाल वनों से परिदृश्यों और वहाँ से सरकार को सम्भवतः राजस्व देने वाले स्रोतों का सर्वेक्षण किया, खोज यात्राएँ आयोजित कीं और जानकारी इकट्ठी करने के लिए कम्पनी के माध्यम से भू-वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं, वनस्पति वैज्ञानिकों, चिकित्सकों का सहयोग व सेवाओं का उपयोग किया।

(3) बुकानन अन्वेषण शक्ति रखने वाला असाधारण शक्ति का व्यक्ति था। उसने वाणिज्यिक दृष्टिकोण से मूल्यवान पत्थरों और खनिजों का प्रयास किया। उसने नमक बनाने और कच्चा लोहा निकालने की स्थानीय पद्धति का निरीक्षण भी किया।

(4) किसी भू-दृश्य का वर्णन करते हुए उसने उस भूमि को और उपजाऊ बनाने का अथवा वहाँ कौनसी फसलें बोयी जा सकती हैं इत्यादि का भी विवरण दिया है।

(5) प्रगति के सम्बन्ध में बुकानन का आकलन आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा द्वारा निर्धारित होता था। वह वनवासियों की जीवनशैली का आलोचक था।

प्रश्न 8.
दक्कन विद्रोह के कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान भारत के विभिन्न प्रान्तों के किसानों ने साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरुद्ध अनेक विद्रोह किए। ऐसा ही एक विद्रोह सन् 1875 में किसानों द्वारा दक्कन में किया गया, जिसे दक्कन विद्रोह कहा जाता है। यह विद्रोह पूना तथा अहमदनगर एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में फैला था।
दक्कन विद्रोह के कारण किसानों द्वारा दक्कन में विद्रोह करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. कम्पनी द्वारा राजस्व बढ़ाना- दक्कन में 1820 के दशक में रैयतवाड़ी नामक नयी राजस्व व्यवस्था लागू की गई और इसमें राजस्व की माँग ऊंची रखी गई। कम्पनी द्वारा 30 वर्ष पश्चात् अगले बन्दोबस्त में राजस्व 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। किसान इस बढ़े हुए राजस्व को चुकाने की स्थिति में नहीं थे।

2. राजस्व की जबरन वसूली – जिला कलेक्टर अपनी कार्यकुशलता प्रदर्शित करने हेतु राजस्व की जबरन वसूली करते थे। फसल खराब होने पर भी कोई छूट नहीं मिलती थी।

3. कीमतों में गिरावट 1832 के बाद कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई। परिणामस्वरूप किसानों की आय में और गिरावट आई। 1832-34 के अकाल ने उनकी रही-सही कमर तोड़ दी।

4. साहूकारों की मनमानी ब्याज दर – राजस्व चुकाने तथा अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसानों को ऋणदाताओं पर निर्भर रहना पड़ता था। साहूकार तथा ऋणदाता मूलधन पर मनमाना ब्याज लगाते थे तथा किसान से खाली कागज पर अंगूठा लगवाते थे ।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

5. ऋण के स्रोत का सूख जाना – 1865 में अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद वहाँ कपास का उत्पादन पुनः चालू हो गया और ब्रिटेन में भारतीय कपास की माँग में गिरावट आती चली गई। इससे कपास की कीमतों में गिरावट आ गई। व्यापारी और साहूकारों ने किसानों से अपने पुराने ऋण वापस माँगना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ सरकार ने राजस्व की माँग बढ़ा दी। फलतः रैयत पर दोहरा दबाव पड़ा जिसे पूरा करने के लिए वह ऋणदाताओं की शरण में गये, लेकिन इस बार उन्होंने ऋण देने से इनकार कर दिया।

6. अन्याय का अनुभव – ऋणदाता द्वारा ऋण देने से इनकार किये जाने पर रैयत समुदाय को बहुत गुस्सा आया। वे इस बात से नाराज थे कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है। तरह-तरह के दस्तावेज और बंधपत्र इस नयी अत्याचारपूर्ण प्रणाली के प्रतीक बन गये थे। इन सब कारणों से दक्कन की रैयत ने ऋणदाताओं, व्यापारियों व साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

विद्रोह का स्वरूप – दक्कन का यह आन्दोलन पूना जिले के सूपा नामक स्थान से जो कि एक विपणन केन्द्र था, से 12 मई, 1875 को प्रारम्भ हुआ। आसपास गाँवों के किसानों ने एकत्र होकर साहूकारों से उनके बहीखातों और ऋणबन्ध पत्रों की माँग करते हुए हमला कर दिया। बहीखाते जला दिए गये, अनाज लूट लिया गया और साहूकारों के घरों में आग लगा दी गई।

प्रश्न 9.
दक्कन विद्रोह के परिणामों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
दक्कन विद्रोह के परिणाम दक्कन विद्रोह के परिणाम विद्रोह के दमन और दक्कन दंगा आयोग की स्थापना के रूप में हुए यथा –
(1) विद्रोह का दमन जब विद्रोह तेजी से फैलने लगा तो ब्रिटिश अधिकारियों की आँखों के सामने 1857 गदर का दृश्य नाचने लगा। विद्रोही किसानों के गाँवों में पुलिस थाने स्थापित किए गए शीघ्र ही सेना भी बुला ली गई। विद्रोहियों को गिरफ्तार करके उन्हें दंडित भी किया गया, लेकिन विद्रोह को दबाने में कई महीने लग गये। (2) दक्कन दंगा आयोग व उसकी रिपोर्ट दंगा फैलने पर प्रारम्भ में बम्बई की सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया लेकिन भारत सरकार के दबाव पड़ने पर उसने दंगे के कारणों की छानबीन करने हेतु एक जाँच आयोग की स्थापना की जिसने पीड़ित जिलों में जाँच-पड़ताल करवाई, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए तथा जिला कलेक्टरों की रिपोटों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट 1878 में ब्रिटिश संसद में पेश की। जाँच आयोग को यह निर्देश था कि वह यह पता लगाए कि क्या सरकारी राजस्व की माँग विद्रोह का कारण थी? आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विद्रोह का कारण साहूकारों और ऋणदाताओं के प्रति किसानों का क्रोध था। सरकारी राजस्व की माँग इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी। लेकिन यह रिपोर्ट एकपक्षीय थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार कभी भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, जबकि राजस्व की भारी माँग के कारण ही किसानों को साहूकारों से ऋण उनकी शर्तों पर लेना पड़ा।

प्रश्न 10.
रैयत (किसान) ऋणदाताओं के प्रति किन कारणों से क्रुद्ध थी? सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझ रही थी? इस पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जब भारतीय कपास की माँग ब्रिटेन में कम हो गई तब ऋणदाताओं ने किसानों को ऋण देने से मना कर दिया। उन्हें यह लगने लगा कि अब किसानों में ऋण चुकाने की क्षमता नहीं है।
(1) अन्याय का अनुभव-जब ऋणदाताओं ने ऋण देने से मना किया तो किसानों में उसके प्रति बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ, उन्हें इस बात का दुःख नहीं था कि वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं अपितु इस बात का दुःख था कि साहूकार इतना संवेदनहीन कैसे हो गया है कि उनकी हालत पर दया भी नहीं कर रहा है। साहूकारों ने देहात के प्रथागत मानकों का उल्लंघन करना प्रारम्भ कर दिया। जो मानक किसान और साहूकार के सम्बन्धों को विनियमित करते थे, साहूकार उन्हें तोड़ रहा था।

(2) साहूकारों द्वारा खातों में धोखाधड़ी-साहूकारों द्वारा किसानों के साथ धोखाधड़ी की जाने लगी। किसानों से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लिए जाते थे या अंगूठा लगवा लिया जाता था, पर किसान को यह पता नहीं चल पाता था कि ये किस पर हस्ताक्षर कर रहे हैं या अंगूठा लगा रहे हैं अतः किसान को ऋणदाता की मनमानी का शिकार होना पड़ता था।

(3) परिसीमन कानून और ऋणदाता की चालाकी=रैयत द्वारा साहूकारों की शिकायतें मिलने पर 1859 में अंग्रेजों ने एक परिसीमन कानून पारित किया, जिसके अनुसार ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र केवल तीन वर्षों के लिए ही मान्य होगा। इसका उद्देश्य व्याज को संचित होने से रोकना था।

(4) किसान की मजबूरी यह जानते हुए कि उनके साथ धोखा या अन्याय हो रहा है फिर भी किसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साहूकारों के चंगुल में फँसने को मजबूर था, क्योंकि किसान को ऋण चाहिये था और वह बिना दस्तावेज भरे मिलता नहीं था। समय के साथ, किसान यह समझने लगे कि उनके जीवन में जो दुःख तकलीफ है, वह सब बंधपत्रों और दस्तावेजों की इस नयी व्यवस्था के कारण ही है। उन्हें उन खण्डों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता जो ऋणदाता बंधपत्रों में लिख देते थे। इस तरह रैयत साहूकारों द्वारा की गई चालबाजियों के कारण उनसे क्रुद्ध थी और अन्ततः उसने 1875 में इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठायी और दक्कन में दंगा शुरू हुआ।

प्रश्न 11.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसके बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। उसी रिपोर्ट का एक भाग पाँचवीं रिपोर्ट कहलाया। यह भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में 1002 पृष्ठ थे तथा इसके परिशिष्ट के रूप में 800 से अधिक पृष्ठ थे। पाँचवीं रिपोर्ट की पृष्ठभूमि पाँचवीं रिपोर्ट के निर्माण की पृष्ठभूमि को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –

1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एकाधिकार का विरोध- जब कम्पनी ने प्लासी के युद्ध (1757 ई.) के बाद बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की, तभी से इंग्लैण्ड में उसके क्रियाकलापों पर बारीकी से नजर रखी जा रही थी। ब्रिटेन में ऐसे बहुत से व्यापारिक समूह थे जो कम्पनी के भारत और चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार का विरोध कर रहे थे। उनकी माँग थी कि उस फरमान को रद्द किया जाए, जिसके अन्तर्गत कम्पनी को एकाधिकार दिया गया था। कई राजनीतिक समूहों का कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का फायदा केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

2. कम्पनी कुशासन पर बहस ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचनाओं पर ब्रिटिश संसद में गरमागरम बहस छिड़ गई और कम्पनी के अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण तथा लोभ- लालच की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार पत्रों में खूब उछाला गया।

3. ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम-ब्रिटेन की संसद ने भारत में कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में कई अधिनियम पारित किए।

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4. समितियों की नियुक्ति-कम्पनी के प्रशासन की जाँच के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई समितियाँ नियुक्त की गई, जो जाँच उपरान्त अपनी रिपोर्ट भेजती थीं ऐसी ही एक प्रवर समिति द्वारा कम्पनी प्रशासन पर तैयार रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में भेजी गई जो पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती है। पाँचवीं रिपोर्ट के गुण-पाँचवीं रिपोर्ट में उपलब्ध साक्ष्य बहुमूल्य हैं। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ग्रामीण बंगाल में क्या हुआ, इसके बारे में हमारी अवधारणा लगभग डेढ़ शताब्दी तक इस पाँचवीं रिपोर्ट के आधार पर ही बनती सुधरती रही।

पाँचवीं रिपोर्ट का दोषपाँचवीं रिपोर्ट में परम्परागत जमींदारी के पतन का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया और जिस पैमाने पर जमींदार लोग अपनी जमीनें खोते जा रहे थे, उसके बारे में भी बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है। जब जमींदारियाँ नीलाम होती थीं तो जमींदार नए-नए हथकण्डे अपनाकर अपनी जमींदारी बचा लेते थे और बहुत कम मामलों में विस्थापित होते थे।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ 

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. भारत कब स्वतन्त्र हुआ………………………..
(क) सन् 1945 की 14 अगस्त को।
(ख) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को।
(ग) सन् 1946 के 15 अगस्त की मध्यरात्रि को।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) सन् 1947 के 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को।

2. विभाजन के समय भारत में कुल रजवाड़ों की संख्या कितनी थी?
(क) 565
(ख) 570
(ग) 580
(घ) 562
उत्तर:
(क) 565

3. द्विराष्ट्र सिद्धान्त की बात जिस राजनीतिक दल ने सर्वप्रथम की थी, वह था।
(क) भारतीय जनता पार्टी
(ख) मुस्लिम लीग
(ग) कांग्रेस
(घ) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर:
(ख) मुस्लिम लीग

4. राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई?
(क) सन् 1953
(ख) सन् 1954
(ग) सन् 1955
(घ) सन् 1956
उत्तर:
(क) सन् 1953

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5. देशी रियासतों के एकीकरण में किस भारतीय नेता की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) सरदार पटेल
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(ग) सरदार पटेल

6. भारत का संविधान कब लागू किया गया
(क) 15 अगस्त, 1947
(ख) 26 जनवरी, 1950
(ग) 14 अगस्त, 1947
(घ) 30 जनवरी, 1947
उत्तर:
(ख) 26 जनवरी, 1950

7. खान अब्दुल गफ्फार खान को किस नाम से जाना जाता है
(क) महात्मा गाँधी
(ख) मोहम्मद अली जिन्ना
(ग) सीमान्त गाँधी
(घ) मौलाना
उत्तर:
(ग) सीमान्त गाँधी

8. बांग्लादेश का निर्माण किस वर्ष हुआ
(क) 1971
(ख) 1975
(ग) 1977
(घ) 1978
उत्तर:
(क) 1971

9. पूर्वी पाकिस्तान को वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है
(क) बांग्लादेश
(ख) म्यांमार
(ग) भूटान
(घ) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(क) बांग्लादेश

10. प्रसिद्ध फिल्म ‘गर्म हवा’ जिस वर्ष बनी, वह था-
(क)1971
(ख) 1965
(ग) 1947
(घ) 1973
उत्तर:
(घ) 1973

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11. 1960 में विभाजित होने से पहले बॉम्बे राज्य में कौनसी दो भाषाएँ बोली जाती थीं?
(क) पंजाबी और मराठी
(ख) गुजराती और पंजाबी
(ग) मराठी और पंजाबी
(घ) मराठी और गुजराती
उत्तर:
(घ) मराठी और गुजराती

12. ‘नोआखली’ अब जिस देश में है, वह है
(क) बांग्लादेश
(ख) पाकिस्तान
(ग) भारत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) बांग्लादेश

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. स्वतंत्र भारत की जनता को जवाहरलाल नेहरू ने एक विशेष सत्र को संबोधित किया। उनका यह प्रसिद्ध भाषण …………………… के नाम से जाना गया।
उत्तर:
ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी

2. सन् ………………….. का साल अभूतपूर्व हिंसा और विस्थापन की त्रासदी का साल था।
उत्तर:
1947

3. संविधान में ………………………… अधिकारों की गारंटी दी गई है और हर नागरिक को ………………. का अधिकार दिया गया है।
उत्तर:
मौलिक, मतदान

4. भारत ने संसदीय शासन पर आधारित ……………………………लोकतंत्र को अपनाया।
उत्तर:
प्रतिनिधित्वमूलक

5.. रजवाड़ों के शासक ………………… पर हस्ताक्षर करके भारतीय संघ में शामिल होते थे।
उत्तर:
इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन

6. स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ………………………थे।
उत्तर:
वल्लभभाई पटेल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1947 में भारत के विभाजन के पीछे कौन – सा सिद्धान्त था?
उत्तर:
द्वि- राष्ट्र सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
भारत में राष्ट्र निर्माण के मार्ग की किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ हैं।

  1. लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कायम रखना
  2. राष्ट्र का विकास करना ताकि समस्त समाज का भला हो।

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण के लिए किन तत्वों का होना अनिवार्य है?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के लिए भाषायी एकता, सामान्य संस्कृति तथा भौगोलिक एकता जैसे तत्वों का होना आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
मेघालय का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
मेघालय राज्य का निर्माण सन् 1972 में किया गया।.

प्रश्न 5.
भारत में राष्ट्र-निर्माण के मार्ग में बाधक तत्त्व कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
भारत में राष्ट्र-निर्माण के मार्ग में बाधक तत्त्वों में निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 6.
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे।

प्रश्न 7.
देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित दो राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित दो राज्य थे— पंजाब और बंगाल।

प्रश्न 8.
भारत विभाजन के समय धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर विभाजित हुए दो प्रान्तों के नाम बताइये।
अथवा
भारत के विभाजन में किन दो प्रान्तों का भी बँटवारा किया गया ?
उत्तर:

  1. पंजाब
  2. बंगाल- दोनों प्रान्तों का भी बँटवारा भारत के विभाजन के समय किया गया।

प्रश्न 9.
आजादी के तुरंत बाद सबसे प्रमुख चुनौती क्या थी?
उत्तर:
राष्ट्र – निर्माण।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले गुजरात और हरियाणा किन मूल राज्यों के अंग थे?
उत्तर:
गुजरात बम्बई राज्य का भाग था जबकि हरियाणा पंजाब का अंग था।

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प्रश्न 11.
उन मूल राज्यों के नाम लिखिये जिनसे निम्नलिखित राज्यों को पृथक् किया गया।
(अ) मेघालय
(ब) गुजरात।
उत्तर:
(अ) असम राज्य
(ब) बम्बई प्रेसीडेंसी।

प्रश्न 12.
सन् 2000 में जिन तीन नए राज्यों का निर्माण किया गया, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सन् 2000 में निम्न तीन राज्य बने:  झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)।

प्रश्न 13.
विभाजन के पश्चात् कौन-कौनसे राज्यों ने भारत और पाकिस्तान दोनों में शामिल होने से मना कर दिया?
उत्तर:
विभाजन के पश्चात् हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों ने भारत तथा पाकिस्तान दोनों में से किसी भी राज्य में शामिल होने से मना कर दिया।

प्रश्न 14.
पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के उस नेता का नाम लिखिये जो द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त का विरोधी था।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खां।

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प्रश्न 15.
भारत के प्रथम गृहमंत्री कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

प्रश्न 16.
ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने भारत विभाजन की घोषणा कब की?
उत्तर:
ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने 3 जून, 1947 को विभाजन योजना की घोषणा की।

प्रश्न 17.
रियासतों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रियासतों पर उन राजाओं का शासन था जिन्होंने अंग्रेजों के वर्चस्व के तहत अपने आंतरिक मामलों पर नियंत्रण का कोई रूप नियोजित किया था।

प्रश्न 18.
भारत के किस राज्य में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर सर्वप्रथम चुनाव हुए थे?
उत्तर:
मणिपुर में।

प्रश्न 19.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब लागू किया गया ?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम सन् 1956 में लागू किया गया।

प्रश्न 20.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर कितने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई।

प्रश्न 21.
भाषा के आधार पर सर्वप्रथम कब और किस राज्य का निर्माण किया गया?
उत्तर:
दिसम्बर, 1952 में सर्वप्रथम भाषा के आधार पर आंध्रप्रदेश राज्य का निर्माण हुआ।

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प्रश्न 22.
स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को संविधान सभा में जो भाषण दिया, वह किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का वह भाषण ‘भाग्यवधु से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 23.
‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ प्रसिद्ध भाषण किस प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया?
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के द्वारा।

प्रश्न 24.
राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट का आधार क्या था?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट भाषाई पहलुओं को प्रतिबिंबित करने के लिए भाषा के आधार पर राज्यों की सीमाओं के वितरण पर आधारित थी।

प्रश्न 25.
सन् 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन करके कौन-कौनसे दो राज्यों का निर्माण किया गया?
उत्तर:
सन् 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन करके महाराष्ट्र और गुजरात नामक दो राज्यों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 26.
राज्य पुनर्गठन आयोग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिफारिश क्या है?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिफारिश भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन है।

प्रश्न 27.
किन चार देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय अन्यों की तुलना में अधिक कठिन साबित हुआ?
उत्तर:

  1. हैदराबाद
  2. जम्मू एवं कश्मीर
  3. जूनागढ़
  4. मणिपुर।

प्रश्न 28.
अलगाववाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब एक समुदाय या सम्प्रदाय संकीर्ण भावना से ग्रस्त होकर अलग एवं स्वतन्त्र राज्य बनाने की मांग करे तो उसे अलगाववाद कहा जाता है

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प्रश्न 29.
राज्य पुनर्गठन से क्या अभिप्राय है? यह कब किया गया?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन का अर्थ है कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुनः गठन करना। भारत में राज्यों का पुनर्गठन 1956 में किया गया।

प्रश्न 30.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा किन दो चुनौतियों का सामना किया जा रहा था?
उत्तर:

  1. शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या।
  2. राज्यों के पुनर्गठन की समस्या।

प्रश्न 31. भारत में वर्तमान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की स्थिति बताइये।
उत्तर:
भारत में वर्तमान में 28 राज्य और 9 केन्द्रशासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 32.
राज्यों के पुनर्गठन के लिए भाषा आधार होगा। यह प्रस्ताव कांग्रेस के किस सत्र में माना गया?
उत्तर:
सन् 1920 में कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन।

प्रश्न 33.
मद्रास प्रांत के तेलुगुवासी इलाकों को अलग करके नया राज्य बनाने की माँग किस आंदोलन द्वारा की गयी थी?
उत्तर:
विशाल आंध्र आंदोलन|

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प्रश्न 34.
महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन किस सन् में हुआ?
उत्तर:
महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन सन् 1960 में हुआ।

प्रश्न 35.
मुस्लिम लीग का गठन क्यों हुआ था?
उत्तर:
मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रूप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। प्रश्न 36, भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के समय वित्तीय संपदा के साथ-साथ किन चीजों का बँटवारा हुआ ? उत्तर-वित्तीय संपदा के साथ-साथ टेबल, कुर्सी, टाईपराइटर और पुलिस के वाद्ययंत्रों तक का बँटवारा हुआ था।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने मुख्य चुनौतियाँ कौन-कौनसी थीं?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने निम्नलिखित मुख्य चुनौतियाँ थीं

  1. भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखना।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करना।
  3. सभी वर्गों का समान विकास करना।

प्रश्न 2.
“भारत को किसी अन्य देश के बजाय बहुत कठिन परिस्थितियों में स्वतंत्रता मिली।” कथन को सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
भारत को स्वतंत्रता बहुत कठिन परिस्थितियों में मिली:

  1. भारत की स्वतंत्रता भारत के बँटवारे के साथ आई।
  2. वर्ष 1947 अभूतपूर्व हिंसा और आघात का वर्ष बन गया।
  3. फिर भी हमारे नेताओं ने क्षेत्रीय विविधताओं को भी समायोजित करके इन सभी चुनौतियों का सराहनीय तरीके से सामना किया।

प्रश्न 3.
क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि के उस छोटे से टुकड़े को रहने वाले लोगों में एकता की भावना है। यह सामाजिक जीवन के कारण उत्पन्न होती है। क्षेत्र कहा जाता है जो किसी बड़े संगठित क्षेत्र का एक भाग है और जिसमें भावना सामान्य भाषा, सामान्य धर्म, भौगोलिक समीपता, आर्थिक और

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प्रश्न 4.
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का क्या आधार तय किया गया था?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया था कि जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे क्षेत्र पाकिस्तान के भू-भाग होंगे तथा शेष भाग ‘भारत’ कहलायेगा।

प्रश्न 5.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् रजवाड़ों के विलय का क्या आधार निश्चित किया गया था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद रजवाड़ों को भी कानूनी रूप से स्वतंत्र होना था। ब्रिटिश शासन ने यह दृष्टिकोण दिया कि रजवाड़े अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या वे चाहें तो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था, न कि वहाँ की जनता को।

प्रश्न 6.
भारत में हरियाणा राज्य का पुनर्गठन कब हुआ ? इसकी प्रमुख समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
1 नवम्बर, 1966 को पंजाब से हिन्दी भाषी क्षेत्र को पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों का निर्माण हुआ। पंजाब और हरियाणा में भाषा के आधार पर अब भी विवाद बना हुआ है। पंजाब हरियाणा के पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब को हस्तान्तरित करने की माँग करता है, जबकि हरियाणा पंजाब के हिन्दी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा को देने की माँग करता है ।

प्रश्न 7.
पोट्टी श्रीरामुलु कौन थे?
उत्तर:
पोट्टी श्रीरामुलु गाँधीवादी विचारों से प्रभावित कार्यकर्ता थे। इन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए सरकारी पद को त्याग दिया। 19 अक्टूबर, 1952 को वह आन्ध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य निर्माण की माँग को लेकर अनशन पर बैठे। 15 दिसम्बर, 1952 को अनशन के दौरान ही वह मृत्यु को प्राप्त हो गये।

प्रश्न 8.
संक्षेप में देश विभाजन से हुई जन-हानि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक अनुमान के अनुसार विभाजन के फलस्वरूप 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा। विभाजन की हिंसा में लगभग पाँच से दस लाख लोगों ने अपनी जान गँवाई । अनेक लोगों के अंग-भंग कर दिए गए। उनके बच्चे अनाथ हो गये।

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय आंदोलन के नेता एक पंथ निरपेक्ष राज्य के पक्षधर क्यों थे?
उत्तर:
राष्ट्रीय आंदोलन के नेता एक पंथनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर थे क्योंकि वे जानते थे कि बहुधर्मावलम्बी देश भारत में किसी धर्म विशेष को संरक्षण देना भारत की एकता के लिए बाधक बनेगा तथा इससे विविध धर्मावलम्बियों के मूल अधिकारों का हनन होगा।

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प्रश्न 10.
अमृता प्रीतम कौन थी?
उत्तर:
अमृता प्रीतम पंजाबी भाषा की प्रमुख कवयित्री और कथाकार, साहित्य उपलब्धियों के लिए साहित्य अकादमी, पद्मश्री और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महिला थी। राष्ट्र विभाजन के बाद वह दिल्ली में ही स्थायी रूप से बस गई। उन्होंने जीवन के अन्तिम समय पंजाब की साहित्यिक पत्रिका ‘नागमणि’ का सम्पादन किया।

प्रश्न 11.
फैज अहमद फैज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध मानवतावादी तथा क्रांतिकारी कवि फैज अहमद फैज़ का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में ) हुआ। वह विभाजन के बाद पाकिस्तान में ही रहे। वामपंथी रुझान के कारण उनका पाकिस्तानी शासन से हमेशा टकराव बना रहा। उन्होंने लम्बा समय कारावास में बिताया । नक्से फिरयादी, दस्त-ए-सबा तथा जिंदानामा उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं।

प्रश्न 12.
क्षेत्रीय संस्कृति तथा क्षेत्रीय असन्तुलन के आधार पर किन राज्यों का निर्माण किया गया है?
उत्तर:
अनेक उपक्षेत्रों ने अलग क्षेत्रीय संस्कृति अथवा विकास के मामले में क्षेत्रीय असन्तुलन का मुद्दा उठाकर अलग राज्य बनाने की माँग की। ऐसे तीन राज्य झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल ( अब उत्तराखंड) सन् 2000 में बने तथा तेलंगाना 2014 में बना।

प्रश्न 13.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:
1. द्वि- राष्ट्र सिद्धान्त
2. मुस्लिम लीग।
उत्तर:

  1. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त: द्विराष्ट्र सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नामक दो कौमों का है।
  2. मुस्लिम लीग: स्वतंत्रता से पूर्व मुस्लिम लीग मुसलमानों का राजनैतिक दल था। विभाजन से पूर्व इसने द्विराष्ट्र सिद्धान्त के तहत मुसलमानों के लिए पाकिस्तान की माँग की और अन्ततः भारत का विभाजन हुआ।

प्रश्न 14.
भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य कैसे बना?
उत्तर:
यद्यपि भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद 1951 में भारत की कुल आबादी में 12 प्रतिशत मुसलमान थे। इसके अतिरिक्त अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बी भी थे। भारत सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के पक्षधर थे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे जिस धर्म को माने, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर ही होना चाहिए। धर्म को नागरिकता की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके इस धर्मनिरपेक्ष आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। इस प्रकार भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना।

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प्रश्न 15.
विभाजन के समय पाकिस्तान को दो भागों-पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में क्यों बांटा गया?
उत्तर:
भारत के विभाजन का यह आधार तय किया गया कि ब्रिटिश इण्डिया के जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे। अविभाजित भारत में ऐसे दो इलाके थे। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में। इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में ये दो इलाके शामिल होंगे। ये पूर्वी पाकिस्तान तथा पश्चिमी पाकिस्तान कहलाये। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दो इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाये। इसलिए पाकिस्तान को दो भागों में बाँटा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय संघ में जूनागढ़ को शामिल करने की घटना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक रियासत थी। जूनागढ़ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। जबकि भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था। जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ के शासक के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी अन्ततः दिसम्बर, 1947 में करवाये गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 99 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।

प्रश्न 17.
हैदराबाद को भारत में किस प्रकार सम्मिलित किया?
उत्तर:
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय:
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के पश्चात् हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया परन्तु हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण तथा यहाँ की जनसंख्या का हिन्दू बहुसंख्यक होने के कारण भारत में विलय आवश्यक था। तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल को आशंका थी कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। सरदार पटेल तथा लार्ड माउंटबेटन के निजाम को समझाने के प्रयासों की विफलता के बाद भारत ने सैनिक कार्यवाही करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

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प्रश्न 18.
‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस रात संविधान सभा के एक विशेष सत्र को संबोधित किया था। उनका यह प्रसिद्ध भाषण ‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ के नाम से जाना गया।

प्रश्न 19.
भारत में देसी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में देशी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। उनके अथक प्रयास के फलस्वरूप सभी रजवाड़ों का भारत में विलय तो हुआ और साथ ही हैदराबाद के निजाम तथा जूनागढ़ के नवाब के साथ सरदार पटेल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किन्तु उन्होंने उन दिक्कतों के बारे में सोचे बिना इन दोनों रियासतों को भारत का अभिन्न अंग बना दिया।

प्रश्न 20.
देशी राज्यों (रजवाड़ों) के भारत संघ में विलय के संदर्भ में तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
देशी राज्यों के भारत संघ में विलय सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

  1. अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे।
  2. इस संदर्भ में भारत सरकार का रुख लचीला था और वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी, जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ। भारत सरकार ने विभिन्नताओं को सम्मान देने और
  3. विभिन्न क्षेत्रों की माँगों को संतुष्ट करने के लिये यह रुख अपनाया था।
  4. विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी। ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखंडता एकता का प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो उठा था।

प्रश्न 21.
सीमान्त गाँधी कौन थे? उनके द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के बारे में दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमान्त गाँधी कहा जाता है। वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (पेशावर के मूलतः निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वे कांग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के समर्थक थे। सच्चे गाँधीवादी, अहिंसा व शान्ति के समर्थक होने के कारण उनको ‘सीमान्त गाँधी’ कहा जाता था। वे द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के एकदम विरोधी थे। संयोग से उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

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प्रश्न 22.
रजवाड़ों के संदर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रजवाड़ों का सहमति – पत्र – आजादी के तुरन्त पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के समाप्त होने के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से आजाद हो जाएँगे और उसके राजा या शासक अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकते हैं या अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रख सकते। शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के सहमति – पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। इस सहमति – पत्र को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमते हैं।

प्रश्न 23.
संक्षेप में राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्माण की पृष्ठभूमि, कार्य तथा इससे जुड़े एक्ट का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग:
भारत में आंध्रप्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों की भाषायी आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामलों पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियमं पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए।

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प्रश्न 24.
मोहम्मद अली जिन्ना कौन थे? उनके बारे में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मोहम्मद अली जिन्ना:
मोहम्मद अली जिन्ना आधुनिक पाकिस्तान के जनक थे। वे स्वराज्य संघर्ष के कुछ प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी में रहे। बाद में वे मुस्लिम लीग में शामिल हो गये। वे देश विभाजन के साथ-साथ अपने जीवन के सबसे बड़े राजनीतिक उद्देश्य पाकिस्तान निर्माण की प्राप्ति को समीप देखकर साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने के पक्ष में बातें भी करने लगे। जिन्ना ने अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक समुदायों में पारस्परिक एकता के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। पाकिस्तान की संविधान सभा में अध्यक्षीय भाषण में आपने कहा कि पाकिस्तान में आप अपने मंदिर या मस्जिद में जाने या किसी भी अन्य पूजास्थल पर जाने के लिये आजाद हैं। आपके धर्म, आपकी जाति या विश्वास से राज्य का कुछ लेना-देना नहीं है।

प्रश्न 25.
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से उपजी समस्या को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की समस्या – भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से कई राज्यों के लोग सन्तुष्ट नहीं थे, क्योंकि कई राज्यों में रहते लोग, अपनी भाषा के आधार पर अलग राज्य की स्थापना चाहते थे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गम्भीर आंदोलन आरम्भ कर दिए और सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े। उदाहरणार्थ- 1960 में बम्बई राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में, 1966 में पंजाब राज्य को हरियाणा और पंजाब दो राज्यों में बांटना पड़ा था।

इसी प्रकार 1963 में नागालैण्ड और 1972 में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा राज्य की स्थापना करनी पड़ी तथा 1987 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम राज्य वजूद में आए। 2014 में तेलंगाना राज्य वजूद में आया। वर्तमान समय में विदर्भ, मैथली, बोडो, डोगरालैण्ड, गोरखा व कच्छ आदि राज्यों की माँग भाषा के आधार पर ही की जा रही है।

प्रश्न 26.
भारतीय राजनीति पर भाषा के प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति पर भाषा के प्रभाव – भाषा ने राजनीति को अग्र प्रकार से प्रभावित किया

  1. राष्ट्रीय एकता को खतरा: भारत को बहुभाषी होने के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। यद्यपि हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा माना गया है लेकिन दक्षिण के राज्यों तथा उत्तर के राज्यों में मुख्य विवाद का कारण भाषा ही है।
  2. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन: राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के आधार पर भारत को 14 राज्यों तथा 6 संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया। लेकिन इसके बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ और भाषा के आधार पर राज्यों की माँग की समस्या वर्तमान में भी बनी हुई है।
  3. सीमा विवाद: भाषा के कारण अनेक राज्यों में सीमा विवाद उत्पन्न हुए हैं और आज भी अनेक राज्यों के बीच यह विवाद चल रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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प्रश्न 27.
स्वतंत्र भारत को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान किन तीन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
स्वतंत्र भारत को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान निम्न तीन चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

  1. राष्ट्र निर्माण की चुनौती:
    स्वतंत्रता के समय भारत अलग-अलग राज्यों में विभाजित था। इसलिए पहली चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की थी जिसमें भारतीय समाज में सारी विविधताओं के लिए जगह हो। इस कार्य को पूरा करने का काम सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया। इस कार्य को अलग-अलग चरणों में पूरा करने के लिए उन्होंने राजनीति तथा कूटनीति दोनों का प्रयोग किया।
  2. लोकतंत्र कायम करना:
    भारत ने सरकार के संसदीय स्वरूप के आधार पर प्रतिनिधि लोकतंत्र का गठन किया और राष्ट्र में इन लोकतांत्रिक प्रथाओं को विकसित करना एक बड़ी चुनौती थी।
  3. समाज का विकास और कल्याण सुनिश्चित करना:
    भारतीय राजनीति ने राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत लोक-कल्याण के उन लक्ष्यों को स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीति को जरूर पूरा करना चाहिए ।

प्रश्न 28.
“कल हम अंग्रेजी की गुलामी से आजाद हो जायेंगे लेकिन आधी रात को भारत का बँटवारा होगा इसलिए कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन होगा और गम का भी।” गाँधीजी के उपर्युक्त कथन के अनुसार कल का दिन हमारे लिए क्यों खुशी एवं गम दोनों का होगा? उत्तर- गाँधीजी के अनुसार यह दिन खुशी एवं गम का इसलिए होगा क्योंकि 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को लगभग 12 बजे से भारत में लम्बे समय से चला आ रहा ब्रिटिश राज का अन्त हो जायेगा तथा लोग स्वतन्त्रता के वातावरण में जीवन व्यतीत करेंगे। इसलिए 15 अगस्त, 1947 का दिन सभी भारतवासियों के लिए खुशी का दिन होगा । लेकिन उसी दिन गम को भी सहन करना होगा क्योंकि देश का दो स्वतन्त्र राष्ट्रों भारत एवं पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो जायेगा।

प्रश्न 29.
हमें बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की इन जटिलताओं को दूर करने की भावना चाहिए। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदायों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं। अगर मुसलमान पठान, पंजाबी, शिया और सुन्नी आदि समुदायों में बँटे हैं तो हिन्दू भी ब्राह्मण, वैष्णव, खत्री तथा बंगाली, मद्रासी आदि समुदायों। पाकिस्तान में आप आजाद हैं। जिन्ना साहब के उपर्युक्त कथन को समझाइये।
उत्तर:
पाकिस्तान की मुस्लिम लीग की माँग जब लगभग समीप दिखाई दी तो जिन्ना साहब ने पंथ निरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव उत्पन्न करने के लिए अपने भाव व्यक्त किये। उनके विचारानुसार पाकिस्तान में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की जटिलताओं को दूर करने की भावना से काम करना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदायों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं।

जैसे कि अगर हम पाकिस्तान के बहुसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों की बात करते हैं तो हमें मानना पड़ेगा कि उनमें कुछ लोग पठान हैं तो कुछ लोग पंजाबी, कुछ लोग शिया तो कुछ सुन्नी इत्यादि भी हैं अर्थात् बहुसंख्यक भी ‘स्थल’ पर विभाजित हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दू समाज यदि अल्पसंख्यक हैं तो वे भी कई जातियों या वर्णों में विभाजित हैं, जैसे—ब्राह्मण, वैश्य, खत्री, बंगाली, मद्रासी आदि। पाकिस्तान में सभी लोग स्वतन्त्र हैं। वे अपने या अन्य पूजा स्थलों पर जाने के लिए स्वतन्त्र हैं।

प्रश्न 30.
महात्मा गाँधी की शहादत (बलिदान) से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा गाँधी की शहादत (बलिदान) से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. महात्मा गाँधी की नीति एवं कार्यों से तत्कालीन समय के अतिवादी हिन्दू एवं मुसलमान दोनों अप्रसन्न थे। दोनों समुदायों के अतिवादी गाँधीजी पर दोष मंढ रहे थे।
  2. हिन्दू-मुस्लिम एकता के अनेक अडिग प्रयासों से अतिवादी हिन्दू महात्मा गाँधी से इतने नाराज थे कि उन्होंने अनेक बार गाँधीजी को जान से मारने का प्रयास किया।
  3. गाँधीजी ने प्रार्थना सभा में हर किसी से मिलना जारी रखा। आखिरकार 30 जनवरी, 1948 के दिन एक हिन्दू अतिवादी नाथूराम विनायक गोडसे ने गोली मारकर गाँधीजी की हत्या कर दी।
  4. गाँधीजी की मौत का देश के साम्प्रदायिक माहौल पर जादुई असर हुआ । विभाजन से जुड़ा क्रोध और हिंसा अचानक मंद पड़ गये। भारत सरकार ने साम्प्रदायिक संगठनों की मुश्कें कस दीं और साम्प्रदायिक राजनीति का जोश लोगों में घटने लगा।

प्रश्न 31.
“हम भारत के इतिहास के एक यादगार मुकाम पर खड़े हैं। साथ मिलकर चलें तो देश को हम महानता की नयी बुलंदियों तक पहुँचा सकते हैं, जबकि एकता के अभाव में हम अप्रत्याशित विपदाओं के घेरे में होंगे। मैं उम्मीद करता हूँ कि भारत की रियासतें इस बात को पूरी तरह समझेंगी कि अगर हमने सहयोग नहीं किया और सर्व-सामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो अराजकता और अव्यवस्था हममें से सबको चाहे कोई छोटा हो या बड़ा घेर लेंगी और हमें बर्बादी की तरफ ले जाएँगी सरदार पटेल के उपर्युक्त कथन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन में सरदार पटेल ने देश की अनेकानेक रियासतों के शासकों को सम्बोधित कर एक पत्र के माध्यम से (1947) बताया कि हम सभी देशवासी अपने भारत के इतिहास के स्मरणीय क्षण पर खड़े हैं। यदि हम सभी देशवासी साथ-साथ मिलकर चलें तो निःसन्देह देश को महानता की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं। बकि एकता के अभाव में हम अप्रत्याशित संकट से घिर जायेंगे। सरदार पटेल ने आशा प्रकट की कि देशी रियासतें इस बात को पूरी तरह समझेंगी कि यदि हमने परस्पर सहयोग नहीं किया और जनसामान्य की भलाई में साथ मिलकर कदम नहीं बढ़ाया तो देश में अराजकता और अव्यवस्था हम सभी को घेर लेंगी और हमें बर्बादी की ओर ले जायेंगी। एकता में बल है, पारस्परिक फूट में बर्बादी है।

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प्रश्न 32.
भारत विभाजन से संबंधित किन्हीं दो परिणामों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
14-15 अगस्त, 1947 को भारत का विभाजन हुआ तथा भारत व पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में आए। इस विभाजन के दो परिणाम निम्नलिखित हैं।

  1. आबादी का स्थानान्तरण: विभाजन से बड़े पैमाने पर एक जगह की अल्पसंख्यक आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था।
  2. हिंसक अलगाववाद: विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बंटवारा नहीं हुआ बल्कि दो समुदायों, जो अब तक पड़ौसियों की तरह रहते थे, में हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा।

प्रश्न 33.
भारत की स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष आई किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष आई दो प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं।

  1. राष्ट्रीय एकता की चुनौती: स्वतंत्र भारत के सामने तात्कालिक चुनौती विविधता से भरे भारत में एकता की स्थापना करती थी। इस समय भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती प्रमुख थी क्योंकि अनेक रियासतें अपने को स्वतंत्र रखना चाह रही थीं तो अनेक पाकिस्तान में मिलने की इच्छा बता रही थीं।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की चुनौती: स्वतंत्र भारत के समक्ष दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की थी। यद्यपि भारतीय संविधान में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की थी, नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारण्टी दी गई थी, वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया था, तथापि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार को प्रचलन में लाने की चुनौती बनी हुई थी।

प्रश्न 34.
जवाहर लाल नेहरू ने भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों के संदर्भ में 15 अक्टूबर, 1947 को मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में क्या लिखा था?
उत्तर:
मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में नेहरूजी ने लिखा था कि- “भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यदि वे चाहें तब भी यहाँ से कहीं और नहीं जा सकते। यह एक बुनियादी तथ्य है और इस पर कोई अँगुली नहीं उठाई जा सकती। पाकिस्तान चाहे जितना उकसावा दे या वहाँ के गैर-मुस्लिमों को अपमान और भय के चाहे जितने भी घूँट पीने पड़ें, हमें अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और शालीनता के साथ पेश आना है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हमें उन्हें नागरिक के अधिकार देने होंगे और उनकी रक्षा करनी होगी। अगर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं होते तो यह एक नासूर बन जाएगा जो पूरी राज व्यवस्था में जहर फैलाएगा और शायद उसको तबाह भी कर दे।”

प्रश्न 35.
पाकिस्तान के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की माँग क्यों मान ली?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ की बात कही और इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ इन दो कौमों का देश था और इसीलिए मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की। काँग्रेस ने इस सिद्धांत का विरोध किया। सन् 1940 के दशक में राजनीतिक मोर्चे पर कई बदलाव आए, काँग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा तथा ब्रिटिश- शासन की भूमिका जैसी कई बातों का जोर रहा । फलस्वरूप पाकिस्तान की माँग मान ली गई ।

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प्रश्न 36.
विभाजन के परिणाम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सन् 1947 के विभाजन पर एक जगह की आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। यह स्थानांतरण मानव-इतिहास के अब तक सबसे बड़े स्थानांतरणों में से एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मारा। लोग अपना घर – बार छोड़ने पर मजबूर हुए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग गए और उन्होंने शरणार्थी शिविर में पनाह ली। सीमा के दोनों ओर हजारों की तादाद में औरतों को अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई मामलों में यह भी हुआ कि खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला । बहुत से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गए। लाखों की संख्या में लोग बेघर हो गए।

प्रश्न 37.
भारत के नेताओं ने नागरिकता की कसौटी धर्म को नहीं बनाया । इस कथन को सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रूप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। इसी प्रकार कुछ भारतीय संगठनों ने भी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिन्दुओं को लामबंद करने की कोशिश की। लेकिन भारत की कौमी सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के पक्षधर थे चाहे नागरिक किसी भी धर्म का हो। वे भारत को ऐसे राष्ट्र के रूप में नहीं देखना चाहते थे जहाँ किसी एक धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्मावलंबियों के ऊपर वरीयता दी जाए अथवा किसी एक धर्म के विश्वासियों के मुकाबले बाकियों को हीन समझा जाता हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे किसी भी धर्म का हो, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर होना चाहिए। हमारे नेतागण धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श के हिमायती थे।

प्रश्न 38.
अंग्रेजी – राज का नजरिया यह था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। यह अपने आप में गंभीर समस्या थी। उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।
उत्तर:
आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश-प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से आजाद हो जाएँगे। अंग्रेजी राज के अनुसार रजवाड़े अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिल सकते हैं या स्वतंत्र रह सकते हैं । यह अपने आप में गंभीर समस्या थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था। उदाहरण के लिए – त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की। अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने भी ऐसी ही घोषणा की। कुछ शासक जैसे कि भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे । अतः रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गई कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान कई छोटे- छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला था।

प्रश्न 39.
देशी रजवाड़ों की चर्चा से कौन-सी तीन बातें सामने आती हैं?
उत्तर:
देशी रजवाड़ों की चर्चा से निम्न तीन बातें सामने आती हैं।

  1. अधिकतर रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे संजीव पास बुक्स
  2. भारत सरकार का रुख लचीला था और वह कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ।
  3. विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय अखंडता एकता का सवाल सबसे अहम था।

प्रश्न 40.
यदि आजाद भारत को प्रांतों में बाँटने का आधार भाषा को बनाया गया तो अव्यवस्था फैल सकती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आजादी और बँटवारे के बाद स्थितियाँ बदलीं भारत के नेताओं को यह आभास हो गया था कि अगर भाषा के आधार पर प्रांत बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है तथा देश के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है। भाषावार राज्यों के गठन से दूसरी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से ध्यान भटक सकता।

प्रश्न 41.
आंध्रप्रदेश राज्य का गठन क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
भारत के आज़ाद होने पर भारतीय नेताओं ने भाषा के आधार पर प्रांत बनाने का फैसला स्थगित कर दिया। केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दी। पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश शामिल थे। विशाल आंध्र आंदोलन ने माँग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगुवासी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्रप्रदेश बनाया जाए। इस आंदोलन को लोगों का सहयोग मिला।

कांग्रेस के नेता और दिग्गज गाँधीवादी, पोट्टी श्रीरामुलु, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। फलस्वरूप आंध्रप्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुईं। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। मद्रास में अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।

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प्रश्न 42.
भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक समय हो गया। अर्थात् हम यह कह सकते हैं क़ि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आंदोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है। क्योंकि राजनीति और सत्ता में भागीदारी का रास्ता अब एक छोटे-से अंग्रेजी भाषी अभिजात तबके के लिए ही नहीं बल्कि बाकियों के लिए भी खुल चुका था। भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत इससे देश नहीं टूटा। इसके विपरीत देश की एकता . और ज्यादा मजबूत हुई। सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धांत को स्वीकृति मिली।

प्रश्न 43.
भारत देश के लोकतांत्रिक होने का वृहत्तर अर्थ है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब हम यह कहते हैं कि भारत ने लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया है तो इसका मतलब मात्र यह नहीं है कि भारत में लोकतांत्रिक संविधान पर अमल होता है अथवा भारत में चुनाव करवाए जाते हैं। भारत के लोकतांत्रिक होने का वृहत्तर अर्थ है । लोकतंत्र को चुनने का अर्थ था विभिन्नताओं को पहचानना और उन्हें स्वीकार करना। इसके साथ ही यह भी मानकर चलना कि विभिन्नताओं में आपसी विरोध भी हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में लोकतंत्र की धारणा विचारों और जीवन-पद्धतियों की बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई थी ।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयाँ: भारत के विभाजन में आने वाली प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित थीं।

1. मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना: भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। ऐसा कोई तरीका न था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाये।

2. प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना: मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो, ऐसा भी नहीं था। विशेषकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त जिसके नेता खान अब्दुल गफ्फार खां थे, जो द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे।

3. पंजाब और बंगाल के बँटवारे की समस्या: तीसरी कठिनाई यह थी कि ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। इन प्रान्तों का बंटवारा किस प्रकार किया जाये। 14-15 अगस्त मध्य रात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था।

4. अल्पसंख्यकों की समस्या: सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। ये लोग एक तरह से सांसत में थे। जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी भरा था। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अक्सर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। इस प्रकार विभाजन में सिर्फ संपदा, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि इसमें दोनों समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार भी हुए।

प्रश्न 2.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का हल किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का हल निम्न प्रकार किया गया।

  • मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना: भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा पूर्व में। अतः यह निर्णय किया गया कि पाकिस्तान के दो इलाके होंगे
    1. पूर्वी पाकिस्तान और
    2. पश्चिमी पाकिस्तान।
  • प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना: जो मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था, जैसे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त। उसकी आवाज की अनदेखी कर उसे पाकिस्तान में मिलाया गया।
  • पंजाब व बंगाल के बंटवारे की समस्या: इस सम्बन्ध में यह फैसला किया गया कि इन दोनों प्रान्तों का बंटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा तथा इसमें जिले अथवा तहसील को आधार माना जायेगा। लेकिन यह फैसला देर से होने के कारण दोनों प्रान्तों के बंटवारे में जान-माल की भारी हानि हुई।
  • अल्पसंख्यकों की समस्या: हर हाल में अल्पसंख्यकों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा। दोनों तरफ शरणार्थी शिविर लगाये गये और फिर उन्हें बसाया गया।

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प्रश्न 3.
1947 में भारत के विभाजन के क्या परिणाम हुए?
अथवा
‘भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक था । ‘ विभाजन के परिणामों का उल्लेख उपर्युक्त तथ्य के प्रकाश में कीजिये।
उत्तर:
भारत-विभाजन के परिणाम: 14 – 15 अगस्त, 1947 को ‘ब्रिटिश इंडिया’ का दो राष्ट्रों में विभाजन हो गया। ये राष्ट्र हैं। भारत और पाकिस्तान भारत और पाकिस्तान के विभाजन के निम्न प्रमुख परिणाम सामने आये-

  1. आबादी का स्थानान्तरण: इसके कारण बड़े पैमाने पर एक जगह की अल्पसंख्यक आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी से भरा था।
  2. घर बार छोड़ने की मजबूरी: विभाजन के परिणामस्वरूप दोनों तरफ के 80 लाख अल्पसंख्यक लोगों को अस्थाई तौर पर शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। वहाँ का स्थानीय प्रशासन इन लोगों के साथ रुखाई का बरताव कर रहा था।
  3. महिलाओं तथा बच्चों के साथ अत्याचार हुए- सीमा के दोनों ओर हजारों की तादाद में अल्पसंख्यक औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरन शादी करनी पड़ी और अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। बहुत से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गये।
  4. हिंसक अलगाव: इस विभाजन में दो समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार हुए। विभाजन की हिंसा में लगभग 5 से 10 लाख लोग मारे गये।
  5. भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा: विभाजन में वित्तीय संपदा, परिसम्पत्तियों, सरकारी काम-काज में आने वाले फर्नीचर, मशीनरी तथा सरकारी व रेलवे के कर्मचारियों का बँटवारा हुआ। साथ ही साथ टेबल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्य यंत्रों तक का बंटवारा हुआ था। अतः स्पष्ट है कि भारत तथा पाकिस्तान का विभाजन दर्दनाक तथा त्रासदी से भरा था।

प्रश्न 4.
देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत में देशी राज्यों (रजवाड़ों) के विलय पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
देशी राज्यों या रजवाड़ों के विलय की समस्या:
स्वतंत्रता के तुरन्त पहले ब्रिटिश शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश- अधीनता से स्वतंत्र हो जायेंगे तथा ये रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया है। यह एक गंभीर समस्या थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था। राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का समाधान सरदार पटेल के नेतृत्व में देशी रियासतों के विलय की समस्या का समाधान निम्न प्रकार तीन चरणों में किया गया

  1. प्रथम चरण: एकीकरण प्रथम चरण में अधिकांश देशी रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में स्वेच्छा से अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये, जिसे ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत है।
  2. द्वितीय चरण- अधिमिलन: मणिपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।
  3. तृतीय चरण: प्रजातन्त्रीकरण: इस चरण में देशी राज्यों के प्रान्तों में भी संसदीय प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की स्थापना की गई। इस प्रकार इनमें प्रजातन्त्रीकरण की समस्या को हल किया गया।

प्रश्न 5.
विभाजन की विरासतों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत विभाजन के साथ भारत को जो समस्याएँ विरासत में मिलीं उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत को विभाजन के साथ मिली समस्याएँ: भारत विभाजन के साथ भारत को जो समस्याएँ विरासत में मिलीं उन्हें विभाजन की विरासत कहा जाता है। यह समस्याएँ निम्नलिखित हैं।
1. शरणार्थियों की समस्या:
भारत के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान छोड़कर भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या लाखों में थी। अतः सरकार के सामने इन लोगों के पुनर्वास की कठिन समस्या सामने आयी। भारत सरकार को न केवल इन शरणार्थी लोगों को भारत में रहने के लिए घरों की व्यवस्था करनी थी, बल्कि उन्हें मनोवैज्ञानिक आधार पर यह समझाना भी था कि यहाँ उन्हें सुरक्षित रूप से जीवन व्यतीत करने की व्यवस्था भी की जाएगी। पं. नेहरू ने इस समस्या के समाधान हेतु पुनर्वास मन्त्रालय बनाया, शरणार्थियों के लिए जगह- जगह शिविर लगाये,
उन्हें बसाया तथा मुआवजे के रूप में यथायोग्य जमीन-जायदाद दी तथा उन्हें भारत का नागरिक बनाया।

2. कश्मीर समस्या:
भारत के विभाजन के समय देशी रियासत कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को एक स्वतन्त्र राज्य बनाने का निर्णय लिया। परन्तु पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। फलतः आक्रमणकारियों में अधिकांशतः पाकिस्तानी सैनिक थे। इस आक्रमण से कश्मीर के अस्तित्व को खतरा हो गया।

3. कश्मीर के राजा हरिसिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के घोषणा: पत्र पर हस्ताक्षर कर भारत से सहायता माँगी पं. नेहरू और सरदार पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर भेजा, इसके साथ भारत ने पाकिस्तान से यह आग्रह किया कि वह कश्मीर में अपनी सैनिक गतिविधियाँ बन्द करे। परन्तु पाकिस्तान ने इससे इन्कार कर दिया। कश्मीर की समस्या पर कोई सर्वमान्य हल निकल सके, इस हेतु पं. नेहरू इसे संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये परन्तु कश्मीर की समस्या का अब तक भी कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल पाया है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 6.
स्वतंत्रता के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को समझाते हुए राज्यों का पुनर्गठन समझाइए।
अथवा
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कब और क्यों हुआ? इसकी मुख्य सिफारिश क्या थी?
अथवा
राज्य पुनर्गठन आयोग का क्या कार्य था? इसकी प्रमुख सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन: भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग के जोर पकड़ने पर केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। राज्य पुनर्गठन आयोग का कार्य: राज्य पुनर्गठन आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मसले पर गौर करना था। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश ।

राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह सिफारिश की कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए इस आयोग की सिफारिश के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ जिसके आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र: शासित प्रदेश बनाये गये। सिफारिशों का आलोचनात्मक विश्लेषण: भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के निम्न परिणाम निकले हैं।

  1. एक लोकतांत्रिक कदम: भाषा के आधार पर नये राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में देखा गया।
  2. सीमांकन का समरूप आधार: भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन के लिए एक समरूप आधार भी मिला।
  3. एकता को बल: भाषावार पुनर्गठन से देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई।
  4. विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति

प्रश्न 7.
भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में कई गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई राज्यों के लोग अपनी भाषा के आधार पर नये राज्यों की माँग करने लगे। इसी कारण देश के कई भागों में लोगों द्वारा गंभीर आंदोलन आरंभ कर दिए गए और भारत सरकार को विवश होकर नए राज्य स्थापित करने पड़े। सन् 1960 में बंबई (मुम्बई) राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में और 1966 में पंजाब राज्य को हरियाणा और पंजाब दो राज्यों में बाँटना पड़ा।

इसी प्रकार, 1963 में नगालैण्ड और 1972 में मेघालय राज्य की स्थापना करनी पड़ी। इसी वर्ष मणिपुर, त्रिपुरा भी अलग राज्य बने तथा अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम 1987 में वजूद में आए। नवम्बर, 2000 में तीन राज्यों उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के गठन तथा 2014 में तेलंगाना के गठन के बावजूद भाषा के आधार पर जम्मू-कश्मीर में डोगरालैंड, पश्चिमी बंगाल में गोरखा राज्य, गुजरात में कच्छ राज्य, मध्य प्रदेश में विदर्भ राज्य की मांग भाषा के आधार पर ही की जा रही है।

भाषायी क्षेत्रवाद की यह भावना देश की राजनीतिक और क्षेत्रीय एकता के लिए निरंतर ख़तरा बन रही है। यदि शुद्ध भाषात्मक एकरूपता के आधार पर भारतीय संघ का गठन किया जाए तो हमारा देश इतने अधिक राज्यों में बँट जाएगा कि भारत के लिए एक राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व कायम रखना असंभव हो सकता है।

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौनसी थीं? व्याख्या करें।
अथवा
स्वतंत्रता के समय, भारत के समक्ष आई किन्हीं तीन चुनौतियों की विस्तार से व्याख्या कीजिये। स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष आई चुनौतियाँ
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष निम्नलिखित तीन तरह की चुनौतियाँ थीं-
1. राष्ट्र निर्माण की चुनौती:
स्वतंत्रता के तुरन्त बाद राष्ट्र-निर्माण की चुनौती प्रमुख थी। यहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों, भाषाओं और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते थे, इनमें एकता कायम करने की एक चुनौती थी। क्योंकि हर क्षेत्रीय व उप-क्षेत्रीय पहचान को कायम रखते हुए देश की एकता व अखण्डता को कायम रखना था। दूसरे, देशी राज्यों को भारत संघ में विलीन करने की भी एक विकट समस्या थी। इस तरह स्वतंत्रता के बाद तात्कालिक प्रश्न राष्ट्र निर्माण की चुनौतीका था।

2. लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करना:
देश के सामने दूसरी प्रमुख चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी। स्वतन्त्रता के बाद भारत ने संसदीय प्रतिनिध्यात्मक लोकतान्त्रिक मॉडल को अपनाया। लेकिन अब देश के सामने यह चुनौती थी कि संविधान पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवहार की व्यवस्थाएँ चलन में आएं ताकि लोकतंत्र कायम रह सके। दूसरी चुनौती यह थी कि एक ऐसे समतामूलक समाज का विकास किया जाये जिसमें सभी वर्गों का भला हो सके।

3. आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारित करना:
स्वतंत्रता के समय देश के समक्ष तीसरी प्रमुख चुनौती आर्थिक विकास हेतु नीतियों का निर्धारण करना था। अतः देश के सामने नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अनुरूप आर्थिक विकास करने और गरीबी को खत्म करने के लिए कारगर नीतियों का निर्धारण करने की चुनौती थी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 9.
स्वतंत्रता के बाद भारत के एकीकरण को समझाइए स्वतंत्रता के बाद भारत का एकीकरण
उत्तर:
संजीव पास बुक्स: स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष एकीकरण की प्रमुख चुनौती थी। यह चुनौती तीन रूपों में हमारे देश के नेताओं के समक्ष आई। यथा।
1. विभाजन:
विस्थापन और पुनर्वास तथा धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना – परिणामतः स्वतन्त्रता के बाद दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों को अपने-अपने घरों को छोड़कर स्थानान्तरण के लिए मजबूर होना पड़ा। यह स्थानान्तरण त्रासदी भरा रहा। दूसरे, विभाजित भारत में अब भी 12% मुसलमान भारत में रह गये थे। इसके अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बी भी यहाँ रह रहे थे। इस समस्या का निपटारा भारतीय शासकों ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाकर किया तथा संविधान में सभी नागरिकों को समान दर्जा देकर देश के एकीकरण का प्रथम चरण पूरा किया गया।

2. रजवाड़ों का विलय:
स्वतंत्रता के बाद रजवाड़ों का स्वतंत्र होना अपने आप में एक गहरी समस्या थी । इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था। लेकिन शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद भारत की सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गये। हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर तथा मणिपुर की रियासतों का विलय सरदार पटेल की सूझबूझ, जनता के दबाव तथा भारतीय सेना के माध्यम से किया जा सका।

4. राज्यों का पुनर्गठन:
भारतीय प्रान्तों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती को हल करने हेतु 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया और 1956 में इसकी सिफारिशों के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए। इससे देश में विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली और देश की एकता भी सुदृढ़ हुई।

प्रश्न 10.
राज्यों के पुनर्गठन के मसले ने देश में अलगाववाद की भावना को कैसे पनपाया? भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन की सफलताओं का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आजादी के बाद के शुरुआती सालों में एक बड़ी चिंता यह थी कि अलग राज्य बनाने की माँग से देश की एकता पर आँच आएगी। आशंका थी कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना पनपेगी और नवनिर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा। जनता के दबाव में आखिरकार केन्द्रीय नेतृत्व ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का मन बनाया।

आशंका यह थी कि अगर हर इलाके के क्षेत्रीय और भाषाई दावे को मान लिया गया तो बँटवारें और अलगाववाद के खतरे में कमी आएगी। इसके अलावा क्षेत्रीय माँगों को मानना और भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना ‘एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में भी देखा गया। भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 50 साल से भी अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भाषाई राज्य तथा इन राज्यों के गठन के लिए चले आन्दोलनों ने लोकतांत्रिक राजनीति तथा नेतृत्व की प्रकृति को बुनियादी रूपों में बदला है।

राजनीति और सत्ता में हिस्सेदारी का रास्ता अब एक सीमित अंग्रेजी अभिजात वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि बाकियों के लिए भी खुल चुका है। भाषावार पुनर्गठन से राज्यों के सीमांकन ‘के लिए एक समरूप आधार भी मिला । बहुतों की आशंका के विपरीत इससे देश नहीं टूटा। इसके विपरीत देश की एकता और ज्यादा मजबूत हुई। सबसे बड़ी बात यह कि भाषावार राज्यों के पुनर्गठन से विभिन्नता के सिद्धान्त को स्वीकृति मिली।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. भारत में नई आर्थिक नीति शुरू हुई।
(अ) 1990 में
(ब) 1991 में
(स) 1992 में
(द) 1993 में
उत्तर:
(ब) 1991 में

2. एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण का प्रवाह है।
(अ) विश्व के एक हिस्से से विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना
(ब) पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर जाना
(स) वस्तुओं का कई-कई देशों में पहुँचना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

3. निम्न में से कौनसा वैश्वीकरण का कारण नहीं है।
(अ) किसी देश की पारंपरिक वेशभूषा
(ब) प्रौद्योगिकी
(स) विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव
(द) संचार के साधनों की तरक्की
उत्तर:
(अ) किसी देश की पारंपरिक वेशभूषा

4. वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है।
(अ) कानून-व्यवस्था के सम्बन्ध में
(ब) राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्बन्ध में
(स) नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटाने के सम्बन्ध में
(द) आर्थिक कार्यों के सम्बन्ध में
उत्तर:
(स) नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटाने के सम्बन्ध में

5. वैश्वीकरण के कारण जिस सीमा तक वस्तुओं का प्रवाह बढ़ा है उस सीमा तक प्रवाह नहीं बढ़ा है।
(अ) पूँजी का
(ब) व्यापार का
(स) लोगों की आवाजाही का
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) लोगों की आवाजाही का

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

6. आर्थिक वैश्वीकरण का दुष्परिणाम है।
(अ) व्यापार में वृद्धि
(ब) पूँजी के प्रवाह में वृद्धि
(स) जनमत के विभाजन में वृद्धि
(द) विचारों के प्रवाह में वृद्धि
उत्तर:
(स) जनमत के विभाजन में वृद्धि

7. भारत में नई आर्थिक नीति के संचालक हैं।
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह
(ब) यशवन्त सिन्हा
(स) वी. पी. सिंह
(द) इन्दिरा गांधी
उत्तर:
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह

8. टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच किसकी क्रांति कर दिखाई है?
(अ) विचार की
(ब) संचार की
(स) पूँजी की
(द) वस्तु की
उत्तर:
(ब) संचार की

9. वैश्वीकरण के किस प्रभाव ने पूरे विश्व के जनमत को गहराई से बाँट दिया है?
(अ) आर्थिक
(ब) सामाजिक
(स) राजनीतिक
(द) व्यावहारिक
उत्तर:
(अ) आर्थिक

10. वैश्वीकरण के किस प्रभाव को देखते हुए इस बात का भय है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृति को खतरा पहुँचाएगी?
(अ) राजनीतिक
(ब) आर्थिक
(स) सांस्थानिक
(द) सांस्कृतिक
उत्तर:
(द) सांस्कृतिक

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1…………………….. वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क है कि इससे समृद्धि बढ़ती है।
उत्तर:
आर्थिक

2. कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व का ……………………. कहा है।
उत्तर:
पुनः उपनिवेशीकरण

3. वैश्वीकरण एक ………………………….. धारणा है।
उत्तर:
बहुआयामी

4. वैश्वीकरण से हर संस्कृति अलग और विशिष्ट हो रही है, इस प्रक्रिया को ……………….. कहते हैं।
उत्तर:
सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण

5. औपनिवेशिक दौर में भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का ……………………….. तथा बने-बनाये सामानों का ………………… देश था।
उत्तर:
निर्यातक, आयातक

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण का बुनियादी अर्थ क्या है?
उत्तर:
वैश्वीकरण का बुनियादी अर्थ है – विचार, पूँजी, वस्तु और सेवाओं का विश्वव्यापी प्रवाह।

प्रश्न 2.
वर्ल्ड सोशल फोरम (W.S.F.) क्या है?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम वैश्वीकरण का विरोध करने वाले पर्यावरणविदों, मजदूरों, युवकों और महिला कार्यकर्ताओं का एक विश्वव्यापी मंच है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की नीति में अभी भी सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन कौन-सा है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी।

प्रश्न 4.
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ की पहली बैठक कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम की पहली बैठक 2001 में ब्राजील में हुई।

प्रश्न 5.
वर्ल्ड सोशल फोरम की चौथी बैठक कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम की चौथी बैठक 2004 में मुम्बई में हुई।

प्रश्न 6.
जनार्दन काल सेंटर में काम करते हुए हजारों किलोमीटर दूर बसे अपने ग्राहकों से बात करता है, यह वैश्वीकरण का कौनसा पक्ष है?
उत्तर:
इसमें जनार्दन सेवाओं के वैश्वीकरण में हिस्सेदारी कर रहा है।

प्रश्न 7.
कोमिन्टर्न का सम्बन्ध किस एशियाई देश से था?
उत्तर:
कोमिन्टर्न का सम्बन्ध साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के शिकार हुए चीन से था।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के विभिन्न प्रवाहों की निरंतरता से क्या पैदा हुआ है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के विभिन्न प्रवाहों की निरन्तरता से ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव पैदा हुआ है।

प्रश्न 9.
राष्ट्रवाद की आधारशिला किस प्रौद्योगिकी ने रखी?
उत्तर:
छपाई (मुद्रण) की तकनीक ने।

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प्रश्न 10.
किन आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार क्रांति कर दिखाई है?
उत्तर:
टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने।

प्रश्न 11.
विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी किसके कारण संभव हुई है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की के कारण।

प्रश्न 12.
कोई ऐसी दो घटनाओं के नाम लिखिये जो राष्ट्रीय सीमाओं का जोर नहीं मानतीं।
उत्तर:

  1. बर्ड फ्लू
  2. सुनामी किसी एक राष्ट्र की हदों में सिमटे नहीं रहते।

प्रश्न 13.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में विश्व में कल्याणकारी राज्य की धारणा की जगह किस धारणा ने ले ली है?
उत्तर:
न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा ने।

प्रश्न 14.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के तहत राज्य अब किन कामों तक ही अपने को सीमित रखता है?
उत्तर:
राज्य अब कानून और व्यवस्था को बनाए रखने तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करने तक ही अपने को. सीमित रखता है।

प्रश्न 15.
भूमंडलीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यातायात और संचार के साधनों ने दुनिया के देशों को एक-दूसरे से जोड़कर विश्व ग्राम में बदल दिया है। इसी को भूमंडलीकरण कहते हैं।

प्रश्न 16.
वैश्वीकरण के दौर में अब आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक कौन है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के दौर में अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है।

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प्रश्न 17.
वैश्वीकरण के जिम्मेदार कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के जिम्मेदार दो कारण ये हैं।

  1. प्रौद्योगिकी में तरक्की
  2. विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव।

प्रश्न 18.
वैश्वीकरण के कारण किस क्षेत्र में राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है?
उत्तर:
अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बूते अब राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए किस भय को बल मिला है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी ।

प्रश्न 20.
विश्व – संस्कृति के नाम पर क्या हो रहा है?
उत्तर:
विश्व – संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है।

प्रश्न 21.
वैश्वीकरण का एक सकारात्मक प्रभाव लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण का एक सकारात्मक प्रभाव यह है कि इससे हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है।

प्रश्न 22.
औपनिवेशिक दौर में भारत किस प्रकार का देश था?
उत्तर:
पनिवेशिक दौर में भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाए सामानों का आयातक देश था।

प्रश्न 23.
स्वतंत्रता के बाद भारत ने आर्थिक दृष्टि से कौनसी नीति अपनाई?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत ने संरक्षणवाद की नीति अपनाई।

प्रश्न 24.
संरक्षणवाद की नीति क्या है?
उत्तर;
संरक्षणवाद की नीति वैश्वीकरण का विरोध करती है तथा देशी उद्योगों एवं वस्तुओं को प्रतिस्पर्द्धा से बचाने हेतु चुंगी तथा तटकर का पक्ष लेती है।

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प्रश्न 25.
मैक्डोनाल्डीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
मैक्डोनाल्डीकरण का तात्पर्य है कि संसार की विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने आप को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं।

प्रश्न 26.
साम्राज्यवाद से क्या आशय है?
उत्तर:
जब कोई देश अपनी सीमा से बाहर के क्षेत्र के लोगों के आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन पर अपना आधिपत्य स्थापित कर ले, उसे साम्राज्यवाद कहते हैं।

प्रश्न 27.
‘संरक्षणवाद’ की नीति से भारत को क्या दिक्कतें पैदा हुईं।
उत्तर:
संरक्षणवाद की नीति के कारण प्रथमतः भारत स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास के क्षेत्र में ध्यान नहीं दे पाया। दूसरे, भारत की आर्थिक वृद्धि दर धीमी रही।

प्रश्न 28.
1991 में भारत ने आर्थिक सुधारों की योजना क्यों शुरू की?
उत्तर:

  1. वित्तीय संकट से उबरने तथा
  2. आर्थिक वृद्धि की ऊँची दर हासिल करने के लिए 1991 में भारत आर्थिक सुधारों की योजना शुरू की।

प्रश्न 29.
आर्थिक सुधारों की योजना की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  1. इसके अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर से आयात प्रतिबंध हटाये गए।
  2. व्यापार और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 30.
वामपंथी आलोचक वैश्वीकरण के विरोध में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
वामपंथी आलोचकों का कहना है कि वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनी और निर्धनों के बीच की खाई को और बढ़ायेगा।

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प्रश्न 31.
दक्षिणपंथी आलोचक वैश्वीकरण के विरोध में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
दक्षिणपंथी आलोचकों का कहना है कि इससे राज्य कमजोर हो रहा है; परम्परागत संस्कृति की हानि होगी।

प्रश्न 32. वैश्वीकरण के विरोधी आंदोलनों का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
वैश्वीकरण विरोधी बहुत से आंदोलन वैश्वीकरण के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण के साम्राज्यवादी समर्थक कार्यक्रम के विरोधी हैंहोगी ।

प्रश्न 33.
1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन क्यों हुए?
उत्तर:
ये विरोध-प्रदर्शन आर्थिक रूप से ताकतवर देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों के अपनाने के विरोधमें हुए।

प्रश्न 34.
सिएटल (1999) के विरोध प्रदर्शनकारियों का क्या तर्क था?
उत्तर:
सिएटल (1999) के विरोध प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि उदीयमान वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया है।

प्रश्न 35.
नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच कौनसा है?
उत्तर:
नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ (WSF) है।

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प्रश्न 36.
वर्ल्ड सोशल फोरम’ में कौन लोग सम्मिलित हैं?
उत्तर:
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट -उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 37.
भारत में वैश्वीकरण का विरोध करने वाले किन्हीं दो क्षेत्रों का नाम बताइये।
उत्तर:

  1. वामपंथी राजनैतिक दल
  2. इन्डियन सोशल फोरम
  3. औद्योगिक श्रमिक और किसान संगठन।

प्रश्न 38.
भारत में दक्षिणपंथी खेमों से वैश्वीकरण का विरोध किस संदर्भ में किया जा रहा है?
उत्तर:
भारत में दक्षिणपंथी खेमा वैश्वीकरण के विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है।

प्रश्न 39.
बहुराष्ट्रीय निगम से क्या आशय है?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय निगम वह कम्पनी है जो एक से अधिक देशों में अपनी आर्थिक व व्यापारिक गतिविधियाँ चलाती है।

प्रश्न 40.
सांस्कृतिक समरूपता से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक समरूपता का आशय हैथोपना। विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति को विकासशील देशों में थोपना।

प्रश्न 41.
सामाजिक सुरक्षा कवच से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को वैश्वीकरण के प्रभाव से बचाने का सांस्थानिक उपाय को सामाजिक सुरक्षा कवच कहा गया है।

प्रश्न 42.
बहुराष्ट्रीय निगम से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
वह कंपनियाँ जो एक से अधिक दिशाओं में आर्थिक गतिविधियाँ चलाती हैं।

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प्रश्न 43.
क्या साम्राज्यवाद ही वैश्वीकरण है?
उत्तर:
नहीं, साम्राज्यवाद में एक देश अपनी सीमा के बाहर के देश पर आर्थिक और राजनीतिक कब्जा करता है जबकि वैश्वीकरण में इस प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।

प्रश्न 44.
कल और आज के वैश्वीकरण में आप क्या अंतर देखते हैं?
उत्तर:
पहले दो देशों के बीच वस्तु तथा कच्चे माल का आवागमन होता था और आज के युग में व्यक्ति, विचार, पूँजी, तकनीक तथा कच्चे माल का आवागमन होता है। वस्तु,

प्रश्न 45.
दो महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष
  2. विश्व व्यापार संगठन।

प्रश्न 46.
वैश्वीकरण के लिए अपरिहार्य कारक क्या है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी

प्रश्न 47.
भारत वैश्वीकरण को किन तरीकों से प्रभावित कर रहा है? कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. भारत विदेशी भूमि पर भारतीय संस्कृति तथा रीति-रिवाजों को बढ़ावा दे रहा है।
  2. भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम ने विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया है।

प्रश्न 48.
आर्थिक वैश्वीकरण का सरकारों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मेदारियों से अपना हाथ पीछे कर रही हैं।

प्रश्न 49.
वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का वैश्वीकरण के संदर्भ में क्या कहना है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का कहना है कि वैश्वीकरण ने चुनौतियाँ पेश की हैं और लोगों को इसका सामना सजग और सचेत रूप में करना चाहिए।

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प्रश्न 50.
सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप हर संस्कृति अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ क्या है?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम (WSF) – नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्वव्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ है। इस मंच के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के विरोध में वामपंथी क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण के विरोध में वामपंथी आलोचकों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी ( तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

प्रश्न 3.
दक्षिणपंथी आलोचक वैश्वीकरण के विरोध में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचकों को

  1. राजनीतिक अर्थों में राज्य के कमजोर होने की चिंता है।
  2. आर्थिक क्षेत्र में वे चाहते हैं कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और संरक्षणवाद का दौर फिर कायम हो और
  3. सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि इससे परंपरागत संस्कृति की हानि होग ।

प्रश्न 4.
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण को परिभाषित कीजिए।
अथवा
सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण की प्रक्रिया से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण:
वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं। इसका आशय यह है कि सांस्कृतिक मेलजोल का प्रभाव एकतरफा नहीं होता है, बल्कि दुतरफा होता है।

प्रश्न 5.
विश्व सामाजिक मंच एक मुक्त आकाश का द्योतक है। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण में विश्व सामाजिक मंच एक मुक्त आकाश के समान होगा। जिस प्रकार मुक्त आकाश सम्पूर्ण पक्षियों के लिए खुला होता है, ठीक उसी प्रकार विश्व को एक सामाजिक मंच मान लिया जाये तो सभी जगह उदारीकरण की अर्थव्यवस्था आ जायेगी जो सभी के लिए खुली होगी।

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प्रश्न 6.
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये कि वैश्वीकरण में परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है।
उत्तर:
बाहरी संस्कृति के प्रभावों से कभी-कभी परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है। उदाहरण के लिए, नीली जीन्स भी हथकरघा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है। जीन्स के ऊपर कुर्ता पहने अमरीकियों को देखना अब संभव है।

प्रश्न 7.
स्पष्ट कीजिये कि कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है।
उत्तर:
कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है। उदाहरण के लिए बर्गर, मसाला- डोसा का विकल्प नहीं है, इसलिए बर्गर से मसाला डोसा को कोई खतरा नहीं है। इससे इतना मात्र हुआ है कि हमारे भोजन की पसंद में एक और चीज शामिल हो गयी ह ।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में लोगों की आवाजाही वस्तुओं और पूँजी के प्रवाह के समान क्यों नहीं बढ़ी है?
उत्तर:
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में लोगों की आवाजाही वस्तुओं और पूँजी के प्रवाह के समान नहीं बढ़ी है। क्योंकि विकसित देश अपनी वीजा नीति के जरिये अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को अभेद्य बनाए रखते हैं ताकि दूसरे देशों के नागरिक आकर कहीं उनके नागरिकों के नौकरी-धंधे न हथिया लें।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. वैश्वीकरण के कारण वित्तीय क्रियाकलापों में तेजी आती है।
  2. वैश्वीकरण में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का प्रादुर्भाव होता है।
  3. वैश्वीकरण में बहुराष्ट्रीय निगमों का अधिक विकास होता है।
  4. वैश्वीकरण में भौगोलिक और राजनैतिक गतिरोध कम हो जाता है।

प्रश्न 10.
जनार्दन के एक काल सेंटर में काम करने तथा विदेशी ग्राहकों को सेवा प्रदान करने, रामधारी का अपनी बेटी के लिए चीनी – साइकिल खरीदने तथा सारिका के नौकरी करने में वैश्वीकरण के कौन-कौनसे पहलू दिखते हैं?
उत्तर:
उक्त तीनों उदाहरणों में वैश्वीकरण का कोई न कोई पहलू दिखता है। यथा।

  1. जनार्दन सेवाओं में वैश्वीकरण में हिस्सेदारी कर रहा है.
  2. रामधारी जन्मदिन के लिए चीनी – साइकिल के रूप में जो उपहार खरीद रहा है उससे हमें विश्व के एक भाग से दूसरे भाग में वस्तुओं की आवाजाही का पता लगता है।
  3. सारिका के सामने जीवन-मूल्यों के बीच दुविधा की स्थिति है। यह दुविधा अन्ततः उन अवसरों के कारण पैदा हुई है जो उसके परिवार की महिलाओं कों पहले उपलब्ध नहीं थे, लेकिन आज वे एक सच्चाई हैं और जिन्हें व्यापक स्वीकृति मिल रही है।

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प्रश्न 11.
वैश्वीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजि।
अथवा
वैश्वीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण की अवधारणा – एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात है। प्रवाह प्रवाह कई तरह के हो सकते हैं, जैसे- विचार – प्रवाह, पूँजी – प्रवाह, वस्तु – प्रवाह, व्यापार – प्रवाह, आवाजाही का प्रवाह आदि। विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना विचार प्रवाह है। पूँजी का एक से ज्यादा देशों में जाना पूँजी प्रवाह है; वस्तुओं का कई देशों में पहुँचना वस्तु प्रवाह है और उनका व्यापार तथा बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की आवाजाही क्रमशः व्यापार प्रवाह तथा लोगों की आवाजाही का प्रवाह है। इन सब प्रवाहों की निरन्तरता से ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव पैदा हुआ है और फिर यह जुड़ाव निरन्तर बना रहता है। इस सबका मिला-जुला रूप ही वैश्वीकरण की अवधारणा है।

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है क्योंकि इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव हैं। यथा।

  1. आर्थिक आयाम: वैश्वीकरण के कारण व्यापार में खुलापन आता है, व्यापार में वृद्धि होती है, पूँजी निवेश बढ़ता है, वस्तुओं तथा सेवाओं की आवाजाही एक देश से दूसरे देश में बढ़ती है।
  2. राजनैतिक आयाम: वैश्वीकरण के कारण दुनिया में लोककल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई है और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा ने ले ली है।
  3. सांस्कृतिक आयाम: वैश्वीकरण से हमारी पसंद-नापसंद का निर्धारण होता है। हम जो कुछ खाते-पीते- पहनते हैं अथवा सोचते हैं। सब पर इसका असर नजर आता है। अतः स्पष्ट है कि वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है।

प्रश्न 13.
आपकी राय में वैश्वीकरण के क्या कारण हैं? किन्हीं चार की विवेचना कीजिये।
अथवा
वैश्वीकरण के चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के कारकों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
हमारी राय में वैश्वीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैंअथवा

  1. प्रौद्योगिकी और वैश्वीकरण: विचार, पूंजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की के कारण संभव हुई है। इसी प्रकार हमारे सोचने के तरीके पर भी प्रौद्योगिकी का प्रभाव पड़ा है।
  2. विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव: विश्व के विभिन्न भागों के लोग अब इस बात को लेकर सजग हैं कि विश्व के एक भाग में घटने वाली घटना का प्रभाव विश्व के दूसरे भाग में भी पड़ेगा। इससे वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला।
  3. आर्थिक प्रवाह में तीव्रता: न्यूनतम हस्तक्षेप की राज्य की अवधारणा, पूँजीवादी व्यवस्था के वर्चस्व तथा बहुराष्ट्रीय निगमों की बढ़ती भूमिका ने वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है।
  4. साम्यवादी गुट का पतन: साम्यवादी गुट के पतन के बाद पूँजीवाद का वर्चस्व स्थापित हुआ जिसने वैश्वीकरण को गति दी।

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प्रश्न 14.
वैश्वीकरण ने विश्व की राज व्यवस्थाओं को प्रभावित किया है।
अथवा
आपके मतानुसार कोई चार प्रभावों की विवेचना कीजिए। वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव क्या हैं?
अथवा
वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभावों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया, राज्य की क्षमता में कमी- वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता यानी सरकारों को जो करना है, उसे करने की ताकत में कमी आती है। यथा

(अ) पूरी दुनिया ने वैश्वीकरण के दौर में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को त्याग कर न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की अवधारणा को अपना लिया है।

(ब) वैश्वीकरण के चलते राज्य अब आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का ही निर्धारण करता है।

(स) बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका बढ़ी है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आयी है। राज्य की ताकत में वृद्धि – कुछ मायनों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में वृद्धि हुई है।

(द) अब राज्यों के हाथ में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं।

प्रश्न 15.
आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया से क्या आशय है?
उत्तर:
र्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया – आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया से आशय है। विश्व में वस्तुओं, पूँजी, श्रम तथा विचारों के प्रवाह का व्यापक होना।

  1. वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार का इजाफा हुआ है क्योंकि आयात प्रतिबंधों को कम किया गया है।
  2. वैश्वीकरण के चलते दुनियाभर में पूँजी की आवाजाही पर अब अपेक्षाकृत कम प्रतिबंध हैं इसलिए विदेशी निवेश बढ़ रहा है।
  3. वैश्वीकरण के चलते अब विचारों के सामने राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रवाह अबाध हो उठा है। इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है।
  4. वैश्वीकरण के चलते एक देश से दूसरे देश में लोगों की आवाजाही भी बढ़ी है। एक देश के लोग अब दूसरे देश में जाकर नौकरी कर रहे हैं।

प्रश्न 16.
आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में तर्क दीजिये।
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में तर्क-आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में निम्न प्रमुख तर्क दिये जाते हैं।

  1. जनमत का विभाजन: आर्थिक वैश्वीकरण के कारण पूरे विश्व में जनमत बड़ी गहराई से बंट गया है।
  2. सरकारों द्वारा सामाजिक न्याय की उपेक्षा- आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मेदारियों से अपना हाथ खींच रही हैं और इससे सामाजिक न्याय से सरोकार रखने वाले लोग चिंतित हैं क्योंकि इससे नौकरी और जनकल्याण के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बदहाल हो जायेंगे।
  3. विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण: आर्थिक वैश्वीकरण विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण है।
  4. गरीब देशों के लिए अहितकर: वैश्वीकरण से गरीब देशों के गरीब लोग आर्थिक रूप से बर्बादी की कगार पर पहुँच जाएंगे।

प्रश्न 17.
आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में तीन तर्क दीजिये।
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में तर्क-आर्थिक वैश्वीकरण के समर्थन में अग्रलिखित तर्क दिये जाते संजीव पास बुक्स

  1. समृद्धि का बढ़ना: आर्थिक वैश्वीकरण से समृद्धि बढ़ती है और खुलेपन के कारण ज्यादा से ज्यादा जनसंख्या की खुशहाली बढ़ती है।
  2. व्यापार में वृद्धि: आर्थिक वैश्वीकरण से व्यापार में वृद्धि होती है। इससे पूरी दुनिया को फायदा होता है।
  3. पारस्परिक जुड़ाव का बढ़ना: आर्थिक वैश्वीकरण से लोगों में पारस्परिक जुड़ाव बढ़ रहा है। पारस्परिक निर्भरता की रफ्तार अब तेज हो चली है। वैश्वीकरण के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न भागों में सरकार, व्यवसाय तथा लोगों के बीच जुड़ाव बढ़ रहा है।

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प्रश्न 18.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया किस रूप में विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी?
उत्तर:
वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लेकर आता है। सांस्कृतिक समरूपता में विश्व संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति को लादा जा रहा है। राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। यही कारण है कि बर्गर या नीली जीन्स की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता अमरीकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है। विभिन्न संस्कृतियाँ वैश्वीकरण की सांस्कृतिक समरूपता के तहत अब अपने को प्रभुत्वशाली अमरीकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे – धीरे खत्म हो रही है और यह समूची मानवता के लिए भी खतरनाक है।

प्रश्न 19.
आपके अनुसार क्या भविष्य में वैश्वीकरण जारी रहेगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, वैश्वीकरण भविष्य में भी जारी रहेगा। इसके निम्न कारक हैं।

  1. प्रत्येक व्यक्ति तथा देश एक दूसरे पर निर्भर है।
  2. कोई भी व्यक्ति स्वयं अपनी आवश्यकता को पूरी नहीं कर सकता है।
  3. क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण और आपसी निर्भरता के कारण।
  4. भविष्य में विश्व सहयोग बढेगा तथा विकसित देश दूसरे देशों के शोषण के बजाय सहयोग करेंगे।

प्रश्न 20.
वैश्वीकरण की दिशा में भारत द्वारा उठाये गये किन्हीं चार कदमों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत के वैश्वीकरण की दिशा में बढ़ते कदम: भारत ने वैश्वीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाये हैं।

  1. उद्योग नीति में सुधार: सन् 1991 से भारत सरकार ने नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत कुछ उद्योगों को छोड़कर सभी उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कर दिया है।
  2. विदेशी निवेश को बढ़ावा: भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के अवसरों का पता लगाने के प्रयास तेज करने पर बल दिया गया है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में 51 प्रतिशत तक विदेशी पूँजी निवेश को तथा अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  3. विदेशी प्रौद्योगिकी समझौते: भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से विदेशों से प्रौद्योगिकी समझौते करने पर विशेष बल दिया है।
  4. विनिमय दर: 1992-93 से भारतीय रुपये को विदेशी मुद्रा में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है।

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प्रश्न 21.
वैश्वीकरण के प्रतिरोध के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण का प्रतिरोध क्यों हो रहा है? प्रमुख कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का प्रतिरोध निम्न कारणों से हो रहा है।

  1. वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी और गरीबों को और ज्यादा गरीब बनाती है।
  2. राजनीतिक अर्थ में वैश्वीकरण में राज्य के कमजोर होने की चिंता है। इससे गरीबों के हितों की रक्षा करने की राज्य की क्षमता में कमी आती है।
  3. सांस्कृतिक स्तर पर परम्परागत संस्कृति की हानि हो रही है। लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर-तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।
  4. यह साम्राज्यवाद का नया रूप है। इसके चलते विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
  5. वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुँचता है। इससे तृतीय विश्व के देशों में गरीबी व आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 22.
वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्यों की बदलती भूमिका का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्यों की भूमिका में परिवर्तन आया है। यथा।

  1. वैश्वीकरण के कारण राज्यों की आत्मनिर्भरता की नीतियाँ समाप्त होती जा रही हैं; क्योंकि वर्तमान वैश्वीकरण के युग में कोई भी विकासशील देश आत्मनिर्भर नहीं हो सकता।
  2. वैश्वीकरण के युग में पूँजी निवेश के कारण विकासशील देशों ने भी अपने बाजार विश्व के लिए खोल दिये हैं।
  3. वैश्वीकरण के कारण अंब प्रत्येक देश आर्थिक नीति को बनाते समय विश्व में होने वाले आर्थिक घटनाक्रम तथा विश्व संगठनों जैसे विश्व बैंक व विश्व व्यापार संगठन के प्रभाव में रहता है।
  4. राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली निजीकरण की नीतियाँ, कर्मचारियों की छंटनी, सरकारी अनुदानों में कमी तथा कृषि से संबंधित नीतियों पर वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

प्रश्न 23.
भारतीय राजनीति का दक्षिणपंथी खेमा वैश्वीकरण का विरोध क्यों कर रहा है?
उत्तर:
भारतीय राजनीति का दक्षिणपंथी खेमा वैश्वीकरण का विरोध कर रहा है क्योंकि इस खेमे के अनुसार केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी.वी. चैनलों के कारण स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएँ वैलेन्टाइन डे मना रहे हैं तथा पश्चिमी पोशाकों की तरफ उनकी अभिरूची बढ़ रही है।

प्रश्न 24.
1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक में क्या घटनाएँ हुई थीं?
उत्तर:
1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री – स्तरीय बैठक में वैश्वीकरण के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। ये विरोध आर्थिक रूप से ताकतवर देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों के अपनाने के विरोध में ये प्रदर्शन हुए थे। विरोधियों के अनुसार उदीयमान वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया था।

प्रश्न 25.
आजादी हासिल करने के बाद भारत ने क्या फैसला किया? इन फैसलों की वजह से कौनसी दिक्कतें पैदा हुई?
उत्तर:
औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी नीति के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक देश था तथा बने बनाए सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद ब्रिटेन के साथ अपने अनुभवों से सबक लेते हुए भारत ने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनाया जाए तथा दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजों का बनाना सीख सकें। इस ‘संरक्षणवाद’ से कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुईं। कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।

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प्रश्न 26.
क्या हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक आयाम है?
उत्तर:
नहीं, वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक आयाम नहीं है बल्कि यह राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों वाली बहुआयामी अवधारणा है। वैश्वीकरण विचारों, पूँजी, वस्तुओं और लोगों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया है।

प्रश्न 27.
” वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है।” कथन के पक्ष में अपना तर्क दीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ अन्य देशों के साथ अन्योन्याश्रितता के आधार पर अर्थव्यवस्था के एकीकरण से है। यह राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति वाली अवधारणा है तथा इसमें विचारों, पूँजीगत वस्तुओं और लोगों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया होती है।

प्रश्न 28.
एक उग्रवादी समूह ने एक बयान जारी किया जिसमें कॉलेज की छात्राओं को पश्चिमी कपड़े पहने की धमकी दी गई थी। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
यह कथन वैश्वीकरण की सांस्कृतिक निहितार्थों को दर्शाता है, जो कि समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के सिकुड़ने का नेतृत्व करने के लिए पश्चिमी संस्कृति को थोपने के बारे में एक रक्षा समूह के डर के रूप में है।

प्रश्न 29.
भारत पर वैश्वीकरण के प्रभावों के विषय में दो भिन्न विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत पर वैश्वीकरण के प्रभावों पर दो विचार निम्न है।

  1. वैश्वीकरण अपनाने से भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
  2. वैश्वीकरण के बारे में इसके आलोचकों का विचार है कि भारत द्वारा वैश्वीकरण की योजनाएँ लागू करने से देश के श्रम बाजार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और बेरोजगारी बढ़ेगी।

प्रश्न 30.
यह कहना कहाँ तक सही है कि वैश्वीकरण राज्य की सम्प्रभुता का हनन करता है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऊपर दिया गया कथन सही है क्योंकि वैश्वीकरण से राज्य की संप्रभुता प्रभावित होना हैं। राज्यों को वैश्विक मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करना होता है। उदाहरण के लिए वैश्विक बाजार की भूमिका में वृद्धि, समुन्नत प्रौद्योगिकी, पर्यावरण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानून कुछ हद तक राज्यों की संप्रभुता को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 31.
नव-उपनिवेशवाद क्या है?
उत्तर:
समय तथा युग के साथ-साथ उपनिवेशवाद का रूप भी बदल गया है। नव उपनिवेशवाद परंपरागत उपनिवेशवाद का एक नया रूप है। ‘नव उपनिवेशवाद’ का लक्ष्य सैनिक तथा राजनीतिक प्रभुत्व के स्थान पर आर्थिक प्रभुत्व की स्थापना करना है। एक समृद्ध तथा शक्तिशाली देश, कमजोर देश को आर्थिक सहायता देकर उस देश की नीतियाँ तथा राजनीतिक गतिविधियों पर नियंत्रण करता है और उन नीतियों तथा गतिविधियों को अपने लाभ की ओर प्रभावकारी बनाता है।

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प्रश्न 32.
कल और आज के वैश्वीकरण में अंतर के कुछ तर्क दीजिए।
उत्तर:
कल और आज के वैश्वीकरण में बहुत अंतर है। इसको हम निम्न तर्क द्वारा देख सकते हैं।

  1. आज न केवल वस्तुएँ बल्कि लोग भी बड़ी संख्या में एक देश से दूसरे देश में जा रहे हैं।
  2. पहले पूर्व के देशों को ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रमुखता प्राप्त थी किन्तु आज विपरीत स्थिति है। पश्चिम की वस्तुओं को भी उतना ही सम्मान मिलता है।
  3. कई कंपनियाँ विकासशील देशों के उत्पाद पर अपना लेबल लगाकर पूरे विश्व बाजार में विकसित देशों के उत्पाद के रूप में बेच रही है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण को परिभाषित कीजिये इसके अंग तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ एवं परिभाषा; वैश्वीकरण विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की वैश्विक आवाजाही से जुड़ी वह परिघटना है, जिसमें इन प्रवाहों का धरातल सम्पूर्ण विश्व है और इन प्रवाहों की गति तीव्र तथा निरन्तरता लिए हुए है जो अन्ततः ‘विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव पैदा कर रही है। गाय ब्रायंबंटी के शब्दों में, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाजार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या के देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूँजी तथा विचारों के गतिशील होने से ही संबंधित नहीं है बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।

  • वैश्वीकरण के अंग- विद्वानों के मतानुसार वैश्वीकरण के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं।
    1. व्यापार या वस्तुओं का विभिन्न देशों में निर्बाध प्रवाह,
    2. विभिन्न देशों में पूँजी का स्वतन्त्र प्रवाह,
    3. तकनीक तथा विचार का बेरोकटोक प्रवाह तथा
    4. विभिन्न देशों में श्रम प्रवाह।
  • वैश्वीकरण के लिए निर्देशक सिद्धान्त: वैश्वीकरण के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
    1. राजकोषीय अनुशासन।
    2. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को खुला रखना।
    3. संस्थागत एवं रचनात्मक सुधार।
    4. बाजार की शक्तियों द्वारा आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं को निर्धारित करना।
    5. निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना।
    6. व्यापार का उदारीकरण करना।
    7. कर प्रणाली में सुधार करना।
    8. पारदर्शिता लाना।
    9. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के निर्देशों का पालन करना।
    10. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग।

प्रश्न 2.
“वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है। “इस कथन की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा के रूप में: वैश्वीकरण एक बहुआयामी धारणा है; इसके राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आयाम हैं। यथा।

  • वैश्वीकरण का राजनैतिक आयाम: वैश्वीकरण के प्रमुख राजनीतिक आयाम इस प्रकार हैं।
    1. वैश्वीकरण के कारण राज्य अब मुख्य कार्यों, जैसे: कानून-व्यवस्था तथा नागरिक सुरक्षा तक ही अपने को सीमित रखता है। इससे आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में राज्य की शक्तियाँ कम हुई हैं।
    2. वैश्वीकरण के चलते अब राज्यों के हाथों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं। इससे राज्य की क्षमता बढ़ी है।
  • वैश्वीकरण का आर्थिक आयाम: आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया में दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हो जाता है। इसके चलते दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई है, पूँजी के निवेश की बाधाएँ हटी हैं, विचारों का प्रवाह अबाध हुआ है।
  • वैश्वीकरण के सांस्कृतिक आयाम: वैश्वीकरण में राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती हैं और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। इससे विश्व की सांस्कृतिक धरोहरें खत्म हो रही हैं। दूसरी तरफ, हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ रहा है, और प्रभुत्वशाली संस्कृति के सांस्कृतिक प्रभावों के अन्तर्गत ही परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना स्थानीय संस्कृति का परिष्कार भी हो रहा है।

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प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के कारण तथा इसके राजनैतिक प्रभावों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण: वैश्वीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
1. प्रौद्योगिकी: प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण ही विचार, पूंजी, वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही में आसानी हुई है।
2. विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव: विश्वव्यापी प्रवाहों की निरन्तरता से लोगों में विश्वव्यापी पारस्परिक पैदा हुआ और इस जुड़ाव ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया है।
वैश्वीकरण के राजनैतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के राजनैतिक प्रभाव का विवेचन निम्नलिखित तीन बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • वैश्वीकरण ने कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति को कमजोर किया है- यथा-
    1. वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में अब राज्य कुछेक मुख्य कामों, जैसे कानून व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना आदि तक ही अपने को सीमित रखता है।
    2. वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण राज्य की जगह अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है।
    3. बहुराष्ट्रीय निगमों का बढ़ता प्रभाव: वैश्वीकरण के चलते पूरे विश्व में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका बढ़ी है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आती हैं।
  • कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति पर वैश्वीकरण का कोई प्रभाव नहीं राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को वैश्वीकरण से कोई चुनौती नहीं मिली है।
  • वैश्वीकरण ने राज्य की शक्ति में वृद्धि भी की है। वैश्वीकरण के फलस्वरूप अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकता है। इस सूचना के दम पर राज्य ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव पर एक निबंध लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव निम्नलिखित हैं।

I. वैश्वीकरण के नकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव:
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी; क्योंकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लाता है जिसमें विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है। इस कारण विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। इससे पूरे विश्व में विभिन्न संस्कृतियों की समृद्ध धरोहर धीरे धीरे खत्म होती जा रही है। यह स्थिति समूची मानवता के लिए खतरनाक है।

II. वैश्वीकरण के सकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव- वैश्वीकरण के कुछ सकारात्मक सांस्कृतिक प्रभाव भी पड़े हैं। जैसे
1. बाहरी संस्कृति के प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है; जैसे—बर्गर के साथ-साथ मसाला- डोसा भी अब हमारे खाने में शामिल हो गया है।
2. इसके प्रभावस्वरूप कभी-कभी संस्कृति का परिष्कार भी होता है, जैसे- नीली जीन्स के साथ खादी का कुर्ता पहनना।
3. वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। प्रश्न 5. वैश्वीकरण के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिये।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के पक्ष में तर्कवैश्वीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये गये हैं।
    1. वैश्वीकरण से लोगों में विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव बढ़ा है।
    2. वैश्वीकरण के कारण पूँजी की गतिशीलता बढ़ी है। इससे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा है तथा विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।
    3. वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा विकासशील देशों को उन्नत तकनीक का लाभ मिल सकता है।
    4. वैश्वीकरण ने विश्वव्यापी सूचना क्रांति को जन्म दिया है। इससे सामाजिक गतिशीलता बढ़ी है।
    5. वैश्वीकरण के कारण रोजगार की गतिशीलता में भारी वृद्धि हुई है।
  • वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क: वैश्वीकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं।
    1. वैश्वीकरण की व्यवस्था धनिकों को ज्यादा धनी और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है। इससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है तथा तीसरी दुनिया के देशों में गरीबी बढ़ती जा रही है।
    2. वैश्वीकरण से राज्य की गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है।
    3. वैश्वीकरण से परम्परागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर- तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।
    4. वैश्वीकरण के चलते विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
    5. वैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रभुतासम्पन्न राष्ट्रों द्वारा विकासशील देशों के बाजारों को हस्तगत करने के लिए कमजोर राष्ट्रों पर जबरन थोपी जा रही है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन: वैश्वीकरण की पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। वैश्वीकरण के विरोध में आंदोलन किये जा रहे हैं। वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलनों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. किसी खास कार्यक्रम का विरोध:
वैश्वीकरण – विरोधी बहुत से आन्दोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं हैं; बल्कि वे वैश्वीकरण के किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं।

2. बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन:
वैश्वीकरण के प्रति विरोध के प्रदर्शन मुख्यतः आर्थिक रूप से ताकतवर देशों द्वारा व्यापार के अनुचित तौर-तरीकों के अपनाने के विरोध में हुए थे। उनका तर्क था कि उदीयमान वैश्विक आर्थिक- व्यवस्था में विकासशील देशों के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया गया है।

3. वर्ल्ड सोशल फोरम (WSF ):
नव-उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध का एक विश्व व्यापी मंच ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ (WSF) है। इस मंच के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं ।

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प्रश्न 7.
भारत सरकार द्वारा वैश्वीकरण की दिशा में क्या-क्या कदम उठाये गये हैं तथा उसके क्या प्रभाव पड़े हैं? समझाइये
उत्तर:

  • भारत द्वारा वैश्वीकरण की दिशा में उठाये गये कदम सन् 1991 के बाद से आर्थिक सुधारों को अपनाते हुए भारत ने वैश्वीकरण की दिशा में निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाये हैं।
    1. 1990 के दशक में उदारीकरण वैश्वीकरण की नीति के तहत औद्योगिक लाइसेंस युग को समाप्त कर दिया गया, सार्वजनिक क्षेत्र में कटौती की गई, व्यापारिक गतिविधियों पर सरकार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया तथा निजीकरण सम्बन्धी कार्यक्रमों की पहल की गई।
    2. 1990 के दशक के दौरान ही विभिन्न क्षेत्रों पर आयात बाधायें हटायी गईं। इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी शामिल थे।
    3. भारतीय शुल्क दरों में तेजी से कमी की गई। भारत में वैश्वीकरण के सकारात्मक परिणाम
  • वैश्वीकरण के भारत में निम्नलिखित सकारात्मक परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं।
    1. वैश्वीकरण को अपनाने से भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दर तथा विकास दर में तेजी से वृद्धि हुई है।
    2. उदारीकरण के बाद GDP विकास में जो उछाल आया, उसने भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार ला दिया।
    3. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप भारत में गरीबी में जीवन-यापन कर रहे लोगों का अनुपात धीरे-धीरे घट रहा है। भारत में वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव
  • आर्थिक सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछेक प्रतिकूल प्रभाव भी डाले हैं, यथा।
    1. वैश्वीकरण के कारण कृषि में सब्सिडी को कम किये जाने से अनाज की कीमतों में वृद्धि हुई है तथा कृषि क्षेत्र में आधारिक संरचना में कमी आई है।
    2. वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय बाजार को धीरे-धीरे हड़प रही हैं।
    3. अपनी विनिवेश नीति के तहत सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने से सरकार को बहुत नुकसान उठाना पड़

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव क्या हैं?
उत्तर:
भारत में भी वैश्वीकरण का प्रतिरोध हुआ है और कई आंदोलन हुए हैं। सामाजिक आंदोलनों के द्वारा हमें आस-पड़ोस की दुनिया और समाज को समझने में सहायता मिलती है। इस आंदोलनों के माध्यम से हम अपनी समस्याओं का हल तलाश सकते हैं। भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई माध्यमों द्वारा हो रहा है।

  1. वामपंथी राजनीतिक दलों ने आर्थिक वैश्वीकरण के खिलाफ आवाज उठाई है तो दूसरी तरफ मानवाधिकार- कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता इंडियन सोशल फोरम के मंचों के माध्यम से नव-उदारवादी वैश्वीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
  2. औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है।
  3. कुछ औषधीय वनस्पतियों जैसे ‘नीम’ को अमरीकी और यूरोपीय कंपनी ने पेटेन्ट कराने का प्रयास किया इसका भी कड़ा विरोध हुआ है।
  4. वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिण पंथी खेमा भी कर रहा है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जैसे- केवल नेटवर्क के द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी.वी. चैनलों से लेकर वैलेन्टाईन- डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ी अभिरुचि का विरोध भी शामिल है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की व्याख्या कीजिए। वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान रहा है?
उत्तर:
अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण मौलिक रूप से प्रवाह से संबंधित है। ये प्रवाह कई तरह के हो सकते हैं। दुनिया के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले विचार, दो या दो से अधिक स्थानों के बीच पूँजी का टकराव, सीमाओं के पार होने वाली वस्तुओं और दुनिया के विभिन्न भागों में बेहतर आजीविका की तलाश में घूम रहे लोग ‘विश्वव्यापी अन्तर्सम्बन्ध’ एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो इन निरंतर प्रवाह के परिणामस्वरूप बना और टिका हुआ है। जबकि वैश्वीकरण का कोई एक कारण नहीं है अपितु प्रौद्योगिकी इसका एक अपरिहार्य वजह है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाल के वर्षों में टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के आविष्कार ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संचार में क्रांति लाई है। जब शुरू में मुद्रण हुआ तो यह राष्ट्रवाद के निर्माण का आधार बना। इसलिए आज हमें यह भी उम्मीद करनी चाहिए कि प्रौद्योगिकी हमारे व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि हमारे सामाजिक जीवन के बारे में सोचती है। दुनिया के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में अधिक आसानीपूर्वक आने जाने के लिए विचारों, पूँजी, वस्तुओं और लोगों की क्षमता को तकनीकी विकास द्वारा बड़े पैमाने पर संभव बनाया गया है। इन प्रवाहों की गति भिन्न हो सकती है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आलोचक कैसे देखते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण ने कुछ सकारात्मक आलोचनाओं को भी इसके सकारात्मक प्रभावों के बावजूद आमंत्रित किया है। इसके महत्त्वपूर्ण तर्कों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है।
1. आर्थिक:
(अ) विदेशी लेनदारों को शक्तिशाली बनाने के लिए बड़े पैमाने पर उपभोग के सामान पर सब्सिडी में कमी।
(ब) इसने अमीर और गरीब राष्ट्रों के बीच असमानता बढ़ा दी है, अमीर राष्ट्र और अधिक अमीर और गरीब राष्ट्र और अधिक गरीब हुए हैं।
(स) राज्यों ने भी विकसित और विकासशील राष्ट्रों के बीच असमानताएँ पैदा की हैं।

2. राजनीतिक:
(अ) राज्य के कल्याण कार्यों को कम कर दिया गया है।
(ब) राज्यों की संप्रभुता प्रभावित हुई है ।
(स) राज्य अपने लिए निर्णय लेने में कमजोर हुए हैं।

3. सांस्कृतिक:
(अ) लोग अपने पुराने मूल्यों और परंपराओं को खो रहे हैं।
(ब) दुनिया कम शक्तिशाली समाज पर अपना प्रभुत्व जमा रही है।
(स) यह संपूर्ण विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सिकोड़ता है।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

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क्रियाकलाप 1: जल प्लावन के बारे में अनेक समाजों में अपनी-अपनी पुराण कथाएँ प्रचलित हैं। ये कुछ हैं जो इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की यादों को अमिट रखते हुए अभिव्यक्त करते हैं। इनके बारे में कुछ और जानकारी का पता लगाएँ और यह बताएँ कि जलप्लावन से पहले और उसके बाद का जन-जीवन कैसा रहा होगा?
उत्तर:
जल-प्लावन के बारे में अनेक समाजों में अपनी-अपनी पुराण कथाएँ प्रचलित हैं। ये कथाएँ इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के अतीत को अपने ढंग से अभिव्यक्त करती हैं। यहूदियों की बाइबिल के अनुसार यह जल-प्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। परन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नोआ नामक एक मनुष्य को सौंपी। नोआ ने सभी जीव-जन्तुओं के एक-एक जोड़े को अपनी विशाल नाव में रख लिया। जब जल – प्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया, परन्तु नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए।

जल – प्लावन के इसी प्रकार के आख्यान विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में विविध रूपों में मिलते हैं। ऐसी ही कहानी मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में भी मिलती है। इस ‘जल प्रलय के आख्यान’ के अनुसार देवताओं ने मनुष्य जाति को नष्ट करने के लिए जल प्रलय करने का निश्चय किया। इस अवसर पर जिउसूद्र नामक व्यक्ति ने एक नाव बनाई और उसे अनेक जीवों के जोड़ों तथा अन्नादि से भर लिया। अन्त में जिउसूद्र ने देवताओं को बलि दी जिससे वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे अमृत्व प्रदान किया और उसे दिलमुन पर्वत पर स्थान दिया।

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इस प्रकार जल-प्लावन के आख्यानों से सृष्टि की रचना, उसके विनाश, तत्कालीन धार्मिक स्थिति आदि पर प्रकाश पड़ता है। जल-प्लावन से पहले मनुष्य का जीवन अनेक गतिविधियों से परिपूर्ण था। मानव-समाज खेती, पशु-पालन आदि क्रिया-कलापों में व्यस्त रहता था। उद्योग-धन्धे, व्यापार आदि विकसित थे। उस समय छोटे-बड़े सभी प्रकार के भवन, राजप्रासाद बने हुए थे। परन्तु जल – प्लावन के बाद मानव समाज को भीषण विनाशलीला का सामना करना पड़ा होगा। सर्वत्र पानी ही पानी होने के कारण बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुषों को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े होंगे और भव्य भवन, कलाकृतियाँ आदि नष्ट हो गए होंगे।

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क्रियाकलाप 2 : क्या शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव होता? इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
शहरी जीवन में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरी जीवन श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण पर निर्भर करता है। नगर के लोग आत्म-निर्भर नहीं रहते और उन्हें अनेक वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए अन्य लोगों पर आश्रित होना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर उकेरने के लिए काँसे के औजारों की आवश्यकता पड़ती है, वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता। वह यह भी नहीं जानता कि मुद्राओं के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर वह कहाँ से प्राप्त करे। काँसे के औजार बनाने वाला भी धातु ताँबा या राँगा (टिन) लाने के लिए स्वयं बाहर नहीं जाता। इस प्रकार पारस्परिक निर्भरता शहरी जीवन की विशेषता हैं। अतः शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव नहीं होता।

मेसोपोटामिया में काँसे का बहुत महत्त्व था। काँसा, ताँबे और राँगे के मिश्रण से बनता है। ये धातुएँ दूर-दूर . से मँगायी जाती थीं। शहरों में रहने वाले नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धातुओं के औजारों और उनका इस्तेमाल करने वालों की आवश्यकता पड़ती है।

बढ़ई का सही काम करने, पत्थर की मुद्राएँ उकेरने, फर्नीचर में जड़ने, सीपियाँ काटने, धातुओं के बर्तन बनाने आदि कामों के लिए धातु के औजारों और कुशल शिल्पियों की जरूरत पड़ती है। अतः शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव नहीं है। मेसोपोटामिया में खनिज संसाधनों का अभाव था। अतः मेसोपोटामिया के लोग ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी आदि धातुओं को तुर्की, ईरान तथा खाड़ी पार के देशों से मँगाते थे । ये धातुएँ शहरी जीवन के विकास के लिए आवश्यक थीं।

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क्रियाकलाप 4 : आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि असुरबनिपाल और नैबोनिडस ने मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं की कद्र की?
उत्तर:
मेसोपोटामियावासी शहरी जीवन को महत्त्व देते थे। युद्ध में शहरों के नष्ट हो जाने के बाद वे अपने काव्यों के द्वारा उन्हें याद किया करते थे। वे अपनी लेखन कला के कारण ही अपनी अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों को सुरक्षित रख सके हैं। असीरिया का अन्तिम शासक असुरबनिपाल (668-627 ई.पू.) मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं का संरक्षक था।

उसने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की। उसने इतिहास, महाकाव्य, शकुन साहित्य, ज्योतिष- विद्या, स्तुतियों तथा कविताओं की पट्टिकाओं को इकट्ठा करने का भरसक प्रयास किया और उसमें सफल रहा। उसने अपने लिपिकों को दक्षिण में पुरानी पट्टिकाओं की खोज करने के लिए भेजा क्योंकि दक्षिण में लिपिकों को विद्यालयों में पढ़ना- संजीव पास बुक्स लिखना सिखाया जाता था, जहाँ उन्हें बड़ी संख्या में पट्टिकाओं की नकलें तैयार करनी होती थीं।

गिलगमेश के महाकाव्य की पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। कुछ पट्टिकाओं के अन्त में असुरबनिपाल का उल्लेख भी मिलता है : “मैं असुरबनिपाल, ब्रह्माण्ड का सम्राट, असीरिया का शासक, जिसे देवताओं ने विशाल बुद्धि प्रदान की है, जिसने विद्वानों के पाण्डित्य के गूढ़ ज्ञान को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। मैंने देवताओं के बुद्धि-विवेक पर पट्टिकाओं पर लिखा है…और मैंने पट्टिकाओं की जाँच की और उन्हें संग्रहित किया।

मैंने उन्हें निनवै स्थित अपने इष्टदेव नाबू के मन्दिर के पुस्तकालय में भविष्य में उपयोग के लिए रख दिया- अपने जीवन के लिए, अपनी आत्मा के कल्याण के लिए और अपने शाही सिंहासन की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए। ” असुरबनिपाल ने इन पट्टिकाओं की सूची भी तैयार करवाई। असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे तथा लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था।

tatase स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने लिखा है कि उर के नगर – देवता ने उसे सपने में दर्शन दिए और उसे सुदूर दक्षिण के उस पुरातन नगर का कार्य – भार सम्भालने के लिए एक महिला पुरोहित को नियुक्त करने का आदेश दिया। उसने बताया कि उसे एक बहुत पुराने राजा का पट्टलेख मिला और उस पर उसने महिला पुरोहित की आकृति अंकित देखी।

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इसके बाद नैबोनिडस ने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। एक अन्य अवसर पर नैबोनिडस के व्यक्ति उसके पास अक्कद के राजा सारगोन की एक टूटी हुई मूर्ति लाए। नैबोनिडस ने लिखा है कि ” देवताओं के प्रति भक्ति और राजा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण, मैंने कुशल शिल्पियों को बुलाया और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया। ” इससे सिद्ध होता है कि असुरबनिपाल और नैबोनिडस ने मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं की कद्र की।

Jharkhand Board Class 11 History लेखन कला और शहरी जीवन Textbook Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण थे?
उत्तर:
विद्वानों के मतानुसार प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण। प्रमाण के रूप में रोम साम्राज्य सहित सभी पुरानी व्यवस्थाओं में दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पहले नगरों का विकास हुआ क्योंकि दजला और फरात नदियों के कारण दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सर्वाधिक उपज देने वाली थी क्योंकि यहाँ मिट्टी प्राकृतिक रूप से उपजाऊ थी। खेती के अलावा वहाँ पशुपालन की उच्च स्थितियाँ थीं तथा नदियों में पर्याप्त मछलियाँ थीं तथा गर्मियों में खजूर के पेड़ खूब पिंड खजूर होते थे। इस प्रकार प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन की उच्च स्थितियों के कारण ही वहाँ सबसे पहले नगरों का विकास हुआ।

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं –

(1) प्राकृतिक उर्वरता के कारण खाद्य पदार्थों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता था। कृषक लोग अपना फालतू अनाज शहरों में लाने लगे जहाँ उन्हें अच्छा लाभ मिलता था। इससे शहरीकरण को प्रोत्साहन मिला।

(2) प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के कारण जनसंख्या बढ़ी। इसके फलस्वरूप शहर बसने लगे। क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन, व्यापार और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है

(3) शहरों में अनाज तथा अन्य खाद्य पदार्थों के संग्रह तथा वितरण के लिए व्यवस्था करनी होती थी। इससे शहरीकरण को प्रोत्साहन मिला।

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प्रश्न 2.
आपके विचार से निम्नलिखित में से कौनसी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन – कौनसी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुईं?
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती
(ख) जल परिवहन
(ग) धातु और पत्थर की कमी
(घ) श्रम विभाजन
(ङ) मुद्राओं का प्रयोग
(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।
उत्तर:
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ –
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ निम्नलिखित थीं –
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती – अत्यन्त उत्पादक खेती प्रारंभिक शहरीकरण की अत्यन्त आवश्यक दशा थी क्योंकि शहरीकरण तभी संभव है जब खेती में इतनी उपज हो कि वह शहरों के लिए भरण-पोषण का साधन बन सके। यही कारण है कि दक्षिणी मेसोपोटामिया में खेती की उर्वरता एवं खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के कारण ही विश्व में सबसे पहले शहरों का प्रादुर्भाव हुआ।

(ख) जल परिवहन – कुशल परिवहन व्यवस्था भी शहरी विकास के लिए आवश्यक है, शहरी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जल – परिवहन सबसे सस्ता तरीका है। भारवाही पशुओं की पीठ पर रखकर या बैलगाड़ियों में डाल कर शहरों में अनाज या काठ – कोयला लाना – ले जाना बहुत कठिन होता है क्योंकि उसमें बहुत अधिक समय लगता है और उस पर काफी खर्च आता है। इसलिए परिवहन का सबसे सस्ता तरीका सर्वत्र जलमार्ग ही होता है। अनाज के बोरों से लदी हुई नावें या बजरे नदी की धारा अथवा हवा के वेग से चलते हैं, जिसमें कोई खर्च नहीं लगता था। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें परिवहन के अच्छे साधनों के रूप में कार्य करती थीं। फलतः जल परिवहन वहाँ प्रारंभिक शहरीकरण के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ।

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(ग) धातु और पत्थर की कमी – दक्षिणी मेसोपोटामिया में औजार, मोहरें (मुद्राएँ) तथा आभूषण बनाने के लिए पत्थरों की कमी थी । वहाँ औजार, पात्र का आभूषण बनाने के लिए धातुएँ भी उपलब्ध नहीं थीं। इसलिए वहाँ के लोग ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी तथा विभिन्न प्रकार के पत्थर तुर्की, ईरान तथा खाड़ी पार के देशों से मँगाते थे तथा कृषि सम्बन्धी उत्पादों को अन्य देशों के लिए निर्यात किया जाता था। इसके लिए दक्षिणी मेसोपोटामिया में व्यापारिक संगठनों का निर्माण हुआ तथा व्यापार की उन्नत अवस्था ने वहाँ प्रारंभिक शहरीकरण के प्रादुर्भाव में योगदान दिया। शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न दशाएँ :

(घ) श्रम-विभाजन – नगर के लोग आत्मनिर्भर नहीं रहते। उन्हें दूसरे लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार पारस्परिक निर्भरता के कारण नगरीय जीवन में श्रम विभाजन का विकास होता है। उदाहरण के लिए पत्थर को तराशने वाले को काँसे के औजारों की आवश्यकता होती है। वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता और न ही वह पत्थर मँगा सकता है। इस प्रकार श्रम विभाजन शहरी जीवन की विशेषता है1

(ङ) मुद्राओं का प्रयोग – लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर, विभिन्न लोगों द्वारा तथा विभिन्न मामलों के लिए होता था। वह कई प्रकार के मोलभावों के रूप में होता था। परिणामतः पट्टिकाओं के रूप में मुद्राओं का विकास हुआ।

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(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया- राजा का स्थान ऊँचा था तथा समुदाय पर उसका नियन्त्रण था। राजा की आज्ञा से आम लोगों को पत्थर खोदने, धातु खनिज लाने, मिट्टी से ईंटें तैयार करने और मन्दिर में लगाने आदि के कार्य करने पड़ते थे। इससे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारी परिवर्तन आया जो शहरी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ।

प्रश्न 3.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?
उत्तर:
पशुचारक – शहरी जीवन के लिए खतरा – खानाबदोश पशुचारक निम्नलिखित कारणों से शहरी जीवन के लिए खतरा थे-

  1. खानाबदोश पशुचारक कई बार अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों से गुजार कर ले जाते थे जिससे किसानों की फसलों को हानि पहुँचती थी। इसके फलस्वरूप किसानों एवं खानाबदोश पशुचारकों में कई बार झगड़े हो जाते थे।
  2. खानाबदोश पशुचारक कई बार किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे तथा उनका माल लूट ले जाते थे इससे अशान्ति एवं अराजकता फैलती थी जो शहरी जीवन के लिए घातक थी।
  3. कई बार बस्तियों में रहने वाले लोग भी इन खानाबदोश पशुचारकों का रास्ता रोक देते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को नदी – नहरों तक नहीं ले जाने देते थे। इससे दोनों पक्षों में संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी।
  4. कभी-कभी खानाबदोश पशुचारकों के पशु किसानों की तैयार फसल को नष्ट कर देते थे। इसके अतिरिक्त खानाबदोश पशुचारकों के पशुओं की चराई के कारण बहुत-सी उपजाऊ भूमि बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 4.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मन्दिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के पुराने मन्दिर – मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के निवास-स्थान थे। ये मन्दिर ईंट से बनाए जाते थे। समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया। इनके खुले आँगनों के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मन्दिर घरों की तरह ही होते थे क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर ही होता था। परन्तु मन्दिरों एवं घरों में कुछ अन्तर भी था। उदाहरण के लिए मन्दिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशेष अन्तरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई थीं परन्तु साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।

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निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 5.
शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौनसी नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। आपके विचार से उनमें से कौन-कौनसी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं?
उत्तर – मेसोपोटामिया में शहरी जीवन – दक्षिणी मेसोपोटामिया में लगभग 5000 ई.पू. बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया । ये शहर तीन प्रकार के थे –

  1. वे शहर जो मन्दिरों के चारों ओर विकसित हुए।
  2. वे शहर जो व्यापार के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए।
  3. शाही शहर।

मेसोपोटामिया में शहरी जीवन शुरू होने के बाद अस्तित्व में आने वाली नई संस्थाएँ –
शहरी जीवन शुरू होने के बाद मेसोपोटामिया में निम्नलिखित नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं –

(1) मन्दिर – बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में मन्दिर बनाना या उनका पुनर्निर्माण करना शुरू कर दिया। सबसे पहला ज्ञात मन्दिर एक छोटा-सा देवालय था, जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के रहने के स्थान थे। जैसे उर जो चन्द्र देवता था तथा इन्नाना जो प्रेम तथा युद्ध की देवी थी । ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे और समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था।

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लोग देवी-देवता के लिए अन्न, दही, मछली आदि लाते थे । आराध्य देव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था। कुछ समय बाद मन्दिरों में उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया शुरू हो गई। घर-परिवार से ऊपर के स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मन्दिर ने अपने क्रियाकलाप बढ़ा लिए और मुख्य शहरी संस्था का रूप ले लिया।

(2) समुदाय के नेताओं का प्रादुर्भाव – जो मुखिया लड़ाई जीतते थे, वे अपने साथियों व अनुयायियों को लूट का माल बाँट कर प्रसन्न कर देते थे तथा पराजित लोगों को बन्दी बनाकर अपने साथ ले जाते थे, जिन्हें वे अपने चौकीदार अथवा नौकर बना लेते थे। परन्तु युद्ध में विजयी होने वाले ये नेता लोग स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे। कालान्तर में इन नेताओं ने समुदायों के कल्याण पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया और उसके फलस्वरूप नई-नई संस्थाएँ तथा परिपाटियाँ स्थापित हो गईं।

इन विजेता मुखियाओं ने देवताओं की सेवा में बहुमूल्य भेंटें अर्पित करना शुरू कर दिया। उन्होंने मन्दिरों की धन-सम्पदा के वितरण का और मन्दिरों में आने-जाने वाली वस्तुओं का हिसाब-किताब रखकर प्रभावी तरीके से संचालन करने की व्यवस्था की। इसके फलस्वरूप इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा समुदाय पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया।

(3) सेना – मुखिया लोगों ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे कि वे आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त अपनी सेना एकत्रित कर सकें। उरुक नगर से हमें सशस्त्र वीरों के चित्र मिले हैं।

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(4) सामाजिक संस्थाएँ – नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रान्त वर्ग का प्रादुर्भाव हो चुका था। अधिकांश धन-सम्पत्ति पर समाज के एक छोटे से वर्ग का अधिकार था। समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। कन्या के माता – पिता की सहमति से कन्या का विवाह किया जाता था। विवाह की रस्म पूरी हो जाने के बाद वर-वधू दोनों पक्षों की ओर से उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था। पिता का घर, पशु-धन, खेत आदि उसके पुत्रों को मिलते थे।

(5) लिपि – लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी। चूंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर, अलग-अलग लोगों के साथ होते थे तथा सौदा भी कई प्रकार के माल के बारे में होता था। इसलिए शहरीकरण के बाद लिपि का विकास हुआ। मेसोपोटामियावासियों ने ही विश्व में सर्वप्रथम एक लिपि का आविष्कार किया जिसे कीलाकार लिपि कहा जाता था। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे।

(6) विद्यालय – मेसोपोटामिया में देवालय ही शिक्षा के केन्द्र थे। विद्यार्थियों को हिसाब-किताब रखने की कानूनी तथा व्यापारिक शिक्षा दी जाती थी।

(7) व्यापार – शहरीकरण के कारण व्यापार संस्था अस्तित्व में आई। शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन तथा तरह-तरह की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरी लोग आत्मनिर्भर नहीं होते, बल्कि एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इसलिए इस स्थिति में व्यापार, सेवा तथा श्रम विभाजन नामक संस्थाओं का विकास हुआ। मारी नामक नगर व्यापार का प्रमुख केन्द्र था जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा आदि वस्तुएं तुर्की, सीरिया, लेबनान आदि भेजी जाती थी।

प्रश्न 6.
किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया सभ्यता की झलक –
मेसोपोटामियां में प्रचलित कहानियों से मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती हैं। निम्नलिखित प्रचलित कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की जानकारी मिलती है –

(1) सुमेरियन महाकाव्य में वर्णित एनमर्कर की कहानी : लेखन और व्यापार का प्रयोग – मेसोपोटामिया की परम्परागत कथाओं के अनुसार उरुक के राजा एनमर्कर ने ही मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लेखन और व्यापार की व्यवस्था की थी। परम्परागत कथा के अनुसार उरुक के राजा एनमर्कर ने एक सुन्दर मन्दिर को सजाने के लिए बहुमूल्य रत्न और धातुएँ लाने के लिए अपने दूत को अरट्टा नामक देश के शासक के पास भेजा।

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परन्तु जब दूत अपनी बात को सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाया, तो राजा एनमर्कर ने अपने हाथ से चिकनी मिट्टी की पट्टिका बनाई और उस पर शब्द लिख दिए। दूत ने लिखी हुई पट्टिका अरट्टा के शासक के हाथ में दी। उच्चरित शब्द कीलाकार शब्द थे। इस कहानी से ज्ञात होता है कि एनमर्कर ने मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम व्यापार और लेखन की व्यवस्था की थी। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। उनकी लिपि कीलाकार लिपि कहलाती थी।

(2) बाइबिल के प्रथम भाग ‘ ओल्ड टेस्टामेंट’ में ‘सुमेर’ की जानकारी – यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाइबिल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेन्ट’ में इसका उल्लेख कई सन्दर्भों में किया गया है। बाइबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ (Book of Genesis) में ‘शिमार’ अर्थात् सुमेर के बारे में उल्लेख हुआ है। उसके अनुसार वहाँ ईंटों के बने शहर हैं। यूरोप के यात्री और विद्वान मेसोपोटामिया को एक प्रकार से अपने पूर्वजों की भूमि मानते थे और जब इस क्षेत्र में पुरातत्वीय खोज प्रारम्भ हुई तो ओल्ड टेस्टामेन्ट के अक्षरशः सत्य को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया।

(3) जल-प्लावन की कहानी – बाइबल में जल – प्लावन की कहानी का उल्लेख है । बाइबल के अनुसार यह जल-प्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। किन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ नामक एक मनुष्य को चुना। नोआ ने एक बहुत बड़ी नाव बनाई और उसमें सभी जीव- जन्तुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया। जब जल – प्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया परन्तु नाव में रखे गए सभी जोड़े सुरक्षित बच गए। इसी प्रकार की एक कहानी मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में भी मिलती है। इस कहानी के मुख्य पात्र को ‘जिउसूद्र’ या ‘उतनापिष्टम’ कहा जाता है।

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(4) गिलगमेश की कहानी – ‘गिलगमेश’ नामक महाकाव्य से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर बहुत गर्व था। ऐसा कहा जाता है कि गिलगमेश ने एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया था। गिलगमेश एक महान योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था। परन्तु उसे संजीव पास बुक्स उस समय प्रबल आघात पहुँचा जब उसके वीर मित्र की अचानक मृत्यु हो गई।

इससे दुःखी हो वह अमृत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने सागरों – महासागरों को पार किया और दुनिया भर का चक्कर लगाया परन्तु उसे अपने साहसिक अभियान में सफलता नहीं मिली। निराश होकर गिलगमेश अपने नगर उरुक लौट आया। वहाँ जब वह शहर की चहारदीवारी के पास चहलकदमी कर रहा था, तभी उसकी दृष्टि उन पकी ईंटों पर पड़ी जिनसे उसकी नींव गई थी। वह बहुत भाव-विभोर हो गया। इस प्रकार उरुंक नगर की विशाल प्राचीर पर आकर उस महाकाव्य की लम्बी वीरतापूर्ण और साहसभरी कथा का अन्त हो गया। इस प्रकार गिलगमेश को अपने नगर में ही सान्त्वना मिलती है, जिसे उसकी प्रजा ने बनाया था।

लेखन कला और शहरी जीवन JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. शहरी जीवन की शुरुआत – शहरी जीवन की शुरुआत मेसोपोटामिया में हुई थी।

2. मेसोपोटामिया की स्थिति – मेसोपोटामिया दजला और फरात नदियों के बीच स्थित था। वर्तमान में यह प्रदेश इराक गणराज्य का भाग है। मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी सम्पन्नता, शहरी जीवन, विशाल साहित्य, गणित और खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है। मेसोपोटामिया की लेखन प्रणाली और उसका साहित्य पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेशों तथा उत्तरी सीरिया और तुर्की में 2000 ई. पूर्व के बाद फैला।

3. सुमेर तथा अक्कद- इतिहास के आरम्भिक काल में इस प्रदेश को मुख्यतः इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था।

4. बेबीलोनिया – 2000 ई. पूर्व के बाद जब बेबीलोन एक महत्वपूर्ण शहर बन गया तब दक्षिणी क्षेत्र को बेबीलोनिया कहा जाने लगा ।

5. असीरिया – लगभग 1100 ई. पूर्व से जब असीरियन लोगों ने उत्तर में अपना राज्य स्थापित कर लिया, तब उस क्षेत्र को असीरिया कहा जाने लगा।

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6. भाषाएँ – इस प्रदेश की प्रथम ज्ञात भाषा सुमेरियन अर्थात् सुमेरी थी । 2400 ई. पूर्व के आस-पास अक्कदी भाषा प्रचलित हुई। 1400 ई. पूर्व से अरामाइक भाषा का भी प्रचलन होने लगा। यह भाषा हिब्रू से मिलती-जुलती थी और 1000 ई. पूर्व के बाद व्यापक रूप से बोली जाने लगी।

7. मेसोपोटामिया और उसका भूगोल- इराक भौगोलिक विविधता का देश है। यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है। यहाँ पशुपालन खेती की अपेक्षा आजीविका का अधिक अच्छा साधन है। पूर्व में दजला की सहायक नदियाँ परिवहन का अच्छा साधन हैं। इसका दक्षिणी भाग रेगिस्तान है और यहाँ पर ही सबसे पहले नगरों और लेखन – प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। फरात और दजला नदियाँ सिंचाई तथा उपजाऊ मिट्टी यहाँ लाने का काम करती थीं। यहाँ गेहूँ, जौ, मटर, मसूर आदि की खेती की जाती थी तथा भेड़-बकरी आदि जानवर पाले जाते थे। नदियों में मछलियां थीं तथा गर्मी में पिंड खजूर थे।

8. शहरीकरण का महत्त्व – शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त व्यापार, उत्पादन और विभिन्न प्रकार की सेवाओं श्रम विभाजन एवं एक सामाजिक संगठन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरों में संगठित व्यापार, भण्डारण की आवश्यकता भी होती है।

9. शहरों में माल की आवाजाही – मेसोपोटामिया के लोग लकड़ी, ताँबा, सोना, चाँदी आदि विदेशों से मँगाते थे तथा कपड़ा और कृषि जन्य उत्पाद निर्यात करते थे । शिल्प, व्यापार और सेवाओं के अलावा मेसोपोटामिया की नहरें और प्राकृतिक जलधाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच माल के परिवहन के अच्छे मार्ग थे। फरात नदी व्यापार के लिए विश्व – मार्ग के रूप में प्रसिद्ध थी।

10. लेखन कला का विकास – मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। वे अपना हिसाब-किताब रखने तथा शब्दकोश बनाने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने आदि में लेखन का प्रयोग करने लगे। उनकी लिपि क्यूनीफार्म (कीलाकार) थी। यहाँ 2600 ई. पू. के आस-पास वर्ण कीलाकार हो गए और भाषा सुमेरियन थी, लेकिन कीलाकार लेखन का रिवाज पहली शताब्दी तक बना रहा।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

11. लेखन प्रणाली – जिस ध्वनि के लिए कीलाक्षर या कीलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था, वह एक अकेला व्यंजन या स्वर नहीं होता था, परन्तु अक्षर होते थे। इस प्रकार लिपिक को सैकड़ों चिह्न सीखने पड़ते थे। 12. साक्षरता – मेसोपोटामिया के बहुत कम लोग पढ़-लिख सकते थे । इसका कारण था कि प्रतीकों या चिह्नों की संख्या सैकड़ों में थी तथा ये काफी जटिल थे।

13. लेखन का प्रयोग- मेसोपोटामिया में व्यापार और लेखन कला की शुरुआत करने वाला उसका राजा एनमर्कर

14. दक्षिणी मेसोपोटामिया का शहरीकरण – मन्दिर और राजा – दक्षिणी मेसोपेटामिया में कई तरह के शहर विकसित हुए। कुछ मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए, कुछ शहर व्यापारिक केन्द्र थे और कुछ शाही शहर थे। मंदिर शहर – मेसोपोटामिया में अनेक मन्दिरों का निर्माण किया गया। ये मन्दिर देवी-देवताओं के निवास-स्थान थे। ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था । लोग देवी – देवता के लिए अन्न, दही, मछली आदि लाते थे।

कुछ विजेता मुखियाओं ने देवताओं की सेवा में कीमती भेंटें अर्पित करना शुरू कर दिया, जिससे समुदाय के मन्दिरों की सुन्दरता तथा भव्यता बढ़ गई। इससे समुदाय में राजा को ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ और समुदाय पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया। युद्धबन्दियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिर का अथवा प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना पड़ता था। मेसोपोटामिया में खूब तकनीकी प्रगति भी हुई। अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औजारों का प्रयोग होता था। वास्तुविदों ने ईंटों के स्तम्भ बनाना सीख लिया थ। मूर्तिकला के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। कुम्हार चाक के द्वारा बड़े पैमाने पर सुन्दर बर्तन बनाने लगा तथा चित्रों का भी निर्माण हुआ।

15. शहरी जीवन- नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च वर्ग का उदय हो चुका था। अधिकांश धन-दौलत पर एक छोटे से वर्ग का कब्जा था। समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। पिता के घर, पशु-धन, खेत आदि पर उसके पुत्रों का अधिकार था। कन्या के माता-पिता कन्या के विवाह के लिए अपनी सहमति देते थे।

16. उर नगर-उर नगर की गलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी व संकरी थीं। जल निकासी के लिए नालियाँ नहीं थीं। लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बुहार कर गलियों में डाल देते थे । कमरों के अन्दर रोशनी खिड़कियों से नहीं, बल्कि उन दरवाजों से होकर आती थी, जो आंगन में खुला करते थे।

17. पशु- चारक क्षेत्र में एक व्यापारिक नगर- 2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। मारी राज्य में किसान और पशुचारक दोनों ही तरह के लोग रहते थे, परन्तु उस प्रदेश का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था। मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे ।

उन्होंने मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर ही नहीं किया, बल्कि स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए मारी नगर में एक मन्दिर भी बनवाया। मारी का विशाल राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास-स्थान तो था ही, साथ ही वह प्रशासन और उत्पादन, विशेष रूप से कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केन्द्र भी था। मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल भी था।

18. मेसोपोटामिया संस्कृति में शहरों का महत्त्व – मेसोपोटामिया के लोग शहरी जीवन को महत्त्व देते थे जहाँ अनेक समुदायों तथा संस्कृतियों के लोग साथ – साथ रहा करते थे। ये लोग अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व करते थे।

19. लेखन कला की देन – मेसोपोटामिया की काल-गणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परम्परा मेसोपोटामिया की विश्व को सबसे बड़ी देन है। मेसोपोटामियावासी गुणा, भाग, वर्ग तथा वर्गमूल आदि से परिचित थे। उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को चार सप्ताहों में, एक दिन को 24 घण्टों में तथा एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया था। अपनी लेखन कला और विद्यालयों के कारण ही मेसोपोटामियावासी अपनी उपलब्धियों को सुरक्षित रख सके।

20. एक पुराकालीन पुस्तकालय – असीरियाई शासक असुरबनिपाल (668-627 ई. पू.) ने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। उसने इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष विद्या, कविताओं की पट्टिकाओं को इकट्ठा करने का सफल प्रयास किया था। गिलगमेश के महाकाव्य जैसी महत्त्वपूर्ण पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे और लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयवार वर्गीकृत किया गया था।

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21. एक आरम्भिक पुरातत्ववेत्ता – 625 ई. पूर्व में दक्षिणी कछार के एक शूरवीर नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को असीरियनों के आधिपत्य से मुक्त कराया। बेबीलोन एक प्रसिद्ध नगर था जिसमें अनेक बड़े-बड़े राजमहल तथा मन्दिर विद्यमान थे। इसमें एक जिगुरात अर्थात् सीढ़ीदार मीनार थी। यहाँ का व्यापार उन्नत अवस्था में था । नैबोनिडस स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। उसने अक्कद के राजा सारगोन की मूर्ति की मरम्मत करवाई और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया।

कालरेखा

1. लगभग 7000-6000$ ई.पू. उत्तरी मेसोपोटामिया के मैदानों में खेती की शुरुआत।
2. लगभग 5000 ई.पू. दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मन्दिरों का बनना।
3. लगभग 3200 ई.पू. मेसोपोटामिया में लेखन-कार्य की शुरुआत।
4. लगभग 3000 ई.पू. उरुक का एक विशाल नगर के रूप में विकास : काँसे के औजारों के प्रयोग में वृद्धि।
5. लगभग $2700-2500$ ई.पू. आरम्भिक राजाओं का शासन काल जिनमें गिल्गेमिश जैसे पौराणिक राजा भी सम्मिलित हैं।
6. लगभग 2600 ई.पू. कीलाकार लिपि का विकास।
7. लगभग 2400 ई.पू. सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग।
8. 2370 ई.पू. सारगोन, अक्कद सम्राट।
9. लगभग 2000 ई.पू. सीरिया, तुर्की और मिस्न तक कीलाकार लिपि का प्रसार; महत्त्वपूर्ण शहरी केन्द्रों के रूप में मारी और बेबीलोन का उद्भव।
10. लगभग 1800 ई.पू. गणितीय मूलपाठों की रचना; अब सुमेरियन बोलचाल की भाषा नहीं रही।
11. लगभग 1100 ई.पू. असीरियाई राज्य की स्थापना।
12. लगभग 1000 ई.पू. लोहे का प्रयोग।
13. $720-610$ ई.पू. असीरियाई साप्राज्य।
14. 668-627 ई.पू. असुरबनिपाल का शासन।
15. 331 ई.पू. सिकन्दर द्वारा बेबीलोनिया को जीतना।
16. लगभग पहली शताब्दी (ईस्वी) अक्कदी भाषा और कीलाकार लिपि प्रयोग में रहीं।
17. 1850 कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना व पढ़ा गया।

 

JAC Class 11 History Solutions Chapter 1 समय की शुरुआत से

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पृष्ठ 9.

क्रिया-कलाप संख्या 1 : अधिकांश धर्मों में मानव प्राणियों की रचना के बारे में अनेक केहानियाँ कही गई हैं, पर अक्सर वे वैज्ञानिक खोजों से मेल नहीं खातीं। ऐसी कुछ धार्मिक कथाओं के बारे में पता लगाइए और उनकी तुलना, इस अध्याय में चर्चित मानव के क्रमिक विकास के इतिहास से कीजिए। आप उनके बीच क्या समानताएँ और अन्तर देखते हैं?
उत्तर:
आदि मानव की उत्पत्ति – आदि मानव की उत्पत्ति के विषय में दो मत प्रमुख हैं –
(1) धार्मिक तथा
(2) वैज्ञानिक।
धार्मिक मत के अनुसार इस पृथ्वी का निर्माण ईश्वर ने ही किया है तथा उसी की इच्छा से मनुष्य की भी सृष्टि हुई तथा ईश्वर की कृपा से ही मनुष्य ने निरन्तर विकास किया। ईसाइयों के पवित्र ग्रन्थ बाइबल के ओल्ड टेस्टामेन्ट में यह बताया गया है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ-साथ मनुष्य की भी रचना की। सुमेरियन लोगों के अनुसार ‘देवसमूह’ ने विश्व का निर्माण किया। इस प्रकार ईश्वर ने सब प्रकार के प्राणियों की सृष्टि की थी, बाद में उनकी वंशानुवंश परम्परा चलती रही। परन्तु आधुनिक काल में हुई वैज्ञानिक खोजों ने इस विश्वास को निराधार एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

मानव का विकास – मानव के इतिहास की जानकारी मानव के जीवाश्मों, पत्थर के औजारों और गुफाओं की चित्रकारियों की खोजों से मिलती है । परन्तु जब 200 वर्ष पूर्व ऐसी खोजें सर्वप्रथम की गई थीं, तब अनेक विद्वान् यह मानने को तैयार नहीं थे कि ये जीवाश्म प्रारम्भिक मानवों के हैं। अधिकांश विद्वानों को आदिकालीन मानव द्वारा पत्थर के औजार, चित्रकारियाँ बनाये जाने की योग्यता के बारे में भी सन्देह था। दीर्घकाल के बाद ही इन जीवाश्मों, औजारों और चित्रकारियों के वास्तविक महत्त्व को स्वीकार किया गया। इसका कारण यह था कि बाइबल के ओल्ड टेस्टामेन्ट में यह बताया गया था कि ईश्वर की सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ-साथ मनुष्य की भी रचना की थी।

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अगस्त, 1856 में निअंडर की घाटी में चूने के पत्थरों की खान की खुदाई करते समय मजदूरों को एक खोपड़ी और अस्थिपंजर के कुछ टुकड़े मिले। उस समय विद्वानों ने घोषित किया कि यह खोपड़ी आधुनिक मानव की नहीं है तथा यह खोपड़ी किसी ‘मूर्ख’ या जड़बुद्धि प्राणी की है। प्रो. हरमन शाफहौसेन ने यह दावा किया कि यह खोपड़ी एक ऐसे मानव रूप की है, जो अब अस्तित्व में नहीं है, परन्तु लोगों ने उनके इस दावे को अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार उस समय आदि मानव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में धार्मिक धारणाएँ प्रचलित थीं। मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ है। इस बात का प्रमाण हमें मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं।

पृष्ठ 24
क्रियाकलाप 3 : हादजा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा क्यों नहीं करते? उनके शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन क्यों होता रहता है? सूखा पड़ने पर भी उनके पास भोजन की कमी क्यों नहीं होती? क्या आप आज के भारत के किसी शिकारी-संग्राहक का नाम बता सकते हैं?
उत्तर:
हादजा लोगों का परिचय – हादजा शिकारियों तथा संग्राहकों का एक छोटा समूह है जो ‘लेक इयासी’ नामक एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनी झील के निकट रहते हैं । पूर्वी हादजा का क्षेत्र सूखा और चट्टानी है, परन्तु यहाँ जंगली खाद्य वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। यहाँ हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, जेब्रे, हिरण, चिंकारा, जंगली सूअर, शेर, तेन्दुए आदि अनेक बड़े जानवर मिलते हैं। यहाँ साही मछली, खरगोश, गीदड़, कछुए आदि . जानवर भी उपलब्ध हैं। हादजा लोग हाथी को छोड़कर शेष सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं तथा उनका मांस खाते हैं।

(1) हादजा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा क्यों नहीं करते ? – हादजा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा नहीं करते। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कहीं भी रह सकता है, पशुओं का शिकार कर सकता है, कहीं पर भी कंदमूल – फल, शहद आदि इकट्ठा कर सकता है और पानी ले सकता है। इस सम्बन्ध में हाजा लोगों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।

(2) हादजा लोगों के शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन – सूखे मौसम में हाजा लोगों के शिविर प्रायः जलस्रोत से एक किलोमीटर की दूरी में ही स्थापित किये जाते हैं। उनके शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के बीच विशेषकर वहाँ लगाए जाते हैं जहाँ पेड़ तथा चट्टानें दोनों उपलब्ध हैं । नमी के मौसम में हादजा लोगों के शिविर प्राय: छोटे और दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं और सूखे के मौसम में पानी के स्रोतों के निकट बड़े और घने बसे होते हैं।

(3) सूखे के समय में भी हादजा लोगों को भोजन की कमी न होना- सूखे के समय में भी हादजा लोगों के पास भोजन की कमी नहीं होती है। हादजा प्रदेश में जंगली खाद्य वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। यहाँ सूखे मौसम में भी वनस्पति खाद्य-कन्दमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। हादजा लोग यहाँ पाई जाने वाली जंगली मधुमक्खियों के शहद तथा सुंडियों को भी खाते थे, अतः यहाँ खाद्य वस्तुओं की कोई कमी नहीं रहती। अतः सूखे के समय में भी हादजा लोगों के पास भोजन की कमी नहीं होती।

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पृष्ठ 25

क्रियाकलाप 4: आप क्या सोचते हैं कि प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए ‘संजाति वृत्त’ सम्बन्धी वृत्तान्तों का इस्तेमाल करना, कितना उपयोगी अथवा अनुपयोगी है?
उत्तर:
प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए ‘संजातिवृत्त’ सम्बन्धी वृत्तान्तों का प्रयोग करना – प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए ‘संजातिवृत्त’ सम्बन्धी वृत्तान्तों का प्रयोग करना कितना उपयोगी है अथवा अनुपयोगी है। इस सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ प्रचलित हैं –

(1) पहली विचारधारा – इस विचारधारा के समर्थक विद्वानों ने आज के शिकारी संग्राहक समाजों से प्राप्त तथ्यों तथा आंकड़ों का सीधे अतीत के अवशेषों की व्याख्या करने के लिए उपयोग कर लिया है। उदाहरणार्थ, कुछ पुरातत्त्वविदों का कहना है कि 20 लाख वर्ष पहले होमिनिड स्थल जो तुर्काना झील के किनारे स्थित है, सम्भवत: आदिकालीन मानवों के शिविर या निवास-स्थान थे, जहाँ वे सूखे के मौसम में आकर रहते थे। यह विशेषता वर्तमान हादजा तथा कुंगसैन समाजों में भी पाई जाती है।

(2) दूसरी विचारधारा – इस विचारधारा के समर्थक विद्वानों का मत है कि ‘संजातिवृत्त’ सम्बन्धी तथ्यों और आँकड़ों का उपयोग अतीत के समाजों के अध्ययन के लिए नहीं किया जा सकता है। उनके मतानुसार ये चीजें एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। उदाहरण के लिए –

  • आज के शिकारी संग्राहक समाज शिकार और संग्रहण के साथ-साथ और अनेक आर्थिक क्रिया-कलापों में भी लगे रहते हैं।
  • ये जिन परिस्थितियों में रहते हैं, वे आरम्भिक मानव की अवस्था से बहुत भिन्न हैं।
  • आज के शिकारी-संग्राहक समाजों में आपस में भी बहुत भिन्नता है। वे सब समाज शिकार और संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं, उनके आकार तथा गतिविधियों में भी अन्तर पाया जाता है।
  • भोजन प्राप्त करने के सम्बन्ध में श्रम विभाजन को लेकर भी उनमें कोई आम सहमति नहीं है। अतः वर्तमान स्थिति के समाजों के आधार पर अतीत के बारे में कोई निष्कर्ष निकालना कठिन है।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 13 पर दिए गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था (Positive Feedback Mechanism) को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों (Inputs) की सूची दे सकते हैं जो औजारों के निर्माण में सहायक हुए? औजारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला?
उत्तर:
औजारों के निर्माण में सहायक निवेश – निम्नलिखित निवेश औजारों के निर्माण में सहायक सिद्ध हुए –

  1. मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।
  2. दो पैरों पर खड़े होकर चलने की क्षमता के कारण औजारों के प्रयोग के लिए बच्चों व चीजों को ले जाने के लिए हाथों का मुक्त होना।
  3. सीधे खड़े होकर चलना।
  4. आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लम्बी दूरी तक चलना।
  5. सीधे दो पैरों पर चलने से शारीरिक ऊर्जा की खपत कम होने लगी।

प्रक्रियाएँ जिनको औजारों के निर्माण से बल मिला –

औजारों के निर्माण से निम्न प्रक्रियाओं को बल मिला –
(1) भोजन में सुधार – औजारों की सहायता से मांस को साफ कर लिया जाता था तथा उसे सुखा कर सुरक्षित रख लिया जाता था। इस प्रकार सुरक्षित रखे खाद्य को बाद में खाया जा सकता था।
(2) वस्त्र – कुछ जानवरों की खाल का कपड़ों के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। सुई की सहायता से कपड़ों की सिलाई की जाने लगी।
(3) कला – छेनी या रुखानी जैसे छोटे-छोटे औजार बनाने के लिए तकनीक शुरू हो गई। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना या कुरेदना अब सम्भव हो गया।
(4) आत्मरक्षा – औजारों की सहायता से मनुष्य जंगली एवं हिंसक जानवरों से अपने जीवन की रक्षा करने में सफल हुआ।
(5) यातायात के साधन – पहिए के आविष्कार के फलस्वरूप बैलगाड़ियों का निर्माण किया जाने लगा, जिससे यातायात के साधनों का विकास हुआ।
(6) शिकार करना – औजारों के निर्माण से जानवरों को मारने अथवा शिकार करने के तरीकों में सुधार हुआ।

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प्रश्न 2.
मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पाई जाती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि सम्भवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों से हुआ।
(कं) व्यवहार और
(ख) शरीर रचना शीर्षकों के अन्तर्गत दो अलग-अलग स्तम्भ बनाइए और उन समानताओं की सूची दीजिए। दोनों के बीच पाये जाने वाले उन अन्तरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण समझते हैं।
उत्तर:
मानव तथा लंगूर और वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार में निम्नलिखित समानताएँ पाई जाती हैं –
समानताएँ –
(क) व्यवहार

मानव वानर तथा लंगूर
1. माताएँ अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। मादा वानर भी अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। वानर भी पेड़ों पर चढ़ सकते हैं।
2. मानव वृक्षों पर चढ़ सकता है। वानरों में भी सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता है।
3. मानव में सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता पाई जाती है। वानर भी लम्बी दूरी तक चल सकते हैं।
4. मानव लम्बी दूरी तक चल सकता है। वानर भी अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं और अपनी सन्तानों से प्यार करते हैं।
5. मानव अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं और उन्हें प्यार करते हैं। वानर तथा लंगूर

(ख) शरीर-रचना

मानव वानर तथा लंगूर
1. मानव रीढ़धारी है। वानर भी रीढ़धारी है।
2. मादा मानव के बच्यों को दूध पिलाने हेतु स्तन होते हैं। मादा वानरों के बच्चों को दूध पिलाने हेतु स्तन होते हैं।
3. बच्चा पैदा होने से पहले अपेक्षाकृत दीर्घकाल तक वह माता के गर्भ में पलता है। बंच्चा पैदा होने से पहले वह अपेक्षाकृत दीर्घकाल तक मादा वानर के गर्भ में पलता है।
4. मानव के शरीर पर बाल होते हैं। लंगूर तथा वानर के शरीर पर भी बाल होते हैं।

(क) व्यवहार

मानव वानर तथा लंगूर
1. मानव दो पैरों के बल चलता है। 1. वानर चार पैरों के बल चलता है।
2. मानव खेती और पशुपालन का कार्य करते हैं। 2. वानर खेती और पशुपालन का कार्य नहीं कर सकते।
3. मानव में औजार बनाने की विशेषताएँ होती हैं। उसके हाथों की रचना विशेष प्रकार की होती है। 3. मनुष्य में औजार बनाने की जो विशेषताएँ होती हैं, वे वानरों में नहीं पाई जातीं।
4. मानव सीधे खडे होकर चल सकता है। 4. वानर सीधे खड़े होकर नहीं चल सकते।

(ख) शरीर-रचना

मानव वानर तथा लंगूर
मानव का शरीर वानरों से बड़ा होता है। वानरों का शरीर अपेक्षाकृत छोटा होता है।
मानव की पूँछ नहीं होती। वानरों की पूँछ होती है।
मानव के हाथ की पकड़ सशक्त होती है। वानर के हाथ की पकड़ अपेक्षाकृत कमजोर होती है
मानव का मस्तिष्क बड़ा होता है। वानर का मस्तिष्क छोटा होता है।

प्रश्न 3.
मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा कीजिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है?
उत्तर:
मानव उद्भव का क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल – मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के अनुसार आधुनिक मानव का विकास भिन्न-भिन्न प्रदेशों में रहने वाले होमो सैपियन्स से अलग-अलग समय में हुआ। आधुनिक मानव का विकास धीरे-धीरे तथा अलग-अलग गति से हुआ। इसीलिए आधुनिक मानव विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में अलग-अलग स्वरूप में दिखाई दिया।

यह तर्क इस बात पर आधारित है कि आज के मनुष्यों के विभिन्न लक्षण पाये जाते हैं। इस मॉडल के समर्थकों का कहना है कि ये असमानताएँ एक ही क्षेत्र में पहले से रहने वाले होमो एरेक्टस तथा होमो हाइंडल-बर्गेसिस समुदायों में पाई जाने वाली भिन्नताओं के कारण हैं। हमारे विचार में क्षेत्रीयता निरन्तरता मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है।

प्रश्न 4.
इनमें से कौनसी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं :
(क) संग्रहण
(ख) औजार बनाना
(ग) आग का प्रयोग।
उत्तर:
औजार बनाना – पुरातात्विक अभिलेख में संग्रहण, औजार बनाने और आग का प्रयोग क्रियाओं में औजार बनाने की क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण सर्वाधिक मिलते हैं।

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यथा –

  1. आदि मानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने और उनका प्रयोग करने का सबसे प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया और केन्या के पुरास्थलों से मिला है। ये औजार सम्भवतः आस्ट्रेलोपिथिकस ने बनाए थे।
  2. ओल्डुवई नामक स्थान से प्राप्त आरम्भिक औजारों में एक गंडासा प्राप्त हुआ है, जिसके शल्कों को निकालकर धारदार बना दिया गया है।
  3. इसके अतिरिक्त दूसरा औजार एक हस्त – कुठार है।
  4. लगभग 35,000 वर्ष पहले ‘फेंककर मारने वाले भालों’ तथा ‘तीर-कमान’ जैसे नये प्रकार के औजार बनाए जाने लगे।
  5. सिलने के लिए सूई का आविष्कार भी हुआ । सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला साक्ष्य लगभग 21,000 वर्ष पुराना है।
  6. इसके बाद ‘छेनी’ या ‘रुखानी’ जैसे छोटे-छोटे औजार बनाये जाने लगे। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथी- दाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना सम्भव हो गया।

संक्षेप में निबन्ध लिखिए –

प्रश्न 5.
भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी मदद मिली होगी? इस पर चर्चा करिए। इन क्रिया-कलापों के लिए विचार सम्प्रेषण के अन्य किन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता था?
उत्तर:
(क) भाषा के प्रयोग से शिकार करने में मदद मिलना-जीवित प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो भाषा के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। भाषा और कला दोनों ही सम्प्रेषण अर्थात् विचार – अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। भाषा के प्रयोग

से शिकार करने में काफी मदद मिली होगी जिसका वर्णन निम्नानुसार है-
(1) लोग शिकार की योजना बना सकते थे।
(2) फ्रांस में स्थित लैसकाक्स और शोवे की गुफाओं में और स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफा में जानवरों की सैकड़ों चित्रकारियाँ प्राप्त हुई हैं। विद्वानों के अनुसार जीवन में शिकार का महत्त्व होने के कारण जानवरों की चित्रकारियाँ धार्मिक क्रियाओं, रस्मों और जादू-टोनों से जुड़ी होती थीं। जानवरों का चित्रण इसलिए किया जाता था कि ऐसी रस्म का पालन करने से शिकार करने में सफलता मिले।
(3) लोग शिकार के तरीकों तथा तकनीकों पर एक-दूसरे से चर्चा कर सकते थे।
(4) वे विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाले जानवरों की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
(5) वे जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा के उपायों के बारे में विचार-विमर्श कर सकते थे।
(6) जंगली जानवरों का शिकार करते समय प्रस्तुत होने वाले खतरों के बारे में चर्चा कर सकते थे 1
(7) वे विभिन्न सरकार के जानवरों की प्रकृति एवं स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते थे (8) वे जानवरों के शिकार करते समय सुरक्षात्मक उपायों के बारे में आपस में विचार-विमर्श कर सकते थे।
(9) वे आवश्यकतानुसार नवीन औजारों का निर्माण कर सकते थे।
(10) वे जानवरों की आवाजाही के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते थे तथा उनका जल्दी से बड़ी संख्या में वध करने के तरीकों के बारे में चर्चा कर सकते थे।
(11) शिकारी लोग वर्षा के मौसम में तथा सूखे मौसम में शिकार के लिए उपयुक्त स्थानों पर अपने शिविर लगा सकते हैं।
(12) वे मारे गए पशुओं के मांस, खाल, हड्डियों आदि के उपयोग पर चर्चा कर सकते हैं।

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(ख) भाषा के प्रयोग से आश्रय बनाने में मदद मिलना – भाषा के प्रयोग से आश्रय बनाने में निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं-

  1. लोग जंगली जानवरों तथा मौसम की प्रतिकूलता से अपनी सुरक्षा के लिए उपयुक्त आश्रय स्थलों के निर्माण के बारे में आपस में चर्चा कर सकते थे।
  2. आश्रय स्थल के निर्माण के लिए पत्थरों और अन्य सामग्री के उपयोग के बारे में चर्चा की जा सकती थी।
  3. लोग आश्रय स्थल के निर्माण के लिए उपलब्ध औजारों में सुधार कर सकते थे तथा उनका उपयोग कर सकते थे।
  4. वे आश्रय-स्थल बनाने के लिए उपयुक्त सामग्री की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  5. वे आश्रय स्थल बनाने के तरीकों तथा तकनीकों के बारे में परस्पर चर्चा कर सकते थे।
  6. वे आश्रय स्थल को अधिकाधिक सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के उपायों पर विचार-विमर्श कर सकते थे।

(ग) विचार – सम्प्रेषण के अन्य तरीके- विचार – सम्प्रेषण के लिए चित्रकारी तथा संकेतों का प्रयोग भी किया जाता था। फ्रांस के लैसकाक्स और शोवे की गुफाओं में और स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफाओं में जानवरों की अनेक चित्रकारियाँ पाई गई हैं। इनमें जंगली बैलों, घोड़ों- हिरनों, गैंडों, शेरों, भालुओं, तेन्दुओं, लकड़बग्घों और उल्लुओं के चित्र सम्मिलित हैं। इन चित्रों के माध्यम से मनुष्य ने अपने साथियों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों को शिकार के तरीकों एवं तकनीकों का सन्देश दिया होगा।

प्रश्न 6.
अध्याय के अन्त में दिए गए प्रत्येक कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कालानुक्रम-1 में से दो घटनाओं का विवरण –
1. होमिनाइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन (64 लाख वर्ष पूर्व ) – लगभग 64 लाख वर्ष पूर्व होमिनिड वर्ग का होमिनाइड उपसमूह से विकास हुआ। होमिनाइडों का मस्तिष्क होमिनिडों की अपेक्षा छोटा होता था। संजीव पास बुक्स होमिनाइड चार पैरों के बल चलते थे, परन्तु उनके शरीर का अगला हिस्सा और अगले दोनों पैर लचकदार होते थे। परन्तु होमिनिड सीधे खड़े होकर पिछले दो पैरों के बल चलते थे। उनके हाथ विशेष प्रकार के होते थे जिनकी सहायता से वे औजार बना सकते थे तथा उनका प्रयोग कर सकते थे।

2. आस्ट्रेलोपिथिकस (56 लाख वर्ष पूर्व ) – ‘आस्ट्रेलोपिथिकस, होमिनिडों’ की शाखाओं में से एक होते हैं। इन शाखाओं को जीनस कहते हैं। होमिनिडों की दूसरी प्रमुख शाखा ‘होमो’ कहलाती है। आस्ट्रेलोपिथिकस का समय 56 लाख वर्ष पहले का माना जाता है। ‘आस्ट्रेलोपिथिकस’ दो शब्दों के मेल से बना है – लैटिन शब्द ‘आस्ट्रल’ अर्थात् ‘दक्षिणी’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ अर्थात् वानर। यह नाम इसलिए दिया गया कि मानव के प्राचीन रूप में उसकी वानर अवस्था के अनेक लक्षण पाये जाते थे।

ये लक्षण निम्नलिखित थे –

  1. होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था।
  2. उनके पिछले दाँत बड़े थे।
  3. उनके हाथों की दक्षता सीमित थी।
  4. उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं थी क्योंकि वे अभी भी अपना अधिकतर समय पेड़ों पर बिताते थे।

इसलिए उनमें पेड़ों पर जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक अनेक विशेषताएँ अब भी विद्यमान थीं जैसे आगे के अंगों का लम्बा होना, हाथ और पैरों की हड्डियों का मुड़ा होना तथा टखने के जोड़ों का घुमावदार होना।

कालानुक्रम-2 में से दो घटनाओं का विवरण –
(1) आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव – आधुनिक मानव (होमो सैपियन्स) एक चिन्तनशील और बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। (होमो सैपियन्स के अस्तित्व के बारे में प्राचीनतम साक्ष्य हमें अफ्रीका के भिन्न-भिन्न भागों से मिले हैं। विद्वानों के अनुसार आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव 1,95,000 से 1,60,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इसके प्राचीनतम जीवाश्म इथियोपिया के ओमोकिबिश नामक स्थान से मिले हैं। आधुनिक मानव के मस्तिष्क का आकार बड़ा था। वह दो पैरों के बल सीधा खड़ा हो सकता था तथा सीधा चलता था। अपने हाथों की दक्षता के कारण वह औजार बना सकता था तथा उनका प्रयोग कर सकता था।

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(2) स्वर – तन्त्र का विकास – जीवित प्राणियों में मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है, जिसकी अपनी भाषा है। उच्चरित भाषा से पहले गाने या गुनगुनाने जैसे मौखिक या अ-शाब्दिक संचार का प्रयोग होता था। होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं, जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा । इस प्रकार सम्भवतः भाषा का विकास सबसे पहले 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ। मस्तिष्क में हुए परिवर्तनों के अलावा स्वर-तंत्र का विकास भी उतना ही महत्त्वपूर्ण था। स्वर-तन्त्र का विकास लगभग 2,00,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इसका सम्बन्ध विशेष रूप से आधुनिक मानव से रहा है।

समय की शुरुआत से JAC Class 11 History Notes

पाठ- सार

1. मानव का प्रादुर्भाव – विद्वानों के अनुसार 56 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर मानव का प्रादुर्भाव हुआ। आधुनिक मानव का जन्म 1,60,000 वर्ष पहले हुआ था।

2. मानव का विकास – मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ इस बात का साक्ष्य हमें मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं। 24 नवम्बर, 1859 को चार्ल्स डार्विन की पुस्तक ‘ऑन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ प्रकाशित हुई जिसमें डार्विन ने बताया कि मानव का विकास बहुत समय पहले जानवरों से हुआ।

3. आधुनिक मानव के पूर्वज – लगभग 56 लाख वर्ष पहले होमिनिड प्राणियों का प्रादुर्भाव हुआ। इनका उद्भव अफ्रीका में हुआ था । होमिनिड समूह के प्राणियों की विशेषताएँ हैं –
(1) मस्तिष्क का बड़ा आका
(2) पैरों के बल सीधे खड़े होने की क्षमता
(3) दो पैरों के बल चलना
(4) हाथ की विशेष क्षमता जिससे वह औजार बना सकता था। होमिनिडों को कई शाखाओं (जीनस) में बाँटा जा सकता है। इनमें आस्ट्रेलोपिथिकस और होमो अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। आस्ट्रेलोपिथिकस और होमो के बीच मुख्य अन्तर उनके मस्तिष्क के आकार, जबड़े और दाँतों के सम्बन्ध में पाये जाते हैं।

4. आस्ट्रेलोपिथिकस – आस्ट्रेलोपिथिकस नाम लैटिन भाषा के शब्द ‘आस्ट्रल’ अर्थात् दक्षिणी तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ अर्थात् ‘वानर’ से मिलकर बना है। होमो की अपेक्षा आस्ट्रेलोपिथिकस का मस्तिष्क छोटा होता था, पिछले दाँत बड़े होते थे तथा उसमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं होती थी।

5. आदिकालीन मानव के अवशेषों को भिन्न-भिन्न प्रजातियों में वर्गीकृत करना – आदिकालीन मानव के अवशेषों को भिन्न-भिन्न प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है। इन प्रजातियों को प्रायः उनकी हड्डियों की रचना में पाए जाने वाले अन्तर के आधार पर एक-दूसरे से अलग किया गया है। उदाहरणार्थ, प्रारम्भिक मानवों की प्रजातियों को उनकी खोपड़ी के आकार और जबड़े की विशिष्टता के आधार पर विभाजित किया गया है।

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6. होमो – लगभग 25 लाख वर्ष पहले, ध्रुवीय हिमाच्छादन से जब पृथ्वी के बड़े-बड़े भाग बर्फ से ढक गए तो जलवायु तथा वनस्पति की स्थिति में भारी परिवर्तन आए । जंगल कम हो गए तथा जंगलों में रहने के अभ्यस्त आस्ट्रेलोपिथिकस के प्रारम्भिक रूप लुप्त होते गए तथा उनके स्थान पर उनकी दूसरी प्रजातियों का उद्भव हुआ जिनमें होमो के सबसे पुराने प्रतिनिधि सम्मिलित थे।

7. होमो की प्रजातियाँ – होमो लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है- ‘आदमी’। वैज्ञानिकों ने होमो को होमो हैबिलिस (औजार बनाने वाले), होमो एरेक्टस (सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलने वाले) और होमो सैपियन्स (प्राज्ञ या चिन्तनशील मनुष्य) नामक विभिन्न प्रजातियों में बाँटा है। होमो हैबिलिस के जीवाश्म इथियोपिया में ओमो और तंजानिया में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

होमो एरेक्टस के जीवाश्म अफ्रीका तथा एशिया दोनों महाद्वीपों में पाए गए हैं। एशिया में पाए गए जीवाश्म अफ्रीकी जीवाश्मों की तुलना में परवर्ती काल के हैं। संभवतः ही मीनिड पूर्वी अफ्रीका से चलकर दक्षिणी और उत्तरी अमरीका, दक्षिणी एशिया और शायद यूरोप में गए होंगे। यूरोप में मिले सबसे पुराने जीवाश्म होमो सैपियन्स प्रजाति के होमो हाइडलबर्गेसिस तथा होमोनिअंडरथलैसिस हैं।

8. विश्व में मानव प्रजातियों का निवास –

  • आस्ट्रेलोपिथिकस, प्रारम्भिक होमो तथा होमो एरेक्टस नामक मानव प्रजातियाँ अफ्रीका में सहारा के आसपास के प्रदेश में 50 लाख से 10 लाख वर्ष पूर्व तक निवास करती थीं।
  • होमो एरेक्टस, आद्य होमो सैपियन्स, निअंडरथल मानव, होमो सैपियन्स आधुनिक मानव अफ्रीका, एशिया और यूरोप के मध्य – अक्षांश क्षेत्र में 10 लाख से 40 हजार वर्ष पूर्व निवास करते थे।
  • आधुनिक मानव आस्ट्रेलिया में 45,000 वर्ष पूर्व तक निवास करता था।
  • बाद वाले निअंडरथल, आधुनिक मानव नामक प्रजातियाँ उच्च अक्षांश पर यूरोप तथा एशिया-प्रशान्त द्वीप – समूह तथा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी रेगिस्तान और वर्षा वन में 40,000 वर्ष से अब तक निवास करती हैं।

9. आधुनिक मानव का उद्भव – क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के अनुसार अनेक क्षेत्रों में अलग-अलग मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मनुष्य का उद्भव एक ही स्थान – अफ्रीका में हुआ था।

10. आधुनिक मानवों के प्राचीनतम जीवाश्म-

1. कहाँ कब (वर्षों पहले)
2. इथियोपिया
ओमोकिबिश
1,95,000-1,60,000
3. दक्षिणी अफ्रीका
बार्डर गुफा
दी केल्डर्स
क्लासीज नदी का मुहाना
1,20,000-50,000
4. मोरक्को
दर एस सुल्तान
70,000-50,000
5. इजराइल
कफजेह स्खुल
100,000-80,000
6. आस्ट्रेलिया
मुंगो लेक (मुंगो झील)
45,000-35,000
7. बोर्नियो
नियाह गुफा
40,000
8. फ्रांस
क्रोमैगनन
लेस आइजीस के पास
35,000

11. आदिकालीन मानव का भोजन – आदिकालीन मानव कई तरीकों से अपना भोजन जुटाते थे जैसे संग्रहण, शिकार, मछली पकड़ना, अपमार्जन द्वारा अपने आप मरे या अन्य हिंसक जानवरों द्वारा मार दिये गए जानवरों की लाशों से मांस – मज्जा खुरचना।

12. आदिकालीन मानव का निवास स्थान- एक ही क्षेत्र में होमिनिड अन्य प्राइमेटों तथा मांसाहारियों के साथ निवास करते थे। पुरातत्त्वविदों का मत है कि पूर्व होमिनिड्स भी होमो हैबिलिस की भाँति जहाँ कहीं भी भोजन मिलता था, वहीं खा लेते थे। वे विभिन्न स्थानों पर सोते थे तथा अपना अधिकांश समय वृक्षों पर बिताते थे। 4,00,000 से 1,25,000 वर्ष पहले गुफाओं तथा खुले निवास-क्षेत्रों का प्रयोग किया जाता था। दक्षिणी फ्रांस कलेजले गुफा में 12×4 मीटर आकार का एक आश्रय स्थल मिला है। इसके अन्दर दो चूल्हों तथा विभिन्न भोजन-स्रोतों के प्रमाण मिले हैं।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 1 समय की शुरुआत से

13. आदिकालीन मानव के औजार- आदिकालीन मानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने तथा उनका प्रयोग किये जाने के प्रमाण इथियोपिया और केन्या के पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। आस्ट्रेलोपिथिकस ने सम्भवतया सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए थे। फेंककर मारने वाले भाले तथा तीर-कमान जैसे औजार बनाये जाने लगे। सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला प्रमाण लगभग 21,000 वर्ष पुराना है। छेनी तथा रुखानी जैसे छोटे-छोटे औजार भी बनाये जाने लगे। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना या कुरेदना अब सम्भव हो गया।

14. भाषा और कला – जीवित प्राणियों में केवल मनुष्य ही भाषा का प्रयोग करता है। होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा। पहला विचार यह है कि, सम्भवतया भाषा का विकास सर्वप्रथम 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ होगा। दूसरा विचार यह है कि, स्वर तंत्र का विकास 2 लाख वर्ष पहले हुआ था। तीसरा विचार यह है कि भाषा, कला के साथ-साथ लगभग 40,000-35000 साल पहले विकसित हुई।

15. उपसंहार – 10,000 से 4,500 वर्ष पहले तक लोगों ने कुछ जंगली पौधों का अपने उपयोग के लिए उगाना और जानवरों को पालतू बनाना सीख लिया। इसके परिणामस्वरूप खेती और पशु चारण कार्य उनकी जीवन-पद्धति का हिस्सा बन गया। अब लोगों ने गारे, कच्ची ईंटों तथा पत्थरों से स्थायी घर बना लिए। अब लोगों ने मिट्टी के बर्तन बनाना, नये प्रकार के औजारों का प्रयोग करना शुरू कर दिया।

16. काल-रेखा-1 (लाख वर्ष पूर्व)

1. 360-240 लाख वर्ष पूर्व नर-वानर (प्राइमेट); बन्दर एशिया और अफ्रीका में।
2. 240 लाख वर्ष पूर्व (अधिपरिवार) होमिनाइड; गिब्बन, एशियाई ओरांगउटान और अफ्रीकी वानर (गोरिल्ला, चिंपैंजी और बोनोबो ‘पिग्मी’ चिंपैंजी)।
3. 64 लाख वर्ष पूर्व होमिनाइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन।
4. 56 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस।
5. 26-25 लाख वर्ष पूर्व पत्थर के सबसे पहले औजार।
6. 25-20 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका का ठण्डा और शुष्क होना, जिसके परिणामस्वरूप जंगलों में कमी और घास के मैदानों में वृद्धि हुई।
7 25-20 लाख वर्ष पूर्व होमो
8. 22 लाख वर्ष पूर्व होमो हैबिलिस
9. 18 लाख वर्ष पूर्व होमो एरेक्टस
10. 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस का विलुप्त होना
11. 8 लाख वर्ष पूर्व ‘आद्य’ सैपियन्स, होमोहाइडलबर्गेसिस
12. 1.9-1.6 लाख वर्ष पूर्व होमो सैपियन्स सैपियन्स (आधुनिक मानव)
काल-रेखा-2 (लाख वर्ष पूर्व)
1. दफनाने की प्रथा का सबसे पहला साक्ष्य 3,00,000
2. होमो एरेक्टस का लोप 2,00,000
3. स्वर-तन्त्र का विकास 2 ,00000
4. नर्मदा घाटी, भारत में आद्य होमो सैपियन्स की खोपड़ी 200,0O0-1 ,30,000
5. आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव 1,95,000-1 40,000
6. निअंडरथल मानव का प्रादुर्भाव 1,30,000
7. चूल्हों के प्रयोग के विषय में सबसे पहला साक्ष्य 1,25,000
8. निअंडरथल मानवों का लोप 35,000
9. आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियों का सबसे पहला प्रमाण 27,000
10. सिलाई वाली सुई का आविष्कार 21,000

JAC Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Jharkhand Board Class 11 History मूल निवासियों का विस्थापन In-text Questions and Answers

पृष्ठ 219

क्रियाकलाप 1: यूरोपीय लोगों और अमरीकी मूल निवासियों के मन में एक-दूसरे की जो छवि थी तथा प्रकृति को देखने के जो उनके अलग-अलग तरीके थे, उन पर विचार करें।
उत्तर:
यूरोपीय लोगों तथा अमरीकी मूल निवासियों का एक-दूसरे के प्रति दृष्टिकोण
यूरोपीय लोगों तथा अमरीकी मूल निवासियों के एक-दूसरे के प्रति दृष्टिकोण का विवेचन निम्नानुसार है –

1. यूरोपीय लोगों द्वारा अमरीकी मूल निवासियों को ‘असभ्य’ समझना – अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग सभ्य मनुष्य की तरह पहचान साक्षरता, संगठित धर्म तथा शहरीकरण के आधार पर ही करते थे। अतः उन्हें अमरीकी मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए। इंग्लैण्ड के कवि वर्ड्सवर्थ ने अमरीकी मूल निवासियों के विषय में लिखा है कि, ” वे जंगलों में रहते हैं, जहाँ कल्पना – शक्ति के पास उन्हें भाव – सम्पन्न करने, उन्हें ऊँचा उठाने या परिष्कृत करने के अवसर बहुत कम हैं। ”

2. अमरीकी मूल निवासियों द्वारा यूरोपीय लोगों को लालची समझना – अमरीका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उनके लिए मित्रता में दिए गए ‘उपहार’ थे। इसके पीछे उनका कोई स्वार्थ संजीव पास बुक्स नहीं था, परन्तु धनी बनने की आशा में यूरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खाल माल थे, जिन्हें वे यूरोप में बेच कर भारी मुनाफा कमाना चाहते थे। मूल निवासियों को सुदूर यूरोप में स्थित ‘बाजार’ का तनिक भी ज्ञान नहीं था।

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उनके लिए यह बात रहस्य बनी हुई थी कि यूरोपीय व्यापारी उनकी वस्तुओं के बदले में कभी तो उन्हें बहुत सारा सामान देते थे और कभी बहुत कम। वे यूरोपीय लोगों के लालच को देख कर दुःखी होते थे। मूल निवासियों की कई लोककथाओं में यूरोपीय लोगों का उपहास किया गया था और उनका वर्णन लालची तथा धूर्त के रूप में किया गया था। प्रचुर मात्रा में रोएंदार खाल प्राप्त क़रने के लिए उन्होंने सैकड़ों ऊदबिलावों की हत्या कर दी थी। इससे मूल निवासी बड़े परेशान थे। उन्हें डर था कि जानवर उनसे इस विनाश – लीला का बदला लेंगे।

3. जंगल के विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण-मूल निवासियों ने उन मार्गों को चिन्हित किया, जो यूरोपीय लोगों के लिए अदृश्य थे। यूरोपीय लोग कटे हुए जंगलों के स्थान पर मक्के के खेत देखना चाहते थे। मूल निवासी अपनी आवश्यकताओं के लिए फसलें उगाते थे, न कि बिक्री और मुनाफे के लिए। वे जमीन का मालिक बनने को गलत मानते थे।

पृष्ठ 226

क्रियाकलाप 2 : अमरीकी इतिहासकार होवर्ड स्पाडेक के इस कथन पर टिप्पणी करें : ” अमरीकी क्रान्तिका जो प्रभाव गोरे आबादकारों के लिए था, उससे ठीक विपरीत मूल निवासियों के लिए था – फैलाव सिकुड़न बन गया, लोकतन्त्र तानाशाही बन गया, सम्पन्नता विपन्नता बन गई और मुक्ति कैद बन गई। ”
उत्तर:
अमरीकी मूल निवासियों की दशा दयनीय थी। अमरीकी क्रान्ति से गोरे आबादकार ही लाभान्वित हुए। इसके परिणामस्वरूप गोरे लोगों का प्रशासन और राजनीति में वर्चस्व स्थापित हो गया। उनकी धन-सम्पन्नता में वृद्धि हुई और वे समाज तथा राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली एवं शक्तिशाली बन गए। परन्तु इसके विपरीत अमरीकी मूल निवासियों की दशा शोचनीय बनी रही। उनके लिए लोकतन्त्र तानाशाही बन गया, सम्पन्नता विपन्नता बन गई और मुक्ति कैद बन गई। मूल निवासी छोटे इलाकों में कैद कर दिए गए थे जिन्हें ‘रिजर्वेशन्स’ कहा जाता था। जार्जिया प्रान्त के लगभग 15000 चिरोकियों को उनकी जमीनों से बेदखल कर दिया गया।

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संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकतान्त्रिक अधिकार ( राष्ट्रपति और कांग्रेस के प्रतिनिधियों के चुनाव में वोट देने का अधिकार) और सम्पत्ति का अधिकार दोनों केवल गोरे आबादकारों के लिए ही थे, मूल निवासियों के लिए नहीं। मूल निवासी अपनी संस्कृति को पूरी तरह से निभा नहीं सकते थे। उन्हें नागरिकता के अधिकारों से भी वंचित रखा जाता था । स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ भी अपर्याप्त थीं।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिणी और उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बीच के फर्कों से सम्बन्धित किसी भी बिन्दु पर टिप्पणी करिए।
उत्तर:
(i) दक्षिणी अमरीका का आधार कृषि था। वहाँ जमीन खेती के लिए बहुत उपजाऊ नहीं थी, इसलिए लोगों ने पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाए और जल निकासी तथा सिंचाई की प्रणालियों का विकास किया। वहाँ खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी। मक्का, आलू आदि प्रमुख फसलें थीं। उत्तरी अमरीका के लोगों ने बड़े पैमाने पर खेती करने का प्रयास नहीं किया। वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन नहीं करते थे। वे मछली और मांस खाते थे और सब्जियाँ तथा मकई उगाते थे। वे प्रायः मांस की खोज में लम्बी यात्राओं पर जाया करते थे। मुख्य रूप से उन्हें ‘बाइसन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते थे। परन्तु वे उतने ही जानवरों का वध करते थे, जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

(ii) चूंकि उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों ने बड़े पैमाने पर खेती नहीं की और वे अधिशेष अन्न का उत्पादन नहीं करते थे। इसलिए वहाँ केन्द्रीय तथा दक्षिणी अमरीका की भाँति राजशाही तथा साम्राज्य का विकास नहीं हुआ। वे जमीन पर अपना स्वामित्व स्थापित करने की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे तथा उससे मिलने वाले भोजन और आश्रय से सन्तुष्ट थे दूसरी ओर दक्षिणी अमरीका में और मध्य अमेरिका में एजटेक, इंका आदि लोगों ने विशाल साम्राज्य स्थापित कर रखे थे। वे अपनी भूमि के लिए युद्ध करते थे।

प्रश्न 2.
आप उन्नीसवीं सदी के संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौनसी विशेषताएँ देखते हैं?
उत्तर:
(1) जमीन के प्रति यूरोपीय लोगों का दृष्टिकोण मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो छोटे पुत्र होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। वे इसी कारण से अमरीका में जमीन के स्वामी बनना चाहते थे।

(2) संयुक्त राज्य अमरीका में जर्मनी, स्वीडन, इटली आदि देशों से ऐसे आप्रवासी भी बड़ी संख्या में आए, जिनकी जमीनें बड़े किसानों ने खरीद ली थीं। वे ऐसी जमीन चाहते थे जिसे वे अपना कह सकें।

(3) पोलैण्ड से आए लोगों को प्रेयरी चरागाहों में काम करना अच्छा लगता था जो उन्हें अपने देश के स्टेपीज (घास के मैदान) की याद दिलाते थे।

(4) यूरोपीय लोगों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत कम मूल्य पर बड़ी सम्पत्तियाँ खरीद लीं। उन्होंने जमीन को साफ किया और खेती का विकास किया। उन्होंने धान, कपास आदि की फसलें उगाईं, जो यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इन्हें यूरोप में ऊँचे मुनाफे पर बेचा जा सकता था।

(5) उन्होंने अपने खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए शिकार के द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के पश्चात् वे इन जंगली जानवरों से पूर्णतया सुरक्षित हो गए।

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(6) अंग्रेजों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी बस्तियों के विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन से वहाँ के मूल निवासियों को हटा दिया। उन्होंने या तो बहुत कम कीमत देकर या धोखे से उनसे भूमि हथिया ली।

(7) उच्च अधिकारी मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे।

प्रश्न 3.
अमरीकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने थे?
उत्तर:
यूरोपीय द्वारा जीती गई तथा खरीदी गई भूमि के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की पश्चिमी सीमा (फ्रंटियर) खिसकती रहती थी। इस सीमा के खिसकने के साथ-साथ मूल निवासी भी पीछे खिसकने के लिए विवश किए जाते थे। वे संयुक्त राज्य अमेरिका की जिस सीमा तक पहुँच जाते थे, उसे ‘फ्रंटियर’ कहा जाता था।

प्रश्न 4.
इतिहास की किताबों में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था ?
उत्तर:
इतिहास की किताबों में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल नहीं किए जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(i) इतिहासकारों को यूरोपीय लोगों की तुलना में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का निम्न कोटि का जीवन-स्तर, आर्थिक पिछड़ापन आदि आकर्षित नहीं कर सका।

(ii) इतिहासकार केवल यूरोपीय लोगों की उपलब्धियों से चकाचौंध थे और उनका वर्णन करना ही अपना कर्त्तव्य मानते थे। उन्होंने यह जानने का प्रयास ही नहीं किया कि आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के पास अपनी कथाओं, कपड़ासाजी, चित्रकारी, हस्तशिल्प के कौशल का विशाल भण्डार था और वह भण्डार आदर तथा अभिलेखन के योग्य था।

(iii) एक मूल निवासी द्वारा कैप्टन कुक की हत्या कर दिए जाने से यूरोपीय लोग नाराज थे। कैप्टन कुक की हत्या से उत्पन्न कटुता के कारण यूरोपवासियों ने आस्ट्रेलिया के विषय में जानकारी देने का प्रयत्न नहीं किया।

(iv) वे इस कारण भी मूल निवासियों से नाराज थे कि इंग्लैण्ड से केवल अपराधी लोग. आस्ट्रेलिया भेजे जाते थे और उनके कारावास पूरा होने पर ब्रिटेन वापस न लौटने की शर्त पर उन्हें आस्ट्रेलिया में स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने की अनुमति दी गई थी। इन लोगों ने मूल निवासियों को जबरदस्ती उनकी जमीनों से निकालकर बाहर कर दिया । इससे नफरत का वातावरण पैदा होता चला गया। इस कारण भी यूरोपीय लोगों में मूल निवासियों के प्रति नाराजगी थी।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण विचार करिए।
उत्तर:
लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित वस्तुओं का सहायक होना- किसी भी देश के लोगों की संस्कृति को समझने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित वस्तुएँ बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं। संग्रहालय में संजीव पास बुक्स विभिन्न प्रकार के औजार, हथियार, मिट्टी के बर्तन, विभिन्न प्रकार के सिक्के, मिट्टी, पत्थर और धातुओं की बनी हुई मूर्तियाँ, विभिन्न प्रकार के शिलालेख, विभिन्न प्रकार के वस्त्र, वेश-भूषाएँ, ग्रन्थ, चित्र आदि उपलब्ध होते हैं। इनकी सहायता से किसी भी देश के लोगों की संस्कृति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। आस्ट्रेलिया की आदि संस्कृतियाँ इसका उदाहरण हैं। कक्ष हैं –

अलवर संग्रहालय – अलवर संग्रहालय की स्थापना 1940 में की गई थी। इस संग्रहालय में निम्नलिखित चार –
1. प्रथम कक्ष – प्रथम कक्ष में पत्थर की मूर्तियाँ और शिलालेख हैं।

2. द्वितीय कक्ष – द्वितीय कक्ष में विभिन्न शासकों के वस्त्र, चंवर, सिंगारदान, हाथीदाँत की पंखी, खिलौने, पीतल एवं मिट्टी के बर्तन, चाँदी से निर्मित मेज आदि कला के सुन्दर नमूने उपलब्ध हैं।

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3. तृतीय कक्ष – तृतीय कक्ष में हस्तशिल्प कला की अनेक वस्तुएँ जैसे विभिन्न कलाकारों द्वारा बनाए गए चित्र आदि उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त इसमें ‘शाहनामा’, ‘कुरानशरीफ’, ‘अकबरनामा’, ‘नल-दमयन्ती’ आदि अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं।

4. चतुर्थ कक्ष- इस कक्ष में विभिन्न शासकों एवं योद्धाओं की तलवारें, बन्दूकें, नागफांस, बाघनख आदि अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र विद्यमान हैं। संग्रहालय में प्रदर्शित वस्तुओं से किसी भी देश के लोगों के रहन-सहन, वेश-भूषा, धार्मिक विश्वासों, विभिन्न कलाओं, चित्रकला, मूर्तिकला, हस्तशिल्प कला आदि के बारे में जानकारी मिलती है। इनसे लोगों की आर्थिक स्थिति, कला के स्तरों, राजनीतिक स्थिति, विभिन्न शासकों तथा उनकी उपलब्धियों आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

प्रश्न 6.
कैलिफोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाकात की कल्पना कीजिए। ये चार लोग हैं – एक अफ्रीकी गुलाम, एक चीनी मजदूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होपी कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन करिए।
उत्तर:
कैलिफोर्निया संयुक्त राज्य अमेरिका का एक राज्य है। कैलिफोर्निया में चार लोग साथ – साथ रहते थे। इन चार लोगों के बीच प्रायः सबकी छुट्टी के बिना आपसी बातचीत होती रहती थी। इन चार लोगों के बीच 1880 में मुलाकात हुई। ये चार लोग थे –
(1) एक अफ्रीकी गुलाम – जोजेफ
(2) एक चीनी मजदूर – यू-मिन
(3) गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन व्यापारी – मार्शल
(4) होपी कबीले का एक मूल निवासी बॉव।

उनकी बातचीत का वर्णन निम्नानुसार है –
1. अफ्रीकी गुलाम – जोसेफ – 1861 में दास प्रथा का उन्मूलन हो चुका था। इसलिए अब वह एक स्वतंत्र दास था। वह मार्शल से कहता है कि आप 1850 ई. में अमेरिका आ गये थे। यहाँ आकर आपने सोने के व्यापार से अच्छा लाभ कमाया और एक धनी व्यक्ति हो गए। आपका मकान शानदार तथा सभी सुख-सुविधाओं वाला है। आप एक सहृदय व्यक्ति हैं । इसलिए आप इतने धनी होने के बावजूद हमें कभी-कभी अपने यहाँ दावत पर बुला लेते हैं।

2. चीनी मजदूर – यू मिन- मैं भी जोसेफ के विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ कि इतने धनी होने पर भी मार्शल साहब मेरे जैसे रेल विभाग में एक मजदूर के रूप में काम करने वाले व्यक्ति अपने यहाँ दावत पर बुला लेते हैं। आज के युग में हमारे जैसे गरीब को कौन पूछता है ?

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3. एक मूल निवासी – बॉव- मेरे पास तो मार्शल साहब की इंसानियत को बखान करने के लिए शब्द ही नहीं हैं। एक दिन मेरी पत्नी अधिक बीमार हो गई, उसे तुरन्त अस्पताल ले जाने हेतु मेरे पास न तो धन था और न गाड़ी। तभी मार्शल साहब यहाँ आकर अपनी कार में मेरी पत्नी को अस्पताल ले गए और उन्होंने बिना बताए उसके इलाज हेतु पैसे भी जमा कर दिए। मैं और मेरा परिवार आपके इस कर्ज को अदा नहीं कर सकता। मार्शल साहब, आप इंसान नहीं देवता हैं।

4. मार्शल – मुझे कैलीफोर्निया आए लगभग 30 वर्ष हो गए हैं और अब मैं अपने मूल देश के बारे में बहुत कुछ भूल चुका हूँ। आप लोगों ने यहाँ मुझे इतना प्यार दिया है कि मैं यहाँ का ही होकर रह गया हूँ। आप लोगों की सेवा करने से मुझे आनंद मिलता है। मैं वास्तव में बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे आप जैसे सच्चे मित्र मिले हैं। हमारी मित्रता सदा बनी रहे, यही ईश्वर से कामना है।

मूल निवासियों का विस्थापन JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. यूरोपीय साम्राज्यवाद – सत्रहवीं शताब्दी के बाद स्पेन और पुर्तगाल के अमरीकी साम्राज्य का विस्तार नहीं हुआ। दूसरी ओर फ्रांस, हालैण्ड तथा इंग्लैण्ड आदि देशों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार करना तथा अमरीका, अफ्रीका एवं एशिया में अपने उपनिवेश बसाना शुरू कर दिया था। दक्षिण एशिया में कंपनियों ने अपने को राजनीतिक सत्ता का रूप दिया।

स्थानीय शासकों को हराकर पुरानी व्यवस्था को कायम रखते हुए भू-स्वामियों से कर वसूला तथा व्यापारिक लाभ हेतु रेलवे, खदानों तथा बागानों का विकास किया। दक्षिणी अफ्रीका को छोड़कर शेष सम्पूर्ण अफ्रीका में यूरोपवासी सब जगह समुद्र तटों पर ही व्यापार करते रहे। इसके बाद कुछ यूरोपीय देशों में अपने उपनिवेशों के रूप में अफ्रीका का बँटवारा करने का समझौता हुआ। इन उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेजी थी। ( कनाडा को छोड़ कर जहाँ फ्रांसीसी भी एक राज – भाषा है ।)

2. उत्तरी अमरीका – उत्तरी अमरीका का महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्करेखा तक और प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक फैला है। कनाडा का 40 प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से ढका है। वहाँ कई क्षेत्रों में तेल, गैस और खनिज संसाधन उपलब्ध हैं। वहाँ अनेक बड़े उद्योग हैं तथा गेहूँ, मकई, फल बड़े पैमाने पर पैदा किए जाते हैं।

3. उत्तरी अमरीका के मूल निवासी- उत्तरी अमरीका के सबसे पहले निवासी 30,000 वर्ष पहले बेरिंग स्ट्रेट्स के आर-पार फैले एशिया से आए और 10,000 वर्ष पहले अन्तिम हिमयुग के दौरान वे दक्षिण की ओर बढ़े। वे लोग नदी – घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मछली और मांस खाते थे तथा सब्जियाँ और मकई उगाते थे। उन्होंने बड़े पैमाने पर खेती करने का कोई प्रयास नहीं किया। उनके बीच औपचारिक सम्बन्ध थे। वे परस्पर मित्रता स्थापित करते थे तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। वे कुशल कारीगर थे और सुन्दर वस्त्र पहनते थे।

4. यूरोपियनों से मुकाबला – 17वीं सदी में यूरोपीय लोग उत्तरी अमेरिकी तट पर पहुँचे। ये लोग मछली और रोएंदार खाल के व्यापार के लिए आए थे। इसमें उन्हें शिकार कुशल देसी लोगों की ओर से अपेक्षित मदद मिली। देसी लोग अपने कबीलों में बने हस्तशिल्पों के बदले कंबल, लोहे के बर्तन, बंदूकें और शराब प्राप्त करते थे। जल्दी ही वे शराब की आदत के शिकार हो गए। इसने यूरोपीय व्यापारियों को उन पर शर्तें थोपने में सक्षम बताया।

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5. पारस्परिक धारणाएँ – यूरोपियन लोगों को अमरीका के मूल निवासी ‘असभ्य’ या उदात्त उत्तम जंगली प्रतीत हुए। यूरोपीय लोग वहाँ से मछली और रोएँदार खाल प्राप्त कर यूरोप में बेचना चाहते थे और मुनाफा कमाना चाहते थे। बहुत से यूरोपीय लोग धार्मिक अत्याचारों से बचने के लिए यूरोप छोड़ कर अमरीका में आकर बस गए। कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमरीका 18वीं सदी के अन्त में अस्तित्व में आए। अमरीका ने कई विशाल क्षेत्रों को खरीद लिया तथा उसने युद्ध में दक्षिणी अमरीका का अधिकांश भाग मैक्सिको से जीत लिया। संयुक्त राज्य अमरीका की पश्चिमी सरहद खिसकती रहती थी और जैसे-जैसे यह खिसकती जाती, मूल निवासी भी पीछे खिसकने को बाध्य किए जाते।

दक्षिण अमरीका के बागान – मालिकों ने अफ्रीका से दास खरीदे। दास-प्रथा विरोधी समूहों के विरोध के चलते वहाँ दासों के व्यापार पर तो रोक लग गई, परन्तु जो अफ्रीकी संयुक्त राज्य अमरीका में थे, वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे। 1861-65 में अमरीका में दास प्रथा को जारी रखने वाले और उसे समाप्त करने की वकालत करने वाले राज्यों के बीच युद्ध हुआ जिसमें दासता – विरोधियों की जीत हुई। दास-प्रथा समाप्त कर दी गई।

6. अपनी जमीन से मूल निवासियों की बेदखली – जब अमरीका ने अपनी बस्तियों का विस्तार करना शुरू किया, तो मूल निवासियों को वहाँ से हटने के लिए प्रेरित या बाध्य किया गया। उन्हें जमीनों की जो कीमतें दी गईं, वे बहुत कम थीं। 1832 में अमेरिका के राष्ट्रपति जैक्सन ने चिरोकी कबीले के लोगों को अपनी जमीन से हटाकर | विस्तृत अमरीकी भूमि की ओर खदेड़ने के लिए अमरीकी सेना भेज दी। जिन 15,000 लोगों को वहाँ से हटने पर बाध्य किया गया, उनमें से एक-चौथाई मौत के मुँह में चले गए।

8. गोल्ड रश और उद्योगों में वृद्धि – 1840 में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिन्ह मिले। इसने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। हजारों लोग अपने भाग्य – निर्माण की आशा में अमरीका पहुँचे। इसके चलते पूरे महाद्वीप में रेलवे लाइनों का निर्माण हुआ जिसके लिए हजारों चीनी मजदूरों की नियुक्ति हुई। संयुक्त राज्य अमरीका तथा कनाडा में औद्योगिक नगरों का विकास हुआ और अनेक कारखानों की स्थापना हुई। बड़े पैमाने पर खेती का भी विस्तार हुआ।

9. संवैधानिक अधिकार – अमेरिका के संविधान में व्यक्ति के ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को शामिल किया गया, जिसे रद्द करने की छूट राज्य को नहीं थी। परन्तु लोकतान्त्रिक अधिकार और सम्पत्ति का अधिकार दोनों केवल गोरे लोगों के लिए थे।

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10. परिवर्तन की लहर – 1934 में इण्डियन री आर्गेनाइजेशन एक्ट पारित किया गया जिसके द्वारा रिजर्वेशन्स में मूल निवासियों को जमीन खरीदने तथा ऋण लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। 1954 में अनेक मूल निवासियों ने अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन ऑफ इण्डियन राइट्स’ में इस शर्त के साथ संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता स्वीकार की कि उनके रिजर्वेशन्स वापस नहीं लिए जायेंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।

11. आस्ट्रेलिया – 18वीं सदी के अन्तिम दौर में आस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के 350 से 750 तक समुदाय थे। हर समुदाय की अपनी भाषा थी। आस्ट्रेलिया के प्रारम्भिक अधिकांश आबादकार इंग्लैण्ड से निर्वासित होकर आए थे और उनके कारावास की सजा पूरी होने पर ब्रिटेन न लौटने की शर्त पर उन्हें आस्ट्रेलिया में स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दे दी गई थी। उन्होंने खेती के लिए ली गई जमीन से मूल निवासियों को निकालना शुरू कर दिया।

12. परिवर्तन की लहर – आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन करने हेतु विश्वविद्यालयी विभागों की स्थापना हुई है। कला – दीर्घाओं में देशी कलाओं की दीर्घाएँ शामिल की गई हैं। अब मूल निवासियों ने अपने जीवन – इतिहासों को लिखना शुरू किया है। 1974 से ‘बहुसंस्कृतिवाद’ आस्ट्रेलिया की राजकीय नीति रही है, जिसने मूल निवासियों की संस्कृतियों और यूरोप तथा एशिया के आप्रवासियों की तरह – तरह की बहुसंस्कृतियों को समान आदर दिया है।

VI. महत्त्वपूर्ण तिथियाँ तथा घटनाएँ

तिथि कनाडा
1701 क्यूबेक के मूल निवासियों के साथ फ्रांसीसियों का समझौता
1763 क्यूबेक पर ब्रिटेन की विजय
1774 क्यूबेक एक्ट
1791 कनाडा संवैधानिक एक्ट
1837 फ्रांसीसी कनाडाई विद्रोह
1840 उच्चतर और निम्नतर कनाडा की कैनेडियन यूनियन
1859 कनाडा गोल्ड रश
1867 कनाडा महासंघ
1869-85 कनाडा में मेटिसों द्वारा रेड रिवर विद्रोह
1876 कनाडा इण्डियन्स एक्ट
1885 पार-महाद्वीपीय रेलवे के द्वारा पूर्वी और पश्चिमी तटों का जुड़ाव

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JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

Jharkhand Board Class 11 History औद्योगिक क्रांति In-text Questions and Answers

पृष्ठ 198

क्रियाकलाप 1 : अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड और विश्व के अन्य भागों में हुए उन परिवर्तनों एवं विकास क्रमों पर चर्चा कीजिए जिनसे ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिला।
उत्तर:
ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलना-ब्रिटेन में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देने वाले परिवर्तन एवं विकास क्रम निम्नलिखित थे-
(1) सम्पूर्ण देश में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा प्रणाली तथा एक ही बाजार व्यवस्था का होना- इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ एवं स्थिर थी। सम्पूर्ण देश में एक ही कानून व्यवस्था, एक ही मुद्रा- प्रणाली और एक ही बाजार – व्यवस्था थी। इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था।

सत्रहवीं शताब्दी के संजीव पास बुक्स अन्त तक आते-आते, मुद्रा का प्रयोग विनिमय अर्थात् आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में होने लगा था। तब तक लोग अपनी कमाई, वस्तुओं की अपेक्षा, मजदूरी और वेतन के रूप में पाने लगे। इससे लोगों को अपनी आय से खर्च करने के लिए अधिक विकल्प मिल गए और वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार हो गया।

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(2) कृषि क्रांति – अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजरा था जिसे ‘कृषि क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। बड़े जमींदारों ने छोटे-छोटे खेत खरीद लिए और अपने बड़े फार्मों में मिला लिए। इससे खाद्य उत्पादन की वृद्धि हुई। इससे भूमिहीन किसानों, चरवाहों एवं पशुपालकों को अपने जीवन-निर्वाह के लिए शहरों में जाना पड़ा।

(3) नगरों का विकास- ब्रिटेन में अनेक नगरों का विकास हुआ और नगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई। यूरोप के जिन 19 शहरों की आबादी सन् 1750 से 1800 ई. के बीच दोगुनी हो गई थी, उनमें से 11 शहर ब्रिटेन में थे। अतः जनसंख्या बढ़ने से वस्तुओं की माँग बढ़ी जिससे उद्योगपतियों को अधिकाधिक माल तैयार करने की प्रेरणा मिली। इन शहरों में लन्दन सबसे बड़ा शहर था जो देश के बाजारों का केन्द्र था।

(4) भूमण्डलीय व्यापार का केन्द्र हो जाना – 18वीं शताब्दी तक आते-आते भूमण्डलीय व्यापार का केन्द्र इटली तथा फ्रांस के भूमध्यसागरीय बन्दरगाहों से हटकर हालैण्ड और ब्रिटेन के अटलान्टिक बन्दरगाहों पर आ गया था। लन्दन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ऋण – प्राप्ति के प्रधान स्रोत के रूप में एमस्टरडम का स्थान ले चुका था। वह इंग्लैण्ड, अफ्रीका और वेस्ट इण्डीज के बीच स्थापित त्रिकोणीय व्यापार का केन्द्र भी बन गया।

(5) नौ-यातायात की सुविधा – इंग्लैण्ड की नदियों के सभी नौचालनीय भाग समुद्र से जुड़े हुए थे, इसलिए नदी पोतों के द्वारा ढोया जाने वाला माल समुद्र तटीय जहाजों तक सरलता से ले जाया जा सकता था।

(6) बैंकों का विकास – इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था। देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र बैंक ऑफ इंग्लैण्ड था। 1784 तक इंग्लैण्ड में कुल मिलाकर एक सौ से अधिक प्रान्तीय बैंक थे। बड़े-बड़े औद्योगिक उद्यम स्थापित करने तथा चलाने के लिए आवश्यक वित्तीय साधन इन्हीं बैंकों द्वारा उपलब्ध कराए जाते थे।

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(7) कारखानों के लिए श्रमिकों व पूँजी की उपलब्धता – इंग्लैण्ड में गाँवों से आए अनेक गरीब लोग नगरों में कारखानों में काम करने के लिए उपलब्ध हो गए थे। वहाँ बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे स्थापित करने के लिए आवश्यक ऋण- राशि उपलब्ध कराने के लिए बैंक भी विद्यमान थे। वहाँ परिवहन के लिए एक अच्छी व्यवस्था उपलब्ध थी।

(8) विभिन्न आविष्कार – इंग्लैण्ड में 18वीं शताब्दी में अनेक आविष्कार हुए जिनके कारण लोहा उद्योग, वस्त्र उद्योग, भाप की शक्ति तथा रेल मार्गों के विकास आदि में अनेक परिवर्तन हुए।

पृष्ठ 200

क्रियाकलाप 2 : आइरन ब्रिज गोर्ज आज एक प्रमुख विरासत स्थल है। क्या आप बता सकते हैं क्यों?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में लोहे के उत्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। 1709 में प्रथम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया। द्वितीय डर्बी ने ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास किया। हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी तथा बेल मिल का आविष्कार किया। 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल कोलब्रुक डेल में सेर्वन नदी पर बनाया।

विल्किनसन ने पानी की पाइपें पहली बार ढलवाँ लोहे से बनाईं। उसके बाद लोहा उद्योग कुछ विशेष क्षेत्रों में केन्द्रित हो गया। यह क्षेत्र ‘आइरन ब्रिज’ नामक गाँव के रूप में विकसित हुआ। यह आज एक प्रमुख विरासत स्थल है क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था का एक सुदृढ़ आधार है। यह स्थान बड़े पैमाने पर आम लोहे के उत्पादन के रूप में प्रसिद्ध है। इसके कारण इंग्लैण्ड की राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ।

पृष्ठ 208

क्रियाकलाप 3 : औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करें और इसकी तुलना ठीक उसी प्रकार की परिस्थितियों में भारत के सन्दर्भ में करें।
उत्तर:
औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर प्रभाव – औद्योगीकरण के प्रारम्भ में ब्रिटिश शहरों और गाँवों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(1) नगरों की जनसंख्या बढ़ गई परन्तु गाँवों की जनसंख्या कम हो गई। गाँवों के लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भागने लगे। परिवार विघटित हो गए।

(2) नगरों में रहने वालों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। नगरों में सफाई, शुद्ध जल और शुद्ध वातावरण का अभाव हो गया। बाहर से आकर नये बसे लोगों को नगरों में कारखानों के आस-पास भीड़-भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा। धनवान लोग नगर छोड़ कर आस-पास के उपनगरों में साफ-सुथरे मकान बनाकर रहने लगे जहाँ की हवा स्वच्छ थी और पीने का पानी भी साफ एवं सुरक्षित था।

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(3) नगरों में वेतनभोगी मजदूरों की औसत अवधि नगरों में रहने वाले अन्य सामाजिक समूहों के जीवन काल से कम थी। नए औद्योगिक नगरों में गाँव से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे। ये मौतें हैजा, आंत्रशोथ, क्षय रोग आदि से होती थीं।

(4) नगरों में कारखानों में काम करने वाले बच्चों और स्त्रियों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। कारखानों में काम करते समय बच्चे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे। उन्हें बहुत थोड़ी मजदूरी दी जाती थी तथा उन्हें साधारण-सी गल्ती करने पर बुरी तरह पीटा जाता था। स्त्रियों के बच्चे पैदा होते ही या शैशवावस्था में ही मर जाते थे और उन्हें विवश होकर शहर की घिनौनी व गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता था। भारत के सन्दर्भ में तुलना – औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत के नगरों की जनसंख्या काफी बढ़ गई। कोयला और लोहा उत्पादन करने वाले केन्द्रों के आस-पास बड़े – बड़े नगर बस गए।

रोजगार की तलाश में गाँव वालों को शहरों में आना पड़ा जिससे अनेक गाँव उजड़ गए। गाँवों में प्रचलित कुटीर उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए तथा वहाँ और गरीब फैल गई। संयुक्त परिवार विघटित होते चले गए। पूँजीपतियों द्वारा मजदूरों का शोषण करने से उनकी स्थिति शोचनीय हो गई। जीवन निर्वाह करने के लिए स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ा जिसके फलस्वरूप अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं। भारत में अधिकांश कारखानों के स्वामी विदेशी पूँजीपति थे। अतः भारत का विपुल धन इंग्लैण्ड भेजा गया जिससे भारत में पूँजी का अभाव हो गया और देश में गरीबी तथा बेकारी में वृद्धि हुई।

पृष्ठ 210

क्रियाकलाप 4 : उद्योगों में काम की परिस्थितियों के बारे में बनाए गए सरकारी विनियमों के पक्ष और विपक्ष में अपनी दलीलें दें।
उत्तर-कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकार ने निम्नलिखित नियम बनाए –
(1) 1819 में कुछ कानून बनाए गए जिनके तहत नौ वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से फैक्ट्रियों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 9 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों से काम कराने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई।

(2) 1833 के अधिनियम के अन्तर्गत 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई, बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिए गए। कुछ फैक्टरी निरीक्षकों की व्यवस्था की गई ताकि अधिनियम के प्रवर्तन और पालन को सुनिश्चित किया जा सके।

(3) 1847 में ‘दस घण्टा विधेयक’ परित किया गया जिसके अन्तर्गत स्त्रियों और युवकों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिये और पुरुष श्रमिकों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित कर दिया।

(4) 1842 के खान और कोयला खान अधिनियम के अन्तर्गत दस वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से खानों में नीचे काम लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(5) फील्डर्स फैक्टरी अधिनियम ने 1847 में यह कानून बना दिया कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

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पक्ष में तर्क –

  • कारखानों में मजदूरों के काम करने के घण्टे निश्चित करने से उन्हें राहत मिली।
  • अब पूँजीपति अपनी इच्छानुसार मजदूरों से निर्धारित अवधि से अधिक समय तक काम नहीं ले सकते थे।
  • कारखानों में इन्स्पेक्टर नियुक्त किये गए जो सरकारी नियमों का पालन करवाते थे 1

विपक्ष में तर्क –

  1. मजदूरों के लिए 10 घण्टे का दिन निश्चित करना अधिक था।
  2. 1819 के कानून में इसका पालन कराने के लिए आवश्यक अधिकारियों की व्यवस्था नहीं की गई थी।
  3. उनके लिए अच्छे वेतन, बीमा, पेंशन आदि की व्यवस्था नहीं की गई ।
  4. कारखानों में छोटे बच्चों के काम करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया । (5) 1842 से पूर्व खानों में मजदूरों के लिए नियम नहीं बनाए गए।
  5. निरीक्षक अपना काम ईमानदारी से नहीं करते थे । उनका वेतन बहुत कम था और कारखानों के मालिक उन्हें रिश्वत देकर उनका मुँह बन्द कर देते थे।

Jharkhand Board Class 11 History औद्योगिक क्रांति Text Book Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
युद्धों का ब्रिटेन के उद्योगों पर प्रभाव – ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर निम्न प्रभाव पड़े –
(i) इन युद्धों के कारण जो पूँजी निवेश के लिए उधार ली गई थी, वह युद्ध लड़ने में खर्च की गई। युद्ध का 35 प्रतिशत तक खर्च लोगों की आय पर कर लगाकर पूरा किया जाता था। कामगारों तथा श्रमिकों को कारखानों और खेतों में से निकाल कर उन्हें सेना में भर्ती कर लिया जाता था। परिणामस्वरूप कारखानों में उत्पादन का काम ठप हो गया । खाद्य सामग्रियों के दाम अत्यधिक बढ़ गए।

(ii) महाद्वीपीय नाकाबन्दी के कारण ब्रिटिश व्यापार को काफी क्षति पहुँची। ब्रिटेन से निर्यात होने वाला अधिकांश सामान ब्रिटेन के व्यापारियों की पहुँच से बाहर हो गया। इससे अनेक कारखाने बन्द हो गए और हजारों लोग बेरोजगार हो गए। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत अधिक बढ़ गए।

प्रश्न 2.
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ क्या-क्या हैं ?
उत्तर:
I. नहर के सापेक्षिक लाभ – नहर के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने में बड़ी सहायक सिद्ध हुईं। कोयले को उसके परिमाण तथा भार के कारण सड़क मार्ग से ले जाने में समय बहुत लगता था और उस पर धन खर्च भी अधिक आता था। परन्तु कोयले को बज़रों में भर कर नहरों के मार्ग से ले जाने में समय भी कम लगता था तथा खर्चा भी कम आता था।

(2) प्राय: नहरें बड़े-बड़े जमींदारों द्वारा अपनी जमीनों पर स्थित खानों, खदानों या जंगलों के मूल्य को बढ़ाने के लिए बनाई जाती थीं। नहरों के आपस में जुड़ जाने से नये-नये शहरों में बाजार बन गए। इससे अनेक शहरों का विकास हुआ। बर्मिंघम शहर का विकास केवल इसीलिए तेजी से हुआ क्योंकि वह लन्दन, ब्रिस्टल चैनल और मरसी तथा हंबर नदियों के साथ जुड़ने वाली नहर प्रणाली के बीच में स्थित था।

II. रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ – रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) रेलवे परिवहन एक ऐसा साधन है, जो वर्ष भर उपलब्ध रहता है । यह सस्ता तथा तेज भी है। इससे माल देश के भीतरी भागों में भी पहुँचाया जा सकता है, जो नहरों द्वारा सम्भव नहीं है।
(2) रेलवे परिवहन माल तथा यात्री दोनों को ढो सकता है।
(3) नहरों के रास्ते परिवहन में अनेक समस्याएँ हैं । नहरों के कुछ हिस्सों में जलपोतों की भीड़-भाड़ के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ जाती है और पाले, बाढ़ या सूखे के कारण उनके उपयोग का समय भी सीमित हो जाता है। परन्तु रेलवे परिवहन में यह समस्या नहीं है। इसलिए, रेलमार्ग ही परिवहन का सबसे सुविधाजनक विकल्प दिखाई दे रहा है।

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प्रश्न 3.
इस अवधि में किए गए ‘आविष्कारों’ की दिलचस्प विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
यह पता लगाना अवश्य ही दिलचस्प होगा कि वे लोग कौन थे जिनके प्रयत्नों से ये परिवर्तन हुए। उनमें से कुछ लोग प्रशिक्षित वैज्ञानिक थे। चूँकि इन आविष्कारों को सम्पन्न करने के लिए भौतिकी या रसायन विज्ञान के उन सिद्धान्तों या नियमों की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक नहीं था जिन पर ये आविष्कार आधारित थे, इसलिए ये वैज्ञानिक आविष्कार प्रतिभाशाली परन्तु अन्तःप्रज्ञ विचारकों तथा लगनशील प्रयोगकर्ताओं द्वारा किए गए। थीं – आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ – इस अवधि में किए गए आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ अग्रलिखित –

  1. इस अवधि में अधिकतर आविष्कार वैज्ञानिक ज्ञान के अनुप्रयोग की अपेक्षा दृढ़ता, लगन, रुचि, जिज्ञासा तथा भाग्य के बल पर हुए।
  2. कपास उद्योग के क्षेत्र में कुछ आविष्कारक जैसे जॉन के तथा जेम्स हारग्रीव्ज बुनाई और बढ़ईगीरी से परिचित थे। परन्तु रिचर्ड आर्कराइट एक नाई था तथा बालों की विग बनाता था।
  3. सैम्युल क्राम्पटन तकनीकी दृष्टि से कुशल नहीं था।
  4. एडमंड कार्टराइट ने साहित्य, आयुर्विज्ञान तथा कृषि का अध्ययन किया था। प्रारम्भ में वह पादरी बनना चाहता था और वह यान्त्रिकी के बारे में बहुत कम जानता था।
  5. भाप के इंजनों के क्षेत्र में थामस सेवरी नामक व्यक्ति एक सैन्य अधिकारी था।
  6. थॉमस न्यूकोमेन एक लुहार तथा तालासाज था। जेम्स वाट का यन्त्र सम्बन्धी कामकाज की ओर बहुत झुकाव था। उन सबमें अपने-अपने आविष्कार के प्रति कुछ संगत ज्ञान अवश्य था।
  7. सड़क निर्माता जान मेटकाफ, जिसने व्यक्तिगत रूप से सड़कों की सतहों का सर्वेक्षण किया था और उनके बारे में योजना बनाई थी, अन्धा था।
  8. नहर निर्माता जेम्स ब्रिंडले स्वयं निरक्षर था। शब्दों की ‘वर्तनी’ के बारे में उसका ज्ञान इतना कमजोर था कि वह ‘नौ – चालन’ शब्द की सही वर्तनी कभी नहीं बता सका। परन्तु उसमें अद्भुत स्मरण शक्ति, कल्पना – शक्ति तथा एकाग्रता थी।

प्रश्न 4.
बताइए कि ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का प्रभाव – ब्रिटेन निवासी सदैव ऊन और सन से कपड़ा बुना करते थे। सत्रहवीं शताब्दी से इंग्लैण्ड भारत से सूती कपड़ा आयात करता था। परन्तु जब भारत पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो गया, तो इंग्लैण्ड ने कपड़े के साथ-साथ कच्चे कपास (रुई) का आयात करना भी शुरू कर दिया। इसे इंग्लैण्ड में आने पर काता जाता था और उससे कपड़े बुने जाते थे।

कच्चे माल के रूप में इंग्लैण्ड को आवश्यक कपास का आयात करना पड़ता था और जब उनसे कपड़ा तैयार हो जाता, तो उसका अधिकांश भाग बाहर निर्यात किया जाता था। इसके लिए इंग्लैण्ड के पास अपने उपनिवेश होना आवश्यक था जिससे कि इन उपनिवेशों से कच्ची कपास बड़ी मात्रा में मंगाई जा सके और फिर इंग्लैण्ड में उससे कपड़ा बनाकर उन्हीं उपनिवेशों के बाजारों में बेचा जा सके। इस प्रकार औद्योगीकरण के फलस्वरूप इंग्लैंड में कच्चे माल की आपूर्ति उपनिवेशों से होने लगी।

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 5.
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

(1) निर्धन वर्ग की स्त्रियों द्वारा कारखानों में काम करना – पुरुषों को कारखानों में साधारण मजदूरी मिलती थी जिससे अकेले घर का खर्च नहीं चल सकता था। अतः परिवार का खर्चा चलाने के लिए निर्धन वर्ग की स्त्रियों को भी कारखानों में काम करना पड़ा। कारखानों में उन्हें निरन्तर कई घन्टों तक कठोर अनुशासन में रहते हुए काम करना पड़ता था।

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उद्योगपति, पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों और बच्चों को अपने कारखानों में भर्ती करना अधिक पसन्द करते थे क्योंकि उनकी मजदूरी कम होती थी तथा वे कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शान्तिपूर्वक अपना काम करते थे। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर और यार्कशायर नगरों के सूती कपड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था। रेशम, फीते बनाने और बुनने के उद्योग-धन्धों में और बर्मिंघम के धातु उद्योगों में स्त्रियों को ही अधिकतर नौकरियाँ दी जाती थीं।

(2) स्त्रियों की दयनीय स्थिति-कारखानों में काम करने वाली स्त्रियों की स्थिति बड़ी दयनीय थी। पुरुष मजदूरों की तुलना में उन्हें कम वेतन दिया जाता था। पुरुष मजदूरों को प्रति सप्ताह 25 शिलिंग मज़दूरी दी जाती थी, परन्तु स्त्रियों को केवल 7 शिलिंग मजदूरी ही दी जाती थी। साधारण-सी गलती करने पर स्त्रियों को दण्डित किया जाता संजीव पास बुक्स था। उन्हें कारखानों में गन्दे वातावरण में काम करना पड़ता था। प्रायः उनके बच्चे पैदा होते ही मर जाते थे या शैशवावस्था में ही मर जाते थे। उन्हें विवश होकर शहर की घिनौनी एवं गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता था। उनका पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। मिश्रित परिवार टूट गए और एकल परिवार बन गए। अब उनका पारिवारिक जीवन नीरस हो गया।

(3) मध्यम वर्ग व धनी वर्ग की स्त्रियों पर प्रभाव – मध्यम वर्ग एवं धनी वर्ग की स्त्रियाँ औद्योगिक क्रान्ति से लाभान्वित हुईं। उनके रहन-सहन, खान-पान, वस्त्रादि में परिवर्तन आ गया । अब उन्हें रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन आदि के रूप में मनोरंजन के नये साधन प्राप्त हुए। अब उनका जीवन-स्तर काफी उन्नत हो गया। अब वे विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगीं तथा सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करने लगी। अब घूमने और भ्रमण करने के लिए उन्हें मोटर गाड़ियों, रेलों, वायुयानों आदि की सुविधा भी उपलब्ध हो गई थी।

प्रश्न 6.
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? तुलनात्मक विवेचना कीजिए
उत्तर:
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जन-जीवन पर प्रभाव –

(अ) औद्योगिक एवं साम्राज्यवादी देशों के जीवन पर प्रभाव – रेल मार्ग परिवहन का सबसे अधिक सुविधाजनक साधन था। रेलवे के आ जाने से शक्तिशाली, औद्योगिक तथा साम्राज्यवादी देश बड़े लाभान्वित हुए। इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि अनेक देशों का कायाकल्प हो गया। रेलों के विकास के कारण इन देशों के व्यापार-वाणिज्य और उद्योग-धन्धों का विकास अत्यधिक हुआ। राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई। इन देशों ने कच्चा माल प्राप्त करने तथा अपना तैयार माल बेचने के लिए अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

परिणामस्वरूप ये अपना तैयार माल उपनिवेशों में भेजकर भारी मुनाफा कमाने लगे। रेलवे मार्ग से सामान का आयात-निर्यात करना अधिक सुगम व सस्ता था, इसलिए विदेशी माल अन्य यूरोपीय देशों से सस्ता पड़ता था। इससे ब्रिटिश उद्योगपतियों का खूब लाभ हुआ और औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। अतः रेलवे के आ जाने से इन देशों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गई। इन देशों के लोगों का जीवन- स्तर उन्नत हो गया और उन्हें सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएँ आसानी से मिलने लगीं।

(ब) अफ्रीका व एशिया महाद्वीप के देशों पर प्रभाव – इसके विपरीत जिन देशों में रेलों का विकास नहीं किया गया, वे देश आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ गए। अफ्रीका, एशिया आदि महाद्वीपों के अनेक देशों में रेलों का आगमन नहीं हुआ। परिणामस्वरूप वे वाणिज्य – व्यापार एवं उद्योगों के क्षेत्र में उन्नति नहीं कर सके। औद्योगिक एवं साम्राज्यवादी देश उनका आर्थिक शोषण करते रहे। इसके परिणामस्वरूप वहाँ गरीबी तथा बेरोजगारी में वृद्धि हुई। वे अपने जीवन-स्तर को उन्नत बनाने में असफल रहे और अनेक प्रकार की रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों के शिकार हो गए।

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औद्योगिक क्रांति JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. औद्योगिक क्रान्ति – ब्रिटेन में, 1780 के दशक और 1850 के दशक के बीच उद्योग और अर्थव्यवस्था का जो रूपान्तरण हुआ, उसे ‘प्रथम औद्योगिक क्रान्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। ब्रिटेन में औद्योगिक विकास का यह चरण नयी मशीनों एवं तकनीकियों से गहराई से जुड़ा है।
2. इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात – इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ।

इसके कारण थे –

  1. इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ थी।
  2. मुद्रा का प्रयोग विनिमय के रूप में होने लगा था।
  3. इंग्लैण्ड में कृषि क्रान्ति सम्पन्न हो चुकी थी।
  4. नगरों का विकास हो गया था तथा नगरों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई थी।
  5. लन्दन व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया था।
  6. इंग्लैण्ड में बैंकों का विकास हो चुका था।
  7. प्रौद्योगिक परिवर्तनों की श्रृंखला।
  8. नवीन परिवहन तन्त्र का विकास।

3. कोयले एवं लोहे के क्षेत्र में परिवर्तन –

  • 1709 में अब्राहम डर्बी ने धमनभट्टी का आविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया गया।
  • हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया।
  • 1779 में तृतीय डर्बी ने विश्व में पहला लोहे का पुल बनाया।
  • ब्रिटेन ने लौह उद्योग में 1800 से 1830 के दौरान अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।

4. कपास की कताई और बुनाई – 18वीं सदी में कपास की कताई व बुनाई के क्षेत्र में हुए निम्न प्रमुख आविष्कारों से कताई-बुनाई का कार्य कताईगरों और बुनकरों से हटकर कारखानों में चला गया –

  • 1733 में जॉन के ने फ्लाइंग शटल लूम (उड़न तुरी करघे) का आविष्कार किया।
  • 1765 में जेम्स हारग्रीव्ज ने स्पिन्निंग जैनी नामक मशीन का आविष्कार किया।
  • 1769 में रिचर्ड आर्क राइट ने वाटर फ्रेम नामक मशीन बनाई।
  • 1779 में सैम्युल क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया।
  • 1787 में एडमंड कार्ट राइट ने पॉवर लूम का आविष्कार किया।

5. भाप की शक्ति – 1712 में थॉमस न्यूकामेन ने भाप का इंजन बनाया। 1769 में जेम्स वाट ने भाप के इंजन का आविष्कार किया। अब भाप का इंजन एक साधारण पंप की बजाय एक प्रमुख चालक (मूवर) के रूप में काम देने लगा, जिससे कारखानों में शक्ति चालित मशीनों को ऊर्जा मिलने लगी।

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6. नहरें-प्रारंभ में नहरें कोयले को शहरों तक ले जाने के लिए बनाई गईं क्योंकि इनमें कम समय व कम खर्च होता था। 1761 में जेम्स ब्रिंडली ने इंग्लैण्ड में पहली नहर ‘वर्सली कैनाल’ बनाई। 1760 से 1790 की अवधि में नहरें बनाने की 25 नई परियोजनाएं शुरू की गईं।

7. रेलें –
(1) 1801 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया। 1814 में जार्ज स्टीफेन्सन ने एक रेल इंजन बनाया जिसे ‘ब्लुचर’ कहा जाता था।
(2) रेलवे के आविष्कार के साथ औद्योगीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया ने दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया। 1830 से 1850 के बीच ब्रिटेन में रेल मार्ग कुल मिलाकर दो चरणों में लगभग 6000 मील लम्बा हो गया।

8. परिवर्तित जीवन-

  • औद्योगीकरण से ब्रिटिश पूँजी निवेशकों को भारी लाभ हुआ। उनकी पूँजी कई गुना बढ़ी।
  • धन में, माल, आय, सेवाओं, ज्ञान और उत्पादन कुशलता के रूप में वृद्धि हुई।
  • लेकिन इससे गरीब लोगों को भारी खामियाजा उठाना पड़ा।

9. मजदूर –

  • जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई।
  • बाहर से आकर बसे लोगों को नगरों में कारखानों के आस-पास भीड़-भाड़ वाली गन्दी बस्तियों में रहना पड़ा।
  • नये औद्योगिक नगरों में गाँवों से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे।
  • मौतें अधिकतर हैजा, आन्त्रशोथ, क्षय-रोग आदि बीमारियों से होती थीं।

10. औरतें, बच्चे और औद्योगीकरण –

  • मजदूरी मामूली होने के कारण, स्त्रियों और बच्चों को भी कारखानों में काम करना पड़ता था। स्त्रियों और बच्चों को लंकाशायर तथा यार्कशायर नगरों के सूती वस्त्र उद्योग में बड़ी संख्या में काम पर लगाया जाता था।
  • बच्चों से कई-कई घण्टों तक काम लिया जाता था। कई बार बच्चों के बाल मशीनों में फँस जाते थे या उनके हाथ कुचल जाते थे।
  • कोयले की खानों में भी छोटे बच्चों को ‘ट्रैपर’ का काम करना पड़ता था।
  • स्त्रियों को औद्योगिक काम की वजह से विवश होकर शहर की गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था।

11. विरोध आन्दोलन –
(1) इंग्लैण्ड में कारखानों में काम करने की कठोर परिस्थितियों के विरुद्ध राजनीतिक विरोध बढ़ता गया और श्रम-जीवी लोग मताधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने लगे। परन्तु, सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए लोगों से विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार ही छीन लिया।

(2) सरकार की दमनकारी नीति के बावजूद श्रमिक लोगों ने आन्दोलन जारी रखा। 1790 के दशक में सम्पूर्ण देश में खाद्य (ब्रेड) के लिए दंगे होने लगे। उन्होंने ब्रेड के भण्डारों पर अधिकार कर लिया और उन्हें काफी कम मूल्य में बेचा जाने लगा।

(3) कपड़ा उद्योगों में मशीनों के प्रचलन से हजारों की संख्या में हथकरघा बुनकर बेरोजगार हो गए।

(4) हताश होकर सूती कपड़ों के बुनकरों ने लंकाशायर में पावरलूमों को नष्ट कर दिया।

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(5) जनरल नेडलुड के नेतृत्व में लुडिज्म नामक एक अन्य आन्दोलन चलाया गया। लुडिज्म के अनुयायी मशीनों की तोड़-फोड़ में ही विश्वास नहीं करते थे, बल्कि न्यूनतम मजदूरी, नारी एवं बाल श्रम पर नियन्त्रण, बेरोजगार लोगों के लिए काम और मजदूर संघ बनाने के अधिकारों की भी माँग करते थे।

12. कानूनों के द्वारा सुधार –

(1) 1819 में सरकार ने कुछ कानून बनाए जिनके अन्तर्गत 9 वर्ष से कम की आयु वाले बच्चों से कारखानों में काम करवाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(2) 9 से 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों में काम करने की सीमा 12 घण्टे तक सीमित कर दी गई।

(3) 1833 में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को केवल रेशम की फैक्ट्रियों में काम पर लगाने की अनुमति दी गई, बड़े बच्चों के लिए काम के घण्टे सीमित कर दिये गए और कुछ फैक्ट्री निरीक्षकों की व्यवस्था कर दी गई। 1847 में एक अन्य विधेयक पारित किया गया जिसके अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और स्त्रियों से 10 घण्टे प्रतिदिन से अधिक काम न लिया जाए।

औद्योगिक क्रांति के विषय में तर्क-वितर्क –

  • दरअसल औद्योगीकरण की प्रक्रिया इतनी धीमी गति से रही कि इसे क्रांति कहना ठीक नहीं होगा।
  • ब्रिटेन में औद्योगिक विकास 18145 से पहले की अपेक्षा उसके बाद अधिक तेजी से हुआ। इसका कारण औद्योगीकरण के साथ – साथ युद्ध भी रहे।
  • इस काल में हुआ रूपान्तरण केवल आर्थिक व औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि इसका विस्तार समाज के सर्वहारा वर्ग तथा बुर्जुआ वर्ग तक रहा। इसलिए इस क्रांति को केवल औद्योगिक नहीं कहा जा सकता।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में पौधों की कितनी जातियां हैं?
(A) 42,000
(B) 45,000
(C) 47,000
(D) 50,000.
उत्तर:
(C) 47,000.

2. डैल्टा प्रदेशों में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
(A) कोणधारी
(B) मानसून
(C) कंटीली झाड़ियां
(D) मैंग्रोव।
उत्तर:
(D) मैंग्रोव।

3. हिमालय पर्वत की कौन-सी ढलान पर घने वन हैं?
(A) उत्तरी
(B) पूर्वी
(C) पश्चिमी
(D) दक्षिणी।
उत्तर:
(D) दक्षिणी।

4. ऊष्ण कटिबन्ध में तापमान किस मात्रा से कम नहीं होता?
(A) 35°C
(B) 30°C
(C) 28°C
(D) 18°C.
उत्तर:
(D) 18°C.

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5. किस राज्य में वनों के अधीन क्षेत्र सबसे अधिक है?
(A) मानसून
(B) मेघालय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) बिहार।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।

6. सिनकोना वृक्ष किस वनस्पति से सम्बन्धित हैं?
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(B) मानसून
(C) ज्वारीय
(D) टुंड्रा
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित

7. किन वनों में हाथी अधिक पाए जाते हैं?
(A) मानसून
(B) पतझड़ीय
(C) उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित
(D) शुष्क।
उत्तर:
(C) ऊष्ण कटिबन्धीय सदाहरित।

8. देवदार वृक्ष किस ऊंचाई पर मिलते हैं?
(A) 500-1000 मीटर
(B) 1000-1500 मीटर
(C) 1500-3000 मीटर
(D) 3000-4000 मीटर।
उत्तर:
(C) 1500-3000 मीटर|

9. कौन – सी जाति खानाबदोश है?
(A) पिग्मी
(C) मसाई
(B) बकरवाल
(D) रैड इण्डियन
उत्तर:
(B) बकरवाल।

10. रायल बंगाल टाइगर कहां मिलता है?
(A) महानदी डेल्टा
(B) कावेरी डेल्टा
(C) सुन्दर वन
(D) कृष्णा डैल्टा।
उत्तर:
(C) सुन्दर वन।

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11. गिर वन किसके लिए प्रसिद्ध है?
(A) चूहों के लिए
(B) गधों
(C) ऊंट
(D) शेर
उत्तर:
(D) शेर।

12. इनमें से कौन – सा पक्षी आश्रय स्थल है?
(A) कान्हासिली
(C) कावल
(B) भरतपुर
(D) शिवपुरी।
उत्तर:
(B) भरतपुर।

13. पहला जैव- आरक्षित क्षेत्र कहां स्थगित किया गया?
(A) नीलगिरी
(B) सिमलीपाल
(C) नाकरेक
(D) पंचमड़ी।
उत्तर:
(A) नीलगिरी।

14. रबड़ का सम्बन्ध किस प्रकार की वनस्पति से है?
(A) टुण्ड्रा
(B) हिमालय
(C) मैंग्रोव
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।
उत्तर:
(D) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।

15. सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(A) 100 सें० मी०
(B) 70 सें० मी०
(C) 50 सें० मी०
(D) 50 सें०मी० से कम वर्षा
उत्तर:
(A) 100 सें० मी०।

16. सिमलीपाल जीव मण्डल निचय कौन-से राज्य में स्थित है
(A) पंजाब
(C) उड़ीसा
(B) दिल्ली
(D) पश्चिम बंगाल
उत्तर:
(C) उड़ीसा

17. भारत के कौन-से जीव मण्डल निचय विश्व के जीव मण्डल निचयों में लिए गए हैं?
(A) मानस
(B) मन्नार की खाड़ी
(C) दिहांग – दिबांग
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(D) नन्दा देवी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत का कुल कितना भौगोलिक क्षेत्र वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
22%.

प्रश्न 2.
भारत का कुल कितना क्षेत्र (हेक्टेयर में ) वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
750 लाख हेक्टेयर।

प्रश्न 3.
लकड़ी के दो प्रयोग लिखो।
उत्तर:
(i) इमारत निर्माण के लिये
(ii) ईंधन के लिये लकड़ी।

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प्रश्न 4.
लकड़ी का एक औद्योगिक प्रयोग लिखो।
उत्तर:
खेलों का सामान बनाना, रेयॉन उद्यो।

प्रश्न 5.
बाँस तथा वन के घास के दो उपयोग लिखो।
उत्तर:

  1. कागज़ बनाने के लिये
  2. कृत्रिम रेशा।

प्रश्न 6.
वनों से प्राप्त तीन उत्पादों के नाम लिखो।
उत्तर:
रबड़, गोंद तथा चमड़ा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 7.
उन दो भौगोलिक तत्त्वों के नाम लिखो जो वनों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:

  1. वर्षा की मात्रा
  2. ऊंचाई

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान लिखो
उत्तर:

  1. 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा
  2. 25° – 27°C.

प्रश्न 9.
पतझड़ीय मानसून वनों के लिये आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर:
150-200 सेंटीमीटर।

प्रश्न 10.
उस राज्य का नाम बताओ जहां उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 11.
भारत के एक प्रदेश का नाम बताओ जहां काँटे तथा झाड़ियों के वन पाये जाते हैं।
उत्तर;
थार मरुस्थल।

प्रश्न 12.
हिन्द महासागर में द्वीपों के समूह बताएं जहां उष्ण कटिबन्धीय वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
अण्डमान-निकोबार द्वीप।

प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले तीन महत्त्वपूर्ण पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
रोज़वुड, गुर्जन, आबनूस।

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प्रश्न 14.
मानसून वनों को पतझड़ीय वन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि ये गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं।

प्रश्न 15.
उन तीन राज्यों के नाम बताएं जहां मानसून वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड।

प्रश्न 16.
मध्य प्रदेश के एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर:
सागवान।

प्रश्न 17.
भारत के दो राज्य बतायें जहां देवदार के वृक्ष मिलते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश

प्रश्न 18.
काँटेदार वन के दो पेड़ों के नाम बतायें।
उत्तर:
खैर तथा खजूरी।

प्रश्न 19.
बबूल के वृक्ष से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
गोंद तथा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 20.
ज्वारीय वन में गुंझलदार जड़ों का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह कीचड़ में वृक्षों का संरक्षण करती हैं।

प्रश्न 21.
भारत का वन अनुसंधान केन्द्र कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून में।

प्रश्न 22.
ज्वारीय वन में पाये जाने वाले दो पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
सुन्दरी, गुर्जन।

प्रश्न 23.
वैज्ञानिक नियम पर वनों के अन्तर्गत कुल कितना क्षेत्र होना चाहिये?
उत्तर:
33%.

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प्रश्न 24.
कोणधारी वन के तीन वृक्षों के नाम लिखो।
उत्तर:
पाइन, देवदार, सिल्वर फ़र्र।

प्रश्न 25.
3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
एल्पाइन चरागाह।

प्रश्न 26.
उन दो राज्यों के नाम लिखो जहां देवदार पाये जाते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 27.
मयरो बोलान वृक्ष का उपयोग बताओ।
उत्तर:
रंगने वाले पदार्थ प्रदान करना

प्रस्न 28.
ज्वारीय वातावरण में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
मैंग्रोव वन।

प्रश्न 29.
भारत में आर्थिक पक्ष से कौन-सा वनस्पति क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
पतझड़ीय वन।

प्रश्न 30.
अंग्रेज़ों ने उत्तर-पूर्वी भारत में वनों को क्यों साफ़ किया?
उत्तर:
चाय, कहवा व रबड़ के बागान लगाने के लिए।

प्रश्न 31.
चिनार की लकड़ी का क्या प्रयोग है?
उत्तर:
हस्तशिल्प के लिए।

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प्रश्न 32.
हिमालय की अधिक ऊंचाई पर ऋतु- प्रवास करने वाली तीन जातियां बताओ।
उत्तर:
गुज्जर, बकरवाल, भुटिया।

प्रश्न 33.
नीलगिरी पहाड़ियों पर कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शोलावन (शीत-उष्ण कटिबन्धीय वन)।

प्रश्न 34.
वन आवरण क्षेक्षों को चार वर्गों में बांटो।
उत्तर:

प्रदेश वन आवरण का \%
1. अधिक वन संकेन्द्रण क्षेत्र >40
2. मध्यम वन संकेन्द्रण क्षेत्र 20-40
3. कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र 10-20
4. अति कम वन संकेन्द्रण क्षेत्र <10

प्रश्न 35.
राष्ट्रीय वन नीति में किस उद्देश्य पर अधिक बल है?
उत्तर:
सतत पोषणीय वन का प्रबन्ध।

प्रश्न 36.
सामाजिक वानिकी को किन तीन वर्गों में बांटा गया है?
उत्तर:

  1. शहरी वानिकी
  2. ग्रामीण वानिकी
  3. फार्मवानिकी।

प्रश्न 37.
किन चार जीव मण्डल निचयों को द्वारा मान्यता प्राप्त है?
उत्तर:

  1. नीलगिरी
  2. नन्दा देवी
  3. सुन्दर वन
  4. मन्नार की खाड़ी।

प्रश्न 38.
वनों का जीवन और पर्यावरण के साथ जटिल संबंध है। उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ो तथा निम्नलिखित के उत्तर दो
(क) नई वन नीति का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
सतत् पोषणीय वन प्रबंध।

(ख) वन संरक्षण की एक विधि बताओ।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी।

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प्रश्न 39.
किन मूल्यों को आधार बनाकर हम यह कह सकते हैं कि वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:

  1. बढ़ती हुई जनसंख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव।
  2. वनों की अत्यधिक कटाई के वातावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव।

प्रश्न 40.
राष्ट्रीय वन नीति कब लागू हुई?
उत्तर:
सन् 1988.

प्रश्न 41.
बाघ परियोजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
सन् 1973.

प्रश्न 42.
नन्दा देवी जीवमण्डल किस राज्य में है?
उत्तर:
उत्तराखंड|

प्रश्न 43.
भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
उत्तर:
-18

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में वनों के क्षेत्र के कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
किसी प्रदेश के कुल क्षेत्र के कम-से-कम 1/3 भाग में वनों का विस्तार होना चाहिए ताकि उस प्रदेश में पारिस्थितिक स्वास्थ्य कायम रखा जा सके। भारत में कई कारणों से वन सम्पत्ति का कम विस्तार है।

  1. वनों के विशाल क्षेत्र की कटाई
  2. स्थानान्तरित कृषि की प्रथा
  3. अत्यधिक मृदा अपरदन
  4. चरागाहों की अत्यधिक चराई
  5. लकड़ी एवं ईंधन के लिए वृक्षों की कटाई
  6. मानवीय हस्तक्षेप

प्रश्न 2.
वन सम्पदा के संरक्षण के लिए क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेज़ी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है।

प्रश्न 3.
भारत में विभिन्न प्रकार के घासों का वर्णन करो।
उत्तर:
घासें बारहमासी घासों की 60 प्रजातियां हैं। इनसे मिलकर ही हमारा पारितन्त्र बना है, जो हमारे पशुधन के जीवन का आधार है। वास्तविक चरागाह और घास भूमियां लगभग 12.04 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तीर्ण हैं। चराई के लिए अन्य भूमि, वृक्ष – फसलों और उद्यानों, बंजर भूमि तथा परती भूमि के रूप में हैं। जिनका क्षेत्रफल क्रमश: 37 लाख हेक्टेयर, 15 लाख हेक्टेयर और 23.3 लाख हेक्टेयर है। वनों के अपकर्ष (डिग्रेडेशन) और विनाश के परिणामस्वरूप ही चरागाह और घास भूमियां विकसित हुई हैं। कालान्तर में चरागाह सवाना में बदल जाते हैं। हिमालय की अधिक ऊंचाइयों वाले उप – अल्पाइन और अल्पाइन क्षेत्रों में वास्तविक चरागाह पाए जाते हैं। भारत में घास के तीन पृथक् आवरण हैं। उष्ण कटिंबधीय – यह मैदानों में पाया जाता है। उपोष्ण कटिबंधीय तथा शीतोष्ण कटिबंधीय घास भूमियां मुख्य रूप से हिमालय की पर्वत में ही पाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वनों का संरक्षण – मनुष्यों और पशुओं की बढ़ती हुई संख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव पड़ा है। जो क्षेत्र कभी वनों के ढके थे, आज अर्द्ध-मरुस्थल बन गए हैं। राजस्थान में भी कभी वन थे पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए वन अनिवार्य हैं। मानव का अस्तित्व और विकास पारिस्थितिक सन्तुलन पर निर्भर है। सन्तुलित पारितन्त्र और स्वस्थ पर्यावरण के लिए भारत के कम-से-कम एक तिहाई भाग पर वन होने चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश के एक चौथाई भाग पर भी वन नहीं हैं। इसीलिए वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबन्धन के लिए एक नीति की आवश्यकता है।

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प्रश्न 5.
भारत की वन नीति के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति, वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।

  1. इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू-भाग को वनों के अन्तर्गत लाना था संसार के कुल भू-भाग का 27 प्रतिशत तथा भारत का लगभग 19 प्रतिशत भू-भाग वनों से ढका है।
  2. वन नीति में आगे कहा गया है कि पर्यावरण की स्थिरता कायम रखने का प्रयत्न किया जाएगा तथा जहां पारितन्त्र का सन्तुलन बिगड़ गया है, वहां पुनः वनारोपण किया जाएगा।
  3. आनुवंशिक संसाधनों की जैव विविधता को देश की प्राकृतिक विरासत कहा जाता है। इस विरासत का संरक्षण, वन नीति का अन्य उद्देश्य है।
  4. इस नीति में मृदा अपरदन, मरुभूमि के विस्तार तथा सूखे पर नियन्त्रण का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
  5. इस नीति में जलाशयों में गाद के जमाव को रोकने के लिए बाढ़ नियन्त्रण का भी प्रावधान है।
  6. नीति के और भी उद्देश्य हैं जैसे: अपरदित और अनुत्पादक भूमि पर सामाजिक वानिकी और वनरोपण द्वारा वनावरण में अभिवृद्धि, वनों की उत्पादकता बढ़ाना, ग्रामीण और जन- जातीय जनसंख्या के लिए इमारती लकड़ी, जलावन, चारा और भोजन जुटाना
  7. यही नहीं इस नीति में महिलाओं को शामिल करके, व्यापक जनान्दोलन द्वारा वर्तमान वनों पर दबाव कम करने के लिए भी बल दिया गया है।

प्रश्न 6.
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनों की दो मुख्य विशेषताएं बताइए ये भी बताइए कि ये मुख्यतः किन प्रदेशों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
नम उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन – ये वन उष्ण कटिबन्धीय वनों के समान सदाबहार घने वन होते हैं। उष्ण- आर्द्र जलवायु के कारण ये वन तेज़ी से बढ़ते हैं तथा अधिक ऊंचे होते हैं। भारत में पाए जाने वाले ये वन कुछ खुले तथा दूर-दूर पाए जाते हैं। इन वनों में कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं जिनके शिखर पर छाता जैसा आकार बन जाता है। भारत में ये वन पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में (केरल तथा कर्नाटक) पाए जाते हैं। ये वन शिलांग पठार के पर्वतीय प्रदेश में पाए जाते हैं। महोगनी, खजूर, बांस मुख्य वृक्ष हैं। अर्द्ध- सदाबहार वन – ये वन पश्चिमी घाट तथा उत्तर-पूर्वी भारत में कम वर्षा के क्षेत्रों में मिलते हैं। ये मानसूनी पतझड़ीय वन हैं।

प्रश्न 7.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन कहां पाए जाते हैं? ऐसे वनों की वनस्पति भूमध्यरेखीय वनों से किस प्रकार समान है तथा किस एक प्रकार से असमान है?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शिलांग पठार, असम प्रदेश तथा पश्चिमी घाट पर पाए जाते हैं। ये वन भूमध्य रेखीय वनों से मिलते-जुलते हैं क्योंकि ये कठोर लकड़ी के वन हैं तथा ये अधिक आर्द्र क्षेत्रों में मिलते हैं जहां 200 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। ये वन भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति घने नहीं हैं, परन्तु ये वन अधिक खुले – खुले मिलते हैं तथा इनका उपयोग आसान हो जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक वानिकी पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी (Social Forestry):

  1. 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले-पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था इसका अर्थ है ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।
  2. नेक राज्य सरकारों ने सामाजिक वानिकी के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए हैं। अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं।
  3. सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैं: कृषि वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना; वन – भूखण्ड (वुडलाट्स) वन विभागों द्वारा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों के किनारे, नहर के तटों तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण; सामुदायिक वन – भूखण्ड लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी’ के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।
  4. सामाजिक वानिकी योजनाएं असफल हो गईं, क्योंकि इसमें उन निर्धन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया, जिन्हें इससे अधिकतर फायदा होना था यह योजना पुरुषोन्मुख हो गई। यही नहीं, यह कार्यक्रम लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया।
  5. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के द्वारा उत्पादित लकड़ी ग्रामीण भारत के ग़रीबों को न मिलकर, नगरों और कारखानों में पहुंचने लगी है। इससे गांवों में रोज़गार के अवसर घटे हैं और अन्न- उत्पादन करने वाली भूमि पर पेड़ लग गए हैं। इससे अनिवासी भू-स्वामित्व को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 9.
कौन-सी वनस्पति जाति बंगाल का आतंक मानी जाती है और क्यों?
उत्तर:
कुछ विदेशज वनस्पति जाति के कारण कई प्रदेशों में समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। भारत में वनस्पति का 40% भाग विदेशज है। ये पौधे चीनी-तिब्बती, अफ्रीका तथा इण्डो- मलेशियाई क्षेत्र से लाए गए हैं। जलहायसिंथ पौधा भारत में बाग के सजावट के पौधे के रूप में लाया गया था। इस पौधे के फैल जाने के कारण पश्चिमी बंगाल में जलमार्गों, नदियों, तालाबों तथा नालों के मुंह बड़े पैमाने पर बन्द हो गए हैं। इस पौधे के हानिकारक प्रभावों के कारण इसे “बंगाल का आतंक” (Terror of Bengal) भी कहा जाता है।

प्रश्न 10.
“हमारी अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है।” इस कथन की व्याख्या करो यह कथन काफ़ी हद तक सही है कि भारत में अधिकांश ‘प्राकृतिक’ वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इस देश में मानवीय निवास के कारण प्राकृतिक वनस्पति का अधिकतर भाग नष्ट हो गया है या परिवर्तित हो गया है अधिकांश वनस्पति अपनी कोटि तथा गुणों के उच्च स्तर के अनुसार नहीं है। केवल हिमालय प्रदेश के कुछ अगम्य क्षेत्रों में एवं थार मरुस्थल के कुछ भागों को छोड़ कर अन्य प्रदेशों में प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इन प्रदेशों की वनस्पति स्थानिक जलवायु तथा मिट्टी के अनुसार पनपती है तथा इसे प्राकृतिक कहा जा सकता है1

प्रश्न 11.
भारत में मुख्य वनस्पतियों के प्रकार को प्रभावित करने वाले भौगोलिक घटकों के नाम बताइए तथा उनके एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। वनस्पति की प्रकार, सघनता आदि वातावरण में कई तत्त्वों पर निर्भर है। भारत में वनस्पति विभाजन के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार एवं मानसूनी वन, शीतोष्ण वन, घास के मैदान आदि वनस्पति प्रकार पाए जाते हैं।

इन वनस्पति को निम्नलिखित भौगोलिक घटक प्रभावित करते हैं

  1. वर्षा की मात्रा
  2. धूप
  3. ताप की मात्रा
  4. मिट्टी की प्रकृति।

जलवायुविक घटक अन्य स्थानिक तत्त्वों के साथ मिल कर एक-दूसरे पर विशेष प्रभाव डालते हैं। अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण असम तथा पश्चिमी घाट पर ऊष्मा कटिबन्धीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है। परन्तु मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। कई भागों में मौसमी वर्षा के कारण पतझड़ीय वनस्पति पाई जाती है। उष्ण जलवायु के कारण अधिकतर चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष पाए जाते हैं, परन्तु हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में कम तापमान के कारण कोणधारी वन तथा अल्पला घास पाई जाती है। स्थानीय मिट्टी के प्रभाव से नदी के डेल्टाई क्षेत्रों में ज्वारीय वन या मैंग्रोव पाई जाती है। इसी प्रकार बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बबूल के वृक्ष मिलते हैं।

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प्रश्न 12.
“हिमालय क्षेत्रों में ऊंचाई के क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेशों तक का अनुक्रम पाया जाता है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रम के अनुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में अन्तर पड़ता है। इस अन्तर के प्रभाव से वनस्पति में एक क्रमिक अन्तर पाया जाता है। धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

  1. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन: हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। यहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।
  2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन: 2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं । इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं।
  3. शंकुधारी वन: दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
  4. अल्पाइन चरागाहें: 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 13.
कृषि वानिकी तथा फ़ार्म वानिकी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
कृषि वानिकी का अर्थ है कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फ़सलें एक साथ लगाना वानिकी और खेती साथ-साथ करना जिसे – चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और फलों का उत्पादन एक साथ किया जाए। समुदाय वानिकी में सार्वजनिक भूमि जैसे – गांव – चरागाह, मन्दिर – भूमि, सड़कों के दोनों ओर नहर किनारे, रेल पट्टी के साथ पटरी और विद्यालयों में पेड़ लगाना शामिल है। इसका उद्देश्य पूरे समुदाय को लाभ पहुंचाना है। इस योजना का एक उद्देश्य भूमिविहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़ना तथा इससे उन्हें वे लाभ पहुंचाना जो केवल भूस्वामियों को ही प्राप्त होते हैं

फार्म वानिकी: फार्म वानिकी के अन्तर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते हैं। वन विभाग, इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है। इस योजना के तहत कई तरह की भूमि, जैसे- खेतों की मेड़ें, चरागाह, घासस्थल, घर के पास पड़ी खाली ज़मीन और पशुओं के बाड़ों में भी पेड़ लगाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
वन्य प्राणी संरक्षण के लिए टाईगर प्रोजैक्ट तथा एलीफैन्ट प्रोजैक्ट का वर्णन करो।
उत्तर:
यूनेस्को के ‘मानव और जीवमण्डल योजना’ (Man and Biosphere Programme) के तहत भारत सरकार ने वनस्पति ज्ञात और प्राणी जात के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। देश के 92 नैशनल पार्क, 492 वन्य प्राणी अभयवन 1.57 करोड़ हैक्टेयर भूमि पर फैले हैं। प्रोजैक्ट टाइगर (1973) और प्रोजैक्ट एलीफेंट (1992) जैसी विशेष योजनाएं इन जातियों के संरक्षण और उनके आवास के बचाव के लिए चलाई जा रही हैं। इनमें से प्रोजैक्ट टाइगर 1973 से चलाई जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है, जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें।

इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा जिसका लोगों को शिक्षा और मनोरंजन के रूप में फायदा होगा। शुरू में यह योजना नौ बाघ निचयों (आरक्षित क्षेत्रों) में शुरू की गई थी और ये 16,339 वर्ग किलोमीटर पर फैली थी। अब यह योजना 27 बाघ निचयों में चल रही है और इनका क्षेत्रफल 37,761 वर्ग किलोमीटर है और 17 राज्यों में व्याप्त है । देश में बाघों की संख्या 1972 में 1,827 से बढ़कर 2001-02 में 3,642 हो गई। यह योजना मुख्य रूप से बाघ केन्द्रित है, परन्तु फिर भी पारिस्थितिक तन्त्र की स्थिरता पर जोर दिया जाता है। बाघों की संख्या का स्तर तभी ऊंचा रह सकता है जब पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न पोषण स्तरों और इसकी भोजन कड़ी को बनाए रखा जाए।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के विभिन्न प्रकार के वनों के भौगोलिक वितरण तथा आर्थिक महत्त्व का वर्णन करो
उत्तर:
भारत की वन सम्पदा (Forest Wealth of India ):
प्राचीन समय में भारत के एक बड़े भाग पर वनों का विस्तार था, परन्तु अब बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इस समय देश में 747 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर वनों का विस्तार है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 22.7% भाग है। भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र लगभग 0.1 हेक्टेयर है जो कि बहुत कम है। भौगोलिक दृष्टि से मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र हैं। भारतीय वनों का वर्गीकरण – भारत में वनों का वितरण वर्षा, तापमान तथा ऊंचाई के अनुसार है। भारत में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं।

1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक, वर्षा 200 सें०मी० से अधिक तथा औसत तापमान 24°C है। इन वनों का विस्तार अग्रलिखित प्रदेशों में है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 1

Based upon the Survey of India map with the permission of the Surveyor General of India. The responsibility for the correctness of internal details rests with the publisher. The territorial waters of India extend into the sea to a distance of twelve nautical miles measured from the appropriate base line.

  1. पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी तटीय मैदान
  2. अण्डमान द्वीप समूह
  3. उत्तर-पूर्व में हिमालय पर्वत की ढलानों पर।

अधिक वर्षा तथा ऊंचे तापमान के कारण ये वन बहुत घने होते हैं। ये सदाबहार वन हैं तथा भूमध्य रेखीय वनों की भान्ति कठोर लकड़ी के वन हैं। वृक्षों की ऊंचाई 30 से 60 मीटर तक है। इन वनों में रबड़, महोगनी, आबनूस, लौह- काष्ठ, ताड़ तथा चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। इन वृक्षों की लकड़ी फर्नीचर, रेल के स्लीपर, जलपोत निर्माण, नावें बनाने में प्रयोग की जाती है।

2. पतझड़ीय मानसूनी वन (Monsoon Deciduous Forests):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 सें० मी० से 200 सें० मी० तक होती है। इन वनों में वृक्ष ग्रीष्मकाल में अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ीय वन कहते हैं। ये वन निम्नलिखित प्रदेशों में मिलते हैं।

  1. तराई प्रदेश
  2. डेल्टाई प्रदेश
  3. पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलान
  4. प्रायद्वीप का पूर्वी भाग मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु।

ये वन अधिक घने नहीं होते। इनमें वृक्ष कम ऊंचे होते हैं। ये वृक्ष लगभग 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इन वृक्षों को सुगमतापूर्वक काटा जा सकता है। कई भागों में कृषि के लिए इन वनों को साफ कर दिया गया है।

आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में साल, सागौन, चन्दन, रोज़वुड, आम, महुआ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। साल वृक्ष की लकड़ी रेल के स्लीपर तथा डिब्बे बनाने के काम आती है। सागौन की लकड़ी बहुत मज़बूत होती है। इसका प्रयोग इमारती लकड़ी तथा फर्नीचर में किया जाता है। इन वृक्षों पर लाख, बीड़ी, चमड़ा रंगने तथा कागज़ बनाने के उद्योग आधारित हैं।

3. शुष्क वन (Dry Forests ):
ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां औसत वार्षिक वर्षा 50 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होती है। ये वन निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं।

  1. पूर्वी राजस्थान
  2. दक्षिणी हरियाणा
  3. दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश
  4. कर्नाटक पठार

ये वृक्ष वर्षा की कमी के कारण अधिक ऊंचे नहीं होते। इन वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा छाल मोटी होती है। ये वृक्ष अधिक गहराई से पानी प्राप्त करते हैं तथा वाष्पीकरण को रोकते हैं।
आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ): इन वनों में शीशम, बबूल, कीकर, हल्दू आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ये कठोर तथा टिकाऊ लकड़ी के वृक्ष होते हैं। इनका उपयोग कृषि यन्त्र, फर्नीचर, लकड़ी का कोयला, बैलगाड़ियां बनाने में किया जाता है।

4. डेल्टाई वन (Deltaic Forests): ये वन डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन्हें ज्वारीय वन (Tidal Forests) भी कहते मैं। मैनग्रोव वृक्ष के कारण इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove Forests) भी कहते हैं। ये वन निम्नलिखित डेल्टाई क्षेत्रों में मिलते हैं।

  1. गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुन्दर वन)
  2. महानदी, कृष्ण, गोदावरी डेल्टा
  3. दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्र ये वन प्रायः दलदली होते हैं।

गंगा – ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष मिलने के कारण इसे ‘सुन्दर वन’ कहते हैं। आर्थिक महत्त्व (Economic Importance ) इन वनों में नारियल, मैंग्रोव ताड़, सुन्दरी आदि वृक्ष मिलते हैं। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इनका प्रयोग ईंधन, इमारती लकड़ी, नावें बनाने तथा माचिस उद्योग में किया जाता है।

5. पर्वतीय वन (Mountain Forests ):
ये वन हिमालय प्रदेश की दक्षिणी ढलानों पर कश्मीर से लेकर असम तक पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में वर्षा की मात्रा अधिक है। वहां सदाबहार तथा चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की अधिकता के कारण कोणधारी वन पाए जाते हैं। इस प्रकार पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी हिमालय के वनों में काफ़ी अन्तर मिलता है। हिमालय प्रदेश में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रमानुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में भी अन्तर पड़ता है । धरातल के अनुसार तथा ऊंचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन:
हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊंचाई तक उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। वहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। वहां सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।

2. शीत उष्ण कटिबन्धीय वन:
2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। चीड़ के वृक्ष से बिरोज़ा तथा तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है। इसकी हल्की लकड़ी से चाय की पेटियां बनाई जाती हैं।

3. शंकुधारी वन:
दो हज़ार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहां कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अन्तर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी रेल के स्लीपर, पुल डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सिवर फर का प्रयोग कागज़ की लुग्दी, पैकिंग का सामान तथा दियासलाई बनाने में किया जाता है।

4. अल्पाइन चरागाहें:
3000 मीटर से अधिक ऊंचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियां मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागाहों का उपयोग करते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 2.
भारत में वास्तविक वनावरण का वितरण बताओ।
उत्तर;
वनक्षेत्र की भांति वनावरण में भी बहुत अन्तर है। जम्मू और कश्मीर में वास्तविक वनावरण एक प्रतिशत है, जबकि अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह की 92 प्रतिशत भूमि पर वास्तविक वनावरण है। परिशिष्ट में दी गई सारणी से स्पष्ट है कि 9 ऐसे राज्य हैं जहां कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग से अधिक पर वनावरण है। एक तिहाई वनावरण पारितन्त्र का सन्तुलन बनाए रखने के लिए मानक आवश्यकता है। चार राज्य ऐसे हैं जहां वन का प्रतिशत आदर्श स्थिति जैसा ही है।

अन्य राज्यों में वनों की स्थिति असंतोषजनक या संकटपूर्ण है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि तीन नवीन राज्यों उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रत्येक के कुल क्षेत्रफल के 40 प्रतिशत भाग पर वन हैं। इन राज्यों के पृथक् आँकड़े न मिलने के कारण इन्हें इनके पूर्व राज्यों में ही सम्मिलित किया गया है।
वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है।

  1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश
  2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
  3. कम वनावरण वाले प्रदेश
  4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश।

1. अधिक वनावरण वाले प्रदेश:
इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में शामिल हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह और मिज़ोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नागर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 और 80 के बीच है।

2. मध्यम वनावरण वाले प्रदेश:
इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्र 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं ।

3. कम वनावरण वाले प्रदेश:
यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप- प्रदेश हैं : एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप- – प्रदेश उत्तरी भारत में हैं। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।

4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश:
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जाता है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केन्द्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में हैं। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन हैं।

प्रश्न 3.
भारत में राष्ट्रीय उद्यान तथा जीव आरक्षित क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
आज भारत में 104 राष्ट्रीय उद्यान और 543 वन्य जीव अभयारण्य हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल क्रमशः 40,60,000 हेक्टेयर तथा 1,15,40,000 हेक्टेयर है। दोनों का कुल क्षेत्रफल 1,56,00,000 हेक्टेयर होता है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.74 प्रतिशत है। भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विवरण मानचित्र 2 में दिया गया है। सन् 1973 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने कुछ देशों में मनुष्य और जैव मण्डल पर एक कार्यक्रम शुरू किया था।

इसी के परिणामस्वरूप इनके अतिरिक्त 18 जीव आरक्षित क्षेत्र भी बनाए गए हैं। इनका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 43 लाख हेक्टेयर है। इनका कुछ क्षेत्र सुरक्षित क्षेत्र में भी शामिल हो गया। कुछ आरक्षित क्षेत्र इस प्रकार है- नीलगिरि (तमिलनाडु), नोक्रेक (मेघालय), नामदफा (अरुणाचल प्रदेश), नंदा देवी (उत्तराखंड), ग्रेट निकोबार तथा मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु)। विगत कुछ वर्षों में सुरक्षित क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सन् 1990 में भारत ने 1977 विश्व दाय (हैरिटेज) समझौते का अनुसमर्थन कर दिया है। इस समझौते के अनुसार श्रेष्ठ सार्वभौम महत्त्व के चार प्राकृतिक स्थलों को चिह्नित किया गया है।

1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
यह असम के नागाँव और गोलाघाट जिलों में मिकिर पहाड़ियों की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट के साथ विस्तृत है। काजीरंगा ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ क्षेत्र के मैदानों में स्थित है। इस नदी आवास में ऊंची व सघन घास वाली घास भूमियां हैं। इनके बीच-बीच में खुले वन हैं। यहाँ एक-दूसरे से जुड़ी नदियां तथा छोटी-छोटी अनेक झीलें हैं। इसका तीन चौथाई या इससे भी अधिक क्षेत्र प्रतिवर्ष ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के पानी में डूब जाता है। लैंडसैट के 1986 के आंकड़ों के अनुसार इस के 41 प्रतिशत भाग में ऊंची घास, 11 प्रतिशत में छोटी घास, 29 प्रतिशत में खुले वन, 4 प्रतिशत में दल – दल, 8 प्रतिशत में नदियां और जलाशय तथा शेष 7 प्रतिशत में अन्य लक्षण हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य जन्तु एक सींग वाला गैंडा तथा हाथी हैं।

2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान:
यह राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में अलवणजल की दल-दल है, जो सिन्धु गंगा के मैदान का भाग है। जुलाई से लेकर सितम्बर के मानसूनी वर्षा के महीनों में यह क्षेत्र एक से लेकर 2 मीटर की गहराई तक पानी से भर जाता है। अक्तूबर से जनवरी तक जहां जल स्तर धीरे-धीरे घटने लगता है तथा फरवरी के महीने में भूमि सूखने लगती है। जून के महीनों में कुछ गड्ढों में ही पानी रह जाता है। यहां का पर्यावरण अंशत: मानव-निर्मित है। छोटे-छोटे बांधों से पूरे क्षेत्र को 10 भागों में विभाजित कर लिया गया है। जल स्तर के नियंत्रण के लिए प्रत्येक भाग में जल कपाटों की व्यवस्था है।

3. सुन्दर वन जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह पश्चिम बंगाल में भारत की दो बड़ी नदियां गंगा और ब्रह्मपुत्र के दलदली डेल्टाई क्षेत्र में स्थित है। यह मैंग्रोव वनों, दल- दलों और वनाच्छादित द्वीपों के एक विशाल क्षेत्र में फैला है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,300 वर्ग कि०मी० है। यहां लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर (बाघ) निवास करते हैं। इस वन का कुछ भाग बांग्लादेश में हैं। ऐसा अनुमान है कि इस प्रदेश के बाघों की संयुक्त संख्या लगभग 400 हो सकती है। बाघों ने अपने आप को खारी और अलवणजल के अनुकूल बना लिया है। इस जीव आरक्षित क्षेत्र के बाघ अच्छे तैराक हैं।

4. नन्दा देवी जीव आरक्षित क्षेत्र:
यह जीव आरक्षित क्षेत्र ऋषि गंगा के जल-ग्रहण क्षेत्र में स्थित है। यह धौलीगंगा की पूर्वी सहायक है। धौलीगंगा जोशी मठ के पास अलकनंदा में मिल जाती है। यह हिमनदीय द्रोणी का विस्तृत क्षेत्र है। उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली पहाड़ियों की समान्तर शृंखलाओं द्वारा यह क्षेत्र विभाजित है। यहां 6,400 मी० से ऊंची लगभग एक दर्जन चोटियां हैं। इनमें दूनागिरि (7,066 मी०), चंगबंग (6,864 मी०) तथा नन्दा देवी पूर्व (7,434 मी०) उल्लेखनीय हैं। हिमालय की आन्तरिक घाटी होने के कारण नन्दा देवी द्रोणी में सामान्य शुष्क दशाएं पाई जाती हैं। मानसून की अवधि को छोड़कर वार्षिक वर्षण का औसत कम रहता है। चारों ओर छाई धुंध और मानसून की ऋतु में कम ऊंचाई वाले बादलों के कारण मृदा आर्द्र बनी रहती है। वर्ष के 6 महीनों तक यह द्रोणी हिम से ढकी रहती है।
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प्रश्न 4.
जीव मण्डल निचय क्या है? भारत में इनके विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर:
जीव मण्डल निचय – जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) के मानव और जीव मण्डल प्रोग्राम (MAB) के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है। जीव मण्डल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं।
भारत में 18 जीव मण्डल निचय हैं इनमें से 4 जीव मण्डल निचय

  1. नीलगिरी;
  2. नन्दा देवी;
  3. सुन्दर वन;
  4. मन्नार की खाड़ी को।

यूनेस्को द्वारा जीव मण्डल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं।
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JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )
प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में सबसे ठण्डा स्थान कौन-सा है?
(A) श्रीनगर
(B) शिमला
(C) द्रास
(D) शिलांग
उत्तर:
(C) द्रास।

2. भारत में सबसे गर्म स्थान कौन-सा है?
(A) नागपुर
(B) बंगलुरु
(C) बाड़मेर
(D) कानपुर
उत्तर:
(C) बाड़मेरर।

3. ग्रीष्मकालीन मानसून की दिशा कौन-सी है?
(A) दक्षिण-पश्चिम
(B) उत्तर-पूर्व
(C) दक्षिण-पूर्व
(D) उत्तर-पश्चिम
उत्तर:
(A) दक्षिण-पश्चिम

4. काल बैसाखी किस राज्य से सम्बन्धित है?
(A) केरल
(C) तमिलनाडु
(B) असम
(D) पंजाब
उत्तर:
(A) पेरू

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5. एलनीनो किस देश के तट पर प्रवाहित है?
(A) पेरू
(B) दक्षिण अफ्रीका
(C) आस्ट्रेलिया
(D) यूरोप
उत्तर:
(C) बाड़मेर।

6. उत्तर – पश्चिम भारत में शीतकाल में कौन-सी वर्षा होती है?
(A) संवाहिक
(C) चक्रवातीय
(B) पर्वतीय
(D) पूर्व – मानसून
उत्तर;
(C) चक्रवातीय।

7. शीतकालीन चक्रवातीय वर्षा किस फसल की उपज के लिए लाभदायक है?
(A) चावल
(B) मक्का
(C) गेहूं
(D) कपास
उत्तर:
(C) गेहूं।

8. कर्नाटक राज्य में पूर्व- मानसून वर्षा को कहते हैं
(A) चक्रवातीय
(B) काल बैसाखी
(C) लू
(D) आम की बौछार
उत्तर:
(D) आम की बौछार।

9. किस स्थान पर अधिकतर वर्षा हिमपात में होती है?
(A) अमृतसर
(B) शिमला
(C) लेह
(D) कोलकाता
उत्तर:
(C) लेह

10. किस राज्य में लू चलती है?
(A) मध्यप्रदेश
(B) तमिलनाडु
(C) पंजाब
(C) गुजरात
उत्तर:
(C) पंजाब।

11. कौन-सा क्षेत्र वर्षा छाया क्षेत्र है?
(A) दक्कन पठार
(B) असम
(C) गुजरात
(D) केरल
उत्तर:
(A) दक्कन पठार।

12. उत्तर-पश्चिमी भारत से कब मानसून पवनें पीछे हटती हैं?
(A) जनवरी में
(B) अगस्त में
(C) अक्तूबर में
(D) अप्रैल में
उत्तर:
(C) अक्तूबर में।

13. भारत में मानसून पवनों की अवधि है
(A) 61 दिन
(B) 90 दिन
(C) 120 दिन
(D) 150 दिन
उत्तर:
(C) 120 दिन

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14. जाड़े के आरम्भ में तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा किस कारण होती है?
(A) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(C) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून
(D) स्थानीय वायु परिसरण।
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में किस प्रकार का जलवायु मिलता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 2.
भारत के मध्य से कौन-से अक्षांश की अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 3.
कर्क रेखा द्वारा निर्मित दो जलवायु क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 4.
भारत में सबसे गर्म स्थान का नाम बताएं।
उत्तर:
राजस्थान में बाड़मेर (50° C)।

प्रश्न 5.
भारत में सबसे अधिक ठण्डे स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
द्रास (कारगिल) 45°C 1

प्रश्न 6.
भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान का नाम लिखो।
उत्तर:
चिरापूंजी के निकट मासिनराम – 1080 सेंटीमीटर वर्षा

प्रश्न 7.
उस राज्य का नाम लिखो जहां सबसे कम तापमान अन्तर होता है।
उत्तर:
केरल

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प्रश्न 8.
भारत में सम जलवायु वाले तटीय राज्य का नाम लिखो।
उत्तर:
तमिलनाडु

प्रश्न 9.
देश के आन्तरिक भाग के एक राज्य का नाम लिखो जहां महाद्वीपीय जलवायु है।
उत्तर:
पंजाब।

प्रश्न 10.
उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा का क्या कारण है?
उत्तर;
उत्तर-पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात)।

प्रश्न 11.
भारत के दक्षिण पूर्व तट पर सर्दियों में होने वाली वर्षा का कारण लिखें।
उत्तर:
उत्तर- पूर्व मानसून।

प्रश्न 12.
मानसून शब्द कहां से बना?
उत्तर:
अरबी भाषा का शब्द – मौसिम।

प्रश्न 13.
किस प्रकार की पवनें मानसून होती हैं?
उत्तर:
मौसमी पवनें।

प्रश्न 14.
गर्मियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर – पूर्व

प्रश्न 15.
सर्दियों की मानसून की क्या दिशा होती है?
उत्तर;
उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम।

प्रश्न 16.
ऊपरी वायुमण्डल की वायुराशि बताओ जो भारत में मानसून पवनें लाती है।
उत्तर:
जैट प्रवाह

प्रश्न 17.
उस राज्य का नाम बतायें जो सबसे पहले दक्षिण-पश्चिम मानसून प्राप्त करता है।
उत्तर:
केरल

प्रश्न 18.
एक राज्य बताओ जहां से मानसून पवनें सबसे पहले लौटती हैं।
उत्तर:
पंजाब

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प्रश्न 19.
मानसून वर्षा पर निर्भर रहने वाली दो खरीफ़ फसलों के नाम लिखो।
उत्तर: चावल और मक्का।

प्रश्न 20.
भारत में चार वर्षा वाले महीने लिखो।
उत्तर:
जून से सितम्बर।

प्रश्न 21.
200 cm से अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
पश्चिमी तट, उत्तर पूर्व पहाड़ी क्षेत्र।

प्रश्न 22.
नार्वेस्टर तथा काल बैसाखी कहां चलते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल तथा असम

प्रश्न 23.
पूर्व – मानसून पवनों की वर्षा का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
Mango Showers.

प्रश्न 24.
किन प्रदेशों में शीतकाल में रात को पाला पड़ता है?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 25.
लू से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गर्मियों में गर्म धूल भरी चलने वाली पवनें।

प्रश्न 26.
उस क्षेत्र का नाम बताओ जो दोनों ऋतुओं में वर्षा प्राप्त करता है।
उत्तर:
तमिलनाडु।

प्रश्न 27.
जलवायु से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी स्थान पर लम्बे समय का औसत मौसम

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प्रश्न 28.
मानसून प्रस्फोट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम मानसून का अचानक पहुंचना।

प्रश्न 29.
अक्तूबर गर्मी से क्या भाव है?
उत्तर;
अधिक आर्द्रता तथा गर्मी के कारण अक्तूबर का घुटन भरा मौसम।

प्रश्न 30.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों द्वारा किन तटीय प्रदेशों में प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा

प्रश्न 31.
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु की क्या मुख्य विशेषता है?
उत्तर:
गर्म आर्द्र गर्मियां तथा ठण्डी शुष्क सर्दियां।

प्रश्न 32.
उन पवनों का नाम बताओ जो ग्रीष्म ऋतु में चलती हैं।
उत्तर:
समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली दक्षिण पश्चिम मानसून।

प्रश्न 33.
भारतीय जलवायु में विशाल विविधता क्यों है?
उत्तर:
विशाल आकार के कारण।

प्रश्न 34.
देश के किस भाग में ‘लू’ चलती है?
उत्तर:
उत्तरी मैदान।

प्रश्न 35.
उन दो शाखाओं के नाम बतायें जिनमें दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें विभाजित होती हैं।
उत्तर:

  1. बंगाल की खाड़ी शाखा
  2. अरब सागर शाखा।

प्रश्न 36.
उन पवनों का नाम बताओ जो तमिलनाडु में वर्षा प्रदान करती हैं।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून।

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प्रश्न 37.
वृष्टि छाया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों की विमुख ढलान।

प्रश्न 38.
वृष्टि छाया क्षेत्र का एक नाम बतायें।
उत्तर:
दक्कन पठार

प्रश्न 39.
किस पर्वत के कारण दक्कन पठार वृष्टि छाया है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

प्रश्न 40.
प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतर कुएं क्यों सूख जाते हैं तथा नदियां छोटे मार्ग में क्यों सिकुड़ जाती हैं?
उत्तर:
अधिक गर्मी होने के कारण

प्रश्न 41.
पठार तथा पहाड़ियां गर्मियों में ठण्डे क्यों होते है ?
उत्तर:
अधिक ऊंचाई होने के कारण।

प्रश्न 42.
सम में कौन-सी फसल गर्मियों की वर्षा से लाभ प्राप्त करती है?
उत्तर:
चाय

प्रश्न 43.
Mango Showers किन फसलों के लिये लाभदायक है?
उत्तर:
चाय तथा कहवा

प्रश्न 44.
भारत में जून सबसे अधिक गर्म महीना होता है जुलाई नहीं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि जुलाई महीने में भारी वर्षा होने के कारण तापमान 10°C तक कम हो जाता है।

प्रश्न 45.
कौन – सा तटीय मैदान दक्षिण पश्चिम मानसून से अधिकतर वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 46.
पूर्व मानसून से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानसून का समय से पहले आने के कारण कुछ स्थानीय पवनें पूर्व – मानसून वर्षा करती हैं।

प्रश्न 47.
बाड़मेर (राजस्थान) में दिन का उच्चतम तापमान कितना है?
उत्तर:
50°C.

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प्रश्न 48.
कारगिल (कश्मीर) में दिसम्बर मास में रात का तापमान कितना है?
उत्तर:
40°C.

प्रश्न 49.
मासिनराम (मेघालय) में वार्षिक वर्षा कितनी है?
उत्तर:
1080 सें०मी०।

प्रश्न 50.
भारत के किस भाग में शीतकाल में उच्च वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर- पश्चिमी भारत।

प्रश्न 51.
भारत में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
मासिनराम (मेघालय)।

प्रश्न 52.
जेट प्रवाह की फरवरी मास में स्थिति बताओ।
उत्तर:
25°N अक्षांश।

प्रश्न 53.
भारत में जुलाई मास में किस भाग में न्यून वायु दाब होता है?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत|

प्रश्न 54.
उत्तरी भारत से कब मानसून पवनें लौटती हैं?
उत्तर:
सितम्बर मास में।

प्रश्न 55.
भारत के किस भाग में पश्चिमी विक्षोभ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भारत।

प्रश्न 56.
भारत के किस भाग में शीतकाल में लौटती मानसून पवनें वर्षा करती हैं?
उत्तर:
कोरोमण्डल तट पर।

प्रश्न 57.
इलाहाबाद नगर के समीप कौन-सी सम-वर्षा रेखा स्थित है?
उत्तर:
100 सेंमी०।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 58.
राजस्थान में वर्षा की परिवर्तनशीलता का गुणांक क्या है?
उत्तर:
50-80 प्रतिशत।

प्रश्न 59.
लू भारत में कब चलती है?
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु में (मई-जून)।

प्रश्न 60.
भारत के किन राज्यों में ‘आम्र वर्षा’ होती है?
उत्तर:
केरल, कर्नाटक एवं गोआ।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ है मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना मानसून व्यवस्था के अनुसार पवनें या मौसमी पवनें (Seasonal winds) चलती हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती है। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं।

  1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानसून पवनें, कम वायु दाब क्षेत्र तथा उच्च वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
  3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में उष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा होना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान मासिनराम ( Mawsynram) है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1080 सें० मी० है। यह स्थान मेघालय में खासी पहाड़ियों की दक्षिणी ढाल कर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मासिनराम में वर्षा की मात्रा 1080 सें०मी० है।

प्रश्न 4.
भारतीय मानसून की तीन प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
भारतीय मानसून व्यवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. वायु दिशा में परिवर्तन ( मौसम के अनुसार )।
  2. मानसून पवनों का अनिश्चित तथा संदिग्ध होना।
  3. मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायु की व्यापक एकता।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 5.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किस भाग में वे जाड़े की ऋतु में वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
वायु मण्डलों की स्थायी दाब पेटियों में कई प्रकार के विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी विक्षोभ भी एक प्रकार के निम्न दाब केन्द्र (चक्रवात) हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं ये चक्रवात पश्चिमी जेट प्रवाह (Jet Stream) के कारण पूर्व की ओर ईरान, पाकिस्तान तथा भारत की ओर आते हैं। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में जाड़े की ऋतु में ये चक्रवात क्रियाशील होते हैं। इन चक्रवातों के कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में वर्षा होती है । यह वर्षा रबी की फसल (Winter Crop) विशेषकर गेहूं के लिए बहुत लाभदायक होती है। औसत वर्षा 20 सें० मी० से 50 सें० मी० तक होती है

प्रश्न 6.
लू (Loo) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लू एक स्थानीय हवा है। यह ग्रीष्मकाल में उत्तरी भारत के कई भागों में दिन के समय चलती है। यह एक प्रबल, गर्म, धूल भरी हवा है जिसके कारण प्रायः तापमान 40°C से अधिक रहता है। लू की गर्मी असहनीय होती है जिससे प्रायः लोग इस से बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 7.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसून पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। यहां ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Monsoon Burst) कहा जाता है क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े ज़ोर की वर्षा होती है । जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो।

प्रश्न 8.
मानसूनी वर्षा की तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
मानसूनी वर्षा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  1. मौसमी वर्षा
  2. अनिश्चित वर्षा
  3. वर्षा का असमान वितरण
  4. वर्षा का लगातार न होना
  5. तट से दूर क्षेत्रों में कम वर्षा होना।

प्रश्न 9.
भारत में कितनी ऋतुएं होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर कोई अन्तर मिलता है? अगर हां तो क्यों?
उत्तर:
भारत के मौसम को ऋतुवत् ढांचे के अनुसार चार ऋतुओं में बांटा जाता है।

  1. शीत ऋतु – दिसम्बर से फरवरी तक
  2. ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक
  3. वर्षा ऋतु – मध्य जून से मध्य सितम्बर तक
  4. शरद् ऋतु – मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक।

इन ऋतुओं की अवधि में प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की ऋतुओं की अवधि में अन्तर पाया जाता है। दक्षिणी भारत में कोई स्पष्ट शीत ऋतु ही नहीं होती। तटीय भागों में कोई ऋतु परिवर्तन नहीं होता दक्षिण भारत में सदैव ग्रीष्म ऋतु रहती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां सारा साल ग्रीष्म ऋतु रहती है, परन्तु उत्तरी भारत शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहां स्पष्ट रूप से दो ऋतुएं हैं – ग्रीष्म तथा शीत ऋतु।

प्रश्न 10.
जेट प्रवाह क्या है? समझाइए।
उत्तर:
मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण ‘जेट प्रवाह’ भी माना है। ऊपरी वायुमण्डल में लगभग तीन किलोमीटर की ऊंचाई तक तीव्रगामी धाराएं चलती हैं जिन्हें जेट प्रवाह (Jet Stream) कहा जाता है। ये जेट प्रवाह 20° S, 40°N अक्षांशों के मध्य नियमित रूप से चलता है। हिमालय पर्वत के अवरोध के कारण ये प्रवाह दो भागों में बंट जाते हैं – उत्तरी जेट प्रवाह तथा दक्षिणी जेट प्रवाह दक्षिणी प्रवाह भारत की जलवायु को प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
पश्चिमी जेट प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोभ को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने में मदद करते हैं?
उत्तर:
जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा भारत में हिमालय पर्वत के दक्षिणी तथा पूर्वी भागों में बहती है। जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा की स्थिति 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। जेट प्रवाह की यह शाखा भारत में शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायता करती है। पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट निम्न दाब तन्त्र में ये विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। ये जेट प्रवाह के साथ-साथ ईरान तथा पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आ जाते हैं। जेट प्रवाह के प्रभाव से उत्तर-पश्चिमी भारत में शीतकाल में औसत रूप से चार-पांच चक्रवात पहुंचते हैं जो इस भाग में वर्षा करते हैं।

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प्रश्न 12.
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबन्ध (I. I. C. Z.) क्या है?
उत्तर:
अन्तर- उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबंध ( I. T. C. Z. ):
भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति उष्ण कटिबन्ध के बीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण की ओर सरक जाती है। यह भूमध्य रेखीय निम्न दाब द्रोणी दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 13.
कौन-कौन से कारण भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण को नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। भारत मुख्य रूप से मानसून खण्ड में स्थित होने के कारण गर्म देश है, परन्तु कई कारकों के प्रभाव से विभिन्न प्रदेशों में तापमान वितरण में विविधता पाई जाती है। ये कारक निम्नलिखित हैं

  1. अक्षांश या भूमध्य रेखा से दूरी
  2. धरातल का प्रभाव
  3. पर्वतों की स्थिति
  4. सागर से दूरी
  5. प्रचलित पवनें
  6. चक्रवातों का प्रभाव।

प्रश्न 14.
भारत के अत्यधिक ठण्डे भाग कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा हिमालय पर्वतीय प्रदेश में अधिक ठण्डे तापक्रम पाए जाते हैं। कश्मीर में कारगिल नामक स्थान पर तापक्रम न्यूनतम – 40°C तक पहुंच जाता है। इन प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डे तापक्रम होने का मुख्य कारण यह है कि ये प्रदेश सागर तल से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं। इन पर्वतीय प्रदेशों में शीतकाल में हिमपात होता है तथा तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है।

प्रश्न 15.
भारत के अत्यधिक गर्म भाग कौन-कौन से हैं और उसके कारण क्या हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक तापमान राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं। यहां ग्रीष्म ऋतु में बाड़मेर क्षेत्र में दिन का तापमान 48°C से 50°C तक पहुंच जाता है। इस प्रदेश में उच्च तापमान मिलने का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है । यह प्रदेश देश के भीतरी भागों में स्थित है। यहां सागर का समकारी प्रभाव नहीं पड़ता । ग्रीष्म काल लू के कारण भी तापमान बढ़ जाता है। रेतीली मिट्टी तथा वायु में नमी की कमी के कारण भी तापमान ऊंचे रहते हैं।

प्रश्न 16.
उन चार महीनों के नाम बताइए जिन में भारत में अधिकतम वर्षा होती है।
उत्तर:
भारत में मौसमी वर्षा के कारण अधिकतर वर्षा ग्रीष्म काल में चार महीनों में होती है। इसे वर्षा ऋतु कहा जाता है। अधिकतम वर्षा जून-जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर के महीनों में ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों द्वारा होती है।

प्रश्न 17.
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति किन दो तत्त्वों पर आधारित है?
उत्तर”:
कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

प्रश्न 18.
भारत में अधिकतम एवं निम्नतम वर्षा प्राप्त करने वाले भाग कौन-कौन-से हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
अधिकतम वर्षा वाले भाग- भारत में निम्नलिखित प्रदेशों में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है

  1. उत्तर-पूर्वी हिमालयी प्रदेश ( गारो – खासी पहाड़ियां )।
  2. पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट।

कारण:
ये प्रदेश पर्वतीय प्रदेश हैं तथा मानसून पवनों के सम्मुख स्थित हैं। उत्तर- र-पूर्वी हिमालय प्रदेश में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की सम्मुख ढाल पर अरब सागर की मानसून शाखा अत्यधिक वर्षा करती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  2
निम्नतम वर्षा वाले भाग: भारत के निम्नलिखित भागों में 20 सें० मी० से कम वर्षा होती है

  1. पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल ( बाड़मेर क्षेत्र),
  2. कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र,
  3. प्रायद्वीप में दक्षिण पठार

कारण: राजस्थान में अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए पश्चिमी राजस्थान शुष्क क्षेत्र रह जाता है। प्रायद्वीपीय पठार पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण शुष्क रहता है। इसी प्रकार लद्दाख हिमालय की वृष्टि छाया में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

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प्रश्न 19.
भारतीय मानसून पर एल-नीनो का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
एल-नीनो और भारतीय मानसून:
एल-नीनो एक जटिल मौसम तन्त्र है। यह हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएं आती हैं। महासागरीय और वायुमण्डलीय तन्त्र इसमें शामिल होते हैं। पूर्वी प्रशान्त महासागर में यह पेरू के तट के निकट कोष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है। भारत में मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए एल-नीनो का उपयोग होता है। सन् 1990-91 में एल-नीनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था । इसके कारण देश के अधिकतर भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों तक की देरी हो गई थी।

प्रश्न 20.
कोपेन द्वारा जलवायु के प्रकारों के लिए अक्षरों का संकेत किस प्रकार प्रयोग किया गया?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के प्रकारों को निर्धारित करने के लिए अक्षरों का संकेत के रूप में प्रयोग किया जैसा कि ऊपर दिया गया है। प्रत्येक प्रकार को उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है। इस विभाजन में तापमान और वर्षा के वितरण में मौसमी भिन्नताओं को आधार बनाया गया है। उसने अंग्रेज़ी के बड़े अक्षर S को अर्द्ध मरुस्थल के लिए और W को मरुस्थल लिए प्रयोग किया। इसी तरह उप-विभागों को परिभाषित करने के लिए अंग्रेज़ी के निम्नलिखित छोटे अक्षरों का उपयोग किया है जैसे – f (पर्याप्त वर्षण), m ( शुष्क मानसून होते हुए भी वर्षा वन) w (शुष्क शीत ऋतु ), h (शुष्क और गरम ), c (चार महीनों से कम अवधि में औसत तापमान 10° से अधिक) और g (गंगा का मैदान)।

प्रश्न 21.
भारत में गरमी की लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत के कुछ भागों में मार्च से लेकर जुलाई के महीनों की अवधि में असाधारण रूप से गरम मौसम के दौर आते हैं। ये दौर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की ओर खिसकते रहते हैं। इन्हें गरमी की लहर कहते हैं। गरमी की लहर से प्रभावित इन प्रदेशों के तापमान सामान्य से 6° से अधिक रहते हैं । सामान्य से 8° से या इससे अधिक तापमान के बढ़ जाने पर चलने वाली गरमी की लहर की प्रचंड (severe) माना जाता है। इसे उत्तर भारत में ‘लू’ कहते हैं।

प्रचंड गरमी की लहर की अवधि जब बढ़ जाती है तब किसानों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं। बड़ी संख्या में मनुष्य और पशु मौत के मुंह में चले जाते हैं। दक्षिण के केरल और तमिलनाडु राज्यों तथा पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर देश के लगभग सभी भागों में गरमी की लहर आती है। उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तर-प्रदेश में सबसे अधिक गरमी की लहरें आती हैं। साल में कम-से-कम गरमी की एक लहर तो आती ही है।

प्रश्न 22.
भारत में शीत लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
उत्तर पश्चिम भारत में नवम्बर से लेकर अप्रैल तक ठंडी और शुष्क हवाएं चलती हैं। जब न्यूनतम तापमान सामान्य से 6° से नीचे चला जाता है, तब इसे शीत लहर कहते हैं। जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ठिठुराने वाली शीत लहर चलती है। जम्मू और कश्मीर में औसतन साल में कम-से-कम चार शीत लहर तो आती हैं। इसके विपरीत गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश में साल में एक शीत लहर आती है। ठिठुराने वाली शीत लहरों की आवृत्ति पूर्व और दक्षिण की ओर घट जाती है। दक्षिणी राज्यों में सामान्य शीत लहर नहीं चलती।

प्रश्न 23.
भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेशों में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक न्यूनतम तथा कच्छ और गुजरात में अधिक क्यों हैं?
उत्तर:
भारतीय वर्षा की मुख्य विशेषता इसमें वर्ष-दर- वर्ष होने वाली परिवर्तिता है। एक ही स्थान पर किसी वर्ष वर्षा अधिक होती है तो किसी वर्ष बहुत कम इस प्रकार वास्तविक वर्षा की मात्रा औसत वार्षिक वर्षा से कम या अधिक हो जाती है। वार्षिक वर्षा की इस परिवर्तनशीलता को वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall) कहते हैं। यह परिवर्तिता निम्नलिखित फार्मूले से निकाली जाती है
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु  9

इस मूल्य को विचरण गुणांक ( Co-efficient of Variation ) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश में यह विचरण गुणांक 15% से कम है। यहां सागर से समीपता के कारण मानसून पवनों का प्रभाव प्रत्येक वर्ष एक समान रहता है तथा वर्षा की मात्रा में विशेष परिवर्तन नहीं होता। कच्छ तथा गुजरात में विचरण गुणांक 50% से 80% तक पाया जाता है। यहां मानसून पवनें बहुत ही अनिश्चित होती हैं। इन पवनों को रोकने के लिए ऊंचे पर्वतों का अभाव है। इसलिए वर्षा की मात्रा में अधिक उतार-चढ़ाव होता रहता है।

प्रश्न 24.
राजस्थान का पश्चिमी भाग क्यों शुष्क है?
अथवा
‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में राजस्थान का पश्चिमी भाग लगभग शुष्क रहता है’ इस कथन के पक्ष में तीन महत्त्वपूर्ण कारण दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान का पश्चिमी भाग एक मरुस्थल है। यहां वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम है। राजस्थान में अरावली पर्वत दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें इस प्रदेश तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। ये पवनें नमी समाप्त होने के कारण वर्षा नहीं करतीं। यह प्रदेश हिमालय पर्वत से अधिक दूर है। इसलिए यहां वर्षा का अभाव है।

प्रश्न 25.
मासिनराम संसार में सर्वाधिक वर्षा क्यों प्राप्त करता है?
उत्तर:
मासिनराम खासी पहाड़ियों (Meghalaya) की दक्षिणी ढलान पर 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1187 सेंटीमीटर है तथा यह स्थान संसार में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां धरातल की आकृति कीपनुमा (Funnel Shape) बन जाती है। खाड़ी बंगाल से आने वाली मानसून पवनें इन पहाड़ियों में फंस कर भारी वर्षा करती हैं। ये पवनें इन पहाड़ियों से बाहर निकलने का प्रयत्न करती हैं परन्तु बाहर नहीं निकल पातीं। इस प्रकार ये पवनें फिर ऊपर उठती हैं तथा फिर वर्षा करती हैं। सन् 1861 में यहां 2262 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा रिकार्ड की गई।

प्रश्न 26.
तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकांश वर्षा जाड़े में क्यों होती है?
उत्तर:
तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। यहां शीतकाल की उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अपेक्षा अधिक वर्षा करती हैं। ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया (Rain Shadow) में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करती हैं। शीतकाल में लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल को पार करके नमी ग्रहण कर लेती हैं। ये पवनें पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकरा कर वर्षा करती हैं। इस प्रकार शीतकाल में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है, परन्तु ग्रीष्मकाल में वृष्टि छाया में होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 27.
भारत में उत्तर-पश्चिमी मैदान में शीत ऋतु में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
भारत में उत्तर- पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुंचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर इस वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है।

प्रश्न 28.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की एक परिघटना इसकी क्रम भंग ( वर्षा की अवधि के मध्य शुष्क मौसम के क्षण ) की प्रवृत्ति क्यों है?
उत्तर:
भारत में अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है। इन पवनों द्वारा वर्षा निरन्तर न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस काल में एक लम्बा शुष्क मौसम (Dry Spell) आ जाता है। इससे इन पवनों द्वारा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है। इसका मुख्य कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Depressions) हैं जो खाड़ी बंगाल या अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात मानसून वर्षा की मात्रा को अधिक करते हैं। परन्तु इन चक्रवातों के अनियमित प्रवाह के कारण कई बार एक लम्बा शुष्क समय आ जाता है जिससे फसलों को क्षति पहुंचती है।

प्रश्न 29.
” जैसलमेर की वार्षिक वर्षा शायद ही कभी 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है।” कारण बताओ।
उत्तर;
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह प्रदेश अरब सागर की मानसून पवनों के प्रभाव में है। ये पवनें अरावली पर्वत के समानान्तर चलती हुई पश्चिम से होकर आगे बढ़ जाती हैं जिससे यहां वर्षा नहीं होती। खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें यहां तक पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती हैं। यह प्रदेश पर्वतीय भाग से भी बहुत दूर है। इसलिए यह प्रदेश वर्षा ऋतु में शुष्क रहता है जबकि सारे भारत में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 12 सेंटीमीटर से भी कम है। इसके विपरीत गारो, खासी पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि गारो पहाड़ियों में एक दिन की वर्षा जैसलमेर की दस साल की वर्षा से अधिक होती है।

प्रश्न 30.
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भू-मण्डलीय तापन का प्रभाव (Global warming):
प्राचीन काल में जलवायु में परिवर्तन हुआ है इसमें आज भी परिवर्तन हो रहे हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन के अनेक ऐतिहासिक और भू-वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं। इस परिवर्तन के लिए अनेक प्राकृतिक एवं मानवकृत कारक उत्तरदायी हैं। ऐसा कहा जाता है कि भू-मण्डलीय तापन के प्रभाव से ध्रुवीय व हिम की चादरें और पर्वतीय हिमानियां पिघल जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप समुद्रों में जल की मात्रा बढ़ जाएगी। आजकल संसार के तापमान में काफ़ी वृद्धि हो रही है। मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि चिन्ता का प्रमुख कारण है।

जीवाश्म ईंधनों के जलने से वायुमण्डल में इस गैस की मात्रा क्रमशः बढ़ रही है। कुछ अन्य गैसें जैसे मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओज़ोन और नाइट्रस ऑक्साइड, वायुमण्डल में अल्प मात्रा में विद्यमान हैं। इन्हें तथा कार्बन डाइऑक्साइड को हरितगृह गैसें कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में अन्य चार गैसें दीर्घ तरंगी विकिरण का ज्यादा अच्छी तरह से अवशोषण करती हैं। इसीलिए हरित गृह प्रभाव को बढ़ाने में उनका अधिक योगदान है। इन्हीं के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

विगत 150 वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत वार्षिक तापमान बढ़ा है। ऐसा अनुमान है कि सन् 2100 में भू-मण्डलीय तापमान में लगभग 2° सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। तापमान की इस वृद्धि से कई अन्य परिवर्तन भी होंगे। इनमें से एक है गरमी के कारण हिमानियों और समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र तल का ऊंचा होना प्रचलित पूर्वानुमान के अनुसार औसत समुद्र तल 21वीं शताब्दी के अन्त तक 48 से०मी० ऊंचा हो जाएगा। इसके कारण प्राकृतिक बाढ़ों की संख्या बढ़ जाएगी। जलवायु परिवर्तन के कीटजन्य मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ जाएंगी।

साथ ही वर्तमान जलवायु सीमाएं भी बदल जाएंगी, जिसके कारण कुछ भाग अधिक जलसिक्त (Wet) और कुछ अधिक शुष्क हो जाएंगे। कृषीय प्रतिरूपों के स्थान बदल जाएंगे। जनसंख्या और पारितन्त्र में भी परिवर्तन होंगे। यदि आज का समुद्र तल 50 से०मी० ऊंचा हो जाए, तो भारत के तटवर्ती जल निम्न हो जाएंगे।

प्रश्न 31.
भारतीय मानसून की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसून की प्रवृत्ति के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इसके आगमन के समय और निवर्तन (समाप्त) होने के समय में प्रत्येक वर्ष परिवर्तन होता रहता है, कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि की समस्या उत्पन्न होती है जो बाढ़ और सूखे का भी कारण है। मानसूनी वर्षा का रुक-रुक कर होना भी एक समस्या है। अर्थात् मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। इसमें एक अंतराल पाया जाता है, कभी जून में औसत वर्षा अच्छी होती है, लेकिन जुलाई-अगस्त सूखा पड़ जाता है। स्पष्टतः मानसून की प्रकृति में अस्थिरता पाई जाती है और मानसूनी वर्षा परिवर्तनशील है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और देश की कृषि अर्थव्यवस्था में इसका महत्त्व बताइए
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएं (Characteristics of Indian Rainfall):
1. मानसूनी वर्षा (Dependence on Monsoons ): भारत की वर्षा का लगभग 85% भाग ग्रीष्म काल की मानसून पवनों द्वारा होता है। यह वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर तक प्राप्त होती है जिसे वर्षा – काल कहते हैं।

2. अनिश्चितता (Uncertainty ): भारत में मानसून वर्षा समय के अनुसार एकदम अनिश्चित है। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी देर से आरम्भ होती हैं जिससे नदियों में बाढ़ें आ जाती हैं या फसलें सूखे से नष्ट हो जाती हैं। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को बड़ी हानि होती है।

3. असमान वितरण (Unequal Distribution ): भारत में वर्षा का प्रादेशिक वितरण असमान है। कई भागों में अत्यधिक वर्षा होती है जबकि कई प्रदेशों में कम वर्षा के कारण अकाल पड़ जाते हैं। देश के 10% भाग में 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है जबकि 25% भाग में 75 से० मी० से भी कम।

4. मूसलाधार वर्षा (Heavy Rains): मानसून वर्षा प्रायः मूसलाधार होती है। इसलिए कहा जाता है, “It pours, it never rains in India. ” मूसलाधार वर्षा से भूमि कटाव तथा नदियों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall): भारत में मानसून पवनें ऊंचे पर्वतों से टकरा कर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु पर्वतों के विमुख ढाल वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रहने के कारण शुष्क रह जाते हैं।

6. अन्तरालता (No Continuity ): कभी – कभी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस शुष्क समय (Dry Spells) के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।

7. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): भारत की 85% वर्षा केवल चार महीनों के वर्षा काल में होती है । वर्ष का शेष भाग शुष्क रहता है। जिससे कृषि के लिए जल सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। साल में वर्षा के दिन बहुत कम होते हैं।

8. संदिग्ध वर्षा (Variable Rainfall ): भारत के कई क्षेत्रों की वर्षा संदिग्ध है। यह आवश्यक नहीं कि वर्षा हो या न हो। ऐसे प्रदेशों में अकाल पड़ जाते हैं। देश के भीतरी भागों में वर्षा विश्वासजनक नहीं होती।

भारतीय कृषि – व्यवस्था में मानसून वर्षा का महत्त्व (Significance of Monsoons in Agricultural System):
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर करती है। कृषि की सफलता मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। मानसून पवनें जब समय पर उचित मात्रा में वर्षा करती हैं तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है। मानसून की असफलता के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज की कमी अनुभव होती है । मानसून पवनों के समय से पूर्व आरम्भ होने से या देर से आरम्भ होने से भी कृषि को हानि पहुंचती है। कई बार नदियों में बढ़ें आ जाती हैं जिससे फसलों की बुआई ठीक समय पर नहीं हो पाती।

वर्षा के ठीक वितरण के कारण भी वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार कृषि तथा मानसून पवनों में गहरा सम्बन्ध है । जल सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण भारतीय कृषि को मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर करना पड़ता है। कृषि पर ही भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कृषि ही किसानों की आय का एकमात्र साधन है। मानसून के असफल होने की दशा में सारे देश की आर्थिक व्यवस्था नष्ट- भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर तथा कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए कहा जाता है कि भारतीय बजट मानसून पवनों पर जुआ है। (Indian budget is a gamble on monsoon.)

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
भारत की जलवायु किन-किन तत्त्वों पर निर्भर है?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। “यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है।” (‘“There is great diversity of climate in India. ” ) एक कथन के अनुसार, “विश्व की लगभग समस्त जलवायु भारत में मिलती है। ” कहीं समुद्र के निकट सम जलवायु है तो कहीं भीतरी भागों में कठोर जलवायु है। कहीं अधिक वर्षा है तो कहीं बहुत कम। परन्तु भारत, मुख्य रूप से मानसून खण्ड (Monsoon Region) में स्थित होने के कारण, एक गर्म देश है। निम्नलिखित तत्त्व भारत की जलवायु पर प्रभाव डालते हैं

1. मानसून पवनें (Monsoons ):
भारत की जलवायु मूलतः मानसूनी जलवायु है। यह जलवायु विभिन्न मौसमों में प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती है। शीत काल की मानसून पवनें स्थल की ओर से आती हैं तथा शुष्क और ठण्डी होती हैं, परन्तु गीष्मकाल की मानसून पवनें समुद्र की ओर से आने के कारण भारी वर्षा करती हैं। इन्हीं पवनों के आधार पर भारत में विभिन्न मौसम बनते हैं।

2. देश का विस्तार (Extent ):
देश के विस्तार का विशेष प्रभाव तापक्रम पर पड़ता है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर जाती है। देश का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। इसलिए उत्तरी भाग में शीतकाल तथा ग्रीष्म काल दोनों ऋतुएं होती हैं, परन्तु दक्षिणी भाग सारा वर्ष गर्म रहता है। दक्षिणी भाग में कोई शीत ऋतु नहीं होती।

3. भूमध्य रेखा से समीपता (Nearness to Equator ):
भारत का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के बहुत निकट है, इसलिए सारा वर्ष ऊंचे तापक्रम मिलते हैं। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) भारत के मध्य में से गुज़रती है। इसलिए इसे एक गर्म देश माना जाता है।

4. हिमालय पर्वत की स्थिति (Location and Direction of the Himalayas ):
हिमालय पर्वत की स्थिति का भारत की जलवायु पर भारी प्रभाव पड़ता है। (“The Himalayas act as a climatic barrier. ” ) यह पर्वत मध्य एशिया से आने वाली बर्फीली पवनों को रोकता है और उत्तरी भारत को शीत लहर से बचाता है। हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है तथा खाड़ी बंगाल से उठने वाली मानसून पवनें इसे पार नहीं कर पातीं जिससे उत्तरी भारत में घनघोर वर्षा करती हैं। यदि हिमालय पर्वत न होता तो उत्तरी भारत एक मरुस्थल होता।

5. हिन्द महासागर से सम्बन्ध (Situation of India with respect to Indian Ocean ): भारत की स्थिति हिन्द महासागर के उत्तर में है। ग्रीष्म काल में हिन्द महासागर पर अधिक वायु दबाव होने के कारण ही मानसून पवनें चलती हैं। खाड़ी बंगाल, तमिलनाडु राज्य में शीतकाल की वर्षा का कारण बनता है। इसी खाड़ी से ग्रीष्म काल में चक्रवात (Depressions) चलते हैं जो भारी वर्षा करते हैं।

6. चक्रवात (Cyclones): भारत की जलवायु पर चक्रवात का विशेष प्रभाव पड़ता है। शीतकाल में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में रूम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा वर्षा होती है। अप्रैल तथा अक्तूबर महीने में खाड़ी बंगाल से चलने वाले चक्रवात भी काफ़ी वर्षा करते हैं।

7. धरातल का प्रभाव (Effects of Relief):
भारत की जलवायु पर धरातल का गहरा प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी घाट तथा असम में अधिक वर्षा होती है क्योंकि ये भाग पर्वतों के सम्मुख ढाल पर है, परन्तु दक्षिणी पठार विमुख ढाल पर होने के कारण वृष्टि छाया (Rain Shadow) में रह जाता है जिससे शुष्क रह जाता है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें रोक नहीं पाता जिससे राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भारत के धरातल का यहां के तापक्रम, वायु तथा वर्षा पर स्पष्ट नियन्त्रण है । पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम है जबकि मैदानी भाग में अधिक तापक्रम पाए जाते हैं। आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा का जनवरी का तापमान 16°C है जबकि दार्जिलिंग का केवल 4°C है।

8. समुद्र से दूरी (Distance from Sea ):
भारत के तटीय भागों में सम जलवायु मिलता है। जैसे – मुम्बई में जनवरी का तापमान 24°C है तथा जुलाई का तापमान 27°C है। इलाहाबाद समुद्र से बहुत दूर है, वहां जनवरी का तापमान 16°C तथा जुलाई का तापमान 30° C है। इसलिए दक्षिणी भारत तीन ओर समुद्र से घिरा होने के कारण ग्रीष्म में कम गर्मी तथा शीत ऋतु में कम सर्दी पड़ती है।

प्रश्न 3.
“व्यापक जलवायविक एकता के होते हुए भी भारत की जलवायु में प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं।” इस कथन की पुष्टि उपयुक्त उदाहरण देते हुए कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है। परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। यह मानसून व्यवस्था दक्षिण – पूर्वी एशिया के मानसूनी देशों से भारत को जोड़ती है। इस प्रकार मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान, वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। विभिन्न प्रदेशों की जलवायु के अलग-अलग प्रादेशिक स्वरूप मिलते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर कई कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं। जैसे- स्थिति, समुद्र से दूरी, भूमध्य रेखा से दूरी, उच्चावच आदि। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसूनी जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु को व्यापक एकता पाई जाती है।

प्रादेशिक अन्तरं मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।
1. राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर तथा चुरू जिले में ग्रीष्म काल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सैंटीग्रेड के निकट रहता है।

2. दक्षिणी भारत में सारा साल ऊंचे तापमान मिलते हैं तथा कोई शीत ऋतु नहीं होती। उत्तर-पश्चिमी भाग में शीतकाल में तापमान हिमांक से नीचे चले जाते हैं। तटीय भागों में सारा साल समान रूप से दरमियाने तापमान पाए जाते हैं।

3. दिसम्बर मास में द्रास, लेह एवं कारगिल में तापमान – 45°C तक पहुंच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में तापमान + 28°C रहता है।

4. इसी प्रकार औसत वार्षिक वर्षा में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर मासिनराम में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है। जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है। गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है।

5. एक ओर असम, बंगाल तथा पूर्वी तट पर चक्रवातों के कारण भारी वर्षा होती है तो दूसरी ओर दक्षिण तथा पश्चिमी तट शुष्क रहता है।

6. कई भागों में मानसून वर्षा जून के पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागों में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है। अधिकांश भागों में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है तो पश्चिमी भागों में शीतकाल में वर्षा होती है। ग्रीष्म काल में उत्तरी भारत में लू चल रही होती है परन्तु दक्षिणी भारत के तटीय भागों में सुहावनी जलवायु होती है।

7. तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तःस्थ स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहर चल रही होती है तो दक्षिणी भारत में काफ़ी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय मौसम रचना तन्त्र का वर्णन जेट प्रवाह के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मौसम रचना तन्त्र – मानसून क्रियाविधि निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  1. वायु दाब ( Pressure) का वितरण।
  2. पवनों (Winds) का धरातलीय वितरण।
  3. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation)।
  4. विभिन्न वायु राशियों का प्रवाह।
  5. पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात) (Cyclones)।
  6. जेट प्रवाह (Jet Stream)।

1. वायु दाब तथा पवनों का वितरण (Distribution of Atmospheric Pressure and Winds):
शीत ऋतु में भारतीय मौसम मध्य एशिया तथा पश्चिमी एशिया में स्थित उच्च वायु दाब द्वारा प्रभावित होता है। इस उच्च दा केन्द्र से प्रायद्वीप की ओर शुष्क पवनें चलती हैं। भारतीय मैदान के उत्तर पश्चिमी भाग में से शुष्क हवाएं महसूस की जाती हैं। मध्य गंगा घाटी तक सम्पूर्ण उत्तर – पश्चिमी भारत उत्तर – पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है। ग्रीष्म काल के आरम्भ में सूर्य के उत्तरायण के समय में वायुदाब तथा पवनों के परिसंचरण में परिवर्तन आरम्भ हो जाता है।

उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाता है। भूमध्य रेखीय निम्न दाब भी उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। इस के प्रभावाधीन दक्षिणी गोलार्द्ध से व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार करके निम्न वायु दाब की ओर बढ़ती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं। ये पवनें भारत में ग्रीष्म काल में वर्षा करती हैं।

2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation ):
वायुदाब तथा पवनें धरातलीय स्तर पर परिवर्तन लाते हैं। परन्तु भारतीय मौसम में ऊपरी वायु परिसंचरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण है। ऊपरी वायु में जेट प्रवाह भारत में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायक हैं। ये जेट प्रवाह भारत के मौसम रचना तन्त्र को प्रभावित करता है।

3. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances ):
भारत में शीतकाल में निम्न वायुदाब केन्द्रों का विस्तार होता है। ये अवदाब या विक्षोभ भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये ईरान, पाकिस्तान से होते हुए भारत में जनवरी-फरवरी में वर्षा करते हैं।

4. जेट प्रवाह (Jet Stream ):
जेट प्रवाह धरातल के लगभग 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली एक ऊपरी वायु- धारा है। यह वायु-धारा क्षोभ मण्डल के ऊपरी वायु भाग में बहती है। यह वायु धारा पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया के ऊपर बहने वाली पश्चिमी पवनों की एक शाखा है। यह शाखा हिमालय पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व दिशा बहती है। इस वायु -धारा की स्थिति फरवरी में 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। यह जेट प्रवाह भारतीय मौसम रचना तन्त्र पर कई प्रकार से प्रभाव डालती है।
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  1. इस जेट प्रवाह के कारण उत्तरी भारत में शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी पवनें चलती हैं।
  2. इस वायु -धारा के साथ-साथ पश्चिम की ओर से भारतीय उपमहाद्वीप में शीतकालीन चक्रवात आते हैं। ये चक्रवात भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात शीतकाल में हल्की-हल्की वर्षा करते हैं।
  3. जुलाई में जेट प्रवाह भारतीय प्रदेशों से लौट चुका होता है। इसका स्थान भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध ले लेता है, जो भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सरक जाता है। इसे अन्तर- उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (I.T.C.Z.) कहा जाता है।
  4. इस निम्न दाब के कारण भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें, वास्तव में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों का उत्तर की ओर विस्तार ही है।
  5. हिमालय तथा तिब्बत के उच्च स्थलों के ग्रीष्म काल में गर्म होने तथा विकिरण के कारण भारत में पूर्वी जेट प्रवाह के रूप में एक वायु धारा बहती है। यह पूर्वी जेट प्रवाह उष्ण कटिबन्धीय गर्तों को भारत की ओर लाने में सहायक है। ये गर्त दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 5.
कोपेन (Koeppen) द्वारा भारत के विभाजित जलवायु प्रदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत मुख्य रूप से एक मानसूनी प्रदेश है। इस विशाल देश में जलवायु की भिन्नता तथा कई प्रादेशिक अन्तरों का होना स्वाभाविक है। देश में मानसूनी जलवायु के कई उप-प्रकार देखे जा सकते हैं। इनके आधार पर भारत को विभिन्न जलवायु विभागों में बांटा जा सकता है। कोपेन का जलवायु वर्गीकरण – जर्मनी के प्रसिद्ध जीव-विज्ञानवेत्ता कोपेन द्वारा संसार को जलवायु विभागों में बांटा गया है। इस विभाजन में मासिक तापमान और वर्षा के औसत मूल्यों के विश्लेषण के आधार पर जलवायु के पांच मुख्य प्रकार माने गए हैं। इस जलवायु प्रदेशों के वर्गों को अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों A, B, C, D तथा E द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन वर्गों के उप प्रकार छोटे अक्षरों द्वारा दिखाए गए हैं। संसार को निम्नलिखित पांच जलवायु वर्गों में बांटा गया है।

(A) उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
(B) शुष्क जलवायु।
(C) गर्म जलवायु।
(D) हिम जलवाय।
(E) बर्फीली जलवायु।

कोपेन द्वारा तैयार किए गए जलवायु मानचित्र में भारत को निम्नलिखित जलवायु विभागों में बांटा गया है:

  1. लघु-शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Amw): इस प्रकार की जलवायु भारत के पश्चिमी तट पर गोआ के दक्षिण में पाई जाती है। यहां ग्रीष्म ऋतु में अधिक वर्षा होती है तथा शुष्क ऋतु बहुत छोटी होती है।
  2. अधिक गर्मी की अवधि में शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रदेश (AS): इस प्रकार की जलवायु कोरोमण्डल तट पर तमिलनाडु राज्य में मिलती है। वहां ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है तथा शीत ऋतु में वर्षा होती है।
  3. उष्ण कटिबन्धीय सवाना प्रकार की जलवायु (AW): यह जलवायु प्रायद्वीपीय पठार के अधिकतर भागों में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु शुष्क होती है।
  4. आर्द्र शुष्क स्टैपी जलवायु (Bshw): यह जलवायु राजस्थान तथा हरियाणा के मरुस्थलीय भागों में पाई जाती है।
  5. उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु (Bwhw): यह जलवायु राजस्थान के थार मरुस्थल में बहुत ही कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
  6. शुष्क शीत ऋतु वाला मानसून प्रदेश (Cwg): यह जलवायु भारत के उत्तरी मैदान में पाई जाती है। यहां अधिकतर वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है।
  7. लघु ग्रीष्म के साथ शीतल आर्द्र शीत वाली जलवायु (Dfc): यह जलवायु भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु ठण्डी, आर्द्र तथा ग्रीष्म ऋतु छोटी होती है।
  8. ध्रुवीय प्रकार (E): यह जलवायु कश्मीर तथा उसकी निकटवर्ती मालाओं में पाई जाती है। यहां वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

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प्रश्न 6.
भारत में वार्षिक वर्षा के वितरण के बारे में बताइए यह देश के उच्चावच से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा का वितरण जलवायु तथा कृषि व्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। भारत में वार्षिक वर्षा का औसत 110 सें० मी० है। परन्तु धरातलीय विभिन्नताओं के कारण इस वितरण में प्रादेशिक अन्तर जाते हैं। वार्षिक वर्षा का स्थानिक तथा मौसमी वितरण असमान है। वार्षिक वर्षा की मात्रा के आधार पर भारत के प्रमुख वर्षा विभाग क्रमशः इस प्रकार हैं

(i) अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Heavy Rain):
ये वे क्षेत्र हैं जिन में वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है। ये क्षेत्र हैं – मेघालय, असम, अरुणाचल, पश्चिमी बंगाल का उत्तरी भाग, हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानें, पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानें।

(ii) मध्य वर्षा वाले क्षेत्र ( Areas of Moderate Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं- पश्चिमी बंगाल का दक्षिणी भाग, उड़ीसा, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश का पूर्वी, एवं उत्तरी भाग, दक्षिणी हिमाचल के पर्वत, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानें तथा तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र। इन क्षेत्रों में वर्षा की वार्षिक मात्रा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच है।

(iii) साधारण वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Average Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जिनमें वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है। ये क्षेत्र हैं-उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग, हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर, राजस्थान के पूर्वी भाग, गुजरात तथा दक्षिणी पठार।

(iv) अति न्यून वर्षा वाले क्षेत्र (Areas of Scanty Rainfall):
ये वे क्षेत्र हैं जहां वार्षिक वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। ये क्षेत्र हैं-कश्मीर से लद्दाख, दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान में विस्तृत थार मरुस्थल तथा गुजरात में कच्छ का रन।
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उच्चावच का वर्षा पर प्रभाव – वार्षिक वर्षा के वितरण से स्पष्ट है कि धरातलीय दिशाओं का वर्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में पर्वतीय उच्च प्रदेशों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। जैसे पश्चिमी घाट, गारो, खासी की पहाड़ियां तथा हिमालयी क्षेत्र मैदानी प्रदेशों में कम वर्षा होती है। इसलिए उत्तरी मैदान से दक्षिण की ओर वर्षा कम होती जाती है। जल से भरी मानसून पवनें मार्ग में पड़ने वाले पर्वतों की सम्मुख ढाल पर अधिक वर्षा करती हैं, जबकि इन पर्वतों के विमुख वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहते हैं।

इसी कारण गारो खासी पहाड़ियों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 1000 सेंटीमीटर है, परन्तु ब्रह्मपुत्र घाटी तथा शिलांग पठार में यह मात्रा घट कर 200 सेंटीमीटर रह जाती है पश्चिमी घाट के अग्र भाग में मालाबार तट पर वर्षा की मात्रा 300 सें० मी० है। परन्तु पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में पठार पर यह मात्रा केवल 60 सें० मी० है। राजस्थान में अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता तथा ये प्रदेश शुष्क हैं।
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प्रश्न 7.
मानसून पवनों से क्या अभिप्राय है? ये किस प्रकार उत्पन्न होती हैं? शीतकाल तथा ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों का वर्णन करो।
उत्तर:
परिभाषा (Definition ) :
मानसून वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ” मौसिम” से बना है। इसका सर्वाधिक प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था। मानसून पवनें वे मौसमी पवनें हैं जिनकी दिशा 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल
मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती है। ये पवनें ग्रीष्म काल के के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

कारण (Causes): मानसून पवनें वास्तव में एक बड़े पैमाने पर स्थल समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल तथा स्थल के गर्म व ठण्डा होने में विभिन्नता (Differences in the cooling and heating of Land and Water ) है। जल और स्थल असमान रूप से गर्म और ठण्डे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायुदाब में भी अन्तर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा पलट जाती है।

स्थल भाग जल की अपेक्षा जल्दी गर्म तथा जल्दी ठण्डा होता है। दिन के समय समुद्र के निकट स्थल पर कम दबाव (Low Pressure) तथा समुद्र पर उच्च वायु दबाव (High Pressure) होता है। परिणामस्वरूप, समुद्र से स्थल की ओर जल समीर (Sea Breeze) चलती है, परन्तु रात में दिशा विपरीत हो जाती है तथा स्थल से समुद्र की ओर स्थल – समीर (Land Breeze) चलती है। इस प्रकार प्रत्येक दिन वायु में दिशा बदलती रहती है। परन्तु मानसून पवनों की दिशा मौसम के अनुसार बदलती रहती है। ये पवनें तट के समीप के प्रदेशों में नहीं परन्तु एक पूरे महाद्वीप पर चलती हैं इसलिए मानसून पवनों को स्थल- समीर (Land Breeze) तथा जल समीर (Sea Breezes) का एक बड़े पैमाने का दूसरा रूप कह सकते हैं।

मानसून की उत्पत्ति के लिए आवश्यक दशाएं (Necessary Conditions ): मानसून पवनों की उत्पत्ति के लिए ये दशाएं आवश्यक हैं।

  1. एक विशाल महाद्वीप का होना।
  2. एक विशाल महासागर का होना।
  3. स्थल तथा जल भागों के तापमान में काफ़ी अन्तर होना चाहिए।
  4. एक लम्बी तट – रेखा।

मानसूनी क्षेत्र (Areas):
मानसूनी पवनें उष्ण कटिबन्ध से चलती हैं। परन्तु एशिया में ये पवनें 60° उत्तरी अक्षांश तक चलती हैं। इसलिए मानसूनी क्षेत्र दो भागों में बंटे हुए हैं। हिमालय पर्वत इन्हें पृथक् करता है।

1. पूर्वी एशियाई मानसून (East Asia Monsoons ): हिन्द – चीन (Indo-China), चीन तथा जापान क्षेत्र।
2. भारतीय मानसून (India Monsoons ): भारत, पाकिस्तान, बंगला देश तथा म्यांमार क्षेत्र, आस्ट्रेलिया का उत्तरी भाग।

ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें (Summer Monsoons ): मौनसून पवनों के उत्पन्न होने तथा इनके प्रभाव को एक ही वाक्य में कहा जा सकता है, “The chain of events is from temperature through pressure and winds to rainfall.”
अथवा
Temp.-Pressure – Winds — Rainfall.
इन मानसूनी पवनों की तीन विशेषताएं हैं

  1. मौसम के साथ दिशा परिवर्तन।
  2. मौसम के साथ वायु दबाव केन्द्रों का उल्ट जाना।
  3. ग्रीष्मकाल में वर्षा।

तापक्रम की विभिन्नता के कारण वायुभार में अन्तर पड़ता है तथा अधिक वायु भार से कम वायु भार की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसलिए भारत, चीन तथा मध्य एशिया के मैदान गर्म हो जाते हैं । इन स्थल भागों में वायु दबाव केन्द्र (Low Pressure Centres) स्थापित हो जाते हैं। अतः हिन्द महासागर तथा प्रशान्त महासागर से भारत तथा चीन की ओर समुद्र से स्थल की ओर पवनें (Sea to Land winds) चलती हैं।

भारत में इन्हें दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसून (South-West Summer Monsoons) कहते हैं। चीन में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्वी होती है। भारत में ये पवनें मूसलाधार वर्षा करती हैं जिसे ” मानसून का फटना” (Burst of Monsoon) भी कहा जाता है। भारत में यह वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कृषि इसी वर्षा पर आधारित है। इसलिए ” भारतीय बजट को मानसून का जुआ” (“Indian budget is a gamble of monsoon”) कहा जाता है।

शीतकालीन मानसून पवनें (Winter Monsoons ):
शीतकाल में मानसून पवनों की उत्पत्ति स्थल भागों पर होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध के स्थल भाग आस-पास के सागरों की अपेक्षा ठण्डे हो जाते हैं। मध्य एशिया तथा भारत में राजस्थान प्रदेश में उच्च वायु दबाव हो जाता है। इसलिए इन स्थल भागों से समुद्र की ओर पवनें (Land to Sea Winds) चलती हैं। ये पवनें शुष्क तथा ठण्डी होती हैं। भारत में इन्हें उत्तरी-पूर्वी शीतकालीन मानसून (North East Winter Monsoons) कहते हैं। ये पवनें खाड़ी बंगाल को पार करने के पश्चात् तमिलनाडु प्रदेश में वर्षा करती हैं। भूमध्य रेखा पार करने के पश्चात् आस्ट्रेलिया के तटीय भागों में भी इन्हीं पवनों से वर्षा होती है।

फ्लॉन की विचारधारा (Flohn’s Concept ): मानसून पवनों के तापीय उत्पत्ति में निम्नलिखित त्रुटियां पाई जाती

  1. ग्रीष्मकाल में मानसून वर्षा निरन्तर तथा समान नहीं होती यह वर्षा किसी और तत्त्व जैसे चक्रवात पर निर्भर करती है।
  2. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्र इतने अधिक शक्तिशाली नहीं होते कि मौसम के अनुसार पवनों की दिशा उल्ट हो जाए।
  3. उच्च दाब तथा निम्न दाब केन्द्रों की उत्पत्ति केवल तापीय नहीं है।
  4. दैनिक ऋतु मानचित्रों पर ग्रीष्म ऋतु में अनेक तीव्र चक्रवात दिखाए जाते हैं।
  5. यह विचार है कि मानसून किसी मूल पवन व्यवस्था पर आरोपित है।

इन त्रुटियों को देखते हुए फ्लॉन नामक विद्वान् ने तापीय विचारधारा का खण्डन किया और एक नई विचारधारा को जन्म दिया। इसके अनुसार व्यापारिक पवनों के अभिसरण के कारण डोलड्रम के क्षेत्र के दोनों ओर एक सीमान्त उत्पन्न हो जाता है जिसे अन्तर – उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (Inter Tropical Convergence) कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में यह अभिसरण क्षेत्र सूर्य की स्थिति के साथ-साथ उत्तर की ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें तथा पश्चिमी भूमध्य रेखीय पवनें उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। इस अभिसरण क्षेत्र में चक्रवात् उत्पन्न हो जाते हैं जो भारी वर्षा करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण-पश्चिम व्यापारिक पवनें तथा चक्रवात ही मानसून पवनों की उत्पत्ति का आधार हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व 

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. शीत युद्ध का अंत हुआ
(अ) 1991 में
(ब) 1891
(स) 2001 में
(द) 2010 में
उत्तर:
(अ) 1991 में

2. प्रथम खाड़ी युद्ध का सम्बन्ध था
(अ) सोवियत संघ और अमेरिका के अफगानिस्तान विवाद से
(ब) ईरान और इराक के संघर्ष से
(स) अरब-इजरायल संघर्ष से
(द) अमेरिका द्वारा अपने लगभग 34 देशों की सेनाओं के साथ इराक पर हमले से।
उत्तर:
(द) अमेरिका द्वारा अपने लगभग 34 देशों की सेनाओं के साथ इराक पर हमले से।

3. न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों का हमला हुआ था
(अ) 11 सितम्बर, 2001
(स) 11 दिसम्बर, 2001
(ब) 11 सितम्बर, 2003
(द) 11 नवम्बर, 2001
उत्तर:
(अ) 11 सितम्बर, 2001

4. एकध्रुवीय शक्ति के रूप में अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत हुई
(अ) 1991 से।
(स) 2006 से।
(ब). 1993 से।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) 1991 से।

5. वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उभरती प्रवृत्ति है।
(अ) एकल ध्रुवीय विश्व व्यवस्था
(ब) निःशस्त्रीकरण
(स) सैनिक गठबंधन
(द) शीत युद्ध में तीव्रता
उत्तर:
(अ) एकल ध्रुवीय विश्व व्यवस्था

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6. ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच का सम्बन्ध है।
(अ) तालिबान और अलकायदा के खिलाफ
(ब) पाकिस्तान के खिलाफ
(स) अफगानिस्तान के खिलाफ
(द) सूडान पर मिसाइल से हमला
उत्तर:
(द) सूडान पर मिसाइल से हमला

7. ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म का सम्बन्ध है।
(अ) अमरीका के खिलाफ देशों का समूह
(ब) सोवियत संघ के खिलाफ देशों का समूह
(स) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन
(द) भारत व पड़ौसी देशों के गठबंधन
उत्तर:
(स) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन

8. अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के रूप में चलाई मुहिम का नाम दिया-
(अ) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम
(स) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम
(ब) ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म
(द) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच
उत्तर:
(अ) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. …………………………. के अगस्त में इराकने कुवैत पर हमला किया और उस पर कब्जा जमा लिया।
उत्तर:
1990,

2. अमरीका रक्षा विभाग का मुख्यालय …………………………….. में है।
उत्तर:
पेंटागन,

3. ……………………… में जापानियों ने …………………………… पर हमला किया था।
उत्तर:
1941, पर्ल हार्बर,

4. विश्व की अर्थव्यवस्था में अमरीका की ……………………………. प्रतिशत की हिस्सेदारी है। में की गई थी।
उत्तर:
21

5. विश्व के पहले ‘बिजनेस स्कूल’ की स्थापना सन् ………………………………. में की गई थी।
उत्तर:
1881

6. शीतयुद्ध के बाद अधिकतर मामलों में यू. ए. एन. द्वारा चुप्पी साध लेना एक नाटकीय फैसला था जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ने ………………………….. की संज्ञा दी।
उत्तर:
नई विश्व व्यवस्था

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कब हुआ?
उत्तर:
11 सितम्बर, 2001 को।

प्रश्न 2.
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत किस प्रकार के नियम तय किये गये?
उत्तर:
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत वैश्विक व्यापार के नियम तय किये गये।

प्रश्न 3.
विश्व का पहला बिजनेस स्कूल कहाँ खोला गया?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑव पेंसिलवेनिया में वाहर्टन स्कूल के नाम से सन् 1881 में विश्व का पहला स्कूल खोला गया।

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प्रश्न 4.
नागरिक परमाणु समझौता किन देशों के मध्य हुआ?
उत्तर:
भारत और अमरीका के बीच हाल ही में नागरिक परमाणु समझौता हुआ।

प्रश्न 5.
फरवरी, 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान हटती इराकी सेना पर अमरीकी विमानों द्वारा जानबूझकर सड़क पर किये गये हमले को विद्वानों ने क्या कहकर आलोचना की है?
उत्तर:
अनेक विद्वानों और पर्यवेक्षकों ने इस हमले को ‘युद्ध अपराध’ की संज्ञा दी है।

प्रश्न 6.
20 मार्च, 2003 को अमरीका ने इराक पर किस कूट नाम से सैन्य हमला किया?
उत्तर:
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से।

प्रश्न 7.
‘हाइवे ऑव डैथ’ (मृत्यु का राजपथ ) किस सड़क को कहा गया है?
उत्तर:
कुवैत और बसरा के बीच की सड़क को।

प्रश्न 8.
सन् 1990 में किस देश ने कुवैत पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिला लिया था?
उत्तर:
इराक ने।

प्रश्न 9.
तालिबान किस देश से संबंधित है?
उत्तर:
अफगानिस्तान से

प्रश्न 10.
आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में अमेरिका ने कौन सा अभियान चलाया?
अथवा
आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका ने कौन-सा अभियान चलाया?
उत्तर:
ऑपरेशन एण्डयूरिंग फ्रीडम।

प्रश्न 11.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केन्द्र हो तो इसे किस शब्द के इस्तेमाल से वर्णित करना ज्यादा उचित होगा?
उत्तर:
वर्चस्व ( हेगेमनी) शब्द के इस्तेमाल से।

प्रश्न 12.
प्रथम खाड़ी युद्ध को किस ऑपरेशन के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
प्रथम खाड़ी युद्ध को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 13.
समकालीन विश्व राजनीति में ‘9/11’ का प्रयोग किस घटना के लिए किया जाता है?
उत्तर:
समकालीन विश्व राजनीति में ‘ 9/11’ का प्रयोग अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों के लिए किया जाता

प्रश्न 14.
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के आक्रमण में लगभग कितने लोग मारे गये थे।
उत्तर:
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर 9/11 के आक्रमण में लगभग तीन हजार लोग मारे गये।

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प्रश्न 15.
अमेरिकन वर्चस्व के तीन क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
सैन्य क्षेत्र , आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक क्षेत्र।

प्रश्न 16.
विश्व व्यवस्था के एकध्रुवीय होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
शीत युद्ध की समाप्ति, सोवियत संघ का विघटन।

प्रश्न 17.
आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को किन देशों से चुनौती मिल रही है?
उत्तर:
आर्थिक क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका को जापान, चीन एवं भारत से कड़ी चुनौती मिल रही है।

प्रश्न 18.
वर्चस्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व का अर्थ शक्ति का केवल एक ही केन्द्र का होना है।

प्रश्न 19.
विश्व राजनीति में अमरीकी वर्चस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विश्व में राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक व सांस्कृतिक मामलों में अमरीकी दबदबा ही अमरीकी वर्चस्व है।

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प्रश्न 20.
इराक पर अमेरिकी आक्रमण के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  1. इराक के तेल भण्डारों पर कब्ज़ा करना
  2. इराक में अपनी पसंद की सरकार का निर्माण करना।

प्रश्न 21.
विश्व में अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
सोवियत संघ के 1991 में विघटन के बाद से विश्व में अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत हुई।

प्रश्न 22.
भारत-अमेरिका के मध्य परस्पर सम्बन्धों को दर्शाने वाले दो तथ्यों को लिखें।
उत्तर:

  1. दोनों देश लोकतंत्र के समर्थक हैं।
  2. दोनों ही अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरोधी हैं।

प्रश्न 23.
कश्मीर तथा मानवाधिकार हनन के मुद्दों को लेकर अमरीका भारत पर दबाव क्यों डालता रहा है?
उत्तर:
इसके पीछे अमरीका का एकमात्र लक्ष्य परमाणु अप्रसार संधि तथा व्यापक परमाणु परीक्षण संधि पर भारत के हस्ताक्षर करवाना है।

प्रश्न 24.
सी. टी. बी. टी. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
सी. टी. बी. टी. का पूरा नाम है। व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty)।

प्रश्न 25.
‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ क्या है?
उत्तर:
अमरीका के नेतृत्व में 1991 में कुवैत को मुक्त कराने हेतु इराक के विरुद्ध छेड़ा गया सैनिक अभियान ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ कहलाता है।

प्रश्न 26.
‘ऑपरेशन इन्फाइनाइट रीच’ किस अमेरिकन राष्ट्रपति के आदेश से किया गया था?
उत्तर:
राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के आदेश से।

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प्रश्न 27.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ क्या है?
उत्तर:
20 मार्च, 2003 को अमरीका के इराक के विरुद्ध युद्ध को ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ कहा जाता है।

प्रश्न 28.
अफगानिस्तान किन देशों के मध्य बफर राज्य है?
उत्तर:
अफगानिस्तान रूस से पृथक् हुए मध्य एशियाई राष्ट्रों, ईरान तथा भारत-पाक के मध्य बफर राज्य है।

प्रश्न 29.
अफगानिस्तान में 1979 का रूसी हस्तक्षेप ‘प्रमुखता अधिकार’ पर आधारित था। यह प्रमुखता अधिकार क्या है?
उत्तर:
प्रमुखता अधिकार किसी महाशक्ति का किसी छोटे देश में अपने हितों की रक्षा हेतु हस्तक्षेप का अधिकार है।

प्रश्न 30.
अमरीका की ढांचागत ताकत का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
अमरीका की ढांचागत ताकत का एक मानक उदाहरण एमबीए (मास्टर ऑव बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) की अकादमिक डिग्री है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक- ध्रुवीयता किसे कहते हैं?
एक – ध्रुवीय विश्व- व्यवस्था से क्या आशय है?
अथवा
उत्तर:
विश्व की राजनीति में जब किसी एक ही महाशक्ति का वर्चस्व हो और अधिकांश अन्तर्राष्ट्रीय निर्णय उसकी इच्छानुसार ही लिये जाएं, तो उसे एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहते हैं। वर्तमान में अमेरिका का विश्व – व्यवस्था में वर्चस्व स्थापित है।

प्रश्न 2.
एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका अपना प्रभाव किस प्रकार जमा रहा है?
उत्तर:
एक – ध्रुवीय विश्व में अमेरिका निम्न प्रकार अपना प्रभाव जमा रहा है-

  1. अमेरिका अधिकांश देशों में आर्थिक हस्तक्षेप कर रहा है।
  2. अमेरिका दूसरे देशों में सैनिक हस्तक्षेप भी कर रहा है।
  3. यह संयुक्त राष्ट्र संघ की भी अवहेलना कर रहा है।

प्रश्न 3.
सांस्कृतिक वर्चस्व से क्या आशय है?
उत्तर:
सांस्कृतिक वर्चस्व का आशय है। सामाजिक, राजनैतिक विशेषकर विचारधारा के धरातल पर किसी वर्ग का दबदबा स्थापित होना सांस्कृतिक वर्चस्व में रजामंदी से बात मनवाई जाती है, न कि दबाव से।

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प्रश्न 4.
ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ क्या था?
अथवा
उत्तर:
9/11 की घटना के पश्चात् आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में अमरीका ने ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ चलाया। यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य निशाना अल-कायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया गया।

प्रश्न 5.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के पीछे अमरीका का असली मकसद क्या था?
उत्तर:
19 मार्च, 2003 को ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर अमेरिकी नेतृत्व में किये गये सैनिक हमले के पीछे असली मकसद था। इराक के तेल- भंडार पर नियंत्रण करना तथा इराक में अमरीका की मनपसंद सरकार कायम करना।

प्रश्न 6.
अमरीका के मौजूदा वर्चस्व का प्रमुख आधार क्या है?
उत्तर:
अमरीका के मौजूदा वर्चस्व का प्रमुख आधार उसकी बढ़ी चढ़ी तथा बेजोड़ सैन्य शक्ति है। कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति की तुलना में उसके पासंग के बराबर भी नहीं है। इसके सैन्य प्रभुत्व का आधार सैन्य व्यय के साथ- साथ उसकी गुणात्मक बढ़त है।

प्रश्न 7.
अमरीका की आर्थिक प्रबलता किस बात से जुड़ी हुई है?
उत्तर:
अमरीका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढांचागत ताकत अर्थात् वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत से जुड़ी हुई है। अमरीका द्वारा कायम की गयी ब्रेटनवुड प्रणाली आज भी विश्व की अर्थव्यवस्था की मूल संरचना का काम कर रही है।

प्रश्न 8.
‘ बैंडवैगन’ रणनीति से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी देश को सबसे ताकतवर देश के विरुद्ध रणनीति बनाने के स्थान पर उसके वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाने की रणनीति को ही ‘बैंडवैगन’ अथवा ‘जैसी बहे बयार पीठ तैसी कीजै’ की रणनीति कहते हैं।

प्रश्न 9.
‘अपने को छुपा लें’ नीति से क्या आशय है?
उत्तर:
अपने को छुपा लें’ का अर्थ होता है। दबदबे वाले देश से यथासंभव दूर-दूर रहना चीन, रूस और यूरोपीय संघ सभी एक न एक तरीके से अपने को अमरीकी निगाह में चढ़ने से बचा रहे हैं। इस तरह अमरीका के बेवजह या बेपनाह क्रोध की चपेट में आने से ये देश अपने को बचाते हैं।

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प्रश्न 10.
अमरीकी वर्चस्व के सामने आई किन्हीं दो चुनौतियों को संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व के समक्ष आतंकवादियों ने निम्न दो चुनौतियाँ प्रस्तुत कीं-

  1. अलकायदा द्वारा नैरोबी, केन्या तथा दारेसलाम (तंजानिया) स्थित अमरीकी दूतावास पर वर्ष 1998 में बम वर्षा की गई।
  2. तालिबानी आतंकवादियों ने अमेरिकी विमानों का अपहरण कर न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर के साथ उन्हें टकराकर भारी नुकसान पहुँचाया।

प्रश्न 11.
संयुक्त राज्य अमेरिका के संदर्भ में 9/11 का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
11 सितम्बर, 2011 को आतंकवादियों द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला किया गया। इस घटना के बाद अमरीका एवं पश्चिमी देश आतंकवाद पर अधिक ध्यान देने लगे तथा अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान छेड़ दिया ।

प्रश्न 12.
नई विश्व व्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
समकालीन विश्व में नई विश्व व्यवस्था से यह आशय है कि वर्तमान में सोवियत संघ के विखण्डन के बाद विश्व में द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था समाप्त हो गई है और उसके स्थान पर विश्व में एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कायम हुई है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एक सबसे शक्तिशाली ताकत के रूप में उभरा है।

प्रश्न 13.
समकालीन नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत कब से और क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
समकालीन नई विश्व व्यवस्था में अमरीका के वर्चस्व की शुरुआत उस समय हुई, जब सन् 1991 से एक महाशक्ति के रूप में सोवियत संघ अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य से ओझल हो गया । सोवियत संघ के पतन के बाद आज विश्व में केवल अमरीका ही महाशक्ति है।

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प्रश्न 14.
खाड़ी युद्ध को अमेरिकी सैन्य अभियान ही क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
यद्यपि खाड़ी युद्ध में इराक के विरुद्ध बहुराष्ट्रीय सेना ने मिलकर आक्रमण किया, तथापि इस युद्ध को काफी हद तक अमरीकी सैन्य अभियान ही कहा जाता है क्योंकि इसके प्रमुख एक अमरीकी जनरल नार्मन स्वार्जकाव थे और मिली-जुली सेना में 75 प्रतिशत सैनिक अमरीका के ही थे।

प्रश्न 15.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ पर टिप्पणी लिखिये|
अथवा
अमेरिका द्वारा 2003 में इराक पर किये गये आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
उत्तर:
ऑपरेशन इराकी फ्रीडम: 19 मार्च, 2003 को अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर सैन्य हमला किया। अमेरिकी अगुवाई वाले आकांक्षियों के गठबंधन में 40 से अधिक देश शामिल हुए। कुछ ही दिनों में सद्दाम हुसैन की सरकार का पतन हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी।

प्रश्न 16.
‘बैंड- वेगन’ रणनीति क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ बैंड वेगन’ की रणनीति:
सबसे ताकतवर देश के विरुद्ध जाने के बजाय उसके वर्चस्व – तंत्र में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाने की रणनीति को ही ‘ बैंड वेगन’ की रणनीति कहा जाता है। इसका आशय यह है कि ” जैसी बहे बयार, पीठ तैसी कीजे।” उदाहरण के लिए – आर्थिक वृद्धि दर को ऊंचा करने के लिए व्यापार को बढ़ाना, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और निवेश जरूरी है और अमरीका के साथ मिलकर काम करने से इसमें आसानी होगी, न कि उसका विरोध करने से। अतः वर्चस्वजनित अवसरों से लाभ उठाने की रणनीति ही बैंड वेगन की रणनीति है।

प्रश्न 17.
इराक द्वारा कुवैत पर अधिकार जमा लेने के बाद अमेरिका के इराक के विरुद्ध कार्यवाही करने के पीछे क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
सद्दाम हुसैन के विरुद्ध कार्यवाही करने के पीछे अमरीका के सामने निम्नलिखित लक्ष्य थे-

  1. पश्चिमी एशिया के देशों से तेल की आपूर्ति को होने वाले खतरे का निवारण करना।
  2. इजरायल की सुरक्षा को आंच न आने देना।
  3. सद्दाम हुसैन के परमाणु अस्त्रों व कारखानों को नष्ट करना।
  4. समूचे खाड़ी क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखना।
  5. इराक की विस्तारवादी सोच पर प्रतिबंध लगाना।
  6. इराक को पश्चिम एशिया के राजनीतिक मानचित्र में परिवर्तन के अवसर न देना।
  7. विश्व की एकमात्र सर्वोच्च शक्ति के रूप में अमरीका की छवि तथा अमरीकी नेतृत्व की विश्वसनीयता को बनाए रखना।

प्रश्न 18.
खाड़ी युद्ध ( प्रथम ) से अमेरिका को क्या लाभ हुए?
उत्तर:
खाड़ी युद्ध (प्रथम) से अमेरिका को निम्न लाभ हुए-

  1. इस युद्ध के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्व में वर्चस्व व दबदबा कायम हुआ। अब उसे ही विश्व की एकमात्र महाशक्ति माना जाने लगा क्योंकि इस युद्ध में साम्यवादी चीन, रूस, गुट निरपेक्ष आंदोलन कुछ भी नहीं कर पाया।
  2. खाड़ी के इस तेल उत्पादक क्षेत्र पर संयुक्त राज्य अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हो गया। उसने उसके अर्थिक आधार को मजबूती प्रदान की।
  3. इस युद्ध के बाद अमेरिका ने इराक के तेल निर्यात की बहुत बड़ी राशि क्षतिपूर्ति के रूप में वसूल कर ली।
  4. इस युद्ध में अमरीका ने जितना खर्च किया उससे ज्यादा रकम उसे जर्मनी, जापान व सऊदी अरब जैसे देशों से मिली थी।

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प्रश्न 19.
‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच – 1998 में केन्या और तंजानिया के अमरीकी दूतावासों पर आतंकवादी . आक्रमण हुए। एक अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अलकायदा को इन दूतावासों पर आक्रमण के लिए जिम्मेवार माना गया। परिणामतः इस बमबारी के कुछ दिनों बाद क्लिंटन प्रशासन ने आतंकवाद की समाप्ति के नाम पर एक नया अभियान शुरू किया जिसे ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ का नाम दिया। इस अभियान के अन्तर्गत अमेरिका ने किसी की परवाह किये बिना सूडान और अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर क्रूज मिसाइलों से हमले किये। इस अभियान की संयुक्त राष्ट्र संघ से भी अनुमति नहीं ली गई। विश्व में अमरीकी वर्चस्व का यह एक उदाहरण है कि वह जब चाहे जिस देश में चाहे अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की परवाह किए बिना क्रूज मिसाइलों से हमला किया जा सकता है।

प्रश्न 20.
अलकायदा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
अलकायदा- अलकायदा एक आतंकवादी संगठन है जो धार्मिक और राजनीतिक आतंक के माध्यम से धार्मिक वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। यह इस्लामी राज का समर्थक तथा पोषक है। इसकी जड़ें अफगानिस्तान में हैं। आधुनिक हथियारों से सुसज्जित इसके कार्यकर्ता किसी की जान लेना या अपनी जान देना एक खेल समझते हैं। इस प्रकार अलकायदा अतिवादी इस्लामी विचारधारा से प्रभावित एक आतंकवादी संगठन है। आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के रूप में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ नामक सैन्य अभियान चलाया, उसका मुख्य लक्ष्य अलकायदा को बनाया गया क्योंकि 9/11 के अमेरिका के आतंकवादी हमले का सन्देह अमेरिका को अलकायदा पर ही था।

प्रश्न 21.
एक ध्रुवीय व्यवस्था के कोई तीन लाभ लिखिये।
उत्तर:
एकध्रुवीय व्यवस्था के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. शांतिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना: वर्तमान विश्व में एकध्रुवीय व्यवस्था का प्रमुख लाभ यह है कि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांतिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना होती है।
  2. तकनीकी और वैज्ञानिक विकास: एकध्रुवीय विश्व में शीत युद्ध की संभावना कम होने के कारण तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा मिला है।
  3. जनता के जीवन स्तर में सुधार: इससे विश्वस्तर पर जनता के जीवन स्तर में बहुत सुधार आया है। एक ध्रुवीय विश्व में उदारवाद, वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 22.
इतिहास हमें वर्चस्व के विषय में क्या सिखाता है? संक्षेप में लिखिये।
उत्तर:
वर्चस्व का इतिहास – इतिहास हमें वर्चस्व के विषय में निम्न बातें सिखाता है।

  • वर्चस्व बदलता रहता है-शक्ति संतुलन की दृष्टि से देखें तो वर्चस्व की स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में एक असामान्य घटना है। हर देश को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती हैं। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में वे किसी एक देश को इतना ताकतवर नहीं बनने देते कि वह शेष देशों के लिए भयंकर खतरा बन जाए। वर्तमान में अमरीकी वर्चस्व के स्थापित होने के बाद उसके संतुलनकारी शक्तियों पर विचार-मंथन चल रहा है। शक्ति सन्तुलन की राजनीति वर्चस्वशील देश की ताकत को आने वाले समय में कम कर देती है।
  • फ्रांस और ब्रिटेन का वर्चस्व – इतिहास में अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में वर्चस्व की स्थिति दो बार आयी है।
    1. यूरोप की राजनीति के संदर्भ में सन् 1660 से 1713 तक फ्रांस का वर्चस्व था।
    2. सन् 1860 से 1910 तक ब्रिटेन का वर्चस्व समुद्री व्यापार के बल पर कायम रहा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 23.
अमरीकी वर्चस्व को दर्शाने वाली शक्ति के चार रूपों का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व को दर्शाने वाले चार रूप निम्नलिखित हैं-

  1. सैन्य शक्ति के रूप में: अमरीकी वर्चस्व का मुख्य आधार उसकी बढ़ी चढ़ी सैन्य शक्ति है। वर्तमान में यह सैन्य शक्ति अपने आप में सम्पूर्ण तथा बेजोड़ है।
  2. ढांचागत शक्ति के रूप में: आज अमरीका के आर्थिक कार्य व नीतियाँ पूरे विश्व में अपनी धाक जमाए हुए हैं। अभी महासागरों पर उसकी उपस्थिति देखी जा सकती है। हमें विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुएँ मुहैया कराने में अमरीकी वर्चस्व की झलक दिखाई देती है। अमरीकी वर्चस्व को बढ़ाने में व्यावसायिक शिक्षा ने भी अहम भूमिका अदा की है।
  3. सांस्कृतिक शक्ति के रूप में अमरीका अपनी भाषा, साहित्य, फिल्मों, जीवन प्रणाली व शैली को किसी न किसी तरह से बढ़ावा देता रहता है। वह अन्य देशों को इसे अपनाने को प्रेरित करता रहता है।
  4. आर्थिक वर्चस्व: अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं के बाजार में अमेरिका का वर्चस्व बना हुआ है।

प्रश्न 24.
आपके मतानुसार एक स्वतन्त्र देश स्वयं को ‘वर्चस्व’ के प्रभाव से कैसे बचा सकता है? कोई चार सुझाव दीजिए। वर्चस्व पर नियंत्रण कैसे पाया जा सकता है?
अथवा
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक स्वतन्त्र देश वर्चस्व के प्रभाव से निम्नलिखित तरीकों से बच सकता है।

  1. सामाजिक आंदोलनों एवं जनमत निर्माण के द्वारा वर्चस्व पर नियंत्रण पाया जा सकता है
  2. गैर-सरकारी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास द्वारा भी वर्चस्व पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
  3. वर्चस्व के प्रति विरोध द्वारा भी वर्चस्व को नियंत्रित किया जा सकता है।
  4. वर्चस्व द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों का विरोध न करके भी वर्चस्व पर नियंत्रण पाया जा सकता।

प्रश्न 25.
अमरीकी आर्थिक वर्चस्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। है।
उत्तर:
अमरीकी आर्थिक वर्चस्व: अमरीकी आर्थिक वर्चस्व से अभिप्राय यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वह सर्वाधिक शक्ति – सम्पन्न है। यथा।

  1. वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमरीका के नियम-कानून लागू किये जाते हैं
  2. विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन तथा इण्टरनेट इत्यादि पर अमेरिका का वर्चस्व बना हुआ है।
  3. खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार का आधार समुद्री व्यापार है और अमेरिका का समुद्र पर वर्चस्व स्थापित है। अमरीका अपनी नौसेना के बल पर समुद्री व्यापार के मार्गों पर आने-जाने के नियम निर्धारित करता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग को अबाधित करता है। अमेरिकी नौसेना की उपस्थिति विश्व के समस्त महासागरों में है।

प्रश्न 26.
सैन्य शक्ति के रूप में अमरीकी वर्चस्व के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सैन्य शक्ति के रूप में अमरीका के वर्चस्व की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
अथवा
अमेरिकी वर्चस्व की सैन्य शक्ति के रूप में व्याख्या कीजिए।
अथवा
सैन्य शक्ति में अमरीकी वर्चस्व पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सैन्य शक्ति में अमरीकी वर्चस्व: समकालीन विश्व राजनीति में अमरीका सम्पूर्ण भू-मंडल में एक प्रमुख सैन्य शक्ति है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. आज अमरीका की सैन्य क्षमता विश्व के अन्य देशों की तुलना में बेजोड़ है । सैन्य मामलों में क्रांति और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उसकी प्रमुखता है।
  2. अमरीकी सैन्य क्षमता आज इसलिए भी सर्वोच्च है क्योंकि आज वह विश्व जनमत की परवाह किये बिना विश्व के किसी कोने पर निशाना साध सकता है। आज वह अपनी सेना को अपने घर में रखकर भी अपने दुश्मन को उसके घर में ही बरबाद कर सकता है।
  3. अमरीका का रक्षा बजट विश्व के 12 अन्य शक्तिशाली देशों के कुल सैन्य व्यय से अधिक है।
  4. अमरीका की सैन्य शक्ति, सैन्य शक्ति में गुणात्मक बढ़त भी लिए हुए है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 27.
अमरीका तथा विश्व के प्रमुख देशों के रक्षा बजट को दर्शाइये।
उत्तर:
अमरीका तथा विश्व के

देश रक्षा व्यय (अरब डालर में)
सं. रा. अमेरिका 602.8
रूस 76.7
चीन 150.5
इटली 22.9
सऊदी अरब 61.2
भारत 46.0
फ्रांस
ब्रिटेन 52.5
जापान 48.6
जर्मनी 41.7
दक्षिण कोरिया 35.7
आस्ट्रेलिया 29.4

उक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि अमेरिका रक्षा बजट की दृष्टि से अपने अधिकांश प्रतिद्वन्द्वियों की तुलना में अधिक सृदृढ़ स्थिति में है

प्रश्न 28.
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व को समझाइये
उत्तर:
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व – ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

  1. वैश्विक अर्थव्यवस्था: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी इच्छा व नीतियाँ थोपने की स्थिति को वर्चस्व की स्थिति कह सकते हैं। आज अमरीका के आर्थिक कार्य व नीतियाँ पूरे विश्व में अपनी धाक जमाए हुए हैं। सभी महासागरों पर आज अमरीकी उपस्थिति अनुभव की जा सकती है। इंटरनेट अमरीकी सैन्य योजना शोध का ही परिणाम है।
  2. सार्वजनिक वस्तुएँ: हमें विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया कराने में अमरीकी वर्चस्व की झलक दिखती है।
  3. शैक्षणिक प्रभाव: अमरीकी वर्चस्व को बढ़ाने में व्यावसायिक शिक्षा ने भी अहम भूमिका अदा की है। एम. बी. ए. जैसे शैक्षणिक पाठ्यक्रमों ने अमरीकी प्रभाव को बढ़ाया है।

प्रश्न 29.
स्पष्ट कीजिये कि अमरीकी आर्थिक प्रबलता उसकी ढाँचागत शक्ति से अलग नहीं है।
उत्तर:
अमरीका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढाँचागत ताकत यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत से जुड़ी हुई है। यथा

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रेटनवुड प्रणाली कायम हुई थी। अमरीका द्वारा कायम यह प्रणाली आज भी विश्व की अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना का काम कर रही है।
  2. विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन अमरीकी वर्चस्व का ही परिणाम है।
  3. अमरीका की ढाँचागत ताकत का एक मानक उदाहरण एमबीए की अकादमिक डिग्री है। एमबीए के शुरुआती पाठ्यक्रम 1900 में आरंभ हुए जबकि अमरीका के बाहर इसकी शुरुआत सन् 1950 में ही जाकर हो सकी। आज दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसमें एमबीए को प्रतिष्ठित अकादमिक दर्जा हासिल न हो।

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प्रश्न 30.
अमेरिकी वर्चस्व की दो प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
अमेरिकी वर्चस्व की दो प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं।

  1. अमरीका की संस्थागत बुनावट:
    यहाँ शासन के तीनों अंगों के बीच शक्ति का बँटवारा है और यही संस्थागत ‘बुनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बेलगाम इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का काम करती है।
  2. अन्दरूनी चुनौती:
    अमरीकी वर्चस्व की अन्दरूनी चुनौती के मूल में अमरीकी समाज है जो अपनी प्रकृति में उन्मुक्त है। अमरीकी राजनीतिक संस्कृति में शासन के उद्देश्य और तरीके को लेकर गहरे संदेह का भाव भरा है। अमरीका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।

प्रश्न 31.
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत-अमरीकी सम्बन्धों में परिवर्तन लाने वाली स्थितियों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
सोवियत संघ की समाप्ति के बाद अमरीकी नीति-निर्धारकों ने भारत-अमरीकी संबंधों की सुधार की तरफ ध्यान दिया निम्न दो घटनाओं ने अमरीकी विदेश नीति को इस दिशा में प्रेरित किया
1. सोवियत संघ के बिखराव से कुछ ही महीने पहले भारत ने आर्थिक उदारीकरण का सूत्रपात किया आर्थिक खुलेपन के कारण विदेशी व्यापारी समुदाय के लिए विशाल मध्यम वर्ग वाले भारतीय बाजार का आकर्षण काफी बढ़ गया।

2. शीत युद्ध के बाद अमरीकी विदेश नीति में आर्थिक मुद्दों पर अधिक बल दिया तथा ऐसे भारत के साथ गहरे व्यापारिक सम्बन्ध बनाने के प्रयास किये गये तथा 1995 में दोनों देशों के बीच 11 व्यापारिक समझौते किए गए। उसके बाद भारत व अमरीका के आर्थिक सम्बन्धों में और अधिक निकटता आने लगी।

प्रश्न 32.
अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ‘नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा किसे कहते हैं?
उत्तर:
1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से उस पर कब्जा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनायिक कोशिशें जब नाकाम रहीं तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए ल-प्रयोग की अनुमति दे दी। शीतयुद्ध के दौरान ज्यादातर मामलों में चुप्पी साध लेने वाले संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिहाज से यह एक नाटकीय फैसला था। अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसे ‘नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा दी।

प्रश्न 33.
‘नाइन इलेवन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
11 सितम्बर, 2001 के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अरहरणकर्ताओं ने उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमरीकी व्यावसायिक विमानों पर कब्जा कर लिया। अपहरणकर्ता इन विमानों को अमरीका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गए। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अर्लिंगटन स्थित ‘पेंटागन’ से टकराया। ‘पेंटागन’ में अमरीकी रक्षा विभाग का मुख्यालय है। चौथे विमान को अमरीकी कांग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन वह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘नाइन इलेवन’ कहा जाता है।

प्रश्न 34.
‘इराक पर अमरीकी हमले से अमरीका की कुछ कमजोरियाँ उजागर हुई हैं।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इराक पर अमरीकी हमले से अमरीका की कुछ कमजोरियाँ उजागर हुई हैं। अमरीका इराक की जनता को अपने नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के आगे झुका पाने में सफल नहीं हुआ है। अमरीका की इस कमजोरी को हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से समझ सकते हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि साम्राज्यवादी शक्तियों ने सैन्य बल का प्रयोग महज चार लक्ष्यों जीतने, अपरोध करने, दंड देने ओर कानून व्यवस्था बहाल रखने के लिए किया है। इराक के उदाहरण से प्रकट है कि अमरीका की विजय क्षमता विकट है। इसी तरह अपरूद्ध करने और दंड देने की भी उसकी क्षमता स्वतः सिद्ध है। अमरीकी सैन्य क्षमता की कमजोरी सिर्फ एक बात में जाहिर हुई है। वह अपने अधिकृत भू-भाग में कानून व्यवस्था नहीं बहाल कर पाया है

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प्रश्न 35.
हाल के सालों में भारत-अमरीकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं। तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाल के सालों में भारत-अमरीकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं। इन बातों का संबंध प्रौद्योगिकी और अमरीका में बसे अनिवासी भारतीयों से है। ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हुई हैं। इस बात को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से समझ सकते हैं।

  1. सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमरीका को जाता है।
  2. बोईंग के 35 प्रतिशत तकनीकी कर्मचारी भारतीय मूल के हैं।
  3. 3 लाख भारतीय ‘सिलिकन वैली’ में काम करते हैं।
  4. उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कंपनियों की शुरुआत अमरीका में बसे भारतीयों ने की है।

प्रश्न 36.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सार्वजनिक वस्तु का सबसे बढ़िया उदाहरण समुद्री व्यापार मार्ग है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सार्वजनिक वस्तु का सबसे बढ़िया उदाहरण समुद्री व्यापार मार्ग है। जिनका इस्तेमाल व्यापारिक जहाज करते हैं। खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार समुद्री व्यापार मार्गों के खुलेपन के बिना संभव नहीं । दबदबे वाला देश अपनी नौसेना की ताकत से समुद्री व्यापार मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करता है और अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र में अबाध आवाजाही को सुनिश्चित करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश नौसेना का जोर घट गया। अब यह भूमिका अमरीकी नौसेना निभाती है जिसकी उपस्थिति दुनिया के लगभग सभी महासागरों में है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अफगानिस्तान युद्ध एवं खाड़ी युद्धों के संदर्भ में एक ध्रुवीय विश्व (अमेरिका) के विकास की व्याख्या करें।
एक – ध्रुवीय विश्व (अमेरिका) का विकास
सोवियत संघ के पतन के बाद हुई निम्नलिखित घटनाओं से एक ध्रुवीय विश्व में अमरीका के विकास की व्याख्या की जा सकती है;

1. प्रथम खाड़ी युद्ध: अमेरिका ने कुवैत को स्वतंत्र कराने के सैनिक अभियान में लगभग 75 प्रतिशत सैनिक अमेरिका के थे और अमेरिका ही इस युद्ध को निर्देशित एवं नियंत्रित कर रहा था। विश्व इतिहास में यह दूसरी बार हुआ कि जब सुरक्षा परिषद् ने किसी देश के खिलाफ सैनिक कार्यवाही की अनुमति दी हो।

2. सूडान एवं अफगानिस्तान पर अमेरिकन प्रक्षेपास्त्र हमला: अमेरिका ने सूडान एवं अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना तथा विश्व जनमत की परवाह किये बिना अल-कायदा के ठिकानों पर क्रूज प्रक्षेपास्त्रों से हमला किया।

3. 9/11 की घटना और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध: 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका में आतंकवादी हमले के विरोध में अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध चलाए ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ नामक विश्वव्यापी युद्ध अभियान में शक के आधार पर किसी के खिलाफ भी कार्यवाही की गयी। इस अभियान के तहत अमरीकी सरकार ने अनेक स्वतंत्र राष्ट्रों में गिरफ्तारियाँ कीं और जिन देशों में गिरफ्तारियाँ की गई थीं, उन देशों की सरकारों से पूछना अमरीका ने जरूरी नहीं समझा।

4. द्वितीय खाड़ी युद्ध: खाड़ी युद्ध द्वितीय में अमेरिका ने विश्व जनमत, संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विश्व के अन्य देशों की परवाह किये बिना इराक पर मार्च, 2003 को उसके तेल भण्डारों पर कब्जा करने तथा इराक में अपने समर्थन वाली सरकार के गठन के उद्देश्य से आक्रमण कर दिया।

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प्रश्न 2.
अमेरिका के अधिक से अधिक शक्तिशाली होने एवं विश्व के एक ध्रुवीय होने के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
अमेरिका के शक्तिशाली होने
एवं
विश्व के एक ध्रुवीय होने के कारण
अमेरिका के अधिक से अधिक शक्तिशाली होने एवं विश्व के एक ध्रुवीय होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. शीत युद्ध की समाप्ति: सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति ने विश्व को एक ध्रुवीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  2. रूस की कमजोर स्थिति: सोवियत संघ के पतन के बाद रूस अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण सोवियत संघ जैसी प्रभावशाली स्थिति प्राप्त नहीं कर सका है
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका का बढ़ता प्रभाव: सोवियत संघ के पतन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की उपेक्षा करके अमेरिका अब विश्व राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने लगा है।
  4. गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता में कमी आना:शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका पर अंकुश लगाने वाला गुटनिरपेक्ष आंदोलन कमजोर पड़ गया है, जिससे अमेरिका उत्तरोत्तर शक्तिशाली होता चला गया।
  5. उदारवादी विचारधारा का विस्तार: शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सोवियत संघ से विघटित हुए सभी समाजवादी देशों ने लोकतांत्रिक उदारवादी चोगा धारण कर लिया है। इस प्रकार अब समूचे विश्व में उस उदारवादी राजनीतिक विचारधारा का बोलबाला हो गया। इससे विश्व राजनीति में अमेरिका का प्रभाव और बढ़ता गया तथा विश्व एक ध्रुवीय बन गया।
  6. शीत युद्ध के बाद अमेरिका के वर्चस्ववादी प्रयास – शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने भी अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए ऐसे अनेक वर्चस्ववादी प्रयास किये जिसके चलते एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का स्वरूप एकदम स्पष्ट हो गया और विश्व – राजनीति में अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हो गया।

प्रश्न 3.
विश्व राजनीति में अमेरिकी सैन्य शक्ति वर्चस्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
सैनिक शक्ति के रूप में अमरीकी वर्चस्व को समझाइये।
उत्तर:
सैनिक शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व सैनिक शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व को अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. बेजोड़ तथा अनूठी सैन्य शक्ति: अमेरिका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी बढ़ी चढ़ी सैन्य शक्ति है। आज अमेरिका की सैन्य शक्ति अपने आप में अनूठी है और बाकी देशों की तुलना में बेजोड़ है क्योंकि आज अमेरिका अपनी सैन्य क्षमता के बल पर पूरे विश्व में कहीं भी निशाना साध सकता है।
  2. सैन्य व्यय: आज कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति की तुलना में उसके पासंग के बराबर भी नहीं है। अमरीका के नीचे के कुल 12 ताकतवर देश एक साथ मिलकर अपनी सैन्य क्षमता के लिए जितना व्यय करते हैं, उससे कहीं ज्यादा अपनी सैन्य क्षमता के लिए अकेले अमरीका करता है।
  3. सैनिक दृष्टि से गुणात्मक बढ़त: अमेरिका आज सैन्य प्रौद्योगिकी के मामले में इतना आगे है कि किसी और देश के लिए इस मामले में उसकी बराबरी कर पाना संभव नहीं है।
  4. जन-मनोबल को झुकाने में पूर्ण समर्थ नहीं: इराक के उदाहरण से प्रकट हुआ है कि अमेरिका की विजय- क्षमता विकट है। उसकी अपराध करने और दंड देने की क्षमता भी स्वतः सिद्ध है, लेकिन जन – मनोबल को झुकाकर कानून व्यवस्था बहाल कर पाने की उसकी क्षमता पर सवालिया निशान उभरे हैं।

प्रश्न 4.
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमेरिकन वर्चस्व पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमेरिकी वर्चस्व: ढाँचागत शक्ति के अर्थ में अमेरिकन वर्चस्व को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट कर सकते हैं।

  1. वैश्विक अर्थव्यवस्था की अच्छी समझ: ढांचागत शक्ति के अर्थ में अमरीकी वर्चस्व का सम्बन्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था की एक खास समझ से है। अमेरिका के पास अपने मतलब की चीजों के बनाए रखने हेतु व्यवस्था कायम करने के लिए नियमों व तरीकों को लागू करने की क्षमता व इच्छा दोनों हैं।
  2. विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया करने में प्रभावी भूमिका: विश्वव्यापी ढाँचागत शक्ति के वर्चस्व की झलक हमें विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं, जैसे स्वच्छ वायु, सड़क, समुद्री व्यापार मार्ग आदि को उपलब्ध कराने की अमेरिकी भूमिका में दिखाई देती है।
  3. समुद्री व्यापार मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करना: आज अमेरिका अपनी नौ सेना की ताकत से समुद्री व्यापार मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करता है और अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र में अबाध आवाजाही को सुनिश्चित करता है।
  4. इंटरनेट पर अमरीकी वर्चस्व: इंटरनेट अमेरिकी सैन्य अनुसंधान परियोजना का परिणाम है। आज भी इंटरनेट उपग्रहों के एक वैश्विक तंत्र पर निर्भर है और इनमें से अधिकांश उपग्रह अमेरिका के हैं।
  5. वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण अमरीकी हिस्सेदारी: अमेरिका वैश्विक अर्थव्यवस्था के हर भाग, हर क्षेत्र तथा प्रौद्योगिकी के हर क्षेत्र में विद्यमान है।
  6. वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत: दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रेटनवुड प्रणाली कायम हुई थी। अमेरिका द्वारा कायम यह प्रणाली आज भी विश्व की अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना का काम कर रही है।

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प्रश्न 5.
अमेरिकी सांस्कृतिक वर्चस्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
सांस्कृतिक अर्थ में अमेरिकन वर्चस्व की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व से आशय सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व का सम्बन्ध ‘सहमति गढ़ने’ की ताकत से है। कोई प्रभुत्वशाली वर्ग या देश अपने असर में रहने वालों को इस तरह सहमत कर सकता है कि वे भी दुनिया को उसी नजरिये से देखने लगें जिसमें प्रभुत्वशाली वर्ग या देश देखता है। इससे प्रभुत्वशाली देश की बढ़त और उसका वर्चस्व कायम होता है।

सांस्कृतिक अर्थ में अमरीकी वर्चस्व:
आज विश्व में अमेरिका की सांस्कृतिक मौजूदगी भी इसका एक कारण है। आज अच्छे जीवन और व्यक्तिगत सफलता के बारे में जो धारणाएँ पूरे विश्व में प्रचलित हैं; दुनिया के अधिकांश लोगों और समाजों के जो सपने हैं। – वे सब 20वीं सदी के अमरीका में प्रचलित व्यवहार के ही प्रतिबिंब हैं। अमरीकी संस्कृति बड़ी लुभावनी है और इसी कारण सबसे ताकतवर है।

वर्चस्व का यह सांस्कृतिक पहलू है जहाँ जोर-जबर्दस्ती से नहीं बल्कि रजामंदी से बात मनवायी जाती है। समय गुजरने के साथ हम इसके अत्यधिक अभ्यस्त हो गये हैं। उदाहरण के लिए सोवियत संघ की एक पूरी पीढ़ी के लिए नीली जीन्स ‘अच्छे जीवन’ की आकांक्षाओं का प्रतीक बन गयी थी – एक ऐसा ‘अच्छा जीवन’ जो सोवियत संघ में उपलब्ध नहीं था।

प्रश्न 6.
वर्तमान में ‘अमेरिका और भारत के सम्बन्ध’ विषय पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
अमेरिका के भारत से सम्बन्ध वर्तमान में अमेरिका और भारत के सम्बन्धों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  1. अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर समान दृष्टिकोण: वर्तमान में भारत और अमरीका के अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरोध में समान दृष्टिकोण के कारण दोनों देशों में नजदीकी आई है।
  2. लोकतांत्रिक: उदारवादी राजनीतिक व्यवस्था: दोनों देशों में विद्यमान उदारवादी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के कारण भी सम्बन्धों में निकटता आई है।
  3. व्यापारिक सहयोग: वर्तमान में अमरीका को भारत एक बड़े बाजार के रूप में दिखाई देता है और भारत को विदेशी पूँजी के निवेश की आवश्यकता है। अमरीकी कम्पनियाँ अपने उत्पादों को भारत के बाजार में बेचने को उत्सुक हैं। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच विभिन्न व्यापारिक समझौते इस काल में हुए हैं।
  4. असैन्य नाभिकीय सहयोग: अमरीका ने भारत के साथ 2 मार्च, 2006 को ‘असैन्य नाभिकीय समझौता या परमाणु ऊर्जा समझौता’ किया है।

यह समझौता अमेरिका की विदेश नीति को भारतोन्मुखी बनाता है। एक शक्तिशाली भारत के माध्यम से वह दक्षिण एशिया क्षेत्र में अपने हितों को सुरक्षित करना चाहता है। भारत का बड़ा बाजार, भारत की बौद्धिक सम्पदा, विज्ञान तथा तकनीकी श्रेष्ठता तथा उसकी आकर्षक भू-राजनैतिक स्थिति के कारण अमरीका भारत से मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को 21वीं सदी के लिए आवश्यक मान रहा है।

प्रश्न 7.
अमरीका से निर्वाह करने हेतु भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का समुचित मेल तैयार करना होगा। किन्हीं तीन संभावित रणनीतियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत को अमरीका के साथ किस तरह का संबंध रखना चाहिए यह तय कर पाना कोई आसान काम नहीं है। अत: भारत में तीन संभावित रणनीतियों पर बहस चल रही है। यथा
1. भारत के जो विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को सैन्य शक्ति के संदर्भ में देखते: समझते हैं, वे भारत और अमरीका की बढ़ती हुई नजदीकी से भयभीत हैं। इन विद्वानों के अनुसार भारत को वाशिंगटन से अपना अलगाव बनाए रखना चाहिए तथा अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने पर लगाना चाहिए।

2. कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत और अमरीका के हितों में बढ़ता हुआ हेलमेल, भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर है। ये विद्वान ऐसी रणनीति अपनाने की तरफदारी करते हैं जिससे भारत अमरीकी वर्चस्व का फायदा उठाए वे चाहते हैं कि दोनों के आपसी हितों का मेल हो तथा भारत अपने लिए सबसे बढ़िया विकल्प ढूँढ़ सके इन विद्वानों के अनुसार अमरीका के विरोध की रणनीति व्यर्थ साबित होगी और आगे चलकर इससे भारत को नुकसान होगा।

3. कुछ विद्वानों के मतानुसार भारत को अपनी अगुआई में विकासशील देशों का गठबंधन बनाना चाहिए। समय के साथ यह गठबंधन ताकतवर होगा जिससे अमरीकी वर्चस्व के प्रतिकार में सहायक होगा। अतः अमरीका से निर्वाह करने के लिए भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का समुचित मेल तैयार करना होगा।

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प्रश्न 8.
भारत-अमरीकी परमाणु समझौते का भारत के संदर्भ में मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
2 मार्च 2006 को नई दिल्ली में भारत और अमरीका के बीच ‘भारत-अमरीका असैन्य नाभिकीय सहयोग’ समझौता हुआ। भारत के संदर्भ में इस परमाणु समझौते का मूल्यांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है। (अ) भारत के लिए परमाणु समझौते की उपयोगिता भारत के संदर्भ में परमाणु समझौते के पक्ष में निम्न प्रमुख तर्क दिये गये हैं।

  1. भारत के आर्थिक विकास के लिए यह समझौता उपयोगी है क्योंकि भारत इस समझौते के तहत परमाणु ऊर्जा प्राप्त कर सकेगा।
  2. इस समझौते से भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र का दर्जा भी प्राप्त हुआ है।
  3. यह समझौता इस बात का परिचायक है कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक शक्ति के रूप में उभर रहा है।
  4. इस समझौते से भारत के परमाणु संयंत्रों को संवर्द्धित यूरेनियम की प्राप्ति हो जायेगी।

(ब) परमाणु समझौते के विपक्ष (विरोध) में तर्क: भारत के संदर्भ में भारत:अमरीका परमाणु समझौते की निम्न प्रमुख आलोचनाएँ की गई हैं:

  1. यह समझौता भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र का दर्जा प्रदान नहीं करता है।
  2. भारत के परमाणु कार्यक्रम व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह समझौता खतरा साबित हो सकता है।
  3. परमाणु ऊर्जा न तो सस्ती है, न स्वच्छ है और न सुरक्षित है।

प्रश्न 9.
अमेरिकी वर्चस्व से कैसे निपटा जा सकता है?
उत्तर:
वर्तमान में बढ़ते अमेरिकी वर्चस्व से निपटने के लिए विद्वानों ने निम्नलिखित रास्ते प्रस्तुत किये हैं।
1. वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का लाभ उठाया जाए – बढ़ते अमरीकी वर्चस्व से निपटने के लिए उसके विरुद्ध जाने के बजाय उसके वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाना कहीं अधिक उचित रणनीति है। इसे ‘बैंडवैगन’ अथवा ‘जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी दीजै’ की रणनीति कहते हैं।

2. वर्चस्व वाले देश से दूर रहना- देशों के सामने दूसरा विकल्प यह है कि वे वर्चस्व वाले देश से यथासंभव दूर-दूर रहें। चीन, रूस और यूरोपीय संघ सभी एक तरीके से अपने को अमेरिकी निगाह में चढ़ने से बचा रहे हैं।

3. राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार करने के लिए आगे आएँगी – कुछ लोग मानते हैं कि राज्येतर संस्थाएँ अमेरिकी वर्चस्व के प्रतिकार के लिए आगे आएँगी अमेरिकी वर्चस्व को आर्थिक और सांस्कृतिक धरातल पर चुनौती मिलेगी। यह चुनौती स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक आन्दोलन और जनमत के आपसी मेल से प्रस्तुत होगी मीडिया का एक तबका, बुद्धिजीवी, कलाकार और लेखक आदि अमरीकी वर्चस्व के प्रतिरोध के लिए आगे आएँगे ये राज्येतर संस्थाएँ विश्वव्यापी नेटवर्क बना सकती हैं जिसमें अमेरिकी नागरिक भी शामिल होंगे और साथ मिलकर अमेरिकी नीतियों की आलोचना तथा प्रतिरोध किया जा सकेगा।

प्रश्न 10.
9/11 के बाद अमेरिकी विदेश नीति में क्या परिवर्तन आए और इसका विश्व राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
9/11 की घटना: 11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर एक आतंकवादी हमला हुआ इस आतंकवादी हमले के कारण अकेले अमरीका में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में भय का माहौल उत्पन्न हो गया। आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध की अमरीकी मुहिम – ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम – अमरीका पर हुए इस आतंकवादी हमले की प्रतिक्रिया में अमरीका ने आतंकवादियों के खिलाफ कई देशों में मुहिम चलायी, उसे आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में जाना गया यह एक ऐसा अभियान था, जिसमें शक के आधार पर किसी के खिलाफ भी कार्यवाही की जा सकती थी।

अमरीका पर 9/11 के आक्रमण के लिए मुख्य रूप से अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को उत्तरदायी ठहराया गया। अमरीकी वर्चस्व या दादागिरी का विकास- आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ के तहत अमरीका की विदेश नीति में यह परिवर्तन आया कि अमेरिका ने अब न केवल ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की अवहेलना या उपेक्षा की, बल्कि देशों की ‘संप्रभुता’ की भी उपेक्षा की। यथा

  1. ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ के तहत शक के आधार पर अमरीकी सरकार ने अनेक स्वतंत्र राष्ट्रों में गिरफ्तारियाँ कीं और जिन देशों में गिरफ्तारियाँ की गई थीं, उन देशों की सरकारों से पूछना भी जरूरी नहीं समझा।
  2. विभिन्न देशों से गिरफ्तार लोगों को अलग देशों के खुफिया जेलखानों में बंद कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों को भी इन बंदियों से मिलने तक नहीं दिया गया।
  3. विश्व का कोई भी देश अब अमरीकी दादागिरी को रोकने की स्थिति में नहीं रहा।

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प्रश्न 11.
सोवियत संघ के विघटन के बाद उभरी अफगानिस्तान की समस्या पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
अफगानिस्तान संकट
1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। ऐसे में सोवियत संघ के सहारे अफगानिस्तान में शासन चलाने वाले शासक मोहम्मद नजीबुल्ला को सत्ताविहीन कर दिया गया। इस्लामिक जिहाद काउंसिल का गठन-अफगानिस्तान में शासन सम्बन्धी विभिन्न धड़ों की एकता के लिए 1992 में ‘इस्लामिक जिहाद काउन्सिल’ का गठन किया गया। अनेक प्रयासों के बावजूद यह शांति स्थापित करने में सफल रही। अफगानिस्तान में तालिबान संकट – 1995 में अमेरिका और पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान ने उत्तरी तथा मध्य अफगानिस्तान के प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। तालिबान को अमरीका तथा पाकिस्तान ने सशस्त्र इस्लामवादी बनाया था।

अमेरिका का तालिबान पर आक्रमण: 1999 में तालिबान अमरीका विरोधी संगठन के रूप में उभरा। अमेरिका ने तालिबान को चेतावनी दी कि वह अलकायदा को किसी प्रकार का सहयोग न करे, लेकिन अमरीका द्वारा दी गई सलाह व चेतावनी पर तालिबान ने कोई ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप 7 अक्टूबर, 2001 को अमरीका व उसके सहयोगी देशों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया तथा अफगानिस्तान में तालिबान शासन का पतन हो गया।

वैकल्पिक सरकार का गठन: अब अफगानिस्तान में वैकल्पिक सरकार के गठन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और 22 दिसम्बर, 2001 को हामिद करजई के नेतृत्व में अफगानिस्तान में सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से हुआ। नई सरकार के सत्तासीन होने के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय सेना वहाँ तैनात कर दी गई।

प्रश्न 12.
‘खाड़ी युद्ध और अमरीकी हस्तक्षेप’ पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
खाड़ी युद्ध की पृष्ठभूमि: 2-अगस्त, 1990 को इराक ने कुवैत पर आक्रमण कर उस पर अपना कब्जा कर लिया। इराक के शासक सद्दाम हुसैन ने यह घोषणा की कि वह कुवैत को किसी भी स्थिति में खाली नहीं करेगा। इराक की हठधर्मिता तथा इराक के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अमरीकी कार्यवाही – अमरीका ने इराक के विरुद्ध सीधी कार्यवाही न करके संयुक्त राष्ट्र संघ को माध्यम बनाया तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रायः सभी सदस्यों इराकी आक्रमण की निंदा की, उसके खिलाफ कठोर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये तथा यह प्रस्ताव पारित किया कि यदि इराक 15 जनवरी, 1991 तक कुवैत से नहीं हटता है तो उसके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही की जा सकती है।

खाड़ी युद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा इराक को दी गई समय-सीमा तक इराक ने कुवैत को खाली नहीं किया और बहुराष्ट्रीय सेना ने 17 जनवरी, 1991 को इराक पर आक्रमण कर दिया और देखते ही देखते इराक की सेनाएँ धराशायी हो गईं और कुवैत मुक्त हो गया। युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भी इराक के खिलाफ लगाए प्रतिबंध जारी रहे ताकि इराक फिर से शस्त्रास्त्रों से लैस नहीं हो सके। खाड़ी युद्ध के निम्न प्रमुख प्रभाव हुए- खाड़ी युद्ध का प्रभाव

  1. खाड़ी युद्ध में अमरीकी सफलता के कारण विश्व में अमरीका का वर्चस्व कायम हुआ। उसे ही विश्व की एकमात्र महाशक्ति माना जाने लगा।
  2. खाड़ी के इस अमूल्य तेल उत्पादक क्षेत्र पर अमरीका का वर्चस्व स्थापित हो गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 13.
नई विश्व व्यवस्था क्या है? नई विश्व व्यवस्था में अमरीकी वर्चस्व का एहसास किन घटनाओं के बाद हो पाया?
उत्तर:
नई विश्व व्यवस्था:
सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में एकध्रुवीय नई विश्व व्यवस्था कायम हुई है जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एक सबसे शक्तिशाली ताकत के रूप में उभर गया है। सम्पूर्ण भूमण्डल में यह सैन्य व आर्थिक रूप से शक्तिशाली है। इसके अतिरिक्त सैन्य प्रौद्योगिकी तथा अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं में इसका नेतृत्व है। अमरीकी वर्चस्व का एहसास – नई विश्व व्यवस्था में अमरीकी वर्चस्व का एहसास अग्र घटनाओं के बाद हो पाया।
1. प्रथम खाड़ी युद्ध”:
1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला कर उस पर कब्जा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की राजनयिक कोशिशों के असफल हो जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने इराक पर बल प्रयोग की अनुमति दे दी। अमरीका के नेतृत्व में 34 देशों की फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इराक को कुवैत से हटने को मजबूर होना पड़ा। इस युद्ध में अमरीका ने लाभ कमाया।

2. यूगोस्लाविया पर नाटो की बमबारी: 1999 में यूगोस्लाविया पर अमरीकी नेतृत्व में नाटो ने दो माह तक बमबारी की। यूगोस्लाविया की सरकार गिर गयी और कोसाबो (यूगोस्लाविया के एक प्रान्त) पर नाटो की सेना काबिज हो गयी।

3. सूडान और अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर बमबारी: 1999 में केन्या और तंजानिया में अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र की परवाह किये बिना सूडान और अफगानिस्तान के अलकायदा ठिकानों पर मिसाइलों से हमले किये।

4. आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी कार्यवाही:  9/11 की घटना के बाद अमेरिका ने अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान को निशाना बनाते हुए आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध छेड़ दिया।

5. इराक पर आक्रमण: 19 मार्च, 2003 को संयुक्त राष्ट्र को धत्ता बताते हुए इराक के तेल भंडारों पर नियंत्रण करने तथा इराक में मनपसन्द सरकार बनाने हेतु इराक पर आक्रमण कर दिया तथा उस पर नियंत्रण कर लिया।

प्रश्न 14.
अमेरिका के इराक आक्रमण के कारणों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
अमेरिका के इराक आक्रमण के कारण 19. मार्च, 2003 को अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर सैन्य हमला किया। अमरीकी अगुवाई वाले ‘आकांक्षियों के महाजोट’ में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी। अमेरिका के इराक आक्रमण के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
1. इराक को सामूहिक संहार के हथियारों को बनाने से रोकना: अमेरिका ने इराक पर आक्रमण करने के पीछे यह कारण बताया कि इराक को सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए इराक पर यह हमला किया। लेकिन इराक में सामूहिक संहार के हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले। इससे स्पष्ट होता है कि इराक पर अमेरिका के हमले के पीछे यह कारण नहीं था।

2. इराक के तेल भंडार पर नियंत्रण करना: इराक पर अमेरिकी हमले का प्रमुख कारण था। इराक के तेल भंडारों पर अमेरिकी नियंत्रण स्थापित करना। इस हमले के पश्चात् खाड़ी के इस तेल उत्पादक देश पर अमरीकी वर्चस्व स्थापित हो गया।

3. इराक में कठपुतली सरकार कायम करना: इराक पर अमेरिकी आक्रमण का एक अन्य प्रमुख कारण था। इराक में अमरीका की मनपसंद सरकार कायम करना। सद्दाम हुसैन के रहते अमरीका वहाँ अपनी कठपुतली सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाया था। इस कारण उसका प्रमुख उद्देश्य था। इराक से सद्दाम हुसैन की सत्ता को समाप्त करना और इस उद्देश्य की पूर्ति उस पर आक्रमण कर तथा उसे समाप्त करके ही हो सकती थी।

4. अमरीकी राजनैतिक वर्चस्व का स्थापित करना: इराक पर अमरीकी आक्रमण का एक अन्य कारण था। इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता समाप्त कर, इराक पर अपना अधिकार जमाकर, विश्व में अपने वर्चस्व को स्थापित करना तथा यह दिखाना कि अब विश्व में उसका प्रतिरोध कोई भी शक्ति नहीं कर सकती।

प्रश्न 15.
इतिहास हमें वर्चस्व के बारे में क्या सिखाता है?
उत्तर:
शक्ति-संतुलन के तर्क को देखते हुए वर्चस्व की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एक असामान्य परिघटना है। इसका कारण बड़ा सीधा-सादा है। विश्व – सरकार जैसी कोई चीज नहीं होती और ऐसे में हर देश को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है। कभी-कभी अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में उसे यह भी सुनिश्चित करना होता है कि कम से कम उसका वजूद बना रहे। इस कारण, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में विभिन्न देश शक्ति संतुलन को लेकर बड़े सतर्क होते हैं और आमतौर पर वे किसी एक देश को इतना ताकतवर नहीं बनने देते कि बाकी के देशों के लिए भयंकर खतरा बन जाए।

सौ साल बीत चुके हैं। इस दौरान सिर्फ दो अवसर आए जब किसी एक देश ने अंतर्राष्ट्रीय फलक पर वही प्रबलता प्राप्त की जो आज अमरीका को हासिल है। यूरोप की राजनीति के संदर्भ में 1660 से 1713 तक फ्रांस का दबदबा था और यह वर्चस्व का पहला उदाहरण है। ब्रिटेन का वर्चस्व और समुद्री व्यापार के बूते कायम हुआ उसका साम्राज्य 1860 से 1910 तक बना रहा। यह वर्चस्व का दूसरा उदाहरण है। वर्चस्व अपने चरमोत्कर्ष के समय अजेय जान पड़ता है लेकिन यह हमेशा के लिए कायम नहीं रहता इसके ठीक विपरीत शक्ति-संतुलन की राजनीति वर्चस्वशील देश की ताकत को आने वाले समय में कम कर देती है।

1660 में लुई 14वें के शासनकाल में फ्रांस अपराजेय था लेकिन 1713 तक इंग्लैण्ड, हैवसबर्ग, आस्ट्रिया और रूस फ्रांस की ताकत को चुनौती देने लगे। 1860 में विक्टोरियाई शासन का सूर्य अपने पूरे चरम पर था और ब्रिटिश साम्राज्य हमेशा के लिए सुरक्षित लगता था। 1910 तक यह स्पष्ट हो गया कि जर्मनी, जापान और अमरीका ब्रिटेन की ताकत को ललकारने के लिए उठ खड़े हुए हैं। अब से 20 साल बाद एक और महाशक्ति या कहें कि शक्तिशाली देशों का गठबंधन उठ खड़ा हो सकता है क्योंकि तुलनात्मक रूप से देखें तो अमरीका की ताकत कमजोर पड़ रही है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. सोवियत संघ का विघटन हुआ
(अ) 1990 में
(स) 1992 में
(ब) 1991 में
(द) 1993 में।
उत्तर:
(ब) 1991 में

2. पूँजीवादी दुनिया और साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी
अथवा
शीत युद्ध का सबसे बड़ा प्रतीक थी-
(अ) बर्लिन की दीवार का खड़ा किया जाना।
(ब) बर्लिन की दीवार का गिराया जाना।
(स) हिटलर के नेतृत्व में नाजी पार्टी का उत्थान।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) बर्लिन की दीवार का खड़ा किया जाना।

3. बर्लिन की दीवार बनाई गई थी
(अ) 1961 में
(ब) 1951 में
(स) 1971 में
(द) 1981 में।
उत्तर:
(अ) 1961 में

4. पूर्वी जर्मनी के लोगों ने बर्लिन की दीवार गिरायी-
(अ) 1946 में
(ब) 1991 में
(स) 1989 में
(द) 1961 में।
उत्तर:
(स) 1989 में

5. सोवियत संघ के विघटन के लिए किस नेता को जिम्मेदार माना गया
(अ) निकिता ख्रुश्चेव
(स) बोरिस येल्तसिन
(ब) स्टालिन
(द) मिखाइल गोर्बाचेव।
उत्तर:
(द) मिखाइल गोर्बाचेव।

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6. सोवियत संघ के विभाजन के बाद विश्व पटल पर कितने नए देशों का उद्भव हुआ
(अ) 11
(ब) 9
(स) 10
(द) 15
उत्तर:
(द) 15

7. साम्यवादी गुट के विघटन का प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव पड़ा
(अ) द्वि- ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय
(ब) बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय
(स) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय

8. वर्तमान विश्व में कौनसा देश एकमात्र महाशक्ति है-
(अ) रूस
(ब) चीन
(स) अमेरिका
(द) फ्रांस।
उत्तर:
(स) अमेरिका

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. 1964 से 1982 तक ………………… सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे।
उत्तर:
लियोनेड ब्रेझनेव

2. …………………… द्वारा समाजवादी सोवियत संघ की व्यवस्था को सुधारने की चाह और प्रयास उसके विघटन का कारण बने।
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव

3. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ का राष्ट्राध्यक्ष ……………………… था।
उत्तर:
जोजेफ स्टालिन

4. …………………… पूरी दुनिया में साम्यवाद के प्रेरणास्रोत थे।
उत्तर:
व्लादिमीर लेनिन

5. रूस ने भारत के अन्तरिक्ष उद्योग में जरूरत के वक्त ………………………..देकर मदद की।
उत्तर:
क्रायोजेनिक रॉकेट

6. 2001 के भारत-रूस सामरिक समझौते के अंग के रूप में भारत और रूस के बीच …………………….. पर हस्ताक्षर हुए।
उत्तर:
6.80

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बर्लिन की दीवार किसका प्रतीक थी ?
उत्तर:
बर्लिन की दीवार पूँजीवादी दुनिया और साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी।

प्रश्न 2.
समाजवादी सोवियत गणराज्य कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया।

प्रश्न 3.
बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक ब्लादिमीर लेनिन थे।

प्रश्न 4.
1917 की रूसी क्रांति के नायक कौन थे?
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन।

प्रश्न 5.
विश्व में सर्वप्रथम कब और कहाँ साम्यवादी पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनावों के आधार पर बनी?
उत्तर:
अक्टूबर, 1917 में, सोवियत संघ में।

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प्रश्न 6.
सोवियत प्रणाली के अनुसार राज्य की प्रमुख प्राथमिकता क्या थी?
उत्तर:
सोवियत प्रणाली के अनुसार राज्य की प्रमुख प्राथमिकता देश के समस्त संसाधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व वाले साम्यवादी शासन की स्थापना थी।

प्रश्न 7.
सोवियत संघ के नेतृत्व में बने पूर्वी यूरोप के देशों के सैनिक गठबंधन का नाम लिखिये।
उत्तर:
वारसा पैक्ट।

प्रश्न 8.
लेनिन के उत्तराधिकारी कौन थे?
उत्तर:
जोजेफ स्टालिन।

प्रश्न 9.
पश्चिम के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का सुझाव रखने वाले सोवियत संघ के नेता कौन थे?
उत्तर:
निकिता ख्रुश्चेव।

प्रश्न 10.
शीतयुद्ध काल में हुए किन्हीं दो संघर्षों (युद्धों) का उल्लेख कीजिए, जिनमें अमेरिका ने निर्णायक भूमिका निभाई।
उत्तर:

  1. बर्लिन संकट
  2. क्यूबा संकट।

प्रश्न 11.
मिखाइल गोर्बाचेव ने आर्थिक और राजनैतिक सुधार हेतु किन दो नीतियों को अपनाया?
उत्तर:

  1. पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और
  2. ग्लासनोस्त ( खुलेपन) की नीतियों को।

प्रश्न 12.
सोवियत संघ कितने गणराज्यों से मिलकर बना था?
उत्तर:
15 गणराज्यों से।

प्रश्न 13.
सोवियत संघ का अन्त ( विघटन) कब हुआ?
उत्तर:
25 दिसम्बर, 1991 को।

प्रश्न 14.
सोवियत संघ के विघटन के समय राष्ट्रपति कौन था?
अथवा
सोवियत संघ का अन्तिम राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव।

प्रश्न 15.
गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति किस वर्ष बने?
उत्तर:
1985 में।

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प्रश्न 16.
समाजवादी सोवियत गणराज्य कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया।

प्रश्न 17.
1917 की रूसी क्रान्ति क्यों हुई थी?
उत्तर:
1917 की रूसी क्रान्ति पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी तथा समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी।

प्रश्न 18.
सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी क्या थी?
उत्तर:
सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।

प्रश्न 19.
सोवियत राजनीतिक प्रणाली किस विचारधारा पर आधारित थी?
उत्तर:
सोवियत राजनीतिक प्रणाली साम्यवादी विचारधारा पर आधारित थी।

प्रश्न 20.
दूसरी दुनिया किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पूर्वी यूरोप के जो देश समाजवादी खेमे में शामिल हुए थे, उनको दूसरी दुनिया कहा जाता है।

प्रश्न 21.
सोवियत संघ के किन क्षेत्रों की जनता उपेक्षित और दमित महसूस करती थी और क्यों?
उत्तर:
रूस गणराज्य के अतिरिक्त सोवियत संघ के अन्य क्षेत्रों की जनता प्रायः उपेक्षित और दमित महसूस करती

प्रश्न 22.
गोर्बाचेव ने सोवियत संघ में सुधार हेतु क्या प्रयत्न किये?
उत्तर:
गोर्बाचेव ने देश के अन्दर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतन्त्रीकरण की नीति चलायी।

प्रश्न 23.
गोर्बाचेव के सुधारों का विरोध किन नेताओं ने किया?
उत्तर:
कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने गोर्बाचेव की सुधार नीतियों का विरोध किया।

प्रश्न 24.
रूस के पहले चुने हुए राष्ट्रपति कौन थे?
उत्तर:
बोरिस येल्तसिन।

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प्रश्न 25.
‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता क्या थी?
उत्तर:
शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा।

प्रश्न 26.
सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण क्या रहा?
उत्तर:
सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाओं की अन्दरूनी कमजोरी सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण रही।

प्रश्न 27.
बाल्टिक गणराज्य में कौन-कौनसे राष्ट्र आते हैं?
उत्तर:
बाल्टिक गणराज्य के अन्तर्गत एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया आते हैं।

प्रश्न 28.
सोवियत संघ के विघटन का अन्तिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण क्या रहा?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन का अन्तिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण रहा बाल्टिक गणराज्यों, उक्रेन, जार्जिया और रूस जैसे विभिन्न गणराज्यों में राष्ट्रीयता और सम्प्रभुता का उभार।

प्रश्न 29.
सोवियत संघ के विघटन के कोई दो परिणाम लिखिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप

  1. शीत युद्ध का दौर समाप्त हो गया।
  2. एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय हुआ।

प्रश्न 30.
शीत युद्ध की समाप्ति के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. दूसरी दुनिया (सोवियत संघ खेमे ) का पतन तथा
  2. एकध्रुवीय विश्व का उदय शीत युद्ध की समाप्ति का प्रभाव था।

प्रश्न 31.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् रूस ने किस तरह की अर्थव्यवस्था को अपनाया?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् रूस ने उदारवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया।

प्रश्न 32.
सोवियत संघ के विघटन के बाद अधिकांश गणराज्यों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवित होने का क्या कारण था?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के बाद अधिकांश गणराज्यों की अर्थव्यवस्था खनिज तेल, प्राकृतिक गैस के निर्यात से पुनर्जीवित हुई। मिले ?

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प्रश्न 33.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् भारत को रूस के साथ मित्रता बनाए रखने से कौन से दो लाभ
उत्तर:

  1. भारत को रूस से आधुनिकतम सैनिक सामान मिलते रहे।
  2. विघटित हुए नवीन गणराज्यों के साथ भारत अपने व्यापारिक सम्बन्ध कायम रख पाया।

प्रश्न 34.
सोवियत संघ के विघटन के समय किन दो गणराज्यों में हिंसक अलगाववादी आंदोलन हुए?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के समय दो पूर्व गणराज्यों

  1. चेचन्या तथा
  2. दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन हुए लादना।

प्रश्न 35.
शॉक थैरेपी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर;
शॉक थैरेपी से आशय है। धीरे-धीरे परिवर्तन न करके एकदम आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयत्नों को

प्रश्न 36.
शॉक थैरेपी का कोई एक परिणाम बताइए।
अथवा
‘शॉक थैरेपी’ के परिणामस्वरूप सोवियत खेमे का प्रत्येक राज्य किस अर्थतन्त्र में समाहित हुआ?
उत्तर:
शॉक थैरेपी के परिणामस्वरूप सोवियंत खेमे का प्रत्येक राज्य पूँजीवादी अर्थतन्त्र में समाहित हुआ।

प्रश्न 37.
सोवियत प्रणाली की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  2. अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।

प्रश्न 38.
सोवियत प्रणाली के दो गुण बताइये।
उत्तर:

  1. सरकार बुनियादी जरूरत की चीजें रियायती दर पर उपलब्ध कराती थी।
  2. बेरोजगारी नहीं थी।

प्रश्न 39.
सोवियत प्रणाली में आये किन्हीं दो दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।
  2. यह प्रणाली सत्तावादी हो गई तथा नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।

प्रश्न 40.
1991 में सोवियत संघ के कौनसे गणराज्यों ने अपने लिये स्वतन्त्रता की माँग नहीं की?
उत्तर:
मध्य एशियाई गणराज्यों ने सोवियत संघ से अपने लिए स्वतन्त्रता की माँग नहीं की।

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प्रश्न 41.
सोवियत संघ पर हथियारों की होड़ से क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
हथियारों की होड़ के कारण सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे (मसलन- परिवहन, मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया।

प्रश्न 42.
सोवियत संघ से सबसे पहले और कब, किस गणराज्य ने स्वतन्त्रता की घोषणा की?
उत्तर:
मार्च, 1990 में लिथुआनिया ने सबसे पहले सोवियत संघ से स्वतन्त्रता की घोषणा की।

प्रश्न 43.
पूर्व सोवियत संघ से स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों ने किस संगठन का निर्माण किया?
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ से स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों ने ‘स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल’ संगठन का निर्माण किया।

प्रश्न 44.
सोवियत संघ के इतिहास की सबसे बड़ी ‘गराज सेल’ कौन सी थी?
अथवा
सोवियत संघ की ‘गराज सेल’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को अनाप-शनाप कीमतों पर निजी कम्पनियों को बेचने को उसके इतिहास की सबसे बड़ी ‘गराज सेल’ कहा गया।

प्रश्न 45.
मध्य एशियाई गणराज्यों में किस संसाधन का विशाल भंडार है?
उत्तर:
मध्य एशियाई गणराज्यों में हाइड्रोकार्बनिक (पेट्रोलियम) संसाधनों का विशाल भंडार है।

प्रश्न 46.
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने किस तरह की अर्थव्यवस्था को अपनाया?
उत्तर:
उदारवादी अर्थव्यवस्था को।

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प्रश्न 47.
ताजिकिस्तान में हुआ गृह-युद्ध कितने वर्ष तक चलता रहा?
उत्तर:
ताजिकिस्तान में हुआ गृह-युद्ध 1991 से 2001 तक दस वर्षों तक चलता रहा।

प्रश्न 48.
पूर्व सोवियत संघ में कितने गणराज्य तथा स्वायत्तशासी गणराज्य सम्मिलित थे?
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ में 15 गणराज्य तथा 20 स्वायत्त गणराज्य और 18 स्वायत्तशासी गणराज्य सम्मिलित थे।

प्रश्न 49.
ब्लादिमीर लेनिन कौन थे?
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन रूस में बोल्शेविक पार्टी के संस्थापक, 1917 की रूसी क्रांति के नायक तथा सोवियत संघ के संस्थापक अध्यक्ष थे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बर्लिन की दीवार का निर्माण एवं विध्वंस किस प्रकार की ऐतिहासिक घटना कहलाती है?
उत्तर:
शीत युद्ध के उत्कर्ष के चरम दौर में सन् 1961 में बर्लिन की दीवार खड़ी की गई। यह दीवार शीत युद्ध का प्रतीक रही। सन् 1989 में पूर्वी जर्मनी की आम जनता ने इसे गिरा दिया। यह दोनों जर्मनी के एकीकरण, साम्यवादी खेमे की समाप्ति तथा शीत युद्ध की समाप्ति की शुरूआत थी ।

प्रश्न 2.
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में गतिरोध क्यों आया?
उत्तर:
सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश भाग परमाणु हथियारों के विकास, सैन्य साजो-सामान के निर्माण तथा पूर्वी यूरोप के देशों के विकास पर लगाया इसलिए इसकी राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ आंतरिक रूप से कमजोर हो गईं। फलतः इसकी अर्थव्यवस्था में गतिरोध आ गया।

प्रश्न 3.
द्वि- ध्रुवीयता से आप क्या समझते हैं? युद्ध के पश्चात्
उत्तर:
द्विध्रुवीयता से आशय है विश्व का दो गुटों में बंटा होना द्वितीय विश्व विश्व पूँजीवादी तथा साम्यवादी दो गुटों में बंट गया पूँजीवादी गुट का नेता अमरीका तथा साम्यवादी गुट का नेता सोवियत संघ था।

प्रश्न 4.
द्वि- ध्रुवीय विश्व के पतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व सोवियत संघ और अमेरिका के दो गुटों में विभाजित हो गया था। इसलिए इसे द्विध्रुवीय विश्व कहा जाता था। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के पतन होने से दूसरे ध्रुव (गुट) का पतन हो गया। इसी को द्वि- ध्रुवीय विश्व का पतन कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
शॉक थेरेपी से क्या आशय है?
उत्तर:
शॉक थेरेपी से आशय है कि धीरे-धीरें परिवर्तन न करके एकदम आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयत्नों को लादना रूसी गणराज्य में शॉक थैरेपी के अन्तर्गत तुरत-फुरत निजी स्वामित्व, मुक्त व्यापार, वित्तीय खुलापन तथा मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता पर बल दिया गया

प्रश्न 6.
आपकी राय में शॉक थेरेपी का रूस की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा? ‘शॉक थेरेपी’ से क्या हानि हुई ?
अथवा
उत्तर:

  1. शॉक थेरेपी से रूस में पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गयी;
  2. इससे इस क्षेत्र की जनता को बर्बादी की मार झेलनी पड़ी;
  3. इससे रूस का औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया।

प्रश्न 7.
आपकी राय में सोवियत संघ के विघटन के दो मुख्य कारण क्या थे?
अथवा
सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:

  1. सोवियत संघ के विघटन का पहला कारण उसकी राजनीतिक आर्थिक संस्थाओं की अंदरूनी कमजोरी था।
  2. सोवियत संघ के विघटन का दूसरा और सर्वाधिक तात्कालिक कारण था – विभिन्न गणराज्यों – बाल्टिक गणराज्य, उक्रेन, रूस तथा जार्जिया आदि में राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार।

प्रश्न 8.
सोवियत संघ में आम जनता कम्युनिस्ट पार्टी तथा राजनीतिक व्यवस्था तथा शासकों से अलग- थलग क्यों पड़ गयी थी?
उत्तर:
सोवियत संघ में 90 के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रह गयी थी। गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार, शासकों की अक्षमता, खुलापन लाने की अनिच्छा तथा सत्ता के केंन्द्रीकृत होने आदि बातों के कारण आम जनता शासन व शासकों से अलग-थलग पड़ गयी थी।

प्रश्न 9.
सोवियत संघ के विघटन के कोई दो परिणाम स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सोवियत संघ के पतन के परिणाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप शीतयुद्ध के दौर का संघर्ष समाप्त हो गया।
  2. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप एकध्रुवीय विश्व का उदय हुआ।
  3. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप अनेक नये देशों को स्वतंत्र पहचान मिली।

प्रश्न 10.
भारत-रूस सम्बन्धों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत-रूस सम्बन्धों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है।
  2. भारत और रूस दोनों देशों के आपसी सम्बन्ध इन देशों की जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं।
  3. दोनों देशों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है।

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प्रश्न 11.
सोवियत प्रणाली का पूर्वी यूरोप या दूसरी दुनिया पर क्या प्रारम्भिक प्रभाव पड़ा था?
उत्तर:
दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गये थे। सोवियत सेना ने उन्हें फासीवादी ताकतों के चंगुल से मुक्त कराया था। इन सभी देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया।

प्रश्न 12.
जोजेफ स्टालिन का सोवियत संघ के एक महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में संक्षिप्त परिचय दीजिए
उत्तर:
जोजेफ स्टालिन – जोजेफ स्टालिन लेनिन के बाद सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता और राष्ट्राध्यक्ष बने उन्होंने सोवियत संघ का 1924 से 1953 तक नेतृत्व किया। उनके काल में सोवियत संघ में औद्योगीकरण को बढ़ावा मिला तथा खेती का बलपूर्वक सामूहिकीकरण किया गया। उन्हीं के काल में शीतयुद्ध का प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 13.
निकिता ख्रुश्चेव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
निकिता ख्रुश्चेव निकिता ख्रुश्चेव स्टालिन के बाद सन् 1953 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने और 1964 तक वे इस पद पर बने रहे। उन्होंने पश्चिम के साथ ‘शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व’ का सुझाव रखा तथा हंगरी के जन- विद्रोह का दमन किया।

प्रश्न 14.
लिओनिद ब्रेझनेव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लिओनिद ब्रेझनेव लिओनिद ब्रेझनेव सन् 1964 से 1982 तक सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे थे। उन्होंने एशिया की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सुझाव दिया था। वे सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सम्बन्ध सुधारने तथा पारस्परिक तनाव में कमी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे।

प्रश्न 15.
मिखाइल गोर्बाचेव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के अन्तिम राष्ट्रपति (1985 से 1991 तक) थे। उन्होंने सोवियत संघ में पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और ग्लासनोस्त ( खुलेपन) के आर्थिक और राजनैतिक सुधार शुरू किये। उन्होंने शीतयुद्ध समाप्त किया।

प्रश्न 16.
बोरिस येल्तसिन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
बोरिस येल्तसिन सोवियत संघ के विघटन के बाद बोरिस येल्तसिन रूस के प्रथम चुने हुए राष्ट्रपति बने । इस पद पर उन्होंने 1991 से 1999 तक कार्य किया। सन् 1991 में सोवियत संघ के शासन के विरुद्ध उठे विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने सोवियत संघ के विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी

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प्रश्न 17.
चेकोस्लोवाकिया के विघटन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
सोवियत संघ के साम्यवादी गठबंधन से मुक्त होकर लोकतंत्रीय आंदोलन में चेकोस्लोवाकिया में राष्ट्रवादी ज्वार उठा और चेकोस्लोवाकिया शांतिपूर्ण ढंग से चेक और स्लोवाकिया नामक दो देशों में विभाजित हो गया। चेकोस्लोवाकिया इन्हीं दो राष्ट्रीयताओं से मिलकर बना था।

प्रश्न 18.
यूगोस्लाविया का विघटन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
यूगोस्लाविया में गहन जातीय संघर्ष हुआ और सन् 1991 में यूगोस्लाविया कई प्रान्तों में विभाजित हो गया। यूगोस्लाविया में शामिल बोस्निया हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया ।

प्रश्न 19.
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् स्वतंत्र हुए 15 गणराज्यों के नाम लिखिये।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् स्वतंत्र हुए 15 गणराज्य ये हैं।
रूसी संघ, कजाकिस्तान, एस्टोनिया, लताविया, लिथुआनिया, बेलारूस, उक्रेन, माल्दोवा, आर्मेनिया, जार्जिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान,  उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान।

प्रश्न 20.
शीत युद्ध के दौरान भारत व सोवियत संघ के बीच आर्थिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान भारत व सोवियत संघ के बीच आर्थिक सम्बन्ध घनिष्ठ थे। यथा

  1. सोवियत संघ ने भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को ऐसे वक्त में आर्थिक और तकनीकी मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था।
  2. भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब उसने रुपये में भारत के साथ व्यापार किया।

प्रश्न 21.
सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असन्तोष यूरोपीय और अपेक्षाकृत समृद्ध गणराज्यों में सबसे प्रबल क्यों रहा?
उत्तर:
सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असन्तोष यूरोपीय और अपेक्षाकृत समृद्ध गणराज्यों रूस, उक्रेन, जार्जिया और बाल्टिक क्षेत्र में सबसे प्रबल रहा क्योंकि-

  1. यहाँ के आम लोग अपने को मध्य एशियाई गणराज्यों के लोगों से अलग-थलग महसूस कर रहे थे।
  2. यहाँ के लोगों में यह भाव घर कर गया था कि ज्यादा पिछड़े इलाकों को सोवियत संघ में शामिल रखने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

प्रश्न 22.
सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण क्या रहा तथा इसके पीछे निहित कारणों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन का अन्तिम और तात्कालिक कारण था राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार। सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्य सोवियत संघ से स्वतन्त्र होकर अपना पृथक् सम्प्रभु राज्य के निर्माण करने को आन्दोलनरत हुए। राष्ट्रीयता और सम्प्रभुता के ज्वार के उठने के अनेक कारण बताये जाते हैं-

  1. सोवियत संघ के आकार, विविधता तथा उसकी बढ़ती हुई आन्तरिक समस्याओं ने लोगों को इस ओर सोचने को प्रेरित किया।
  2. गोर्बाचेव के सुधारों ने राष्ट्रवादियों के असन्तोष को इस सीमा तक भड़काया कि उस पर शासकों का नियन्त्रण नहीं रहा ।
  3. यूरोपीय तथा बाल्टिक गणराज्यों में यह भाव घर कर गया था कि ज्यादा पिछड़े इलाकों को सोवियत संघ में शामिल रखने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

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प्रश्न 23.
सोवियत प्रणाली क्या थी?
अथवा
सोवियत प्रणाली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू.एस.एस.आर.) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया। सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ ये थीं

  1. सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। इसमें किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नहीं थी।
  2. सोवियत आर्थिक प्रणाली योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी, सम्पत्ति पर राज्य का स्वामित्व व नियन्त्रण था।
  3. सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी।
  4. उसके पास विशाल ऊर्जा संसाधन था, घरेलू उपभोक्ता उद्योग भी बहुत उन्नत था । सरकार ने अपने सभी नागरिकों के लिए न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित कर दिया था । बेरोजगारी नहीं थी ।

प्रश्न 24.
सोवियत संघ के विघटन में गोर्बाचेव की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन में गोर्बाचेव की भूमिका – सोवियत संघ के विघटन का एक प्रमुख कारण गोर्बाचेव की सुधारवादी नीतियाँ भी रही थीं। गोर्बाचेव ने देश में स्वतंत्रता, समानता, राष्ट्रीयता और भ्रातृत्व व एकता के वातावरण को तैयार किए बिना ही पुनर्गठन (पेरेस्त्रोइका) व खुलापन ( ग्लासनोस्त) जैसी नीतियों को लागू कर दिया। परिणामस्वरूप सोवियत संघ के कुछ राष्ट्रों को संघ से अलग होने के निर्णय को मान्यता देनी पड़ी। तत्पश्चात् एक के बाद एक सभी गणराज्य : स्वतंत्र होते चले गये और देखते ही देखते सोवियत संघ का विघटन हो गया।

प्रश्न 25.
सोवियत प्रणाली की किन्हीं चार कमियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सोवियत प्रणाली के प्रमुख दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सोवियत प्रणाली में निम्नलिखित प्रमुख दोषों ने अपनी पैठ बना ली थी, जिसके कारण सोवियत अर्थव्यवस्था ठहर गयी थी। यथा

  1. सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया। यह प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।
  2. सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था।
  3. संघ के 15 गणराज्यों में रूस का हर मामले में प्रभुत्व था । अन्य गणराज्यों की जनता अक्सर उपेक्षित और दमित महसूस करती थी।
  4. उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के मामले में सोवियत संघ पश्चिम के देशों से बहुत पीछे रह गया था। इससे हर तरह की उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई थी।

प्रश्न 26.
स्पष्ट कीजिए कि पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष व संघर्ष की आशंका से ग्रस्त रहे हैं।
उत्तर:
पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्षों से ग्रस्त रहे हैं। यथा

  1. रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले।
  2. ताजिकिस्तान दस वर्षों तक अर्थात् 2001 तक गृहयुद्धों की चपेट में रहा।
  3. अजरबैजान का एक प्रान्त नगरनो कराबाख है। यहाँ के कुछ स्थानीय अर्मेनियाई अलग होकर आर्मेनिया से मिलना चाहते हैं।
  4. जार्जिया में दो प्रान्त स्वतन्त्रता चाहते हैं और गृहयुद्ध लड़ रहे हैं।
  5. युक्रेन, किरगिझस्तान तथा जार्जिया में मौजूदा शासन को उखाड़ फेंकने के लिए आन्दोलन चल रहे हैं।
  6. कई देश और प्रान्त नदी – जल के प्रश्न पर आपस में भिड़े हुए हैं।

प्रश्न 27.
मध्य एशियाई गणराज्यों में बाहरी ताकतों की बढ़ती दखल की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोलियम संसाधनों का विशाल भण्डार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा का अखाड़ा भी बन गया है। यथा

  1. यह क्षेत्र रूस, चीन और अफगानिस्तान से सटा है और पश्चिम एशिया के नजदीक है।
  2. अमरीका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है।
  3. रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती ‘विदेश’ मानता है और उसका मानना है कि इन राज्यों को रूस के प्रभाव में रहना चाहिए।
  4. खनिज तेल जैसे संसाधन की मौजूदगी के कारण चीन के हित भी इस क्षेत्र से जुड़े हैं और चीनियों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में आकर व्यापार करना शुरू कर दिया है।

प्रश्न 28.
मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली में सुधार क्यों लाना चाहते थे?
अथवा
किन कारणों ने गोर्बाचेव को सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य किया?
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली में निम्नलिखित कारणों की वजह से सुधार लाना चाहते थे-

  1. सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पश्चिमी देशों की तुलना में काफी पिछड़ गई थी; अर्थव्यवस्था में गतिरोध पैदा होने की वजह से देश में उपभोक्ता वस्तुओं की भारी कमी उत्पन्न हो रही थी। सोवियत संघ को उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पाश्चात्य देशों की बराबरी करने के लिए गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली में सुधार लाना चाहते थे।
  2. सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य समाजवादी शासन से ऊब गये थे और वे विद्रोह करने पर आमादा हो गये थे।
  3. गोर्बाचेव ने पश्चिम के देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने तथा सोवियत संघ को लोकतांत्रिक रूप देने के लिए वहां सुधार करने का फैसला किया।

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प्रश्न 29.
द्वि- ध्रुवीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में दो महाशक्तियाँ उभर कर आयीं। ये थीं-

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका और
  2. सोवियत संघ। दोनों ने अपने प्रभाव क्षेत्र में विस्तार करने के लिए प्रयास किये; इससे उनके मध्य शीत युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस शीत युद्ध ने यूरोप को अमेरिकी खेमे और साम्यवादी खेमे में बाँट दिया। सन्धियों व प्रतिसन्धियों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में विश्व को परस्पर दो विरोधी खेमों में बाँट दिया, जिसमें प्रत्येक का नेतृत्व एक महाशक्ति द्वारा किया जा रहा था । इसी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को द्वि- ध्रुवीकरण कहा गया।

प्रश्न 30.
“भारत का उज्बेकिस्तान से मजबूत सांस्कृतिक संबंध है इसका उदाहरण यह है कि इस देश में हिन्दुस्तानी फिल्मों की धूम रहती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उज्बेकिस्तान तथा भारत में अच्छे तथा मजबूत सांस्कृतिक संबंध है। इसका प्रमाण हमें फिल्मों द्वारा मिलता है। सोवियत संघ को विघटित हुए सात साल बीत गए लेकिन हिन्दी फिल्मों के लिए उज्बेक लोगों में वही ललक मौजूद है। हिन्दुस्तान में कोई नई फिल्म रिलीज होने के चंद हफ्तों के भीतर इसकी पाइरेटेड कॉपियाँ उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में बिकने के लिए उपलब्ध हो जाती है । उज्बेक लोग मध्य एशियाई हैं, वे एशिया के अंग हैं। उनकी एक साझी संस्कृति है। यहाँ अधिकांश लोग – हिन्दी गा लेते हैं। अर्थ चाहे न मालूम हो लेकिन उसका उच्चारण सही होता है और वे संगीत भी पकड़ लेते हैं। भारतीय फिल्मों और उनके ‘हीरो’ के लिए उज्बेकी लोगों की दीवानगी उज्बेकिस्तानवासी अनेक भारतीयों को आश्चर्यजनक जान पड़ती है।

प्रश्न 31.
द्वि- ध्रुवीय विश्व के पतन के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
द्विध्रुवीय विश्व के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. अमेरिकी गुट में फूट – द्वि- ध्रुवीय विश्व के पतन का एक प्रमुख कारण अमेरिकी गुट में फूट पड़ना था। फ्रांस जैसा देश अमेरिका पर अविश्वास करने लगा था।
  2. सोवियत गुट में फूट – सोवियत गुट से पूर्वी यूरोपीय देशों तथा चीन का अलग होना सोवियत खेमे को कमजोर कर गया।
  3. सोवियत संघ का पतन – द्विध्रुवीय विश्व के पतन का अन्तिम प्रभावी कारण सोवियत संघ का पतन रहा।
  4. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन – गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने अधिकांश विकासशील देशों को दोनों गुटों से अलग रखने में सफलता पायी। इससे द्विध्रुवीय विश्व को झटका लगा।

प्रश्न 32.
सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था की दूसरी दुनिया के विघटन के परिणाम विश्व राजनीति के लिहाज से गंभीर रहे – स्पष्ट कीजिये।
अथवा
सोवियत संघ तथा पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था के विघटन के विश्व राजनीति में क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था तथा सोवियत संघ के विघटन के परिणाम विश्व राजनीति के लिहाज से गंभीर रहे। इसके निम्न परिणाम रहे

  1. दूसरी दुनिया के पतन का एक परिणाम शीत युद्ध के दौर के संघर्ष की समाप्ति में हुआ। शीत युद्ध के समाप्त होने से हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गई और एक नई शांति की संभावना का जन्म हुआ।
  2. दूसरी दुनिया के पतन से विश्व राजनीति में शक्ति-संबंध बदल गए और इस कारण विचारों और संस्थाओं के आपेक्षिक प्रभाव में भी बदलाव आया।
  3. सोवियत संघ के पतन के बाद अमरीका अकेली महाशक्ति बन कर उभरा और एक- ध्रुवीय विश्व राजनीति सामने आयी।
  4. सोवियत खेमे के अन्त से अनेक नये देशों का उदय हुआ। इन देशों ने रूस के साथ अपने मजबूत रिश्ते को जारी रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्ध बढ़ाये।

प्रश्न 33.
मान लीजिए सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तथा विश्व 1980 के मध्य की तरह द्वि- ध्रुवीय होता, तो यह अन्तिम दो दशकों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता? इस प्रकार के विश्व के तीन क्षेत्रों या प्रभाव तथा विकास का वर्णन करें, जो नहीं हुआ होता?
उत्तर:
1991 में यदि सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ होता तो ये अन्तिम दोनों दशक भी शीत युद्ध की राजनीति से प्रभावित रहते और विश्व में निम्नलिखित प्रभाव होते-

  1. एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था की स्थापना नहीं होती – यदि सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ होता तो विश्व राजनीति में एक ही महाशक्ति अमरीका का यह वर्चस्व नहीं होता।
  2. अफगानिस्तान तथा इराक देशों की स्थिति में परिवर्तन- यदि सोवियत संघ का पतन न हुआ होता तो अफगानिस्तान और इराक में सोवियत संघ अमेरिका का विरोध करता और युद्ध का विरोध करता।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति में परिवर्तन – यदि सोवियत संघ का पतन नहीं होता तो संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका की मनमानी नहीं चलती और संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रभावशीलता समाप्त नहीं होती।

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प्रश्न 34.
रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। बहुध्रुवीय विश्व से इन दोनों देशों का आशय यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर कई शक्तियाँ मौजूद हों, सुरक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी हो (यानी किसी भी देश पर हमला हो तो सभी देश उसे अपने लिए खतरा माने और साथ मिलकर कार्रवाई करें ); क्षेत्रीयताओं का ज्यादा जगह मिले; अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों का समाधान बातचीत के द्वारा हो; हर देश की स्वतन्त्रता विदेश नीति हो और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं द्वारा फैसले किए जाएँ तथा इन संस्थाओं को मजबूत, लोकतांत्रिक और शक्तिसंपन्न बनाया जाए।

प्रश्न 35.
शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के राजनीतिक संबंध पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के रूख को समर्थन दिया । सोवियत संघ ने भारत के संघर्ष के गाढ़े दिनों, खासकर सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण स्पष्ट कीजिए । सोवियत संघ के विघटन के कारण
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
1. राजनीतिक:
आर्थिक संस्थाओं की अंदरूनी कमजोरी- सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अंदरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकीं। कई सालों तक उसकी अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध रही इससे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी कमी हो गई और सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी राज व्यवस्था को शक की नजर से देखने लगा, उस पर खुले आम सवाल खड़े करने शुरू किये।

2. लोगों को अपने पिछड़ेपन की पहचान होना:
जब पश्चिमी देशों की प्रगति और अपने पिछड़ेपन के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी तो इससे सोवियत संघ के लोगों को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।

3. प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से गतिरुद्धता:
सोवियत संघ की प्रशासनिक गतिरुद्धता, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह न रह जाना, भारी भ्रष्टाचार, शासन में ज्यादा खुलापन लाने की अनिच्छा तथा सत्ता का केन्द्रीकृत रूप आदि के कारण सरकार का जनाधार खिसकता चला गया।

4. गोर्बाचेव के समर्थन की समाप्ति:
जनता का एक तबका सुधारों की धीमी गति के कारण गोर्बाचेव से नाराज हो गया, तो सुविधाभोगी वर्ग उसके सुधारों की तीव्र गति से नाराज हो गया। इस प्रकार सुधारों के कारण गोर्बाचेव का समर्थन चारों तरफ से समाप्त हो गया।
(5) राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता का ज्वार – बाल्टिक गणराज्य, उक्रेन, जार्जिया जैसे गणराज्यों में राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
सोवियत प्रणाली से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोवियत प्रणाली का अर्थ समाजवादी सोवियत गणराज्य 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया। उसने समाजवाद के आदर्शों एवं समतामूलक समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज को समानता के सिद्धान्त पर रचने की जो कोशिश की, उसे ही सोवियत प्रणाली कहा गया। इसमें राज्य और पार्टी की संस्था को प्राथमिक महत्त्व दिया गया। इसकी धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी। विशेषताएँ – सोवियत प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. समाजवादी खेमे की स्थापना: दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को सोवियत प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया। इस खेमे का नेता समाजवादी सोवियत गणराज्य था।
  2. राज्य का स्वामित्व तथा नियंत्रण:  सोवियत प्रणाली में सम्पत्ति का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था तथा भूमि और अन्य उत्पादक संपदाओं पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था।
  3. सत्तावादी प्रणाली: सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया और यह प्रणाली सत्तावादी हो गयी। लोगों को लोकतंत्र तथा अभिव्यक्ति की आजादी नहीं थी।
  4. कम्युनिस्ट पार्टी का शासन:  सोवियत प्रणाली में एक दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था और इस दल का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था।
  5. रूसी गणराज्य का प्रभुत्व: हालांकि सोवियत संघ के नक्शे में रूस, संघ के 15 गणराज्यों में से एक था लेकिन वास्तव में रूस का हर मामले में प्रभुत्व था।

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प्रश्न 3.
सोवियत संघ के विघटन के कारणों व परिणामों का वर्णन करें।
अथवा
सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ? इस विघटन के परिणाम बताइए।
अथवा
सोवियत संघ के विघटन ( पतन) के उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिए । सोवियत संघ के पतन के उत्तरदायी कारक
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन या पतन के प्रमुख उत्तरदायी कारक निम्नलिखित थे-

  1. सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएँ अपनी आन्तरिक कमजोरियों के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकीं।
  2. सोवियत संघ ने अपने संसाधन परमाणु हथियार, सैन्य साजो-सामान तथा पूर्वी यूरोप के अन्य पिछलग्गू देशों के विकास पर भी खर्च किए ताकि वे सोवियत नियन्त्रण में बने रहें इससे सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना और सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
  3. सोवियत संघ के पिछड़ेपन की पहचान से वहां के लोगों को राजनीतिक – मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।
  4. कम्युनिस्ट पार्टी जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं रह गयी थी।
  5. गोर्बाचेव ने देश में स्वतन्त्रता, समानता और राष्ट्रीयता व भ्रातृत्व व एकता के वातावरण को तैयार किए बिना ही पुनर्गठन (पेरेस्त्रोइका) व खुलापन ( ग्लासनोस्त) जैसी महत्त्वपूर्ण नीतियों को लागू कर दिया था

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम – विश्व राजनीति पर सोवियत संघ के विघटन के गम्भीर परिणाम रहे हैं 1

  1. सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप शीत युद्ध समाप्त हो गया तथा हथियारों की दौड़ भी समाप्त हो गई।
  2. अब संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन गया तथा विश्व पर उसका वर्चस्व स्थापित हो गया।
  3. अब पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था बन गई तथा तृतीय विश्व में साम्यवादी विचारधारा का प्रचार- प्रसार रुक गया।
  4. सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप विश्व में 15 स्वतन्त्र और सम्प्रभु राज्यों की संख्या में बढ़ोतरी हुई।
  5. तृतीय विश्व को अब नए उपनिवेशवाद के खतरे का सामना करना पड़ रहा है तथा मध्य-पूर्व के तेल भण्डारों पर अमरीका ने अपना एकछत्र प्रभुत्व स्थापित कर लिया है।

प्रश्न 4.
मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा किये गये सुधारों से सोवियत संघ का विघटन किस प्रकार हुआ? समझाइये गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव 1980 के दशक के मध्य में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पद पर आसीन हुए। इस समय सोवियत संघ आर्थिक, प्रशासनिक तथा राजनीतिक रूप से गतिरुद्ध हो चुका था। गोर्बाचेव ने अर्थव्यवस्था को सुधारने, पश्चिम की बराबरी पर लाने और प्रशासनिक ढांचे में ढील देने के लिए सुधारों को लागू किया। लेकिन इन सुधारों से सोवियत संघ का विघटन हो गया। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित रहे

  1. लोगों की आकांक्षाओं पर ज्वार उमड़ना: जब गोर्बाचेव ने सुधारों को लागू किया और अर्थव्यवस्था में ढील दी तो लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का ऐसा ज्वार उमड़ा कि उस पर काबू पाना असंभव हो गया।
  2. राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता की इच्छा का उभार: सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्यों में राष्ट्रवादी भावना और संप्रभुता का उभार उठा। राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।
  3. राष्ट्रवादियों का असंतुष्ट होना- कुछ लोगों का मत है कि गोर्बाचेव के सुधारों ने राष्ट्रवादियों के असंतोष को इस सीमा तक भड़काया कि उस पर शासकों का नियंत्रण नहीं रहा।

प्रश्न 5.
शीत युद्ध के दौरान भारत तथा सोवियत संघ सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शीत युद्ध के दौरान पूर्ववर्ती सोवियत संघ के साथ भारत के सम्बन्धों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत और सोवियत संघ सम्बन्ध
शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के सम्बन्ध बहुआयामी थे। यथा-
1. आर्थिक सम्बन्ध:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा साझीदार था। इस व्यापार का सालाना कारोबार दो हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुँच गया था। सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापार किया।

2. राजनीतिक सम्बन्ध:
सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के दृष्टिकोण को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत को सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान सहायता की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।

3. भारत:
सोवियत सैन्य सम्बन्ध – शीत युद्ध काल में सैनिक साजो-सामान के आयात व उत्पादन के मामले में भारत सोवियत संघ पर काफी निर्भर रहा सोवियत संघ ने भारत को सैनिक सामान के सम्बन्ध में पूर्ण मदद की। उसने भारत के साथ ऐसे कई समझौते किये जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार कर सका।

4. भारत:
सोवियत सांस्कृतिक सम्बन्ध – प्रारम्भ से ही भारत व सोवियत संघ का यह प्रयत्न रहा है कि आर्थिक व सामरिक परिप्रेक्ष्य में सम्बन्धों को सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जामा पहनाया जाए। यही कारण है कि हिन्दी फिल्म तथा भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में काफी लोकप्रिय रहीं।

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प्रश्न 6.
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत-रूस तथा पूर्व साम्यवादी गणराज्य के सम्बन्धों का विवरण दीजिये।
उत्तर:
भारत और रूस सम्बन्ध शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत-रूस सम्बन्धों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  • दोनों देशों की जनता की अपेक्षाओं में समानता: भारत-रूस के आपसी सम्बन्ध इन देशों की जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। हम वहाँ हिन्दी फिल्मों के गीत बजते सुन सकते हैं। भारत यहाँ के जनमानस का एक अंग है।
  • बहुध्रुवीय विश्व पर दोनों देशों का समान दृष्टिकोण: रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। बहुध्रुवीय विश्व से इन दोनों का आशय यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर कई शक्तियाँ विद्यमान हों; सुरक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी की व्यवस्था हो; क्षेत्रीयताओं को ज्यादा जगह मिले; अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों का समाधान बातचीत के द्वारा हो, हर देश की स्वतंत्र विदेश नीति हो और संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं द्वारा फैसले किये जाएं तथा इन संस्थओं को मजबूत, लोकतांत्रिक और शक्ति – सम्पन्न बनाया जाये।
  • विभिन्न मुद्दों व विषयों में परस्पर सहयोग:
    1. कश्मीर समस्या, ऊर्जा – आपूर्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के दृष्टिकोणों में समानता रही है।
    2. भारतीय सेनाओं को अधिकांश सैनिक साजो-सामान रूस से प्राप्त होते हैं तथा भारत रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार है।
    3. रूस ने तेल के संकट के समय हमेशा भारत की मदद की है तथा रूस के लिए भारत तेल के आयातक देशों में एक प्रमुख देश है।

भारत और पूर्व – साम्यवादी गणराज्यों के साथ सम्बन्ध: भारत कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान गणराज्यों के साथ पारस्परिक सहयोग की परम्परागत नीति का पालन कर रहा है। इन गणराज्यों के साथ सहयोग के अन्तर्गत तेल वाले इलाकों में साझेदारी और निवेश करना भी शामिल है।

प्रश्न 7.
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस की विश्व परिदृश्य पर भूमिका का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस की विश्व राजनीति में भूमिका सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस की विश्व परिदृश्य में भूमिका का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • रूस तथा राष्ट्रकुल: सोवियत संघ के सभी गणराज्यों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में सोवियत संघ का स्थान रूसी गणराज्य को दिये जाने की सिफारिश की।
  • रूस तथा विश्व के अन्य राष्ट्रों से सम्बन्ध:  सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के अमरीका व विश्व के अन्य प्रमुख राष्ट्रों के बीच सम्बन्धों को निम्न प्रकार रेखांकित किया जा सकता है।
    1. रूस संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।
    2. रूस ने अब अमरीका व यूरोपीय देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक सम्बन्ध स्थापित किये हैं।
    3. परस्पर एक-दूसरे के देशों की यात्राओं व समझौतों के द्वारा रूस चीन की निकटता बढ़ी है।
    4. रूस और जापान के सम्बन्धों में भी निकटता आयी है।

इस प्रकार विभिन्न प्रमुख देशों से संबंध सुधार कर रूस पुनः विश्व राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

3. विश्व राजनीति में गौण भूमिका:
रूस (सोवियत संघ के विघटन के बाद) वर्तमान में एक महाशक्ति नहीं रहा है, यद्यपि उसके पास अणु-परमाणु अस्त्रों-प्रक्षेपास्त्रों का भण्डार है लेकिन आर्थिक दृष्टि से उसकी अर्थव्यवस्था जर्जर है। वर्तमान में दूसरे देशों की भूमि पर उनकी उपस्थिति घट गई है। अब वह घटनाओं को अपनी इच्छानुसार मोड़ नहीं दे सकता। इसी तरह अब वह अपने पुराने मित्रों की सहायता करने में सक्षम नहीं रहा है। सुरक्षा परिषद् में अब वह अमेरिका का विरोध कर सकने की स्थिति में नहीं रह गया है।

प्रश्न 8.
सोवियत खेमे के विघटन के घटना चक्र पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
सोवियत खेमे के विघटन का घटना चक्र सोवियत संघ नीति साम्यवादी गुट के विघटन की प्रक्रिया को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. मार्च, 1985 में गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। उन्होंने सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला प्रारम्भ कर दी।
  2. 1988 में लिथुआनिया में आजादी के लिए आन्दोलन शुरू हुए। यह आंदोलन एस्टोनिया और लताविया में भी फैला।
  3. अक्टूबर, 1989 में सोवियत संघ ने घोषणा कर दिया कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र है। नवंबर में बर्लिन की दीवार गिरी।
  4. फरवरी, 1990 में गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की शुरुआत की। सोवियत सत्ता पर कम्युनिस्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।
  5. जून, 1990 में रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।
  6. मार्च, 1990 में लिथुआनिया स्वतंत्रता की घेषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।
  7. जून, 1991 में येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा दे दिया और रूस के राष्ट्रपति बने।
  8. अगस्त, 1991 में कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया।
  9. एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया तीनों बाल्टिक गणराज्य सितंबर, 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।
  10. दिसंबर, 1991 में रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करने का फैसला किया और स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान ओर उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल में शामिल हुए। जार्जिया 1993 में राष्ट्रकुल का सदस्य बना। संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।
  11. 25 दिसंबर, 1991 में गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया। इस प्रकार सोवियत संघ का अंत हो गया।

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प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी का अर्थ बताते हुए इसके परिणाम बताइये।
अथवा
शॉक थेरेपी क्या है? शॉक थेरेपी के परिणाम बताइये।
अथवा
शॉक थेरेपी से क्या अभिप्राय है? उत्तर साम्यवादी सत्ताओं पर इसके परिणामों का आकलन कीजिए।
उत्तर:
शॉक थेरेपी से आशय शॉक थेरेपी का आशय है कि धीरे-धीरे परिवर्तन न करके एकदम आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयत्नों को लादना । रूसी गणराज्य में इसके तहत तुरत-फुरत निजी स्वामित्व, मुक्त व्यापार, वित्तीय खुलापन · तथा मुद्रा परिवर्तनीयता पर बल दिया गया। ‘शॉक थेरेपी’ के परिणाम 1990 में अपनायी गयी ‘शॉक थेरेपी’ के निम्नलिखित प्रमुख परिणाम निकले

  1. अर्थव्यवस्था का तहस-नहस होना: शॉक थेरेपी से सोवियत संघ के पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को बेचा गया। यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ।
  2. रूसी मुद्रा ( रूबल ) में गिरावट: शॉक थेरेपी के कारण ‘रूबल’ को भारी गिरावट का सामना करना पड़ा। इस गिरावट के कारण मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लोगों ने जो पूँजी जमा कर रखी थी, वह धीरे-धीरे समाप्त हो गई और लोग कंगाल हो गये।
  3. खाद्यान्न सुरक्षा की समाप्ति: ‘शॉक थेरेपी’ के परिणामस्वरूप सामूहिक खेती प्रणाली समाप्त हो चुकी थी। अब लोगों की खाद्यान्न सुरक्षा व्यवस्था भी समाप्त हो गयी।
  4. समाज कल्याण की समाजवादी व्यवस्था का खात्मा: शॉक थेरेपी के परिणामस्वरूप रूस तथा अन्य राज्यों में गरीबी का दौर बढ़ता ही चला गया तथा वहाँ अमीरी और गरीबी के बीच विभाजन रेखा बढ़ती चली गई।
  5. लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण को प्राथमिकता नहीं-‘शॉक थेरेपी’ के अन्तर्गत लोकतान्त्रिक संस्थाओं का निर्माण हड़बड़ी में किया गया। फलस्वरूप संसद अपेक्षाकृत कमजोर संस्था रह गयी।

प्रश्न 10.
सोवियत संघ से स्वतन्त्र हुए गणराज्यों में हुए आन्तरिक संघर्ष और तनाव पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन से 15 प्रभुतासम्पन्न राज्यों का जन्म हुआ सोवियत संघ का मुख्य उत्तरदायित्व रूस गणराज्य ने संभाला, क्योंकि सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्यों में संघर्ष और तनाव की स्थिति थी। यथा
1. आंदोलन, तनाव तथा संघर्ष की स्थितियाँ: केन्द्रीय एशिया के अधिकांश राज्य सोवियत संघ से विघटन के पश्चात् अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। चेचन्या, दागिस्तान, ताजिकिस्तान तथा अजरबैजान आदि देशों में हिंसा की वारदातों के कारण गृह-युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। ये देश जातीय और धार्मिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। ताजिकिस्तान, उक्रेन, किरगिझस्तान तथा जार्जिया में शासन से जनता नाराज है और उसको उखाड़ फेंकने के लिए अनेक आन्दोलन चल रहे हैं।

2. नदी जल के सवाल पर संघर्ष – कई देश और प्रान्त नदी जल के सवाल पर परस्पर भिड़े हुए हैं।

3. विदेशी शक्तियों की इस क्षेत्र में रुचि बढ़ना – मध्य एशियाई गणराज्यों में पैट्रोलियम संसाधनों का विशाल भण्डार होने से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन चला है। फलतः अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है। रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती ‘विदेश’ मानता है और उसका मानना है कि इन राज्यों को रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। चीन के हित भी इस क्षेत्र से जुड़े हैं और चीनियों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में आकर व्यापार करना शुरू कर दिया है।

प्रश्न 11.
यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तो एक ध्रुवीय विश्व में हुए कौन-कौन से आर्थिक विकास नहीं होते?
उत्तर:
यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं होता तो अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में पिछले दो दशकों में हुए निम्नलिखित आर्थिक परिवर्तन या विकास नहीं होते-
1. अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण शुरू नहीं होता:
द्विध्रुवीय विश्व की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ में अमरीकी वर्चस्व स्थापित नहीं होता और व्यापार संगठन पर भी उसका वर्चस्व स्थापित नहीं हो पाता ऐसी स्थिति में अमेरिका विकासशील देशों को उदारीकरण की नीति अपनाने के लिए मजबूर नहीं कर पाता तथा इन देशों में व्यापार नियंत्रण, कोटा प्रणाली और लाइसेंस नीति चलती रहती तो मुक्त व्यापार जैसी स्थितियाँ नहीं आतीं।

2. वैश्विक स्तर पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का वर्चस्व नहीं होता:
यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था सीमा का अतिक्रमण करने वाली छलांग नहीं लगा पाती क्योंकि साम्यवादी अर्थव्यवस्था उसके मार्ग को अवरुद्ध कर देती और न ही संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संगठन अनेक देशों से शक्तिपूर्वक अपनी बात मनवा पाते। अमेरिका ने इन अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के द्वारा ही अपने. वर्चस्व का विस्तार किया है।

3. पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश शॉक थेरेपी के दौर से नहीं गुजरते:
सोवियत संघ के विघटन के बाद सोवियत संघ के सभी स्वतंत्र गणराज्यों तथा पूर्वी यूरोप के देशों को शॉक थेरेपी के दौर से गुजरना पड़ा तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग निजी क्षेत्र की कम्पनियों को औने-पौने कीमत पर बेच दिये गये। यदि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ होता तो ये देश शॉक थेरेपी के दौर से नहीं गुजरते।