JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Jharkhand Board Class 11 History लेखन कला और शहरी जीवन InText Questions and Answers

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क्रियाकलाप 1: जल प्लावन के बारे में अनेक समाजों में अपनी-अपनी पुराण कथाएँ प्रचलित हैं। ये कुछ हैं जो इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की यादों को अमिट रखते हुए अभिव्यक्त करते हैं। इनके बारे में कुछ और जानकारी का पता लगाएँ और यह बताएँ कि जलप्लावन से पहले और उसके बाद का जन-जीवन कैसा रहा होगा?
उत्तर:
जल-प्लावन के बारे में अनेक समाजों में अपनी-अपनी पुराण कथाएँ प्रचलित हैं। ये कथाएँ इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के अतीत को अपने ढंग से अभिव्यक्त करती हैं। यहूदियों की बाइबिल के अनुसार यह जल-प्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। परन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नोआ नामक एक मनुष्य को सौंपी। नोआ ने सभी जीव-जन्तुओं के एक-एक जोड़े को अपनी विशाल नाव में रख लिया। जब जल – प्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया, परन्तु नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए।

जल – प्लावन के इसी प्रकार के आख्यान विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में विविध रूपों में मिलते हैं। ऐसी ही कहानी मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में भी मिलती है। इस ‘जल प्रलय के आख्यान’ के अनुसार देवताओं ने मनुष्य जाति को नष्ट करने के लिए जल प्रलय करने का निश्चय किया। इस अवसर पर जिउसूद्र नामक व्यक्ति ने एक नाव बनाई और उसे अनेक जीवों के जोड़ों तथा अन्नादि से भर लिया। अन्त में जिउसूद्र ने देवताओं को बलि दी जिससे वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे अमृत्व प्रदान किया और उसे दिलमुन पर्वत पर स्थान दिया।

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इस प्रकार जल-प्लावन के आख्यानों से सृष्टि की रचना, उसके विनाश, तत्कालीन धार्मिक स्थिति आदि पर प्रकाश पड़ता है। जल-प्लावन से पहले मनुष्य का जीवन अनेक गतिविधियों से परिपूर्ण था। मानव-समाज खेती, पशु-पालन आदि क्रिया-कलापों में व्यस्त रहता था। उद्योग-धन्धे, व्यापार आदि विकसित थे। उस समय छोटे-बड़े सभी प्रकार के भवन, राजप्रासाद बने हुए थे। परन्तु जल – प्लावन के बाद मानव समाज को भीषण विनाशलीला का सामना करना पड़ा होगा। सर्वत्र पानी ही पानी होने के कारण बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुषों को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े होंगे और भव्य भवन, कलाकृतियाँ आदि नष्ट हो गए होंगे।

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क्रियाकलाप 2 : क्या शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव होता? इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
शहरी जीवन में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरी जीवन श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण पर निर्भर करता है। नगर के लोग आत्म-निर्भर नहीं रहते और उन्हें अनेक वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए अन्य लोगों पर आश्रित होना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर उकेरने के लिए काँसे के औजारों की आवश्यकता पड़ती है, वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता। वह यह भी नहीं जानता कि मुद्राओं के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर वह कहाँ से प्राप्त करे। काँसे के औजार बनाने वाला भी धातु ताँबा या राँगा (टिन) लाने के लिए स्वयं बाहर नहीं जाता। इस प्रकार पारस्परिक निर्भरता शहरी जीवन की विशेषता हैं। अतः शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव नहीं होता।

मेसोपोटामिया में काँसे का बहुत महत्त्व था। काँसा, ताँबे और राँगे के मिश्रण से बनता है। ये धातुएँ दूर-दूर . से मँगायी जाती थीं। शहरों में रहने वाले नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धातुओं के औजारों और उनका इस्तेमाल करने वालों की आवश्यकता पड़ती है।

बढ़ई का सही काम करने, पत्थर की मुद्राएँ उकेरने, फर्नीचर में जड़ने, सीपियाँ काटने, धातुओं के बर्तन बनाने आदि कामों के लिए धातु के औजारों और कुशल शिल्पियों की जरूरत पड़ती है। अतः शहरी जीवन धातुओं के इस्तेमाल के बिना सम्भव नहीं है। मेसोपोटामिया में खनिज संसाधनों का अभाव था। अतः मेसोपोटामिया के लोग ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी आदि धातुओं को तुर्की, ईरान तथा खाड़ी पार के देशों से मँगाते थे । ये धातुएँ शहरी जीवन के विकास के लिए आवश्यक थीं।

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क्रियाकलाप 4 : आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि असुरबनिपाल और नैबोनिडस ने मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं की कद्र की?
उत्तर:
मेसोपोटामियावासी शहरी जीवन को महत्त्व देते थे। युद्ध में शहरों के नष्ट हो जाने के बाद वे अपने काव्यों के द्वारा उन्हें याद किया करते थे। वे अपनी लेखन कला के कारण ही अपनी अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों को सुरक्षित रख सके हैं। असीरिया का अन्तिम शासक असुरबनिपाल (668-627 ई.पू.) मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं का संरक्षक था।

उसने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की। उसने इतिहास, महाकाव्य, शकुन साहित्य, ज्योतिष- विद्या, स्तुतियों तथा कविताओं की पट्टिकाओं को इकट्ठा करने का भरसक प्रयास किया और उसमें सफल रहा। उसने अपने लिपिकों को दक्षिण में पुरानी पट्टिकाओं की खोज करने के लिए भेजा क्योंकि दक्षिण में लिपिकों को विद्यालयों में पढ़ना- संजीव पास बुक्स लिखना सिखाया जाता था, जहाँ उन्हें बड़ी संख्या में पट्टिकाओं की नकलें तैयार करनी होती थीं।

गिलगमेश के महाकाव्य की पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। कुछ पट्टिकाओं के अन्त में असुरबनिपाल का उल्लेख भी मिलता है : “मैं असुरबनिपाल, ब्रह्माण्ड का सम्राट, असीरिया का शासक, जिसे देवताओं ने विशाल बुद्धि प्रदान की है, जिसने विद्वानों के पाण्डित्य के गूढ़ ज्ञान को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। मैंने देवताओं के बुद्धि-विवेक पर पट्टिकाओं पर लिखा है…और मैंने पट्टिकाओं की जाँच की और उन्हें संग्रहित किया।

मैंने उन्हें निनवै स्थित अपने इष्टदेव नाबू के मन्दिर के पुस्तकालय में भविष्य में उपयोग के लिए रख दिया- अपने जीवन के लिए, अपनी आत्मा के कल्याण के लिए और अपने शाही सिंहासन की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए। ” असुरबनिपाल ने इन पट्टिकाओं की सूची भी तैयार करवाई। असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे तथा लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था।

tatase स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने लिखा है कि उर के नगर – देवता ने उसे सपने में दर्शन दिए और उसे सुदूर दक्षिण के उस पुरातन नगर का कार्य – भार सम्भालने के लिए एक महिला पुरोहित को नियुक्त करने का आदेश दिया। उसने बताया कि उसे एक बहुत पुराने राजा का पट्टलेख मिला और उस पर उसने महिला पुरोहित की आकृति अंकित देखी।

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इसके बाद नैबोनिडस ने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। एक अन्य अवसर पर नैबोनिडस के व्यक्ति उसके पास अक्कद के राजा सारगोन की एक टूटी हुई मूर्ति लाए। नैबोनिडस ने लिखा है कि ” देवताओं के प्रति भक्ति और राजा के प्रति अपनी निष्ठा के कारण, मैंने कुशल शिल्पियों को बुलाया और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया। ” इससे सिद्ध होता है कि असुरबनिपाल और नैबोनिडस ने मेसोपोटामिया की प्राचीन परम्पराओं की कद्र की।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण थे?
उत्तर:
विद्वानों के मतानुसार प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण। प्रमाण के रूप में रोम साम्राज्य सहित सभी पुरानी व्यवस्थाओं में दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पहले नगरों का विकास हुआ क्योंकि दजला और फरात नदियों के कारण दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सर्वाधिक उपज देने वाली थी क्योंकि यहाँ मिट्टी प्राकृतिक रूप से उपजाऊ थी। खेती के अलावा वहाँ पशुपालन की उच्च स्थितियाँ थीं तथा नदियों में पर्याप्त मछलियाँ थीं तथा गर्मियों में खजूर के पेड़ खूब पिंड खजूर होते थे। इस प्रकार प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन की उच्च स्थितियों के कारण ही वहाँ सबसे पहले नगरों का विकास हुआ।

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं –

(1) प्राकृतिक उर्वरता के कारण खाद्य पदार्थों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता था। कृषक लोग अपना फालतू अनाज शहरों में लाने लगे जहाँ उन्हें अच्छा लाभ मिलता था। इससे शहरीकरण को प्रोत्साहन मिला।

(2) प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के कारण जनसंख्या बढ़ी। इसके फलस्वरूप शहर बसने लगे। क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन, व्यापार और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है

(3) शहरों में अनाज तथा अन्य खाद्य पदार्थों के संग्रह तथा वितरण के लिए व्यवस्था करनी होती थी। इससे शहरीकरण को प्रोत्साहन मिला।

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प्रश्न 2.
आपके विचार से निम्नलिखित में से कौनसी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन – कौनसी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुईं?
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती
(ख) जल परिवहन
(ग) धातु और पत्थर की कमी
(घ) श्रम विभाजन
(ङ) मुद्राओं का प्रयोग
(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।
उत्तर:
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ –
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ निम्नलिखित थीं –
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती – अत्यन्त उत्पादक खेती प्रारंभिक शहरीकरण की अत्यन्त आवश्यक दशा थी क्योंकि शहरीकरण तभी संभव है जब खेती में इतनी उपज हो कि वह शहरों के लिए भरण-पोषण का साधन बन सके। यही कारण है कि दक्षिणी मेसोपोटामिया में खेती की उर्वरता एवं खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के कारण ही विश्व में सबसे पहले शहरों का प्रादुर्भाव हुआ।

(ख) जल परिवहन – कुशल परिवहन व्यवस्था भी शहरी विकास के लिए आवश्यक है, शहरी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जल – परिवहन सबसे सस्ता तरीका है। भारवाही पशुओं की पीठ पर रखकर या बैलगाड़ियों में डाल कर शहरों में अनाज या काठ – कोयला लाना – ले जाना बहुत कठिन होता है क्योंकि उसमें बहुत अधिक समय लगता है और उस पर काफी खर्च आता है। इसलिए परिवहन का सबसे सस्ता तरीका सर्वत्र जलमार्ग ही होता है। अनाज के बोरों से लदी हुई नावें या बजरे नदी की धारा अथवा हवा के वेग से चलते हैं, जिसमें कोई खर्च नहीं लगता था। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें परिवहन के अच्छे साधनों के रूप में कार्य करती थीं। फलतः जल परिवहन वहाँ प्रारंभिक शहरीकरण के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ।

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(ग) धातु और पत्थर की कमी – दक्षिणी मेसोपोटामिया में औजार, मोहरें (मुद्राएँ) तथा आभूषण बनाने के लिए पत्थरों की कमी थी । वहाँ औजार, पात्र का आभूषण बनाने के लिए धातुएँ भी उपलब्ध नहीं थीं। इसलिए वहाँ के लोग ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी तथा विभिन्न प्रकार के पत्थर तुर्की, ईरान तथा खाड़ी पार के देशों से मँगाते थे तथा कृषि सम्बन्धी उत्पादों को अन्य देशों के लिए निर्यात किया जाता था। इसके लिए दक्षिणी मेसोपोटामिया में व्यापारिक संगठनों का निर्माण हुआ तथा व्यापार की उन्नत अवस्था ने वहाँ प्रारंभिक शहरीकरण के प्रादुर्भाव में योगदान दिया। शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न दशाएँ :

(घ) श्रम-विभाजन – नगर के लोग आत्मनिर्भर नहीं रहते। उन्हें दूसरे लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार पारस्परिक निर्भरता के कारण नगरीय जीवन में श्रम विभाजन का विकास होता है। उदाहरण के लिए पत्थर को तराशने वाले को काँसे के औजारों की आवश्यकता होती है। वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता और न ही वह पत्थर मँगा सकता है। इस प्रकार श्रम विभाजन शहरी जीवन की विशेषता है1

(ङ) मुद्राओं का प्रयोग – लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर, विभिन्न लोगों द्वारा तथा विभिन्न मामलों के लिए होता था। वह कई प्रकार के मोलभावों के रूप में होता था। परिणामतः पट्टिकाओं के रूप में मुद्राओं का विकास हुआ।

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(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया- राजा का स्थान ऊँचा था तथा समुदाय पर उसका नियन्त्रण था। राजा की आज्ञा से आम लोगों को पत्थर खोदने, धातु खनिज लाने, मिट्टी से ईंटें तैयार करने और मन्दिर में लगाने आदि के कार्य करने पड़ते थे। इससे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारी परिवर्तन आया जो शहरी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ।

प्रश्न 3.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?
उत्तर:
पशुचारक – शहरी जीवन के लिए खतरा – खानाबदोश पशुचारक निम्नलिखित कारणों से शहरी जीवन के लिए खतरा थे-

  1. खानाबदोश पशुचारक कई बार अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों से गुजार कर ले जाते थे जिससे किसानों की फसलों को हानि पहुँचती थी। इसके फलस्वरूप किसानों एवं खानाबदोश पशुचारकों में कई बार झगड़े हो जाते थे।
  2. खानाबदोश पशुचारक कई बार किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे तथा उनका माल लूट ले जाते थे इससे अशान्ति एवं अराजकता फैलती थी जो शहरी जीवन के लिए घातक थी।
  3. कई बार बस्तियों में रहने वाले लोग भी इन खानाबदोश पशुचारकों का रास्ता रोक देते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को नदी – नहरों तक नहीं ले जाने देते थे। इससे दोनों पक्षों में संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी।
  4. कभी-कभी खानाबदोश पशुचारकों के पशु किसानों की तैयार फसल को नष्ट कर देते थे। इसके अतिरिक्त खानाबदोश पशुचारकों के पशुओं की चराई के कारण बहुत-सी उपजाऊ भूमि बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 4.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मन्दिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के पुराने मन्दिर – मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के निवास-स्थान थे। ये मन्दिर ईंट से बनाए जाते थे। समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया। इनके खुले आँगनों के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मन्दिर घरों की तरह ही होते थे क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर ही होता था। परन्तु मन्दिरों एवं घरों में कुछ अन्तर भी था। उदाहरण के लिए मन्दिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशेष अन्तरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई थीं परन्तु साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।

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निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 5.
शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौनसी नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। आपके विचार से उनमें से कौन-कौनसी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं?
उत्तर – मेसोपोटामिया में शहरी जीवन – दक्षिणी मेसोपोटामिया में लगभग 5000 ई.पू. बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया । ये शहर तीन प्रकार के थे –

  1. वे शहर जो मन्दिरों के चारों ओर विकसित हुए।
  2. वे शहर जो व्यापार के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए।
  3. शाही शहर।

मेसोपोटामिया में शहरी जीवन शुरू होने के बाद अस्तित्व में आने वाली नई संस्थाएँ –
शहरी जीवन शुरू होने के बाद मेसोपोटामिया में निम्नलिखित नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं –

(1) मन्दिर – बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में मन्दिर बनाना या उनका पुनर्निर्माण करना शुरू कर दिया। सबसे पहला ज्ञात मन्दिर एक छोटा-सा देवालय था, जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। मन्दिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के रहने के स्थान थे। जैसे उर जो चन्द्र देवता था तथा इन्नाना जो प्रेम तथा युद्ध की देवी थी । ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे और समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था।

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लोग देवी-देवता के लिए अन्न, दही, मछली आदि लाते थे । आराध्य देव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था। कुछ समय बाद मन्दिरों में उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया शुरू हो गई। घर-परिवार से ऊपर के स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मन्दिर ने अपने क्रियाकलाप बढ़ा लिए और मुख्य शहरी संस्था का रूप ले लिया।

(2) समुदाय के नेताओं का प्रादुर्भाव – जो मुखिया लड़ाई जीतते थे, वे अपने साथियों व अनुयायियों को लूट का माल बाँट कर प्रसन्न कर देते थे तथा पराजित लोगों को बन्दी बनाकर अपने साथ ले जाते थे, जिन्हें वे अपने चौकीदार अथवा नौकर बना लेते थे। परन्तु युद्ध में विजयी होने वाले ये नेता लोग स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे। कालान्तर में इन नेताओं ने समुदायों के कल्याण पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया और उसके फलस्वरूप नई-नई संस्थाएँ तथा परिपाटियाँ स्थापित हो गईं।

इन विजेता मुखियाओं ने देवताओं की सेवा में बहुमूल्य भेंटें अर्पित करना शुरू कर दिया। उन्होंने मन्दिरों की धन-सम्पदा के वितरण का और मन्दिरों में आने-जाने वाली वस्तुओं का हिसाब-किताब रखकर प्रभावी तरीके से संचालन करने की व्यवस्था की। इसके फलस्वरूप इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा समुदाय पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया।

(3) सेना – मुखिया लोगों ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे कि वे आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त अपनी सेना एकत्रित कर सकें। उरुक नगर से हमें सशस्त्र वीरों के चित्र मिले हैं।

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(4) सामाजिक संस्थाएँ – नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रान्त वर्ग का प्रादुर्भाव हो चुका था। अधिकांश धन-सम्पत्ति पर समाज के एक छोटे से वर्ग का अधिकार था। समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। कन्या के माता – पिता की सहमति से कन्या का विवाह किया जाता था। विवाह की रस्म पूरी हो जाने के बाद वर-वधू दोनों पक्षों की ओर से उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था। पिता का घर, पशु-धन, खेत आदि उसके पुत्रों को मिलते थे।

(5) लिपि – लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी। चूंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर, अलग-अलग लोगों के साथ होते थे तथा सौदा भी कई प्रकार के माल के बारे में होता था। इसलिए शहरीकरण के बाद लिपि का विकास हुआ। मेसोपोटामियावासियों ने ही विश्व में सर्वप्रथम एक लिपि का आविष्कार किया जिसे कीलाकार लिपि कहा जाता था। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे।

(6) विद्यालय – मेसोपोटामिया में देवालय ही शिक्षा के केन्द्र थे। विद्यार्थियों को हिसाब-किताब रखने की कानूनी तथा व्यापारिक शिक्षा दी जाती थी।

(7) व्यापार – शहरीकरण के कारण व्यापार संस्था अस्तित्व में आई। शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन तथा तरह-तरह की सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरी लोग आत्मनिर्भर नहीं होते, बल्कि एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इसलिए इस स्थिति में व्यापार, सेवा तथा श्रम विभाजन नामक संस्थाओं का विकास हुआ। मारी नामक नगर व्यापार का प्रमुख केन्द्र था जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा आदि वस्तुएं तुर्की, सीरिया, लेबनान आदि भेजी जाती थी।

प्रश्न 6.
किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया सभ्यता की झलक –
मेसोपोटामियां में प्रचलित कहानियों से मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती हैं। निम्नलिखित प्रचलित कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की जानकारी मिलती है –

(1) सुमेरियन महाकाव्य में वर्णित एनमर्कर की कहानी : लेखन और व्यापार का प्रयोग – मेसोपोटामिया की परम्परागत कथाओं के अनुसार उरुक के राजा एनमर्कर ने ही मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लेखन और व्यापार की व्यवस्था की थी। परम्परागत कथा के अनुसार उरुक के राजा एनमर्कर ने एक सुन्दर मन्दिर को सजाने के लिए बहुमूल्य रत्न और धातुएँ लाने के लिए अपने दूत को अरट्टा नामक देश के शासक के पास भेजा।

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परन्तु जब दूत अपनी बात को सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाया, तो राजा एनमर्कर ने अपने हाथ से चिकनी मिट्टी की पट्टिका बनाई और उस पर शब्द लिख दिए। दूत ने लिखी हुई पट्टिका अरट्टा के शासक के हाथ में दी। उच्चरित शब्द कीलाकार शब्द थे। इस कहानी से ज्ञात होता है कि एनमर्कर ने मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम व्यापार और लेखन की व्यवस्था की थी। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। उनकी लिपि कीलाकार लिपि कहलाती थी।

(2) बाइबिल के प्रथम भाग ‘ ओल्ड टेस्टामेंट’ में ‘सुमेर’ की जानकारी – यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाइबिल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेन्ट’ में इसका उल्लेख कई सन्दर्भों में किया गया है। बाइबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ (Book of Genesis) में ‘शिमार’ अर्थात् सुमेर के बारे में उल्लेख हुआ है। उसके अनुसार वहाँ ईंटों के बने शहर हैं। यूरोप के यात्री और विद्वान मेसोपोटामिया को एक प्रकार से अपने पूर्वजों की भूमि मानते थे और जब इस क्षेत्र में पुरातत्वीय खोज प्रारम्भ हुई तो ओल्ड टेस्टामेन्ट के अक्षरशः सत्य को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया।

(3) जल-प्लावन की कहानी – बाइबल में जल – प्लावन की कहानी का उल्लेख है । बाइबल के अनुसार यह जल-प्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। किन्तु ईश्वर ने जल-प्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ नामक एक मनुष्य को चुना। नोआ ने एक बहुत बड़ी नाव बनाई और उसमें सभी जीव- जन्तुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया। जब जल – प्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया परन्तु नाव में रखे गए सभी जोड़े सुरक्षित बच गए। इसी प्रकार की एक कहानी मेसोपोटामिया के परम्परागत साहित्य में भी मिलती है। इस कहानी के मुख्य पात्र को ‘जिउसूद्र’ या ‘उतनापिष्टम’ कहा जाता है।

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(4) गिलगमेश की कहानी – ‘गिलगमेश’ नामक महाकाव्य से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर बहुत गर्व था। ऐसा कहा जाता है कि गिलगमेश ने एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया था। गिलगमेश एक महान योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था। परन्तु उसे संजीव पास बुक्स उस समय प्रबल आघात पहुँचा जब उसके वीर मित्र की अचानक मृत्यु हो गई।

इससे दुःखी हो वह अमृत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने सागरों – महासागरों को पार किया और दुनिया भर का चक्कर लगाया परन्तु उसे अपने साहसिक अभियान में सफलता नहीं मिली। निराश होकर गिलगमेश अपने नगर उरुक लौट आया। वहाँ जब वह शहर की चहारदीवारी के पास चहलकदमी कर रहा था, तभी उसकी दृष्टि उन पकी ईंटों पर पड़ी जिनसे उसकी नींव गई थी। वह बहुत भाव-विभोर हो गया। इस प्रकार उरुंक नगर की विशाल प्राचीर पर आकर उस महाकाव्य की लम्बी वीरतापूर्ण और साहसभरी कथा का अन्त हो गया। इस प्रकार गिलगमेश को अपने नगर में ही सान्त्वना मिलती है, जिसे उसकी प्रजा ने बनाया था।

लेखन कला और शहरी जीवन JAC Class 11 History Notes

पाठ-सार

1. शहरी जीवन की शुरुआत – शहरी जीवन की शुरुआत मेसोपोटामिया में हुई थी।

2. मेसोपोटामिया की स्थिति – मेसोपोटामिया दजला और फरात नदियों के बीच स्थित था। वर्तमान में यह प्रदेश इराक गणराज्य का भाग है। मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी सम्पन्नता, शहरी जीवन, विशाल साहित्य, गणित और खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है। मेसोपोटामिया की लेखन प्रणाली और उसका साहित्य पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेशों तथा उत्तरी सीरिया और तुर्की में 2000 ई. पूर्व के बाद फैला।

3. सुमेर तथा अक्कद- इतिहास के आरम्भिक काल में इस प्रदेश को मुख्यतः इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था।

4. बेबीलोनिया – 2000 ई. पूर्व के बाद जब बेबीलोन एक महत्वपूर्ण शहर बन गया तब दक्षिणी क्षेत्र को बेबीलोनिया कहा जाने लगा ।

5. असीरिया – लगभग 1100 ई. पूर्व से जब असीरियन लोगों ने उत्तर में अपना राज्य स्थापित कर लिया, तब उस क्षेत्र को असीरिया कहा जाने लगा।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

6. भाषाएँ – इस प्रदेश की प्रथम ज्ञात भाषा सुमेरियन अर्थात् सुमेरी थी । 2400 ई. पूर्व के आस-पास अक्कदी भाषा प्रचलित हुई। 1400 ई. पूर्व से अरामाइक भाषा का भी प्रचलन होने लगा। यह भाषा हिब्रू से मिलती-जुलती थी और 1000 ई. पूर्व के बाद व्यापक रूप से बोली जाने लगी।

7. मेसोपोटामिया और उसका भूगोल- इराक भौगोलिक विविधता का देश है। यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है। यहाँ पशुपालन खेती की अपेक्षा आजीविका का अधिक अच्छा साधन है। पूर्व में दजला की सहायक नदियाँ परिवहन का अच्छा साधन हैं। इसका दक्षिणी भाग रेगिस्तान है और यहाँ पर ही सबसे पहले नगरों और लेखन – प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। फरात और दजला नदियाँ सिंचाई तथा उपजाऊ मिट्टी यहाँ लाने का काम करती थीं। यहाँ गेहूँ, जौ, मटर, मसूर आदि की खेती की जाती थी तथा भेड़-बकरी आदि जानवर पाले जाते थे। नदियों में मछलियां थीं तथा गर्मी में पिंड खजूर थे।

8. शहरीकरण का महत्त्व – शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त व्यापार, उत्पादन और विभिन्न प्रकार की सेवाओं श्रम विभाजन एवं एक सामाजिक संगठन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शहरों में संगठित व्यापार, भण्डारण की आवश्यकता भी होती है।

9. शहरों में माल की आवाजाही – मेसोपोटामिया के लोग लकड़ी, ताँबा, सोना, चाँदी आदि विदेशों से मँगाते थे तथा कपड़ा और कृषि जन्य उत्पाद निर्यात करते थे । शिल्प, व्यापार और सेवाओं के अलावा मेसोपोटामिया की नहरें और प्राकृतिक जलधाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच माल के परिवहन के अच्छे मार्ग थे। फरात नदी व्यापार के लिए विश्व – मार्ग के रूप में प्रसिद्ध थी।

10. लेखन कला का विकास – मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। वे अपना हिसाब-किताब रखने तथा शब्दकोश बनाने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने आदि में लेखन का प्रयोग करने लगे। उनकी लिपि क्यूनीफार्म (कीलाकार) थी। यहाँ 2600 ई. पू. के आस-पास वर्ण कीलाकार हो गए और भाषा सुमेरियन थी, लेकिन कीलाकार लेखन का रिवाज पहली शताब्दी तक बना रहा।

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11. लेखन प्रणाली – जिस ध्वनि के लिए कीलाक्षर या कीलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था, वह एक अकेला व्यंजन या स्वर नहीं होता था, परन्तु अक्षर होते थे। इस प्रकार लिपिक को सैकड़ों चिह्न सीखने पड़ते थे। 12. साक्षरता – मेसोपोटामिया के बहुत कम लोग पढ़-लिख सकते थे । इसका कारण था कि प्रतीकों या चिह्नों की संख्या सैकड़ों में थी तथा ये काफी जटिल थे।

13. लेखन का प्रयोग- मेसोपोटामिया में व्यापार और लेखन कला की शुरुआत करने वाला उसका राजा एनमर्कर

14. दक्षिणी मेसोपोटामिया का शहरीकरण – मन्दिर और राजा – दक्षिणी मेसोपेटामिया में कई तरह के शहर विकसित हुए। कुछ मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए, कुछ शहर व्यापारिक केन्द्र थे और कुछ शाही शहर थे। मंदिर शहर – मेसोपोटामिया में अनेक मन्दिरों का निर्माण किया गया। ये मन्दिर देवी-देवताओं के निवास-स्थान थे। ये मन्दिर ईंटों से बनाए जाते थे। देवता पूजा का केन्द्र-बिन्दु होता था । लोग देवी – देवता के लिए अन्न, दही, मछली आदि लाते थे।

कुछ विजेता मुखियाओं ने देवताओं की सेवा में कीमती भेंटें अर्पित करना शुरू कर दिया, जिससे समुदाय के मन्दिरों की सुन्दरता तथा भव्यता बढ़ गई। इससे समुदाय में राजा को ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ और समुदाय पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया। युद्धबन्दियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मन्दिर का अथवा प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना पड़ता था। मेसोपोटामिया में खूब तकनीकी प्रगति भी हुई। अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औजारों का प्रयोग होता था। वास्तुविदों ने ईंटों के स्तम्भ बनाना सीख लिया थ। मूर्तिकला के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। कुम्हार चाक के द्वारा बड़े पैमाने पर सुन्दर बर्तन बनाने लगा तथा चित्रों का भी निर्माण हुआ।

15. शहरी जीवन- नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च वर्ग का उदय हो चुका था। अधिकांश धन-दौलत पर एक छोटे से वर्ग का कब्जा था। समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। पिता परिवार का मुखिया होता था। पिता के घर, पशु-धन, खेत आदि पर उसके पुत्रों का अधिकार था। कन्या के माता-पिता कन्या के विवाह के लिए अपनी सहमति देते थे।

16. उर नगर-उर नगर की गलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी व संकरी थीं। जल निकासी के लिए नालियाँ नहीं थीं। लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बुहार कर गलियों में डाल देते थे । कमरों के अन्दर रोशनी खिड़कियों से नहीं, बल्कि उन दरवाजों से होकर आती थी, जो आंगन में खुला करते थे।

17. पशु- चारक क्षेत्र में एक व्यापारिक नगर- 2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। मारी राज्य में किसान और पशुचारक दोनों ही तरह के लोग रहते थे, परन्तु उस प्रदेश का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लिया जाता था। मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे ।

उन्होंने मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं का आदर ही नहीं किया, बल्कि स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए मारी नगर में एक मन्दिर भी बनवाया। मारी का विशाल राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास-स्थान तो था ही, साथ ही वह प्रशासन और उत्पादन, विशेष रूप से कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केन्द्र भी था। मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल भी था।

18. मेसोपोटामिया संस्कृति में शहरों का महत्त्व – मेसोपोटामिया के लोग शहरी जीवन को महत्त्व देते थे जहाँ अनेक समुदायों तथा संस्कृतियों के लोग साथ – साथ रहा करते थे। ये लोग अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व करते थे।

19. लेखन कला की देन – मेसोपोटामिया की काल-गणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परम्परा मेसोपोटामिया की विश्व को सबसे बड़ी देन है। मेसोपोटामियावासी गुणा, भाग, वर्ग तथा वर्गमूल आदि से परिचित थे। उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों में, एक महीने को चार सप्ताहों में, एक दिन को 24 घण्टों में तथा एक घण्टे को 60 मिनट में विभाजित किया था। अपनी लेखन कला और विद्यालयों के कारण ही मेसोपोटामियावासी अपनी उपलब्धियों को सुरक्षित रख सके।

20. एक पुराकालीन पुस्तकालय – असीरियाई शासक असुरबनिपाल (668-627 ई. पू.) ने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। उसने इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष विद्या, कविताओं की पट्टिकाओं को इकट्ठा करने का सफल प्रयास किया था। गिलगमेश के महाकाव्य जैसी महत्त्वपूर्ण पट्टिकाओं की प्रतियाँ तैयार की गईं। असुरबनिपाल के पुस्तकालय में कुल मिलाकर 1000 मूल ग्रन्थ थे और लगभग 30,000 पट्टिकाएँ थीं जिन्हें विषयवार वर्गीकृत किया गया था।

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21. एक आरम्भिक पुरातत्ववेत्ता – 625 ई. पूर्व में दक्षिणी कछार के एक शूरवीर नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को असीरियनों के आधिपत्य से मुक्त कराया। बेबीलोन एक प्रसिद्ध नगर था जिसमें अनेक बड़े-बड़े राजमहल तथा मन्दिर विद्यमान थे। इसमें एक जिगुरात अर्थात् सीढ़ीदार मीनार थी। यहाँ का व्यापार उन्नत अवस्था में था । नैबोनिडस स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था। उसने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया। उसने अक्कद के राजा सारगोन की मूर्ति की मरम्मत करवाई और उसका खण्डित सिर बदलवा दिया।

कालरेखा

1. लगभग 7000-6000$ ई.पू. उत्तरी मेसोपोटामिया के मैदानों में खेती की शुरुआत।
2. लगभग 5000 ई.पू. दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मन्दिरों का बनना।
3. लगभग 3200 ई.पू. मेसोपोटामिया में लेखन-कार्य की शुरुआत।
4. लगभग 3000 ई.पू. उरुक का एक विशाल नगर के रूप में विकास : काँसे के औजारों के प्रयोग में वृद्धि।
5. लगभग $2700-2500$ ई.पू. आरम्भिक राजाओं का शासन काल जिनमें गिल्गेमिश जैसे पौराणिक राजा भी सम्मिलित हैं।
6. लगभग 2600 ई.पू. कीलाकार लिपि का विकास।
7. लगभग 2400 ई.पू. सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग।
8. 2370 ई.पू. सारगोन, अक्कद सम्राट।
9. लगभग 2000 ई.पू. सीरिया, तुर्की और मिस्न तक कीलाकार लिपि का प्रसार; महत्त्वपूर्ण शहरी केन्द्रों के रूप में मारी और बेबीलोन का उद्भव।
10. लगभग 1800 ई.पू. गणितीय मूलपाठों की रचना; अब सुमेरियन बोलचाल की भाषा नहीं रही।
11. लगभग 1100 ई.पू. असीरियाई राज्य की स्थापना।
12. लगभग 1000 ई.पू. लोहे का प्रयोग।
13. $720-610$ ई.पू. असीरियाई साप्राज्य।
14. 668-627 ई.पू. असुरबनिपाल का शासन।
15. 331 ई.पू. सिकन्दर द्वारा बेबीलोनिया को जीतना।
16. लगभग पहली शताब्दी (ईस्वी) अक्कदी भाषा और कीलाकार लिपि प्रयोग में रहीं।
17. 1850 कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना व पढ़ा गया।

 

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