JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. इस्तमरारी बन्दोबस्त सबसे पहले लागू किया गया –
(क) बंगाल में
(ख) मद्रास में
(ग) बम्बई में
(घ) उत्तरप्रदेश में
उत्तर:
(क) बंगाल में

2. इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया –
(क) 1794 में
(ख) 1792 में
(ग) 1793 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1792 में

3. ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किया जाता था–
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए
(ख) ताल्लुकदारों के लिए
(ग) जोतदारों के लिए
(प) रैयतदारों के लिए
उत्तर:
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए

4. बर्दवान में जमींदारी की नीलामी की गई थी, वर्ष
(क) 1798 में
(ख) 1797 में
(ग) 1897 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1797 में

5. बंगाल में किस गवर्नर जनरल ने इस्तमरारी बन्दोवस्त लागू किया.
(क) लार्ड डलहौजी ने
(ख) विलियम बैंटिक ने
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने
(घ) लार्ड एलिनवरो ने
उत्तर:
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने

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6. रैयत शब्द का प्रयोग अंग्रेजों ने किया –
(क) किसानों के लिए
(ख) जमींदारों के लिए
(ग) ताल्लुकदारों के लिए
(घ) राजाओं के लिए
उत्तर:
(क) किसानों के लिए

7. धनी किसानों के लिए जिस शब्द का प्रयोग होता था, वह था –
(क) फौजदार
(ख) जोतदार
(ग) ताल्लुकदार
(घ) फरमाबरदार
उत्तर:
(ख) जोतदार

8. जमींदार द्वारा राजस्व वसूलने वाला अधिकारी कहलाता थ –
(क) दामुला
(ख) अमला
(ग) आमूला
(घ) अमली
उत्तर:
(ख) अमला

9. घोर आर्थिक मंदी जिस सन् में आई, वह था –
(क) 1950
(ख) 1929
(ग) 1930
(घ) 1932
उत्तर:
(ख) 1929

10. बाहरी लोग को संथाल लोग क्या कहते थे?
(क) परदेशी
(ख) अंग्रेजी बाबू
(ग) दिकू
(घ) इनमें
उत्तर:
(ग) दिकू

11. संथालों का नेतृत्व किसने किया?
(क) सोदी
(ख) कान्हू
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों

12. बुकानन कौन था?
(क) ब्रिटिश एजेन्ट
(ग) यात्री
(ख) अंग्रेज अधिकारी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ब्रिटिश एजेन्ट

13. अमेरिका में गृह युद्ध कब आरम्भ हुआ?
(क) 1760 में
(ग) 1840 में
(ख) 1761 में
(घ) 1861 में
उत्तर:
(घ) 1861 में

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14. रेलों का युग प्रारम्भ होने से पहले कौनसा कस्बा दक्कन से आने वाली कपास के लिए संग्रह केन्द्र था ?
(क) मिर्जापुर
(ग) मद्रास
(ख) बम्बई
(घ) जयपुर
उत्तर:
(क) मिर्जापुर

15. दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई –
(क) 1870 में
(ख) 1875 में
(ग) 1878 में
(घ) 1980 में
उत्तर:
(ग) 1878 में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. ………………. “शब्द का प्रयोग अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था।
2. इस्तमरारी बंदोबस्त ……………… ने राजस्व की राशि निश्चित करने के लिए लागू की थी।
3. अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ……………… ब्रिटिश सेना का कमाण्डर था।
4. 1793 में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करते समय वहाँ का …………… कार्नवालिस था
5. …………… शब्द का प्रयोग अंग्रेजों के विवरणों में किसानों के लिए किया जाता था।
6. …………… का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास लाठी या डंडा हो।
उत्तर:
1 राजा
2. ईस्ट इण्डिया कम्पनी
3. कार्नवालिस
4. गवर्नर जनरल
5. रैयत
6. लाठियाल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त कब लागू हुआ?
उत्तर:
सन् 1793

प्रश्न 2.
अंग्रेजी विवरणों के अनुसार ‘रैयत’ शब्द का प्रयोग किनके लिए किया जाता था ?
उत्तर:
किसानों के लिए।

प्रश्न 3.
राजस्व इकट्ठा करने के समय जमींदार का जो अधिकारी गाँव में आता था, उसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
अमला।

प्रश्न 4.
बंगाल के धनी किसानों के वर्ग को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 5.
जोतदारों की जमीन का काफी बड़ा भाग किनके द्वारा जोता जाता था ?
उत्तर:
बटाईदारों द्वारा

प्रश्न 6.
जब राजस्व का भुगतान न किये जाने पर जमींदार की जमींदारी को नीलाम किया जाता था तो प्रायः उन जमीनों को कौन खरीद लेते थे?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 7.
1930 के दशक में अंततः जमींदारों का भट्ठा क्यों बैठ गया?
उत्तर:
1930 के दशक की घोर मंदी के कारण।

प्रश्न 8.
पहाड़िया जीवन का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
कुदाल।

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प्रश्न 9.
संथालों की शक्ति का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
हल

प्रश्न 10.
पहाड़िया लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
म खेती।

प्रश्न 11.
संधाल लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
स्थायी खेती।

प्रश्न 12.
1875 में पुणे के सूपा गाँव में हुआ किसानों का आन्दोलन किनके विरोध में था?
उत्तर:
साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरोध

प्रश्न 13.
साहूकार कौन होता था?
उत्तर:
साहूकार पैसा उधार देता था और व्यापार भी करता था।

प्रश्न 14.
दक्षिण के गाँवों में रैयतों ने किस सन् में बगावत की?
उत्तर:
सन् 1875 में।

प्रश्न 15.
इस्तमरारी बन्दोबस्त किन-किन के मध्य लागू किया गया ?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के जमींदारों के मध्य ।

प्रश्न 16.
1857 के गदर में बंगाल के किस राजा ने अंग्रेजों की मदद की थी ?
उत्तर:
बंगाल के बर्दवान के राजा मेहताबचन्द ने।

प्रश्न 17.
1930 की आर्थिक मंदी का जमींदारों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
इसके फलस्वरूप जमींदारों की दशा दयनीय हो गई।

प्रश्न 18.
रेलों का युग शुरू होने से पहले कपास का परिवहन कैसे होता था?
उत्तर:
नौकाओं, बैलगाड़ियों तथा जानवरों के द्वारा।

प्रश्न 19.
भारत में सर्वप्रथम औपनिवेशिक शासन कहाँ स्थापित हुआ?
उत्तर:
बंगाल में।

प्रश्न 20.
गाँवों में किनकी शक्ति जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी?
उत्तर:
जोतदारों की।

प्रश्न 21.
बंगाल के किस क्षेत्र में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे?
उत्तर:
उत्तरी बंगाल में।

प्रश्न 22.
बंगाल में जोतदार किन अन्य नामों से पुकारे जाते थे?
उत्तर:
‘हवलदार’, ‘गांटीदार’ तथा ‘मंडल’ के नामों

प्रश्न 23.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई थी?
उत्तर:
1813 ई. में ।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले संथालों का नेता कौन था?
उत्तर:
सिधू मांझी ।

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प्रश्न 25.
संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कब किया?
उत्तर:
1855-56 में।

प्रश्न 26.
मैनचेस्टर काटन कम्पनी कब और कहाँ स्थापित की गई ?
उत्तर:
1859 ई. में इंग्लैण्ड में

प्रश्न 27.
रेलों के विकास से पूर्व दक्कन से आने वाली कपास के लिए कौनसा शहर संग्रह केन्द्र था?
उत्तर:
मिर्जापुर।

प्रश्न 28.
ऋणदाता लोग देहात के किस प्रथागत मानक का उल्लंघन कर किसानों का शोषण कर रहे थे?
उत्तर;
ऋणदाता मूलधन से अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 29.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई ?
उत्तर:
सन् 1878 ई. में।

प्रश्न 30.
रेग्यूलेटिंग एक्ट कब पारित किया गया ?
उत्तर:
1773 ई. में ।

प्रश्न 31.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल की दीवानी कब प्राप्त की?
उत्तर:
सन् 1765 ई. में

प्रश्न 32.
रेग्यूलेटिंग एक्ट क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यकलापों को विनियमित करने वाला अधिनियम।

प्रश्न 33.
सन् 1862 तक ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था, उसका कितना भाग अकेले भारत से जाता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 34.
अमेरिका में गृह युद्ध का सूत्रपात कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1861 ई. में ।

प्रश्न 35.
जोतदारों की स्थिति क्या थी? वे जमींदारों से किस प्रकार प्रभावशाली होते थे?
उत्तर:
जोतदार बंगाल के धनी किसान थे। उनका ग्रामवासियों पर नियन्त्रण था और वे रैयत को अपने पक्ष में रखते थे।

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प्रश्न 36.
गाँवों में जोतदार के शक्तिशाली होने के कारण लिखिए।
अथवा
गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक क्यों थी ? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) जोतदार गाँवों में ही रहते थे, ग्रामवासियों पर नियंत्रण रखते थे।
(2) वे रैयत को अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।

प्रश्न 37.
जोतदार जमींदारों का किस प्रकार प्रतिरोध करते थे? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) जोतदार जमींदारों द्वारा गाँव की लगान बढ़ाने का विरोध करते थे
(2) वे जमींदार को राजस्व भुगतान में देरी करा देते थे।

प्रश्न 38.
पाँचवीं रिपोर्ट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी।

प्रश्न 39.
जमींदार किस प्रकार अपनी जमींदारियाँ बचा लेते थे? दो उदाहरण दीजिये ।
उत्तर:
(1) फर्जी बिक्री द्वारा
(2) अपनी जमींदारियों का कुछ हिस्सा महिलाओं को प्रदान करके।

प्रश्न 40.
1832 ई. तक किस भूमि को संथालों की भूमि के रूप में सीमांकित किया गया?
उत्तर:
दामिन-इ-कोह के रूप में सीमांकित भूमि को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 41.
दक्कन दंगा रिपोर्ट क्या थी ? इसके अनुसार रैयत विद्रोह का क्या कारण था ?
उत्तर:
दक्कन दंगा रिपोर्ट दक्कन के दंगों से सम्बन्धित रिपोर्ट थी रैयत विद्रोह का कारण ऋणदाताओं, साहूकारों न्पों की शोषण नीति थी।

प्रश्न 42.
झूम खेती किस बात पर निर्भर करती थी?
उत्तर:
झुम खेती नई जमीनें खोजने और भूमि की से प्राकृतिक उर्वरता का उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करती थी।

प्रश्न 43.
इस्तमरारी बन्दोबस्त कब एवं किस क्षेत्र में न्य लागू किया गया ?
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 में बंगाल में लागू किया गया।

प्रश्न 44.
कुदाल और हल किन लोगों के जीवन का प्रतीक माना जाता था?
उत्तर:
कुदाल’ पहाड़िया लोगों के जीवन का तथा ‘हल’ संथालों के जीवन का प्रतीक माना जाता था।

प्रश्न 45.
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास न का आयात कहाँ से किया जाता था?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास के समस्त आयात का 75% अमेरिका से किया जाता था।

प्रश्न 46.
रैयतवाड़ी क्या थी? इसे कहाँ लागू किया गया?
अथवा
बम्बई दक्कन में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई राजस्व प्रणाली का नाम बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी राजस्व की प्रणाली थी, जो कम्पनी सरकार तथा रैयत (किसानों) के बीच बम्बई दक्कन में लागू की गई थी।

प्रश्न 47.
दक्कन में किसानों का विद्रोह कब व कहाँ से शुरू हुआ?
उत्तर:
दक्कन में किसानों का विद्रोह 1875 में (आधुनिक पुणे जिले में) से शुरू हुआ।

प्रश्न 48.
‘दामिन-इ-कोह’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1832 में संथालों को स्थाई रूप से बसाने के लिए ‘दामिन-इ-कोह’ नामक एक भू-भाग निश्चित किया गया।

प्रश्न 49.
बुकानन कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत आया तथा 1794 से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया।

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प्रश्न 50.
पहाड़िया लोग कौन थे? वे अपना निर्वाह कैसे करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग राजमहल की पहाड़ियों में रहते थे तथा जंगलों की उपज से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 51.
संथाल कौन थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में बसे हुए थे। वे हलों द्वारा स्थायी कृषि करते थे।

प्रश्न 52.
संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये गए विद्रोह के कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संथालों को विद्रोह पर क्यों उतरना पड़ा? दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने संथालों की भूमि पर भारी कर लगा दिया।
(2) साहूकार लोग बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा रहे

प्रश्न 53.
1875 में साहूकारों के विरुद्ध रैयत द्वारा विद्रोह करने के अन्तर्गत किए गए दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत ने साहूकारों के बहीखाते जला दिए और ऋणबंध नष्ट कर दिये। (2) उन्होंने साहूकारों की अनाज की दुकानें लूट लीं।

प्रश्न 54.
रैयतवाड़ी प्रणाली की एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली के राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी।

प्रश्न 55.
बम्बई दक्कन में अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों के विद्रोह के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) किसानों से बहुत अधिक राजस्व वसूल किया जाता था
(2) उन्हें ब्याज की ऊँची दरों पर साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था।

प्रश्न 56.
ब्रिटिश काल में दक्कन में दंगा होने का मुख्य कारण बताइये।
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे।

प्रश्न 57.
किन दो कारणों से भारतीय दस्तकार बेकार हो गए?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन से तैयार माल मंगाना और कच्चा माल ब्रिटेन भेजना
(2) कपास के उत्पादन में कमी।

प्रश्न 58.
किन दो कारणों से भारतीय किसान दरिद्र हो गए?
उत्तर:
(1) किसानों पर भारी भूमि कर लगाना
(2) साहूकारों, व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण

प्रश्न 59.
अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न भागों में भू- राजस्व सम्बन्धी कौन-कौन सी तीन प्रणालियाँ प्रचलित क?
उत्तर:
(1) इस्तमरारी बन्दोबस्त
(2) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त
(3) महलवाड़ी बन्दोबस्त।

प्रश्न 60.
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को किस क्षेत्र में बसने की अनुमति प्रदान की थी?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को राजमहल की तलहटी में बसने की अनुमति प्रदान की थी।

प्रश्न 61.
जमीन के किस क्षेत्र को संथालों की भूमि घोषित किया गया?
उत्तर:
‘दामिन-इ-कोह’ को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 62.
पहाड़िया लोगों का क्या व्यवसाय था ?
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे।

प्रश्न 63.
संथाल लोग कौनसी फसलें उगाते थे?
उत्तर:
संथाल लोग चावल, कपास, सरसों, तम्बाकू आदि की फसलें उगाते थे।

प्रश्न 64.
1875 में रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह करने के दो कारणों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) ऋणदाता वर्ग अत्यन्त संवेदनहीन हो गया था।
(2) ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे।

प्रश्न 65.
ऋणदाता लोग गांवों में प्रचलित मानकों और रूढ़ि-रिवाजों का किस प्रकार उल्लंघन कर रहे थे ?
उत्तर:
ऋणदाता लोग रैयत से मूलधन से भी अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 66.
साहूकार रैयत को ऋण देने से क्यों इन्कार कर रहे थे? दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) भारतीय कपास की मांग घटती जा रही थी
(2) कपास की कीमतों में गिरावट आ रही थी।

प्रश्न 67.
पहाड़िया और संधाल लोग किन उपकरणों से खेती करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग कुदाल से तथा संथाल लोग हल से खेती करते थे।

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प्रश्न 68.
संथाल लोगों का बंगाल में कब आगमन हुआ?
उत्तर:
संथाल लोगों का 1780 के दशक में बंगाल में आगमन हुआ।

प्रश्न 69.
संथाल लोग अंग्रेजों को आदर्श निवासी क्यों लगे ?
उत्तर:
क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने तथा भूमि को पूरी शक्ति के साथ जोतने में कोई संकोच नहीं था।

प्रश्न 70.
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल तथा धोखेबाज क्यों समझते थे?
उत्तर:
(1) ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करते थे।
(2) वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे।

प्रश्न 71.
रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध अंग्रेजों को दिए गए प्रार्थना-पत्र में उल्लिखित दो शिकायतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत द्वारा कड़ी शर्तों पर बंधपत्र लिखना
(2) साहूकारों द्वारा रैयत की उपज ले जाना और बदले में रसीद न देना।

प्रश्न 72.
पहाड़ी लोग कौन थे?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले लोग पहाड़ी कहलाते थे। वे जंगल की उपन से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 73.
प्राय: ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता था?
उत्तर:
शक्तिशाली जमींदारों के लिए।

प्रश्न 74.
रैयत व शिकमी रैयत में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
रैयत जमींदारों के लिए जमीन जोतते थे एवं कुछ जमीन अन्य रैयतों को लगाने पर दे देते थे जिन्हें शिकमी रैयत कहा जाता था।

प्रश्न 75.
अमेरिका में गृहयुद्ध के समय ब्रिटेन को भारत से कपास का कितना निर्यात होता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 76.
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक यानी सम्बन्ध हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया।

प्रश्न 77.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ किसके द्वारा तैयार की गई थी?
उत्तर:
प्रवर समिति।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“संथालों और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और अपनी कुदाल से जमीन खुरच कर दालें तथा ज्वार बाजरा उगाते थे। दूसरी ओर संथाल लोग जंगलों को साफ करके हलों से जमीन जोतते थे तथा चावल, कपास आदि की खेती करते थे। इससे पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों में पीछे हटना पड़ा। एक ओर कुदाल पहाड़िया लोगों के जीवन का प्रतीक था, तो दूसरी ओर हल संथालों के जीवन का प्रतीक था और दोनों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।

प्रश्न 2.
‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ क्या था?
अथवा
स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1793 ई. में बंगाल के गवर्नर जनरल ने बंगाल में ‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ लागू किया। इस बन्दोवस्त के अन्तर्गत ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को चुकानी पड़ती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे, उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी जमींदारियां नीलाम कर दी जाती थीं। यह बन्दोबस्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा जमींदारों के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
फ्रांसिस बुकानन के बारे में आप क्या जानते हँ?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक (सर्जन) भी रहा। कलकता में उसने एक चिड़ियाघर की ‘स्थापना की जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर के नाम से मशहूर हुआ। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

प्रश्न 4.
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने पहाड़िया लोगों से शान्ति स्थापना हेतु कौनसी नीति अपनाई?
उत्तर:
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने शान्ति स्थापना हेतु पहाड़िया मुखियाओं के साथ एक समझौता किया, जिसमें मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया जाना था तथा बदले में मुखियाओं को अपने लोगों के चाल-चलन को ठीक रखने की जिम्मेदारी लेनी थी। उनसे यह भी आशा की गई थी कि वे अपनी बस्तियों में व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने लोगों को अनुशासन में रखेंगे। परन्तु बहुत से मुखियाओं ने भत्ता लेने से मना दिया।

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प्रश्न 5.
बुकानन द्वारा वर्णित गंजुरिया पहाड़ की यात्रा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बुकानन के अनुसार गंजुरिया में अभी जुताई की गई है जिससे पता चलता है कि इसे कितने शानदार इलाके में बदला जा सकता है इसकी सुन्दरता और समृद्धि विश्व के किसी भी क्षेत्र जैसी विकसित की जा सकती है। यहाँ की जमीन अलबत्ता चट्टानी है लेकिन बहुत ही ज्यादा बढ़िया है। उसने उतनी बढ़िया सरसों और तम्बाकू कहीं नहीं देखी। संथालों ने वहाँ कृषि क्षेत्र की सीमा काफी बढ़ा ली थी, वे यहाँ 1800 के आसपास आये थे।

प्रश्न 6.
संथालों के बारे में बुकानन के विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुकानन ने संथालों के क्षेत्र में भ्रमण किया और उनके बारे में ये विचार व्यक्त किये कि ” नयी जमीनें साफ करने में वे बहुत होशियार होते हैं, लेकिन नीचता से रहते हैं। उनकी झोंपड़ियों में कोई बाड़ नहीं होती और दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी लकड़ियों की बनी होती हैं जिन पर भीतर की ओर लेप ( पलस्तर) लगा होता है। झोंपड़ियाँ छोटी और मैली-कुचैली होती हैं, उनकी छत सपाट होती है, उनमें उभार बहुत कम होता है।”

प्रश्न 7.
कड़वा के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने क्या लिखा?
उत्तर:
कडुया के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने लिखा कि, “लगभग एक मील चलने के बाद मैं एक शिलाफलक पर आ गया, जिसका कोई यह एक छोटा दानेदार ग्रेनाइट है जिसमें लाल-लाल फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज और काला अबरक लगा है …… । वहाँ से आधा मील से अधिक की दूरी पर मैं एक अन्य चट्टान पर आया वह भी स्तरहीन थी और उसमें बारीक दानों वाला ग्रेनाइट था जिसमें पीला सा फेल्डस्पार, सफेद-सा क्वार्ट्ज और काला अबरक था।”

प्रश्न 8.
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –
(1) कभी-कभी खराब फसल होने पर किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(2) उपज की नीची कीमतों के कारण भी किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(3) कभी-कभी किसान जानबूझकर स्वयं भी भुगतान में देरी कर देते थे।

प्रश्न 9.
एक राजस्व सम्पदा क्या थी? सूर्यास्त विधि क्या थी?
उत्तर:
ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में एक जमींदार के नीचे अनेक गाँव होते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनुसार एक जमींदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलकर एक राजस्व सम्पदा का रूप ले लेते थे। जमींदारों को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक निश्चित तारीख को सूर्यास्त तक राजस्व जमा कराना अनिवार्य था। राजस्व जमा न होने की दशा में उसकी जमींदारी नीलाम की जा सकती थी। इसे ही सूर्यास्त विधि कहा जाता था।

प्रश्न 10.
1832 के दशक में किसानों को ऋण क्यों लेने पड़े?
उत्तर:
1832 के दशक के पश्चात् कृषि उत्पादों में तेजी से गिरावट आयी जिससे किसानों की आय में और भी तेजी से गिरावट आ गयी। इसके अतिरिक्त 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्र अकाल की चपेट में आ गये जिससे जन-धन की भारी हानि हुई किसानों के पास इस संकट का सामना करने के लिए खाद्यान्न नहीं था। राजस्व की बकाया राशियाँ बढ़ती गयीं परिणामस्वरूप किसानों को ऋण लेने पड़े।

प्रश्न 11.
वनों की कटाई और स्थायी कृषि के बारे बुकानन के विचार लिखिए।
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के एक गाँव से गुजरते हुए बुकानन ने लिखा, “इस प्रदेश का दृश्य बहुत बढ़िया है। यहाँ खेती विशेष रूप से, घुमावदार संकरी घाटियों में धान की फसल, बिखरे हुए पेड़ों के साथ साफ की गई जमीन और चट्टानी पहाड़ियाँ सभी अपने आप में पूर्ण हैं, कमी है तो बस इस क्षेत्र में प्रगति की और विस्तृत तथा उन्नत खेती की, जिनके लिए यह प्रदेश अत्यन्त संवेदनशील है। यहाँ टसर और लाख के लिए बागान लगाए जा सकते हैं।”

प्रश्न 12.
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने अपने पत्र में आयुक्त को क्या लिखित सूचना दी?
उत्तर:
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा कि, “शनिवार 15 मई को सूपा आने पर मुझे इस उपद्रव का पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जला दिया गया लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़ दिया गया और उनमें घुसकर वहाँ के सारे सामान को आग लगा दी गई। खाते पत्र बाँड, अनाज, देहाती कपड़ा सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहाँ राख के ढेर अब भी देखे जा सकते हैं।”

प्रश्न 13.
भाड़ा-पत्र क्या था ?
उत्तर:
जब किसान ऋणदाता का कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता था तो उसके पास अपना सर्वस्व जमीन, गाड़ियाँ, पशुधन देने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं था; लेकिन जीवनयापन हेतु खेती करना जरूरी था इसलिए उसने ऋणदाता से जमीन, पशु या गाड़ी फिर किराये पर ले ली; इसके लिए उसे एक भाड़ा पत्र ( किरायानामा) लिखना पड़ता था, जिसमें साफ तौर पर यह लिखा होता था कि ये पशु और गाड़ियाँ उसकी अपनी नहीं हैं।

प्रश्न 14.
इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए राजकीय प्रतिवेदनों के प्रयोग में क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी न चाहिए?
उत्तर:
राजकीय प्रतिवेदन सरकार की दृष्टि से तैयार किये जाते हैं जो पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होते हैं अतः इन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। इनका प्रयोग करने में से पहले समाचार पत्रों, गैर-राजकीय वृत्तान्तों, वैधानिक र अभिलेखों एवं मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता का सत्यापन करना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
बर्दवान के राजा की सम्पदा क्यों नीलाम की गई?
उत्तर:
1797 में बर्दवान के राजा की कई सम्पदाएँ नीलाम की गई। बर्दवान के राजा पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व की बड़ी रकम बकाया हो गई थी इसलिए उसकी सम्पदा नीलाम की गई खरीददारों में जिसने सबसे ऊँची बोली लगाई, उसको जमींदारी बेच दी गई। लेकिन यह खरीददारी फर्जी थी क्योंकि बोली लगाने वालों में 95% लोग राजा के एजेन्ट ही थे वैसे जमींदारी खुले तौर पर बेच दी गई थी लेकिन उन जमींदारियों का नियन्त्रण राजा के हाथ में ही रहा।

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प्रश्न 16.
सरकारी राजस्व जमा करने में जमींदारों के समक्ष कौन-कौनसी समस्याएँ आ रही थीं?
उत्तर:
1. राजस्व की माँग बहुत ऊँची थी।
2. यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें बहुत नीची थीं जिससे किसानों के लिए लगान चुकाना मुश्किल था।
3. राजस्व असमान था। फसल चाहे अच्छी हो या खराब, राजस्व का सही समय पर भुगतान करना जरूरी था।
4. यदि राजस्व निश्चित तिथि की शाम तक जमा नहीं हो पाता था तो जमींदारी नीलाम की जा सकती थी।

प्रश्न 17.
जमींदारों पर नियन्त्रण रखने के लिए कम्पनी सरकार ने क्या नीति अपनाई थी?
उत्तर:
1. जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
2. सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों को कम्पनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर की देखरेख में रख दिया गया।
3. जमींदारों से स्थानीय न्याय और स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
4. जमींदार के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया। कलेक्टर के कार्यालय की शक्ति बढ़ गई।

प्रश्न 18.
जमींदार अपनी जमींदारी में राजस्व कैसे वसूल करता था?
उत्तर:
एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे। कम्पनी सारे गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी। उसके बाद जमींदार यह निर्धारित करता था कि उसे किन-किन गाँवों से कितना-कितना राजस्व वसूल करना है। राजस्व वसूल करने के लिए उसने अमला नामक एक अधिकारी नियुक्त कर रखा था। फिर जमींदार निर्धारित राजस्व को कम्पनी सरकार के खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 19.
गाँवों से राजस्व वसूलने में जमींदार को क्या-क्या कठिनाइयाँ आती थीं?
उत्तर:
1. किसानों की आमदनी कम होने के कारण लगान वसूलने में कठिनाई आती थी।
2. फसल खराब होने पर राजस्व वसूली में परेशानी आती थी।
3. फसल की कीमतें नीची थीं।
4. किसान जान-बूझकर भी लगान जमा कराने में देरी करते थे।
5. जमींदार बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था, मगर न्यायिक प्रक्रिया लम्बी होने से उसे उस मुकदमे से राजस्व वसूली में कोई लाभ नहीं मिल पाता था।

प्रश्न 20.
बुकानन के अनुसार दिनाजपुर के जोतदार किस प्रकार जमींदारों का प्रतिरोध करते थे?
उत्तर:
बुकानन के अनुसार जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनों को जोतते थे। वे बहुत हठीले और जिद्दी थे वे राजस्व के रूप में थोड़ी सी राशि देते थे और हर किस्त में कुछ-न- कुछ बकाया रकम रह जाती थी। जमींदारों द्वारा उन्हें कचहरी में बुलाये जाने पर वे उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी धाना या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते थे और अपने अपमानित किये जाने की शिकायत करते थे वे रैयत को जमींदारों को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे।

प्रश्न 21.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसमें किसके बारे में बताया गया था?
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिनमें से एक रिपोर्ट पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती थी। इस रिपोर्ट में भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन और क्रियाकलापों का वर्णन था। इस रिपोर्ट में जमींदारों और रैयतों (किसानों) की अर्जियाँ तथा अलग-अलग जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल तथा मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखी हुई टिप्पणियाँ शामिल थीं।

प्रश्न 22.
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के दोषों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के निम्न दोष थे –
(1) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अनेक खरीददार होते थे और ऊंची बोली लगाने वाले को बेच दी जाती थी नीलामी में अधिकतर बिक्री फर्जी होती थी।
(2) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अधिकांश खरीददार जमींदारों के ही नौकर या एजेंट होते थे जो जमींदार की ओर से नीलामी में भाग लेते थे। इस प्रकार जमींदारी की जमीनें खुले तौर पर बेच दी जाती थीं पर उनकी जमींदारी का नियन्त्रण उन्हीं के हाथों में रहता था।

प्रश्न 23.
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदार अपने क्षेत्र से राजस्व वसूली किस प्रकार करते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व वसूली हेतु जमींदारों को क्षेत्र दे रखे थे। एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे जिनकी संख्या 400 तक होती थी ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक जमींदारी के समस्त गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी राजस्व वसूल करने के लिए जमींदार एक अधिकारी नियुक्त करते थे। यही अधिकारी प्रत्येक गाँव से राजस्व वसूल करके जमींदार को देते थे तत्पश्चात् जमींदार एकत्रित राशि को कम्पनी सरकार के आदेशानुसार उसके खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 24.
ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन में ऐसे अन्य व्यापारिक समूह थे, जो भारत तथा चीन के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध करते थे। ये समूह चाहते थे कि जिस शाही फरमान द्वारा कम्पनी को यह एकाधिकार मिला था, उसे रद्द किया जाये ब्रिटेन के उद्योगपति व निजी व्यापारी भी भारत से व्यापार करना चाहते थे।

(2) कई राजनीतिक समूहों का भी यह कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का लाभ केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

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प्रश्न 25.
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा क्या कार्यवाही की गई?
उत्तर:
(1) कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अनेक अधिनियम पारित किये गये।
(2) कम्पनी को बाध्य किया गया कि वह भारत प्रशासन के विषय में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट भेजा करे।
(3) कम्पनी के कामकाज की जाँच करने के लिए कई समितियाँ नियुक्त की गयीं। एक प्रवर समिति द्वारा पाँचवीं रिपोर्ट तैयार की गई।

प्रश्न 26.
पहाड़ी लोगों को पहाड़िया क्यों कहा जाता था? इनके जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
अथवा
पहाड़िया लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पहाड़ी लोग पश्चिमी बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों एवं उसके आसपास के क्षेत्र में निवास करते थे, इसलिए इन्हें पहाड़िया कहा जाता था। इनकी आजीविका जंगल की उपज पर आधारित थी। ये जंगलों से महुआ के फूल, रेशम के कोये तथा राल और काठकोयले के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे। वे जंगलों में झाड़ियों व घास- फूस को आग लगाकर जमीन साफ कर ‘झूम’ खेती करते थे तथा कुदाल से जमीन खुरचकर दालें तथा ज्वार- बाजरा उगाते थे।

प्रश्न 27.
कार्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था क्यों लागू की?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर चार्ल्स कॉर्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था 1793 ई. में लागू की थी। उस समय बंगाल की कृषि की स्थिति अच्छी नहीं थी सरकार को प्रतिवर्ष भूमि के ठेके देने पड़ते थे अतः कार्नवालिस ने दीर्घ अध्ययन के उपरान्त बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था लागू कर दी। इस व्यवस्था के अनुसार ठेकेदार ही भूमि के स्वामी होते थे तथा वे कम्पनी को निश्चित कर देते थे। इससे कम्पनी की आय निश्चित हो गयी।

प्रश्न 28.
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे –
(1) कम्पनी की आय निश्चित बनाने में आसानी हुई।
(2) जमींदार ही स्थायी रूप से भूमि का स्वामी मान लिया गया अतः उसने अपनी भूमि उपजाऊ बनाने का प्रयास किया।
(3) कम्पनी के कर्मचारियों की संख्या सीमित हो गयी तथा राजस्व वसूलने के लिए अधिक धन तथा बल की आवश्यकता नहीं रही।
(4) इस्तमरारी बन्दोबस्त का सबसे बड़ा लाभ बंगाल के जमींदारों को हुआ। अब उन्हें सरकार को किसी प्रकार को भेंट नहीं देनी पड़ती थी।

प्रश्न 29.
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम अग्रलिखित हैं –
(1) आरम्भ में अनेक जमींदार किसानों से लगान नहीं वसूल सके, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जमींदारी बिक गयी।
(2) भूमि की माप तथा भू-राजस्व का निर्धारण सही ढंग से नहीं हो पाया था।
(3) आशाओं के विपरीत जमींदारों ने अपनी जमीन के सुधार पर कोई ध्यान नहीं दिया।

प्रश्न 30.
‘झूम’ खेती से आप क्या समझते हैं तथा यह किसके द्वारा की जाती थी?
उत्तर:
‘झूम’ खेती पहाड़िया लोगों द्वारा की जाती थी। ये लोग जंगल की झाड़ियाँ काटकर और घास-फूस में आग लगाकर जमीन साफ करके खेती करते थे। ये लोग कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरचकर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें तथा ज्वार, बाजरा उत्पन्न कर लेते थे। कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे।

प्रश्न 31.
पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण क्यों किये जाते थे?
उत्तर:
(1) पहाड़िया लोगों द्वारा ये आक्रमण अधिकतर अपने आप को अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किये जाते थे।
(2) पहाड़िया लोग इन आक्रमणों के माध्यम से मैदानों में बसे हुए लोगों के सामने अपनी सत्ता का प्रदर्शन करना चाहते थे।
(3) ऐसे आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए भी किये जाते थे, मैदानों में रहने वाले जमींदारों को पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देना पड़ता था।

प्रश्न 32.
ब्रिटिश सरकार पहाड़िया लोगों का दमन क्यों कर देना चाहती थी?
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने जंगलों की कटाई-सफाई के काम को प्रोत्साहन दिया और जमींदारों तथा जोतदारों ने परती भूमि को धान के खेतों में बदल दिया।
(2) अंग्रेजों ने स्थायी कृषि के विस्तार पर बल दिया क्योंकि उससे राजस्व के स्रोतों में वृद्धि हो सकती थी तथा नियत के लिए फसल पैदा हो सकती थी ।
(3) अंग्रेज जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर तथा उपद्रवी मानते थे।

प्रश्न 33.
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली क्यों लागू की गई ?
उत्तर:
(1) 1810 के बाद उपज की कीमतों में वृद्धि होने से बंगाल के जमींदारों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई, लेकिन कम्पनी की आमदनी में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के अनुसार कम्पनी बढ़ी हुई आमदनी में अपना दावा नहीं कर सकती थी।

(2) अपने वित्तीय साधनों में बढ़ोतरी की इच्छा से कम्पनी ने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार किया, इसलिए उन्नीसवीं शताब्दी में कम्पनी शासन में शामिल किये गये प्रदेशों में नए राजस्व बन्दोबस्त किए गए।

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प्रश्न 34.
“रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में एक नई राजस्व प्रणाली लागू की गई, जिसे ‘रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ कहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत (किसान) के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर तीस वर्ष के बाद जमीनों का फिर से सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

प्रश्न 35.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी नई राजस्व नीति से क्या अपेक्षाएँ थीं?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी राजस्व नीति से निम्न अपेक्षाएँ थीं –
(1) कम्पनी को यह आशा थी कि इस नीति से उन समस्याओं का समाधान हो जाएगा जो बंगाल की विजय के समय से ही उनके समक्ष उपस्थित हो रही थीं।
(2) अधिकारियों को यह अपेक्षा थी कि इससे छोटे किसानों एवं धनी भू-स्वामियों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न हो जाएगा जिनके पास कृषि में सुधार करने के लिए पूँजी तथा उद्यम दोनों होंगे।
(3) कम्पनी को यह आशा थी कि ब्रिटिश शासन से पालन-पोषण एवं प्रोत्साहन प्राप्त कर यह वर्ग कम्पनी के प्रति स्वामि भक्त बना रहेगा।

प्रश्न 36.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के कारण लिखिए।
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के निम्नलिखित कारण हैं-
राजस्व की प्रारम्भिक माँगें बहुत ऊँची थी, ऐसा इसलिए किया गया कि आगे कृषि की कीमतों में वृद्धि होने पर राजस्व नहीं बढ़ाया जा सकता। इस हानि को पूरा करने के लिए ऊंची दरें रखी गयी इसका यह कारण बताया गया कि जैसे ही कृषि का उत्पादन बढ़ेगा वैसे ही जमींदारों का बोझ कम हो जाएगा। राजस्व असमान था फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का भुगतान सही समय पर करना जरूरी था इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ में जमींदारों की शक्ति को रैयत से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी जमींदारी का प्रबन्धन करने तक ही सीमित कर दिया था।

प्रश्न 37.
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में लागू किए गए रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
(1) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के अन्तर्गत माँगा गया राजस्य बहुत अधिक था। परिणामस्वरूप बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नए क्षेत्रों में चले गए।
(2) राजस्व अधिकारी किसानों से कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे। राजस्व न देने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं और सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना किया जाता था।
(3) 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिसके परिणामस्वरूप दक्कन में आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में
चला गया।

प्रश्न 38.
1820 के दशक में लागू किये गये राजस्व के बारे में 1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने क्या अनुभव किया? लिखिए।
उत्तर:
1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने 1820 में लागू किये गये राजस्व के बारे में यह अनुभव किया कि –
(1) सभी जगह किसान कर्ज के बोझ से दबे हैं।
(2) 1820 के दशक में लागू किए गए राजस्व सम्बन्धी बन्दोबस्त कठोरतापूर्ण थे।
(3) राजस्व की माँग बहुत ज्यादा थी
(4) राजस्व संकलन की व्यवस्था कठोर एवं लचकहीन थी
(5) इसके बाद उन्होंने राजस्व सम्बन्धी माँग कुछ हल्की की जिससे कृषि को प्रोत्साहन मिल सके।

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प्रश्न 39.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता कपास की आपूर्ति हेतु वैकल्पिक स्रोत क्यों और कैसे खोज रहे थे?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कच्चे माल के रूप में आयात की जाने वाली समस्त कपास का तीन- चौथाई भाग अमेरिका से आता था। अमेरिकी कपास पर निर्भरता के कारण ब्रिटेन के वस्त्र निर्माता अधिक परेशान थे। वे सोचते थे कि यदि कभी यह स्रोत बन्द हो गया तो हमें कपास कहाँ से मिलेगी ? अतः वे कपास के अन्य स्रोतों की खोज में जुटे। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना की गई तथा 1859 में मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी की स्थापना की गई।

प्रश्न 40.
1865 में अमेरिकी गृह युद्ध की समाप्ति का महाराष्ट्र के निर्यात व्यापारियों तथा साहूकारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध समाप्त होने पर वहाँ कपास का उत्पादन पुनः होने से भारतीय कपास की माँग घटने लगी। इस पर महाराष्ट्र के निर्यातकों और साहूकारों ने दीर्घावधि ऋण देने से किसानों को मना कर दिया। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की मांग पटती जा रही है तथा कपास की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। अब उन्हें यह अनुभव होने लगा था कि अब किसानों में उनका ऋण चुकाने की क्षमता नहीं रही है।

प्रश्न 41.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता भारत से कपास का आयात क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माताओं ने भारत को एक ऐसा देश समझा जो अमेरिकी कपास के आयात का स्थान ले सकता था और अमेरिका कपास की आपूर्ति बन्द – होने पर लंकाशायर की कपास की माँग पूरी कर सकता था भारत की भूमि तथा जलवायु दोनों ही कपास की खेती के लिए अनुकूल थीं तथा यहाँ सस्तां श्रम भी उपलब्ध था। 1861 में जब अमेरिका से आने वाली कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई, तो भारत से कपास का आयात करने का निश्चय किया गया।

प्रश्न 42.
संथालों को ‘अगुआ बाशिंदे’ किसलिए कहा गया?
उत्तर:
सन् 1800 के लगभग संथाल राजमहल की पहाड़ियों के निचले हिस्से में जंगलों को साफ कर स्थायी नी रूप से बस गये। एक ओर पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं थे और न उपद्रवी व्यवहार कर रहे थे, दूसरी ओर संथाल अंग्रेजों को न्छ अगुआ बाशिन्दे प्रतीत हुए क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई संकोच नहीं था और वे भूमि को पूरी शक्ति की लगा कर जोतते थे।

प्रश्न 43.
ब्रिटिश कलाकार विलियम होजेज के ल्ल बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर:
विलियम होजेज एक ब्रिटिश कलाकार था पर जिसने कैप्टन कुक के साथ प्रशान्त महासागर की यात्रा की। न क्लीवलैंड के निमन्त्रण पर होजेज 1782 ई. में उसके साथ या जंगल भू-सम्पदाओं के भ्रमण पर गया था। वहाँ होजेज न्य ने ऐसी तस्वीरें बनाई जो ताम्रपट्टी में अम्ल की सहायता र्ति से चित्र के रूप में कटाई करके छापी जाती हैं जिन्हें एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

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प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था। उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों’ को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये। इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बड़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

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प्रश्न 47.
” पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों की छाँह में आराम करते थे। वे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे।

प्रश्न 48.
पहाड़ियों के प्रति अंग्रेजों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
अंग्रेज पहाड़ियों को असभ्य, बर्बर, उपद्रवी तथा क्रूर समझते थे और उन पर शासन करना एक कठिन कार्य मानते थे इसलिए उन्होंने यह विचार किया कि जंगलों का सफाया करके, वहाँ स्थायी कृषि की स्थापना की जाए तथा जंगली लोगों को पालतू एवं सभ्य बनाया जाए। अत: अंग्रेजों ने पहाड़िया लोगों को खेती का व्यवसाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 49.
पहाड़िया लोग संथाल लोगों को अपना शत्रु क्यों मानते थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल के जंगलों को नष्ट करते हुए, इमारती लकड़ी को काटते हुए, जमीन जोतते हुए और चावल तथा कपास का उत्पादन करते हुए राजमहल की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में बस गए। उन्होंने निचली पहाड़ियों पर अधिकार कर लिया। इससे पहाड़िया लोगों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया और उन्होंने संथालों का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 50.
अंग्रेजों ने राजमहल की पहाड़ियों में संथालों को बसाने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
अंग्रेज संचालों को आदर्श निवासी मानते थे क्योंकि वे जंगलों को नष्ट करने के समर्थक थे तथा जमीन को पूरी शक्ति लगाकर जोतते थे अतः उन्होंने 1832 तक राजमहल के एक काफी बड़े क्षेत्र को ‘दामिन-इ-कोह’ के रूप में सीमांकित कर दिया और इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया। अतः यहाँ संथाल बड़ी संख्या में बस गए और कई प्रकार की वाणिज्यिक खेती करने लगे तथा व्यापारियों साहूकारों के साथ लेन-देन करने लगे।

प्रश्न 51.
संथालों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) संथालों को यह ज्ञात हो गया कि उन्होंने जिस भूमि पर खेती करना शुरू किया था, वह उनके हाथों से निकलती जा रही थी
(2) संथालों ने जिस जमीन पर खेती शुरू की थी, उस पर सरकार ने भारी कर लगा दिया था
(3) साहूकारों ने बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा दिया था और कर्ज अदा न किए जाने पर संथालों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे
(4) जमींदार लोग दामिन क्षेत्र पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।

प्रश्न 52.
बम्बई दक्कन में किसानों के विद्रोह के कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) अम्बई (मुम्बई) में लागू की गई रैयतवाड़ी प्रणाली के अन्तर्गत किसानों से माँगा गया राजस्व बहुत अधिक था। राजस्व अदा न करने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं।
(2) कालान्तर में साहूकारों ने ऋण देना बन्द कर दिया।
(3) ऋणदाता संवेदनहीन थे तथा ब्याज मूलधन से भी अधिक वसूल करते थे।
(4) ऋणदाता ऋण चुकायी गई राशि की रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर देते थे और किसानों की उपज को नीची कीमतों पर लेते थे।

प्रश्न 53.
1861 में अमेरिका में छिड़ने वाले गृहयुद्ध का भारतीय किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1861 में अमेरिका में गृह बुद्ध छिड़ने पर अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई। इस स्थिति में दक्कन के गाँवों के रैयतों (किसानों) को विपुल धनराशि ऋण के रूप में मिलने लगी। परन्तु इस अवसर पर केवल धनी किसानों को लाभ हुआ तथा अधिकांश किसान ऋण के भार से दब गए। व्यापारियों और साहूकारों ने ऋण देने से इन्कार कर दिया। दूसरी ओर राजस्व की माँग बढ़ा दी गई। ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करने लगे और कानून की अवहेलना करने लगे।

प्रश्न 54.
रैयत ऋणदाता को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझने लगे थे?
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे और रैयत से हर तीसरे वर्ष एक नया बंधपत्र भरवाते थे। वे किसानों की फसलों को नीची कीमतों पर ले लेते थे तथा अवसर पाकर किसानों की धन सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेते थे। भिन्न-भिन्न प्रकार के दस्तावेजों और बंधपत्रों से किसान असंतुष्ट थे।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
“गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी और जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँवों में जोतदारों की सुदृढ़ स्थिति अठारहवीं शताब्दी के अन्त में बंगाल के गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी तथा जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।
(1) बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी- जोतदार गाँवों में रहते थे तथा वे बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी थे। ये धन-सम्पन्न किसान थे। इन जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े रकों पर अधिकार कर रखा था। ये रकबे (क्षेत्र) कभी- कभी तो कई हजार एकड़ में फैले होते थे। स्थानीय व्यापारियों और साहूकारों के व्यवसाय पर भी उनका नियंत्रण था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के दरिद्र किसानों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते थे। उनकी जमीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था। ये बटाईदार स्वयं अपने हल-बैल लाकर खेती करते थे और फसल के बाद उपज का आधा हिस्सा जोतदारों को दे देते थे।

(2) गाँवों में जोतदारों की शक्ति-गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी। जोतदार गाँवों में ही रहते थे तथा गाँवों में रहने वाले किसानों पर उनका सीधा नियंत्रण था। जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वे घोर प्रतिरोध करते थे तथा लगान वसूली में बाधा डालते थे जो रैयत उन पर निर्भर रहते थे, उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे तथा जमींदार के राजस्व के भुगतान में जानबूझ कर देरी करा देते थे।

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(3) जोतदारों द्वारा जमींदारी को खरीदना राजस्व अदा न करने पर जब जमींदारी नीलाम होती थी, तो प्रायः जोतदार ही उन जमीनों को खरीद लेते थे।

(4) उत्तरी बंगाल में जोतदारों का सबसे अधिक शक्तिशाली होना- उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे। कुछ स्थानों पर जोतदारों को ‘हवलदार’ कहा जाता था और कुछ अन्य स्थानों पर वे ‘गांटीदार’ म अथवा ‘मंडल’ कहलाते थे। जोतदारों के उदय होने के २ फलस्वरूप जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना अनिवार्य था।

(5) रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काना-जोतदार अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये दे देते थे और लगभग हर किस्त में कुछ न कुछ बकाया राशि रह जाती थी। जमींदार की रकम के कारण यदि अधिकारी उन्हें न्यायालय में बुलाते थे, तो वे तुरन्त उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी थाना अथवा मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच क जाते थे तथा जमींदार के कारिन्दों द्वारा उन्हें अपमानित किए जाने की बात कहते थे। जोतदार रैयत को राजस्व न देने के लिए भी भड़काते रहते थे।

प्रश्न 2.
पहाड़िया लोग कौन थे? ब्रिटिश सरकार की उनका दमन करने के लिए क्यों प्रयत्नशील थी?
अथवा
पहाड़िया लोग कौन थे? बाहरी लोगों के आगमन पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों का परिचय –
(1) झूम खेती करना – पहाड़िया लोग जंगल ‍ शाड़ियों को काटकर और पास फेंस को जलाकर जमीन साफ करते थे। ये लोग अपने भोजन के लिए अनेक प्रका की दालें तथा ज्वार बाजरा उगा लेते थे।

(2) जंगलों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करना- पहाड़िया लोग खाने के लिए जंगलों से महुआ के फूल इकट्ठे करते थे तथा बेचने के लिए रेशम के कोया और राला तथा काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे पेड़ों के नीचे उगे हुए घास-फूंस पशुओं के लिए चरागा का काम देती थी।

(3) पहाड़ियों के जीवन का जंगल से घनिष्ठ रूपा से जुड़ना पहाड़िया लोग शिकारियों, झूम खेती करने बालों, खाद्य पदार्थ इकट्ठा करने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में अपना जीवन निर्वाह करते थे। उनका जीवन जंगल से मनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के नीचे अपनी झोंपड़ियों में रहते थे तथा आम के वृक्षों की छाँह में विश्राम करते थे।

(4) पहाड़िया लोगों के मुखिया पहाड़िया लोगों के मुखिया अपने समूह में एकता बनाए रखते थे तथा आपसी लड़ाई-झगड़ों को निपटा देते थे। अन्य जनजातियों तथा मैदानी लोगों के साथ लड़ाई छिड़ने पर वे अपनी जन- जाति का नेतृत्व करते थे।

(5) मैदानी भागों पर आक्रमण करना पहाड़िया लोग मैदानी भागों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण करते थे ये आक्रमण प्रायः अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे। इन आक्रमणों के माध्यम से वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी करना चाहते थे।

(6) अंग्रेजों द्वारा पहाड़िया लोगों का दमन करना- अंग्रेज लोग जंगलों की कटाई-सफाई कर स्थायी कृषि का विस्तार करना चाहते थे वे जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर, क्रूर तथा उपद्रवी मानते थे। 1770 के दशक में अंग्रेजों ने पहाड़ियों का क्रूरतापूर्वक दमन किया। इसके बाद पहाड़िया लोग पहाड़ों के भीतरी भागों में चले गए। बाद में संथालों ने उन्हें पराजित कर दिया और उन्हें पहाड़ियों के भीतर चले जाने के लिए बाध्य कर दिया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय के विस्तार को अग्र बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
(1) 18वीं शताब्दी में बंगाल में उदित होने वाले धनी किसानों को जोतदार कहा गया। इन्होंने गाँवों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।
(2) 19वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों तक आते- आते जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त कर लिए थे जो 1000 एकड़ में फैले हुए थे।
(3) जोतदारों का गाँवों के स्थानीय व्यापार एवं साहूकारों के कारोबार पर भी नियन्त्रण था। वे अपने क्षेत्र के निर्धन किसानों पर भी अपनी शक्ति का अधिक प्रयोग करते थे।
(4) जोतदारों की भूमि का एक बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो स्वयं अपना हल लाते थे, खेतों में मेहनत करते थे एवं फसल उत्पन्न होने के पश्चात् उपज का आधा भाग जोतदारों को प्रदान करते थे।
(5) गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक प्रभावशाली थी। जमींदार शहर में रहते थे जबकि जोतदार गाँवों में रहा करते थे फलस्वरूप जोतदारों का गाँव के अधिकांश निर्धन लोगों पर सीधा नियन्त्रण रहता था।
(6) जोतदारों का जमींदारों से संघर्ष चलता रहता था। इसके निम्न कारण हैं-
(i) जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने पर जोतदार विरोध करते थे।
(ii) जोतदार जमींदार के अधिकारियों को अपना कर्तव्य पालन करने से रोकते थे।
(iii) जो लोग जोतदारों पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।
(iv) जोतदार जमींदारों को परेशान करने की नीयत से किसानों द्वारा जमींदारों को दिए जाने वाले राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते थे।
(v) जब जमींदारों की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीन को खरीद लेते थे जो जमींदारों को अच्छा नहीं लगता था।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बंगाल में जोतदार शक्तिशाली बनकर उभरे। उनके उदय से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था।

प्रश्न 4.
संथाल विद्रोह कब व क्यों हुआ? इस पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
अथवा
संथाल कौन थे? उनके विद्रोह के कारणों का विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
संथालों का परिचय
(1) संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में बसना संथाल लोग 1800 के आस-पास राजमहल की पहाड़ियों में बस गए थे ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में बसकर स्थायी खेती करने के लिए राजी कर लिया। इस प्रकार 1800 के आसपास संचाल जंगलों को साफ कर इमारती लकड़ी को काटते हुए पहाड़ियों की तलहटी में जमीन साफ कर धान और कपास की स्थायी कृषि करने लगे। इन्होंने पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों के भीतरी भाग में जाने के लिए मजबूर कर दिया।

(2) दामिन-इ-कोह का निर्माण सन् 1832 के आसपास ब्रिटिश कम्पनी ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो ‘दामिन-इ-कोह’ कहलाया। इसे संथाल भूमि घोषित कर दिया गया।

(3) संथालों की संख्या वृद्धि – दामिन-इ-कोह के सीमांकन के बाद संथालों की बस्तियाँ तेजी से बढ़ीं। सन् 1838 में गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 तक 1,473 गाँवों में बदल गई और जनसंख्या जो पहले 3,000 थी, बढ़कर 82,000 से भी अधिक हो गई। खेती का विस्तार होने से कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल विद्रोह कब और क्यों? सन् 1855-56 में संथालों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सिधू मांझी उनका नेता था।

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इस विद्रोह के प्रमुख कारण अग्रलिखित थे –
(1) कम्पनी सरकार द्वारा भारी कर लगाना- कम्पनी सरकार ने प्रारम्भ में संथालों को जो भूमि दी थी, उस पर कोई राजस्व नहीं था; लेकिन जैसे ही संथालों ने कृषि में विकास किया, कम्पनी सरकार ने उन पर भारी कर लगा दिया।
(2) ऊँची ब्याज दर साहूकारों द्वारा ऊँची दर पर ब्याज लगाया गया तथा कर्ज अदा न कर पाने पर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया गया।
(3) जमींदारों का अपने नियंत्रण का दावा- जिस जमीन को साफ कर संथाल लोग खेती कर रहे थे, उस पर अब जमींदारों ने अपने नियंत्रण का दावा करना शुरू कर दिया ।
(4) संथालों की मानसिकता में बदलाव — संथालों ने 1850 के दशक तक यह महसूस किया कि उनका अधिकार जमीन पर से खत्म होता जा रहा है। उन्हें अपने *लिए एक ऐसे आदर्श संसार का निर्माण करना है, जहाँ उनका अपना शासन हो जमींदारों, साहूकारों और औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है।

प्रश्न 5.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों द्वारा किस प्रकार प्रतिरोध किया गया?
अथवा
ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों ने कौन- कौनसी नई रणनीतियाँ बनाकर प्रतिरोध किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों की स्थिति उभर रही श्री लेकिन जमींदारों की सत्ता पूर्णतः समाप्त नहीं हुई थी। राजस्व की अत्यधिक मांग और अपनी भू-सम्पदा को ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नीलाम करने की समस्या से निपटने के लिए जमींदारों ने कुछ रणनीतियाँ बनाई –
(1) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण – ईस्ट इण्डिया कम्पनी महिलाओं के हिस्सों की नीलामी नहीं करती थी इसलिए जमींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भागों को अपने परिवार की स्वियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे।

(2) नकली नीलामी जमींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर कम्पनी के अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व का भुगतान नहीं करते थे जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ जाती थी। जब भू-सम्पदा का हिस्सा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के व्यक्ति ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची बोली लगाकर सम्पत्ति को खरीद लेते थे।

(3) अन्य तरीके जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचने के साथ- साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि कम्पनी के किसी अधिकारी की जिद के कारण किसी जमींदार की भू-सम्पदा को किसी बाहर का व्यक्ति खरीद लेता था तो उसे कब्जा प्राप्त नहीं हो पाता था कभी-कभी पुराने किसान नये जमींदार को लोगों की जमीन में घुसने नहीं देते थे।
परिणाम- 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गई। इसलिए जो जमींदार 1790 ई. के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो
गए, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को लचीला बनाने के फलस्वरूप गाँवों पर जमींदारों की पकड़ और मजबूत हो गयी। परन्तु 1930 की मंदी के कारण जमींदारों को नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली।

प्रश्न 6.
1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त क्यों लागू किया गया? इसके किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करने के कारण 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किये जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाना- 1810 के बाद कृषि के मूल्य बढ़ गए, जिससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी में वृद्धि हुई। परन्तु इस्तमरारी बन्दोबस्त के कारण ब्रिटिश सरकार इस बढ़ी हुई आय में अपने हिस्से का कोई दावा नहीं कर सकती थी। अतः उसने अपने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए नवीन राजस्व प्रणालियाँ लागू करने का निश्चय कर लिया।

(2) डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित होना- ब्रिटिश अधिकारी इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित थे रिकार्डों के विचारों के अनुसार भू-स्वामी को उस समय लागू ‘ औसत लगानों को प्राप्त करने का ही अधिकार होना चाहिए। ब्रिटिश अधिकारियों ने महसूस किया कि बंगाल में जमींदार लोग किराया जीवियों के रूप में बदल गए थे क्योंकि उन्होंने अपनी जमीनें पट्टे पर दे दीं और किराये की आमदनी पर निर्भर रहने लगे। इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों ने एक नवीन राजस्व प्रणाली अपनाने का निश्चय किया।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करना 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किया गया। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था। रैयत की राजस्व अदा करने की क्षमता का आकलन कर लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप में उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर 30 वर्ष के बाद जमीनों का पुन: सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर प्रभाव रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(1) राजस्व का अधिक होना सरकार की राजस्व की माँग इतनी अधिक थी कि बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नये क्षेत्रों में चले गए।
(2) ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा कठोरतापूर्वक लगान वसूल करना इस स्थिति में भी ब्रिटिश अधिकारी कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे और राजस्व न देने वाले किसानों की फसलों को जब्त कर लेते थे तथा सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना ठोक देते थे।
(3) भीषण अकाल- 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिससे दक्कन की आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में चला गया।
(4) ऋणदाताओं से ऋण लेना किसानों को अपने जीवन निर्वाह के लिए ऋणदाताओं से रुपया उधार लेना पड़ा। कर्ज बढ़ता गया, उधार की राशियाँ बकाया रहती गई और ऋणदाताओं पर किसानों की निर्भरता बढ़ती गई।

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प्रश्न 7.
फ्रांसिस बुकानन कौन था? इसके दिए गए विवरण का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 ई. तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह भारत के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक भी रहा। कलकत्ता में रहने के दौरान उसने कलकत्ता में एक चिड़ियाघर की स्थापना की, जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसके अनुसार राजस्व की वृद्धि हेतु जंगलों को कृषि भूमि में बदलना अनिवार्य था। 1815 में वह बीमार होने के पश्चात् वह इंग्लैण्ड वापस चले गए। फ्रांसिस बुकानन द्वारा दिया गया विवरण बुकानन की यात्राएं व सर्वेक्षण ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए विकास और प्रगति का आधार थे।

इनके विवरण को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है –
(1) बुकानन द्वारा दिया गया विवरण संथालों के बारे में, राजमहल के पहाड़िया लोगों के बारे में और अनेक अन्य बातों के विषय में विस्तृत जानकारी का स्रोत है। परन्तु उसके विवरण को पूर्णतया मान्य भी नहीं किया जा सकता था क्योंकि वह कम्पनी का कर्मचारी था।

(2) फ्रांसिस बुकानन ने विशाल वनों से परिदृश्यों और वहाँ से सरकार को सम्भवतः राजस्व देने वाले स्रोतों का सर्वेक्षण किया, खोज यात्राएँ आयोजित कीं और जानकारी इकट्ठी करने के लिए कम्पनी के माध्यम से भू-वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं, वनस्पति वैज्ञानिकों, चिकित्सकों का सहयोग व सेवाओं का उपयोग किया।

(3) बुकानन अन्वेषण शक्ति रखने वाला असाधारण शक्ति का व्यक्ति था। उसने वाणिज्यिक दृष्टिकोण से मूल्यवान पत्थरों और खनिजों का प्रयास किया। उसने नमक बनाने और कच्चा लोहा निकालने की स्थानीय पद्धति का निरीक्षण भी किया।

(4) किसी भू-दृश्य का वर्णन करते हुए उसने उस भूमि को और उपजाऊ बनाने का अथवा वहाँ कौनसी फसलें बोयी जा सकती हैं इत्यादि का भी विवरण दिया है।

(5) प्रगति के सम्बन्ध में बुकानन का आकलन आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा द्वारा निर्धारित होता था। वह वनवासियों की जीवनशैली का आलोचक था।

प्रश्न 8.
दक्कन विद्रोह के कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान भारत के विभिन्न प्रान्तों के किसानों ने साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरुद्ध अनेक विद्रोह किए। ऐसा ही एक विद्रोह सन् 1875 में किसानों द्वारा दक्कन में किया गया, जिसे दक्कन विद्रोह कहा जाता है। यह विद्रोह पूना तथा अहमदनगर एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में फैला था।
दक्कन विद्रोह के कारण किसानों द्वारा दक्कन में विद्रोह करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. कम्पनी द्वारा राजस्व बढ़ाना- दक्कन में 1820 के दशक में रैयतवाड़ी नामक नयी राजस्व व्यवस्था लागू की गई और इसमें राजस्व की माँग ऊंची रखी गई। कम्पनी द्वारा 30 वर्ष पश्चात् अगले बन्दोबस्त में राजस्व 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। किसान इस बढ़े हुए राजस्व को चुकाने की स्थिति में नहीं थे।

2. राजस्व की जबरन वसूली – जिला कलेक्टर अपनी कार्यकुशलता प्रदर्शित करने हेतु राजस्व की जबरन वसूली करते थे। फसल खराब होने पर भी कोई छूट नहीं मिलती थी।

3. कीमतों में गिरावट 1832 के बाद कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई। परिणामस्वरूप किसानों की आय में और गिरावट आई। 1832-34 के अकाल ने उनकी रही-सही कमर तोड़ दी।

4. साहूकारों की मनमानी ब्याज दर – राजस्व चुकाने तथा अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसानों को ऋणदाताओं पर निर्भर रहना पड़ता था। साहूकार तथा ऋणदाता मूलधन पर मनमाना ब्याज लगाते थे तथा किसान से खाली कागज पर अंगूठा लगवाते थे ।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

5. ऋण के स्रोत का सूख जाना – 1865 में अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद वहाँ कपास का उत्पादन पुनः चालू हो गया और ब्रिटेन में भारतीय कपास की माँग में गिरावट आती चली गई। इससे कपास की कीमतों में गिरावट आ गई। व्यापारी और साहूकारों ने किसानों से अपने पुराने ऋण वापस माँगना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ सरकार ने राजस्व की माँग बढ़ा दी। फलतः रैयत पर दोहरा दबाव पड़ा जिसे पूरा करने के लिए वह ऋणदाताओं की शरण में गये, लेकिन इस बार उन्होंने ऋण देने से इनकार कर दिया।

6. अन्याय का अनुभव – ऋणदाता द्वारा ऋण देने से इनकार किये जाने पर रैयत समुदाय को बहुत गुस्सा आया। वे इस बात से नाराज थे कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है। तरह-तरह के दस्तावेज और बंधपत्र इस नयी अत्याचारपूर्ण प्रणाली के प्रतीक बन गये थे। इन सब कारणों से दक्कन की रैयत ने ऋणदाताओं, व्यापारियों व साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

विद्रोह का स्वरूप – दक्कन का यह आन्दोलन पूना जिले के सूपा नामक स्थान से जो कि एक विपणन केन्द्र था, से 12 मई, 1875 को प्रारम्भ हुआ। आसपास गाँवों के किसानों ने एकत्र होकर साहूकारों से उनके बहीखातों और ऋणबन्ध पत्रों की माँग करते हुए हमला कर दिया। बहीखाते जला दिए गये, अनाज लूट लिया गया और साहूकारों के घरों में आग लगा दी गई।

प्रश्न 9.
दक्कन विद्रोह के परिणामों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
दक्कन विद्रोह के परिणाम दक्कन विद्रोह के परिणाम विद्रोह के दमन और दक्कन दंगा आयोग की स्थापना के रूप में हुए यथा –
(1) विद्रोह का दमन जब विद्रोह तेजी से फैलने लगा तो ब्रिटिश अधिकारियों की आँखों के सामने 1857 गदर का दृश्य नाचने लगा। विद्रोही किसानों के गाँवों में पुलिस थाने स्थापित किए गए शीघ्र ही सेना भी बुला ली गई। विद्रोहियों को गिरफ्तार करके उन्हें दंडित भी किया गया, लेकिन विद्रोह को दबाने में कई महीने लग गये। (2) दक्कन दंगा आयोग व उसकी रिपोर्ट दंगा फैलने पर प्रारम्भ में बम्बई की सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया लेकिन भारत सरकार के दबाव पड़ने पर उसने दंगे के कारणों की छानबीन करने हेतु एक जाँच आयोग की स्थापना की जिसने पीड़ित जिलों में जाँच-पड़ताल करवाई, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए तथा जिला कलेक्टरों की रिपोटों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट 1878 में ब्रिटिश संसद में पेश की। जाँच आयोग को यह निर्देश था कि वह यह पता लगाए कि क्या सरकारी राजस्व की माँग विद्रोह का कारण थी? आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विद्रोह का कारण साहूकारों और ऋणदाताओं के प्रति किसानों का क्रोध था। सरकारी राजस्व की माँग इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी। लेकिन यह रिपोर्ट एकपक्षीय थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार कभी भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, जबकि राजस्व की भारी माँग के कारण ही किसानों को साहूकारों से ऋण उनकी शर्तों पर लेना पड़ा।

प्रश्न 10.
रैयत (किसान) ऋणदाताओं के प्रति किन कारणों से क्रुद्ध थी? सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझ रही थी? इस पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जब भारतीय कपास की माँग ब्रिटेन में कम हो गई तब ऋणदाताओं ने किसानों को ऋण देने से मना कर दिया। उन्हें यह लगने लगा कि अब किसानों में ऋण चुकाने की क्षमता नहीं है।
(1) अन्याय का अनुभव-जब ऋणदाताओं ने ऋण देने से मना किया तो किसानों में उसके प्रति बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ, उन्हें इस बात का दुःख नहीं था कि वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं अपितु इस बात का दुःख था कि साहूकार इतना संवेदनहीन कैसे हो गया है कि उनकी हालत पर दया भी नहीं कर रहा है। साहूकारों ने देहात के प्रथागत मानकों का उल्लंघन करना प्रारम्भ कर दिया। जो मानक किसान और साहूकार के सम्बन्धों को विनियमित करते थे, साहूकार उन्हें तोड़ रहा था।

(2) साहूकारों द्वारा खातों में धोखाधड़ी-साहूकारों द्वारा किसानों के साथ धोखाधड़ी की जाने लगी। किसानों से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लिए जाते थे या अंगूठा लगवा लिया जाता था, पर किसान को यह पता नहीं चल पाता था कि ये किस पर हस्ताक्षर कर रहे हैं या अंगूठा लगा रहे हैं अतः किसान को ऋणदाता की मनमानी का शिकार होना पड़ता था।

(3) परिसीमन कानून और ऋणदाता की चालाकी=रैयत द्वारा साहूकारों की शिकायतें मिलने पर 1859 में अंग्रेजों ने एक परिसीमन कानून पारित किया, जिसके अनुसार ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र केवल तीन वर्षों के लिए ही मान्य होगा। इसका उद्देश्य व्याज को संचित होने से रोकना था।

(4) किसान की मजबूरी यह जानते हुए कि उनके साथ धोखा या अन्याय हो रहा है फिर भी किसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साहूकारों के चंगुल में फँसने को मजबूर था, क्योंकि किसान को ऋण चाहिये था और वह बिना दस्तावेज भरे मिलता नहीं था। समय के साथ, किसान यह समझने लगे कि उनके जीवन में जो दुःख तकलीफ है, वह सब बंधपत्रों और दस्तावेजों की इस नयी व्यवस्था के कारण ही है। उन्हें उन खण्डों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता जो ऋणदाता बंधपत्रों में लिख देते थे। इस तरह रैयत साहूकारों द्वारा की गई चालबाजियों के कारण उनसे क्रुद्ध थी और अन्ततः उसने 1875 में इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठायी और दक्कन में दंगा शुरू हुआ।

प्रश्न 11.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसके बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। उसी रिपोर्ट का एक भाग पाँचवीं रिपोर्ट कहलाया। यह भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में 1002 पृष्ठ थे तथा इसके परिशिष्ट के रूप में 800 से अधिक पृष्ठ थे। पाँचवीं रिपोर्ट की पृष्ठभूमि पाँचवीं रिपोर्ट के निर्माण की पृष्ठभूमि को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –

1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एकाधिकार का विरोध- जब कम्पनी ने प्लासी के युद्ध (1757 ई.) के बाद बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की, तभी से इंग्लैण्ड में उसके क्रियाकलापों पर बारीकी से नजर रखी जा रही थी। ब्रिटेन में ऐसे बहुत से व्यापारिक समूह थे जो कम्पनी के भारत और चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार का विरोध कर रहे थे। उनकी माँग थी कि उस फरमान को रद्द किया जाए, जिसके अन्तर्गत कम्पनी को एकाधिकार दिया गया था। कई राजनीतिक समूहों का कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का फायदा केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

2. कम्पनी कुशासन पर बहस ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचनाओं पर ब्रिटिश संसद में गरमागरम बहस छिड़ गई और कम्पनी के अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण तथा लोभ- लालच की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार पत्रों में खूब उछाला गया।

3. ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम-ब्रिटेन की संसद ने भारत में कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में कई अधिनियम पारित किए।

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4. समितियों की नियुक्ति-कम्पनी के प्रशासन की जाँच के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई समितियाँ नियुक्त की गई, जो जाँच उपरान्त अपनी रिपोर्ट भेजती थीं ऐसी ही एक प्रवर समिति द्वारा कम्पनी प्रशासन पर तैयार रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में भेजी गई जो पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती है। पाँचवीं रिपोर्ट के गुण-पाँचवीं रिपोर्ट में उपलब्ध साक्ष्य बहुमूल्य हैं। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ग्रामीण बंगाल में क्या हुआ, इसके बारे में हमारी अवधारणा लगभग डेढ़ शताब्दी तक इस पाँचवीं रिपोर्ट के आधार पर ही बनती सुधरती रही।

पाँचवीं रिपोर्ट का दोषपाँचवीं रिपोर्ट में परम्परागत जमींदारी के पतन का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया और जिस पैमाने पर जमींदार लोग अपनी जमीनें खोते जा रहे थे, उसके बारे में भी बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है। जब जमींदारियाँ नीलाम होती थीं तो जमींदार नए-नए हथकण्डे अपनाकर अपनी जमींदारी बचा लेते थे और बहुत कम मामलों में विस्थापित होते थे।

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