Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः
JAC Class 9th Sanskrit भ्रान्तो बालः Textbook Questions and Answers
1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए-)
(क) कः तन्द्रालुः भवति? (आलसी कौन होता है?)
उत्तरम् :
बालः। (बालक।)
(ख) बालक कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्? (बालक ने कहाँ. भ्रमण करते भौरे को देखा?)
उत्तरम् :
पुष्पोद्यानम्। (फुलवाड़ी में।)
(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अभवन्? (कौन मधु संग्रह करने में व्यस्त था?)
उत्तरम् :
मधुकरः (भौंरा)।
(घ) चटकः कया तृणशलाकादिकम् आददाति? (चिड़ा किससे तिनका लेता है?)
उत्तरम् :
चञ्च्वा । (चोंच से।)
(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति? (चिड़ा किसकी डाल पर घोंसला बनाता है?)
उत्तरम् :
वद्रुमस्य। (बड़ के पेड़ पर।)
(च) बालकः कीदशं श्वानं पश्यति? (बालक कैसे कत्ते को देखता है?)
उत्तरम् :
पलायमानम्। (भागते हुए।)
(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यटसि? (कुत्ता कैसे दिन में घूमता है?)
उत्तरम् :
निदाघदिवसे। (ग्रीष्म के दिन में।)
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत्? (बालक कब खेलने के लिए निकल गया?)
उत्तरम् :
बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। (बालक पाठशाला जाने के समय में खेलने के लिए निकल गया।)
(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा अभवन्? (बालक के मित्र किसलिए जल्दी में थे?)
उत्तरम् :
बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः। (बालक के मित्र विद्यालय जाने के लिए जल्दी में थे।)
(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान्? (भौरे ने बालक के बुलावे को किस कारण से नहीं माना?)
उत्तरम् :
मधुकरः मधुसंग्रहव्यग्रः आसीत् अत: स: बालकस्य आह्वानं न अमन्यत। (भौंरा मधुसंग्रह में व्यस्त था इसलिए उसने बालक के बुलावे को नहीं माना।)
(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्? (बालक ने किस प्रकार के चटक (चिड़े) को देखा?)
उत्तरम् :
बालकः चञ्च्वा तृणशलाकादिकमाददानं चटकम् अपश्यत्। (बालक ने चोंच में तिनकों, सींक आदि को ग्रहण करते हुए एक चटक (चिड़े) को देखा।)
(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्? (बालक ने चटक (चिड़े) को खेलने के लिए किस प्रकार का लोभ दिया?)
उत्तरम् :
बालकः चटकाय क्रीडनार्थं ‘स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि,’ इति लोभं दत्तवान् । (बालक ने चटक (चिड़े) के लिए खेलने के लिए ‘तुम्हें स्वादिष्ट भोजन के कौर दूंगा,’ यह लोभ दिया।)
(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्? (दु:खी बालक ने कुत्ते से क्या कहा?)
उत्तरम् :
खिन्नः बालकः श्वानम् अकथयत् – “रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? आश्रयस्वेदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् इति।” (दुःखी बालक ने कुत्ते से कहा-अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? पेड़ की जड़ में शीतल छाया वाला यह आश्रय ले लो।)
(छ) भग्नमनोरथ: बालः किम् अचिन्तयत्? (टूटी इच्छाओं वाले बालक ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
विनितमनोरथः बालः अचिन्तयत्-“कथमस्मिन् जगति प्रत्येकः स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति? अथ स्वोचितमहमपि करोमि।” (टूटी इच्छाओं वाले बालक ने सोचा-“इस संसार में प्रत्येक अपने-अपने कार्य में कैसे संलग्न है? इसके बाद मैं भी अपने लिए उचित कार्य करूँगा।”)
3. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(निम्नलिखित श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए-)
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षा नियोगकरणान मया भ्रष्टव्यमीषदपि।।
उत्तरम् :
हिन्दी भावार्थ-कत्ता बालक से कहता है कि जो गहस्वामी मद्ये पत्र जैसा प्रेम करता है तथा मे है, उसके घर की रक्षा करने के कार्य में मैं थोड़ा भी भ्रष्ट नहीं हो सकता अर्थात मैं अपने स्वामी के घर को छोड़कर तुम्हारे साथ इस पेड़ की छाया में बैठकर नहीं खेल सकता।
4. ‘भ्रान्तो बालः’ इति कथायाः सारांशं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(भ्रान्तो बाल:’ इस कथा का सारांश हिन्दी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए-)
कथा का सारांश – एक बालक का मन पढ़ने में नहीं लगता था, अतः वह विद्यालय जाते समय अपने साथियों की दृष्टि से बचकर किसी बगीचे में प्रवेश कर गया। वहाँ उसने अपने साथियों के विषय में सोचा कि ये तो पुस्तकों के दास अथवा किताबी कीड़े हैं। वहाँ विद्यालय में अध्यापकों का क्रोधित चेहरा देखना पड़ेगा। अतः मैं यहाँ जीव-जन्तुओं को अपना मित्र बनाकर खेलँगा। बगीचे में उसने भौरे से अपने साथ खेलने के लिए कहा तो उसने यह कहकर खेलने से मना कर दिया कि मैं अपने मधु-संग्रह के कार्य में व्यस्त हूँ। फिर उसने घोंसला बनाने के लिए चोंच में तिनका लेकर जाते चटक (चिड़े) से अपने साथ खेलने के लिए कहा, किन्तु उसने भी अपने घोंसला बनाने के कार्य को छोड़कर खेलने से मना कर दिया।
इसके बाद बालक ने तेजी से भागते हुए कुत्ते को अपने साथ खेलने के लिए आमन्त्रित किया, किन्तु कुत्ते ने यह कहकर खेलने से मना कर दिया कि मैं अपने स्वामी के घर की रखवाली में कोई लापरवाही नहीं कर सकता।
इस प्रकार बालक ने जब देखा कि संसार का प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कार्य में संलग्न है, केवल एक मैं ही अपना समय व्यर्थ गँवा रहा हूँ तो उसने सोचा कि मुझे भी आलस्य त्यागकर अपने कार्य में लग जाना चाहिए। यह बात मन में आते ही वह शीघ्र ही विद्यालय पहुँच गया। अभ्यास करते हुए पढ़कर बालक ने विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति प्राप्त की।
5. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (मोटे छपे पदों को आधार बनाकर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि।
प्रश्न: – कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि?
(ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्।
प्रश्न: – चटकः कस्मिन् व्यग्रः आसीत्?
(ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति।
प्रश्न: – कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति?
(घ) स महती वैदुर्षी लब्धवान्।
प्रश्न: – स कां लब्धवान् ?
(ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति।
प्रश्न: – कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति?
6. “एतेभ्य: नमः’ इति उदाहरणमनुसृत्य ‘नमः’ इत्यस्य योगे चतुर्थी विभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
(‘एतेभ्यः नमः’-इस उदाहरण के अनुसार ‘नमः’ के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके पाँच वाक्य बनाइये।)
उत्तरम् :
1. गुरवे नमः
2. विष्णवे नमः
3. रामाय नमः
4. हरये नमः
5. सर्वेभ्य: नमः।
7. (अ) ‘क’ स्तम्भे समस्तपदानि ‘ख’ स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथासमक्षं लिखत-(‘क’ स्तम्भ में । समस्तपद और ‘ख’ स्तम्भ में उनके विग्रह दिये हुए हैं। उन्हें उचित प्रकार से एक-दूसरे के सामने लिखिए-)
‘क’ स्तम्भः |
‘ख’ स्तम्भः |
(क) दृष्टिपथम् |
1. पुष्पाणाम् उद्यानम् |
(ख) पुस्तकदासाः |
2. विद्यायाः व्यसनी |
(ग) विद्याव्यसनी |
3. दृष्टेः पन्थाः |
(घ) पुष्पोद्यानम् |
4. पुस्तकानां दासाः |
उत्तरम् :
‘क’ स्तम्भः |
‘ख’ स्तम्भः |
(क) दृष्टिपथम् |
3. दृष्टेः पन्थाः |
(ख) पुस्तकदासाः |
4. पुस्तकानां दासाः |
(ग) विद्याव्यसनी |
2. विद्यायाः व्यसनी |
(घ) पुष्पोद्यानम् |
1. पुष्पाणाम् उद्यानम् |
(आ) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम्। विशेषणपदं विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत- (नीचे लिखे पदों के जोड़ों में एक विशेष्य पद है और दूसरा विशेषण पद। विशेषण पद और विशेष्य पद को अलग-अलग करके लिखिए-)
विशेषणम् विशेष्यम्
(क) खिन्नः बाल: ……….. ……….
(ख) पलायमानं श्वानम् ………. …………..
(ग) प्रीतः बालकः ……… ……….
(घ) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ………. ……….
(ङ) त्वरमाणाः वयस्याः ………… …………
उत्तरम् :
विशेषणम् विशेष्यम्
(क) खिन्नः बालः
(ख) पलायमानं श्वानम्
(स) पलायमानं श्वानम्
(ग) प्रीतः बालकः
(घ) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि
(ङ) त्वरमाणाः वयस्याः
JAC Class 9th Sanskrit भ्रान्तो बालः Important Questions and Answers
प्रश्न: 1.
बालेन सह किं कर्तुं कोऽपि न उपलभ्यमान आसीत्? (बालक के साथ क्या करने के लिए कोई भी उपलब्ध नहीं था?)
उत्तरम् :
बालेन सह क्रीडाभिः कालं यापयितुं कोऽपि प्राप्तः न आसीत्। (बालक के साथ खेलने में समय व्यतीत करने के लिए कोई भी मिला नहीं था।)
प्रश्न: 2.
मित्राणां दृष्टिपथं परिहरन् बालः किम् अकरोत् ? (मित्रों की दृष्टि से बचते हुए बालक ने क्या किया?)
उत्तरम् :
मित्राणां दृष्टिपथं परिहरन् बालः एकम् उद्यानम् अगच्छत्। (मित्रों की दृष्टि से बचते हुए बालक एक बाग में गया।)
प्रश्न: 3.
बालकस्य मतेन तस्य सहपाठिनः कीदृशाः आसन्? (बालक के मतानुसार उसके सहपाठी किस प्रकार के थे?)
उत्तरम् :
बालकस्य मतेन तस्य सहपाठिनः वराकाः पुस्तकदासाः आसन्। (बालक के मत में उसके सहपाठी बेचारे पुस्तकों के दास थे।)
प्रश्न: 4.
मधुकरः किम् अगायत् ? (भौरे ने क्या गाया?)
उत्तरम् :
करः अगायत-वयं हि मधुसंग्रहव्यग्राः। (भौरे ने गाया-हम सब निश्चय ही मधसंग्रह में व्यस्त हैं।)
प्रश्न: 5.
बालः चटकं किं त्यक्तुं कथयति? (बालक चटक पक्षी से क्या त्यागने के लिए कहता है?)
उत्तरम् :
बालः चटकं शुष्कं तृणं त्यक्तुं कथयति। (बालक चटक पक्षी से सूखे तिनके को त्यागने को कहता है।)
प्रश्नः 6.
बालः परिक्रम्य कम् अपश्यत्? (बालक ने घूमकर किसे देखा?)
उत्तरम् : बालः परिक्रम्य गच्छन्तं श्वानम् अपश्यत्। (बालक ने घूमकर जाते हुए कुत्ते को देखा।)
प्रश्न: 7.
बालः क्रीडासहायकं कं पश्यति? (बालक खेलने में सहायक किसे देखता है?)
उत्तरम् :
बालः क्रीडासहायकं श्वानं पश्यति। (बालक खेलने में सहायक कुत्ते को देखता है।)
प्रश्नः 8.
कोऽपि किं न सहते? (कोई भी क्या नहीं सहता है?)
उत्तरम् :
कोऽपि वृथा कालक्षेपं न सहते। (कोई भी व्यर्थ समय व्यतीत करना नहीं सहता है।)
प्रश्न: 9.
बालः कदा महतीं वैदुषी, प्रथां, सम्पदं च लेभे? (बालक ने कब महान् विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति को प्राप्त किया?)
उत्तरम् :
विद्याव्यसनी भूत्वा बाल: महती वैदुर्षी, प्रथां, सम्पदं च लेभे। (विद्याव्यसनी होकर बालक ने महान् विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति को प्राप्त किया।)
प्रश्न: 10.
भ्रान्त बालेन सह अन्ये वयस्याः कस्मात् क्रीडितुम् उपलभ्यमानाः न आसन्? (भ्रान्त बालक के साथ मित्र किसलिए खेलने के लिए उपलब्ध नहीं थे?).
उत्तरम् :
यतः ते सर्वेऽपि पूर्व दिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालय गणनाय त्वरमाणाः अभवन्। (क्योंकि वे सभी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए तत्पर थे।)
प्रश्न: 11.
तंद्रालुः बालकः किमनुभवन् उद्यानं प्राविशत्? (आलसी बालक क्या अनुभव करता हुआ बाग में प्रविष्ट हुआ?)
उत्तरम् :
लज्जामनुभवन् तंद्रालुः बालः उद्यानं प्राविशत्। (लज्जा अनुभव करता हुआ बालक बाग में प्रविष्ट हो गया।)
प्रश्न: 12.
‘विरमन्तु एते बराक दुस्तकदासाः’ इति केन उक्तम्? (‘इन्हें रहने दो ये तो बेचारे किताबों के गुलाम हैं।’ यह किसने कहा?)
उत्तरम् :
तन्द्रालु बालकेन उक्तम्। (आलसी बालक ने कहा।)
प्रश्न: 13.
निष्कुट वासिनः के सन्ति? (निष्कुटवासी कौन हैं?)
उत्तरम् :
खगाः निष्कुट वासिनः सन्ति। (पक्षी निष्कुट वासी हैं।)
प्रश्न: 14.
तन्द्रालुः बालः कीदृशं चटकम् अपश्यत्? (आलसी बालक ने कैसी चिड़िया को देखा?)
उत्तरम् :
तन्द्रालुः बालक: चञ्चच्चा तृणशलाको दिकम् आददानम् चटकं अपश्यत्। (आलसी बालक ने चोंच में तिनकादि लाते हुए चिड़ा को देखा।)
प्रश्न: 15.
चटकस्य नीडं कुत्र आसीत्? (चिड़ा का घोंसला कहाँ था?)
उत्तरम् :
चटकस्य नीडं वद्रुमस्य शाखायाम् आसीत्। (चिड़े का घोंसला बड़वृक्ष की शाखा पर था।)
रेखांकित पदानि आधुत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित शब्दों को आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)
प्रश्न: 1.
बालः पाठशालागमन बेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्। (बच्चा पाठशाला जाने के समय में खेलने चला गया।)
उत्तरम् :
बालः कदा क्रीडितुम् अगच्छत् ? (बालक कब खेलने चला गया?)
प्रश्न: 2.
न वयस्येषु उपलब्धः आसीत् (मित्रों में कोई उपलब्ध नहीं था?)
उत्तरम् :
केषु न उपलब्धः आसीत् ? (किनमें उपलब्ध नहीं था?)
प्रश्न: 3.
सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरम् आह्वयत्। (उसने बाग में जाते भौरे का आह्वान किया।)
उत्तरम् :
सः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् आह्वयत् ? (उसने कहाँ जाते हुए भौरे को बुलाया?)
प्रश्न: 4.
क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। (क्रुद्ध शिक्षक का मुख नहीं देखना चाहता।)
उत्तरम् :
कस्य मुखं नैव द्रष्टुं इच्छामि? (किसका मुँह नहीं देखना चाहता?)
प्रश्न: 5.
निष्कुटवासिनः मम वयस्याः। (कोटवासी मेरे मित्र है।)
उत्तरम् :
के मम वयस्या:? (मेरे मित्र कौन हैं ?)
प्रश्न: 6.
पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा क्रीडितुम् आह्वयत्। (फुलवाड़ी में जाते भौरे को देखकर खेलने को बुलाया।)
उत्तरम् :
कीदृशं मधुकरं दृष्ट्वा क्रीडितुम् आह्वयत्? (कैसे भौरे को खेलने के लिये बुलाया?)
प्रश्न: 7.
पक्षिणो मनुष्येण नोपगच्छन्ति। (पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते।)
उत्तरम् :
पक्षिणं केषु नोपगच्छन्ति ? (पक्षी कहाँ नहीं जाते?)
प्रश्न: 8.
सः पुत्रप्रीत्या पालयति। (वह पुत्र-प्रेम से पालता है।)
उत्तरम् :
सः कथम् पालयति? (वह कैसे पालता है?)
प्रश्न: 9.
निषिद्धः सः बालो भग्नमनोरथं अभवत्। (रोका हुआ वह बालक निराश हो गया।)
उत्तरम् :
निषिद्ध सः बालः कीदृशोऽभवत्? (अस्वीकृत बालक कैसा हो गया?)
प्रश्न: 10.
सः त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्। (वह शीघ्र पाठशाला को चला गया।)
उत्तरम् :
सः त्वरितं कुत्र अगच्छत् ? (वह शीघ्र कहाँ चला गया?)
कया-क्रम संयोजनम
अधोलिखितवाक्यानि पठित्वा कथाक्रमसंयोजनं कुरुत-(निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर कथाक्रम संयोजन कीजिए-)
- मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि।
- वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा इति।
- अथ स पुष्पोद्याने वजन्तं मधुकरम् अपश्यत्।
- भूयो द्रक्ष्यामि क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखम्।
- कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्।
- अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि।
- बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम।
- तन्द्रालुः बालो एकाकी किमपि उद्यानं प्रविवेश।
उत्तरम् :
- बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम।
- कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्।
- तन्द्रालुर्बालो एकाकी किमपि उद्यानं प्रविवेश।
- अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि।
- भूयो द्रक्ष्यामि क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखम्।
- अथ स पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्।
- वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा इति।
- मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि।
परियोजनाकार्यम्
(क) एकस्मिन् स्फोरकपत्रे (Chart-paper) एकस्य उद्यानस्य चित्रं निर्माय संकलय्य वा पञ्चवाक्येषु तस्य वर्णनं कुरुत।
(एक चार्ट पेपर पर एक बगीचे का चित्र बनाकर अथवा संकलित करके पाँच वाक्यों में उसका वर्णन कीजिए।)
उत्तरम् :
छात्र स्वयं करें।
(ख) ‘परिश्रमस्य महत्त्वम’ इति विषये हिन्दीभाषया आङग्लभाषया वा पञ्चवाक्यानि लिखत।
उत्तरम् :
(‘परिश्रम का महत्त्व’ इस विषय पर हिन्दी भाषा या अंग्रेजी भाषा में पाँच वाक्य लिखो-)
1. इस संसार में सभी परिश्रम का महत्त्व स्वीकार करते हैं।
2. परिश्रमी व्यक्ति अपने परिश्रम से अपने लक्ष्य की पूर्ति कर लेता है।
3. परिश्रम से असम्भव कार्य भी सम्भव बनाये जा सकते हैं।
4. परिश्रम के बिना संसार में सुखमय जीवन असम्भव है।
5. परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
भाषिक विस्तारः
1. यस्य च भावेन भावलक्षणम्-जहाँ एक क्रिया के होने से दूसरी क्रिया के होने का ज्ञान हो तो पहली क्रिया के कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है। इसे ‘सति सप्तमी’ या ‘भावे सप्तमी’ भी कहते हैं।
यथा – उदिते सवितरि कमलं विकसति।
गर्जति मेघे मयूरः अनृत्यत्।
नृत्यति शिवे नृत्यन्ति शिवगणाः।
हठमाचरति बाले भ्रमरः अगायत् ।
उदिते नैषेधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः।
2. अन्य पदार्थ प्रधानो बहुव्रीहिः-जिस समास में पूर्व और उत्तर पदों से भिन्न किसी अन्य पद के अर्थ का प्राधान्य होता है वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
यथा – पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः (विष्णुः)।
नीलकण्ठः – नीलं कण्ठं यस्य सः (शिवः)।
अनुचिन्तितपूर्वदिनपाठाः – अनुचिन्तिताः पूर्वदिनस्य पाठा: यैः ते।
विनितमनोरथ: – विनितः मनोरथः यस्य सः।
दत्तदृष्टि: – दत्ता दृष्टिः येन सः।
भ्रान्तो बालः Summary and Translation in Hindi
पाठ का सारांश – प्रस्तुत पाठ ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से सम्पादित कर ग्रहण किया गया है। इस कथा में एक ऐसे बालक का चित्रण है, जिसका मन अध्ययन की अपेक्षा खेल-कूद में लगा रहता है। वह विद्यालय न जाकर खेलने के उद्देश्य से बगीचे में प्रवेश करता है, लेकिन खेलने के लिए उसे एक साथी की आवश्यकता होती है। अत: वह अपने साथ खेलने के लिए भौरे को बुलाता है, भौंरा कहता है कि मैं फूलों के रस को इकट्ठा कर रहा हूँ, मैं नहीं आ सकता। इस प्रकार बालक पुनः प्रयास करता है और चिड़िया को स्वादिष्ट भोजन देने का वायदा करते हुए खेलने के लिए बुलाता है।
लेकिन वह भी अपने कार्य को महत्त्व देती है। दुःखी बालक कुत्ते को बुलाता है, कुत्ता भी अपने मालिक के घर की निगरानी करने के कार्य को महत्त्व देता है और अपना कार्य करने के लिए तेजी से भाग जाता है। इस प्रकार सबके मना करने पर तथा सारे प्राणियों को अपने काम में लगा देखकर तथा स्वयं को अपना समय व्यर्थ में गँवाते हुए देखकर बालक अत्यन्त दुःखी होता है और स्वयं भी विद्याध्ययन में अपना समय व्यतीत करने का निश्चय करता है। वह अपने विद्यालय वापस चला जाता है, इस प्रकार वह बालक विद्याध्ययन कर महान् विद्वान् बनकर प्रसिद्धि और सम्पत्ति प्राप्त करता है।
[मूलपाठः,शब्दार्थाः,सप्रसंग हिन्दी अनुवादः,सप्रसंग संस्कृत व्यारव्याः अवबोधन कार्यम च]
1. भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्। किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतः ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन्। तन्द्रालुः बाल: लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्।।
सः अचिन्तयत् – “विरमन्तु एते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूयः क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। एते निष्कुटवासिनः प्राणिन एव मम वयस्याः सन्तु इति।
अथ सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारं आह्वयत्। तथापि, सः मधुकरः अस्य बालस्य वान तिरस्कृतवान्। ततो भूयो भूयः हठमाचरति बाले सः मधुकरः अगायत् – “वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा” इति।
शब्दार्थ: – भ्रान्तः = पथभ्रष्टः (भ्रमित), कश्चन = कोऽपि (कोई), बालः = बालकः (बालक), पाठशालागमनवेलायाम् = विद्यालयगमनसमये (विद्यालय जाने के समय), क्रीडितुम् = खेलितुम् (खेलने के लिए), अगच्छत् = गतः (गया), किन्तु = परञ्च (लेकिन), तेन = अमुना (उसके), सह = सार्धं (साथ), केलिभिः = क्रीडाभिः (खेलों द्वारा), कालं क्षेप्तुम् = समयं यापयितुम् (समय बिताने के लिए), कोऽपि = कश्चन अपि (कोई भी), न = मा (नहीं), वयस्येषु = मित्रेषु (मित्रों में), उपलभ्यमानः = प्राप्तमानः (उपलब्ध हुआ), आसीत् = अवर्तत (था), यतः = (क्योंकि), ते = अमी (वे), सर्वेऽपि = समस्ताः अपि (सभी), पूर्वदिनपाठान् = पूर्वदिवसस्य अध्यायान् (पहले दिन के पाठों को),
स्मृत्वा = स्मरणं कृत्वा (स्मरण करके), विद्यालयगमनाय = पाठशालां गन्तुम् (विद्यालय जाने के लिए), त्वरंमाणाः = त्वरां कुर्वन्तः (शीघ्रता कर रहे), अभवन् = आसन् (थे), तन्द्रालुः = अलसः (आलसी), बालः = बालकः (बालक), लज्जया = शर्म से, तेषाम् = अमीषाम् (उनकी), दृष्टिपथम् = दृष्टिम् (निगाह से), अपि = भी, परिहरन् = दूरीकुर्वन् (दूर रहता हुआ, बचता हुआ), एकाकी = एक एव (अकेला ही), किमपि =.कस्मिन् (किसी), उद्यानम् = उपवनम् (बगीचे में), प्राविशत् = प्रवेशम् अकरोत् (प्रवेश कर गया), सः = असौ (वह, उसने), अचिन्तयत् = चिन्तितवान् (सोचा), विरमन्तु = तिष्ठन्तु (रहने दो), एते = इमे (ये), वराकाः = दीनाः, दयापात्राणि (बेचारे, दया के पात्र),
पुस्तकदासाः = पुस्तकानां किंकराः (पुस्तकों के गुलाम/दास.), अहम् = मैं, तु = तो (फिर), आत्मानम् = स्वकीयं (अपना), विनोदयिष्यामि = मनोविनोदं करिष्यामि (मनोरंजन करूँगा), सम्प्रति विद्यालय गत्वा = अधुन पाठशालां प्राप्य, भूयः = पुनः (फिर), क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य = कुपितस्य गुरोः (क्रुद्ध गुरु के), मुखम् = आस्यं (मुख को), द्रष्टुं = दर्शनं (देखना), नैव इच्छामि = नावलोकितुम् इहे (देखना नहीं चाहता), निष्कुटवासिनः = वृक्षकोटरनिवासिनः (वृक्ष के कोटरों में रहने वाले), एव = ही, प्राणिनः = जीवजन्तवः (प्राणी), मम = मे (मेरे),
वयस्याः = मित्राणि (मित्र), सन्तु = भवन्तु (हों), अथ = एतदनन्तरम् (इसके बाद), सः = असौ (वह), पुष्पोद्यानम् = पुष्पोपवनम् (फूलों के बगीचे में), व्रजन्तम् = भ्रमणं कुर्वन्तं (घूमते हुए), मधुकरम् = भ्रमरम् (भौरे को), दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर), तम् = अमुम् (उसे), क्रीडितुम् = केलिनिमित्तम् (खेलने के निमित्त), द्वित्रिवारम् आह्वयत् = द्विः त्तिः वारं आमन्त्रयत् (दो-तीन बार बुलाया/आमन्त्रित किया), तथापि = (फिर भी),
सः = असौ (वह) (उस भौरे ने), मधुकरः = भ्रमरः (भौरे), अस्य = (इस), बालस्य = बालकस्य (बालक के), आह्वान = आमन्त्रणम् (बुलावे को), तिरस्कृतवान् = अमन्यत (नहीं माना) ततोः = तदानीं (तब), भूयो भूयः = पुनः-पुनः (बार बार), हठमाचरति = आग्रहपूर्वकं व्यवहारं कुर्वति सति (हठ करने पर), बाले = बालके (बालक के), सः मधुकरः अगायत् = असौ भ्रमरः अगायत् (उसने गाया), वयम् = हम सब, हि = निश्चयेन (निश्चय ही), मधुसंग्रहव्यग्राः = पुष्परससंकलने तत्पराः (पुष्पों के रस के संग्रह में लगे हए हैं)।
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में एक ऐसे बालक का वर्णन है जो विद्यालय जाने के समय में खेलने के लिए निकल गया। उस (बालक) ने खेलने के लिये भौरे को बुलाया। भौरे ने खेल के बजाय काम को महत्त्वपूर्ण माना। यह यहाँ वर्णन किया गया है।
हिन्दी-अनुवाद – भ्रमित हुआ कोई बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए निकल गया। किन्तु उसके साथ खेल द्वारा समय बिताने के लिए मित्रों में कोई भी उपलब्ध न था; क्योंकि वे सभी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए शीघ्रता कर रहे थे। आलसी बालक लज्जा (शर्म) से उनकी निगाह (दृष्टि) से भी बचता हुआ अकेला ही किसी बगीचे में प्रवेश कर गया। उसने सोचा कि ये बेचारे पुस्तकों के दास बने रहें।
मैं तो अपना मनोरंजन करूँगा। (यदि विद्यालय जाऊँगा तो) निश्चय ही फिर क्रुद्ध गुरु के मुख को देखूगा। वृक्ष की कोटरों में रहने वाले ये प्राणी ही मेरे मित्र होवें। इसके बाद उसने फूलों के बगीचे में घूमते हुए भौरे को देखकर उसे खेलने के लिए आमन्त्रित किया। उस (भौरे) ने उसके दो-तीन (बार के) आमन्त्रण को भी नहीं माना। तब बालक के बार-बार हठ करने पर उस भौरे ने गाया-हम सब निश्चय ही मधुसंग्रह में व्यस्त हैं। संस्कत-व्याख्याः
सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थात् ग्रहीतोऽस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत- प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।)
प्रसंग: – प्रस्तुतगद्यांशे एकस्य एतादृशबालकस्य वर्णनमस्ति यः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। सः (बालकः) भ्रमरं क्रीडनाय आह्वयत्। भ्रमरः क्रीडनस्य अपेक्षा कार्य महत्त्वपूर्णम् अमन्यत । इदमत्र वर्णितम्। (प्रस्तुत गद्यांश में एक ऐसे बालक का वर्णन है जो पाठशाला जाने के समय खेलने निकल गया। वह बालक भौरे को खेलने के लिए बुलाता है। भौरा खेलने की अपेक्षा कार्य को महत्वपूर्ण मानता है।)
व्याख्याः – पथभ्रष्टः कोऽपि बालकः विद्यालयगमनसमये खेलितुं निष्क्रान्तः। परन्तु अमुना सार्धं क्रीडाभिः समयं यापयितुं मित्रेषु कश्चन अपि प्राप्तमान मा अवर्तत; यतः अमी समस्ताः अपि पूर्वदिवसस्य अध्यायान् स्मरणं कृत्वा पाठशाला गन्तुं त्वरां कुर्वन्तः आसन्। अलस: बालकः लज्जया अमीषां दृष्टिम् अपि दूरी कुर्वन् एक एव कस्मिन् उपवने प्रवेशम् अकरोत्। असौ अचिन्तयत् यत् इमे दीनाः पुस्तकानां किंकराः तिष्ठन्तु।
अहं भूयः स्वकीयस्य चित्तविनोदं करिष्यामि। (विद्यालयं चेद् गमिष्यामि तर्हि) ननु पुनः कुपितस्य गुरोः आस्यम् ईक्षिष्ये। वृक्षकोटरनिवासिनः इमे जीवजन्तवः एव मे मित्राणि भवन्तु। तदनन्तरम् असौ पुष्पोपवने भ्रमणं कुर्वन्तं भ्रमरम् अवलोक्य अमुं केलिनिमित्तम् आमन्त्रयत्। असौ (भ्रमरः) द्विः त्रिः अस्य आह्वानमेव मा अंगीकृतवान्। तदानी बालके पुनः पुनः आग्रहपूर्वकं व्यवहारं कुर्वति सति असौ भ्रमरः अगायत्-वयं निश्चयेन पुष्परससंकलने।
(राह से भटका कोई बालक विद्यालय जाते समय खेलने निकल गया परन्तु इसके साथ खेल में समय व्यतीत करने के लिए मित्रों में से कोई नहीं मिला क्योंकि वे सभी पहले दिन के पढ़े हुए को याद कर के पाठशाला जाने के लिए जल्दी कर रहे थे। आलसी बालक शर्म से इनसे निगाह बचाते हुए किसी एक उपवन में प्रवेश कर गया। वह सोचने लगा कि ये गरीब (बेचारे) किताबों के गुलाम रहें। मैं तो अपना मनोविनोद करूँगा। विद्यालय जाऊँगा तो निश्चित नाराज शिक्षक का मुँह देखंगा।
पेड़ के खोखले (कोटर) में निवास करने वाले ये जीव-जन्तु ही मेरे मित्र हों। इसके बाद वह फूलबगिया में भ्रमण करते हुए भौरे को देखकर उसे खेलने के लिए आमन्त्रित किया। उस भौरे ने उसके दो-तीन बार के आह्वान को स्वीकार नहीं किया। तब बालक के आग्रहपूर्वक व्यवहार करने पर वह भौंरा गाने लगा। हम निश्चित ही फूलों का रस संग्रह करने में रत हैं।)
अवबोधन कार्यम्
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) भ्रान्तः बाल: मधुकरं कुत्र अपश्यत्? (भ्रान्त बालक ने भौरे को कहाँ देखा?)
(ख) भ्रान्तः बालः क्रीडितुं कदा अगच्छत् ? (भ्रान्त बालक खेलने कब गया?)
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) निषिद्धेषु बालकेषु भ्रान्तबालः किम् अकथयत्? (बालकों के मना करने पर भ्रान्त बालक ने क्या कहा?)
(ख) मधुकरः भ्रान्तबालाय किम कथयत्? (भौरे ने भ्रान्त बालक से क्या कहा?)
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘भ्रान्त-बालः’ अत्र विशेषण विशेष्य लिखत। (भ्रान्तः बाल:’ यहाँ विशेषण विशेष्य पद लिखिए।)
(ख) ‘मित्रेषु’ इति पदस्य गद्यांशे समानार्थी पदं अन्विष्य। (‘मित्रेषु’ पद का गद्यांश में समानार्थी पद ढूँढ़ो।)
उत्तराणि-
(1) (क) पुष्पोद्याने (फुलवाड़ी में)।
(ख) पाठशालागमनवेलायाम् (स्कूल जाने के समय)।
(2) (क) सः अचिन्तयत्-‘विरमन्तु ऐते वराकाः पुस्तकादासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। (उसने सोचा ना ये गरीब (बिचारे) पुस्तकों के गुलाम रहें, मैं तो अपना मनोविनोद करूँगा।)
(ख) मधुकर: अकथयत्-“वयं तु मधुसंग्रहे व्यग्राः स्मः। (भौरे ने कहा- हम तो शहद संग्रह करने में व्यस्त हैं।)
(3) (क) विशेषणम्-भ्रान्तः, विशेष्यम् च-बालः।
(ख) वयस्येषु (मित्रों में)।
2. तदा स बालः ‘अलं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टि: चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्, अवदत् च-“अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः। एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि” इति। स तु “मया वटदुमस्य शाखायां नीड कार्यम्” इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्।
तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितम् विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्। प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत् खरे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व। अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। कुक्कुरः प्रत्यवदत् –
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि।। इति।
शब्दार्थाः – तदा = तस्मिन् काले, तदानीं (तब), सः = असौ (उस), बालः = बालकः (बालक ने), अलम् = कृतम् [बस (मना करने के अर्थ में], अनेन = एतेन (इससे), मिथ्यागवितेन कीटेन = व्यर्थाहङ्कारयुक्तेन कीटकेन (झूठे गर्वयुक्त कीट से), इति = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), विचिन्त्य = विचार्य (सोचकर), अन्यत्रः = अन्यं स्थानं प्रति (दूसरी ओर), पश्यन् (देखते हए), चञ्च्वा = चञ्चपटेन (चोंच से), तणशलाकादिकम् = नालान् इषिकादीन (तिनकों, सींक आदि को), आददानम् = गृह्णन्तम् (ग्रहण करते हुए को), एकं चटकं = एकं खगम (एकपक्षी को), अपश्यत् = ऐक्षत (देखा),
अवदत् च = अकथयत् (और बोला), अयि = (अरे), चटकपोत! = खग! (पक्षी/चिड़े!), मानुषस्य = मानवस्य (मनुष्य के), मम = मे (मेरे), मित्रम् = वयस्यः (मित्र), भविष्यसि = होगे, बनोगे, एहि = आगच्छ (आओ), क्रीडावः = खेलावः (खेलें), एतत् शुष्कम् = इदं नीरसम् (इस सूखे), तृणम् = नालं (तिनके को), त्यज = उत्सृज (छेड़ो), स्वादूनि = स्वादिष्टानि (स्वादयुक्त), भक्ष्यकवलानि = भक्षणीयग्रासाः (खाने के लिए उपयुक्त कौर),
ते = तुभ्यम् (तुम्हारे लिए), दास्यामि = दूँगा, इति = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), स = असौ (वह), तु = तो, वटदूमशाखायाम् = वटवृक्षस्य शाखायां (बरगद के पेड़ की शाखा पर), नीडः = कुशालयः (घोंसला), कार्यम् = कर्तव्य रचितव्य (बनाना है), इत्युक्त्वा = एवं कथयित्वा (ऐसा कहकर), स्वकर्मव्यग्रोः = स्वकीये कार्ये संलग्नः (अपने काम में व्यस्त), अभवत् = अजायत (हो गया), तदा = तदानी (तब), खिन्नोः = दुःखितः (दुःखी), बालकः = बालः (बालक ने), एते = इमे (ये),
पक्षिणोः = खगाः (पक्षी), मानुषेषु = मानवेषु (मनुष्यों के), नोषगच्छन्ति = न उपगच्छन्ति (पास नहीं जाते हैं), तद् = तो, अन्वेषयामि = अन्वेषणं करोमि (खोजता हूँ), अपरम् = अन्यं (दूसरा), मानुषोचितम् = मानवेभ्यः उचितं (मनुष्यों के लिए उचित), विनोदयितारम् = मनोरञ्जनकारिणम् (मनोरंजन करने वाला), विचिन्त्य = चिन्तविला (सोचकर), पलायमानम् = धावमानं/धावन्तम् (भागते हुए), कमपि = किसी, श्वानम् = कुक्कुरं (कुत्ते को),
अवलोकयत् = अपश्यत् (देखा), प्रीतो = प्रसन्नः (प्रसन्न), बालः = बालकः (बालक ने), तम् = अमुम् (उसको), इत्थम् = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), समबोधयत् = संबोधितम् अकरोत् (सम्बोधित किया), रे = भो (अरे), मनुषाणाम् = मानवानां (मनुष्यों के), मित्र! = वयस्य! (मित्र!), किम् = केन हेतुना (क्यों), पर्यटसि = भ्रमणं करोषि (घूम रहे हो), अस्मिन् = इह (इस), निदाघदिवसे = ग्रीष्मदिवसे (गर्मी के दिन में), इदम् = एतत् (यह), प्रच्छायशीतलम् = शीतलछायायुक्तम् (शीतल छाया वाला),
तरुमूलम् = वृक्षस्य अधः (पेड़ की जड़ में), आश्रयस्व = आश्रयं लभस्व (आश्रय लो), अहमपि = मैं भी, क्रीडासहायम् = क्रीडा सहायं (खेलने में सहायक), त्वामेवानुरूपं = तब योग्यम् (तुम्हारे उपयुक्त/समान), पश्यामीति = ऐसा देखता हूँ, कुक्कुरः = श्वानः (कुत्ता ने), प्रत्यवदत् = प्रत्युत्तरेण अवदत् (उत्तर दिया),यो = जो, माम् = मुझे, पुत्रप्रीत्या = पुत्रवत् प्रेम्णा (पुत्र के समान प्रेम से), पोषयति = पालयति (पालता है), स्वामिनो = प्रभोः (स्वामी के), गृहे = गेहे (घर में), तस्य = अमुष्य (उस), रक्षानियोगकरणान्न = सुरक्षाकार्यवशात् न (रक्षा के कार्य में लगे होने से नहीं), मया = मुझे, भ्रष्टव्यमीषदपि = अल्पमात्रम् अपि पतितव्यम् (थोड़ा-सा भी हटना चाहिए)।
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।
प्रसंग – इस गद्यांश में यह वर्णन है कि खेलने के लिए इच्छुक बालक ने एक चटक (चिड़े) और कुत्ते को बुलाया किन्तु खेलने के लिए उन दोनों ने ही अपने काम को अधिक महत्त्वपूर्ण माना।
हिन्दी-अनुवाद – तब उस बालक ने ‘इस झूठे गर्वयुक्त कीट से बस (इस झूठे गर्वयुक्त कीट को छोड़ो)’, इस प्रकार (सोचकर) दूसरी ओर देखते हुए एक चटक चिड़े को चोंच से तिनकों, सींक आदि को ग्रहण करते हए देखा और बोला-“अरे चटक चिड़े! मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ खेलें। इस सूखे तिनके को छोड़ो मैं तुम्हें स्वादयुक्त खाने के लिए उपयुक्त कौर दूँगा।” वह तो ‘बरगद के पेड़ की शाखा पर घोंसला बनाना है, तो कार्य से जाता हूँ’ इस प्रकार कहकर अपने काम में व्यस्त हो गया।
तब दुःखी बालक ने सोचा-ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते हैं। तब मनुष्य के लिए उचित मनोरंजन करने वाला दूसरा साथी खोजता हूँ। इस प्रकार घूमकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। प्रसन्न बालक ने उसे इस प्रकार सम्बोधित किया- अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? वृक्ष की जड़ में शीतल छाया वाला यह आश्रय ले लो। मैं भी खेलने में सहायक तुम्हारे ही समान किसी को खोज रहा हूँ। कुत्ता ने उत्तर दिया-जो मुझे पुत्र के समान प्यार से पालता है, उस स्वामी के घर में रक्षा करने के कार्य से मुझे थोड़ा-सा भी नहीं हटना चाहिए।
संस्कत-व्यारव्याः
सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थात् गृहीतोऽस्ति। (प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत- प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।)
प्रसंग: – अस्मिन् गद्यांशे वर्णनमस्ति यत् क्रीडनाय इच्छुक: बालकः एकं चटकं कुक्कुरं च क्रीडनाय आह्वयत् परं तौ द्वावपि स्वकर्तव्यम् अधिकमहत्त्वपूर्णम् अमन्यताम्। (इस गद्यांश में वर्णित है कि खेलने के लिए इच्छुक बालक एक गौरैया और मुर्गे से खेलने का आग्रह करता है, परन्तु दोनों अपने कर्त्तव्य को महत्वपूर्ण मानते हैं।)
व्याख्या: – तदानीम् असौ बालकः ‘अलम् एतेन व्यर्थाहङ्कारयुक्तेन कीटेन’ अनेन प्रकारेण अन्यं स्थानं पश्यन् एकं चटकं चञ्चुपुटेन नालान् इषिकादीन् च गृह्णन्तम् अपश्यत् अवदत् च-भो चटक! खग! मे मानवस्य वयस्यः भविष्यति। आगच्छ खेलावः, उत्सृज एतत् नीरसं नालं, स्वादिष्टाः भक्षणीयग्रासाः तुभ्यं दास्यामि। असौ तु चटकः कुशालयः कर्तव्यः वटवृक्षस्य शाखायाम्, अतः गच्छामि कार्येण इति कथयित्वा स्वकीये कार्ये संलग्नः अभवत्। तदानीं दुःखितः बाल: अचिन्तयत् यत् इमे खगाः मानवान् न उपगच्छन्ति अत: अन्वेषणं करोमि अन्यस्य मानवोचितमनोरञ्जनकारिणः, तदा सः भ्रमणं कृत्वा धावमानं कमपि कुक्कुरम् अपश्यत्।
प्रसन्नः असौ बालकः तं कुक्कुरम् अनेन प्रकारेण सम्बोधितवान्-भो मानवानां वयस्य! केन हेतुना भ्रमणं करोषि इह ग्रीष्मदिवसे? वृक्षस्य मूले शीतलछायायुक्तम् एतत् आश्रयं लभस्व। अहमपि खेलने सहायकं त्वामेव योग्यं पश्यामि। श्वानः प्रत्युत्तरेण एवम् अवदत्-यः मां पुत्रवत् प्रेम्णा पालयति, तस्य स्वामिनः गेहे सुरक्षाकार्यात् मया अल्पमात्रमपि न पतितव्यम्। (तब वह बालक ‘इस मिथ्या घमंड करने वाले कीड़े (भौरे) को रहने दो’ इस प्रकार एक अन्य स्थान देखता हुआ एक चटक को तिनका, सींक आदि चोंच में लिए हुए देखा और बोला-अरे चिड़ा, पक्षी, मुझ मानव के मित्र बनोगे। आओ खेलें, छोड़ो यह नीरस तिनका, स्वादिष्ट खाने योग्य तुम्हें दूँगा। वह चिड़ा तो ‘घोंसला बनाने को बड़ के पेड़ की शाखा पर चला गया। ऐसा कहकर अपने कार्य में संलग्न हो गया।
तभी दुःखी बालक ने सोचा कि ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते हैं, अतः किसी अन्य मनोविनोद करने वाले को ढूँढ़ता हूँ। तब उसने घूमकर दौड़ते हुए एक कुत्ते को देखा। प्रसन्न हुआ वह बालक कुत्ते को इस प्रकार सम्बोधित करने लगा-अरे मनुष्यों के मित्र! यहाँ गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? पेड़ की जड़ से शीतल छाया युक्त यह आश्रय पाओ। मैं भी खेलने में तुम्हीं को सहायक देख रहा हूँ। कुत्ता उत्तर में इस प्रकार बोला-“जो मुझको बेटे की तरह प्रेम से पालता है उस स्वामी के घर में सुरक्षा कार्य (रखवाली) से मुझे किंचित भी पतित नहीं होना चाहिए।”)
अवबोधन कार्यम्
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) भ्रान्त बाल: चटकाय कस्य प्रलोभनं ददाति? (भ्रान्त बालक गौरैया को क्या प्रलोभन देता है?)
(ख) भ्रान्त बालकः कीदृशं श्वानम् अपश्यत्? (भ्रान्त बालक ने कैसे कुत्ते को देखा?)
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कुक्कुरः भ्रान्तबालाय किमुदतरत्? (कुत्ते ने भ्रान्त बालक को क्या उत्तर दिया?)
(ख) खिन्नोबालः खगानां विषये किं चिन्तयति? (खिन्न बालक पक्षियों के विषय में क्या सोचता है?)
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रसन्नः’ इति पदस्य विलोमपदं गद्यांशात् चिनुत। (‘प्रसन्नः’ पद का विलोम पद गद्यांश से चुनिए।)
(ख) ‘प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत्’ इति वाक्ये ‘तम्’ इति सर्वनामपदं कस्य संज्ञाशब्दस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
(‘प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत्’ वाक्य में ‘तम्’ सर्वनाम पद किसके लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तराणि :
(1) (क) भक्ष्य कवलानि (खाद्य-कौर)।
(ख) पलायमानम् (भागते हुए)।
(2) (क) अहं तु स्वामिनः गृहे रक्षानियोग कारणात् न गन्तुं शक्नोमि। (मैं तो स्वामी के घर पर रक्षा कार्य के कारण नहीं जा सकता।)
(ख) खिन्नोबाल: खगानां विषये चिन्तयति यत् एते पक्षिण: मानुषेषु नोपगच्छन्ति। (खिन्न बालक पक्षियों के विषय में सोचता है कि ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते।)
(3) (क) ‘खिन्नः’ (दुखी)।
(ख) कुक्कुरम् (कुत्ते को)।
3. सर्वेः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्-‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येक स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यै. मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।
ततः प्रभति स विद्याव्यसनी भत्वा महती वैदषी प्रथां सम्पदं च अलभत।
शब्दार्थाः – सर्वैः = समस्तैः (सबके द्वारा), एवम् = अनेन प्रकारेण (इस प्रकार), निषिद्धः = अस्वीकृतः (मना किया गया), स बालो = असौ बालकः (वह बालक), भग्नमनोरथः सन् = खण्डितकामः भूत्वा (टूटी इच्छाओं वाला होकर), कथमस्मिन् = केन प्रकारेण एतस्मिन् (किस प्रकार इस), जगति = संसारे (संसार में), प्रत्येकम् = प्रत्येक, स्व-स्वकार्ये = स्वकीये कार्ये (अपने कार्य में), निमग्नो भवति = संलग्नः वर्तते (लगा हुआ है/संलग्न है), न = मा (नहीं), कोऽपि = कश्चन अपि (कोई भी), मामिव = मेरे जैसा, वृथा = व्यर्थम् (बेकार, व्यर्थ),
कालक्षेपम् = समयस्य यापनम् (समय का बिताना), सहते = सहनं करोति (सहन करता है), नमः = नमस्कारः (नमस्कार है), एतेभ्यः = एभ्यः (इन सबके लिए), यैः = (जिन्होंने), मे = मम (मेरी), तन्द्रालुतायाम् = आलस्ये (आलस्यता में), कुत्सा = घृणा (अरुचि), समापादिता = उत्पन्ना (उत्पन्न कर दी है), अथ = एतदनन्तरं (इसके पश्चात्), स्वोचितम् अहमपि = स्वकीयस्य कृते उचितम् अहमपि (अपने लिए उचित कार्य को मैं भी),
करोमि = करता हूँ, करूँगा, इति विचार्य = एवं विचारं कृत्वा (इस प्रकार विचार करके), त्वरितम् = शीघ्रम् (शीघ्र), पाठशालाम् = विद्यालयम् (विद्यालय को), अगच्छत् = प्राप्तः (पहुँचा), ततः प्रभृति = तस्मात् समयात् (तब से लेकर), स = असौ (उसने), विद्याव्यसनी = अध्ययनरतः (विद्या में रत रहने वाला), भूत्वा = होकर, महतीं = महान्, वैदुषीम् = विद्वत्तां (विद्वत्ता को), प्रथाम् = प्रसिद्धिं (प्रसिद्धि को), सम्पदम् = सम्पत्तिं (सम्पत्ति को), च = और, अलभत = प्राप्तम् अकरोत् (प्राप्त किया)।
हिन्दी अनुवादः
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बाल.’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।
प्रसंग – यह गद्यांश वर्णन करता है कि बालक जीवन में कार्य का महत्त्व जानकर विद्या अध्ययन के कार्य में व्यस्त हो गया और उसने महान् प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।
हिन्दी-अनुवाद – सबके द्वारा इस प्रकार मना किया गया वह बालक टूटी इच्छाओं वाला होकर ‘कैसे इस संसार में प्रत्येक (प्राणी) अपने-अपने काम में लगा हुआ है। मेरे समान कोई भी अपने समय को व्यर्थ व्यतीत करना सहन नहीं . करता। इन सबको नमस्कार है, जिन्होंने आलस्यता में मेरी घृणा उत्पन्न कर दी है। इसके पश्चात् मैं भी अपने लिए उचित कार्य करूँगा। इस प्रकार विचार कर (वह) शीघ्र पाठशाला पहुँचा। तब से लेकर उसने विद्या अध्ययन में रत रहने वाला होकर महान् विद्वत्ता, प्रसिद्धि और सम्पत्ति को प्राप्त किया। संस्कत-व्यारव्याः
सन्दर्भ: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुष्याः’ ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। पाठोऽयं ‘संस्कृतप्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थात् गृहीतोऽस्ति। (प्रस्तुत पाठ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘भ्रान्तो बालः’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘संस्कृत प्रौढ़पाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।)
प्रसंग: – गद्यांशोऽयं वर्णयति यत् बालकः जीवने महत्त्वं ज्ञात्वा अध्ययनरतः अभूत् स च महती प्रसिद्धि प्राप्नोत्। (यह गद्यांश वर्णन करता है कि बालक जीवन में कर्म का महत्त्व जानकर अध्ययनरत हो गया तथा महती प्रसिद्धि को प्राप्त किया।)
व्याख्या: – समस्तैः अनेन प्रकारेण अस्वीकृतः स बालकः खण्डितकामः भूत्वा ‘केन प्रकारेण एतस्मिन् संसारे प्रत्येकः स्वकीये कार्ये संलग्नः वर्तते। न कश्चनपि अहमिव व्यर्थं समयस्य यापनं सहते। एभ्यः नमस्कारः यैः मम आलस्ये घृणा उत्पन्ना। एतदनन्तरम् अहमपि स्वकीस्य कृते उचितं करिष्यामि।’ एवं विचारं कृत्वा स शीघ्रमेव विद्यालयं प्राप्तः। तस्मात् समयात् प्रभृतिः असौ अध्ययनरतः भूत्वा महती विद्वत्ता, प्रसिद्धिं, सम्पत्तिं च प्राप्नोत्।
(सभी के द्वारा इस प्रकार अस्वीकार किया हुआ वह बालक टूटी कामनाओं वाला (निराश हुआ)-“किस प्रकार इस संसार में प्रत्येक (प्राणी) अपने-अपने कार्य में लगा हुआ है। कोई भी मेरी तरह व्यर्थ समय बरबाद करने को सहन नहीं करता। इनको प्रणाम, जिन्होंने मेरे आलस्य में घृणा की। इसके बाद मैं भी अपने लिए उचित करूँगा।” इस प्रकार विचार कर वह शीघ्र ही विद्यालय पहुँचा। इसलिए समय से पहले ही उसने अध्ययन में रत होकर अत्यधिक विद्वत्ता, प्रसिद्धि और समृद्धि को प्राप्त किया।)
अवबोधन कार्यम्
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत – (एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) सर्वैः निषिद्धः बालः कीदृशोऽभवत् ? (सबके द्वारा मना किया हुआ बालक कैसा हो गया?)
(ख) अन्ते विचार्य बालः कुत्र गतः? (अन्त में विचार कर बालक कहाँ गया?)
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) सर्वैः निषिद्धः बालः किम् अचिन्तयत्? (सबके द्वारा मना किया गया बालक क्या सोचने लगा?)
(ख) सर्वेषां शिक्षा श्रुत्वा बालकः कीदृशोऽभवत्? (सबकी सीख पाकर बालक कैसा हो गया?)
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत-(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)
(क) ‘प्रत्येकम्’ पदस्य समास विग्रहं कुरुत। (प्रत्येकम् पद का समास-विग्रह कीजिए।)
(ख) ‘बालः भग्नमनोरथः’ इत्यनयो पदयोः विशेषण पदं लिखत। (‘बाल: भग्नमनोरथः’ इनमें विशेषण पद लिखिये।)
उत्तराणि-
(1) (क) भग्नमनोरथः (जिसका मनोरथ टूट गया हो)।
(ख) पाठशालाम् (विद्यालय को)।
(2) (क) सोऽचिन्तयत्-“कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथायाकालक्षेपं सहते। (उसने सोचा-‘क्या इस संसार में सभी अपने-अपने कार्य में डूबे हुए (व्यस्त) हैं, मेरी तरह कोई व्यर्थ समय व्यतीत नहीं करता है?)
(ख) सर्वेषां शिक्षा श्रुत्वा सः विद्याव्यसनी भूत्वा महती वैदुर्षी प्रथां सम्पदं च अलभत। (सभी की सीख सुन कर उसने विद्यार्थी होकर महान विद्वत्ता प्राप्त कर सम्पत्ति प्राप्त की।)
(3) (क) एकम् एकम् (अव्ययीभाव)।
(ख) भग्नमनोरथः (निराश हुआ)।