JAC Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

Jharkhand Board JAC Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

Jharkhand Board Class 10 Science जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो सम्बन्धित है-
(a) पोषण
(c) उत्सर्जन
(b) श्वसन
(d) परिवहन
उत्तर:
(a) उत्सर्जन।

प्रश्न 2.
पादप में जाइलम उत्तरदायी है-
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन
उत्तर:
(a) जल का वहन।

प्रश्न 3.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है-
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है-
(a) कोशिकाद्रव्य
(b) माइटोकॉण्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केन्द्रक
उत्तर:
(a) माइटोकॉण्ड्रिया।

प्रश्न 5.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर:

  1. वसा का पाचन छोटी आँत में होता है।
  2. क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में होता है, जिससे उस पर एंजाइम का कार्य करना मुश्किल हो जाता है।
  3. लीवर द्वारा स्रावित पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता है, जिससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। यह इमल्सीकृत क्रिया कहलाती है।
  4. पित्त रस अम्लीय माध्यम को क्षारीय बनाता है, ताकि अग्न्याशय से स्रावित लाइपेज एंजाइम क्रियाशील हो सके।
  5. लाइपेज एंजाइम वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है।
  6. पाचित वसा अंत में आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है।

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प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर:

  1. लार में लार (सेलाइवरी) एमायलेज़ एंज़ाइम होता है जो स्टार्च को शर्करा जैसे माल्टोज में परिवर्तित कर देता है।
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  2. लार भोजन को नम करती है जो भोजन के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में चबाने तथा तोड़ने में मदद करती है, जिससे कि सेलाइवरी एमायलेज़ स्टार्च को प्रभावशाली तरीके से पाचित कर सके।

प्रश्न 7.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक शर्तें हैं-

  • जैव कोशिकाओं में क्लोरोफिल की उपस्थिति।
  • पादप की कोशिकाओं या हरे हिस्सों में पानी की आपूर्ति का प्रबन्ध या तो जड़ों के द्वारा या आसपास के वातावरण के द्वारा।
  • पर्याप्त सूर्य प्रकाश उपलब्ध हो, क्योंकि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश ऊर्जा आवश्यक है।
  • पर्याप्त CO2, जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान शर्करा के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण अवयव है।
  • स्वपोषी पोषण के सह उत्पाद हैं- स्टार्च (शर्करा), जल तथा O2

प्रश्न 8.
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर हैं? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर:
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में प्रमुख निम्नलिखित अन्तर हैं-

वायवीय श्वसन अवायवीय श्वसन
1. वायवीय श्वसन, ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। 1. यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
2. ग्लूकोज़ का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। 2. ग्लूकोज़ का अपूर्ण विखण्डन होता है।
3. अन्तिम उत्पाद है – CO2, जल तथा ऊर्जा।
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3. अन्तिम उत्पाद हैं- इथाइल ऐल्कोहॉल (या लैक्टिक अम्ल), CO2 तथा थोड़ी-सी ऊर्जा।
4. बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, एक ग्लूकोज़ अणु 38 ATP अणु। 4. कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, एक ग्लूकोज़ अणु से 2ATP अणु।
5. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण (ग्लाइकोलिसिस) कोशिकाद्रव्य में होता है जबकि अगला चरण माइटोकॉण्ड्रिया में होता है। 5. पूरा अवायवीय श्वसन कोशिकाद्रव्य में होता है।

जन्तु जिनमें अवायवीय श्वसन होता है- यीस्ट तथा परजीवी, जैसे टेपवर्म (फीताकृमि), एसकेरिस (गोलकृमि) आदि।

प्रश्न 9.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर:

  • कूपिका की भित्ति पतली होती है तथा रुधिर वाहिकाओं के जाल से ढकी हुई है, जिससे गैसों का आदान-प्रदान, रुधिर तथा कूपिका के अन्दर भरी हवा के बीच अधिकाधिक हो सके।
  • कूपिका की गुब्बारे के समान संरचना है, जो गैसों के आदान-प्रदान के लिए सतही क्षेत्र बढ़ा देती है।

प्रश्न 10.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
रुधिर की औसत हीमोग्लोबिन मात्रा किसी भी लिंग में 14.5 g प्रति 100 mL रुधिर है। यदि हीमोग्लोबिन की मात्रा रुधिर में कम होती है, तो इसकी O2 की वहन क्षमता भी घट जाती है। अतः वह मानव O2 की कमी के लक्षण दर्शाता है, जैसे साँस फूलना जो कि अक्सर लोहे की कमी से हुए एनीमिया का पहला लक्षण है।

प्रश्न 11.
मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मनुष्य के परिसंचरण तंत्र को दोहरा परिसंचरण इसलिए कहते हैं, क्योंकि प्रत्येक चक्र में रुधिर दो बार हृदय में जाता है। हृदय का दायाँ और बायाँ बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकता है। चूँकि हमारे शरीर में उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं, जिसके लिए उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन जरूरी होता है। अतः शरीर का तापक्रम बनाए रखने तथा निरन्तर ऊर्जा की पूर्ति के लिए यह परिसंचरण लाभदायक होता है।

प्रश्न 12.
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में निम्नलिखित अन्तर हैं।

जाइलम फ्लोएम
1. जाइलम जड़ से पत्तियों तथा अन्य भागों में जल तथा घुले लवण परिवहित करते हैं। 1. फ्लोएम, भोजन पदार्थों को घुली अवस्था में पत्तियों से पादप के दूसरे हिस्सों तक परिवहित करता है।
2. जाइलम में पदार्थों का परिवहन वाहिकाओं तथा वाहिनियों द्वारा होता है, जो मृत ऊतक हैं। 2. फ्लोएम में पदार्थों का परिवहन चालनी ट्यूबों द्वारा सहचर कोशिकाओं की मदद से होता है, जो जैव कोशिकाएँ हैं।
3. वाष्पोत्सर्जन पुल के कारण ऊपर की ओर जल तथा घुले लवणों का चढ़ना सम्भव हो पाता है। यह पत्ती की कोशिकाओं से जल अणुओं के वाष्पीकरण से उत्पन्न खिंचाव के कारण होता है। 3. स्थानान्तरण में, पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ATP ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए होता है। यह् परासरण दाब बढ़ा देता है जो फ्लोएम से पदार्थों को ऊतकों की ओर भेजता है, जिनमें दाब कम होता है।
4. जल का परिवहन सरल भौतिक गति के अन्तर्गत होता है। ऊर्जा खर्च नहीं होती है। अतः ATP की आवश्यकता नहीं है। 4. फ्लोएम में स्थानान्तरण एक सक्रिय क्रिया है तथा इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा ATP से प्राप्त हाती है।

प्रश्न 13.
फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर:
फुफ्फूस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु की रचना तथा क्रियार्विधि की तुलना निम्न प्रश्न से की जा सकती है-

कूपिका वृक्काणु
1. पतली भित्ति, गुब्बारे के समान संरचना। सतह महीन तथा नाजुक। 1. पतली भित्ति, कप की आकृति की संरचना, जो पतली भित्ति वाले ट्युब्यूल से जुड़ी है।
2. गैसों के आदान-प्रदान के लिए रुधिर केशिकाओं का लम्बा-चौड़ा जाल। 2. बोमेन संपुट में रुधिर केशिकाओं का गुच्छा होता है, जिसे केशिका गुच्छ कहते हैं। इसका काम छानना है। वृक्काणु के ट्युब्यूलर हिस्सों के ऊपर रुधिर वाहिकाओं का एक जाल होता है, जो लाभप्रद पदार्थों तथा जल का पुनः अवशोषण करता है।
3. कूपिकाएँ सतही क्षेत्र बढ़ा देती हैं, जिससे CO2 का रुधिर से वायु में तथा O2 का वायु से रुधिर में विसरण हो सके। 3. वृक्काणु भी सतही क्षेत्र बढ़ाता है, रूधिर को छानने के लिए तथा निस्यंद से लाभप्रद पदार्थ तथा जल के पुनः अवशोषण के लिए। अन्त में मूत्र बचेगा।
4. कूपिकाएँ केवल फेफड़ों में गैसों के आदान-प्रदान के लिए सतही क्षेत्र बढ़ाती हैं। 4. वृक्काणु के नलिकाकार हिस्से मृत्र को संग्राहक वाहिनी तक ले जाती है।
5. कूपिकाएँ बहुत छोटी होती हैं और प्रत्येक फेफड़े में एक बहुत बड़ी संख्या में पाई जाती हैं। 5. वृक्काणु, जो छानने की आधार इकाई है, एक बड़ी संख्या में प्रत्येक गुर्द् में होते हैं।

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पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-105)

प्रश्न 1.
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि बहुकोशिकीय जीवों में समस्त कोशिकाएँ वातावरण से सीधे सम्पर्क में नहीं होती हैं अतः सरल विसरण समस्त कोशिकाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है।

प्रश्न 2.
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
सजीवों को अपनी संरचनाओं की मरम्मत एवं रखरखाव करना आवश्यक है। ये समस्त संरचनाएँ अणुओं से मिलकर बनी हैं। इसलिए हमें हर समय, अणुओं को गतिशील रखने की क्षमता होनी चाहिए। अतः अदृश्य अणुगति, जीव के जीवित होने का प्रमाण है।

प्रश्न 3.
किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:

  • भोजन- ऊर्जा एवं पदार्थों के स्रोत के रूप में।
  • ऑक्सीजन- भोजन पदार्थों का विखण्डन करके ऊर्जा प्राप्त करने के लिए।
  • जल भोजन के सही पाचन के लिए तथा शरीर के अन्दर अन्य जैविक प्रक्रियाओं के लिए।
  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)।

प्रश्न 4.
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर:
अनेकों जैव प्रक्रम हैं जो जीवन के अनुरक्षण के लिए आवश्यक हैं, जैसे-

  • पोषण
  • श्वसन
  • उत्सर्जन
  • वहन आदि।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-111)

प्रश्न 1.
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में निम्नलिखित अन्तर हैं –

स्वयंपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition) विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Nutrition)
1. यह पोषण हरे पौधों में पाया जाता है, जो भोजन के निर्माण के लिए अकार्बनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं। इसलिए हरे पौधों को स्वयंपोषी जीव कहते हैं। 1. इसमें जन्तुओं को अपने कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकता के लिए पौधों तथा अन्य जीवों पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण-शाकाहारी, मांसाहारी, मृतजीवी आदि ।
2. इस पोषण में CO2 जल, क्लोरोफिल तथा सूर्य के प्रकाश द्वारा कार्बनिक पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषपा कहते हैं। 2. विषमपोषी पोषण में यह प्रक्रिया नहीं होती है।
3. यह पोषण हरे पौधों तथा साइनोबैक्टीरिया (नीले-हरे शैवाल) में होता है। 3. यह पोषण प्रायः सभी जन्तुओं, मानव, परजीवी, कवक आदि में होते हैं।

प्रश्न 2.
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
उत्तर:

  • कार्बन डाइऑक्साइड – पादप वातावरण से CO2 रंध्रों द्वारा प्राप्त करते हैं।
  • जल- पादप, जड़ों द्वारा जल का अवशोषण मृदा में से करते हैं तथा पत्तियों तक इसका परिवहन करते हैं।
  • क्लोरोफिल – हरे पत्तों में क्लोरोप्लास्ट होता है, जिसमें क्लोरोफिल मौजूद होते हैं।
  • सूर्य का प्रकाश सूर्य से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर:
आमाशय में अम्ल माध्यम को अम्लीय बनाता है जो पेप्सिन ( Pepsin) एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है।

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प्रश्न 4.
पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?
उत्तर:
पाचक एंजाइम प्रोटीन को अमीनो अम्ल में, कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में तथा वसा को वसीय अम्लों व ग्लिसरॉल में बदल देते हैं।

प्रश्न 5.
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर:
पचे हुए भोजन का अवशोषण क्षुद्रांत्र में होता है।
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क्षुद्रांत्र की संरचना इस प्रकार से है कि कुल सतही क्षेत्रफल अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे अवशोषण का क्षेत्र भी बढ़ जाता है। अतः पाचित भोजन अधिक मात्रा में अवशोषित होकर रक्त में पहुँचता है और फिर इसका वहन सारे शरीर में होता है। क्षुद्रांत्र की अंदरूनी भित्ति में बहुत बड़ी संख्या में अंगुलियाँ समान दीर्घरोम होती हैं। ये दीर्घरोम भोजन के अवशोषण के लिए एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करती हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 116)

प्रश्न 1.
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
जो जीव पानी में रहता है, वह अपने चारों ओर पानी में घुली ऑक्सीजन का प्रयोग करता है। चूँकि पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, अतः जलीय जीव में श्वसन दर अधिक होती है। थलीय जीव, पर्याप्त ऑक्सीजन वाले वातावरण से श्वसन अंगों द्वारा ऑक्सीजन लेते हैं। अतः जलीय जीवों की तुलना में थलीय जीवों की श्वसन दर काफी कम होती है।

प्रश्न 2.
ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
उत्तर:
ग्लूकोज के ऑक्सीजन से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ निम्नलिखित प्रकार हैं-
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प्रश्न 3.
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर:
ऑक्सीजन का परिवहन – मानव शरीर के फुफ्फुस कूपिकाओं की रुधिर वाहिकाओं में RBC होते हैं, जिसमें मौजूद हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयुक्त होकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है तथा सभी ऊतकों एवं अंगों तक पहुँच जाता है।

कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) का परिवहन – ऑक्सीजन की अपेक्षा CO2 जल में अधिक विलेय है, इसलिए ऊतकों से फुफ्फुस तक परिवहन हमारे रुधिर (प्लाज्मा) में विलेय अवस्था में होता है।

प्रश्न 4.
गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
उत्तर:
श्वास नली फुफ्फुस में कई छोटी-छोटी श्वसनिकाओं में विभाजित होती ये छोटी श्वसनिकाएँ बहुत छोटे-छोटे थैली जैसी रचना कूपिकाओं में खुलती हैं। कूपिकाओं की भित्ति बहुत पतली होती है जो कि रुधिर केशिकाओं से घिरी होती है। दोनों फुफ्फुस में लगभग 30 करोड़ कूपिकाएँ होती हैं जो कि लगभग 100 वर्ग मीटर सतह बनाते हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-122)

प्रश्न 1.
मानव में वहन तंत्र के घटक कौन-से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
मानव में वहन तंत्र के घटक हैं-हदय, रुधिर वाहिकाएँ और रुधिर। उनके कार्य निम्न प्रकार हैं-
(i) हददय-यह एक पंप की तरह कार्य करता है।

(ii) रुधिर वाहिकाएँ :

  • धमनियों से शरीर के सभी अभी तक
  • शिराएं विभिन्न तक वापस डीऑक्सीजनेटेड विभाजित हो जाती है, जिसे कोशिकाएँ कहते है सर एवं टीचर के लिए लाते हैं।
  • केशिकाएँ-धमनी छोटी-छोटी वाहिकाओं में विभाजित हो जाती हैं, जिसे केशिकाएँ कहते हैं। रुधिर एवं आसपास की केशिकाओं के मध्य पदार्थों का विनिमय होता है।

(iii) रुधिर या रक्त-यह परिवहन का माध्यम है जो निम्नलिखित से बने हैं-

  • प्लाज्मा-भोजन के अणुओं, CO2 नाइट्रोजनी वर्ज्य, लवण, हार्मोन, प्रोटीन आदि का विलीन रूप में वहन करता है।
  • RBC-इसमें हीमोग्लोबिन होता है, जो ऑक्सीजन को ले जाती है।
  • WBC-संक्रमण से लड़ने में सहायता करता है। यह शरीर में आए रोगाणुओं को मारकर शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है।
  • प्लेटलेट्स-रक्तस्त्राव के स्थान पर रुधिर का थक्का बनाकर मार्ग अवरुद्ध कर देती है।

प्रश्न 2.
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीज तथा विनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
हृदय का दावा विक्सीजन चिर को मिलने से रोकता है शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है, क्योंकि पक्षी और स्तनधारी जंतुओं को अपने शरीर का उपक्रम बनाए रखने के लिए निरन्तर उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए यह बहुभदायक होता है।

प्रश्न 3.
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
उत्तर:
उच्च संगठित पादप में निम्नलिखित वहन तंत्र होते हैं-
(i) जाइलम ऊतक-जाइलम ऊतक पादप के जड़ से खर्रिज लवण तथा जल इसके सभी अंगों तक पहुँचाता है। जाइलम ऊतक में जड़ों, तनों और पत्तियों की त्राहिनिकाएँ तथा वाहिकाएँ आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक जाल बनाती हैं, जो पादप के सभी भागों से सम्बद्ध होता है।

(ii) फ्लोएम ऊतक भोजन तथा अन्य पदार्थों का संवहन पत्तियों से अन्य सभी अंगों तक फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है।

प्रश्न 4.
पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
उत्तर:
जल तथा लवण, मृदा से पत्तियों तक जाइलम कोशिकाओं द्वारा परिवहित होते हैं। जड़, तने तथा पनियों कोशिकाएँ परस्पर जुड़कर संयोजी मार्ग बनाते हैं। जड़ों की कोशिकाएँ मृदा से लवण लेती हैं। ये मृदा तथा जड़ के लवणों की सान्द्रता में फर्क उत्पन्न कर देता की जाइलम है। इसलिए जल की निरन्तर गति जाइलम में होती रहती है। एक परासरण दबाव उत्पन्न होता और जल व लवण एक कोशिका से दूसरी कोशिका में परासरण के कारण परिवहित होते रहते हैं। वाष्पोत्सर्जन के कारण जल की निरन्तर हानि होती रहती है तथा चूषण बल उत्पन्न होता है जिससे जल तथा लवणों की निरन्तर गति होती रहती है। और जल तथा लवणों का परिवहन होता रहता है।
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प्रश्न 5.
पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?
उत्तर:
पादपों में निर्मित भोजन, फ्लोएम द्वारा भण्डारण अंगों जैसे जड़, फल, बीज तथा विकासशील हिस्सों में परिवहित होता है। इस क्रिया को स्थानान्तरण कहते हैं। यह कार्य चलनी कोशिकाओं तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होता है। भोजन कणों का परिवहन ऊपर तथा नीचे स्थानांतरण की क्रिया एक सक्रिय क्रिया है जिसमें ऊर्जा का प्रयोग होता है।

पदार्थों का स्थानांतरण पत्ती की कोशिकाओं या भण्डारण के स्थान से फ्लोएम ऊतक में होता है। इसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो ए. टी. पी. (ATP ) अणु से प्राप्त होती है। यह ऊर्जा परासरण दाब बढ़ाता है, परिणामस्वरूप जल बाहर से फ्लोएम के अन्दर गति करता है। यह क्रिया भोजन का परिवहन पादपों के समस्त हिस्सों में कायम रखती है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-124)

प्रश्न 1.
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृक्काणु के ऊपरी सिरे पर कप के आकार की रचना होती है जिसे बोमन संपुट कहते हैं। बोमन संपुट का निचला सिरा नली के आकार का होता है जो मूत्र संग्राहक नलिका में खुलता है। बोमन संपुट में बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर केशिकाओं का गुच्छा होता है। प्रारम्भिक निस्यंद में कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थों का चयनित पुनरावशोषण हो जाता है।
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प्रश्न 2.
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं।
उत्तर:
उत्सर्जक पदार्थों से मुक्ति पाने के लिए पादप निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग करते हैं-

  • अनेकों उत्सर्जक उत्पाद कोशिकाओं के धानियों में भण्डारित रहते हैं। पादप कोशिकाओं में तुलनात्मक रूप से बड़ी धानियाँ होती हैं।
  • कुछ उत्सर्जक उत्पाद पत्तियों में भण्डारित रहते हैं। पत्तियों के गिरने के साथ ये हट जाते हैं।
  • कुछ उत्सर्जक उत्पाद, जैसे रेज़िन या गम, विशेष रूप से निष्क्रिय पुराने जाइलम में भण्डारित रहते हैं।
  • कुछ उत्सर्जक उत्पाद जैसे टेनिन, रेज़िन, गम छल में भण्डारित रहते हैं। छाल के उतरने के साथ हट जाते हैं।
  • पादप कुछ उत्सर्जक पदार्थों का उत्सर्जन जड़ों के द्वारा मृदा में भी करते हैं।

प्रश्न 3.
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मूत्र की मात्रा पानी के पुनः अवशोषण पर प्रमुख रूप से निर्भर करती है। वृक्काणु नलिका द्वारा पानी की मात्रा का पुनः अवशोषण निम्नलिखित पर निर्भर करता है-

  • शरीर में अतिरिक्त पानी की कितनी मात्रा है जिसको निकालना है। जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त जल है, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है। जब शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम है, तब सांद्र मूत्र की थोड़ी-सी मात्रा उत्सर्जित होती है।
  • कितने घुलनशील उत्सर्जक, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक जैसे यूरिया तथा यूरिक अम्ल तथा लवण आदि का शरीर से उत्सर्जन होता है।

जब शरीर में घुलनशील उत्सर्जक की अधिक मात्रा हो, तब उनके उत्सर्जन के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। अतः मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।

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क्रिया-कलाप – 6.1

  • गमले में लगा एक शबलित पत्ती वाला पौधा लीजिए (उदाहरण के लिए मनीप्लांट या क्रोटन का पौधा)।
  • पौधे को तीन दिन अँधेरे कमरे में रखिए ताकि उसका सम्पूर्ण मंड प्रयुक्त हो जाए।
  • अब पौधे को लगभग छह घण्टे के लिए सूर्य के प्रकाश में रखिए।
  • पौधे से एक पत्ती तोड़ लीजिए। इसमें हरे भाग को अंकित करिए तथा उन्हें एक कागज पर ट्रेस कर लीजिए।
  • कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को उबलते पानी में डाल दीजिए।
  • इसके बाद इसे ऐल्कोहॉल से भरे बीकर में डुबा दीजिए।
  • इस बीकर को सावधानी से जल ऊष्मक में रखकर तब तक गर्म करिए जब तक ऐल्कोहॉल उबलने न लगे।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पत्ती के रंग का क्या होता है? विलयन का रंग कैसा जाता है?
उत्तर:
पत्ती का रंग उड़ जाता है तथा यह रंगरहित हो जाती है, क्योंकि क्लोरोफिल ऐल्कोहॉल में घुल जाता है। घोल का रंग हरा हो जाता है।

  • लगभग समान आकार के गमल मे लग दा पाध लीजिए।
  • तीन दिन तक उन्हें अँधेरे कमरे में रखिए।
  • अब प्रत्येक पौधे को अलग-अलग काँच-पट्टिका पर रखिए। एक पौधे के पास वाच ग्लास में पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड रखिए। पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए किया जाता है।
  • चित्र के अनुसार दोनों पौधों को अलग-अलग बेलजार से ढक दीजिए।
  • जार के तले को सील करने के लिए काँच-पट्टिका पर वैसलीन लगा देते हैं इससे प्रयोग वायुरोधी हो जाता है।
  • लगभग दो घंटों के लिए पौधों को सूर्य के प्रकाश में रस्विए।
  • प्रत्येक पौधे से एक पत्ती तोड़िए तथा उपर्युक्त क्रिया-कलाप की तरह उसमें मंड की उपस्थिति की जाँच कीजिए।
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  • अब कुछ मिनट लिए इस पत्ती को आयोडीन के तन विलयन डाल दीजिए।
  • पत्ती को बाहर निकालकर उसके आयोडीन को धो डालिए।
  • पत्ती के रंग का अवलोकन कीजिए और प्रारम्भ में पत्ती का जो रंग ट्रेस किया था उससे इसकी तुलना कीजिए।

क्रिया-कलाप – 6.2

प्रश्न 2.
पत्ती के विभिन्न भागों में मंड की उपस्थिति के बारे में आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
उत्तर:
पत्ती के वे क्षेत्र जो गहरे नीले-काले आयोडीन घोल के कारण हो गए हैं, स्टार्च की उपस्थिति दर्शा रहे हैं, जबकि वे क्षेत्र जो रंगरहित रह गए हैं, यह दर्शा रहे हैं कि वहाँ स्टार्च निर्माण नहीं हुआ है। यह क्रिया-कलाप यह संकेत दे रहा है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
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क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या दोनों पत्तियाँ समान मात्रा में मंड की उपस्थिति दर्शाती हैं?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि एक पौधे के पास (KOH) रखा गया है, जो CO2 अवशोषित करता है। अत: KOH वाले बेलजार से तोड़ी गई पत्ती में मंड की उपस्थिति अपेक्षाकृत बहुत कम है।

प्रश्न 2.
इस क्रिया-कलाप से आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
उत्तर:
यह क्रिया-कलाप दर्शाता है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 की मात्रा एक आवश्यक घटक है।

क्रिया-कलाप – 6.3

  • 1 mL मंड का घोल (1%) दो परखनलियों ‘A’ तथा ‘B’ में लीजिए।
  • परखनली ‘A’ में 1 mL लार डालिए तथा दोनों परखनलियों को 20-30 मिनट तक शांत छोड़ दीजिए।
  • अब प्रत्येक परखनली में कुछ बूँद तनु आयोडीन घोल की डालिए।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किस परखनली में आपको रंग में परिवर्तन दिखाई दे रहा है?
उत्तर:
परखनली B में रंग बदल गया, क्योंकि इसमें केवल स्टार्च है। परखनली A में स्टार्च शर्करा में परिवर्तित हो गया, अतः रंग में कोई परिवर्तन नहीं देखा गया।

प्रश्न 2.
दोनों परखनलियों में मंड की उपस्थिति के बारे जबकि में क्या इंगित करता है?
उत्तर:
यह दर्शाता है कि परखनली परखनली A स्टार्च नहीं है। में स्टार्च है,

प्रश्न 3.
यह लार की मंड पर क्रिया के बारे में क्या दर्शाता है?
उत्तर:
यह हमें बताता है कि लार स्टार्च पर क्रिया करते हुए स्टार्च को दूसरे पदार्थ (माल्टोज शर्करा) में परिवर्तित कर देती है।

क्रिया-कलाप – 6.4

प्रश्न 1.
एक परखनली में ताजा तैयार किया हुआ चूने का पानी लीजिए। इस चूने के पानी में नि:श्वास द्वारा निकली वायु प्रवाहित कीजिए [चित्र (a)]। नोट कीजिए कि चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है?
उत्तर:
छात्र स्वयं समय नोट करें।

प्रश्न 2.
एक सिरिंज या पिचकारी द्वारा दूसरी परखनली में में ताजा चूने का पानी लेकर वायु प्रवाहित पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है। करते हैं [चित्र (b)]। नोट कीजिए कि इस बार चूने के
उत्तर:
छात्र स्वयं समय नोट करें।

JAC Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 3.
निःश्वास द्वारा निकली वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है?
उत्तर:
पहली स्थिति में चूने का पानी [चित्र (a)] दूधिया होने में ज्यादा समय लेता है जबकि दूसरी स्थिति [चित्र (b)] में यह दर्शाता है कि बाह्यश्वसन वाली वायु में सामान्य वायु की तुलना में CO2 अधिक है। इसलिए बाह्यश्वसन वायु सामान्य वायु की तुलना में चूने के पानी को जल्दी दूधिया कर देती है। अतः बाह्यश्वसनीय वायु में CO2 अधिक है।
JAC Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम 9
(a) चूने के पानी में निःश्वास द्वारा वायु प्रवाहित हो रही है।
(b) चूने के पानी में वायु पिचकारी / सिरिंज द्वारा प्रवाहित की जा रही है।

क्रिया-कलाप – 6.5

  • किसी फल का रस या चीनी का घोल लेकर उसमें कुछ यीस्ट डालिए। एक छिद्र वाली कॉर्क लगी परखनली में इस मिश्रण को ले जाइए।
  • कॉर्क में मुड़ी हुई काँच की नली लगाइए। काँच की नली के स्वतंत्र सिरे को ताजा तैयार चूने के पानी वाली परखनली में ले जाइए।
  • चूने के पानी में होने वाले परिवर्तन को तथा इस परिवर्तन में लगने वाले समय के अवलोकन को नोट कीजिए।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किण्वन के उत्पाद के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है?
उत्तर:
यह हमें बताता है कि अन्य उत्पादों (ऐल्कोहॉल) के साथ CO2 भी एक उत्पाद है।

क्रिया-कलाप – 6.6

प्रश्न 1.
एक जलशाला में मछली का अवलोकन कीजिए। वे अपना मुँह खोलती और बंद करती रहती हैं साथ ही आँखों के पीछे क्लोमछिद्र (या क्लोमछिद्र को ढकने वाला प्रच्छद) भी खुलता और बंद होता रहता है। क्या मुँह समय और क्लोमछिद्र के खुलने और बंद होने के में किसी प्रकार का समन्वय है?
उत्तर:
हाँ, वे बारी-बारी से खुलते तथा बन्द होते हैं।

प्रश्न 2.
गिनती करो कि मछली एक मिनट में कितनी बार मुँह खोलती और बन्द करती है?
उत्तर:
मुँह का खोलना तथा बन्द होना अलग-अलग मछलियों में तथा विभिन्न प्रकार की मछलियों में भिन्न-भिन्न होता है। छात्रों को सलाह दी जाती है कि यह वह स्वयं करें।

प्रश्न 3.
इसकी तुलना आप अपनी श्वास को एक मिनट में अंदर और बाहर करने से कीजिए।
उत्तर:
मछली हमारी तुलना में अधिक तेज श्वसन करती है क्योंकि वायु की तुलना में पानी में कम ऑक्सीजन होती है।

क्रिया-कलाप 6.7

प्रश्न 1.
अपने आसपास के एक स्वास्थ्य केन्द्र का भ्रमण कीजिए और ज्ञात कीजिए कि मनुष्यों में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर क्या है?
उत्तर:
पुरुष : 13.8 – 17.5gm/dl
महिला : 12.1 – 15.1 gm/dl
बच्चों में 5 से 11 वर्ष : 11.5gm/dl
12 से 14 वर्ष : 12 gm/dl (माध्य मान)
2 से 6 वर्ष : 12.5gm/dl

प्रश्न 2.
क्या यह बच्चे और वयस्क के लिए समान है?
उत्तर:
नहीं बच्चों में 11 से 16 g/dl होता है।

प्रश्न 3.
क्या पुरुष और महिलाओं के हीमोग्लोबिन स्तर में कोई अन्तर है?
उत्तर:
हाँ, प्रश्न 1 का उत्तर देखें।

प्रश्न 4.
अपने आसपास के एक पशुचिकित्सा क्लीनिक का भ्रमण कीजिए। ज्ञात कीजिए कि पशुओं, जैसे भैंसा परिसर ‘या गाय में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य क्या है?
उत्तर:
10.4 से 16.4 g/dl

प्रश्न 5.
क्या यह मात्रा बछड़ों में, नर तथा मादा जन्तुओं में समान है?
उत्तर:
नहीं, बछड़ों में अधिक होता है।

प्रश्न 6.
नर तथा मादा मानव में व जन्तुओं में दिखाई देने वाले अन्तर की तुलना कीजिए।
उत्तर:
हीमोग्लोबिन की मात्रा निम्नानुसार है-
पुरुष = 13.8 से 17.2 g/dl
महिला = 12.1 से 15.1 g/dl
बच्चे = 11 से 16 g/dl
मवेशी = 10.4 से 16.4g/dl

प्रश्न 7.
यदि कोई अन्तर है तो उसे कैसे समझाओगे?
उत्तर:
क्योंकि शरीर में O2 तथा CO2 के परिवहन के लिए हीमोग्लोबिन आवश्यक है। पुरुष महिलाओं बच्चों से अधिक परिश्रम करता है। कार्यों की प्रकृति व विविधता के कारण ही इनमें महिलाओं, बच्चों व मवेशियों की अपेक्षा हीमोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती है।

क्रिया-कलाप 6.8

  • लगभग एक ही आकार के तथा बराबर मुदा वाले दो गमले लीजिए। एक में पौधा लगा दीजिए तथा दूसरे गमले में पौधे की ऊँचाई की एक छड़ी लगा दीजिए।
  • दोनों गमलों की मिट्टी प्लास्टिक की शीट से ढक दीजिए जिसमें नमी का वाष्पन न हो सके।
  • दोनों गमलों को को पौधे के साथ तथा दूसरे को छड़ी के साथ, प्लास्टिक शीट से ढक दीजिए।

क्रिया-कलाप के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या आप दोनों में कोई अन्तर देखते हैं?
उत्तर:
हाँ, जिस गमले में पौधा है, उसकी प्लास्टिक की चादर में पानी की बूँदें नजर आ रही हैं। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में पहले गमले में, जिसमें पौधा है, जल वाष्प बनकर उड़ रही बूँदों के रूप में नज़र आ रहा है जबकि दूसरे गमले में जिसमें लकड़ी है, पानी की बूँदें नजर नहीं आ रही हैं।

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