JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 मेरे संग की औरतें

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 मेरे संग की औरतें Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 मेरे संग की औरतें

JAC Class 9 Hindi मेरे संग की औरतें Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं ?
उत्तर :
लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था, परंतु अपनी नानी के संबंध में उसने जो कुछ भी सुना था, उसके कारण वह उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई थी। उसकी नानी ने पारंपरिक, अनपढ़ और परदे में रहने वाली स्त्री होते हुए भी विलायती ढंग से जीवन व्यतीत करने वाले बैरिस्टर पति के साथ बिना किसी शिकवे-शिकायत के जीवन व्यतीत किया था। मरने से पूर्व वे परदे का लिहाज़ छोड़कर पति के मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से मिली और उनसे से वचन लिया था कि वे उनकी पुत्री का विवाह किसी स्वतंत्रता सेनानी से ही करवाएँगे। उनके इन्हीं क्रांतिकारी कदमों ने लेखिका को प्रभावित किया था।

प्रश्न 2.
लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही ?
उत्तर :
लेखिका की नानी ने जब स्वयं को मौत के करीब पाया, तो उन्हें अपनी पंद्रह वर्षीय इकलौती पुत्री के विवाह की चिंता होने लगी। वे अपने पति के अनुसार किसी साहबों के फ़रमा बरदार के साथ अपनी बेटी का विवाह नहीं होने देना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने अपने पति के मित्र प्यारेलाल शर्मा से वचन लिया कि वे उनकी बेटी का विवाह किसी स्वतंत्रता सेनानी से करवाएँगे। इस प्रकार अपनी बेटी का विवाह स्वतंत्रता सेनानी के साथ करवाकर उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में योगदान दिया था।

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प्रश्न 3.
लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी ? इस कथन के आलोक में-
(क) लेखिका की माँ के व्यक्तित्व विशेषताएँ लिखिए।
(ख) लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
उत्तर :
(क) लेखिका की माँ बहुत सुंदर, कोमल, व्यवहारिक, ईमानदार तथा निष्पक्ष भाव की महिला थीं। लेखिका की दादी के अनुसार, ‘हमारी बहू तो ऐसी है कि धोई, पोंछी और छींके पर टाँग दी।’ पति के गांधीवादी होने के कारण उन्हें खद्दर की साड़ी पहननी पड़ती थी। वे बच्चों से लाड़-प्यार नहीं करती थीं तथा उनके लिए खाना भी नहीं पकाती थीं। वे अपना अधिकांश समय पुस्तकें पढ़ने, साहित्य-चर्चा तथा संगीत सुनने में व्यतीत करती थीं। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और एक की गोपनीय बात दूसरे को नहीं बताती थीं। उन्हें घरवालों से आदर तथा बाहरवालों से स्नेह मिलता था।

(ख) लेखिका की दादी के घर का माहौल गांधीवादी था। उसके पिता की जेब में पुश्तैनी पैसा धेला एक नहीं था, पर वे होनहार थे। उनके घर में खादी के वस्त्र पहने जाते थे। लेखिका की माँ को खादी की साड़ी इतनी भारी लगती थी कि उनकी कमर चनका खा जाती थी। उसकी दादी का परिवार उसके नाना के विलायती रहन-सहन से बहुत प्रभावित था। इसलिए लेखिका की माँ से कोई ठोस काम नहीं करवाया जाता था, परंतु उनकी राय माँगकर उसे पूरी तरह निभाया जाता था। लेखिका की माँ को दादी के घर में पूरा सम्मान मिलता था। बच्चों की देखभाल भी लेखिका की माँ के अतिरिक्त दादी, जिठानियाँ, पिताजी आदि करते थे। घर में सबको पूरी आज़ादी थी। कोई किसी के पत्र के आने पर उससे उस विषय में प्रत्येक व्यक्ति को अपना निजत्व बनाए रखने की पूरी छूट थी। घर में परदादी भी थी।

प्रश्न 4.
आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी ?
उत्तर :
परदादी को सदा लीक से हटकर चलने की आदत थी। परिवार में परदादी के पुत्र तथा पोते की भी बहनें थीं, इसलिए कोई ऐसा कारण नहीं था कि परदादी पतोहू के लिए पहली संतान के रूप में लड़के के स्थान पर लड़की की मन्नत मानती। उन्होंने समाज में प्रचलित इस परंपरा को तोड़ने के लिए ही पतोहू की पहली संतान लड़की होने की मन्नत माँगी थी, क्योंकि आम लोग पहली संतान के रूप में लड़का माँगते हैं। वह संसार में प्रचलित परंपराओं के विरुद्ध चलना चाहती हैं, इसलिए वे लड़की के जन्म की मन्नत माँगती हैं।

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प्रश्न 5.
डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है-पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
लेखिका की बहन रेणु बी०ए० की परीक्षा न देने पर अड़ गई थी। वह बार-बार यही कहती थी कि पहले मुझे समझाओ कि बी०ए० करना क्यों ज़रूरी हैं। इसके बाद ही मैं बी०ए० करूँगी। सबने अनेक तर्क दिए, पर वह नहीं मानी। पिताजी ने उसे समझाया कि बी०ए० करके उसे नौकरी मिल सकती है; अच्छी शादी हो जाएगी; समाज में सम्मान मिलेगा आदि। ये सब तर्क रेणु और स्वयं पिताजी को भी ठीक नहीं लगे। तब पिताजी ने उसे कहा कि बी०ए० करो, क्योंकि मैं कह रहा हूँ। इस प्रकार से सहज भाव से कहने पर रेणु ने बी०ए० पास कर लिया। अतः स्पष्ट है कि डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की अपेक्षा सहजता से किसी से भी कोई कार्य करवाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’ – इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
लेखिका जब कर्नाटक के छोटे-से कस्बे बागलकोट पहुँची तो उसके दो बच्चे हो चुके थे, जो स्कूल जाने योग्य थे। बागलकोट में कोई स्कूल नहीं था। उसने पास के कैथोलिक बिशप से मिशन और वहाँ के सीमेंट कारखाने की आर्थिक सहायता से बागलकोट में प्राइमरी स्कूल खोलने का अनुरोध किया। क्योंकि वहाँ क्रिश्चियनों की संख्या कम थी, इसलिए उन्होंने स्कूल खोलने में असमर्थता व्यक्त की। तब लेखिका ने अपने जैसे विचार वाले लोगों की सहायता से वहाँ अंग्रेज़ी – कन्नड़ – हिंदी भाषाएँ पढ़ाने वाला प्राइमरी स्कूल खोला और बाद में उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिलवाई।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इनसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है ?
उत्तर :
इस पाठ में लोग अपनी-अपनी पसंद के अनुसार किसी-किसी को अधिक श्रद्धा भाव से देखते हैं। लेखिका की नानी परंपरावादी होते हुए भी मरने से पहले अपने पति के मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से अपनी इकलौती बेटी का विवाह अंग्रेज सरकार के गुलामों से न करके किसी स्वतंत्रता सेनानी से करवाने का वायदा लेती है। इस प्रकार आज़ादी की लड़ाई में किसी भी रूप से सहयोग देने के कारण वह श्रद्धा की पात्र है। लेखिका की परदादी चोर को खेतीहर बनाकर श्रद्धा योग्य बनती है। लेखिका के नाना के प्रति लेखिका की माँ का ससुराल पक्ष श्रद्धावान है, क्योंकि उनका साहबी दबदबा है। हम लेखिका के प्रति श्रद्धावान हैं, क्योंकि उसने विषम परिस्थितियों में जीवन जीया है तथा औरों को भी जीना सिखाया है। डालमिया नगर में नाटक मंडली बनाना तथा बागलकोट में प्राइमरी स्कूल खुलवाना लेखिका के प्रति हमें नतमस्तक कर देता है।

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प्रश्न 8.
‘सच, अकेलेपन का मज़ा ही कुछ और है – इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
लेखिका की बहन रेणु – लेखिका की बहन रेणु अत्यंत संवेदनशील तथा ज़िद्दी स्वभाव की है। स्कूल से बस स्टैंड तक वह बस से आती है, परंतु बस स्टैंड से घर तक घर से आई हुई गाड़ी में न बैठकर पैदल जाती है क्योंकि उसे इस प्रकार गाड़ी में बैठना सामंतशाही लगता है। वह सबकी चुनौतियाँ भी स्वीकार कर लेती है। बचपन में किसी की चुनौती स्वीकार कर उसने जनरल थिमैया को पत्र लिखकर उनका चित्र मँगवाया था, जो उसे मिल भी गया था। उसे परीक्षाएँ देना अच्छा नहीं लगता था। बी०ए० की परीक्षा उसने पिता के कहने पर ही उत्तीर्ण की थी।

एक दिन तेज वर्षा में भी वह सबके मना करने पर दो मील पैदल चलकर स्कूल गई और स्कूल बंद देखकर लौट आई थी। लेखिका – लेखिका पाँच बहनों में दूसरे नंबर पर है। वह दिल्ली के कॉलेज में पढ़ाती थी, परंतु विवाह के बाद उसे डालमियानगर तथा बागलकोट जैसे छोटे कस्बों में रहना पड़ा था। वहाँ अकेले होते हुए भी उसने अपने प्रयासों से डालमियानगर में अपने जैसे विचारों वालों से मिलकर नाटक मंडली बनाई और नाटकों का मंचन कर विभिन्न सहायता कोषों में सहयोग राशि दी। अपने प्रयत्नों से बागलकोट में बच्चों के लिए प्राइमरी स्कूल भी खुलवाया। इस प्रकार स्पष्ट है कि ये दोनों बहनें अकेले चलकर भी बहुत कुछ कर सकीं, क्योंकि अकेलेपन का मज़ा ही कुछ और होता है।

JAC Class 9 Hindi मेरे संग की औरतें Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका की नानी ने किससे क्या वचन लिया और क्यों ?
उत्तर :
लेखिका की नानी ने अपने पति के मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से यह वचन लिया कि वे उनकी इकलौती बेटी का विवाह किसी उन जैसे स्वतंत्रता सेनानी से करवा देंगे, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी का विवाह साहबों के किसी आज्ञाकारी व्यक्ति से हो।

प्रश्न 2.
जिस लड़के से लेखिका की माँ का विवाह हुआ, वह कौन था ?
उत्तर :
लेखिका की माँ का विवाह जिस लड़के से हुआ था, वह बहुत पढ़ा-लिखा तथा होनहार था। आर्थिक दृष्टि से उसके पास कोई पुश्तैनी जायदाद अथवा जमा पूँजी नहीं थी। वह गांधीवादी था और खादी पहनता था। आज़ादी के आंदोलनों में भाग लेने के कारण उसे आई० सी० एस० की परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था

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प्रश्न 3.
लेखिका की परदादी का तार भगवान से कैसे जुड़ा हुआ था ?
उत्तर :
लेखिका की परदादी बहुत ही धार्मिक विचारों की महिला थी तथा उसका जीवन अत्यंत सीधा-सादा था। नकुड़ गाँव के लोगों की मान्यता थी कि उनका भगवान के साथ सीधा तार जुड़ा है, इधर वे तार खींचती और उधर उनकी मुराद पूरी हो जाती थी। उन्होंने जब पतोहू की पहली संतान लड़की माँगी, तो भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए पतोहू को एक नहीं बल्कि पाँच लड़कियाँ दे दी थीं। परदादी की हर इच्छा को भगवान पूरी कर देते थे, इसलिए उनके तार भगवान से जुड़े हुए माने जाते थे।

प्रश्न 4.
लेखिका के परिवार में कौन-कौन किस-किस नाम से लिखता है ?
उत्तर :
लेखिका के परिवार में उसकी बड़ी बहन रानी ‘मंजुल भगत’ के नाम से लिखती हैं। उन्होंने अपने विवाह के बाद लिखना आरंभ किया था, इसलिए अपना नाम बदलकर पति का ग्रहण किया। लेखिका का घर का नाम ही उमा था। उसने भी शादी के बाद लिखना शुरू किया और अपना नाम मृदुला गर्ग रख लिया। सबसे छोटी बहन अचला ने अपने नाम से लिखा, परंतु वह अंग्रेजी में लिखती है। लेखिका का छोटा भाई राजीव भी लिखता है, लेकिन वह हिंदी में ही लिखता है। इस प्रकार लेखिका के परिवार के चार सदस्य लिखते हैं।

प्रश्न 5.
लेखिका और उसकी बहनों में कौन-सी बात एक-सी रही ?
उत्तर :
लेखिका और उसकी बहनों में एक बात एक-सी रही थी। सभी बहनों ने अपना घर-बार चाहे परंपरागत ढंग से न चलाया हो परंतु उन्होंने अपने घरों को तोड़ा भी नहीं है। वे मानती हैं कि विवाह एक बार किया जाता है और उसे उन्होंने पूरी तरह से निभाया है। उन सबकी यह मान्यता रही है कि ‘मर्द बदलने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। घर के भीतर रहते हुए भी, अपनी मर्जी से जी लो, तो काफ़ी है।’

प्रश्न 6.
लेखिका ने बागलकोट में कैथोलिक बिशप से जब प्राइमरी स्कूल खोलने का आग्रह किया, तो उनका क्या उत्तर था ?
उत्तर :
लेखिका ने जब बागलकोट के कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की कि वे मिशन और सीमेंट कारखाने की आर्थिक सहायता से वहाँ प्राइमरी स्कूल खुलवा दें, तो उन्होंने कहा कि यहाँ क्रिश्चियन जनसंख्या कम है इसलिए वे स्कूल खोलने में असमर्थ हैं। जब लेखिका ने अपना अनुरोध बार-बार दोहराया तो उन्होंने कहा कि हम कोशिश कर सकते हैं, यदि आप यह विश्वास दिलाएँ कि यह स्कूल अगले सौ वर्षों तक चलेगा। इस पर लेखिका को क्रोध आ गया और उसने कहा कि किसी के संबंध में भी यह विश्वास नहीं दिलाया जा सकता कि वह अगले सौ वर्ष तक चलेगा। इस पर वे भी गुस्से में भरकर बोले कि खुदा का लाख शुक्र है; बच्चों के न पढ़ पाने की समस्या आपकी है, मेरी नहीं।

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प्रश्न 7.
लेखिका के नाना नानी से किस प्रकार भिन्न थे ?
उत्तर :
लेखिका की नानी परंपरावादी, अनपढ़ और परदेवाली औरत थी; परंतु उसके नाना ने विलायत से बैरिस्ट्री पढ़ी थी। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की थी। विलायत से वापस आने के बाद वे विलायती रीति-रिवाज़ के साथ जिंदगी गुज़ारने लगे थे। वे अंग्रेज़ों के प्रशंसक थे। वे अपनी पैदाइश के कारण हिंदुस्तानी थे, नहीं तो चेहरे-मोहरे, रंग-ढंग, पढ़ाई-लिखाई सबमें अंग्रेज़ लगते थे।

प्रश्न 8.
लेखिका की माँ आम भारतीय महिलाओं से कैसे भिन्न थी ?
उत्तर :
लेखिका की माँ आम भारतीय महिलाओं की तरह नहीं थी। उन्हें घरेलू काम करने की आदत नहीं थी। उन्होंने कभी भी लेखिका और उसके अन्य भाई-बहनों से लाड़-दुलार नहीं किया। उन्होंने कभी अपने बच्चों के लिए खाना नहीं बनाया और न ही अपनी बेटियों को अच्छी पत्नी, माँ और बहू बनने की सीख दी। उन्हें घर-परिवार सँभालने की आदत नहीं थी। उनका ज्यादा समय किताबें पढ़ने, संगीत सुनने और साहित्यिक चर्चा में व्यतीत होता था। उन्होंने कभी भी किसी के काम में हस्तक्षेप नहीं किया था। इस प्रकार वे आम महिलाओं से बिल्कुल अलग थी।

प्रश्न 9.
लेखिका की माँ कोई भी काम नहीं करती थी, फिर भी सबकी उनके प्रति इतनी श्रद्धा क्यों थी ?
उत्तर :
लेखिका के अनुसार उसकी माँ ने कभी भी आम महिलाओं की तरह घर में कोई कार्य नहीं किया था। वह पत्नी, माँ और बहू के किसी भी प्रचारित कर्तव्य का पालन नहीं करती थी। फिर भी परिवार के अन्य सदस्य उन्हें पूरी इज्जत देते थे। इसके दो कारण थे। एक तो वे साहबी खानदान से थीं तथा दूसरा वे कभी भी झूठ नहीं बोलती थीं। वे दूसरों की गोपनीय बातों को किसी पर भी जाहिर नहीं करती थी।

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प्रश्न 10.
लेखिका आज़ादी का पहला जश्न देखने क्यों नहीं जा सकी ?
उत्तर :
15 अगस्त, सन् 1947 को देश को आज़ादी मिली थी। चारों ओर आनंद का वातावरण था। सभी लोग आज़ादी का जश्न मना रहे थे। परंतु लेखिका बीमार थी। उसे टायफाइड हो गया था। उसका घर से निकलना बंद था। उसके रोने का किसी पर भी प्रभाव नहीं पड़ा। उसे और उसके पिताजी को छोड़कर सभी लोग आज़ादी का जश्न देखने चले गए। इस बात का लेखिका को बहुत दुःख था।

प्रश्न 11.
लेखिका को कौन-सा पहला उपन्यास पढ़ने को मिला था और उसका लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखिका आज़ादी के जश्न में नहीं गई थी। उसके पिताजी ने उसे पढ़ने के लिए ‘ब्रदर्स कारामजोव’ का उपन्यास दिया। उस समय उसकी आयु नौ वर्ष थी। उस समय लेखिका को वह उपन्यास समझ में नहीं आया था। लेकिन उसका एक अध्याय जो बच्चों पर होने वाले अनाचार अत्याचार का था, वह उसे कंठस्थ हो गया था। उसका लेखिका पर इतना प्रभाव था कि वह उम्र के हर पड़ाव में उनके साथ रहा तथा उनकी लेखनी को प्रभावित करता रहा।

प्रश्न 12.
लेखिका की बहन रेणु का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर :
लेखिका की बहन रेणु का स्वभाव सबसे अलग था। वह अपने काम के लिए किसी को परेशान नहीं करती थी। उसे किसी भी तरह के ऐशो-आराम से परहेज था। उसका स्वभाव बहुत जिद्दी था। घर से कार उसे बस अड्डे पर लेने जाती, तो वह पैदल चलने में विश्वास करती। जिस काम के लिए उसे कहा जाता, वह उसका उल्टा करती थी। उसे पढ़ने के लिए कहा जाता, तो वह पूछती कि पढ़कर क्या मिलेगा, जो अब उसके पास नहीं है। कहने का अभिप्राय है कि वह अपने ढंग से जीवन व्यतीत करने में विश्वास करती थी। उसे दखल पसंद नहीं था। वह सच बोलने में माँ से भी दो कदम आगे थी। अधिकतर लोग उसके सच को मज़ाक समझ लेते थे। वह स्वतंत्र विचारों वाली थी।

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प्रश्न 13.
लेखिका की बहन चित्रा का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर :
लेखिका की बहन चित्रा का स्वभाव भी अलग था। वह जो काम सोच लेती थी, उसे अवश्य पूरा करती थी। वह अपनी पढ़ाई की अपेक्षा दूसरों को पढ़ाने में अधिक दिलचस्पी दिखाती थी। इससे उसके नंबर कम और दूसरों के नंबर अधिक आते थे। उसने शादी अपनी पसंद से की थी। यहाँ तक कि उसने लड़के से भी उसकी पसंद नहीं पूछी। लड़के से साफ कह दिया कि वह उससे शादी करना चाहती है। लड़के ने उसके आगे पहली मुलाकात में हथियार डाल दिए थे। चित्रा भी स्वतंत्र विचारों वाली थी।

प्रश्न 14.
क्या सबसे छोटी बहन अचला ने भी अपनी बहनों का अनुसरण किया था ?
उत्तर :
सबसे छोटी बहन अचला प्रारंभ से ही पिताजी के विचारों पर चलने वाली लगी थी। पिता की आज्ञा मानकर उसने अर्थशास्त्र और पत्रकारिता की। फिर पिता की पसंद के लड़के से शादी की। परंतु उसका मन घर-परिवार में अधिक नहीं लगा। उसने भी अपनी दोनों बड़ी बहनों की तरह लिखना शुरू कर दिया। वह अंग्रेज़ी में लिखती थी।

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प्रश्न 15.
पाँचों बहनों में क्या बात सामान्य थी ?
उत्तर :
पाँचों बहनों में एक बात सामान्य थी। उन्होंने शादी के बाद अपने घर-परिवार को परंपरागत तरीके से नहीं चलाया था, परंतु अपने परिवार को तोड़ा भी नहीं था। एक बार शादी की और उसे निभाया। उनके वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव रहे। बात तलाक तक भी पहुँची, परंतु शादी को टूटने नहीं दिया। लगभग सभी ने अपने-आप को व्यस्त रखने के लिए लिखना आरंभ कर दिया था। उनका विश्वास था कि मर्द बदलने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। घर के अंदर भी अपने ढंग से जीवन व्यतीत कर लो, वह बहुत है।

मेरे संग की औरतें Summary in Hindi

पाठ का सार :

‘मेरे संग की औरतें’ मृदुला गर्ग द्वारा रचित संस्मरण है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि परंपरागत रूप से जीवन व्यतीत करते कैसे लीक से हटकर जीया जाता है। लेखिका की एक नानी थीं, जिन्हें उसने देखा नहीं था। लेखिका की माँ के विवाह से पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई थी। लेखिका की नानी एक परंपरागत, अनपढ़ तथा परदे में रहने वाली स्त्री थीं। नाना शादी के तुरंत बाद बैरिस्ट्री पढ़ने विलायत चले गए थे और लौटकर विलायती ढंग से जीवन जीने लगे थे, जबकि नानी अपने ही ढंग से जी रही थीं।

उन्होंने अपनी पसंद-नापसंद कभी भी अपने पति पर व्यक्त नहीं की। जब नानी मरने वाली थीं, तो उन्हें अपनी पंद्रह वर्षीय अविवाहिता बेटी की चिंता ने परदे का लिहाज़ छोड़ने पर विवश कर दिया। उन्होंने अपने पति से कहा कि वे उनके मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से मिलना चाहती हैं। सब उनके इस कथन से हैरान थे, पर नाना ने उन्हें प्यारेलाल शर्मा से मिलाया। नानी ने उनसे वचन ले लिया कि वे उनकी बेटी का विवाह किसी स्वतंत्रता सेनानी से ही करवाएँगे।

नानी की मृत्यु हो गई, परंतु लेखिका की माँ का विवाह एक ऐसे पढ़े-लिखे युवक से हुआ जिसे आई० सी० एस० की परीक्षा में इसलिए बैठने नही दिया गया था क्योंकि वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेता था। लेखिका की माँ बहुत ही कोमल तथा सुकुमारी महिला थीं। उन्हें पति के स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण गांधी जी के आदर्शों का पालन करते हुए तथा सादा जीवन व्यतीत करते हुए खादी पहननी पड़ती थी। ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति अधिक सुदृढ़ नहीं थी, परंतु वे इसी बात से प्रसन्न थे कि उनके समधी पक्के साहब हैं।

लेखिका की माँ की सुंदरता, नजाकत, गैर-दुनियादारी और ईमानदारी का भी इस परिवार पर बहुत प्रभाव पड़ा था। उनसे कोई ठोस काम नहीं करवाया जाता था। वे बच्चों की देखभाल, लाड़-प्यार आदि पर ध्यान नहीं देती थीं तथा बच्चों के लिए खाना भी नहीं पकाती थीं। वे बीमार रहती थीं। उन्हें पुस्तक पढ़ने, साहित्य-चर्चा तथा संगीत सुनने में बहुत रुचि थी। परिवार वाले उन्हें कुछ नहीं कहते थे, क्योंकि वे साहबी परिवार से थीं। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और एक की गोपनीय बात दूसरे को नहीं बताती थीं।

इन्हीं विशेषताओं के कारण उन्हें घरवालों से आदर मिलता था तथा बाहरवालों से मित्रता। वे लेखिका तथा अन्य बच्चों की भी मित्र थीं। माँ के सारे काम लेखिका के पिता निभा देते थे। उनके पत्रों को भी घर में कोई नहीं खोलता था। घर में सबको अपना निजत्व बनाए रखने की पूरी छूट थी, जिस कारण वे तीन बहनें और छोटा भाई लेखन कार्य में लग सके। परंपरा से हटकर जीने वाली लेखिका की परदादी भी थीं। उनका व्रत था कि यदि कभी उनके पास दो से तीन धोतियाँ हो गईं, तो वे तीसरी धोती दान कर देंगी।

उन्होंने लेखिका की माँ के पहली बार गर्भवती होने पर मंदिर में जाकर लड़की की कामना की, जबकि सब पहली संतान लड़का चाहते हैं। उन्होंने अपनी इस इच्छा को सबके सामने भी व्यक्त कर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि माँ ने पाँच कन्याओं को जन्म दिया। लोगों का मानना था कि मेरी परदादी के भगवान से सीधे तार जुड़े हुए हैं। एक बार किसी विवाह के संदर्भ में सभी पुरुष गाँव से बाहर गए हुए थे तथा औरतें रतजगा मना रही थीं। एक चोर सेंध लगाकर परदादी के कमरे में घुस गया, तो उन्होंने पूछा कि कौन है ? उत्तर ‘जी मैं’ मिलने पर परदादी ने उसे पानी पिलाने के लिए कहा और लोटा पकड़ा दिया।

उसने घबराकर कहा कि मैं तो चोर हूँ। परदादी ने उसे अच्छी तरह से हाथ धोकर पानी लाने के लिए भेज दिया। पहरेदार ने उसे कुएँ पर देखकर पकड़ लिया, तो परदादी ने लोटे का आधा पानी स्वयं पीकर शेष उस चोर को पिला दिया और उसे अपना बेटा कहकर चोरी छोड़कर खेती करने की सलाह दे डाली। 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिलने पर लेखिका इंडिया गेट पर जाकर आज़ादी का समारोह देखना चाहती थी, परंतु टाइफाइड के कारण न जा सकी। उस समय वह नौ वर्ष की थी। वह रोने लगी, तो पिता ने उसे ‘ब्रदर्स कारामजोव’ उपन्यास पढ़ने के लिए दिया।

लेखिका को पुस्तकें पढ़ने का विशेष शौक था। वह रोना छोड़कर पढ़ने लगी। इस पुस्तक में निहित बच्चों पर होने वाले अत्याचार- अनाचार का अध्याय उसे कंठस्थ हो गया था। लेखिका व उसकी चारों बहनें लड़कियाँ होते हुए भी कभी हीनभावना से ग्रस्त नहीं हुईं और सदा लीक पर चलने से इनकार करती रहीं। पहली लड़की लेखिका की बड़ी बहन मंजुल भगत थी, जिनका घर का नाम रानी था। इन्होंने ये नाम विवाह के बाद लेखिका बनने पर रखा था। लेखिका का घर का नाम उमा था, परंतु साहित्य जगत में मृदुला गर्ग हुआ।

लेखिका से छोटी लड़की का घर का नाम गौरी और बाहर का चित्रा है, पर वह लिखती नहीं थी। चौथी रेणु और पाँचवीं अचला थी। इन पाँचों के बाद भाई पैदा हुआ, जिसका नाम राजीव रखा गया। अचला और राजीव भी लिखते हैं। अचला अंग्रेज़ी में लिखती थी, परंतु राजीव हिंदी में ही लिखता था। इन चारों का लिखा परिवार में सभी पढ़ते हैं, परंतु लेखिका को उसकी ससुराल में कोई नहीं पढ़ता। इससे वह प्रसन्न है कि घर में तो कोई उसकी आलोचना नहीं करेगा।

लेखिका अपनी उन बहनों की चर्चा करती है, जो लिखती नहीं थीं। चौथी बहन रेणु कार में बैठना सामंतशाही का प्रतीक मानकर गरमी की दुपहरी में भी बस अड्डे से घर पैदल आती थी, जबकि अचला गाड़ी में बैठकर आती थी। रेणु ने बचपन में एक बार चुनौती दिए जाने पर जनरल थिमैया को पत्र लिखकर उनका चित्र मँगवा लिया था, जो एक मोटर सवार फौजी उसे घर आकर दे गया था। तब से आस-पास के सभी बच्चे उसे मानने लगे थे।

उसे परीक्षा देना भी पसंद नहीं था। स्कूल कक्षाएँ तो उसने पास कर ली थीं, परंतु बी०ए० की परीक्षा न देने के लिए अड़ गई थी। उसका मानना था कि बी०ए० करने से क्या लाभ? उसे नौकरी व समाज में सम्मान पाने आदि के तर्क भी बी०ए० करने के लिए प्रभावित न कर सके तो पिताजी की खुशी के लिए उसने बी०ए० पास किया। सच बोलने में तो वह माँ से भी आगे थी। किसी की भेंट भी उसे अच्छी नहीं लगती थी।

यदि कोई उसे इत्र भेंट करता, तो वह कहती मुझे नहीं चाहिए क्योंकि मैं तो रोज नहाती हूँ। लेखिका की तीसरे नंबर की बहन चित्रा थी। वह कॉलेज में पढ़ती थी। वह स्वयं पढ़ने के स्थान पर दूसरों को पढ़ाने में अधिक रुचि रखती थी। इस कारण उसे परीक्षा में कम अंक मिलते थे। उसने स्वयं एक लड़के को पसंद करके अपने विवाह का निर्णय लिया था, जबकि उस लड़के, लड़के के माता-पिता तथा लेखिका के माता-पिता को भी यह पता नहीं था। उसने उस लड़के को पहली मुलाकात में ही अपना निर्णय बता दिया था और वह उससे विवाह करने के लिए तैयार हो गया था।

लेखिका की सबसे छोटी बहन अचला ने पिता के कथनानुसार अर्थशास्त्र, पत्रकारिता आदि की पढ़ाई करके उनकी इच्छा के अनुरूप ही विवाह किया। वह भी परंपरा के अनुसार न चलकर तीस वर्ष की होते ही लिखने लग गई थी। उन सब बहनों में एक बात एक-सी रही कि उन सबने घर-परिवार परंपरागत रूप से न चलाते हुए भी परिवार को तोड़ा नहीं। शादी एक बार की और उसे कायम रखा। शादी के बाद लेखिका को बिहार के छोटे-से कस्बे डालमिया नगर में रहना पड़ा, जहाँ फ़िल्म देखते समय स्त्री-पुरुष को पति-पत्नी होते हुए भी अलग-अलग बैठना पड़ता था।

वह वहाँ दिल्ली के कॉलेज में नौकरी छोड़कर गई थी। उसे नाटकों में अभिनय करने का शौक था। वहाँ उसने साल भर में ही अकाल राहत कोष के लिए नाटक किया था। कर्नाटक के बागलकोट में रहते हुए उसने बच्चों के लिए स्कूल भी चलाया और उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिलवाई। लेखिका बहुत ज़िद्दी थी। अपने लेखन को भी उसने अपनी ज़िद्द से ही आगे चलाया था। लेकिन वह स्वयं को अपनी छोटी बहन रेणु के बराबर नहीं पहुँचा पाई थी। उदाहरणस्वरूप उन्नीस सौ पचास के आखिरी दिनों में दिल्ली में खूब वर्षा हो रही थी। सब यातायात ठप्प था।

रेणु को स्कूल बस लेने नहीं आई थी। सबने उसे समझाया कि स्कूल बंद होगा, मत जाओ। स्कूल में फोन था, पर वह भी ठप्प था। किसी का कहना न मानकर वह पैदल ही स्कूल चल दी। वह सड़क पर फैले पानी में दो मील पैदल चलकर स्कूल पहुँची और स्कूल बंद देखकर दो मील चलकर वापस घर पहुँची। सबने उसे कहा कि हमने तो पहले ही कह दिया था। उसने उसे भी नहीं माना। लेखिका को लगा कि रेणु का इस प्रकार पानी में लब-लब करते, सुनसान शहर में निपट अकेले अपनी ही धुन में मंज़िल की तरफ चले जाना-इस अकेलेपन का मजा ही और था।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • ज्ञाहिर – स्पष्ट
  • मर्म – रहस्य, भेद
  • परदानर्शी – परदा करने वाली
  • इज़हार – व्यक्त करना, प्रकट करना
  • मुहज्तोर – बहुत बोलने वाली
  • लिहाज़ – व्यवहार
  • नज़ाकत – सुकुमारता
  • हैरतअंगेज़ – आश्चर्यजनक
  • फ़रमा बरदार – आज्ञाकारी
  • जुनून – सनक
  • दरअसल – वास्तव में
  • बाशिंदों – निवासियों
  • अभिभूत – वशीभूत
  • ख्वाहिश – इच्छा
  • रज़ामंदी – स्वीकार करना
  • मुस्तैद – चुस्त
  • फ़ायदा – लाभ
  • फ़ज़ल – कृपा, दया
  • अपरिग्रह – संग्रह न करना
  • पोशीदा – गुप्त रखना, छिपाना
  • वाजिब – उचित
  • बदस्तूर – नियमपूर्वक
  • आरजू – इच्छा
  • गुमान – अनुमान, कल्पना
  • जुस्तजू – तलाश, खोज
  • जुगराफ़िया – भूगोल, नक्शा
  • अकबकाया – घबराया
  • जश्न – समारोह
  • शिरकत – शामिल होना, भाग लेना
  • इजाज़त – आज्ञा
  • मोहलत – अवकाश
  • फ़ारिग – काम से खाली होना
  • खरामा-खरामा – धीरे-धीरे
  • इसरार – आग्रह
  • मलाल – खेद, दुख

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