JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति

Jharkhand Board JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति

Jharkhand Board Class 9 Science गति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एक एथलीट वृत्तीय रास्ते, जिसका व्यास 200 मीटर है, का एक चक्कर 40 सेकण्ड में लगाता है। 2 मिनट 20 सेकण्ड के बाद वह कितनी दूरी तय करेगा और उसका विस्थापन क्या होगा?
हल:
∵ व्यास 2 = 200 मीटर
∴ एक चक्कर में तय किए गए पथ की लम्बाई = परिधि = 2πr = π (2r) = \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 200 मीटर
∵ एक चक्कर लगाने का समय = 40 सेकण्ड
2 मिनट 20 सेकण्ड (= 140 सेकण्ड) में चक्करों की संख्या = \(\frac { 140 }{ 40 }\) = 3.5 चक्कर
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∴ कुल तय दूरी = 3.5 चक्करों में तय दूरी
= 3.5 x एक चक्कर तय दूरी
= 3.5 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 200 = 2,200 मीटर।
3-5 चक्करों के बाद एथलीट अपने प्रारम्भिक बिन्दु ‘A’ से जाने वाले व्यास के विपरीत सिरे ‘B’ पर होगा।
∴ एथलीट का विस्थापन व्यास AB की लम्बाई
= 200 मीटर।

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प्रश्न 2.
300 मीटर के सीधे रास्ते पर जोसेफ जॉगिंग करता हुआ 2 मिनट 50 सेकण्ड में एक सिरे ‘A’ से दूसरे सिरे ‘B’ पर पहुँचता है और घूमकर 1 मिनट में 100 मीटर पीछे बिन्दु ‘C’ पर पहुँचता है। जोसेफ की औसत चाल और औसत वेग क्या होंगे?
(a) सिरे ‘A’ से दूसरे सिरे ‘B’ तक तथा
(b) सिरे ‘A’ से सिरे ‘C’ तक।
हल:
(a) सिरे ‘A’ से सिरे ‘B’ तक-
कुल तय दूरी AB = 300 मीटर
तथा लिया गया समय t = 2 मिनट 50 सेकण्ड
= 2 × 60 + 50 सेकण्ड
= 170
सेकण्ड
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पुनः विस्थापन प्रारम्भिक बिन्दु ‘A’ से अन्तिम बिन्दु ‘B’ तक सरल रेखीय दूरी
= AB = 300 मीटर
तथा लगा समय t = 170 सेकण्ड
∴ औसत वेग
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= 1.76 मीटर/सेकण्ड A से B की ओर।

(b) सिरे ‘A’ से सिरे ‘C’तक-
कुल तय दूरी = AB + BC = 300 + 100
= 400 मीटर
तथा कुल समय = 2 मिनट 50 सेकण्ड + 1 मिनट
= 170 सेकण्ड + 60 सेकण्ड
= 230 सेकण्ड।
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पुनः विस्थापन = प्रारम्भिक बिन्दु ‘A’ से अन्तिम बिन्दु ‘C’ तक सरल रेखीय दूरी
= AC = AB – BC
= 300 – 100
= 200 मीटर
जबकि कुल समय = 230 सेकण्ड
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= 0.87 मीटर/सेकण्ड A से C की ओर।

प्रश्न 3.
अब्दुल गाड़ी से स्कूल जाने के क्रम में औसत चाल को 20 किमी/ घण्टा पाता है। उसी रास्ते से लौटने के समय वहाँ भीड़ कम है और औसत चाल 40 किमी / घण्टा है। अब्दुल की इस पूरी यात्रा में उसकी औसत चाल क्या है?
हल:
माना कि घर से स्कूल तक यात्रा-मार्ग की म्बाई = किमी
जाते समय औसत चाल = 20 किमी/घण्टा
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इसी प्रकार,
∵ लौटते समय औसत चाल = 40 किमी/घण्टा
लौटने में लगा समय t2 है तब
लौटने में लगा समय t2 =
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∴ स्कूल जाने और लौटने में लगा कुल समय
t = t1 + t2 = \(\frac { s }{ 20 }\) + \(\frac { s }{ 40 }\)
= \(\frac { 2s+s }{ 40 }\)
= \(\frac { 3s }{ 40 }\)
जबकि तय की गई कुल दूरी = s + s = 2 s
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प्रश्न 4.
कोई मोटरबोट झील में विरामावस्था से सरल रेखीय पथ पर 3-0 मीटर/सेकण्ड के नियत त्वरण से 8-0 सेकण्ड तक चलती है। इस समयान्तराल में मोटरबोट कितनी दूरी तय करती है?
हल:
दिया है प्रारम्भिक वेग u = 0, त्वरण a = 3.0 मीटर / सेकण्ड²,
समय t = 8.0 सेकण्ड तथा तय दूरी s = ?
सूत्र s = ut + at² से, s = 0 x 8 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) × 3.0 × (8.0)²
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) × 3 × 64
= 96 मीटर
∴ मोटरबोट द्वारा 8-0 सेकण्ड में तय दूरी 96 मीटर।

प्रश्न 5.
किसी गाड़ी का चालक 52 किमी / घण्टा की गति से चल रही कार में ब्रेक लगाता है तथा कार विपरीत दिशा में एकसमान दर से त्वरित होती है। कार 5 सेकण्ड में रुक जाती है। दूसरा चालक 30 किमी/ घण्टा की गति से चल रही दूसरी कार पर धीमे-धीमे ब्रेक लगाता है तथा 10 सेकण्ड में रुक जाता है। एक ही ग्राफ पेपर पर दोनों कारों के लिए चाल – समय ग्राफ आलेखित कीजिए। ब्रेक लगाने के पश्चात् दोनों में से कौन-सी कार अधिक दूरी तक जाएगी?
हल:
पैमाना Y-अक्ष : 1 सेमी = 10 किमी / घण्टा
X-अक्ष: 1 सेमी = 1 सेकण्ड
दोनों कारों के चाल- समय ग्राफ चित्र 8.20 में प्रदर्शित है।
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ब्रेक लगाने के बाद रुकने तक कारों द्वारा तय दूरियाँ ज्ञात करना-
प्रथम कार द्वारा तय दूरी ग्राफ AB के नीचे घिरा क्षेत्रफल
= ∆AOB का क्षेत्रफल = \(\frac { 1 }{ 2 }\) OA x OB
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) x (52 किमी / घण्टा ) x 5 सेकण्ड
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) [52 x \(\frac { 5 }{ 18 }\) मीटर/सेकण्ड] x 5 सेकण्ड
= 36.11 मीटर
दूसरी कार द्वारा तय दूरी ∆COD का क्षेत्रफल
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) OC X OD
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) x (30 किमी / घण्टा) x 10 सेकण्ड
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) [30 × 18 मीटर/सेकण्ड] x 10 सेकण्ड
= 41.67 मीटर
स्पष्ट है कि रुकने से पूर्व दूसरी कार अधिक दूरी तक जाएगी।

प्रश्न 6.
संलग्न चित्र में तीन वस्तुओं A, B तथा C के दूरी- समय ग्राफ प्रदर्शित हैं। ग्राफ का अध्ययन करके निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
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(a) तीनों में से कौन सबसे तीव्र गति से गतिमान है?
(b) क्या ये तीनों किसी भी समय सड़क के एक ही बिन्दु पर होंगे?
(c) जिस समय B, A से गुजरती है उस समय तक C कितनी दूरी तय कर लेती है?
(d) जिस समय B, C से गुजरती है, उस समय तक यह कितनी दूरी तय कर लेती है?
उत्तर:
(a) हम जानते हैं कि दूरी समय ग्राफ का ढाल, वस्तु की चाल को प्रदर्शित करता है।
∵ ग्राफ B का ढाल सर्वाधिक है, इसका अर्थ यह है कि वस्तु B सबसे तीव्र गति से गतिमान है।

(b) चूँकि तीनों ग्राफ परस्पर एक ही बिन्दु पर नहीं काटते हैं, अर्थात् तीनों वस्तुएँ किसी भी समय सड़क के एक ही बिन्दु पर नहीं होंगी।

(c) जिस समय B, A से गुजरती है, उस समय C की मूल बिन्दु की दूरी 8 किमी (ग्राफ से पढ़ने पर)

(d) जिस समय B,C से गुजरती है, उस समय तक B तथा C दोनों की मूल बिन्दु से दूरियाँ 5.1 किमी (ग्राफ से पढ़ने पर)।

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प्रश्न 7.
20 मीटर की ऊँचाई से एक गेंद को गिराया जाता है। उसका वेग 10 मीटर / सेकण्ड के एक समान त्वरण की दर से बढ़ता है तो यह किस वेग से धरातल से टकराएगी? कितने समय पश्चात् वह धरातल से टकराएगी?
हल:
दिया है: 0, h = 20 मीटर, 8 10 मीटर / सेकण्ड 2, v = ?, t = ?
सूत्र
v² – u² = 2 as से,
v² – 0² = 2 × 10 × 20 या
v² = 20 x 20 = 400
∴ v = \(\sqrt{400}\)
= 20 मीटर / सेकण्ड
पुन: सूत्र
v = u + gt से,
20 = 0 + 10 × t
⇒ t = \(\frac { 20 }{ 10 }\) = 2 सेकण्ड
अतः गेंद धरातल से 2 सेकण्ड बाद, 20 मीटर / सेकण्ड के वेग से टकराएगी।

प्रश्न 8.
किसी कार का चाल-समय ग्राफ संलग्न चित्र 8.22 में प्रदर्शित किया गया है-
(a) पहले 4 सेकण्ड में कार कितनी दूरी तय करती है? इस अवधि में कार द्वारा तय दूरी को ग्राफ में छायांकित क्षेत्र द्वारा दर्शाइए।
(b) ग्राफ का कौन-सा भाग कार की एकसमान को दर्शाता है?
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उत्तर:
(a) प्रथम 4 सेकण्ड में कार द्वारा तय दूरी को निम्न चित्र में छायांकित क्षेत्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
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(b) प्रथम 6 सेकण्ड के बाद का ग्राफ एक क्षैतिज रेखा है, अर्थात् ग्राफ काढाल (त्वरण) शून्य है; अतः ग्राफ का यह भाग कार की एकसमान गति को प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में कौन-सी अवस्थाएँ सम्भव हैं तथा प्रत्येक के लिए एक उदाहरण दीजिए – (a) कोई वस्तु जिसका त्वरण नियत हो परन्तु वेग शून्य हो। (b) कोई त्वरित वस्तु एकसमान चाल से गति कर रही हो। (c) कोई वस्तु किसी निश्चित दिशा में गति कर रही हो तथा त्वरण उसके लम्बवत् हो।
उत्तर:
(a) सम्भव है। मकान की छत से छोड़ते समय गेंद का वेग शून्य होता है, जबकि त्वरण नियत रहता है।
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(b) सम्भव है। वृत्तीय गति में एकसमान चाल हो सकती है।

(c) असम्भव है; क्योंकि यदि त्वरण गति की दिशा के लम्बवत् दिशा में है तो दिशा निश्चित नहीं रह सकती, वह समय के साथ बदल जाएगी।
उदाहरण- जब किसी मकान की छत से किसी गेंद को क्षैजित दिशा में फेंका जाता है तो गेंद पर गुरुत्वीय त्वरण गति की दिशा के लम्ब दिशा में कार्य करता है जिस कारण उसकी गति की दिशा बदलती जाती है।

प्रश्न 10.
एक कृत्रिम उपग्रह 42, 250 किमी त्रिज्या की वृत्ताकार कक्षा में घूम रहा है। यदि वह 24 घण्टे में में पृथ्वी की परिक्रमा करता है तो उसकी चाल का परिकलन कीजिए।
हल:
दिया है : कक्षा की त्रिज्या r = 42, 250 किमी
एक चक्कर लगाने का समय (परिक्रमण काल)
घण्टे = 24 x 60 x 60 सेकण्ड
∴ एक चक्कर में तय दूरी = परिधि = 2πr
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Jharkhand Board Class 9 Science गति InText Questions and Answers

क्रियाकलाप 8.1. (पा. पु. पृ. सं. 108)
आपकी कक्षा की दीवार विरामावस्था में है या गति में, चर्चा करें।
उत्तर:
कक्षा की दीवार विरामावस्था में है।

क्रियाकलाप 8.2.
क्या आपने कभी अनुभव किया है कि रेलगाड़ी, जिसमें आप बैठे हैं, गति करती हुयी प्रतीत होती है जबकि वास्तव में वह विरामावस्था में है?
उत्तर:
जब हम किसी रुकी हुयी रेलगाड़ी में बैटे हों तथा उसके सापेक्ष दूसरी रेलगाड़ी गति करती हो। तब ऐसा प्रतीत होता है कि हम जिस रेलगाड़ी में बैठे हैं वह गति कर रही है।

क्रियाकलाप 8.3. (पा. पु. पृ. सं. 110)
एक मीटर स्केल एवं एक लम्बी रस्सी लेकर बास्केटबॉल कोर्ट के एक कोने से दूसरे कोने तक उसके किनारे से होते हुए जाए तथा अपने द्वारा तय की गई दूरी तथा विस्थापन के परिमाण को मापें। दोनों स्थितियों में प्रेक्षित अन्तर को वर्णित करें।

क्रियाकलाप 8.4.
गाड़ियों में तय की गई दूरी को प्रदर्शित करने के लिए एक यन्त्र लगा होता है, उसे ओडोमीटर कहा जाता है। भुवनेश्वर से नई दिल्ली जाते समय ओडोमीटर के अन्तिम पाठ्यांक और आरम्भिक पाठ्यांक का अन्तर 1850 किमी है। मानचित्र की सहायता से भुवनेश्वर तथा नई दिल्ली के बीच के विस्थापन (न्यूनतम दूरी) के परिमाण को ज्ञात करें।

खंड 8.1 से सम्बन्धित पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर (पा. पु. पृ. सं. 110)

प्रश्न 1.
एक वस्तु के द्वारा कुछ दूरी तय की गई। क्या इसका विस्थापन शून्य हो सकता है? अगर हाँ, तो अपने उत्तर को उदाहरण के द्वारा समझाइए।
उत्तर:
हाँ, वस्तु का विस्थापन शून्य हो सकता है। उदाहरणार्थं – यदि एक छात्र सुबह अपने घर से स्कूल को जाता है जो घर से 4 किमी की दूरी पर है तथा दोपहर बाद घर वापस लौटता है तो उसके द्वारा तय की गई दूरी तो 8 किमी होगी, जबकि उसका विस्थापन शून्य होगा (∵ प्रारम्भिक तथा अन्तिम बिन्दु एक ही हैं।)

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प्रश्न 2.
एक किसान 10 मीटर भुजा वाले एक वर्गाकार खेत की सीमा पर 40 सेकण्ड में चक्कर लगाता है। 2 मिनट 20 सेकण्ड के बाद किसान के विस्थापन का परिमाण क्या होगा?
हल:
दिया है: एक चक्कर का समय 40 सेकण्ड
जबकि कुल समय = 2 मिनट, 20 सेकण्ड
= (2 x 60 + 20) सेकण्ड
= 120 + 20 = 140 सेकण्ड
140 सेकण्ड में किसान 3 चक्कर पूर्ण करने के बाद, अपने प्रारम्भिक बिन्दु से विकर्णत: विपरीत कोने पर होगा।
अतः किसान के विस्थापन का परिमाण = विकर्ण AC की लम्बाई
∆ ABC में,
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AB = 10 मीटर,
BC = 10 मीटर
जबकि ∠ABC = 90°
∴ पाइथागोरस प्रमेय से,
AC² = AB² + BC²
= (10)² + (10)²
= 100 + 100 – 200
= 100 × 2
वर्गमूल लेने पर, AC = 10\(\sqrt{2}\) मीटर
= 10 × 1.414 = 14.14 मीटर
अत: किसान के विस्थापन का परिणाम 10\(\sqrt{2}\) मीटर या 14-14 मीटर है।

प्रश्न 3.
विस्थापन के लिए निम्नलिखित में कौन सही है?
(a) यह शून्य नहीं हो सकता है।
(b) इसका परिमाण वस्तु के द्वारा तय की गई दूरी से अधिक होता है।
उत्तर:
विस्थापन के लिए उपर्युक्त दोनों में से कोई भी कथन सत्य नहीं हैं।

क्रियाकलाप 8.5. (पा.पु. पू. सं. 110)
दो वस्तुओं A व B की गति से सम्बन्धित आँकड़ों को सारणी 81 में दिया गया है। इसमें बताएँ कि वस्तुओं की गति एक समान है या असमान।
सारणी 8.1

समय वस्तु A के द्वारा तय की गई दूरी मीटर में वस्तु B के द्वारा तय की गई दूरी मीटर में
9.30 am 10 12
9.45 am 20 19
10.00 am 30 23
10.15 am 40 35
10.35 am 50 37
10.45 am 60 41
11.00 am 70 44

प्रश्न 1.
उपरोक्त सारणी से बताएँ कि वस्तु A द्वारा तय की गई गति असमान है या एकसमान।
उत्तर:
एकसमान।

प्रश्न 2.
वस्तु B द्वारा तय की गई गति एकसमान है या असमान।
उत्तर:
असमान।

प्रश्न 3.
एकसमान गति किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी वस्तु द्वारा समान समयांतराल में समान दूरी तय करना एकसमान गति कहलाता है।

प्रश्न 4.
असमान गति किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी वस्तु द्वारा समान समयांतराल में तय की गई असमान दूरी को असमान गति कहते हैं।

क्रियाकलाप 8.6. (पा.पु. पृ. सं. 112)
अपने घर से जाने में लगे समय को मापिए। यदि आपके पैदल चलने की औसत चाल 4 किमी / घण्टा है तो अपने घर से स्कूल की दूरी की आकलन करें।

क्रियाकलाप 8.7 (पा.पु. पृ. सं. 112)
आसमान में बादल छाए होने पर बिजली के चमकने और बादलों के गरजने की क्रिया बार-बार होती है। पहले बिजली की चमक दिखाई देती है तथा कुछ समय पश्चात् बादलों के गरजने की ध्वनि हमारे कानों तक पहुँचती है।
इनके बीच के समायन्तराल को एक डिजिटल स्टॉप घड़ी से मापें।

प्रश्न 1.
बिजली की चमक पहले तथा ध्वनि बाद में सुनाई क्यों देती है?
उत्तर:
प्रकाश की चाल (3 x 108 m/s), ध्वनि की चाल (346m/s) से बहुत अधिक होती है। इस कारण से बिजली की चमक पहले तथा ध्वनि बाद में सुनाई देती है।.

खण्ड 8.2 से सम्बन्धित पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर। (पा.पु. पृ. सं. 112)

प्रश्न 1.
चाल एवं वेग में अन्तर बताइए।
उत्तर:
चाल तथा वेग में अन्तर

चाल देग
1. किसी वस्तु द्वारा, दूरी तय करने की समय दर को उसकी चाल कहते हैं। 1. किसी वस्तु द्वारा, विस्थापन तय करने की समय दर को उसका वेग कहते हैं।
2. यह अदिश राशि होती है, जिसमें केवल परिमाण होता है। 2. यह एक सदिश राशि होती है जिसमें परिमाण के साथ दिशा भी होती है।
3. यह सदैव धनात्मक होती है। 3. यह धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों हो सकता है।

प्रश्न 2.
किस अवस्था में किसी वस्तु के औसत वेग का परिमाण उसकी औसत चाल के बराबर होता है?
उत्तर:
यदि वस्तु एक सरल रेखा में गति कर रही है तो उसके औसत वेग का परिमाण, उसकी औसत चाल के बराबर होगा।

प्रश्न 3.
एक गाड़ी का ओडोमीटर क्या मापता है?
उत्तर:
गाड़ी का ओडोमीटर, उसके द्वारा तय की गई दूरी को मापता है।

प्रश्न 4.
जब वस्तु एकसमान गति में होती है तो उसका मार्ग कैसा दिखाई पड़ता है?
उत्तर:
जब वस्तु एकसमान गति में होती है, तब उसका मार्ग एक सरल रेखा जैसा दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 5.
एक प्रयोग के दौरान, अन्तरिक्ष यान से एक सिग्नल को पृथ्वी पर पहुँचने में 5 मिनट का समय लगता है। पृथ्वी पर स्थित स्टेशन से उस अन्तरिक्ष यान की दूरी क्या है?
दिया है, सिग्नल की चाल-प्रकाश की चाल
= 3 x 108 मीटर/सेकण्ड।
हल:
दिया है : सिग्नल द्वारा पृथ्वी तक पहुँचने में लगा समय
t = 5 मिनट 300 सेकण्ड
∴ स्टेशन से अन्तरिक्ष यान की दूरी = सिग्नल की चाल x लगा समय
= 3 x 108 (मीटर / सेकण्ड ) x 300 सेकण्ड
= 9 × 1010 मीटर
= \(\frac{9 \times 10^{10}}{1000}\) किमी।
= 9 × 107 किमी।

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उदाहरण 8.2.
यात्रा शुरू होते समय कार का ओडोमीटर 2000 km प्रदर्शित करता है और यात्रा समाप्ति पर 2400 km प्रदर्शित करता है। यदि इस यात्रा में 8h लगते हैं, तो कार की औसत चाल को km h-1 और ms-1 में ज्ञात करें।
हल:
कार के द्वारा तय की गई दूरी
s = 2400 km – 2000 km = 400 km
दूरी तय करने में लगा कुल समय
‘t’ = 8 h.
कार की औसत चाल
vav = \(\frac { s }{ t }\)
= \(\frac { 400 km}{ 8h }\)
= 50 km h-1
= 50 \(\frac{\mathrm{km}}{\mathrm{h}} \times \frac{1000 \mathrm{~m}}{1 \mathrm{~km}} \times \frac{1 \mathrm{~h}}{3600 \mathrm{~s}}\)
= 13.9ms-1
कार की औसत चाल 50kmh1 अथवा 13.9ms 1 है।

उदाहरण 8.3.
ऊषा 90 लम्बे तालाब में तैरती है। वह एक सिरे से दूसरे सिरे तक सरल रेखीय पथ पर जाती है तथा वापस आती है। इस दौरान वह कुल 180 mm की दूरी 1 मिनट में तय करती है। ऊषा की औसत चाल और औसत वेग को ज्ञात कीजिए।
हल:
ऊषा द्वारा 1 मिनट में तय की गई कुल दूरी 180 m है।
1 मिनट में ऊषा का विस्थापन = 0 m
JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति 1
अतः ऊषा की औसत चाल 3 ms-1 है और औसत वेग 0ms-1 है।

क्रियाकलाप 8.8. (पा.पु. पू. सं. 114)
आप दैनिक जीवन में बहुत प्रकार की गतियों को देखते होंगे, जिनमें प्रमुख हैं: (a) त्वरण गति की दिशा में हो (b) त्वरण गति की दिशा के विपरीत है। (c) एक समान त्वरण है, तथा (d) असमान त्वरण है।
क्या ऊपर दिए गए प्रत्येक प्रकार की गति के लिए एक-एक उदाहरण दे सकते हैं।

उदाहरण 8.4.
राहुल अपनी साइकिल को विरामावस्था से चलाना शुरू करता है और 30s में 6ms का वेग प्राप्त करता है। वह इस इस प्रकार से ब्रेक लगाता है कि साइकिल का वेग अगले 5s में कम होकर 4 ms-1 हो जाता है। दोनों स्थितियों में साइकिल के त्वरण का परिकलन करें।
हल:
पहली स्थिति में
प्रारम्भिक वेग u = 0; अन्तिम वेग = 6m/s
समय t = 30s.
समीकरण से,
त्वरण a = \(\frac { v-u }{ t }\)
u, v और t का दिया हुआ मान समीकरण में रखने पर,
a = \(\frac{\left(6 m s^{-1}-0 m s^{-1}\right)}{30 s}\) = 0.2 ms-2
दूसरी स्थिति में,
प्रारम्भिक वेग u = 6 ms-1
अन्तिम वेग v = 4 ms-1; तथा समय t = 5s.
तब, a = \(\frac{\left(4 m s^{-1}-6 m s^{-1}\right)}{5 s}\) = – 0.4 ms-2
साइकिल का त्वरण पहली स्थिति में 0.2 ms-2 है और दूसरी स्थिति में – 0.04ms-2 है।

खण्ड 8.3 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर (पा.पु. पृ. सं. 114 )

प्रश्न 1.
आप किसी वस्तु के बारे में कब कहेंगे कि, (i) वह एकसमान त्वरण से गति में है? (ii) वह असमान त्वरण से गति में है?
उत्तर:

  • जब वस्तु एक सरल रेखा में गतिमान हो तथा समान समयान्तरालों में इसका वेग समान रूप से घटता या बढ़ता हो।
  • जब समान समयान्तरालों में वस्तु का वेग असमान रूप से परिवर्तित होता हो।

प्रश्न 2.
एक बस की गति 5 सेकण्ड में 80 किमी/घण्टा से घटकर 60 किमी/घण्टा हो जाती है। बस का त्वरण ज्ञात कीजिए।
हल:
बस का प्रारम्भिक वेग 480 किमी/घण्टा
= 80 × \(\frac { 5 }{ 18 }\) मीटर / सेकण्ड
= \(\frac { 200 }{ 9 }\) मीटर/सेकण्ड
जबकि अन्तिम वेग v = 60 किमी / घण्टा
= 60 × \(\frac { 5 }{ 18 }\) मीटर / सेकण्ड
= \(\frac { 50 }{ 3 }\) मीटर/सेकण्ड
समयान्तराल t = 5 सेकण्ड
∴ बस का त्वरण a = \(\frac{v-u}{t}=\frac{\frac{50}{3}-\frac{200}{9}}{5}\)
= \(\frac{(150-200) / 9}{5}=\frac{-50}{5 \times 9}=-\frac{10}{9}\)
अत: बस का त्वरण a = 10/9 मीटर / सेकण्ड।

प्रश्न 3.
एक रेलगाड़ी स्टेशन से चलना प्रारम्भ करती है और एकसमान त्वरण के साथ चलते हुए 10 मिनट में 40 किमी / घण्टा की चाल प्राप्त करती है। इसका त्वरण ज्ञात कीजिए।
हल:
स्टेशन पर रेलगाड़ी का प्रारम्भिक वेग 14 = 0
जबकि अन्तिम वेग v = 40 किमी / घण्टा
= 40 x \(\frac { 5 }{ 18 }\) = \(\frac { 100 }{ 9 }\) मीटर / सेकण्ड
लिया गया समय t = 10 मिनट
= 10 × 60 = 600 सेकण्ड
∴ रेलगाड़ी का त्वरण
a = \(\frac{v-u}{t}=\frac{\frac{100}{9}-0}{600}=\frac{100}{9 \times 600}=\frac{1}{54}\)
= 0.018 मीटर/सेकण्ड²।

क्रियाकलाप 8.9. (पा. पु. पृ. सं. 117)
एक ट्रेन के तीन विभिन्न स्टेशनों A, B और C पर आगमन और प्रस्थान करने के समय एवं स्टेशन A से स्टेशन B व C की दूरी निम्न सारणी 8.2 में दी गई है। मान लें कि किन्हीं दो स्टेशनों के बीच ट्रेन की गति एकसमान है तो इस आधार पर वेग-समय ग्राफ खींचें तथा व्याख्या करें।

सारणी 8.2 : स्टेशन A से B तथा C की दूरी तथा ट्रेन के आगमन व प्रस्थान करने का समय

स्टेशन A से दूरी (Km) आगमन का समय (घण्टे) प्रस्थान का समय (घण्टे)
A 0 08 : 00 08 : 15
B 120 11 : 15 11 : 30
C 180 13 : 00 13 : 15

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति 2

क्रियाकलाप 8.10.
फिरोज और उसकी बहन सानिया अपनी साइकिलों से स्कूल जाते हैं। वे दोनों घर से एक ही समय पर प्रस्थान करते हैं एवं एक ही मार्ग से जाते हैं फिर भी अलग-अलग समय पर स्कूल पहुँचते हैं। सारणी 8.13 उन दोनों के द्वारा अलग-अलग समय में तय की गई दूरी को दर्शाती है। उन दोनों की गति के लिए एक ही पैमाने पर दूरी-समय ग्राफ खीचें तथा व्याख्या करें।

सारणी 8.3. (पा. पु. पृ. स. 118)
फिरोज और सानिया द्वारा अपने साइकिलों पर अलग-अलग समय में तय की गई दूरी।

समय फिरोज के द्वारा तय की गई दरी KM सानिया के द्वारा तय की गई दूरी KM
8.00 am 0 0
8.05 am 1.0 0.8
8.10 am 1.9 1.6
8.15  am 2.8 2.3
8.20 am 3.6 3.0
8.25 am 3.6

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति 3

खण्ड 8.4 से सम्बन्धित पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नेत्तर (पा. पु. पृ. सं. 118)

प्रश्न 1.
किसी वस्तु की एकसमान व असमान गति के लिए समय-दूरी ग्राफ की प्रकृति क्या होती है?
उत्तर:
एकसमान गति-एकसमान गति के लिए समय-दूरी ग्राफ एक सरल रेखा होता है।
असमान गति – असमान गति में समय दूरी ग्राफ सरल रेखा नहीं होता है। यह एक वक्र हो सकता है। कई अलग- अलग वक्र तथा सरल रेखाओं से मिलकर बना हो सकता है।

प्रश्न 2.
किसी वस्तु की गति के विषय में आप क्या कह सकते हैं, जिसका दूरी- समय ग्राफ, समय अक्ष के समान्तर एक सरल रेखा है?
JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति 4
उत्तर:
दूरी समय ग्राफ का समय अक्ष के समान्तर सरल रेखा होना यह प्रदर्शित करता है कि वस्तु की निर्देश बिन्दु से दूरी, समय के साथ परिवर्तित नहीं हो रही है अर्थात् समय के साथ वस्तु की स्थिति बदल नहीं रही है। इसका अर्थ यह है कि वस्तु गतिमान नहीं है अर्थात् स्थिर है। (देखिए चित्र 8.14)

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति

प्रश्न 3.
किसी वस्तु की गति के विषय में आप क्या कह सकते हैं, जिसका चाल-समय ग्राफ, अक्ष के समान्तर एक सरल रेखा है?
उत्तर:
चाल- समयग्राफ का समय अक्ष के समान्तर एक सरल रेखा होना यह प्रदर्शित करता है कि वस्तु की चाल समय के साथ परिवर्तित नहीं हो रही है। अर्थात् चाल स्थिर है। अतः वस्तु एकसमान चाल से गतिमान है। (देखिए fast 8.15)
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प्रश्न 4.
वेग समय ग्राफ के नीचे के क्षेत्र में मापी गई राशि क्या होती है?
उत्तर:
वेग-समय ग्राफ के नीचे के क्षेत्र से एक दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय की गई दूरी ज्ञात होती है।

खण्ड 8.5 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर (पा.पु. पू. सं. 121)

प्रश्न 1.
कोई बस विरामावस्था से चलना प्रारम्भ करती है तथा 2 मिनट तक 0-1 मीटर/सेकण्ड के एकसमान त्वरण से चलती है। परिकलन कीजिए-
(a) प्राप्त की गई चाल, (b) तय की गई दूरी।
हल:
दिया है:
u = 0, त्वरण a = 0.1 मीटर / सेकण्ड²
समय t = 2 मिनट = 2 x 60 = 120 सेकण्ड
(a) सूत्र vu + gt से,
प्राप्त की गई चाल x 120 सेकण्ड = 0 + 0.1 (मी / से-) = 12 मीटर / सेकण्ड।

(b) s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) at² ar से तय की गई दूरी
s = 0 × 120 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 0.1 x 120 x 120
= 720 मीटर।

प्रश्न 2.
कोई रेलगाड़ी 90 किमी / घन्टा की चाल से चल रही है। ब्रेक लगाए जाने पर वह – 0.5 मीटर / सेकण्डर² का एकसमान त्वरण उत्पन्न करती है। रेलगाड़ी विरामावस्था में जाने से पहले कितनी दूरी तय करेगी ?
हल:
दिया है : u = 90 किमी / घण्टा
= 90 × \(\frac { 5 }{ 18 }\) = 25 मीटर / सेकण्ड
a = – 0.5 मीटर / सेकण्डर²
रुक जाने पर v = 0, तय दूरी s = ?
सूत्र v² – u² = 2as से
0² – ( 25)² – 2 × (0.5) × 3 या 625 = – s
अतः तय की गई दूरी 625 मीटर।

प्रश्न 3.
एक ट्राली एक आनत तल पर 2 मीटर/सेकण्डर के त्वरण से नीचे जा रही है। गति प्रारम्भ करने के 3 सेकण्ड के पश्चात् उसका वेग क्या होगा?
हल:
दिया है : u = 0 a = 2 मीटर / सेकण्डर²
t = 3 सेकण्ड, v = ?
सूत्र v = u + at से,
3 सेकण्ड बाद, वेग = 0 + 2 × 3 = 6 मीटर / सेकण्ड।

प्रश्न 4.
एक रेसिंग कार का एकसमान त्वरण 4 मीटर / सेकण्ड है। गति प्रारम्भ करने के 10 सेकण्ड के पश्चात् वह कितनी दूरी तय करेगी?
हल:
दिया है गति के प्रारम्भ में u = 0, त्वरण a = 4 मीटर / सेकण्ड 2, समय t = 10 सेकण्ड दूरी s = ?
सूत्र
S = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) at² से,
तय दूरी
s = 0 × 10 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) × 4 × (10)²
= 2 × 100
या s = 200 मीटर

प्रश्न 5.
किसी पत्थर को ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर 5 मीटर / सेकण्ड के वेग से फेंका जाता है। यदि गति के दौरान पत्थर का नीचे की ओर दिष्ट त्वरण 10 मीटर / सेकण्ड है तो पत्थर के द्वारा कितनी ऊँचाई प्राप्त की गई तथा उसे वहाँ पहुँचने में कितना समय लगा?
हल:
दिया है पत्थर का वेग u = 5 मीटर / सेकण्ड, त्वरण a = 10 मीटर / सेकण्डर
[∵ त्वरण नीचे की ओर है अतः ऋणात्मक लिया गया है।]
माना कि पत्थर ऊँचाई तक पहुँचता है, वहाँ पहुँचने में उसे समय लगता है।
तब अधिकतम ऊँचाई पर s = h तथा v = 0
v² – u² = 2 as, 0² – (5)² = 2(-10) h
या – 25 = 20h या h = \(\frac { -25 }{ -20 }\) = \(\frac { 5 }{ 4 }\) मीटर
तथा v = u + at से 0 = 5 + (-10)t
या 10 t = 5 या t = = 0-5 सेकण्ड
अतः पत्थर द्वारा प्राप्त ऊँचाई h = 1.25 मीटर
तथा यह ऊँचाई प्राप्त करने में लिया गया समय t = 10.5 सेकण्ड।

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 8 गति

क्रियाकलाप 8.11. (पा.पु. पृ. सं. 122)
एक धागे का टुकड़ा लेकर उसके एक छोर पर एक छोटे से पत्थर को बाँध दें धागे के दूसरे छोर को पकड़कर पत्थर को वृत्तीय मार्ग पर नियत चाल से घुमाया जाए। अब यदि पत्थर सहित धागे को छोड़ दिया जाए तब पत्थर किस दिशा में जाएगा। पत्थर को अलग-अलग स्थान पर पुनः छोड़ें तथा प्रेक्षण करें।

निष्कर्ष – पत्थर वृत्तीय पथ के स्पर्शी के अनुदिश सरल रेखीय पथ पर गति करता है। इसका कारण यह है कि जब पत्थर को छोड़ा जाता है तो वह उसी दिशा में गति जारी रखता है जिस दिशा में उस क्षण वह गति कर रहा है। जब किसी पत्थर को वृत्तीय पथ पर घुमाया जाता है तो उसकी गति की दिशा प्रत्येक बिन्दु पर परिवर्तित होती है।

उदाहरण – एथलीट चक्रिका (डिसकॅस) या गोले को फेंकते समय अपने शरीर को घुमाकर उसे वृत्तीय गति प्रदान करता है। इच्छित दिशा में गोला या चक्र उसी दिशा में गति करता है जिस दिशा में वह छोड़ते समय गति कर रहा था। इसके अन्य उदाहरण हैं- चन्द्रमा एवं पृथ्वी की गति, पृथ्वी के चारों ओर वृत्तीय कक्षा में घूर्णन करता हुआ एक उपग्रह, वृत्तीय पथ पर नियत चाल से चलता हुआ साइकिल सवार इत्यादि।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 विधायिका 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 विधायिका Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 विधायिका

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में कौनसा कथन असत्य है?
(क) भारत में लोकसभा और विधानसभाएँ प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होती हैं।
(ख) भारत में संसद प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित है।
(ग) भारत में लोकसभा के पास कार्यपालिका को हटाने की शक्ति है।
(घ) विधायिका जन – प्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती है।
उत्तर:
(ख) भारत में संसद प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित है।

2. निम्नलिखित में किस प्रान्त में द्विसदनात्मक विधानमण्डल नहीं है।
(क) राजस्थान
(ख) बिहार
(ग) महाराष्ट्र
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) राजस्थान

3. राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल है।
(क) 5 वर्ष
(ख) 4 वर्ष
(ग) 6 वर्ष
(घ) 8 वर्ष
उत्तर:
(ग) 6 वर्ष

4. राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है।
(क) प्रधानमंत्री द्वारा
(ख) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा
(ग) उपराष्ट्रपति द्वारा
(घ) राष्ट्रपति द्वारा
उत्तर:
(घ) राष्ट्रपति द्वारा

5. निम्नलिखित में से कौनसी शक्ति ऐसी हैं जो लोकसभा के पास है, लेकिन विधानसभा के पास नहीं हैं।
(क) सामान्य विधेयकों को पारित करने की शक्ति
(ख) संवैधानिक विधेयकों के पारित करने की शक्ति
(ग) धन विधेयक प्रस्तुत किये जाने की शक्ति
(घ) राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की शक्ति।
उत्तर:
(ग) धन विधेयक प्रस्तुत किये जाने की शक्ति

6. निम्नलिखित में ऐसी कौनसी शक्ति है जो राज्यसभा के पास तो है, लेकिन लोकसभा के पास नहीं।
(क) राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रहित में संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करने की शक्ति
(ख) धन विधेयक प्रस्तुत करने की शक्ति
(ग) संविधान संशोधन की शक्ति
(घ) सामान्य विधेयक पारित करने की शक्ति।
उत्तर:
(क) राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रहित में संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करने की शक्ति

7. संसद द्वारा कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने का सबसे सशक्त हथियार है।
(क) वित्तीय नियंत्रण
(ख) बहस और वाद-विवाद
(ग) स्थगन प्रस्ताव
(घ) अविश्वास प्रस्ताव
उत्तर:
(घ) अविश्वास प्रस्ताव

8. वर्तमान में लोकसभा के कुल निर्वाचन क्षेत्र हैं।
(क) 550
(ख) 500
(ग) 530
(घ) 543
उत्तर:
(घ) 543

9. लोकसभा की सदस्य होने के लिए निम्नतम आयु सीमा है।
(क) 18 वर्ष
(ख) 21 वर्ष
(ग) 1 वर्ष
(घ) 6 माह
उत्तर:
(ग) 1 वर्ष

10. संसद के दो अधिवेशनों के बीच अधिकतम समयान्तर होता है।
(क) 3 मास
(ख) 5 मास
(ग) 25 वर्ष
(घ) 35 वर्ष
उत्तर:
(घ) 35 वर्ष

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. हमारी राष्ट्रीय विधायिका का नाम ………………… है।
उत्तर:
संसद

2. ……………….. हमारी संसद का स्थायी सदन है।
उत्तर:
राज्य सभा

3. संसद द्वारा कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने का सबसे सशक्त हथियार …………………. है।
उत्तर:
अविश्वास प्रस्ताव

4. सदन का ……………… विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी होता है।
उत्तर:
अध्यक्ष

5. राज्य सभा के ……………… सदस्यों को वर्ष के लिए निर्वाचित किया जाता है।
उत्तर:
6.

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये-

1. विधायिका प्रतिनिधिक लोकतंत्र का आधार है।
उत्तर:
सत्य

2. भारत के राजस्थान राज्य की विधायिका द्विसदनात्मक है।
उत्तर:
असत्य

3. भारत के उत्तरप्रदेश राज्य की विधायिका एकसदनीय है।
उत्तर:
असत्य

4. राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्य राज्य सभा के सदस्यों को चुनते हैं।
उत्तर:
सत्य

5. निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त लोकसभा में 12 मनोनीत सदस्य होते हैं।
उत्तर:
असत्य

6. सदन का अध्यक्ष दलबदल से संबंधित विवादों पर अंतिम निर्णय लेता है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये।

1. फेडरल एसेंबली और फेडरल कौंसिल (क) भारतीय संसद के दोनों सदन
2. लोकसभा और राज्य सभा (ख) लोकसभा संजीव पास बुक्स
3. सीनेट (ग) सदन का अध्यक्ष
4. धन विधेयक प्रस्तुत करना (घ) अमेरिका का द्वितीय सदन
5. विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी (च) जर्मनी की विधायिका के दोनों सदन

उत्तर:

1. फेडरल एसेंबली और फेडरल कौंसिल (च) जर्मनी की विधायिका के दोनों सदन
2. लोकसभा और राज्य सभा (क) भारतीय संसद के दोनों सदन
3. सीनेट (घ) अमेरिका का द्वितीय सदन
4. धन विधेयक प्रस्तुत करना (ख) लोकसभा संजीव पास बुक्स
5. विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी (ग) सदन का अध्यक्ष


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका किसे कहते हैं?
(क) भारतीय संसद के दोनों सदन
(घ) अमेरिका का द्वितीय सदन
(ख) लोकसभा
(ग) सदन का अध्यक्ष
उत्तर:
जब कभी विधायिका में दो सदन होते हैं, तो उसे द्वि- सदनात्मक व्यवस्थापिका कहते हैं?

प्रश्न 2.
भारतीय संसद के दोनों सदनों के नाम लिखिये।
उत्तर:
भारतीय संसद के दोनों सदनों के नाम ये हैं।

  1. लोकसभा और
  2. राज्य सभा।

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प्रश्न 3.
भारत के कितने राज्यों में द्विसदनात्मक विधायिका है? उनके नाम लिखिये।
उत्तर:
भारत के 6 राज्यों में द्विसदनात्मक विधायिका है। ये राज्य हैं।

  1. बिहार
  2. आंध्रप्रदेश
  3. कर्नाटक
  4. महाराष्ट्र,
  5. उत्तरप्रदेश और
  6. तेलंगाना।

प्रश्न 4.
द्विसदनात्मक विधायिका के कोई दो लाभ लिखिये।
उत्तर;

  1. दूसरा सदन समाज के सभी वर्गों तथा देश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है।
  2. संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो जाता है।

प्रश्न 5.
राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन किस विधि से होता है?
उत्तर:
राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि से राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों के निर्वाचन मण्डल द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6.
राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व का आधार क्या है?
उत्तर:
राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व का आधार प्रत्येक राज्य की जनसंख्या है अर्थात् ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों को ज्यादा और कम जनसंख्या वाले राज्यों को कम प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।

प्रश्न 7.
संविधान की किस सूची में प्रत्येक राज्य से राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है?
उत्तर:
संविधान की चौथी अनुसूची में राज्यसभा में प्रत्येक राज्य से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है।

प्रश्न 8.
राज्यसभा में राष्ट्रपति किन और कितने सदस्यों को मनोनीत करता है?
उत्तर:
राज्यसभा में राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त 12 व्यक्तियों को मनोनीत करता है।

प्रश्न 9.
दल-बदल क्या है?
उत्तर:
यदि कोई सदस्य अपने दल के नेतृत्व के आदेश के बावजूद सदन में उपस्थित न हो या दल के निर्देशों के विपरीत सदन में मतदान करे तो उसे दल-बदल कहते हैं।

प्रश्न 10.
संसद के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संसद के दो प्रमुख कार्य ये हैं।

  1. विधि निर्माण
  2. कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना।

प्रश्न 11.
संसदीय समितियों को ‘लघु विधायिका’ क्यों कहते हैं?
उत्तर:
संसदीय समितियों में सभी संसदीय दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इसी कारण इन समितियों को ‘लघु विधायिका’ भी कहते हैं।

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प्रश्न 12.
संसदीय लोकतंत्र किस स्थिति में ‘मंत्रिमण्डल की तानाशाही’ में बदल सकता है?
उत्तर:
जब बहुमत की ताकत पाकर कार्यपालिका अपनी शक्तियों का मनमाना प्रयोग करने लगे तो ऐसी स्थिति में संसदीय लोकतंत्र मंत्रिमण्डल की तानाशाही में बदल सकता है।

प्रश्न 13.
सरकारी विधेयक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंत्री द्वारा प्रस्तुत विधेयक को सरकारी विधेयक कहते हैं।

प्रश्न 14.
निजी विधेयक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंत्री के अतिरिक्त किसी और सदस्य द्वारा प्रस्तुत विधेयक को निजी विधेयक कहते हैं।

प्रश्न 15.
संसदीय विशेषाधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
संसद में सांसदों को प्रभावी और निर्भीक रूप से काम करने की शक्ति और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए जो विशेष अधिकार प्रदान किये जाते हैं, उन्हें संसदीय विशेषाधिकार कहते हैं।

प्रश्न 16.
विधायिका द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण के कोई दो तरीके लिखिये।
उत्तर:
अविश्वास प्रस्ताव , वित्तीय नियंत्रण

प्रश्न 17.
द्वितीय सदन के विरुद्ध कोई दो तर्क दीजिये।
उत्तर:

  1. द्वितीय सदन के कारण प्राय: विधि निर्माण में देरी होती है।
  2. द्वितीय सदन से देश के धन की बर्बादी होती है।

प्रश्न 18.
द्विसदनीय विधायिका में दूसरा सदन किस प्रकार स्थायी बनता है?
उत्तर:

  1. द्वितीय सदन कार्यपालिका या राज्य के प्रमुख द्वारा भंग नहीं किया जा सकता, जबकि प्रथम (निम्न ) सदन भंग किया जा सकता है।
  2. द्वितीय सदन के सभी सदस्य प्रायः एक साथ ही एक बार में निर्वाचित नहीं होते। जैसे कि भारत में राज्य सभा के 1/3 सदस्य ही प्रति दो वर्ष बाद निर्वाचित किये जाते हैं।

प्रश्न 19.
किन परिस्थितियों में संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जा सकता है?
उत्तर:

  1. दोनों सदनों के विवादों को हल करने के लिए।
  2. किसी विधेयक को एक सदन पारित कर दे और दूसरा अस्वीकृत कर दे।

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प्रश्न 20.
विधायिका के अध्यक्ष पद के कोई दो कार्य बताइये।
उत्तर:

  1. अध्यक्ष सदन की सभाओं की अध्यक्षता करता है तथा नियमानुसार इसके कार्य को संचालित करता है।
  2. वह सदन में अनुशासन बनाए रखता है तथा संवैधानिक तरीके से वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श को जारी रखता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थगन प्रस्ताव क्या है?
उत्तर:
स्थगन प्रस्ताव-सामान्यतः सदन के कार्यकलाप उस दिन के निर्धारित एजेण्डा (कार्य-सूची) के अनुसार ही जारी रहते हैं, लेकिन कभी-कभी किसी विशेष अचानक होने वाली राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय घटना-दुर्घटना के कारण सदन का कोई सदस्य सदन से यह प्रार्थना करता है कि निर्धारित कार्यक्रम को रोककर उस विशेष घटना पर विचार- विमर्श करे । इस प्रस्ताव को स्थगन प्रस्ताव कहते हैं। यदि इस प्रस्ताव को सदन के अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उस विषय पर सदन में विचार-विमर्श प्रारम्भ कर देता है।

प्रश्न 2.
प्रश्न काल क्या है?
उत्तर:
प्रश्न काल-प्रश्न काल संसद के दोनों सदनों की दैनिक प्रक्रिया में एक बहुमत महत्वपूर्ण अवधि है । इस अवधि के दौरान सदन के सदस्य को प्रश्न पूछने का अधिकार होता है और जिसका उत्तर उस प्रश्न से संबंधित मंत्री को देना पड़ता है। प्राय: प्रश्न सरकार की आलोचना करने तथा सरकार के विरुद्ध जनमत निर्माण करने तथा सरकार पर विपक्ष के नियंत्रण हेतु किये जाते हैं। इसमें मंत्री को शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध चेतावनी दी जाती है

प्रश्न 3.
अविश्वास प्रस्ताव का क्या आशय है?
उत्तर:
अविश्वास प्रस्ताव:
अविश्वास प्रस्ताव लोकसदन द्वारा कार्यपालिका के विरुद्ध प्रस्तुत किया जाता है। इसका आशय है कि लोकसभा में मंत्रिमंडल के प्रति विश्वास नहीं रहा है। यदि लोकसभा किसी मंत्री या पूरी मंत्रिपरिषद् के प्रति साधारण बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित कर देती है तो मंत्रिपरिषद को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है। लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करवाना है।

प्रश्न 4.
क्या भारतीय संसद संवैधानिक संप्रभु है?
उत्तर:
भारत की संसद संवैधानिक दृष्टि से संप्रभु नहीं है। इसके विधान निर्माण पर निम्न सीमाएँ हैं।

  1. भारतीय संसद सभी विषयों पर विधि निर्माण नहीं कर सकती। यह प्राय: संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर ही विधि निर्माण कर सकती है और राज्य सूची के विषयों पर केवल विशेष परिस्थितियों में ही विधि बना सकती है।
  2. संसद संविधान के विरोध में विधि का निर्माण नहीं कर सकती तथा मूल अधिकारों के उल्लंघन में विधि निर्माण नहीं कर सकती। यदि संसद ऐसी विधि बनाती है तो न्यायालय उसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर सकता है।

प्रश्न 5.
संसद (विधायिका) की क्या आवश्यकता है?
अथवा
संसद की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसद (विधायिका) की आवश्यकता ( उपयोगिता )

  1. संसद ( विधायिका) जनता द्वारा निर्वाचित होती है और जनता की प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है।
  2. यह कानून निर्माण का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
  3. यह जनप्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती है। यह मंत्रिमंडल पर नियंत्रण रखती
  4. यह वाद-विवाद का सबसे लोकतांत्रिक खुला मंच है।
  5. यह प्रतिनिधिक लोकतंत्र का आधार है।

प्रश्न 6.
” संसद कार्यपालिका को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है।” लेकिन इसके लिए किन विशेष शर्तों का पूरा होना आवश्यक है?
उत्तर:
संसद कार्यपालिका को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है, लेकिन इसके लिए निम्न शर्तों का पूरा होना आवश्यक है।

  1. संसद के सदन के पास पर्याप्त समय हो।
  2. संसद के सदस्य बहस में रुचि रखते हों तथा वे उसमें प्रभावशाली ढंग से भाग लें।
  3. सरकार तथा विपक्ष में आपस में समझौता करने की इच्छा हो।

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प्रश्न 7.
संसदीय समितियों की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर:
संसदीय समितियों की आवश्यकता के प्रमुख कारण ये हैं।

  1. चूँकि संसद केवल अधिवेशन के दौरान ही बैठती है, इसलिए इसके पास अत्यन्त सीमित समय होता है।
  2. किसी कानून को बनाने के लिए उससे जुड़े विषय का गहन अध्ययन करना पड़ता है। इसके लिए उस पर ज्यादा ध्यान और समय देने की आवश्यकता होती है।
  3. संसद को निधि निर्माण के अतिरिक्त अन्य बहुत से महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं।

सीमित समय के कारण संसद इन सब कार्यों को भली-भाँति नहीं कर पाती है। इस समस्या को दूर करने के लिए वह विधेयकों पर विचार करने व गहन अध्ययन करने के लिए उन्हें संसदीय समितियों को भेज देती है। अत: संसद के सीमित समय और कार्य की अधिकता के कारण संसदीय समितियों की आवश्यकता पड़ी।

प्रश्न 8.
दल-बदल से क्या तात्पर्य है? दल-बदल को रोकने के लिए क्या उपाय किए गए हैं?
उत्तर:
दल-बदल का अर्थ एक विधायक या सांसद का अपने दल के चुनाव चिह्न पर चुने जाने के बाद उसे छोड़कर किसी दूसरे राजनीतिक दल में चले जाना या निर्दलीय बन जाना दल-बदल कहलाता है।दल-बदल रोकने के उपाय:

  1. यदि संसद या विधायक किसी राजनीतिक दल से चुने जाने के पश्चात् अपने दल की सदस्यता से स्वेच्छापूर्वक त्याग-पत्र दे देता है, तो उसकी सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  2. यदि वह सदस्य अपने दल के निर्देशों के विपरीत सदन में मतदान करता है या मतदान में भाग लेता है, तो उसी सदस्यता खत्म कर दी जाएगी।
  3. दल-बदल पर अन्तिम निर्णय करने का अधिकार स्पीकर या उपसभापति का होता है।

प्रश्न 9.
राज्यसभा के सदस्य की योग्यताएँ (अर्हताएँ) क्या हैं?
उत्तर:
राज्यसभा के सदस्य की अर्हताएँ – एक व्यक्ति जो राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित या नियुक्त होना चाहता है, उसमें निम्नलिखित अर्हताएँ होनी चाहिए-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसने 30 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  3. वह संघ या राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
  4. वह दिवालिया तथा चित्त – विकृत न हो।
  5. वह न्यायालय द्वारा इस पद के अयोग्य नहीं ठहराया गया हो।
  6. वह जिस राज्य का राज्य सभा सदस्य बनना चाहता है, उस राज्य का निवासी हो।

प्रश्न 10.
लोकसभा के सदस्य की अर्हताएँ क्या हैं?
उत्तर:
लोकसभा के सदस्य की अर्हताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसने 25 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  3. ह संघ या राज्य सरकार में किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
  4. वह दिवालिया और चित्त – विकृत न हो।
  5. वह संसद द्वारा निर्धारित अन्य योग्यताओं को पूरा करता हो।

प्रश्न 11.
राज्य सभा के सभापित तथा लोकसभा के अध्यक्ष के मध्य क्या अन्तर हैं? तुलना कीजिए।
उत्तर:
लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. लोकसभा का अध्यक्ष स्वयं लोकसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होता है जबकि राज्यसभा का सभापति संसद के दोनों सदनों द्वारा निर्वाचित होता है।
  2. अध्यक्ष लोकसभा का सदस्य होता है जबकि सभापति राज्य सभा का सदस्य नहीं होता है।
  3. दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है, न कि राज्यसभा का सभापति।
  4. धन विधेयक है या नहीं, इसका निर्णय लोकसभा अध्यक्ष करता है, न कि राज्यसभा का सभापति।
  5. लोकसभा अपने अध्यक्ष को पदच्युत कर सकती है, लेकिन राज्यसभा अपने सभापति को पदच्युत नहीं कर सकती।

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प्रश्न 12.
संसद स्वयं को कैसे नियंत्रित करती है?
उत्तर:
संसद स्वयं को नियंत्रित करती है। संसद स्वयं को निम्न प्रकार नियंत्रित करती है।
1. अध्यक्ष के द्वारा नियंत्रण:
स्वयं संविधान में संसद की कार्यवाही को सुचारु ढंग से चलाने के लिए प्रावधान बनाए गए हैं। सदन का अध्यक्ष इन प्रावधानों के अनुसार संसद की कार्यवाही को नियंत्रित करता है क्योंकि वह विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी होता है।

2. दलबदल निरोधक कानून द्वारा नियंत्रण:
दलबदल कानून का उल्लंघन करने पर सदन का अध्यक्ष उसकी सदन की सदस्यता समाप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे दलबदलू को किसी भी राजनैतिक पद (जैसे– मंत्री ) के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न 13.
संसदीय समितियाँ क्या करती हैं?
उत्तर:
संसदीय समितियाँ निम्न कार्य करती हैं।

  1. संसदीय समितियाँ उसके पास संसद द्वारा भेजे गये विधेयक पर गहन अध्ययन तथा विचार-विमर्श कर अपने निष्कर्ष के साथ उसे पुनः सदन में भेजती हैं। इस प्रकार वे कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  2. संसदीय समितियाँ कानून निर्माण के अतिरिक्त सदन के दैनिक कार्यों में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं; जैसे – मंत्रालयों की अनुदान मांगों का अध्ययन, विभिन्न विभागों द्वारा किये गये खर्चों की जाँच, भ्रष्टाचार के मामलों की पड़ताल आदि।

प्रश्न 14.
कानून बनाने का निर्णय लेने से पहले मंत्रिमंडल किन-किन बातों पर विचार करता है?
उत्तर:
मंत्रिमण्डल को विधेयक बनाने से पहले उसके सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना पड़ता है।

  1. कानून को लागू करने के लिए जरूरी संसाधनों को कहाँ से जुटाया जायेगा?
  2. विधेयक का कितना समर्थन और विरोध होगा?
  3. प्रस्तावित कानून से सत्तारूढ़ दल की चुनावी संभावनाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
  4. प्रस्तावित विधेयक पर गठबंधन के घटक दलों का समर्थन प्राप्त होगा या नहीं? कानून बनाने का निर्णय लेने से पहले मंत्रिमण्डल इन सभी बातों पर विचार करता है।

प्रश्न 15.
संसद के चार गैर-विधायी कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  1. संसद मंत्रिमण्डल पर नियन्त्रण करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। मंत्रिमण्डल को तब तक अपने पद पर बने रहने का अधिकार है जब तक उसे संसद का बहुमत प्राप्त होता रहता है।
  2. संसद राष्ट्र की नीतियों को निर्धारित करती है।
  3. संसद उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है तथा राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेती है।
  4. संसद यदि चाहे तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटा सकती है।

प्रश्न 16.
भारतीय संसद की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
भारतीय संसद की विशेषताएँ – भारतीय संसद की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • भारतीय संसद द्वि-सदनात्मक है। इसके दो सदन हैं
    1. लोकसभा (निम्न सदन)
    2. राज्यसभा ( उच्च सदन)।
  • भारत में संसद देश में कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है।
  • इसके दोनों सदनों की शक्तियाँ समान नहीं हैं।
  • लोकसभा का गठन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है जबकि राज्य सभा का गठन अप्रत्यक्ष रूप से राज्य – विधानसभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 17.
भारत में कुल कितने संघ राज्य क्षेत्र हैं? इनके नाम लिखिये।
उत्तर:
भारत में कुल 9 संघ राज्य क्षेत्र हैं। ये हैं।

  1. अण्डमान निकोबार द्वीप समूह
  2. चंडीगढ़
  3. दादरा और नगर हवेली
  4. दमन और दीव
  5. लक्षदीप
  6. नई दिल्ली
  7. पांडिचेरी
  8. जम्मू-कश्मीर
  9. लद्दाख।

प्रश्न 18.
विधायिका से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विधायका से आशय सरकार के तीन अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में विधायिका एक महत्वपूर्ण अंग है। संसदीय सरकार के सभी अंगों में विधायिका सर्वाधिक प्रतिनिध्यात्मक है। विधायिका का मुख्य काम कानून का निर्माण करना है। लेकिन कानून के अतिरिक्त यह मंत्रिमण्डल पर नियंत्रण का भी कार्य करती है। यह वाद-विवाद का सबसे लोकतांत्रिक और खुला मंच है। यह सभी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रियाओं का केन्द्र है।

प्रश्न 19.
विधायिका के चार कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  1. विधायिका का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कानून निर्माण करना है।
  2. विधायिका राज्य के वित्त पर नियंत्रण करती है तथा बजट पारित करती है।
  3. सभी लोकतांत्रिक राज्यों में संविधान में संशोधन करने का अधिकार विधायिका के पास है।
  4. विधायिका कार्यपालिका पर नियंत्रण का कार्य करती है।

प्रश्न 20.
द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका के दो गुण (लाभ) बताइये।
उत्तर:
द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका के गुण (लाभ): द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका के दो प्रमुख लाभ ये हैं:

1. समाज के सभी वर्गों और क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व:
विविधताओं से परिपूर्ण बड़े देश प्रायः द्विसदनात्मक राष्ट्रीय विधायिका चाहते हैं ताकि वे अपने समाज के सभी वर्गों और देश के सभी क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व दे सकें ।

2. पुनर्विचार संभव;
संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो जाता है। एक सदन द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय दूसरे सदन को भेजा जाता है। यदि एक सदन जल्दबाजी में कोई निर्णय ले लेता है तो दूसरे सदन में उस पर पुनर्विचार हो जाता है।

प्रश्न 21.
द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व के कौन-से दो सिद्धान्त हैं?
उत्तर:
द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त – द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व के दो प्रमुख सिद्धान्त हैं। ये निम्नलिखित हैं।

1. समान प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त;
देश के सभी क्षेत्रों (राज्यों) के असमान आकार और जनसंख्या के बावजूद द्वितीय सदन में प्रत्येक क्षेत्र को समान प्रतिनिधित्व दिया जाता है; जैसा कि अमेरिका और स्विट्जरलैण्ड में है।

2. असमान प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त;
देश के विभिन्न क्षेत्रों (राज्यों) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये अर्थात् अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों को कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों से अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाये; जैसा कि भारत में है।

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प्रश्न 22.
राज्य सभा की रचना की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुसार राज्य सभा के सदस्यों की संख्या अधिक-से-अधिक 250 हो सकती है, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले होंगे, 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जा सकते हैं, जिन्हें समाज सेवा, कला तथा विज्ञान, शिक्षा आदि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। राज्य सभा में विभिन्न राज्यों की जनसंख्या के आधार पर संविधान द्वारा निर्धारित सदस्यों का निर्वाचन उस राज्य की विधायिका के द्वारा किया जाता हैं।

प्रश्न 23.
भारत में राज्यसभा के लिए अमेरिका की समान प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग क्यों नहीं किया गया है?
उत्तर:
यदि भारत में राज्यसभा के लिए अमेरिका की समान प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग किया जाता तो 19.98 करोड़ जनसंख्या वाले उत्तरप्रदेश राज्य को 6.10 लाख जनसंख्या वाले सिक्किम राज्य के बराबर ही प्रतिनिधित्व मिलता। संविधान निर्माताओं ने इस विसंगति से बचने के लिए प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने का निर्णय लिया। इस आधार पर उत्तरप्रदेश को 31 सीटें तथा सिक्किम को राज्यसभा की एक सीट दी गयी है।

प्रश्न 24.
संघीय व्यवस्था में द्वितीय सदन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संघीय व्यवस्था में द्वितीय सदन की आवश्यकता:
संघीय व्यवस्था में दूसरे सदन का होना आवश्यक है। संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व दूसरे सदन में ही दिया जा सकता है। अत: समाज के सभी वर्गों और देश के सभी क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व देने के लिए संघीय व्यवस्था में दूसरे सदन की आवश्यकता होती है।

द्वितीय सदन की भूमिका:
द्वितीय सदन राज्यों (संघ की इकाइयों) का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था होती है। इसका उद्देश्य राज्यों के हितों का संरक्षण करना है। इसलिए, राज्य के हितों को प्रभावित करने वाला प्रत्येक मुद्दा इसकी सहमति व स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में यदि केन्द्र सरकार राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रहित में संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करना चाहे, तो उसमें राज्य सभा की स्वीकृति आवश्यक है।

  • द्वितीय सदन के लाभ
    1. द्वितीय सदन कानून निर्माण में जल्दबाजी को रोकता है।
    2. यह संघ की एकता और सहयोग की भावना को दृढ़ करता हैं।
    3. यह प्रथम सदन की निरंकुशता पर अंकुश लगाता है।
  • द्वितीय सदन की हानियाँ
    1. द्वितीय सदन व्यर्थ है। यह देश के धन का दुरुपयोग है।
    2. यह सदन कानून निर्माण के कार्य में अनावश्यक गतिरोध पैदा करता है।
    3. संघात्मक सरकार में भी जब दूसरे सदन के सदस्य राजनीतिक दलों के आधार पर चुने जाते हैं तो उनकी निष्ठा उस राज्य की तुलना में उस दल विशेष के प्रति अधिक हो जाती है। फलतः दल की निष्ठा में राज्य हित तिरोहित हो जाता है।

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प्रश्न 25.
उन परिस्थितियों को बताइये जब भारतीय संसद उन विषयों पर भी कानून बना सकती है जो राज्य सूची में शामिल हैं।
उत्तर:
राज्य सूची के विषयों पर संसद सामान्य स्थितियों पर तो कानून नहीं बना सकती, क्योंकि इस सूची के विषयों पर कानून निर्माण का अधिकार केवल राज्यों के विधानमण्डलों को दिया गया है। लेकिन निम्नलिखित दो परिस्थितियों में संसद भी राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।

  1. उस अवस्था में जब राज्य सूची का कोई विषय राष्ट्रीय महत्व का बन जाता है तब राज्य सभा यदि 2 / 23 के बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित करती है कि राज्य सूची का अमुक विषय राष्ट्रीय महत्व का बन गया है तो इस विषय पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  2. राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के पश्चात् भी राज्य सूची के विषय पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 26.
लोकसभा तथा राज्यसभा की विशेष शक्तियों का उल्लेख कीजिये।
अथवा
लोकसभा और राज्यसभा की उन विशेष शक्तियों का उल्लेख कीजिए जो एक सदन के पास हैं और दूसरे सदन के पास नहीं हैं।
उत्तर:
लोकसभा की विशेष शक्तियाँ: लोकसभा को निम्नलिखित ऐसी विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो राज्य सभा को प्राप्त नहीं हैं।

  1. धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं और वही उसे संशोधित या अस्वीकृत कर सकती है।
  2. मंत्रिपरिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्य सभा सरकार की आलोचना तो कर सकती है, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा उसे हटा नहीं सकती। इस प्रकार सरकार को हटाने और वित्त पर नियंत्रण रखने की शक्ति केवल लोकसभा के ही पास है।

राज्यसभा की विशेष शक्तियाँ।

  1. यदि केन्द्र सरकार राज्य सूची के किसी विषय को, राष्ट्रहित में, संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करना चाहे, तो उसमें राज्य सभा की स्वीकृति आवश्यक है। यदि राज्य सभा अपने 2/3 बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर देती है, तो वह विषय राष्ट्रीय महत्व का बन जाता है और उस पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  2. राज्य सभा ही 2/3 बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करके संघ सरकार को नई अखिल भारतीय सेवा निर्मित करने का अधिकार प्रदान कर सकती है।

प्रश्न 27.
भारत में संसदीय समितियाँ क्या करती हैं?
उत्तर:
(अ) स्थायी संसदीय समितियों के कार्य: विभिन्न विधायी कार्यों के लिए भारत में स्थायी संसदीय समितियों का गठन किया गया है। ये समितियाँ केवल कानून बनाने में ही नहीं, वरन् सदन के दैनिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यथा-
1. विधायी कार्य:
चूंकि संसद के पास कम समय होता है, इसलिए उस पर गहन अध्ययन हेतु वह स्वयं विचार करने से पूर्व संसद की संबंधित स्थायी समिति को भेज देती है। भारत में विभिन्न विभागों से संबंधित 20 स्थायी समितियाँ हैं जो उनसे संबंधित विधेयकों पर विचार करती हैं। ये समितियाँ संसद द्वारा विधेयक पर गहन अध्ययन व विचार-विमर्श कर अपनी सिफारिशें करती हैं। इन सिफारिशों को सदन में भेज दिया जाता है। इन समितियों में सभी संसदीय दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इन समितियों के सुझावों को सामान्यतः संसद स्वीकार कर लेती है।

2. दैनिक कार्य:
संसदीय समितियाँ विधायी कार्य के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण दैनिक कार्य भी करती हैं, जैसे—विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों का अध्ययन, विभिन्न विभागों के द्वारा किये गए खर्चों की जाँच, भ्रष्टाचार के मामलों की पड़ताल आदि।
(ब) संयुक्त संसदीय समितियों के कार्य – स्थायी संसदीय समितियों के अतिरिक्त देश में संयुक्त संसदीय समितियों का गठन किसी विधेयक पर संयुक्त चर्चा अथवा वित्तीय अनियमितताओं की जाँच के लिए किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
लोकसभा की शक्तियों का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
लोकसभा की शक्तियाँ लोकसभा की प्रमुख शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  • विधि निर्माण सम्बन्धी कार्य: लोकसभा संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाती है। यह धन विधेयकों और सामान्य विधेयकों को प्रस्तुत और पारित करती है तथा संविधान संशोधन विधेयकों को प्रस्तुत तथा पर है।
  • वित्तीय कार्य लोकसभा कर: प्रस्तावों, बजट तथा वार्षिक वित्तीय वक्तव्यों को स्वीकृति देती है।
  • कार्यपालिका पर नियंत्रण का कार्य: लोकसभा प्रश्न पूछकर, पूरक प्रश्न पूछकर, प्रस्ताव लाकर और अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। अन्य कार्य;
    1. लोकसभा आपातकाल की घोषणा को स्वीकृति देती है।
    2. यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है तथा उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाकर उन्हें पदच्युत करने में भाग लेती है।
    3. यह महाभियोग के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटा सकती है।
    4. यह समिति और आयोगों का गठन करती है और उनके प्रतिवेदनों पर विचार करती है।

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प्रश्न 29.
राज्यसभा की शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्यसभा की शक्तियाँ राज्यसभा की प्रमुख शक्तियाँ निम्नलिखित हैं।
1. विधायी व संवैधानिक संशोधन की शक्तियाँ:
राज्यसभा सामान्य विधेयकों को प्रस्तुत तथा पारित करती है। लेकिन यह धन विधेयकों को न तो प्रस्तावित कर सकती है और न पारित करती है, बल्कि उस पर विचार कर संशोधन प्रस्तावित ही कर सकती है। यह संवैधानिक संशोधन को भी प्रस्तावित तथा पारित करती है।

2. कार्यपालिका नियंत्रण सम्बन्धी शक्ति:
राज्यसभा प्रश्न पूछकर तथा संकल्प एवं प्रस्ताव प्रस्तुत करके कार्यपालिका पर नियंत्रण करती है; लेकिन उसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती। इस प्रकार यह कार्यपालिका को अपदस्थ नहीं कर सकती।

3. विशेष अधिकार:
यह राज्य सूची के किसी विषय पर संघ सरकार को कानून बनाने का अधिकार दे सकती है। इसी प्रकार कोई नई अखिल भारतीय सेवा प्रारम्भ करने की भी अनुमति दे सकती है।

4. अन्य अधिकार:
यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भागीदारी करती है तथा उन्हें और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया में भागादारी करती है। उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही लाया जा सकता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संसद के गठन एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।.
उत्तर:
भारतीय संसद का गठन भारत की संसद द्विसदनात्मक संघीय व्यवस्थापिका है। इसके दो सदन हैं।

  1. लोकसभा और
  2. राज्यसभा। लोकसभा निम्न सदन है और राज्य सभा उच्च सदन है।

(अ) राज्य सभा का गठन: राज्य सभा की रचना का वर्णन अग्र प्रकार किया गया है।
(i) राज्यों का प्रतिनिधि सदन: राज्य सभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।

(ii) अप्रत्यक्ष निर्वाचन: इसका निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि से होता है। किसी राज्य के लोग राज्य की विधानसभा के सदस्यों को चुनते हैं। फिर राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के सदस्यों को चुनते हैं।

(iii) प्रतिनिधित्व का आधार: राज्यसभा में देश के विभिन्न क्षेत्रों (राज्यों) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस प्रकार राज्य सभा में ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्रों को ज्यादा प्रतिनिधित्व और कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों को कम प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ है। जनसंख्या के अनुपात के आधार पर संविधान की चौथी अनुसूची में प्रत्येक राज्य से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है।

(iv) प्रतिनिधित्व की पद्धति: राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से चुने जाने वाले सदस्यों को वहाँ की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य एक संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा चुनते हैं।
इस प्रकार राज्य सभा की अधिकतम संख्या संविधान द्वारा 250 निश्चित की गई है। इनमें से 238 सदस्य राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से चुनकर आते हैं तथा 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं जो साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योग्यता रखते हों।

(v) स्थायी सदन: राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसे किसी भी स्थिति में भंग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। उन्हें दुबारा निर्वाचित किया जा सकता है। इसके सभी सदस्य अपना कार्यकाल एक साथ पूरा नहीं करते। प्रत्येक दो वर्ष पर इसके एक-तिहाई सदस्य अपना कार्यकाल पूरा करते हैं और इन एक-तिहाई सीटों के लिए चुनाव होते हैं। इस तरह राज्य सभा कभी भी पूरी तरह भंग नहीं होती।

(vi) सभापति तथा उपसभापति: भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापित होता है। वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता, लेकिन उसकी बैठकों की अध्यक्षता करता है। उपसभापति राज्य सभा के सदस्यों में से ही राज्य सभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।

(ब) लोकसभा का गठन।

  1. प्रत्यक्ष निर्वाचन: लोकसभा के लिए जनता सीधे सदस्यों को चुनती है। इसे प्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं।
  2. निर्वाचन क्षेत्र: लोकसभा के लिए पूरे देश को लगभग समान जनसंख्या वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। इस समय लोकसभा के 543 निर्वाचन क्षेत्र हैं।
  3. निर्वाचन विधि: लोकसभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के मत का मूल्य समान होता है।
  4. कार्यकाल: लोकसभा के सदस्यों को 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। लेकिन यदि कोई दल या दलों का गठबंधन सरकार न बना सके अथवा प्रधानमंत्री को लोकसभा भंग कर नए चुनाव कराने की सलाह दे, तो लोकसभा को 5 वर्ष पहले ही भंग किया जा सकता है।
  5. अध्यक्ष: लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों में से ही उनके द्वारा चुना जाता है। वह लोकसभा की कार्यवाहियों को संचालित करता है।

संसद की शक्तियाँ व कार्य: संसद की प्रमुख शक्तियाँ व कार्य निम्नलिखित हैं।
1. विधायी कार्य व शक्तियाँ:
संसद पूरे देश या देश के किसी भाग के लिए कानून बनाती है। यह कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है। कानून निर्माण की सर्वोच्च संस्था होने के बावजूद संसद व्यवहार में कानूनों की केवल स्वीकृति देने मात्र का काम करती है। क्योंकि विधेयक को तैयार करना, उसे संसद में प्रस्तुत करना तथा संसद से उसे स्वीकृत कराने की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। मंत्रिमंडल संसद में बहुमत के आधार पर उसे स्वीकृत करा लेती है।

2. कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना:
संसद का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कार्यपालिका को उसके अधिकार क्षेत्र में, सीमित रखने तथा जनता के प्रति उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है। इसके लिए संसद सदस्य मंत्रिमंडल के सदस्यों से प्रश्न पूछकर, पूरक प्रश्न पूछकर, स्थगन और काम रोको प्रस्ताव व असहयोग प्रस्ताव के माध्यम से कार्यपालिका को नियंत्रित करते हैं।

3. वित्तीय कार्य:
लोकतंत्र में संसद कराधान तथा सरकार द्वारा धन के प्रयोग पर नियंत्रण लगाती है। यदि भारत सरकार कोई नया कर प्रस्ताव लाए तो उसे संसद की स्वीकृति लेनी पड़ती है। संसद की वित्तीय शक्तियाँ उसे सरकार के कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराने का अधिकार देती हैं। सरकार को अपने द्वारा खर्च किये गए धन का हिसाब तथा प्रस्तावित आय का विवरण संसद को देना पड़ता है। संसद यह भी सुनिश्चित करती है कि सरकार न तो गलत खर्च करे और न ही ज्यादा खर्च करे। संसद यह सब बजट और वार्षिक वित्तीय वक्तव्य के माध्यम से करती है।

4. प्रतिनिधित्व-संसद देश के विभिन्न क्षेत्रीय, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक समूहों के अलग-अलग विचारों का प्रतिनिधित्व करती है।

5. बहस का मंच:
संसद में सदस्यों के विचार-विमर्श करने की शक्ति पर कोई अंकुश नहीं है। सदस्यों को किसी भी विषय पर निर्भीकता से बोलने की स्वतंत्रता है। इससे संसद राष्ट्र के समक्ष आने वाले किसी एक या हर मुद्दे का विश्लेषण कर पाती है। इस प्रकार संसद देश में वाद-विवाद का सर्वोच्च मंच है।

6. संवैधानिक कार्य-संसद के पास संविधान में संशोधन की शक्ति है। संसद के दोनों सदनों को संवैधानिक शक्तियाँ समान हैं। प्रत्येक संविधान संशोधन का संसद के दोनों सदनों द्वारा 2/3 बहुमत से पारित होना जरूरी है। लेकिन संसद, संसद के मूल ढांचे में संशोधन नहीं कर सकती।

7. निर्वाचन सम्बन्धी कार्य-संसद चुनाव सम्बन्धी कुछ कार्य भी करती है। यह भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है। लोकसभा अपने सभापति और उपसभापति तथा राज्य सभा अपने उपसभापति के निर्वाचन का भी कार्य करती है।

8. न्यायिक कार्य: भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पद से हटाने के प्रस्तावों पर विचार करने के कार्य संसद के न्यायिक कार्य के अन्तर्गत आते हैं।

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प्रश्न 2.
कोई विधेयक कानून बनने के लिए किन अवस्थाओं से गुजरता है? उनका वर्णन कीजिये । विधेयक से कानून बनने की विभिन्न अवस्थाएँ
उत्तर:
संसद का प्रमुख कार्य अपनी जनता के लिए कानून बनाना है। कानून बनाने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया अपनायी जाती है। इस प्रक्रिया में किसी विधेयक को कई अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। ये अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं।
1. विधेयक का प्रस्तुतीकरण तथा उसका प्रथम वाचन:
प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधेयक कहते हैं। विधेयक जिस मंत्रालय से सम्बद्ध होता है, वही मंत्रालय उसका प्रारूप बनाता है। यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है, तो उसे संसद के किसी भी सदन – लोकसभा या राज्य सभा में कोई भी सदस्य इस विधेयक को पेश कर सकता है। जिस विषय का विधेयक हो उस विषय से जुड़ा मंत्री ही प्राय: विधेयक पेश करता है। इसे सरकारी विधेयक कहते हैं और यदि मंत्री के अतिरिक्त कोई अन्य सांसद विधेयक प्रस्तुत करता है, तो इसे निजी विधेयक कहते हैं।

धन विधेयक को केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। लोकसभा में पारित होने के बाद उसे राज्य सभा में भेज दिया जाता है। यदि विधेयक सकारी होता है तो उसे प्रस्तावित करने की सूचना मंत्री सात दिन पहले सदन को देता है और यदि विधेयक गैर-सरकारी होता है तो उसकी सूचना वह सदन को एक माह पहले देता है। प्रस्तावित विधेयक की एक प्रति सदन के सचिवालय को भेजी जाती है। सदन का अध्यक्ष विधेयक को निश्चित तिथि को सदन की कार्यवाही सूची में शामिल कर लेता है। निश्चित तिथि को प्रस्तावक सदस्य अपने स्थान पर खड़ा होकर विधेयक के शीर्षक को पढ़ता है तथा उसके मुख्य प्रावधानों पर प्रकाश डालता है तथा उसकी आवश्यकता बतलाता है। सदन में विधेयक प्रस्तावित होने के बाद उसे सरकारी गजट में छाप दिया जाता है।

(2) द्वितीय वाचन – विधेयक के प्रस्तावित और गजट में प्रकाशित होने के बाद निश्चित तिथि को विधेयक का द्वितीय वाचन प्रारम्भ होता है । प्रस्तावक इस अवस्था में निम्न प्रस्तावों में से कोई एक प्रस्ताव रखता है।

  1. सदन विधेयक पर शीघ्र विचार करे।
  2. विधेयक को प्रवर समिति को सौंप दिया जाये।
  3. विधेयक दोनों सदनों की संयुक्त समिति को सौंप दिया जाये।
  4. जनमत प्राप्त करने के लिए विधेयक को प्रसारित कर दिया जाये।

विधेयकों को अधिकतर प्रवर समिति के पास ही भेज दिया जाता है। इस समय विधेयक के गुण-दोषों पर ही सामान्य रूप से प्रकाश डाला जाता है। इस पर विस्तार से वाद-विवाद नहीं होता।

3. समिति स्तर:
समिति में विधेयक पर धारावार विचार किया जाता है। समिति के प्रत्येक सदस्य को विधेयक की धाराओं, उपधाराओं पर विचार प्रकट करने तथा उसमें आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव रखने का अधिकार होता है। समिति यह आवश्यक समझे तो विशेषज्ञों से इसके विषय में राय ले सकती है। इसके बाद समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करती है।

4. सदन समिति की रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करता है:
समिति की रिपोर्ट तैयार होने के बाद उसे सदन के सदस्यों में बाँट दिया जाता है तथा उस पर विचार करने की तिथि निश्चित की जाती है। उस तिथि पर विधेयक पर पूरी तरह से विचार-विमर्श किया जाता है तथा सदस्यों को भी इस समय संशोधन प्रस्ताव रखने का अधिकार होता है। वाद-विवाद के पश्चात् विधेयक के प्रत्येक खण्ड तथा संशोधन पर मतदान होता है । संशोधन यदि बहुमत से स्वीकार हो जाते हैं तो वे विधेयक के अंग बन जाते हैं और उसके अनुसार विधेयक पास हो जाता है।

5. तृतीय वाचन:
रिपोर्ट स्तर के बाद विधेयक के तृतीय वाचन की तिथि निश्चित की जाती है । इस अवस्था में विधेयक की भाषा, व्याकरण तथा शब्दों के विषय में विचार किया जाता है । फिर सम्पूर्ण विधेयक पर मतदान कराकर उसे पारित कर दिया जाता है। सदन का अध्यक्ष इसे प्रमाणित करता है और उसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।

6. विधेयक पर दूसरे सदन में विचार- विधेयक पर दूसरे सदन में भी इसी प्रकार विचार किया जाता है अर्थात् दूसरे सदन में भी विधेयक उपर्युक्त सभी स्तरों से गुजरता है। यदि दूसरा सदन विधेयक को पास कर देता है तो उसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता हैं। यदि दूसरा सदन विधेयक में कुछ ऐसे संशोधन सुझाता है जो पहले सदन को स्वीकार नहीं हैं या विधेयक को पारित ही नहीं करता तो इस गतिरोध को तोड़ने के लिए दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है और फिर बहुमत के आधार पर विधेयक के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है जो प्रायः लोकसभा के पक्ष में रहता है।

संविधान संशोधन विधेयक के सम्बन्ध में संयुक्त अधिवेशन का कोई प्रावधान नहीं है। अतः यदि दूसरा सदन इसे पारित नहीं करता है तो विधेयक समाप्त हो जाता है। धन विधेयक के सम्बन्ध में राज्य सभा को कोई विशेषाधिकार नहीं है, वह केवल उसे 14 दिन तक ही रोके रख सकती है। यदि 14 दिन तक वह उसे पारित नहीं करती है तो विधेयक पारित माना जायेगा और राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जायेगा।

7. राष्ट्रपति की स्वीकृति:
राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर विधेयक कानून बन जाता है। राष्ट्रपति असहमत होने पर किसी विधेयक को एक बार पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकता है, परन्तु यदि संसद उसे दुबारा पारित कर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेज देती है तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

प्रश्न 3.
भारतीय संसद कार्यपालिका को कैसे नियंत्रित करती है? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
संसद द्वारा कार्यपालिका को नियंत्रित करना: संसद अनेक विधियों का प्रयोग कर कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। वह अनेक स्तरों पर कार्यपालिका की जवाबदेही को सुनिश्चित करने का काम करती है। यह काम नीति-निर्माण, कानून या नीति को लागू करने तथा कानून या नीति के लागू होने के बाद वाली अवस्था आदि किसी भी स्तर पर किया जा सकता है। संसद यह कार्य निम्नलिखित तरीकों से करती है।
1. बहस और वाद-विवाद:
कानून निर्माण करने की प्रक्रिया में संसद के सदस्यों को कार्यपालिका के द्वारा बनायी गयी नीतियों और उसके क्रियान्वयन के तरीकों पर बहस करने का अवसर मिलता है। विधेयकों पर परिचर्चा के अतिरिक्त, सदन में सामान्य वाद-विवाद के दौरान भी विधायिका को कार्यपालिका पर नियंत्रण करने का अवसर मिल जाता है। ऐसे कुछ अवसर निम्नलिखित हैं-

(i) प्रश्नकाल: संसद के अधिवेशन के समय प्रतिदिन प्रश्नकाल आता है जिसमें मंत्रियों को सदस्यों के तीखे प्रश्नों का जवाब देना पड़ता है। प्रश्नकाल सरकार की कार्यपालिका और प्रशासकीय एजेंसियों पर निगरानी रखने का सबसे प्रभावी तरीका है। ज्यादातर प्रश्न लोकहित के विषयों, जैसे – मूल्य वृद्धि, अनाज की उपलब्धता, समाज के कमजोर वर्गों के विरुद्ध अत्याचार, दंगे, कालाबाजारी आदि पर सरकार से सूचनाएँ मांगने के लिए होते हैं । इसमें सदस्यों को सरकार की आलोचना करने और अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं को समझाने का अवसर मिलता है। इसमें कई बार सदन से बहिर्गमन की घटनाएँ भी होती रहती हैं।

(ii) शून्यकाल: इसमें सदस्य किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे को उठा सकते हैं, पर मंत्री उसका उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं हैं।

(iii) आधे घंटे की चर्चा और स्थगन प्रस्ताव: लोकहित के मामले में आधे घंटे की चर्चा और स्थगन प्रस्ताव आदि का भी विधान है। ये सभी कदम सरकार से रियायत प्राप्त करने के राजनीतिक तरीके हैं और इससे कार्यपालिका का उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है।

2. कानूनों की स्वीकृति या अस्वीकृति:
कानूनों में मंजूरी देने या नामंजूर करने का अधिकार भी संसद के पास होता है। इस अधिकार के द्वारा भी संसद कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। कोई भी विधेयक संसद की स्वीकृति के बाद ही कानून बन पाता है। यद्यपि संसद में सरकार का बहुमत होने के कारण संसदीय स्वीकृति प्राप्त करना कठिन नहीं होता; लेकिन इस सहमति के लिए शासक दल या गठबंधन के विभिन्न सदस्यों अथवा सरकार और विपक्ष के बीच गंभीर मोल- तोल और समझौते होते हैं। यदि लोकसभा में सरकार का बहुमत है लेकिन राज्यसभा में नहीं हो, तो संसद के दोनों सदनों से स्वीकृति लेने के लिए सरकार को काफी रियायतें देनी पड़ती हैं। राज्यसभा ने अनेक विधेयकों, जैसे लोकपाल विधेयक, आतंकवाद निरोधक विधेयक (2000) को, राज्यसभा ने अस्वीकृत कर दिया था।

3. वित्तीय नियंत्रण:
सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था बजट के द्वारा की जाती है। संसदीय स्वीकृति के लिए बजट बनाना और उसे पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी के कारण विधायिका को कार्यपालिका के खजाने पर नियंत्रण करने का अवसर मिल जाता है। सरकार के लिए संसाधन स्वीकृत करने से विधायिका मना कर सकती है। धन स्वीकृत करने से पहले लोकसभा भारत के नियंत्रक – महालेखा परीक्षक और संसद की लोक लेखा समिति की रिपोर्ट के आधार पर धन के दुरुपयोग के मामलों की जाँच कर सकती है। लेकिन संसदीय नियंत्रण का उद्देश्य सरकारी धन के सदुपयोग को सुनिश्चित करने के साथ- साथ विधायिका द्वारा सरकार की नीतियों पर भी नियंत्रण करना है।

4. अविश्वास प्रस्ताव:
संसद द्वारा कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने का सबसे सशक्त हथियार अविश्वास प्रस्ताव है। लेकिन जब तक सरकार को अपने दल या सहयोगी दलों का बहुमत प्राप्त हो तब तक सरकार को हटाने की सदन की यह शक्ति वास्तविक कम और काल्पनिक ज्यादा होती है। लेकिन सन् 1989 के बाद से अपने प्रति सदन के अविश्वास के कारण अनेक सरकारों को त्यागपत्र देना पड़ा। इनमें से प्रत्येक सरकार ने लोकसभा का विश्वास खोया क्योंकि वह अपने गठबंधन के सहयोगी दलों का समर्थन बनाए न रख सकी। इस प्रकार अनेक तरीकों से संसद कार्यपालिका को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है और एक उत्तरदायी सरकार का होना सुनिश्चित कर सकती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का अर्थ होता है।
(क) संसद द्वारा निर्वाचित कार्यपालिका।
(ख) ऐसी कार्यपालिका जो संसद को बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।
(ग) जहाँ संसद हो वहाँ कार्यपालिका का होना।
(घ) देश तथा सरकार के अध्यक्ष का जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होना तथा संसद के प्रति जवाबदेह नहीं होना।
उत्तर:
(घ) देश तथा सरकार के अध्यक्ष का जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होना तथा संसद के प्रति जवाबदेह नहीं होना।

2. भारतीय पुलिस सेवा निम्न में से किसके अन्तर्गत आती है।
(क) अखिल भारतीय सेवाएँ
(ख) केन्द्रीय सेवाएँ
(ग) प्रान्तीय सेवाएँ
(घ) स्थानीय स्वशासन की सेवाएँ।
उत्तर:
(क) अखिल भारतीय सेवाएँ

3. संसदात्मक सरकार में निम्न में से कौनसी विशेषता नहीं पायी जाती है।
(क) सरकार के प्रमुख को प्रायः प्रधानमन्त्री कहते हैं।
(ख) सरकार का प्रमुख विधायिका में बहुमत दल या गठबन्धन का नेता होता है।
(ग) सरकार का प्रमुख ही देश या राष्ट्र का प्रमुख होता है।
(घ) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।
उत्तर:
(ग) सरकार का प्रमुख ही देश या राष्ट्र का प्रमुख होता है।

4. संसदात्मक सरकार की विशेषता है-
(क) देश का प्रमुख ही सरकार का प्रमुख होता है।
(ख) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।
(ग) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
(घ) सरकार का प्रमुख प्रायः प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है।
उत्तर:
(ख) सरकार का प्रमुख विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

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5. अध्यक्षात्मक सरकार में निम्न में से कौनसी विशेषता नहीं पायी जाती।
(क) राष्ट्रपति देश का प्रमुख तथा सरकार का प्रमुख दोनों होता है।
(ख) राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा किया जाता है।
(ग) राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता।
(घ) राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।
उत्तर:
(घ) राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।

6. संसदात्मक व्यवस्था को निम्न में से किस देश में अपनाया गया है।
(क) भारत
(ग) ब्राजील
(ख) अमेरिका
(घ) लैटिन अमेरिका के अन्य देश।
उत्तर:
(क) भारत

7. भारत में मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की अधिकतम संख्या हो सकती है।
(क) लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 20 प्रतिशत तक।
(ख) लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक।
(ग) संसद (लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों) की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक।
(घ) संसद की कुल सदस्य संख्या के
उत्तर:
(ख) लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक।

8. मन्त्रिपरिषद् तभी अस्तित्व में आती है, 20 प्रतिशत तक।
(क) प्रधानमन्त्री अपने पद से त्याग पत्र दे देता है।
(ख) प्रधानमन्त्री की मृत्यु हो जाती है।
(ग) प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ ले लेता है।
(घ) राष्ट्रपति त्याग-पत्र दे देता है।
उत्तर:
(ग) प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ ले लेता है।

9. राज्य में राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है।
(क) केन्द्रीय सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा
(ख) सर्वोच्च न्यायालय की सलाह पर प्रधानमन्त्री द्वारा
(ग) संघीय लोक सेवा आयोग द्वारा
(घ) राज्य सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा।
उत्तर:
(क) केन्द्रीय सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा

10. निम्न में से कौनसी विशेषता भारतीय नौकरशाही की नहीं है।
(क) भारतीय नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ है।
(ख) भारतीय नौकरशाही राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध है।
(ग) इसके सदस्यों का चयन बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर किया जाता है।
(घ) इसका चयन संघ लोक सेवा आयोग या राज्यों के लोक सेवा आयोग करते हैं।
उत्तर:
(ख) भारतीय नौकरशाही राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध है।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. सरकार का वह अंग जो विधायिका द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता कहलाता है। ………….. कहलाता है।
उत्तर:
कार्यपालिका

2. सरकार के प्रधान और उनके मंत्रियों को ………………… कार्यपालिका कहते हैं।
उत्तर:
राजनीतिक

3. जो लोग रोज-रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं, उन्हें …………………. कार्यपालिका कहते हैं।
उत्तर:
स्थायी

4. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय और प्रान्तीय दोनों ही स्तरों पर ………………….. कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है।
उत्तर:
संसदीय

5. भारत का राष्ट्रपति सरकार का ……………….. प्रधान है।
उत्तर:
औपचारिक

6. भारत में प्रधानमंत्री सरकार का ……………….. प्रधान है।
उत्तर:
वास्तविक

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निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गई हैं।
उत्तर:
सत्य

2. राष्ट्रपति को किसी भी विधेयक को एक निश्चित समय सीमा के अन्दर पुनर्विचार के लिए लौटाना होता है।
उत्तर:
असत्य

3. उपराष्ट्रपति लोकसभा का पदेन अध्यक्ष होता है।
उत्तर:
असत्य

4. संघीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या राज्य सभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
उत्तर:
असत्य

5. मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. उपराष्ट्रपति (क) लोकसभा
2. भारत का निम्न सदन (ख) राष्ट्रपति
3. भारत का उच्च सदन (ग) स्थायी कार्यपालिका
4. संघीय कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान (घ) राष्ट्रपति का विवेकाधिकार
5. नौकरशाही (च) राज्य सभा का पदेन सभापति
6. पॉकेट वीटो (छ) राज्यसभा

उत्तर:

1. उपराष्ट्रपति (च) राज्य सभा का पदेन सभापति
2. भारत का निम्न सदन (क) लोकसभा
3. भारत का उच्च सदन (छ) राज्यसभा
4. संघीय कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान (ख) राष्ट्रपति
5. नौकरशाही (ग) स्थायी कार्यपालिका
6. पॉकेट वीटो (घ) राष्ट्रपति का विवेकाधिकार

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक कार्यपालिका से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनीतिक कार्यपालिका सरकार के प्रधान और उनके मन्त्रियों को राजनीतिक कार्यपालिका कहते हैं । यह सरकार की सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 2.
स्थायी कार्यपालिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
स्थायी कार्यपालिका जो लोग रोज-रोज के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं, उन्हें स्थायी कार्यपालिका कहते हैं।

प्रश्न 3.
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
मोटे रूप से कार्यपालिका तीन प्रकार की होती है।

  1. संसदीय कार्यपालिका,
  2. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका और
  3. अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका।

प्रश्न 4.
सरकार और राज्य के प्रधान की दृष्टि से अध्यक्षात्मक व्यवस्था को स्पष्ट कीजिए। इसे अपनाने वाले किन्हीं दो देशों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राज्य और सरकार का प्रधान कौन होता है? इसे अपनाने वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखो।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति राज्य और सरकार दोनों का ही प्रधान होता है। ऐसी व्यवस्था अमेरिका तथा ब्राजील में पाई जाती है।

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प्रश्न 5.
संसदीय शासन व्यवस्था में राज्य और सरकार का अध्यक्ष कौन होता है?
अथवा
सरकार और राज्य के अध्यक्ष की स्थिति की दृष्टि से संसदीय शासन व्यवस्था को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदीय व्यवस्था में एक राष्ट्रपति या राजा होता है जो राज्य का प्रधान होता है और प्रधानमन्त्री सरकार का प्रधान होता है।

प्रश्न 6.
संसदीय कार्यपालिका वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत, ब्रिटेन।

प्रश्न 7.
भारत की संसदीय कार्यपालिका की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रपति नाममात्र का अध्यक्ष।
  2. सामूहिक उत्तरदायित्व।

प्रश्न 8.
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रपति देश (राज्य) तथा सरकार का अध्यक्ष।
  2. राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं।

प्रश्न 9.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कौन करते हैं?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और राज्य विधानसभाओं व संघ- शासित क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं।

प्रश्न 10.
उपराष्ट्रपति का चुनाव कौन करते हैं? इसकी निर्वाचन विधि क्या है?
उत्तर:
उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य समानुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली से करते हैं।

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प्रश्न 11.
उपराष्ट्रपति के दो कार्य बताइए।
उत्तर:

  1. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है। अतः वह राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करता है।
  2. राष्ट्रपति का पद किसी कारण से रिक्त होने पर उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति का काम करता है।

प्रश्न 12.
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किसके द्वारा और किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
जिस नेता को लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है, राष्ट्रपति उसे प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।

प्रश्न 13.
प्रधानमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों के लिए किस योग्यता का होना अनिवार्य है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री और सभी मन्त्रियों के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है।

प्रश्न 14.
मन्त्रिमण्डल के सामूहिक उत्तरदायित्व से क्या आशय है?
उत्तर:
मन्त्रिमण्डल के सामूहिक उत्तरदायित्व से यह आशय है कि यदि किसी एक मन्त्री के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ता हैं।

प्रश्न 15.
भारतीय संविधान में राज्यपाल पद की क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में राज्यपाल को राज्य की कार्यपालिका का अध्यक्ष बनाया गया है।

प्रश्न 16.
राज्यपाल की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 17.
मुख्यमंत्री की नियुक्ति कैसे की जाती है?
उत्तर:
राज्य की विधानसभा में बहुमत दल वाले नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री नियुक्त करता है।

प्रश्न 18.
वर्तमान में भारतीय नौकरशाही में कौन-कौनसी सेवाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर:
वर्तमान में भारतीय नौकरशाही में अखिल भारतीय सेवाएँ, केन्द्रीय सेवाएँ तथा प्रान्तीय सेवाएँ सम्मिलित

प्रश्न 19.
भारत में सिविल सेवा के सदस्यों की भर्ती की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. इनकी भर्ती संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लोक सेवा आयोगों द्वारा की जाती है।
  2. भर्ती दक्षता और योग्यता के आधार पर की जाती है।

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प्रश्न 20.
कार्यपालिका के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
कार्यपालिका के कार्य:

  1. कार्यपालिका विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करती
  2. कार्यपालिका प्रायः नीति निर्माण में भी भाग लेती है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संसदात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर;
संसदात्मक शासन व्यवस्था-संसदात्मक शासन व्यवस्था में प्रायः प्रधानमन्त्री सरकार का प्रधान होता है तथा राजा या राष्ट्रपति देश या राज्य का प्रधान होता है। वह कार्यपालिका का औपचारिक या नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के पास होती है। प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल अपने कार्यों के लिए संसद या विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है।

प्रश्न 2.
अध्यक्षात्मक सरकार से क्या आशय है?
उत्तर;
अध्यक्षात्मक सरकार अध्यक्षात्मक सरकार वह सरकार होती है जिसका देश का प्रमुख और शासन का प्रमुख एक ही व्यक्ति राष्ट्रपति होता है। उसका चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए प्रायः प्रत्यक्ष मतदान से होता है तथा वह संसद या विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता है। अमेरिका तथा ब्राजील में अध्यक्षात्मक सरकारें हैं।

प्रश्न 3.
अर्द्ध- अध्यक्षात्मक सरकार से क्या आशय है?
उत्तर:
अर्द्ध- अध्यक्षात्मक सरकार वह सरकार जिसमें संसदात्मक तथा अध्यक्षात्मक दोनों की विशेषताएँ पायी जाती हैं, उसे अर्द्ध-अध्यक्षात्मक सरकार कहते हैं। प्रायः इसमें राष्ट्रपति देश का प्रधान होता है और प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख होता है। प्रधानमन्त्री और उसका मन्त्रिमण्डल विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है लेकिन राष्ट्रपति नाम मात्र का अध्यक्ष नहीं होता। उसे दैनिक कार्यों के सम्पादन में महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। फ्रांस, रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान निर्माता कैसी सरकार चाहते थे?
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माता एक ऐसी सरकार सुनिश्चित करना चाहते थे जो जनता की अपेक्षाओं के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी हो; जिसमें एक शक्तिशाली कार्यपालिका तो हो, लेकिन साथ-साथ उसमें व्यक्ति-पूजा पर पर्याप्त अंकुश लगे।

प्रश्न 5.
संविधान में संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को क्यों स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत कार्यपालिका को जन-प्रतिनिधियों के द्वारा प्रभावपूर्ण तरीके से नियन्त्रित किया जा सकता है। इसमें ऐसी अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो यह सुनिश्चित करती हैं कि कार्यपालिका, विधायिका या जनता के प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होगी और उनसे नियन्त्रित भी। इसलिए, संविधान में राष्ट्रीय और प्रान्तीय दोनों ही स्तरों पर संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 6.
भारत में वास्तविक कार्यपालिका कौन है?
उत्तर:
भारत में संसदीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है। इसमें केन्द्र स्तर पर प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका हैं और राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।

प्रश्न 7.
भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष निर्वाचन भारत के राष्ट्रपति का चुनाव जनता के द्वारा सीधा न होकर अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है। निर्वाचक मण्डल राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में

  1. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य,
  2. राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा
  3. संघीय क्षेत्र की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। निर्वाचन विधि – राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधि व एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रपति की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख है और संविधान के अनुसार शासन की सारी शक्तियाँ उसे प्रदान की गई हैं। लेकिन राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान हैं और उसकी समस्त कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् करते हैं। वे ही वास्तविक कार्यकारी हैं। अधिकतर मामलों में राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह माननी पड़ती है, वह अपने विवेक से सामान्य स्थितियों में कोई कार्य नहीं करता।

प्रश्न 9.
राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है? उसकी स्थिति बताइए।
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति- भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है, जो केन्द्रीय सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किया जाता है। उसकी नियुक्ति 5 वर्ष के लिए की जाती है। वह राज्य का वैधानिक प्रधान तथा केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि दोनों होता है। इस कारण उसे राष्ट्रपति की तुलना में कहीं अधिक विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त हैं।

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प्रश्न 10.
” नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ हो ।” इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर:
‘नौकरशाही राजनीतिक रूप से तटस्थ हो’, इसका आशय यह है कि नौकरशाही नीतियों पर विचार करते समय किसी राजनीतिक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करेगी। चुनाव में पिछली सरकार के हार जाने और नये दल की सरकार बनने की स्थिति में नौकरशाही की जिम्मेदारी है कि वह नई सरकार को अपनी नीति बनाने और उसे लागू करने में मदद करे।

प्रश्न 11.
भारत के राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का क्या तरीका है?
अथवा
राष्ट्रपति पर महाभियोग कैसे लगाया जाता है?

उत्तर:
संविधान के उल्लंघन के आधार पर राष्ट्रपति को संसद महाभियोग का प्रस्ताव पारित कर समय से पूर्व भी पदच्युत कर सकती है। महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सद

  1. लोक सेवक स्थायी सेवक हैं। वे अपने कार्य में दक्ष हैं। वे ही वास्तव में प्रशासन का संचालन करते हैं । अपनी विशेषज्ञता तथा योग्यता के आधार पर ही वे प्रशासन में कुशलता लाते हैं, जिसे मन्त्रीगण नहीं ला सकते।
  2. नौकरशाही नियमित चुनावों से प्रभावित नहीं होती है क्योंकि लोक-सेवक अपनी रिटायरमेंट की आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं। इस प्रकार वे प्रशासन में स्थायित्व तथा निरन्तरता लाते हैं।

प्रश्न 13.
मन्त्रीगण और लोक सेवकों के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मन्त्रीगण और लोक सेवकों के मध्य सम्बन्धों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. एक सरकारी विभाग में मन्त्री प्रभारी होता है लेकिन इसे यथार्थ में लोक सेवकों द्वारा संचालित किया जाता
  2. मन्त्रियों द्वारा प्रशासन की नीति निर्धारित की जाती है लेकिन इसे क्रियान्वित लोक सेवक करते हैं।
  3. लोक सेवकों द्वारा मन्त्रियों को वे समस्त सम्भावित सलाह, तथ्य तथा आँकड़े प्रदान किये जाते हैं जिनके आधार पर वे नीति का निर्माण करते हैं।
  4. विधायिका में मन्त्रियों द्वारा प्रश्नों के दिये जाने वाले सभी जवाब लोक सेवकों द्वारा ही तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 14.
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनावों में निर्वाचक कौन होते हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रपति राज्य विधानसभाओं, संघ क्षेत्र की विधानसभाओं तथा संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाता है।
  2. उपराष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा निर्वाचित किया जाता है।

प्रश्न 15.
राष्ट्रपति के पद की अर्हताएँ (योग्यताएँ ) क्या हैं?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति के पद की अर्हताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. वह भारत का नागरिक हो
  2. उसकी न्यूनतम आयु 35 वर्ष की हो।
  3. वह केन्द्र तथा राज्य सरकार में किसी लाभ के पद पर न हो।
  4. वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
  5. वह पागल अथवा दिवालिया न हो।

प्रश्न 16.
मन्त्रिपरिषद् प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में कार्य करती है। कोई चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मन्त्रिपरिषद् प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में कार्य करती है। इसके समर्थन में निम्नलिखित चार तथ्य दिये गये .

  1. मन्त्रिपरिषद् के सदस्य प्रधानमन्त्री की सलाह पर नियुक्त किये जाते हैं।
  2. प्रधानमन्त्री का त्यागपत्र सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् का त्यागपत्र होता है।
  3. प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता
  4. प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति और मन्त्रिमण्डल के बीच की कड़ी है।

प्रश्न 17.
अखिल भारतीय सेवाओं से क्या आशय है? अखिल भारतीय सेवाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
अखिल भारतीय सेवा का अर्थ अखिल भारतीय सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनके सदस्य केन्द्र तथा प्रान्तों में मुख्य पदों को धारण करते हैं, राज्यों में भी सभी उत्तरदायी पदों पर अखिल भारतीय सेवाएँ कार्यरत होती हैं तथा प्रान्तीय सेवाएँ इनके अधीन कार्य करती हैं। अखिल भारतीय सेवाएँ ये हैं।

  1. भारतीय प्रशासनिक सेवाएँ।
  2. भारतीय पुलिस सेवाएँ।

प्रश्न 18.
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है? कुछ देशों की कार्यपालिका की प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यपालिका के प्रकार- विभिन्न देशों की लोकतान्त्रिक कार्यपालिकाओं की प्रकृति के आधार पर कार्यपालिका के तीन प्रकार बताये जा सकते हैं। यथा
1. अध्यक्षात्मक कार्यपालिका:
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति राज्य और सरकार दोनों का ही प्रधान होता है। इस व्यवस्था में सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली होता है। राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः प्रत्यक्ष मतदान से होता है तथा वह विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता है। अमेरिका, ब्राजील और लैटिन अमेरिका के अनेक देशों में ऐसी व्यवस्था पायी जाती है।

2. संसदीय कार्यपालिका:
संसदीय व्यवस्था में प्रधानमन्त्री सरकार का प्रधान होता है और राष्ट्रपति या राजा देश का औपचारिक या नाम मात्र का प्रधान होता है। इस व्यवस्था में वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के पास होती है। भारत, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैण्ड और पुर्तगाल आदि देशों में यह व्यवस्था है।

3. अर्द्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका:
अर्द्ध- अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री दोनों होते हैं लेकिन इसमें राष्ट्रपति को दैनिक कार्यों के सम्पादन में महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री दोनों एक ही दल के हो सकते हैं और अलग-अलग दलों के भी हो सकते हैं। फ्रांस, रूस और श्रीलंका में ऐसी ही व्यवस्था है।

प्रश्न 19.
संसदात्मक शासन प्रणाली की किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन प्रणाली की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. राज्य या देश का प्रधान नाम मात्र का प्रधान होता है। संसदात्मक शासन प्रणाली में राज्य के प्रधान को संविधान द्वारा जो शक्तियाँ दी गई होती हैं, उन्हें वह स्वयं अपने विवेक से प्रयुक्त नहीं कर सकता, यद्यपि समस्त प्रशासनिक कार्य उसी के नाम से चलता है। वह अपनी शक्तियों को केवल मन्त्रिमण्डल की सलाह पर ही प्रयुक्त कर सकता है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि मन्त्रिमण्डल के पास वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ हैं और राज्य के प्रधान के पास नाम मात्र की या औपचारिक शक्तियाँ हैं।

2. कार्यपालिका और विधायिका के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध: संसदात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है क्योंकि कार्यपालिका के सदस्य संसद ( विधायिका) के सदस्य होते हैं, उसकी कार्यवाहियों में भाग लेते हैं तथा जिस सदन के वे सदस्य हैं, उसमें वे मतदान में भी भाग लेते हैं।

3. मन्त्रिमण्डल विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। संसदात्मक शासन व्यवस्था में मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। संसद सदस्यों द्वारा जो प्रश्न पूछे जाते हैं, मन्त्रिमण्डल को उनके उत्तर देने होते हैं। विधायिका सदस्य मन्त्रिमण्डल की नीतियों तथा कार्यों की आलोचना कर सकते हैं तथा विधायिका सरकार की अनियमितताओं की जाँच के लिए जाँच आयोग बिठा सकती है। विधायिका अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर मंत्रिमंडल को अपदस्थ भी कर सकती है।

4. सामूहिक उत्तरदायित्व: संसदात्मक शासन व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् निम्न सदन के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है अर्थात् जब सरकार निम्न सदन का विश्वास खो देती है तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। इसकी भावना यह है कि यदि एक मन्त्री के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना पड़ता है।

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प्रश्न 20.
“ भारत में बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिपरिषद् का कोई अस्तित्व नहीं है ।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘प्रधानमंत्री सरकार की केन्द्रीय धुरी है।’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिपरिषद् का कोई अस्तित्व नहीं है क्योंकि यहाँ संसदात्मक शासन प्रणाली अपनी गई है जहाँ प्रधानमन्त्री सरकार की केन्द्रीय धुरी का काम करता है। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. मन्त्रिपरिषद् तभी अस्तित्व में आती है जब प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ ग्रहण कर लेता है क्योंकि प्रधानमन्त्री की सलाह से ही राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
  2. धानमन्त्री की मृत्यु या त्याग-पत्र से पूरी मन्त्रिपरिषद् ही भंग हो जाती है जबकि किसी मन्त्री की मृत्यु, हटाए जाने या त्याग-पत्र के कारण मन्त्रिपरिषद् में केवल एक स्थान खाली होता है।
  3. प्रधानमन्त्री एक तरफ मन्त्रिपरिषद् तथा दूसरी ओर राष्ट्रपति और संसद के बीच एक सेतु का काम करता है। प्रधानमन्त्री का यह संवैधानिक दायित्व भी है कि वह सभी संघीय मामलों के प्रशासन और प्रस्तावित कानूनों के बारे में राष्ट्रपति को सूचित करे।
  4. प्रधानमन्त्री सरकार के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होता है और सरकार की नीतियों के बारे में निर्णय लेता है। वह मन्त्रिमण्डल की बैठकें आयोजित करता है तथा उनका सभापतित्व करता है तथा निर्णयों में प्रभावी भूमिका निभाता है।

प्रश्न 21.
क्या राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति का विवेक – सामान्यतः राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। वह अन्य किसी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त नहीं कर सकता। इसका अभिप्राय यह है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में अपना स्वविवेक का प्रयोग नहीं कर सकता और उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल गठबन्धन के नेता को ही प्रधानमन्त्री बनने के लिए आमन्त्रित करना पड़ता है। चाहे वह उसे पसन्द करता हो या नहीं।

लेकिन कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति अपने विवेक को काम में ले सकता है। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. जब लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल अपना नेता चुनने में असमर्थ हो तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए ऐसे व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त कर सकता है, जिसे उसके मत में, लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त है।
  2. जब लोकसभा में कोई एक दल स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है और अनेक दल मिलकर एक गठबन्धन सरकार का निर्माण करना चाहते हैं, ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के चुनने में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है।
  3. जब किसी कारण से अचानक प्रधानमन्त्री की मृत्यु हो जाने से प्रधानमन्त्री का पद रिक्त हो जाता है, तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कर सकता है। जैसे कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने श्रीमती इन्दिरा गाँधी के हत्या के तुरन्त बाद राजीव गाँधी को प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त किया।

प्रश्न 22.
अब तक के कुल प्रधानमंत्रियों के नाम व उनका कार्यकाल एक तालिका द्वारा दर्शाइए भारत के प्रधानमंत्री।
उत्तर:
Table-1

प्रश्न 23.
“गठबन्धन सरकार की स्थिति में प्रधानमन्त्री की शक्तियों पर अंकुश लगा है।” कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री की शक्तियों की सीमाएँ; जब भी किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा में बहुमत मिला, तब प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ निर्विवाद रहीं, लेकिन जब राजनैतिक दलों के गठबन्धन की सरकारें बनीं, प्रधानमन्त्री व मन्त्रिमण्डल की शक्तियों पर अनेक सीमाएँ लगी हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. गठबन्धन सरकारों की स्थिति में राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों की भूमिका बढ़ी है।
  2. गठबन्धन सरकारों में गठबन्धन की राजनीति के कारण राजनीतिक सहयोगियों से परामर्श की प्रवृत्ति बढ़ी है। जिससे प्रधानमन्त्री की सत्ता में कुछ सेंध लगी है।
  3. गठबन्धन सरकारों की स्थिति में प्रधानमन्त्री के अनेक विशेषाधिकारों, जैसे- मन्त्रियों का चयन और उनके पद-स्तर तथा मन्त्रालयों के चयन आदि पर भी अंकुश लगा है।
  4. गठबन्धन सरकारों की स्थिति में प्रधानमन्त्री सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को भी अकेले तय नहीं कर सकता । सहयोगी दलों के बीच काफी बातचीत और समझौते के बाद ही नीतियाँ बन पाती हैं।

उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट है कि गठबन्धन सरकारों की स्थिति में प्रधानमन्त्री को एक नेता से अधिक एक मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है।

प्रश्न 24.
भारत के उपराष्ट्रपति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत का उपराष्ट्रपति: संविधान के अनुच्छेद 63 में यह प्रावधान किया गया है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अर्हताएँ उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी की प्रमुख अर्हताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  3. वह राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
  4. वह संघ तथा प्रान्तों की सरकारों के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
  5. वह दिवालिया तथा पागल न हो।

निर्वाचन: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मण्डल करेगा जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य होंगे। उसका चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व तथा एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा गुप्त मतदान विधि से होगा।

कार्यकाल: उपराष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है। इससे पहले वह त्याग-पत्र दे सकता है। वह महाभियोग के द्वारा भी समय से पूर्व पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग का प्रस्ताव पहले राज्यसभा में लाया जायेगा। यदि राज्यसभा में वह 2/3 बहुमत से पारित हो जाता है तो फिर दूसरे सदन में जायेगा यदि लोकसभा में भी वह 2/3 से अनुमोदन हो जाता है तो उसी दिन से उपराष्ट्रपति का पद खाली समझा जायेगा। शक्तियाँ तथा कार्य:

  1. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।
  2. जब किसी कारण से राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है तो उपराष्ट्रपति तब तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, जब तक कि नया राष्ट्रपति शपथ नहीं ले लेता।

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प्रश्न 25.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएँ अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. राज्य का प्रमुख ही सरकार का प्रमुख होता है। अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति ही राज्य या देश का प्रमुख होता है और वही सरकार का प्रमुख होता है। वही सरकार का वास्तविक शासक होता है तथा उसी के नाम से सरकार के सभी कार्य किये जाते हैं।
  2. प्रत्यक्ष निर्वाचन: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति का चुनाव प्रायः जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से होता है।
  3. कार्यपालिका का सर्वेसर्वा: अध्यक्षात्मक सरकार में सरकार का प्रमुख राष्ट्रपति कार्यपालिका में सर्वेसर्वा होता है। वह किसी भी व्यक्ति भी अपने मन्त्रिमण्डल में ले सकता है।
  4. विधायिका के प्रति अनुत्तरदायी: अध्यक्षात्मक सरकार में राष्ट्रपति या कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होती।

निबन्धात्मक प्रश्न।

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों और स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति की औपचारिक कार्यपालिका के प्रधान की स्थिति: भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गई हैं। पर व्यवहार में प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में बनी मन्त्रिपरिषद् के माध्यम से राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करता

संविधान के अनुच्छेद 74(1) के अनुसार, ” राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान, प्रधानमन्त्री होगा। राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा । परन्तु राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् से ऐसी सलाह पर पुनर्विचार करने को कह सकता है और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।”

इस अनुच्छेद में जिस शब्द ‘ सलाह के अनुसार ही’ का प्रयोग किया गया है। उसका अभिप्राय है कि राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह को मानने के लिए बाध्य है। वह मन्त्रिपरिषद् को अपनी सलाह पर एक बार पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है, लेकिन उसे मन्त्रिपरिषद् के द्वारा पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह को मानना ही पड़ेगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान है।

राष्ट्रपति की औपचारिक शक्तियाँ
राष्ट्रपति सरकार का एक औपचारिक प्रधान है। उसे औपचारिक रूप से बहुत-सी कार्यकारी, विधायी, न्यायिक और आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त हैं। राष्ट्रपति वास्तव में इन शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर ही करता है और अधिकतर मामलों में राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह माननी पड़ती है। ये शक्तियाँ निम्नलिखित हैं।

1. कार्यपालिका शक्तियाँ: राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है तथा उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनमें विभागों का वितरण करता है। वह राज्यों के राज्यपाल, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारत के महान्यायवादी, संघीय लोक सेवा आयोग के प्रधान व अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। वह· भारत की जल, थल तथा वायु तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है तथा वही तीनों सेनाओं के सेनापतियों की नियुक्ति करता है। वह अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरे देशों के साथ युद्ध की घोषणा करता है तथा शान्ति के लिए सन्धि करता है। वह दूसरे देशों के लिए अपने देशों के राजदूतों की नियुक्ति करता है तथा अन्य देशों से आए हुए राजदूतों के प्रमाण-पत्र स्वीकार करता है।

2. वैधानिक शक्तियाँ: राष्ट्रपति राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत करता है। वह लोकसभा में दो आंग्ल- भारतीयों को मनोनीत कर सकता है। वह संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन बुलाता है तथा उसे स्थगित करता है। वह लोकसभा को उसकी संवैधानिक अवधि पूरी होने से पहले भंग कर सकता है। वह संसद द्वारा पारित किये गये विधेयकों पर हस्ताक्षर करता है तभी वह विधेयक कानून का रूप लेते हैं। वह साधारण विधेयकों को अपने कुछ सुझावों के साथ संसद के पास फिर से विचार करने के लिए भेज सकता है। यदि संसद उस विधेयक को उसके सुझावों सहित या सुझावों के बिना दुबारा पास कर देती है तो राष्ट्रपति को उस विधेयक पर स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

3. वित्तीय शक्तियाँ: राष्ट्रपति प्रतिवर्ष आगामी वर्ष के बजट को वित्त मन्त्री द्वारा सदन में प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही धन सम्बन्धी माँगें संसद में रखी जा सकती हैं। भारत की आकस्मिक निधि राष्ट्रपति के नियन्त्रण में होती है। वह किसी भी आकस्मिक खर्चे के लिए संसद की स्वीकृति से पूर्व ही इस निधि से धन देता है।

4. न्यायिक शक्तियाँ: राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। वह राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। उसे किसी भी कानूनी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार है। वह न्यायालयों द्वारा दिए गए मृत्यु – दण्ड या किसी अन्य दण्ड को कम कर सकता है या क्षमादान दे सकता है। उपर्युक्त वर्णित राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ औपचारिक कार्यपालिका शक्तियाँ हैं जो उसे एक औपचारिक कार्यपालिका प्रधान बनाती हैं। इनका प्रयोग वह मन्त्रिमण्डल की सलाह के अनुसार ही करता है।

राष्ट्रपति की वास्तविक शक्तियाँ
या
राष्ट्रपति के विशेषाधिकार

राष्ट्रपति की औपचारिक शक्तियों के अतिरिक्त उसकी कुछ स्वयं विवेक की शक्तियाँ या विशेषाधिकार भी प्राप्त हैं। जो उसे एक औपचारिक प्रधान की स्थिति से ऊपर उठाती हैं। यथा
1. सूचना प्राप्त करने का अधिकार:
संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और मन्त्रिपरिषद् की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। प्रधानमन्त्री का यह कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्रपति द्वारा माँगी गई सभी सूचनाएँ उसे दे। राष्ट्रपति प्रायः प्रधानमन्त्री को पत्र लिखता है और देश की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करता है।

2. पुनर्विचार के आग्रह का अधिकार:
राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह को लौटा सकता है और उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। ऐसा करने में राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करता है। जब राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि सलाह में कुछ गलती है या कानूनी रूप से कुछ कमियाँ हैं या फैसला देश के हित में नहीं है, तो वह मन्त्रिपरिषद् से अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। यद्यपि मन्त्रिपरिषद् पुनर्विचार के बाद भी उसे वही सलाह दुबारा दे सकती है और तब राष्ट्रपति उसे मानने के लिए बाध्य भी होगा, तथापि राष्ट्रपति के द्वारा पुनर्विचार का आग्रह अपने आप में काफी मायने रखता है। इसके माध्यम से राष्ट्रपति अपने विवेक के आधार पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है।

3. निषेधाधिकार की शक्ति:
राष्ट्रपति के पास निषेधाधिकार ( वीटो ) की शक्ति होती है जिससे वह संसद द्वारा पारित विधेयकों (धन विधेयकों को छोड़कर) पर स्वीकृति देने में विलम्ब कर सकता है या स्वीकृति देने से मना कर सकता है। संसद द्वारा पारित प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति उसे संसद को लौटा सकता है और उसे उस पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। वीटो की यह शक्ति सीमित है क्योंकि संसद यदि उसी विधेयक को दुबारा पारित करके राष्ट्रपति के पास भेजे तो राष्ट्रपति को उस पर अपनी स्वीकृति देनी पड़ेगी।

लेकिन संविधान में राष्ट्रपति के लिए ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है जिसके अन्दर ही उस विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना पड़े। इसका अर्थ यह हुआ कि राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को बिना किसी समय-सीमा के अपने पास लम्बित रख सकता है। इससे राष्ट्रपति को अनौपचारिक रूप से, अपने वीटो को प्रभावी ढंग से प्रयोग करने का अवसर मिल जाता है। इसे कई बार ‘पाकेट वीटो’ भी कहा जाता है।

4. राजनीतिक परिस्थितियों से प्राप्त विवेकाधिकार:
यदि चुनाव के बाद किसी भी नेता को लोकसभा में बहुमत प्राप्त न हो और यदि गठबन्धन बनाने के प्रयासों के बाद भी दो या तीन नेता यह दावा करें कि उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को अपने विवेक से यह निर्णय करना होता है कि वह किसे प्रधानमन्त्री नियुक्त करे । इसी प्रकार जब सरकार स्थायी न हो और गठबन्धन सरकार सत्ता में हो तब भी राष्ट्रपति के विवेकसम्मत हस्तक्षेप की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सामान्य परिस्थितियों में राष्ट्रपति की औपचारिक प्रधान की भूमिका रहती है, लेकिन जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तब राष्ट्रपति पर निर्णय लेने और देश की सरकार को चलाने के लिए प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है।

प्रश्न 2.
भारत के प्रधानमन्त्री की शक्तियों, कार्यों तथा स्थिति का विवेचन कीजि।
उत्तर:
भारत का प्रधानमन्त्री
भारत में संविधान द्वारा समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति को प्रदान की गई हैं, लेकिन वह नाम मात्र का कार्यपालिका प्रधान है और व्यवहार में समस्त कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिमण्डल ही करता है। इस प्रकार प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख है। वह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में एक शक्तिशाली स्थिति प्राप्त किए हुए है।

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति: भारत का राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। यदि वह नियुक्ति के समय संसद का सदस्य नहीं है तो छः माह के भीतर उसे संसद के किसी भी सदन का निर्वाचित सदस्य बनना आवश्यक है, अन्यथा छ: माह बाद उसे त्याग-पत्र देना होगा।

पदावधि: प्रधानमन्त्री की कोई निश्चित समयावधि नहीं है। वह अपने पद पर तब तक बना रहेगा जब तक कि लोकसभा का उसमें विश्वास है। लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उसे कभी भी अपदस्थ कर सकती है।

प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ और कार्य: प्रधानमन्त्री की प्रमुख शक्तियाँ व कार्य अग्रलिखित हैं।
1. मन्त्रिमण्डल का गठन करना: प्रधानमन्त्री अपने पद की शपथ लेने के बाद सबसे पहले अपने मन्त्रिमण्डल के गठन का कार्य करता है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को सलाह देने से पूर्व वह यह तय करता है कि उसकी मन्त्रिपरिषद् में कौन लोग मन्त्री होंगे। प्रधानमन्त्री ही विभिन्न मन्त्रियों में पद स्तर और मन्त्रालयों का आबण्टन करता है।

वह मन्त्रियों को उनकी वरिष्ठता और राजनीतिक महत्त्व के अनुसार मन्त्रिमण्डल का मन्त्री, राज्यमन्त्री या उपमन्त्री पद पर पदस्थ करता है। संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा मन्त्रिमण्डल के गठन में उनकी संख्या के सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री पर यह सीमा लगा दी गयी है कि मन्त्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

2. मन्त्रियों को पद: मुक्त करना मन्त्रीगण प्रधानमन्त्री के विश्वासपर्यन्त ही अपने पद पर बने रह सकते हैं। यदि किसी कारण से प्रधानमन्त्री का किसी मन्त्री से विश्वास हट जाता है, चाहे उसका कारण उसकी अकार्यकुशलता हो या राजनीतिक मतभेद हो, तो वह उस मन्त्री से त्याग-पत्र माँग सकता है। यदि वह प्रधानमन्त्री की सलाह के अनुसार त्याग-पत्र नहीं देता है तो प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति को उस मन्त्री को बर्खास्त करने की सिफारिश कर सकता है। वह अपने मन्त्रिमण्डल में कभी भी फेर-बदल कर सकता है। इस प्रकार प्रधानमन्त्री की इच्छा के विरुद्ध कोई भी मन्त्री मन्त्री नहीं रह सकता।

3. मन्त्रियों के मध्य सामञ्जस्य स्थापित करना: प्रधानमंत्री सभी मन्त्रियों के विभागों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखता है और उनके विभाग के सम्बन्ध में मन्त्रियों को सलाह देता है तथा उनमें परस्पर सामञ्जस्य स्थापित करता है। वह किसी भी मुद्दे पर मन्त्रियों को सलाह दे सकता है तथा आगे के विचार-विमर्श हेतु उस मुद्दे को मन्त्रिमण्डल के समक्ष भी ला सकता है।

4. मन्त्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता करना: प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठक बुलाता है, उसके एजेण्डा को निर्धारित करता है तथा बैठक का स्थान, समय तथा दिनांक निर्धारित करता है । वह मन्त्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता करता है। मन्त्रिमण्डल की बैठक में प्रधानमन्त्री के दृष्टिकोण को महत्त्व दिया जाता है।

5. प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद और राष्ट्रपति के बीच कड़ी का कार्य करता है। प्रधानमन्त्री का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह सभी संघीय मामलों के प्रशासन और प्रस्तावित कानूनों के बारे में राष्ट्रपति को सूचित करे । इस प्रकार वह राष्ट्रपति को प्रशासनिक नीतियों और कानूनों के बारे में सूचित करके मन्त्रिमण्डल और राष्ट्रपति के बीच कड़ी का कार्य करता है। कोई अन्य मन्त्री राष्ट्रपति से प्रत्यक्षतः इस सम्बन्ध में नहीं मिल सकता । मन्त्रीगण केवल प्रधानमन्त्री के माध्यम से ही राष्ट्रपति से मिल सकते हैं तथा संवाद कर सकते हैं।

6. संसद का नेता: प्रधानमन्त्री लोकसभा में बहुमत दल/गठबन्धन का नेता होता है और व्यवहार में लोकसभा में ही संसद की सभी शक्तियाँ निहित हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमन्त्री संसद का नेतृत्व करता है। संसद में सरकार के महत्त्वपूर्ण निर्णयों की घोषणा प्रधानमन्त्री द्वारा ही की जाती है। प्रधानमन्त्री ही प्राय: संसद के सत्रों की तिथियाँ निर्धारित करता है और कौनसा विधेयक संसद में प्रस्तावित किया जायेगा, यह भी निर्धारित करता है। सभी महत्त्वपूर्ण और गम्भीर समस्याओं के दिशा-निर्देश के लिए संसद प्रधानमन्त्री की तरफ ही देखती है। इस प्रकार वह संसद का नेतृत्व भी करता है।

7. सरकार का मुख्य प्रवक्ता: प्रधानमन्त्री सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और समस्याओं पर सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है। विधायिका, राष्ट्रपति और जनता के समक्ष वह सरकार का प्रतिनिधित्व करता है और सरकार की ओर से वक्तव्य देता है।

8. राष्ट्र का नेता: जब कभी राष्ट्र संकट में होता है तो समूचा राष्ट्र दिशा-निर्देश हेतु प्रधानमन्त्री की ओर देखता है तथा जनता में उसकी अपील अपना महत्त्व रखती है। व्यवहार में वह अन्तर्राष्ट्रीय जगत में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा विदेशी राज्यों के साथ वही सन्धि तथा समझौते करता है।

प्रधानमन्त्री की स्थिति: प्रधानमन्त्री का पद बहुत शक्तिशाली तथा महत्त्वपूर्ण है। वह एक वास्तविक कार्यपालक तथा सरकार का प्रमुख है। वह सरकार की केन्द्रीय धुरी है जिसके चारों ओर सरकार की मशीनरी घूमती है। वह मन्त्रिपरिषद का निर्माणकर्त्ता तथा संहारकर्त्ता दोनों हैं। वह लोकसभा, संसद और राष्ट्र का नेता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई विधेयक पारित नहीं होता है और बिना उसकी सलाह के राष्ट्रपति कोई नियुक्ति नहीं करता है। भारत में अन्य कोई पद प्रधानमन्त्री जितना महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली नहीं है।

कोई भी व्यक्ति उसकी इच्छा के विरुद्ध मन्त्रिमण्डल में नहीं रह सकता। वह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की तथा नये चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता। यथा लेकिन प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ और उनका प्रयोग तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

  • जब भी किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा में बहुमत मिला, तब प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल की उक्त शक्तियाँ निर्विवाद रहीं और प्रधानमन्त्री का पद शक्तिशाली व महत्त्वपूर्ण व प्रभावी बना रहा।
  • लेकिन जब राजनीतिक दलों के गठबन्धन की सरकारें बनीं तब प्रधानमन्त्री का पद इतना अधिक शक्तिशाली नहीं रहा है। गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री को एक नेता से अधिक एक मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है। गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री की स्थिति एक दलीय सरकारों के प्रधानमन्त्रियों की तुलना में कमजोर हुई है। इसके प्रमुख कारण ये हैं।
    1. गठबन्धन की स्थिति में प्रधानमन्त्री के चयन में राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों की भूमिका बढ़ी है।
    2. इस स्थिति में राजनीतिक सहयोगी दलों से परामर्श की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे प्रधानमन्त्री की सत्ता में सेंध लगी है।
    3. इसमें प्रधानमन्त्री के अनेक विशेषाधिकारों, जैसे—मन्त्रियों का चयन, उनके पद स्तर और मन्त्रालय के चयन आदि में भी कुछ अंकुश लगा है।
    4. इसमें विभिन्न विचारधारा वाले राजनीतिक सहयोगी दलों से काफी बातचीत और समझौते के बाद ही नीतियाँ बन पाती हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 कार्यपालिका

प्रश्न 3.
सिविल सेवाएँ क्या हैं? भारत में सिविल सेवाओं की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सिविल सेवाओं से आशय: भारत में संविधान के अनुसार समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हैं तथा राष्ट्रपति इनका प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की सलाह से करता है। इस प्रकार व्यवहार में कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् करती है। मन्त्रिपरिषद्, जिसे राजनीतिक कार्यपालिका कहा जाता है, नीतियों का निर्माण करती है और सरकार के विभागों के ऊपर नियन्त्रण करती है। लेकिन इन नीतियों का क्रियान्वयन स्थायी कार्यपालिका, जिसे सिविल सेवाएँ, कहा जाता है, द्वारा किया जाता है। स्थायी कार्यपालिका ही रोज-रोज के प्रशासन का संचालन करती है।

प्रशासन के प्रत्येक विभाग का एक स्थायी लोक सेवक प्रमुख होता है, जिसके अधीन काफी बड़ी संख्या में स्थायी सिविल सेवक कार्य करते हैं। वास्तव में ये ही स्थायी सिविल सेवक मिलकर कानूनों को लागू करते हैं, मन्त्रियों द्वारा बनायी गयी नीतियों को क्रियान्वित करते हैं और प्रशासन चलाते हैं। ये स्थायी सिविल सेवक ही जो वास्तव में प्रशासन का संचालन करते हैं, लोक सेवक कहलाते हैं। वे योग्यता के आधार पर नियुक्त होते हैं तथा अपने पद पर एक निश्चित आयु पर सेवामुक्त होने की अवधि तक स्थायी रूप से बने रहते हैं।

भारत में सिविल सेवाओं की प्रमुख विशेषताएँ: भारत में सिविल सेवाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. निश्चित अवधि: भारत में लोक सेवक स्थायी आधार पर अपना पद ग्रहण करते हैं। वे स्थायी कार्यपालिका कहलाते हैं तथा अपने पद पर तब तक बने रहते हैं जब तक कि उसे एक निश्चित आयु पर पदमुक्त नहीं कर दिया जाता। इससे पहले वे केवल चार्जशीट तथा जाँच के आधार पर दोषी पाये जाने पर ही पदमुक्त हो सकते हैं।

2. योग्यता के आधार पर नियुक्ति: लोक सेवक योग्यता के आधार पर नियुक्त किये जाते हैं, न कि निर्वाचन के आधार पर। सभी पदों के लिए एक योग्यता निर्धारित की गई है और खुली भर्ती प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसके आधार पर योग्य तथा वाँछित प्रत्याशियों को नियुक्ति दी जाती है। इस प्रकार लोक सेवकों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लोक सेवा आयोग ऐसी प्रतियोगिताओं के माध्यम से नियुक्ति करते हैं।

3. पदों और कर्त्तव्यों का तर्कसंगत वितरण: नौकरशाही में सभी पदों के साथ दायित्व और कार्य सम्बद्ध हैं। प्रत्येक पदाधिकारी का यह दायित्व होता है कि वह उस पद से जुड़े दायित्वों और कार्यों को पूरा करे। इस तर्कसंगत विभाजन के कारण समस्त प्रशासन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहता है।

4. कानून के अनुसार अपने कर्त्तव्यों का पालन: लोक सेवक का यह मुख्य कार्य होता है कि वह अपने विभाग में राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्धारित कानूनों को लागू करे तथा नीतियों को क्रियान्वित करे। लेकिन उन्हें कानून तथा नियमों के अनुसार कार्य करना पड़ता है। वे निरंकुशतापूर्ण ढंग से कार्य नहीं कर सकते। उन्हें अपनी कार्यप्रणाली में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है। इस प्रक्रिया को अपनाने के कारण अनेक बार कार्य पूरा करने में देरी भी हो जाती है।

5. राजनीतिक तटस्थता: नौकरशाही से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह राजनीतिक रूप से तटस्थ हो। इसका अर्थ यह है कि नौकरशाही नीतियों पर विचार करते समय किसी राजनैतिक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करेगी । प्रजातन्त्र में यह सम्भव है कि कोई पार्टी चुनाव में हार जाए और नई सरकार पिछली सरकार की नीतियों की जगह नई नीतियाँ अपनाना चाहे। ऐसी स्थिति में प्रशासनिक मशीनरी की जिम्मेदारी है कि वह नई सरकार को अपनी नीति बनाने और उसे लागू करने में मदद करे।

6. आरक्षण की व्यवस्था: यद्यपि भारत में सिविल सेवा या नौकरशाही के सदस्यों को बिना किसी भेदभाव के दक्षता और योग्यता के आधार पर चयनित किया जाता है; तथापि संविधान यह भी सुनिश्चित करता है कि पिछड़े वर्गों को भी समाज के सभी वर्गों के साथ-साथ सरकारी नौकरशाही का हिस्सा बनने का मौका मिले। इस उद्देश्य के लिए संविधान दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करता है। बाद में अन्य पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं को भी आरक्षण दिया गया है। इन प्रावधानों से यह सुनिश्चित होता है कि नौकरशाही में सभी समूहों का प्रतिनिधित्व होगा तथा सामाजिक असमानताएँ सिविल सेवाओं में भर्ती के मार्ग में रोड़ा नहीं बनेंगी।

7. पदसोपानीय व्यवस्था: भारत में सिविल सेवाओं का समूचा ढाँचा पदसोपानीय सिद्धान्त पर आधारित है। इसके तहत सिविल सेवक अनेक स्तरों में विभाजित किये गये हैं। एक निम्न स्तर के पदाधिकारी को उच्च स्तर के पदाधिकारी के अधीन काम करना होता है तथा वह अपने कार्य के लिए उसके प्रति उत्तरदायी होता है। उच्च स्तर का पदाधिकारी अपनी अधीन कर्मचारियों के कार्यों का पर्यवेक्षण करता है

8. जटिल स्वरूप: वर्तमान में भारतीय नौकरशाही का स्वरूप बहुत जटिल हो गया है। इसमें अखिल भारतीय सेवाएँ, केन्द्रीय सेवाएँ, प्रान्तीय सेवाएँ, स्थानीय सरकार के कर्मचारी और लोक उपक्रमों के तकनीकी तथा प्रबन्धकीय अधिकारी सम्मिलित हैं।

प्रश्न 4.
भारत में सिविल सेवाओं के ढाँचे की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में सिविल सेवाओं की संरचना आज भारत में भारतीय नौकरशाही का स्वरूप बहुत जटिल हो गया है। इसमें अखिल भारतीय सेवाएँ, केन्द्रीय सेवाएँ, प्रान्तीय सेवाओं के अतिरिक्त स्थानीय सरकार के कर्मचारी और लोक उपक्रमों के तकनीकी तथा प्रबन्धकीय अधिकारी भी सम्मिलित हैं। संवैधानिक दृष्टि से भारत में सिविल सेवाओं को मोटे रूप से तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, ये हैं
(अ) अखिल भारतीय सेवाएँ,
(ब) केन्द्रीय सेवाएँ और
(स) प्रान्तीय सेवाएँ। यथा

(अ) अखिल भारतीय सेवाएँ:
अखिल भारतीय सेवाएँ भारतीय संघवाद की एक अनोखी विशेषता है। अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य केन्द्र तथा राज्यों दोनों में अपनी सेवाएँ देते हैं। ये अधिकारी प्रान्तीय स्तर पर शीर्षस्थ पदों पर नियुक्त होते हैं। किसी एक अखिल भारतीय सेवा के पदाधिकारी की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग द्वारा योग्यता औरं दक्षता के आधार पर की जाती है। जब उसे किसी एक राज्य से सम्बद्ध कर दिया जाता है, वहाँ वह उस राज्य सरकार की देखरेख में कार्य करता है। ये अधिकारी केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं और वे केन्द्र सरकार की सेवा में वापस जा सकते हैं तथा केवल केन्द्र सरकार ही उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकती है। इस प्रकार वे राज्यों में शीर्ष पदों पर रहते हुए भी केन्द्रीय सरकार की देखरेख और नियन्त्रण में रहते हैं।

वर्तमान में भारत में निम्नलिखित अखिल भारतीय सेवाएँ हैं

  1. भारतीय प्रशासनिक सेवा
  2. भारतीय पुलिस सेवा
  3. भारतीय वन (Forest) सेवा (भारतीय वन सेवा 1963 में जोड़ी गई थी।)

(ब) केन्द्रीय सेवाएँ:
केन्द्रीय सेवाएँ केवल संघ सरकार के विभागों से सम्बद्ध होती हैं। केन्द्रीय सेवाओं के पदाधिकारी केवल केन्द्रीय सरकार के अधीन कार्य करते हैं। केन्द्रीय सेवाएँ 24 प्रकार की हैं जो कि भिन्न-भिन्न विभागों से सम्बन्धित है। इनमें प्रमुख हैं

  1. भारतीय विदेश सेवा,
  2. भारतीय राजस्व सेवा,
  3. भारतीय पोस्टल सेवा,
  4. भारतीय ऑडिट एण्ड एकाउण्ट सेवाएँ,
  5. भारतीय कस्टम तथा एक्साइज सेवा,
  6. केन्द्रीय इंजीनियरिंग सेवा आदि। केन्द्रीय सेवाओं की भर्ती भी अखिल भारतीय सेवाओं के साथ ही संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है।

(स) प्रान्तीय सेवाएँ:
प्रत्येक प्रान्त की सरकार प्रशासन के संचालन के लिए स्वयं के आफीसर नियुक्त करती है। वे राज्य लोक सेवा आयोगों के माध्यम से नियुक्त किये जाते हैं। उनके वेतन, भत्ते तथा सेवा की शर्तें आदि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। वे केवल राज्य सरकार के अधीन कार्य करते हैं। प्रमुख प्रान्तीय सेवाएँ ये हैं।

  1. प्रान्तीय सिविल सेवा,
  2. प्रान्तीय पुलिस सेवा,
  3. प्रान्तीय न्यायिक सेवा,
  4. प्रान्तीय शिक्षा सेवा,
  5. प्रान्तीय स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सेवा,
  6. प्रान्तीय इंजीनियरिंग सेवा,
  7. प्रान्तीय राजस्व सेवा आदि।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

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Jharkhand Board Class 11 Political Science संघवाद InText Questions and Answers

पृष्ठ 156

प्रश्न 1.
एक संघीय व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ कौन तय करता है?
उत्तर:
संघीय व्यवस्था में एक लिखित संविधान होता है। यह संविधान सर्वोच्च होता है तथा दोनों सरकारों की शक्तियों का स्रोत भी। इस प्रकार एक संघीय व्यवस्था में संविधान केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ तय करता है।

प्रश्न 2.
संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र सरकार और राज्यों में टकराव का समाधान कैसे होता है?
उत्तर:
संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र सरकार और राज्यों में टकराव का समाधान स्वतंत्र न्यायपालिका न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से करती है।

पृष्ठ 158

प्रश्न 3.
क्या आप समझते हैं कि अवशिष्ट शक्तियों का अलग से उल्लेख करना जरूरी है? क्यों?
उत्तर:
नहीं, अवशिष्ट शक्तियों का अलग से उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। क्योंकि अवशिष्ट शक्तियों से आशय यह है कि भविष्य में इन शक्तियों या विषयों के अलावा अन्य कोई विषय उभरें, जो इस समय तक नहीं उभर पाये हैं, वे विषय अवशिष्ट हैं; इसलिए इनका उल्लेख नहीं किया जा सकता । अवशिष्ट शक्तियों के सम्बन्ध में केवल यह उल्लेख करना आवश्यक होता है कि इन पर केन्द्र सरकार का अधिकार है या प्रान्तों की सरकार का।

प्रश्न 4.
बहुत-से राज्य शक्ति विभाजन से असंतुष्ट क्यों रहते हैं?
उत्तर:
शक्ति विभाजन से भिन्न-भिन्न राज्य भिन्न-भिन्न कारणों से असंतुष्ट रहते हैं, उनके असंतुष्ट रहने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. अधिक और महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्ति हेतु: भारत में समय-समय पर अनेक राज्यों, जैसे – तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि ने शक्ति विभाजन में केन्द्र की तुलना में राज्यों को कम शक्तियाँ मिलने के कारण अपने असंतोष को व्यक्त करते हुए शक्ति-विभाजन को राज्यों के पक्ष में बदलने तथा राज्यों को ज्यादा तथा महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये जाने की मांग की।
  2. वित्तीय स्वायत्तता हेतु: शक्ति विभाजन से राज्यों के पास स्वतंत्र आय के साधन कम हैं और संसाधनों पर उनका अधिक नियंत्रण नहीं है। इस कारण अनेक राज्य शक्ति विभाजन से असंतुष्ट हैं। तमिलनाडु और पंजाब ने इसी असंतोष को व्यक्त करते हुए ज्यादा वित्तीय अधिकारों या वित्तीय स्वायत्तता की मांग की।
  3. प्रशासकीय शक्तियों के प्रति असंतोष: अनेक राज्य प्रशासन के क्षेत्र में केन्द्र को अधिक नियंत्रणकारी शक्तियों को प्रदान करने के कारण असंतुष्ट हैं। वे राज्य प्रशासनिक – तंत्र पर केन्द्रीय नियंत्रण से नाराज रहते हैं।

पृष्ठ 163

प्रश्न 5.
इस दृष्टिकोण के पक्ष में दो तर्क दें कि हमारा संविधान एकात्मकता की ओर झुका हुआ है।
उत्तर:
हमारा संविधान एकात्मकता की ओर झुका हुआ है क्योंकि।

  1. किसी राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है। अनुच्छेद 3 के अनुसार संसद ‘किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर एक नये राज्य का निर्माण कर सकती है। वह किसी राज्य की सीमाओं या नाम में परिवर्तन कर सकती है।
  2. संविधान में केन्द्र को अत्यन्त शक्तिशाली बनाने वाले कुछ आपातकालीन प्रावधान हैं जो लागू होने पर हमारी . संघीय व्यवस्था को एक अत्यधिक केन्द्रीकृत व्यवस्था में बदल देते हैं। आपातकाल में संसद को यह शक्ति भी प्राप्त हो जाती है कि वह उन विषयों पर कानून बना सके जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

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प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि।
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है?
(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है?
उत्तर:
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है। शक्तिशाली केन्द्र राज्यों के कार्यक्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप कर राज्यों को कमजोर करता है। मुख्य रूप से जब केन्द्र में एक दल की सरकार हो और राज्य में दूसरे दल की तो केन्द्र अधिक शक्तिशाली होने पर विपक्षी दल की सरकार को गिराने के लिए उसके कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप करता है या उसके विकास हेतु आवश्यक वित्तीय व प्रशासनिक सहयोग देने में आनाकानी करता रहता है। ऐसी स्थिति में राज्य और कमजोर हो जाते हैं।

इससे केन्द्र-राज्यों के बीच संघर्ष और विवादों का जन्म होता है। 1960 के दशक में भारत में अनेक राज्यों की सरकारों ने केन्द्र की कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए अवांछनीय हस्तक्षेपों का विरोध किया तथा संघीय व्यवस्था के अंदर स्वायत्तता की अवधारणा को लेकर विवाद छिड़ गया।

(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है: यदि संघीय व्यवस्था में राज्य शक्तिशाली होंगे तो उनके पारस्परिक झगड़ों को निपटाने में केन्द्र अपने आपको असमर्थ पायेगा और ऐसी स्थिति में केन्द्र की स्थिति अत्यन्त निर्बल हो जायेगी। हो सकता है, ऐसी स्थिति में संघीय व्यवस्था का ही पतन हो जाए।

पृष्ठ 168

प्रश्न 7.
भारत के राज्यों की सूची बनाएँ और पता करें कि प्रत्येक राज्य का गठन किस वर्ष किया गया?
उत्तर:
वर्तमान में भारत में 28 राज्य तथा 9 केन्द्र प्रशासित क्षेत्र हैं। ये राज्य निम्नलिखित हैं।: हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, पश्चिमी बंगाल, ड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल। 9 केन्द्र प्रशासित क्षेत्र ये हैं।

  1. दमन और दीव
  2. दादरा और नगर हवेली
  3. चंडीगढ़
  4. पांडिचेरी
  5. लक्षद्वीप
  6. अंडमान निकोबार द्वीप समूह
  7. दिल्ली
  8. जम्मू-कश्मीर
  9. लद्दाख।

1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा भारत के समस्त राज्यों को पुनर्गठित कर दो श्रेणियों में विभाजित किय: राज्य और संघ राज्य क्षेत्र। 1956 में प्रमुख 14 राज्य थे। ये थे: आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, महाराष्ट्र (बम्बई), केरल, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु (मद्रास), कर्नाटक (मैसूर), उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, जम्मू और कश्मीर। इसके बाद 14 नये राज्यों का (14) गठन निम्नलिखित वर्षों में हुआ:

  • 1960 में बम्बई राज्य को विभाजित कर महाराष्ट्र और (15) गुजरात राज्य बनाए गए।
  • सन् 1961 में (16) हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया।
  • सन् 1962 में (17) नागालैंड (18) मणिपुर राज्यों का गठन किया गया।
  • सन् 1963 में (19) त्रिपुरा का गठन किया गया तथा (20) गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • सन् 1966 में पंजाब राज्य का विभाजन कर (21) हरियाणा का गठन किया गया।
  • सन् 1971 में (22) मेघालय का तथा (23) मिजोरम राज्य का गठन किया गया।
  • सन् 1975 में (24) सिक्किम तथा (25) अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया गया।
  • सन् 2000 में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार राज्यों से विभाजित कर क्रमश: (26) उत्तरांचल, (27) छत्तीसगढ़ और (28) झारखण्ड राज्यों का गठन किया गया है।
  • 2014 में आंध्रप्रदेश राज्य को विभाजित कर दो राज्य बनाए गए:
    1. आंध्र
    2. तेलंगाना इस प्रकार तेलंगाना 29वां राज्य बना।
  • 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य को विभाजित कर उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों:
    1. जम्मू-कश्मीर तथा
    2. लद्दाख में परिवर्तित कर दिया गया। इस प्रकार केन्द्र प्रशासित राज्य 7 से बढ़कर 9 हो गए हैं तथा राज्यों की संख्या घटकर पुनः 28 हो गई है।

पृष्ठ 170

प्रश्न 8.
राज्य और अधिक स्वायत्तता की मांग क्यों करते हैं?
उत्तर:
राज्य और अधिक स्वायत्तता की मांग निम्नलिखित कारणों से करते है।

  1. शक्ति विभाजन को राज्यों के पक्ष में बदलने तथा राज्यों को ज्यादा तथा महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये जाने के लिए राज्य स्वायत्तता की मांग करते हैं।
  2. राज्य आय के स्वतंत्र साधनों तथा संसाधनों पर नियंत्रण करने के लिए वित्तीय स्वायत्तता की मांग करते हैं।
  3. विभिन्न राज्य प्रशासनिक तंत्र पर केन्द्रीय नियंत्रण से नाराज रहते हैं। इस नियंत्रण से मुक्ति पाने के लिए भी . राज्य अधिक स्वायत्तता की मांग करते हैं।
  4. कुछ राज्यों की स्वायत्तता की मांग सांस्कृतिक और भाषायी मुद्दों से भी जुड़ी हो सकती है। जैसे- तमिलनाडु ने हिन्दी के वर्चस्व के विरोध में अधिक स्वायत्तता की मांग की।

Jharkhand Board Class 11 Political Science संघवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
नीचे कुछ घटनाओं की सूची दी गई है। इनमें से किसको आप संघवाद की कार्य-प्रणाली के रूप में चिह्नित करेंगे और क्यों?
(क) केन्द्र सरकार ने मंगलवार को जीएनएलएफ के नेतृत्व वाले दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को छठी अनुसूची में वर्णित दर्जा देने की घोषणा की। इससे पश्चिम बंगाल के इस पर्वतीय जिले के शासकीय निकाय को ज्यादा स्वायत्तता प्राप्त होगी। दो दिन के गहन विचार-विमर्श के बाद नई दिल्ली में केन्द्र सरकार पश्चिम बंगाल सरकार और सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जी एन एल एफ) के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

(ख) वर्षा प्रभावित प्रदेशों के लिए सरकार कार्य-योजना लायेगी। केन्द्र सरकार ने वर्षा प्रभावित प्रदेशों से पुनर्निर्माण की विस्तृत योजना भेजने को कहा है ताकि वह अतिरिक्त राहत प्रदान करने की उनकी माँग पर फौरन कार्रवाई कर सक ।

(ग) दिल्ली के लिए नये आयुक्त। देश की राजधानी दिल्ली में नए नगरपालिका आयुक्त को बहाल किया जायेगा। इस बात की पुष्टि करते हुए एमसीडी के वर्तमान आयुक्त राकेश मेहता ने कहा कि उन्हें अपने तबादले के आदेश मिल गए हैं और संभावना है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अशोक कुमार उनकी जगह संभालेंगे। अशोक कुमार अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव की हैसियत से काम कर रहे हैं। 1975 के बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री मेहता पिछले साढ़े तीन साल से आयुक्त की हैसियत से काम कर रहे हैं।

(घ) मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा। राज्यसभा ने बुधवार को मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया। मानव संसाधन विकास मंत्री ने वायदा किया है कि अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में भी ऐसी संस्थाओं का निर्माण होगा।

(ङ) केन्द्र ने धन दिया। केन्द्र सरकार ने अपनी ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत अरुणाचल प्रदेश के 553 लाख रुपये दिये हैं। इस धन की पहली किस्त के रूप में अरुणाचल प्रदेश को 466 लाख रुपये दिए गए हैं।

(च) हम बिहारियों को बतायेंगे कि मुंबई में कैसे रहना है। – करीब 100 शिवसैनिकों ने मुंबई के जे. जे. अस्पताल में उठा-पटंक करके रोजमर्रा के काम-धंधे में बाधा पहुँचाई, नारे लगाए और धमकी दी कि गैर – मराठियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की गई तो इस मामले को वे स्वयं ही निपटायेंगे।

(छ) सरकार को भंग करने की मांग। कांग्रेस विधायक दल ने प्रदेश के राज्यपाल को हाल में सौंपे एक ज्ञापन में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक एलायंस ऑफ नागालैंड (डीएएन) की सरकार को तथाकथित वित्तीय अनियमितता और सार्वजनिक धन के गबन के आरोप में भंग करने की माँग की है।

(ज) एनडीए सरकार ने नक्सलियों से हथियार रखने को कहा। विपक्षी दल राजद और उसके सहयोगी कांग्रेस तथा सीपीआई (एम) के वॉकआउट के बीच बिहार सरकार ने आज नक्सलियों से अपील की कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ दें। बिहार को विकास के नए युग में ले जाने के लिए बेरोजगारी को जड़ से खत्म करने के अपने वादे को भी सरकार ने दोहराया।
उत्तर:
( क ) केन्द्र सरकार ने मंगलवार को जीएनएलएफके नेतृत्व वाले दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को छठी अनुसूची में वर्णित दर्जा देने की घोषणा की। यह घटना संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में चिह्नित की जा सकती है क्योंकि इसमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकार (पश्चिम बंगाल सरकार) तथा सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाली गोरखा लिबरेशन फ्रंट तीनों शामिल हुए।

(ख) वर्षा प्रभावित प्रदेशों के लिए सरकार कार्य-योजना लायेगी। यह घटना अथवा प्रक्रिया भी संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में चिह्नित की जायेगी क्योंकि इसमें केन्द्र सरकार और वर्षा प्रभावित क्षेत्र सम्मिलित हैं।

(ग) दिल्ली के नये आयुक्त। यह तबादले का आदेश भी केन्द्र सरकार और राज्यों से संबंधित है। भारत में संघात्मक शासन प्रणाली में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति केन्द्र सरकार करती है, वे राज्यों में प्रमुख पदों पर अपनी सेवाएँ देते हैं, लेकिन उनका तबादला केन्द्र सरकार एक राज्य से दूसरे राज्य में कर सकती है।

(घ) मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा इस घटना के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि संघवाद में केन्द्र और राज्यों के बीच शक्ति का विभाजन रहता है। अतः केन्द्रीय विश्वविद्यालय केन्द्र सरकार के अधीन होगा। है (ङ) केन्द्र ने धन दिया। इस घटना में केन्द्र ने राज्य सरकार ( अरुणाचल सरकार ) को धन मुहैया कराया अतः यह संघवाद की कार्यप्रणाली के अन्तर्गत आता है।

(च) हम बिहारियों को बताएँगे कि मुंबई में कैसे रहना है। यह कार्यवाही संघवाद की कार्यप्रणाली के अनुरूप नहीं है क्योंकि कोई राज्य भारतीय नागरिक को किसी प्रदेश में रहने से नहीं रोक सकता।

(छ) सरकार को भंग करने की मांग। इस घटना को भी संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि संघवाद की कार्यप्रणाली में जब किसी राज्य में शासन भ्रष्टाचार में लिप्त हो तो संघ (केन्द्र) राज्य में राज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।

(ज) एनडीए सरकार ने नक्सलियों से हथियार रखने को कहा। इस घटना में बिहार की राज्य सरकार के द्वारा नक्सलियों के विरुद्ध किये जाने वाले कार्य को दर्शाया गया है। इसे संघवाद की कार्यप्रणाली के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।

JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 2.
बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही होगा और क्यों?
(क) संघवाद से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि विभिन्न क्षेत्रों के लोग मेल-जोल से रहेंगे और उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की संस्कृति दूसरे पर लाद दी जाएगी।
(ख) अलग-अलग किस्म के संसाधनों वाले दो क्षेत्रों के बीच आर्थिक लेन-देन को संघीय प्रणाली से बाधा पहुँचेगी।
(ग) संघीय प्रणाली इस बात को सुनिश्चित करती है कि जो केन्द्र में सत्तासीन हैं, उनकी शक्तियाँ सीमित रहें।
उत्तर:
उपर्युक्त तीनों कथनों में (ग) बिन्दु का यह कथन सही है कि ” संघीय प्रणाली इस बात को सुनिश्चित करती है कि जो केन्द्र में सत्तासीन हैं, उनकी शक्तियाँ सीमित रहें ।” क्योंकि संघवाद में संविधान द्वारा शक्तियों को केन्द्र और राज्यों की सरकारों के बीच विभाजन कर दिया जाता है और दोनों के विधायी, वित्तीय तथा प्रशासनिक कार्यक्षेत्र निश्चित कर दिये जाते हैं और यदि केन्द्र सरकार इस विभाजन का उल्लंघन कर राज्यों के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करती है तो राज्य सरकारें न्यायपालिका में वाद दायर कर इस हस्तक्षेप को रुकवा सकती हैं।

प्रश्न 3.
बेल्जियम के संविधान के कुछ प्रारंभिक अनुच्छेद नीचे लिखे गये हैं। इसके आधार पर बताएँ कि बेल्जियम में संघवाद को किस रूप में साकार किया गया है। भारत के संविधान के लिए ऐसा ही अनुच्छेद लिखने का प्रयास करके देखें
शीर्षक-I: संघीय बेल्जियम, इसके घटक और इसका क्षेत्र-
अनुच्छेद-1: बेल्जियम एक संघीय राज्य है। जो समुदायों और क्षेत्रों से बना है।
अनुच्छेद-2 : बेल्जियम तीन समुदायों से बना है फ्रैंच समुदाय, फ्लेमिश समुदाय और जर्मन समुदाय।
अनुच्छेद-3 : बेल्जियम तीन क्षेत्रों को मिलाकर बना है। वैलून क्षेत्र, फ्लेमिश क्षेत्र और ब्रूसेल्स क्षेत्र।
अनुच्छेद-4 बेल्जियम में 4 भाषायी क्षेत्र हैं। फ्रेंच भाषी क्षेत्र, डच भाषी क्षेत्र, ब्रूसेल्स की राजधानी का द्विभाषी क्षेत्र तथा जर्मन – भाषी क्षेत्र। राज्य का प्रत्येक ‘कम्यून’ इन भाषायी क्षेत्रों में से किसी एक का हिस्सा है।
अनुच्छेद-5: वैलून क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले प्रान्त हैं। वैलून ब्रार्बेट, हेनॉल्ट, लेग, लक्जमबर्ग और नामूर। फ्लेमिश क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल प्रान्त हैं। एंटीवर्प, फ्लेमिश ब्रार्बेट, वेस्ट फ्लैंडर्स, ईस्ट फ्लैंडर्स और लिंबर्ग।
उत्तर:
बेल्जियम के संघवाद को फ्रैंच, फ्लेमिश और जर्मन समुदायों तथा वैलून, फ्लेमिश और ब्रूसेल्स क्षेत्रों से बना एक संघीय राज्य है। प्रत्येक क्षेत्र अनेक राज्यों में विभाजित है और प्रत्येक राज्य अनेक कम्यूनों से बना है तथा राज्य का प्रत्येक कम्यून फ्रेंच, डच, जर्मन भाषायी क्षेत्रों में से किसी एक का हिस्सा है।

भारत के संघवाद के लिए ऐसा ही एक अनुच्छेद इस प्रकार लिखने का प्रयास इस प्रकार है।
अनुच्छेद-1 : भारत राज्यों का एक संघ होगा। राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
अनुच्छेद-2 : भारत एक ऐसे समाज के लिए प्रेरित है जो जातिभेद से रहित हो लेकिन सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए सीटें मुख्यतः सामान्य वर्ग, अनुसूचित जनजाति वर्ग और अनुसूचित जाति वर्ग में बँटी हैं।
अनुच्छेद-3 : भारत में 28 राज्य तथा 9 संघ शासित क्षेत्र हैं। राज्य तथा संघ शासित क्षेत्र वे हैं जो संविधान की अनुसूची (1) में दिए गए हैं।
अनुच्छेद-4 : भारतीय संविधान में राज्यों का मुख्य आधार भाषायी क्षेत्र है लेकिन कुछ राज्य प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से भी निर्मित हुए हैं। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को राजभाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता प्राप्त है।

प्रश्न 4.
कल्पना करें कि आपको संघवाद के संबंध में प्रावधान लिखने हैं। लगभग 300 शब्दों का एक लेख लिखें जिसमें निम्नलिखित बिन्दुओं पर आपके सुझाव हों।
(क) केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा।
(ख) वित्त संसाधनों का वितरण।
(ग) राज्यपालों की नियुक्ति।
उत्तर:
भारतीय संविधान में संघवाद – भारतीय संघवाद में केन्द्र और राज्यों के बीच संबंध सहयोग पर आधारित किया गया है। इस प्रकार इसमें विविधता को मान्यता देते हुए संविधान की एकता पर बल दिया गया है । इसी दृष्टि से यह कहा गया है कि ‘भारत राज्यों का संघ (यूनियन) होगा।’ भारतीय संविधान में संघवाद के प्रमुख प्रावधानों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

(क) केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा:
भारत के संविधान में दो तरह की सरकारों की बात मानी गई है – एक, सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए जिसे संघीय सरकार या केन्द्रीय सरकार कहा गया है। और दूसरी, प्रत्येक प्रान्तीय इकाई या राज्य के लिए जिसे राज्य सरकार कहा गया है। प्रत्येक संघीय व्यवस्था की तरह भारत में भी केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। इन शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित या परिगणित कर दिया गया है। ये सूचियाँ हैं। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। मूलतः संघ सूची में 97 विषय दिये गये हैं, राज्य सूची में 66 तथा समवर्ती सूची में 47 विषय दिये गये हैं।

संघ सूची के विषयों के सम्बन्ध में कहा गया है कि इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार का होगा। राज्य सूची के विषयों पर राज्यों की सरकारों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है तथा समवर्ती सूची के विषयों पर दोनों सरकारें कानून बना सकेंगी, लेकिन यदि एक ही समय में एक ही विषय पर दोनों सरकारों ने परस्पर विरोधी कानून बनाए हैं तो ऐसी दशा में केन्द्र सरकार का कानून ही मान्य रहेगा। इन तीनों सूचियों के अतिरिक्त विषयों को ‘अवशिष्ट विषय’ कहा गया है जिन पर कानून निर्माण का अधिकार केन्द्र की सरकार को सौंपा गया है। शक्ति विभाजन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि संविधान ने आर्थिक और वित्तीय शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार के हाथ में सौंपी हैं। राज्यों के उत्तरदायित्व बहुत अधिक हैं पर आय के साधन कम।

शक्ति विभाजन में निम्नलिखित प्रावधान एक सशक्त केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं-

  1. अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र सरकार को प्रदान की गई हैं।
  2. आय के प्रमुख साधनों पर केन्द्र का नियंत्रण रखा गया है तथा राज्य अनुदानों और वित्तीय सहयाता के लिए केन्द्र पर आश्रित हैं।
  3. राष्ट्रीय हित में संसद राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में भी कानून बना सकती है। (अनुच्छेद 249)
  4. आपातकाल की स्थिति में भी संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
  5. संघ की कार्यपालिका को किसी राज्य को निर्देश देने की शक्ति दी गई है।

भारत के विभाजन के कारण संविधान सभा को राष्ट्रीय एकता और विकास की चिंताओं ने एक सशक्त केन्द्रीय सरकार बनाने की प्रेरणा दी।
(ख) वित्त संसाधनों का वितरण: भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों का वितरण इस प्रकार किया गया है। संघ तथा राज्यों के मध्य कर निर्धारण की शक्ति का पूर्ण विभाजन कर दिया गया है। करों से प्राप्त आय का बँटवारा होता है।

(अ) संघ सरकार के प्रमुख राजस्व स्रोत हैं। निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, निवेश ऋण, रेलें, रिजर्व बैंक, शेयर बाजार आदि।

(ब) राज्यों के राजस्व स्रोत हैं- प्रति व्यक्ति कर, कृषि भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, भूमि और भवनों पर कर, पशुओं तथा नौकाओं पर कर, बिजली के उपयोग तथा बिक्री पर कर, वाहनों पर चुंगी कर, केन्द्र सरकार से प्राप्त अनुदान तथा सहायता आदि।

(स) संघ द्वारा आरोपित, संगृहीत और विनियोजित शुल्क हैं बिल, विनिमयों, प्रोमिसरी नोटों, हुंडियों, चैकों आदि पर मुद्रांक शुल्क, मादक द्रव्य पर कर, शौक – शृंगार की चीजों पर कर तथा उत्पादन शुल्क।

(द) संघ द्वारा आरोपित, संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर हैं। कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कर, कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति शुल्क, समुद्र, वायु, रेल द्वारा ले जाने वाले ‘माल तथा यात्रियों पर सीमान्त कर, रेलभाड़ों तथा वस्तु भाड़ों पर कर, शेयर बाजार तथा सट्टा बाजार पर आदान-प्रदान पर मुद्रांक शुल्क के अतिरिक्त कर, समाचार पत्रों के क्रय-विक्रय तथा उसमें प्रकाशित किए गए विज्ञापनों पर और अन्य अन्तर्राज्यीय व्यापार तथा वाणिज्य से माल के क्रय-विक्रय पर कर।

वित्तीय साधनों के उपर्युक्त वितरण व्यवस्था से स्पष्ट होता है कि आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण है। राज्य अनुदानों और वित्तीय सहायता के लिए केन्द्र पर आश्रित है । नियोजन के कारण आर्थिक फैसले लेने की ताकत केन्द्र सरकार के हाथ में सिमटती गयी है। आर्थिक संसाधनों का यह वितरण असंतुलित माना जाता है और केन्द्र सरकार पर प्रायः यह आरोप लगाया जाता है कि वह विरोधी दलों द्वारा शासित राज्यों के प्रति अनुदान और ऋण देने में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाती है।

(ग) राज्यपालों की नियुक्ति:
राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति यह नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के परामर्श से करता है। अतः प्रधानमंत्री ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल बनाना चाहेंगे जो उसका विश्वासपात्र हो क्योंकि ऐसे व्यक्ति द्वारा आवश्यकता पड़ने पर राज्य पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता है। इस प्रकार राज्यपाल के फैसलों को प्रायः राज्य सरकार के कार्यों में केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं तब राज्यपाल की भूमिका और भी विवादग्रस्त हो जाती है। अतः राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति निष्पक्ष होकर की जानी चाहिए ।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रांत के गठन का आधार होना चाहिए और क्यों?
(क) सामान्य भाषा
(ख) सामान्य आर्थिक हित
(ग) सामान्य क्षेत्र
(घ) प्रशासनिक सुविधा।
उत्तर:
प्रांत के गठन के उपर्युक्त में से दो आधार:
(क) सामान्य भाषा (घ) प्रशासनिक सुविधा रहे हैं। लेकिन वर्तमान काल में सामान्य भाषा के आधार पर प्रान्तों का गठन उचित माना जाता है क्योंकि समाज में अनेक विविधताएँ होती हैं और आपसी विश्वास से संघवाद का कामकाज आसानी से चलाने का प्रयास किया जाता है। यही कारण है कि भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर किया गया है। कोई एक भाषायी समुदाय पूरे संघ पर हावी न हो जाए इस कारण इकाई क्षेत्रों की अपनी भाषा सामुदायिक पहचान बनी रहती है और वे इकाई अपनी पहचान होते हुए भी संघ की एकता में विश्वास रखती हैं।

प्रश्न 6.
उत्तर भारत के प्रदेशों:
राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यदि इन सभी प्रान्तों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाए तो क्या ऐसा करना संघवाद के विचार से संगत होगा? तर्क दीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत के प्रदेशों राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं भाषायी आधार पर यदि इन सभी प्रान्तों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाये तो ऐसा करना संघवाद के विचार से असंगत होगा क्योंकि इससे प्रथम तो प्रशासनिक असुविधा पैदा होगी। दूसरे, संघवाद में लोगों की दो निष्ठाएँ होती हैं, प्रथम राष्ट्रीय निष्ठा और दूसरी क्षेत्रीय निष्ठा संघवाद में लोगों की दोनों निष्ठाओं को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। लेकिन
यदि उपर्युक्त राज्यों को मिलाकर एक राज्य (प्रदेश) बना दिया जायेगा तो इससे क्षेत्रीय निष्ठाएँ आहत होंगी जो अन्ततः राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक होंगी।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की ऐसी चार विशेषताओं का उल्लेख करें जिनमें प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई है।
उत्तर:
भारतीय संविधान एक संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना करता है जिसमें दो प्रकार की सरकारों की बात कही गयी है।

  1. सम्पूर्ण भारत के लिए एक संघीय या केन्द्रीय सरकार और
  2. प्रत्येक प्रान्त के लिए एक राज्य सरकार ये दोनों ही संवैधानिक सरकारें हैं जिनके स्पष्ट कार्यक्षेत्र हैं।

लेकिन भारतीय संविधान की संघात्मक शासन व्यवस्था में प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्ति प्रदान की गई है। केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्ति प्रदान करने वाली चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण: संविधान के अनुच्छेद-3 के अनुसार संसद ” किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को मिलाकर नये राज्य का निर्माण कर सकती है।” वह किसी राज्य की सीमाओं या नाम में परिवर्तन कर सकती है, लेकिन इस शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए संविधान पहले प्रभावित राज्य के विधानमण्डल को विचार व्यक्त करने का अवसर देता है।
इससे स्पष्ट होता है कि राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है।

2. आपातकालीन प्रावधान: संविधान में केन्द्र को अत्यधिक शक्तिशाली बनाने वाले कुछ आपातकालीन प्रावधान भी दिये गये हैं। आपातकाल में संसद को यह शक्ति प्राप्त हो जाती है कि वह राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।

3. केन्द्र को प्रदत्त प्रभावी वित्तीय शक्ति: केन्द्र सरकार को अत्यन्त प्रभावी वित्तीय शक्ति प्राप्त है। आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण है। केन्द्र के पास आय के अनेक संसाधन हैं और राज्य अनुदानों तथा वित्तीय सहायता के लिए केन्द्र पर आश्रित है। स्वतंत्रता के बाद भारत की आर्थिक प्रगति के लिए नियोजन का प्रयोग किया गया। केन्द्र नीति आयोग की नियुक्ति करता है जो राज्यों के संसाधन प्रबन्ध की निगरानी करता है।

4. राज्यपाल: राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल प्रायः केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है। राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार को हटाने और विधानसभा को भंग करने का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को भेज सके। इससे केन्द्र सरकार को राज्यों के कार्यों में हस्तक्षेप का अवसर मिल जाता है। इसके अतिरिक्त सामान्य परिस्थिति में भी राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है।

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प्रश्न 8.
बहुत-से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुसार राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख है। उसकी स्थिति उसी प्रकार की है जैसी केन्द्र में राष्ट्रपति की है। लेकिन राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति समय से पूर्व उसे पद से हटा सकता है तथा अन्य राज्यों में उसका स्थानान्तरण कर सकता है। इस प्रकार राज्यपाल अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति अर्थात् केन्द्र सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। इस उत्तरदायित्व के कारण राज्यपालों को दोहरी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। एक तरफ उसे राज्य के संवैधानिक अध्यक्ष की भूमिका निभानी होती है तो दूसरी तरफ उसे केन्द्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करना होता है।

1960 के दशक तक तो भारत में केन्द्र तथा राज्यों में एक ही दल कांग्रेस की सरकारें रहीं। इसलिए राज्यपाल की केन्द्र के अभिकर्ता की भूमिका मुखरित नहीं हुई। लेकिन 1960 के दशक के बाद के काल में अनेक राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें बनीं; वहाँ राज्यपाल की केन्द्र के अभिकर्ता की भूमिका सामने आई तथा राज्यपाल विवादों के घेरे में आए। अनेक राज्य राज्यपालों की निम्नलिखित भूमिकाओं को लेकर नाखुश रहे

राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने के प्रश्न पर नाखुश – राज्यपालों से संबंधित विवाद का मुख्य प्रश्न यह रहा कि राज्यपाल को किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी चाहिए। कुछ राज्य सरकारों का यह मत रहा है कि कई बार ऐसा होता है कि राज्यों की संवैधानिक मशीनरी विफल नहीं हुई होती तो भी राज्यपाल केन्द्र के इशारों पर राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर देते हैं। यथा

  1. उत्तरप्रदेश में 21 फरवरी, 1998 को तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भण्डारी ने कल्याणसिंह सरकार को गिराकर राज्यपाल के पद की गरिमा को ठोस पहुँचायी।
  2. 2 फरवरी, 2005 को गोवा में हुए नाटकीय घटनाक्रम में तत्कालीन राज्यपाल एम. सी. जमीर ने विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने के बावजूद भाजपा की मनोहर पारीक सरकार को बर्खास्त कर दिया। यह संवैधानिक पद का दुरुपयोग है।
  3. बिहार में तत्कालीन राज्यपाल बूटासिंह ने भी विवादास्पद आचरण के तहत सन् 2005 में विधानसभा भंग कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा भंग किये जाने को अनुचित ठहराया। इन्हीं कारणों से बहुत से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाख़ुश रहते हैं क्योंकि राज्यपाल केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में राज्य के संवैधानिक प्रमुख की भूमिका का निष्पक्ष ढंग से निर्वाह नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
यदि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा, तो ऐसे प्रदेश में राष्ट्रपति – शासन लगाया जा सकता है। बताएँ कि निम्नलिखित में से कौन-सी स्थिति किसी देश में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिहाज से संगत है और कौन-सी नहीं। संक्षेप में कारण भी दें।
(क) राज्य की विधानसभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया है और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की माँग कर रहा है।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाएँ बढ़ रही हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इजाफा हो रहा है।
(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला है। भय है कि एक दल दूसरे दल के कुछ विधायकों को धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
(घ) केन्द्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन है और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हैं।
(ङ) साम्प्रदायिक दंगे में 2000 से ज्यादा लोग मारे गये हैं।
(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया है।
उत्तर:
(क) राज्य की विधानसभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया है और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की मांग कर रहा है। यह स्थिति राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का उचित कारण नहीं है। सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप कार्य कर रही है। अपराधियों को दण्ड देने की प्रक्रिया सामान्य कानून की एक प्रक्रिया है।

(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाओं का बढ़ना तथा महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि होने की घटनाएँ यह सिद्ध नहीं करती हैं कि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं है। इस स्थिति में भी राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना उचित नहीं है।

(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला है। यह है कि एक दल दूसरे दल के विधायकों को धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
इस स्थिति में बिना किसी ठोस सबूत के केवल आशंका के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश नहीं की जा सकती।

(घ) केन्द्र और प्रदेश में एक-दूसरे के कट्टर शत्रु दलों का अलग-अलग शासन होना भी राष्ट्रपति शासन लगाने का उचित कारण नहीं है। केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हो सकती हैं।

(ङ) साम्प्रदायिक दंगों में 2000 से अधिक लोगों का मारा जाना; शासन की असफलता को सिद्ध करता है। इस स्थिति में राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है।

(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया है। इस स्थिति में उस राज्य में जिसने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया है, राजयपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है, क्योंकि राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा है।

प्रश्न 10.
ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने क्या माँगें उठाई हैं?
उत्तर:
संविधान ने केन्द्र को राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बनाया है और अनेक कारणों से समय-समय पर राज्यों ने ज्यादा शक्ति और स्वायत्तता की निम्नलिखित मांगें उठायी हैं।

  1. अधिक शक्ति तथा अधिकार हेतु स्वायत्तता की मांग: अधिक शक्ति और स्वायत्तता के लिए कभी-कभी राज्यों ने यह मांग उठायी है कि शक्ति विभाजन, जो केन्द्र के पक्ष में है, उसे राज्यों के पक्ष में बदला जाए तथा राज्यों को ज्यादा तथा महत्त्वपूर्ण अधिकार दिए जाएँ। समय-समय पर अनेक राज्यों (तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल) ने इस प्रकार की स्वायत्तता की मांग की।
  2. वित्तीय स्वायत्तता की मांग: ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने एक अन्य मांग यह उठायी है. कि राज्यों के पास आय के स्वतन्त्र साधन होने चाहिए और संसाधनों पर उनका ज्यादा नियंत्रण होना चाहिए इसे वित्तीय स्वायत्तता की मांग भी कह सकते हैं। तमिलनाडु और पंजाब की स्वायत्तता की माँगों में भी ज्यादा वित्तीय अधिकार हासिल करने की मंशा छुपी हुई है।
  3. प्रशासकीय स्वायत्तता की मांग: स्वायत्तता की मांग का तीसरा पहलू प्रशासकीय शक्तियों से संबंधित है। विभिन्न राज्य प्रशासनिक तंत्र पर केन्द्रीय नियंत्रण से नाराज रहते हैं।
  4. सांस्कृतिक एवं भाषायी मुद्दों से जुड़ी स्वायत्ता की मांग-कुछ राज्यों की स्वायत्तता की मांग सांस्कृतिक और भाषायी मुद्दों से भी जुड़ी हुई रही है। तमिलनाडु में हिन्दी के वर्चस्व के विरोध और पंजाब में पंजाबी भाषा और संस्कृति के प्रोत्साहन की मांग इसके कुछ उदाहरण हैं। कुछ राज्य ऐसा महसूस करते रहे हैं कि हिंदी भाषी क्षेत्रों का अन्य क्षेत्रों पर वर्चस्व है। इसीलिए 1960 के दशक में कुछ राज्यों में हिंदी को लागू करने के विरोध में आंदोलन भी हुए।

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प्रश्न 11.
क्या कुछ प्रदेशों के शासन के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए? क्या इससे दूसरे प्रदेशों में नाराजगी पैदा होती है? क्या इन प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में मदद मिलती है?
उत्तर:
भारतीय संघवाद की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इसमें अनेक राज्यों के साथ थोड़ा अलग व्यवहार किया जाता है। शक्ति के बँटवारे की योजना के तहत संविधान प्रदत्त शक्तियाँ सभी राज्यों को समान रूप से प्राप्त हैं। लेकिन कुछ राज्यों के लिए उनकी विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के प्रावधानों की व्यवस्था करता है। अनुरूप संविधान कुछ विशेष ऐसे अधिकतर प्रावधान पूर्वोत्तर के राज्यों (असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम आदि) के लिए हैं।

ऐसे ही कुछ विशिष्ट प्रावधान पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल तथा अन्य राज्यों जैसे तेलगूदेशम, गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र और सिक्किम के लिए हैं। इन राज्यों के विशिष्ट इतिहास और संस्कृति वाली जनसंख्या को अपनी संस्कृति और इतिहास को बनाए रखने के लिए ऐसे प्रावधान होने चाहिए। इस दृष्टिकोण के तहत भारतीय संविधान में इन राज्यों को कुछ विशिष्ट प्रावधान प्रदान किये गये हैं।

विशिष्ट प्रावधानों का विरोध: संघात्मक शासन व्यवस्था में जब भी कुछ राज्यों के लिए ऐसे विशिष्ट प्रावधानों की व्यवस्था संविधान में की जाती है, तो उसका कुछ विरोध भी होता है क्योंकि विरोध करने वाले लोगों की मान्यता होती है कि संघीय व्यवस्था में शक्तियों का औपचारिक और समान विभाजन संघ की सभी इकाइयों पर समान रूप से लागू होना चाहिए। इस दृष्टि से इनका विरोध किया जाता है। दूसरे, इस बात की भी शंका होती है कि ऐसे विशिष्ट प्रावधानों से उन क्षेत्रों में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ मुखर हो सकती हैं।

विशिष्ट प्रावधान और विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता: इन विशिष्ट प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में भी मदद मिलती है। क्योंकि इन प्रावधानों के कारण इन क्षेत्रों के निवासियों का यह भय दूर हो जाता है कि अन्य क्षेत्रों के लोग उनकी संस्कृति व इतिहास को नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे। इससे इन क्षेत्रों के लोगों में संघीय व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा होता है और संघीय व्यवस्था की सफलता राष्ट्र की एकता तथा विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता की गारंटी देती है।

 संघवाद JAC Class 11 Political Science Notes

→ संघवाद क्या है;
शासन के सिद्धान्त के रूप में संघवाद विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करता है। संघीय राज्य का प्रारंभ अमेरिका से हुआ लेकिन वह भारतीय संघवाद से भिन्न है। संघवाद की कुछ मूल अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं।

  • संघवाद एक संस्थागत प्रणाली है जो दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं को समाहित करती है। इसमें एक प्रान्तीय स्तर की होती है और दूसरी केन्द्रीय स्तर की । प्रत्येक सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती है।
  • इस प्रकार के लोगों की दोहरी पहचान और निष्ठाएँ होती हैं। वे अपने क्षेत्र के भी होते हैं और राष्ट्र के भी। जैसे हममें से कोई राजस्थानी या मराठी होने के साथ-साथ भारतीय भी होता है।
  • प्रत्येक स्तर की राजनीतिक व्यवस्था की कुछ विशिष्ट शक्तियाँ और उत्तरदायित्व होते हैं और वहां की अलग सरकार भी होती है।
  • दोहरे शासन की विस्तृत रूपरेखा प्राय: एक लिखित संविधान में मौजूद होती है। यह संविधान सर्वोच्च होता है और दोनों सरकारों की शक्तियों का स्रोत भी। राष्ट्रीय महत्त्व के विषय केन्द्रीय सरकार के पास होते हैं और क्षेत्रीय महत्त्व के विषय प्रान्तों की सरकार के पास होते हैं।
  • केन्द्र और राज्यों के मध्य किसी टकराव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था होती है जो संघर्षों का समाधान करती है; शक्ति के बंटवारे के कानूनी विवादों का हल करती है।

इस प्रकार संघवाद वह शासन व्यवस्था है जिसमें संविधान द्वारा शक्तियों को केन्द्र और प्रान्तों की सरकारों में विभाजित कर दिया जाता है। इसमें प्रायः दोहरी नागरिकता पायी जाती है; संविधान सर्वोच्च होता है, न्यायपालिका स्वतंत्र तथा सर्वोच्च होती है।

→ भारतीय संविधान में संघवाद: भारत के संविधान में संघ के लिए ‘यूनियन’ शब्द का प्रयोग किया गया है कि ‘भारत राज्यों का संघ (यूनियन) होगा और राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।

→ दोहरी शासन व्यवस्था:
भारत के संविधान में दो तरह की सरकारों की बात मानी गई है।

  • संघीय (केन्द्रीय) सरकार और
  • राज्य ( प्रान्तीय) सरकार।

ये दोनों ही संवैधानिक सरकारें हैं शक्ति विभाजन संविधान इस बात की स्पष्ट व्यवस्था करता है कि कौन-कौनसी शक्तियाँ केवल केन्द्र सरकार को प्राप्त होंगी और कौन-कौनसी केवल राज्यों को। संविधान द्वारा संघ सूची में विनिर्दिष्ट विषयों को केन्द्रीय सरकार को सौंपा गया है और राज्य सूची में विनिर्दिष्ट विषयों को राज्य सरकारों को सौंपा गया है। संघ सूची के विषयों पर सिर्फ केन्द्रीय विधायिका ही कानून बना सकती है और राज्य सूची के विषयों पर राज्य विधायिका ही कानून बना सकती है।

इसके अतिरिक्त कुछ विषय समवर्ती सूची में दिये गये हैं। इन पर केन्द्र और प्रान्त दोनों की विधायिकाएँ कानून बना सकती हैं। लेकिन यदि एक ही समय में समवर्ती सूची के एक ही विषय पर दोनों सरकारें अलग-अलग परस्पर विरोधी कानून बनाती हैं तो ऐसी स्थिति में संघीय विधायिका का कानून मान्य होगा और प्रान्तीय विधायिका का कानून रद्द हो जायेगा। इन तीनों सूचियों के अतिरिक्त अवशिष्ट विषय केन्द्र सरकार को दिये गये हैं।

→ स्वतंत्र व सर्वोच्च न्यायपालिका: यदि कभी यह विवाद हो जाए कि कौन-सी शक्तियाँ केन्द्र के पास हैं और कौन-सी राज्यों के पास, तो इसका निर्णय न्यायपालिका संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार करेगी।

→ विविधता के साथ एकता: भारतीय संविधान द्वारा अंगीकृत संघीय व्यवस्था का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि केन्द्र और राज्यों के बीच संबंध सहयोग पर आधारित होगा।

→ सशक्त केन्द्रीय सरकार और संघवाद:
देश की एकता को बनाए रखने तथा विकास की चिन्ताओं ने संविधान निर्माताओं को एक सशक्त केन्द्रीय सरकार बनाने की प्रेरणा दी। निम्नलिखित संवैधानिक प्रावधान सशक्त केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं।

  • किसी राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है।
  • आपातकालीन प्रावधान हमारी संघीय व्यवस्था को एक अत्यधिक केन्द्रीकृत व्यवस्था में बदल देते हैं।
  • केन्द्र सरकार के पास अत्यन्त प्रभावी वित्तीय शक्तियाँ व उत्तरदायित्व हैं। यथा – आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण; राज्यों की केंन्द्र पर वित्तीय आश्रितता, नीति आयोग तथा केन्द्र सरकार के विशेषाधिकार आदि।
  • राज्यपाल का केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करना।
  • राज्यसभा की अनुमति से केन्द्र सरकार राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकती है।
  • केन्द्र सरकार राज्यों की सरकारों को निर्देश दे सकती है। [अनु. 257 (1)]
  • इकहरी प्रशासकीय व्यवस्था तथा अखिल भारतीय सेवाएँ।
  • देश के किसी क्षेत्र में सैनिक शासन लागू होगा।

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→ भारतीय संघीय व्यवस्था में तनाव
संविधान ने केन्द्र को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। इसलिए समय-समय पर राज्यों ने ज्यादा शक्ति और स्वयत्तता देने की मांग उठायी है। इससे केन्द्र और राज्यों के बीच संघर्ष व विवादों का जन्म हुआ। केन्द्र और राज्य अथवा विभिन्न राज्यों के आपसी कानूनी विवादों का समाधान यद्यपि न्यायपालिका करती है, लेकिन स्वायत्तता की मांग एक राजनीतिक मसला है जो बातचीत द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।

→ केन्द्र-राज्य सम्बन्ध: भारतीय संघवाद पर राजनीतिक प्रक्रिया की परिवर्तनशील प्रकृति का काफी प्रभाव पड़ा है। यथा

  • 1950 तथा 1960 के दशक में केन्द्र और राज्यों में कांग्रेस दल का वर्चस्व था। अंतः इस काल में नए राज्यों के गठन की मांग के अलावा केन्द्र और राज्यों के बीच सम्बन्ध शांतिपूर्ण और सामान्य रहे।
  • 1960 के दशक में अनेक राज्यों में विरोधी दल सत्ता में आए। इससे राज्यों को और ज्यादा शक्ति और स्वायत्तता देने की मांग भी बलवती हुई।
  • 1990 के दशक से गठबंधन राजनीति का युग आया । राज्यों में विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल सत्तारूढ़ हुए। इससे राज्यों का राजनीतिक कद बढ़ा, विविधता का आदर हुआ और स्वायत्तता का मसला राजनैतिक रूप से गर्म हुआ है।

→ स्वायत्तता की मांग: समय-समय पर अनेक राज्यों और राजनीतिक दलों ने राज्यों को केन्द्र के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता देने की मांग उठायी है। लेकिन उनके स्वायत्तता के अलग-अलग अर्थ रहे हैं।

  • राज्यों को ज्यादा और महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये जाएँ।
  • राज्यों के पास वित्तीय स्वायत्तता हो।
  • राज्य प्रशासकीय दृष्टि से केन्द्र के नियंत्रण में नहीं हों।
  • सांस्कृतिक और भाषायी मुद्दों से जुड़ी स्वायत्तता, जैसे— तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध, पंजाब में पंजाबी भाषा व संस्कृति को प्रोत्साहन आदि।

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→ राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन:
राज्यपाल की भूमिका केन्द्र और राज्यों के बीच हमेशा ही विवाद का विषय रही है।

  • राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती है। वह केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं तब राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद हो जाती है। 1998 में ‘सरकारिया आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्यपाल की नियुक्ति निष्पक्ष होकर की जानी चाहिए।
  • राज्यपालों की शक्ति और भूमिका को विवादास्पद बनाने वाला संविधान का 356वां अनुच्छेद भी रहा है इसके द्वारा राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। केन्द्र ने अनेक अवसरों पर इसका प्रयोग राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए किया था उसने विरोधी दलों के गठबंधन को सत्तारूढ़ होने से रोका।

→ नवीन राज्यों की मांग: हमारी संघीय व्यवस्था में नवीन राज्यों के गठन की माँग को लेकर भी तनाव रहा है।

  • सबसे पहले भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की मांग उठी। फलतः 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई और भाषा के आधार पर 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ। लेकिन बाद में भी राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया जारी रही। 1960 में मुजरात और महाराष्ट्र का, 1966 में पंजाब और हरियाणा का गठन हुआ। बाद में मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश का जन्म हुआ।
  • सन् 2000 के दशक में प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से बिहार, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश को विभाजित कर तीन नए राज्य क्रमश: झारखंड, उत्तरांचल और छत्तीसगढ़ बनाए गए तथा सन् 2014 में आंध्रप्रदेश का विभाजन कर आंध्रप्रदेश तथा तेलंगाना राज्य बनाए गए।
  • कुछ क्षेत्र और भाषायी समूह अभी भी अलग राज्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिनमें विदर्भ (महाराष्ट्र ) है।

→ अन्तर्राज्यीय विवाद:
संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक राज्यों में आपसी विवाद के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। कानूनी विवादों को तो न्यायपालिका हल कर देती है, लेकिन राजनीतिक विवादों के हल के लिए परस्पर विचार-विमर्श और विश्वास की आवश्यकता होती है।

  • सीमा विवाद: एक राज्य प्रायः पड़ौसी राज्यों के भू-भाग पर अपना दावा पेश करता है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच ‘बेलगाम’, मणिपुर और नागालैंड के बीच सीमा विवाद, पंजाब और हरियाणा के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों तथा चंडीगढ़ को लेकर विवाद चले आ रहे हैं।
  • नदी जल विवाद: कावेरी नदी जल विवाद (तमिलनाडु व कर्नाटक के बीच), नर्मदा जल विवाद (गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बीच) ऐसे ही विवाद हैं।

→ विशिष्ट प्रावधान:
भारतीय संघवाद की सबसे नायाब विशेषता यह है कि इसमें अनेक राज्यों के साथ थोड़ा अलग व्यवहार किया जाता है । यथा

प्रत्येक राज्य का आकार और जनसंख्या भिन्न-भिन्न होने के कारण उन्हें राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है। जहाँ छोटे-से-छोटे राज्य को भी न्यूनतम प्रतिनिधित्व अवश्य प्रदान किया गया है, वहीं बड़े राज्यों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देना भी सुनिश्चित किया गया है।

शक्ति के बंटवारे की योजना के तहत संविधान प्रदत्त शक्तियाँ सभी राज्यों को समान रूप से प्राप्त हैं। लेकिन कुछ राज्यों के लिए उनकी विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुरूप संविधान कुछ विशेष अधिकारों की व्यवस्था करता है। ये राज्य है। असम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र सिक्किम आदि। उसेजम्मू और कश्मीर अनुच्छेद 370 के द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य को विशिष्ट स्थिति प्रदान की गयी थी।

→ जम्मू और कश्मीर
→ अनुच्छेद 370 के द्वारा जम्म्-कश्मीर राज्य को विशिष्ट स्थिति प्रदान की गयी थी।
अनुच्छेद 370 के अनुसार संघीय सूची और समवर्ती सूची के किसी विषय पर संसद द्वारा कानून बनाने और -कश्मीर में लागू करने के लिए इस राज्य की सहमति आवश्यक थी। यह स्थिति अन्य राज्यों से भिन्न थी।

→ जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार की सहमति के बिना ‘आन्तरिक अशान्ति’ के आधार पर आपातकाल लागू नहीं किया जा सकता था न वहाँ वित्तीय आपातकाल लागू किया जा सकता था और न ही वहाँ राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व लागू होते थे तथा भारतीय संविधान के संशोधन भी राज्य सरकार की सहमति से ही वहाँ लागू हो सकते थे । 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य की इस विशिष्ट स्थिति को समाप्त कर दिया गया। अनुच्छेद 370 तथा 35 – A को संसद •ने संविधान संशोधन कर हटा दिया है तथा जम्मू-कश्मीर राज्य को दो भागों में विभाजित कर दिया गया है तथा दोनों भागों को केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना दिया गया है।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. पृथ्वी पर होमिनिड (मानव जैसे) प्राणियों का प्रादुर्भाव हुआ –
(अ) 8,000 ई. पूर्व
(ब) 2,40,000वर्ष पूर्व
(स) 1,40,000 वर्ष पूर्व
(द) 56,00,000 वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(द) 56,00,000 वर्ष पूर्व।

2. ‘ऑन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ नामक पुस्तक का रचयिता था –
(अ) टायनबी
(ब) प्लूटार्क
(स) चार्ल्स डारविन
(द) न्यूटन।
उत्तर:
(स) चार्ल्स डारविन

3. होमिनॉइड प्राणियों का उदय हुआ –
(अ) 56 लाख वर्ष पहले
(ब) 240 लाख वर्ष पहले
(स) 360 लाख वर्ष पहले
(द) 35 लाख वर्ष पहले।
उत्तर:
(ब) 240 लाख वर्ष पहले

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

4. होमिनिडों का उद्भव हुआ –
(अ) अमेरिका में
(ब) अफ्रीका में
(स) एशिया में
(द) यूरोप में।
उत्तर:
(ब) अफ्रीका में

5. होमो का शाब्दिक अर्थ है –
(अ) वानर
(ब) जानवर
(स) वृक्ष
(द) आदमी।
उत्तर:
(द) आदमी।

6. ‘होमो सैपियन्स’ से क्या अभिप्राय है –
(अ) प्राचीन मानव
(स) वानर
(ब) प्राज्ञ या चिन्तनशील मनुष्य
(द) मध्यकालीन मानव।
उत्तर:
(ब) प्राज्ञ या चिन्तनशील मनुष्य

7. पत्थर के औजार बनाने और उनका प्रयोग किये जाने का सबसे प्राचीन साक्ष्य मिलता है-
(अ) फ्रांस
(ब) इंग्लैण्ड
(स) इथियोपिया तथा केन्या
(द) चीन तथा जापान।
उत्तर:
(स) इथियोपिया तथा केन्या

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8. हादजा कौन थे –
(अ) चित्रका
(स) शिल्पकार
(ब) कृषक
(द) शिकारी तथा संग्राहक।
उत्तर:
(द) शिकारी तथा संग्राहक।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

1. यूरोप में मिले सबसे पुराने जीवाश्म होमो हाइडल बर्गेसिस और होमो …………… के हैं।
2. सामान्यतः आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क ……………… होता है।
3. पत्थर के औजार बनाने और उनका इस्तेमाल किए जाने का सबसे प्राचीन साक्ष्य …………… और …………… के पुरास्थलों से प्राप्त होता है।
4. जीवित प्राणियों में ……………. ही एक ऐसा प्राणी है जिसके पास भाषा है।
5. मानव का विकास ……………… रूप से हुआ है।
उत्तर:
1. निअंडरथलैसिस
2. बड़ा
3. इथियोपिया, केन्या
4. मनुष्य
5. क्रमिक।

सत्य/असत्य कथन छाँटिये –

1. आज हमें आदि मानव के इतिहास की जानकारी मानव के जीवाश्मों, पत्थर के औजारों और गुफाओं की चित्रकारियों की खोजों से मिलती है।
2. मानव का क्रमिक विकास हुआ इस बात का साक्ष्य हमें बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में मिलता है।
3. चार्ल्स डार्विन के अनुसार मानव बहुत समय पहले जानवरों से ही क्रमिक रूप से विकसित होकर अपने वर्तमान रूप में आया है।
4. होमिनाइड की उत्पत्ति 56 लाख वर्ष पहले हुई।
5. होमिनिडों का उद्भव यूरोप में हुआ।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. किलोंबे के खनन स्थल (अ) चार्ल्स डार्विन
2. लेजरेट गुफा (ब) औजार बनाने वाली मानव प्रजाति
3. ऑन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज (स) दक्षिण फ्रांस
4. होमो हैबिलिस (द) चिंतनशील मनुष्य
5. होमो सैपियंस (य) केन्या

उत्तर:

1. किलोंबे के खनन स्थल(य) केन्या (य) केन्या
2. लेजरेट गुफा  (द) चिंतनशील मनुष्य
3. ऑन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज (अ) चार्ल्स डार्विन
4. होमो हैबिलिस (ब) औजार बनाने वाली मानव प्रजाति
5. होमो सैपियंस (स) दक्षिण फ्रांस

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर मानव जैसे प्राणियों का प्रादुर्भाव कब हुआ ?
उत्तर:
सम्भवतः 56 लाख वर्ष पहले।

प्रश्न 2.
होमिनाइड प्राणियों का उद्भव कब हुआ ?
उत्तर:
होमिनाइड प्राणियों का उद्भव 240 लाख वर्ष पहले हुआ।

प्रश्न 3.
होमिनाइड प्राणियों का उद्भव कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
अफ्रीका में।

प्रश्न 4.
होमिनिडों की दो प्रमुख शाखाओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) आस्ट्रेलोपिथिकस
(2) होमो

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प्रश्न 5.
आधुनिक मानव द्वारा शिकार करना कब शुरू हुआ?
उत्तर:
लगभग 5,00,000 वर्ष पहले।

प्रश्न 6.
आदिकालीन गुफाओं में पाये गए चूल्हे किसके द्योतक हैं?
उत्तर:
आग के नियन्त्रित प्रयोग के।

प्रश्न 7.
सबसे पहले किन होमिनिडों ने पत्थर के औजार बनाए थे?
उत्तर:
सम्भवतः आस्ट्रेलोपिथिकस ने।

प्रश्न 8.
जानवरों को मारने के तरीकों में सुधार लाने वाले दो नये औजारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) भाले तथा
(2) तीर-कमान।

प्रश्न 9.
सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला साक्ष्य कितने वर्ष पुराना है?
उत्तर:
21,000 वर्ष पुराना।

प्रश्न 10.
बोलचाल की भाषा का विकास कब हुआ?
उत्तर:
सम्भवतः 20 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 11.
आल्टामीरा कहाँ स्थित है?
उत्तर:
आल्टामीरा स्पेन में स्थित एक गुफा -स्थल है।

प्रश्न 12.
आल्टामीरा क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
यहाँ की गुफा की छत पर जानवरों के अनेक चित्र उत्कीर्ण हैं।

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प्रश्न 13.
अफ्रीका में पाए जाने वाले एक शिकारी-संग्राहक समाज का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कुंगसेन।

प्रश्न 14.
होमो सैपियन्स से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
होमो सैपियन्स चिन्तनशील तथा प्राज्ञ मानव नामक प्रजाति है।

प्रश्न 15.
संजातिवृत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संजातिवृत में समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है।

प्रश्न 16.
योजनाबद्ध तरीके से सोच-समझकर बड़े स्तनपायी जानवरों का शिकार करने के सबसे पुराने स्पष्ट दो साक्ष्यों उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) दक्षिण इंग्लैण्ड में बाक्सग्रोव से
(2) जर्मनी में शोनिंजन से।

प्रश्न 17.
यूरोप में मिले सबसे पुराने जीवाश्मों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
होमो हाइडलबर्गेसिस तथा होमो निअंडरथलैसिस।

प्रश्न 18.
चार्ल्स डार्विन की पुस्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
आन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज’।

प्रश्न 19.
किस उपसमूह में वानर अर्थात् एप शामिल थे?
उत्तर:
होमिनाइड।

प्रश्न 20.
होमोनिडों का उद्भव कहाँ हुआ था?
उत्तर:
अफ्रीका में।

प्रश्न 21.
‘जीवाश्म’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीवाश्म अत्यन्त पुराने पौधे, जानवर या मानव के अवशेष होते हैं जो एक पत्थर के रूप में बदल कर चट्टान में समा जाते हैं तथा फिर लाखों वर्ष तक सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 22.
हमें किस साक्ष्य से ज्ञात होता है कि मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ?
उत्तर:
मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ, इस बात का साक्ष्य हमें मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है, जो अब लुप्त हो चुकी हैं।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 23.
जीवाश्मों की तिथि का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
जीवाश्मों की तिथि का निर्धारण प्रत्यक्ष रसायनिक विश्लेषण द्वारा या उन परतों अथवा तलछटों के काल का परोक्ष रूप से निर्धारण करके किया जाता है जिनमें वे दबे हुए पाए जाते
हैं।

प्रश्न 24.
आदिकालीन मानव की जानकारी में सहायक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानव के जीवाश्म, पत्थर के औजार तथा चित्रकारियाँ जैसे तत्त्व आदिकालीन मानव की जानकारी में सहायक सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 25.
चार्ल्स डार्विन ने किस पुस्तक की रचना की थी? यह कब प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
(1) चार्ल्स डार्विन ने ‘ऑन दि ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ नामक पुस्तक की रचना की थी।
(2) यह पुस्तक 24 नवम्बर, 1859 को प्रकाशित हुई।

प्रश्न 26.
मानव के विकास के सम्बन्ध में चार्ल्स डार्विन ने क्या खोज की थी ?
उत्तर:
मानव के विकास के सम्बन्ध में चार्ल्स डार्विन ने यह तर्क दिया कि मानव का विकास बहुत समय पहले जानवरों से ही क्रमिक रूप में हुआ।

प्रश्न 27.
स्तनपायी प्राणियों की प्राइमेट नामक श्रेणी का उद्भव कहाँ हुआ और कब हुआ?
उत्तर:
स्तनपायी श्रेणियों की प्राइमेट नामक श्रेणी का उद्भव एशिया तथा अफ्रीका में 360 लाख वर्ष पहले हुआ था।

प्रश्न 28.
प्राइमेट्स से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्राइमेट्स स्तनपायी प्राणियों के एक बड़े समूह के अन्तर्गत एक उप-समूह है जिसमें वानर, लंगूर तथा मानव सम्मिलित हैं।

प्रश्न 29.
होमिनाइड किसे कहते हैं? इनका उद्भव कैसे हुआ?
उत्तर:
लगभग 240 लाख वर्ष पूर्व प्राइमेट श्रेणी में एक उप-समूह उत्पन्न हुआ जिसे ‘होमिनाइड’ कहते हैं। इस में वानर शामिल थे।

प्रश्न 30.
होमिनिड प्राणियों के अफ्रीका में उद्भव होने के दो साक्ष्य दीजिए।
उत्तर:
(1) अफ्रीकी वानरों का समूह होमिनिडों से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
(2) सबसे प्राचीन होमिनिड जीवाश्म पूर्वी अफ्रीका में पाए गए हैं।

प्रश्न 31.
होमिनिडों की तीन प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) होमिनिडों के मस्तिष्क का आकार बड़ा होता है।
(2) ये पैरों के बल सीधे खड़े हो सकते हैं।
(3) ये दो पैरों के बल चलते हैं।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 32.
आस्ट्रेलोपिथिकस तथा होमो के बीच अन्तर बताइए।
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस के मस्तिष्क का आकार होमो की अपेक्षा बड़ा होता है, जबड़े अधिक भारी होते हैं तथा दाँत भी अधिक बड़े होते हैं।

प्रश्न 33.
‘आस्ट्रेलोपिथिकस’ शब्द की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है?
उत्तर:
‘आस्ट्रेलोपिथिकस’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘आस्ट्रिल’ अर्थात् ‘दक्षिणी’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ अर्थात् ‘वानर’ से मिलकर हुई है।

प्रश्न 34.
‘आस्ट्रेलोपिथिकस’ की मानव के आद्य रूप में वानर अवस्था के कौनसे लक्षण पाये जाते थे?
उत्तर:
होमो की तुलना में मस्तिष्क का अपेक्षाकृत छोटा होना, पिछले दाँत बड़े होना, उसमें सीधे खड़े होकर चलने की अधिक क्षमता न होना।

प्रश्न 35.
आस्ट्रेलोपिथिकस के किन शारीरिक लक्षणों के कारण वे अपना अधिकांश समय पेड़ों पर जीवन बिताते थे?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस अपने आगे के अवयवों के लम्बा होने, हाथ और पैरों की मुड़ी हुई हड्डियों तथा टखने के घुमावदार जोड़ों के कारण अपना अधिकांश जीवन पेड़ों पर बिताते थे।

प्रश्न 36.
‘होमो’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
होमो लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है-आदमी। इसमें पुरुष और स्त्री दोनों सम्मिलित हैं।

प्रश्न 37.
होमो को किन प्रजातियों में बाँटा गया है?
उत्तर:
होमो को तीन प्रजातियों में बाँटा गया है-
(1) होमो हैबिलिस
(2) होमो एरेक्टस
(3) होमो सैपियन्स।

प्रश्न 38.
होमो हैबिलिस के जीवाश्म कहाँ से प्राप्त किये गए हैं?
उत्तर:
होमो हैबिलिस के जीवाश्म इथियोपिया में ओमो और तंजानिया में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त किये गए हैं।

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प्रश्न 39.
ऐसे दो उदाहरण दीजिए जिनसे ज्ञात होता है कि कुछ जीवाश्मों का नामकरण उन स्थानों के आधार पर किया गया है जहाँ उस विशेष प्रकार के जीवाश्म सर्वप्रथम प्राप्त हुए थे
उत्तर:
(1) जर्मनी के शहर हाइडलबर्ग में पाए गए जीवाश्मों को होमो हाइडलबर्गेसिस तथा
(2) निअंडर घाटी में पाए गए जीवाश्मों को होमों निअंडरथलैंसिस कहा गया है।

प्रश्न 40.
यूरोप में पाये जाने वाले सबसे पुराने जीवाश्मों का उल्लेख कीजिए। ये किस प्रजाति के हैं?
उत्तर:
यूरोप में प्राप्त सबसे पुराने जीवाश्म होमो हाइडलबर्गेसिस तथा होमो निअंडरथलैंसिस के हैं। ये दोनों ही होमो सैपियन्स प्रजाति के हैं।

प्रश्न 41.
आधुनिक मानव के उद्भव – स्थल के बारे में प्रचलित मतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) क्षेत्रीयता निरन्तर मॉडल के अनुसार अनेक क्षेत्रों में अलग-अलग मनुष्यों की उत्पत्ति हुई।
(2) प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मनुष्य का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ।

प्रश्न 42.
आदिकालीन मानव किन तरीकों से अपना भोजन जुटाता था?
उत्तर:
आदिकालीन मानव कई तरीकों से अपना भोजन जुटाता था, जैसे- संग्रहण, शिकार, अपमार्जन तथा मछली पकड़ना।

प्रश्न 43.
आदिकालीन मानव की संग्रहण की क्रिया का उल्लेख कीजिए जिससे वह अपना भोजन जुटाता था।
उत्तर:
आदिकालीन मानव पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य-पदार्थों, जैसे-बीज, गुठलियों, बेर, फल एवं कंदमूल इकट्ठा करता था।

प्रश्न 44.
आदिकालीन मानव की अपमार्जन या रसदखोरी क्रिया का उल्लेख कीजिए जिसके द्वारा वह अपना भोजन जुटाता था।
उत्तर:
आदिकालीन मानव उन जानवरों के शवों से मांस-मज्जा खुरचकर निकालते थे जो जानवर अपने आप मर जाते थे या किन्हीं अन्य हिंसक पशुओं द्वारा मार दिये जाते थे।

प्रश्न 45.
योजनाबद्ध तरीके से बड़े स्तनपायी जानवरों के शिकार और उनका वध करने का सबसे पुराना साक्ष्य किन दो स्थलों से मिलता है?
उत्तर:
(1) दक्षिणी इंग्लैण्ड में बाक्सग्रोव नामक स्थान से 5,00,000 वर्ष पहले का साक्ष्य
(2) जर्मनी में शोनिंजन नामक स्थान से 4,00,000 वर्ष पहले का साक्ष्य।

प्रश्न 46.
आदिकालीन मानव की गुफाओं तथा खुले निवास क्षेत्रों के दो साक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) दक्षिण फ्रांस में स्थित लजरेट गुफा
(2) दक्षिणी फ्रांस के समुद्र तट पर स्थित टेरा अमाटा में झोंपड़ियाँ।

प्रश्न 47.
आग के नियन्त्रित प्रयोग के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) आग के नियन्त्रित प्रयोग से गुफाओं में प्रकाश तथा उष्णता मिलती थी।
(2) इससे भोजन भी पकाया जा सकता था।

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प्रश्न 48.
गुफाओं, झोंपड़ियों में रहने वाले आदिमानव का जीवन पेड़ों पर रहने वाले होमिनिडों के जीवन से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर:
गुफाओं में रहने वाले लोग वर्षा, तूफान, आँधी, हिंसक जानवरों आदि से सुरक्षित रहते थे परन्तु पेड़ों पर रहने वाले होमिनिड इनसे सुरक्षित नहीं थे

प्रश्न 49.
मनुष्य में औजार बनाने की ऐसी कौनसी विशेषता है जो वानरों में नहीं पाई जाती?
उत्तर:
शारीरिक तथा स्नायुतन्त्रीय अनुकूलनों के कारण मनुष्य हाथ का कुशलतापूर्वक प्रयोग कर सकता है, परन्तु जानवर ऐसा नहीं कर सकते।

प्रश्न 50.
पत्थर के औजार बनाने तथा उनका प्रयोग किये जाने का सबसे प्राचीन साक्ष्य किन पुरा – स्थलों से मिलता है ?
उत्तर:
पत्थर के औजार बनाने तथा उनका प्रयोग किये जाने का सबसे प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया और केन्या के पुरा – स्थलों से मिलता है।

प्रश्न 51.
फेंककर मारने वाले भाले के दो लाभकारी उपयोग बताइए।
उत्तर:
(1) शिकारी अधिक लम्बी दूरी तक भाला फेंकने में सफल हुए।
(2) शिकारी हिंसक जानवर से भाले के प्रयोग से अपनी रक्षा कर सकते थे।

प्रश्न 52.
छेनी या रुखानी जैसे औज़ारों की क्या उपयोगिता थी?
उत्तर:
इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना अथवा कुरेदना अब सम्भव हो

प्रश्न 53.
स्वर – तन्त्र का विकास कब हुआ ? इसका सम्बन्ध विशेष तौर पर किससे रहा है ?
उत्तर:
(1) स्वर-तन्त्र का विकास लगभग 2 लाख वर्ष पहले हुआ था।
(2) इसका सम्बन्ध विशेष तौर पर आधुनिक मानव से रहा है।

प्रश्न 54.
फ्रांस तथा स्पेन की किन गुफाओं में जानवरों की चित्रकारियाँ पाई गई हैं?
उत्तर:
फ्रांस में स्थित लैसकाक्स तथा शोवे की गुफाओं में और स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफा में जानवरों की चित्रकारियाँ पाई गई हैं ।

प्रश्न 55.
फ्रांस तथा स्पेन की इन गुफाओं में किन जानवरों की चित्रकारियाँ पाई गई हैं?
उत्तर:
फ्रांस तथा स्पेन की इन गुफाओं में गौरों, घोड़ों, हिरनों, गैंडों, शेरों, भालुओं, तेन्दुओं, लकड़बग्घों के चित्र शामिल हैं।

प्रश्न 56.
हादजा लोग कौन हैं? ये लोग कहाँ रहते हैं ?
उत्तर:
हादजा शिकारियों तथा संग्राहकों का एक छोटा समूह है जो ‘लेक इयासी’ नामक एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनी झील के आस-पास रहते हैं ।

प्रश्न 57.
हादजा लोगों के शिविरों के आकार तथा स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन क्यों होता है ?
उत्तर:
हादजा लोगों के शिविरों के आकार तथा स्थिति में परिवर्तन पानी की उपलब्धता के आधार पर होता है।

प्रश्न 58.
होमिनाइड एवं बन्दरों में दो अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
(1) होमोनाइडों का शरीर बन्दरों से बड़ा होता है। उनकी पूँछ नहीं होती है।
(2) होमोनाइडों का विकास धीरे-धीरे होता है।

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प्रश्न 59.
आदिकालीन मानव के दो पैरों पर खड़े होकर चलने की क्षमता के कारण क्या लाभ हुए?
उत्तर:
(1) विभिन्न प्रकार के काम करने के लिए हाथ स्वतन्त्र हो गए।
(2) शारीरिक ऊर्जा की खपत कम होती गई।

प्रश्न 60.
प्रजाति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रजाति जीवों का एक ऐसा समूह होता है जिसके नर और मादा मिलकर बच्चे उत्पन्न कर सकते हैं और उनके बच्चे भी आगे सन्तान उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं।

प्रश्न 61.
मानव विज्ञान से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
मानव विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैज्ञानिकों के अनुसार मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ। इस बात का प्रमाण हमें मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं। उनके शारीरिक लक्षणों के आधार पर मानव को भिन्न- भिन्न प्रजातियों में बाँटा गया है। जीवाश्मों का काल-निर्धारण प्रत्यक्ष रसायनिक विश्लेषण द्वारा अथवा उन परतों का परोक्ष रूप से काल-निर्धारण करके किया जाता है जिनमें वे दबे हुए पाए जाते हैं। चार्ल्स डारविन ने अपनी पुस्तक ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ में यह बताया है कि मानव का विकास बहुत समय पहले जानवरों से क्रमिक रूप में हुआ।

प्रश्न 2.
प्राइमेट्स के बारे में आप क्या जानते हैं? इनकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लगभग 360 लाख वर्ष पूर्व एशिया तथा अफ्रीका में स्तनपायी प्राणियों की ‘प्राइमेट’ नामक श्रेणी का उद्भव हुआ।‘प्राइमेट’ स्तनपायी प्राणियों के एक बहुत बड़े समूह के अन्तर्गत एक उप-समूह है। इस प्राइमेट उप-समूह में वानर, लंगूर तथा मानव सम्मिलित हैं।

प्राइमेट्स की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) इनके शरीर पर बाल होते हैं।
(2) पैदा होने वाला बच्चा अपेक्षाकृत लम्बे समय तक माता के गर्भ में पलता है।
(3) माताओं में बच्चों को दूध पिलाने के लिए ग्रन्थियाँ होती हैं
(4) प्राइमेट्स के दाँत भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं।
(5) इनमें अपने शरीर का तापमान स्थिर रखने वाली क्षमता होती है।

प्रश्न 3.
होमिनिड तथा होमिनाइड में अन्तर बताइए।
उत्तर:
होमिनिड का विकास होमिनाइड से हुआ। होमिनिड तथा होमिनाइड में निम्नलिखित अन्तर पाये जाते हैं –
(1) होमोनाइड के मस्तिष्क का आकार होमोनिड की तुलना में छोटा होता था।
(2) होमोनाइड चौपाये होते थे और चारों पैरों के बल चलते थे, परन्तु उनके शरीर का अगला हिस्सा और अगले दोनों पैर लचकदार होते थे। इसके विपरीत होमिनिड सीधे खड़े होकर पिछले दो पैरों के बल चलते थे।
(3) होमिनिड के हाथ विशेष प्रकार के होते थे जिनकी सहायता से वे औजार बना सकते थे तथा उनका प्रयोग कर सकते थे। परन्तु होमिनाइडों के हाथों की रचना ऐसी नहीं होती थी।

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प्रश्न 4.
होमिनिडों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
होमिनिड कौन थे? इनकी उत्पत्ति कहाँ हुई थी? सप्रमाण बताइए।
उत्तर:
‘ होमिनिड’ ‘होमिनिडेइ’ नामक परिवार के सदस्य होते थे। इस परिवार में सभी रूपों के मानव प्राणी सम्मिलित थे।

होमिनिडों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
(1) इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
(2) इनमें पैरों के बल सीधा खड़े होने की क्षमता होती थी। ये दो पैरों के बल चलते थे।
(3) इनके हाथों की बनावट ऐसी होती थी जिससे वे औजार बना सकते थे तथा उनका प्रयोग कर सकते थे। होमिनिड की उत्पत्ति – होमिनिड की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई।

इसके दो प्रमाण हैं –
(अ) अफ्रीकी वानरों का होमिनिडों से संबंध और
(ब) प्रारंभिक होमिनिड जीवाश्म का अफ्रीका में पाया जाना।

प्रश्न 5.
होमिनाइड तथा बन्दरों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
होमिनाइड तथा बन्दरों में निम्नलिखित अन्तर पाये जाते हैं-
(1) होमिनाइडों का शरीर बन्दरों से बड़ा होता है।
(2) होमिनाइडों की पूँछ नहीं होती।
(3) उनके बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता है।
(4) उनके बच्चे बन्दर के बच्चों की अपेक्षा लम्बे समय तक उन पर निर्भर रहते हैं।

प्रश्न 6.
आस्ट्रेलोपिथिकस से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
होमोनिडों की दो प्रमुख शाखाएँ हैं –
(1) आस्ट्रेलोपिथिकस तथा
(2) होमो। ‘आस्ट्रेलोपिथिकस’ दो शब्दों से मिलकर बना है – लैटिन भाषा के शब्द ‘आस्ट्रल’ अर्थात् ‘दक्षिणी’ और यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ अर्थात् ‘वानर’। यह नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि मानव के प्राचीन रूप में उसकी ‘वानर’ अवस्था के अनेक लक्षण पाये जाते थे।

ये लक्षण निम्नलिखित थे-
(1) होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था।
(2) उनके पिछले दाँत होमो की तुलना में बड़े थे।
(3) उनके हाथों की दक्षता सीमित थी।
(4) उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता भी अधिक नहीं थी क्योंकि वे अभी भी अपना बहुत-सा समय पेड़ों पर गुजारते थे। उनमें पेड़ों पर जीवन बिताने के लिए आवश्यक विशेषताएँ अब भी विद्यमान थीं जैसे उनके आगे के अवयव लम्बे थे, हाथ और पैरों की हड्डियाँ मुड़ी हुई थीं तथा टखने के जोड़े घुमावदार थे।

प्रश्न 7.
आदिकालीन मानव के दो पैरों पर खड़े होकर चलने की क्षमता के कारण क्या लाभ हुए?
उत्तर:
(1) आदिकालीन मानव के दो पैरों पर खड़े होकर चलने की क्षमता के कारण उसके हाथ मुक्त हो गए। कालक्रम में मानव के हाथों में लचीली उंगलियों और नमनीय अंगूठों का विकास हुआ।
(2) अब वह हाथों का प्रयोग बच्चों या चीजों को उठाने के लिए कर सकता था। हाथों के अधिकाधिक प्रयोग से मानव की दो पैरों पर खड़े होकर चलने की कुशलता भी बढ़ती गई। इसके फलस्वरूप मानव का हाथ विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने के लिए स्वतन्त्र हो गया।
(3) अब मानव वस्तुओं को पकड़कर अपनी आँखों के निकट लाने में समर्थ हो गया। इससे उसकी बुद्धि का विकास हुआ और वह औजार बनाने लगा तथा शिल्पी बन गया।
(4) इसके अतिरिक्त चार पैरों की बजाय दो पैरों पर चलने से शारीरिक ऊर्जा भी कम खर्च होने लगी।

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प्रश्न 8.
‘होमो’ के बारे में आप क्या जानते हैं? इन्हें किन प्रजातियों में बाँटा गया है?
अथवा
होमो की विभिन्न प्रजातियों और उनके आवास-स्थलों के बारे में बताइये।
उत्तर:
‘होमो’ लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है ‘आदमी’। इसमें पुरुष और स्त्री दोनों सम्मिलित हैं। वैज्ञानिकों ने होमो को उनकी विशेषताओं के आधार पर अनेक प्रजातियों में बाँटा है यथा –
(1) होमो हैबिलिस (औजार बनाने वाले)।
(2) होमो एरेक्टस (सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलने वाले)।
(3) होमो सैपियन्स (प्राज्ञ अथवा चिन्तनशील मनुष्य)। होमो हैबिलास के जीवाश्म इथियोपिया में ओमो और तंजानिया में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं। होमो एरेक्टस के प्राचीनतम जीवाश्म अफ्रीका और एशिया दोनों महाद्वीपों में पाए गए हैं जैसे कूबीफोरा और पश्चिमी तुर्काना, केन्या, मो जोकर्ता और संगीरन, जावा।

प्रश्न 9.
आस्ट्रेलोपिथिकस तथा होमो के बीच अन्तर बताइए।
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस तथा होमो के बीच निम्नलिखित अन्तर पाये जाते हैं –
(1) आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा होता था।
(2) होमो के जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे तथा दाँत छोटे होते थे।
होमो के मस्तिष्क का बड़ा आकार उसके अधिक बुद्धिमान होने एवं उसकी बेहतर स्मृति का द्योतक है। जबड़ों तथा दाँतों में हुआ परिवर्तन सम्भवतः उनके खान-पान में हुई भिन्नता से सम्बन्धित था।

प्रश्न 10.
‘होमिनाइड्स’ की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 240 लाख वर्ष पहले ‘प्राइमेट’ श्रेणी में एक उपसमूह उत्पन्न हुआ जिसे ‘होमिनाइड्स’ कहते हैं। इस उपसमूह में वानर सम्मिलित थे। होमिनाइड्स की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं –
(1) होमिनाइड्स का मस्तिष्क छोटा होता था।
(2) ये चौपाए थे।
(3) इनके आगे के दोनों पैर लचकदार होते थे
(4) ये स्तनधारियों का एक समूह था।

प्रश्न 11.
आधुनिक मानव के उद्भव के प्रतिस्थापन मॉडल की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक मानव के उद्भव का प्रतिस्थापन मॉडल – प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मनुष्य का उद्भव एक ही स्थान – अफ्रीका में हुआ।
प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मानव के सभी पुराने रूप, चाहे वे कहीं भी थे, बदल गए और उनका स्थान पूरी तरह आधुनिक मानव ने ले लिया। आधुनिक मानव में सभी जगह शारीरिक तथा उत्पत्ति-मूलक समरूपता पाई जाती है। यह समानता इसलिए पाई जाती है कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे और वहाँ से अन्य स्थानों को गए।

इथियोपियां में ओमो स्थान पर मिले आधुनिक मानव के पुराने जीवाश्मों के साक्ष्य भी प्रतिस्थापन मॉडल का समर्थन करते हैं। इस मत के समर्थकों का कहना है कि आज के मनुष्यों में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं उनका कारण उन लोगों का परिस्थितियों के अनुसार निरन्तर हजारों वर्षों की अवधि में अपने आप को ढाल लेना है जो उन विशेष क्षेत्रों में गए और अन्त में वहाँ स्थायी रूप से बस गए।

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प्रश्न 12.
35,000 वर्ष पूर्व मानव के योजनाबद्ध तरीके से जानवरों के शिकार करने के स्थलों का उल्लेख कीजिए। इन स्थलों के चुनाव के क्या कारण थे?
उत्तर:
35,000 वर्ष पूर्व मानव योजनाबद्ध तरीके से जानवरों के शिकार के लिए कुछ स्थलों का सोच-समझ कर चुनाव करता था । ऐसा एक स्थल चेक गणराज्य में दोलनीवेस्तोनाइस था, जो एक नदी के पास स्थित था। रेन्डियर तथा घोड़ा जैसे स्थान बदलने वाले जानवर बड़ी संख्या में पतझड़ और वसन्त के मौसम में उस नदी के पार जाते थे और तब उनका बड़ी संख्या में शिकार किया जाता था। इन स्थलों के चुनाव से यह पता चलता है कि लोगों को जानवरों की आवाजाही तथा उन्हें जल्दी से बड़ी संख्या में मारने के तरीकों के बारे में अच्छी जानकारी थी।

प्रश्न 13.
प्रारम्भिक मानव के रहन-सहन के बारे में किन साक्ष्यों में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
प्रारम्भिक मानव के रहन-सहन के बारे में अनेक साक्ष्यों से जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए, केन्या में किलोंबे तथा ओलोर्जेसाइली के खनन – स्थलों पर हजारों की संख्या में शल्क – उपकरण तथा हस्तकुठार प्राप्त हुए हैं। ये औजार 7,00,000 से 5,00,000 वर्ष पुराने हैं।

इतने सारे औज़ारों का एक ही स्थान पर इकट्ठा होने का कारण है कि जिन स्थानों पर खाद्य-प्राप्ति के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे, वहाँ लोग बार-बार आते रहते थे। ऐसे क्षेत्रों में लोग शिल्पकृतियों सहित अपने क्रिया-कलापों के चिह्न छोड़ जाते होंगे। जमा शिल्पकृतियाँ केवल कुछ ही क्षेत्रों में मिलती हैं और वे क्षेत्र कुछ अलग से दिखाई पड़ते हैं। जिन स्थलों पर लोगों का आवागमन कम होता था, वहाँ ऐसी शिल्पकृतियाँ कम मात्रा में मिलती हैं।

प्रश्न 14.
आदि मानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने और उनका इस्तेमाल करने के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
आदि मानव के जीवन में पत्थर के औजारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। आदिमानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने और उनका इस्तेमाल करने का सबसे प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया और केन्या के पुरा – स्थलों से प्राप्त हुआ है। सम्भवतः आस्ट्रेलोपिथिकस ने सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए थे। यह सम्भव है कि पत्थर के औजार बनाने वाले स्त्री-पुरुष दोनों ही होते थे। सम्भवत: स्त्रियाँ अपने और अपने बच्चों के भोजन प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष प्रकार के औजार बनाती थीं और उनका प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 15.
आदि मानव द्वारा जानवरों के मारने के तरीकों में सुधार करने के प्रयासों का उल्लेख कीजिए। उसके द्वारा बनाये गए नवीन औजारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 35,000 वर्ष पूर्व आदिमानव द्वारा जानवरों के मारने के तरीकों में सुधार किया गया।
यथा –

  • इन प्रयासों के अन्तर्गत फेंककर मारने वाले भालों तथा तीर-कमान जैसे नवीन प्रकार के औजार बनाये जाने लगे।
  • मांस को साफ किया जाने लगा। उसमें से हड्डियाँ निकाल दी जाती थीं और फिर उसे सुखाकर, हल्का सेंकते हुए सुरक्षित रख लिया जाता था। इस प्रकार, सुरक्षित रखे खाद्य को बाद में खाया जा सकता था।
  • अब समूरदार जानवरों को पकड़ा जाने लगा, उनकी रोएँदार खाल का कपड़े की तरह प्रयोग किया जाने लगा।
  • सिलने के लिए सुई का आविष्कार हुआ। सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला साक्ष्य लगभग 21,000 वर्ष पुराना है।
  • अब छेनी या रुखानी जैसे छोटे-छोटे औजार भी बनाए जाने लगे। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी पर नक्काशी करना या कुरेदना अब सम्भव हो गया।

प्रश्न 16.
पंचब्लेड तकनीक के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
पंचब्लेड तकनीक – पंचब्लेड तकनीक का वर्णन निम्नानुसार है –

  • एक बड़े पत्थर के ऊपरी सिरे को पत्थर के हथौड़े की सहायता से हटाया जाता है।
  • इससे एक चपटी सतह तैयार हो जाती है जिसे प्रहार मंच अर्थात् घन कहा जाता है।
  • इसके बाद इस हड्डी पर सींग से बने हुए पंच और हथौड़े की सहायता से प्रहार किया जाता है।
  • इससे धारदार पट्टी बन जाती है जिसका चाकू की तरह प्रयोग किया जा सकता है या उनसे एक तरह की छेनियाँ बन जाती हैं जिनसे हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी को उकेरा जा सकता है।

प्रश्न 17.
भाषा के विकास के बारे में प्रचलित मतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवित प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसके पास भाषा है। भाषा के विकास के बारे में निम्नलिखित मत प्रचलित हैं-
(1) होमिनिड भाषा में अंग – विक्षेप ( हाव-भाव ) या हाथों का संचालन हिलाना सम्मिलित था।
(2) उच्चरित भाषा से पहले गाने या गुनगुनाने जैसे मौखिक या अ – शाब्दिक संचार का प्रयोग होता था।
(3) मनुष्य की वाणी का प्रारम्भ सम्भवतः आह्वान या बुलावों की क्रिया से हुआ था जैसाकि नर – वानरों में देखा जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में मानव बोलने में बहुत कम ध्वनियों का प्रयोग करता होगा। धीरे-धीरे ये ध्वनियाँ ही आगे चलकर भाषा के रूप में विकसित हो गई होंगी।

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प्रश्न 18.
आदिकालीन मानव किन तरीकों से अपना भोजन जुटाता था ?
उत्तर:
आदिकालीन मानव संग्रहण, शिकार, अपमार्जन, मछली पकड़ने आदि के विभिन्न तरीकों से अपना भोजन जुटाता था। वह पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य-पदार्थों जैसे बीज, गुठलियाँ, बेर, फल, कंदमूल आदि इकट्ठा करता था। वह अपमार्जन के द्वारा उन जानवरों के शवों से मांस-मज्जा खुरच कर निकालता था जो जानवर अपने आप मर जाते थे या किन्हीं अन्य हिंसक जानवरों द्वारा मार दिए जाते थे। वह योजनाबद्ध तरीके से बड़े स्तनपायी जानवरों का शिकार और उनका वध करता था। मछली पकड़ना भी भोजन प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था।

प्रश्न 19.
उच्चरित अर्थात् बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
उच्चरित अर्थात् बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति के बारे में निम्नलिखित मत प्रचलित हैं –
(1) पहले मत के अनुसार होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा। सम्भवतः भाषा का विकास सबसे पहले 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ होगा।

(2) मस्तिष्क में हुए परिवर्तनों के अतिरिक्त, स्वर – तन्त्र का विकास भी महत्त्वपूर्ण था। स्वर – तन्त्र का विकास लगभग 2,00,000 वर्ष पहले हुआ था। इसका सम्बन्ध विशेष रूप से आधुनिक मानव से रहा है।

(3) एक मत यह भी प्रचलित है कि भाषा, कला के साथ-साथ लगभग 40,000 – 35,000 वर्ष पहले विकसित हुई। उच्चरित अर्थात् बोली जाने वाली भाषा का विकास कला के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा रहा है, क्योंकि ये दोनों ही विचार अभिव्यक्ति के माध्यम हैं।

प्रश्न 20.
फ्रांस और स्पेन की गुफाओं में पाई जाने वाली चित्रकारियों की विवेचना कीजिए।
अथवा
आल्टामीरा के गुफा चित्र पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
फ्रांस में स्थित लैसकाक्स तथा शोवे की गुफाओं में और स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफा में अनेक जानवरों की चित्रकारियाँ प्राप्त हुई हैं। आल्टामीरा की गुफा की छत पर बनी चित्रकारियों में रंग की बजाय किसी प्रकार की लेई (पेस्ट) का प्रयोग किया गया है। इन चित्रों का निर्माण 30,000 से 12,000 वर्ष पहले के बीच में। संजीव पास बुक्स किया गया था। इन चित्रों में गौरों, घोड़ों, साकिन, हिरणों, मैमथों (विशालकाय जानवरों), गैंडों, शेरों, भालुओं, तेन्दुओं, लकड़बग्घों और उल्लुओं के चित्र शामिल हैं। इन चित्रकारियों का सम्बन्ध धार्मिक क्रियाओं, रस्मों और जादू-टोनों से था।

जानवरों का चित्रांकन इसलिए किया जाता था कि चित्रांकन करने से शिकार में सफलता प्राप्त हो सकती थी। कुछ लोगों का कहना है कि सम्भवतः ये गुफाएँ संगम-स्थल थीं जहाँ लोगों के छोटे-छोटे समूह मिलते थे और सामूहिक क्रिया-कलाप सम्पन्न करते थे। सम्भव है कि वहाँ ये समूह मिलकर शिकार की योजना बनाते हों अथवा शिकार के तरीकों एवं तकनीकों पर परस्पर चर्चा करते हों। यह भी सम्भव है कि ये चित्रकारियाँ, आगे आने वाली पीढ़ियों को इन तकनीकों की जानकारी देने के लिए की गई हों।

प्रश्न 21.
संजातिवृत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संजातिवृत में समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है। इसमें उनके रहन-सहन, खान-पान, आजीविका के साधन, प्रौद्योगिकी आदि की जाँच की जाती है। समाज में स्त्री-पुरुष की भूमिका, उनके कर्मकाण्डों, रीति-रिवाजों, राजनीतिक संस्थाओं तथा सामाजिक रूढ़ियों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 22.
मिट्टी के बर्तन बनाने का आविष्कार कब व कैसे सम्भव हुआ?
उत्तर:
कृषि के आविष्कार के पश्चात् मानव ने एक स्थान पर रहना शुरू कर दिया। अब उसने अनाज तथा अन्य उपजों को रखने के लिए तथा भोजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू कर दिया। वह उन्हें आग में पकाने लगा। इस प्रकार मानव ने अपने कच्चे बर्तनों को आग में पकाना और उन्हें सुदृढ़ बनाना शुरू कर दिया।

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प्रश्न 23.
आदिमानव ने किन कारणों से खेती और पशुचारण का कार्य प्रारम्भ किया?
उत्तर:
आदिमानव ने 10,000 से 4,500 वर्ष पहले खेती तथा पशुचारण का कार्य प्रारम्भ किया, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) लगभग 13,000 वर्ष अन्तिम हिमयुग समाप्त हो गया और उसके साथ ही अपेक्षाकृत अधिक गर्म और नम . मौसम का सूत्रपात हुआ। इसके फलस्वरूप जंगली जौ तथा गेहूँ की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं।

(2) खुले जंगलों तथा घास के मैदानों के विस्तार के साथ-साथ जंगली भेड़ों, बकरियों, सुअरों, गधों, मवेशियों आदि जानवरों की संख्या भी बढ़ती चली गई, अब लोग ऐसे क्षेत्रों को अधिक पसन्द करने लगे जहाँ जंगलों तथा घास के मैदान और जानवरों की बहुतायत थी।

(3) अब बड़े-बड़े जन-समुदाय ऐसे क्षेत्रों में अधिक समय तक लगभग स्थायी रूप से रहने लगे।

(4) लोग कुछ क्षेत्रों को अधिक पसन्द करते थे, इसलिए वहाँ भोजन की आपूर्ति को बढ़ाये जाने का दबाव बढ़ने लगा। सम्भवत: इसी कारण से कुछ विशेष प्रकार के अनाज के पौधे उगाने तथा जानवरों को पालने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन, बढ़ती हुई जनसंख्या, कुछ विशेष प्रकार के पौधों और जानवरों की जानकारी और उस पर मनुष्य की निर्भरता आदि अनेक कारणों से आदि मानव ने खेती तथा पशु चारण की गतिविधियों को शुरू किया

प्रश्न 24.
हादजा जनसमूह की जीवन-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उत्तर:
हादजा लोग अपने भोजन के लिए मुख्य रूप से जंगली साग-सब्जियों पर ही निर्भर रहते हैं। वे मांस का भी प्रयोग करते हैं । ये लोग हाथी को छोड़ कर बाकी सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं तथा उनका मांस खाते हैं। ये लोग अपने शिविर वृक्षों तथा चट्टानों के बीच, विशेषकर वहाँ लगाते हैं जहाँ ये दोनों सुविधाएँ प्राप्त हों। ये लोग जमीन तथा उसके संसाधनों पर अपना अधिकार नहीं जमाते। सूखे के समय में भी इन लोगों के यहाँ भोजन की कमी नहीं होती क्योंकि उनके प्रदेश में सूखे के मौसम में भी वनस्पति – खाद्य – कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल आदि प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 25.
खेती तथा पशु- चारण से आए हुए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खेती तथा पशु – चारण से निम्नलिखित परिवर्तन शुरू हुए –

  1. अब आदिमानव ने मिट्टी के ऐसे बर्तन बनाना शुरू कर दिया जिनमें अनाज तथा अन्य उपजों को रखा जा सके और खाना पकाया जा सके। इससे मिट्टी के बर्तन बनाने के व्यवसाय का विकास हुआ।
  2. अब पत्थर के नये प्रकार के औजारों का निर्माण और प्रयोग होने लगा।
  3. हल जैसे अन्य उपकरणों का खेती के काम में प्रयोग किया जाने लगा।
  4. धीरे-धीरे लोग ताँबा तथा राँगा जैसी धातुओं से परिचित हो गए।
  5. मिट्टी के बर्तन बनाने तथा परिवहन के लिए पहिए का इस्तेमाल होने लगा।
  6. खेती की प्रथा चालू हो जाने से लोगों ने एक स्थान पर पहले से अधिक लम्बी अवधि तक टिकना शुरू कर दिया। इस प्रकार गारे, कच्ची ईंटों तथा पत्थरों से भी स्थायी घर बनाये जाने लगे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक मानव के उद्भव के बारे में क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल एवं प्रतिस्थापन मॉडल की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक मानव का उद्भव आधुनिक मानव के उद्भव स्थल के बारे में विद्वानों में मतभेद है। इस सम्बन्ध में दो मत प्रचलित हैं जो एक- दूसरे से बिल्कुल विपरीत हैं। इन दोनों मतों का विवेचन निम्नानुसार है-

(1) क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल – क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के अनुसार विश्व के अनेक क्षेत्रों में अलग-अलग मनुष्यों की उत्पत्ति हुई। इस मत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रदेशों में रहने वाले होमो सैपियन्स का आधुनिक मानव के रूप में विकास हुआ। उनका विकास धीरे-धीरे अलग-अलग गति से हुआ। इसीलिए आधुनिक मानव विश्व के भिन्न-भिन्न हिस्सों में अलग-अलग स्वरूप में दिखाई दिया। इस तर्क का आधार आज के मनुष्य में पाये जाने वाले विभिन्न लक्षण हैं। इस मत के समर्थकों का कहना है कि ये असमानताएँ एक ही क्षेत्र में पहले से रहने वाले होमो एरेक्टस और होमो हाइडलबर्गेसिस समुदायों में पाई जाने वाली भिन्नताओं के कारण हैं।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

(2) प्रतिस्थापन मॉडल – प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मनुष्य का उद्भव एक ही स्थान-अफ्रीका में हुआ। इस मत का समर्थन इस बात से होता है कि आधुनिक मानव में सब जगह शारीरिक और उत्पत्ति-मूलक समरूपता पाई जाती है । इस मत के समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि मनुष्यों में अत्यधिक समानता इसलिए पाई जाती है क्योंकि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे और वहीं से अन्य स्थानों को गए।

इथियोपिया में ओमो नामक स्थान पर प्राप्त हुए आधुनिक मानव के पुराने जीवाश्मों के साक्ष्य भी प्रतिस्थापन मॉडल का समर्थन करते हैं। इस मत के समर्थकों की मान्यता है कि आज के मनुष्यों में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं, उनका कारण उन लोगों का परिस्थितियों के अनुसार हजारों वर्ष की अवधि में अपने आप को ढाल लेना है जो उन विशेष प्रदेशों में गए तथा अन्त में वहाँ स्थायी रूप से बस गए। इस प्रकार उनके लक्षणों में विविधता क्षेत्रीय परिस्थितियों की विविधता के कारण है।

प्रश्न 2.
आदिकालीन मानव द्वारा अपने भोजन जुटाने के विभिन्न तरीकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आदिकालीन मानव द्वारा विभिन्न तरीकों से अपना भोजन जुटाना आदिकालीन मानव कई तरीकों से अपना भोजन जुटाता था; जैसे- संग्रहण, शिकार, अपमार्जन और मछली पकड़ना।

(1) संग्रहण – संग्रहण की क्रिया में पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य-पदार्थों; जैसे-बीज, गुठलियाँ, बेर, एवं कंदमूल इकट्ठा करना शामिल थे। संग्रहण के सम्बन्ध में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है क्योंकि इस बारे में प्रत्यक्ष साक्ष्य बहुत कम मिलता है। यद्यपि हमें हड्डियों के जीवाश्म तो बहुत मिल जाते हैं, परन्तु पौधों के जीवाश्म तो दुर्लभ ही हैं। पौधों से भोजन जुटाने के बारे में सूचना प्राप्त करने का एक तरीका दुर्घटना अथवा संयोगवश जले हुए पौधे से प्राप्त अवशेष हैं। इस प्रक्रिया में कार्बनीकरण हो जाता है और इस रूप में जैविक पदार्थ दीर्घकाल तक सुरक्षित रह सकता है। परन्तु अभी तक पुरातत्त्वविदों को उतने प्राचीन युग के सम्बन्ध में कार्बनीकृत बीजों के साक्ष्य नहीं मिले हैं।

(2) शिकार – शिकार सम्भवतः बाद में शुरू हुआ – लगभग 5 लाख वर्ष पहले। योजनाबद्ध तरीके से सोच- समझकर बड़े स्तनपायी जानवरों का शिकार और उनका वध करने का सबसे पुराना स्पष्ट साक्ष्य दो स्थलों से मिलता है।

ये स्थल हैं –
(1) दक्षिणी इंग्लैण्ड में बाक्सग्रोव
(2) जर्मनी में शोनिंजन।

लगभग 35,000 वर्ष पूर्व मानव के योजनाबद्ध तरीके से शिकार करने का साक्ष्य कुछ यूरोपीय खोज – स्थलों से मिलता है। पूर्व मानव ने चेक गणराज्य में नदी के निकट दोलनी वेस्तोनाइस नामक स्थल को सोच-समझकर शिकार के लिए चुना था जब रेन्डियर और घोड़े जैसे स्थान बदलने वाले जानवरों के झुण्ड के झुण्ड पतझड़ और वसन्त के मौसम में उस नदी के पार जाते थे तथा तब उनका बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता था। इन स्थलों के चुनाव से इस बात की पुष्टि होती है कि लोगों को जानवरों की आवाजाही तथा उन्हें जल्दी से बड़े पैमाने पर मारने के तरीकों के बारे में जानकारी थी।

(3) अपमार्जन – अपमार्जन से तात्पर्य त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। अब यह माना जाने लगा है कि आदिकालीन होमिनिड अपमार्जन के द्वारा उन जानवरों के शवों से मांस-मज्जा खुरच कर निकालने लगे थे जो जानवर अपने आप मर जाते थे या अन्य हिंसक जानवरों द्वारा मार दिए जाते थे। यह भी इतना ही सम्भव है कि पूर्व होमिनिड छोटे स्तनपायी जानवरों – चूहे, छछूंदर जैसे कृतकों, पक्षियों (और उनके अंडों ), सरीसृपों और यहाँ तक कि कीड़े- sita

(4) मछली पकड़ना – मछली पकड़ना भी भोजन प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था। इस बात की जानकारी अनेक खोज स्थलों से मछली की हड्डियां मिलने से होती है।

प्रश्न 3.
आदि मानव के गुफाओं तथा खुले स्थानों पर आवास के बारे में एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
आदि मानव का गुफाओं तथा खुले स्थानों पर आवास –
गुफाओं तथा खुले निवास क्षेत्रों का प्रचलन 4,00,000 से 1,25,000 वर्ष पहले शुरू हो गया था। इसके साक्ष्य यूरोप के पुरास्थलों में मिलते हैं।

(1) दक्षिण फ्रांस में स्थित लेजरेट गुफा की दीवार को 12 × 4 मीटर आकार के एक निवास स्थान से सटाकर बनाया गया है। इसके अन्दर दो चूल्हों और भिन्न-भिन्न प्रकार के खाद्य-स्रोतों, जैसे फलों, वनस्पतियों, बीजों, काष्ठफलों, पक्षियों के अण्डों और मीठे जल की मछलियों (ट्राउट, पर्च और कार्प) के साक्ष्य मिले हैं। दक्षिणी फ्रांस के समुद्रतट पर स्थित टेरा अमाटा नामक पुरास्थल में भी घास-फूँस और लकड़ी की छत वाली कच्ची कमजोर झोंपड़ियाँ बनाई जाती थीं।

ये झोंपड़ियाँ किसी विशेष मौसम में थोड़े समय के लिए रहने के लिए बनाई जाती थीं। टेरा अमाटा की झोंपड़ी-टेरा अमाटा की झोंपड़ी के किनारों को सहारा देने के लिए बड़े पत्थरों का प्रयोग किया जाता था। झोंपड़ी के फर्श पर बिखरे हुए पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े उन स्थानों के द्योतक हैं जहाँ बैठकर लोग पत्थर के औजार बनाते थे। यहाँ चूल्हे भी बने हुए थे।

(2) केन्या में चेसोवांजा और दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रान्स में पत्थर के औजारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी और जली हुई हड्डियों के टुकड़े मिले हैं जो 14 लाख से 10 लाख वर्ष पुराने हैं। हमारे पास इस बात की निश्चित जानकारी नहीं है कि ये चीजें प्राकृतिक रूप से झाड़ियों में लगी आग या ज्वालामुखी से उत्पन्न अग्नि से जलने के परिणाम हैं अथवा ये चीजें एक सुनियोजित, सुनियन्त्रित ढंग से लगाई गई आग में पकाकर बनाई गई थीं।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

(3) दूसरी ओर चूल्हे आग के नियन्त्रित प्रयोग के परिचायक हैं। इसके निम्नलिखित लाभ थे –

  • नियन्त्रित आग का प्रयोग गुफाओं के अन्दर प्रकाश और उष्णता प्राप्त करने के लिए किया जाता था।
  • इससे भोजन भी पकाया जा सकता था।
  • लकड़ी को कठोर करने में भी अग्नि का प्रयोग होता था जैसाकि भाले की नोक बनाने में।
  • शल्क निकाल कर औजार बनाने में भी अग्नि की उष्णता उपयोगी होती थी।
  • इसका उपयोग खतरनाक जानवरों को भगाने में भी किया जाता था।

प्रश्न 4.
आल्टामीरा के गुफा – चित्र की खोज का विवरण दीजिए।
उत्तर:
आल्टामीरा के गुफा – चित्र की खोज – आल्टामीरा स्पेन में स्थित एक गुफा – स्थल है। इस गुफा -स्थल में जानवरों की अनेक चित्रकारियाँ पाई गई हैं। आल्टामीरा की गुफा की छत पर बनी चित्रकारियों की ओर मार्सिलीनो सैंज दि ओला का ध्यान उसकी पुत्री मारिया द्वारा नवम्बर, 1879 में आकर्षित किया गया था। मार्सीलीनो एक स्थानीय जमींदार तथा एक शौकीन पुरातत्त्वविद् था। वह गुफा का फर्श खोद रहा था तथा उसकी छोटी-सी पुत्री गुफा में इधर-उधर दौड़ रही थी। मारिया की नजर अचानक गुफा की छत पर बनी चित्रकारियों पर पड़ी।

उसने तुरन्त ‘चिल्लाते हुए कहा “पापा देखो बैल!” प्रारम्भ में तो मारिया के पिता ने अपनी पुत्री की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया परन्तु शीघ्र ही उसने महसूस किया कि गुफा की छत पर वास्तव में कुछ चित्रकारियाँ बनी हुई हैं जिनमें रंग की बजाय किसी प्रकार की लेई (पेस्ट) का प्रयोग किया गया है। मार्सीलोना का मन उत्साह से भर गया और इस नवीन खोज पर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। 1880 में मार्सीलीनो ने एक पुस्तिका प्रकाशित की परन्तु लगभग 20 वर्षों तक उसकी खोज के निष्कर्षों को यूरोप के पुरातत्त्वविदों ने इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि ये चित्रकारियाँ इतनी अधिक अच्छी हैं कि ये उतनी प्राचीन नहीं हो सकतीं।

प्रश्न 5.
सम्प्रेषण तथा संचार के माध्यम के रूप में भाषा तथा कला के विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सम्प्रेषण तथा संचार के माध्यम के रूप में भाषा तथा कला का विकास मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसके पास भाषा है। भाषा के विकास के सम्बन्ध में निम्नलिखित मत प्रचलित
(1) होमिनिड भाषा में अंगविक्षेप (हाव-भाव ) या हाथों का संचालन ( हिलाना) शामिल था।
(2) उच्चरित या बोली जाने वाली भाषा से पहले गाने या गुनगुनाने जैसे मौखिक या अ – शाब्दिक संचार का प्रयोग होता था।
(3) मनुष्य की वाणी का प्रारम्भ सम्भवतः आह्वान या बुलावों की क्रिया से हुआ था जैसाकि नर – वानरों में देखा जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में मानव बोलने में बहुत कम ध्वनियों का प्रयोग करता होगा। धीरे-धीरे ये ध्वनियाँ ही आगे चलकर भाषा के रूप में विकसित हो गई होंगी।

(1) बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति – उच्चरित या बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा। इस प्रकार सम्भवतः भाषा का विकास सबसे पहले 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ होगा। मस्तिष्क में हुए परिवर्तनों के अतिरिक्त, स्वर-तन्त्र का विकास भी उतना ही महत्त्वपूर्ण था। स्वर – तन्त्र का विकास लगभग 2,00,000 वर्ष पहले हुआ था! इसका सम्बन्ध विशेष रूप से आधुनिक मानव से रहा है।

(2) भाषा का कला के साथ विकास – कुछ विद्वानों के अनुसार भाषा, कला के साथ-साथ लगभग 40,000- 35,000 वर्ष पूर्व विकसित हुई। बोली जाने वाली भाषा का विकास कला के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा रहा है, क्योंकि ये दोनों ही विचार – अभिव्यक्ति के माध्यम हैं।

(3) जानवरों की चित्रकारियाँ – फ्रांस में स्थित लैसकाक्स और शोवे की गुफाओं में तथा स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफा में जानवरों की अनेक चित्रकारियाँ पाई गई हैं जो 30,000 से 12,000 वर्ष पहले के बीच में कभी बनाई गई थीं। इनमें गौरों (जंगली बैलों), घोड़ों, साकिन, हिरणों, मैमथों (विशालकाय जानवरों), गैंडों, शेरों, भालुओं, तेन्दुओं, लकड़बग्घों और उल्लुओं के चित्र शामिल हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार जानवरों की चित्रकारियाँ धार्मिक क्रियाओं, रस्मों तथा जादू-टोने से सम्बन्धित थीं।

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लोगों का विश्वास था कि जानवरों के चित्र बनाने से शिकार करने में सफलता मिलने की सम्भावना थी। इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि सम्भवतः ये गुफाएँ संगम-स्थल थीं जहाँ लोगों के छोटे-छोटे समूह मिलते थे और सामूहिक क्रिया- कलाप सम्पन्न करते थे। सम्भव है कि वहाँ ये समूह मिलकर शिकार की योजना बनाते थे या शिकार के तरीकों एवं तकनीकों पर एक-दूसरे से चर्चा करते थे । यह भी सम्भव है कि ये चित्रकारियाँ आगे आने वाली पीढ़ियों को इन तकनीकों की जानकारी देने के लिए की गई हों।

प्रश्न 6.
हादज़ा जन-समूह की गतिविधियों पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
हाजा जन-समूह के रहन-सहन के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
हाजा जन-समूह के निवास स्थल, रहन-सहन, खान-पान आदि के बारे में जानकारी दीजिये।
उत्तर:
(1) हादजा जन-समूह का निवास स्थान- हादजा जन-समूह शिकारियों तथा संग्राहकों का एक छोटा समूह है जो ‘लेक इयासी’ नामक एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनी झील के आस-पास रहते हैं। पूर्वी हादजा का प्रदेश सूखा और चट्टानी है जहाँ घास (सवाना), काँटेदार झाड़ियाँ और एकासियों के पेड़ों की बहुलता है, परन्तु यहाँ जंगली खाद्य वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।

(2) जानवर-हादजा प्रदेश में अनेक प्रकार के जानवर बड़ी संख्या में पाये जाते हैं। यहाँ के बड़े जानवरों में हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, जेब्रा, वाटरबक, हिरण, चिंकारा, खागदार जंगली सूअर, बबून बन्दर, शेर, तेन्दुए,

(i) आज के शिकारी-संग्राहक समाज शिकार और संग्रहण के साथ-साथ अनेक अन्य आर्थिक क्रियाकलापों में लगे रहते हैं। वे जंगलों में पाई जाने वाली छोटी-छोटी चीजों का विनिमय और व्यापार करते हैं अथवा पड़ोस के किसानों के खेतों में मजदूरी करते हैं।

(ii) ये समाज भौगोलिक, राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से भी महत्त्वहीन हैं क्योंकि वे जिन परिस्थितियों में रहते हैं, वे आरम्भिक मानव की अवस्था से बहुत भिन्न हैं।

(iii) आज के शिकारी-संग्राहक समाजों में आपस में भी बहुत भिन्नता है। इनमें कई मामलों में परस्पर-विरोधी तथ्य दिखाई देते हैं। आज के सभी समाज शिकार और संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं, उनके आकार भिन्न- भिन्न अर्थात् छोटे-बड़े होते हैं और उनकी गतिविधियों में भी अन्तर पाया जाता है।

(iv) भोजन प्राप्त करने के मामले में श्रम विभाजन को लेकर भी इन समाजों में कोई आम सहमति नहीं है। यह ठीक है कि आज भी अधिकतर स्त्रियाँ ही खाने-पीने की सामग्री जुटाने का काम करती हैं और पुरुष शिकार करते हैं। परन्तु ऐसे समाज भी मौजूद हैं जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों ही शिकार और संग्रहण तथा औजार बनाने का कार्य करते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि ऐसे समाजों में स्त्रियाँ भी भोजन जुटाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वर्तमान शिकारी-संग्राहक समाजों में स्त्री-पुरुष दोनों की भूमिका अपेक्षाकृत एकसमान ही होती है, यद्यपि इसमें समाजों के अन्तर्गत कुछ अन्तर पाया जाता है। अतः वर्तमान शिकारी-संग्राहक समाजों की स्थिति के आधार पर अतीत के बारे में कोई निष्कर्ष निकालना कठिन है।

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

Jharkhand Board JAC Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

Jharkhand Board Class 9 Science क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को पृथक् करने के लिए आप किन विधियों को अपनाएँगे?

  1. सोडियम क्लोराइड को जल के विलयन से पृथक् करने में।
  2. अमोनियम क्लोराइड को सोडियम क्लोराइड तथा अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण से पृथक् करने में।
  3. धातु के छोटे टुकड़ों को कार के इंजन आयल से पृथक् करने में।
  4. दही से मक्खन निकालने के लिए।
  5. जल से तेल निकालने के लिए।
  6. चाय से चाय की पत्तियों को पृथक् करने में।
  7. बालू से लोहे की पिनों को पृथक् करने में।
  8. भूसे से गेहूँ के दानों को पृथक करने में।
  9. पानी में तैरते हुए महीन मिट्टी के कण को पानी से अलग करने के लिए।
  10. पुष्प की पंखुड़ियों के निचोड़ से विभिन्न रंजकों को प्रथक करने में।

उत्तर:

  1. वाष्पीकरण या आसवन विधि
  2. ऊर्ध्वपातन
  3. छानने की क्रिया
  4. अपकेन्द्रीकरण
  5. कीप पृथक्करण
  6. छानने की क्रिया
  7. चुम्बकीय पृथक्करण
  8. ओसाई
  9. निधारने की क्रिया
  10. क्रोमेटोग्राफी।

प्रश्न 2.
चाय तैयार करने के लिए आप किन-किन चरणों का प्रयोग करेंगे। विलयन, विलायक, विलेय, घुलना, घुलनशील, अघुलनशील, घुलेय (फिल्ट्रेट) तथा अवशेष शब्दों का प्रयोग करें।
उत्तर:

  • चरण 1: एक बर्तन (चायदानी) में थोड़ा पानी (विलायक) लेकर गर्म करे।
  • चरण 2: गर्म पानी में चाय की पत्ती ( विलेय) डालें।
  • चरण 3: एक कप में चीनी ( विलेय) डालें।
  • चरण 4: विलयन को हिलाकर छान लें, इस प्रकार प्राप्त विलयन को कप में डालें।
  • चरण 5: दो चम्मच दूध कप में डालकर चम्मच से हिलाएँ इस प्रकार चाय तैयार हो जायेगी। छलनी में से बची चाय की पत्तियाँ अघुलनशील पदार्थ हैं। जो अवशेष है।

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

प्रश्न 3.
प्रज्ञा ने तीन अलग-अलग पदार्थों की घुलनशीलताओं को विभिन्न तापमान पर जाँचा तथा नीचे दिए आँकड़ों को प्राप्त किया। प्राप्त हुए परिणामों को 100 g जल में विलेय पदार्थ की मात्रा, जो संतृप्त विलयन बनाने हेतु पर्याप्त है, निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है-

विलेय पदार्थ तापमान K में
283 293 313 333 353
पोटैशियम नाइट्रेट 21 32 62 106 167
सोडियम क्लोराइड 36 36 36 37 37
पोटैशियम क्लोराइड 35 35 40 46 54
अमोनियम क्लोराइड 24 37 41 55 66

(a) 50g जल में 313 K पर पोटैशियम नाइट्रेट के संतृप्त विलयन को प्राप्त करने हेतु कितने ग्राम पोटैशियम नाइट्रेट की आवश्यकता होगी?
(b) प्रज्ञा 353 K पर पोटैशियम क्लोराइड का एक संतृप्त विलयन तैयार करती है और विलयन को कमरे के तापमान पर ठण्डा होने के लिए छोड़ देती है। जब विलयन ठण्डा हो जाता है तो वह क्या अवलोकित करेगी, स्पष्ट करें।
(c) 293 K पर प्रत्येक लवण की घुलनशीलता का परिकलन करें। इस तापमान पर कौन सा लवण सबसे अधिक घुलनशील होगा?
(d) तापमान में परिवर्तन से लवण की घुलनशीलता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
100g विलायक में विलेय की अधिकतम जितनी मात्रा घुली होती है, उसे विलयन में विलेय की घुलनशीलता कहते हैं। (एक निश्चित ताप तथा दाब पर)
(a) 131 K पर अधिकतम 62 g पोटैशियम नाइट्रेट 100 g जल द्वारा घोला जा सकता है।
∴ 313K पर 50g जल अधिकतम 31 g पोटैशियम नाइट्रेट को घोल सकता है।

(b) कमरे का तापमान लगभग 20°C लिया जाता है।
20°C = (20+273) K = 293 K
कमरे का तापमान घटने के साथ-साथ ठोसों की द्रव में घुलनशीलता भी घट जाती है। अतः पोटैशियम क्लोराइड का पाउडर नीचे बैठना प्रारम्भ कर देता है।

(c) 293K पर प्रत्येक लवण की घुलनशीलता

लवण घुलनशीलता
पोटैशियम नाइट्रेट = 32 g
सोडियम क्लोराइड = 36 g
पोटैशियम क्लोराइड = 35 g
अमोनियम क्लोराइड = 37 g

293 K पर अमोनियम क्लोराइड की घुलनशीलता अधिकतम होती है।

(d) लवण की घुलनशीलता ताप बढ़ने पर बढ़ती है। तथा ताप घटने पर घटती है।

प्रश्न 4.
निम्न की उदाहरण सहित व्याख्या करें-(a) संतृप्त विलयन (b) शुद्ध पदार्थ (c) कोलाइड (d) निलंबन
उत्तर:
(a) संतृप्त विलयन किसी निश्चित तापमान पर उतना ही पदार्थ घुल सकता है, जितनी कि विलयन की क्षमता होती है। दूसरे शब्दों में दिए गए निश्चित तापमान पर यदि विलायक में विलेय पदार्थ नहीं घुलता हो तो उसे संतृप्त विलयन कहते हैं।

उदाहरण- एक बीकर में 100 मिली जल लेकर उसको लगभग 25°C पर गर्म करते हैं और उसमें धीरे-धीरे नमक मिलाते हैं। नमक तब तक मिलाते हैं जब तक कि नमक का घुलना बन्द न हो जाये। इस प्रकार तैयार विलयन 25°C पर नमक का संतृप्त विलयन है।

(b) शुद्ध पदार्थ- शुद्ध पदार्थ वह पदार्थ है, जिसमें मौजूद सभी कण समान रासायनिक प्रकृति के हैं। एक शुद्ध पदार्थ एक ही प्रकार के कणों से मिलकर बना होता है। जैसे- दूध, जल, प्रोटीन आदि।

(c) कोलाइड – कोलाइड वह विषमांगी मिश्रण है, जिसके कणों का व्यास लगभग 1000 nm या 1000 × 10-9 m होता है। जैसे- दूध, गोंद आदि।

(d) निलंबन वह विषमांगी मिश्रण जिसमें विलेय के कण घुलते नहीं हैं बल्कि पूरे माध्यम में बहुमात्रा में निलंबित रहते हैं, उसे निलंबन कहते हैं। जैसे-चॉक पाउडर का जल में मिश्रण।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक को समांगी और विषमांगी मिश्रणों में वर्गीकृत करें- सोडा जल, लकड़ी, बर्फ, वायु, मिट्टी, सिरका, छनी हुई चाय।
उत्तर:

  • समांगी: सोडा जल बर्फ, वायु, छनी हुई चाय, सिरका
  • विषमांगी: लकड़ी, मिट्टी

प्रश्न 6.
आप किस प्रकार पुष्टि करेंगे कि दिया हुआ रंगहीन द्रव शुद्ध जल है?
उत्तर:
शुद्ध जल 373°K पर और सामान्य वायुमण्डलीय दाब (1 atm) पर उबलता है, जबकि लवण मिला जल 373°K से उच्च ताप पर उबलता है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तुएँ शुद्ध पदार्थ हैं?
(a) बर्फ
(c) लोहा
(b) दूध
(d) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल
(e) कैल्शियम ऑक्साइड
(f) पारा
(g) ईंट
(i) वायु
(h) लकड़ी
उत्तर:
लोहा, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, कैल्शियम ऑक्सा- इड और पारा शुद्ध पदार्थ हैं।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित मिश्रणों में से विलयन की पहचान करें-
(a) मिट्टी
(b) समुद्री जल
(c) वायु
(d) कोयला
(e) सोडा जल
उत्तर:
समुद्री जल, सोडा जल तथा वायु विलयन हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन टिण्डल प्रभाव को प्रदर्शित करेगा?
(a) नमक का घोल
(b) दूध
(c) कॉपर सल्फेट का विलयन
(d) स्टार्च विलयन
उत्तर:
दूध और स्टार्च विलयन ‘टिण्डल प्रभाव’ प्रदर्शित करेंगे क्योंकि दोनों कोलाइडी विलयन हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित को तत्व, यौगिक तथा मिश्रण में वगीकृत करें-

  1. सोडियम
  2. मिट्टी
  3. चीनी का घोल
  4. चाँदी
  5. कैल्शियम कार्बोनेट
  6. टिन
  7. सिलिकान
  8. कोयला
  9. वायु
  10. साबुन
  11. मीथेन
  12. कार्बन डाइऑक्साइड
  13. रक्त।

उत्तर:

  1. तत्व
  2. मिश्रण
  3. मिश्रण
  4. तत्व
  5. यौगिक
  6. तत्व
  7. तत्व
  8. मिश्रण
  9. मिश्रण
  10. मिश्रण
  11. यौगिक
  12. यौगिक
  13. मिश्रण

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-कौन से परिवर्तन रासायनिक हैं?
(a) पौधों की वृद्धि।
(b) लोहे में जंग लगना।
(c) लोहे के चूर्ण तथा बालू को मिलाना।
(d) खाना पकाना।
(e) भोजन का पाचन।
(f) जल से बर्फ बनना।
(g) मोमबत्ती का जलना।
उत्तर:
पौधों की वृद्धि, लोहे में जंग लगना, खाना पकना, भोजन का पाचन और मोमबत्ती का जलना-रासायनिक परिवर्तन हैं।

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क्रियाकलाप 1.
कंक्षा को अ, ब, स और द समूह में बाँटें। इसके पश्चात समूह अ को एक बीकर में 50mL जल और एक चम्मच कॉपर सल्फेट चूर्ण दें। समूह ब को एक बीकर में 50mL जल तथा दो चम्मच कॉपर सल्फेट का चूर्ण दें। समूह स एवं द को कॉपर सल्फेट और पोटैशियम परमैगनेट या साधारण नमक पृथक-पृथक मात्रा में दें। अब पृथक-पृथक समूह के उन अवयवों को मिलाकर मिश्रण तैयार करें।

समूह अ और ब को समान बनावट वाले मिश्रण प्राप्त होते हैं, जिसे समांगी मिश्रण कहते हैं। समूह स और द के मिश्रण के अंश भौतिक दृष्टि से अलग-अलग हैं। इस मिश्रण को विषमांगी मिश्रण कहते हैं। विषमांगी मिश्रण के अन्य उदाहरण सोडियम क्लोराइड एवं लोहे की छीलन, नमक और सल्फर एवं जल और तेल हैं।

क्रियाकलाप 2. (पा. पु. पृ. सं. – 16)

  • कक्षा को पुनः चार समूहों अ, ब, स और द में बाँटें।
  • समूह अ को कॉपर सल्फेट के कुछ क्रिस्टल दें।
  • समूह ब को एक चम्मच कॉपर सल्फेट दें।
  • समूह स को चॉक का चूर्ण या गेहूँ का आटा दें।
  • समूह द को दूध या स्याही की कुछ बूँदें दें।

सभी छात्रों को काँच की छड़ की सहायता से नमूनों को जल में मिलाने को कहें। मिश्रण को छानकर देखें, छानक पत्र पर जो शेष

  • बचा है, उसका अवलोकन करें।
  • समूह ‘अ’ और ‘ब’ एक विलयन पाते हैं।
  • समूह ‘स’ एक निलंबन पाता है।
  • समूह ‘द’ एक कोलाइड विलयन पाता है।
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अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
समांगी मिश्रण के उदाहरण दें।
उत्तर:
जल में चीनी, जल में नमक आदि।

प्रश्न 2.
मिश्रण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
मिश्रण दो प्रकार के होते हैं-

  • समांगी
  • विषमांगी।

प्रश्न 3.
विषमांगी मिश्रण के उदाहरण दें।
उत्तर:
नमक और सल्फर, जल और तेल आदि।

खंड 2.1 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पा.पु. पू. सं. – 16 )

प्रश्न 1.
पदार्थ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विश्व में प्रत्येक वस्तु जिस सामग्री से बनी होती है, उसे पदार्थ कहते हैं। पदार्थ स्थान घेरता है तथा उसका द्रव्यमान होता है।

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प्रश्न 2.
समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अन्तर बताएँ।
उत्तर:

समांगी विषमांगी
समांगी मिश्रण को विलयन भी कहते हैं क्योंकि इसमें सभी जगह एक समान संघटन होता है। जैसे-चीनी का घोल आदि। विषमांगी मिश्रण वह मिश्रण, है जिसमें भौतिक रूप से अलग-अलग भाग होते हैं तथा प्रत्येक भाग भिन्न गुणधर्मों का होता है। जैसेखड़िया युक्त पानी आदि।

क्रियाकलाप 3. (पा. पु. पृ. सं. 17):

  • दो अलग-अलग बीकरों में 50 mL जल लें।
  • एक बीकर में नमक तथा दूसरे बीकर में चीनी या बेरियम क्लोराइड लेकर अच्छी तरह मिला लें।
  • जब विलेय पदार्थ और अधिक न घुले तब 5°C ताप बढ़ाने के लिए बीकर को गर्म करेंहैहै
  • विलेय पदार्थ को फिर से मिलाना शुरु करें।

“दिये गये निश्चित ताप पर यदि विलयन में विलेय पदार्थ नहीं घुलता है तो उसे संतृप्त विलयन कहते हैं। इस ताप पर संतृप्त विलयन में विलेय पदार्थ की मात्रा, उसकी घुलनशीलता कहलाती है।”

यदि विलयन में विलेय पदार्थ की मात्रा संतृप्तता से कम है तो इसे असंतृप्त विलयन कहा जाता है। “विलेय पदार्थ की वह मात्रा जो विलयन के किसी दी गई मात्रा अथवा आयतन में उपस्थित हो, उस विलयन की सान्द्रता कहलाती है।”
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उदाहरण 2.1.
एक विलयन के 320g विलायक जल में 40g साधारण नमक विलेय है। विलयन की सान्द्रता का परिकलन करें।
हल:
विलेय पदार्थ (नमक) का द्रव्यमान = 40 g
विलायक (जल) का द्रव्यमान = 320 g
हम जानते हैं,
विलयन का द्रव्यमान – विलेय पदार्थ का द्रव्यमान + विलायक का द्रव्यमान
= 40g + 320 g
=360 g
विलयन का द्रव्यमान प्रतिशत
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= \(\frac { 40 }{ 360 }\) x 100 = 11.1%

खंड-2.2 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पा. पु. पृ. सं.-20)

प्रश्न 1.
उदाहरण के साथ समांगी एवं विषमांगी मिश्रणों में विभेद कीजिए।
उत्तर:

समांगी मिश्रण (Homogeneous Mixture) विषमांगी मिश्रण (Heterogeneous Mixture)
1. मिश्रण के घटकों की बनावट समान होती है। उदाहरण-जल में नमक और जल में चीनी। 1. मिश्रण के घटकों की बनावट समान नहीं होती है। उदाहरण-सोडियम क्लोराइड और लोहे की छीलन।

प्रश्न 2.
विलयन, निलंबन और कोलाइड एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
भिन्नता

वास्तविक विलयन कोलाइडी विलयन निलम्बन
1. दो पदार्थों का समांगी मिश्रण है। 1. कोलाइडी विलयन समांगी प्रतीत होते हैं, परन्तु वास्तव में वे विषमांगी होते हैं। 1. यह एक विषमांगी मिश्रण होता है।
2. विलेय पदार्थों के कणों को देखा नहीं जा सकता। 2. विलेय पदार्थ के कणों को सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है। 2. केवल आँखों से ही इसके कणों को देखा जा सकता है।
3. विलेय पदार्थ के कणों का आकार 10-10 मी. होता है। 3. विलेय पदार्थ के कणों का आकार 10-9 मी. से 10-7 मी. के बोच होता है। 3. कणों का आकार 10-7 मी. से अधिक होता है।
4. इसके घटकों की छानने से अलगअलग नहं किया जा सकता। 4. इसके घटकों को छानने से अलगअलग किया जा सकता है। 4. इसके घटकों को साधारण छलनी से अलग-अलग किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
एक संतृप्त विलयन बनाने के लिए 36g सोडियम क्लोराइड को 100 g जल में 293 K पर घोला जाता है। इस तापमान पर इसकी सान्द्रता प्राप्त करें।
उत्तर:
सोडियम क्लोराइड विलयन का द्रव्यमान = 36 g
(जल) का द्रव्यमान
विलयन का द्रव्यमान
विलायक (जल) का द्रव्यमान = 100 g
विलेय का द्रव्यमान = विलायक का द्रव्यमान + विलयन का द्रव्यमान
= 36g + 100g
= 136 g
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क्रियाकलाप 4.
आधा बीकर जल लेकर बीकर के मुख पर वाच- ग्लास रखें तथा कुछ बूँद स्याही वाच ग्लास पर डाल दें तथा बीकर को गर्म करना प्रारम्भ करें। यह प्रेक्षित होता है कि बाच ग्लास से वाष्पीकरण हो रहा है। वाच ग्लास में किसी परिवर्तन तक गर्म करें।
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अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
आपके विचार में वाच ग्लास पर से किसका वाष्पीकरण हुआ?
उत्तर:
वाच-ग्लास पर से स्याही का वाष्पीकरण हुआ।

प्रश्न 2.
क्या वाच – ग्लास पर कोई अवशेष बचा है?
उत्तर:
वाच – ग्लास पर स्याही (विलेय पदार्थ) बची है।

प्रश्न 3.
आप क्या प्रतिपादित करेंगे? क्या स्याही एक शुद्ध पदार्थ है या मिश्रण है?
उत्तर:
स्वाही जल तथा रंग ( विलेय पदार्थ) का समांगी मिश्रण है।

क्रियाकलाप 5.
एक परखनली में थोड़ी मात्रा में संपूर्ण क्रीम युक्त दूध लेकर इसे दो मिनट तक अपकेन्द्रीय यंत्र (Centrifuging Machine) द्वारा अपकेन्द्रित करें। कभी-कभी द्रव में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि ये छानक पत्र से बाहर निकल जाते हैं ऐसे मिश्रणों को अपकेन्द्रण विधि द्वारा अलग किया जाता है। इसमें तेजी से घुमाये जाने पर भारी कण नीचे बैठ जाते हैं और हल्के कण ऊपर रह जाते हैं।

अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
दूध को मथने पर आपने क्या देखा?
उत्तर:
क्रीम के हल्के कण ऊपर रह जाते हैं तथा भारी कण नीचे बैठ जाते हैं।

प्रश्न 2.
दूध में से क्रीम का पृथक्करण कैसे करते हैं?
उत्तर:
अपकेन्द्रीय यंत्र के द्वारा दूध में से क्रीम को अलग किया जा सकता है।
अनुप्रयोग:

  • जाँच प्रयोगशाला में रक्त और मूत्र की जाँच में।
  • डेयरी तथा घर में क्रीम से मक्खन निकालने में।
  • कपड़े धोने की मशीन में भीगे हुए कपड़ों से जल निचोड़ने में।

क्रियाकलाप 6.
मिट्टी के तेल एवं जल के मिश्रण को एक पृथक्करण कीप में डालकर कुछ देर इसे शांत छोड़ दें ताकि जल एवं तेल की पृथक् पृथक् परत तैयार हो जाए। पृथक्करण कीप के स्टॉप कॉर्क को खोलकर सावधानी पूर्वक नीचे वाले जल की परत को निकाल लें तथा तेल नीचे पहुँचने पर स्टॉप कार्क को बंद कर दें।
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अनुप्रयोग:

  • तेल तथा जल के अघुलनशील मिश्रण को पृथक करने में।
  • धातुशोधन के दौरान लोहे को पृथक् करने में।

सिद्धान्त – अमिश्रणीय द्रव अपने घनत्व के अनुसार अलग-अलग परतों के रूप में पृथक् हो जाते हैं।

क्रियाकलाप 7.
एक छानक पत्र की एक पतली परत लेकर इसके निचले सिरे से 3 cm ऊपर पेंसिल से एक रेखा खींचकर उसके बीच में जल में घुलनशील काली स्याही की एक बूँद रखकर इसे सूखने दें। बीकर या परखनली में जल लेकर इस छानक पत्रक को इस प्रकार रखें कि वह जल की सतह से ठीक ऊपर चित्र की भाँति रहे। अब इसे शांत छोड़ दें। जल के ऊपर उठने पर यह डाई के कणों को भी अपने साथ ले लेता है।
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अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
जैसे-जैसे जल ऊपर की ओर उठता है, आपने छानक पत्र पर क्या देखा?
उत्तर:
जल ऊपर उठते समय डाई के कणों को भी अपने साथ ले लेता है।

प्रश्न 2.
क्या आपने छानक पत्र के टुकड़े पर विभिन्न रंगों का अवलोकन किया?
उत्तर:
हाँ, छानक पत्र के टुकड़े पर दो से अधिक रंगों का मिश्रण देखा गया।

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प्रश्न 3.
आपके मतानुसार, रंग के स्थान पर छानक पत्र ऊपर की ओर उठने का क्या कारण है?
उत्तर:
रंग वाला घटक जो कि जल में अधिक घुलनशील है, तेजी से ऊपर उठता है।
मिश्रण से घटकों को पृथक करने की इस विधि को क्रोमैटोग्राफी (Chromatography) कहते हैं। इस विधि का उपयोग सबसे पहले रंगों को पृथक करने में किया गया था, इसका उपयोग उन विलेय पदार्थों को पृथक करने में होता है जो एक ही प्रकार के विलायक में घुले होते हैं।
अनुप्रयोग-

  • डाई में रंगों को पृथक् करने में।
  • प्राकृतिक रंगों से पिगमेंट को पृथक् करने में।
  • रक्त से नशीले पदार्थों (Drugs) को पृथक् करने में।

क्रियाकलाप 8.
जल और ऐसीटोन के मिश्रण को पृथक करने के लिए मिश्रण को आसवन फ्लास्क में लेकर इसमें एक थर्मामीटर लगाया जाता है तथा उपकरण को चित्र के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। मिश्रण को धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक गर्म करने पर एसीटोन वाष्पीकृत होता है तथा संघनित होकर संघनन द्वारा बाहर निकाल कर इसे बर्तन में एकत्रित किया जा सकता है तथा जल आसवन फ्लास्क में शेष रह जाता है।

इस विधि को आसवन विधि कहा जाता है। इसके द्वारा उन मिश्रणों को पृथक किया जाता है जो विघटित हुए बिना उबलते हैं तथा जिनके घटकों के क्वथनाकों के बीच बहुत अधिक अन्तर होता है।
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प्रभाजी आवसन- दो या दो से अधिक घुलनशील द्रवों को पृथक करने के लिए प्रभाजी आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है। यदि इन दोनों द्रवों के क्वथनांकों का अंतर 25K से कम होता है। इसमें आसवन फ्लास्क और संघनक के बीच एक प्रभाजी स्तम्भ का प्रयोग किया जाता है।

साधारण प्रभाजी स्तम्भ एक नली होती है जो कि शीशे के गुटकों से भरी होती है ये गुटके वाष्प को ठण्डा और संघनित होने के लिए सतह प्रदान करते हैं।

अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
जब आप मिश्रण को गर्म करना शुरू करते हैं तब आप क्या अवलोकित करते हैं?
उत्तर:
मिश्रण को गर्म करना शुरू करने पर एसीटोन वाष्पीकृत होता है तथा संघनित होकर संघनक द्वारा बाहर निकालने पर इसे बर्तन में एकत्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
कुछ समय के लिए किस तापमान पर थर्मामीटर का पाठ्यांक स्थिर हो जाता है?
उत्तर:
क्वथनांक पर।

प्रश्न 3.
एसीटोन का क्वथनांक क्या है?
उत्तर:
56° C

प्रश्न 4.
दोनों घटकों को हम पृथक कर पाते हैं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि दोनों घटकों में ताप का अन्तर 25K से अधिक है।

अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
वायु में उपस्थित गैसों को उनके बढ़ते हुए क्वथनांक के अनुसार व्यवस्थित करें।
उत्तर:
ऑक्सीजन, ऑर्गन, नाइट्रोजन।

प्रश्न 2.
जब वायु को ठण्डा किया जाता है तो कौन-सं। घटक पहले द्रव में परिवर्तित होता है?
उत्तर:
सर्वप्रथम ऑक्सीजन द्रवित होती है।

क्रियाकलाप 9.
चीनी मिट्टी की प्याली में लगभग 5 ग्राम अशुद्ध कॉपर सल्फेट लेकर जल की न्यूनतम मात्रा में इसे घोल देते हैं तथा अशुद्धियों को इसमें से छान लेते हैं। जल को कॉपर सल्फेट के घोल से वाष्पीकृत करके संतृप्त विलयन प्राप्त करते हैं। अब विलयन को छानक पत्र से ढक कर कमरे के तापमान पर इसे दिन भर ठण्डा होने के लिए शांत छोड़ देते हैं। कॉपर सल्फेट के क्रिस्टल चीनी मिट्टी की प्याली में प्राप्त हो जाते हैं; यह क्रिया क्रिस्टलीकरण कहलाती है।

अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
चीनी मिट्टी की प्याली में आप क्या अवलोकन करते हैं?
उत्तर:
चीनी मिट्टी की प्याली में भरे कॉपर सल्फेट के घोल में अशुद्धियाँ अवलोकित होती हैं।

प्रश्न 2.
क्या क्रिस्टल एक समान दिखाई देते हैं?
उत्तर:
हाँ, क्रिस्टल एक समान दिखाई देते हैं।

प्रश्न 3.
चीनी मिट्टी की प्याली में रखे द्रव से क्रिस्टल को कैसे पृथक् करेंगे?
उत्तर:
चीनी मिट्टी की प्याली में रखे द्रव को सर्वप्रथम वाष्पीकृत करते हैं तथा विलयन को छानक पत्र से ढककर कमरे के तापमान पर इसे ठण्डा करने के लिए शांत छोड़ देते हैं। चीनी मिट्टी की प्याली में द्रव से क्रिस्टल प्राप्त हो जाते हैं। यह क्रिया क्रिस्टलीकरण कहलाती है।

क्रिस्टलीकरण विधि का प्रयोग ठोस पदार्थों को शुद्ध करने में किया जाता है। इसमें ठोस पदार्थ विलयन में से क्रिस्टल के रूप में पृथक् कर लेते हैं। क्रिस्टलीकरण विधि, साधारण वाष्पीकरण विधि से निम्न कारणों से उत्तम होती है-

  • कुछ ठोस विघटित हो जाते हैं या कुछ चीनी की तरह गर्म करने पर झुलस जाते हैं।
  • छानने के बाद भी अशुद्ध विलेय पदार्थ को विलायक में घोलने पर विलयन में कुछ अशुद्धियाँ रह सकती हैं। वाष्पीकरण होने पर ये अशुद्धियाँ ठोस को दूषित कर सकती हैं।

अनुप्रयोग-

  • अशुद्ध नमूने से फिटकरी को अलग करने में।
  • समुद्री जल द्वारा प्राप्त नमक को शुद्ध करने में।

तकनीकियों में विकास के साथ कई और पृथक् करने वाली विधियों का आविष्कार हो चुका है। शहरों में जलघर से पीने योग्य जल की आपूर्ति की जाती है। जलघर से अपने घर में प्राप्त पेय जल के विभिन्न चरण निम्न रेखाचित्र में दिखाये गये हैं-
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खण्ड 2.3 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पा. पु. पृ. सं. – 26)

प्रश्न 1.
पेट्रोल और मिट्टी का तेल (Kerosene oil) जो कि आपस में घुलनशील हैं, के मिश्रण को आप कैसे पृथक् करेंगे? पेट्रोल तथा मिट्टी के तेल के क्वथनांकों में 25°C से अधिक का अंतराल है।
उत्तर:
पेट्रोल और मिट्टी के तेल के मिश्रण को प्रभाजी आसवन विधि द्वारा पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
पृथक् करने की सामान्य विधियों के नाम दें –

  1. दही से मक्खन
  2. समुद्री जल से नमक
  3. नमक से कपूर

उत्तर:

  1. दही से मक्खन- अपकेन्द्रीकरण विधि से।
  2. समुद्री जल से नमक- क्रिस्टलीकरण विधि से।
  3. नमक से कपूर ऊर्ध्वपातन विधि से।

प्रश्न 3.
क्रिस्टलीकरण विधि से किस प्रकार के मिश्रणों को पृथक् किया जा सकता है?
उत्तर:
क्रिस्टलीकरण द्वारा ऐसे ठोस पदार्थों को अलग किया जाता है जो जल में घुलनशील हों।

खण्ड 2.4 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पा.पु. पू. सं. 27)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को रासायनिक और भौतिक परिवर्तनों में वर्गीकृत कीजिए-

  • पेड़ों को काटना,
  • मक्खन का एक बर्तन में पिघलना
  • अलमारी में जंग लगना,
  • जल का उबलकर वाष्प बनना,
  • विद्युत तरंग का जल में प्रवाहित होना तथा उसका हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों में विघटित होना
  • जल में साधारण नमक का घुलना,
  • फलों से सलाद बनाना,
  • लकड़ी और कागज का जलना।

उत्तर:
वर्गीकरण:

  • पेड़ों को काटना – रासायनिक परिवर्तन।
  • मक्खन का एक बर्तन में पिघलना भौतिक परिवर्तन।
  • अलमारी में जंग लगना-रासायनिक परिवर्तन।
  • जल का उबलकर वाष्प बनना भौतिक परिवर्तन।
  • विद्युत तरंग का जल में प्रवाहित होना तथा उसका हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों में विघटित होना रासायनिक परिवर्तन।
  • जल में साधारण नमक का घुलना- भौतिक परिवर्तन।
  • फलों से सलाद बनाना भौतिक परिवर्तन।
  • लकड़ी और कागज का जलना- रासायनिक परिवर्तन।

प्रश्न 2.
अपने आस-पास की चीजों को शुद्ध पदार्थों या मिश्रण से अलग करने का प्रयत्न करें।
उत्तर:
अपने आस-पास की चीजों को शुद्ध पदार्थों या मिश्रण से अलग करने के लिए विभिन्न विधियों जैसे-छानना, वाष्पीकरण या आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है। छात्र अपने आस-पास की चीजों को स्वयं अलग करने का प्रयत्न करें।

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क्रियाकलाप 10.
कक्षा को दो समूहों में विभाजित करके दोनों समूहों को 5 ग्राम लोहे का चूर्ण तथा 3 ग्राम सल्फर एक चीनी मिट्टी की प्याली में दें।
समूह I. लोहे के चूर्ण और सल्फर पाउडर को पीसकर मिलाएगा।

समूह II. लोहे के चूर्ण और सल्फर पाउडर को पीसकर मिलाएगा तथा मिश्रण को तीव्र ताप पर लाल होने तक गर्म करेगा, अब ज्वाला को हटाकर मिश्रण ठण्डा होने तक रखा जाएगा।

समूह I व II द्वारा प्राप्त सामग्री में चुम्बकीय गुणों की जाँच करें तथा प्राप्त सामग्री के रंग और बनावट की तुलना करें प्राप्त सामग्री के एक भाग में कार्बन डाइसल्फाइड मिलाकर मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर छानें प्राप्त पदार्थ के दूसरे भाग में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल या तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मिलाया।

इस क्रियाकलाप को लोहा तथा सल्फर तत्वों के साथ अलग-अलग दोहराएँ तथा अवलोकनों को नोट करें।

अब उत्तर दें-

प्रश्न 1.
क्या दोनों समूहों द्वारा प्राप्त सामग्री दिखने में समान है?
उत्तर:
हाँ, दोनों समूहों से प्राप्त सामग्री रंगहीन है।

प्रश्न 2.
किस समूह द्वारा प्राप्त सामग्री में चुम्बकीय गुण विद्यमान हैं?
उत्तर:
समूह I द्वारा प्राप्त सामग्री में चुम्बकीय गुण विद्यमान हैं।

प्रश्न 3.
क्या प्राप्त सामग्री के घटकों को हम पृथक् करने में सक्षम हैं?
उत्तर:
घटकों को भौतिक विधियों द्वारा पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
क्या तनु सल्फ्यूरिक अम्ल या तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल सामग्री पर डालने से दोनों समूहों से गैस प्राप्त होती है? क्या दोनों स्थितियों में प्राप्त गैस की गंध समान है या अलग-अलग है?
उत्तर:
दोनों ही स्थितियों में प्राप्त गैसें अलग-अलग हैं। समूह I द्वारा प्राप्त गैस हाइड्रोजन है जो रंगहीन, गंधहीन तथा ज्वलनशील है। समूह II द्वारा प्राप्त गैस हाइड्रोजन सल्फाइड है। यह रंगहीन गैस है तथा इसकी गंध सड़े हुए अंडे जैसी है।

निष्कर्ष – दोनों समूहों द्वारा प्राप्त पदार्थ भिन्न गुणों को दर्शाते हैं, प्रारम्भ में दोनों पदार्थ समान थे परन्तु समूह I में भौतिक परिवर्तन तथा समूह II में रासायनिक परिवर्तन हुआ। समूह I द्वारा प्राप्त सामग्री लोहा तथा सल्फर का मिश्रण है। मिश्रण का गुण उन दोनों मिले हुए तत्वों के गुण के समान है। समूह II द्वारा प्राप्त सामग्री यौगिक है।

दोनों तत्वों को तीव्रता से गर्म करने पर यौगिक की प्राप्ति होती है जिसका गुण मिले हुए तत्वों से पूरी तरह भिन्न होता है। यौगिक का संघटन पूरे पदार्थ में समान है। यौगिक की बनावट और रंग भी सभी स्थानों पर समान है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. संसद सामान्य बहुमत से संशोधन कर सकती है।
(क) मूल अधिकारों में
(ख) राष्ट्रपति की निर्वाचन विधि में
(ग) न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति में
(घ) किसी राज्य के क्षेत्रफल में
उत्तर:
(घ) किसी राज्य के क्षेत्रफल में

2. ” संसद अपनी संवैधानिक शक्ति के द्वारा और इस अनुच्छेद में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार संविधान में नए उपबंध कर सकती है, पहले से विद्यमान उपबंधों को बदल या हटा सकती है।” यह कथन संविधान के जिस अनुच्छेद से संबंधित है, वह है।
(क) अनुच्छेद 368
(ग) अनुच्छेद 13
(ख) अनुच्छेद 370
(घ) अनुच्छेद 14
उत्तर:
(क) अनुच्छेद 368

3. भारत का संविधान औपचारिक रूप से लागू किया गया
(क) 26 नवम्बर, 1949 को
(ख) 26 जनवरी, 1950 को
(ग) 15 अगस्त, 1947 को
(घ) 26 जनवरी, 1956 को
उत्तर:
(ख) 26 जनवरी, 1950 को

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4. निम्नलिखित में जो कथन असत्य हो, उसे बतायें
(क) भारतीय संविधान को एक पवित्र दस्तावेज मानने के साथ-साथ इतना लचीला भी बनाया गया है कि उसमें आवश्यकतानुसार यथोचित परिवर्तन कर सकें।
(ख) संविधान एक पावन दस्तावेज है इसलिए इसे बदलने की बात करना लोकतंत्र का विरोध करना है।
(ग) भारतीय संविधान में एक साथ ही कठोर और लचीले दोनों तत्वों का समावेश किया गया है।
(घ) संविधान में कई अनुच्छेद हैं जिनमें संसद सामान्य कानून बनाकर संशोधन कर सकती है।
उत्तर:
(ख) संविधान एक पावन दस्तावेज है इसलिए इसे बदलने की बात करना लोकतंत्र का विरोध करना है।

5. भारतीय संविधान में संशोधन का मुख्य घटक है।
(क) संविधान आयोग
(ख) न्यायपालिका
(ग) संसद
(घ) जनमत संग्रह
उत्तर:
(ग) संसद

6. निम्नलिखित में से किस देश में संविधान संशोधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी के सिद्धान्त को अपनाया गया है।
(क) भारत
(ख) स्विट्जरलैंड
(ग) अमेरिका
(घ) दक्षिण अफ्रीका
उत्तर:
(ख) स्विट्जरलैंड

7. निम्नलिखित में से कौनसा संशोधन केवल तकनीकी या प्रशासनिक प्रकृति का नहीं है।
(क) न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करना
(ख) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाना
(ग) अनुसूचित जाति/जनजाति की सीटों के लिए आरक्षण की अवधि को बढ़ाना
(घ) सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की श्रेणी से निकालना
उत्तर:
(घ) सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की श्रेणी से निकालना

8. निम्नलिखित में से कौनसा संविधान संशोधन राजनीतिक आम सहमति से पारित नहीं हुआ है।
(क) 42वां संविधान संशोधन
(ख) 52वां संविधान संशोधन
(ग) 91वां संविधान संशोधन
(घ) 73 व 74वां संविधान संशोधन
उत्तर:
(क) 42वां संविधान संशोधन

9. निम्नलिखित में से कौनसा संविधान संशोधन विवादास्पद संशोधन की श्रेणी में नहीं आता है।
(क) 38वां संविधान संशोधन
(ख) 73वां संविधान संशोधन
(ग) 39वां संविधान संशोधन
(घ) 42वां संविधान संशोधन
उत्तर:
(ख) 73वां संविधान संशोधन

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10. सर्वोच्च न्यायपालिका ने संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त का विकास किया।
(क) सज्जन सिंह के विवाद में
(ख) गोलकनाथ विवाद में
(ग) केशवानंद भारती विवाद में
(घ) मिनर्वा मिल विवाद में
उत्तर:
(ग) केशवानंद भारती विवाद में

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 को ……………… किया गया।
उत्तर:
अंगीकृत

2. केशवानंद भारती विवाद (1973) में न्यायालय ने संविधान की ………………… के सिद्धान्त को प्रतिस्थापित किया।
उत्तर:
मूल संरचना

3. संविधान एक …………………. दस्तावेज नहीं है।
उत्तर:
अपरिवर्तनीय

4. भारतीय संविधान एक ………………. दस्तावेज है।
उत्तर:
जीवन्त

5. मताधिकार की आयु को 21 से 18 वर्ष करने के लिए संविधान ने ………………….संशोधन हुआ।
उत्तर:
61वां

निम्नलिखित में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये-

1. फ्रांस में सन् 1958 में नवीन संविधान के साथ पांचवें गणतंत्र की स्थापना हुई।
उत्तर:
सत्य

2. हमारे संविधान में ऐसे कई अनुच्छेद हैं जिनमें संसद सामान्य कानून बनाकर संशोधन कर सकती है।
उत्तर:
सत्य

3. भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए राज्य अपनी तरफ से संशोधन का प्रस्ताव संसद में प्रस्तुत कर सकता है।
उत्तर:
असत्य

4. संसद या कुछ मामलों में राज्य विधानपालिकाओं में संशोधन पारित होने के बाद इसकी पुष्टि के लिए जनमत संग्रह की आवश्यकता है।
उत्तर:
असत्य

5. संविधान संशोधन विधेयक के मामले में राष्ट्रपति को पुनर्विचार का अधिकार नहीं है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये:

1. लचीला संविधान (क) वह संविधान जिसमें संशोधन करना बहुत मुश्किल है।
2. कठोर संविधान (ख) कठोर तथा लचीला दोनों प्रकार का संविधान
3. भारत का संविधान (ग) एक कठोर संविधान
4. अमेरिका का संविधान (घ) एक लचीला संविधान
5. ब्रिटेन का संविधान (च) वह संविधान जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके ।

उत्तर:

1. लचीला संविधान (च) वह संविधान जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके ।
2. कठोर संविधान (क) वह संविधान जिसमें संशोधन करना बहुत मुश्किल है।
3. भारत का संविधान (ख) कठोर तथा लचीला दोनों प्रकार का संविधान
4. अमेरिका का संविधान (ग) एक कठोर संविधान
5. ब्रिटेन का संविधान (घ) एक लचीला संविधान

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का संविधान कब अंगीकृत किया गया और कब लागू किया गया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत किया गया तथा 26 जनवरी, 1950 को औपचारिक रूप से लागू किया गया।

प्रश्न 2.
क्रांति के बाद फ्रांस में पहला फ्रांसीसी गणतंत्र कब बना? इसके समेत अब तक कुल कितने फ्रांसीसी संविधान बन चुके हैं?
उत्तर:
क्रांति के बाद 1793 में फ्रांस में प्रथम फ्रांसीसी गणतंत्र नामक संविधान बना। इसके समेत अब तक फ्रांस में पांच फ्रांसीसी गणतंत्र संविधान बन चुके हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के स्थायित्व के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:

  1. हमारे संविधान की बनावट हमारे देश की परिस्थितियों के बेहद अनुकूल है।
  2. संविधान निर्माताओं ने दूरदर्शिता से भविष्य के कई प्रश्नों का समाधान उसी समय कर लिया था।

प्रश्न 4.
किस संविधान संशोधन के द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई?
उत्तर:
61वें संविधान संशोधन के द्वारा।

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प्रश्न 5.
संविधान के किस अनुच्छेद में संशोधन विधि का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
अनुच्छेद 368 में।

प्रश्न 6.
हमारा संविधान इतने वर्षों तक सफलतापूर्वक कार्य कैसे करता रह सका है?
उत्तर:

  1. भारतीय संविधान में आवश्यकताओं के समय अनुकूल संशोधन किये जा सकते हैं।
  2. अदालती फैसले और राजनीतिक व्यवहार – बरताव दोनों ने संविधान के अमल में अपनी परिपक्वता और . लचीलेपन का परिचय दिया है।

प्रश्न 7.
किसी भी संविधान की कोई दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  1. संविधान समकालीन परिस्थितियों और प्रश्नों से जुड़ा होता है।
  2. संविधान सरकार को लोकतांत्रिक ढंग से चलाने का एक ढांचा होता है।

प्रश्न 8.
लचीले संविधान से क्या आशय है?
उत्तर:
लचीले संविधान से आशय यह है कि इसमें संशोधन आसानी से अर्थात् विधायिका के साधारण बहुमत से किये जा सकते हैं।

प्रश्न 9.
कठोर संविधान से क्या आशय है?
उत्तर:
कठोर संविधान संशोधनों के प्रति कठोर रवैया अपनाता है अर्थात् जिन संविधानों में संशोधन करना बहुत मुश्किल होता है, ऐसे संविधानों को कठोर संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान लचीला है या कठोर है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में कठोर और लचीले दोनों तत्त्वों का मिश्रण है। यह कठोर होने के साथ-साथ लचीला भी है।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान में संशोधन करने के कितने तरीके अपनाए गए हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में संशोधन करने के तीन तरीके अपनाए गए हैं।

  1. संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
  2. संसद के विशिष्ट बहुमत से संशोधन
  3. संसद के विशिष्ट बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों की विधायिकाओं से स्वीकृति आवश्यक।

प्रश्न 12.
ऐसे दो अनुच्छेदों का उल्लेख कीजिए जिनमें संसद सामान्य कानून बनाकर संशोधन कर सकती है।
उत्तर:

  1. अनुच्छेद (2) – संसद विधि द्वारा संघ में  ……………….. नए राज्यों को प्रवेश दे सकती है।
  2. अनुच्छेद (3) –  संसद विधि द्वारा ………………….. किसी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ा सकती है।

प्रश्न 13.
संविधान संशोधन के लिए विशेष बहुमत का औचित्य क्या है?
उत्तर:
संविधान संशोधन के लिए विशेष बहुमत का औचित्य यह है कि संविधान संशोधन के लिए राजनीतिक दलों, सांसदों की व्यापक भागीदारी को सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 14.
भारत में संविधान संशोधन में राज्यों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
भारत में संविधान संशोधनों में राज्यों की सीमित भूमिका है क्योंकि कुछ अनुच्छेदों में संशोधनों के लिए केवल आधे राज्यों के अनुमोदन और विधायिका के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 15.
संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त से क्या आशय है?
उत्तर:
संविधान की मूल संरचना या उसके बुनियादी तत्व का उल्लंघन करने वाले किसी भी संशोधन को न्यायपालिका असंवैधानिक घोषित कर निरस्त कर सकती है।

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान में मूल – संरचना की धारणा का विकास किस मुकदमे में हुआ?
उत्तर:
स्वामी केशवानंद भारती के मुकदमे में।

प्रश्न 17.
ऐसे दो उदाहरण दीजिये जिनमें संविधान की समझ को बदलने में न्यायिक व्याख्या की अहम भूमिका रही है।
उत्तर:

  1. आरक्षित सीटों की संख्या सीटों की कुल संख्या के आधे से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  2. अन्य पिछड़े वर्गों में क्रीमीलेयर के व्यक्तियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के संविधान में किन विषयों में साधारण विधि से संशोधन किया जाता है? उत्तर – भारत के संविधान में निम्न विषयों में साधारण विधि से संशोधन किया जाता हैv

  1. नये राज्यों का निर्माण करना, किसी राज्य की सीमा में परिवर्तन या किसी राज्य का नाम बदलना (अनु. 2, 3
  2. राज्यों के द्वितीय सदन (विधान परिषद) को बनाना या समाप्त करना (अनु. 69 )
  3. संसद के कोरम के सम्बन्ध में संशोधन [(अनुच्छेद 100 (3)]
  4. भारतीय नागरिकता के सम्बन्ध में संशोधन (अनुच्छेद 5)।
  5. देश के आम चुनाव के सम्बन्ध में (अनु. 327 )
  6. केन्द्र – शासित क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में (अनु. 240 )
  7. अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के क्षेत्रों के सम्बन्ध में।

प्रश्न 2.
42वें संविधान संशोधन को सर्वाधिक विवादास्पद संशोधन क्यों माना गया?
उत्तर:
42वां संविधान संशोधन सर्वाधिक विवादास्पद संशोधन के रूप में 1976 का 42वां संविधान संशोधन सर्वाधिक विवादास्पद इसलिए माना गया क्योंकि

  1. यह आपातकाल के दौरान किया गया था।
  2. अधिकांश विपक्षी दलों के नेता उस समय जेल में थे।
  3. इसमें विवादास्पद अनुच्छेद निहित थे।
  4. इस अकेले संविधान संशोधन के द्वारा संविधान का काफी बड़ा भाग संशोधित किया गया था।
  5. इनके अधिकांश प्रावधानों को 43वें तथा 44वें संविधान संशोधनों द्वारा आपातकाल के बाद निरस्त कर दिया

प्रश्न 3.
2000-2003 की छोटी अवधि में इतने अधिक संशोधन क्यों हुए थे?
उत्तर:
2000-2003 की छोटी अवधि के भीतर लगभग 10 संविधान संशोधन किये गये। इन संशोधनों को पारित किये जाने का मुख्य कारण ये सभी गैर – विवादास्पद प्रकृति के थे तथा लगभग सभी राजनैतिक दलों के बीच इनके प्रति आम सहमति थी।

प्रश्न 4.
न्यायालय के किस निर्णय ने संविधान की व्याख्या में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की?
उत्तर:
केशवानंद भारती विवाद (1973) में न्यायालय ने संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त को प्रतिस्थापित किया और 1980 में मिनर्वा मिल प्रकरण में न्यायालय ने पुनः इसे दोहराया। इस निर्णय ने संविधान की व्याख्या में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राजनीतिक दलों, राजनेताओं, सरकार तथा संसद ने मूल संरचना के इस विचार को स्वीकृति प्रदान की और यह प्रतिस्थापित हुआ कि संसद संविधान की मूल संरचना में संशोधन नहीं कर सकती।

प्रश्न 5.
संविधान के मूल संरचना के सिद्धान्त ने संविधान के विकास में क्या सहयोग दिया?
उत्तर:
संविधान के मूल संरचना के सिद्धान्त ने संविधान के विकास में निम्नलिखित सहयोग दिया

  1. इस सिद्धान्त के द्वारा संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्तियों की सीमाएँ निर्धारित की गईं।
  2. यह निर्धारित सीमाओं के अन्दर संविधान के किसी या सभी भागों के सम्पूर्ण संशोधन की अनुमति देता है।
  3. संविधान की मूल संरचना या उसके बुनियादी तत्व का उल्लंघन करने वाले संशोधन को न्यायपालिका असंवैधानिक घोषित कर निरस्त कर सकती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 6.
संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त का महत्व – संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त का महत्व निम्नलिखित है।

  1. संरचना का सिद्धान्त स्वयं में ही एक जीवंत संविधान का उदाहरण है। यह एक ऐसा विचार है जो न्यायिक व्याख्याओं से जन्मा है, इसका संविधान में कोई उल्लेख नहीं मिलता।
  2. विगत तीन दशकों के दौरान इसको व्यापक स्वीकृति मिली है।
  3. इस सिद्धान्त से संविधान की कठोरता और लचीलेपन का संतुलन और मजबूत हुआ

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान कठोर और लचीले संविधान का मिश्रण है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण है।
भारतीय संविधान न तो कठोर संविधान है और न ही लचीला संविधान है, बल्कि इसमें लचीले और कठोर दोनों प्रकार के संविधानों की विशेषताएँ पायी जाती हैं। यथा-

  1. संघीय दृष्टि से संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधान आसानी से संशोधित नहीं किये जा सकते। इन अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद के प्रत्येक सदन से कुल सदस्य संख्या से कम से कम आधे सदस्यों के बहुमत तथा मतदान करने वाले कुछ सदस्यों के 2/3 बहुमत से संशोधन विधेयक पारित होना आवश्यक है और इसके बाद आधे राज्यों की विधायिकाओं से साधारण बहुमत की स्वीकृति होना आवश्यक है।
  2. संविधान के कुछ अनुच्छेद संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत ( प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम आधे बहुमत से तथा मतदान करने वाले कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत) से संशोधित किये जा सकते हैं।
  3. संविधान के कुछ अनुच्छेद संसद के दोनों सदनों के पृथक-पृथक साधारण बहुमत से संशोधित किये जा सकते हैं।
  4. 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती विवाद में संविधान की मूल संरचना का सिद्धान्त प्रतिपादित करते हुए यह प्रतिस्थापित कर दिया है कि संसद संविधान की एक मूल आत्मा में संशोधन नहीं कर सकती।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्रथम प्रकार के संशोधन कठोर संविधान की श्रेणी में आते हैं लेकिन आधे राज्यों को स्वीकृति को ही आवश्यक बताकर संविधान निर्माताओं ने पुनः इसको लचीला स्वरूप दिया है। तीसरे प्रकार के अनुच्छेदों में संशोधन साधारण बहुमत से हो सकते हैं। यह संविधान की लचीलेपन की विशेषता को दर्शाती है और दूसरे प्रकार के संशोधन की प्रक्रिया न बहुत अधिक कठोर है और न ही लचीली। अतः स्पष्ट है कि भारतीय संविधान कठोर और लचीले संविधान का मिश्रण है।

प्रश्न 8.
भारत में एक ही संविधान इतने वर्षों से किन कारणों से सफलतापूर्वक काम करता रह सका है?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से लागू किया गया। तब से लेकर आज तक यह लगातार सफलतापूर्वक काम कर रहा है। इसकी सफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. देश की परिस्थितियों के अनुकूल संविधान: हमारे संविधान निर्माताओं से हमें एक मजबूत संविधान विरासत में मिला है। इस संविधान की बनावट हमारे देश की परिस्थितियों के बेहद अनुकूल है।
  2. भावी प्रश्नों का संविधान में समाधान निहित: हमारे संविधान निर्माता अत्यन्त दूरदर्शी थे। उन्होंने भविष्य के कई प्रश्नों का समाधान उसी समय कर लिया था।
  3. परिस्थितियों के अनुकूल संविधान में संशोधन करने की सुविधा: हमारे संविधान में इस बात को भी स्वीकार करके चला गया है कि समय की जरूरत को देखते हुए इसके अनुकूल संविधान में संशोधन किये जा सकते हैं।
  4. संविधान के अमल में परिपक्वता और लचीलेपन का परिचय: संविधान के व्यावहारिक कामकाज में इस बात की पर्याप्त गुंजाइश रहती है कि किसी संवैधानिक प्रावधान की एक से ज्यादा व्याख्याएँ हो सकें। अदालती फैसले और राजनीतिक व्यवहार बरताव दोनों ने हमारे संविधान के अमल में अपनी परिपक्वता और लचीलेपन का परिचय दिया है। इन्हीं कारणों से हमारा संविधान इतने वर्षों से आज तक सफलतापूर्वक कार्य करता रहा है और एक जीवंत दस्तावेज के रूप में विकसित हो सका है।

प्रश्न 9.
क्या संविधान इतना पवित्र दस्तावेज है कि उसमें कोई संशोधन नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
1. संविधान एक पवित्र दस्तावेज;
संविधान एक पवित्र दस्तावेज होता है; इसलिए इसे इतना लचीला नहीं बनाया जाना चाहिए कि उसमें सामान्य कानून की तरह जब चाहे परिवर्तन कर दिया जाये। किसी भी संविधान को भविष्य में पैदा होने वाली चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करने में भी सक्षम होना चाहिए। इस अर्थ में संविधान न केवल समकालीन परिस्थितियों और प्रश्नों से जुड़ा होता है बल्कि उसके कई सारे तत्व स्थायी महत्व होते हैं। इसीलिए संविधान को एक पवित्र दस्तावेज माना जाता है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने भी इसी दृष्टि से संविधान को सामान्य कानून से ऊँचा दर्जा दिया ताकि आने वाली पीढ़ी उसे सम्मान की दृष्टि से देखें। इस अर्थ में भारतीय संविधान एक पवित्र दस्तावेज है।

2. संविधान जड़ या अपरिवर्तनीय दस्तावेज नहीं: संविधान कोई जड़ और अपरिवर्तनीय दस्तावेज भी नहीं होता। संविधान की रचना मनुष्य ही करते हैं और इस नाते उसमें हमेशा संशोधन, बदलाव और पुनर्विचार की गुंजाइश रहती है। अत: संविधान एक पवित्र दस्तावेज है, लेकिन व्यापक सोच-विचार व सहमति से परिवर्तित आवश्यकताओं के अनुसार इसमें परिवर्तन किये जा सकते हैं।

3. पवित्रता और परिवर्तनीयता के मध्य एक संतुलन; भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाते समय उपर्युक्त दोनों बातों का ध्यान रखा है अर्थात् उसे पवित्र दस्तावेज मानने के साथ-साथ इतना लचीला भी बनाया गया है कि उसमें समय की आवश्यकता के अनुरूप यथोचित बदलाव किये जा सकें। दूसरे शब्दों में हमारा संविधान एक पवित्र दस्तावेज है, इसके कई सारे तत्व स्थायी महत्व के हैं, जिन्हें ‘संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त’ के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित किया है तथा संविधान के सभी प्रावधान काफी गहन विचार के साथ रखे गये हैं जिनमें समकालीन परिस्थितियों एवं प्रश्नों तथा भविष्य की चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत किया गया है। इसलिए इन्हें सामान्य कानून की तरह आसानी से नहीं बदला जा सकता; लेकिन यह कोई जड़ और अपरिवर्तनीय दस्तावेज भी नहीं है। इसमें किसी स्थिति के बारे में अंतिम निर्णय देने से बचा गया है और एक विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से आवश्यकतानुसार इसमें परिवर्तन (संशोधन) भी किये जा सकते हैं।

प्रश्न 10.
विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की प्रक्रियाओं में निहित सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए। संविधानों में संशोधन की प्रक्रियाओं में निहित सिद्धान्त
उत्तर:
विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं में दो सिद्धान्त ज्यादा अहम भूमिका अदा करते हैं। यथा

1. विशेष बहुमत का सिद्धान्त:
विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की प्रक्रियाओं के पीछे एक प्रमुख सिद्धान्त है। विशेष बहुमत का सिद्धान्त। इसके अन्तर्गत संविधान संशोधन के लिए विधायिका को सामान्य बहुमत से अधिक किसी विशिष्ट बहुमत की आवश्यकता होती है । अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, रूस तथा भारत आदि के संविधानों में इस सिद्धान्त का समावेश किया गया है। अमेरिका में दो-तिहाई बहुमत का सिद्धान्त लागू है; दक्षिण अफ्रीका और रूस में तीन-चौथाई बहुमत की आवश्यकता होती है तथा भारत में भी 2/3 बहुमत के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

2. जनता की भागीदारी का सिद्धान्त; संविधान संशोधन की प्रक्रिया के पीछे दूसरा प्रमुख सिद्धान्त है- जनता की भागीदारी का सिद्धान्त अर्थात् संविधान में संशोधन में जनता का सम्मिलित होना। यह सिद्धान्त कई आधुनिक सिद्धान्तों में अपनाया गया है। स्विट्जरलैण्ड में तो जनता को संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने तक का अधिकार है। रूस तथा इटली में जनता को संविधान में संशोधन करने या संशोधन के अनुमोदन का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 11.
संविधान संशोधन की प्रक्रिया में भारत में किस प्रकार के विशेष बहुमत को अपनाया गया है?
अथवा
विशेष बहुमत से क्या आशय है? भारतीय संविधान में संविधान संशोधन हेतु किस प्रकार के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
विशेष बहुमत से आशय:सामान्यतः विधायिका में किसी प्रस्ताव या विधेयक को पारित करने के लिए सदन में उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है; लेकिन जब संविधान संशोधन विधेयक को इस साधारण बहुमत से पारित नहीं किया जा सकता और इसे पारित करने के लिए साधारण बहुमत से अधिक, जैसे- 2/3 बहुमत या 3/4 बहुमत की आवश्यकता होती है, तो इसे विशेष बहुमत कहा जाता है। भारत में संविधान संशोधन के विशेष बहुमत का रूप – भारत में संविधान में संशोधन करने के लिए दो प्रकार के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। यथा

  1. सदन के कुल सदस्यों की कम से कम आधी संख्या: प्रथमतः, संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या की कम से कम आधी होनी चाहिए।
  2. मतदान करने वाले कुल सदस्यों का 2/3 बहुमत: दूसरे, संशोधन का समर्थन करने वाले सदस्यों की संख्या मतदान में भाग लेने वाले सभी सदस्यों की दो-तिहाई होनी चाहिए। संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों में स्वतंत्र रूप से पारित कराने की आवश्यकता होती है। इसके लिए संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान नहीं है। कोई भी संशोधन विधेयक विशेष बहुमत के बिना पारित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 12.
भारत में संविधान संशोधन प्रक्रिया में राज्यों की भूमिका को इसके औचित्य के साथ स्पष्ट कीजिये।
अथवा
भारत में संविधान संशोधन प्रक्रिया में राज्यों की भूमिका को स्पष्ट कीजिये तथा यह बताइये कि राज्यों को सीमित भूमिका क्यों दी गई है?
उत्तर:
संशोधन की प्रक्रिया में राज्यों द्वारा अनुमोदन: संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद का विशेष बहुमत पर्याप्त नहीं। शक्तियों के वितरण से संबंधित, जनप्रतिनिधित्व से संबंधित तथा मौलिक अधिकारों से संबंधित अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए राज्यों से परामर्श करना और उनकी सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। संविधान में राज्यों की शक्तियों को सुनिश्चित करने के लिए यह व्यवस्था की गई है कि जब तक आधे राज्यों की विधानपालिकाएँ किसी संशोधन विधेयक को पारित नहीं कर देतीं तब तक वह संशोधन प्रभावी नहीं होगा।

इस अर्थ में यह कहा जा सकता है कि संविधान के कुछ हिस्सों के बारे में संशोधन के लिए राज्यों से एक व्यापक सहमति की अपेक्षा की गई है। इसीलिए राज्यों को संशोधन की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार दिया गया है। भारत में संविधान संशोधन की प्रक्रिया में राज्यों को सीमित भूमिका दी गई है। सीमित भूमिका देने का कारण यह है कि राज्यों से संबंधित विषयों, जन-प्रतिनिधित्व और मूल अधिकारों से संबंधित विषयों में संशोधन करने के लिए राज्यों से भी परामर्श लिया जाये। लेकिन संशोधन प्रक्रिया अधिक जटिल न हो जाये, यह लचीली बनी रही, इसलिए संशोधन के लिए केवल आधे राज्यों के अनुमोदन और राज्य विधानपालिकाओं के साधारण बहुमत की आवश्यकता है।

इस प्रकार राज्यों को सीमित भूमिका देकर संशोधन करने की प्रक्रिया को अव्यावहारिक होने से बचाया गया है। यदि सभी राज्यों के अनुमोदन की बात रखी जाती तो यह प्रक्रिया इतनी कठोर हो जाती कि एक राज्य ही संशोधन विधेयक को लागू करने से रोक सकता था और यदि आधे राज्यों को 2/3 बहुमत की शर्त लागू की जाती तो भी व्यवहार में ऐसा होना संभव नहीं हो पाता। इसलिए संशोधन प्रक्रिया को कठोर होने के साथ-साथ व्यावहारिक बनाने के लिए राज्यों को संशोधन प्रक्रिया में सीमित भूमिका ही दी गई है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक संविधान में संशोधन की क्या आवश्यकता है? क्या देश में कोई स्थायी (अपरिवर्तनीय) संविधान नहीं हो सकता?
उत्तर:
संविधान में संशोधन की आवश्यकता: संविधान कोई अपरिवर्तनीय दस्तावेज नहीं है। इसे समाज की आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होना पड़ता है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। प्रत्येक समाज की परिस्थितियों में समय के साथ परिवर्तन आता है । कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसकी आवश्यकताएँ हमेशा के लिए समान रहती हों और जो समय के साथ परिवर्तित नहीं होता है या जिसमें समय के परिवर्तन के साथ नई आवश्यकताएँ पैदा नहीं होती हों। इस प्रकार संविधान, जो कि समाज के शासन संचालन के नियमों का दस्तावेज है, को भी समाज की आवश्यकताओं तथा परिवर्तित परिस्थितियों के साथ परिवर्तित होना पड़ता है।

अतः एक संविधान में समाज में आई नवीन आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के संविधान में अब तक 27 संशोधन किये जा चुके हैं। फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद फ्रांस में अब तक पांच गणतंत्रीय संविधान निर्मित हो चुके हैं।

पूर्व – सोवियत संघ में 74 वर्ष में अनेक संविधान बने, जैसे – 1918 का संविधान, 1924 का संविधान, 1966 और 1977 का संविधान और फिर सोवियत संघ के बिखराव के बाद रूस का नवीन संविधान बना है। 1949 की साम्यवादी क्रांति के बाद चीन में अनेक संविधान बने, जैसे- 1949, 1954, 1975 और 1982 के संविधान । भारत के संविधान में भी अब तक 101 संशोधन किये जा चुके हैं। अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक देश में संविधान में परिवर्तन करने या संशोधन करने की आवश्यकता होती है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

1. भावी परिस्थितियों का आंकलन संभव नहीं:
संविधान निर्माता सरकार के ढांचे को निर्धारित करते समय समाज में उस समय की परिस्थितियों को ही मुख्य रूप से अपने आधार रूप में लेते हैं। वे उन भूतकालीन परिस्थितियों पर भी विचार कर सकते हैं जो भूतकाल में घटित हुई थीं। वे दूसरे देशों की तत्कालीन तथा भूतकालीन परिस्थितियों को ध्यान में रख सकते हैं। लेकिन वे भविष्य में आने वाली परिस्थितियों का पूर्ण आकलन नहीं कर सकते।

2. भावी परिस्थितियों व समस्याओं का समाधान संभव नही: संविधान निर्माता अपनी दूरदर्शिता से संविधान में भविष्य में आने वाली कुछ या अधिक समस्याओं का समाधान अपने संविधान में कर सकते हैं, लेकिन वे भविष्य की सभी परिस्थितियों, सभी समस्याओं तथा घटनाओं का आकलन व समाधान नहीं कर सकते।

3. भविष्य के लिए आदर्श संरचना का निर्माण संभव नहीं: संविधान निर्माता वर्तमान की सरकार की आदर्श संरचना प्रस्तुत कर सकते हैं लेकिन वे भविष्य के लिए भी सरकार की आदर्श संरचना का निर्माण नहीं कर सकते।

4. तीव्र सामाजिक व आर्थिक विकास की आवश्यकता: तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास तथा सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए समाज में नवीन दशाओं को निर्मित करने हेतु संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है। संविधान अपरिवर्तनीय नहीं हो सकते – उपर्युक्त आधारों पर यह कहा जा सकता है कि किसी भी देश का कोई भी संविधान अपरिवर्तनीय प्रकृति का नहीं हो सकता। संविधान सही ढंग से कार्य करता रहे इसके लिए आवश्यक है कि

उस देश में परिस्थितिगत बदलाव, सामाजिक परिवर्तनों और राजनीतिक उठापटक के अनुरूप उसमें आवश्यक संशोधन या परिवर्तन होता रहे। यही कारण है कि परिस्थितिगत बदलाव, सामाजिक परिवर्तनों और राजनीतिक उठापटक के चलते फ्रांस, पूर्व सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन ने अपने संविधानों को अनेक बार बदला है तथा भारत और अमेरिका के संविधानों में अनेक संशोधन किये गये हैं।

चूंकि संविधान की रचना मनुष्य ही करते हैं और वे तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों तथा भूतकालीन सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप संविधान की रचना करते हैं, लेकिन वे भावी परिस्थितियों व घटनाओं व सामाजिक परिवर्तनों का पूर्ण अंदाज नहीं लगा सकते । इस नाते उसमें हमेशा संशोधन, बदलाव और पुनर्विचार की गुंजाइश रहती है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की संशोधन की प्रक्रिया का विवेचन कीजिए।
अथवा
“भारतीय संविधान कठोरता और लचीलेपन के गुणों का मिश्रण है।” स्पष्ट कीजिये।
अथवा
भारतीय संविधान में संशोधन के विभिन्न तरीकों को बताइये।
उत्तर:
भारतीय संविधान में संशोधन की विधियाँ: भारतीय संविधान में संशोधन की निम्नलिखित विधियाँ दी गई हैं
1. साधारण विधि: संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद हैं जिनमें संसद सामान्य कानून बनाकर संशोधन कर सकती है। ऐसे मामलों में कोई विशेष प्रक्रिया अपनाने की जरूरत नहीं होती। इस प्रकार के संशोधन और सामान्य कानून में कोई अन्तर नहीं होता। संसद इन अनुच्छेदों में अनुच्छेद 368 में वर्णित प्रक्रिया को अपनाए बिना ही संशोधन कर सकती है। इन अनुच्छेदों में संशोधन का प्रस्ताव किसी भी सदन में रखा जा सकता है।

जब दोनों सदन उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत से प्रस्ताव पास कर देते हैं, तब वह राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर संशोधन प्रस्ताव पारित हो जाता है। इस प्रणाली के द्वारा जिन अनुच्छेदों में संशोधन किया जा सकता है, उनमें से कुछ अनुच्छेद निम्न प्रकार से हैं-

  1. अनुच्छेद 2, 3 तथा 4 – नये राज्यों का निर्माण करना, किसी राज्य की सीमाओं को घटाना या बढ़ाना, किसी राज्य की सीमा में परिवर्तन करना या किसी राज्य का नाम बदलना।
  2. अनुच्छेद 169: राज्यों के द्वितीय सदन ( विधान परिषद) को बनाना या समाप्त करना।
  3. अनुच्छेद 100 (3): संसद के कोरम के सम्बन्ध में संशोधन।
  4. अनुच्छेद 5: भारतीय नागरिकता के सम्बन्ध में संशोधन।
  5. अनुच्छेद 240: केन्द्र शासित क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में संशोधन।

भारतीय संविधान में संशोधन करने की उपर्युक्त प्रक्रिया सरलतम प्रक्रिया है। इसलिए यह कहा जाता है कि भारतीय संविधान में लचीलेपन का गुण विद्यमान है।

2. अनुच्छेद 368 के अनुसार संशोधन की विधियाँ – संविधान के शेष अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए अनुच्छेद 368 में प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 368 में कहा गया है कि “संसद अपनी संवैधानिक शक्ति के द्वारा और इस अनुच्छेद में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार संविधान में नए उपबन्ध कर सकती है, पहले से विद्यमान उपबंधों को बदल या हटा सकती है। इस अनुच्छेद में ‘संशोधन करने के दो तरीके दिये गए हैं जो संविधान के अलग-अलग अनुच्छेदों पर लागू हैं। यथा

(i) संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन- संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संसद अपने विशेष बहुमत द्वारा संशोधन कर सकती है। संविधान में इन अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए दो प्रकार के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।

(क) सबसे पहले, संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या की कम से कम आधी होनी चाहिए।

(ख) दूसरे, संशोधन का समर्थन करने वाले सदस्यों की संख्या मतदान में भाग लेने वाले सभी सदस्यों की कम से कम दो-तिहाई होनी चाहिए।

संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों में स्वतंत्र रूप से पारित करने की आवश्यकता है। अनेक बार लोकसभा द्वारा पारित संशोधन विधेयक को राज्यसभा द्वारा निरस्त किया जा चुका। हमारे संविधान में पहले (साधारण विधि से और तीसरे वर्ग (संसद के विशेष बहुमत के साथ राज्यों की स्वीकृति आवश्यक) में उल्लिखित अनुच्छेदों को छोड़कर अन्य सभी अनुच्छेद इसी विधि से किये जाते हैं।

(ii) राज्यों का समर्थन प्राप्त करके संसद द्वारा विशेष बहुमत द्वारा संशोधन- संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद का विशेष बहुमत पर्याप्त नहीं होता। राज्यों और केन्द्र सरकारों के बीच शक्तियों के वितरण से संबंधित या राष्ट्रपति का निर्वाचन व निर्वाचन पद्धति, संघीय न्यायपालिका तथा राज्यों में उच्च न्यायालय, संघ तथा राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व, स्वयं संशोधन प्रक्रिया आदि से संबंधित अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए इस विधि को अपनाया जाता है।

इस विधि में संशोधन का विधेयक संसद के दोनों सदनों तथा पृथक्-पृथक् रूप से उपस्थित सदस्यों के 2/3 बहुमत तथा कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत द्वारा पारित करने के पश्चात्, राज्यों की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है और कम से म आधे राज्यों के विधानमण्डलों से स्वीकृत होने के पश्चात् यह राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद संशोधन विधेयक पारित हो जाता है। यह विधि स्पष्ट रूप से जटिल है। इस दृष्टि से यह कहा जाता है कि भारतीय संविधान में कठोरता के गुण विद्यमान हैं।

3. संशोधन प्रक्रिया से संबंधित अन्य विशेषताएँ – भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया से संबंधित अन्य प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
(i) संशोधन को प्रस्तावित करना:
भारतीय संविधान में संशोधन विधेयक को प्रस्तुत करने का अधिकार केवल संसद को है। संसद के किसी भी सदन में इसे प्रस्तुत किया जा सकता है। राज्यों को संशोधन का प्रस्ताव लाने का अधिकार नहीं दिया गया है।

(ii) अन्य बाह्य एजेन्सी की संशोधन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं:
संसद के विशेष बहुमत के अलावा किसी बाहरी एजेन्सी, जैसे संविधान आयोग या किसी अन्य निकाय की संविधान की संशोधन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है।

(iii) जनमत संग्रह की आवश्यकता नहीं:
संसद या कुछ मामलों में राज्य विधान पालिकाओं में संशोधन पारित होने के पश्चात् इस संशोधन को पुष्ट करने के लिए किसी प्रकार के जनमत संग्रह की आवश्यकता नहीं है।

(iv) राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदन:
संशोधन विधेयक को भी अन्य सामान्य विधेयकों की तरह राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा जाता है परन्तु इस मामले में राष्ट्रपति को पुनर्विचार का अधिकार नहीं है।

(v) संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान नहीं:
भारत में संविधान संशोधन की प्रक्रिया में संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पृथक्-पृथक् पारित होना अनिवार्य है। यदि एक सदन उसे पारित नहीं करता है तो सामान्य विधेयक की तरह इसमें संसद के संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान नहीं किया गया है। यदि एक सदन किसी संशोधन विधेयक को अस्वीकृत कर देता है तो वह विधेयक निरस्त हो जायेगा।

(vi) संशोधन की शक्ति पर सीमाएँ:
सन् 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती विवाद में यह अभिनिर्धारित किया है कि संसद संविधान की मूल संरचना को संशोधित नहीं कर सकती। इस अवधारणा पर अब सर्वसम्मति स्थापित हो चुकी है। इस प्रकार संसद संविधान के सभी अनुच्छेदों में संशोधन कर सकती है लेकिन संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान का मूल ढांचा नष्ट नहीं किया जा सकता। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान में कठोर और लचीले संविधान  दोनों प्रकार के गुणों का सम्मिश्रण है।

साधारण विधि द्वारा संशोधन की प्रक्रिया तथा आधे राज्यों द्वारा सामान्य बहुमत से संशोधन विधेयक को पारित करने की स्थिति दोनों ही लचीले संविधान के गुणों से युक्त हैं क्योंकि इनमें संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए साधारण बहुमत का प्रावधान किया गया है। दूसरी तरफ संसद के विशेष बहुमत की प्रक्रिया संविधान के कठोरता के गुण को स्पष्ट करती है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में बहुत अधिक संशोधन क्यों किये गये हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में बहुत अधिक संशोधन क्यों किए गए हैं? 26 जनवरी, 2010 को हमारे संविधान को लागू हुए 68 वर्ष पूरे हो गए हैं। अब तक इसमें 101 संशोधन किये जा चुके हैं। संशोधन प्रक्रिया की कठोरता को देखते हुए संशोधनों की यह संख्या काफी बड़ी मानी जायेगी। संशोधनों की बड़ी संख्या दो बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है कि

  1. भारतीय संविधान बहुत लचीला है, जिसके कारण इतने सारे संशोधन आसानी से संभव हो पाये।
  2. हमारे संविधान निर्माता दूरदर्शी नहीं थे और वे निकट भविष्य की आवश्यकताओं का आकलन नहीं कर सके।

दूसरी तरफ अमेरिका का संविधान है जो 1789 में प्रभाव में आया और लगभग 220 वर्षों में इसमें केवल 27 ही संशोधन हुए हैं और उनमें भी अधिकांश संशोधन अधिकारों के विधेयक से संबंधित हैं जो संविधान बनने के तुरन्त बाद संविधान में शामिल किये गए। लेकिन भारतीय संविधान में अधिक संशोधन होने के वास्तविक कारण उक्त दोनों स्थितियाँ नहीं हैं क्योंकि भारतीय संविधान न तो अत्यधिक लचीला है और न ही भारतीय संविधान निर्माता अदूरदर्शी थे। इसके साथ ही यह भी सत्य नहीं है कि अधिकांश संविधान संशोधन तभी प्रभाव में आए जब कांग्रेस का केन्द्र तथा राज्यों में एकदलीय प्रभुत्व था। संविधान के संशोधनों की एक संक्षिप्त रूपरेखा इस प्रकार है।
JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़ 1

कांग्रेस दल का प्रभुत्व काल 1976 तक माना जा सकता है। इस प्रकार 1951 से 1970 के 20 वर्ष के काल में 23 संशोधन किये गये। दूसरी तरफ 1971 से 1990 तक कांग्रेस के वर्चस्व में कमी आ गई और वह सबसे बड़े दल के रूप में रह गयी। इस अवधि में 44 संशोधन हुए हैं तथा 1991 से 2009 के काल में गठबंधन सरकारों का युग रहा है लेकिन इस अवधि में भी 26 संशोधन हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में संशोधनों के पीछे केवल राजनीतिक सोच ही प्रमुख नहीं रही है। इनके पीछे सत्ताधारी दल की राजनीतिक सोच का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा था बल्कि ये संशोधन समय की जरूरतों के अनुसार किये गये थे। न तो इसके पीछे मूल संविधान की कमजोरियां काम कर रही थीं और न ही संविधान का लचीलापन।

संविधान संशोधनों की विषय वस्तु व प्रकृति: संविधान संशोधनों की प्रकृति इस प्रश्न का सन्तोषजनक उत्तर दे सकती है कि संविधान में इतने अधिक संशोधन क्यों हुए। संविधान संशोधनों की प्रकृति को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।
1. तकनीकी या प्रशासनिक प्रकृति के संशोधन:
संविधान संशोधनों में बहुत से संशोधन ऐसे हैं जिनकी प्रकृति तकनीकी या प्रशासनिक है। ये संविधान के मूल उपबन्धों को स्पष्ट बनाने, उनकी व्याख्या करने तथा छिट-पुट संशोधन से संबंधित हैं। उन्हें केवल सिर्फ तकनीकी भाषा में संशोधन कहा जा सकता है। वास्तव में वे इन उपबन्धों में कोई विशेष बदलाव नहीं करते। उदाहरण के लिए, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करना; सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाने सम्बन्धी संशोधन; विधायिकाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण सम्बन्धी उपबन्धों में संशोधन, जो प्रत्येक दस वर्ष बाद आरक्षण की अवधि को आगे बढ़ाने के लिए किये गये हैं। इन संशोधनों से मूल संशोधनों में कोई अन्तर नहीं आया है। इसीलिए इन्हें तकनीकी संशोधन कहा जा सकता है।

2. राजनीतिक आम सहमति के माध्यम से संशोधन:
बहुत से संविधान संशोधन ऐसे हैं जिन्हें राजनीतिक दलों की आपसी सहमति का परिणाम माना जा सकता है। ये संशोधन तत्कालीन राजनीतिक दर्शन और समाज की आकांक्षाओं को समाहित करने के लिए किए गए थे। 1984 के बाद गठबंधन सरकारों के कार्यकालों में ये संशोधन किये गए। ये संशोधन गठबंधन सरकारों के कार्यकाल में तभी हो सकते थे जब सभी दलों में उनके पीछे व्यापक सहमति हो। ये संविधान संशोधन थे दल-बदल विरोधी कानून ( 52वां संशोधन), मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करना, 73वां पंचायती राज संशोधन और 74वां शहरी स्थानीय स्वशासन (नगरपालिका) संशोधन, नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ाने सम्बन्धी संशोधन आदि आम सहमति के कारण आसानी से पारित हो सके।

3. संविधान की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं के कारण संशोधन:
संविधान की व्याख्या को लेकर न्यायपालिका और संसद के बीच अक्सर मतभेद होते रहे हैं। संविधान के अनेक संशोधन इन्हीं मतभेदों की उपज के रूप में देखे जा सकते हैं। 1970 से 1975 के दौरान ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हुईं और इस काल में संसद ने न्यायपालिका की प्रतिकूल व्याख्या को निरस्त करते हुए बार- बार संशोधन किये। मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धान्तों को लेकर, सम्पत्ति के मूल अधिकार को लेकर तथा संविधान में संशोधन के अधिकार की सीमा को लेकर संसद और न्यायपालिका में व्याख्या सम्बन्धी मतभेद उभरे हैं और उनके निराकरण हेतु संसद ने संशोधन किये हैं।

4. विवादास्पद संशोधन:
कुछ संवैधानिक संशोधन विवादास्पद प्रकृति के रहे हैं। ऐसे अधिकांश संशोधन 1975 से लेकर 1980 के बीच हुए। इस संबंध में 38वां, 39वां और 42वां संशोधन विशेष रूप से विवादास्पद रहे। ये संशोधन आपातकाल में किए गए थे। आपातकाल के बाद हुए चुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस दल की पराजय हुई और जनता पार्टी सत्ता में आई। उसने 43वें तथा 44वें संविधान संशोधनों द्वारा उक्त विवादास्पद संशोधनों के विवादास्पद अंशों को हटा दिया। इन संशोधनों के माध्यम से संवैधानिक सन्तुलन को पुनः लागू किया गया। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारत के संविधान में अधिक संशोधन होने के निम्न कारण रहे हैं।

  1. काफी संशोधन तकनीकी प्रकृति के थे, जिनसे मूल प्रावधानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था।
  2. कुछ संशोधन परिवर्तित राजनीतिक परिस्थितियों के कारण हुए थे।
  3. कुछ परिवर्तन संसद और न्यायालय के भिन्न-भिन्न निर्वचन के कारण उत्पन्न समस्या को दूर करने के लए किये गये थे।
  4. कुछ संशोधन अवश्य विवादास्पद प्रकृति के थे जिनमें सत्तारूढ़ दल ने संविधान संशोधन के माध्यम से सत्ता के दुरुपयोग का प्रयास किया था, लेकिन बाद में उन्हें अगले संशोधनों द्वारा निरस्त कर दिया गया।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान – एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान के विकास में योगदान देने वाले कारकों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारतीय संविधान का विकास: भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। तब से लेकर दिसम्बर 2017 तक इसमें 101 संविधान संशोधन किये जा चुके हैं। इस अवधि में आपातकाल के दौरान संविधान को संकट के दौर से गुजरना पड़ा है, विशेषकर 42वें संविधान संशोधन 1976 के रूप में। इसके अन्तर्गत संविधान में व्यापक परिवर्तन किया गया लेकिन उनमें से अधिकांश संशोधनों को 1978 के 44वें संविधान संशोधन के द्वारा निरस्त कर पुनः संतुलन की स्थापना कर दी गई। इस प्रकार भारतीय संविधान अनेक संशोधनों को समेटते हुए आज तक कार्यरत है तथा समय-समय पर संशोधनों व न्यायिक व्याख्याओं द्वारा इसका विकास होता रहा है। भारतीय संविधान के विकास में उत्तरदायी कारक – मुख्य रूप से निम्नलिखित दो कारकों ने भारतीय संविधान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

1. संविधान संशोधन: अनेक संवैधानिक संशोधनों ने अनेक उपबन्धों के क्षेत्र का विस्तार किया है और संविधान को परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप बनाया है। संक्षेप में ये संशोधन निम्नलिखित हैं।

  1. सामाजिक-आर्थिक न्याय की स्थापना हेतु नीति निर्देशक सिद्धान्तों को लागू करने की प्रक्रिया में सम्पत्ति का मूल अधिकार सरकार के कार्यों से प्रारम्भ से ही मुख्य रोड़ा बन गया था। इस अधिकार को सीमित करने के लिए अनेक संशोधन किये गये और अन्त में 44वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से निकाल दिया गया।
  2. मूल संविधान में पदोन्नतियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। इसे एक संविधान संशोधन द्वारा संविधान का अंग बनाया गया। इसी प्रकार अन्य पिछड़े वर्ग को भी आरक्षण संविधान संशोधन के द्वारा मान्य किया गया है।
  3. 42वें संविधान संशोधन में संविधान की प्रस्तावना में अनेक शब्दों का समावेश किया गया है, जैसे- समाजवादी, पंथ निरपेक्ष राज्य।
  4. 62वें सविधान संशोधन द्वारा सन् 1988 में मतदान की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
  5. 2003 में 91वें संविधान संशोधन द्वारा मन्त्रिमण्डल के विस्तार पर सीमा लगायी गयी है। इसके अनुसार मन्त्रिमण्डल का आकार लोकसभा की कुल सदस्य संख्या या राज्यों की विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है। इससे एक तरफ खर्चे को कम किया गया है तो दूसरी तरफ दल-बदल को हतोत्साहित किया गया है।
  6. संविधान संशोधन के द्वारा शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकारों में सम्मिलित किया गया है।
  7. 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों को संविधान का भाग बनाया गया उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि संविधान संशोधनों ने भारत के संविधान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

2. न्यायिक व्याख्याएं: भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने अपने समक्ष आए अनेक विवादों के निर्णयों में संविधान के अनेक अनुच्छेदों की न्यायिक व्याख्याएँ कर संविधान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यथा-

  1. न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति न्यायिक व्याख्या पर आधारित है। इसने न्यायपालिका को बहुत शक्तिशाली बना दिया है और विधायिका तथा कार्यपालिका के कार्यों पर इसने न्यायपालिका को वीटो पॉवर दे दी है। इसने सरकार के तीनों अंगों के मध्य शक्ति सन्तुलन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है।
  2. सर्वोच्च न्यायालय ने 1973 में केशवानंद भारती विवाद में मूल संरचना के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है तथा संसद की संविधान संशोधन की शक्ति की सीमा निर्धारित कर दी है। इसने यह प्रस्थापित किया है कि संसद संविधान के प्रत्येक भाग में संशोधन कर सकती है लेकिन इसकी मूल संरचना को समाप्त नहीं कर सकती। इसके साथ ही न्यायपालिका ने स्पष्ट शब्दों में संविधान की मूल संरचना को परिभाषित नहीं किया है। उसने यह शक्ति स्वयं अपने में रख ली है कि वह समय-समय पर संविधान की मूल संरचना को परिभाषित करती रहेगी।
  3. न्यायपालिका ने ही ‘अन्य पिछड़े वर्गों’ के आरक्षण में ‘क्रीमीलेयर के सिद्धान्त’ का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि जो व्यक्ति अन्य पिछड़े वर्ग में क्रीमी लेयर के अन्तर्गत आते हैं, वे आरक्षण के पात्र नहीं हैं। इसे स्वीकार कर लिया गया है।
  4. न्यायपालिका ने अपनी व्याख्या के द्वारा ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की है जिसे स्वीकार कर लिया गया है।
  5. अनेक विवादों में न्यायपालिका ने अनेक मूल अधिकारों विशेषकर जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा शिक्षा के अधिकार के क्षेत्र को व्यापक कर दिया है। एक विवाद में न्यायपालिका ने यहाँ तक कह दिया है कि जीवन के अधिकार से आशय अच्छा जीवन जीने का अधिकार।
  6. लोकहित याचिका का जो सिद्धान्त न्यायालय ने स्वीकृत किया है वह न्यायिक व्याख्या पर ही आधारित है तथा इसने न्यायिक सक्रियता को बढ़ावा दिया है। लोकहित याचिका और न्यायिक सक्रियता के सिद्धान्त के द्वारा न्यायपालिका विधायिका तथा कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है तथा प्रशासनिक इकाइयों को एक निर्धारित समय-सीमा में इसके आदेशों को क्रियान्वित करने के निर्देश दे रही है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान के विकास में संविधान संशोधनों तथा न्यायिक व्याख्याओं ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।

प्रश्न 5.
“संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिये। भारतीय संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है, के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है। इस कथन का आशय यह है कि लगभग एक जीवित प्राणी की तरह संविधान समय-समय पर पैदा होने वाली परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करता है। जीवंत प्राणी की तरह ही वह अनुभव से सीखता है। एक संविधान एक जीवन्त दस्तावेज बन जाता है यदि यह संशोधनों, व्याख्याओं के लिए खुला हो और परम्पराओं को स्वीकारने के लिए स्वतंत्र हो। लोकतन्त्र में व्यावहारिकताएँ तथा विचार समय-समय पर विकसित होते रहते हैं और समाज में इसके अनुसार प्रयोग चलते रहते हैं। कोई भी संविधान जो प्रजातंत्र को समर्थ बनाता हो और नये प्रयोगों के विकास का रास्ता खोलता हो, वह केवल टिकाऊ ही नहीं होता, बल्कि अपने नागरिकों के बीच सम्मान का पात्र भी होता है। ऐसा संविधान एक जीवन्त संविधान कहलाता है।

भारत का संविधान एक जीवन्त संविधान के रूप में भारत का संविधान अपनी गतिशीलता, व्याख्याओं के खुलेपन और बदलती परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तनशीलता की विशेषताओं के कारण एक जीवन्त संविधान के रूप में प्रभावशाली रूप से कार्य कर रहा है। पिछले 68 वर्षों के दौरान भारतीय संविधान ने अनेक नई परिस्थितियों, न्यायपालिका और संसद के मध्य तथा न्यायपालिका और कार्यपालिका के मध्य संघर्षों की घटनाओं का सामना किया है, लेकिन इसने इन सबको सफलतापूर्वक सुलझाया है तथा स्वयं को नयी परिस्थितियों के अनुरूप ढाला है। इसने संवैधानिक संशोधनों या न्यायिक व्याख्याओं के द्वारा इन समस्याओं का हल निकाला है। यथा

1. मूल संरचना के सिद्धान्त का प्रतिपादन:
जब संसद ने संविधान के प्रत्येक भाग को संशोधन करने की शक्ति का दावा करते हुए अपनी सर्वोच्चता को स्थापित करना चाहा, तब न्यायपालिका ने संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित किया और न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से स्वयं को संविधान के संरक्षक और अन्तिम व्याख्याकार की भूमिका निभायी। इस स्थिति में संसद और न्यायपालिका के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हुई । संसद ने संविधान में संशोधन कर पुन: यह स्थापित किया कि संसद संविधान के प्रत्येक भाग में संशोधन कर सकती है।

ऐसी स्थिति में न्यायपालिका ने केशवानंद भारती विवाद में इस संघर्ष का समाधान करते हुए संविधान की मूल संरचना के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया और कहा कि संसद संविधान के प्रत्येक भाग में संशोधन तो कर सकती है। लेकिन वह संविधान की मूल संरचना को नष्ट नहीं कर सकती अर्थात् वह संसद के मौलिक ढांचे या उसकी आत्मा में संशोधन नहीं कर सकती ।
इस सिद्धान्त को अब सभी राजनीतिक संस्थाओं तथा राजनीतिक दलों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है।

2. 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का निर्धारण:
जब कुछ राज्य सरकारों ने राजनीतिक मान्यताओं के लिए 75 प्रतिशत सीटों के आरक्षण के कानून बनाये, इससे समाज में तनाव बढ़ा तथा अराजकता का वातावरण बना और संविधान में आरक्षण के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। इस विस्फोटक स्थिति को न्यायपालिका ने इस व्याख्या के द्वारा संभाला कि सभी श्रेणियों का कुल आरक्षण समस्त सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।

3. संसद की सीमाओं को रेखांकित करना:
न्यायालय ने समय-समय पर यह रेखांकित किया है कि संसद, राष्ट्र की जनप्रतिनिधि संस्था के होते हुए भी, निरंकुशता का व्यवहार नहीं कर सकती है तथा इसे अपना कार्य संविधान की सीमाओं के अन्तर्गत करना पड़ेगा और उस सीमा के अन्तर्गत कार्य करना पड़ेगा जो सीमा इसके ऊपर संविधान तथा सरकार की अन्य राजनीतिक संस्थाओं के कार्यक्षेत्रों ने लगाई है।

4. संशोधनों के द्वारा संविधान का विकास:
अनेक नवीन स्थितियाँ जो कि परिवर्तित परिस्थितियों के कारण पैदा हुईं उन्हें संविधान संशोधनों के द्वारा संभाला गया है। पिछले 68 वर्षों में 101 संविधान संशोधन किये जा चुके हैं जो संविधान की जीवन्तता को दर्शाते हैं। मत देने के अधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करना, सम्पत्ति के मूल अधिकार को मूल अधिकारों की श्रेणी से निकाल देना, दल-बदल रोकने हेतु संविधान संशोधन कर दल-बदल निषेध संशोधन विधेयक पारित करना 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को तथा 74वें संविधान संशोधन द्वारा नगरीय स्थानीय शासन की संस्थाओं को संवैधानिक स्वरूप प्रदान करना आदि संशोधनों ने संविधान को बदलती परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करने में सक्षम बनाया है।

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

Jharkhand Board JAC Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

Jharkhand Board Class 9 Science जीवों में विविधता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है?
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण से लाभ-

  • जीवों के वर्गीकरण की सहायता से विभिन्न प्रकार के जीवों में पाई जाने वाली समानता एवं विभिन्नता का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
  • जीवों का वर्गीकरण करने से हमें जीवों के अध्ययन में सुविधा होती है।
  • जीवों के विकासक्रम का ज्ञान होता है।
  • जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे?
उत्तर:
कोशिकीय संरचना, शारीरिक संगठन, पोषण के स्रोत एवं विधियों के आधार पर वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारित किया जाता है। वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रम
निम्नवत् हैं-
जगत् संघ → वर्ग → गण → कुल → वंश → जाति।

प्रश्न 3.
जीवों के पाँच जगत में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आर. एच. ह्रिटेकर (1959) ने समस्त जीवों को कोशिकीय संरचना, पोषण के स्रोत तथा भोजन ग्रहण करने की विधि और शारीरिक संगठन के आधार पर निम्नलिखित 5 जगत में बाँटा था-

  • मोनेरा
  • प्रोटिस्टा
  • फंजाई
  • प्लान्टी तथा
  • एनीमेलिया।

1. मोनेरा – इसके अन्तर्गत उन एककोशिकीय प्रोकेरियोटी जीवों को रखा गया है जिनमें कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं पोषण के आधार पर ये स्वपोषी या विषमपोषी दोनों हो सकते हैं। जैसे- नील हरित शैवाल, बैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा आदि ।

2. प्रोटिस्टा – इस जगत के अन्तर्गत एककोशिक, यूकेरियोटी जीवों को रखा गया है जिनमें गमन के लिए सीलिया, फ्लैजेला नामक संरचनाएँ पाई जाती हैं। ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं जैसे- एककोशिक शैवाल, डाइएटम, प्रोटोजोआ आदि।

3. फंजाई – इसके अन्तर्गत विषमपोषी यूकेरियोटी जीवों को रखा गया है। इन्हें मृतजीवी कहते हैं, क्योंकि ये अपने पोषण के लिए सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं। जैसे यीस्ट, मशरूम, पेनीसीलियम आदि ।

4. प्लांटी – इसके अन्तर्गत कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिक यूकेरियोटी जीवों को रखा गया है। ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इस वर्ग में सभी पौधों को रखा गया है। इसके अन्तर्गत थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म एवं एन्जियोस्पर्म आदि पादपं आते हैं।

5. एनीमेलिया – इसके अन्तर्गत ऐसे सभी बहुकोशिक यूकेरियोटी जीवों को रखा गया है, जिनमें कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है। इस वर्ग के जीव विषमपोषी होते हैं। इसके अन्तर्गत सभी अकशेरुकी तथा कशेरुकी जन्तु आते हैं।

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प्रश्न 4.
पादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन हैं? इस वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर:
पादप जगत के प्रमुख वर्ग हैं-

  • थैलोफाइटा
  • ब्रायोफाइटा
  • टेरिडोफाइटा
  • जिम्नोस्पर्म तथा
  • एन्जियोस्पर्म।

पादप जगत के वर्गीकरण के आधार-

  • पादप शरीर के प्रमुख घटक पूर्ण रूप से विकसित एवं विभेदित हैं।
  • पादप शरीर में जल, खनिज तथा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संवहन करने के लिए विशिष्ट ऊतकों (जाइलम एवं फ्लोएम) की उपस्थिति है या नहीं।
  • पौधों में बीजधारण की क्षमता है या नहीं।
  • पौधा नग्नबीजी है या आवृतबीजी है।

प्रश्न 5.
जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है?
उत्तर:
जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर शारीरिक संगठा का है। पौधों में कोशिका भित्ति पाई जाती है। इनमें प्रकाशसंश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता होती है, अन्तः ये स्वपोषी होते हैं। जन्तुओं में कोशिका भित्ति नहीं होती है इनकी शारीरिक संरचना एवं संगठन जटिल होता है। ये अपना भोजन स्वयं बनाने में सक्षम नहीं होते हैं, अतः ये अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। इसलिए ये परपोषी अथवा विषमपोषी होते हैं।

प्रश्न 6.
वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सभी वर्टीब्रेटा जन्तुओं में वास्तविक मेरुदण्ड एवं अन्तः कंकाल पाया जाता है। इसलिए जन्तुओं में पेशियों का वितरण होता है। इनमें ऊतकों एवं अंगों का जटिल विभेदन पाया जाता है। सभी जन्तुओं में नोटोकॉर्ड, मेरुरज्जु, त्रिकोरिक शरीर, युग्मित क्लोम थैली एवं देहगुहा पाई जाती है। पेशियाँ तथा अस्थियाँ प्रचलन में सहायक होती हैं। इन जन्तुओं में नेत्र, कर्ण एवं प्राणेन्द्रियाँ आदि संवेदांग पाये जाते हैं।

वर्टीब्रेटा को उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर अग्रलिखित छह: वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • सायक्लोस्टोमेटा
  • मत्स्य
  • जल स्थलचर
  • सरीसृप
  • पक्षी तथा
  • स्तनपायी।

1. सायक्लोस्टोमेटा- ये बिना जबड़े के कशेरुकी हैं। इनका लंबे ईल के आकार का शरीर होता है। इनकी त्वचा शल्क रहित और चिकनी होती है। ये बाह्य परजीवी होते हैं और दूसरे कशेरुकी से संबद्ध होते हैं उदाहरण हैग फिश, पेट्रोमाइजॉन।

2. मत्स्य- ये जलीय जन्तु हैं। इनमें त्वचा पर स्केल पाये जाते हैं। श्वसन क्लोम द्वारा होता है। ये असमतापी प्राणी हैं। कंकाल अस्थियों या उपास्थियों का होता है। ये अण्डे देते हैं। उदाहरण- रोहू, शार्क, लेबियो, हिप्पोकैम्पस आदि।

3. जल स्थलचर-ये जल और स्थल दोनों जगह रहते। ये शल्कहीन, असमतापी व अण्ड प्रजक होते हैं। श्वसन क्लोम, त्वचा तथा फेफड़ों द्वारा होता है। उदाहरण – मेंढक, टोड, सेलामेंडर आदि।

4. सरीसृप – इनका शरीर शल्कों से ढका हुआ, श्वसन फेफड़ों द्वारा, हृदय त्रिकक्षीय, असमतापी व अण्डज प्राणी हैं। ये भूमि पर पेट के बल रेंग कर चलते हैं। उदाहरण- कछुआ, साँप, छिपकली, मगरमच्छ आदि।

5. पक्षी – ये वायु में उड़ते हैं। इनके अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं। मुख के आगे चोंच होती है। शरीर कोमल परों से ढका होता है। हृदय चार वेश्मी होता है। ये अण्डे देते हैं। उदाहरण- कबूतर, तोता, सारस, कौवा, गौरैया, बतख, मोटर आदि।

6. स्तनपायी – ये समतापी होते हैं। त्वचा पर बाल, स्वेद व तैल ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। हृदय चार कक्षीय, श्वसन फेफड़ों द्वारा, बाह्य कर्ण व स्तन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। ये बच्चों को जन्म देते हैं। उदाहरण- मनुष्य, बन्दर, गाय, भैंस, शेर, बिल्ली, कुत्ता, कंगारू आदि।

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क्रियाकलाप 7.1. (पा. पु. पृ. सं. 90)
देसी ओर जर्सी गाय की तुलना करें।

प्रश्न 1.
क्या एक देसी गाय, जर्सी गाय के जैसी ही दिखती है?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 2.
क्या सभी देसी गायें एक जैसी दिखती हैं?
उत्तर:
नहीं।

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 3.
क्या हम देसी गायों के झुंड में जर्सी गाय को पहचान सकेंगे?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 4.
पहचानने का हमारा आधार क्या होगा?
उत्तर:
देसी गाय के बड़े सींग तथा कूबड़ होता है। जर्सी गाय में ये नहीं होते।
पृथ्वी पर रहने वाले कुछ जीव तो बहुत छोटे हैं तथा कुछ बहुत बड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, बैक्टीरिया को देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करना पड़ता है जबकि 100 m लंबे रेडवुड पेड़ भी होते हैं। चीड़ के वृक्ष हजारों वर्ष तक जीवित रहते हैं जबकि कुछ कीट जैसे मच्छरों का जीवन कुछ दिनों का ही होता है। सभी जीवों के रंग रूप भी अलग-अलग होते हैं।

खंड 7 से संबंधित पाठ्यपुस्तक के प्रश्न (पा. पु. पु. सं. 91)

प्रश्न 1.
हम जीवधारियों का वर्गीकरण क्यों करते हैं?
उत्तर:
संसार में विभिन्न प्रकार के पौधे एवं जन्तु पाये जाते हैं। इनमें से कुछ जीवों की संरचना सरल एवं कुछ की जटिल होती है। उनका सरलतापूर्वक अध्ययन करने के लिए वर्गीकरण किया जाता है, जो उनकी समानताओं एवं असमानताओं पर आधारित होता है।

प्रश्न 2.
अपने चारों ओर फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण दें।
उत्तर:

  • आकार के आधार पर भिन्नता, जैसे जीवाणु (बैक्टीरिया) का आकार कुछ माइक्रोमीटर होता है, जबकि 30 मीटर लम्बे नीले ह्रेल या केलीफोर्निया में मिलने वाले 100 मीटर लम्बे रेडबुड (सिकोया) के पेड़ भी पाये जाते हैं।
  • आयु के आधार पर भिन्नता, जैसे मच्छर का जीवन काल कुछ दिन का होता है जबकि कछुआ 300 वर्ष तक जीवित रहता है।

खण्ड 7.2 से सम्बन्धित पाठय-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिम जीव किन्हें कहते हैं? ये तथाकधित उन्नत जीवों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
जिन जीवों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास (महत्वपूर्ण) परिवर्तन नहीं हुआ है उनको आदिम जीव कहते हैं। किन्तु ऐरो जीव जिनकी शारीरिक संरचना में विकास के दौरान पर्याप्त प।रंवर्तन हुआ है, उनको उन्नत जीव कहते हैं।

प्रश्न 2.
क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं?
उत्तर:
नहीं, उन्नत जीव और जटिल भिन्न होते हैं।

खण्ड 7.3 से सम्बन्धित पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (पा. पु. पृ. सं. 96)

प्रश्न 1.
मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर:
मोनेरा के मापदण्ड-

  • इस वर्ग के कुछ जीवों में कोशिका भित्ति पाई जाती है और कुछ में नहीं।
  • इन जीवों में न तो संगठित केन्द्रक और कोशिकांग होते हैं और न ही उनका शरीर बहुकोशिक होता है।
  • ये स्वपोषी तथा विषमपोषी दोनों होते हैं।

प्रोटिस्टा के मापदण्ड-

  • इस वर्ग के जीवों के शरीर में गमन के लिए सीलिया, फ्लैजेला नामक संरचनाएँ होती हैं।
  • इस वर्ग के जीव एककोशिक होते हैं।
  • ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं।

प्रश्न 2.
प्रकाश संश्लेषण करने त्राले एककोशिक यूकेरियोटी जीव को आप किस जगत् में रखेंगे?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकेरियोटी जीव को प्रोटिस्टा वर्ग में रखेंगे।

प्रश्न 3.
वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में किस समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे ज्यादा संख्या में जीवों को रखा जायेगा?
उत्तर:
सबसे कम संख्या में समान लक्षण वाले जीवों को जाति (स्पीशीज) में तथा सबसे ज्यादा संख्या में समान लक्षण वाले जीवों को जगत (किंगडम) में रखा जायेगा।

क्रियाकलाप 7.2.
भिगोये हुए चने, गेहूँ, मक्का, मटर और इमली के बीज लिए। ये बीज जल अवशोषित करके नरम हो जाते हैं। इन बीजों को दो बराबर भागों में बाँटते हैं। जिन बीजों में दो दालें दिखाई देती हैं वे द्विबीजपत्री कहलाते हैं। जो बीज नहीं फूटते और दालें नहीं दिखाई देती हैं वे एक बीजपत्री कहलाते हैं। अब इन पौधों की जड़ों पत्तियों और फलों के लक्षणों का निरीक्षण करते हैं।

प्रश्न 1.
एक बीजपत्री पौधों के लक्षण लिखो।
उत्तर:
एक बीजपत्री पौधों के बीजों को भिगोने और उनको फाड़ने पर दो दालें दिखाई नहीं देती हैं।

प्रश्न 2.
चना तथा मटर के बीजों में कितने बीजपत्र होते हैं?
उत्तर:
चना तथा मटर के बीजों में दो-दो बीजपत्र होते हैं।

प्रश्न 3.
एक बीजपत्री पौधों में कैसी जड़ें होती हैं?
उत्तर:
एक बीजपत्री पौधों में रेशेदार जड़ें होती हैं।

प्रश्न 4.
द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियों में किस तरह का शिरा विन्यास होता है?
उत्तर:
द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियों में जालिकावत् शिरा विन्यास होता है।

खड 7.4 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पा. पु. पू. सं. 99)

प्रश्न 1.
सरलतम पौधों को किस वर्ग में रखा गया है?
उत्तर:
सरलतम पौधों को थैलोफाइटा वर्ग में रखा गया है।

JAC Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 2.
टैरिडोफाइट और फैनरोगैम में क्या अन्तर है?
उत्तर:

टेरिडोफाइट फैनरोगैम
1. इनमें नग्न भ्रूण पाए जाते हैं, जिन्हें बीजाणु कहते हैं। 1. इनमें जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं।
2. जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं। 2. इनमें पुष्प तथा बीजों का निर्माण होता है।
3. ये पौधे बीज रहित होते हैं। 3. ये बीज युक्त पौधे होते हैं।

प्रश्न 3.
जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:

जिम्नोस्पर्म एन्जियोस्पर्म
1. इनमें बीज फलों के अन्दर बन्द नहीं होते हैं अर्थात् बीज नग्न होते हैं। 1. इनमें बीज फलों के अन्दर बन्द रहते हैं; अर्थात् ये आवृतबीजी होते हैं।
2. इनमें जनन रचनाएँ शंकु कहलाती हैं।
उदाहरण – साइकस, पाइनस।
2. इनमें जनन रचनाएँ पुष्प कहलाती हैं।
उदाहरण-गेहूँ, चावल, चना, मटर, सेम।

खण्ड 7.5 से सम्बन्धित पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (पा. पु. पृ. सं. 105)

प्रश्न 1.
पोरीफेरा और सिलेंटरेटा वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अन्तर

पोरीफेरा सिलेंटरेटा
1. ये छिद्रयुक्त व अचल जीव हैं जो किसी आधार से चिपके रहते हैं। 1. ये जलीय जन्तु हैं। इनके शरीर में एक छिद्र होता है।
2. इनमें नालतन्त्र पाया जाता है। 2. इनमें देहगुहा (सीलेन्ट्रोन) पाई जाती है।
3. इनमें ऊतकों का विभेदन नहीं होता है। 3. इनमें शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है।

प्रश्न 2.
एनीलिडा के जन्तु, आर्थ्रोपोडा के जन्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
भिन्नता

एनीलिडा आर्थ्र्रोपोडा
1. इनका शरीर द्विपार्श्वसममित एवं त्रिकोरक होता है। 1. इनमें भी द्विपाशर्वसममित होती है।
2. परिसंचरण तन्त्र खुला होता है। 2. परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है।
3. देहगुहा रक्त से भरी होती है। 3. देहगुहा रक्त से भरी नहीं होती है।
4. इनमें जोड़दार टाँगें नहीं होती हैं। 4. इनमें जोड़दार टाँगें होती हैं।

प्रश्न 3.
जल स्थलचर और सरीसृप में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अन्तर

जल स्थलचर सरीसृप
1. इनके शरीर पर शल्क नहीं होते हैं। 1. इनके शरीर पर शल्क होते हैं।
2. त्वचा पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ होती हैं। 2. श्लेष्म ग्रन्थियाँ नहीं होती हैं।
3. श्वसन क्लोम, त्वचा अथवा फेफड़ों द्वारा होता है। 3. श्वसन केवल फेफड़ों द्वारा होता है।
4. ये अण्डे जल में देते हैं और इनके अण्डे कवच रहित होते हैं। 4. ये अण्डे स्थल पर देते हैं और इनके अण्डे कवचयुक्त होते हैं।

प्रशुन 4.
पक्षी वर्ग और स्तनपायी वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अन्तर

पक्षी स्तनपायी
1. त्वचा परों से ढकी रहती है। 1. त्वचा पर बाल, स्वेद व तेल ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं।
2. अगली टाँगें उड़ने के लिए पंखों (Wings) में रूपान्तरित होती हैं। 2. अगली टाँगें प्रचलन तथा हाथ वस्तुओं को पकड़ने के लिए उपयोजित होते हैं।
3. कर्णपल्लव तथा स्तनग्रन्थियाँ नहीं पाई जाती हैं। 3. कर्ण पल्लव तथा स्तनग्रन्थियाँ पाई जाती हैं।
4. ये अण्डे देते हैं। 4. ये प्रायः शिशुओं को जन्म देते हैं।
5. इनके मुख के आगे चोंच होती है। 5. इनमें चोंच नहीं होती है।

क्रियाकलाप 7.3 (पा. पु. पृ. सं. 105)
निम्नलिखित जन्तुओं और पौधों के नाम जितनी भाषाओं में सम्भव हो सके आप बताएँ-
1. चीता 2. मोर 3. चींटी 4. नीम 5. कमल 6. आलू [नोट-अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।] (पा. पु. पृ. सं. 106)

क्रियाकलाप 7.4 (पा. पु. पृ. सं. 106)
किन्हीं पाँच जन्तुओं और पौधों के वैज्ञानिक नाम का पता लगाइए। क्या इनके वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता है?

क्रियाकलाप 7.3 तथा 7.4 से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
किन्हीं पाँच जन्तुओं के वैज्ञानिक नाम बताओ।
उत्तर:

सामान्य नाम वैज्ञानिक नाम
1. शेर फेलिस लिओ (Falis leo)
2. चीता फेलिस टाइग्रिस (Falis trigris)
3. कुत्ता केनिस फेमिलीएरिस (Canis familiaris)
4. मनुष्य होमो सेपियन्स (Homo sepiance)
5. हाथी एलीफस इण्डिकस (Elephus indicus)

प्रश्न 2.
किन्हीं पाँच पौधों के वैज्ञानिक नाम बताओ।
उत्तर:

सामान्य नाम वैज्ञानिक नाम
1. सरसों ब्रेसिका कमपेस्ट्रिस (Brassica campestris)
2. आलू सोलेनम ट्यूबरोसम (Solanum tuberosum)
3. मटर पाइसम सेटाइवम (Pisum sativum)
4. गेहूँ ट्रिटिकम सेटाइवम (Triticum sativum)
5. तुलसी ओसिमम सेंक्टम (Ocimum sanctum)

प्रश्न 3.
जन्तुओं के वर्गीकरण का चार्ट बनाइए।
उत्तर:
प्राणी
JAC Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता 1

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. स्थानीय स्वशासन का सम्बन्ध है।
(क) स्थानीय हित से
(ख) राष्ट्रीय हित से
(ग) प्रादेशिक हित से
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं से
उत्तर:
(क) स्थानीय हित से

2. जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सुनिश्चित करता है।
(क) जनता की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को
(ख) जनता की निरंकुशता को
(ग) जनता की स्वेच्छाचारिता को
(घ) सामन्तशाही को।
उत्तर:
(क) जनता की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को

3. ब्रिटिश काल में भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय को कहा जाता था।
(क) ग्राम पंचायत
(ख) तालुका पंचायत
(ग) नगर परिषद
(घ) मुकामी बोर्ड
उत्तर:
(घ) मुकामी बोर्ड

4. जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय सौंप दिया गया।
(क) संघ की सरकार को
(ख) प्रदेशों की सरकार को
(ग) मुकामी बोर्डों को
(घ) उपर्युक्त में से किसी को नहीं
उत्तर:
(ख) प्रदेशों की सरकार को

5. पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित संविधान संशोधन है।
(क) 72वां संविधान संशोधन
(ख) 78वां संविधान संशोधन
(ग) 73वां संविधान संशोधन
(घ) 74वां संविधान संशोधन
उत्तर:
(ग) 73वां संविधान संशोधन

6. अब प्रत्येक पंचायती निकाय का चुनाव किया जाता है।
(क) 3 साल के लिए
(ख) चार साल के लिए
(ग) 6 साल के लिए
(घ) पांच साल के लिए
उत्तर:
(घ) पांच साल के लिए

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

7. सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं।
(क) 7 1/2 प्रतिशत
(ख) 50 प्रतिशत
(ग) 20 प्रतिशत
(घ) 33 प्रतिशत
उत्तर:
(घ) 33 प्रतिशत

8. संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज विषय प्रदान किये गये हैं।
(क) संघ सरकार को
(ख) राज्य सरकारों को
(ग) स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को
(घ) किसी को नहीं
उत्तर:
(ग) स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को

9. शहरी स्थानीय निकायों का कुल राजस्व उगाही में योगदान है।
(क) 0.24 प्रतिशत का
(ख) 4 प्रतिशत का
(ग) 24 प्रतिशत का
(घ) 76 प्रतिशत का
उत्तर:
(क) 0.24 प्रतिशत का

10. संविधान का कौनसा संशोधन शहरी स्थानीय शासन से संबंधित है?
(क) 60वाँ
(ख) 62वाँ
(ग) 63वाँ
(घ) 74वाँ
उत्तर:
(घ) 74वाँ

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. गाँव और जिला स्तर के शासन को …………………… कहते हैं।
उत्तर:
स्थानीय शासन

2. स्थानीय शासन का विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की ………………….
उत्तर:
जिंदगी

3. संविधान का ……………… संविधान संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है।
उत्तर:
63वाँ

4. संविधान का 74वाँ संशोधन ………………… स्थानीय शासन से जुड़ा है।
उत्तर:
शहरी

5. सभी पंचायत संस्थाओं में एक-तिहाई सीटें …………………… के लिए आरक्षित हैं।
उत्तर:
महिलाओं।

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाकों में रहती है।
उत्तर:
सत्य

2. अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
उत्तर:
सत्य

3. हर पंचायती निकाय की अवधि 3 साल की होती है।
उत्तर:
असत्य

4. ऐसे 29 विषय जो पहले समवर्ती सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं।
उत्तर:
असत्य

5. प्रदेशों की सरकार के लिए हर 5 वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना जरूरी है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. पंचायत समिति (अ) नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्था
2. नगर निगम (ब) पी.के. थुंगन समिति (1989)
3. सामुदायिक विकास (स) सन् 1993 कार्यक्रम
4. स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा (द) सन् 1952 प्रदान करने की सिफारिश की
5. 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुए (य) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्था

उत्तर:

1. पंचायत समिति (य) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्था
2. नगर निगम (अ) नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्था
3. सामुदायिक विकास (द) सन् 1952
4. स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा (ब) पी.के. थुंगन समिति (1989)
5. 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुए (स) सन् 1993

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज क्या है?
उत्तर:
पंचायती राज उस व्यवस्था को कहते हैं जिसके अन्तर्गत ग्रामों में रहने वाले लोगों को अपने गांवों का प्रशासन तथा विकास का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 2.
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने वाली संस्थाओं को स्थानीय स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं।

प्रश्न 3.
पंचायती राज के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. ग्रामों का विकास करना व उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
  2. ग्रामीणों को उनके अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान कराना।

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प्रश्न 4.
पंचायती राज संस्थाओं में स्त्रियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित की गई हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायती राज संस्थाओं के सभी स्तरों में स्त्रियों के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं।

प्रश्न 5.
ग्राम सभा क्या है?
उत्तर:
ग्राम सभा एक तरह से गांव की संसद है। एक ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। इसकी एक वर्ष में दो सामान्य बैठकें होना आवश्यक है।

प्रश्न 6.
स्थानीय शासन का विषय क्या है?
उत्तर:
स्थानीय शासन का विषय है। आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी।

प्रश्न 7.
स्थानीय शासन की मान्यता क्या है?
उत्तर:
स्थानीय शासन की मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसले लेने के लिए तथा कारगर और जन 1 हितकारी प्रशासन के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 8.
संविधान में स्थानीय शासन का विषय किसे सौंपा गया है?
उत्तर:
संविधान में स्थानीय शासन को राज्य सूची में रखा गया है। प्रदेशों को इस बात की छूट है कि वे स्थानीय शासन के बारे में अपनी तरह का कानून बनाएं।

प्रश्न 9.
ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज किन्हीं दो विषयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
कृषि, लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास।

प्रश्न 10.
73वें संविधान संशोधन द्वारा राज्य सूची के कितने विषय 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गये हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन के द्वारा राज्य सूची के 29 विषय संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिये गये हैं।

प्रश्न 11.
11वीं अनुसूची के विषयों का स्थानीय शासन को वास्तविक हस्तांतरण किस पर निर्भर है?
उत्तर:
11वीं अनुसूची में दर्ज विषयों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 12.
संविधान के 74वें संविधान संशोधन का संबंध किससे है?
उत्तर:
संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से है।

प्रश्न 13.
भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है?
उत्तर:
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है।

प्रश्न 14.
आज ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की संख्या क्या है?
उत्तर:
आज ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन से संबंधित

  1. जिला पंचायतों की संख्या 500,
  2. मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6000 तथा
  3. ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40,000 है

प्रश्न 15.
वर्तमान में शहरी भारत में कितने नगर निगम, नगरपालिकाएँ और नगर पंचायतें हैं?
उत्तर:
वर्तमान में शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1400 नगरपालिका तथा 2000 नगर पंचायतें विद्यमान हैं।

प्रश्न 16.
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसकी है?
उत्तर:
राज्य निर्वाचन आयुक्त की।

प्रश्न 17.
जिला परिषद् क्या है?
उत्तर:
जिला परिषद् पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था का शीर्ष निकाय है।

प्रश्न 18.
नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी को महापौर कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान में स्थानीय शासन के मामले को अधिक महत्त्व न मिलने के कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
संविधान में निम्नलिखित कारणों से स्थानीय शासन के मामले को अधिक महत्त्व नहीं मिल सका

  1. देश-विभाजन की खलबली के कारण संविधान निर्माताओं का झुकाव केन्द्र को मजबूत बनाने का रहा। नेहरू स्वयं अति स्थानीयता को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा मानते थे।
  2. डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि ग्रामीण भारत में जाति-पांति और आपसी फूट का बोलबाला है। ऐसे माहौल में स्थानीय शासन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पायेगा।

प्रश्न 2.
स्थानीय शासन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व।

  1. स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होता है। इस कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।
  2. जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
  3. मजबूत स्थानीय शासन से लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होती है।

प्रश्न 3.
ब्राजील के संविधान का कौनसा प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है? ब्राजील के संविधान में प्रांत, संघीय जिले तथा नगर परिषदों में हर एक को स्वतंत्र शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। जिस तरह गणराज्य (Republic) राज्यों के काम-काज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह राज्य भी नगरपालिका-नगरपरिषद के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। अहस्तक्षेप का यह प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है।

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प्रश्न 4.
73वें संविधान संशोधन की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन की विशेषताएँ-

  • त्रिस्तरीय बनावट: 73वें संशोधन के द्वारा अब प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
    1. ग्राम पंचायत
    2. मध्यवर्ती या खंड स्तरीय पंचायत और
    3. जिला पंचायत।
  • ग्राम सभा: संविधान संशोधन में अब ग्राम सभा की दो बैठकें अनिवार्य कर दी गई हैं। ग्राम पंचायत का हर मतदाता इसका सदस्य होता है।
  • चुनाव: पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव अब सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि 5 साल की होती है।
  • आरक्षण: सभी पंचायत संस्थाओं में एक-तिहाई आरक्षण महिलाओं के लिए दिया गया है। साथ ही अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण के प्रावधान किये गये हैं।

प्रश्न 5.
ग्यारहवीं अनुसूची में किस प्रकार के विषय रखे गये हैं? किन्हीं पांच विषयों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ग्यारहवीं अनुसूची में राज्य सूची के 29 विषय रखे गये हैं। अधिकांश मामलों में इन विषयों का सम्बन्ध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है।11वीं अनुसूची के पांच प्रमुख विषय ये हैं।

  1. कृषि
  2. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
  3. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
  4. ग्रामीण आवास
  5. ग्रामीण विद्युतीकरण।

प्रश्न 6.
ग्राम पंचायत की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत की भूमिका-ग्रामीण जीवन में ग्राम पंचायत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो कि निम्नलिखित है।

  1. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में जल आपूर्ति, शांति एवं व्यवस्था, स्वच्छता तथा जन-स्वास्थ्य के प्रति उत्तरदायी
  2. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में स्थानीय सरकार के समस्त कार्य करती है।
  3. यह अपने क्षेत्र में ग्रामीण विकास, ग्रामीण सुधार, सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी है तथा उसके लिए योजनाएँ बनाती है तथा उन्हें क्रियान्वित करती है।
  4. ग्राम पंचायत समूची पंचायती राज व्यवस्था का आधार है जिसकी सफलता पर ही इसकी सफलता निर्भर करती है।
  5. ग्राम पंचायत ग्रामीणों को प्रशासन का प्रशिक्षण देती है जो कि भारतीय लोकतंत्र की सफलता का आधार है।

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प्रश्न 7.
राज्य चुनाव आयुक्त की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राज्य चुनाव आयुक्त: 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों ने स्थानीय स्वशासन के लिए एक राज्य चुनाव आयुक्त की स्थापना की है। इस आयुक्त की जिम्मेदारी राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी। प्रदेश का यह चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी है। इसका संबंध भारत के चुनाव आयोग से नहीं होता।

प्रश्न 8.
राज्य वित्त आयोग की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राज्य वित्त आयोग: 73वें व 74वें संविधान संशोधन में प्रदेशों की सरकार के लिए पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना आवश्यक है। यह आयोग एक तरफ प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा।

प्रश्न 9.
पंचायती राज व्यवस्था की त्रिस्तरीय बनावट क्या है? था
उत्तर:
त्रिस्तरीय बनावट: भारत में वर्तमान में सभी राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रिस्तरीय है।

  1. ग्राम पंचायत: पहले स्तर पर या सबसे नीचे ग्राम पंचायत आती है जिसमें एक या एक से ज्यादा गांव होते
  2. खंड या तालुका पंचायत-मवर्ती स्तर मंडल का है जिसे खंड या तालुका भी कहा जाता है। यह अनेक ग्राम पंचायतों से मिलकर बना होता है।
  3. जिला पंचायत: सबसे ऊपर के पायदान पर जिला पंचायत का स्थान है। इसके दायरे में जिले का सम्पूर्ण ग्रामीण इलाका आता है।

प्रश्न 10.
73वें संविधान संशोधन में चुनाव सम्बन्धी क्या प्रावधान किये गये हैं?
उत्तर:
निर्वाचन सम्बन्धी प्रावधान: 73वें संविधान संशोधन के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि पांच साल की होती है। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके छ: माह के अन्दर नये चुनाव हो जाने चाहिए।

प्रश्न 11.
73वें तथा 74वें संशोधन के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन को किस प्रकार मजबूती मिली है?
उत्तर:
73वें तथा 74वें संशोधन के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन को अग्र रूपों में मजबूती मिली है।

  1. स्थानीय निकायों की चुनावों की निश्चितता के बाद से चुनाव के कारण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
  2. इन संशोधनों ने देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एकसा किया है।
  3. अब महिलाओं के आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
  4. दलित तथा आदिवासियों को आरक्षण मिलने से स्थानीय निकायों की सामाजिक बनावट में भारी बदलाव आए हैं।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 12.
वर्तमान में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के कारगर ढंग से कार्य नहीं कर पाने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के अप्रभावी होने के कारण यद्यपि सैद्धान्तिक रूप अर्थात् 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को समर्थ तथा सक्षम बनाने का प्रयास किया गया है, लेकिन व्यवहार में कुछ कारणों ने अभी भी इन्हें दुर्बल बना रखा है और ये संस्थाएँ अपनी भूमिका सार्थक ढंग से नहीं निभा पा रही हैं।

1. स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की छूट का न होना:
संविधान के संशोधनों ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं। स्थानीय शासन के कामकाज के पिछले दशकों के अनुभव बताते हैं कि भारत में इसे अपना कामकाज स्वतंत्रतापूर्वक करने की छूट बहुत कम है। अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे हैं। फलतः वे कारगर ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं।

2. धन की कमी:
स्थानीय निकायों के पास धन बहुत कम होता है। वे प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं। इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का बहुत क्षरण हुआ है।

प्रश्न 13.
1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं?
उत्तर:
1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं।

  1. नगरपालिकाओं में समाज के कमजोर वर्गों तथा महिलाओं को आरक्षण के माध्यम से सार्थक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है।
  2. विधान की 12वीं अनुसूची नगरीय संस्थाओं को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करती है।
  3. नगरीय संस्थाओं के लिए वित्तीय साधन जुटाने के लिए एक वित्तीय आयोग की स्थापना का प्रावधान है।
  4. नगर निगम या नगरपालिकाओं का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन इससे पूर्व इनके भंग हो जाने की दशा में नयी संस्थाओं के गठन के लिए 6 महीनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होगा। चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपी गई है।

प्रश्न 14.
नगरीय स्वशासी संस्थाएँ किन-किन समस्याओं से जूझ रही हैं?
उत्तर:
नगरीय स्वशासी संस्थाओं की समस्यायें: नगरीय स्वशासी संस्थाएँ नगर निगम तथा नगरपालिकाएँ। आज निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रही हैं।

  1. सरकार का हस्तक्षेप: स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के कामकाज में राज्य सरकार और जिला अधिकारियों का अनावश्यक हस्तक्षेप उनके कार्यों में रुकावट डाल रहा है। यदि एक नगर निगम में उस दल का बहुमत है जो दल राज्य सरकार में विरोधी दल है तो राज्य मंत्रिमंडल उसे ठीक से कार्य नहीं करने देता।
  2. राजनेताओं द्वारा दबाव: नगरीय स्वशासी संस्थाओं पर शहरी राजनेताओं द्वारा तरह-तरह के दबाव डाले जाते हैं।
  3. जनसंख्या वृद्धि: शहरी जनसंख्या में जनसंख्या बेहताशा ढंग से बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि के कारण आवास सुविधाओं का बड़ा अभाव है तथा तेजी से गंदी बस्तियों का विकास हो रहा है। इससे पर्यावरण सम्बन्धी समस्यायें बढ़ी हैं तथा अपराध भी बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 15.
स्थानीय शासन के महत्त्व का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व ( उपयोगिता ) स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है। इसका विषय है। आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी। लोकतंत्र और कारगर तथा जनहितकारी प्रशासन की दृष्टि से यह अत्यन्त उपयोगी है। इसके महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

1. स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान तीव्र गति से तथा कम खर्च में:
चूंकि स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होता है इसलिए उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है। उदाहरण के लिए, गीता राठौड़ ने ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हुए जमनिया तालाब पंचायत में बड़ा बदलाव कर दिखाया। बेंगैसवल गांव की जमीन पर उस गांव का ही हक रहा।

2. सक्रिय भागीदारी तथा उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही: लोकतंत्र की सफलता के लिए सार्थक भागीदारी और जवाबदेही की सुनिश्चितता आवश्यक होती है। जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं वे काम स्थानीय लोगों और इनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। इस तरह, स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाता है।

प्रश्न 16.
संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज कोई 10 विषयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज विषय ग्यारहवीं अनसूची में दर्ज प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं।

  1. कृषि
  2. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
  3. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
  4. ग्रामीण आवास
  5. पेयजल
  6. सड़क, पुलिया
  7. ग्रामीण विद्युतीकरण
  8. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
  9. शिक्षा इसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा शामिल है।
  10. तकनीकी प्रशिक्षण तथा व्यावसायिक शिक्षा।

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प्रश्न 17.
बोलिविया के स्थानीय स्वशासन पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
बोलिविया में स्थानीय स्वशासन लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के सफल उदाहरण के रूप में अक्सर लातिनी अमेरिका के देश बोलिविया का नाम लिय जाता है। यथा बोलिविया में स्थानीय स्वशासन का संगठन: सन् 1994 में जनभागीदारी कानून के तहत यहाँ सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर स्थानीय स्तर नगरपालिका प्रशासन को सत्ता सौंपी गई है। बोलिविया में 314 नगरपालिकाएँ हैं। नगरपालिकाओं का नेतृत्व जनता द्वारा निर्वाचित महापौर करते हैं। इन्हें Presidente Municipal भी कहा जाता है महापौर के साथ एक नगरपालिका परिषद होती है। स्थानीय स्तर पर देशव्यापी चुनाव हर पांच वर्ष पर होते हैं। बोलिविया स्थानीय स्वशासन की शक्तियाँ।

  1. यहाँ स्थानीय सरकार को स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधा बहाल करने तथा आधारभूत ढांचे के रख-रखाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  2. यहाँ देशव्यापी राजस्व उगाही का 20 प्रतिशत नगरपालिकाओं को प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया जाता है।
  3. नगरपालिका को मोटर वाहन, शहरी संपदा तथा बड़ी कृषि सम्पदा पर कर लगाने का अधिकार है इन नगरपालिकाओं के बजट का अधिकांश हिस्सा वित्तीय हस्तांतरण प्रणाली के जरिये प्राप्त होता है। इस प्रकार बोलिविया में एक ऐसी प्रणाली अपनायी गई है कि इन नगरपालिकाओं को धन स्वतः हस्तांतरित हो जाये।

प्रश्न 18.
स्पष्ट कीजिये कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
उत्तर:
73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित किये जाने का प्रावधान किया गया है। सभी राज्यों की सरकारों ने अपने स्थानीय स्वशासन सम्बन्धी कानूनों में इस प्रावधान का पालन किया। महिलाओं के लिए आरक्षण के इस प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। यथा

  1. निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं। 2000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80000 से ज्यादा है।
  2. नगर निगमों में 30 महिलाएँ मेयर (महापौर) हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में है। संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं ने ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है। साथ ही इससे स्त्रियों में राजनीति के प्रति समझ बढ़ी है। स्थानीय निकायों में महिलाओं की मौजूदगी से चर्चा ज्यादा संवेदनशील हुई है।

प्रश्न 19.
स्पष्ट कीजिये कि स्थानीय शासन की संस्थाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व से निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।
उत्तर:
स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में परिवर्तन:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को संविधान संशोधन ने अनिवार्य बना दिया था । इसके साथ ही, अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। भारत की जनसंख्या में 16.2 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा 8.2 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है। स्थानीय शासन के शहरी तथा ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों के सदस्यों की संख्या लगभग 6.6 लाख है। इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।

ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं, अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के जरिये ज्यादा हो रही है। कभी-कभी इससे तनाव पैदा होता है। लेकिन तनाव और संघर्ष हमेशा बुरे नहीं होते। जब भी लोकतंत्र को ज्यादा सार्थक बनाने और ताकत से वंचित लोगों को ताकत देने की कोशिश होगी तो समाज में संघर्ष और तनाव होना ही है।

प्रश्न 20.
” सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के आरक्षण ने ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के स्वरूप को परिवर्तन कर दिया है। ” कैसे ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ग्रामीण स्तर पर आरक्षण ने नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। 73वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत पंचायती राज संस्थाओं में प्रत्येक स्तर पर आरक्षण न केवल सीटों के लिए किया गया है, बल्कि उनके अध्यक्षों व सरपंचों के पदों पर भी आरक्षण किया गया है तथा इन श्रेणी की स्त्रियों के लिए भी 1/3 सीटों का आरक्षण किया गया है। इस प्रावधान ने ग्राम स्तर के नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। यथा।

  1. पहले जहाँ उच्च वर्ग या प्रभुत्व वर्गों के पुरुष सदस्यों का नेतृत्व पर एकाधिकार था, जब दलित और पिछड़े वर्गों के पुरुष तथा स्त्री सदस्य भी इस नेतृत्व में भागीदार बने हैं।
  2. अब दलित तथा पिछड़े वर्गों के पुरुष तथा स्त्री भी इन संस्थाओं में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और गांव के विकास तथा प्रशासन के प्रस्तावों पर समान रूप से विचार-विमर्श में भागीदारी कर रहे हैं।
  3. अब दलित तथा पिछड़े वर्गों के स्त्री-पुरुष प्रतिनिधि भी निर्णय – निर्माण प्रक्रिया में समान रूप से भागीदारी कर रहे हैं। पहले जो तबका सामाजिक रूप से प्रभावशाली होने के कारण गांव पर अपना नियंत्रण रखता था, लेकिन अब दलित आदिवासी तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों का नेतृत्व भी उभरा है। इससे ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन आया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थानीय स्वशासन क्या है? इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन का अर्थ- स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने वाली संस्थाओं को स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं। गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं और जब इन संस्थाओं का शासन वहाँ की जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, तो ऐसे स्थानीय शासन को ही स्थानीय स्वशासन कहा जाता है। स्थानीय स्वशासन का महत्त्व स्थानीय स्वशासन की उपयोगिता या उसके महत्व का विवेचन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

1. स्थानीय आवश्यकताओं का सर्वोत्तम प्रशासन:
स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है। इसका विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी। इसकी मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसले लेने के अनिवार्य घटक हैं। लोगों की स्थानीय आवश्यकताएँ क्षेत्र और स्थान की भिन्नता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती हैं। वे पूरे देश में एकसमान नहीं हो सकतीं। इन आवश्यकताओं और समस्याओं को उस क्षेत्र के निवासी अच्छी तरह जानते हैं। चूंकि जब उस क्षेत्र के निवासियों के निर्वाचित प्रतिनिधि स्थानीय शासन का कार्य संभालेंगे तथा नीतियों का निर्माण करेंगे तो स्वाभाविक रूप से वे उस क्षेत्र की आवश्यकताओं और समस्याओं का अधिक अच्छी तरह से समाधान कर सकेंगे।

2. स्थानीय शासन और जनता के बीच घनिष्ठ सम्पर्क:
स्थानीय स्वशासन में जनता और शासन के मध्य घनिष्ठ सम्पर्क रहता है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। स्थानीय शासन क्या कर रहां है और क्या करने में नाकाम रहा है। आम जनता का इस सवाल से अधिक सरोकार रहता है क्योंकि इस बात का सीधा असर उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी पर पड़ता है। स्थानीय स्वशासन में लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं, जिन तक वे आसानी से पहुंचकर अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दबाव बना सकते हैं। इस प्रकार स्थानीय स्वशासन में जनता और शासन के बीच घनिष्ठ सम्पर्क रहता है।

3. प्रशासन में दक्षता:
स्थानीय स्वशासन प्रशासन में दक्षता लाता है। स्थानीय सरकारें प्रान्तीय और संघीय सरकारों के प्रशासनिक बोझ को कम करती हैं। स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय निकायों द्वारा की जाती है। प्रशासनिक बोझ के कम होने से प्रत्येक स्तर की सरकार की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। उदाहरण के रूप में गीता राठौड़ ने ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हुए जमनिया तलाब पंचायत में बड़ा बदलाव कर दिखाया।

4. कम खर्च:
स्थानीय स्वशासन, प्रदेश की सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों के माध्यम से किये जाने वाले स्थानीय शासन की तुलना में कम खर्चीला होता है। स्थानीय निकायों के सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं, वे स्थानीय मामलों के प्रबन्ध पर अपना समय और शक्ति या तो ऑनरेरी आधार या छोटे भत्तों पर प्रदान करते हैं। दूसरे, सरकार जो धन व्यय करती है, उस पर कम ध्यान देती है; जबकि स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य खर्च किये जाने वाले धन को सावधानी से खर्च करते हैं। अतः निर्वाचित स्थानीय निकायों के द्वारा स्थानीय समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।

5. सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही:
लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता की सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही पूर्ण प्रशासन की आवश्यकता होती है। जीवन्त और मजबूत स्थानीय स्वशासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। गीता राठौड़ की कहानी प्रतिबद्धता के साथ लोकतंत्र में भागीदारी करने की घटनाओं में से एक है। स्थानीय स्वशासन के स्तर पर आम नागरिक को उसके जीवन से जुड़े मसलों, जरूरतों और उसके विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।

6. लोकतंत्र की सफलता में सहायक:
लोकतंत्र केवल वहाँ सफल हो सकता है जहाँ लोगों में स्वतंत्रता की भावना हो। इसके लिए शक्ति के विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता होती है, जब तक निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने में विकेन्द्रीकरण नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता। इसलिए जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं, वे काम स्थानीय लोगों और उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। इस तरह स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के समान है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 2.
भारत में स्थानीय शासन के विकास की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत में स्थानीय शासन का विकास: भारत में स्थानीय शासन के विकास का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1. प्राचीन काल में स्थानीय शासन:
प्राचीन भारत में गाँवों और शहरों में स्थानीय सरकारें थीं। इतिहासकारों तथा विदेशी यात्रियों ने शहरों में स्थानीय निकायों का उल्लेख किया है। गाँवों में प्राचीन भारत में ‘सभा’ के रूप में स्थानीय निकाय थे । समय बीतने के साथ गांव की इन सभाओं ने ‘पंचायत’ का रूप ले लिया। समय बदलने के साथ- साथ पंचायतों की भूमिका और काम भी बदलते रहे।

2. ब्रिटिश काल में स्थानीय शासन:
भारत में ब्रिटिश काल में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के इन स्थानीय निकायों ने अपना महत्व खो दिया। इसलिए आधुनिक काल के स्थानीय निकायों और प्राचीन तथा मध्यकालीन भारत के स्थानीय निकायों के मध्य कोई तारतम्य नहीं है।
जब अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन स्थापित किया, उन्होंने भारत में गाँवों और शहरों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इसकी अपेक्षा उन्होंने स्थानीय आत्मनिर्भरता तथा स्वायत्तता को खत्म करने का प्रयास किया और उनके ऊपर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया।

लार्ड रिपन का शासनकाल आधुनिक भारत के स्थानीय स्वशासन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण है। उसने इन निकायों को बनाने की दिशा में पहलकदमी की। सबसे पहले सन् 1888 में बम्बई में एक म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की स्थापना की गई। इसके बाद कलकत्ता और मद्रास में भी इनकी स्थापना हुई। प्रारम्भ में स्थानीय स्वशासन की इन संस्थाओं में सरकारी बहुमत था तथा सरकार का उनके ऊपर पूर्ण नियंत्रण था। उस समय इन्हें मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था।

1909 में रॉयल कमीशन ने स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के विकास और उनकी स्थापना की सिफारिश की। इसने यह भी सिफारिश की कि इन निकायों में निर्वाचित गैर-सरकारी सदस्यों का बहुमत हो तथा इन निकायों को कर लगाने के अधिकार होने चाहिए। गवर्नमेंट आफ इण्डिया एक्ट 1919 के बनने पर अनेक प्रान्तों में ग्राम पंचायत बने। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट बनने के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही।

3. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय नेताओं की मांग:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सरकार से यह मांग की कि सभी स्थानीय बोर्डों को ज्यादा कारगर बनाने के लिए वह जरूरी कदम उठाये। महात्मा गाँधी ने जोर देकर कहा कि आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। उनका मानना था कि ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाना सत्ता के विकेन्द्रीकरण का कारगर साधन है। विकास की हर पहलकदमी में स्थानीय लोगों की भागीदारी होनी चाहिए ताकि यह सफल हो। इस तरह, पंचायत को सहभागी लोकतंत्र को स्थापित करने के साधन के रूप में देखा गया।

4. संविधान में स्थानीय स्वशासन के प्रावधान:
जब स्वतंत्र भारत का संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया। संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में भी इसकी चर्चा है। इसमें कहा गया है कि देश की हर सरकार अपनी नीति में इसे एक निर्देशक तत्व मानकर चले। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानीय शासन के मसले को संविधान में यथोचित महत्व नहीं मिला।

5. स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का विकास: स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का विकासक्रम इस प्रकार
(i) सामुदायिक विकास कार्यक्रम:
स्थानीय शासन के निकाय बनाने के सम्बन्ध में स्वतंत्रता के बाद 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम बना। इस कार्यक्रम के पीछे सोच यह थी कि स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो।

(ii) स्वतन्त्र भारत में संविधान संशोधन 73 व 74 के पूर्व तक स्थानीय निकायों के गठन की स्थिति:
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों के लिए त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई तथा कुछ प्रदेशों गुजरात, महाराष्ट्र ने 1960 में निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकायों की प्रणाली अपनायी । लेकिन ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। कई प्रदेशों ने निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकाय स्थापित करने की जरूरत भी नहीं समझी। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहाँ स्थानीय शासन का जिम्मा सरकारी अधिकारी को सौंप दिया गया। कई प्रदेशों में अधिकांश स्थानीय निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से हुए। अनेक प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव समय-समय पर स्थगित होते रहे।

(iii) थुंगन समिति की सिफारिश (1989):
सन 1989 में पी. के. थुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की और कहा कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराने, उनके समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये।

(iv) संविधान का 73वां और 74वां संशोधन:
स्थानीय शासन को मजबूत करने तथा पूरे देश में इसके कामकाज तथा बनावट की एकता लाने के उद्देश्य से सन् 1992 में संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन संसद ने पारित किये। संविधान का 73वां संशोधन गांव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका सम्बन्ध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है। संविधान का 74वां संशोधन शहरी स्थानीय शासन ( नगरपालिका) से जुड़ा है। ये दोनों संविधान संशोधन 1993 में लागू हुए। संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन के बाद देश में स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला है।

(v) 73वें और 74वें संशोधनों का क्रियान्वयन:
अब सभी प्रदेशों ने 73वें संशोधन के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं। अब सभी प्रदेशों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के चुनाव प्रति 5 वर्ष के लिए प्रत्यक्ष रूप से किये जाते हैं। सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रि-स्तरीय है। ग्रामसभा को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सीटों पर तथा अध्यक्ष पदों पर आरक्षण दिया गया है।

राज्य सूची के 29 विषयों को 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिया गया है, लेकिन इन सभी विषयों को अभी प्रदेशों ने स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरित नहीं किया है। एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयुक्त की स्थापना की गई है जो इन संस्थाओं के चुनाव करायेगा। इसके साथ ही स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को राजस्व के बंटवारे की समीक्षा हेतु एक राज्य वित्त आयोग की स्थापना भी की गई है। लेकिन अभी भी स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र सरकार की वित्तीय मदद के लिए निर्भर रहते हैं क्योंकि उनके पास आय के साधन कम हैं और खर्च की मदें अधिक हैं।

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प्रश्न 3.
पंचायती राज व्यवस्था के संबंध में संविधान के 73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताएँ: 73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  • त्रिस्तरीय बनावट; 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि राज्य सरकार अपने क्षेत्र में पंचायती राज संस्थाएँ निम्न प्रकार से स्थापित करेगी
    1. ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर एक गांव या एक से अधिक गांवों में एक ग्राम पंचायत।
    2. मध्यवर्ती स्तर पर जिसे खंड या तालुका भी कहा जाता है। एक मंडल पंचायत या तालुका पंचायत या पंचायत समिति।
    3. जिला स्तर पर एक जिला पंचायत (जिला परिषद्)।
  • ग्रामसभा की अनिवार्यता: संविधान के 73वें संशोधन में इस बात का भी प्रावधान है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनायी जानी चाहिए। पंचायती हलके में मतदाता के रूप में दर्ज हर व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम सभा की भूमिका और कार्य का फैसला प्रदेश के कानूनों से होता है।
  • चुनाव: इस संशोधन अधिनियम में निर्वाचन सम्बन्धी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं।
    1. पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के सदस्य सीधे जनता द्वारा निर्वाचित होंगे।
    2. हर पंचायती निकाय की अवधि पांच साल की होगी। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके छः माह के अन्दर नये चुनाव कराये जायेंगे। इन प्रावधानों से निर्वाचित स्थानीय निकायों के अस्तित्व को सुनिश्चित किया गया है।
  • आरक्षण के प्रावधान: इस संशोधन अधिनियम में किए गए सदस्यों तथा अध्यक्ष पदों के आरक्षण के निम्न प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं।
    1. सभी पंचायती संस्थाओं में एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
    2. तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसचित जनजाति के लिए सीटों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अनुसूचित जाति / जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में की गई है।
    3. यदि प्रदेश की सरकार जरूरी समझे, तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग को भी सीट में आरक्षण दे सकती है।
    4. तीनों ही स्तर पर अध्यक्ष पद तक आरक्षण दिया गया है।
    5. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था है।

(5) विषयों का स्थानान्तरण:
ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं। इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। इन कार्यों का वास्तविक हस्तान्तरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

(6) आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को सम्मिलित नहीं किया गया है- भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73वें संशोधन के प्रावधानों से दूर रखा गया है। ये क्षेत्र हैं।

  1. नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम के राज्य।
  2. मणिपुर राज्य में ऐसे पर्वतीय क्षेत्र जिनके लिए उस समय लागू किसी विधि के अधीन जिला परिषदें विद्यमान
  3. पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के ऐसे पर्वतीय क्षेत्र, जहाँ विधिवत गोरखा पर्वतीय परिषद विद्यमान ये प्रावधान इन क्षेत्रों पर लागू नहीं होते थे। सन् 1996 में अलग से एक अधिनियम बना और पंचायती व्यवस्था के प्रावधानों के दायरे में इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया।

(7) राज्य चुनाव आयुक्त:
इस संशोधन अधिनियम में अब प्रदेशों के लिए एक राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गयी है, जो एक स्वतंत्र अधिकारी होगा। इसकी जिम्मेदारी राज्य में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।

(8) राज्य वित्त आयोग:
इस संशोधन अधिनियम में अब प्रदेशों की सरकार के लिए हर पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना अनिवार्य कर दिया गया है जो मौजूदा स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा तथा प्रदेश के राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा।

प्रश्न 4.
शहरी स्थानीय स्वशासन से संबंधित संविधान के 74वें संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
74वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं: संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका से है। शहरी इलाका क्या है? भारत की जनगणना में शहरी इलाके की परिभाषा करते हुए जरूरी माना गया है कि ऐसे इलाके में

(क) कम से कम 5000 जनसंख्या हो,

(ख) इस इलाके के कामकाजी पुरुषों में कम से कम 75 प्रतिशत खेती-बाड़ी के काम से अलग माने जाने वाले पेशे में हों, और

(ग) जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।
सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाके में रहती है। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण, विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग के प्रावधान वही हैं, जो 73वें संविधान संशोधन में दिये गये हैं। इन मामलों में यह 73वें संविधान संशोधन का दोहराव मात्र है।
  2. 74वां संविधान संशोधन नगरपालिकाओं पर लागू होता है। ( इसके विस्तृत विवेचन के लिए कृपया पूर्व प्रश्न का उत्तर देखें ।)

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 5.
73वें और 74वें संविधान संशोधन के क्रियान्वयन पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
73वें और 74वें संविधान संशोधन का क्रियान्दयन: वर्तमान में सभी प्रदेशों ने 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं। इन प्रावधानों को अस्तित्व में आए अब 15 वर्ष से ज्यादा हो रहे हैं । इस अवधि ( 1994 – 2010) में अधिकांश प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव कम से कम तीन बार हो चुके हैं। इनके क्रियान्वयन से स्थानीय शासन के क्षेत्र में निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आई हैं।

1. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में वृद्धि:
73वें व 74वें संविधान संशोधनों के क्रियान्वयन के पश्चात् ग्रामीण भारत में जिला पंचायतों की संख्या लगभग 600, मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6000 तथा ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40,000 है। शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1400 नगरपालिकाएँ तथा 2,000 नगर पंचायतें मौजूद हैं। हर पांच वर्ष पर इन निकायों के लिए 32 लाख सदस्यों का निर्वाचन होता है। इनमें से 13 लाख महिलाएँ हैं। यदि प्रदेशों की विधानसभा तथा संसद को एक साथ रखकर देखें तो भी इनमें निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या 5000 कम बैठती है। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानीय निकायों के निश्चित चुनाव होने के कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।

2. देश भर की स्थानीय संस्थाओं की बनावट में समानता:
73वें और 74वें संशोधन ने देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एक-सा किया है। इससे शासन में जनता की भागीदारी के लिए मंच और माहौल तैयार होगा।

3. स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी का सुनिश्चित होना:
पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। आरक्षण का प्रावधान अध्यक्ष और सरपंच जैसे पद के लिए भी है। इस कारण निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं।

2000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80 हजार से ज्यादा है। नगर निगमों में 30 महिलाएँ महापौर हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में है। इसके निम्न प्रभाव परिलक्षित हुए

  • संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं में ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है।
  • इन संस्थाओं में महिलाओं की मौजूदगी के कारण बहुत सी स्त्रियों की राजनीतिक समझ पैनी हुई है।
  • स्थानीय निकायों के विचार-विमर्श में महिलाओं की मौजूदगी एक नया परिप्रेक्ष्य जोड़ती है और चर्चा ज्यादा संवेदनशील होती है।

4. स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में परिवर्तन:
73वें तथा 74वें संविधान संशोधन ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को अनिवार्य बना दिया है। इसके साथ ही अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। स्थानीय शासन के शहरी और ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों की संख्या लगभग 6.6 लाख है। इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी परिवर्तन आए हैं।

ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के माध्यम से ज्यादा हो रही है। कभी-कभी इससे पुराने नेतृत्व और नये नेतृत्व के बीच तनाव भी पैदा होता है तथा सत्ता के लिए संघर्ष तेज हो जाता है। जब भी लोकतंत्र को ज्यादा सार्थक बनाने और ताकत से वंचित लोगों को ताकत देने की कोशिश होती है, तब समाज में संघर्ष और तनाव बढ़ता ही है।

5. व्यवहार में विषयों का हस्तांतरण नहीं:
संविधान के संशोधन ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं। लेकिन स्थानीय कामकाज के पिछले दशक के अनुभव से व्यवहार में निम्नलिखित तथ्य उजागर हुए है।

  1. भारत में अभी भी स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को अपना कामकाज स्वतंत्रतापूर्वक करने की छूट बहुत कम
  2. अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे थे। इस तरह, इतने सारे जन-प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने का पूरा का पूरा काम बस प्रतीकात्मक बनकर रह गया है। स्थानीय स्तर की जनता के पास लोक-कल्याण के कार्यक्रमों अथवा संसाधनों के आबंटन के बारे में विकल्प चुनने की ज्यादा शक्ति नहीं होती।

6. वित्तीय निर्भरता:
स्थानीय निकायों के पास अपना कह सकने लायक धन बहुत कम होता है। स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं। इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का क्षरण हुआ है; क्योंकि ये निकाय अनुदान देने वाले पर निर्भर होते हैं।

JAC Class 9 Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

Students must go through these JAC Class 9 Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ to get a clear insight into all the important concepts.

JAC Board Class 9 Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

→ द्रथ्य तीन अवस्थाओं-ठोस, द्रव तथा गैस के रूप में विद्यमान होता है।

→ द्रव्य अत्यन्त सूक्ष्म कणों से मिलकर बना होता है।

→ ठोस के कणों में आकर्षण बल सर्वाधिक, गैस के कणों में न्यूनतम और द्रव के कणों में, ठोसों से कम तथा गैसों से अधिक होता है।

→ व्रेस के कणों के बीच का रिक्त स्थान और गतिज ऊर्जा न्यूनतम, गैसों के लिए इसका मान अधिकतम तथा द्रवों के लिए मध्यवर्ती होता है।

→ वोसों के अणु एक विशेष क्रम में व्यवस्थित होते है। द्रवों में कणों की परतें एक-दूसरे पर फिसल सकती है। गैसों में अणुओं का कोई भी निश्चित क्रम नहीं होता है तथा गैसों के कण अनियमित रूप से गति करते हैं।

→ ताप व दाय में परिवर्तन करने पर पदार्थ की अवस्थाएँ आपस में परिवत्तिंत की जा सकती हैं।

→ ऊर्ध्वपातन प्रक्रम में ठोस पदार्थ द्रव में परिवर्तित हुए बिना ही सीधे गैसीय अवस्था में आ जाता है और निक्षेपण प्रक्रम में गैसीय अवस्था से सीधे टोस अवस्था में आ जाता है।

JAC Class 9 Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

→ क्वथनांक वायुमंडलीय दाब पर वह ताप है जिस पर द्रव गैस में बदलना शुरू हो जाता है।

→ वाष्पीकरण में द्रव की सतह के कण पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त कर उनके बीच के लगने वाले परस्पर आकर्षण बलों को पार कर लेते है और द्रवव अवस्था से वाष्प अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं।

→ वाष्पीकरण की गति, सतही क्षेत्रफल जिसका वायुमण्डल के प्रति परित्याग होता है, तापमान, आर्द्रता और वायु की गति पर निर्भर करती है।

→ वाष्पीकरण द्वारा ठंडक उत्पन्न होती है जैसे एल्कोहल को हथेली पर डालने से हथेली ठंडी हो जाती है।

→ वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा ऊष्मीय ऊर्जा की वह मात्रा है जो 1 kg द्रव को वायुमण्डलीय दाब और द्रव के क्वथनांक पर गैसीय अवस्था में परिवर्तन करने हेतु प्रयोग होती है।

→ संगलन की गुप्त ऊष्मा ऊर्जा की वह मात्रा है जो 1 kg ठोस को वायुमण्डलीय दाय पर ठोस को उसके संगलन बिन्दु पर लाने के लिए प्रयुक्त होती है।

→ कुछ मापन योग्य राशियाँ व उनके मात्रक-

राशि मात्रक प्रतीक
तापमान केल्व्वन K
लम्बाई मीटर m
संहति किलोग्राम kg
भार न्यूटन N
आयतन घन मीटर
घनत्व किग्रा प्रति घन मीटर kg/m³ या kg-3
दाब पास्कल Pa

→ विश्व में प्रत्येक वस्तु जिस सामग्री से बनी होती है उसे पदार्थ (matter) कहते हैं। सभी वस्तुओं का द्रव्यमान तथा आयतन होता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने पदार्थ को भौतिक गुणों व रासायनिक गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया है।

JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

Jharkhand Board JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. किस वैज्ञानिक ने पाँच जगत प्रणाली प्रस्तुत की?
(a) लिनियस
(c) कार्ल बोस
(b) व्हिटेकर
(d) अर्न्सट हेकेल।
उत्तर:
(b) व्हिटेकर।

2. ‘दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ पुस्तक के लेखक थे-
(a) अर्न्सट हेकेल
(b) चार्ल्स डार्विन
(c) व्हिटेकर
(d) लिनियस।
उत्तर:
(b) चार्ल्स डार्विन।

3. नील हरित शैवाल किस वर्ग में आते हैं?
(a) प्लांटी
(b) मोनेरा
(c) प्रोटिस्टा
(d) कवक।
उत्तर:
(b) मोनेरा।

4. शैवाल उदाहरण है-
(a) माँस
(b) प्रोटोजोआ
(c) यीस्ट
(d) प्रोटिस्टा

5. प्रकाश संश्लेषण की
(a) जन्तुओं में
(b) हरे पौधों में।
(c) कवकों में
(d) उपर्युक्त सभी में।
उत्तर:
(b) हरे पौधों में।

JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

6. जिम्नोस्पर्म का उदाहरण है-
(a) आइपोमिया
(b) पाइनस
(c) फ्यूनेरिया
(d) मासलिया।
उत्तर:
(b) पाइनस।

7. किस संघ का शरीर छिद्रमय होता है?
(a) पोरीफेरा
(b) प्रोटोजोआ
(c) मोलस्का
(d) एनीलिडा
उत्तर:
(a) पोरीफेरा।

8. निम्नलिखित में कौन-सा जन्तु मछली है?
(a) जेलीफिश
(b) झींगा मछली
(c) तारा मछली
(d) लेखियो।
उत्तर:
(d) लेखियो।

9. किस संघ के जन्तुओं में
(a) एनीलिडा
(b) मॉलस्का
(c) आर्थ्रोपोडा
(d) इकानोडर्मेटा।
उत्तर:
(c) आर्थ्रोपोडा।

10. एक ही वंश फेलिस में रखें गये जन्तु हैं-
(a) शेर
(b) चीता
(c) तेन्दुआ
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

11. द्विनाम पद्धित के जन्मदाता हैं-
(a) केरोलस लिनियस
(b) ओसवाल्ड टिप्पो
(c) व्हिटेकर
(d) चार्ल्स डार्विन।
उत्तर:
(a) केरोलस लिनियस।

12. उपास्थि का कंकाल बना होता है-
(a) शार्क
(b) बेल
(c) लेबियो
(d) हिप्पोकैम्पस।
उत्तर:
(a) शार्क।

रिक्त स्थान भरो-

  1. …………………. जगत में एककोशिक प्रोकैरियोटी जीव आते हैं।
  2. …………………. को मृतजीवी कहते हैं।
  3. पुष्पी पादपों को ………………… भी कहा जाता है।
  4. केंचुआ भी कहा जाता है। जंतु का उदाहरण हैं।

उत्तर:

  1. मोनेरा
  2. फंजाई
  3. एंजियोस्पर्म
  4. एनीलिड।

सुमेलन कीजिए-

कॉलम ‘क’ कॉलम ‘ख’
1. तारा मछली (क) मोलस्क
2. मकड़ी (ख) इकाइनोडर्म
3. ऑक्टॉपस (ग) सरीसृप
4. छिपकली (घ) आर्थ्रोपोड

उत्तर:
1. (ख) इकाइनोडर्म
2. (घ) आर्थ्रोपोड
3. (क) मोलस्क
4. (ग) सरीसृप

JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

सत्य / असत्य-

  1. पक्षी समतापी प्राणी होते हैं।
  2. स्तनपायी जीवों का हृदय द्विकक्षीय होता है।
  3. पादप जगत का सरलतम वर्ग ब्रायोफाइटा है।
  4. मनुष्य का वैज्ञानिक नाम होमो सेपियन्स है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. सत्य।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्गीकरण क्या है?
उत्तर:
जीवों को उनकी समानता एवं भिन्नता के आधार पर अनेक वर्गों में बाँटना वर्गीकरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण का आधारभूत लक्षण क्या है?
उत्तर:
वर्गीकरण का आधारभूत लक्षण कोशिकीय संरचना एवं कार्य है।

प्रश्न 3.
प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीवों को क्या कहते हैं?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीवों को पौधे कहते हैं।

प्रश्न 4.
पौधों का शरीर किस आधार पर विकसित होता है?
उत्तर:
पौधों का शरीर भोजन ग्रहण करने के आधार पर विकसित होता है।

प्रश्न 5.
व्हिटेकर ने जीवों को किन समूहों में वर्गीकृत किया?
उत्तर:
व्हिटेकर ने जीवों को पाँच समूहों में वर्गीकृत किया था। ये समूह हैं-मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई, प्लांटी और एनीमेलिया।

प्रश्न 6.
वर्गीकरण की विभिन्न इकाइयाँ क्या हैं?
उत्तर:
जगत, संघ, वर्ग, गण, कुल, वंश तथा जाति वर्गीकरण की विभिन्न इकाइयाँ हैं।

प्रश्न 7.
बोस ने मोनेरा जगत को किन दो भागों में बाँटा?
उत्तर:
बोस ने मोनेरा जगत को दो भागों में बाँटा-

  • आकीबैक्टीरिया
  •  यूबैक्टीरिया।

प्रश्न 8.
व्हिटेकर ने वर्गीकरण का आधार किसे बनाया था?
उत्तर:
व्हिटेकर ने कोशिकीय संरचना, पोषण के स्रोत और तरीके तथा शारीरिक संगठन को वर्गीकरण का आधार बनाया था।

प्रश्न 9.
मोनेरा वर्ग में कौन-कौन से जीव आते हैं?
उत्तर:
मोनेरा वर्ग में एककोशिकीय जीव आते हैं, जिनमें कोशिका भित्ति पाई जाती है।

प्रश्न 10.
मोनेरा वर्ग के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मोनेरा वर्ग के तीन उदाहरण- जीवाणु, नील- हरित शैवाल, माइकोप्लाज्मा हैं।

प्रश्न 11.
प्रोटिस्टा वर्ग के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रोटिस्टा वर्ग के तीन उदाहरण एककोशिकीय शैवाल, प्रोटोजोआ, डाइएटम।

प्रश्न 12.
फंजाई को मृतजीवी क्यों कहते हैं?
उत्तर:
फंजाई पोषण के लिए सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करती है, इसलिए इसे मृतजीवी कहते हैं।

प्रश्न 13.
फंजाई की कोशिका भित्ति किस पदार्थ की बनी होती है?
उत्तर:
फंजाई की कोशिका भित्ति काइटिन नामक जटिल शर्करा की बनी होती है।

प्रश्न 14.
सहजीविता किसे कहते हैं?
उत्तर:
कवकों की कुछ प्रजातियाँ नील हरित शैवाल के साथ स्थायी अन्तर्सम्बन्ध बनाती हैं, इसे सहजीविता कहते हैं।

प्रश्न 15.
लाइकेन क्या हैं?
उत्तर:
वृक्षों की छालों पर रंगीन धब्बों के रूप में दिखाई देने वाले जो कवकों एवं नील हरित शैवाल की सहजीविता से बनते हैं, उनको लाइकेन कहते हैं।

प्रश्न 16.
शैवाल और कवक किस समूह में आते हैं?
उत्तर:
शैवाल और कवक थैलोफाइटा समूह में आते हैं।

प्रश्न 17.
ब्रायोफाइटा वर्ग के पौधों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
ब्रायोफाइटा वर्ग के पौधों को उभयचर नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 18.
ब्रायोफाइटा के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
फ्यूनेरिया (मॉस) तथा मार्केशिया।

प्रश्न 19.
टेरिडोफाइटा वर्ग के पौधों का शरीर कितने भागों में विभाजित होता है?
उत्तर:
टेरिडोफाइडा वर्ग के पौधों का शरीर जड़, तना तथा पत्ती में विभाजित होता है।

JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 20.
टेरिडोफाइडा के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मार्सीलिया, फर्न, हॉर्स टेल।

प्रश्न 21.
बीजाणु (स्पोर) किसे कहते हैं?
उत्तर:
थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा और टेरिडोफाइटा में नग्न भ्रूण पाये जाते हैं, जिन्हें बीजाणु (स्पोर) कहते हैं।

प्रश्न 22.
क्रिप्टोगैम किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है, उन्हें क्रिप्टोगैम कहते हैं।

प्रश्न 23.
फैनरोगैम किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
वे पौधे जिनमें जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन की प्रक्रिया के बाद बीज उत्पन्न करते हैं, उन्हें फैनरोगैम कहते हैं।

प्रश्न 24.
एन्जियोस्पर्म किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
जिन पौधों के बीज फलों के अन्दर ढके होते हैं। इनके बीजों का विकास अण्डाशय के अन्दर होता है, जो बाद में फल बन जाते हैं। इन्हें एन्जियोस्पर्म कहते हैं।

प्रश्न 25.
एन्जियोस्पर्म को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
एन्जियोस्पर्म को दो भागों में बाँटा गया है- एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री।

प्रश्न 26.
जिम्नोस्पर्म पौधे किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधों को जिम्नोस्पर्म कहते हैं।

प्रश्न 27.
पोरीफेरा में नाल प्रणाली का क्या कार्य है?
उत्तर:
पोरीफेरा के शरीर में नाल प्रणाली जल, ऑक्सीजन एवं भोज्य पदार्थों का संचरण करती है।

प्रश्न 28.
पोरीफेरा के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साइकॉन, यूप्लेक्टीला, स्पांजिला आदि।

प्रश्न 29.
सीलेन्ट्रेटा जन्तुओं के समूह में और एकाकी रहने वाले जीवों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
समूह में रहने वाले जीव- कोरल (मूँगा) एकल रहने वाले जीव- हाइड़ा, जेलीफिश।

प्रश्न 30.
दो परजीवी प्लेटीहेल्मिन्थीज जन्तुओं के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
लिवरफ्लूक, टेपवर्म।

प्रश्न 31.
तीन परजीवी निमेटोड के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
गोलकृमि (ऐस्कैरिस), फाइलेरिया कृमि, पिनवर्म।

प्रश्न 32.
एनीलिडा वर्ग के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
केंचुआ, नेरीस, जोंक।

प्रश्न 33.
जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ कौन-सा है?
उत्तर:
जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ आर्थ्रोपोडा है।

प्रश्न 34.
आर्थ्रोपोडा के पाँच उदाहरण लिखो।
उत्तर:
झींगा, तितली, मक्खी, मकड़ी, बिच्छू, केंकड़ा।

प्रश्न 35.
मोलस्का जन्तुओं के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सीप, घोंघा, ऑक्टोपस

प्रश्न 36.
जल संवहन नाल तन्त्र किन जीवों में पाया जाता है?
उत्तर:
जल संवहन नाल तन्त्र इकाइनोडर्मेटा संघ के जन्तुओं में पाया जाता है, जो इनके चलन में सहायक होता है, जैसे- स्टारफिश।

प्रश्न 37.
प्रोटोकॉर्डेटा वर्ग के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बैलेनोग्लॉसस, हर्डमानिया, एम्फिऑक्सस।

प्रश्न 38.
कशेरुकी जीवों के प्रमुख लक्षण लिखो।
उत्तर:
नोटोकॉर्ड की उपस्थिति, पृष्ठनलीय कशेरुकदण्ड एवं मेरुरज्जु, त्रिकोरकी शरीर, युग्मित क्लोम थैली, देहगुहा की उपस्थिति।

प्रश्न 39.
मत्स्य वर्ग के कोई तीन लक्षण लिखो।
उत्तर:
मत्स्य वर्ग के जन्तुओं का शरीर शल्क या प्लेटों से ढका हुआ, हृदय द्विकक्षीय श्वसन क्लोमों द्वारा, अण्डज प्राणी।

प्रश्न 40.
किस मछली का कंकाल केवल उपास्थि का बना होता है?
उत्तर:
शार्क मछली का शरीर केवल उपास्थि का बना होता है।

JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 41.
हिप्पोकेम्पस किस वर्ग का जन्तु है?
उत्तर:
हिप्पोकेम्पस मत्स्य वर्ग का जन्तु है।

प्रश्न 42.
जल-स्थलचर वर्ग की चार विशेषताएँ (लक्षण) बताओ।
उत्तर:
जलस्थलचर वर्ग के जन्तु जल और स्थल दोनों स्थानों पर रह सकते हैं। इनकी त्वचा पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। हृदय त्रिकक्षीय होता है ये असमतापी होते हैं और जल में अण्डे देते हैं।

प्रश्न 43.
असमतापी जन्तुओं के दो वर्गों के नाम लिखो।
उत्तर:
जल-स्थलचर व सरीसृप वर्ग के जन्तु असमतापी होते हैं।

प्रश्न 44.
चार सरीसृप वर्ग के जन्तुओं के नाम लिखो।
उत्तर:
साँप, छिपकली, कछुआ, मगरमच्छ।

प्रश्न 45.
पक्षी किस प्रकार के जन्तु हैं?
उत्तर:
पक्षी समतापी तथा वायु में उड़ने वाले जन्तु हैं।

प्रश्न 46.
पक्षियों के पंख किस अंग के रूपान्तर हैं?
उत्तर:
पक्षियों के पंख आगे के दो पैरों के रूपान्तर हैं।

प्रश्न 47.
किन्हीं दो अण्डे देने वाले स्तनपायी जन्तुओं के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. इकिडना
  2. प्लेटीपस।

प्रश्न 48.
जल में रहने वाले दो स्तनपायी जन्तुओं के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. ह्वेल
  2. वालरस।

प्रश्न 49.
अविकसित बच्चों को जन्म देने वाले स्तनपायी का नाम लिखो।
उत्तर:
कंगारू अविकसित बच्चों को जन्म देती है।

प्रश्न 50.
मासूपियम थैली क्या होती है?
उत्तर:
कंगारू के पेट पर मासूपियम नामक थैली होती. है, इसमें अविकसित बच्चों के पोषण हेतु स्तनग्रन्थियाँ होती हैं। बच्चे इस थैली में तब तक रहते हैं जब तक कि उनका पूर्ण विकास नहीं हो जाता है।

प्रश्न 51.
‘सिस्टेमा नेचुरी’ पुस्तक के लेखक का नाम बताओ।
उत्तर:
सिस्टेमा नेचुरी’ पुस्तक कालवानलिने (केरोलस लिनियस) ने लिखी थी।

प्रश्न 52.
द्विनाम पद्धति किसने प्रस्तुत की थी?
उत्तर:
द्विनाम पद्धति केरोलस लिनियस ने प्रस्तुत की थी।

प्रश्न 53.
मेगाडाइवर्सिटी क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र को मेगाडाइवर्सिटी क्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में जो नमी और गर्मी वाला भाग है वहाँ पौधों और जन्तुओं में पर्याप्त विविधता पाई जाती है।

प्रश्न 54.
पृथ्वी पर जैव विविधता का आधे से अधिक भाग किन देशों में केन्द्रित है?
उत्तर:
पृथ्वी पर जैव विविधता का आधे से अधिक भाग मैक्सिको, ब्राजील, कोलम्बिया, इक्वेडोर, पेरू, जायरे, मैडागास्कर, आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, इण्डोनेशिया और मलेशिया में केन्द्रित है।

लघुत्तरात्मक एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैवविविधता से क्या तात्पर्य है? जैव विविधता असीमित है, इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव विविधता जैव विविधता से तात्पर्य विभिन्न जीवरूपों में पाई जाने वाली विविधता से है। यह शब्द किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले विभिन्न जीवरूपों की ओर संकेत करता है। ये विभिन्न जीव न केवल एक समानं पर्यावरण में रहते हैं बल्कि एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।

इसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रजातियों का स्थायी समुदाय अस्तित्व में आता है। किसी समुदाय की विविधता भूमि, जल, जलवायु आदि कई चीजों से प्रभावित होती है। अनुमानित रूप से पृथ्वी पर जीवों की लगभग 1 करोड़ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जबकि हमें केवल 10 लाख या 20 लाख प्रजातियों की ही जानकारी है।

प्रश्न 2.
क्या जीवों की विविधता आदिकाल से इसी प्रकार की है?
उत्तर:
जीवों की विविधता आदिकाल से इसी प्रकार आज या अब जो विविधता दिखाई देती है, वह विगत् 350 करोड़ वर्षों के जैव विकास का परिणाम है। इस अत्यधिक दीर्घ अवधि में बहुत सी जातियाँ अस्तित्व में आई और बहुत सी विलुप्त हो गई ऐसा अनुमान लगाया गया है कि जीवों की विलुप्त हुई जातियों की संख्या आ गुनिक काल में पाई जाने वाली जातियों से 50 गुना अधिक थी।

JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 3.
जीवों के वर्गीकरण की आवश्यकता क्यों है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण की आवश्यकता- विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव पाए जाते हैं। पहाड़ों पर रहने वाले जीव मैदानी भागों के जीवों से भिन्न होते हैं तो वनों के जीव मरुस्थली जीवों से भिन्न होते हैं। इनमें से प्रत्येक जीव जाति अपने आप में अद्भुत है। इस प्रकार जीवों में असीमित विविधता पाई जाती है। जैव विकास की दीर्घकालीन अवधि में अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। इतनी अधिक संख्या में तथा विविधता में पाए जाने वाले जीवों में से प्रत्येक जीव का अलग-अलग अध्ययन करना सम्भव नहीं है।

इस असम्भव कार्य को सम्भव करने के लिए विभिन्न प्रकार के जीवों को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करना अर्थात उनका वर्गीकरण करना आवश्यक है। वर्गीकरण करने पर हम प्रत्येक वर्ग से कुछ प्रतिनिधि जीवों का अध्ययन करके, उस वर्ग के अन्य सभी सदस्य जीवों के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
वर्गीकरण का महत्व बताइए।
उत्तर:
वर्गीकरण का महत्व-जीवों का वर्गीकरण निम्नलिखित बातों से अत्यधिक महत्वपूर्ण है-

  • किसी भी समूह के एक जीव का अध्ययन करने से उस समूह के सभी जीवों के सामान्य लक्षणों का ज्ञानार्जन किया जा सकता है।
  • विभिन्न समूहों के सामान्य लक्षणों का अध्ययन करके उन्हें जटिलता के आधार पर विकास के क्रम में सरलता से रखा गया है।
  • विभिन्न समूहों के जीवों का अध्ययन करने से कुछ जीव ऐसे भी मिले हैं, जिनमें दो पृथक समूहों के लक्षण विद्यमान थे अथवा हैं
  • ऐसे जीव दो समूहों के मध्य संयोजक कड़ी के रूप में माने जाते हैं। इन के अध्ययन से विभिन्न समूहों में परस्पर सम्बन्ध का बोध होता है।
  • विभिन्न समूहों के जीवों का अध्ययन करने से उन समूहों की उत्पत्ति का ज्ञान हो जाता है। जैसे- पक्षी वर्ग तथा स्तनपायी वर्ग का विकास सरीसृप वर्ग से हुआ है।
  • वर्गीकरण से जीवों में पाई जाने वाली आकारिकीय समानताओं एवं विभिन्नताओं के कारण का भी ज्ञान हो जाता है।
  • किसी वातावरण में पाए जाने वाले विभिन्न वर्गों के लक्षणों के आधार पर उनकी अनुकूलता के बारे में अनुमान लगाया जा सकता विभिन्न वर्गों के जीवों का अध्ययन करने से जैव विकास का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • जीवों (पौधों एवं जन्तुओं) का भौगोलिक वितरण पूर्णत: वर्गीकरण से उपलब्ध सूचनाओं पर आश्रित है।

प्रश्न 5.
द्विनाम पद्धति क्या है? एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
द्विनाम पद्धति लीनियस द्वारा किसी भी जीव का नाम रखने के लिए एक विशेष वैज्ञानिक पद्धति प्रस्तुत की गई, जिसे द्विनाम पद्धति कहते हैं। इसके अनुसार प्रत्येक जीव को दोहरा नाम दिया जाता है- पहला नाम वंश (जीनस) का तथा दूसरा नाम जाति (स्पीशीज) का होता है।

जैसे – मनुष्य का वैज्ञानिक नाम होमो सेपियन्स है। इसमें होमो मनुष्य के वंश (जीनस) तथा सेपियन्स उसकी जाति (स्पीशीज ) को प्रकट करता है। इस पद्धति में वंश का नाम सदैव अंग्रेजी के बड़े अक्षर से तथा जाति का नाम अंग्रेजी के छोटे अक्षर से तिरछे ( इटैलिक) अक्षरों में लिखा जाता है। जैसे- मनुष्य- होमो सेपियन्स (Homo sapiens)

शेर-फेलिस लिओ (Falis leo)

प्रश्न 6.
पौधों एवं जन्तुओं में समानता बताइए।
उत्तर:
पौधों एवं जन्तुओं में समानता –

  • दोनों के शरीर कोशिकाओं से बने होते हैं।
  • दोनों की कोशिकाओं में जीवद्रव्य होता है।
  • दोनों में ही पाचन, श्वसन एवं प्रजनन आदि समान क्रियाएँ होती हैं।
  • दोनों में ही वृद्धि होती है।
  • दोनों ही संवेदनशील होते हैं।
  • दोनों में ही अपनी वंश वृद्धि के लिए प्रजनन क्रिया होती है।

प्रश्न 7.
पौधों और जन्तुओं में अन्तर बताइए।
उत्तर;
पौधों और जन्तुओं में अन्तर –

पौधों (पादप) जन्तु (प्राणी)
1. पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति होती है। 1. इनकी कोशिकाओं में कोशिका भित्ति नहीं होती है।
2. इनकी कोशिकाओं में क्लोरोफिल उपस्थित होता है। 2. इनकी कोशिकाओं में क्लोरोफिल नहीं होता है।
3. हरे पौधे अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं, अर्थात् ये स्वपोषी होते हैं। 3. जन्तु अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, अर्थात् ये परपोषी होते हैं।
4. पौधों में वृद्धि जीवन भर होती है। 4. जन्तुओं में वृद्धि निश्चित आयु तक होती है।
5. अधिकांश पौधे गति नहीं करते हैं। 5. अधिकांश जन्तु गति करते हैं।

प्रश्न 8.
नविटेकर द्वारा प्रस्तुत पाँच जगत के वर्गीकरण को चार्ट बनाकर लिखो।
उत्तर:
चित्र 7.4 देखिए।

प्रश्न 9.
वनस्पति जगत का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया है? चार्ट बनाकर बताओ।
उत्तर:
JAC Class 9 Science Important Questions Chapter 7 जीवों में विविधता 1

प्रश्न 10.
अकशेरुकी और कशेरुकी जन्तुओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अकशेरुकी और कशेरुकी जन्तुओं में अन्तर-

अकशेरुकी जन्तु कशेरुकी जन्तु
1. इनमें नोटोकॉर्ड नहीं होती है। 1. जन्तु की किसी न किसी अवस्था में नोटोकॉर्ड अवश्य पाई जाती है।
2. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र ठोस होता है तथा यह आहार नाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है। 2. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र खोखला एवं नलिकाकार होता है तथा आहारनाल के पृष्ठ तल पर स्थित होता है।
3. इनमें पृष्ठनलीय कशेरुक दण्ड एवं मेरुरज्जु अनुपस्थित होता है। 3. इनमें पृष्ठनलीय कशेरुक द्ण तथा मेरुरज्जु पाया जाता है।
4. इनमें क्लोम विदर नही होते हैं। 4. इनमें युग्मित क्लोम विदर जीवन की किसी न किसी अवस्था में अवश्य पाये जाते हैं।